Manas Mandakini [1]

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Manas Mandakini [1]

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मानस-मन्दाििनी ( ) ‘



[इ पुस्ति िो या इसिे ििसी अंश िो प्रिािशत िरने, उद्धृत िरने अथवा ििसी भी भाषामें अनूिदत िरने िा अिधिार सबिो है।]

श्रीिृष्ण-जन्मस्थान सेवा संस्थान मथुरा-२८१००९ ‚य य

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: -२८१००९ ( . ) -

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, २०३६ िदनांि ९, जुलाई, १९७९, , ३००० य

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य , -२८१००९

यय Rs.3.75 P. MANAS –MANDAKINI: Sudarshan Singh ‘Chakra’

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उनिो िजनिे दलोंिो मध्यमें य प्रस्तार हुआ है।

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अनुक्रमिणिा य ................................ 6 .............................. 15 ................................. 25 .................................... 34 ............................. 44 .................................. 54 य .................................... 64 ........................................ 75 य य ........................................... 88 - य ....................................... 102 ......................................... 116 .......................................... 130 -

.................................... 145

4

- -

................................... 153

-

................................... 162 .................................. 170

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................................. 179 ...................................... 187

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................................... 195 ........................................ 203

इ य

- य .............................. 210

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वन्दे वाणीिवनायिौ वणाानाथामसंघानां रसानां छन्दसामिप मङ्गलानां िताारौ वन्दे वाणीिवनायिौ ॥ 'तमु मेरे समीप िकस ाअकाांक्षासे ाईपिथथत हुए हो वत्स!' भगवान् ब्रह्माने मनसु े पछ ू ा। वे ाऄपने कमलपर एकाग्र बैठे थे। ाऄनेक प्रकारके सााँचोंका ढेर लगा था। ाईनकी ाआच्छा ही सााँचे बनाती, ाईसमें प्राणीका सजृ न करती और सााँचा तोड़ देती। एक सााँचा दसू री बार काममें नहीं ाअता था। यों िपतामह थवत: परमपरुु षके िचन्तनमें लीन थे। 'तम्ु हारी प्राथथनापर मझु पर ाऄनग्रु ह करके भगवान् वाराहने पथ्ृ वीका ाईद्चार कर िदया । श्वेत-वाराह कल्पमें और हो भी क्या सकता है। अब तमु सिृ ि करो! तम्ु हें ाऄपने कतथव्य-पालनमें क्या बाधा पड़ रही है?' ाऄप्सराएाँ नत्ृ य कर रहीं थीं, गन्धवथ एवां िकन्नर गान-नाट्यके द्रारा िपतामहकी ाअराधना कर रहे थे। ाऊिषगण वेदवाणीसे उस स्रिाके थतवनमें लगे थे। स्रिाका ध्यान भल ू ोकसे ाअये ाऄपनी सवथश्रष्ठे कृितके प्रथम परुु षकी ओर था । ‘प्रभ,ु मेरे ये मक ू पत्रु !' मनक ु ा कण्ठ भर गया। मानवने ाऄभी तक वाणी नहीं पायी थी। 'ाऊिषगणोंको व्यक्त छोड़कर वेदवाणी िकसीपर प्रकट होती नहीं। दसू रोंमें ाऄिधकाांश ाऄिधकारी नहीं, और जो हैं भी ाईनसे मात्रा थवरािद भगां होनेपर ाऄनथथका भय है। पश-ु जैसी ाऄव्यक्त भाषा एवां मक ू सङ्के तोंके द्रारा मेरी सन्तित 6

िकस प्रकार ाअत्म-िवकास करे गी और कै से वह सवेशकी महत्ताको व्यक्त करे गी िजसके िलए ही ाईसका सजृ न है?' दोनों हाथ जोड़कर मननु े मथतक झक ु ाया । ' ख न मत ह व स!' सन दकर न त नक गदन म कर प छ दख । च वल क तक कपरग र व स छ दत कय, करम त र न ज टत मयरम ज चवर लय तप सन कल क अ ध म द मद म क नस ख थ । मनक सकत समझन म वल ब नह ह । उ ह न क द ण करक उनक प भ गम थत भगवत प दप म अपन कर टक स थ ह न क भ व वल म उ सग कय। 'शभु ां भयू ात'् िवश्वका सम्पणू थ सांगीत जैसे घनीभतू होकर मख ु ररत हो ाईठा हो । हसां ने ाऄपने पांख फड़फड़ाये । वह ाअनन्दाितरे कसे नाच ाईठा और फुदककर समीप गया। भगवती सािवत्रीने बहृ ती वीणा ाईठाकर समिपथत की। चाँवर लेकर श्रीथफिटकमािलका उन करोंमें सािवत्रीने ही िदया। स मख कर वह च वल म तक क चरण म नत ह । द ण कर उठ कर पत मह न व द दत हए कह -'व स! म नव मर सव क त ह। सर सरक स पण क ल उसम एक ह कर ह पण ह ग !' व क तसचक भङग स म तक झक कर भगवत न हस र हण कय । (२) 7

'ये ाआतने वणथ, माताः! मानवकी ाअयु है िकतनी और ाईसकी थमिृ त भी िकतनी तच्ु छ है? ' मननु े कहा। के वल कुछ सहस्र वषथ और ाऄन्त में ाईसे शतायु भी नहीं रहना है! यिद ाऄिभव्यिक्तके साधन में ही ाईसे ाऄिधक समय व्यय करना होगा तो वह ाआनके द्रारा कौन-सा महत्वपणू थ कायथ करे गा?' प्रत्येक वथतक ु े िलए एक शब्द सांकेत था । इस प्रकार वणोंका बाहुल्य हो गया। ाऄक्षर (िलिप-सांकेत) के रूपमें 'यह अब तक चीनमें चला रहा है।' थफिटकके ाईज्जज्जवल मिन्दर में पणू न्े दक ु ी धवल ज्जयोत्थनासे थनान िवकच कुमिु दनीके सनपर भगवती वीणापािण िवराजमान थीं। हसां ाईनकी पाद-पीठ बन रहा था। मनु सम्मख ु करबद्च ाईपिथथत थे। ‘भगवान् शक थ ां रके डमरू-नादसे िनकले चतदु श माहेश्वरसत्रू ोंके वणथ ही तब तम्ु हारे वणथ रहें?' शारदाने ाऄपनी प्रथम कृितका सथां कार िकया। ये प्रथम िनिमथत वणथ अब धातु कहे जावेंगे! ाआनमें एक-एक धातक ु े ाऄनेक ाऄनेक ाऄथथ होंगे! इस प्रकार मानवको ाऄन्ताःकरणके ाईद्ङेश्यको व्यक्त करने में श्रम कम होगा।' सरथवती द्रारा सथां कार प्राप्त करके सथां कृत-वाणीका उदय हुाअ। 'इसम च य ह ?' अ तत एकव धक उपर त मन पन उस टक म दर म उप थत हए । म नव कवल द नक यवह रक लए वण क उपय ग करत ह। अपन दयक न द 8

एव म त कक क लक य करनक लए त वह कभ प ण क टत ह और कभ क । य स म हक पस वह अपन पक य नह कर सकग !' ाअहार-व्यवहारके ाऄितररक्त वाणीका ाईपयोग नहीं होता था । ाऄक ां नके िलए तब िचत्रिलिप थी। पाषाण एवां काष्ठोंपर िचत्रोंके द्रारा मनष्ु य ाऄपनी कला एवां प्रितभाको प्रकट िकया करता था। 'परमपरुु ष जो सवथत्र व्यापक हैं, एक हैं!' भगवती वीणापािणने कहा - 'ाअनन्द ाईन्हींका थवरूप है। ाऄताः ाअनन्दोल्लास में ऐकािन्तकता थवाभािवक है। रृदयका सम्पणू थ प्राकट्य एवां प्रितभाका सक्ष्ू म प्रथतार तो सदा एकान्तमें ही होगा। भले ही पीछे वह समाजके ाईपयोगमें ाअवे। िकसी भी भावकी पणू तथ ामें बाह्यकी िवथमिृ त ाऄिनवायथ है।' 'तब क्या भगवतीकी यह सिृ ि नीरस व्यवहारके िलए ही है?' िखन्न थवरमें मननु े पछ ू ा। ‘ स नह !' व ण पर व कद क मल अग लय घम गय । त र क झक तक म धयम सचर चर झम उठ । जब वह म दक वर क , म नवन दख , वण क अ भ य अ य त रसमय ह। उनक उपय गम दयक प करनक अ त ह। भ जप एव त प पर म नवक लखन उसक र अपन अ तरक रसक अमर व दन लग । ल पम वण गय ।

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'मन!ु मझु े एक वषथ हो गये ब्रह्मलोकसे वसन्ु धरापर ाअये!' श्री शारदाने एक िदन प्रथथानका िवचार करके कहा-'अब तो तम्ु हें ाऄपनी सन्तानोंके िवकासका साधन प्राप्त हो गया और वह सरस ाअकषथक भी है?' ‘क्षित्रयके नाते मैं के वल तीन वर माांग सकता था और मझु े प्राप्त हो गये ।' मननु े साञ्जिल गद्गद कण्ठसे कहा-'िकन्तु माताः, पत्रु की प्राथथनाओकां ी तो कोाइ ाआित नहीं होती!' 'मााँगो वत्स!' वे वरदाियनी वात्सल्यिवभोर होकर बोलीं! 'इन वग म य द व ण क त र क झक त भ बठत ! उस दनक वह वर सग त मनक क न म अभ तक गज रह थ और व उस अपन स त न क द न करन च हत थ। 'वह भी होगा!' भगवतीने कहा-'ाईसके िलए तम्ु हे प्रतीक्षा करनी होगी। त्रेतामें एक ाऄिधकारी महिषथ होंगे और ाईनके मख ु से इन वणोंमें में सगां ीतको व्यक्त करूांगी। हसां ने पख ां फै लाये और मनक ु े देखते-देखते वह श्वेत-मिू तथ नील-गगनमें ाऄतां िहथत हो गयी और त्रेतामें ाअिद किवके ाईद्भव तक मानवको वगों में सगां ीत (छांद) प्राप्त करनेके िलए प्रतीक्षा करना पड़ा। 'मनष्ु य ाऄपने कतथव्य-पथपर ाअरूढ़ होते हुए भी ज ाअनन्दका ाऄनभु व नहीं कर रहा है!' मननु े जगत्स्रिासे कहा'ाईसकी सारी सफलताएां नीरस हैं और ाईनमें ाईसे श्रािन्तके ाऄितररक्त और कुछ प्राप्त नहीं हो रहा है।' 10

प्रविृ त्तमागथके प्रवथतक ाअिदनरे शने यह ाऄनभु व कर िलया था िक यिद व्यवहार के वल श्रम-मात्र रहा तो लोग ाईसे छोड़ बैठेगे और यिद सभी िवरक्त हो गये तो ससां ारका चक्र चलनेसे रहा । ाऄताः वे पहुचाँ गये थे ाअशतु ोष भगवान् शक ां रके कै लाशमें। ाईच्च िहमशङृ ् गोंसे ाअवतृ उस िगररराट्के मक ु ु टपर िवशाल वटवक्ष ृ नीलम िकरीटके समान सश ु ोिभत था। ाईसीके मल ू में भगवान् िशव जगज्जजननी ाईमाके साथ व्याघ्राम्बरपर ाअसीन थे। सचल िहमालय सदृश श्वेत ाईत्तङु ् ग बषृ भ समीप ही पागरु कर रहा था और बैठा बैठा ाउाँघ-सा रहा था। िनकट ही तिु न्दल शांकरसवु न ाऄपने मषू कपर हाथ घमु ा रहे थे और वह थवािम काितथकेयके मयरू से भीत होकर दबु का जा रहा था। 'मानवने िवघ्नोंको पराभतू तो िकया, िकन्तु ाआससे ाईसे कोाइ सख ु नहीं हुाअ।' मननु े कहा-'सभी गिृ हिणयों को गहृ थवािमनी बनाकर तपोवनकी ओर ाईन्मख ु हैं।' 'ठीक तो है ।' उस शाश्वत तपथवीने गम्भीर थवरमें कहा'िवषयोंसे पराङ मख ु होकर परमात्म तत्त्वकी ाईपलिब्ध ही तो जीवका परम कल्याण है । उस ओर प्रविृ त्तका होना तो शभु लक्षण है।' योगीश्वर, सम्पणू थ साधन मागोंके प्रवतथक तथा िवरक्तोंके परमादशथसे कोाइ दसू रे ाईत्तरकी ाअशा कै से कर सकता है। 'क्या व्यवहारमें सांलग्न रहते उस िनाःश्रेयथकी ाईपलिब्ध ाऄशक्य है?' िनवथणथ मननु े पछ ू ा-' दरणीय िवरक्तोंकी सेवाके 11

िलए गहृ -लग्न परुु षोंकी ाअवश्यकता है और सिृ िके प्रारम्भमें ही इस प्रकार ाअत्यिन्तक प्रलय सावथभौम रूपसे ाईपिथथत होना क्या प्रभक ु ो ाऄिभप्रेत है।' 'तमु क्या चाहते हो?' दयामती द्रिवत हुाइ।ां वे जानती थीं िक ाईनके औढरदानी मााँगनेपर तो सब दे देंगे; िकन्तु उन ाऄसांगको न तो कुछ ाऄिभप्रेत है और न ाऄनिभप्रेत । मनक ु ो इस मागथसे िनराशा ही हाथ लगेगी। 'मानव ाऄपने व्यवहारोंमें सख ु पावे!' मननु े कहा 'ाऄपनी सफलताओमां ें ाईसे ाअनन्दका ाऄनभु व हो! ाआहलौिकक ाईन्नितके साथ वह पारलौिकक ाईन्नित करे । ाईसे मांगलकी ाईपलिब्ध हो जीवनमें । परम मांगल भी वह ाआसी मागथ के द्रारा प्राप्त कर सके !' 'गणपित!' माताका ाअह्वान सनु कर उन एक-रदनने समझा, अब मोदक िमलेगा। अत: चहू क े ो थपथपा कर वे पैदल ही दौड़े और सीधे गोदमें जाकर बैठ गये। 'मानव ाऄपने जीवन में, ाऄपने कमों में सख ु चाहता है, मगां ल चाहता है' ; अपने मख ु की ओर देखते पत्रु के मथतक पर हाथ फे रते हुए माताने कहा-'ये वैवथवत मनु तमु से ाऄपनी सन्तानोंके िलए यही प्राथथना करने ाअये हैं। मननु े उन मगां लमिू तथके चरणोंमें मथतक रक्खा। 'माां! मानव बड़े ाऄहक ां ारी हैं?' श्रीगणेशजीने ाऄिभयोग ाईपिथथत िकया। देवता भी मेरी ाऄगर् -पजू ा करते हैं, पर मानव 12

मानते ही नहीं। वे तो ाआन्द्र, वरुण ाऄिग्न, सोम और मरुतसे ही सब कुछ चाहते हैं।' बात सच थी। ाअयथ तब तक वैिदक पञ्चदेवोंके ाईपासक थे और गणेशको वे िवघ्नकताथओकां े थवामीके रूपमें ही मानते थे। मननु े हाथ जोड़कर इस प्रकार मथतक झक ु ाया मानो क्षमा चाहते हों। 'म म नत ह क म नवन मर लगभग सभ व न क पर जत करक स लत करनक न य कर लय ह और व स ल ह रह ह!' कछ र पवक गण ज स टक रत हए कह रह थ-' क त इसस उ ह मलग य ? क र स लत ह त ? सख नभव त व प नस रह!' 'नहीं पत्रु !' पचु कारते हुए माताने कहा- 'ये मनु ाऄपने ाऄज्ञपत्रु ोंकी ओरसे क्षमा मागां रहे हैं! अब तमु इनपर दया करो!' मननु े गणेशजीके चरण पकड़े । भगवान् िशव वाताथलापसे तटथथ हो समािधथथ हो गये थे। 'ाऄच्छा तो चलो!' माताकी क्रोड़से उतरकर गणपितने दोनों कान वेगपवू थक फटफटाये। सांसारमें मानवोंने ाईसी समय ाऄनभु व िकया िक िजन बाधाओकां े ाअनेकी परू ी सम्भावना थी तथा जो सम्मख ु ही ाईपिथथत थीं, सब सहसा ितरोिहत हो गयीं।

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मनक ु े ाअदेशसे मनपु त्रु ोंने प्रत्येक कायाथरम्भमें िवनायकका पजू न प्रारम्भ िकया । सफलता सम्मख ु ाईपिथथतप्राय रहने लगी और जीवनमें सख ु ही सख ु ाईपलब्ध होने लगा ।तभीसे प्रविृ त्त मागथकी नींव सिु थथर हुाइ ।

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भवानीशङ्िरौ वन्दे भवानीशङ्िरौ वन्दे श्रद्धािवश्वासरूिपणौ। याभयां िवना पश्यिन्त िसद्धााःस्वान्ताःस्थमीश्वरम।् । सर वत क स य उपकलम, स मग नस मख रत य -धमधसर-प वल -म डत क लक म जह वगत र -क य क र - वक एव मगसह डन कय करत थ, क लत कस मतव ल नकजम पव भमख क छ दत व दक पर मह ज मन एक मगचम व कल ड ल स न थ। ब्राह्म, ाअवहनीय एवां गाहथथपत्य ाऄिग्नयोंके िविध िविहत ाअकार िनिमथत कुण्डोंसे सगु िन्धत धमू उठ रहा था। सदु रू दिक्षणमें ाऄश्वत्थके नीचे ाऄथपश्ृ यकी भािां त एकाकी दिक्षणािग्नका कुण्ड दहकता हुाअ दसू रोंके गौरव पर ाऄपनी चट-चट् ध्विनसे ाऄट्टहास कर रहा था। य ल म नव ह, सवत भ भ त व दय रग न अ त, तल दस न मत अ त य उप थत कर रह थ । द प ल क कल प पम यस प जत थ तथ उनपर द पक जगमग रह थ। वमख थत प त भ यव कर क अ भ ग कछ हर तम ल चल थ। न क णक पत क वजन क ननक त, प थ क यद नक लए त ख ओस भ च म तक करक लहर रह थ ।

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न रकलक प म य तत थ । ह व वध न पवक न मत ह चक थ । कदल प पर अग , अ त, म य तथ ल द सभ उपय स म य सस जत थ । प चक स मध य न एक करल थ और अब त द प ल द पजनक प त वद व नक म य अर ण-म थन चल रह थ । ग रवण, क क य, त- म -र म-जट ज ल, सद घ भजव -भ ल, व म ह तम क क द ड एव द ण म र व लय, क ण जन र य, म ज -मखल धत तज मय मह ज मन स क र अ न त त ह रह थ। कमथशास्त्रके प्रणेताने थवयां ज दीक्षा ली थी। िवघ्न ाईनके नामसे ही कााँप ाईठते हैं। िकसी देवतामें शिक्त नहीं जो ाईनके ाअवाहनपर ाऄपने थथानपर बना रहे । सम्पणू थ िसिद्चयााँ ाईनके सम्मख ु करबद्च खड़ी रहती हैं। प्रकृितके ताित्वक रहथयोंको ाईन्होंने ाअिवष्कृत िकया है। ाईन्होंने पदाथों, िक्रयाओ ां एवां मन्त्रोंकी सक्ष्ू म कम्पन शिक्तको जान िलया है। अत: ाईनके यज्ञ कभी अस ल होंगे, ऐसा हो नहीं सकता । वे प्रकृितपर शासन करने में समथथ हैं। िशष्य-वन्ृ द पररचयाथमें प्रवीण था। सभी सम्मान्य ाऊिष ाअहूत होकर पधारे थे। िजन तपाःपतू ोंके सांकल्प ही कभी व्यथथ नहीं होते, वे ही िविधपवू थक कोाइ ाऄनष्ठु ान ाअरम्भ करें तो सफलता करबद्च खड़ी ही समझना चािहये। 16

व हनस थम ह दवत ओन कर अपन सन हण कर लय। क न ज न व हनक समय पहचन म कछ वल ब ह ज य और कस मह क भक टपर बल प ज य त ? अथव मह क सकतपर वह क ण बरध र द ण नक क डपर स वध न बठ उनक ध न य र व उठ ल त ? वह स त यमक सम न द डधर बठ ह। उसक क म ह ह य - व न एव य म म ह नव ल क अ भच र म स द ड दन । यह अथववद य व कम र ब भ ण ह। िसिद्चयोंके ाअह्वानकी कोाइ ाअवश्यकता ही न थी। वे बेचारी तो इन ाअश्रमोंके छोटे-छोटे ाऄन्तेवािसयोंसे भी भीत रहती हैं। लोकपालोंने ाऄपनी सेवाएाँ महिषथके श्रीचरणोंमें यज्ञारम्भमें ही िनवेिदत कर दी थीं। उन यावजक ू के मन्त्रोंकी शिक्तसे िववश होकर करने की ाऄपेक्षा थवेच्छासे करके ाईनकी मैत्री क्यों न प्राप्त की जाय? सरु े न्द्र चिकत थे। ाऄन्तत: महिषथ यज्ञ कर क्यों रहे हैं? वे ाआन्द्रासन चाहें तो ाईन्हें कौन िनवाररत कर सके गा? िवघ्न करनेकी तो कल्पना भी नहीं ाईठती। ाईनके सक ां े तपर तो ाईनके िकसी छात्रके िलए भी महेन्द्र िसहां ासन त्याग देंगे। ब्रह्मलोक ाईनकी िपतभृ िू म है । वहााँ जब चाहें तब वे सशरीर जा िवराजें।। महिषथके यज्ञके सांकल्पका पता सबको था; पर ाईसका थपिाथथ कम-से-कम मीमाांसकोंकी समझमें तो ाअया न था । 17

सक ां ल्प था- ‘ाऄन्तथथथय ाऄवलोकनाथथम।् ' इस िविचत्र यज्ञोद्ङेशके िलए यज्ञकी परू ी प्रिक्रयाका िनदेश थवयां महिषथने िकया था। ाईन्होंने ही मन्त्र िनिित िकये, पद्चित िनिितकी और होता, ाऊित्वको प्रथम िशिक्षत िकया। सब कुछ पयाथप्त हो जानेपर ज ाईन्होंने दीक्षा ली। मीमाांसा शास्त्र कमथको ही ाइश्वर मानता है। वहााँ कोाइ िवशेष जगत-् सांचालक है नहीं। श्रिु तयोंका भौितक दृििकोणसे ाऄध्ययन करके महिषथ ाआसी तथ्यपर पहुचाँ ता था। कमथफलके प्रदाता देवता तो प्रत्यक्ष थे; िकन्तु वे कमाथनसु ार ल देनेको बाध्य िनयन्त्रक मात्र । िपतामह ब्रह्माने ाऄपने भीतर ही सम्पणू थ सिृ ि एवां ाईसके कताथधताथ, हताथ सवेशका साक्षात्कार करके ाईनके ाअदेशानसु ार ही-'यथापवू थ' सिृ ि प्रारम्भ की। यह श्रिु त भी थवीकार करती है और ब्रह्माको िमथ्याभाषी भी कहा नहीं जा सकता। महिषथ जैिमनी ाआसी ाईलझनको सल ु झाना चाहते थे । ाईन्होंने उस ाऄन्तथथको प्रत्यक्ष करनेका िनिय िकया । यजञ ् ही ाईनका साधन था। (२) 'वरां ब्रिू ह!' हसां थथ िपतामह ब्रह्माजीने कहा। ाऄपने ाऄरुण पररधानमें श्वेत हसां पर िवराजमान नील गगनमें वे कुवलय दलपर, जो मानसरोवर में िवकिसत हो, पद्मराग-जैसे प्रितिष्ठत थे।

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मह क यह नव न अनभव ह क य क र दव क त कर अभ वर भ कय ज सकत ह । अभ तक उनक य सक प- व क द त थ। कम तम सङक पक बन ह व छ प त-यह नव न ब त ह । ाऄिग्नके साथ सम्पणू थ ाऊिष-मण्डलीने िपतामहको प्रोत्थान िदया। महिषथने ाऄध्यथ-पाद्यसे ाईनका िविधवत ाऄचथन िकया। प्रथमसे प्रथततु ाअसनको कृताथथ करनेका ाऊिषयोंका ाअग्रह साथथक हुाअ। 'म उस अ त थक स त करन च हत ह, जसक द यद न भक स क र भ क ल म हए थ!' मह न पज हण करक वर जम न ज क चरण क द न कर म लकर नवदन कय । 'यह तो मेरी शिक्तसे परे का कायथ है।' िपतामहने कहा-'मेरी प्रसन्नताका ल होना ही चािहये, ाऄताः तम्ु हारा ाऄभीि पणू थ होगा, िकन्तु ाईसकी प्रािप्त के िलए तमु साम्बिशवकी रण लो!' परोक्ष वेदवाणीके ाअद्याचायथ भला थपि कब कहनेवाले थे। ाऄपने हसां की पीठ थपथपाकर वे उसपर बैठ गये। सिृ िके महान कलाकारको ाऄवकाश कहााँ? ' यबक यज मह' ह तय क म बदल दय गय। वह य भव बन गय । मह य क म - व न उस तप वनक

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ग जत करत हम ग रक एक खरस दसरक प र करत कल पहचन लग । ‘ भ कह थ न कर रह ह? व भ क प ठपर न द क य बर ड लत दखकर जगद ब न व न थस पछ । 'सरथवतीके तटपर जैिमनी यज्ञमें मेरा ाअह्वान कर रहे हैं!' प्रभनु े कहा-'पर मैं एकाकी कहााँ जा रहा हू?ाँ तमु भी तो चल रही हो!' ' प भी देवताओकां ी भााँित मन्त्राकषथणसे िववश हैं?' मन्त्रात्मक प्राथथना भवानीके चरणोंमें भी पहुचाँ रही थी, िकन्तु ाईन्होंने ाईसकी ाईपेक्षा कर दी थी। 'कोाइ भी िक्रया मझु े िववश नहीं करती।' उस परात्पर प्रभनु े कहा- 'स्रिाने महिषथयोंको वचन िदया है और िकसीभी प्रकार हो, ये भोले प्राणी मेरा थमरण तो कर रहे हैं। ओ, तमु भी वषृ भपर ही चलो! तम्ु हारा के शरी िवश्राम करे !' ाअशतु ोष द्रिवत हो चक ुे थे। वषृ भके घण्टेसे िनकली हुाइ प्रणव ध्विनने सम्पणू थ मन्त्रघोषको ितरोिहत कर िलया। तपोवन एक ाऄद्भुत सरु िभसे पररपणू थ हो गया । चिकत यज्ञीय िवप्रोंने मथतक ाईठाया और ाईन्हें वषृ ारूढ़ ाऄधथनारीश्वरके दशथन हुए। भालिथथत बालशिशकी कोमल िकरणोंसे थनात ाऊिषयोंका सम्पणू थ क्लम तत्काल ितरोिहत हो गया। 20

परुु ष सक्त ू की सथवर थतिु तसे साम्बिशव सन्तिु हुए। ाईन्होंने सन तो ग्रहण नहीं िकया, िकन्तु ाऄचथन थवीकार कर िलया। महिषथ जैिमनीने ाऄपनेको कृतकृत्य समझकर बड़े ही कोमल शब्दोंमें ाऄपना ाईद्ङेश्य िनवेिदत िकया । 'जो सवाथत्मा है, सवथरूप है, ाईसके दशथन िकया? वही तो यज्ञ परुु ष है।' काशीपित प्रभनु े कहा-'तमु उस यज्ञेशको जानते नहीं? यह यज्ञ ाईसीका तो थवरूप है। ाऄच्छा, ाईसका ाअह्वान करो!' 'यज्ञो वै िवष्ण'ु महिषथने पढ़ा तो था श्रिु तमें, पर वे ाईसका ाऄथथ करते थे-'यज्ञ ही व्यापक है।' ज ाईन्होंने यज्ञेशका पता पाया। भगवान शांकरके ाअदेशानसु ार यज्ञ-परुु षके िनिमत्त ाअहुितयााँ पड़ने लगीं। था तो यह बहाना ही, वैसे तो भगवान िशवका प्रेमपणू थ सक ां ल्प ही पयाथप्त था। भोले बाबाने ाऄपने भजु ङ्गोंको कर-थपशथसे ाअश्वथत िकया। ाऊिषयोंके नेत्र एक बार बन्द हो गये। बड़ी किठनतासे पलकोंको खोलने में समथथ होनेपर एक गरुड़ िथथत, पीतवास, घनश्याम, वनमाली, चतभु जथु नील ज्जयोितका साक्षात् हुाअ। उस सायधु , साभरण मिू तथके सम्मख ु नेत्र ठहरते नहीं थे। मह ज मन न द- वभ र ह गय थ। अचनक म त भ रह नह थ । अपनक स म व थ तम उन कमठन कभ प य नह थ । स वध न ह कर अचन प म कर, तब तक त वह मन ह र अ य ह गय । मह ख न ह कर म छत ह गय। 21

(३) 'कमथ करो और ाईसका ल पाओ!' ाअश्वसत् मीमाांसाकारसे भगवान शक ां रने कहा-'यही तो तम्ु हारा िसद्चान्त है?' 'अब तक तो मैं यही समझ सका हू।ाँ ' महिषथने थवीकार िकया । 'िवश्वात्मा तो कोाइ ल है नहीं!' ाऄध्यात्म शास्त्रके परम प्रवतथकने बतलाया-'िफर ाईसे तमु कमथके द्रारा कै से प्राप्त कर सकते हो? ाईसका बाह्य साक्षात् भी यज्ञका ल नहीं है । वह है भगवान ब्रह्माके वरदान एवां मेरे दशथनका पररणाम ।' 'िपतामहने कहा था िक जगदम्बाके साथ ाअपका साक्षात् करके मैं उस ाअत्मथथको ाईपलब्ध कर सकाँू गा।' दो क्षण सोचकर महिषथने ाअवेदन िकया। 'स्रिाके परोक्ष वचनोंको तमु ने समझा नहीं ।' श्रिु तयोंके रहथयके ाईद्घाटनका गवथ शिमत करते हुए िगरीशने कहा-'बाह्यके द्रारा वाह्य की एवां ाऄन्तथथके द्रारा ाऄन्तथथकी ाईपलिब्ध होती है। मेरे व्यक्त-थवरूपकी ाअराधना करके तमु ने व्यक्त यज्ञेशके दशथनकर िलये । व्यक्तकी ाईपलिब्ध ाऄिधकारानसु ार कालिनयिन्त्रत ही होगी। िनत्योपलिब्ध तो ाऄन्त:करणमें ही शक्य है।' भगवान िशवने वषृ भकी पीठपर थपकी दी और वह कै लाशकी ओर मड़ु चला।

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‘साम्बिशवकी रण लो!' ब्रह्माजीके वाक्यको लेकर महिषथ एकाग्र हो गये । श्रिु तयोंके ाऄथथका दशथन ाईन्हें ाआसी पद्चितसे हुाअ था । इस परोक्षको प्रत्यक्ष करनेका दसू रा मागथ था भी नहीं। ‘यज्ञकी पणू ाथहिु त कर दी जावे!' एक प्रहर ध्यानथथ रहनेके पिात् महिषथ ाईित्थत हुए । ाईनके मख ु पर शािन्त िवराजमान थी । पणू ाथहुित हो गयी और सबने ाऄवभथृ थनान िकया । ाऊिष मण्डली िवदाकर दी गयी। ‘ाआहलोक एवां परलोककी समथत िवभिू तयााँ कमाथधीन हैं । महिषथ जैिमनीने कहा- कमथ ही उभय लोकोंका कत्ताथ हैं । कमथके द्रारा तमु ाईसे िनिय ाईपलब्ध कर सकते हो ।' िशष्य वगथ शान्त सनु रहा था । ‘ाआससे परे भी कुछ है या नहीं, कह नहीं सकता। 'महिषथ ने कहा-' िपतामह कहते हैं और श्रिु त साक्षी है िक कुछ है ाऄवश्य । वह ाऄन्वेषणसे परे है। यज्ञ ाईसे प्रदान नहीं कर सकते । उसपर श्रद्चा करना होता है। ाईसे मान लेना पड़ता है | िवश्वासके पिात् ाईपलब्ध होता है । िशष्योंकों ऐसी िशक्षा िमली नहीं थी । वे चिकत हो रहे थे । लेिकन महिषथ कहते गये-'श्रद्चा ही िशव है और िवश्वास ही शक ां र हैं। इन ाअत्मथथ सवाथत्माका साक्षात् हो सकता है। िपतामहके गढ़ू -वाक्योंका यही ाऄथथ है। िशष्योंको वहीं छोड़कर महिषथ जैिमनी सरथवतीके िकनारे -िकनारे ही पर बदररकाश्रममें इस नवीन 23

श्रद्चािवश्वासमय पथके ाअचायथ महिषथ व्यासका साक्षात् करने चल पड़े ।

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गुरं शंिररूिपणम् वन्दे बोधमयं िनत्यं गुर शङ्िररूिपणम् यमािश्रतो िह वक्रोऽिप चन्राः सवात्र वन्यते ॥ 'मनष्ु य तो मनष्ु य ही है। ाईसमें त्रिु ट न हो, प्रमाद न हो, ऐसा शक्य नहीं।' उस िवप्रकुमारने कहा । 'मनष्ु य मनष्ु य ाऄवश्य है; िकन्तु मनष्ु यके िलए । िशष्यके िलए वह मनष्ु य नहीं और देवता भी नहीं । ाईसके िलए वह िनत्य िनरन्तर जागरूक ज्ञान है । ाऊिषने समझाया। हाथमें िबल्वपत्र एवां ाऄकथ पष्ु पोंका दोना तथा सजल कमण्डलु िलये िवप्रकुमार भगवान शक ां रकी ाअराधना िलए जारहा था । मागथमें ाईसे ये एकत ाऊिष िमल गये थे। वे भी मिन्दर ही जारहे थे, ाऄताः दोनों साथ हो िलये। 'मैंने कोाइ भी ाऄपराध िकया नहीं था । मेरे प्रमादवश ग्रन्थ नि भी नहीं हुाअ। वह तो गरुु -पत्नीके करोंसे प्रदीप िगर जानेसे तेलरांिजत हो गया था, िफर भी गरुु देव मझु पर ाऄकारण ही कुिपत हो ाईठे ।' िवप्रकुमार ने कहा । 'म कह चक क त ह ग क ल चन क प प नह करन च हय ।' न समझ य -' यक कवल इतन ह दखन च हय क ग उस ब व म रत त नह करत । य द स ह त वह क द ब ह ग -उसक य ग कर द । स नह ह त 25

वह सचमच ग ह- यक लए न य ज ग क न । उनम द न दख!' 'क्रोध तो ाऄज्ञानसे होता है।' ब्राह्मणकुमारने शक ां ा की'ाऄकारण क्रोध जागरूक ज्ञानमें कै से सम्भव है? 'माताका रोष पत्रु के िलए ाऄज्ञानजन्य नहीं होता। ाऊिषने कहा-'ाअश्रमकी वथतओ ु ,ां िवशेषताः ग्रन्थोंकी रक्षाका भार छात्रोंपर ही रहता है। तम्ु हारा ही प्रमाद था िक ग्रन्थ ऐसे थथानपर पड़ा रहा, जहााँ तैल-पतनकी ाअशांका थी।' 'यह तो मैंने थवीकार िकया।' िवप्रकुमारने कहा 'िकन्तु गरुु मानव नहीं हैं, ाईनमें साधारण मानवोिचत दबु थलताएाँ नहीं हो सकतीं, यह बात रृदयमें बैठती नहीं।' 'ठीक ही है । थवानभु वके िबना ऐसी बात रृदयङ्गम हो नहीं सकती।' ाऊिषने गम्भीरतासे कहा- 'जड़ पाषाण प्रतीकमें तो हम िचद्घन देवताकी भावना कर सकते हैं; िकन्तु चेतन प्रत्यक्ष ज्ञानद प्रतीकमें वही भाव िथथर नहीं होता।' व कम रक यह य कछ ठ क अव य त त ह ; पर वह इस म थ नह कर सकत । म दर गय थ । म तक म तक झक कर गणक एक क न म बगलस मगचम नक लकर प सनस बठकर य न करन लग और व कम रन म तक अचन कय ।

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जल, िबल्वपत्र, ाऄकथ -पष्ु पािद चढ़ाकर थतिु तके पिात् ाऄधथ पररक्रमा करके ब्राह्मणकुमारने सािाङ्ग दण्डवत् िकया और वह भी एक ओर जपमािलका लेकर गोमख ु ीमें हाथ डालकर बैठ गया। (२) 'कल्याण हो!' ब्राह्मणकुमारने चौंककर नेत्र खोल िदये । वह ध्यानथथ होगया था और ाईसे भगवान् शांकरके रृदय-देशमें दशथन हुए थे। ाईन्हींको प्रणाम करनेके िलए ाईसने मथतक झक ु ाया था । शब्दने ाईसे चौंका िदया। सम्मख ु चौड़ी कोरकी कौशेय धोती पहने, सन्ु दर ाईत्तरीय धारण िकये, ाउध्वथपण्ु र लगाये गरुु देवको देखकर वह उठ खड़ा हुाअ । गरुु के ाऄपमानका कुफल वह पा चक ु ा था। ाईसे ाऄपने पवू थजन्मका थमरण था और उस घटनाकी थमिृ त रोमािञ्चत कर देती थी। उठकर ाईसने पनु : ाऄिभवादन िकया। सम्भवताः गरुु देव पजू न कर चक ु े थे। ाईनके हाथके पात्रमें एकाध िछन्न िबल्वपत्र तथा दो-तीन पष्ु पोंकी पख ां िु ड़यााँ िचपकी रह गयी थीं। ाईन्होंने िशष्यको बैठकर जप करनेका ाअदेश िदया और थवयां भी एक ओर सनपर जा िवराजे । 'मन ण म भगव न करक लए कय थ !' णकम र स च रह थ , पत नह , कब ग दव स मख उप थत ह गय! भगव न क न म कय नम क र उ ह न अपन लए व क र 27

कर लय । दव पर ध ह । मझ य करन च हय? च त म न ह रह थ वह । ॐ नमाः शम्भवाय मनोभवाय नमाः िशवाय िशवतराय ॥ ग भ र व नन व कम रक च तन क भग कय । वह इधर-उधर उस व नक उ म द न लग । उसन दख क मह एकत-क मखम डल य तपण ह गय ह और अ य व न उनक सम प ज नपर ब खर वगस म त कम गजन लगत ह । स भवत मह अपन ण स पर व ण म इन म क उ च रण कर रह ह। तेजका ाअकषथण ाऄद्भुत था। वहााँसे लौट जाना िवप्रकुमारके िलए शक्य नहीं रह गया । वहीं घटु नोंके बल बैठकर ाईसने उन मन्त्रोंकी सथवर ाअविृ त्त प्रारम्भ की, क्योंिक वह ध्विन ऐसा करनेके िलए उसे िववश कर रही थी । ाऄपने मिथतष्कमें जो गजांु ार वह ाऄनभु व कर रहा था, ाईसे मख ु से प्रकट िकये िबना सह लेना सम्भव नहीं था । 'ब्रह्मचारी, ाईठो!' क्रमशाः तेज कम हुाअ और ध्विन शान्त पड़ी। सम्भवताः ब्राह्मण-बालककी बाह्य ध्विन इस ाईत्थानमें कारण हुाइ । धीरे -धीरे नेत्रोंको खोलते हुए ाऊिषने कहा- ओ, िनत्य ज्ञानघनके दशथन करो।'

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'िनत्य बोधथवरूप तो भगवान िशव हैं!' िवप्रकुमार गद्गद हो ाईठा। जीवनमें ऐसा सौभाग्य प्राप्त होगा, ाआसकी ाईसे कभी ाअशा नहीं थी। ाऊिषकी कृपासे ाऄसम्भव क्या रहता है । वह उठकर खड़ा होगया। गभथगहृ के भीतर जाकर ाऊिष एक ओर खड़े हो गये । एक प्रकारकी ाऄद्भुत शािन्त तो वहााँ थी; िकन्तु और कुछ भी िवशेषता नहीं थी। मध्यमें पष्ु पदलपिू जत भगवान् शांकरकी मिू तथ और एक ओर सन लगाये ध्यानथथ गरुु देव । ब्राह्मणकुमारने ाऊिषके मख ु की ओर देखा। 'ाऄभी भी तम्ु हारी प्रकृित पणू तथ : पररवितथत नहीं हुाइ है।' ाऊिषने कहा-' ाऄपने पवू थकृत गरुु के ाऄनादरका ल तमु भोग चक ुे हो। भगवान् शक ां रने तम्ु हें श्रीराम भिक्त प्राप्त करने का वरदान िदया है और वे थवयां ही तम्ु हारे ाऄन्ताःकालष्ु यको िमटाकर ाऄिधकारी बनानेका महदनग्रु ह भी कर रहे हैं!' 'तब क्या मेरे इस गरुु रूपमें थवय… ां ……'।’ िवप्रकुमार ाऄपनी कल्पनासे थवयां चौंक ाईठा। 'च कनक क क रण नह !' न कह ' यक लए ग न यब ध व प भगव न करक व प, उनस अ भ न चल त क ह त ह।' व कम रन दख -ग दवक मखपर स गध । म कर हट झलक रह ह। उनक उ र य गजचमक ह । क टम य बर ह। 29

गलक य पव त क ण भजङगम बदल गय ह और भ लपर वप नह , वह त तत य न ह। वह द और उसन च ह क उनक उन य तमय अ ण चरण पर म तक रख द; पर उस नर न कल कर दय । उसक म तक म दरक उ जवल प ण-भ मपर प । उसक ग दव वह नह थ। 'द:ख मत ह व स!' प छस न कह -अब त ह र मपर ल टन भ क अथ नह रखत । समय गय ह, जब तम र मच क प वन चरण क भ कर ! अत तमक मह ल म क मक थ न करन च हय।' ाऊिष मड़ु े और चले गये। िवप्रकुमार ाईनसे महिषथ लोमशके ाअश्रमका पता भी नहीं पछ ू सका। कुशल यही थी िक भगवान् शक ां रके वरदानसे ाईसकी सब कहीं ाऄव्याहत गित थी । वहााँ से उठकर वह एकसे दसू रे और दसू रे से तीसरे मिु नयोंके ाअश्रमोंमें भटकने लगा। (३) ‘हमन पक क प लन त कय ; पर उसम हम औ च य दख य नह दत ।’ एकमर लन कह । ' नयमत: त क ल उ चत न चतक वच र छ कर प लन करन च हय। हम सबन इस पणत: प लन कय । य द कछ अन चत त त ह त प लनक प त उसक 30

सम ध न कर लन च हय तभ अपन व यकत तथ अस वध भ कट करन च हय। इस नयमक अनस र हम अब औ च य ज नन च ह त अन चत न ह ग ।' व त तन व त रपवक कह । ब त द प य तक ह स मत नह थ । सभ प करण च हत थ। सबक अस त थ । अब तक क तक क रण कवल यह थ क व कलह य नह थ और उनम अपन व अ ण क त व स थ । यह पहल ह अवसर थ जब नत क म उनक ट ज न प त थ । ' दर कसक कय ज त ह और दरण य क नणय कन नयम स ह त ह?’ व र जमर लन पछ और एक ण ककर उसन वय कहन र भ कय - 'स ध रण द म यक दर ह त ह। सम नवण अपनस अ धक यक त दर कट करत ह? गणक ध यम य ग ण ह ज त ह और व भ गण यव क दर करत ह। य द गण क य तक व त न रखत ह त वणक दर ह त ह। व एव त बक भ मर ल क स म न करत ह। इस क र तज, ब एव ल म भ दरक क रण ह त ह।' 'उस म्लेच्छजातीय काकमें ाअपने ऐसी क्या िवशेषता देखी जो हम सबको ाईसे प्रोत्थान एवां ाईच्चासन देना पड़ा?' एक तरुण मरालने रोषपणू थ थवरमें कहा। 31

' प लोग एक ब्राह्मकुमारका ाऄपमान कर रहे हैं!' राजमरालने चेतावनी दी। 'महिषथ लोमशके शापसे ाईनका शरीरपररवतथन हो गया है। वैसे ाईन्हें थवेच्छया शरीर धारण करनेकी शिक्त भी महिषथ ने दे दी है। िकन्तु पक्षी-जाितपर ाईनका यह ाऄनग्रु ह है िक ाईन्होंने हमारे सबसे तच्ु छ शरीरको थवीकार करके हमें गौरवािन्वत िकया है!' काकभश ु िु ण्डको प्रोत्थान देनेके कारण पिक्षयोंमें जो रोष जागतृ हो गया था, वह शान्त हो गया। ाऄपने नायककी दरू दिशथताके सम्मख ु ाईन्होंने मथतक झक ु ाया। 'ाईन्होंने यहााँसे समीप ही ाअश्रम बनाया है।' राजमरालने कहा- ाईनके ाअश्रमके दशथन होते ही मायाका प्रभाव लप्तु हो जाता है। िनयिमत रूपसे अब वहााँ भगवान् श्रीरामकी कथा हुाअ करे गी। अत: ाअपमें से जो भी चलना चाहें, मेरे साथ चलें?' पिक्षयोंको और काम था भी क्या? उस समय ज जैसे ल दल ु थभ नहीं थे। क्षधु ािनविृ त्तके िलए प्रत्येक डाली ाईनके िलए सिज्जजत थाल थी। सररता एवां िनझथरोंमें पयाथप्त सधु ा-सिलल प्रवािहत होता था। चारा-चग्ु गा लानेकी िचन्ता थी नहीं। सबने एक साथ चलनेका िनिय िकया और फरथ करके ाईड़ चले। वटवक्ष ृ के नीचे एक िवथततृ वेिदकापर मध्यमें काकभश ु िु ण्ड बैठे थे। मानसरोवरसे वद्च ृ हसां ोंका समदु ाय प्रथम ही गया था। कुछ और पक्षी भी िवराजे थे। इस नवजात समदु ायके िलए 32

पयाथप्त थथान था। पीछे की ओर बैठ गये। वक्ष ृ पर िकसीका भी बैठना ाऄनिु चत था; क्योंिक थवयां वक्ता वेिदकापर नीचे बैठे थे। सहसा पिक्षयोंमें खलबली पड़ी। भश ु िु ण्डजी भी उठ खड़े हुए। सबने देखा िक पिक्षराज पधार रहे हैं। ाअते ही ाईन्होंने भश ु िु ण्डजीके चरणोंमें ाऄिभवादन िकया । यद्यिप ाआससे भश ु िु ण्डजीको बड़ा सांकोच हुाअ। वे पिक्षराजका सत्कार करने लगे। 'श्रीहररके साक्षात् वाहन श्रीगरुड़जी भी ाआन्हें ाऄिभवादन करते हैं?' अवसर देखकर एक मरालने कहा। 'यों तो श्रीराम-भक्त सरु ासरु सबसे पज्जू य हैं ही, िफर श्रद्चापवू थक जो भी गरुु को िनत्य ज्ञानपवू थक तथा साक्षात् िशव समझकर ाईनकी रण लेता है, वह भी जगत्पज्जू य हो जाता है। ये तो साक्षात् भगवान शक ां रके िशष्य हैं, िजनके ललाटपर पहुचाँ नेके कारण वक्र कलांकी चन्द्रमा भी िवश्ववन्द्य हो गया है। ाआनकी जाितको ओर ध्यान देनेका अब िकसी में न तो साहस है और न िकसीको ाऄिधकार ही है।' वद्च ृ राज मरालने सबको धीरे -धीरे समझाया। उन मरालोंको क्या पता था िक प्रश्नकताथ बने मरालके वेशमें थवयां भोले बाबा रामकथा सनु ने पधारे है और भक्त-चचाथ चला रहे हैं।

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िवशुद्धावज्ञानौ सीतारामगुण-ग्राम-पुण्यारण्यिवहाररणौ। वन्दे िवशुद्धिवज्ञानौ िवीश्वरिपीश्वरौ ॥ मन्द-मन्द गजथना प्रारम्भ हो गयी थी। कभी-कभी दरू देशसे ाअयी चपलाकी मदृ ु चमक िदशाओमां ें एक सक्ष्ू म प्रकाश-रे खा खींच जाती थी। धसू र, धम्रू वणथ मेघोंके थतर एक-पर-एक बढ़ते जा रहे थे। पििम िक्षितजपर कृष्णवणथ बादलोंकी छाया घनीभतू हो ाईठी थी। चीलोंका समदु ाय ाअनन्दपवू थक दरू नभमें मण्डलाकार माँडरा रहा था। पिथकने पैर बढ़ाये । यद्यिप मागथमें पलाश-वक्ष ृ पयाथप्त थे और कुछ सघन भी थे, िकन्तु ाईनसे बचनेकी ाअशा नहीं थी। विृ ि तेज ाअती जान पड़ती थी। पिथकके पास पहननेके ही वस्त्र थे और छाता नहीं था। दरू पर मिन्दरका कल वक्ष ृ ोंके झरु मटु से िदखायी पड़ रहा था। वहााँ तक वषाथ ाअनेसे पहले पहुचाँ जाना चाहता था वह । बीचमें एक-दो नाले पार करना सरल नहीं रहेगा। ाअसपास पलाशोंके ाऄितररक्त उस ाउाँची कांकरीली भिू मपर कुछ था नहीं । कहीं-कहीं घासके चकत्ते धब्बे जैसे, कहीं एकाधी लता और कहीं-कहीं दो-चार चकवढ़के हरे वीरुध।

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जतन परम छ ल ड ल दय थ । अत उस ब य ह थम ल लन प थ । द हनम छ थ एक ब स क । ध त क उसन घटन स पर समट लय थ । स भवत म गम कह जल वग हन करन प ह। कम जक व छत तथ ग ध ट प उस एक त यवक बतल रह थ । दरू से हरहराहट सनु ायी पड़ी । पिथकने मड़ु कर देखा । पानी बड़े वेगसे ाईसका पीछा करता चला रहा है। नीचेके कांकड़ पैरोंमें चभु रहे थे, िफर भी वह दौड़ पड़ा । मिन्दरके समीप पहुचाँ ते ही ाईसके पर बड़ी बड़ी बाँदू े पड़ने लगीं। वह भींगनेसे पहले ही मिन्दरके पीछे िनकली हुाइ छतकी छायामें पहुचां कर हााँफने लगा। मख ु पर पसीने की बड़ी-बड़ो बाँदू े गयी थीं और कमीज भी कुछ थवेदाद्र हो चली थी। वहीं कुछ देर खड़े रह कर ाईसने एकटक वषाथकी झड़ी देखते हुए श्रािन्त दरू की। मिन्दर होगा प्राचीन । बहुत थथानोंसे वह टूट-फूट गया था और कहीं-कहीं वट तथा पीपलके वक्ष ृ मथतक ाईठाने लगे थे। जतू ेको भीतर ले जाना ाईिचत नहीं था। वह बाहर भींगनेके िलए छोड़ िदया गया। पिथकने द्रारपर पैर रखा। मध्यमें श्रीमहावीरजीकी मिू तथ थी । वह िसदां रू चढ़ते-चढ़ते पणू तथ ाः ढाँक गयी थी और ाईसमें अब मख ु ाकृित भी ाऄथपि हो चली थी। उसपर धिू ल जम गयी थी।यहााँ कौन पजू ा करने ाअता है। मथतकपर, घटु नेपर तथा चरणोंके पास कुछ काला-काला-सा 35

पड़ा था। कभीके चढ़ाये ये इस रूपमें पररवितथत पष्ु प हैं। एक ओर ाअलेमें एक सन मारकर बैठी हुाइ िकसी ाऊिषकी मिू तथ और िदखलायी पड़ी। उसपर भी धिू ल जमी थी और सख ू े कृष्णप्राय पष्ु प चढ़े थे। मिन्दरकी सारी भिू मपर धिू ल जमी हुाइ थी। यवु क भीतर गया और ाईसने एक कोने में धिू ल झाड़कर ाऄपने िलए थथान बनाया। थोड़ी देर बैठे-बैठे वह ब गया। विृ ि बन्द हो नहीं रही थी और अब एक घण्टे में ही सयू ाथथत होनेवाला था। एक-दो मील तक कोाइ ग्राम था भी नहीं । ाऄन्तताः वहीं राित्र व्यतीत करनेका ाईसने िनिय िकया। एक कोने में दो-तीन खजरू के पत्ते पड़े थे, वे कभी िकसीने मिन्दर थवच्छ करनेके काममें िलये होंगे। कुछ भथम पड़ी थी एक कोने में। िकसी बाबाजीकी धनू ीका ाऄवशेष थी वह । यवु कने ढूढां कर दीवालमें एक कील प्राप्त कर ली। कमीज ाईसीपर लटकाकर वह मिन्दर साफ करने लगा। अव य ह वह प रम जत चक ह ग । ह थ लग कर ध य अ यव थत क य करन उस ज च नह । द व ल व छ क , ट क ज न च गर थ , ख खल जगह म भर द । म तय क सख प प उत रकर ध ल छ और पर म दर व छ करक क क ब -स ढर लग दय ।

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फोड़े हुए नाररयलोंके कुछ खोखले थे। कूड़ा फें ककर ाईसने एक ाऄच्छा खोखला रख िलया था। ाईसी में वषाथका जल जो मिन्दरपर-से धाराबद्च िगरता था, लेकर ाईसने दोनों मिू तथयोंको भली प्रकार मलकर धो िदया। मिन्दर वह धो डालता यिद ाऄन्धकार न बढ़ता होता । िफर ाईसे राित्र िवश्रामके िलए सख ू े थथानकी भी ाअवश्यकता थी। ाऄन्तताः श्रान्त होकर ाअधी धोती िबछाकर एक कोनेमें सो रहा वह। (२) ‘ाअपने ाआतनी िवलक्षण शैली कहााँसे ाईपलब्ध की।' जब तक कथा होती रही, पिण्डतजी बड़ी एकाग्रतासे श्रवण करते रहे । कथा-समािप्तपर जब तल ु सी-दल लेकर श्रोता िवदा हो गये और व्यासजी ाऄपने िवश्राम-थथानपर पहुचाँ े तो ाईनके पीछे -पीछे ये भी ाअये और एकान्तमें ाआन्होंने प्रश्न िकया। दो सप्ताहसे व्यासजीकी कथा इस छोटे-से बाजार में हो रही है। ठसाठस भीड़के मारे बैठनेको थथान नहीं िमलता । लोग ाअगे बैठने के िलए एक घण्टे पहलेसे जाते हैं । ाआतनी रोचक, मािमथक तथा भावपणू थ कथा भला यहााँके लोगोंने क्यों सनु ी होगी। जनताकी श्रद्चा ाईमड़ पड़ी है। व्यासजीकी ाऄवथथा कुछ ाऄिधक नहीं है । ाऄभी वे यवु क ही हैं । बड़ा सरु ीला कण्ठ है। बड़े मनोहर ढांगसे चौपााआयाां व श्लोक पढ़ते हैं। कथाके ाऄन्तमें परू ा एक घण्टा ाअध्याित्मक प्रश्नोत्तरोंके 37

िलए रहता है। प्रत्येक प्रश्नका ाईत्तर वे श्रीरामचररतमानसकी चौपााइ या श्रीमद्राल्मीकीय रामायणके श्लोकसे देते हैं। व्यासजीका ाईत्तर सिां क्षप्त होता है। एक ाऄधाथली या दोहा बोल िदया ाऄथवा श्लोक कहा तो ाईसका साधारण ाऄथथ कर िदया। ाआतने में ही प्रश्नका ाईत्तर ऐसा सन्ु दर हो जाता िक प्रश्नकताथको मक ू हो जाना पड़ता । ाईसको सम्पणू थ सांतोष हो जाता। सम्भवताः ाईन्हें सम्पणू थ 'मानस' एवां 'वाल्मीिक' कण्ठथथ थी। पिण्डतजी थवयां सांथकृतके प्रख्यात िवद्रान थे। स पास ाईसकी कीितथ थी। कथामें ाअनेपर लोग ाईनके िलए मागथ दे िदया करते थे। िजस मिन्दरमें कथा हो रही थी, ाईसके पजु ारी व्यासासनके समीप ाईनके िलए एक पथृ क सन भी प्रथततु रखते थे। िवद्याके साथ रहनेवाला ाऄहक ां ार पिण्डतजीमें नहीं था। बचपनमें श्रीरामचररतका वे िनयिमत पाठ करते थे। श्रीराम-कथामें ाईसका ाऄनरु ाग था। सथां कृतमें िलखी रामायणों एवां श्रीराम-कथा सम्बन्धी नाटक, काव्य, थतोत्र प्रभिृ त ग्रन्थोंके ाऄध्ययनमें ही ाईन्होंने ाऄपने के शोंको रजत वणथ िदया था। इन ग्रन्थोंका ाईनके पास िवशद सग्रां ह था। इस यवु क कथावाचकने ाईन्हें बहुत ही प्रभािवत िकया था। कथाकी शैली तथा व्याख्या ाऄद्भुत तथा ाऄपवू थ होती थी। पिण्डतजीके उन गढ़ू प्रश्नोंका ाईत्तर, िजनकी गिु त्थयााँ वे ज तक 38

सल ु झा नहीं सके थे, ाईन्हें ाअियथ जनक ढगां से और सम्पणू थ रूपसे प्राप्त हो गया। मानसकी चौपााआयााँ ाईनके सम्मख ु भी तो ाअती ही थीं। वाल्मीिकके सभी श्लोकोंकी ाईन्होंने शतािधक ाअविृ त्त की थी। ाऄन्तताः ाऄपनी शांकाओकां ा समाधान ाईन्हें थवयां क्यों नहीं ज तक सझू ा? उन थथलोंपर ाईनकी दृिि ही कभी नहीं गयी। इस यवु कने ाआतनी प्रितभा, इतनी कुशलता, कहााँसे प्राप्त कर ली? ाआसे जानने की सम्पणू थ ाईत्कण्ठा जागतृ हो गयी। साथ ही यह भी ाआच्छा थी िक यिद सम्भव हो तो इन व्यासजीसे गढू थथल पढ़ िलये जायें। 'ाआसमें िवलक्षणता क्या है?' वयोवद्च ृ पिण्डतजीको व्यासजीने सम्मानपवू थक सन दे िदया था और थवयां समीप बैठ गये थे। प देखते ही हैं िक मैं तोड़-मरोड़ करता नहीं, के वल थपिाथथ ही करता हू।ाँ ' 'सो तो है।' व्यासजी सचमचु थपि व्याख्याके ाऄितररक्त घमु ावदार ाऄथों एवां प्रसगां ान्तरोंमें नहीं जाया करते थे। ाईनकी व्याख्या ही सन्ु दर होती थी। 'िकन्तु ाआतने गम्भीर थतर तक पहुचाँ कर व्याख्या करना भी तो सरल नहीं है। पिण्डतजीने सरल थवभावसे कहा । 'यह तो ाअपकी महत्ता है। व्यासजी ाअत्म-प्रशांशासे सांकुिचत हो रहे थे। 39

'क्या सभी ाअध्याित्मक प्रश्नोंका ाईत्तर रामायणमें प्राप्त हो सकता है?' पिण्डतजीने प्रश्न बदलकर पछ ू ा। 'ाअध्याित्मक ही क्यों; ाऄथथ, धमथ, काम, मोक्ष सम्बन्धी सम्पणू थ प्रश्नोंका ाईत्तर इन ग्रन्थों में से प्रत्येकमें है।' व्यासजीने िवश्वथत थवरमें कहा । 'यह दसू री बात है िक हम ाऄपनी ाऄल्पज्ञतासे ाईसे ाईपलब्ध न कर सकें । जैसे मझु े ही एक ग्रन्थसे दसू रे में जाना पड़ता है ।' 'एक ही ग्रन्थमें सभी प्रश्नोंका ाईत्तर?' पिण्डतजीने ाअियथसे पछ ू ा। 'ाअियथकी कोाइ बात नहीं।' व्यासजीने समझाया 'िवशद्च ु िवज्ञानीके सम्मख ु लौिकक एवां पारलौिकक सारे रहथय ाऄनावतृ रहते हैं और जब वह ाऄपने ाईन्मक्त ु रृदयके भावोंको पणू तथ : व्यक्त करता है तो सबको प्रकट कर जाता है। महिषथ वाल्मीिकके सम्बन्धमें कुछ कहना है नहीं और मानस' के प्रेरक महावीरजी हैं ।' (३) ‘एक ाऄत्यन्त सन्ु दर तपोवन था। कुछ मेखला दण्ड धारी छात्र सिमधा एकत्र करने वनमें जा रहे थे । मध्यमें िवशाल वेिदकापर एक ओर महिषथ वाल्मीिक बैठे थे और दसू री ओर श्रीपवनकुमार । महिषथके सम्मख ु ताल पत्रोंका ससु िज्जजत समहू था। वे एक-एक करके पत्र श्रीमारुितके करोंमें देते जा रहे थे । 40

ाअञ्जनेय ाईसे मथतकसे लगाते और िफर देखकर ाअदरपवू थक एक ओर रख देते। ाईनके नेत्रोंसे वाररधारा प्रवािहत हो रही थी।' सचमचु व्यासजीके नेत्रोंसे वाररधारा चल रही थी। 'ाअपका श्रम धन्य है?' पता नहीं कै से वह परू ा ढेर समाप्त हो गया। सबको देखकर पवनपत्रु ने कहा 'ाअपका मानस इस श्रीरामचररतमें ाऄपवू थ तन्मय हुाअ है। 'एक तपथवी इस सीता-राम गणु ारण्यको छोड़ और िकस काननमें ाऄपने मनको छोड़े!' महिषथने कहा-'ाअपने भी कुछ िलखा है कपीश्वर? क्या मैं ाईसे देख सकाँू गा?' ' य नह !' उठकर मह व रज ख ह गय । व नभ म गम उछल और मह अपन स बलस उनक स थ ह य म-म गस चल प । पत नह कब तक चलत रह। एक िवशाल पवथत था। ममथर पाषाणकी सिु चक्कन िवशाल िशलाएाँ िबछी हुाइ थीं। उनपर पिां क्तबद्च कुछ बड़े ही सन्ु दर ाऄक्षरों में खदु ा हुाअ था। ाअञ्जनेय क्रम िनदेश करते जाते थे और ाऊिष देखते जाते थे। कुछ ाऄश ां मैंने पढ़े; पर दभु ाथग्य वह एक भी पिां क्त थमरण न रह सकी। ' प दिु खत क्यों प्रतीत हो रहे हैं?' सब िशलाएाँ िदखलाकर मारुितने महिषथ के मख ु की ओर देखा । ाईनका तेजोमय मख ु मण्डल म्लान हो रहा था।

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'मैंने सोचा था, मेरी कृित िवश्वमें सवथश्रष्ठे होगी, पर इस ाअपकी कृितके सम्मख ु ाईसे कौन पछ ू े गा?' ाऊिषका कण्ठ भर ाअया । 'ओह! इतनक लए प दख ह?' मह व रज न पछम सभ ल ओक सज कर लपट लय और क म गस उ । दर स गर गभम उ ह न उ ह वस जत कर दय और ल ट य । 'हाय रे यशेच्छा!' ाऊिषको पिात्ताप हो रहा था। 'मैंने िवश्वको एक िदव्य ग्रन्थसे वांिचत कर िदया। क्षमा करो रामदतू ! ाईनका ाईद्चार करो!!' कातर कण्ठसे रो पड़े। 'अब जो हो गया वह बदला नहीं जा सकता।' श्रीमारुितने ाअश्वासन िदया-'के वल िशलाएाँ सागर गभथमें िवसिजथत हुाइ हैं। श्रीरामचररत तो मेरे रृदयमें ाऄिां कत है। किलमें जब प पनु ाः ाअिवभतथू होंगे तो ाईसे मैं ाअपके द्रारा ही व्यक्त करूांगा।' िववशताः महिषथ ाऄपने ाअश्रमके िलए प्रिथथत हुए। 'प्रभो!' मैंने एकान्त पाकर श्रीरामदतू के चरण पकड़ िलये। 'वत्स, िवसिजथत ग्रन्थ तो मानसके रूपमें व्यक्त हो चक ु ा।' ाअञ्जनेयने कहा-'ाऄच्छा, तम्ु हें दोनों ग्रन्थ ाईपिथथत हो जायेंगे और ाईनके रहथय भी तमु पर प्रकट रहेंगे। ाईनके द्रारा तमु ाआहलोकमें द्रव्य, य तथा परलोकके िलए पाथेय प्राप्त करोगे!' मेरे नेत्र खल ु गये और मैंने देखा िक मिन्दरके कोनेमें पड़े-पड़े प्रभात हो गया है। तभीसे मैं कथावाचक होगया। 42

'ाअपके दशथनसे मैं कृताथथ हुाअ!' वद्च ृ पिण्डतजीने सक ां ोचसे पीछे हटते व्यासजीके पैरोंपर िसर रख ही िदया। दोनों गद्गद हो रहे थे। ।

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नतोऽहं रामवल्लभाम् उद्भविस्थितसंहारिाररणीं क्लेशहाररणीम।् सवाश्रेयस्िरीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम।। 'म नव न स क ग और उसक ह नह , बनकर रहग ।' अम न स चनग रय नकल रह थ । व म धक म र क प रह थ। उ ह न कठ र तप कय , ब रबर क सत कय ; क त व क र व अपनक नह ह कहल सक। उस तजक स मख सद उ ह पर जत ह न प । 'जग मय !' वह य दय नर ह न ज नत ह न थ । उसन 'अस भव' नह स ख थ । पर क क त त एव न य थ उसम । ' म , त ह र ह कप -कट स न सजनक ह । ज यह भ उस क लए मचल ह।' जाने िकतनी वषाथकी झिड़यााँ, िहमका शैत्य और ाअतपकी लू उस तापसके ाउपरसे िनकल गयी। ाऄजथनु वक्ष ृ में िकतने बार पतझड़ हुाअ और िकतनी बार कोंपलें ाअयीं, यह कौन िगने । िजस ममथर-िशलापर वह तापस बैठता है, ाईसमें गड्ढ़े पड़ गये । स-पास तणृ ाईगे, सड़े और ाऄन्तताः वह पाषाण-भिू मके बराबर हो गया।

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कुछ िदन तो ाईसने ित्रकाल सन्ध्या एवां पजू न िकया और िफर सब छोड़कर जो बैठा सो ाईठनेका नाम नहीं। जटाओमां ें पिक्षयोंने घोंसले बना िलये। पैरोंपर िमट्टी चढ़ गयी। वहााँ िहरण ाऄपनी देह खजु लाकर कभी-कभी ाईसकी देहपर जमी िमट्टी छुड़ा जाते थे। ाऄन्तताः एक िदन ाईसकी समािध खल ु ी । ाईसने पलकें खोलीं। ाउपरको ओर देखकर ाऄट्टहास िकया और ाऄपने शरीरपर जमी िमट्टीसे िखलौने बनाने प्रारम्भ कर िदये । जैसे ाईसे ाईठने या भोजन-पानकी ाअवश्यकता नहीं थी। ाऄपनी धनु के सम्मख ु वह कुछ देखता ही नहीं था। ' , दख! तर यवस मर ग धम प क एव स व द ह । तर ग स मर म ह अ धक द ध दत ह।' वह यक पद थ एव णय क त न ध बन रह थ । सचल, सज व, व त वक! 'तमु मानवसे मानव ाईत्पन्न करते हो, मेरे मानव वक्ष ृ फलेंगे!' ाईसने नाररयलका ल बनाया। 'ाऄलम् वत्स!' वद्च ृ हसां वाहन ाअकाशमें ाईपिथथत होकर ाईसको िनवारण कर रहे थे। दरण यक दर न करन औ य ह। वह उठ कर ख ह । अ य व दत कय उसन पत महक और द न ह थ ज कर न र ख ह गय । हस ध र-ध र न च उतर । उस मरमर प णपर उस त पसन क व धवत अचन क । 45

'मानव कृत सिृ ि थथायी नहीं होती ।' ब्रह्माने तपथवीसे कहा'बड़वा एवां गदथभके सयां ोगसे बना खच्चर सन्तित-ाईत्पादनमें ाऄसमथथ है। ाईसके िलए सदा वही सयां ोग ाऄभीि है।' 'िपतामह!' ाईसने नम्रतापवू थक कहा-'िजन महाशिक्तकी कृपासे प सिृ ि करते हैं, ाईन्होंने ही इस िशशक ु ा हठ भी रखा है, मेरी सिृ ि मानव तो है नहीं। वह ाईन्हींकी कृपासे पािलत है।' 'िबना प्रजापितयों एवां भगवान् िवष्णु के पालनके कोाइ सिृ ि रह नहीं सकती!' िपतामहने दसू रा तकथ ाईपिथथत िकया। 'िनमाथताको सदा रक्षककी ाऄपेक्षा है । रक्षणके िबना सजृ नका कोाइ मल्ू य नहीं!' 'ये प्रजापित-पालक िकसकी शिक्तसे ाऄनप्रु ािणत हैं? 'ाईसमें अटल िवश्वास था-'वथततु ाः तो जगज्जजननी ही सबकी पािलका हैं। ाईन्हींकी पालक शिक्तसे ये सब पालक बने हैं। वे ाऄपने बच्चेके िनमाथणका रक्षण नहीं करें गी? मैंने ाईन्हीं की शिक्तसे सजृ न िकया है। ाईनके िकस ाऄनजु ीवीकी शिक्त है जो मेरे सजृ नकी ाईपेक्षा कर दे?’ 'तब तो सिृ ि और भी भयक ां र है।' िपतामह मसु करा रहे थे। ‘वह बराबर बढ़ती रहेगी। सम्पणू थ थथान घेर लेगी और नवीन थथानकी समथया सदा बनाये रहेगी।' ऐसा क्यों? वह िनििनत् बोल रहा था । 'ये रुद्र, ये काल, ये िवनाशक महामाररयााँ तथा दसू री िवश्ले ण शिक्तयाां क्या करें गी? 46

जैसे ाअपकी सिृ ि चलती है, वैसे ही मेरी भी चलेगी। ाईसी महाशिक्तके प्रलयक ां ारी रूपसे िवनाशकी शिक्त प्राप्त ये शिक्तयााँ िनयिमत रूपसे मेरी सिृ िमें भी जीणथको हटाकर नतू नके िलए भिू म प्रशथत करें गी।' 'मैं ज तम्ु हारा ाऄितिथ हू।ाँ मझु े कुछ दोगे नहीं? ाऄन्तताः तो तमु मेरे पत्रु ही हो।' िपतामहने दसू रे ढांगसे कायथ सम्पन्न करना ठीक समझा । ‘मेरा ाऄहोभाग्य!' तापसने प्रमिु दत होकर कहा-'मैं स्रिाके काम सकाँू तो यह 'शरीर भी त्याग सकता हू।ाँ ' क्षित्रयके िलए ाईपयक्त ु ही ाईदारता थी यह । ‘शरीर नहीं, सिृ ि!' िपतामहने कहा- 'मझु े यही चािहये िक तमु अब सिृ ि करना छोड़ दो! तमु स्रिा बनना चाहते भी तो नहीं हो।' 'जो ाअज्ञा!' तापस नत-मथतक हो गया । ' मैंने जो कुछ कर िदया, वह मेरे नामसे ही चलेगा। अब मैं सजृ न नहीं करूांगा; िकन्तु विशष्ठको िफर भी मझु े ब्रह्मिष थवीकार करना होगा!' भला ब्रह्माजी इस झमेले में क्यों पड़ने लगे । हुाअ काम, बने रमते राम। (२) 'मैंने तम्ु हें प्रथम ही वाररत िकया था िक ाऄयोग्य ाअग्रहका पररणाम ाऄच्छा नहीं होता। ब्रह्मिषथ िवश्वािमत्र बड़े शान्त थवरमें

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कह रहे थे । यद्यिप ाईनका कोमल रृदय दयासे द्रवीभतू हुाअ जा रहा था। 'र कर ग दव!' ब त ग तस वह न च म तकक बल गर रह थ । व यक वगस अग-अग उख ज न च हत थ । न ब हर नकल प त थ । म छत ह नस पव अ तम स उसन क तर पक र क । ाऄच्छा, वहीं ठहरो!' प्रकृितका कोाइ िनयम महिषथकी ाअज्ञाका ाईल्लांघन नहीं कर सकता था। देवता एवां लोकपालोंने ाअियथसे देखा िक ित्रशांकु ाऄन्तररक्षमें ही िथथत हो गया। 'तमु गरुु पत्रु ोंके शापसे चाण्डाल हो गये और िफर भी सशरीर थवगथ जानेका हठ न छोड़ सके !' ाऊिषने कहा 'तम्ु हारे ाअग्रहके कारण मैंने तम्ु हें भेज िदया। यह तो िनिित था िक देवता तम्ु हें वहााँ रहने नहीं देंगे। अब तमु जहााँ हो वहीं बने रहो।' 'गरुु देव!' बड़े करुण-कण्ठसे शन्ू यमें नक्षत्र-मण्डलके मध्य मथतकके बल लटकते हुए नरे शने कहा-'ाअपके ाईदाहरणने ही मझु े बताया था िक ाऄसम्भव कुछ नहीं हैं। ‘पर मेरे ाईदाहरणने तम्ु हें यह नहीं बताया िक ाऄिविध पवू थक शिक्तका ाईपयोग कोाइ ल नहीं देता?' ाऊिषने रोषसे पछ ू ा-'मेरी तपथया व्यथथ गयी। मेरी िसिद्चयााँ अस ल रहीं । ाऄस्त्र न्यास करके महिषथ विशष्ठके चरणोंमें िगरनेपर ही मैं ब्रह्मिषथ हो सका ।'

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'ाअतथ क्षम्य होता है गरु ो!' ाउपरसे करुण कण्ठकी ध्विन रही थी। ' मझु े बड़ा क्लेश है। मेरे एक-एक ाऄगां फटे जा रहे हैं। मैं चक्कर खा रहा हू।ाँ मेरी रक्षा कीिजये!' 'यह मेरे वशसे बाहरकी बात है नरे श!' बड़े िखन्न थवरमें ाऊिषने कहा-'ाऄपनी तपथयाका ाऄिधकाांश मैं विशष्ठके साथ द्रन्द्रमें नि कर चक ु ा । ाईनके पत्रु ोंकी मत्ृ यक ु ा कारण बननेसे बहुत तपथया नि हुाइ । तम्ु हें थवगथ सशरीर भेजकर मैं ररक्तप्राय हो गया था और अब तम्ु हें ाऄन्तररक्ष में िथथत रहनेके िलए तो मेरा ाऄवशेष समथत तप लग चक ु ा । िकस शिक्तसे अब तम्ु हारा क्लेश िनवारण करूाँ?’ 'मेरे िलए तो ाअपके श्रीचरणोंके ाऄितररक्त और कोाइ गित है नहीं प्रभ!ु ' िगड़िगड़ाकर रोते हुए उस पीिड़त नरपालने कहा। 'सम्पणू थ देवता तमु से रुि हैं।' िवश्वािमत्रजीका थवर कुछ शान्त हो चला था । 'गरुु पत्रु ोंने तम्ु हें शाप िदया है। तम्ु हारे शभु -कमथ समाप्त हो चक ु े हैं। ऐसी िथथितमें तमु कमथ-लोकसे भी दरू हो। कुछ कर भी नहीं सकते हो । तम्ु हारे किका िनराकरण बड़ा ही किठन िदखायी पड़ता हैं।’ 'ाअपके िलए ाऄसम्भव कुछ नहीं है।' एकमात्र ाअश्रयकी ओर पीिड़त दृिि न डाले तो करे क्या? 'एक ाईपाय है!' ित्रशांकुके जी-में-जी ाअया। 'तमु जगद्चात्री ाअद्या महाशिक्तका थमरण करो। मैं थवयां भी तम्ु हारे िलए ाईनके 49

श्रीचरणोंका ध्यान करता हू।ाँ वे िनिखल क्लेश-िनवाररणी ही तम्ु हारे क्लेशको दरू करने में समथथ हैं!' महिषथने चमन िकया और दोनों हाथोंमें श्वेत कुवलयकी ाऄञ्जिल लेकर महामायाका ध्यान करने लगे। तन्मय हो जाना तो ाईनका थवभाव हो गया था। और एकान्त रृदयकी प्राथथना कभी िनष्फल जाती नहीं। 'क्या है नरे श?' ाईन्होंने शान्तथवरमें पछ ू ा। 'ओह, गरुु देव! प धन्य हैं! ाअपकी कृपाका प्रभाव महान है!' ित्रशांकु कह रहा था गद्गद थवरमें- 'वह महाज्जयोित, वह ाअनन्द सौंदयथकी मिहमामयी मिू तथ?' ाअगे कण्ठ रुद्च हो गया। 'धन्य तो तमु हो नरपाल!' ाअद्रथ थवरमें ाऊिष बोले-'भगवतीने तम्ु हें दशथन िदया। तम्ु हारा जीवन स ल हु । इस ाऄभागेपर तो ाईन्होंने ऐसी कृपा ज तक नहीं की। अब तम्ु हारी क्या दशा है?' 'बड़ा सख ु है, बड़ा ाअनन्द है!' ित्रशक ां ु ने हषथसे कहा-' मैं ाईलटा लटक रहा हू,ाँ यह जान ही नहीं पड़ता। कोाइ ाऄसिु वधा नहीं। मन्द सरु िभत वायु मेरा थपशथ कर रहा है और मझु े जो सख ु प्राप्त हो गया है, वह तो थवगथ में भी मैंने देखा नहीं। मेरे स-पास ये नवीन नक्षत्र बन गये हैं। ाआनमें पररचारक हैं तथा सभी िदव्य भोग हैं।'

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महाशिक्तकी कृपासे अब तमु ाअकल्पान्त ाआसी शरीरसे ाआसी प्रकार यहााँ रह सकोगे!' ाऊिषने कहा-'तमु पणू थ काम हो गये । तम्ु हारा मगां ल हो। ाऄपने इस गरुु के िलए भी उन ाअद्यासे प्राथथना करना। ाईनके श्रीचरणोंके दशथन िकये िबना मझु े अब शािन्त नहीं होने की।' महिषथ पनु ाः तपथयाके िलए कृत िनिय हो गये। (३) 'कायथहीन मन व्यथथकी िवडम्बनाओ ां में लगा रहता है।' एकान्त शान्त सन्ध्याकालमें सन्ध्योपासनके पिात् ाईसी सनपर बैठे हुए महिषथ िवश्वािमत्र सोच रहे थे। 'हम वनवासी यज्ञके द्रारा यज्ञ-परुु षकी ाऄचथना करते हैं। वैसे इस ाऄचथनाका प्रयोजन कुछ नहीं, िफर भी नैकषेय ाआसमें बाधा क्यों दें? राघव कुमारोंको लाकर ाईनका वध कराना ाऄिनवायथ हो गया था ।' 'ाअश्रमवािसयोंमें साहस नहीं था िक वे एकान्तमें बैठे महिषथके समीप जावें। ाऄवश्य ही ाईनके इस ाऄितररक्त िवलम्बसे यह शक ां ा हो चली थी िक कहीं वे ध्यानिथथत तो नहीं हो गये? प्राताःकाल ही ाईन्होंने िमिथला प्रथथान करनेका ाअदेश िदया है और ाईनका ध्यान िथथर हो गया तो िफर वे महीनों ाअसनसे नहीं ाईठते। 'जगद बक न य नम द न दकर द दय थ क एक स थ ह तम मर और परम प क स क र कर सक ग। एक स थ ह म नव पम अवत ण हम द न क तम प हच न सक ग।' 51

मह स च रह थ 'उ ह क द सम तप य स उपर म ह थ । पत नह कब उनक कप ह ग ।' ' ज य भ कप नह करग?' व ण व न दक ग भ र मज द वण म प । मह न न ख ल और अपलक म- व मतस उस न य नतन स दय र क दखन लग। 'सभी ाअश्रमवासी ाईटजके सम्मख ु ाऄशोक तले िनमथल ज्जयोत्थनामें बैठकर प्रभक ु े ाअगमनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं!' नीलोज्जवल पीताम्बरधारी उस रघक ु ु ल िकशोरने नम्रतापवू थक प्राथथना की। 'चलो वत्स!' महिषथने ाअत्म-सांयम करते हुए कहा 'ये ही तो ाअिद परुु ष नहीं हैं?' अब भी वे थे सांिदग्ध ही। प्रसगां का व्यथथ िवथतार ाऄभीि नहीं। मिु न-मण्डली कौशलकुमारोंके साथ प्रिथथत हुाइ और मागथ में ाऄिहल्या पर कृपा करते हुए वे िमिथला पहुचाँ गये। महाराज िवदेहके ाअितथ्य के ाऄनन्तर दसू रे िदवस यज्ञशालामें सब ाअसनासीन हुए। ‘जो परम कल्याणमयी हैं, समथत मगां लोंकी दात्री हैं, वे मगां ल करें ।' महिषथ तटथथ नहीं थे। वे राघवेन्द्र धनषु तोड़ें, यह चाहते थे। 'यज्ञ-िवघ्नोंका मन िजनकी कृपासे हुाअ, मैं ाईन्हींके पण्ु य-पदोंका थमरण करता हू।ाँ ' महिषथने श्रीरामभद्रको धनषु ोत्तोलनकी ाअज्ञा दे दी।

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'मनष्ु यका सम्पणू थ कल्याण िजन्हें प्राप्त करके होता है, वही तो हैं ये ।' महिषथ बार-बार सोच रहे थे।' एक सक्ष्ू म-सा वरण रृदयपर बना था। 'ाआन्हींका तो दशथन मझु े ध्यानमें हुाअ था। 'जैसे वे िकसी िवथमतृ बात को थमरण करनेका प्रयत्न कर रहे हों। धनषु टूट गया था। सिखयोंसे िघरी िवदेहजा दोनों हाथोंमें जयमाल िलये ाऄपने ाअराध्यके चरणोंके समीप खड़ी थीं। एक बार नीची दृिि ाईठाकर ाईन्होंने दरू मिु न-मण्डलीके बीच बैठे िवश्वािमत्रकी ओर देखा। एक पदाथ-सा हट गया। गद्गद होकर महिषथने दोनों हाथ जोड़कर मथतक झक ु ाया । कोाइ लिक्षत कर सका या नहीं-कह नहीं सकते। ाऄथफुट ध्विनसे महिषथने कहा 'नतोऽहां रामवल्लभाम् ।' ाईसी क्षण उधर जयमाल कण्ठमें पड़ी। शख ां -ध्विन, मगां ल गान-ध्विन एवां वेदध्विन । मिु नके शब्द िकसीने न सनु ा हो तो क्या ाअियथ? उन सवथज्ञाने तो सनु ही िलया।

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अशेषिारणपरम् यन्मायावशवितिं िवश्वमििलं ब्रह्मािददेवासुरा यत्सत्वादमृषैव भाित सिलं रज्जौ यथाहेर्भ्ामाः। यत्पादप्लवमेिमेव िह वाम्भोधेिस्ततीषाावतां वन्देऽहं तमशेषिारणपरं रामाख्यमीशं हररम।् । 'सम्भवताः ाअपके दतू ोंसे भल ू हुाइ है।' ाईसे न तो भय प्रतीत हुाअ और न कोाइ खेद ही । यमदतू ाईसे सांयिमनी ले ाअये थे । यों ाईसे कोाइ क्लेश नहीं िदया गया था और यमदतू भी ाईसे सौम्य थवरूप में प्राप्त हुए थे । वह सयां िमनीमें पवू थके थवणथद्रारसे ही प्रिवि िकया गया था। वैतरणीके प्रितक्षण पररवतथनशील पल ु थफिटकके थवरूप में ाईसके िलए मागथ था। 'मेरे िकांकर प्रमाद नहीं िकया करते!' शान्त सौम्य थवरूपमें िवराजमान वही धमथराज गम्भीर थवरसे कह रहे थे जो पािपयोंको महाभयक ां र यमराजके रूपमें िदखायी िदया करते हैं। 'मैंने सहस्र वषथ एक पादसे खड़े रहकर लोकिपतामह की ाअराधना की है। मझु े यहााँ क्यों लाया गया?' तपथवी भिू तने समझा िक ाऄवश्य धमथराज भी कहीं-न-कहीं भ्रममें पड़ रहे हैं। 'यह मझु से ाऄिविदत नहीं है।' वे िनयन्ता शान्त थे।' ाआसीसे मैं ाअपके चरणोंमें प्रणत हू।ाँ मेरे ाऄनचु रों द्रारा ाअपको कोाइ कि हुाअ हो तो प इस सेवकको क्षमा करें !'

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'मझु े कोाइ कि नहीं हुाअ और न मेरा कोाइ ाऄसम्मान िकया गया। भिू तने कहा-'िकन्तु मझु े ाअपके सम्मख ु लाया ही क्यों गया? मैं ाआसे समझ नहीं पाया हू।ाँ 'ाअपके तपोपािजथत िदव्यलोक ाऄपार हैं, ज्जयोितमथय हैं ।' धमथराजने कहा-'िकन्तु ाईनका मागथ यहााँ होकर ही जाता है। प्रत्येक पण्ु यात्मा एवां पापीको यहााँ ाअना पड़ता है और यहीं िनिित होता है वह कहााँ भेजा जावे। ाअपका मांगल हो, यह िदव्य-िवमान ाअपको उस िदव्य लोकमें पहुचाँ ा देगा, जो वथततु ाः ब्रह्मलोकका ही एक ाऄगां है। 'वह कौन-सी शिक्त है है िजसके कारण प जगत्स्रिाके सेवकोंपर भी शासन करते हैं।' तपथवी कुछ झाँझु ला रहा था। 'मैं कोाइ िदव्यलोक नहीं चाहता। मैंने ाआसके िनिमत्त तप नहीं िकया था। मैं तो सिृ िकताथके चरणोंको ाईपलब्ध करके ाऄपनु भथवकी ाआच्छा रखता हू।ाँ ' िजसकी मायासे िववश स्रिा सिृ ि करते हैं, िशव सांहार करते हैं और िवष्णु पालन करते हैं; िजसकी मायाके वशवती ाआन्द्र, चन्द्र, सयू थ ाअिद समथत देवता तथा िनिखल जड़-चेतन जगत है, ाईसी परम प्रभक ु ा ाआच्छा शिक्त मझु े भी इस कायथ में िनयोिजत िकये है। उन परमभागवतने गद्गद होकर मथतक झक ु ाया। 'तो क्या मेरा तप िनष्फल हुाअ?' तपथवीने िखन्न होकर पछ ू ा। 55

'ाअपने लोकिपतामहकी ाअराधना की । ाईनका सालोक्य ाअपको प्राप्त हो रहा है।' धमथराजने कहा 'िकन्तु ब्रह्मलोक िनत्य नहीं है । िद्रपराधथमें जब महाप्रलय होगी तब पको वहााँसे ाऄव्यक्तमें िथथत रहना होगा और नतू न सिृ िमें प पनु ाः धराधामपर पदापथण करें गे। तपथवीने दीघथ िनाःश्वास ली। ाईसे ब्रह्मलोक की प्रािप्त सख ु नहीं दे सकती थी। बड़ी िनराशा एवां व्यथासे वह वहीं धम्मसे बैठ गया। (२) 'मैं यहााँसे कहीं जानेका नहीं!' तपथवी भिू तने सत्याग्रह िकया। धमथराज बड़े धमथ-सांकट में पड़ गये। वे इस पण्ु यात्मा ब्राह्मणके साथ कठोर व्यवहार नहीं कर सकते थे। सांयिमनीमें कोाइ ाऄितिथशाला है नहीं। उस न्यायालयको कोाइ धमथशाला मान बैठे तो क्या हो? 'िचत्रगप्तु , इन तपथवीको कुछ देखने दो।' ाऄन्तत: कुछ सोचकर उन महािनणाथयकने ाऄपने पेशकारसे कहा। महिषथने देखा िक लक्ष-लक्ष जीव रहे हैं । कभी धमथराज भयक ां र हो जाते है, कभी शान्त और नम्र । सम्पणू थ परु ी ाईनके ाऄनरू ु प क्षण-क्षणमें ाऄपनेको पररवितथत कर रही है।

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‘भीरु, तझु े सपथने कहााँ काटा?' यमराज कह रहे थे। 'रथसीको सापां समझकर भयसे तू ाऄपमत्ृ यक ु ो प्राप्त हुाअ। भय सबसे बड़ा पाप है। ाईसका पररणाम तझु े भोगना ही होगा!' क्या-क्या तपथवीने देखा, कह नहीं सकते । ाऄन्तताः ाईन्होंने नेत्र बन्द कर िलये-'बस करो न्यायाधीश! मैं और नहीं देख सकाँू गा।' ाईन्होंने प्राथथना की। सांकेत हुाअ और िचत्रगप्तु ने वह शिक्त समेट ली।, ' प तो ब्रह्मलोक जानेसे डरते हैं!' हाँसते हुए धमथराजने कहा-'ये जीव पता नहीं िकतने कल्पोंसे ाआसी प्रकार यन्त्रणा भोग रहे हैं और ाअगे भी भोगते रहेंगे ।' 'अब तो मैं और भी भीत हो ाईठा हू!ाँ ' तपथवीने कहा'अबतक तो मैं सनु ता था िक ाआतना कि जीव पाता है, अब ाईसे प्रत्यक्ष कर िलया। ब्रह्मलोककी ाअयु समाप्त हो जानेपर तो मेरी भी ऐसी ही कुछ दशा होगी?' दोनों हाथोंसे मथतक पकड़ िलया ाईन्होंने । 'भय सबसे बड़ा पाप है तपथवी!' धमथराजने मसु कराते हुए कहा । 'यह सब क्या सत्य है?' तपथवीको सन्देह हुाअ। ाईसने सांयिमनीपितको मसु कराते देख िलया था। 'वैसा ही, जैसा उस भीरुके िलए सपथ था?' धमथराजको क्या पड़ी िक वे झठू बोलें। 'ाऄथाथत?् ' तापस चौंका। 57

'यह कमथलोक नहीं और न िजज्ञासाका थथान है।' धमथराजने कहा-'िफर भी एक बात मैं ाअपको बता देता हूाँ िक यह सब एक बहृ त् थवप्न है । एक प्रतीित है । जो कुछ तमु ने देखा है, देखोगे या सोचते हो, यह सब रथसीका सपथ है ।' 'अस य, नर ध र? 'तप व व मत थ । ' स नह !' धमर जन कह -' नर ध र क व त नह । र स न ह त सप कस ? एक स य ह और और उस क स स यह सब स य-जस भ सम न ह। वह चर चत य सबक ध र ह।' ‘तब कस ल क और कस नक?' त पसन कह 'म तब द न क अ व क र क ग !' 'यह कै से शक्य है' धमथराज हाँसे-'थवप्न देखने वाला ाईसके सख ु -दाःु खोंको ाऄथवीकार कै से कर देगा? ाईसे तो ाईन्हें लेना ही होगा!' तब जागरण....?' तापस प्रश्न परू ा नहीं करने पाया। ' प अब मझु पर कृपा करें !' धमथराजने हाथ पकड़कर ाईसे िवमानमें ाअग्रहपवू थक बैठा िदया और िवमान ाईड़ चला। (३) िपतामह, यिद सेवक क्षम्य समझा जावे।' लोक तो सभी भोगके हैं मत्यथलोकके ाऄितररक्त, िकन्तु ाआसका ाऄथथ यह तो नहीं िक वहााँ कमथ हो ही नहीं सकता । वहााँ का कमथ लद नहीं होता, ाआतना ही । िफर भी वहााँके कमथ सवथथा िनष्फल नहीं होते। वे पाप58

पण्ु यरूप ल नहीं प्रकट करते । वैसे ाआन्द्रका वज्र-प्रहार िकसीकी मत्ृ यक ु ा कारण तो होता ही है । तपथवी भिू त ब्रह्मलोकमें जाकर वहााँके भोगोंमें प्रमत्त नहीं हुए। वे सदा ब्रह्माकी सेवामें लगे रहते थे। वे देखते थे िक िपतामह सिृ िके ाआतने िवशाल कायथ में ाऄप्रमत्त होकर लगे रहते हैं और िफर भी सदा िकसीका ध्यान िकया करते हैं। ाईनका मानिसक पजू न-क्रम कभी िवश्राम नहीं लेता। 'पछ ू ो वत्स! इस लोकमें भय और सांकोचके िलए कोाइ थथान ही नहीं!' तपथवीकी िनरन्तर सेवासे िपतामह परम सन्तिु थे और ाआसी कारण ाईसे सदा समीप रहनेका अवसर प्राप्त हुाअ । ' प िनरन्तर िकसका ध्यान करते हैं?’ बड़े नम्र शब्दोंमें तपथवीने पछ ू ा। 'जो इन सब दृश्योंका ाअधार है।' ब्रह्माजीके शब्दोंने धमथराजके वाक्योंका थमरण करा िदया। 'जो सबके कारण हैं। िजनका कोाइ कारण नहीं। िजनकी शिक्तसे यह सिृ ि हो रही है और मैं स्रिा हू,ाँ उन कारणोंके परम कारणका ध्यान करता हू।ाँ ' ' कस लए?' तप व ज न बझकर छ ट उप थत कर रह थ । पत महक क य य त क उस य न थ और यह ज नत थ क व उपद दनक रम कभ नह प करत।

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' ज मैं स्रिा हू'ाँ िपतामहने कहा-' िकन्तु एक िदन ाअवेगा जब काल मझु े यहााँसे दरू फें क देगा । सिृ िके साथ स्रिाकी ाअयु पणू थ हो जायगी और तब यह भवसागर मेरे सम्मख ु भी ाईसी प्रकार ाईपिथथत होगा, जैसे िकसी भी जीवके सम्मख ु है।' 'श्रिु तमें इस भवािब्धसे पार होनेके बहुत-से ाईपाय कहे गये हैं और ाअपको ाईपलब्ध हैं!' साियथ तपथवीने कहा। 'योग, ज्ञान, तप, यज्ञािद बहुत-से मागथ श्रिु तने कहे हैं और वे मझु े सहज प्राप्त हैं।' ब्रह्माजीने कहा -'िकन्तु ाईनमें कोाइ भी िनरुपािध नहीं है। क्या पता ाऄन्त में िचत्तविृ त्त पणू तथ ाः िनरुद्च रहे या न रहे। थवरूपमें िथथित हो या न हो । तप और यज्ञ ाआसी लोक तक ाअते हैं।' 'तब?' तपथवी बहुत ाईत्किण्ठत था। 'ाआसीसे मैं िनत्य श्रीहररके चरणोंका थमरण करता रहता हू।ाँ ' भाव-िवभोर ब्रह्माजी बताते जा रहे थे। 'ससां ारसागरसे पार होनेके िलए ाआनके श्रीचरणोंका ही एकमात्र ाअश्रय है। ाआससे पार होने वालेको एकमात्र यही नौका िमल सकती है।' 'एक बार ाईनका साक्षात्कार कर पाता!' ाऄन्तरकी सम्पणू थ लालसा भरकर ाईसने कहा। साहस नहीं होता था ाऄनरु ोध करनेका । 'उन श्रीहररके वैकुण्ठ जानेकी शिक्त तो तमु में है नहीं!' िपतामहके थवरमें तापसने ाअशाकी एक ाईज्जज्जवल रे खा देख ली। 60

वे ाइश्वरे श्वर हैं, समथथ हैं, वही करुणा करें तो सम्भव है। ाईन्हीं की कृपाकी प्रतीक्षा करो!' ाआससे ाऄिधक िपतामह और कह भी क्या सकते थे? (४) ' ज तम्ु हारी िचर लालसा पणू थ हो रही है वत्स! ाऄपने हसां की पीठको थपथपाते हुए ब्रह्माजी कहीं जानेके िलए प्रथततु हो चक ु े थे। ाईन्होंने तपथवी भिू तसे, जो इस ब्रह्मलोक में भी भोग पराङ्मु ख होनेके कारण तपथवी ही प्रिसद्च था, कहा। 'प्रभ,ु क्या श्रीहररके चरणोंमें सेवकके िलए प्राथथना करें ग?े ' बड़ी कृतज्ञतासे ाईसने पछ ू ा। 'ाऄपनी प्राथथना तमु थवयां उन चरणोंमें कर लेना।' ब्रह्माजीकी पहेली समझमें ाअयी नहीं। 'म कस स बक ठ ज सकग !' ख न ह कर वह पत महक मखक ओर दखन लग । उसन समझ पत मह न यक भ त थन करनक कह रह ह। थन उन सव क चरण म त पहचत ह ह ग । 'वैकुण्ठ न सही, देव-धरापर तो िनबाथध जा ही सकते हो। तमु जल्दीसे मेरे पीछे चले ओ!' िपतामह सदा शीघ्रता में रहते हैं । वद्च ृ होनेपर भी ाईनमें बालकों जैसी चपलता है। धीरे -धीरे काम करना ाईन्हें नहीं ाअता । वे हसां की पीठपर बैठे और चल पड़े। तपथवी भिू तने ाईनका ाऄनगु मन िकया। ाईन्होंने देख िलया िक अब 61

प्रश्न करना व्यथथ है। ाईत्तरकी ाअशा िपतामहसे इस समय नहीं की जा सकती। 'यह क्या?' तपथवी चौंका । ाईसने देखा िक भगवती शारदा और सािवत्री भी चल रही हैं। पीछे दृिि की तो परू ा ब्रह्म-लोक ही ाअता िदखायी पड़ा। ऐरावतके पररिचत घण्टानादसे ाअकिषथत होकर जो पवू थ दृिि डाली तो महेन्द्र समथत देव, गन्धवथ एवां ाऄप्सराओकां े साथ ाअते िदखायी िदये। मागथमें ाऄभी ब्रह्माजी ाईमामहेश्वरसे िमल ही रहे थे िक गरुड़के पक्षोंको छाया वहााँ पड़ने लगी। दिक्षण में यह जो कृष्णाकृित िदखायी देती है, वे सम्भवताः धमथराज मिहषारूढ़ पधार रहे हैं। 'समथत देववन्ृ दोंका भार धररणी कै से सह लेगी?' तपथवी मन-ही-मन सोच रहे थे। 'सरु गण यहींसे प्रभक ु ा दशथन करें गे!' नीचे थवणथके कल चमक रहे थे । पताकाएाँ फहरा रही थीं। घण्टा, शख ां , मदृ गां प्रभिृ त वाद्य बज रहे थे । वेदध्विन एवां मिहलाओकां ा कोिकल कण्ठ ाऄप्सराओकां ो भी लिज्जजत कर रहा था। सरयू िकनारे इस परु ीमें ज ाअनन्द घनीभतू हो ाईठा था। वहीं नभमें रुकनेका िनदेश स्रिाने सबको िदया। 'ये रत्नोज्जज्जवल भवन, यह नारर-नर सौंन्दयथ, यह ाऄपार वैभव, ब्रह्म-लोकमें भी तो नहीं? यहााँ कहीं न तो ाऄभावका प्रवेश है और न शोककी छाया ।' तपथवीकी बड़ी लालसा थी िक वह नीचे उतरकर परु ी देखे; िकन्तु िपतामहने सबको वाररत कर िदया 62

था । 'तब क्या यही बैकुण्ठ है? मैं भला यहााँ कै से प्रवेश प्राप्त कर सकता हू?ाँ ' वह िनराश हो गया। 'तमु मेरे साथ सकते हो!' िपतामहने उसपर ाऄनग्रु ह िकया। ‘राघवेन्द्र िसहां ासनारूढ़ हो चक ु े हैं। महिषथ ाऄिभषेकके िलए ाऄपने थथानसे उठ रहे हैं। शीघ्रता करो! भगवान् रामको यह झााँकी बड़े सौभाग्यसे प्राप्त होती है।' िपतामह िबना देखे चल पड़े। भोले बाबा ाऄिम्बकाको िलये पहले ही जा चक ु े थे! तपथवीको यह कहााँ ाऄवकाश िक देखे िक और कौन-कौन दशथनािधकारी समझे गये हैं। वह तो उन चरणोंकी वन्दना करने चल पड़ा ।

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स्वान्ताःसुिाय नानापुराणिनगमागमसम्मतं यद् रामायणे िनगिदतं क्विचदन्यतोऽिप। स्वान्ताःसि ु ाय तुलसी रघुनाथगाथा, भाषािनबन्धमितमञ्जुलमातनोित।। ' प इस ाऄनवु ाद-ग्रन्थकी प्रशांसामें क्यों प्रवत्तृ हुए?' ाअचायथ भीमशांकर पिण्डतोंके साथ श्रीमधसु दू न सरथवतीके ाअश्रमपर पधारे थे। ाईन्हें बड़ी ाअशा थी िक ये िदग्गज िवद्रान् तल ु सीके भाषा-ग्रन्थको कदािप पसन्द नहीं करें गे। ाआसी ाअशापर काशीके पिण्डतोंने ाईनकी सम्मितपर ग्रन्थकी मान्यता िथथर की थी। 'भिक्तरसायन'-कारके भावक ु रृदयका पता उन शष्ु क िवद्रानोंको भला कै से लगता। 'मानस' पर थवामीजीकी सम्मितने ाईन्हें क्षब्ु ध बना िदया था। ' प ाईसे ाऄनवु ाद-ग्रन्थ कै से कहते हैं?' नम्र गाम्भीयथमें थवामीजीने पिण्डतोंको ाअदरपवू थक सन देकर पछ ू ा । वे थवयां एक ाईच्च चौकीपर व्याघ्राम्बर डाले ाअसीन थे । रुद्राक्षकी माला, ित्रपण्ु ड एवां काषाय वस्त्रोंमें वे तेजथवी साक्षात् ाऄिग्नमिू तथ जान पड़ते थे। ‘ाईसमें किलधमथ ाऄक्षरशाः महाभारतसे िलया गया है । ाऊत-ु वणथन, रांगभिू म-प्रवेश प्रभिृ त श्रीमद्भागवतसे, कथा-भाग ाऄध्यात्मरामायणसे ।' पिण्डतजी ाअवेशमें कहते जा रहे थे-'कुछ 64

वेदोंसे, कुछ तन्त्र ग्रन्थोंसे, कुछ परु ाणोंसे, कुछ उप-परु ाणोंसे, कुछ नाट्य एवां काव्य ग्रन्थोंसे। 'कहींका ाइटां कहींका रोड़ा, भानमु तीने कुनबा जोड़ा' ाईसमें ाऄपना है ही क्या। 'ाअपने उस पावन ग्रन्थका थवाध्याय तो िकया है।' थवामीजी हाँसे-'मैं तो समझता था िक प ाईसे थपशथ करनेसे ही डरते होंगे।' उस 'ाऄद्रैतवीथीपिथकरुपाथय' के वचनोंको चपु चाप सहन करनेके ाऄितररक्त कोाइ ाईपाय नहीं था। शारदाके उन वरदपत्रु का सामना करनेका साहस कौन कर सकता था। 'ाऄपनेपर ाअघात करनेवाले प्रितपक्षी बौद्च जैनािदकोंके ग्रन्थोंका थवाध्याय श्रीचरणोंको भी करना ही पड़ता है।' पिण्डतजीने व्यांग्य िकया । 'प डतज , प च हत य ह? म लक कस कहत ह?' ' य स छ मद जगत ' क य भल ज त ह?' व म ज य क- य त एव ग भ र थ। 'क न-स स स कत थ ह ज य सक उ य क बन च र प भ र मल? पर ण एव क उ य क सज न अम लक म न लय ज व त क लद स, भवभ त भ त तथ दक व मह व म क भ अनव दक ह रहग! अ तत र मच रत तय म भ त ह। भगव न वद य सन ह य म लकत दख य ? उ ह न भ त नगम गमक क र तरस तत कय ?

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'तब क्या मौिलकता एवां ाऄनवु ादमें कोाइ ाऄन्तर ही नहीं?' पिण्डतजी जानते थे िक तकथ करके इन नैयाियकोंके गरुु देवसे पार पाना शक्य नहीं है। 'यह तो सोचनेकी बात है।' दो क्षण रुककर पनु ाः थवामीजीने कहा-' प ‘भावमनहु रित किवाः' को भल ू ते क्यों हैं? व्यासके ग्रन्थों तथा श्रिु त शास्त्रोंसे कुछ लेना चोरी नहीं है और न ाऄनवु ाद । ाऄनवु ाद तो ज्जयों-का-त्यों रख देना है। भावोंको लेकर ाऄपने ढांगसे व्यक्त करना, ाईन्हें ाऄपने कौशलसे सजाना मौिलकता है और ाअपको थवीकार करना होगा िक 'मानस'-कारने जो भी भाव िलया है ाईसे इस प्रकार ाऄपना िलया है िक वह िलया हुाअ ज्ञात नहीं होता । ाऄपने मल ू थथानसे भी पररष्कृत, सन्ु दर एवम् कलापणू थ थवरूपमें वह व्यक्त हुाअ है ।' पिण्डतजी को क्या थवीकार है, यह तो वे भली प्रकार जानते हैं; िकन्तु यहााँ तकथ में पड़कर ाईपाहासाथपद बननेकी ाआच्छा ाईनमें नहीं। ऐसी भल ू करनेसे रहे। चपु चाप मथतक झक ु ाकर सनु ते गये। 'क्या शास्त्रोंकी तम्ु बाफे री िकये िबना काम नहीं चल सकता।' पिण्डतजीका ाईत्साह मन्द पड़ता जा रहा था। 'तब वह ग्रन्थ ाऄशास्त्रीय होगा।' थवामीजीने मथु कराकर कहा-'तब प, और सम्भवत: ाअपके साथ मैं भी िचल्लााउाँगा िक यह किल्पत है, शास्त्र-प्रामाण्यसे हीन, अतएव ाऄनादरणीय है! ाआसमें पाखण्ड एवम् ाऄधमथका समथथन हुाअ है!' 66

'शास्त्रोंके वाक्य न चरु ाये जावें तो क्या िफर ाऄधमथ पाखण्ड ाऄवश्य जावेगा?' पिण्डतजी तिनक तीव्र हुए। 'धम और अधमक म यम भ क थ त ह? धमक क अ स हज व णत न ह ?' व म ज कछ ह उठ। ' ज प गहर छ न गय ह! ‘म नस' म त, म त, त , पर ण दक ह भ व क यव थत पम कटय ह ह। उसक धम, द न, सद च र, कथ भ ग तथ उपम - त तक स मत ह, इस लए म उसक सक ह। इस क रण उस प वन क तक स मख म तक झक त ह।' (२) उस िदन प मेरे यहााँसे रुि होकर चले गये थे, िकन्तु यिद िथथर िवचार करें तो ाअपको मेरी बात तथ्यहीन नहीं जान पड़ेगी।' थवामीजी और पिण्डत भीमशक ां रजी ाअचायथ श्रीाऄन्नपणू ाथ मिन्दरके बाहर िमल गये थे । थवामीजीने ही वाताथलाप प्रारम्भ िकया। ज व म मधसदन सर वत ज क क य र य ढगस बध ह थ । ह थम व व त द ड थ । प छ एक त ण स य स उनक कम डल लय हए थ । बहत-स क यध र तथ व कम र उनक अनगमन कर रह थ। च य भ म कर च ल ल कन रक बगन प ट बर पहन तथ क य र य ध रण

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कय थ। उनक प छ भ यव द उनक न न ध त , जलकल तथ ल क ख ल ड लय लय चल रह थ । थनानान्तर िवश्वनाथ एवां ाऄन्नपणू ाथका ाऄचथन हो चक ु ा था। थवामीजीसे भेंट ाऄिभप्रेत न होनेपर भी जब वे सन्मख ु पड़ गये तो ाअचायथको 'हरर: ॐ' कहकर ाऄिभवादन करना पड़ा । साथ ही साथ चलने लगे। 'रुि होकर जानेकी कोाइ बात नहीं थी।' पिण्डतजीने कहा'हमारे िलए तो ाअपके वचन ही प्रामाण्य हैं। ाऄनगु तोंके िलए गरुु जनोंका ाऄनश ु ासन ही शास्त्र है। उन वचनोंका मनन करनेके िलये उस िदन मैं चपु चाप उठ गया था।' थवर, शब्द एवां कहनेकी शैली थपि कह रही थी िक यह सब कृित्रम सौजन्यके ाऄितररक्त और कुछ है नहीं। सम्भवताः पिण्डतजी कोाइ भिू मका बना रहे थे। 'ाऄच्छा, िफर ाअपने िवचार िकया?' घमु ा-िफरा कर कहना थवामीजीके थवभावमें नहीं। 'ाऄवश्य ही सेवकको कुछ िनवेदन करना है!' पिण्डतजीने शान्त थवरमें कहा । पीछे की ाऄनगु त मण्डली ाईत्कणथ होकर और यथाशक्य िसमट यी। 'किहये! ाआसी बहाने कुछ शास्त्रचचाथ हो।' थवामीजीने हाँसकर कहा ।

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शास्त्रचचाथ तो नहीं, उस भाषा-ग्रन्थकी चचाथ ाऄवश्य है!' पिण्डतजी व्यग्ां य कर चले। 'श्रीमान् ने कहा था िक ाईसमें सब कुछ शास्त्रीय ही है। शास्त्रोंसे बाहर ाईसमें कुछ नहीं!’ ‘कहा तो मैंने ऐसा ही था।' थवामीजीने सरलतासे थवीकार कर िलया। 'िकन्तु मझु े तो ऐसा नहीं लगता ।' पिण्डतजीने ाऄिभप्राय थपि िकया- 'फुलवारीका प्रसांग, ाऄयोध्या काण्डका तापस प्रसांग, ऐसे कुछ थथल िकसी प्राचीन ग्रन्थमें नहीं।' 'ये रचियताके रृदयसे िनकले हैं!' थवामीजीने िबना िहचिकचाहट कह िदया। 'तब ग्रन्थकी पणू थ शास्त्रीयता कहााँ रही है?' शास्त्रीजीने समझा िक वे अब िवजयी हुए। 'शास्त्रानमु ोिदतका ाऄथथ यह तो नहीं िक ाईसमें शास्त्रके ही शब्द हों?' थवामीजीने शान्त थवरमें कहा -'ाईसकी घटनाएाँ, ाईपमाएाँ, िसद्चान्त, ाअचारािद िनगमागम परु ाण सम्मत हैं तथा ाईसमें कुछ और भी है। और यही ाईसकी मौिलकता, िवशेषता एवां प्राण है। ाआसी और ने उन शास्त्रीय वचनोंको सिज्जजत प्रािणत िकया है । िफर भी यह कुछ और शास्त्रिवरोधी तो नहीं? वह तो ाईज्जज्जवल भाव ही है?' चपच प प डतज सनत रह और एक चतर कपर पहचकर ब ल- ' चरण म उप थत ह कर वनय क ग । अभ त 69

ह !' द न मह प वभ ह गय।

द ओर अपन अनग मय क स थ

(३) 'िवश्वनाथ, ये तम्ु हारी नगरीके िवद्रदरत्न और ाआनमें ाआतनी सांकीणथता!' ज दशथन करके ाऄनन्तर श्रीमधसु दू न सरथवती िवश्वनाथ मिन्दरके गभथगहृ से बाहर हवन कुण्डके समीप बैठ गये थे। एक िशष्यने सन िबछा िदया और वे िसद्चासन लगाकर ाअसीन हो गये । दण्ड एक छात्रने सम्हाल िलया था। योिगराजने नेत्र बन्द िकये । दशथनािथयोंकी भीड़ दरू से ही ाईन्हें भी मथतक झक ु ाकर एक ओरसे िनकल जाने लगी। वहााँका तमु ल ु कोलाहल ाईनकी कणेिन्द्रयको प्रभािवत करने में ाऄसमथथ था, क्योंिक मनोिनरोध हो चक ु ा था। पिण्डतोंका श्रीगोथवामीजीसे द्रेष तथा बार-बार ाईन्हें छे ड़ने की चचाथ थवामीजीके कानोंतक पहुचाँ ती रहती थी। यह ाआतना प्रकाण्ड िवद्रानोंका समदु ाय भावहीन रहे। यह उन दयालक ु ो सह्य नहीं हुाअ। ाईन्हें पिण्डतोंपर दया ाअती थी। प्रत्यक्ष ही ाईनमें भिक्तका सवथथा ाऄभाव पररलिक्षत था। ज काशीपितके चरणोंमें इन सबके िलए प्राथथना करनेका ाईन्होंने िनिय कर िलया था। िशष्योंको ाअश्रम जानेका ाअदेश देकर ही वे सनपर िवराजे थे। यह दसू री बात है िक िशष्यवगथ ाऄभी तक वहीं गरुु देवकी प्रतीक्षामें था। 70

य मसदरक जसपर कप ह, उसपर भ ल ब ब य सत नह ह ग, क स ध रण य ग ह त , दसर ब त थ , जसदरक ल ल भ मचल बठ थ और वह भ त क घरम। व भ वज वल ब नह कर सक। उस व दय क म क कपर वल म त न द न दय । ‘वर ह!’ भ लब ब और कछ त ज नत ह नह ।व सद क औढरद न ह। ‘न दन दनम अ वचल अनर ग ह !' भल इस मह न वरद नक लए और मह द त कह मलग । 'एवम त' यह त पहलस न त थ । ' क त यह त त ह ह ह प डत!' भ म गक उन क ड प डतक भ लब ब न भ ‘प डत’ कहकर ह स ब धत कय । जस ज न दनन म गवतक भ य करनक द ह , उसक लए कल न थक 'प डत' उपय ह ह । 'ाऄपनी राजधानीके इन सरथवती-पत्रु ोंपर प कृपा नहीं करें गे?' मधसु दू न सरथवतीने उन ध्यानगम्यके पादाम्बजु ोंमें प्राथथना की। ये तल ु सीदासकी उस भावमय कृितका क्यों मोघ-िवरोध करते हैं? 'तल ु सीकी कृित कौन-सी?' भोलेनाथ हाँस पड़े-'तमु भी कोरे पिण्डत ही रहे। ाऄरे , वह तो मेरी कृित हैं। मैंने देववाणीमें ाईमाको ाईसका ाईपदेश िकया था। ाऄपनी िवशद्च ु बिु द्चसे तल ु सीने ाईसको 71

साक्षात् करके भाषामें के वल व्यक्त िकया है।' ज यह नवीन रहथय प्रकट हुाअ। 'तब तो ाअपका यह प्रसाद इन िवप्रोंको ाऄवश्य िमलना चािहये!' प्राथथना ाईल्लिसत हो ाईठी। 'तम्ु हारा ाअग्रह व्यथथ नहीं जायगा!' िवश्वेश्वरने शान्त थवरमें ही कहा- 'िकन्तु ाईसमें समय लगेगा । एक िदन िवद्रान् िवप्रसमदु ाय ाईसे मथतक ाऄवश्य झक ु ावेगा; पर ज तो वह ाऄिधकारी ही नहीं है।' 'ाऄिधकारी.....?' मधसु दू न थवामी प्रश्न परू ा कर नहीं सके । 'वह मेरे िवशद्च ु मानसकी कृित है। भगवान् शांकरने कहा'ाईसका भाषामें पररवतथन भी तल ु सीकी मञ्जल ु मितने िकया है। शद्च ु बिु द्चके िबना ाईसका महत्व प्रकट हो नहीं सकता। 'शास्त्रोंके ज्ञाता क्या ाईसे जाननेके ाऄिधकारी नहीं? ाऄभी भी समाधान हुाअ नहीं था। 'शास्त्रोंकी िनयिु क्त तो बादमें भी होती है।' काशीपित कहते गये। शास्त्राथथ एवां िवद्याके िमथ्या गवथ से परू रत मित भावकी ाऄिधकाररणी नहीं। गवथहीनका ही भिक्तमागथमें प्रवेश है। 'मानस' का िनमाथण बादके िलए नहीं। वह 'थवान्ताःसख ु ाय' है। ाऄपने ाऄन्तरके गम्भीर प्रदेशमें ाऄपार ाअनन्द है, ाईसे प्राप्त करनेकी िजसे ाआच्छा हो, ाईसीके िलए श्रीरामचररतमानसकी ाऄिभव्यिक्त है। ाआसके ाअश्रयणसे थवान्ताःसख ु ानभु िू त होगी।' 72

वह मिू तथ सहसा ाऄदृश्य हो गयी। नेत्र खोलनेपर सम्मख ु द्रारसे िवश्वनाथजीकी मिू तथ दृिि पड़ती थी। ाईसीको थवामीजीने मथतक झक ु ाया।

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िसिद्धदाता जो सिु मरत िसिध होइ गननायि िररवर ब अनुग्रह सोइ, बुिद्धरािस सभ ॥ ु -गुनसान्ध्य ाऄरुिणमा ाईसके रिक्तम वस्त्रोंमें एकाकार हो ाईठी थी। िवशाल-भालपर रोलीका ितलक, कण्ठमें रक्त-पष्ु पोंकी माला और करमें कांु कुम रिञ्जत ाऄरुणाक्षत; िदशाएाँ मानो ाईसीके यज्ञीय ाईपकरणोंसे सिज्जजत करदी गयी थीं। सम्मख ु के कुण्डमें ाऄिग्नकी लाल-लाल लपटें उठ रही थीं। पात्रमें हिवके थथानपर बकरे का रक्ताक्त मासां था तथा घतृ भी रांग िदया गया था। यज्ञके सम्पणू थ उपकरण ाऄरुण थे, ताम्रके नहीं, मिण-मिण्डत सवु णथके। ाईसका शरीर कृष्ण वणथ था। िववश था वह ाईसे ाऄरुण नहीं बना सकता था। रक्त चन्दनका लेप िकया था ाईसने सवाांगमें । के श कड़े और ाईठे हुए और रांगमें धम्रू ारुण नेत्रोंसे थपधाथ करनेवाले थे । मािणक तथा माँगू ेके बहुमल्ू य ाअभरणोंसे मिण्डत था वह वज्र-ककथ श वपु । ाऄपने यज्ञका एकाकी यजमान, ाऊित्वक्, होता, ब्रह्मा, ाअिद सब कुछ था। िकसी दसू रे को सहायक नहीं बनाया था ाईसने । ाईसका थवर थपि था, मन्त्रोच्चारण साङ्ग था। कौन ाईसे िविध बता सकता है?

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देवताओकां ो ाअना पड़ता था-ाआच्छा न रहनेपर भी। मन्त्राकषथण ाईन्हें प्रत्यक्ष प्रथततु होनेके िलए िववश करता था। वे ाअते थे और चपु चाप िसर झक ु ाकर ाऄपना भाग दोनों हाथ फै लाकर ले लेते थे। जैसे कोाइ भीख ले रहे हों। वह कमथजञ ज यज्ञ दीिक्षत था । सारी शत्रतु ा, सम्पणू थ ् रोष ाईसने त्याग िदया था। बड़ी श्रद्चासे वह ज ाऄपने िचरशत्रओ ु कां ा ाअह्वान कर रहा था, ाऄध्यथ पाद्यािदसे ाईनके सत्कारमें व्यथत था। ाईसका पवथताकार शरीर, सदृु ढ़ ाऄभेद्य माांसपेिशयााँ, िदशाओकां ो किम्पत करनेवाला िसांहनाद, ज सब सौम्य बन गये हैं। ाआतनेपर भी वह भयावह िदखायी देता है। सरु ोंके िलए वह ाऄसरु ािधप ज और भी भयप्रद हो गया है। ाईसके यज्ञके प्रत्येक ाईपकरणमें ाईन्हें िनजका रक्त ही दृििगोचर होता है। वह अमर ह, अजय ह, अ य ह, र भ य य कर रह ह? य च हय उस? सर क सम प य ह जस वह एक ब र हक र करक द नपर छ न नह सकत ? र य वह उ ह पर जत क ह वद नस प करन बठ ह? सर तकक स हस नह थ क उस 'वर ह ' कह सक। सब अपन भ ग लत और चपकस खसक ज त थ। वह वय एक व कम ह। परक नम ण करक उसन व कम त य क कल क चन त द रख ह। ल ह, रजत 76

एव वणक उसक त न पर अजय ह, अभ ह और इ छ ग म ह। उनम स दय घन भत ह गय ह। अभ वक वह स वद कर दय ह। उनक अ धव स पर- भ वस क त ब ध - वक र स पर रहत ह। िजसके शरीर-बलकी कहीं समता नहीं और िजसके बिु द्चबलका कोाइ पार नहीं, जो िवज्ञान एवां कलामें िवश्वके िसरपर पैर रखकर, खड़ा है, वही जब िदव्य बलका ाईपाजथन करनेके िलए तप, यज्ञ तथा ाऄनष्ठु ान करने लगे तो प्रितपक्षी दलकी क्या दशा होगी? देवताओकां ा रृदय बैठा जाता था। वे यज्ञमें िवघ्न करने में भी तो समथथ नहीं थे। िवघ्न होता है जब कहीं प्रमाद हो। िछद्र हो! मयके यज्ञमें प्रमाद और िछद्र? वह ाऄसरु राज न तो भ्रान्त होता और न श्रान्त! ाईसकी बिु द्च और शरीर दोनों सवथदा प्रथततु रहते हैं। देवताओकां ा थवगीय ाअनन्द ाऄन्तरके िवषादमें म्लान हो गया था। ाईन्हें हलाहलकी घटु के समान ाईसकी हिव िनत्य ग्रहण करनी पड़ती थी। ाऄन्तताः देवेन्द्रने बड़ी नम्रतापवू थक देवगरुु के श्रीचरणोंमें ाऄपना रत्नोज्जज्जवल िकरीट झक ु ा िदया। ाईनके ाऄिनमेष नेत्र ाऄश्रु ाअकुल हो ाईठे थे। भगवान बहृ थपित गम्भीर हो गये। ाईनके वे शान्त लोचन दो क्षणको बन्द हो गये। देवराजको ाअश्वासन िमला। 77

(२) 'हिवमें ये काले दाने कै से?' मय चौंका । ाईसने देखा िक ाईसमें चहू ोंकी मैगनी पड़ी हुाइ है। दिू षत हिव फें क दी गयी और ाईसने दसू री प्रथततु की। ाईसे इस िवघ्नके कारण िवक्षेप एवां दाःु ख दोनों हुए । पजू ाके िलए पष्ु पमाला ाईठायी तो वह खण्ड-खण्ड पड़ी थी। िकसीने ाईसे टुकड़े-टुकड़े कर िदये थे। पष्ु पोंकी ाऄवथथा भी ाऄच्छी नहीं थीं। वे भी कुतर डाले गये थे। मयको बड़ा ाअियथ हुाअ। ाऄरिण ाऄपिवत्र हो गयी थी। कलकी बिलके माांसके टुकड़ोंका भोग उन छोटे जीवोंने ाईसीपर बैठकर लगाया था और ाऄपनी दन्त-कण्डू दरू करनेके िलए ाईसको कहीं कहीं कुरे द भी डाला था। 'यज्ञ दीिक्षतको क्रोध नहीं करना चािहये ।' मयने थवताः ाऄपने ाअपको समझाया। ाआच्छा करनेपर वह इन नन्हें िवघ्नकताथओकां ो समल ू नि करनेमें समथथ था। ाईसे ाआनके िवनाशक इन-जैसे ही िकसी चतरु चपल जीवती रचनामें एक पलसे ाऄिधक नहीं लगता। दसू रे उपकरण प्रथततु होने में िवलम्ब नहीं हुाअ। हिव-पात्र ाअच्छािदत हो गया। पष्ु पोंके थथानपर रत्न-पष्ु प थवणथ-सत्रू में गिु म्फत कर िलये गये। दसू री िदव्य ाऄरिण ाऄिग्न-मन्थनमें प्रयक्त ु 78

हो गयी। छोटे जीव अब कुछ कुतरने योग्य प्राप्त नहीं कर सकते थे। 'अब क्या हो?' मय िचन्तामें पड़ गया। यज्ञ-कुण्डके समीप ही िनमाथल्यमें-से एक चहू ा भागा । उधर दृिि गयी। दो-तीन नन्हें लाल माांस िपण्ड कुलबल ु ा रहे थे। वहााँ रहने दें तो कुण्डकी ाईष्णता ाईन्हें झल ु सा देगी । हटाने पर सम्भव है, ाईनकी माता वहााँ तक न पहुचाँ सके । वे ाऄपने प्रमादसे मर गये तो यज्ञमें िवघ्न पड़ेगा। ाऄन्तताः ाऄसरु े श महायोगी था। ाईसने बच्चे सरु िक्षत हटाये और ाईनकी माताको ाऄपने मनोबलसे वाध्य िकया वहााँ पहुचाँ नेके िलए। ाआतना करके पनु ाः ाईसने चमन िकया और प्रोक्षण भी। ‘अप सपथन्ततु े भतू ा........' बार-बार जप एवां पीली सरसों िछड़कना व्यथथ हुाअ। िवघ्नोंकी कमी हुाइ नहीं । पता नहीं कहााँसे िहमालयके इस तषु ार धवल शङृ ् गपर भी कीड़ों-मकोड़ोंकी बाढ़ गयी। मानस-सरका ाईत्तर तट भी यज्ञके िलए ाऄनपु यक्त ु थथान िसद्च होने लगा। ाऄिग्न प्रज्जज्जविलत होते ही ाईसमें पितगां े कूदने लगे। वह यज्ञके ाईपयक्त ु रह नहीं गयी। ाऄसरु े न्द्रको ाऄत्यन्त ाऄनतु ाप हुाअ। भगवान् शांकरके कै लाशके समीप भी ाईनके गण िवघ्न करते हैं?' वह समझ गया था िक यह सब ाईपद्रव दैवकोपसे हैं।

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य म डपस उठ वह। कर म नसर वरम डबक लग य । ग ल व ह ब वप लकर अपन म णमय व लग पर च य और वह प व पर ह प सन लग कर बठ गय । न स अ ध र ए बह चल । दो क्षण-कुल दो क्षण बैठा रहा वह । नेत्र ाईसने खोल िदये । उठकर हाँसते हुए खड़ा हो गया और ाअकाश मागथसे सीधा दिक्षणकी ओर कदली वनके िलए चल पड़ा। देवताओनां े देखा िक थोड़ी ही देर पिात् दैत्यराज पनु ाः ाऄपनी यज्ञभिू ममें श्रवु ा िलये बैठा है। ाईसके दािहनी ओर एक नवजात श्वेत गजेन्द्र िशशक ु ा िछन्न मथतक पड़ा है और यज्ञके सभी ाईपद्रव शान्त हो चक ु े हैं । (३) 'ाअपकी ाऄलौिकक प्रितभा ही अब सरु ोंको रण दे सकती है!' देवेन्द्र दोनों हाथ जोड़े नत-मथतक खड़े थे। पीछे देवताओकां ा ाऄञ्जिल-बद्च साश्र-ु लोचन समदु ाय था। कै लाशके महावटकी छायामें ाऄमरावती एकत्र हो गयी थी। 'ाअशतु ोष समािध लगाये बैठे हैं और ाऄम्बा पता नहीं क्यों ाऄसरु े शको पत्रु के समान चाहती हैं।' देव सेनापित ाऄपने ाऄनजु से ाऄनरु ोधकर रहे थे- 'मेरी लज्जजा तो अब तम्ु हारे ही हाथ है!' 'ाऄसरु े न्द्र ने मेरी ाऄग्रपजू ा नहीं की, यह सच है।' मांगल-मिू तथने कहा -'िकांतु अब तो ाईन्होंने मझु े महाबिल दे दी है। मैं ाऄकारण िकसीसे शत्रतु ा नहीं करता!' 80

'तब क्या ाअपकी रण कर भी हम िनराश ही लौटें?' िखन्न थवर में देवगरुु ने पछ ू ा। 'मैं ाईपाय बता सकता हू!ाँ ' गणपितने कहा। 'बिु द्चके ाऄिधष्ठातासे हमें ऐसी ही ाअशा थी!' सोल्लास भगवान् भवु न-भाथकरका थवर गाँजू ा। 'ित्रपरु ोंने हमारे पथको पहलेसे िक्लि कर रखा है। ाईससे पररत्राणका मागथ भी पाना चाहते हैं। 'द यर जक य त मस ह!' गण ज न उपह रक म दक म-स एकक स स उठ कर मखम रखत हए कह ' पक स वक य उसस अ धक पक द न कर सकत ह।' सबन उन पद म म तक झक य और स ध सम खरपर पहच। व कम न दखत-दखत म डप बन दय और दवग क अ य त म वग धपक ह तय द ओक सर भत करन लग । ‘क्यों देवताओकां े मख ु पर मन्द मसु कान तथा प्रसन्नता झलकने लगी है?' उधर ाऄपने यज्ञमें भाग लेने ाअये हुए देवताओकां ो देखकर दैत्यपित िवचारमें पड़ गये थे। इधर सिविध ाअहुित देनेपर भी देवेन्द्र थवताः ाऄपना भाग लेने अब नहीं पधार रहे थे। ाईनका भाग ाऄिग्न द्रारा ही पहुचाँ ाया जाता था। ‘ह!' मयन कतहलव य न कय । उसस कछ छप नह रह सकत थ । मह य ग थ वह । 'तमन ब ल दनक बदल त 81

गज क र भम पज क ह! इस क र तमन 'क रवर वदन' क थम पज द और अब भगव न त क अपन य स स त करन च हत ह ? अ छ ब त!' देवता भी साित्वक यज्ञ नहीं कर सके थे। ाईनका यज्ञ भी सकाम होनेके कारण राजिसक था। ाईन्होंने उस िसिद्चदाताकी सत्य सचू नाका ठीक-ठीक ममथ समझा नहीं था। कामनाके ाअवेगमें िक्रयाकी साित्वकताको ही वे सब सतोगणु मान बैठे थे। 'प्रभु तो ाअशतु ोष हैं। ाईनको तिु करनेके िलए यज्ञ हो तो क्या और न हो तो क्या? िफर ाऄभी वे समािधमें िथथत है!' दैत्यराज ाऄपने- प कह रहा था। 'मााँ तो माता हैं! ाईन्हें रुि होना ाअता ही नहीं। ाईनके िलए सभी पत्रु समान हैं। ाऄताः मैं अब उन बिु द्चरािशको ही सन्तिु करूांगा जो तम्ु हारे और मेरे समान रूपसे गरुु हैं।' ाईसने सब यज्ञके उपकरण वहीं छोड़ िदये। उस ाऄधरू े यज्ञको पणू थ करनेका कोाइ प्रयास िकया नहीं। यज्ञ ाऄधरू ा छोड़नेके ाऄपराधका पररमाजथन करनेके िलए ाईसने डमरू ाईठाया और'िशव हरे शंिर पािहमाम'् तीन प्रहर तक नाचता और गाता रहा, और िफर ाईसने एक गोबरकी छोटी मिू तथ बनायी और ाईसे लेकर मानसके पििम तटपर जाकर बैठ गया। अब मन्त्र बदल गया थागणानाांत्वा गणपित…….। 82

*** जहााँ श्रद्चा और िविध दोनों हों-वहााँ सफलता सिु निित ही है । भगवान् िशवकी समािध छूटी । सरु ोंका ाअकषथण ाईन्हें खींच रहा था। नन्दीकी पीठपर व्याघ्रचमथ डालकर वे बैठ गये। समु ेरुके िलए प्रथथान करते-करते ाईन्होंने देख िलया था िक गणेशजीका मषू क भी ाईन्हें िलये कहीं दौड़ा जा रहा था। शीघ्रताके कारण कुछ पछ ू न सके । 'वरां ब्रिू ह!' महेन्द्रकी साधना स ल हुाइ। ाईन्होंने पाररजात पष्ु पोंकी ाऄञ्जिल बषृ भध्वजके चरणोंपर ाईत्सगथ कर िदया। ‘ पर क घ तस ल क त ह उठ ह। उस ण द!' स म लत पस सर न सर क ओरस य चन क । मयक व परस पथक नह गनत थ और न स करनक क क रण ह थ। 'वे तीनों परु िदव्य सहस्र वषथमें के वल एकबार एक क्षणके िलए परथपर िमलते हैं।' िपतामह ब्रह्माजीने बताया- ‘इस सिन्धकालके ाऄितररक्त वे ाऄजेय और ाऄनश्वर रहेंगे, ऐसा वरदान मैं दे चक ु ा हू।ाँ सिन्धकाल ाअने ही वाला है।' 'मैं ाआसी ाअगामी सिन्धकालमें ाईसका नाशकर दगाँू ा?' भगवान शांकरने वरदान िदया। 'समथत प्रािणयोंके त्रासको िमटानेके िलए मैं ाऄस्त्र ग्रहण करूांगा। ाईपयक्त ु उपकरण प्रथततु

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िकये जावें!' वद्च ृ ब्रह्माजीके परामशथके ाऄनसु ार देवता रथ, धनषु प्रभिृ त सग्रां ह करनेमें लग गये। 'वत्स! तमु कहााँसे रहे हो?' कै लाश लौटते ही पशपु ितने मषू कसे ाईतरते हुए गणपितसे पछ ू ा। 'दैत्यराज मयके समीपसे!' गणेशने पज्जू य िपताका पादािभवन्दन करते हुए ाईत्तर िदया- ‘दैत्यपित, ाऄभी ाईपासनामें तल्लीन थे। ाईन्हें ाअपके समािधसे ाईित्थत होने का पता नहीं था। समाचार पाते ही मानससे कमल लेने दौड़े गये हैं। ाअते ही होंगे! श्रीचरणोंमें ाईनकी ाऄनपु िथथितका ाऄपराध क्षम्य है!' 'तमु ने ाईन्हें कोाइ वरदान तो नहीं िदया?' िवश्वनाथका थवर सशांिकत था । वे ाऄपने पत्रु के थवभावसे भली प्रकार पररिचत थे। 'ऐसा कै से सम्भव था िक मैं ररक्त लौट ाअता!' गणेशजीने भोलेपनसे कहा-'दैत्येन्द्र मेरा थमरण कर रहे थे! िनष्कपट, िनष्काम थमरण । वे शरीरकी सिु ध भल ू चक ु े थे। कहनेपर भी वे कुछ मााँगनेको प्रथततु न हुए । मेरा ाअग्रह व्यथथ गया।' 'तब क्या तू सख ू ा ही लौटा?' जगदिम्बकाका मख ु ाऄरुण हो चक ु ा था। ाईनका थवर कह रहा था िक वे पत्रु की इस ाऄनदु ारताको सह नहीं सकें गी। 'नह त म ' ल ब स म त क ह थ म रखत हए गज ननन कह - 'म असर क क प त तक अमर ज वन एव असरकलक सम क वर बन म ग द य ह। वस म , सभ 84

स य त मर बन दय भ मर मरणस मल ज त ह, यह तम ज नत ह ह ।’ ' परस जगत म ज ह- ह मच ह, वह भ स च थ तमन वरद न दत समय?' क न म अ णम झलक उठ थ । ‘मझ र धन ह द खत ह, अपर ध नह ।' त क सय य सवनन उ रम सर झक कर न त पवक कह - ‘र और हस म दख ह नह प त । म त और व स ह दखत ह। पन मझ 'ह ' कहन ह सखल य ह, 'न ' कहन नह ।' 'त ह क न-स ग -प छ स च करत ह कस क कछ दत समय?' उम न व वल चनस नयनक दखत हए कह ' यथ ह य मर एकरदन भ-गण सदन सतक क सत ह !' उ ह न उस त दल प क ग दम उठ लय । 'म सर क पर-न क वरद न द य ह!' ख न- वरम क खरन कह और म तक झक कर कछ स चन लग। (५) दरस मघग भ र व न रह थ । मह द सम त सरगण कल पर वटमलम मगचमपर स न स ब सद वक चरण म उप थत ह चक थ। उ ह न पर- वन क लए द य रथ द तत कर लय थ। अभ सर क समनप रत अज ल

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उन प दप म र नह ह सक थ । सबक य न वरन क त कय । एक सद घ र र, क जल वण, ल ह प त डव व नम वभ र व त ग तस य । न सक च सर क भ क च रत वह वटमल म पहच । स ब वक च चरण सह दल कमल स छ दत ह गय और उ ह प प पर म तक रखकर वह क क भ त गर प । 'उठ व स!' एक स थ उम , गणप त एव वक कर उसक म तकपर प । उठकर वह घटन क बल बठ गय । 'वर म ग !' त त ह चक थ। ' भ ! स यध स पकरण रथ तत ह!' मह न त पवक समन ज ल च त हए नवदन कय । व घब उठ थ वरद नक त वन सनकर । अवसर नह दन च हत थ द यर जक । 'व स, मन सर क पर-न क वरद न द दय ह!' ब ख न वरम भगव न करन स मख बठ असर रस कह । 'मझ र यक त म सख ह?' उस मह णक मखपर व दक रख दख य नह प । 'मर मरण द य क क प त अमर स द चक !' म त क ग दम बठ-बठ ह गज ननन दवत क च क दय ‘स थ ह असर वभव अ भव प यग ।'

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' पन पर-न क वरद न दय ह।' द यर जपर स नकल थ 'पर-न ह कर भ मय एव उनक कल-वभव सर त रह सकत ह।' 'रहग द व!' त स न ह कर ब ल - 'वर म ग प !' ' चरण म मर अनर ग कभ कम न ह ।' द नवप तन दवत ओक च त क भ र कम कर दय । 'एवम त!' वह दसर दक सननक कभ कस क ह ह नह सकत थ । *** पर रन पर क भ म कर दय ; क त उनक द य य त लग लय मय ज भ न दपवक प त लम उनक अख ड र धन म त ल न ह। व क क उसक त सखम य घ त नह पहच सकत । पर गय ; पर त सतलक वभव अमर वत क उपह स करत ह। दवत उन द य क वभवक क ठनत स व न भ दख सकत ह। मयक गणप त- मरणन न कवल उस-अ पत स र द यव क औ प क स बन दय ह।

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य य इब ब य जह न दन ह त और न र , जह सद सवद एकरस तल न ध क वतम न रहत ह, जह क न दम सख एव द खक क पन भ व नह प सकत , जह व-ज मजर -म य-भय जस द सन य नह प त, जह द य-भय-स चअह तथ व ज नह सकत, जह च -सय-अ नक व नह ह, म उस त पक ब त कहत ह। रज एव तमक चच करन यथ ह, वह स वक भ व नह । सब कछ द य ह, अल कक ह, तल तथ धवल ह। यह सब वह य और कस ह? इसक उ र ब नह द सकग । कहत ह-उस म हम मयक म हम ! उस अ च य द य-ल कक ब त ह जह एक ह रग हत । एक ह भ व ह- र धन । एक ह ज वन ह- र यक स न य । एक ह स ह-उस स मयस अभद। उस द यल कक ब त कह रह ह। णवक ग भ र गज र लय घ ट बज रह थ । सह -सह नर-न र टक प म अ त, च दन, द ध, म लत कसम, 88

प डर कम ल , कपर सज य त प रध नम भगवद य ह रक म दरक ओर मन वगस द ज रह थ। म दर- गणक प रख म व हत द ध- व हम उनक प द लत ह गय । च क त स प न पर बन चरण च क छ प छ उ ह न म दर म व कय और पज क अप र स भ र अपन प उस र यक चरण म स जत ह गय । उप सक क उपह र स द ह कर उ ह क भ त करन लग। स म व नस म दर मख रत ह उठ । व ण क एक अ प झक र, न म-ग नक व न और र खड क म द खटपट। सबन दख क दव न रदक ब ल ब च ट चरण पर प ह और व णत प ह । व ण कह पछ छ द हग उहन । ख न त ह प रख क उस प र प ह ग । उनक ग त यह भ अब ध ह। 'यह य ? भ त ह ह नह । ल ग न दख वह द यसह सन र प ह। एक क प-स ह सभ र र म और व जस थ, वस ह ख रह गय। उनम चतन नह थ , म न अस य ममर म तय न न भ वभग म च त कर द गय ह । कतव र हत म, न ह भव त म न ल क। य द भव त-क वरह स य प क ज व त ॥

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वह त मन यल क नह , वह त व थ एव कपटक व नह , र उस अहतक मम वय ग कस स ह त ? ब दरम दव न म तक उठ य - ' भ य म न ह?' व यम थ। सह सन र दखकर हदय ध स ह गय । च र ओर र । सब-क-सब नज व ख थ । 'मझस य अपर ध ह ?' दय च ल रह थ , क त व ण अव थ ! न क गरत हए व द उस उ वल र न-भ मम उ वल र न ह कर ज टत ह त ज रह थ। दव ज नत थ क यह स पण नम ण व म ओक र ह ह ह । य टक एव च क त, सब न क वस घन भत हए ह । ध स दव वह बठ गय। उस म य त त ल कम भ क? ल ल मयक ल ल ! दव न न य कय क व र र य ग कर दग। जसक त ह भ अत हत ह गय और उनक वय गम इतन उनस अ भ न भ र रक य ग चक, उसक अपर धक भ क ठक न ह । प सन लग य उस द य भ मपर। अप नक णस मल कर मनक दयम एक कय और वह स ण व यक क ठम एक ण र ककर म यम ल गय । य न त करन थ नह -मनक स थ व य सह रम पहच गय । एक महत और लग न थ । य ग च य दव र म ण पहच चक थ। कवल व द-वध करक नकल ज न थ । सहस 90

एक क मलकर म तकपर प और कस अ त न पन ण क बल त न भ-मलम ल ट दय । *** (२) 'मर वध ह ग और इन छ कर क र ?' द यप त हर य व हस । हर य क भगव न व र हन वक ठ भज दय थ और हर यक प तप य कर रह थ । सर क बल ह न अस ह नपर हर य वन असर क नत व स ह ल लय थ । च य क अ ध त बन कर उसन य कय और म -बलस ज क न प । 'मझ क वरद न नह च हय! उ चत अहक र द यन कह 'मझ कवल प यह बतल द क मर म य कस और कसक र हग? ' हर य क द प ह!' व ज न दख क इस उ त द यक न बत नस भ अपम न ह ग । 'उनम स हर यम ल र उ जन प कर हर यर म त ह र वध करग । य क तमन उनक पत यक सह सनपर अ धक र कर रख ह।' ज झटपट अपन हसपर बठ और उ गय। व और अ धक रक लए तत नह थ। द यन भ उन वय व क तग करन उ चत नह समझ । उसक उ य पर ह गय थ ।

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द यकलक वर धक थ । द य रक प क वध क भ सहज व क र नह कर सकत थ । गह कलह उप थत करन म क ल भ नह थ । अत हर य वन हर यम ल क धतत पवक व दकर मक बन दय और हर यर म क पर क ट कर उस पवत स घर ब द गहम चपच प छप य । दबल असर दवत ओ र पर जत ह कर पय क एव अपम न भ ग चक थ। उ ह न न यकक वर ध करन य कर नह समझ , य क हर य वक धप यम बहत कछ अपन न य उ ह उपल ध ह चक थ । य -भ ग छ न ज न लग, वद व नपर १४४ लग द गय । हवन करन अवध ठहर य गय और यक म र ज हक थ न घ त कय गय । ग रसक अप रखत एव अ य धक उपय ग करत हए भ ग य व य ह गय । य यक अथ ह गय । दबल क स प र जकलक भ ब न लग । ल ग क ण क तकक व त ह गय । धमक न म लन अपर ध म न लय गय , जगत स त ह उठ । ज प त क प गय । असर क क ब हरक यह र ग थ । एक दन दव न रद उस उ मद द यपरम भटकत हए ज पहच। क सम च र दन व ल सभ क य ह त ह।

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द यप तन दव क व गत कय , उनक कवल उ ह क व ण क भगव न म-झक र द य क नह करत । ' जकल मह कह ह?' द यन पछ ! वह अमर वत पर धप य करक भ स त नह थ । सरप तक ब द बन नक धन सव र थ उसक सर । ' पक त पक स मख व कह टक नह प त ह!' दव न कह - कभ हम लय एव कभ व यक क दर ओम भटकत रत ह!' उ ह कह टकनक त अवक ह त नह । व ण उठ य और रमत र म हए। 'इसक उ र कस ह ग ?' दव स चत ज रह थ। वध भ इसक द य-प क ह थस ह न ह और उप सन यह करनस रह !' यह पहल ह अवसर थ क उ ह क मल और उस भक प वन पद तक पहचनक ब ध कय बन व उसक प स स चल प थ। 'दय मयक अस म दय क अ त र उप य क दखल य नह प त ।' अ तत: कछ स चकर उ ह न त पक ओर थ न कय । *** (३) ' हर यक पक ल टनक क नह ह। अब त उनक तप थलपर एक म स-चम- वह न अ थपज म म दब 93



रह गय ह!' अभ तक हर य व द यर जक त न ध पस सन कर रह थ । र ज मकट तथ सह सन उस उपल ध नह हए थ। 'हम अब अपन दसर स ट न त कर लन च हय । बन पण धक र- - सकक नत व प य हम सर क समल छद नह कर सकग!' उसक अ तरक भ व प ह गय थ । इस लए उसन ज सम त असरकलक सहभ जक बह न एक कय थ । दसर कस म वर धक नह थ । वस भ वह स पण अ धक र कर चक थ । अ भ कक सब स म तत ह गय थ । चपच प उसन सब कर लय थ । अननय- वनयक प त च य भ तत ह गय थ। 'कछ दन और द यर जक त म य ह न ह?' वय व द यम न कह । स भवत वह सम ल थ । 'अन व यक वल बस य ल भ?' हर य वन उ जन दब त हए उ र दय -द य क अ थय भ प व क गभ म दब चक ह और प सब यह ज नत ह क च यक सज वन व य म मर ल ग क ह णद न कर सकत ह । तप व क र र र य गकर ल क पहचन व ल ज व उसक र ल ट य नह ज सकत ।

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'जस पक इ छ ?' म न न त पवक म तक झक दय । क भ इस त स स त नह थ , क त वर ध करनम कस क क ल भ भ दखल य नह दत थ । पर हतन सह सन य ग कर रख और हर य व ब उसपर बठनक लए। ' प ठहर! सबन यपवक दख क व त सभ म चमक गय । ब ज र क ग ग हट ह । स भवत उस क भ वस हर यम ल न पन व ण करल थ । वह ब उ च वरम च ल रह थ । इतन दन तक न ब लनक कम म न ज ह पर कर लग । 'अभ यह न य नह ह क द यप त न ण ह गय। उनक अ थय म मलन च हय और य द व प ल ग क इस य य न जच त र अनह द क ।' न क य य न दय ज रह थ । 'तम अभ ब च ह ।' हर य व च ल य ' सह सन सद ल क ह त ह। उसपर ब च नह बठ य ज त । वह खलनक थ न नह और म म ग अ थय म ज वनक स भ वन मखत ह।' 'स ध य नह कहत क म बलपवक द यर ज बनन च हत ह!' उस ब लकन द टक पछ ।

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'अ छ , स ह सह !' असरक न स अग र बरसन लग। उसन द त प सत हए कह । 'हम इस कभ नह सहग ।' द यब लक भ कम र व म नह थ । 'कल तक ज ह थ ब ध ख रहत थ , उस सवकक र र य सन अप व ह न नह दय ज यग । तम स ट नह बन सकत।' 'म दखत ह क क न मझ स करनस र कत ह।' द यन द न ह थ स मकट उठ य और सह सनक ओर ब । 'म र कत ह।' एक व -कक व न गज । मकट द न ह थ स छटकर गर प । सबन दख क स मखक पवतपर-स अपन कट पर स हर यर म इस क र खट खट उतरत रह ह, जस समतल भ मम नट द ल ठय पर चलत ह । *** (४) ' य स व द ह ग धर ज?' मदर चलक एक व ल गह म, जसक र म लत लत ओक ज लस छ न ह रह थ , बठ हए इ न व करक अ भव दन करत हए चरस स क वरम पछ । उनक स थ ह सम प बठ सरग , दवसन प त तथ अ य ज दस-ब रह ध न सर स थ थ, उनक भ उ सक उस ग धवक मखपर प , ज क रह य त करनक लए नय थ। 96

वह न सध कल थ और न सर गन ओक वल स वभव । अमर वत क यह कह ? दवग एव ध न दवत ओक स थ सर मगचम बछ य बठ थ। उन ल ग क मखतज गह म धधल क कय हए थ । व अ ल न मख भ चत - बल ह रह थ। न ह व ह त थ और न क पव -समन क सर भ । अव य ह समन क सग ध गह म पणत प रत थ । सर क द य र र ण ह गय थ। व सद स क रह करत थ। 'उ जत द य न हर यर म तथ हर यम ल क स हनस हर य वक व - हण कर लय !' चरन स ल स सम च र सन य । सर न द तरकक क रण अपन मगचमपर व र सनस उछलकर बठ गय। 'अकल हर य वक उनक स मन करन प !' चरन ग सन य - क त पग हर यर म क ठठ पर म पत नह कह क त तथ ह थ म अन ख गय थ । अ तत उसक घ त न हर य वक वमख कय ।' वह भ गकर इधर त नह रह ह?' मह क वरम क और उ स ह द न ह थ । ‘ज नह । पगन उसक प छ कय और ख गक ध तस उसक म तक अब धर क भ ण ह चक ह।’ ग धर जन अपन ब त सम कर द ।

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‘और वह द नरकक ।’ सर न घण स मख र लय । ‘य स पर ग मख क प ।’ ‘बकठ क क हय।' चरन एक स थ सबक च क दय ।’ उसक छ न म तक दव न रदक मम भगव न ल मक पर ह गर । द य-यवर ज द वह बठ पज कर रह थ। ‘ध य!’ एक स थ सर क क ठस नकल । ‘यह अवसर ह ।' इ न कम र क तकयक ओर दखत हए कह - ‘ त पवक प स य तत कर ल। हम सब मलकर न यक-ह न असर पर एक स थ मण कर। इस ब र उ ह अ छ क र प स दन च हय।’ ‘ल कन व न यक-ह न नह ह । चरन न त पवक नवदन कय -‘ ज ह द यर ज हर यक प ज स अजर अमर ह नक वरद न कर चक ह| तप वनस र जसदन ज त हए उ ह मन म गम दख ह।’ ‘ ह !’ सरर जक उ ल मख पन उद स न ह गय । सर क सर म न ज प । ‘यह प अब सव ह ट ल त टल। त कह क रह नह । ' *** (५) 98

‘ देविषथ।’ मेघ-गम्भीर ध्विन कणोमें पड़ी और नेत्र खल ु गये। सम्मख ु िसांहासनपर वे चतभु जथु शिशवणथ सशांख-चक्र जगदाधार बैठे मसु करा रहे थे । देविषथ पनु : उन पादपद्योंकों ाऄपने नेत्र सिललसे प्रक्षािलत करते हुए प्रणाम िकया । चारों ओर सामध्विन गाँजू रही थी | दिध-ाऄक्षत एवां कपरू िमिश्रत चन्दनकी विृ िसी हो रही । िवयोगमें िनष्प्राण हुाइ वे प्रेम प्रितमाएाँ सािन्नध्य पाते ही मख ु ररत हो चक ु ी थीं । सब नहीं िदव्य ाअनन्द िहलोर ले रहा था। ‘ब्रह्मसतु क्या चाहते हैं ?' मन्द मसु कानमें सधु ाविृ द्च करते हुए उन करुणामयका थवर गिांु जत हुाअ| देविषथ ाअत्म-िवभोर हो रहे थे । चौंके - ‘इन श्रीचरणोंकी सतत थमिृ त और....।’ ‘और ? ’प्रभनु े समीप ही खड़े एक पाषथदकी ओर सक ां े त करते हुए देविषथकी ओर देखा। ‘ प....।? ’देविषथ यहााँके एक-एक जनसे परिचत थे। इन नवीन पाषथदको तो ाईन्होंने देखा नहीं। ाईत्सक ु तासे वे पररचय जानना चाहते थे । ‘ पक कप र अपन य एक नक ण ।’ वह उलट दव क चरण म ह गर प । दव बहत घबर य। व भगव प द क पर नह छन दत थ और क स यह करत भ

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नह थ । ज यह नय वप य । दसर व इन प द- क पहच नत भ त नह । ' प यह य कस उ यस? पहल अपन ब त त पर कर ल!' भन पन हसत हए दव क रत कय । 'ज सद स चरण स वमख रह ह , जसन सद सवद णय क प त ह कय ह , ग - ण क वर धक रह ह , जस र र एव स म नक पर कछ सझत ह न ह त उसक उ र कस ह ?' दव न पछ लय ‘उसक उ रक प सक प कर ल- बस!' व ल ल मय हस प -'अ तत स भ य ल ह क न? कसक लए पक दयम इतन क ण उम चल ह?' ' भ उपह स न कर।' दव न कह -'वह पक कप म ह और म उस कप क भ म गन च हत ह द यन यक हर य वक लए।' ‘कप -मर प स कप ह य दव ?' भक वर ग द ह उठ । 'मर कप त प जस मर अतरग स द क चरण म चल गय । म वत ह कह ?’ वह प द ट- टकर र रह थ । दव ब यम थ'इस न दल कम यह व द य ?’ रभ व भक ग लम ल वचन स अ धक उलझनम प गय थ । उस उलझनक पहल सलझ न व यक थ । 100

'तब य म नर ल ट!' दव न पन थन क । उनक वर तर ह चल थ । ' प भ मर प रह स करत ह? ' भ हस-' कस क मक वय करक उसक लए मझस पन थन करन पक भ ल क तक अ छ भ दत ह।' दव जस स तस जग प । 'दय मय!' उनक वर भर गय । रह य कट ह चक । उस प दक द न भज ओस उठ कर उ ह न दयस लग लय ।

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- य - य



य य 'य कसक भ ग ह ग ?' सभ क मख पर एक ह थ। सबक अ तर कल ह रह थ। अमतक इ छ ल ह चक थ और व सक क व म मल थ । सर और असर क ह थ ढ ल प गय। सबन न गक छ दय और अध- व स द । क कस क सक च करन नह च हत थ । दव सर म त पध त व भ वक थ , क त सर एव असर म पर पर म खक कलह र भ ह गय थ । यक सर अपनक मह स तथ यक असर ब लस बतल न लग थ । सघ क ल ण दखकर ह रन नणय कर दय क- 'य उसक भ ग ह ग , जसक वय वरण कर!' और उ ह न अकल ह एक ह थस व सक क पछ तथ दसरस म तक पक कर म दर चलक घम न र भ कय । र धम ब -ब हल र उठन लग । झ गस नकल नवन त क पवत-स खड इत तत उछलन लग । कस न व दय , कस न भ ण । क भ जन ल य और क न न थ जल । क त बल लकर उप थत ह और क प पम ल । सभ अपन -अपन सव ओस उ ह त करन च हत थ। प ज न सबक सव व क र कर ल । म न व 102

व मन ह और इन सवक स सव लनक उ ह ज मज त अ धक र ह । अ तत रम न अपन कर-कमल म कमलक एक ल ब म ट -स म ल उठ य । सबक न एक ह गय । उ सकत व सबक म तक अनज नम गक ब य। चरण , कर , मख भ त सव ग जनक प क सम न थ , व कमल-म लक पम वय कस भ त करग ?' 'तम ल ग म त धम नह ! सबस ग उप थत द य क उ ह न नर कर दय - 'और ब लम ल सद च र ह त हए भ उनक सग द त ह। व त वर धय क समथक ह।' 'तम ल ग भ एव व थ ह ।' दवत ओक भ टक -स उ र मल । 'मह क स थ तम सब ब र-ब र असर स पर जत ह नपर अपन कट ब एव गह क छ कर भ ग ज त ह । त ह र यह ज नक अथ ब र ब र पर-प स अपम नत ह न ह।' 'तम सब त सवक ह ।' एक स थ न य , क नर तथ ग धव क , ज उछल-कद कर रह थ, ड ट दय । त ह र न कलक कछ पत ह और ल त तमम ह ग ह य ? य त ह र र न ग ब ध भ द स हस करत ह।' 'म नव म कछ स ण , सकल व स दर ह।' दव एव असर च क क य य म नव ह ग ? वह क भ म नव उप थत नह

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थ । ' उनक यक क ठक न नह ह। ज ह त कल नह । व म य ज ठहर।’ ' त म य नह ह?' कस न एक ओर स यग कय । 'म तप य करन नह च हत और व य ध ह त ह। ब त ब तम प द ड लन उनक लए बहत सरल ह।' पवक रम न ह थ ज । ‘तब हम र भ ह ठ क रहग।' न दख क न द र एक ओर ख ह । 'भगव न करम सभ गण ह, यह म व क र करत ह, क त उनक व ? मझ सप क नक रस भय लगत ह। नम डम ल एव रकत टपकत चम मनम घण उ प न करत ह। उन च म लक चरण म म न त पवक ण म करत ह।' अ तत स गर-तटक ओर गय । वह सव गण लय सम म थनकर रह थ। रम उधर ह ब । सबन दख क व उन परम प पर वम ध ह चक ह। यह य ? व त अपन क यम त ल न ह। सम प पहचनपर भ उ ह न ग भ र वरम कह -' प कस क चन ल! मझ त एक क रहन ह पस द ह!' ल म क मख उतर गय । *** एक व ल इ द वर उ वल द ध हल र पर उछल रह थ । द ध स धक व पर जस कस न एक बहत ब न लम रख दय

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ह और वह स- सक स थ पर न च ह त ह । कतन भ य लगत थ वह न लकमल। इ दर न अपन ल ल -कमलक ध रस लहर पर ड ल दय और एकटक उसक ओर दखन लग । य गम य क इ छ स वह ल ल -कमल हल र क थप कय लत ह उधर ह ब , जह वह न ल-कमल एक क वह र कर रह थ । उद स न मखपर एक ह क स नत क रख द गय । ह थ क वरम ल ज उद स न भ वस टकपर प ह थ , पन ह थ म गय । न म अप र उ ल स भरकर स धज न उस ओर दख , जह इ द वरस ज कर उनक र म ल ल सर ज लग गय थ और द न स थ-स थ र धम लहर पर खल रह थ। व उठ ख ह । उ ह न र म तकक व स ह ल । वरम ल क द न ह थस लय न च कय व चल प । एक ब र र सर सर म हलचल मच गय । ल कन यथ-उ ह न कस क ओर दख नह और न इस ब तपर य न दय क क न कस क र उ ह दख रह ह तथ क न ह थ ज कछ कहन क तर ख ह । ' य द व!' अपन स मख वरम ल स ह ल, अपन ह चरण-नख म लग य, ल ह द न व ल भज ओक

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म यम थत उस स दय तम स पण प न त ग भ र वरम कय -' प पन कस उप थत ह !’ न रत क भ क स म ह त ह, क त जब अपन क यक स ह नक क म ग न ह त सब सनन प त ह। प स भव न कछ कह नह , व ण ब लनक थ भ नह । गदन घम कर उ ह न एकब र पय न धक ओर दख , म न कह रह ह क ‘ पत:! य इस अपम नक लए तमन अपन सत क यह भज ह?' ‘ओह !' परम प खल- खल कर हस प । उ ह न वह सर ज ल गत न ल मल दख लय थ । प त , सब कह अपन ह दय दखत ह!’ पत नह य वह इ द वर तटक ओर ह रह थ । हदय ध स ह गय । ल ल कमलक पत नह थ । ‘वह ह कय गय ? कमल त डब नह करत ! प ज घमकर एक टक तटक ओर दखन लग थ । ‘पत नह अब कय ह न व ल ह?’ अब भ अटक ह थ । इ द वर अनम नस बहत अ धक ब थ । दरस दख य प उसक गभम ल लम ! एक ब र उ ल स, पन ल ट य । सम प नपर दख य प -उस मह कमलक क णक क सम प एक नह -द ल हए पकज ह। स भवत लहर न उ ह, उठ कर वह पहच दय ह । 106

'मझ अपन सहचर स क न ह ग !' रम न समझ क दप उनस कह रह ह क त ह व क र करनक अथ ह क तम द ह ज ओ। उनक व र ह वत रक प न धर क पत क लग भ चक थ । व कवल व क त च हत थ । ‘ प त ह ह!' जन दनन उस स क तक भ म कह दवत पर य ह त ह । व द न त मर अग ह ह?’ ल म न इ द वर भक खल हए नव न ल ल कमल-यग जस द न न क दख । उनक न क दख उसक न स टपटप बद गरन लग । *** अधक र-घ र अधक र? द ए उस अधक रक उदरम ल न ह चक थ । पत नह कबस एक अ च य स वभ म क लम अख ड स य कर रह थ । न सय थ और न च । प व तथ त रक क कह पत न थ । णय क चच यथ ह । उस अप र एकत म क ल एव द ओक क पन करनक लए एक भ म त क थ नह । अप र अ ह स करत ह उद ध एव अधक र, कवल द रह गय थ। उ ङग म द थ , जलक उ ल तरग क क पनस व यक लहर भ द त थ । अ न एव प व नह थ । थ भ त अ य । नभ, व य तथ जलक ह य करण ह थ । उद धक अतल उदरम तब तक न त र न थ और न ज व ।

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डक प र जह र ध ह-दधक धवल हल र सद उठ करत ह। उसक अतरम द ध वल सह णधर भगव न अपन भ गक क डलक र कय, म तक भ ग उठ य तथ ण क छ क र ल य अव थत ह। त क लस एकरस, थर । उनक ण क म णय क तल न ध क द ध लह रय क और उ वल बन दत ह। एक सक मल न लकमलक सम न स दर प त बर प रध न व त चतभज प उस य पर ध लट, मद-मद मसकर य करत ह । गदन एव म तकक क सरक उठ हए भ गस सट य, चरण क ल ब ल य, सखपवक प रहत ह। उनक म तकपर वह सह ण क छ लग रहत ह। व न उठ और न हल । सद स य रहत ह। उनक चरण क सम प य गम य बठ रहत ह । व चरण उह क म स प रहत ह, म न द खल हए कमल ह । अपन क मल-कर स उन प यपद क ध र-ध र दब त रहत ह व और स थ ह उन इ द वर स दरक खल हए प -ल चन क ओर एकटक दखत भ रहत ह। कभ क सकत ह और पण ह गय । एक दन-ल कन दन कहन ठ क नह । वह दन-र ह त ह नह । उस समय कह भ दन-र क भद नह थ सयक उ प ज नह ह थ । वह त सद एकरस एक प रहन व ल 108

य सरक र रहत ह । ह -तब एक समय दप क न म कछ भ व य । य गम य न उस प और म तक झक लय । उस परम प क न भस एक कमल नकल । वह कमल ब और र धक व पर कर खल गय । उसम एक ब लक नकल । उसक च र मख थ । ख - कर बस च र ओर दख रह थ । उस य तमय कमलक क म दख क उसक कमलक अ त र च र ओर जल ह। दप क न पर म भ व रह थ। य गम य प लनम तत थ । सक पम क । तप करनक द मल । उसन द य सह व तप कय । उसक अ तरम स पण स क द न कर य गय और वह अ तजगतक ब हर स क र प दन लग । 'म ह त सब कछ करत ह!' द क भ वन प स तट थ ह कर अपनम य । अहक रक ज म ह । 'य द प द न भ द त य नम ण क य क रहग ?’ दव , द य , य र स द सभ बन चक थ। प व क भ कटय ह चक थ और यह थम सतयगक र भ भ ह चक थ । क नतन कछ बन न नह थ । कवल वर च क व करन थ । सहस य गम य न दख क उनक ह थ र ह गय ह। चरण उनम ह नह । न त दप ह और न - य । 109

नह -नह -नह ? उ ह लग क र ध क व हल र ज अब तक उनम स-प स कर स दर स ध बन त ल ट ज य करत थ , उ ह लन द रह ह और व उनस एक ह त ज रह ह! *** ज न नयम बन लय ह । अव य ह वह ज ह और उसम कछ करनक नह ; र भ कह स चतन ह रह ह। प उगत ह, ब त ह और - न त समयपर प पत एव लत ह त ह। इन य ओक रक तट थ चतन उपल ध नह ह त । लत इस हम क त कहत ह। अनक नयम ज ह गय। व प रवतनह न एव न त थ। चतन-(ज व),न, जसम पय म त क थ , उनक पत लय और वह म वय ज क सच लक बनन लग । ह सव प र म न ल गय । एव भ अन व यक तथ ब ह नत क त क म न गय । य क सबक मल म न हत प अल य ह गय थ । स वकत व ग समझ ज न लग और र ज सकत मह । सर क न ह गय । असर न उनपर मण कय और अमर वत पर ब लक स य ह गय । सर क घर- र छ कर भटकत रनक ब य ह न प और इस द नह न अव थ म उ ह न सव क रण ल ।

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अ तरक द न सझ य क र स धक म थन अमर व द न कर सकत ह; क त स वकत क यह ग भ र ववचन भ र जसक अप करत थ । अमतक ल भनपर असर स स ध ह गय । कथ बहत स ह । व त र नह दग । ब ध और व न बहत य, पर ' नबलक बल र म'। असर क भ उन ह रपर व स करनक अ त र क उप य द ख नह प त थ । अ तत कस क र म थन रमभ ह । प हल त हल हल ह नकलत ह। क -अय दह यक स वक क यम त ह । उस व क र त क व ह कर सकत ह । ल कन वह त उसक भ ण ह । बन अमत पय ह वह अमर ह । र य थ - र न-पर-र न नकलन लग। ज जसक य य थ , ज जसक अ धक र थ , उसन उस कर लय । यह सब एक त घटन ह । इ तह स इस क पनर व कय करत ह। प ज च क । व उस सम म थनस कट ह थ । जन द ध-लह रय न उ ह अपन म एक कर लय थ , व ह ज उनक चरण म ब र-ब र सर पटककर म य चन कर रह ह। य सब-क-सब उ ह क ब च त ह? छ:! ब ल ज य उ ह । ‘य उछङखल उ ह क इ छ करन लग ह!' उनक 111

क द भ त नह ह! व ज नत भ त नह क व क न ह और उनक इन कटयक य रह य ह? स मख वह दप ख ह । 'तब य इ ह न अभ तक मझ म नह कय ?' अब व ज भ कह सकत थ । व अन त क लस उ ह क चरण म बठ रहनव ल ह। उन चरण क अ त र और ग त भ य ह? उहन क अप नह क । द न ह थ उठ कर - वह सर जम ल परमप क गल म ड ल द और झककर उनक चरण पक लय। व भ मसकर उठ । एक स थ सभ दवद य न उ च वरस जय व न क । *** 'तम चल कह गय थ? 'वह र स ध, वह य और वह सद ससर लम लट रहन व ल द प । उनस उनक चरण क दब त ह य गम य क चत व ग स दखत ह पछ रह थ । 'म त कह त ज त ह नह । व ल ल मय ब ग भ रत पवक ब ल- म त सद यह इस य पर स ह प रहत ह! मझ कह ज नक न त इ छ ह त और न व यकत ह !' 'म य ह भटकत रत थ ?' कछ म पण र स रम न कह । उनक न म त नक अ णम छलछल य थ तथ एक 112

क न म जलक एक कण भ । 'स गरक तटपर मझ ब र-ब र ल ट दनक न टक क और कर रह थ और मन वरम ल भ स भवत....।' 'यह अ छ रह !' व सव हसत हय ब ल-'तमन वय त अहक उ थ न कय और उस अपन और मर म यम ड ल लय ! अब उलट मझ ह क सन लग ह । अहक रस त द य करक तम त प ह गय । मर चतन क अप ह और अब क रण भ म ह ह?' 'पहल मत बझ ओ न थ!' चरण पर म तक रखत हए सधसत न कह । ब त बहत कछ समझम गय थ । इतनपर भ रह य अभ अ कट थ । व सब कछ प समझ लन च हत थ । मन अपर ध कय और उसक द ड भ भरपर प लय । अब त इस द स पर क ण मयक कप ह ह न च हय!' ल ग कहत ह क सम त य ओक क क त ह ह । सम त अ भ य त ह र प ह और स थ ह तम सद यह मर सम प भ उप थत रहत ह । अचल, एक प।' भन क र तरस समझ य । जस एक यव नक उठ गय । अ भ य ह कह ? लयक ल न वह अ धक र भ नह ह । एक र सध ह और उसम व - य यन कय ह। और क स ह नह ह। कस स क लए कह अवक नह । 113

स ह, ज व ह, ह। सब कछ ह और ह कछ भ नह । वह एक - य ह। य गम य न दख क उनक स थकत उन त ण-अ ण नयन सर ज क ओर । 'एकटक दखत रहन म ह ह । वह स हटतह कछ-क कछ ह ज य करत ह! ' दय !' उन द न प द पकज क भज ओम कस कर दयस लग त हए उ ह न कह -'मर दयम प सद इस पम नव स कर । उसम अब कभ अहक रक उदय न ह ।' न स ललन उन पकज पद क लत कर दय । भ त 'य यथ म प त त तथव भज यहम' क त करन व ल ठहर। उ ह न म कर कर कमल क क मल-कर अपन कर-कमल म लय और उ ह अपन दयम बठ लय । उस इ द वर भ द य दहक भ तरस उन जग जनन क व णम क त झलकत ह व क जस र मर जक अपन रग म र जत करक व णम बन दत ह, त एव सत उस ह व स कहत ह। व व स-ल छत न लकमल य म, त ण अ ण व रज नयन वस ह सद य तथ भ क दय पयङकपर लट रहत ह।

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, - य , - य ॥ 'अभयक लए त ह लयकरक य न करन च हय ।' ग न ग भ र म स कह - 'म यक सतत म त म नवम वर यक उदय करत ह और म नवक वक र व य क कटकमय पथस बच य रहत ह। वह त छक छ कर तक लए उ सक बनत ह! उस णक सखक त घण एव न य तक लए अभ स ह त ह ।' ‘ क य न य दयम उसक अ भव नह करग ?' दध चन ब कर स अपन क उप थत क । 'म नस ययक स थ त द य ह त थ पत करत ह और क स थ उसक त द य य स वक ह ग ?' 'त ह र वच र-सर ण स म य ह और त भ ।' ग न सय य यक चत वन द - ‘ वन वस नह ह जस क तम दखत ह । नव स क भ मक क ह लय कहत ह। पतझ वस तक अ चर म ह। दवत ह ज वत य त एव ज ग तक! 'उनक य नस दय क प तथ वन क र भ वन ओक हण नह करग ?' अब भ यक सम ध न ह नह सक थ । 116

‘ ध क मक छ ट भ ह त ह। वह भ स धकक एक भयकर ह।' 'नह व स!' नह- न ध वर म ग न समझ त हए र भ कय -'क प अह एव पर- स ह त ह। व क अण-अणम वन , प रवतनक ल ल चल रह ह। क इस अख ड त डवक स त कर लनक प त क पक लए क धर बचत ह नह ।' ' क ।' दध च कछ कहन च हत थ। उ ह र कत हए ग न कह -'त ह वन स भ त नह ह न च हय! स धकक सव थम उस क व यकत ह त ह। ज म ज मस तमन अपन स ह लय ( च ) म प वक अ त र य स ह कय ह? अपन दव व तम सद उपभ ग करत चल य, ज कछ भ सत स ह ह , यय ह गय । अब अव क वस कय बन यह न यक भ य स द कस भ मपर तत ह ग ? त ह र लए वन सबस ब व यकत ह, ज त ह र हडड म सम घल- मल म य -म हक अ तम कण तक भ म कर द! ' य यह स वक स क र नह ह सकग ?’ यक वरम वन थन थ । ‘ह सकग !' ग न त द म कह - 'यह भ एक म ग ह; क त कण-कणम क न य दखन उतन क ठन नह ह, जतन क द यकर त वर य त मह क लक य नम 117

न हत ह। स वकत क सच र दसर गण क अभ व त करग ; ल कन वह पथ ह क ठन!' 'वह क ठन भ त मदल ह!' स च ब त त यह ह क वभ वत म नव अ तर सरस स दरक दखन च हत ह और भयकर दर भ गत ह। 'दखत क तम अपन व भ वक व स अभ प र ण नह प सक ह !' ग न कछ क मल वरम कह 'अ त ! तम भक क दक सम न उ वल तथ च म क सम न तल न ध क मय व पक य न कर ! वह तमम स वक क सच र करग !' य नक स ग प ग व धक उपद करक ग न पच रक द द । यन न द -प रत नयन स उनक चरण-रज भ लपर लग य और लकर मह पवतपर स धन करन क लए चल प । *** ' भ!' च र ओर अख ड हमक उ वल स य थ । एक ङग दसरस म तक च करनक ह कर रह थ । नमल गननम सयक करण चमक रह थ और हम- ल ए ध र वत ह नस खसकत ज रह थ । ल ओक ह थ नथ नपर स रत न च ज रह थ । यह ल ए न च ज कर जल ह ज वग ।' कह तणक न म तक न थ । इस द म समतल 118

भ म और उसपर वह जट ए लटक य , कस तप व -स : सघन प क छ य एव ल ल-ल ल क पल तथ ल स भर वट-व भगव न करक म हम ह थ । व पर एक भ प क घ सल नह थ । इस द म क प य न लग । व मल म व दक पर य बर ड ल व दव-दव त म म स न थ। भगवत उम न कर उनक प वन पद म ण म कय । ' ओ द व!' व गतक वर म ब लत हए च म ल त नक खसक गय। व म ङगम बठन भरक सन र ह गय । प वत न उस भ त कय । स मख कछ दर पर उ ङग त व भ बठ ह चपच प अपन व म क ओर दख रह थ । उसक उ वल प र र स त त ह रह थ , म न वय हम लय इस पम अपन सत एव ज म त क सव स कत थ ह न उप थत ह ह। ' ज कह चलग नह न थ?’ भक स न दखकर ग रर ज कम र न त वन क -'मर इ छ ज घमनक ह रह ह! य द व म क अस वध न ह !’ उ ह न म कर त हए म तक झक य । 'मझ य अस वध ह न ह!' उस त म म सद व कर रह थ-'तम अव य घम ओ!

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‘न द त ह व छ नस र ल ज यग ।' अपन न म सनत ह व भ उठ ख ह । उसन एक अग ल और तत ह गय । 'उह !' हसत हए अ बक न ह थ ज कर कह - 'एक ब र एक क ज कर बहत भ ग चक ह । अब कभ स भल नह करनक । सव इस द स क म कर। मझ कह नह ज न ह।' ‘अ छ !' य ग र हस प ‘त तम मझ भ कह लक चलन च हत ह । कह चलन क इ छ ह? चलन ह ह त ओ ज र स गर तक ह व? ह र क द न कय मझ इधर बहत समय ह भ गय ह।' कछ ज नत हए भ सव प रह स कर रह थ। 'जस व म क इ छ ।' सक चत वरम कहत हए भव न कह ह गय ' मर वच र त ज मह ग रक ओर चलनक थ ; क त न थक जह च वह उपय ह।' उनक वर म अनर ध थ । 'क व ब त ह य ?' भन म द मतक स थ कय । यह वच र कस भ य ल क कत थ करन क लए त नह उ दत ह ह? क न ह वह ज यह अ नपण क कल कय ह?' ‘ प त ज न बझकर पछत ह।' उम न सक चत ह कर म तक झक लय । ‘एक स ध रण म नव ह। वह भक य न 120

करत हए वह कठ र तप य कर रह ह। एक ब र उसक दखन च हत थ ।’ ' जसन घ र तप कय ह, वह उसक क एव मह व क ज नत ह।' भ न हसत-हसत कह -'त ह र सह नभ त तप य क ओर ह न व भ वक ह ह । अपण न ह तम? अ छ ब त । ह रक द न र ह ज यग, चल । त ह र उस तप व कम रक ह दख व!' सकत प कर व भ सम प कर बठ गय । तर त कह स एक चर य और उसन ब -स दल-चम न द क प ठपर ड ल दय । ग उम क बठ कर ह थ म डम तथ ल लय त भ बठ गय। *** 'अर भ ग ज यह स?' ह थ म चमकत ह भ ल लय, क ल पवतक सम न, ल ल-ल ल न तथ ख ग रक क व ल वह भयकर द य स मख ख धमक रह थ -' कसन तझ यह बठन क कह ?' 'मन त ह र क अ न कय ह , स त मझ मरण नह !' तप व दध चक वरम त नक भ क प नह थ । व अ वचल त बठ थ। 'उपय थल दखकर म वय यह गय ह और ज एक व स यह स धन कर रह ह। मर र त ह र क ह न न ह ग !' 121

'त भ गत ह य .... ! भ लक न क दयक सम प पहच त हए ब कक वरम वह च ल य - ‘म क च ह कल कर ज ग ! तझम म स त ह ह नह , इस सख हडड पर मझक यथ ह क दन प ग , यह स चकर तझ अब तक छ दय ह। यह पवत मर ह और इसपर म कस क रहन दन नह च हत !’ ' थल त सभ जगद क ह।' तप व थ । 'म उस क- खरक यह र धन कर रह ह। तम र भम न ध करत त म यह न बठत । अब त थल-प रवतन करन य नह । मर रहनस त ह क क न ह ग ।' ' र धन क ब च।' वह द गजकर ब ल -'त भ गत नह त म तझ नगल लग । तर जस त छ क ट स मझ क य अस वध य ह न ह? ल कन तर यह ढक सल यह चल नह सकग । म तझ अ तम अवसर दत ह। अपन तम उठ और यह स च पत ह !' 'र करन यथ ह।' तप व क वर त थ । 'मर द नक क यम य घ त ह रह ह। उस सव क ज इ छ ह , वह ह व। तम उसक इ छ क व कर भ य सकत ह ? अत म इस यथ वव दस उपर म ह त ह।' उसन उस यमदतक सम न द य तथ उसस लपलप त भ लक स उप कर द जस क

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डकह न व कक कर द। उसक न ब द ह गय और वह र यक य नम लग गय । 'म यह कर सकत ह।' द यन धस ओ चब त हए भ लक उठ य और भज ओम पर लग कर चल नक तत ह । भजद ड हल । क म एक व त- क चमक उठ । एक च ख गज और म दन र स अ ण ह उठ । ‘यह त सद क द एव प प ह!' अ त र म उम अपन र यस कह रह थ -'इसन ज वन भर त पस व क क दय ह। ग , ण क वध करन इसक लए स ध रण थ । इस य द ड मलग ?' 'यह मर प द ह ग ।' भगव न करक वर यह प स चत कर रह थ क व उपह स नह कर रह ह। 'क ण त स अधम क अपन न म ह ह क ण मय ! प व म त वय अपन क तस पत ह। उ ह त उनक स धन क प र मक ह दय ज त ह। उसम कप य ?’ 'दय मय!' उस समय एक द य दहध र न कर उन च म लक चरण क अपन च व रस च चत कर दय । जगद ब क स पण र एक णम दर ह गय , जब उसन उनक प दप पर अपन म तक रख कर कह -'अ ब ?’ 'म णम न ।' न मकरण ह गय उसक -'तम अब अलक पस इन तप व क र तथ सव क लए यह नव स कर । 123

इनक स धन सम क अन तर कल ज न ।' भन द दय । 'कप स ध!' च खस तप व क न खल गय । उसन स मख द यक छ न म तक व दख । उसक न पर उठ गय । क ठ भर ज नक क रण कछ और नह ब ल सक । *** ‘ पक य य भ अन ख ह!' उस वट-व क न च व मभ गम स न उन जग जनन न कछ उल हनक वरम कह 'वह सद क कल ल द य त पक प द ह गय और वह सरल दय व ज पर व भरस पक न म कठ र तप कर रह ह, द न क अ धक र भ नह समझ गय । उसक सम प तक ज कर भ प ल ट य!' 'त ह र उल हन भ न द दत ह!' मसकर त हए भन कह -' म त द न क । अबल ह मर बल प त ह। न प य क म म ग बतल त ह और अन य क य दत ह। य द स न ह त अन थ क र कक अभ वम उ प न ह ह !' ‘यह पहल त ट ह!' प वत ग भ र थ । ' पक दक म क न सबल, स प न, समथ ह और क न द न-दबल, अन य, न प य; यह ज नन क स ध रण ब त त ह नह । पवत क र द य दबल ह गय और द म क कक ल सबल, भ ल लय उ त न प य म न गय और न मदकर वव 124

बठ स धन-स प न, जनन क क पत करनव ल द न दख य प और क प नध र स प ल ! पक ल ल प ह ज न!’ ' प भ ज न सकत ह और ज इ छ कर वह भ !' भन मत स हत कह -'यह क ग रह य त ह नह । द यक सम त बल, वभव उसक र र तक थ । मत ह त ह उसक प स य रह ? कस ध र पर वह परल कम ख ह सकत थ ? प प क अ त र उसक प स य क प य पज भ उसक प स थ ? र र य गक अन तर त न , क एव वमदक अ त र य मलनव ल थ उस? कह क दबलतर ध र भ तम उसक लए बतल सकत ह ?' 'मझ उसस क नह !' भव न हस प । 'मझ उस पर र त य थ ; क त उसक 'अ ब !' कहत ह दर ह गय । मन उस म कर दय और अपन सवक म उस दखकर मझ स नत ह ह ग ।' ' र यह उल हन य ?' भन हस कर पछ । ‘उस बच र त पसन य अपर ध कय ?’ उन नहमय क न म अप र म-प र व र उम प । ' प उसक य उप करत ह? य वह पक प रभ क अ तगत नह त ?' 'त ह र अपन भ ल स धक क त यह अनर ग व भ वक ह ।पर त-' भन कह । 125

'पर त-पर त य भ ?’ सचमच व अ ब अ य त नह कल ह उठ थ । ‘पर त वह त पस अभ अपन तप बलपर भर स करत ह। वह ज नत ह क तप य स ब क नह । उस अपन स धन क य ह।’ भन ग भ रत पवक कह - 'जब तक स ह, वह सबल, समथ एव स प न ह । उस मर सह यत क व यकत नह ।' 'बच र अ !' उम क वर क ण म डब गय । ब नर पवक उ ह न कह -'तब य वह भक कप कभ न कर सकग ? उस चरण क द न नह ह ग? य ह तपत रहग वह?’ ' स कस ह सकत ह?' व न थ कह रह थ ' जसपर त ह र इतन अन ह ह , जसक लए तम इतन कल ह , उसक ल य अ य कबतक बन रहग ? कब तक त उस अपन अकम रख सकग ?' 'तब प उसपर अन ह य नह करत?' अ नपण न ह कय । 'त ह र और मर अन ह द नह ह!' त न समझ य ‘उसक र क ब ध त ह ह गय ह! उपय अवसर त ह उसक स धन पर गव करन व ल दबलत भ न ह ज यग और म त उस अवसर पर द प नक लए अभ स तर ह!' 126

*** 'सर कहनक ह सर ह! ब कल त दय ह उनक !' दध चन सन स भ ल । म द ड स ध कय । ण क सय मत कय । 'म न त वग च हत और न इ व, र भ यह तप वय स स कत रहन व ल क ल ज न प त ह क मर प ड नह छ ग!’ म त म भ लत -त ओम क पल गय थ । ल लल ल कसलय क स थ प प-ग छ अपन म दक सर भ बखरन लग थ। मर गज र कर रह थ। लक थ नपर तल म द सम र चलन लग थ । क यलक कक एव पप हक ‘प कह ' ण म एक सहरन ज गत करत थ । यह त- वपयय मम बस तक दभ व! दध च ज नत थ क कस तप व क प तत करन क लए मह कन हथक ड स क म लत ह! बस त गय ह त प छ-प छ मदन तथ उसक सन भ त ह ह ग ।उ ह न न त पवक ब द कर लय!।ग द म क एक त पवक जप करन लग। व ण क क मल झक रस क नन मख रत ह उठ ! नपर क नझन तथ कङकण- कङ कण क कजनन उसक म धय ग णत कर दय । दरस नकटतर त ह वह कल कजन दयक बल त क त कर लत थ ।तप व न ल ख च क ,

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पर मन य नम लग नह । उसन क न क स थ त द य कर लय । 'तप धन, म चरण म अ भव दन करत ह?' कस सग त भर क मल क ठस य वर नकल। चरण पर कछ कसम क प ह और न सक उन न दन-क ननक प प क सर भस सध स चत ह गय । सम धम त थ नह । र रक भ न ह त हए, जब क य न भ नह कय ज रह ह, न ब द कय रहन कस क अ भव दन करनपर भ प ख ड ह। पत नह यह ब त तप व क व ब न कह य ल लप मनन । उसन न क पलक ख ल द और जब एकब र ख ल द त पन ब द कर लन उनक क ब हर ह गय । क चत ह य एवम कट क स थ स दर म त अपव अङग-भङग कट करत पर क सम पस उठ और थरकन लग । वग य स दयक णभत उस तल म क एक ब र दखकर पन न क ब द कर लन कसक बसम ह? स मतम व व यवगस इत तत ह न लग । कबर खल गय । उ म क तल प ठपर पर तक लहर न लग। उनम गथ कसम एक-एक कर प व पर गरन लग । एक ह थस क तल क स ह लत वह अ सर न य कर रह थ । अ त र स समधर व गज र उ प न कर रह थ। 128

प पत कद बक पर मदनन अपन धन पर म लक समन व ल मह यक च य । दध चपर कट क अज व ह रह थ । उनक मन अपन व म नह थ । अब उठ-अब उठ! व अ सर क ओर अव य द प ग। म णम न वय वम ध थ। व य र करत? ' व न थ!' अपन सम त लग कर उ ह न पक र । स धन क बल कबक हव ह चक थ । व इस समय डब रह थ। सहस ज द ह गय । वह ल, वह उज क नन, वह सनस न। मदन अपन स थय क स थ सरपर पर रखकर भ ग । हम-धवल व भ स मख ख थ । उम क स थ च म ल अभय ह थ उसक म तकपर ल य प । तप व चरण पर द डवत गरत हए ब ल - 'कप कर , कप सध!'

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,

पर अपन यक उपभ ग कर चक थ । उसक जर ज ण कलवरम अ तम य तक भ त परम प अभ पध र नह थ। क ल भल वत न पहच सक ह , उसक कल त क य क भ स मलन र भ ह गय थ । व थन य गक दब लय थ । अहक म य भम नन म नवक मद ध बन न र भ कर दय थ । क भ समथ ल च वत नह रह गय थ । छ टछ ट र य थ और त रक कलहस उनक भ टक ह त ज रह थ। ज ब ल एव ध न थ, उनम असर क ह ब य थ । व त एव सर क वर ध थ। वस त उनक भ एक न त सद च र थ और उसक व कठ रत पवक प लन करत थ । भ म, ब ण, जर स ध, वद भ त उनम मख थ। सम जम कद च र, च र एव द यओक ब य र ज क दबलत तथ र जद डक थलत स ह त ह । उस समयक छ ट र य तथ उनक पर परक एव सघ न उ ह दबल बन दय थ । बहत- स वन भ ग पर परक झग क क रण अर त प थ । उनम द यओक भरम र ह गय थ ।

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वन-प च र और ल ह थ । उनम ल, प प, कद भ त चर म म थ। थ न- थ नपर य न म बन रख थ और उसम सह ग य उ म वचरण करत थ । त : य स मग नस त:-स य द ओक कल दर कय करत थ। स थ ह उन क नन म, जह व अ धक सघन तथ दगम ह गय थ, जह पवत क क तक च र क सह यत उपल ध थ , द यओन अपन दग बन लय थ । व अपन दल रखत थ । उनक ग चर ह त थ और कभ कभ त अच नक मण करक कस र यपर अ धक र करक नर भ बन ज त थ । इन द यओक क पर जत र य- य र ज भ थ। जस उस समयक य म सव भगव न य स थ और बदर वनक उनक म धन म म न ज त थ , वस ह द यओम उ व क न म दसर द यओक दयक भ दहल दत थ । उ ह न भ अपन दग अभ हम लयक म बन य थ । बदर वनक सम न तर, अग य पवत- णय क म यम प प क वगल कप ल उनक क थ । क तन स पण स दय वह एक कर दय थ । धर तल तथ च र ओरक पवत- णय रग- बरग छ ट ब प प स लद थ । यह क प प एक मह न तक य -क य रहत ह। व न च कह भ अल य ह । व म कह भ इतन ब प प क 131

स ह लय ह नह । स व द प क मव क व ल भ रस लद हए झमत रहत ह। उ व क मह नह ज क तक स दयपर म ध ह ज य। मव पर पट प लन ण क क म ह। उ ह त 'म र क ट ' क उ व न य ह। इस स उनक न म उ व प गय ह। व अपन इस ग र दगक उसस भ अ धक र न स भर दनपर तल ह, जतन क यह प प ह । व यह सवणक एक और पवत ख कर दग। च हत त उ व भ अब तक कस -न- कस र यक अ धप त ह गय ह त । स क द यओन कय , ल कन सनक झग म प न उ ह पस द नह । दसर व ज तक सत ह। व ज नत ह क ज उ ह सहज ह सक नह व क र करग । ण भरपर वर ध करग। यह भ स भव ह क य नर स म लत पस उनक वर ध कर। अतएव व अवसर दखकर सदल कस नगरपर च द त ह और उस लटप ट कर लट तह। क म रस प ट लप तक उ व क न मस क पत ह । वह एक स द य ह ज मह न चलकर छ प म रत ह । उसक और उसक ल ग क पत तक नह लगत । स चत क ह न त त थपर उसक स नक कट ह त ह, जस त । र त न स ह य क डस म दन क प उठत ह । 132

*** ' ज ग दव उद स न प त ह!' अपन सरस र स ललस क प जट ओ र भगव न ब दर यणक प द पकज क प करनक अन तर उनक य य पलन कह 'य द म अन धक र न समझ ज त क रण ज ननक अ तरम उ कठ ज गत ह रह ह!' उनक अ ज ल बध थ और द अ यतन । 'सन सकत ह व स!' मह न सय प थ न कर लय थ । त क ल न हवन तथ स मग न सम करक व ज एक क इस सर वत तटक न म त क मलम बन सनक ल पर बठ थ । उनक तजस उतर कर उस कम रपर प । ' णय म कल त भ वन क सच र र भ ह गय ह। क लयगक छ य चक ह!' अह न जन क य णक च तन करन व ल उन क ण मयक न भर य थ। ‘अ प य ह त ज रह ह और उनक मध क नत त स र भ ह गय ह!’ ‘ज अ नव य ह, उसक लए भक क।’ सक चक क रण यक व ण ह गय । उसन दसर ढगस कह -‘ य भ उस नस गक नयमक प रव तत करनक क म ग ढढ रह

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ह?' अपन ग क अप र म यक स पण व स थ और वह इस वच रस पल कत ह गय थ । 'जग नय त क इ छ सव प र ह । उस क बदल नह सकत । स करन म क ल भ नह !' मह क वर ख न थ । 'म स च रह ह कवल इन न व ल अ प य, अ प मधस, कल दय णय क उ रक उप य!' ' य वह ज भ अनपल ध ह?' यक वर कहत थ क वह यक सयत नह कर प रह ह। 'पचम वद मह भ रत तत ह गय ह और भन पर ण क भ रचन कर ल ह! इनम न त अ धक रक ब ध ह और न मध क त त क व यकत । सरल, सलभ स धन र सभ क क य णक पथ त ह गय ह, स मन च य चरण स ह त सन ह।’ ' थ- नम ण ह त उनक उ य पण नह कर दय करत ।' मह क खद य -क - य थ । तय क इस सरल-सलभ त य क व म स रत करनक व यकत ह! इसक बन उनक नम ण अथह न ह।' 'हम सभ च यक अ तव स त उनक अ ययनक उ सक ह!' पलक वर भ नर पण थ । वह समझ रह थ क हम ल ग इन म हम मय थ क प नक य य च यक म नह ह। य हमम क भ उनक उपल ध करनक अ धक र नह ?' 134

'अ धक र त सभ ह!' च यक व यन सत दय । ल कन च रक ह । य थ तय नह ह ज एक दसर तक जक प ठय- ण ल स च रत ह ज यग । इनक च र च ड ल करन ह और तम ज नत ह क जतर वण कल म अ ययन थ नह त।’ 'तब?' सचमच सम य ग भ र थ और यन इसपर कभ वच र नह कय थ । 'हम र ज-सभ ओम उनक वचन करग।' झटपट उस एक य सझ । 'तब भ उसस अ यज तथ न रवग व चत रहग !' सव मह न य जन क ट पक । स म न भ ल क कछ स हस म य ग पचम वणक झ प य म भ न द - त तक च त कय बन पहच ज यग, त य उ य स ल ह ग ? ण क त उ र र ब त अ क तम दख नह रह ह ? कस व क व ण स अभ भ व उ प न ह ग , इसम सदह ह ह।’ 'तब त क म ग नह !' कम र स पण नर ह गय । 'म ग त भक ह थ म ह।’ व अम गम भ म ग नक ल दत ह ।' मह क ण प यनन तजक ओर दखत हए कह । 'क अ यज य तल मज तभ ल , उ स ह एव र रक, म न सक, सपन ल ह त उसस ज त त व तक उ म क क रण इस हण करग । य क उनक 135

उद र ब अभ मत नह ह ह और जतर वणस यक क रण उसक व ण क दर करग ।' ‘हम सब व चत ह रहग?' पलक ग भर य । 'नह त !' मह न कह - 'अपन उस सह य य क स थ तम ल ग भ इ ह उपल ध कर सक ग; क त च र त उस क र स भव ह।' *** 'उ , इतन न स नर-सह र।' र जपथपर ल बखर प थ । र स पथ अ ण ह गय थ । भवन क त रण र टट प थ और कह -कह अ नक लपट उठ रह थ । न, क क तथ च ल क चख-चख चल रह थ । ग मडर रह थ तथ भवन स अबल ओ एव ब लक क क ण- दन दयक वद ण कय दत थ । अक म त इस द दनम भगव न वद य स वदभम पहच थ। ' न य ह द य अभ नगरम ह ह।’ च यक प छ चलन व ल म-स सबस गक च र म म स क र ज म नन कह । बहत बच कर व चरण न पकर रह थ क कह र दक प स ग अप व न ह ज व। 'हम ल ग क ल ट चलन च हय।’ एक च र न ज सबस प छ तथ यम सबस कम थ कह -'इस समय नगरम घ र अ त ह। इसस दयम खद ह ह त ह। सभ न ग रक 136

कल एव त ह । स समय यह रहन म क ल भ नह दख य प त ।' 'इन दन करत हए द न क छ कर तम तक लए म ज न च हत ह ?' ग क वरम नहपण र थ । 'द न क उप करन व ल द नब धक उप करत ह, यह त ह मरण रखन च हय । णक लए सबस ब तप य ह प त क प र ण। हम उसस वमख नह ह सकत।' हम ल ग क व लत अनलक तल करन म लग ज न च हय ।' ज मन न उ स हपवक कह -'और य द स भव ह त हत क उपच र भ करन च हय ।' 'इन क म क न ग रक न र भ कर दय ह।' ब त स च थ । 'हम उसस भ मह न क म करन ह। वसक नव रत करन ह इस समय सबस ब व यकत ह। हम द यर ज तक त पवक पहचन च हत ह।' च यक ग त ब गय थ और अनग मय क द कर अनसरण करनक लए ब य ह न प रह थ । 'म उस यह स प दकर भ म कर दग ।' इस क र च य-प दक कलत तप व कम र अ णक लए अस ह गय थ और उ ह न अपन कमडलम-स अपन द हन अज लम जल तथ व म-करम क न मत ड स हल । पल द ड क म दब लय गय थ । 137

‘नह व स!' ग दव क गय । नहपवक उ ह न । उस तज व क रक म तकपर ह थ र । ' रत क तक र जब कभ रत स कय ज त ह, वह उस एक णक वर म दकर ग णत भ क न व ल स ह त ह । अनलक तजस घतस नह , तल जलस त करन च हय । 'य द वह द पक न म न?' व ज मन म भ गय थ । उनक कम- स त जस-क तस दनक समथक ह। ‘वह स त करग ह । अपम न एव घ त भ कर सकत ह।' मह न कह -'वह त त ह । नह न ह । धन उस अ ध बन दय ह और ल भन उ म । वह य त ह र क पक प ह? उसक अ नव कय चरण य य न दन य य ह? दयन य ह वह!' य क समझम नह त थ क उनक कप स ध ग दव अ तत करन य च हत ह। इतन ह उ ह न समझ क उ ह यक थ तम त रहनक कठ र द मल गय ह । *** ‘द यर ज उ व मह क चरण म ण म करत ह।' उस समय य क त प म तणड म य तज पर थ और द यक यह त थ क क एक व ण उसक सदल वन क गतम सहज ह क दनम समथ ह । 138

'द यर ज त ह ल ज नह त । इस उप धक अपन ह मखस स ब धत करन म?' मह क वरम तर क र थ -वस तर क र जस ब चक झ कत समय म त क वर म ह करत ह। ‘ य दव, म इसम य ल जत ह ?' द यक क ठ थ । मर प स छ -चवर नह ह, अ यथ मर इस वजय भय न तथ र ज ओक वजय-म म य अ तर ह? व भ त धन तथ य क लए ह लट तथ हस करत ह। म नरप त दक बड बन नह करत , अ यथ मह र ज भ कहल न क ठन नह ह।’ ' न य कस र च रत ह नस त य नह ह ज यग ।’ मह न घण पवक कह । 'र ज य द द दमनक अ त र उठ त ह त वह भ द य ह, यह त ठ क, क त य इसस वह ततय ह गय ? 'म तभ क अध रस तक करक वजयक करनक द स हस नह कर सकत !' द यन म तक झक य । 'म कवल उनक कस सव स अपनक प व करनक इ छ करत ह। य भ इस अधमक इस य य समझत ह।' 'म वय ह तमस य चन करन य ह।’ मह न उस द यक च कत कर दय । ‘ ह तम अपन स एव

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स हसक स म न रख ग और एक व णक नर नह कर ग।' उ ह न भदक स उसक ओर दख । ‘मर सम प कस भ च वत क क स अ धक र न एव वण ह तथ सभ र य क क -ग धन द एक सकत म स य ह।' ब उ ल सस द यन कह 'य द भन मझ इतन ब स भ यक प बन य ह त यह सवक भ म तक तक दकर उसक र करनक य न करग ।' 'मर क म व कल एव ल स चल ज त ह और ग य सर वत त रपर कम नह ह। उन मह मध क प र प न द यक लए कह य थ । वह उनक म ग सननक उ सक थ । 'मर दवत क ब ल भ नह द ज त । म त एक स ध रण भ च हत ह । तम उस द ग सत?' 'म क ह त कर रह ह ।' ह थ ज कर द यन म तक झक रख थ । लटक वण-र न दक ढर एक ओर लग थ । उसक दल क सभ अनय य एक ह गय थ। उनक व र ह चक थ । अ ण भङग य नम चल गय थ और भ ल द उन ल ग न प छ ड ल दय थ । व ज नत थ क मह क सम प उन पर क घ त करन क स हस न करग और य द क कर ह त व दबल नह ह । द उनक नह रह ज यग तब ।

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'यह स प उनक व मय क लए छ द ।' यह तक त द यन क प नह क , क त मह कहत ह चल गय'और इन क क द , इस न स क यक सद क लए प र य ग करनक त कर ।' 'य द म यह न कर सक?' ड कक वर भर गय थ । वह अपनक सचमच वव प रह थ । ' य क भ दसर दकर भ अपन वचन स छटक र नह द सकग?' वह बहत क तर ह रह थ । कह नह सकत क पक भयस भ त भ थ य नह । ‘कवल एक ब त और!' मह क व यन उस सन दय । 'कवल एक ह ब त प रवतनम और वह यह क स द म अ य कस पर य ग करनक पव तम मर वध कर द ।' भगव न य सन अपन रजत म -क म डत म तक झक दय । ‘ छ:!' द य जस प गल ह गय । उसन अपन क टक न च क , कवच उत र दय और उन व व क चरण म र त ह गर प । *** 'तम ध त और प णक प छ इतन य त य ह गय ह ?' सर वत क प वन तटपर भगव न य स एक ल पर स न थ

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और द यप त उ व द न ह थ ब ध उस ल क न च घटन क बल बठ ह थ । ' न द तथ सखक लए!' उसक व ण उसक न क सम न ह थ । व तत: उसक दय उस अपन र म गपर ल ट ज नक लए ब र-ब र रत कर रह थ और न कपट भ वस उसन ग -चरण म अपन त रक थ त नवदन कर दथ। 'तम व स करत ह क उनम न द और सख ह?' उन य गर जक न उसक न पर थर ह गय। 'उ ह इस हरनक स मख ड ल द और दख क यह उनस कतन सख य न द करत ह । प स ह एक मग वक ह रत तण क ध र-ध र कतर रह थ । ‘यह उनक म यक नह ज न सकग ।' द यन वस - ह स ध रण ढगपर कह दय । 'यह म य न क पन ह त ह।’ मह ग भ र ह कर ब ल-'तमन उस बहम य म न लय ह, इस स उस प कर स न ह त ह । यह स नत उसम स नह , त ह र अ तरम स ह त ह उपल ध ह त ह ।' 'वह उसक न म क रण त ह ह ' अब भ द यक दय प रव तत नह ह थ । 'अ तत स नत कस क यम त ह त नह । वह कह -न-कह स न म पम ह त ह त ह।' 142

'वह क यम भ ह त ह।' मह न पचक र और उनक सकत प त ह वह मग उनक पर क प स कर ख ह गय । उनक क मल ह थ उसक प ठपर घम रह थ और वह प मख उठ कर म ध भ वस उनक न क ओर दख रह थ । 'तम कह सकत ह क व म क स भ ण ह जस यह नह- न द नह दग ? दसर क इस क र नह-द नम अ तरक य कम न द उपल ध ह त ह?' 'ग दव!' जस क अल कक घटन ह गय ह । ब ह अ त वरम द यन पक र । द णक लए उसक व ण मक ह गय । ‘ पक व ण न मर दयक घ र अ धक रक दरकर दय ह। प इस म नव पम स त ह र ह।' वह वह अपन ह न स ललस भ ग प व पर द डवत लट गय । ब क स उसन उपय द कह। भगव न य स मसकर रह थ। उस द यप तक य पत थ क वह अनज नम ज म ह य व य कह गय थ , वह स य ह थ । 'मझ प प क उ र कस ह ग न थ?' वह ब र-ब र व क भ त त प रह थ । ‘अब तक तमन दसर क थल स प तथ ज वनक अपहरण कय ह।' य सदव कह रह थ–'अब इस य य बन क तम उ ह अ तरक द य स प एव अमर ज वन वत रत कर सक । दसर क त दकर तम त कर ग और स त 143

वत र भगव न बलर म अपन ह थस म रकर त ह र उ र कर दग।' उस सन मल । दसर दनस वह तल मज भगव न य सक ध न पर ण प ठ ह गय । उस उ व क पर ण- वचन करत समय न म र य म वध करक भगव न बलर म भ पछत य तथ उ ह भ पर ण-व बन दय ।

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॥ ' मह र जज पध र ह र मब गम । द न करन ह त ज द ओ!' भ गत हए त गपरस पक रकर रघन दनन कह । 'क न मह र जज ?' कछ समझम य नह । र म सह एक भ म ख थ और अभ नह ज न सक थ क य वह जनत क त ह ह। व अभ य थ और भ तर घसकर क रण ज ननक उ सक थ। 'अनप हरव ल मह र ज ग रधर म ज ।' दर त गपर-स व न य और त ग स दर ह त गय । वह अ प ह त ह त एक व द बनकर पथम अ य ह गय । भ क क रण ज ननक इ छ अ य ह गय । पर म प । एक स दर-स म गरक गजर लय और च र-छ: गल बक प प। एक र सम बठकर र मब गक ओर चल प । व य गर ज अब बहत स ह चक थ । उनक र रपर क य बर भत ह रह थ । म यव न मखमल ग द र कस पर कमरस ब हर ब टक म ल न पर बठ थ। नगरक स त त ल ग क समद य द न थ उम प थ । एक छ ट मल लग गय थ । कछ ल ग स मन ख टपर बठ थ और कछ बठ ल ग क प छ य बगल म प बन य ख थ। सबक सब 145

त थ। य गर ज कछ कह रह थ, और ब स ल ग उस उपद मतक प न कर रह थ। र स उपवनक रपर ह छ दय गय थ । इस भ म-स मह र ज तक पहचन सरल नह थ । अ तत र म सहन म ग नक ल लय । व एक दसर म गस प छक ओर पहच गय। मह र जक द हन करक बगलस उ ह न म ल उनक क ठम ड ल द और प प क स थ म तक भ चरण पर रख दय । चरण-ब दन करक म तक उठ त ह य गर जन उनक ओर दख । सहस व उठकर ख ह गय । कस क मख उ ह न प छक ओर म और इस क र स पण भ क प भ गम करक बठ गय। अब उनक स मख अकल र म सह थ। 'छ कर!' व र म सहक इस न मस स ब धत करत थ-'त अ छ त ह? य करत ह?' स त र म सहन बतल दय क अब व गह थ ह गय ह और उ ह न कर ह गय ह। स थ ह उ ह न अपन अ व थ मन द क वणन भ कय । 'अ छ , त अब ब हमख ह गय ह।' व मसकर य। 'मझ भल गय थ न? दख, म इस र जस भ ग म अ धक दन उलझ नह रह सकत । यह ज य कर।' ग और य इस क र ड -द घ ट ब त करत रह। य म ध भ चपच प बठ रह । कछ ल ग उठकर चल भ 146

गय। उस दनस र म सह न य वह ज न लग। सहस एक दन उ ह उपवनक सवकन बतल य क त स मह र जक पत नह ह। व सब व द छ कर र म ह कह चल गय। अ व ण पय दन तक चल , क त रमत-र म क र कह ढढ मलत ह? भााइ साहब पयाथप्त वेतन पाते थे। मैििककी परीक्षा समाप्त हो चक ु ी थी। गमीकी छुट्टीयोंमें, इधर घमू ने और ाअनन्द मनानेकी थवतन्त्रता थी। बड़े भााइ बहुत मानते थे और ाऄपने साथ ही रखते थे। ाआससे पढ़ााइ भी ाऄच्छी चलती थी । सब प्रकारकी सिु वधा थी। भगवत भ ग रथ क तटपर एक बग च थ । उसम एक स दर क टय बन थ और उस म एक गह थ मह म रहत थ। उ ह न म त - पत क हपर वव ह त कर लय थ , पर प न उनक य क भ त रह करत थ । इस यगम व पर न त क य क त क थ। क प न एव क य उ र य, ख और कम डल, मगचम तथ दभ सन, सब च न यग-जस थ । वस ह उनक हवन कडक अ न सद व लत रह करत थ । त प न क स थ वद म स हवन करत। क ल न न-स य करत और सद व दक पर मगचम ड ल कर ह यन करत।

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अव थ ह ग त स-पत स क । म तकपर जट जट एव मखपर म -ज लन क तक भ य बन दय थ । भ म ल उनक र रस एक क रक तज य ह करत थ । वह पहचत ह मन वभ वत त ह ज य करत थ । मम द ग य रहत थ और उनक दधस ह हवनक ह व य एव द ध ह र द प क ज वन य भ चलत थ । य उनम ल ग क ब थ , क त कस क क द न व लत नह थ। व य ग थ। त हवनक प त उनक क ठर ब द ह ज त और र म य स य क समय खलत । म य र व गत ल ग स मलत तथ द छ क कछ प त भ थ। र म त ठ न बजत-बजत उपवनक र ब द कर दय ज त थ । व अपन यन व दक अधर म छ कर उठ बठत और महतम ह सन य ग करत। र म सहक व बहत म नत थ और वह यवक भ य न य द पहरक भ जन करक उनक सम प पहच ज त थ । उसक ब थ । ज भ छ ट -म ट सव वह कर प त , ब स न ह त उसस । वह एक म यक भ त ह गय थ वह । स य क जब उपवनक र ब द ह नक ह त , तभ वह वह स हटत । ब भ वत ध मक व क थ। य उ ह न-

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ज नक कह बहत कम अवसर मलत थ ; पर अपन छ ट भ र स ध-सव उ ह स न करत थ । 'छ कर!' एक दन अच नक ह उन मह णन कप क - 'त कछ करत -धरत भ ह य नह ?' 'ज द, कय क !' र म सहक उ र बहत ह स ध तथ स थ । 'अ छ ।’ कछ दर स चकर उ ह न कह - 'पच ग त ल !' पच ग दखकर उ ह न त थ एव महत न त कर दय और कछ स म बत द । न त त थपर हवन ह , पजन ह और र म सहक प म न सनक द मल । उस सनक दवत , नव स म , य न भ त स पण अग उस नद कय गय। पररिथथित एक-सी तो रहती नहीं । बड़े भााइको नौकरी छोड़कर घर ाअना पड़ा। रामिसहां भी ाईनके साथ काशी पहुचाँ े। यहााँसे दो-तीन वषथ पिात् जब वे ाऄपने गरुु देवके दशथनाथथ ाऄनपू शहर पहुचाँ े तो वहााँ उपवन सनू ा पड़ा था। पता लगा िक िपछले वषथ ाईनकी पत्नीका देहान्त हो गया। ाऄत्ां येिि समाप्त करके वे कहीं चले गये। िनराश होकर लौट ाअना पड़ा। धीरे -धीरे कालने थमिृ त पर यविनका डाल िदया। 'भय , यह अनर ग तमन कह स कय ?' म ज नत थ क मर क उ र मझ नह ह ग । स सक चम 149

ड लनक अ त र और कछ करत नह । इतन ज नकर भ मन पछ ; य क क दन स यह मर मनम च कर क ट रह थ । म इस स ब धम बहत स च चक थ । भगव न य भगव क भ क च रतक चच त ह न भर त ह। र म-र म ख ह उठत ह। स र र र क प उठत ह व चतर ढगस । य ब त यक द कक क त करत ह। र म सहक वह प रवतन मझ पय यम ड ल रह थ । पछल व त व स नह थ। इस एक व म ह उ ह य ह गय ? 'मझम म ह कह ?' उ ह न ब सरल ढगस कह । उनक कहनक ढग ह बतल रह थ क व बहत अ धक सक चत ह रह ह और इस क रक चच स भ गन च हत ह। मन भ उ ह तग कय बन पत लग नक न य कय । दसर दनक ब त ह-व अपन पज क कमर म सन लग य बठ थ। दब पर प छस ज कर मन रक सम पस ह झककर दख । एक च क पर प ल व बछ य गय थ । उसपर कछ थ , ज प प स ढक ह थ । मन समझ , ल मज ह ग। धपब एव द पक जल रह थ । र म सहक अज ल बध थ , न ब द थ और द ध र ए कप ल पर-स गर रह थ । मैं तब तक प्रतीक्षा करता रहा, जब तक ाईनकी पजू ा समाप्त न हुाइ। ाअसनसे उठकर जैसे ही ाईन्होंने मेरी ओर देखा, मैंने 150

ाऄिभवादन करते हुए कहा-'क्या ाअपके भगवान के दशथनकर सकता हू?ाँ ' ‘मर भगव न?' व कछ च क । ' ज इय! मर भगव न यह कह ? स भ य त पत नह कभ ह ग भ य नह !' 'यह य ह?' मन दख क सह सनपर प प-प जत क म त नह , एक प टल ह। क व त प ल स कम ब धकर रख ह ह। 'ग दवक चरण-ध ल' ब सक चस उ ह न कह 'जब पछल दन व यह य थ त मन चपकस इस एक थ नस जब क व वह चरण रखकर नकल गय, एक कर लय ।' ' प इसक तलक करत ह?' मन उ ह कभ ट क लग य दख नह ह। र भ भल ध लक और उपय ग ह य ह ग ? यह स चकर ह मन पछ थ । 'म कवल इसक ब दन करत ह!' उ ह न भर क ठस कह 'इसक ब दन क प रण म ह क भगव क च रत म मर कछ थ च ह ह ।' म वह स ल ट प । मनम बहत हलचल थ । कह एक त स चन च हत थ । यह यह स भ य कह । मर यह म -म डल जम थ । वव त: बठन प । चच चल रह थ । ‘ जकल सम जक च ह बग गय ह। न टक, सनम , नयमह न ह र वह र। स च त रह ह नह गय । न कथ , न स सग, न 151

भगव चच सबक सब ब हमख ह गय ह। जब स च ह नह त म त य ह ग । अनर ग कह स वग !' म च क - ' ग क चरण-कमल क ध लक ब दन स र म सहक स च मल और यह उनक अनर गक मल ह।' दयक क व वन कह - 'य द चरण कमल ह, त उनक ध ल पर ग ह । उसस सग ध स च त मलग ह । अनर ग त मधर रस ह-मकर द ह। वह त सम प कर मलत ह। सग धक क ण जब चरण तक पहच दत ह त च ज गत ह।' मन अपन पस कय 'अथ त?' उ र मल -'अथ त र म सहक ध लब दनन स च द तथ ध र-ध र म नस म ग चरण क स न य भ । अत वह रसमय अनर ग वभत ह गय ।'

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- य ॥ यह ज व पक ब त ह। उस समय तक न मस क वभ व ह थ , और न स क ह । य र पम वड ल ज तक ल ग क टम चम लपट ग र-ग र म नव स करत थ और भ रतक स म म तक थ । ब चक सम त पवत य एव म त उ ज यन र त-प त ह त थ। भ रत य प त ह अप र जल न धक च रकर त प (अम रक ) तक ज नक द स हस कर सकत थ । ज भ वह पर त व वभ गक सयम दर इस क रण ह त ह। भ रत व क स ट थ , पर क नह । कवल र जसय एव अ मध य म यक द स कछ कर लय ज त थ । नह त सबक सब अपन स क त, भ तक पण उ न तम स पण व ध न थ। कस क भ पर ध न करनक ब त यह क म त क स चत ह नह थ । भारत के वल सम्राट नहीं था, वह जगद्गरुु भी था। ाईसका यह पद पहलेसे बहुत महत्वपणू थ था। यहााँके ाऄरण्योंमें फूसकी कुटीरोंके भीतर बल्कल एवां एणेयािजनसे ाअच्छािदत ज्ञानके जो सचल भाथकर िनवास करते थे, सम्पणू थ जगत ाईन्हींकी िदव्य

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वाणीसे ाअलोक प्राप्त करता था। ज भी ाईनके उस ाअलोकसे ही िवश्व ाअलोिकत हैं। बल, तेज, पौरुष सजीव छात्र-शरीरोंमें और त्याग तपथया एवां ज्ञान साकार िवप्रोंके रूपमें इस पावन ाअयथभिू मको ाअलोिकत करते थे । भावनाकी भव्य मिू तथयाां एकमात्र यहीं प्राप्त हो सकती थीं । क्षद्रु शरीर एवां लौिकक भोग कोाइ वथतु ही न थे। यम और ाआन्द्र यहााँकी धनषु टांकारसे कााँपते थे । ाऄपवगथ ाअरोहण प्रधान लक्ष्य था ाऄवश्य, िकन्तु वह ाऄलभ्य जैसा कुछ नहीं था। ाइशान कोणके सभी समद्रु ी द्रीप उस समय भारतीय ाईपिनवेश थे । यहााँसे ही गये हुए बिणक्, िवप्रािद वहााँ रहने लगे थे और वहााँके ाअिद िनवािसयोंने शासकके रूपमें ाईनका भव्य थवागत िकया था। उन द्रीपोंमें यवद्रीप प्रधान था। ाईसके शासक वहााँ सवथश्रष्ठे माने जाते थे । सच्ची बात तो यह थी िक ाईन्हींके वश ां ज स-पासके द्रीप-राज्जयोंके िसहां ासनपर ाऄिधिष्ठत थे और वे ाऄपने मल ू वश ां के नरे शको प्रसन्नतासे ाऄपना ाऄिधपित मानते थे। भ रतस ज नव ल व न मह म अथव र जप भ स ध यव- प ह पध रत तथ वह स उनक स द प-र य म स रत ह त । व यकत ह नपर यव पक अ धप त ह उनक इतर प-य क यव थ भ करत थ। एक िदन भारत-सम्राट्की वैजयन्ती ध्वजा फहराता हुाअ एक पोत कर यवद्रीपके पोत-िनवासमें रुका। दरू से ही द्रीपके 154

शासक वगथने ध्वजा देख ली थी। भिू मपर थवागतकी समथत प्रथतिु त थी। पोतके तीर देशमें प्रवेश करते ही शतिघ्नयोंकी गगनभेदी तमु ल ु ध्विनसे ाऄिभवादन प्रारम्भ कर िदया था। पोतके तटपर िथथत होते ही शतिघ्नयााँ मक ू हुाइ। शख ां -ध्विनयोंके मध्य िवप्रोंका साम-गान गिु ञ्जत हो ाईठा। मागथमें पााँवडे पडे थे। दोनों ओर सजल घट िलये मगु ल-सेिवकाएाँ खड़ी थीं। थथान थथानपर बने तोरण द्रार तीव्र गितसे सिज्जजत हो रहे थे। सबक अनम न थ क प तस क र जप पद पण करग। ह वपर त ह । उसस व कल क क प न लग य, स पण र रम भ म मल एक तज मय ग रवण ज टल त पस नकल। उनक प स कवल एक ब कलम बध प टल थ । व न ज अपन अ नय क स थ पध र थ, स ग णप त कय । मह म यन यवर जक ग करक र जप क स थ उनक चरण पर प प ज ल सम पत क । प प, दव , ल ज , अ तक व र भ ह गय । 'मह र ज य नह पध र?' यव- पक र जप न दख क मह म क प छ एक व र जप पछ रह ह । 'उ ह स टक वज क अ भव दन करन व यक त नह ह ?' उन व क वर म थ तथ कछ र भ । 'य द व ह सकत त हम यह य त?' कस क कछ कहनस पव उन तप व न ह कह -'अम य! ह न क क 155

क रण नह ! तम र ज-स म न कर और व म लकर यह स थत ह ज न !’ र उ ह न गत र जकम रस कह - ' प ल ग भ रत स टक ध न अम यक व गत कर।म एक क ज ग । ग चरण क मर लए स ह ह।' कस क कछ कहनक अवक दय बन व अवर ह णक स उतर। ल ग न म ग द दय । एक ओर चल प । य च कत रह गय। कसम स हस थ ज उस अवधतक र क य उनस कछ कर? दरस द य - 'मर स ब धम मह र जक क सचन न द ज व।' (२) 'तम तत ह न?' ग रन रक एक अग य गह म भगव न द यन अपन स मख करब घटन क बल बठ यवक त पसस पछ । 'य क त त य ? जब रक जह च ह, नय करद।' यवकम अग ध थ एव अप र व स थ । 'अपन म क अथ नह रखत ।' उन य ग रक व ण गज । हम सबक य ग, प व त एव तप व क लए ह । वभक स नत क एक म म ग ह उ सग। त ह र सम प ज कछ ह, व क लए उ सग कर द । हम र स धनक वभ तय यथ ह ज यग य द अ धक र क णम ह कस स धकक हम सह य नह द सकग।' 156

'दय मय ।' यवकक क ठ ह गय । न स ललक उन प वन-पद पर अ पत करत हए ब क स उसन कह - 'इस क भ भ कस य य समझत ह, यह इसक अह भ य!' ' त, तम समथ ह !' च ह वह भल कछ भ न ह , क त जब व य गर ट कह रह ह त अव य समथ ह गय । 'इस लए यह भ र त ह र पर ड ल ज रह ह!' भन ग भ र व नम कह । ' न य ।' यवकन द न अज ल भर कर भक चरण स अ धक रणक उनक प छस उठ ल - जब तक यह मर सम प ह, न य ह म डक स पण य क स मख समथ ह।'उसक व ण म म द व स उम प त थ । 'अ छ ।' भ मसकर य- ' स ह सह ।अब तम यह स ब हर ज ओ। नगर रपर र ज- त न ध त ह र त कर रह ह । त ह र उ ज यन ज नक ब ध ह गय ह। वह तम जस च ह ग, ब ध ह ज यग ।’ उन सवसमथक लए यह क अन ख ब त नह थ । ाऄिभवादन करके यवु क तापस ाईठा। ाऄपने गप्तु मागथसे जो के वल िसद्च योिगयोंके ाअने योग्य ही था वह बाहर ाअया। ाईसे नगर द्रारपर ही राज प्रितिनिध िमल गया। थवप्नादेश प्राप्त कर थवयां सम्राट्ने ाईसे लेनेके िलए प्रितिनिध प्रेिषत िकया था।

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िवथतार देना ाऄभीि नहीं है । वह ऐसा यगु था जब सम्राट िवप्र-तापसोंके चरणों में तच्ु छ सेवककी भााँित खड़े होनेमें ाऄपना गौरव समझते थे। नगर सीमा तक कर महाराजने ाईसका थवागत िकया। वह राज-सदनका ाऄितिथ हुाअ। राज-भवन एवां साम्राज्जय-श्रीने ाईसकी सेवामें ाऄपना भाग्य माना। कवल यव- पक य क ब ध करनक म ग थ । कस भ त-ज त व णक प तस ज न क इ छ कटक गय थ । स नह ह । स ट सव क स भ य छ न व ल नह थ । सवक क स थ वय मह र ज सम तट तक पध र। ध न मह म य स ट क नज प तस उस त पसक लकर यव- पक लए वद हए। (२) 'म अ छ ह य बर , प प ह य प य म , ह उ ह क । उन चरण म मन अपन पक एक ब र छ दय । य द मर दबल पर ल ख य और यक अभ वम गर प त मर अपर ध? उनक कत य नह थ क व मझ बच लत!' मह र ज पत नह य - य ल प कय करत थ। र ज-व क द क म ननक व यकत उ ह न समझ ह नह । प रच रक समझत थ, यह ल प र गक बलत क क रण ह। ज ाईन्हें ाऄपनी यवु ावथथाके वे िदन थमरण ाअते हैं, जब वे गम्भीर रहा करते थे। एकान्तको छोड़ना ाईनके िलए शक्य नहीं 158

था। िनरन्तर ाअत्म-साधनाकी प्रबल प्रेरणा ाईन्हें ाऄपनी ओर वेगपवू थक ाअकिषथत िकया करती थी। भगवान दत्तात्रेयकी धवल कीितथ िदशाओमां ें व्याप्त थी। मन ही मन वे उन योिगराजको ाऄपना गरुु वरण कर चक ु े थे और ाईनकी एकमात्र ाआच्छा थी एक बार इन चमथ चक्षओ ु सां े उन श्रीचरणोंके दशथन । वह दन भ मरण ह त ह जब पत क र र त ह । अम य न बलपवक उनक सह सनपर बठ य । इ छ न रहनपर भ व क क स मख उ ह म तक झक कर त छ क छ य म बठन प । पत नह कस प प- र धक उदय ह । यव व थ , र य- सह सन और अतल स प -गवन अ धक र जम य । स द रय क जमघट जटन लग , अम य क एव सल ह ठकर य ज न लग । र ज क म ह नस द यओक बन य । ज उ प त ह न लग । सन यव थ अ त य त ह चल । ज छ मह नस य स उठ नह सक ह। र रक भ ग न र ग म दर बन दय ह। जल दर ह, वर त ह, क स (दम ) भ अपन वगपर ह और अब त स भवत य म क स दह भ ह न लग ह । व मखपर कछ कहत नह ; क त उनक ल न म स ह कछ कहत ह। व भ वक ह द घ र ग स ल ग ब ज त ह। वस भ कठ र वभ व एव अपन ह भ गम ल रहकर दसर क उप रखत 159

रहनक क रण क उ ह दयस नह च हत । र जकम र भ दर-दर खच रहत ह। सवक एव म य भ कत य ब क रण ह स सब कछ करत ह- मस नह । र ग प -प छ व ह ज य त य य? मह र जक वभ व अ य त च च ह गय थ और उ ह अक रण ह सबम अपन त उप ह गत ह त थ । अ य त त छ भलक भ व ब मह वपण ढगस हण करत थ। उनक ध वभ वक क रण कछ ल ग व त र जकम र उनक स मख कम ह ज त थ। 'ग दवन त अधम समझकर य ग ह दय ।' मह र जक स टक प तक गमनक सचन दकर ह अम य द तटपर गय थ। 'ज न प त ह, मर दगण क सचन स ट तक पहच गय । य अपन दग त कर ? मरन त अब ह ह ?' मह र ज स चन लग। र गन उ ह मह न कर दय थ । जब स ट क त न ध ध न अम यक लकर यवर ज ल ट त उ ह सवक न सचन द क मह र जक पत नह ह। व तत व सवक क बच कर र जभवनस नकल गय थ। एक खलबल प गय । यवर जन ध न अम यक ब ध सवक पर छ और वय पत क अ व णक ब ध करन लग।

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कस क क क नह ह । द पहर ब तत ह र परस एक ग भ र व न य -'ॐ नम न र यण य!' द कर र जकम र म य क स थ र तक पहच । भल चग मह र जक स थ व यवक त पस रपर ख थ। उ ह अब मह र ज नह कहन च हय । सव गम उ ह न ध ल लग ल थ । उ ह क द म ' ग चरण क वह रज उनक सम त भ तक र रक एव म नस र ग क औ ध ह।' व र गस ह नह , भवर गस ण प चक थ और कवल इस लए ल ट थ क यवर जक अ भ क करक ध न अम यक स थ ह भ रतम ग -चरण म पहच सक।

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॥ 'अबक ब र पक स थ क न-क न ज रह ह, म टर व ट?' ड टरन इस क र पछ , जस उस कछ कहन ह न ह । 'मर द छ और सहक र म र ल इट ।' सर व टक उ रस थ। ' य इतन य पय ह?' ड टरक वह व द मल गय थ जस वह च हत थ । । 'पय ! ड टर, म एक क ह अपनक पय म नत ह।' सरन म कर त हए कह । ' र भ प एक स द म ज रह ह, जह जगल ज नवर क स थ ड कओक भय ह सकत ह। य प एक अ छ क र ...।' 'हम खद अ छ क र ह ड टर!' ब चम ह र ककर सरन कह -'स च ब त त यह ह क जब क भ ज वनक त छ म हस पर उठ ज त ह, त भय उस भ त नह कर प त और एक क ल क र क लए इतन पय ह।' ‘जब क पक स थ द व थ तथ सहक र ज रह ह, उनक च क स क ब ध भ त पक …..।'

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'ओह । ड टर!' अनभव सर खलकर हस । यह ब त ह? तम स य नह कहत क म भ स थ चलन च हत ह। वस उस जगल एव म द क ब म रय तथ उनक च क स क जतन व म ह, कद चत ह ल दनक क ड टर नकल । वह क वन धय क नक बन वह च क स स भव नह , पर तम अपन च र छ कर चल ग कस?' 'मर मन यह लगत नह ह।' ड टरन कछ ल जत वरम कह -' टस भ कछ स त जनक नह चल रह ह। अत पक स थ घम नक वच र कर रह ह, य द प द। अपन यय म यह जम कर दग , ज मर भ गम वग ।’ ‘मर स थ य करक ल टनस स ह ज यग और तब स भव ह, टस चलन लग।’ सरन य य कय । ' प गलती कर रहे हैं!' डाक्टरके थवर में ाईत्तेजना थी। ाऄपने पर िकये गये व्यांग्यसे वह प्रतािड़त हुाअ ।' मैं सोचता हूाँ िक ाअपके साथ यात्रा करके ाअपकी ही भााँित सम्भव है मैं भी कोाइ ाईपहार ाऄपने िवभागमें िवश्वके िलए दे सकाँू ।' सर स नत क वगस कस स उठ ख हए। उ ह न ड टरक ह थ पक लय । ‘हम त ह र उ स हस बहत सनन ह! वन धय क अ व णक अ य त व यकत ह और इसम त ह र बहत सह यत कर सकत ह।’ 163

'त म अपन य न त समझ?' ड टरन उ स हपवक कय । 'अव य!' सरन कह -'हम र जह ज ब दरस दसर म चक खल ज यग । अ क म अ ल तक हम रहग । य द मह न वह ब स दर ब तत ह । ह , य यय त य द स प उ ड न त कय गय ह। ल टनपर उसक हस ब ह ज यग । व यक स म य क सच मर सह यकस मल ज यग !' 'ध यव द!' ड टर उठकर ख ह गय। 'कल तक द स प उ ड य - डम म जम कर दग । ज सच लत ज रह ह । कछ व पछन ह त कल इस समय यह उप थत ह ग ।' द न न ह थ मल य और अ भव दन करक ड टर अपन म टरम ज बठ। 'बढ़े चलो’ प्रोफे सरने वद्च ृ बॉटसे कहा। इस मरुमें कोाइ भी कामकी वथतु िमलेगी, ऐसी ाअशा नहीं थी। मरुथथलकी तीव्र ाअाँधी चल रही थी । ाऄिथथ तकको काँ पा देनेवाली सदी पड़ रही थी। प्रात:की चाय भी न िमल सकनेके कारण सभी एक प्रकारकी बेचैनीका ाऄनभु व कर रहे थे। वद्च ृ प्रोफे ससने यह यात्रा िनिितकी थी। माँहु ाऄाँधेरे चल पड़े थे और ठ बजे तक लौटकर कै म्पमें चाय पीने की बात थी। लेिकन ठ बज गये और कै म्प ाऄभी लगभग चार मील दरू था। प्रोफे सरको ाअशा थी िक इधर कुछ िमलेगा और यही ाईन्हें दरू तक खींच लायी थी। 164

सर सबस प छ चल रह थ। व थ न- थ नपर कत और य क सह र तथ घटन क बल प व पर लटकर क न भ मस लग कर कछ सननक य न करत । इन क य म व इतन य त थ क उ ह न ड टरक ब त सन ह नह । प ट क ल ग उप करक ग नह ज सकत थ । अव य ह उनम झझल हट थ। 'यह व प गल ह रह ह!' ड टरन हसत हए कह -'इस रतम य मल सकत ह?' सर प छ एक थ नपर प व स क न चपक य य न थ-स थ। सबक ख ह कर उनक त करन प रह थ । 'व कद चत ह भल करत ह।’ सरक सहक र न त वरमम कह -'जब उनक प क ध रण ह त यह क पर मड पन यजनक न ह ग !' 'यह -यह ह!' सरन ज रस कह -' म र ल इट, तम भ दख ल । म कहत थ क इधर ह ह?' उ ह न इस क र कह म न उनक सहक र उनक बगल म ह ख ह । व य अनकल थ , अत सबन सन लय । 'यह दख ।' द न छ न तथ सहक र न य वह लग दय। 'य स नह , क नस ।' सरन कह -' भ तर कछ व यक ग भ र अ प न द सन य प त ह न?' 165

'कछ भ त नह !' क न लग कर सननक प त सबन कह । 'ह य नह ।' सरन पन क न लग य और और वरम उ र दय । ' पक त व नम भ पर मड द खत ह।' ड टरन हसतहसत य य कय । 'क च त नह !' सरक मखपर ग भ र हस झलक -'अभ म तक मर व न तम भ दख ग और वह भ ज गत हए!' िचह्नके िलए वहााँ झांडा गाड़ िदया गया। सब कै म्प लौटे और चाय पीकर मजदरू ोंकी एक बड़ी टोलीके साथ वहीं पहुचां गये । खोदनेका काम जोरोंसे लगा िदया गया । तीसरा प्रहर हो चला और वहााँ रे तके ाऄितररक्त एक ाइटां का टुकड़ा भी प्राप्त नहीं हुाअ । प्रोफे सरके ाऄनमु ानसे दो तीन फीट ाऄिधक ही खोदा जा चक ु ा था। 'अब त प इस यथ क यस नव ह ।’ ड टरन कह । सभ क इसम व क हठ ज न प त थ और सभ नर ह चक थ। 'दस ट और।’ व न र गड म क न लग कर सन और पर कर उसन न त वरम कह - 'म र ह नह क ग ।गहर क अनम न करन म मझस भल ह थ ।' 'दस टस ह छ सह !' सबन एक स त क स स ल !

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कभ थ ह दर ह -लगभग प च ट और खद ह ग क एक मजदरन पर कर एक कगर दख य प नक सचन द।व सर न दस उछल प । ' प क ज द ज नत ह?' ड टरन य-म ध पछ । उनक समझम नह रह थ क रतम अठ रह ब स ट न चक पर मडक जस य भ नह ढढ सकत थ, सरन क नस कस ज न लय और उसस भ ब य उ ह इस ब त पर थ क पर मडस नकल व ल व यस ब म र मजदर क उ ह न अपन उस घ सक रसस जसपर उनक कहनस ह ड टर क स हस पर ण कर रह ह, चटक बज त अ छ कर दय । उस तणम स क भ व त अभ तक त उ ह नह मल सक थ । ' स य ब त ह ?' सरन हसकर ड टरक ओर दख । 'म भ उ ह व नक स त क अनस र क म करत ह, ज ह मझस पवक दरण य अ व क न थर कय ह?' ' क त इतन स लत , इतन न द एव इतन मगल सय स भवत: उ ह भ नह ह ।' ड टरक वरम थ, य य य य नह । ' न य ह प ब प य म ह!' 'ओह, प यह कहन च हत ह क मन बहत प य कय ह?' सर खलकर हस प और उसक ल व प मझ इतन

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य , इतन स लत और इतन न द अन य स ह ह ज य करत ह।' 'य द स नह ह' ड टरन थरत पवक कह - 'त म स क भ क रण नह दखत क प उस व धक रसस च क स करन म स ल ह गय, जब क उसक इस य गक स ब धम पक प हलस कछ भ न नह थ और प र स य नक तथ च क सक ह भ नह । स थ ह म ज क एक ड टर ह और इधर द स हस उस पर य ग कर रह ह, स अवसरपर उसक उपय गक ब त स च भ नह सक ।' 'तम ठ क कहत ह ' सरक म ग भ र ह गय थ 'इसक क रण ज मर समझम त ह, वह त ह अ ध व स पण एव अव नक ज न प ग ।' ' र भ म उस ज ननक उ सक ह।' ड टरक स थ दसर स थ भ उस क रणक ज ननक उ सक ह उठ थ। 'तमन कवल अ ययन कय ह और उन प तक य स त क क य- म ल न चल प ह ।' सर कहत ज रह थ । ' क त प तक य स त क समझनम कह पर भल ह रह ह, य गक म यह ब त कभ कभ बहत दरस त ह त ह। कभ त इतन दरस क रस य गक लए समय ह नह रह ज त ।'

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कुछ क्षण वे रुक गये और िफर थवताः कहने लगे 'िकन्तु मेरे िवषय में तमु ने सनु ा होगा िक मैं बचपनमें ही मात-ृ िपतहृ ीन हो गया था और मझु े प्रोफे सर मैक्सवेलने पाला था।' ाऄपने ाअचायथका नाम लेते समय वद्च ृ का कण्ठ भर गया और ाईन्होंने नेत्रोंसे रूमाल लगा िलया। उनक पर क प स बठकर ह मन सब कछ स ख ह।' ग द सरन क पवक सम कय - उनक बटस उ ध ल जस म न य उनक जत क स करत समय ह थ म लग लत थ , बस वह मर प य ह । वह मर य , मगल एव न दक उ प न करन व ल ह । मर स ह व स ह।' सरक सहक र तथ द न छ न यपवक दख क वह सस य ड टर उन ल ग क उपह सक र -र च त कय बन उस रतपर घटन क बल बठ गय और उस ब सरक बटक प सस द न ह थ स रत उठ कर अपन पर चहरपर उसन मल लय ।

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ब ॥ 'जब ाऄन्ताःकरण िनमथल हो जाता है तो ाईसमें थवयां रृदय िथथत प्रभक ु ा प्रितिबम्ब प्रत्यक्ष हो जाता है।' महात्मा ाअनन्दकन्दजीने समझाते हुए कहा-' भगवद्ङशथनके िलए एकमात्र यही मागथ है। मिलन ाऄन्ताःकरण प्रभक ु ो प्राप्त करे गा, ाआसकी ाअशा व्यथथ है। 'तब य भ इन व न क स मख नह त?' ज सन कक! ' स नह , क त व जगतम हम वह दख प त ह ज हम र भ तर ह!' मह म ज न पन प करण कय - 'अथव य समझ ल क हम र दय जतन नमल ह त ज त ह, हम र न म उतन ह नमल एव स म त ज त ह। जसक अ त करणम मल ह, उसक म भ मल रहग और मल स भल उन म य त तक क कस दख सकत ह?' 'अ त करणक कस ह ?' व भ वक थ क उपर सम ध नक प त यह उठ। ' म इसक लए अनक उप य बत य गय ह। अनक म ग ह। ज जसक अ धक र ह , उस उस क अवल बन करन

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च हय।' प थ क मह म ज बहत ग ल-म ल उ र द रह थ और व इस स छटक र च हत थ। 'तब मझ इस क र पछन च हय क म कस उप यस अत क ?' कत अ य त घल मल थ । वह सद मह म ज क सम प रहनव ल म थ । और उस स न सक च ह गय थ । 'भय , यह क म ग क ह! उस ग क ज मम क अ धक रक परख सक।' मह म ज क वरक न त बतल रह थ क व अ य धक सक चत हए ह। 'ग वह ह सकत ह ज एव मद द न ह । यह त तम ज नत ह ह क म - नक स ब धम क र ह और स धन भ मन कय नह ह।' ' प त ट लन च हत ह।’ हसत हए कत न र पछ 'अ छ , पन वत: यह थ त कस क ?" ‘यह थ त? इस थ तस त ह र य अ भ य ह?' मह म न ग भ रत स पछ -'तम मर इसस पहलक ज वनक स ब धम कछ ज नत ह ?' कत त य , यह क भ नह ज नत क मह म न दक दज क न ह, कह क ह, कस ज तक ह। बहत पर न ब त ह जब नमद -त रक इस अमर म ल ग न एक ह -क

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ल ब क ण-वण प क त क ल इस वट-व क न च प थरक ल पर बठ दख थ । लोग कहते हैं िक उस समय इन महात्माजीको देखकर बहुतोंको सन्देह हु िक वह चोर या डाकू है। कुछ लोगोंने सताया, गािलयााँ दी और मारा भी। बड़ा दाःु ख हुाअ ाईत्पीड़कोंको जब हैजेके प्रकोपके समय उस साधु परुु षने ाईनके घरोंके लोगोंकी, ाईनकी प्राणपणसे सेवाकी। बार-बार वे ाईच्च थवरसे 'ाअनन्दकन्द' कहा करते थे, ाआसीसे ाईसका नाम ाअनन्दकन्द पड़ गया। वैसे ाऄपने सम्बन्धमें कुछ पछ ू े जानेपर वे सदा हाँसकर चपु हो जाया करते थे। ज त व मह म स-प स क लए प म सन, ण व थ म प रच रक और सद स पर म द त थ। उनम ध कभ नह दख गय । कट म स ह थ ; क त वह सद उ सग करनक तत रहत थ । इस स ण क म तक ल ग स त दवत म नत थ । ' प य ज मस ह स ह?' कत म कतहल जग उठ । 'कथा बड़ी लम्बी है और अब मझु े नाहतकरको देखने जाना है।’ महात्माजीने कहा- ‘ाईसके ज्जवरका ज तीसरा िदन है। ाऄताः कलपर ाआसे रहने दो।’ एक परू ी भीड़ महात्माजीके साथ वहााँसे िनकली और ाअगे लोग ाऄपने-ाऄपने मागथसे पथृ क् होने लगे। (२) 172

'तमु ने डाकू ाऄभयिसहां को देखा है?' महात्माने पछ ू ा। ‘देखा तो यहााँ सम्भवताः िकसीने न होगा' एक तरुणने कहा'िकन्तु बचपनमें मैं ाईसका नाम बहुत सनु ा करता था। इधर बीस वषथसे ाईसकी कोाइ बात सनु नेमें नहीं ाअयी।'तरुणको यह प्रश्न ाऄसांगत लगा था। वह जानता था िक महात्माजी व्यथथ चचाथ नहीं करते और ाईनके समीप यिद कोाइ िकसी व्यिक्त या घटनाकी व्यथथ चचाथ चलाता है तो वे ाईिद्रग्नसे हो ाईठते हैं और प्रसांग बदल िदया करते हैं। ाआसीसे वह शांिकत हो ाईठा िक उस भयांकर डाकूने कहीं िफर िकसीको सताया या सतानेकी धमकी तो नहीं दी। वट व क सघन न ल भ छ य म, मलक च र ओर बन व तत व दक पर ज ग मयस लप थ , त च म चट इय पर ज पय ल ग बठ थ। म यम मगचम ड ल मह म न दक दज स न थ। उनक क टम मगचम लपट थ । म एव जट ओक क क ण- त म त थ। अब भ उनक र र सग ठत थ तथ सप म स-प य चमक रह थ । उनक म त एव ग भ र थ । उनक तजपण क स मख न स ध नह ह सकत थ। वह ज कर मन व भ वक त ह ज य करत थ । स-प सक ग व क ल भ क कल ह क न क न सम च र मल चक थ क मह म ज अपन पवव सन वग। अत: पय य वह गय थ। नह त द -च र य स 173

अ धक कभ ह वह दख य नह प त ह। अपन द नक ज वनक भ रस म नवक ब झल क ध इतन कह अवक दत ह क वह द घ एक त- तक न द ल । 'ह अब इधर बहत व स अपन रत स प र ण प गय ह। मह म ज न उस स मख बठ त णस कह ज कल भ कत थ । वह बड भयकर ड क थ । उसक सहचर तक उसस डर करत थ। उस दय करन त य ह नह थ । न उसन ण म न और न ब ल-व । पत नह कतन म हल ओक उसन लट ह ग । ह य उसक लए एक थ । वस त तम सब भ वन-प ओक ह य क करत ह ह । वह इस क रम मन य तक ब गय थ ।’ 'तब य प उस ज नत ह?' कत क मनम कतहल ह । त ओम क न स ह न लग । ल ग न अनम न कय क अव य मह म ज क उपद और य नस ह उसन डकत छ ह ग । ल ग व स दखत रह थ क ग वम क कस क कछ अपर ध कर दत त मह म ज वत उस म कर न पहच ज त। बग यवक क व चटक बज त स ध कर लत थ। यह जक कत -च र म इसन जल क ट ह और र ब क बन उसस रह न ज त थ । प क ज र थ । ज वह भगत बन गय ह।

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'म कह चक ह क अब उसन अपन सब कक य छ दय ह और स य बननक य नम ह।' मह म ज न कह । ‘वह भल य स य बनग ?' त ण त नक हस । 'वह कह रहत ह?' उस यह पत थ क मह म ज यह ब त नह बत वग। 'य द वह त ह र स मख ज य त तम य कर ग?' कछ मसकर त हए उ ह न पछ । 'हम इतन ल ग ह ' त णन कह -'वह हम र कछ भ बग नह सकग । हम उस पक लग और प लसम द दग!' 'उसन बग न त छ ह दय ह ।' मह म ज न पछ 'तब भ तम उस प लसम द ग? उसक लए अब भ दस हज रक पर क र सरक र दनक तत ह।' 'पर क रक लए नह !' त ण ज नत थ क वह ल भस न ल नह रह सक ह। ‘ य यक लए उसक स थ यह यवह र करन ह च हय ।' ' य य?’ मह म ज ज रस हस प -‘तमन ज कछ कय ह इस ज म म और अनक ज म ज कय ह ग , य द सव उसक य य करन लग? अपन लए त तम उस दय मय कहकर म च हत ह और दसरक स थ य य कर ग?' तरुणने लज्जजासे मथतक झक ु ा िलया। महात्माजी कहने जा रहे थे। 'ाऄभयिसांह तम्ु हारे सामने बैठा है। मैं ही ाऄभयिसांह हू!ाँ ! मैं तम्ु हारे न्यायको िसर झक ु ाकर ले लाँगू ा। ' ओ, मैं थवयां चलता हूाँ 175

थानेपर!' सच वे उठकर खड़े हो गये। लोग भौंचक्के से रह गये ाईनकी समझमें ही नहीं ाअया िक ाईन्हें क्या करना चािहये । (३) सभ क दय ह त ह और न भ ह त य ? एक स भ ह ज दयह न क तक नयम पर भ सन करत ह । जसक सकतपर ज प ण ल भ वत, वत एव पल कत ह ज न म समथ ह त ह। प लस सब-इ प टरन प कह दय क-' प च ह क भ ह , अभय सह नह ह सकत। और य द ह भ त म पक गर त र करन क अपन म नह प त ।' जनक द न क इ प टर ह नह , ब स हब भ 'क ब र चक ह और उन ल ग न भ स दह नह कय ह, उस वह कस गर त र कर ल? स सम च र छप नह रहत, पर इसक लए टक रक बदल उस परस बध ह मल । इस उस अ त क रण ह म नन ह ग । 'एक दन अभय सहन ब क हटकर (सम पक सबस ब र स) क सचन द क त ह र यह कल र हम सदल बल पध र रह ह। व गतक स म क पम दस सह मल।'मह म ज ल ट य थ और उस बट व क न च उस दनस कह अ धक ल ग क ब चम व अपन पवव सन रह थ ।

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'भ क हटकर-अभय सह ज नत थ क वह प लस बल नक स हस नह करग ।' मह म ज क वर भर ज रह थ । 'कवल च र-प च स थय क स थ वह र क अधर ह त ह ठ बजक लगभग वह ज धमक ।’ त नक ककर व कहन लग-'उस दन वह ब भ थ । उस लक क रण मह भ न मदव पध र थ और उनक अभगस जनत धम-चत य ह चक थ ।' महात्माजीने नेत्र पोंछे , भीड़से बाहर वह श्रद्चामय िजसे तच्ु छ तथकर कायर समझता था, ाईसे िमला और ाईसने डाकूके करोंमें एक थैली देते हुए कहा था 'ाऄभयिसांह, कीतथनमें बाधा पड़े, ाआससे पवू थ ही तम्ु हें चले जाना चािहये।' िकन्तु वह मधरु ध्विन उस अपिवत्र कानोंमें भी जा चक ु ी थी। ' मैं भी कीतथन सनु ाँगू ा!' ाऄभयिसहां ने थैली लौटायी नहीं; पर ाईसे उस सन्तके चरणोंमें चढ़ानेकी बात सोच ली। उस मख ू थको पता नहीं था िक वे चरण ित्रभवु नकी लक्ष्मीको ठुकराकर इस मच ां पर ाअये हैं। मह म व ल ह त ज त थ। ‘ र य ह स बहत नह कहन ह। र ढलनपर भ छटन तक ड क प छ ख रह और भ हटत ह वह उन चरण तक पहच । उसन उनक रज म तकपर लग य और एक णम वह कछ-क -कछ ह गय । दसर दन त स यक ल यह न दक द इस बटक न च पहच चक थ ।' 177

लग यम थ-'एक दन कछ घ ट म इतन ब प रवतन!' उधर मह म क न झर रह थ और व कह रह थ-' भ , र द न न ह ग?' कस न प छस द त हए कर कह -' न मदव मह दव रह ह।' मह म च क कर ख ह गय । दरस कस ब भ क क ठ- व न करत ल क झक रक म य गजत रह थ‘ म व ल!'

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ब ॥ 'तब पक दसर वव ह कर लन च हय। ह थ क त ब कक ध र-ध र ठ कत हए प डतज न कह 'अभ पक अव थ ह य ह ह। ल ग क पच स पचपन तक द करक प ह त बर बर दख ज त ह। दर य ज य, बगल म सठ मट मल क ह दख ल जय न।' प डतज क मख ब द ह न व ल नह थ ; पर त उ ह न त ब क मखम ड ल द थ , ठ कप टकर चटक भर कर और उस द त तथ ओ क ब च म दब य रखनक य नम लग रह थ। ‘दसर द त म नह क ग ।' सठ र मज वन द सन ख न वरम कह -' र ध ह ग त ह ज यग और नह त प क इ छ ...।' कहत-कहत उनक न कछ भर य थ, पर प डत ज अपन सत क प क थकन उठ कर न ल क ओर मख झक य थ। उ ह ल त नह ह । ' र ध त ह ग ह , पर प थ भ त क व त ह । प थ भ त करन च हय। प अपन ओरस सब उप य कर ल और स लत न ह त भ य।’ प डतज न अपन लटर-पटर पग सभ लत हए कह - 'इतन ब य, इतन ल म और 179

इतन म न क भ गनव ल त च हय! अ तत प ड दन व ल न ह ग त कस क म चलग ।' सठज क प ड-द त क त उतन व यकत नह थ , ल कन एक त तल ब ल , डगमग पग हसत हए भ ल मखक उनक म नस-न सद दखत रहत थ और सठज उस ग दम उठ कर पचक रनक य कल रहत थ । य ब च स उनक सहज नह थ । कस भ ब लकक व ब मस ग दम उठ त थ। ल कन यह व स य उ ह ब लकम म वक लए और भ कल कर दत थ । ‘ पक कछ करन नह ह ग । बस 'ह भर कर द जय ।' प डतज अपन व त वक उ यपर गय । 'म सब ठ क कर लग । ब स दर ल क ह। प लख ह, स ल ह। प सक ह ह। पन त दख भ ह ग , वह तलक दक न करन व ल ज ह...!' एक त मखम प क भर गय थ और दसर प डत ज मज खल थ। व दख भ लन च हत क उनक व य क कछ भ व प भ ह य नह । 'अब वव ह त य क ग ।' सठज न म तक न च झक लय और बह क प न पलटत हए कह - ‘ल ग य कहग!' 'ल ग कहग अपन सर!' प डतज न भ प लय क सठज क भ तर धकर-पकर ह रह ह । ' प य क नय ब त करन ज रह ह। ल ग त त न-त न, च र-च र कय बठ ह! मज ल 180

ह क क अगल उठ द।' प डतज ज म गय थ और उनक वर पचमम पहच गय थ । 'स त ह; पर जकल हव बदल गय ह।' सठज न दब वरम कह - 'य सभ -स म तय और अखब रव ल ज न य य लख म रग।' ' प भ कह क कहत ह।' अपन क ण-वण द त वल क छट द त करत हए प डतज न मख पर उठ लय थ , जसम त ब कक प क कतक भ त न कर। 'अर य सब त टक प न तक भकत ह। इनक मख त सहज ह ब द कय ज सकत ह।' सठ ज ज नत थ क यह उ र मलग । व मक ह गय। 'अ छ , त अब न रयल लकर ग !' प डतज झटपट ख ह गय। व अवसर प हच नत थ। अब व ठहरन व ल थ नह । (२) 'बट , मर एक ब त म न ग?' मरण- य पर प व न कह । ' क जय!' द न ह थ ज कर यवकन अपन उ सक न उस बझत मखपर ग य । ' नह , सल ह!' व न थर न स दखत ह कह - ' म इस कतन म नत ह, स ज नत ह । इस क मत दन और इसक 181

रहत दसर द ....!' क ठ क गय । व क न प क ओर म । वह ससक रह थ । 'कभ नह क ग पत ज !' यवकन द न ह थ स चरण पक और न क ब ध ट प । सरक द हन ह थ द म दक व द दन उठ ; पर गर प । सठ र मज वनद स क प उठ। ग पर लटत ह उनक पर लग व ल च पर प और उपर य न क स मख घम गय । उ ह न च ह क न वह स हट ल, क त न त म न वह चपक गय थ। 'तम य थ? कतन दयन य द थ त ह र ? मन त ह य दय , प य और ज म त बन कर अपन सव व द दय !' म न वह च उनस ब र द म कह रह थ - 'उसक तम मझ यह बदल दन चल ह ? कह गय त ह र त ? तम व सघ त कर ग हम र स थ? स थ ह उस सरल , स व क स थ भ ज त ह दवत म नत ह? उस क घर, उस क स प क व म बनकर तम उस यह पर क र द ग? य द वह सरल न ह त , दखत नह ह क घर-ज म त क प न क सवक बनकर रहन ह त ह? तम उसक स ज यक उस यह बदल द ग?' 'न , न , स नह ह ग ।' सहस सठज क मखस नकल गय । कतन स दर ह वह!' दसर ह ण एक ब -ब न व ल य वनस भर ह चचल मख ख क स मन गय । 'कस 182

अ ह ह, कतन चपल ह!' सठ ज य उस ल क क न य ह मक टहलत ज त समय दख करत थ। वस भ उस दख कर व क त हए बन नह रहत थ और अब त ब त ह दसर थ । 'क न भ गग इस स प क ?' ज जस सचमच उ ह स प क उ र धक र ह मलन ज रह थ । 'एक घटन चलत ब लक, द उ वल दत लय , सठज वभ र ह उठ। मन-ह -मन उ ह न ब लकक उठ कर ग दम लय । ‘ य सख ह ज वनम य द एक ब च भ न ह । परल कम प ड दनव ल भ त च हय? ज इतन प डक व यकत उ ह और कभ त त नह ह थ । ' ण न रयल लकर वग !' उ ल ह कर उ ह न स च - 'भल णक , य हए न रयलक , उस भजनव ल प रव रक और उस कम र क अपम न य अधम नह ह ग ?' अपन ह मनक इस नव न तकन उ ह सन दय । 'तम व सघ त कर ग?' र च पर गय । नय न स घरत ह म न वह पछ रह थ । ब त स सठज न उधरस हट ल ; ल कन उसक व द म न सचमच क न म गज रह थ। ' य च द बचन ह?' भ व अब और नह च त द खत !' मन मन पछ । 183

'म कछ नह ज नत !' झझल कर सठज न ड ट दय । उनक मन क मम नह लग रह थ । । ‘सठ ज , सरक बहत स त ह। कछ स द ...' दल ल कह रह थ । 'भ म य सरक !' सठज उठ ख हए। उ ह न पग उठ कर सरपर रख और न च म टरम ज बठ । भ तर मन म गम त म क न - स ह रह थ । (३) ‘ग दव!' न य क भ त, क त न यस कछ पव ह सठज अपन पज क कमरम चल गय थ। सह सनपर म न र यणक भ य म त क य व एव वण भरणस स जत वर ज रह थ और न च कस स धक स दर मम म ह प प-प जत, ब -स च थ । सठज उस च क चरण क प स म तक रखकर ट- टकर र न लग। द न ओर धपद न स सग धत धम उठकर कमरक पण कर रह थ । म लक एव प टलक भ न सर भ मनक स न कर रह थ क त सठज क अ त ज घर म प न क दखकर और भ त ह उठ थ , स म पर पहच चक थ । सहस व म तक उठ कर हस प । उ र यस ह न प छ ड ल । 'ध य भ!' पन ग द ह कर उ ह न उस च -म तक चरण म ण म कय । इतन उन चरण म ह, यह व कभ 184

अनभव नह कर सक थ। इतन कलत स उ ह न कभ उनक मरण भ त नह कय थ । 'न च बठकम प डत भ ल न थ ज बठ ह!' प न न रक ब हरस दख लय क सठज स य -पज कर चक ह त उसन ब क मल वरम सचन द । 'सन त !' ल टत प न क मसकर त हए सठज न पक र 'प डतज न रयल ल य ह। उनक मह म ठ करनक ब ध कर ल !' व बर बर हसत ज रह थ। 'कस न रयल?' बच र क समझम ख क प थर न य । 'तलव ल सठ ग प लद सक ल क दख ह?' सठज न और हसत हए कह - 'उस क न रयल!' 'ज ओ, त ह त हस ह सझत ह।' वह ल ट प । ' य , य प -वध बन न य य वह ल क नह ?' सठज न पछ । 'प हल प भ त ह !' सठ न न कछ क ण वरम कह । 'म भ द म दरद क ब ल कक ग द लन ज रह ह।' सठज न अबक ग भ रत स कह - 'उसक ल क ह ग त त ह एक छ ट स -म न खल नक मल ज यग । क प त नह ।' 'सच?' प स कर प न न ह थ पक कर पछ 'हस त नह करत? तम त उनस ज न य मख म रहत थ।' 185

'वह ब त नह रह । ज मर ब प य जग ह। ज ह प हल ब र ग दवक चरण क अ तरम द न प य ।' सठज न कह - 'अब वह म ह नह रह । दयक न अब सब दखत हअ छ प डतज स न रयल ल ल।'

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' व म ज , पक कभ अ स न ह त नह दख । य पक ध त ह नह ?' ब सक चस मन पछ । ' ध कसपर यग न र यण? सभ त उस अ खल रक व प ह।' ब न ध वरम उ र मल । रजन क उस नभत न रव एक तम, भगवत भ ग रथ क भ य तटपर अ थक मन हर मलक सम प उस प ण- ल पर प सनस त त तम क सम न व थर, अपलक, त स न थ। पणच क स मखस त उ वल करण क क म उनक तज मय लल ट चमक रह थ । गग क 'हर हर' तथ सदर वन तस त उलकक यद -कद कक व न वह क तक भ वत करन म समथ न थ । घरपर भ स कह -सन ह गय थ और उ गम म ज न छ कर गग कन र टहलन नकल य थ । दरस ह इन त ण त पसक द न हए और म म प । व भ क टय स एक त तटपर च दन म बठ थ। पहचत ह च त ह गय । उ ग ज त रह । ण म करक सम प भ मम ह बठ गय । 'तम कभ अपन यह क कल टरपर उसक स मख धत हए ह ?' उ ह न पछ । ' स कस स भव ह?' मन स म उ र दय । 187

'यह इस लए स भव नह क उसक स मख रहनपर त ह उसक क न रहत ह और तम ज नत ह क तम उसक क ह न नह कर सकत?' उ ह न कह । 'ब त त स ह ह ।' मझ व क र करन प । ' व क वह अध र सब कह ह और सवद स मख रहत ह। उस पर कस ध सकत ह? उसक स मख दसरपर भ ध कस कय ज सकत ह?' मझ ब मस व समझ रह थ स भवत व ज न गय थ क म धत ह कर घरस य ह। ' ध कट ह य न ह , ह त त ह ह । यह दसर ब त ह क मह न क स मन कट न ह कर वह द ख दत ह।'मन न सक च अपन क उप थत कर द । 'दख , क म और ध पर पर भ ह!' उ ह न कह - ध त ह इस लए ह क पहल क म चक ह । तम क क मन रखत ह , कछ च हत ह और वह नह ह त , इस लए त ह ध त ह।' ब सरल ढगस बत य उ ह न । 'तब य पक मनम कभ वक र भ नह त ?' मन क मक व अथ ह लकर पछ । यव व थ म वक र न न मर लय अ त ब त थ और व म ज क अव थ अभ पत स ह त ह। ' वक र और क मन एक ह ब त ह । क क मन ओ क तम वक र कहत ह और कस भ इ छ क म क मन ।' उ ह न 188

सग बदल नह । 'क मन अ यक लए नह ह त और यस त छक लए नह ह त ।' व त नक क। ' भख र स ट ह नक ब त नह स चत और नर कछ प न नह च हत । क मन सद क - यक लए ह त ह।' उ ह न ज कछ कह -चपच प व क र कर लन प । 'य सब भ ग अ य त त छ ह। इसक लए क मन कस ?' स भवत व अपन स ब ध म कह रह थ। ' जनक स ह नह ह, उनक स - क स भ वन कह ? र उनक लए क मन य उठग ?' म भल इसक य उ र दत । र अ धक ह रह थ । मर ध कभ क दर ह चक थ । अत ण म करक म घर ल ट चल । (२) हम ल ग उ ह व म ज कहत ह । व स य स ह क नह , स म नह ज नत । कभ ग प हन दख नह । एक ट टक क प न लग य रहत ह। कट म एक तखत ह, उसपर मगचम प रहत ह। ज म म ट क बल रख लत ह और गन ब तत ह कस क द ड लत ह। ग तक क बठन क लए कछ चट इय और द त न त बय भ ह। हम ल ग क लए व चर प र चत ह। इस ग वम त उनक ज म ह ह। मरण नह य ब त ह , क ब ब त नह थ , व घर- र छ कर बपत ह गय। उनक बहत र य । छ ट 189

भ न बहत द धप क , उनक क पत नह लग । अपन स ल भरक ब चक भ उ ह म ह नह ह । पर एक यग ब द अच नक गग कन र घमत हए यह इस व म नकल। सब ल ग न ह कय , म न गय। यह क टय ग वक ल ग न बन द ह। व अब भ भ ह करत ह। हम ल ग न बहत च ह क ब र -ब र स हम भ जन पहच दय कर, भ क हठ थ क घरस र ज भ जन य कर; पर स धक हठस सब ह र ह। भ त अकल ह। घरक क म-क जस उस अवक कम मलत ह। अवसर मलत ह क टय पर पहचत ह। ल कन ल क त सद वह बन रहत ह। भगव न वस प सभ क द। इतन सव क अपन ग क भ नह करग ? सभ क व स ह चल क वह भ उनक य ह कर स ध ह ज यग । उसक बच र म बहत र त ह। और कर भ य सकत ह? ल क मन करनस म नग थ ? ज कट पर एक दरक नव न स जन पध र थ। व म ज न न करन गग - कन र चल गय थ। नयम नस र अन प भ स थ गय थ । यह एक तम म उन स जनक व म ज क प रचय द रह थ । व म ज गय। उठकर नव ग तकन चरण म म तक रख । बठनक लए कहकर व क टय म चल गय। उनक लग ट 190

ध कर, त बम जल लकर अन प प छ न न करक ल ट रह थ। 'अर, स प।' ज रस प छस द य । हम सब द । बरक प स जह घ स ब गय ह, अन प पर पक बठ थ । त ब एक ओर प थ । उसक मख भयस ववण ह चल थ । मन झककर दख परक अगठक पर द त लगनक च थ और कछ क ल प न -स बह नकल थ । दखत-दखत स र ग व उम प । क झ - क करन लग और क कछ प सकर लग न लग । उस उठ कर हम ल ग कट पर ल य थ। खब घ पल य गय । जस ज कछ त थ , सबन य न कय । बर बर लहर रह थ । मखस झ ग नकल रह थ । र र क ल प त ज रह थ । उसक म सरक क ख ल पछ ख रह थ । उसक दन दख नह ज त थ । व म ज एक ब र य थ; पर एक दखकर व र चल गय और अपन च क पर ज बठ। अ तत: वह ह ज ह न थ । क लक ह थस क न कसक बच सकत ह? ल कन वह ल क कतन मस, कतन स र त- दन एक करक इनक सव करत थ । इ ह क इकल त प थ और उसक म य पर भ उ ह भ

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र कनक म नव?

व यकत त त नह ह । कस ह व दय यह

(३) 'य पक द ख भ नह ह त ?' स नह , झझल हटस मन पछ । अन पक ज तरह ह चक । म उधरस नव ह कर यह य थ । म ज नत थ क इस समय व म ज अकल मलग। ' कस अभ क न ह नपर य न मलनपर द ख ह त ह।' उ ह न त वरम कह -'यह त क अभ रह ह नह ।’ 'तब य स धओक दय प थरक ह त ह?' मर र दब न रह सक । 'नह त , स त त अ य त सदय ह त ह।' उ ह न म दमतम उ र दय -'क ण व ण लयक सम प ज कर कस भ दयम कठ रत कस रह सकत ह?' 'अन पक लए पक ब दय य थ न?' मन यग कय । र न मय द क व मत कर दय थ । 'ओह! एक ब र खलकर हस व । 'त ह र दय र र तक स मत रहत ह। अन प मझ बहत य थ , पर य ह त उस परम यक सम पत ह त ह। मन कह दय ' क ण पणम त' र दकर य द ख और इसस ब दय भ य ह ग क

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कस क उस सव क चरणम च दय ज य ।' ब स न ह रह थ व । ' प प हल त स नह थ। यह वद त इस प र थ तम मर समझम नव ल नह थ । व म ज क ह य मझ च नह , यह प कह दन च हय । म ज नत थ क उनक स थ तक करक ज त नह सकग । 'प हल म स कस ह त ।' उ ह न कह - मझम भ क म ध द द थ और मझ भ सस रक स र द ख उस प म ह त थ जस सबक ह त ह।' ' र अब य ह गय ।' मन उत वल स पछ । ‘र क अ धक र तभ तक रहत ह, जब तक क नह ह त । क और अ धक र तथ त ज य भय- म द एक स थ नह रह सकत।’ उनक वर ग भ र ह गय । ‘जबस मन गर-चरण क रण ल और उनक प य-चरण क नखम णय त वह कट ह , य सस रक सब द ख-द भ ग गय। मन उस दन नव न ज वन प य ।’ द न ह थ ज कर व कस अ तक ण म करन लग। मर म तक अपन प उनक चरण पर झक गय ।

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॥ ' य य ' ' य ' भ मम म तक रखकर अय य न उस जट ध र स धक ण म कय और सकत प कर प सम ट ट टक टक क ख चकर बठ गय । धन जल रह थ और उसक सम प ह क बल बछ कर उसपर व भ म ल ङग स ध बठ हए थ। र मच रत-म नसक प थ ख ल जट थ उस क स थ। ' ज प इस अध ल क प छ य प ह?' स ध पर द ह अध ल ब र-ब र दहर रह थ। ' म नसज क ख लत ह यह अध ल म य और यह उठ क र मच रतम नसक ग व म ज न म णकम ण क उपम य द ? उ वल क म ण य नह बतल य ? म णक त ल ल ह त ह।' स धन कह । ' र य क ब त य नम य ?' अय य क पत थ क अपव अथ ब वल ण ढगस य कर लत ह। इनक अथ क ज मलन क ठन ह। 'तभ त इस क व कर रह ह। ब नद य ह ज इसक प कर। वस त पत नह कतन ब र इसक प ठ कर 195

गय ह ग ; पर ज कस बहत ब प यक उदय ह थ । क ह और ग -चरण क मरण कय ।' स ध पल कत ह रह थ, म न उ ह सचमच म णक मल गय ह । ' य म सम ध न सन सकग ?' अय य न इधर उधरक ब त क बदल क मक ब त क । ' र म म अ नब ज ह। वह सम त कम-ज लक भ मकर दत ह और अ नवण ल ल ह।' स धन कह 'इस वणस यक क रण र मच रत म णकम णस उप मत ह । सबम बहम य म ण-म णक ह ह त ह।' 'मन त सन ह क ल ल।' अय य न कह । 'द न एक ह व त ह। ब म णकक ह ल ल कहत ह!' स धन बतल य -'भगव न र मभ सयव ह और सयक र न म णक ह ह। इन सबस ब एक ब त ह। अनर ग, म यह र ग ह नक क रण अ ण म न ज त ह। म णकस उपम दकर ग व म न र मच रतक म व प बतल य ह।' 'यह ग और कट य कह गय ।' अय य न कय । 'दख न, यह र मच रतक कतन ग ढगस म- व प कह दय और सयम णक तम ह यह भ कह दय क र मच रतक अथ सयव र घव क च रतस ह। भ गव र म (पर र म) अथव य दव र म (बलर म)क च रतस नह ।' स धन सरल व ण म समझ य । 196

' कटक भ क त पय ह?' र ह । 'ह न, कछ सग व णत नह हए ह। उनक सकत कर दय ह। ल कन व सकत प ह।' स धन इस क र कह म न अय य भ उतन ह र म यण समझत ह, जतन प । "जस?" अन भ और करत भ य ? इ य - ब य॥ ब मधर वरम झमत हय स धन अध ल ग कर कह । दरस ढ ल और करत लक व न रह थ । झ झक झनक र सन य प रह थ । ज मगलव रक स य क मक ल ग कट पर कर र म यण ग न करत ह। अय य न उठकर ट ट बछ न र भ कर दय । (२) ज त मह र जक कथ ह ग !' र म यणक प च द ह ग कर ब द करत हए एकन त व कय । ढ लक उत र ज रह थ और झ झ, करत ल ल ग न एक थ नपर रख द थ । रहल ब द कर दय गय और कप म व त करक थक सरस लग कर ब द रहलक पर ह रख दय गय । 'ह , मह र जज ! कछ त सन व ह ।' दसरन ह कय । 'म प - लख त ह नह , य कथ सन ग ?' स ध स य ह कह रह थ। दसर ह द प तक तक उ ह न प ठ ल दख 197

थ । एक दन अ य पकन ज प ठ-पज क त पन प क ण म कर लय । स सग तथ अ य सन र मच रत-म नस उ ह क ठ कर दय थ । 'वह च प ब च म ह रह गय थ ।' अय य न कह 'उस क अथ ह ज य।' थ म ह अय य न पछल चच सबक सन द । सबक स म लत उ क ठ एक ह गय । स धक भल र म-चच म य नन नच? इ इ ब इ स घन इस टक क कहकर तब र भ कय - ‘प क लए पत क न म ह लन स म य नयम ह। पत क न मस ह प पक र ज त ह। त न भ इय क ल क क म त ओक न कह कर उ ह क कह गय ; पर त लव-क क र मभ क न कहकर म त क न मस बत य गय ।' इतन भद त सभ क समझम गय । 'य द न प 'स त -ज य' ह। इनक उ प , प लन तथ णम पत क कछ नह । म त न ह इ ह पणत अथ त ज म दकर बन य ह।' स ध कहत ज रह थ-'ज प पत क घर उ प न ह त ह, उस पत क न मस और ज न न क घर उ प न ह त ह उस म त क न मस पक रत ह।' 'लव-क न न क घर त हए नह ।' एकन क क ।

198

'जब मह व म कन जनक न दन क प कहकर म म थ न दय त वह लव-क क न नह ल ह गय , र य भ व म कज वदहर जक म थ।' क क ग भ र नह थ , अत सम ध न पर ह गय । ' र य ह ?' कत वय नह ज नत थ क वह य पछ रह ह, पर त इतन वह समझ रह थ क अध ल क य य अभ उसक समझ म नह य । 'लव-क क स त -ज य कहकर ग व म ज न यह त बतल दय क व अवध-ध मम उ प न नह हए और न वह उनक ल लन-प लन तथ ण ह । उनक उ प क समयस ण तक म त स त कह अ य रह ।' स धन कह । 'कह रह , यह त नह बतल य ?' अय य न पछ । ग व म ज उस द खद सगक वणन नह करन च हत थ।' स ध कहत गय-' इस स उ ह न 'बद-पर नन ग य' कहकर बतल दय क यह सग इतर य थ म ह। वह स उस ज न लन च हय!' 'यह त कट च रत नह ह ?' र क क गय । ' कट ह त ह ।' स धन सरलत स कह - 'पर ण दम ब व त रस यह च रत व णत ह और जब वद-पर ण क न म लकर कह दय त ग य रह ?'

199

' प इतन अन ख अथ कस नक ल लत ह?' अय य न त कर लय , पर त ल ग क च अब बठ रहन क थ नह । धस अ धक ल ग ख ह चक थ। ढ ल र चढ द गय थ और ल ग न भ करत ल, झ झ उठ लय। 'जय जय स त र म' क एक स थ व न लग कर व वह स सक तन करत हए मक ओर चल प । (३) 'सभ थ एक क रस वद ह ह। र र मच रतम नसक त यक अध ल एक म ह। सबक चल ज नपर भ अय य बठ थ । बछ हए ट ट उठ कर समटकर कट क क न म रख दय गय थ और धन क प स स ध बठ थ। इस एक तम ब नहस समझ रह थ। 'प नस और य करणस इन थ क व त वक अथ समझम नह त । लग म कह ज त ह। सम धम जस म क अथ जस पर कट ह , वह उसक दखनव ल कह गय ।' स ध बतल रह थ। 'यह ब त समझम नह य ।' अय य न कह । 'तम त न य र म यण-प ठ करत ह । कभ स नह ह त क मनक खब एक ह नपर कस अध ल क व च भ व सहस दयम कट ह ज य? स धन पछ । 'कभ -कभ स ह त त ह। ब न द त ह उस समय, क त वह भ व भ 200

कछ ह दनम भल ज त ह।' अय य न अपन अनभवक ब त कह । 'उस समय रत ह भ व ह स च अथ ह। वह अथ प न य य करण स नह सकत । कस य व त: म नस जस म मक थक तभ समझ ज सकत ह, जब उस क र यक प दयम रत ह ।' स धन भल क र त पवक समझ य । ' क त वह भ व भ त ठहरत नह ।' क बन रह । ‘एक णक एक त स ज भ व उठ ह, वह कस ठहर? दयक म लनत क क रण वह ध र-ध र ल ह ज त ह ।' स धक उ र प थ । 'तब य उप य?' अय य न नर य द म पछ । इस क ठन क नव रण उस दख य नह दत थ । 'जब ज म-ज म तरक प य क उदय ह त ह त इस ओर च ह त ह। ब स भ यस जब भक महत कप ह त ह त कह स मलत ह और उनक चरण म क हन त अ य त ह भ य दयस ह त ह।' स धन अपन व सक कट कय । ' ग -चरण म - व स ह नपर त वत दयक अ धक र दर ह ज त ह और तब अथ क व भ वक रण ह त ह । बन ग -चरण क दयम क त हए र मच रतम णकक द न नह ह त।’ 201

202

इ ॥ 'अलख! ख ल द पलक!' प उडरक सम न त क मल भ मस सव ग ल मग, तथ टकक म णय क म ल ओस व च ढगस ग र कय, क टम बध घघ ओस झनक र करत, ख पर लय, झ ल क भ म क चटक ल ग क ब टत ट क न म ब म ए प हन एक न थप थ स धन रपर वजद। य य स ध भ क लए बहत कम ठहरत ह । अत ब ब करद सज न कह -'ज द स स धक भ द द ।' प डत ह रन र यणज वय उठन च हत थ, क त ग क सक चक क रण ठठक-स रह। उ ह न एक प म ट लय और रपर गय। 'तम बहत ख न दख य प त ह ।' ख परम ट लत हए भ स धक प डतज क मखपर ह थ । ‘ज , सस रक जज ल प छ लग रहत ह।' हरन र यणज न ग ल-म ल उ र दय । अ तत एक स धस और कह भ य ज सकत ह?

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'तम सक च कर रह ह ।' स धन ख परक ट बड -स झ ल म ड ल दय । उस गद क झ ल म पत नह कतन तह थ और उनम य - य भर थ । स धक झ ल ह ठहर । 'मह म ओस सक च क हक ?' प डतज न सरल भ वस कह -' क त गह थक प छ प य रहत ह ह, उनक सनकर पक भ खद ह ह ग ।' 'ग क कप स स ध उस दर भ त कर सकत ह?' स धन हसत हए कह । उन द म अहक र नह थ , स कहन क ठन ह ह। 'मह प कर य नह सकत?' प डतज एक स सग स ध-सव और ध मक क तक य थ। ' क त सबक अपन -अपन र ध भ गन ह च हय। त छ न र व तओक लए मह म ओस थन करन मझ ठ क म ग ज न नह प त ।' 'तम स धक म अ व स करत ह ?' स ध प - लख त स वस ह थ । उसन प डतज क ब त क अथ यह समझ । उस स न पह कभ क मल भ त नह । 'नह , भगवन!' ह थ ज कर प डतज न कह व ज नत थ क इस स द यम य स ह त ह। य भ स धक अपम न करन उ ह कह अभ थ ? 'तब त पछत ह, बत ओ!' क वर थ । 204

'सरक र लग न नह द सक ह, उसक द व ह गय ह । एक मह जनन अपन णक ड कर ल ह और सनत ह क जकलम ह इस मक नक कक न व ल ह। घरम तथ द ब च ह और ह थम कछ ह नह ।’ प डतज क न स अ क बद गरन लग । ' कतन क व यकत ह त ह?' स धन इस क र पछ , म न अभ झ ल म-स नक लकर द ह दग । 'स सरक र लग नक और ब रह स मह जनक द प त रहनक लए घर और खत बच ज व। पटक लए भगव न कछ करग ह और य भख भ त द -च र दन रह ह ज सकत ह।' अ प छत हए उ र मल । 'ड हज र, अ छ । चल भ तर चल?' स धन उ रक अप नह क । वह दरव जस भ तर मक न म चल प और प डतज चपच प प छ ह लय। (२) 'यह मर ग दवक स द ह।' स धन झ ल म-स एक प तलक ड बय नक ल । उ ह न मझपर बहत स न ह कर मझ दय थ और इसस तम र धक बनन बग नक खल दख सक ग!' 'इसम ह य ?' ब ब करद सन पछ ।

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' म न म ज कर व धपवक व- स करक तत कय ह अजन ।' स धन बतल य - 'यह स धन ब भयकर ह और वह अनक क रक भय उप थत ह त ह। य द त नक भ डर त म य य प गलपन न त ह।’ 'तम र ग दवन इस वत स कय थ ?' ब ब ज क क कतहल नह ह और प डतज भ त थ। 'व स मह प थ । उनक अ त र इतन भयकर स धन और क न करग ?' स ध सगव कह रह थ -'इसम ब स वध न रखन प त ह । ब ब म स यह ह त ह । त नक भलस ण सकटम प सकत ह।' 'ल ग क च ह व च ह।' ब ब ज न कह 'दख ज त ह क ल ग कवल मन र जनक लए हम लय च त ह, रस स मन करत ह तथ और भ अनक भयकर कम करत ह, अत य द कतहलक व भत ह कर त ह र ग दवन इस स कय त क य नह ।' 'और य , व स मह प थ। उनक भल इसक य व यकत थ ?' स धन कह -' उ ह न त खल जस कय । म ज य और स कर ड ल ।’ 'इसस तम य करत ह ?' ब ब ज न पछ । 'अभ तक त कछ कय नह ह, ज करन ह।' स धन ड बय ख ल उसम क ल -क ल अजन थ । अपन द न 206

ख म लग नक उपर त उसन ब ब ज क भ लग न च ह । उ ह न अ व क र करत हए प डत हरन र यणज क ओर सकत कय । 'लग ल ' क ह न नह ।' प डतज लग न नह च हत थ; पर ग क द समझकर उ ह न दसर ब र प नह क । यह य ? कह द ह थ न च, कह दस ह थ प व म च र ओर य ह ग ह। वणम ए ह और कह रजत । कह स नक ट ह और कह च द क प । भ ण और र न क ढर ह थ न- थ नपर । कह य खल ह ह, कह स दक म ह, कह तहख न म ह, कह म क प म ह और कह त य प तलक कल भर हए ह ब द प भ बहतर ह। द ह थ, च र ह थ अ तरस स पण प व ज न क न च त ह, सब कह य ह य भर ह ह । 'इस कवल तम ख द ल ।' स धन एक ल ट-जस त प क ज द ह थ न च थ , सकत करत हए कह । वह वण-म ओस भर ह थ । प डतज न ब ब ज क ओर दख । व म कर रह थ । य उ ह न मन नह कय । कद ल मग य गय और प डतज न वय ह थ लग य । द ह थ ख दन म लगत कतन कतन दर ह? गडढ खदकर तत ह गय ।

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ल ट कह गय ? वह त ख द ह म क न च ह। म हट य गय , ल ट वह भ नह । वह च र स थ न च भ मम दख य प । जस उसम ज वन गय ह और वह इन ल ग स वस ह भ ग रह ह जस क र स प । द त न ह थ ख द गय, र र वदस लथपथ ह गय । कद ल ककर प डतज बठ गय। स धक मख सख गय । ब ब ज हस रह थ। (३) 'त ह र ग न य यह अजन इस लए दय थ क तम ग क ख द ल ?' ब ब ज न पछ ! ‘ र धक खल दखनक उ ह न कह थ ।' स ध समझ गय थ क ग क व य समझन म उसस कह भल ह ह। ' व - नय त क खज नम च र नह चल सकत ।' ब ब ज न बत य - 'यह अप र क स क दस भ मस त ह त य ह। जसक र ध सम ह , व मट गय । उनक क पर म प गय अथ त व सच लकन उस ढक दय । अब जसक र ध जस यक करनक जब ह ग , उस समय उस य क यह मलग । इस क र ख दनस त च र क य नक द ड मल करत ह। त ह द ड नह मल , यह बहत समझ । य त हट दय ह ज यग । इ ह य क र क लए त त क एक व य न य ह। व उसक र करत ह और जसक र ध वह ह, उसक नपर दकर छ प त ह।' 208

'तब इस अजनस ल भ?' स धन पछ । 'क तक!' ब ब ज न बत य -'इतन य प व म प ह। इतन प व ख द ज त ह, पर वह मलत नह । ल ग द न-द:ख ह। र ध सम ह त ह वह भ मम दब दय ज त ह। अ धक र क ह मलत ह। यह सब सव क क तक ह। इ ज ल ह। इस दख और उसक म हम क मरण कर । इस क तकक दखन क लए ह यह ह। यह ब त त ह र ग न तमस भ कह भ थ ।' ' यथ ह मन इस लय !' झझल कर स धन वह ड बय स मनक धन म ड ल द । 'यह क तहलपर नभर ह ।' ब ब ज कह रह थ- 'तम य द हम र लए यथ ह त ब च य दखनक च रखन व ल क लए त यथ नह । ह , इस लनक बदल य द तम ग दवक चरण क ह अतरम लत त इस यक बदल त ह च र ओर भगव च रत च त म ण दख य प करत और तब य प त प नह करन ह त ।' प डतज न ग दवक चरण पर म तक रख । उस व अपन अ ओस भग रह थ और द सह क ब म लए प टमन उनक र खटखट रह थ । एक स प न यजम नन उनक पछल व कय अन नक ल कर लय थ और उस क द ण यथ। 209

य - -

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य य य वनक उमग, र क उ णत , प य क क व क र ह नह करत । ल ग न कह - 'इस पह पर क तज त नह ह। प पर ज नक स हस न कर। ' बन खतरक स भ वन उठ य य क न द य ?' अपन स थय स उम न कह । स थ भ सब नय उ क थ और उ ह अपन अ ण पर पर व स थ । सभ इस य क कतहलस त थ। 'हम अभ द घ टम ल ट वग।' ल ग म कहकर वह च र यवक क ट ल पह क न चक सघन झ य म व ह गय । घर हए ब दल एव झ त स कर क उप उ ह न ल ग क डर वन ब त क सम न कर दय थ । व क दन-म गम क च और जल भर थ , अत: नग पर ह चलकर य च र यवक छ म ल दरस - यह पहच थ। भ पदक घ र व म उ ह पह च नक सझ थ । म ण न जब उनक ब त सन , हसकर कह दय -'यह ब द मय क सनक ह।' पह स ध ख ह। इधरक ल ग उस ड गर कहत ह। स भवत क ठन च य क क रण उसक ठठ च ट तक 210

लक ह र भ नह पहचत । एक म ल ख , च पहल और पर क ठनत स त न च र एक च ड ह ग । एक क तक म न रजस । प रज त लन लग थ । भ न सग ध रह थ । गल ब लक प प दखन म ब स दर लगत थ, क त लक क ट? पर पह इस कट ल लत स ढक थ । खरक जगल थ और थहर तथ समरक पड भ कम न थ। पह ब स क झरमट इन कटक म नब ध ख थ। 'गल स ख र अ छ ह ज द मन ख च लत ह।' क , क वक इन 'चम च थ लनब ल ख र ' क पत ह त । स थम एक क ह थ और त न य छ छ य लय थ। य छ य पह च न म टक लग नक क म त ह और उतरत समय त इनक अ नव य व यकत ह त ह । झ य ब गय थ । म ग छ न ह गय थ । वस क म ग थ भ नह । कमर-भर च घ स लग थ । पर म चभ क ट उ ह बर बर प न नह द रह थ। लक क ट न न कवल द मन ख च , अ पत भल क र व कम ज तथ ध तय न एव पर और ह थक र स र जत ह नम लग हए थ। परस व गय । इ दव ब -ब बद म प प प प-व करन लग। प द म तक सबन न न कर लय ।

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घ स क कचलत, क लग प ण पर कस क र ह थपरक बल कदकर, ब स क ज तथ कभ -कभ हर सग रक म ट ड लक पक कर व च रह थ। छ य स यथ स भव लक लत ओक हट कर नकलन थ । कभ -कभ क ह बज उठत थ । लगभग पर पहचकर ह सर उठ नक अवक मल । एक-द उद बरक व और र खरपर । ग ल व क भ तर भ वद- व ह चल रह थ । पर खरक झरमट ह मल। एक सद घ ल ब हरक नकल थ । पर बठत ह सब प र म स थक ह गय । न दक म र सब उ ल सत ह उठ। पर पह चरण क न च गय । त म कस न चक प तथ ब -ब अजगर स जल पण न ल बखर थ। तघन कभ चरण क न च और कभ उनक अपन भ तर करक त ज रह थ। अपव थ वह य । क त य च ज न क सम न उतर न भ सरल ह? 'यह च र बज स ह एक क ल च त लगत ह।' न चक ल ग न बतल य थ । एक ख ह थ खब ल ब और उसक रपर कछ सख हड डय प थ । 'च त मल ज य त जगलक य सव ग पण ह ज य!' उम न कह । व ल क डर नह । उ ह न ख हम प थर म र, उसक रक छ य स खटखट य । व नह ज नत थ क इस क ह और छ य स च तक य बग ग । 212

जगलम उ म वचरत च तक उनम स कस न कद चत ह दख ह । य द उसम च त थ , त वह उनक स हसक ग ह स भवत म तक झक कर भ तर म न बन रह । जस म गस गय थ, वह भ ख चक थ । क अधलग च न पद-पदपर सलनक भय उप थत कर रह थ । एक प थर परस ल क त न च ( ग) चलनव लक भयकर च ट लगग । सलनपर हडड क भ पत न लगग । बठ कर, ह थ क सह र ध र-ध र उतर रह थ। इधरक जगल म सअर बहत ह त ह। थ न- थ न पर उ ह न घ स ख दकर बठन क भ म बन य थ । व स ग ल भ मम उनक त ज पद- च बन थ। 'स भवत सअर क झ ड ग ह गय ह!' एकन कह मरण ह य 'द र क ब च म व र ह जल प सकत ह, क त द व र ह क ब च र जल नह प सकत ।' स भ दलम ब च और म द क ह नपर दलप त और भय नक ह उठत ह। च तक भल भय न लग ह , ल कन सअर क पद- च भ त कर रह थ । 'इन ब स क झरमट स छटक र ह त अ छ !' उम न सन रख थ क र छ इन ब स क झरमट म रहत ह। बघलख डक पह म र छ ह य नह -यह उस त नह थ । इधर ख ह भ बर बर मल रख थ और ब स घन ह त ज रह थ। व र ह क च अब भ खल थ न म मल ज त थ। 213

'य द पवतपर ह अ धर ह ज य।’ एकन सहज भ वस ह पछ दय । ‘तब त सलकर गरनस अ छ ह ग यह कह र यत त करन ।' उम न कह - 'हम र कप सख ह गय ह, कस ख हम घसकर बठ रहग।' य द उसम स च त नकल प ?' एकन क क । 'इन व र ह , र छ तथ इस ख ढ लपर च तक मलनस अ छ ह, वह ख हम मल।' उम न कह 'वह वह भ त उछल-कद नह सकग ? सबन अनम दन कय । वस ग त सबक ब गय थ । त पद जतन त त स उतर सकत थ, य न ह रह थ । य ख उत रपर ह थ क सह र इस क र उतरन थ , जस कएम र स पक कर उतरन ह । 'ह भगव न!' उम न द घ स ल । प क सघनत कम ह गय थ । सबन न च दख -अभ प व दर दख य प त थ । ध उतर थ । पर क पर ड ल -प मम अ णम बखर गय थ । भगव न दव करक ब ब ल हत वण भ ह न ह चल थ । ब मन हर य थ ; क त उस मन हरत क दखनक बदल नव ल अ धक र न क स मख स क र ह उठ ।

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'ओह, तम ल ग सक ल ल ट य, ब अ छ ह ।' स धन कह -' म तम ल ग क लए च त कर रह थ । वह सन , च त दह रह ह।' सचमच जगलम एक भय वन व ज गज रह थ । पह क न च, य कहन च हय क द पह य म यम एक म दर ह वणन थक । एक क च चह र-द व र ह उसक च र ओर । एक क च कट और एक रस घरक छ पर। ब च त ल ब ह। एक व णव स ध वह रहत ह। ट , नमक, च न और घ स थ थ । भ ड त कर र ट क बन नक य जन चलन लग थ । स धक एक स हस मल रय वर रह थ । उनक लए नमक ब र क प सकर पर एक छट क एक तवपर उनक धन पर ह रम न रख दय थ । क लम त ह ध नमक गम जलम अभ और ध त पल दन ह ग और वर स भ ग ज यग जस गधक सरस स ग । नमक भन रह थ और ब त ह रह थ । 'सचमच जब अ धर ब न लग त म बहत ह घब गय ।' उम न कह - म ज नत थ क सभ मर ह भ त घब गय ह, क त सभ ब स हसक ब त कर रह थ और इस क र अपन त रक कलत छप नक य न कर रह थ क इस क र दख वट ह सह , स हस त ह। य द एक कलत कट करग त दसर और भ हत स ह ह उठग और र इस भयकर पथपर 215

चलन सवथ अस भव ह ज यग । चलन थ ; य क ख हम घसकर रहनक ब त मखस कहन जतन सरल थ , क य पम प र णत करन नह । र अब ख ह भ त पर छट चक थ और च नक स हस अब कसम थ ?' 'तम ल ग न अन चत स हस कय थ ?' स धन कह । 'अव य ह हम र अनम न ठ क नह थ ।' उम न कह 'इस पह क लए अ धक समय च हय थ । हम दरस च न लग थ।' 'भल स जगलम भटकनक व यकत ह य ?' स धक ल क क यह सनक पस द नह थ । वस व भ म न चक थ क इतन स हस उनम नह ह। 'प घन ह गय, झ य म सघनत न म ग कर दय । अ धक र ब त ज त थ और हम अब कछ ह थ गक व त प दख य नह प त थ ।' उम न स धक प क उ र दन उ चत नह समझ । वह अपन सगपर कहत चल 'हम र सकट ब गय ! म ह इन ल ग क कहकर स थ ल य ह, अत मर उ रद य व मझ और भ कल करन लग ।’ ‘भय , अब कभ स य क रम न प न ।स धन सह नभ त पण वरम कह -' ज त भगव नन ह तम ल ग क र क ह ।’

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‘ह ; र त भगव नन ह क ह।’ उम क वर वर भ ह गय । ‘अ तत मन अपन पर र क, एक णक लए न ब द कय और ब क तरत स मह र जज (ग दव) क चरण क मरण कय ।’ सहस ग चलनव ल- न कह -'न ल मल गय । परस न ल गरत ह । उसम प भ थ ह, झ डय क न रहनस क भ कछ थ । हम प थर पर स ज बर बर धलत रहनस स थ, क नह थ सरलत स उतर य ।' ‘ओह, ग चरण क मरण।’ स धन वभ र ह कर कह उन चरण क नख क द य- य तक मरणस त भव टव म भ म ग मल ज त ह त ह पवतम मल गय त य य?

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