चन्द्रयान उत्सव : भारत का चन्द्र मिशन - चन्द्रयान-३ को जानें [1.7S]
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अक्तबू र 2023 अि न 1945 PD 1T RPS

© रा ट्रीय शैिक्षक अनुसध ं ान और प्रिशक्षण पिरषद् 2023

िवषय

चंद्रयान उ सव

1.0

1.1

एफ

हमारा चद्रं यान

1.2

पी

मेरा यारा चदं ा: रानी की खोज

1.3

एम

चद्रं मा पर भारत का अिभयान

1.4

एस

चद्रं यान: चद्रं मा की ओर यात्रा

1.5

एस

1.6

एस

भारत के चद्रं िमशन की खोज चद्रं मा की ओर और उससे आगे

1.7

एस

भारत का चद्रं िमशन: चद्रं यान-3 को जान

1.8

एचएस

चद्रं मा पर भारत

1.9

एचएस

भारत का अतं िरक्ष िमशन: चद्रं यान

1.10 एचएस

चद्रं यान-3 की भौितकी

अपना चद्रं यान से संबंिधत गितिविधय म भाग लेने के िलए: िविजट कर: www.bhartonthemoon.ncert.gov.in प्रकाशन प्रभाग म सिचव, रा ट्रीय शैिक्षक अनुसंधान और प्रिशक्षण पिरषद,् ी अरिवंद मागर्, नई िद ली 110 016 द्वारा प्रकािशत तथा गीता ऑफ़सेट िप्रंटसर् प्रा. िल., सी–90, एवं सी–86, एवं सी-86, ओखला इडं ि ट्रयल एिरया, फे ़ज़–I, नई िद ली 110 020 द्वारा मिु द्रत ।

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अिधक जानकारी के िलए: ईमेल: [email protected] पीमईिवद्या आईवीआरएस: 8800440559

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भारत का चंद्र मिशन: चंद्रयान-3 को जानें माध्यमिक स्तर

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चद्रं यान उत्सव

चंद्रयान-3 क्या है? छात्र उत्क सु ता से अपनी विज्ञान की शिक्षिका के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि आज कुछ नया सीखने को मिलेगा। कक्षा में प्रवेश करते ही उन्होंने घोषणा की, “आज, हम अतं रिक्ष की खोज की एक दिलचस्प यात्रा पर निकलेंगे!” यह सवाल पछू ते हुए उनकी आँखों में चमक आ गई “भारत की किस नवीनतम अतं रिक्ष पहल ने दुनिया को चकित कर दिया है?” रमेश ने तुरंत उत्तर दिया, “मिशन चद्रं यान-3।” रमेश द्वारा दिए गए उत्तर की सराहना करते हुए, शिक्षिका ने कक्षा में छात्रों को निर्देश दिया कि उनमें से जो चाहे मिशन के बारे में एक या दो तथ्यों के बारे में बताए और उन तथ्यों को जोड़ते हुए घटनाओ ं का वर्णन करें । छात्र बहुत उत्साहित थे। सुमन ने बताना शुरू किया, “23 अगस्त 2023 को जब भारत चद्रं मा पर उतरा तो उसने एक इतिहास रचा। इस तरह यह चद्रं मा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन गया, और सफलतापर्वू क चाँद पर उतरने वाले देशों के समहू में शामिल होने वाला चौथा देश बन गया।” फिर एक-एक करके छात्रों द्वारा मिशन के बारे में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए गए— प्रीत— “चद्रं मा की सतह पर उतरने वाले अन्य तीन देश हैं— अमेरिका, रूस और चीन।” अमन—“चद्रं यान-3 को लॉन्च व्हीकल मार्क -III (एलवीएम3) रॉके ट से लॉन्च किया गया था।” श्रीजा— “चद्रं यान-3 चद्रं मा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा; इसके चद्रं मा के दक्षिणी ध्रुव को चनु ने के पीछे चद्रं मा पर पानी मिलने की संभावना प्रमख ु कारण है। सर्यू द्वारा कम प्रकाशित होने के कारण दक्षिणी ध्रुव बेहतर जगह है। सर्यू के विकिरण से अछूता जमा हुआ पानी लाखों वर्षों में ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रों में जमा हो गया होगा, जिससे सतह पर या उसके आसपास बर्फ जमा हो गई होगी।” जोसेफ ने जैसे कुछ याद करते हुए कहा, “जब चद्रं यान-2 सफल लैंडिंग नहीं कर सका तो हमारे माननीय प्रधानमत्री ं ने उस परियोजना से जुड़ी टीम को प्रोत्साहित किया और इस बात पर जोर दिया कि विफलता से भी सीख मिलती है। उनसे मिली इस प्रेरणा ने हमारे वैज्ञानिकों के सक ं ल्प को दृढ़ किया, जिसकी परिणति चद्रं यान-3 की ऐतिहासिक सफलता के रूप में हुई।” रतन ने पछू ा, “लेकिन हम ऐसे मिशन क्यों करते हैं? उनसे क्या फायदा होता है?” जिज्ञासा से भरे छात्रों की दृष्टि शिक्षिका की ओर उठ गई िक वह इस बारे में बताएँगी, वे इसी बात की प्रतीक्षा कर रहे थे। 2

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भारत का चद्रं मिशन: चद्रं यान-3 को जानें

• • • •

शिक्षिका ने विस्तार से बताया, “चद्रं मिशन विभिन्न कारणों से महत्वपरू ्ण हैं— वे हमें चद्रं मा की सतह, भवू िज्ञान, संरचना और प्रमख ु तत्वों और खनिजों के वितरण का अध्ययन करने का अवसर देते हैं। इस तरह के अन्वेषण चद्रं मा के विकास के बारे में हमारी समझ को भी बढ़ाते हैं। चद्रं मा का भवू िज्ञान, ग्रहों और उनके उपग्रहों की विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए, पृथ्वी-चद्रं मा प्रणाली के प्रारंभिक वर्षों के बारे में सक ं े त प्रदान करता है। भविष्य के चद्रं अड्डों की परिकल्पना, विशेष रूप से बर्फ के रूप में पानी और अतं रिक्ष अभियानों की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए चद्रं ससं ाधनों का पता लगाना महत्वपरू ्ण है। यही नहीं, चद्रं मा खगोलीय अवलोकन के लिए एक अद्वितीय स्थल है, जो पृथ्वी की वायुमडं लीय गड़बड़ी से मक्त ु है। चद्रं मा पर तैनात उपकरण ब्रह्मांडीय घटनाओ ं के अभतू पर्वू दृश्य प्रस्तुत कर सकते हैं।”

गतिविधि 1 अपनी बात को िनष्कर्ष तक पहुचँ ाते हुए, शिक्षिका ने छात्रों को चद्रं मिशन के बारे में और अधिक गहराई से जानने के लिए प्रोत्साहित किया। चद्रं यान-3 के बारे में जिन समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित हुए थे, िशक्षिका ने उन्हें वितरित करते हुए कक्षा को तीन समहू ों में विभाजित किया और प्रत्येक को शोध और प्रस्तुति के लिए एक विषय प्रदान िकया। समहू 1— चद्रं मिशन का इतिहास समहू 2— भारत के चद्रं मिशन का संक्षिप्त इतिहास समहू 3—चद्रं यान-3 मिशन के घटक

छात्र समहू ों में बैठे, विषय पर चर्चा की, एक-दसू रे को समाचार पत्र दिए और समाचार पत्र पढ़ना शुरू किया। कुछ छात्रों ने शिक्षक से कंप्यूटर लैब में जाने और इटं रनेट पर जानकारी खोजने की अनमु ति मांगी। चकि ँू विज्ञान का पीरियड समाप्त हो चक ु ा था, इसलिए गणित के अध्यापक कक्षा में आ गए। छात्रों को चद्रं यान मिशन के बारे में जानकारी एकत्र करने में व्यस्त देखकर शिक्षिका ने छात्रों को गणित के पीरियड में भी अपना काम जारी रखने की अनमु ति दे दी और समहू कार्य में उत्तर देने के लिए उनके सामने कुछ गणित के प्रश्न रखे। प्रश्न 1 यदि पृथ्वी से चद्रं मा की औसत दरू ी लगभग 384,400 किलोमीटर है तो 1,600 किलोमीटर/घटं ा की औसत गति से यात्रा करने वाले अतं रिक्ष यान को चद्रं मा तक पहुचँ ने में कितना समय लगेगा? प्रश्न 2 एक रॉके ट का इजं न 2,000 किलोग्राम वजन वाले पेलोड (विस्फोटक शक्ति) को उठाने के लिए 20,000 न्यूटन का बल पैदा करता है। यदि पृथ्वी पर गरुु त्वाकर्षण बल लगभग 9.81/29.81m/s2 है, तो क्या रॉके ट ऊपर चढ़ने के लिए पृथ्वी के गरुु त्वाकर्षण बल से बाहर िनकल पाएगा।

छात्रों ने समहू ों में काम किया और समहू वार अपनी प्रस्तुतियाँ दीं। 3

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चद्रं यान उत्सव

समूह 1 चंद्र मिशन का इतिहास पृथ्वी का चद्रं मा सौरमडं ल का पाँचवाँ सबसे बड़ा चद्रं मा है और पृथ्वी से परे एकमात्र खगोलीय वस्तु है, जहाँ मानव ने कदम रखा है। चद्रं मा का पता लगाने के लिए 107 से अधिक रोबोटिक अतं रिक्ष यान लॉन्च किए गए हैं। यह पृथ्वी से परे एकमात्र खगोलीय पिंड है, जिसे अब तक मनषु ्यों द्वारा सबसे अधिक खोजा और देखा गया है। चद्रं मा मिशन विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे—



फ्लाईबाई मिशन इन मिशन को चद्रं मा की कक्षा में प्रवेश किए बिना या उसकी सतह पर उतरे बिना चद्रं मा के पास से गजु रने के लिए तैयार किया गया है। अतं रिक्ष यान आमतौर पर अपने निकटतम उपगमन के दौरान आक ं ड़ा प्रग्रहण (डेटा कै प्चर) करता है और वापस भेजता है। फ्लाईबाई चद्रं मा की सतह, वायुमडं ल (एक्सोस्फीयर) और चबंु कीय वातावरण के बारे में प्रारंभिक डेटा प्रदान करते हैं। लनू ा 1 (1959 में सोवियत रूस द्वारा) पहला चद्रं फ्लाईबाई मिशन था जिसने एक हेलिओसेंट्रिक कक्षा में घमू ते हुए डेटा को पृथ्वी पर तब तक वापस भेजता रहा, जब तक कि यह बहुत दरू नहीं चला गया।



ऑर्बिटर मिशन इन मिशन का लक्ष्य चद्रं मा के चारों ओर एक स्थिर कक्षा में एक अतं रिक्ष यान स्थापित करना होता है जिससे अतं रिक्ष यान लंबे समय तक निकटता से चद्रं मा का अध्ययन कर सकता है, इसकी सतह का मानचित्रण (नक्शा तैयार करना) कर सकता है, इसकी संरचना का अध्ययन कर सकता है और इसके गरुु त्वाकर्षण प्रभावों को समझ सकता है। 1960 के दशक में नासा द्वारा चद्रं कक्षीय �ृंखला (चद्रं ऑर्बिटर सीरीज), ऐसे चद्रं कक्षीय मिशन में से हैं, जो चद्रं मा के मानचित्रण और अपोलो मिशन के लिए सभं ावित लैंडिंग स्थलों को चिह्नित करने में महत्वपरू ्ण थी।



इम्पैक्ट मिशन इन मिशन में जानबझू कर एक अतं रिक्ष यान को चद्रं मा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त किया जाता है। इसका प्रभाव वैज्ञानिकों को उत्सर्जित मलबे का विश्ले षण करके चद्रं आवरण (रे जोलिथ) की संरचना का अध्ययन करने में मदद कर सकता है। इम्पैक्ट मिशन का उपयोग पानी जैसे पदार्थों की उपस्थिति की खोज के लिए भी किया जा सकता है। लनू ा 2 (1959 में सोवियत रूस द्वारा) किसी अन्य खगोलीय पिंड को प्रभावित करने वाली पहली मानव निर्मित वस्तु थी।



लैंडर मिशन इन मिशन का लक्ष्य चद्रं मा की सतह पर नियंत्रित ढंग से अवरोहण और उतरना (लैंडिंग) है। इम्पैक्ट मिशन के विपरीत, यहाँ लक्ष्य होता है सॉफ्ट लैंडिंग। एक बार उतरने के बाद, ये मिशन 4

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भारत का चद्रं मिशन: चद्रं यान-3 को जानें

सीधे चद्रं सतह का अध्ययन करने के लिए उपकरणों को तैनात कर सकते हैं और कभी-कभी चालक दल के मिशन के अग्रगामी के रूप में काम कर सकते हैं। लनू ा 9 (1966 में सोवियत रूस द्वारा) चद्रं मा पर सॉफ्ट लैंडिंग हासिल करने और फोटोग्राफिक डेटा को पृथ्वी पर वापस भेजने वाला पहला मिशन था।



रोवर मिशन ये मिशन चद्रं मा पर उतरते हैं और रोवर तैनात करते हैं जो चद्रं मा की सतह पर घमू सकते हैं। ये रोवर कई उपकरणों को ले जा सकते हैं, जो उन्हें चद्रं सतह पर कई स्थानों का यथास्थान विश्ले षण करने की अनमु ति देता है। ये स्थिर लैंडर की तुलना में बड़े क्षेत्र की खोज करने का अवसर देते हैं। लनू ा 17 (1970 में सोवियत रूस द्वारा) ने लनू ोखोद 1 को तैनात किया, जो पहला चद्रं रोवर था जिसने चद्रं मा की सतह पर चक्कर लगाया और डेटा और िचत्रों को पृथ्वी पर वापस भेजा। प्रत्येक प्रकार का मिशन चद्रं मा के बारे में हमारी समझ में बढ़ोतरी कर एक अद्वितीय अतर्दृष् ं टि प्रदान करता है और जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी का विकास होता है, इन मिशन की क्षमताओ ं और उद्देश्यों का विस्तार जारी रहता है। नासा (NASA) ने रोबोटिक रें जर और सर्वेयर अतं रिक्ष यान की एक �ृंखला का अनुसरण किया, जिसने जटिल कार्यों को अजं ाम दिया। इसी कारण 1969 में चद्रं मा पर पहले इसं ान के लिए चलना संभव हो पाया। अमेरिका और रूस के अलावा, चीन और भारत दोनों ने चद्रं मा पर सफलतापर्वू क मानव रहित तथ्य एकत्र करने वाले, लैंडर और रोवर की सॉफ्ट-लैंडिंग की है। दुनियाभर में इन मिशन की स्थिति के बारे में अधिक जानने के लिए आप निम्नलिखित वेबसाइट पर जा सकते हैं— (https://moon.nasa.gov/exploration/moon-missions/)

रोचक तथ्य 2023 तक 24 मनषु ्य पृथ्वी से चद्रं मा तक यात्रा कर चक ु े हैं। उनमें से के वल 12 लोग इसकी सतह पर चले (मनू वॉकर)। चद्रं मा की सतह पर अति ं म मानव यात्रा 1972 में हुई थी।

समूह 2 भारत के चंद्र मिशन का सक्ं षिप्त इतिहास चंद्रयान-1 (2008) चद्रं यान-1 भारतीय अतं रिक्ष अनुसंधान संगठन (‘इसरो’ ISRO) द्वारा लॉन्च किया गया यह भारत का पहला चद्रं मिशन था। 22 अक्टूबर 2008 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-पीएसएलवी) का उपयोग करके लॉन्च किया गया। इसके उद्देश्यों में चद्रं मा की सतह का मानचित्रण या नक्शा तैयार करना, उसकी खनिज संरचना का अध्ययन करना और बर्फ के रूप में पानी की खोज करना शामिल था। इसने चद्रं मा की सतह पर पानी के अणओ ु ं की उपस्थिति की पुष्टि सहित महत्वपरू ्ण खोजें कीं। 5

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चद्रं यान उत्सव

चंद्रयान-2 (2019) चद्रं यान-2 इसरो का दसू रा चद्रं मिशन था, जिसका उद्देश्य चद्रं अन्वेषण और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन करना था। 22 जल ु ाई 2019 को जीएसएलवी एमके III (GSLV MKIII) रॉके ट का उपयोग करके एक ऑर्बिटर, एक लैंडर (विक्रम) और एक लनू र रोवर (प्रज्ञान) के साथ लॉन्च किया गया। ऑर्बिटर महत्वपरू ्ण वैज्ञानिक डेटा प्रदान करते हुए, कक्षा से चद्रं मा का अध्ययन करना जारी रखता है। दुर्भाग्य से उतरने के दौरान लैंडर से सपं र्क टूट गया और रोवर के मिशन का समय से पहले अतं कर देना पड़ा। चंद्रयान-3 (2023) चद्रं यान-3 चद्रं यान-2 का अनुवर्ती मिशन है, जो चद्रं सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घमू ने की सपं रू ्ण क्षमता प्रदर्शित करता है। इसे 14 जल ु ाई 2023 को सतीश धवन अतं रिक्ष कें द्र (एसडीएससी), एसएचएआर, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।

समूह-3 चंद्रयान-3 मिशन के प्रमुख घटक चद्रं यान-3 में तीन मखु ्य घटक शामिल हैं— एक प्रणोदन मॉड्यल ू , एक लैंडर और एक रोवर। 1. प्रणोदन मॉड्यल ू — प्रणोदन (प्रोपल्शन) मॉड्यल ू ने लैंडर और रोवर विन्यास को 100 किलोमीटर (62 मील) चद्रं कक्षा तक पहुचँ ाया। यह एक बॉक्स जैसी संरचना थी जिसके एक तरफ एक बड़ा सौर पैनल लगा था और शीर्ष पर लैंडर (इटं रमॉड्यल ू र एडाप्टर कोन) के लिए एक बेलनाकार ढाँचे जैसी संरचना थी। प्रोपल्शन मॉड्यल ू का मखु ्य कार्य लैंडर मॉड्यल ू (एलएम) को लॉन्च वाहन कक्षा में प्रवेश से लेकर लैंडर के लैंडर मॉड् यल ू अलग होने तक ले जाना है। इसमें (एलएम) + रोवर चद्रं कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय इटं र मॉड् यल ू और ध्रुवीय माप का अध्ययन करने एडाप्टर (आईएमए) कोन के लिए, स्पेक्ट्रो-पोलरीमेट्री प्रोपल्शन मॉड् यल ू हैिबटेबल प्लेनेटरी अर्थ (पीएम) (एचएचएपीई) विस्फोटक शक्ति/ उपकरण है, जो स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री (एक तरह की शक्तिशाली तकनीक) चित्र 1: चद्रं यान-3 रॉके ट की समग्र संरचना भी है।

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भारत का चद्रं मिशन: चद्रं यान-3 को जानें

चित्र 2: प्रणोदन मॉड्यल ू के िवभिन्न दृश्य

चित्र 3: चद्रं यान-3 अतं रिक्ष यान का प्रक्षेप पथ

2. लैंडर (विक्रम)— विक्रम लैंडर का नाम ‘इसरो’ के पहले अध्यक्ष और भारत के अतं रिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया था। चद्रं मा पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर जिम्मेदार था। इसका आकार भी बॉक्स जैसा है, जिसमें लैंिडग के िलए चार पैर और चार लैंडिंग थ्रस्टर्स हैं जो प्रत्येक 800 न्यूटन का बल पैदा करने में सक्षम हैं। इसमें रोवर था और इसमें साइट (स्थल) विश्ले षण करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक उपकरण थे। लैंडर में चार वेरिएबल-थ्रस्ट इजं न हैं जो लैंडिंग के दौरान उतरने की गति को धीमा करने की क्षमता रखते हैं।

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चद्रं यान उत्सव

चित्र 4: रोवर और पेलोड के साथ विक्रम लैंडर

लैंडर का मिशन जीवन 1 चद्रं दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) है और रोवर सहित द्रव्यमान 1749.86 किलोग्राम है। लैंडिंग स्थल 69.373° दक्षिण और 32.319° पर्वू है। भारत के प्रधानमत्री ं श्री नरें द्र मोदी द्वारा लैंडिंग साइट का नाम ‘शिव शक्ति पॉइटं ’ रखा गया है। 3. रोवर (प्रज्ञान)— रोवर प्रज्ञान का नाम संस्कृत शब्द प्रज्ञान (जिसका अर्थ है ज्ञान) पर रखा गया है। कुछ चद्रं अभियानों में ऐसे रोवर शामिल हैं जो चद्रं सतह पर घमू सकते हैं। ये रोवर सतह की विशेषताओ ं का करीब से अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों से लैस हैं। वे अकसर सौर ऊर्जा से सचं ालित होते हैं और पृथ्वी से दरू से नियंत्रित होते हैं। प्रज्ञान रोवर एक छह पहियों वाला वाहन है जिसका वजन 26 किलोग्राम (57 पाउंड) है। इसका आकार (36.1 इचं × 29.5 इचं × 15.6 इचं ) है। उम्मीद है कि रोवर चद्रं मा की सतह की संरचना, चद्रं मा की मिट्टी में बर्फ के रूप में पानी की उपस्थिति, चद्रं प्रभावों का इतिहास और चद्रं मा के वायुमडं ल के विकास में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाएगा।

चित्र 5: सौर पैनलों द्वारा संचालित रोवर

4. पेलोड (विस्फोटक शक्ति)— चद्रं सतह और वायुमडं ल के तात्विक, रासायनिक और भौतिक विश्ले षण के लिए चद्रं यान-3 के ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के साथ भेजे गए विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों के बारे में नीचे बताया गया है— 8

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भारत का चद्रं मिशन: चद्रं यान-3 को जानें

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तापीय चालकता और तापमान को मापने के लिए चद्रं की सतह के थर्मोफिजिकल एक्सपेरीमेंट (ChaSTE)। रे डियो एनाटॉमी ऑफ मनू बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एडं एटमॉस्फियर (RAMBHA)। लैंडिंग स्थल के आसपास भक ू ं पीयता को मापने के लिए चद्रं भक ू ं पीय गतिविधि उपकरण (ILSA)। प्लाज्मा घनत्व और इसकी विविधताओ ं का अनमु ान लगाने के लिए लैंगमइु र जाँच (एलपी)।

क्या आप जानते हैं कि लैंडर और रोवर का मिशन जीवन के वल 1 चंद्र दिवस क्यों है? चद्रं मा हमेशा पृथ्वी की ओर एक ही मख ु रखता है, क्योंकि इसे अपनी धरु ी पर घमू ने में उतना ही समय लगता है जितना हमारे ग्रह की परिक्रमा करने में लगता है। चद्रं मा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में लगभग एक महीना लगता है (एक परिक्रमा परू ी करने में 27.3 दिन लगते हैं, लेकिन अमावस्या से अमावस्या में बदलने में 29.5 दिन (चद्रं चक्र) लगते हैं)। आशं िक रूप से इसकी विलक्षण कक्षा के कारण, आशं िक रूप से इसकी कक्षा के झक ु ाव के कारण, हम चद्रं मा को एक महीने के दौरान थोड़ा अलग कोणों से या एक समय या किसी अन्य समय चद्रं मा की सतह के कुल 59 प्रतिशत भाग को देखते हैं। सरल शब्दों में कहें तो चद्रं मा का के वल एक ही हिस्सा हमेशा पृथ्वी की ओर होता है, जबकि दसू रा कभी भी दिखाई नहीं देता है। पृथ्वी को अपनी धरु ी पर एक चक्कर लगाने में लगभग 24 घटं े लगते हैं। जिसमें से हम 12 घटं े सर्यू के संपर्क में रहते हैं और 12 घटं े अधं रे े में डूबे रहते हैं। यह पृथ्वी पर एक परू े दिन का चक्र परू ा करता है। इसी प्रकार, चद्रं मा का एक चेहरा एक चद्रं दिवस के लिए सर्यू के प्रकाश के संपर्क में रहता है जो पृथ्वी पर लगभग 14 दिनों के बराबर होता है। चकि ंू , चद्रं यान-3 के लैंडर और रोवर सौर ऊर्जा से सचं ालित हैं, इसलिए सभं ावना है कि वे 14 दिनों के बाद बिजली से वचित ं हो जाएँगे।

‘इसरो’ के अन्य ग्रहीय मिशन गगनयान-1— गगनयान एक भारतीय चालक दल वाला कक्षीय अतं रिक्ष यान है। इसका उद्देश्य भारतीय मानव अतं रिक्ष उड़ान (इडिय ं न ह्मयू न स्पेसलिफ्ट प्रोग्राम) कार्यक्रम का आधार बनना है। यह अतं रिक्ष यान के वल तीन लोगों के लिए बनाया जा रहा है। इसे संभवतः 2025 में लॉन्च किया जाएगा। इसी तरह, एजेंसी के पास जापानी अतं रिक्ष एजेंसी, जेएएक्सए (JAXA) के सहयोग से भविष्य में िकया जाने वाला एक और चद्रं मिशन है। लपू ेक्स या चद्रं ध्रुवीय अन्वेषण (लनू र पोलर एक्सप्लोरे शन) नामक यह मिशन 2024–25 के लिए निर्धारित है। इसके अलावा, 9

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चद्रं यान उत्सव

भारत ने अपना वेधशाला श्रेणी सौर मिशन भी विकसित किया है। चद्रं मा पर चद्रं यान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के कुछ दिनों बाद 2 सितंबर 2023 को पहला भारतीय सौर मिशन आदित्य एल-1 सफलतापर्वू क लॉन्च किया गया था। यह सौर कोरोनाग्राफ का उपयोग करके सौर कोरोना का अध्ययन करे गा। एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपिक उपकरण फ्लेयर स्पेक्ट्रा प्रदान करें गे जबकि सीटू पेलोड सौर घटनाओ ं का निरीक्षण करें गे। इसरो आने वाले दशक में न के वल चद्रं मा, बल्कि शुक्र, मगं ल आदि जैसे और अधिक ग्रहीय पिडं ों का पता लगाने की दौड़ में भी शामिल है। छात्रों के सभी तीन समहू ों ने परू ी कक्षा के सामने प्रस्तुतियाँ दीं। उसके बाद हमारे वैज्ञानिकों के ईमानदार प्रयासों के कारण चद्रं यान मिशन की सफलता, अन्य ग्रहों की खोज के बारे में उम्मीदें, आकाशीय पिंडों की प्रकृ ति, रोवर और लैंडर के डिजाइन आदि के बारे में छात्रों के बीच दिलचस्प बातचीत हुई। विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और भाषाएँ पढ़ाने वाले शिक्षकों ने भी इन प्रस्तुतियों को देखा और उनसे इस मिशन के गणितीय और सामाजिक पहलओ ु ं पर चर्चा की। विद्यार्थियों ने दिए गए गणितीय प्रश्नों को भी हल किया। • उत्तर 1: समय = दरू ी/गति = 384,400 किमी÷1,600 किमी/घटं ा=240.25 घटं े या 10 दिन और 0.25 घटं े (यानी, 10 दिन और 6 घटं े)। • उत्तर 2: गरुु त्वाकर्षण बल = द्रव्यमान x गरुु त्वाकर्षण = 2,000 किलो ग्राम×9.81m/ s2=19,620 न्यूटन। चकि ँू 20,000 न्यूटन > 19,620 न्यूटन, रॉके ट पृथ्वी के गरुु त्वाकर्षण से बाहर िनकल जाएगा।

प्रश्नोत्तरी प्रस्तुतियों के अतं में, विज्ञान की शिक्षिका ने छात्रों और शिक्षकों के लिए एक सरल प्रश्नोत्तरी तैयार की और सभी ने उत्साह के साथ उसमें भाग लिया। 10

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अक्तबू र 2023 अि न 1945 PD 1T RPS

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िवषय

चंद्रयान उ सव

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एफ

हमारा चद्रं यान

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पी

मेरा यारा चदं ा: रानी की खोज

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एम

चद्रं मा पर भारत का अिभयान

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चद्रं यान: चद्रं मा की ओर यात्रा

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भारत के चद्रं िमशन की खोज चद्रं मा की ओर और उससे आगे

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भारत का चद्रं िमशन: चद्रं यान-3 को जान

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एचएस

चद्रं मा पर भारत

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भारत का अतं िरक्ष िमशन: चद्रं यान

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चद्रं यान-3 की भौितकी

अपना चद्रं यान से संबंिधत गितिविधय म भाग लेने के िलए: िविजट कर: www.bhartonthemoon.ncert.gov.in प्रकाशन प्रभाग म सिचव, रा ट्रीय शैिक्षक अनुसंधान और प्रिशक्षण पिरषद,् ी अरिवंद मागर्, नई िद ली 110 016 द्वारा प्रकािशत तथा गीता ऑफ़सेट िप्रंटसर् प्रा. िल., सी–90, एवं सी–86, एवं सी-86, ओखला इडं ि ट्रयल एिरया, फे ़ज़–I, नई िद ली 110 020 द्वारा मिु द्रत ।

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