सामवेद-'सामवेद' को 'ऋग्वेद' का पूरक कहा जाता है. इस रूप में इस की महत्ता 'ऋग्वेद' से किसी
1,074 83 23MB
Hindi Pages 3649 Year 2014
ऋ वेद
डा. गंगा सहाय शमा
एम.ए. ( हद -सं कृत), पी-एच.डी.,
ाकरणाचाय
सं कृत सा ह य काशन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
© १९७९ सं कृत सा ह य काशन सं करण : २०१६
ISBN : 978-93-5065-223-7 VP : 1750.5H16*
सं कृत सा ह य काशन के लए व बु स ाइवेट ल. एम-१२, कनाट सरकस, नई द ली-११०००१ ारा वत रत
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपनी बात मने सायण आचाय के भा य पर आधा रत ऋ वेद का अनुवाद कया था. उस समय आशा नह थी क ाचीन भारतीय सं कृ त को जानने क इ छा रखने वाल को यह इतना अ धक चकर लगेगा. मुझ जैसे सामा य के लए यह गौरव क बात है. व ान्, चतक एवं मनीषी पाठक ने अब तक कसी ु ट एवं असंग त का संकेत नह कया है, इससे म अनुमान लगाने का साहस कर सकता ं क इस ंथ का अनुवाद, मु ण आ द संतोषजनक है. इस ंथ म ऋ वेद क ऋचा का वह अनुवाद दया आ है, जो अथ सायणाचाय को अभी था. इस अनुवाद का आधार सायण का भा य है. उ ह ने जस श द का जो अथ बताया है, वही मने इस अनुवाद म दे ने का य न कया है. मने अनुवाद करने के लए चार वेद म से ऋ वेद और ऋ वेद के अनेक भा य म से सायण भा य ही य चुना, इसका उ र दे ने म मुझे संकोच नह है. ऋ वेद भारतीय जनता एवं आय जा त क ही ाचीनतम पु तक नह , व क सभी भाषा म सबसे पुरानी पु तक है. सबसे ाचीन सं कृ त—वै दक सं कृ त—के ाचीनतम ल खत माण होने के कारण ऋ वेद क मह ा सवमा य है. म इस ववाद म पड़ना नह चाहता क ऋ वेद क ऋचा का ऋ षय ने ई रीय ान के प म सा ा कार कया था या उ ह ने वयं इनक रचना क थी. वैसे ऋ वेद म समसाम यक समाज का जस ईमानदारी, व तार एवं त मयता से वणन कया गया है, उससे मेरा गत व ास यही है क ऋ षय ने समयसमय पर इन ऋचा क रचना क होगी. सायण के अ त र ऋ वेद पर वकट माधव, उद्गीथ, कंद वामी, नारायण, आनंद तीथ, रावण, मुदगल, ् दयानंद सर वती आ द अनेक व ान ने भा य लखे ह. इनम कसी का भा य पूण प म उपल ध नह है. केवल सायण ही ऐसे व ान् ह, ज ह ने चार वेद पर पूण भा य लखा है और वह उपल ध है. सायण का जीवनकाल चौदहव शता द है. वह वजयपुर नरेश ह रहर एवं बु क के मं ी रहे थे. स आयुवद ंथ ‘माधव नदान’ लखने वाले माधव आचाय इ ह के भाई थे. कसी भी श द का अथ जानने म परंपरागत ान का ब त मह व है. सायण को ऋ वेद के परंपरागत अथ को जानने क सु वधा बाद म होने वाले आचाय से अ धक थी. यह न ववाद है. मं ी होने के कारण सभी पु तक क ा त और व ान क सहायता उ ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सहज सुलभ थी. सायण ने ऋचा के येक श द का व तार से अथ कया है. येक श द क ाकरणस मत ु प क है तथा उ ह ने नघंटु, ा तशा य एवं ा ण ंथ के उदाहरण दे कर अपने अथ क पु क है. इस कार सायण का अथ नराधार नह है. वै दक मं के अथ जानने के हेतु या क आचाय ने तीन साधन बताए ह: १. आचाय से परंपरा ारा सुना आ ान एवं ंथ. २. तक. ३. मनन. सायण ने इन तीन का ही सहारा लेकर अपना भा य लखा है. सायण क कोई धारणा अथवा जद नह जान पड़ती. कुछ अ य आचाय के समान उ ह ने सभी मं का आ धभौ तक, आ या मक या आ धदै वक अथ नह कया है. कुछ आचाय का यहां तक व ास रहा है क येक वै दक मं के उ तीन कार के अथ संभव ह. सायण ने संग के अनुकूल कुछ मं का मानव जीवन संबंधी, कुछ का य संबंधी और कुछ का आ मापरमा मा संबंधी अथ दया है. सायण के अनुसार, अ धकांश मं का अथ मानव जीवन संबंधी ही है. शेष दो कार का अथ उ ह ने ब त कम मं का कया है. इस कार एकमा सायण ही ऐसे भा यक ा ह, ज ह ने कसी वाद का च मा लगाए बना वै दक मं का अथ कया है. उनका भा य साधारण को वेदाथ समझने म भी सहायक है. इ ह सब कारण से मने अपने अनुवाद का आधार सायण भा य को बनाया है. इस अनुवाद के साथ ऋ वेद क मूल ऋचाएं भी द जा रही ह. हद म ऋ वेद के अ य अनुवाद भी ए ह, ज ह उनके लेखक ने सायण भा य पर आधा रत बताया है. म यह कहने का साहस तो नह कर पाऊंगा क उन सबके अनुवाद शु नह ह; हां, यह कहने म मुझे संकोच नह है क मने सायण का आशय प करने का पूरा य न कया है. ऋ वेद का वभाजन दस मंडल म कया गया है. येक मंडल म ब त से सू एवं येक सू म अनेक ऋचाएं ह. मने अनुवाद म केवल यही वभाजन दया है. वैसे येक मंडल कुछ अनुवाक म वभ है. अनुवाक सू म बांटे गए ह. संपूण ऋ वेद को चौसठ अ याय म वभ करके उनके आठ अ क बनाए गए ह. येक अ क म आठ अ याय ह. सायण ने ये सब वभाजन दए ह. उनके भा य म अ क एवं अ याय को ही मुखता द गई है. एक तो यह वभाजन कृ म है, सरे इससे थ का म होता है, इस लए मने इनका उ लेख नह कया है. सं हता अथवा भा य म येक मं के ऋ ष, दे वता, छं द और व नयोग का उ लेख है. ऋ ष का ता पय उस मं के नमाता या ा ऋ ष से है. दे वता का अथ है— वषय. यह दे वता श द के वतमान च लत अथ से सवथा भ है. ऋ वेद के दे वता सप नी (सौत), ूत (जुआ), द र ता, वनाश आ द भी ह. छं द से ता पय उस सांचे या नाप से है जस म वह मं न मत है. व नयोग का ता पय है— योग. जो मं समयसमय पर जस काम म आता रहा, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वही उस का व नयोग रहा. वै दक मं का अथ समझने म दे वता ( वषय) ही आव यक है. इस लए मने केवल दे वता का ही उ लेख कया है. अ धकांश सू म एक सू का ऋ ष एवं छं द एक ही है. कुछ सू म अलग-अलग मं के अलग ऋ ष एवं छं द भी ह. सभी वण के पु ष के अ त र कुछ ना रयां भी ऋ ष ई ह. मं के साथ ा ण, य, वै य एवं शू सभी ऋ ष के प म संबं धत ह. ा ण एवं य ऋ षय क सं या ही सवा धक है. वै य एवं शू ऋ ष एकएक ही ह. वै दक आय का समाज पूणतया वक सत एवं उ त समाज था. य द ऋ वेद म व णत बात को मानव जीवन संबंधी वीकार कया जाए तो आय का जीवन सभी कार से पूण था. ऋ वेद म कुछ व तु एवं पशुप य के नाम एवं वणन सा ात् प से आए ह और कुछ का उ लेख अलंकार प म आ है. वणन चाहे कसी भी प म हो, पर इतना स हो जाता है क ऋ वेदकाल के लोग इन सब बात को जानते थे. कुछ बात उ ह ने य दे खी थ और कुछ क उ ह क पना हो सकती है. कवच, लोहे का ार, सोने अथवा लोहे क नकद , सुस जत सेना, ढाल-तलवार, कारावास, हथकड़ी-बेड़ी, आकाश म उड़ने वाला बना घोड़ का रथ, सौ पतवार वाली नाव, लोहे का नकली पैर, अंधे को आंख मलना, बूढ़े का दोबारा जवान होना, जुआ खेलना, भचा रणी ी का र जाकर गभपात करना, कामुक नारी का संकेत थल पर आना, क या के पता ारा क या को अलंकृत करना, लकड़ी का सं क, घोड़ा चलाने का चाबुक, लगाम, अकुंश, सुई, कपड़ा बुनने वाला जुलाहा, घड़ा बनाने वाला कु हार, रथकार, सुनार, कसान, तालाब से सचाई, हल जोतना आ द ऐसी बात ह, जो वै दक आय को सभी कार वक सत स करती ह. कुछ लोग का ऋ वेद म भचा रणी ी, गभपात, ेमी और ेयसी, कामी पु ष, कामुक नारी, क या के पता या भाई ारा उ म वर पाने हेतु दहेज दे ना, अयो य वर का उ म वधू पाने हेतु मू य चुकाना, चोर, जुआरी, व ासघातक म आ द का उ लेख अनु चत लग सकता है. इन श द के वे सरे अथ करगे एवं त कालीन समाज म इन बात को कभी वीकार नह करगे. म वा त वकता बताने के लए उनसे मा चा ंगा, मेरा ढ़ व ास है क एक बु धान एवं वचारशील वक सत समाज म ये बात होनी वाभा वक ह. दनभर जंगल म चरकर घर को लौटती गाय, र सी से बंधे बछड़े का रंभाना, गाय का ध हना, छाछ बलोना, क चे मांस पर म खय का बैठना, च ड़य का चहचहाना आ द पढ़कर ऐसा लगता है क भारत के गांव म आज भी वै दक जीवन क झलक मल जाती है. नाग रकता का व तार एवं व ान क प ंच उसे वकृत कर रही है. आय मु यतया कृ ष जीवी एवं ाम म रहने वाले लोग ही थे. बाद म उ ह ने नगर भी बसाए, पर ऋ वेद म अ धकांश नगर श ु नगर के प म बताए गए ह. मुझे ऋ वेद का सायण भा यानुसार अनुवाद करने म लगभग ढाई वष लगे. य द मुझे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सायण के समान व तृत भा य लखना पड़ता तो संभवतया चालीस वष लगते. मेरे लए इस अनुवाद क एकमा उपल ध यही है क म इस बहाने संपूण ऋ वेद एवं इसका सायण भा य पढ़ सका. य द कसी अ य का इस अनुवाद से कोई योजन स हो सके तो म अपना य न सफल समझूंगा. मेरे वयं के माद अथवा अ ान के कारण अथवा मु ण संबंधी क मय के कारण य द अब भी कुछ ु टयां रह गई ह तो उ ह म आगामी सं करण म सुधारने हेतु कृतसंक प ं. जो महानुभाव इस ओर माग नदशन करगे उनका म आभार मानूंगा. अपनी बात समा त करने से पहले म यह कहने का लोभ संवरण नह कर पा रहा ं क ऋ वेद क एक बात ने मुझे ब त च कत कया है. उ त समाज, वचारशील लोग एवं स य प रवार क सभी साम ी का उ लेख होते ए भी कह भी द पक अथवा कसी कृ म काशसाधन का नाम नह मला. डा. गंगा सहाय शमा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
थम मंडल सू १.
वषय
मं सं.
अ न का वणन एवं तु त १-९ तु त, धन ा त १-३ दे वता
को तृ त करना, यशोगान, क याणकारी, नम कार ४-७
कमफलदातृ, ाथना ८-९ २.
वायु, इं , व ण आ द क तु त १-९ आ ान, तु त, शंसा १-३ अ क
ा त, आ ान ४-८
बल व कम हेतु ाथना ९ ३.
अ नीकुमार क तु त १-१२ पालक, बु
मान्, श ुनाशक १-३
सोमपान हेतु आ ान ४-५ अ
वीकार हेतु ाथना ६
व ेदेवगण का आ ान ७-९ सर वती का आ ान, ध यवाद, तु त १०-१२ ४.
इं का वणन एवं तु त १-१० आ ान, गाय क तु त, आ ान, शरण १-४ दे श नकाला, कृपा ५-६ सोमरस सम पत ७ इं क तु त ८-१०
******ebook converter DEMO Watermarks*******
५.
इं क तु त १-१० धन-बल, शंसनीय, याचना १-१०
६.
इं एवं म द्गण क तु त १-१० तु त, घ न ता, पूजा-अचना १-१०
७.
इं क तु त १-१० तु त, सूय, पशुलाभ, ाथना १-१०
८.
इं क तु त १-१० जीतना, ान व पु
ा त १-६
सोमरस का न सूखना, वाणी, वभू तयां ७-९ मं ९.
के इ छु क १०
इं क तु त १-१० श ुनाश व काय स धन, वषा क
१-२
ाथना, ेरणा ३-६
धन याचना, दान, आ ान, य म वास ७-१० १०. इं क तु त १-१२ अचना, वषाथ म द्गण व इं का आना १-२ बु
क कामना, तु तगान ३-५
मै ी, धन व श
हेतु सामी य ६
ार खोलने का आ ह, म हमामं डत, तु तयां, धन कामना, आशा ७-१२ ११. इं क तु त १-८ बलशाली, नम कार, दान के नाना
प, असुर को घेरना १-५
दान क म हमा, शु ण का नाश, दे ने का ढं ग ६-८ १२. अ न क तु त १-१२ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व त, आ ान, तु त, र ाथ ाथना, आ ह १-९ धन, संतान, अ क
ा त, दे व त १०-१२
१३. अ न क तु त एवं वणन १-१२ व लत, र क व शंसनीय, तु त १-७ अ न, सूय, इला आ द का आ ान ८-१२ १४. अ न क तु त १-१२ इं , सोमपान हेतु आ ान १-१० आ ह, घोड़े जोड़ना ११-१२ १५. ऋतु इं व म द्गण आ द का वणन १-१२ सोमपान, प थर १-७ वणोदा, धनदाता, सोमपान ८-११ क याण क कामना १२ १६. इं क तु त १-९ ह र नामक घोड़े १-४ सोमपानाथ आ ह, गाएं व अ क कामना ५-९ १७. इं एवं व ण क तु त १-९ र ा, धन व अ क कामना १-४ धन ा त, इं व व ण क उ म सेवा व तु त ५-९ १८.
ण प त क तु त व इं ा द का वणन १-९ आ ह, फलदाता, कृपा याचना १-२ र ाथ, उ त, पाप से र ा, तु त ३-९
१९. अ न एवं म द्गण क तु त १-९ आ ान १-२ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य क ा सव े , म द्गण क तु त, शंसा, मधु सम पत ३-९ २०. ऋभुगण क तु त १-८ तो , घोड़े, रथ व गाय बनाना १-३ सफलतादायक मं , अपण, पा भाग ४-८
तोड़ना, वण, म ण आ द क
२१. इं एवं अ न का वणन १-६ शंसा, आ ान, संतानहीन, ग त १-६ २२. अ नीकुमार, म आ द क तु त १-२१ आ ान, तु त, नमं ण, दे वप नयां, याचना १-१५ आगमन, प र मा, व णु क कृपा से यजमान के त पूण १६-२१ २३. वायु, इं आ द क तु त १-२४ सोमरस, र ा मांगना, आ ान, महान् व श ुनाशक १-९ संतान, र ा कामना, आ ह, सोमरस क ऋतुए,ं हतकारी जल, क
ा त १०-१४
, अमृत व ओष धयां १५-२०
रोग नवारण, तु त २१-२४ २४. अ न आ द दे व क तु त १-१५ पुकार, धन याचना, शंसा, ाथना १-९ तार व चं मा का का शत होना १० आयु याचना, शुनःशेप, पापमु
हेतु ाथना ११-१५
२५. व ण क म हमा का वणन १-२१ ोध न करने का आ ह, स होना, जीवनदान, अंतयामी व ण १-११ आयुदाता, कवचधारक यशोगान, ह , रथ, काशक ा १२-२१ २६. अ न क तु त १-१० ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा त, य
व तु याचना, स ता, पूजन, तु तयां १-१० २७. अ न क तु त १-१३ वंदना, याचना, फलकारी, तु त १-८ पूजा, ाथना, अनु ान व य , जापालक, तु त ९-१३ २८. इं आ द क तु त १-९ आ ान, ऊखल, मूशल क तु त, पा
१-९
२९. इं क तु त १-७ धन क अ भलाषा १-७ ३०. इं क तु त १-२२ सोमरस अ पत, उदर, ाथना, सोमरस पीने क वग, कृपा, गाय, धन आ द क वृ
ाथना, तु त, र ाथ बुलाना १-७
, रथ, गो ा त ८-१७
रथ, उषा क तु त १८-२२ ३१. अ न क तु त १-१८ अं गरागो ीय ऋ ष, मुखता, कन से वग १-७ सुख, अ , धन, पु व द घायु क कामना ८-१० पु र ा का आ ह ११-१२ य
१३
ान व दशा सुखकारी य
का बोध १४ १५
भूल हेतु मा याचना १६ मनु, अं गरा, यया त १७ संप , अ एवं बु
ा त १८
३२. इं क तु त १-१५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
माग बदला, मेघ, वृ , दनु का वध १-१० वाह खोलना, माया को जीतना, नडर, पशु वामी ११-१५ ३३. इं क तु त १-१५ गो-इ छा, वनती, अनुचर को मारना १-८ र ा ९ जल बरसाना, वृ वध, दश ु व ै ेय ऋ ष १०-१५ ३४. अ नीकुमार क तु त १-१२ आ ान, सोमा भषेक, रथ १-९ ह व व सोमरस लेने का आ ह, आ ान १०-१२ ३५. सूय क तु त १-१२ र ाथ आ ान, स वता का रथ, सफेद घोड़े, क ल, काशदाता १-५ वग व भूलोक पर अ धकार,
ा त होना, धन मांगना, र ाथ ाथना ६-११
३६. अ न का वणन १-२० अ
ा त, दे व त, श ु क हार, धन वषा, धुआं, धारण, उ त १-१३
पाप , रा स व श ु श ुनाश १४-२०
से र ा, धन
ा त, दमनक ा, क याणकारी,
३७. म त का वणन १-१५ तु त, वाहन, चाबुक, तेज, ेरणा १-१२
ध, कंपाना, चाल, आकाश, व तार, बादल,
पद व न, ाथना, द घायु १३-१५ ३८. म त क तु त १-१५ आ ान, तु त, सेवा, वषा, स चना १-९ गरजना, नद , तु त एवं वंदना १०-१५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
३९. म त का वणन १-१० समीप जाना, श ु संहार, व न, र ाथ तैयार, ४०.
ोध १-१०
ण प त क तु त १-८ तु तगान व श ुनाशाथ ाथना १-४ दे व नवास,
ण प त, श ुनाश ५-८
४१. व ण म आ द दे व का वणन १-९ ानी से संर ण, उ त, पापनाश, सुगम माग १-५ धन व संतान क
ा त, तो , तृ त, नदा न करना ६-९
४२. पूषा क तु त १-१० माग के पार लगाने, आ ांता
को हटाने, सजा दे ने व श
दे ने क
ाथना १-५
धन ा त, उ रदा य व, अ , धन मांगना ६-१० ४३.
, व ण आ द दे व क तु त १-९ ओष ध व सुख मांगना १-४ चमक ला, सुखकारी, अ व जा कामना ५-९
४४. अ न व म द्गण क तु त १-१४ धन याचना, सेवन, तु त, द घजीवन, ाथना, हतसाधक, लपट, तु त १-१४ ४५. अ न क तु त १-१० आ ान,
क व, र ा याचना, चमक ली लपट, फलदाता १-१०
४६. अ नीकुमार क तु त १-१५ अंधकारनाशक, नवासदाता, तापशोषक, तु त १-५ द र ता मटाना ६ रथ, काश, उ दत सूय, माग, र ा नवास, ७-१३ ह व हण करने व सुख दे ने क ाथना १४-१५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
४७. अ नीकुमार क तु त १-१० धन याचना, तु त, य स
क इ छा, र ाथ ाथना १-५
सुदास, कुश पर बैठने व सोमपान का आ ह ६-१० ४८. उषा का वणन १-१६ अ व पशु मांगना, पा लका १-५ भ ुक व प ी, समीप जाना ६-७ शोषक को भगाना, तु त, अ याचना ८-१६ ४९. उषा का वणन १-४ लाल गाएं, आगमन, काम म लगाना, अंधकार का नाश १-४ ५०. सूय क तु त १-१३ सूय का जाना, न
का भागना, करण, वगलोक, तु त १-७
घोड़े व सात घो ड़यां ८-९ यो तयु , रोगनाशाथ ाथना १०-१३ ५१. इं क तु त १-१५ बलवान, र क, वषक, तु त, माया वय को हराना, कु स, शंबर, व वरो धय का नाश १-८
वय
ब ,ु घोड़े, शु ाचाय, शायात, क या, अ , रथ, धन दे ना, वजयी बनाना ९-१५ ५२. इं क तु त १-१५ र ाथ ाथना, श
व नमं ण, पूणता, सहायक, घायल वृ
व ा, वृ नाश, आकाश म सूय, वृ वध, बल ७-१२ पालक, अचना १३-१५ ५३. इं क तु त १-११ धन पर अ धकार १ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-६
के
कामना पूण हेतु ाथना, गाय घोड़े, मांगना १-५ उप व शांत करना ६ असुर नमु च, करंज एवं पणय, राजा सु वा ७-१० द घजीवन क
ा त ११
५४. इं क तु त १-११ श दायमान व वृ क ा, तु त १-३ शंबर, नगर का वनाश, अतुलनीय, बु
बल, कामनाएं ४-९
पेट म मेघ १० रोग मटाने, धन, संतान व अ दे ने क
ाथना ११
५५. इं का वणन १-८ व रगड़ना, सोमरस के लए दौड़ना, आगे रहना, तु त, होना १-८ ५६. इं का वणन १-६ सोमपान, तो का प ंचना, श
शाली मेघ से अलग करना १-६
५७. इं क तु त १-६ बल हरना असंभव, इ छापूरक, शौय क तु त १-६ ५८. अ न का वणन १-९ अंत र लोक, वालाएं, धनदाता, दाहक, डरना १-५ पूजनीय, सुखदायक, धन याचना व पाप से मु
६-९
५९. अ न क तु त १-७ धारक, वनवास १-३ तु त ४-७ ६०. अ न का वणन १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा व कम का
भृगुवंशी, सेवा एवं तु त १-५ ६१. इं का वणन १-१६ अ दे ना व ह
वसजन १-४
अ लाभाथ मं बोलना ५ व , वृ वध, श ुनाश, फल मलना ६-११ पशु काटना, वृ वध, शंसा १२-१४ ऋ ष नोधा, एतश का र ण व ऋ षय क उ त १५-१६ ६२. इं का वणन १-१३ तो , सरमा कु तया को अ
मलना १-३
मेघ का डरना, अंधकार-नाश, न दयां भरना ४-६ वश म करना ७ रात काली व उषा उजली ८ काली व लाल गाय का सफेद ध ९ तु त १०-१३ ६३. इं क तु त १-९ भय, रथ, शु ण असुर, कु स, श ु-असुरसंहारक, नाश १-७ धन व अ
व तार हेतु ाथना ८-९
६४. म द्गण का वणन १-१५ तु तयां, म द्गण, कंपन, स जत, वश म करना, नाश १-६ लाल घोड़ी, वृ -भ ण, गजन, बैठना, आयुधधारक ७-११ धन व पु - ा त १२-१५ ६५. अ न का वणन १-१० समीप आना, रोकना असंभव, काशमान १-१० ******ebook converter DEMO Watermarks*******
६६. अ न का वणन १-१० अ मांगना, आ तयां १-१० ६७. अ न का वणन १-१० कृपा, अ न ा त, अ
वामी, पशु य थान के र ाथ ाथना १-६
तु त, पूजा एवं कम ७-१० ६८. अ न का वणन १-१० तेज ारा र ा १-४ धन व पु कामना, आ ापालन ५-१० ६९. अ न का वणन १-१० तेज वी, सुखकारी, आनंदकारी, सुखदाता, ह
वहन १-१०
७०. अ न का वणन १-११ अ याचना, र ण, पालन, सहायक १-११ ७१. अ न का वणन १-१० सेवा, श
, त, कुशल १-५
नम कार से अ वृ
६-७
ेरणा, म व व ण ८-९ बुढ़ापा भगाने का य न १० ७२. अ न का वणन १-१० अमृत व धन मलना, म द्गण भी ःखी, नाम व शरीर मलना १-४ पूजन, र क, ह ववहन, भ ण, जल बहाना, वालाएं फैलाना ५-१० ७३. अ न का वणन १-१० अ दान, ःख ाता, धनदाता, ध पलाना, नशा, संसार-र क, श ुपु कामना १-१० ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का वध व
७४. अ न का वणन १-९ उप थत दे व, धनर क शोभा बढ़ाना, ह दान से धन, अ , ऐ य व श लाभ १-९ ७५. अ न क तु त १-५ तु त, बंध,ु
य म एवं फलदाता १-५
७६. अ न क तु त १-५ स ता के उपाय, पूजा, य र ा, संतान आ द क याचना १-५ ७७. अ न का वणन १-५ तेज वी, ह
दे ना, तेज वी, सोम को पीना १-५
७८. अ न क तु त १-५ गुण काशक तो , गौतम ऋ ष ारा तु त १-५ ७९. अ न का वणन १-१२ मेघ का कांपना व बरसना, भगोना १-३ धन, अ व र ाथ याचना ४-१२ ८०. इं क तु त १-१६ अ ह को पीटना १ येन बनने वाली गाय ी २ भु व का दशन, भयभीत, य कम सम पत ३-१६ ८१. इं का वणन १-९ र ाथ ाथना, सेना के समान, गवहंता, अतुलनीय, धन, बु याचना १-९ ८२. इं क तु त १-६ तु त सुनने समीप जाना १-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व शौय क
ेयसी के पास जाने हेतु आ ह ५-६ ८३. इं का वणन १-६ धन क
ा त १
एक क या अनेक वर २ श
मलना, पूजन, स होना ३-६
८४. इं का वणन १-२० आ ान, स , घोड़े, धन मलना, छत रयां कुचलना १-८ अ धकार दशन ९-१२ दधी च १३ अ
क
शंसा १४-१६
र ा व शंसा १७-२० ८५. म द्गण का वणन १-१२ अलंकार
य, श
शाली होना १-३
बुंद कय वाली ह र णयां ४-५ घोड़े व नवास थल, भय ६-८ वृ वध ९ वीणा वादन, गौतम, सुख याचना १०-१२ ८६. म द्गण क तु त १-१० सोमपान व ह
वहन १-७
पसीने से नहाना ८ उप व, रा स का नाश ९-१० ८७. म द्गण क तु त १-६ चमकना, वृ , पवत को कंपाना, य पा , धारण, थान १-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
८८. म द्गण का वणन १-६ अ लाना, क याण, आयुध, कुआं उठाना, तु त १-६ ८९. व ेदेव का वणन १-१० आयुवृ
, धन व ओष ध हेतु याचना, क याण १-६
सफेद बूंद वाले घोड़े व नाना वण क गाएं ७ मानव क आयु सौ वष तय ८-९ ज म और उसका कारण १० ९०. व ेदेव का वणन १-९ गंत , धन व सुख लाभ १-३ माग व मधु वषा ४-६ आकाश व दे व
ारा सुख ७-९
९१. सोम का वणन १-२३ धन, फलदाता, सुधारक १-३ ह
लेने हेतु ाथना ४-५
जीवनदा यनी ओष ध व धन ६-७ ःख से बचाने क य , संप
क वृ
ाथना ८-९ व दय म वास १०-१३
अनु ही व हतकारी, अ कामना १४-१८ पु र क, शा
, पु दाता १९-२०
श ुजेता, अंधकारनाशक, वामी २१-२३ ९२. उषा एवं अ नीकुमार का वणन १-१८ अंधकारनाशक, पहले तेज पूव म १-६ गोयु अ -धन क याचना ७-८ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प म म तेज ९ प य क हसा १० तेज का व तार, धन व सौभा य मांगना ११-१५ धन व यो त मलना, आरो य व सुखदाता १६-१८ ९३. अ न एवं सोम क तु त १-१२ सुख, गाएं, अ , पु -पौ क याचना १-३ उपकारी सूय ४ न
धारण व धरती का व तार १-६
अ भ ण, पाप से बचाने क अ य दे व से अ धक
स
ाथना ७-८ ९
धन मांगना १०-१२ ९४. अ न क तु त १-१६ क याण, धन बटोरना, महान्, पुरो हत, अंधकारनाशक, हसा से बचाने क वन घेरना, प य का डरना, संप य म नवास, आ त १-१४ समृ
बनाना, आयुवृ
ाथना,
क कामना १५-१६
९५. अ न का वणन १-११ रात- दन के पु , यश वी, आकाश का डरना १-५
ापक, ऋतु वभाजक, जल उ प
बल का वामी, करण के समान, अ व धन क
ा त ६-११
९६. अ न का वणन १-९ वायु व जल १ धारण करना २-७ धन व अ क कामना ८-९ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का कारण, धरती व
९७. अ न क तु त १-८ पूजा से पाप न एवं र ा १-६ पालनाथ याचना ७-८ ९८. अ न का वणन १-३ ातःकाल सूय से मलना १ दवस रा
म श ु से बचाव २
य सफलता हेतु ाथना ३ ९९. अ न का वणन १ ःख व पाप से पार लगाने क
ाथना १
१००. इं का वणन १-१९ र क बनने का आ ह १ सूय क चाल पाना असंभव २ म द्गण क सहायता से र क बनना ३-१५ मानव सेना को इं के अ वृषा गरी के पु श ु
ारा जानना १६
ारा इं क तु त १७
, रा स का वध, भू म, सूय व जल का बंटवारा १८
इं पूजन का आ ह १९ १०१. इं का वणन १-११ कृ ण असुर क प नयां, वृ , शंबर, प ु, आ ान, वामी १-६ म यमा वाणी, उ दत होना, स यधन, ह व दे ना, उप जह्वा खोलने का आ ह, अ पूजन ७-११ १०२. इं क तु त १-११ तु त, सूय व चं का घूमना, रथ, श ु-श
, अ ाकुल व जयशील, असी मत ान,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु त १-७ संसार वहन म समथ, श ुनाशक पु मांगना, आ ान, अकु टल ग त ८-११ १०३. इं का वणन १-८ यो त मलन, वृ वध, गमन, समूह नमाता १-४ धन, स होना, शु ण, प ु आ द का नाश ५-८ १०४. इं का वणन १-९ वहन, समीप जाना, शफा, अंजसी, कु लशी, वीरप नी नामक न दयां, कुयव असुर गभ थ संतान,
ा, भो य पदाथ, सोमपान ६-९
१०५. व ेदेव का वणन १-१९ चं मा, सवपीड़ा, पूवपु ष, दे व त, तीन लोक मे वतमान, पापबु क , सौत, करण क तु त १-९
श ,ु मान सक
शंसनीय तो , भे ड़ए को रोकना, नवीन बल, बंधुता, परम ानी, मननीय तु त, अ त मण असंभव, त, लाल वृक, अनु ह १०-१९ १०६. व ेदेव का वणन १-७ माग, शोभनदानयु श
दे व, य वधक ावा-पृ वी, र ाथ ाथना, अ याचना १-४
, वृ हंता, जाग क ५-७
१०७. व ेदेव का वणन १-३ अनु ह याचना, तुत दे व, र ाथ ाथना १-३ १०८. इं व अ न क तु त १-१३ रथ, प रमाण, संयोजन, कुश फैलाना, म ता, के बीच थत होना, धरती-आकाश १-९
ा, आ ह, य , तुवश, अनु आ द
कामवषक, सोमपान, स होना, आदर १०-१३ १०९. इं व अ न क तु त १-८ तु त, जामाता, क यालाभ, परंपरा, हथे लयां १-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बल दशन, महान्,
लोक, असुरनाशक ५-८
११०. ऋभुगण क तु त १-९ तो , घर जाना, साधन, अमरता, अ धकार १-९ १११. ऋभुगण का वणन १-५ ह र नामक दो घोड़े बनाना, नवास, अ पूजन, आ ान, वजयी बाज १-५ ११२. अ नीकुमार क तु त १-२५ शंख बजाना, ा नय क र ा, शासन, ापक, रेभ व वंदन ऋ ष, क व, भु यु, ककधु, व य, पृ गु, पु कु स, ऋजा , ोण, व स , कु स, ुतय, नय वप ला, वश ऋ ष १-१० द घ वा, क ीवान्, शोक, मांधाता, भर ाज, दवोदास, पृ थ, शंयु, अ , ऋ ष पठवा, तो , वमद, अ धगु व ऋतु तुभ ११-२० कृशानु, पु कु स, मधु दे ना, घोड़े, कु स, तुव त आ द, आ ान, तु त २१-२५ ११३. उषा एवं रा
का वणन १-२०
उप थान, वचरण, एक माग, ने ी, भुवन का काशन, अभी , अधी री, चेतन बनाना, क याण, अनुकरण १-१० दे खना, े षय को हटाने वाली, तेज से वचरना, लाल रथ से आना, तेज से बढ़ना, अ बढ़ाना, धन वा मनी उषा, अ दे ने वाली, तो क शंसा, क याणकारी ११-२० ११४.
क तु त १-११ तु तयां, मनु, सुख इ छा, कृपा
, ढ़ांग, तु त वचन बोलना १-६
शरीर का नाश, बुलाना, र ाथ ाथना, हनन का साधन र रखने व तु त के आदर हेतु आ ह ७-११ ११५. सूय का वणन १-६ जंगम- थावर, तु त, प र मण, अंधकार फैलाना, अंधेरा धारण करना, पाप से बचाने क ाथना १-६ ११६. अ नीकुमार क तु त १-२५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कशोर वमद, वजय, तु , भु यु, रथ, सागर, पे , क ीवान्, कारोतर पा , अ न बुझाना, यं पीड़ागृह, गौतम, यवन, वंदन, द यंग ऋ ष, बुलाना, व मती, हर यह त, १-१३ व तका, व पला, ऋजा , कां त पाना, लौहरथ १४-२०
तु त, य
के भाग का अपण
श ुवध, जल उठाना, तु त, रेभ, कम का वणन २१-२५ ११७. अ नीकुमार क तु त १-२५ सेवा, घर जाना, पू जत, रेभ, वंदन,
त ा, घोषा, नृषदपु , पे , वीरकाय १-१०
भर ाज, कामवषक, यवन, तु , भु यु, व वाच, ऋजा , मेष को काटना, आ ान, धा बनाना, माहा य, घोड़े का सर, अनु ह बु , जीवनदान, वीर कम का बखान ११-२५ ११८. अ नीकुमार क तु त १-११ रथ, पु ा द, र तानाशक, तेज ग त वाले, सूयक या, वंदन ऋ ष, गाय, यवन, अ , व तका, व पला १-८ पे , आ ान ९-११ ११९. अ नीकुमार क तु त १-१० रथ, ऊजानी, जयशील, भु यु, दवोदास १-४ कुमारी का प त, अ , शंय,ु वंदन ऋ ष, युवा बनाना, कामदे व, कामना, दधी च, पे ५-१० १२०. अ नीकुमार क तु त १-१२ माग, तो , वषट् कार, बु
, क ीवान्, ऋजा , वृक, अग य थान १-८
पोषण, अ र हत रथ, सोमपान, घृणा ९-१२ १२१. इं का वणन १-१५ य म आना, गाएं नकालना, आकाश धारण, दवस का काशन, सोमपान १-८ ऋभु, शु ण, मेघ, वृ , उशना, एतश, पाप, वृ
९-१५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१२२. व ेदेव का वणन १-१५ तु त, उषा, अ , क ीवान्, घोषा, नयमन १-७ तु त, य मा, नडर, शंसा, सोम, राजा इ ा , इ र म, वणाभूषण धारण करना, राजा मशश र व जयशील अयवस ८-१५ १२३. उषा क तु त १-१३ अंधकारनाश, पहले जागना, छपाना, आगे रहना १-८
काश-अंश, घर जाना, ने ी, धन दशाना, पदाथ
मलना, प करना, दशनीय, क याणकारी, अनुकूलता ९-१३ १२४. उषा का वणन १-१३ काश, वयोग, दशाएं न न करना, नोधा ऋ ष, सुंदर, करना १-८
स , नमल, दांत, काश
ब हन, प ण, लाल बैल जोड़ना, प य का उड़ना, उ त व वृ
क
ाथना ९-१३
१२५. दान का वणन १-७ राजा वनय, क ीवान्, सोमपान, घृतधाराएं, संतोष १-५ अमर बनना, वृ ाव था ६-७ १२६. भावय
आ द के दान का वणन १-७
वनय, क ीवान्, रथ दे ना, लाल घोड़े, गाएं लेना, लोमशा १-७ १२७. अ न का वणन १-११ अनुसरण, यजनयो य, श ु, सारवान ह , अ
हण, पूजनीय, मंथन, हवन १-८
जरा नवारण, तु त, परमबली ९-११ १२८. अ न का वणन १-८ य वेद , मात र ा, चार ओर चलना, अ त थ १-४ ह
दे ना, वग, पालक, रमणीय ५-८
१२९. इं क तु त १-११ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु त वीकारना, ग तशील, मेघ का भेदन, श ुसंहार, जग पालक, नदक का वध १-६ तु तयां, श ुसेना का नाश, मलना, म हमावान, र क ७-११ १३०. इं क तु त १-१० आ ान, सोमरस, सोम व प णय को खोजना, श ुनाश, नद नमाण, शंसा, राजा दवोदास, शंबर १-७ कृ ण, उशना, तु त ८-१० १३१. इं क तु त १-७ नत होना, सेना के आगे रखना, य , श ु-नगर वनाश, सागर को छ नना, सहनाद, असाधारण, कान १-७ १३२. इं का वणन १-६ अ लाना, वग का माग, वृ , गाएं छु ड़ाना, इं लोक, श ु-नाश १-६ १३३. इं क तु त १-७ धरती को जानना, बैरीभ क, श अ वामी बनना १-७
का नाश, श -ु नाश, पीले पशाच, घरा रहना,
१३४. इं क तु त १-६ रथ, च दे ख चलना, सावधान करना, अमृत बरसना, समीप जाना, तु त, सोम यो य १-६ १३५. वायु क तु त १-९ आ ान, अनु ह, बुलाना, अ भ ण, सोम १-५ कुश, श द होना, आ त, पुरोडाश, चाल न कना ६-९ १३६. म एवं व ण का वणन १-७ बल, य म जाना, य
वामी, शो भत, नम कार, स करना १-७
१३७. म एवं व ण का वणन १-३ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कूटना,
तुत, नचोड़ना १-३
१३८. पूषा क तु त १-४ बल, शंसनीय घोड़े, धन याचना, तो
१-४
१३९. पूषा क तु त १-११ अ न, जल दे ना, काशयु
श
ोक, रथ, कम प, तु तयां, हना १-७ , पतर, आवाज, म हमा ८-११
१४०. अ न का वणन १-१३ य वेद , धा य, यजमान, उपयोगी, काश, लक ड़यां, तेजोमय बनाना १-७ आ लगन, गमन, दाना भलाषी, तेज, नाव, उषाएं ८-१३ १४१. अ न का वणन १-१३ ढ़ता, धरती पर रहना, उ प , लता उ प १-९
का वेश, चढ़ना, पूजन, तु तयां, भागना,
ह , पु दे ना, वग, तु त १०-१३ १४२. अ न का वणन १-१३ य , तनूनपात, स चना, तु त, य वधक, य पावक, कुश, फलसाधक, भारती, वाक्, सर वती, पु , ह , वाहा १-१३ १४३. अ न का वणन १-८ य , मात र ा, चनगा रयां, श ुसंहार १-५ तु त, बु
, मंगलकारी ६-८
१४४. अ न का वणन १-७ ा, जल, मलाना, अजर १-४ काशमान, वामी, आ यदाता ५-७ १४५. अ न का वणन १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शासक, सहारा, तु त, कम ान दे ना १-५ १४६. अ न का वणन १-५ म तक,
ा त, ानधारक, अजीण, दशनीय १-५
१४७. अ न क तु त १-५ लपट, वंदना, द घतमा, दय, तोता १-५ १४८. अ न का वणन १-५ बढ़ाना, तो , तु तयां, द त, तृ त १-५ १४९. अ न का वणन १-५ व तुएं दे ना, पुरोडाश, वेद , जलपा , पु वान १-५ १५०. अ न क तु त १-३ ह , दे व वरोधी, आह्लादक १-३ १५१. म एवं व ण क तु त १-९ र ा, इ छापूरक, शंसा, य , रंभाना, पूजन १-६ शोभनम त यजमान, तु त, धन व अ धारण ७-९ १५२. म एवं व ण क तु त १-७ सृ यां, कम, वरोध, उषाएं, गमन, द घतमा, नम कारयु
१-७
१५३. म एवं व ण क तु त १-४ पोषण, सुखभागी, स , अ नदाता १-४ १५४. व णु का वणन १-६ अंत र , पाद ेप, नापना, लोकधारक, बंध,ु परमपद १-६ १५५. इं एवं व णु का वणन १-६ अपराजेय, आदर, श
वधन, प र मा, चरण ेप, कालच
१५६. व णु वणन १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-६
सुखक ा, वृ ांत, सेवा, मेघ, य ाथ आना १-५ १५७. अ नीकुमार क तु त १-६ उषा, रथ, सौभा य, कशा, गभर ा, समथ १-६ १५८. अ नीकुमार का वणन १-६ द घतमा, अ , तु पु , पाशब , दास, १५९.
तन, नदशक १-६
ावा-पृ थवी का वणन १-५ अनु ह, अमृत दे ना, हतकारी, ब हन, धन याचना १-५
१६०.
ावा-पृ थवी का वणन १-५ सुखदाता, र क, ध, े , व तार १-५
१६१. ऋभुगण का वणन १-१४ चमस, भाग, युवा करना, भाग १-९ र
ी, पानपा , नवीन रथ, मृतक गाय, सोमरस, चार
रखना, फसल, बलवती वाणी, अ भलाषा १०-१४
१६२. अ मेध के अ का वणन १-२२ परा म, बकरे ले जाना, पुरोडाश, भाग, जल, यूप, सुडौल, लगाम, छु री १-९ मांस, रस, कामनाएं, परी ा, छु री, अ , घास, पा , वषट् कार, व तुए,ं श द करना, ह ड् डयां १०-१८ काशक, अकुशल, समीप जाना, तेज व बल १९-२२ १६३. अ मेध के अ का वणन १-१३ श द, अ ा त, तधारी, बंधन, लगाम, सर, चलना १-१०
प, सौभा य, सर-पैर, पं
म
वायुवत् चलने वाला, उड़ना, बकरा, कुशल घोड़ा ११-१३ १६४. व ेदेव का वणन १-५२ पु , सूयरथ, गाएं, संसार, धागे, लोक, गाएं, पूजन, तीन माता- पता, प हया, चरण, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सात च , घूमना, पांच वण, सूयमंडल, नमाता १-१५ ांतदश , जाना, लोकपालक, बोझा ढोना, दो प ी, संसार क र ा, करण, पद, पूजामं , वषा रोकना, गाय को बुलाना, आना, तृ त करना, हराना, वधा, सूय का आना-जाना १६-३१ जा का कारण, पालक आकाश, उ प थान, य , घेरना, बंधना, जानना, अ ध त होना, भ ण, वाणी, वषा, सोमरस, धरती को दे खना, चार पद, नाम ३२-४६ भीगना, अरे, धनर ा, यजमान, स होना, आ ान ४७-५२ १६५. इं एवं म द्गण का संवाद १-१५ स चना, उड़ना, पालक, य कम, अनुभव, अ ह, कम करना, कामना, स ता, सर ारा न होना १-९ उ
व ान्, आनंद, यश, अ , मनोरम तो , वाणी १०-१५
१६६. म द्गण क तु त १-१५ वाला, स च , जल, अट् टा लकाएं, डरना, पशुनाश, अचना, पु -पौ ा द, श , शोभन १-१० म हमा, यजमान, मै ी, द घकालीन य , कामना ११-१५ १६७. इं एवं म त का वणन १-११ उपाय, धन, वाणी, य न, बजली, सेवा, म हमा, जल टपकना, हराना, म हमा, तु त १-११ १६८. म द्गण का वणन १-१० समान भावना, कंपनशील, ह त ाण, पापहीन, अ , जल, क याण १-७ बजली, अ , शरीर क पु
८-१०
१६९. इं क तु त १-८ म त्, लड़ना, ह , द णा १-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
संतोषदाता, घोड़े, मेघ, तु त ५-८ १७०. इं एवं अग य का संवाद १-५ मन, भाग, बात, अमृत, म
१-५
१७१. म त क तु त १-६ याचना, तो , सुखदाता, भागना, जगाना, श
शाली १-६
१७२. म त क तु त १-३ आगमन, आयुध, ाथना १-३ १७३. इं का वणन १-१३ सामगान, य , अ , तो , उ म,
ा त, यु , सखा १-९
म बनाना, बढ़ना, वंदना १०-१३ १७४. इं क तु त १-१० उ ारक, नग रय का नाश, र क, बढ़ाना, कु स ऋ ष, श ु १-६ य ण, कुयवाच, वृ असुर, य , तुवसु, र क ७-१० १७५. इं क तु त १-६ आ ान, स तादाता, शु ण का वध, वृ घाती, सुख १-६ १७६. इं का वणन १-६ घेरना, ह , पांच जन, धन मांगना, अ
वामी, तु त १-६
१७७. इं क तु त १-५ घोड़े, रथ, तैयार, आ ान, ाथना १-५ १७८. इं क तु त १-५ समथ, ह व, पुकार, हराना, श
शाली १-५
१७९. अग य एवं लोपामु ा का र त वषयक संवाद १-६ स दयनाश, स य, भोग, चय, कामनाएं, आशीवाद १-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१८०. अ नीकुमार क तु त १-१० ने मयां, रथ, तु त, सोमरस, भु यु, अ
१-६
शंसनीय, जगाना, य , रथ ७-१० १८१. अ नीकुमार क तु त १-९ य , शी गामी अ , वषा, आकाशपु , तु तयां १-५ पास आना, तु तयां, य गृह, तोता ६-९ १८२. अ नीकुमार का वणन १-८ नाती, कमकुशल, मेधावी, श ुनाशाथ ाथना, नाव, भु यु, रथ, तु त १-८ १८३. अ नीकुमार क तु त १-६ पास जाना, उषा, आ ान, भाग, गौतम, पु मीढ़, अ
ऋ ष, तो
१-६
१८४. अ नीकुमार क तु त १-६ आ ान, अ वेषण, सूयपु ी, तो , दे वमाग १-६ १८५.
ावा-पृ थवी का वणन १-११ घूमना, धारण करना, धन ा त, अनुगमन, जल, बुलाना, तु त, जामाता, संतु , काशमान, द घायु १-११
१८६. व ेदेव का वणन १-११ ाथना, म , व ण, अयमा दे व, अ त थ, तु त, इ छा, जल के नाती १-६ घेरना, उपजाऊ बनाना, सुखाथ ाथना,
स
यो त ७-११
१८७. अ का वणन १-११ तु त, र क, सुखदाता, रस, दान, वृ वध १-६ भोजन, वन प तयां, गो भ ण, स ,ू अ
७-११
१८८. अ न क तु त १-११ क व व त, मलना, अ , आ द य, जल गराना, अ न १-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वचन, भारती, आ ान, पशु-वृ
, अ , छं द ७-११
१८९. अ न क तु त १-८ ाता, साधन, काशमान, आ य र ाथ ाथना १-५ हसक, चोर, नदक आ द से बचाना, पा , श ुनाशक ६-८ १९०. बृह प त क तु त १-८ तु य, मधुरभाषी, फल अ , चलना, समीप जाना १-५ नयं क, जल व तट, तु तयां, फल, आयु, अ हेतु ाथना ६-८ १९१. जीव, जंतु
, प य एवं सूय का वणन १-१६
घरना, वषधर, भाव, लपटना, ानशू य, दे खना, अंग, सूची वाले वषधर, पूव म नकलना, उदय ग र १-९ वष फकना, न करना, प ी, न दयां, मयू रयां,
थता १०-१६
तीय मंडल सू १.
वषय
मं सं.
अ न क तु त १-१६ पालक, गृहप त, व णु १-३ र क, दानदाता, श
शाली, य क ा ४-६
र नधारक, तेज वी, पालक, क याणक ा, श ुनाशक ७-९ वभु, ह दाता १०-११ ल मी का वास १२ जह्वा का नमाण १३ वृ , लता आ द म रहना, मलना-अलग होना, गोदाता १४-१६ २.
अ न का वणन १-१३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वग, संयमी, सुदशन, काशमान, शखायु , अ वनाशी, अ का ार १-७ आधार, तु तयां, श ुजेता, स तादायक, गो व अ दाता ८-१३ ३.
अ न का वणन १-११ य यो य, कटक ा, ल य, वीरपु , ार, फलदाता १-६ पूजा, य , सर वती, इला, भारती, अ
७-९
ाता, कामवष १०-११ ४.
अ न का वणन १-९ आ ान, भृगु, म , जीभ फेरना १-६ वाद लेना, र क, गृ समदवंशी ऋ ष ७-९
५.
अ न का वणन १-८ चेतनादाता, नवाहक, धारक, फलदाता, ने ा, ह , मह व १-८
६.
अ न क तु त १-८ तु तयां, य
७.
वामी, ह व, व ान्, धनदाता, वृ क ा, पूजक, हतकारी, य
अ न क तु त १-६ त ण, श ुता, लांघना, वंदनीय, भ ा, व च
८.
१-६
अ न का वणन १-६ यश वी, आ ान, तु तयां, शोभा, ऋ वेद, र त १-६
९.
अ न क तु त १-६ त, धनदाता, ज म थान, धन वामी, कां तयु
१०.
अ न क तु त १-६ ा, जायु , अर ण,
११.
१-६
ा त, वणयु , ह
दे ना १-६
इं क तु त १-२१
बढ़ाना, वृ , कामना, हराना, वृ वध, शंसा, बादल, स होना, व न १-८ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-८
कांपना, श द करना, सोम, आ य, वीरपु , धन, घर, म , श उ ारक, उ दन ९-१६ द यु, व १२.
याचना, ढ़ करना,
प, अबुद, बल असुर का नाश, तु त १७-२१
इं का वणन १-१५ डरना, ढ़ करना, न दयां वा हत करना, असुर, श ु संप -नाशक, र क १-६ बुलाना, त न ध, पापीनाशक, शंबर असुर, रो हण का वध, र क ७-१५
१३.
ढ़ भुजाएं,
इं का वणन १-१३ वषा ऋतु, सागर १-२ ाय
३
धनदाता, दोहन, ओष ध, सहवसु, द यु का नाश, पंचजन जतु र, तुव त, तु त ४-१३ १४.
इं का वणन १-१२ सोम, यो य होना, मीक, उरण, अ , शु ण, प ु, नमु च आ द का वध १-५ नग रय , वरो धय का नाश सोम, फलदाता, राजा, धन याचना ६-१२
१५.
इं का वणन १-१० क क, स , नमाण, माग रोकना, नद सुखाना, गाड़ी तोड़ना, परावृज, खोलना, चुमु र, धु न का वध, भजनीय १-१०
१६.
इं का वणन १-९ आ ान, श तु त १-९
१७.
ार
क , अपरा जत, ानी, अ दाता, इ छापूरक, आयुध, र क, घेरना,
इं का वणन १-९ वतं , शीश, ववश, घेरना, अचल, जल गराना, आ ान १-९
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व-वध धन मांगना, भजनीय,
१८.
इं का वणन १-९ हवन, वजयदाता, अ , धनशाली, आ ान, सोम रखना, आ त, वप नाशक, सेवनीय १-९
१९.
इं का वणन १-९ अ वासी, गमन, ेरणा, सहायक, एतश १-५ कु स, शु ण, अशुष, कुयव, पीयु, गृ समद ऋ ष, द णा ६-९
२०.
इं का वणन १-९ द यमान, ालु, र क, य , अ भलाषापूरक, गाएं लेना, नगर वनाश, दास, म तक काटना, सेना व लौहनगरी का नाश, द णा १-९
२१.
इं का वणन १-६ जल वजयी, तु त, शंसा, ेरक, गाएं ढूं ढ़ना, पु
२२.
इं का वणन १-४ तृ तदाता, पूण करना, भला वचारना,
२३.
१-६
स
१-४
बृह प त क तु त १-१९ गणप त, जनक, श ुनाशक, सेनाएं रोकना, पथ दशक, स ता, र क १-८ धन याचना, कामपूरक, पु यलाभ, श ुसेना नाशक ९-१३ परा म, पूजनीय, वरो धय को न स पने क संतान र ाथ ाथना १४-१९
२४.
ाथना, ऋण चुकाना, गाय का आना,
बृह प त का वणन १-१६ व
वामी, हंता, उ ारक, भेदन, धन क
ा त १-६
बाण फकना, मलाना, भोगना ७-१० र क, तु तयां, सुनना, वभाजन, अ यु २५.
व नयं क ११-१६
बृह प त का वणन १-५ द घायु, धन व तार, समथ,
ण प त, सुख ा त १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
२६.
बृह प त का वणन १-४ र ा याचना, धन ा त, उपकारी १-४
२७.
आ द यगण का वणन १-१७ घृत टपकाना, अ नदनीय, अ ह सत, तेज वी, जगत्धारक, तु त १-४ पाप का याग, सुगमपथ, सुख ा त, म हमा वधन ५-८ तेजधारक, व ण व आ द य क तु त ९-१२ वामी, यो त, मंगलकारी, पाश, धन याचना १३-१७
२८.
व ण क तु त १-११ ांतदश , ाथना, जल रचना, नद , पाप, नाश, हसक, काश १-७ श
२९.
संप , ऋण, याचना, चोर, भे ड़या ८-११
व ेदेव क तु त १-७ पाप, गु त थान, क याण, सुख, न मारना, बचाना, पु याचना १-७
३०.
इं , बृह प त, सोम आ द क तु त १-११ पानी, समु , वृ , असुर पु , श ुनाश, समृ
, ेरक, थकान न दे ने क
ाथना १-७
षंडामक का वध, धन याचना, उपासना ८-११ ३१.
व ेदेव का वणन १-७ र ा, घोड़े, उ म कम, पूषा व सूया के प त, ह
३२.
तु त, बला भलाषी १-७
ावा-पृ थवी आ द का वणन १-८ अ कामना, म ता, तु त, बुलाना, कम को बुनना, धन, राका दे वी, सनीवाली, सर वती, इं ाणी, व णानी १-८
३३.
क तु त १-१५ सुख, शतायु, उ म, हसा-बु तु त, कामना, सुख दे ने व
, ओष धयां, वामी, र क, उ ोध न करने क
ाथना १२-१५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-११
३४.
म द्गण क तु त १-१५ ा त, उ प , सोने के टोप वाले, प ंचना, आयुधधारक, अ व बल याचना १-७ अ दाता, श ुता, हंता, धन मांगना, अंधकार का नाश पाप ाता ८-१५
३५.
प धरना, होता,
अ न का वणन १-१५ अ ,उ म
प, नमाता, बाड़वा न, अपांनपात्, इड़ा, सर वती, भारती १-५
उ चैः वा अ , संसार क उ प
६
घर म रहना, वन प तय के उ पादक ७-८ न दयां, धन दे ना, भा य तु त, ाथना १२-१५ ३६.
ा त, उ म थान, पु -पौ
ा त हेतु
इं , व ा, अ न, व ण एवं म क तु त १-६ भेड़ के बाल, दशाप व , भरत के पु , दे वप नयां मधु, सोमपान, तु तयां १-६
३७.
ाचीन
अ न क तु त १-६ वणोदा, सोम प मधु, ने ा १-३ मृ यु नवारक, रथ, सोमपान हेतु ाथना ४-६
३८.
स वता का वणन १-११ दाता, हाथ फैलाना, स वता का याग, काश समेटना, श या का याग, घर अ भलाषा, काय ीण न होना, नवास, बुलाना १-९ र क, आ ान १०-११
३९.
अ नीकुमार क तु त १-८ बाधा, ाता, वेगवान्, ःख ाता, बुढ़ापा, सुखदाता १-६ तु तयां, तो रचना ७-८
४०.
सोम व पूषा क तु त १-६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अमरता, सेवा, रथ, वरणीय एवं क तशाली ा ण-उ प , धन वामी १-६ ४१.
इं , वायु म , व ण आ द क तु त १-२१ नयतगुण, पुकार, दाता, सोमरस, हजार खंभ,े दानशील, पेय सोम, धन, नाना अचंचल, क याण, मेधावी, पुकार, स दाता, दान १-१५
प,
उ म सर वती, शुनहो , ह , ाथना, साधक, य यो य दे वता १६-२१ ४२.
क पजल प ी
पी इं का वणन १-३
े रत करना, मंगलकारी, चोर एवं पाप क बात १-३ ४३.
क पजल प ी
पी इं का वणन १-३
बोल, पु यकारी श द, सुम त क इ छा १-३
तृतीय मंडल सू १.
वषय
मं सं.
अ न क तु त १-२३ वाहक, स मधा, उ म बंधु, बढ़ाना, शु माता- पता-धरती, आकाश, काशमान ७-१२
, धारण करना १-६ करण, जल बहाना, लोकपोषण, शयन,
ज म, बढ़ना, तेज, तु त, य , अनु ह, होता, भू म याचना १३-२३ २.
अ न का वणन १-१५ सं कार, पूजन, तु त, हतकारक, य मंडप, अ न, अ ाथ जाना, ाता, चार ओर जाने वाले, जा वामी १-१० गरजना, वगारोहण, धन-अ याचना ११-१५
३.
अ न का वणन १-११ षत न करना, ेरणा, सुख चाहना १-३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वेश, थापना, आना-जाना, उ प ४-११ ४.
ेरणा, नम कार,
शंसा, घेरना, पूण करना,
अ न का वणन १-११ म , य , कुशल, समीप जाना, माग बनाना, कृपा १-६ आ ान, सोमरस ८-९ ज मदाता, आ ान १०-११
५.
अ न का वणन १-११ ार खोलना, जागना, था पत, र क, उ पादक, नया बनाना, धारण करना, बुलाना १-९ अ न जलाना, पु -याचना १०-११
६.
अ न का वणन १-११ ु , पूजा, द तयां, तु त, फलदाता, आ ान, घोड़े, जलभाग जलाना, य यो य, च आ ान १-९ होता, भू म, पु व गाय क याचना १०-११
७.
अ न का वणन १-११ अ दाता, नद म वास, घो ड़यां, वहन, आ ापालन, सुख, य अलंकरण, वालाएं १-९
म जाना, र ा,
पापनाशाथ ाथना, गौ मांगना १०-११ ८.
यूप अथात् ब ल तंभ का वणन १-११ धन याचना, पाप, नापना, आना, बनाने वाला, गड् ढे म डालना, य -साधक १-८ अंत र , र ाथ ाथना, सौभा य ा त ९-११
९.
अ न का वणन १-९ वरण, शांत होना, ा त होना, अर णमंथन, हण, पूजन, १-९
१०.
अ न का वणन १-९
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जा वामी, य र क पु -पौ
ा त, स
होना १-४
तेजधारी, बढ़ाना, श ुजेता, पापशोधक, उ प ११.
५-९
अ न का वणन १-९ ाता, दे व त, अंधकारनाशक, अ गामी, अव य, घर पाना, धन याचना, वेश १-९
१२.
इं एवं अ न क तु त १-९ आ ान, सोमपान, वरण, अ दाता, अचना, नगर को कंपाना, उप थत रहना, धन म अ भ ता, ान १-९
१३.
अ न का वणन १-७ े , ावा-पृ थवी, सेवा, नयामक, चलन, र ा व धन याचना १-७
१४.
अ न का वणन १-७ ा ाथना, सचन, धारक,
१५.
दे ना, र ण व अ हेतु अ न के समीप जाना १-७
अ न क तु त १-७ वनाश, तु तयां, फल, श -ु नगर, धन, ह ाथना १-७
१६.
वहन, वजय व पु -पौ
अ न का वणन १-६ पापनाशक, श ुजेता, धनयु , र क, व म नवास, क तदाता १-६
१७.
अ न क तु त १-५ वीकाय, जातवेद, तीन अ , अमृत क ना भ, य पूणता हेतु ाथना १-५
१८.
अ न क तु त १-५ साधक, श ुनाशक, अ याचना १-५
१९.
अ न क तु त १-५ वरण, पा , म हमायु
१-३
तेजधारक, अ याचना ४-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हेतु
२०.
अ न का वणन १-५ अ धकारहीन उदरपूरक, अमर, वृ नाशक, आ ान १-५
२१.
अ न क तु त १-५ चब , बूंद टपकना, मेधावी, य पालक, आ ान, नवासदाता १-५
२२.
अ न का वणन १-५ सोम, व तारक, ेरक, अ , पु -पौ याचना १-५
२३.
अ न क तु त १-५ जरार हत, दे वा य, दे ववात, सुबु
, उंग लय से उ प
१-३
ष ती, आपया व सर वती ४-५ २४.
अ न क तु त १-५ अ जत, मरणहीन, जागृत, धन एवं संतान मांगना १-५
२५.
अ न क तु त १-५ ाता, अ दाता, जनक, आ ान, काशमान १-५
२६.
अ न का वणन १-९ तु त, आ ान, कु शक गो ी, कंपाना, गरजना, जलदाता, म त्, य म जाना १-६ ाण, रमणीय बनाना, पालक ७-९
२७.
अ न का वणन १-१५ दे व ा त, तु त, छु टकारा, मनचाहा फल, ह गभ १-९ ह , द त करना, तु त, दशनीय, ह वाहक,
२८.
वहन, अ भमुख, अ गामी, मेधावी, व लत करना १०-१५
अ न क तु त १-६ पुरोडाश, कमकुशल, पुरोडाश सेवनाथ ाथना १-६
२९.
अ न का वणन १-१६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
साधन, कट होना, थापना, सुखयु , अवरोधहीन, ह वाहक, अ याचना १-८ कामवषक, शोभा, नाराशंस, उ म वरण ९-१६ ३०.
थान, श द, सनातन, कु शकगो ीय,
इं क तु त १-२२ वरोध, आना, भयंकर, थत होना, मलाना, श सुगम बनाना, शूर १-११
याचना, धनदान, वृ वध, समतल,
दशाएं न त, उ म कम, गाय का मण १२-१४ श ुवध, रा स पर अ
फकने, अ
वामी बनाने क
ाथना १५-१८
इ छाएं बढ़ना, तु त, आ ान १९-२२ ३१.
इं का वणन १-२२ धेवता, क या का अ धकार, पु , इं से मलना १-४ गो ा त, सरमा नामक दे वशुनी, गाएं मलना, शु णवध, अमरता, नयु , न म , नमाण, श यां घो ड़यां, उ प , जल उ प , म त क सहायता ५-१७ वामी, नवीन, पापनाशक, बंद करना, आ ान १८-२२
३२.
सोम व इं क तु त १-१७ घोड़ के जबड़ म घास भरना १ दान, सुंदर ठोढ़ , गमनशील, जल छोड़ना २-६ न य त ण, लोकधारक, तेज वी, सोमपान ७-१० धरती दबाना, वृ
३३.
, आक षत करना, पुकारना, सामने जाना, आ ान ११-१७
इं का वणन १-१३ व ा म व न दय का संवाद, सतलज व जाना १-१३
३४.
ास नद , भरतवं शय का उनके पास
इं का वणन १-११ धरती व आकाश क तृ त, तु त १-२
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वध, यु ३५.
जीतना, पीसना, धन बांटना, वरणीय दान, पालन, दमन, आ ान ३-११
इं क तु त १-११ सोम दे ना, घोड़े जोड़ना, जौ, रथ म जोड़ना, हरी नामक घोड़े, सोमपानाथ ाथना, जौ, तु तयां १-८ सहायता, आ ान ९-११
३६.
इं क तु त १-११ संग त, सोमरस, ओज, गाएं, अंत र , लताएं नचोड़ना, बांटना, धन मांगना, आ ान १-११
३७.
इं क तु त १-११ रे णा, अनुकूल बनाना, शत तु, मानवाधारक, धन दे ने एवं असुर नाशाश पुकारना १-६ वृ हंता, जागरणशील, पांच जन, अ दे ने व य म आने क
३८.
ाथना ७-११
इं का वणन १-१० मरण, वग ा त, सुशो भत, इं सभा, जल नमाण, दे खना, समपण, मलन, कम को दे खना, पुकारना १-१०
३९.
इं का वणन १-९ तु तय का पतर के पास से आना १-२ य कम से संगत होना ३ पतर का नदक ४ सूय दशन, असुर, वरण, धन याचना, व नेता इं
४०.
५-९
इं क तु त १-९ सोमपान हेतु आ ान, आ ह, बढ़ना, आ ान १-९
४१.
इं क तु त १-९ आ ान, कुश बछाना, तु तयां, पुरोडाश, उ थ, श
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वामी १-५
ह व, सोमयु , रथ ६-९ ४२.
इं क तु त १-९ तृ त, सामने जाना, धन मांगना, सोमपानाथ आ ह, े रत करना १-९
४३.
इं क तु त १-८ घोड़े खोलने, समीप आने व तु तयां सुनने हेतु ाथना १-४ धन याचना, ह र नामक घोड़े, सोमा भलाषी, उ साही ५-८
४४.
इं क तु त १-५ इं का सोम, वृ
४५.
क ा, गाय को छु ड़ाने वाले १-५
इं क तु त १-५ य म रथ से आने क
ाथना १-२
सोम से मलना, पु याचना, तुत इं ४६.
३-५
इं क तु त १-५ स , पू य, अ ेय, र क, सोमधारक १-५
४७.
इं क तु त १-५ वामी, वृ हंता, सहायता व स करना, आ ान १-५
४८.
इं का वणन १-५ जलवषक, सोम पलाना, सोम दे खना, श ुजेता, आ ान १-५
४९.
इं का वणन १-५ पाप व फलदाता, श ुनाशक, हवनीय, अ के वभाजक १-५
५०.
इं का वणन १-५ आ ह, कु शकगो ीय ऋ ष, वनाशकारी १-५
५१.
इं का वणन १-१२
शंसनीय, नेता, तु त, नम कार, शासक, सखा १-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शायात, वभू षत होना, म भाव ७-९ सोमपान का आ ह १०-१२ ५२.
इं का वणन १-८ सोमपान, पुरोडाश भ ण हेतु ाथना १-२ भ ण, सेवा, जौ, उ सा हत करना ३-८
५३.
इं का वणन १-२४ ह
खाने, य म रहने व कुश पर बैठने का आ ह १-३
प नीयु घर, योजन, क याणी, प नी, व ा म , प बदलना, स रता रोकना, सोमपान का आ ह, राजा सुदास, भरतवंशीय, व धारी, मंगद, अमृत प, अ , जमद न ४-१६ ढ़ रथ, बैल, ख दर, शीशम, रथ १७-२० उपाय, कु हाड़ी, सव , भरतवंशी ५४.
य, व स
२१-२४
व ेदेव का वणन १-२२ तो बोलना, अनुभव, नम कार, मह व जानना, वगमाग १-५ धरती व आकाश दे खना, जाग क, वभाजन, ःखी न होना, वाहन, जह्वा, य म आना, याचना ६-१२ ऋ , पाद व ेप, इं , अ नीकुमार, दे व व, व ण १३-१८ आकाश, म द्गण, तु त सुनने का आ ह १९-२० म ता, ह
५५.
का वाद २१-२२
उषा, अ न, इं एवं धरती-आकाश क तु त १-२२ बल, हसा न करने क
ाथना, काशक, अर ण, वृ
म रहना, सूय का सोना १-६
मूलकारण, ा णय का भागना, सूय के साथ चलना, भूवन करना, तु त ७-१२ भीगना, पु या मा, पापा मा १३-१६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाता, जोड़ा धारण
गजन, वृ , ऋतुए,ं पांच अ जापालन, श ु
से संप
१७-१८ छ नना १९-२०
म त का आगे रहना, ओष ध २१-२२ ५६.
व ेदेव का वणन १-८ बाधक न बनना, ऋतुए,ं संव सर, जल १-४ इला, सर वती एवं भारती से य म आने क
ाथना ५
धन याचना, वा दे वी ६-७ तीन उ म थान ८ ५७.
व ेदेव का वणन १-६ ानी, मनचाही वषा, ओष धयां, द तयां १-४ ेरणा दे ना, उ म बु
५८.
५-६
अ नीकुमार क तु त १-९ ध दे ना, रथ, वृ
१-३
सूय का उदय होना, तो , जा वी गंगा, न यत ण अ नीकुमार, ह व अ , शु घर ४-९ ५९.
म अथात् सूय का वणन १-९ काम म लगाना, अनु ह, य के समीप रहना, से , नम कार के यो य १-५ म का अ , अंत र को हराना, ह व दे ना, अ दाता ६-९
६०.
ऋभुगण एवं इं क तु त १-७ कम जानना, दे व व, अमृत पद क
ा त, सीमा जानना असंभव, सुध वा १-५
कम न त, आ ान ६-७ ६१.
उषा का वणन १-७ तुत, सच बोलना, सूय का ान कराने वाली, सूय क प नी, तेज धारण करना १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स ययु , काश फैलाना ६-७ ६२.
इं , व ण, बृह प त, पूषा व सोम क तु त १-१८ अ दाता, तु त सुनने, र ा करने हेतु ाथना १-३ ह
सेवनाथ ाथना, बल व मनचाहा फल मांगना, सामने आने क
ाथना ४-८
र क, तेज का यान, दान चाहना ९-११ सेवा करना, य म आना, पशु
को रोगर हत अ दे ने क याचना १२-१४
य म बैठने, मधुर रस दे ने क आ ह १५-१८
ाथना, सुशो भत बनने व सोमपान का
चतुथ मंडल सू १.
वषय
मं सं.
अ न एवं व ण क तु त १-२० ेरक, से , ाता, द तशाली, पूजनीय, आ ान १-७ वालाएं, उ रवेद , सचन, े , तु त, अं गरा का य फलदाता, उद्घाटन ८-१५ उषा, ऊपर प ंचना, गोधन, तु त, पूजनीय १६-२०
२.
अ न क तु त १-२० थापना, दशनीय, तु त, आ ान, ह
अ , र क दानी, स करना, सेवा १-९
होता, छांटना, मेधावी, धन मांगना १०-१३ अर ण मंथन, द त यु , गाएं नकालना, गोधन, संप , अ न धारण, वरे य १४-२० ३.
अ न क तु त १-१६ य
वामी, तय करना, तो , कारण पूछना, फलदाता, कहानी, स य प १-८ ध याचना, सव जाना, पहाड़ उखाड़ना, न दय का बहना, कु टलबु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
, उ त
बनाने व मं ४.
वीकार हेतु ाथना, तु तयां ९-१६
अ न क तु त १-१५ आगे बढ़ने, चनगा रय को फैलाने, अ न से बचाने, रा स , श ु व का शत होने का आ ह १-६
का नाश करने
फलदाता, तु त, सेवा, आ त य, गौतम, र क ७-१२ द घतमा, अ दे ने व अपयश से बचाने क ५.
ाथना १३-१५
अ न का वणन १-१५ वग थामना, नेता े , वराजमान, तीखे दांत, नरक, धन याचना १-६ थापना, र क, वै ानर, जह्वा, वालाएं ७-१५
६.
त ा, जातवेद, उषाएं, अतृ त लोग,
अ न क तु त १-११ होता, जा, द णा, प र मा १-४ क याणी मू त, का शत होना, अंगु लयां, आ ान, आवाज करना, धन याचना ५-११
७.
अ न का वणन १-११ था पत, हण, य शाला, क याणाथ लाना, तेज १-५ थापना, स करना, वग, त, जलाना, बलयु
८.
अ न का वणन १-८ बढ़ाना, ाता, धन दे ना, तकम, स करना,
९.
स
बनना, पापनाशक १-८
अ न क तु त १-८ आ ान, जाना, होता, उपव ा, ह
१०.
करना ६-११
ा १-४
वहन, तो सुनने का आ ह, र क ५-८
अ न क तु त १-८ उपकारक, नेता, तेज वी गमनक ा, श द करना, शो भत होना, पापर हत,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पापनाशक, ोतमान १-८ ११.
अ न क तु त १-६ तेज, तुत, उ थ, अ , सेवा, बलपु
१२.
अ न क तु त १-६ जातवेद, धन ाथना १-६
१३.
१-६
ा त, वामी, पापर हत करने, सुख दे ने व आयु बढ़ाने क
अ न का वणन १-५ आगमन, सहारा, वहन, अंधकार का नाश, वगपालक १-५
१४.
अ न का वणन १-५ बढ़ना, सहारा, उषा का आना १-३ सोमरस, सूय ४-५
१५.
अ न, सोम एवं अ नीकुमार का वणन १-१० अ न लाना, ह , घेरना, सृजव १-४ तेज वी, समथ, कुमार, घोड़े लेना, कुमार के द घायु हेतु ाथना ५-१०
१६.
इं का वणन १-२१ सोम नचोड़ना, तु त, करण, अंधकार का नाश १-४ म हमा, बरसा, ेरणा ५-७ वद ण करना, कु स ऋ ष, शची, श ुनाशक, शु ण, कुयव को मारना ८-१२ मृगय का वध, ऋ ज ा, भयानक, समीप जाना, आ ान, र क बनने क ाथना १३-१७ हसार हत, धनपूण, तो क रचना, अ वृ
१७.
हेतु ाथना १८-२१
इं का वणन १-२१ बल वीकारना, यास मटाना, श ुजेता, उ प , तु त १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाधारक, र क, तु त, अ धारक, श ुनाशक, गाएं छ नना, धन बांटना ६-११ बल ा त, धनदाता, भगाना, झुकना १२-१६ सुखदाता, पूजन, श ुहंता, जाधारक, नई तु तयां १७-२१ १८.
इं का वणन १-१३ इं एवं वामदे व का वातालाप १-४ घेरना, मेघ भेदना, वृ वध, नगलना, सर काटना, अजेय इं
५-१०
वाता, कु े क आंत ११-१३ १९.
इं का वणन १-११ समथ, पानी रोकना, वृ वध, जल छ - भ करना १-४ जलभरना, तुव त व व य, गो दोहन, छु ड़ाना, व मीक, वणन, नई तु तयां ५-११
२०.
इं क तु त १-११ घरना, य म आने, उसे पूरा करने व सोमरस पीने क वशाल, आ त, शासक, बु
२१.
ाथना, शंसा करना १-५
बल, धन मांगना, तु तयां ६-११
इं का वणन १-११ आ ान, श ु हराना, बुलाना १-३ थूल व वशाल, लोक- तंभक, तु तयां ४-११
२२.
ोधी, पालक, गौर व गवय क
ा त, उ म कम,
इं का वणन १-११ ह
आ द वीकार करना, प णी नद , धरती व आकाश कंपाना १-३
श द करना, अ ह का नाश, अ धक ध दे ना, तु त ४-७ ेरणा, बल, गाय व अ हेतु ाथना ८-११ २३.
इं का वणन १-११ अ भलाषा, कृपा
, उपाय जानना, तु तयां, म ता, ग तशील १-६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेज आयुध, तु तय का वेश ७-८ गाय का वेश, ऋतदे व, तु तयां वीकार हेतु ाथना ९-११ २४.
इं का वणन १-११ बलशाली, धनदाता, र क, य , पुरोडाश १-५ म बनाना, बल धारण, सं ाम, कम मू य मलना, तु तयां ६-११
२५.
इं का वणन १-८ हतैषी, ाथना, सोमरस नचोड़ना, पुरोडाश १-६ हसा, म , अ हेतु पुकारना ७-८
२६.
इं का वणन १-७ उशना क व, संक प, दवोदास, मनु जाप त, सोम लाना १-५ येन प ी, श ुनाश ६-७
२७.
येन प ी का वणन १-५ ज म जानना, हराना, सोम छ नना, भु यु, सोमपानाथ आ ह १-५
२८.
इं एवं सोम क
ाथना १-५
ेरणा, प हया तोड़ना, सेनानाश, गुणहीन बनाना, गोदान १-५ २९.
इं व सोम क तु त १-५ आ ान, स रहना, डर भगाने क
३०.
ाथना, घोड़े जोड़ना, धन-पा बनना १-५
इं क तु त १-२४ स न होना, महान्, यु , प हया चुराना, यु नाश १-७
करना, एतश ऋ ष, दनुपु का
उषा का वध, टू ट गाड़ी, गाड़ी का गरना, थापना, नगर का नाश, शंबर, व च व सेवक का वध, परावृ , तुवश एवं य नामक राजा ८-१७ औव व च रथ का वध, कृपा करना, दवोदास को नगर दे ना, रा स का संहार, अजेय, श ु वदारक १८-२४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
३१.
इं क तु त १-१५ बढ़ना, पूजनीय, र क, गोल च कर, मरण, प र मा, फलदाता, धनदाता १-८ असमथ रा स, यास, म ता, र ाथ ाथना, उपाय द तशाली, आकाश ९-१५
३२.
इं क तु त १-२४ श ुहंता, अभी दाता, श ुनाशक, तु त, मनोहर, गो वामी के म , गोधन का वामी, अप रवतनीय अ भलाषा, गौतम, नगर का नाश, दशन, व त १-१२ आ ान, अ , ह र नामक घोड़े लाने व पुरोडाश भ ण हेतु ाथना १३-१७ आक षत करना, सोना मांगना, १८-१९ धन याचना, घोड़ क
३३.
ऋभु
शंसा, गोदाता, घोड़ का सुशो भत होना २०-२४
का वणन १-११
घेरना, पु , त ण बनाना, अमर पद, बात मानना, अ भलाषा, सुख से रहना १-७ रथ बनाना, कम वीकारना, ह षत करना, म न बनाना ८-११ ३४.
ऋभु
क तु त १-११
वभु, दे व ेणी, पू य दे व, य म आने व सोमपान हेतु ाथना, स रहना, शंसक, धनदाता १-११ ३५.
ऋभु
क तु त १-९
सुध वा क संतान, चमके भाग होना, कृपा, सोम नचोड़ने का आ ह १-४ सोम वाले वभु, सोम नचोड़ना, वग म बैठना, दानयु ३६.
ऋभु
बनाना ५-९
क तु त १-९
आकाश म घूमना, कु टलताहीन रथ, युवा बनाना, गोचम से ढकना, शंसनीय १-५ संर ण, दशनीय, अ उपजाने व यश संपादन का आ ह ६-९ ३७.
ऋभु
क तु त १-८
य धारण, इ छा, सोमरस धारण, ठो ड़यां, पुकारना १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ यु ३८.
बनना, बल, ध अ याचना ६-८
ावा-पृ थवी एवं द ध ा दे व क तु त १-१० सद यु, द ध ा, तेज चाल वाले, उपभोग, भागना, साथ चलना, सहनशील १-७ द ध ा को न रोक पाना, तु त, जा बढ़ाना ८-१०
३९.
द ध ा दे व का वणन १-६ तु त, कामवष , पापनाशक, तोता ाथना १-६
४०.
के क याण हेतु बुलाना, द घायु क
द ध ा दे व का वणन १-५ तु त, भरणकुशल, उड़ने वाले, शी चलना, सूय का नवास १-५
४१.
इं एवं व ण क तु त १-११ अमर होता, भाई बनाना, धन दे ने व बल योग क
ाथना १-४
तु त, श ुनाशाथ ाथना, ेम एवं म मांगना, तु तय का जाना ५-९ धन व वजय हेतु ाथना १०-११ ४२.
इं , व ण एवं सद यु का वणन १-१० दो कार के रा य, बल करना, धारक, बांटना १-४ पुकारना, डरना, श ु-वध, पु कु स, सद यु, व नाशक ५-१०
४३.
अ नीकुमार क तु त १-७ वंदनशील, क याणकारी, श
दशन, र ा १-४
रथ चलना, सूयपु ी, तु त ५-७ ४४.
अ नीकुमार क तु त १-७ रथ को पुकारना, शोभा ा त, शंसा, धन याचना १-४ वग से आना, साथ दे ना, आ त ५-७
४५.
अ नीकुमार का वणन १-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
चमपा , अंधकार का नाश १-३ सुनहरे पंख वाले, तु त, तेज फैलाना, मण ४-७ ४६.
वायु एवं इं क तु त १-७ थम सोमपानक ा, लोक क याणकारी, सोमपान, आसन, नकट आना १-५ सोमपान हेतु ाथना ६-७
४७.
वायु एवं इं क तु त १-४ सोमरस लाना, इं -वायु, रथ पर चढ़ना, अ याचना १-४
४८.
वायु क तु त १-५ सोमपान हेतु आ ान, अ
वामी १-२
अनुगमन, तेज ग त वाले, जोड़ने क ४९.
ाथना ३-५
इं एवं बृह प त क तु त १-६ तु तयां, सोमपान, धन दे न,े सोमपान करने व नवास करने का आ ह १-६
५०.
बृह प त व इं क तु त १-११ दशाएं थर करना, श ु का कांपना, वग से आना, अंधकारनाशक, गाएं छु ड़ाना १-५ कामवष , श ु को हराना, फल से बढ़ना, याचना, दया भावना ६-११
५१.
उषा का वणन १-११ उगना, घेरना, उ सा हत करना, द त करना १-४ उषा, काश फैलाना ५-६ क याणकारी, शंसा का पा , वचरना ७-९ धन हेतु जगाना, यश व अ - वामी बनाने क
५२.
ाथना १०-११
उषा क तु त १-७ अंधकारनाशक, तुत, मां १-३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जगाना, संसार भरना, अंधकार मटाने व अंत र ५३.
ा त करने क
स वता का वणन १-७ धन मांगना, कवच, काम म लगाना, तर क, याचना १-७
५४.
ाथना ४-७
ापक, क याण, पु , पौ व धन
स वता क तु त १-६ र दाता, सोम क उ प , पाप र करने क
ाथना १-३
नवास थान व धन याचना ४-६ ५५.
व ेदेव क तु त १-१० र ाथ ाथना, इ छापूरक तु त १-३ य -माग बताना, र ा हेतु ाथना तु त, र ा व धन याचना ४-१०
५६.
धरती-आकाश क तु त १-७ गरजना, य यो य, े रत करना, वामी बनाने क
ाथना १-४
ु त संप , य वहन करने व पास बैठने का आ ह ५-७ ५७.
खेती का वणन १-८ सहायता, मधुर जल, ओष धयां मांगना, अनुगमन, चाबुक, जल- नमाण १-५ हल से धन व धरती से फसल मांगना ६-८
५८.
अ न, सूय, जल, गाय एवं घृत का वणन १-११ मरणर हत, पालन, मानव म वेश, घृत उ प
१-४
जल का गरना, घृत का अ न पर गरना, आगे बढ़ना, मलना, मधुरतापूवक चलना, मधुरस ५-११
पंचम मंडल सू
वषय
मं सं.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
प नखारना,
१.
अ न का वणन १-१२ बढ़ना, मु होना कट करना, मन का जाना, उ प होना, बैठना, तु त, सुखकर, तेज को हराना १-९ ब ल, दे व को लाना, तु त १०-१२
२.
अ न का वणन १-१२ गुफा म रखना, उ प , तु त, युवा बनना, ाथना १-५ छपाना, शुनःशेप, त पालक, चमकना ६-९ उ प , तु तयां बनाना, धन पर अ धकार १०-१२
३.
अ न क तु त १-१२ अनुगमन, अयमा, गोपनीय उदक, दशनीय, श ु-नाश, नाशाथ ाथना १-७ त बनाना, पाप से अलग करने क
व लत करना, पापी के
ाथना ८-९
वीकारना, भागना, अपराध १०-१२ ४.
अ न क तु त १-११ तु त, ह वाहक, बंटवारा १-३ आ ान, श ुनाश, काशयु , बल के पु , र ाथ ाथना ४-९ बुलाना, अ , पु व अ य धन मलना १०-११
५.
य शाला का वणन १-११ हवन, नाराशंस, सुखदाता, तु त, साधन, य चलना, सुखकारी दे वयां,
६.
ा त होना, ह
नमाता १-६ ले जाने क
ाथना, स करना ७-११
अ न क तु त १-१० आ यदाता, नवासदाता, अ व पु दे ना, काशमान, जापालक, अ लाने क ाथना १-७ अ मांगना, मुख म चमस, पास जाना ८-१०
******ebook converter DEMO Watermarks*******
७.
अ न का वणन १-१० म
प, स होना, ह
वीकारना १-३
वन प तयां जलाना, चढ़ना ४-५ जानना, छ - भ करना, तु तयां, घृतभोजी, पशु ा त ६-१० ८.
अ न क तु त १-७ वरे य, थान दे ना, ववेचक, समीप जाना १-४ वामी बनना, धारण करना, स चत ५-७
९.
अ न क तु त १-७ तु त, बुलाना, ज म दे ना, क ठनाई, लपट फैलाना, पाप से पार होने व समृ क ाथना १-७
१०.
अ न क तु त १-७ अबाधग त, बल थत, धन व क त क सव जाना, र ा व समृ
११.
हेतु ाथना ५-७
अ न का वणन १-६ र क, धुएं का थत होना, त, बढ़ाने क
१२.
ाथना, अर ण मंथन १-६
अ न क तु त १-६ कामनापूरक, द तशाली, भ
१३.
ा त १-४
वामी, सेवक, श -ु संहार, घर मलना १-६
अ न क तु त १-६ र ाथ पूजन, द तशाली, तु त, व तार करना, बल-धन मांगना १-६
१४.
अ न का वणन १-६ अमर, तु त, का शत होना,
१५.
ांतदश , वधन १-६
अ न का वणन १-५ तु त-रचना, दे व ा त, पापर हत बनाना, धारण करना १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनाने
१६.
अ न का वणन १-५ अ दे ना, धन ा त, आघात, हण, तु त १-५
१७.
अ न का वणन १-५ आ ान, यश वी,
१८.
ा त करना, रथ व धन ा त, धन याचना १-५
अ न का वणन १-५ कामना, तु त, आ ान, अ रखना, घोड़े दे ना १-५
१९.
अ न का वणन १-५ दे खना, र ा करना, श
२०.
बढ़ाना, तो सुनने एवं सामने आने क
अ न क तु त १-४ ाथना, वरण, र ाथ तु त १-४
२१.
अ न क तु त १-४ व लत करना, ुच से ा त, सेवा, सस ऋ ष १-४
२२.
अ न का वणन १-४ पू य, साधन, अलंकृत १-४
२३.
अ न क तु त १-४ बलशाली व श ुजेता पु मांगना, धन व काश हेतु ाथना १-४
२४.
अ न का वणन १-४ समीपवत बनने, धन दे न,े पुकार सुनने क
२५.
ाथना, पु याचना १-४
अ न क तु त १-९ र ाथ ाथना, शं सत, धनयाचना,
व
१-४
श ुजयी पु क कामना, तो , श द करना, वंदना ५-९ २६.
अ न क तु त १-९
द तशाली, लपट वाले, व लत करना, ाथना, बल मांगना १-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाथना १-५
य कम, बढ़ाना, वाहक ५-७ ह व प ंचाने व कुश पर बैठने क २७.
ाथना ८-९
अ न क तु त १-६ य ण, बैल का स होना, धन याचना १-६
२८.
अ न का वणन १-६ व वारा, र क, श ुनाशाथ तु त, य यु , वरण का आ ह १-६
२९.
इं एवं म त क तु त १-१५ तेज धारण, तु त, अ ह का वध, तं भत करना, एतश, पकाना, मांस भ ण, आ ान १-८ कु स, शु ण व द यु
का वध, प हया दे ना, प ु असुर, गाय छु ड़ाना ९-१२
धन वामी, नमाण, तो , सामान दे ना १३-१५ ३०.
इं एवं अ न क तु त १-१५ घर जाना, भयानक थान दे खना, पवत तोड़ना, गो ा त १-४ डरना, शंसा, नमु च-वध ५-७ बादल न करना, सुंद रयां घर म रखना, मलाना, व ु क गाएं, राजा ऋणंचय ८-१५ गाएं मलना, गाएं
३१.
इं क तु त १-१३ चलना, प नीयु
करना, यो य बनाना, जल धारण १-६
अ धकार करना, घर प ंचाना, अंधकार मटाना, घोड़े मलना, अव यु, ग तहीन करना ७-११ धन दे ने आना, तु त १२-१३ ३२.
इं का वणन १-१२ माग खोलना,
स
बनाना, उ प , मेघ-र क, कम जानना, वृ वध, न न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनाना १-७ धन छ नना, नीचा होना, क याणकारी, ेरक ९-१२ ३३.
इं क तु त १-१० तु त बोलना, जीत ाथना, रथ हांकना, नाम मटाना, बल बढ़ाना, शंसा, र ाथ ाथना १-७ रथ ख चने का अनुरोध ८ ढोने का आ ह, धन याचना ९-१०
३४.
इं का वणन १-९ तुत, पेट भरना, द तशाली बनना, भागना, वश म रखना १-६ धन व गाएं दे ना, अ
३५.
क तु त ७-९
इं क तु त १-८ अजेय, र ाथ ाथना, पुकारना, कामवष १-४ मण, आ ान, अ गंता, धन अपण ५-८
३६.
इं क तु त १-६ उ म ग त, आ त १-२ पुरावसु ऋ ष, धन बांटना ३-४ वृ कारी, राजा तुरथ ५-६
३७.
इं का वणन १-५ य न करना, तु त, म हषी लाना १-३ साथ चलना,
३८.
य बनना ४-५
इं क तु त १-५ महानता, अ दाता, समथ, इ छा, शत तु १-५
३९.
इं क तु त १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वामी, अ हेतु आ ह १-२ स , तु त, अ ४०.
ऋ ष ३-५
इं व सूय क तु त १-९ श ुहंता, आनंददाता, सोमपान व स वातालाप १-७
होने का आ ह, अंधकार, माया भगाना,
माया वतं करना ८-९ ४१.
व ेदेव क तु त १-२० र ा करने, सेवा वीकारने, सुंदर तो एवं ह अ
बनाने क
ाथना १-३
४-५
बैठाने का आ ह, ह अनुकूल बनने क
दे ना, तु त ६-८ ाथना, तु त, र ा ाथना ९-११
दे व क तु त, आ तयां दे ना १२-१४ भू म क तु त, श ुनाशक, संतान व अ हेतु सेवा १५-१७ उप थत होने क ४२.
ाथना, य क
शंसा, र ाथ ाथना १८-२०
व ेदेव क तु त १-१८ ाथना, व ण, सोना मांगना, य यो य दे व से मलना १-४ व ा, ऋभु ा, वाज, कमकथन, सुखदाता ५-७ पु वान बनना, अ ती, नदक आ द को अंधकार म डालने क ाथना, ओष धवामी, राका, प दे ना, जल नमाता, का शत करते ए चलना ८-१४ धना भलाषी, बु
४३.
म न डालने व सुख भोगने क
ाथना, सौभा य याचना १५-१८
व ेदेव क तु त १-१७ आ ान, इ छा, सोम दे ना, मधुर रस टपकाना, सोमरस नचोड़ना १-५ ह
वहन क ाथना, पा रखना, य म लाना, तु तय को सुनने व अथ जानने क ाथना ६-११
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ धारक, पोषण, अ भट, वीर पु याचना १२-१७ ४४.
व भ दे व का वणन १-१५ अंतरा मा, मायाहीन १-२ अजर, जल चुराना, शोभा पाना ३-५ थर करना, अ भलाषा, सुख मांगना, तु त, अ पू त, मद ा त, सदापृण, यजत आ द ऋ ष ६-१३ कामना, तो
४५.
ा त १४-१५
व भ दे व क तु त १-११ व
फकना, थरता, बरसना, बुलाना १-५
ार खुलना, पूजा, सरमा, प ंचना, झुकना, र त होने व पाप लांघने म समथ होने क ाथना ६-११ ४६.
व भ दे व का वणन १-८ भारवहन, ाथना, आ ान, सुख व धन याचना, अ द त, सुख मांगना, ह ाथना १-८
४७.
व भ दे व का वणन १-७ वग से आना, ग तशील होना, रथ का वेश १-३ ेरणा, तु य, कपड़े बुनना, नम कार ४-७
४८.
व भ दे व का वणन १-५ व तार करना, ढकना १-२ घूमना, धन दे ना, सुशो भत होना ३-५
४९.
व भ दे व का वणन १-५ म ता, शंसा का आ ह, लकड़ी खाना व तेज फैलाना १-३ तर कार न होना, स होने क
५०.
ाथना ४-५
व भ दे व का वणन १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
भ णक
याचना, तु तयां, य नेता १-३ यूप, तु त ४-५ ५१.
अ न, इं वायु एवं अ नीकुमार क तु त १-१५ सोमपान हेतु आ ह,
य होना, १-४
आ ान, यो य होना, दही मला सोमरस ५-७ म ता, आ ान ८-१० पाप से बचाने क
ाथना ११-१३
धन क वा मनी, क याण व बंधु म ५२.
से मलन कराने हेतु ाथना १४-१५
म द्गण का वणन १-१७ स होना, मणक ा, तु य, ह
दे ना, १-४
नेता, आयुध ५-६ म द्गण, प र म करना, घरना, य धारण हेतु ाथना ७-१० दशनीय, कूप नमाण, नमाता, आ ान ११-१४ दान ा त, पृ , ५३.
, गाएं दे ना १५-१७
म द्गण क तु त १-१६ पृ , वषाकारी १-२ तु त, मु दत होना, बरसना, आकाश जाना ३-७ आ ान, न दयां, शंसा ८-१० अनुगमन, ह वदाता, बीजदाता, जल, गाय आ द मांगना ११-१४ कृपापा , तु त हेतु आ ह १५-१६
५४.
म द्गण का वणन १-१५ तेज वी, जल गरना, बल संप , सवथा समथ १-४
पवत तोड़ना, धन याचना, संर ण ५-७ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स चना, वषा करना माग पार, करना, सुनहरी पगड़ी ८-१२ अ य, राजा यावा , धन याचना १३-१५ ५५.
म त क तु त १-१० अ धारण, असी मत ान, अ तशय १-४ जलहीन न होना, बुंद कय वाली घो ड़यां, फैलना, पीछे चलना, पाप से बचाने हेतु ाथना ५-९
५६.
अ न एवं म त क तु त १-९ आ ान १-२ समूह का आना, श ुनाश, आ ान, घोड़े जोड़ने हेतु ाथना, दे र न करना ३-९
५७.
म त क तु त १-८ जल प ंचाना, आ ान, वन का कांपना, व तृत होना १-४ अमृत ा त, आयुध धारण करना, उ म संतान, धन व वषा हेतु ाथना ५-८
५८.
म त क तु त १-८ भासंप , द तशाली, आ ान, श ुनाशक, पु हेतु ाथना, गरजना, गभधारण, धन वामी १-८
५९.
म त क तु त १-८ तु त, दखाई दे ना, ाता, वृ , यु
करना, हतकारी १-६
पानी गराना, वषा हेतु ाथना ७-८ ६०.
अ न एवं म त क तु त १-८ तु त, बलसंप , श द करना, वग का कांपना १-३ शोभा धारण करना, न य युवा, आ ान, श ुनाश व सोमपानाथ ाथना ४-८
६१.
म द्गण क तु त एवं रानी शशीयसी का वणन १-१९ अकेले आना, लगाम दखना, कोड़े लगना, हतकारी, रानी शशीयसी, महानता १-६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दान का वचार, समान, माग बताना, संप
दे ना, तु तयां, चमकना ७-१२
बाधाहीन ग त, स होना, वग, धन मांगना १३-१६ रथवी त, सूचना प ंचाने हेतु ाथना १७-१९ ६२.
म एवं म त् का वणन १-९ सूयमंडल, चमक ला बनाना, आकाश, न दय का बहना १-४ अ
वामी, पाप ाता, वणरथ, ५-७
लोहे क क ल, व र क ८-९ ६३.
म एवं व ण क तु त १-७ रथ पर बैठना, शासन करना, आ ान १-३ करना, घोड़े जोड़ना, मण, गरजना, य र ा ४-७
६४.
म एवं व ण क तु त १-७ आ ान, जाना, घर म सुख मलने क
ाथना १-३
धन ा त क आशा, आ ान ४-५ अ धारक, नकट आने क ६५.
ाथना ६-७
म एवं व ण क तु त १-६ तु त जानना, घूमना, र ाथ ाथना, उपाय बताना, र ाथ ाथना १-६
६६.
म , व ण एवं धरती क तु त १-६ श ुनाशक, श
६७.
, र ा हेतु तु त, जल बरसाना, रदश १-६
म एवं व ण क तु त १-५ हतकारक, क याणकारी, भ र क, माग दखलाना, शरण लेना १-५
६८.
म एवं व ण का वणन १-५ आ ान, शंसनीय, दानदाता, बढ़ना, रथ १-५
६९. म एवं व ण क तु त १-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कमर क, जलधारक, तु त, भूलोकधारक १-४ ७०.
म एवं व ण क तु त १-४ सुम त, अ याचना, श ुसंहार करने व आ म नभर बनाने क
७१.
ाथना १-४
म एवं व ण क तु त १-३ आ ान, कम सफल बनाने व सोमपान का आ ह १-३
७२.
म एवं व ण क तु त १-३ आ ान, य कम म लगना, सोमपान का अनुरोध १-३
७३.
अ नीकुमार क तु त १-१० आ ान, बुलाना, लोक मण, अ मांगना, करण का बखरना, तु त, अ , भरण, ाथना, तु तयां १-१०
७४.
अ नीकुमार क तु त १-१० सेवा करना, सहायक क इ छा, वृ वषय, ह १-१०
७५.
क
अ नीकुमार क तु त १-९ मधु- व ा ाता, वण रथ, अ यु , तु त, ह आ ान, अव यु ऋ ष, नाशहीन रथ १-९
७६.
ाथना, युवा बनाना, आ ान, शरोधाय,
दे ना, यवन ऋ ष, व च
प वाले,
अ नीकुमार क तु त १-५ व लत होना, आ ान, र ाथ ाथना, घर, सौभा य मांगना १-५
७७.
अ नीकुमार क तु त १-५ य धारक, तृ त करना, मांगना १-५
७८.
गम माग पार करना, संतान का पालन, सौभा य
अ नीकुमार क तु त १-९ आ ान, गौरमृग, घरदाता, र ाथ ाथना, स तव क ाथना, जरायु, जीवधारी १-९
ऋ ष, बंद सं क, ग तशील होने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
७९.
उषा क तु त १-१० अ दे ने वाली, स य वा, अंधकार हरने क ाथना, मरण करना, तु त, अ मांगना, तु त, गाएं, धन याचना, ताप न दे ने का आ ह, हसा न करना १-१०
८०.
उषा का वणन १-६ महती, काश फैलाना, धन थायी करना, भली काश बखेरना १-६
८१.
कार चलना, उप थत होना,
स वता क तु त १-५ काय म लगना, काश फैलाना, सी मत, म बनना, यावा ऋ ष १-५
८२.
स वता क तु त १-९ ाथना, ऐ य, कामना, द र ता, अमंगल भगाने क सेवा, ेरणा १-९
८३.
ाथना, धन धारण हेतु ाथना,
पज य क तु त १-१० गभधारण, भागना, वषायु करना, गरजना-टपकना, झुकना, पालक, जल धारण हेतु ाथना, मु दत होना, तु तयां मलना १-१०
८४.
पृ थवी क तु त १-३ स करना, बादल को फकना, वन प तयां धारण करना १-३
८५.
व ण क तु त १-८ व तृत करना, सोमलता का व तार, धरती को गीला करना, बादल श थल करना, नापना, वरोधहीन तु त, अपराध न करने व य बनाने क ाथना १-८
८६.
इं व अ न का वणन १-६ तक काटना, तु त, व , शंसनीय, अ हेतु तु त, अ मांगना १-६
८७.
म द्गण का वणन १-९ एवयाम त्, थर होना, पुकार सुनना, बल व तेजयु , अपार म हमा, व तृत गृह, पाप भगाने व नदक को वश म करने क ाथना १-९
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ष म मंडल सू १.
वषय
मं सं.
अ न क तु त १-१३ ाथना, अनुगमन, अ -धन हेतु तु त, माता- पता, आनंददाता, तु त १-८ ांतदश , सेवा, अ व धन के लए ाथना, सौभा य व धन हेतु तु त ९-१३
२.
अ न क तु त १-११ अ मांगना, सेवा करना, आ ान व घर याचना १-५ द तयु , पालक, अर ण म वास, वालाएं, समृ
३.
व गृह हेतु तु त ६-११
अ न क तु त १-८ द घायु, शांत बनाना, वालाएं, ती ण, व च ग त, तेज वी, वेगशाली १-८
४.
अ न का वणन १-८ य पूण करने व अ हेतु तु त १-२ प व क ा, अ दाता, तु त, अंधकारनाशक ३-६ ग तशील, शतायु हेतु तु त ७-८
५.
अ न क तु त १-७ धनदाता, था पत, श ुनाशाथ तु त, अ ओर धन याचना १-७
६.
अ न क तु त १-७ होता, युवा, वालाएं, वनदाहक, श ुनाश हेतु ाथना, अ , धन, संतान याचना १-७
७.
अ न क तु त १-७ उ प , धन म वास, धन हेतु तु त, अमरपद दाता, सूय क पालक १-७
८.
अ न का वणन १-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
थापना, उ च थल,
ा त, तर क, श तु त १-७ ९.
धारक, अचनीय वामी, अजर, पु , धन याचना, र ाथ
अ न का वणन १-७ अंधकारनाशक, ताना-बाना, नम कार १-७
१०.
ाता, होता, अमर,
धानक ा, उ सुक बु
,
अ न का वणन १-७ द तशाली, भट दे ना, समृ
एवं गोशाला दाता, अंधकारनाशक १-४
अ , धन, बल याचना, शतायु हेतु तु त ५-७ ११.
अ न क तु त १-६ य क ा, वाला, अं गरा, भर ाज, वेद म वास, धन ा त व श ु से र रखने हेतु ाथना १-६
१२.
अ न का वणन १-६ य वामी, ह याचना १-६
१३.
प ंचाने हेतु ाथना, ान कराने वाली, जातवेद, सुशो भत, संतान
अ न क तु त १-६ धन क उ प , धन मांगना, ानसंप , संप जीने क ाथना १-६
१४.
अ न क तु त १-६ श ु-धन क
१५.
पाना, अ मांगना, संतान के साथ
ा त, कुशल, य हीन, श ुनाशक, र क, द तसंप
१-६
अ न का वणन १-१९ जार क, तु य, भर ाज, एतश, पू य, ांतदश , पालक, सुख याचना, यजन, अ भलाषापूरक, य कता, गृह वामी, सव ापक, र ाथ ाथना १-१५ दे व मुख, मंथन, आ ान, गाहप य य
१६.
१६-१९
अ न क तु त १-४८ होता बनाना, ह , य
वधाता, यजन १-४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुख व हेतु मांगना ५-१२
ाथना भर ाज, तु त, दशनीय तेज, व ान्, तु त, बढ़ाना, धन
अ न मंथन, द यङ्
वलन, तु तयां १३-१६
अनु ह, र ाथ याचना, पालक, म हमा, व तार करना, श ुनाशक, दे व त, प व कमा, अ दाता १७-२८ जातवेद, वशेष
ा, र ा, याचना, तु त, श ुनाशाथ ाथना २९-३४
श ुनाश, अ , संतान ा त हेतु ाथना, शरण लेना, तेज स ग ३५-३९ अ न पकड़ना, ह , सुखकर, आ ान, द त संप , यजन यो य, ऋचाएं, तु त ४०-४८ १७.
इं क तु त १-१५ गाएं खोजना, श ुर क, अ हेतु ाथना, सवगुणी १-४ थापक, धा
बनाना, धरती को पूण बनाना ५-७
अ णी, वृ वध, व तु तयां, बल, अ १८.
बनाना, भसे पकाना, न दयां मु
करना ८-१२
ा त व सौ वष तक स रहने के लए ाथना १३-१५
इं क तु त १-१५ इ छापूरक, सोमपानक ा, पु दे ना, वासदाता, श ुनाशक १-४ बल असुर का वध, नगर का नाश ५ वंदनीय, चुमु र, प ,ु शंबर, शु ण व धु न का वध, माया-नाशक, म हमा ६-१२ कु स, आयु एवं दवोदास १३ धन ा त हेतु ाथना, तो के जनक १४-१५
१९.
इं क तु त १-१३ अपरा जत, यु
संचालन, आ ान, धन वामी, धन, पु व पौ हेतु ाथना १-१०
आ ान, धन से स ता मांगना ११-१३ २०.
इं क तु त १-१३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
धन वामी, वृ संहारक, सोम के राजा १-३ प ण क सेनाएं, शु ण, न म, नगर का नाश ४-७ सुखदाता, अपरा जत, नगर का नाश ८-१० उशना को बढ़ाना ११ य व तुवसु को सागर पार कराना १२ धु न व चुमु र को सुलाना १३ २१.
इं क तु त १-१२ शूर, बु
मान्, बलशाली,
स
कम १-४
अं गरा ारा तु त ५-१० व ान्, माग- नमाता ११-१२ २२.
इं का वणन १-११ स यभाषी, श ुहंता, धन याचना, असुरनाशक, श पाप से बचाने, रा स को जलाने व व संप
२३.
दाता, वृ नाशक १-६
धारण करने हेतु ाथना ७-९
मांगना, आ ान १०-११
इं का वणन १-१० वै दक तु तयां १ यजमान र क, नवास थान व पु दाता २-४ वेदमं
व तो
का उ चारण ५-६
सोमपान हेतु आ ह, स माग ेरक ७-१० २४.
इं का वणन १-१० तु त व अ
वामी, शूर, बु
मान्, वल ण कमक ा १-५
अ े छु क, भर ाजगो ीय ऋ ष ६ शरीर वृ , पवत का भी सुगम होना ७-८ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ , संतान, र ा याचना, सौ वष तक स रहने हेतु ाथना ९-१० २५.
इं क तु त १-९ अ
ा त, श ु से र ा हेतु तु त १-३
ववाद, सवजेता, हवनक ा को धन मलना ४-६ नेता, दे व से मला बल, नवास हेतु तु त ७-९ २६.
इं क तु त १-८ अ के लए तु त १-३ वृषभ, वेतस और राजा तु ज, तु वध, दवोदास, शंबर, दभी त, चुमु र ४-६ बल, सुख व धन मांगना ७-८
२७.
इं का वणन १-८ सोमपान, धन वामी, वर शख के पु चायमान १-८
२८.
का वध, य ावती नद , अ यवत ,
गाय एवं इं का वणन १-८ नाना रंग वाली गाएं, धन दे ना, गाय के साथ रहना वशसन सं कार, इं बनना, ब ल बनाने क ाथना १-६ साफ पानी पीने का आ ह, पु
२९.
हेतु ाथना ७-८
इं क तु त १-६ अनु ह, मानव हतकारी, धनदाता, ध-दही मला सोमरस, अनंत श ठोढ़ १-६
३०.
शाली, हरी
इं क तु त १-५ धनदाता, असुरनाशक, माग बनाना, सबसे बड़े राजा १-५
३१.
इं क तु त १-५ एकमा
३२.
वामी, जल बरसाना, कुयव का वध, नगरी-नाशक, र ाथ पुकारना १-५
इं का वणन १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु तयां, मु ३३.
करना, नगर नाशक, कामपूरक, द णायन सूय १-५
इं क तु त १-५ पु मांगना, अ
३४.
मलना, धन याचना, गो- वामी १-५
इं का वणन १-५ वचारधाराएं, स करना, सोमरस अ पत, सं ाम-र क १-५
३५.
इं क तु त १-५ य कम, धन याचना, गोदाता तो , गाय व अ मांगना ाथना १-५
३६.
इं का वणन १-५ हतकारक, बल पूजा, तु तय का मलना, धन मांगना, श ुधन जीतने के लए अनुरोध १-५
३७.
इं का वणन १-५ तु त, सोमरस का बहना, रथ म जुड़े घोड़े, धन, संतान व बलदाता १-५
३८.
इं का वणन १-५ सोमपान, ेरक तु तयां, मास, संव सर व दन, बल, धन, र ा हेतु सेवा १-५
३९.
इं क तु त १-५ सोमपान का आ ह, इं -प ण यु
१-२
शोभन ज म वाली, तेज से भरना, सेवक मांगना ३-५ ४०.
इं क तु त १-५ अ याचना, सोमपान, आ ान, सोमपान का आ ह, आ ान १-५
४१.
इं क तु त १-५ आ ान, श ुनाश क कामना, सोमरस, आ ान, र ाथ ाथना १-५
४२.
इं का वणन १-४ यु नेता, आ ान, अ भलाषापूरक १-४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
४३.
इं क तु त १-४ शंबर का वध, सोमपान आ ह १-४
४४.
इं क तु त १-२४ स ता दे ने क कामना १-३ श ुजेता, श ुधनहता, र क, ४-७ आ वभूत होने क कामना, धन मांगना, र ाथ ाथना, सोमरस दे ना, स होने क कामना, धन वामी, अ भलाषापूरक ८-२१ आयुध बेकार होना, अमृत मलना व ध धारण करना २२-२४
४५.
इं एवं बृह प त का वणन १-३३ तुवश व य राजा १ श ु
का धन जीतना २
अनंत र ासाधन, बु
दाता, र ा, समृ
हेतु ाथना ३-६
आ ान, हाथ म संप यां ७-८ य
वामी, अ व धन के लए आ ान ९-११
जीतने यो य बनना १२ धन जीतना १३-१६ सुख याचना, असुरसंहारक, आ ान १७-१९ एकमा
वामी, गोपालक, आ ान २०-२२
गाय स हत अ दे ने वाले, गाएं को कट करना, गाय-घोड़ा दे ने वाले बनने का अनुरोध २३-२६ नदक, गाय का बछड़ के पास जाना, बृब,ु गाएं दे ना, तु तपा , श ुनाशक, धन के लए ेरणा का अनुरोध २७-३३ ४६.
इं क तु त १-१४ आ ान, तु त, पालक १-३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
संतान, अ क
ा त व श ु क हार हेतु तु त ४-६
धन, बल व अ क
ा त व श ु को जीतने हेतु ाथना ७-९
आ मण से बचाने व श ु भगाने हेतु तु त १०-१२ घोड़ को आगे बढ़ाने हेतु तु त १३-१४ ४७.
सोमरस का वणन एवं इं क तु त १-३१ मधुर सोम, मदम करना १-५
होना, वाणी का तेज होना, जल, ढ़ करना, वग धारण
धन दे ने का आ ह, भरोसा, अ -धन के लए ाथना ६-९ बु
दे ने क
ाथना, आ ान, र क १०-१२
शोभन, मलाना, आगे-पीछे पैर रखना, सेवक को बुलाना, म
१३-१७
रथ, घोड़े, मागदशन हेतु तु त १८-२० शंबर व वच का वध, दान, पूजा, रथ, द
तोक, दवोदास २१-२३ रथ, ं भ २४-२९
ढ़ता क याचना, गाएं लाने क ४८.
ाथना ३०-३१
अ न का वणन १-२२ य, र क, अ भलाषापूरक, ह
अ के लए तु त १-४
कट होना, धन हेतु तु त, गृहप त, धन के नेता, पालन हेतु ाथना ५-१० बछड़ को अलगाना, आना, याचना ११-१५
धा
गाय, अ
व धन के लए म त से
श ु को भगाने, नदक का नाश करने हेतु ाथना, म ता व अनु ह के लए पूषा क तु त १६-१९ मागद शका वाणी २० बल धारण, वग व धरती क उ प ४९.
२१-२२
व भ दे व का वणन १-१५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बलसंप
म , ेरणा १-२
सूय क दो क याएं—रात और दन ३ धन हेतु वायु क तु त ४ अ भलाषा पूण करने हेतु अ नीकुमार क तु त ५ दे व क तु त, सोने क स ग वाली गाएं ६-८ अ धारक ९-१० वृ
को स चने हेतु ाथना ११
तु त १२ तीन लोक को नापना, याचना १३-१४ अ व घर मांगना १५ ५०.
व भ दे व का वणन १-१५ आ ान, अ न ज , बल याचना १-३ आ ान, ा णय का कांपना ४-५ अ हेतु इं क तु त ६ हतकारी जल ७ धनदाता ८ पु -पौ से यु यु
करने हेतु आ ह ९
से बचाने के लए ाथना १०
धन ा त हेतु ाथना ११ अ बढ़ाने हेतु आ ह १२ र ा हेतु दे व क तु त १३-१५ ५१.
व भ दे व का वणन १-१६
सूय, म व व ण का तेज १ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भलाषापूरक, तु त २-३ स जनपालक, सुख याचना ४-५ वृक व वृक ६ श ुनाश क
ाथना ७
पाप का र होना, झुकना ८-९ गुण के नाश हेतु व ण, म अ न क तु त १० मागदशक, र क बनने व भवन हेतु याचना ११-१२ श ु को र रखने व सुख दे ने के लए तु त १३ प ण को मारने के लए सोम से ाथना १४ सुख दे ने व माग सुर त बनाने के लए दे व क तु त १५ श ुनाश व धन ा त का माग १६ ५२.
व भ दे व का वणन १-१७ य को अयो य मानना १ वरो धय को जलाने हेतु ाथना २ नदा उ ारक ३ र ा के लए उषा, न दय , पवत एवं पतर से ाथना ४ सूय दशन हेतु अ न से ाथना ५ र ा हेतु पुकार ६ व ेदेव का आ ान ७ घृत म त ह
८
व ेदेव, ध वीकारने हेतु ाथना ९-१० ह
वीकारने का अनुरोध ११
य पूरा करने हेतु याचना १२ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य के भो ा १३ सुखपूवक रहने क कामना १४ जीवन भर अ संतानयु
ा त हेतु ाथना १५
अ हेतु अ न और पज य से आ ह १६
तृ त होने के लए व ेदेव क तु त १७ ५३.
पूषा क तु त १-१० पूसा को सामने करना, मानव हतकारी, ेरणा, य पूरा करने के लए ाथना १-४ प णय को घायल करने व उ ह वश म करने क
ाथना ५-७
प णय के दय पर नशान बनाने हेतु आ ह, सुखकामना ८-९ सेवक दे ने वाला बनाने का अनुरोध १० ५४.
पूषा क तु त १-१० कृपा चाहना १-२ च
प आयुध, ह
ारा सेवा ३-४
घोड़े के र क व अ दाता ५-६ गाय क सुर ा, धन क याचना, अमर करने हेतु तु त ७-९ गाएं लौटाने हेतु आ ह १० ५५.
पूषा का वणन १-६ धन याचना, द तशाली १-३ उषा के ेमी, तु त ४-५ रथ म जुड़े बकरे ६
५६.
पूषा का वणन १-६ घृत म त जौ का स ू १
स जनपालक, वणरथ, धन के लए तु त २-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
गाय के अ भलाषी ५ पापर हत व धनयु ५७.
र ा ६
इं व पूषा क तु त १-६ आ ान १ सोमरस, जौ का स ू २ पूषा का वाहन बकरा व इं का वाहन घोड़ा ३ वषा म सहायक पूषा ४ कृपा का सहारा, क याण के लए आ ान ५-६
५८.
पूषा का वणन १-४ रात- दन भ
५९.
प वाले, आकाश म घूमना, सोने क नाव, अ
वामी १-४
इं एवं अ न क तु त १-१० काय का वणन, ज म क म हमा, आ ान, य वधक १-४ भां त-भां त से चलने वाले घोड़े ५ अचरण उषा ६ धनुष फैलाना ७ श ुसेना ८ पु कारी धन ९ सोमपान हेतु आ ान ९-१०
६०.
इं एवं अ न क तु त १-१५ सेवा, यु , वृ हंता व अ न का आ ान १-५ स जनपालक, सुखदाता, आ ान, तु त, जल बरसाना, घोड़े, आ ान ६-१५
६१.
सर वती का वणन १-१४
ऋण से छु टकारा, पवत भेदन, असुरनाशाथ ाथना, र ा याचना १-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु त, धन याचना, अपरा जत बल ४-८ सहायता मांगना ९ सात ब हन १० नदक से र ाथ ाथना ११ लोक म ६२.
ा त, धान सर वती, पीड़ा न दे ने क
ाथना के लए तु त १२-१४
अ नीकुमार क तु त १-११ श ु नवारक, म भू म के पार, संप बनाना, घोड़े जोड़ना, सुखदाता १-५ नकालना, रथ वामी, महान् श
६३.
ोध ६-८
फकना, रथ, गोशाला ९-११
अ नीकुमार क तु त १-११ आ त, सोमपानाथ, घृत वामी १-४ सूयपु ी, सूया क शोभा ५-६ तेज रथ, गाय, अ हेतु तु त ७-८ वणरथ ९ भर ाज, धन हेतु तु त १०-११
६४.
उषा क तु त १-६ क याणी, सुशो भत, अंधकारनाशक, धन हेतु तु त, धन ढोना, दाता १-६
६५.
उषा क तु त १-६ वगपु ी, रथ वाली, अ , धन व र न हेतु तु त १-४ गोसमूह ा त, धन हेतु तु त ५-६
६६.
म त का वणन १-११ सफेद जल, रथ, रथ १-७
पु , पापनाशक, अ भलाषापूरक मा यमा वाक्, सार थहीन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु , पौ व गोर ा, पृ थवी का कांपना अजेय, तु त ८-११ ६७.
म व व ण क तु त १-११ उ म नयंता, घर मांगना, वश म करने हेतु तु त, स ययु , जीतना, बल धारण, जल भरना १-७ मायाहीन, य हीन को न करने, अ य दे व के साथ न चलने व घर दे ने के लए ाथना ८-११
६८.
इं व व ण क तु त १-११ सोमरस बनाना, श ु हसक, र क, बढ़ना, धन व पु
ा त १-६
र त धन हेतु याचना व तु त ७-८ अजर व ण ९ सोमपान हेतु ाथना १०-११ ६९.
इं व व णु क तु त १-८ ह व दे ना १ तु तयां ा त होने, उनको सुनने, महान कम करने हेतु तु त २-५ आधार, नशीला सोम, सदा वजेता ६-८
७०.
ावापृ वी का वणन १-६ स , प व कम वाली, भुवन क नवास १-३ सुख याचना, जल टपकाना, संतान, बल व धन मांगना ४-६
७१.
स वता क तु त १-६ भुजाएं,
पद व चतु पद ाणी १-२
घर क र ा, अ , आनंद व धन हेतु तु त ३-६ ७२.
इं एवं सोम क तु त १-५ भूत नमाण, ाथना, वृ हंता, ध धारण, क याणकारी १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
७३.
बृह प त का वणन १-३ अं गरापु , नगर जलाना, श ुनाशक बृह प त का वणन १-३
७४.
सोम एवं
क तु त १-४
र नधारक, अ दे ने, पाप भगाने व र ा हेतु तु त १-४ ७५.
कवच, धनुष आ द यु
साम ी का वणन १-१९
र ाथ ाथना, जीतने क कामना, डोर का कान तक प ंचना, र ा याचना, तरकस, घोड़ को वश म करना, कुचलना, बढ़ाना १-८ आ य यो य, र ाथ ाथना ९-१० बाण, सुख याचना, चोट करना, र ा करना, नम कार, श ुनाश हेतु ाथना ११-१६ सुख याचना १७ कवच से ढकना १८ मं ही र ा कवच है १९
स तम मंडल सू १.
वषय
मं सं.
अ न क तु त १-२५ अर ण, पूजनीय, वालायु , संतानदाता कुशल, पु -पौ वाला धन मांगना, रा स को जलाना, स होना, आ ान १-९ तु त १० जायु
घर, र ाथ आ ह ११-१३
सेवा करना, र क प र मा १४-१६ धन वामी होने क कामना, ह , स ययु
१७-१९
अ दे न,े सहायक बनने, मृ यु से छु ड़ाने हेतु ाथना, धनी होना, पूण आयु वाला होने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व पालन हेतु तु त २०-२५ २.
अ न, य क ा
व व ा क तु त १-११
गम लपट, म हमा, पूजन, ब ह दे ना, ाचीना जु , घी से स चना, कामधेनु गाय १-६ धन मांगना, भारती, पु याचना, ज म जानना, आ ान ७-११ ३.
अ न क तु त १-१० शु क ा, काला माग, दे व के पास जाना, वेश करना, पूजन, काश फैलाना, र ा हेतु ाथना १-८ अर णय से उ प , र ाथ हेतु ९-१०
४.
अ न क तु त १-१० बु से चलने वाले, अ भ क, असह्य, वराजमान, तारक, संतानहीन न होने, धन वामी बनाने हेतु ाथना, थान पर प ंचना, धन हेतु आ ह १-१०
५.
वै ानर अ न क तु त १-९ बढ़ना, शोभा पाना, नगर जलाना, व तारक, जा वामी १-५ बल धारण, गरजना, क तदाता, सुख याचना ६-९
६.
वै ानर अ न का वणन १-७ वै ानर, राजा, हसक को भगाने हेतु ाथना, नाशक, उ पादक, कृपा चाहना, अंधकारनाशक १-७
७.
अ न क तु त १-७ य
८.
त, वनदाहक, युवा अ न, था पत, ह वाहक, स यभूत, तु त १-७
अ न का वणन १-७ ह व वामी, काले माग वाले, शोभनदाता अ त थ, स मन, रोग नवारक तो , र ा हेतु तु त १-७
९.
अ न का वणन १-६ जागने वाले, अंधकारनाशक
प म वेश, तु य, य करना, र ा याचना १-६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१०.
अ न का वणन १-५ आ य, अ तशयदाता, रा
११.
अ न क तु त १-५ य
१२.
वामी १-५
व ापनक ा, आ ान, ह
डालना, ह वाहक बनाना, सुर ा हेतु तु त १-५
अ न क तु त १-३ समीप जाना, पाप से बचाने व र ा हेतु तु त १-३
१३.
अ न क तु त १-३ समपण, छु ड़ाना, र ा हेतु ाथना १-३
१४.
अ न क तु त १-३ स मधा, सेवा, र ाथ हेतु आ ह १-३
१५.
अ न क तु त १-१५ ह व डालना, गृहपालक, र ा हेतु ाथना, धन याचना, संतानयु , धन मांगना १-५ ह वाहक, क याणकारी, कामना, शु वाला वाले, धन हेतु ाथना, संतानयु धन याचना, अजर, लौह नगरी बनाने हेतु ाथना, पाप व श ु र ाथ अनुरोध ६-१५
१६.
अ न क तु त १-१२ आ ान, पालक, आ त, भोग, याचना १-५ र नदाता, गोदान, पूण प से बैठना, व ान्, सोमरस का दान व धन हेतु ाथना ६-१२
१७.
अ न क तु त १-७ कुश फैलाने, आ य लेने, स करने व संप याचना १-७
१८.
दे ने हेतु अनुरोध, ह वाहक, धन
इं एवं सुदास का वणन १-२५ धन ा त, शोभा पाना १-२ कृपा याचना, तो
पी बछड़ा, प णी नद , सुदास, तुवश, श ुनाशक ३-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
क व का वध, खेत म जाना, मनु य का वध, ुत, कवष, वृ
व
, तृ सु ८-१३
सै नक का वध, तृ सु, सुदास, धन दे ना, वश म करना, भट १४-१९ दे वक व शंबर का वध, इं क कामना, राजा दे ववान के नाती व सुदास, सुशो भत घोड़े, यु याम ध का वध, घर क र ा हेतु क ाथना २०-२५ १९.
इं क तु त १-११ धन दे ना, कु स क र ा, श ुनाशक, दभी त वृ व नमु च, जोड़ना १-६ र ाथ तु त, धन वामी, दानी, उ मुख बनाना, अ , घर दे ने व र ा हेतु तु त ७-११
२०.
इं क तु त १-१० ओज वी, श ुजेता, सोमरस से से वत, संसार के वामी, धन मांगना १-७ व धारी, धन व र ा हेतु तु त ८-१०
२१.
इं क तु त १-१० बात बताना, कुश बछाना, कांपना, असुरघाती, उ साह दखाना १-५ वृ वध, हीन मानना, बुलाना, र क, र ाथ ाथना ६-१०
२२.
इं क तु त १-९ सोमरस तैयार, नशीला सोमरस, शंसा, तु त समझने हेतु ाथना, यशवाला नाम, सवन १-६ तो , श
२३.
व धन जानना, तो
नमाण ७-९
इं क तु त १-६ अ हेतु तु तयां, आयु न जानना, श ुसमूह के नाशक आ ान, पु व धनदाता, पूजन १-६
२४.
इं क तु त १-६ थान बनाना, मन हण करना, बुलाना १-३ श
२५.
शाली पु , धन र ा हेतु तु त ४-६
इं क तु त १-६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
धनसमूह, यश व र न हेतु तु त १-३ नयु , सुखकर तु तयां, र ाथ ाथना ४-६ २६.
इं का वणन १-५ मं समूह, आ ान, नग रय का नाश, र ासाधन, र ाथ तु त १-५
२७.
इं क तु त १-५ आ ान, आ त, वामी, धन व र ा याचना १-५
२८.
इं क तु त १-५ आ ान, असहनीय, य हीन क तु त १-५
२९.
हसा,
का धन मांगना, र ा के लए
इं क तु त १-५ धन मांगना आ ान, तु त, आ ान, र ा हेतु तु त १-५
३०.
इं क तु त १-५ श
३१.
शाली, आ ान, य म थत होना, शूर, र ा हेतु तु त १-५
इं क तु त १-१२ ह र नामक अ , शत तु, स यधन १-३ तु त, नदक के वश म न होने व श ुनाश हेतु ाथना, महान्, तु त मलने हेतु ाथना, णाम, ह नमाण, श ु क हार के लए तु तयां ४-१२
३२.
इं क तु त १-२७ आ ान, समपण, अनुगमन, आ ान, धन मांगना, १-६ घर हेतु ाथना, ह पूरा करना, बुरे आदमी का साथ न दे ना, गोशाला म जाना, र क बनने क ाथना, संर त यजमान ७-१२ आक षत करना, वग व भ व य म अ मलना, पाप से पार होने के लए ाथना, उ म धन के राजा, र ा न म धन दे ने व धन वामी बनाने का अनुरोध, धनी १३-१९
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ने म, धन का हसक के पास न जाना, सोम भरना, आ ान, धन याचना, सफलता हेतु ाथना २०-२७ ३३.
व स एवं उनके पु चोट , व स पु
का वणन १-१४
को वीकारना, सुदास, पतर, तृ सु को रा य दे ना १-५
व स , वरण, म हमा, घूमना, याग, धारण करना ६-११ व स , अग य, सोम धारण १२-१४ ३४.
व भ दे व क तु त १-२५ अ भलाषापूरक, तु त, उ प आ ह १-५
जानना, तु त, सोने के हाथ, य माग पर चलने का
य धारण करने का आ ह, उदय, य कम करना, उ वल कम करने का अनुरोध, व ण, रा के राजा, र ाथ तु त, पाप र करने व र ा हेतु याचना, म बनाने का आ ह ६-१५ तु त, हसक को न स पने क ाथना, श ु के मरने क कामना, धरती, व ा से धन याचना, र ा हेतु ाथना १६-२५ ३५.
गो, अ , ओष ध, पवत, नद , वृ आ द का वणन १-१५ शां त हेतु ाथना, नाराशंस, तु त सुनने का अनुरोध, र ा एवं पु हेतु दे व से ाथना १-१५
३६.
व भ दे व क तु त व न दय का वणन १-९ वषा का जल, नणायक, मेघ, आ ान, म ता चाहना, सधु, य व पु क र ा हेतु तु त, कम के र क, र ाथ तु त १-९
३७.
व भ दे व का वणन १-८ म त सोम, धन व र न हेतु ाथना, धन से पूण हाथ, य साधक, धनदाता १-५ आ याथ तु त, बलदाता, धन व र ा क याचना ६-८
३८.
स वता का वणन १-८ रमणीय, धनदाता, र ा याचना १-३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु त, वग व धरती के म , धन र न मांगना, रोग नवारणाथ तु त, वाजी दे वता से र ा हेतु तु त ४-८ ३९.
व भ दे व का वणन १-७ उषा, घो ड़य के वामी, रमण, य याचना १-७
४०.
का अनुरोध, आ ान, धन, अ
व र ा हेतु
व भ दे व क तु त १-७ सुख व धन हेतु तु त, बलवान बनाने हेतु ाथना, पापनाशाथ तु त, मह वदाता, जल व अ दे ने का आ ह, र ा हेतु ाथना १-७
४१.
अ न, इं , व अ नीकुमार आ द का वणन १-७ आ ान, धन याचना, गाय, घोड़े, धन व पु मांगना, तु त, धनी होने क कामना, आ ान, भग को लाने क याचना, र ा हेतु तु त १-७
४२.
व भ दे व क तु त १-६ न दयां, काले व लाल घोड़े, पूजा, धन दे ना, य याचना व र ाथ तु त १-६
४३.
व भ दे व क तु त १-५ अचना, श ु क सहायता न करने क ाथना, धन मांगना १-५
४४.
वीकार करने के लए क तु त, धन
ाथना, धन लाने और स होकर आने क
द ध ा दे व का वणन १-५ र ाथ आ ान, े रत करना, पीले घोड़े, मुख द ध ा, अनुगमनक ा १-५
४५.
स वता का वणन १-४ आ ान, भुजाएं, धन याचना १-४
४६.
क तु त १-४ आयुध वामी, रोगहीन करने व र ा के लए आ ान, पु -पौ र ाथ नवेदन १-४
४७.
जल क तु त १-४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
क ह या न करने व
तु त, सोमरस क र ा हेतु ाथना, हवन, धन मांगना व र ा हेतु ाथना १-४ ४८.
ऋभु
क तु त १-४
हतकारी रथ, वाज से र ाथ ाथना, श ुनाशक, धन व र ा हेतु ाथना १-४ ४९.
जल का वणन १-४ जल दे वता से र ा याचना १-४
५०.
म , अ न व व ण क तु त तथा वृ
का वणन १-४
सांप, द तशाली, शपद रोग नवारण के लए तु त १-४ ५१.
आ द य का वणन १-३ घर दे ने व र ाथ ाथना १-३
५२.
आ द य का वणन १-३ तु त, पु -पौ
५३.
क र ा हेतु ाथना, धन हेतु तु त १-३
ावा-पृ वी का वणन १-३ जननी, धन हेतु आ ान, र ा व धन हेतु याचना १-३
५४.
वा तो प त (गृहदे वता) का वणन १-३ धन, रोगर हत घर दे ने व र ाथ ाथना १-३
५५.
वा तो प त व इं क तु त १-८ रोगनाशक, ेत, पीले कु े, चोर, लुटेरे, सूअर वद ण करना, लोग का सोना, शांत व न ल घर १-६ सूय का उदय होना, सुलाने क कामना ७-८
५६.
म द्गण क तु त १-२५ महादे व के पु , ज म, पधा करना १-३ सवाग ेत, जा का पु वान होना, अलंकृत ४-६ म त क तु त ७-९
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तृ त, सजाना, शु
करना १०-१२
गहने, य भाग सेवन हेतु तु त, धन याचना, उ सव दशक, आ ान, शंसा १३-१८ र क, पु -पौ मांगना, धन का भागी बनाने हेतु नवेदन, श ु र ाथ ाथना, अ पाना, पु के श शाली होने व र ा के लए ाथना १९-२५ ५७.
म त क तु त १-७ उ , कामनापूरक, आभूषण धारण, कृपा, अ तु त १-७
५८.
ारा पु
होने एवं र ा हेतु
म त क तु त १-६ सवा धक बु
मान्, ज म, अ व धनवृ
व
र ा हेतु तु त १-६ ५९.
म त क तु त १-१२ भय से बचाने का अनुरोध, रोकना, सोमपान व सरी जगह न जाने के लए ाथना १-५ पुकारना, आ ान, ःखदाता का वध करने व ह व सेवन के लए ाथना, आ ान, मृ युबंधन से छु ड़ाने हेतु ाथना ६-१२
६०.
सूय, म , व ण, आ द य आ द क तु त १-१२ सूय क तु त, पाप और पु य दे खना, सूयरथ, पुरोडाश, पापनाशक, व ण और अयमा, आ द य, म व व ण १-६ धरातल होना, करने वाले कम न करने व थान दे ने के लए आ ह, सुखी बनाने हेतु तु त, नवास थान बनाना, ःखनाश हेतु तु त ७-१२
६१.
म एवं व ण क तु त १-७ उदय होना, तु त, प र मा, बु तु त १-७
६२.
बढ़ाने क याचना, स ची तु तयां, आ ान,
म व व ण क तु त १-६
सूय से ाथना, नरपराध बताने के लए तु त, धन दे ने व अ भलाषा पूरी करने हेतु ाथना, र ाथ ाथना, भू म को स चने, र ा व धन हेतु तु त १-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
६३.
सूय व व ण का वणन १-६ अंधकार का नाश, सूय को ख चना, उ दत होना, कम करना, माग, र ा व धन हेतु अनुरोध १-६
६४.
म व व ण क तु त १-५ जल वामी, अ , वृ , संतान व नवास हेतु तु त, र ाथ याचना १-५
६५.
म व व ण क तु त १-५ आ ान, श
६६.
शाली, ःख से पार पाने हेतु याचना, जल व अ मांगना, तु त १-५
आ द य, व ण, म , अयमा आ द का वणन १-१९ तो , धारण करना, र क, धन याचना, पापनाशाथ ाथना, वामी, तु त, श तु त, अ व जल याचना, श ुजेता, नवासदाता १-१०
,
ऋचा क रचना, धन याचना, धन के अ धकारी, मंडल, हरा घोड़ा, ग तशील, कामना, आ ान ११-१९ ६७.
अ नीकुमार क तु त १-१० रथ सामने लाने हेतु तु त, उदय, रथ से आने, व धन दे ने हेतु तु त, कम से धन दे ने क ाथना १-५ मनचाहा धन हेतु ाथना, आ ान, न दयां, गो व अ दाता, र न, उ त व र ा हेतु तु त ६-१०
६८.
अ नीकुमार क तु त १-९ ह भ ण हेतु आ ान १-४ धन याचना, यवन ऋ ष, भु यु, वृक ऋ ष, बूढ़ गाय, तु त ५-८ तोता को बढ़ाना ९
६९.
अ नीकुमार क तु त १-८ रथ, तु त, पा , पीड़ा दे ना, र क, आ ान, बुलाना भु यु, र न एवं र ा हेतु आ ान १-८
७०.
अ नीकुमार क तु त १-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ ान, वषा, पवत क चोट , र न याचना, तु त, र ा हेतु ाथना १-७ ७१.
अ नीकुमार क तु त १-६ धन व र ा हेतु तु त, आ ान, रथ, यवन, तु त १-६
७२.
अ नीकुमार क तु त १-५ आ ान, म ता, जगाना, तेज धारण, आ ान १-५
७३.
अ नीकुमार क तु त १-५ आ ान, तु त वीकारने क याचना, र ा हेतु आ ान १-५
७४.
उषा का वणन १-६ र ा, सोमपान व जलदोहन हेतु आ ान १-४ यश एवं घर मांगना ५-६
७५.
उषा क तु त १-८ काश फैलाना, सौभा य मांगना, दशनीय, पहचानना, धनयु , र न दे ने वाली, गाय ारा कामना, अ से यु धन क याचना १-८
७६.
उषा क तु त १-७ दे व का ने , आगमन, तेज, मु दत होना, तेज से मलना अ दा ी १-७
७७.
उषा का वणन १-६ काश फैलाना, सुडौल, तेज वी धन एवं र ा हेतु तु त १-६
७८.
उषा का वणन १-५ करण फैलाना, पाप न करना, ज मदा ी, भात करने वाली, नेहयु ाथना १-५
७९.
उषा का वणन १-५ जमाना, अंधकारनाशक, धन धारण, वृषभ तो , धन याचना १-५
८०.
उषा का वणन १-३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
करने हेतु
जगाना, आगे चलना, र ाथ तु त १-३ ८१.
उषा क तु त १-६ शोभनने ी, अ याचना, सुख वहन,
८२.
य होने, धन, यश व नवास हेतु नवेदन १-६
इं व व ण क तु त १-१० गृह याचना, बल दे ना, आ ान, ा णय का नमाण, बाधक बल १-६ पाप व संताप मलना, मै ी, आ ान, धन व घर के लए तु त ७-१०
८३.
इं व व ण क तु त १-१० यजमान, लड़ना, फसल का नाश, भेद का वध र ा के लए तु त, तृ सु यु म न टक पाना, सुदास १-८
क र ा,
सुख, धन और घर हेतु तु त ९-१० ८४.
इं व व ण क तु त १-५ घी का चमचा (जु ), नवास थान व धन याचना, पु -पौ क र ा हेतु तु त १-५
८५.
इं व व ण क तु त १-५ यु म र ा व श ुनाश हेतु तु त १-५
८६.
ाथना, आ ान,
जा पालन व आ ान, र ाथ
व ण क तु त १-८ धरती वशाल बनाना, दे खने क इ छा, पाप पूछना, अजेय पाप मु व , ान संप करने व र ाथ ाथना १-८
८७.
हेतु ाथना
व ण का वणन १-७ जल दे ना, जगत् क आ मा, सहायक, इ क स नाम १-४ सूय को झूला जैसा बनाना, जल नमाता व सागर थर करने वाले, अपराधी पर भी अनु ह ५-७
८८.
व ण का वणन १-७ धन वामी, नचोड़ा गया सोमरस, नाव चलाना १-३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नाव पर चढ़ाना, वशाल घर, घर व र ा क याचना ४-७ ८९.
व ण क तु त १-५ मट् ट का घर, सुख व दया हेतु, ाथना १-४ दे व के
९०.
त ोह ५
वायु एवं इं क तु त १-७ आ ान, धनपा , वायु धन के लए उ प , गोधन मलना १-४ धन, सुख आ द के लए ाथना ५-७
९१.
वायु एवं इं क तु त १-७ संगत करना, धन याचना, सेवा, करना १-३ सोमपान करने, पापमु
९२.
व र ा हेतु आ ान ४-७
वायु एवं इं क तु त १-५ सोमपान हेतु आ ान १-२ ऐ य हेतु ाथना, श ुनाशक, क याण हेतु ाथना ३-५
९३.
इं व अ न क तु त १-८ अ हेतु तु त १-२ पुकारना, धन हेतु तु त, श ुनाशाथ ाथना, अ याचना, र ाथ तु त ३-८
९४.
इं व अ न क तु त १-१२ तु त, य पूरा करने श ुनाश के लए तु त, र ाथ आ ान १-६ सुख, अ , धन के लए तु त, जनसेवा के लए आ ान, सेवा, अपह ा क संप के नाश हेतु ाथना ७-१२
९५.
सर वती नद का वणन १-६ बढ़ना, सागर तक जाने वाली, य यो य
ी, धनसंप
१-४
अ , धन व पालन हेतु तु त ५-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
९६.
सर वती नद व सर वान् दे व का वणन १-६ तु त, अ हेतु तु त, क याण याचना, प नी व पु क कामना से तु त, र ाथ हेतु, सर वान् क तु त १-६
९७.
इं , म , बृह प त आ द क तु त १-१० आ ान, धन याचना, ह , वरे य, अ मांगना १-५ काशयु घोड़े, अ दे ना, जल क रचना, य र ा, श ुसेना के संहार व पालन हेतु ाथना ६-१०
९८.
इं व बृह प त का वणन १-७ गौरमृग, सोमपान के लए आ ान, ज मते ही सोमपान, यु जीतने व वजय पाने क ाथना, सोमरस केवल इं के लए, हतकारक, धनदाता व पालक बृह प त क तु त १-७
९९.
इं एवं व णु क तु त १-७ वामन अवतार, म हमाशाली, ावा-पृ थवी को धारण करना, इं क नग रय का नाश १-५ अ वृ
१००.
व पालन हेतु तु त ६-७
व णु क तु त १-७ धन ा त, धन याचना, तीन चरण रखना, तु त, तेज वी पालन हेतु ाथना १-७
१०१.
ारा उ प , शंबर
प न छपाने हेतु ाथना,
बादल का वणन १-६ अ न क उ प , घर व सुख याचना, शरीर बदलना, जल बरसाना, फलवती ओष धय क कामना, शतायु हेतु ाथना १-६
१०२.
बादल का वणन १-३ गभधारण करने व अ हेतु तु त १-३
१०३.
मढक का वणन १-१० वषभर सोना, ‘अ खल’ श द करना १-३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
भूरे व हरे मढक, अनुकरण, एक नाम और भ प वाले, अ तरा य , बल म छपे मढक, गड् ढ से नकलना आयुवृ हेतु ाथना ४-१० १०४.
इं एवं सोम क तु त १-२५ रा स के वनाश हेतु तु त, आ ान, रा स के नाशाथ कामना, आयुध उ प ाथना, साधन १-५
हेतु
तु त भेजना, रा स का संहार करने व उ ह दे ने व पु हीन करने आ द हेतु ाथना ६-११ स य व अस य म वरोध, व बचाने हेतु ाथना १२-२५
तेज करना, र ाथ आना, रा स के नाशाथ व पाप से
अ म मंडल सू १.
वषय
मं सं.
इं क तु त १-३४ अ भलाषा, श ुनाशक, र ाथ तु त, वप यां पार करना, व धारक, १-६ गान, श ुनग रयां तोड़ना, शी गामी घोड़े, गाय क तु त, आ मण हेतु जाना ७-११ सुधारना, व धारी, वृ हंता, स करना, कामना, जल हना १२-१७ तु त सुनने हेतु ाथना, सोमरस दे ने का आ ह, भयानक, जेतापु दे ने क धनदाता, वशाल उदर १८-२३
ाथना,
सोमपान हेतु ाथना, टोप पहनना, पीछा करना, नवासदाता २४-२९ हारना, घोड़े जोड़ना, आसंग राजा, आगे नकलना, भोगसाधन ३०-३४ २.
इं का वणन १-४२ नभय, घट, वा द बनाना, अ यु , तु त १-५ सोम बनाने का आ ह, सोम खोजना, स करना ६-९ द तशाली, समझना, यु , धनी होना, उ थ जानना, श ु को न दे ने क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाथना १०-१५ तु त, व धारी, नशीला सोम, आ ान, असह्य, जानना १६-२१ र ासाधन यु , वीर, पशु याचना व सोमरस याचना, आ ान, सेवनीय म , आ ान, वृ करना २२-२९ श
धारण, वृ नाश, अनुकूल बनना, अ दे ना, ह
वहन, र क ३०-३६
स होना, पालक, दे व का, मेधा त थ ऋ ष, गोदान, तु त ३७-४२ ३.
इं क तु त एवं राजा पाक थामा का वणन १-२४ स रहने व सुखी करने क
ाथना, वामी, म हमागान, आ ान १-५
व तार करना, तु त, ओज बढ़ाना, भृग,ु क व, म हमा, धन याचना, पु , आ द, म हमा, धन वामी, पूजन, दशनीय ६-१७
शम
तु त, अबुद व मृग का हनन, काशन, शोभा पाना, लाल घोड़ा, भु यु, तु त १८-२४ ४.
इं , अ नीकुमार एवं पूषा क तु त १-२१ अनुपु , क वगो ीय ऋ ष, आ ान, श महान काय, ढकना १-८
धारण, धराशायी होना, वीरपु क
ा त,
सभा म जाना, धन वामी, इं का आना, सोमरस रखना, सुशो भत होना, ह र नामक घोड़े, पाप ाता, धन दे ना, कामना, व , साम ाता प , द तशाली, धन ा त १२-१९ मेधा त थ, स होना २०-२१ ५.
अ नीकुमार क तु त १-३९ काश फैलाना, रथ म जुड़ना, ाथना, तु त, घर जाना, ह दाता १-६ आ ान, पशु, अ , धन मांगना, सोमपान क धनवहन हेतु ाथना ७-१६
ाथना, धनी, तु तय क र ा व
बुलाना, तु त समूह समीपवत होने, सोमपान करने, अ व स रता को लाने क ाथना, भु यु, क व, धनस प , आवत, अ आ द, अं , अग य १७-२६ धन याचना, आ ान, रथ, आ ान, धन, बल, आ द लाने का आ ह शी गामी घोड़े, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प हया, अ मांगना २७-३६ कशु, कशु सा दाता व व ान् अ य नह ३७-३९ ६.
इं का वणन १-४८ बढ़ना, तु त, य भाई, णाम, सर काटना, मलाना १-८ अ व कृपा याचना, बलधारण, बढ़ना, अतुल, भेजना, व जल म वृ का हनन ९-१६
चलाना, अतुल श
,
वलीन करना, भृगुगो ीय ऋ ष, ध-घृत दे ना, गाय ारा गभधारण, बढ़ाना, आयोजन, गाय व पु दे ने क इ छा करने क ाथना, न ष, गोशाला, अजेय, तु त १७-२७ संगम, सागर, द त ा त, श वधन, बु बढ़ाने क अजर, आ ान, अनुगमन, शयणा दे श २८-३९ श द करना, एकमा मलना ४०-४८ ७.
ाथना, व तार, यो य बनना,
वामी, अ याचना, उ थ, वीकारना, आ ान, धन हण, वग
म द्गण क तु त १-३६ का शत होना, कांपना, दान, बखेरना, माग नयत, आ ान, आगमन, थत रहना, तो , सोमरस हना, आ ान, शोभन ान, नशा टपकाना १-१३ मतवाला होना, सुख मांगना, मेघ हना, ऊपर जाना, यान, अ वृ बल बढ़ाना, संयोग, उ साह धारण, र ा, टोप पहनना १४-२५
, कुश उखाड़ना,
कांपना, म त का आना, गमन काल, जाना, तु त य, आयुधयु , दयालु बनाना, थर रहना, अ दे ना, थत होना २६-३६ ८.
अ नीकुमार का वणन १-२३ दशनीय, ानी, आ ान, व स ऋ ष, आ ान, सूया, मधुर बोलना, वहन, संप , स य वभाव, वधन, धन व सुखाथ तु त १-१६ श ुभ क, बुलाना, रोगनाशक, क व, मेधा त थ, आ ान १७-२३
९.
अ नीकुमार क तु त १-२१
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सद यु, श ुनाशक,
जाना, धन याचना, अनु ान, जानना, पाक धारण, पास आना, तो जानना, आना, ले जाना, तु त, आ ान वजयी, र ासाधन, ह नमाण १-१४ धन याचना, दे वी, य म जाना, सोमलता नचोड़ना, ाथना १५-२१ १०.
अ नीकुमार क तु त १-६ बुलाना, य
११.
ाता, नकट आने क
ाथना १-६
अ न क तु त १-१० शंसनीय, य नेता, अलगाने क
ाथना, इ छा न करना, अमर १-५
बुलाना, कामना, मा लक ६-८ व च धन वाले, सौभा य याचना ९-१० १२.
इं क तु त एवं वणन १-३३ याचना, र ा, भेजना, जानने क धन मलना, क याण दे ना १-७
ाथना, अ भलाषाएं पूर करना, क याण करना,
बल बढ़ना, जलाना, तु त का समीप जाना, पुनीत करना, सीमा बांधना, मु दत करना, तो उ प , तु त, स होना, कामना ८-१९ बढ़ाना, धनदान, वामी बनाना, तु त, द त होना, नापना, बांधना, नय मत करना, तु त भेजना, धरती क ना भ य , पशु याचना २०-३३ १३.
इं क तु त १-३३ प व करना, बढ़ाना, बुलाना, आ तयां, धना भलाषा, तु त, फल दे ना, शंसा, पालक १-९ घर जाना, सुख मलना, े श शाली, आ ान, स होने व धन दे ने क ा रखना, बढ़ाना, क क, तु त १०-१९ तु त, सोमपान, याचना, आ ान, तुत, अ हणाथ ाथना २०-२८
याचना, दया ा त आ ान, ह
उ रवेद , यो य फल, शत तु, इ छापूरक, आ ान २९-३३ १४.
ाथना,
इं क तु त १-१५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
धन वामी, श शाली, पशुदान, इं का न कना, मेघ हना, धनजेता, अंत र बढ़ाना, मेघ का नाश १-७ बल असुर का नाश, ढ़ करना, तु तय का जाना, केशधारी घोड़े ८-१२ सर काटना, १५.
धा करना, वरोधीनाशक १३-१५
इं क तु त १-१३ तुत इं , जलधारक, वध, शंसा, य क ा १-५ पूववत् तु त, बल का बढ़ना, यश बढ़ाना ६-९ ज म लेना, अव य, र ाथ तु त, शंसा का आ ह १०-१३
१६.
इं क तु त १-१२ शंसनीय, ह ा , सेवा, आ ान, वामी बनाना, श ुजेता, बढ़ाना, तु य, आ त, धन व माग याचना १-१२
१७.
इं क तु त १-१५ सोमरस नचोड़ना, बुलाना, शोभन शर ाण, पूण करना, सोम, वशेष श ुनाशक, जगत् वामी, धनदाता १-११
ा,
आ ान, कुंडपाट् य य , सखा, भ ा १२-१५ १८.
अ द त का वणन एवं आ द य क तु त १-२२ सुख याचना, पालक, माग, सुख मांगना, ब त के य, रा स को अलगाने का ान, अ द त, तु य, सुख याचना, आरो य, सुख याचना, श ु को र रखने क ाथना, पा पय के भी ाता, पापी के न होने, व श ु को पाप ा त करने क ाथना १-१४ प रप व ाता, वरण, नाव, द घायु व सुख याचना १५-१९ घर मांगना, आयु बढ़ाने क
१९.
ाथना २०-२२
अ न का वणन एवं तु त १-३७ ह दे ना, नयंता, शोभनक ा, तु त, सेवा, द त होना, वामी, फलदाता, सेवनीय १-९
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऊ वग त, दे व के पास जाना, नवासदाता, समृ काशमान होना, यान १०-१७
बनना, यश ा त,
कामना, तृ त, जेता, मनु ारा था पत, न य त ण, आ त, बलपु
ोध दबाना,
१८-२५
अपवाद, भ ा, सेवा क कामना, बु र क, म ता बढ़ना, वणशील, सद यु, समा हत, फल पाना, श ुजेता २६-३५ प नय का दान, धन, व २०.
आ द दे ना ३६-३७
म द्गण क तु त १-२६ कंपाना, अ भल षत, बल ाता,
प का गरना, श द करना १-५
ऊपर जाना, नेता, वीणा, उ मग त, सेचन समथ आयुध, वजय, एक नाम होना, दान, भ बनना, सुख फैलाना, जलक ा, सेवा, शंसा करना, यश वी, समान जा त, ६-२१ म ता, सखा, श ुशू य, रोग भगाने क २१.
ाथना २२-२६
इं क तु त १-१८ प धरना, वरण, सेनाप त, आ ान, तु त, व धारी, म ता जानना, धन, गाएं, घोड़े लाना, वृ क ा १-११ आ त, बांधवहीन, धन दे ना, बैठने का आ ह, अ य धन, सौभ र, धन दे ना १२-१८
२२.
अ नीकुमार क तु त १-१८ रथ बुलाना, तु त का आ ह, श ुजेता, प हए चमकाना, खेती, तृ त करना, सोमरस नचोड़ना १-८ धनवषक, इलाज क बली ९-१८
२३.
ाथना, आ ान, वरे य, तु त, बुलाना, र क, दशनीय,
अ न का वणन १-३० बाधाहीन, रथदाता, पू य, आ य, ह यु १-९
वालाएं, शोभन तु तयां,
होता, दशन, धन याचना, जापालक, ह व दे ना, त, अजर १०-२० ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शंसा, तृ त,
ऋ ष, थापना, य यो य,
ा त, साथ जाना, सेवा, थूलयूप ऋ ष, तु त, तु य, गान, अ -धन मांगना, यश वी २१-३० २४.
इं क तु त १-३० व धारी, वृ हर, अ वामी, धन याचना, नबाध, धन हेतु ाथना, आ ान, आ त, पूजनीय, नचाने वाले १-१२ अ , धन दे ना, ऋ ष का पु , तु य नह , अलंघनीय, बुलाना, तु य, द तशाली, वीरता के कम, पूजनीय १३-२२ दसवां ाण, ान, कु स, धन याचना, पाप ाता, कनारे व का वास २३-३०
२५.
, प रजन, व , गोमती के
म , व ण, अ द त, अ नीकुमार आ द का वणन १-२४ र क, वामी, उ प , य काशन, धनदाता, अ दाता, सुशो भत, स ययु , ेरक, वेगवान्, र ाथ ाथना, शोभनदाता १-११ धनदाता, आ य, दपनाशक, ताचरण, काश फैलाना, म , पूण करना १२-१९ धन वामी, तु त, राजा व , अ
२६.
ा त २०-२४
अ नीकुमार, इं वायु आ द क तु त १-२५ आ ान, स य प, अ यु
धनी, समथ, अ भलाषापूरक जलपालक १-६
अजेय, बुलाना, प ण, नेता, धन दे ने, क याण करने व सोमपानाथ आ ान ७-१५ त, ेतयावरी नद , पोषक, नवास थान दाता, धन मांगना, शोभन ग त वाले, आ ान, अ , धन मांगना १६-२५ २७.
व भ दे व क तु त १-२२ थापना, नकट, तेज सारक, श ुनाशक, बैठने क र हत घर मांगना १-९
ाथना, बुलाना, तु त, बाधा
श ुनाशक, तु त, काम म लगना, आ ान, धनदाता, तु त, अ बढ़ना, र क, गमन सरल बनाने क ाथना १०-१८ घर याचना, धन धारण, धन मांगना १९-२२ २८. व भ दे व क तु त १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धन याचना, बुलाना, र ाथ ाथना १-३ अ य अ भलाषाएं, सात द तयां ४-५ २९.
व भ दे व का वणन १-१० गहने, थान पाना, कु हाड़ी, व , एकाक , मागर क, तीन कदम १-७ सूया के साथ रहना, थान बनाना, द तशाली बनाना ८-१०
३०.
व भ दे व क तु त १-४ सभी दे व महान्, तु त, रा स से बचाने, सुख, गाय व घोड़ा दे ने क
३१.
ाथना १-४
य का वणन १-१८ बार-बार बोलना, पाप से बचाना, रथ आना, अ पाना, सोमरस म गो ध, अ ा त, सेवा करना, सेवनीय आयु ा त, दान करना, सेवनीय १-११ पापर हत दान, र क, धन हेतु तु त, दे वकामी, जीतना, पु
३२.
ा त १२-१८
इं क तु त १-३० वणन का आ ह, सु वद, अनश न, प ु आ द का वध, महान्, श ुनाशक, ार खोलना, अ दाता, स तादाता, धन क अ धकता, गाय, घोड़ा सोना व अ मांगना, र ाथ आ ान १-१० अ दाता, दानशील, शोभन त, धन वामी, अ नयं त, दे वऋण न रहना, तो बनाने का आ ह, तु य, सोमपान हेतु ाथना, पास आने व धन दे ने क ाथना, जल धाराएं गराना, असुरवध ११-२६ श ुनाशक, य कम बताना, इं को लाने क
३३.
ाथना, ह र नामक घोड़े २७-३०
इं क तु त १-१९ सेवा, तु त, अ याचना, रथ, शोभनकम, अ भलाषापूरक, श ुनगर-नाशक, मणक ा, पुकार सुनना, स , सोने का हंटर, ह र नामक अ , धनी, वृ हंता, तोम य , स न होना, ी पर शासन असंभव १-१७ रथ,
३४.
ी होना १८-१९
इं क तु त १-१८
******ebook converter DEMO Watermarks*******
शासक, सोमलता को कंपाना, आ ान, द त ह व वाले, व र क १-६ धनयु , तु य, पंख ढोना, वाहा बोलना, उ थ मं , आ ान, वग जाने, गाएं, घोड़े तथा मनचाही व तुएं दे ने क ाथना ७-१५ घोड़े लेना, तेज वी घोड़े, पारावत १६-१८ ३५.
इं क तु त १-२४ सोमपान, अ , तो वीकार करने का आ ह, सोमपान क ाथना, बल, धन व संतान क याचना, अं गरा, व णु आ द के साथ तो सुनने का आ ह, गाय -अ को जीतने व रा स के नाशाथ तु त १-१८ यावा , सोमपान हेतु आ ह, र ाथ बुलाना, र न याचना १९-२४
३६.
इं क तु त १-७ र क, स जनपालक, जनक, श ुजेता, घोड़े व गाय के जनक, अ गो ीय ऋ ष, यावा , सद यु १-७
३७.
इं क तु त १-७ वृ हंता, र ाथ व तु त सुनने हेतु ाथना, वामी होना, बल दे ने का कारण, सद यु र क १-७
३८.
इं व अ न क तु त १-१० ऋ वज्, अजेय, सोमरस तैयार होना, य नेता, ह वहन, तु त वीकारने व सोमपान क ाथना, श ुधन जेता, बुलाना, र ा हेतु ाथना १-१०
३९.
अ न का वणन १-१० तु त, श न ु ाशाथ ाथना, हवन, सुखकारी, ओर जल १-१०
४०.
स
, रह य जानना, मांधता त, चार
इं व अ न क तु त १-१२ हराना, य करना, यु
म रहना, धन धारण १-४
सागर ढकना, श ुनाशाथ ाथना, आ ान, धनभोग कामना, आ ान, न दय को खोलना, ेरक, जल जीतना ५-१० शु ण क संतान का वध, तु तयां बोलना ११-१२ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
४१.
व ण का वणन १-१० पशुर क, शंसा, नाभाक ऋ ष, आ लगन, संसार, धरती नमाता, का का थत होना, श ुनाशाथ ाथना १-७
पोषण,
माया का नाश, व ण का थान, ावा-पृ थवी के धारक ८-१० ४२.
व ण व अ नीकुमार क तु त १-६ स ाट् बनना, अमृतर क, नाव, सोमपान व श ुनाशाथ ाथना १-६
४३.
अ न क तु त १-३३ बु मान्, जातवेद, वनभ ण, अलग जाना, झंडा, काली धूल, शांत न होना, झुकाना १-८ वेश, ुच, सेवा, याचना, आ ान, सखा, ह दाता, अ
वामी ९-१६
तु तय का जाना, स करना, तु त, आ ान श ुनाशक तु त १७-२४ हतकारी, े षय के संहारक, मनु त व ा २५-३०
ारा
व लत, आ ान अ
दे ना,
याचना, अंधकारनाशक, धन याचना ३१-३३ ४४.
अ न क तु त १-३० य, कामना हेतु ाथना, थापना, करण का उठना, धनयु , ुच, तु त, से वत, े अ न, आ ान, व तुएं मांगना, श से उ प , मेधा वय के संग बढ़ना, आ ान, बैठना, धन मलना १-१५ कूबड़, े रत करना, धन वामी, स करना, कामना, मेधावी, म ता जानने का आ ह, आशीवाद स य होने हेतु ाथना, अनु ह म रहने क ाथना, तु तय का प ंचना १६-२५ न यत ण, य नेता, प व क ा, जागृत रहना, उमर बढ़ाने क
४५.
ाथना २६-३०
इं का वणन व तु त १-४२ कुश बछाना, स मधाएं, झुकाना, बाण उठाना, ढ़ करना, धान रथी, अ दाता बनने, रथ लाने व पास जाने क ाथना १-१०
उप वहीन, सुखसाधन दे ना, र क, व तुएं मांगना, धन लाने हेतु ाथना, पशु दे खना, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ ान, पुकार सुनने, गाय दे ने के लए जागने क अजेय, सोमरस दे ना, धन बनाना २१-३०
ा त, क
सुख मांगना, स होना, शोभन स दे ना, धन लाने क ाथना ३१-४२ ४६.
ाथना, बलप त ११-२०
ऋ ष, अह्नवा य, तु त,
शंसा, माग
यां, शूर, पापनाशी, बात कहना, एवार, धन
इं , वायु एवं सोमरस क तु त १-३३ अ वामी, धनदाता, तु तगान, म द्गण, य पूरा होना, बढ़ना, धन मांगना, सेना, धन छ नना, आ ान, व तुएं दे ना, आ ान १-१२ आगे रहना, श ुजेता, अ , धन एवं पु ा द हेतु ाथना, श ुरोधी, गुणगान, गरना, बु नाशक, सहनशील १३-२० पृथु वा, वश, रथ ख चना, क त मलना, तु त, मलना, अ , न ष आ द, अ भेजना, गो- ा त २१-२९ बैल का आना, पृथु वा, गो व अ
४७.
ा त, युवती को लाना ३०-३३
म , व ण, आ द य एवं उषा क तु त १-१८ शोभन र ाएं, सुख व धन मांगना १-७ पाप र ाथ ाथना, माता अ द त, सेवनीय, शोभन माग पर ले जाने, शोभनपु दे न,े पाप से र रखने, क से बचाने हेतु ाथना व बुरे थान को र करने व बुरे सपन से बचाने क दे व से ाथना ८-१८
४८.
सोम क तु त १-१५ घूमना, धन वहन क ाथना, अमर सोम, आयु बढ़ाने, भचार से बचाने व धनी बनाने क ाथना, आयु बढ़ाने का आ ह, श ु का जाना, सुख याचना, सखा सोम १-१० आयु बढ़ना, दय म वेश, व तार करना, तु तयां बोलने व र ाथ ाथना ११-१५
४९.
अ न क तु त १-२० वरण, तु त, मननीय तो , यजमान, र क, प व , पूजक र ाथ श वामी, यजन १-१०
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाथना,
शंसनीय धन मांगना, कं पत करना, धन मांगना, जलाना, तु त, आ ान, तु त, जापालक, पीड़ा से बचाने क ाथना ११-२० ५०.
इं क तु त एवं वणन १-१८ आ ान, सं कार, धनी, स यर क, शूर, वणदे ह, धन व पशु दे ने क
ाथना १-७
नगर भेदक, आनंद क ा त, धन वामी, म बनाना, मलाना, धन वामी, बुलाना, वृ हंता, र ाथ ाथना, मलना ८-१८ ५१.
इं क तु त १-१२ बढ़ाना, अ तीय, तु य, क याणकारी, फलदाता, म बनाना १-६ तुत, तु त, ान कराना, सुख, शंसा, अव य ७-१२
५२.
इं का वणन एवं तु त १-१२ आना, वग नमाता, तु त, सुखकर, श
यां १-६
तु त, जौ खाना, र ा भलाषी, तेज वी, आना ७-१२ ५३.
इं क तु त १-१२ धन मांगना,
त ं
नह , अ राजा, आ ान, भेदन, आ ान, १-६
न य युवक, वृ कारक, वृ हंता, सोमपान का आ ह, आ ान ७-१२ ५४.
इं क तु त १-१२ आ ान, वगदाता, आ ान, वहन हेतु ाथना, बुलाना १-७ सोमरस नचोड़ना, यश याचना, गोदाता, व तृत, अ
५५.
ा त ८-१२
इं का वणन एवं तु त १-१५ आ ान, धनदाता, वृ नाशक, कामनाएं पूरी करना, समपण, धन दे ना १-६ आ ान, पु षाथ, ताड़न, तु त, माग ाता, पलायन ७-१५
५६.
आ द य, व ण, म , अयमा व अ द त क तु त १-२१ र ा याचना, ाता, तु य धन, र ाथ ाथना आ ान, पु य, तु त, पु को न मारने क ाथना १-११
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स , र ा-इ छु क,
अ द त, र क, फंसना, शोभनदाता १२-१६ छोड़ना, अतुलनीय वेग, र ण व पा पय के नाश क ५७.
ाथना १७-२१
इं क तु त १-१९ बुलाना, ा त करना, व पकड़ना, बुलाना, आ ान, श नमाण, हषकारक १-११ धन याचना ाथना, पास आना, अ
शाली, व धारी, याचना,
ा त १२-१६
अ - हण, सुंदर लगाम वाले घोड़े व घो ड़यां, नदा वचन न बोलना १७-१९ ५८.
व ण एवं इं का वणन १-१८ स कार करना, आ ान, मलाना, गोपालक, हरे अ , ध दे ना, सखा आ द य, पूजा, श द करना, सोमरस ले जाने का आ ह १-१० तु त, न दय का गरना, मु , मेघभेदन, रथ पर बैठना ११-१५ रथ मलना, धन ा त,
५९.
यमेध ऋ ष १६-१८
इं का वणन १-१५ तु त, वभाव, तु य, तु त, सीमा बनाना असंभव, सेना जीतना, य पू य १-८ शूर, स होना, े रत करना, श
६०.
म आना,
शाली, झुकाना, बछड़े दे ना, धनी ९-१५
अ न का वणन १-१५ र ाथ ाथना, तेज वी होना, धन याचना, ह दाता, ेरणा, धन ा त १-६ जातवेद, धन वामी, धन मांगना, तु त ७-१५
६१.
शं सत, दो
प, तु त, धन व घर मांगना,
अ न का वणन १-१८ सेवा, पास बैठना, लेना, चढ़ना, कामना, रथ, जल का दोहन १-७ याचना, पूजा, मधु, स
करना, सोने के कान ८-१२
ध स चने का आ ह, मलना, पोषण, दोहन, सोमरस लेना, दवा, ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१३-१८
६२.
अ नीकुमार क तु त १-१८ उ त बनने का आ ह, आ ान, अ , पास जाना, घर बनाना, उ णता से र ा क ाथना, स तव , पुनः सुलाना, आ ान १-१० अनुरोध, समान होना, घूमना, आ ान, र ाथ पास रहने क अंधकार का नाश, सं क जलाना ११-१८
६३.
ाथना, काश फैलाना,
अ न का वणन, अ न एवं जल क तु त १-१५ गुढ़वचन, तु त, शंसक, अ यु १-९
ुतवा व ऋ पु , अमर, तु त, अपण, सुखकर तु त,
पालक, गोपवन ऋ ष, तु त, शीश छू ना, भु यु, ुतवा १०-१५ ६४.
अ न क तु त १-१६ रथ जोड़ने का आ ह, वरणीय धन, स ययु , मेधावी, ग तशील, शोभन, प ण, प रचा रकाएं न छोड़ने का आ ह, बाधा न प ंचाने क ाथना १-९ नम कार, धन दे न,े श ुधन जीतने, बल व वेग बढ़ाने क
ाथना १०-१३
अ न का जाना, सेना र ा हेतु ाथना, पालक १४-१६ ६५.
अ न क तु त १-१२ आ ान, सर काटना, जल बनाना, वग जीतना, आ ान १-५ आ ान, व
६६.
को तेज करने व जबड़े कंपाने क
ाथना, वनाशक, तु त ६-१२
इं का वणन एवं तु त १-११ पूछना, माता शवसी, ऊणनाभ, अहीशुव आ द, ख चना, संहार, मं पान, मेघ को मारना, बादल छे दना, फलक १-७ वशाल पवत बनाना, जल दे ना, बाण ८-११
६७.
इं का वणन एवं तु त १-१० गाएं, घोड़े, तेल व गहने मांगना, सहायक, श
शाली, अजेय १-६
वृ हंता, शोभन-दान, समीप जाना, दरांत ७-१० ******ebook converter DEMO Watermarks*******
६८.
सोम क तु त १-९ पू य, लूले का चलना, र क, अलग करने क ेरणा, सुखदाता, सोम, हसक को मारने क
६९.
ाथना, कामनाएं पूरी होना १-५ ाथना ६-९
इं क तु त १-१० सुखदाता, सुख मांगना, धन याचना, श ुहंता, वजयाथ ाथना १-६ धन याचना, र क, एक ु ऋ ष ७-१०
७०.
इं क तु त १-९ तु य, जानना, शूर, द तशाली, कृपाथ, धन मांगना, श ुधषक, धन याचना १-७ धन व अ याचना ८-९
७१.
इं क तु त १-९ आ ान, स होने क
ाथना, बुलाना १-४
सोमरस नचोड़ना, सोमपान हेतु ाथना, चमू पा म सोमरस, वामी ५-९ ७२.
व भ दे व क तु त १-९ र ाथ ाथना, धनवधक, य नेता १-३ धन मांगना, ानी, आ ान, शोभनदाता ४-९
७३.
अ न क तु त १-९ तु त, र ाथ ाथना, वरे य व श ु
के अपमानक ा १-४
बलपु , घर-अ मांगना, गोलाभ, पूजन, बढ़ना ५-९ ७४.
अ नीकुमार क तु त १-९ आ ान, पुकार सुनने क
ाथना, कृ ण ऋ ष, आ ान १-४
घर, आ ान, कामपूरक, आने क ७५.
ाथना ५-९
अ नीकुमार क तु त १-५
व क, ऋ ष, वमना, व णायु, अ क ऋ ष, ऋजीश, श ुजेता १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
७६.
अ नीकुमार क तु त १-६ आ ान, सोमपान हेतु आ ान, अ हेतु बुलाना १-६
७७.
इं का वणन व तु त १-६ बुलाना, गाएं व अ मांगना, रोकने म असमथ, श ुसंहार १-४ ुलोक से भी महान्, धन वामी ५-६
७८.
म त एवं इं क तु त १-७ सूय बनाना, म ता, वृ नाश, महान् अ , धरती ढ़ करना, हराना, धा सूय १-७
७९.
इं क तु त १-६ बुलाने यो य, धनदाता, तु त, संहारक, श
८०.
बनाना,
वामी, धन मांगना १-६
इं क तु त १-७ अपाला, सोमपान हेतु जाना, कामना, धनयाचना, खेत उपजाऊ बनाने व बाल उगाने क ाथना, भावान करना १-७
८१.
इं क तु त १-३३ धनदाता, आ त, अ दाता, सुद ऋ ष, बढ़ाना, हराना, श ु का धन दे ने व पास आने क ाथना १-१०
ा त, आ ान, श ुनाशक,
व धारी, स करना, इ छाएं रखना, बलपु , भयानक स बनाने क ाथना, बलदाता, दशनीय, तु त, बुलाना, व तार, इं से बढ़कर न होना, वेश ११-२३ पया त होना, ुतक , दानशील, धन मांगना, शूर, धनधारक, अ न बनने क ाथना, सबके इं , तु तय ारा सेवा २४-३३ ८२.
वामी, अ धकारी
इं का वणन व तु त १-३४ हतैषी, मेघ हनन, धन मांगना, स जनपालक, सामने जाना, आ ान, तेज वी, द तशाली, तुत, वरोध न होना, पूजा १-१२ ध धारण, बली, भागना, अजातश ,ु श शाली, कामनापूरक, सोमपान, रमण, धन मांगना, पास जाना, वसजन, ह र नामक घोड़े १३-२४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कुशा बछाना, बल, र न, सुख, अ व मंगल, याचना, आ ान, शत तु, वृ हंता, ऋ ष ऋभु ा व ऋभु २५-३४ ८३.
म द्गण का वणन १-१२ सोमपान, त धारण, तु त, सोमपान, शंसा १-६ बु
८४.
मान्, द तशाली, व तृत करना, बुलाना, त ध करना, बुलाना ७-१२
इं क तु त १-९ तु तपा , च -पुरोडाश, आने व सोमपान हेतु ाथना, तर ी ऋ ष १-४ तु तवचन का नमाण, सेवा, दशाप व , आ ान, श ुघातक ५-९
८५.
इं का वणन १-२१ ग त बढ़ाना, पवत तोड़ना, नकट प ंचना, मानना, तु त, जीवो प , श ुजेता, बढ़ाना, तेज आयुध १-८ असुर को भगाने व धन हेतु ाथना, सेना का संहार, बुलाना, सहायता, आनंद दे ना, जल जीतना, श ुनाशक, र क, बुलाने यो य बनना ९-२१
८६.
इं क तु त १-१५ धन छ नना, प ण, भेजने क साथ बैठने क ाथना १-८ सवजेता, श
८७.
ाथना, वृ हंता, आ ान, श
वामी, र ा करने व
शाली बनाना, तु त, बलशाली, व धारी ९-१५
इं क तु त १-१२ मेधावी, तेज वी बनाना, म ता हेतु य न, वग वामी, श ुनग रय के नाशक, तो भेजना, बढ़ाना १-८ जोड़ना, बल व धन याचना ९-१२
८८.
इं क तु त १-८ सोमपान, नचोड़ना, धन उ प , पापहीन धन दे ना, हराना १-५ सेना का नाश, श ुजेता, बुलाना ६-८
******ebook converter DEMO Watermarks*******
८९.
इं क तु त १-१२ श ुजेता, भाग रखना, नेम ऋ ष, बढ़ाना, रोना, कट करना, शरभ, व लाना, व ा त १-९ जल हना, वाणी क उ प , परा म दखाने क
९०.
मारना, सोम
ाथना १०-१२
म , व ण, अ नीकुमार एवं सूया क तु त १-१६ ह व बनाना, कम करना, दे व त, नशीला सोम, र ा याचना, शंसा करने का आ ह, थान दे खना, आ ान १-८ न त करना, ह ले जाना, शंसा उपदे शक, उषा का दखाई दे ना, थत होना, गोवध न करने का आ ह, द तशाली ९-१६
९१.
अ न का वणन व तु त १-२२ अ दे ना, द तशाली, अ तशय युवा, बुलाना, आ ान, सागरवासी, नकट आने व क को बढ़ाने का आ ह, आ ान, यश वी, व लत होना, तोता १-१२ सेवा करना, अ न म जल का होना, र ायु का चार ओर बैठना, धारण करना १३-१९
होना, आ ान, अ न क उ प , दे व
लक ड़यां धारण, काठ, बढ़ाना २०-२२ ९२.
अ न व म द्गण क तु त १-१४ तु तय का जाना, वग म रहना, कांपना, वीरपु पा मलना, दशनीय, दाता े , यशदाता १-९
मलना, श ु का अ न करना,
अ त य, धन न लाना, तुत, तु त, सोमपान हेतु ाथना १०-१४
नवम मंडल सू १.
वषय
मं सं.
सोम क तु त १-१० सोम नचोड़ना, बैठना, अ तशय दाता, बल व अ मांगना, सेवा करना, दशाप व दस उंग लयां, तीन जगह, रहना, शु , धन ा त १-१०
******ebook converter DEMO Watermarks*******
२.
सोम क तु त १-१० वेशाथ ाथना, सवधारक, जल ढकना, जल का आना, शु होना, रोना व सुशो भत होना, याचना, मादक के गरने क ाथना, संतान व अ आ द के दाता १-१०
३.
सोम का वणन १-१० कलश क ओर जाना, अजेय, सजाना, इ छा, अ भलाषापूरक, जल म वेश १-६ वग जाना, पवमान, दशाप व , गरना ७-१०
४.
सोम क तु त १-१० सेवा का आ ह, सौभा य याचना, क याण व मंगल क कामना १-६
ाथना, सूय दे खने क
धन मांगना, बढ़ाना, सव जाना ७-१० ५.
सोम का वणन १-११ वराजमान होना, बढ़ना, सुशो भत होना, बल से जाना, चढ़ना, अ भलाषा, बुलाना १-७ आ ान, व ा, सं कार करने व दे व से सोम क ओर जाने क
६.
ाथना ८-११
सोम क तु त का वणन १-९ अ भलाषापूरक, घोड़े, अ आ ह १-६
व बल मांगना, अनुगमन, सेवा करना, मलाने का
तृ त, य क आ मा, श द भरना ७-९ ७.
सोम का वणन १-९ य माग, नहाना, श द करना १-३ तु तयां जानना, याचना ४-९
८.
ेरणा, तु तयां सुनना, दे व क
सोम का वणन १-९ बल बढ़ाना, थत होना, अ भल षत बनना, सेवा १-४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा त, मलना, अ
व धन
मलाना, ढकना, श ु ९.
का नाश करने, श
दे न,े संतान व अ हेतु ाथना ५-९
सोम क तु त १-९ मेधावी, आ ान, काशन, स करना १-४ उंग लयां धारण करना, न दयां दे खना, रा स को मारने, काश फैलाने, बु मनोरथ पूरा करने क ाथना ५-९
१०.
दे ने व
सोम का वणन १-९ आना, सोम उठाना, सं कृत होना, धारा म चलना, श द करना, ार खोलना, बैठना, हना, द तशाली १-९
११.
सोम क तु त १-९ जाने के इ छु क, ध मलाना, सुख मांगना, बलशाली, पावन बनाने का आ ह १-५ तुत करने का आ ह, संतु कारक, पा
१२.
म भरना, बल व धन मांगना ६-९
सोम का वणन १-९ नमाण, आ ान, वाणी, पू जत होना, वेश १-५ श द करना, य -वास, थान ा त, घर मांगना ६-९
१३.
सोम क तु त १-९ जाना, शोधक, टपकना, धारा गराने, धन व श
दे ने क
दशाप व , धारण करना, श -ु वध करने व बैठने क १४.
ाथना ६-९
सोम का वणन १-८ बहना, अलंकृत करना, मु दत, टपकना, मसलना १-५ तरछा चलना, पीठ पर चढ़ना, आ ान ६-८
१५.
ाथना १-५
सोम का वणन १-८ वग जाना, इ छा, सोम को दे ना, कंपाना, जाना १-५ लांघना, नचोड़ना, मसलना ६-८
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१६.
सोम क तु त व वणन १-८ चलना, मलाना, अजेय, प ंचना १-४ जाना, रहना, दशाप व
१७.
५-८
सोम का वणन व तु त १-८ जाना, गरना, दशाप व , बढ़ना १-४ काशन, तु त, शु
१८.
करना, पेय बनने क
ाथना ५-८
सोम क तु त १-७ सव म, मेधावी, ा त करना, धन दे ना १-४ हना, ढकना, श द करना ५-७
१९.
सोम का वणन १-७ धन, गोपालक, बैठना, सारवान् होने क कामना, रस हना १-५ व तुएं लाने व तेजनाशाथ ाथना ६-७
२०.
सोम क तु त १-७ हराना, अ दे ना, धन व रस मांगना, अनोखा, रगड़ना, दानदाता ५-७
२१.
सोम क तु त १-७ जाना, अ दे ना, टपकना, ले जाना धन मांगना, ेरणा १-७
२२.
सोम का वणन १-७ नीचे जाना, नकलना,
ा त करना, न थकना १-४
सोम ा त, श द करना ५-७ २३.
सोम का वणन एवं तु त १-७ तु तयां, जाना, धन, घर व अ वध १-७
२४.
मांगना,
ीण होना, बचाना, अ भलाषी, श -ु
सोम का वणन एवं तु त १-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मसलना, ा त करना, पास प ंचना, श ुजेता, पया त होना, श ु-वध, तृ तकारक १-७ २५.
सोम का वणन १-६ साधक, पकड़ा जाना, सव य जाना,
२६.
ांत
ा १-६
सोम का वणन १-६ मसलना, तु त, वग भेजना, बढ़ाना, ेरणा, बढ़ना १-६
२७.
सोम का वणन १-६ मेधावी, श
२८.
दाता, सव , श द करना, छोड़ना, इं
सोम का वणन १-६ चलना- गरना, शोभा पाना, कामपूरक, सव
२९.
ा, पापनाशक १-६
सोम क तु त १-६ बहना, शु
३०.
मलना १-६
करना, तु य, श ु भगाने व र ाथ आ ह, बल लाने क
सोम का वणन १-६ व न करना, द तशाली, वरो धय के बल रण हेतु नशीला सोम १-६
३१.
ाथना, टपकना, कूटना,
सोम क तु त १-६ जाना, बढ़ाने क ाथना, वायु से तृ त होना, अ दाता बनने क दे ना, कामना १-६
३२.
ाथना, ध-दही
सोम का वणन एवं तु त १-६ जाना, कुचलना, ाथना १-६
३३.
ाथना १-६
वेश, बैठने हेतु जाना,
शंसा, अ -धन व बु
सोम का वणन एवं तु त १-६ नीचे जाना, अमृतधारा, पास जाना, तु तयां, कामना पू त हेतु ाथना १-६
३४.
सोम का वणन १-६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे ने क
श थल बनाना, पास जाना, हना, शु ३५.
होना, हना, मलना १-६
सोम क तु त एवं वणन १-६ धन मांगना, कंपाना, धन, अ व थान दे ना, पालक १-६
३६.
सोम क तु त एवं वणन १-६ ग त करना, दे वा भलाषी, ेरणाथ ाथना, छनना, धन, पशु आ द मांगना १-६
३७.
सोम का वणन १-६ वेश, सव
३८.
ा, काशन, अजेय, महान् १-६
सोम का वणन १-६ जाना, कुचलना, शु
३९.
सोम क तु त एवं वणन १-६ बु
४०.
करना, बैठना, वेश, जाना १-६
मान्, बरसने क
ाथना, द त बनाना, टपकना १-६
सोम क तु त १-६ अलंकृत करना, बैठना, धन लाने क मांगना १-६
४१.
ाथना, द तशाली, धन, अ
सोम का वणन एवं तु त १-६ द तशाली, शंसा करना, श द सुनाई दे ना, पशु, बल, धन लाने, पूण करने व धारा पूण करने क ाथना १-६
४२.
ावा-पृ थवी को
सोम का वणन व तु त १-६ ढकना, गरना, नचोड़ना, स चना, जाना, धन व अ मांगना १-६
४३.
सोम का वणन व तु त १-६ मलाना, द तशाली बनाना, जाना, धन मांगना, श द करना, पु याचना १-६
४४.
व पु
सोम का वणन व तु त १-६ आना, व तार, जाना, सेवा करना, ेरणा, अ व बल जीतने क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाथना १-६
४५.
सोम का वणन व तु त १-६ ा, पेय होना, शु
४६.
करना, पास जाना, वणन १-६
सोम का वणन १-६ तैयार करना, वायु ा त, स करना, हाथ, माग दाता, प व करना १-६
४७.
सोम का वणन १-५ श द करना, ऋण चुकाना, धनदाता, कामना, श ुधन दे ना १-५
४८.
सोम क तु त व वणन १-५ धन याचना, शंसनीय, वग से लाना, य र क, मह व पाना १-५
४९.
सोम क तु त १-५ अ दे न,े टपकने, बरसने व दे व ारा श द सुनने क
५०.
ाथना, टपकना १-५
सोम क तु त १-५ वेग से चलना, नकलना, रखना, नशीले, मादक १-५
५१.
सोम का वणन १-५ दशाप व , अमृतवत्, हण करना, पास जाना, बु
५२.
मान् १-५
सोम क तु त १-५ द तशाली, दशाप व , बहने वाले, आ त, धनदाता १-५
५३.
सोम क तु त १-४ वेग का उठना, तु त, कम न सहा जाना, मादक सोम १-४
५४.
सोम का वणन १-४ हना, संसार दे खना, लोक के ऊपर रहना, इं ा भलाषी १-४
५५.
सोम क तु त १-४ संप यां दे न,े कुश पर बैठने व टपकने क
ाथना, श ुहंता १-४
५६. सोम का वणन व तु त १-४ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ दे ना, सौ धाराएं, मसलना, पाप से बचाने क ५७.
सोम क तु त १-४ अ दे ना, आना, बैठना, संप य को लाने क
५८.
सोम क
लेना, चलना १-४
सोम क तु त १-४ धनजेता, बहने व कुश पर बैठने क
६०.
ाथना, श ुजेता १-४
सोम क तु त १-४ तु त का आ ह, शु
६१.
ाथना १-४
ाथना १-४
पाप ाता, ग त करना, धन व व ५९.
ाथना १-४
करना, जाना, अ मांगना १-४
सोम क तु त १-३० गरने क ाथना, शंबर, य , तुवश, अ मांगना, म ता करने, सुखी बनाने व धन लाने क ाथना, मलना, टपकने क ाथना १-९ ु ोक म अ व धन ा त, गरने क ाथना, पास जाना, बढ़ाने क ल दे ने क ाथना, वै ानर का ज म, जाना, दशनीय, रा सहंता १०-१९
ाथना, सुख
सं ाम म भाग लेना, म त, र ा करना, अमहीयु, धारा म गरना, संतानयु मांगना, धनदाता, टपकने क ाथना २०-२८ वध करने क कामना, नदा से बचाने क ६२.
यश
ाथना २९-३०
सोम क तु त एवं वणन १-३० ले जाना, पापनाशक, सुखदाता, बैठना, अ वा द बनाना, सजाना, धाराएं बनाना, टपकने व ध, घी बरसाने क ाथना, वशेष ा, धन दे ना १-११ धन मांगना, बहना, टपकना, य म जाना, बैठने जाना, रथ जोतना, श नडर बैठना, हना, दे व य, धारा बनाना १२-२२ मलना, अ दे न,े फल दे ने व बरसने क आ ह, बैठना २३-३०
६३.
ाथना, आ ा पालन, जाना, शु
सोम क तु त एवं वणन १-३०
******ebook converter DEMO Watermarks*******
शाली, करने का
धन मांगना, मादक, गरना, धावा बोलना, रे क, थान ा त, हतकारी जल, घोड़े जोड़ना, एतश, स चने क ाथना, श ु, अ य धन, अ , बल मांगना १-१२ तेज वी, गरना, टपकना, मादक, मसलना, धन मांगना, स चने का आ ह, मसलना, ेरणा, द तशाली, शंसनीय धन, श ुनाशक, रा स के नाश क ाथना, सोम बनाना, नमाण, श ु , रा स का वध करने, े बल व धन याचना १३-३० ६४.
सोम क तु त १-३० कम धारण, अ भलाषापूरक, हन हनाना, पशु व संतान मांगना, नमाण, छनना, धन मांगना, धारा का बनना, धन याचना, श द करना, बढ़ाना, बैठना १-११ दे वा भलाषी, गाय के समीप आने, अ , धन दे ने व इं के थान पर जाने क ाथना १२-१५ बनना, जाना, घर-र ाथ ाथना, जलवास, य छोड़ना, नरक म डू बना, टपकने क ाथना, मसलना, अयमा आ द, सोमपान, प व सोम १६-२५ वाणी दे ने व ोणकलश म जाने क
६५.
ाथना, मलना, चलना २६-३०
सोम क तु त १-३० द तशाली, धन दे ने व वषा भेजने क ाथना, बुलाना, शोभन-आयुध, भरना, ऋ ष, अवरोधक, वरण, धन दे ना, धारक, सव ा, ओज वी १-१४ हना, शं सत, धन-बल मांगना, जाना, बहना, धन व पु मांगना, शु मसलना १५-३०
६६.
होना,
सोम एवं अ न क तु त १-३० ाथना, राजा बनना, सुशो भत होना, आ ान, व तार, शासन मानना, धन दे ना, शंसा, नचोड़ना, दौड़ना, मसलने क इ छा, जाना, आना, म ता चाहना १-१४ वेश हेतु ाथना, श ुधन जीतना, दानी, वरण करना, जीवनर क, याचना, गाएं मांगना, सूय के समान दे खना, समीप जाना, तेज क उ प , गरना, ा त करना, टपकना, सुख मांगना १५-३०
६७.
सोम क तु त एवं वणन १-३२ धाराएं चाहना, य धारक, श द करना, आ ान, धन मलना, धन मांगना, इं ा त, प व होना, ेरणा, या ा म र ा करने व ना रयां दे ने क ाथना, र नदाता,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ोणकलश, जाना १-१५ मादक सोम, अ मलना, वायु बनाना, याण, ोणकलश म आने, भय भगाने, पापहीन करने, प व करने व पाप से छु ड़ाने क ाथना १६-२७ व डालने क ाथना, नकट जाना, श ुनाशाथ ाथना, अ भ ण, ध व सोम को हना २८-३२ ६८.
सोम का वणन १-१० टपकाना, धन दे ना, बल ा त, र ा करना, जलगभ, मसलना, अ दे ना १-७ ेरणा, शो भत होना, ावा-पृ थवी को पुकारना ८-१०
६९.
सोम का वणन १-१० अपण, मुख म प ंचना, चमकना, वयं को ढकना, तेज था पत, छनना १-६ प ंचना, अं गरा ऋ ष, ेरणा, सुखदाता ७-१०
७०.
सोम का वणन १-१० बढ़ना, ढकना, तु तयां मलना, वाक् म रहना, बाधा प ंचाना, सव जाना १-६ शु
७१.
करना, ऊंची जगह जाना, माग बताना, श ु संहाराथ ाथना ७-१०
सोम का वणन १-९ सूय थर करना, श ुनाशक, शु जाना १-६
होना, स चना, पास जाना, व णम जगह
सुशो भत होना, गाएं मांगना, ान कराना ७-९ ७२.
सोम का वणन व इं क तु त १-९ स करना, हना, उपे ा, ल य करना, गरना, आना १-५ उ रवेद , सुख हेतु जाना, धनदाता, आ ान ६-९
७३.
सोम का वणन १-९ मलना, बढ़ाना, बैठना, वृ यु
करना, भगाना, उ प
तु त, पीड़ा दे ना, जलवास ७-९ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-६
७४.
सोम का वणन एवं तु त १-९ रोना, धारक, माग व तृत होना, अमृत उ प , श द करना १-५ अमृत भरना, उ
७५.
वल करना, लांघना, पु
ा त, दौड़ना ६-९
सोम का वणन १-५ टपकना, अजेय, सुशो भत होना, गरना, ेरणा हेतु ाथना १-५
७६.
सोम का वणन एवं तु त १-५ टपकना, आयुध, अ दाता, सोम का कम, वेश १-५
७७.
सोम का वणन १-५ जाना, मलना, दशनीय, गभधारण करना, इधर-उधर जाना १-५
७८.
सोम का वणन एवं तु त १-५ जाना, थत होना, बढ़ाना, प व करना, शु
७९.
होना, १-५
सोम का वणन एवं तु त १-५ ह रतवण, मद टपकाने वाले, श ुनाशक, रस नकालना, सोम १-५
८०.
सोम क तु त एवं वणन १-५ चमकना, शंसा, बढ़ाना, हना, जाना १-५
८१.
सोम का वणन १-५ उ म होना,
८२.
ा त करना, धनी सोम, आ ान १-५
सोम का वणन एवं तु त १-५ दशनीय, पूजनीय, मेघपु , सुखदाता, जल का सोम से मलना १-५
८३.
सोम का वणन व तु त १-५ व तृत, सोम करण का थर होना, पु करना, जकड़ना, अ जीतना १-५
८४.
सोम का वणन १-५
वशेष ा, ा त होना, स करना, जाना १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
८५.
सोम का वणन व तु त १-१२ रोगनाशाथ ाथना, द , तु त, रस टपकाना, सेवा यो य, वा द , मसलना १-७ धन जीतने क
८६.
ाथना, थत होना, नचोड़ना, शंसा,
प दे खना ८-१२
सोम क तु त एवं वणन १-४८ ापक, पास जाना, शु होना, से वत, गरना, नचुड़ना हरा सोम, दे व थान जाना, धारक, श द करना, इं वधक वषाकारक १-११ यु , दशाप व , बहना, यु म जाना, क न दे ना, आनाजाना, संतानदाता, अ भलाषापूरक, जल उ प , लोकक ा, आरोहण १२-२२ वेश, तु त, रे णा, सुगम बनाना, दशाप व पर जाना, मसलना, तेजधारी, साधन, अपण, रोना, व तार, जाना, य माग, यु म जाना, वशेष ा, जनक, जल उ ारक लोक म जाने वाले, ाता, ग तक ा २३-३९ तु तयां, ेरणा, म य भाग, जाना, बढ़ना, तु त, श द करना, कामना, मलाना, शंसनीय ४०-४८
८७.
सोम व इं क तु त व सोम का वणन १-९ साफ करना, रा सनाशक, ध ा त, थत रहना, शु गाएं ा त, सोम का अ १-९
८८.
, अ -धन याचना, दौड़ना,
सोम क तु त १-८ आ ान, जीतना, मनोवेगवान्, कमकता, ेरणा १-५ जाना, य पा , पू य ६-८
८९.
सोम का वणन व तु त १-७ बहना, हना, पालक, बली बनाना, सेवा करना, धारक, श ुनाशक १-७
९०.
सोम का वणन व तु त १-६ अ , धन-र न दे ना, श ुजेता, श द करना, पापनाशक १-६
९१.
सोम का वणन व तु त १-६ नमाण, जाना, कामपूरक, नग रयां न
करने, माग बनाने क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाथना, पु
मांगना १-६ ९२.
सोम का वणन व तु त १-६ दे वसेवा, जलधारक, अनुगमन, शु
९३.
सोम का वणन व तु त १-५ शु
९४.
, र ा, जाना १-६
होना, वरे य, ढकना, धन व संतान याचना १-५
सोम का वणन व तु त १-५ नचोड़ना, बांटना, धन दे ना, आयुदाता, पशु याचना १-५
९५.
सोम का वणन एवं तु त १-५ श द करना, ेरणा, वेश, श ु नवारक, सौभा य याचना १-५
९६.
सोम का वणन व तु त १-२४ आगे जाना, नचोड़ना, पेय, र ाकामना, शु
होना, पार जाना १-६
ेरणा, मदकारक, रमणीय, माग बताना, य कम, अ दे ना, य वामी सोम, अ अ भलाषी, लांघना, शु होना, फलवाहक, शं सत, जल ेरक ७-१९ बैठना, चमू पा , वेश, शं सत सोम, जाना २०-२४ ९७.
सोम का वणन व तु त १-५८ रे क, आ छादक, यश वी, वा द , जाना, ह रतवण, वृषगण ऋ ष, हारक, काश करना, रा सनाशक, छनना, ढकना, श द करना, शु , गाय क कामना, द तशाली १-१६ अ यु , श द करना, अजेय, ोणकलश, संतान मांगना, धनदाता, जलधारक, द तशाली, भयंकर, धाराएं, लहर का नमाण, छनना, चमकना, धाराएं गराना, पास जाना, पूछना, क याणकारी, पश, अंधकारनाशक १७-३८ बढ़ने वाले, जलधारक, ओज दे ना, प व होना, सरल ग त वाले, धनवषक, शु , गरना, प व होना, रथ वामी, तुत सोम, वण व रथ याचना, जमद न ऋ ष, जाना ३९-५२ धन दे ना, श ुनाशक, श ुजेता, दौड़ना, सव ाता, मसलना, सहायक ५३-५८
******ebook converter DEMO Watermarks*******
९८.
सोम का वणन १-१२ अ दाता, गरना, छनना, दान दे ना, नवासदाता, नहलाना पास जाना, धन दे ना १-८ तेजपूण, नचोड़ा जाना, भगाना, ानी ९-१२
९९.
सोम का वणन १-८ फैलाना, भेजना, सोमपान, तु त, ाथना, थत होना, नहाना, ले जाना १-८
१००.
सोम क तु त १-९ पास जाना, द तशाली, धन बढ़ाना, दौड़ना,
ांतदश , अ दाता १-६
पवमान, रा सघाती, धारक ७-९ १०१.
सोम का वणन व तु त १-१६ भ य, जाना, नचोड़ना, छनना, टपकना, ेरक, पोषक, द त, शंसनीय रस, ाता, मेधावी १-१० श द करना, उपभो य, मलना, ढकना, छनना ११-१६
१०२.
सोम का वणन एवं तु त १-८ ा त करना, तु त, तो बोलना, सोम क
शंसा, सेवन, क व १-६
मलना, ेरणा हेतु ाथना ७-८ १०३.
सोम का वणन १-६ य वधाता, हरा सोम, तु त, बैठना, धनदाता, दौड़ना १-६
१०४.
सोम का वणन एवं तु त १-६ सजाना, दे वर क, साधन, १-३ मलाना, मद वामी, म ता हेतु ाथना ४-६
१०५.
सोम का वणन एवं तु त १-६ तु त का आ ह, मलाना, मधुरता दे ना १-३ ध मलाना, अ
वामी, माया से बचाने क
ाथना ४-६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१०६.
सोम का वणन एवं तु त १-१४ शी उ प , टपकना, धनुषधारी, जागने वाले, वशेष बढ़ना १-८
ा, वा द , गरने क
ाथना,
सव , श द करना, बढ़ाना, तैयार करना, धन दे ना, दे वा भलाषी ९-१४ १०७.
सोम का वणन व तु त १-२६ ह व, मलाना, टपकना, बैठना, हना, जागरणशील, जाना, छनना, वेश, सजाना, जाना १-१२ मसलना, सव ाता, बहना, नय मत, छनना, जाना, स रहना, जाना, धन दे ना, जाना, समु धारक, े रत करना, जाना १३-२६
१०८.
सोम क तु त व वणन १-१६ बु दाता, सव ा, श द करना, मादक, फैलाना, अ वत्, तु य, बढ़ना, अ शोभन बल वाले १-१०
वामी,
दोहन, धारक, अ , पशु व घर लाने वाले, अ भमुख करना, संयत, वगधारक ११-१६ १०९.
सोम क तु त व वणन १-२२ वा द , रसपान का आ ह, पालक, द तशाली, श संय मत, धन याचना, वेगशाली, शु करना १-११
शाली, शोभन धारा
वाले,
जलपु , शु होना, पोषक, सोमपान, बहना, मसलना, संय मत, तैयार करना, मलाना, जलवासी, ेरक १२-२२ ११०.
सोम क तु त व वणन १-१२ सहनशील, तु त, वेगशाली, अमर, पार जाना, तु त, बु अ धकारी बनना, श
१११.
यु , अ दाता, भगाना ९-१२
सोम क तु त व वणन १-३ रा स का नाश, गोधन ा त, तु तयां सुनना १-३
११२.
सोम का वणन व तु त १-४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
धारण, तु त १-८
व वध कम, बाण बनाना, भ काम करना, कामना १-४ ११३.
सोम क तु त १-११ शयणावत तालाब, ऋजीक दे श, सोम लाना, रस गराना, धारा बहना, रस गराने, यर हत लोक ले जाने व अमर बनाने क ाथना १-११
११४.
सोम क तु त १-४ भा यशाली, क यप ऋ ष, सात ऋ वज्, श ु से र ाथ ाथना १-४
दशम मंडल सू १.
वषय
मं सं.
अ न क तु त १-७ पूण करना, म थत,
२.
त ऋ ष, सेवा, य
ापक, ना भ, व तारक १-७
अ न क तु त व वणन १-७ े होता, मेधावी, ाता, धनी, य क ा, ापक, उ प
३.
अ न का वणन व तु त १-७ भयानक, चमकना, जाना,
४.
स
होना,
ा त करना, ेतवण, आ ान १-७
अ न क तु त १-७ सुखद, घूमना, धारण, नवास, स करना, मथना, बु
५.
१-७
मान् १-७
अ न का वणन १-७ धनधारक, र ा करना, बढ़ाना, सेवा १-४ शं सत, जलवास, उ प
६.
५-७
अ न का वणन व तु त १-७ बढ़ना, अजेय, ग तशील, तेज चलना, तु त, संप
७.
थान, अनुगमन १-७
अ न का वणन व तु त १-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
द गुणयु , धनदाता, आराधना, र क, उ प ८.
अनु ान, पूजनीय १-७
अ न क तु त व इं का वणन १-९ श द करना, स होना, रमण करना, पहले आना, य जलनेता,
९.
त, यु , वध, सर काटना ६-९
जल क तु त १-९ सुखाधार, सुखकर रस, स होना, द जलवास, पु
१०.
काशक, र क १-५
जल, नवासदाता १-५
हेतु ाथना, पाप र करने व तेज वी बनाने का आ ह ६-९
यम और यमी का संवाद १-१४ नवेदन, दे खने क बात कहना, या य, अस य से बचना, जाप त, जानना, इ छा, गु तचर, बंधु, आ ह १-१० मू छत होकर बोलना, पाप, कमजोर बतलाना, सुझाव ११-१४
११.
अ न का वणन एवं तु त १-९ गराना, गंधवप नी, उदय, लाना, जाना, शंका १-६ सेवा, र नदाता, रथ ७-९
१२.
अ न का वणन एवं तु त १-९ ाण, जाना, धारक, तु त १-४ प रचरण, सूय, काश पाना, पापनाशक, रथ ५-९
१३.
ह वधारक गा ड़य का वणन १-५ प नीशाला, लादना, उपकरण, य करना, तु तयां १-५
१४.
पतृलोक, पतर व यम का वणन १-१६ पुरोडाश, माग ाता, ऋ व, अं गरा, बुलाना, यो य, स होना,
यमान १-८
थान दे ना, चतकबरे कु ,े गृहर क, यम त, त बनाने वाला, आयु याचना, नम कार, क क ९-१६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१५.
पतृलोक का वणन, अ न व पतर क तु त १-१४ पतर, नम कार, न यता, र ा व धन याचना, पतर बुलाना १-८ ह हणाथ आना, ह होना ९-१४
१६.
भ क, पतर अ न वा , तु त, वधा, जानना, स
अ न क तु त व ेत का वणन १-१४ न जलाने क ाथना, पतर, ाण, क याणकारी, ऊपर जाना, नरोग हेतु ाथना, तैयार, स होना १-८ आग हटाना, वेश, साम ी, थापना,
१७.
व लत करना, ब, वन प तयां ९-१४
सर यू, पूषा व सूय आ द का वणन १-१४ ववाह, ज म, र क, पूषा, दशाएं जानना, घूमना, बुलाना, स होना १-८ आ ान, धन मांगना, जल, नकलना, हवन, गरना, तु तवचन ९-१४
१८.
मृ यु, मृतक, धरती व जाप त आ द क तु त १-१४ न मारने क ाथना, पतृयान, पतृमेध, प थर, ऋतु, व ा, सधवा, पा ण हण, धनुष लेकर कहना १-१० उपचार, द णादाता, धान दे न,े सहारा दे ने क
१९.
ाथना, खूंट , संकुसुक ऋ ष ११-१४
गो व इं क तु त १-८ धन मांगना, गाय को वश म करने, पास रखने व गोशाला हेतु ाथना, पहचानना, चराने जाना, गाय स हत लौटने व गाएं लाने का अनुरोध १-६ सेवा, गाएं लाने क
२०.
ाथना ७-८
अ न क तु त व वणन १-१० तु त, अजेय, फल दे ना,
ा त करना, आना, जाना, इ छा १-७
बढ़ाना, चमक ला, ऋ ष वमद ८-१० २१.
अ न क तु त १-८ वरण, शोभा बढ़ाना, सेवा, अमर, ाता १-५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
धनलाभ, थापना, २२.
स
६-८
इं क तु त १-१५ स , श ुजेता, शं सत, आना, उशना, रा सनाशक, र ाथ ाथना, घेरना १-१० शु ण वंश का नाश, सुख व भोग याचना, बढ़ना, धनी बनाने क
२३.
ाथना ११-१५
इं का वणन १-७ कमकुशल, वृ वध, ख चना, भगोना, बलवान बनाना, वमदवंशी, जानना १-७
२४.
इं व अ नीकुमार क तु त १-६ अ धक धनी, कमपालक, ेरक, वमद, शंसा, द तशाली १-६
२५.
सोम क तु त १-११ क याणकारी, महान्, प रणाम, जाना, संतु , व तुएं लाना, अजेय १-७ शोभन कम, श ुहंता, क ीवान्, द घतमा, परावृज ८-११
२६.
पूषा का वणन व तु त १-९ दशनीय, तु तयां, स चना, तु त, हतैषी १-५ व
२७.
बुनना, म , ख चना, अ बढ़ाने व पुकार सुनने क
ाथना ६-९
इं व उनके पु वसुक ऋ ष का संवाद १-२४ फल व सोमरस दे ना, वणन, जीतना, कांपना, हार, दशनहीना क या, प त चुनना १-१२ सोखना, भ ण, ज म, ेरणा, घूमना, जाप त, वधा,
ा त, हना, चाहना, बनाना, ा त करना १३-२०
गरना, कांपना, मेघ का छे दन, आ व कार २१-२४ २८.
इं व उनके पु वसुक का संवाद १-१२ इं का न आना, पेट भरना, मांस पकाना, श ुनाशक, तु त, श ुहीन, शूर समझना, सोखना, पवत फोड़ना १-९ सोमलता लाना, ‘दान वामी’ नाम रखना १०-१२
******ebook converter DEMO Watermarks*******
२९.
इं एवं अ नीकुमार क तु त १-८ हतैषी,
शोक ऋ ष, श
शाली, तु त, दाता १-५
माता, बढ़ना, घेरना ६-८ ३०.
जल क तु त व वणन १-१५ मन, दशाप व , जाने का आ ह, बना का तरंग १-८
के जलना, मु दत, प रचय, छु ड़ाना,
ऊपर जाना, बढ़ना, सोम धारण, आना, थत हेना ९-१५ ३१.
व भ दे व का वणन १-११ तु य, धना भलाषा, सुख पाना, जाप त १-४ भरना, पोषक, अजर, काश, अर ण, क व ५-११
३२.
इं , उनके घोड़ व यजमान का वणन १-९ वाद लेना, घोड़े, बुलाना, गाय ी, आना १-५ य र क, पूछना, न य युवा, धन दे ना ६-९
३३.
कवष व कु
वण राजा का वणन १-९
कवष व कु
वण, सौत, तोता, धन मांगना, हरे घोड़े,
ांत, तोता १-७
मानव- वामी, वयोग ८-९ ३४.
जुआ व जुआरी का वणन १-१४ त ते, प नी ारा छोड़ना, आदर नह , प नी को छू ना, प ंचना, जुआघर जाना, हारजीत, घाती पाशे, अवश पाशे, झुकना, दाहक पाशे १-९ कज चढ़ना, बदहाली, आग के पास सोना, नम कार, जुआ छोड़ने का आ ह, सुख याचना १०-१४
३५.
व भ दे व का वणन व तु त १-१४ वरण करना, सुख व धन मांगना, अंधकारनाशक, तु त, जानना १-८ जाना, होता, बुलाना, मनपसंद घर, अ कामना, कामना पूरक ९-१४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
३६.
व भ दे व का वणन व तु त १-१४ आ ान, र ा याचना, अ य यो त, म त का सुख, शं सत बृह प त, र ा याचना, आ ान, द तयु , सोमपान का आ ह, य यो य दे व १-१० अ तीय दे व, र ा याचना, स य वभाव, धन व आयु क याचना ११-१४
३७.
व भ दे व का वणन व तु त १-१२ नम कार, बहना, अनुगमन, चमकाना, य र ा करने, कृपा बनने क ाथना १-७ वशेष
३८.
, व ाम, धन याचना, पापहीन, सुख मांगना, नवास थान दाता ८-१२
इं क तु त १-५ सहनाद, वासदाता, यु
३९.
रखने व चरंजीवी
क कामना, धन ा त, ेरक १-५
अ नीकुमार क तु त १-१४ नाम लेना, मधुर वचन, वर खोजना, यवन, वै , आ ान १-६ ववाह, क ल ऋ ष, रेभ ऋ ष, राजा पे , शंसनीय, रथ, व तका च ड़या, रथ सजाना ७-१४
४०.
अ नीकुमार क तु त १-१४ य नेता, अनुकूल बनाना, तु तयां, अ दाता, घोषा, कु स, भु यु, वश, अ , उशना, कृश, शंय,ु व मती १-८ युवती बनना, समेटना, युवा प त, उदक वामी, कामना, दशनीय ९-१४
४१.
अ नीकुमार क तु त १-३ रथ, घर जाना, आ ान १-३
४२.
इं क तु त एवं वणन १-११ तु त का आ ह, जारतु य, धन वामी, म धनसंप बनाना १-९
बनाना, उप व रोकना, अ धकार,
भूख मटाना, धन मांगना १०-११ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
४३.
इं क तु त एवं वणन १-११ कृ ण ऋ ष, अ भलाषा, बढ़ाना, पास जाना, सूय ढूं ढ़ना, हराना, जाना १-७ ेरणा, स जनपालक, बु
४४.
, र ाथ ाथना ८-११
इं क तु त १-११ ीण करना, पालक, व धारी, साम य, तु त, वग जाना, नरक होना १-८
ा त, ु
तु त, क चना, आ त, धन मांगना ९-११ ४५.
अ न क तु त व वणन १-१२ उप , पुआ,
४६.
प जानना,
वलन, चाटना, शोभाधारी, मेघभेदन, ेरणा, चमकना १-८
य होना, ार खोलना, तु त ९-१२
अ न एवं य होता, तु तयां,
का वणन १-१० त ऋ ष, य नेता, कम ा त, बैठना १-६
ग तशील, तु तयां, व ा, भृगु, यश ा त ७-१० ४७.
इं क तु त १-८ गो वामी, र ायु , महान्, श ुहंता, घरा रहना, धन, बु
४८.
इं
व घर क याचना १-८
ारा अपना वणन १-११
अ दे ना, द यङ् , दधी च, व , जीतना, वामी, झुकाना, न करना १-७ गुंगु जनपद, असुर वध, आयुध धारण, अजेय व अ ाथ बनाना ८-११ ४९.
इं का आ मवणन १-११ अनु ान, ‘इं ’ नाम रखना, उशना, कु स, शु ण, आय, द यु, वे सु नामक दे श, तु , व दभ, रांथय, असुर वेश, षड् गृ भ असुर, नववा व, बृह थ, श ुनाश, तुवश, य १-८ माग दे ना, सुखद बनाना, ह र नामक अ
५०.
९-११
इं का वणन व तु त १-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बल, पूजन, श र ाश ५१.
दाता, श ुजेता १-४
जानना, य धारक, मनोमाग ५-७
अ न व दे व का संवाद १-९ वेश, व वध शरीर, पहचानना, आना, तेजपुंजधारी, तीन भाई १-६ अजर आयु, उ प , ह भाग ७-९
५२.
अ न का दे व के
त कथन १-६
होता, अ वयु, नयु
१-३
पांच माग, सेवा, बैठाना ४-६ ५३.
अ न का वणन १-११ आना, बैठना, क याण करना, पंचजन, य पा , माग, आठ रथ १-७ अ म वती नद , सोमपा , कुठार, अमर व, जीतना ८-११
५४.
इं क तु त १-६ क त, वृ वधा द, उ प अजेय, दाता, तो
५५.
१-३
४-६
इं क तु त १-८ द त करना, स होना, सात त व १-३ म ता, साम य, लाल प ी, सहायक, बढ़ाना ४-८
५६.
बृह
थ ऋ ष का अपने मृत पु वाजी से कथन १-७
सूय, यो त धारण, अनुगमन १-३ वेश, प र मा, चर थायी, बृह ५७.
थ ४-७
इं क तु त व मन का वणन १-६ यजमान, आह्वनीय, बुलाना १-३
सुबंधु, इं यां लौटाने का आ ह, सोमदे व ४-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
५८.
मृत सुबंधु के ाता आ द उसके मन के
त कहते ह १-१२
वव वान् पु , लौटाना, धरती, लौटाना १-१२ ५९.
पाप दे वता नऋ त, असुनी त व इं आ द क तु त १-१० आयु पाना, नऋ त, श ु रोकना, वृ ाव था, बढ़ाना, र ाथ ाथना १-६ ाण दे ने व हसा र ाथ ाथना, ओष धयां, उशीनर क प नी ७-१०
६०.
असमा त राजा का वणन व इं ा द क तु त १-१२ असमा त, जेता, पराभव, पंचजन, धारण १-८
थत करना, अग य, प ण, जीवनदाता, मन
अ वनाशी, संबंधु का मन, बहना, तपना, हाथ ९-१२ ६१.
व वध दे व क तु तयां व वणन १-२७ नाभाने द , श ुनाशक, च पकाना, आ ान, सचन, अ भगमन, वा तो प त, अं गरागो ीय ऋ ष, उ प , फल, म ता, ढूं ढ़ना, शु ण १-१३ जातवेदा, द तशाली, शं सत, कांपना, शंयु ऋ ष, तु त, स य प, सुखवधक, तु त, नरपालक, य होना, अ दाता, सेवा, धारा, अ मांगना १४-२७
६२.
अं गरागो ीय ऋ षय क तु त १-११ अमरता, प ण, थापना,
तेज, गंभीर कम वाले, धन दे ना, उ ार १-७
साव ण मनु, द णा, य , तुवसु, अ मांगना ८-११ ६३.
व भ दे व का वणन १-१७ यया त, य यो य, ध बहाना, उ त दे श, सेवा, सजाना, होता, सव , पापमोचक, ुलोक, आ ान १-११ सुख मांगना, ले जाना, बढ़ाना, रथ, क याणाथ ाथना, धरती, गय ऋ ष १२-१७
६४.
व भ दे व का वणन १-१७ तु य, कामनाएं, पोषक, बढ़ना, रथ, धन लाना, य , आ ान, व ा, ऋभु ा, वाज, सुंदर म द्गण, आना, अ द त १-१३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
र ा, अ भलाषी, गय ऋ ष, भुता १४-१७ ६५.
व भ दे व का वणन १-१५ पूण करना, बढ़ाना, मै ी, तु त, याचना, तु त, नकालना, याचना, काय, व णा व १-१२
ा त, आ ान, धन
सर वती, तु तयां, अ याचना १३-१५ ६६.
व भ दे व का वणन १-१५ आ ान, तैयारी, अ युदय, बुलाना, मकान मांगना, इ छापूरक, पूजन, जलरचना, पूण करना १-९ वगधारक, तु त व तो सुनने क
६७.
ाथना, सेवा, धन मांगना वंदना १०-१५
बृह प त का वणन १-१२ अया य ऋ ष, सरल मन, तु त, गाएं नकालना, गरजना, लाना, तो वामी, सहयोगी १-८ बढ़ाना, तु त, स तादाता, नद
६८.
वा हत करना ९-१२
बृह प त का वणन १-१२ तु त, काश प ंचाना, गाय नकालना, प ण, बल रा स, वध, भेदन १-७ गाएं दे खना, उषा ा त, असमथता, काश धारण, नम कार ८-१२
६९.
अ न क तु त व वणन १-१२ व य ऋ ष, द त होना, सु म ऋ ष, र ाथ आ छा दत, सु म वंशी, म हमा १-९
ाथना, श ुजेता, हतकारी,
श ुवध, संहार, तु य १०-१२ ७०.
अ न, य शाला, ऋ वज्, होता आ द क तु त १-११ उ रवेद , तु य, रथ, स च , अ ध त, दे वगण, य पा , ह दे वभाग, रशना, वाहा ९-११
७१.
भाषा का वणन १-११
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सेवन १-८
७२.
सर वती, भाषा, छं द, वसजन, माया
पणी धेनु, यागना, भाव, वचार १-८
हल चलाना, पाप र होना, ाय
९-११
दे व क उ प
का वणन १-९
तो , उ प , भू म, अ द त व बंधु दे व का ज म, धूल उड़ना १-६ सूय, थर, अ द त का जाना ७-९ ७३.
इं एवं म त क तु त व वणन १-११ शंसा, वषा जल, धारण करना, म ता, माया का नाश, श ुसंहार १-६ नमु च, श
७४.
मान्, च , ज म, बु
याचना ७-११
म त का वणन १-६ धनदान, काश करना, र नदाता तु त, शरण, वृ नाशक १-६
७५.
न दय के जल का वणन १-९ सधु, माग बनाना, गरजना, सहायक नद , गोमती, तु ामा, सुसत आ द न दयां, दशनीय, सधु, बहना, ढका रहना, रथ १-९
७६.
सोमरस नचोड़ने म सहायक प थर क तु त १-८ उषा, धनदाता, मनु, धन मांगना, सुध वा, सोम नचोड़ना, मुखशु
७७.
, द
धाम १-८
म त का वणन व तु त १-८ जनक, आ मणशील, श ुघाती, अ दाता, येन प ी, प थक, धन, सोमपान, आना १-८
७८.
म त का वणन व तु त १-८ गृह वामी, सुशो भत, दानी, द पयु , सामगान, द तशाली, प थक, र नदान १-८
७९.
अ न का वणन १-७ भ ण, नम कार, जलाना, ानी, वालाएं, ह रतवण, र सी १-७
८०.
अ न का वणन १-७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वीर स वनी, ेरणा, ज थ, ८१.
सृ
प धरना, घरना, गंधववचन, तु त रचना १-७
म का वणन १-७
आ छादन, व कमा, नमाण, भुवन, परम धाम, वगफलदाता, सुखो पादक १-७ ८२.
सृ
म का वणन १-७
भाग, स त ष, भुवन, धन ८३.
ांड, तु तयां १-७
ोध क तु त १-७ उ पादक, म यु, श
८४.
य, ई र,
शाली, सहनशील आ ान, बंध,ु होम १-७
ोध क तु त १-७ नेता, धन मांगना, उ बल, श ुजेता, तो , तेजधारक, अ याचना १-७
८५.
सोम क तु त एवं वणन १-४७ रोकना, न के नकट, पीसना, सुर त, वषर क, व रथमाग १-११
गाथा, कोष, अ गामी,
गाड़ी, दहेज, समथन, रथच , प हया, नम कार, ऋतु नमाण, चरजीवन दे ना, अमृत थान, तु त, पूजन १२-२२ अयमा दे व, थापना, सौभा य, पूषा, समृ बनने का आ ह, वेश, ीहीन, रोग, श ,ु र ाथ ाथना, आशीवाद, वधूव , सूया, गृह थ धम, क याणी बनाने क ाथना, संतानर हत प त २३-३८ शतायु क कामना, तीसरा प त, धन व पु मलना, पु व नाती, क याणकारक बनने क कामना, वीरजननी, वधू व महारानी बनने का आशीवाद, दय को मलाने हेतु ाथना ३९-४७ ८६.
इं एवं इं ाणी का संवाद १-२३ वृषाक प, सोमरस, अ दाता, कु ा, आदर पाना १-१०
कम उ म इं ,
य वचन, वीरप नी, सखा,
बुढ़ापा, समीप जाना, ह व, बैल पकाना, द धमंथन, समथ-असमथ, गाड़ी, दास व आय ११-१९ री, आ ान, पु जनना २०-२३ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
८७.
अ न क तु त १-२५ हवन, मांसभ ी, द त अ न, बाण झुकाना, मांसाहारी, जातवेद, ऋ यां, तेज, अनुकूल, तीन म तक, जलने क ाथना, द यङ् अथवा ऋ ष १-१२ ोध, शोकमन, झूठा, ध चुराना, मानवदशक, असार अंश, द सखा १३-२१
आयुध, करण,
मेधावी धषक, वध ाथना, शंसा, नाश का आ ह २२-२५ ८८.
अ न व सूय क तु त एवं वणन १-१९ बढ़ाना, स होना, व तार, संसार, तेज चलना, अंगर क, चतन, तृ त करना, वभाजन १-१० थापना, उ प , तपना, दो माग, ठहरना, ववाद, पधा नह , पास बैठना ११-१९
८९.
इं क तु त व वणन १-१८ हराना, घुमाना, म , तु तयां, समानता नह , तोड़ना, लोप, व , आ ान, न दयां, वध हेतु आ ह १-१२ अनुगमन, छे दन, यो त वाली रात, आ ान, तु त, बुलाना १३-१८
९०.
वराट् पु ष के
प म ई र का वणन १-१६
हजार शीष, अमृत, ांड, ऊपर उठना, व तार, वेदो प , ऋतु बनाना, पशु उ प , संक प, ा ण, वण क उ प १-१२ चं मा व सूय आ द क उ प , प र धयां, उपासक १३-१६ ९१.
अ न का वणन व तु तयां १-१५ वहार, आ य, धन बढ़ाना, वमल, उ मु , ज म, दहन, वरण, त १-११ वृ
९२.
, पश, तु त, उ म यश १२-१५
नाना दे व का वणन व तु तयां १-१५ सोना, चूमना, अमरता, नम कार, स चना, नम कार, य जानना, पूजन, बु
पु , सहायक, डरना १-८
मान्, अ , अ द त, वषा ९-१५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
, ने ा,
९३.
व भ दे व का वणन १-१५ र ायाचना, प रचया, धन, ह व सामगान १-८ तु त, अ याचना, स
९४.
वामी, समान धनी, बचना, अ
वामी,
, तो पाठ, पृथवान्, गो याचना ९-१५
सोमरस नचोड़ने म सहायक प थर का वणन १-१४ तु त का आ ह, ह भ ण, सोमपान, अचल रहना, धारण, सोमरस टपकाना, हण, अंश, श दखाना १-९ य सेवन, श
९५.
शाली, पूण करना, श द करना १०-१४
पु रवा व उवशी का संवाद १-१८ मन, ा य, सहनाद, रमणसुख, शयनक , सुजू ण, संपक बनाना, द घायु, पु प म होना १-११
े ण आ द, बढ़ाना, भागना,
ससुराल, अ ानी, द नता, मै ी, वचरना, वासदाता, आनंद ा त १२-१८ ९६.
इं एवं उनके घोड़ का वणन १-१३ शंसा, बुलाना, धनी, द त, सुंदर, तु य, थत होना १-७ हरी दाढ़ , सोमपान, अ दे ना, पूण करना, साधन, सवन ८-१३
९७.
ओष धय क तु त व वणन १-२३ उ प , सौ कम वाली, जयशील, घोड़ा, गाय आ द दे ना, अ धका रणी, रोगनाशक, तु त, इ कृ त, रोगनाश, आ मा १-११ चोर, बाज, वायु, वचन व रोग से बचाने क मांगना, जीव १२-२० श
९८.
ाथना, पाश, कथन, शां त व श
हेतु ाथना, वातालाप २१-२३
नाना दे व का वणन व तु त १-१२ राजा शंतनु, तु त, नद ष, दे वा प, वषा, तो , श
ा त, जलाना, द णा १-९
शूर, माग ान, वषा याचना १०-१२ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
९९.
इं का वणन व तु त १-१२ धन दे ना, सामगीत सुनना, हराना, बहाना, छ नना, वध, नाश, भेदन, लोहमय पीठ १-८ शु ण, उशना, अर
का वध, ऋ ज ा, व
ऋ ष ९-१२
१००. व भ दे व क तु तयां १-१२ वरण, ध पीना, ऋजुकामी, सोम, धारण, से , वासदाता, पाप नाशाथ ाथना, पालक १-९ ओष ध, र क, व यु ऋ ष १०-१२ १०१. व भ
वषय का वणन १-१२
आ ान, नख बनाने, बैल जोड़ने व बरतन बनाने का आ ह १-८ ध, बरतन, प हए, बुलाना ९-१२ १०२. इं का वणन व तु त १-१२ धन कामना, मुदगलानी, ् दास, आय, हार, मुदगल, ् अनुगमन, बांधना, उ ार १-८ घण, वजयी, अ याचना, धनदाता ९-१२ १०३. इं का वणन एवं तु त १-१३ जीतना, यु क ा, श ुनाशक, बुलाना, उ म वीर, जयशील, य दे वसेना १-८ जलवषक, रथ, वजय याचना, अ वा, क याणाथ ाथना ९-१३ १०४. इं का वणन एवं तु त १-११ सोमपानाथ अनुरोध, भट दे ना, उ शजवंशी, र ा, दान, धनयु
१-७
बढ़ाना, वृ वध, तु त, बुलाना ८-११ १०५. इं का वणन एवं तु त १-११ ना लयां, बुलाना, थकना, बटोरना, भोजन मांगना, ऋभु, हरी दाढ़ १-७ तु तहीन, उ ार, मधु लेना, र ा ८-११ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वामी,
१०६. अ नीकुमार क तु त १-११ बढ़ाना, आना, दे वपूजा, आ ान, थत, हंता, रथ ा त १-७ धनर क, सुनना, ध भरने हेतु ाथना, भूतांश ऋ ष ८-११ १०७. द णा का वणन १-११ माग, अमरता, दे वपूजा, अ धकारी, मु खया, सामगायक १-६ र ासाधन,
था, वधू, घर, र ा ७-११
१०८. सरमा कु कुरी व प णय का संवाद १-११ अ भलाषा, न ध, ती, रोक न पाना, आयुध, पदद लत १-७ सुर त, अया य व नवगु ऋ ष, भाग दे ना, संबंध, स या त पवत ८-११ १०९. बृह प त ारा प नी याग का वणन १-७ संतान, लाना, त, प ंचाना १-४ ा त,
प नी, पापहीन बनाना ५-७
११०. अ न, होता, यूप क तु त व वणन १-११ कायकुशल, भोजन, वाला, ाथनीय, फैलाना, शरीर दशाना, द त वाली, काश, बुलाना १-८ व ा दे व, श मता, भ णाथ आ ह ९-११ १११. इं क तु त व वणन १-१० बुलाना,
ा त, सनातन, बल संचार, धारण १-५
माया का नाश, शोभा ा त, र जाना, बहाना, जल वामी ६-१० ११२. इं क तु त १-१० वीरता, आ ान, े
प, बुलाना, तु त, पा
ा त १-६
बुलाना, शंसा, कुशल, धन मांगना ७-१० ११३. इं क तु त १-१० ******ebook converter DEMO Watermarks*******
र ा याचना, वृ वध, म हमा, वृ , व ,
ोध १-६
वीरता, भ ण, दभी त, धन याचना ७-१० ११४. व वध वषय का वणन १-१० ा त करना, त, भाग ा त, वेश, बारह पा , रथ १-६ वभू तयां, वाणी, पुरो हत, म नवारण ७-१० ११५. अ न का वणन एवं तु त १-९ त, ह
भ ण, तु त, अजर, आ य, होनहार १-६
श ुनाश, बलपु , वषट् कार ७-९ ११६. इं क तु त १-९ वृ
याचना, उ रवेद , श -ु संहार, वृ
शरीर,
वश
दाता १-५
, अ भलाषाएं, धनदाता ६-९
११७. दान का वणन १-९ मृ यु, भखारी, खोजना, दाता, जाना १-५ पापी, दानी, धन मांगना, दान ६-९ ११८. अ न क तु त १-९ पव ११९. इं
त, ुच, घृत सचन, शं सत, अमर, द तधारक, अ तीय तेज, तु त १-९ ारा अपना वणन १-१३
सोमपान, कंपाना, ऊपर उठाना, तु तयां, थान बनाना, पंचजन, हराना, धरती रखना १-९ जलाना, वग, महान्, सुशो भत १०-१३ १२०. इं का वणन १-९ वागत, डराना, नाती, स होना, ेरणा १-५ व सनीय, कम, जीतना, श
६-९
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१२१.
जाप त का वणन १-१० पुरोडाश, सेवा, पूजा, भुजाएं, आ द य, जाप त, र क १-७ एकमा दे व, आनंदवधक, हवन ८-१०
१२२. अ न क तु त १-८ होता, क
, धन याचना, बलदाता, भृगुवंशी ऋ ष १-५
आचरण, त, तु त ६-८ १२३. राजा वेन का वणन व तु त १-८ अचना, अनुचर, श द, जल वामी १-४ क , भ ा, चमकना, जल नमाण ५-८ १२४. दे व के
त अ न का कथन १-९
नयामक, अर ण, जाना, र ा, रा
१-५
, नकलना, वृ , शंसा ६-९ १२५. वाणी दे वी ारा परमा मा का वणन १-८ घूमना, धन दे ना, आ व , बात बताना, से वत १-५ ा त, व तृत होना, वशाल ६-८ १२६. व भ दे व का वणन १-८ बचाना, र ा व सुख याचना १-४ आ ान, श ु र ाथ ाथना व आयु याचना ५-८ १२७. रा
का वणन १-८
शोभा ा त, बाधा, हा न, शयन, बाज, चोर, अंधकार, तो भट १-८ १२८. व भ दे व का वणन १-९ अ य , अ भलाषा, संतान, आशीवाद, मनोरथ, छह दे वयां, बु याचना, सव १-९ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
, तु त, सुख
१२९.
लय क दशा का वणन १-७ अभाव, ा, लयदशा, वचारना, कामना, कारण खोजना, नकृ अ , दे वगण, बोध न होना १-७
१३०.
जाप त ारा सृ व
का व तार १-७
ाण, साममं , य , क पना, य पूण करना, अनुसरण १-७
१३१. इं एवं अ नीकुमार का वणन १-७ सुख, भोजन, म ता, सहायता, श ,ु बल व कृपा याचना १-७ १३२. म व व ण क तु त १-७ बढ़ाना, म ता, ह , भ , शरीर र ा व धन याचना, नृमेध १-७ १३३. इं क तु त १-७ डो रयां, तु त, दानशीलता, बाधक, श ु, नाशाथ व ध हेतु याचना १-७ १३४. इं क तु त १-७ उ प , माता, अ मांगना, र ासाधन, बु
, ानी, य पूण करना १-७
१३५. न चकेता एवं यम का संवाद १-७ इ छा, अनुराग, रथ, उपदे श, शत, बांसुरी १-७ १३६. अ न, सूय एवं वायु का वणन १-७ सूय, ग त, शरीर,
य म मु न १-४
सागर म नवास, आनंददाता, वाणी ५-७ १३७. व भ
वषय का वणन १-७
र ावश
याचना, दे व त, श
यु , ाणी, ओष ध, छू ना १-७
१३८. इं क तु त १-६ कु स, द तशाली, प ,ु धन छ नना, गाड़ी चलाना, रथच १३९. स वता, व ावसु व सोम का वणन १-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-६
र क, काशक, स यधमा, ऊपर आना, बु
, बल मांगना १-६
१४०. अ न क तु त १-६ अ व बल दे ना, खेलना, बलपु , य छू ना, धन याचना १-६ १४१. व भ दे व क तु त १-६ जा वामी, सर वती, आ ान, बुलाना, ेरणा १-६ १४२. अ न क तु त व वणन १-८ ःखी, चलना, धरती, सफाई, चढ़ना, वासदाता, आधार, सागर १-८ १४३. अ नीकुमार क तु त व वणन १-६ अ , क ीवान्, मु , सुंदर, तु तयां, नौका, गोधन १-६ १४४. इं क तु त व वणन १-६ सोमरस, ऋभु, वंश, सुपण, आयु याचना, र ा करना १-६ १४५. सौत क पीड़ा का वणन १-६ ेम, ओष ध, धान, र भेजना, श
हीन, मन १-६
१४६. वशाल वन का वणन १-६ नभय, यश, गा ड़यां, श द, फल, तु त १-६ १४७. इं क तु त १-५ कांपना, शंसा, पूजा, अ याचना १-५ १४८. इं क तु त १-५ तु त, जीतना, अपण, तो , तु त १-५ १४९. स वता का वणन १-५ बांधना, व तार पाना, ग ड़, प नी, सावधान १-५ १५०. अ न क तु त व वणन १-५ आ ान, बुलाना, य त, अ न, सुख मांगना, अ , भर ाज, क व आ द १-५ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१५१.
ा क तु त व वणन १-५ जानना, मनचाहा फल, न य, सेवा, बुलाना १-५
१५२. इं क तु त १-५ श ुभ क, अभयक ा, अ य श ,ु अंधकार, आयुध १-५ १५३. इं क तु त १-५ शोभनधन, अ भलाषा, टकाना, धारण, अ धकार १-५ १५४. मृत
का वणन व यम क तु त १-५
घृत, तप करना, द णा, उ म कम, सूयर क १-५ १५५. द र ता क नदा १-५ श र ब , द र ता, तैरना, सोना, अ दे ना १-५ १५६. अ न क तु त १-५ धन जीतना, र ासाधन, धन मांगना, काशक, ाता १-५ १५७. इं एवं अ य दे व का वणन १-५ सुख याचना, जार ण, र क, अमरता, वषा दे खना १-५ १५८. सूय क तु त १-५ र ा व ने याचना, दे खना १-५ १५९. शची का आ मवणन १-६ वश म करना, हराना, क त, श ुहीन, तेज, अ धकार १-६ १६०. इं क तु त व वणन १-५ सोमरस, तु तयां, धनदाता, धनी, आ ान १-५ १६१. इं
ारा रोगी को सां वना १-५
य मा नवारणाथ लौटना १-५
ाथना, नऋ त, पार ले जाना, रोगनाश, शतायु याचना,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१६२. गभ क र ा हेतु सां वना १-६ रा सहंता, तु त मं , भगाना, जांघ फैलाना, संतान नाशक को भगाना १-६ १६३. य मा के नाश हेतु सां वना १-६ य मा नकालना, रोग भगाना, बाहर करना, सभी भाग से नकालना, जोड़ १-६ १६४. बुरे व
के नाश हेतु सां वना १-५
नऋ त, मनोरथ, ने , पाप, चेता, पापहीन १-५ १६५. व भ
ा णय का वणन १-५
त, र ले जाने व पाप से बचाने क
ाथना, क याण, नम कार, अ
१६६. इं से श ुनाश के लए ाथना १-५ जेता, अ ह सत, बांधना, छ नना, बोलना १-५ १६७. इं क तु त १-४ वगजय, शरण, सोमपान, तु त १-४ १६८. वायु क म हमा का वणन १-४ धूल उड़ाना, भुवन वामी, जल म , पूजन १-४ १६९. गाय के मह व का वणन १-४ र ाथ ाथना, गाय क उ प , शरीर दे ना, बछड़े १-४ १७०. सूय का वणन व तु त १-४ जा र ा, तेज, व तार, भरना १-४ १७१. इं क तु त १-४ यट् ऋ ष, घर जाना, अ वबु न, ले जाना १-४ १७२. उषा क तु त व वणन १-४ गाय का चलना, य क समा त, पूजा, अंधकार नाश १-४ १७३. राजा क तु त एवं रा या भषेक का वणन १-६ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-५
अ धकार, रा , आशीवाद, अ वचल, ुव
प, भ
१-६
१७४. राजा क तु त १-५ रा य ा त, े षी व दानर हत, आ य, य , वामी १-५ १७५. सोमरस नचोड़ने म सहायक प थर क तु त १-४ कम, ओष धतु य, योग, यजमान १-४ १७६. ऋभुगण एवं अ न का वणन १-४ धपान, द
तो , ह वाहक, आयुवृ
१-४
१७७. माया का वणन १-३ जीवा मा पी प ी, र क वाणी, सूय १-३ १७८. ग ड़ का वणन १-३ बुलाना, ावा-पृ थवी, व तार १-३ १७९. इं क तु त व वणन १-३ भाग, उपासना, दानी १-३ १८०. इं क तु त १-३ धन मांगना, आना, तेजस हत ज म १-३ १८१. व भ
वषय का वणन १-३
पृथु, सु थ, सुर त, साममं लाना, ा त १-३ १८२. बृह प त एवं अ न से र ा हेतु ाथना १-३ श ुनाशाथ ाथना, बु
, अमंगल नाश हेतु ाथना १-३
१८३. यजमान, यजमानप नी व उसके गभ क र ा हेतु ाथना १-३ पु व गभाधान क कामना, ज म दे ना १-३ १८४. गभ क सुर ा हेतु ाथना १-३ भाग, गभधारण हेतु ाथना, आ ान १-३ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१८५. आ द य व व ण से जीवन र ा हेतु ाथना १-३ र ाथ ाथना, दबाना असंभव, यो त दे ना १-३ १८६. जीवन को अमृतमय बनाने क व ण से ाथना १-३ द घायु हेतु ाथना, य का आ ह, अमृत याचना १-३ १८७. अ न से श ु
से बचाने क
ाथना १-५
तु त, आना, र ा याचना, एक-एक कर दे खना, र ाथ ाथना १-५ १८८. अ न से ाथना १-३ ानी, तु त, र ा क
ाथना १-३
१८९. सूय क म हमा का वणन १-३ जाना, १९०. सृ
ा त करना, शोभा पाना १-३ मक उप
का वणन १-३
तप से य , स य, रात- दन क उ प , सागर, सवं सर, सूय, चं मा, ुलोक, पृ थवी व अंत र क सृ १-३ १९१. अ न से क याण एवं धन क
ाथना १-४
धन याचना, मलकर भोगने का आ ह, अ भमं त करना, संग ठत रहने का आ ह १-४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
थम मंडल सू —१ ॐ अ नमीळे पुरो हतं य
दे वता—अ न य दे वमृ वजम्. होतारं र नधातमम्.. (१)
म अ न क तु त करता ं. वे य के पुरो हत, दाना द गुण से यु , य म दे व को बुलाने वाले एवं य के फल पी र न को धारण करने वाले ह. (१) अ नः पूव भऋ ष भरी
ो नूतनै त. स दे वाँ एह व त.. (२)
ाचीन ऋ षय ने अ न क तु त क थी. वतमान ऋ ष भी उनक तु त करते ह. वे अ न इस य म दे व को बुलाव. (२) अ नना र यम वत् पोषमेव दवे दवे. यशसं वीरव मम्.. (३) अ न क कृपा से यजमान को धन मलता है. उ ह क कृपा से वह धन दन दन बढ़ता है. उस धन से यजमान यश ा त करता है एवं अनेक वीर पु ष को अपने यहां रखता है. (३) अ ने यं य म वरं व तः प रभूर स. स इ े वेषु ग छ त.. (४) हे अ न! जस य क तुम चार ओर से र ा करते हो, उस म रा स आ द हसा नह कर सकते. वही य दे वता को तृ त दे ने वग जाता है. (४) अ नह ता क व तुः स य
व तमः. दे वो दे वे भरा गमत्.. (५)
हे अ न दे व! तुम सरे दे व के साथ इस य म आओ. तुम य के होता, बु स यशील एवं परमक त वाले हो. (५)
संप ,
यद दाशुषे वम ने भ ं क र य स. तवे त् स यम रः.. (६) हे अ न! तुम य म ह व दे ने वाले यजमान का जो क याण करते हो, वह वा तव म तु हारी ही स ता का साधन बनता है. (६) उप वा ने दवे दवे दोषाव त धया वयम्. नमो भर त एम स.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! हम स चे दय से तु ह रात- दन नम कार करते ह और समीप आते ह. (७)
त दन तु हारे
राज तम वराणां गोपामृत य द द वम्. वधमानं वे दमे.. (८) हे अ न! तुम काशवान्, य क रचना करने वाले और कमफल के य शाला म बढ़ने वाले हो. (८)
ोतक हो. तुम
स नः पतेव सूनवेऽ ने सूपायनो भव. सच वा नः व तये.. (९) हे अ न! जस कार पु पता को सरलता से पा लेता है, उसी कार हम भी तु ह सहज ही ा त कर सक. तुम हमारा क याण करने के लए हमारे समीप नवास करो. (९)
सू —२
दे वता—वायु आ द
वायवा या ह दशतेमे सोमा अरंकृताः. तेषां पा ह ुधी हवम्.. (१) हे दशनीय वायु! आओ, यह सोमरस तैयार है, इसे पओ. हम सोमपान के लए तु ह बुला रहे ह. तुम हमारी यह पुकार सुनो. (१) वाय उ थे भजर ते वाम छा ज रतारः. सुतसोमा अह वदः.. (२) शु
हे वायु! अ न ोम आ द य के ाता ऋ वज् तथा यजमान आ द हम सं कार ारा सोमरस के साथ तु हारी तु त करते ह. (२) वायो तव पृ चती धेना जगा त दाशुषे. उ ची सोमपीतये.. (३)
हे वायु! तुम सोमरस क शंसा करते ए उसे पीने क जो बात कहते हो, वह ब त से यजमान के पास तक जाती है. (३) इ वायू इमे सुता उप यो भरा गतम्. इ दवो वामुश त ह.. (४) हे इं और वायु! तुम दोन हम दे ने के लए अ लेकर आओ. सोमरस तैयार है और तुम दोन क अ भलाषा कर रहा है. (४) वाय व
चेतथः सुतानां वा जनीवसू. तावा यातमुप वत्.. (५)
हे वायु और इं ! तुम दोन यह जान लो क सोमरस तैयार है. तुम दोन अ यु म रहने वाले हो. तुम दोन शी ही य के समीप आओ. (५) वाय व
सु वत आ यातमुप न कृतम्. म व१ था धया नरा.. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वायु और इं ! सोमरस दे ने वाले यजमान ने जो सोमरस तैयार कया है, तुम दोन उसके समीप आओ. हे दोन दे वो! तु हारे आने से यह य कम शी पूरा हो जाएगा. (६) म ं वे पूतद ं व णं च रशादसम्. धयं घृताच साध ता.. (७) म प व बल वाले म तथा हसक का नाश करने वाले व ण का य करता ं. ये दोन धरती पर जल लाने का काम करते ह. (७) ऋतेन म ाव णावृतावृधावृत पृशा.
म आ ान
तुं बृह तमाशाथे.. (८)
हे म और व ण! तुम दोन य के वधक और य का पश करने वाले हो. तुम लोग हम य का फल दे ने के लए इस वशाल य को ा त कए ए हो. (८) कवी नो म ाव णा तु वजाता उ
या. द ं दधाते अपसम्.. (९)
म और व ण बु मान् लोग का क याण करने वाले और अनेक लोग के आ य ह. ये हमारे बल और कम क र ा कर. (९)
दे वता—अ नीकुमार
सू —३
अ ना य वरी रषो व पाणी शुभ पती. पु भुजा चन यतम्.. (१) हे अ नीकुमारो! तु हारी भुजाएं व तीण एवं ह व हण करने के लए चंचल ह. तुम शुभ कम के पालक हो. तुम दोन य का अ हण करो. (१) अ ना पु दं ससा नरा शवीरया धया. ध या वनतं गरः.. (२) बु
हे अ नीकुमारो! तुम अनेक कम वाले, नेता और बु से हमारी तु त सुनो. (२) द ा युवाकवः सुता नास या वृ ब हषः. आ यातं
मान् हो. तुम दोन आदरपूण
वतनी.. (३)
हे श ु वनाशक, स यभाषी और श ु को लाने वाले अ नीकुमारो! सोमरस तैयार करके बछे ए कुश पर रख दया गया है. तुम इस य म आओ. (३) इ ा या ह च भानो सुता इमे वायवः. अ वी भ तना पूतासः.. (४) हे व च काश वाले इं ! ऋ षय क उंग लय ारा नचोड़ा गया, न य शु सोमरस तु हारी इ छा कर रहा है. तुम इस य म आओ. (४) इ ा या ह धये षतो व जूतः सुतावतः. उप
ा ण वाघतः.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह
हे इं ! तुम हमारी भ से आक षत होकर इस य म आओ. ा ण तु हारा आ ान कर रहे ह. तुम सोमरस लए ए वाघत नामक पुरो हत क ाथना सुनने के लए आओ. (५) इ ा या ह तूतुजान उप यु
ा ण ह रवः. सुते द ध व न नः.. (६)
हे अ के वामी इं ! तुम हमारी ाथना सुनने के लए शी आओ और सोमरस से इस य म हमारा अ वीकार करो. (६) ओमास षणीधृतो व े दे वास आ गत. दा ांसो दाशुषः सुतम्.. (७)
हे व ेदेवगण! तुम मनु य के र क एवं पालन करने वाले हो. ह दाता यजमान ने सोमरस तैयार कर लया है, तुम इसे हण करने के लए आओ. तुम लोग को य का फल दे ने वाले हो. (७) व े दे वासो अ तुरः सुतमा ग त तूणयः. उ ा इव वसरा ण.. (८) हे वृ करने वाले व ेदेवगण! जस कार सूय क करण बना आल य के दन म आती ह, उसी कार तुम तैयार सोमरस को पीने के लए ज द आओ. (८) व े दे वासो अ ध ए हमायासो अ हः. मेधं जुष त व यः.. (९) व ेदेवगण नाशर हत, व तृत बु
वाले तथा वैर से हीन ह. वे इस य म पधार. (९)
पावका नः सर वती वाजे भवा जनीवती. य ं व ु धयावसुः.. (१०) दे वी सर वती प व करने वाली तथा अ एवं धन दे ने वाली ह. वे धन साथ लेकर हमारे इस य म आएं. (१०) चोद य ी सूनृतानां चेत ती सुमतीनाम्. य ं दधे सर वती.. (११) सर वती स य बोलने क ेरणा दे ने वाली ह तथा उ म बु ह. वे हमारा यह य वीकार कर चुक ह. (११) महो अणः सर वती
वाले लोग को श ा दे ती
चेतय त केतुना. धयो व ा व राज त.. (१२)
सर वती नद ने वा हत होकर वशाल जलरा श उ प क है. साथ ही य करने वाले लोग म उ ह ने ान भी जगाया है. (१२)
सू —४ सु पकृ नुमूतये सु घा मव गो हे. जु म स
दे वता—इं व व.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस कार वाला ध हने के लए गाय को बुलाता है, उसी कार हम भी अपनी र ा के लए सुंदर कम करने वाले इं को त दन बुलाते ह. (१) उप नः सवना ग ह सोम य सोमपाः पब. गोदा इ े वतो मदः.. (२) हे सोमरस पीने वाले इं ! तुम सोमरस पीने के लए हमारे षवण य के पास आओ. तुम धन के वामी हो. तु हारी स ता गाय दे ने का कारण बनती है. (२) अथा ते अ तमानां व ाम सुमतीनाम्. मा नो अ त य आ ग ह.. (३) हे इं ! हम सोमपान करने के प ात् तु हारे अ यंत समीपवत एवं शोभन-बु वाले लोग के बीच रहकर तु ह जान. तुम भी हम छोड़कर सर को दशन मत दे ना. तुम हमारे समीप आओ. (३) परे ह व म तृत म ं पृ छा वप तम्. य ते स ख य आ वरम्.. (४) हे यजमान! बु मान् एवं हसार हत इं के पास जाकर मुझ बु म पूछो. वे तु हारे म को उ म धन दे ते ह. (४) उत ुव तु नो नदो नर यत दारत. दधाना इ
मान् होता के वषय
इ वः.. (५)
सदा इं क सेवा करने वाले हमारे पुरो हत इं क तु त कर. इं क नदा करने वाले लोग इस दे श के अ त र अ य दे श से भी नकल जाव. (५) उत नः सुभगाँ अ रव चेयुद म कृ यः. यामे द
य शम ण.. (६)
हे श ुनाशक इं ! तु हारी कृपा से श ु और म दोन हम सुंदर धन वाला कहते ह. हम इं क कृपा से ा त सुख से जीवन बताव. (६) एमाशुमाशवे भर य
यं नृमादनम्. पतय म दयत् सखम्.. (७)
यह सोमरस तुरंत नशा करने वाला एवं य क शोभा है. यह मनु य को म त करने वाला, कायसाधक और आनंददाता इं का म है. य म ा त इं को यह सोमरस दो. (७) अ य पी वा शत तो घनो वृ ाणामभवः. ावो वाजेषु वा जनम्.. (८) हे सौ य करने वाले इं ! इसी सोमरस को पीकर तुमने वृ आ द श ु कया था और यु े म अपने यो ा क र ा क थी. (८) तं वा वाजेषु वा जनं वाजयामः शत तो. धनाना म
सातये.. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
का नाश
हे सौ य करने वाले इं ! तुम यु तु ह य म ह व दे ते ह. (९)
म बल दशन करने वाले हो. हम धन पाने के लए
यो रायो३व नमहा सुपारः सु वतः सखा. त मा इ ाय गायत.. (१०) हे ऋ वज्! जो इं धन का र क, गुणसंप , सुंदर काय को पूण करने वाला तथा यजमान का म है, उसी को स करने के लए तु त करो. (१०)
दे वता—इं
सू —५ आ वेता न षीदते म भ
गायत. सखायः तोमवाहसः.. (१)
हे तु त करने वाले म ो! शी आओ और यहां बैठो. तुम लोग इं क तु त करो. (१) पु तमं पु णामीशानं वायाणाम्. इ ं सोमे सचा सुते.. (२) सोमरस तैयार हो जाने पर सब लोग एक हो जाओ और श ु एवं े धन के वामी इं क तु त करो. (२)
का नाश करने वाले
स घा नो योग आ भुवत् स राये स पुर याम्. गमद् वाजे भरा स नः.. (३) वह ही इं हमारे अभाव को पूरा कर, हम धन द, अनेक कार क बु और भां त-भां त के अ लेकर हमारे पास आव. (३)
दान कर
य य सं थे न वृ वते हरी सम सु श वः. त मा इ ाय गायत.. (४) यु म जस इं के घोड़ स हत रथ को दे खकर श ु भाग जाते ह, उ ह इं क तु त करो. (४) सुतपा ने सुता इमे शुचयो य त वीतये. सोमासो द या शरः.. (५) यह प व और वशु आप प ंच जाता है. (५)
सोमरस य म सोमपान करने वाले के समीप पीने हेतु अपने
वं सुत य पीतये स ो वृ ो अजायथाः. इ
यै
ाय सु तो.. (६)
हे सुंदर कम करने वाले इं ! तुम सभी दे व म बड़े होने के कारण सोमपान करने के लए सबसे अ धक उ सा हत रहते हो. (६) आ वा वश वाशवः सोमास इ
गवणः. शं ते स तु चेतसे.. (७)
हे तु तय के ल य इं ! तीन सवन नामक य म ा त सोमरस तु ह मले. यह सोम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ च ान क
ा त म तु हारा सहायक एवं क याणकारी ा त हो. (७)
वां तोमा अवीवृधन् वामु था शत तो. वां वध तु नो गरः.. (८) हे सौ य करने वाले इं ! ऋ वेद के मं एवं सोम-संबंधी मं हमारी तु तयां भी तु हारी त ा बढ़ाव. (८)
ने तु हारी शंसा क है.
अ तो तः सने दमं वाज म ः सह णम्. य मन् व ा न प या.. (९) र ा म सदा त पर रहने वाले इं इस हजार सं या वाले सोम इसी म सम त श यां रहती ह. (९) मा नो मता अ भ हन् तनूना म
पी अ को हण कर.
गवणः. ईशानो यवया वधम्.. (१०)
हे तु त करने के यो य इं ! तुम श शाली हो. तुम ऐसी कृपा करना क हमारे श ु हमारे शरीर पर चोट न कर सक. तुम उ ह हमारा वध करने से रोकना. (१०)
दे वता—इं एवं म द्गण
सू —६ यु
त
नम षं चर तं प र त थुषः. रोच ते रोचना द व.. (१)
जो इं तेज वी सूय के प म, अ हसक अ न के प म तथा सव ग तशील वायु के प म थत ह, सब लोक म नवास करने वाले ाणी उ ह इं से संबंध रखते ह. उ ह इं क मू त आकाश म न के प म चमकती है. (१) यु
य य का या हरी वप सा रथे. शोणा धृ णू नृवाहसा.. (२)
सार थ उन इं के रथ म ह र नाम के सुंदर, रथ के दोन ओर जोड़ने यो य, लाल रंग के और श शाली दो घोड़ को जोड़ते ह. वे घोड़े इं एवं उनके सार थ को ढोने म समथ ह. (२) केतुं कृ व केतवे पेशो मया अपेशसे. समुष
रजायथाः.. (३)
हे मनु यो! यह आ य दे खो क यह इं रात को बेहोश ा णय को ातः होश म लाते ए और रात म अंधकार के कारण पहीन पदाथ को ातः प दान करते ए सूय प म करण बखेरते ह. (३) आदह वधामनु पुनगभ वमे ररे. दधाना नाम य यम्.. (४) इसके प ात् म द्गण ने य के यो य नाम धारण करके अपने अनुसार बादल म जल पी गभ को े रत कया है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तवष के नयम के
वीळु चदा ज नु भगुहा च द
व
भः. अ व द उ या अनु.. (५)
हे इं ! तुमने म द्गण के साथ मलकर गुफा म छपाई ई गाय को खोजकर वहां से नकाला. वे म द्गण ढ़ थान को भी भेदन करने एवं एक थान क व तु को सरी जगह म ले जाने म समथ ह. (५) दे वय तो यथा म तम छा वद सुं गरः. महामनूषत ुतम्.. (६) तु त करने वाले लोग वयं दे वभाव ा त करने क इ छा से धन के वामी, श शाली एवं व यात म द्गण को ल य करके उसी कार तु त कर रहे ह, जस कार वे इं क तु त करते ह. (६) इ े ण सं ह
से स
मानो अ ब युषा. म
समानवचसा.. (७)
हे म द्गण! भयर हत इं के साथ तु हारी ब त घ न ता दे खी जाती है. तुम दोन न य स और समान तेज वाले हो. (७) अनव ैर भ ु भमखः सह वदच त. गणै र
य का यैः.. (८)
यह य दोषर हत, दे वलोक म नवास करने वाले तथा फल दे ने के कारण कामना करने यो य म द्गण के साथ होने के कारण इं को बलवान् समझकर पूजा-अचना करता है. (८) अतः प र म ा ग ह दवो वा रोचनाद ध. सम म ृ
ते गरः.. (९)
हे चार ओर ापक म द्गण! तुम ुलोक, आकाश या द त सूय मंडल से इस य म आओ. पुरो हत-समूह इस य म तु हारी भली कार तु त कर रहा है. (९) इतो वा सा तमीमहे दवो वा पा थवाद ध. इ ं महो वा रजसः.. (१०) हम इं दे व क ाथना इसी लए करते ह क वे पृ वीलोक, आकाश या वायुलोक से हम धन दान करते ह. (१०)
दे वता—इं
सू —७ इ
मद् गा थनो बृह द मक भर कणः. इ ं वाणीरनूषत.. (१)
सामवेद का गान करने वाल ने सामगान के ऋचा ारा और यजुवद का पाठ करने वाल ने मं इ
इ य ः सचा स म
ारा, ऋ वेद का पाठ करने वाल ने ारा इं क तु त क है. (१)
आ वचोयुजा. इ ो व ी हर ययः.. (२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व धारण करने वाले एवं सवाभरणभू षत इं अपने आ ाकारी दोन घोड़ को अ यंत शी रथ म जोतकर सबके साथ मल जाते ह. (२) इ ो द घाय च स आ सूय रोहयद् द व. व गो भर मैरयत्.. (३) इं ने मनु य को नरंतर दे खने के लए सूय को आकाश म था पत कया है. सूय अपनी करण ारा पवत आ द सम त संसार को का शत कर रहे ह. (३) इ
वाजेषु नोऽव सह
धनेषु च. उ उ ा भ
त भः.. (४)
हे श ु ारा न हारने वाले इं ! अपनी अमोघ र ण श के ारा ऐसे महायु हमारी र ा करो जो हजार गज , अ आ द का लाभ दे ने वाले ह . (४) इ ं वयं महाधन इ मभ हवामहे. युजं वृ ेषु व
म
णम्.. (५)
इं हमारी सहायता करने वाले तथा धन-लाभ का वरोध करने वाले हमारे श ु के लए व धारी ह. हम व प अथवा वपुल धन पाने के लए हम इं का आ ान करते ह. (५) स नो वृष मुं च ं स ादाव पा वृ ध. अ म यम त कुतः.. (६) हे इं ! तुम हमारे लए इ छत फल दे ने वाले तथा वृ दान करने वाले हो. तुम हमारे लाभ के लए उस मेघ का मदन करो. तुमने कभी भी हमारी ाथना अ वीकार नह क है. (६) तु
ेतु
े य उ रे तोमा इ
यव
णः. न व धे अ य सु ु तम्.. (७)
भ - भ फल दे ने वाले दे वता के लए जन उ म तु तय का योग कया जाता है, वे सब व धारण करने वाले इं के लए ह. इं के अनु प तु त को म नह जानता. (७) वृषा यूथेव वंसगः कृ ी रय य जसा. ईशानो अ त कुतः.. (८) जस कार तेज चाल वाला बैल धेनु समूह को अपने बल से अनुगृहीत करता है, उसी कार इ छा को पूरा करने वाले इं मनु य को श शाली बनाते ह. इं समथ ह एवं कसी क ाथना को ठु कराते नह ह. (८) य एक षणीनां वसूना मर य त. इ ः प च इं सम त मानव , संप य और पंचकरने वाले ह. (९)
तीनाम्.. (९)
तय पर नवास करने वाले वण पर शासन
इ ं वो व त प र हवामहे जने यः. अ माकम तु केवलः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋ वजो! और यजमानो! हम सव े इं का आ ान तु हारे क याण के न म करते ह. इं केवल हमारे ह. (१०)
दे वता—इं
सू —८ ए
सान स र य स ज वानं सदासहम्. व ष मूतये भर.. (१)
हे इं ! हमारी र ा के लए ऐसा धन दो जो हमारे भोग के यो य, श ु करने म सहायक तथा श ु क हार का कारण बने. (१)
को वजय
न येन मु ह यया न वृ ा णधामहै. वोतासो यवता.. (२) उस धन से एक कए गए यो ा के मु के क चोट से हम श ु को रोक दगे. तु हारे ारा सुर त होकर हम घोड़ क सहायता से श ु को र भगाएंगे. (२) इ
वोतास आ वयं व ं घना दद म ह. जयेम सं यु ध पृधः.. (३)
हे इं ! तु हारे ारा सुर त होकर हम अ यंत ढ़ व करने वाले श ु को परा जत करगे. (३) वयं शूरे भर तृ भ र
को धारण करके अपने से े ष
वया युजा वयम्. सास ाम पृत यतः.. (४)
हे इं ! हम तु हारी सहायता पाकर अपने श धारी सै नक को लेकर श ु सेना को जीत सकगे. (४) महाँ इ ः पर नु म ह वम तु व
णे. ौन
थना शवः.. (५)
इं दे व शरीर से ब ल एवं गुण से यु होने के कारण महान् ह. व धारी इं को पूव मह व ा त हो. इं क सेना आकाश के समान व तृत हो. (५) समोहे वा य आशत नर तोक य स नतौ. व ासो वा धयायवः.. (६) जो वीर पु ष यु े म जाने वाले ह, पु पाने क इ छा रखते ह अथवा जो बु ान क अ भलाषा रखते ह, वे सब इं क कृपा से स ा त कर. (६)
मान्
यः कु ः सोमपातमः समु इव प वते. उव रापो न काकुदः.. (७) इं का जो उदर सोमरस पीने के लए सदा त पर रहता है, वह समु के समान व तृत है. जस कार जीभ का पानी कभी नह सूखता, उसी कार इं के उदर म थत सोमरस भी कभी नह सूखता. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवा
य सूनृता वर शी गोमती मही. प वा शाखा न दाशुषे.. (८)
इं के मुख से नकली ई वाणी स य, व वध वशेषता से यु , महती एवं गौएं दे ने वाली है. य म ह दे ने वाले यजमान के लए तो इं क वाणी पके ए फल से लद डाली के समान है. (८) एवा ह ते वभूतय ऊतय इ
मावते. स
त् स त दाशुषे.. (९)
हे इं ! तु हारी वभू तयां ह दान करने वाले हमारे समान यजमान क र ा करने वाली एवं शी फल दे ने वाली ह. (९) एवा
य का या तोम उ थं च शं या. इ ाय सोमपीतये.. (१०)
सोमपान करने वाले इं के लए सामवेद एवं ऋ वेद के मं सोमपान संबंधी मं क इ छा करते ह. (१०)
अ भल षत ह. इं
दे वता—इं
सू —९
इ े ह म य धसो व े भः सोमपव भः. महाँ अ भ रोजसा.. (१) हे इं ! इस य म आकर सोमरस पी सम त भो य पदाथ से स बनो. इसके प ात् तुम परम श शाली बनकर श ु पर वजय ा त करो. (१) एमेनं सृजता सुते म द म ाय म दने. च
व ा न च ये.. (२)
य द आनंद दे ने वाला एवं काय संपादन क ेरणा करने वाला सोमरस तैयार हो तो उसे स एवं संपूण काय स करने वाले को भट करो. (२) म वा सु श म द भः तोमे भ व चषणे. सचैषु सवने वा.. (३) हे सुंदर ना सका एवं ठोड़ी वाले तथा सम त यजमान ारा पू य इं ! तुम आनंद बढ़ाने वाली तु तय से स होकर इस सवन नामक य म पधारो. (३) असृ म
ते गरः
त वामुदहासत. अजोषा वृषभं प तम्.. (४)
हे इं ! मने तु हारी तु तयां क ह. वे तु हारे समीप वग म प ंच गई ह. तुमने उन तु तय को वीकार कर लया है. तुम मनचाही वषा करने वाले एवं यजमान के र क हो. (४) सं चोदय च मवा ाध इ
वरे यम्. अस द े वभु भु.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! े एवं व वध कार का धन हमारे पास भेजो. हमारे भोग के लए पया त एवं अ धक धन तु हारे ही पास है. (५) अ मा सु त चोदये
राये रभ वतः. तु व ु न यश वतः.. (६)
हे अ धक संप वाले इं ! धन क स हम उ ोगशील एवं क त वाले ह . (६) सं गोम द
के लए हम य
वाजवद मे पृथु वो बृहत्. व ायुध
पी कम क
ेरणा दो.
तम्.. (७)
हे इं ! हम गाय एवं अ के साथ-साथ अ धक मा ा म धन दो. यह धन इतना व तृत हो क सम त आयु भर खच होने पर भी समा त न हो. (७) अ मे धे ह वो बृहद् ु नं सह सातमम्. इ
ता र थनी रषः.. (८)
हे इं ! हम वशाल यश, अनेक रथ म भरा आ अ एवं ऐसा धन दो, जससे हम हजार क सं या म दान कर सक. (८) वसो र ं वसुप त गी भगृण त ऋ मयम्. होम ग तारमूतये.. (९) अपने धन क र ा करने के लए हम तु तय ारा इं को बुलाते ह. इं धन के र क, ऋचा से ेम करने वाले एवं य थान म गमन करने वाले ह. (९) सुतेसुते योकसे बृहद् बृहत एद रः. इ ाय शूषमच त.. (१०) सब यजमान येक य म इं के महान् परा म क नवास करने वाले एवं श संप ह. (१०)
सू —१०
शंसा करते ह. इं य म सदा
दे वता—इं
गाय त वा गाय णो ऽच यकम कणः. ाण वा शत त उ ं श मव ये मरे.. (१) हे शत तु इं ! उद्गाता तु हारी तु त करते ह. पूजाथक मं बोलने वाले होता पूजा के यो य इं क अचना करते ह. जस कार बांस के ऊपर नाचने वाले कलाकार बांस को ऊपर उठाते ह, उसी कार तु त करने वाले ा ण तु हारी उ त करते ह. (१) य सानोः सानुमा हद् भूय प क वम्. त द ो अथ चेत त यूथेन वृ णरेज त.. (२) जब यजमान सोमलता खोजने के लए एक पवत से सरे पवत पर जाता है और ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमयाग प अनेक कम आरंभ करता है, तब इं उसका योजन जानते ह तथा यजमान क इ छानुसार वषा करने के लए म द्गण के साथ य थान म आने क तैयारी करते ह. (२) यु वा ह के शना हरी वृषणा क य ा. अथा न इ सोमपा गरामुप ु त चर.. (३) हे सोमपानक ा इं ! अपने केशर वाले, युवा एवं पु शरीर वाले घोड़ को रथ म जोड़ो. इसके प ात् हमारी तु तयां सुनने के लए समीप आओ. (३) ए ह तोमाँ अ भ वरा भ गृणी ा व. च नो वसो सचे य ं च वधय.. (४) हे सव ापक इं ! इस य म आओ. उद्गाता ारा क ई तु त क शंसा करो, अ वयु क तु तय का समथन करो और अपने श द से सबको आनंद दो. इसके प ात् हमारे अ के साथ-साथ इस य को भी बढ़ाओ. (४) उ थ म ाय शं यं वधनं पु न षधे. श ो यथा सुतेषु णो रारणत् स येषु च.. (५) अग णत श ु को रोकने वाले इं के लए गाए गए गीत वृ पाते रह. इन गीत के कारण श शाली इं हमारे पु एवं म के म य महान् श द कर. (५) त मत् स ख व ईमहे तं राये तं सुवीय. स श उत नः शक द ो वसु दयमानः.. (६) हम लोग मै ी, धन और श पाने के लए इं के समीप जाते ह. बलशाली इं हम धन दान करके हमारी र ा करते ह. (६) सु ववृतं सु नरज म वादात म शः. गवामप जं वृ ध कृणु व राधो अ वः.. (७) हे इं ! तु हारे ारा दया आ अ सव फैला आ और सु वधापूवक मलने वाला है. हे व धारण करने वाले इं ! ध, घी आ द रस के लाभ के लए गोशाला का ार खोलो और हम धन दान करो. (७) न ह वा रोदसी उभे ऋघायमाण म वतः. जेषः ववतीरपः सं गा अ म यं धूनु ह.. (८) हे इं ! जस समय तुम श ु का वध करते हो, उस समय धरती और आकाश दोन म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु हारी म हमा नह समाती. तुम आकाश से जल क वषा करो और हमारे लए गाएं दो. (८) आ ु कण ुधी हवं नू च ध व मे गरः. इ तोम ममं मम कृ वा युज द तरम्.. (९) हे इं ! तु हारे दोन कान चार ओर क बात सुनने वाले ह, इस लए हमारी पुकार ज द सुनो. हमारी तु तय को अपने मन म थान दो. जस कार म क बात मरण रहती ह, उसी कार हमारी ये तु तयां भी अपने पास रखो. (९) व ा ह वा वृष तमं वाजेषु हवन ुतम्. वृष तम य मह ऊ त सह सातमाम्.. (१०) हे इं ! हम तु ह जानते ह क तुम मनचाही वषा करते हो तथा यु थल म हमारी ाथना सुनते हो. तुम सम त कामना को पूण करने वाले हो. हम हजार कार के धन दे ने वाली तु हारी र ा का आ ान करते ह. (१०) आ तू न इ कौ शक म दसानः सुतं पब. न मायुः सू तर कृधी सह सामृ षम्.. (११) हे इं ! तुम हमारे पास शी आओ. हे कु शक ऋ ष के पु ! स होकर सोमपान करो, दे वता ारा शंसनीय य कम करने के लए हमारा जीवन बढ़ाओ एवं मुझ ऋ ष को हजार धन वाला बनाओ. (११) प र वा गवणो गर इमा भव तु व तः. वृ ायुमनु वृ यो जु ा भव तु जु यः.. (१२) हे हमारी तु तय के वषय इं ! हमारी ये तु तयां सब ओर से तु हारे पास प च ं . चर आयु वाले तु हारा अनुगमन करके ये तु तयां वृ ा त कर. ये तु तयां तु ह संतु करके हमारे लए स ता दान कर. (१२)
सू —११
दे वता—इं
इ ं व ा अवीवृध समु चसं गरः. रथीतमं रथीनां वाजानां स प त प तम्.. (१) सागर के समान व तृत रथ के वा मय म े , अ य के वामी एवं सबके पालक इं को हमारी तु तय ने बढ़ाया था. (१) स ये त इ वा जनो मा भेम शवस पते. वाम भ णोनुमो जेतारमपरा जतम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे बल के वामी इं ! तु हारी म ता पाकर हम श अपरा जत वजेता हो. हम तु ह नम कार करते ह. (२)
शाली एवं नभय बन. तुम
पूव र य रातयो न व द य यूतयः. यद वाज य गोमतः तोतृ यो मंहते मघम्.. (३) श
इं ारा कए गए पुराकालीन दान स ह. य द वे तु तक ा पूण अ दान कर तो सब ा णय क र ा हो सकती है. (३)
को गाययु
एवं
पुरां भ युवा क वर मतौजा अजायत. इ ो व य कमणो धता व ी पु ु तः.. (४) इं ने पुरभेदनकारी, युवा, अ मत तेज वी, सम त य अनेक य ारा तुत प म ज म लया. (४)
के धारणक ा, व धारक एवं
वं वल य गोमतोऽपावर वो बलम्. वां दे वा अ ब युष तु यमानास आ वषुः.. (५) हे व धारी इं ! तुमने गाय का अपहरण करने वाले बल असुर क गुफा का ार खोल दया था. बलासुर ारा सताए ए दे व ने उस समय नडर होकर तु ह घेर लया था. (५) तवाहं शूर रा त भः यायं स धुमावदन्. उपा त त गवणो व े त य कारवः.. (६) हे शूर इं ! नचोड़े ए सोमरस के गुण का वणन करता आ म तु हारे धनदान से भा वत होकर वापस आया ं. हे तु तपा इं ! य क ा तु हारे समीप उप थत होने एवं तु हारी कायकुशलता को जानते थे. (६) माया भ र मा यनं वं शु णमवा तरः. व े त य मे धरा तेषां वां यु र.. (७) हे इं ! तुमने छल ारा मायावी शु ण का नाश कया. इस बात को जो मेधावी लोग जानते ह, तुम उनक र ा करो. (७) इ मीशानमोजसा भ तोमा अनूषत. सह ं य य रातय उत वा स त भूयसीः.. (८) श ारा व के वामी बनने वाले क तु त ा थय ने क है. इं के धन दे ने के ढं ग हजार अथवा हजार से भी अ धक ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१२
दे वता—अ न
अ नं तं वृणीमहे होतारं व वेदसम्. अ य य
य सु तुम्.. (१)
दे व के त एवं आ ान करने वाले, सम त संप य के अ धकारी एवं इस य को सुंदरतापूवक पूण कराने वाले अ न का हम वरण करते ह. (१) अ नम नं हवीम भः सदा हव त व प तम्. ह वाहं पु मं
यम्.. (२)
हम जापालक ा, सदा ह वहन करने वाले एवं व ारा सदा बुलाते ह. (२) अ ने दे वाँ इहा वह ज ानो वृ ब हषे. अ स होता न ई
के
य अ न को आवाहक
ः.. (३)
हे का से उ प अ न! य म कुश बछाने वाले यजमान के न म दे व को बुलाओ, य क तुम हमारे तु य एवं होता हो. (३) ताँ उशतो व बोधय यद ने या स
यम्. दे वैरा स स ब ह ष.. (४)
हे अ न! तुम दे व का तकम करते हो, इस लए ह को बुलाओ एवं उनके साथ बछे ए कुश पर बैठो. (४) घृताहवन द दवः
त म रषतो दह. अ ने वं र
क अ भलाषा करने वाले दे व
वनः.. (५)
हे घी ारा बुलाए गए तेज वी अ न! रा स के सहयोगी बने ए हमारे श ु जला दो. (५)
को
अ नना नः स म यते क वगृहप तयुवा. ह वाड् जु ा यः.. (६) ांतदश , गृहर क, युवा, ह वाहक एवं जु मुख दे वता अ न अ न से ही होते ह. (६)
व लत
क वम नमुप तु ह स यधमाणम वरे. दे वममीवचातनम्.. (७) हे तोताओ! ांतदश , स यशील, श ुनाशक एवं द गुणसंप आकर य म उसक तु त करो. (७)
अ न के सामने
य वाम ने ह व प त तं दे व सपय त. त य म ा वता भव.. (८) हे अ न! य क तुम ह के र क बनो. (८)
के वामी एवं दे व के त हो, इस लए अपने सेवक यजमान
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो अ नं दे ववीतये ह व माँ आ ववास त. त मै पावक मृळय.. (९) हे पावक! जो ह दे ने वाले तु हारी शरण म आकर इस इ छा से तु हारी सेवा करते ह क उनका ह दे व को मल सके, तुम उनक र ा करो. (९) स नः पावक द दवोऽ ने दे वाँ इहा वह. उप य ं ह व नः.. (१०) हे द त अ न! दे व को यहां य समीप ले जाओ. (१०)
थल म लाओ एवं हमारा य
और ह व दे व के
स नः तवान आ भर गाय ेण नवीयसा. र य वीरवती मषम्.. (११) हे अ न! नव न मत गाय ी छं द क तु त ारा स होकर हम धन एवं संतानयु अ दो. (११) अ ने शु े ण शो चषा व ा भदव त भः. इमं तोमं जुष व नः.. (१२) हे अ न! तुम कां तयु वीकार करो. (१२)
एवं दे व त के
पम
स
हो. तुम हमारे इस तो को
दे वता—अ न आ द
सू —१३
सुस म ो न आ वह दे वाँ अ ने ह व मते. होतः पावक य
च.. (१)
हे भली कार व लत अ न! हमारे यजमान के क याण के लए दे व को लाओ. हे दे व को बुलाने वाले पावक! हमारा य पूरा करो. (१) मधुम तं तनूनपाद् य ं दे वेषु नः कवे. अ ा कृणु ह वीतये.. (२) हे ांतदश एवं शरीरर क अ न! हमारे मधुयु समीप ले जाओ. (२) नराशंस मह म इस य बुलाता ं. (३)
यम मन् य उप म
य को उपभोग के न म दे व के
ये. मधु ज ं ह व कृतम्.. (३)
य, मधु ज , ह -संपादक एवं मनु य
ारा
शं सत अ न को
अ ने सुखतमे रथे दे वाँ ई ळत आ वह. अ स होता मनु हतः.. (४) हे मानव ारा शं सत अ न! अपने परम सुखद रथ पर दे व को यहां ले आओ. तुम मानव हतकारी एवं दे व को बुलाने वाले हो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तृणीत ब हरानुषग् घृतपृ ं मनी षणः. य ामृत य च णम्.. (५) हे मनी षयो! घी से चकने कुश को एक- सरे से मलाकर बछाओ. उस पर अमृत रखा जाएगा. (५) व य तामृतावृधो ारो दे वीरस तः. अ ा नूनं च य वे.. (६) य पूरा करने के लए आज न य ही तेज वी एवं जनर हत ार खोले जाव. वे बंद न रह. (६) न ोषासा सुपेशसा मन् य उप
ये. इदं नो ब हरासदे .. (७)
म बछे ए कुश पर बैठने के लए सुंदर रात और उषा को इस य म बुलाता ं. (७) ता सु ज ा उप
ये होतारा दै ा कवी. य ं नो य ता ममम्.. (८)
म अ न और सूय को बुलाता ं. वे सुंदर ज ा वाले, वाले ह. वे हमारा य पूरा कर. (८)
ांतदश और दे व को बुलाने
इळा सर वती मही त ो दे वीमयोभुवः. ब हः सीद व धः.. (९) (९)
सुख दे ने वाली एवं वनाशर हत इला, सर वती तथा मही नामक दे वयां कुश पर बैठ. इह व ारम यं व
(१०)
पमुप
म सवा णी तथा अनेक
ये. अ माकम तु केवलः.. (१०)
पधारी व ा को इस य म बुलाता ं. वे केवल हमारे ही ह .
अव सृजा वन पते दे व दे वे यो ह वः.
दातुर तु चेतनम्.. (११)
हे वन प तदे व! दे व के लए ह व भट करो. इससे यजमान साम से संप बन. (११) वाहा य ं कृणोतने ाय य वनो गृहे. त दे वाँ उप
ये.. (१२)
हे ऋ वजो! तुम यजमान के घर म वाहा श द बोलते ए इं के न म उस म हम दे व को बुलाते ह. (१२)
सू —१४
दे वता—अ न
ऐ भर ने वो गरो व े भः सोमपीतये. दे वे भया ह य
च.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हवन करो.
हे अ न! इन सम त दे व के साथ सोमरस पीने, हमारी सेवा तथा तु त हण करने के लए पधारो एवं हमारा य पूरा करो. (१) आ वा क वा अ षत गृण त व ते धयः. दे वे भर न आ ग ह.. (२) हे व ान् अ न! क व क संतान तु ह बुलाती है एवं तु हारे कम क तुम दे व के साथ आओ. (२)
शंसा करती है.
इ वायू बृह प त म ा नं पूषणं भगम्. आ द यान् मा तं गणम्.. (३) हे तोताओ! इं , वायु, बृह प त, म , अ न, पूषा, भग, आ द य एवं म द्गण का आ ान करो. (३) वो
य त इ दवो म सरा माद य णवः.
सा म व मूषदः.. (४)
हे दे वो! तृ तकारक, स तादायक, मादक एवं ब
प सोमरस पा
म रखा है. (४)
ईळते वामव यवः क वासो वृ ब हषः. ह व म तो अरङ् कृतः.. (५) हे अ न! अलंकृत क ववंशी ह यु क याचना करते ह. (५)
होकर एवं कुश बछाकर तु ह बुलाते ह एवं र ा
घृतपृ ा मनोयुजो ये वा वह त व यः. आ दे वा सोमपीतये.. (६) हे अ न! तु हारी इ छा मा से रथ म जुड़ जाने वाले जो तेज वी घोड़े तु ह ढोते ह, उ ह से दे व को सोम पीने के लए यहां लाओ. (६) तान् यज ाँ ऋतावृधो ऽ ने प नीवत कृ ध. म वः सु ज
पायय.. (७)
हे अ न! उन पूजनीय एवं य वधक दे व को प नी वाला करो. हे सु ज ! उ ह सोम पलाओ. (७) ये यज ा य ई
ा ते ते पब तु ज या. मधोर ने वषट् कृ त.. (८)
हे अ न! पूजनीय एवं तु तपा दे व वषट् कार का उ चारण होते समय तु हारी जीभ से सोमरस पएं. (८) आक सूय य रोचनाद् व ान् दे वाँ उषबुधः. व ो होतेह व त.. (९) मेधावी एवं दे व के आ ान करने वाले अ न ातःकाल जागने वाले दे व को का शत सूय-मंडल से यहां य म लाव. (९) व े भः सो यं म व न इ े ण वायुना. पबा म य धाम भः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(१०)
हे अ न! तुम सम त दे व , इं , वायु एवं म के तेज के साथ मधुर सोम का पान करो. वं होता मनु हतोऽ ने य ेषु सीद स. सेमं नो अ वरं यज.. (११) हे होता एवं मानव हतकारी अ न! तुम हमारे य म बैठो एवं उसको पूण करो. (११) यु वा
षी रथे ह रतो दे व रो हतः. ता भदवाँ इहा वह.. (१२)
हे अ न दे व! रो हत नामक ग तशील घोड़ को अपने रथ म जोड़ो एवं उनके ारा दे व को यहां लाओ. (१२)
दे वता—ऋतु आ द
सू —१५ इ
सोमं पब ऋतुना वा वश व दवः. म सरास तदोकसः.. (१)
हे इं ! तुम ऋतु के साथ सोमरस पओ. तृ तकारक एवं आ ययो य सोम तु हारे शरीर म व हो. (१) म तः पबत ऋतुना पो ाद् य ं पुनीतन. यूयं ह ा सुदानवः.. (२) हे म द्गण! पो नामक ऋ वक् ारा दया आ सोमरस ऋतु के साथ पओ. तुम शोभन दानशील हो. तुम मेरे य को प व करो. (२) अ भ य ं गृणी ह नो नावो ने ः पब ऋतुना. वं ह र नधा अ स.. (३) हे प नीयु र नदाता हो. (३)
व ा! हमारे य
क
अ ने दे वाँ इहा वह सादया यो नषु
शंसा करो एवं ऋत के साथ सोम पओ. तुम षु. प र भूष पब ऋतुना.. (४)
हे अ न! दे व को यहां य म बुलाओ एवं यो न नामक तीन थान म बैठाओ, उ ह वभू षत करो एवं ऋतु के साथ सोमरस पओ. (४) ा णा द
राधसः पबा सोममृतूँरनु. तवे
स यम तृतम्.. (५)
हे इं ! तुम ऋतु के प ात् ा णा छं सी पुरो हत के पा से सोमपान करो. तु हारी म ता टू टने वाली नह है. (५) युवं द ं धृत त म ाव ण ळभम्. ऋतुना य माशाथे.. (६) हे तधारणक ा म और व ण! ऋतु के साथ य म आओ. हमारा य वृ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ात
एवं श ु
क बाधा से र हत है. (६) वणोदा
वणसो ावह तासो अ वरे. य ेषु दे वमीळते.. (७)
पुरो हत धन क अ भलाषा से भां त-भां त के य वे सोमलता कूटने के प थर हाथ म लए ह. (७)
म धन द अ न क तु त करते ह.
वणोदा ददातु नो वसू न या न शृ वरे. दे वेषु ता वनामहे.. (८) वणोदा अ न हम सभी सुनी संप यां दान कर. हम उ ह दे वय म लगाव. (८) वणोदाः पपीष त जुहोत
च त त. ने ा तु भ र यत.. (९)
हे ऋ वजो! धनदाता अ न ऋतु के साथ व ा के पा से सोमरस पीना चाहते ह. तुम य करने के प ात् अपने थान पर चले जाओ. (९) यत् वा तुरीयमृतु भ वणोदो यजामहे. अध मा नो द दभव.. (१०) हे धनदाता अ न! म ऋतु हमारे लए धनदाता बनो. (१०) अ ना पबतं मधु द
के साथ चौथी बार तु हारे उ े य से य कर रहा ं. तुम
नी शु च ता. ऋतुना य वाहसा.. (११)
हे प व कम करने वाले अ नीकुमारो! काशमान अ न के साथ सोमरस का पान करो. तुम ऋतु के साथ य पूरा करते हो. (११) गाहप येन स य ऋतुना य नीर स. दे वान् दे वयते यज.. (१२) हे अ न! तुम ऋतु के साथ-साथ गाहप य य को भी र त करते हो. तुम दे वसेवक यजमान के क याण के लए दे व क पूजा करो. (१२)
दे वता—इं
सू —१६ आ वा वह तु हरयो वृषणं सोमपीतये. इ
वा सूरच सः.. (१)
हे कामवषक इं ! सूय के समान तेज वी तु हारे ह र नामक घोड़े सोमपान के लए तु ह यहां लाव. (१) इमा धाना घृत नुवो हरी इहोप व तः. इ ं सुखतमे रथे.. (२) ह र नामक घोड़े सुख दे ने वाले रथ म यहां घी से यु
धा य के पास इं को लाव. (२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ं ातहवामह इ ं य य वरे. इ ं सोम य पीतये.. (३) म
येक य म ातःकाल सोमपान के लए इं को बुलाता ं. (३)
उप नः सुतमा ग ह ह र भ र
के श भः. सुते ह वा हवामहे.. (४)
हे इं ! अपने लंबे बाल वाले घोड़ क सहायता से हमारे सोमरस के समीप आओ. सोमरस नचुड़ जाने पर हम तु ह बुलाते ह. (४) सेमं नः तोममा ग पेदं सवनं सुतम्. गौरो न तृ षतः पब.. (५) हे इं ! हमारे उस तो को सुनकर य के समीप आओ. सोमरस तैयार है. उसे ऐसे पओ, जैसे यासा हरण पानी पीता है. (५) इमे सोमास इ दवः सुतासो अ ध ब ह ष. ताँ इ (६)
सहसे पब.. (६)
हे इं ! यह पतला सोमरस बछे ए कुश पर रखा है. इसे श अयं ते तोमो अ यो
बढ़ाने के लए पओ.
द पृग तु शंतमः. अथा सोमं सुतं पब.. (७)
हे इं ! यह े तो तु हारे लए दय पश एवं सुखदायक बने. उसके बाद तुम नचोड़े ए सोम को पओ. (७) व म सवनं सुत म ो मदाय ग छ त. वृ हा सोमपीतये.. (८) वृ नाशक इं स ता ा त के न म सोमरस पीने के लए ऐसे सभी य ह, जहां सोमरस तैयार हो. (८)
म जाते
सेमं नः काममा पृण गो भर ैः शत तो. तवाम वा वा यः.. (९) हे शत तु! गाएं और अ दे कर हमारी सभी अ भलाषाएं पूरी करो. हम भली कार यान करते ए तु हारी तु त करते ह. (९)
सू —१७
दे वता—इं एवं व ण
इ ाव णयोरहं स ाजोरव आ वृणे. ता नो मृळात ई शे.. (१) म भली कार काशमान इं और व ण से अपनी र ा क याचना करता ं. वे दोन मुझ ाथ क र ा करगे. (१) ग तारा ह थोऽवसे हवं व य मावतः. धतारा चषणीनाम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे मनु य के वामी इं ! मुझ पुरो हत क र ा के लए मेरी पुकार सुनो. (२) अनुकामं तपयेथा म ाव ण राय आ. ता वां ने द मीमहे.. (३) हे इं और व ण! हमारी अ भलाषा के अनुसार धन दे कर हम तृ त करो. हम तु हारा सामी य चाहते ह. (३) युवाकु ह शचीनां युवाकु सुमतीनाम्. भूयाम वाजदा नाम्.. (४) हम बल और सुबु
क इ छा से तु ह चाहते ह. हम े अ दाता ह . (४)
इ ः सह दा नां व णः शं यानाम्. सह
धनदाता
तुभव यु यः.. (५)
म इं एवं तु त हणक ा
म व ण े ह. (५)
तयो रदवसा वयं सनेम न च धीम ह. या त रेचनम्.. (६) इं और व ण क र ा से हम धन ा त करके उसका उपयोग कर. हमारे पास पया त धन हो. (६) इ ाव ण वामहं वे च ाय राधसे. अ मा सु ज युष कृतम्.. (७) हे इं और व ण! व च धन को पाने के लए म तु ह बुलाता ं. तुम हम भली-भां त वजय दलाओ. (७) इ ाव ण नू नु वां सषास तीषु धी वा. अ म यं शम य छतम्.. (८) (८)
हे इं और व ण! हमारा मन तु हारी उ म सेवा का अ भलाषी है. तुम हम सुख दो. वाम ोतु सु ु त र ाव ण यां वे. यामृधाथे सध तु तम्.. (९)
हे इं और व ण! जस तु त से हम तु ह बुलाते ह और जस शोभन तु त को तुम वीकार करते हो, हमारी वही सुंदर तु त तु ह ा त हो. (९)
सू —१८ सोमानं वरणं कृणु ह
दे वता—
ण पतआद
ण पते. क ीव तं य औ शजः.. (१)
हे ण प त! तुमने जस कार उ शज के पु क ीवान् को स कार सोमरस दे ने वाले यजमान को भी दे वता म स करो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया था, उसी
यो रेवान् यो अमीवहा वसु वत् पु वधनः. स नः सष ु य तुरः.. (२) जो ण प त धन के वामी, रोग नवारण करने वाले, संप दाता, पु वधक एवं शी फल दे ने वाले ह, वे हम पर कृपा कर. (२) मा नः शंसो अर षो धू तः णङ् म य य. र ा णो
ण पते.. (३)
उप व करने वाले एवं े षपूण नदा के श द बोलने वाले श ु हमसे ण प त! उनसे हमारी र ा करो. (३) स घा वीरो न र य त य म ो
र रह. हे
ण प तः. सोमो हनो त म यम्.. (४)
इं , व ण और सोम जस यजमान क उ त करते ह, उस वीर पु ष का वनाश नह होता. (४) वं तं
ण पते सोम इ
म यम्. द णा पा वंहसः.. (५)
हे ण प त! तुम, सोम, इं एवं द णा नामक दे वी उस यजमान क पाप से र ा करो. (५) सदस प तम तं
यम
य का यम्. स न मेधामया सषम्.. (६)
आ यजनक कम करने वाले, इं के य, परम सुंदर एवं धन दाता सदस प त (अ न) नामक दे व के सामने हम बु क याचना करने आए ह. (६) य मा ते न स य त य ो वप त न. स धीनां योग म व त.. (७) जन सदस प त (अ न) क स ता के बना व ान् यजमान का य भी पूण नह होता, वह ही हमारे मन को इस य म लगाव. (७) आ नो त ह व कृ त ा चं कृणो य वरम्. हो ा दे वेषु ग छ त.. (८) इसके बाद वही सदस प त (अ न) ह वसंपादन करने वाले यजमान क उ त करते ह एवं य को न व नतापूवक समा त करते ह. उ ह क कृपा से हमारी तु तयां दे व के पास जाएं. (८) नराशंसं सुधृ ममप यं स थ तमम्. दवो न स मखसम्.. (९) तापी, अ यंत चुका ं. (९)
सू —१९
स
एवं ुलोक के समान तेज वी नराशंस (अ न) दे वता को म दे ख
दे वता—अ न एवं म द्गण
******ebook converter DEMO Watermarks*******
त यं चा म वरं गोपीथाय
यसे. म
र न आ ग ह.. (१)
हे अ न! तुम इस सुंदर य म सोमपान करने के लए बुलाए जा रहे हो, इस लए तुम म द्गण के साथ आओ. (१) न ह दे वो न म य मह तव
तुं परः. म
र न आ ग ह.. (२)
हे महान् अ न दे व! तु हारा य और उसे करने वाले मनु य सव े ह. उनसे बढ़कर कोई नह है. तुम म द्गण के साथ आओ. (२) ये महो रजसो व व े दे वासो अ हः. म
र न आ ग ह.. (३)
हे अ न! जो म द्गण तेज वी एवं े षर हत ह, जो अ धक मा ा म जल क वषा करना जानते ह, तुम उनके साथ आओ. (३) य उ ा अकमानृचुरनाधृ ास ओजसा. म
र न आ ग ह.. (४)
हे अ न! जो म द्गण उ एवं इतने बलशाली ह क कोई उनका तर कार नह कर सकता. उ ह ने जल क वषा क है. तुम उनके साथ आओ. (४) ये शु ा घोरवपसः सु
ासो रशादसः. म
र न आ ग ह.. (५)
जो शोभासंप होने के साथ-साथ उ पधारी भी ह, जो शोभन धन संप श ुनाशक ह. हे अ न दे व! तुम उन म द्गण के साथ आओ. (५) ये नाक या ध रोचने द व दे वास आसते. म
एवं
र न आ ग ह.. (६)
हे अ न दे व! जो म द्गण आकाश के ऊपर वतमान काशपूण वग म शोभायमान ह, तुम उनके साथ आओ. (६) य ईङ् खय त पवतान् तरः समु मणवम्. म
र न आ ग ह.. (७)
हे अ न! जो म द्गण उ मेघ को चलाते ह और सागर क जलरा श को तरं गत करते ह, तुम उनके साथ आओ. (७) आ ये त व त र म भ तरः समु मोजसा. म
र न आ ग ह.. (८)
हे अ न दे व! जो म द्गण सूय करण के साथ-साथ सारे आकाश म फैले ए ह और जो अपनी श से सागर के जल को चंचल बनाते ह, तुम उनके साथ आओ. (८) अ भ वा पूवपीतये सृजा म सो यं मधु. म
र न आ ग ह.. (९)
हे अ न! सोमरस से न मत मधु सबसे पहले म तु ह पीने के लए दे रहा ं. तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म द्गण के साथ आओ. (९)
दे वता—ऋभुगण
सू —२०
अयं दे वाय ज मने तोमो व े भरासया. अका र र नधातमः.. (१) जन ऋभु ने ज म धारण कया था, उ ह को ल य करके बु पया त धन दे ने वाला यह तो अपने मुख से उ चारण कया. (१)
मान् ऋ वज ने
य इ ाय वचोयुजा तत ुमनसा हरी. शमी भय माशत.. (२) जन ऋभु ने इं को स करने के लए अपने मन से ऐसे घोड़े बनाए ह, जो आ ा पाते ही रथ म जुत जाते ह. वे ही शमी वृ से न मत चमस आ द लेकर इस य म आव. (२) त
ास या यां प र मानं सुखं रथम्. त
धेनुं सब घाम्.. (३)
ऋभु ने दोन अ नीकुमार के लए रथ बनाया, जसक ग त सव समान थी तथा उ ह ने ध दे ने वाली एक गाय उ प क . (३) युवाना पतरा पुनः स यम ा ऋजूयवः. ऋभवो व
त.. (४)
छलर हत और सवकायसाधक ऋभु के मं सदा सफलता ा त करते ह. उ ह ने अपने माता- पता को दोबारा युवा बना दया था. (४) सं वो मदासो अ मते े ण च म वता. आ द ये भ राज भः.. (५) हे ऋभुगण! म द्गण स हत इं और काशमान सूय के साथ तु ह सोमरस दया जा रहा है. (५) उत यं चमसं नवं व ु दव य न कृतम्. अकत चतुरः पुनः.. (६) व ा ारा न मत, सोमधारण म समथ चमस नाम का नया का पा हो गया था. ऋभु ने उसके चार टु कड़े कर दए. (६) ते नो र ना न ध न
बलकुल तैयार
रा सा ता न सु वते. एकमेकं सुश त भः.. (७)
हे ऋभुगण! तुम हमारी सुंदर तु तय को सुनकर सोमरस नचोड़ने वाले हमारे यजमान को एक-एक करके वण, म ण, मु ा—तीन र न दान करो. तुम दशपौ णमासा द सात कम के तीन वग को पूरा करो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अधारय त व योऽभज त सुकृ यया. भागं दे वेषु य यम्.. (८) य के लए उपयोगी चमस आ द का नमाण करने के कारण ऋभुगण मरणधमा होने पर भी अमर बन गए ह. वे अपने स कम के कारण दे व के म य बैठकर य का भाग ा त करते ह. (८)
दे वता—इं एवं अ न
सू —२१ इहे ा नी उप
ये तयो र तोममु म स. ता सोमं सोमपातमा.. (१)
म इस य म इं और अ न को बुलाता ं एवं इ ह दोन क तु त करने क इ छा रखता ं. सोमपान करने के अ यंत इ छु क वे दोन सोमरस पएं. (१) ता य ेषु
शंसते ा नी शु भता नरः. ता गाय ेषु गायत.. (२)
हे मनु यो! इस य म उ ह इं और अ न क शंसा करो एवं उ ह अनेक कार से सुशो भत करो. गाय ी छं द का सहारा लेकर उ ह दोन क तु तयां गाओ. (२) ता म य श तय इ ा नी ता हवामहे. सोमपा सोमपीतये.. (३) हम म दे व क शंसा के लए इं और अ न को इस य म बुला रहे ह. वे दोन सोमरस पीने वाले ह. हम उ ह दोन को सोमरस पीने के लए बुला रहे ह. (३) उ ा स ता हवामह उपेदं सवनं सुतम्. इ ा नी एह ग छताम्.. (४) हम श न ु ाशन म ू र उ ह दोन को इस सोमरसपूण य म बुला रहे ह. वे इं और अ न इस य म आव. (४) ता महा ता सद पती इ ा नी र उ जतम्. अ जाः स व णः.. (५) वे गुणसंप एवं सभापालक इं और अ न रा स जा त क ू रता समा त कर द. नरभ ण करने वाले रा स उन दोन के भाव से संतानहीन हो जाव. (५) तेन स येन जागृतम ध चेतुने पदे . इ ा नी शम य छतम्.. (६) हे इं और अ न! जो वगलोक हमारे कमफल को का शत करने वाला है, वह से तुम इस य के न म जाओ और हम सुख दान करो. (६)
सू —२२
दे वता—अ नीकुमार आ द
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ातयुजा व बोधया नावेह ग छताम्. अ य सोम य पीतये.. (१) हे अ वयु! ातःसवन नामक य से संबं धत अ नीकुमार को जगाओ. वे सोमपान करने के लए इस य म आव. (१) या सुरथा रथीतमोभा दे वा द व पृशा. अ ना ता हवामहे.. (२) हम अ नीकुमार को य म बुलाते ह. उनका रथ सुंदर है और वे र थय म अ यंत े ह. (२) या वां कशा मधुम य ना सूनृतावती. तया य ं म म तम्.. (३) हे अ नीकुमारो! तु हारे चाबुक से घोड़ के पसीने क गंध आती है और वह श द के साथ चोट करता है. ऐसे चाबुक से घोड़ को हांकते ए तुम य म शी आकर इसे सोमरस से स च दो. (३) न ह वाम त रके य ा रथेन ग छथः. अ ना सो मनो गृहम्.. (४) हे अ नीकुमारो! तुम अपने रथ म बैठकर सोमरस पीने के लए यजमान के जस घर क दशा म जा रहे हो, वह घर र नह है. (४) हर यपा णमूतये स वतारमुप
ये. स चे ा दे वता पदम्.. (५)
सूय के हाथ म वण है. म उ ह र ा के लए बुलाता ं. वे सूय दे व यजमान को ा त होने वाला पद बता दगे. (५) अपां नपातमवसे स वतारमुप तु ह. त य ता यु म स.. (६) सूय जल को सुखा दे ता है. अपनी र ा के लए उस सूय क तु त करो. हम सूय के लए य करना चाहते ह. (६) वभ ारं हवामहे वसो
य राधसः. स वतारं नृच सम्.. (७)
सूय धन म नवास करते ह. वे सुवण, रजता द प धन यजमान म उ चत बांटते ह. हम मनु य को काश दे ने वाले सूय का आ ान करते ह. (७)
प से
सखाय आ न षीदत स वता तो यो नु नः. दाता राधां स शु भ त.. (८) हे म ो! चार ओर ठ क से बैठ जाओ. हम शी ही सूय क तु त करनी है. धन दे ने वाले सूय सुशो भत हो रहे ह. (८) अ ने प नी रहा वह दे वानामुशती प. व ारं सोमपीतये.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न दे व! दे व क कामना करने वाली प नय को इस य सोमपान करने के लए व ा को यहां ले आओ. (९) आ ना अ न इहावसे हो ां य व भारतीम्. व
म ले आओ. तुम
धषणां वह.. (१०)
हे अ न! हमारी र ा के लए दे वप नय को यहां ले आओ. हे अ यंत युवा अ न! हम ऐसी वाणी दो, जससे हम दे व को बुला सक एवं न ापूवक स य भाषण कर सक. (१०) अ भ नो दे वीरवसा महः शमणा नृप नीः. अ छ प ाः सच ताम्.. (११) मनु य का पालन करने वाली एवं शी गा मनी दे वयां र ा एवं परम सुख दे ने के लए हम पर स ह . (११) इहे ाणीमुप
ये व णान व तये. अ नाय सोमपीतये.. (१२)
हम अपने क याण के लए एवं सोमपान करने के लए इं प नी, व णप नी एवं अ नप नी को बुलाते ह. (१२) मही ौः पृ थवी च न इमं य ं म म ताम्. पपृतां नो भरीम भः.. (१३) वशाल बनाव. (१३)
ुलोक और पृ वी इस य
को रस से स च द और पोषण करके हम पूण
तयो रद्घृतव पयो व ा रह त धी त भः. ग धव य ुवे पदे .. (१४) बु मान् लोग अपने कम के ारा आकाश और पृ वी के बीच म घी क तरह जल पीते ह. वह अंत र गंधव का न त नवास थान है. (१४) योना पृ थ व भवानृ रा नवेशनी. य छा नः शम स थः.. (१५) (१५)
हे पृ वी! तुम व तृत, कंटकर हत और नवास के यो य बनो. तुम हम पया त शरण दो. अतो दे वा अव तु नो यतो व णु वच मे. पृ थ ाः स त धाम भः.. (१६)
व णु ने अपने गाय ी आ द सात छं द से जस पृ वी पर कई कदम डाले थे, उसी पृ वी से दे वता हमारी र ा कर. (१६) इदं व णु व च मे ेधा न दधे पदम्. समूळ्हम य पांसुरे.. (१७) व णु ने इस जगत् क प र मा क . उ ह ने तीन कार से कदम रखे. उनके धू ल धूस रत चरण म सारा जगत् छप गया. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ी ण पदा व च मे व णुग पा अदा यः. अतो धमा ण धारयन्.. (१८) व णु जगत् क र ा करने वाले ह. कोई उन पर हार नह कर सकता. उ ह ने संपूण धम को धारण करते ए तीन डग म जगत् क प र मा क . (१८) व णोः कमा ण प यत यतो ता न प पशे. इ
य यु यः सखा.. (१९)
व णु क कृपा से उनके भरोसे यजमान अपने त पूरे करते ह. व णु के काय को दे खो. वे इं के उपयु सखा ह. (१९) त
णोः परमं पदं सदा प य त सूरयः. दवीव च ुराततम्.. (२०)
आकाश के चार ओर फैली ई आंख जस कार दे खती ह, उसी कार व ान् भी व णु के वग नामक परमपद पर रखते ह. (२०) त
ासो वप यवो जागृवांसः स म धते. व णोय परमं पदम्.. (२१)
बु
मान्, वशेष प से तु त करने वाले एवं जाग क लोग व णु के उस परम पद से अपने दय को का शत करते ह. (२१)
सू —२३ ती ाः सोमास आ ग ाशीव तः सुता इमे. वायो ता
दे वता—वायु आ द थता पब.. (१)
हे वायु! यह तीखा और संतोष दे ने वाला सोमरस तैयार है. तुम आओ और लाए ए सोमरस का पान करो. (१) उभा दे वा द व पृशे वायू हवामहे. अ य सोम य पीतये.. (२) म आकाश म रहने वाले इं और वायु दोन दे व को यह सोमरस पीने के लए बुलाता .ं (२) इ वायू मनोजुवा व ा हव त ऊतये. सह ा ा धय पती.. (३) वायु मन के समान ग तशील एवं इं हजार आंख वाले ह. बु र ा के लए बुलाते ह. (३)
मान् लोग इ ह अपनी
म ं वयं हवामहे व णं सोमपीतये. ज ाना पूतद सा.. (४) म और व ण य म कट होने वाले एवं शु बलसंप ह. हम उ ह सोमरस पीने के लए बुलाते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋतेन यावृतावृधावृत य यो तष पती. ता म ाव णा वे.. (५) म और व ण स य के ारा य कम क वृ पालनक ा ह. म इन दोन का आ ान करता ं. (५) व णः ा वता भुव म ो व ा भ
करते ह. और वा त वक काश के
त भः. करतां नः सुराधसः.. (६)
व ण और म सभी कार से हमारी र ा करते ह. वे हम पया त संप
द. (६)
म व तं हवामह इ मा सोमपीतये. सजूगणेन तृ पतु.. (७) हम सोमरस पीने के लए म द्गण के साथ इं का आ ान करते ह. वे इं म द्गण के साथ तृ त ह . (७) इ
ये ा म द्गणा दे वासः पूषरातयः. व े मम ुता हवम्.. (८)
हे म द्गणो! तुम लोग म इं सबसे महान् ह. पूषा नाम के दे व तु हारे दाता ह. आप सब हमारा आ ान सुन. (८) हत वृ ं सुदानव इ े ण सहसा युजा. मा नो ःशंस ईशत.. (९) हे शोभन एवं दानशील म द्गणो! बलवान् एवं यो य इं क सहायता से तुम श ु का वनाश करो. वह श ु हमारा वामी न हो जाए. (९) व ा दे वा हवामहे म तः सोमपीतये. उ ा ह पृ मातरः.. (१०) हम सोमरस पीने के लए संपूण म त्दे व को बुलाते ह. वे पृ संतान ह और उनके बल को श ु सहन नह कर सकता. (१०)
अथात् पृ वी क
जयता मव त यतुम तामे त धृ णुया. य छु भं याथना नरः.. (११) वजयी लोग जस कार हषनाद करते ह, उसी कार हे शोभन य म द्गणो! आप भी दप के साथ गजन करते हो. (११) ह कारा
म आने वाले
ुत पयतो जाता अव तु नः. म तो मृळय तु नः.. (१२)
चमकने वाली व ुत से उ प म द्गण हमारी र ा कर और हमारे सुख बढ़ाव. (१२) आ पूष च ब हषमाघृणे ध णं दवः. आजा न ं यथा पशुम्.. (१३) हे काशवान् एवं ग तशील सूय! लोग जस कार खोए ए पशु को जंगल से ढूं ढ़ लाते ह, उसी कार य धारण करने वाले एवं व च कुश से यु सोमरस को तुम आकाश से खोज लाओ. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूषा राजानमाघृ णरपगूळ्हं गुहा हतम्. अ व द च ब हषम्.. (१४) काशवान् सूय ने गुफा म छपाकर रखा आ, व च कुश से यु सोमरस ा त कया. (१४) उतो स म
म
एवं तेजसंप
भः षड् यु ाँ अनुसे षधत्. गो भयवं न चकृषत्.. (१५)
जस कार कसान बैल के ारा बार-बार खेत जोतता है, उसी कार सूय मेरे लए म से छः ऋतुएं लाए थे. ये ऋतुएं सोमरस से यु थ . (१५) अ बयो य य व भजामयो अ वरीयताम्. पृ चतीमधुना पयः.. (१६) जल हम य क इ छा करने वाल के लए माता के समान ह. वे हमारे हतकारी बंधु ह. वे जल य माग से जा रहे ह. वे ध को मीठा बनाते ह. (१६) अमूया उप सूय या भवा सूयः सह. ता नो ह व व वरम्.. (१७) जो संपूण जल सूय के समीप वतमान ह अथवा सूय जन जल के समीप रहते ह, वे सब जल हमारे य का हत कर. (१७) अपो दे वी प
ये य गावः पब त नः. स धु यः क व ह वः.. (१८)
हमारी गाएं जस जल को पीती ह, उसी का हम आ ान कर रहे ह. जो जल नद के प म बह रहा है, उसे ह व दे ना हमारा क है. (१८) अ व१ तरमृतम सु भेषजमपामुत श तये. दे वा भवत वा जनः.. (१९) जल के भीतर अमृत और ओष धयां वतमान ह, हे ऋ वजो! उ साहपूवक उस जल क शंसा करो. (१९) अ सु मे सोमो अ वीद त व ा न भेषजा. अ नं च व श भुवमाप व भेषजीः.. (२०) सोम ने मुझसे कहा है क जल म ओष धयां ह, संसार को सुख दान करने वाली अ न है और सभी कार क जड़ीबू टयां ह. (२०) आपः पृणीत भेषजं व थं त वे३मम. योक् च सूय शे.. (२१) हे जल! मेरे शरीर के लए रोग न करने वाली ओष धयां पूण करो. जससे म ब त समय तक सूय के दशन कर सकूं. (२१) इदमापः
वहत य कं च
रतं म य.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ाहम भ
ोह य ा शेप उतानृतम्.. (२२)
मेरे भीतर जो कुछ बुराइयां ह, मने सर के साथ जो ोह कया है, सर को जो वचन कहे ह या जो अस य भाषण कया है, हे जल! उन सबको धो डालो. (२२) आपो अ ा वचा रषं रसेन समग म ह. पय वान न आ ग ह तं मा सं सृज वचसा.. (२३) म आज नान के लए जल म वेश करता ं. म आज जल के रस से मल गया ं. हे जल म नवास करने वाली अ न! आओ और मुझे अपने तेज से भर दो. (२३) सं मा ने वचसा सृज सं जया समायुषा. व ुम अ य दे वा इ ो व ा सह ऋ ष भः.. (२४) हे अ न! मुझे तेज, संतान और आयु दो, जससे दे वगण, इं और ऋ ष-समूह मेरे य को जान सक. (२४)
सू —२४
दे वता—अ न आ द
क य नूनं कतम यामृतानां मनामहे चा दे व य नाम. को नो म ा अ दतये पुनदा पतरं च शेयं मातरं च.. (१) म दे वता म से कस ेणी के कस दे वता का सुंदर नाम पुका ं ? कौन दे वता मुझ मरने वाले को वशाल धरती पर रहने दे गा? जससे म अपने माता- पता को दे ख सकूं? (१) अ नेवयं थम यामृतानां मनामहे चा दे व य नाम. स नो म ा अ दतये पुनदा पतरं च शेयं मातरं च.. (२) म दे वता म सबसे पहले अ न का नाम पुकारता ं. वे मुझे इस वशाल धरती पर रहने दगे, जससे म अपने माता- पता को दे ख सकूं. (२) अ भ वा दे व स वतरीशानं वायाणाम्. सदाव भागमीमहे.. (३) हे सदा र ा करने वाले सूय दे व! तुम उ म धन के वामी हो, इस लए म तुमसे उपभोग करने यो य धन मांगता ं. (३) य
त इ था भगः शशमानः पुरा नदः. अ े षो ह तयोदधे.. (४)
हे सूय! तुम अपने दोन हाथ म उपभोग के यो य धन को धारण करते हो. वह सबके ारा शं सत है. उससे कोई े ष नह रखता. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भगभ
य ते वयमुदशेम तवावसा. मूधानं राय आरभे.. (५)
हे सूय दे व! तुम धन के वामी हो. य द तुम र ा करो तो हम धन क उ त करने म लग जाव. (५) न ह ते ं न सहो न म युं वय नामी पतय त आपुः. नेमा आपो अ न मषं चर तीन ये वात य मन य वम्.. (६) हे व ण दे व! आकाश म उड़ने वाले प य म भी तु हारे समान श और परा म नह है. इ ह तु हारे बराबर ोध भी नह मला है. सवदा चलने वाली वायु और बहने वाला जल तु हारी ग त से आगे नह बढ़ सकता. (६) अबु ने राजा व णो वन यो य तूपं ददते पूतद ः. नीचीनाः थु प र बु न एषाम मे अ त न हताः केतवः युः.. (७) शु बल के वामी व ण मूलर हत आकाश म ठहर कर उ म तेज के समूह को ऊपर ही ऊपर धारण करते ह. उस तेजसमूह क करण का मुख नीचे और जड़ ऊपर ह. उ ह के कारण हमम ाण थत रहते ह. (७) उ ं ह राजा व ण कार सूयाय प थाम वेतवा उ. अपदे पादा तधातवे ऽक तापव ा दया वध त्.. (८) राजा व ण ने सूय के उदय से अ त तक चलने के लए माग का व तार कया है. उसने आकाश म बना पैर वाले सूय के चलने के लए माग बनाया है. वे मेरे दय का भेदन करने वाले श ु का नाश कर. (८) शतं ते राज भषजः सह मुव गभीरा सुम त े अ तु. बाध व रे नऋ त पराचैः कृतं चदे नः मुमु य मत्.. (९) हे राजा व ण! आपक ओष धयां सैकड़ -हजार ह. आपक उ म बु व तृत और गंभीर हो. तुम हमारा अ न करने वाले पाप को हमसे र रखो. हमने जो पाप कए ह, उ ह न कर दो. (९) अमी य ऋ ा न हतास उ चा न ं द े कुह च वेयुः. अद धा न व ण य ता न वचाकश च मा न मे त.. (१०) ऊंचे आकाश म जो स त ष नामक तारे थत ह, वे रात म दखाई दे ते ह, पर दन म कहां चले जाते ह? व ण दे व के काय म कोई बाधा नह डाल सकता. व ण क आ ा से ही रात म चं मा का शत होता है. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त वा या म णा व दमान तदा शा ते यजमानो ह व भः. अहेळमानो व णेह बो यु शंस मा न आयुः मोषीः.. (११) हे व ण! यजमान ह के ारा तुमसे जस आयु क याचना करते ह, म श शाली तो के ारा तु हारी तु त करके उसी परम आयु क याचना करता ं. तुम इस वषय म लापरवाही न करके ठ क से यान दो. अग णत लोग तु हारी ाथना करते ह. तुम मुझसे मेरी आयु मत छ नो. (११) त द ं त वा म मा तदयं केतो द आ व च े. शुनःशेपो यम द्गृभीतः सो अ मात् राजा व णो मुमो ु .. (१२) क
को जानने वाले लोग ने रात म और दन म मुझसे यही कहा है. मेरे दय से उप ान भी यही सलाह दे ता है. शुनःशेप ने सूय से बंधकर जनको पुकारा था, वे ही राजा व ण हम बंधन से मु कर. (१२) शुनःशेपो द्गृभीत वा द यं पदे षु ब ः. अवैनं राजा व णः ससृ या दाँ अद धो व मुमो ु पाशान्.. (१३) लकड़ी के तीन यूप से बंधे ए शुनःशेप ने अ द त के पु व ण का आ ान कया था, इस लए व ान् एवं दयालु राजा व ण ने शुनःशेप को बंधन से छु ड़ा दया था. (१३) अव ते हेळो व ण नमो भरव य े भरीमहे ह व भः. य म यमसुर चेता राज ेनां स श थः कृता न.. (१४) हे व ण! हम नम कार करके एवं य म ह व दान करके तु हारे ोध को समा त करते ह. हे अ न का नाश करने वाले बु मान् व ण! हमारे क याण के लए इस य म नवास करो और हमारे पाप को कम करो. (१४) उ मं व ण पाशम मदवाधमं व म यमं थाय. अथा वयमा द य ते तवानागसो अ दतये याम.. (१५) हे व ण! मेरे सर म बंधे ए फंदे को ऊपर से और पैर म बंधे ए फंदे को नीचे से खोल दो तथा कमर म बंधे ए फंदे को बीच म ढ ला कर दो. हे अ द तपु व ण! हम तु हारे य म सतत संल न रहकर पापमु हो जाएंगे. (१५)
दे वता—व ण
सू —२५ य च
ते वशो यथा
दे व व ण तम्. मनीम स
व व.. (१)
हे व ण दे व! संसार के व ान् तु हारे त का अनु ान करने म जस कार भूल करते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह, उसी कार हमसे भी
त दन माद होता रहता है. (१)
मा नो वधाय ह नवे जहीळान य रीरधः. मा णान य म यवे.. (२) हे व ण! जो तु हारा अनादर करता है, तुम उसके लए घातक बन जाते हो. तुम हमारा वध मत करना. तुम हमारे ऊपर ोध मत करना. (२) व मृळ काय ते मनो रथीर ं न स दतम्. गी भव ण सीम ह.. (३) हे व ण दे व! जस कार रथ का मा लक थके ए घोड़े को व थ करता है, उसी कार हम भी तु तय ारा तु हारा मन स करते ह. (३) परा ह मे वम यवः पत त व यइ ये. वयो न वसती प.. (४) जस कार च ड़यां अपने घ सल क ओर तेजी से उड़ती ह, उसी कार हमारी ोधर हत वचारधाराएं जीवन ा त करने के लए दौड़ रही ह. (४) कदा
यं नरमा व णं करामहे. मृळ कायो च सम्.. (५)
हम श शाली नेता ले आवगे. (५)
तथा अग णत लोग पर
त द समानमाशाते वेन ता न
रखने वाले व ण को इस य म
यु छतः. धृत ताय दाशुषे.. (६)
म और व ण ह दे ने वाले यजमान पर स होकर हमारे ारा दया साधारण ह व वीकार कर लेते ह. वे कभी भी उसका याग नह करते. (६)
आ
वेदा यो वीनां पदम त र ेण पतताम्. वेद नावः समु यः.. (७) व ण आकाश म उड़ने वाले प य और सागर म चलने वाली नौका जानते ह. (७)
का माग
वेद मासो धृत तो ादश जावतः. वेदा य उपजायते.. (८) व ण उ म हमा को धारण करके समय-समय पर उ प होने वाले बारह महीन को जानते ह और तेरहव मास को भी जानते ह. (८) वेद वात य वत नमुरोऋ व य बृहतः. वेदा ये अ यासते.. (९) व ण व तार से संप , दशनीय और अ धक गुण वाली वायु का माग जानते ह. वे आकाश म नवास करने वाले दे व से भी प र चत ह. (९) न षसाद धृत तो व णः प या३ वा. सा ा याय सु तुः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त धारण करने वाले एवं उ म कम करने वाले व ण दै वी जा के लए आकर बैठे थे. (१०)
पर सा ा य करने
अतो व ा य ता च क वाँ अ भ प य त. कृता न या च क वा.. (११) बु मान् मनु य व ण क अनुकंपा से वतमान काल और भ व यत् काल क सारी आ यजनक घटना को दे ख लेते ह. (११) स नो व ाहा सु तुरा द यः सुपथा करत्.
ण आयूं ष ता रषत्.. (१२)
शोभन बु वाले वे ही अ द तपु व ण हम सदा उ म माग पर चलने वाला बनाव एवं हमारी आयु को बढ़ाव. (१२) ब द् ा प हर ययं व णो व त न णजम्. प र पशो न षे दरे.. (१३) व ण सोने का कवच धारण करके अपने ब ल शरीर को ढकते ह. उसके चार ओर सुनहरी करण फैलती ह. (१३) न यं द स त द सवो न ह्वाणो जनानाम्. न दे वम भमातयः.. (१४) हसा करने वाले लोग भयभीत होकर व ण क श ुता छोड़ दे ते ह. मनु य को पीड़ा प ंचाने वाले लोग उ ह पीड़ा नह प ंचाते. पाप करने वाले लोग उनके त पाप का आचरण याग दे ते ह. (१४) उत यो मानुषे वा यश
े असा या. अ माकमुदरे वा.. (१५)
व ण ने मनु य क उदरपू त के लए पया त अ हमारी उदरपू त करते ह. (१५) परा मे य त धीतयो गावो न ग ूतीरनु. इ छ ती
पैदा कया है. वे वशेष
प से
च सम्.. (१६)
ब त से लोग ने व ण के दशन कए ह. जस कार गाएं गोशाला क ओर जाती ह, उसी कार कभी पीछे न लौटने वाली मेरी वचारधारा व ण क ओर अ सर होती है. (१६) सं नु वोचावहै पुनयतो मे म वाभृतम्. होतेव दसे
यम्.. (१७)
हे व ण! मधुर रस वाला मेरा ह तैयार है. तुम होता के समान उस ह करो. इसके प ात् हम लोग आपस म बात करगे. (१७) दश नु व दशनं दश रथम ध
का भ ण
म. एता जुषत मे गरः.. (१८)
सब लोग जन व ण के दशन करते ह, उ ह मने दे खा है. मने कई बार धरती पर चलता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ उनका रथ दे खा है. व ण ने मेरी ाथना वीकार क है. (१८) इमं मे व ण ुधी हवम ा च मृळय. वामव युरा चके.. (१९) हे व ण दे व! आज मेरी पुकार सुनो. आज मुझे सुख दान करो. म अपनी र ा क इ छा से तु ह बुला रहा ं. (१९) वं व
य मे धर दव
म राज स. स याम न
त ु ध.. (२०)
हे बु मान् व ण! आकाश, धरती एवं सम त संसार म तु हारा काश फैला आ है. तुम हमारी ाथना सुनकर हमारी र ा करने का वचन दो. (२०) उ
मं मुमु ध नो व पाशं म यमं चृत. अवाधमा न जीवसे.. (२१)
हमारे सर वाले फंदे को ऊपर से और कमर के फंद को बीच से खोल दो, जससे हम जीवन धारण कर सक. (२१)
सू —२६
दे वता—अ न
व स वा ह मये य व ा यूजा पते. सेमं नो अ वरं यज.. (१) हे अ न दे व! तुम य के यो य एवं अ और हमारे इस य को पूरा करो. (१)
के पालक हो. तुम अपना तेज धारण करो
न नो होता वरे यः सदा य व म म भः. अ ने द व मता वचः.. (२) हे अ न! तुम सदा युवा, कमनीय एवं तेज वी हो. हम य ानपूण वा य से तु हारी तु त कर रहे ह. तुम यहां बैठो. (२)
संप
करने वाले एवं
आ ह मा सूनवे पता पयज यापये. सखा स ये वरे यः.. (३) हे े अ न! जस कार पता पु को, भाई भाई को और म व तुएं दे ता है, उसी कार तुम भी मुझे इ छत व तुएं दो. (३)
म को अभी
आ नो बह रशादसो व णो म ो अयमा. सीद तु मनुषो यथा.. (४) हे अ न दे व! श ु का नाश करने वाले म , व ण और अयमा जस कार मनु के य म आए थे, उसी कार तुम भी हमारे य म बछे ए कुश पर बैठो. (४) पू
होतर य नो म द व स य य च. इमा उ षु ुधी गरः.. (५)
हे पूवज एवं य संप क ा अ न! हमारे इस य और हमारी म ता से तुम स हो ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाओ. हमारे इन तु त-वचन को सुनो. (५) य च
श ता तना दे व दे वं यजामहे. वे इद्धूयते ह वः.. (६)
य प न य एवं व तृत ह ारा हम भ - भ दे वता व ण! वह भी तु ह ही ा त होता है. (६) यो नो अ तु व प तह ता म ो वरे यः. जापालक, य संपादक, स और अ न के सहयोग से उनके य बन. (७)
का पूजन करते ह, पर हे
याः व नयो वयम्.. (७)
े अ न हमारे लए
य ह . हम भी शोभन
व नयो ह वाय दे वासो द धरे च नः. व नयो मनामहे.. (८) शोभन अ न से यु एवं तेज वी ऋ वज ने हमारे उ म इस लए हम शोभन अ न के समीप प ंचकर याचना करते ह. (८)
को धारण कया है,
अथा न उभयेषाममृत म यानाम्. मथः स तु श तयः.. (९) हे अ न! तुम अमर हो और हम मनु य मरणधमा ह. हम लोग एक- सरे क कर. (९)
शंसा
व े भर ने अ न भ रमं य मदं वचः. चनो धाः सहसो यहो.. (१०) हे बल के पु अ न! तुम सब अ नय के साथ आकर हमारा यह य तु तयां वीकार करके हम अ दो. (१०)
सू —२७
और हमारी
दे वता—अ न
अ ं न वा वारव तं व द या अ नं नमो भः. स ाज तम वराणाम्.. (१) हे अ न दे व! तुम य के स ाट् एवं पूंछ वाले घोड़े के समान हो. हम तु तय के ारा तु हारी वंदना करते ह. (१) स घा नः सूनुः शवसा पृथु गामा सुशेवः. मीढ् वाँ अ माकं बभूयात्.. (२) अ न श के पु और शी गमन करने वाले ह, वे हमारे ऊपर स होकर हम सुख द और हमारी अ भलाषा क वषा कर. (२) स नो रा चासा च न म यादघायोः. पा ह सद म
ायुः.. (३)
हे अ न! तुम सव गमन करने म समथ हो. तुम हमारा अ न करने वाले पापाचारी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मनु य से र एवं समीप दे श म हमारी र ा करो. (३) इममू षु वम माकं स न गाय ं न ांसम्. अ ने दे वेषु
वोचः.. (४)
हे अ न! इस य म उप थत ह व और नवीनतम गाय ी छं द म र चत तो के वषय म दे व को बताना. (४) आ नो भज परमे वा वाजेषु म यमेषु. श ा व वो अ तम य.. (५) हे अ न! हम द लोक तथा अंत र लोक का अ सब ओर से ा त कराओ. तुम हम भूलोक संबंधी धन भी दान करो. (५) वभ ा स च भानो स धो मा उपाक आ. स ो दाशुषे र स.. (६) हे वल ण काश वाले अ न दे व! जस कार सधु क लहर जल को सभी पवत , ना लय आ द म भर दे ती ह, उसी कार तुम भी लोग म धन का वभाग करने वाले हो. दे ने वाले यजमान को तुम कम का फल शी दो. (६) यम ने पृ सु म यमवा वाजेषु यं जुनाः. स य ता श ती रषः.. (७) यु
हे अ न दे व! यु े म तुम जस मनु य क र ा करते हो और तु हारी ेरणा से जो े म जाता है, वह न य ही अ ा त करता रहेगा. (७) न कर य सह य पयता कय य चत्. वाजो अ त वा यः.. (८)
हे अ न दे व! तुम श ु का दमन करने वाले हो. तु हारे भ यजमान पर कोई आ मण नह कर सकता, य क उसके पास वशेष कार क श है. (८) स वाजं व चष णरव
र तु. त ता व े भर तु स नता.. (९)
सारे मनु य अ न क पूजा करते ह. उसने घोड़ क सहायता से हम यु दलाई है. वह बु मान् ऋ वज को य कम का फल दे ने वाला हो. (९) जराबोध त
वड् ढ वशे वशे य याय. तोमं
म सफलता
ाय शीकम्.. (१०)
हे अ न दे व! हम ाथना के ारा तु ह जगाते ह. तुम भ भ यजमान पर कृपा करके य का अनु ान पूण करने के लए य म आओ. तुम ू र हो. यजमान सुंदर तो से तु हारी तु त करते ह. (१०) स नो महाँ अ नमानो धूमकेतुः पु
ः. धये वाजाय ह वतु.. (११)
अ न दे व सीमार हत धूमकेतु वाले तथा महान् ह. उनक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो त वशाल है. वह हमारे
य और अ के लए स ह . (११) स रेवाँ इव व प तद ः केतुः शृणोतु नः. उ थैर नबृह ानुः.. (१२) अ न जापालक, दे वता के होता, त के समान दे वता तु त सुनने वाले ह. उसी कार अ न हमारी तु त सुन. (१२)
का ापन करने वाले एवं
नमो महद् यो नमो अभके यो नमो युव यो नम आ शने यः. यजाम दे वा य द श कवाम मा यायसः शंसमा वृ दे वाः.. (१३) बड़े, बालक, युवा एवं वृ सभी दे वता को हम नम कार करते ह. य द संभव होगा तो हम दे वता क पूजा करगे. हम कह व श गुणसंप दे व क तु त करना न छोड़ द. (१३)
सू —२८
दे वता—इं आ द
य ावा पृथुबु न ऊ व भव त सोतवे. उलूखलसुतानामवे ज गुलः.. (१) हे इं ! जस य म सोमरस नचोड़ने के लए भारी जड़ वाला प थर उठाया जाता है और ओखली क सहायता से सोमरस तैयार कया जाता है, वहां सोमरस अपना जानकर पओ. (१) य ा वव जघना धषव या कृता. उलूखलसुतानामवे ज गुलः.. (२) हे इं ! जस य म सोमलता को नचोड़ने के लए दोन फलक जांघ के समान फैल गए ह, उसी य म ओखली ारा तैयार कया आ सोमरस अपना जानकर पओ. (२) य नायप यवमुप यवं च श ते. उलूखलसुतानामवे ज गुलः.. (३) हे इं ! जस य म यजमान क प नयां भीतर घुसती और बाहर नकलती रहती ह, उसी य म ओखली ारा तैयार कया आ सोमरस अपना जानकर पओ. (३) य म थां वब नते र मी य मतवा इव. उलूखलसुतानामवे ज गुलः.. (४) हे इं ! जस य म सोमलता मंथन करने का दं ड घोड़े क लगाम के समान बांधा जाता है, उसी य म ओखली ारा तैयार कया आ सोमरस अपना जानकर पओ. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य च वं गृहेगृह उलूखलक यु यसे. इह ुम मं वद जयता मव भः.. (५) हे ऊखल! य प घर-घर म तु हारा योग कया जाता है, पर इस य कार व न करते हो, जस कार वजयी लोग ं भी बजाते ह. (५)
म तुम उसी
उत म ते वन पते वातो व वा य मत्. अथो इ ाय पातवे सुनु सोममुलूखल.. (६) हे ऊखल प का ! तु हारे ही सामने होकर हवा चलती है, इस लए हे ऊखल! इं दे वता के पान के लए सोमरस तैयार करो. (६) आयजी वाजसातमा ता १ चा वजभृतः. हरी इवा धां स ब सता.. (७) हे ऊखल और मूसल! तुम दोन सभी कार य के साधन एवं भूत अ दे ने वाले हो. जस कार इं के दोन घोड़े अपना खा चना आ द चबाते समय व न करते ह, उसी कार तुम भी तुमुल व न के साथ पर पर हार करते हो. (७) ता नो अ वन पती ऋ वावृ वे भः सोतृ भः. इ ाय मधुम सुतम्.. (८) हे ऊखल और मूसल प दोन का ो! तुम दोन दे खने म परम सुंदर हो. शोभन अ भनव मं के सहयोग से तुम दोन इं के लए मधुर सोमरस तैयार करो. (८) उ छ ं च वोभर सोमं प व आ सृज. न धे ह गोर ध व च.. (९) सोमरस नचोड़ने वाले फलक से बचे ए सोम को उठाकर प व कुश के ऊपर रखो. इसके बाद उसे गोचम से बनाए ए पा म रखो. (९)
सू —२९
दे वता—इं
य च स य सोमपा अनाश ता इव म स. आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (१) हे इं ! तुम सोमपानक ा एवं स यवाद हो. हम कोई स नह ह. हे अनंत धनशाली इं ! हम सुंदर और अग णत गाय और अ ारा उ म धनवान् बनाओ. (१) श वाजानां पते शचीव तव दं सना. आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे श शाली, सुंदर ठोड़ी वाले एवं अ के पालक इं ! हम पर सदा तु हारा अनु ह रहे. हे अनंत धनशाली इं ! हम सुंदर और अग णत गाय तथा अ ारा उ म धनवान् बनाओ. (२) न वापया मथू शा स तामबु यमाने. आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (३) तुम पर पर मलकर दे खने वाली यम तय को भली-भां त सुला दो. वे सदा बेहोश रह, कभी न जाग. हे अनंत धनशाली इं ! हम सुंदर और अग णत गाय तथा अ ारा उ म धनवान् बनाओ. (३) सस तु या अरातयो बोध तु शूर रातयः. आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (४) हे शूर! हमारे श ु असावधान रह और हमारे म सावधान रह. अनंत धनशाली इं ! हम सुंदर और अग णत गाय तथा अ ारा उ म धनवान् बनाओ. (४) स म गदभं मृण नुव तं पापयामुया. आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (५) हे इं ! यह गधे के प वाला हमारा बैरी नदा पी वचन से आपक बदनामी कर रहा है. इसे मार डालो. हे अनंत धनशाली इं ! हम सुंदर और अग णत गाय तथा अ ारा उ म धनवान् बनाओ. (५) पता त कु डृ णा या रं वातो वनाद ध. आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (६) हमारे तकूल वायु कु टल ग त से चलती ई वन से र चली जाए. हे अनंत धनशाली इं ! हम सुंदर और अग णत गाय तथा अ ारा धनवान् बनाओ. (६) सव प र ोशं ज ह ज भया कृकदा म्. आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (७) तुम हमारे त ोध करने वाल का नाश करो, हमारी हसा करने वाल को मार डालो. हे अनंत धनशाली इं ! हम सुंदर और अग णत गाय तथा अ ारा उ म धनवान् बनाओ. (७)
सू —३०
दे वता—इं
आवइ ं व यथा वाजय तः शत तुम्. मं ह ं स च इ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भः.. (१)
हे यजमानो एवं ऋ वजो! जस कार कुएं को जल से भर दे ते ह, उसी कार हम अ क इ छा से हजार य करने वाले एवं महान् इं को सोमरस से स च दे ते ह. (१) शतं वा यः शुचीनां सह ं वा समा शराम्. ए
न नं न रीयते.. (२)
जस कार पानी अपने आप नीचे क ओर बहता है, उसी कार इं सैकड़ सं या वाले वशु सोमरस एवं हजार सं या वाले आशीर म त सोमरस के समीप आते ह. (२) सं य मदाय शु मण एना
योदरे. समु ो न
चो दधे.. (३)
पहले बताया आ सोमरस बलशाली इं को स करने के लए एक त आ है. इसके ारा इं का सागर के समान व तृत उदर भर जाता है. (३) अयमु ते समत स कपोत इव गभ धम्. वच त च ओहसे.. (४) हे इं ! जस कार कबूतर गभ धारण करने क इ छु क कबूतरी को ा त करता है, उसी कार तुम अपने इस सोमरस को हण करो. इसी सोमरस के कारण हमारी ाथनाएं भी वीकार करो. (४) तो ं राधानां पते गवाहो वीर य य ते. वभू तर तु सुनृता.. (५) हे धन के र क एवं उ म वचन ारा तु त कए गए वीर इं ! हम तु हारी तु त करते ह. यह तु त तु हारी वभू त से संप एवं स य हो. (५) ऊ व त ा न ऊतये म वाजे शत तो. सम येषु वावहै.. (६) हे सौ य करने वाले इं ! इस सं ाम म हमारी र ा करने के लए त पर रहो. सरे काय के वषय म हम और तुम मलकर बातचीत करगे. (६) योगेयोगे तव तरं वाजेवाजे हवामहे. सखाय इ मूतये.. (७) हम येक य के आरंभ म एवं अपने य म व न डालने वाले व भ सं ाम म परम श शाली इं को अपनी र ा के लए उसी कार बुलाते ह, जस कार कोई अपने म को बुलाता है. (७) आ घा गम द व सह णी भ
त भः. वाजे भ प नो हवम्.. (८)
इं य द हमारी पुकार सुनगे तो यह न य है क वे हजार पालनश साथ हमारे नकट आवगे. (८) अनु
न यौकसो वे तु व त नरम्. यं ते पूव पता वे.. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य एवं अ
के
इं ब त से यजमान के पास जाते ह. म उनके ाचीन नवास थान वग से उ ह बुलाता ं. इससे पूव मेरे पता भी उ ह बुला चुके ह. (९) तं वा वयं व वारा शा महे पु
त. सखे वसो ज रतृ यः.. (१०)
हे सबके य इं ! अग णत लोग तु ह अपने य म बुलाते ह. तु ह सब म के समान ेम करते ह. तुम सबको वग म थान दे ते हो. म ाथना करता ं क तुम तु त करने वाल पर कृपा करो. (१०) अ माकं श णीनां सोमपाः सोमपा वाम्. सखे व
सखीनाम्.. (११)
हे सोमरस पीने वाले इं ! तुम सबके म और व धारी हो. हम तु हारे म और सोमपान करने वाले ह. तुम हमारी लंबी नाक वाली गाय क वृ करो. (११) तथा तद तु सोमपाः सखे व
तथा कृणु. यथा त उ मसी ये.. (१२)
हे इं ! तुम सोमरस पीने वाले, सबके म और व धारी हो. तुम इस कार के काय करो क हम अपनी अ भल षत व तुएं पाने के लए तु ह ेम कर. (१२) रेवतीनः सधमाद इ े स तु तु ववाजाः. ुम तो या भमदे म.. (१३) श
जब इं हमारे ऊपर स हो जाएंगे तो हमारी गाएं अ धक ध दे ने वाली एवं संप बनगी. उन गाय से भोजन ा त करके हम स ह गे. (१३) आ घ वावा मना तः तोतृ यो धृ ण वयानः. ऋणोर ं न च योः.. (१४)
हे साहसी इं ! तु हारी कृपा से हम तु हारे ही समान कोई दे वता अनायास मल जाएगा. हम उसक तु त करगे, उससे मांगगे, तो वह अव य ही हम मनचाही संप दे गा. जस कार घोड़े रथ के दोन प हय के अर को घुमाते ह, उसी कार वे धन को हमारी ओर े रत करगे. (१४) आ य वः शत तवा कामं ज रतॄणाम्. ऋणोर ं न शची भः.. (१५) हे सौ य करने वाले इं ! जस कार गाड़ी के आगे बढ़ने से प हय के अरे अपने आप घूमते ह, उसी कार हम तु त करने वाल को इ छानुसार धन दो. (१५) श द ः पो ुथ जगाय नानद ः शा स धना न. स नो हर यरथं दं सनावा स नः स नता सनये स नोऽदात्.. (१६) घास खा लेने के प ात् इं के घोड़े श द करते ए हन हनाते ह और जोरजोर से सांस लेते ह. इं ने उ ह क सहायता से सदा श ु क संप को जीता है. इं कमपरायण एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दाता ह. उ ह ने हम सोने का रथ दया है. (१६) आ नाव ाव येषा यातं शवीरया. गोम
ा हर यवत्.. (१७)
हे अ नीकुमारो! तुम ब त से घोड़ ारा ढोया आ अ लेकर आओ. हे श ुनाशक! हमारा घर ब त सी गाय और सोने से भरा हो. (१७) समानयोजनो ह वां रथो द ावम यः. समु े अ नेयते.. (१८) हे श ुनाशक अ नीकुमारो! तुम दोन के लए एक ही अ वनाशी रथ तैयार कया गया है. वह रथ समु और आकाश म भी चल सकता है. (१८) य१ य य मूध न च ं रथ य येमथुः. प र ाम यद यते.. (१९) हे अ नीकुमारो! तुमने श ु का वनाश करने के लए अपने रथ का एक प हया थर पवत के ऊपर जमाया है और सरा आकाश म चार ओर घूम रहा है. (१९) क त उषः कध ये भुजे मत अम य. कं न से वभाव र.. (२०) हे अमर उषा! तु ह तु त ब त यारी लगती है. कोई भी मनु य तु हारा उपभोग करने म समथ नह है. हे वशेष भावशा लनी! तुम कस पु ष को ा त होगी? (२०) वयं ह ते अम म ाऽ तादा पराकात्. अ े न च े अ ष.. (२१) हे व तृत एवं रंग बरंगे काश वाली उषा! हम तु ह न र से समझ सकते ह और न पास से. (२१) वं ये भरा ग ह वाजे भ हत दवः. अ मे र य न धारय.. (२२) हे आकाश क पु ी उषा! तुम
सू —३१
स
अ
के साथ आओ और हम धन दो. (२२)
दे वता—अ न
वम ने थमो अ रा ऋ षदवो दे वानामभवः शवः सखा. तव ते कवयो व नापसोऽजाय त म तो ाज यः.. (१) हे अ न! तुम अं गरा गो वाले ऋ षय के आ द ऋ ष थे. तुम वयं दे व थे एवं अ य दे व के क याणकारक म थे. तु हारे कम के कारण ही म द्गण ने ज म लया जो अपना कम जानते ह और जनके श चमक ले ह. (१) वम ने थमो अ र तमः क वदवानां प र भूष स तम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वभु व
मै भुवनाय मे धरो
माता शयुः क तधा चदायवे.. (२)
हे अ न! तुम अं गरा गो वाले ऋ षय म थम एवं सव े हो. तुम बु मान् हो और दे व के य को सुशो भत करते हो. तुम सारे संसार पर अनु ह के लए अनेक प से ा त हो. तुम मेधावी एवं दो लक ड़य से उ प हो. मनु य का क याण करने के लए तुम भ भ प म सब जगह रहते हो. (२) वम ने थमो मात र न आ वभव सु तूया वव वते. अरेजेतां रोदसी होतृवूयऽस नोभारमयजो महो वसो.. (३) हे अ न! तुम वायु क अपे ा मुख हो और यजमान के नकट सुंदर य को पूण करने क इ छा से कट हो जाओ. तु हारी साम य दे खकर धरती और आकाश कांप उठते ह. तुमने े होता के प म य का काय वीकार कया है. तु हारे य म नवास के कारण पू य दे वता के य पूण ए ह. (३) वम ने मनवे ामवाशयः पु रवसे सुकृते सुकृ रः. ा ेण य प ोमु यसे पया वा पूवमनय ापरं पुनः.. (४) हे अ न! तुमने मनु पर अनु ह करके यह बताया था क कन कम से वग मलता है. तुमने अपने सेवक पु रवा को शोभन फल दया. दोन का तु हारे माता- पता ह. उनके घषण से तुम उ प होते हो. ऋ वज् तु ह पहले वेद के पूव भाग म ले जाते ह, बाद म प म भाग म. (४) वम ने वृषभः पु वधन उ त ुचे भव स वा यः. य आ त प र वेदा वषट् कृ तमेकायुर े वश आ ववास स.. (५) हे अ न! तुम अ भलाषा को पूण करने वाले हो एवं यजमान को धन आ द से पु करते हो. हे एकमा अ दाता! जो यजमान य पा उठाते ए तु हारा यश गाता है एवं वषट् कार श द के साथ तु ह आ त दे ता है, तुम उसे पहले काश दे ते हो, उसके बाद सारे संसार को. (५) वम ने वृ जनवत न नरं स म पप ष वदथे वचषणे. यः शूरसाता प रत ये धने द े भ समृता हं स भूयसः.. (६) हे व श ानसंप अ न! तुम सदाचारहीन मनु य को ऐसे काम म लगाते हो, जससे उसका उ ार हो सके. जब व तृत यु चार ओर भली-भां त आरंभ हो जाता है तो तु हारी कृपा से थोड़ी सं या वाले एवं वीरताशू य लोग बड़े-बड़े वीर का वध कर डालते ह. (६) वं तम ने अमृत व उ मे मत दधा स वसे दवे दवे. य तातृषाण उभयाय ज मने मयः कृणो ष य आ च सूरये.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! जो मनु य तु हारी सेवा करता है, उसके लए तुम अ दान करने हेतु उ म और थायी पद पर त त कर दे ते हो. जो यजमान मनु य एवं पशु को ा त करने के लए अ यंत उ सुक है, उस बु मान् यजमान को तुम सुख और अ दो. (७) वं नो अ ने सनये धनानां यशसं का ं कृणु ह तवानः. ऋ याम कमापसा नवेन दे वै ावापृ थवी ावतं नः.. (८) हे अ न! हम तु हारी तु त करते ह. तुम हम धन एवं यश दे ने वाला तथा य कम करने वाला पु दान करो. तु हारे ारा दए गए नवीन पु से हम परा म म उ त करगे. हे धरती और आकाश! तुम अ य दे व के साथ मलकर हमारी ठ क से र ा करो. (८) वं नो अ ने प ो प थ आ दे वो दे वे वनव जागृ व. तनूकृ ो ध म त कारवे वं क याण वसु व मो पषे.. (९) हे दोषर हत अ न! तुम सब दे व क अपे ा जाग क हो. तुम अपने माता- पता धरती-आकाश के पास रहकर अनु ह के प म हम पु दो एवं य क ा यजमान के त स च रहो. हे क याणकारक! तुम यजमान के लए सभी कार क संप दान करो. (९) वम ने म त वं पता स न वं वय कृ व जामयो वयम्. सं वा रायः श तनः सं सह णः सुवीरं य त तपामदा य.. (१०) हे अ न! तुम हम पर अनु ह बु रखते हो. तुम हमारे पालक हो. तुम हम द घ जीवन दे ते हो. हम तु हारे बंधु ह. कोई तु हारी हसा नह कर सकता, य क तुम शोभन पु ष से यु एवं य के पालन करनेवाले हो. तु ह सैकड़ एवं हजार कार क संप यां भली कार ा त ह. (१०) वाम ने थममायुमायवे दे वा अकृ व ष य व प तम्. इळामकृ व मनुष य शासन पतुय पु ो ममक य जायते.. (११) हे अ न! तु ह दे व ने ाचीन काल म मनु य पधारी न ष व मानव शरीर वाला सेनाप त बनाया था. जस समय तुमने मेरे पता अं गरा ऋ ष के पु के प म ज म लया था, उसी समय दे व ने इला को मनु क धम पदे शक बनाया. (११) वं नो अ ने तव दे व पायु भमघोनो र त व व . ाता तोक य तनये गवाम य नमेषं र माण तव ते.. (१२) हे वंदनीय अ न! तुम अपनी र णश ारा हम धनवान एवं हमारे पु के शरीर क र ा करो. हमारे पौ तु हारे य म सदा लगे रहते ह. तुम उनक गाय क र ा करो. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वम ने य यवे पायुर तरोऽ नष ाय चतुर इ यसे. यो रातह ोऽवृकाय धायसे क रे म ं मनसा वनो ष तम्.. (१३) हे अ न! तुम यजमान क र ा करते हो. तुम रा स क बाधा से य को मु करने के लए य के समीप रहकर चार ओर का शत होते हो. तुम हसा नह करते, अ पतु पोषण करते हो. जो तु तगानक ा तु ह दे ता है, तुम उसक तु त को मन से चाहते हो. (१३) वम न उ शंसाय वाघते पाह य े णः परमं वनो ष तत्. आ य च म त यसे पता पाकं शा स दशो व
रः.. (१४)
हे अ न दे व! तुम ऐसी कामना करो क तु हारी तु त करने वाला ऋ वज् मनचाहा, अनंत धन ा त करे. व ान् लोग कहते ह क तुम बल यजमान का पालन करने के लए स च पता के समान हो. तुम अ यंत ानवान् हो. तुम अबोध बालक के समान यजमान को ान दो और दशा का बोध कराओ. (१४) वम ने यतद णं नरं वमव यूतं प र पा स व तः. वा ा यो वसतौ योनकृ जीवयाजं यजते सोपमा दवः.. (१५) हे अ न! जस यजमान ने ऋ वज को द णा द है, उसक तुम चार ओर से उसी कार र ा करो, जस कार सला आ कवच शरीर क र ा करता है. जो यजमान अ त थय को वा द अ खलाकर सुखी करता है एवं अपने घर म ा णय से य करवाता है, वह वग के समान सुखकारी होता है. (१५) इमाम ने शर ण मीमृषो न इमम वानं यमगाम रात्. आ पः पता म तः सो यानां भृ मर यृ षकृ म यानाम्.. (१६) हे अ न! हमने जो तु हारे य का लोप कया, उस भूल को मा करो. हम तु हारी अ नहो पी सेवा को छोड़कर जो रवत माग म चले आए ह, इस भूल को भी मा करो. तुम सोमयाग करने वाले मनु य को सरलता से ा त हो जाते हो. तुम उनके पता के समान, परम मननशील एवं य पूरा करने वाले हो. तुम उ ह य प से दशन दो. (१६) मनु वद ने अ र वद रो यया तव सदने पूवव छु चे. अ छ या ा वहा दै ं जनमा सादय ब ह ष य च यम्.. (१७) हे प व अ न! तुम ह व हण करने के लए भ - भ थान पर जाते हो. तुम जस कार मनु, अं गरा, यया त आ द पूव पु ष के य म जाते थे, उसी कार हमारे य म भी सामने क ओर से आओ, दे व को अपने साथ लाकर कुश पर बैठाओ और उ ह य दो. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एतेना ने णा वावृध व श वा य े चकृमा वदा वा. उत णे य भ व यो अ मा सं नः सृज सुम या वाजव या.. (१८) हे अ न! तुम हमारी इस तु त से वृ ा त करो. हमने अपनी श और बु के अनुसार तु हारी तु त क है. इस तु त के कारण तुम हम भूत संप दो तथा अ के साथ-साथ शोभन बु भी दान करो. (१८)
सू —३२
दे वता—इं
इ य नु वीया ण वोचं या न चकार थमा न व ी. अह हम वप ततद व णा अ भन पवतानाम्.. (१) म व धारी इं के पूवकृत परा म का वणन करता ं. उसने मेघ का वध कया. इसके प ात् जल को धरती पर गराया. इसके बाद बहती ई पहाड़ी न दय का माग बदल दया. (१) अह ह पवते श याणं व ा मै व ं वय तत . वा ा इव धेनवः य दमाना अ ः समु मव ज मुरापः.. (२) इं ने पवत पर आ य लेने वाले मेघ का वध कया. व ा ने इं के लए भली कार फका जाने वाला व बनाया. इसके बाद जल क वेगवती धाराएं उसी कार समु क ओर गई थ , जस कार रंभाती ई गाएं बछड़ वाले घर क ओर जाती ह. (२) वृषायमाणोऽवृणीत सोमं क के व पब सुत य. आ सायकं मघवाद व मह ेनं थमजामहीनाम्.. (३) इं ने बैल के समान तेजी से सोम हण कया. यो त ोम, गोमेध और आयु इन व वध य म चुआया आ सोमरस इं ने पया. धन के वामी इं ने व पी बाण हण करके सव थम उ प मेघ का वध कया था. (३) य द ाह थमजामहीनामा मा यनाम मनाः ोत मायाः. आ सूय जनय ामुषासं ताद ना श ुं न कला व व से.. (४) हे इं ! जब तुमने थम उ प मेघ का वध कया था, तभी मायाधा रय क माया भी समा त कर द थी. इसके प ात् तुमने सूय, आकाश एवं उषा को का शत कया था. इसके बाद तु हारा कोई श ु दखाई नह दया. (४) अह वृ ं वृ तरं ंस म ो व ेण महता वधेन. क धांसीव कु लशेना ववृ णाऽ हः शयत उपपृ पृ थ ाः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ने संसार म अंधकार फैलाने वाले श ु को महा वनाशकारी व ारा हाथ काटकर मारा था. जस कार कु हाड़ी से काट ई शाखा गर पड़ती है, उसी कार वृ धरती पर सोया आ था. (५) अयो े व मद आ ह जु े महावीरं तु वबाधमृजीषम्. नातारीद य समृ त वधानां सं जानाः प पष इ श ुः.. (६) अहंकारी वृ ने यह समझकर इं को ललकारा क मेरे समान कोई यो ा है ही नह . इं महान् परा मी, ब त का वंस करने वाले एवं श ु वजयी ह. वृ इं के वनाश से बच नह सका. इं के श ु वृ ने गरते समय न दय के कनारे भी न कर दए. (६) अपादह तो अपृत य द मा य व म ध सानौ जघान. वृ णो व ः तमानं बुभूष पु ा वृ ो अशयद् तः.. (७) बना हाथपैर वाले वृ ने इं को यु म ललकारा. इं ने पहाड़ क चोट के समान वृ के पु कंधे म व मारा. जस कार श शाली पु ष क समानता करने वाले बलहीन का य न थ जाता है, वही दशा वृ क ई. वह कई जगह घायल होकर धरती पर गर पड़ा. (७) नदं न भ ममुया शयानं मनो हाणा अ त य यापः. या द् वृ ो म हना पय त ासाम हः प सुतः शीबभूव.. (८) सुंदर जल धरती पर पड़े ए वृ को लांघकर उसी कार आगे जा रहा है, जस कार स रता टू टे ए कनार को पार करके बहती है. वह जी वत अव था म अपनी श से जस जल को रोके ए था, इस समय वह उसी जल के नीचे सो गया है. (८) नीचावया अभवद् वृ पु े ो अ या अव वधजभार. उ रा सूरधरः पु आसीद्दानुः शये सहव सा न धेनुः.. (९) वृ क माता वृ को इं के हार से बचाने के लए तरछ होकर उसके शरीर पर गर पड़ी. इं ने वृ क माता के नीचे के भाग पर व मारा. उस समय माता ऊपर और पु नीचे था. जस कार गाय अपने बछड़े के साथ सो जाती है, उसी कार वृ क माता दनु सदा के लए सो गई. (९) अ त तीनाम नवेशनानां का ानां म ये न हतं शरीरम्. वृ य न यं व चर यापो द घ तम आशय द श ुः.. (१०) एक थान पर न कने वाले जल म डू बकर वृ का शरीर नाममा को भी दखाई नह दे रहा है. इं से बैर करने वाला वृ चर न ा म लीन है और जल उसके ऊपर होकर बह रहा है. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दासप नीर हगोपा अ त ा आपः प णनेव गावः. अपां बलम प हतं यदासीद् वृ ं जघ वाँ अप त वार.. (११) जस कार प ण नामक असुर ने गाय को गुफा म बंद कर दया था, उसी कार वृ ारा र त उसक जल पी प नयां भी न थ . जल बहने का माग भी का आ था. इं ने वृ को मारकर वह ार खोला. (११) अ ो वारो अभव त द सृके य वा यह दे व एकः. अजयो गा अजयः शूर सोममवासृजः सतवे स त स धून्.. (१२) हे इं ! सभी आयुध के हार म अ तीय वृ ने जब तु हारे व के ऊपर हार कया था, उस समय तुम घोड़े क पूंछ के समान घूम कर उसे बचा गए थे. हे शूर! तुमने प ण ारा पवत गुफा म छपाई ई गाय को जीता तथा सोम को भी जीत लया. तुमने सात न दय का वाह बाधाहीन कर दया. (१२) ना मै व ु त यतुः सषेध न यां महम करद्धा न च. इ य ुयध ु ाते अ ह ोतापरी यो मघवा व ज ये.. (१३) जस समय इं और वृ पर पर यु कर रहे थे, उस समय वृ ने माया से जस बजली, मेघगजन, जलवषा और अश न का योग कया था, वे इं को नह रोक सके. इसके साथ ही इं ने वृ क अ य माया को भी जीत लया. (१३) अहेयातारं कमप य इ द य े ज नुषो भीरग छत्. नव च य व त च व तीः येनो न भीतो अतरो रजां स.. (१४) हे इं ! वृ को मारते समय तु हारे मन म कोई भी भय नह आ. उस समय तुमने सहायक प म कसी भी वृ हंता को नह दे खा था. तुम नडर बाज प ी के समान शी ता से न यानवे न दय को पार कर गए थे. (१४) इ ो यातोऽव सत य राजा शम य च शृ णो व बा ः. से राजा य त चषणीनामरा ने मः प र ता बभूव.. (१५) वृ को मारकर व धारी इं थावर, जंगम, स ग र हत और स ग वाले पशु के वामी बने. इं मनु य के भी राजा बने. जस कार प हए के अरे ने म म थत रहते ह, उसी कार इं ने सबको धारण कया. (१५)
सू —३३ एतायामोप ग
दे वता—इं त इ म माकं सु म त वावृधा त.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अनामृणः कु वदाद य रायो गवां केतं परमावजते नः.. (१) हम प ण असुर ारा रोक हसार हत ह एवं हमारी उ म बु हम उ म ान दे ते ह. (१)
ई गाय को पाने क इ छा से इं के पास चल. इं को बढ़ाते ह. इसके बाद वे इस गो प धन के वषय म
उपेदहं धनदाम तीतं जु ां न येनो वस त पता म. इ ं नम य ुपमे भरकयः तोतृ यो ह ो अ त यामन्.. (२) जस कार बाज अपने घ सले क ओर तेजी से जाता है, उसी कार म उ म तु तय ारा पूजन करके धनदाता एवं अपराजेय इं क ओर दौड़ता ं. श ु के साथ यु छड़ने पर तोतागण इं का आ ान करते ह. (२) न सवसेन इषुध रस समय गा अज त य य व . चो कूयमाण इ भू र वामं मा प णभूर मद ध वृ .. (३) सम त सेना से यु इं पीठ पर तरकस लगाए ए ह. सबके वामी इं जसे चाहते ह, उसी क गाय प ण से छु ड़ाकर उसके पास भेज दे ते ह. हे उ म बु संप इं ! हम पया त मा ा म गो प धन दे कर ापारी के समान हमसे उसका मू य मत मांगना. (३) वधी ह द युं ध ननं घनेनँ एक र ुपशाके भ र . धनोर ध वषुण े ाय य वानः सनका े तमीयुः.. (४) हे इं ! श शाली म द्गण तु हारे साथ थे, फर भी तुमने अकेले ही चोर एवं धनवान् वृ को कठोर व ारा मारा. य वरोधी उसके अनुचर तु ह मारने के वचार से गए, पर उ ह तु हार धनुष से मृ यु मली. (४) परा च छ षा ववृजु त इ ाय वानो य व भः पधमानाः. य वो ह रवः थात नर ताँ अधमो रोद योः.. (५) हे इं ! जो लोग वयं य नह करते ह अथवा य करने वाल का वरोध करते ह, वे पीछे क ओर मुंह करके भाग गए ह. हे इं ! तुम ह र नामक घोड़ के वामी, यु म पीठ न दखाने वाले तथा उ हो. य न करने वाल को तुमने वग, आकाश और धरती से भगा दया है. (५) अयुयु स नव य सेनामयातय त तयो नव वाः. वृषायुधो न व यो नर ाः व र ा चतय त आयन्.. (६) वृ के अनुचर ने दोषर हत इं क सेना के साथ यु करना चाहा था. उ म च र वाले मनु य ने इं को यु के लए े रत कया. जस कार शूर के साथ यु छे ड़ने वाले ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नपुंसक भाग जाते ह, उसी कार वे इं के ारा अपमा नत होकर अपनी नबलता का वचार करते ए सरल माग से र भाग गए. (६) वमेता ुदतो ज त ायोधयो रजस इ पारे. अवादहो दव आ द युमु चा सु वतः तुवतः शंसमावः.. (७) हे इं ! वृ के कुछ अनुचर तु हारी हंसी उड़ा रहे थे और कुछ तु हारे भय से रो रहे थे. तुमने उन सभी से आकाश म यु कया एवं द यु वृ को वग से लाकर भली-भां त सप रवार न कर दया. इस कार तुमने सोमरस तैयार करने वाल एवं तु तक ा क र ा क . (७) च ाणासः परीणहं पृ थ ा हर येन म णना शु भमानाः. न ह वानास त त त इ ं प र पशो अदधा सूयण.. (८) उन वृ ानुचर ने धरती को सब ओर से ा त कर लया था. वे वण एवं म णय से सुशो भत थे. वे इं को नह जीत सके. य म व न डालने वाले उनको इं ने सूय क सहायता से भगा दया. (८) प र य द रोदसी उभे अबुभोजीम हना व तः सीम्. अम यमानाँ अ भ म यमानै न भरधमो द यु म .. (९) हे इं ! तुमने अपनी म हमा से धरती और आकाश को ा त करके उनका भली कार भोग कया है. जो यजमान मं का उ चारण समझकर केवल पाठ करते थे, मं उ ह अपना समझकर उनक र ा करते थे. ऐसे मं ारा तुमने उस चोर वृ को नकाल दया. (९) न ये दवः पृ थ ा अ तमापुन माया भधनदां पयभूवन्. युजं व ं वृषभ इ ो न य तषा तमसो गा अ त्.. (१०) जब आकाश से धरती पर जल नह बरसा और धन दे ने वाली भू म मानवोपकारक फसल से यु नह थी, तब वषाकारक इं ने अपने हाथ म व उठाया और चमकते ए व क सहायता से अंधकार फैलाने वाले मेघ से नीचे गरने वाला जल पूरी तरह हा. (१०) अनु वधाम र ापो अ यावधत म य आ ना ानाम्. स ीचीनेन मनसा त म ओ ज ेन ह मनाह भ ून्.. (११) इं के वधा मं के अनुसार पानी बरसने लगा. तब वृ उन न दय के बीच म प ंचकर बढ़ने लगा, जनम नाव चल सकती थी. इं ने श शाली एवं ाणसंहारक व ारा उस थर मन वाले वृ को कुछ ही दन म मार डाला. (११) या व य दली बश य
हा व शृ णम भन छु ण म ः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
याव रो मघव यावदोजो व ेण श ुमवधीः पृत युम्.. (१२) इं ने धरती पर छपी ई वृ क सेना को पूरी तरह वेध दया था एवं संसार को ःखी करने वाले एवं स ग के समान आयुध वाले वृ को अनेक कार से मारा था. हे इं ! तु हारे पास जतना वेग और बल है, उसके ारा तुमने यु ा भलाषी वृ को व क सहायता से काट डाला. (१२) अ भ स मो अ जगाद य श ु व त मेन वृषभेणा पुरोऽभेत्. सं व ेणासृज म ः वां म तम तर छाशदानः.. (१३) इं का काय स करने वाला व श ु पर गरा था. इं ने ती ण एवं े व पी आयुध से वृ के नगर को तोड़ डाला था. इसके प ात् इं ने अपना व वृ पर चलाया और उसे मारते ए भली-भां त अपना उ साह बढ़ाया. (१३) आवः कु स म य म चाक ावो यु य तं वृषभं दश ुम्. शफ युतो रेणुन त ामु छ् वै ेयो नृषा ाय त थौ.. (१४) हे इं ! तुम कु स ऋ ष क तु त को पंसद करते थे. तुमने उनक र ा क . तुमने यु रत एवं े गुण वाले दश ु ऋ ष क भी र ा क . तु हारे घोड़ क टाप से उठ ई धूल आकाश तक फैल गई थी. ै ेय ऋ ष श ु के भय से पानी म छप गए थे. मनु य म े पद पाने क इ छा से वे तु हारी कृपा के कारण ही बाहर नकले. (१४) आवः शमं वृषभं तु यासु े जेषे मघव छ् व यं ाम्. योक् चद त थवांसो अ छ ूयतामधरा वेदनाकः.. (१५) हे इं ! तुमने शांत च , े गुण वाले एवं जलम न ै ेय को े ा त के उ े य से बचाया था. जो लोग हमारे साथ ब त दन से यु कर रहे ह एवं हमसे श ुता रखते ह, तुम उ ह वेदना और क दो. (१५)
सू —३४
दे वता—अ नीकुमार
ो अ ा भवतं नवेदसा वभुवा याम उत रा तर ना. युवो ह य ं ह येव वाससोऽ यायंसे या भवतं मनी ष भः.. (१) हे बु मान् अ नीकुमारो! तुम हमारे लए आज तीन बार आओ. तु हारे रथ और दान ापक ह. जस कार र मय वाला सूय शीतल रा से संबं धत है, उसी कार तुम दोन का भी नय मत संबंध है. तुम कृपा करके व ान के वश म हो जाओ. (१) यः पवयो मधुवाहने रथे सोम य वेनामनु व इ
ः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यः क भासः क भतास आरभे
न ं याथ
व ना दवा.. (२)
सम त दे वता चं मा और उसक सुंदरी प नी वेना के ववाह म जा रहे थे, तब उ ह पता लगा क मधुर भो य-पदाथ को ढोने वाले रथ म तीन प हए ह. उस रथ के ऊपर सहारा लेने के लए खंभे ह. हे अ नीकुमारो! इस कार के रथ ारा तुम दन म तीन बार आओ और रात म भी तीन बार आओ. (२) समाने अह रव गोहना र य ं मधुना म म तम्. वाजवती रषो अ ना युवं दोषा अ म यमुषस प वतम्.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम दन म तीन बार आकर य कम क ु टयां र करो. आज य का मधुर रस से तीन बार स चो. रात और दन म तीन-तीन बार बलकारक अ से हमारा पोषण करो. (३) व तयातं रनु ते जने ना ं वहतम ना युवं
ः सु ा े ध े ेव श तम्. ः पृ ो अ मे अ रेव प वतम्.. (४)
हे अ नीकुमारो! हमारे नवास थान म तीन बार आओ. हमारे अनुकूल काय करने वाले मनु य के पास तीन बार आओ. जो लोग तु हारे ारा र णीय ह, उनके पास तीन बार आओ. हम तीन कार से श ा दो. हम तीन बार स ताकारक फल दो. जस कार मेघ जल दे ते ह, उसी कार तुम हम तीन बार जल दो. (४) न र य वहतम ना युवं दवताता तावतं धयः. ः सौभग वं त वां स न ं वां सूरे हता ह थम्.. (५) हे अ नीकुमारो! हम तीन बार धन दान करो. हमारे दे व संबंधी य म तीन बार आओ. तीन बार हमारी बु क र ा करो. तीन बार हमारे सौभा य क र ा करो. हम तीन बार अ दो. तु हारे तीन प हए वाले रथ पर सूय क पु यां सवार ह. (५) न अ ना द ा न भेषजा ः पा थवा न द मद् यः. ओमानं शंयोममकाय सूनवे धातु शम वहतं शुभ पती.. (६) हे अ नीकुमारो! वगलोक क ओष ध हम तीन बार दो. पृ वी पर उ प ओष ध हम तीन बार दो. आकाश से हम तीन बार ओष ध दो. हे बृह प त के पोषको! हम वात, प , कफ—इन तीन धातु से संबं धत सुख दो. (६) न अ ना यजता दवे दवे प र धातु पृ थवीमशायतम्. त ो नास या र या परावत आ मेव वातः वसरा ण ग छतम्.. (७) हे अ नीकुमारो! तुम
त दन य म बुलाने यो य हो. तुम तीन बार धरती पर आकर
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वेद पर तीन परत के प म बछ ई कुशा पर शयन करो. शरीर म जस ाणवायु आती है, उसी कार तुम तीन य थान म आओ. (७)
कार
र ना स धु भः स तमातृ भ य आहावा ेधा ह व कृतम्. त ः पृ थवी प र वा दवो नाकं र ेथे ु भर ु भ हतम्.. (८) हे अ नीकुमारो! सधु आ द सात न दय के जल से तीन सोमा भषेक ए ह. जल के आधार तीन कलश और तीन सवन से संबं धत तीन कार क ह व तैयार है. तुमने पृ वी आ द तीन लोक से ऊपर जाकर दवसरा यु आकाश म सूय क र ा क थी. (८) व१ ी च ा वृतो रथ य व१ यो व धुरो ये सनीळाः. कदा योगो वा जनो रासभ य येन य ं नास योपयाथः.. (९) हे नास यो! तु हारे तीन कोने वाले रथ के तीन प हए कहां ह? रथ के ऊपर जो बैठने का थान है, उसके तीन बंधनाधार प डंडे कहां ह? तु हारे रथ म बलवान् गधे न जाने कब जोड़े गए? उ ह के ारा तुम हमारे य म आते हो. (९) आ नास या ग छतं यते ह वम वः पबतं मधुपे भरास भः. युवो ह पूव स वतोषसो रथमृताय च ं घृतव त म य त.. (१०) हे नास यो! इस य म आओ. म तु ह ह व दे ता ं. तुम मधुर पदाथ का पान करने वाले अपने मुख से मधुर ह व पओ. तु हारे व च और धुरी म घी लगे ए रथ को हमारे य म आने के लए उषा ने पहले ही ेरणा द थी. (१०) आ नास या भरेकादशै रह दे वे भयातं मधुपेयम ना. ायु ता र ं नी रपां स मृ तं सेधतं े षो भवतं सचाभुवा.. (११) हे नास य अ नीकुमारो! ततीस दे वता के साथ मधुर सोमरस पीने के लए इस य म आओ, हम द घायु करो, हमारे पाप का नाश करो, हमारे श ु को रोको और हमारे साथ रहो. (११) आ नो अ ना वृता रथेनावा चं र य वहतं सुवीरम्. शृ व ता वामवसे जोहवी म वृधे च नो भवतं वाजसातौ.. (१२) हे अ नीकुमारो! तीन लोक म चलने वाले अपने रथ ारा हमारे पास पु , सेवक आ द स हत धन लाओ. तुम हमारी तु त सुनो. हम अपनी र ा के लए तु ह बुलाते ह. हमारी उ त करो और सं ाम म हम श दो. (१२)
सू —३५
दे वता—स वता
******ebook converter DEMO Watermarks*******
या य नं थमं व तये या म म ाव णा वहावसे. या म रा जगतो नवेशन या म दे वं स वतारमूतये.. (१) म अपनी र ा के लए सबसे पहले अ न को बुलाता ं. म अपनी र ा के लए म और व ण को यहां बुलाता ं. म संसार के सभी ा णय को व ाम दे ने वाली रात को बुलाता ं. म अपनी र ा के लए स वता को बुलाता ं. (१) आ कृ णेन रजसा वतमानो नवेशय मृतं म य च. हर ययेन स वता रथेना दे वो या त भुवना न प यन्.. (२) स वता का रथ सोने का है. वे अंधकार से भरे आकाश म बार-बार मण करते ए दे व और मानव को अपने-अपने कम म लगाते ए सभी लोक क या ा करते ह. (२) या त दे वः वता या यु ता या त शु ा यां यजतो ह र याम्. आ दे वो या त स वता परावतोऽप व ा रता बाधमानः.. (३) स वता दे व ातःकाल से म या तक उ त माग से और म या से सं या तक अवनत माग से चलते ह. य के यो य सूय दे व सफेद घोड़ क सहायता से चलते ह. वे सम त पाप का नाश करते ए र दे श से य म आते ह. (३) अभीवृतं कृशनै व पं हर यश यं यजतो बृह तम्. आ था थं स वता च भानुः कृ णा रजां स त व ष दधानः.. (४) य के यो य एवं रंग- बरंगी करण वाले स वता अपने तेज से लोक म ा त अंधकार को न करने के लए वण मू तय से सुशो भत एवं सोने क क ल वाले वशाल रथ पर सवार ए. (४) व जना ावाः श तपादो अ य थं हर य उगं वह तः. श शः स वतुद योप थे व ा भुवना न त थुः.. (५) सूय के सफेद पैर वाले घोड़े सोने के जुए वाले रथ को ख चते ए मनु य को वशेष प से काश दे ते ह. मनु य एवं सारा संसार काश के लए सूय दे वता के समीप जाता है. (५) त ो ावः स वतु ा उप थाँ एका यम य भुवने वराषाट् . आ ण न र यममृता ध त थु रह वीतु य उ त चकेतत्.. (६) वग आ द तीन लोक ह. इनम वगलोक और भूलोक दो सूय के अ धकार म ह. एक आकाशलोक यमराज के घर जाने का माग है. जस कार आ ण नाम क क ल के ऊपर रथ टका रहता है, उसी कार चं मा आ द न सूय का सहारा लए ए ह. जो सूय के वषय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म जानते ह, वे बोल. (६) व सुपण अ त र ा य यद्गभीरवेपा असुरः सुनीथः. वे३दान सूयः क केत कतमां ां र मर या ततान.. (७) गंभीर कंपन वाली, सबको ाण दे ने वाली और सरलता से सब जगह प ंचने वाली सूय क करण आकाश आ द तीन लोक म फैली ई ह. यह कौन बता सकता है क इस समय सूय कहां है? सूय क करण कस वगलोक म व तृत ह? (७) अ ौ य ककुभः पृ थ ा ी ध व योजना स त स धून्. हर या ः स वता दे व आगा ध ना दाशुषे वाया ण.. (८) सूय ने पृ वी क आठ दशाएं, ा णय के तीन लोक और सात न दयां का शत क ह. सोने क आंख वाले सूय दे ने वाले यजमान को उ म धन दे ते ए यहां आव. (८) हर यपा णः स वता वचष ण भे ावापृ थवी अ तरीयते. अपामीवां बाधते वे त सूयम भ कृ णेन रजसा ामृणो त.. (९) हाथ म सोना लए ए एवं व वध पदाथ को दे खते ए सूय आकाश और धरती दोन लोक म जाते ह. वे रोग को र भगाते ह, उदय होते ह और अंधकार को न करने वाले काश को लेकर सारे आकाश को ा त करते ह. (९) हर यह तो असुरः सुनीथः सुमृळ कः ववाँ या ववाङ् . अपसेध सो यातुधानान था े वः तदोषं गृणानः.. (१०) हाथ म सोना लए ए, ाणदाता, अ छे नेता, सुख और धन दे ने वाले स वता य म सामने से आव. सूय दे व तरा तु त सुनकर यातुधान और रा स को य से नकालकर थत ए. (१०) ये ते प थाः स वतः पू ासोऽरेणवः सुकृता अ त र े. ते भन अ प थ भः सुगेभी र ा च नो अ ध च ू ह दे व.. (११) हे स वता! आकाश म तु हारा माग न त, धू लर हत एवं भली कार बनाया गया है. तुम उसी माग से आकर आज हमारी र ा करो. हे दे व! हमारी बात दे वता तक प ंचा दो. (११)
सू —३६
दे वता—अ न
वो य ं पु णां वशां दे वयतीनाम्. अ नं सू े भवचो भरीमहे यं सी मद य ईळते.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व क कामना करने वाले हम ब सं यक जाजन पर अनु ह के न म सू पी वचन ारा महान् अ न क ाथना करते ह. अ य ऋ षगण भी इसी अ न क तु त करते ह. (१) जनासो अ नं द धरे सहोवृधं ह व म तो वधेम ते. स वं नो अ सुमना इहा वता भवा वाजेषु स य.. (२) य करने वाले लोग ने श वधक अ न को धारण कया था. हे अ न! हम लोग ह व लेकर तु हारी सेवा करते ह. तुम अ दान म त पर हो. आज इस य म हम पर परम स होकर हमारे र क बनो. (२) वा तं वृणीमहे होतारं व वेदसम्. मह ते सतो व चर यचयो द व पृश त भानवः.. (३) हे अ न! तुम य के होता एवं सव हो. हम तु ह दे व का त समझकर वरण करते ह. तुम महान् और न य हो. तु हारी चमक बढ़ती है. तु हारी करण आकाश को छू ती ह. (३) दे वास वा व णो म ो अयमा सं तं न म धते. व ं सो अ ने जय त वया धनं य ते ददाश म यः.. (४) हे अ न! व ण, म और अयमा—ये तीन दे व तु ह अपना ाचीन त समझकर भली कार चमकाते ह. जो यजमान तु ह ह व दे ता है, वह तु हारे ारा सभी कार क संप जीत लेता है. (४) म ो होता गृहप तर ने तो वशाम स. वे व ा संगता न ता ुवा या न दे वा अकृ वत.. (५) हे अ न! तुम दे व को बुलाने वाले, यजमान प जा के पालक एवं ह षत करने वाले हो. तुम दे वता के त हो. पृ वी आ द दे वता जो थर कम करते ह, वे तुम म मल जाते ह. (५) वे इद ने सुभगे य व व मा यते ह वः. स वं नो अ सुमना उतापरं य दे वा सुवीया.. (६) हे युवक अ न! तुझ परम सौभा यशाली को ल य करके सब ह दए जाते ह. तुम स मन होकर आज, कल और सवदा सुंदर एवं श शाली दे व का य करो. (६) तं घे म था नम वन उप वराजमासते. हो ा भर नं मनुषः स म धते त तवासो अ त
धः.. (७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमान नम कार करते ए अपने आप चमकने वाले उसी अ न को ह व दे कर उपासना करते ह. श ु को करारी हार दे ने के इ छु क लोग होता ारा अ न को व लत करते ह. (७) न तो वृ मतर ोदसी अप उ याय च रे. भुव क वे वृषा ु या तः दद ो ग व षु.. (८) हे अ न! तु हारी सहायता से दे व ने वृ को मारकर रहने के लए वग, पृ वी और आकाश को व तृत कया. जस कार सं ाम म हन हनाता आ घोड़ा गाएं ा त करता है, उसी कार भली कार बुलाए जाने पर तुम क व ऋ ष के लए इ छानुसार धन बरसाओ. (८) सं सीद व महाँ अ स शोच व दे ववीतमः. व धूमम ने अ षं मये य सृज श त दशतम्.. (९) हे अ न! तुम भली कार बैठो. तुम महान् हो. तुम दे वता क बल इ छा करते ए जलो. हे बु मान् एवं शंसनीय अ न! तुम इधर-उधर फैलने वाले धुएं को वशेष प से बनाओ. (९) यं वा दे वासो मनवे दधु रह य ज ं ह वाहन. यं क वो मे या त थधन पृतं यं वृषा यमुप तुतः.. (१०) हे ह वाहक अ न! सम त दे व ने मनु के लए इस य थल म तुझ परम पू य अ न को धारण कया था. क व ने पू य अ त थय के साथ धन ारा स करने वाले तुझ अ न को धारण कया था. वषा करने वाले इं एवं अ य तु तक ा ने भी तु ह धारण कया था. (१०) यम नं मे या त थः क व ईध ऋताद ध. त य ेषो द दयु त ममा ऋच तम नं वधयाम स.. (११) पू य अ त थय वाले क व ने जस अ न को सूय से लेकर व लत कया था, उसी अ न क फैलने वाली करण चमक रही ह. हमारी ये ऋचाएं तथा हम उसी अ न को बढ़ाते ह. (११) राय पू ध वधावोऽ त ह तेऽ ने दे वे वा यम्. वं वाज य ु य य राज स स नो मृळ महाँ अ स.. (१२) हे अ स हत अ न! हम धन दो. तु हारी दे व से म ता है, तुम एवं महान् हो. तुम हम सुखी बनाओ. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स
अ के वामी
ऊ व ऊ षु ण ऊतये त ा दे वो न स वता. ऊ व वाज य स नता यद भवाघ व यामहे.. (१३) तुम हमारी र ा के लए सूय के समान उ त बनो. ऊंचे उठकर तुम हम अ दे ने वाले बनोगे, य क यूप गाड़ने वाले एवं य पूण करने वाले ऋ वज ारा हम तु ह बुलाते ह. (१३) ऊ व नः पा ंहसो न केतुना व ं सम णं दह. कृधी न ऊ वा चरथाय जीवसे वदा दे वेषु नो वः.. (१४) तुम ऊंचे उठकर ान क सहायता से हम पाप से बचाओ एवं सम त रा स को जला दो. संसार म घूमने- फरने के लए हम उ त बनाओ तथा हम जी वत रखने के लए हमारा ह व पी धन दे व के पास ले जाओ. (१४) पा ह नो अ ने र सः पा ह धूतररा णः. पा ह रीषत उत वा जघांसतो बृह ानो य व
.. (१५)
हे वशाल करण वाले युवक अ न! हम बाधक रा स से बचाओ. धन दान न करने वाले धूत हसक पशु और मारने क इ छा रखने वाले श ु से हमारी र ा करो. (१५) घनेव व व व ज रा ण पुज भ यो अ म ुक्. यो म यः शशीते अ य ु भमा नः स रपुरीशत.. (१६) हे उ ण करण वाले अ न! हम लोग जस कार डंडे, प थर आ द से मट् ट का बतन फोड़ते ह, तुम उसी कार धन दान न करने वाले, हमसे े ष रखने वाले एवं हम डरानेधमकाने वाले तथा श हार करने वाले श ु का सब कार से संहार करो. (१६) अ नव ने सुवीयम नः क वाय सौभगम्. अ नः ाव म ोत मे या त थम नः साता उप तुतम्.. (१७) अ न से श दायक अ क याचना क जाती है. अ न ने क व को सौभा य दान कया, हमारे म क र ा क तथा पू य अ त थय वाले ऋ ष क र ा क . धन ा त के लए जस कसी ने अ न क तु त क , उसी को धन दे कर अ न ने र ा क . (१७) अ नना तुवशं य ं परावत उ ादे वं हवामहे. अ ननय ववा वं बृह थं तुव त द यवे सहः.. (१८) हम चोर का दमन करने वाले अ न को तुवया, य और उ ादे व ऋ षय के साथ र दे श से बुलाते ह. यह अ न वा व, बृह थ और तुव त नामक राज षय को इस य म बुलाव. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न वाम ने मनुदधे यो तजनाय श ते. द दे थ क व ऋतजात उ तो यं नम य त कृ यः.. (१९) हे काश प अ न! मनु ने सम त जा तय के क याण के लए तु हारी थापना क थी. हे अ न दे व! तुमने य के न म उ प होकर ह से तृ त ा त क और क व को काश दया. मनु य तु ह नम कार करते ह. (१९) वेषासो अ नेरमव तो अचयो भीमासो न तीतये. र वनः सद म ातुमावतो व ं सम णं दह.. (२०) अ न क वालाएं चमक ली, श शाली और भयानक ह. इस लए उसे कोई न नह कर सकता. हे अ न दे व! रा स , यातुधान एवं हमारे व भ क श ु को जलाओ. (२०)
दे वता—म द्गण
सू —३७
ळं वः शध मा तमनवाणं रथेशुभम्. क वा अ भ
गायत.. (१)
हे क व गो ो प ऋ षयो! वहरणशील एवं श ुर हत म त को ल य करके तु त करो. वे अपने रथ पर सुशो भत होते ह. (१) ये पृषती भऋ
भः साकं वाशी भर
भः. अजाय त वभानवः.. (२)
ब यु ह र णयां म त का वाहन ह. उ ह ने इन वाहन के साथ काशवान् होकर घोर गजन, आयुधसमूह तथा अलंकार स हत जल हण कया. (२) इहेव शृ व एषां कशा ह तेषु य दान्. न याम च मृ
ते.. (३)
म त के हाथ म रहने वाले चाबुक का श द हम सुन रहे ह. चाबुक का वह श द यु हमारी श बढ़ाता है. (३) वः शधाय घृ वये वेषु ु नाय शु मणे. दे व ं
गायत.. (४)
हे ऋ वजो! तु हारे बल का समथन करने वाले, श ु दमनकारी, उ एवं श शाली म त क तु त ह व हण के उ े य से करो. (४) शंसा गो व यं
म
वलक तसंप
ळं य छध मा तम्. ज भे रस य वावृधे.. (५)
हे ऋ वजो! ध दे ने वाली गाय के बीच थत म द्गण के अ वनाशी, वहारशील एवं सहन करने यो य तेज क शंसा करो. वह तेज गाय का ध पीने के कारण बढ़ा है. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को वो व ष आ नरो दव
म धूतयः. य सीम तं न धूनुथ.. (६)
हे धरती और आकाश को कं पत करने वाले म द्गणो! तुमसे कौन बड़ा है? तुम जैसे पेड़ क चोट को कं पत कर दे ते हो, उसी कार सब दशा को कंपा दो. (६) न वो यामाय मानुषो द उ ाय म यवे. जहीत पवतो ग रः.. (७) हे म द्गणो! तु हारे चलने से घर गर पड़ेगा, इस भय से लोग ने घर म मजबूत खंभे गाड़े ह. तु हारी चाल उ एवं झकझोरने वाली है. तु हारी तेज चाल से चो टय वाले अनेक पवत हल जाते ह. (७) येषाम मेषु पृ थवी जुजुवा इव व प तः. भया यामेषु रेजते.. (८) हे म द्गणो! तु हारी चाल सभी पदाथ को र फक दे ती है. वृ एवं बल राजा श ु के भय से जस कार कांपता है, उसी कार तु हारे चलने से धरती कांपती है. (८) थरं ह जानमेषां वयो मातु नरेतवे. य सीमनु
ता शवः.. (९)
म त क उ प का थान आकाश थर रहता है. आकाश म त क माता के समान है. आकाश म होकर प ी नकल सकते ह. म त का बल धरती और आकाश को पृथक् करता है. (९) उ
ये सूनवो गरः का ा अ मे व नत. वा ा अ भ ु यातवे.. (१०)
श द के ज मदाता म द्गण चलते समय जल का व तार करते ह और रंभाती ई गाय को घुटने तक गहरे जल म वेश करने को े रत करते ह. (१०) यं च ा द घ पृथुं महो नपातममृ म्.
यावय त याम भः.. (११)
म द्गण अपनी तेज चाल से व तृत, मोटे , जल न बरसाने वाले, अपराजेय एवं बादल को भी कं पत कर दे ते ह. (११) म तो य
स
वो बलं जनाँ अचु यवीतन. गर रचु यवीतन.. (१२)
हे म तो! तुम श शाली हो, इस लए सम त ा णय को अपने-अपने काम म लगाते हो तथा मेघ को भी े रत करते हो. (१२) य
या त म तः सं ह ुवतेऽ व ा. शृणो त क दे षाम्.. (१३)
म द्गण जब चलते ह तो माग म सब ओर व न अव य करते ह. उस व न को चाहे जो सुन सकता है. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यात शीभमाशु भः स त क वेषु वो वः. त ो षु मादया वै.. (१४) हे म द्गणो! अपने ती गामी वाहन के ारा य भू म म शी यजमान के ारा क गई सेवा से उनके त तृ त बनो. (१४)
आओ. बु
मान्
अ त ह मा मदाय वः म स मा वयमेषाम्. व ं चदायुज वसे.. (१५) हे म द्गणो! हमारे ारा दया आ ह व तु ह तृ त करने के लए है. हम पूण आयु जीने के लए तु हारे सेवक बने ह. (१५)
सू —३८ क
दे वता—म द्गण
नूनं कध यः पता पु ं न ह तयोः. द ध वे वृ ब हषः.. (१)
हे म द्गणो! ाथना चाहने वाले तुम लोग के लए कुश बछा दए गए ह. जस कार पता पु को हाथ पर धारण करता है, या तुम भी हम उसी कार धारण करोगे? (१) व नूनं क ो अथ ग ता दवो न पृ थ ाः. व वो गावो न र य त.. (२) हे म द्गणो! इस समय तुम कहां हो? तुम इस य म कब आओगे? तुम यहां आकाश से आओ, धरती से मत आना. जस कार गाएं रंभाती ह, उसी कार यजमान तु ह यहां बुलाते ह. (२) व वः सु ना न ां स म तः व सु वता. वो३ व ा न सौभगा.. (३) हे म द्गणो! तु हारी जा पशु पी नवीन धन, म ण, मु ा आ द और गज, अ आ द पी सौभा य धन कहां है? (३)
पी शोभन धन
य ूयं पृ मातरो मतासः यातन. तोता वो अमृतः यात्.. (४) हे पृ नामक धेनु के पु म द्गण! य प तुम मरणधमा हो, पर तु हारी तु त करने वाला अमर होगा. (४) मा वो मृगो न यवसे ज रता भूदजो यः. पथा यम य गा प.. (५) घास के बीच म मृग जस कार सेवार हत नह रहता, अ पतु घास खाता है, उसी कार तु हारी तु त करने वाले तु हारी सेवा से कभी शू य न ह . इस कार वे यमराज के माग पर नह जाएंगे. (५) मो षु णः परापरा नऋ त हणा वधीत्. पद
तृ णया सह.. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म द्गण! अ यंत श शाली पाप क दे वी नऋ त का कोई वनाश नह कर सकता. वह हमारा वध न करे और हमारी तृ णा के साथ ही समा त हो जाए. (६) स यं वेषा अमव तो ध व चदा
यासः. महं कृ व यवाताम्.. (७)
ारा पा लत, द तसंप एवं बलशाली म द्गण म थल म भी वायुर हत वषा करते ह, यह बात स य है. (७) वा ेव व ु ममा त व सं न माता सष
. यदे षां वृ रस ज.. (८)
ध भरे तन वाली रंभाती ई गाय के समान बजली गरजती है. गाय जस तरह बछड़े को चाटती है, उसी कार बजली म द्गण क सेवा करती है. इसी के फल व प म द्गण ने वषा क है. (८) दवा च मः कृ व त पज येनोदवाहेन. य पृ थव
ु द त.. (९)
म द्गण जल ढोने वाले बादल क सहायता से दन म भी अंधेरा कर दे ते ह. वे उसी समय धरती को स चते ह. (९) अध वना म तां व मा स पा थवम्. अरेज त
मानुषाः.. (१०)
म द्गण के गरजने क व न से धरती पर बने सभी घर एवं उन म रहने वाले मनु य कांपने लगते ह. (१०) म तो वीळु पा ण भ श
ा रोध वतीरनु. यातेम ख याम भः.. (११)
हे म द्गणो! जस कार व च कनार वाली नद बहती है, उसी कार तुम अपने शाली हाथ क सहायता से बना के ए चलते रहो. (११) थरा वः स तु नेमयो रथा अ ास एषाम्. सुसं कृता अभीशवः.. (१२)
हे म द्गणो! तु हारी ने म, रथ और घोड़े श घोड़ क लगाम पकड़. (१२) अ छा वदा तना गरा जरायै
शाली ह . तु हारी उंग लयां सावधानी से
ण प तम्. अ नं म ं न दशतम्.. (१३)
हे ऋ वजो! मं के पालक म द्गण, अ न एवं दशनीय म क ाथना के लए हमारे सामने ऐसे मं से तु त करो जो उन दे वता का व प बताने वाले ह . (१३) ममी ह
ोकमा ये पज य इव ततनः. गाय गाय मु यम्.. (१४)
हे ऋ वजो! अपने मुंह से तो
क रचना करो. जस कार बादल वषा का व तार
******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह, उसी कार तुम उस तो के शा स मत तो को पढ़ो. (१४)
ोक को बढ़ाओ, तुम गाय ी छं द
ारा न मत
व द व मा तं गणं वेषं पन युम कणम्. अ मे वृ ा अस ह.. (१५) हे ऋ वजो! काशयु , तु तयो य एवं सब लोग ारा अ चत म द्गण क तुम वंदना करो, जससे वे हमारे इस य म वृ को ा त ह . (१५)
सू —३९
दे वता—म द्गण
य द था परावतः शो चन मानम यथ. क य वा म तः क य वपसा कं याथ कं ह धूतयः.. (१) हे कंपनकारी म द्गणो! जस कार सूय आकाश से अपनी तेज रोशनी धरती पर फकता है, उसी कार जब तुम र आकाश से अपनी श धरती पर डालते हो तो तुम कस य म कस यजमान ारा आक षत कए जाते हो तथा कस यजमान के समीप जाते हो? (१) थरा वः स वायुधा पराणुदे वीळू उत त कभे. यु माकम तु त वषी पनीयसी मा म य य मा यनः.. (२) हे म द्गणो! तु हारे आयुध श ु वनाश के लए थर और श ु को रोकने के लए ढ़ ह . तु हारी श तु त करने यो य हो, हमारे त धोखा करने वाले श ु क श शंसनीय न हो. (२) परा ह य थरं हथ नरो वतयथा गु . व याथन व ननः पृ थ ा ाशाः पवतानाम्.. (३) हे नेताओ! जब तुम वृ ा द थर व तु को तोड़ते ए एवं प थर आ द भारी व तु को हलाते ए चलते हो, तब पृ वी पर खड़े वन के बीच से तथा पवत के बगल वाले माग से चलते हो. (३) न ह वः श ु व वदे अ ध व न भू यां रशादसः. यु माकम तु त व ष तना युजा ासो नू चदाधृषे.. (४) हे श ुनाशकारी! धरती और आकाश म तु हारा कोई श ु नह आ. हे सबक स म लत श श ु का दमन करने के लए व तृत हो. (४) वेपय त पवता व व च त वन पतीन्. ो आरत म तो मदा इव दे वासः सवया वशा.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु ो! तुम
म द्गण पवत को भली कार कं पत करते एवं वृ को एक- सरे से अलग करते ह. हे दे वो! जस कार मतवाले लोग वे छा से सब जगह जाते ह. उसी कार तुम भी जा के साथ सव जाते हो. (५) उपो रथेषु पृषतीरयु वं वह त रो हतः. आ वो यामाय पृ थवी चद ोदबीभय त मानुषाः.. (६) तुम बुंद कय वाले ह रण को अपने रथ म जोतते हो. लाल ह रण तु हारे रथ के जुए को ख चता है. तु हारे आने क व न धरती और आकाश ने सुनी है तथा मनु य भयभीत हो उठे ह. (६) आ वो म ू तनाय कं ा अवो वृणीमहे. ग ता नूनं नोऽवसा यथा पुरे था क वाय ब युषे.. (७) हे पु ो! हम पु - ा त के लए तु हारी र णश क शी ाथना करते ह. पहले कए गए य म हमारी र ा के लए तुम जस कार आए थे, उसी कार भयभीत एवं बु मान् यजमान क र ा के लए उनके समीप आओ. (७) यु मे षतो म तो म य षत आ यो नो अ व ईषते. व तं युयोत शवसा ोजसा व यु माका भ त भः.. (८) हे म द्गणो! तु हारी अथवा कसी अ य पु ष क ेरणा से जो भी श ु हमारे सामने आवे, तुम उसका बल और अ छ न लो और उससे अपनी र ा भी वापस कर लो. (८) असा म ह य यवः क वं दद चेतसः. असा म भम त आ न ऊ त भग ता वृ न व ुतः.. (९) हे म द्गणो! तुम पूण प से य पा एवं परम ानसंप हो. तुम यजमान को धारण करो. जस कार बजली वषा लेकर आती है, उसी कार तुम अपनी पूरी श से हमारी र ा करने को आओ. (९) असा योजो बभृथा सुदानवोऽसा म धूतयः शवः. ऋ ष षे म तः प रम यव इषुं न सृजत षम्.. (१०) हे शोभन दान करने वाले म तो! तुम अपनी सम त श धारण करो. हे कंपनक ाओ! ऋ षय से े ष करने वाले एवं ोधी श ु के त बाण के समान अपना ोध करो. (१०)
सू —४०
दे वता—
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ण पत
उ उप
ण पते दे वय त वेमहे. य तु म तः सुदानव इ ाशूभवा सचा.. (१)
हे ण प त! हम पर अनु ह करने के लए अपने नवास थान से उठो. दे वता क इ छा करने वाले हम तुमसे याचना करते ह. सुंदर दान करने वाले म द्गण तु हारे समीप जाव. हे इं ! तुम ण प त के सोमरस का सेवन करो. (१) वा म सहस पु म य उप ूते धने हते. सुवीय म त आ व ं दधीत यो व आचके.. (२) हे परम बल पालक! श ु के बीच फंसे ए धन को ा त करने के लए मनु य तु हारी ही तु त करते ह. हे म द्गणो! धन का इ छु क जो मनु य, ण प त स हत तु हारी तु त करता है, वह सुंदर अ एवं शोभन वीय संप धन ा त करता है. (२) ै ु त ण प तः दे ेतु सूनृता. अ छा वीरं नय पङ् राधसं दे वा य ं नय तु नः.. (३) श ु (३)
ण प त एवं य स य पा वा दे वी हम ा त ह . ण प त आ द दे व वीर को हमसे ब त र ले जाव एवं हम मानव हतकारी तथा पूण य म ले जाव. यो वाघते ददा त सूनरं वसु स ध े अ त वः. त मा इळां सुवीरामा यजामहे सु तू तमनेहसम्.. (४)
ऋ वज् को उ म धन दे ने वाला यजमान अ य अ ा त करता है. उस यजमान के न म हम सुवीरा इला से याचना करते ह. वह श ु का नाश करती है, पर उसे कोई नह मार सकता. (४) नूनं य म
ण प तम ं वद यु यम्. ो व णो म ो अयमा दे वा ओकां स च
रे.. (५)
ण प त होता के मुख म बैठकर न य ही प व मं बोलते ह. उस मं म इं , व ण, म और अयमा दे व नवास करते ह. (५) त म ोचेमा वदथेषु श भुवं म ं दे वा अनेहसम्. इमां च वाचं तहयथा नरो व े ामा वो अ वत्.. (६) हे ण प त भृ त दे वो! हम उसी इं तपादक प व मं को बोलते ह. हे नेताओ! य द आप हमारे वचन को चाहते ह तो सभी शोभन वचन आपको ा त ह गे. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को दे वय तम व जनं को वृ ब हषम्. दा ा प या भर थता तवाव यं दधे.. (७) दे व क अ भलाषा करने वाले एवं य के न म कुश तोड़ने वाले यजमान के समीप ण प त के अ त र कौन दे वता आ सकता है? ह दाता यजमान ऋ वज के साथ भां त-भां त क संप य से यु घर से नकलकर य थल क ओर थान कर चुके ह. (७) उप ं पृ चीत ह त राज भभये च सु त दधे. ना य वता न त ता महाधने नाभ अ त व णः.. (८) ण प त अपने शरीर म श का संचय कर. वे व ण आ द राजा के साथ श ु का नाश करते ह एवं भयानक यु म भी डटे रहते ह. व धारी ण प त को भूत घर ा त के लए होने वाले बड़े अथवा छोटे यु म े रत या उ साहहीन करने वाला सरा नह है. (८)
दे वता—व ण आ द
सू —४१ यं र
त चेतसो व णो म अयमा. नू च य द यते जनः.. (१)
उ म ान से संप व ण, म और अयमा दे वता जसक र ा करते ह, वह शी ही सब श ु को मार डालता है. (१) यं बा तेव प त पा त म य रषः. अ र ः सव एधते.. (२) व णा द दे व जस यजमान को अपने हाथ से धनसंप करते एवं हसक से बचाते ह, वह सबसे सुर त रहकर उ त करता है. (२) व गा व
षः पुरो न त राजान एषाम्. नय त
रता तरः.. (३)
व णा द राजा अपने यजमान के सामने थत श ु का ग तोड़कर श ु करते ह. इसके प ात् वे यजमान के पाप को भी न कर दे ते ह. (३)
का नाश
सुगः प था अनृ र आ द यास ऋतं यते. ना ावखादो अ त वः.. (४) हे आ द यो! तुम जस माग से य म जाते हो, वह सुगम और न कंटक है. इस य म ऐसा ह व नह , जससे तु ह घृणा हो. (४) यं य ं नयथा नर आ द या ऋजुना पथा.
वः स धीतये नशत्.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे नेता प आ द यो! तुम सरल माग से जस य म आते हो, उस म तु ह सोमरस का उपभोग मले. (५) स र नं म य वसु व ं तोकमुत मना. अ छा ग छ य तृतः.. (६) तु हारे ारा अनुगृहीत यजमान तु हारे सामने ही सभी रमणीय धन ा त करता है. कोई उसक हसा नह कर सकता, अ पतु वह अपने समान संतान भी ा त करता है. (६) कथा राधाम सखायः तोमं म याय णः. म ह सरो व ण य.. (७) हे ऋ वज् म ो! हम म , अयमा और व ण के मह व के अनु प तो कब ा त करगे? (७) मा वो न तं मा शप तं
त वोचे दे वय तम्. सु नै र आ ववासे.. (८)
हे म ा द दे वो! दे व क कामना करने वाले यजमान को मारने वाले एवं कटु वचन बोलने वाले मनु य के व म कुछ नह कहता. म तो तु ह धन से तृ त करता ं. (८) चतुर
दमाना भीयादा नधातोः. न
ाय पृहयेत्.. (९)
जुए के खेल म चार कौ ड़यां हाथ म रखने वाले से लोग तभी तक डरते ह, जब तक वह उ ह फक नह दे ता, उसी कार यजमान सरे क नदा नह करना चाहता, अ पतु उससे डरता है. (९)
दे वता—पूषा
सू —४२ सं पूष वन तर
ंहो वमुचो नपात्. स वा दे व
ण पुरः.. (१)
हे पूषा! हम माग के पार लगा दो. पाप व न का कारण है, तुम उसे न करो. हे जलवषक मेघ के पु ! हमारे आगे चलो. (१) यो नः पूष घो वृको ःशेव आ ददे श त. अप म तं पथो ज ह.. (२) हे पूषा! य द कोई आ मणकारी, धन अपहरण करने वाला एवं रा ता दखाता है तो उसे हमारे माग से हटा दो. (२)
श ु हम गलत
अप यं प रप थनं मुषीवाणं र तम्. रम ध ुतेरज.. (३) तुम हमारा रा ता रोकने वाले चोर एवं कु टल
को हमारे माग से र भगा दो. (३)
वं त य या वनोऽघशंस य क य चत्. पदा भ त तपु षम्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे दे व! हमारे सामने और पीठ पीछे दोन कार से हमारा धन हरण करने वाले अ न साधक चोर के परपीड़क शरीर को अपने पैर से कुचल दो. (४) आ त े द म तुमः पूष वो वृणीमहे. येन पतॄनचोदयः.. (५) हे ानसंप एवं श ुनाशक पूषा! तुमने जस र ाश से अं गरा आ द पूवज को े रत कया था, हम तु हारी उसी श क ाथना करते ह. (५) अधा नो व सौभग हर यवाशीम म. धना न सुषणा कृ ध.. (६) हे सवसंप शाली एवं सुवणमय आयुध वाले पूषा! हमारी भां त-भां त का धन दे ना. (६) अ त नः स तो नय सुगा नः सुपथा कृणु. पूष ह
ाथना के प ात् हम
तुं वदः.. (७)
हम बाधा प ंचाने के लए आए ए श ु से हम र ले जाओ. हमारा माग सुगम और शोभन बनाओ. हे पूषा! इस माग म हमारी र ा का उ रदा य व तु हारा है. (७) अ भ सूयवसं नय न नव वारो अ वने. पूष ह
तुं वदः.. (८)
तुम हम घास वाले सुंदर दे श म ले जाओ. हम माग म कोई नया क न हो. हे पूषा! इस माग म हमारी र ा के वषय म तु ह जानते हो. (८) श ध पू ध
यं स च शशी ह ा युदरम्. पूष ह
तुं वदः.. (९)
हे पूषा! हम पर अनु ह करके हमारे घर को धनधा य से भर दो, हम अ य इ छत व तुएं दे कर परम तेज वी बनाओ एवं उ म अ से हमारी उदरपू त करो. हे पूषा! इस माग म हमारी र ा का उपाय तु ह ही करना है. (९) न पूषणं मेथाम स सू ै र भ गृणीम स. वसू न द ममीमहे.. (१०) हम पूषा क नदा नह करते, अ पतु सू से धन क याचना करते ह. (१०)
सू —४३ क वाले
ाय चेतसे मीळ्
से उनक तु त करते ह. हम दशनीय पूषा
दे वता—
आद
माय त से. वोचेम श तमं दे .. (१)
कृ ान यु , मनोकामना पूण करने वाले, अ यंत महान् एवं दय म नवास करने को ल य करके हम कब सुखकर तो पढ़गे? (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यथा नो अ द तः कर प े नृ यो यथा गवे. यथा तोकाय अ द त येन-केन कारेण हम, पशु संबंधी ओष ध दान कर. (२) यथा नो म ो व णो यथा म , व ण, कर. (३)
को, मनु य को, गाय को और हमारी संतान को
केत त. यथा व े सजोषसः.. (३)
और पर पर समान ी त रखने वाले अ य सब दे वता हमारे ऊपर कृपा
गाथप त मेधप त
ं जलाषभेषजम्. त छं योः सु नमीमहे.. (४)
तु तपालक, य र क एवं सुखकारी ओष धय से यु शंयु के समान सुख क याचना करते ह. (४) यः शु
यम्.. (२)
के समीप हम बृह प तपु
इव सूय हर य मव रोचते. े ो दे वानां वसुः.. (५)
जो सूय के समान द तमान् एवं सोने के समान चमक ले ह, वे दे वता एवं उनके नवास के कारण ह. (५)
म
े
शं नः कर यवते सुगं मेषाय मे ये. नृ यो ना र यो गवे.. (६) (६)
दे वगण, हमारे घोड़ , मेष, भेड़, पु ष, अ मे सोम
ी और गाय के लए सुलभ सुख दान कर.
यम ध न धे ह शत य नृणाम्. म ह व तु वनृ णम्.. (७)
हे सोमदे व! हम सौ मनु य के बराबर पया त धन तथा भूत बलयु दो. (७)
एवं महान् अ
मा नः सोम प रबाधो मारातयो जु र त. आ न इ दो वाजे भज.. (८) सोम के वरोधी एवं श ु हमारी हसा न कर. हे इं दे व! हम अ दो. (८) या ते जा अमृत य पर म धाम ृत य. मूधा नाभा सोम वेन आभूष तीः सोम वेदः.. (९) हे सोम! मरणर हत एवं उ म थान ा त करने वाले तुम सब दे व के शरोम ण बनकर अपनी जा क कामना करो. वह जा तु ह सुशो भत करती है, तुम उसका यान रखो. (९)
सू —४४
दे वता—अ न आ द
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ने वव व षस ं राधो अम य. आ दाशुषे जातवेदो वहा वम ा दे वाँ उषबुधः.. (१) हे मरणर हत, सवभूत ाता अ न! तुम ह व दे ने वाले यजमान के लए उषा दे वता के पास से लाकर टकने यो य एवं व भ कार का धन दो. उषाकाल म जागने वाले दे व को तुम आज यहां ले आना. (१) जु ो ह तो अ स ह वाहनोऽ ने रथीर वराणाम्. सजूर यामुषसा सुवीयम मे धे ह वो बृहत्.. (२) हे अ न! तुम दे वता ारा से वत त एवं ह वहन करने वाले हो. तुम य के रथ हो. तुम अ नीकुमार तथा उषा से मलकर हम शोभन एवं श संप पया त धन दो. (२) अ ा तं वृणीमहे वसुम नं पु यम्. धूमकेतुं भाऋजीकं ु षु य ानाम वर यम्.. (३) हम दे वता के त, नवास हेतु सबके य, धूम पी वजा से यु , स काश से सुशो भत तथा ातःकाल यजमान के य का सेवन करने वाले अ न को वरण करते ह. (३) े ं य व म त थ वा तं जु ं जनाय दाशुषे. दे वाँ अ छा यातवे जातवेदसम नमीळे ु षु.. (४) म उषाकाल म दे व समूह के अ भमुख जाने के लए े , अ तशय युवक, न य, चलने म स म, सबके ारा बुलाए गए, ह दाता के त स एवं सब ा णय को जानने वाले अ न क तु त करता ं. (४) त व या म वामहं व यामृत भोजन. अ ने ातारममृतं मये य य ज ं ह वाहन.. (५) (५)
हे मरणर हत, व र क, ह वाहन एवं य के यो य अ न! म तु हारी तु त क ं गा. सुशंसो बो ध गृणते य व मधु ज ः वा तः. क व य तर ायुज वसे नम या दै ं जनम्.. (६)
हे अ तशय युवक अ न! यजमान के लए तु त करने वाले तोता के तु ह तु त वषय हो. तु हारी ज ाएं सुख दे ने वाली ह. भली कार बुलाए जाने पर तुम हमारा अ भ ाय समझो एवं आयु बढ़ा कर क व को द घजीवी बनाओ. वह दे वभ है, तुम उसका स मान करो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
होतारं व वेदसं सं ह वा वश इ धते. स आ वह पु त चेतसोऽ ने दे वाँ इह वत्.. (७) तुझ होम न पादक एवं सव अ न को जाएं भली-भां त व लत करती ह. हे ब त ारा आ त अ न! तुम उ म ान संप दे व को इस य म शी लाओ. (७) स वतारमुषसम ना भगम नं ु षु पः. क वास वा सुतसोमास इ धते ह वाहं व वर.. (८) हे शोभन य से यु अ न! नशा समा त के प ात् भात होने पर स वता, उषा, अ नीकुमार, भग आ द को य म ले आओ. सोमरस नचोड़ने वाले मेधावी ऋ वज् तु ह चंड करते ह. (८) प त वराणाम ने तो वशाम स. उषबुध आ वह सोमपीतये दे वाँ अ
व शः.. (९)
हे अ न! तुम जा के य पालक एवं दे वता के त हो. ातःकाल जागकर सूय के दशन करने वाले दे व को सोमरस पीने के लए यहां लाओ. (९) अ ने पूवा अनूषसो वभावसो द दे थ व दशतः. अ स ामे व वता पुरो हतो ऽ स य ेषु मानुषः.. (१०) हे व श काशवान् एवं धन के वामी अ न! तुम सबके दशनीय हो. तुम अतीतकाल म उषा के प ात् का शत होते रहे हो. तुम गाय के र क, य क वेद के पूव दशा वाले भाग म अब भी थत एवं य क ा के हतसाधक हो. (१०) न वा य य साधनम ने होतारमृ वजम्. मनु व े व धीम ह चेतसं जीरं तमम यम्.. (११) हे अ न! तुम य के साधन, दे वता का आ ान करने वाले, ऋ वज्, उ म ानसंप , श ु क आयु न करने वाले, दे व त तथा मरणर हत हो. हम मनु के समान तु ह य म था पत करते ह. (११) य े वानां म महः पुरो हतोऽ तरो या स यम्. स धो रव व नतास ऊमयोऽ ने ाज ते अचयः.. (१२) हे म पूजक अ न! जब तुम य वेद के पूव भाग म था पत होकर दे वय म वतमान रहते ए उनका तकम करते हो, तब तु हारी लपट उसी कार चमकती ह, जस कार गरजते ए सागर क लहर चमकती ह. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ु ध ु कण व भदवैर ने सयाव भः. आ सीद तु ब ह ष म ो अयमा ातयावाणो अ वरम्.. (१३) हे सुनने म समथ कान वाले अ न! हमारी तु त सुनो. म , अयमा तथा जो अ य दे वता ातःकाल दे वय म जाते ह, अपने साथ आने वाले अ य ह वाही दे व स हत तुम य के न म बछे ए कुश पर बैठो. (१३) शृ व तु तोमं म तः सुदानवोऽ न ज ा ऋतावृधः. पबतु सोमं व णो धृत तोऽ यामुषसा सजूः.. (१४) शोभन फलदाता, अ न पी ज ा वाले एवं य क वृ करने वाले म द्गण हमारा तो सुन. वे त धारण करने वाले व ण, अ नीकुमार एवं उषा के साथ सोमपान कर. (१४)
दे वता—अ न
सू —४५ वम ने वसूँ रह
ाँ आ द याँ उत. यजा व वरं जनं मनुजातं घृत ुषम्.. (१)
हे अ न! तुम इस अनु ान म वसु , और आ द य का यजन करो. तुम शोभन य करने वाले, जाप त मनु ारा उ पा दत एवं जल स चने वाल क भी अचना करो. (१) ु ीवानो ह दाशुषे दे वा अ ने वचेतसः. तान् रो हद गवण य ंशतमा वह.. (२) हे अ न! वशेष बु वाले दे वता ह दे ने वाले यजमान को फल दे ते ह. हे रो हत अ के वामी एवं तु तपा अ न! तुम ततीस दे व को यहां ले आओ. (२) यमेधवद व जातवेदो व पवत्. अ र वम ह त क व य ध ु ी हवम्.. (३) हे अनेक कम करने वाले एवं सव अ न! यमेधा, अ , व प और अं गरा नामक ऋ षय के समान क व क पुकार भी सुनो. (३) म हकेरव ऊतये यमेधा अ षत. राज तम वराणाम नं शु े ण शो चषा.. (४) ौढ़कमा एवं य य से सुशो भत ऋ षय ने अपनी र ा के लए य के म य शु काश ारा चमकने वाले अ न का आ ान कया था. (४) घृताहवन स येमा उ षु ुधी गरः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या भः क व य सूनवो हव तेऽवसे वा.. (५) हे घृत ारा बुलाए गए एवं फल द अ न! क व के पु तु ह जन वचन से अपनी र ा के लए बुलाते थे, हमारे ारा यु यमान उ ह वचन को सुनो. (५) वां च व तम हव ते व ु ज तवः. शो च केशं पु या ने ह ाय वो हवे.. (६) हे व वध ह व प अ यु एवं यजमान के यकारक अ न! तु हारी चमक ली लपट तु हारे केश ह. यजमान तु ह ह -वहन करने के लए बुलाते ह. (६) न वा होतारमृ वजं द धरे वसु व मम्. ु कण स थ तमं व ा अ ने द व षु.. (७) हे अ न दे व! बु मान् लोग आ ान करने वाले, ऋतु म य संप करने वाले, व वध धन ा त कराने वाले, वण समथ कान से यु एवं अ यंत स तुमको य म धारण करते ह. (७) आ वा व ा अचु यवुः सुतसोमा अ भ यः. बृह ा ब तो ह वर ने मताय दाशुषे.. (८) हे अ न! सोमरस नचोड़ने वाले बु मान् ऋ वज् ह दाता यजमान के लए तु ह अ के समीप बुलाते ह. तुम महान् एवं तेज वी हो. (८) ातया णः सह कृत सोमपेयाय स य. इहा दै ं जनं ब हरा सादया वसो.. (९) हे का बल ारा म थत, फलदाता एवं नवास हेतु अ न! इस दे वय म आज ातःकाल आने वाले दे व एवं उनसे संबं धत अ य जन को सोमपान के लए कुश पर बुलाओ. (९) अवा चं दै ं जनम ने य व स त भः. अयं सोमः सुदानव तं पात तरो अ यम्.. (१०) हे अ न! अपने सामने उप थत दे व एवं उनसे संबं धत अ य जन के समान आ ान के ारा यजन करो. हे शोभन दान करने वाले दे वो! जो सोमरस तु हारे न म पछले दन नचोड़ा गया है, सामने उप थत उस सोमरस का पान करो. (१०)
सू —४६
दे वता—अ नीकुमार
******ebook converter DEMO Watermarks*******
एषो उषा अपू ा
ु छत
या दवः. तुषे वाम ना बृहत्.. (१)
यह य उषा म य रा आ द पूव काल म वतमान नह थी. यह इसी समय आकाश से आकर अंधकार मटाती है. हे अ नीकुमारो! म तु हारी ब त तु त करता ं. (१) या द ा स धुमातरा मनोतरा रयीणाम्. धया दे वा वसु वदा.. (२) म दशनीय एवं समु पु अ नीकुमार क तु त करता ं. वे शोभन संप य करने पर हम नवास थान दान करते ह. (२)
दे ते ह और
व य ते वां ककुहासो जूणायाम ध व प. य ां रथो व भ पतात्.. (३) हे अ नीकुमारो! जस समय तु हारा रथ व वध शा ारा शं सत वग म घोड़ ारा ख चा जाता है, उसी समय हम तु हारी तु त करते ह. (३) ह वषा जारो अपां पप त पपु रनरा. पता कुट य चष णः.. (४) हे नेता प अ नीकुमारो! दयापूण वभाव, पालक, य कम के दशक एवं अपने ताप से जल को सुखाने वाले स वता हमारे ारा ह से दे व को स कर. (४) आदारो वां मतीनां नास या मतवचसा. पातं सोम य धृ णुया.. (५) (५)
हे तु त हण करने वाले नास यो! बु
ेरक एवं ती मदकारक सोमरस को पओ.
या नः पीपरद ना यो त मती तम तरः. ताम मे रासाथा मषम्.. (६) हे अ नीकुमारो! हम इस वीय आ द यो त से यु अंधकार को मटाकर तृ त दान करता है. (६) आ नो नावा मतीनां यातं पाराय ग तवे. यु
अ दो. वह अ द र ता
पी
ाथाम ना रथम्.. (७)
हे अ नीकुमारो! तु तय पी सागर के पार जाने के लए तुम नौका बनकर आओ एवं धरती पर आने के लए अपने रथ म घोड़े जोड़ो. (७) अ र ं वां दव पृथु तीथ स धूनां रथः. धया युयु
इ दवः.. (८)
हे अ नीकुमारो! सागर तट पर थत तु हारी नौका आकाश से भी वशाल है. धरती पर गमन करने के लए तु हारे पास रथ है. तु हारे य कम म सोमरस भी स म लत रहता है. (८) दव क वास इ दवो वसु स धूनां पदे . वं व
कुह ध सथः.. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे क वपु ो! अ नीकुमार से यह पूछो क आकाश से सूय करण उ प होती ह एवं वृ के उ प थल उसी आकाश से हमारे वकास का कारण उषाकालीन काश भी कट होता है. हे अ नीकुमारो! इन दोन थान म से तुम अपना प कहां था पत करना चाहते हो? (९) अभू भा उ अंशवे हर यं
त सूयः.
य ज या सतः.. (१०)
सूय के काश से उषाकाल म र मयां उ प ई ह. उ दत आ सूय सोने के समान बन जाता है. आकाश म सूय के आ जाने के कारण अ न काले रंग क होकर अपनी लपट से का शत है. (१०) अभू पारमेतवे प था ऋत य साधुया. अद श व ु त दवः.. (११) रा के पार उदयाचल तक जाने के लए सूय का माग सुंदर बना आ है. आकाश को का शत करने वाले सूय क द त दखाई दे ती है. (११) त दद नोरवो ज रता
त भूष त. मदे सोम य प तोः.. (१२)
तोतागण स ता के लए सोमपान करने वाले अ नीकुमार र ा क बार-बार शंसा करते ह. (१२)
ारा क गई अपनी
वावसाना वव व त सोम य पी या गरा. मनु व छं भू आ गतम्.. (१३) हे सुखदाता अ नीकुमारो! तुम सोमपान और तु त समान प रचारक यजमान के घर म नवास करो. (१३) युवो षा अनु
वण करने के लए मनु के
यं प र मनो पाचरत्. ऋता वनथो अ ु भः.. (१४)
हे चार ओर गमनशील अ नीकुमारो! तु हारे आगमन क शोभा का अनुसरण करती ई उषा आवे. तुम दोन नशा म संपा दत य का ह व हण करो. (१४) उभा पबतम नोभा नः शम य छतम्. अ व या भ
त भः.. (१५)
हे अ नीकुमारो! तुम दोन सोमरस पओ. इसके प ात् तुम अपनी हम सुखदान करो. (१५)
सू —४७
स
दे वता—अ नीकुमार
अयं वां मधुम मः सुतः सोम ऋतावृधा. तम ना पबतं तरोअ यं ध ं र ना न दाशुषे.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
र ा ारा
हे य व नक ा अ नीकुमारो! आपके सामने रखा आ सोमरस अ यंत मधुर एवं कल ही नचोड़ा गया है. इसे पान करो एवं ह दाता यजमान को रमणीय धन दो. (१) व धुरेण वृता सुपेशसा रथेना यातम ना. क वासो वां कृ व य वरे तेषां सु शृणुतं हवम्.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम अपने वध बंधन का वाले, तीन लोक म गमनशील एवं शोभन वण वाले रथ से यहां आओ तथा क वपु ारा तु हारे लए कए जा रहे तु त पाठ को आदरपूवक सुनो. (२) अ ना मधुम मं पातं सोममृतावृधा. अथा द ा वसु ब ता रथे दा ांसमुप ग छतम्.. (३) हे य व नक ा अ नीकुमारो! अ यंत मधुर सोमरस पओ. इसके प ात् तुम रथ म धन लेकर ह वदाता यजमान के समीप आओ. (३) षध थे ब ह ष व वेदसा म वा य ं म म तम्. क वासो वां सुतसोमा अ भ वो युवां हव ते अ ना.. (४) हे सव अ नीकुमारो! तीन परत के प म बछे ए कुश पर बैठकर मधुर रस से इस य को स करने क इ छा करो. द तसंप क व पु सोमरस नचोड़कर तु ह बुला रहे ह. (४) या भः क वम भ भः ावतं युवम ना. ता भः व१ माँ अवतं शुभ पती पातं सोममृतावृधा .. (५) हे शोभनकमपालक अ नीकुमारो! जस अभी र ण या से तुम दोन ने क व क र ा क थी, उसी के ारा हमारी भी र ा करो. हे य वधक दे वो! सोमपान करो. (५) सुदासे द ा वसु ब ता रथे पृ ो वहतम ना. र य समु ा त वा दव पय मे ध ं पु पृहम्.. (६) हे दशनीय अ नीकुमारो! तुम जस कार दानशील सुदास के लए रथ म धन एवं अ भरकर लाए थे, उसी कार हम आकाश से लाकर ब त ारा वांछनीय धन दो. (६) य ास या पराव त य ा थो अ ध तुवशे. अतो रथेन सुवृता न आ गतं साकं सूय य र म भः.. (७) हे नास यो! चाहे तुम र दे श म रहो, चाहे अ यंत समीप, पर सूय दय होने पर अपने शोभन रथ पर बैठकर सूय करण के साथ हमारे समीप आओ. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अवा चा वां स तयोऽ वर यो वह तु सवने प. इषं पृ च ता सुकृते सुदानव आ ब हः सीदतं नरा.. (८) हे अ नीकुमारो! य सेवी सात घोड़े हमारे ारा अनु त तीन सवनय म तु ह ले जाव. हे नेताओ! सुंदर दान करने वाले एवं शोभन कम करने वाले यजमान को अ दे ते ए तुम लोग कुश पर बैठो. (८) तेन नास या गतं रथेन सूय वचा. येन श हथुदाशुषे वसु म यः सोम य पीतये.. (९) हे नास यो! तुमने सूय करण तु य तेज वी जस रथ पर धन लाकर यजमान को सदा दया है, उसी रथ के ारा मधुर सोमरस पीने के लए आओ. (९) उ थे भरवागवसे पु वसू अक न यामहे. श क वानां सद स ये ह कं सोमं पपथुर ना.. (१०) हम भूत धन के वामी अ नीकुमार को उ थ एवं तो ारा अपने समीप बुलाते ह. हे अ नीकुमारो! तुमने क वपु के य य म सदा सोमपान कया है. (१०)
सू —४८
दे वता—उषा
सह वामेन न उषो ु छा हत दवः. सह ु नेन बृहता वभाव र राया दे व दा वती.. (१) हे वगपु ी उषा! हमारे धन के साथ भात करो. हे वभावरी! पया त अ के साथ भात करो. हे दे व! तुम दानशील होकर पशु पी धन के साथ भात करो. (१) अ ावतीग मती व सु वदो भू र यव त व तवे. उद रय त मा सूनृता उष ोद राधो मघोनाम्.. (२) हे अनेक अ स हत, अनेक गाय से यु एवं सम त संप दे ने वाली उषादे वी! जा को सुख दे ने के लए तु हारे पास अ यंत धन है. तुम मुझ स य भाषण क ा को बल एवं धनवान का धन दो. (२) उवासोषा उ छा च नु दे वी जीरा रथानाम्. ये अ या आचरणेषु द रे समु े न व यवः.. (३) रथ को ेरणा दे ने वाली उषादे वी ाचीन काल म भात करती थी और अब भी भात करती है. जस कार धन के इ छु क लोग समु म नाव चलाते ह, उसी कार उषा के आने पर रथ तैयार कए जाते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उषो ये ते यामेषु यु ते मनो दानाय सूरयः. अ ाह त क व एषां क वतमो नाम गृणा त नृणाम्.. (४) हे उषा! तु हारा गमन आरंभ होते ही व ान् लोग धन आ द के दान म द च हो जाते ह. परम मेधावी क व ऋ ष इन दाने छु लोग के नाम उषाकाल म उ चारण करते ह. (४) आ घा योषेव सूनयुषा या त भु ती. जरय ती वृजनं प द यत उ पातय त प णः.. (५) उषा घर का काम करने वाली यो य गृ हणी के समान सबका पालन करती ई, गमनशली ा णय को बूढ़ा बनाती ई, पैर वाले ा णय को चलाती ई और उड़ाती ई आती है. (५) व या सृज त समनं १ थनः पदं न वे योदती. वयो न क े प तवांस आसते ु ौ वा जनीव त.. (६) तुम कमठ पु ष को काम म लगाती हो और भ ुक को घर छोड़ने पर ववश कर दे ती हो. तुम ओस बरसाने वाली हो एवं अ धक दे र नह ठहरती हो. हे अ संप ा उषा! तु हारे भातकाल म प ीगण अपने घ सल म नह रह पाते. (६) एषायु परावतः सूय योदयनाद ध. शतं रथे भः सुभगोषा इयं व या य भ मानुषान्.. (७) यह सौभा यशा लनी एवं रथ म घोड़े जोड़ने वाली उषा र सूय के उदय थान से सौ रथ ारा मनु य के समीप आती है. (७) व म या नानाम च से जग जयो त कृणो त सूनरी. अप े षो मघोनी हता दव उषा उ छदप धः.. (८) सम त ाणी इस उषा के काश को नम कार करते ह, य क यह सुंदर ने ी उषा काश दे ती है और यही धनवती वगपु ी े षय एवं शोषक को र भगाती है. (८) उष आ भा ह भानुना च े ण हत दवः. आवह ती भूय म यं सौभगं ु छ ती द व षु.. (९) हे वगपु ी उषा! तुम सबको स करने वाली यो त के साथ का शत होती ई हम त दन सौभा य दो एवं अंधकार को मटाओ. (९) व
य ह ाणनं जीवनं वे व य छ स सून र.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सा नो रथेन बृहता वभाव र ु ध च ामघे हवम्.. (१०) हे सुने ी उषा! सम त ा णय क चे ाएं एवं जीवन तु ह म वतमान है, य क तु ह अंधकार को मटाती हो. हे वभावरी! वशाल रथ पर चढ़कर हमारे पास आओ. हे व च धनसंप ! हमारा आ ान सुनो. (१०) उषो वाजं ह वं व य ो मानुषे जने. तेना वह सुकृतो अ वराँ उप ये वा गृण त व यः.. (११) हे उषा! यजमान के पास जो व च अ है, उसे तुम वीकार करो. जो य क ा तु हारी तु त करते ह, उन यजमान को हसार हत य म ले आओ. (११) व ा दे वाँ आ वह सोमपीतयेऽ त र ा ष वम्. सा मासु धा गोमद ाव य१मुषो वाजं सुवीयम्.. (१२) हे उषा! तुम सोमपान के लए अंत र से सभी दे व को हमारे य थान म ले आओ. हे उषा! तुम हम अ एवं गाय से यु शंसनीय एवं श संप अ दो. (१२) य या श तो अचयः त भ ा अ त. सा नो र य व वारं सुपेशसमुषा ददातु सु यम्.. (१३) जस उषा का काश श ु का नाश करता आ क याण प म दखाई दे ता है, वह हम सबके ारा वरण करने यो य, सुंदर एवं सुखदायक अ दान करे. (१३) ये च वामृषयः पूव ऊतये जु रेऽवसे म ह. सा नः तोमाँ अ भ गृणी ह राधसोषः शु े ण शो चषा.. (१४) हे पूजनीय उषा! तु ह चरंतन स ऋ षय ने र ण एवं अ के लए बुलाया था. तुम धन एवं तेज से संप होकर हमारी तु त को वीकार करो. (१४) उषो यद भानुना व ारावृणवो दवः. नो य छतादवृकं पृथु छ दः दे व गोमती रषः.. (१५) हे उषा! तुमने आज भात के समय आकाश के दोन ार को खोल दया है, इस लए हम हसकर हत एवं व तृत घर के साथ-साथ गाय से यु धन दान करो. (१५) सं नो राया बृहता व पेशसा म म वा स मळा भरा. सं ु नेन व तुरोषो म ह सं वाजैवा जनीव त.. (१६) हे उषा! हम भूत एवं अनेक प धन एवं गाएं दान करो. हे पू य उषा! हम सब श ु का नाश करने वाला यश दो. हे अ साधन क या से संप उषा! हम धन दो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(१६)
दे वता—उषा
सू —४९ उषो भ े भरा ग ह दव ोचनाद ध. वह व ण सव उप वा सो मनो गृहम्.. (१) हे उषा! काशमान आकाश से सुंदर माग सोमयु यजमान के य म ले जाए. (१)
ारा आओ. लाल रंग क गाय तु ह
सुपेशसं सुखं रथं यम य था उष वम्. तेना सु वसं जनं ावा हत दवः.. (२) हे उषा! तुम जस सुंदर एवं व तृत रथ पर बैठती हो, हे वगपु ी! उसी रथ से आज ह दाता यजमान के पास आओ. (२) वय े पत णो प चतु पदजु न. उषः ार ृतूँरनु दवो अ ते य प र.. (३) हे शु वण वाली उषा! तु हारा आगमन दे खकर दो पैर वाले मनु य, चार पैर वाले पशु एवं पंख वाले प ी अपने-अपने ापार म लग जाते ह. (३) ु छ ती ह र म भ व माभा स रोचनम्. तां वामुषवसूयवो गी भः क वा अ षत.. (४) हे उषा! तुम अंधकार का नाश करती ई अपने तेज से सारे जगत् को का शत करो. धन चाहने वाले क वपु ने तु त वचन से तु हारी शंसा क है. (४)
सू —५० उ
दे वता—सूय
यं जातवेदसं दे वं वह त केतवः. शे व ाय सूयम्.. (१)
सूय के घोड़े सब ा णय को जानने वाले ह, वे काशयु जाते ह क सारा संसार उ ह दे ख सके. (१) अप ये तायवो यथा न
सूय को इस लए ऊपर ले
ा य य ु भः. सूराय व च से.. (२)
सबको का शत करने वाले सूय का आगमन दे खकर न जाते ह, जस कार चोर भागते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रा स हत इस कार भाग
अ
म य केतवो व र मयो जनाँ अनु. ाज तो अ नयो यथा.. (३)
सूय क सूचना दे ने वाली करण चमकती ई आग के समान ह. वे एक-एक करके संपूण जगत् को दे खती ह. (३) तर ण व दशतो यो त कृद स सूय. व मा भा स रोजनम्.. (४) हे सूय! तुम वशाल माग पर चलने वाले सम त ा णय के दशनीय एवं काश के क ा हो. यह संपूण य जगत् तु हारे ारा का शत होकर चमकने लगता है. (४) यङ् दे वानां वशः
यङ् ङु दे ष मानुषान्.
यङ् व ं व शे.. (५)
हे सूय! तुम म त्दे व एवं मनु य के सामने उदय होते हो. तुम वगलोक को दे खने के लए उदय होओ. (५) येना पावक च सा भुर य तं जनाँ अनु. वं व ण प य स.. (६) हे सूय! तुम सबके शोधक एवं अ न नवारक हो. तुम जस कार काश के ारा ा णय का भरणपोषण करते ए इस जगत् को दे खते हो, हम उसी काश क तु त करते ह. (६) व ामे ष रज पृ वहा ममानो अ ु भः. प य
मा न सूय.. (७)
हे सूय! तुम उसी काश के ारा रा के साथ-साथ दन का भी उ पादन करते ए सम त ा णय को दे खते ए व तृत रजोलोक एवं अंत र म गमन करते हो. (७) स त वा ह रतो रथे वह त दे व सूय. शो च केशं वच ण.. (८) हे सूय! तुम द तमान् एवं सव काशक हो. करण ही तु हारे केश ह. ह रत नाम के सात घोड़े तु ह रथ म बठाकर ले चलते ह. (८) अयु
स त शु युवः सूरो रथ य न यः. ता भया त वयु
भः.. (९)
सबके ेरक सूय ने रथ को ख चने वाली सात घो ड़य को अपने रथ म जोड़ा है. रथ म जुड़ी ई उन घो ड़य के ारा ही सूय चलते ह. (९) उ यं तमस प र यो त प य त उ रम्. दे वं दे व ा सूयमग म यो त मम्.. (१०) रा काशयु
के अंधकार के ऊपर उठ यो त को दे खकर हम सम त दे व म अ धक सूय के समीप जाते ह. सूय ही सबसे उ म यो त वाले ह. (१०)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ
म मह आरोह ु रां दवम्. ोगं मम सूय ह रमाणं च नाशय.. (११)
हे सूय! तुम सबके अनुकूल काश से यु हो. तुम आज उदय होकर एवं ऊंचे आकाश म चढ़कर मेरा दय-रोग एवं ह रमाण नामक शरीर रोग न करो. (११) शुकेषु मे ह रमाणं रोपणाकासु द म स. अथो हा र वेषु मे ह रमाणं न द म स.. (१२) म अपने ह रमाण नामक शारी रक रोग को तोता और मैना नामक प य पर था पत करता ं. म अपना ह रमाण रोग को ह द पर था पत करता ं. (१२) उदगादयमा द यो व ेन सहसा सह. ष तं म ं र धय मो अहं षते रधम्.. (१३) ये स मुख वतमान सूय मेरे अ न कारक रोग का वनाश करने के लए संपूण तेज के साथ उदय ए ह. म अपने अ न कारी रोग का वनाशक ा नह ं. (१३)
सू —५१
दे वता—इं
अ भ वं मेषं पु तमृ मय म ं गी भमदता व वो अणवम्. य य ावो न वचर त मानुषा भुजे मं ह म भ व मचत.. (१) हे तोताओ! यजमान ारा बुलाए गए, ऋ वज ारा तु त कए जाते ए, धन के आवास एवं बलवान् इं को अपने वचन ारा स करो. जो इं सूय करण के समान सबका हत करते ह, उ ह अ तशय बु एवं मेधावी इं क भोग ा त के लए अचना करो. (१) अभीमव व व भ मूतयोऽ त र ां त वषी भरावृतम्. इ ं द ास ऋभवो मद युतं शत तुं जवनी सूनृता हत्.. (२) सबका र ण एवं वधन करने वाले ऋभुगण नामक म त ने शोभन, आगमनशील, अपने तेज से आकाश को पूण करने वाले, अ त बली, श ु का गव न करने वाले एवं शत तु इं के स मुख आकर उनक सहायता क . (२) वं गो ामङ् गरो योऽवृणोरपोता ये शत रेषु गातु वत्. ससेन च मदायावहो व वाजाव वावसान य नतयन्.. (३) हे इं ! तुमने अ श द करने वाले एवं वषा के नरोधक मेघ को अपने व से हटाकर अं गरा ऋ षय के लए जल बरसाया था. जब असुर ने अ को पीड़ा प ंचाने के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
लए शत ार नामक यं का योग कया था, तब तुमने उ ह माग बताया था. तुमने वमद ऋ ष के लए अ यु धन दान कया था, इसी कार तुमने सं ाम म वजय ा त के लए तु त करने वाले अनेक तोता को व चलाकर बचाया था. (३) वमपाम पधानाऽवृणोरपाधारयः पवते दानुम सु. वृ ं य द शवसावधीर हमा द सूय द ारोहयो शे.. (४) हे इं ! तुमने जल के अवरोधक मेघ को हटा दया है एवं वृ आ द असुर को परा जत करके उनका धन पवत पर छपा दया है. तुमने तीन लोक क हसा करने वाले वृ का वध कया एवं उसके तुरंत प ात् संसार को दे खने के लए सूय को आकाश म चढ़ा दया था. (४) वं माया भरप मा यनोऽधमः वधा भय अ ध शु तावजु त. वं प ोनृमणः ा जः पुरः ऋ ज ानं द युह ये वा वथ.. (५) हे इं ! जो असुर ह व य अ से सुशो भत अपने मुख म ही य ीय साम ी डाल लेते थे, तुमने उन माया वय को माया ारा परा जत कया था. हे यजमान पर अनु हबु रखने वाले इं ! तुमने प ु असुर के नवास थान व त कर दए थे. तुमने ह या करने के लए उ त द यु के हाथ म पड़े ऋ ज ान् क पूणतया र ा क थी. (५) वं कु सं शु णह ये वा वथार धयोऽ त थ वाय श बरम्. महा तं चदबुदं न मीः पदा सनादे व द युह याय ज षे.. (६) हे इं ! तुमने शु ण असुर के साथ भयानक सं ाम म कु स ऋ ष क र ा क थी तथा अ त थय का वागत करने वाले दवोदास को बचाने के लए शंबर असुर का वध कया था. तुमने अबुद नामक महान् असुर को पैर से कुचल डाला था. इस कार तु हारा ज म द युनाश के लए आ जान पड़ता है. (६) वे व ा ता वषी स य घता तव राधः सोमपीथाय हषते. तव व कते बा ो हतो वृ ा श ोरव व ा न वृ या.. (७) हे इं ! तुम म संपूण बल न हत है एवं सोमरस पीने के बाद तु हारा मन अ यंत स हो जाता है. हम यह जानते ह क तु हारे दोन हाथ म व रहता है. इस लए तुम श ु का सम त बल छ करो. (७) व जानी ाया ये च द यवो ब ह मते र धया शासद तान्. शाक भव यजमान य चो दता व े ा ते सधमादे षु चाकन.. (८) हे इं ! पहले तुम यह बात जानो क कौन आय है और कौन द यु? इसके प ात् तुम कुशयु य का वरोध करने वाल को न करके उ ह यजमान के वश म लाओ. तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श शाली हो, इस लए य करने वाल के सहायक बनो. म तोता भी तु ह स ता दे ने वाले य के तु हारे उन सम त कम क शंसा करना चाहता ं. (८) अनु ताय र धय प तानाभू भ र ः थय नाभुवः. वृ य च धतो ा मन तः तवानो व ो व जघान सं दहः.. (९) जो इं य वरो धय को य य यजमान के वश म ला दे ते ह तथा अपने अ भमुख तोता ारा तु तपरांगमुख का नाश करा दे ते ह, ब ु ऋ ष ने ऐसे बु शील एवं वग ापी इं क तु त करते ए य म एक त धन समूह ले लया था. (९) त उशना सहसा सहो व रोदसी म मना बाधते शवः. आ वा वात य नृमणो मनोयुज आ पूयमाणमवह भ वः.. (१०) हे इं ! जब शु ने अपने बल के सहयोग से तु हारी श को ती ण कर दया था, तब तु हारे उस वशु बल ने अपनी ती णता ारा धरती और आकाश को भयभीत बना दया था. हे यजमान के त अनु हबु रखने वाले इं ! बल से पूण तु हारी इ छा से रथ म जोड़े गए एवं वायु के समान वेगशाली घोड़े तु ह य अ के स मुख ले आव. (१०) म द य शने का े सचाँ इ ो वङ् कू वङ् कुतरा ध त त. उ ो य य नरपः ोतसासृज शु ण य ं हता ऐरय पुरः.. (११) हे इं ! जब सुंदर शु ाचाय ने तु हारी तु त क थी, तब तुम व ग त वाले दोन घोड़ को रथ म जोड़कर उस पर सवार थे. उ इं ने चलने वाले बादल से धारा प म जल बरसाया था एवं सबको सताने वाले शु ण असुर के व तृत नगर को न कर दया था. (११) आ मा रथं वृषपाणेषु त स शायात य भृता येषु म दसे. इ यथा सुतसोमेषु चाकनोऽनवाणं ोकमा रोहसे द व.. (१२) हे इं ! तुम सोमरस पीने के लए रथ पर बैठकर गमन करते हो. जस सोम से तुम स होते हो, वही सोम शायात राज ष ने तैयार कया है. तुम जस कार अ य य म नचोड़े ए सोमरस को पीते हो, उसी कार इस शायात के सोम क भी कामना करो. ऐसा करने से तुम वग म थर यश ा त करोगे. (१२) अददा अभा महते वच यवे क ीवते वृचया म सु वते. मेनाभवो वृषण य सु तो व े ा ते सवनेषु वा या.. (१३) हे इं ! तुमने य म सोम नचोड़ने वाले एवं तु हारी तु त करने के इ छु क वृ क ीवान् ऋ ष को वृचया नामक युवती दान क थी. हे शोभन कम करने वाले इं ! तुम वृषणा राजा के घर मेना नामक क या के प म उ प ए थे. सोमरस नचोड़ते समय तु हारी इन सब कथा का वणन होना चा हए. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ो अ ा य सु यो नरेके प ेषु तोमो य न यूपः. अ युग ू रथयुवसूयु र इ ायः य त य ता.. (१४) शोभन कम वाले यजमान नधनता से सुर त होने के लए इं क सेवा करते ह. अं गरावंशी य के तो य ार पर गड़े लकड़ी के खंभ के समान न ल ह. धन दे ने वाले इं यजमान के लए अ , रथ एवं व वध संप य को दे ने क इ छा करते ह तथा सब कार के धन दे ने के लए थत ह. (१४) इदं नमो वृषभाय वराजे स यशु माय तवसेऽवा च. अ म वृजने सववीराः म सू र भ तव शम याम.. (१५) हे इं ! तुम वणनशील, अपने तेज के ारा का शत, वा त वक बलसंप एवं अ यंत महान् हो. हमने यह तु त वचन तु हारे लए ही योग कया है. हम इस यु म सम त वीर स हत वजय ा त करके तु हारे ारा दए ए सुंदर घर म व ान् ऋ वज के साथ नवास कर. (१५)
सू —५२
दे वता—इं
यं सु मेषं महया व वदं शतं य य सु वः साकमीरते. अ यं न वाजं हवन यदं रथमे ं ववृ यामवसे सुवृ भः.. (१) हे अ वयुगणो! उन बली इं क पूजा करो, जनक तु त सौ तोता एक साथ मलकर करते ह और जो वग ा त करा दे ते ह. इं का रथ तेज दौड़ते ए घोड़े के समान अ यंत वेगपूवक य क ओर चलता है. म अपनी तु तय के ारा इं से अनुरोध करता ं क वे उसी रथ पर चढ़कर मेरी र ा कर. (१) स पवतो न ध णे व युतः सह मू त त वषीषु वावृधे. इ ो यद्वृ मवधी द वृतमु ज णा स ज षाणो अ धसा.. (२) जस समय य ीय अ से स इं ने जल क वषा करते ए नद के वाह को रोकने वाले वृ का वध कया, उस समय वह धारा प म बहने वाले जल के बीच पवत के समान अचल रहा एवं उसने मनु य क हजार कार से र ा करके पया त श ा त क . (२) स ह रो रषु व ऊध न च बु नो मदवृ ो मनी ष भः. इ ं तम े वप यया धया मं ह रा त स ह प र धसः.. (३) म व ान् ऋ वज के साथ आ मणकारी श ु को जीतने वाले, जल के समान आकाश म ा त, सबक स ता के कारण, सोमपान से बु ा त, महान् एवं धनसंप इं को अपनी शोभन काय यो य बु से बुलाता ,ं य क वे इं अ को पूण करने वाले ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. (३) आ यं पृण त द व स ब हषः समु ं न सु व१ वा अ भ यः. तं वृ ह ये अनु त थु तयः शु मा इ मवाता अ त सवः.. (४) जस कार समु क ओर दौड़ती इसक आ मीय स रताएं उसे पूण करती ह, उसी कार कुश पर रखा आ सोमरस वगलोक म अव थत इं को पूणता दान करता है. श ु का शोषण करने वाले, श ुर हत एवं शोभन शरीर म द्गण वृ वध के समय उ ह के सहायक के प म उनके पास खड़े थे. (४) अ भ ववृ मदे अ य यु यतो र वी रव वणे स ु तयः. इ ो य ी धृषमाणो अ धसा भन ल य प रध रव तः.. (५) जस कार वभाव के अनुसार जल नीचे क ओर बहता है, उसी कार इं के सहायक म द्गण सोमपान ारा स होकर इं के साथ यु करते ए वृ के वामी वृ के सामने गए. जस कार त नामक पु ष ने प र धय का भेदन कया था, उसी कार इं ने सोमरस से श शाली बनकर बल नामक असुर को वद ण कर दया था. (५) पर घृणा चर त त वषे शवोऽपो वृ वी रजसो बु नमाशयत्. वृ य य वणे गृ भ नो नजघ थ ह वो र त यतुम्.. (६) हे इं ! वृ नामक असुर जल को रोककर आकाश म सोया था. आकाश म वृ के व तार क कोई सीमा नह थी. तुमने अपने श द करते ए व के ारा उसी वृ क ठोड़ी को जस समय घायल कया था, उसी समय तु हारा श ु वजयी तेज व तृत हो गया एवं तु हारा बल सव का शत हो गया. (६) दं न ह वा यृष यूमयो ाणी तव या न वधना. व ा च े यु यं वावृधे शव तत व म भभू योजसम्.. (७) हे इं ! जस कार जल के वाह जलाशय म प ंच जाते ह, उसी कार तु हारी वृ करने वाले तो तु ह ा त हो जाते ह. व ा दे व ने ही तु हारे यो य तु हारा बल बढ़ाया है. उसी ने श ु को अ भभूत करने वाले तेज से संप तु हारे व को ती ण बनाया है. (७) जघ वां उ ह र भः संभृत त व वृ ं मनुषे गातुय पः. अय छथा बा ोव मायसमधारयो द ा सूय शे.. (८) हे य कम संपादक इं ! तुमने अपने भ जन के समीप आने के लए रथ म अ जोड़कर वृ असुर का नाश कया, के ए जल क वषा क , अपने दोन बा मव धारण कया एवं हम सबके दशन के न म सूय को आकाश म था पत कया. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बृह व ममव य१मकृ वत भयसा रोहणं दवः. य मानुष धना इ मूतयः वनृषाचो म तोऽमद नु.. (९) वृ असुर के भय से तोता ने बृहत्, स ताकारक तेज से यु , बलसंप एवं वग के सोपानभूत तो का गान कया था. उस समय वगलोक क र ा करने वाले म द्गण ने मनु य क र ा के लए वृ से यु करके एवं तोता का पालन करके इं को वृ वध के लए उ सा हत कया. (९) ौ द यामवाँ अहेः वनादयोयवी यसा व इ ते. वृ य य धान य रोदसी मदे सुत य शवसा भन छरः.. (१०) हे इं ! जब नचोड़े ए सोमरस को पीकर तुम अ यंत ह षत हो रहे थे, तब तु हारे व ने धरती और आकाश म बाधक बनने वाले वृ का सर वेग से काट दया था. उस समय बलवान् आकाश भी वृ के श द भय से कांपने लगा था. (१०) य द व पृ थवी दशभु जरहा न व ा ततन त कृ यः. अ ाह ते मघव व ुतं सहो ामनु शवसा बहणा भुवत्.. (११) हे इं ! य द पृ वी अपने वतमान आकार से दस गुनी बड़ी होती और उस पर रहने वाले मनु य सदा जी वत रहते, तब भी तु हारी वृ वधका रणी श सव स होती. तु हारे ारा वृ का वध आकाश के समान वशाल काय है. (११) वम य पारे रजसो ोमनः वभू योजा अवसे धृष मनः. चकृषे भू म तमानमोजसोऽपः वः प रभूरे या दवम्.. (१२) हे श ुनाशक इं ! तुमने इस ापक आकाश के ऊपर रहते ए अपनी श से हमारी र ा करने के न म भूलोक का नमाण कया है. तुम बल क अं तम सीमा हो. तुमने सुखपूवक गमन करने यो य आकाश एवं वग को ा त कर लया है. (१२) वं भुवः तमानं पृ थ ा ऋ ववीर य बृहतः प तभूः. व मा ा अ त र ं म ह वा स यम ा न कर य वावान्.. (१३) हे इं ! जस कार भूलोक का व तार अ च य है, उसी कार तु हारी भी मह ा जानी नह जा सकती. तुम दशनीय दे व वाले वग के पालनक ा हो. यह स य है क तुमने अपनी मह ा से धरती और आकाश के म यभाग को पू रत कर दया है, इस लए तु हारे समान सरा कोई नह है. (१३) न य य ावापृ थवी अनु चो न स धवो रजसो अ तमानशुः. नोत ववृ मदे अ य यु यत एको अ य चकृषे व मानुषक्.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस इं के व तार को आकाश और पृ वी नह पा सके ह, आकाश के ऊपर होने वाला जल वाह जस इं के तेज का अंत नह जान सका, हे इं ! सम त ाणी समुदाय उसी तरह तु हारे अपने वश म है. (१४) आच म तः स म ाजौ व े दे वासो अमद नु वा. वृ य यद्भृ मता वधेन न व म यानं जघ थ.. (१५) हे इं ! इस यु म म द्गण ने तु हारी अचना क थी. जस समय तुमने तेज धार वाले व से वृ के मुख पर चोट क , उस समय सम त दे व सं ाम म तु ह आनंद ा त करता आ दे खकर स हो रहे थे. (१५)
सू —५३
दे वता—इं
यू३ षु वाचं महे भरामहे गर इ ाय सदने वव वतः. नू च र नं ससता मवा वद ु त वणोदे षु श यते.. (१) हम महान् इं के लए शोभन तु तय का योग करते ह, य क प रचया करने वाले यजमान के घर म इं क तु तयां क जाती ह. जस कार चोर सोए ए लोग क संप छ न लेते ह, उसी कार इं असुर के धन पर तुरंत अ धकार कर लेते ह. धन दे ने वाल के वषय म अनु चत तु त नह क जाती. (१) रो अ य र इ गोर स रो यव य वसुन इन प तः. श ानरः दवो अकामकशनः सखा स ख य त म ं गृणीम स.. (२) हे इं ! तुम अ , गो एवं जौ आ द धा य के दे ने वाले हो. तुम नवास हेतु धन के वामी एवं सबके पालक हो. तुम दान के नेता एवं ाचीन दे व हो. तुम ह व दे ने वाले यजमान क इ छा को अ भमत फल दे कर पूरा करते हो तथा उनके लए म के समान अ यंत य हो. हम इस कार के इं के लए तु त वचन का योग करते ह. (२) शचीव इ पुर कृद् ुम म तवे ददम भत े कते वसु. अतः संगृ या भभूत आ भर मा वायतो ज रतुः काममूनयीः.. (३) हे इं ! तुम ावान् वृ वधा द अनेक कम के क ा एवं अ तशय तेज वी हो. हम यह जानते ह क सव वतमान धन तु हारा है. हे श ुनाशक इं ! इस लए हम धन दो. जो तोता तु ह चाहते ह, उनक अ भलाषा को अपूण मत रहने दो. (३) ए भ ु भः सुमना ए भ र भ न धानो अम त गो भर ना. इ े ण द युं दरय त इ भयुत े षसः स मषा रभेम ह.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हमारे ारा दए ए पुरोडाशा द ह एवं सोमरस से स होकर हम गाय और घोड़ के साथ-साथ धन भी दो. इस कार हमारी द र ता मटाकर तुम शोभन मन बन जाओ. इं इस सोमरस के कारण संतु होकर हमारी सहायता करगे तो हम द यु का नाश करके एवं श ु से छु टकारा पाकर इं के ारा दए ए अ का उपभोग करगे. (४) स म राया स मषा रभेम ह सं वाजे भः पु ै र भ ु भः. सं दे ा म या वीरशु मया गोअ या ाव या रभेम ह.. (५) हे इं ! हम धन और अ के साथ-साथ ऐसा बल भी ा त कर, जो ब त का आ ादक एवं द तमान् हो. श ु वनाश म समथ तु हारी उ म बु हमारी सहायता करे. तु हारी बु तोता को गाय आ द मुख पशु एवं अ दान करे. (५) ते वा मदा अमद ता न वृ या ते सोमासो वृ ह येषु स पते. य कारवे दश वृ ा य त ब ह मते न सह ा ण बहयः.. (६) हे स जन के पालक इं ! जस समय तुमने वृ असुर का वध कया, उस समय तु हारे मादक म द्गण ने तु ह मु दत कया था. तुम वषा करने म समथ हो. जब तुमने श ु क बाधा को पार करके तु तक ा एवं ह दाता यजमान के दस हजार उप व को समा त कया था, उस समय च पुरोडाशा द ह एवं स सोमरस ने तु ह स कया था. (६) युधा युधमुप घेदे ष धृ णुया पुरा पुरं स मदं हं योजसा. न या य द स या पराव त नबहयो नमु च नाम मा यनम्.. (७) हे श ु वंसक इं ! तुम सदा यु शील रहते हो एवं अपने बल से श ु के एक नगर के बाद सरे का वनाश करते हो. हे इं ! तुमने व क सहायता से र दे श म वतमान, स , मायावी नमु च नामक असुर का वध कया था. (७) वं कर मुत पणयं वधी ते ज या त थ व य वतनी. वं शता वङ् गृद या भन पुरोऽनानुदः प रषूता ऋ ज ना.. (८) हे इं ! तुमने अ त थ व नामक राजा क सहायता करने के लए तेज एवं श ुनाशक आयुध से करंज एवं पणय नामक असुर का वध कया था. ऋ ज ान् नामक राजा ने वंगृद असुर के सौ नगर को चार ओर से घेर लया था. तुमने अकेले ही उन नगर का वनाश कर दया था. (८) वमेता नरा ो दशाब धुना सु वसोपज मुषः. ष सह ा नव त नव ुतो न च े ण र या पदावृणक्.. (९) असहाय सु वा नामक राजा के साथ यु करने के लए साठ हजार न यानवे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सहायक के स हत बीस जनपद शासक आए थे. हे च से उन अनेक को परा जत कया था. (९)
स
इं ! तुमने श ु
ारा अलं य
वमा वथ सु वसं तवो त भ तव ाम भ र तूवयाणम्. वम मै कु सम त थ वमायुं महे रा े यूने अर धनायः.. (१०) हे इं ! तुमने पालकश ारा सु वा एवं सूयवान् नामक राजा क र ा क थी. तुमने कु स, अ त थ व एवं आयु नामक राजा को महान् एवं त ण राजा सु वा के अधीन कया था. (१०) य उ ची दे वगोपाः सखाय ते शवतमा असाम. वां तोषाम वया सुवीरा ाघीय आयुः तरं दधानाः.. (११) हे इं ! य क समा त पर उप थत दे व ारा पा लत तु हारे म तु य य एवं अ तशय क याणपा हम तु हारी तु त करते ह. हम तु हारी दया से शोभन पु एवं उ म द घ जीवन को ा त कर. (११)
सू —५४
दे वता—इं
मा नो अ म मघव पृ वंह स न ह ते अ तः शवसः परीणशे. अ दयो न ो३ रो व ना कथा न ोणी भयसा समारत.. (१) हे धन के वामी इं ! इस पाप म एवं पाप के प रणाम प यु म हम मत फंसाओ, य क कोई भी तु हारी श का अ त मण नह कर सकता. अंत र म वतमान तुम महती व न करते ए नद के जल को श दायमान कर दे ते हो तो फर पृ वी भय से य न कांपे? (१) अचा श ाय शा कने शचीवते शृ व त म ं महय भ ु ह. यो धृ णुना शवसा रोदसी उभे वृषा वृष वा वृषभो यृ ते.. (२) हे अ वयुजन! श शाली एवं बु मान् इं क पूजा करो. वे सबक तु तयां सुनते ह, इस लए उनक तु त करो. जो इं अपने श ुनाशक बल से धरती और आकाश को सुशो भत करते ह, वे वषा करने म समथ ह एवं वषा के ारा हमारी इ छा को पूरा करते ह. (२) अचा दवे बृहते शू यं१ वचः व ं य य धृषतो धृष मनः. बृह वा असुरो बहणा कृतः पुरो ह र यां वृषभो रथो ह षः.. (३) इं का मन श ु वजय के
त ढ़ न यी है. हे तोताओ! उ ह द तशाली, महान्,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
भूत यश वी एवं श संप इं के त तु तवचन का उ चारण करो. वे इं श ुनाशक, अ ारा से वत, कामनाएं पूण करने वाले एवं वेगवान् ह. (३) वं दवो बृहतः सानु कोपयोऽव मना धृषता श बरं भनत्. य मा यनो दनो म दना धृष छतां गभ तमश न पृत य स.. (४) हे इं ! तुमने वशाल आकाश के ऊपर उठा आ दे श कं पत कर दया था एवं श ुनाशक श ारा शंबर असुर का वध कया था. तुमने ह षत एवं ग भ मन से तेज धार वाले तथा चमक ले व को मायावी असुर समूह क ओर चलाया था. (४) न यद्वृण सन य मूध न शु ण य चद् दनो रो व ना. ाचीनेन मनसा बहणावता यद ा च कृणवः क वा प र.. (५) हे इं ! तुम वायु के तथा जल सोखने वाले एवं फल को पकाने वाले सूय के ऊपर वाले दे श म जल बरसाते हो. हे ढ़ न य एवं श ु वनाशक दय वाले इं ! आज आपने परा म दखाया है, उससे प है क आपसे बढ़कर कोई नह है. (५) वमा वथ नय तुवशं य ं वं तुव त व यं शत तो. वं रथमेतशं कृ े धने वं पुरो नव त द भयो नव.. (६) हे शत तु! तुमने नय, तुवश, य एवं व य कुल म उ प तुव त नामक राजा क र ा क है. तुमने धन ा त के उ े य से ारंभ सं ाम म रथ एवं एतश ऋ षय क र ा क तथा शंबर असुर के न यानवे नगर का वंस कया है. (६) स घा राजा स प तः शूशुव जनो रातह ः त यः शास म व त. उ था वा यो अ भगृणा त राधसा दानुर मा उपरा प वते दवः.. (७) वे ही यजमान सुशो भत होकर स जन के पालन के साथ-साथ अपनी भी वृ करते ह, जो इं को ह दान करके उनक तु त करते ह. अ भमत फलदाता इं ऐसे ही लोग के लए आकाश से मेघ ारा वषा करते ह. (७) असमं ये त इ
मसमा मनीषा सोमपा अपसा स तु नेमे. द षो वधय त म ह ं थ वरं वृ यं च.. (८)
इं का बल एवं बु अतुलनीय है. हे इं ! जो सोमपायी यजमान अपने य कम ारा तु हारा महान् बल एवं थूल पौ ष बढ़ाते ह, उनक उ त हो. (८) तु येदेते ब ला अ धा मूषद मसा इ पानाः. ु ह तपया काममेषामथा मनो वसुदेयाय कृ व.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! यह सोमरस प थर क सहायता से तैयार कया गया है एवं पा म रखा आ है. यह तु हारे पीने यो य है. तुम इसे पीकर अपनी अ भलाषा पूण करो एवं उसके प ात् हम धन दे ने के कम म अपना मन लगाओ. (९) अपाम त ण रं तमोऽ तवृ य जठरेषु पवतः. अभी म ो न ो व णा हता व ा अनु ाः वणेषु ज नते.. (१०) वृ क धारा को रोकने वाला अंधकार फैला आ था. तीन लोक का आवरण करने वाले वृ असुर के पेट म मेघ था. जो जल वृ ारा रोक लया गया था, उसे इं ने नीचे धरती क ओर बहाया. (१०) स शेवृधम ध धा ु नम मे म ह ं जनाषा ळ त म्. र ा च नो मघोनः पा ह सूरी ाये च नः वप या इषे धाः.. (११) हे इं ! तुम हम रोग क शां त के उपरांत बढ़ने वाला यश दो. हम महान् एवं श ु को हराने वाला बल दो, हम धनवान् बनाकर हमारी र ा करो, व ान का पालन करो एवं हम धन, सुंदर संतान तथा अ दो. (११)
सू —५५
दे वता—इं
दव द य व रमा व प थ इ ं न म ा पृ थवी चन त. भीम तु व मा चष ण य आतपः शशीते व ं तेजसे न वंसगः.. (१) इं का भाव आकाश क अपे ा अ धक व तृत है. पृ वी भी इं क मह ा क समानता नह कर सकती. श ु के लए भयंकर एवं बु मान् इं अपने भ जन के न म श ु को संताप दे ते ह. जैसे सांड़ यु के लए अपने स ग तेज करता है, उसी कार इं अपने व को तेज करने के लए रगड़ते ह. (१) सो अणवो न न ः समु यः त गृ णा त व ता वरीम भः. इ ः सोम य पीतये वृषायते सना स यु म ओजसा पन यते.. (२) आकाश म ा त इं र तक फैले ए जल को उसी कार हण कर लेते ह, जस कार सागर वशाल जलरा श को अपने म समेट लेता है. इं सोमरस पीने के लए बैल के समान दौड़ कर जाते ह एवं वे महान् यो ा चरकाल से अपने वृ वधा दकम क शंसा चाहते ह. (२) वं त म पवतं न भोजसे महो नृ ण य धमणा मर य स. वीयण दे वता त चे कते व मा उ ः कमणे पुरो हतः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम अपने उपभोग के लए मेघ को भ नह करते एवं वशाल धन के धारक कुबेरा द पर अ धकार जमाते हो. हम लोग इं को उनक श के कारण भली कार जानते ह. वे इं अपने वृ वधा द प काय के ारा सभी दे व म आगे का थान ा त करते ह. (३) स इ ने नम यु भवच यते चा जनेषु ुवाण इ यम्. वृषा छ भव त हयतो वृषा ेमेण धेनां मघवा य द व त.. (४) तोता ऋ ष अर य म इं क तु त करते ह. इं अपने भ म अपने शौय को कट करते ए शोभा पाते ह. अभी वषा करने वाले इं ह दाता यजमान क र ा करते ह. जब यजमान य क इ छा से इं क तु त करता है, तभी वे उसे य म त पर कर दे ते ह. (४) स इ महा न स मथा न म मना कृणो त यु म ओजसा जने यः. अधा चन ध त वषीमत इ ाय व ं नघ न नते वधम्.. (५) यो ा इं अपने भ के क याण के लए सबको शु करने वाले वक य बल से महान् यु करते ह. इं जस समय हनन का साधन व मेघ पर फकते ह. उस समय सब लोग बलशाली कहकर तेज वी इं के त ा कट करते ह. (५) स ह व युः सदना न कृ मा मया वृधान ओजसा वनाशयन्. योत ष कृ व वृका ण य यवेऽव सु तुः सतवा अपः सृजत्.. (६) शोभन कम वाले इं यश क कामना करते ए असुर के सुंदर बने ए घर को अपनी श से न कर दे ते ह. वे धरती के समान व तृत हो जाते ह एवं सूय आ द यो त पड को आवरणर हत करके यजमान के न म बहने वाला जल बरसाते ह. (६) दानाय मनः सोमपाव तु तेऽवा चा हरी व दन ुदा कृ ध. य म ासः सारथयो य इ ते न वा केता आ द नुव त भूणयः.. (७) हे सोमपायी इं ! तु हारा मन दान म लगा रहे. हे तु त य इं ! तुम अपने ह र नामक घोड़ को हमारे य क ओर अ भमुख करो. हे इं ! तु हारे सार थ घोड़ को वश म करने म अ यंत कुशल ह. इस कारण आयुध धारण करने वाले तु हारे श ु तु ह नह हरा सकते. (७) अ तं वसु बभ ष ह तयोरषाळ् हं सह त व त ु ो दधे. आवृतासोऽवतासो न कतृ भ तनूषु ते तव इ भूरयः.. (८) हे स इं ! तुम अपने हाथ म यर हत धन एवं शरीर म अपराजेय बल धारण करते हो. जस कार पानी भरने वाले लोग कुएं को घेरे रहते ह, उसी कार वृ वधा द वीरतापूण कम तु हारे शरीर को घेरे ए ह. हे इं ! इसी लए तु हारे शरीर म अनेक कम व मान ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —५६
दे वता—इं
एष पूव रव त य च षोऽ यो न योषामुदयं त भुव णः. द ं महे पाययते हर ययं रथमावृ या ह रयोगमृ वसम्.. (१) जस कार घोड़ा ड़ा के न म घोड़ी क ओर दौड़कर जाता है, उसी कार पया त आहार करने वाले इं यजमान ारा ब त से पा म रखे ए सोमरस क ओर शी ता से जाते ह. वृ वधा द महान् काय म द वे इं अपना वण न मत, अ यु एवं तेज वी रथ रोककर सोमरस पीते ह. (१) तं गूतयो नेम षः परीणसः समु ं न संचरणे स न यवः. प त द य वदथ य नू सहो ग र न वेना अ ध रोह तेजसा.. (२) जस कार धन चाहने वाले व णक नाव म बैठकर आने-जाने के साधन समु को ा त कए रहते ह, उसी कार हाथ म ह लए ए तोता इं को चार ओर से घेरे रहते ह. हे तोताओ! ना रयां अपने मनपसंद फूल तोड़ने के लए जस कार पवत पर चढ़ जाती ह, उसी कार तुम भी तेज वी तो के सहारे वशाल य के र क एवं श शाली इं के समीप प ंच जाओ. (२) स तुव णमहाँ अरेणु प ये गरेभृ न ाजते तुजा शवः. येन शु णं मा यनमासो मदे आभूषु रामय दाम न.. (३) इं श ुनाशक और महान् ह. इं क दोषर हत एवं श ुनाशकारी श वीर पु ष ारा करने यो य सं ाम म पवत क चोट के समान वराजमान होती है. श ु वनाशक एवं लौहकवचधारी इं ने सोमपान के ारा मदो म होकर मायावी असुर शु ण को बे ड़यां डाल कर कारागृह म बंद कर दया था. (३) दे वी य द त वषी वावृधोतय इ ं सष युषसं न सूयः. यो धृ णुना शवसा बाधते तम इय त रेणुं बृहदह र व णः.. (४) हे तोता! जस कार सूय न य उषा का सेवन करते ह, उसी कार तेज वी बल तु हारी र ा के न म तु हारी तु तयां सुनकर वृ ा त करने वाले इं क सेवा करता है. वे इं , श ुनाशक श ारा अंधकार पी वृ असुर का नाश करते ह एवं श ु को लाकर भली कार न कर दे ते ह. (४) व य रो ध णम युतं रजोऽ त पो दव आतासु बहणा. वम ळ् हे य मद इ ह याह वृ ं नरपामौ जो अणवम्.. (५) हे श ुहंता इं ! जस समय तुमने वृ
असुर
ारा रोके
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ए सम त
ा णय के
जीवनाधार एवं वनाशर हत जल को आकाश से फैली ई दशा म बखेरा था, उस समय तुमने सोमपान से स होकर यु म वृ का वध कर दया था एवं जल से पूण मेघ को वषा करने के लए अधोमुख कर दया था. (५) वं दवो ध णं धष ओजसा पृ थ ा इ सदनेषु मा हनः. वं सुत य मदे अ रणा अपो व वृ य समया पा या जः.. (६) हे इं ! तुम वृ को ा त करके सम त व के जीवनाधार वषा के जल को अपने बल ारा आकाश से धरती के भाग म था पत कर दे ते हो. तुमने सोमपान से स होकर जल को मेघ से पृथक् कर दया है एवं वशाल पाषाण के ारा वृ को न कर दया है. (६)
सू —५७
दे वता—इं
मं ह ाय बृहते बृह ये स यशु माय तवसे म त भरे. अपा मव वणे य य धरं राधो व ायु शवसे अपावृतम्.. (१) म परम दानशील, गुण से महान्, भूत धनसंप , अमोघबल के वामी एवं वशाल आकार वाले इं को ल य करके अपनी हा दक तु त पूण करता ं. जस कार नीचे क ओर बहने वाले जल को कोई नह रोक सकता, उसी कार इं का बल धारण करने म भी कोई समथ नह होगा. तोता को बलशाली बनाने के लए इं सव ापक धन को का शत करते ह. (१) अध ते व मनु हास द य आपो न नेव सवना ह व मतः. य पवते न समशीत हयत इ य व ः थता हर ययः.. (२) हे इं ! यह सारा संसार तु हारे य म संल न था. ह दाता यजमान के ारा नचोड़ा आ सोमरस तु ह उसी कार ा त आ था, जस कार जल नीची जगह पर आ जाता है. इं का शोभन, वणमय एवं श ुनाशक व पवत पर कभी न त नह था. (२) अ मै भीमाय नमसा सम वर उषो न शु आ भरा पनीयसे. य य धाम वसे नामे यं यो तरका र ह रतो नायसे.. (३) हे शोभन उषा! तुम इस य म श ु के लए भयंकर व परम तु तपा इं के लए इस समय य का अ दो. जस कार सार थ घोड़े को इधर-उधर ले जाता है, उसी कार इं क सबको धारण करने वाली, स एवं पहचान कराने वाली यो त उ ह य ा ा त कराने के लए इधर-उधर ले जाती है. (३) इमे त इ ते वयं पु ु त ये वार य चराम स भूवसो. न ह वद यो गवणो गरः सघ ोणी रव त नो हय त चः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे भूत धनशाली एवं ब त से यजमान ारा तुत इं ! तु हारा आ य ा त करके हम य काय म वतमान ह. हम तु हारे ही भ ह. हे तु तपा इं ! तु हारे अ त र इन तु तय को कोई ा त नह करता. जस कार पृ वी अपने सम त ा णय को चाहती है, उसी कार तुम भी हमारे तु त वचन को ेम करो. (४) भू र त इ वीय१तव म य य तोतुमघव काममा पृण. अनु ते ौबृहती वीय मम इयं च ते पृ थवी नेम ओजसे.. (५) हे इं ! तु हारी साम य को कोई भी लांघ नह सकता. हम तु हारे ही भ ह. हे मघवा! तुम अपने इस तोता क इ छा को पूरा करो. वशाल आकाश ने तु हारे शौय को वीकार कया था एवं पृ वी तु हारे बल के सामने झुक गई थी. (५) वं त म पवतं महामु ं व ेण व पवशचक तथ. अवासृजो नवृताः सतवा अपः स ा व ं द धषे केवलं सहः.. (६) हे व धारी इं ! तुमने उस स एवं वशाल मेघ को अपने व ारा टु कड़ेटुकड़े कर दया था एवं उस मेघ ारा रोके गए जल को नीचे बहने के लए छोड़ दया था. केवल तुम ही व ापी बल धारण करते हो. (६)
सू —५८
दे वता—अ न
नू च सहोजा अमृतो न तु दते होता य तो अभव व वतः. व सा ध े भः प थभी रजो मम आ दे वताता ह वषा ववास त.. (१) अ तशय बल क सहायता से उ प एवं अमर अ न जलाने म समथ है. दे वता का आ ान करने वाले अ न जस समय यजमान का ह ले जाने के लए त बने थे, उस समय अ न ने उ चत माग से जाकर अंत र लोक बनाया था. अ न य म ह दान करके दे व क सेवा करते ह. (१) आ वम युवमानो अजर तृ व व य तसेषु त त. अ यो न पृ ं ु षत य रोचते दवो न सानु तनय च दत्.. (२) जरार हत अ न अपने तृणगु म आ द खा पदाथ को अपनी दाहकश के ारा अपने म मलाकर एवं भ ण करके शी ही ब त से काठ पर चढ़ गए. जलाने के लए इधर-उधर जाने वाली अ न क ऊंची वालाएं ग तशील अ के समान तथा आकाश थत उ त एवं गंभीर श दकारी मेघ के समान शोभा पाती ह. (२) ाणा े भवसु भः पुरो हतो होता नष ो र यषाळम यः. रथो न व वृ सान आयुषु ानुष वाया दे व ऋ व त.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न ह का वहन करते ए तथा वसु के स मुख थान ा त कर चुके ह एवं दे व का आ ान करने के न म य म उप थत रहते ह. श ु का धन जीतने वाले, मरणर हत एवं द तमान् अ न यजमान ारा तुत होकर रथ क भां त चलते ए जा के पास प ंचते ह एवं बार-बार े धन दान करते ह. (३) व वातजूतो अतसेषु त ते वृथा जु भः सृ या तु व व णः. तृषु यद ने व ननो वृषायसे कृ णं त एम श म अजर.. (४) वायु ारा े रत अ न महान् श द करते ए अपनी जलती ई एवं ती वाला के ारा अनायास ही पेड़ को जला दे ते ह. हे अ न दे व! तुम जस समय वन के वृ को जलाने के लए सांड़ के समान उतावले होते हो, उस समय तु हारे गमन का माग काला पड़ जाता है. हे अ न! तुम द त वाला वाले एवं जरार हत हो. (४) तपुज भो वन आ वातचो दतो यूथे न सा ाँ अव वा त वंसगः. अभ ज तं पाजसा रजः थातु रथं भयते पत णः.. (५) वायु ारा े रत अ न शखा पी आयुध धारण कर लेता है तथा महान् तेज के कारण गीले वृ के रस पर आ मण करके सव ा त होता आ ा णय को उसी कार परा जत कर दे ता है, जस कार गाय के झुंड म सांड़ प ंच जाता है. सम त थावर एवं जंगम अ न से डरते ह. (५) दधु ् वा भृगवो मानुषे वा र य न चा ं सुहवं जने यः. होतारम ने अ त थ वरे यं म ं न शेवं द ाय ज मने.. (६) हे अ न! मनु य के बीच म भृगु ऋ ष ने द ज म ा त करने के लए तु ह उसी कार धारण कया था, जस कार लोग उ म धन को संभाल कर रखते ह. तुम लोग का आ ान सरलता से सुन लेते हो एवं दे व का आ ान करने वाले हो. तुम य थान म अ त थ के समान पूजनीय एवं म के समान सुख दे ने वाले हो. (६) होतारं स त जु ो३य ज ं यं वाघतो वृणते अ वरेषु. अ नं व ेषामर त वसूनां सपया म यसा या म र नम्.. (७) आ ान करने वाले सात ऋ वज् य म सव े यजनीय एवं दे व के आ ानक ा जस अ न का वरण करते ह, सम त संप यां दे ने वाले उसी अ न क सेवा म ह के ारा कर रहा ं तथा उस अ न से रमणीय धन क याचना कर रहा ं. (७) अ छ ा सूनो सहसो नो अ तोतृ यो म महः शम य छ. अ ने गृण तमंहस उ योज नपा पू भरायसी भः.. (८) हे अ न! तुम बल योग ारा अर ण से उ प एवं अनुकूल काश वाले हो. तुम हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अनवरत सुख दान करो. हे अ पु अ न! लोहे के समान ढ़तर पालन साधन तोता क र ा करके उसे पाप से मु करो. (८)
ारा अपने
भवा व थं गृणते वभावो भवा मघव मघवद् यः शम. उ या ने अंहसो गृण तं ातम ू धयावसुजग यात्.. (९) हे व श काशवान् अ न! तुम तु त करने वाले यजमान के लए गृह के समान अ न नवारक बनो. हे धनवान् अ न! ह प धन से यु यजमान के लए तुम सुख प बनो. हे अ न! अपने तोता क पाप से र ा करो. हे बु प धन से संप अ न! आज ातःकाल शी पधारो. (९)
सू —५९
दे वता—अ न
वया इद ने अ नय ते अ ये वे व े अमृता मादय ते. वै ानर ना भर स तीनां थूणेव जनां उप म य थ.. (१) हे अ न! अ य अ नयां तु हारी शाखाएं होने के कारण सम त दे वगण तु हारे साथ ही स होते ह. हे वै ानर! तुम सब मनु य क ना भ म जठरा न प से थत हो. जस कार धरती म गड़े ए लकड़ी के थूने अपने ऊपर बांस को धारण करते ह, उसी कार तुम भी सब मानव को धारण करो. (१) मूधा दवो ना भर नः पृ थ ा अथाभवदरती रोद योः. तं वा दे वासोऽजनय त दे वं वै ानर यो त रदायाय.. (२) यह अ न आकाश का म तक, धरती क ना भ एवं धरती व आकाश के म यवत दे श के वामी थे. हे वै ानर! सभी दे व ने े मानव के क याण के लए तु ह यो त प एवं दाना दगुण संप उ प कया था. (२) आ सूय न र मयो व ु ासो वै ानरे द धरेऽ ना वसू न. या पवते वोषधी व सु या मानुषे व स त य राजा.. (३) जस कार न ल करण सूय म थत ह, उसी कार सभी कार के धन वै ानर अ न म नवास करते ह. इसी लए तुम पवतीय ओष धय , जल एवं मनु य म थत धन के वामी हो. (३) बृहती इव सूनवे रोदसी गरो होता मनु यो३न द ः. ववते स यशु माय पूव व ानराय नृतमाय य ः.. (४) धरती और आकाश अपने पु वै ानर के लए व तृत हो गए थे. जस कार बंद ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपने वामी क अनेक कार से तु त करता है, उसी कार चतुर होता सुंदर ग त वाले, वा त वक श संप एवं सबके कुशल नेता वै ानर के लए महान् एवं व वध तु तय का योग करता है. (४) दव े बृहतो जातवेदो वै ानर र रचे म ह वम्. राजा कृ ीनाम स मानुषीणां युधा दे वे यो व रव कथ.. (५) हे जातवेद! तु हारा मह व आकाश से भी बढ़कर है एवं तुम मानव जा हो. तुमने असुर ारा अप त धन यु के ारा छ नकर दे व को दया था. (५)
के राजा
नू म ह वं वृषभ य वोचं यं पूरवो वृ हणं सच ते. वै ानरो द युम नजघ वां अधूनो का ा अव श बरं भेत्.. (६) मनु य जलवषा के लए जस आवारक मेघ के हंता व ुत् प अ न क सेवा करते ह, म उसी जलवष वै ानर के मह व का उ चारण करता ं. उसने द यु को मारकर वषा का जल गराया एवं शंबर का नाश कया. (६) वै ानरो म ह ना व कृ भर ाजेषु यजतो वभावा. शातवनेये श तनी भर नः पु णीथे जरते सूनृतावान्.. (७) वै ानर अ न अपने मह व के कारण सम त मनु य के वामी एवं पु वधक अ वाले य म बुलाने यो य ह, शतव न के पु राजा पु णीथ अनेक य म काशसंप एवं यवाक् अ न क तु त करते ह. (७)
सू —६० व
दे वता—अ न
यशसं वदथ य केतुं सु ा ं तं स ो अथम्. ज मानं र य मव श तं रा त भरद्भृगवे मात र ा.. (१)
मात र ा ह वाहक, यश वी, य काशक, उ म र क, दे व के त, ह व लेकर दे व के समीप जाने वाले, अर ण पी दो का से उ प एवं धन के समान शं सत अ न को भृगुवं शय के म के प म समीप लाव. (१) अ य शासु भयासः सच ते ह व म त उ शजो ये च मताः. दव पूव यसा द होतापृ ो व प त व ु वेधाः.. (२) ह के इ छु क दे व और ह धारण करने वाले यजमान दोन ही शासक अ न क सेवा करते ह, य क पू य, वां छतफलदाता एवं जाप त अ न सूय दय से भी पहले यजमान के बीच था पत ए ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं न सी द आ जायमानम म सुक तमधु ज म याः. यमृ वजो वृजने मानुषासः य व त आयवो जीजन त.. (३) दय म थत ाण से उ प एवं मादक वाला वाले अ न को हमारी नई तु तयां सामने से घेर ल. उ चत समय पर य करने वाले मनु य ने सं ाम के समय अ न को उ प कया. (३) उ श पावको वसुमानुषेषु वरे यो होताधा य व ु. दमूना गृहप तदम आँ अ नभुव यपती रयीणाम्.. (४) य थल म व यजमान के बीच सबके य, शु क ा, नवास दे ने वाले, वरण करने यो य अ न को था पत कया गया है. वे श ुदमन के लए ढ़ न यी, हमारे घर के पालनक ा एवं य भवन म धन के अ धप त ह . (४) तं वा वयं प तम ने रयीणां शंसामो म त भग तमासः. आशुं न वाज भरं मजय तः ातम ू धयावसुजग यात्.. (५) हे अ न! जस कार घोड़े पर चढ़ने का इ छु क सवार घोड़े क पीठ साफ करता है, उसी कार गौतम गो ो प हम धन के वामी, सबके र क, य संबंधी अ के भता तुझ अ न का माजन करते ए सुंदर तो ारा तु हारी सहायता करते ह. हे बु ारा धन ा त करने वाले अ न! कल ातःकाल शी आना. (५)
दे वता—इं
सू —६१
अ मा इ तवसे तुराय यो न ह म तोमं मा हनाय. ऋचीषमाया गव ओह म ाय ा ण राततमा.. (१) जस कार भूखे को अ दया जाता है, उसी कार म श संप , शी ता करने वाले, गुण म महान्, तु त के अनुकूल व वाले एवं अबाधग त इं को वरण करने यो य तु तयां एवं पूववत यजमान ारा अ धक मा ा म दया आ अ भट करता ं. (१) अ मा इ य इव यं स भरा यङ् गूषं बाधे सुवृ . इ ाय दा मनसा मनीषा नाय प ये धयो मजय त.. (२) म इं को अ के समान ह दान करता ं तथा श ु को परा जत करने म समथ तु त वचन का उ चारण करता ं. अ य तु तक ा भी उस ाचीन वामी इं के त अंतःकरण, बु और ान क सहायता से तु तयां करते ह. (२) अ मा इ
यमुपमं वषा भरा याङ् गूषमा येन.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं ह म छो
भमतीनां सुवृ
भः सू र वावृध यै.. (३)
म उ ह स , उपमान बने ए, अ यंत वरणीय, धन के दाता, व ान् इं क वृ न म समथ एवं व छ वचन वाली तु त बोलता आ महान् श द करता ं. (३)
के
अ मा इ तोमं सं हनो म रथं न त व े त सनाय. गर गवाहसे सुवृ ाय व म वं मे धराय.. (४) जस कार रथ बनाने वाला रथ के मा लक के पास रथ ले जाता है, उसी कार म भी तु त यो य इं को ल त करके शंसावचन े षत करता ं एवं बु संप इं के लए व ापक ह का वसजन करता ं. (४) अ मा इ स त मव व ये ायाक जु ा३सम े. वीरं दानौकसं व द यै पुरां गूत वसं दमाणम्.. (५) जस कार अ लाभ के लए जाने का इ छु क घोड़ को रथ म जोड़ता है, उसी कार म अ लाभ क अ भलाषा से तु त पी मं बोलता ं. म उ ह वीर, दानपा , उ म अ यु एवं असुरनगर के व वंसक ा इं क वंदना म लगा आ ं. (५) अ मा इ व ा त ं वप तमं वय१ रणाय. वृ य च द न े मम तुज ीशान तुजता कयेधाः.. (६) व ा ने यु के न म इन इं के लए शोभन कम वाला एवं श ु के त सरलता से फका जाने वाला व बनाया था. श ु क हसा करते ए ऐ य एवं बल से संप इं ने हनन करने वाले व से वृ के मम का भेदन कया था. (६) अ ये मातुः सवनेषु स ो महः पतुं प पवा चाव ा. मुषाय णुः पचतं सहीया व य राहं तरो अ म ता.. (७) इं ने जगत् नमाण करने वाले इस महान् य के तीन सवन म सोम प अ का तुरंत पान कया है एवं ह प अ का भ ण कया है. व ापक, असुर धन के अपहता, श ु वजयी एवं व चलाने वाले इं ने मेघ को पाकर वद ण कर दया. (७) अ मा इ ना े वप नी र ायाकम हह य ऊवुः. प र ावापृ थवी ज उव ना य ते म हमानं प र ः.. (८) जब इं ने वृ का वध कया था, तब गमनशील दे वप नय ने उनक तु त क थी. इं अपने तेज के ारा आकाश और पृ वी से बढ़ गए थे, पर आकाश और धरती इं क म हमा का अ त मण नह कर सके. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ येदेव र रचे म ह वं दव पृ थ ाः पय त र ात्. वरा ळ ो दम आ व गूतः व ररम ो वव े रणाय.. (९) इं क म हमा आकाश, धरती और उनके म यवत लोक से भी बढ़कर है. इं अपने इस नवास थान म अपने तेज से सुशो भत, सभी काय करने म कुशल, श शाली श ु का नाश करने म समथ एवं यु करने म नपुण ह. इं अपने मेघ प श ु को यु के लए ललकारते ह. (९) अ येदेव शवसा शुष तं व वृ ेण वृ म ः. गा न ाणा अवनीरमु चद भ वो दावने सचेताः.. (१०) इं ने अपनी ही श से जल रोकने वाले वृ का उ छे द कर दया था. जस कार चोर ारा रोक ई गाएं इं ने छु ड़वा द थ , उसी कार वृ ारा रोका आ व का र क जल छु ड़वा दया था. इं ह दे ने वाले को इ छानुसार अ दे ते ह. (१०) अ ये वेषसा र त स धवः प र य ेण सीमय छत्. ईशानकृ ाशुषे दश य तुव तये गाधं तुव णः कः.. (११) इं ने व ारा न दय क सीमा न त कर द है, अतः इं के बल के कारण गंगा आ द स रताएं अपने-अपने थान पर सुशो भत ह. इं ने अपने को ऐ यवान् बनाकर ह दाता यजमान को फल दान करते ए तुव त ऋ ष के हेतु नवास यो य थल अ वलंब बना दया था. (११) अ मा इ भरा तूतुजानो वृ ाय व मीशानः कयेधाः. गोन पव व रदा तर े य णा यपां चर यै.. (१२) हे शी ताकारक, सबके वामी एवं अप र मत बलशाली इं ! तुम इस वृ के ऊपर व का हार करो. जस कार मांस के व े ता पशु के अंग को काटते ह, उसी कार तुम वृ के शरीर के जोड़ अपने व से तरछे प म काटो, इससे वषा होगी और धरती पर जल बहने लगेगा. (१२) अ ये ू ह पू ा ण तुर य कमा ण न उ थैः. युधे य द णान आयुधा यृघायमाणो न रणा त श ून्.. (१३) हे तोता! तु त के यो य एवं यु के लए शी ता करने वाले इं के पूव कम क शंसा करो. इं यु म श ुघात के न म आयुध को बार-बार फकते ए उनके सामने जाते ह. (१३) अ ये भया गरय ळ् हा ावा च भूमा जनुष तुजेते. उपो वेन य जोगुवान ओ णस ो भुव याय नोधाः.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ह इं के भय से पवत थर ह एवं इनके कट होने पर धरती और आकाश भय से कांपने लगते ह. नोधा नामक ऋ ष ने इ ह सुंदर एवं ःख वनाशक इं क र ा श क अपने सू ारा बार-बार शंसा करके अ वलंब श ा त क थी. (१४) अ मा इ यदनु दा येषामेको य ने भूरेरीशानः. ैतशं सूय प पृधानं सौव े सु वमाव द ः.. (१५) अकेले ही श ु वजय म समथ एवं अनेक कार के वामी इं ने तोता से जस कार क तु त क इ छा क थी, उ ह वही तु त दान क गई है. व के पु सूय के साथ यु करते समय सोमरस नचोड़ने वाले एतश ऋ ष को इं ने बचाया. (१५) एवा ते हा रयोजना सुवृ ा ण गोतमासो अ न्. ऐषु व पेशसं धयं धाः ातम ू धयावसुजग यात्.. (१६) हे इं ! तुम घोड़ समेत रथ के वामी हो. तु ह अपने य म बुलाने के लए गोतम गो वाले ऋ षय ने तु हारे त तु त पी मं कहे ह. तुम उनक अनेक कार से उ त करो. बु ारा धन ा त करने वाले इं ातःकाल शी आव. (१६)
सू —६२
दे वता—इं
म महे शवसानाय शूषमाङ् गूषं गवणसे अ र वत्. सुवृ भः तुवत ऋ मयायाचामाक नरे व ुताय.. (१) हम अं गरा ऋ ष के समान श ुनाशक एवं तु तपा इं को सुख दे नेवाली तु तय को भली कार जानते ह. शोभन तो ारा तु त करने वाले ऋ षय के अचनीय एवं सबके नेता प इं क हम तो ारा पूजा करते ह. (१) वो महे म ह नमो भर वमाङ् गू यं शवसानाय साम. येना नः पूव पतरः पद ा अच तो अ रसो गा अ व दन्.. (२) हे ऋ वजो! महान् एवं बलसंप इं के त उ म एवं ौढ़ तो का उ चारण करो. हमारे पूवज अं गरा गो ीय ऋ ष प ण नामक असुर ारा चुराई ई गौ के पद च दे खते ए गए एवं इं क सहायता से उनका उ ार कया. (२) इ या रसां चे ौ वद सरमा तनयाय धा सम्. बृह प त भनद वद ाः समु या भवावश त नरः.. (३) इं एवं अं गरा गो ीय ऋ षय ारा गाय को खोजने के लए भेजी गई सरमा नामक कु तया ने अपने ब च के लए अ ा त कया था. सरमा ारा बताए जाने पर इं ने असुर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को मारा एवं गाय को छु ड़ाया. उस समय गाय के साथ-साथ दे व ने स तासूचक श द कया था. (३) स सु ु भा स तुभा स त व ैः वरेणा वय ३नव वैः. सर यु भः फ लग म श वलं रवेण दरयो दश वैः.. (४) नौ अथवा दस महीन म य समा त करने वाले एवं उ म ग त के इ छु क अं गरागो ीय सात मेधावी ऋ षय ारा शोभन श द यु तो ारा तुत हे इं ! तु हारे श दमा से मेघ डरते ह. (४) गृणानो अ रो भद म व व षसा सूयण गो भर धः. व भू या अ थय इ सानु दवो रज उपरम तभायः.. (५) हे दशनीय इं ! तुमने अं गरागो ीय ऋ षय क तु त सुनकर उषा एवं सूय करण क सहायता से अंधकार का नाश कया था. हे इं ! तुमने धरती के उ त भाग को समतल तथा आकाश के मूल दे श को ढ़ कया था. (५) त य तमम य कम द म य चा तमम त दं सः. उप रे य परा अ प व म वणसो न १ त ः.. (६) इं ने धरती क मीठे जल वाली चार न दय को जलपूण कया है. वही दशनीय इं का अ तशय पू य एवं सुंदर कम है. (६) ता व व े सनजा सनीळे अया यः तवमाने भरकः भगो न मेने परमे ोम धारय ोदसी सुदंसाः.. (७) इं को यु ारा नह , तु त ारा वश म कया जा सकता है. उ ह ने संल न होकर रहने वाले आकाश और धरती को दो जगह कया है. शोभनकमा इं ने सुंदर आकाश म रोदसी को सूय के समान धारण कया है. (७) सना वं प र भूमा व पे पुनभुवा युवती वे भरेवैः. कृ णे भर ोषा श वपु भरा चरतो अ या या.. (८) त णी रा तथा उषा पर पर भ प वाली एवं त दन उ प होने वाली ह. वे आकाश और धरती पर आकर सदा वचरण करती ह. रात काले रंग क एवं उषा उ वल वण वाली ह. (८) सने म स यं वप यमानः सूनुदाधार शवसा सुदंसाः. आमासु च धषे प वम तः पयः कृ णासु श ो हणीषु.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शोभनकम वाले, अ त बलसंप एवं सुंदरय से यु इं पहले से ही यजमान के त म ता का भाव रखते आए ह. हे इं ! तुमने भली कार युवती न होने वाली, काले और लाल रंग क गाय म ेत वण का ध धारण कराया है. (९) सना सनीळा अवनीरवाता ता र ते अमृताः सहो भः. पु सह ा जनयो न प नी व य त वसारो अ याणम्.. (१०) हमारी उंग लयां चरकाल से ग तशील रहकर एक साथ नवास करती , आल यहीन होकर अपनी ही श से इं संबंधी हजार य का अनु ान कर चुक ह. वे ही सेवासंल न उंग लयां पालन करने वाली ब हन के समान इं क प रचया करती ह. (१०) सनायुवो नमसा न ो अकवसूयवो मतयो द म द ः. प त न प नी शती श तं पृश त वा शवसाव मनीषाः.. (११) हे दशनीय इं ! लोग मं और णाम के ारा तु हारी तु त करते ह. अ नहो आ द सनातन कम एवं धन क इ छा करने वाले बु मान् लोग बड़े य न के बाद तु ह ा त करते ह. हे बलवान् इं ! जैसे प तकामा ना रयां प त को ा त करती ह, उसी कार बु मान क तु तयां तु हारे पास प ंचती ह. (११) सनादे व तव रायो गभ तौ न ीय ते नोप द य त द म. ुमाँ अ स तुमाँ इ धीरः श ा शचीव तव नः शची भः.. (१२) हे दशनीय इं ! तु हारे हाथ म चरकाल से जो संप है, वह कभी समा त नह होती और तोता को दे ने पर भी कम नह होती. हे इं ! तुम बु मान्, द तसंप तथा य कमयु हो. हे कमठ इं ! अपने कम ारा हम घर दो. (१२) सनायते गोतम इ न मत द् ह रयोजनाय. सुनीथाय नः शवसान नोधाः ातम ू धयावसुजग यात्.. (१३) हे इं ! तुम सबके आ द हो. हे बलवान्! तुम रथ म अपने घोड़े जोड़ते हो एवं शोभन नेता हो. गौतम ऋ ष के पु नोधा ने हमारे न म तु हारा यह नवीन तो बनाया है, इस लए कम के ारा धन ा त करने वाले इं इस तो से आक षत होकर ातःकाल ज द आव. (१३)
सू —६३
दे वता—इं
वं महां इ यो ह शु मै ावा ज ानः पृ थवी अमे धाः. य ते व ा गरय द वा भया ळ् हासः करणा नैजन्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम गुण क मह ा म सबसे अ धक हो, य क तुमने असुरज य भय उ प होते ही जल हण कया एवं अपने श ुशोषक बल ारा धरती और आकाश को धारण कया. व म ा त सम त ाणी, पवत तथा अ य महान् एवं ढ़ पदाथ तु हारे भय से उसी कार कांपते ह, जस कार आकाश म सूय क करण कांपती ह. (१) आ य री इ व ता वेरा ते व ं ज रता बा ोधात्. येना वहयत तो अ म ा पुर इ णा स पु त पूव ः.. (२) हे इं ! जब तुम अपने व वध कम वाले घोड़ को रथ म जोड़ते हो, तभी तोता तु हारे हाथ म व दे ता है. हे अ न छत कम वाले इं ! तुम उसी व से श ु का व वंस करते हो. हे ब यजमान ारा आ त इं ! तुम उसी व ारा श ु के अनेक पुर का भेदन करते हो. (२) वं स य इ धृ णुरेता वमृभु ा नय वं षाट् . वं शु णं वृजने पृ आणौ यूने कु साय ुमते सचाहन्.. (३) हे इं ! तुम सव कृ एवं इन श ु को हराने वाले हो. तुम ऋभु के वामी, मानव के हतकारक एवं श ु को हराने वाले हो. वीर संहारक एवं श धान यु म तुमने तेज वी एवं युवक कु स के सहायक बनकर शु ण नामक असुर का वध कया. (३) वं ह य द चोद ः सखा वृ ं य वृषकम ु नाः. य शूर वृषमणः पराचै व द यूय ँ नावकृतो वृथाषाट् .. (४) हे वृ क ा एवं व यु इं ! जस समय तुमने कु स के धन को छ नने वाले श ु का वध कया था, हे श ु ेरक, कामवधक एवं सहज ही श ुनाशक इं ! उस समय तुमने यु े म द यु को र भगाकर उनका नाश कया था एवं कु स क सहायता करके उसे यश वी बनाया था. (४) वं ह य द ा रष य ळ् ह य च मतानामजु ौ. १ मदा का ा अवते वघनेव व छ् न थ म ान्.. (५) हे इं ! य प तुम कसी ढ़ को हा न प ंचाना नह चाहते हो, फर भी य द हम तोता को श ु घेर लेते ह तो तुम हमारे घोड़ के चलने के लए सभी दशा को मु कर दे ते हो. हे व धारी इं ! क ठन व से हमारे श ु को मारो. (५) वां ह य द ाणसातौ वम ळ् हे नर आजा हव ते. तव वधाव इयमा समय ऊ तवाजे वतसा या भूत.. (६) जस यु म वृ होने से लोग को लाभ और धन मलने क संभावना होती है, उस म वे सहायता के लए तु ह बुलाते ह. हे बलशाली! यु े म तुम हमारी र ा करो. यु भू म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म यो ा तुमसे र ा ा त करते ह. (६) वं ह य द स त यु य पुरो व पु कु साय ददः. ब हन य सुदासे वृथा वगहो राज व रवः पूरवे कः.. (७) हे व धारी इं ! पु कु स ऋ ष क सहायता के लए उसके श ु से यु करते ए तुमने सात नगर को वद ण कया था. उसी कार तुमने सुदास राजा का प लेकर अंहो नामक असुर का धन कुश के समान छ करने के प ात् उसी ह दाता सुदास को दे दया था. (७) वं यां न इ दे व च ा मषमापो न पीपयः प र मन्. यया शूर य म यं यं स मनमूज न व ध र यै.. (८) हे तेज वी इं ! तुम हमारे सं हणीय धन को व तृत धरती पर पानी के समान बढ़ाओ. हे वीर! जस कार तुमने जल को चार ओर फैलाया है, उसी कार हमारे ाणधारक अ का भी व तार करो. (८) अका र त इ गोतमे भ ा यो ा नमसा ह र याम्. सुपेशसं वाजमा भरा नः ातम ू धयावसुजग यात्.. (९) हे तेज वी इं ! गोतमवंशी ऋ षय ने अ यु तु हारे लए ह व दे ते ए नम कारपूण तु त क थी. तुम हम भां त-भां त के अ से यु बनाओ. (९)
सू —६४ वृ णे शधाय सुमखाय वेधसे नोधः सुवृ अपो न धीरो मनसा सुह यो गरः सम
दे वता—म द्गण भरा म द् यः. े वदथे वाभुवः.. (१)
हे नोधा! कामपूरक, शोभन य संप एवं पु प, फल आ द के नमाणक ा म द्गण के त सुंदर तु तय का उ चारण करो. म हाथ जोड़कर धीरतापूवक मन से उन तु तय का योग करता ,ं जनके ारा दे वसमूह उसी भां त य थल क ओर अ भमुख कया जा सकता है, जस भां त मेघ एक साथ ब त सी बूंद गराते ह. (१) ते ज रे दव ऋ वास उ णो य मया असुरा अरेपसः. पावकासः शुचयः सूया इव स वानो न सनो घोरवपसः.. (२) दशनीय, पौ षयु एवं प म द्गण अंत र से उ प ए ह. म द्गण श ुनाशक, पापर हत, सबको शु करने वाले, सूय करण के समान, गण के तु य बलशाली, वषा क बूंद को धारण करने वाले एवं घोर प ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
युवानो ा अजरा अभो घनो वव रु गावः पवता इव. ळ् हा च ा भुवना न पा थवा यावय त द ा न म मना.. (३) युवक एवं जरार हत म द्गण दे वता को ह व न दे ने वाल का नाश करते ह. कोई उनक ग त रोक नह सकता, य क वे पवत के समान ढ़ अंग वाले ह एवं तोता क इ छा पूरी करते ह. वे धरती और आकाश क ढ़ व तु को भी अपने बल से कं पत कर दे ते ह. (३) च ैर भवपुषे फ्जते व ःसु माँ अ ध ये तरे शुभे. अंसे वेषां न ममृ ुऋ यः साकं ज रे वधया दवो नरः.. (४) म द्गण शोभा के लए अपने शरीर को भां त-भां त के आभूषण से वभू षत करते ह एवं सीने पर सुंदर हार पहनते ह. हाथ म आयुध धारण कए ए नेता प म द्गण आकाश से अपनी श के साथ उ प ए थे. (४) ईशानकृतो धुनयो रशादसो वाता व ुत त वषी भर त. ह यूध द ा न धूतयो भू म प व त पयसा प र यः.. (५) म त ने तु तक ा को संप शाली, मेघ आ द को कं पत एवं हसक को समा त करके अपनी श से वायु, बजली आ द को बनाया. इसके बाद चार दशा म जाने वाले एवं सबको कंपाने वाले म त ने आकाश के मेघ को ह कर नकले ए जल से धरती को स चा. (५) प व यपो म तः सुदानवः पयो घृतव दथे वाभुवः. अ यं न महे व नय त वा जनमु सं ह त तनय तम तम्.. (६) ऋ वज् जस कार घी से य भू म को स चते ह, वैसे ही शोभन ग त वाले म त् सारयु जल से सारी धरती को स चते ह, य क घुड़सवार जस कार घोड़े को सखाता है, उसी कार वे वेगशाली मेघ को वषा के न म अपने वश म कर लेते ह एवं झुके ए बादल को जलर हत बना दे ते ह. (६) म हषासो मा यन भानवो गरयो न वतवसो रघु यदः. मृगा इव ह तनः खादथा वना यदा णीषु त वषीरयु वम्.. (७) हे महान् मेधावी, तेज वी, पवत के समान श संप एवं शी ग तशाली म द्गण! तुमने लाल रंग वाली बड़वा को श दान क है, इस लए तुम सूंड़ वाले हाथी के समान वृ समूह को खाते हो. (७) सहा इव नानद त चेतसः पशाइव सु पशो व वेदसः. पो ज व तः पृषती भऋ भः स म सबाधः शवसा हम यवः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ च ान संप म द्गण सह के समान गजन करते ह, वे सव ह रण के समान शोभन अंग वाले ह. श ुनाशक, तोता को स करने वाले एवं नाशकारी ोधयु बल से संप म द्गण श ु ारा सताए ए यजमान क र ा के न म अपने वाहन ह रण एवं आयुध स हत तुरंत आते ह. (८) रोदसी आ वदता गण यो नृषाचः शूराः शवसा हम यवः. आ व धुरे वम तन दशता व ु त थौ म तो रथेषु वः.. (९) हे म द्गण! तुम गण के प म थत, यजमान के हतसाधक एवं शौयसंप हो. तुम बलशा लय को जब वनाशकारी ोध आ जाता है तो धरती और आकाश को गजन से भर दे ते हो. जस कार नमल प एवं मेघ म थत बजली को सभी लोग दे खते ह, उसी कार सार थस हत रथ म बैठे ए तुम सभी को दखाई दे ते हो. (९) व वेदसो र य भः समोकसः सं म ास त वषी भ वर शनः. अ तार इषुं द धरे गभ योरनंतशु मा वृषखादयो नरः.. (१०) सव , संप शाली, श संप , महान्, श ुनाशक, सोमपायी एवं नेता म द्गण भुजा म आयुध धारण करते ह. (१०) हर यये भः प व भः पयोवृध उ ज न त आप यो३ न पवतान्. मखा अयासः वसृतो ुव यतो कृतो म तो ाज यः.. (११) जस कार माग म जाता आ रथ तनक को चूण करके उड़ा दे ता है, उसी कार वषा के जल का वषण करने वाले म द्गण अपने वण न मत रथ के प हय से मेघ को ऊपर उठा दे ते ह. वे दे व क य भू म म आने वाले, श ु क ओर अपने आप जाने वाले, न ल पवत आ द को चल बनाने वाले एवं चमक ले आयुध वाले ह. वे को वश म कए ह. (११) घृषुं पावकं व ननं वचष ण य सू नुं हवसा गृणीम स. रज तुरं तवसं मा तं गणमृजी षणं वृषणं स त ये.. (१२) हम श ुबलनाशक, सबके प व क ा, वषाकारक, सबके दे खने वाले एवं पु म द्गण क तु त तो ारा करते ह. हे यजमानो! तुम भी धन ा त के न म धूल उड़ाने वाले, बल संप ऋजीष नामक य म आ त तथा कामवषक म त के समीप जाओ. (१२) नू स मतः शवसा जनाँ अ त त थौ व ऊती म तो यमावत. अव वाजं भरते धना नृ भरापृ ं तुमा े त पु य त.. (१३) हे म द्गण! तु हारा आ य एवं र ा ा त करने वाला ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सब मनु य से अ धक
बलवान् बन जाता है, वह घोड़ क सहायता से अ एवं अपने सेवक क सहायता से धनलाभ करता है. वह शोभन य का अनु ानक ा एवं जा, पु आ द से संप बनता है. (१३) चकृ यं म तः पृ सु रं ुम तं शु मं मघव सु ध न. धन पृतमु यं व चष ण तोकं पु येम तनयं शतं हमाः.. (१४) हे म द्गण! तुम ह दाता यजमान को ऐसे पु दे ते हो जो सभी काय करने म कुशल, सं ाम म अजेय, तेज वी, श ुनाशक, धनसंप , शंसापा एवं सव ह . हम इस कार के पु एवं पौ को सौ वष जी वत रखगे. (१४) नू रं म तो वीरव तमृतीषाहं र यम मासु ध . सह णं श तनं शूशुवांसं ातम ू धयावसुजग यात्.. (१५) हे म द्गण! हम थर, श शाली एवं श ुजयी पु पी धन दो. हमारे य कम से धन ा त करने वाले, श शाली एवं श ुजयी पु पी धन दो. हमारे य कम से धन ा त करने वाले, म द्गण इस कार के शतसह पु पी धन से यु हमारी र ा के लए आव. (१५)
सू —६५
दे वता—अ न
प ा न तायुं गुहा चत तं नमो युजानं नमो वह तम्. सजोषा धीराः पदै रनु म प ु वा सीद व े यज ाः.. (१-२) जैसे पशु चुराने वाला पशु स हत गुफा म छप जाता है और लोग उसके पैर के च दे खते ए उसके पास तक प ंच जाते ह, उसी कार मेधावी एवं समान म त दे वगण तु हारे चरण च के सहारे तुम तक प ंच गए. य पा सम त दे वगण तु हारे समीप आए थे, अतः तुम वयं ह का भ ण करो और अ य दे व के लए भी ले जाओ. (१-२) ऋत य दे वा अनु ता गुभुव प र न भूम. वध तीमापः प वा सु श मृत य योना गभ सुजातम्.. (३-४) दे व ने भागे ए अ न के कम क खोज क थी. यह खोज चार दशा म क गई. अ न को खोजने के लए इं आ द दे व धरती पर आए थे, इस लए धरती वग के तु य बन गई थी. य के कारणभूत, जल के गभ से उ प एवं ऋ वज क तु तय ारा बु अ न को छपाने के लए जल म वृ ई थी. (३-४) पु न र वा तन पृ वी ग रन भु म ोदो न शंभु. अ यो ना म सग त ः स धुन ोदः क वराते.. (५-६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न अ भमत के फल क वृ के समान रमणीय, धरती के समान व तीण, पवत के समान सबको भोजन दे ने वाले एवं जल के समान सुख द ह. यु म सतत गमनशील अ एवं बहते ए जल के समान शी गामी अ न को कौन रोक सकता है? (५-६) जा मः स धूनां ातेव व ा म या राजा वना य . य ातजूतो वना थाद नह दा त रोमा पृ थ ाः.. (७-८) अ न ब हन के हतैषी भाई के समान बहने वाले जल के हतैषी ह. अ न श ु के वनाशकारी राजा के समान वन का भ ण करते ह. वायु ारा े रत अ न जस समय वन को जलाते ह, उस समय पृ वी के रोग के समान सभी वन प तयां समा त हो जाती ह. (७-८) स य सु हंसो न सीदन् वा चे त ो वशामुषभुत्. सोमो न वेधा ऋत जातः पशुन श ा वभु रेभाः.. (९-१०) जस कार हंस पानी म बैठता है, उसी कार ातःकाल जागकर सबको सावधान करने वाला अ न जल म रहकर श ा त करता है. अ न सोम के समान सभी ओष धय को बढ़ाते एवं गभ म थत शशु के समान जल म सकुड़ कर बैठे थे. जब अ न ने वृ क तो इसका काश र तक फैल गया. (९-१०)
सू —६६
दे वता—अ न
र यन च ा सूरो न सं गायुन ाणो न यो न सूनुः. त वा न भू णवना सष पयो न धेनुः शु च वभावा.. (१-२) धन के समान व च प, सूय के समान सभी व तु को दखाने वाले, ाणवायु के समान जीवन सं थापक, पु के समान यकारी, ग तशील अ के समान लोकवाहन एवं गाय के समान पोषणकारी, द त एवं व श काशयु अ न वन को जलाने के लए आते ह. (१-२) दाधार म े मोको न र यो यवो न प वो जेता जनानाम्. ऋ षन तु वा व ु श तो वाजी न ीतो वयो दधा त.. (३-४) रमणीय घर के समान तोता को दए ए धन क र ा म समथ, पके ए जौ के समान सबके उपभोग यो य, मं ा ऋ षय के समान दे व के तु तक ा, यजमान म स एवं अ के समान हषयु अ न हम अ द. (३-४) रोकशो चः तुन न यो जायेव योनावरं व मै. च ो यद ाट् छ्वेतो न व ु रथो न मी वेषः सम सु.. (५-६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा य तेज वाले अ न य कम करने वाले के समान न य, घर म बैठ ई प नी के समान य गृह के आभूषण, व च द त वाले होकर चमकने पर सूय के समान शु वण, जा के म य वण न मत रथ के समान तेज वी एवं सं ाम म भावशाली ह. (५-६) सेनेव सृ ामं दधा य तुन द ु वेष तीका. यमो ह जातो यमो ज न वं जारः कनीनां प तजनीनाम्.. (७-८) अ न सेनाप त के साथ वतमान सेना अथवा धानु क के द तमुख बाण के समान श ु को भय द ह. उ प एवं भ व य म ज म लेने वाला भूतसंघ अ न ही ह. वे कुमा रय के जार एवं ववा हता के प त ह. (७-८) तं व राथा वयं वस या तं न गावो न त इ म्. स धुन ोदः नीचीरैनो व त गावः व१ शीके.. (९-१०) जस कार गाय पशुशाला म प ंचती है, उसी कार हम पशु एवं धा य संबंधी आ तयां लेकर व लत अ न के समीप जाते ह. वे न नगामी जल के समान इधर-उधर वालाएं फैलाते है. दशनीय अ न क करण आकाश म मल जाती ह. (९-१०)
सू —६७
दे वता—अ न
वनेषु जायुमतषेु म ो वृणीते ु राजेवाजुयम्. ेमो न साधुः तुन भ ो भुव वाधीह ता ह वाट् .. (१-२) जस कार राजा जरार हत का आदर करता है, उसी कार अर य म यजमान एवं मानव सखा अ न शी ही यजमान पर कृपा करते ह. र क के समान कमसाधक, कायक ा के समान क याणकारी, दे व का य म आ ान करने वाले एवं ह वहन करने वाले अ न शोभनकमा ह. (१-२) ह ते दधानो नृ णा व ा यमे दे वा धाद्गुहा नषीदन्. वद तीम नरो धय धा दा य ा म ाँ अशंसन्.. (३-४) सम त ह प धन अपने हाथ म लेकर अ न के गुफा म छप जाने पर सभी दे व भयभीत हो गए. नेता एवं बु धारक दे व ने य ही बु न मत मं ारा अ न क तु त क , य ही अ न को पा लया. (३-४) अजो न ां दाधार पृ थव त त भ ां म े भः स यैः. या पदा न प ो न पा ह व ायुर ने गुहा गुहं गाः.. (५-६) अ न सूय के समान धरती और अंत र
को धारण करने के साथ-साथ साथक मं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा आकाश को भी धारण कए ह. हे संपूण अ के वामी अ न! पशु के क र ा करो एवं ऐसे थान म जाओ जो गाय के संचार के अयो य हो. (५-६)
य थान
य चकेत गुहा भव तमा यः ससाद धारामृत य. व ये चृत यृता सप त आ द सू न ववाचा मै.. (७-८) अ न दे व ऐसे लोग को अ वलंब धन दान करते ह जो य थल म वतमान अ न को जानते ह, स य के धारणक ा ह व अ न के उ े य से तु तयां करते ह. (७-८) व यो वी सु रोध म ह वोत जा उत सू व तः. च रपां दमे व ायुः स ेव धीराः संमाय च ु ः.. (९-१०) मेधावी पु ष ओष धय म उनके गुण अव करने वाले, मातृ प ओष धय म पु प, फल आ द था पत करने वाले, जल म य थ य गृह म वतमान, ानदाता एवं सम त अ के वामी अ न क पहले घर के समान पूजा करके बाद म कम करते ह. (९-१०)
सू —६८
दे वता—अ न
ीण ुप था वं भुर युः थातु रथम ू ूण त्. प र यदे षामेको व ेषां भुव े वो दे वानां म ह वा.. (१-२) ह धारणक ा अ न ध आ द हवनीय को मलाते ए आकाश म प ंच जाते ह तथा अपने तेज ारा थावर, जंगम व के साथ-साथ रा को भी का शत करते ह. अ न इं ा द सम त दे व क अपे ा काशमान एवं थावर, जंगम को ा त कए ह. (१-२) आ द े व े तुं जुष त शु का े व जीवो ज न ाः. भज त व े दे व वं नाम ऋतं सप तो अमृतमेवैः.. (३-४) हे तेज वी अ न! तुम व लत होते ए अर ण प सूखे का से जब जब उ प होते हो, तभी यजमान य कम आरंभ करते ह. वे यजमान तो ारा तुझ मरणर हत अ न क सेवा करके दे व व ा त करते ह. (३-४) ऋत य ेषा ऋत य धी त व ायु व े अपां स च ु ः. य तु यं दाशा ो वा ते श ा मै च क वा य दय व.. (५-६) य ही अ न य भू म म पधारते ह, य ही उनक तु तयां एवं य कम आरंभ हो जाते ह. सब यजमान अ के वामी अ न को ल य करके य करते ह. हे अ न! जो यजमान तु ह ह दे ता है अथवा तु हारे य कम क श ा ा त करता है, तुम उसके कम को जानते ए उसे धन दो. (५-६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
होता नष ो मनोरप ये स च वासां पती रयीणाम्. इ छ त रेतो मथ तनूषु सं जानत वैद ैरमूराः.. (७-८) हे अ न! तुम मनु क जा प यजमान के दे व आ ानकारी एवं उनके धन के वामी थे. उन जा ने पु उ प करने क इ छा से अपने शरीर म वीय क अ भलाषा क थी. वे मोह याग कर अपने समथ पु के साथ चरकाल तक जी वत ह. (७-८) पतुन पु ाः तुं जुष त ोष ये अ य शासं तुरासः. व राय औण रः पु ुः पपेश नाकं तृ भदमूनाः.. (९-१०) जस कार पु पता क आ ा का पालन करता है, उसी कार यजमान शी तापूवक अ न क आ ा सुनते ह एवं उनके आदे श के अनुसार काय करते ह. व वध अ के वामी अ न धन दे ते ह, जो य का साधन है. य गृह के त आस रखने वाले अ न ने आकाश को न से सुशो भत कया. (९-१०)
सू —६९
दे वता—अ न
शु ः शुशु वाँ उषो न जारः प ा समीची दवो न यो तः. प र जातः वा बभूथ भुवो दे वानां पता पु ः सन्.. (१-२) शु वण अ न उषा के जार सूय के समान सभी पदाथ को का शत करते ह एवं काशक सूय के समान अपने तेज से धरती और आकाश को भर दे ते ह. हे अ न! तुम ा भूत होकर अपने कम से सारे संसार को ा त कर लेते हो. तुम पु के समान दे व के त होते ए भी पता के समान उनके पालक हो. (१-२) वेधा अ तो अ न वजान ूधन गोनां वा ा पतूनाम्. जने न शेव आ यः स म ये नष ो र वो रोणे.. (३-४) मेधावी, दपर हत एवं क -अक को जानने वाले अ न उसी कार सम त अ को वा द बना दे ते ह, जस कार गाय का तन बनाता है. अ न य म बुलाए जाने पर लोक सुखकारी पु ष के समान य थल म आकर बैठते ह. (३-४) पु ो न जातो र वो रोणे वाजी न ीतो वशो व तारीत्. वशो यद े नृ भ सनीळा अ नदव वा व य याः.. (५-६) य गृह म उ प होकर अ न पु के समान आनंदकारी एवं स होकर सं ाम म अ के समान श ु को भगाने वाले ह. जब म ऋ षय के साथ मलकर एक नवास करने वाले दे व को बुलाता ं तो यह अ न वयं ही उन दे वता का प बना लेते ह. (५-६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न क एता ता मन त नृ यो यदे यः ु चकथ. त ु ते दं सो यदह समानैनृ भय ु ो ववे रपां स.. (७-८) हे अ न! रा सा द बाधक तुमसे संबं धत य का वनाश नह कर पाते, य क उन कम म संल न यजमान को तुम फल के प म सुख दान करते हो. य द तु हारे कम को रा सा द न करते ह तो तुम अपने साथी नेता म द्गण को लेकर उ ह भगा दे ते हो. (७-८) उषो न जारो वभावो ः सं ात प केतद मै. मना वह तो रो ृ व व त व े व१ शीके.. (९-१०) उषा के जार सूय के समान काशयु , नवास यो य एवं व व दत व प वाले अ न यजमान को जान. अ न क करण वयं ही ह वहन करती ई एवं य गृह के ार को ा त करती ई दशनीय आकाश म फैलती ह. (९-१०)
सू —७०
दे वता—अ न
वनेम पूव रय मनीषा अ नः सुशोको व ा य याः. आ दै ा न ता च क वाना मानुष य जन य ज म.. (१-२) बु ारा ा त , शोभनद त संप , दे व के त एवं मानव के ज म प कम समझकर सारे काय म ा त अ क याचना करते ह. (१-२) गभ यो अपां गभ वनानां गभ थातां गभ रथाम्. अ ौ चद मा अ त रोणे वशां न व ो अमृतः वाधीः.. (३-४) जो अ न जल, अर य, थावर एवं जंगम के गभ म थत रहते ह, उ ह लोग य मंडप एवं पवत के ऊपर ह व दे ते ह. जा के सुख का इ छु क राजा जस कार उनक र ा करता है, उसी कार मरणर हत अ न हमारे त शोभन कम कर. (३-४) स ह पावाँ अ नी रयीणां दाश ो अ मा अरं सू ै ः. एता च क वो भूमा न पा ह दे वानां ज म मता व ान्.. (५-६) जो यजमान मं ारा अ न क तु त करता है, रा के वामी अ न उसे धन दे ते ह. हे सव अ न! तुम दे व एवं मानव के ज म के वषय म जानते ए ा णसमूह का पालन करो. (५-६) वधा यं पूव ः पो व पाः थातु रथमृत वीतम्. अरा ध होता व१ नष ः कृ व व ा यपां स स या.. (७-८) उषा और रा का प भ है, फर भी वे अ न क वृ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करती ह. इसी कार
थावर एवं जंगम अमृत प उदक घरी ई अ न को बढ़ाते ह. दे वय म थत होकर दे व को बुलाने वाले अ न सम त य कम को स यफल दे ते ए आरा धत ह . (७-८) गोषु श तं वनेषु धषे भर त व े ब ल वणः. व वा नरः पु ा सपय पतुन ज े व वेदो भर त.. (९-१०) हे अ न! हमारे काम आने वाले गाय आ द पशु को शंसनीय बनाओ. सम त मनु य हमारे लए भट के प म धन लाव. जस कार वृ पता से पु धन पाता है, उसी कार यजमान अनेक दे वय के थल म तु हारी भां त-भां त से सेवा करते एवं धनलाभ करते ह. (९-१०) साधुन गृ नुर तेव शूरो यातेव भीम वेषः सम सु.. (११) अ न साधक के समान सम त ह वीकार करते ह. वे धानु क के समान शूर, श ु के समान भयंकर एवं सं ाम म द त होकर हमारी सहायता कर. (११)
सू —७१
दे वता—अ न
उप ज व ुशती श तं प त न न यं जनयः सनीळाः. वसारः यावीम षीमजु च मु छ तीमुषसं न गावः.. (१) कामना करने वाली एवं एक साथ नवास करने वाली उंग लयां ह क अ भलाषा करने वाले अ न को ह दे कर उसी कार स करती ह, जस कार ववा हता नारी अपने प त को स करती है. पहले कृ णवण धारण करने वाली उषा क सेवा जस कार सूय करण करती ह, उसी कार उंग लयां पूजनीय अ न क अंज लबंधन से सेवा करती ह. (१) वीळु चद्वृळ्हा पतरो न उ थैर ज ङ् गरसो रवेण. च ु दवो बृहतो गातुम मे अहः व व व ः केतुमु ाः.. (२) हमारे पतर अं गरा ने मं ारा अ न क तु त करके उस तु त श द ारा ही बलवान् एवं ढ़ प ण असुर को समा त कया था एवं हमारे लए महान् ुलोक का माग बनाया था. इसके प ात् उ ह ने सुखपवक ा य दवस, संसार काशक सूय एवं प णय ारा चुराई गई गाय को जाना था. (२) दध त ृ ं धनय य धी तमा ददय द ध वो३ वभृ ाः. अतृ य तीरपसो य य छा दे वा म यसा वधय तीः.. (३) जस कार लोग धन धारण करते ह, उसी कार अं गरावंशी ऋ षय ने य क अ न ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को धारण कया था. जो यजमान धन के वामी ह जो अ य वषय क तृ णा से र हत होकर अ न को धारण करते ए य कम म संल न रहते ह, वे ह व प अ के ारा दे व और मानव क वृ करते ए अ न के स मुख जाते ह. (३) मथी द वभृतो मात र ा गृहेगृहे येतो जे यो भूत्. आद रा े न सहीयसे सचा स ा यं१ भृगवाणो ववाय.. (४) ान पी वायु अ न को जब-जब मथते ह, तब-तब यह शु वण अ न सम त य गृह म उ प होते ह. जस कार म ता का आचरण करता आ राजा बली राजा के समीप अपना त भेजता है, उसी कार भृगु ऋ ष ने अ न को त के काम म लगाया. (४) महे य प रसं दवे करव सर पृश य क वान्. सृजद ता धृषता द ुम मै वायां दे वो हत र व ष धात्.. (५) हे अ न! जब यजमान महान् एवं पालनक ा दे वगण के लए धरती का सारभूत रस दे ता है, तब पश करने म कुशल रा स आ द तु ह ह वाहक जानकर पलायन कर जाते ह. बाण फकने म कुशल अ न अपने श ुनाशक धनुष से उन भागते ए रा स आ द पर काशयु बाण फकते ह एवं अपनी पु ी उषा म द तमान् अ न दे व अपना तेज था पत करते ह. (५) व आ य तु यं दम आ वभा त नमो वा दाशा शतो अनु ून्. वध अ ने वयो अ य बहा यास ाया सरथं यं जुना स.. (६) हे बहा अ न दे व! जो यजमान तु ह अपने य गृह म शा ीय मयादा के अनुसार का से चार ओर व लत करता है एवं कामना करने वाले तु हारे लए त दन नम कार करता है, तुम उसके अ क वृ करते हो. जो रथस हत यु ा भलाषी पु ष को रण म े रत करता है, वह पु ष धन ा त करता है. (६) अ नं व ा अ भ पृ ः सच ते समु ं न वतः स त य ः. न जा म भ व च कते वयो नो वदा दे वेषु म त च क वान्.. (७) जस कार वशाल सात स रताएं सागर के पास प ंचती ह, उसी कार सम त ह अ अ न को ा त होते ह. हमारे पास इतना कम अ है क हमारी जा त वाले उसका भाग नह पाते. इस लए तुम दे व म मननीय धन को जानकर हम ा त कराओ. (७) आ य दषे नृप त तेज आनट् छु च रेतो न ष ं ौरभीके. अ नः शधमनव ं युवानं वा यं जनय सूदय च.. (८) अ न का शु एवं द त तेज अ के लए जठरा न के प म यजमान को ा त कर ले. उसी तेज ारा प रप व वीय गभ थान म प ंचकर पु उ प करे तथा उसे शुभ कम म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े रत करे. (८) मनो न योऽ वनः स ए येकः स ा सुरो व व ईशे. राजाना म ाव णा सुपाणी गोषु यममृतं र माणा.. (९) आकाश माग म मन के समान शी जाने वाले एकाक सूय अनेक थान म रखे ए धन को ा त करते ह. काशमान एवं सुंदर बा यु म और व ण स ताकारक तथा अमृत तु य ध क र ा करते ए हमारी गाय म थत रह. (९) मा नो अ ने स या प या ण म ष ा अ भ व क वः सन्. नभो न पं ज रमा मना त पुरा त या अ भश तेरधी ह.. (१०) हे अ न! हमारे त तु हारी जो परंपरागत म ता है, उसे न मत करो, य क तुम भूत, भ व यत् एवं वतमान सबके ाता हो. जस कार आकाश को सूय क करण ढक लेती ह, उसी कार हमारा वनाश करने वाले बुढ़ापे को हमसे र रखने का य न करो. (१०)
सू —७२
दे वता—अ न
न का ा वेधसः श त कह ते दधानो नया पु ण. अ नभुव यपती रयीणां स ा च ाणो अमृता न व ा.. (१) मनु य के लए हतकारक धन हाथ म धारण करते ए न य एवं ानसंप अ न संबंधी मं को वीकार करते ह. तु तक ा को अमृत दान करते ए अ न उ कृ धन के वामी होते ह. (१) अ मे व सं प र ष तं न व द छ तो व े अमृता अमूराः. मयुवः पद ो धयंधा त थुः पदे परमे चाव नेः.. (२) मरणर हत सम त दे वगण एवं मोहहीन म द्गण चाहने पर भी हमारे य एवं सब ओर वतमान अ न को ा त नह कर सके. अ न के बना वे ःखी हो गए एवं पैदल चलते ए थक कर काश को दे खते ए अ न के थान म उप थत ए. (२) त ो यद ने शरद वा म छु च घृतेन शुचयः सपयान्. नामा न च धरे य या यसूदय त त व१: सुजाताः.. (३) हे शु अ न! द तसंप म त ने तीन वष तक घृत से तु हारी पूजा क , तब तुम कट ए. तभी तु हारी अनुकंपा से उ ह ने य म योग करने यो य नाम एवं शरीर ा त कए. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ रोदसी बृहती वे वदानाः या ज रे य यासः. वद मत नेम धता च क वान नं पदे परमे त थवांसम्.. (४) य पा दे व ने व तृत आकाश एवं धरती के बीच रहकर अ न के यो य तु तयां क थ . म द्गण ने इं के साथ जाना क अ न उ म थान म छपे ह. इसके प ात् उ ह ा त कया. (४) संजानाना उप सीद भ ु प नीव तो नम यं नम यन्. र र वांस त वः कृ वत वाः सखा स यु न म ष र माणाः.. (५) हे अ न! दे वगण तु ह भली कार जानकर बैठ गए एवं अपनी य के साथ तु हारी पूजा करने लगे. तुम उनके सामने घुटन के सहारे बैठे थे. दे वता तु हारे सखा एवं तु हारे ारा र त थे. उ ह ने अपने म अ न को दे खा तो अपने शरीर को सुखाते ए य करने लगे. (५) ः स त यद्गु ा न वे इ पदा वद हता य यासः. तेभी र ते अमृतं सजोषाः पशू च थातॄ चरथं च पा ह.. (६) हे अ न! यजमान ने तु हारे भीतर छपे ए इ क स त व को जाना. जानकर वे उ ह से तु हारी र ा करते ह. तुम यजमान के त उतना ेम रखते ए उनके पशु एवं थावर-जंगम धन क र ा करो. (६) व ाँ अ ने वयुना न तीनां ानुष छु धो जीवसे धाः. अ त व ाँ अ वनो दे वयानानत ो तो अभवो ह ववाट् .. (७) हे अ न! सम त ात बात को जानते ए तुम यजमान पी जा के जीवन के लए भूख पी रोग को र करो. धरती और आकाश के म य दे व के जाने के माग को जानते ए तुम आल य छोड़कर दे व के त प म ह व वहन करो. (७) वा यो दव आ स त य रायो रो ृत ा अजानन्. वदद्ग ं सरमा हमूव येना नु कं मानुषी भोजते वट् .. (८) हे अ न! तुमने शोभन कम यु सात महान् न दय को आकाश से नकालकर धरती पर बहाया है. य को जानने वाले अं गरागो ीय ऋ षय ने बल नामक असुर ारा चुराई गई गाय का माग तुमसे जाना था. तु हारी ही कृपा से सरमा ने अं गरा से गो ध पाया था. उसी गो ध से मानव क र ा होती है. (८) आ ये व ा वप या न त थुः कृ वानासो अमृत वाय गातुम्. म ा मह ः पृ थवी व त थे माता पु ैर द तधायसे वेः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ द य ने अमरण भाव क स के लए उपाय करते ए पतनर हत होने के लए कम कए एवं उन महानुभाव के स हत उनक अद ना माता पृ वी ने सम त जगत् को धारण करने के लए वशेष मह व ा त कया था. हे अ न दे व! यह सब इसी कारण हो सका क तुमने उस य का ह व भ ण कया था. (९) अ ध यं न दधु ा म म दवो यद ी अमृता अकृ वन्. अध र त स धवो न सृ ाः नीचीर ने अ षीरजानन्.. (१०) यजमान ने इस अ न म शोभन य संप था पत क एवं य का च ु प घृत डाला. इससे मरणर हत दे व य का समय जानकर आए. हे अ न! तु हारी काशयु वालाएं स रता के समान सम त दशा म फैल ग एवं आए ए दे व ने उ ह जाना. (१०)
सू —७३
दे वता—अ न
र यन यः पतृ व ो वयोधाः सु णी त कतुषो न शासुः. योनशीर त थन ीणानो होतेव स वधतो व तारीत्.. (१) अ न पैतृक धन के समान अ दान करते ह. वे धमशा के व ान् के समान सरल नेता ह. वे सुखासन से बैठे ए अ त थ के समान तपणीय एवं होमक ा के समान यजमान के घर क उ त करते ह. (१) दे वो न यः स वता स यम मा वा नपा त वृजना न व ा. पु श तो अम तन स य आ मेव शेवो द धषा यो भूत्.. (२) जो अ न काश यु सूय के समान यथाथदश होकर अपने कम से लोग को सब ःख से बचाते ह, यजमान से शं सत होकर प के समान प रवतनहीन एवं आ मा के समान सुखदायक ह, ऐसे अ न को सब यजमान धारण करते ह. (२) दे वो न यः पृ थव व धाया उप े त हत म ो न राजा. पुरः सदः शमसदो न वीरा अनव ा प तजु ेव नारी.. (३) जो अ न काशवान् सूय के समान सारे जगत् को धारण करते ह, अनुकूल म वाले राजा के समान धरती पर नवास करते ह एवं जस अ न के सामने संसार इस कार बैठता है, जैसे पु पता के स मुख, वे अ न अ न दता एवं प त ारा वीकृत नारी के समान शु कम वाले ह. (३) तं वा नरो दम आ न य म म ने सच त तषु ुवासु. अ ध ु नं न दधुभूय म भवा व ायुध णो रयीणाम्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! यजमान उप वर हत गांव म बने अपने य गृह म नरंतर का जलाकर सामने बैठे तु हारी सेवा करते ह एवं अनेक कार का ह अ दे ते ह. तुम सब अ के वामी बनकर हम दे ने के लए धन धारण करो. (४) व पृ ो अ ने मघवानो अ यु व सूरयो ददतो व मायुः. सनेमं वाजं स मथे वय भागं दे वेषु वसे दधानाः.. (५) हे अ न! ह व प धन से यु यजमान अ ा त कर एवं तु हारी तु त करने वाले तथा ह व दे ने वाले व ान् संपूण जीवन ा त कर. हम सं ाम म श ु के अ पर अ धकार करने के प ात् यश के लए दे व को ह व का भाग द. (५) ऋत य ह धेनवो वावशानाः म नीः पीपय त भ ु ाः. परावतः सुम त भ माणा व स धवः समया स रु म्.. (६) अ न क बार-बार अ भलाषा करती न य धशा लनी एवं तेज वनी गाएं य दे श म ा त अ न को ध पलाती ह. बहती ई स रताएं अ न से अनु ह क याचना करती पवत के समीप से र दे श को बहती ह. (६) वे अ ने सुम त भ माणा द व वो द धरे य यासः. न ा च च ु षसा व पे कृ णं च वणम णं च सं धुः.. (७) हे ोतमान अ न! य के वामी दे व ने तु हारे अनु ह क याचना करते ए तुम म ह व था पत कया. इसके प ात् इस अनु ान के न म उषा और रा को भ - भ पवाला बनाया अथात् नशा को काला और उषा को अ ण बनाया. (७) या ाये मता सुषूदो अ ने ते याम मघवानो वयं च. छायेव व ं भुवनं सस याप वा ोदसी अ त र म्.. (८) हे अ न! तुम जन लोग को धन ा त करने के लए य कम के त े रत करते हो, वे और हम य ा त कर. तुमने आकाश, धरती और अंत र को अपने तेज से भर दया है तथा तुम छाया के समान सारे संसार क र ा करते हो. (८) अव र ने अवतो नृ भनॄ वीरैव रा वनुयामा वोताः. ईशानासः पतॄ व य रायो व सूरयः शत हमा नो अ युः.. (९) हे अ न! तु हारे ारा र त होकर हम अपने अ से श ु के अ का, अपने भट ारा श ु के भट का एवं अपने पु क सहायता से श ु के पु का वध करगे. परंपरा से ा त धन के वामी एवं व ान् हमारे पु सौ वष जी वत रहकर सुख भोग. (९) एता ते अ न उचथा न वेधो जु ा न स तु मनसे दे च. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शकेम रायः सुधरो यमं तेऽ ध वो दे वभ ं दधानाः.. (१०) हे अ न! हमारे सम त तो तु हारे मन और अंतःकरण को य ह . हम दे व के भोग करने यो य धन तुम म था पत करके तु हारे उस धन क र ा करना चाहते ह जो हमारी द र ता मटा सके. (१०)
दे वता—अ न
सू —७४
उप य तो अ वरं म ं वोचेमा नये. आरे अ मे च शृ वते.. (१) र रहकर भी हमारी तु तयां सुनने वाले एवं य अ न क हम तु त करते ह. (१) यः नी हतीषु पू ः संज मानासु कृ षु. अर श ु भाव से पूण एवं ह या करने म वृ जा के धन के र क अ न क हम तु त करते ह. (२) उत ुव तु ज तव उद नवृ हाज न. धन
म शी ता से उप थत होने वाले
ाशुषे गयम्.. (२) के म य थत ह व दे ने वाले यजमान
यो रणेरणे.. (३)
श ुनाशक एवं सं ाम म श ु के धन पर अ धकार करने वाले अ न के उ प होते ही सब लोग उनक तु त कर. (३) य य तो अ स ये वे ष ह ा न वीतये. द म कृणो य वरम्.. (४) हे अ न! जस यजमान के य गृह म तुम दे व त बनकर आते हो एवं उन दे व के भोग के लए ह व हण करके य क शोभा बढ़ाते हो. (४) त म सुह म रः सुदेवं सहसो यहो. जना आ ः सुब हषम्.. (५) हे बलपु अ न! उसी यजमान को सब लोग शोभन ह वसंप , सुंदर दे व वाला एवं उ म य यु कहते ह. (५) आ च वहा स ताँ इह दे वाँ उप श तये. ह ा सु
वीतये.. (६)
हे शोभन एवं आ ादक अ न! हमारी तु त वीकार करने के लए इस य म दे व को हमारे समीप ले आओ एवं उनके भ ण के लए ह दान करो. (६) न यो प दर
ः शृ वे रथ य क चन. यद ने या स
यम्.. (७)
हे अ न! जब तुम दे व के त बनकर जाते हो तो शी चलने के कारण तु हारे रथ का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श द नह सुनाई पड़ता. (७) वोतो वा य योऽ भ पूव मादपरः.
दा ाँ अ ने अ थात्.. (८)
हे अ न! नकृ पु ष भी तु ह ह दान करके तु हारे ारा र त अ का वामी एवं ऐ यशाली बन जाता है. (८) उत ुम सुवीय बृहद ने ववास स. दे वे यो दे व दाशुषे.. (९) हे काशमान अ न! दे व को ह धन दो. (९)
दे ने वाले यजमान को ौढ़, द त एवं श
संप
दे वता—अ न
सू —७५
जुष व स थ तमं वचो दे व सर तमम्. ह ा जु ान आस न.. (१) हे अ न दे व! अपने मुख म ह हण करते ए दे व को भली कार स करो एवं हमारी व तीण तु तयां वीकार करो. (१) अथा ते अ र तमा ने वेध तम
यम्. वोचेम
सान स.. (२)
हे अं गरागो ीय ऋ षय एवं मेधा वय म े अ न! हम तु हारे हण करने यो य एवं स तादायक तो का उ चारण करते ह. (२) क ते जा मजनानाम ने को दा
वरः. को ह क म स
तः.. (३)
हे अ न! मनु य के बीच म तु हारा बंधु कौन है? कौन तु हारा य करने म समथ है? अथात् कोई नह . तुम कौन हो और कहां रहते हो? (३) वं जा मजनानाम ने म ो अ स हे अ न! तुम सबके बंधु एवं
यः. सखा स ख य ई
य म हो. तुम म
ः.. (४)
के तु त यो य म हो. (४)
यजा नो म ाव णा यजा दे वाँ ऋतं बृहत्. अ ने य
वं दमम्.. (५)
हे अ न! हमारे न म म , व ण एवं अ य दे व को ल य करके यजन करो. तुम वशाल एवं यथाथ फल वाले य को पूरा करने के लए अपने य गृह म जाओ. (५)
सू —७६
दे वता—अ न
का त उपे तमनसो वराय भुवद ने शंतमा का मनीषा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को वा य ैः प र द ं त आप केन वा ते मनसा दाशेम.. (१) हे अ न! हमारे त तु हारा मन स होने का या उपाय है? तु ह सुख दे ने वाली तु त कैसी होगी? तु हारी मता के अनुकूल य कौन यजमान कर सकता है? हम कस मन से तु ह ह दान कर? (१) ए न इह होता न षीदाद धः सु पुरएता भवा नः. अवतां वा रोदसी व म वे यजा महे सौमनसाय दे वान्.. (२) हे अ न! इस य म आओ और दे व के आ ानक ा बनकर बैठो. रा सा द तु हारी हसा नह कर सकते, इस लए तुम हमारे अ गामी नेता बनो. तुम सम त आकाश एवं धरती ारा र त होकर दे व को परम स करने के लए ह व ारा उनक पूजा करो. (२) सु व ा सो ध य ने भवा य ानाम भश तपावा. अथा वह सोमप त ह र यामा त यम मै चकृमा सुदा ने.. (३) हे अ न! सम त रा स को भली कार न करके हसा से य क र ा करो. संपूण सोमरस के पालनक ा इं को उसके ह र नामक अ स हत इस य म लाओ, य क हम शोभन फलदाता इं का अ त थ स कार करगे. (३) जावता वचसा व रासा च वे न च स सीह दे वैः. वे ष हो मुत पो ं यज बो ध य तज नतवसूनाम्.. (४) म मुख ारा ह हण करने वाले अ न का आ ान ऐसे तो ारा करता ं जो संतान आ द फल दे ने म समथ ह. हे य कम यो य अ न! तुम अ य दे व के साथ बैठो एवं होता तथा पोता ारा कए जाने वाले कम करो. तुम धन के वामी एवं सबके ज मदाता बनकर हम जगाओ. (४) यथा व य मनुषो ह व भदवाँ अयजः क व भः क वः सन्. एवा होतः स यतर वम ा ने म या जु ा यज व.. (५) हे अ न! तुमने ांतदश बनकर मेधावी ऋ वज के साथ जस कार मेधावी मनु के य मह ारा दे व क पूजा क थी, हे य संप क ा साधु अ न! इसी कार तुम इस य म दे व क पूजा आनंददायक जु नामक ुक् ारा करो. (५)
सू —७७
दे वता—अ न
कथा दाशेमा नये का मै दे वजु ो यते भा मने गीः. यो म य वमृत ऋतावा होता य ज इ कृणो त दे वान्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मरणर हत, स ययु , दे व का आ ान करने वाले, य पूण कराने वाले एवं मनु य के बीच नवास करके भी दे व को ह वयु करने वाले अ न के अनु प ह हम कैसे दे सकगे? हम तेज वी अ न के त दे वो चत तु त कस कार करगे. (१) यो अ वरेषु शंतम ऋतावा होता तमू नमो भरा कृणु वम्. अ नय े मताय दे वा स चा बोधा त मनसा यजा त.. (२) हे यजमानो! जो अ न य म अ तशय सुखकारी, यथाथदश और दे व का आ ान करने वाले ह, उ ह तु तय ारा हमारे अ भमुख करो. जस समय अ न यजमान के न म दे व के समीप जाते ह, उस समय वे दे व को य पा जानकर मन से उनक पूजा करते ह. (२) स ह तुः स मयः स साधु म ो न भूद त य रथीः. तं मेधेषु थमं दे वय ती वश उप ुवते द ममारीः.. (३) दे व क अ भलाषा करने वाली जाएं य क ा, व संहारक, उ पादनक ा, म के समान अ ा त धन के ा त कराने वाले एवं दशनीय अ न के समीप जाकर उ ह य का धान दे व मानत एवं उनक तु त करती ह. (३) स नो नृणां नृतमो रशादा अ न गरोऽवसा वेतु धी तम्. तना च ये मघवानः श व ा वाज सूता इषय त म म.. (४) य के नेता के म य अ तशय नेता एवं श ु के भ णक ा अ न हमारी तु तय एवं ह से यु य क कामना कर. जो धनी और श शाली यजमान ह दान करके अ न के मननीय तो को करना चाहते ह, अ न भी उनक तु त क कामना कर. (४) एवा नग तमे भऋतावा व े भर तो जातवेदाः. स एषु ु नं पीपय स वाजं स पु या त जोषमा च क वान्.. (५) य के वामी एवं सव ाता अ न क गौतम आ द ऋ षय ने इसी कार तु त क थी. अ न ने स होकर उन ऋ षय का तेज वी सोम पया था एवं अ भ ण कया था. वे अ न हमारे ारा दए ह को जानकर पु होते ह. (५)
सू —७८ अ भ वा गोतमा गरा जातवेदो वचषणे. ु नैर भ
दे वता—अ न णोनुमः.. (१)
हे जातवेद एवं सवदशक अ न! गौतम ऋ ष ने तु हारी तु त क थी. हम भी तु हारे गुण काशक मं से बार-बार तु हारी तु त करते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तमु वा गोतमो गरा राय कामो व य त. ु नैर भ
णोनुमः.. (२)
धन क इ छा वाले गौतम ऋ ष जस अ न क तो ारा सेवा करते ह, हम भी गुण काशक तो ारा उसी अ न क बार-बार तु त करते ह. (२) तमु वा वाजसातमम र व वामहे. ु नैर भ
णोनुमः.. (३)
हे अ न! हम अं गरा ऋ ष के समान सवा धक अ दे ने वाले तु ह बुलाते ह एवं तु हारे गुण काशक मं से बार-बार तु त करते ह. (३) तमु वा वृ ह तमं यो द यूंरवधूनुषे. ु नैर भ
णोनुमः.. (४)
हे अ न! तुम द यु एवं अनाय को थान युत करो. हम सवापे ा श ुहंता तु हारी तु त तु हारे गुण काशक मं से बार-बार करते ह. (४) अवोचाम र गणा अ नये मधुम चः. ु नैर भ
णोनुमः.. (५)
म र गणवंशीय गौतम अ न के त मधुरवचन का योग करता आ गुण काशक तो ारा उनक बार-बार तु त करता ं. (५)
सू —७९
दे वता—अ न
हर यकेशो रजसो वसारेऽ हधु नवात इव जीमान्. शु च ाजा उषसो नवेदा यश वतीरप युवो न स याः.. (१) हर यकेश व ुत् प अ न मेघ को कं पत करने वाले, वायु के समान शी ग तयु एवं शोभनद त वाले बनकर मेघ से जल बरसाना जानते ह, अ यु , अपने काम म लगी ई एवं सीधीसाद जा के समान उषा यह काय नह जानती. (१) आ ते सुपणा अ मन तँ एवैः कृ णो नोनाव वृषभो यद दम्. शवा भन मयमाना भरागा पत त महः तनय य ा.. (२) हे अ न! तु हारी शोभन पतनशील करण म त के साथ मलकर वषा के उ े य से मेघ को ता ड़त करती ह. तभी कृ ण वण एवं वषाकारी मेघ गरजता है और सुखका रणी तथा हंसती ई सी ेत बूंद के साथ आता है, फर पानी गरता है और बादल गरजता है. (२) यद मृत य पयसा पयानो नय ृत य प थभी र ज ैः. अयमा म ो व णः प र मा वचं पृ च युपर य योनौ.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जब ये अ न उदक के रस से संसार को भगोते ह एवं नान, पान आ द के प म जल के उपयोग का सरल उपाय बताते ह, उस समय अयमा, म , व ण एवं चार ओर ग तशील म द्गण मेघ के जलो प थान के आ छादन को न करते ह. (३) अ ने वाज य गोमत ईशानः सहसो यहो. अ मे धे ह जातवेदो म ह वः.. (४) हे श पु अ न! तुम ब सं यक गाय से यु पया त अ दो. (४)
अ के वामी हो. हे जातवेद! हम
स इधानो वसु क वर नरीळे यो गरा. रेवद म यं पुवणीक द द ह.. (५) हे द पनशील, सबको नवास दे ने वाले, ांतदश , तो ारा शंसनीय एवं अनेक वाला यु अ न! तुम इस कार द त बनो, जस कार हमारे पास धनयु अ हो सके. (५) पो राज ुत मना ने व तो तोषसः. स त मज भ र सो दह
त.. (६)
हे तेज वी अ न! दवस अथवा रा म अपने आप या अपने पु ष को बा धत करो. हे ती णमुख! येक रा स को जलाओ. (६) अवा नो अ न ऊ त भगाय य भम ण. व ासु धीषु व
.. (७)
हे सम त य कम म वंदनीय अ न! हमारे गाय ी छं द वाले सू स होकर हमारी र ा करो. (७) आ नो अ ने र य भर स ासाहं वरे यं. व ासु पृ सु
ारा रा स आ द
के संपादन के कारण
रम्.. (८)
हे अ न! हम दा र य ् का अ वलंब वनाश करने वाला, वरणीय एवं सम त सं ाम म श ु ारा तर धन दो. (८) आ नो अ ने सुचेतुना र य व ायुपोषसम्. माड कं धे ह जीवसे.. (९) हे अ न! हमारे जीवन के लए शोभन ानयु , सुखहेत,ु संपूण आयु पयत दे ह आ द का पोषक धन दान करो. (९) पूता त मशो चषे वाचो गोतमा नये. भर व सु नयु गरः.. (१०) हे शोभन धन के अ भलाषी गौतम! वशु तु त करो. (१०)
वचन से ती ण वाला
यो नो अ नेऽ भदास य त रे पद सः. अ माक मद्वृधे भव.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले अ न क
हे अ न! जो श ु हमारे समीप या र रहकर हम हा न प ंचाता है, उसे न करके हमारी वृ करो. (११) सह ा ो वचष णर नी र ां स सेध त. होता गृणीत उ यः.. (१२) असं य वाला वाले एवं सबको वशेष प से दे खने वाले अ न रा स को य भू म से भगाते ह, वे हमारे ारा तो क सहायता से तुत होकर दे व को बुलाते एवं उनक तु त करते ह. (१२)
सू —८०
दे वता—इं
इ था ह सोम इ मदे ा चकार वधनम्. शव व ोजसा पृ थ ा नः शशा अ हमच नु वरा यम्.. (१) हे अ तशय श शाली एवं व धारी इं ! जब तुमने स तादायक सोमरस पी लया तो तोता ने तु हारी वृ करने वाली तु तयां क इसी लए तुमने अपनी श से धरती पर खड़े होकर अ ह नामक रा स को पीटते ए अपना अ धकार कट कया था. (१) स वामदद्वृषा मदः सोमः येनाभृतः सुतः. येना वृ ं नरद् यो जघ थ व ोजसाच नु वरा यम्.. (२) हे इं ! गीले करने वाले मादक येन प ी का प धारण करने वाली गाय ी ारा लाए गए एवं नचोड़े ए सोमरस ने तु ह स कया था. हे व ी! तुमने अपना अ धकार कट करते ए अपनी श से आकाश म वृ रा स को मारा था. (२) े भी ह धृ णु ह न ते व ो न यंसते. इ नृ णं ह ते शवो हनो वृ ं जया अपोऽच नु वरा यम्.. (३) हे इं ! जाओ और श ु के सामने प च ं कर उ ह हराओ कोई भी न तो तु हारे व का नयमन कर सकता है और न तु हारी श को अ भभूत करने म समथ है, इस लए तुम वृ रा स का वध करके उसके ारा रोके ए जल को ा त करो एवं अपने भु व का दशन करो. (३) न र भू या अ ध वृ ं जघ थ न दवः. सृजा म वतीरव जीवध या इमा अपोऽच नु वरा यम्.. (४) हे इं ! तुमने धरती और आकाश के ऊपर वृ का वध कया था तथा अपना भु व प करते ए म द्गण से यु एवं जीव को तृ त करने वाला जल बरसाया था. (४) इ ो वृ य दोधतः सानुं व ेण ही ळतः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अभ व (५)
याव ज नतेऽपः समाय चोदय च नु वरा यम्.. (५)
ोध म भरे इं वृ असुर के सामने जाकर उसे कंपाते ह, उसक उठ ई ठोड़ी पर का हार करते ह एवं अपने अ धकार का दशन करते ए वषा के जल को बहाते ह. अ ध सानौ न ज नते व ेण शतपवणा. म दान इ ो अ धसः स ख यो गातु म छ यच नु वरा यम्.. (६)
इं शतधारा वाले व से वृ असुर के उठे अपना भु व दखाते ए स होकर तोता के करते ह. (६)
ए कपोल पर आघात करते ह एवं तअ ा त के उपाय क इ छा
इ तु य मद वोऽनु ं व वीयम्. य यं मा यनं मृगं तमु वं माययावधीरच नु वरा यम्.. (७) हे मेघवाहन व व धारी इं ! तु हारी ही साम य श ु ारा अ तर कृत है, य क तुमने अपना भु व दखाते ए मृग पधारी वृ का माया ारा वध कया था. (७) व ते व ासो अ थर व त ना ा३ अनु. मह इ वीय बा ो ते बलं हतमच नु वरा यम्.. (८) हे इं ! तु हारा व न बे न दय के ऊपर व थत आ था. तुम अपने पया त वीय एवं बलशा लनी भुजा से अपना भु व द शत करो. (८) सह ं साकमचत प र ोभत वश तः. शतैनम वनोनवु र ाय ो तमच नु वरा यम्.. (९) हजार मनु य ने एक साथ इं क पूजा एवं बीस ने तु त क थी. सौ ऋ षय ने इं क बार-बार तु त क थी. इं के न म ह अ सबसे ऊपर रखा गया था, इसी लए इं ने अपना अ धकार द शत कया. (९) इ ो वृ य त वष नरह सहसा सहः. मह द य प यं वृ ं जघ वाँ असृजदच नु वरा यम्.. (१०) इं ने वृ रा स का बल अपने बल से न कया एवं अ भभव के साधन आयुध से वृ के आयुध समा त कए. इं का बल अ त ौढ़ है, य क उ ह ने वृ को मारकर उसके ारा रोका आ जल बहाया एवं अपने भु व का दशन कया. (१०) इमे च व म यवे वेपेते भयसा मही. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यद
व
ोजसा वृ ं म वाँ अवधीरच नु वरा यम्.. (११)
हे व धारी इं ! तु हारे ोध से ये वशाल धरती-आकाश भयभीत होकर कांपते ह, य क तुमने म त के साथ मलकर अपनी श से वृ का वध कया एवं अपना अ धकार द शत कया. (११) न वेपसा न त यते ं वृ ो व बीभयत्. अ येनं व आयसः सह भृ रायताच नु वरा यम्.. (१२) वृ अपने कंपन से इं को नह डरा पाया. इं ारा छोड़ा आ लौह न मत एवं हजार धार वाला व वृ को मारने के लए उसक ओर गया. इस कार इं ने अपना भु व द शत कया. (१२) यद्वृ ं तव चाश न व ण े समयोधयः. अ ह म जघांसतो द व ते ब धे शवोऽच नु वरा यम्.. (१३) हे इं ! जब वृ ने तु ह मारने के लए अश न छोड़ी और तुमने उसे अपने व से न कर दया, उस समय तुमने अ ह अथात् वृ के नाश के लए संक प कया और तु हारा बल आकाश म ा त हो गया. इस कार तुमने अपना भु व द शत कया. (१३) अ भ ने ते अ वो य था जग च रेजते. व ा च व म यव इ वे व यते भयाच नु वरा यम्.. (१४) हे व धारी इं ! जब तुम सहनाद करते हो तो थावर और जंगम सभी कांप उठते ह तथा व नमाता व ा भी तु हारे कोप से भयभीत हो उठते ह. इस कार तुम अपना अ धकार दखाते हो. (१४) न ह नु यादधीमसी ं को वीया परः. त म ृ णमुत तुं दे वा ओजां स सं दधुरच नु वरा यम्.. (१५) सव ापक इं को हम नह जान सकते, य क अ यंत र अव थत इं क साम य को कौन जान सकता है? दे व ने इं म अपना धन, तु एवं बल था पत कया था, इस लए इं ने अपना भु व था पत कया. (१५) यामथवा मनु पता द यङ् धयम नत. त म ा ण पूवथे उ था सम मताच नु वरा यम्.. (१६) अथवा ऋ ष, सम त जा के पता तु य मनु एवं अथवा के पु द यंग ऋ ष ने जतने भी य कम कए, उन म यु ह व प अ एवं तो ाचीन ऋ षय के य के समान इं को ही मले. इस लए इं ने अपने अ धकार का दशन कया. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८१ इ ो मदाय वावृधे शवसे वृ हा नृ भः. त म मह वा जषूतेमभ हवामहे स वाजेषु
दे वता—इं नोऽ वषत्.. (१)
वृ हंता इं ऋ वज क तु त ारा बल और हष पाने के लए बढ़. हम उ ह बड़े और छोटे यु म बुलाते ह. वे यु म हमारी र ा कर. (१) अ स ह वीर से योऽ स भू र पराद दः. अ स द य चद्वृधो यजमानाय श स सु वते भू र ते वसु.. (२) हे वीर इं ! तुम अकेले होने पर भी सेना के समान हो. तुम श ु के वपुल धन को छ न लेते हो एवं अपने अ प तु तक ा को भी बढ़ाते हो. तुम य करने वाले सोमरसदाता को अपे त धन दे ते हो, य क तु हारे पास ब त धन है. (२) य द रत आजयो धृ णवे धीयते धना. यु वा मद युता हरी कं हनः कं वसौ दधोऽ माँ इ
वसौ दधः.. (३)
यु आरंभ होने पर वजेता अपने हारे ए श ु का धन ा त करता है. हे इं ! अपने रथ म श ु का गव मटाने वाले घोड़े जोड़ो. तुम अपनी सेवा से वमुख राजा को मारते तथा सेवापरायण को दान दे ते हो, इस लए हम धन दो. (३) वा महाँ अनु वधं भीम आ वावृधे शवः. य ऋ व उपाकयो न श ी ह रवा दधे ह तयोव मायसम्.. (४) य कम ारा महान् एवं श ु को भयंकर, सोम पी अ का भ ण करके अपना बल बढ़ाने वाले, दशनीय ना सका तथा ह र नाम के अ से यु इं हम संप दे ने के लए अपने समीपवत बा म लौह न मत व धारण करते ह. (४) आ प ौ पा थवं रजो ब धे रोचना द व. न वावाँ इ क न न जातो न ज न यतेऽ त व ं वव थ.. (५) इं ने अपने तेज से धरती एवं आकाश को ा त कया है तथा आकाश म चमक ले न था पत कए ह. हे इं ! तु हारी समानता करने वाला न कोई उ प आ है और न भ व य म होगा. तुम संपूण जगत् को धारण करने के इ छु क हो. (५) यो अय मतभोजनं पराददा त दाशुषे. इ ो अ म यं श तु व भजा भू र ते वसु भ ीय तव राधसः.. (६) पालनक ा एवं यजमान को मानव भोगो चत अ दे ने वाले इं हम भी उसी कार का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ द. हे इं ! हम दे ने के लए धन का बंटवारा कर दो, य क तु हारे पास असं य धन है. हम तु हारे धन का एक अंश ा त कर. (६) मदे मदे ह नो द दयूथा गवामृजु तुः. सं गृभाय पु शतोभयाह या वसु शशी ह राय आ भर.. (७) हे सोमपान ारा ह षत होकर हम गोसमूह दे ने वाले इं ! हम दे ने के लए अपने दोन हाथ म अप र मत धन हण करो. हम ती ण बु यु करो और धन दान करो. (७) मादय व सुते सचा शवसे शूर राधसे. व ा ह वा पु वसुमुप कामा ससृ महेऽथा नोऽ वता भव.. (८) हे शौयसंप इं ! सोम के नचुड़ जाने पर आकर हम धन एवं बल दे ने के न म सोमरस पीकर तृ त बनो. हम तु ह वपुल धनसंप जानते ह तथा अपनी अ भलाषा तु ह बताते ह. तुम हमारे र क बनो. (८) एते त इ ज तवो व ं पु य त वायम्. अ त ह यो जनानामय वेदो अदाशुषां तेषां नो वेद आ भर.. (९) हे इं ! तु हारे यजमान सबके उपभोग यो य ह व को बढ़ाते ह. हे सम त जंतु वामी! तुम ह न दे ने वाल का धन जानते हो. उनका धन हम दान करो. (९)
दे वता—इं
सू —८२ उपो षु शृणुही गरो मघव मातथा इव. यदा नः सूनृतावतः कर आदथयास इ ोजा व
के
ते हरी.. (१)
हे धनप त इं ! हमारे समीप आकर ही हमारी तु तयां सुनो. तुम पहले से भ मत हो जाना. तुम जब हम स य, या एवं तु त पी वाणी से यु करते हो तभी हम तु हारी ाथना करते ह. इस कारण अपने ह र नामक दोन घोड़ को रथ म जोड़ो. (१) अ मीमद त व या अधूषत. अ तोषत वभानवो व ा न व या मती योजा व
ते हरी.. (२)
हे इं ! तु हारा दया आ अ खाकर यजमान तृ त ए ह एवं स ता ा त करने के लए उ ह ने अपना शरीर कं पत कया है. द तसंप मेधावी व ने नवीन तो ारा तु हारी तु त क है, इस लए अपने ह र नाम के घोड़ को रथ म जोड़ो. (२) सुसं शं वा वयं मघव व दषीम ह. नूनं पूणव धुरः तुतो या ह वशाँ अनु योजा व ते हरी.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धनप त इं ! सबको अनु हपूण से दे खने वाले तु हारी हम तु त करते ह. हमारी तु त सुनकर तुम तोता को दे ने यो य धन से रथ पू रत करके कामना करने वाले यजमान के समीप आओ एवं इसके लए अपने ह र नामक घोड़ को रथ म जोड़ो. (३) स घा तं वृषणं रथम ध त ा त गो वदम्. यः पा ं हा रयोजनं पूण म चकेत त योजा व
ते हरी.. (४)
हे इं ! आप अ , सोम स हत गाय को दे ने म समथ ह तथा ढ़ रथ को भली कार जानते ह और उसी पर आ ढ़ होते ह. अतः इं दे व अपने घोड़ को रथ म जोड़ो. (४) यु ते अ तु द ण उत स ः शत तो. तेन जायामुप यां म दानो या धसो योजा व
ते हरी.. (५)
हे शत तु! तु हारे रथ क दा एवं बा ओर घोड़े जुड़े ह . सोम प अ के उपभोग से म त होकर तुम उसी रथ ारा अपनी ेयसी के समीप जाओ. (५) युन म ते णा के शना हरी उप या ह द धषे गभ योः. उ वा सुतासो रभसा अम दषुः पूष वा व समु प यामदः.. (६) हे व धारी इं ! तु हारे शखा वाले घोड़े को म तो पी मं क सहायता से तु हारे रथ म जोड़ता ं. दोन बा म घोड़ क रास पकड़कर अपने घर जाओ. तुम नचोड़े ए तीखे सोम से मतवाले होकर अपनी ेयसी के साथ मोद ा त करो. (६)
सू —८३
दे वता—इं
अ ाव त थमो गोषु ग छ त सु ावी र म य तवो त भः. त म पृण वसुना भवीयसा स धुमापो यथा भतो वचेतसः.. (१) हे इं ! तु हारे ारा र त मनु य ब त से घोड़ वाले घर म रहता आ सबसे पहले गाएं ा त करता है. जस कार वचरणशील स रताएं सभी दशा म समु को भरती ह, उसी कार तुम भी अपने ारा र त मनु य को व वध कार के धन से यु करते हो. (१) आपो न दे वी प य त हो यमवः प य त वततं यथा रजः. ाचैदवासः णय त दे वयुं यं जोषय ते वरा इव.. (२) जस समय चमकता आ जल चमस नामक य पा म आता है, उसी समय ऊपर रहने वाले दे व क सूय करण के समान व तृत य पा चमस पर पड़ती है. जैसे ब त से वर एक ही क या से ववाह करना चाहते ह, उसी कार दे वगण वेद क उ र दशा म रखे ए इस सोमपूण एवं दे व य पा क अ भलाषा करते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ध योरदधा उ यं१ वचो यत ुचा मथुना या सपयतः. असंय ो ते ते े त पु य त भ ा श यजमानाय सु वते.. (३) हे इं ! अपने त सम पत य पा म तुमने मं पी वचन को मला दया है. ऐसे य पा वाला यजमान यु थल म न जाकर तु हारी पूजा म लीन रहकर पु होता है, य क तु ह नचुड़ा आ सोम दे ने वाला अव य श ा त करता है. (३) आद राः थमं द धरे वय इ ा नयः श या ये सुकृ यया. सव पणेः सम व द त भोजनम ाव तं गोम तमा पशुं नरः.. (४) पहले प णय ारा गाएं चुराने पर अं गरा ऋ ष ने इं के लए ह व तुत कया था. इस कारण य नेता अं गरावं शय ने गाय, अ एवं अ य पशु से यु धन पाया था. (४) य ैरथवा थमः पथ तते ततः सूय तपा वेन आज न. आ गा आज शना का ः सचा यम य जातममृतं यजामहे.. (५) अथवा नामक ऋ ष ने इं संबंधी य करके प ण ारा चुराई ई गाय का माग सबसे पहले जान लया था. इसके प ात् य र क एवं तेज वी सूय पी इं कट ए एवं अथवा ने गाएं ा त क . क व के पु उशना ने जसक सहायता क एवं जो असुर को भगाने के लए उ प ए थे, ऐसे मरणर हत इं क हम ह व ारा पूजा करते ह. (५) ब हवा य वप याय वृ यतेऽक वा ोकमाघोषते द व. ावा य वद त का य१ त ये द ो अ भ प वेषु र य त.. (६) शोभन फल वाले य न म जब-जब कुश काटे जाते ह, तब-तब तो बनाने वाला होता काशयु य म तो बोलता है. जस समय सोम कुचलने के काम आने वाला प थर तु तकारी तोता के समान श द करता है, उस समय इं स होते ह. (६)
सू —८४
दे वता—इं
असा व सोम इ ते श व धृ णवा ग ह. आ वा पृण व यं रजः सूय न र म भः.. (१) हे इं ! तु हारे न म सोम नचोड़ लया गया है, अतएव हे बलशाली एवं श ुघषक! य थल म आओ. जस कार सूय अपनी करण ारा आकाश को भर दे ते ह, उसी कार सोमपान से उ प श तु ह पूण करे. (१) इ म री वहतोऽ तधृ शवसम्. ऋषीणां च तुती प य ं च मानुषाणाम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह र नामक दोन घोड़े अ ध षत बल वाले इं को व स आ द ऋ षय तथा अ य मनु य क तु त एवं य के समीप प ंचाव. (२) आ त वृ ह थं यु ा ते णा हरी. अवाचीनं सु ते मनो ावा कृणोतु व नुना.. (३) हे श ु व वंसकारी इं ! तु हारे दोन घोड़ को हमने मं ारा रथ म जोड़ दया है, इस लए रथ पर चढ़ो. सोम कूटने के लए यु प थर का श द तु हारा मन हमारी ओर फेरे. (३) इम म सुतं पब ये मम य मदम्. शु य वा य र धारा ऋत य सादने.. (४) हे इं ! अ तशय शंसनीय, अमारक एवं मादक सोम को पओ. य वतमान तेज वी सोम क धाराएं तु हारी ओर बहती ह. (४)
संबंधी घर म
इ ाय नूनमचतो था न च वीतन. सुता अम सु र दवो ये ं नम यता सहः.. (५) हे ऋ वजो! इं का शी पूजन करो. इं को ल य करके तु तयां करो. नचोड़ा आ सोम इं को स करे. इसके प ात् परम शंसनीय एवं श शाली इं को णाम करो. (५) न क ् व थीतरो हरी य द य छसे. न क ् वानु म मना न कः व आनशे.. (६) हे इं ! जब तुम अपने ह र नामक अ को रथ म जोड़ दे ते हो, उस समय तुमसे रथी कोई नह होता. तु हारे समान बली एवं सुंदर अ का वामी भी कोई नह है. (६)
े
य एक इ दयते वसु मताय दाशुषे. ईशानो अ त कुत इ ो अ .. (७) (७)
ह
दे ने वाले यजमान को धन दे ने वाले इं , शी ही सम त जगत् के ईश बन जाते ह.
कदा मतमराधसं पदा ु प मव फुरत्. कदा नः शु वद् गर इ ो अ .. (८) जैसे बरसात म उगी छत रय को सहज ही पैर से कुचल दया जाता है, उसी कार इं य न करने वाल का हनन करगे. इं हमारी ाथनाएं न जाने कब सुनगे? (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य वा ब य आ सुतावाँ आ ववास त. उ ं त प यते शव इ ो अ .. (९) हे इं ! तुम नचुड़े ए सोम ारा सेवा करने वाले यजमान को शी ही बल दान करते हो. (९) वादो र था वषूवतो म वः पब त गौयः. या इ े ण सयावरीवृ णा मद त शोभसे व वीरनु वरा यम्.. (१०) े वण गाएं रसयु एवं सभी कार के य म ापक मधुर सोम का पान करती ह. त वे शोभा बढ़ाने के लए कामवष इं के साथ चलती ई स होती ह. ध दे कर नवास करने वाली वे गाएं इं का अ धकार द शत करती ह. (१०) ता अ य पृशनायुवः सोमं ीण त पृ यः. या इ य धेनवो व ं ह व त सायकं व वीरनु वरा यम्.. (११) इं को छू ने क अ भलाषा करने वाली ये व भ रंग क गाएं इं के पीने यो य सोम को अपने ध से म त कर दे ती ह. ये गाएं इं म ऐसा मद उ प करती ह क वे श ुनाशक व को चला सक. ये गाएं इं का अ धकार द शत करती ह. (११) ता अ य नमसा सहः सपय त चेतसः. ता य य स रे पु ण पूव च ये व वीरनु वरा यम्.. (१२) कृ ान यु ये गाएं अपना ध पलाकर इं क श बढ़ाती ह. ये श ु क जानकारी के लए इं के श ु- वनाश आ द कम पहले ही बता दे ती ह. इस कार ये इं का अ धकार द शत करती ह. (१२) इ ो दधीचो अ थ भवृ ा य त कुतः. जघान नवतीनव.. (१३) तकूल श दर हत इं ने दधी च ऋ ष क ह ड् डय रा स को आठ से दस बार हराया था. (१३) इछ
ारा बने ए व
से वृ आ द
य य छरः पवते वप तम्. त द छयणाव त.. (१४)
इं ने अ संबंधी दधी च के पवत म छपे ए म तक को पाने क इ छा क एवं शयणाव त नामक तालाब म ा त कया. (१४) अ ाह गोरम वत नाम व ु रपी यम्. इ था च मसो गृहे.. (१५) इस ग तशील चं मंडल म जो तेज छपा है, वे सूय क करण ह, ऐसा जानो. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को अ युङ् े धु र गा ऋत य शमीवतो भा मनो णायून्. आस षू वसो मयोभू य एषां भृ यामृणध स जीवात्.. (१६) आज य म जाते ए इं के रथ के अ भाग म वीयकमयु , तेज वी, श ु ारा असहनीय ोध से यु घोड़ को कौन जोड़ सकता है? श ु पर हार करने के लए उन घोड़ के मुख म बाण लगे ह. वे अपने पैर से श ु का दय कुचलकर म को स करते ह. जो यजमान अ क शंसा करता है, वही जीवन ा त करता है. (१६) क ईषते तु यते को बभाय को मंसते स त म ं को अ त. क तोकाय क इभायोत रायेऽ ध व वे३ को जनाय.. (१७) अनु हक ा इं के होते ए श ु से भयभीत होकर कौन नकलता एवं श ु ारा न होता है? अथात् कोई नह . हमारे समीप थ इं को र क के प म कौन जानता है? पु क , अपनी, धन क एवं शरीर क र ा के लए इं क ाथना कौन करता है? अथात् ाथना के बना ही इं र ा करते ह. (१७) को अ नमीट् टे ह वषा घृतेन ुचा यजाता ऋतु भ ुवे भः. क मै दे वा आ वहानाशु होम को मंसते वी तहो ः सुदेवः.. (१८) इं को जानना क ठन है, इस लए कौन यजमान इं के न म ह व दे कर अ न क तु त करता है? वसंत आ द ऋतु को ल त करके ुच नामक पा म घी लेकर कौन इं क पूजा करता है? कस यजमान के लए दे वगण अ वलंब शंसनीय धन दे ते ह? य क ा एवं दे व य कौन यजमान ह जो इं को जानता है? अथात् कोई नह . (१८) वम शं सषो दे वः श व म यम्. न वद यो मघव त म डते वी म ते वचः.. (१९) हे श शाली इं ! तुम अपनी तु त करने वाले मनु य क शंसा करो. हे मघवन्! तु हारे अ त र कोई सुख दे ने वाला नह है. इसी कारण म तु हारी तु त करता ं. (१९) मा ते राधां स मा त ऊतयो वसोऽ मा कदा चना दभन्. व ा च न उप ममी ह मानुष वसू न चष ण य आ.. (२०) हे नवासदाता इं ! तु हारे संबंधी ा णसमूह तथा सहायक म द्गण कभी हमारा वनाश न कर. हे मनु य हतकारक इं ! हम मं ा को सभी संप यां दो. (२०)
सू —८५
दे वता—म द्गण
ये शु भ ते जनयो न स तयो याम ु य सूनवः सुदंससः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रोदसी ह म त
रे वृधे मद त वीरा वदथेषु घृ वयः.. (१)
गमन के न म अपने शरीर को ना रय के समान अलंकृत करने वाले, गमनशील, के पु , धरती और आकाश क वृ करने के कारण शोभन कमा, श ु को भगाने वाले एवं वृ ा द के भंजनक ा म द्गण य म सोमपान के कारण स होते ह. (१) त उ तासो म हमानमाशत द व अच तो अक जनय त इ यम ध
ासो अ ध च रे सदः. यो द धरे पृ मातरः.. (२)
दे व ारा अ भषेक पाकर म द्गण ने मह व ा त कया है. उन पु ने आकाश म थान पाया है. पूजा यो य इं क पूजा एवं उ ह श शाली करके पृ वीपु म त ने अ धक ऐ य पाया है. (२) गोमातरो य छु भय ते अ भ तनूषु शु ा द धरे व मतः. बाध ते व म भमा तनमप व मा येषामनु रीयते घृतम्.. (३) भू मपु म द्गण अपने को शोभासंप करते समय उ वल आभूषण धारण करते ह. ये सभी श ु का नाश करते ह. इनके माग का अनुगमन करके पानी बरसता है. (३) व ये ाज ते सुमखास ऋ भः यावय तो अ युता चदोजसा. मनोजुवो य म तो रथे वा वृष ातासः पृषतीरयु वम्.. (४) शोभन य म द्गण आयुध के कारण वशेष प से द त होते ह. वे वयं अ युत रहकर ढ़ पवत आ द को अपनी श ारा चंचल करते ह. हे म द्गण! तुम जब अपने रथ म बुंद कय वाली ह र णय को जोड़ते हो, उस समय मन के समान ग तशील एवं वषा करने म समथ हो जाते हो. (४) य थेषु पृषतीरयु वं वाजे अ म तो रंहय तः. उता ष य व य त धारा मवोद भ ु द त भूम.. (५) हे म द्गण! अ उ प के न म बादल को े रत करते ए बुंद कय वाली ह र णय को रथ म जोड़ो. उस समय काशशील सूय से नकलने वाली जलधारा सम त धरती को भगो दे ती है. (५) आ वो वह तु स तयो रघु यदो रघुप वानः जगात बा भः. सीदता ब ह वः सद कृतं मादय वं म तो म वो अंधसः.. (६) हे म द्गण! शी चलने वाले एवं ग तशील घोड़े तु ह हमारे य म लाव. शी चलने वाले आप लोग भी हाथ म धन लेकर हम दे ने के न म आव. आप वेद पर बछे ए कुश पर बै ठए एवं मधुर सोमरस को पीकर तृ त लाभ क जए. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेऽवध त वतवसो म ह वना नाकं त थु च ये सदः. व णुय ावद्वृषणं मद युतं वयो न सीद ध ब ह ष ये.. (७) अपनी श के सहारे वृ ा त करने एवं अपने ही मह व से वग म थान पाने वाले म द्गण ने अपने नवास थल को व तीण बनाया है. व णु आकर उ ह के न म कामवषक एवं हष द य क र ा करते ह. वे प य के समान शी आकर हमारे य म बछे ए कुश पर बैठ. (७) शूरा इवे ुयुधयो न ज मयः व यवो न पृतनासु ये तरे. भय ते व ा भुवना म यो राजान इव वेषसं शो नरः.. (८) यु
शी चलने वाले म द्गण शूर , यु म य नशील ह. वषा आ द के नेता
चाहने वाल एवं अ ा भलाषी पु ष के समान एवं उ प म त से संसार डरता है. (८)
व ा य ं सुकृतं हर ययं सह भृ वपा अवतयत्. ध इ ो नयपां स कतवेऽह वृ ं नरपामौ जदणवम्.. (९) शोभनकमा व ा ने इं को जो ठ क से बना आ, सुवणमय एवं हजार धार वाला व दया था, उसी को सं ाम म श ुनाश करने के न म उठाकर इं ने वषाजल को रोकने वाले वृ को मारा एवं उसके ारा रोक ई जलधारा नीचे क ओर गराई. (९) ऊ व नुनु े ऽवतं त ओजसा दा हाणं च भ व पवतम्. धम तो वाणं म तः सुदानवो मदे सोम य र या न च रे.. (१०) म त् अपनी श से कुएं को उखाड़कर ले चले. रा ते म पवत ने बाधा डाली तो उ ह तोड़ दया. शोभनदानयु म त ने वीणा बजाते ए एवं सोमरस पीकर आनं दत होते ए रमणीय धन दया. (१०) ज ं नुनु े ऽवतं तया दशा स च ु सं गोतमाय तृ णजे. आ ग छ तीमवसा च भानवः कामं व य तपय त धाम भः.. (११) म द्गण ने गौतम ऋ ष क ओर कुआं टे ढ़ा करके उ ह पानी पलाकर यास बुझाई. काश वाले म त ने गौतम ऋ ष क र ा के न म आकर जीवनधारी जल से उ ह तृ त कया. (११) या वः शम शशमानाय स त धातू न दाशुषे य छता ध. अ म यं ता न म तो व य त र य नो ध वृषणः सुवीरम्.. (१२) हे म द्गण! तुम अपने इ दाता यजमान को धरती आ द तीन लोक म अपने से संबं धत सुख दान करो. हे कामवषक म तो! हम पु ा द शोभन वीर स हत धन दो. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८६
दे वता—म द्गण
म तो य य ह ये पाथा दवो वमहसः. स सुगोपातमो जनः.. (१) हे व श काश वाले म तो! तुम अंत र से आकर जस यजमान के य गृह म सोमपान करते हो, वह शोभन र क वाला हो जाता है. (१) य ैवा य वाहसो व य वा मतीनाम्. म तः शृणुता हवम्.. (२) हे य वहन करने वाले म तो! य क ा यजमान अथवा य र हत तोता का आ ान सुनो. (२) उत वा य य वा जनोऽनु व मत त. स ग ता गोम त जे.. (३) जस यजमान का ह वहन करने के लए ऋ वज् म द्गण को ती ण करते ह, वह अनेक गाय वाले गोठ म जाता है. (३) अ य वीर य ब ह ष सुतः सोमो द व षु. उ थं मद श यते.. (४) यजनीय दवस म य म वीर म द्गण के लए सोम नचोड़ा जाता है एवं उ ह को स करने के लए तो पढ़े जाते ह. (४) अ य ोष वा भुवो व ा य षणीर भ. सूरं च स ुषी रषः.. (५) अ
सम त श ु को परा जत करने वाले म द्गण यजमान क तु त सुन एवं तोता को ा त हो. (५) पूव भ ह ददा शम शर
म तो वयम्. अवो भ षणीनाम्.. (६)
हे म द्गण! हम तुमसे अनेक वष से र त ह एवं तु ह ह
दे ते ह. (६)
सुभगः स य यवो म तो अ तु म यः. य य यां स पषथ.. (७) हे अ तशय यजनीय म द्गण! जस यजमान का ह धनसंप हो. (७)
तुम वीकार करते हो, वह
शशमान य वा नरः वेद य स यशवसः. वदा काम य वेनतः.. (८) हे यथाथबलसंप नेता म तो! उन यजमान क इ छा पूरी करो जो तु ह ल य करके तु त मं बोलते-बोलते पसीने से नहा उठे ह एवं तु हारी कामना करते ह. (८) यूयं त स यशवस आ व कत म ह वना. व यता व ुता र ः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे यथाथ श वाले म तो! तुम अपना उ रा स को समा त करो. (९)
वल मह व
कट करके उप वकारी
गूहता गु ं तमो व यात व म णम्. यो त कता य म स.. (१०) हे म द्गणो! सव वतमान अंधकार को न करो, सबका भ ण करने वाले रा स को भगाओ एवं हम मनचाहा काश दो. (१०)
सू —८७
दे वता—म द्गण
व सः तवसो वर शनोऽनानता अ वथुरा ऋजी षणः. जु तमासो नृतमासो अ भ ान े के च ा इव तृ भः.. (१) श ुनाश म अ त कुशल, कृ बलयु , व वध जयघोष से यु सव कृ , संघीभूत, य क ा ारा अ तशय से वत, अव श सोमरस का सेवन करने वाले, मेघ आ द के नेता म द्गण अपने शरीर पर धारण कए आभूषण से आकाश म सूय करण के समान चमकते ह. (१) उप रेषु यद च वं य य वय इव म तः केन च पथा. ोत त कोशा उप वो रथे वा घृतमु ता मधुवणमचते.. (२) हे म द्गणो! जस कार प ी आकाशमाग से शी चलते ह, उसी कार तुम हमारे समीपवत आकाश म जब चलते ए बादल को एक करते हो तो मेघ तु हारे रथ से लपटकर पानी बरसाने लगते ह. इसी हेतु तुम अपनी पूजा करने वाले यजमान पर मधु के समान व छ जल बरसाओ. (२) ै ाम मेषु वथुरेव रेजते भू मयामेषु य यु ते शुभे. ष ते ळयो धुनयो ाज यः वयं म ह वं पनय त धूतयः.. (३) जस समय म द्गण शोभन जल क वषा के लए बादल को तैयार करते ह, उस समय उठे ए बादल को दे खकर धरती उसी कार कांप उठती है, जस कार प त वहीना नारी राजा आ द के उप व को दे खकर कांपती है. इस कार वहारशील, चंचल वभाव एवं चमक ले आयुध वाले म द्गण पवत आ द को कं पत करके अपना मह व कट करते ह. (३) स ह वसृ पृषद ो युवा गणो३ या ईशान त व ष भरावृतः. अ स स य ऋणयावाने ोऽ या धयः ा वताथा वृषा गणः.. (४) वयं े रत, सफेद बुंद कय यु
ह र णय वाले, न य त ण, असाधारण श
******ebook converter DEMO Watermarks*******
संप ,
स यकमा, तोता को ऋणमु क र ा करते ह. (४)
करने वाले, अ न दत एवं जलवषक म द्गण हमारे य
पतुः न य ज मना वदाम स सोम य ज ा जगा त च सा. यद म ं श यृ वाण आशता द ामा न य या न द धरे.. (५) हम अपने पता र गण ारा बताई ई बात कहते ह क सोमरस क आ त के साथ क गई तु त म त को ा त होती है. इं ारा संप वृ वध के समय म द्गण उप थत थे और इं क तु त कर रहे थे. इस कार उ ह ने ‘य पा ’ नाम धारण कया. (५) यसे कं भानु भः सं म म रे ते र म भ त ऋ व भः सुखादयः. ते वाशीम त इ मणो अभीरवो व े य य मा त य धा नः.. (६) म द्गण चमकती ई सूय क करण के साथ वह जल बरसाना चाहते ह, जसक ा णय को आव यकता है वे तोता और ऋ वज के साथ ह भ ण करते ह. शोभन तु तवचन से यु , ग तशील एवं भयर हत म द्गण ने व श थान ा त कए ह. (६)
सू —८८
दे वता—म द्गण
आ व ु म म तः वक रथे भयात ऋ म र पणः. आ व ष या न इषा वयो न प तता सुमायाः.. (१) हे म द्गणो! तुम अपने द तशाली, शोभन ग त वाले, श संप एवं घोड़ वाले रथ पर चढ़कर हमारे य म आओ. हे शोभनकमा म तो! हम दे ने के लए अ लेकर सुंदर प ी के समान आओ. (१) तेऽ णे भवरमा पश ै ः शुभे कं या त रथतू भर ैः. मो न च ः व धतीवा प ा रथ य जङ् घन त भूम.. (२) रथ को ख चने वाले लाल या पीले रंग के घोड़ क सहायता से म द्गण कस तु तक ा यजमान का क याण करने को आते ह? चमकते ए सोने के समान सुंदर एवं श ुनाशक आयुध से सुशो भत म द्गण रथ के प हय ारा धरती को ःखी करते ह. (२) ये कं वो अ ध तनूषु वाशीमधा वना न कृणव त ऊ वा. यु म यं कं म तः सुजाता तु व ु नासो धनय ते अ म्.. (३) हे म द्गणो! तु हारे कंध पर ऐ य के च प म श ुसंहारक आयुध ह. वे वन के समान य को भी उ त करते ह. हे शोभन ज म वाले म तो! तु ह स करने के लए संप शाली यजमान सोम कुचलने वाले प थर को संप करते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अहा न गृ ाः पया व आगु रमां धयं वाकाया च दे वीम्. कृ व तो गोतमासो अक व नुनु उ स ध पब यै.. (४) हे जल के इ छु क गौतमवंशी ऋ षयो! तु हारे शोभन दवस ने आकर तु हारे उदक न पादक य को सुशो भत कया था. उ ह दन म गौतमवंशी ऋ षय ने तु त उ चारण के साथ ह दे ते ए जल पीने के न म कुआं ऊपर उठाया था. (४) एत य योजनमचे त स वह य म तो गोतमो वः. प य हर यच ानयोदं ा वधावतो वरा न्.. (५) वण न मत प हय वाले रथ पर बैठे ए, धार वाले लौहच से यु , इधर-उधर धावमान एवं श ुसंहारक म द्गण को दे खकर गौतम ऋ ष ने जो तो बोला था, वह यही है. (५) एषा या वो म तो ऽनुभ त ोभ त वाघतो न वाणी. अ तोभयद्वृथासामनु वधां गभ योः.. (६) हे म द्गणो! हमारी तु त आपके अनुकूल है एवं आपम से येक का गुणगान करती है. इस समय इन तो ारा ऋ षय क वाणी ने अनायास ही आपका यशगान कया है, य क आपने अनेक कार का अ हमारे हाथ पर रख दया है. (६)
सू —८९
दे वता— व ेदेव
आ नो भ ाः तवो य तु व तोऽद धासो अपरीतास उद् भदः. दे वा नो यथा सद मद्वृधे अस ायुवो र तारो दवे दवे.. (१) सम त क याणकारक, असुर ारा अ ह सत एवं श ुनाश म समथ य सब ओर से हम ा त ह . अपने र ण काय का याग न करने वाले एवं त दन हमारी र ा करने वाले दे वगण हम सदा बढ़ाव. (१) दे वानां भ ा सुम तऋजूयतां दे वानां रा तर भ नो न वतताम्. दे वानां स यमुप से दमा वयं दे वा न आयुः तर तु जीवसे.. (२) अपने यजमान से म े करने वाले दे व का क याणकारक अनु ह एवं दान हम ा त हो. हम उनक म ता ा त कर, वे हमारी आयु म वृ कर. (२) ता पूवया न वदा महे वयं भगं म म द त द म धम्. अयमणं व णं सोमम ना सर वती नः सुभगा मय करत्.. (३) हम वेद पी पूवकालीन वाणी ारा भग, म , अ द त, द , म द्गण, अयमा, व ण, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम, अ नीकुमार आ द दे व को बुलाते ह. शोभन धन से यु
सर वती हम सुखी कर. (३)
त ो वातो मयोभु वातु भेषजं त माता पृ थवी त पता ौः. तद् ावाणः सोमसुतो मयोभुव तद ना शृणुतं ध या युवम्.. (४) माता के समान वायु, पता के तु य धरती, आकाश एवं सोम कुचलने के साधन प थर हमारे पास सुखकारक ओष ध ले आव. हे बु संप अ नीकुमारो! आप लोग हमारी ाथना सुन. (४) तमीशानं जगत त थुष प त धय वमवसे महे वयम्. पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे र ता पायुरद धः व तये.. (५) ऐ यसंप , थावर-जंगम के वामी एवं य कम से स होने वाले इं को हम अपनी र ा के न म बुला रहे ह. सर ारा अ ह सत पूषा जस कार हमारा धन बढ़ाने के लए र ा कर रहे ह, उसी कार हमारे अ वनाश के लए हमारी र ा कर. (५) व त न इ ो वृ वाः व त नः पूषा व वेदाः. व त न ता य अ र ने मः व त नो बृह प तदधातु.. (६) अग णत तु तय के यो य और सव पूषा हमारा क याण कर. जनके रथ के प हय को कोई हा न नह प ंचा सकता है, ऐसे ग ड़ एवं बृह प त हमारा क याण कर. (६) पृषद ा म तः पृ मातरः शुभंयावानो वदथेषु ज मयः. अ न ज ा मनवः सूरच सो व े नो दे वा अवसा गम ह.. (७) सफेद बूंद से यु घोड़ वाले, नाना वण वाली गौ के पु , शोभन ग तशील, अ न क जीभ पर वतमान, सब कुछ जानने वाले एवं सूय के समान ने यो तयु म द्गण हमारी र ा के न म यहां आव. (७) भं कण भः शृणुयाम दे वा भ ं प येमा भयज ाः. थरैर ै तु ु वांस तनू भ शेम दे व हतं यदायुः.. (८) हे दे वो! हम अपने कान से क याणकारक वचन सुन. हे य पा दे वो! हम अपनी आंख से शोभन व तु दे ख एवं ढ़ ह तचरणा द वाले शरीर से आपक तु त करते ए जाप त ारा था पत आयु को ा त कर. (८) शत म ु शरदो अ त दे वा य ा न ा जरसं तनूनाम्. पु ासो य पतरो भव त मा नो म या री रषतायुग तोः.. (९) हे दे वो! आप लोग ने मानव क आयु सौ वष न त क है. इसी काल म आप हमारे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शरीर म वृ ाव था उ प करते ह. उस अव था म पु हमारे र क बन जाते ह. हम उस अव था के म य म न मत करना. (९) अ द त र द तर त र म द तमाता स पता स पु ः. व े दे वा अ द तः प च जना अ द तजातम द तज न वम्.. (१०) आकाश, अंत र , माता, पता, सम त दे व, पंचजन, ज म और ज म का कारण—ये सब अखंडनीय अथात् अ द त ह. (१०)
दे वता— व ेदेव
सू —९०
ऋजुनीती नो व णो म ो नयतु व ान्. अयमा दे वैः सजोषाः.. (१) उ म थान को जानने वाले व ण, म एवं इं आ द दे व के साथ समान ेम रखने वाले अयमा हम सरल माग से गंत पर प ंचाव. (१) ते ह व वो वसवाना ते अ मूरा महो भः. ता र धन दे ने वाले, मूढ़ताशू य एवं बु कर अपना कम करते ह. (२)
ते व ाहा.. (२)
संप वे दे व अपने तेज ारा सदा संसार क र ा
ते अ म यं शम यंस मृता म य यः. बाधमाना अप वे मरणर हत दे व हमारे श ु
षः.. (३)
का नाश करके हम मरणशील को सुख द. (३)
व नः पथः सु वताय चय व ो म तः. पूषा भगो व
ासः.. (४)
तु त के यो य इं , म द्गण, पूषा एवं भग हम वगलाभ के न म दखाव. (४)
उ म माग
उत नो धयो गोअ ाः पूष व णवेवयावः. कता नः व तमतः.. (५) हे पूषा, व णु और म द्गण! हमारे य वनाशर हत बनाओ. (५)
को गाय आ द पशु
से यु
एवं हम
मधु वाता ऋतायते मधु र त स धवः. मा वीनः स वोषधीः.. (६) यजमान के लए हवाएं एवं न दयां मधु क वषा कर. हमारे लए ओष धयां माधुययु ह . (६) मधु न मुतोषसो मधुम पा थवं रजः. मधु ौर तु नः पता.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारी नशाएं एवं उषाएं माधुययु पालनक ा आकाश हम सुखद हो. (७)
ह . पृ वी से संबंध रखने वाले जन एवं सबका
मधुमा ो वन प तमधुमाँ अ तु सूयः. मा वीगावो भव तु नः.. (८) वन प तयां, सूय एवं गाएं हमारे लए मधुयु
ह . (८)
शं नो म ः शं व णः शं नो भव वयमा. शं न इ ो बृह प तः शं नो व णु मः.. (९) म , व ण, अयमा, इं , बृह प त एवं लंबे डग भरने वाले व णु हमारे लए सुखदाता ह . (९)
सू —९१
दे वता—सोम
वं सोम च कतो मनीषा वं र ज मनु ने ष प थाम्. तव णीती पतरो न इ दो दे वेषु र नमभज त धीराः.. (१) हे सोम! तुम हमारी बु ारा भली-भां त ात हो. तुम हम सरल माग से ले चलो. हे व को अमृतमय करने वाले सोम! तु हारे नदश के अनुसार चलकर हमारे पतर ने दे व के म य धन ा त कया था. (१) वं सोम तु भः सु तुभू वं द ैः सुद ो व वेदाः. वं वृषा वृष वे भम ह वा ु ने भ ु यभवो नृच ाः.. (२) हे सव सोम! तुम अपने शोभन य के कारण य संप करने वाले, अपने बल ारा श शाली एवं अभी वषा के मह व से कामवधक हो. तुम यजमान के मनोवां छत फलदाता होकर उनके ारा वपुल मा ा म दए गए अ से संप हो. (२) रा ो नु ते व ण य ता न बृहद्गभीरं तव सोम धाम. शु च ् वम स यो न म ो द ा यो अयमेवा स सोम.. (३) हे सोम! ा ण के राजा व ण से संबं धत य तु हारे ही ह, इस लए तु हारा तेज व तृत एवं गंभीर है. तुम व ण के समान सबके सुधारक ा एवं अयमा के समान वृ करने वाले हो. (३) या ते धामा न द व या पृ थ ां या पवते वोषधी व सु. ते भन व ैः सुमना अहेळ ाज सोम त ह ा गृभाय.. (४) हे शोभनयु
सोम! आकाश, धरती, पवत , ओष धय एवं जल म वतमान अपने तेज
******ebook converter DEMO Watermarks*******
से तेज वी होकर
ोध न करते ए हमारा ह
वीकार करो. (४)
वं सोमा स स प त वं राजोत वृ हा. वं भ ो अ स
तुः.. (५)
हे सोम! तुम स कम म ा ण के वामी, तेज वी एवं शोभन य वं च सोम नो वशो जीवातुं न मरामहे.
वाले हो. (५)
य तो ो वन प तः.. (६)
हे तु त य एवं वन प तपालक सोम! य द तुम हम यजमान के लए जीवनदा यनी ओष ध क अ भलाषा करो तो हम मृ युर हत हो सकते ह. (६) वं सोम महे भगं वं यून ऋतायते. द ं दधा स जीवसे.. (७) हे सोम! तुम वृ
एवं युवा यजमान को जीवनोपयोगी धन दे ते हो. (७)
वं नः सोम व तो र ा राज घायतः. न र ये वावतः सखा.. (८) हे तेज वी सोम! जो लोग हम ःख दे ना चाहते ह, उनसे हम बचाओ, य क तुम जैसे दे व का म कभी वन नह होता. (८) सोम या ते मयोभुव ऊतयः स त दाशुषे. ता भन ऽ वता भव.. (९) हे सोम! यजमान को दे ने के लए तु हारे पास सुखद र ासाधन ह, उ ह के हमारे र क बनो. (९)
ारा
इमं य मदं वचो जुजुषाण उपाग ह. सोम वं नो वृधे भव.. (१०) हे सोम! हमारे इस य और तु तवचन को वीकार करके हमारे समीप आओ और हमारे य क वृ करो. (१०) सोम गी भ ् वा वयं वधयामो वचो वदः. सुमृळ को न आ वश.. (११) हे सोम! तु तय के जानने वाले हम लोग तु तवचन से तु ह बढ़ाते ह. तुम हम सुखी करते ए आओ. (११) गय फानो अमीवहा वसु व पु वधनः. सु म ः सोम नो भव.. (१२) हे सोम! तुम हमारे धनव क, रोगनाशक, संप दाता, संप बनो. (१२) सोम रार ध नो
बढ़ाने वाले एवं सु म
द गावो न यवसे वा. मय इव व ओ ये.. (१३)
हे सोम! जस कार गाएं सुंदर घास से एवं मनु य अपने घर म रहने से स होते ह, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उसी कार तुम हमारे ारा दए गए ह
से तृ त होकर हमारे दय म नवास करो. (१३)
यः सोमः स ये तव रारण े व म यः. तं द ः सचते क वः.. (१४) हे सवदश एवं सवकाय समथ सोम! तु हारी म ता के कारण जो यजमान तु हारी तु त करता है, तुम उस पर अनु ह करते हो. (१४) उ या णो अ भश तेः सोम न पा ंहसः. सखा सुशेव ए ध नः.. (१५) (१५)
हे सोम! हम नदा एवं पाप से बचाओ तथा शोभन सुख दे कर हमारे हतकारी बनो. आ याय व समेतु ते व तः सोम वृ यम्. भवा वाज य स थे.. (१६)
हे सोम! तुम वृ दे ने वाले बनो. (१६)
ा त करो एवं तु ह चार ओर अपनी श
ा त हो. तुम हम अ
आ याय व म द तम सोम व े भरंशु भः. भवा नः सु व तमः सखा वृधे.. (१७) हे अ तशय मदयु सोम! तुम सम त लता अ से यु होकर हमारे म बनो. (१७)
के भाग से वृ
ा त करो एवं शोभन
सं ते पयां स समु य तु वाजाः सं वृ या य भमा तषाहः. आ यायमानो अमृताय सोम द व वां यु मा न ध व.. (१८) हे श ुनाशक सोम! तुम म ध, अ एवं वीय स मलत हो. तुम हमारी अमरता के लए बढ़ते ए वग म उ कृ अ धारण करो. (१८) या ते धामा न ह वषा यज त ता ते व ा प रभूर तु य म्. गय फानः तरणः सुवीरोऽवीरहा चरा सोम यान्.. (१९) हे सोम! यजमान ह के ारा तु हारे जन तेज क पूजा करते ह, वे ही हमारे य को चार ओर ा त ह . हे धनव क! पाप से र ा करने वाले, शोभन वीर से यु एवं पु के र क सोम! तुम हमारे घर म आओ. (१९) सोमो धेनुं सोमो अव तमाशुं सोमो वीरं कम यं ददा त. साद यं वद यं सभेयं पतृ वणं यो ददाशद मै.. (२०) जो यजमान सोमदे व को ह व प अ दे ता है, उसे वे धा गाय, शी गामी अ एवं लौ कक कम करने म कुशल, गृहकाय म द , य का अनु ान करने वाला, सकल ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शा
ाता तथा पता का नाम
स
करने वाला पु दे ते ह. (२०)
अषाळहं यु सु पृतनासु प वषाम सां वृजन य गोपाम्. भरेषुजां सु त सु वसं जय तं वामनु मदे म सोम.. (२१) हे सोम! हम यु म न य वजयी, सेना को वजयी बनाने वाले, वग के दाता, जलवषक, बल के र क, य म ा भूत, सुंदर नवास वाले, उ म यश वाले एवं श ुपराभवकारी तु ह ल य करके स ह . (२१) व ममा ओषधीः सोम व ा वमपो अजनय वं गाः. वमा तत थोव१ त र ं वं यो तषा व तमो ववथ.. (२२) हे सोम! तुमने धरती पर वतमान सम त ओष धयां, वषा का जल एवं गाएं बनाई ह. तुमने व तीण आकाश को फैलाया एवं काश ारा उसका अंधकार मटाया है. (२२) दे वेन नो मनसा दे व सोम रायो भागं सहसाव भ यु य. मा वा तनद शषे वीय योभये यः च क सा ग व ौ.. (२३) हे बलवान् सोमदे व! हमारे धन का अपहरण करने वाले श ु से यु करो. कोई भी श ु तु ह न न करे. यु रत दोन प के बल के वामी तु ह हो. यु म हमारे उप व का नाश करो. (२३)
सू —९२
दे वता—उषा एवं अ नीकुमार
एता उ या उषसः केतुम त पूव अध रजसो भानुम ते. न कृ वाना आयुधानीव धृ णवः त गावोऽ षीय त मातरः.. (१) उषा ने अंधकार से ढके संसार का ान कराने वाला काश कया है. ये आकाश के पूव भाग म सूय का काश करती ह. जैसे आ मणशील यो ा अपने आयुध का सं कार करते ह, उसी कार ग तशील, चमक ली एवं सूय काश का नमाण करने वाली उषाएं अपने काश से संसार का सुधार करती ई त दन आती ह. (१) उदप त णा भानवो वृथा वायुजो अ षीगा अयु त. अ ुषासो वयुना न पूवथा श तं भानुम षीर श युः.. (२) चमकती ई सूयर मयां अनायास उ दत . उषा ने रथ म जोतने यो य शु करण को रथ म जोता एवं पूवकाल के समान सम त ा णय को ानशील बनाया. इसके प ात् चमक ली उषा ने शु वण वाले सूय का आ य लया. (२) अच त नारीरपसो न व भः समानेन योजनेना परावतः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इषं वह तीः सुकृते सुदानवे व ेदह यजमानाय सु वते.. (३) नेतृ व करने वाली उषाएं, शोभन कम करने वाले, सोमरस नचोड़ने एवं ऋ वज को द णा दे ने वाले यजमान के लए सम त अ दान करती अ धारी यो ा के समान अपने उपयोग ारा र तक के दे श को भी तेज से पू रत करती ह. (३) अ ध पेशां स वपते नृतू रवापोणुते व उ ेव बजहम्. यो त व मै भुवनाय कृ वती गावो न जं ु१षा आवतमः.. (४) जस कार नाई बाल को काट दे ता है, उसी कार उषाएं संसार से लपटे ए काले अंधकार को पूरी तरह न कर दे ती ह. जस कार गौ ध काढ़ने के समय अपना थन कट करती है, उसी कार उषाएं अपने सीने को कट करती ह. वे गोशाला म जाने वाली गाय के समान पूव दशा म जाती ह. (४) यच शद या अद श व त ते बाधते कृ णम वम्. व ं न पेशो वदथे व च ं दवो हता भानुम ेत्.. (५) उषा का द यमान तेज पहले पूव दशा म दखाई दे ता है, इसके बाद सभी दशा म फैल जाता है एवं काले रंग के अंधकार को र भगा दे ता है. जैसे अ वयु य म यूप को आ य ारा कट करते ह, वैसे ही उषाएं आकाश म अपना प दखाती है एवं वगपु ी बनकर तेज वी सूय क सेवा करती ह. (५) अता र म तमस पारम योषा उ छ ती वयुना कृणो त. ये छ दो न मयते वभाती सु तीका सौमनसायाजीगः.. (६) हम रा के अंधकार के पार आ गए ह. नशा के अंधकार का नाश करती ई उषा सम त ा णय को ान दे ती है. जस कार वशीकरण म समथ पु ष धनी के समीप जाकर उसे स करने के लए हंसता है, उसी कार काश फैलाती उषाएं हंसती सी जान पड़ती ह. सुंदर शरीर वाली उषा ने सबक स ता के लए अंधकार का भ ण कया है. (६) भा वती ने ी सूनृतानां दवः तवे हता गोतमे भः. जावतो नृवतो अ बु यानुषो गोअ ाँ उप मा स वाजान्.. (७) हम गौतमवंशी तेज वनी एवं स य भाषण े मय का नेतृ व करने वाली आकाशपु ी उषा क तु त करते ह. हे उषा! हम पु , पौ , दास, अ एवं गाय से यु अ दान करो. (७) उष तम यां यशसं सुवीरं दास वग र यम बु यम्. सुदंससा वसा या वभा स वाज सूता सुभगे बृह तम्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे उषा! हम यश, वीर पु ष , दास एवं अ से यु अ ा त कर. हे शोभन धन वाली उषा! शोभनय यु तो से स होकर हमारे लए अ एवं पया त धन कट करो. (८) व ा न दे वी भुवना भच या तीची च ु वया व भा त. व ं जीवं चरसे बोधय ती व य वाचम वद मनायोः.. (९) चमकती ई उषाएं सम त ा णय को का शत करने के प ात् प म दशा म अपने तेज से व तृत होती ई उद्द त हो रही ह. वे सम त जीव को अपने-अपने काम म वृ होने के लए जगाती ह एवं भाषणकुशल लोग क बात सुनती ह. (९) पुनः पुनजायमाना पुराणी समानं वणम भ शु भमाना. नीव कृ नु वज आ मनाना मत य दे वी जरय यायुः.. (१०) त दन बार-बार उ प , न य एवं समान प धारण करने वाली उषाएं सम त मरणधमा ा णय के जीवन का दन- दन उसी कार ास करती ह, जस कार भीलनी उड़ते ए प य के पंख काटकर उनक हसा करती है. (१०) ू वती दवो अ ताँ अबो यप वसारं सनुतयुयो त. मनती मनु या युगा न योषा जार य च सा व भा त.. (११) आकाश को अंधकार से मु करती ई उषा को लोग जानते ह. वे अपने आप चलती ई रात को छपाती ह. अपने गमनागमन से त दन मानव के युग को समा त करती ई ेमी सूय क प नयां उषाएं का शत होती ह. (११) पशू च ा सुभगा थाना स धुन ोद उ वया ैत्. अ मनती दै ा न ता न सूय य चे त र म भ शाना.. (१२) जैसे वाला वन म पशु को चरने के लए फैला दे ता है, उसी कार सुभगा एवं पूजनीया उषाएं तेज का व तार करती ह. जैसे बहता आ पानी नीची जगह पर शी फैल जाता है, वैसे ही महती उषाएं सारे व को घेर लेती ह एवं दे वय म व न न डालती सूय क करण के साथ दखाई दे ती ह. (१२) उष त च मा भरा म यं वा जनीव त. येन तोकं च तनयं च धामहे.. (१३) हे अ क वा मनी उषाओ! हम ऐसा व च धन दो, जससे हम पु पालन कर सक. (१३) उषो अ ेह गोम य ाव त वभाव र. रेवद मे
ु छ सूनृताव त.. (१४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
और पौ
का
हे उषा! तुम गौ, अ , स यभाषण एवं तेज से यु करके धन से यु करो. (१४)
हो. आज हमारे य को का शत
यु वा ह वा जनीव य ाँ अ ा णाँ उषः. अथा नो व ा सौभगा या वह.. (१५) हे अ यु लाओ. (१५)
उषा! आज लाल रंग के घोड़े रथ म जोड़ो एवं सम त सौभा य हमारे लए
अ ना व तर मदा गोम ा हर यवत्. अवा थं समनसा न य छतम्.. (१६) हे श ुनाशक अ नीकुमारो! तुम दोन समान वचार बनाकर हमारे घर को गाय एवं रमणीय धन से यु करने के लए अपने रथ पर बैठकर हमारे घर को आओ. (१६) या व था ोकमा दवो यो तजनाय च थुः. आ न ऊज वहतम ना युवम्.. (१७) हे अ नीकुमारो! तुमने आकाश से शंसनीय यो त नीचे भेजी है. तुम हमारे लए बल दे ने वाला अ लाओ. (१७) एह दे वा मयोभुवा द ा हर यवतनी. उषबुधो वह तु सोमपीतये.. (१८) अ नीकुमार दाना दगुणयु , आरो य एवं सुख दे ने वाले, वण न मत रथ के वामी एवं श ु व वंसकारी ह. उनके घोड़े सोमरस पीने के लए उ ह इस य म लाव. (१८)
सू —९३
दे वता—अ न एवं सोम
अ नीषोमा वमं सु मे शृणुतं वृषणा हवम्. त सू ा न हयतं भवतं दाशुषे मयः.. (१) हे कामवषक अ न एवं सोम! इस आ ान को सुनो, हमारी तु तय को वीकार करो एवं ह दे ने वाले यजमान को सुख दे ने वाले बनो. (१) अ नीषोमा यो अ वा मदं वचः सपय त. त मै ध ं सुवीय गवां पोषं व म्.. (२) श
हे अ न और सोम! जो यजमान आज तु ह तु त वचन से पू जत करता है, उसे शाली गाएं एवं पु अ दो. (२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नीषोमा य आ त यो वां दाशा व कृ तम्. स जया सुवीय व मायु वत्.. (३) हे अ न और सोम! जो यजमान तु ह आ य क आ त और ह पु -पौ आ द से यु श संप पूणजीवन ा त हो. (३)
दान करता है, उसे
अ नीषोमा चे त त य वां यदमु णीतमवसं प ण गाः. अवा तरतं बृसय य शेषोऽ व दतं यो तरेकं ब यः.. (४) हे अ न और सोम! हम तु हारे उस पौ ष को जानते ह, जससे तुमने प णय के पास से गाय को छ ना था एवं वृषय अथात् व ा के पु वृ को मारकर आकाश म चलते ए सूय को सबके उपकाराथ पाया था. (४) युवमेता न द व रोचना य न सोम स तू अध म्. युवं स धूँर भश तेरव ाद नीषोमावमु चतं गृभीतान्.. (५) हे अ न और सोम! तुम दोन ने समानक ा बनकर इन चमकते ए न को आकाश म धारण कया है एवं इं क ह या के पाप अंश से यु न दय को कट दोष से छु ड़ाया है. (५) आ यं दवो मात र ा जभाराम नाद यं प र येनो अ े ः. अ नीषोमा णा वावृधानो ं य ाय च थु लोकम्.. (६) हे अ न और सोम! तुम दोन म से अ न को मात र ा आकाश से तथा सोम को बाज प ी पवत से यजमान के न म बलपूवक लाया है. तुम दोन ने तो ारा वृ ात करके दे वय के न म धरती का व तार कया है. (६) अ नीषोमा ह वषः थत य वीतं हयतं वृषणा जुषेथाम्. सुशमाणा ववसा ह भूतमथा ध ं यजमानाय शं योः.. (७) हे अ न और सोम! य के न म दए अ का भ ण करो एवं उसके बाद हमारी अ भलाषा पूरी करो. हे कामवषको! हमारी सेवा वीकार करो, हमारे लए सुखदाता एवं र णक ा बनो तथा यजमान के रोग और भय र करो. (७) यो अ नीषोमा ह वषा सपया े व चा मनसा यो घृतेन. त य तं र तं पातमंहसो वशे जनाय म ह शम य छतम्.. (८) हे अ न और सोम! जो यजमान दे व के त भ यु मन से तुम दोन क सेवा करता है, उसके य कम क र ा करो, यजमान को पाप से बचाओ तथा य काय म संल न उस को पया त सुख दो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नीषोमा सवेदसा स ती वनतं गरः. सं दे व ा बभूवथुः.. (९) हे अ न और सोम! तुम समान धन वाले एवं एक साथ आ ान करने यो य हो. तुम हमारी तु त सुनो. तुम सभी दे व से अ धक स हो. (९) अ नीषोमावनेन वां यो वां घृतेन दाश त. त मै द दयतं बृहत्.. (१०) हे अ न एवं सोम! जो यजमान तु ह घृत से यु दो. (१०)
ह व दान करता है, उसे पया त धन
अ नीषोमा वमा न नो युवं ह ा जुजोषतम्. आ यातमुप नः सचा.. (११) हे अ न और सोम! हमारा यह ह आओ. (११)
वीकार करो एवं इस काय के लए एक साथ
अ नीषोमा पपृतमवतो न आ याय तामु या ह सूदः. अ मे बला न मघव सु ध ं कृणुतं नो अ वरं ु म तम्.. (१२) हे अ न और सोम! हमारे अ का पालन करो. ीर आ द ह को उ प करने वाली हमारी गाएं बढ़. तुम धनयु हम लोग को बल दो एवं हमारे य को धनसंप करो. (१२)
सू —९४
दे वता—अ न
इमं तोममहते जातवेदसे रथ मव सं महेमा मनीषया. भ ा ह नः म तर य संस ने स ये मा रषामा वयं तव.. (१) जस कार बढ़ई रथ का नमाण करता है, उसी कार हम पू य एवं सब ा णय को जानने वाले अ न के त बु न मत यह तु त सम पत करते ह. इस अ न क सेवा से हमारी बु क याणी बनती है. हे अ न! तु हारी म ता ा त कर लेने पर हम हसा को ा त न ह . (१) य मै वमायजसे स साध यनवा े त दधते सुवीयम्. स तूताव नैनम ो यंह तर ने स ये मा रषामा वयं तव.. (२) हे अ न! तुम जस यजमान के न म य करते हो, वह अभी ा त कर लेता है, श ु क पीड़ा से र हत होकर नवास करता है, उ म श धारण करता है एवं वृ पाता है. उसे कभी द र ता नह मलती. हम तु हारी म ता को पाकर कसी के ारा सताए न जाव. (२) शकेम वा स मधं साधया धय वे दे वा ह वरद या तम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वमा द याँ आ वह ता
१ म य ने स ये मा रषामा वयं तव.. (३)
हे अ न! हम तु ह भली कार व लत कर सक एवं तुम हमारे य को पूरा करो, य क ऋ वज ारा तुम म डाला गया ह दे वगण भ ण करते ह. तुम अ द तपु अथात् दे व को यहां ले आओ, य क हम उनक कामना करते ह. तु हारी म ता ा त कर लेने पर कोई हमारी हसा न करे. (३) भरामे मं कृणवामा हव ष ते चतय तः पवणापवणा वयम्. जीवातवे तरं साधया धयोऽ ने स ये मा रषामा वयं तव.. (४) हे अ न! हम तु हारे य के लए धन एक करते ह एवं त पव पर दशपौणमास य करते ए तु ह ान कराकर ह दे ते ह. तुम हमारे जीवनकाल को बढ़ाने के लए य पूण कराओ. तुम हमारे म बन गए हो, अब कोई हमारी हसा न करे. (४) वशां गोपा अ य चर त ज तवो प च य त चतु पद ु भः. च ः केत उषसो महाँ अ य ने स ये मा रषामा वयं तव.. (५) इसक करण सम त ा णय क र ा करती वचरण करती ह. दो पैर और चार पैर वाले जंतु इसक करण से यु हो जाते ह. हे अ न, तुम व च द तसंप , सबका ान कराने वाले एवं उषा से भी महान् हो. तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (५) वम वयु त होता स पू ः शा ता पोता जनुषा पुरो हतः. व ा व ाँ आ व या धीर पु य य ने स ये मा रषामा वयं तव.. (६) हे अ न! तुम य को दे व के त प ंचाने वाले, अ वयु, होता, शा ता, य के शोधक अथात् पोता एवं ज म से ही पुरो हत हो. तुम ऋ वज् के सम त कम को जानते हो, इस लए हमारा य पूरा करो. तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (६) यो व तः सु तीकः स ङ् ङ स रे च स त ळ दवा त रोचसे. रा या द धो अ त दे व प य य ने स ये मा रषामा वयं तव.. (७) हे अ न! तुम शोभन-अंग वाले होते ए भी सबके समान हो एवं र रहकर भी समीप दखाई दे ते हो. हे दे व! तुम रात के अंधकार का नाश करके चमकते हो. तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (७) पूव दे वा भवतु सु वतो रथोऽ माकं शंसो अ य तु ढ् यः. तदा जानीतोत पु यता वचोऽ ने स ये मा रषामा वयं तव.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे दे वो! सोम नचोड़ने वाले यजमान का रथ अ य यजमान के रथ से आगे हो. हमारा पाप हमारे श ु को बाधा प ंचावे. तुम हमारी तु त पर यान दो और उसके अनुकूल चलकर हम पु करो. हे अ न! तु हारी म ता ा त कर लेने पर हमारी कोई हसा न कर सके. (८) वधै ःशंसाँ अप ढ् यो ज ह रे वा ये अ त वा के चद ण. अथा य ाय गृणते सुगं कृ य ने स ये मा रषामा वयं तव.. (९) हे अ न! तुम हननसाधन आयुध से अपवाद के पा एवं बु लोग का वध करो. जो श ु हमारे समीप या र ह, उनका नाश करो. इस कार तुम अपनी तु त करने वाले यजमान का माग शोभन बनाओ. तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (९) यदयु था अ षा रो हता रथे वातजूता वृषभ येव ते रवः. आ द व स व ननो धूमकेतुना ने स ये मा रषाम वयं तव.. (१०) हे अ न! तुम तेज वी, लाल रंग वाले एवं वायु वेग वाले दोन घोड़ को रथ म जोतते समय बैल के समान श द करते हो एवं अपने झंडे पी धूम से वन को घेर लेते हो. तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (१०) अध वना त ब युः पत णो सा य े यवसादो थरन्. सुगं त े तावके यो रथे योऽ ने स ये मा रषामा वयं तव.. (११) हे अ न! वन दे श को जलाने वाला तु हारा श द सुनकर प ी डर जाते ह. जब तु हारी वालाएं वन म वतमान तनक को भ ण करके सभी ओर फैलती ह, तब तु हारे लए एवं तु हारे रथ के लए सम त अर य सुगम बन जाता है. तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (११) अयं म य व ण य धायसे ऽवयातां म तां हेळो अ तः. मृळा सु नो भू वेषां मनः पुनर ने स ये मा रषामा वयं तव.. (१२) अ न के तोता को म और व ण धारण कर. अंत र म वतमान म त का ोध महान् होता है. हे अ न! हमारी र ा करो. इन म त का मन हमारे त स हो. हे अ न! तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (१२) दे वो दे वानाम स म ो अ तो वसुवसूनाम स चा र वरे. शम याम तव स थ तमेऽ ने स ये मा रषामा वयं तव.. (१३) हे तेज वी अ न! तुम सब दे व के परम म , सुंदर एवं य क सम त संप य के नवास हो. हम तु हारे अ त व तृत य गृह म वतमान ह . तु हारी म ता ा त करके हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कसी के ारा ह सत न ह . (१३) त े भ ं य स म ः वे दमे सोमा तो जरसे मृळय मः. दधा स र नं वणं च दाशुषेऽ ने स ये मा रषामा वयं तव.. (१४) हे अ न! जस समय तुम अपने थान पर व लत एवं सोम ारा आ त होकर ऋ वज क तु त का वषय बनते हो, उस समय अ यंत भ ा त करते हो. तुम हमारे लए परम सुखकारक एवं यजमान के लए रमणीय य फल एवं धन दे ने वाले बनो, तु हारी म ता ा त करके हम कसी के ारा ह सत न ह . (१४) य मै वं सु वणो ददाशोऽनागा वम दते सवताता. यं भ े ण शवसा चोदया स जावता राधसा ते याम.. (१५) हे शोभनधनसंप एवं अखंडनीय अ न! सम त य म वतमान जस यजमान को तुम पाप से र हत करके क याणकारी बल से यु करते हो, वह समृ होता है. तु हारी तु त करने वाले हम पु -पौ ा द वाले धन से यु ह . (१५) स वम ने सौभग व य व ान माकमायुः तरेह दे व. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (१६) हे अ न! तुम सौभा य को जानते ए इस य कम म हमारी आयुवृ व ण, अ द त, सधु, पृ वी एवं आकाश हमारी उस आयु क र ा कर. (१६)
सू —९५
करो. म ,
दे वता—अ न
े व पे चरतः वथ अ या या व समुप धापयेते. ह रर य यां भव त वधावा छु ो अ य यां द शे सुवचाः.. (१) हे दवस और रा ! तुम सुंदर योजन वाले एवं पर पर व प से यु होकर चलते हो. रात और दन दोन , दोन के पु —अ न और सूय क र ा करते ह. रा के पास से सूय ह व प अ ा त करता है एवं सरा दन के पास से शोभन काश वाला दखाई दे ता है. (१) दशेमं व ु जनय त गभमत ासो युवतयो वभृ म्. त मानीकं वयशसं जनेषु वरोचमानं प र ष नय त.. (२) अपने जग पोषण प काय म आल यर हत, न य युवा, दश दशा व मेघ म गभ प से वतमान वायु सब पदाथ म वतमान, ती ण तेजयु एवं अ तशय यश वी अ न को उ प करती है. इसी अ न को सब जगह ले जाया जाता है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ी ण जाना प र भूष य य समु एकं द ेकम सु. पूवामनु दशं पा थवानामृतू शास दधावनु ु .. (३) समु , आकाश और अंत र —ये अ न के तीन ज म थान ह. सूय प अ न ने ऋतु को वभ करके बताते ए पृ वी पर रहने वाले सम त ा णय के न म पूव दशा को अनु म से बनाया. (३) क इमं वो न यमा चकेत व सो मातॄजनयत वधा भः. ब नां गभ अपसामुप था महा क व न र त वधावान्.. (४) हे यजमानो! जल, वन आ द म गभ प से थत अ न को तुम म से कौन जानता है? अथात् कोई नह . यह पु होकर भी अपनी जल पी माता को ह ारा ज म दे ता है. यह ौढ़ तेज वाला, ांतदश एवं ह व प अ से यु अ न अनेक कार के जल को उ प करने का कारण बनकर समु से सूय प म नकलता है. (४) आ व ो वधते चा रासु ज ानामू वः वयशा उप थे. उभे व ु ब यतुजायमाना तीची सहं त जोषयेते.. (५) मेघ म तरछे रहने वाले जल क गोद म रहकर भी ऊपर क ओर जलता आ अ न शोभन द त वाला बनकर चमकता एवं बढ़ता है. व ा से उ प अ न से धरती और आकाश दोन डरते ह एवं सहनशील अ न के समीप आकर सेवा करते ह. (५) उभे भ े जोषयेते न मेने गावो न वा ा उप त थुरेवैः. स द ाणां द प तबभूवा त यं द णतो ह व भः.. (६) रात और दन दोन शोभन य के समान अ न क सेवा करते एवं रंभाती ई गाय के समान पास म आकर ठहरते ह. आ ानीय अ न के द ण भाग म थत होकर ऋ वज् ह ारा जस अ न को तृ त करते ह, वह सम त बल का वामी बनता है. (६) उ ंयमी त स वतेव बा उभे सचौ यतते भीम ऋ न्. उ छु म कमजते सम मा वा मातृ यो वसना जहा त.. (७) भयंकर अ न सूय क भुजा पी करण के समान अपने तेज को व तृत करते एवं धरती-आकाश दोन को अलंकृत करके उनके काम म लगाते ह तथा सम त पदाथ से तेज वी एवं सार प रस हण करते ह. वे अपनी माता प जल से सारे संसार को ढकने वाला नवीन तेज बनाते ह. (७) वेषं पं कृणुत उ रं य संपृ चानः सदने गो भर ः. क वबु नं प र ममृ यते धीः सा दे वताता स म तबभूव.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जब अ न अंत र म चलने वाले जल से संयु , तेज वी एवं सव म काश धारण करते ह, तब ांतदश एवं सवाधार अ न सम त जल के मूलभूत आकाश को अपने तेज के ारा ढक लेते ह. तेज वी अ न ारा फैलाई ई चमक तेजसमूह बन गई थी. (८) उ ते यः पय त बु नं वरोचमानं म हष य धाम. व े भर ने वयशो भ र ोऽद धे भः पायु भः पा मान्.. (९) हे महान् अ न! तु हारा सबको पराभूत करने वाला एवं चमकता आ तेज जल के मूल कारण आकाश को सब ओर से घेरे ए है. तु हारा तेज अ य एवं पालक है. तुम हमारे ारा व लत होकर अपने तेज के साथ यहां आओ. (९) ध व ोतः कृणुते गातुमू म शु ै म भर भ न त ाम्. व ा सना न जठरेषु ध ेऽ तनवासु चर त सूषु.. (१०) अ न आकाश म गमनशील जलसमूह को वाह का प दे ते एवं उसी नमल करण वाले जलसमूह से धरती को भगोते ह. वे जठर म संपूण अ को धारण करते ह, इसी लए वषा के प ात् उ प नवीन फसल के भीतर रहते ह. (१०) एवा नो अ ने स मधा वृधानो रेव पावक वसे व भा ह. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (११) हे शोधक अ न! स मधा के कारण व लत होकर हम धनयु अ दे ने के लए वशेष प से चमको. म , व ण, अ द त, सधु, धरती और आकाश उस अ क पूजा कर. (११)
सू —९६
दे वता—अ न
स नथा सहसा जायमानः स ः का ा न बळध व ा. आप म ं धषणा च साध दे वा अ नं धारय वणोदाम्.. (१) बलपूवक का घषण से उ प अ न शी ही चरंतन के समान ांतद शय के सम त य कम को धारण करते ह. उस व ुत् प अ न को वायु और जल म बना लेते ह. ऋ वज ने धनदाता अ न को धारण कया है. (१) स पूवया न वदा क तायो रमाः जा अजनय मनूनाम्. वव वता च सा ामप दे वा अ नं धारय वणोदाम्.. (२) अ न ने आयु क पूवकाल कृत एवं गुण न तु त को सुनकर इस मानवी जा को उ प कया है एवं आ छादक तेज के आकाश को ा त कया है. ऋ वज ने धनदाता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न को धारण कया है. (२) तमीळत थमं य साधं वश आरीरा तमृ सानम्. ऊजः पु ं भरतं सृ दानुं दे वा अ नं धारय वणोदाम्.. (३) हे मनु यो! दे व म मुखतया य साधक, ह ारा आ त, तो ारा स , अ के पु , जा के पोषक एवं दानशील वामी अ न के समीप जाकर उनक तु त करो. ऋ वज ने धनदाता अ न को धारण कया है. (३) स मात र ा पु वारपु वदद्गातुं तनयाय व वत्. वशां गोपा ज नता रोद योदवा अ नं धारय वणोदाम्.. (४) अंत र म वतमान अ न हमारे पु के लए अनेक अनु ान माग ा त कराव. वे वरणीय पु वाले, वगदाता, जा के र क, दे व, धरती और आकाश के उ प क ा ह. ऋ वज ने धनदाता अ न को धारण कया है. (४) न ोषासा वणमामे याने धापयेते शशुमेकं समीची. ावा ामा मो अ त व भा त दे वा अ नं धारय वणोदाम्.. (५) दन और रात बार-बार एक- सरे का प न करके मलते ए अ न पी एक ही बालक का पालन करते ह. वे तेज वी अ न, धरती और आकाश के म य म वशेष प से का शत होते ह. ऋ वज ने धनदाता अ न को धारण कया है. (५) रायो बु नः संगमनो वसूनां य य केतुम मसाधनो वेः. अमृत वं र माणास एनं दे वा अ नं धारय वणोदाम्.. (६) अपने अमृत व क र ा करने वाले दे व ने धन के मूल नवास हेत,ु धन को मलाने वाले, तोता क अ भलाषा के पूरक तथा य के केतु प धनदाता अ न को धारण कया था. (६) नू च पुरा च सदनं रयीणां जात य च जायमान य च ाम्. सत गोपां भवत भूरेदवा अ नं धारय वणोदाम्.. (७) ाचीनकाल म एवं आजकल होने वाले सम त धन के नवास थान, उ प एवं भ व य म होने वाले कायसमूह के नवासभूत तथा इस समय उप थत एवं भ व य म ज म लेने वाले पदाथ के र क तथा धनदाता अ न को दे व ने धारण कया. (७) वणोदा वणस तुर य वणोदाः सनर य यंसत्. वणोदा वीरवती मषं नो वणोदा रासते द घमायुः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यु
धन दे ने वाले अ न हम थावर एवं जंगम संप अ एवं द घ आयु द. (८)
का एक अंश द. वे हम वीर पु ष से
एवा नो अ ने स मधा वृधानो रेव पावक वसे व भा ह. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (९) हे प व करने वाले अ न! स मधा के कारण व लत होकर हम धनयु अ दे ने के लए वशेष प से का शत बनो. म , व ण, अ द त, सधु, धरती और आकाश उस अ क पूजा कर. (९)
दे वता—अ न
सू —९७
अप नः शोशुचदघम ने शुशु या र यम्. अप नः शोशुचदघम्.. (१) हे अ न! हमारा पाप न हो. तुम हमारे धन को सब ओर से का शत करो. हमारा पाप न हो. (१) सु े या सुगातुया वसूया च यजामहे. अप नः शोशुचदघम्.. (२) हे अ न! हम शोभन े , शोभन माग और धन क इ छा से ह व ारा तु हारी पूजा करते ह. हमारा पाप न हो. (२) य
द एषां ा माकास सूरयः. अप नः शोशुचदघम्.. (३)
हे अ न! हमारे तोता कु स के समान पाप न हो. (३) य े अ ने सूरयो जायेम ह
े ह . वे सभी तोता
म उ म ह. हमारा
ते वयम्. अप नः शोशुचदघम्.. (४)
हे अ न! तु हारी तु त करने वाले पु -पौ ा द पाकर बढ़ते ह, इसी लए हम भी तु हारी तु त करके बढ़. हमारे पाप न ह . (४) यद नेः सह वतो व तो य त भानवः. अप नः शोशुचदघम्.. (५) श ु को परा जत करने वाली अ न क करण सभी जगह जाती ह, इस लए हमारे पाप न ह . (५) वं ह व तोमुख व तः प रभूर स. अप नः शोशुचदघम्.. (६) हे अ न! तु हारे मुख चार ओर ह, इस लए तुम चार ओर से हमारी र ा करो. हमारा पाप न हो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
षो नो व तोमुखा त नावेक पारय. अप नः शोशुचदघम्.. (७) हे सवतोमुख अ न! जस कार नाव से नद को पार करते ह, उसी कार तुम हमारे क याण के लए हम श ुर हत दे श म प ंचाओ. हमारे पाप न ह . (७) स नः स धु मव नावया त पषा व तये. अप नः शोशुचदघम्.. (८) हे अ न! जस कार नाव से नद को पार करते ह, उसी कार तुम हमारे क याण के लए हम श ुर हत दे श म प ंचाकर हमारा पालन करो. हमारे पाप न ह . (८)
सू —९८
दे वता—अ न
वै ानर य सुमतौ याम राजा ह कं भुवनानाम भ ीः. इतो जातो व मदं व च े वै ानरो यतते सूयण.. (१) हम पर वै ानर अ न क अनु हबु हो. वे सामने से सेवनीय एवं सबके वामी ह. दो का से उ प होकर अ न संसार को दे खते ह एवं ातःकाल उदय होते ए सूय से मल जाते ह. (१) पृ ो द व पृ ो अ नः पृ थ ां पृ ो व ा ओषधीरा ववेश. वै ानरः सहसा पृ ो अ नः स नो दवा स रषः पातु न म्.. (२) अ न आकाश म सूय प से तथा धरती पर गाहप या द प से वतमान ह. अ न ने सारी ओष धय म उ ह पकाने के लए वेश कया है. वही हम दवस एवं रा म श ु से बचाव. (२) वै ानर तव त स यम व मा ायो मघवानः सच ताम्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (३) हे वै ानर! तुमसे संबं धत यह य सफल हो, हम धन ा त हो एवं अ त शी पु हमारी सेवा कर. म , व ण, अ द त, सधु, धरती और आकाश हमारे धन क र ा कर. (३)
सू —९९
दे वता—अ न
जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो न दहा त वेदः. स नः पषद त गा ण व ा नावेव स धुं रता य नः.. (१) हम सब भूत को जानने वाले अ न के न म सोमरस नचोड़ते ह. अ न हमारे त श ुता का वहार करने वाल का धन न कर. जस कार नाव क सहायता से नद पार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह, वैसे ही अ न हम ःख एवं पाप से पार कराव. (१)
सू —१००
दे वता—इं
स यो वृषा वृ ये भः समोका महो दवः पृ थ ा स ाट् . सतीनस वा ह ो भरेषु म वा ो भव व ऊती.. (१) जो इं कामवष , श तथा सं ाम म तु तक ा बन. (१)
संप , महान्, आकाश और धरती के ई र, जल बरसाने वाले ारा बुलाने यो य ह, वे म त के साथ मलकर हमारे र क
य याना तः सूय येव यामो भरेभरे वृ हा शु मो अ त. वृष तमः स ख भः वे भरेवैम वा ो भव व ऊती.. (२) जस कार सूय क चाल को सरा कोई नह पा सकता, उसी कार जनक ग त सर के लए अ ा य है, जो अपने ग तशील म -म त के साथ अ तशय कामवधक ह, जो सभी सं ाम म श ु के हंता और शोषक ह, वे इं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (२) दवो न य य रेतसो घानाः प थासो य त शवसापरीताः. तरद् े षाः सास हः प ये भम वा ो भव व ऊती.. (३) जसक बलयु एवं सर ारा अ ा य करण सूय के समान आकाश म वषा के जल को गराती इधर-उधर फैलती ह, वे ही जतश ु एवं श ारा श ु को परा जत करने वाले इं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (३) सो अ रो भर र तमो भूदवृ ् षा वृष भः स ख भः सखा सन्. ऋ म भऋ मी गातु भ य ो म वा ो भव व ऊती.. (४) जो ग तशील म अ यंत ती ग त, अभी दाता म सव म कामपूरक, म म परम हतकारी, अचनीय म सवा धक पूजापा एवं तु तपा म सवा धक तु त यो य ह, वे इं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (४) स सूनु भन े भऋ वा नृषा े सास ाँ अ म ान्. सनीळे भः व या न तूव म वा ो भव व ऊती.. (५) जो पु म त क सहायता से महान् बनकर सं ाम म मनु य के श ु को परा जत करते ह एवं अपने सहवासी म त क सहायता से अ के कारण जल को बादल से नीचे गराते ह, वे इं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स म युमीः समदन य कता माके भनृ भः सूय सनत्. अ म ह स प तः पु तो म वा ो भव व ऊती.. (६) श ु हसक, सं ामक ा, स जन के पालक एवं अनेक यजमान ारा बुलाए गए इं आज के दन हम सूय के काश का उपभोग करने द एवं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (६) तमूतयो रणय छू रसातौ तं ेम य तयः कृ वत ाम्. स व य क ण येश एको म वा ो भव व ऊती.. (७) वीर पु ष ारा लड़े गए सं ाम म म त् श द ारा जस इं को स करते ह एवं मनु य जसे र णीय धन का रखवाला बनाते ह, वे अ भमत फल दे ने म एकमा समथ इं म त क सहायता से हमारे र क बन. (७) तम स त शवस उ सवेषु नरो नरमवसे तं धनाय. सो अ धे च म स यो त वद म वा ो भव व
ऊती.. (८)
तोता लोग सं ाम म र ा एवं धन पाने के उ े य से इं क शरण म जाते ह, य क वे यु म वजय पी काश दे ते ह. वे इं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (८) स स ेन यम त ाधत स द णे संगृभीता कृता न. स क रणा च स नता धना न म वा ो भव व ऊती.. (९) इं बाएं हाथ से श ु को रोकते ह, दाएं हाथ से यजमान ारा दया आ ह वीकार करते ह एवं तोता क तु त सुनकर धन दे ते ह. वे म त के सहयोग से हमारे र क बन. (९) स ामे भः स नता स रथे भ वदे व ा भः कृ भ व१ . स प ये भर भभूरश तीम वा ो भव व ऊती.. (१०) जो इं म त के साथ धन दे ते ह, वे आज अपने रथ के कारण सभी मनु य ारा पहचाने जा रहे ह एवं ज ह ने अपने बल से श ु को परा जत कया है, वे म त के सहयोग से हमारे र क बन. (१०) स जा म भय समजा त मीळ् हेऽजा म भवा पु त एवैः. अपां तोक य तनय य जेषे म वा ो भव व ऊती.. (११) जो इं ब त से यजमान ारा बुलाए जाने पर अपने बांधव एवं बांधवहीन मानव के साथ यु े म स म लत होते ह और दोन कार के शरणागत लोग एवं उनके पु -पौ को वजय दलाते ह, वे म त के सहयोग से हमारे र क बन. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स व भृ युहा भीम उ ः सह चेताः शतनीथ ऋ वा. च ीषो न शवसा पा चज यो म वा ो भव व ऊती.. (१२) व धारी, असुरहंता, भयहेतु, तेज वी, सव , भूत तु तय के पा , भासमान, सोमरस के समान पांच कार के जन के र क इं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (१२) त य व ः द त म वषा दवो न वेषो रवथः शमीवान्. तं सच ते सनय तं धना न म वा ो भव व ऊती.. (१३) जनका व श ु को ब त लाता है, जो शोभन उदक के दाता, सूय के समान तेज वी, गजन-श दक ा एवं लोकानु ह संबंधी कम म संल न ह, धन और धन का दान जनक सेवा करते ह, वे इं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (१३) य याज ं शवसा मानमु थं प रभुज ोदसी व तः सीम्. स पा रष तु भम दसानो म वा ो भव व ऊती.. (१४) जस इं का सव पमान एवं शंसनीय बल धरती और आकाश का सवदा एवं भलीभां त पालन करता है, वे हमारे य से स होकर हम पाप से बचाव एवं म त के सहयोग से हमारे र क बन. (१४) न य य दे वा दे वता न मता आप न शवसो अ तमापुः. स र वा व सा मो दव म वा ो भव व ऊती.. (१५) दे व, मानव एवं जल जन इं के बल का अंत ा त नह करते, वे अपने श ुनाशक बल से धरती एवं आकाश से भी आगे बढ़ गए ह. वे म त के सहयोग से हमारी र ा कर. (१५) रो ह ावा सुमदं शुललामी ु ा राय ऋ ा य. वृष व तं ब ती धूषु रथं म ा चकेत ना षीषु व ु.. (१६) इं के अ लाल एवं काले रंग वाले, द घ अवयव से यु , आभूषणधारी एवं आकाश म नवास करने वाले ह. वे ऋजा ऋ ष को धन दे ने के न म आने वाले कामवष इं से अ ध त रथ के जुए को ख चते ह. मनु य सेना इन स तादायक अ को जानती है. (१६) एत य इ ऋ ा ः
वृ ण उ थं वाषा गरा अ भ गृण त राधः. भर बरीषः सहदे वो भयमानः सुराधाः.. (१७)
हे अभी दाता इं ! वृषा ग र के पु अथात् ऋजा , अंबरीष, सहदे व, भयमान एवं सुराधर तु हारी स ता के न म यह तो बोलते ह. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द यू छ यूँ पु त एवैह वा पृ थ ां शवा न बह त्. सन े ं स ख भः ये भः सन सूय सनदपः सुव ः.. (१८) अनेक यजमान ारा बुलाए गए इं ने ग तशील म त के सहयोग को पाकर धरती पर रहने वाले श ु एवं रा स पर आ मण करके हसक व ारा उनका वध कया. शोभन व यु इं ने ेत वण के अलंकार से द तांग म त के साथ उनक श ु ारा अ धकृत भू म, सूय एवं जल को बांट लया. (१८) व ाहे ो अ धव ा नो अ वप रह्वृताः सनुयाम वाजम्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (१९) सभी काल म वतमान इं हमारे प पाती बनकर बोल एवं हम अकु टल ग त बनकर ह पी अ का उपभोग कर. म , व ण, अ द त, सधु धरती एवं आकाश उसक पूजा कर. (१९)
सू —१०१
दे वता—इं
म दने पतुमदचता वचो यः कृ णगभा नरह ृ ज ना. अव यवो वृषणं व द णं म व तं स याय हवामहे.. (१) ऋ वजो! जन इं ने राजा ऋ ज ा क म ता के कारण कृ ण असुर क ग भणी प नय को मारा था, उ ह तु तपा इं के उ े य से ह व प अ के साथ-साथ तु त वचन बोलो. वे कामवष दाएं हाथ म व धारण करते ह. र ा के इ छु क हम उ ह इं का म त स हत आ ान करते ह. (१) यो ंसं जा षाणेन म युना यः श बरं यो अह प ुम तम्. इ ो यः शु णमशुषं यावृणङ् म व तं स याय हवामहे.. (२) जन इं ने अ तशय कोप के कारण बना बांह वाले वृ असुर का वध कया, ज ह ने शंबर, य न करने वाले प ु एवं व शोषक शु ण का नाश कया, हम उ ह इं को म त के स हत अपना म बनाने के लए बुलाते ह. (२) य य ावापृ थवी प यं मह य ते व णो य य सूयः. य ये य स धवः स त तं म व तं स याय हवामहे.. (३) हम म बनाने हेतु इं को म त के साथ बुलाते ह. न दयां उनके नयम मानते ह. (३)
ौ, पृ थवी, सूय, व ण एवं
यो अ ानां यो गवां गोप तवशी य आ रतः कम णकम ण थरः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वीळो
द ो यो असु वतो वधो म व तं स याय हवामहे.. (४)
जो अ एवं सम त गाय के वामी, वतं , तु त ा तक ा, सम त य कम म थत एवं य म सोम नचोड़ने वाल के बल श ु को न करते ह, हम उ ह इं को म त के साथ अपना म बनाने के लए बुलाते ह. (४) यो व य जगतः ाणत प तय णे थमो गा अ व दत्. इ ो यो द यूँरधराँ अवा तर म व तं स याय हवामहे.. (५) जो चलने वाले एवं सांस लेने वाले ा णय के वामी ह, ज ह ने प ण ारा अप त गाय का सभी दे व से पहले ा ण के न म उ ार कया था एवं ज ह ने असुर को नकृ बनाकर मारा था, उ ह इं को हम अपना सखा बनाने के लए म त के साथ बुलाते ह. (५) यः शूरे भह ो य भी भय धाव यते य ज यु भः. इ ं यं व ा भुवना भ संदधुम व तं स याय हवामहे.. (६) जो शूर और कायर ारा बुलाने यो य ह, यु म हारकर भागने वाले एवं वजयी दोन ही ज ह बुलाते ह एवं सभी ाणी ज ह अपने-अपने काय म आगे रखते ह, उ ह इं को हम अपना म बनाने के लए म त के साथ बुलाते ह. (६) ाणामे त दशा वच णो े भय षा तनुते पृथु यः. इ ं मनीषा अ यच त ुतं म व तं स याय हवामहे.. (७) काशमान इं सभी ा णय म ाण प से वतमान पु —म त को मनु य के लए दान करते ए आकाश म उ दत होते ह एवं उ ह म त के साथ ा णय म म यमा वाणी का व तार करते ह. तु त पी वाणी उ ह इं क पूजा करती है. उ ह हम म त के साथ अपना म बनाने के लए बुलाते ह. (७) य ा म वः परमे सध थे य ावमे वृजने मादयासे. अत आ या वरं नो अ छा वाया ह व कृमा स यराधः.. (८) हे म त स हत इं ! तुम उ म घर अथवा नवीन थान म स रहते हो. तुम हमारे य म आओ. हे स यधन! तु हारी कामना से हम ह दे ते ह. (८) वाये सोमं सुषुमा सुद अधा नयु वः सगणो म
वाया ह व कृमा वाहः. र म य े ब ह ष मादय व.. (९)
हे शोभन बल वाले इं ! हम तु हारी कामना से सोमरस नचोड़ते ह. हे तु त ारा बुलाने यो य इं ! हम तु हारी कामना से ह व दे ते ह. हे अ के वामी! तुम म त के साथ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
गण प म वतमान य म बछे ए कुश पर तृ त बनो. (९) मादय व ह र भय त इ व य व श े व सृज व धेने. आ वा सु श हरयो वह तूश ह ा न त नो जुष व.. (१०) हे इं ! अपने घोड़ के साथ स बनो, सोमपान के न म अपने जबड़ , ज ा एवं उप ज ा को खोलो. हे सुंदर ठोड़ी वाले इं ! घोड़े तु ह यहां लाव. तुम हमारी कामना करते ए हमारा ह हण करो. (१०) म तो य वृजन य गोपा वय म े ण सनुयाम वाजम्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (११) म त के साथ तु त कए जाने वाले एवं श ुहंता इं के ारा सुर त हम उनसे अ ा त कर. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी और आकाश उस अ क पूजा कर. (११)
सू —१०२
दे वता—इं
इमां ते धयं भरे महो महीम य तो े धषणा य आनजे. तमु सवे च सवे च सास ह म ं दे वासः शवसामद नु.. (१) हे इं ! तुझ महान् के उ े य से म यह महती तु त कर रहा ,ं य क तु हारी अनु ह बु मेरे तो पर ही आधा रत है. ऋ वज ने अ भवृ एवं धन पाने के लए श ु पराभवकारी इं को तु तय ारा स कया है. (१) अ य वो न ः स त ब त ावा ामा पृ थवी दशतं वपुः. अ मे सूयाच मसा भच े े क म चरतो वततुरम्.. (२) गंगा आ द सात स रताएं इं क क त एवं आकाश, पृ वी तथा अंत र इं का दशनीय प धारण करते ह. हे इं ! पदाथ को हमारे सामने का शत करने एवं हमारी ा उ प करने के लए सूय और चं बारीबारी से बार-बार घूमते ह. (२) तं मा रथं मघव ाव सातये जै ं यं ते अनुमदाम संगमे. आजा न इ मनसा पु ु त वायद् यो मघव छम य छ नः.. (३) हे हमारी बु ारा अनेक बार तु त कए गए इं ! तु हारे जस जयशील रथ को श ु के साथ होने वाले सं ाम म दे खकर हम स होते ह, हे धन वामी इं ! हम धन दे ने के लए उसी रथ को चलाओ एवं अपने अ भलाषी हम लोग को सुख दो. (३) वयं जयेम वया युजा वृतम माकमंशमुदवा भरेभरे. अ म य म व रवः सुगं कृ ध श ूणां मघव वृ या ज.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तु ह सहायक पाकर हम तोता श ु को जीत लगे. सं ाम म हमारे भाग क र ा करो. हे मघवन्! हम धन सुलभ कराओ तथा श ु क श बा धत करो. (४) नाना ह वा हवमाना जना इमे धनानां धतरवसा वप यवः. अ माकं मा रथमा त सातये जै ं ही नभृतं मन तव.. (५) हे धनधारणक ा इं ! अपनी र ा के न म ब त से लोग तु हारी तु त करते एवं तु ह बुलाते ह, उन म केवल हम धन दान करने के लए रथ पर बैठो. हे इं ! तु हारा मन अ ाकुल एवं जयशील है. (५) गो जता बा अ मत तुः समः कम कम छतमू तः खजङ् करः. अक प इ ः तमानमोजसाथा जना व य ते सषासवः.. (६) हे इं ! तु हारी भुजाएं श -ु वजय ारा गाय को ा त कराने वाली एवं तु हारा ान असी मत है. तुम े हो और तोता के य क अनेक कार से र ा करते हो. तुम सं ामक ा, वतं एवं सम त ा णय क श के तमान हो. इसी लए धन पाने के इ छु क तु ह अनेक कार से बुलाते ह. (६) उ े शता मघव ु च भूयस उ सह ा रचे कृ षु वः. अमा ं वा धषणा त वषे म धा वृ ा ण ज नसे पुर दर.. (७) हे धन वामी इं ! मनु य को तु हारे ारा दया गया अ सौ धन से अ धक, शता धक से भी अ धक अथवा हजार से भी अ धक है. अग णत गुण से यु तुमको हमारी तु त का शत करती है. हे पुरंदर! तुम श ु का वनाश करते हो. (७) व धातु तमानमोजस त ो भूमीनृपते ी ण रोचना. अतीदं व ं भुवनं वव था श ु र जनुषा सनाद स.. (८) हे मनु य के पालनक ा इं ! जस कार तगुनी बट ई र सी ढ़ होती है, उसी कार तुम बल म सभी ा णय के तमान हो. हे इं ! तुम अपने ज मकाल से ही श ुर हत थे, इस लए तुम तीन लोक म तीन कार के तेज एवं इस संसार को ढोने म पूरी तरह समथ हो. (८) वां दे वेषु थमं हवामहे वं बभूथ पृतनासु सास हः. सेमं नः का मुपम युमु द म ः कृणोतु सवे रथं पुरः.. (९) हे इं ! तुम दे व म े एवं सं ाम म श प ु राभवक ा हो. हम तु ह बुलाते ह. तुम हम तु तक ा, सव एवं श ुनाशक पु दो तथा यु होने पर हमारा रथ अ य रथ से आगे करो. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं जगेथ न धना रो धथाभ वाजा मघव मह सु च. वामु मवसे सं शशीम यथा न इ हवनेषु चोदय.. (१०) हे इं ! तुम श ु को जीतते हो एवं उनका धन छपाकर नह रखते. हे मघवन्! छोटे एवं बड़े सं ाम म हम तु त ारा तुझ उ को अपनी र ा के न म बुलाते ह. हम यु के न म आ ान से े रत करो. (१०) व ाहे ो अ धव ा नो अ वप रह्वृताः सनुयाम वाजम्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौ.. (११) सभी काल म वतमान इं हमारे प पाती बनकर बोल एवं हम अकु टल ग त बनकर ह पी अ का उपभोग कर. म , व ण, अ द त, सधु, धरती एवं आकाश उसक पूजा कर. (११)
सू —१०३
दे वता—इं
त इ यं परमं पराचैरधारय त कवयः पुरेदम्. मेदम य १ यद य समी पृ यते समनेव केतुः.. (१) हे इं ! ाचीन काल म ांतदश तोता ने तु हारे इस स बल को स मुख धारण कया था. इं क धरती पर रहने वाली एवं आकाश म रहने वाली यो तयां इस कार मल जाती ह, जस कार यु म वरोधी यो ा के झंडे मल जाते ह. (१) स धारय पृ थव प थ च व ण े ह वा नरपः ससज. अह हम भन ौ हणं ह संसं मघवा शची भः.. (२) इं ने असुर पी ड़त धरती को धारण एवं व तृत कया है, व से श ु को मारकर वषा का जल बहाया है, अंत र म वतमान मेघ का वध कया है, रो हण असुर को वद ण कया है एवं अपने शौय से बा हीन वृ को समा त कया है. (२) स जातूभमा धान ओजः पुरो व भ द चर दासीः. व ा व द यवे हे तम याय सहो वधया ु न म .. (३) व ायुध एवं श सा य काय म ा रखने वाले इं ने द यु के नगर का वनाश करके व वध गमन कया था. हे व धारी! हमारी तु तय को समझते ए तुम हमारे श ु पर आयुध छोड़ो एवं तु तक ा का बल तथा यश बढ़ाओ. (३) त चुषे मानुषेमा युगा न क त यं मघवा नाम ब त्. उप य द युह याय व ी य सूनुः वसे नाम दधे.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वृ ा द द यु को मारने के लए घर से नकलते ए व धारी एवं श ु ेरक इं ने जय ल ण के लए जो नाम धारण कया था, उससे बल का वणन करने वाले यजमान के लए धन वामी इं सूय प से मानवोपयोगी दनरात के समूह का नमाण करते ह. (४) तद येदं प यता भू र पु ं द य ध न वीयाय. स गा अ व द सो अ व दद ा स ओषधीः सो अपः स वना न.. (५) हे यजमानो! इं के बु एवं व तृत शौय को दे खो एवं इस पर गाय , अ ओष धय , जल एवं वन को ा त कया. (५)
ा करो. इं ने
भू रकमणे वृषभाय वृ णे स य शु माय सुनवाम सोमम्. य आ या प रप थीव शूरोऽय वनो वभज े त वेदः… (६) अनेक वध कमयु , दे व म े , इ छापू त म समथ एवं यथाथ श वाले इं के न म हम सोम नचोड़ते ह. जस कार बटमार जानेवाले भले मनु य का धन छ न लेता है, उसी कार शूर इं धन का आदर करके य न करने वाल का धन छ नकर उसे यजमान को दे ने के लए ले जाते ह. (६) तद ेव वीय चकथ य सस तं व ेणाबोधयोऽ हम्. अनु वा प नी षतं वय व े दे वासो अमद नु वा.. (७) हे इं ! तुमने यह वीरता का कम कया जो सोते ए अ ह रा स को अपने व ारा जगा दया. तब तु ह ह षत दे खकर दे वप नय ने स ता अनुभव क . ग तशील म द्गण एवं अ य दे व भी तु हारे साथ-साथ स ए थे. (७) शु णं प ुं कुयवं वृ म यदावधी व पुरः श बर य. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (८) हे इं ! तुमने शु ण, प ु एवं कुयव का वध तथा शंबर असुर के नगर को वद ण कया था. हमने इस तो ारा जो चाहा है, उसक पूजा म , व ण, अ द त, सधु, धरती और आकाश कर. (८)
सू —१०४
दे वता—इं
यो न इ नषदे अका र तमा न षीद वानो नावा. वमु या वयोऽवसाया ा दोषा व तोवहीयसः प वे.. (१) हे इं ! तु हारे बैठने के लए जो थान बनाया गया है, उस पर हंसते ए घोड़े के समान आकर शी बैठो. जो र सयां घोड़ को रथ से बांधती ह, उ ह खोलकर घोड़ को रथ से ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अलग कर दो, य क य काल आने पर वे घोड़े रात- दन तु ह ढोते ह. (१) ओ ये नर इ मूतये गुनू च ा स ो अ वनो जग यात्. दे वासो म युं दास य न ते न आ व सु वताय वणम्.. (२) य के नेता यजमान क र ा क इ छा से इं के समीप आते ह और इं उनको उसी समय य के अनु ान म लगाते ह. दे वगण असुर का ोध समा त कर एवं हमारे य के न म इं को लाव. (२) अव मना भरते केतवेदा अव मना भरते फेनमुदन्. ीरेण नातः कुयव य योषे हते ते यातां वणे शफायाः.. (३) सर के धन को जानने वाला कुयव असुर वयं धन का अपहरण करता है एवं जल म रहकर फेन वाले जल को चुराता है. चुराए ए जल म नान करने वाली कुयव क दो यां शफा नामक नद के गहरे जल म न ह . (३) युयोप ना भ पर यायोः पूवा भ तरते रा शूरः. अ सी कु लशी वीरप नी पयो ह वाना उद भभर ते.. (४) उदक के म य म थत एवं सर को परेशान करने के न म इधर-उधर जाने वाले कुयव का थान जल म गु त था. वह शूर अप त जल से बढ़ता एवं तेज वी बनता है. अंजसी, कु लशी एवं व रप नी नाम क न दयां अपने जल से उसे स करके धारण करती ह. (४) त य या नीथाद श द योरोको ना छा सदनं जानती गात्. अध मा नो मघव चकृता द मा नो मघेव न षपी परा दाः.. (५) अपने बछड़े को जानती ई गाय जस कार अपने नवास थान म प ंचती है, उसी कार हमने भी कुयव असुर के घर क ओर जाता आ माग दे खा है. हे इं ! हमारी र ा करो, हम इस कार मत यागो, जस कार दासी का प त धन याग दे ता है. (५) स वं न इ सूय सो अ वनागा व आ भज जीवशंसे. मा तरां भुजमा री रषो नः तं ते महत इ याय.. (६) हे इं ! हम सूय के त, जल के त एवं पापर हत होने के कारण जीव ारा शं सत मानव के त भ बनाओ. हमारी गभ थ संतान क हसा मत करना. हम तु हारे महान् बल के त ालु ह. (६) अधा म ये े अ मा अधा य वृषा चोद व महते धनाय. मा नो अकृते पु त योना व ु यद् यो वय आसु त दाः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हम तु ह मन से जानते ह एवं तु हारी श पर ा रखते ह. हे कामवष ! तुम हम महान् धन के न म े रत करो. हे अनेक यजमान ारा बुलाए गए इं ! हम धनर हत घर म मत रखो तथा अ य भूख को अ एवं ध दो. (७) मा नो वधी र मा परा दा मा नः या भोजना न मोषीः. आ डा मा नो मघव छ नभ मा नः पा ा भे सहजानुषा ण.. (८) हे इं ! हम मत मारना, हमारा याग मत करना एवं हमारे य उपभोग पदाथ को मत छ नना. हे धन वामी एवं श शाली इं ! हमारे गभ थ एवं घुटने के बल चलने वाले ब च को न मत करो. (८) अवाङे ह सोमकामं वा रयं सुत त य पबा मदाय. उ चा जठर आ वृष व पतेव नः शृणु ह यमानः.. (९) हे इं ! हमारे स मुख आओ, य क ाचीन लोग ने तु ह सोम य बताया है. यह सोम नचुड़ा आ रखा है, इसे पीकर स बनो. व तीण शरीर वाले बनकर हमारे उदर म सोमरस क वषा करो. जस कार पता पु क बात सुनता है, उसी कार हमारे ारा बुलाए ए तुम हमारी बात सुनो. (९)
सू —१०५
दे वता— व ेदेव
च मा अ व१ तरा सुपण धावते द व. न वो हर यनेमयः पदं व द त व ुतो व ं मे अ य रोदसी.. (१) उदकमय मंडल म वतमान सुंदर करण वाला चं मा आकाश म दौड़ता है. हे सुवणमयी चं करणो! कुएं से ढक होने के कारण मेरी इं यां तु हारे अ भाग को नह ा त करत . हे धरती और आकाश! हमारे इस तो को जानो. (१) अथ म ा उ अ थन आ जाया युवते प तम्. तु ाते वृ यं पयः प रदाय रसं हे व ं मे अ य रोदसी.. (२) धन चाहने वाले लोग को न त प से धन मल रहा है. सर क यां अपने प तय को समीप ही पाती ह, उनसे समागम करती ह एवं गभ म वीय धारण करके संतान उ प करती ह. हे धरती और आकाश! मेरे इस क को जानो. (२) मो षु दे वा अदः व१रव पा द दव प र. मा सो य य शंभुवः शूने भूम कदा चन व ं मे अ य रोदसी.. (३) हे दे वो! वग म वतमान हमारे पूवपु ष वहां से प तत न ह . सोमपान यो य पतर के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुख के न म (३)
पु से र हत कभी न ह . हे धरती और आकाश! मेरी इस बात को समझो.
य ं पृ छा यवमं स तद् तो व वोच त. व ऋतं पू गतं क त भ त नूतनो व ं मे अ य रोदसी.. (४) म दे व म आ दभूत एवं य के यो य अ न से नवेदन करता ं क वे मेरी बात दे व के त के प म उ ह बता द. हे अ न! तुम पूवकाल म तोता का जो क याण करते थे, वह कहां गए? उस गुण को अब कौन धारण करता है? हे धरती और आकाश! मेरी यह बात जानो. (४) अमी ये दे वाः थन वा रोचने दवः. क ऋतं कदनृतं व ना व आ त व ं मे अ य रोदसी.. (५) हे दे वो! सूय ारा का शत तीन लोक म तुम वतमान रहो. तु हारा स य, अस य एवं ाचीन आ त कहां है? हे धरती और आकाश! मेरी यह बात जानो. (५) क ऋत य धण स क ण य च णम्. कदय णो मह पथा त ामेम ो व ं मे अ य रोदसी.. (६) हे दे वो! तु हारा स यधारण कहां है? व ण क कृपा कहां है? महान् अयमा का वह माग कहां है, जस पर चलकर हम पापबु श ु से र जा सक? हे धरती और आकाश! हमारी इस बात को जानो. (६) अहं सो अ म यः पुरा सुते वदा म का न चत्. तं मा या यो३ वृको न तृ णजं मृगं व ं मे अ य रोदसी.. (७) हे दे वो! म वही ,ं जसने ाचीनकाल म तु हारे न म सोम नचोड़े जाने पर कुछ तो बोले थे. जस कार यासे हरन को ा खा जाते ह, उसी कार मान सक क मुझे खा रहे ह. हे धरती और आकाश! मेरे इस क को जानो. (७) सं मा तप य भतः सप नी रव पशवः. मूषो न श ा द त मा यः तोतारं ते शत तो व ं मे अ य रोदसी.. (८) हे इं ! कुएं क आसपास क द वार मुझे उसी कार ःखी कर रही ह, जस कार दो सौत बीच म थत अपने प त को क दे ती ह. हे शत तु! जस तरह चूहा सूत को काटता है, उसी कार ःख मुझे खा रहे ह. हे धरती और आकाश! मेरी यह बात जानो. (८) अमी ये स त र मय त ा मे ना भरातता. त त े दा यः स जा म वाय रेभ त व ं मे अ य रोदसी.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये जो सूय क सात करण ह, उन म मेरी ना भ संब जानता ं और कुएं से नकलने के लए सूय करण क आकाश! मेरी यह बात जानो. (९)
है. आ य ऋ ष अथात् म यह तु त करता ं. हे धरती और
अमी ये प चो णो म ये त थुमहो दवः. दे व ा नु वा यं स ीचीना न वावृतु व ं मे अ य रोदसी.. (१०) आकाश म थत इं , व ण, अ न, अयमा और स वता—पांच कामवष दे व हमारे शंसनीय तो को एक साथ दे व के समीप ले जाव और लौट आव. हे धरती और आकाश! मेरी यह बात जानो. (१०) सुपणा एत आसते म य आरोधने दवः. ते सेध त पथो वृकं तर तं य तीरपो व ं मे अ य रोदसी.. (११) सूय क र मयां सबको आवरण करने वाले आकाश म वतमान ह. वे वशाल जल को पार करने वाले भे ड़ए को रोकती ह. हे धरती और आकाश! मेरी यह बात जानो. (११) न ं त यं हतं दे वासः सु वाचनम्. ऋतमष त स धवः स यं तातान सूय व ं मे अ य रोदसी.. (१२) हे दे वो! तुम म छपे ए नवीन, तु य एवं वणनीय बल के कारण बहने वाली न दयां जल वा हत करती एवं सूय अपना न य वतमान तेज फैलाता है. हे धरती और आकाश! हमारी इस बात को जानो. (१२) अ ने तव य यं दे वे व या यम्. स नः स ो मनु वदा दे वा य व रो व ं मे अ य रोदसी.. (१३) हे अ न! दे व के साथ तु हारी शंसनीय ाचीन बंधुता है एवं तुम अ यंत ाता हो. मनु के य के समान ही हमारे य म भी बैठकर दे व क ह व के ारा पूजा करो. हे धरती और आकाश! हमारी यह बात जानो. (१३) स ो होता मनु वदा दे वाँ अ छा व रः. अ नह ा सुषूद त दे वो दे वेषु मे धरो व ं मे अ य रोदसी.. (१४) मनु के य के समान हमारे य म थत, दे व को बुलाने वाले, परम ानी, दे व म अ धक मेधावी अ न दे व दे व को शा ीय मयादा के अनुसार हमारे ह क ओर े रत कर. हे धरती और आकाश! हमारी यह बात जानो. (१४) ा कृणो त व णो गातु वदं तमीमहे. ूण त दा म त न ो जायतामृतं व ं मे अ य रोदसी.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ण अ न का नवारण करते ह. हम उन मागदशक व ण से अ भमत फल मांगते ह. हमारा तोता मन उन व ण क मननीय तु त करता है. वे ही तु त यो य व ण हमारे लए स चे बन. हे धरती और आकाश! हमारी बात जानो. (१५) असौ यः प था आ द यो द व वा यं कृतः. न स दे वा अ त मे तं मतासो न प यथ व ं मे अ य रोदसी.. (१६) हे दे वगण! जो सूय आकाश म सततगामी माग के समान सबके ारा दे खे जाते ह, उनका अ त मण तुम भी नह कर सकते. हे मानवो! तुम उ ह नह जानते. हे धरती और आकाश! हमारी बात जानो. (१६) तः कूपेऽव हतो दे वा हवत ऊतये. त छु ाव बृह प तः कृ व ं रणा व ं मे अ य रोदसी.. (१७) कुएं म गरा आ त ऋ ष अपनी र ा के लए दे व को बुलाता है. बृह प त ने उसे पाप प कुएं से नकालकर उसक पुकार सुनी. हे धरती और आकाश! हमारी बात जानो. (१७) अ णो मा सकृद्वृकः पथा य तं ददश ह. उ जहीते नचा या त ेव पृ ् यामयी व ं मे अ य रोदसी.. (१८) लाल रंग के वृक ने मुझे एक बार माग म जाते ए दे खा. वह मुझे दे खकर इस कार ऊपर उछला, जस कार पीठ क वेदना वाला काम करते-करते सहसा उठ पड़ता है. हे धरती और आकाश! मेरे इस क को जानो. (१८) एनाङ् गूषेण वय म व तोऽ भ याम वृजने सववीराः. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (१९) घोषणा यो य इस तो के कारण इं का अनु ह पाए ए हम लोग पु , पौ आ द के साथ सं ाम म श ु को हराव. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी एवं आकाश हमारी इस ाथना का आदर कर. (१९)
सू —१०६
दे वता— व ेदेव
इ ं म ं व णम नमूतये मा तं शध अ द त हवामहे. रथं न गा सवः सुदानवो व मा ो अंहसो न पपतन.. (१) हम र ा के लए इं , म , व ण, अ न, म द्गण एवं अ द त को बुलाते ह. नवास थान दे ने वाले शोभनदानयु दे व पाप से बचाकर हमारा उसी कार पालन कर, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जैसे सार थ रथ को ऊंचे-नीचे माग से बचाकर ले जाता है. (१) त आ द या आ गता सवतातये भूत दे वा वृ तूयषु श भुवः. रथं न गा सवः सुदानवो व मा ो अंहसो न पपतन.. (२) हे आ द यो! तुम यु म हमारी सहायता करने के लए आओ एवं यु म हमारे सुखदाता बनो. नवास थान दे ने वाले एवं शोभनदानयु दे व पाप से बचाकर हमारा उसी कार पालन कर, जैसे सार थ रथ को ऊंचे-नीचे माग से बचाकर ले जाता है. (२) अव तु नः पतरः सु वाचना उत दे वी दे वपु े ऋतावृधा. रथं न गा सवः सुदानवो व मा ो अंहसो न पपतन.. (३) सुखसा य तु त वाले पतर एवं दे व के पता-माता के समान य वधक ावापृ वी हमारी र ा कर. नवास थान दे ने वाले एवं शोभनदानयु दे व पाप से बचाकर हमारा उसी कार पालन कर, जैसे सार थ रथ को ऊंचेनीचे माग से बचाकर ले जाता है. (३) नराशंसं वा जनं वाजय ह य रं पूषणं सु नैरीमहे. रथं न गा सवः सुदानवो व मा ो अंहसो न पपतन.. (४) हम मनु य ारा शंसनीय एवं अ के वामी अ न को व लत करके तथा परम बली पूषा के समीप जाकर सुखकर तो ारा याचना करते ह. नवास थान दे ने वाले एवं शोभनदानयु दे व पाप से बचाकर हमारा उसी कार पालन कर, जैसे सार थ रथ को ऊंचेनीचे थान से बचाकर ले जाता है. (४) बृह पते सद म ः सुगं कृ ध शं योय े मनु हतं तद महे. रथं न गा सवः सुदानवो व मा ो अंहसो न पपतन.. (५) हे बृह प त! हम सदा सुख दो. तुमम रोग के शमन एवं भय को र करने क जो मानवानुकूल श है, हम उसे भी मांगते ह. नवास थान दे ने वाले एवं शोभनदानयु दे व पाप से बचाकर हमारा उसी कार पालन कर, जस तरह सार थ रथ को ऊंचेनीचे थान से बचाकर ले जाता है. (५) इ ं कु सो वृ हणं शचीप त काटे नबाळ् ह ऋ षर तये. रथं न गा सवः सुदानवो व मा ो अंहसो न पपतन.. (६) कुएं म गरे ए कु स ऋ ष ने अपनी र ा के लए वृ हंता एवं शचीप त इं को बुलाया. नवास थान दे ने वाले एवं शोभनदानयु दे व पाप से बचाकर हमारा उसी कार पालन कर, जैसे सार थ रथ को ऊंचे-नीचे थान से बचाकर ले जाता है. (६) दे वैन दे
द त न पातु दे व ाता ायताम यु छन्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (७) दे व के साथ-साथ दे वी अ द त भी हमारी र ा कर एवं सबके र क स वता जाग क होकर हमारा पालन कर. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी और आकाश हमारी ाथना का पालन कर. (७)
सू —१०७
दे वता— व ेदेव
य ो दे वानां ये त सु नमा द यासो भवता मृळय तः. आ वोऽवाची सुम तववृ यादं हो ा व रवो व रासत्.. (१) हमारा य दे व को सुख दे . हे आ द यो! हम सुखी करो. जो द र पु ष को भी धनलाभ कराने वाला है, तु हारा वही अनु ह हम ा त हो. (१) उप नो दे वा अवसा गम व रसां साम भः तूयमानाः. इ इ यैम तो म रा द यैन अ द तः शम यंसत्.. (२) अं गरागो ीय ऋ षय ारा गाए ए मं से तुत दे व र ा के न म हमारे समीप आव. इं धन के साथ, म द्गण ाण आ द वायु के साथ तथा अ द त आ द य के साथ हम सुख द. (२) त इ त ण तद न तदयमा त स वता चनो धात्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (३) हमारे ारा चाहा गया अ इं , व ण, अ न, अयमा और स वता हम द. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी और आकाश हमारे उस अ क र ा कर. (३)
सू —१०८
दे वता—इं और अ न
य इ ा नी च तमो रथो वाम भ व ा न भुवना न च े. तेना यातं सरथं त थवांसाथा सोम य पबतं सुत य.. (१) हे इं और अ न! तु हारा जो अ त व च रथ सम त संसार को का शत करता है, उसी एक रथ के ारा हमारे य म आओ और ऋ वज ारा नचोड़े ए सोम को पओ. (१) याव ददं भुवनं व म यु चा व रमता गभीरम्. तावाँ अयं पातवे सोमो अ वर म ा नी मनसे युव याम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं और अ न! सव ापक एवं अपने गौरव से गंभीरतायु जो सम त संसार का प रमाण है, वही सोम तुम दोन के पीने के लए एवं मन संतोष के लए पया त हो. (२) च ाथे ह स यङ् नाम भ ं स ीचीना वृ हणा उत थः. ता व ा नी स य चा नष ा वृ णः सोम य वृषणा वृषेथाम्.. (३) हे इं और अ न! तुम दोन ने अपने क याणकारक दोन नाम को संयु कर लया है. हे वृ हंताओ! तुम वृ वध म एक साथ थे. हे कामव षयो! तुम साथ-साथ बैठकर ही सोम को अपने उदर म थान दो. (३) स म े व न वानजाना यत च ु ा ब ह त तराणा. ती ैः सौमैः प र ष े भरवागे ा नी सौमनसाय यातम्.. (४) अ न के भली-भां त द त होने पर दो अ वयु ने घी से भरा पा लेकर स चते ए कुश फैलाए ह. हे इं और अ न! ती मद करने वाले एवं चार ओर पा म भरे ए सोम के कारण हमारे स मुख आओ एवं हम पर कृपा करो. (४) यानी ा नी च थुव या ण या न पा युत वृ या न. या वां ना न स या शवा न ते भः सोम य पबतं सुत य.. (५) हे इं और अ न! तुमने जो वीरता के काम कए ह, जन दखाई दे ने वाले जीव क सृ एवं वषा आ द कम कए ह तथा तुम दोन क ाचीन क याणकारी म ता है, उन सबके स हत आकर नचोड़ा आ सोमरस पओ. (५) यद वं थमं वां वृणानो ३ऽयं सोमो असुरैन वह ः. तां स यां ाम या ह यातमथा सोम य पबतं सुत य.. (६) हे इं और अ न! मने य कम के ारंभ म ही जो कहा था क तुम दोन का वरण करके तु ह सोम से स क ं गा, मेरी वही स ची ा वचारकर आओ और नचोड़े ए सोम को पओ. यह सोम ऋ वज ारा वशेष आ त दे ने यो य है. (६) य द ा नी मदथः वे रोणे यद् ण राज न वा यज ा. अतः प र वृषणावा ह यातमथा सोम य पबतं सुत य.. (७) हे य पा एवं अभी दाता इं और अ न! चाहे तुम अपने नवास म आनंद से बैठे हो, चाहे कसी ा ण या राजा के य म प ंचकर स हो रहे हो, इन सम त थान से आओ एवं नचोड़ा आ सोमरस पऔ. (७) य द ा नी य षु तुवशेषु यद् वनुषु पू षु थः. अतः प र वृषणावा ह यातमथा सोम य पबतं सुत य.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे कामवषक इं और अ न! य द तुम य , तुवश, अनु, ह्यु एवं पु जन समूह के बीच थत हो, तब भी इन सम त थान से आओ एवं नचोड़ा आ सोमरस पओ. (८) य द ा नी अवम यां पृ थ ां म यम यां परम यामुत थः. अतः प र वृषणावा ह यातमथा सोम य पबतं सुत य.. (९) हे कामवषक इं और अ न! य द तुम नचली धरती अथवा म य थ आकाश म थत हो, तब भी वहां से आओ और नचोड़ा आ सोमरस पओ. (९) य द ा नी परम यां पृ थ ां म यम यामवम यामुत थः. अतः प र वृषणावा ह यातमथा सोम य पबतं सुत य.. (१०) हे कामवषक इं और अ न! य द तुम आकाश के परवत , म यवत या न नवत धरातल म वतमान हो, तब भी इन थान से आओ और नचोड़ा आ सोमरस पओ. (१०) य द ा नी द व ो य पृ थ ां य पवते वोषधी व सु. अतः प र वृषणावा ह यातमथा सोम य पबतं सुत य.. (११) हे कामवषक इं और अ न! तुम चाहे आकाश, पृ वी, पवत , ओष धय अथवा जल म थत हो, तब भी इन थान से आओ और नचोड़ा आ सोमरस पओ. (११) य द ा नी उ दता सूय य म ये दवः वधया मादयेथे. अतः प र वृषणावा ह यातमथा सोम य पबतं सुत य.. (१२) हे कामवषक इं और अ न! य द तुम उ दत सूय के कारण का शत आकाश म अपने ही तेज से स हो रहे हो, तब भी वहां से आओ और नचोड़ा आ सोम पओ. (१२) एवे ा नी प पवांसा सुत य व ा म यं सं जयतं धना न. त ो म ा व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (१३) हे इं और अ न! नचोड़े ए सोमरस को इस कार पीकर हमारे लए सभी संप यां दो. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी और आकाश हमारे इस धन का आदर कर. (१३)
सू —१०९
दे वता—इं और अ न
व यं मनसा व य इ छ ा नी ास उत वा सजातान्. ना या युव म तर त म ं स वां धयं वाजय तीमत म्.. (१) हे इं और अ न! धन क कामना करता आ म तु ह जा त या बंधु के समान समझता .ं मेरी उ म बु तु हारे अ त र कसी अ य क द ई नह है. उसी बु से मने तु हारी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ े छापूण एवं यानयु
तु त क है. (१)
अ वं ह भू रदाव रा वां वजामातु त वा घा यालात्. अथा सोम य यती युव या म ा नी तोमं जनया म न म्.. (२) हे इं और अ न! गुणहीन जामाता क यालाभ के लए अथवा गुणहीन क या का भाई उ म वर लाभ के लए जतना धन दे ते ह, तुम उससे भी अ धक दे ने वाले हो, यह मने सुना है. इस लए तुमको नचोड़े ए सोम दे ने के साथ ही यह अ तशय नवीन तु त भी न मत करता ं. (२) मा छे र म र त नाधमानाः पतॄणां श रनुय छमानाः. इ ा न यां कं वृषणो मद त ता धषणाया उप थे.. (३) र सी के समान लंबी पु -पौ परंपरा को हम कभी छ न कर, ऐसी ाथना करते ए एवं पतर को श दे ने वाले पु -पौ ा द को उ प करते ए हम यजमान इं एवं अ न क सुखपूवक तु त करते ह. श ु का नाश करते ए इं और अ न इस तु त के समीप रह. (३) युवा यां दे वी धषणा मदाये ा नी सोममुशती सुनो त. ताव ना भ ह ता सुपाणी आ धावतं मधुना पृङ् म सु.. (४) हे इं और अ न! तु हारी स ता के लए हम तेज वी एवं तु हारी कामना से पूण ाथना करते ए सोमरस नचोड़ते ह. हे अ संप शोभनबा यु एवं सुंदर हथे लय वाले इं और अ न! शी आओ एवं जल म वतमान माधुय से हमारे सोम को संप करो. (४) युवा म ा नी वसुनो वभागे तव तमा शु व वृ ह ये. तावास ा ब ह ष य े अ म चषणी मादयेथां सुत य.. (५) हे इं और अ न! हमने सुना है क तोता को धन बांटने के अ भ ाय से तुमने वृ वध म अ तशय बल का दशन कया था. हे सबको दे खने वाले! तुम हमारे य म कुश पर बैठकर एवं नचोड़े ए सोम को पीकर स बनो. (५) चष ण यः पृतनाहवेषु पृ थ ा ररीचाथे दव . स धु यः ग र यो म ह वा े ा नी व ा भुवना य या.. (६) हे इं और अ न! सं ाम म र ा के उ े य से बुलाए जाने पर तुम सभी मनु य क अपे ा महान् बनते हो. तुम धरती, आकाश, नद एवं पवत क अपे ा महान् बनते हो. तुम सम त व क अपे ा महान् हो. (६) आ भरतं श तं व बा अ माँ इ ा नी अवतं शची भः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमे नु ते र मयः सूय य ये भः स प वं पतरो न आसन्.. (७) हे व बा इं एवं अ न! धन लाओ, हम दो एवं अपने काय के ारा हमारी र ा करो. सूय क जन र मय ारा हमारे पूव पु ष लोक को गए थे, वे ये ही ह. (७) पुरंदरा श तं व ह ता माँ इ ा नी अवतं भरेषु. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (८) हे व ह त एवं असुरनाशक इं और अ न! हम धन दो एवं यु म हमारी र ा करो. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी एवं आकाश हमारी इस ाथना क पूजा कर. (८)
सू —११०
दे वता—ऋभुगण
ततं मे अप त तायते पुनः वा द ा धी त चथाय श यते. अयं समु इह व दे ः वाहाकृत य समु तृ णुत ऋभवः.. (१) हे ऋभुओ! मने बार-बार अ न ोम आ द का पहले अनु ान कया है एवं इस समय पुनः कर रहा ं. उस म तु हारी शंसा के लए अ तशय स ताकारक तो पढ़ा जा रहा है. इस य म सभी दे व के लए पया त सोमरस संपा दत है. तुम वाहा श द के साथ अ न म डाले गए सोम को पीकर तृ त बनो. (१) आभोगयं य द छ त ऐतनापाकाः ा चो मम के चदापयः. सौध वनास रत य भूमनाग छत स वतुदाशुषो गृहम्.. (२) हे ऋभुओ! तुम ाचीन काल म अप रप व ान वाले एवं मेरे जातीय बंधु थे. उस समय तुमने उपभोग के यो य सोमरस क इ छा क थी. हे सुध वा के पु ो! उस समय तुमने अपने तप से उपा जत मह व ारा ऐसे स वता के घर गमन कया था, जसे सोमपान दया जा चुका था. (२) त स वता वोऽमृत वमासुवदगो ं य वय त ऐतन. यं च चमसमसुर य भ णमेकं स तमकृणुता चतुवयम्.. (३) हे ऋभुओ! उस समय स वता ने तु हारे अ भमुख होकर अमरता द थी, जस समय तुम सबके ारा यमान स वता को अपनी सोमपान क इ छा बताते ए आए थे एवं व ा के सोमपान के साधन के चार टु कड़े कर दए थे. (३) व ् वी शमी तर ण वेन वाघतो मतासः स तो अमृत वमानशुः. सौध वना ऋभवः सूरच सः संव सरे समपृ य त धी त भः.. (४) ऋ वज के साथ मले ए ऋभु ने शी ही य , दान आ द कम करके मरणधमा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
होते ए भी अमरता ा त क थी. उस समय सुध वा के पु एवं सूय के समान तेज वी ऋभु ने संव सर पयत चलने वाले य म अ धकार ा त कया था. (४) े मव व ममु तेजनेनँ एकं पा मृभवो जेहमानम्. उप तुता उपमं नाधमाना अम यषु व इ छमानाः.. (५) जस कार नापने का बांस लेकर खेत नापा जाता है, उसी कार समीप थ ऋ षय ारा तुत ऋभु ने शंसनीय सोम क याचना करके एवं मरणर हत दे व के बीच म ह क इ छा करके ती ण अ ारा चमस नाम के य पा को चार भाग म बांटा था. (५) आ मनीषाम त र य नृ यः ुचेव घृतं जुहवाम व ना. तर ण वा ये पतुर य स र ऋभवो वाजम ह दवो रजः.. (६) हम अंत र संबंधी य को नेता ऋभु को ुच नामक पा के समान घी से भरा आ ह दे ने के साथ ही ान भरी तु त करते ह. उ ह ने जगत्पालक सूय के समान संसार को पार करने क कुशलता एवं वगलोक का अ ा त कया था. (६) ऋभुन इ ः शवसा नवीयानृभुवाजे भवसु भवसुद दः. यु माकं दे वा अवसाह न ये३ भ त ेम पृ सुतीरसु वताम्.. (७) बल के कारण अ त स ऋभुगण हमारे ई र ह. हम अ एवं धन के दे ने वाले ऋभु नवास के कारण ह, इस लए वे हम वरदान द. हे दे वो! हम तु हारी र ा के कारण अनुकूल दन म सोमा भषवर हत श ु को हरा द. (७) न मण ऋभवो गाम पशत सं व सेनासृजता मातरं पुनः. सौध वनासः वप यया नरो ज ी युवाना पतराकृणोतन.. (८) हे ऋभुओ! तुमने चमड़े के ारा गाय को आ छा दत करके पुनः उसके बछड़े से मला दया था. हे सुध वा के पु ो एवं य के नेताओ! तुमने शोभन कम क इ छा से अपने वृ माता- पता को पुनः युवा बना दया है. (८) वाजे भन वाजसाताव वड् ृभुमाँ इ च मा द ष राधः. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (९) हे इं ! ऋभु का सहयोग पाकर हम य के न म भूत अ एवं धन दो. म , व ण, अ द त, सधु, धरती एवं आकाश हमारे उस धन एवं अ क पूजा कर. (९)
सू —१११
दे वता—ऋभुगण
त थं सुवृतं व नापस त हरी इ वाहा वृष वसू. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त
पतृ यामृभवो युव य त
व साय मातरं सचाभुवम्.. (१)
उ म ानपूवक कम करने वाले ऋभु ने अ नीकुमार के न म सुंदर प हय वाला रथ तथा इं के वाहन प ह र नाम के दोन घोड़ को बनाया. उ म धन से यु ऋभु ने अपने माता- पता को यौवन एवं बछड़े को सहचरी माता दान क थी. (१) आ नो य ाय त त ऋभुम यः वे द ाय सु जावती मषम्. यथा याम सववीरया वशा त ः शधाय धासथा व यम्.. (२) हे ऋभुओ! हमारे य के लए उ वल अ पैदा करो. हमारे य कम एवं बल के न म शोभन पु -पौ ा द से यु धन दो, जससे हम अपनी वीर संतान के साथ सुखपूवक नवास कर. हम बल के लए अ दो. (२) आ त त सा तम म यमृभवः सा त रथाय सा तमवते नरः. सा त नो जै सं महेत व हा जा ममजा म पृतनासु स णम्.. (३) हे य के नेता ऋभुओ! हमारे लए उपभोग यो य अ दो. हमारे रथ के लए धन एवं अ के उपभोग के लए अ दो. सारा संसार हमारे जयशील अ क सदा पूजा करे एवं हम यु म उप थत या अनुप थत श ु का नाश कर. (३) ऋभु ण म मा व ऊतय ऋभू वाजा म तः सोमपीतये. उभा म ाव णा नूनम ना ते नो ह व तु सातये धये जषे.. (४) हम अपनी र ा के उ े य से महान् इं , ऋभु एवं म त को सोमरस पीने के लए बुलाते ह. वे हम धन, य कम और वजय के लए े रत कर. (४) ऋभुभराय सं शशातु सा त समय ज ाजो अ माँ अ व ु . त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (५) ऋभु हम सं ाम के न म धन द. सं ाम म वजयी बाज हमारी र ा कर. म , व ण, अ द त, सधु, धरती और आकाश हमारी ाथना का आदर कर. (५)
सू —११२
दे वता—अ नीकुमार
ईळे ावापृ थव पूव च येऽ नं घम सु चं याम ये. या भभरे कारमंशाय ज वथ ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१) म अ नीकुमार को व ा पत करने के लए पहले ावा और पृ वी क तु त करता ं. अ नीकुमार के य म आ जाने पर था पत, द त एवं शोभनकां तयु अ न क तु त करता ं. हे अ नीकुमारो! सं ाम म अपना वजय भाग पाने के न म जन र ा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
संबंधी उपाय के साथ आकर शंख बजाते हो, उ ह उपाय के साथ हमारे समीप भी आओ. (१) युवोदानाय सुभरा अस तो रथमा त थुवचसं न म तवे. या भ धयोऽवथः कम ये ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (२) हे अ धनलाभ के जानने वाले लगे व श
नीकुमारो! अ य दे व म आस र हत, शोभन तो धारण करने वाले तोता लए तु हारे रथ के समीप उसी कार प ंचते ह, जस कार यायपूण वचन पं डत के पास लोग अपना फैसला कराने जाते ह. तुम जन उपाय से य म ा नय क र ा करते हो, उ ह उपाय के साथ आओ. (२)
युवं तासां द य शासने वशां यथो अमृत य म मना. या भधनुम वं१ प वथो नरा ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (३) हे नेता पी अ नीकुमारो! तुम दोन वग म उ प सोम पी अमृतपान से ा त बल के कारण तीन लोक म वतमान जा का शासन करने म समथ हो. र ा के जन उपाय से तुमने सव म असमथ गाय को शंयु नामक ऋ ष के लए धा बना दया था, उ ह उपाय के साथ आओ. (३) या भः प र मा तनय य म मना माता तूषु तर ण वभूष त. या भ म तुरभव च ण ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (४) हे अ नीकुमारो! चार ओर गमनशील वायु अपने पु एवं माता से उ प अ न के बल से यु होकर तथा पालनोपाय ारा धावनशील म अ त शी गामी बनकर सव ात हो जाता है. जन उपाय ारा क ीवान् ऋ ष व श ानयु ए थे, उ ह उपाय ारा आओ. (४) याभी रेभं नवृतं सतमद् य उ दनमैरयतं व शे. या भः क वं सषास तमावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (५) हे अ नीकुमारो! तुमने जन र ोपाय से असुर ारा कुएं म फके गए एवं पाशब कए गए रेभ ऋ ष को जल से बाहर नकाला था, इसी कार वंदन नामक ऋ ष को सूय दशन के लए जल से नकाला था, असुर ारा अंधकार म डाले गए एवं काश क इ छा वाले क व ऋ ष को जन उपाय से बचाया था, उ ह उपाय से यहां आओ. (५) या भर तकं जसमानमारणे भु युं या भर थ भ ज ज वशुः. या भः कक धुं व यं च ज वथ ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (६) हे अ नीकुमारो! तुमने जन र ा संबंधी उपाय से असुर ारा कुएं म गराकर मारे जाते ए राज ष अंतक क र ा क , समु म डू बते ए भु यु क र ा जन थार हत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उपाय ारा क तथा जन उपाय से ककधु एवं व य को बचाया था, उ ह उपाय से यहां आओ. (६) या भः शुच तं धनसां सुषंसदं त तं घममो याव तम ये. या भः पृ गुं पू कु समावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (७) हे अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय ारा शुचं त को धनसंप एवं शोभनगृह का वामी बनाया, अ को जलाने वाली त त अ न को सुखदायक बनाया एवं पृ गु तथा पु कु स क र ा क , उ ह उपाय से यहां आओ. (७) या भः शची भवृषणा परावृजं ा धं ोणं च स एतवे कृथः. या भव तकां सतामु चतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (८) हे कामवषक अ नीकुमारो! तुमने जन कम ारा पंगु परावृज को चलने म समथ, अंधे ऋजा को दे खने म कुशल, जानुर हत ोण को ग तशील एवं वृक ारा गृहीत प णी व का को मु कया था, उ ह उपाय से आओ. (८) या भः स धु मधुम तमस तं व स ं या भरजराव ज वतम्. या भः कु सं ुतय नयमावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (९) हे जरार हत अ नीकुमारो! जन उपाय से सधु नद को मधुर वाह वाली, व श को स एवं कु स, ुतय तथा नय ऋ षय को सुर त कया था, उ ही उपाय स हत हमारे पास आओ. (९) या भ व पलां धनसामथ सह मीळह आजाव ज वतम्. या भवशम ं े णमावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१०) हे अ नीकुमारो! जन उपाय से तुमने धन क वा मनी एवं चलने म असमथ वप ला को हजार संप य से पूण एवं सं ाम म जाने यो य बनाया तथा अ ऋ ष के तु तक ा पु वश ऋ ष क र ा क थी, उ ह उपाय से यहां आओ. (१०) या भः सुदानू औ शजाय व णजे द घ वसे मधु कोशो अ रत्. क ीव तं तोतारं या भरावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (११) हे सुंदर दान वाले अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय से उ शजा के पु एवं वा ण य कम करने वाले द घ वा के न म मेघ से जल बरसाया एवं तु तक ा क ीवान् क र ा क , उ ह उपाय को लेकर यहां आओ. (११) या भ रसां ोदसोद्नः प प वथुरन ं याभी रथमावतं जषे. या भ शोक उ या उदाजत ता भ षु ऊ त भर ना गतम्… (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय ारा स रता के तट को जलपूण कया था, अ वर हत रथ को वजय के लए चलाया था तथा शोक को अपनी चुराई ई गाय को पाने म समथ कया था, उ ह उपाय को साथ लेकर आओ. (१२) या भः सूय प रयाथः पराव त म धातारं ै प ये वावतम्. या भ व ं भर ाजमावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१३) हे अ नीकुमारो! तुम जन उपाय ारा सूय को हण के अंधकार से मु करने जाते हो, तुमने जन उपाय ारा मांधाता क े प त कम म र ा क एवं मेधावी भर ाज को अ दे कर बचाया, उ ह उपाय के साथ यहां आओ. (१३) या भमहाम त थ वं कशोजुवं दवोदासं श बरह य आवतम्. या भः पू भ े सद युमावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१४) हे अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय ारा महान् अ त थ स कार करने वाले एवं रा स के भय से जल म घुसने को तुत दवोदास को शंबर असुर ारा मारे जाते समय बचाया था तथा सं ाम म सद यु ऋ ष क र ा क , उ ह उपाय को लेकर आओ. (१४) या भव ं व पपानमुप तुतं क ल या भ व जा न व यथः. या भ मुत पृ थमावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१५) हे अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय ारा पीने म संल न एवं तु त कए गए व क , प नी ा त करने वाले क ल क एवं अ हीन पृ थ क र ा क थी, उ ह उपाय के साथ आओ. (१५) या भनरा शयवे या भर ये या भः पुरा मनवे गातुमीषथुः. या भः शारीराजतं यूमर मये ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१६) हे नेता प अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय ारा शंयु, अ एवं थम मनु को ःख से नकलने का माग बताया था एवं यूमर म क र ा के उ े य से उनके श ु पर बाण चलाया था, उ ह उपाय के साथ यहां आओ. (१६) या भः पठवा जठर य म मना ननाद दे चत इ ो अ म ा. या भः शयातमवथो महाधने ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१७) हे अ नीकुमारो! जन उपाय ारा पठवा ऋ ष शरीर बल पाकर सं ाम म उसी कार द त ए, जस कार का ारा जलाई गई अ न चमकती है. जन उपाय से यु म शयात क र ा क गई, उ ह उपाय के साथ आओ. (१७) या भर रो मनसा नर यथोऽ ं ग छथो ववरे गोअणसः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या भमनुं शूर मषा समावतं ता भ
षु ऊ त भर ना गतम्.. (१८)
हे अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय से मननीय तो ारा स होकर अं गरा क र ा क थी, प णय ारा गुफा म छपाई गई गाय के थान पर सबसे पहले प ंचे थे एवं अ दे कर वीयवान मनु क र ा क थी, उ ह उपाय स हत आओ. (१८) या भः प नी वमदाय यूहथुरा घ वा या भर णीर श तम्. या भः सुदास ऊहथुः सुदे ं१ ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (१९) हे अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय ारा वमद ऋ ष के लए प नी एवं लाल रंग क गाएं द एवं सुदास को स धन दया, उ ह उपाय स हत आओ. (१९) या भः शंताती भवथो ददाशुषे भु युं या भरवथो या भर गुम्. ओ यावत सुभरामृत तुभं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (२०) हे अ नीकुमारो! तुम दोन जन उपाय ारा ह वदाता यजमान के लए सुखक ा बनते हो, भु यु एवं अ धगु क र ा क तथा ऋतु तुभ ऋ ष को सुखकर और भरण यो य अ दान कया था, उ ह उपाय के साथ आओ. (२०) या भः कृशानुमसने व यथो जवे या भयूनो अव तमावतम्. मधु यं भरथो य सरड् य ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (२१) हे अ नीकुमारो! तुम दोन ने जन उपाय से यु म कृशानु क र ा क , युवा पु कु स के दौड़ते ए घोड़े को बचाया तथा मधुम खय को सव य मधु दान कया, उ ह उपाय के साथ आओ. (२१) या भनरं गोषुयुधं नृषा े े य साता तनय य ज वथः. याभी रथाँ अवथो या भरवत ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (२२) हे अ नीकुमारो! तुम जन उपाय ारा गौ ा त के न म यु करने वाले मनु य क सं ाम म र ा करते हो, े एवं धन ा त म यजमान के सहायक होते हो एवं उसके रथ तथा घोड़ क र ा करते हो, उ ह के साथ आओ. (२२) या भः कु समाजुनेयं शत तू तुव त च दभी तमावतम्. या भ वस तं पु ष तमावतं ता भ षु ऊ त भर ना गतम्.. (२३) हे शत तु अ नीकुमारो! तुमने जन उपाय से अजुन के पु कु स, तुव त एवं दधी त क र ा क थी तथा वसं त और पु षं त नामक ऋ षय को सुर त कया, उ ह उपाय के साथ यहां आओ. (२३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ वतीम ना वाचम मे कृतं नो द ा वृषणा मनीषाम्. अ ू येऽवसे न ये वां वृधे च नो भवतं वाजसातौ.. (२४) हे कामवष अ नीकुमारो! हमारी वाणी को व हत कम से यु एवं बु को वेद ान म समथ बनाओ. काशर हत रा के अं तम हर म हम तु ह अपनी र ा के न म बुलाते ह. हमारे अ लाभ म सहायक बनो. (२४) ु भर ु भः प र पातम मान र े भर ना सौभगे भः. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (२५) हे अ नीकुमारो! हम दवस , नशा एवं वनाशर हत सौभा य ारा सुर त बनाओ, म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी एवं आकाश इस तु त का आदर कर. (२५)
सू —११३
दे वता—उषा और रा
इदं े ं यो तषां यो तरागा च ः केतो अज न व वा. यथा सूता स वतुः सवायँ एवा रा युषसे यो नमारैक्.. (१) ोतमान हन ा द म े यो त उषा आई. इसक ब रंगी एवं व को का शत करने वाली र मयां सभी जगह फैल ग . जस कार रा सूय से उ प होती है, उसी कार उषा का उ प थान रा है. (१) श सा शती े यागादारैगु कृ णा सदना य याः. समानब धू अमृते अनूची ावा वण चरत आ मनाने.. (२) सूय क माता, तेज वनी एवं ेतवण वाली उषा आई है. कृ णवणा रा ने उसे अपना थान दे दया है. य प ये दोन एक ही सूय से संबं धत एवं मरणर हता ह, तथा प एकसरी के पीछे आती ह एवं एक- सरे का प न करती ई आकाश म वचरण करती ह. (२) समानो अ वा व ोरन त तम या या चरतो दे व श े. न मेथेते न त थतुः सुमेके न ोषासा समनसा व पे.. (३) इन दोन ब हन का अनंत गमनमाग एक ही है, जस पर सूय ारा नदश पाकर ये एक-एक करके चलती ह. वे सुंदर ज मदा ी एवं पर पर भ प वाली होकर एकमत को ा त करके आपस म कसी क हसा नह करत तथा कभी थर नह रहत . (३) भा वती ने ी सूनृतानामचे त च ा व रो न आवः. ा या जगद् ु नो रायो अ य षा अजीगभुवना न व ा.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम काशसंप एवं वा णय क ने ी उषा को जानते ह. व च उषा ने हमारे लए अंधकार के बंद ार खोल दए ह, सारे संसार को का शत करके हम धन दए ह एवं सम त लोक को का शत कया है. (४) ज ये३च रतवे मघो याभोगय इ ये राय उ वं. द ं प य य उ वया वच उषां अजीगभुवना न व ा.. (५) उषा टे ढ़े सोए ए लोग म कुछ को अपने अपे त थान को जाने के लए, कुछ को भोग के लए, कुछ को य के लए एवं कुछ को धन के लए जगाती है. यह अंधकार के कारण थोड़ा दे खने वाल के व श काश के लए सारे भुवन को का शत करती है. (५) ाय वं वसे वं महीया इ ये वमथ मव व म यै. वस शा जी वता भ च उषा अजीगभुवना न व ा.. (६) उषा कसी को धन के लए, कसी को अ के लए, कसी को महाय के लए एवं कसी को अभी व तु ा त के लए जगाती है. वह नाना प जी वका के न म सम त व को का शत करती है. (६) एषा दवो हता यद श ु छ ती युव तः शु वासाः. व येशाना पा थव य व व उषो अ ेह सुभगे ु छ.. (७) आकाश क पु ी यह उषा मनु य ारा न य यौवना, ेतवसना, तमो वना शनी एवं सम त संप य क अधी री के प म दे खी गई है. हे शोभनधनसंप उषा! तुम आज यहां अंधकार न करो. (७) परायतीनाम वे त पाथ आयतीनां थमा श तीनाम्. ु छ ती जीवमुद रय युषा मृतं कं चन बोधय ती.. (८) अतीत उषा के माग का अनुवतन वतमान उषा करती है. यह आने वाली अग णत उषा क आ द है. यह अंधकार को मटाती, ा णय को जागृत करती एवं न ा म मृतवत् बने लोग को चेतन बनाती है. (८) उषो यद नं स मधे चकथ व यदाव सा सूय य. य मानुषा य यमाणाँ अजीग त े वेषु चकृषे भ म ः.. (९) हे उषा! तुमने जो अ न को व लत कया है, अंधकारावृत व को सूय के काश से प कया है एवं य करते ए मनु य को अंधकार से छु टकारा दलाया है, ये काम तुमने दे व के क याण के लए कए ह. (९) कया या य समया भवा त या
ूषुया नूनं
ु छान्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अनु पूवाः कृपते वावशाना द याना जोषम या भरे त.. (१०) पता नह कतने समय से उषा उ प हो रही है और कतने समय तक उ प होती रहेगी? वतमान उषा पूवव तनी उषा का अनुकरण करती है तथा आगा मनी उषाएं इसके काश का अनुवतन करगी. (१०) ईयु े ये पूवतरामप य ु छ तीमुषसं म यासः. अ मा भ नु तच याभूदो ते य त ये अपरीषु प यान्.. (११) जन मनु य ने अ तशय पूवव तनी उषा को काश करते दे खा था, वे समा त हो ग . उषा हमारे ारा इस समय दे खी जाती है. होने वाली उषा को जो लोग दे खगे, वे आ रहे ह. (११) यावयद् े षा ऋतपा ऋतेजाः सु नावरी सूनृता ईरय ती. सुम ली ब ती दे ववी त महा ोषः े तमा ु छ.. (१२) हे उषा! तुम हमसे े ष करने वाल को र हटाने वाली, स य क पालनक , य के न म उ प सुखयु वचन क ेरक, क याणस हता एवं दे व के अ भल षत य को धारण करने वाली हो, तुम उ म कार से आज इस थान को का शत करो. (१२) श पुरोषा व ु ास दे थो अ ेदं ावो मघोनी. अथो ु छा राँ अनु ूनजरामृता चर त वधा भः.. (१३) दे वी उषा पूवकाल म त दन काश दे ती थी, धन क वा मनी उषा आज भी इस व को अंधकार से छु टकारा दलाती है एवं इसी कार भ व य के दन म काश दान करेगी. वह जरा एवं मरण से र हत होकर अपने तेज से वचरण करती है. (१३) १ भ दव आता व ौदप कृ णां न णजं दे ावः. बोधय य णे भर ैरोषा या त सुयुजा रथेन.. (१४) आकाश क व तृत दशा म उषा काशक तेज से उ दत होती है एवं उसने रा ारा न मत काला प समा त कर दया है. वह सोते ए ा णय को जगाती ई लाल रंग के घोड़ वाले अपने रथ से आ रही है. (१४) आवह ती पो या वाया ण च ं केतुं कृणुते चे कताना. ईयुषीणामुपमा श तीनां वभातीनां थमोषा ैत्.. (१५) उषा पोषण समथ, वरणीय धन को लाती ई एवं सम त मनु य को चेतनायु करती ई व च करण का शत करती है. पूवव तनी उषा क उपमान एवं आगा मनी वशेष काशयु उषा क थमा यह उषा अपने तेज से बढ़ती है. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उद व जीवो असुन आगादप ागा म आ यो तरे त. आरै प थां यातवे सूयायाग म य तर त आयुः.. (१६) हे मनु यो! उठो, हमारे शरीर का ेरक जीव आ गया है. अंधकार चला गया एवं काश आ रहा है. उषा सूय के गमन के लए रा ता साफ करती है. हे उषा! हम उस दे श म जाते ह, जसम तुम अ क वृ करती हो. (१६) यूमना वाच उ दय त व ः तवानो रेभ उषसो वभातीः. अ ा त छ गृणते मघो य मे आयु न दद ह जावत्.. (१७) तु तय को वहन करने वाला तोता काशमान उषा क तु त करता आ सु व थत वेद वचन बोलता है. हे धन वा मनी उषा! इस लए आज इस तोता का रा संबंधी अंधकार मटाओ तथा हम जायु धन दो. (१७) या गोमती षसः सववीरा ु छ त दाशुषे म याय. वायो रव सुनृतानामुदक ता अ दा अ व सोमसु वा.. (१८) गोसंप एवं सम त शूर से यु जो उषाएं तु त वचन समा त होते ही ह दे ने वाले यजमान का वायु के समान शी अंधकार न करती ह, वे ही अ दे ने वाली उषाएं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को ा त कर. (१८) माता दे वानाम दतेरनीकं य य केतुबृहती वभा ह. श तकृद् णे नो ु१ छा नो जने जनय व वारे.. (१९) हे दे व क माता एवं अ द त से त पधा करने वाली उषा! तुम य का ापन करती ई एवं मह व ा त करती ई का शत एवं हमारे तो क शंसा करती ई उ दत बनो. हे वरणीय उषा! हम संसार म स बनाओ. (१९) य च म उषसो वह तीजानाय शशमानाय भ म्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (२०) उषाएं जो व च एवं ा त करने यो य धन लाती ह, वह ह व दे ने वाले एवं तु त करने वाले पु ष के लए क याणकारी है. म , व ण, सधु धरती एवं आकाश इस ाथना क पूजा कर. (२०)
सू —११४
दे वता—
इमा ाय तवसे कप दने य राय भरामहे मतीः. यथा शमसद् पदे चतु पदे व ं पु ं ामे अ म नातुरम्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम वृ जटाधारी एवं वीरनाशक के लए ये मननीय तु तयां इस लए अ पत कर रहे ह, जससे पद एवं चतु पद क रोगशां त हो. गांव म सब लोग पु तथा अनातुर रह. (१) मृळा नो ोत नो मय कृ ध य राय नमसा वधेम ते. य छं च यो मनुरायेजे पता तद याम तव णी तषु.. (२) हे ! हमारे न म तुम सुखकारक बनी एवं हम सुख दान करो. हम नम कारपूवक वीरनाशक क सेवा करते ह. पता मनु ने जो रोगशां त और नभयता ा त क थी, हे ! तु ह नम कार करने पर हम भी उ ह ा त कर. (२) अ याम ते सुम त दे वय यया य र य तव मीढ् वः. सु नाय शो अ माकमा चरा र वीरा जुहवाम ते ह वः.. (३) हे कामवषक ! हम वीरनाशक एवं म त् सहयोगी तु हारी कृपा दे वय के ारा पाव. हमारी जा के सुख क इ छा करते ए तुम उनके समीप आओ. जा को हा नर हत दे खकर हम तु हारे लए ह दगे. (३) वेषं वयं ं य साधं वङ् कक वमवसे न यामहे. आरे अ म ै ं हेळो अ यतु सुम त म यम या वृणीमहे.. (४) हम र ा के न म द त, य साधक, कु टलग त एवं ांतदश को बुलाते ह. अपना द त ोध र कर एवं हम उनक शोभन कृपा ा त कर. (४) दवो वराहम षं कप दनं वेषं पं नमसा न यामहे. ह ते ब े षजा वाया ण शम वम छ दर म यं यंसत्.. (५) हम वराह के समान ढ़ांग, काशशील, जटाधारी, तेजोद त एवं न पणजीव को नम कार ारा बुलाते ह. वे अपने हाथ म वरणीय ओष धयां धारण करते ए हम सुख, कवच एवं गृह दान कर. (५) इदं प े म तामु यते वचः वादोः वाद यो दाय वधनम्. रा वा च नो अमृत मतभोजनं मने तोकाय तनयाय मृळ.. (६) म त के पता को ल य करके हम वा द पदाथ से भी मधुर एवं वृ कारक तु त वचन बोल रहे ह. हे मरणर हत ! हम मानव का भोजन दान करो एवं अपने पु प मेरी तथा मेरे पु क र ा करो. (६) मा नो महा तमुत मा नो अभकं मा न उ तमुत मा न उ तम्. मा नो वधीः पतरं मोत मातरं मा नः या त वो री रषः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ! हम लोग म से वयोवृ , बालक, गभाधान समथ युवक एवं गभ थ शशु क हसा मत करना, हमारी माता अथवा पता क हसा एवं हमारे य शरीर का नाश भी मत करना. (७) मा न तोके तनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अ ेषु री रषः. वीरा मा नो भा मतो वधीह व म तः सद म वा हवामहे.. (८) हे ! हमारे पु , पौ , दास, गाय एवं घोड़ क हसा एवं का वध मत करना. हम सदै व ह व लेकर तु ह बुलाते ह. (८)
ो धत होकर हमारे वीर
उप ते तोमा पशुपा इवाकरं रा वा पतृम तां सु नम मे. भ ा ह ते सुम तमृळय माथा वयमव इ े वृणीमहे.. (९) हे म त् पता! जस कार गोप दन भर चराने के बाद पशु मा लक को लौटा दे ता है, उसी कार म तु हारा तो तु ह लौटा रहा ं. हम सुख दो. तु हारी क याणी बु परम र क एवं सुखका रणी है, इसी कारण हम तुमसे र ा क याचना करते ह. (९) आरे ते गो नमुत पू ष नं य र सु नम मे ते अ तु. मृळा च नो अ ध च ू ह दे वाधा च नः शम य छ बहाः.. (१०) हे वीरनाशक ! गोहनन एवं मनु य हनन का साधन तु हारा आयुध हमसे र रहे. हमारे पास तु हारा दया सुख रहे. हम सुखी करो एवं हमारे त प पात रखने वाले वचन बोलो. तुम धरती और आकाश के वामी बनकर हम सुख दो. (१०) अवोचाम नमो अ मा अव यवः शृणोतु नो हवं ो म वान्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (११) र ा के इ छु क हम लोग यह सू बोलते ह. इस को नम कार हो. म त के साथ हमारी यह पुकार सुन. म , व ण, अ द त, सधु, धरती एवं आकाश हमारी इस ाथना का आदर कर. (११)
सू —११५
दे वता—सूय
च ं दे वानामुदगादनीकं च ु म य व ण या नेः. आ ा ावापृ थवी अ त र ं सूय आ मा जगत थुष .. (१) म , व ण एवं अ न के च ,ु करण के समूह एवं आ यकारी सूय उदय ए ह. उ ह ने धरती, आकाश एवं दोन के म य भाग को तेज से पूण कया है. वे जंगम एवं थावर के व प ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूय दे वीमुषसं रोचमानां मय न योषाम ये त प ात्. य ा नरो दे वय तो युगा न वत वते त भ ाय भ म्.. (२) सूय द यमान उषा का अनुगमन उसी कार करता है, जस कार पु ष नारी के पीछे पीछे चलता है. इसी समय लोग सूय संबंधी य करने क इ छा से काय व तार करते ह. क याण पाने के लए हम सूय क तु त करते ह. (२) भ ा अ ा ह रतः सूय य च ा एत वा अनुमा ासः. नम य तो दव आ पृ म थुः प र ावापृ थवी य त स ः.. (३) सूय के क याणकारक, व च लोग ारा मशः तुत एवं हमारे ारा नम कृत ह रत नाम के घोड़े आकाश के ऊपर उप थत होकर शी ही धरती और आकाश का प र मण कर लेते ह. (३) त सूय य दे व वं त म ह वं म या कत वततं सं जभार. यदे दयु ह रतः सध थादा ा ी वास तनुते सम मै.. (४) यही सूय का ई र व और मह व है क वह संसार के कम समा त होने से पहले ही व म फैली अपनी करण समेट लेते ह. वे जब अपने रथ से ह रत नामक घोड़ को अलग करते ह, तभी रा इस कार अंधकार फैलाती है, जैसे जगत् पर परदा डाल रही हो. (४) त म य व ण या भच े सूय पं कृणुते ो प थे. अन तम य शद य पाजः कृ णम य रतः सं भर त.. (५) सूय धरती और आकाश के बीच अपना सव काशक तेज इस लए फैलाते ह, जससे म और व ण उ ह स मुख दे ख सक. सूय के घोड़े एक ओर अवसानर हत, जगत् काशक बल एवं सरी ओर काले रंग का अंधेरा धारण करते ह. (५) अ ा दे वा उ दता सूय य नरंहसः पपृता नरव ात्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (६) हे सूय करणो! इस सूय दय के समय हम पाप से बचाओ. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी एवं आकाश हमारी इस ाथना को वीकार कर. (६)
सू —११६
दे वता—अ नीकुमार
नास या यां ब ह रव वृ े तोमाँ इय य येव वातः. यावभगाय वमदाय जायां सेनाजुवा यूहतू रथेन.. (१) जस कार कोई यजमान य के न म कुश छे दन करता है अथवा वायु बादल के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जल को े रत करता है, उसी कार म अ नीकुमार क पया त तु त करता .ं उ ह ने कशोर वमद को अपने रथ ारा श ु से पहले ही वयंवर म प ंचाकर प नी ा त कराई थी. उनके रथ को श ु सेना नह पा सक . (१) वीळु प म भराशुहेम भवा दे वानां वा जू त भः शाशदाना. त ासभो नास या सह माजा यम य धने जगाय.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम अपने बलपूवक उछलने वाले एवं शी गामी अ तथा इं ा द दे व क ेरणा से े रत हो. तु हारा वाहन रासभ इं को स करने वाले ब धनशाली सं ाम म हजार बार वजयी आ था. (२) तु ो ह भु युम नोदमेघे र य न क तमूहथुन भरा म वती भर त र ु
ममृवाँ अवाहाः. रपोदका भः.. (३)
हे अ नीकुमारो! जस कार कोई मरता आ धन का याग करता है, उसी कार श ुपी ड़त तु ने अपने पु थु यु को श ु वजय के लए नाव से गमन करने के न म सागर म भेजा. तुमने सागर म डू बते ए भु यु को अंत र म चलने वाली एवं जल वेशर हत अपनी नाव ारा तु के पास प ंचाया था. (३) त ः प रहा त ज नास या भु युमूहथुः पत ै ः. समु य ध व ा य पारे भी रथैः शतप ः षळ ःै .. (४) हे अ नीकुमारो! तुमने भु यु को सौ प हय वाले, छह घोड़ से ख चे जाते ए, तीन दन एवं तीन रात से अ धक चलने वाले तीन शी गामी रथ ारा जलपूण सागर के जलहीन कनारे पर प ंचाया था. (४) अनार भणे तदवीरयेथामना थाने अ भणे समु े . यद ना ऊहथुभु युम तं शता र ां नावमात थवांसम्.. (५) हे अ नीकुमारो! तुमने सागर म डू बते ए भु यु को सौ डांड से चलने वाली नौका म बैठाकर अपने घर प ंचाया था. वह सागर आलंबनर हत, भू दे श से भ , हाथ से पकड़ने यो य शाखा आ द से हीन था, जसम तुमने यह परा म कया. (५) यम ना ददथुः ेतम मघा ाय श द व त. त ां दा ं म ह क त यं भू पै ो वाजी सद म ो अयः.. (६) हे अ नीकुमारो! तुमने अघा पे को न य वजय दलाने वाला ेत अ दया था. तु हारा वह दान महान् एवं शंसनीय है एवं पे का उ म अ सदा हमारा आदरणीय रहेगा. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
युवं नरा तुवते प याय क ीवते अरदतं पुर धम्. कारोतरा छफाद य वृ णः शतं कुंभाँ अ स चतं सुरायाः.. (७) हे नेताओ! तुमने तु त करने वाले अं गरागो ीय क ीवान् को पया त बु द थी. जस कार शराब बनाने वाले कारोतर नामक पा से सुरा का आसवन करते ह, उसी कार तुमने अपने सवन-समथ अ के खुर से सौ घड़े शराब नकाली. (७) हमेना नं स ं मवारयेथां पतुमतीमूजम मा अध ं. ऋबीसे अ म नावनीतमु यथुः सवगणं व त.. (८) हे अ नीकुमारो! तुमने ठं डे जल से उस अ न को बुझाया था, जो असुर ारा उ ह पीड़ा प ंचाने के लए जलाई गई थी. तुमने उ ह अ स हत बल द ीर दया था. अ यं पीड़ागृह म नीचे को मुंह करके लटकाए गए थे, तुमने उ ह उनके सा थय स हत छु ड़ाया. (८) परावतं नास यानुदेथामु चाबु नं च थु ज बारम्. र ापो न पायनाय राये सह ाय तृ यते गोतम य.. (९) हे अ नीकुमारो! तुम गौतम ऋ ष के समीप कुएं को ले गए थे. उसका मूल ऊपर एवं ार नीचे कर दया था. उस म से ह दे ने वाले एवं सहनशील गौतम के पीने के न म जल नकलने लगा था. (९) जुजु षो नास योत व ामु चतं ा प मव यवानात्. ा तरतं ज हत यायुद ा द प तमकृणुतं कनीनाम्.. (१०) हे अ नीकुमारो! तुमने जीण यवन ऋ ष को ा त करने वाले बुढ़ापे को कवच के समान र कर दया था. हे दशनीयो! तुमने पु ारा प र य यवन का जीवन बढ़ाया एवं उ ह क या का प त बनाया. (१०) त ां नरा शं यं रा यं चा भ म ास या व थम्. य ांसा न ध मवापगूळ्हमु शता पथुव दनाय.. (११) हे नेता प अ नीकुमारो! तुमने गु त धन के समान कुएं म छपे वंदन ऋ ष को जानकर वहां से नकाला. तु हारा यह कम चाहने यो य, वरणीय एवं शंसनीय है. (११) त ां नरा सनये दं स उ मा व कृणो म त यतुन वृ म्. द यङ् ह य म वाथवणो वाम य शी णा यद मुवाच.. (१२) हे नेताओ! अथवा के पु द यंग ऋ ष ने तु हारे साम य से अ क ीवा धारण करके मधुर वचन बोले थे. यह तु हारे उ कम को उसी कार कट करता है, जस कार बादल ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का गजन बादल के भीतर जल को बताता है. (१२) अजोहवी ास या करा वां महे याम पु भुजा पुर धः. ुतं त छासु रव व म या हर यह तम नावद म्.. (१३) हे लंबे हाथ वाले अ नीकुमारो! परम बु मती ऋ षप नी व मती ने अपने पूजनीय तो म तुम अ भमत फलदाता को बार-बार बुलाया था. तुमने श य के समान उसक पुकार सुनी एवं उसे हर यह त नाम का पु दया. (१३) आ नो वृक य व तकामभीके युवं नरा नास यामुमु म्. उतो क व पु भुजा युवं ह कृपमाणमकृणुतं वच .े . (१४) हे नेताओ! तुमने वृक और व तका के सं ाम म वृक के मुख से व तका को छु ड़ाया था. तुमने तु तक ा व ान् को दे खने क श द थी. (१४) च र ं ह वे रवा छे द पणमाजा खेल य प रत यायाम्. स ो जङ् घामायस व पलायै धने हते सतवे यध म्.. (१५) हे अ नीकुमारो! जस कार प ी का पंख अलग हो जाता है, उसी कार खेल राजा क प नी व पला का पैर यु म कट गया था. तुमने श ु ारा छपाया आ धन ा त करने के न म चलने के लए व पला के लए रात भर म लोहे का पैर बनाकर दया था. (१५) शतं मेषा वृ ये च दानमृ ा ं तं पता धं चकार. त मा अ ी नास या वच आघतं द ा भषजावनवन्.. (१६) हे अ नीकुमारो! ऋजा ऋ ष ने अपनी वृक के भोजन के लए सौ भेड़ को काट दया था. इससे उनके पता ने उ ह अंधा कर दया था. हे दे व के वै ो! तुमने ऋजा क दे खने म असमथ दोन आंख को दे खने म समथ बना दया था. (१६) आ वां रथं हता सूय य का मवा त दवता जय ती. व े दे वा अ वम य त ः समु या नास या सचेथे.. (१७) हे अ नीकुमारो! जस कार दौड़ने वाले घोड़ म सबसे आगे वाला न त थान पर गड़ी लकड़ी तक पहले प ंचता है, उसी कार अव ध पर शी प ंचने वाले घोड़ के कारण सूयपु ी सूया तु हारे रथ पर बैठ गई. सारे दे व ने सहष यह बात मान ली और तुमने कां त ा त क . (१७) यदयातं दवोदासाय व तभर ाजाया ना हय ता. रेव वाह सचनो रथो वां वृषभ शशुंमार यु ा.. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! दवोदास ने अ ह प म दे कर तु हारी तु त क तो तुम उसके घर गए. उस समय तु हारी सेवा करने वाला रथ अ ले गया था. उस म घोड़े और मगर जुड़े थे. (१८) र य सु ं वप यमायुः सुवीय नास या वह ता. आ ज ाव समनसोप वाजै र ो भागं दधतीमयातम्.. (१९) हे अ नीकुमारो! समान मन वाले तुम दोन शोभन बल, धन, संतान एवं सुंदर श यु अ लेकर ज ऋ ष क जा के पास गए थे. उ ह ने ह अ के साथ दै नक य के तीन भाग तु ह अ पत कए थे. (१९) प र व ं जा षं व तः स सुगे भन मूहथू रजो भः. व भ ना नास या रथेन व पवताँ अजरयू अयातम्.. (२०) हे अ नीकुमारो! जरार हत तुम दोन ने श ु ारा चार ओर से घेरे ए जा ष राजा को अपने सवभेदक लौह- न मत रथ ारा रात म सरल माग से बाहर नकाला एवं ऐसे पवत पर गए, जहां श ु न चढ़ सक. (२०) एक या व तोरावतं रणाय वशम ना सनये सह ा. नरहतं छु ना इ व ता पृथु वसो वृषणावरातीः.. (२१) हे अ नीकुमारो! तुमने वश ऋ ष क इस लए र ा क थी क वे एक दन म हजार धन ा त कर सक. हे कामवषको! तुमने इं के साथ मलकर पृथु वा को क दे ने वाले श ु को मारा था. (२१) शर य चदाच क यावतादा नीचा चा च थुः पातवे वाः. शयवे च ास या शची भजसुरये तय प यथुगाम्.. (२२) हे अ नीकुमारो! तुमने कुएं के नीचे से जल को इस लए ऊपर उठाया था, जससे क तु हारा तोता, ऋच क पु शर जल पी सके. थके ए शंयु क सवर हत गाय को तुमने अपने कम ारा धपूण बनाया था. (२२) अव यते तुवते कृ णयाय ऋजूयते नास या शची भः. पशुं न न मव दशनाय व णा वं ददथु व काय.. (२३) हे अ नीकुमारो! कृ ण के पु सीधे-सादे व काय ऋ ष ने अपनी र ा क इ छा से तु हारी ाथना क . जस कार कोई खोया आ पशु उसके वामी को दखा दे , उसी कार तुमने उसके खोए ए पु व णायु को दखा दया था. (२३) दश रा ीर शवेना नव ूनवन ं
थतम व१ तः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ुतं रेभमुद न वृ मु
यथुः सोम मव ुवेण.. (२४)
असुर श ु ने रेभ ऋ ष को पीटा और ःखद र सय से बांधकर कुएं म डाल दया. थत एवं जल से भीगे रेभ दस रात और नौ दन तक वह पड़े रहे. जस कार अ वयु ुच क सहायता से सोमरस नकालता है, उसी कार तुमने उ ह कुएं से नकाला. (२४) वां दं सां य नाववोचम य प तः यां सुगवः सुवीरः. उत प य ुव द घमायुर त मवे ज रमाणं जग याम्.. (२५) हे अ नीकुमारो! मने तु हारे पुराकृत कम का वणन कया है. म सुंदर गाय एवं वीर का वामी होने के साथ-साथ रा का वामी बनूं. जस कार घर का मा लक घर म बना बाधा के घुसता है, उसी कार म भी आंख से दे खता आ द घ आयु भोग कर बुढ़ापे म वेश क ं . (२५)
सू —११७
दे वता—अ नीकुमार
म वः सोम या ना मदाय नो होता ववासते वाम्. ब ह मती रा त व ता गी रषा यातं नास योप वाजैः.. (१) हे अ नीकुमारो! तु हारा पुराना होता तु हारी स ता के लए मधुर सोमरस से तु हारी सेवा करता है. ऋ वज ारा तु त के साथ ही कुश पर ह रखा गया है. हमारे लए दे वबल और अ के साथ हमारे यहां आओ. (१) यो वाम ना मनसो जवीया थः व ो वश आ जगा त. येन ग छथः सुकृतो रोणं तेन नरा व तर म यं यातम्.. (२) हे अ नीकुमारो! मन से भी अ धक ती गामी एवं सुंदर घोड़ वाला तु हारा जो रथ जा क ओर जाता है तथा जससे तुम सुंदर य करने वाले लोग के घर जाते हो, हे नेताओ! तुम उसी रथ ारा हमारे समीप आओ. (२) ऋ ष नरावंहसः पा चज यमृबीसाद मु चथो गणेन. मन ता द योर शव य माया अनुपूव वृ णा चोदय ता.. (३) हे नेता एवं कामवषक अ नीकुमारो! तुमने पांच जन ारा पू जत अ को शत ार यं गृह क पाप प तुषानल से पु -पौ स हत छु ड़ाया था. इसके लए तुमने श ु क हसा एवं द यु क ःखदा यनी माया का मशः वनाश कया. (३) अ ं न गूळ्हम ना रेवैऋ ष नरा वृषणा रेभम सु. सं तं रणीथो व ुतं दं सो भन वां जूय त पू ा कृता न.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे नेता एवं कामवषक अ नीकुमारो! तुमने दात द यु ारा कुएं के जल म डु बाए गए रेभ ऋ ष को बाहर नकालकर उनका वकलांग शरीर घोड़े के समान अपनी दवा से ठ क कया था. तु हारे पूवकृत काय अभी पुराने नह ए ह. (४) सुषु वांसं न नऋते प थे सूय न द ा तम स य तम्. शुभे मं न दशतं नखातमु पथुर ना व दनाय.. (५) हे दशनीयो! तुमने धरती के ऊपर सोए ए मनु य के समान पड़े ए, कुएं म पड़ने वाले सूय बब के समान तेज वी एवं शोभन वण न मत अलंकार के समान दशनीय कूपप तत वंदन ऋ ष को बाहर नकाला था. (५) त ां नरा शं यं प येण क ीवता नास या प र मन्. शफाद य वा जनो जनाय शतं कु भाँ अ स चतं मधूनाम्.. (६) हे नेता प नास यो! अभी ा त के कारण कहे जाने वाले अनु ान के समान ही म अं गरावंशी क ीवान् तु हारे य क त ा करता ं. तुमने वेगवान् घोड़ के खुर से नकले ए मधु से अपे त लोग के लए सैकड़ घड़े भर दए थे. (६) युवं नरा तुवते कृ णयाय व णा वं ददथु व काय. घोषायै च पतृषदे रोणे प त जूय या अ नावद म्.. (७) हे नेताओ! कृ ण के पु व काय ने तुम लोग क तु त क तो तुमने उसके खोए ए पु व णायु को लाकर दे दया. हे अ नीकुमारो! कु रोग के कारण प त को ा त न करके अपने पता के घर बैठ ई एवं वृ ाव था को ा त घोषा को तुमने प त दान कया. (७) युवं यावाय शतीमद ं महः ोण या ना क वाय. वा यं तद्वृषणा कृतं वां य ाषदाय वो अ यध म्.. (८) हे अ नीकुमारो! तुमने कोढ़ याव ऋ ष को उ वल वचा वाली ी दान क एवं र हत होने के कारण चलने म अश क व को तेजपूण ने दए. हे कामवषको! तुमने नृषद के बहरे पु को कान दान कए. तु हारे ये काय शंसा के यो य ह. (८) पु वपा या ना दधाना न पेदव ऊहथुराशुम म्. सह सां वा जनम तीतम हहनं व यं१ त म्.. (९) हे ब पधारी अ नीकुमारो! तुमने पे ऋ ष को शी गामी सह सं या वाले धन का दाता, बलवान्, श ु ारा जीतने म अश य, श ुहंता, तु तपा एवं र क अ दया था. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एता न वां व या सुदानू ाङ् गूषं सदनं रोद योः. य ां प ासो अ ना हव ते यात मषा च व षे च वाजम्.. (१०) हे शोभनदानशील अ नीकुमारो! तु हारे वीर-काय सबके जानने यो य ह. धरती और आकाश के प म वतमान तुम दोन क तु त स तादायक एवं घोषणा करने यो य है. अं गरागो ीय यजमान तु ह जब-जब बुलाव, तब-तब दे ने यो य अ लेकर आओ एवं तु हारी तु त जानने वाले मुझको बल दान करो. (१०) सूनोमानेना ना गृणाना वाजं व ाय भुरणा रद ता. अग ये णा वावृधाना सं व पलां नास या रणीतम्.. (११) हे पोषणक ा एवं स य वभाव वाले अ नीकुमारो! तुमने कुंभ से उ प ऋ ष क तु तय का वषय बनकर मेधावी भर ाज ऋ ष को अ दया एवं मं पाकर तुमने व पला क जंघा को तोड़ा. (११)
अग य से वृ
कुह या ता सु ु त का य दवो नपाता वृषणा शयु ा. हर य येव कलशं नखातमु पथुदशमे अ नाहन्.. (१२) हे सूयपु एवं कामवषक अ नीकुमारो! तुम कस नवास थान म वतमान का क शोभन तु त सुनने जाते हो? जस कार सोने से भरे एवं धरती म गड़े कलश को कोई जानकार ही नकालता है, उसी कार तुमने कुएं म पड़े रेभ ऋ ष को दसव दन बाहर नकाला था. (१२) युवं यवानम ना जर तं पुनयुवानं च थुः शची भः. युवो रथं हता सूय य सह या नास यावृणीत.. (१३) हे अ नीकुमारो! तुमने अपने ओष ध दान के काय ारा वृ यवन ऋ ष को युवा बनाया. हे स य वभावो! सूय क पु ी संप के साथ तु हारे रथ पर चढ़ थी. (१३) युवं तु ाय पू भरेवैः पुनम यावभवतं युवाना. युवं भु युमणसो नः समु ा भ हथुऋ े भर ैः.. (१४) हे ःख नवारको! तुम जस कार ाचीन समय म तु के तु तपा थे, उसी कार बाद म भी तु तपा रहे. तुम सेना के साथ डू बे ए भु यु को अ धक जलयु सागर म गमनशील नौका एवं शी ग त वाले अ ारा ले आए थे. (१४) अजोहवीद ना तौ यो वां ोळ् हः समु म थजग वान्. न मूहथुः सुयुजा रथेन मनोजवसा वृषणा व त.. (१५) हे अ नीकुमारो! तु
ारा समु
म भेजे गए एवं जल म डू बे
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ए भु यु ने
सरलतापूवक सागर के पार जाकर तु हारी तु त क थी. हे मनोवेगयु ो एवं कामवषको! तुम शोभन अ वाले रथ ारा ेमपूवक भु यु को लाए थे. (१५) अजोहवीद ना व तका वामा नो य सीममु चतं वृक य. व जयुषा ययथुः सा व े जातं व वाचो अहतं वषेण.. (१६) हे अ नीकुमारो! व तका ने उस समय तुम दोन का आ ान कया था, जस समय तुमने वृक के मुख से उसे बचाया था. तुम अपने जयशील रथ ारा जा ष को लेकर पवत क चो टय पर चले गए थे एवं व वाच रा स के पु को तुमने वष से मारा था. (१६) शतं मेषा वृ ये मामहानं तमः णीतम शवेन प ा. आ ी ऋ ा े अ नावध ं यो तर धाय च थु वच े.. (१७) हे अ नीकुमारो! वृक के न म सौ मेष को सम पत करने वाले एवं ःखदायी पता ारा अंधे बनाए गए ऋजा को तुमने ने दए एवं उस अंधे को संसार दे खने यो य बनाया. (१७) शुनम धाय भरम य सा वृक र ना वृषणा नरे त. जारः कनीन इव च दान ऋ ा ः शतमेकं च मेषान्.. (१८) हे नेताओ एवं कामवष अ नीकुमारो! हीन को पोषण का कारणभूत सुख दे ने क इ छा से वृक ने तु ह बुलाया था, य क ऋजा ने उसी कार एक सौ एक मेष के टु कड़े करके मुझे दए ह, जस कार यौवन ा त कामुक कसी पर ी को ब त सा धन दे ता है. (१८) मही वामू तर ना मयोभू त ामं ध या सं रणीथः. अथा युवा मद य पुर धराग छतं स वृषणाववो भः.. (१९) हे अ नीकुमारो! तु हारा महान् र ाकाय सुख का कारण है. हे तु तपा ो! तुमने ा धत पु ष को व थ शरीर वाला बनाया था. ब बु संप ा घोषा ने रोग नाश के न म तु ह को बुलाया था. हे कामवषको! अपने र णकाय स हत यहां आओ. (१९) अधेनुं द ा तय१ वष ाम प वतं शयवे अ ना गाम्. युवं शची भ वमदाय जायां यूहथुः पु म य योषाम्.. (२०) हे दशनीयो! तुमने वशेष प से कृश अंग वाली, नवृ सवा एवं धहीना गाय को शंयु के न म धा बनाया था. तुमने अपने कम ारा पु म क क या को वमद ऋ ष क प नी बनाया था. (२०) यवं वृकेणा ना वप तेषं ह ता मनुषाय द ा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भ द युं बकुरेणा धम तो
यो त
थुरायाय.. (२१)
हे दशनीय अ नीकुमारो! तुमने व ान् मनु के लए हल बोए, अ क हेतुभूत वषा क एवं भासमान व ारा द यु माहा य व तृत कया. (२१)
ारा जुते ए खेत म जौ का नाश करके अपना
आथवणाया ना दधीचेऽ ं शरः यैरयतम्. स वां मधु वोच ताय वा ं य ाव पक यं वाम्.. (२२) हे अ नीकुमारो! तुमने अथवा के पु दधी च के धड़ पर घोड़े का सर लगाया था. उसने पूवकृत त ा को स य बनाते ए व ा से ा त मधु व ा तु ह बताई थी. हे दशनीयो! वही तुम लोग से संबं धत व य नामक व ा बनी. (२२) सदा कवी सुम तमा चके वां व ा धयो अ ना ावतं मे. अ मे र य नास या बृह तमप यसाचं ु यं रराथाम्.. (२३) हे ांतदश अ नीकुमारो! म तु हारी क याणका रणी अनु ह बु क सदा ाथना करता ं. तुम मेरे सभी कम क र ा करो. हे दशनीयो! हम महान्, संतानयु एवं शंसनीय धन दो. (२३) हर यह तम ना रराणा पु ं नरा व म या अद म. धा ह यावम ना वक तमु जीवस ऐरयतं सुदानू… (२४) (२४)
हे दाता एवं नेता अ नीकुमारो! तुमने तीन भाग म व छ
याव को जीवन दया है.
एता न वाम ना वीया ण पू ा यायवोऽवोचन्. कृ व तो वृषणा युव यां सुवीरासो वदथमा वदे म.. (२५) हे अ नीकुमारो! मेरे ारा कहे गए तु हारे इन वीर-कम को ाचीन लोग ने कहा है. हे कामवषको! तु हारी तु त करते ए हम शोभन वीर से यु होकर य के अ भमुख ह . (२५)
सू —११८
दे वता—अ नीकुमार
आ वां रथो अ ना येनप वा सुमृळ कः ववाँ या ववाङ् . यो म य य मनसो जवीया व धुरो वृषणा वातरंहाः.. (१) हे अ नीकुमारो! तु हारा घोड़ से चलने वाला सुखयु एवं धनयु रथ हमारे सामने आए. हे कामवषको! वह मानव मन के समान वेगवान् बंधुर एवं वायु के समान ती गामी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. (१) व धुरेण वृता रथेन च े ण सुवृता यातमवाक्. प वतं गा ज वतमवतो नो वधयतम ना वीरम मे.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम अपने बंधुर, तीन प हय वाले, तीन लोक म चलने वाले एवं शोभन ग त वाले रथ ारा हमारे समीप आओ. हमारी गाय को धा , हमारे घोड़ को स एवं हमारे पु ा द को वृ यु करो. (२) व ामना सुवृता रथेन द ा वमं शृणुतं ोकम े ः. कम वां यव त ग म ा व ासो अ ना पुराजाः.. (३) हे दशनीय अ नीकुमारो! अपने शी गामी एवं शोभन आकृ त वाले रथ ारा आकर आदर करने वाले तोता क वाणी सुनो. या भूतकाल म उ प मेधा वय ने तु ह तोता क द र ता मटाने के लए जाने वाला नह कहा था. (३) आ वां येनासो अ ना वह तु रथे यु ास आशवः पत ाः. ये अ तुरो द ासो न गृ ा अ भ यो नास या वह त.. (४) हे अ नीकुमारो! रथ म जुड़े ए सव ग तशील, उछलने म समथ एवं शंसनीय गमन वाले घोड़े तु ह लाव. हे स य व पो! जल के समान अथवा आकाशचारी गृ प ी के समान शी ग त वाले घोड़े तु ह ह अ के सामने लाते ह. (४) आ वां रथं युव त त द जु ् वी नरा हता सूय य. प र वाम ा वपुषः पत ा वयो वह व षा अभीके.. (५) हे नेताओ! सूय क युवती क या स होकर तु हारे रथ पर चढ़ थी. तु हारे सुंदर, उछलने म समथ, ग तशील एवं तेज वी घोड़े तु ह तु हारे घर के पास ले जाव. (५) उ दनमैरतं दं सना भ े भं द ा वृषणा शची भः. न ौ यं पारयथः समु ा पुन यवानं च थुयुवानम्.. (६) हे दशनीय एवं कामवषको! तुमने वंदन ऋ ष को कुएं से नकाला था. तु के पु भु यु को सागर से पार कया तथा यवन ऋ ष को दोबारा युवक बनाया. (६) युवम येऽवनीताय त तमूजमोमानम नावध म्. युवं क वाया प र ताय च ुः यध ं सु ु त जुजुषाणा.. (७) हे अ नीकुमारो! तुमने शत ार पीड़ागृह म बंद अ को बचाने के लए अ न को बुझाया एवं उ ह सुखकारी अ दया. तुमने शोभन तु त वीकार करके अंधेरे म पड़े क व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ ष को ने
दए. (७)
युवं धेनुं शयवे ना धताया प वतम ना पू ाय. अमु चतं व तकामंहसो नः त जङ् घां व पलाया अध म्.. (८) हे अ नीकुमारो! तुमने अपने ाचीन याचक शंयु ऋ ष के लए गाय को धा था. तुमने व तका को पाप से बचाया एवं व पला को सरी जंघा लगाई थी. (८)
कया
युवं ेतं पेदव इ जूतम हहनम नाद म म्. जो मय अ भभू तमु ं सह सां वृषणं वीड् व म्.. (९) हे अ नीकुमारो! तुमने राजा पे को ेत-वण, इं द , श ुहंता एवं सं ाम म श ु को ललकारने वाला, श ुपराभवकारी, उ , हजार धन दे ने वाला, सेचन समथ एवं ढ़ांग घोड़ा दया था. (९) ता वां नरा ववसे सुजाता हवामहे अ ना नाधमानाः. आ न उप वसुमता रथेन गरो जुषाणा सु वताय यातम्.. (१०) हे नेता एवं शोभनज म वाले अ नीकुमारो! धन क याचना करते ए हम तु ह र ा के लए बुलाते ह. तुम हमारी तु तय को वीकार करके हम सुख दे ने के लए अपने धनयु रथ ारा हमारे सामने आओ. (१०) आ येन य जवसा नूतनेना मे यातं नास या सजोषाः. हवे ह वाम ना रातह ः श माया उषसो ु ौ.. (११) हे स य व प अ नीकुमारो! तुम समान ीतयु एवं शंसनीय ग त वाले घोड़े के नए वेग से यु होकर हमारे समीप आओ. हम तु ह दे ने यो य ह व लेकर न य उषा के उदय काल म बुलाते ह. (११)
सू —११९
दे वता—अ नीकुमार
आ वां रथं पु मायं मनोजुवं जीरा ं य यं जीवसे वे. सह केतुं व ननं शत सुं ु ीवानं व रवोधाम भ यः.. (१) हे अ नीकुमारो! म जीवन एवं अ ा त के लए तु हारे आ यपूण, मन के समान शी चलने वाले, वेगशील अ से यु , य म बुलाने यो य हजार झंड वाले, उदकपूण, सौ धन स हत, शी गामी एवं धन दे ने वाले रथ का आ ान करता ं. (१) ऊ वा धी तः य य याम यधा य श म समय त आ दशः. वदा म घम त य यूतय आ वामूजानी रथम ना हत्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उस रथ के चलते ही अ नीकुमार क तु त म हमारी बु ऊ वमुखी हो जाती है. हमारी तु तयां उनके पास प ंचती ह. हम ह को वादपूण बनाते ह. र क आते ह. हे अ नीकुमारो! ऊजानी नाम क सूयपु ी तु हारे रथ पर चढ़ थी. (२) सं य मथः प पृधानासो अ तम शुभे मखा अ मता जायवो रणे. युवोरह वणे चे कते रथो यद ना वहथः सू रमा वरम्.. (३) हे अ नीकुमारो! य करने वाले अग णत जयशील मनु य सं ाम म शोभन धन ा त के लए पधा करते ए जब मलते ह, तभी उ म धरती पर तु हारा रथ दखाई दे ता है. तुम उसी रथ पर तोता के लए धन लाते हो. (३) युवं भु युं भुरमाणं व भगतं वयु भ नवह ता पतृ य आ. या स ं व तवृषणा वजे यं१ दवोदासाय म ह चे त वामवः.. (४) हे कामवषको! तुमने घोड़ ारा लाए ए एवं सागर म डू बे ए भु यु को अपने वयं यु घोड़ ारा लाकर उनके पता के समीप, र थ घर म प ंचा दया था. तुमने दवोदास क जो महती र ा क थी, उसे हम जानते ह. (४) युवोर ना वपुषे युवायुजं रथं वाणी येमतुर य श यम्. आ वां प त वं स याय ज मुषी योषावृणीत जे या युवां पती.. (५) हे अ नीकुमारो! तु हारे शंसनीय अ तु हारे जुड़े ए रथ को दौड़ क सीमा, सूय तक सबसे पहले ले गए थे. जीती ई कुमारी ने म ता के लए आकर कहा था क म तु हारी प नी ं और तु ह अपना प त बना लया. (५) युवं रेभं प रषूते यथो हमेन घम प रत तम ये. युवं शयोरवसं प यथुग व द घण व दन तायायुषा.. (६) तुमने रथ को चार ओर के उप व से बचाया, अ ऋ ष को जलाने के लए असुर ारा लगाई ई आग शीतल जल से बुझाई, शंयु क गाय को धा बनाया एवं वंदन ऋ ष को द घ आयु द . (६) युवं व दनं नऋतं जर यया रथं न द ा करणा स म वथः. े ादा व ं जनथो वप यया वाम वधते दं सना भुवत्.. (७) हे कुशल अ नीकुमारो! जैसे श पी पुराने रथ को नया कर दे ता है, उसी कार तुमने बुढ़ापे से त वंदन ऋ ष को बारा युवा बना दया था. गभ थ कामदे व क तु त से स होकर तुमने उस मेधावी को माता के उदर से बाहर नकाला. तु हारा वही र ाकम सेवा करने वाले यजमान को ा त हो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अग छतं कृपमाणं पराव त पतुः व य यजसा नबा धतम्. ववती रत ऊतीयुवोरह च ा अभीके अभव भ यः.. (८) तुम र दे श म अपने पता ारा य होकर ःख उठाते एवं ाथना करते ए भु यु के पास गए. तु हारी शोभन ग त एवं व च र ा को सब लोग समीप पाना चाहते ह. (८) उत या वां मधुम म कारप मदे . सोम यौ शजो व य त. युवं दधीचो मन आ ववासथोऽथा शरः त वाम ं वदत्.. (९) मधुभ का ने तु हारी मधुयु तु त क . म उ शज का पु क ीवान् तु ह सोमरसपान से आनं दत होने के लए बुलाता ं. तुमने दधी च का मन सेवा से स कया था. उसके अ शर ने तु ह मधु व ा का उपदे श कया. (९) युवं पेदवे पु वारम ना पृधां ेतं त तारं व यथः. शयर भ ुं पृतनासु रं चकृ य म मव चषणीसहम्.. (१०) हे अ नीकुमारो! तुमने पे को अनेक जन ारा वां छत यु म श ु को जीतने वाला, द तसंप , सम त काम म बार-बार लगाने यो य एवं इं के समान श ुपराभवकारी सफेद घोड़ा दया था. (१०)
सू —१२०
दे वता—अ नीकुमार
का राध ो ा ना वां को वां जोष उभयोः. कथा वधा य चेताः.. (१) हे अ नीकुमारो! कौन सी तु त तु ह स बना सकती है? तु ह स करने म कौन सा होता समथ है? तु हारे मह व को न जानने वाला तु हारी सेवा कैसे कर सकता है. (१) व ांसा वद् रः पृ छे द व ा न थापरो अचेताः. नू च ु मत अ ौ.. (२) अ तोता इसी कार तुम सव क सेवा पी माग को जानना चाहता है. उनके अ त र सब ानहीन ह. श ु ारा आ मणर हत वे शी ही तोता पर अनु ह करते ह. (२) ता व ांसा हवामहे वां ता नो व ांसा म म वोचेतम . ाच यमानो युवाकुः.. (३) तुम सव को हम बुलाते ह. हे अ भ ो! तुम आज हम ात तो बताओ. तु हारी कामना करता आ म तुमको ह दे कर भली-भां त तु त करता ं. (३) व पृ छा म पा या३ न दे वा वषट् कृत यादभुत य द ा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पातं च स सो युवं च र यसो नः.. (४) हे दशनीयो! म तु ह से पूछना चाहता ,ं अ य प व-बु दे व से नह . तुम वषट् कार के साथ अ न म डाले गए सोमरस को पओ एवं ौढ़ बनाओ. (४) या घोषे भृगवाणे न शोभे यया वाचा यज त प ैषयुन व ान्.. (५) प
यो वाम्.
घोषापु सुह य एवं ऋ ष जस तु त से सुशो भत ए थे, अ क इ छा करता आ वंशी म क ीवान् उसी तु त से तु हारी शंसा करके सफल बनूं. (५) ु ं गाय ं तकवान याहं च त आ ी शुभ प त दन्.. (६)
ररेभा ना वाम्.
हे अ नीकुमारो! अटक-अटक कर चलते ए अंधे ऋ ष ऋजा क शोभन पालको! उसने भी मेरे ही समान तु त करके आंख पाई थ . (६)
तु त सुनो. हे
युवं ा तं महो र युवं वा य रततंसतम्. ता नो वसू सुगोपा यातं पातं नो वृकादघायोः.. (७) हे गृहदाताओ! महान् धन के दाता एवं नाशक तुम हमारे र क बनो एवं हम पापी वृक से बचाओ. (७) मा क मै धातम य म णो नो माकु ा नो गृहे यो धेनवो गुः. तनाभुजो अ श ीः.. (८) हम कसी श ु के सामने उप थत मत करो. हमारे घर क बछड़ कर कसी अग य थान म न जाएं. (८)
धा
गाएं बछड़ से
हीय म धतये युवाकु राये च नो ममीतं वाजव यै. इषे च नो ममीतं धेनुम यै.. (९) तु हारी कामना से तु त करने वाला बंधु बलयु एवं गाय स हत अ दो. (९)
का पोषण करने के लए धन पाता है. हम
अ नोरसनं रथमन ं वा जनीवतोः. तेनाहं भू र चाकन.. (१०) मने अ दाता अ नीकुमार का अ र हत रथ पाया है. म उससे वपुल धन क कामना करता ं. (१०) अयं समह मा तनू ाते जनाँ अनु. सोमपेयं सुखो रथः.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धन स हत रथ! मेरा वंश व तार करो. अ नीकुमार उस सुखकारी रथ को तोता के सोमपान वाले थान पर ले जाते ह. (११) अध व य न वदे ऽभु
त रेवतः. उभा ता ब
न यतः.. (१२)
म ातःकाल के व एवं सर को र ा न करने वाले धनी से घृणा करता ं. ये दोन शी न हो जाते ह. (१२)
सू —१२१
दे वता—इं
क द था नॄँ: पा ं दे वयतां वद् गरो अ रसां तुर यन्. यदानड् वश आ ह य यो ं सते अ वरे यज ः.. (१) तोता के पालक एवं गो प धन के दे ने वाले इं अपने भ अं गरा क तु त कब सुनगे? वे जब गृह वामी यजमान के ऋ वज को सामने दे खते ह, तभी य पा बनकर य म वयं आ जाते ह. (१) त भी ां स ध णं ष ु ाय भुवाजाय वणं नरो गोः. अनु वजां म हष त ां मेनाम य प र मातरं गोः.. (२) उसने आकाश को धारण कया, असुर ारा चुराई गई गाय को नकाला एवं परम भासमान होकर ा णय ारा से वत एवं अ का कारण वषाजल बखेरा. वह महान् अपनी पु ी उषा के प ात् उदय होता है. उसने घोड़ी को गाय क माता बनाया. (२) न त
वम णीः पू राट् तुरो वशाम रसामनु ून्. ं नयुतं त त भद् ां चतु पदे नयाय पादे .. (३)
अ ण वण क उषा को रं जत करने वाले वे पूववत ऋ षय ारा न मत तो सुन. वे अं गरागो ीय ऋ षय को त दन धनदाता, व को तीखा करने वाले एवं मानव के हताथ पाद एवं चतु पाद क र ा करते तथा आकाश को धारण करते ह. (३) अ य मदे वय दा ऋतायापीवृतमु याणामनीकम्. य सग ककु नवतदप हो मानुष य रो वः.. (४) तुमने सोमपान से स होकर प णय ारा चुराई ई गाय का य के लए शंसनीय दान दया था. तीन लोक म उ म इं जब यु म संल न थे, तब वे मानव ोही असुर का ार गाय के नकलने के लए खोल दे ते थे. (४) तु यं पयो य पतरावनीतां राधः सुरेत तुरणे भुर यू. शु च य े रे ण आयज त सब घायाः पय उ यायाः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे कारी इं ! तु हारे लए जगत् के माता- पता, धरती और आकाश ने बलवधक, वीयसंप एवं धनयु धा गाय का ध जस समय अ न म अ पत कया, तभी तुमने प णय का ार खोल दया था. (५) अध ज े तर णमम ु रो य या उषसो न सूरः. इ य भरा वे ह ैः ुवेण स च रणा भ धाम.. (६) उषा के समीपवत सूय के समान चमकते ए श ु वजयी इं इस समय कट ए ह. वे हम स बनाव. हम भी तु तपा सोमरस को ुच से य थल म छड़कते ए पीते ह. (६) व मा य न ध तरप या सूरो अ वरे प र रोधना गोः. य भा स कृ ाँ अनु ूनन वशे प षे तुराय.. (७) काशयु मेघमाला जस समय अपना कम करने को त पर होती है, उस समय रे क इं य के न म वषा का आवरण र करते ह. हे इं ! तुम जब काय यो य दवस को का शत करते हो, तब गाड़ी वाले एवं चरवाहे अपने काम म शी सफल होते ह. (७) अ ा महो दव आदो हरी इह ु नासाहम भ योधान उ सम्. ह र य े म दनं वृधे गोरभसम भवाता यम्.. (८) जब ऋ वज् तु हारी बु के लए मनोहर, मादक, बलकारी, एवं उपभोग यो य सोमरस को प थर क सहायता से नचोड़, तब तुम अपने हषदाता एवं सोमरस का भोग करने वाले दोन घोड़ को इस य म सोम पलाओ एवं हमारे धन का अपहरण करने वाले श ु को हराओ. (८) वमायसं त वतयो गो दवो अ मानमुपनीतमृ वा. कु साय य पु त व व छु णमन तैः प रया स वधैः.. (९) हे इं ! तुमने आकाश से ऋभु ारा लाए गए, श ु के त शी जाने वाले लौहमय व को गमनशील शु ण असुर क ओर फका था. हे पु त! उस समय तुमने कु स ऋ ष के क याण के लए शु ण को अनेक वध हनन साधन से हसा करते ए छे ड़ा था. (९) पुरा य सूर तमसो अपीते तम वः फ लगं हे तम य. शु ण य च प र हतं यदोजो दव प र सु थतं तदादः.. (१०) हे व धारक! ाचीन काल म जब सूय अंधकार के साथ ए सं ाम से नवृ ए, उस समय तुमने मेघ का वनाश कया. सूय को आ छा दत करने एवं सूय म संल न होने वाले शु ण के बल को तुमने समा त कर दया था. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अनु वा मही पाजसी अच े ावा ामा मदता म कमन्. वं वृ माशयानं सरासु महो व ेण स वपो वरा म्.. (११) हे इं ! वशाल श संप एवं सव ापक धरती और आकाश ने तु ह वृ वध के प ात् स कया था. इसके बाद तुमने सव वतमान एवं शोभन आहार वाले वृ असुर को महान् व से मारकर पानी म गरा दया. (११) व म नय याँ अवो नॄ त ा वात य सुयुजो व ह ान्. यं ते का उशना म दनं दाद्वृ हणं पाय तत व म्.. (१२) हे मानव हतकारी इं ! तुम जन अ क र ा करते हो, उन वायु तु य शी गामी एवं शोभन रथ म जुते ए अ पर आरोहण करो. क वपु उशना ारा द मदकारक व को तुमने वृ घातक एवं श ु अ त मणकारी के प म तेज कया है. (१२) वं सूरो ह रतो रामयो नॄ भर च मेतशो नाय म . ा य पारं नव त ना ानाम प कतमवतयोऽय यून्.. (१३) हे इं ! सूय प म अपने ह र नामक घोड़ को रोको. एतश नाम का घोड़ा तु हारे रथ का प हया आगे चलाता है. तुम नाव ारा पार होने यो य न बे न दय के पार जाकर य वहीन असुर के पास प ंचो एवं उ ह क म लगाओ. (१३) वं नो अ या इ हणायाः पा ह व वो रतादभीके. नो वाजा यो३ अ बु या नषे य ध वसे सूनृतायै.. (१४) हे व धारणक ा! इस श शाली द र ता से हमारी र ा करो, समीपवत सं ाम म हम पाप से बचाओ तथा क त एवं स यभाषण के न म रथ एवं अ यु धन दान करो. (१४) मा सा ते अ म सुम त व दस ाज महः स मषो वर त. आ नो भज मघव गो वय मं ह ा ते सधमादः याम.. (१५) हे संप य के कारण पूजनीय इं ! तु हारी अनु ह बु हमसे अलग न हो. हे मघवन्! तुम धन के वामी हो, हम गाय ा त कराओ. तु हारी वशाल तु तय से वृ ा त करने वाले पु -पौ ा द के साथ आनं दत ह . (१५)
सू —१२२
दे वता— व ेदेव
वः पा तं रघुम यवोऽ धो य ं ाय मीळ षे भर वम्. दवो अ तो यसुर य वीरै रषु येव म तो रोद योः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ोधहीन ऋ वजो! तुम कम का फल दे ने वाले को पालक एवं य साधन अ अ धक मा ा म दो. म वग के दे व तथा उनके अनुचर एवं आकाश और धरती के बीच नवास करने वाले म द्गण क तु त करता ं. अपने वीर अथात् म त क सहायता से श ु को उसी कार भगा दे ते ह, जैसे तूणीर म रहने वाले बाण ारा श ु को भगाया जाता है. (१) प नीव पूव त वावृध या उषासान ा पु धा वदाने. तरीना कं ुतं वसाना सूय य या सु शी हर यैः.. (२) जस कार प नी प त क पहली पुकार सुनकर शी दौड़ती आती है, उसी कार दवस एवं रा नामक दे वता अनेक कार क तु तय से ायमान होकर हमारे पहले आ ान पर शी आव. उषादे वी श ुनाशक सूय के समान सुनहरी करण से यु होकर एवं महान् प धारण करके आव. उषा सूय क शोभा को धारण करे. (२) मम ु नः प र मा वसहा मम ु वातो अपां वृष वान्. शशीत म ापवता युवं न त ो व े व रव य तु दे वाः.. (३) नवास के यो य एवं सव ग तशील सूय हम स कर. जल बरसाने वाला वायु हम मु दत करे. इं एवं मेघ हमारी वृ कर. इस कार व ेदेव हम पया त अ दान कर. (३) उत या मे यशसा ेतनायै ता पा तौ शजो व यै. वो नपातमपां कृणु वं मातरा रा पन यायोः.. (४) हे ऋ वजो! उ षज के पु मुझ क ीवान् के क याण के लए य ीय अ के भ क, सोमपानक ा एवं तु त के यो य अ नीकुमार को व काशक उषाकाल म बुलाओ. तुम जल के नाती अ न क तु त करो. मुझ जैसे य क मातृतु य अहोरा दे वता क भी तु त करो. (४) आ वो व युमौ शजो व यै घोषेव शंसमजुन य नंशे. वः पू णे दावन आँ अ छा वोचेय वसुता तम नेः.. (५) हे दे वगण! उ षज का पु म क ीवान् आपको बुलाने के लए आपके अनुकूल तो का पाठ करता ं. हे अ नीकुमारो! जस कार वा दनी म हला घोषा ने अपने ेत कु रोग के वनाश के लए तु हारी तु त क थी, उसी कार म भी तु हारी तु त करता ं. म फल दे ने वाले पूषा एवं धन दे ने वाले अ न क तु त करता ं. (५) ुतं मे म ाव णा हवेमोत ुतं सदने व तः सीम्. ोतु नः ोतुरा तः सु ोतुः सु े ा स धुर ः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म और व ण! मेरे आ ान के साथ-साथ य मंडप म वतमान अ य लोग का भी आ ान सुनो. हमारे आ ान को भली कार सुनने वाले जलदे वता सधु हमारे फसल वाले खेत को जल से स चते ए हमारी तु त सुन. (६) तुषे सा वां व ण म रा तगवां शता पृ यामेषु प े. ुतरथे यरथे दधानाः स ः पु न धानासो अ मन्.. (७) हे म और व ण! म अ का नयमन करने वाले तो ारा तु हारी तु त करता ं. इस लए मुझ क ीवान् को तुम अन गनत गाएं दो. तुम लोग स एवं सुंदर रथ पर बैठकर एवं मुझ क ीवान् के त स होकर आओ एवं मेरी पु को थायी करो. (७) अ य तुषे म हमघ य राधः सचा सनेम न षः सुवीराः. जनो यः प े यो वा जनीवान ावतो र थनो म ं सू रः.. (८) म प व धन वाले दे वसमूह के धन क तु त करता ं. वे क ीवान् के य ह. हम पु -पौ ा द के साथ मलकर ेम से इस धन का उपभोग कर, म अं गरा गो वाले क ीवान् को स तापूवक अ , घोड़े और रथ दे ने वाले दे वसमूह क तु त करता ं. (८) जनो यो म ाव णाव भ ग ु पो न वां सुनो य णया ुक्. वयं स य मं दये न ध आप यद हो ा भऋतावा.. (९) हे म और व ण! जो तु हारा य न करके ोह करता है अथवा तु हारे न म सोमरस न नचोड़कर तुमसे श ुता बढ़ाता है, वह मूख मनु य अपने आप ही अपने दय म य मा रोग को धारण करता है. जो य करने वाला है एवं तु तपाठ करता आ सोमरस नचोड़ता है, वह कुशल अ ा त करता है. (९) स ाधतो न षो दं सुजूतः शध तरो नरां गूत वाः. वसृ रा तया त बाळ् हसृ वा व ासु पृ सु सद म छू रः.. (१०) वह कुशल अ ा त करता है, मनु य को हराने वाला तथा अपने समान लोग म अ के लए स होता है. अ त थय का धन से वागत करने वाला ऐसा हसक श ु से सदा नडर होकर सभी कार के यु म जाता है. (१०) अध म ता न षो हवं सुरेः ोता राजानो अमृत य म ाः. नभोजुवो य रव य राधः श तये म हना रथवते.. (११) हे सव र एवं आनंददाता दे वगण! मुझ तु तक ा एवं मरणशील क तु त सुनो और इस य म पधारो. हे आकाश ापी दे वो! तुम ऐसे यजमान को महान् बनाने वाले ह क शंसा करना चाहते हो, जसका र क तु हारे अ त र कोई न हो. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एतं शध धाम य य सूरे र यवोच दशतय य नंशे. ु ना न येषु वसुताती रार व े स व तु भृथेषु वाजम्.. (१२) जन दे व ने यह कहा क हमने उस यजमान को वजय का साधन बल दान कया, जसके दस इं यपोषक सोम को हण करने के लए हम आए ह, ऐसे दे व का काशवान् अ एवं व तृत धन अ यंत शोभा पाता है. सम त दे व उ म य म हम अ दान कर. (१२) म दामहे दशतय य धासे य प च ब तो य य ा. क म ा इ र मरेत ईशानास त ष ऋ ते नॄन्.. (१३) जब-जब हम व दे व क तु त करते ह, तब-तब ऋ वज् दस कार क इं य को पु करने वाले दस कार के अ को धारण करके य मंडप क ओर चलते ह. इ ा एवं इ र म नाम के राजा श ुनाशक एवं नेता- प व ण आ द दे वता को बलकुल स नह कर सकते. (१३) हर यकण म ण ीवमण त ो व े व रव य तु दे वाः. अय गरः स आ ज मुषीरो ा ाक तूभये व मे.. (१४) सम त दे व हम ऐसे सुंदर पु द जो कान म वणाभूषण एवं ीवा म र नमाला धारण करते ह . सम त आदरणीय दे व का समूह हमारे आने के तुरंत बाद ही तु तय एवं ह क अ भलाषा करे. (१४) च वारो मा मशशार य श यो रा आयवस य ज णोः. रथो वां म ाव णा द घा साः यूमगभ तः सूरो ना ौत्.. (१५) मशश र राजा के चार एवं जयशील अयवस राजा के तीन पु मुझ क ीवान् को क प ंचाते ह. हे म और व ण! तु हारा अ यंत व तृत एवं सुखकर काश वाला रथ सूय के समान चमकता है. (१५)
सू —१२३
दे वता—उषा
पृथू रथो द णाया अयो यैनं दे वासो अमृतासो अ थुः. कृ णा द थादया३ वहाया क स ती मानुषाय याय.. (१) अपने ापार म कुशल उषा दे वी के रथ म घोड़े जोड़े गए. उस रथ म मरणर हत दे वसमूह य म जाने के लए बैठ गया. पूजा के यो य एवं व वध गमन वाली उषा काले रंग के अंधकार से उ प होती है एवं अंधकार नवारण पी च क सा करती ई मानव के नवास थान क ओर आती है. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूवा व उ चा
माद्भुवनादबो ध जय ती वाजं बृहती सनु ी. य ुव तः पुनभुरोषा अग थमा पूव तौ.. (२)
गमनशील काश ारा अंधकार पर वजय ा त करने वाली, महती एवं व को सुख दे ने वाली उषा सम त ा णय से पहले जागती है. वह न य यौवना उषा पुनः पुनः उ प होती है. सारे संसार को दे खती ई वह हमारे एक बार बुलाने पर ही आ जाती है. (२) यद भागं वभजा स नृ य उषो दे व म य ा सुजाते. दे वो नो अ स वता दमूना अनागसो वोच त सूयाय.. (३) हे सुजाता एवं मानवपा लका उषादे वी! तुम इस समय मनु य के लए अपने काश का जो अंश दे ती हो, उसीको हम स वता दे व दान कर तथा हमारे य थल म सूय के आगमन के न म हम पापर हत कहकर अनुगृहीत कर. (३) गृहङ् गृहमहना या य छा दवे दवे अ ध नामा दधाना. सषास ती ोतना श दागाद म म जते वसूनाम्.. (४) से
भोग क इ छा से यु एवं सारे संसार को का शत करती ई उषा त दन न भाव येक घर क ओर आती है एवं इ व- प धन का े भाग वीकार कर लेती है. (४) भग य वसा व ण य जा म षः सूनृते थमा जर व. प ा स द या यो अघ य धाता जयेम तं द णया रथेन.. (५)
हे उषा! तुम मनु य क शोभन ने ी हो. तुम आ द य क वसा एवं अंधकार नवारक स वता क भ गनी तथा अ य दे व क अपे ा े हो. सम त दे व तु हारी तु त कर. तु हारी स ता के प ात् जो ःख दे ने वाला आएगा, हम तु हारी सहायता ा त करके उसे अपने रथ आ द साधन से जीत लगे. (५) उद रतां सुनृता उ पुर धी द नयः शुशुचानासो अ थुः. पाहा वसू न तमसापगूळ्हा व कृणव युषसो वभातीः.. (६) हे ऋ वजो! य एवं स ची बात तु त प म कहो, बु का माण दे ने वाले य कम करो तथा द तशाली अ न व लत करो. ऐसा करने से व वध काश वाली उषा अंधकार से ढके ए एवं य साधन धन को कट करती है. (६) अपा यदे य य१ यदे त वषु पे अहनी सं चरेते. प र तो तमो अ या गुहाकर ौ षाः शोशुचता रथेन.. (७) व
नाना पवान् अहोरा —दोन दे वता वधान र हत होकर चलते ह. वे एक- सरे के ग त वाले ह. एक आता है तो सरा जाता है. बारीबारी से आने वाले इन दे वता म
******ebook converter DEMO Watermarks*******
एक पदाथ को छपाते ह और सरे अपने अ यंत काशवान् रथ के ारा उ ह का शत करते ह. (७) स शीर स शी र ो द घ सच ते व ण य धाम. अनव ा ंशतं योजना येकैका तुं प र य त स ः.. (८) उषा आज जतनी सुंदर है, उसी के समान कल भी सुंदर होगी. सूय जहां रहता है, उषा त दन उससे तीस योजन आगे रहती है. एक ही उषा सूय के उदयकाल म आने और जाने का—दोन काय करती है. (८) जान य ः थम य नाम शु ा कृ णादज न तीची. ऋत य योषा न मना त धामाहरह न कृतमाचर ती.. (९) द त एवं ेत वण वाली तथा काले रंग के अंधकार से उ प होने वाली उषा दन के पहले अंश को जानती है. उ प होने पर उषा सूय के तेज म मल जाती है. उसके तेज का पराभव नह करती, अ पतु त दन उसक शोभा बढ़ाती है. (९) क येव त वा३ शाशदानाँ ए ष दे व दे व मय माणम्. सं मयमाना युव तः पुर तादा वव ां स कृणुषे वभाती.. (१०) हे उषादे वी! तुम क या के समान अपने अंग को प करती ई दानशील एवं काशयु सूय पी य के समीप आओ. तुम युवती के समान अ यंत काशयु होती ई तथा हंसती ई सूय के सामने अपने गोपनीय अंग को व र हत करो. (१०) सुसङ् काशा मातृमृ व े योषा व त वं कृणुषे शे कम्. भ ा वमुषो वतरं ु छ न त े अ या उषसो नश त.. (११) जस कार माता ारा नान आ द से शु कए जाने पर क या का प दशनीय हो जाता है, उसी कार तुम भी सबको दखाने के लए अपना शरीर का शत करो. हे क याण करने वाली उषा! अंधकार मटाओ. अ य उषाएं तु हारे काय ा त नह करगी. (११) अ ावतीग मती व वारा यतमाना र म भः सूय य. परा च य त पुनरा च य त भ ा नाम वहमाना उषासः.. (१२) उषा दे वयां अ एवं गाय से संप एवं सभी काल म रहने वाली ह. वे सूय क करण के साथ न य ही अंधकार का नाश करने का य न करती ह. वे सबके अनुकूल होने के कारण क याणकर नाम धारण करके आती-जाती ह. (१२) ऋत य र ममनुय छमाना भ भ ं ऋतुम मासु धे ह. उषो नो अ सुहवा ुछा मायु रायो मघव सु च युः.. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे उषा! तुम सूय क करण के अनुकूल चलती ई हम ऐसी बु दो, जससे हम य आ द कम के ारा अपना क याण कर सक. हमारे ारा आ त होकर तुम अंधकार का नाश करो. ह व प धन से यु हम यजमान के पास अनेक कार क संप हो. (१३)
सू —१२४
दे वता—उषा
उषा उ छ ती स मधाने अ ना उ सूय उ वया यो तर ेत्. दे वो नो अ स वता वथ ासावीद् प चतु प द यै.. (१) यह उषा ातःकाल अ न के व लत होने पर अंधकार को हटाती है एवं उ दत होते ए सूय के समान भूत काश फैलाती है. स वता दे व हमारे गमन-आगमन वहार के लए मनु य और पशु प धन दे ते ह. (१) अ मनती दै ा न ता न मनती मनु या युगा न. ईयुषीणामुपमा श तीनामायतीनां थमोषा ौत्.. (२) उषा दे व संबंधी त म बाधा नह डालती तथा मनु य का वयोग करती है. यह भूतकाल म होने वाली तथा सदा आने वाली उषा के तु य है. यह भ व य म आने वाली उषा म थमा बनकर वशेष काश दे रही है. (२) एषा दवो हता यद श यो तवसाना समना पुर तात्. ऋत य प थाम वे त साधु जानतीव न दशो मना त.. (३) यह उषा वग क पु ी है. इस लए यह काश पी व को धारण करती ई पूव दशा म भली-भां त चलती ई सभी के सामने का शत होती है. उषा अपने य सूय का अ भ ाय जानती ई भी उसके माग पर आगे-आगे चलती है एवं पूवा द दशा को कभी समा त नह करती. (३) उपो अद श शु युवो न व ो नोधा इवा वरकृत या ण. अ स ससतो बोधय ती श मागा पुनरेयुषीणाम्.. (४) जस कार सूय अपना र मसमूह पी व थल कट करते ह एवं नोधा ऋ ष ने जस कार अपने य मं समूह को कट कया था, उसी कार उषा भी वयं को सबके समीप कट करती है. उषा गृ हणी के समान सबसे पहले जागकर शेष लोग को जगाती है एवं ातःकाल आने वाली वारव नता म सवा धक सुंदर है. (४) पूव अध रजसो अ स य गवां ज न यकृत केतुम्. ु थते वतरं वरीय ओभा पृण ती प ो प था.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उषा व तृत आकाश के पूव भाग म ज म लेकर दशा का ान कराती है. धरती और आकाश उसके पता ह. उषा इन दोन के म य म थत होकर अपने तेज से अ यंत व तीण प से स ई है. (५) एवेदेषा पु तमा शे कं नाजा म न प र वृण जा मम्. अरेपसा त वा३ शाशदाना नाभाद षते न महो वभाती.. (६) इस कार व तार को ा त ई उषा अपने जा त वाले दे व और वजातीय मानव सभी को ा त होती है, जससे वे सुखपूवक दे ख सक. अपने नमल शरीर के कारण प होती ई उषा छोटे बड़े कसी के पास से नह हटती. (६) अ ातेव पुसं ए त तीची गता गव सनये धनानाम्. जायेव प य उशती सुवासा उषा ह ेव न रणीते अ सः.. (७) उषा बना भाई क ब हन के समान प म क ओर मुख करके चलती है तथा प तहीना नारी के समान काश प धन ा त करने के लए आकाश म चढ़ती है. उषा प त को स करने वाली प नी के समान सुंदर व पहनकर हा य ारा अपने दांत का दशन करती है. (७) वसा व े याय यै यो नमारैगपै य याः तच येव. ु छ ती र म भः सूय या यङ् े समनगा इव ाः.. (८) नशा पी छोट ब हन उषा पी बड़ी ब हन को अपना थान दे कर चली जाती है. सूय क करण से अंधकार का नाश करती ई यह उषा बज लय के समान संसार म काश करती है. (८) आसां पूवासामहसु वसॄणामपरा पूवाम ये त प ात्. ताः नव सीनूनम मे रेव छ तु सु दना उषासः.. (९) सभी उषाएं पर पर ब हन ह एवं एक सरी के पीछे चलती ह. आने वाली उषाएं ाचीन उषा के समान सु दन लाव एवं हम ब धनसंप कर. (९) बोधयोषः पृणतो मघो यबु यमानाः पणयः सस तु. रेव छ मघवद् यो मघो न रेव तो े सूनृते जारय ती.. (१०) हे धनवती उषा! ह व दे ने वाल को जगाओ तथा लालची प णय को सोने दो. तुम ह वयु यजमान को समृ बनाओ. तुम सुंदर ने ी हो. तुम सब ा णय को ीण करती हो, पर अपने यजमान को उ त बनाओ. (१०) अवेयम ै ुव तः पुर ता ुङ् े गवाम णानामनीकम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व नूनमु छादस त
केतुगृहंगृहमुप त ाते अ नः.. (११)
युवती के समान पूव दशा से आती ई उषा अपने रथ म लाल रंग के बैल को जोड़ती है. यह पर हत आकाश म अंधकार को मटाती है. उषा के आने पर ही सब घर म आग जलती है. (११) उ े वय सतेरप त र ये पतुभाजो ु ौ. अमा सते वह स भू र वाममुषो दे व दाशुषे म याय.. (१२) हे उषा! तु हारे कट होते ही प ी अपने घ सल से उड़ने लगते ह और मनु य अ ा त क इ छा से अपने-अपने कम म उ मुख होते ह. हे दे वी उषा! जो ह दाता यजमान दे वयजन मंडप म थत है, उसके लए पया त धन दो. (१२) अ तोढ् वं तो या णा मे ऽवीवृध वमुशती षासः. यु माकं दे वीरवसा सनेम सह णं च श तनं च वाजम्.. (१३) हे तु त यो य उषाओ! मेरे मं तु हारी तु त कर. तुम हमारी उ त चाहती ई हमारी वृ करो. हे उषा दे वयो! तुम य द हमारी र ा करोगी तो हम हजार और सैकड़ धन ा त करगे. (१३)
सू —१२५
दे वता—दान
ाता र नं ात र वा दधा त तं च क वा तगृ ा न ध े. तेन जां वधयमान आयू राय पोषेण सचते सुवीरः.. (१) वनय नाम का राजा ातःकाल आकर मेरे समीप र न रखे. ानी क ीवान् अथात् मने उ ह वीकार कया एवं उनके ारा पु , सेवक एवं अपनी अव था म वृ करके राजा को आशीवाद दया है क वह बार-बार धन ा त करे. (१) सुगुरस सु हर यः व ो बृहद मै वय इ ो दधा त. य वाय तं वसूना ात र वो मु ीजयेव प द मु सना त.. (२) यह वनय राजा ब त सी गाय , वण और घोड़ का वामी है. इं इ ह अतुल संप द. जस कार पशु-प ी आ द को र सी से बांध लया जाता है, उसी कार राजा ने ातःकाल ही पैदल आकर जाने वाले या ी क ीवान् को जाने नह दया. (२) आयम सुकृतं ात र छ ेः पु ं वसुमता रथेन. अंशोः सुतं पायय म सर य य रं वध य सुनृता भः.. (३) म शोभनकमा एवं य र क को दे खने के लए धनयु रथ म बैठकर आज आया ं. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
काशयु एवं मादकता दान करने वाले सोमरस को पओ तथा सुंदर पु , भृ य आ द क कामना करो. (३) उप र त स धवो मयोभुव ईजानं च य यमाणं च धेनवः. पृण तं च पपु र च व यवो घृत य धारा उप य त व तः.. (४) सुख दे ने वाली एवं धा गाएं य क ा और य का संक प करने वाले के पास जाकर उसे ध दे ती ह. पतर को तपण करने वाले एवं ा णय को स करने वाले पु ष के समीप समृ दे ने वाली घृतधाराएं आकर संतोष दे ती ह. (४) नाक य पृ े अ ध त त तो यः पृणा त स ह दे वेषु ग छ त. त मा आपो घृतमष त स धव त मा इयं द णा प वते सदा.. (५) ह दे कर दे व को स करने वाला वग म प ंचकर दे व के बीच बैठता है. बहता आ जल उसे तेज एवं धरती फसल ारा उसे संतोष दे ती है. (५) द णावता म दमा न च ा द णावतां द व सूयासः. द णाव तो अमृतं भज ते द णाव तः तर त आयुः.. (६) दान दे ने वाले को धरती पर यमान व तुएं ा त होती ह एवं सूया द लोक समृ होते ह. दाता जरामरण-र हत द घ आयु ा त करके अमर बनता है. (६) मा पृण तो रतमेन आर मा जा रषुः सूरयः सु तासः. अ य तेषां प र धर तु क दपृण तम भ सं य तु शोकाः.. (७) ह व ारा दे व को स करने वाला ःख और पाप से र रहता है एवं तोता व ान् वृ ाव था से र रहते ह. इन दोन से भ अथात् दान एवं तु त न करने वाल को पाप और शोक ा त होता है. (७)
सू —१२६
दे वता—भावय
आद
अम दा सोमा भरे मनीषा स धाव ध यतो भा य. यो मे सह म ममीत सवानतूत राजा व इ छमानः.. (१) म सधु तीर पर रहने वाले भावय के पु वनय के न म तो ं. उस अजेय राजा ने यश ा त क इ छा से मेरे लए एक इजार सोमय शतं रा ो नाधमान य न का छतम ा यता स आदम्. शतं क ीवाँ असुर य गोनां द व वोऽजरमा ततान.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क रचना करता कए थे. (१)
दानशील राजा ने मुझ क ीवान् से ाथना क . मने उससे सौ वण मु ाएं, सौ घोड़े एवं सौ बैल वीकार कए. इस दान से राजा ने वगलोक म थायी यश ा त कर लया. (२) उप मा यावाः वनयेन द ा वधूम तो दश रथासो अ थुः. ष ः सह मनु ग मागा सन क ीवाँ अ भ प वे अ ाम्.. (३) वनय ने मुझे सफेद घोड़ वाले दस रथ दए. उन म वधुएं बैठ थ . रथ के पीछे एक हजार साठ गाएं चल रही थ . मने यह सब वीकार करके अगले ही दन अपने पता को दे दया. (३) च वा रश शरथ य शोणाः सह या े े ण नय त. मद युतः कृशनावतो अ या क ीव त उदमृ त प ाः.. (४) पीछे हजार गाएं ह. आगे दस रथ म लाल रंग के चालीस घोड़े पं ब होकर चलते ह. घास लए ए क ीवान् के अनुचर घोड़ को मलने लगे. वणाभूषण से यु वे मतवाले घोड़े श ु का गव न करते ह. (४) पूवामनु य तमा ददे व ी यु ाँ अ ाव रधायसो गाः. सुब धवो ये व या इव ा अन व तः व ऐष त प ाः.. (५) हे भाइयो! मने पूवदान के अनुसार तु हारे लए तीन और आठ रथ तथा ब मू य गाएं वीकार क ह. अं गरा के सभी पु जा के समान पर पर अनुराग यु होकर ह अ से भरी गा ड़य स हत यश क इ छा कर. (५) आग धता प रग धता या कशीकेव ज हे. ददा त म ं या री याशूनां भो या शता.. (६) भावय ने अपनी प नी लोमशा को ल य करके कहा—“ जस कार नकुली अपने प त से चपट रहती है उसी कार यह संभोग-यो य युवती आ लगन करने के प ात् चरकाल रमण करती है. यह रेतोयु रमणी मुझे सैकड़ भोग दान करती है.” (६) उपोप मे परा मृश मा मे द ा ण म यथाः. सवाहम म रोमशा ग धारीणा मवा वका.. (७) लोमशा प त से कहती है—“समीप आकर मेरा पश करो. मेरे अंग को अ प मत समझो. म गंधार दे श क भेड़ के समान संपूण अवयव वाली एवं रोमयु .ं ” (७)
सू —१२७
दे वता—अ न
अ नं होतारं म ये दा व तं वसुं सूनुं सहसो जातवेदसं व ं न जातवेदसम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ऊ वया व वरो दे वो दे वा या कृपा. घृत य व ा मनु व शो चषाजु ान य स पषः.. (१) म अ न को दे व का आ ानक ा, अ तशय दानशील, नवास यो य, बल का पु एवं मेधावी ा ण के समान सव मानता ं. अ न य संपादन म समथ एवं दे वपूजा क इ छा से यु ह. वे अपनी वाला से घृत का अनुसरण करके उसक कामना करते ह. (१) य ज ं वा यजमाना वेम ये म रसां व म म भ व े भः शु प र मान मव ां होतारं चषणीनाम्. शो च केशं वृषणं य ममा वशः ाव तु जूतये वशः.. (२)
म म भः.
हे मेधावी एवं द त वालायु अ न! हम यजमान मनु य पर कृपा करने के हेतु मनन-साधन एवं स तादायक मं ारा अं गरा म े एवं यजन यो य तु ह बुलाते ह. तुम सब ओर चलने वाले सूय के समान दे व को बुलाते हो. तु हारी लपट केश के समान व तृत ह. यजमान लोग वां छत फल पाने के लए तु ह स कर. तुम वषाकारक हो. (२) स ह पु चदोजसा व मता द ानो भव त ह तरः परशुन ह तरः. वीळु च य समृतौ ुव नेव य थरम्. न षहमाणो यमते नायते ध वासहा नायते.. (३) चमकती ई वाला से यु अ न परशु के समान श ु का नाश करने म अ तीय ह. अ न से मलकर जस कार जल न हो जाता है, उसी कार ढ़ व तुएं भी समा त हो जाती ह. अ न श ुनाशक धनुधर के समान कभी पीठ नह दखाते. (३) ळ् हा चद मा अनु यथा वदे ते ज ा भरर ण भदा वसे ऽ नये दा यः पु ण गाहते त नेव शो चषा. थरा चद ा न रणा योजसा न थरा ण चदोजसा.. (४)
वसे.
जैसे व ान् को दान कया जाता है, उसी तरह येक मं के बाद अ न को सारवान ह दया जाता है. अ न य ा द साधन ारा हमारी र ा के लए वग दान करते ह. अ न यजमान ारा दए गए ह म व होकर उसे जंगल क तरह जला दे ते ह. ये अपने तेज ारा जौ आ द अ को पकाते तथा अपने ओज से ढ़ श ु का नाश करते ह. (४) तम य पृ मुपरासु धीम ह न ं यः सुदशतरो दवातराद ायुषे दवातरात्. आद यायु भणव ळु शम न सूनवे. भ मभ मवो तो अजरा अ नयो तो अजराः.. (५) हम रात म अ धक का शत होने वाले और दन म तेजशू य रहने वाले अ न को वेद ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के समीप ह दे ते ह. पता के समीप उ म एवं सुखदायक घर ा त करने वाले पु के समान अ न अ हण करते ह. वे भ और अभ को जानते ए भी दोन क र ा करते ह एवं ह का भ ण करके सदा युवा बने रहते ह. (५) स ह शध न मा तं तु व व णर वतीषूवरा व नरातना व नः. आद ा याद दय य केतुरहणा. अध मा य हषतो षीवतो व े जुष त प थां नरः शुभे न प थाम्.. (६) जस कार वायु का वेग श द करता है, उसी कार तु त यो य अ न भी जलते समय श द करता है. अ न का य उपजाऊ धरती पर करना चा हए. ह एवं दानशील अ न य के झंडे के समान सव पूजनीय ह. जस कार लोग सुख पाने के लए राजपथ पर चलते ह, उसी कार यजमान को स ता दे ने वाले अ न क सेवा क जाती है. (६) ता यद क तासो अ भ वो नम य त उपवोच त भृगवो म न तो दाशा भृगवः. अ नरीशे वसूनां शु चय ध णरेषाम्. याँ अ पध व नषी मे धर आ व नषी मे धरः.. (७) भृगुगो म उ प मह ष ह दान करने के उ े य से अर ण म अ न का मंथन करते ए तु त बोलते ह. वे मह ष ौत एवं मात दोन कार क अ नय का गुण वणन करने वाले, तेज वी एवं नमनशील ह. द त अ न धन के वामी य क ा एवं यह का भली-भां त उपभोग करने वाले ह. मेधावी अ न सरे दे व को भी य का भाग दान करते ह. (७) व ासां वा वशां प त हवामहे सवासां समानं द प त भुजे स य गवाहसं भुजे. अ त थ मानुषाणां पतुन य यासया. अमी च व े अमृतास आ वयो ह ा दे वे वा वयः.. (८) हम अ त थ के समान पू य अ न को ह भोग करने के लए बुलाते ह. वे सम त जा के र क, समान प से मानव के गृहपालक एवं तु तवाहक ह. जैसे पु अ ा द पाने के लए पता के समीप आता है, उसी कार सम त दे व ह ा त के लए अ न के समीप प ंचते ह. इसी लए ऋ वज् अ य दे वता को ह व दे ने क इ छा से अ न म ही हवन करते ह. (८) वम ने सहसा सह तमः शु म तमो जायसे दे वतातये र यन दे वतातये. शु म तमो ह ते मदो ु न तम उत तुः. अध मा ते प र चर यजर ु ीवानो नाजर.. (९) हे अ न! तुम भी धन के समान दे व के य के न म ही उ प होते हो. तुम अपने बल से श ुनाश करते हो एवं तेज वी हो. ह वीकार से उ प तु हारा हष अ यंत बलवान् ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं तु हारा य परम यश वी होता है. हे जरार हत एवं भ क जरा का नवारण करने वाले अ न! यजमान त के समान तु हारी सेवा करते ह. (९) वो महे सहसा सह वत उषबुधे पशुषे ना नये तोमो बभू व नये. त यद ह व मा व ासु ासु जोगुवे. अ े रेभो न जरत ऋषूणां जू णह त ऋषूणाम्.. (१०) हे तु तक ाओ! यजमान अ न को ल य करके वेद क भू म पर इधर-उधर गमन करते ह. तु हारी तु त पूजनीय, श ारा श ु को हराने वाली, ातःकाल जागरणशील एवं पशुदाता अ न को स करने वाली हो. बंद जन जस कार ध नय क शंसा करते ह, उसी कार तु तकुशल होता दे व म े अ न क तु त सबसे पहले करता है. (१०) स नो ने द ं द शान आ भरा ने दे वे भः सचनाः सुचेतुना महो रायः सुचेतुना. म ह श व न कृ ध स च े भुजे अ यै. म ह तोतृ यो मघव सुवीय मथी ो न शवसा.. (११) हे अ न! तुम हम अपने समीप दखाई दे ते ए भी दे व के साथ ह का भोग करते हो. तुम भ के त अनु ह भरे शोभन च से पूजनीय धन लाते हो. हे बलसंप अ न! पृ वी का दशन एवं भोग करने के लए हम अ धक अ दो. हे धन वामी अ न! तोता को पु भृ ययु धन दान करो. तुम परम बली एवं ू र के समान हमारे श ु को न करो. (११)
सू —१२८
दे वता—अ न
अयं जायत मनुषो धरीम ण होता य ज उ शजामनु तम नः वमनु तम्. व ु ः सखीयते र य रव व यते. अद धो होता न षद दळ पदे प रवीत इळ पदे .. (१) दे व का आ ान करने वाले एवं यजन यो य अ न फल क कामना करने वाल एवं ह व का भोजन करने के न म मनु य ारा अर ण से उ प होते ह. सम त सुख के क ा अ न म ता चाहने वाले एवं स अ क इ छा करने वाले यजमान के लए धन के समान ह. य वेद धरती के उ म थान म है. वहां श संप एवं य क ा अ न ऋ वज से घरे बैठे ह. (१) तं य साधम प वातयाम यृत य पथा नमसा ह व मता दे वताता ह व मता. स न ऊजामुपाभृ यया कृपा न जूय त. यं मात र ा मनवे परावतो दे वं भाः परावतः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारा तो य और घृत से यु तथा न तासंप तब तक सेवा करते ह, जब तक वे संतु न हो जाव. अ म सहायता करते ह. हमारे ह को वीकार करने से अ मात र ा मनु के न म अ न को र से लाए और उसे से हमारे य म आव. (२)
है. हम इस तो ारा अ न क न ह संप दे वय को पूण करने न का नाश नह होगा. जस कार जलाया, उसी कार अ न र दे श
एवेन स ः पय त पा थवं मु ग रेतो वृषभः क न द ध े तः क न दत्. शतं य ाणो अ भदवो वनेषु तुव णः. सदो दधान उपरेषु सानु व नः परेषु सानुषु.. (३) अ न क सदा तु त क जाती है. वे अ यु , कामवष , साम यशाली एवं श द करने वाले ह. वे हमारे आ ान के तुरंत बाद ही वेद के चार ओर चलने लगते ह. वे हण करने यो य तो के कारण अपनी वाला ारा यजमान के काय को सौगुना का शत करते ह. उ च थान ा त अ न य को सदा घेरे रहते ह. (३) स सु तुः पुरो हतो दमेदमेऽ नय या वर य चेत त वा वेधा इषूयते व ा जाता न प पशे. यतो घृत ीर त थरजायत व वधा अजायत.. (४)
वा य
य चेत त.
शोभनकमा एवं य न पादक अ न येक यजमान के घर म नाशर हत य को जानते ह एवं व वध कम के फलदाता बनकर यजमान को अ दे ने क इ छा करते ह. अ न घृतसेवी अ त थ के प म उ प होने के कारण संपूण ह को वीकार करते ह. अ न के व लत होने पर यजमान को ब त से फल मलते ह. (४) वा यद य त वषीषु पृ चतेऽ नेरवेण म तां न भो ये षराय न भो या. स ह मा दान म व त वसूनां च म मना. स न ासते रताद भ तः शंसादघाद भ तः.. (५) वायु ारा मेघ से वषा कए जाने पर जस कार सभी अ समान प से पकते ह अथवा याचक को जस कार सभी भ णीय दए जाते ह, उसी कार यजमान अ न को तृ त करने के लए उसक वाला म पुरोडाश आ द मलाते ह. यजमान अपने धन के अनुसार ह दे ता है. अ न हम ःखद एवं हसक पाप से बचाव. (५) व ो वहाया अर तवयुदधे ह ते द णे तर णन श थ व मा इ दषु यते दे व ा ह मो हषे. व मा इ सुकृते वारमृ व य न ारा ृ व त.. (६)
व यया न श थत्.
सवगंत , महान् एवं न य ग तशील अ न दे ने क इ छा से सूय के समान द ण हाथ म धन रखते ह. वह हाथ य करने वाले के लए सदा ढ ला रहता है. अ न ह व पाने क ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आशा से यजमान को नह यागते. हे अ न! तुम ह व के इ छु क सभी दे व के लए ह व वहन करते हो. अ न उ म कम करने वाले मनु य के लए उ म धन दे ते ह एवं वग का ार खोलते ह. (६) स मानुषे वृजने श तमो हतो३ नय ेषु जे यो न व प तः स ह ा मानुषाणा मळा कृता न प यते. स न ासते व ण य धूतमहो दे व य धूतः.. (७)
यो य ेषु व प तः.
मनु य पाप के नवारण के लए जो य करता है, उस म अ न सहायक ह. ये वजयी राजा के समान य थल म मनु य के पालक एवं य ह. यजमान य वेद पर जो ह व एक त करता है, अ न उसी को वीकार करने के लए आते ह. अ न य म बाधा प ंचाने वाले और हमारी हसा करने वाले य के भय से तथा महान् पाप से हमारी र ा कर. (७) अ नं होतारमीळते वसु ध त यं चे त मर त ये ररे ह वाहं ये ररे. व ायुं व वेदसं होतारं यजतं क वम्. दे वासो र वमवसे वसूयवो गीभ र वं वसूयवः.. (८) ऋ वज् य संप क ा, धन धारण करने वाले, सव य, बु दाता एवं न य व लत अ न क तु त करते ह एवं भली-भां त सुख ा त करते ह. अ न ह वाही, सम त ा णय के जीवन, परम बु संप , दे व को बुलाने वाले, यजनीय एवं सव ह. यजमान धन क इ छा से अ न को ह दे ना चाहते ह एवं आ य पाने वाले क इ छा से श द करने वाले एवं रमणीय अ न को ा त करते ह. (८)
सू —१२९
दे वता—इं
यं वं रथ म मेधसातयेऽपाका स त म षर णय स ानव नय स. स म भ ये करो वश वा जनम्. सा माकमनव तूतुजान वेधसा ममां वाचं न वेधसाम्.. (१) हे य गामी एवं अ न दत इं ! य लाभ के पास जाते हो और धन, व ा आ द से उसे उ त अ यु कर दो. हे इं ! तुम सम त पुरो हत म उ वीकार करते हो, उसी शी ता से हमारे ारा दया
लए तुम अ धक ानसंप यजमान के बनाते हो. उसे तुरंत सफल-मनोरथ एवं म हो. जस शी ता से तुम हमारी तु त आ ह व भी हण करो. (१)
स ु ध यः मा पृतनासु कासु च ा य इ भर तये नृ भर स तूतये नृ भः. यः शूरैः व१: स नता यो व ैवाजं त ता. तमीशानास इरध त वा जनं पृ म यं न वा जनम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम मनु य एवं म त के साथ स यु म श ु का संहार करने म स हो एवं शूर के साथ सं ाम सुख का अनुभव करने वाले हो. तु त करने वाले ऋ वज को तुम अ दे ते हो. जस कार मनु य घोड़े क सेवा करता है, उसी कार ऋ वज् ग तशील एवं अ दाता इं क सेवा करते ह. तुम हमारा आ ान सुनो. (२) द मो ह मा वृषणं प व स वचं कं च ावीरर ं शूर म य प रवृण इ ोत तु यं त वे त ाय वयशसे. म ाय वोचं व णाय स थः सुमृळ काय स थः.. (३)
म यम्.
हे इं ! तुम श ुसंहारक हो. इसी लए तुम जलधारी मेघ का वचा के समान भेदन करके जल गराते हो एवं चलते ए मेघ को मनु य के समान पकड़कर बरसने के लए ववश कर दे ते हो. हे इं ! तु हारे इस काय को हम तुमसे, आकाश से, यशसंप से, जा को सुख दे ने वाले म एवं व ण से कहगे. (३) अ माकं व इ मु मसी ये सखायं व ायुं ासहं युजं वाजेषु ासहं युजम्.. अ माकं ोतयेऽवा पृ सुषु कासु चत्. न ह वा श ुः तरते तृणो ष यं व ं श ंु तृणो ष यम्.. (४) हे ऋ वजो! हम अपने य म अपने म , सम त य म प ंचने वाले, श ुनाशक, अपने सहायक, य म व न डालने वाल को परा जत करने वाले एवं म द्गण के साथ रहने वाले इं को चाहते ह. हे इं ! हमारी र ा के लए हमारे य का पालन करो. यु े म तुम सभी श ु का संहार करते हो. कोई भी श ु तु हारा सामना नह करता. (४) न षू नमा तम त कय य च े ज ा भरर ण भन त भ ने ष णो यथा पुरानेनाः शूर म यसे. व ा न पूरोरप प ष व रासा व न अ छ.. (५)
ाभ
ो त भः.
हे बलसंप इं ! जो तु हारे भ यजमान के व आचरण करते ह, उ ह तुम र ण संबंधी अपने तेज से अवनत कर दे ते हो. तुम ाचीन काल म हमारे पूवज को जन य माग से ले गए थे, उ ह से हम भी ले जाओ. तु ह सब लोग पापहीन एवं जगत्पालक मानते ह. तुम य थल म हम य फल दो एवं अ न को समा त करो. (५) त ोचेयं भ ाये दवे ह ो न य इषवा म म रेज त र ोहा म म रेज त. वयं सो अ मदा नदो वधैरजेत म तम्. अव वेदघशंसोऽवतरमव ु मव वेत्.. (६) हम वधनशील इं के लए तु त करते ह. जस कार आ ान के यो य एवं रा सहंता इं हमारे बुलाने पर आते ह, उसी कार इं अ भलाषापूवक हमारे य कम के त आगमन करते ह एवं हमारे बु हीन नदक को वध के उपाय ारा र कर दे ते ह. जस कार जल ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नीचे क ओर बहता है, उसी कार चोर का भी अधःपतन होता है. (६) वनेम त ो या चत या वनेम र य र यवः सुवीय र वं स तं सुवीयम्. म मानं सुम तु भरे मषा पृचीम ह. आ स या भ र ं ु न त भयज ं ु न त भः.. (७) हे इं ! तो ारा तु हारे गुण का वणन करते ए हम तु हारे समीप आते ह. हे धन के वामी! हम शोभन साम ययु , रमणीय, सदा वतमान एवं पु भृ या द से यु धन को ा त कर. हे अ मत म हमाशाली इं ! हमारे पास उ म तो एवं अ ह . हम य क अ भलाषा के समान फल दे ने वाली तथा यशोव क तु तय ारा य न पादक इं को ा त कर. (७) ा वो अ मे वयशो भ ती प रवग इ ो मतीनां दरीम मतीनाम्. वयं सा रषय यै या न उपेषे अ ैः. हतेमस व त ता जू णन व त.. (८) हे ऋ वजो! इं अपने यश कर र ण ारा तु हारे और हमारे न म बु वरो धय के वनाशकारी सं ाम म समथ ह एवं उ ह वद ण कर. हमारे भ क श ु ने जो वेगवती सेना भेजी थी, वह वयं ही नाश को ा त हो गई. वह न तो हमारे पास आई और न लौटकर हमारे वरो धय के पास प ंची. (८) वं न इ राया परीणसा या ह पथाँ अनेहसा पुरो या र सा. सच व नः पराक आ सच वा तमीक आ. पा ह नो रादाराद भ भः सदा पा भ भः.. (९) हे इं ! तुम रा सहीन एवं पापर हत माग ारा हम दे ने के लए धन लेकर हमारे समीप आओ. तुम रवत एवं नकटवत थान से आकर हमसे मलो, र एवं समीप से य नवाह के लए हमारी र ा करो तथा हम पालो. (९) वं न इ राया त षसो ं च वा म हमा स दवसे महे म ं नावसे. ओ ज ातर वता रथं कं चदम य. अ यम म रषेः कं चद वो र र तं चद वः.. (१०) हे इं ! हमारी आप य को समा त करने वाले धन से हमारा उ ार करो. जस कार सव हतकारी म क म हमा है, उसी कार उ बल संप इं हमारी र ा के लए म हमायु ह. हे श शाली, र क, पालक, मरणर हत एवं श ुनाशक इं ! तुम चाहे जस रथ पर सवार होकर आओ एवं हमारे अ त र सबको बाधा प ंचाओ. हे श ुनाशक! न दतकम वाले श ु के बाधक बनो. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पा ह न इ सु ु त धोऽवयाता सद म मतीनां दे वः स मतीनाम्. ह ता पाप य र स ाता व य मावतः. अधा ह वा ज नता जीजन सो र ोहणं वा जीजन सो.. (११) हे शोभन तु तय से यु इं ! हम ःखद पाप से बचाओ, य क तुम सदा अवन त करने वाले हो. तुम हमारी तु तय से स होकर बु य परा जत करो. तुम फल तबंधक पाप के घातक तथा हमारे समान मेधावी र क हो. हे नवास हेतु इं ! तु ह सबके ज मदाता ने इसी लए उ प नवासदाता! तुम रा स के वनाश के लए उ प ए हो. (११)
सू —१३०
रा स क बाधक को यजमान के कया है. हे
दे वता—इं
ए या प नः परावतो नायम छा वदथानीव स प तर तं राजेव स प तः. हवामहे वा वयं य व तः सुतेसचा. पु ासो न पतरं वाजसातये मं ह ं वाजसातये.. (१) हे इं ! य शाला म ऋ वज के पालक य मान के समान, अ ताचल को जाने वाले न श े चं के समान एवं स मुख उप थत सोम के समान वग से हमारे समीप आओ. जस कार पु अ भ ण के लए पता को बुलाते ह, उसी कार हम भी सोमरस नचुड़ जाने पर तु ह बुलाते ह. हम ऋ वज के साथ महान् इं को ह वीकार करने के लए बुलाते ह. (१) पबा सोम म सुवानम भः कोशेन स मवतं न वंसग तातृषाणो न वंसगः. मदाय हयताय ते तु व माय धायसे. आ वा य छ तु ह रतो न सूयमहा व ेव सूयम्.. (२) हे शोभन ग त संप इं ! जस कार यासा बैल जल पीता है, उसी कार तुम तृ त, परा म, मह व एवं आनंद के लए प थर ारा पीसकर नचोड़े गए एवं जल ारा शो धत सोमरस को पओ. ह र नाम के घोड़े जस कार सूय को बुलाते ह, उसी कार तु हारे घोड़े तु ह सोमरस पीने के लए लाव. (२) अ व दद् दवो न हतं गुहा न ध वेन गभ प रवीतम म यन ते अ तर म न. जं व ी गवा मव सषास र तमः. अपावृणो दष इ ः परीवृता ार इषः परीवृताः.. (३) जस कार कबूतरी गम थान म अपने ब च को रखकर उस अप र चत थान को खोज लेती है, वैसे ही इं ने अ यंत गु त थान म रखा आ तथा प थर के ढे र से घरा आ सोम वग म ा त कया. प णय ने गाय को गोशाला म बंद कर दया था. अं गरा म े ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ने जस कार उस गोशाला को खोज लया, उसी कार सोमरस को भी ढूं ढ़ा. अ के कारण जल को मेघ ने रोक लया था. इं ने मेघ का भेदन करके जल बरसाया और धरती पर अ का व तार कया. (३) दा हाणो व म ो गभ योः ेव त ममसनाय सं यद हह याय सं यत्. सं व ान ओजसा शवो भ र म मना. त ेव वृ ं व ननो न वृ स पर ेव न वृ स.. (४) इं अपने हाथ म व को ढ़ता से धारण कए ह. व तेज है. जैसे मं क सहायता से जल को भावशाली बनाया जाता है, उसी कार श ु पर चलाने के लए व को और भी तेज कया जाता है. हे इं ! जैसे बढ़ई कु हाड़ी से वन के वृ को काटता है, उसी कार तुम अपने तेज, शरीर, बल एवं श से बु ा त करके हमारे श ु को छ करते हो. (४) वं वृथा न इ सतवेऽ छा समु मसृजो रथाँ इव वाजयतो रथाँ इव. इत ऊतीरयु त समानमथम तम्. धेनू रव मनवे व दोहसो जनाय व दोहसः.. (५) हे इं ! जस कार तुमने हमारे य म आने के लए रथ को बनाया है अथवा यो ा सं ाम म जाने को रथ बनाता है. उसी कार तुमने समु तक प ंचने के साधन के प म न दय का नमाण कया है. जस कार मनु के लए अथवा कसी समथ पु ष के लए गाएं सवाथ दे ने वाली ह, उसी कार हमारी ओर बहने वाली न दयां एक ही उ े य से जल का सं ह करती ह. (५) इमां ते वाचं वसूय त आयवो रथं न धीरः वपा अत षुः सु नाय वामत षुः. शु भ तो जे यं यथा वाजेषु व वा जनम्. अ य मव शवसे सातये धना व ा धना न सातये.. (६) हे इं ! जस कार शोभन कम वाले धीर मनु य रथ का नमाण करते ह, उसी कार हम यजमान ने धन ा त क इ छा से तु हारी तु त बनाई है एवं अपनी सुख ा त के लए तु ह स कर लया है. जस कार यो ा वजयी क शंसा करते ह, उसी कार हे मेधासंप इं ! तु हारी शंसा क जा रही है. जैसे यु के समय जयशील अ शं सत होता है, उसी कार बल, धन क र ा एवं सम त क याण पाने के लए तु हारी शंसा हो रही है. (६) भन पुरो नव त म पूरवे दवोदासाय म ह दाशुषे नृतो व ेण दाशुषे नृतो. अ त थ वाय श बरं गरे ो अवाभरत्. महो धना न दयमान ओजसा व ा धना योजसा.. (७) हे रण म ती ता से इधर-उधर घूमने वाले इं ! तुमने य ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म ह वदान करने वाले एवं
तु हारी इ छा पूण करने वाले राजा दवोदास के न म उसके श ु के न बे नगर का वंस कया था. हे वराट् बल संप इं ! तुमने अ त थसेवक दवोदास राजा के क याण के लए शंबर असुर को पवत से नीचे गरा दया था एवं अपनी श से अप र मत धन दया था. वह धन थोड़ा नह , संपूण था. (७) इ ः सम सु यजमानमाय ाव ेषु शतमू तरा जषु वम ळ् हे वा जषु. मनवे शासद ता वचं कृ णामर धयत्. द व ं ततृषाणमोष त यशसानमोष त.. (८) हे इं ! यु म आय यजमान क र ा करते ह. अपने भ क अनेक कार से र ा करने वाले इं उसे सम त यु म बचाते ह एवं सुखकारी सं ाम म उसक र ा करते ह. इं ने अपने भ के क याण के न म य े षय क हसा क थी. इं ने कृ ण नामक असुर क काली खाल उतारकर उसे अंशुमती नद के कनारे मारा और भ म कर दया. इं ने सभी हसक मनु य को न कर डाला. (८) सूर ं वृह जात ओजसा प वे वाचम णो मुषायतीशान आ मुषाय त. उशना य परावतोऽजग ूतये कवे. सु ना न व ा मनुषेव तुव णरहा व ेव तुव णः.. (९) ये इं सूय के रथ का प हया हाथ म उठाकर अ यंत बलसंप हो उठे और उसे वरो धय पर फका. इं परम तेज वी अ ण प बनाकर श ु के समीप प ंचे और उनके ाण का हरण कर लया. इं ने अंधकार नवारण के लए च चलाया था. हे ांतदश इं ! जस कार तुम उशना क र ा के लए र वग से आए थे, उसी कार हमारे सम त सुख का साधन प धन लेकर शी ही हमारे समीप आओ. तुम जस तरह सरे यजमान के लए सम त धन लेकर आते हो, उसी कार हमारे लए भी लाओ. (९) स नो न े भवृषकम ु थैः पुरां दतः पायु भः पा ह श मैः. दवोदासे भ र तवानो वावृधीथा अहो भ रव ौः.. (१०) हे वषाकारक एवं असुर नगर व वंसक इं ! तुम हमारे नए तो से स होकर सभी कार से र ा करते ए हम सुख दो. दवोदास के गो म उ प हम तु हारी तु त करते ह. जस कार दन म सूय बढ़ता है, उसी तरह हमारी तु त से तुम उ त ा त करो. (१०)
सू —१३१
दे वता—इं
इ ाय ह ौरसुरो अन नते ाय मही पृ थवी वरीम भ ु नसाता वरीम भः. इ ं व े सजोषसो दे वासो द धरे पुरः. इ ाय व ा सवना न मानुषा राता न स तु मानुषा.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व तृत आकाश इं के सामने झुक गया है एवं महती पृ वी वरणीय तो ारा नत ई है. उ म ह व लए ए यजमान भी अ एवं यश पाने के लए इं के सामने नत ह. सम त दे व ने स मन से तु ह अपने आगे रखा है. इं के सुख के लए ही लोग सारे य और दान करते ह. (१) व ष े ु ह वा सवनेषु तु ते समानमेकं वृषम यवः पृथक् वः स न यवः पृथक्. तं वा नावं न पष ण शूष य धु र धीम ह. इ ं न य ै तय त आयवः तोमे भ र मायवः.. (२) हे इं ! यजमान मनचाही वषा क इ छा से येक य म एकमा तु ह ही ह व आ द दान करते ह. तुम सबके लए एक प हो एवं वण पाने के लए तु ह ही ह दया जाता है. जस कार नद पार जाने के लए समथ नाव का सहारा लया जाता है, उसी कार हम वजय क अ भलाषा से तु ह अपनी सेना के आगे रखते ह. यजमान य एवं तु तय ारा ई र के समान इं क ही चता करते ह. (२) व वा तत े मथुना अव यवो ज य साता ग य नःसृजः स यद्ग ता ा जना व१य ता समूह स. आ व क र द्वृषणं सचाभुवं व म सचाभुवम्.. (३)
तइ
नःसृजः.
हे इं ! तु हारे भ और पापर हत यजमान प नय को साथ म लेकर तु ह तृ त करने क इ छा से अ धक मा ा म ह दे ते ए य करते ह. गाय के चाहने वाले एवं वग जाने के इ छु क वे ब त सी गाय को पाने के लए तु हारे उ े य से य करते ह. तुमने अपने साथ उ प ए इ छापूरक एवं साथ रहने वाले व को बनाया है. (३) व े अ य वीय य पूरवः पुरो य द शारद रवा तरः सासहानो अवा तरः. शास त म म यमय युं शवस पते. महीममु णाः पृ थवी ममा अपो म दसान इमा अपः.. (४) हे इं ! जो यजमान तु हारी म हमा जानते ह, वे तु हारे ही उ े य से य करते ह. तुमने वष भर खाई से सुर त श ु नगर को न करके उ ह पी ड़त कया था. हे सेना के पालक इं ! तुमने य वनाशक मरणधमा को वश म कया था एवं उसके अधीन रहने वाली वशाल धरती एवं महान् सागर को बलपूवक छ न लया था. तुमने उसके अ ले लए थे. (४) आ द े अ य वीय य च कर मदे षु वृष ु शजो यदा वथ सखीयतो यदा वथ. चकथ कारमे यः पृतनासु व तवे. ते अ याम यां न ं स न णत व य तः स न णत.. (५) हे इं ! तुम सोमपान से स होकर यजमान क र ा करते हो एवं इ छा पूण करते हो. इसी हेतु तु हारी श बढ़ाने के लए वे तु ह बार-बार सोमरस दान करते ह. तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमान के सुख के न म यु म सहनाद करते हो. यजमान भां त-भां त क भो य व तुएं एवं वजय के ारा अ ा त करने क इ छा से तु हारे समीप जाते ह. (५) उतो नो अ या उषसो जुषेत १क य बो ध ह वषो हवीम भः वषाता हवीम भः. य द ह तवे मृधो वृषा व चकेत स. आ मे अ य वेधसो नवीयसो म म ु ध नवीयसः.. (६) या इं हमारे ातःकालीन य म स म लत ह गे? हे इं ! ह व दे ने के लए वग दाता य म हमारे ारा बुलाए जाने पर आओ और ह व वीकार करो. हे व धारी! हसक श ु के नाश के लए हमारे इ छापूरक बनकर आओ एवं मुझ मेधावी, नवीन एवं असाधारण तु त वाले के उ म तो सुनो. (६) वं त म वावृधानो अ मयुर म य तं तु वजात म य व ेण शूर म यम्. ज ह यो नो अघाय त शृणु व सु व तमः. र ं न याम प भूतु म त व ाप भूतु म तः.. (७) हे इं ! तुम शूर, अनेक गुण यु एवं हमारी तु त के कारण उ त हो. तुम हम चाहते हो. जो लोग हमारे त श ुता रखते एवं हम ःख दे ते ह, अपने व ारा तुम उनका वनाश करो. हे सुंदर कान वाले! हमारी बात सुनो. जस कार माग म थके ए प थक को चोर बाधा प ंचाते ह, उसी कार के बु हसक तु हारी कृपा से हमारे समीप न रह. (७)
सू —१३२
दे वता—इं
वया वयं मघव पू धन इ वोताः सास ाम पृत यतो वनुयाम वनु यतः. ने द े अ म ह य ध वोचा नु सु वते. अ म य े व चयेमा भरे कृतं वाजय तो भरे कृतम्.. (१) हे सुख वामी इं ! य द तुम हमारी र ा करोगे तो हम बल सेना वाले श ु को भी हरा दगे. जो श ु हम मारने के लए त पर ह गे, उन पर हम हार करगे. पूव धन से यु इस नकटवत यह म ह व दे ने वाले यजमान से बार-बार कहो, यु म वजय पाने वाले तु हारे उ े य से हम ह व प अ लाते ह. (१) वजषे भर आ य व म युषबुधः व म स ाण य व म अह ो यथा वदे शी णाशी ण पवा यः. अ म ा ते स यक् स तु रातयो भ ा भ य रातयः.. (२)
स.
जो वीर पु ष यु म मारे जाते ह, उ ह इं वग दे ते ह. यु वग ा त का न कपट माग है. इं ऐसे यु के आगे रहते ह एवं जो य क ा ातःकाल जागते ह, उनके श ु का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वनाश करते ह. जैसे सव य को सर झुका कर णाम करते ह, उसी कार इं को भी करना चा हए. हे भ इं ! तु हारा दया आ धन हमारे लए हो एवं थर हो. (२) त ु यः नथा ते शुशु वनं य म य े वारमकृ वत यमृत य वार स यम्. व त ोचेरध ता तः प य त र म भः. स घा वदे अ व ो गवेषणो ब धु यो गवेषणः.. (३) हे इं ! जस कार पूवकाल म दया आ तेज वी एवं स अ तु हारा था, इसी कार इस समय भी है. तुम मनोरथ पूण करने वाले य म रहते हो. तुम धरती और आकाश के म य जो जलवृ करते हो, वह सूय क करण के काश म दे खी जा सकती है. जल क खोज म लगे इं अपने बंधु को य फल दे ते एवं जल ा त का ढं ग जानते ह. (३) नू इ था ते पूवथा च वा यं यद रो योऽवृणोरप ज म ऐ यः समा या दशा म यं जे ष यो स च. सु व यो र धया कं चद तं णाय तं चद तम्.. (४)
श
प जम्.
हे इं ! तु हारे उ कार के काय पहले के समान इस समय भी शंसनीय ह. तुमने अं गरा ऋ षय के न म जल बरसाया था एवं असुर ारा चुराई ई गाएं छु ड़ाकर उ ह द थ . इन ऋ षय के समान ही तुम हमारे धन के न म यु करो और वजयी बनो. सोमरस नचोड़ने वाले हम लोग के क याण के न म तुम य वरोधी श ु को हराते हो. ोध दखाने वाले य वरोधी तु हारे सामने हार जाते ह. (४) सं य जनान् तु भः शूर ई य ने हते त ष त व यवः त मा आयुः जाव द ाधे अच योजसा. इ ओ यं द धष त धीतयो दे वाँ अ छा न धीतयः.. (५)
य
त व यवः.
बलशाली इं य के ारा सब मनु य के वषय म स य बात जानते ह. इसी लए अ क अ भलाषा करने वाले यजमान पया त य करते ह. इं के न म दया आ ह यजमान को पु , सेवक आ द दे ता है, जनक सहायता से वह श ु को बाधा प ंचाता है एवं इं क पूजा करता है. य कम करने वाले यजमान इं लोक ा त करते ह. इस कार वे दे व के म य ही नवास करते ह. (५) युवं त म ापवता पुरोयुधा यो नः पृत यादप त त म तं व ेण त त म तम्. रे च ाय छ सद्गहनं य दन त्. अ माकं श ू प र शूर व तो दमा दष व तः.. (६) हे इं एवं मेघ! हमारे जो वरोधी श ु सेना एक करते ह, तुम दोन हमारे आगे चलकर व हार ारा उनका वंस करो. तु हारा व रवत श ु को भी न करना चाहता है और गम थान म भी प ंच जाता है. हे शूर! हमारे श ु को व वध उपाय से वद ण करो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु हारा व
श ु
को सम त उपाय से न करता है. (६)
दे वता—इं
सू —१३३
उभे पुना म रोदसी ऋतेन हो दहा म सं महीर न ाः. अ भ ल य य हता अ म ा वैल थानं प र तृळ्हा अशेरन्.. (१) हे इं ! म य ारा धरती और आकाश दोन को प व करता ं एवं इं ो हय को आ य दे ने वाली धरती को भली-भां त जानता ं. एक ए श ु हम जहां भी मले, वह मारे गए. मरे ए वे मशानभू म म इधर-उधर पड़े ह. (१) अ भ ल या चद वः शीषा यातुमतीनाम्. छ ध वटू रणा पदा महावटू रणा पदा.. (२) हे वैरीभ णक ा इं ! श ु अवासां मघव
क सेना का सर अपने व तृत पैर से कुचल दो. (२)
ह शध यातुमतीनाम्. वैल थानके अमके महावैल थे अमके.. (३)
हे धन वामी इं ! इन आयुधसंप सेना फक दो. (३)
क श
न करके इ ह नदनीय मशान म
यासां त ः प चाशतोऽ भ ल ै रपावपः. त सु ते मनाय त तक सु ते मनाय त.. (४) हे इं ! तुमने एक सौ पचास श ु सेना कहते ह, पर तु हारे लए यह छोटा है. (४) पश भृ म भृणं पशा च म
का वनाश कया. लोग इस काम को बड़ा
सं मृण. सव र ो न बहय.. (५)
हे इं ! पीले रंग वाले, भयंकर श द करने वाले पशाच का नाश करो एवं संपूण रा स को समा त करो. (५) अवमह इ दा ह ुधी नः शुशोच ह ौः ा न भीषाँ अ वो घृणा अ वः. शु म तमो ह शु म भवधै ेभरीयसे. अपू ष नो अ तीत शूर स व भ स तैः शूर स व भः.. (६) हे इं ! तुम हमारी तु त सुनो और महान् मेघ को अधोमुख करके उसका करो. हे मेघ वामी इं ! जस कार वृ के अभाव म अ न होने से धरती ःखी उसी कार आकाश भी शोक करता है. जैसे व ा के भय से धरती और आकाश उसी कार अ के अभाव से होते ह. हे इं ! तुम अ धक बलवान् होने के कारण श ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भीषाँ
वदारण होती है, ःखी थे, ु वनाश
म ू र उपाय अपनाते हो, पर अपने यजमान का वंस नह करते. हे वीर! तुम इ क स सेवक से घरे रहते हो, इस लए श ु तुम पर आ मण नह करते. (६) वनो त ह सु व यं परीणसः सु वानो ह मा यज यव सु वान इ सषास त सह ा वा यवृतः. सु वानाये ो ददा याभुवं र य ददा याभुवम्.. (७)
षो दे वानामव
षः.
हे इं ! सोमरस नचोड़ने वाला यजमान उ म घर पाता है. सोमय क ा चार ओर घरे ए श ु को समा त करके दे व के वरो धय को भी न करता है. वह अ का वामी बनता है. उस पर कोई श ु आ मण नह करता. वह असी मत संप ा त करता है. जो इं के न म सोमय करता है, उसे इं चार ओर अव थत एवं अ त समृ धन दे ते ह. (७)
सू —१३४
दे वता—वायु
आ वा जुवो रारहाणा अ भ यो वायो वह वह पूवपीतये सोम य पूवपीतये. ऊ वा ते अनु सूनृता मन त तु जानती. नयु वता रथेना या ह दावने वायो मख य दावने.. (१) हे वायु! तु ह शी गामी एवं श शाली अ सबसे थम सोमपान के लए य म ले आव. तुम पहले के समान सोमपान करते हो. तु हारे मन के अनुकूल एवं स ची हमारी तु त तु हारे गुण का वणन करती है, वह तु ह सदा स करती रहे. य म दए ए को वीकारने एवं हम वां छत फल दे ने के हेतु रथ से शी आओ. तु हारे रथ म नयुत नामक घोड़े जुते ह. (१) म द तु वा म दनो वाय व दवोऽ म अ भ वः. य ाणा इर यै द ं सच त ऊतयः. स ीचीना नयुतो दावने धय उप ुवत
ाणासः सुकृता अ भ वो गो भः
ाणा
धयः.. (२)
हे वायु! य भू म म प ंचने के लए तु ह नयुत नामक अ मले ह. वे अपने काय म कुशल, तुमसे अनुराग करने वाले, सवदा तु हारे साथ रहने वाले ह एवं तु हारी च दे खकर चलते ह. हष उ प करने वाले, मादक, भली कार रखे गए, उ वल और मं ारा आ त सोमरस क बूंद तु ह मु दत कर. बु संप यजमान तु हारे पास जाकर तु त करते ह. (२) वायुयुङ् े रो हता वायुर णा वायू रथे अ जरा धु र वोळ् हवे व ह ा धु र वोळ् हवे. बोधया पुर धं जार आ ससती मव. च य रोदसी वासयोषसः वसे वासयोषसः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वायु भार ढोने के लए रथ के अ भाग म लाल रंग के घोड़े जोड़ते ह. वे अ यंत गमनशील एवं बोझा ढोने म समथ ह. जार जस कार तं ा म पड़ी नारी को जगा दे ता है, उसी कार तुम य क ा यजमान को ह दान के लए सावधान कर दे ते हो. धरती और आकाश को का शत करके तुम ह ा त के लए उषाकाल को था पत करते हो. (३) तु यमुषासः शुचयः पराव त भ ा व ा त वते दं सु र मषु च ा न ेषु र मषु. तु यं धेनुः सब घा व ा वसू न दोहते. अजनयो म तो व णा यो दव आ व णा यः.. (४) हे वायु! उषाएं रवत आकाश म अपनी करण से घर को आ छा दत करती ई पहले के समान क याणकारी व का व तार करती ह. उषा क करण नवीन ह. तु हारे य को संप कराने के लए ही गाएं अमृत बरसाती ई अ दे ती ह. तुमने द त आकाश म मेघ को पूण करके न दय को भावशील बनाया. (४) तु यं शु ासः शुचय तुर यवो मदे षू ा इषण त भुव यपा मष त भुव ण. वां सारी दसमानो भगमी े त ववीये. वं व मा वना पा स धमणासुया या स धमणा.. (५) हे वायु! उ वल, प व एवं तेजपूण सोम तु ह मु दत करने के न म आ ान यो य अ न के समीप जाते ह एवं जलवषा क अ भलाषा करते ह. अ यंत भयभीत एवं बलहीन यजमान य ा द वघातक को भगाने के लए तु हारी तु त करता है. हम ह वधारण प धम से यु ह, इस लए तुम सभी भय से हमारी र ा करो. (५) वं नो वायवेषामपू ः सोमानां थमः पी तमह स सुतानां पी तमह स. उतो व मतीनां वशां ववजुषीणाम्. व ा इ े धेनवो आ शरं घृतं त आ शरम्.. (६) हे वायु! तुमने सबसे पहले सोमरस पया है. तु ह सबसे पहले नचोड़े गए सोम को पीने यो य हो. तुम पापर हत एवं य क ा यजमान का ह वीकार करते हो. सम त गाएं तु हारे न म ही ध और घी दे ती ह. (६)
दे वता—वायु
सू —१३५
तीण ब ह प नो या ह वीतये सह ेण नयुता नयु वते श तनी भ नयु वते. तु यं ह पूवपीतये दे वा दे वाय ये मरे. ते सुतासो मधुम तो अ थर मदाय वे अ थरन्.. (१) हे वायु! तुम नयुत नामक अ
पर चढ़कर उस
को वीकार करने के लए आओ
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो हमने बछे ए कुश पर रखा है. तुम नयुत नामक अ के वामी हो. सब दे वता चुप ह. तुमसे पहले कोई सोमरस नह पी रहा. नचोड़े ए सोम को तु हारे आनंद एवं हमारी य स के न म तैयार कया गया है. (१) तु यायं सोमः प रपूतो अ भः पाहा वसानः प र कोशमष त शु ा वसानो अष त. तवायं भाग आयुषु सोमो दे वेषु यते. वह वायो नयुतो या मयुजुषाणो या मयुः.. (२) हे वायु! प थर ारा पीसा गया, सबके ारा अ भलाषा करने यो य एवं तेज वी सोमरस पा म आता है एवं नमल काश से यु होकर तु ह ा त होता है. मनु य म सोम य के यो य है. वही सब दे व के म य तु ह दया जाता है. तुम हमारे य म आने के लए रथ म नयुत अ जोतकर थान करो एवं हमारे ऊपर अनु ह करो. (२) आ नो नयु ः श तनी भर वरं सह णी भ प या ह वीतये वायो ह ा न वीतये. तवायं भाग ऋ वयः सर मः सूय सचा. अ वयु भभरमाणा अयंसत वायो शु ा अयंसत.. (३) हे वायु! तुम नयुत नामक सैकड़ और हजार घोड़ से अपनी इ छा पू त और ह भ ण के लए हमारे य म आओ. ऋ वज् ारा अपने हाथ से न मत प व एवं उ दत सूय के समान तेज वी सोम तु हारा भाग है. (३) आ वां रथो नयु वा व दवसेऽ भ यां स सु धता न वीतये वायो ह ा न वीतये. पबतं म वो अ धसः पूवपेयं ह वां हतम्. वायवा च े ण राधसा गत म राधसा गतम्.. (४) हे वायु! नयुत नामक घोड़ से यु रथ तु हारे साथ-साथ इं को भी हमारी र ा, हमारे ारा गृहीत अ के भ ण एवं अ य ह को वीकारने के लए य म लाव. तुम दोन का मधुर सोमरस पओ. अ य दे व से पहले तु हारा सोमपान करना उ चत है. तुम और इं हम स करने वाला धन लेकर आओ. (४) आ वां धयो ववृ युर वराँ उपेम म ं ममृज त वा जनमाशुम यं न वा जनम्. तेषां पबतम मयू आ नो ग त महो या. इ वायू सुतानाम भयुवं मदाय वाजदा युवम्.. (५) हे इं और वायु! हमारे तो तु ह य म आने क ेरणा द. जस वाले घोड़े क मा लश क जाती है, उसी कार घर से कलश म रखकर य सोम को ऋ वज् रगड़ते ह. तुम उनका सोमरस पओ और हमारे य पधारो. तुम दोन अ दे ने वाले हो, इस लए अपनी तृ त के लए प थर को पओ. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कार तेज चलने भू म म लाए गए क र ा के लए ारा पीसे गए सोम
इमे वां सोमा अ वा सुता इहा वयु भभरमाणा अयंसत वायो शु ा अयंसत. एते वाम यसृ त तरः प व माशवः युवायवोऽ त रोमा य या सोमासो अ य या.. (६) हे वायु! हमारे य म नचोड़ा गया और अ वयुजन ारा धारण कया आ उ वल सोम न य ही तुम दोन का है. तरछे बछे ए कुश पर रखा आ पया त सोमरस तु हारा है. वह सम त दे व को लांघकर चुर मा ा म तु ह मलता है. (६) अ त वायो ससतो या ह श तो य ावा वद त त ग छतं गृह म ग छतम्. व सूनृता द शे रीयते घृतमा पूणया नयुता याथो अ वर म याथो अ वरम्.. (७) हे वायु! आल य के कारण सोते ए यजमान को लांघ कर हमारे इस य म आओ, जहां सोमरस कूटने के लए प थर का श द उ प हो रहा है. इं भी ऐसा ही कर. जहां यारी और त यपूण तु तयां हो रही ह, जहां होम के न म घी ले जाया जा रहा है, अपने नयुत नामक घोड़ के साथ वह य थल म जाओ. (७) अ ाह त हेथे म व आ त यम थमुप त त जायवोऽ मे ते स तु जायवः. साकं गावः सुवते प यते यवो न ते वाय उप द य त धेनवो नाप द य त धेनवः.. (८) हे इं और वायु! तुम हमारे य म मधु के समान आ त को वीकार करो. सोम को ा त करने के लए वजयी यजमान पवतीय दे श म जाते ह. हमारे ऋ वज् तु हारा य कम करने म समथ ह . इस य म ब त सी गाएं तु हारे न म एक साथ ब त सा ध दे ती ह एवं पुरोडाश पकाया जाता है. ये गाएं न कम ह और न बली ह . (८) इमे ये ते सु वायो बा ोजसोऽ तनद ते पतय यु णो म ह ाध त उ णः. ध व च े अनाशवो जीरा द गरौकसः. सूय येव र मयो नय तवो ह तयो नय तवः.. (९) हे उ म फलदाता वायु! तु हारे परम बलशाली, अ यंत मोटे -ताजे एवं जवान बैल जैसे घोड़े तु ह धरती और आकाश के म य भाग से य थल म लाते ह एवं दे र नह करते. ये अ यंत शी ता से चलते ह. सूय करण के समान इनक चाल भी नह कती. (९)
सू —१३६
दे वता— म एवं व ण
सु ये ं न चरा यां बृह मो ह ं म त भरता मृळय यां वा द ं मृळय याम्. ता स ाजा घृतासुती य ेय उप तुता. अथैनोः ं न कुत नाधृषे दे व वं नू चदाधृषे.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋ वजो! न य रहने वाले म और व ण को ल य करके शंसनीय एवं महान् तो को आरंभ करो एवं उ ह दे ने का न य कर लो. वे यजमान को सुख दे ते ह एवं वा द ह व का भ ण करके भली-भां त सुशो भत होते ह. उ ह के लए घी एक कया जाता है एवं येक य म उनक तु त क जाती है. उनका बल अलंघनीय है एवं उनके दे व होने म कसी को संदेह नह है. (१) अद श गातु रवे वरीयसी प था ऋत य समयं त र म भ ु ं म य सादनमय णो व ण य च. अथा दधाते बृह यं१ वय उप तु यं बृह यः.. (२)
ुभग य र म भः.
सब लोग ने दे खा है क महती उषा व तृत य क ओर जाती है. ग तशील सूय का माग आकाश काश से भर गया एवं सूय करण से सभी को आंख मल . म , अयमा और व ण का आकाश पी घर उ वल काश से पूण हो गया. हे म एवं व ण! तुम दोन तु तयो य अ को अ धक मा ा म धारण करो. (२) यो त मतीम द त धारय त ववतीमा सचेते दवे दवे जागृवांसा दवे दवे. यो त म माशाते आ द या दानुन पती. म तयोव णो यातय जनोऽयमा यातय जनः.. (३) यजमान ने अ न के तेज से यु , सम त ल ण तथा वग दान करने वाली य वेद अपने आप बनाई है. तुम दोन एक होकर त दन सावधान रहो एवं त दन य वेद पर आकर तेज और बल ा त करो. तुम अ द त के पु एवं सम त दे व के पालक हो. म , व ण और अयमा लोग को अपने-अपने काम म लगाते ह. (३) अयं म ाय व णाय श तमः सोमो भू ववपाने वाभगो दे वो दे वे वाभगः. तं दे वासो जुषेरत व े अ सजोषसः. तथा राजाना करथो यद मह ऋतावाना यद महे.. (४) नीचे क ओर मुंह करके पीने वाले म और व ण के लए सोमपान स ता दान करे. सम त दे व अपनी सेवा के उपयु एवं तेज वी सोम को स तापूवक पएं. हे समान ीतयु म एवं व ण! तुम य के वामी हो. तुम हमारी ाथना के अनुसार काय करो. (४) यो म ाय व णाया वध जनोऽनवाणं तं प र पातो अंहसो दा ांसं मतमंहसः. तमयमा भ र यृजूय तमनु तम्. उ थैय एनोः प रभूष त तं तोमैराभूष त तम्.. (५) हे म एवं व ण! तुम अपनी सेवा करने वाले, े षर हत एवं ह दाता यजमान क सम त पाप से र ा करो. अयमा सरल वभाव वाले यजमान को दे खते ह एवं उसक र ा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह. यजमान मं ारा म और व ण का य करता है एवं तु तय के ारा उसको सुशो भत करता है. (५) नमो दवे बृहते रोदसी यां म ाय वोचं व णाय मीळ् षे सुमृळ काय मीळ् षे. इ म नमुप तु ह ु मयमणं भगम्. यो जीव तः जया सचेम ह सोम योती सचेम ह.. (६) म अभी फल तथा सुख के दाता महान् एवं काशयु सूय, धरती, आकाश, म , व ण और को नम कार करता ं. हे होताओ! इस समय इं , अ न, द तसंप अयमा एवं भग क तु त करो. इनक कृपा से हम पूजा से घरे ए एवं सोमरस ारा र त रहगे. (६) ऊती दे वानां वय म व तो मंसीम ह वयशसो म ः. अ न म ो व णः शम यंसन् तद याम मघवानो वयं च.. (७) हमने अपनी तु तय से म द्गण को स कर लया है. इं हम पर स ह. हम दे व क र ा चाहते ह. इं , अ न, म और व ण हम सुख द. हम उनके दए ए अ से सुख भोग. (७)
दे वता— म और व ण
सू —१३७
सुषुमा यातम भग ीता म सरा इमे सोमासो म सरा इमे. आ राजाना द व पृशा म ा ग तमुप नः. इमे वां म ाव णा गवा शरः सोमाः शु ा गवा शरः.. (१) हे म एवं व ण! हम प थर से सोम कूटते ह, इस लए तुम हमारे य म आओ. तृ तकारक ध- म त सोम तैयार है. तुम वग म रहने वाले, हमारे पालनक ा एवं काशयु हो. तुम हमारे य म आओ. ध मला आ यह उ वल सोम तु हारे ही न म है. (१) इम आ यात म दवः सोमासो द या शरः सुतासो द या शरः. उत वामुषसो बु ध साकं सूय य र म भः. सुतो म ाय व णाय पीतये चा ऋताय पीतये.. (२) हे म एवं व ण! हमारे य म आओ, य क यह नचोड़ा आ पतला सोमरस दही के साथ मला दया गया है. चाहे उषाकाल हो, चाहे सूय क करण चमकने लगी ह , यह नचोड़ा आ सोम व ण एवं म के पीने हेतु य भू म म तुत है. (२) तां वां धेनुं न वासरीमंशुं ह य
भः सोमं ह य
भः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ म ा ग तमुप नोऽवा चा सोमपीतये. अयं वां म ाव णा नृ भः सुतः सोम आ पीतये सुतः.. (३) अ वयु तु हारे न म प थर के टु कड़ से उसी कार सोमरस को नचोड़ते ह, जस कार गाय से ध काढ़ा जाता है. हमारी र ा करने वाले तुम दोन सोमपान के लए समीप आओ. य संप करने वाले लोग ने यह सोम तु हारे पीने के लए ठ क से नचोड़ा है. (३)
सू —१३८
दे वता—पूषा
पू ण तु वजात य श यते म ह वम य तवसो न त दते तो म य न त दते. अचा म सु नय हम यू त मयोभुवम्. व य यो मन आयुयुवे मखो दे व आयुयुवे मखः.. (१) अनेक यजमान के क याण के न म उ प पूषादे व के बल क सभी तु त करते ह. कोई भी न उनक तु त को समा त करता है और न उनके बल का वरोध करता है. इसी कारण म भी सुख क इ छा से र ा के लए त पर, सुख के उ प करने वाले, य के वामी एवं सब मनु य के मन के साथ एक प होने वाले पूषा क तु त करता ं. (१) ह वा पूष जरं न याम न तोमे भः कृ व ऋणवो यथा मृध उ ो न पीपरो मृधः. वे य वा मयोभुवं दे वं स याय म यः. अ माकमाङ् गूषा ु नन कृ ध वाजेषु ु नन कृ ध.. (२) हे पूषा! लोग जैसे शी गामी घोड़े क शंसा करते ह, उसी कार म य थल म शी आने के लए तु हारी तु त करता ं. तुम हम ऊंट के समान सं ाम के पार प ंचाते हो, इस लए म यु म आने के लए तु हारी तु त करता ं. म मरणधमा तु हारी म ता पाने के लए सुख के उ पादक तु हारा आ ान करता ं. हमारे आ ान को सफल करके हम यु म वजयी बनाओ. (२) य य ते पूष स ये वप यवः वा च स तोऽवसा बुभु तामनु वा नवीयस नयुतं राय ईमहे. अहेळमान उ शंस सरी भव वाजेवाजे सरी भव.. (३)
रइत
वा बुभु
रे.
हे पूषा! यजमान तु हारी म ता ा त करके उ म य ारा तु ह स करते ह एवं तो बोलते ए तु हारी र ा ा त करके भां त-भां त के सुख भोगते ह. तुमसे नवीन र ण ा त करने के बाद हम तुमसे नयुत धन क याचना करते ह. हे पूषा! ब त से लोग तु हारी तु त करते ह. तुम हमारे त दयालु बनकर आओ और यु म हमारे आगे चलो. (३) अ या ऊ षु ण उप सातये भुवोऽहेळमानो र रवाँ अजा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व यतामजा .
ओ षु वा ववृतीम ह तोमे भद म साधु भः. न ह वा पूष तम य आघृणे न ते स यमप वे.. (४) हे पूषा! बकरे ही तु हारे अ ह. हमारे इस लाभ का अनादर न करते ए तुम दाता बनकर हमारे समीप आओ. हम अ क इ छा करते ह. हे श ुनाशक! हम उ म तो बोलते ए तु हारे चार ओर वतमान रह. हे वषाकारक! हम न कभी तु हारा अपमान करते ह और न कभी तु हारी म ता का याग करते ह. (४)
सू —१३९
दे वता— व ेदेव
अ तु ौषट् पुरो अ नं धया दध आ नु त छध द ं वृणीमह इ वायू वृणीमहे. य ाणा वव व त नाभा स दा य न सी. अध सू न उप य तु धीतयो दे वाँ अ छा न धीतयः.. (१) मने उ री वेद म ापूवक अ न को धारण कया है. म अ न क द श क एवं इं व वायु क स मुख होकर ाथना करता ं. पृ वी क का शत ना भ अथात् य भू म को ल य करके यह वाथ काशन करती ई नई तु त बनाई गई है, इस लए वह सुनी जावे. हमारे तु त पी कम दे व के समीप प ंच. (१) य य म ाव णावृताद याददाथे अनृतं वेन म युना द य वेन म युना. युवो र था ध स वप याम हर ययम्. धी भ न मनसा वे भर भः सोम य वे भर भः.. (२) हे म एवं व ण! तुम अपने तेज से जो सूखने वाला जल आ द य से भली कार हण करते हो, वही हम सब ओर से दे ते हो. हम य ा द पी कम ारा, सोमरस ारा तथा ान म आस इं य ारा तुम दोन का हरणमय प दे ख. (२) युवां तोमे भदवय तो अ ना ावय त इव ोकमायवो युवां ह ा या३ यवः. युवो व ा अ ध यः पृ व वेदसा. ुषाय ते वां पवयो हर यये रथे द ा हर यये.. (३) हे अ नीकुमारो! तु तय ारा तु ह अपने अनुकूल बनाने क इ छा करने वाले यजमान तु ह सुनाते ए ोक बोलते ह. हे सम त धन के वा मयो! वे तु हारी अनुकंपा से सभी संप यां एवं अ ा त करते ह. हे श ुनाशको! तु हारे वणमय रथ क ने मय से मधु टपकता है. तुम उसी रथ पर मधुर ह व धारण करो. (३) अचे त द ा ू१नाकमृ वथो यु ते वां रथयुजो द व अ ध वां थाम व धुरे रथे द ा हर यये. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व व मानो द व षु.
पथेव य तावनुशासता रजोऽ
सा शासता रजः.. (४)
हे श ुनाशको! तु हारे इन काय को लोग भली कार जानते ह. तुम वग को जाते हो, इस लए तु हारे रथचालक तु ह वग के माग प य म ले जाने को रथ तैयार करते ह एवं माग के अभाव म भी रथ को न नह करते. हम तीन बंधन वाले वणरथ पर सुंदर माग से वग को जाने वाले, श ु को वश म करने वाले एवं मु य प से वषा का जल बखेरने वाले तुमको बैठाते ह. (४) शची भनः शचीवसू दवा न ं दश यतम्. मा वां रा त प दस कदा चना म ा तः कदा चन.. (५) हे कम प धन के वा मयो! हमारे य ा द कम ारा हम रात- दन मनचाही व तुएं दो. तु हारा एवं हमारा दान कभी भी समा त न हो. (५) वृष वृषपाणास इ दव इमे सुता अ षुतास उ द तु यं सुतास उ ते वा म द तु दावने महे च ाय राधसे. गी भ गवाहः तवमान आ ग ह सुमृळ को न आ ग ह.. (६)
दः.
हे कामवषक इं ! पाषाण खंड ारा कुचलकर नचोड़ा गया यह सोम तु हारे पीने के लए ही तैयार कया गया है. पवत पर उ प होने वाला सोम तु हारे न म नचोड़ा गया है. अ भमतदान, महान् एवं व च धन ा त के लए दया गया सोम तु ह स करे. हे तु तधारक! हमारी तु तयां सुनकर हमारे ऊपर स होते ए आओ. (६) ओ षू णो अ ने शृणु ह वमी ळतो दे वे यो व स य ये यो राज यो य ये यः. य याम रो यो धेनुं दे वा अद न. व तां े अयमा कतरी सचाँ एष तां वेद मे सचा.. (७) हे अ न! तुम हमारे ारा तुत होकर हमारा आ ान सुनो. तुम य के यो य एवं तेज वी दे व को यजमान के य कम क सूचना दे ना. दे व ने अं गरागो ीय ऋ षय को स गाय द थी. अयमा ने अ य दे व के साथ अ न के लए उस गाय को हा. वे अयमा उस गाय को तथा मुझे जानते ह. (७) मो षु वो अ मद भ ता न प या सना भूव ु ना न मोत जा रषुर म पुरोत जा रषुः. य ं युगेयुगे न ं घोषादम यम्. अ मासु त म तो य च रं दधृता य च रम्.. (८) हे म तो! तु हारी स , न य एवं काशयु श हमसे कभी र न जाए. हमारा यश एवं हमारे नगर जीण न ह . तु हारी व च , नवीन एवं श द करने वाली व तुएं हम युगयुग म ा त ह . ःख से ा त करने यो य एवं श ु ारा न न होने वाला जो धन है, वह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारा हो. (८) द यङ् ह मे जनुषं पूव अ राः यमेधः क वो अ मनु व ते मे पूव मनु व ः. तेषां दे वे वाय तर माकं तेषु नाभयः. तेषां पदे न म ा नमे गरे ा नी आ नमे गरा.. (९) ाचीन द यङ् , अं गरा, यमेध, क व, अ एवं मनु मेरे ज म को जानते ह. वे एवं मनु हमारे पतर को जानते ह. वे मह षय से द घकाल से संबं धत ह एवं मेरे जीवन के साथ उनका संबंध है. उनक मह ा के कारण म तु त पी वाणी से उ ह नम कार करता ं. (९) होता य ननो व त वाय बृह प तयज त वेन उ भः पु वारे भ जगृ मा र आ दशं ोकम े रध मना. अधारयदर र दा न सु तुः पु स ा न सु तुः.. (१०)
भः.
होता य करे एवं ह क कामना करने वाले दे व सोमरस ा त कर. इ छा करते ए बृह प त तृ त करने वाले एवं वरणीय सोमरस से य करते ह. हम यजमान ने र दे श म उ प होने वाले एवं सोम कूटने के साधन प थर क आवाज सुनी थी. यह शोभन कम वाला यजमान वयं जल एवं ब त से नवास यो य घर को धारण करता है. (१०) ये दे वासो द ेकादश थ पृ थ ाम येकादश थ. अ सु तो म हनैकादश थ ते दे वासो य ममं जुष वम्.. (११) वग म जो यारह दे व ह, धरती पर जो यारह दे व ह एवं अंत र वे अपनी म हमा से इस य क सेवा कर. (११)
सू —१४०
म जो यारह दे व ह,
दे वता—अ न
वे दषदे यधामाय सु ुते धा स मव भरा यो नम नये. व ेणेव वासया म मना शु च योतीरथं शु वण तमोहनम्.. (१) हे अ वयु! य वेद पर वराजने वाले, अपने थान को ेम करने वाले एवं शोभन काशयु अ न के लए ह अ के समान वेद पी थान तैयार करो. उस शु , काशयु , द तवण एवं अंधकारनाशक थान को सुंदर कुश से इस कार ढक दो, जस कार कसी को कपड़े से ढका जाता है. (१) अ भ ज मा वृद मृ यते संव सरे वावृधे ज धमी पुनः. अ य यासा ज या जे यो वृषा य१ येन व ननो मृ वारणः.. (२) ज मा अ न, आ य, पुरोडाश एवं सोम नामक तीन भाइय को सामने आकर खाते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. अ न ारा भ त धा य एक वष म बढ़ जाता है. कामवष अ न एक प से मुख एवं ज ा ारा बढ़ते ह एवं सरे दावा न प से सबको अपने से र हटाते ए वन को जलाते ह. (२) कृ ण ुतौ वे वजे अ य स ता उभा तरेते अ भ मातरा शशुम्. ाचा ज ं वसय तं तृषु युतमा सा यं कुपयं वधनं पतुः.. (३) अ न क माता के समान काले दोन का जलते ह एवं समान काय करते ए अ न को उस कार ा त करते ह, जस कार माता शशु को. वह शशु प अ न पूवा भमुख, ज ा वाला, तम वनाशक, शी उ प का से शनैः-शनैः मलने वाला, र णीय एवं पालक यजमान का व क है. (३) मुमु वो३ मनवे मानव यते रघु वः कृ णसीतास ऊ जुवः. असमना अ जरासो रघु यदो वातजूता उप यु य त आशवः.. (४) अ न वालाएं मो दायक, शी गा मनी, काले माग वाली, शी का रणी, भ वण वाली, गमनशील, शी कं पत होनेवाली, हवा के ारा े रत, ा तपूण, मननशील एवं यजमान के लए उपयोगी ह. (४) आद य ते वसय तो वृथेरते कृ णम वं म ह वपः क र तः. य स महीमव न ा भ ममृशद भ स सनय े त नानदत्.. (५) जस कार अ न सब ओर चे ा और श द करते ए तथा अ यंत गरजते ए महती भू म का बार-बार पश करते ह, उस समय इनक चनगा रयां अंधकार का वनाश करती ई एवं काले रंग के गमन माग को काश से भरती ई सब ओर जाती ह. (५) भूष योऽ ध ब ूषु न नते वृषेव प नीर ये त रो वत्. ओजायमान त व शु भते भीमो न शृ ा द वधाव गृ भः.. (६) अ न पीले रंग क लक ड़य को अलंकृत करते ए उन म वेश करते ह. जस बैल गाय क ओर दौड़ता है, उसी कार अ न महान् श द करते ए उन लक ड़य क चार तरफ से जाते ह. वे बल दशन सा करते ए अपनी वालाएं द त करते ह. जस न पकड़ा जा सकने वाला भयंकर पशु स ग घुमाता है, उसी कार अ न वाला चलाते ह. (६)
तरह ओर कार को
स सं तरो व रः सं गृभाय त जान ेव जानती न य आ शये. पुनवध ते अ प य त दे म य पः प ो कृ वते सचा.. (७) अ न कभी छ और कभी व तृत होकर लक ड़य म ा त होते ह. यजमान का अ भ ाय जानने वाले अ न अपनी उन वाला का आ य लेते ह जो यजमान क ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ छा को जानती ह. ऐसी वालाएं बार-बार बढ़कर द अ न को ा त होती ह एवं अ न के साथ ही धरती और आकाश का प तेजोमय बना दे ती ह. (७) तम ुवः के शनीः सं ह रे भर ऊ वा त थुम ष ु ीः ायवे पुनः. तासां जरां मु च े त नानददसुं परं जनय ीवम तृतम्.. (८) आगे थत केश के समान वालाएं अ न का आ लगन करती ह. वालाएं मरी ई होने पर भी आने वाले अ न के वागत के लए ऊपर उठती ह, अ न ऐसी शखा का बुढ़ापा र करके उ ह अ तशय श शाली एवं ाणधारण के यो य बनाते ए बार-बार गजन करते ह. (८) अधीवासं प र मातू रह ह तु व े भः स व भया त व यः. वयो दध प ते रे रह सदानु येनी सचते वतनीरह.. (९) यह अ न धरती माता को व के समान ढकने वाली झा ड़य को चार ओर से चाटते ए महान् श द करने वाले ा णय के साथ तेजी से भां त-भां त का गमन करते ह. वह चरण वाले अथात् मनु य और पशु को खाने क व तुएं दे ते तथा तृणा द को जलाते ए उस थान को काला कर दे ते ह, जससे चलकर आते ह. (९) अ माकम ने मघव सु द द ध सीवा वृषभो दमूनाः. अवा या शशुमतीरद दे वमव यु सु प रजभुराणः.. (१०) हे अ न! तुम हमारे धनसंप घर म व लत होओ. इसके प ात् तुम कामवष एवं दाना भलाषी होकर वाला पी सांस इधर-उधर छोड़ते ए ब च जैसी चंचल बु याग दो एवं सं ाम म कवच के समान श ु से बार-बार हमारी र ा करते ए जल उठो. (१०) इदम ने सु धतं धताद ध या च म मनः ेयो अ तु ते. य े शु ं त वो३ रोचते शु च तेना म यं वनसे र नमा वम्.. (११) हे अ न! कठोर काठ के ऊपर रखा आ जो ह व तु ह भली कार दया गया है, वह तु ह य व तु से भी अ धक य हो. तु हारे वाला पी शरीर से जो भी तेज का शत होता है, उसके साथ-साथ हमारे लए र न दो. (११) रथाय नावमुत नो गृहाय न या र ां प त रा य ने. अ माकं वीराँ उत नो मघोनो जनाँ या पारया छम या च.. (१२) हे अ न! हमारे गमनशील यजमान को संसार से पार उतारने वाली य पी नाव दो. ऋ वज् उसके डांड एवं मं उसके चरण ह. वह हमारे वीर पु एवं संप शाली लोग को पार लगाएगी तथा क याण करेगी. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अभी नो अ न उ थ म जुगुया ावा ामा स धव ग ं य ं य तो द घाहेषं वरम यो वर त.. (१३)
वगूताः.
हे अ न! हमारे मं को ो सा हत करो. धरती, आकाश एवं वयं बहने वाली न दयां हम घी, ध, जौ, गे ं आ द दे कर ो सा हत कर. लाल रंग वाली उषाएं हम सदा उ म अ द. (१३)
सू —१४१
दे वता—अ न
ब ळ था त पुषे धा य दशतं दे व य भगः सहसो यतो ज न. यद मुप रते साधते म तऋत य धेना अनय त स ुतः.. (१) ोतनशील अ न का दशनीय वह तेज सब लोग शरीर क ढ़ता के लए धारण करते ह, य क वह बल से उ प है. यह बात स य है. यह स है क उसी तेज का सहारा लेकर मेरी बु काय करती है और अपना इ स करती है. य साधक अ न के तेज को ही सबक तु तयां ा त होती ह. (१) पृ ो वपुः पतुमा य आ शये तीयमा स त शवासु मातृषु. तृतीयम य वृषभ य दोहसे दश म त जनय त योषणः.. (२) यह अ न अ साधक, शरीर बढ़ाने वाला एवं ह अ से यु होकर एक प म न य धरती पर रहता है. सरे प म सात लोक का क याण करने वाली वषा म रहता है. तीसरे प म इस कामवष बादल का जल बरसाने के लए रहता है. इस कार पर पर मली ई दस दशाएं इस अ न को उ प करती ह. (२) नयद बु ना म हष य वपस ईशानासः शवसा त सूरयः. यद मनु दवो म व आधवे गुहा स तं मात र ा मथाय त.. (३) महान् य के आरंभ से सब काय स करने म समथ ऋ वज् बल से अ न को उ प करते ह एवं वेद पी गुफा म छपी ई अ न को फैलाने के लए चलती ई वायु अना द काल से े रत करती है. (३) य पतुः परमा ीयते पया पृ ुधो वी धो दं सु रोह त. उभा यद य जनुषं य द वत आ द व ो अभवद्घृणा शु चः.. (४) अ क उ कृ ता के न म अ न को उ प कया जाता है. भोजन क इ छा वाली लताएं अ न के दांत म वेश करती ह. ऋ वज् एवं यजमान दोन ही अ न क उ प का य न करते ह, इस लए शु अ न यजमान पर कृपा करते ए युवा होते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ द मातॄरा वश ा वा शु चर ह यमान उ वया व वावृधे. अनु य पूवा अ ह सनाजुवो न न सी ववरासु धावते.. (५) सर ारा बना सताए ए अ न, जन माता पी दशा के बीच वृ को ा त ए ह, का शत होते ए उ ह म व होते ह. अ न थापन के समय जो ओष धयां डाली गई थ , अ न उन पर चढ़ गए थे. इस समय वे नई डाली गई ओष धय क ओर दौड़ते ह. (५) आ द ोतारं वृणते द व षु भग मव पपृचानास ऋ ते. दे वा य वा म मना पु ु तो मत शंसं व धा वे त धायसे.. (६) ऋ वज् ुलोक म जाने क इ छा के कारण होम संपादक अ न क राजा के समान पूजा करते ह, य क ये ब त से लोग ारा तुत एवं य प कम तथा अपने शारी रक बल से दे व एवं तु त यो य मानव के लए अ क इ छा करते ह. अ न व प ह. (६) व यद था जतो वातचो दतो ारो न व वा जरणा अनाकृतः. त य प म द ुषः कृ णजंहसः शु चज मनो रज आ वनः.. (७) य के यो य अ न वायु ारा े रत होकर चार ओर उसी कार फैल जाते ह, जस कार ब व ा व षक भां त-भां त क तु तयां करता है. जलाने वाले, कृ णमाग वाले एवं प व ज म वाले अ न के गमनमाग म सम त लोक थत ह. (७) रथो न यातः श व भः कृतो ाम े भर षे भरीयते. आद य ते कृ णासो द सूरयः शूर येव वेषथाद षते वयः.. (८) जस कार र सय से बंधा आ रथ अपने प हए आ द अंग के सहारे चलता है, उसी कार अ न अपनी वाला के साथ आकाश म जाते ह. वे अपने माग को काले रंग का बनाने के लए लक ड़य को जलाते ह. अ न के तेज से प ी उसी कार भाग जाते ह, जस कार वीर के भय से लोग भागते ह. (८) वया ने व णो धृत तो म ः शाश े अयमा सुदानवः. य सीमनु तुना व था वभुररा ने मः प रभूरजायथाः.. (९) हे अ न! तु हारे कारण व ण तधारी, म अंधकारनाशक ा एवं अयमा शोभनदानशील होते ह. जस कार ने म रथ के प हय के अर को धारण करती है, उसी कार अ न अपने य पी कम के ारा सव ापक एवं अपने तेज से सबका पराभव करते ए उ प होते ह. (९) वम ने शशमानाय सु वते र नं य व दे वता त म व स. तं वा नु न ं सहसो युव वयं भगं न कारे म हर न धीम ह.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ यंत युवा अ न! तुम तु त करने वाले एवं सोम नचोड़ने वाले यजमान के क याण के न म उनका रमणीय ह दे व के समीप ले जाकर व तृत करते हो. हे बलपु , धनसंप , न यत ण एवं ह भो ा अ न! हम यजमान तो बोलते समय तु ह शी था पत करते ह. (१०) अ मे र य न वथ दमूनसं भगं द ं न पपृचा स धण सम्. र म रव यो यम त ज मनी उभे दे वानां शंसमृत आ च सु तुः.. (११) हे अ न! जस कार तुम हम वरणीय एवं पू य धन दे ते हो, उसी कार सबको आकृ करने वाला, उ सा हत एवं व ाधारण म कुशल पु दे ते हो. अ न अपनी करण के समान ही अपने जन के आधार दोन लोक का व तार करते ह. शोभनय क ा अ न हमारे य म दे व तु त को व तार दे ते ह. (११) उत नः सु ो मा जीरा ो होता म ः शृणव च रथः. स नो नेष ेषतमैरमूरोऽ नवामं सु वतं व यो अ छ.. (१२) या अ यंत ोतमान, ग तशील अ वाले, दे व को बुलाने वाले, आनंदपूण वणरथ के वामी, अमोघश संप एवं नवासयो य अ न हमारा आ ान सुनगे? या वह हम सरलता से ा त एवं सबके ारा अ भल षत वग म हमारे कम ारा ले जाएंग? े (१२) अ ता नः शमीव रकः सा ा याय तरं दधानः. अमी च ये मघवानो वयं च महं न सूरो अ त न त युः.. (१३) अ यंत काश धारण करने वाले अ न क हमने ह दान आ द कम एवं अचनासाधक मं ारा तु त क है. जस कार सूय बरसने वाले बादल को श द यु करता है, उसी कार हम सब यजमान इस अ न क तु त करते ह. (१३)
सू —१४२
दे वता—अ न
स म ो अ न आ वह दे वाँ अ यत ुचे. त तुं तनु व पू
सुतसोमाय दाशुषे.. (१)
हे स म अ न! आज ुच उठाए ए यजमान के क याण के लए दे व को बुलाओ. सोम नचोड़ने वाले और य म ह व दे ने वाले यजमान के न म पूवकालीन य का व तार करो. (१) घृतव तमुप मा स मधुम तं तनूनपात्. य ं व य मावतः शशमान य दाशुषः.. (२) हे तनूनपात! मेधावी, तु तक ा एवं ह दाता मुझ जैसे यजमान के घृत एवं मधु से संप य म आकर अंत तक रहो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शु चः पावको अ तो म वा य ं म म त. नराशंस रा दवो दे वो दे वेषु य यः.. (३) दे व के म य शु , प व क ा, आ यजनक, तेज वी एवं य संपादक नराशंस अ न वगलोग से आकर हमारे य को तीन बार मधु से स चते है. (३) ई ळतो अ न आ वहे ं च मह यम्. इयं ह वा म तममा छा सु ज व यते.. (४) हे सबके ारा तुत अ न! हमारे य म व च एवं य इं को बुलाओ. हे शोभन ज ा वाले! मेरी यह तु त पी वाणी तु हारे स मुख प ंचे. (४) तृणानासो यत ुचो ब हय े व वरे. वृ
े दे व च तम म ाय शम स थः.. (५)
सोमयाग नामक शोभन य म कुश फैलाते ए ऋ वज् इं के न म सुखसाधन व दे व के य वधक आने-जाने यो य घर बनाते ह. (५)
व तीण,
व य तामृतावृधः यै दे वे यो महीः. पावकासः पु पृहो ारो दे वीरस तः.. (६) दे व के आने के लए य के य व क, य पावक, अनेक लोग एक- सरे से पृथक् थत ार खुल जाव. (६)
ारा अ भल षत एवं
आ भ दमाने उपाके न ोषासा सुपेशसा. य ऋत य मातरा सीदतां ब हरा सुमत्.. (७) सबके ारा तुत, पर पर सं न हत, शोभन, महान् य के माता- पता के समान नशा एवं उषा वयं ही आकर फैले ए कुश पर बैठ. (७) म ज ा जुगुवणी होतारा दै ा कवी. य ं नो य ता ममं स म द व पृशम्.. (८) दे व को मादक करने वाली वाला से यु तु त करने वाले यजमान के परम हतैषी, ांतदश एवं द होता प अ न हमारे फलसाधक एवं वग के पश करने वाले य क पूजा कर. (८) शु चदवे व पता हो ा म सु भारती. इळा सर वती मही ब हः सीद तु य याः.. (९) शु च, मरणर हत दे व क म य थ तथा य संपा दका अ न क तीन मू तयां भारती, वाक् और सर वती य के उपयु बनकर कुश पर बैठ. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त तुरीपम तं पु वारं पु मना. व ा पोषाय व यतु राये नाभा नो अ मयुः.. (१०) हमारी कामना करने वाले व ा अपने आप ही हमारी पु और समृ के लए मेघ के ना भ थानीय अद्भुत, ापक एवं अग णत लोग के क याण करने वाले जल को बरसाव. (१०) अवसृज ुप मना दे वा य
वन पते. अ नह ा सुषूद त दे वो दे वेषु मे धरः.. (११)
हे वन प त! ऋ वज क इ छानुसार कम म लगाकर वयं दे व के तेज वी एवं मेधावी अ न दे व को ह ा त कराएं. (११) पूष वते म वते व दे वाय वायवे. वाहा गाय वेपसे ह
तय
करो.
म ाय कतन.. (१२)
हे ऋ वजो! पूषा, म द्गण, व ेदेव, वायु एवं गाय ी का शरीर धारण करने वाले इं को ह दे ने के लए वाहा श द बोलो. (१२) वाहाकृता या ग प ह ा न वीतये. इ ा ग ह ुधी हवं वां हव ते अ वरे.. (१३) हे इं ! वाहा श द से यु रहे ह. (१३)
सू —१४३
हमारा ह
खाने के लए आओ, य क ऋ वज् तु ह बुला
दे वता—अ न
त स न स धी तम नये वाचो म त सहसः सूनवे भरे. अपां नपा ो वसु भः सह यो होता पृ थ ां यसीद वयः.. (१) म बल के पु , जल के नाती, यजमान के य एवं य संप क ा व यथासमय धन के साथ य वेद पर बैठने वाले अ न के न म यह अ तशयवधक एवं नवीनतम य करता ं तथा तु त पढ़ता ं. (१) स जायमानः परमे ोम या वर नरभव मात र ने. अ य वा स मधान य म मना ावा शो चः पृ थवी अरोचयत्.. (२) वे अ न व तृत आकाश दे श म उ प होकर सबसे थम मात र ा के समीप प ंचे. इसके प ात् वे धन ारा भली-भां त बढ़े और बल य कम ारा उनक वाला ने धरती और आकाश को का शत कया. (२) अ य वेषा अजरा अ य भानवः सुस शः सु तीक य सु ुतः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भा व सो अ य ु न स धवोऽ ने रेज ते असस तो अजराः.. (३) शोभनमुख अ न क जरार हत द त एवं सु य तथा सब दशा म काशमान चनगा रयां श शा लनी ह. अ न क ग तशील एवं कांपती लपट रा का अंधकार न करती ह. (३) यमे ररे भृगवो व वेदसं नाभा पृ थ ा भुवन य म मना. अ नं तं गी भ हनु ह व आ दमे य एको व यो व णो न राज त.. (४) भृगुवंशी यजमान ने सम त ा णय क बल ा त के उ े य से जन सवधन संप अ न को था पत कया है, उन अ न को अपने घर म ले जाकर तु त करो. वे अ न मु य ह एवं व ण के समान सम त धन के वामी ह. (४) न यो वराय म ता मव वनः सेनेव सृ ा द ा यथाश नः. अ नज भै त गतैर भव त योधो न श ु स वना यृ ते.. (५) जो अ न वायु के श द, बल आ मणकारी क सेना एवं द व के समान नवारण नह कए जा सकते, वे अपने तीखे दांत से श ु क उसी कार हसा कर, जस कार वन को जलाते ह. (५) कु व ो अ न चथ य वीरस सु कु व सु भः काममावरत्. चोदः कु व ुतु या सातये धयः शु च तीकं तमया धया गृणे.. (६) ये अ न हमारे तो क बार-बार कामना कर. सबको नवास दान करने वाले अ न धन से हमारी कामना पूरी कर. अ न य क ेरणा दे ने वाले बनकर हम य कम के लाभ के लए बार-बार े रत कर. म शोभन वाला वाले अ न के त तु त का उ चारण करता ं. (६) घृत तीकं व ऋत य धूषदम नं म ं न स मधान ऋ ते. इ धानो अ ो वदथेषु द छु वणामु नो यंसते धयम्.. (७) य का नवाह करने वाले एवं द त वाला वाले अ न को म के समान जलाते ए सुशो भत कया जाता है. भली-भां त द त अ न य म व लत होते ए हमारी या ा द वषयक नमल बु को जगाते ह. (७) अ यु छ यु छ र ने शवे भनः पायु भः पा ह श मैः. अद धे भर पते भ र ेऽ न मष ः प र पा ह नो जाः.. (८) हे अ न! बना माद के नरंतर मंगलकारी एवं सुखद र ण से हमारा क याण करो. हे इ ! तुम नमेषर हत एवं अ हसक उपाय से हमारी एवं हमारी संतान क र ा करो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१४४
दे वता—अ न
ए त होता तम य माययो वा दधानः शु चपेशसं धयम्. अ भ ुचः मते द णावृतो या अ य धाम थमं ह नसते.. (१) ायु होता अपनी ऊ वमुखी एवं शोभन पवाली ा को धारण करता आ अ न को ह व दे ने के लए जा रहा है एवं द णा करता आ अ न म थम आ त दे ने के साधन ुच को धारण करता है. (१) अभीमृत य दोहना अनूषत योनौ दे व य सदने परीवृताः. अपामुप थे वभृतो यदावसदध वधा अधय ा भरीयते.. (२) जल क धाराएं अपने उ प — थल सूयलोक म सूय क करण से घरकर नई बन जाती ह. उसी समय जल क गोद म वशेष प से धारण क गई अ न के कारण लोग अमृत के समान जल पीते ह. अ न बजली के प म जल से मलते ह. (२) युयूषतः सवयसा त द पुः समानमथ वत र ता मथः. आद भगो न ह ः सम मदा वो न र मी समयं त सार थः.. (३) समान अव था वाले एवं समान योजन क स के लए एक- सरे क ब त कुछ सहायता करते ए होता एवं अ वयु अ न के शरीर म अपना-अपना यश मलाते ह. जस कार सूय अपनी करण को समेटते ह एवं सार थ घोड़ क लगाम पकड़ता है, उसी कार अ न हमारे ारा डाली गई घृतधारा को वीकार करते ह. (३) यम ा सवयसा सपयतः समाने योना मथुना समोकसा. दवा न न ं प लतो युवाज न पु चर जरो मानुषा युगा.. (४) समान अव था वाले, समान य म वतमान एवं प त-प नी के समान य पी एक ही काम म लगे ए होता और अ वयु जन अ न क रात- दन उपासना करते ह, वे वृ ह अथवा युवा, पर उन दोन य का ह भ ण करके जरार हत होते ह. (४) तम ह व त धीतयो दश शो दे वं मतास ऊतये हवामहे. धनोर ध वत आ स ऋ व य भ ज वयुना नवा धत.. (५) दस उंग लयां पर पर अलग होकर काशमान अ न को स करती ह एवं हम यजमान लोग ज ह अपनी र ा के लए बुलाते ह, वे अ न चनगा रय को उसी कार बखेरते ह, जस कार धनुष से बाण छू टते ह. अ न चार ओर घूमते ए यजमान क नवीन तु तय को धारण करते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं ने द य राज स वं पा थव य पशुपा इव मना. एनी त एते बृहती अ भ या हर ययी व वरी ब हराशाते.. (६) हे अ न! जस कार पशुपालक अपनी श से पशु पर अ धकार करता है, उसी कार तुम आकाश एवं धरती पर वतमान ा णय के वामी हो. इसी कारण व तृत ऐ य वाले, हर यमय, शोभन श द करने वाले, ेतवण एवं स ावापृ वी य म आते ह. (६) अ ने जुष व त हय त चो म वधाव ऋतजात सु तो. यो व तः यङ् ङ स दशतो र वः स ौ पतुमाँ इव यः.. (७) हे अ न! तुम ह का सेवन करो एवं य तो सुनने क इ छा करो. हे स ताकारक, अ यु , य के न म -उ प तथा शोभन-बु अ न! तुम सम त व के अनुकूल, सबके दशनीय, रमणशील एवं भूत-अ के वामी के समान सबके आ यदाता हो. (७)
सू —१४५
दे वता—अ न
तं पृ छना स जगामा स वेद स च क वाँ ईयते सा वीयते. त म स त शष त म यः स वाज य शवसः शु मण प तः.. (१) हे यजमानो! उन अ न से पूछो. वे सव जाते ह, इस लए वे ही जानते ह. वे ही चेतना वाले ह. वे ही जानने यो य बात को जानने के लए शी जाते ह. अ न म शासन क यो यता है एवं उ ह म सवफलसाधक य क मता है. वे ही अ , बल एवं बलवान् के पालनक ा ह. (१) त म पृ छ त न समो व पृ छ त वेनेव धीरो मनसा यद भीत्. न मृ यते थमं नापरं वचोऽ य वा सचते अ पतः.. (२) सब लोग अ न को पूछते ह. उनके अ त र अ य कसी को नह पूछते. धीर अ न पूछने पर वही बात बताते ह जो उनके मन म होती है, के अनुकूल उ र नह दे ते. ये अ न अपने वा य से पहले और बाद के वचन को सहन नह करते. इस कारण दं भहीन अ न का ही सहारा लेता है. (२) त मद् ग छ त जु १ तमवती व ा येकः शृणव चां स मे. पु ैष ततु रय साधनोऽ छ ो तः शशुराद सं रभः.. (३) जु नामक पा म रखे ए आ य आ द अ न के ही पास आते ह. ा त भरी तु तयां उ ह को मलती ह. एकमा वे ही तु तवचन को पूण प से सुनते ह. अ न सबके आ ाकारक, तारणक ा, य साधन, अ व छ र ासंप , यकारी एवं य क ह व को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वीकार करने वाले ह. (३) उप थायं चर त य समारत स ो जात त सार यु ये भः. अ भ ा तं मृशते ना े मुदे यद ग छ युशतीर प तम्.. (४) अ वयु जस समय अ न को उ प करने का य न करता है, तभी ये उप थत हो जाते ह. ये उ प होने के त काल बाद ही मलने यो य व तु से मल जाते ह. वृ को ा त करके ये थके ए यजमान क आनंद ा त के लए उसके ारा कए गए कम को वीकार करते ह. (४) स मृगो अ यो वनगु प व युपम यां न धा य. वी युना म य योऽ न व ाँ ऋत च स यः.. (५) वे ही अ न वचा के समान व तृत वेद पर धारण कए जाते ह. अ न अ वेषणशील, ग तसंप एवं वन म जाने वाले ह. सव एवं य ा द के ाता अ न यजमान आ द मनु य के लए य करने का ान वशेष प से दे ते ह. (५)
सू —१४६
दे वता—अ न
मूधानं स तर मं गृणीषेऽनूनम नं प ो प थे. नष म य चरतो ुव य व ा दवो रोचनाप वांसम्.. (१) तीन म तक वाले, सात र मय वाले, माता- पता क गोद म बैठे ए एवं वकलतार हत अ न क तु त करो. चंचलतार हत, सव जाने म समथ एवं काशयु अ न के तेज को दे खने के लए वग से आए ए तेज वी वमान अ न को घेरे ए ह. (१) उ ा महाँ अ भ वव एने अजर त था वतऊ तऋ वः. उ ाः पदो न दधा त सानौ रह यूधो अ षासो अ य.. (२) फलदाता एवं महान् अ न मतवाले बैल के समान धरती और आकाश को ा त करते ह. ये जरार हत एवं परमपू य अ न दे व हमारी र ा करते ए थत ह. ये व तृत पृ वी पर पवत क चोट के समान उठ ई वेद पर चरण रखते ह एवं इनक चमकती ई लपट आकाश को चाटती ह. (२) समानं व सम भ स चर ती व व धेनू व चरतः सुमेके. अनपवृ याँ अ वनो ममाने व ा केताँ अ ध महो दधाने.. (३) यजमान एवं उसक प नी पी दो गाएं कुशलतापूवक सेवा करती ई अ न पी एक ही बछड़े के समीप जाती ह. वे दोन नदनीय दोष से र हत, अ न के माग का नमाण करने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले एवं सम त कार के ान को धारण करने वाले ह. (३) धीरासः पदं कवयो नय त नाना दा र माणा अजुयम्. सषास तः पयप य त स धुमा वरे यो अभव सूय नॄन्.. (४) बु मान् एवं य व ध को जानने वाले अ वयु इस अजीण अ न को वे दका पर था पत करते ह एवं व वध य न ारा इसक र ा करते ह. जो लोग य फल पाने क अ भलाषा से फलदाता अ न क सेवा करते ह, उनके सम ये सूय प म य होते ह. (४) द े यः प र का ासु जे य ईळे यो महो अभाय जीवसे. पु ा यदभव सूरहै यो गभ यो मघवा व दशतः.. (५) यह अ न दस दशा म दे खने क इ छा के वषय बनते ह. इसी कारण अ न जयशील एवं तु तयो य बनते ह. ये महान् दे वा द एवं ु मनु या द सबके जीवन हेतु ह. जस कार पता ब चे का पालन करता है, उसी कार अ यु एवं सबके दशनीय अ न अनेक थान म यजमान का पालन एवं र ा करते ह. (५)
सू —१४७
दे वता—अ न
कथा ते अ ने शुचय त आयोददाशुवाजे भराशुषाणाः. उभे य ोके तनये दधाना ऋत य साम णय त दे वाः.. (१) हे अ न! तु हारी चमकती ई और सोखने वाली लपट अ एवं आयु कस कार दे ती ह, जनसे पु -पौ आ द के लए अ एवं आयु ा त करते ए य संबंधी साममं का गान करते ह? (१) बोधा मे अ य वचसो य व मं ह य भृत य वधावः. पीय त वो अनु वो गृणा त व दा ते त वं व दे अ ने.. (२) हे युवा एवं ह ा यु अ न! इस समय बोले जाते ए मेरे महान् एवं पूजनीय तु तवचन को सुनो. कोई तु हारी तु त और कोई नदा करता है. हे अ न! म तो तु हारी वंदना करने वाला ं एवं तु हारी तु त करता ं. (२) ये पायवो मामतेयं ते अ ने प य तो अ धं रतादर न्. रर ता सुकृतो व वेदा द स त इ पवो नाह दे भुः.. (३) हे अ न! तुम सब कुछ जानने वाले हो. तु हारी जन पालक और स करण ने ममता के अंधे पु द घतमा को अंधेपन के ःख से बचाया था, तुम अपनी उन करण क ******ebook converter DEMO Watermarks*******
र ा करो. तु हारे ारा र त हम लोग का वनाश श ु नह कर पाएंगे. (३) यो नो अ ने अर रवाँ अघायुररातीवा मचय त येन. म ो गु ः पुनर तु सो अ मा अनु मृ ी त वं ै ः.. (४) हे अ न! जो हमारे त मारण आ द पाप का अ भलाषी है, दान नह दे ता, मान सक एवं वा चक दोन कार के मं ारा जो हम दान दे ने से रोकता है, उसके लए मं का पहला मान सक प दय का भार बने एवं सरा वा चक प वा य उसका ही शरीर न करे. (४) उत वा यः सह य व ा मत मत मचय त येन. अतः पा ह तवमान तुव तम ने मा कन रताय धायीः.. (५) हे बलपु अ न! जो वा चक एवं मान सक दोन कार के मं ारा मनु य को भा वत करता है, हे तूयमान अ न! म ाथना करता ं क मुझ तु तक ा क ऐसे से र ा करो एवं मुझे पाप का भाजक मत बनाओ. (५)
सू —१४८
दे वता—अ न
मथी द व ो मात र ा होतारं व ा सुं व दे म्. न यं दधुमनु यासु व ु व१ण च ं वपुषे वभावम्.. (१) वायु ने लक ड़य के भीतर व होकर दे व के होता, नाना प धारण करने वाले एवं सम त दे व से संबं धत य काय करने म कुशल अ न को बढ़ाया. ाचीन काल म दे व ने इसी अ न को ऋ वज् प म य स के लए धारण कया था. (१) ददान म ददभ त म मा नव थं मम त य चाकन्. जुष त व ा य य कम प तु त भरमाण य कारोः.. (२) अ न को उ म ह या तु त दे ने वाले मुझको श ु न नह कर सकते. अ न मेरे उ म तो क कामना करते ह. तु त करने वाले यजमान ारा दए गए ह वीकार करते ह. (२) न ये च ु यं सदने जगृ े श त भद धरे य यासः. सू नय त गृभय त इ ाव ासो न र यो रारहाणाः.. (३) य
यो य यजमान जस अ न को न य अ न थान म धारण करते ह एवं तु तयां करते ए था पत करते ह, उसी अ न को ऋ वज ने शी गामी एवं रथ म जुड़े ए घोड़े के समान य के न म न मत कया. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु ण द मो न रणा त ज भैरा ोचते वन आ वभावा. आद य वातो अनु वा त शो चर तुन शयामसनामनु ून्.. (४) वनाशक अ न अपने शखा पी दांत से व वध कार के वृ को न करते ह एवं व वध काशयु होकर द त होते ह. जस कार फकने वाले के पास से बाण शी तापूवक जाता है, उसी कार वायु अ न का म बनकर चलता है. (४) न यं रपवो न रष यवो गभ स तं रेषणा रेषय त. अ धा अप या न दभ भ या न यास ेतारो अर न्.. (५) अर ण के म य म वतमान जसको श ु ःख नह दे सकते, अंधा भी उस अ न के मह व को न नह कर सकता. अ वचलभ वाले यजमान य ा द ारा उसी अ न को तृ त करते एवं उसक र ा करते ह. (५)
सू —१४९
दे वता—अ न
महः स राय एषते प तद न इन य वसुनः पद आ. उप ज तम यो वध त्.. (१) पू य गौ आ द धन के वामी अ न मनचाही व तुएं दान करते ए दे वय के सामने जाते ह. वा मय के भी वामी अ न धन के आ य वेद का सहारा लेते ह. सोम कूटने के लए हाथ म प थर लए ए यजमान आए ए अ न क सेवा करते ह. (१) स यो वृषा नरां न रोद योः वो भर त जीवपीतसगः. यः स ाणः श ीत योनौ.. (२) वे अ न मनु य के समान ही धरती और आकाश के भी उ प करने वाले ह. वे यश से शो भत ह एवं उ ह ने जीव को नाना कार से वाद ा त कराया है. वे अपनी वेद पी यो न म व होकर ा त पुरोडाश आ द को पचाते ह. (२) आ यः पुरं ना मणीमद दे द यः क वनभ यो३ नावा. सूरो न वा छता मा.. (३) ांतदश एवं आकाश म मण करने म कुशल वायु के समान अपे त थान म जाने वाले अ न यजमान ारा बनाई ई वेद को द त करते ह. सैकड़ कार के प वाले अ न सूय के समान का शत होते ह. (३) अ भ ज मा ी रोचना न व ा रजां स शुशुचानो अ थात्. होता य ज ो अपां सध थे.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दो अर णय ारा उ प अ न तीन लोक को का शत करते ए एवं सम त संसार को आलो कत करते ए थत होते ह. वे दे व को बुलाने वाले एवं य क ा बनकर ो णी आ द पा के जल के समीप थत होते ह. (४) अयं स होता यो ज मा व ा दधे वाया ण व या. मत यो अ मै सुतुको ददाश.. (५) जो अ न ज मा ह, वे ही य न प क ा एवं सम त उ म धन को ह ा तक इ छा से धारण करते ह. इन अ न के लए जो ह व दे ता है, वह उ म पु वाला बनता है. (५)
दे वता—अ न
सू —१५० पु
वा दा ा वोचेऽ रर ने तव वदा. तोद येव शरण आ मह य.. (१)
हे अ न! मने तु ह तु हारा य ह दया है. इस लए म भां त-भां त क ाथनाएं कर रहा ं. म तु हारा ही सेवक ं. जस कार महान् वामी के घर म सेवक रहता है, उसी कार तु हारे य थल म म नवास करता ं. (१) नन य ध ननः होषे चदर षः. कदा चन
जगतो अदे वयोः.. (२)
हे अ न दे व! जो धनी लोग तु ह वामी नह मानते, जो उ म य के लए द णा नह दे ते एवं जो दे व क तु त नह करते, उन दे व वरोधी लोग को धन मत दे ना. (२) स च ो व म य महो ाध तमो द व.
े े अ ने वनुषः याम.. (३)
हे अ न! जो बु मान् मनु य तु हारा य करता है, वह आकाश म चं मा के समान सबका आ ादक बनता है एवं धान का भी धान होता है. इस लए हम वशेष प से तु हारे सेवक ह. (३)
सू —१५१
दे वता— म व व ण
म ं न यं श या गोषु ग वः वा यो वदथे अ सु जीजनन्. अरेजेतां रोदसी पाजसा गरा त यं यजतं जनुषामवः.. (१) गाय के वामी होने के इ छु क एवं शोभन यान वाले यजमान ने गाय क ा त के न म एवं अपने मनु य क र ा के लए म के सेमान जस अ न को जल के भीतर य कम से उ प कया, धरती और आकाश जस अ न के बल और श द से कांपते ह, उसी य एवं य साधन अ न क वे र ा करते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य य ां पु मीळ् ह य सो मनः म ासो न द धरे वाभुवः. अध तुं वदतं गातुमचत उत ुतं वृषणा प यावतः.. (२) हे म एवं व ण! तुम व वध इ छाएं पूण करने वाले हो. तु हारे म बने ए ऋ वज ने अ भलाषा पूण करने वाला एवं कम करने क ेरणा दे ने वाला सोमरस धारण कया है. इस लए तुम दोन अपने सेवक के घर जाओ और उसक पुकार सुनो. (२) आ वां भूष तयो ज म रोद योः वा यं वृषणा द से महे. यद मृताय भरथो यदवते हो या श या वीथो अ वरम्.. (३) हे कामवषक म और व ण! यजमान सम त श यां पाने के उ े य से धरती और आकाश म आपके तु त यो य ज म क शंसा करते ह. तुम अपने पूजक यजमान को अभी फल दे ते हो एवं तु तवचन तथा ह दान आ द कम को वीकार करते हो. (३) सा तरसुर या म ह य ऋतावानावृतमा घोषथो बृहत्. युवं दवो बृहतो द माभुवं गां न धुयुप यु ाथे अपः.. (४) हे बलशाली म एवं व ण! जो य थल क भू म आपको ब त अ धक यारी है, उसे भली कार सुशो भत कर दया गया है. हे स यवा दयो! उस पर बैठकर हमारे वशाल य क शंसा करो. जस कार शारी रक बल ा त करने के लए गाय के ध का उपभोग कया जाता है, उसी कार आप आकाश म थत दे व को स करने के लए सव होने वाले य को वीकार करते हो. (४) मही अ म हना वारमृ वथोऽरेणव तुज आ स धेनवः. वर त ता उपरता त सूयमा न ुच उषस त ववी रव.. (५) हे म और व ण! तुम अपने मह व के कारण गाय को वशाल धरती के जस उ म थान म ले जाते हो, वे चोर आ द के अपहरण से सुर त गोशाला म लौट आती ह एवं चुर ध दे ती ह. जस कार चोर ारा पकड़े गए लोग च लाते ह, उसी कार वे गाएं सांझसवेरे आकाश थत सूय क ओर दे खकर रंभाती ह. (५) आ वामृताय के शनीरनूषत म य व ण गातुमचथः. अव मना सृजतं प वतं धयो युवं व य म मना मर यथः.. (६) हे म और व ण! तुम जस य दे श म जाना वीकार कर लेते हो, वहां केश वाली अ न वालाएं तु हारे य के न म तु हारी पूजा करती ह. तुम आकर नीचे क ओर वषा को े रत करो एवं मेधावी यजमान क उ म तु तयां वीकार करो. (६) यो वां य ैः शशमानो ह दाश त क वह ता यज त म मसाधनः. उपाह तं ग छथो वीथो अ वरम छा गरः सुम त ग तम मयू.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो मेधावी एवं भली-भां त य संप करने वाला यजमान उ म य साधन ारा तु हारे न म सोमयाग आ द के उ े य से तु त करता आ ह दे ता है, उसी शोभनम त यजमान के समीप जाओ एवं उसी के य क अ भलाषा करो. तुम हम पर कृपा क कामना करते ए हमारी तु तय को वीकार करो. (७) युवां य ैः थमा गो भर त ऋतावाना मनसो न यु षु. भर त वां म मना संयता गरोऽ यता मनसा रेवदाशाथे.. (८) हे य शाली म एवं व ण! जस कार कसी काम म सबसे पहले मन लगाया जाता है, उसी कार यजमान य म सबसे पहले तु ह घृता द ह से पू जत करते ह. वे तुमम भली-भां त संल न च से तु त करते ह. तुम स च से अ यु य म पधारो. (८) रेव यो दधाथे रेवदाशाथे नरा माया भ रतऊ त मा हनम्. न वां ावोऽह भन त स धवो न दे व वं पणयो नानशुमघम्.. (९) हे म एवं व ण! तुम दोन धनस हत अ धारण करते हो, इस लए धनयु अ दान करो. वह वशाल धन तु हारी बु ारा र त है. दन एवं रात को तु हारे समान श ा त नह है. न दय और प णय ने तु हारा दे व व नह पाया. प णय को तो तु हारे समान धन भी ा त नह है. (९)
सू —१५२
दे वता— म व व ण
युवं व ा ण पीवसा वसाथे युवोर छ ा म तवो ह सगाः. अवा तरतमनृता न व ऋतेन म ाव णा सचेथे.. (१) हे म और व ण! तुम दोन मोटे एवं तेज वी व धारण करो. तु हारे ारा क गई सृ यां नद ष एवं मनोहर ह. तुम दोन सम त अस य का वनाश करके हम स य से यु करो. (१) एत चन वो व चकेतदे षां स यो म ः क वश त ऋघावान्. र ह त चतुर ो दे व नदो ह थमा अजूयन्.. (२) हे म और व ण! तुम दोन म से येक वशेष प से कम करता है, स यभाषी, मननशील, मेधा वय ारा शंसनीय एवं श ुनाशक है, चार अ धारण करके तीन अ धारण करने वाल का नाश करता है एवं येक के साम य से दे व नदक लोग पहले ही समा त हो जाते ह. (२) अपादे त थमा प तीनां क त ां म ाव णा चकेत. गभ भारं भर या चद य ऋतं पप यनृतं न तारीत्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म और व ण! चरणहीन उषा पैर वाले मनु य से पहले ही आ जाती है. ऐसा तु हारे ही कारण होता है, इस बात को कौन जानता है? तुम दोन के पु सूय स य क पू त एवं अस य का वरोध करने का भार धारण करते ह. (३) य त म प र जारं कनीनां प याम स नोप नप मानम्. अनवपृ णा वतता वसानं यं म य व ण य धाम.. (४) हम कमनीय उषा के ेमी सूय को सदा चलता आ दे खते ह, कभी दे खते. व तृत तेज को धारण करने वाले सूय म व व ण के य ह. (४)
थर नह
अन ो जातो अनभीशुरवा क न द पतय वसानुः. अच ं जुजुषुयुवानः म े धाम व णे गृण तः.. (५) सूय अ एवं लगाम के अभाव म भी शी गमन करते ह, जोर से गरजते ह एवं मशः ऊपर चढ़ते जाते ह. लोग इन अ च य एवं महान् कम को म एवं व ण का समझकर बारबार तु तयां करते ए सेवा करते ह. (५) आ धेनवो मामतेयमव ती यं पीपय स म ध ू न्. प वो भ ेत वयुना न व ानासा ववास द तमु येत्.. (६) य य एवं ममता के पु द घतमा क र ा करती गाएं अपने थन के ध से उसे तृ त कर. वे य ानु ान को जानती द घतमा के पता एवं माता से तशेष अ खाने के लए मांग एवं तुम दोन क सेवा करती य को अखं डत प से र त कर. (६) आ वां म ाव णा ह जु नमसा दे वाववसा ववृ याम्. अ माकं पृतनासु स ा अ माकं वृ द ा सुपारा.. (७) हे म और व ण दे वो! म अपनी र ा के न म तु हारे त नम कारयु तो से ह दे ने का य न क ं गा. हमारा यह य कम यु म श ु को हरावे एवं द वषा हमारा उ ार करे. (७)
सू —१५३
दे वता— म व व ण
यजामहे वां महः सजोषा ह े भ म ाव णा नमो भः. घृतैघृत नू अध य ाम मे अ वयवो न धी त भभर त.. (१) ह
हे घृतवषक एवं महान् म , व ण! समान ी त वाले हमारे अ वयु और हम यजमान ारा तु हारी पूजा एवं अपनी तु तय ारा तु हारा पोषण करते ह. (१)
तु तवा धाम न यु रया म म ाव णा सुवृ ः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अन
य ां वदथेषु होता सु नं वां सू रवृषणा वय न्.. (२)
हे म और व ण! म तु हारे य का ताव मा करता ,ं योग नह कर पाता. इतने से ही म तु हारा तेज ा त कर लेता ं. हे कामवषको! जब तु हारे बु मान् होता तु हारे लए हवन करते ह, उस समय वे सुख के भागी बनते ह. (२) पीपाय धेनुर द तऋताय जनाय म ाव णा ह वद. हनो त य ां वदथेषु सपय स रातह ो मानुषो न होता.. (३) हे म और व ण! जैसे रातह नामक राजा ने साधारण मनु य प यजमान के होता के समान य म अपनी सेवा से तु ह स कया था और उसक गाएं ब त ध वाली बन गई थ , उसी कार तु ह ह दे ने वाले मेरी गाएं ध वाली बनकर मुझे तृ त कर. (३) उत वां व ु म ा व धो गाव आप पीपय त दे वीः. उतो नो अ य पू ः प तद वीतं पातं पयस उ यायाः.. (४) हे म और व ण! अ , द गाएं एवं जल तु हारी कृपा ा त करने वाले यजमान को स कर. हमारे यजमान के पूवकालीन पालक अ न दाता ह . तुम दोन धा गाय का ध पओ. (४)
सू —१५४
दे वता— व णु
व णोनु कं वीया ण वोचं यः पा थवा न वममे रजां स. यो अ कभाय रं सध थं वच माण ेधो गायः.. (१) हे मानवो! म उन वीर कम को शी क ंगा. उ ह ने पृ वी और तीन लोक को नापा था एवं अ त व तृत अंत र को थर कया था. अनेक कार से तु तपा उन व णु ने तीन चरण रखे थे. (१) त णुः तवते वीयण मृगो न भीमः कुचरो ग र ाः. य यो षु षु व मणे व ध य त भुवना न व ा.. (२) जस व णु के तीन वशाल पाद ेप म संपूण लोग समा जाते ह, उस व णु क तु त लोग उसक श के कारण उसी कार करते ह, जस कार कसी पहाड़ पर रहने वाले लोग हसक, जंगली पशु क श क शंसा करते ह. (२) व णवे शूषमेतु म म ग र त उ गायाय वृ णे. य इदं द घ यतं सध थमेको वममे भ र पदे भः.. (३) पवत के समान ऊंचे थान पर रहने वाले, अनेक लोग ारा शं सत एवं कामवषक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व णु को हमारे मनोहर तो एवं य कम से उ प श ा त हो. उ ह ने अ यंत व तृत एवं थर इन तीन को अकेले ही तीन कदम रखकर नाप लया था. (३) य य ी पूणा मधुना पदा य ीयमाणा वधया मद त. य उ धातु पृ थवीमुत ामेको दाधार भुवना न व ा.. (४) जस व णु के मधु से पूण एवं ीणतार हत तीन चरण ने अ ारा मनु य को स कया है, उ ह ने अकेले ही तीन धातु , धरती, आकाश एवं सम त लोक को धारण कया है. (४) तद य यम भ पाथो अ यां नरो य दे वयवो मद त. उ म य स ह ब धु र था व णोः पदे परमे म व उ सः.. (५) वयं को व णु प म प रव तत करके इ छु क लोग व णु के जस य एवं सबके ारा सेवनीय अ वनाशी लोक म तृ त ा त करते ह, म उसी लोक को ा त क ं . वे सबके बंधु ह एवं उनके थान पर अमृत बरसता है. (५) ता वां वा तू यु म स गम यै य गावो भू रशृ ा अयासः. अ ाह त गाय य वृ णः परमं पदमव भा त भू र.. (६) हे यजमान एवं यजमान प नी! हम तुम दोन के उस लोक म जाने क अ भलाषा करते ह, जहां बड़े सीग वाली गाएं नवास करती ह. अनेक लोग ारा शं सत व णु का परम पद सभी कार सुशो भत होता है. (६)
सू —१५५
दे वता—इं व व णु
वः पा तम धसो धयायते महे शूराय व णवे चाचत. या सानु न पवतानामदा या मह त थतुरवतेव साधुना.. (१) हे अ वयु लोगो! तुम तु त चाहने वाले, महावीर इं एवं व णु के न म पीने के यो य सोमरस वशेष प से तैयार करो. वे दोन अपराजेय, महान् एवं पवत के ऊपर इस कार थत ह, जस कार कोई इ छत थान पर प ंचने म समथ घोड़े पर बैठता है. (१) वेष म था समरणं शमीवतो र ा व णू सुतपा वामु य त. या म याय तधीयमान म कृशानोर तुरसनामु यथः.. (२) हे इ द इं व व णु! य से बचे ए सोमरस को पीने वाले यजमान तु हारे य थल पर तेज वी आगमन का आदर करते ह. तुम दोन यजमान के लए य फल प म दे ने यो य अ श ुपराजयकारी अ न से सदा दलाते हो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता वध त म य प यं न मातरा नय त रेतसे भुजे. दधा त पु ोऽवरं परं पतुनाम तृतीयम ध रोचने दवः.. (३) यजमान ारा द ग सोमरस पी आ तयां इं क श को बढ़ाती ह, वह सब ा णय को पु ा द उ पादन म समथ करने एवं र ा पाने के उ े य से उसी श को सबक माता तु य धरती और आकाश म रखते ह. पु का नाम न न, पता का उ च और तीसरे नाती का नाम काशयु आकाश म है. (३) त दद य प यं गृणीमसीन य ातुरवृक य मी षः. यः पा थवा न भ र गाम भ म ो गायाय जीवसे.. (४) हम सबके वामी, पालक, हसक एवं न य त ण व णु के परा म क तु त करते ह. उ ह ने तीन लोक क शंसनीय र ा के लए तीन चरण रखकर पृ वी आ द सम त लोक क प र मा कर ली थी. (४) े इद य मणे व शोऽ भ याय म य भुर य त. तृतीयम य न करा दधष त वय न पतय तः पत णः.. (५) मनु य वभू तय का वणन करते ए वगदश व णु के दो चरण ेप को ही ा त करते ह. उनके तीसरे पाद ेप को मनु य या आकाश म उड़ने वाले प ी भी नह पा सकते. (५) चतु भः साकं नव त च नाम भ ं न वृ ं त रवी वपत्. बृह छरीरो व ममान ऋ व भयुवाकुमारः ये याहवम्.. (६) व णु ने अपनी वशेष ग तय ारा काल के चौरासी भाग को च के समान गोलाकार म घुमा रखा है. वह वशाल शरीर वाले, व वध ा णय को वभ करने वाले, तु तसंप , त ण एवं कौमायर हत ह. वे यु म गमन करते ह. (६)
सू —१५६
दे वता— व णु
भवा म ो न शे ो घृतासु त वभूत ु न एवया उ स थाः. अधा ते व णो व षा चद यः तोमो य रा यो ह व मता.. (१) हे व णु! तुम म के समान सुखक ा, घृत क आ त के पा , अ धक अ यु , र णक ा एवं सबसे अ धक व थ हो, इस लए तु हारी तु तयां ानी यजमान ारा बारबार वृ करने यो य ह. तु हारा य ह संप यजमान ारा पूण करने यो य है. (१) यः पू ाय वेधसे नवीयसे सुम जानये व णवे ददाश त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो जातम य महतो म ह व से
वो भयु यं चद यसत्.. (२)
जो लोग न य, जगत्क ा, नवीनतम तथा वयं उ प व णु को ह दे ते ह एवं जो इस महापु ष के पू य ज म वृ ांत को कहते ह, वे ही इनका सामी य पाते ह. (२) तमु तोतारः पू यथा वद ऋत य गभ जनुषा पपतन. आ य जान तो नाम च व न मह ते व णो सुम त भजामहे.. (३) हे तोताओ! ाचीन एवं य के गभ प व णु को तुम जैसा जानते हो, उ ह उसी कार वयं स करो एवं उनका नाम जानकर भली-भां त क तन करो. हे महान् व णु! हम तु हारी तु त क सेवा करते ह. (३) तम य राजा व ण तम ना तुं सच त मा त य वेधसः. दाधार द मु ममह वदं जं च व णुः स खवाँ अपोणुते.. (४) तेज वी व ण एवं अ नीकुमार ऋ वज वाले यजमान के य प व णु क सेवा करते ह. यजमान आ द क म ता से यु व णु उ म एवं वग पादक बल को धारण करते ह एवं मेघ को बरसने के लए आवरणर हत करते ह. (४) आ यो ववाय सचथाय दै इ ाय व णुः सुकृते सुकृ रः. वेधा अ ज वत् षध थ आयमृत य भागे यजमानमाभजत्.. (५) जो व णु द एवं शोभन फलदाता म े होते ए उ म कम करने वाले इं के साथ मलकर य क सहायता करने के लए आते ह, वे ही अ भमत फलदाता एवं तीन लोक म थत व णु आने वाले यजमान को स करते थे एवं उसे य का भाग दे ते थे. (५)
सू —१५७
दे वता—अ नीकुमार
अबो य न म उदे त सूय १ ु षा ा म ावो अ चषा. आयु ाताम ना यातवे रथं ासावी े वः स वता जग पृथक्.. (१) वेद पी धरती पर अ न जगे, सूय का उदय आ और महती उषा अपने तेज से ा णय को स करती ई अंधकार का वनाश करने लगी. हे अ नीकुमारो! य दे श म आने के लए अपना रथ तैयार करो. स वता दे वता सम त संसार को अपने-अपने काम म लगाव. (१) य ु ाथे वृषणम ना रथं घृतेन नो मधुना मु तम्. अ माकं पृतनासु ज वतं वयं धना शूरसाता भजेम ह.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श
हे अ कुमारो! तुम अपने वषाकारक रथ को तैयार करते समय मधुर जल ारा हमारी बढ़ाओ, हमारी जा का तेज बढ़ाओ एवं वीर के सं ाम म हम धन दो. (२) अवाङ् च ो मधुवाहनो रथो जीरा ो अ नोयातु सु ु तः. व धुरो मघवा उ व सौभगः शं न आ व द् पदे चतु पदे .. (३)
अ नीकुमारो का तीन प हय वाला मधुवाहक, ग तशील अ से यु , शं सत, तीन बंधन वाला, धनसंप एवं सम त सौभा य से यु रथ हमारे दो पैरो वाले पु ा द और चार पैर वाले पशु को सुख दान करे. (३) आ न ऊज वहतम ना युवं मधुम या नः कशया म म तम्. ायु ता र ं नी रपां स मू तं सेधतं े षो भवतं सचाभुवा.. (४) हे अ नीकुमारो! तुम दोन हम पया त बल दो. अपनी मधु वाली कशा से हम स बनाओ, हमारी आयु क वृ करो, हमारे पाप को र करो, श ु का नाश करो और सम त काय म हमारे साथी बनो. (४) युवं ह गभ जगतीषु ध थो युवं व ेषु भुवने व तः. युवम नं च वृषणावप वन पत र नावैरयेथाम्.. (५) हे अ नीकुमारो! तुम गाय एवं सम त ा णय म थत गभ क र ा करो. हे कामवषको! तुम अ न, जल एवं वन प तय को े रत करो. (५) युवं ह थो भषजा भेषजे भरथो ह थो र या३ रा ये भः. अथो ह म ध ध थ उ ा यो वां ह व मा मनसा ददाश.. (६) हे अ नीकुमारो! तुम ओष धय के ान के कारण वै एवं रथ को ढोने म समथ अ के कारण रथी हो. हे अ धक बल धारण करने वाले अ नीकुमारो! जो तु हारे लए मन से ह दान करे, उसक र ा करो. (६)
सू —१५८
दे वता—अ नीकुमार
वसू ा पु म तू वृध ता दश यतं नो वृषणाव भ ौ. द ा ह य े ण औच यो वां य स ाथे अकवा भ ती.. (१) हे कामवषक, जा को वासदाता, पापनाशक, य दाता, तु तय ारा बढ़ते ए एवं पू जत अ नीकुमारो! तुम हम इ छत फल दो, य क उच य का पु द घतमा तु त ारा धन क ाथना करता है एवं तुम तु तयां सुनकर र ा दान करते हो. (१) को वां दाश सुमतये चद यै वसू य े थे नमसा पदे गोः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जगृतम मे रेवतीः पुर धीः काम ेणेव मनसा चर ता.. (२) हे वासदाता अ नीकुमारो! तु हारी अनु ह बु के अनुकूल तु ह कौन ह दे सकता है? तुम न त य वेद पर आने के लए हमारा बुलावा सुनकर हम पया त अ दे ने का न य करके आते हो. हम ब त सी गाएं दो जो हमारा शरीर पु कर, रंभाती ह और धा ह . तुम यजमान क कामनाएं पूरी करने क इ छा से घूमते हो. (२) यु ो ह य ां तौ याय ् पे व म ये अणसो धा य प ः. उप वामवः शरणं गमेयं शूरो ना म पतय रेवैः.. (३) हे अ नीकुमारो! तु हारा पार प ंचाने वाला रथ तु पु के उ ार के लए अ यु था. तुमने उस रथ को अपनी श से समु के बीच था पत कया. जस कार शूर यु जीत कर ग तशील अ ारा अपने घर म प ंचता है, उसी कार हम तु हारी शरण म आए ह. (३) उप तु तरौच यमु ये मा मा ममे पत णी व धाम्. मा मामेधो दशतय तो धाक् य ां ब म न खाद त ाम्.. (४) हे अ नीकुमारो! तु हारे उ े य से क गई तु त उच य के पु द घतमा क दाह आ द से र ा करे तथा रात एवं दन मुझे सारहीन न करे. दस बार व लत अ न मुझे न जलावे. तु हारा यह भ पाश से बंधा आ धरती पर लोट रहा है. (४) न मा गर ो मातृतमा दासा यद सुसमु धमवाधुः. शरो यद य ैतनो वत वयं दास उरो अंसाव प ध.. (५) माता के समान संसार का हत करने वाली न दयां मुझे न डु बाव. अनाय दास ने मुझे अ छ तरह बंधन से जकड़ कर नीचे को मुख करके गराया है. तन नामक दास ने अनेक कार से मेरा सर काटने का य न कया था एवं सीने तथा दोन कंध पर भी चोट क थी. (५) द घतमा मामतेयो जुजुवा दशमे युगे. अपामथ यतीनां
ा भव त सार थः.. (६)
ममता के पु द घतमा अ नीकुमार के भाव से दसव युग म वृ ए थे. वे वगा द कमफल पाने वाली जा के नेता एवं सार थ के समान नदशक ए. (६)
सू —१५९
दे वता— ावा-पृ वी
ावा य ैः पृ थवी ऋतावृधा मही तुषे वदथेषु चेतसा. दे वे भय दे वपु े सुदंससे था धया वाया ण भूषतः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म यजमान य के बढ़ाने वाले, व तृत य म हम सावधान करने वाले, दे वपु ारा से वत एवं शोभनकमयु यजमान वाले धरती व आकाश क वशेष प से तु त करता ं. वे हमारे त अनु ह बु रखते ए उ म धन दे ते ह. (१) उत म ये पतुर हो मनो मातुम ह वतव त वीम भः. सुरेतसा पतरा भूम च तु जाया अमृतं वरीम भः.. (२) म पु के त ोहहीन धरती पी माता और आकाश पी पता को आ ान मं ारा अनु हयु मन वाला जानता ं. ये दोन माता- पता अपने शोभन साम य से यजमान क व तृत र ा करते ए पया त अमृत दे ते ह. (२) ते सूनवः वपसः सुदंससो मही ज ुमातरा पूव च ये. थातु स यं जगत धम ण पु य पाथः पदम या वनः.. (३) शोभन कम वाली और सुदशन जाएं तु हारे ारा पूवकृत अनु ह को मरण करके तु ह महान् एवं माता के समान हतकारी जानती ह. पु प थावर और जंगम ावापृ वी को अ तीय जानते ह. तुम इनक र ा का अबाध माग बताओ. (३) ते मा यनो म मरे सु चेतसो जामी सयोनी मथुना समोकसा. न ं त तुमा त वते द व समु े अ तः कवयः सुद तयः.. (४) ावापृ वी सदा एक थान पर युगल प म रहने वाली ऐसी जायु एवं चेतनासंप सगी ब हन ह, ज ह करण अलग-अलग करती ह. अपने ापार को जानने वाली काशयु र मयां चमकते ए आकाश म व तृत होती ह. (४) त ाधो अ स वतुवरे यं वयं दे व य सवे मनामहे. अ म यं ावापृ थवी सुचेतुना र य ध ं वसुम तं शत वनम्.. (५) हम यजमान स वता दे व क अनु ा से उस उ म धन को मांगते ह. धरती और आकाश हमारे त अनु हबु के ारा नवास यो य घर एवं सैकड़ गाय के प म धन द. (५)
सू —१६०
दे वता— ावा-पृ वी
ते ह ावापृ थवी व श भुव ऋतावरी रजसो धारय कवी. सुज मनी धषणे अ तरीयते दे वो दे वी धमणा सूयः शु चः.. (१) शु एवं द यमान सूय सम त ा णय को सुख दे ने वाले, य संप , जल उ पादन के य न स हत, शोभनज म वाले एवं अपने कायकुशल धरती और आकाश के बीच म अपनी वशेषता क र ा करता आ सदा गमन करता है. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ चसा म हनी अस ता पता माता च भुवना न र तः. सुधृ मे वपु ये३ न रोदसी पता य सीम भ पैरवासयत्.. (२) व तीण, महान् एवं एक- सरे से अलग, माता एवं पता प धरती-आकाश सम त ा णय क र ा करते ह. अ यंत श संप धरती-आकाश शरीरधा रय के हत के लए चे ा करते ह एवं माता- पता के समान सबको प नमाण से अनुगृहीत करते ह. (२) स व ः पु ः प ोः प व वा पुना त धीरो भुवना न मायया. धेनुं च पृ वृषभं सुरेतसं व ाहा शु ं पयो अ य त.. (३) पावन, र मयु , धीर, फल धारण करने वाले एवं अपनी बु से सम त ा णय को प व करने वाले सूय माता- पता तु य धरती और आकाश के पु ह. वे धरती पी शु लवण धेनु और आकाश पी साम यसंप बैल को का शत करते ह एवं आकाश से उ वल ध हते ह. (३) अयं दे वानामपसामप तमो यो जजान रोदसी व श भुवा. व यो ममे रजसी सु तूययाजरे भः क भने भः समानृचे.. (४) वे सूय दे व एवं कमक ा म अ यंत े ह. उ ह ने ा णय को सभी कार से सुख दे ने वाले धरती और आकाश को उ प एवं शोभन कम क इ छा से दोन को वभ करके मजबूत खूंट ारा थर कया है. (४) ते नो गृणाने म हनी म ह वः ं ावापृ थवी धासथो बृहत्. येना भ कृ ी ततनाम व हा पना यमोजो अ मे स म वतम्.. (५) हमारे ारा जन धरती और आकाश क तु त क जाती है, वे महान् ह एवं हम सव स अ और यश दे ते ह. इ ह के बल पर हमने पु आ द जा का व तार कया है. तुम हम शंसायो य श दान करो. (५)
सू —१६१
दे वता—ऋभु
कमु े ः क य व ो न आजग कमीयते यं१ क चम. न न दम चमसं यो महाकुलोऽ ने ात ण इ तमू दम.. (१) ऋभु ने अ न को दे खकर आपस म कहा—“जो हमारे सामने आया है, यह हमसे अव था म बड़ा है या छोटा? या यह दे व का त बनकर आया है? इसे कस कार न त कर?” इसके प ात् वे अ न से बोले—“ ाता अ न! हम चमस क नदा नह करगे, य क यह महाकुल म उ प आ है. लकड़ी के बने इस चमस क ा त का हम वणन करगे.” (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एकं चमसं चतुरः कृणोतन त ो दे वा अ ुव त आगमम्. सौध वना य ेवा क र यथ साकं दे वैय यासो भ व यथ.. (२) इस पर अ न ने कहा—“सुध वा के पु ऋभुओ! एक चमस के चार भाग कर लो, यह ेरणा दे कर मुझे दे व ने तु हारे समीप भेजा है. म उनक बात तु ह बताने आया ं. य द तुम मेरी बताई ई बात करोगे तो तुम दे व के साथ अंश ा त करोगे.” (२) अ नं तं त यद वीतना ः क व रथ उतेह क वः. धेनुः क वा युवशा क वा ा ता न ातरनु वः कृ ेम स.. (३) “हे आगत अ न! त कम करने वाले तुमसे दे व ने जो कुछ कहा है, उसके अंतगत हम अ एवं रथ का नमाण करना है, चमर हत मृत गौ को नया बनाना है एवं जीण मातापता को युवा करना है. हे ाता! हम इन सब काय को करके तु हारे सामने आएंगे.” (३) चकृवांस ऋभव तदपृ छत वेदभू ः य तो न आजगन्. यदावा य चमसा चतुरः कृताना द व ा ना व त यानजे.. (४) हे ऋभुओ! यह काय करने के प ात् तुमने कया क जो अ न दे व का त बनकर हमारे समीप आया था, वह कहां चला गया? जस समय व ा ने चमस को चार टु कड़ म वभ दे खा तो वयं को ी मानने लगा. (४) हनामैनाँ इ त व ा यद वी चमसं ये दे वपानम न दषुः. अ या नामा न कृ वते सुते सचाँ अ यैरेना क या३ नाम भः परत्.. (५) य ही व ा ने कहा क म दे व के पानपा चमस का अपमान करने वाल का हनन क ं गा, य ही सोमरस तैयार होने पर वे वयं को होता, अ वयु आ द नाम से कट करने लगे एवं उनक माता भी उ ह इ ह नाम से पुकार कर स होने लगी. (५) इ ो हरी युयुजे अ ना रथं बृह प त व पामुपाजत. ऋभु व वा वाजो दे वाँ अग छत वपसी य यं भागमैतन.. (६) इं ने घोड़ को जोड़ा, अ नीकुमार ने रथ तैयार कया एवं बृह प त ने व पा नाम क गौ को नवीन रथ दे ना वीकार कर लया. इस लए हे ऋभु, वभु एवं वाज नामक भाइयो! तुम इं ा द दे व के समीप जाओ. हे शोभन कमक ाओ! तुम लोग य भाग ा त करो. (६) न मणो गाम रणीत धी त भया जर ता युवशा ताकृणोतन. सौध वना अ ाद मत त यु वा रथमुप दे वाँ अयातन.. (७) हे सुध वा के पु ो! तुमने चमर हत मरी ई गाय को अपनी बु से नया बनाया है, बूढ़े माता- पता को युवा कया है एवं एक घोड़े से सरा उ प कया है, इस लए तुम तैयारी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करके इं ा द दे व के सामने आओ. (७) इदमुदकं पबते य वीतनेदं वा घा पबता मु नेजनम्. सौध वना य द त ेव हयथ तृतीये घा सवने मादया वै.. (८) हे दे वो! तुमने हमसे कहा था—“हे सुध वा के पु ो! तुम इसी सोमरस पी जल को पओ अथवा मूंज के तनक से शु कया आ सरा सोमरस पओ. य द तुम इ ह पीना न चाहो तो तीसरे सवन म सोमपान से मु दत बनो.” (८) आपो भू य ा इ येको अ वीद नभू य इ य यो अ वीत्. वधय त ब यः ैको अ वी ता वद त मसाँ अ पशत.. (९) तीन ऋभु म से एक बोला—“जल ही सव म है.” सरे ने अ न एवं तीसरे ने धरती को उ म वीकार कया. इस कार स ची बात कहते ए उ ह ने चमस के चार भाग कए. (९) ोणामेक उदकं गामवाज त मांसमेकः पश त सूनयाभृतम्. आ न ुचः शकृदे को अपाभर कं व पु े यः पतरा उपावतुः.. (१०) ऋभु म से एक लाल रंग का उदक अथात् र धरती पर रखता है, सरा छु री से काटे गए मांस को रखता है एवं तीसरा उस मांस से मलमू साफ करता है. माता- पता ऋभु से या ा त करते ह? (१०) उ व मा अकृणोतना तृणं नव वपः वप यया नरः. अगो य यदस तना गृहे तद ेदमृभवो नानु ग छथ.. (११) हे तेज वी एवं नेता ऋभुओ! तुम मे आ द ऊंचे थान पर ा णय के लए जौ आ द फसल उ प करते हो एवं शोभन कम क इ छा से नीचे थान म जल भरते हो. तुम आ द य मंडल म जतने समय तक रहे, अब उतने समय तक छपकर मत रहो. (११) स मी य य वना पयसपत व व ा या पतरा व आसतुः. अशपत यः कर नं व आददे यः ा वी ो त मा अ वीतन.. (१२) हे ऋभुओ! जस समय तुम सम त जीव को बादल से ढक कर चार ओर जाते हो, उस समय संसार के पालक सूय और चं कहां रहते ह? जो रा स आ द तु हारा हाथ पकड़ते ह, उनका वनाश करो. जो बलवती वाणी से तु ह रोकता है, उसको अ धक मा ा म डराओ. (१२) सुषु वांस ऋभव तदपृ छतागो क इदं नो अबूबुधत्. ानं ब तो बोध यतारम वी संव सर इदम ा यत.. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋभुओ! तुम सूयमंडल म सोकर सूय से पूछते हो—“हे आ द य! हमारे कम क ेरणा कौन दे ता है?” सूय इसका उ र दे ते ह—“तु ह जगाने वाला वायु है. वष तीत होने पर तुम संसार म काश फैलाओ.” (१३) दवा या त म तो भू या नरयं वातो अ त र ेण या त. अ या त व णः समु ै यु माँ इ छ तः शवसो नपातः.. (१४) हे बल के नाती ऋभुओ! तु ह दे खने क अ भलाषा से म त् वग से, अ न धरती से, वायु आकाश से एवं व ण जल से आ रहे ह. (१४)
सू —१६२
दे वता—अ
मा नो म ो व णो अयमायु र ऋभु ा म तः प र यन्. य ा जनो दे वजात य स तेः व यामो वदथे वीया ण.. (१) तु छ मनु य दे वजात एवं शी ग तशाली अ के परा म का वणन कर रहे ह. ऐसे वचारक म , व ण अयमा, आयु, इं , ऋभु ा एवं वायु हमारी नदा न कर. (१) य णजा रे णसा ावृत य रा त गृभीतां मुखतो नय त. सु ाङजो मे य प इ ापू णोः यम ये त पाथः.. (२) ऋ वज् पवान एवं सोने के आभूषण से सजे ए घोड़े के सामने भट करने के उ े य से बकरे को ले जाते ह. ‘म, म’ करता आ अनेक रंग का बकरा इं और पूषा का य है. वह अ के सामने आए. (२) एष छागः पुरो अ ेन वा जना पू णो भागो नीयते व दे ः. अ भ यं य पुरोळाशमवता व ेदेनं सौ वसाय ज व त.. (३) सम त दे व के लए उपयोगी, पर पूषा का अंश वह बकरा शी ग तशाली अ के सामने लाया जाता है. घोड़े के साथ इस बकरे को योग करके व ा दे व के लए वा द भोजन प पुरोडाश बनाया जाए. (३) य व यमृतुशो दे वयानं मानुषाः पय ं नय त. अ ा पू णः थमो भाग ए त य ं दे वे यः तवेदय जः.. (४) जब ऋ वज् ह व के यो य एवं दे व के ा त करने के पा अ को समय-समय पर तीन बार अ न के चार ओर घुमाते ह, तब पूषा का भाग प पहला बकरा अपनी ‘म, म’ से दे वय का चार करता आ जाता है. (४) होता वयुरावया अ न म धो ाव ाभ उत शं ता सु व ः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेन य ेन वरङ् कृतेन व ेन व णा आ पृण वम्.. (५) होता, अ वयु, आवया, अ न मध, ावा ाम, शं ता एवं सु व उस भां त अलंकृत य ारा न दय को जल से भर. (५)
स
एवं भली-
यूप का उत ये यूपवाहा षालं ये अ यूपाय त त. ये चावते पचनं स भर युतो तेषाम भगू तन इ वतु.. (६) जो लोग यूप के लए उपयोगी पेड़ काटने वाले ह, जो यूप के न म कटे ए पेड़ को ढोने वाले ह, जो अ बांधने वाले यूप म चषाल अथात् बांधने यो य सरा बनाते ह अथवा जो घोड़े का मांस पकाने के लए लकड़ी के बरतन तैयार करते ह, इन सबम मेरा संक प समा जाए. (६) उप ागा सुम मेऽधा य म म दे वानामाशा उप वीतपृ ः. अ वेनं व ा ऋषयो मद त दे वानां पु े चकृमा सुब धुम्.. (७) हम उ म फल ा त हो. सुडौल पीठ वाला घोड़ा य फल के प म दे व क आशापू त हेतु आवे. हम उसे बांधगे. इसे दे खकर मेधावी ऋ वज् तु ह . (७) य ा जनो दाम स दानमवतो या शीष या रशना र जुर य. य ा घा य भृतमा ये३ तृणं सवा ता ते अ प दे वे व तु.. (८) घोड़े क गरदन म बांधी जाने वाली, पैर म बांधी जाने वाली एवं लगाम के प म मुख म डाली जाने वाली र सी— ये सब र सयां एवं उसके मुंह म पड़ने वाली घास दे व को ा त हो. (८) यद य वषो म काश य ा वरौ व धतौ र तम त. य तयोः श मतुय खेषु सवा ता ते अ प दे वे व तु.. (९) घोड़े का जो क चा मांस म खयां खाती ह, जो उसे काटते समय छु री म लगा रह जाता है, अथवा काटने वाले के हाथ म लगा रह जाता है, वह भी दे व को ा त हो. (९) य व यमुदर यापवा त य आम य वषो ग धो अ त. सुकृता त छ मतारः कृ व तूत मेधं शृतपाकं पच तु.. (१०) घोड़े के पेट म जो बना पची ई घास रह जाती है एवं पकाते समय जो क चे मांस का अंश बच रहता है, उसे मांस काटने वाले शु कर एवं य के यो य मांस दे व के न म पकाव. (१०) य े गा ाद नना प यमानाद भ शूलं नहत यावधाव त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मा त
यामा
ष मा तृणेषु दे वे य त शद् यो रातम तु.. (११)
हे घोड़े! आग म पकाए जाते ए तु हारे गा से जो रस छलकता है एवं तु ह मारते समय जो र शूल म लग जाता है, वह न धरती पर गरे और न तनक म मले. संपूण क कामना करने वाले दे व को वह दया जाए. (११) ये वा जनं प रप य त प वं य ईमा ः सुर भ नहरे त. ये चावतो मांस भ ामुपासत उतो तेषाम भगू तन इ वतु.. (१२) जो लोग घोड़े के अवयव को पकता आ चार ओर से दे खते ह एवं इस कार कहते ह—“मांस बड़ा सुगं धत है, थोड़ा हम भी दो.” जो लोग घोड़े के मांस क भीख मांगते ह, उनक अ भलाषाएं हम ा त ह . (१२) य ी णं मां पच या उखाया या पा ा ण यू ण आसेचना न. ऊ म या पधाना च णामङ् काः सूनाः प र भूष य म्.. (१३) मांस पकाने वाले पा से रस लेकर जस पा ारा परी ा क जाती है, जो पा उबले ए मांस का रस सुर त रखते ह, जो पा भाप रोकने एवं मांस से भरे पा को ढकने के काम म लाए जाते ह, वे वेतस क शाखाएं, जनसे अ के दय आ द भाग पर नशान लगाते ह, एक छु री जससे चह्न के अनुसार मांस काटा जाता है, ये सब अ को सुशो भत करते ह. (१३) न मणं नषदनं ववतनं य च पड् बीशमवतः. य च पपौ य च घा स जघास सवा ता ते अ प दे वे व तु.. (१४) अ के चलने. बैठने एवं लोटने के थान, अ के पैर बांधने के साधन, उसके पीने का जल और खाई ई घास, ये सब दे व को ा त हो. (१४) मा वा न वनयी मग धम खा ाज य भ व ज ः. इ ं व तम भगूत वषट् कृतं तं दे वासः त गृ ण य म्.. (१५) हे अ ! धुएं वाली अ न को दे खकर तुम मत हन हनाओ. अ धक अ न के ताप के कारण मांस पकाने का पा न टू टे. य के लए अभी , हवन के लए लाए ए, सामने भट दए जाने के लए तैयार एवं वषट् कार ारा सुशो भत घोड़े को दे वगण वीकार कर. (१५) यद ाय वास उप तृण यधीवासं या हर या य मै. स दानमव तं पड् बीशं या दे वे वा यामय त.. (१६) ब ल के लए नयत अ को ढकने के लए जो व फैलाया जाता है, जन वणाभूषण से घोड़े को सजाया जाता है एवं जन साधन से घोड़े के पैर एवं गरदन बांधी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाती है, उन सब दे व य व तु
को ऋ वज् दे व को द. (१६)
य े सादे महसा शूकृत य पा या वा कशया वा तुतोद. ुचेव ता ह वषो अ वरेषु सवा ता ते णा सूदया म.. (१७) हे अ ! आते समय तुम नाक से महान् श द कर रहे थे. न चलने पर तु ह कोड़े से मारा गया. जैसे ुच के ारा ह अ न म डाला जाता है, उसी कार उन सब था क म मं ारा आ त दे ता ं (१७) चतु ंश ा जनो दे वब धोवङ् र य व ध तः समे त. अ छ ा गा ा वयुना कृणोत प प रनुघु या व श त.. (१८) हे घोड़े को काटने वाले! दे व के य अ क दोन बगल क च तीस ह ड् डय को काटने के लए छु री भली कार चलाई जाती है. ऐसी सावधानी बरतना, जससे अ का कोई अंग कट न जाए. एक-एक भाग को दे खकर और नाम लेकर काटो. (१८) एक व ु र या वश ता ा य तारा भवत तथ ऋतुः. या ते गा ाणामृतुथा कृणो म ताता प डानां जुहो य नौ.. (१९) इस द त अ का काशक ा एकमा ऋतु ही है. रात एवं दन उस ऋतु का नयं ण करने वाले ह. हे अ ! तु हारे जन अंग को म अनुकूल समय पर काटता ं, उ ह पड बनाकर म अ न म हवन क ं गा. (१९) मा वा तप य आ मा पय तं मा व ध त त व१ आ त प े. मा ते गृ नुर वश ता तहाय छ ा गा ा य सना मथू कः.. (२०) हे अ ! तु हारे दे व के समीप जाते समय तु हारा य शरीर तु ह ःखी न करे. छु री तेरे अंग पर के नह . मांस हण करने का इ छु क एवं अंग छे दन म अकुशल काटने वाला भ - भ अंग के अ त र छु री से शरीर को तरछा न काटे . (२०) न वा उ एत यसे न र य स दे वाँ इदे ष प थ भः सुगे भः. हरी ते यु ा पृषती अभूतामुपा था ाजी धु र रासभ य.. (२१) हे अ ! इस कार ब ल दए जाने पर न तो तुम मरते हो और न लोग ारा ह सत होते हो. तुम उ म माग ारा दे व के समीप जाते हो. इं के ह र नामक घोड़े, म त् क वाहन हर णयां एवं अ नीकुमार के रथ म जुतने वाले गधे तु हारे रथ म जोते जाएंगे. (२१) सुग ं नो वाजी व ं पुंसः पु ाँ उत व ापुषं र यम्. अनागा वं नो अ द तः कृणोतु ं नो अ ो वनतां ह व मान्.. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ब ल कया जाता आ अ हम गाय एवं अ से संप एवं पु , पौ प नी आ द क र ा करने वाला धन दे तथा संतान दान करे. हे तेज वी अ ! हम पापर हत बनाओ तथा यो चत तेज एवं बल दो. (२२)
सू —१६३
दे वता—अ
यद दः थमं जायमान उ समु ा त वा पुरीषात्. येन य प ा ह रण य बा उप तु यं म ह जातं ते अवन्.. (१) हे अ ! तु हारा ज म इस यो य है क सब लोग मलकर तु हारी तु त कर, य क तुम सव थम जल से उ प ए थे एवं यजमान पर अनुकंपा करने के लए तुम महान् श द करते हो. तु हारे पंख बाज के एवं पैर ह रण के समान ह. (१) यमेन द ं त एनमायुन ग एणं थमो अ य त त्. ग धव अ य रशनामगृ णा सूराद ं वसवो नरत .. (२) नयामक अ न के दए ए अ को पृ वी आ द तीन थान म वतमान वायु ने रथ म जोड़ा. इस रथ पर सबसे पहले इं सवार ए एवं गंधव ने उसक लगाम को पकड़ा. वसु ने सूय से अ को ा त कया. (२) अ स यमो अ या द यो अव स तो गु न े तेन. अ स सोमेन समया वपृ आ ते ी ण द व ब धना न.. (३) हे अ ! तुम यम, आ द य एवं तीन थान म ा त गोपनीय तधारी वायु हो. तुम सोम से मले हो. पुरा वद् कहते ह क वग म तु हारे तीन उ प थान ह. (३) ी ण त आ द व ब धना न ी य सु ी य तः समु े . उतेव मे व ण छ यव य ा त आ ः परमं ज न म्.. (४) हे अ ! वग, जल एवं समु म तु हारे तीनतीन बंधन थान ह. तुम व ण हो. पुरा वद् तु हारे जो ज म थान न त कर चुके ह, उ ह म बताता ं. (४) इमा ते वा ज वमाजनानीमा शफानां स नतु नधाना. अ ा ते भ ा रशना अप यमृत य या अ भर त गोपाः.. (५) हे अ ! मने जन वग आ द का वणन कया है, वे तु हारे ज म थान एवं संचरण थल ह. य क र ा करने वाली तु हारी क याणकारी लगाम को भी मने वह दे खा है. (५) आ मानं ते मनसारादजानामवो दवा पतय तं पत म्. शरो अप यं प थ भः सुगे भररेणु भजहमानं पत .. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ ! म तु हारे र थत शरीर को अपने मन क क पना से जानता .ं तुम धरती से अंत र थत सूय म जाते हो. धू लर हत सुख द माग से शी तापूवक उठते ए तु हारे सर को भी मने दे खा है. (६) अ ा ते पमु ममप यं जगीषमाण मष आ पदे गोः. यदा ते मत अनु भोगमानळा दद् स ओषधीरजीगः.. (७) हे अ ! मने धरती पर चार ओर अ हण के न म आते ए तु हारे प को दे खा है. जस समय मनु य तु हारे खाने क व तुएं लेकर जाते ह, उस समय तुम कृपा करके घास आ द तनक को खाते हो. (७) अनु वा रथो अनु मय अव नु गावोऽनु भगः कनीनाम्. अनु ातास तव स यमीयुरनु दे वा म मरे वीय ते.. (८) हे अ ! रथ, मनु य, गाएं एवं ना रय के सौभा य तु हारे पीछे चलते ह, अ य अ तु हारे पीछे चलकर तु हारी म ता ा त कर चुके ह. ऋ वज् तु हारे शौयकम क तु त करके स होते ह. (८) हर यशृ ोऽयो अ य पादा मनोजवा अवर इ आसीत्. दे वा इद य ह वर माय यो अव तं थमो अ य त त्.. (९) घोड़े का शीश सोने का एवं पैर लोहे के ह. मन के समान वेग वाले इं भी इससे भ ह. घोड़े पी ह को खाने के लए दे व आते ह. इं वहां सबसे पहले आकर बैठे ह. (९) ईमा तासः स लकम यमासः सं शूरणासो द ासो अ याः. हंसाइव े णशो यत ते यदा षु द म मम ाः.. (१०) य संबंधी अ जस समय वग के माग से जाता है, उस समय घनी जांघ वाले, पतली कमर वाले एवं व मशील घोड़ के समूह द अ के साथ इस कार चलते ह, जस कार सतारे इस आकाश म पं ब होकर चलते ह. (१०) तव शरीरं पत य णवव तव च ं वातइव जीमान्. तव शृ ा ण व ता पु ार येषु जभुराणा चर त.. (११) हे घोड़े! तु हारा शरीर ा त एवं मन वायु के समान शी चलने वाला है. तु हारे शर से नकले ए स ग के थानीय बाल इधर-उधर बखरे ए ह एवं अनेक कार से सुशो भत ए वन म उड़ते ह. (११) उप ागा छसनं वा यवा दे व चा मनसा द यानः. अजः पुरो नीयते ना भर यानु प ा कवयो य त रेभाः.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह यु म कुशल घोड़ा मन से दे व का चतन करता आ बंधन के थान को ले जाया जा रहा है. घोड़े का म बकरा उसके आगे-आगे चल रहा है. मं को बोलते ए ऋ वज् पीछे -पीछे चलते ह. (१२) उप ागा परमं य सध थमवा अ छा पतरं मातरं च. अ ा दे वा ु तमो ह ग या अथा शा ते दाशुषे वाया ण.. (१३) चलने म कुशल घोड़ा अपनी माता और पता के समीप प ंचने के लए ऐसे वग य थान पर जाता है, जहां सब लोग एक साथ रह सक. हे अ ! आज तुम परम स होकर दे व के समीप आओ, तु हारे जाने से ह दाता यजमान उ म धन ा त करेगा. (१३)
सू —१६४
दे वता— व ेदेव आ द
अ य वाम य प लत य होतु त य ाता म यमो अ य ः. तृतीयो ाता घृतपृ ो अ या ाप यं व प त स तपु म्.. (१) आरो य ा त के लए सबके ारा सेवनीय व जग पालक सूय के बीच वाले भाई वायु ह. इसके तीसरे भाई आ त वीकार करने वाले अ न ह. इन भाइय के बीच म करण पी सात पु स हत व प त दखाई दे ते ह. (१) स त यु त रथमेकच मेको अ ो वह त स तनामा. ना भ च मजरमनव य ेमा व ा भुवना ध त थुः.. (२) सूय के एक प हए वाले रथ म जुते ए सात घोड़े ही उसको ख चते ह. सात नाम वाला एक ही घोड़ा रथ को ख चता है. ढ़ और न य नवीन तीन ना भयां उस प हए म ह. उस म सारा व थत है. (२) इमं रथम ध ये स त त थुः स तच ं स त वह य ाः. स त वसारो अ भ सं नव ते य गवां न हता स त नाम.. (३) सात प हय वाले रथ म जुते ए सात घोड़े ही उसको ख चते ह. सात करण ब हन इसके सामने चलती ह एवं सात गाएं इस रथ म बैठ ह. (३)
पी
को ददश थमं जायमानम थ व तं यदन था बभ त. भू या असुरसृगा मा व व को व ांसमुप ा ु मेतत्.. (४) जब अ थहीन कृ त ने अ थ वाले संसार को धारण कया था, तब थम उ प होने वाले को कौन दे ख सका था? ाण और र ने तो पृ वी से ज म लया, पर आ मा कहां से आई? यह कसी जानकार से पूछने कौन जाएगा. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पाकः पृ छा म मनसा वजान दे वानामेना न हता पदा न. व से ब कयेऽ ध स त त तू व त नरे कवय ओतवा उ.. (५) म अप रप व बु वाला मन से न जानने के कारण यह सब पूछ रहा .ं ये संदेहा पद बात दे व के लए भी गूढ़ ह. एक वष के बछड़े को लपेटने के लए मेधा वय ने जो सात धागे बताए ह, वे या ह? (५) अ च क वा च कतुष द कवी पृ छा म व ने न व ान्. व य त त भ ष ळमा रजां यज य पे कम प वदे कम्.. (६) म अ ानी ,ं पर जानने क इ छा रखता ,ं इसी लए त व ानी ांतद शय से पूछ रहा ं. जसने इन छः लोक को थर कया है, जो ज मर हत होकर रहते ह, वे या एक ह? (६) इह वीतु य ईम वेदा य वाम य न हतं पदं वेः. शी णः ीरं ते गावो अ य व वसाना उदकं पदापुः.. (७) जो यह सब भली कार जानता है, वह बतावे. इस सुंदर सूय का व प अ यंत गूढ़ है. शर के समान सबसे ऊंचे सूय क करण पी गाएं ध के समान जल बरसाती ह. वे ही करण वशाल तेज से त त होने पर जल नमाण क तरह ही पी लेती ह. (७) माता पतरमृत आ बभाज धी य े मनसा सं ह ज मे. सा बीभ सुगभरसा न व ा नम व त इ पवाकमीयुः.. (८) पृ वी पी माता जलवषा के न म आकाश थत सूय पी पता क य पी कम ारा पूजा करती है. इससे पहले ही पता अ भ ाय वाले मन से धरती से संगत ए ह. इसके बाद गभ धारण करने क इ छा वाली माता गभ क उ प के हेतु जल से बध गई है. उ ह ने अनेक कार क फसल-गे ं, जौ आ द उ प करने के लए आपस म बातचीत क है. (८) यु ा मातासीद्धु र द णाया अ त द्गभ वृजनी व तः. अमीमे सो अनु गामप य यं षु योजनेषु.. (९) आकाश इ छा पूण करने वाली धरती के ऊपर वषा करने म समथ था. गभ पी जल मेघ के बीच था. इसके बाद बछड़े पी जल ने श द कया. इसके बाद मेघ, वायु और सूय करण इन तीन के सहयोग से व पा धरती फसल वाली बनी. (९) त ो मातॄ ी पतॄ ब दे क ऊ व त थौ नेमव लापय त. म य ते दवो अमु य पृ े व वदं वाचम व म वाम्.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ द य पी एकमा पु क तीन माताएं और तीन पता ह. आ द य थकते नह . आकाश के ऊपर थत दे व सूय के वषय म ऐसी बात करते ह, जो सबसे संबं धत होती ह, पर उ ह कोई नह समझता. (१०) ादशारं न ह त जराय वव त च ं प र ामृत य. आ पु ा अ ने मथुनासो अ स त शता न वश त त थुः.. (११) स य पी सूय का बारह अर वाला प हया वग के चार ओर बार-बार चलता है और कभी पुराना नह होता, हे आ द य प अ न! तीन सौ साठ दन एवं रात के प म तुमम सात सौ बीस पु पु यां रहती ह. (११) प चपादं पतरं ादशाकृ त दव आ ः परे अध पुरी षणम्. अथेमे अ य उपरे वच णं स तच े षळर आ र पतम्.. (१२) ऋतु पी पांच चरण और मास पी बारह आकृ तय वाले आ द य आकाश के परवत अ भाग म रहते ह. कुछ लोग उ ह जलदाता भी कहते ह. छः अर और सात च (ऋतु एवं करण ) वाले रथ पर बैठे ए तेज वी आ द य को कुछ लोग अ पत भी कहते ह. ये अ पत आकाश के सरे भाग म रहते ह. (१२) प चारे च े प रवतमाने त म ा त थुभुवना न व ा. त य ना त यते भू रभारः सनादे व न शीयते सना भः.. (१३) पांच ऋतु पी अर वाला सूय का संव सर पी च घूमता है. सम त ाणी उसी म रहते ह. उसका भारी अ कभी नह थकता. उसक ना भ सदा एक सी रहती है, कभी टू टती नह . (१३) सने म च मजरं व वावृत उ ानायां दश यु ा वह त. सूय य च ू रजसै यावृतं त म ा पता भुवना न व ा.. (१४) सदा एक सी ना भ वाला जरार हत संव सर पी प हया बार-बार घूमता है. पांच लोकपाल और ा ण, य, वै य, शू , नषाद पांच वण, ये दस मलकर व तृत धरती को धारण करते ह. ने पी सूयमंडल वषा के जल से पूण बादल से घर जाता है. सम त ाणी उसी म छप जाते ह. (१४) साक ानां स तथमा रेकजं ष ळ मा ऋषयो दे वजा इ त. तेषा म ा न व हता न धामशः था े रेज ते वकृता न पशः.. (१५) चै आ द दो मास क छः एवं अ धक मास क सातव , इस कार एक ही सूय से जो सात ऋतुएं उ प ई ह, उन म सातव अकेली है. शेष छः जोड़े वाली, ज द आने वाली और दे व से उ प ह. ये ऋतुएं सबक यारी, अलग-अलग थत और भ प वाली ह. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये अपने नमाता के लए सदा घूमती रहती ह. (१५) यः सती ताँ उ मे पुंस आ ः प यद वा व चेतक धः. क वयः पु ः स ईमा चकेत य ता वजाना स पतु पतासत्.. (१६) करण यां होती भी पु ष ह. उ ह केवल आंख वाला ही दे ख सकता है, अंधा नह . जो ांतदश ह, वे ही यह बात जानते ह. उन करण को जानने वाला पता का भी पता है. (१६) अवः परेण पर एनावरेण पदा व सं ब ती गौ द थात्. सा क ची कं वदध परागात् व व सूते न ह यूथे अ तः.. (१७) गो प आ त बछड़े पी अ न का पछला भाग अपने सामने वाले पैर से और अगला भाग अपने पछले पैर से पकड़कर ऊपर क ओर जाती है. वह कहां जाती है और कसके लए बीच से ही लौट आती है? वह कहां पर बछड़े को ज म दे ती है? वह अ य गाय के समूह म तो बछड़ा पैदा करती नह है. (१७) अवः परेण पतरं यो अ यानुवेद पर एनावरेण. कवीयमानः क इह वोच े वं मनः कृतो अ ध जातम्.. (१८) जो आ द य पी ऊपर थत लोकपालक क उपासना नीचे थत अ न पी लोकपालक के साथ तथा नीचे वाले क उपासना ऊपर वाले के साथ करते ह, कौन लोग इस संसार म अपने को ांतदश स करते ए यह बात करते ह? द मन कस से उ प होता है? (१८) ये अवा च ताँ उ पराच आ य परा च ताँ उ अवाच आ ः. इ या च थुः सोम ता न धुरा न यु ा रजसो वह त.. (१९) काल को जानने वाले अधोमुख को ऊ वमुख और ऊ वमुख को अधोमुख कहते ह. हे सोम! इं को साथ लेकर तुमने जो घूमने के गोल बनाए ह, वे उसी कार संसार का बोझा ढोते ह, जस कार जुए म जुता आ घोड़ा. (१९) ा सुपणा सयुजा सखाया समानं वृ ं प र ष वजाते. तयोर यः प पलं वा यन यो अ भ चाकशी त.. (२०) जीवा मा और परमा मा पी दो प ी म बनकर साथ-साथ संसार पी वृ पर रहते ह. उन म से एक (जीवा मा) पीपल के वा द फल को खाता है. सरा (परमा मा) फल न खाता आ केवल दे खता है. (२०) य ा सुपणा अमृत य भागम नमेषं वदथा भ वर त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इनो व
य भुवन य गोपाः स मा धीरः पाकम ा ववेश.. (२१)
सुंदर ग त वाली करण अपना क जानकर सदा जल का अंश ले जाती ह और जस आ द य मंडल म प ंचती ह एवं सारे संसार क धीर भाव से र ा करती ह, उसी सूय ने मुझ अप रप व बु वाले को धारण कया है. (२१) य म वृ े म वदः सुपणा न वश ते सुवते चा ध व े. त येदा ः प पलं वा े त ो श ः पतरं न वेद.. (२२) जस आ द य पी वृ पर जल भ ण करने वाली करण रात को प य के समान बैठती ह एवं ातः उदय काल म व को काश दे ती ह, व ान् लोग उस पालक सूय का फल रस वाला बताते ह. जो पालक सूय को नह जानता, वह इस फल को नह पा सकता. (२२) यद्गाय े अ ध गाय मा हतं ै ु भा ा ै ु भं नरत त. य ा जग जग या हतं पदं य इ ते अमृत वमानशुः.. (२३) जो धरती पर अ न का थान जानते ह, जो दे व ारा अंत र से वायु क उ प से प र चत ह अथवा जो यह समझते ह क उस पर सूय का थान है, वे ही मरणर हत पद को पाते ह. (२३) गाय ेण त ममीते अकमकण साम ै ु भेन वाकम्. वाकेन वाकं पदा चतु पदा रेण ममते स त वाणीः.. (२४) गाय ी छं द ारा उ ह ने पूजन संबंधी मं बनाए, अचना मं क सहायता से साम, ु प् छं द ारा वाक्, पाद, चतु पाद वचन ारा अनुवाक् और अ र को मलाकर सात छं द प वाणी क रचना क . (२४) जगता स धुं द तभाय थ तरे सूय पयप यत्. गाय य स मध त आ ततो म ा र रचे म ह वा.. (२५) उन लोग ने जगती छं द ारा वषा को आकाश म रोक दया तथा रथंतर साम मं म सूय के दशन कए. कहा जाता है क गाय ी छं द के तीन चरण ह, इसी लए वह मह व म बड़ से भी आगे बढ़ जाती है. (२५) उप ये सु घां धेनुमेतां सुह तो गोधुगुत दोहदे नाम्. े ं सवं स वता सा वष ोऽभी ो घम त षु वोचम्.. (२६) म इस धा गाय को बुलाता ं. दोहनकुशल वाला उसे हता है. हमारे सोमरस के उ म भाग को सूय वीकार कर. उससे उनका तेज बढ़े गा. इसी हेतु म उ ह बुलाता ं. (२६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हङ् कृ वती वसुप नी वसूनां व स म छ ती मनसा यागात्. हाम यां पयो अ येयं सा वधतां महते सौभगाय.. (२७) घी, ध आ द से सदा पालन करने वाली गाय बछड़े के लए मन म इ छा करती ई रंभाती ई आती है. वह गाय अ नीकुमार को ध दे और उनके सौभा य को बढ़ाव. (२७) गौरमीमेदनु व सं मष तं मूधानं हङ् ङकृणो मातवा उ. सृ वाणं घमम भ वावशाना ममा त मायुं पयते पयो भः.. (२८) गाय आंख बंद कए बछड़े को दे खकर रंभाती है, उसका म तक चाट कर शू करने के लए रंभाती है, बछड़े के ह ठ पर फेन दे खकर रंभाती है तथा ध पलाकर उसे तृ त करती है. (२८) अयं स शङ् े येन गौरभीवृता ममा त मायुं वसनाव ध ता. सा च भ न ह चकार म य व ु व ती त व मौहत.. (२९) बछड़ा अ श द करता है, जसे सुनकर गौ आकर उससे चार ओर से लपट जाती है और गाय के चरने वाली धरती पर रंभाती है. गाय पशु होकर भी अपने ान से मनु य को हरा दे ती है और अ यंत धा बनकर अपना प दखाती है. (२९) अन छये तुरगातु जीवमेजद् ुवं म य आ प यानाम्. जीवो मृत य चर त वधा भरम य म यना सयो नः.. (३०) अपने काय के लए शी ग त वाला जीव सांस लेता आ सोता है और अपने घर पी शरीर म न त प से रहता है. मरणशील शरीर के साथ उ प शरीर का मरणर हत वधा के ारा वचरण करता है. (३०) अप यं गोपाम नप मानमा च परा च प थ भ र तम्. स स ीचीः स वषूचीवसान आ वरीव त भुवने व तः.. (३१) सबके र क एवं कभी ःखी न होने वाले सूय को म अंत र म आते-जाते दे खता ं. वह सूय अपने साथ जाने वाली एवं पीछे हटने वाली करण को लपेटे ए भुवन के म य बार-बार आते-जाते ह. (३१) य चकार न सो अ य वेद य ददश ह ग ु त मात्. स मातुय ना प रवीतो अ तब जा नऋ तमा ववेश.. (३२) जो पु ष संतान उ प के न म गभाधान करता है, वह भी इसका रह य नह जानता. जो माता के बढ़े ए पेट से गभ को अनुमान ारा दे खता है, वह उससे भी छपा रहता है. वह माता क यो न के बीच थत रहता है और अनेक जा का कारण बनकर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ःख का अनुभव करता है. (३२) ौम पता ज नता ना भर ब धुम माता पृ थवी महीयम्. उ ानयो वो३ य नर तर ा पता हतुगभमाधात्.. (३३) आकाश मेरा पालनक ा और ज मदाता है, पृ वी क ना भ मेरे लए म है और यह वशाल धरती मेरी माता है. दोन ऊपर उठे ए पा के बीच अंत र पी यो न है, जहां आकाश पी पता र थत धरती पी माता के गभ का आधान करता है. (३३) पृ छा म वा परम तं पृ थ ाः पृ छा म य भुवन य ना भः. पृ छा म वा वृ णो अ य रेतः पृ छा म वाचः परमं ोम.. (३४) म तुमसे पृ वी क समा त का थान एवं सम त ा णय क उ प का थान पूछता ं. म तुमसे वषा करने वाले घोड़े के वीय एवं सम त वा णय के कारण उस थान के वषय म पूछता ं. (३४) इयं वे दः परो अ तः पृ थ ा अयं य ो भुवन य ना भः. अयं सोमो वृ णो अ य रेतो ायं वाचः परमं ोम.. (३५) यह वेद ही पृ वी क समा त है एवं यह य संसार क उ प का थान है. यह सोमरस वषा करने वाले घोड़े का वीय है एवं यह ा वा णय का अं तम थान है. (३५) स ताधगभा भुवन य रेतो व णो त त दशा वधम ण. ते धी त भमनसा ते वप तः प रभुवः प र भव त व तः.. (३६) सात करण आधे वष तक जल प गभ को धारण करती ई जगत् का वीय बनकर व णु के जगत्धारण प काय म थत होती ह. ानयु एवं सब ओर जाने वाली वे करण जगत् का उपकार करने क बु से चार ओर से संसार को घेरे ह. (३६) न व जाना म य दवेदम म न यः स ो मनसा चरा म. यदा माग थमजा ऋत या द ाचो अ ुवे भागम याः.. (३७) सम त व म ही ,ं इस बात को म नह जान पाया, य क म मूढ़ च एवं अ व ा के कम से बंधा आ ं तथा ब हमुख मन से संसार म ःख का अनुभव करता ं. मुझे जब ान का पहली बार अनुभव होता है, तभी म श द का अथ समझ पाता ं. (३७) अपाङ् ाङे त वधया गृभीतोऽम य म यना सयो नः. ता श ता वषूचीना वय ता य१ यं च युन न च युर यम्.. (३८) मरणर हत आ मा मरणधमा शरीर के साथ रहती है एवं अ ा द भोग के कारण ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अधोग त और ऊ वग त को ा त होता है. वे दोन सदा एक साथ रहते ह और संसार म सभी जगह साथ-साथ जाते ह. लोग इनम से अ न य शरीर को जानते ह, न य आ मा को नह . (३८) ऋचो अ रे परमे ोम य म दे वा अ ध व े नषे ः. य त वेद कमृचा क र य त य इ त इमे समासते.. (३९) मं के अ र आकाश के समान व तृत ह. इनम सभी दे व अ ध त ह. जो इस बात को नह जानता, वह मं जानकर या लाभ उठाएगा? इस बात को जानने वाला सुख से रहता है. (३९) सूयवसा गवती ह भूया अथो वयं भगव तः याम. अ तृणम ये व दान पब शु मुदकमाचर ती.. (४०) हे हनन के अयो य गौ! तुम जौ के सुंदर तनक को खाती ई अ धक ध पी धन से संप बनो. इस कार हम संप शाली बन जाएंगे. न य घास के तनके चरो और सब जगह व छं दता से घूमो तथा साफ पानी पओ. (४०) गौरी ममाय स लला न त येकपद पद सा चतु पद . अ ापद नवपद बभूवुषी सह ा रा परमे ोमन्.. (४१) म यमा वाणी वषा के जल का नमाण करती ई श द करती है. वह समय-समय पर एकपद , पद , चतु पद , अ पद अथवा नवपद हो जाती है. वह कभी हजार अ र वाली बनकर वशाल आकाश म प ंचती है. (४१) त याः समु ा अ ध व र त तेन जीव त ततः र य रं त मुप जीव त.. (४२)
दश त ः.
उसी वाणी के भाव से सारे बादल जल बरसाते ह और चार दशा के जीव ाण धारण करते ह. उसीसे सारे ा णय को ज म दे ने वाला जल उ प होता है. (४२) शकमयं धूममारादप यं वबूवता पर एनावरेण. उ ाणं पृ मपच त वीरा ता न धमा ण थमा यासन्.. (४३) मने अपने समीप ही सूखे गोबर से उ प धुएं को दे खा. चार ओर फैले ए धुएं के बाद मने उसके कारणभूत अ न को दे खा. ऋ वज् ेत रंग वाले सोमरस को तैयार करते ह. आ द काल से उनका यही कम रहा है. (४३) यः के शन ऋतुथा व च ते संव सरे वपत एक एषाम्. व मेको अ भ च े शची भ ा जरेक य द शे न पम्.. (४४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
केश तु य करण वाले तीन —अ न, आ द य और वायु वष म समय-समय पर धरती को दे खते रहते ह. इनम से पहला नाई के समान कूड़ा समा त करता है, सरा अपने काशकम ारा दे खता है एवं तीसरे को केवल ग त का ान होता है, वह दखाई नह दे ता. (४४) च वा र वा प र मता पदा न ता न व ा णा ये मनी षणः. गुहा ी ण न हता ने य त तुरीयं वाचो मनु या वद त.. (४५) वाणी के चार न त पद होते ह. ांतदश ा ण उ ह जानते ह. उन म से तीन गुहा म छपे होने से गोचर नह होते, चौथे पद वाली वाणी को मनु य बोलते ह. (४५) इ ं म ं व णम नमा रथो द ः स सुपण ग मान्. एकं स ा ब धा वद य नं यमं मात र ानमा ः.. (४६) बु मान् लोग इस आ द य को ही इं , म , व ण और अ न कहते ह. वह सुंदर पंख और शोभन ग त वाला है. एक होने पर भी ये व ान ारा अ न, यम, मात र ा आ द अनेक नाम से पुकारे जाते ह. (४६) कृ णं नयानं हरयः सुपणा अपो वसाना दवमु पत त. त आववृ सदना त या दद् घृतेन पृ थवी ु ते.. (४७) सुंदर ग त वाली और जल सोखने वाली सूय क करण काले रंग वाले एवं नयम से गमन करने वाले बादल को पानी से भरती ई आकाश म जाती ह. वे जल लेकर नीचे आती ह व धरती को पूरी तरह भगो दे ती ह. (४७) ादश धय त म साकं
मेकं ी ण न या न क उ त चकेत. शता न शङ् कवोऽ पताः ष न चलाचलासः.. (४८)
बारह प र धयां, एक च और तीन ना भयां ह. इस बात को कौन जानता है? एक च म तीन सौ साठ चंचल अरे लगे ए ह. (४८) य ते तनः शशयो यो मयोभूयन व ा पु य स वाया ण. यो र नधा वसु व ः सुद ः सर व त त मह धातवे कः.. (४९) हे सर वती! तु हारे शरीर म वतमान जो तन रस का आ ान करने वाल को सुख दे ता है, जससे तुम मनोरम धन क र ा करती हो, जो र न का आधार धन ा त करने वाला एवं शोभनदानयु है, उसे हमारे पीने के लए कट करो. (४९) य ेन य मयज त दे वा ता न धमा ण थमा यासन्. ते ह नाकं म हमानः सच त य पूव सा याः स त दे वाः.. (५०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमान ने अ न के ारा य पूण कया है. यही सव थम क कम था. मह वपूण यजमान वग म एक ह. वहां पूववत य क ा भी द प म रहते ह. (५०) समानमेत दकमु चै यव चाह भः. भू म पज या ज व त दवं ज व य नयः.. (५१) एक ही कार का जल है. वह गरमी के दन म ऊपर जाता है एवं वषा के दन म नीचे आता है. बादल धरती को स करते ह एवं अ न ुलोक को संतु करती है. (५१) द ं सुपण वायसं बृह तमपां गभ दशतमोषधीनाम्. अभीपतो वृ भ तपय तं सर व तमवसे जोहवी म.. (५२) म द , शोभनग त वाले, गमनशील, वशाल, गभ के समान वषा का जल उ प करने वाले, ओष धय के दशन एवं वषा के जल ारा सरोवर को पूण एवं स रता का पालन करने वाले सूय का अपनी र ा के लए आ ान करता ं. (५२)
सू —१६५
दे वता—इं
कया शुभा सवयसः सनीळाः समा या म तः सं म म ुः. कया मती कुत एतास एतेऽच त शु मं वृषणो वसूया.. (१) इं ने कहा—“समान अव था वाले और एक थान के नवासी म द्गण ऐसी महान् शोभा वाले ह, जसे सब लोग को जानना क ठन है. वे धरती को स चते ह. मन म या वचार रखते ह और कहां से आए ह? आकर जल बरसाने वाले बादल या धन क इ छा से श क उपासना करते ह? (१) कय ा ण जुजुषुयुवानः को अ वरे म त आ ववत. येनाँ इव जती अ त र े केन महा मनसा रीरमाम.. (२) न य त ण म द्गण कसका ह व वीकार करते ह? य म आए ए उ ह कौन हटा सकता है? वे बाज प ी के समान आकाश म उड़ते ह. हम उ ह कस महान् तो ारा स कर? (२) कुत व म मा हनः स ेको या स स पते क त इ था. सं पृ छसे समराणः शुभानैव चे त ो ह रवो य े अ मे.. (३) म द्गण ने कहा— “हे स जन के पालक एवं पूजनीय इं ! तुम अकेले कहां जा रहे हो? या तुम इसी कार के हो? तुम हमसे मलकर जो पूछ रहे हो, यह उ चत है. हे घोड़ के वामी! हमसे जो कहना हो, वह हमसे शोभन वचन ारा कहो.” (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा ण मे मतयः शं सुतासः शु म इय त भृत मे अ ः. आ शासते त हय यु थेमा हरी वहत ता नो अ छ.. (४) इं ने कहा—“सारा य कम एवं तु तयां मेरी ह. सामने रखा आ सोम मेरा है. म जब अपना श शाली व फकता ं तो यह कभी असफल नह होता. यजमान मेरी ही ाथना करते ह. ऋ वेद के मं मेरी ही कामना करते ह. ये ह र नाम के घोड़े ह व हण करने को मुझे ही वहन करते ह.” (४) अतो वयम तमे भयुजानाः व े भ त य१: शु भमानाः. महो भरेताँ उप यु महे व वधामनु ह नो बभूथ.. (५) म द्गण बोले—“इसी कारण हम अपने शरीर को महान् तेज से चमकाते ए समीपवत एवं वशाल बल वाले अ के साथ इस महान् य म आने को तैयार ए ह. हे इं ! हमारे बल का अनुभव करते ए तुम भी हमारे साथ रहो.” (५) व१ या वो म तः वधासी मामेकं समध ा हह ये. अहं १ त वष तु व मा व य श ोरनमं वध नैः.. (६) इं ने कहा—“हे म तो! जब मने अकेले ही अ ह का वध कया था, तब साथ रहने वाला तु हारा बल कहां था? म उ श वाला एवं महान् ं. मने हनन म कुशल व ारा संपूण श ु का वनाश कया है.” (६) भू र चकथ यु ये भर मे समाने भवृषभ प ये भः. भूरी ण ह कृणवामा श व े वा म तो य शाम.. (७) म त ने कहा—“हे कामवष इं ! हम तु हारे समान श वाले ह. तुमने हमारे साथ मलकर ब त से कम कए ह. हे बलवान् इं ! हमने तुमसे भी बढ़कर काम कए ह. हम म त् होने के कारण तु हारे साथ कम करके वषा क इ छा करते ह.” (७) वध वृ ं म त इ येण वेन भामेन त वषो बभूवान्. अहमेता मनवे व ाः सुगा अप कर व बा ः.. (८) इं ने कहा—“हे म द्गण! मने ोध यु होकर अपने नजी बल से वृ को मारा था, म व अपने हाथ म रखता ,ं इस लए म सम त मनु य क स ता के लए वषा करता ं.” (८) अनु मा ते मघव कनु न वावाँ अ त दे वता वदानः. न जायमानो नशते न जातो या न क र या कृणु ह वृ .. (९) म द्गण बोले—“हे इं ! तु हारा सब कुछ उ म है. कोई भी दे व तु हारे समान व ान् ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नह है. हे महान् श शाली! तुमने जो करने यो य काम कए ह, उ ह न कोई इस समय कर सकता है और न पहले कर पाया था.” (९) एक य च मे व व१ वोजो या नु दधृ वा कृणवै मनीषा. अहं १ ो म तो वदानो या न यव म इद श एषाम्.. (१०) इं बोले—“मुझ अकेले क ही श सब जगह फैले. म मन से जो भी इ छा क ं , वही काम कर सकूं. हे म तो! म उ एवं व ान् ं. जन संप य को म जानता ,ं उन पर मेरा ही अ धकार है.” (१०) अम द मा म तः तोमो अ य मे नरः ु यं च . इ ाय वृ णे सुमखाय म ं स ये सखायसत वे तनू भः.. (११) “हे म म तो! इस वषय म तुमने मेरी जो तु तयां क ह, वे मुझे आनं दत करती ह. म कामवषक, शोभन य वाला, अनेक पधारी एवं तु हारा सखा ं. (११) एवेदेते त मा रोचनामा अने ः व एषो दधानाः. स च या म त वणा अ छा त मे छदयाथा च नूनम्.. (१२) हे सुनहरे रंग वाले म तो! तुमने मेरे त स होकर और शंसनीय यश एवं अ धारण करते ए मुझे भली कार चार ओर से ढक लया है. तुम न त प से मुझे ढको.” (१२) को व म तो मामहे वः यातन सख र छा सखायः. म मा न च ा अ पवातय त एषां भूत नवेदा म ऋतानाम्.. (१३) अग य ने कहा—“हे म तो! कौन तु हारी पूजा करता है? हे सबके म ो! यजमान के सामने जाओ. हे सुंदर म द्गण! तुम सब मनोरम धन को ा त कराओ एवं मेरे स यकम को जानो.” (१३) आ य व या वसे न का र मा च े मा य य मेधा. ओ षु व म तो व म छे मा ा ण ज रता वो अचत्.. (१४) “हे म तो! तु हारी सेवा करने म समथ तो ारा माननीय यजमान क तु तकुशल बु सेवा करने के लए हमारे सामने आती है. इस लए तुम मुझ मेधावी यजमान के सामने आओ. तोता तु हारे इन उ म कम को ल य करके तु हारा आदर करता है. (१४) एष वः तोमो म त इयं गीमा दाय य मा य य कारोः. एषा यासी त वे वयां व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म तो! यह तो एवं यह तु त प वाणी स ता दे ने वाली है एवं शरीर को पु करने के लए तु ह ा त होती है. हम बल, अ एवं जयशील दान ा त कर.” (१५)
सू —१६६
दे वता—म द्गण
त ु वोचाम रभसाय ज मने पूव म ह वं वृषभ य केतवे. ऐधेव याम म त तु व वणो युधेव श ा त वषा ण कतन.. (१) हे म तो! म तु हारे ाचीनतम मह व का इस लए वणन कर रहा ं क तुम य वेद पर शी आकर य संप कराओ. हे गमन के समय वशाल व न करने वाले एवं सम त काय करने म समथ! तु हारे य थल म आते ही स मधा क वाला उसी कार महती हो जाती है, जस कार तुम रण म अपना परा म दखाते हो. (१) न यं न सूनुं मधु ब त उप ळ त ळा वदथेषु घृ वयः. न त ा अवसा नम वनं न मध त वतवसो ह व कृतम्.. (२) य पु के समान मधुर ह धारण करने वाले एवं य म र ा करने म वृ म द्गण स च होकर ड़ा करते ह. न यजमान क र ा के लए वाधीन श वाले एवं यजमान को कभी क न प ंचाने वाले पु म द्गण आते ह. (२) य मा ऊमासी अमृता अरासत रास पोषं च ह वषा ददाशुषे. उ य मै म तो हता इव पु रजां स पयसा मयोभुवः.. (३) ह व दे ने वाले जस यजमान क आ त के कारण स , सबके र क एवं मरणर हत म द्गण अ धक मा ा म धन दे ते ह, उसी यजमान के हतकारी सखा के समान म द्गण सारे संसार को सुख पी जल से भली-भां त स चते ह. (३) आ ये रजां स त वषी भर त व एवासः वयतासो अ जन्. भय ते व ा भुवना न ह या च ो वो यामः यता वृ षु.. (४) हे म तो! तु हारे घोड़े अपनी श के ारा सारे संसार का मण करते ह. वे सार थ के बना ही तेज चलते ह. तु हारी ग त इतनी व च है क तु हारे चलने से सम त ाणी और अट् टा लकाएं उसी कार कांप उठती ह, जस कार कोई यु म उठ ई तलवार को दे खकर कांपता है. (४) यत् वेषयामा नदय त पवता दवो वा पृ ं नया अचु यवुः. व ो वो अ म भयते वन पती रथीय तीव जहीत ओष धः.. (५) शी ग त वाले म द्गण जस समय पवत एवं गुफा
को गुंजाते ह अथवा मानव के
******ebook converter DEMO Watermarks*******
क याण हेतु पवत क चो टय पर चढ़ते ह, उस समय तु हारे गमन के कारण सम त वन प तयां डर जाती ह और जस कार रथ पर बैठ ी एक थान से सरे थान पर चली जाती है, उसी कार उड़कर र प ंच जाती ह. (५) यूयं न उ ा म तः सुचेतुना र ामाः सुम त पपतन. य ा वो द ु द त वदती रणा त प ः सु धतेव बहणा.. (६) हे वशाल श संप म तो! तुम शोभन च एवं हसार हत होकर हमारी सुबु को बढ़ाओ. जस समय तु हारी चलते ए दांत वाली बजली बादल को का शत करती है, उस समय वह तलवार के समान पशु का नाश करती है. (६) क भदे णा अनव राधसोऽलातृणासो वदथेषु सु ु ताः. अच यक म दर य प तये व व र य थमा न प या.. (७) अ वरत दान वाले, नाशर हत धन वाले, सकल श ुनाशक एवं य म भली कार तु त पाने वाले म द्गण य म अपने म इं क अचना करते ह, य क वे श ुनाशक इं के पूवकृत वीर कम को जानते ह. (७) शतभु ज भ तम भ तेरघा पूभ र ता म तो यमावत. जनं यमु ा तवसो वर शनः पाथना शंसा नय य पु षु.. (८) हे महान् तेज वी एवं श शाली म तो! जस मनु य को तुमने कु टल वभाव वाले पाप से बचाया है एवं पु -पौ ा द क पु से संबं धत नदा से र ा क है, उसका पालन अग णत भोग व तु ारा करो. (८) व ा न भ ा म तो रथेषु वो मथ पृ येव त वषा या हता. अंसे वा वः पथेषु खादयोऽ ो व ा समया व वावृते.. (९) हे म द्गण! तु हारे रथ पर सम त क याणकारी व तुएं रखी ई ह. तु हारी भुजा म एक से एक श शाली श वतमान ह. सभी व ाम थान पर तु हारे लए खाने क व तुएं उप थत ह. तु हारे रथ के प हए धु रय के साथ घूमते ह. (९) भूरी ण भ ा नयषु बा षु व ःसु मा रभसासो अ यः. अंसे वेताः प वषु ुरा अ ध वयो न प ा नु यो धरे.. (१०) मानव का क याण करनेवाली अपनी भुजा म म द्गण क याणकारी अनंत पदाथ धारण करते ह. उनके व थल पर कां तमय एवं प द खने वाले वणाभूषण, कंध पर ेत मालाएं, व के समान आयुध पर छु रा एवं प य के पंख के समान शोभा धारण करते ह. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
महा तो म ा व वो३ वभूतयो रे शो ये द ा इव तृ भः. म ाः सु ज ाः व रतार आस भः सं म ा इ े म तः प र ु भः.. (११) महान्, म हमामं डत, व तृत ऐ य वाले, आकाश के न के समान र से का शत, स , सुंदर ज ा वाले, मुख से श द करने वाले, तु तसंप एवं इं के सहायक म द्गण हमारे य म पधार. (११) त ः सुजाता म तो म ह वनं द घ वो दा म दते रव तम्. इ न यजसा व णा त त जनाय य मै सुकृते अरा वम्.. (१२) हे शोभन ज म वाले म तो! तु हारा मह व एवं दान अ द त के त के समान अ व छ है. तुम जस पु यशील यजमान के लए इ धन दे ते हो, उसके त इं भी कु टलता नह करते. (१२) त ो जा म वं म तः परे युगे पु य छं सममृतास आवत. अया धया मनवे ु मा ा साकं नरो दं सनैरा च क रे.. (१३) हे म द्गण! हमारे त तु हारी स तु तय क भली-भां त र ा करते हो एवं क बात जान लेते हो. (१३)
मै ी अतीत काल म भी थी. तुम लोग हमारी ालु यजमान के य के नेता बनकर उसके मन
येन द घ म तः शूशवाम यु माकेन परीणसा तुरासः. आ य तन वृजने जनास ए भय े भ तदभी म याम्.. (१४) हे वेगशाली म तो! तु हारे महान् आगमन के प ात् हम द घकाल तक चलने वाला य आरंभ करते ह. तु हारा आगमन हमारे लोग को यु म वजयी बनाता है. इस कार के य ारा म तु हारा उ म आगमन ा त क ं . (१४) एष वः तोमो म त इयं गीमा दाय य मा य य कारोः. एषा यासी त वे वयां व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (१५) हे म तो! आहार के यो य मांदाय क व का यह तु तसमूह तु हारे लए है. यह तु त तु तक ा क शरीर पु क कामना से तु ह ा त होती है. हम भी इसके ारा अ , बल एवं द घ आयु ा त कर. (१५)
सू —१६७
दे वता—इं एवं म त्
सह ं त इ ोतयो नः सह मषो ह रवो गूततमाः. सह ं रायो मादय यै सह ण उप नो य तु वाजाः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तु हारे हजार कार के र ण उपाय हजार तरह से हमारे पास आव. हे अ के वामी! तु हारे हजार तरह के स अ हम ा त ह . तु हारे पास जो हजार कार के धन ह, वे हम स ता दे ने के लए मल. हम हजार पशु ा त ह . (१) आ नोऽवो भम तो या व छा ये े भवा बृह वैः सुमायाः. अध यदे षां नयुतः परमाः समु य च नय त पारे.. (२) म द्गण र ा के साधन स हत हमारे पास आव. शोभन बु वाले म द्गण परम स एवं द तशाली धन के साथ हमारे समीप आव. उनके नयुत नामक घोड़े समु के उस पार रहते ए भी धन धारण करते ह. (२) म य येषु सु धता घृताची हर य न णगुपरा न ऋ ः. गुहा चर ती मनुषो न योषा सभावती वद येव सं वाक्.. (३) भली कार थत, जल बरसाती ई एवं सुनहरे रंग क बजली म त के साथ मेघमाला, छपे ए थान म रहने वाली राजपु ष क प नी अथवा य ीय वाणी के समान रहती है. (३) परा शु ा अयासो य ा साधार येव म तो म म ुः. न रोदसी अप नुद त घोरा जुष त वृधं स याय दे वाः.. (४) जस कार युवक साधारण नारी से मलते ह, उसी कार शोभन अलंकार वाले परम वेगशाली एवं महान् म द्गण बजली के साथ संगत होते ह. भयंकर वषा करने वाले म द्गण धरती और आकाश का याग नह करते. दे वगण म ता के कारण म त क उ त का य न करते ह. (४) जोष द मसुया सच यै व षत तुका रोदसी नृमणाः. आ सूयव वधतो रथं गा वेष तीका नभसो ने या.. (५) बखरे ए बाल वाली म त्-प नी बजली समागम के न म इनक सेवा करती है. जस कार सूय क पु ी अ नीकुमार के रथ पर सवार ई थी, उसी कार तेज वी शरीर वाली चंचल बजली म त के रथ पर बैठकर य थल पर आती है. (५) आ थापय त युव त युवानः शुभे न म ां वदथेषु प ाम्. अक य ो म तो ह व मा गायद्गाथं सुतसोमो व यन्.. (६) न य त ण म द्गण नयम से मलन करने वाली एवं श शाली त णी बजली को वषा के लए अपने रथ पर बैठा लेते ह. उसी समय पूजा के मं बोलते ए ह दाता एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान म त क सेवा करते ए तु तयां पढ़ते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं वव म व यो य एषां म तां म हमा स यो अ त. सचा यद वृषमणा अहंयुः थरा च जनीवहते सुभागाः.. (७) म म त क शंसनीय एवं सरलता से समझ म न आने वाली म हमा का वणन करता ं. म त से संबं धत बजली बरसने क इ छा वाली, अहंकार यु थर सौभा यशा लनी एवं जननसमथ जा को धारण करने वाली है. (७) पा त म ाव णावव ा चयत ईमयमो अ श तान्. उत यव ते अ युता ुवा ण वावृध म तो दा तवारः.. (८) हे म तो! म , व ण और अयमा इस य क नदा से र ा करते ह तथा य के दोषयु पदाथ का नाश करते ह. इ ह के कारण समय पर मेघ का अ युत एवं ुव जल टपक पड़ता है. जल क अ धकता से म ा द ही जगत् क र ा करते ह. (८) नही नु वो म तो अ य मे आरा ा च छवसो अ तमापुः. ते धृ णुना शवसा शूशुवांसोऽण न े षो धृषता प र ु ः.. (९) हे म द्गण! हम लोग म से एक भी र रहकर भी तु हारे बल क सीमा नह जान सका. तुम श ु को हराने वाले बल से जलरा श के समान बढ़ते हो और अपनी श से उ ह हराते हो. (९) वयम े य े ा वयं ो वोचेम ह समय. वयं पुरा म ह च नो अनु न ू ् त ऋभु ा नरामनु यात्.. (१०) आज हम इं के अ यंत य बनकर य म उनक म हमा का वणन करगे. हमने ाचीन काल म इं क म हमा का वणन कया था और त दन कर रहे ह. इस लए महान् इं अ य लोग क अपे ा हमारे अनुकूल बन. (१०) एष वः तोमो म त इयं गीमा दाय य मा य य कारोः. एषा यासी त वे वयां व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (११) हे म तो! आदर के यो य मांदय क व का यह तु तसमूह तु हारे लए है. यह तु त इस अ भलाषा से तु हारे पास जाती है क तु तक ा का शरीर पु हो. हम भी इस तु त ारा अ , बल एवं द घ आयु ा त कर. (११)
सू —१६८
दे वता—म द्गण
य ाय ा वः समना तुतुव ण धय धयं वो दे वया उ द ध वे. आ वोऽवाचः सु वताय रोद योमहे ववृ यामवसे सुवृ भः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म तो! सभी य के त तु हारी समान भावना जान पड़ती है. तुम अपने जलदान आ द सारे कम को दे व को ा त कराने के लए धारण करते हो. म तु ह महान् तो के ारा अपने सामने इस लए बुलाता ं क तुम धरती और आकाश क भली कार र ा कर सको. (१) व ासो न यो वजाः वतवस इषं वर भजाय त धूतयः. सह यासो अपां नोमय आसा गावो व ासो नो णः.. (२) पसंप , वयं उ प एवं कंपनशील म द्गण अ एवं वग आ द के साधन बनकर कट होते ह. समु क लहर के समान हजार उ म धा गाएं जस कार ध दे ती ह, उसी कार वे जल बरसाते ह. (२) सोमासो न ये सुता तृ तांशवो सु पीतासो वसो नासते. ऐषामंसेषु र भणीव रारभे ह तेषु खा द कृ त सं दधे.. (३) जस कार सोमलता पहले जल से स ची जाने पर बढ़ती है एवं बाद म रस नचोड़कर पीने से से वका के समान मन को आनंद दे ती है, उसी कार म द्गण भी लोग को स करते ह. ी के समान आयुध इनके कंध को चूमते ह एवं इनके हाथ म ह त ाण तथा तलवार सुशो भत है. (३) अव वयु ा दव आ वृथा ययुरम याः कशया चोदत मना. अरेणव तु वजाता अचु यवु हा न च म तो ाज यः.. (४) म द्गण एक- सरे से मले ए वग से नीचे आते ह. हे म तो! अपनी वाणी से हम े रत करो. तेज वी एवं पापर हत म द्गण अनेक य म जब उप थत होते ह तो थर पवत भी कांपने लगते ह. (४) को वोऽ तम त ऋ व ुतो रेज त मना ह वेव ज या. ध व युत इषां न याम न पु ैषा अह यो३ नैतशः.. (५) हे आयुधधारी म तो! जबड़ को चलाने वाली जीभ के समान तु हारे भीतर रहकर तु ह कौन चलाता है? अथात् कोई नह . जल बरसाने वाला बादल जस कार दन म चलता है, उसी कार यजमान अ ा त करने के लए तु ह चलाता है. (५) व वद य रजसो मह परं वावरं म तो य म ायय. य यावयथ वथुरेव सं हतं णा पतथ वेषमणवम्.. (६) हे म तो! उस वशाल वषा जल का आ द और अंत कहां है? जसे बरसाने के लए तुम जस समय ढ ली घास के समान जल को बखराते हो, उस समय तेज वी बादल को व ारा टु कड़े-टु कड़े कर दे ते हो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सा तन वोऽमवती ववती वेषा वपाका म तः प प वती. भ ा वो रा तः पृणतो न द णा पृथु यी असुयव ज ती.. (७) हे म तो! तु हारे धन के समान ही तु हारा दान भी शंसनीय है. इं तु हारे दान म सहायता करते ह. उस म सुख, तेज, फल का प रपाक एवं कसान का क याण है. तु हारा दान दाता क द णा के समान तुरंत फल दे ने वाला एवं अपनी श के समान सबको हराने वाला है. (७) त ोभ त स धवः प व यो यद यां वाचमुद रय त. अव मय त व ुतः पृ थ ां यद घृतं म तः ु णुव त.. (८) जस समय नीचे गरने वाला जल चलता है, उस समय व के श द के समान गजन करता है. जब म द्गण धरती पर जल बरसाते ह, उस समय बजली नीचे क ओर मुंह करके कट हो जाती है. (८) असूत पृ महते रणाय वेषमयासां म तामनीकम्. ते स सरासोऽजनय ता वमा द वधा म षरां पयप यन्.. (९) पृ ने शी ग त वाले म त के समूह को वशाल यु के लए ज म दया है. समान प वाले म त ने जल को उ प कया. इसके प ात् सब लोग ने अ भल षत अ के दशन कए. (९) एष वः तोमो म त इयं गीमा दाय य मा य य कारोः. एषा यासी त वे वयां व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (१०) हे म तो! आदर के यो य मांदय क व का यह तु तसमूह तु हारे लए है. यह तु त तु ह इस अ भलाषा से ा त होती है क तु तक ा का शरीर पु हो. हम भी इस तु त ारा अ , बल एवं द घ-आयु ा त कर. (१०)
सू —१६९
दे वता—इं
मह व म यत एता मह द स यजसो व ता. स नो वेधो म तां च क वा सु ना वनु व तव ह े ा.. (१) हे इं ! तुम र ा करने वाले महान् म त को नह छोड़ते हो, इस लए तुम न त प से महान् हो. हे म त को बुलाने वाले! तुम हमारे त अनु ह करके हम अ यंत य सुख दान करो. (१) अयु
तइ
व कृ ी वदानासो न षधो म य ा.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म तां पृ सु तहासमाना वम ह य धन य सातौ.. (२) हे इं ! सब मनु य के वामी, मनु य के क याण के लए जल बरसाने वाले एवं व ान् म द्गण तु हारे साथ मल. म त क सेना उस यु म वजय पाने के लए हंसती ई सदा आगे बढ़ है जो सुख पाने के हेतु लड़ा जाता है. (२) अ य सा त इ ऋ र मे सने य वं म तो जुन त. अ न मातसे शुशु वानापो न पं दध त यां स.. (३) हे इं ! तु हारा वशेष आयुध व हमारी उ त के लए बादल के पास प ंचता है. म त् भी चरकाल से एक कए ए जल को धरती पर बरसा दे ते ह. अ न भी महान् य के लए द त ए ह. जस कार जल प को धारण करता है, उसी कार अ न ह को धारण करता है. (३) वं तू न इ तं र य दा ओ ज या द णयेव रा तम्. तुत या ते चकन त वायोः तनं न म वः पीपय त वाजैः.. (४) हे दाता इं ! तुम वह धन हम दो जो तु हारे दे ने यो य है, जस कार यजमान अ धक द णा दे कर ऋ वज् को स करता है, उसी कार म भी तु ह स क ं गा. तोता शी वर दे ने वाले तु हारी तु त करना चाहते ह. जस कार लोग ध पाने के लए नारी के तन को पु करते ह, उसी कार हम तु ह अ दे कर पु करगे. (४) वे राय इ तोशतमाः णेतारः क य च तायोः. ते षु णो म तो मृळय तु ये मा पुरा गातूय तीव दे वाः.. (५) हे इं ! तु हारा धन परम संतोषदाता एवं यजमान के य को पूरा करने वाला है. वे म द्गण हम स कर जो पहले ही य म आने के लए त पर ह. (५) त याही मी षो नॄ महः पा थवे सदने यत व. अध यदे षां पृथुबु नास एता तीथ नायः प या न त थुः.. (६) हे इं ! तुम जल बरसाने वाले व के नेता एवं महान् मेघ के स मुख जाओ एवं अंत र म थत रहकर य न करो. जस कार यु े म राजा क सेनाएं ठहरती ह, उसी कार म त के चौड़े खुर वाले घोड़े थत होते ह. (६) त घोराणामेतानामयासां म तां शृ व आयतामुप दः. ये म य पृतनाय तमूमैऋणावानं न पतय त सगः.. (७) हे इं ! भयानक, काले रंग वाले एवं गमनशील म त के आने का श द सुनाई दे रहा है. जस कार अधम श ु को पीड़ा दे कर उसका धन छ नते ह, उसी कार म द्गण अपने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
र णोपाय
ारा अपने श ु मेघ को गरा लेते ह. (७)
वं माने य इ व ज या रदा म ः शु धो गोअ ाः. तवाने भः तवसे दे व दे वै व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (८) हे सम त ा णय को ज म दे ने वाले इं ! तुम म त के साथ आओ और अपनी त ा बढ़ाने के लए शोकना शनी एवं जलधारण करने वाली घटा को वद ण करो. हे दे व! तु त कए जाते ए दे वगण तु हारी तु त करते ह. हम अ , बल और द घ आयु दो. (८)
सू —१७०
दे वता—इं
न नूनम त नो ः क त े द यद तम्. अ य य च म भ स चरे यमुताधीतं व न य त.. (१) इं ने कहा—“आज या कल वा तव म कुछ नह है. जो काय व च है, उसे कौन जानता है? अ य लोग का मन इतना चंचल होता है क वे जो भी पढ़ते ह, सो भूल जाते ह.” (१) क न इ जघांस स ातरो म त तव. ते भः क प व साधुया मा नः समरणे वधीः.. (२) अग य बोले—“हे इं ! तुम या मुझे मारना चाहते हो? अपने ाता म त के साथ जाकर भली कार य के भाग का भोग करो. सं ाम म हमारी ह या मत करना.” (२) क नो ातरग य सखा स त म यसे. व ा ह ते यथा मनोऽ म य म द स स.. (३) इं बोले—“हे भाई अग य! तुम म होकर हमारा अपमान य कर रहे हो? तु हारे मन म जो बात है, उसे हम जानते ह. तुम हम ह दे ना नह चाहते हो.” (३) अरं कृ व तु वे द सम न म धतां पुरः. त ामृत य चेतनं य ं ते तनवावहै.. (४) हे ऋ वजो! तुम वेद को अलंकृत करो एवं हमारे सामने अ न को जलाओ. हम और तुम उस अ न म अमृत क सूचना दे ने वाला यह करगे.” (४) वमी शषे वसुपते वसूनां वं म ाणां म पते धे ः. इ वं म ः सं वद वाध ाशान ऋतुथा हव ष.. (५) अग य ने कहा—“हे धन के अ धप त, म के म , सबके वामी एवं आ य इं ! तुम म त से कहो क हमारा य पूरा हो गया है. तुम ठ क समय पर आकर हमारा ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भ ण करो.” (५)
सू —१७१
दे वता—म द्गण
त व एना नमसाहमे म सू े न भ े सुम त तुराणाम्. रराणता म तो वे ा भ न हेळो ध व मुच वम ान्.. (१) हे वेगशाली म तो! म अपना नम कार और तु त वचन लेकर तु हारे समीप आता ं एवं तु हारी दया क याचना करता ं. तुम तु तय से च स करो, ोध यागो और घोड़ को रथ से अलग कर दो. (१) एष वः तोमो म तो नम वा दा त ो मनसा धा य दे वाः. उपेमा यात मनसा जुषाणा यूयं ह ा नमस इद्वृधासः.. (२) हे तेज वी म तो! तु हारे त बोला जा रहा तो अ स हत है. यह तो तुम म ा रखने वाली बु से नकला है, इस लए हमारे त कृपा करके मन से इसे सुनो एवं इसे वीकार करके शी आओ. तुम ह व प अ क वृ करने वाले हो. (२) तुतासो नो म तो मृळय तूत तुतो मघवा श भ व ः. ऊ वा नः स तु को या वना यहा न व ा म तो जगीषा.. (३) हे म तो! तु त सुनकर हम सुखी करो. सवा धक सुखदाता इं हम स कर. हे म तो! हम जतने दन जी वत रह, वे दन सबसे अ धक उ म, चाहने यो य एवं भोगपूण ह . (३) अ मादहं त वषाद षमाणा इ ा या म तो रेजमानः. यु म यं ह ा न शता यास ता यारे चकृमा मृळता नः.. (४) हे म तो! हम इस बलवान् इं के भय से कांपते ए भागने लगे. हमने तु हारे लए जो ह व तैयार कया था, उसे र कर लया. तुम हमारी र ा करो. (४) येन मानास तय त उ ा ु षु शवसा श तीनाम्. स नो म वृषभ वो धा उ उ े भः थ वरः सहोदाः.. (५) हे इं ! तुझ बलशाली के अनु ह से अ भमानपूण करण न य त उषाकाल होने पर ा णय को जगा दे ती ह. हे कामवष , उ , श ु को हराने वाले बल के दाता एवं पुरातन इं ! तुम परम बलशाली म त के साथ मलकर हम अ दो. (५) वां पाही सहीयसो नॄ भवा म रवयातहेळाः. सु केते भः सास हदधानो व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम म त क र ा करो. तु हारी कृपा से ही वे अ धक श शाली बने ह. म त के साथ-साथ हमारे त भी ोधर हत बनो. शोभन बु वाले म त के साथ मलकर तुम श ु को हराते ए हमारे त कृपालु बनो. हम अ , बल और द घ आयु ा त कर. (६)
दे वता—म द्गण
सू —१७२ च ो वोऽ तु याम
ऊती सुदानवः. म तो अ हभानवः.. (१)
हे म तो! हमारे य म तु हारा आगमन आ यजनक हो. हे शोभन दान एवं उ म काश वाले म तो! आपका शुभ आगमन हमारी र ा करे. (१) आरे सा वः सुदानवो म त ऋ
ती श ः. आरे अ मा यम यथ.. (२)
हे शोभनदानशील म तो! तु हारे चमकते ए एवं हसक आयुध हमसे र रह. तु हारे ारा फका गया पाषाणमय आयुध हमसे र रहे. (२) तृण क द य नु वशः प रवृङ्
सुदानवः. ऊ वा ः कत जीवसे.. (३)
हे शोभन दान वाले म तो! य प मेरी जा तनक के समान तु छ ह तथा प उनक र ा करो तथा हम चरकाल तक जी वत रहने के लए उ त करो. (३)
सू —१७३
दे वता—इं
गाय साम नभ यं१ यथा वेरचाम त ावृधानं ववत्. गावो धेनवो ब ह यद धा आ य स ानं द ं ववासान्.. (१) हे इं ! उद्गाता सामवेद को इस कार गाता है क वह आकाश म गूंज जाए और आप उसे समझ ल. हम उस बढ़ते ए सामगान क पूजा वग के समान करते ह. जस कार धा और हसार हत गाएं अपने थान पर बैठती ह, उसी कार म तु हारी सेवा करता ं. (१) अचद्वृषा वृष भः वे ह ैमृगो ना ो अ त य जुगुयात्. म दयुमनां गूत होता भरते मय मथुना यज ः.. (२) यजमान ह दे ने वाले अ वयु को साथ लेकर इं क पूजा करते ह. वे सोचते ह क इं यासे मृग के समान ह के त शी आ जाएंगे. हे बलशाली इं ! तो क इ छा करने वाले दे व क तु त करता आ होता, यजमान एवं उसक प नी भली कार य पूरा करते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न
ोता प र स मता य भरद्गभमा शरदः पृ थ ाः. दद ो नयमानो वद्गौर त तो न रोदसी चर ाक्.. (३)
हवन पूण करने वाले अ न, गाहप य आ द थान के चार ओर फैले ह एवं वष भर म धरती से उ प होने वाले अ को धारण करते ह. अ न घोड़े और बैल क तरह श द करते ए ह व का अ लेकर धरती और आकाश के म य म त के समान बात करते ह. (३) ता कमाषतरा मै यौ ना न दे वय तो भर ते. जुजोष द ो द मवचा नास येव सु यो रथे ाः.. (४) हम इं को ल य करके अ यंत ापक ह व दान करगे. दे व को अपने अनुकूल बनाने के लए यजमान उ म तो पढ़ते ह. अ नीकुमार के समान तेज वी, सुंदर एवं सुख से ा त करने यो य इं रथ पर बैठकर हमारी तु तय को सुन. (४) तमु ु ही ं यो ह स वा यः शूरो मघवा यो रथे ाः. तीच ोधीया वृष वा वव ुष मसो वह ता.. (५) हे होता! इं क तु त करो. वे अनंत श वाले, शूर, धनवान्, रथ पर थर, सामने लड़ने वाले यो ा म उ म, व धारणक ा एवं मेघ के वनाशक ह. (५) य द था म हना नृ यो अ यरं रोदसी क ये३ ना मै. सं व इ ो वृजनं न भूमा भ त वधावाँ ओपश मव ाम्.. (६) इं अपने मह व के कारण य क ा यजमान को वग दान करने म समथ ह. धरती और आकाश उनके संचरण के लए पया त नह ह. जैसे बैल स ग को धारण करता है, उसी कार अ के वामी इं वग को धारण करते ह. जैसे आकाश धरती को घेरे ए है, उसी कार इं तीन लोक को ा त करते ह. (६) सम सु वा शूर सतामुराणं प थ तमं प रतंसय यै. सजोषस इ ं मदे ोणीः सू र च े अनुमद त वाजैः.. (७) हे शूर इं ! तुम यु म उन लोग को बल दान करते हो एवं उ म माग दखाते हो, जो तु हारा ही आ य लेकर यु म वृ होते ह. तु हारी सेवा करके स होने वाले म द्गण यु म य न करते ह. (७) एवा ह ते शं सवना समु आपो य आसु मद त दे वीः. व ा ते अनु जो या भूदगौः ् सूर द धषा वे ष जनान्.. (८) हे इं ! तु हारे उ े य से कए गए सोम याग इस कार सुखकर ह क आकाश म थत द -जल जा के क याण के लए तु ह स कर. तो पी सम त वाणी तु ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स करे और तुम वषा करके तु तक ा भ
क इ छा पूरी करो. (८)
असाम यथा सुषखाय एन व भ यो नरां न शंसैः. अस था न इ ो व दने ा तुरो न कम नयमान उ था.. (९) हे वामी इं ! ऐसी कृपा करो क हम तु हारे सखा बनकर अपनी तु तय ारा उसी कार अपनी अ भलाषाएं पूण कर सक, जस कार राजा क तु त से करते ह. हे इं ! हम जस समय तु त कर, उस समय तुम उप थत होकर हमारी तु तय के साथ ही हमारे य को भी शी वीकार करो. (९) व पधसो नरां न शंसैर माकास द ो व ह तः. म ायुवो न पूप त सु श ौ म यायुव उप श त य ैः.. (१०) मनु य जस कार तु त ारा वरो धय को म बना लेते ह. उसी कार हम भी इं को सखा बनाएंगे. व धारी इं क श हमारी बनेगी. जस कार म बनने के इ छु क लोग नगर के यो य शासक वामी क पूजा करते ह, उसी कार हम ी और यश ा त करने क इ छा वाले अ वयु इं क पूजा करते ह. (१०) य ो ह मे ं क ध ु राण मनसा प रयन्. तीथ ना छा तातृषाणमोको द घ न स मा कृणो य वा.. (११) य का अनु ान करने वाला य ारा इं क ओर बढ़ता है एवं कु टल ग त सदा मन म ःखी रहता है, जैसे माग म व छ जल सामने पाकर यासा स होता है एवं जल तक दे र म प ंचने वाला टे ढ़ा माग यासे को ःखी करता है. (११) मो षू ण इ ा पृ सु दे वैर त ह मा ते शु म वयाः. मह य मीळ् षो य ा ह व मतो म तो व दते गीः.. (१२) हे इं ! सं ाम उप थत होने पर म द्गण के साथ हम छोड़ मत दे ना. हे श शाली! तु हारा य भाग म त से अलग है. हमारी फल से मली ई तु त ह वयु एवं दानशील म त क वंदना करती है. (१२) एष तोम इ तु यम मे एतेन गातुं ह रवो वदो नः. आ नो ववृ याः सु वताय दे व व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (१३) हे इं ! यह तु तसमूह तु हारे लए है. हे अ वामी इं ! इस तो पी माग से हमारे य को जानो और सहज ही हमारे समीप आओ. हम अ , बल और द घ आयु ा त कर. (१३)
सू —१७४
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं राजे ये च दे वा र ा नॄ पा सुर वम मान्. वं स प तमघवा न त वं स यो वसवानः सहोदाः.. (१) हे इं ! तुम सम त व और दे व के राजा हो. तुम मनु य क र ा करो. हे श ुनाशक! तुम हमारा पालन करो. तुम स जन के पालक, धन के वामी एवं हमारे उ ारक ा हो. तुम स य फल वाले, अपने तेज से सबको ढकने वाले एवं तु तकता के श दाता हो. (१) दनो वश इ मृ वाचः स त य पुरः शम शारद दत्. ऋणोरपो अनव ाणा यूने वृ ं पु कु साय र धीः.. (२) हे इं ! जस समय तुमने पूरे वष तक ढ़ क गई सात नग रय को न कया था, उस समय वहां रहने वाली एवं मायाचना करती ई जा का सुख से दमन कया था. हे अ न दत इं ! तुमने बहने वाला जल दया एवं त ण अव था वाले राजा पु कु स के क याण के न म वृ का हनन कया था. (२) अजा वृत इ शूरप नी ा च ये भः पु त नूनम्. र ो अ नमशुषं तूवयाणं सहो न दमे अपां स व तोः.. (३) हे ब त ारा तु य इं ! तुम असुर ारा र त पु रय को जीतते जाते हो. तुम वहां से म त् आ द अनुचर स हत वग म जाते हो. वहां तुम अशांत एवं शी गंता अ न क इस लए र ा करते हो क वे य गृह म अपना य कम पूरा कर सक. जैसे सह वन क र ा करता है, उसी कार तुम अ न क र ा करते हो. (३) शेष ु त इ स म यो ौ श तये पवीरव य म ा. सृजदणा यव य ुधा गा त री धृषता मृ वाजान्.. (४) हे इं ! तु हारे श ु व क शंसा के बहाने तु हारी म हमा का वणन करते ए अपने उप थान म सो जाव. जब तुम हार का साधन व लेकर जाते हो, तब नीचे क ओर जल बरसाते हो और अपने अ वाले रथ पर बैठते हो. तुम अपनी श से फसल क वृ करते हो. (४) वह कु स म य म चाक यूम यू ऋ ा वात या ा. सूर ं वृहतादभीकेऽ भ पृधो या सष बा ः.. (५) हे इं ! जस य म तुम कु स ऋ ष क इ छा करते हो एवं अपने सततगामी, सरलग त वाले एवं वायुवेग वाले घोड़ को हांककर ले जाते हो, सूय अपने रथ का च उस य के समीप ले जाव एवं व हाथ म पकड़ने वाले इं सं ाम करने वाले श ु का सामना कर. (५) जघ वाँ इ म े चोद वृ ो ह रवो अदाशून्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये प य यमणं सचायो वया शूता वहमाना अप यम्.. (६) हे अ वामी इं ! तुमने तो से वृ ा त करके ऐसे लोग का वध कया जो दान नह दे ते थे और तु हारे म यजमान के श ु थे. जो तु ह आ यदाता के प म दे खते एवं जो ह दे ने के लए तु हारे सामने आते ह, वे तुमसे संतान पाते ह. (६) रप क व र ाकसातौ ां दासायोपबहण कः. कर ो मघवा दानु च ा न य णे कुयवाचं मृ ध ेत्.. (७) हे इं ! अ ा त के न म ांतदश होता तु हारी तु त करता है. तुमने दास असुर का वध करके धरती को उसक श या बनाया था. इं ने तीन भू मय का दान पी व च काय करके य ण राजा के क याण के लए कुयवाच को मारा था. (७) सना ता त इ न ा आगुः सहो नभोऽ वरणाय पूव ः. भन पुरो न भदो अदे वीननमो वधरदे व य पीयोः.. (८) हे इं ! नवीनतम ऋ ष तु हारे अ त ाचीन वीरकम क तु त करते ह. तुमने यु समा त करने के लए अनेक हसक को समा त कया है. तुमने वरो धय के दे वशू य नगर को न कया तथा दानर हत वरोधी वृ के ऊपर अपना व झुकाया. (८) वं धु न र धु नमतीऋणोरपः सीरा न व तीः. य समु म त शूर प ष पारया तुवशं य ं व त.. (९) हे इं ! तुम श ु को कं पत करने वाले हो, इस लए बहती ई सीरा नद के समान तरंग वाला जल धरती पर बहाते हो. हे शूर! तुमने सागर को जल से पूण करते समय य और तुवसु राजा का पालन करके उनका क याण कया. (९) वम माक म व ध या अवृकतमो नरां नृपाता. स नो व ासां पृधां सहोदा व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (१०) हे इं ! तुम सदा हमारे उ म र क एवं मनु य के र क बनो, तुम हमारी सेना को बल दान करो. हम अ , धन और द घ आयु ा त कर. (१०)
सू —१७५
दे वता—इं
म यपा य ते महः पा येव ह रवो म सरो मदः. वृषा ते वृ ण इ वाजी सह सातमः.. (१) हे अ वामी इं ! महान् एवं पू य सोमरस जस कार पा म रखा है, उसी कार तुम भी इसे वीकार करो. तुम इसे पीकर स ता ा त करोगे. हे कामवष इं ! यह सोम तु हारी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भलाषा पूण करके अ भमत सुख दे गा. (१) आ न ते ग तुम सरो वृषा मदो वरे यः. सहावाँ इ हे इं ! स तादाता, कामवष , तृ त करने वाला, नाश करने वाला एवं अ वनाशी सोमरस तु ह मले. (२)
सान सः पृतनाषाळम यः.. (२) े ,श
शाली, श ु सेना
का
वं ह शूरः स नता चोदयो मनुषो रथम्. सहावा द युम तमोषः पा ं न शो चषा.. (३) हे शूर एवं दाता इं ! मुझ मनु य क अ भलाषा पूरी करो. सोमरस तु हारा सहायक है. अ न जस कार अपनी लपट से अपने ही आधारभूत पा को जलाता है, उसी कार तुम तहीन असुर को न करो. (३) मुषाय सूय कवे च मीशान ओजसा. वह शु णाय वधं कु सं वात या ैः.. (४) हे मेधावी एवं समथ इं ! तुमने अपनी श से सूय के एक प हए को चुरा लया था. तुम शु ण नामक असुर का वध करने के लए वायु के समान तेज चलने वाले घोड़ क सहायता से व लेकर आओ. (४) शु म तमो ह ते मदो ु न तम उत तुः. वृ ना व रवो वदा मंसी ा अ सातमः.. (५) हे इं ! तु हारी स ता सबसे अ धक श शाली है एवं तु हारे य म सबसे अ धक अ होता है. हे अ प अनेक धन दे ने वाले इं ! तुम वृ घाती एवं धन दे ने वाले दोन य का समथन करो. (५) यथा पूव यो ज रतृ य इ मयइवापो न तृ यते बभूथ. तामनु वा न वदं जोहवी म व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (६) हे इं ! तुमने ाचीन तोता को उसी कार सुख दया, जस कार जल यासे को स करता है. इसी कारण हम बार-बार तु हारी तु त करते ह क हम अ , बल और द घ आयु ा त कर सक. (६)
सू —१७६
दे वता—इं
म स नो व यइ य इ म दो वृषा वश. ऋघायमाण इ व स श ुम त न व द स.. (१) हे सोम! तुम हमारी धन ा त के लए इं को स करो एवं कामवष इं के भीतर वेश करो. तुम श ु क हसा करते ए उ ह घेर लेते हो. कोई भी श ु तु हारे समीप नह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आता. (१) त म ा वेशया गरो य एक षणीनाम्. अनु वधा यमु यते यवं न चकृषद्वृषा.. (२) हे होता! अपनी तु त पी वाणी को इं म था पत करो. वे ान वाले मनु य के एकमा आ य ह. वधा श द के बाद उ ह भी ह अ दया जाता है. कसान जस कार पके जौ को हण करता है, उसी कार इं हमारा ह वीकार करते ह. (२) य य व ा न ह तयोः प च तीनां वसु. पाशय व यो अ म ु द ेनवाश नज ह.. (३) जन इं के हाथ म ा ण, य, वै य, शू और नषाद पांच कार के जन को स करने वाला सभी कार का अ है, वे इं हमसे ोह करने वाले को व बनकर न कर. (३) असु व तं समं ज ह णाशं यो न ते मयः. अ म यम य वेदनं द सू र दोहते.. (४) हे इं ! सोमरस न नचोड़ने वाल , ःसा य वनाश वाल एवं सुख न प ंचाने वाल का नाश करो. ऐसे लोग का धन हम दो. तु हारा तोता ही धन पाता है. (४) आवो य य बहसोऽकषु सानुषगसत्. आजा व ये दो ावो वाजेषु वा जनम्.. (५) हे सोम! उस यजमान क र ा करो, जसके तो और ह संबंधी मं म तुम सदा थत रहते हो. हे सोम! धन के लए होने वाले यु म अ के वामी इं क र ा करो. (५) यथा पूव यो ज रतृ य इ मयइवापो न तृ यते बभूथ. तामनु वा न वदं जोहवी म व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (६) हे इं ! जस कार जल यासे को स करता है, उसी कार तुमने ाचीन तु तक ा पर कृपा क थी. इसी लए म तु हारी सुखदायक तु त बार-बार कर रहा ं. म अ , बल एवं द घ आयु ा त क ं . (६)
सू —१७७
दे वता—इं
आ चष ण ा वृषभो जनानां राजा कृ ीनां पु त इ ः. तुतः व य वसोप म यु वा हरी वृषणा या वाङ् .. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धन आ द ारा सभी मनु य को स करने वाले, कामवष , सब लोग के वामी एवं ब त ारा तुत इं हमारे पास आव. हे इं ! हमारी तु त सुनकर ह अ क इ छा करते ए दोन कामवष घोड़ को रथ म जोड़कर हमारी र ा के लए सामने आओ. (१) ये ते वृषणो वृषभास इ युजो वृषरथासो अ याः. ताँ आ त ते भरा या वाङ् हवामहे वा सुत इ सोमे.. (२) हे इं ! तु हारे घोड़े त ण, उ म, कामवष , मं यु पर सवार होकर, उनके साथ हमारे स मुख आओ. (२)
एवं रथ म जोड़ने यो य ह. तुम उन
आ त रथं वृषणं वृषा ते सुतः सोमः प र ष ा मधू न. यु वा वृष यां वृषभ तीनां ह र यां या ह वतोप म क्.. (३) हे इं ! अपने कामवष रथ पर बैठो, य क तु हारे लए नचोड़ा आ सोमरस और मधुर घृत तैयार है. हे कामवष इं ! अपने घोड़ को रथ म जोड़ो और स कम करने वाले यजमान पर अनु ह करने के लए शी गामी रथ से हमारे स मुख आओ. (३) अयं य ो दे वया अयं मयेध इमा ा यय म सोमः. तीण ब हरा तु श या ह पबा नष व मुचा हरी इह.. (४) हे इं ! यह य दे व को ा त करने वाला है. यह य -संबंधी पशु, ये मं , यह नचोड़ा आ सोमरस और बछे ए कुश, सब तु हारे लए ह. हे शत तु! तुम शी आओ और कुश पर बैठकर सोमरस पओ. तुम इस य म अपने घोड़ को रथ से अलग करो. (४) ओ सु ु त इ या वाङु प ा ण मा य य कारोः. व ाम व तोरवसा गृण तो व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (५) हे भली कार तु य इं ! आदरणीय तोता के मं को वीकार करके हमारे सामने आओ. तु त करते ए हम तु हारी र ा पाकर नवास थान के साथ ही अ , बल और द घ आयु ा त करगे. (५)
सू —१७८
दे वता—इं
य या त इ ु र त यया बभूथ ज रतृ य ऊती. मा नः कामं महय तमा ध व ा ते अ यां पयाप आयोः.. (१) हे इं ! तु हारी वह समृ सब जगह स है, जसके ारा तुम तोता क र ा म समथ होते हो. हम महान् बनाने क अपनी अ भलाषा तुम समा त मत करो. तु हारी सभी मानवो चत व तु को हम ा त कर. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न घा राजे आ दभ ो या नु वसारा कृणव त योनौ. आप द मै सुतुका अवेष गम इ ः स या वय .. (२) हे राजा इं ! पर पर ब हन-भाई बने ए रात- दन अपने उ प थल म वषा द कम करके हमारे य कम को समा त न कर. श दायक ह व इं को ा त होती है. इं हम अपनी म ता एवं अ द. (२) जेता नृ भ र ः पृ सु शूरः ोता हवं नाधमान य कारोः. भता रथं दाशुष उपाक उ ता गरो य द च मना भूत्.. (३) शूर इं यु के नेता म त के साथ यु म वजय ा त करते ह एवं कृपा क अ भलाषा करने वाले तोता क पुकार सुनते ह. वे जस समय अपनी इ छा से तु तवचन सुनना चाहते ह, उस समय अपना रथ ह दे ने वाले यजमान के पास ले आते ह. (३) एवा नृ भ र ः सु व या खादः पृ ो अ भ म णो भूत्. समय इषः तवते ववा च स ाकरो यजमान य शंसः.. (४) यजमान उ म धन पाने क इ छा से जो अ दे ता है, उसे इं अ धक मा ा म खाते ह और अपने भ यजमान के श ु को परा जत करते ह. वे भां त-भां त के श द वाले यु म यजमान के य कम क शंसा करते ह एवं स चा फल दे ने के लए ह व हण करते ह. (४) वया वयं मघव श ून भ याम महतो म यमानान्. वं ाता वमु नो वृधे भू व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (५) हे इं ! तु हारी सहायता से हम उन श ु का वध कर, जो अपने आपको बड़ा श शाली मानते ह. तुम हमारे र क एवं पालनक ा बनो. हम अ , बल और द घ-आयु ा त कर. (५)
सू —१७९
दे वता—र त
पूव रहं शरदः श माणा दोषा व तो षसो जरय तीः. मना त यं ज रमा तनूनाम यू नु प नीवृषणो जग युः.. (१) लोपामु ा बोली—“हे अग य! म पूवका लक अनेक वष से रात, दन और उषा काल म शरीर को जीण करती ई तु हारी सेवा म लगी रही ं. इस समय बुढ़ापा मेरे अंग का स दय न कर रहा है. या इस अव था म पु ष ना रय के साथ समागम न कर? (१) ये च
पूव ऋतसाप आस साकं दे वे भरवद ृता न.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ते चदवासुन
तमापुः समू नु प नीवृष भजग युः.. (२)
“हे अग य! ाचीन मह षय ने स य को ा त कया. वे दे व के साथ स य बोलते थे. उ ह ने भी प नय म वीय का खलन कया और इस काय को समा त नह कया. तप या करती ई प नयां भोग समथ प तय के समीप जाती थ .” (२) न मृषा ा तं यदव त दे वा व ा इ पृधो अ य वाव. जयावेद शतनीथमा ज य स य चा मथुनाव यजाव.. (३) अग य ने उ र दया—“हे प नी! हम लोग थ ही नह थके ह. हमारी तप या से स दे व हमारी र ा करते ह. हम सभी भोग को भोगने म समथ ह. य द हम और तुम इ छा कर तो इस संसार म अब भी सुखसंभोग के सैकड़ साधन ा त कर सकते ह. (३) नद य मा धतः काम आग त आजातो अमुतः कुत त्. लोपामु ा वृषणं नी रणा त धीरमधीरा धय त स तम्.. (४) “हे प नी! म मं के जप और चय पालन म लगा रहा. फर भी न जाने कस कारण मुझम काम भाव उ प हो गया. तुम लोपामु ा वीय सेचन समथ मुझ प त के साथ संगत हो जाओ. तुम अधीर नारी बनकर मुझ महा ाण पु ष का भोग करो.” (४) इमं नु सोमम ततो सु पीतमुप ुवे. य सीमाग कृमा त सु मृळतु पुलुकामो ह म यः.. (५) श य कहने लगा—“उदर म पया आ सोमरस मुझे सब पाप से छु ड़ाकर सुखी करे, यह ाथना म स चे मन से कर रहा ं. मने जो पाप कया है, उससे मेरी र ा हो. य मनु य मन म ब त सी कामनाएं करता है? (५) अग यः खनमानः ख न ैः जामप यं बल म छमानः. उभौ वणावृ ष ः पुपोष स या दे वे वा शषो जगाम.. (६) “मेरे गु अग य ने य ारा अ भमत फल एवं ब त सी संतान क इ छा क . उ ह ने काम और संयम दोन उ म गुण ा त कए एवं दे व से स चा आशीवाद पाया.” (६)
सू —१८०
दे वता—अ नीकुमार
युवो रजां स सुयमासो अ ा रथो य ां पयणा स द यत्. हर यया वां पवयः ुषाय म वः पब ता उषसः सचेथे.. (१) हे अ नीकुमारो! तीन लोक म जाने वाले तु हारे रथ के घोड़े तु ह अ भमत थान म प ंचा दे ते ह. उस समय तु हारे सुनहरे रथ क ने मयां तु हारी इ छा पूरी करती ह. तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ातःकाल सोमरस पीते ए हमसे मलो. (१) युवम य याव न थो य प मनो नय य य योः. वसा य ां व गूत भरा त वाजाये े मधुपा वषे च.. (२) हे सबके ारा तु हारे आने के लए करता है, उस समय एवं वशेष प से पू
तु य एवं मधुपानक ा अ नीकुमारो! तु हारी ब हन उषा जस समय भात करती है एवं यजमान अ और बल पाने के लए तु हारी तु त तुम दोन का न यगामी, व वध ग तय वाला, मनु य का हतकारक य रथ पहले ही चल दे ता है. (२)
युवं पय उ यायामध ं प वमामायामव पू गोः. अ तय ननो वामृत सू ारो न शु चयजते ह व मान्.. (३) हे अ नीकुमारो! तुमने गाय को धा बनाया है. तुम गाय के थन म पहले से पके ए ध को था पत करते हो. हे स य प! चोर वन के वृ म जस सावधानी से छपा रहता है, उसी सावधानी से शु एवं ह यु यजमान तु हारी तु त करता है. (३) युवं ह घम मधुम तम येऽपो न ोदोऽवृणीतमेषे. त ां नराव ना प इ ी र येव च ा त य त म वः.. (४) हे अ नीकुमारो! तुमने सुख के इ छु क अ मु न के लए गरम ध और घी क न दयां बहा द थ . हे नेताओ! हम इसी लए तु हारे लए अ न म य करते ह. रथ का प हया जस कार ढालू माग पर अपने आप चलता है, उसी कार सोमरस तु ह वतः ा त होता है. (४) आ वां दानाय ववृतीय द ा गोरोहेण तौ यो न ज ः. अपः ोणी सचते मा हना वां जूण वाम ुरंहसो यज ा.. (५) हे श ुनाशक अ नीकुमारो! तु राजा के पु भु यु ने जस कार तु ह बुलाया था, उसी कार म अपनी तु तय ारा तु ह अपने य म बुला लूंगा. तु हारी कृपा से ही धरती और आकाश मले ह. हे य वा मयो! यह बूढ़ा बल ऋ ष पाप से छू ट कर द घ जीवन ा त करे. (५) न य ुवेथे नयुतः सुदानू उप वधा भः सृजथः पुर धम्. ेष े ष ातो न सू ररा महे ददे सु तो न वाजम्.. (६) हे शोभनदानशील अ नीकुमारो! जब तुम अपने नयुत नाम के घोड़ को रथ म जोड़ते हो, उस समय धरती को अ से पूण बना दे ते हो. यह यजमान तु ह वायु के समान शी स करे एवं तु हारी कामना करे. इसके बाद यजमान उ म कम करने वाले के समान अ ा त करता है. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वयं च वां ज रतारः स या वप यामहे व प ण हतावान्. अधा च मा नाव न ा पाथो ह मा वृषणाव तदे वम्.. (७) हम भी तु हारे तोता एवं स य बोलने वाले ह. हम तु हारी तु त कर रहे ह. तुम य न करने वाले परम धनी का याग करो. हे शंसनीय एवं कामवष अ नीकुमारो! तुम दे व के समीप सोमरस पओ. (७) युवां च मा नावनु ू व य वण य सातौ. अग यो नरां नृ ु श तः काराधुनीव चतय सह ैः.. (८) हे अ नीकुमारो! जस कार शंख श द करता है, उसी कार य क ा मनु य म उ म अग य ऋ ष हजार तु तय ारा त दन तु ह जगाते ह. वे ी म का ःख र करने वाला वषा का जल चाहते ह. (८) य हेथे म हना रथ य य ा याथो मनुषो न होता. ध ं सू र य उत वा व ं नास या र यषाचः याम.. (९) हे अ नीकुमारो! तुम अपने रथ क म हमा से हमारा य पूण करते हो. हे ग तशीलो! तुम यजमान के होता के समान य के आरंभ म आकर य के अंत म जाओ. तुम तोता को उ म अ दान करो. हम भी धन ा त करगे. (९) तं वां रथं वयम ा वेम तोमैर ना सु वताय न म्. अ र ने म प र ा मयानं व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (१०) हे अ नीकुमारो! हम तु तय ारा तु हारे शी ग त वाले, शंसनीय, आकाश म उड़ने वाले तथा न टू टने यो य ने म वाले रथ को अपने य म बुलाते ह, जससे हम अ , बल और द घ आयु ा त कर सक. (१०)
सू —१८१
दे वता—अ नीकुमार
क े ा वषां रयीणाम वय ता य नीथो अपाम्. अयं वां य ो अकृत श तं वसु धती अ वतारा जनानाम्.. (१) हे यतम अ नीकुमारो! तुम य के अ पी धन को कब ऊपर ले जाओगे और य को पूण करने क इ छा से वषा का जल नीचे गराओगे? तुम धन धारणक ा एवं मनु य के आ यदाता हो. यह य तु हारी शंसा के प म ही कया जा रहा है. (१) आ वाम ासः शुचयः पय पा वातरंहसो द ासो अ याः. मनोजुवो वृषणो वीतपृ ा एह वराजो अ ना वह तु.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तु हारे घोड़े शु , वषा का जल पीने वाले, वायु के समान शी गामी, द , मन के समान तेज चाल वाले, जवान और सुंदर पीठ वाले ह. वे तु ह इस य म लाव. (२) आ वां रथोऽव नन व वा सृ व धुरः सु वताय ग याः. वृ णः थातारा मनसो जवीयानह पूव यजतो ध या यः.. (३) हे ऊंचे थान के यो य एवं अपने रथ म बैठे ए अ नीकुमारो! तुम धरती के समान व तृत, बड़े जुआर वाले, वषा करने म समथ, मन के समान होड़ने वाले, अहंकारी एवं य के यो य अपने रथ को य थल म ले आओ. (३) इहेह जाता समवावशीतामरेपसा त वा३ नाम भः वैः. ज णुवाम यः सुमख य सू र दवो अ यः सुभगः पु ऊहे.. (४) हे सूयचं प म ज म हण करने वाले पापर हत अ नीकुमारो! तु हारे शरीर क सुंदरता एवं माहा य के कारण म बार-बार तु हारी तु त कर रहा ं. तुम म से एक चं बनकर य वतक के प म संसार को धारण करता है और सरा सूय के प म आकाश का पु बनकर शोभन र मय से संसार का पालन करता है. (४) वां नचे ः ककुहो वशाँ अनु पश पः सदना न ग याः. हरी अ य य पीपय त वाजैम ना रजां य ना व घोषैः.. (५) हे अ नीकुमारो! तुम म से एक का पीले रंग का े रथ हमारी इ छा के अनुसार य भू म म आ जाए एवं सरे को मनु य तु तयां तथा उसके घोड़ को मथा आ खा दे कर स करे. (५) वां शर ा वृषभो न न षाट् पूव रष र त म व इ णन्. एवैर य य पीपय त वाजैवष ती वा न ो न आगुः.. (६) हे अ नीकुमारो! तुम म से एक बादल को तोड़ते ए इं के समान श ु को भगाते ह एवं ब त से अ क अ भलाषा करते ए जाते ह सरे को गमन के लए यजमान लोग ह ारा स करते ह. उनके स होने पर कनार को तोड़ने वाली जल से भरी न दयां हमारे पास आती ह. (६) अस ज वां थ वरा वेधसा गीवाळ् हे अ ना ेधा र ती. उप तुताववतं नाधमानं याम याम छृ णुतं हवं मे.. (७) हे वधाता अ नीकुमारो! तु ह ढ़ बनाने के लए अ यंत उ म तु तयां बनाई गई ह. वे तीन कार से तु हारे पास प ंचती ह. तुम तु त सुनकर अभी फल चाहने वाले यजमान क र ा करो एवं जाते ए अथवा खड़े होकर उसक पुकार सुनो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत या वां शतो व ससो गी ब ह ष सद स प वते नॄन्. वृषां वां मेघो वृषणा पीपाय गोन सेके मनुषो दश यन्.. (८) हे अ नीकुमारो! तुम तेज वी हो. तु हारी तु त तीन कुश से यु य गृह म यजमान को स करे. हे कामवषको! तुमसे संबं धत बादल वषा करता आ मनु य को धन दे कर स करे. (८) युवां पूषेवा ना पुर धर नमुषां न जरते ह व मान्. वे य ां व रव या गृणानो व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (९) हे अ नीकुमारो! पूषा के समान बु मान् एवं ह धारण करने वाला तु हारा यजमान अ न और उषा के समान तु हारी तु त करता है. सेवापरायण तोता के साथ-साथ यजमान भी तु हारी तु त करता है, जससे हम अ , बल एवं द घ आयु ा त कर सक. (९)
सू —१८२
दे वता—अ नीकुमार
अभू ददं वयुनमो षु भूषता रथो वृष वा मदता मनी षणः. धय वा ध या व पलावसू दवो नपाता सुकृते शु च ता.. (१) हे मेधावी ऋ वजो! मेरे मन म यह ान उ प आ है क अ नीकुमार का कामवष रथ आ गया है. उनके सामने जाकर उ ह तु त से स करो. वे मुझ पु यवान् को कमबु दे ने वाले, तु तयो य, व पला का क याण करने वाले, आ द य के नाती एवं प व कम करने वाले ह. (१) इ तमा ह ध या म मा द ा दं स ा र या रथीतमा. पूण रथं वहेथे म व आ चतं तेन दा ांसमुप याथो अ ना.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम न य ही उ म वामी, तु त के यो य, म त म े , श ुनाशक, कम करने म अ तशय कुशल, रथ के वामी एवं र ा करने वाल म े हो. तुम मधु से भरे ए रथ को सभी जगह ले जाते हो. तुम उसी रथ पर बैठकर य म आओ. (२) कम द ा कृणुथः कमासाथे जनो यः क दह वमहीयते. अ त म ं जुरतं पणेरसुं यो त ाय कृणुतं वच यवे.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम यहां या कर रहे हो? तुम इस मनु य के समीप य ठहरे हो? यद य र हत होकर भी लोग म आदर पा रहा हो तो उसे हराओ. उस प ण के ाण का नाश करो. म मेधावी तु हारी तु त कर रहा ं. मुझे काश दो. (३) ज भयतम भतो रायतः शुनो हतं मृधो वदथु ता य ना. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाचंवाचं ज रतू र नन कृतमुभा शंसं नास यावतं मम.. (४) हे अ नीकुमारो! उनको मार डालो जो कु े के समान बुरी तरह भ कते ए हम मारने आते ह अथवा हमसे यु करना चाहते ह. जो तु हारी तु त करता है, उसक येक बात को सफल करो. हे नास यो! मेरी तु त क र ा करो. (४) युवमेतं च थुः स धुषु लवमा म व तं प णं तौ याय कम्. येन दे व ा मनसा न हथुः सुप तनी पेतथुः ोदसो महः.. (५) हे अ नीकुमारो! तुमने तु राजा के पु के लए सागर म तैरने वाली, ढ़ एवं डांड़ वाली नाव बनाई थी. सब दे व म तु ह ने कृपा करके उसे सागर से नकाला एवं तुमने सहसा आकर वशाल सागर से उसका उ ार कया था. (५) अव व ं तौ यम व१ तरनार भणे तम स व म्. चत ो नावो जठल य जु ा उद या म षताः पारय त.. (६) तु का पु भु यु श ु ारा नीचे को मुंह करके पानी म गराया गया था, इस लए अंधकार म ब त ःखी था. सागर म उसे चार नाव मल जो अ नीकुमार ने भेजी थ . (६) कः वद्वृ ो न तो म ये अणसो यं तौ यो ना धतः पयष वजत्. पणा मृग य पतरो रवारभ उद ना ऊहथुः ोमताय कम्.. (७) याचना करते ए तु पु ने जल के म य एवं वृ न मत जस न ल रथ का सहारा लया था. वह या था? जस कार गरते ए ब ल पशु को स ग आ द से पकड़कर उठाते ह, उसी कार भु यु क र ा करके तुमने ब त यश पाया. (७) त ां नरा नास यावनु या ां मानास उचथमवोचन्. अ माद सदसः सो यादा व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (८) हे नेता अ नीकुमारो! तुम अपने भ ारा कए गए तु त वचन को वीकार करो. तुम आज हमारे ारा कए जाते ए सोम माग के तो को वीकार करो, जससे हम अ , बल और द घ आयु ा त कर. (८)
सू —१८३
दे वता—अ नीकुमार
तं यु ाथां मनसो यो जवीयान् व धुरो वृषणा य च ः. येनोपयाथः सुकृतो रोणं धातुना पतथो वन पणः.. (१) हे कामवष अ नीकुमारो! उस रथ म घोड़े जोड़ो जो मन क अपे ा अ धक वेगशील, सार थ के बैठने के तीन थान से यु , तीन प हय वाला, तीन धातु से मढ़ा आ एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ छा पूरी करने वाला है. जैसे प ी पंख के सहारे तेजी से उड़ता है, उसी कार तुम उस रथ से य करने वाले यजमान के पास जाते हो. (१) सुवृ थो वतते य भ ां य थः तुम तानु पृ े. वपुवपु या सचता मयं गी दवो ह ोषसा सचेथे.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम य म ह व ा त करने के न म य क ओर जस रथ पर सवार होते हो, उसके प हए सरलता से घूमते चलते ह. तु हारे शरीर का हत करने वाली हमारी तु त तु ह ा त हो एवं तुम आकाश क पु ी उषा के साथ मलन करो. (२) आ त तं सुवृतं यो रथो वामनु ता न वतते ह व मान्. येन नरा नास येषय यै व तयाथ तनयाय मने च.. (३) हे नेता अ नीकुमारो! ह व वाले यजमान क ओर जाने वाले अपने उस रथ पर बैठो, जसके ारा तुम य म प ंचना चाहते हो, उसी के ारा यजमान को पु लाभ कराने एवं अपना क याण करने के लए य थल म आओ. (३) मा वां वृको मा वृक रा दधष मा प र व मुत मा त ध म्. अयं वां भागो न हत इयं गीद ा वमे वां नधयो मधूनाम्.. (४) हे श ुनाशक अ नीकुमारो! तु हारी कृपा से हसक मादा एवं नर पशु मुझे ःखी न कर. तुम अपना धना द सरे कसी को मत दे ना. यह तु हारी तु त है, यह ह का भाग है और यह सोमरस का पा है. (४) युवां गोतमः पु मीळ् हो अ द ा हवतेऽवसे ह व मान्. दशं न द ामृजूयेव य ता मे हवं नास योप यातम्.. (५) हे अ नीकुमारो! गौतम, पु मीढ एवं अ ऋ ष ह हाथ म लेकर तु ह स करने के लए उसी कार बुलाते ह, जस कार प थक माग जानने क इ छा से दशा बताने वाले को बुलाता है. आप मेरे आ ान को सुनकर आइए. (५) अता र म तमस पारम य त वां तोमो अ नावधा य. एह यातं प थ भदवयानै व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (६) हे अ नीकुमारो! हम तु हारे कारण अंधकार से पार हो जाएंगे. यह तो तु हारे लए ही बनाया गया है. य पी दे वमाग पर आ जाओ, जससे हम अ , बल और द घ आयु ा त कर. (६)
सू —१८४
दे वता—अ नीकुमार
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता वाम तावपरं वेमो छ यामुष स व थैः. नास या कुह च स तावय दवो नपाता सुदा तराय.. (१) जब उषा अंधकार का नाश करती है, तब आज के आगामी दन के य म हम होता तु तय ारा तु ह बुलाते ह. हे अस यर हत एवं वग के नेता अ नीकुमारो! तुम जहां भी रहो, म उ म दान दे ने वाले यजमान के क याण के लए तु ह बुलाता ं. (१) अ मे ऊ षु वृषणा मादयेथामु पण हतमू या मद ता. ुतं मे अ छो भमतीनामे ा नरा नचेतारा च कणः.. (२) हे कामवषक अ नीकुमारो! सोमरस से स होकर तुम हम संतु करो एवं प णय का समूल नाश करो. तुम मेरी उन तु तय को सुनो जो तु ह अनुकूल करने एवं तृ त दान करने के लए क गई ह. हे नेताओ! तुम तु तय का अ वेषण एवं संचय करते हो. (२) ये पूष षुकृतेव दे वा नास या वहतुं सूयायाः. व य ते वां ककुहा अ सु जाता युगा जूणव व ण य भूरेः.. (३) हे पोषक एवं अस यहीन अ नीकुमारो! तु तसमूह एवं क या के लाभ के लए तीर के समान ज द प ंचो और सूयपु ी को ले आओ. व ण संबंधी य म जो तु तयां क जाती ह, वे वा तव म तु हारे ही अ भमुख जाती ह. (३) अ मे सा वां मा वी रा तर तु तोमं हनोतं मा य य कारोः. अनु य ा व या सुदानू सूवीयाय चषणयो मद त.. (४) हे मधुपूण पा वाले अ नीकुमारो! मा य तोता अग य क तु त सुनकर अपना स दान हम दो. हे शोभनदानशीलो! अ क इ छा से पुरो हत श शाली यजमान के क याण के लए तु हारे साथ स हो. (४) एष वां तोमो अ नावका र माने भमघवाना सुवृ . यातं व त तनयाय मने चाग ये नास या मद ता.. (५) हे धन के वामी अ नीकुमारो! तु हारे स मान के लए ह के साथ ही इस पाप वनाशकारी तो क रचना क गई है. हे स य व पो! मुझ अग य ऋ ष से स होकर पु लाभ एवं अपने हत के लए य थल म आओ. (५) अता र म तमस पारम य त वां तोमो अ नावधा य. एह यातं प थ भदवयानै व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (६) हे अ नीकुमारो! तु हारी कृपा से हम अंधकार को पार करगे. इसी लए तु हारे लए ये तु तयां बनाई गई ह. तुम दे व के माग से य म आओ, जससे हम अ , बल और द घ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आयु ा त कर सक. (६)
सू —१८५
दे वता— ावा व पृ वी
कतरा पूवा कतरापरायोः कथा जाते कवयः को व वेद. व ं मना बभृतो य नाम व वतते अहनी च येव.. (१) हे ांतद शयो! धरती और आकाश म कौन पहले उ प आ है, कौन बाद म? इनके उ प होने का या कारण है? संसार के सम त पदाथ को ये वयं ही धारण कए ए ह एवं प हय के समान घूमते रहते ह. (१) भू र े अचर ती चर तं प तं गभमपद दधाते. न यं न सूनुं प ो प थे ावा र तं पृ थवी नो अ वात्.. (२) अचल एवं चरणस हत धरती और आकाश चलने वाले तथा चरणयु ा णय को गभ के समान धारण करते ह. जैसे माता- पता क गोद म बालक रहता है, उसी कार ये सबको रखते ह. हे धरती और आकाश! हम महापाप से बचाओ. (२) अनेहो दा म दतेरनव वे ववदवधं नम वत्. त ोदसी जनयतं ज र े ावा र तं पृ थवी नो अ वात्.. (३) हे धरती और आकाश! हम अ द त से जस पापर हत, अ ीण, वग के तु य हसाशू य एवं अ यु धन क ाथना करते ह, तुम वही धन तु तक ा यजमान को दे ते हो. हे धरती और आकाश! हम पाप से बचाओ. (३) अत यमाने अवसाव ती अनु याम रोदसी दे वपु े. उभे दे वानामुभये भर ां ावा र तं पृ थवी नो अ वात्.. (४) काशयु दन और रा के दोन कार के धन के लए ःखर हत एवं अ ारा र ा करने वाले धरती और आकाश का हम अनुगमन कर. हे धरती और आकाश! हम पाप से बचाओ. (४) स छमाने युवती सम ते वसारा जामी प ो प थे. अ भ ज ती भुवन य ना भ ावा र तं पृ थवी नो अ वात्.. (५) हे एक- सरे से मले ए, न य त ण, समान सीमा वाले, ब हन और भाई के समान माता और पता क गोद म थत, ा णय क ना भ प जल को सूंघते ए धरती और आकाश! हम पाप से बचाओ. (५) उव स नी बृहती ऋतेन वे दे वानामवसा ज न ी. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दधाते ये अमृतं सु तीके ावा र तं पृ थवी नो अ वात्.. (६) धरती और आकाश व तृत, नवास करने यो य, महान् एवं श य आ द को उ प करने वाले ह. म दे व क स ता के लए इ ह य म बुलाता ं. ये व च प वाले एवं जल धारणक ा ह. हे धरती और आकाश! हम पाप से बचाओ. (६) उव पृ वी ब ले रेअ ते उप ुवे नमसा य े अ मन्. दधाते ये सुभगे सु तूत ावा र तं पृ थवी नो अ वात्.. (७) म इस य म नम कार संबंधी मं ारा व तृत, महान्, अनेक आकार वाले तथा अंतहीन धरती और आकाश क तु त करता ं. हे सौभा यसंप एवं सुखपूवक तरने वाले धरती और आकाश! हम पाप से बचाओ. (७) दे वा वा य चकृमा क चदागः सखायं वा सद म जा प त वा. इयं धीभूया अवयानमेषां ावा र तं पृ थवी नो अ वात्.. (८) हे धरती और आकाश! हम दे व , बंधु एवं जमाता के त न य जो अपराध करते ह, हमारे उन अपराध को र करो. तुम हम पाप से बचाओ. (८) उभा शंसा नया माम व ामुभे मामूती अवसा सचेताम्. भू र चदयः सुदा तरायेषा मद त इषयेम दे वाः.. (९) तु त के यो य एवं मानव के हतकारी धरती और आकाश के त क गई तु तयां मेरी र ा कर. उ दोन र क मेरी र ा के लए मल. हे दे वो! तु हारे तु तक ा हम ह अ ारा तु ह संतु करते ह एवं दान करने के लए अ क अ भलाषा करते ह. (९) ऋतं दवे तदवोचं पृ थ ा अ भ ावाय थमं सुमेधाः. पातामव ा रतादभीके पता माता च र तामवो भः.. (१०) मुझ बु मान् ने धरती और आकाश के त ऐसी तु तयां क ह, जो चार दशा म का शत ह. धरती और आकाश पी माता- पता मुझे नदा-यो य पाप से बचाव एवं अपने समीप रखकर मनचाही व तु से मेरा पालन कर. (१०) इदं ावापृ थवी स यम तु पतमातय दहोप ुवे वाम्. भूतं दे वानामवमे अवो भ व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (११) हे माता और पता पी धरती और आकाश! इस य म मेरे ारा क गई तु तय को साथक करो. तुम र ा साधन ारा हम तु तक ा के पास आओ, जससे हम अ , बल और द घ आयु ा त कर. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१८६
दे वता— व ेदेव
आ न इळा भ वदथे सुश त व ानरः स वता दे व एतु. अ प यथा युवानो म सथा नो व ं जगद भ प वे मनीषा.. (१) अ न और स वता दे व हमारी तु तय को सुनकर धरती के दे व के साथ हमारे य म पधार. हे न य-युवाओ! तुम जस कार सारे संसार क र ा करते हो, उसी कार हमारे य म अपनी इ छा से आकर हमारी र ा करो. (१) आ नो व आ ा गम तु दे वा म ो अयमा व णः सजोषाः. भुव यथा नो व े वृधासः कर सुषाहा वथुरं न शवः.. (२) श ु पर आ मण करने वाले म , व ण और अयमादे व समान स ता ारा हमारे य म पधार. सब दे व हमारी वृ कर, श ु को हराव एवं हम अ का वामी बनाव. (२) े ं वो अ त थ गृणीषेऽ नं श त भ तुव णः सजोषाः. अस था नो व णः सुक त रष पषद रगूतः सू रः.. (३) हे दे वो! म शी ता करता आ एवं तु हारे साथ स होकर मं ारा तु हारे उ म अ त थ अ न क तु त करता ं. शोभन क त संप व ण दे व हमारे बनकर श ु के त इनकार कर एवं हमारे लए अ दाता बन. (३) उप व एषे नमसा जगीषोषासान ा सु घेव धेनुः. समाने अह व ममानो अक वषु पे पय स स म ूधन्.. (४) हे दे वो! जस कार धा गाय सवेरे और शाम ध काढ़ने के थान म जाती है, उसी कार हम पाप को जीतने क इ छा से तु तवचन के साथ ातःसायं तु हारे सामने उप थत होते ह. हम गाय के थन से उ प घी, ध आ द पदाथ को मलाकर त दन लाते ह. (४) उत नोऽ हबु यो३ मय कः शशुं न प युषीव वे त स धुः. येन नपातमपां जुनाम मनोजुवो वृषणो यं वह त.. (५) अ हबु न हम सुख द. गाय जस कार बछड़े को तृ त करती ई आती है, उसी कार सधु नद हम तृ त करती ई आवे. हम तु त करते ए जल के नाती अ न से मल. मन के समान तेज चलने वाले बादल उ ह ले जाते ह. (५) उत न व ा ग व छा म सू र भर भ प वे सजोषाः. आ वृ हे ष ण ा तु व मो नरां न इह ग याः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ा दे व हमारे सामने आव और य के कारण तोता और ऋ वज के त स ह . वृ नाशक, यजमान क इ छा पूण करने वाले एवं महान् इं हमारे इस य म आव. (६) उत न मतयोऽ योगाः शशुं न गाव त णं रह त. तम गरो जनयो न प नीः सुर भ मं नरां नस त.. (७) जस कार गाएं बछड़ को चाटती ह, उसी कार घोड़ के समान वेगशाली हमारी बु यां न ययुवा इं को घेरती ह. यां जस कार प त को पाकर संतान उ प करती ह, उसी कार हमारी तु तयां इं के पास प ंचकर फल को ज म द. (७) उत न म तो वृ सेनाः म ोदसी समनसः सद तु. पृषद ासोऽवनयो न रथा रशादसो म युजो न दे वाः.. (८) परम श शाली, हमारे समान ही ी तयु , पृषत नामक घोड़ वाले, न एवं श ुनाशक म द्गण धरती और आकाश से हमारे पास इस कार आव, जस कार म ता करने वाले एक- सरे के समीप जाते ह. (८) नु यदे षां म हना च क े यु ते युज ते सुवृ . अध यदे षां सु दने न श व मे रणं ुषाय त सेनाः.. (९) म द्गण तु त का योग जानते ह, इस लए उनक म हमा से सभी प र चत ह. जस कार सु दन म आकाश म काश फैल जाता है, उसी कार म त क वषा करने वाली सेना सारी ऊसर धरती को उपजाऊ बना दे ती है. (९) ो अ नाववसे कृणु वं पूषणं वतवसो ह स त. अ े षो व णुवात ऋभु ा अ छा सु नाय ववृतीय दे वान्.. (१०) हे ऋ वजो! हमारी र ा के लए अ नीकुमार एवं पूषा के अ त र वाधीन श वाले तथा े षर हत व णु, वायु और इं क भी तु त करो. म सुख ा त के लए सब दे व के सामने तु त क ं गा. (१०) इयं सा वो अ मे द ध तयज ा अ प ाणी च सदनी च भूयाः. न या दे वेषु यतते वसूयु व ामेषं वृजनं जीरदानुभ्.. (११) हे य यो य दे वो! तु हारी स यो त हम ाण और शरण दे ने वाली बने. तु हारी ह अ स हत तु त दे व को ा त हो, जससे हम अ , बल और द घ आयु ा त कर. (११)
सू —१८७
दे वता— पतृ
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पतुं नु तोषं महो धमाणं त वषीम्. य य
तो
ोजसा वृ ं वपवमदयत्.. (१)
म सबके धारणक ा एवं बल प पालक अ क शी से इं ने वृ असुर के टु कड़े कर दए थे. (१)
तु त करता ं. अ क श
वादो पतो मधो पतो वयं वा ववृमहे. अ माकम वता भव.. (२) हे वा द एवं मधुर पतः! हम तु हारी तु त करते ह. तुम हमारे र क बनो. (२) उप नः पतवा चर शवः शवा भ त भः. मयोभुर षे यः सखा सुशेवो अ याः.. (३) हे मंगल प पतः! क याणकारी र ा साधन के साथ हमारे पास आओ और हम सुख दो. तुम हमारे लए य रस वाले म एवं अनोखे सुखदाता बनो. (३) तव ये पतो रसा रजां यनु व ताः. द व वाताइव हे पतः अथात् अ ! जस कार आकाश म हवा सारे संसार म फैला आ है. (४)
ताः.. (४) ा त है, उसी कार तु हारा रस
तव ये पतो ददत तव वा द ते पतो. वा ानो रसानां तु व ीवाइवेरते.. (५) हे परम वा द पतः! तु हारी ाथना करने वाले मनु य तु हारा भोग करते ह. तु हारी कृपा से ही वे तु हारा दान करते ह. तु हारे रस का भोग करने वाले मनु य गरदन ऊंची करके चलते ह. (५) वे पतो महानां दे वानां मनो हतम्. अका र चा केतुना तवा हमवसावधीत्.. (६) हे पतः! महान् दे व का मन तु ह म लगा आ है. इं ने तु हारी र ा एवं बु सहारा लेकर ही वृ का वध कया था. (६)
का
यददो पतो अजग वव व पवतानाम्. अ ा च ो मधो पतोऽरं भ ाय ग याः.. (७) के
हे मधुर पतः! जब बादल स प म हमारे समीप आना. (७)
जल बरसाने को लाव, उस समय तुम पया त भोजन
यदपामोषधीनां प रशमा रशामहे. वातापे पीव इ व.. (८) हे शरीर! हम जौ आ द वन प तय को पया त मा ा म खाते ह, इस लए तुम मोटे बनो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(८) य े सोम गवा शरो यवा शरो भजामहे. वातापे पीव इ व.. (९) हे सोम प अ ! हम तु हारे यव एवं गो ध से बने पदाथ को भ ण करते ह. हे शरीर! तुम मोटे बनो. (९) कर भ ओषधे भव पीवो वृ क उदार थः. वातापे पीव इ व.. (१०) हे स ू के बने ए गोले! तुम मोटापा लाने वाले एवं रोगनाशक बनो. हे शरीर! तुम मोटे बनो. (१०) तं वा वयं पतो वचो भगावो न ह ा सुषू दम. दे वे य वा सधमादम म यं वा सधमादम्.. (११) हे पतः! गाय से जस कार ह प ध हण करते ह, उसी कार हम तु तयां बोलकर तुमसे रस हण करते ह. तुम सम त दे व के साथ-साथ हम भी आनंद दे ते हो. (११)
दे वता—आ य (अ न)
सू —१८८
स म ो अ राज स दे वो दे वैः सह जत्. तो ह ा क ववह.. (१) हे अ न! तुम ऋ वज ारा भली कार उद त होकर सुशो भत हो. हे सह जत्! तुम क व और त हो तुम हमारे ह को ले आओ. (१) तनूनपा तं यते म वा य ः सम यते. दध सह णी रषः.. (२) हे पू य तनूनपात् अ न! हजार कार के अ धारण करते ए यजमान के क याण के लए मधुर आ य से मलते ह. (२) आजु ानो न ई
ो दे वाँ आ व
य यान्. अ ने सह सा अ स.. (३)
हे ईड् य अ न! हम तु ह बुलाते ह. तुम य के यो य दे व को यहां लाओ. तुम हजार कार का अ दे ते हो. (३) ाचीनं ब हरोजसा सह वीरम तृणन्. य ा द या वराजथ.. (४) हजार वीर वाले एवं पूव क ओर मुंह कए ए अ न पी कुश पर आ द य बैठते ह. ऋ वज् उसे मं ारा फैलाते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वराट् स ाड् व वीः (५)
वीब
भूयसी याः. रो घृता य रन्.. (५)
य शाला म वराट् , स ाट् , व , भु, ब और भूयान् अ न घृत प जल गराते ह. सु
मे ह सुपेशसा ध
या वराजतः. उषासावेह सीदताम्.. (६)
सुंदर आभरण वाले एवं शोभन पसंप अ न पी रात और दन अ यंत शो भत होते ए यहां बैठ. (६) थमा ह सुवाचसा होतारा दै ा कवी. य ं नो य ता ममम्.. (७) अ न दे व अ त उप थत ह . (७)
े और
य वचन होता एवं द
क व इन दो
भारतीळे सर व त या वः सवा उप ुवे. ता न ोदयत हे भारती, सर वती और इला! तुम सब अ न के तुम मुझे संप शाली बनने क ेरणा दो. (८) व ा वृ
प म हमारे य म
ये.. (८) प हो. म तु हारा आ ान करता ं.
पा ण ह भुः पशू व ा समानजे. तेषां नः फा तमा यज.. (९)
व ा प नमाण म समथ ह. वे सम त पशु कर. (९)
को
प दे ते ह. वे हमारे पशु
क
उप म या वन पते पाथो दे वे यः सृज. अ नह ा न स वदत्. (१०) हे वन प त! तुम अपने आप दे व के लए पशु प अ उ प करो. इस कार अ न सभी ह को वा द बनावगे. (१०) पुरोगा अ नदवानां गाय ेण सम यते. वाहाकृतीषु रोचते.. (११) दे व के अ गामी अ न गाय ी छं द ारा जाने जाते ह. वाहा श द बोलने पर वे जल उठते ह. (११)
सू —१८९
दे वता—अ न
अ ने नय सुपथा राये अ मा व ा न दे व वयुना न व ान्. युयो य१ म जु राणमेनो भू य ां ते नमउ वधेम.. (१) हे ोतमान अ न! तुम सभी कार के ान को जानते हो, इस लए हम धन क ओर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ले जाने वाले उ म माग पर ले जाओ. कु टलता उ प करने वाला पाप हमसे र करो. हम तु ह बार-बार नम कार कहते ह. (१) अ ने वं पारया न ो अ मा व त भर त गा ण व ा. पू पृ वी ब ला न उव भवा तोकाय तनयाय शं योः.. (२) हे अ त नवीन अ न! तुम अ तपू जत य ा द साधन का सहारा लेकर हम गम पाप के पार प ंचाओ. हमारी नगरी और धरती अ यंत व तृत हो. हमारी संतान को तुम सुख दो. (२) अ ने वम म ुयो यमीवा अन न ा अ यम त कृ ीः. पुनर म यं सु वताय दे व ां व े भरमृते भयज .. (३) हे अ न! तुम सम त रोग के साथ-साथ अ नहो न करने वाले लोग को भी हमसे र कर दो. हे काशमान एवं य के यो य अ न! तुम अ य सम त दे व के साथ आकर हम य म उ म फल दो. (३) पा ह नो अ ने पायु भरज ै त ये सदन आ शुशु वान्. मा ते भयं ज रतारं य व नूनं वद मापरं सह वः.. (४) हे अ न! सदै व आ य दे कर हमारा पालन करो एवं अपने य य थल म सब ओर से का शत बनो. हे अ तशय एवं श शाली अ न! तु हारे तोता मुझको आज या इसके बाद कभी भी भय न लगे. (४) मा नो अ नेऽव सृजो अघाया व यवे रपवे छु नायै. मा द वते दशते मादते नो मा रीषते सहसाव परा दाः.. (५) हे अ न! हम हसक, भूखे और ःखदाता श ु के अधीन मत होने दो. हम दांत वाले कटखने सपा द, बना दांत के, स ग वाले पशु एवं हसक रा स को भी मत स पो. (५) व घ वावां ऋतजात यंसद्गृणानो अ ने त वे३ व थम्. व ा र ो त वा न न सोर भ ताम स ह दे व व पट् .. (६) हे य से उ प एवं वरणीय अ न दे व! जो लोग शरीर क पु के लए तु हारी तु त करते ह, उ ह तुम हसक, चोर आ द एवं नदक लोग से बचाते हो. तुम अपने सामने कु टल आचरण करने वाले के बाधक बनो. (६) वं ताँ मन उभाया व व ा वे ष प वे मनुषो यज . अ भ प वे मनवे शा यो भूममृजे य उ श नभना ः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे य के यो य अ न! तुम य करने वाले एवं न करने वाले दोन को जानते ए य क ा क ही कामना करो. हे आ मणकारी अ न! य क अ भलाषा करने वाले यजमान को जस कार ऋ वज् श ा दे ते ह, उसी कार तुम यजमान क श ा के पा बनो. (७) अवोचाम नवचना य म मान य सूनुः सहसाने अ नौ. वयं सह मृ ष भः सनेम व ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (८) मं
के पु और श ु के नाशक अ न को ल य करके ये सब तो बनाए गए ह. हम इं य से परे रहने वाले अथ के काशक इन मं से हजार कार के धन के अ त र अ , बल और द घ आयु ा त कर. (८)
सू —१९०
दे वता—बृह प त
अनवाणं वृषभं म ज ं बृह प त वधया न मकः. गाथा यः सु चो य य दे वा आशृ व त नवमान य मताः.. (१) हे होता! न यागने वाले, फलदायक, मधुरभाषी एवं तु त के यो य बृह प त को मं ारा बढ़ाओ. शोभन द त एवं तु त कए जाते ए बृह प त को गाथा नामक मं का पाठ करने वाले मनु य और दे व तु तयां सुनाते ह. (१) तमृ वया उप वाचः सच ते सग न यो दे वयतामस ज. बृह प तः स ो वरां स व वाभव समृते मात र ा.. (२) वषा ऋतु संबंधी तु तयां जल क सृ करने वाले एवं दे वभ यजमान को फल दे ने वाले बृह प त के समीप जाती ह. वे आकाश पी ापी मात र ा के समान सभी उ म फल को उ प करके य के न म कट करते ह. (२) उप तु त नमस उ त च ोकं यंस स वतेव बा . अ य वाह यो३ यो अ त मृगो न भीमो अर स तु व मान्.. (३) जस कार सूय अपनी करण से काश दे ता है, उसी कार बृह प त यजमान के समीप जाकर उनक तु तयां, अ दान एवं तु तमं को वीकार करते ह. वरोधहीन इन बृह प त क श से दन के सूय, भयानक सह आ द के समान श शाली बनकर घूमते ह. (३) अ य ोको दवीयते पृ थ ाम यो न यंस भृ चेताः. मृगाणां न हेतयो य त चेमा बृह पतेर हमायाँ अ भ ून्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बृह प त क क त धरती और आकाश म फैली है. वे आ द य के समान ह धारण करते ए ा णय म बु संचार के साथ-साथ उ ह फल भी दे ते ह. बृह प त के आयुध माया वय क ओर शकारी लोग के आयुध के समान तेजी से चलते ह. (४) ये वा दे वो कं म यमानाः पापा भ मुपजीव त प ाः. न ढू े३ अनु ददा स वामं बृह पते चयस इ पया म्.. (५) हे बृह प तदे व! तुम क याणकारक हो. जो पापी लोग तु ह बूढ़ा बैल समझकर तु हारे समीप जाते ह, उ ह मनचाहा उ म धन मत दे ना. तुम सोमयाग करने वाले पर अव य कृपा करना. (५) सु ैतुः सूयवसो न प था नय तुः प र ीतो न म ः. अनवाणो अ भ ये च ते नोऽपीवृता अपोणुव तो अ थुः.. (६) हे बृह प त! तुम शोभन माग वाले एवं उ म धन से यु यजमान के लए माग के समान सरल एवं के नयं ण करने वाले राजा के स म बनो. जो वरोधी हमारी नदा करते ह और सुर त रहते ह, उ ह र ाहीन करो. (६) सं यं तुभोऽवनयो न य त समु ं न वतो रोधच ाः. स व ाँ उभयं च े अ तबृह प त तर आप गृ ः.. (७) जस कार सभी मनु य राजा एवं कनार को तोड़ने वाली न दयां सागर के पास जाती ह, उसी कार तु तयां बृह प त को ा त होती ह. वे सब जानते ह और आकाशचारी प ी के प म जल और तट दोन को दे खते ह तथा वषा करने के इ छु क होकर दोन को उ प करते ह. (७) एवा मह तु वजात तु व मा बृह प तवृषभो धा य दे वः. स नः तुतो वीरव ातु गोम ामेषं वृजनं जीरदानुम्.. (८) महान्, ब त के उपकार के लए उ म, बलवान्, जलवषक एवं द तमान् बृह प त क तु त इसी प म क जाती है. वे हमारी तु त सुनकर हम व वध फल द और हम अ , बल तथा द घ आयु ा त कर. (८)
सू —१९१
दे वता—जल आ द
कङ् कतो न कङ् कतोऽथो सतीनकङ् कतः. ा व त लुषी इ त य१ (१) अ प वष, महा वष, जलचारी अ प वष, दो
ा अ ल सत..
कार के जलचर एवं थलचर
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाणी,
दाहक एवं अ य ाणी मुझे घेरे ह. (१) अ
ा ह याय यथो ह त परायती. अथो अब नती ह यथो पन
पषती.. (२)
वषधर जीव से काटे ए के पास आकर ओष ध वष का भाव न करती है एवं र जाती ई भी न करती है. उसे जब उखाड़ते ह एवं पीसते ह, तब भी वह वष का भाव न करती है. (२) शरासः कुशरासो दभासः सैया उत. मौ ा अ ा बै रणाः सव साकं य ल सत.. (३) शर, कुश, दभ, सैय, मुंज एवं वीरण नामक घास म छपे ए वषधर मुझसे एक साथ लपट जाते ह. (३) न गावो गो े असद मृगासो अ व त. न केतवो जनानां य१ ा अ ल सत.. (४) जब गाएं गोशाला म बैठती ह, ह रण नवास थान म बैठते ह एवं मनु य न ा के कारण ानशू य होते ह, उस समय अ वषधर आकर मुझसे लपट जाते ह. (४) एत उ ये
य
दोषं त करा इव. अ
ा व
ाः
तबु ा अभूतन.. (५)
वे चोर के समान रात म दे खे जाते ह. वे कसी को दखाई नह दे ते, पर सारे संसार को दे खते रहते ह. सब लोग उनसे सावधान रह. (५) ौवः पता पृ थवी माता सोमो ाता द तः वसा. अ ा व ा त तेलयता सु कम्.. (६) हे सप ! आकाश तु हारा पता, धरती माता, सोम ाता और अ द त तु हारी ब हन है. तु ह कोई नह दे ख पाता, पर तुम सबको दे खते हो. तुम अपने थान म रहो एवं सुखपूवक गमन करो. (६) ये अं या ये अङ् याः सूचीका ये कङ् कताः. अ ाः क चनेह वः सव साकं न ज यत.. (७) जो जंतु कंध वाले, अंग वाले, सूची वाले एवं अ यंत वषधारी ह, ऐसे अ का यहां कोई काम नह है. तुम सब यहां से एक साथ चले जाओ. (७) उ पुर ता सूय ए त व ो अ हा. अ ा सवा भय सवा यातुधा यः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वषधर
सारे संसार को दे खने वाले एवं अ वषधर को न करने वाले सूय पूव दशा म नकलते ह. वे सभी अ वषधा रय एवं रा स को भयभीत करके भगा दे ते ह. (८) उदप तदसौ सूयः पु
व ा न जूवन्. आ द यः पवते यो व
ोअ
हा.. (९)
सारे संसार को दे खने वाले एवं अ वषधा रय को न करने वाले सूय वषैले जंतु को अ यंत बल बनाते ए उदय ग र से नकलते ह. (९) सूय वषमा सजा म त सुरावतो गृहे. सो च ु न मरा त नो वयं मरामारे अ य योजनं ह र ा मधु वा मधुला चकार.. (१०) सुरा बनाने वाला जस कार चमड़े के पा म शराब डालता है, उसी कार म वष सूय मंडल क ओर फकता ं. जस कार सूय नह मरते, उसी कार हम भी न मर. घोड़ ारा लाए गए सूय रवत वष को न कर दे ते ह. हे वष! सूय क मधु व ा तु ह अमृत बना दे ती है. (१०) इय का शकु तका सका जघास ते वषम्. सो च ु न मरा त नो वयं मरामारे अ य योजनं ह र ा मधु वा मधुला चकार.. (११) छोट सी च ड़या ने तु हारा वष खा लया और नह मरी. उसी कार हम भी नह मरगे. हे वष! घोड़ ारा गमन करने वाले सूय र से ही वष को न कर दे ते ह. उनक मधु व ा तु ह अमृत बना दे ती है. (११) ः स त व णु ल का वष य पु यम न्. ता ु न मर त नो वयं मरामारे अ य योजनं ह र ा मधु वा मधुला चकार.. (१२) अ न क सात ज ा म सफेद, लाल और काले इस कार मलकर इ क स वण प ी के प म वष का नाश करते ह. जब वे नह मरते तो हम भी नह मरगे. अपने घोड़ ारा गमनशील सूय र रखे वष का नाश करते ह. हे वष! सूय क मधु व ा तुझे अमृत बना दे ती है. (१२) नवानां नवतीनां वष य रोपुषीणाम्. सवासाम भं नामारे अ य योजनं ह र ा मधु वा मधुला चकार.. (१३) न यानवे न दयां वष न करने वाली ह. म सबका नाम पुकारता ं. घोड़ ारा चलने वाले सूय र रखे वष को भी न कर दे ते ह. हे वष! मधु- व ा तुझे अमृत बना दे गी. (१३) ः स त मयूयः स त वसारो अ ुवः. ता ते वषं व ज र उदकं कु भनी रव.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे शरीर! जस कार ना रयां घड़ म जल भरकर ले जाती ह, उसी कार इ क स मयू रयां एवं सात न दयां तु हारा वष र कर. (१४) इय कः कुषु भक तकं भनद् य मना. ततो वषं वावृते पराचीरनु संवतः.. (१५) हे शरीर! छोटा सा नकुल य द तु हारा वष समा त नह करेगा तो म उसे प थर से मार डालूंगा. इस कार वष मेरे शरीर से नकलकर र दशा म चला जाए. (१५) कुषु भक तद वीद् गरेः वतमानकः. वृ क यारसं वषमरसं वृ क ते वषम्.. (१६) पवत से आने वाले नकुल ने कहा—“ ब छू का वष बेकार है.” हे ब छू ! तु हारा वष भावहीन है. (१६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तीय मंडल सू —१
दे वता—अ न
वम ने ु भ वमाशुशु ण वमद् य वम मन प र. वं वने य वमोषधी य वं नृणां नृपते जायसे शु चः.. (१) हे मनु य के पालक एवं प व अ न! तुम य ओष धय से द तशाली प म उ प हो जाओ. (१)
के दन जल, पाषाण, वन एवं
तवा ने हो ं तव पो मृ वयं तव ने ं वम न तायतः. तव शा ं वम वरीय स ा चा स गृहप त नो दमे.. (२) हे अ न! य के होता, पोता, ऋ वज् और ने ा जो कम करते ह, वह तु हारा है. तुम अ नी हो. य क इ छा करने पर तुम शा ता का काम भी करने लगते हो. तु ह अ वयु एवं ा हो. मेरे इस य गृह म तु ह गृहप त हो. (२) वम न इ ो वृषभः सताम स वं व णु गायो नम यः. वं ा र य वद् ण पते वं वधतः सचसे पुर या.. (३) हे अ न! स जन क मनोकामना पूण करने के कारण तुम इं हो. तु ह ब त से भ ारा तुत एवं नम कार करने यो य व णु हो. तुम मं के पालक एवं धन के ाता ा हो. तुम व वध पदाथ का नमाण करते एवं सबक बु य म नवास करते हो. (३) वम ने राजा व णो धृत त वं म ो भव स द म ई ः. वमयमा स प तय य स भुजं वमंशो वदथे दे व भाजयुः.. (४) हे अ न! तुम तधारी राजा व ण एवं तु तयो य श ुनाशक म हो. तु ह स जन के र क एवं ापक दान वाले अयमा तथा अंश अथात् सूय हो. तुम सभी का य सफल बनाओ. (४) वम ने व ा वधते सुवीय तव नावो म महः सजा यम्. वमाशुहेमा र रषे व ं वं नरां शध अ स पु वसुः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! तुम सेवा करने वाले के लए श शाली व ा हो. सब तु त वचन तु हारे ही ह. तुम हतकारक तेज एवं हमारे बंधु हो. तुम शी ेरणा दे ने वाले एवं शोभन अ यु धन दाता हो. तुम अ यंत धनवान् हो. तुम मनु य को श दो. (५) वम ने ो असुरो महो दव वं शध मा तं पृ ई शषे. वं वातैर णैया स शङ् गय वं पूषा वधतः पा स नु मना.. (६) हे अ न! तुम व तृत आकाश म वतमान हो. तु ह म त के बल एवं अ के वामी हो. तुम वायु के समान वेगशाली लाल घोड़ ारा सुखपूवक जाते हो. तुम पूषा हो, इस लए य करने वाल क अपने आप र ा करो. (६) वम ने वणोदा अरङ् कृते वं दे वः स वता र नधा अ स. वं भगो नृपते व व ई शषे वं पायुदमे य तेऽ वधत्.. (७) हे अ न! तुम पया त य कम करने वाले यजमान को वण दे ने वाले हो. तु ह र न धारण करने वाले तेज वी स वता हो. हे मनु य के पालनक ा अ न! जो तु हारी सेवा करते ह, उ ह तुम धन दे ते हो. य शाला म जो यजमान तु हारी सेवा करता है, उसका तुम पालन करते हो. (७) वाम ने दम आ व प त वश वां राजानं सु वद मृ ते. वं व ा न वनीक प यसे वं सह ा ण शता दश त.. (८) हे अ न! तुम यजमान के पालनक ा हो. वे तु ह अपने घर म काशमान एवं अनुकूल चेतना वाला पाकर सुशो भत करते ह. हे उ म सेवा वाले एवं सम त ह के वामी अ न! तुम हजार , सैकड़ और द सय कार के फल लोग को दे ते हो. (८) वाम ने पतर म भनर वां ा ाय श या तनू चम्. वं पु ो भव स य तेऽ वध वं सखा सुशेवः पा याधृषः.. (९) हे अ न! तु ह पता समझकर लोग य ारा तृ त करते ह. तु हारा ातृ ेम पाने के लए लोग य ारा तु ह स करते ह. जो तु हारी सेवा करते ह, तुम उनके पु , सखा, क याणक ा एवं श ुनाशक बनकर उनक र ा करो. (९) वम न ऋभुराके नम य१ वं वाज य ुमतो राय ई शषे. वं व भा यनु द दावने वं व श ुर स य मात नः.. (१०) हे अ न! तुम स मुख तु त करने यो य ऋभु हो. तुम सव स धन एवं अ के वामी हो. तुम उ वल हो एवं अंधकार मटाने के लए लक ड़य को धीरेधीरे जलाते हो. तुम य क वशेष श ा दे ने वाले एवं फल का व तार करने वाले हो. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वम ने अ द तदव दाशुषे वं हो ा भारती वधसे गरा. व मळा शत हमा स द से वं वृ हा वसुपते सर वती.. (११) हे अ न दे व! तुम ह दाता के लए अ द त हो. तुम होता, भारती एवं तु तय से बढ़ने वाले हो. भारती एवं तु तय से बढ़ने वाले हो. तुम अप र मत काल वाली भू म एवं धनदान करने म समथ हो. हे धन के पालक तुम ही वृ हंता एवं सर वती हो. (११) वम ने सुभृत उ मं वय तव पाह वण आ स श यः. वां वाजः तरणो बृह स वं र यब लो व त पृथःु .. (१२) हे अ न! भली कार पो षत होकर तु ह उ म अ हो. तु हारे मनोहर वण म ल मी नवास करती है. तुम अ , पाप से र ा करने वाले, महान् धन प सब व तु क अ धकता वाले एवं सब ओर व तृत हो. (१२) वाम न आ द यास आ यं१ वां ज ां शुचय रे कवे. वां रा तषाचो अ वरेषु स रे वे दे वा ह वरद या तम्.. (१३) हे अ न! आ द य ने तु ह सुख दया है. हे क व! प व दे व ने तु हारी जीभ बनाई है. य क ह व के कारण एक दे व य म तु हारी ती ा करते ह एवं दया आ ह व तु हारे ारा ही भ ण करते ह. (१३) वे अ ने व े अमृतासो अ ह आसा दे वा ह वरद या तम्. वया मतासः वद त आसु त वं गभ वी धां ज षे शु चः.. (१४) हे अ न! मरणर हत एवं दोषहीन सम त दे व तु हारे मुख म डाली गई आ त के भ ण के प म ही ह व हण करते ह. मनु य भी तु हारी सहायता से ही अ का वाद लेते ह. तुम लता, वृ आ द म रहते हो एवं प व होकर ज म लेते हो. (१४) वं ता सं च त चा स म मना ने सुजात च दे व र यसे. पृ ो यद म हना व ते भुवदनु ावापृ थवी रोदसी उभे.. (१५) हे अ न! तुम श ारा उन स दे व से मलते एवं अलग हो जाते हो. हे सुंदर उ प वाले अ न! तुम बल म सभी दे व से आगे हो जाओ. तु हारी ही श से य म डाला गया अ श द करते ए धरती और आकाश म फैल जाता है. (१५) ये तोतृ यो गोअ ाम पेशसम ने रा तमुपसृज त सूरयः. अ मा च तां ह ने ष व य आ बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१६) हे अ न! जो लोग बु मान् तोता को उ म गौ और श शाली अ दान करते ह, उ ह तथा हम उ म थान पर ले चलो. हम उ म वीर से यु होकर य म ब त से मं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बोलगे. (१६)
सू —२
दे वता—अ न
य ेन वधत जातवेदसम नं यज वं ह वषा तना गरा. स मधानं सु यसं वणरं ु ं होतारं वृजनेषु धूषदम्.. (१) हे ऋ वजो! सभी उ प पदाथ को जानने वाले अ न को य के ारा बढ़ाओ तथा ह एवं व तृत तु तय ारा उनक पूजा करो. अ न व लत, शोभन अ यु , यजमान को वग म ले जाने वाले, द त, य पूण करने वाले एवं बल दान करने वाले ह. (१) अ भ वा न षसो ववा शरेऽ ने व सं न वसरेषु धेनवः. दवइवेदर तमानुषा युगा पो भा स पु वार संयतः.. (२) हे अ न! गाएं जस कार दन म बछड़े क इ छा करती ह, उसी कार यजमान तु ह रात और दन चाहते ह. हे सव य! तुम संयमशील प म वग म ा त हो, मनु य के य म नवास करते हो एवं रात म का शत होते हो. (२) तं दे वा बु ने रजसः सुदंससं दव पृ थ ोरर त ये ररे. रथ मव वे ं शु शो चषम नं म ं न तषु शं यम्.. (३) दे वता लोग य के म य भाग म था पत, सुदशन, धरती-आकाश के ई र, धनपूण रथ के समान द तवण, म के समान कायसाधक एवं शं सत अ न क तु त करते ह. (३) तमु माणं रज स व आ दमे च मव सु चं ार आ दधुः. पृ याः पतरं चतय तम भः पाथो न पायुं जनसी उभे अनु.. (४) आकाश क जलवषा से धरती को स चने वाले, वण के समान चमक ले, आकाशगामी, अपनी वाला से लोग को चैत य करने वाले, जल के समान पालनक ा, सबके जनक एवं धरती-आकाश को ा त करने वाले अ न को जनर हत य शाला म धारण कया गया है. (४) स होता व ं प र भू व वरं तमु इ म ै नुष ऋ ते गरा. ह र श ो वृधसानासु जभुरद् ौन तृ भ तय ोदसी अनु.. (५) वे होम पूण करने वाले अ न सम त य को चार ओर से ा त कर. मनु य ह और तु तय ारा उसी अ न को सुशो भत करते ह. जस कार तारागण आकाश को का शत करते ह, उसी कार द त शखा वाले अ न बढ़ती ई ओष धय म बार-बार जलकर धरती और आकाश के म य भाग को का शत करते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स नो रेव स मधानः व तये स दद वा यम मासु द द ह. आ नः कृणु व सु वताय रोदसी अ ने ह ा मनुषो दे व वीतये.. (६) हे अ न! तुम हमारे क याण के लए अ वनाशी एवं वृ शील धन दे ते ए व लत होकर काश फैलाओ तथा आकाश को हमारे लए फलदाता बनाओ. तुम मेरे यजमान ारा दया ह दे व के भ ण के लए ले जाओ. (६) दा नो अ ने बृहतो दाः सह णो रो न वाजं ु या अपा वृ ध. ाची ावापृ थवी णा कृ ध व१ण शु मुषसो व द ुतुः.. (७) हे अ न हम पया त गौ, अ तथा हजार पु -पौ दान करो. हमारी क त के लए अ ा त का ार खोलो. हमारे उ म य के कारण धरती और आकाश को हमारे अनुकूल बनाओ. सूय जस कार संसार को का शत करता है, उसी कार उषाएं तु ह का शत कर. (७) स इधान उषसो रा या अनु व१ण द दे द षेण भानुना. हो ा भर नमनुषः व वरो राजा वशाम त थ ा रायवे.. (८) अ न रमणीय उषाकाल म जलते ह और अपनी उ वल करण से सूय के समान चमकते ह. वे अ न होता क य साधन प तु तय के आधार, उ म य वाले, जा के वामी होकर यजमान के पास इस कार आते ह, जैसे यारा अ त थ आता है. (८) एवा नो अ ने अमृतेषु पू धी पीपाय बृह वेषु मानुषा. हाना धेनुवृजनेषु कारवे मना श तनं पु प मष ण.. (९) हे अ मत भा यु एवं दे व के पूववत अ न! मनु य म हमारी तु त तु ह तृ त करती है. जस कार धा गाय य के तोता को ध दे ती है, उसी कार तु हारी तु त असं य धन दे ती है. (९) वयम ने अवता वा सुवीय णा वा चतयेमा जनाँ अ त. अ माकं ु नम ध प च कृ षू चा व१ण शुशुचीत रम्.. (१०) हे अ न! हम तु हारे दए ए अ , अ आ द से शोभन साम य ा त करके सबसे े बन जाएंगे. इससे वह हमारा अनंत धन ा ण, य, वै य, शू , नषाद पांच जा तय के ऊपर का शत होगा जो सर को ा त होना क ठन है. (१०) स नो बो ध सह य शं यो य म सुजाता इषय त सूरयः. यम ने य मुपय त वा जनो न ये तोके द दवांसं वे दमे.. (११) हे श ुपराभवकारी एवं तु त के यो य अ न! हमारी महान् तु तय को जानो. शोभन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ज म वाले तोता तु हारी तु त कर रहे ह. हे अ न! य शाला म का शत तु हारी पूजा ह पी अ हाथ म धारण करने वाले यजमान अपने पु के न म करते ह. (११) उभयासो जातवेदः याम ते तोतारो अ ने सूरय शम ण. व वो रायः पु य भूयसः जावतः वप य य श ध नः.. (१२) हे जातवेद! तु हारे तोता और यजमान दोन ही सुख ा त के लए तु हारी शरण म ह. हम नवास-यो य अ तशय स तादायक एवं ब त सी जा तथा संतान से यु धन दो. (१२) ये तोतृ यो गोअ ाम पेशसम ने रा तमुपसृज त सूरयः. अ मा च तां ह ने ष व य आ बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१३) हे अ न! जो लोग बु मान् तोता को उ म गौ और श शाली अ दान करते ह, उ ह तथा हम उ म थान पर ले चलो. हम उ म वीर से यु होकर य म ब त से मं बोलगे. (१३)
सू —३
दे वता—अ न
स म ो अ न न हतः पृ थ ां यङ् व ा न भुवना य थात्. होता पावकः दवः सुमेधा दे वो दे वा यज व नरहन्.. (१) शु (१)
वेद पर रखे ए व लत अ न सम त ा णय के सामने थत ह. होम न पादक, क ा, पुराने, शोभन बु वाले, काशमान एवं य के यो य अ न दे व का आदर कर. नराशंसः त धामा य न् त ो दवः त म ा व चः. घृत ुषा मनसा ह मु द मूध य य समन ु दे वान्.. (२)
मनु य ारा तु त के यो य एवं सुंदर वाला वाले अ न अपनी म हमा से येक य थल एवं तीन का शत लोक को कट करते ह. वे घी बरसाने क अ भलाषा से ह को चकना करते ए य के उ च भाग म दे व को तृ त कर. (२) ई ळतो अ ने मनसा नो अह दे वा य मानुषा पूव अ . स आ वह म तां शध अ युत म ं नरो ब हषदं यज वम्.. (३) हे हमारे ारा तुत अ न! हम पर स होकर य के यो य बनो एवं आज मनु य से पहले ही दे व के न म य करो. हे ऋ वजो! म त क श से यु अ युत इं को बुलाओ एवं कुश पर थत इं को ल य करके हवन करो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व ब हवधमानं सुवीरं तीण राये सुभरं वे याम्. घृतेना ं वसवः सीदतेदं व े दे वा आ द या य यासः.. (४) हे कुश प, तेज वी, न य बढ़ने वाले एवं वीर पु दाता अ न! हम धन दे ने के लए वेद पर फैल जाओ! हे वसुओ, व ेदेव एवं य के यो य आ द यो! तुम घी से गीले कए गए कुश पर बैठो. (४) व य तामु वया यमाना ारो दे वीः सु ायणा नमो भः. च वती व थ तामजुया वण पुनाना यशसं सुवीरम्.. (५) हे का शत- ार प, व तृत मनु य ारा नम कारयु तु तय से हवन कए जाते ए तथा लोग ारा सरलता से ा त करने यो य अ न! तुम खुल जाओ. तुम ापक, अ वनाशी तथा यजमान के लए शोभन पु वाला प धारण करते ए वशेष प से स बनो. (५) सा वपां स सनता न उ ते उषासान ा व येव र वते. त तुं ततं संवय ती समीची य य पेशः सु घे पय वती.. (६) हम उ म फल दे ने वाली दन एवं रात प अ न ऐसी दो कुशल ना रय के समान ह जो कपड़ा बुनने म कुशल ह. बुनने वाली ना रयां जस कार खड़े होकर धाग को बुनती ह, उसी कार रात व दन य को पूरा करते ह. वे जल से यु एवं फलदाता ह. (६) दै ा होतारा थमा व दे वा यज तावृतुथा सम
र ऋजु य तः समृचा वपु रा. तो नाभा पृ थ ा अ ध सानुषु
षु.. (७)
सबसे अ धक व ान्, वशाल शरीर वाले अ न पी दो सुंदर होता पहले से ही य के यो य होकर मं ारा दे व क पूजा एवं य करते ह. वे पृ वी क ना भ के समान वेद के म य भाग म ऋतु के अनुसार गाहप य आ द अ नय म मल जाते ह. (७) सर वती साधय ती धयं न इळा दे वी भारती व तू तः. त ो दे वीः वधया ब हरेदम छ ं पा तु शरणं नष .. (८) हमारे य को पूण करने वाली सर वती, इला और सव ापक भारती—ये तीन दे वयां य शाला म नवास कर एवं ह पाने के लए हमारे य का नद ष प से पालन कर. (८) पश पः सुभरो वयोधाः ु ी वीरो जायते दे वकामः. जां व ा व यतु ना भम मे अथा दे वानाम येतु पाथः.. (९) व ा क कृपा से हमारे घर म वण के समान उ
वल रंग वाला, शोभन य क ा,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ दाता, उ त गुण वाला, वीर तथा दे व को चाहने वाला पु ज म ले. वह हम कुल क र ा करने वाली संतान दे एवं हमारा अ दे व के पास जाए. (९) वन प तरवसृज ुप थाद नह वः सूदया त धी भः. धा सम ं नयतु जान दे वे यो दै ः श मतोप ह म्.. (१०) हमारे कम को जानने वाले वन प त प अ न समीप उप थत ह. वे वशेष कार के कम से ह को ठ क से पकाते ह. श मता नामक द अ न ह को तीन कार से भलीभां त शु जानकर दे व के समीप ले जाव. (१०) घृतं म म े घृतम य यो नघृते तो घृत व य धाम. अनु वधमा वह मादय व वाहाकृतं वृषभ व ह म्.. (११) म अ न क ज मभू म, वास थल एवं आ यदाता का को अ न म डालता ं. हे कामवष अ न! ह दे ने के समय दे व को बुलाकर स करो तथा वाहा के प म डाला गया ह धारण करो. (११)
सू —४
दे वता—अ न
वे वः सु ो मानं सुवृ वशाम नम त थ सु यसम्. म इव यो द धषा यो भू े व आदे वे जने जातवेदाः.. (१) हे यजमानो! म तु हारे क याण के न म अ यंत तेज वी, पापर हत, यजमान के अ त थ एवं शोभन ह व वाले अ न को बुलाता ं. जातवेद अ न मनु य से लेकर दे व तक सब ा णय को म के समान धारण करते ह. (१) इमं वध तो अपां सध थे तादधुभृगवो व वा३योः. एष व ा य य तु भूमा दे वानाम नरर तज रा ः.. (२) अ न क सेवा करने वाले भृगु ने अ न को जल के नवास थान अंत र म एवं मानव क संतान के बीच धारण कया. शी गामी अ वाले एवं दे व के ई र अ न हमारे सभी श ु को हराव. (२) अ नं दे वासो मानुषीषु व ु यं धुः े य तो न म म्. स द दय शती या आ द ा यो यो दा वते दम आ.. (३) दे व ने वग को जाते समय अपने य अ न को मनु य के बीच म के प म थत कया था. वे अ न ह दाता यजमान के घर म दे व ारा था पत होकर उसके क याण के लए अपनी य रात म काशयु होते रहते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ य र वा व येव पु ः स र य हयान य द ोः. व यो भ र दोषधीषु ज ाम यो न र यो दोधवी त वारान्.. (४) अपने शरीर को पु करने के समान अ न के शरीर का पोषण एवं लक ड़य को जलाने के इ छु क अ न का कट होना भी ब त सुंदर जान पड़ता है. रथ म जुता आ घोड़ा म खयां उड़ाने के लए जस कार बार-बार पूंछ हलाता है, उसी कार अ न अपनी लपट पी जीभ को फेरते ह. (४) आ य मे अ वं वनदः पन तो श यो ना ममीत वणम्. स च ेण च कते रंसु भासा जुजुवा यो मु रा युवा भूत्.. (५) मेरे तोता अ न के मह व क तु त करते ह. वे मेरे प क कामना करने वाले ऋ वज को अपना रंग दखाते ह. वे रमणीय ह के न म व च द त से पहचाने जाते ह एवं बूढ़े होकर भी बार-बार जवान बन जाते ह. (५) आ यो वना तातृषाणो न भा त वाण पथा र येव वानीत्. कृ णा वा तपू र व केत ौ रव मयमानो नभो भः.. (६) अ न यासे के समान वृ को जलाते ह, जल के समान इधर-उधर जाते ह तथा घोड़े के समान श द करते ह. अ न का माग काला है और वे ताप दे ने वाले ह. फर भी वे तार भरे आकाश के समान शोभा पाते ह. (६) स यो थाद भ द व पशुन त वयुरगोपाः. अ नः शो च माँ अतसा यु ण कृ ण थर वदय भूम.. (७) जो अ न अनेक कार से धरती पर थत ह, व तृत धरती के सामने बढ़ते ह एवं बना रखवाले वाले पशु क तरह अपनी इ छा से इधर-उधर जाते ह, वे तेज वी अ न गीले वृ को जलाते ए, कांट को भ म करते ए सब व तु का भली कार से वाद लेते ह. (७) नू ते पूव यावसो अधीतौ तृतीये वदथे म म शं स. अ मे अ ने संय रं बृह तं ुम तं वाजं वप यं र य दाः.. (८) हे अ न! तुमने पहले सवन म हमारी जो र ा क थी, उसे मरण करके हम तीसरे सवन म मनोहर तु तयां बोल रहे ह. हे अ न! तुम हम महान् वीर , वशाल क त एवं सुंदर संतान से यु धन दो. (८) वया यथा गृ समदासो अ ने गुहा व व त उपरां अ भ युः. सुवीरासो अ भमा तषाहः म सू र यो गृणते त यो धाः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! गृ समद के वंश म उ प ऋ ष तु हारे ारा सुर त होकर जस तरह गुहा म छपे धन पर अ धकार कर सके एवं उ म संतान पाकर श ु का सामना कर सके, उसी तरह कृपा करो. तुम बु मान् एवं तु तक ा यजमान को ब त धन दान करो. (९)
दे वता—अ न
सू —५ होताज न चेतनः पता पतृ य ऊतये. य े यं वसु शकेम वा जनो यमम्.. (१)
होता, चेतना दान करने वाले और पालक अ न पतर क र ा के लए उ प ए ह. हम ह से यु होकर ऐसा धन ा त कर सकगे जो अ यंत पू य एवं जीतने यो य हो. (१) आ य म स त र मय तता य य नेत र. मनु व ै म मं पोता व ं त द व त.. (२) य - नवाहक अ न म सात र मयां ा त ह. वे दे व के पालक अ न, मनु य के पालक ऋ वज् के समान य के आठव थान म बैठते ह. (२) दध वे वा यद मनु वोचद् प र व ा न का ा ने म
ा ण वे तत्. मवाभवत्.. (३)
य म ह व धारण करता आ अ वयु जो मं बोलता है अथवा बु मान् ऋ वज् जो भी कम करता है, उ ह अ न उसी कार धारण करते ह, जस कार प हए को ना भ धारण करती है. (३) साकं ह शु चना शु चः शा ता तुनाज न. व ाँ अ य ता ुवा वयाइवानु रोहते.. (४) शु शा ता नामक अ न शु य के ही साथ उ प ए थे. जस कार प ी फल पाने के लए एक शाखा से सरी शाखा पर जाता है, उसी कार यजमान अ न संबंधी य को न त फलदायक जानकर बार-बार करता है. (४) ता अ य वणमायुवो ने ु ःसच त धेनवः. कु व सृ य आ वरं वसारो या इदं ययुः.. (५) य कम करने वाली उंग लयां गाय के समान ने ा नामक अ न क सेवा करती ह. वे ही अ न के गाहप य आ द तीन प क भी सेवा करती ह. (५) यद मातु प वसा घृतं भर य थत. तासाम वयुरागतौ यवो वृ ीव मोदते.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस समय माता प वेद के समीप भ गनी के समान जु नामक पा घी से भरकर रखा जाता है, उस समय अ वयु प अ न उसी कार स होते ह, जैसे वषा होने पर जौ हरे-भरे हो जाते ह. (६) वः वाय धायसे कृणुतामृ वगृ वजम्. तोमं य ं चादरं वनेमा र रमा वयम्.. (७) ऋ वज् प अ न अपना कम समझकर ऋ वज् का काम करते ह. हम भी अ न क ही कृपा से तु तयां, य और ह पया त मा ा म दे ते ह. (७) यथा व ाँ अरंकर े यो यजते यः. अयम ने वे अ प यं य ं चकृमा वयम्.. (८) हे अ न! ऐसी कृपा करो क तु हारा मह व जानने वाला यजमान सभी दे व को स कर सके. हे अ न! हम जस य को करगे, वह तु हारा ही होगा. (८)
दे वता—अ न
सू —६
इमां मे अ ने स मध ममामुपसदं वनेः. इमा उ षु ुधी गरः.. (१) हे अ न! य म द गई मेरी स मधा तथा आ त का उपभोग करो एवं मेरी तु तयां सुनो. (१) अया ते अ ने वधेमोज नपाद म े. एना सू े न सुजात.. (२) हे अ न! इस आ त के ारा हम तु हारी सेवा करगे. हे बल के नाती, व तृत य के वामी एवं सुंदर ज म वाले अ न! इस सुंदर तु त ारा हम तु ह स करगे. (२) तं वा गी भ गवणसं
वण युं
वणोदः. सपयम सपयवः.. (३)
हे धनदाता, तु त यो य एवं ह व के अ भलाषी अ न! हम तु हारे सेवक बनकर तु तय ारा तु ह स करगे. (३) स बो ध सू रमघवा वसुपते वसुदावन्. युयो य१ मद् े षां स.. (४) हे धन वामी, व ान् एवं धनदाता अ न! हमारी तु त जानकर हमारे श ु भगाओ. (४) स नो वृ
को
दव प र स नो वाजमनवाणम्. स नः सह णी रषः.. (५)
वे ही अ न हमारे क याण के लए आकाश से वषा करते ह एवं पया त बल तथा हजार कार के अ दे ते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ईळानायाव यवे य व
त नो गरा. य ज होतरा ग ह.. (६)
हे अ तशय त ण, दे व त एवं य के परम यो य अ न! मेरी तु त सुनकर आओ एवं अपने पूजक मुझको अपना आ य दो. (६) अत
न ईयसे व ा
मोभया कवे. तो ज येव म यः.. (७)
हे बु मान् अ न! तुम मनु य के दय क भावना पहचानते हो. तुम यजमान और दे व दोन के वषय म जानते हो. तुम म के त के समान लोग के हतकारी हो. (७) स व ाँ आ च प यो य
च क व आनुषक्. आ चा म स स ब ह ष.. (८)
हे ानसंप अ न! हमारी इ छा सभी कार से पूरी करो. हे चेतनायु मानुसार दे व का य करो एवं बछे ए कुश पर बैठो. (८)
अ न! तुम
दे वता—अ न
सू —७
े ं य व भारता ने ुम तमा भर. वसो पु पृहं र यम्.. (१) हे अ तशय त ण, ऋ वज के संबंधी एवं ा त अ न! हम अ त शंसनीय, तेज वी एवं ब त से याचक ारा मांगा गया धन दान करो. (१) मा नो अरा तरीशत दे व य म य य च. प ष त या उत
षः.. (२)
हे अ न! हम मनु य एवं दे व क श ुता हरा न सके. हम इन दोन बचाओ. (२) व ा उत वया वयं धारा उद याइव. अ त गाहेम ह (३)
हे अ न! तु हारी कृपा से हम सभी श ु शु चः पावक व
ोऽ ने बृह
कार के श ु
से
षः.. (३)
को जल क धारा के समान लांघ जाएंगे.
रोचसे. वं घृते भरा तः.. (४)
हे शु , प व करने वाले एवं वंदनीय अ न! तुम घृत ारा बुलाए गए हो और अ यंत का शत हो रहे हो. (४) वं नो अ स भारता ने वशा भ
भः. अ ापद भरा तः.. (५)
हे ऋ वज का भरण करने वाले अ न! तुम हमारे हो. तुम बांझ गाय , बैल एवं ग भणी गाय ारा बुलाए गए हो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ् ः स परासु तः
नो होता वरे यः. सहस पु ो अ तः.. (६)
स मधा को भ ण करने वाले एवं घृत से सचे ए, पुरातन होम पूरा करने वाले, वरण करने यो य एवं श से उ प अ न परम व च ह. (६)
दे वता—अ न
सू —८
वाजय व नू रथा योगाँ अ ने प तु ह. यश तम य मी हे अंतरा मन्! जस तरह अ का इ छु क यश वाले एवं फलदाता अ न क तु त करो. (१) यः सुनीथो ददाशुषेऽजुय जरय रम्. चा
षः.. (१)
ाथना करता है, उसी कार परम तीक आ तः.. (२)
सुंदर नयन वाले, जरार हत एवं शोभन-ग त वाले अ न ह दाता यजमान के श ु को न करने के लए बुलाए गए ह. (२) यउ
या दमे वा दोषोष स श यते. य य तं न मीयते.. (३)
जो सुंदर लपट वाले अ न य शाला म आकर रात- दन तु तयां सुनते ह, उनका त कभी समा त नह होता. (३) आ यः व१ण भानुना च ो वभा य चषा. अ
ानो अजरैर भ.. (४)
अ न अपनी न य क वाला म सब दशा म का शत होते ए इस कार शोभा पाते ह, जस कार सूय अपनी करण से सुशो भत होता है. (४) अ मनु वरा यम नमु था न वावृधुः. व ा अ ध
यो दधे.. (५)
श ुनाशक एवं वयं शो भत अ न क तु त म ऋ वेद के सभी मं जाता है. अ न सम त शोभा को धारण करते ह. (५)
का योग कया
अ ने र य सोम य दे वानामू त भवयम्. अ र य तः सचेम भ याम पृत यतः.. (६) हम अ न, इं , सोम एवं अ य दे व क र ा से यु श ु को हरावगे. (६)
सू —९
ह. हम सबके अ न से बचते ए
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
न होता होतृषदने वदान वेषो द दवां असद सुद ः. अद ध त म तव स ः सह भरः शु च ज ो अ नः.. (१) दे व का आ ान करने वाले, व ान्, चमकते ए, शोभन बलयु , अ ह सत त एवं उ म बु वाले, नवास थान दे ने वाले, असं य य का भरणपोषण करने वाले एवं वशु वाला वाले अ न होता के भवन म भली कार बैठ. (१) वं त वमु नः पर पा वं व य आ वृषभ णेता. अ ने तोक य न तने तनूनाम यु छ द ो ध गोपाः.. (२) हे कामवषक! तुम हमारे त बनो, हम आप य से बचाओ एवं हमारे धनदाता बनो. तुम मादशू य एवं काशयु बनकर हमारी और हमारे पु क शरीर र ा करके जगो. (२) वधेम ते परमे ज म ने वधेम तोमैरवरे सध थे. य मा ोने दा रथा यजे तं वे हव ष जु रे स म े .. (३) हे अ न! तु हारे उ म ज म थान म हम तु हारी सेवा करगे और तु हारे आकाश से नीचे थत होने पर तु तसमूह से तु ह स करगे. जस अधः दे श अथात् धरती से तुम उ प ए हो, उसक भी पूजा करगे. वहां जब तुम व लत होते हो तो अ वयु ह दे ते ह. (३) अ ने यज व ह वषा यजीयान् ु ी दे णम भ गृणी ह राधः. वं स र यपती रयीणां वं शु य वचसो मनोता.. (४) हे े या क प अ न! तुम ह ारा य करो और शी तापूवक हमारे दान यो य अ क शंसा दे व के सामने करो. तुम उ म धन के वामी हो. तुम हमारे ओज वी तो को जानो. (४) उभयं ते न ीयते वस ं दवे दवे जायमान य द म. कृ ध ुम तं ज रतारम ने कृ ध प त वप य य रायः.. (५) हे सुंदर अ न! त दन उ प होने वाला तु हारा द एवं पा थव दोन कार का धन न नह होता. हे अ न! तु तक ा यजमान को अ का वामी बनाओ एवं उसे अप य वाला धन दान करो. (५) सैनानीकेन सु वद ो अ मे य ा दे वाँ आय ज ः व त. अद धो गोपा उत नः पर पा अ ने ुम त रेव द ह.. (६) हे अ न! तुम अपनी सेना स हत आकर हमारे लए शोभन धन वाले बनो. हे दे व के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य क ा सबसे उ म या क, तर कारर हत, पाप से र ा करने वाले, धन एवं कां तयु अ न! तुम हमारी र ा करते ए सभी ओर से का शत बनो. (६)
सू —१०
दे वता—अ न
जो ो अ नः थमः पतेवेळ पदे मनुषा य स म ः. यं वसानो अमृतो वचेता ममृजे यः व य१: स वाजी.. (१) सबसे थम य म बुलाने यो य, पता के समान, शोभा धारण करने वाले, मरणर हत, व वध ायु , अ एवं बल से संयुत एवं सेवा के यो य अ न मनु य ारा य शाला म जलाए गए ह. (१) ू ाअ न य भानुहवं मे व ा भग भरमृतो वचेताः. यावा रथं वहतो रो हता वोता षाह च े वभृ ः.. (२) मरणर हत, व वध जा-यु एवं व च - काश वाले अ न मेरी सम त तु तय स हत पुकार को सुन. काले अथवा लाल रंग के दो घोड़े अ न का रथ ख चते ह. वे ऋ वज ारा व भ थान म ले जाए जाते ह. (२) उ ानायामजनय सुषूतं भुवद नः पु पेशासु गभः. श रणायां चद ु ना महो भरपरीवृतो वस त चेताः.. (३) अ वयुजन ने ऊपर मुख वाली अर ण म रहने वाले अ न को उ प कया. अ न सम त वन प तय म व मान ह. ानवान् अ न रात म महान् तेज से यु होकर एवं अंधकार ारा अछू ते रहकर नवास करते ह. (३) जघ य नं ह वषा घृतेन त य तं भुवना न व ा. पृथुं तर ा वयसा बृह तं च म ै रभसं शानम्.. (४) सारे संसार म नवास करने वाले, महान्, सब जगह जाने वाले, शरीर से बढ़े ए, ह अ ारा ा त, बलवान् एवं दखाई दे ने वाले अ न क हम घृत पी ह ारा पूजा करते ह. (४) आ व तः य चं जघ यर सा मनसा त जुषेत. मय ीः पृहय ण अ नना भमृशे त वा३ जभुराणः.. (५) सब जगह वतमान एवं य क ओर आने के इ छु क अ न को हम घी के ारा स चते ह. अ न बाधार हत मन से उसे वीकार कर. मनु य ारा करने यो य एवं अ तशय य वण वाले अ न पूरी तरह व लत हो जाने पर कसी के ारा छु ए नह जा सकते. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े ा भागं सहसानो वरेण वा तासो मनुव दे म. य अनूनम नं जुह्वा वच या मधुपृचं धनसा जोहवी म.. (६) हे अ न! तुम अपने तेज से श ु को परा जत करते ए अपनी तु तय को जानो. हम तु हारे त बनकर मनु के समान तो बोलते ह. धन ा त करने का इ छु क म वाला से पूण एवं कमफल से यजमान को यु करने वाले अ न क तु त क कामना से ह दे ता ं. (६)
दे वता—इं
सू —११
ु ी हव म मा रष यः याम ते दावने वसूनाम्. ध इमा ह वामूज वधय त वसूयवः स धवो न र तः.. (१) हे इं ! मेरी तु त को सुनो. इसका तर कार मत करो. हम तु हारे धनदान के पा ह . बहती ई नद के समान घी टपकाने वाला ह यजमान को धन ा त कराने क इ छा से तु ह बढ़ाता है. (१) सृजो मही र या अ प वः प र ता अ हना शूर पूव ः. अम य च ासं म यमानमवा भन थैवावृधानः.. (२) हे शूर इं ! तुमने अ धक मा ा म जल बरसाया, उसी को वृ असुर ने रोक लया था. तुमने उस जल को छु ड़ा दया था. तुमने तु तय ारा उ त पाकर वयं को मरणर हत मानने वाले दास वृ को नीचे पटक दया था. (२) उ थे व ु शूर येषु चाक तोमे व येषु च. तु येदेता यासु म दसानः वायवे स ते न शु ाः.. (३) हे शूर इं ! तुम -संबंधी ऋ वेद के मं क कामना करते हो. जन तु त मं पाकर तुम स होते हो, वे तु तयां हमारे य के त आने वाले तु हारे लए यु जाती ह. (३)
को क
शु ं नु ते शु मं वधय तः शु ं व ं बा ोदधानाः. शु व म वावृधानो अ मे दासी वशः सूयण स ाः.. (४) हे इं ! हम तो ारा तु हारा शोभन बल बढ़ाते ए तु हारी भुजा म चमकता आ व धारण करते ह. तो ारा तेजयु होकर तुम हम हा न प ंचाने वाले असुर को सूय पी अ ारा हराते हो. (४) गुहा हतं गु ं गूळहम वपीवृतं मा यनं
य तम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उतो अपो ां त त वांसमह ह शूर वीयण.. (५) हे शूर इं ! तुमने गुहा म सोए ए, अंधेरे म छपे ए, गूढ़ अ य जल म खूबे ए, माया के ारा धरती और आकाश को वश म करने वाले वृ को अपने व से मारा था. (५) तवा नु त इ पू ा महा युत तवाम नूतना कृता न. तवा व ं बा ो श तं तवा हरी सूय य केतू.. (६) हे इं ! हम तु हारे ाचीन महान् कम क शी तु त करते ह. हम तु हारे नूतन काय क भी शंसा करते ह. तु हारी भुजा म वतमान व क तु त करते ह. तुम सूय प हो. तु हारे ह र नामक अ तु हारी पताका के समान ह. हम उनक भी तु त करते ह. (६) हरी नु त इ वाजय ता घृत तं वारम वा ाम्. व समना भू मर थ ारं त पवत स र यन्.. (७) हे इं ! शी ग त से चलने वाले तु हारे घोड़े जल बरसाने वाले बादल के समान गरजते ह. समतल धरती स ई. बादल भी इधर-उधर घूमता आ स आ. (७) न पवतः सा यु छ सं मातृ भवावशानो अ ान्. रे पारे वाण वधय त इ े षतां धम न प थ .. (८) वषा करने म सावधान बादल आकाश म आया एवं माता प जल के कारण बार-बार गरजता आ इधर-उधर घूमने लगा. आकाश म र- र तक श द को बढ़ाने वाले म त ने इं ारा े रत उस व न को अ छ तरह फैला दया. (८) इ ो महां स धुमाशयानं माया वनं वृ म फुर ः. अरेजेतां रोदसी भयाने क न दतो वृ णो अ य व ात्.. (९) बलवान् इं ने इधर-उधर जाने वाले मेघ म थत रहने वाले मायावी वृ को मार डाला था. जल बरसाने वाले इं के श द करते ए व से डरे ए धरती और आकाश कांप उठे थे. (९) अरोरवीद्वृ णो अ य व ोऽमानुषं य मानुषो नजूवात. न मा यनो दानव य माया अपादय प पवा सुत य.. (१०) जब मानव हतैषी इं ने मानव वरोधी वृ को मारने क उ कट अ भलाषा क , उस समय कामवषक इं के व ने बार-बार श द कया था. नचोड़े ए सोम को पीकर इं ने मायावी वृ क सब माया समा त कर द . (१०) पबा पबे द
शूर सोमं म द तु वा म दनः सुतासः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पृण त ते कु ी वधय व था सुतः पौर इ माव.. (११) हे शूर इं ! तुम बार-बार सोमरस पओ. मद करने वाला सोमरस तु ह स करे. सोम तु हारे पेट को भरकर तु हारी वृ करे. पेट भरने वाला सोम तु ह तृ त करे. (११) वे इ ा यभूम व ा धयं वनेम ऋतया सप तः. अव यवो धीम ह श तं स ते रायो दावने याम.. (१२) हे इं ! हम मेधावी तु हारे मन म थान ा त करगे. कमफल क इ छा से तु हारी सेवा करते ए हम तु हारा आ य पाने के लए तु त करते ह. हम इसी समय तु हारे धनदान के पा बन. (१२) याम ते त इ ये त ऊती अव यव ऊज वधय तः. शु म तमं यं चाकनाम दे वा मे र य रा स वीरव तम्.. (१३) हे इं ! जो लोग तु हारी र ा पाने के लए तु ह अ धक मा ा म ह व दे ते ह, हम भी उ ह के समान तु हारे अधीन हो जाव. हे सबसे बलवान् इं दे व! हम जस धन क कामना करते ह, हम वही वीर पु से यु धन दे ना. (१३) रा स यं रा स म म मे रा स शध इ मा तं नः. सजोषसो ये च म दसानाः वायवः पा य णी तम्.. (१४) हे इं ! तुम हम घर दो, म दो और म त के समान महान् श दो. साथ-साथ स होते ए एवं य क ओर आते ए म द्गण आगे रखा गया सोम पएं. (१४) व ु येषु म दसान तृप सोमं पा ह द . अ मा सु पृ वा त ावधयो ां बृह रकः.. (१५) हे इं ! जन म त क सहायता पाकर तुम स रहते हो, वे सोमरस पएं. तुम वयं को ढ़ करते ए इस तृ तदायक सोम को पओ. हे श ुनाशक इं ! तुम बलवान् एवं पूजनीय म त के साथ आकर पशु, पु ा द ारा हमारा पालन करके धरती एवं वग क वृ करो. (१५) बृह त इ ु ये ते त ो थे भवा सु नमा ववासान्. तृणानासो ब हः प याव वोता इ द वाजम मन्.. (१६) हे आप य से उ ार करने वाले इं ! जो उ मं ारा तुझ सुखदाता क सेवा करते ह, वे शी ही महान् बन जाते ह. कुश बछाकर तु हारी सेवा करने वाले तुमसे सुर त होकर घर एवं अ पाते ह. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ े व ु शूर म दसान क केषु पा ह सोम म . दोधुव छ् म ुषु ीणानो या ह ह र यां सुत य पी तम्.. (१७) हे शूर इं ! तुम कं नामक उ दन म स होते ए सोमरस पओ. इसके बाद स होते ए एवं अपनी दाढ़ म लगी सोमरस क बूंद को बार-बार झाड़ते ए अपने घोड़ ारा सोमरस पीने के वचार से सरी जगह जाओ. (१७) ध वा शवः शूर येन वृ मवा भन ानुमौणवाभम्. अपावृणो य तरायाय न स तः सा द द यु र .. (१८) हे शूर इं ! वह बल धारण करो, जसके ारा तुमने दनुपु वृ को मकड़ी के समान मसल डाला था. तुमने आय के लए काश का उद्घाटन कया एवं द यु तु हारे ारा सताए गए. (१८) सनेम ये त ऊ त भ तर तो व ा: पृध आयण द यून्. अ म यं त वा ं व पमर धयः सा य य ताय.. (१९) हम उन लोग क शंसा करते ह, जो तु हारे ारा सुर त होकर सभी से उ म स ए एवं ज ह ने आय बनकर द युजन पर वजय पाई. जस कार तुमने त का सखा बनकर व ा के पु व प का वध कया, वैसा ही काय हमारे लए भी करो. (१९) अ य सुवान य म दन त य यबुदं वावृधानो अ तः. अवतय सूय न च ं भन ल म ो अ र वान्.. (२०) इं ने स एवं सोम नचोड़ने वाले त ारा उ त पाकर अबुद को न कया था. सूय जस कार अपने रथ के प हए को आगे चलाते ह, उसी कार अं गरा क सहायता पाकर इं ने अपना व चलाया और बल का नाश कया. (२०) नूनं सा ते त वरं ज र े हीय द द णा मघोनी. श ा तोतृ यो म त ध भगो नो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (२१) हे इं ! तु हारी जो धनयु द णा तोता क इ छा पूरी करती है, वह हम दान करो. तुम सेवा करने यो य हो, इस लए हमारे अ त र वह द णा कसी को मत दे ना. हम पु पौ आ द को साथ लेकर इस य म तु हारी अ धक तु त करगे. (२१)
सू —१२
दे वता—इं
यो जात एव थमो मन वा दे वो दे वा तुना पयभूषत्. य य शु मा ोदसी अ यसेतां नृ ण य म ा स जनास इ ः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे मनु यो! जसने उ प होते ही दे व एवं मनु य म थम थान ा त करके अपने वीर कम से दे व को वभू षत कया था, जसके बल से धरती और आकाश डर गए थे और जो वशाल सेना के नायक थे, वही इं ह. (१) यः पृ थव थमानाम ं ह ः पवता कु पताँ अर णात्. यो अ त र ं वममे वरीयो यो ाम त ना स जनास इ ः.. (२) हे मनु यो! जसने चंचल पृ वी को ढ़ कया, ो धत पवत को नय मत कया, वशाल अंत र को बनाया एवं आकाश को थर कया, वही इं ह. (२) यो ह वा हम रणा स त स धू यो गा उदाजपधा वल य. यो अ मनोर तर नं जजान संवृ सम सु स जनास इ ः.. (३) हे मनु यो! जसने वृ को मारकर सात न दय को बहाया, जसने बल असुर ारा रोक गई गाय को वतं कया, जसने दो बादल के घषण से बजली पी अ न को उ प कया एवं जो यु थल म श ु का वनाश करता है, वही इं ह. (३) येनेमा व ा यवना कृता न यो दासं वणमधरं गुहाकः. नीव यो जगीवाँ ल माददयः पु ा न स जनास इ ः.. (४) हे मनु यो! जसने न र संसार को बनाया है एवं जसने वनाशक असुर को अंधेरी गुहा म बंद कया, जस कार बहे लया मारे ए पशु को ले जाता है, उसी कार जो जीते ए श ु का सब धन अ धकार म कर लेता है, वही इं ह. (४) यं मा पृ छ त कुह से त घोरमुतेमा नषो अ ती येनम्. सो अयः पु ी वजइवा मना त द मै ध स जनास इ ः.. (५) हे मनु यो! जसके वषय म लोग पूछते ह क वह कहां है? जसके वषय म लोग कहते ह क वह नह है. जो श ु क संप को न करता है, वही इं ह. उनके त ा करो. (५) यो र य चो दता यः कृश य यो णो नाधमान य क रेः. यु ा णो योऽ वता सु श ः सुतसोम य स जनास इ ः.. (६) हे मनु यो! जो संप को धन दे ता है, जो द न बल अथवा ाथना करते ए तोता को धन दान करता है, जो शोभन हनु वाला, हाथ म प थर धारण करने वाले तथा सोम नचोड़ने वाले यजमान क र ा करता है, वही इं ह. (६) य या ासः द श य य गावो य य ामा य य व े रथासः. यः सूय य उषसं जजान यो अपां नेता स जनास इ ः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे मनु यो! सम त अ , गाएं, गांव एवं रथ जसके अ धकार म ह, जसने सूय एवं उषा को उ प कया और जो जल को बहने क ेरणा दे ता है, वही इं ह. (७) यं दसी संयती व येते परेऽवर उभया अ म ाः. समानं च थमात थवांसा नाना हवेते स जनास इ ः.. (८) हे मनु यो! श द करती ई दो वरोधी सेनाएं, े एवं न न दोन कार के श ु एवं एक ही कार के दो रथ पर बैठे ए लोग जसे अपनी सहायता के लए बुलाते ह, वही इं ह. (८) य मा ऋते वजय ते जनासो यं यु यमाना अवसे हव ते. यो व य तमानं बभूव यो अ युत यु स जनास इ ः.. (९) हे मनु यो! जसक सहायता के बना लोग को वजय नह मलती, यु करते ए लोग जसे अपनी र ा के लए बुलाते ह, जो संसार के त न ध बने थे एवं थर पवत आ द को भी चंचल कर दे ते ह, वही इं ह. (९) यः श तो म ेनो दधानानम यमाना छवा जघान. यः शधते नानुददा त शृ यां यो द योह ता स जनास इ ः.. (१०) हे मनु यो! जसने ब त से पापी एवं अयाजक जन का नाश कया, जो गव करने वाले को स दान नह करते एवं जो द यु का हनन करने वाले ह, वही इं ह. (१०) यः श बरं पवतेषु य तं च वा र यां शर व व दत्. ओजायमानं यो अ ह जघान दानुं शयानं स जनास इ ः.. (११) हे मनु यो! जसने पवत म छपे ए शंबर असुर को चालीसव वष म ा त कया था, जसने बल योग करने वाले पवत म सोए ए दनु नामक असुर को मारा था, वही इं ह. (११) यः स तर मवृषभ तु व मानवासृज सतवे स त स धून्. यो रौ हणम फुर बा ामारोह तं स जनास इ ः.. (१२) हे मनु यो! जो सात र मय वाले, कामवष एवं बलवान् ह, ज ह ने सात न दय को बहाया है और ज ह ने हाथ म व लेकर वग जाने को त पर रो हण असुर का वनाश कया, वही इं ह. (१२) ावा चद मै पृ थवी नमेते शु मा चद य पवता भय ते. यः सोमपा न चतो व बा य व ह तः स जनास इ ः.. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे मनु यो! धरती और आकाश जसके सामने झुकते ह, जसक श के कारण पवत डरते ह और जो सोमपानक ा, सबसे अ धक ढ़ शरीर वाला, व के समान ढ़ भुजा वाला एवं हाथ म व धारणक ा है, वही इं ह. (१३) यः सु व तमव त यः पच तं यः शंस तं यः शशमानमूती. यय वधनं य य सोमो य येदं राधः स जनास इ ः.. (१४) हे मनु यो! जो सोमरस नचोड़ने वाले यजमान, पुरोडाश पकाने वाले रचना करने वाले एवं पढ़ने वाले क र ा करता है, हमारा अ , सोम एवं तो वाले ह, वही इं ह. (१४) यः सु वते पचते वयं त इ व ह
, तु त जसे बढ़ाने
आ च ाजं दद ष स कला स स यः. यासः सुवीरासो वदथमा वदे म.. (१५)
हे धष इं ! तुम सोमरस नचोड़ने वाले एवं पुरोडाश पकाने वाले यजमान क र ा करते हो, अतः तुम स चे हो. हम य एवं वीर पु से यु होकर ब त दन तक तु हारी तु तय का पाठ करगे. (१५)
सू —१३
दे वता—इं
ऋतुज न ी त या अप प र म ू जात आ वश ासु वधते. तदाहना अभवत् प युषी पय ऽशोः पीयूषं थमं त यम्.. (१) वषा ऋतु सोम क जननी है. वह जस जल से उ प होता है, जसम बढ़ता है, उसीम बाद म व हो जाता है. जो सोम जल का अंश धारण करता आ बढ़ता है, वही नचोड़ने यो य है एवं उसीका रस पी अंश इं का पहला भाग है. (१) स ीमा य त प र ब तीः पयो व याय भर त भोजनम्. समानो अ वा वतामनु यदे य ताकृणोः थमं सा यु यः.. (२) जल धारण करने वाली न दयां आपस म मलकर चार ओर बह रही ह एवं जल के वामी सागर को भोजन प ंचाती ह. नीचे क ओर बहने वाले जल का रा ता एक समान है. जस इं ने ाचीन काल म ये सब काम कए ह, वह शंसा के यो य है. (२) अ वेको वद त य दा त त प ू ा मन तदपा एक ईयते. व ा एक य वनुद त त ते य ताकृणोः थमं सा यु यः.. (३) यजमान दान करता है. होता उसका वणन करता है. अ वयु पधारी पशु क हसा करता आ इसी काम के लए सभी जगह जाता है. ा उसके सब कमदोष का ाय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करता है. हे इं ! पहले तुमने ये सब कम कए ह, इस लए तुम शंसनीय हो. (३) जा यः पु वभज त आसते र य मव पृ ं भव तमायते. अ स व दं ैः पतुर भोजनं य ताकृणोः थमं सा यु यः.. (४) हे इं ! जस कार घर आए ए अ त थय को धन का वभाग कया जाता है, उसी कार गृह म भी लोग तु हारे ारा दया आ धन जा म बांटते ह. लोग पता के ारा दया आ भोजन दांत से भ ण करते ह. तुमने पूवकाल म ये सब काय कए ह, इस लए तुम तु त के यो य हो. (४) अधाकृणोः पृ थव स शे दवे यां धौतीनाम हह ा रण पथः. तं वा तोमे भ द भन वा जनं दे वं दे वा अजन सा यु यः.. (५) हे इं ! तुमने धरती को सूय के लए दशनीय बनाया है एवं न दय के माग को गमन यो य बनाया है. हे वृ नाशक इं ! जस कार जल से घोड़े को संतु करते ह, उसी कार तोतागण तु तय से तु ह बढ़ाते ह. तुम तु त के यो य हो. (५) यो भोजनं च दयसे च वधनमा ादा शु कं मधुमद् दो हथ. सः शेव ध न द धषे वव व त व यैक ई शषे सा यु यः.. (६) हे इं ! तुम यजमान के लए भोजन एवं बढ़ने वाला धन दे ते हो. तुम गांठ से सूखे ए गे ं आ द मधुर रस वाली फसल का दोहन करते हो. तुम सेवा करने वाले यजमान को धन दे ते हो और संसार के एकमा वामी एवं शंसा के यो य हो. (६) यः पु पणी व धमणा ध दाने १वनीरधारयः. य ासमा अजनो द ुतो दव उ वा अ भतः सा यु यः.. (७) हे इं ! तुम अपने वषा पी कम ारा खेत म फूल और फल वाली ओष धय को धारण करते हो. तुमने सूय क अनेक करण को उ प कया है एवं वयं महान् बनकर चार ओर बड़े-बड़े ा णय को ज म दया है. तुम तु त के यो य हो. (७) यो नामरं सहवसुं नह तवे पृ ाय च दासवेशाय चावहः. ऊजय या अप र व मा यमुतैवा पु कृ सा यु यः.. (८) हे अनेक कम के क ा इं ! तुमने द यु के वनाश एवं य म ह पाने के लए नृमर के पु सहवसु नामक असुर को मारने के लए बलवान् व क चमक ली धार का मुंह उस ओर कर दया. तुम तु त के यो य हो. (८) शतं वा य य दश साकमा एक य ु ौ य चोदमा वथ. अर जौ द यू समुन दभीतये सु ा ो अभवः सा यु यः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम अकेले को सुख प ंचाने के लए दस सौ घोड़े हो. तुम यजमान क र ा करते हो. तुमने दधी च ऋ ष के क याण के लए बना र सी वाले बंद गृह म द यु का नाश कया. तुम सबके ा य एवं तु तपा हो. (९) व ेदनु रोधना अ य प यं द र मै द धरे कृ नवे धनम्. षळ त ना व रः प च स शः प र परो अभवः सा यु यः.. (१०) हे इं ! सारी न दयां तु हारी श के अनुसार बहती ह. यजमान कम करने वाले तुमको अ दे ते ह एवं तु हारे न म धन धारण करते ह. तुमने छह वशाल थान को ढ़ बनाया है एवं तुम पंचजन का सब कार से पालन करते हो. तुम शंसा के यो य हो. (१०) सु वाचनं तव वीर वीय१ यदे केन तुना व दसे वसु. जातू र य वयः सह वतो या चकथ से व ा यु यः.. (११) हे वीर इं ! तु हारा साम य सबके लए शंसा के यो य है, य क एक कम ारा ही तुम श ु का धन पा लेते हो, तुमने श शाली जातु र को अ दया था. ये सभी काय तुमने कए ह, इस लए तुम तु त के पा हो. (११) अरमयः सरपस तराय कं तुव तये च व याय च ु तम्. नीचा स तमुदनयः परावृजं ा धं ोणं वय सा यु यः.. (१२) हे इं ! तुमने बहने वाले जल के उस पार सरलता से प ंचने के लए तुव त एवं व य के लए माग बनाया तथा जल म डू बे एवं तल म वतमान अंधे-पंगु परावृज का उ ार करके क त ा त क . तुम शंसा के यो य हो. (१२) अ म यं त सो दानाय राधः समथय व ब ते वस म्. इ य च ं व या अनु ू बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१३) हे नवासदाता इं ! हम दाना द के लए अपना पया त, व च एवं शरण लेने यो य धन दान करो. हम त दन उस धन को भोगने के इ छु क ह. हम उ म पु एवं पौ ात करके इस य म ब त सी तु तय का पाठ करगे. (१३)
सू —१४
दे वता—इं
अ वयवो भरते ाय सोममाम े भः स चता म म धः. कामी ह वीरः सदम य पी त जुहोत वृ णे त ददे ष व .. (१) हे अ वयुजनो! इं के लए सोम ले जाओ एवं चमस के ारा मादक सोम को अ न म डालो. इस सोम को पीने के लए वीर इं सदा इ छु क रहते ह. तुम कामवधक इं के न म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम दो, य क वे इसे चाहते ह. (१) अ वयवो यो अपो व वांसं वृ ं जघानाश येव वृ म्. त मा एतं भरत त शायँ एष इ ो अह त पी तम य.. (२) हे अ वयुजनो! जन इं ने जल को रोकने वाले वृ असुर को व ारा इस कार मार डाला, जैसे पेड़ काट दे ते ह, उन सोमरस पीने के इ छु क इं के पास सोम ले जाओ, य क वे ही इसे पीने क यो यता रखते ह. (२) अ वयवो यो भीकं जघान यो गा उदाजदप ह वलं वः. त मा एतम त र े न वात म ं सोमैरोणुत जून व ैः.. (३) हे अ वयुगण! जन इं ने मीक का हनन कया, ज ह ने बल असुर का नाश करके उसके ारा रोक ई गाय को वतं कया, उन इं के लए इस कार सब जगह सोम भर दो, जैसे आकाश म वायु भरी रहती है. जस कार बल को कपड़ से ढक दे ते ह, उसी कार इं को सोमरस से ढक दो. (३) अ वयवो य उरणं जघान नव च वांसं नव त च बा न्. यो अबुदमव नीचा बबाधे त म ं सोम य भृथे हनोत.. (४) हे अ वयुजनो! जन इं ने न यानवे भुजा का दशन करने वाले उरण असुर को मारा तथा अबुद को नीचे क ओर मुख करके समा त कया, उन इं के लए सोमरस भरने के लए पा लाओ. (४) अ वयवो यः व ं जघान यः शु णमशुषं यो ंसम्. यः प ुं नमु च यो ध ां त मा इ ाया धसो जुहोत.. (५) हे अ वयुजनो! जन इं ने अ रा स को सरलतापूवक न कया तथा न मरने यो य शु ण असुर को बना गरदन का बना डाला एवं ज ह ने प ु नमु च तथा ध ा का वनाश कया, उ ह इं के लए सोमरस लाओ. (५) अ वयवो यः शतं श बर य पुरो वभेदा मनेव पूव ः. यो व चनः शत म ः सह मपावप रता सोमम मै.. (६) हे अ वयुजनो! जन इं ने शंबर असुर क ाचीन सौ नग रय को व ारा न कर दया एवं ज ह ने वच के सौ हजार पु को मारकर एक साथ ही धरती पर गरा दया, उ ह इं के लए सोम ले आओ. (६) अ वयवो यः शतमा सह ं भू या उप थेऽवप जघ वान्. कु स यायोर त थ व य वीरा यावृण भरता सोमम मै.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ वयुजनो! जस श ुहननक ा इं ने सौ हजार असुर को धरती क गोद म मारकर गरा दया एवं ज ह ने कु स, आयु और अ त थ व के वरो धय का नाश कया, उ ह इं के लए सोमरस लाओ. (७) अ वयवो य रः कामया वे ु ी वह तो नशथा त द े . गभ तपूतं भरत ुताये ाय सोमं य यवो जुहोत.. (८) हे य कमक ा अ वयुजनो! तुम जो चाहते हो, वह इं के लए सोमरस दे ने पर तुरंत मल जाएगा. हे या को! हाथ से नचोड़ा आ सोमरस लाकर इं के लए दान करो. (८) अ वयवः कतना ु म मै वने नपूतं वन उ य वम्. जुषाणो ह यम भ वावशे व इ ाय सोमं म दरं जुहोत.. (९) हे अ वयुजनो! इन इं के लए सुखकारक सोम तैयार करो. तुम पीने यो य जल म धोकर शु कए ए सोम को ले आओ. स इं तुम लोग के हाथ से तैयार कया आ सोमरस चाहते ह. इं के लए मादक सोम ले आओ. (९) अ वयवः पयसोधयथा गोः सोमे भर पृणता भोज म म्. वेदाहम य नभृतं म एत सय तं भूयो यजत केत.. (१०) हे अ वयुजनो! जस कार गाय का थन ध से भरा रहता है, उसी कार इन फलदाता इं को सोमरस दे ने वाले यजमान को भली कार जानते ह. (१०) अ वयवो यो द य व वो यः पा थव य य य राजा. तमूदरं न पृणता यवेने ं सोमे भ तदपो वो अ तु.. (११) हे अ वयुजनो! इं वग, धरती आकाश म रहने वाले धन के राजा ह. जस कार जौ से कु टया भर दे ते ह, उसी कार इं को सोमरस से पूण कर दो. यह काम तु हारे ारा होना चा हए था. (११) अ म यं त सो दानाय राधः समथय व ब ते वस म्. इ य च ं व या अनु ू बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१२) हे नवासदाता इं ! हम दाना द के लए अपना पया त, व च एवं शरण लेने यो य धन दान करो. हम त दन उस धन के भोगने के इ छु क ह. हम उ म पु एवं पौ ा त करके इस य म ब त सी तु तय का पाठ करगे. (१२)
सू —१५
दे वता—इं
घा व य महतो महा न स या स य य करणा न वोचम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क के व पब सुत या य मदे अ ह म ो जघान.. (१) म बलवान्, महान् एवं स य-संक प इं के स चे एवं व तृत य का वणन करता ं. इं ने क क य म सोमरस का पान कया एवं उसका मद हो जाने पर वृ असुर का नाश कया. (१) अवंशे ाम तभायद् बृह तमा रोदसी अपृणद त र म्. स धारय पृ थव प थ च सोम य ता मद इ कार.. (२) इं ने आकाश म काश वाले सूय को थर कया है तथा वग, धरती एवं आकाश को अपने तेज से पूण कर दया है. उ ह ने पृ वी को धारण करके स बनाया है. इं ने यह काय सोमरस के नशे म कया है. (२) स ेव ाचो व ममाय मानैव ैण खा यतृण द नाम्. वृथासृज प थ भद घयाथैः सोम य ता मद इ कार.. (३) जस कार य शाला बनाई जाती है, उसी कार इं ने पूवा भमुख व को नापकर बनाया है. उ ह ने अपने व से न दय के नगम थान को खोल दया है. इं ने न दय को ऐसे माग पर बहाया है जो ब त समय तक चलते रहते ह. इं ने यह सब सोम के नशे म कया है. (३) स वोळ् प रग या दभीते व मधागायुध म े अ नौ. सं गो भर ैरसृज थे भः सोम य ता मद इ कार.. (४) दभी त को उसके नगर से बाहर ले जाने वाले असुर को इं ने माग म रोका एवं उनके काशमान आयुध को आग म जला दया. इसके प ात् इं ने उ ह ब त सी गाएं, घोड़े तथा रथ दान कए. इं ने यह सब सोमरस के नशे म कया. (४) स मह धु नमेतोरर णा सो अ नातॄनपारय व त. त उ नाय र यम भ त थुः सोम य ता मद इ कार.. (५) इं ने धु न नामक वशाल नद को इतना सुखा दया क सरलता से पार कया जा सके. इस कार उ ह ने नद पार करने म असमथ ऋ षय को सरलता से पार उतार दया. वे ऋ ष धन के उ े य से नद के पार गए. इं ने यह सब काम सोमरस के नशे म कया था. (५) सोद चं स धुम रणा म ह वा व ण े ान उषसः सं पपेष. अजवसो ज वनी भ ववृ सोम य ता मद इ कार.. (६) इं ने अपने मह व के कारण सधु नद को उ र मुख करके बहाया तथा व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा
उषा क गाड़ी को सूरचूर कर दया. इं ने अपनी श शाली सेना ारा श ु सेना को हराया. ये सब काम सोमरस के नशे म कए गए ह. (६)
क बलहीन
स व ां अपगोहं कनीनामा वभव द ु त यरावृक्. त ोणः थाद् १नगच सोम य ता मद इ कार.. (७) ववाह क इ छा से आई ई क या को भागता आ दे खकर परावृज ऋ ष सबके सामने खड़े ए. इं क कृपा से वह पंगु दौड़ा और अंधा होकर भी दे खने लगा. इं ने यह सब सोमरस के मद म कया है. (७) भन लमा रो भगृणानो व पवत य ं हता यैरत्. रण ोधां स कृ मा येषां सोम य ता मद इ कार.. (८) अं गरावंशीय ऋ षय क तु त सुनकर इं ने बल असुर को मार डाला एवं पवत के ढ़ ार को खोल दया था. इं ने पवत क कृ म बाधा को समा त कया. यह सब सोमरस के मद म कया गया. (८) व ेना यु या चुमु र धु न च जघ थ द युं दभी तमावः. र भी चद व वदे हर यं सोम य ता मद इ कार.. (९) हे इं ! तुमने चुमु र और धु न नामक असुर को गाढ़ न द म सुला कर मार डाला था एवं दभी त नामक ऋ ष क र ा क . दभी त के ारपाल ने भी उन दोन असुर का सोना ा त कया था. इं ने यह काम सोमरस के मद म कया था. (९) नूनं सा ते त वरं ज र े हीय द द णा मघोनी. श ा तोतृ यो मा त ध भगो नो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१०) हे इं ! तु हारी जो धनपूण द णा तु तक ा क अ भलाषा पूण करती है, वह हम ा त हो. हे भजनीय इं ! हम तोता को छोड़कर उसे कसी अ य को मत दे ना. हम उ म पु , पौ आ द ा त करके इस य म तु हारी ब त तु त करगे. (१०)
सू —१६
दे वता—इं
वः सतां ये तमाय सु ु तम ना वव स मधाने ह वभरे. इ मजुय जरय तमु तं सना ुवानमवसे हवामहे.. (१) हे यजमानो! हम तु हारे क याण के लए दे व म सबसे बड़े इं के लए जलती ई अ न म ह दे ते ह एवं मनोहारी तु त करते ह. हम अपनी र ा के लए अजर, सबको बूढ़ा बनाने वाले, सोमरस से तृ त, सनातन एवं न य त ण इं का आ ान करते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य मा द ाद् बृहतः क चनेमृते व ा य म स भृता ध वीया. जठरे सोमं त वी३ सहो महो ह ते व ं भर त शीष ण तुम्.. (२) महान् इं के बना संसार कुछ भी नह है. जन इं म सम त श यां थत ह, उ ह के उदर म सोमरस, शरीर म बल एवं तेज, हाथ म व और म तक म ान वराजमान है. (२) न ोणी यां प र वे त इ यं न समु ै ः पवतै र ते रथः. न ते व म व ो त क न यदाशु भः पत स योजना पु .. (३) हे इं ! जब तुम असुरवध के लए शी गामी अ ारा अनेक योजन र जाते हो, तब तु हारा बल न धरती आकाश ारा पराभूत होता है और न सागर एवं पवत तु हारे रथ को रोक पाते ह. कोई भी तु हारे व को उस समय रोक नह पाता. (३) व े मै यजताय धृ णवे तुं भर त वृषभाय स ते. वृषा यज व ह वषा व रः पबे सोमं वृषभेण भानुना.. (४) हे यजमानो! सब लोग य के यो य, श ुसंहारक, कामवषक एवं सदा तुत रहने वाले इं के न म य कम करते ह. तुम भी सोमरस नचोड़ने म समथ एवं ानवान् होने के कारण इं के लए य करो. हे इं तुम द यमान् अ न के साथ सोमपान करो. (४) वृ णः कोशः पवते म व ऊ मवृषभा ाय वृषभाय पातवे. वृषणा वयू वृषभासो अ यो वृषणं सोमं वृषभाय सु व त.. (५) हे इं ! फलदाता एवं मदकारक सोमरस अनु ान करने वाल को ेरणा दे ता है तथा कामवषक व अभी अ दान करने वाले तु ह पीने के न म ा त होता है. सोमरस नचोड़ने म समथ दो अ वयु एवं इ छा पूण करने वाले पाषाणखंड तु हारे लए सोमरस तैयार करते ह. (५) वृषा ते व उत ते वृषा रथो वृषणा हरी वृषभा यायुधा. वृ णो मद य वृषभ वमी शष इ सोम य वृषभ य तृ णु ह.. (६) हे कामवषक इं ! तु हारा व , तु हारा रथ, तु हारे घोड़े एवं सभी आयुध इ छाएं पूरी करने वाले ह. तुम मदकारक एवं कामना पूण करने वाले सोम के वामी हो. कामवष सोमरस से तुम तृ त होओ. (६) ते नावं न समने वच युवं णा या म सवनेषु दाधृ षः. कु व ो अ य वचसो नबो धष द मु सं न वसुनः सचामहे.. (७) हे श ुनाशक इं ! जस कार स रता म नाव र ा करती है, उसी कार तुम तु त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करने वाले क सं ाम म र ा करते हो. म य काल म तु तयां पढ़ता आ तु हारे समीप जाता ं. हमारे वचन को समझो. तुझ दानशील को सोमरस से हम उसी कार भगो दगे, जस कार तुम कुएं को जल से भर दे ते हो. (७) पुरा स बाधाद या ववृ व नो धेनुन व सं यवस य प युषी. सकृ सु ते सुम त भः शत तो सं प नी भन वृषणो नसीम ह.. (८) हे इं ! घास खाकर तृ त ई गाय जस कार अपने बछड़े क भूख को समा त करती है, उसी कार तुम भी श ुबाधा स मुख आने से पूव ही हमारी र ा कर लो. जस कार प नयां युवक को घेरती ह, उसी कार हे शत तु इं ! हम सुंदर तु तय ारा तु ह घेरगे. (८) नूनं सा ते त वरं ज र े हीय द द णा मघोनी. श ा तोतृ यो मा त ध भगो नो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (९) हे इं ! तु हारी जो धनयु द णा तु तक ा क अ भलाषा पूण करती है, वह हम ा त हो. हे भजनीय इं ! हम तोता को छोड़कर उसे अ य कसी को मत दे ना. हम उ म पु , पौ ा द ा त करके इस य म तु हारी ब त तु त करगे. (९)
सू —१७
दे वता—इं
तद मै न म र वदचत शु मा यद य नथोद रते. व ा यदगो ा सहसा परीवृता मदे सोम य ं हता यैरयत्.. (१) हे तोताओ! इं का श ुनाशक तेज ाचीनकाल के समान उ दत होता है, इस लए तुम अ यंत नवीन तु तय ारा अं गरा के समान इं क पूजा करो. इं ने सोमरस के मद म वृ असुर ारा रोके ए मेघ को वतं कर दया था. (१) स भूतु यो ह थमाय धायस ओजो ममानो म हमानमा तरत्. शूरो यो यु सु त वं प र त शीष ण ां म हना यमु चत.. (२) उन इं क वृ हो, ज ह ने अपने बल का दशन करते ए सबसे पहले सोमरस पीने के लए अपनी म हमा बढ़ाई थी, यु काल म श ुहंता बनकर अपने शरीर क र ा क थी एवं अपनी म हमा के कारण आकाश को शीश पर धारण कया था. (२) अधाकृणोः थमं वीय मह द या े णा शु ममैरयः. रथे ेन हय ेन व युताः जीरयः स ते स १क् पृथक्.. (३) हे इं ! तुमने तु तय
ारा स होकर अपना श ुनाशक बल उ प
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया है. इस
कार तुमने अपनी मु य श य का दशन कया है. ह र नामक घोड़ से यु रथ म बैठे ए तुमने कुछ श ु को दल बनाकर और कुछ को अलग-अलग भागने पर ववश कर दया है. (३) अधा यो व ा भुवना भ म मनेशानकृ वया अ यवधत. आ ोदसी यो तषा व रातनो सी तमां स धता सम यत्.. (४) पुरातन इं ने अपनी श से भुवन को हरा कर वयं को उनके अ धप त के प म स कया है. इसके प ात् व को धारण करने वाले इं ने धरती और आकाश को ा त कया है. उ ह ने अंधकार प रा स को ःख म डालते ए सारे संसार को घेर लया है. (४) स ाचीना पवता ं हदोजसाधराचीनमकृणोदपामपः. अधारय पृ थव व धायसम त ना मायया ामव सः.. (५) इं ने अपनी श ारा इधर-उधर जाने वाले पवत को अचल बनाया है, मेघ के जल को नीचे क ओर गराया है, सबको धारण करने वाली धरती को सहारा दया है और अपने बु बल से आकाश को नीचे गरने से रोका है. (५) सा मा अरं बा यां यं पताकृणो मादा जनुषो वेदस प र. येना पृ थ ां न व शय यै व ेण ह वृण ु व व णः.. (६) इं इस संसार क र ा के लए पया त स ए ह. ज ह ने सभी जीव क अपे ा ान पी बल अ धक मा ा म ा त करके अपने हाथ से संसार का नमाण कया है. परम क तशाली इं ने इसी ान के ारा व नामक असुर को अपने व से मारकर धरती पर सुला दया था. (६) अमाजू रव प ोः सचा सती समानादा सदस वा मये भगम्. कृ ध केतमुप मा या भर द भागं त वो३येन मामहः.. (७) हे इं ! मृ युपयत माता- पता के साथ रहने क इ छा वाली क या जस कार अपने पता के कुल से भाग मांगती है, उसी कार म भी तुमसे धन क याचना कर रहा ं. उस धन को कट करो, उसक गणना करो एवं उसे पूण करो. मेरे शरीर के भोग के लए धन दो. जससे म इन तोता का स कार कर सकूं. (७) भोजं वा म वयं वेम द द ् व म ापां स वाजान्. अ व ी च या न ऊती कृ ध वृष व यसो नः.. (८) हे इं ! तुझ पालनक ा को हम बुलाते ह. तुम य कम एवं अ के दाता हो. तुम अपनी व च र ा श य ारा हमारा उ ार करो. हे कामवषक इं ! हम परम संप शाली ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनाओ. (८) नूनं सा ते त वरं ज र े हीय द द णा मघोनी. श ा तोतृ यो मा त ध भगो नो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (९) हे इं ! जो धनसंप द णा तु तक ा क अ भलाषा पूण करती है, वह हम दान करो. हे भजनीय इं ! हम तोता को छोड़कर उसे अ य कसी को मत दे ना. हम उ म पु -पौ ा द ा त करके इस य म तु हारी ब त तु त करगे. (९)
सू —१८
दे वता—इं
ाता रथो नवो यो ज स न तुयुग कशः स तर मः. दशा र ो मनु यः वषाः स इ भम तभी रं ो भूत्.. (१) तु तयु एवं शु य हम लोग ने ातःकाल आरंभ कया है. चार प थर , तीन वर , सात छं द तथा दस पा वाला यह य मानव का हतकारक एवं वग दे ने वाला है. वह मनोहर तु तय एवं हवन ारा स होगा. (१) सा मा अरं थमं स तीयमुतो तृतीयं मनुषः स होता. अ य या गभम य ऊ जन त सो अ ये भः सचते जे यो वृषा.. (२) मानव के लए उ म फल दे ने वाला य इं के लए, थम, तीय एवं तृतीय सवन म पूरा आ है. ऋ वज ने य को धरती के गभ के प म उ प कया है. कामवषक एवं वजयदाता य दे व के साथ मल जाता है. (२) हरी नु कं रथ इ य योजमायै सू े न वचसा नवेन. मो षु वाम बहवो ह व ा न रीरम यजमानासो अ ये.. (३) नवीन तु त पी वचन के साथ इं के रथ म ह र नामक अ को इस लए जोड़ा गया है क इं शी आ सक. इस य म ब त से बु मान् तोता ह. हे इं ! सरे यजमान तु ह अ धक स नह कर सकगे. (३) आ ा यां ह र या म या ा चतु भरा षड् भ यमानः. आ ा भदश भः सोमपेयमयं सुतः सुमख मा मृध कः.. (४) हे इं ! होता ारा बुलाए जाने पर तुम दो, चार, छह, आठ या दस ह र नामक अ ारा सोमरस पीने के लए आओ. हे शोभन धनशाली इं ! यह सोम तु हारे न म तुत है, इसे न मत करना. (४) आ वश या शता या वाङा च वा रशता ह र भयुजानः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ प चाशता सुरथे भ र ा ष
ा स त या सोमपेयम्.. (५)
हे इं ! सोमपान के लए उ म ग त वाले बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ अथवा स र घोड़ ारा हमारे सामने आओ. (५) आशी या नव या या वाङा शतेन ह र भ मानः. अयं ह ते शुनहो ेषु सोम इ वाया प र ष ो मदाय.. (६) हे इं ! अ सी, न बे एवं सौ ह र नामक अ ारा चलकर हमारे सामने आओ. शुनहो नामक पा म तु हारे आनंद के लए सोम रखा आ है. (६) मम े या छा व ा हरी धु र ध वा रथ य. पु ा ह वह ो बभूथा म छू र सवने मादय व.. (७) हे इं ! मेरी तु त को ल त करके आओ एवं अपने व ापी ह र नामक घोड़ को रथ के आगे जोड़ो. हे शूर! तु ह ब त से यजमान बुलाते ह. तुम इस य म आकर स बनो. (७) न म इ े ण स यं व योषद म यम य द णा हीत. उप ये े व थे गभ तौ ाये ाये जगीवांसः याम.. (८) इं से मेरी म ता कभी न टू टे. इं क द णा मुझे मनचाहा फल दे . हम इं के वप नाशक उ म बा के समीप थत ह. हम येक यु म वजय पाव. (८) नूनं सा ते त वरं ज र े हीय द द णा मघोनी. श ा तोतृ यो मा त ध भगो नो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (९) हे इं ! तु हारी जो धनयु द णा तु तक ा क अ भलाषा पूण करती है, वह हम ा त हो. हे सेवनीय इं ! हम तोता को छोड़कर वह द णा अ य कसी को मत दे ना. हम उ म पु -पौ ा द ा त करके इस य म तु हारी ब त तु त करगे. (९)
सू —१९
दे वता—इं
अपा य या धसो मदाय मनी षणः सुवान य यसः. य म ः द व वावृधान ओको दधे य त नरः.. (१) इं अपने आनंद के लए सोमरस नचोड़ने वाले मेधावी यजमान का अ भ ण कर. इस सोम पी ाचीन अ म इं बढ़ते ए नवास करते ह. इं क तु त के इ छु क ऋ वज् भी इसी म नवास करते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ य म दानो म वो व ह तोऽ ह म ो अण वृतं व वृ त्. य यो न वसरा य छा यां स च नद नां च म त.. (२) इस मदकारक सोमरस के नशे म म न होकर इं ने अपने हाथ म व उठाया एवं जल को रोकने वाले अ ह नामक असुर को छ भ कर दया. उस समय जलरा श सागर क ओर इस कार तेजी से जा रही थी, जस कार यासे प ी तालाब क ओर जाते ह. (२) स मा हन इ ो अण अपां ैरयद हहा छा समु म्. अजनय सूय वदद्गा अ ु ना ां वयुना न साधत्.. (३) उन पूजनीय एवं अ हनाशक इं ने जल वाह को सागर क ओर े रत कया. उ ह ने सूय को उ प करके गाय को खोजा तथा अपने तेज से दवस को का शत बनाया. (३) सो अ ती न मनवे पु णी ो दाश ाशुषे ह त वृ म्. स ो यो नृ यो अतसा यो भू प पृधाने यः सूय य सातौ.. (४) इं ने ह दे ने वाले यजमान को असं य उ म धन दया तथा वृ नामक असुर को मार डाला. सूय को ा त करने के लए जब तोता म पर पर पधा ई तो इं ने उसका कारण बनकर सबको सहारा दया. (४) स सु वत इ ः सूयमा दे वो रणङ् म याय तवान्. आ य य गुहदव म मै भरदं शं नैतशो दश यन्.. (५) तु त करने पर इं ने सोम नचोड़ने वाले एतश नामक के लए सूय को का शत कया था. जस कार पता अपना भाग पु को दे ता है, उसी कार एतश ने इं को गु त एवं अमू य सोम पी धन दया था. (५) स र धय स दवाः सारथये शु णमशुषं कुयवं कु साय. दवोदासाय नव त च नवे ः पुरो ैर छ बर य.. (६) तेज वी इं ने अपने सार थ कु स के क याण के लए शु ण, अशुष और कुयव को वश म कया था तथा दवोदास का प लेकर शंबर असुर के न यानवे नगर को तोड़ा था. (६) एवा त इ ोचथमहेम व या न मना वाजय तः. अ याम त सा तमाशुषाणा ननमो वधरदे व य पीयोः.. (७) हे इं ! हम तु ह श शाली बनाकर अ ा त क इ छा से तु हारी तु त करते ह. हम तु ह ा त करके तु हारी म ता पाव. तुम दे व- वरोधी पीयु असुर के नाश के लए व चलाओ. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवा ते गृ समदाः शूर म माव यवो न वयुना न त ुः. य त इ ते नवीय इषमूज सु त सु नम युः.. (८) हे शूर इं ! गृ समद ऋ ष उसी कार तु हारी तु त करता है, जस कार जाने का इ छु क प थक रा ता साफ करता है. हे नवीनतम इं ! तु हारी तु त के अ भलाषी हम अ , बल, सुख एवं उ म नवास थान ा त कर. (८) नूनं सा ते त वरं ज र े हीय द द णा मघोनी. श ा तोतृ यो मा त ध भगो नो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (९) हे इं ! तु हारी जो धनयु द णा तु तक ा क कामना पूरी करती है, वह द णा हम ा त हो. हे भजनीय इं ! हम छोड़कर वह द णा कसी अ य को मत दे ना. हम उ म पु -चो ा द ा त करके इस य म तु हारी पया त तु त करगे. (९)
सू —२०
दे वता—इं
वयं ते वय इ व षु णः भरामहे वाजयुन रथम्. वप यवो द यतो मनीषा सु न मय त वावतो नॄन्.. (१) हे इं ! जस कार अ का इ छु क गाड़ी बनाता है, उसी कार हम तु हारे लए सोमरस पया त मा ा म तैयार करते ह. तुम हम भली कार जानते हो. हम अपनी तु तय से तु ह द यमान करते ह एवं सुख क याचना करते ह. (१) वं न इ वा भ ती वायतो अ भ पा स जनान्. व मनो दाशुषो व ते थाधीर भ यो न त वा.. (२) हे इं ! हमारा पालन एवं र ण करो. जो लोग तु हारे त ा रखते ह, तुम उ ह श ु से बचाते हो. जो ह दे कर तु हारी सेवा करता है, उसके क याण के लए तुम सब कुछ करते हो. (२) स नो युवे ो जो ः सखा शवो नराम तु पाता. यः शंस तं यः शशमानमूती पच तं च तुव तं च णेषत्.. (३) युवा, आ ान करने यो य, म तु य एवं सुखकारक इं हम य क ा क र ा कर. इं तु त बोलने वाले, ह पकाने वाले, तु तरचना करने वाले एवं य या को पूण करने वाले य क र ा करके इनका य पूण करते ह. (३) तमु तुष इ ं तं गृणीषे य म पुरा वावृधुः शाश . स व वः कामं पीपर दयानो यतो नूतन यायोः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म इं क तु त एवं शंसा करता ं. पूवकाल म उनके तोता ने वृ ा त क एवं अपने श ु का नाश कया. य द नया यजमान इं के समीप जाकर ाथना करता है तो वे उसक धन क इ छा पूरी करते ह. (४) सो अ रसामुचथा जुजु वा ा तूतो द ो गातु म णन्. मु ण ुषसः सूयण तवान य च छ थ पू ा ण.. (५) अं गरागो ीय ऋ षय के मं से स होकर इं ने उ ह वह माग दखाया, जससे वे प णय ारा छपाई ई गाएं ला सक. इं ने उनक तु त सफल क . तोता क तु त सुनकर इं ने सूय ारा उषा का हरण कया एवं अ के पुराने नगर को न कर डाला. (५) स ह ुत इ ो नाम दे व ऊ व भुव मनुषे द मतमः. अव यमशसान य सा ा छरो भर ास य वधावान्.. (६) काशमान, क तशाली एवं परम सुंदर इं अपने सेवक क कामना पूण करने के लए सदा तैयार रहते ह. श ुनाशक एवं श शाली इं ने संसार के अ न कारी दास का म तक काटकर नीचे डाल दया. (६) स वृ हे ः कृ णयोनीः पुर दरो दासीरैरय . अजनय मनवे ामप स ा शंसं यजमान य तूतोत्.. (७) वृ हंता एवं पुरंदर इं ने नीच जा त वाले दास क सेना को न कया था. मनु के लए धरती और जल क रचना करने वाले इं यजमान क महती अ भलाषा को पूण कर. (७) त मै तव य१ मनु दा य स े ाय दे वे भरणसातौ. त यद य व ं बा ोधुह वी द यू पुर आयसी न तारीत्.. (८) दानशील तोता ने जल पाने क इ छा से इं के लए सदा श बढ़ाने वाला अ दान कया है. जब इं के हाथ म व रखा गया, तब उ ह ने श ु क लौह न मत नगरी को पूरी तरह न कर दया. (८) नूनं सा ते त वरं ज र े हीय द द णा मघोनी. श ा तेतृ यो मा त ध भगो नो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (९) हे इं ! तु हारी जो धनयु द णा तु तक ा क अ भलाषा पूरी करती है, वह हम ा त हो. हे भजनीय इं ! हमारे अ त र वह कसी अ य को मत दे ना. हम उ म पु -पौ ा त करके इस य म तु हारी तु त करगे. (९)
सू —२१
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व जते धन जते व जते स ा जते नृ जत उवरा जते. अ जते गो जते अ जते भरे ाय सोमं यजताय हयतम्.. (१) हे अ वयुजनो! सवजयी, धनजयी, वग वजयी, मनु य वजयी, उपजाऊ भू म को जोतने वाले, अ जयी, गोजयी, जल वजयी एवं य के यो य इं के न म अ भल षत सोमरस लाओ. (१) अ भभुवेऽ भभ ाय व वतेऽषाळ् हाय सहमानाय वेधसे. तु व ये व ये रीतवे स ासाहे नम इ ाय वोचत.. (२) सबको हराने वाले, सबका अंग-भंग करने वाले, भो ा, अजेय, सब कुछ सहन करने वाले, सबके नमाता, पूण ीवा वाले, सबको वहन करने वाले, श ु के लए तर एवं सदा श ुपराभवकारी इं के लए नमः श द का उ चारण करते ए तु तयां बोलो. (२) स ासाहो जनभ ो जंनसह यवनो यु मो अनु जोषमु तः. वृतंचयः स र व वा रत इ य वोचं कृता न वीया.. (३) ब त को हराने वाले, मनु य ारा सेवनीय, बलवान् लोग को जीतने वाले, श ु थान युत करने वाले यो ा, सोम से स चत होने के कारण स , श ुनाशक, श ु परा जत करने वाले एवं जापालनक ा इं के वीर कम को बार-बार कहो. (३)
को को
अनानुदो वृषभो दोधतो वधो ग भीर ऋ वो असम का ः. र चोदः थनो वी ळत पृथु र ः सुय उषसः वजनत्.. (४) अ तीय दानदाता, अ भलाषा पूण करने वाले, हसक के वधक ा, गंभीर, दशनीय, सवा धक कमठ, समृ जन के ेरक, श ु को काटने वाले, ढ़ शरीर वाले, व ा त, तेजयु एवं शोभनकम करने वाले इं ने उषा से सूय को उ प कया. (४) य ेन गातुम तुरो व व रे धयो ह वाना उ शजो मनी षणः. अ भ वरा नषदा गा अव यव इ े ह वाना वणा याशत.. (५) इं क तु तयां करने वाले एवं इं के अ भलाषी मनीषी अं गरागो य ने जल को ेरणा दे ने वाले इं से य के ारा चुराई ई गाय का माग जाना. इसके प ात् इं के ारा र ा ा त करने के इ छु क तोता ने तो एवं य ारा गो प धन ा त कया. (५) इ े ा न वणा न धे ह च द य सुभग वम मे. पोषं रयीणाम र तनूनां वा ानं वाचः सु दन वम ाम्.. (६) वृ
हे इं ! हम े धन, कुशलता क या त एवं सौभा य दान करो. तुम हमारे धन क एवं शरीर क पु करके वचन को मधुर एवं दवस को शोभन बनाओ. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —२२
दे वता—इं
क केषु म हषो यवा शरं तु वशु म तृप सोमम पब णुना सुतं यथावशत्. स ममाद म ह कम कतवे महामु ं सैनं स े वो दे वं स य म ं स य इ ः.. (१) पू य, परम श शाली एवं सबको तृ त करने वाले इं ने पूवकाल म क ई कामना के अनुसार जौ के स ु से मला आ सोमरस व णु के साथ पया. महान् सोमरस ने इं को महान् कम करने क ेरणा द . स य एवं द त सोमरस स चे एवं द त इं को ा त करे. (१) अध वषीमाँ अ योजसा व युधाभवदा रोदसी अपृणद य म मना वावृधे. अध ा यं जठरे ेम र यत सैनं स े वो दे वं स य म ं स य इ तुः.. (२) इं ने अपने बल से क व असुर को यु के ारा परा जत एवं धरती-आकाश को चार ओर से पूण कया. इं पए ए सोमरस के बल से वृ ा त करते ह. इं ने आधा सोम अपने पेट म रख लया और आधा अ य दे व म बांट दया. स य एवं द त सोमरस स चे तथा द त इं को ा त करे. (२) साकं जातः तुना साकमोजसा वव थ साकं वृ ो वीयः सास हमृधो वचष णः. दाता राधः तुवते का यं वसु सैनं स े वो दे वं स य म ं स य इ ः.. (३) हे इं ! तुम य के साथ उ प ए हो एवं अपनी श से व को वहन करना चाहते हो. तुमने वीर कम से वृ ा त करके हसक को हराया एवं भले-बुरे का वचार कया. तुम तु तक ा को मनोवां छत धन दो. स य एवं द त सोमरस स चे एवं तेज वी इं को ा त करे. (३) तव य य नृतोऽप इ थमं पू द व वा यं कृतम्. य े व य शवसा ा रणा असुं रण पः. भुव म यादे वमोजसा वदा ज शत तु वदा दषम्.. (४) हे सबको नचाने वाले इं ! तु हारे ारा ाचीन समय म कया गया मानव हतसाधक कम वग म स आ, तुमने अपने बल से वृ असुर के ाण हरण करके उसके ारा रोका आ जल वा हत कया. इं ने अंधकार प से सम त व को ा त करने वाले असुर को अपने बल से न कया. वे शत तु इं अ एवं ह ा त कर. (४)
सू —२३
दे वता— बृह प त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ण पत
एवं
गणानां वा गणप त हवामहे क व कवीनामुपम व तमम्. ये राजं णां ण पत आ नः शृ व ू त भः सीद सादनम्.. (१) हे ण प त! तुम दे व-समूह म गणप त, क वय म अ तम क व, शंसनीय लोग म सव च एवं मं के वामी हो. हम तु हारा आ ान करते ह. तुम हमारी तु तयां सुनते ए य शाला म बैठो और हमारी र ा करो. (१) दे वा े असुय चेतसो बृह पते य यं भागमानशुः. उ ाइव सूय यो तषा महो व ेषा म ज नता णाम स.. (२) हे असुरनाशक एवं उ म ानसंप बृह प त! तु हारा य संबंधी भाग दे व ने पाया है. तेज के कारण पू य सूय जस कार करण उ प करता है, उसी कार तुम मं के ज मदाता हो. (२) आ वबा या प रराप तमां स च यो त म तं रथमृत य त स. बृह पते भीमम म द भनं र ोहणं गो भदं व वदम्.. (३) हे बृह प त! तुम चार ओर के नदक और अंधकार को समा त करके काशयु , य ा त कराने वाले, भयानक श ु का नाश करने वाले, रा स के हंता, मेघ को भ करने वाले एवं वग ा त कराने वाले रथ म बैठते हो. (३) सुनी त भनय स ायसे जनं य तु यं दाशा तमंहो अ वत्. ष तपनो म युमीर स बृह पते म ह त े म ह वनम्.. (४) हे बृह प त! जो तु ह ह अ दे ता है, उसे तुम यायपूण माग से ले जाकर पाप से बचाते हो. तु हारा यही मह व है क तुम य का वरोध करने वाले को क दे ते एवं श ु क हसा करते हो. (४) न तमंहो न रतं कुत न नारातय त त न या वनः. व ा इद माद् वरसो व बाधसे यं सुगोपा र स ण पते.. (५) हे ण प त! तुम जसक र ा करते हो, उसे कोई पाप या ःख बाधा नह प ंचा सकता. हसक एवं ठग भी उसे ःखी नह कर सकते. उसे न करने वाली सभी सेना को तुम रोकते हो. (५) वं नो गोपाः प थकृ च ण तव ताय म त भजरामहे. बृह पते यो नो अ भ रो दधे वां तं ममतु छु ना हर वती.. (६) हे बृह प त! तुम हमारे र क, स चा माग बताने वाले एवं कुशल हो. हम तु हारा य पूण करने के लए तो ारा तु हारी ाथना करते ह. जो हमारे त कु टलता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रखता है, उसक वेगशाली बु
उसका ाणनाश करे. (६)
उत वा यो नो मचयादनागसोऽरातीवा मतः सानुको वृकः. बृह पते अप तं वतया पथः सुगं नो अ यै दे ववीतये कृ ध.. (७) हे बृह प त! जो उ त एवं धन छ नने वाला हमारे सामने आकर हम नद ष क हसा करता है, उसे उ म माग से हटा दो तथा दे वय के लए हमारा माग सरल बनाओ. (७) ातारं वा तनूनां हवामहेऽव पतर धव ारम मयुम्. बृह पते दे व नदो न बहय मा रेवा उ रं सु नमु शन्.. (८) हे बृह प त! तुम सबको उप व से बचाने वाले एवं हमारे पु -पौ ा द का पालन करने वाले हो. तुम हमारे त प पातपूण वचन बोलकर स ता करते हो. हम तु ह बुलाते ह. तुम दे व नदक का वनाश करो. बु के श ु उ म सुख ा त कर. (८) वया वयं सुवृधा ण पते पाहा वसु मनु या दद म ह. या नो रे त ळतो या अरातयोऽ भ स त ज भया ता अन सः.. (९) हे ण प त! तु हारे ारा वृ ा त करके हम अ य मनु य से चाहने यो य धन ा त कर. जो श ु हमारे समीप या र रहकर हमारा पराभव करते ह, उन दानहीन य का नाश करो. (९) वया वयमु मं धीमहे वयो बृह पते प णा स नना युजा. मा नो ःशंसो अ भ द सुरीशत सुशंसा म त भ ता र षम ह.. (१०) हे कामपूरक एवं शु बृह प त! तु हारी सहायता से हम उ म अ ा त करगे. हम हराने क इ छा रखने वाले हमारे वामी न बन. हम उ म तु तयां करते ए पु य लाभ कर एवं सबसे उ कृ बन. (१०) अनानुदो वृषभो ज मराहवं न ता श ुं पृतनासु सास हः. अ स स य ऋणया ण पत उ य च मता वीळु ह षणः.. (११) हे
ण प त! तुम अ तीय दाता, मन क इ छा पूण करने वाले, यु म जाकर श ु का वनाश करने वाले एवं यु भू म म श ु को हराने वाले हो. तुम स चे परा मी, ऋण चुकाने वाले तथा मतवाले उ लोग के दमनक ा हो. (११) अदे वेन मनसा यो रष य त शासामु ो म यमानो जघांस त. बृह पते मा ण य नो वधो न कम म युं रेव य शधतः.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे बृह प त! दे व को न मानने वाला जो मन से हमारी हसा करता है एवं असुर का नाश करने वाले हम लोग को मारना चाहता है, उसका आयुध हम छू भी न सके. हम उस श शाली एवं श ु का ोध समा त कर द. (१२) भरेषु ह ो नमसोपस ो ग ता वाजेषु स नता धनंधनम्. व ा इदय अ भ द वो३ मृधो बृह प त व ववहा रथाँ इव.. (१३) बृह प त यु काल म आ ान करने एवं नम कार स हत पूजा करने यो य ह. वे सं ाम म भ क सहायता के लए जाते तथा सब कार का धन दे ते ह. जस कार यु म श ु के रथ को न कर दया जाता है, उसी कार बृह प त वजय क इ छु क श ु सेना को न कर दे ते ह. (१३) ते ज या तपनी र स तप ये वा नदे द धरे वीयम्. आ व त कृ व यदस उ यं१ बृह पते व प ररापो अदय.. (१४) हे बृह प त! जन रा स ने यु म तु हारा परा म दे खकर भी तु हारी नदा क है, अ यंत ती एवं संतापका रणी तलवार ारा उन रा स को संत त करो, अपने ाचीन शंसा यो य बल को कट करो तथा नदक का नाश करो. (१४) बृह पते अ त यदय अहाद् ुम भा त तुम जनेषु. य दय छवस ऋत जात तद मासु वणं धे ह च म्.. (१५) हे य से उ प बृह प त! हम े य क ा म सुशो भत तेज तथा द तयु
लोग ारा पू य, द त एवं व च धन दान करो. (१५)
ान से यु ,
मा नः तेने यो ये अ भ ह पदे नरा मणो रपवोऽ ष े ु जागृधुः. आ दे वानामोहते व यो द बृह पते न परः सा नो व ः.. (१६) हे बृह प त! हम चोर , ोह करके स होने वाल , श ु दे व तु त एवं य वरो धय के हाथ म मत स पना. (१६)
, पराए धन के इ छु क एवं
व े यो ह वा भुवने य प र व ाजन सा नः सा नः क वः. स ऋण च णया ण प त हो ह ता मह ऋत य धत र.. (१७) हे बृह प त! व ा ने तु ह सम त संसार से उ म बनाया है. तुम सम त साममं के ाता हो. बृह प त य आरंभ करने वाले यजमान का सम त ऋण वीकार करके उसे उतारते ह. वे य के व ोही को न कर दे ते ह. (१७) तव ये जहीत पवतो गवां गो मुदसृजो यद रः. इ े ण युजा तमसा परीवृतं बृह पते नरपामौ जो आणवम्.. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अं गरावंशो प बृह प त! गाय को छपाने वाला पवत तु हारे क याण के लए खुल गया और गाएं बाहर आ ग . उस समय तुमने इं क सहायता से वृ ारा रोक गई जलधारा को नीचे क ओर बहाया था. (१८) ण पते वम य य ता सू य बो ध तनयं च ज व. व ं त ं यदव त दे वा बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१९) हे संसार के नयामक ण प त! इस सू को जानो एवं हमारी संतान क र ा करो. दे वगण जसक र ा करते ह, वह सभी क याण ा त करता है. हम शोभन पु एवं पौ ा त करके इस य म ब त सी तु तयां बोलगे. (१९)
सू —२४
दे वता—बृ ण प त
सेमाम व भृ त य ई शषेऽया वधेम नवया महा गरा. यथा नो मीढ् वा तवते सखा तव बृह पते सीषधः सोत नो म तम्.. (१) हे ण प त! तुम इस व के वामी हो. तुम हमारी तु त को भली कार जानो. इस नवीन एवं वशाल तु त के ारा हम तु हारी सेवा करते ह. हम तु हारे म ह, इस लए हम मनोवां छत फल दान करो तथा हमारी तु त को सफल करो. (१) यो न वा यनम योजसोताददम युना श बरा ण व. ा यावयद युता ण प तरा चा वश सुम तं व पवतम्.. (२) बृह प त ने अपनी श ारा दमनीय रा स को वश म कया, ोध करके शंबर असुर का नाश कया, थर जल को नीचे क ओर गराया एवं गो पी धन से पूण पवत म वेश कया. (२) तद्दे वानां दे वतमाय क वम न ळ् हा द त वी ळता. उद्गा आजद भनद् णा वलमगूह मो च यत् वः.. (३) इं ा द दे व म े बृह प त के कम से ढ़ पवत श थल ए थे एवं थर वृ टू ट गए थे. बृह प त ने गाय का उ ार कया, मं पी श ारा बल असुर को समा त कया एवं अंधकार को समा त करके सूय को का शत कया. (३) अ मा यमवतं ण प तमधुधारम भ यमोजसातृणत्. तमेव व े प परे व शो ब साकं स सचु समु णम्.. (४) बृह प त ने प थर के समान ढ़ मुख वाले एवं झुके ए मेघ को श ारा न कया. सूय करण ने उसका जल पआ. उ ह ने बादल के साथ ही वषा ारा अ धक मा ा म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सचन कया. (४) सना ता का च वना भवी वा मा ः शर रो वर त वः. अयत ता चरतो अ यद य द ा चकार वयुना ण प तः.. (५) हे ऋ वजो! तु हारे क याण के लए ही बृह प त ने न य एवं व च ान से तमान और तवष होने वाली जलवषा का ार भ कया था. बृह प त ने इस ान को मं का वषय बनाया, जससे धरती और आकाश एक- सरे को स करते रह. (५) अ भन तो अ भ ये तमानशु न ध पणीनां परमं गुहा हतम्. ते व ांसः तच यानृता पुनयत उ आय त द युरा वशम्.. (६) अं गरागो ीय व ान् ऋ षय ने चार ओर घूमते ए प णय ारा गुफा म छपाए ए गो पी धन को ा त कया. वे असुर क माया को दे खकर जस थान से नकले थे, वह वेश कर गए. (६) ऋतावानः तच यानृता पुनरात आ त थुः कवयो मह पथः. ते बा यां ध मतम नम म न न कः षो अ यरणो ज ह तम्.. (७) स यवाद एवं ांतदश अं गरागो ीय ऋ ष रा स क माया को दे खकर वहां आने क इ छा से फर धान माग पर प ंच गए. उ ह ने हाथ ारा व लत अ न को पवत पर फका. इससे पहले वे अ न वहां नह थे. (७) ऋत येन ेण ण प तय व तद ो त ध दना. त य सा वी रषवो या भर य त नृच सो शये कणयोनयः.. (८) ण प त स य प या वाले धनुष से जो चाहते ह, वही पा लेते ह. वे कान से उ प , दशनीय एवं काय साधन म कुशल बाण को फकते ह. (८) स संनयः स वनयः पुरो हतः स सु ु तः स यु ध ण प तः. चा मो य ाजं भरते मती धना द सूय तप त त यतुवृथा.. (९) दे व ारा आगे था पत बृह प त अलग-अलग पदाथ को मलाते और मले ए को भ - भ करते ह एवं यु म कट होते ह. वे सव ा जस समय अ एवं धन धारण करते ह, उस समय सूय अनायास ही चमक उठते ह. (९) वभु भु थमं मेहनावतो बृह पतेः सु वद ा ण रा या. इमा साता न वे य य वा जनो येन जना उभये भु ते वशः.. (१०) वषा करने वाले बृह प त का धन
ा त, ौढ़, मु य एवं सुलभ है. यह धन सुंदर एवं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ वामी बृह प त ने दान कया है. तोता एवं यजमान दोन होकर उस धन को भोगते ह. (१०)
कार के मनु य यानम न
योऽवरे वृजने व था वभुमहामु र वः शवसा वव थ. स दे वो दे वा त प थे पृथु व े ता प रभू ण प तः.. (११) सब कार ा त एवं तु तयो य बृह प त अ त बलवान् एवं नबल दोन कार के तोता क र ा अपनी श से करते ह. वे सम त दे व के त न ध प म परम स ह एवं सबके वामी ह. (११) व ं स यं मघवाना युवो रदाप न मन त तं वाम्. अ छे ा ण पती ह वन ऽ ं युजेव वा जना जगातम्.. (१२) हे धन वामी इं एवं बृह प त! तु हारी सभी तु तयां स य ह. तु हारे त को जल न नह कर सकता, रथ म जुते ए घोड़े जस कार घास क ओर दौड़ते ह, उसी कार तुम हमारे ह व के स मुख आओ. (१२) उता श ा अनु शृ व त व यः सभेयो व ो भरते मती धना. वीळु े षा अनु वश ऋणमाद दः स ह वाजी स मथे ण प तः.. (१३) ण प त के शी गामी घोड़े हमारे तो को सुनते ह. स य एवं बु मान् अ वयु सुंदर तो ारा ह दान करते ह. वह बल रा स से े ष करने वाले, अपनी इ छा से ऋण वीकार करने एवं अ के वामी ह. वे यु म हमारा ह वीकार कर. (१३) ण पतेरभव थावशं स यो म युम ह कमा क र यतः. यो गा उदाज स दवे व चाभज महीव री तः शवसासर पृथक्.. (१४) महान् कम करने वाले ण प त का मं उनक इ छा के अनुसार स य होता है. उ ह ने गाय को बाहर करके आकाश का वभाग कया है. जस कार न दय का जल व भ धारा म नीचे क ओर बहता है, उसी कार गाएं अपनी श के अनुसार व भ दे व के घर ग . (१४) ण पते सुयम य व हा रायः याम र यो३ वय वतः. वीरेषु वीराँ उप पृङ् ध न वं यद शानो णा वे ष मे हवम्.. (१५) हे ण प त! हम ऐसे धन के वामी बन जो सदा नयं त एवं अ यु हो. तुम सबके ई र हो, इस लए हमारे वीर पु को पौ यु करो. तुम ह व एवं अ के साथ-साथ हमारी तु त को जानो. (१५) ण पते वम य य ता सू
य बो ध तनयं च ज व.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ंत
ं यदव त दे वा बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१६)
हे ण प त! तुम इस व का नयं ण करने वाले हो. तुम इस सू को जानो एवं हमारी संतान को स करो. दे वगण जसक र ा करते ह, वह सभी क याण ा त करता है. हम शोभन पु एवं पौ ा त करके इस य म ब त सी तु तयां बोलगे. (१६)
सू —२५
दे वता—
ण पत
इ धानो अ नं वनव नु यतः कृत ा शूशुव ातह इत्. जातेन जातम त स ससृते यंयं युजं कृणुते ण प तः.. (१) य अ न को व लत करता आ यजमान हसक श ु का नाश करे. तो पढ़ने वाले एवं ह दे ने वाले यजमान वृ ा त कर. ण प त जस- जस यजमान को म के प म वीकार कर लेते ह, वह अपने पु के पु अथात् पौ से भी अ धक दन तक जीता है. (१) वीरे भव रा वनव नु यतो गोभी र य प थ ोध त मना. तोकं च त य तनयं च वधते यंयं युजं कृणुते ण प तः.. (२) यजमान अपने वीर पु क सहायता से हसक श ु क हसा करे. वह गाय प धन का व तार करता है एवं वयं ही सब कुछ समझता है. ण प त जस- जस यजमान को म के प म वीकार कर लेते ह, वह अपने पु तथा पौ से भी अ धक दन तक जीता है. (२) स धुन ोदः शमीवाँ ऋघायतो वृषेव व र भ व ोजसा. अ ने रव स तनाह वतवे यंयं युजं कृणुते ण प तः.. (३) बृह प त क सेवा करने वाला यजमान कनार को तोड़ने वाली स रता एवं साधारण बैल को हराने वाले सांड़ के समान श ु को अपनी श से परा जत करता है. ण प त जस- जस यजमान को म कहकर वीकार कर लेते ह, वह व लत अ न के समान रोका नह जा सकता. (३) त मा अष त द ा अस तः स स व भः थमो गोषु ग छ त. अ नभृ त व षह योजसा यंयं युजं कृणुते ण प तः.. (४) वग य जल उसके पास न कने वाली स रता के समान आता है, वह सभी सेवक से पहले गाय ा त करता है एवं अपने अकरणीय बल से श ु को न करता है, जसे ण प त म कहकर वीकार कर लेते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त मा इ े धुनय त स धवोऽ छ ा शम द धरे पु ण. दे वानां सु े सुभगः स एधते यंयं युजं कृणुते ण प तः.. (५) उसी क ओर सभी न दयां बहती ह, वह अ व छ प से सम त सुख ा त करता है एवं सौभा यशाली दे व ारा द सुख पाकर बढ़ता है. जसे ण प त म कहकर वीकार कर लेते ह. (५)
सू —२६
दे वता—
ण पत
ऋजु र छं सो वनव नु यतो दे वय ददे वय तम यसत्. सु ावी र नव पृ सु रं य वेदय यो व भजा त भोजनम्.. (१) ण प त का सरल च तोता के श ु का वनाश करे. दे व का वह भ दे व वरो धय को परा जत करे. ण प त को तृ त करने वाला या क यु म अदमनीय श ु का नाश करके य वरो धय के धन का उपभोग करे. (१) यज व वीर व ह मनायतो भ ं मनः कृणु व वृ तूय. ह व कृणु व सुभगो यथास स ण पतेरव आ वृणीमहे.. (२) हे वीर! ण प त क तु त करो. अ भमानी श ु के त यु के लए थान करो एवं श ुनाशक सं ाम म अपना मन ढ़ करो. ण प त के न म ह तैयार करो. इससे तु ह सौभा य मलेगा. हम उनसे र ा क याचना करते ह. (२) स इ जनेन स वशा स ज मना स पु ैवाजं भरते धना नृ भः. दे वानां यः पतरमा ववास त ामना ह वषा ण प तम्.. (३) जो ालु यजमान दे व के पालक ण प त क सेवा ह ारा करता है, वह अपने आ मीयजन , पु एवं प रचारक स हत अ और धन ा त करता है. (३) यो अ मै इ ैघृतव र वध तं ाचा नय त ण प तः. उ यतीमंहसो र ती रष ३हो द मा उ च र तः.. (४) जो यजमान घृतयु से ले जाते ह, पाप, श ु
सू —२७
ह से ण प त क सेवा करता है, उसे वे ाचीन सरल माग तथा द र ता से र ा करते ह और अद्भुत उपकार करते ह. (४)
दे वता—आ द यगण
इमा गर आ द ये यो घृत नूः सना ाज यो जु ा जुहो म. शृणोतु म ो अयमा भगो न तु वजातो व णो द ो अंशः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म सुंदर आ द य के लए घृत टपकाने वाले ये तु त पी वचन सदा तुत करता ं. म , अयमा, भग, अनेक दे श म उद्भूत व ण, द एवं अंश मेरा वचन सुन. (१) इमं तोमं स तवो मे अ म ो अयमा व णो जुष त. आ द यासः शुचयो धारपूता अवृ जना अनव ा अ र ाः.. (२) द यमान्, प व , सब पर अनु ह करने वाले, अ नदनीय, सर ारा अ ह सत एवं समान काय करने वाले म , अयमा एवं व ण नामक अ द तपु आज मेरे इस तो को सुन. (२) त आ द यास उरवो गभीरा अद धासो द स तो भूय ाः. अ तः प य त वृ जनोत साधु सव राज यः परमा चद त.. (३) महान्, गंभीर, श ु ारा अ ह सत, श ुनाश के अ भलाषी तथा अ मत तेज वी अ द तपु ा णय के अंतःकरण म रहने के कारण उनके पापपु य को दे खते ह. काशमान आ द य के लए र क व तु भी पास ही है. (३) धारय त आ द यासो जग था दे वा व य भुवन य गोपाः. द घा धयो र माणा असुयमृतावान यमाना ऋणा न.. (४) थावर एवं जंगम को धारण करते ए आ द य दे व संपूण संसार क र ा करते ह. वशाल य के वामी वे आ द य ाण के हेतु जल क र ा करते ह. वे स ययु एवं तोता को ऋणर हत बनाने वाले ह. (४) व ामा द या अवसो वो अ य यदयम भय आ च मयोभु. यु माकं म ाव णा णीतौ प र ेव रता न वृ याम्.. (५) हे आ द यगण! हम तु हारी र ा ा त कर. तु हारा सहारा भय उप थत होने पर सुख दे ता है. हे अयमा, म और व ण! जस कार रा ता चलने वाले गड् ढ को छोड़ दे ते ह, उसी कार तु हारे अनुगामी बनकर हम पाप का याग कर द. (५) सुगो ह वो अयम म प था अनृ रो व ण साधुर त. तेना द या अ ध वोचता नो य छता नो प रह तु शम.. (६) हे अयमा, म एवं व ण! तु हारा पथ सुगम, न कंटक एवं सुंदर है. हे आ द यगण! हम उसी माग से ले चलो, मधुर वचन बोलो तथा हम अ वनाशी सुख दान करो. (६) पपतु नो अ दती राजपु ा त े षां ययमा सुगे भः. बृह म य व ण य शम प याम पु वीरा अ र ाः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म आ द सुंदर पु क माता अ द त हम श ु को पराभव करने वाले माग से ले चल. हम अनेक वीर पु से यु एवं अ य ारा अ ह सत होकर म तथा व ण का सुख ा त कर. (७) त ो भूमीधारयन् त ू ी ण ता वदथे अ तरेषाम्. ऋतेना द या म ह वो म ह वं तदयम व ण म चा .. (८) अ द तपु धरती, आकाश, वग तीन लोक एवं अ न, वायु, सूय तीन तेज को धारण करते ह तथा इनके य म तीन त थर ह. हे आ द यो! य से तु हारी म हमा बढ़ है. हे अयमा, व ण एवं म ! तु हारा मह व सुंदर है. (८) ी रोचना द ा धारय त हर ययाः शुचयो धारपूताः. अ व जो अ न मषा अद धा उ शंसा ऋजवे म याय.. (९) वणाभूषण धारण करने वाले, द तयु , प व , न ार हत, नमेषहीन, असुर ारा अ ह सत एवं सब लोग ारा तु त यो य अ द तपु सरल मनु य के लए अ न, वायु एवं सूय तीन तेज धारण करते ह. (९) वं व ेषां व णा स राजा ये च दे वा असुर ये च मताः. शतं नो रा व शरदो वच ेऽ यामायूं ष सु धता न पूवा.. (१०) हे व ण! चाहे असुर ह , दे व ह अथवा मनु य ह , तुम सबके राजा हो. हम सौ वष तक दे खने क श दो. हम पूवज ारा भोगी ई अव था को ा त कर. (१०) न द णा व च कते न स ा न ाचीनमा द या नोत प ा. पा या च सवो धीया च ु मानीतो अभयं यो तर याम्.. (११) हे वासदाता अ द तपु ो! हम दायां, बायां, सामने, पीछे कुछ भी नह जानते. मुझ अप रप व ान एवं धैयर हत को य द तुम उ म माग से ले जाओगे तो म भयर हत यो त पाऊंगा. (११) यो राज य ऋत न यो ददाश यं वधय त पु य न याः. स रेवा या त थमो रथेन वसुदावा वदथेषु श तः.. (१२) जो यजमान सुशो भत एवं य के नेता आ द य को ह दे ता है तथा पोषक आ द य जसको न य बढ़ाते ह, वही धन का वामी, स , धन दान करने वाला एवं सब लोग क शंसा करके रथ के ारा य थल म आता है. (१२) शु चरपः सूयवसा अद ध उप े त वृ वयाः सुवीरः. न क ं न य ततो न रा आ द यानां भव त णीतौ.. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो यजमान आ द य के माग का अनुसरण करता है, वह शु च, श ु ारा अ ह सत, अ धक अ का वामी, शोभन पु वाला एवं सुंदर फसल का मा लक बनकर जल के समीप नवास करता है. समीप या र रहने वाला कोई भी श ु उसक हसा नह कर सकता. (१३) अ दते म व णोत मृळ य ो वयं चकृमा क चदागः. उव यामभयं यो त र मा नो द घा अ भ नश त म ाः.. (१४) हे अ द त, म एवं व ण! य द हम तु हारे त कोई अपराध कर तो उससे हमारी र ा करना. हे इं ! हम व तृत एवं भयर हत यो त ा त कर. अंधेरी रात हम ा त न करे. (१४) उभे अ मै पीपयतः समीची दवो वृ सुभगो नाम पु यन्. उभा यावाजय या त पृ सूभावध भवतः साधू अ मै.. (१५) जो यजमान अ द तपु के माग पर चलता है, उसक वृ धरती-आकाश दोन मलकर करते ह. वह भा यशाली आकाश का जल ा त करके वृ करता है एवं यु म श ु को हरा कर अपने और उनके दोन नवास थान ा त करता है. संसार के चर और अचर दोन भाग उसके लए मंगलकारक होते ह. (१५) या वो माया अ भ हे यज ाः पाशा आ द या रपवे वचृ ाः. अ ीव ताँ अ त येषं रथेना र ा उरावा शम याम.. (१६) हे य यो य आ द यो! तुमने जो माया ोहकारी रा स के लए एवं जो पाश श ु के लए बनाए ह, हम उ ह अ ारोही के समान रथ से लांघ जाव. हम श ु ारा अ ह सत होकर महान् सुख ा त कर. (१६) माहं मघोनो व ण य य भू रदा न आ वदं शूनमापेः. मा रायो राज सुयमादव थां बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१७) हे व ण! म कसी धनी एवं अ धक दानी के स मुख अपनी द र ता क बात न क ं. हे द तमान् व ण! हम कभी भी आव यक धन क कमी न रहे. हम शोभन धन ा त करके इस य म ब त सी तु तयां करगे. (१७)
सू —२८
दे वता—व ण
इदं कवेरा द य य वराजो व ा न सा य य तु मह्ना. अ त यो म ो यजथाय दे वः सुक त भ े व ण य भूरेः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह ह ांतदश एवं वयं शो भत आ द य के लए है. वे अपने मह व से सभी ा णय को परा जत करते ह. तेज वी व ण यजमान को स करते ह. म व ण से अ धक क त क याचना करता ं. (१) तव ते सुभगासः याम वा यो व ण तु ु वांसः. उपायन उषसां गोमतीनाम नयो न जरमाणा अनु ून्.. (२) हे व ण! हम भली कार यान, तु हारी तु त एवं सेवा करते ए सौभा य ा त कर. जस कार करण वाली उषा के आने पर अ न व लत होती है, उसी कार हम त दन तु हारी तु त करते ए द तसंप ह . (२) तव याम पु वीर य शम ु शंस य व ण णेतः. यूयं नः पु ा अ दतेरद धा अ भ म वं यु याय दे वाः.. (३) हे व नायक, अनेक वीर से यु एवं ब त से लोग ारा तु य व ण! हम तु हारे गृह म नवास कर. हे श ु ारा अ ह सत अ द तपु ो! अपना म बनाते समय हमारे सभी अपराध को मा कर दे ना. (३) सीमा द यो असृज धता ऋतं स धवो व ण य य त. न ा य त न व मुच येते वयो न प तू रघुया प र मन्.. (४) व धारक एवं अ द तपु व ण ने जल बनाया है. उ ह के मह व से न दयां बहती ह. न दयां न कभी व ाम करती ह और न पीछे लोटती ह. ये शी गा मनी न दयां प य के समान वेग से धरती पर बहती ह. (४) व म थाय रशना मवाग ऋ याम ते व ण खामृत य. मा त तु छे द वयतो धयं मे मा मा ा शायपसः पुर ऋतोः.. (५) हे व ण! पाप ने मुझे र सी के समान बांध लया है. मुझे इससे छु ड़ाओ. हम तु हारी जलपूण नद को ा त कर. य कम करते समय मेरा काय के नह . य समा त से पहले मेरा शरीर कभी श थल न हो. (५) अपो सु य व ण भयसं म स ाळृ तावोऽनु मा गृभाय. दामेव व सा मुमु यंहो न ह वदारे न मष नेशे.. (६) हे व ण! भय को मेरे पास से हटाओ. हे शोभासंप एवं स ययु ! मुझ पर अनु ह करो. जस कार बंधे ए बछड़े को र सी से छु ड़ाते ह, उसी कार मुझे पाप से छु ड़ाओ. तुमसे र रहकर कोई एक पल के लए भी अ धकार ा त नह कर सकता. (६) मा नो वधैव ण ये त इ ावेनः कृ व तमसुर ीण त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मा यो तषः वसथा न ग म व षू मृधः श थो जीवसे नः.. (७) हे ाणर क व ण! तु हारे जो आयुध य वरो धय का वनाश करते ह, वे हम न मार. हम सूय के काश से र न रह. हमारे जीवन के हसक को हमसे र हटाओ. (७) नमः पुरा ते व णोत नूनमुतापरं तु वजात वाम. वे ह कं पवते न ता य युता न ळभ ता न.. (८) हे अनेक दे श म कट होने वाले व ण! हमने भूतकाल म तु ह नम कार कया है, वतमान काल म करते ह और भ व यत् काल म करगे. हे हसा के अयो य व ण! तुम म पवत के समान अ युत श यां ा त ह. (८) पर ऋणा सावीरध म कृता न माहं राज यकृतेन भोजम्. अ ु ा इ ु भूयसी षास आ नो जीवा व ण तासु शा ध.. (९) हे राजा व ण! हमारे पूव पु ष ारा लए गए ऋण से हम छु टकारा दलाओ. मने वतमान काल म जो ऋण लया है, उससे भी मुझे छु ड़ाओ. म सरे के उपा जत धन से जीवनया ा न क ं . ऋण के कारण ऋणक ा के लए मानो उषा का उदय होता ही नह . ऐसी आ ा दो, जससे हम उन सब उषा म जा त रह. (९) यो मे राज यु यो वा सखा वा व े भयं भीरवे म माह. तेनो वा यो द स त नो वृको वा वं त मा ण पा मान्.. (१०) हे राजा व ण! मुझ भी को व क भयानक बात कहने वाले म से बचाओ. मुझे हसा करने वाले चोर एवं भे ड़ए से बचाओ. (१०) माहं मघोनो व ण य य भू रदा न आ वदं शूनमापेः. मा रायो राज सुयमादव थां बृह दे म वदथे सुवीराः.. (११) हे व ण! मुझे कसी धनी एवं दानी पु ष के सामने अपनी नधनता न बतानी पड़े. हे राजन्! मेरे पास जीवन के लए आव यक धन क कमी न हो. हम शोभन पु -पौ को ा त करके इस य म ब त सी तु तयां करगे. (११)
सू —२९
दे वता— व ेदेव
धृत ता आ द या इ षरा आरे म कत रहसू रवागः. शृ वतो वो व ण म दे वा भ य व ाँ अवसे वे वः.. (१) हे तधारी, सबके ाथनीय एवं शी गामी अ द तपु ो! जस कार भचा रणी गु त प से ज म लेने वाले बालक को र फक दे ती है, उसी कार तुम मेरा पाप मुझसे र ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हटा दो. हे म और व ण! म तु हारे ारा कए ए मंगल काय को जानता ं. म तु ह र ा के लए बुलाता ं. तुम मेरी पुकार सुनो. (१) यूयं दे वाः म तयूयमोजो यूयं े षां स सनुतयुयोत. अ भ ारो अ भ च म वम ा च नो मृळयतापरं च.. (२) हे दे वो! तुम उ म बु एवं बलसंप हो. तुम हमारे वरो धय को गु त थान म ले जाओ. हे श ुनाशक दे वो! तुम भी हमारे श ु को हराओ एवं आज तथा आने वाले कल म सुखी करो. (२) कमू नु वः कृणवामापरेण क सनेन वसव आ येन. यूयं नो म ाव णा दते च व त म ाम तो दधात.. (३) हे दे वो! हम आज या आने वाले दन म तु हारा कौन सा काय कर सकते ह? अथात् कोई नह . हम सनातन ा त काय ारा भी कुछ नह कर सकते. हे म , व ण, अ द त, इं एवं म द्गण! हमारा क याण करो. (३) हये दे वा यूय मदापयः थ ते मृळत नाधमानाय म म्. मा वो रथे म यमवाळृ ते भू मा यु माव वा पषु म म.. (४) हे दे वो! तु ह हमारे बांधव हो. ाथना करने वाले हम लोग को तुम सुख दो. हमारे य म आते समय तु हारे रथ क ग त मंद न हो. तुम बांधव के होते ए हम परेशान न ह . (४) व एको ममय भूयागो य मा पतेव कतवं शशास. आरे पाशा आरे अघा न दे वा मा मा ध पु े व मव भी .. (५) हे दे वगण! मने मनु य होते ए भी तुम लोग के बीच रहकर अपने ब त से पाप न कए ह. जस कार पता कुमागगामी पु को रोकता है, उसी कार तुमने मुझे अनुशासन म रखा है. हे दे वो! मुझे बंधन और पाप से र रखो. ाध जस कार पु के सामने प ी पता को मारता है, उसी कार मुझे मत मारना. (५) अवा चो अ ा भवता यज ा आ वो हा द भयमानो येयम्. ा वं नो दे वा नजुरो वृक य ा वं कतादवपदो यज ाः.. (६) हे य यो य दे वो! इस समय हमारे सामने आओ. म डरता आ तु हारे दय म आ य पाऊं. हे दे वो! भे ड़ए क हसा से हम बचाओ. हे य पा ो! हम वप म डालने वाल से बचाओ. (६) माहं मघोनो व ण य य भू रदा न आ वदं शूनमापेः. मा रायो राज सुयमादव थां बृह दे म वदथे सुवीराः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे राजा व ण! मुझे कसी धनी एवं दानी पु ष के सामने अपनी नधनता न कहनी पड़े. मेरे पास जीवन के लए आव यक धन क कमी न हो. हम शोभन पु -पौ ा त करके इस य म ब त सी तु तयां करगे. (७)
सू —३०
दे वता—इं आ द
ऋतं दे वाय कृ वते स व इ ाया ह ने न रम त आपः. अहरहया य ु रपां कया या थमः सग आसाम्.. (१) वषा करने वाले, ग तमान, सबको रे णा दे ने वाले एवं वृ नाशक ा इं के य के लए पानी कभी नह कता. जल का वाह त दन उसी कार बहता है, जस कार वह अपनी पहली सृ म आ था. (१) यो वृ ाय सनम ाभ र य तं ज न ी व ष उवाच. पथो रद तीरनु जोषम मै दवे दवे धुनयो य यथम्.. (२) जस ने इस पाकशाला म वृ असुर को अ दया था, माता अ द त ने उसके वषय म इं को बता दया. इं क इ छा के अनुसार न दयां अपना रा ता बनाती ई त दन समु के पास जाती ह. (२) ऊव थाद य त र ेऽधा वृ ाय वधं जभार. महं वसान उप हीम ो मायुधो अजय छ ु म ः.. (३) इस वृ ने आकाश म ऊपर उठकर सब पदाथ को ढक लया था, इस लए इं ने उसके ऊपर व फका. मेघ से ढका आ वृ इं क ओर दौड़ा तभी तीखे आयुध वाले इं ने उसे हरा दया. (३) बृह पते तपुषा ेव व य वृक रसो असुर य वीरान्. यथा जघ थ धृषता पुरा चदे वा ज ह श ुम माक म .. (४) हे बृह प त! व के समान संतापकारी एवं अ के ारा बंद करने वाले असुर के पु का नाश करो. हे इं ! तुमने ाचीनकाल म हमारे श ु को जस कार न कया था, उसी कार इस समय श ु का नाश करो. (४) अव प दवो अ मानमु चा येन श ुं म दसानो नजूवाः. तोक य सातौ तनय य भूरेर माँ अध कृणुता द गोनाम्.. (५) हे ऊपर नवास करने वाले इं ! तुमने तोता क तु तयां सुनकर आकाश से भी पाषाण तु य क ठन व फककर श ु को न कया था, उसी व को नीचे क ओर फको. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम ऐसी समृ
दो, जससे हम अ धक मा ा म पु -पौ तथा गाएं ा त कर सक. (५)
ह तुं वृहथो यं वनुथो र य थो यजमान य चोदौ. इ ासोमा युवम माँ अ व म म भय थे कृणुतमु लोकम्.. (६) हे इं व सोम! तुम जस बैरी क हसा करो, उसका भली-भां त उ छे द कर दो तथा सेवक यजमान के श ु के ेरक बनो. तुम दोन हमारी र ा करो एवं इस भयानक यु म हमारे थान को नभर बनाओ. (६) न मा तम म ोत त वोचाम मा सुनोते त सोमम्. यो मे पृणा ो दद ो नबोधा ो मा सु व तमुप गो भरायत्.. (७) इं मुझे न क द, न थकाव, न आलसी बनाव और न हमसे यह कह क सोमा भषव मत करो. वे मेरी इ छा को पूण करते ए, दान करते ए, हमारे य को जानते ए एवं गाय को साथ लेते ए सोमरस नचोड़ने वाले के पास जाव. (७) सर व त वम माँ अ व म वती धृषती जे ष श ून्. यं च छध तं त वषीयमाण म ो ह तं वृषभं श डकानाम्.. (८) हे सर वती! तुम हम बचाओ एवं म द्गण से यु होकर श ु को दबाती ई परा जत करो. इं ने षंड के धान षंडामक को मार डाला. वे वयं को शूर समझते थे एवं इं से पधा करने लगे थे. (८) यो नः सनु य उत वा जघ नुर भ याय तं त गतेन व य. बृह पत आयुधैज ष श ु हे रीष तं प र धे ह राजन्.. (९) हे बृह प त! जो चोर छपकर हमारी ह या करना चाहता है, उसे खोजकर तीखे आयुध से छ भ करो तथा अपने आयुध से हमारे श ु को जीतो. हे राजन! ोहका रय के ऊपर हसक व चार ओर से फको. (९) अ माके भः स व भः शूर शुरैव या कृ ध या न ते क वा न. योगभूव नुधू पतासो ह वी तेषामा भरा नो वसू न.. (१०) हे शूर इं ! हमारे श ुनाशक वीर पु ष के साथ मलकर अपने क काय को पूरा करो. तुम ब त दन से घमंडी बने ए हमारे श ु को न करके उनका धन हम दो. (१०) तं वः शध मा तं सु नयु गरोप व ु े नमसा दै ं जनम्. यथा र य सववीरं नशामहा अप यसाचं ु यं दवे दवे.. (११) हे म द्गण! हम सुख क इ छा से नम कार ारा तु हारी द , उ प तथा स म लत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श क शंसा करते ह. हम उससे वीर संतान पाकर सक. (११)
सू —३१
त दन उ म धन का उपभोग कर
दे वता— व ेदेव
अ माकं म ाव णावतं रथमा द यै ै वसु भः सचाभुवा. य यो न प त व मन प र व यवो षीव तो वनषदः.. (१) हे म एवं व ण! जब हमारा रथ अ के इ छु क, हषयु एवं वनवासी प य के समान हमारे नवास थान से सरे थान को जाये, तब तुम आ द य , तथा वसु के साथ मलकर उस रथ क र ा करना. (१) अध मा न उदवता सजोषसो रथं दे वासो अ भ व ु वाजयुम्. यदाशवः प ा भ त तो रजः पृ थ ाः सानौ जङ् घन त पा ण भः.. (२) हे समान प से स दे वो! इस समय जनपद म अ क खोज म गए ए हमारे रथ को ग तशील बनाओ, य क इस रथ म जुड़े ए घोड़े अपनी ग तय से माग तय करते ह एवं उठ ई धरती पर अपने खुर से ब त तेज चलते ह. (२) उत य न इ ो व चष ण दवः शधन मा तेन सु तुः. अनु नु था यवृका भ तभी रथं महे सनये वाजसातये.. (३) अथवा सम त लोक को दे खने वाले एवं म द्गण क श से उ म कम करने वाले इं हसार हत र ासाधन के साथ वग से आकर अ धक धन और अ को पाने के लए अनुकूल बन. (३) उत य दे वो भुवन य स ण व ा ना भः सजोषा जूजुव थम्. इळा भगो बृह वोत रोदसी पूषा पुर धर नावधा पती.. (४) अथवा संपूण व के पू य व ा दे व दे वप नय के साथ मलकर म े पूवक हमारे उ रथ को आगे बढ़ाव. इड़ा, परम तेज वी भग, धरती आकाश, परमबु यु पूषा एवं सूया के प त अ नीकुमार हमारा रथ चलाएं. (४) उत ये दे वी सुभगे मथू शोषासान ा जगतामपीजुवा. तुषे य ां पृ थ व न सा वचः थातु वय वया उप तरे.. (५) अथवा स दे वयां, सुंदर, एक- सरे को दे खने वाली एवं चलने वाले जीव क ेरक उषा और नशा हमारे रथ को चलाव. हे धरती और आकाश! म तु हारी नवीन वचन से तु त करता ं एवं ओष ध, सोम तथा पशु तीन कार के अ के साथ थावर ह दान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करता ं. (५) उत वः शंसमु शजा मव म य हबु यो३ज एकपा त. त ऋभु ाः स वता चनो दधेऽपां नपादाशुहेमा धया श म.. (६) हे दे वो! हम तु हारी तु त करने के इ छु क ह. तुम हमारी तु त को पंसद करो. अ हबु य, अजएकपात, स वता, ऋभु ा एवं त हम अ द. जल के नाती, शी गामी अ न हमारे य कम से स ह . (६) एता वो व यु ता यज ा अत ायवो न से सम्. व यवो वाजं चकानाः स तन र यो अह धी तम याः.. (७) हे य के यो य दे वो! तुम तु तयो य क अ और बल क इ छा करने वाले हम तु त करना चाहते ह. रथ के घोड़े के समान तु हारा बल हम ा त हो. (७)
सू —३२
दे वता— ावा-पृ वी आ द
अ य मे ावापृ थवी ऋतायतो भूतम व ी वचसः सषासतः. ययोरायुः तरं ते इदं पुर उप तुते वसूयुवा महो दधे.. (१) हे ावापृ वी! य करने के इ छु क एवं तु ह स करने के लए य नशील मुझ तोता क र ा करो. सबक अपे ा उ कृ अ वाले एवं अनेक लोग ारा शं सत तु हारी तु त म अ ा त क अ भलाषा से वशाल तो ारा क ं गा. (१) मा नो गु ा रप आयोरह दभ मा न आ यो रीरधो छु ना यः. मा नो व यौः स या व त य नः सु नायता मनसा त वेमहे.. (२) हे इं ! श ुजन क गु त माया हम रात म अथवा दन म कभी भी न न करे. हम ःख दे ने वाली श ु सेना के वश म मत होने दे ना. हमारी म ता अपने मन से अलग मत करना. हम तुमसे यही कामना करते ह क अपने मन म हमारा सुख चाहते ए हमारी म ता को याद रखना. (२) अहेळता मनसा ु मावह हानां धेनुं प युषीमस तम्. प ा भराशुं वचसा च वा जनं वां हनो म पु त व हा.. (३) हे इं ! ोधर हत मन से सुखकारी, धा , मोट एवं ढ़ांग गाय लेकर आना. हे ब जन ारा बुलाए गए शी गामी एवं ज द -ज द बोलने वाले इं ! म त दन तु हारी तु त करता ं. (३) राकामहं सुहवां सु ु ती वे शृणोतु नः सुभगा बोधतु मना. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सी
वपः सू या छ मानया ददातु वीरं शतदायमु यम्.. (४)
म उ म तु तय ारा आ ान के यो य राका दे वी को बुलाता ं. वह सुभगा हमारी पुकार सुन एवं हमारा अ भ ाय वयं जान ल. वह छे दर हत सूई से हमारे कम को बुनती ई हम वीर एवं ब दानदाता पु द. (४) या ते राके सुमतयः सुपेशसो या भददा स दाशुषे वसू न. ता भन अ सुमना उपाग ह सह पोषं सुभगे रराणा.. (५) हे राका दे वी! तु हारी जो शोभन प वाली उ म बु यां ह एवं जनके ारा तुम यजमान को धन दे ती हो, आज स च होकर उसी बु के साथ पधारो. हे सुभगा राका! तुम हजार कार से हमारा पोषण करती हो. (५) सनीवा ल पृथु ु के या दे वानाम स वसा. जुष व ह मा तं जां दे व द द नः.. (६) हे मोट जंघा वाली सनीवाली! तुम दे व क ब हन हो. हमारा दया आ ह वीकार करो एवं संतान दो. (६) या सुबा : वङ् गु रः सुषूमा ब सूवरी. त यै व प यै ह वः सनीवा यै जुहोतन.. (७) जो सनीवाली सुंदर बा एवं सुंदर उंग लय वाली, शोभन पु वाली तथा अनेक क ज मदा ी है, उसी व र का दे वी के उ े य से ह दान करो. (७) या गु या सनीवाली या राका या सर वती. इ ाणीम ऊतये व णान व तये.. (८) म अपनी र ा एवं सुख के लए कई सनीवाली, राका, सर वती, इं ाणी और व णानी को बुलाता ं. (८)
सू —३३
दे वता—
आ ते पतम तां सु नमेतु मा नः सूय य स शो युयोथाः. अ भ नो वीरा अव त मेत जायेम ह जा भः.. (१) हे म त के पता ! तु हारा दया आ सुख हम मले. हम सूय के दशन से अलग मत करना. हमारे श शाली पु यु म श ु को हराव. हे ! हम पु -पौ आ द से ब त बन. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाद ेभी श तमे भः शतं हमा अशीय भेषजे भः. १ मद् े षो वतरं ंहो मीवा ातय वा वषूचीः.. (२) हे ! हम तु हारी द ई सुखकारी ओष धय क सहायता से सौ वष तक जी वत रह. हमारे श ु का वनाश करो, हमारे पाप को र करो एवं हमारे शरीर म फैली बीमा रय को मटाओ. (२) े ो जात य या स तव तम तवसां व बाहो. प ष णः पारमंहसः व त व ा अभीती रपसो युयो ध.. (३) हे ! तुम ऐ य से सब ा णय क अपे ा े हो. हे व बा ! तुम बढ़े ए लोग म अ तशय उ त हो. हम कुशलता के साथ पाप के उस पार ले जाओ एवं सभी पाप को हमसे र ले जाओ. (३) मा वा चु ु धामा नमो भमा ु ती वृषभ मा स ती. उ ो वीराँ अपय भेषजे भ भष मं वा भषजां शृणो म.. (४) हे अ भलाषापूरक ो! हम व ध व नम कार , अशोभन तु तय एवं अ य दे व के साथ आ ान ारा तु ह ो धत न कर. हमारे पु को अपनी ओष धय ारा उ म बनाओ. हमने सुना है क तुम वै म सबसे े हो. (४) हवीम भहवते यो ह व भरव तोमेभी ं दषीय. ऋ दरः सुहवो मा नो अ यै ब ुः सु श ो रीरध मनायै.. (५) जो ह के साथ-साथ आ ान से बुलाए जाते ह, उनका ोध म तो ारा मटा ं गा. कोमल उदर वाले, शोभन आ ान से यु , पीले रंग वाले एवं सुंदर नाक वाले मेरे त हसा बु न रख. (५) उ मा मम द वृषभो म वा व ीयसा वयसा नाधमानम्. घृणीव छायामरपा अशीया ववासेयं य सु नम्.. (६) म कामवषक एवं म त से यु से ाथना करता ं क वे मुझे उ म अ से तृ त कर. धूप से ाकुल जस कार छाया म वेश करता है, उसी कार पापर हत होकर ारा दए ए सुख को भोगने के लए म उनक सेवा क ं गा. (६) व१ य ते मृळयाकुह तो यो अ त भेषजो जलाषः. अपभता रपसो दै याभी नु मा वृषभ च मीथाः.. (७) हे ! तु हारा वह सुखदाता हाथ कहां है, जो सबको सुख प ंचाने वाली दवाएं बनाता है? हे कामवषक ! तुम दे वकृत पाप का वनाश करते ए मुझे ज द मा करो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ब वे वृषभाय तीचे महो मह सु ु तमीरया म. नम या क मली कनं नमो भगृणीम स वेषं य नाम.. (८) म पीले रंग वाले, कामवष एवं ेत आभायु के त परम महान् तु तयां बारबार बोलता ं. हे तोता! नम कार ारा तेज वी क पूजा करो. म का उ वल नाम संक तन करता ं. (८) थरे भर ै ः पु प उ ो ब ुः शु े भः प पशे हर यैः. ईशानाद य भुवन य भूरेन वा उ योष ादसुयम्.. (९) ढ़ अंग वाले, ब प, तेज वी एवं पीले रंग वाले आभूषण से सुशो भत ह. संपूण भुवन के वामी एवं भता होता. (९)
चमक ले तथा सोने के बने का बल कभी अलग नह
अह बभ ष सायका न ध वाह कं यजतं व पम्. अह दं दयसे व म यं न वा ओजीयो वद त.. (१०) हे पू य ! तुम बाण और धनुष धारण करते हो. हे पूजा यो य! तुमने पूजनीय एवं ब प वाले हार को धारण कया है. तुम इस व तृत संसार क र ा करते हो. तु हारी अपे ा अ धक श शाली कोई नह है. (१०) तु ह ुतं गतसदं युवानं मृगं न भीममुपह नुमु म्. मृळा ज र े तवानोऽ यं ते अ म वप तु सेनाः.. (११) हे तोता! स , रथ पर बैठे ए, युवा, पशु के समान भयानक, श ुनाशक तथा उ क तु त करो. हे ! हम तु तक ा क र ा करो. तु हारी सेना हमारे अ त र अ य लोग का संहार करे. (११) कुमार पतरं व दमानं त नानाम ोपय तम्. भूरेदातारं स प त गृणीषे तुत वं भेषजा रा य मे.. (१२) हे
! जस कार पु आशीवाद दे ने वाले पता को नम कार करता है, उसी कार आते ए तुमको हम नम कार कर. हम अ धक दान करने वाले एवं स जन के बालक तु हारी तु त करते ह. तुम हम ओष ध दो. (१२) या वो भेषजा म तः शुची न या श तमा वृषणो या मयोभु. या न मनुरवृणीता पता न ता शं च यो य व म.. (१३) हे अभी वषक म द्गण! तु हारी जो ओष धयां शु एवं अ य धक सुख दे ने वाली ह, ज ह हमारे पता मनु ने पसंद कया था, क उ ह सुखदायक व भयनाशक ओष धय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क हम इ छा करते ह. (१३) प र णो हेती य वृ याः प र वेष य म तमही गात्. अव थरा मघवद् य तनु व मीढ् व तोकाय तनयाय मृळ.. (१४) का आयुध हमारा याग कर दे . क ःखका रणी वशाल भावना भी हमसे र रहे. हे अ भलाषापूरक ! अपने धनुष क कठोर डोरी यजमान के त ढ ली करो एवं हमारे पु -पौ को सुख दो. (१४) एवा ब ो वृषभ चे कतान यथा दे व न णीषे न हं स. हवन ु ो े ह बो ध बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१५) हे पीले रंग वाले, कामवषक, सव , तेज वी एवं पुकार सुनने वाले दे व! इस य म ऐसा वचार बनाओ क तुम हमारे त न कभी ोध करो और न हम मारो. हम उ म पु पौ पाकर इस य म ब त सी तु तयां बोलगे. (१५)
सू —३४
दे वता—म द्गण
धारावरा म तो धृ वोजसो मृगा न भीमा त वषी भर चनः. अ नयो न शुशुचाना ऋजी षणो भृ म धम तो अप गा अवृ वत.. (१) थर वृ आ द को चंचल करने वाले, अपनी श से सबको परा जत करने वाले, पशु के समान भयानक, अपने बल ारा सम त संसार को ा त करने वाले, अ न के समान द त एवं जल से यु म द्गण घूमने वाले बादल को छ - भ करके जल बरसाते ह. (१) ावो न तृ भ तय त खा दनो १ या न ुतय त वृ यः. ो य ो म तो मव सो वृषाज न पृ याः शु ऊध न.. (२) हे सीने पर द त आभरण वाले म द्गण! कामवषक ने तु ह पृ के नमल उदर से पैदा कया है. तुम अपने आभूषण से उसी कार शोभा पाते हो, जस कार आकाश तारागण से शो भत होता है. श ुभ क एवं जलवषक म द्गण बादल म बजली के समान का शत होते ह. (२) उ ते अ ाँ अ याँ इवा जषु नद य कण तुरय त आशु भः. हर य श ा म तो द व वतः पृ ं याथ पृषती भः सम यवः.. (३) जस कार घोड़े यु म पसीने से धरती स च दे ते ह, उसी कार संसार को स चने वाले म द्गण घोड़े पर चढ़कर गजन करते ए बादल के कान के पास से ज द से नकल जाते ह. सोने के टोप वाले, समान ोध वाले एवं वृ कं पत करने वाले म तो! तुम काली ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बूंद वाली हर नय पर चढ़कर ह
वाले यजमान के पास आते हो. (३)
पृ े ता व ा भुवना वव रे म ाय वा सदमा जीरदानवः. पृषद ासो अनव राधस ऋ ज यासो न वयुनेषु धूषदः.. (४) म द्गण ह धारक यजमान के लए म के समान सारा जल ढोकर लाते ह. म द्गण शी दान करने वाले, ेत ब यु अ वाले, ंशर हत धन वाले एवं सीधे चलने वाले घोड़ क तरह प थक के स मुख जाते ह. (४) इ ध व भधनुभी र श ध भर व म भः प थ भ ाज यः. आ हंसासो न वसरा ण ग तन मधोमदाय म तः सम यवः.. (५) हे समान ोध वाले एवं द तयु आयुध वाले म द्गण! हंस जस कार अपने नवास थान पर उतरते ह, उसी कार तुम धा गाय एवं गरजते ए मेघ के साथ व नर हत पथ से मधुर सोमरस ारा स ता ा त करने के लए आओ. (५) आ नो ा ण म तः सम वयो नरां न शंसः सवना न ग तन. अ ा मव प यत धेनुमूध न कता धयं ज र े वाजपेशसम्.. (६) हे समान ोध वाले म तो! तुम जस कार हमारी तु तयां सुनने आते हो, उसी कार हमारे ह अ के त आओ. तुम गाय को घोड़ के समान पु अंग वाली तथा यजमान का य अ यु करो. (६) तं नो दात म तो वा जनं रथ आपानं चतय वे दवे. इषं तोतृ यो वृजनेषु कारवे स न मेधाम र ं रं सहः.. (७) हे म द्गण! हम अ के साथ-साथ ऐसा पु भी दान करो जो तु हारे आने के समय त दन तु हारा गुणगान करे. अपने तु तक ा को तुम अ दो. जो लोग यु म तु हारी तु त करते ह, उ ह यु ान, धन दे ने क श एवं श ु ारा अधृ य एवं असहनीय बल दो. (७) य ु ते म तो मव सोऽ ा थेषु भग आ सुदानवः. धेनुन श े वसरेषु प वते जनाय रातह वषे मही मषम्.. (८) सीने पर चमक ले गहने पहनने वाले एवं शोभन दानयु म द्गण रथ पर सवार होते ही यजमान के घर जाकर उसी कार यथे अ दे ते ह, जस कार गाय अपने बछड़े को ध पलाती है. (८) यो नो म तो वृकता त म य रपुदधे वसवो र ता रषः. वतयत तपुषा च या भ तमव ा अशसो ह तना वधः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म द्गण एवं वसुओ! जो मनु य भे ड़ए के समान हमसे श ुता रखता है, उस हसा करने वाले से हमारी र ा करो. हे पु ो! हमारे श ु को ःख दे कर सृ से र भगाओ एवं उसके सभी आयुध र फक दो. (९) च ं त ो म तो याम चे कते पृ या य धर यापयो ः. य ा नदे नवमान य या तं जराय जुरातामदा याः.. (१०) हे म तो! तु हारा वह व च कम सब जानते ह क तुमने पृ माता के तन से ध पया था एवं तोता क नदा करने वाले को मारा था. हे अ हसनीय पु ो! तुमने त ऋ ष के श ु को न कया. (१०) ता वो महो म त एवया नो व णोरेष य भृथे हवामहे. हर यवणा ककुहा यत ुचो य तः शं यं राध ईमहे.. (११) हे य थल म जाने वाले महानुभाव म तो! हम सव ापक एवं ाथनीय सोमरस के तैयार होने पर तु ह बुलाते ह एवं सव म व सुनहरे रंग के ुच को उठाकर सव म तु तय ारा तुमसे उ म धन मांगते ह. (११) ते दश वाः थमा य मू हरे ते नो ह व तूषसो ु षु. उषा न रामीर णैरपोणुते महो यो तषा शुचता गोअणसा.. (१२) दस मास तक य करके स ा त करने वाले अं गरा के प म म त ने पहली बार य को धारण कया था. वे उषा के आने पर हम य काय म लगाव. उषा जस कार अपनी लाल करण से काली रात को हटाती है, उसी कार म द्गण महान्, द तयु एवं जल टपकाने वाली यो त से अंधकार मटाते ह. (१२) ते ोणी भर णे भना भी नमेघमाना अ येन पाजसा सु
ा ऋत य सदनेषु वावृधुः. ं वण द धरे सुपेशसम्.. (१३)
पु म द्गण श द करने वाली वीणा एवं लाल रंग के आभूषण से यु होकर जल के नवास थान बादल म बढ़े ह. वे शी गामी एवं सव ापी बल से बादल से अ धक मा ा म जल बरसाते ए स तापूवक उ म प धारण करते ह. (१३) ताँ इयानो म ह व थमूतय उप घेदेना नमसा गृणीम स. तो न या प च होतॄन भ य आववतदवरा च यावसे.. (१४) हम व ण से व तृत धन क याचना करते ए अपनी र ा के न म तो ारा ाथना करते ह. त ऋ ष ने अपनी इ छापू त के लए ना भच ारा ाण, अपान, समान, ान ओर उदान पांच होता को लौटा लया. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यया र ं पारयथा यंहो यया नदो मु चथ व दतारम्. अवाची सा म तो या व ऊ तरो षु वा ेव सुम त जगातु.. (१५) हे म द्गण! तुम जस र ाबु ारा यजमान को पाप से र करते हो, एवं जससे तोता को श ु के हाथ से छु ड़ाते हो, तु हारी वही र ाबु हमारी ओर ऐसे आए, जैसे रंभाती ई गाय अपने बछड़े के पास आती है. (१५)
सू —३५
दे वता—अपांनपात् (अ न)
उपेमसृ वाजयुवच यां चनो दधीत ना ो गरो मे. अपां नपादाशुहेमा कु व स सुपेशस कर त जो षष .. (१) म अ का अ भलाषी बनकर यह तु त बोल रहा ं. श दकारी तु त पसंद करने वाले एवं शी ग तशील जल के नाती अथात् अ न मुझ तोता को अ धक अ एवं उ म प दान कर. (१) इमं व मै द आ सुत ं म ं वोचेम कु वद य वेदत्. अपां नपादसुय य म ा व ा यय भुवना जजान.. (२) वामी अपांनपात् (जल के नाती अथात् अ न) को ल य करके हम अपने दय से बनाए ए मं को भली कार कहगे. वह उसे अ धक मा ा म जान. उ ह ने श ुनाशक बल से सारे भुवन को बनाया है. (२) सम या य युप य य याः समानमूव न : पृण त. तमू शु च शुचयो द दवांसमपां नपातं प र त थुरापः.. (३) धरती म जल पहले से भरा रहता है. सरा जल उस म मलता है. वे जल नद का प धारण करके सागर क बाड़वा न को स करते ह. शु जल प व एवं द तयु अपांनपात् को चार ओर से घेरकर थत है. (३) तम मेरा युवतयो युवानं ममृ यमानाः प र य यापः. स शु े भः श वभी रेवद मे द दाया न मो घृत न णग सु.. (४) जल दपहीन युवती के समान है. वह युवा के समान अपांनपात् को अ य धक अलंकृत करके चार ओर से घेरता है. धनर हत एवं द त प वे अपांनपात् धनर हत अ क उ प के लए नमल तेज जल के बीच का शत होते ह. (४) अ मै त ो अ याय नारीदवाय दे वी द धष य म्. कृता इवोप ह स अ सु स पीयूषं धय त पूवसूनाम्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इड़ा, सर वती एवं भारती नामक तीन द ने यां थार हत अपांनपात् के लए अ धारण करती ह एवं जल म उ प सोम को बढ़ाती ह. अपांनपात् सव थम उ प जल के अमृत सोम को पीते ह. (५) अ या ज नमा य च व हो रषः स पृचः पा ह सूरीन्. आमासु पूषु परो अ मृ यं नारातयो व नश ानृता न.. (६) अपानंपात् प सागर से उ चैः वा अ एवं इस संसार का ज म आ है. वह अपहता हसक के संपक से तोता क र ा करते ह. दान न करने वाले झूठे लोग अप रप व जल म रहते ए भी इस अधृ य दे व को नह पा सकते. (६) व आ दमे सु घा य य धेनुः वधां पीपाय सु व म . सो अपां नपा जय व१ तवसुदेयाय वधते व भा त.. (७) अपांनपात् अपने घर म नवास करते ह. उनक गाएं सुख से ही जा सकती ह. वह वषा का जल बढ़ाते ह एवं उससे उ प अ का भ ण करते ह. वह जल के बीच म श शाली बनकर यजमान को धन दे ने के लए का शत होते ह. (७) यो अ वा शु चना दै ेन ऋतावाज उ वया वभा त. वया इद या भुवना य य जाय ते वी ध जा भः.. (८) जो अपांनपात् स ययु , सदा एक प, व तीण एवं जल के म य प व दे वतेज से सुशो भत ह, सब भुवन उ ह क शाखाएं ह एवं फूलफल से यु वन प तयां उ ह से उ प ई ह. (८) अपां नपादा था प थं ज ानामू व व ुतं वसानः. त य ये ं म हमानं वह ती हर यवणाः प र य त य ः.. (९) अपांनपात् कु टलग त जल के बीच वयं ऊपर उठकर जलते ए एवं तेज वी बादल धारण करते ए आकाश म थत होते ह. सुनहरे रंग क न दयां उनके मह व को सब जगह फैलाती ई बहती ह. (९) हर य पः स हर यस गपां नपा से हर यवणः. हर यया प र योने नष ा हर यदा दद य म मै.. (१०) हर य प, हर यमय इं य वाले एवं हर यवण अपांनपात् हर यमय थान पर बैठकर सुशो भत होते ह. हर यदाता यजमान उ ह दान दे ते ह. (१०) तद यानीकमुत चा नामापी यं वधते न तुरपाम्. य म धते युवतयः स म था हर यवण घृतम म य.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपांनपात् का करणसमूह पी शरीर एवं नाम शोभन है. ये गुण मेघ म छपकर बढ़ते ह. युवती प जल वण के समान तेज वी अपांनपात् को आकाश म का शत करते ह. इनका जल ही सबका भा य है. (११) अ मै ब नामवमाय स ये य ै वधेम नमसा ह व भः. सं सानु मा म द धषा म ब मैदधा य ैः प र व द ऋ भः.. (१२) हम य , ह एवं नम कार ारा अनेक दे व के आ एवं अपने सखा अपांनपात् क सेवा कर. म उनका उ त थान भली कार सुशो भत करता ं, अ एवं लक ड़य ारा उ ह धारण करता ं एवं मं ारा उनक तु त करता ं. (१२) स वृषाजनय ासु गभ स शशुधय त तं रह त. सो अपां नपादन भ लातवण ऽ य येवेह त वा ववेष.. (१३) सेचन करने वाले अपांनपात् ने उन जल म गभ उ प कया है. वही बालक बनकर उनका जल पीते ह एवं जल उनको चाटता है. उ वल वण वाले वे ही अपांनपात् उस संसार मअ पी शरीर से ा त ए ह. (१३) अ म पदे परमे त थवांसम व म भ व हा द दवांसम्. आपो न े घृतम वह तीः वयम कैः प र द य त य ः.. (१४) उ म थान म रहने वाले, तेज ारा त दन द त एवं जल के नाती अथात् अ न को अ धारण करने वाले जलसमूह न य बहते ए घेरे रहते ह. (१४) अयांसम ने सु त जनायायांसमु मघवद् यः सुवृ म्. व ं त ं यदव त दे वा बृह दे म वदथे सुवीराः.. (१५) हे उ म थान म रहने वाले अ न! हम पु ा त के लए तथा यजमान के क याण के लए तु हारे पास तो लेकर आए ह. दे वगण जो क याण करते ह, वह हम ा त हो. हम शोभन पु -पौ ा त करके इस य म ब त से तो बोलगे. (१५)
सू —३६
दे वता—इं आ द
तु यं ह वानो व स गा अपोऽधु सीम व भर भनरः. पबे वाहा तं वषट् कृतं हो ादा सोमं थमो य ई शषे.. (१) हे इं ! तु हारे उ े य से तुत यह सोम गाय के ध, दही एवं जल से म त है. य के नेता ने इसे प थर एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व क सहायता से तैयार कया है. तुम सारे संसार के वामी हो, इस लए वाहा एवं वषट् श द के साथ अ न म डाले गए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमरस का होता के पास से सव थम पान करो. (१) य ैः स म ाः पृषती भऋ भयाम छु ासो अ षु या उत. आस ा ब हभरत य सूनवः पो ादा सोमं पबता दवो नरः.. (२) हे य से संयु , पृषती से यु रथ पर बैठे ए, अपने आयुध से शोभा पाते ए, आभरण को ेम करने वाले, भरत के पु एवं अंत र के नेता म द्गण! तुम बछे ए कुश पर बैठकर पोता से सोमपान करो. (२) अमेव नः सुहवा आ ह ग तन न ब ह ष सदतना र ण न. अथा म द व जुजुषाणो अ धस व दवे भज न भः सुमद्गणः.. (३) हे शोभन आ ान वाले व ा! तुम हमारे साथ आओ, कुश पर बैठो एवं आनंद करो. इसके बाद दे व एवं दे वप नय के साथ शोभन समूह बनाकर सोम प अ का उपयोग करते ए तृ त बनो. (३) आ व दे वाँ इह व य चोश होत न षदा यो नषु षु. त वी ह थतं सो यं मधु पबा नी ा व भाग य तृ णु ह.. (४) हे बु मान् अ न! इस य थल म दे व को बुलाकर उनके न म य करो. हे दे व को बुलाने वाले अ न! तुम हमारे ह क इ छा करते ए तीन थान पर बैठो, उ र वेद पर रखे ए सोम प मधु को वीकार करो एवं अ नी के पास से अपना ह सा लेकर तृ त बनो. (४) एष य ते त वो नृ णवधनः सह ओजः द व बा ो हतः. तु यं सुतो मघव तु यमाभृत वम य ा णादा तृप पब.. (५) हे धन वामी इं ! जो सोम तु हारे शरीर म बल बढ़ाता है, जसके कारण ाचीन दे व के हाथ म श ु को हराने वाला बल उ प होता है, वही सोम तु हारे लए नचोड़ा गया है. तुम इस ऋ वक् ा ण के पास आकर तृ तपूवक सोम पओ. (५) जुषेथां य ं बोधतं हव य मे स ो होता न वदः पू ा अनु. अ छा राजाना नम ए यावृतं शा ादा पबतं सो यं मधु.. (६) हे शोभासंप म एवं व ण! मेरे इस य म आओ, इसका सेवन करो एवं मेरा आ ान सुनो. य म बैठा आ होता ाचीन तु तयां बोलता है. ऋ वज ारा घरा आ अ तु हारे सामने है. इस मधुर सोमरस को शा ता के समीप आकर पओ. (६)
सू —३७
दे वता— वणोदा आ द
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म द व हो ादनु जोषम धसोऽ वयवः स पूणा व ा सचम्. त मां एतं भरत त शो द दह ासोमं वणोदः पब ऋतु भः.. (१) हे वणोदा अथात् धन य अ न! होता ारा कए ए य म अ हण करके स एवं तृ त बनो. हे अ वयुगण! वे पूण आ त चाहते ह. इस लए उ ह यह सोम दो. सोम के इ छु क वे वणोदा वां छत फल दे ते ह. हे वणोदा! होता के य म ऋतु के साथ सोमपान करो. (१) यमु पूवम वे त मदं वे से ह ो द दय नाम प यते. अ वयु भः थतं सो यं मधु पो ा सोमं वणोदः पब ऋतु भः.. (२) हे वणोदा! हम ाचीन काल म ज ह बुलाते थे, उ ह को इस समय भी बुलाते ह. वे ही बुलाने यो य, दाता एवं सबके वामी ह. अ वयुगण ारा तैयार कया गया सोम प मधु पोता के य म ऋतु के साथ पओ. (२) मे तु ते व यो ये भरीयसेऽ रष य वीळय वा वन पते. आयूया धृ णो अ भगूया वं ने ा सोमं वणोदः पब ऋतु भः.. (३) हे वणोदा! वे घोड़े तृ त ह , जनके ारा तुम आते हो. हे वन के वामी! तुम कसी क हसा न करते ए ढ़ बनो. हे श ुपराभवकारी! तुम ने ा के य म आकर ऋतु के साथ सोम पओ. (३) अपा ो ा त पो ादम ोत ने ादजुषत यो हतम्. तुरीयं पा ममृ मम य वणोदाः पबतु ा वणोदसः.. (४) जन वणोदा ने याग के होता से सोम पआ है, वे पोता से स ए ह एवं ज ह ने ने ा के य म दया आ अ खाया है, वे ही वणोदा ह दाता ऋ वज् के मृ यु नवारक चौथे सोमपा को पएं. (४) अवा चम य यं नृवाहणं रथं यु ाथा मह वां वमोचनम्. पृङ् ं हव ष मधुना ह कं गतमथा सोमं पबतं वा जनीवसू.. (५) हे अ नीकुमारो! अपने वेगशाली, तु ह ढोने वाले एवं इस य म प ंचाने वाले रथ को इस य म भली कार जोड़ो, हमारा ह मधुयु करो एवं यहां आओ. हे अ वा मयो! हमारा सोमरस पओ. (५) जो य ने स मधं जो या त जो ष ज यं जो ष सु ु तम्. व े भ व ाँ ऋतुना वसो मह उश दे वाँ उशतः पायया ह वः.. (६) हे अ न! तुम स मधा
, आ तय , जनक याणकारी मं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तथा शोभन तु तय से
यु बनो. वे वास प अ न! तु हारी इ छा करते ए संपूण दे व क तुम अ भलाषा करो. तुम ऋतु एवं सब दे व के साथ सोम पओ. (६)
सू —३८
दे वता—स वता
उ य दे वः स वता सवाय श मं तदपा व र थात्. नूनं दे वे यो व ह धा त र नमथाभज तहो ं व तौ.. (१) काशयु एवं व को धारण करने वाले स वता अपना सव प कम करने के लए उदय होते ह. वे दे व को र न दे ते ह एवं सुंदर य करने वाले यजमान को क याण का भागी बनाते ह. (१) व य ह ु ये दे व ऊ वः बाहवा पृथुपा णः सस त. आप द य त आ नमृ ा अयं च ातो रमते प र मन्.. (२) लंबी भुजा वाले स वता दे व संसार के सुख के हेतु उ दत होकर हाथ फैलाते ह. परम प व जल इ ह के काम के हेतु बहता है एवं वायु सब जगह फैले ए आकाश म घूमता है. (२) आशु भ ा व मुचा त नूनमरीरमदतमानं चदे तोः. अ षूणां च ययाँ अ व यामनु तं स वतुम यागात्.. (३) जाते ए स वता शी गामी करण ारा याग दए जाते ह. उस समय वे स वता सदा चलने वाले या ी को रोक दे ते ह एवं श ु के व गमन करने वाले लोग क इ छा का नयं ण करते ह. स वता का काय समा त होने पर रात आती है. (३) पुनः सम ततं वय ती म या कत यधा छ म धीरः. उ संहाया थाद् ृ१ तूँरदधसम तः स वता दे व आगात्.. (४) कपड़े बुनने वाली नारी जस कार कपड़ा लपेटती है, उसी कार रात बखरे ए काश को समेट लेती है. काय करने म समथ एवं बु मान् लोग अपना काम बीच म ही रोक दे ते ह. वरामर हत एवं समय का वभाग करने वाले स वता दे व के उ दत होने पर लोग श या छोड़ते ह. (४) नानौकां स य व मायु व त ते भवः शोको अ नेः. ये ं माता सूनवे भागमाधाद व य केत म षतं स व ा.. (५) अ नगृह अथात् य शाला म उ प महान् तेज यजमान के अलग-अलग घर तथा संपूण अ म समा जाता है. उषा माता ने स वता ारा े षत य का भाग अपने पु अ न ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को दया है. वह भाग उ म एवं अ न को बढ़ाने वाला है. (५) समावव त व तो जगीषु व ेषां काम रताममाभूत्. श ाँ अपो वकृतं ह ागादनु तं स वतुद य.. (६) आकाश म थत स वता का त समा त होने अथात् सूय छप जाने पर जय का इ छु क यो ा थान करके भी लौट आता है, सभी चर ाणी घर क अ भलाषा करने लगते ह एवं काय म न य लगा आ भी काम अधूरा छोड़कर घर जाता है. (६) वया हतम यम सु भागं ध वा वा मृगयसो व त थुः. वना न व यो न कर य ता न ता दे व य स वतु मन त.. (७) हे स वता! तु हारे ारा अंत र म छपाया आ जो जलभाग है, उसी को जलर हत दे श म खोज करने वाले पाते ह. तुमने प य को वनवृ नवास के लए दए ह. स वता दे व के इन काय को कोई न नह करता. (७) या ा यं१ व णो यो नम यम न शतं न म ष जभुराणः. व ो माता डो जमा पशुगा थशो ज मा न स वता ाकः.. (८) सूय छपने पर अ यंत गमनशील व ण सारे ग तशील ा णय को मनचाहा, सुखदायक एवं ा त करने यो य नवास दे ते ह. जस समय स वता सभी ा णय को अलग कर दे ते ह, उस समय सभी प ी एवं पशु अपने-अपने थान को चले जाते ह. (८) न य ये ो व णो न म ो तमयमा न मन त ः. नारातय त मदं व त वे दे वं स वतारं नमो भः.. (९) इं , व ण, म , अयमा, एवं श ु असुर जसके कम को समा त नह करते, उ ह स वता दे व को हम अपने क याण के लए नम कार ारा बुलाते ह. (९) भगं धयं वाजय तः पुर धं नराशंसो ना प तन अ ाः. आये वाम य सङ् गथे रयीणां या दे व य स वतुः याम.. (१०) मनु य ारा तु य एवं दे वप नय के र क स वता हमारी र ा कर. हम भजनीय, यान करने यो य एवं परम बु मान् स वता को अ धक बलवान् बनाते ह. हम धन एवं पशु के पाने और एक करने के लए स वता के य बन. (१०) अ म यं त वो अद् यः पृ थ ा वया द ं का यं राध आ गात्. शं य तोतृ य आपये भवा यु शंसाय स वतज र े.. (११) हे स वता! तु हारे ारा हम दया आ
स
धन वग, आकाश और भूलोक से आव.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो धन तोता करो. (११)
सू —३९
क संतान को सुख दे ने वाला है, वही मुझ ब त तु त करने वाले को दान
दे वता—अ नीकुमार
ावाणेव त ददथ जरेथे गृ ेव वृ ं न धम तम छ. ाणेव वदथ उ थशासा तेव ह ा ज या पु ा.. (१) हे अ नीकुमारो! तुम फके ए प थर के समान श ु को बाधा प ंचाओ. जस कार प ी फल वाले वृ पर जाते ह, उसी कार तुम धन वाले यजमान के पास जाओ. तुम मं उ चारण करने वाले ा एवं जनपद म राजा ारा भेजे गए त के समान अनेक लोग ारा बुलाने यो य हो. (१) ातयावाणा र येव वीराजेव यमा वरमा सचेथे. मेने इव त वा३ शु भमाने द पतीव तु वदा जनेषु.. (२) हे अ नीकुमारो! ातःकाल य के लए जाने वाले रथ- वा मय के समान वीर, छाग के समान यमल, ना रय के समान शोभन-शरीर, प त-प नी के समान साथ रहने वाले एवं सबके य कम के ाता तुम दोन सेवक के पास आओ. (२) शृ े व नः थमा ग तमवाक् छफा वव जभुराणा तरो भः. च वाकेव त व तो ावा चा यातं र येव श ा.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम पशु के स ग के समान सभी दे व म मुख हो. घोड़े के खुर के समान वेग से चलते ए तुम दोन हमारे सामने आओ. हे श ुनाशक एवं अपने कम म समथ अ नीकुमारो! तुम चकवा-चकवी अथवा दो रथ वा मय के समान हमारे पास आओ. (३) नावेव नः पारयतं युगेव न येव न उपधीव धीव. ानेव नो अ रष या तनूनां खृगलेव व सः पातम मान्.. (४) हे अ नीकुमारो! नाव जस कार लोग को नद के पार उतार दे ती है, उसी कार तुम हम ःख से पार प ंचाओ. जुआ, प हए क ना भ, अरे और पुठ जस कार रथ को पार करते ह, उसी कार तुम हम पार लगाओ. तुम कु क तरह हम शरीरनाश एवं कवच के समान बुढ़ापे से बचाओ. (४) वातेवाजुया न ेव री तर ी इव च ुषा यातमवाक्. ह ता वव त वे३श भ व ा पादे व नो नयतं व यो अ छ.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वायु के समान नाशर हत, न दय के समान शी गामी एवं ने के समान दशक अ नीकुमारो! हमारे सामने आओ. तुम हाथपैर के समान हमारे शरीर को सुख दे ने वाले होकर हम उ म धन क ओर े रत करो. (५) ओ ा वव म वा ने वद ता तना वव प यतं जीवसे नः. नासेव न त वो र तारा कणा वव सु ुता भूतम मे.. (६) हे अ नीकुमारो! तुम दोन ह ठ के समान मधुर वचन बोलो, दो तन के समान हमारी जीवन र ा के लए ध पलाओ, ना सका के दोन छ के समान हमारे शरीर-र क बनो एवं कान के समान हमारी बात सुनो. (६) ह तेव श म भ स दद नः ामेव नः समजतं रजां स. इमा गरो अ ना यु मय तीः णो ण े ेव वा ध त सं शशीतम्.. (७) हे अ नीकुमारो! हाथ के समान हम साम य दो एवं धरती-आकाश के समान जल दान करो. हमारे ारा क गई तु तयां तु हारे समीप जाती ह. सान जस कार तलवार को तेज कर दे ती है, उसी कार तुम हमारी तु तय को ती ण बनाओ. (७) एता न वाम ना वधना न तोमं गृ समदासो अ न्. ता न नरा जुजुषाणोप यातं बृह दे म वदथे सुवीराः.. (८) हे अ नीकुमारो! गृ समद ऋ ष ने ये मं तथा तो तु हारी उ त के लए रचे ह. हे नेताओ! तुम उ ह चाहते ए आओ. हम शोभन पु -पौ ा त करके इस य म ब त सी तु तयां बोलगे. (८)
सू
४०
दे वता—सोम व पूषा
सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दवो जनना पृ थ ाः. जातौ व य भुवन य गोपौ दे वा अकृ व मृत य ना भम्.. (१) हे सोम एवं पूषा! तुम धन, वग एवं धरती के जनक हो. तुम उ प होते ही संपूण भुवन के र क बने. दे व ने तु ह अमरता का क ब बनाया. (१) इमौ दे वौ जायमानौ जुष तेमौ तमां स गूहतामजु ा. आ या म ः प वमामा व तः सोमापूष यां जन यासु.. (२) सब दे व ने सोम एवं पूषादे व के ज म लेते ही उनक सेवा क . ये दोन असे अंधकार का नाश करते ह. इं इनके साथ मलकर गाय के थन म ध उ प करते ह. (२) सोमापूषणा रजसो वमानं स तच ं रथम व म वम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वपूवृतं मनसा यु यमानं तं ज वथो वृषणा प चर मम्.. (३) हे कामवषक सोम एवं पूषा! तुम संसार के प र छे दक, सात प हय वाले, संसार ारा अ वभा य, सब जगह गमनशील, इ छा करते ही चलने वाले एवं पांच र मय वाले रथ हमारी ओर हांकते हो. (३) द १ यः सदनं च उ चा पृ थ ाम यो अ य त र े. ताव म यं पु वारं पु ंु राय पोषं व यतां ना भम मे.. (४) हे सोम व पूषा! तुम म से एक ने उ त वगलोक को अपना नवास बनाया है, सरा ओष ध प से धरती तथा चं प से आकाश म रहता है. तुम हमारे ह से का पशु पी धन हम दो, जो अनेक लोग ारा वरणीय एवं अ धक क तसंप है. (४) व ा य यो भुवना जजान व म यो अ भच ाण ए त. सोमापूषणाववतं धयं मे युवा यां व ाः पृतना जयेम.. (५) हे सोम और पूषा! तुम म से एक ने सम त ा णय को उ प कया है, सरा सबका नरी ण करता आ जाता है. तुम हमारे य कम क र ा करो. तु हारी सहायता से हम श ु क पूरी सेना को जीत ल. (५) धयं पूषा ज वतु व म वो र य सोमो र यप तदधातु. अवतु दे द तरनवा बृह दे म वदथे सुवीराः.. (६) व को स करने वाले पूषा हमारे कम को पूण कर. धन के वामी सोम हम धन द. वरोधर हत अ द त दे वी हमारी र ा कर. उ म पु -पौ ा त करके हम इस य म ब त सी तु तयां बोलगे. (६)
सू
४१
दे वता—इं , वायु आ द
वायो ये ते सह णो रथास ते भरा ग ह. नयु वा सोमपीतये.. (१) हे वायु! तु हारे पास जो हजार रथ ह, उनके ारा नयुतगण के साथ सोमरस पीने के लए आओ. (१) नयु वा वायवा ग यं शु ो अया म ते. ग ता स सु वतो गृहम्.. (२) हे वायु! नयुत स हत आओ. यह द तमान् सोम तु हारे लए है. तुम सोमरस नचोड़ने वाले यजमान के घर जाते हो. (२) शु
या गवा शर इ वायू नयु वतः. आ यातं पबतं नरा.. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
(३)
हे नेता इं और वायु! तुम आज नयुत के साथ ग
मले सोम पीने के लए आओ.
अयं वां म ाव णा सुतः सोम ऋतावृधा. ममे दह ुतं हवम्.. (४) हे य व क म एवं व ण! तु हारे लए यह सोम नचोड़ा गया है. तुम हमारी पुकार सुनो. (४) राजानावन भ हा ुवे सद यु मे. सह
थूण आसाते.. (५)
श ुर हत एवं द तमान् म व व ण! ुव, ऊंचे और हजार खंभ वाले इस थान म बैठो. (५) ता स ाजा घृतासुती आ द या दानुन पती. सचेते अनव रम्.. (६) सबके शासक, घृत पी अ का भोजन करने वाले, अ द तपु व दानशील म तथा व ण यजमान क सेवा करते ह. (६) गोम षु नास या ाव ाताम ना. वत
ा नृपा यम्.. (७)
हे स यवाद अ नीकुमारो एवं ो! य के नेता दे व के पीने यो य सोम को गाय तथा अ से यु करके अपने माग से लाओ. (७) न य परो ना तर आदधषद्वृष वसू. ःशंसो म य रपुः.. (८) हे धनवषक अ नीकुमारो! हम ऐसा धन दो, जसे न रवत और न समीपवत श ु मनु य चुरा सके. (८) ता न आ वोळ् हम ना र य पश स शम्. ध या व रवो वदम्.. (९) (९)
हे जानने यो य अ नीकुमारो! तुम हमारे पास नाना
प एवं धनलाभकारी पशु लाओ.
इ ो अ मह यमभी षदप चु यवत्. स ह थरो वचष णः.. (१०) इं पराभवकारी महान् भय र करते ह, इस लए वे अचंचल एवं व इ
ा ह. (१०)
मृळया त नो न नः प ादघं नशत्. भ ं भवा त नः पुरः.. (११)
इं य द हम सुखी रखगे तो पाप हमारे समीप नह आएगा एवं हमारे स मुख क याण उप थत होगा. (११) इ आशा य प र सवा यो अभयं करत्. जेता श ू वचष णः.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श ु
को जीतने वाले एवं मेधावी इं हम चार दशा
से भयर हत कर. (१२)
व े दे वास आ गत शृणुता म इमं हवम्. एदं ब ह न षीदत.. (१३) हे व ेदेवो! यहां आओ, मेरी पुकार सुनो एवं इस कुश पर बैठो. (१३) ती ो वो मधुमाँ अयं शुनहो ेषु म सरः. एतं पबत का यम्.. (१४) हे व ेदेवो! तेज नशे वाला, रसयु व स ता दे ने वाला यह सोम हम गृ समदवंशीय ऋ षय के पास है. इस सुंदर सोम को पओ. (१४) इ
ये ा म द्गणा दे वासः पूषरातयः. व े मम ुता हवम्.. (१५)
म द्गण हमारी पुकार सुन. उन म इं सबसे बड़े ह और पूषा उ ह दान दे ते ह. (१५) अ बतमे नद तमे दे वतमे सर व त. अ श ता इव म स श तम ब न कृ ध.. (१६) (१६)
हे माता
, न दय तथा दे वय म उ म सर वती! हम धनर हत को धनी बनाओ.
वे व ा सर व त तायूं ष दे ाम्. शुनहो ेषु म व जां दे व द दड् ढ नः.. (१७) हे तेज वी सर वती! सब अ तु हारे आ य म है. हे दे वी! तुम शुनहो य पीकर स बनो तथा हम पु दो. (१७) इमा सर व त जुष व वा जनीव त. या ते म म गृ समदा ऋताव र या दे वषु जु
म सोम
त.. (१८)
हे अ एवं जल से यु सर वती! इन ह को वीकार करो. हम गृ समदवंशी ऋ षय ने यह माननीय एवं दे व का य ह तु ह दया है. (१८) ेतां य
य श भुवा युवा मदा वृणीमहे. अ नं च ह वाहनम्.. (१९)
हे सुखपूवक य पूण करने वाले धरती-आकाश! आओ. हम तु हारी एवं ह वाहन अ न क ाथना करते ह. (१९) ावा नः पृ थवी इमं स म
द व पृशम्. य ं दे वेषु य छताम्.. (२०)
धरती और आकाश वग आ द के साधक तथा दे व के समीप जाने वाले ह. वे हमारा यह य दे व के समीप ले जाव. (२०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ वामुप थम हा दे वाः सीद तु य याः. इहा सोमपीतये.. (२१) हे श ुर हत धरती और आकाश! य यो य दे वता आज सोमपान के लए तु हारे पास बैठ. (२१)
सू —४२ क न द जनुषं ुवाण इय त वाचम रतेव नावम्. सुम ल शकुने भवा स मा वा का चद भभा व
दे वता—क पजल पी इं ा वदत्.. (१)
बार-बार बोलकर भ व य क बात बताता आ क पजल वाणी को उसी कार े रत करता है, जस कार म लाह नाव को आगे बढ़ाता है. हे प ी! तुम अ त क याणकारी बनो. कसी भी कार पराजय सभी दशा से तु हारे समीप न आवे. (१) मा वा येन उ धी मा सुपण मा वा वद दषुमा वीरो अ ता. प यामनु दशं क न द सुम लो भ वाद वदे ह.. (२) हे शकु न! बाज अथवा ग ड़ तु ह न मारे. धनुधारी एवं बाण फकने वाला वीर भी तु ह ा त न करे. द ण दशा म बार-बार बोलते ए एवं मंगलकारक बनकर हमारे लए यारी बात कहो. (२) अव द द णतो गृहाणां सुम लो भ वाद शकु ते. मा नः तेन ईशत माघशंसो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (३) हे क पजल प ी! तुम क याणसूचक एवं यवाद बनकर हमारे घर क द ण दशा म बोलो. चोर एवं पाप क बात कहने वाले लोग हम पर अ धकार न कर. हम शोभन पु पौ ा त करके इस य म ब त सी तु तयां बोलगे. (३)
सू —४३
दे वता—क पजल पी इं
द णद भ गृण त कारवो वयो वद त ऋतुथा शकु तयः. उभे वाचौ वद त सामगा इव गाय ं च ै ु भं चानु राज त.. (१) क पजल प ी समय-समय पर अ क सूचना दे ते ए तोता के समान द णा करते ए श द कर. सामगायन करने वाला जस कार गाय ी एवं ु प् दोन छं द को बोलता है, उसी कार क पजल प ी भी दोन कार के वा य बोलकर सुनने वाल को स करता है. (१) उद्गातेव शकुने साम गाय स पु इव सवनेषु शंस स. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वृषेव वाजी शशुमतीरपी या सवतो नः शकुने भ मा वद व तो नः शकुने पु यमा वद.. (२) हे प ी! तुम सामगान करने वाले उद्गाता क तरह गाओ एवं य म पु ऋ वक् के समान श द करो. गभाधान करने म समथ घोड़ा घोड़ी के पास जाकर जस कार हन हनाता है, तुम भी उसी कार का श द करो. तुम हमारे लए सभी जगह क याणकारी एवं पु यकारी श द बोलो. (२) आवदं वं शकुने भ मा वद तू णीमासीनः सुम त च क नः. य पत वद स कक रयथा बृह दे म वदथे सुवीराः.. (३) हे क पजल प ी! तुम श द करते समय हमारे लए क याण क सूचना दो एवं मौन रहते समय हमारे त सुम त क इ छा करो. तुम उड़ते समय ककरी बाजे के समान श द करते हो. हम शोभन पु -पौ ा त करके इस य म ब त सी तु तयां बोलगे. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तृतीय मंडल सू —१
दे वता—अ न
सोम य मा तवसं व य ने व चकथ वदथे यज यै. दे वाँ अ छा द ु े अ शमाये अ ने त वं जुष व.. (१) हे अ न! य करने के न म तुमने मुझे सोमरस का वाहक बनाया है, इस लए मुझे श शाली बनाने क इ छा करो. काशयु होता आ म दे व को ल य करके सोमरस नचोड़ने के लए प थर उठाता ं एवं तो बोलता ं. तुम मेरे शरीर क र ा करो. (१) ा चं य ं चकृम वधतां गीः स म र नं नमसा व यन्. दवः शशासु वदथा कवीनां गृ साय च वसे गातुमीषुः.. (२) हे अ न! तुमने पूवकाल म य कया है. हमारे तु त वचन क वृ हो. मेरे आ मीय लोग स मधा एवं ह ारा अ न क सेवा कर. दे व ने वग से आकर तोता को ान दया है. वे तु त क ई एवं व लत अ न क तु त करना चाहते ह. (२) मयो दधे मे धरः पूतद ो दवः सुब धुजनुषा पृ थ ाः. अ व द ु दशतम व१ तदवासो अ नमप स वसॄणाम्.. (३) मेधावी, शु बलयु , ज म से ही उ म बंध,ु वग का सुख वधान करने वाले एवं सुंदर अ न को हमने बहने वाली न दय के जल के भीतर से य काय के हेतु ा त कया है. (३) अवधय सुभगं स त य ः ेतं ज ानम षं म ह वा. शशुं न जातम या र ा दे वासो अ नं ज नम वपु यन्.. (४) शोभन धन वाले, उ वल एवं मह व से का शत जल म थत अ न को सात न दय ने बढ़ाया. घोड़ी जस कार तुरंत ज मे बछड़े के पास जाती है, उसी कार न दयां उ प अ न के समीप ग . दे व ने अ न को उ प होते ही काशमान कया. (४) शु े भर ै रज आतत वान् तुं पुनानः क व भः प व ैः. शो चवसानः पयायुरपां यो ममीते बृहतीरनूनाः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न उ वल तेज के ारा अंत र को ा त करते ए यजमान को तु त यो य एवं प व तेज से शु करते ह तथा द त को धारण करके यजमान को धन एवं सारी संप यां दे ते ह. (५) व ाजा सीमनदतीरद धा दवो य रवसाना अन नाः. सना अ युवतयः सयोनीरेकं गभ द धरे स त वाणीः.. (६) जल का भ ण न करते ए एवं जल के ारा न होते ए अंत र क संतान के समान एवं व ढके न होने पर भी जल से घरे होने के कारण अ न नंगे नह ह. सनातन, न य त ण एवं एक थान से उ प सात न दय ने अ न को गभ के समान धारण कया. (६) तीणा अ य संहतो व पा घृत य योनौ वथे मधूनाम्. अ थुर धेनवः प वमाना मही द म य मातरा समीची.. (७) अनेक प वाली एवं सब जगह फैली ई अ न क करण जलवषा के प ात् जल के उप थान आकाश म एक त रहती ह. सबको स करने वाली जल पी गाएं इसी अ न म रहती ह. वशाल धरती और आकाश सुंदर अ न के माता- पता ह. (७) ब ाणः सूनो सहसो ौ धानः शु ा रभसा वपूं ष. ोत त धारा मधुनो घृत य वृषा य वावृधे का ेन.. (८) हे बल के पु अ न! तुम सबके ारा धारण कए जाकर भा कर एवं वेग वाली करण धारण करते ए का शत होते हो. अ न जस समय तो के कारण बढ़ते ह, उस समय मीठे जल क धाराएं गरती ह. (८) पतु धजनुषा ववेद य धारा असृज धेनाः. गुहा चर तं स ख भः शवे भ दवो य भन गुहा बभूव.. (९) ज म लेते ही अ न ने अपने पता अंत र के तन म थत जल को जान लया. वहां से जलधारा को बहाया एवं म यमा वा णय को वस जत कया. अपने क याणकारी वायु पी बंधु के साथ थत होकर आकाश के संतान पी जल के साथ गुफा म रहने वाली अ न को कोई ा त नह कर सका. (९) पतु गभ ज नतु ब े पूव रेको अधय पी यानाः. वृ णे सप नी शुचये सब धू उभे अ मै मनु ये३ न पा ह.. (१०) अ न अपने पता अंत र का गभ अथात् जल एवं अपने ज मदाता ा ण का गभ अथात् लोकपोषण धारण करते ह. अकेले अ न अनेक प म वृ ा त ओष धय का भ ण करते ह. पर पर सौत एवं मनु य का क याण करने वाले धरती-आकाश कामवषक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न के बंधु ह. हे अ न! तुम इन दोन क र ा करो. (१०) उरौ महाँ अ नबाधे ववधापो अ नं यशसः सं ह पूव ः. ऋत य योनावशय मूना जामीनाम नरप स वसॄणाम्.. (११) महान् अ न बाधार हत एवं वशाल आकाश म बढ़ते ह, य क अनेक कार के अ से यु जल अ न को भली कार बढ़ाता है. जल के उ प थान आकाश म थत अ न नद पी ब हन के जल म शांत च से सोते ह. (११) अ ो न ब ः स मथे महीनां द ेयः सूनवे भाऋजीकः. उ या ज नता यो जजानापां गभ नृतमो य ो अ नः.. (१२) संपूण लोक के जनक, जल के गभ के समान, मानव के परम र क, महान्, श ु पर आ मण करने वाले, सं ाम म अपनी वशाल सेना के र क, परम सुंदर एवं अपनी यो त से काशमान अ न ने यजमान के लए जल पैदा कया है. (१२) अपां गभ दशतमोषधीनां वना जजान सुभगा व पम्. दे वास मनसा सं ह ज मुः प न ं जातं तवसं व यन्.. (१३) सौभा यशाली एवं सुखदाता अर ण ने दशनीय एवं भां त-भां त क ओष धय के गभ के समान अ न को ज म दया. सम त दे व तु तयो य, उ त एवं तुरंत उ प अ न के समीप तु त करते ए गए एवं उ ह ने अ न क सेवा क . (१३) बृह त इ ानवो भाऋजीकम नं सच त व त ु ो न शु ाः. गुहेव वृ ं सद स वे अ तरपार ऊव अमृतं हानाः.. (१४) गहरे सागर के म य अमृत पी जल को बखेरते ए महान् सूय क चमकती ई बज लय के समान सूयगण अपने नवास थान अंत र म बढ़ते एवं अपनी चमक से जलती ई अ न का सहारा लेते ह. अंत र गुहा के समान है. (१४) ईळे च वा यजमानो ह व भरीळे स ख वं सुम त नकामः. दे वैरवो ममी ह सं ज र े र ा च नो द ये भरनीकैः.. (१५) म यजमान ह के ारा तु हारी तु त करता ं एवं धम वषयक उ मबु पाने क इ छा से तु हारे साथ म ता क याचना करता ं. दे व के साथ मेरे पशु एवं मुझ तोता क अपने अदमनीय तेज ारा र ा करो. (१५) उप ेतार तव सु णीतेऽ ने व ा न ध या दधानाः. सुरेतसा वसा तु माना अ भ याम पृतनायूँरदे वान्.. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे उ म नेता अ न! तु हारे समीप जाते ए हम पशु आ द धन के कारण प य को करते ए तु ह ह दे ते ह एवं शोभन बल से यु अ दे कर दे व वरोधी श ु को परा जत करते ह. (१६) आ दे वानामभवः केतुर ने म ो व ा न का ा न व ान्. त मता अवासयो दमूना अनु दे वा थरो या स साधन्.. (१७) हे रथी अ न! तुम य म दे व के शंसनीय केतु, सभी तो के जानने वाले, सभी मनु य को उनके घर म बसाने वाले एवं दे व का काय स करके उनके पीछे चलने वाले हो. (१७) न रोणे अमृतो म यानां राजा ससाद वदथा न साधन्. घृत तीक उ वया ौद न व ा न का ा न व ान्.. (१८) द तमान् एवं न य अ न य को पूण करते ए होता के घर म थत होते ह. घृत के कारण बढ़ने वाले अ न सभी बात को जानते एवं का शत होते ह. (१८) आ नो ग ह स ये भः शवे भमहा मही भ त भः सर यन्. अ मे र य ब लं स त ं सुवाचं भागं यशसं कृधी नः.. (१९) हे सब जगह जाने के इ छु क महान् अ न! क याणकारी स य एवं र ा के वशाल साधन लेकर हमारे पास आओ एवं व तीण, उप व से र हत, शोभन वचन यु , सुभग तथा यश वी बनाओ. (१९) एता ते अ ने ज नमा सना न पू ाय नूतना न वोचम्. महा त वृ णे सवना कृतेमा ज म मन् न हतो जातवेदाः.. (२०) हे पुरातन अ न! हम तु ह ल य करके सनातन एवं नवीन तु तय को पढ़ते ह. सब ा णय को जानने वाले एवं मनु य के बीच थत कामवषक अ न को ल य करके हमने ये य कए ह. (२०) जम मन् न हतो जातवेदा व ा म े भ र यते अज ः. त य वयं सुमतौ य य या प भ े सौमनसे याम.. (२१) सभी मनु य के बीच थत तथा सभी ा णय को जानने वाले अ न को व ा म के गो वाले ऋ ष सदै व व लत रखते ह. हम उन य यो य अ न क कृपा ा त करके उ म क याण पाएंगे. (२१) इमं य ं सहसावन् वं नो दे व ा धे ह सु तो रराणः. यं स होतबृहती रषो नोऽ ने म ह वणमा यज व.. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे श शाली एवं उ म कम वाले अ न! तुम सदै व रमण करते ए हमारे य को दे व के समीप प ंचाओ. हे दे व के होता अ न! हम अ एवं अ धक धन दो. (२२) इळाम ने पु दं सं स न गोः श मं हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (२३) हे अ न! मुझ होता को मेरे कम के अनुकूल गाय दान करने वाली थायी भू म दो. मेरा पु संतान का व तार करने वाला हो. मेरे त तु हारी उ म बु हो. (२३)
सू —२
दे वता—वै ानर अ न
वै ानराय धषणामृतावृधे घृतं न पूतम नये जनाम स. ता होतारं मनुष वाघतो धया रथं न कु लशः समृ व त.. (१) हम जल बढ़ाने वाले वै ानर को ल य करके यु के समान आनंद द तु तयां करते ह. जैसे वसूला रथ को बनाता है, उसी कार यजमान और ऋ वज् गाहप य एवं आ ानीय दो कार के दे व-आ ाता अ न का म सं कार करता ं. (१) स रोचय जनुषा रोदसी उभे स मा ोरभव पु ई ः. ह वाळ नरजर नो हतो ळभो वशाम त थ वभावसुः.. (२) अ न ने उ प होते ही धरती और आकाश को का शत कया एवं अपने माता- पता के शंसनीय पु बने. ह वहन करने वाले, यजमान को अ दे ने वाले, अधृ य एवं भावयु अ न इस कार पू य ह जैसे मनु य अ त थ क पूजा करते ह. (२) वा द य त षो वधम ण दे वासो अ नं जनय त च भः. चानं भानुना यो तषा महाम यं न वाजं स न य ुप ुवे.. (३) ानयु दे वगण ने सन से छु ड़ाने वाले बल ारा य म अ न को उ प कया. म अ क अ भलाषा से भासमान यो त ारा चमकने वाले महान् अ न क तु त भारवाही अ के समान करता ं. (३) आ म य स न य तो वरे यं वृणीमहे अ यं वाजमृ मयम्. रा त भृगूणामु शजं क व तुम नं राज तं द न े शो चषा.. (४) म तु त यो य वै ानर अ न से संबं धत, उ म, ल जा न उ प करने वाले एवं शंसनीय अ क अ भलाषा करता आ भृगुवंशी ऋ षय क इ छा पूण करने वाले, सबके य, ांतदश एवं द यो त से सुशो भत अ न क सेवा करता ं. (४) अ नं सु नाय द धरे पुरो जना वाज वस मह वृ ब हषः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यत ुचः सु चं व दे ं
ं य ानां साध द मपसाम्.. (५)
कुश बछाने वाले एवं हाथ म ुच लए ए ऋ वज् सुख पाने के लए मनु य को अ दे ने वाले, उ म द तयु , संपूण दे व के हतकारक, ःखनाशक एवं यजमान के य पूण करने वाले अ न क तु त करते ह. (५) पावकशोचे तव ह यं प र होतय ेषु वृ ब हषो नरः. अ ने व इ छमानास आ यमुपासते वणं धे ह ते यः.. (६) हे प व चमक वाले तथा दे व के होता अ न! य म चार ओर कुश बछाए ए एवं तु हारी सेवा करने के इ छु क यजमान तु हारे ा त करने यो य य मंडप क सेवा करते ह. तुम उ ह धन दो. (६) आ रोदसी अपृणदा वमह जातं यदे नमपसो अधारयन्. सो अ वराय प र णीयते क वर यो न वाजसातये चनो हतः.. (७) अ न ने धरती, आकाश एवं वशाल वग को भर दया था. यजमान ने अ न को धारण कया था. ांतदश एवं अ यु अ न घोड़े के समान अ पाने के लए लाए जाते ह. (७) नम यत ह दा त व वरं व यत द यं जातवेदसम्. रथीऋत य बृहतो वचष णर नदवानामभव पुरो हतः.. (८) नेता, महान् एवं य को दे खने वाले अ न दे व के सामने था पत ए थे. दे व को ह दे ने वाले, शोभन य यु , घर के लए हतकारक एवं सभी ा णय को जानने वाले अ न क सेवा करो. (८) त ो य य स मधः प र मनोऽ नेरपुन ु शजो अमृ यवः. तासामेकामदधुम य भुजमु लोकमु े उप जा ममीयतुः.. (९) अ न क अ भलाषा करने वाले मरणर हत दे व ने महान् और चार ओर जाने वाले अ न के ापक पा थव, वै ु तक एवं सूय प तीन शरीर को प व कया था. दे व ने सबका पालन करने वाले पा थव शरीर को धरती पर एवं शेष दो को आकाश म रखा. (९) वशां क व व प त मानुषी रषः सं सीमकृ व व ध त न तेजसे. स उ तो नवतो या त वे वष स गभमेषु भुवनेषु द धरत्.. (१०) धन क इ छा करने वाली मानवी जा ने जा के वामी एवं मेधावी अ न का इस लए सं कार कया क वे धार लगी ई तलवार के समान तेज वी हो जाव. अ न ऊंचे तथा नीचे थान को ा त करते ए जाते ह एवं सभी लोक म अपना गभ धारण करते ह. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(१०) स ज वते जठरेषु ज वा वृषा च ेषु नानद सहः. वै ानरः पृथुपाजा अम य वसु र ना दयमानो व दाशुषे.. (११) परम तेज वी, अमर, यजमान को उ म व तुएं दे ने वाले, उ प होने वाले एवं कामवषक वै ानर अ न सह के समान गजन करते ए अनेक कार के उदर म बढ़ते ह. (११) वै ानरः नथा नाकमा ह व पृ ं भ दमानः सुम म भः. स पूवव जनय तवे धनं समानम मं पय त जागृ वः. (१२) तोता ारा तु त कए जाते ए वै ानर अ न चरंतन के समान अंत र क पीठ प वग पर आरोहण करते ह. वे ाचीन ऋ षय के समान ही तु तक ा यजमान को धन दे ते ए सदा बु रहकर सूय के प म दे व क तरह आकाश पी माग पर घूमते ह. (१२) ऋतावानं य यं व मु य१ मा यं दधे मात र ा द व यम्. तं च यामं ह रकेशमीमहे सुद तम नं सु वताय न से.. (१३) बलवान्, य के यो य, मेधावी, तु त यो य एवं वगलोक म नवास करने वाले अ न को धरती पर लाकर वायु ने था पत कया है. हम उ ह व च ग त वाले, पीली करण वाले एवं शोभन द तयु अ न से नवीन धन क याचना करते ह. (१३) शु च न याम षरं व शं केतुं दवो रोचन थामुषबुधम्. अ नं मूधानं दवो अ त कुषं तमीमहे नमसा वा जनं बृहत्.. (१४) म द त, य म गमन करने वाले, अ भलाषा करने यो य, सबको दे खने वाले, वग के तीक, सूय म थत, ातःकाल जागने वाले, वग के शीश तु य, अ यु एवं महान् अ न क तो ारा याचना करता ं. उनका श द कह कता नह है. (१४) म ं होतारं शु चम या वनं दमूनसमु यं व वचष णम्. रथं न च ं वपुषाय दशतं मनु हतं सद म ाय ईमहे.. (१५) तु त के यो य, दे व को बुलाने वाले, शु , कु टलतार हत, दानदाता, े , संसार को दे खने वाले, रथ क तरह व वध रंग वाले, दशनीय तथा मानव का सदा हत करने वाले अ न से म धन क याचना करता ं. (१५)
सू —३
दे वता—वै ानर अ न
वै ानराय पृथुपाजसे व ो र ना वध त ध णेषु गातवे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न ह दे वाँ अमृतो व य यथा धमा ण सनता न
षत्.. (१)
मेधावी तोता स माग ा त करने के लए परम बलशाली, वै ानर अ न के त य म सुंदर तो पढ़ते ह. मरणर हत अ न ह के ारा दे व क सेवा करते ह. इसी कारण कोई भी सनातन धम पी य को षत नह करता है. (१) अ त तो रोदसी द म ईयते होता नष ो मनुषः पुरो हतः. यं बृह तं प र भूष त ु भदवे भर न र षतो धयावसुः.. (२) दशनीय होता अ न दे व के त बनकर धरती-आकाश के बीच म गमन करते ह. मनु य के आगे था पत एवं बैठे ए अ न अपनी चमक से वशाल य शाला को सुशो भत करते ह. वे अ न दे व ारा े रत एवं बु यु ह. (२) केतुं य ानां वदथ य साधनं व ासो अ नं महय त च भः. अपां स य म ध संदधु गर त म सु ना न यजमान आ चके.. (३) व ान् लोग य के तीक एवं साधन प अ न क पूजा अपने य कम ारा करते ह. तोता जस अ न म अपने-अपने क कम को अ पत करते ह, उ ह अ न से यजमान सुख क कामना करता है. (३) पता य ानामसुरो वप तां वमानम नवयुनं च वाघताम्. आ ववेश रोदसी भू रवपसा पु यो भ दते धाम भः क वः.. (४) य के पालक, तोता को श दे ने वाले, ऋ वज के लए ान के साधन एवं य कम के कारण अ न अनेक प के ारा धरती-आकाश म वेश करते ह. मनु य म य एवं तेज से यु अ न क यजमान तु त करते ह. (४) च म नं च रथं ह र तं वै ानरम सुषदं व वदम्. वगाहं तू ण त वषी भरावृतं भू ण दे वास इह सु यं दधुः.. (५) दे व ने स ताकारक, आ ादक रथ वाले, पीले रंग वाले, जल के म य नवास करने वाले, सव , सब जगह घूमने वाले, व रत ग त, श ु हसक, बल से यु , सबका भरण करने वाले एवं शोभन द त यु वै ानर अ न को इस लोक म था पत कया है. (५) अ नदवे भमनुष ज तु भ त वानो य ं पु पेशसं धया. रथीर तरीयते साध द भज रो दमूना अ भश तचातनः.. (६) य को स करने वाले दे व तथा ऋ वज के साथ य कम ारा यजमान के भां तभां त के य को पूण करने वाले, सारे लोक के नेता, शी काम करने वाले, दानशील एवं श ुनाशक अ न धरती और आकाश के बीच जाते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ने जर व वप य आयु यूजा प व व स मषो दद ह नः. वयां स ज व बृहत जागृव उ श दे वानाम स सु तु वपाम्.. (७) हे अ न! हम सुपु एवं द घ आयु ा त कराने के लए दे व क तु त करो एवं अ ारा उ ह स करो. हे जागरणशील अ न! हमारी फसल के लाभ के लए वषा को े रत करो, अ का दान करो तथा महान् यजमान को धन दो, य क तुम उ म कम करने वाले तथा दे व के यारे हो. (७) व प त य म त थ नरः सदा य तारं धीनामु शजं च वाघताम्. अ वराणां चेतनं जातवेदसं शंस त नमसा जू त भवृधे.. (८) तोता, मनु य के वामी, महान्, सबके अ त थ, बु य का नयं ण करने वाले, ऋ वज के य, य के ापक, वेगशाली एवं उ प ा णय को जानने वाले अ न क वृ के लए नम कार एवं तु तय ारा शंसा करते ह. (८) वभावा दे वः सुरणः प र तीर नबभूव शवसा सुम थः. त य ता न भू रपो षणो वयमुप भूषेम दम आ सुवृ भः.. (९) द तमान्, तु त कए जाते ए, रमणीय शोभन रथ वाले अ न श ारा सारी जा को घेर लेते ह. अनेक का पोषण करने वाले एवं य शाला म नवास करने वाले अ न के सभी कम को हम उ म तो ारा का शत करगे. (९) वै ानर तव धामा या चके ये भः व वदभवो वच ण. जात आपृणो भुवना न रोदसी अ ने ता व ा प रभूर स मना. (१०) हे चतुर वै ानर अ न! म तु हारे उ ह तेज क तु त करता ,ं जनके ारा तुम सव ए हो. तुम ज म लेते ही सारे भुवन एवं धरती-आकाश को पूण कर दे ते हो. हे अ न! तुम अपने ारा सभी ा णय को ा त करते हो. (१०) वै ानर य दं सना यो बृहद रणादे कः वप यया क वः. उभा पतरा महय जायता न ावापृ थवी भू ररेतसा.. (११) वै ानर अ न क संतोषजनक या से महान् धन मलता है, यह स य है, य क वह य ा द शोभन कम क इ छा से यजमान को धन दे ते ह. अ न वीयशाली माता- पता, धरती और आकाश को महान् बनाते ए उ प ए ह. (११)
सू —४
दे वता—आ य
स म स म सुमना बो य मे शुचाशुचा सुम त रा स व वः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ दे व दे वा यजथाय व
सखा सखी सुमना य य ने.. (१)
हे अ य धक व लत अ न! तुम उ म मन से जागो. तुम अपने इधर-उधर फैलने वाले तेज के ारा हम धन दे ने क कृपा करो. हे अ तशय ोतमान अ न! दे व को हमारे य म लाओ. तुम दे व के म हो. अनुकूलतापूवक दे व का य करो. (१) यं दे वास रह ायज ते दवे दवे व णो म ो अ नः. सेमं य ं मधुम तं कृधी न तनूनपाद्घृतयो न वध तम्.. (२) व ण, म और अ न के जस शरीर को प व करने वाले अ न का येक दन म तीन बार य करते ह, वे हमारे इस जल न म क य को वषा आ द फल से यु कर. (२) द ध त व वारा जगा त होतार मळः थमं यज यै. अ छा नमो भवृषभं व द यै स दे वा य द षतो यजीयान्.. (३) सब लोग को य लगने वाली तु त दे व को बुलाने वाले अ न के समीप जावे. इडा दे व म मुख, सामने आकर कामना पूण करने वाले एवं वंदना के यो य अ न के पास उ ह ह अ से स करने के लए आव. य कम म अ यंत कुशल अ न हमारी ेरणा से य कर. (३) ऊ व वां गातुर वरे अकायू वा शोच ष थता रजां स. दवो वा नाभा यसा द होता तृणीम ह दे व चा व ब हः.. (४) अ न और कुश के लए य म एक उ म माग बनाया गया है. द त वाला ह ऊपर जाता है. होता द तयु य शाला के बीच म बैठा है. हम दे व से ा त कुश बछाते ह. (४) स त हो ा ण मनसा वृणाना इ व तो व ं त य ृतेन. नृपेशसो वदथेषु जाता अभी३मं य ं व चर त पूव ः.. (५) मन से ाथना करने यो य एवं जल के ारा व को स चते ए दे वगण सात य जाते ह. वे नेता प, य म उ प , य के दोन ार-तु य दे वता हमारे इस य शरीरस हत आव. (५)
म म
आ भ दमाने उषसा उपाके उत मयेते त वा३ व पे. यथा नो म ो व णो जुजोष द ो म वाँ उत वा महो भः.. (६) भली कार तुत रात व दन पर पर मलकर या अलग-अलग होकर काश पी शरीर से आव. वे धरती और आकाश को उस तेज से यु कर, जससे म , व ण एवं इं हम पर कृपा करते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दै ा होतारा थमा यृ े स त पृ ासः वधया मद त. ऋतं शंस त ऋत म आ रनु तं तपा द यानाः.. (७) अ न प दोन होता , द तथा मु य को म स करता .ं जल संबंधी मं बोलते ए अ यु सात ऋ वज् ह ारा अ न को स करते ह. य कम के र क एवं द त वाले ऋ वज् येक य म अ न से स य बात कहते ह. (७) आ भारती भारती भः सजोषा इळा दे वैमनु ये भर नः. सर वती सार वते भरवाक् त ो दे वीब हरेदं सद तु.. (८) भारती अथात् वाणी सूयवंशी लोग के साथ तथा इडा और अ न दे व एवं मनु य के साथ आव. सर वती सार वतजन के साथ आव. ये तीन दे वयां आकर हमारे सामने कुश पर बैठ. (८) त तुरीपमध पोष य नु दे व व व रराणः य व. यतो वीरः कम यः सुद ो यु ावा जायते दे वकामः.. (९) हे व ा दे व! तुम स होकर हम तारक एवं पोषक वीय से यु करो, जसके ारा हम वीर, कमकुशल, श शाली, सोमरस तैयार करने के लए हाथ म प थर उठाने वाले एवं दे व के भ पु उ प कर सक. (९) वन पतेऽव सृजोप दे वान नह वः श मता सूदया त. से होता स यतरो यजा त यथा दे वानां ज नमा न वेद.. (१०) हे वन प त! दे व को हमारे समीप लाओ. पशु का सं कार करने वाले अ न और वन प त दे व के पास ह ले जाव. अ तशय स य प अ न होता प म य कर. वे ही दे व के ज म को जानते ह. (१०) आ या ने स मधानो अवा ङ े ण दे वैः सरथं तुरे भः. ब हन आ ताम द तः सुपु ा वाहा दे वा अमृता मादय ताम्.. (११) हे अ न! तुम वाला प से द त होकर इं एवं शी ताकारी अ य दे व के साथ एक रथ पर बैठकर हमारे स मुख आओ. उ म पु से यु अ द त कुश पर बैठ एवं मरणर हत दे व वाहाकार से स ता पाव. (११)
सू —५
दे वता—अ न
य न षस े कतानोऽबो ध व ः पदवीः कवीनाम्. पृथुपाजा दे वय ः स म ोऽप ारा तमसो व रावः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उषा को जानते ए जो मेधावी अ न ांतद शय के माग पर जाते ए जागे थे, वही परम तेज वी अ न दे व को चाहने वाले लोग ारा व लत होकर अ ान के जाने के ार खोलते ह. (१) े
नवावृधे तोमे भग भः तोतॄणां नम य उ थैः. पूव ऋत य सं श कानः सं तो अ ौ षसो वरोके.. (२) य
जो पू य अ न तोता के वा य , तो और मं से बढ़ते ह, वे ही दे व त अ न म सूय के समान का शत होने के लए ातःकाल जाग उठते ह. (२) अधा य नमानुषीषु व व१पां गभ म ऋतेन साधन्. आ हयतो यजतः सा व थादभू व ो ह ो मतीनाम्.. (३)
यजमान के म , य के ारा उनक इ छाएं पूण करने वाले एवं जल के गभ अ न मानवी जा के म य दे व ारा था पत कए गए ह. कामना करने यो य, य के यो य एवं वेद के ऊंचे थान पर थत अ न तोता क तु तय के ारा तुत ए ह. (३) म ो अ नभव त य स म ो म ो होता व णो जातवेदाः. म ो अ वयु र षरो दमूना म ः स धूनामुत पवतानाम्.. (४) अ न व लत होते समय म होते ह. वे म के साथ-साथ होता तथा ा णय के ाता व ण भी बनते ह. वे ही म , अ वयु, दानशील एवं वायु बनते ह तथा न दय एवं पवत के म ह. (४) पा त यं रपो अ ं पदं वेः पा त य रणं सूय य. पा त नाभा स तशीषाणम नः पा त दे वानामुपमादमृ वः.. (५) दशनीय अ न सब जगह ा त, पृ वी के य एवं उ म थान क र ा करते ह. महान् अ न सूय के वचरण थान आकाश क र ा करते ह. वे आकाश म म द्गण क र ा करते ह एवं दे व को स करने के लए य को र त करते ह. (५) ऋभु ई ं चा नाम व ा न दे वो वयुना न व ान्. सस य चम घृतव पदं वे त दद नी र य यु छन्.. (६) महान् एवं जानने यो य सभी पदाथ को जानने वाले अ न दे व ने शंसनीय एवं सुंदर जल को पैदा कया था. ा त एवं सोते ए अ न का प भी द त वाला होता है. अ न मादहीन होकर उस जल क र ा करते ह. (६) आ यो नम नघृतव तम था पृथु गाणमुश तमुशानः. द ानः शु चऋ वः पावकः पुनः पुनमातरा न सी कः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ छा करते ए अ न द तयु , भली कार तुत एवं अपने य थान पर थत ह. द तमान्, प व , दशनीय एवं महान् अ न अपने माता- पता प धरती और आकाश को अ धक नया बनाते ह. (७) स ो जात ओषधी भवव े यद वध त वो घृतेन. आप इव वता शु भमाना उ यद नः प ो प थे.. (८) तुरंत उ प अ न को ओष धयां धारण करती ह. उस समय बहने के माग पर जाने वाले जल के समान सुशो भत वे ओष धयां फल दे ती ई जल के ारा बढ़ती ह. मातापता प धरती एवं आकाश क गोद म बढ़ते ए अ न हमारी र ा कर. (८) उ ु तः स मधा य ो अ ौ म दवो अ ध नाभा पृ थ ाः. म ो अ नरी ो मात र ा तो व जथाय दे वान्.. (९) हमारे ारा तुत एवं व लत होने के कारण महान् अ न उ र वेद के म यभाग म आकाश को का शत करते ह. सबके म , तु त-यो य एवं अर ण से उ प होने वाले अ न दे व के त बनकर उ ह य के न म बुलाव. (९) उद त भी स मधा नाकमृ वो३ नभव ु मो रोचनानाम्. यद भृगु यः प र मात र ा गुहा स तं ह वाहं समीधे.. (१०) जब मात र ा अथात् वायु ने भृगुवंशी ऋ षय के लए गुहा म थत ह वाहक अ न को जलाया था, तब महान् एवं तेज वय म उ म अ न ने अपने तेज ारा वग को ढ़ बना दया था. (१०) इळाम ने पु दं सं स न गोः श मं हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (११) हे अ न! तुम तोता को सदा ऐसी भू म दो, जसे पाकर वे ब त से य कम करते ए गाय पा सक. हम ऐसा एक पु दो जो हमारे वंश का व तार करे एवं संतान को उ प करे. हमारे त तु हारी शोभन बु रहे. (११)
सू —६
दे वता—अ न
कारवो मनना व यमाना दे व च नयत दे वय तः. द णावाड् वा जनी ा ये त ह वभर य नये घृताची.. (१) हे य क ाओ! तुम दे व क कामना करते ए मं से े रत होकर दे व क अचना करने वाला ुच भली कार लाओ. वह आहवनीय य क द ण दशा म ले जाया जाता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है, अ यु है, उसका आगे वाला ह सा पूव दशा म रहता है एवं वह अ न के लए ह व धारण करता है, वही ुच जाता है. (१) आ रोदसी अपृणा जायमान उत र था अध नु य यो. दव द ने म हना पृ थ ा व य तां ते व यः स त ज ाः.. (२) हे अ न! तुम उ प होते ही धरती एवं आकाश को पूण करो. हे य के यो य अ न! तुम अपने मह व से धरती एवं आकाश से उ म हो. तु हारी अंश पी सात वालाएं पू जत ह . (२) ौ वा पृ थवी य यासो न होतारं सादय ते दमाय. यद वशो मानुषीदवय तीः य वतीरीळते शु म चः.. (३) हे धरती, आकाश एवं य के यो य दे व! जस समय य के पा दे व एवं तोता ह लेकर तु हारी उ वल द तय का वणन करते ह, उस समय तुम होता य पूरा करने के लए तुझ अ न क तु त करते ह. (३) महा सध थे ुव आ नष ोऽ त ावा मा हने हयमाणः. आ े सप नी अजरे अमृ े सब घे उ गाय य धेनू.. (४) महान् एवं यजमान ारा चाहे गए अ न धरती और आकाश के बीच अपने उ म थान पर थत होते ह. चलने वाली, सूय पी एक ही प त क प नयां, जरार हत, सर ारा अ ह सत एवं जल पी ध लेने वाले धरती व आकाश उस शी गामी अ न क गाएं ह. (४) ता ते अ ने महतो महा न तव वा रोदसी आ तत थ. वं तो अभवो जायमान वं नेता वृषभ चषणीनाम्.. (५) हे सव कृ अ न! तुमसे संबं धत कम महान् है. तुमने धरती और आकाश को व तार दया है एवं तुम त बने हो. हे कामवषक अ न! तुम उ प होते ही यजमान के फलदाता होते हो. (५) ऋत य वा के शना योगया भघृत नुवा रो हता धु र ध व. अथा वह दे वा दे व व ा व वरा कृणु ह जातवेदः.. (६) हे अ न दे व! उ म केश वाले, र सय से यु एवं घी टपकाने वाले दोन रो हत नामक घोड़ को य के अ भाग म लाओ तथा सभी दे व का आ ान करो. हे जातवेद अ न! तुम दे व को शोभन य वाला बनाओ. (६) दव दा ते चय त रोका उषो वभातीरनु भा स पूव ः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपो यद न उशध वनेषु होतुम
य पनय त दे वाः.. (७)
हे अ न! जस समय तुम वनवृ का जलभाग जलाते हो, उस समय तु हारी चमक सूय से भी बढ़ जाती है. तुम वशेष भा वाली उषा के पीछे का शत होते हो. तोता तुझ तु तयो य होता क तु त करते ह. (७) उरौ वा ये अ त र े मद त दवो वा ये रोचने स त दे वाः. ऊमा वा ये सुहवासो यज ा आये मरे र यो अ ने अ ाः.. (८) व तृत आकाश म जो दे व स होते ह, सब दे व जो सूय के समान काश वाले ह, उस नाम के पतर एवं य के यो य दे व जो बुलाने पर आते ह, हे रथवान् अ न! तु हारे जो अ ह. (८) ऐ भर ने सरथं या वाङ् नानारथं वा वभवो ाः. प नीवत शतं दे वाननु वधमा वह मादय व.. (९) हे अ न! इन सब दे व के साथ एक रथ पर अथवा अलग-अलग रथ पर बैठकर हमारे सामने आओ. तु हारे घोड़े श शाली ह. प नय स हत ततीस दे व को अ ा त के लए यहां ले आओ एवं सोमरस ारा उ ह स करो. (९) स होता य य रोदसी च व य ंय म भ वृधे गृणीतः. ाची अ वरेव त थतुः सुमेके ऋतावरी ऋतजात य स ये.. (१०) वे ही अ न दे व के होता ह, जनक समृ के लए व तृत धरती और आकाश येक य म शंसा करते ह. शोभन प वाले, जलयु एवं स चे प वाले धरती और आकाश होता प एवं स य से उ प अ न के उसी कार अनुकूल होते ह, जस कार य अ न के अनुकूल होता है. (१०) इळाम ने पु दं सं स न गोः श मं हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (११) हे अ न! तुम तोता को सवदा ऐसी भू म दो, जसे पाकर वे ब त से य कम करते ए गाएं ा त कर सक. हम एक ऐसा पु दो, जो हमारे वंश का व तार करे एवं संतान उ प करे. हमारे त तु हारी शोभन बु रहे. (११)
सू —७
दे वता—अ न
य आ ः श तपृ य धासेरा मातरा व वशुः स त वाणीः. प र ता पतरा सं चरेते स ाते द घमायुः य े.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नीली पीठ वाले एवं सबके धारणक ा अ न क अ यंत ऊपर उठने वाली करण माता- पता प धरती-आकाश एवं सात न दय म सभी ओर से वेश करती ह. मातापता प धरती और आकाश भली-भां त व तृत ह एवं अ धक मा ा म य करने के लए अ न द घ-आयु प अ दे ते ह. (१) दव सो धेनवो वृ णो अ ा दे वीरा त थौ मधुम ह तीः. ऋत य वा सद स ेमय तं पयका चर त वत न गौः.. (२) आकाश म रहने वाली सूय करण प गाएं कामवष अ न के घोड़े ह. मधुर जल वाली द न दय म अ न का वास है. हे उदक के थान म नवास के इ छु क एवं वालाएं दान करने वाले अ न! मा य मका वाणी प गाएं तु हारी सेवा करती ह. (२) आ सीमरोह सुयमा भव तीः प त क वा य व यीणाम्. नीलपृ ो अतस य धासे ता अवासय पु ध तीकः.. (३) उ म संप य एवं ानसंप अ के वामी अ न जन घो ड़य पर चढ़ते ह, उ ह सुख से वश म कया जा सकता है. नीली पीठ वाले एवं चार ओर व तृत अ न ने घो ड़य को सदा चलने के लए छोड़ दया है. (३) म ह वा मूजय तीरजुय तभूयमानं वहतो वह त. े भ द ुतानः सध थ एका मव रोदसी आ ववेश.. (४) नबल को बलवान् बनाने वाली न दयां महान्, व ा के पु , जरार हत एवं लोक को धारण करने के इ छु क अ न को वहन करती ह. जल के समीप अपने अवयव से का शत होते ए अ न धरती-आकाश म उसी कार वेश करते ह, जस कार पु ष नारी के समीप जाता है. (४) जान त वृ णो अ ष य शेवमुत न य शासने रण त. दवो चः सु चो रोचमाना इळा येषां ग या मा हना गीः.. (५) मनु य कामवष एवं श ुहीन अ न के आ य से मलने वाले सुख को जानते ह, इसी लए महान् अ न क आ ा पालने म स रहते ह. जन मनु य क अ न- तु त पी वाणी उ म होती है, वे वग को ा त करने वाले, उ म द घायुयु एवं तेज वी बनते ह. (५) उतो पतृ यां वदानु घोषं महो मह ामनय त शूषम्. उ ा ह य प र धानमु ोरनु वं धाम ज रतुवव .. (६) अ न के माता- पता प मह म धरती और आकाश के ान के प ात् उ च वर से क गई तु त का सुख यजमान अ न के पास प ंचाते ह. अ न उस सुख को वषा के ारा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रात म चार दशा
म फैले अपने तेज के
प म यजमान के पास भेजते ह. (६)
अ वयु भः प च भः स त व ाः यं र ते न हतं पदं वेः. ा चो मद यु णो अजुया दे वा दे वानामनु ह ता गुः.. (७) सात होता पांच अ वयुजन क सहायता से गमनशील अ न के य आहवानीय पी थान क र ा करते ह. सोमपान के न म पूव दशा म जाने वाले, जरार हत एवं सोमरस क वषा करने वाले तोता स होते ह. दे वगण उन तोता के य म जाते ह जो दे वतु य ह. (७) दै ा होतारा थमा यृ े स त पृ ासः वधया मद त. ऋतं शंस त ऋत म आ रनु तं तपा द यानाः.. (८) म दे व एवं होता प—दो धान अ नय को अलंकृत करता ं. सात होता लोग सोमरस से स होते ह. तो बोलते ए य कम के र क एवं द तशाली होताजन कहते ह क अ न ही स य ह. (८) वृषाय ते महे अ याय पूव वृ णे च ाय र मयः सुयामाः. दे व होतम तर क वा महो दे वा ोदसी एह व .. (९) हे द घायुयु एवं दे व को बुलाने वाले अ न! अ धक सं या वाली अ तशय व तृत एवं सब जगह फैली ई वालाएं तुझ महान्, सबका अ त मण करने वाले, अनेक-वण यु एवं कामवषक के बैल के समान आचरण करती ह. हे यजमान! परम स करने वाले एवं ानयु इस य कम म पूजा यो य दे व के साथ धरती-आकाश को भी बुलाते हो. (९) पृ यजो वणः सुवाचः सुकेतव उषसो रेव षुः. उतो चद ने म हना पृ थ ाः कृतं चदे नः सं महे दश य.. (१०) हे न य गमनशील अ न! जन उषा म अ ारा व धपूवक य कया जाता है, शोभन तु तयां बोली जाती ह एवं जो प य तथा मानव के व वध श द से पहचानी जाती ह, वे उषाएं तु हारे लए संप शा लनी बनकर का शत होती ह. हे अ न! तुम अपनी व तीण वाला क वशालता से यजमान ारा कया आ सम त पाप समा त करो. (१०) इळाम ने पु दं सं स न गोः श मं हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (११) हे अ न! य करने वाले मुझ यजमान को सदा अनेक कम क साधक प गौ दान करो. हे अ न! हम पु एवं पौ ा त ह तथा तु हारी फलदायक सुबु हमारे अनुकूल हो. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८
दे वता—यूप
अ त वाम वरे दे वय तो वन पते मधुना दै ेन. य व त ा वणेह ध ा ा यो मातुर या उप थे.. (१) हे वन प त न मत यूप! य म दे व क अ भलाषा करते ए अ वयु आ द दे व संबंधी घी से तु ह भगोते ह. तुम चाहे ऊंचे खड़े रहो अथवा इस धरती माता क गोद म नवास करो, पर तुम हम धन दान करो. (१) स म य यमाणः पुर ताद् व वानो अजरं सुवीरम्. आरे अ मदम त बाधमान उ य व महते सौभगाय.. (२) हे यूप! तुम व लत आहवानीय नामक अ न से पूव दशा म रहते ए जरार हत, समृ एवं शोभन संतानयु अ दे ते ए तथा हमारे श भ ु ूत पाप को र भगाते ए, हम वशाल संप दे ने के लए ऊंचे बनो. (२) उ
य व वन पते व म पृ थ ा अ ध. सु मती मीयमानो वच धा य वाहसे.. (३)
हे वन प त प यूप! तुम धरती के उ म थान य मंडप म ऊंचे खड़े होओ. तुम सुंदर प रमाण से नापे गए हो. तुम मुझ य क ा को अ दो. (३) युवा सुवासाः प रवीत आगा स उ ेया भव त जायमानः. तं धीरासः कवय उ य त वा यो३ मनसा दे वय तः.. (४) ढ़ अंग वाला, शोभन व से यु एवं ढका आ यूप आता है. वही सब वन प तय क अपे ा उ म प से उ प आ है. बु मान्, शोभन- यान वाले एवं ांतदश अ वयु आ द मन से दे व क कामना करते ए उसे ऊंचा उठाते ह. (४) जातो जायते सु दन वे अ ां समय आ वदथे वधमानः. पुन त धीरा अपसो मनीषा दे वया व उ दय त वाचम्.. (५) धरती पर पेड़ के प म उ प यूप मनु य से यु य म घी आ द से सब कार शो भत होकर दन को उ म बनाता है. य कम करने वाले मेधावी अ वयु आ द अपनी बु के अनुसार उसे जल से धोकर शु करते ह. दे व को दे ने वाले मेधावी होता यूप क तु त बोलते ह. (५) या वो नरो दे वय तो न म युवन पते व ध तवा तत . ते दे वासः वरव त थवांसः जावद मे द धष तु र नम्.. (६) हे यूपसमूह! दे व क अ भलाषा करने वाले एवं य कम के संपादक अ वयु आ द ने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु ह गड् ढे म डाला है. हे वन प त! कु हाड़ी ने तु हारे यूप को काटा है. हे द तमान् एवं लकड़ी के टु कड़ से सुशो भत यूपो! हम संतान स हत उ म धन दान करो. (६) ये वृ णासो अ ध म न मतासो यत ुचः. ते नो तु वाय दे व ा े साधसः.. (७) धरती पर कु हाड़ी से काटे गए, ऋ वज हमारा ह दे व के समीप प ंचाव. (७)
ारा गड् ढे म फके गए एवं य साधक यूप
आ द या ा वसवः सुनीथा ावा ामा पृ थवी अ त र म्. सजोषसो य मव तु दे वा ऊ व कृ व व वर य केतुम्.. (८) य के शोभन नेता , वसु, धरती-आकाश एवं व तीण अंत र य क र ा कर तथा य के केतु प यूप को ऊंचा उठाव. (८)
ये सब दे व मलकर
हंसा इव े णशो यतानाः शु ा वसानाः वरवो न आगुः. उ ीयमानाः क व भः पुर ता े वा दे वानाम प य त पाथः.. (९) जस कार पं बनाकर आकाश म उड़ते ए हंस शोभा पाते ह, उसी कार उ वल व से ढके ए एवं लकड़ी के टु कड़ से यु यूप पं बनाकर हमारे समीप आव. मेधावी अ वयु आ द ारा अ न क पूव दशा म खड़े कए गए तथा द तमान् यूप अंत र को ा त करते ह. (९) शृ ाणीवे छृ णां सं द े चषालव तः वरवः पृ थ ाम्. वाघ वा वहवे ोषमाणा अ माँ अव तु पृतना येषु.. (१०) लकड़ी के टु कड़ से यु तथा कांट से र हत यूप धरती पर इस कार सुंदर दखाई दे ते ह, जस कार पशु के स ग. य म ऋ वज ारा क ई तु तयां सुनते ए यूप यु म हमारी र ा कर. (१०) वन पते शतव शो व रोह सह व शा व वयं हेम. यं वामयं व ध त तेजमानः णनाय महते सौभगाय.. (११) हे वन प त! इस तेज धार वाली कु हाड़ी ने तु ह यूप के प म काटकर महान् सौभा य दया है. तुम हजार शाखा वाले बनकर उगो. हम भी हजार शाखा अथात् संतान वाले होकर कट ह . (११)
सू —९
दे वता—अ न
सखाय वा ववृमहे दे वं मतास ऊतये. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपां नपातं सुभगं सुद द त सु तू तमनेहसम्.. (१) हे अ न! तु हारे म हम मनु य जल के नाती, शोभनधनयु , सुंदर द तमान्, सुख से ा त करने यो य एवं उप वर हत तुमको अपनी र ा के लए वरण करते ह. (१) कायमानो वना वं य मातॄरजग पः. न त े अ ने मृषे नवतनं य रे स हाभवः.. (२) हे अ न! कानन क र ा करते ए तुम अपनी माता पी जल म व होकर शांत बनते हो. तु हारा शांत रहना अ धक समय तक सहन नह होता, इस लए तुम र रहते ए भी हमारे अर ण पी काठ से उ प हो जाओ. (२) अ त तृ ं वव थाथैव सुमना अ स. ा ये य त पय य आसते येषां स ये अ स
तः.. (३)
हे अ न! तुम तोता क अ भलाषा सफल करना चाहते हो, इस लए तुम संतु मन वाले हो. तुम जन ऋ वज के म हो, उन म से कुछ होम करने के लए जाते ह एवं शेष तु हारे चार ओर बैठते ह. (३) ई यवांसम त अ वीम व द
धः श तीर त स तः. चरासो अ होऽ सु सह मव
तम्.. (४)
हे अ न! सवथा ोहर हत एवं चरंतन व ेदेव ने श ु एवं उनक ब त सी सेना को हराने वाले तथा गुफा म बैठे सह के समान जल म छपे ए अ न को पाया. (४) ससृवांस मव मना न म था तरो हतम्. ऐनं नय मात र ा परावतो दे वे यो म थतं प र.. (५) अपनी इ छा से जल म छपे ए तथा अर णमंथन ारा ा त अ न को वायु दे व के न म इस कार लाए थे, जस कार वे छा से जाने वाले पु को पता ख च लाता है. (५) तं वा मता अगृ णत दे वे यो ह वाहन. व ा य ाँ अ भपा स मानुष तव वा य व
.. (६)
हे मनु य हतकारक, सदा त ण एवं वहन करने वाले अ न दे व! तुम अपने य पी कम से हम सबका पालन करते हो, इस लए मनु य ने तु ह दे व के न म हण कया है. (६) त
ं तव दं सना पाकाय च छदय त.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वां यद ने पशवः समासते स म म पशवरे.. (७) हे अ न! तुम सं याकाल म द त होते हो, तब पशु तु हारे चार ओर बैठते ह. पशु के समान अ प यजमान को भी तु हारा शोभन य कम फल दे कर संतु करता है. (७) आ जुहोता व वरं शीरं पावकशो चषम्. आशुं तम जरं नमी ं ु ी दे वं सपयत.. (८) हे ऋ वजो! प व काश वाले, लक ड़य म सोने वाले एवं शोभनय यु अ न म हवन करो तथा य कम म ा त, दे व के त, शी गामी, पुरातन, तु त यो य एवं द तसंप अ न क शी पूजा करो. (८) ी ण शता ी सह ा य नं श च दे वा नव चासपयन्. औ घृतैर तृण ब हर मा आ द ोतारं यसादय त.. (९) तीन हजार तीन सौ उनतालीस दे व ने अ न क पूजा क , घृत से स चा तथा उनके लए कुश फैलाए. इसके बाद उन दे व ने अ न को होता बनाकर बैठाया. (९)
दे वता—अ न
सू —१०
वाम ने मनी षणः स ाजं चषणीनाम्. दे वं मतास इ धते सम वरे.. (१) हे अ न! अ वयु आ द बु य म व लत करते ह. (१)
मान् लोग जा
के वामी एवं द तमान् तुझ अ न को
वां य े वृ वजम ने होतारमीळते. गोपा ऋत य द द ह वे दमे.. (२) हे अ न! अ वयु आ द होता एवं ऋ वज् प म तु हारी तु त अपने य म करते ह, तुम य के र क बनकर अपने घर म द त बनो. (२) स घा य ते ददाश त स मधा जातवेदसे. सो अ ने ध े सुवीय स पु य त.. (३) हे जातवेद अ न! जो यजमान तु ह व लत करने वाला ह पु -पौ ा त करता है एवं समृ बनता है. (३) स केतुर वराणाम नदवे भरा गमत्. अ
शाली
ानः स त होतृ भह व मते.. (४)
केतु के समान य का ापन कराने वाले अ न सात होता यजमान के क याण के लए दे व के साथ आव. (४) हो े पू
दे ता है, वह श
ारा घी से स
वचोऽ नये भरता बृहत्. वपां योत ष ब ते न वेधसे.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
होकर
हे होताओ! मेधा वय का तेज धारण करने वाले, संसार के वधाता दे व को बुलाने वाले, अ न के उ े य से महान् एवं पूववत लोग ारा न मत तो बोलो. (५) अ नं वध तु नो गरो यतो जायत उ यः. महे वाजाय महान् अ एवं धन के न म दशनीय अ न क वे ही तु तवचन अ न को बढ़ाव. (६)
वणाय दशतः.. (६)
शंसा जन वचन से होती है, हमारे
अ ने य ज ो अ वरे दे वा दे वयते यज. होता म ो वराज य त
धः.. (७)
हे य क ा म े अ न! य म दे व क कामना करने वाले यजमान के क याण के लए दे व क पूजा करो. होता एवं यजमान को स ता दे ने वाले तुम अ न श ु को परा जत करके सुशो भत होते हो. (७) स नः पावक द द ह ुमद मे सुवीयम्. भवा तोतृ यो अ तमः व तये.. (८) हे पाप शोधक अ न! हम कां तयु न म तोता के समीप जाओ. (८)
एवं शोभन साम य वाला धन दो तथा क याण के
तं वा व ा वप यवो जागृवांसः स म धते. ह वाहमम य सहोवृधम्.. (९) हे अ न! मेधावी जाग क एवं बु तोता ह वहन करने वाले, मंथन प, बल ारा उ प एवं मरणर हत तुमको भली कार व लत करते ह. (९)
दे वता—अ न
सू —११
अ नह ता पुरो हतोऽ वर य वचष णः. स वेद य मानुषक्.. (१) दे व का आ ान करने वाले, पुरो हत एवं य के वशेष जानते ह. (१)
ाअ न
मक
प से य
स ह वाळम य उ श त नो हतः. अ न धया समृ व त.. (२) ह वहन करने वाले, मरणर हत, से यु होते ह. (२)
के इ छु क दे व के त एवं अ
अ न धया स चेत त केतुय
य तर ण.. (३)
य पू ः. अथ
झंडे के समान य के ापक एवं ाचीन अ न अपनी बु अ न का तेज अंधकार को न करता है. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य अ न बु
से सब कुछ जानते ह.
अ नं सूनुं सन ुतं सहसो जातवेदसम्. व बल के पु , सनातन बनाया है. (४)
प से
स
दे वा अकृ वत.. (४)
तथा जातवेद अ न को दे व ने ह
ढोने वाला
अदा यः पुरएता वशाम नमानुषीणाम्. तूण रथः सदा नवः.. (५) मानवी जा के अ गामी, शी ता करने वाले, रथ के समान न य नवीन अ न का कोई तर कार नह कर सकता. (५) सा ा व ा अ भयुजः
ढोने वाले एवं
तुदवानाममृ ः. अ न तु व व तमः.. (६)
सम त श ुसेना को परा जत करने वाले, श ु अनेक कार के अ से यु ह. (६)
ारा अव य एवं दे व के पोषक अ न
अ भ यां स वाहसा दा ां अ ो त म यः. यं पावकशो चषः.. (७) ह दे ने वाला मनु य ह वहन करने वाले अ न क कृपा से सम त अ करता है एवं प व काश वाले अ न से घर पाता है. (७)
को ा त
प र व ा न सु धता नेर याम म म भः. व ासो जातवेदसः.. (८) हम जासंप एवं ानवान् होता आ द तुझ अ न के तो धन ा त कर. (८)
ारा सम त हतकारक
अ ने व ा न वाया वाजेषु स नषामहे. वे दे वास ए ररे.. (९) हे अ न! सम त दे व तु ह म ा त कर. (९)
सू —१२
व ह, इस लए हम य
म तुमसे सम त उ म धन
दे वता—इं एवं अ न
इ ा नी आ गतं सुतं गी भनभो वरे यम्. अ यं पातं धये षता.. (१) हे इं एवं अ न! हमारी तु त ारा बुलाए जाने पर तुम शु कए ए एवं उ म सोमरस को ल य करके वग से यहां आओ एवं हमारे ारा कए जाते ए य कम म इसे पओ. (१) इ ा नी ज रतुः सचा य ो जगा त चेतनः. अया पात ममं सुतम्.. (२) हे इं एवं अ न! तोता का सहायक, य का साधन एवं इं य को आनं दत करने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाला सोमरस तु हारे समीप जाता है. इस नचोड़े ए सोमरस को पओ. (२) इ म नं क व छदा य
य जू या वृणे. ता सोम येह तृ पताम्.. (३)
इस य के साधनभूत सोमरस क ेरणा से म तोता के लए सुखदाता इं और अ न का वरण करता ं. वे इस य म सोम पीकर तृ त ह . (३) तोशा वृ हणा वे स ज वानापरा जता. इ ा नी वाजसातमा.. (४) म श ुबाधक, वृ नाशक, वजयी, अपरा जत एवं अ धक मा ा म अ दे ने वाले इं तथा अ न को बुलाता ं. (४) वामच यु थनो नीथा वदो ज रतारः. इ ा नी इष आ वृणे.. (५) हे इं एवं अ न! मं जानने वाले होता आ द तथा तो के ाता तोता तु हारी अचना करते ह. म भी अ ा त करने के लए सभी कार से तु हारा वरण करता ं. (५) इ ा नी नव त पुरो दासप नीरधूनुतम्. साकमेकेन कमणा.. (६) (६)
हे इं और अ न! तुमने एक ही यास म दास के न बे नगर को कं पत कर दया था. इ ा नी अपस पयुप
य त धीतयः. ऋत य प या३ अनु.. (७)
हे इं और अ न! सोमरस के पाने वाले होता आ द य के माग को दे खकर हमारे इस कम के चार ओर उप थत रहते ह. (७) इ ा नी त वषा ण वां सध था न यां स च. युवोर तूय हतम्.. (८) हे इं और अ न! तुम दोन के बल और अ एक- सरे से अ भ ह. जल वषा क ेरणा का काम आप ही के बीच सी मत है. (८) इ ा नी रोचना दवः प र वाजेषु भूषथः. त ां चे त
वीयम्.. (९)
हे वग को का शत करने वाले इं और अ न! तुम यु दोन क श यु क वजय का ान कराती है. (९)
सू —१३
म सव
वभू षत बनो. तुम
दे वता—अ न
वो दे वाया नये ब ह मचा मै. गम े वे भरा स नो य ज ो ब हरा सदत्.. (१) हे होताओ! अ न दे व को ल य करके यथे मा ा म तु त करो. य क ा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म
े
अ न दे व के साथ हमारे समीप आव एवं कुश पर बैठ. (१) ऋतावा य य रोदसी द ं सच त ऊतयः. ह व म त तमीळते तं स न य तोऽवसे.. (२) ावापृ वी जस अ न के वश म ह, दे व उसके बल क सेवा करते ह. वह स यकम वाला है. (२) स य ता व एषां स य ानामथा ह षः. अ नं तं वो व यत दाता यो व नता मघम्.. (३) हे ऋ वजो! मेधावी अ न यजमान , य एवं सोम के नयामक, कमफल एवं महान् धन के दाता ह. तुम उ ह अ न क सेवा करो. (३) स नः शमा ण वीतयेऽ नय छतु श तमा. यतो नः णव सु द व त यो अ वा.. (४) वे अ न हम ह दाता के लए सुखकारक घर दान कर. अ न के पास से धरती, आकाश और वग का उ म धन हमारे पास आवे. (४) द दवांसमपू व वी भर य धी त भः. ऋ वाणो अ न म धते होतारं व प त वशाम्.. (५) तु त करते ए होता आ द द तमान्, त ण नवीन, दे व को बुलाने वाले तथा जा के परम पालक अ न को उ म तु तय ारा व लत करते ह. (५) उत नो
वष उ थेषु दे व तमः. शं नः शोचा म द्वृधोऽ ने सह सातमः.. (६)
हे अ न! तु त करते समय हम य क ा क र ा करो. हे दे व को बुलाने वाल म े ! मं बोलते समय हमारी र ा करो. हे म त ारा ब धत एवं हजार धन के दाता अ न! हमारा सुख बढ़ाओ. (६) नू नो रा व सह व ोकव पु म सु. ुमद ने सुवीय व ष मनुप तम्.. (७) हे अ न! हम पु -पौ यु , पोषण करने वाला, द तमान् एवं शोभनश हजार कार का यर हत धन दो. (७)
सू —१४
दे वता—अ न
आ होता म ो वदथा य था स यो य वा क वतमः स वेधाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यु
व ु थः सहस पु ो अ नः शो च केशः पृ थ ां पाजो अ ेत्..(१) दे व का आ ान करने वाले, तु तक ा को स करने वाले, स यकमा, दे व के य क ा, अ यंत मेधावी, जगत् के वधाता, चमक ले रथ वाले, बल के पु , वाला पी केश वाले एवं धरती पर अपनी ा कट करने वाले अ न हमारे य म थत ह. (१) अया म ते नमउ जुष व ऋताव तु यं चेतते सह वः. व ाँ आ व व षो न ष स म य आ ब ह तये यज .. (२) हे य वामी अ न! म तु हारे त नम कार करता ं. हे बलवान्! तुझ य कम ापक के त जो नम कार कया है, उसे वीकार करो. हे व ान् एवं य के यो य अ न! व ान को हमारे य म लाओ एवं हमारी र ा करने के न म बछे ए कुश पर बैठो. (२) वतां त उषसा वाजय ती अ ने वात य प या भर छ. य सीम त पू ह व भरा व धुरेव त थतु रोणे.. (३) हे अ न! अ का नमाण करने वाली उषा तथा नशा तु हारे समीप जाती ह. तुम भी वायु पी माग से उनके समीप जाओ, य क ऋ वज् ह व ारा तुझ ाचीन अ न को स चते ह. जुए क तरह पर पर मली उषा और नशा हमारी य शाला म बार-बार रह. (३) म तु यं व णः सह वोऽ ने व े म तः सु नमचन्. य छो चषा सहस पु त ा अ भ तीः थय सूय नॄन्.. (४) हे बलसंप अ न! म , व ण, व ेदेव एवं म त् तु ह ल य करके तो धारण करते ह, य क तु ह बल के पु तथा सूय हो और मनु य को माग दखाने वाली करण सब जगह फैलाकर काश से द त हो. (४) वयं ते अ र रमा ह काममु ानह ता नमसोपस . य ज ेन मनसा य दे वान ेधता म मना व ो अ ने.. (५) हे अ न! ऊपर हाथ उठाकर हम आज पया त मा ा म दे ते ह. हे मेधावी! हमारी तप या से स होकर मन म हमारे य क र ा करते ए ब त से तो ारा दे व क पूजा करो. (५) व पु सहसो व पूव दव य य यूतयो व वाजाः. वं दे ह सह णं र य नोऽ ोघेण वचसा स यम ने.. (६) हे बल के पु अ न! र णकाय एवं अ तु हारे पास से यजमान के समीप जाता है. तुम ोहर हत वचन से स होकर हम हजार कार का धन एवं स यशील पु दो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु यं द क व तो यानीमा दे व मतासो अ वरे अकम. वं व य सुरथ य बो ध सव तद ने अमृत वदे ह.. (७) हे श शाली, सव एवं द यमान अ न! हम यजमान तु हारे उ े य से य म जो दे ते ह, तुम उस सबका भ ण करके यजमान क र ा के लए जा त बनो. तुम मरणर हत हो. (७)
सू —१५
दे वता—अ न
व पाजसा पृथुना शोशुचानो बाध व षो र सो अमीवाः. सुशमणो बृहतः शम ण याम नेरहं सुहव य णीतौ.. (१) हे अ न! व तीण तेज ारा अ यंत द त तुम हमारे श ु तथा रोगर हत रा स का वनाश करो. म सुखदाता, महान्, एवं उ म आ ान वाले अ न क सुखद र ा म र ंगा. (१) वं नो अ या उषसो ु ौ वं सूर उ दते बो ध गोपाः. ज मेव न यं तनयं जुष व तोमं मे अ ने त वा सुजात.. (२) हे अ न! तुम वतमान उषा के का शत एवं सूय के नकलने के बाद हमारी र ा के न म जागो. हे वयंभ!ू तुम हमारी तु तयां उसी कार वीकार करो, जैसे पता पु को वीकार करता है. (२) वं नृच ा वृषभानु पूव ः कृ णा व ने अ षो व भा ह. वसो ने ष च प ष चा यंहः कृधी नो राय उ शजो य व .. (३) हे कामवषक एवं मानव के शुभाशुभदशक अ न! तुम अंधेरी रात म पहले क अपे ा अ धक चमकते ए वाला को व तृत करो. हे वासदाता! हम कमानु प फल दो तथा पाप का नाश करो. हे अ तशय युवक! हम धन का अ भलाषी बनाओ. (३) अषाळ् हो अ ने वृषभो दद ह पुरो व ाः सौभगा स गीवान्. य य नेता थम य पायोजातवेदो बृहतः सु णीते.. (४) हे श ु ारा अपरा जत एवं कामवषक अ न! तुम श ु क सम त नग रय एवं उन म थत धन को भली कार जीत कर का शत बनो. हे शोभनकमा एवं जातवेद अ न! तुम महान् य के नेता एवं आ यदाता तथा पूणक ा बनो. (४) अ छ ा शम ज रतः पु ण दे वाँ अ छा द ानः सुमेधाः. रथो न स नर भ व वाजम ने वं रोदसी नः सुमेके.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अंतकाल म सबको जलाने वाले, शोभन ा वाले तथा द तसंप अ न! दे व के लए सारे अ नहो ा द कम को पूण करो. हे अ न! तुम यह ठहर कर दे व को दया आ हमारा उसी कार वहन करो, जस कार रथ कसी व तु को ढोता है. (५) पीपय वृषभ ज व वाजान ने वं रोदसी नः सुदोघे. दे वे भदव सु चा चानो मा नो मत य म तः प र ात्.. (६) हे कामवषक अ न! तुम हमारे अ भल षत फल बढ़ाओ तथा अ दान करो. हे दे व! शोभन करण ारा का शत तुम दे व के साथ मलकर धरती-आकाश को हमारे लए फल द बनाओ. श ु संबंधी पराभव हमारे समीप न आवे. (६) इळाम ने पु दं सं स न गोः श मं हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (७) हे अ न! य करने वाले मुझ यजमान को सदा अनेक कम क साधन प गौ दान करो. हे अ न! हम पु एवं पौ ा त ह तथा तु हारी फलदायक सुबु हमारे अनुकूल हो. (७)
सू —१६
दे वता—अ न
अयम नः सुवीय येशे महः सौभग य. राय ईशे वप य य गोमत ईशे वृ हथानाम्.. (१) यह अ न शोभन साम य यु , महान् सौभा य के वामी, गाय एवं उ म संतानयु धन के वामी एवं श ु पी पाप के न करने म समथ ह. (१) इमं नरो म तः स ता वृधं य म ायः शेवृधासः. अ भ ये स त पृतनासु ो व ाहा श ुमादभुः.. (२) हे य कम के वे ा म तो! सौभा य बढ़ाने वाले अ न क सेवा करो. इसम सुख बढ़ाने वाले धन ह. म द्गण सेना वाले बड़े यु म श ु को हराते ह एवं सदा श ु का नाश करते ह. (२) स वं नो रायः शशी ह मीढ् वो अ ने सुवीय य. तु व ु न व ष य जावतोऽनमीव य शु मणः.. (३) हे भूत धन से यु एवं अ भलाषापूरक अ न! हम अ धक मा ा वाला, संतानयु , आरो य, श एवं साम यसंप तथा धन का वामी बनाओ. (३) च य व ा भुवना भ सास ह दवे वा वः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ दे वेषु यतत आ सुवीय आ शंस उत नृणाम्.. (४) सम त व के क ा अ न व म नवास करते ह, को ढोते ए दे व के समीप ले जाते ह. तोता के सामने आते ह, य क ा के तो सुनने आते ह तथा यु म मानव क र ा करते ह. (४) मा नो अ नेऽमतये मावीरतायै रीरधः. मागोतायै सहस पु मा नदे ऽप े षां या कृ ध.. (५) हे बल के पु अ न! हम श ु प द र ता, कायरता, पशुहीनता एवं नदा के यो य मत करना. हमारे त े ष क भावना समा त करो. (५) श ध वाज य सुभग जावतोऽ ने बृहतो अ वरे. सं राया भूयसा सृज मयोभुना तु व ु न यश वाता.. (६) हे शोभन धन के वामी अ न! तुम य म महान् एवं संतानयु धन के वामी हो. हे ब धनसंप अ न! हम अ धक मा ा वाला, सुखकारक एवं क तदाता धन दान करो. (६)
सू —१७
दे वता—अ न
स म यमानः थमानु धमा सम ु भर यते व वारः. शो च केशो घृत न ण पावकः सुय ो अ नयजथाय दे वान्.. (१) य संबंधी कम के धारक, वाला पी केश वाले, सबके वीकाय, प व करने वाले एवं शोभन य से यु अ न य के ारंभ म मशः जलते ह एवं दे वय करने के लए घी से स चे जाते ह. (१) यथायजो हो म ने पृ थ ा यथा दवो जातवेद क वान्. एवानेन ह वषा य दे वान् मनु व ं तरेमम .. (२) हे जातवेद एवं सव अ न! तुमने जस कार यजमान प पृ वी का ह व वीकार कया, जस कार आकाश दे वता का वीकार कया, उसी कार हमारे य म होता बनकर दे व को उनका भाग दान करो. तुम मनु के य के समान हमारा य आज पूरा करो. (२) ी यायूं ष तवं जातवेद त आजानी षस ते अ ने. ता भदवानामवो य व ानथा भव यजमानाय शं योः.. (३) हे जातवेद अ न! तु हारा अ तीन कार का है तथा तीन कार क उषाएं तु हारी माता ह. तुम उनके साथ मलकर दे व को ह दो. हे व ान् अ न! तुम यजमान के सुख ******ebook converter DEMO Watermarks*******
और क याण के कारण बनो. (३) अ नं सुद त सु शं गृण तो नम याम वेड्यं जातवेदः. वां तमर त ह वाहं दे वा अकृ व मृत य ना भम्.. (४) हे जातवेद अ न! हम शोभन द त वाले, सुंदर एवं तु त के यो य तु ह नम कार करते ह. दे व ने तु ह वषय से आस र हत, ह वहन करने वाला त तथा अमृत क ना भ बनाया है. (४) य व ोता पूव अ ने यजीया ता च स ा वधया च श भुः. त यानु धम यजा च क वोऽथा नो धा अ वरं दे ववीतौ.. (५) हे सव अ न! तुमसे पहले जो वशेष य करने वाले ए थे एवं वधा के साथ उ म तथा म यम थान पर बैठे कर ज ह ने सुख पाया था, उनके धारक गुण का वचार करके पहले उनका य पूरा करो. इसके बाद दे व को स करने के लए य पूरा करो. (५)
सू —१८
दे वता—अ न
भवा नो अ ने सुमना उपेतौ सखेव स ये पतरेव साधुः. पु हो ह तयो जनानां त तीचीदहतादरातीः.. (१) हे अ न! तुम हमारे सामने आकर अनुकूल एवं कमसाधक बनो, जस कार म के त म एवं संतान के त माता- पता होते ह. मनु य मनु य के ोही बने ह. तुम हमारे वरोधी श ु को भ म करो. (१) तपो व ने अ तराँ अ म ान् तपा शंसमर षः पर य. तपो वसो च कतानो अ च ा व ते त तामजरा अयासः.. (२) हे अ न! हम हराने के इ छु क श ु के बाधक बनो. हमारे श ु तु ह नह दे ते, उनक इ छा न करो. हे नवास दे ने वाले एवं कम ाता अ न! य कम म मन न लगाने वाल को ःखी करो, य क तु हारी करण जरार हत एवं नबाध ह. (२) इ मेना न इ छमानो घृतेन जुहो म ह ं तरसे बलाय. यावद शे णा व दमान इमां धयं शतसेयाय दे वीम्.. (३) हे अ न! म धन क अ भलाषा करता आ तु ह वेग और साम य दे ने के लए स मधा एवं घी के साथ ह दे ता ं. म जब तक तु तय से तु हारी वंदना कर सकूं, तब तक मुझे धन दो एवं मेरी इस तु त को अप र मत धन के हेतु अ तीय बनाओ. (३) उ छो चषा सहस पु तुतो बृह यः शशमानेषु धे ह. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रेवद ने व ा म ेषु शं योममृ मा ते त वं१ भू र कृ वः.. (४) हे बल के पु अ न! अपनी यो त से काशमान बनो एवं तु त सुनकर शंसा करने वाले व ासपा पु को ब त धन से यु अ , आरो य तथा नभयता दान करो. हे य क ा अ न! हम बार-बार तु हारे शरीर को स ख. (४) कृ ध र नं सुस नतधनानां स घेद ने भव स य स म ः. तोतु रोणे सुभग य रेव सृ ा कर ना द धषे वपूं ष.. (५) हे इ दाता अ न! हम धन म उ म धन दो. जस समय तुम व लत बनो, उस समय उ म धन दो. शोभन धनयु तोता के घर क ओर अपनी दोन सुंदर भुजा को धन दे ने के लए फैलाओ. (५)
सू —१९
दे वता—अ न
अ नं होतारं वृणे मयेधे गृ सं क व व वदममूरम्. स नो य े वताता यजीया ाये वाजाय वनते मघा न.. (१) हम दे व तु तकारक, सव एवं अमूढ़ अ न को इस य म होता वरण करते ह. वह अ तशय य पा होकर हमारे क याण के लए दे व संबंधी य कर तथा धन व अ दे ने के लए हमारा ह वीकार कर. (१) ते अ ने ह व मती मय य छा सु ु नां रा तन घृताचीम्. द ण े वता तमुराणः सं रा त भवसु भय म ेत्.. (२) हे अ न! म तेजयु , ह से पूण, ह दे ने वाला एवं घी से भरा आ जु नामक पा तु हारे सामने करता ं. दे व का मान बढ़ाने वाले अ न हम दे ने के लए धन लेकर द णा करते ए य म आव. (२) स तेजीसया मनसा वोत उत श वप य य श ोः. अ ने रायो नृतम य भूतौ भूयाम ते सु ु तय व वः.. (३) हे अ न! तु हारे ारा र त का मन तेज वी हो जाता है. उसे उ म संतानयु धन दो. हे अभी फल दान के इ छु क अ न! तुम उ म धन दे ने वाले हो. तु हारी म हमा से हम तु हारी तु त करते ए धन के पा बन. (३) भूरा ण ह वे द धरे अनीका ने दे व य य यवो जनासः. स आ वह दे वता त य व शध यद द ं यजा स.. (४) हे काशयु अ न! तु हारा य करने वाल ने ब त तेज दान कया है. तुम य के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो य दे व को यहां बुलाओ, य क तुम दे व का तेज धारण करते हो. (४) य वा होतारमनज मयेधे नषादय तो यजथाय दे वाः. स वं नो अ नेऽ वतेह बो य ध वां स धे ह न तनूषु.. (५) हे अ न! य कम करने के लए बैठे ए तेज वी ऋ वज् य म तु ह होता नाम दे कर घी क आ त से स चते ह. अतः तुम हमारी र ा के न म आओ एवं हमारी संतान को अ दो. (५)
सू —२०
दे वता—अ न
अ नमुषसम ना द ध ां ु षु हवते व थैः. सु यो तषो नः शृ व तु दे वाः सजोषसो अ वरं वावशनाः.. (१) ह वहन करने वाले अ न उषा को अ धकारर हत करते समय उषा, अ नीकुमार एवं द ध ा को सू के ारा बुलाते ह. शोभन बु वाले एवं पर पर संगत दे वगण हमारे य क कामना करते ए उस आ ान को सुन. (१) अ ने ी ते वा जना ी षध था त ते ज ा ऋतजात पूव ः. त उ ते त वो दे ववाता ता भनः पा ह गरो अ यु छन्.. (२) हे य म उ प अ न! तु हारे अ थान एवं दे व का उदर पूण करने वाली ज ाएं तीन ह. तुम सावधान होकर दे व ारा अ भल षत तीन शरीर के ारा हमारे तो क र ा करो. (२) अ ने भूरी ण तव जातवेदो दे व वधावोऽमृत य नाम. या माया मा यनां व म व वे पूव ः स दधुः पृ ब धो.. (३) हे ोतमान, जातवेद, अ वामी एवं मरणर हत अ न! दे व ने तु ह ब त से नाम दए ह. हे व तृ तकारक एवं वां छत फल दे ने वाले अ न! दे व ने माया वय क जो ब त सी मायाएं तुम म धारण क थ , वे तुमम ह. (३) अ ननता भग इव तीनां दै वीनां दे व ऋतुपा ऋतावा. स वृ हा सनयो व वेदाः पष ा त रता गृण तम्.. (४) ऋतु के पालक सूय के समान जो अ न मानव और दे व के नयामक, स यकमा, वृ नाशक, सनातन, सव ाता एवं तेज वी ह, वे तु तक ा के सारे पाप का अ त मण करके पार लगाव. (४) द ध ाम नमुषसं च दे व बृह प त स वतारं च दे वम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ना म ाव णा भगं च वसू ुदाँ आ द याँ इह वे.. (५) म द ध ा, अ न, उषादे वी, बृह प त, स वता दे व, अ नीकुमार, म , व ण, भग, वसु , एवं आ द य को इस य म बुलाता ं. (५)
सू —२१
दे वता—अ न
इमं नो य ममृतेषु धेहीमा ह ा जातवेदो जुष व. तोकानाम ने मेदसो घृत य होतः ाशान थमो नष .. (१) हे जातवेद! हमारा यह य दे व के पास ले जाओ एवं इन ह का सेवन करो. हे होता! य म बैठकर तुम सबसे पहले चब और घी क बूंद को भली-भां त भ ण करो. (१) घृतव तः पावक ते तोकाः ोत त मेदसः. वधम दे ववीतये े ं नो धे ह वायम्.. (२) हे पापशोधक अ न! इस सांगोपांग य म तु हारे एवं दे व के भ ण के लए घी क बूंद टपक रही ह. इस कारण हम े एवं वरण यो य धन द जए. (२) तु यं तोका घृत तोऽ ने व ाय स य. ऋ षः े ः स म यसे य य ा वता भव.. (३) हे य क ा को फल द एवं मेधावी अ न! घी क टपकने वाली बूंद तु हारे लए ह. हे ऋ ष एवं े अ न! तु ह व लत कया जाता है. तुम य पालक बनो. (३) तु यं ोत य गो शचीवः तोकासो अ ने मेदसो घृत य. क वश तो बृहता भानुनागा ह ा जुष व मे धर.. (४) हे न य ग तशाली एवं श संप अ न! चब पी घी क सभी बूंद तु हारे लए टपकती ह. हे क वय ारा तुत अ न! तुम महान् तेज के साथ य म आओ. हे मेधावी! हमारे ह का सेवन करो. (४) ओ ज ं ते म यतो मेद उ तं ते वयं ददामहे. ोत त ते वसो तोका अ ध व च त ता दे वशो व ह.. (५) हे अ न! हम पशु के म य भाग से अ यंत ओजपूण चब तु ह दे ते ह. हे नवास दान करने वाले अ न! वचा के ऊपर तु हारे उ े य से जो बूंद गरती ह, उ ह येक दे व को दान करो. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —२२
दे वता—अ न
अयं सो अ नय म सोम म ः सुतं दधे जठरे वावशानः. सह णं वाजम यं न स तं ससवा स तूयसे जातवेदः.. (१) यह वही अ न है, जस म अ भषुत सोमरस को कामना करने वाले इं ने अपने उदर म रखा था. हे जातवेद अ न! हजार प वाले अ के समान वेगशाली एवं ह का सेवन करने वाले तु हारी तु त सारा संसार करता है. (१) अ ने य े द व वचः पृ थ ां यदोषधी व वा यज . येना त र मुवातत थ वेषः स भानुरणवो नृच ाः.. (२) हे य के यो य अ न! तु हारा जो तेज आकाश, धरती, ओष धय एवं जल म है, जस तेज के ारा तुमने अंत र को व तृत कया है, वह तेज आसमान, द तमान् सागर के समान व तृत एवं मनु य के लए दशनीय है. (२) अ ने दवो अणम छा जगा य छा दे वाँ ऊ चषे ध या ये. या रोचने पर ता सूय य या ाव ता प त त आपः.. (३) हे अ न! तुम आकाश म ा त जल को ल य करके जाते हो एवं ाण संयु दे व को एक करते हो. सूय के ऊपर रोचन नामक लोक म तथा सूय के नीचे जो जल वतमान ह, उ ह तु ह ेरणा दे ते हो. (३) पुरी यासो अ नयः ावणे भः सजोषसः. जुष तां य म होऽनमीवा इषो महीः.. (४) बालू मली ई अ नयां खुदाई के काम आने वाले औजार से मलकर इस य सेवन कर तथा हमारे त ोहर हत होकर हम रोगर हत महान् अ द. (४)
का
इळाम ने पु दं सं स न गोः श मं हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (५) हे अ न! य करने वाले मुझ यजमान को सदा अनेक कम क साधन प गौ दान करो. हे अ न! हम पु एवं पौ ा त ह तथा तु हारी फलदायक सुबु हमारे अनुकूल हो. (५)
सू —२३
दे वता—अ न
नम थतः सु धत आ सध थे युवा क वर वर य णेता. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जूय व नरजरो वने व ा दधे अमृतं जातवेदाः.. (१) अर णमंथन ारा उ प , यजमान के घर म य कुंड म था पत, युवा, ांतदश , य पूण करने वाले, जातवेद, महान् एवं अर य के न होने पर भी जरार हत अ न इस य म अमृत धारण करते ह. (१) अम थ ां भारता रेवद नं दे व वा दे ववातः सुद म्. अ ने व प य बृहता भ रायेषां नो नेता भवतादनु ून्.. (२) हे अ न! भरत के पु —दे वा य एवं दे ववात ने शोभन साम य तथा धनयु तु ह अर णमंथन ारा उ प कया था. हे अ न! पया त धन लेकर हमारी ओर दे खो एवं त दन हमारे अ के लाने वाले बनो. (२) दश पः पू सीमजीजन सुजातं मातृषु यम्. अ नं तु ह दै ववातं दे व वो यो जनानामस शी.. (३) हे अ न! दस उंग लय ने तुझ पुरातन को उ प कया है. हे दे व व! माता के समान अर णय के बीच म भली कार उ प , य एवं दे ववात ारा म थत अ न क तु त करो. वे अ न यजमान के वश म रहते ह. (३) न वा दधे वर आ पृ थ ा इळाया पदे सु दन वे अ ाम्. ष यां मानुष आपयायां सर व यां रेवद ने दद ह.. (४) हे अ न! उ म दन क ा त के लए म तु ह गौ- प-धा रणी धरती के उ म थान म था पत करता ं. हे धनसंप अ न! तुम षद्वती, आपया एवं सर वती न दय के मानव-स हत तट पर जलो. (४) इळाम ने पु दं सं स न गोः श मं हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (५) हे अ न! य करने वाले मुझ यजमान को सदा अनेकानेक य कम क साधन प गौ दान करो. हे अ न! हम पु एवं पौ ा त ह तथा तु हारी फलदायक सुबु हमारे अनुकूल हो. (५)
सू —२४ अ ने सह व पृतना अ भमातीरपा य.
दे वता—अ न र तर रातीवच धा य वाहसे.. (१)
हे अ न! श ु क सेना को हराओ तथा य म व न डालने वाल को र भगाओ. तुम अ जत हो, इस लए श ु को अपने तेज से तर कृत करके यजमान को अ दो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न इळा स म यसे वी तहो ा अम यः. जुष व सू नो अ वरम्.. (२) हे य को म े करने वाले तथा मरणर हत अ न! तु ह उ र वेद पर जलाया जाता है. तुम हमारे य क भली कार सेवा करो. (२) अ ने ु नेन जागृवे सहसः सूनवा त. एदं ब हः सदो मम.. (३) हे वतेज से जागृत एवं बल के पु अ न! मेरे ारा बुलाए ए तुम मेरे ारा बछाए ए कुश पर बैठो. (३) अ ने व े भर न भदवे भमहया गरः. य ेषु य उ चायवः.. (४) हे अ न! अपने पूजक के य आदर करो. (४)
म सम त तेज वी अ नय के साथ तु त वचन का
अ ने दा दाशुषे र य वीरव तं परीणसम्. शशी ह न सूनुमतः.. (५) हे अ न! ह दाता यजमान को संतानयु उ त करो. (५)
सू —२५
पया त धन दो तथा हम संतान वाल क
दे वता—अ न
अ ने दवः सूनुर स चेता तना पृ थ ा उत व वेदाः. ऋध दे वाँ इह यजा च क वः.. (१) हे सव वषय ाता तथा य कम के ान से यु अ न! तुम आकाश तथा धरती के पु हो. हे चेतनाशील अ न! तुम इस य म अलग-अलग ह व दे कर दे व का आदर करो. (१) अ नः सनो त वीया ण व ा सनो त वाजममृताय भूषन्. स नो दे वाँ एह वहा पु ो.. (२) अ न वयं को वभू षत करके यजमान को साम य तथा दे व को अ दे ते ह. हे ब वध अ यु अ न! हमारे क याण के न म दे व को इस य म लाओ. (२) अ न ावापृ थवी व ज ये आ भा त दे वी अमृते अमूरः. य वाजैः पु ो नमो भः.. (३) सव , सम त व के वामी, अ मत काशयु , बल एवं अ स हत अ न संसार को ज म दे ने वाले, ोतमान और मरणर हत धरती-आकाश को का शत करते ह. (३) अनइ
दाशुषो रोणे सुतावते य महोप यातम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अमध ता सोमपेयाय दे वा.. (४) हे अ न! इं के साथ यहां आकर य क हसा न करते ए सोम नचोड़ने वाले यजमान के घर म सोम पीने के लए आओ. (४) अ ने अपां स म यसे रोणे न यः सूनो सहसो जातवेदः. सध था न महयमान ऊती.. (५) हे बल के पु , अ वनाशी एवं जातवेद अ न! र ा के ारा लोक को महान् बनाते ए तुम जल के थान आकाश म भली कार का शत होते हो. (५)
सू —२६
दे वता—अ न
वै ानरं मनसा नं नचा या ह व म तो अनुष यं व वदम्. सुदानुं दे वं र थरं वसूयवो गीभ र वं कु शकासो हवामहे.. (१) हे अ न! ह धारण करने वाले, धन के इ छु क एवं कु शक गो म उ प हम लोग तुझ वै ानर, स य त , वगा द फल दे ने वाले, य के ाता, फल दे ने वाले, रथ के वामी, य म जाने वाले एवं तेज वी अ न को अतःकरण से जानते ए तु तय ारा बुलाते ह. (१) तं शु म नमवसे हवामहे वै ानरं मात र ानमु यम्. बृह प त मनुषो दे वतातये व ं ोतारम त थ रघु यदम्.. (२) हम ोतमान, वै ानर, मात र ा, ऋचा ारा आ ानयो य, य के वामी, मेधावी, ोता, अ त थ, शी गामी अ न को अपनी र ा तथा यजमान के य के न म बुलाते ह. (२) अ ोन न भः स म यते वै ानरः कु शके भयुगेयुगे. स नो अ नः सुवीय व ं दधातु र नममृतेषु जागृ वः.. (३) हन हनाता आ घोड़े का ब चा जैसे घोड़ी के ारा बढ़ाया जाता है, उसी कार कु शक गो वाले लोग अ न को त दन बढ़ाते ह. मरणर हत दे व म जागने वाले अ न हम उ म संतान एवं े घोड़ से यु धन द. (३) य तु वाजा त व ष भर नयः शुभे स म ाः पृषतीरयु त. बृह ो म तो व वेदसः वेपय त पवतां अदा याः.. (४) वेग वाली अ नयां जल क ओर जाव. बलशाली म त के साथ जल म मलकर बूंद को बनाव. सब कुछ जानने वाले एवं अपराजेय म द्गण अ धक जल से भरे ए तथा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पवताकार मेघ को कं पत करते ह. (४) अ न यो म तो व कृ य आ वेषमु मव ईमहे वयम्. ते वा ननो या वष न णजः सहा न हेष तवः सुदानवः.. (५) अ न के आ त एवं वृ को आक षत करने वाले म त का उ वल एवं सश आ य पाने के लए हम याचना करते ह. वे पु म द्गण वषा का प धारण करने वाले, हन हनाते ए, सह के समान गजनकारी तथा शोभन जल दे ने वाले ह. (५) ातं ातं गणंगणं सुश त भर नेभामं म तामोज ईमहे. पृषद ासो अनव राधसो ग तारो य ं वदथेषु धीराः.. (६) हम ब त से तु त मं ारा अ न के तेज और म त के ओज क याचना करते ह. बुंद कय से यु घोड़ वाले, संपूण धनयु एवं धीर म द्गण य म ह व को ल य करके जाते ह. (६) अ नर म ज मना जातवेदा घृतं मे च रु मृतं म आसन्. अक धातू रजसो वमानोऽज ो घम ह वर म नाम.. (७) हे कु शकगो ीय ा णो! म ज म से ही सव अ न ं. घृत मेरा ने है तथा अमृत मेरे मुख म रहता है. मेरे ाण तीन कार के ह. म आकाश को नापने वाला, न य काशयु एवं ह प ं. (७) भः प व ैरपुपो १क दा म त यो तरनु जानन्. व ष ं र नमकृत वधा भरा दद् ावापृ थवी पयप यत्.. (८) अ न ने मन से सुंदर यो त को अ छ तरह जानकर वयं को तीन प व प म शु कया. उन प ारा वयं को परम रमणीय बनाया तथा इसके प ात् धरती और आकाश को दे खा. (८) शतधारमु सम ीयमाणं वप तं पतर व वानाम्. मे ळ मद तं प ो प थे तं रोदसी पपृतं स यवाचम्.. (९) हे धरती और आकाश! सौ धारा वाले सोते के समान कभी ीण न होने वाले, मेधावी, पालनक ा, वेदवा य का एक सं ह करने वाले, माता- पता के समीप स च एवं स यवाद उस उपा याय को संपूण करो. (९)
सू —२७
दे वता—अ न
वो वाजा अ भ वो ह व म तो घृता या. दे वा गा त सु नयुः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋतुओ! मास, अधमास, दे व, एवं गौ सब तु हारे य इ छा करता आ यजमान दे व को ा त करता है. (१) ईळे अ नं वप तं गरा य
के लए समथ ह. सुख क
य साधनम्. ु ीवानं धतावानम्.. (२)
म तु तय ारा मेधावी, य संप करने वाले एवं सुख तथा धन के वामी अ न क तु त करता ं. (२) अ ने शकेम ते वयं यमं दे व य वा जनः. अ त े षां स तरेम.. (३) हे ोतमान अ न! ह व लए ए हम लोग य क समा त तक तु ह यह रखने म समथ ह. इस कार हम पाप से छु टकारा पा लगे. (३) स म यमानो अ वरे३ नः पावक ई
ः. शो च केश तमीमहे.. (४)
य म व लत, वाला पी केश से यु , शु अ न से हम मनचाहे फल क याचना करते ह. (४) पृथुपाजा अम य घृत न ण वा तः. अ नय परम तेज वी, मरणर हत, घृतशोधक एवं ह वहन कर. (५)
क ा तथा तोता
ारा पूजनीय
य ह वाट् .. (५) ारा पू जत अ न इस य
का ह व
तं सबाधो यत ुच इ था धया य व तः. आ च ु र नमूतये.. (६) य का व न न करने म समथ एवं ह धारण करने वाले ऋ वज ने ुच हाथ म लेकर इस कार क तु तय ारा अ न को र ा के लए अ भमुख कया था. (६) होता दे वो अम यः पुर तादे त मायया. वदथा न चोदयन्.. (७) होम न पादक, मरणर हत एवं ोतमान अ न लोग को य कम करने के लए े रत करके अपनी माया से अ गामी बनते ह. (७) वाजी वाजेषु धीयतेऽ वरेषु बलवान् अ न यु य के साधक ह. (८)
पीयते. व ो य
य साधनः.. (८)
म आगे कए जाते ह एवं य म था पत होते ह. अ न मेधावी व
धया च े वरे यो भूतानां गभमा दधे. द
य पतरं तना.. (९)
यजमान ारा य कम का अंग होने से वरणीय, भूत म गभ प से पता प अ न को य वे दका पर धारण करती है. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
थत एवं
न वा दधे वरे यं द
येळा सह कृत. अ ने सुद तमु शजम्.. (१०)
हे बल ारा उ प , शोभनद तयु , ह के अ भलाषी एवं वरणीय अ न! द पु ी इडा अथात् य भू म तु ह धारण करती है. (१०)
क
अ नं य तुरम तुरमृत य योगे वनुषः. व ा वाजैः स म धते.. (११) भ यजमान एवं मेधावी अ वयु सबके नयंता एवं जल के ेरक अ न को य योग के लए ह व प अ के ारा भली-भां त द त करते ह. (११) ऊज नपातम वरे द दवांसमुप
के
व. अ नमीळे क व तुम्.. (१२)
अ के नाती, अंत र के समीप का शत होने वाले एवं मेधा वय अ न क म य म तु त करता ं. (१२)
ारा उ पा दत
ईळे यो नम य तर तमां स दशतः. सम नर र यते वृषा.. (१३) पूजा तथा नम कार के यो य, अंधकार का नाश करने के कारण सबके दशनीय एवं कामवष अ न व लत कए जाते ह. (१३) वृषो अ नः स म यतेऽ ो न दे ववाहनः. तं ह व म त ईळते.. (१४) घोड़े के समान दे व का ह ढोने वाले एवं कामवषक अ न ह व धारण करने वाले यजमान उनक ाथना करते ह. (१४)
व लत कए जाते ह.
वृषणं वा वयं वृष वृषणः स मधीम ह. अ ने द तं बृहत्.. (१५) हे कामवषक अ न! जल बरसाने वाले द तमान् एवं महान् तुमको घी क आ त से स चने वाले हम व लत करते ह. (१५)
सू —२८
दे वता—अ न
अ ने जुष व नो ह वः पुरोळाशं जातवेदः. ातः सावे धयावसो.. (१) हे जातवेद एवं तु त ारा धन दे ने वाले अ न! ातःका लक य और पुरोडाश का सेवन करो. (१) पुरोळा अ ने पचत तु यं वा घा प र कृतः. तं जुष व य व
म तुम हमारे ह व
.. (२)
हे अ तशययुवा अ न! पुरोडाश तु हारे लए पकाया एवं सं कृत कया गया है. तुम उसका सेवन करो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ने वी ह पुरोळाशमा तं तरोअ यम्. सहसः सूनुर य वरे हतः.. (३) हे अ न! दन छपने पर भली कार दए गए पुराडोश को खाओ. हे बल के पु अ न! तुम य म न हत हो. (३) मा य दने सवने जातवेदः पुरोळाश मह कवे जुष व. अ ने य य तव भागधेयं न मन त वदथेषु धीराः.. (४) हे जातवेद एवं मेधावी अ न! दोपहर के य के समय पुरोडाश का सेवन करो. हे महान् अ न! कमकुशल अ वयु य म तु हारा भाग अव य दे ते ह. (४) अ ने तृतीये सवने ह का नषः पुरोळाशं सहसः सूनवा तम्. अथा दे वे व वरं वप यया धा र नव तममृतेषु जागृ वम्.. (५) हे बल के पु अ न! तीसरे सवन म दए गए पुरोडाश क तुम अ भलाषा करते हो. तु त से स तुम अ वनाशी, वगा द फल दे ने वाले एवं जागरणकारी सोमरस को मरणर हत दे व के समीप ले जाओ. (५) अ ने वृधान आ त पुरोळाशं जातवेदः. जुष व तरोअ यम्.. (६) हे जातवेद एवं आ तय के कारण वृ पुरोडाश नामक ह व का सेवन करो. (६)
सू —२९
को ा त अ न! दन छपने के समय तुम
दे वता—अ न
अ तीदम धम थनम त जननं कृतम्. एतां व प नीमा भरा नं म थाम पूवथा.. (१) यह अ न-मंथन का साधन तथा उसे उ प करने वाला पदाथ है. इस व पा लका अर ण को लाओ. हम पहले क तरह ही अ न का मंथन करगे. (१) अर यो न हतो जातवेदा गभ इव सु धतो ग भणीषु. दवे दव ई ो जागृव ह व म मनु ये भर नः.. (२) जस कार गभवती ना रय म गभ रहता है, उसी कार जातवेद अ न अर णय म छपे ह. वे अ न ह व धारण करने वाले एवं य कम म जाग क मनु य ारा त दन पूजा करने यो य ह. (२) उ ानायामव भरा च क वा स ः वीता वृषणं जजान. अ ष तूपो शद य पाज इळाया पु ो वयुनेऽज न .. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ानवान् अ वयु! ऊपर मुखवाली नचली अर ण पर नीचे मुखवाली उ र अर ण रखो. उसी समय गभवती अर ण कामवषक अ न को उ प करे. उस म अ न का अंधकार-नाशक तेज था. का शत तेज वाले एवं इडा के पु अथात् उ र वेद म उ प अ न अर ण म कट ए. (३) इळाया वा पदे वयं नाभा पृ थ ा अ ध. जातवेदो न धीम ने ह ाय वो हवे.. (४) हे जातवेद अ न! हम ह वहन करने के न म तु ह धरती के ऊपर एवं उ र वेद के म य भाग म था पत करते ह. (४) म थता नरः क वम य तं चेतसममृतं सु तीकम्. य य केतुं थमं पुर ताद नं नरो जनयता सुशेवम्.. (५) हे य के नेता अ वयुगण! ांतदश , मन एवं वाणी से एक ही कम करने वाले, कृ ानयु , मरणर हत व शोभन अंग समेत अ न को मंथन ारा पैदा करो. हे नेताओ! य का संकेत करने वाले, मु य एवं सुख से यु अ न को य कम के पहले ही उ प करो. (५) यद म थ त बा भ व रोचतेऽ ो न वा य षो वने वा. च ो न याम नोर नवृतः प र वृण य मन तृणा दहन्.. (६) जब हाथ से अर ण का मंथन कया जाता है, तब लक ड़य म अ न इस कार ती ग त से सुशो भत होते ह, जस कार शी गामी अ अथवा अ नीकुमार का अनेक रंग का रथ शोभा पाता है. अवरोधर हत अ न प थर और तनक को जलाते ए आगे बढ़ते ह. (६) जातो अ नी रोतने चे कतानो वाजी व ः क वश तः सुदानुः. यं दे वास ई ं व वदं ह वाहमदधुर वेषु.. (७) मंथन से उ प अ न सव ! न यग तशील, य कम के ाता, मेधावी, होता ारा तुत एवं शोभन फलदाता के प म शोभा पाते ह. इ ह तु य एवं सव अ न को दे व ने य म ह वाहक बनाया था. (७) सीद होतः व उ लोके च क वा सादया य ं सुकृत य योनौ. दे वावीदवा ह वषा यजा य ने बृह जमाने वयो धाः.. (८) हे होम न पादक एवं ानवान् अ न! तुम अपने थान अथात् उ र वेद पर बैठो तथा य क ा यजमान को उ म लोक म ले जाओ. हे दे वर क अ न! ह ारा दे व क पूजा करो एवं मुझ य करने वाले यजमान को पया त अ दो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कृणोत धूमं वृषणं सखायोऽ ेध त इतन वाजम छ. अयम नः पृतनाषाट् सुवीरो येन दे वासो असह त द यून्.. (९) हे म अ वयु! तुम अर णमंथन ारा कामवषक अ न को उ प करो. य द वह उ प न हो तो तुम साम यवान् बनकर मंथन पी यु म लगो. शोभन साम य वाले अ न सेना के वजेता ह. इ ह क सहायता से दे व ने असुर को परा जत कया था. (९) अयं ते यो नऋ वयो यतो जातो अरोचथाः. तं जान न आ सीदाथा नो वधया गरः.. (१०) हे अ न! ऋतु वशेष म उ प का से न मत यह अर ण तु हारा उ प थान है. इससे उ प होकर तुम शोभा पाते हो. इसे जानते ए अर ण म बैठो तथा हमारे तु त वचन को बढ़ाओ. (१०) तनूनपा यते गभ आसुरो नराशंसो भव त य जायते. मात र ा यद ममीत मात र वात य सग अभव सरीम ण.. (११) अर णय म गभ प से वतमान अ न तनूनपात् कहे जाते ह. उ प होने पर उनका नाम असुर तथा नराशंस हो जाता है. जब वे आकाश म अपना तेज फैलाते ह, तब मात र ा कहलाते ह. अ न के शी गमन पर वायु क उ प होती है. (११) सु नमथा नम थतः सु नधा न हतः क वः. अ ने व वरा कृणु दे वा दे वयते यज.. (१२) हे मेधावी, शोभन मंथन से उ प एवं उ म थान म था पत अ न! हमारे य व नर हत बनाओ एवं दे वा भलाषी यजमान के लए दे व क पूजा करो. (१२)
को
अजीजन मृतं म यासोऽ ेमाणं तर ण वीळु ज भम्. दश वसारो अ ुवः समीचीः पुमांसं जातम भ सं रभ ते.. (१३) मरणधमा ऋ वज ने अमर, यर हत, ढ़ दांत वाले तथा पापो ारक अ न को ज म दया है. जस कार पु ज म पर लोग हषसूचक श द करते ह, उसी कार दस उंग लयां मलकर अ न क उ प पर श द करती ह. (१३) स तहोता सनकादरोचत मातु प थे यदशोच ध न. न न मष त सुरणो दवे दवे यदसुर य जठरादजायत.. (१४) सनातन एवं सात होता वाले अ न वशेष शोभा पाते ह. जब वे अ न धरती माता क गोद एवं उ रवेद पी तन पर शो भत होते ह, तब शोभन श द करते ह. अर ण पी काठ के उदर से उ प होने के कारण वे कभी सोते नह ह. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ म ायुधो म ता मव याः थमजा णो व म ः. ु नवद् कु शकास ए रर एकएको दमे अ नं समी धरे.. (१५) म द्गण के समान असुर के साथ लड़ने वाले एवं ा से उ प कु शकगो ीय ऋ ष चराचर को जानते ह, ह धारण करके तु त मं पढ़ते ह एवं अपने-अपने घर म अ न को व लत करते ह. (१५) यद वा य त य े अ म होत क वोऽवृणीमहीह. ुवमया ुवमुताश म ाः जान वदाँ उप या ह सोमम्.. (१६) हे होम न पादक एवं य कम ानी अ न! इस य म हम तु हारा वरण करते ह, इस लए तुम दे व को हमारा ह प च ं ाओ, उ ह शांत करो एवं य को जानते ए सोम के समीप आओ. (१६)
सू —३०
दे वता—इं
इ छ त वा सो यासः सखायः सु व त सोमं दधा त यां स. त त ते अ भश तं जनाना म वदा क न ह केतः.. (१) हे इं ! सोमरस के यो य ा ण तु हारी तु त करना चाहते ह. तु हारे वे म तु हारे लए सोम नचोड़ते ह, अ य ह व धारण करते ह एवं श ु का वरोध सहते ह. संसार म तुमसे अ धक स कौन है? (१) न ते रे परमा च जां या तु या ह ह रवो ह र याम्. थराय वृ णे सवना कृतेमा यु ा ावाणः स मधाने आ नौ.. (२) हे हरे घोड़ वाले इं ! रवत थान भी तु हारे लए र नह है. तुम अपने घोड़ क सहायता से आओ. हे ढ़ च एवं कामवष इं ! यह य तु हारे लए कया गया है एवं अ न उ त होने पर सोम नचोड़ने के लए प थर एक- सरे के ऊपर रखे गए ह. (२) इ ः सु श ो मघवा त ो महा ात तु वकू मऋघावान्. य ो धा बा धतो म यषु व१ या ते वृषभ वीया ण.. (३) हे कामवष इं ! तुम परम ऐ य संप , धनवान्, श ु वजयी, म त के वशाल समूह से यु , सं ाम म व म द शत करने वाले, श ु हसक एवं श ु के लए भंयकर हो. असुर ारा बाधा प ंचाने पर तुमने जो वीरता दखाई थी, वह कहां है? (३) वं ह मा यावय युता येको वृ ा चर स ज नमानः. तव ावापृ थवी पवतासोऽनु ताय न मतेव त थुः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुमने अकेले ही ढ़मूल रा स को थान युत कया है एवं पाप को न करते ए तुम थत ए हो. तु हारी आ ा से धरती, आकाश एवं पवत न ल से रहते ह. (४) उताभये पु त वो भरेको हमवदो वृ हा सन्. इमे च द रोदसी अपारे य संगृ णा मघव का श र े.. (५) हे दे व ारा अनेक बार बुलाए गए एवं श शाली इं ! तुमने अकेले ही वृ का वध करके जो दे व को अभयदान दया, वह उ चत ही है. हे मघवन्, लोक म तु हारी म हमा स है क तुम सीमार हत धरती और आकाश को मलाते हो. (५) सू त इ वता ह र यां ते व ः मृण ेतु श ून्. ज ह तीचो अनूचः पराचो व ं स यं कृणु ह व म तु.. (६) हे इं ! तु हारा अ यु रथ श ु क ओर उ म माग से चले एवं तु हारा व श ु को मारता आ आए. तुम सामने आने वाले, पीछे आने वाले तथा भागने वाले श ु को मारो. तुम संसार को य पूण करने क श दो. (६) य मै धायुरदधा म यायाभ ं च जते गे १ ं सः. भ ा त इ सुम तघृताची सह दाना पु त रा तः.. (७) हे न य ऐ ययु इं ! जस मनु य के लए तुम श धारण करते हो, वह पहले अ ा त गृहसंबंधी व तु को ा त करता है. हे पु त! घृता द ह व से यु तु हारी शोभन बु क याणकारी है तथा तु हारी धनदान श असीम है. (७) सहदानुं पु त य तमह त म सं पणक्कुणा म्. अ भ वृ ं वधमानं पया मपाद म तवसा जघ थ.. (८) हे पु त इं ! तुम माता दानवी के साथ वतमान, बाधक एवं गरजने वाले असुर वृ को बना हाथ का बनाकर चूण कर दो. हे इं ! बढ़ते ए एवं हसक वृ को पादहीन करके अपनी श से मार डालो. (८) न सामना म षरा म भू म महीमपारां सदने सस थ. अ त नाद् ां वृषभो अ त र मष वाप वयेह ूसताः.. (९) हे इं ! तुमने महती, सीमार हत एवं चंचल धरती को समतल करके उसके थान पर था पत कया था. कामवषक इं ने धरती और आकाश को इस कार धारण कया है क वे गर न सक. तु हारे ारा े रत जल धरती पर आए. (९) अलातृणो वल इ जो गोः पुरा ह तोभयमानो ार. सुगा पथो अकृणो रजे गाः ाव वाणीः पु तं धम तीः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हसक, म यमावासी एवं व ाम थल बल नामक मेघ व हार से पहले ही डर कर छ भ हो गया. इं ने जल नकालने के लए माग सुगम कर दया था. सुंदर एवं श द करता आ जल पु त इं के स मुख आया था. (१०) एको े वसुमती समीची इ आ प ौ पृ थवीमुत ाम्. उता त र ाद भ नः समीक इषो रथीः सयुजः शूर वाजान्.. (११) इं ने बना कसी क सहायता के धरती-आकाश को पर पर मला आ एवं धनसंप बनाया था. हे शूर एवं रथ वामी इं ! हमारे पास रहने क इ छा से रथ म जुड़े ए घोड़ को आकाश से हमारी ओर हांको. (११) दशः सूय न मना त द ा दवे दवे हय सूताः. सं यदानळ वन आ दद ै वमोचनं कृणुते त व य.. (१२) इं ने सूय के त दन के गमन के लए जो दशाएं न त क ह, सूय उनका कभी उ लंघन नह करते. सूय जब अपना माग समा त कर लेते ह तो घोड़ को रथ से छोड़ दे ते ह, पर यह काम भी इं का ही है. (१२) द त उषसो याम ो वव व या म ह च मनीकम्. व े जान त म हना यदागा द य कम सुकृता पु ण.. (१३) सब लोग रात बीतने के बाद एवं उषाकाल क समा त पर महान् एवं तेज वी सूय को दे खना चाहते ह. उषाकाल बीत जाने पर सब लोग अ नहो आ द को ही कम समझते ह. ये सब उ म कम इं के ही ह. (१३) म ह यो त न हतं व णा वामा प वं चर त ब ती गौः. व ं वाद्म स भृतमु यायां य सी म ो अदधा ोजनाय.. (१४) इं ने न दय म महान् एवं तेज वी जल भरा है. इं ने नई याई ई गाय म परम वा द खा पदाथ रखा है, इस लए वह ध धारण करके घूमती है. (१४) इ
यामकोशा अभूव य ाय श गृणते स ख यः. मायवो रेवा म यासो नष णो रपवो ह वासः.. (१५)
हे इं ! रा स माग रोकने वाले ह, इस लए तुम ढ़ बनो व य एवं तु त करने वाले यजमान तथा उसके पु ा द के लए मनचाहा फल दो. बुरे आयुध फकने वाले, धीरेधीरे चलने वाले, ह यारे एवं तूणीरधारी श ु को मारो. (१५) सं घोषः शृ वेऽवमैर म ैजही ये वश न त प ाम्. वृ ेमध ता जा सह व ज ह र ो मघवन् र धय व.. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हम समीपवत श ु का भयंकर श द सुन रहे ह. तुम अपने संतापकारी व का इन पर योग करके इ ह मारो, इन श ु को जड़ से समा त करो, इ ह वशेष प से बाधा प ंचाओ तथा परा जत करो. हे इं ! पहले रा स को मारो. इसके बाद इस य को पूरा करो. (१६) उद्वृह र ः सहमूल म वृ ा म यं य ं शृणी ह. आ क वतः सललूकं चकथ षे तपु ष हे तम य.. (१७) हे इं ! य म व न डालने वाले रा स को जड़ से न करो, उनका बीच का ह सा काटो तथा ऊपर का भाग समा त करो. चलने वाले रा स को र फक दो. ा ण से े ष करने वाले उस रा स पर संतापकारी अ फको. (१७) व तये वा ज भ णेतः सं य मही रष आस स पूव ः. रायो व तारो बृहतः यामा मे अ तु भग इ जावान्.. (१८) हे व पालक इं ! हम घोड़ का मा लक एवं अ वनाशी बनाओ. य द तुम हमारे समीप रहोगे तो हम ब त से अ एवं वशाल धन का उपभोग करते ए महान् बनगे. हे इं ! हमारे पास संतानयु धन दो. (१८) आ नो भर भग म ुम तं न ते दे ण य धीम ह रेके. ऊवइव प थे कामो अ मे तमा पृण वसुपते वसूनाम्.. (१९) हे इं द तयु धन हमारे पास लाओ. हम तुझ दानशील के धन के पा धनप त! हमारी अ भलाषा बड़वानल के समान बढ़ गई है, तुम उसे पूण करो. (१९)
ह. हे
इमं कामं म दया गो भर ै वता राधसा प थ . वयवो म त भ तु यं व ा इ ाय वाहः कु शकासो अ न्.. (२०) हे इं ! हमारी इस धना भलाषा को गाय , घोड़ एवं द तयु धन से पूरा करो. इन संप य ारा हम स बनाओ. वगा द सुख के अ भलाषी एवं य कम म कुशल कु शकगो ीय ऋ षय ने मं ारा यह तु त क है. (२०) आ नो गो ा द गोपते गाः सम म यं सनयो य तु वाजाः. दव ा अ स वृषभ स यशु मोऽ म यं सु मघव बो ध गोदाः.. (२१) हे वग के वामी इं ! बादल को फाड़ कर हम जल दो. इसके बाद उपभोग के यो य अ हमारे पास आए. हे कामवषक! तुम आकाश को ा त कए हो. हे स य साम य मघवन्! हम गाएं दो. (२१) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स
तं धनानाम्.. (२२)
धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (२२)
दे वता—इं
सू —३१ शास पता य
हतुन यं गा हतुः सेकमृ
ाँ ऋत य द ध त सपयन्. सं श येन मनसा दध वे.. (१)
बना पु वाला पता यह जानता आ क इस क या का पु मेरा पु होगा, पु उ प करने म समथ दामाद क सेवा करता आ शा के अनुसार उसके पास गया. ऐसी क या का प त उस म सुख का यान करता आ वीयाधान करता है, पु उ प करने के लए नह . (१) न जामये ता वो र थमारै चकार गभ स नतु नधानम्. यद मातरो जनय त व म यः कता सुकृतोर य ऋ धन्.. (२) औरस पु अपनी ब हन को धन नह दे ता, वह उसका ववाह करके उसे केवल प त का गभ धारण का अ धकार दे ता है. य द माता- पता पु एवं पु ी दोन को उ प करते ह, तो इनम से पु पडदान का उ म कम करता है तथा क या केवल व ालंकार से आदर पाती है. (२) अ नज े जु ा३ रेजमानो मह पु ाँ अ ष य य े. महा गभ म ा जातमेषां मही वृ य य य ैः.. (३) हे तेज वी इं ! वाला के ारा कांपती ई अ न ने तु हारे य के लए ब त से करण पी पु उ प कए ह. इन र मय का गभ एवं उ प संतान महान् है. हे ह र नामक घोड़ वाले इं ! तुमसे संबं धत सोम क आ तय के कारण इन र मय क वृ महान् है. (३) अ भ जै ीरसच त पृधानं म ह यो त तमसो नरजानन्. तं जानतीः युदाय ुषासः प तगवामभवदे क इ ः.. (४) वजयी म द्गण वृ के साथ यु करते ए इं के साथ मल गए थे. वृ के मरने पर म त ने उससे नकलने वाली सूय नामक महान् यो त को जाना. वृ हंता इं को सूय जानती ई उषाएं उसके समीप ग . इस कार इं अकेले ही सारी करण के प त ए. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वीळौ सतीर भ धीरा अतृ द ाचा ह व मनसा स त व ाः. व ाम व द प यामृत य जान ा नमसा ववेश.. (५) धीर एवं मेधावी सात अं गरागो ीय ऋ षय ने पवत म बंद गाय का पता लगा लया था. पवत पर गाय को जानकर वे जस माग से घुसे थे, उसी से गाय को नकाल लाए. उ ह ने य क साधन प सब गाय को ा त कया. इं ने अं गरागो ीय ऋ षय का कम जानकर उ ह नम कार ारा आदर दया एवं उस पवत म घुस गए. (५) वद द सरमा ण े म ह पाथः पू स य कः. अ ं नय सुप राणाम छा रवं थमा जानती गात्.. (६) सरमा नाम क दे वशुनी ने जब पवत का टू टा आ ार ा त कया, तब इं ने अपने वचन के अनुसार उसे ब त से भो य पदाथ के साथ अ दया. सुंदर पैर वाली सरमा (दे वशुनी) गाय के रंभाने का श द पहचान कर उनके सामने प ंच गई. (६) अग छ व तमः सखीय सूदय सुकृते गभम ः. ससान मय युवा भमख य थाभवद रा स ो अचन्.. (७) अ तशय मेधावी इं अं गरागो ीय ऋ षय के साथ म ता क इ छा से गए थे. उ म यो ा इं के लए पवत ने अपने भीतर बंद गाय को बाहर नकाल दया. न यत ण म त के साथ असुरमारक एवं अं गरा क गाय क कामना करने वाले इं ने उ ह ा त कया. अं गरा ऋ ष ने तुरंत इं क पूजा क . (७) सतः सतः तमानं पुरोभू व ा वेद ज नमा ह त शु णम्. णो दवः पदवीग ुरच सखा सख रमु च रव ात्.. (८) उ म व तु के त न ध एवं यु म आगे रहने वाले इं सम त उ म पदाथ को जानते ह, उ ह ने शु ण असुर का वध कया है. परम मेधावी एवं गाय के इ छु क हमारे म इं वग से आकर हम पाप से बचाव. (८) न ग ता मनसा से रकः कृ वानासो अमृत वाय गातुम्. इदं च ु सदनं भूयषां येन मासाँ अ सषास ृतेन.. (९) अं गरागो ीय ऋ ष गाय क इ छा करते ए तो ारा अमरता पाने का उपाय करते ए य म बैठे थे. वे अपने य के ारा महीन को अलग करना चाहते थे. इस लए उनके य म ब त से आसन थे. (९) स प यमाना अमद भ वं पयः न य रेतसो घानाः. व रोदसी अतपद्घोष एषां जाते नः ामदधुग षु वीरान्.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अं गरागो ीय ऋ ष अपनी गाय को दे खते ए पहले उ प पु के लए उनका ध ह कर स ए. उनका स तासूचक श द धरती-आकाश म भर गया. उ ह ने संसार क व तु म पु के समान भावना बनाई तथा गाय क रखवाली के लए वीर पु ष नयु कए. (१०) स जाते भवृ हा से ह ै या असृज द ो अकः. उ य मै घृतव र ती मधु वा हे जे या गौः.. (११) इं ने सहायक म त के साथ वृ को मारा. उसने हवन के पा एवं पूजनीय म त के साथ य के न म गाय को बनाया. इसी लए घी स हत ह धारण करने वाली व पया त मा ा म ह दे ने वाली उ म गौ ने यजमान के लए वा द एवं मधुर ध दया. (११) प े च च ु ः सदनं सम मै म ह वषीम सुकृतो व ह यन्. व क न तः क भनेना ज न ी आसीना ऊ व रभसं व म वन्.. (१२) अं गरागो ीय ऋ षय ने पालक इं के लए काशपूण उ म थान बनाया था. उ म य कम करने वाले उन लोग ने इं के लए उ चत थान भली कार दखा दया था. य मंडप म बैठे ए उन लोग ने व जनक धरती एवं आकाश को अंत र पी खंभे से रोककर वेगशाली इं को वग म थत कया. (१२) मही य द धषणा श थे धा स ोवृधं व वं१रोद योः. गरो य म नव ाः समीची व ा इ ाय त वषीरनु ाः.. (१३) य द हमारे ारा क ई तु त इं को धरती और आकाश को पृथक् करने एवं धारण करने म समथ करे, तभी हमारी नद ष तु तयां साथक ह. इं क सारी श यां वभाव स ह. (१३) म ा ते स यं व म श रा वृ ने नयुतो य त पूव ः. म ह तो मव आग म सूरेर माकं सु मघव बो ध गोपाः.. (१४) हे इं ! म तु हारी महती एवं दान क कामना करता ं. तुझ वृ हंता क सवारी के लए ब त सी घो ड़यां तु हारे पास आती ह. तुझ व ान् को हम महान् और उ म ह प ंचाते ह. हे मघवन्! तुम वयं को हमारा र क समझ लो. (१४) म ह े ं पु ं व व ाना द स ख य रथं समैरत्. इ ो नृ भरजन ानः साकं सूयमुषसं गातुम नम्.. (१५) इं ने भली-भां त जानते ए हम म को वशाल खेत एवं ब त सा सोना दया है. इसके प ात् गाएं आ द भी द ह. द तमान् इं ने नेता म त से मलकर सूय, उषा, धरती एवं अ न को उ प कया. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अप दे ष व वो३ दमूनाः स ीचीरसृज म वः पुनानाः क व भः प व ै ु भ ह व य
ाः. भधनु ीः.. (१६)
शांत च इं ने सव ा त, एक- सरे से मले ए एवं संसार को स करने वाले जल को उ प कया. वे जल मधुरतायु सोम को अ न, वायु व सूय के ारा शु कराते ए सारे संसार को स करके रात- दन अपने-अपने काम म लगाते ह. (१६) अनु कृ णे वसु धती जहाते उभे सूय य मंहना यज े. प र य े म हमानं वृज यै सखाय इ का या ऋ ज याः.. (१७) हे इं ! तुझ जगत् ेरक क म हमा से सम त पदाथ को धारण करने वाले एवं य के पा दनरात बार-बार आते ह. सीधी चाल वाले, म एवं कमनीय म द्गण व नकारी श ु को हराने के लए तु हारी श का सहारा पाकर समथ बनते ह. (१७) प तभव वृ ह सूनृतानां गरां व ायुवृषभो वयोधाः. आ नो ग ह स ये भः शवे भमहा मही भ त भः सर यन्.. (१८) हे वृ हंता, पूण आयु वाले, कामवषक व अ दाता इं ! तुम हमारी अ तशय य तु तय के वामी बनो. महान् एवं प के न म जाने के इ छु क तुम महती र ा एवं क याणकारी म ता के लए हमारे सामने आओ. (१८) तम र व मसा सपय ं कृणो म स यसे पुराजाम्. हो व या ह ब ला अदे वीः व नो मघव सातये धाः.. (१९) हे इं ! म अं गरागो ीय ऋ षय के समान तुझ पुरातन क पूजा करता आ तु तय ारा तु ह नवीन बनाता ं. तुम दे व वरोधी ब त से श ु रा स को मार डालो. हे मघवन्! हम उपभोग के लए धन दो. (१९) महः पावकाः तता अभूव व त नः पपृ ह पारमासाम्. इ वं पा ह नो रषो म ूम ू कृणु ह गो जतो नः.. (२०) हे इं ! पाप न करने वाले जल चार ओर फैले ह. इन जल के अ वनाशी नद को हमारे लए जल से भर दो. हे इं ! तुम रथ के वामी हो. हम श ु से बचाओ एवं अ यंत शी गाय का जीतने वाला बनाओ. (२०) अदे द वृ हा गोप तगा अ तः कृ णाँ अ षैधाम भगात्. सूनृता दशमान ऋतेन र व ा अवृणोदप वाः.. (२१) वे वृ नाशक एवं गो वामी इं हम गाएं द एवं य वनाशक काले लोग को अपने द त तेज ारा समा त कर. इं ने स यवचन से अं गरा को यारी गाएं दे कर गाय के नकलने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के सभी ार बंद कर दए थे. (२१) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (२२) धन- ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान् सकल- व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (२२)
सू —३२ इ
दे वता—इं
सोमं सोमपते पबेमं मा य दनं सवनं चा य .े ु या श े मघव ृजी ष वमु या हरी इह मादय व.. (१)
हे सोम के अ धप त इं ! मा यं दन-सवन म तैयार कए गए इस सोम को पओ. यह रमणीय है. हे मघवन् एवं ऋजीषी इं ! रथ म जोड़े गए दोन घोड़ को खोलकर उनके जबड़ को यहां क घास से भरो एवं उस य म उ ह स करो. (१) गवा शरं म थन म शु ं पबा सोमं र रमा ते मदाय. कृता मा तेना गणेन सजोषा ै तृपदा वृष व.. (२) हे इं ! गाय के ध से म त, मथे ए एवं नवीन सोम को पओ. यह सोम हम तु हारे हष के लए दान करते ह. तु त करने वाले म त एवं के साथ यह सोम तृ त पयत पान करो. (२) ये ते शु मं ये त वषीमवध च त इ म त त ओजः. मा य दने सवने व ह त पबा े भः सगणः सु श .. (३) हे इं ! जो म त् तु हारे तेज एवं बल को बढ़ाते ह, वे ही तु हारी तु त करते ए तु हारा ओज बढ़ाते ह. हे व ह त एवं सुंदर ठोढ़ वाले इं ! तुम के साथ मलकर मा यं दन सवन म सोम पओ. (३) त इ व य मधुम व इ य शध म तो य आसन्. ये भवृ ये षतो ववेदाममणो म यमान य मम.. (४) जो म त् इं के बल प थे, उ ह ने मधुर वा य बोलकर इं को े रत कया था. मेरा मम कोई नह जानता है, ऐसा समझने वाले वृ का रह य म त ने इं को बताया. (४) मनु व द सवनं जुषाणः पबा सोमं श ते वीयाय. स आ ववृ व हय य ैः सर यु भरपो अणा सस ष.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! मनु के य के समान तुम श ु को हराने वाली श पाने के लए मेरे इस य का सेवन करते ए सोम पओ. हे ह र नामक अ वाले इं ! तुम य के यो य म त के साथ आओ एवं गमनशील म त के साथ आकाश के जल को धरती पर लाओ. (५) वमपो य वृ ं जघ वाँ अ याँइव ासृजः सतवाजौ. शयान म चरता वधेन व वांसं प र दे वीरदे वम्.. (६) हे इं ! तुमने द तशाली जल को चार ओर से रोककर वतमान द तशू य एवं सोए ए वृ को यु के ारा मारा था एवं यु म जल को अ के समान तेजी से बहने के लए छोड़ दया था. (६) यजाम इ मसा वृ म ं बृह तमृ वमजरं युवानम्. य य ये ममतुय य य न रोदसी म हमानं ममाते.. (७) हम ह अ से वृ ा त, महान् जरार हत, न य त ण एवं तु तपा इं क पूजा करते ह. अप र मत धरती और आकाश य के यो य इं क म हमा को सी मत नह कर सकते. (७) इ य कम सुकृता पु ण ता न दे वा न मन त व े. दाधार यः पृ थव ामुतेमां जजान सूयमुषसं सुदंसाः.. (८) सम त दे व इं ारा न मत धरती आ द तथा य ा द का वरोध नह कर सकते. इं ने धरती, आकाश एवं अंतर से लोक को धारण कया था. शोभनकमा इं ने सूय तथा उषा को उ प कया था. (८) अ ोघ स यं तव त म ह वं स ो य जातो अ पबो ह सोमम्. न ाव इ तवस त ओजो नाहा न मासाः शरदो वर त.. (९) हे ोहर हत इं ! तु हारी म हमा वा त वक है, य क तुमने उ प होते ही सोमपान कया था, तुझ बलवान् के तेज का वारण वग, दन, मास एवं वष भी नह कर सकते. (९) वं स ो अ पबो जात इ मदाय सोमं परमे ोमन्. य ावापृ थवी आ ववेशीरथाभवः पू ः का धायाः.. (१०) हे इं ! तुमने ज म लेने के प ात् उ म थान म थत होकर आनंद के लए सोम पया था. जब तुम धरती और आकाश म व ए थे, उसी समय पुरातन बनकर कम के वधाता बने थे. (१०) अह ह प रशयानमण ओजायमानं तु वजात त ान्. न ते म ह वमनु भूदध ौयद यया फ या३ ामव थाः.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे पृ वी आ द को ज म दे ने वाले इं ! तुमने अ यंत वशाल बनकर जल को घेरकर सोए ए एवं वयं को बलवान् समझने वाले अ ह रा स को मारा था. जब तुम अपनी बगल म धरती को दबा लेते हो, उस समय वग तु हारी म हमा को नह जान पाता. (११) य ो ह त इ वधनो भू त यः सुतसोमो मयेधः. य ेन य मव य यः स य ते व म हह य आवत्.. (१२) हे इं ! हमारा य तु हारी वृ करता है. सोम नचोड़े जाने के कारण हमारा य तु ह य है. हे य यो य इं ! य के ारा यजमान क र ा करो. यह वृ को मारते समय तु हारे व क र ा करे. (१२) य न े े मवसा च े अवागैनं सु नाय न से ववृ याम्. यः तोमे भवावृधे पू भय म यमे भ त नूतने भः.. (१३) जो इं ाचीन, म यकालीन एवं आधु नक तो ारा वृ ा त करते ह, उ ह को यजमान र ा करने वाले य के ारा अपनी ओर आकृ करता है एवं नवीन धन ा त करने के लए य से ढकता है. (१३) ववेष य मा धषणा जजान तवै पुरा पाया द म ः. अंहसो य पीपर था नो नावेव या तमुभये हव ते.. (१४) इं क तु त करने का वचार जब मेरी बु म आता है, तब म तु त करता ं. म अशुभ दन आने के पहले ही इं क तु त करता ं. जस कार दोन तट वाले लोग नाव वाले को पुकारते ह, उसी कार हमारे दोन मातृ एवं पतृ कुल के लोग ःख से पार लगाने के वचार से तु ह पुकारते ह. (१४) आपूण अ य कलशः वाहा से े व कोशं स सचे पब यै. समु या आववृ मदाय द णद भ सोमास इ म्.. (१५) हे इं ! तु हारा कलश सोम से भर गया है. तु हारे सोमरस पीने के लए ‘ वाहा’ श द का उ चारण भी हो चुका है. जैसे पानी भरने वाला पानी भरे ए पा से सरे पा म जल डालता है, उसी कार म तु हारे पीने के लए कलश म सोम भरता ं. वा द सोम द णा करता आ इं क स ता के लए उनके सामने जाता है. (१५) न वा गभीरः पु त स धुना यः प र ष तो वर त. इ था स ख य इ षतो य द ा हं चद जो ग मूवम्.. (१६) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! न गहरा सागर तु ह रोक सकता है और न उसके चार ओर वतमान पवतसमूह! दे व क ाथना पर तुमने ढ़ वाडवा न का भी नवारण कर दया था. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (१७) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु के लए भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (१७)
सू —३३
दे वता—इं
पवतानामुशती उप थाद ेइव व षते हासमाने. गावेव शु े मातरा रहाणे वपाट् छु तु पयसा जवेते.. (१) व ा म बोले—“ जस कार घुड़साल से छू ट ई दो घो ड़यां एक- सरे से आगे बढ़ने क इ छा से दौड़ती ह अथवा बछड़ को जीभ से चाटने क इ छु क दो गाएं शी चलती ह, उसी कार दो सुंदर गाय जैसी सतलुज एवं ास नामक न दयां पवत क गोद से नकलकर समु से मलने क इ छु क होकर तेज बहती ह. (१) इ े षते सवं भ माणे अ छा समु ं र येव याथः. समाराणे ऊ म भः प वमाने अ या वाम याम ये त शु े.. (२) “हे इं ारा े रत दो न दयो! तुम इं क आ ा क ाथना करती ई दो रथसवार के समान सागर क ओर जाती हो, आपस म मलती ई, लहर के ारा एक- सरे के दे श को स चती एवं शोभायमान होती हो. (२) अ छा स धुं मातृतमामयासं वपाशमुव सुभगामग म. व स मव मातरा सं रहाणे समानं यो नमनु स चर ती.. (३) “बछड़ को चाटने क अ भलाषा करने वाली गाय के समान एक ही थान समु का ल य करके बहने वाली सतलुज एवं महान् सौभा यवती ास नद को म ा त आ ं.” (३) एना वयं पयसा प वमाना अनु यो न दे वकृतं चर तीः. न वतवे सवः सगत ः कयु व ो न ो जोहवी त.. (४) न दय ने कहा—“हम दोन इस जल के ारा तृ त होती इं ारा न मत सागर क ओर बहती ह. हमारे गमन का अंत नह होगा. यह ा ण हम दोन को कस अ भलाषा से पुकार रहा है?” (४) रम वं मे वचसे सो याय ऋतावरी प मु तमेवैः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स धुम छा बृहती मनीषाव युर े कु शक य सूनुः.. (५) व ा म बोले—“हे जलपूण स रताओ! मेरा सोम तैयार करने संबंधी वचन सुनकर थोड़ी दे र के लए क जाओ. कु शक का पु म महान् तु त ारा अपनी र ा क इ छा करता आ स रता को वशेष प से बुलाता ं.” (५) इ ो अ माँ अरद बा रपाह वृ ं प र ध नद नाम्. दे वोऽनय स वता सुपा ण त य वयं सवे याम उव ः.. (६) न दय ने उ र दया—“हाथ म व धारण करने वाले इं ने न दय को रोकने वाले वृ को मारकर हम दोन न दय को खोदा था. सम त व के ेरक, शोभन हाथ वाले एवं तेज वी इं ने हम सागर क ओर बहाया है. उसी क आ ा मानती ई हम जल से भरकर बहती ह.” (६) वा यं श धा वीय१ त द य कम यद ह ववृ त्. व व ेण प रषदो जघानाय ापोऽयन म छमानाः.. (७) “इं ने अ ह रा स को मारा था. उसके इस वीर कम को सदा कहना चा हए. इं ने चार ओर बैठे ए बाधाकारक असुर को व से मारा था. इसके बाद गमन का अ भलाषी जल बरसा.” (७) एत चो ज रतमा प मृ ा आ य े घोषानु रा युगा न. उ थेषु कारो त जुष व मा नो न कः पु ष ा नम ते.. (८) “हे तोता! हमारा तु हारा जो संवाद आ है, इसे मत भूलना. भ व य म होने वाले य म तु त रचना करके तुम हमारी सेवा करो. हम पु ष के समान ग भ मत बनाओ. हम तु ह नम कार करती ह.” (८) ओ षु वसारः कारवे शृणोत ययौ वो रादनसा रथेन. न षू नम वं भवता सुपारा अधोअ ाः स धवः ो या भः.. (९) व ा म ने उ र दया—“हे ब हन के समान न दयो! मुझ तु तक ा के वचन को सुनो. म बैलगाड़ी और रथ क सहायता से र दे श से तु हारे पास आया ं. तुम नीची एवं सरलता से पार करने यो य बन जाओ. हे न दयो! तुम मेरे रथ के प हए के नचले भाग को छू ती ई बहो.” (९) आ ते कारो शृणवामा वचां स ययाथ रादनसा रथेन. न ते नंसै पी यानेव योषा मयायेव क या श चै ते.. (१०) न दयां बोल —“हे तोता! हमने तु हारी बात सुन . इस बैलगाड़ी एवं रथ से साथ गमन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करो, य क तुम र से आए हो. जस कार बालक को तन पलाने के लए माता झुकती है अथवा पु ष का आ लगन करने के लए युवती झुकती है, उसी कार हम भी तु हारे लए नीची ई जाती ह.” (१०) यद वा भरताः स तरेयुग ाम इ षत इ जूतः. अषादह सवः सगत आ वो वृणे सुम त य यानाम्.. (११) व ा म ने कहा—“हे न दयो! तु हारे ारा आ ा पाए ए, इं ारा े रत पार जाने के इ छु क एवं पार जाने क चे ा करने वाले भरतवंशी लोग तु ह पार करगे. तुम य क पा हो. म सभी जगह तु हारी तु त क ं गा.” (११) अता रषुभरता ग वः समभ व ः सुम त नद नाम्. प व व मषय तीः सुराधा आ व णाः पृण वं यात शीभम्.. (१२) “गाय क अ भलाषा करने वाले भरतवंशी लोग पार प ंच गए. मेधावी म तु हारी तु त करता ं. अ उ प करती ई एवं शोभन धन से यु तुम दोन अ य न दय को पूण करो एवं ज द बहो.” (१२) उ ऊ मः श या ह वापो यो ा ण मु चत. मा कृतौ ेनसा यौ शूनमारताम्.. (१३) “हे न दयो! तु हारी लहर जुए क र सी से नीची बह. तु हारा जल र सय को न छु ए. पापर हत, क याण कम करने वाली एवं तर कारहीन न दयां इस समय बढ़ नह .” (१३)
सू —३४
दे वता—इं
इ ः पू भदा तर ासमक वद सुदयमानो व श ून्. जूत त वा वावृधानो भू रदा आपृण ोदसी उभे.. (१) पुरभेदनकारी, म हमा कट करने वाले, धन से यु एवं असुर क वशेष प से हसा करने वाले इं ने दवस को अपने तेज ारा बढ़ाया. तु त सुनकर आक षत होने वाले, अपने शरीर के ारा बढ़ते ए एवं व वध आयुध को धारण करने वाले इं ने धरती और आकाश को सब ओर से तृ त कया है. (१) मख य ते त वष य जू त मय म वाचममृताय भूषन्. इ तीनाम स मानुषीणां वशां दै वीनामुत पूणयावा.. (२) हे इं ! तुझ तु तयो य एवं श शाली को अलंकृत करता आ म अ ा त के लए मन से तु त करता ं. हे इं ! तुम मानवी एवं दै वी जा के आगे चलने वाले हो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ो वृ मवृणो छधनी तः मा यनाम मना पणी तः. अह ंसमुशध वने वा वधना अकृणो ा याणाम्.. (३) स कम वाले इं ने वृ असुर को रोका था. यु म श ु के हार रोकने वाले इं ने माया वय को वशेष प से मारा था. श ुवध क अ भलाषा करने वाले इं ने वन म छपे ए एवं बना धड़ वाले श ु का वध कया तथा रा य म छपी ई गाय को कट कया. (३) इ ः वषा जनय हा न जगयो श भः पृतना अ भ ः. ारोचय मनवे केतुम ाम व द यो तबृहते रणाय.. (४) इं ने वग दे ने वाले, अपने तेज से दन को उ प करते ए एवं श ु के साथ यु क कामना करने वाले अं गरा का साथ दे कर श ु सेना को जीत लया एवं दन के झंडे के समान सूय को मनु य के लए उ त कया. इसके बाद इं ने महान् यु के लए काश पाया. (४) इ तुजो बहणा आ ववेश नृव धानो नया पु ण. अचेतय य इमा ज र े ेमं वणम तर छु मासाम्.. (५) इं ने यु करने वाल के पया त धन को छ नते ए बाधा प ंचाने वाली तथा यु क अ भलाषा से आगे बढ़ती ई श ु सेना म वेश कया. इं ने तु तक ा के लए उषा का ान कराया तथा उनके चमक ले रंग को बढ़ाया. (५) महो महा न पनय य ये य कम सुकृता पु ण. वृजनेन वृ जना सं पपेष माया भद यूँर भभू योजाः.. (६) लोग महान् इं के महान् एवं ब त से उ म कम क तु त करते ह. श ु परभवकारी एवं ओज वाले इं ने श शाली लोग को श ारा एवं द यु को माया ारा पीस डाला था. (६) युधे ो म ा व रव कार दे वे यः स प त ष ण ाः. वव वतः सदने अ य ता न व ा उ थे भः कवयो गृण त.. (७) दे व के वामी एवं मानव के कामपूरक इं ने महान् यु के ारा धन ा त करके तोता को दया. मेधावी तोतागण यजमान के घर म मं ारा उन कम क शंसा करते ह. (७) स ासाहं वरे यं सहोदां ससवांसं वरप दे वीः. ससान यः पृ थव ामुतेमा म ं मद यनु धीरणासः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बु मान् तोता वृ ा द को हटाने वाले, वरण करने यो य, बल याचक को बल द, द जल एवं वग के दानी इं के साथ-साथ आनंद अनुभव करते ह. इं ने इस धरती एवं आकाश का दान कया था. (८) ससाना याँ उत सूय ससाने ः ससान पु भोजसं गाम्. हर ययमुत भोगं ससान ह वी द यू ाय वणमावत्.. (९) इं ने घोड़ , सूय एवं ब त से लोग के उपभोग म आने वाली गाय का दान दया था. इं ने वण पी धन का दान कया एवं द यु को मारकर आयवण का पालन कया. (९) इ ओषधीरसनोदहा न वन पत रसनोद त र म्. बभेद वलं नुनुदे ववाचोऽथाभव मता भ तूनाम्.. (१०) इं ने ओष धय , दवस , वन प तय तथा अंत र का दान कया था. इं ने मेघ को भ कया, वरो धय को मारा एवं यु के लए सामने आए लोग का दमन कया था. (१०) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (११) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (११)
सू —३५
दे वता—इं
त ा हरी रथ आ यु यमाना या ह वायुन नयुतो नो अ छ. पबा य धो अ भसृ ो अ मे इ वाहा र रमा ते मदाय.. (१) हे इं ! जस कार वायु अपने नयुत नाम के घोड़ क ती ा करते ह, उसी कार तुम भी ह र नामक घोड़ को रथ म जोड़कर कुछ ण ती ा करने के बाद हमारे पास आओ एवं हमारे ारा दया आ सोम पान करो. हम वाहा श द का उ चारण करके तु हारे आनंद के लए सोम दे ते ह. (१) उपा जरा पु ताय स ती हरी रथ य धू वा युन म. व था स भृतं व त पेमं य मा वहात इ म्.. (२) हम अनेक यजमान ारा बुलाए गए इं के रथ के अगले ह से म तेज दौड़ने वाले एवं वेगवान् घोड़े जोड़ते ह. वे घोड़े इं को सभी कार से पूण इस य म ले आव. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उपो नय व वृषणा तपु पोतेमव वं वृषभ वधावः. सेताम ा व मुचेह शोणा दवे दवे स शीर धानाः.. (३) हे कामवषक एवं अ के वामी इं ! अपने सेचन समथ एवं श ु से र ा करने वाले दोन घोड़ को हमारे पास ले आओ एवं इस यजमान क र ा करो. लाल रंग वाले उन घोड़ को यहां य म छोड़ दो. वे घास खाएं. तुम त दन भुने ए जौ खाओ. (३) णा ते युजा युन म हरी सखाया सधमाद आशू. थरं रथं सुख म ा ध त जान व ाँ उप या ह सोमम्.. (४) हे इं ! मं ारा रथ म जोड़ने यो य, यु म समान प से स तु हारे दोन घोड़ को हम मं ो चारणपूवक रथ म जोड़ते ह. तुम ानपूवक मजबूत एवं सुखदायक रथ पर चढ़कर सोम के समीप आओ. (४) मा ते हरी वृषणा वीतपृ ा न रीरम यजमानासो अ ये. अ याया ह श तो वयं तेऽरं सुते भः कृणवाम सोमैः.. (५) हे इं ! अ भलाषाएं पूण करने वाले एवं सुंदर पीठ वाले तु हारे ह र नामक घोड़ को अ य यजमान स न कर. हम नचोड़े ए सोम ारा तु ह पूरी तरह तृ त करगे. तुम ब त से यजमान को छोड़कर आओ. (५) तवायं सोम वमे वाङ् श मं सुमना अ य पा ह. अ म य े ब ह या नष ा द ध वेमं जठर इ म .. (६) यह सोम तु हारा है. तुम इसके सामने आओ एवं स मन से इस ब त से सोम को पओ. हे इं ! इस य म बछे ए कुश पर बैठकर इस सोम को पेट म डालो. (६) तीण ते ब हः सुत इ सोमः कृता धाना अ वे ते ह र याम्. तदोकसे पु शाकाय वृ णे म वते तु यं राता हव ष.. (७) हे इं ! तु हारे बैठने के लए कुश बछाए गए ह, तु हारे पीने के लए सोम नचोड़ा गया है एवं तु हारे घोड़ के खाने के लए भुने ए जौ तैयार ह. कुश के आसन वाले, अनेक लोग ारा तुत, कामवषक एवं म त क सेना वाले तु हारे लए व तृत ह दए गए ह. (७) इमं नरः पवता तु यमापः स म गो भमधुम तम न्. त याग या सुमना ऋ व पा ह जान व ा प या३ अनु वाः.. (८) हे इं ! अ वयु आ द ने प थर एवं जल क सहायता से तु हारे लए ध म त मीठे सोम को तैयार कया है. हे दशनीय शोभन मन वाले एवं व ान् इं ! अपनी सुंदर तु तय को जानते ए सोम पओ. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
याँ आभजो म त इ सोमे ये वामवध भव गण ते. ते भरेतं सजोषा वावशानो३ नेः पब ज या सोम म .. (९) हे इं ! सोमपान के समय तुम जन म त का आदर करते हो, यु म जो म द्गण तु ह बढ़ाते एवं तु हारी सहायता करते ह, उ ह म त के साथ मलकर सोमपान क अ भलाषा करने वाले तुम अ न पी जीभ ारा सोम पओ. (९) इ पब वधया च सुत या नेवा पा ह ज या यज . अ वय वा यतं श ह ता ोतुवा य ं ह वषो जुष व.. (१०) हे य के यो य इं ! वधा अ न पी जीभ ारा नचोड़े ए सोम को पओ. हे शु ! अ वयु के हाथ से दया आ सोम पओ अथवा होता के ारा दए गए ह का सेवन करो. (१०) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (११) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु के लए भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (११)
सू —३६
दे वता—इं
इमामू षु भृ त सातये धाः श छ त भयादमानः. सुतेसुते वावृधे वधने भयः कम भमह ः सु ुतो भूत्.. (१) हे इं ! म त के साथ सदा सवदा संग त क याचना करते ए हमारे धनलाभ के लए आकर इस सोम को सफल बनाओ. अपने महान् कम के कारण स इं सोम नचोड़ने के येक अवसर पर वृ कारक ह ारा बढ़े ह. (१) इ ाय सोमाः दवो वदाना ऋभुय भवृषपवा वहायाः. य यमाना त षू गृभाये पब वृषधूत य वृ णः.. (२) ाचीनकाल म इं के लए सोमरस दया गया था. उसके कारण वह समान प, तेज वी एवं महान् ए थे. वे इं ! इस दए ए सोम को हण करो एवं प थर ारा नचोड़े गए तथा वगा द फल दे ने वाले सोम को पओ. (२) पबा वध व तव घा सुतास इ सोमासः थमा उतेमे. यथा पबः पू ा इ सोमाँ एवा पा ह प यो अ ा नवीयान्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! ये नवीन तथा ाचीन सोम तु हारे लए नचोड़े गए ह. इ ह पओ और बलवान् बनो. हे तु त यो य एवं अ भनव इं ! जस कार तुमने पूववत सोम का पान कया था, उसी कार इस नवीन सोम को पओ. (३) महाँ अम ो वृज े वर यु१ ं शवः प यते धृ वोजः. नाह व ाच पृ थवी चनैनं य सोमासो हय मम दन्.. (४) महान् यु म श ु को ललकारने वाले एवं श ुपराभवकारी इं का उ बल तथा परा मपूण ओज सब जगह फैलता है. जब ह र नामक अ वाले इं को सोमरस स करता है, उस समय धरती और आकाश कोई भी इं को ा त नह कर पाते. (४) महाँ उ ो वावृधे वीयाय समाच े वृषभः का न े . इ ो भगो वाजदा अ य गावः जाय ते द णा अ य पूव ः.. (५) बलवान् श ु को भयंकर, कामवषक एवं सेवनीय इं वीरता दखाने के लए बढ़ते ह एवं तो के साथ मल जाते ह. इं क गाएं धा ह तथा सं या म ब त ह. (५) य स धवः सवं यथाय ापः समु ं र येव ज मुः. अत द ः सदसो वरीया यद सोमः पृण त धो अंशुः.. (६) जस समय कामनापूण न दयां अ त रवत समु क ओर दौड़ती ह, उसी समय जल रथ म बैठे लोग के समान चलता है. इसी कार अ यंत े इं लता से नचोड़े गए लघु प सोम क ओर अंत र से दौड़े आते ह. (६) समु े ण स धवो यादमाना इ ाय सोमं सुषुतं भर तः. अंशुं ह त ह तनो भ र ैम वः पुन त धारया प व ैः.. (७) जस कार समु से मलने क इ छा रखने वाली न दयां समु को भरती ह, उसी कार अ वयुगण तुझ इं के न म नचोड़े गए सोम को तैयार करते ए लता को नचोड़ते ह तथा सोम क धारा से प व भुजा ारा सोमरस को बनाते ह. (७) दाइव कु यः सोमधानाः सम व ाच सवना पु ण. अ ा य द ः थमा ाश वृ ँ जघ वाँ अवृणीत सोमम्.. (८) जैसे तालाब म जल भरता है, उसी कार इं के पेट म सोम समा जाता है. इं एक साथ ब त से य म उप थत रहते ह. इं ने पहले तो सोम का भ ण कया, उसके बाद मा यं दन सवन म दे व के लए उनका भाग बांट दया. (८) आ तू भर मा करेत प र ा ा ह वा वसुप त वसूनाम्. इ य े मा हनं द म य म यं त य य ध.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हम ज द से धन दो. तु ह धन दे ने से कौन रोक सकता है? हम जानते ह क तुम उ म धन के वामी हो. हे ह र नामक घोड़ वाले इं ! तु हारे पास जो महान् धन है, वह हम दो. (९) अ मे य ध मघव ृजी ष रायो व वार य भूरेः. अ मे शतं शरदो जीवसे धा अ मे वीरा छ त इ श न्.. (१०) हे मघवा एवं ऋजीषी इं ! हम वरणयो य ब त सा धन दो एवं जीने के लए सौ वष का समय दान करो. हे सुंदर ठोड़ी वाले इं ! हम ब त से वीर पु दो. (१०) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (११) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले श ु के लए भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (११)
दे वता—इं
सू —३७ वा ह याय शवसे पृतनाषा ाय च. इ
वा वतयाम स.. (१)
हे इं ! हम वृ को न करने वाला बल पाने तथा श ु सेना को हराने के लए तु ह े रत करते ह. (१) अवाचीनं सु ते मन उत च ुः शत तो. इ (२)
कृ व तु वाघतः.. (२)
हे शत तु इं ! तोता जन तु हारे मन एवं आंख को स करके मेरे अनुकूल बनाव. नामा न ते शत तो व ा भग भरीमहे. इ ा भमा तषा े.. (३)
हे शत तु इं ! यु उप थत होने पर हम सम त तु तय अनुकूल बल क याचना करते ह. (३) पु
ारा तु हारे नाम के
ु त य धाम भः शतेन महयाम स. इ ाय चषणीधृतः.. (४)
अनेक लोग क तु त के पा , असीम तेज से यु हम तु त करते ह. (४) इ ं वृ ाय ह तवे पु
एवं मनु य के धारणक ा इं क
तमुप ुवे. भरेषु वाजसातये.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यु म धनलाभ एवं वृ असुर का नाश करने के न म हम ब त को बुलाते ह. (५) वाजेषु सास हभव वामीमहे शत तो. इ हे शत तु इं ! तुम यु बुलाते ह. (६)
मश ु
वृ ाय ह तवे.. (६)
को हराओ. हम वृ का नाश करने के लए तु ह
ु नेषु पृतना ये पृ सुतूषु वःसु च. इ
सा वा भमा तषु.. (७)
हे इं ! धन, यु , वीर एवं बल का अ भमान करने वाले हमारे श ु शु म तमं न ऊतये ु ननं पा ह जागृ वम्. इ
या ण शत तो या ते जनेषु प चसु. इ
को हराओ. (७)
सोमं शत तो.. (८)
हे शत तु इं ! हमारी र ा के लए अ तशय श सोमरस को पओ. (८) इ
ारा बुलाए गए इं
शाली, यश वी एवं जागरणशील
ता न त आ वृणे.. (९)
हे शत तु इं ! गंधव, पतर, दे व, असुर एवं रा स इन पांच जन म जो इं यां ह, उ ह हम तु हारी ही समझते ह. (९) अग
वो बृहद् ु नं द ध व
हे इं ! सोम प ब त सा अ तु हारा उ म बल बढ़ाते ह. (१०) अवावतो न आ ग थो श (११)
रम्. उ े शु मं तराम स.. (१०) तु ह ा त हो. हम श ु
ारा
तर अ
दो. हम
परावतः. उ लोको य ते अ व इ े ह तत आग ह..
हे श शाली इं ! समीप अथवा र के थान से हमारे सामने आओ. हे व धारी इं ! तु हारा जो भी उ म लोक है, वहां से तुम इस य म आओ. (११)
सू —३८
दे वता—इं
अ भ त ेव द धया मनीषाम यो न वाजी सुधुरो जहानः. अ भ या ण ममृश परा ण कव र छा म स शे सुमेधाः.. (१) हे तोता! बढ़ई जस कार लकड़ी का सुधार करता है, उसी कार तुम इं क तु त को सभी कार द त करो. सुंदर जुए म जुते ए एवं वेगशाली घोड़े के समान य कम म संल न होकर एवं इं के अ तशय यकम का मरण करता आ उ म बु वाला म उन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
लोग को दे खना चाहता ं जो पूवकाल म कए गए य
के कारण वग पा गए ह. (१)
इनोत पृ छ ज नमा कवीनां मनोधृतः सुकृत त त ाम्. इमा उ ते यो३ वधमाना मनोवाता अध नु धम ण मन्.. (२) हे इं ! सुकृत कम ारा व भू म को पाने वाल के ज म के वषय म गु से पूछो. वे मन के समय एवं शुभ कम क सहायता से वग को ा त ए ह. इस य म तु ह ल य करके कही गई तु तयां मन क ग त के समान बढ़ रही ह. (२) न षी मद गु ा दधाना उत ाय रोदसी सम न्. सं मा ा भम मरे येमु व अ तमही समृते धायसे धुः.. (३) इस भूलोक म सव गूढ़ कम करने वाले क वय ने बल पाने के लए धरती एवं आकाश को सुशो भत कया है. उ ह ने धरती एवं आकाश क सीमा न त क है. पर पर संगत, व तीण एवं महान् धरती-आकाश को म यवत अंत र ारा धारण कया है. (३) आ त तं प र व े अभूष यो वसान र त वरो चः. मह द्वृ णो असुर य नामा व पो अमृता न त थौ.. (४) सम त क वय ने रथ म बैठे ए इं को सभी कार से अलंकृत कया है. अपनी भा से का शत इं द त से ढके ए थत ह. कामवष एवं ाणवान् इं के कम व च ह, य क उ ह ने नाना प धारण करके जल का आ य लया है. (४) असूत पूव वृषभो याया नमा अ य शु धः स त पूव ः. दवो नपाता वदथ य धी भः ं राजाना दवो दधाथे.. (५) कामवष , चरंतन एवं सव े इं ने यास को रोकने वाले एवं भूत जल को बनाया था. वग के वामी एवं प व करने वाले इं एवं व ण तेज वी य क ा क तु तय के कारण स होकर धन धारण करते ह. (५) ी ण राजाना वदथे पु ण प र व ा न भूषथः सदां स. अप यम मनसा जग वा ते ग धवा अ प वायुकेशान्.. (६) हे तेज वी इं एवं व ण! इस य म व तृत एवं सोमरस आ द से पूण तीन सवन को भली-भां त अलंकृत करो. हे इं ! मने य म वायु के कारण बखरे ए बाल वाले गंधव को दे खा था. इससे स है क तुम य म गए थे. (६) त द व य वृषभ य धेनोरा नाम भम मरे स यं गोः. अ यद यदसुय१ वसाना न मा यनो म मरे पम मन्.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो यजमान कामवष इं के न म गौ नाम वाली धेनु से ह ध हते ह, वे वग ा त करके क व बनते ह. असुर का नया बल धारण करके उन माया वय ने अपना-अपना प इं को अ पत कया. (७) त द व य स वतुन कम हर ययीमम त यामम त याम श ेत्. आ सु ु ती रोदसी व म वे अपीव योषा ज नमा न व े.. (८) सम त व के नमाता इं क सुवणमयी द त को कोई सी मत नह कर सकता. इस तु त के आ य इं इस शोभन तु त से स होकर सबको तृ त करने वाले धरती-आकाश का इस कार आ लगन करते ह, जस तरह माता अपने ब चे को छाती से लगाती है. (८) युवं न य साधथो महो य ै वी व तः प र णः यातम्. गोपा ज य त थुषो व पा व े प य त मा यनः कृता न.. (९) हे इं एवं व ण! तुम दोन तोता का क याण करो, उसे दै वी क याण दो तथा हमारी सभी कार र ा करो. सभी डरे ए दे व को अभय वाणी सुनाने वाले व थरतर इं नाना प कम को दे खते ह. (९) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (१०) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (१०)
सू —३९
दे वता—इं
इ ं म त द आ व यमाना छा प त तोमत ा जगा त. या जागृ व वदथे श यमाने य े जायते व त य.. (१) हे जगत् के वामी इं ! दय से उद्भूत एवं तोता ारा न मत तु तयां तु हारे पास जाव. य म मेरी तु त तु हारे जागरण का कारण बनती है, उसे जानो. (१) दव दा पू ा जायमाना व जागृ व वदथे श यमाना. भ ा व ा यजुना वसाना सेयम मे सनजा प या धीः.. (२) हे इं ! सूय दय से भी पहले य म क गई तु त तु हारा जागरण करती क याणका रणी, शु लव धा रणी, सनातन एवं हमारे पतर के पास से आई है. (२) यमा चद यमसूरसूत ज ाया अ ं पतदा थात्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ई
वपूं ष जाता मथुना सचेते तमोहना तपुषो बु न एता.. (३) यम ने अ नीकुमार को ज म दया था. उनक तु त करने के लए मेरी जीभ का अगला भाग चंचल है. अंधकारनाशक दवस के ारंभ म ही आए ए वे अ नीकुमार ातःकाल के य कम से संगत होते ह. (३) न करेषां न दता म यषु ये अ माकं पतरो गोषु योधाः. इ एषां ं हता मा हनावानुदगो ् ा ण ससृजे दं सनावान्.. (४) हे इं ! गाय के न म यु करने वाले हमारे पतर का मनु य म कोई भी नदक नह है. म हमा एवं वृ हनना द कम वाले इं ने उन अं गरागो ीय ऋ षय को समृ गाएं द थ . (४) सखा ह य स ख भनव वैर भ वा स व भगा अनु मन्. स यं त द ो दश भदश वैः सूय ववेद तम स य तम्.. (५) नव व अथात् अं गरागो ीय ऋ षय के म इं प णय ारा रोक ग गाय वाले बल म जब घुटन के सहारे गए थे, तब दस अं गरा के साथ बल के अंधकार म सूय को दे ख सके. (५) इ ोमधुस भृतमुतमु यायां प वेद शफव मे गोः. गुहा हतं गु ं गू हम सु ह ते दधे द णे द णावान्.. (६) इं ने सबसे पहले धा गाय म मधुर ध जाना, फर ध के न म चार चरण वाले गोधन को ा त कया. उदारता वाले इं ने गुफा म छपे ए एवं अंत र म चलने वाले मायावी असुर को दा हने हाथ म पकड़ लया. (६) यो तवृणीत तमसो वजान ारे याम रतादभीके. इमा गरः सोमपाः सोमवृ जुष वे पु तम य कारोः.. (७) रा से उ प होते ही सूय पी इं ने काश का वरण कया. हम पाप से र एवं भयहीन थान म रहगे. हे सोम पीने वाले एवं सोम पाने म मुख इं ! श ु वनाशकारी एवं तु त करने वाले ऋ वज् क इन तु तय को सुनो. (७) यो तय ाय रोदसी अनु यादारे याम रत य भूरेः. भू र च तुजतो म य य सुपारासो वसवो बहणावत्.. (८) हे इं ! जगत्- काशक सूय य के लए धरती और आकाश को का शत कर. हम व तृत पाप से र रह. हे तु त ारा स कए जाने वाले वसुओ! अ धक दान करने वाले यजमान को पया त एवं समृ शाली धन दो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (९) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (९)
दे वता—इं
सू —४० इ अ
वा वृषभं वयं सुते सोमे हवामहे. स पा ह म वो अ धसः.. (१)
हे कामवष इं ! नचोड़े ए सोम को पीने के लए हम तु ह बुलाते ह. तुम मादक एवं पी सोम को पओ. (१) इ
तु वदं सुतं सोमं हय पु
ु त. पबा वृष व तातृ पम्.. (२)
हे इं ! इस बु वधक एवं नचोड़े गए सोम को पीने क अ भलाषा करो. हे ब त तु त कए गए इं ! इस तृ तदायक सोम को पओ. (२) इ
ारा
णो धतावानं य ं व े भदवे भः. तर तवान व पते.. (३)
हे तु त कए जाते ए एवं म त के वामी इं ! य के यो य सम त दे व के साथ मलकर तुम हमारा यह ह व वाला य वशेष प से बढ़ाओ. (३) इ
सोमाः सुता इमे तव
य त स पते. यं च ास इ दवः.. (४)
हे स जन के वामी इं ! स ता दे ने वाला, द त, नचोड़ा गया एवं हमारे ारा तु ह दया गया सोम तु हारे उदर म जाता है. (४) द ध वा जठरे सुतं सोम म
वरे यम्. तव ु ास इ दवः.. (५)
हे इं ! सबके ारा वरण करने यो य, नचोड़े गए, द त एवं अपने साथ वग म रहने वाले सोम को अपने उदर म धारण करो. (५) गवणः पा ह नः सुतं मधोधारा भर यसे. इ
वादात म शः.. (६)
हे तु तय ारा शंसा यो य इं ! तुम मदकारक सोम क धारा से तृ त होते हो. हमारे ारा नचोड़े गए सोम को पओ. तु हारे ारा बढ़ाया आ अ ही हम ा त होता है. (६) अ भ ु ना न व नन इ ं सच ते अ ता. पी वी सोम य वावृधे.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमान का ु तयु को पीकर बढ़ते ह. (७)
व यर हत सोमा द ह व चार ओर से इं को ा त है. इं सोम
अवावतो न आ ग ह परावत वृ हन्. इमा जुष व नो गरः.. (८) हे वृ नाशक इं ! समीपवत अथवा रवत तु तय को वीकार करो. (८)
थान से हमारे सामने आओ और इन
यद तरा परावतमवावतं च यसे. इ े ह तत आ ग ह.. (९) हे इं ! तुम रवत , नकटवत अथवा म यवत थान से बुलाए जाते हो. सोमपान के लए वहां से इस य म आओ. (९)
दे वता—इं
सू —४१ आ तू न इ
म य ् घुवानः सोमपीतये. ह र यां या
वः.. (१)
हे व धारी इं ! होता ारा बुलाए ए तुम ह र नामक घोड़ क सहायता से सोम पीने के लए मेरे य म मेरे सामने ज द आओ. (१) स ो होता न ऋ वय त तरे ब हरानुषक्. अयु
ातर यः.. (२)
हे इं ! हमारे य म तु ह बुलाने के लए होता ठ क समय पर बैठ चुका है. कुश को एक- सरे से मलाकर बछाया गया है एवं ातःसवन म सोम नचोड़ने के लए प थर एकसरे से मल गए ह. (२) इमा
वाहः
य त आ ब हः सीद. वी ह शूर पुरोळाशम्.. (३)
हे तु तय ारा मलने वाले इं ! तु हारे लए ये तु तयां क जा रही ह. तुम इन कुशा पर भली कार बैठो. हे शूर! इस पुरोडाश को खाओ. (३) रार ध सवनेषु ण एषु तोमेषु वृ हन्. उ थे व
गवणः.. (४)
हे तु तय ारा शंसनीय एवं वृ हंता इं ! हमारे उ थ म रमण करो. (४)
ारा बोले गए तीन
तो
एवं
मतयः सोमपामु ं रह त शवस प तम्. इ ं व सं न मातरः.. (५) हे महान्, सोमपानक ा एवं श के वामी इं ! जस कार गाएं बछड़ को चाटती ह, उसी कार हमारी तु तयां तु ह चाटती ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स म द वा
धसो राधसे त वा महे. न तोतारं नदे करः.. (६)
हे इं ! हम अ धक धन दे ने के लए सोमरस ारा तुम शरीरस हत स रहो एवं मुझ तोता को नदा का वषय मत बनाओ. (६) वय म
वायवो ह व म तो जरामहे. उत वम मयुवसो.. (७)
हे इं ! य म तु ह बुलाने के इ छु क हम ह व लेकर तु हारी तु त करते ह, हे वास दे ने वाले इं ! तुम भी ह व वीकार करने वाले के लए हमारी इ छा करो. (७) मारे अ म
मुमुचो ह र यवाङ् या ह. इ
वधावो म वेह.. (८)
हे ह र नामक घोड़ को यार करने वाले इं ! हमसे रवत थान म घोड़ को रथ से अलग मत करो एवं हमारे पास आओ. हे सोमयु इं ! इस य म स रहो. (८) अवा चं वा सुखे रथे वहता म
के शना. घृत नू ब हरासदे .. (९)
लंबे बाल वाले एवं पसीने से भीगे ए घोड़े तु ह सुखदायक रथ पर बैठाकर बैठने यो य कुश के सामने एवं हमारे पास लाव. (९)
दे वता—इं
सू —४२ उप नः सुतमा ग ह सोम म
गवा शरम्. ह र यां य ते अ मयुः.. (१)
हे इं ! हमारे ारा नचोड़े गए एवं ध से मले ए सोम के समीप आओ. ह र नामक घोड़ से यु तु हारा रथ हमारी अ भलाषा करता है. (१) तम
मदमा ग ह ब हः ा ाव भः सुतम्. कु व व य तृ णवः.. (२)
हे इं ! प थर ारा नचोड़े गए एवं कुश पर रखे ए सोम के समीप आओ व इसको पीकर तृ त होओ. (२) इ
म था गरो ममा छागु र षता इतः. आवृते सोमपीतये.. (३)
इं के लए े रत हमारी तु त पी वाणी उ ह सोमपान के लए बुलाने हेतु इस थान से इं के सामने जाए. (३) इ ं सोम य पीतये तोमै रह हवामहे. उ थे भः कु वदागमत्.. (४) हम तो और उ थ के ारा इं को सोमपान के लए य म बुलाते ह. अनेक बार बुलाए ए इं आव. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ
सोमाः सुता इमे ता द ध व शत तो. जठरे वा जनीवसो.. (५)
हे शत तु इं एवं अ धारण करो. (५) व ा ह वा धन
पी धन वाले इं ! ये सोम नचोड़े गए ह. इ ह अपने उदर म
यं वाजेषु दधृषं कवे. अधा ते सु नमीमहे.. (६)
हे ांतदश इं ! हम तु ह यु म श ु ह, इस लए तुमसे धन मांगते ह. (६) इम म
को हराने वाला एवं धन जीतने वाला जानते
गवा शरं यवा शरं च नः पब. आग या वृष भः सुतम्.. (७)
हे इं ! य थल म आकर गो ध एवं जौ मले ए तथा प थर क सहायता से नचोड़े गए सोम को पओ. (७) तु ये द
व ओ ये३ सोमं चोदा म पीतये. एष रार तु ते
द.. (८)
हे इं ! तु हारे पीने के लए ही हम इस सोम को अपने उदर क ओर े रत करते ह. यह सोम तु हारे दय म रमण करे. (८) वां सुत य पीतये
नम
हवामहे. कु शकासो अव यवः.. (९)
हे पुरातन इं ! तुमसे र ा क अ भलाषा करते ए हम कु शकगो ीय ऋ ष तु त वा य ारा तु ह सोम पीने के लए बुलाते ह. (९)
सू —४३
दे वता—इं
आ या वाङु प व धुरे ा तवेदनु दवः सोमपेयम्. या सखाया व मुचोप ब ह वा ममे ह वाहो हव ते.. (१) हे जुए वाले रथ पर बैठे ए इं ! तुम शी हमारे पास आओ. यह सोमपान ाचीनकाल से तु हारे न म ही चला आ रहा है. तुम अपने यारे घोड़ को कुश के नकट रथ से खोलो. ये ऋ वज् तु ह सोम पीने के लए बुलाते ह. (१) आ या ह पूव र त चषणीरां अय आ शष उप नो ह र याम्. इमा ह वा मतयः तोमत ा इ हव ते स यं जुषाणाः.. (२) हे वामी इं ! तुमसे हमारी यही ाथना है क सभी पूववत जा समीप आओ और अपने घोड़ के साथ यहां सोमरस पओ. तोता तु हारी म ता चाहने वाली तु तयां तु ह बुलाती ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को छोड़कर हमारे ारा न मत एवं
आ नो य ं नमोवृधं सजोषा इ दे व ह र भया ह तूयम्. अहं ह वा म त भज हवी म घृत याः सधमादे मधूनाम्.. (३) हे दे व इं ! हमारे अ बढ़ाने वाले य म तुम स च से घोड़ के साथ आओ. हम घृतयु अ को ह व प म धारण करके सोम पीने के थान पर तु तय ारा तु ह बार-बार बुलाते ह. (३) आ च वामेता वृषणा वहातो हरी सखाया सुधुरा व ा. धानाव द ः सवनं जुषाणः सखा स युः शृणव दना न.. (४) हे इं ! स करने म समथ, सुंदर जुए म जुड़े ए, शोभन अंग वाले एवं म प ह र नामक दोन घोड़े तु ह य म प ंचाने के लए रथ म जुते ह. भुने ए जौ वाले य का सेवन करते ए एवं मुझ तोता के म इं तु तयां सुन. (४) कु व मा गोपां करसे जन य कु व ाजानं मघव ृजी षन्. कु व म ऋ ष प पवांसं सुत य कु व मे व वो अमृत य श ाः.. (५) हे इं ! मुझे भी लोग का र क बनाओ. हे मघवा एवं सोमयु वामी, ऋ ष तथा सोमपानक ा बनाओ एवं यर हत धन दो. (५)
इं ! मुझे सबका
आ वा बृह तो हरयो युजाना अवा ग सधमादो वह तु. ये ता दव ऋ याताः सुस मृ ासो वृषभ य मूराः.. (६) हे इं ! वशाल रथ म जुड़े ए एवं पर पर स ह र नामक घोड़े तु ह हमारे सामने ले आव. कामवष इं के श ुनाशक, भली कार मा लश कए गए एवं आकाश से आते ए घोड़े दशा को दो भाग म बांट दे ते ह. (६) इ पब वृषधूत य वृ ण आ यं ते येन उशते जभार. य य मदे यावय स कृ ीय य मदे अप गो ा ववथ. (७) हे इं ! प थर ारा नचोड़े गए एवं इ छत फल दे ने वाले सोम को पओ. येन नामक प ी सोमा भलाषी तु हारे लए सोम लाया है. इस सोम का नशा हो जाने पर तुम श ु मनु य को गराते एवं मेघ को भेदते हो. (७) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (८) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —४४
दे वता—इं
अयं ते अ तु हयतः सोम आ ह र भः सुतः. जुषाण इ ह र भन आ ग ा त ह रतं रथम्.. (१) हे इं ! प थर ारा नचोड़ा गया, सुंदर एवं स ता का वषय यह सोम तु हारे लए हो. तुम अपने हरे रंग के रथ पर बैठो एवं ह र नामक घोड़ क सहायता से हमारे सामने आओ. (१) हय ुषसमचयः सूय हय रोचयः. व ां क वा हय वधस इ व ा अ भ
यः.. (२)
हे इं ! तुम सोम के अ भलाषी बनकर उषा क पूजा करते एवं सूय को का शत करते हो. हे ह र नामक घोड़ वाले, व ान् एवं हमारी अ भलाषा को जानने वाले इं ! तुम हमारी सभी संप य को बढ़ाते हो. (२) ा म ो ह रधायसं पृ थव ह रवपसम्. अधारय रतोभू र भोजनं ययोर तह र रत्.. (३) इं ने हरे रंग क करण वाले वगलोक तथा ओष धय के कारण हरे रंग क धरती को धारण कया था. ावापृ वी इं के ह र नामक घोड़ को पया त भोजन दे ते ह एवं इं इ ह के म य वचरण करते ह. (३) ज ानो ह रतो वृषा व मा भा त रोचनम्. हय ो ह रतं ध आयुधमा व ं बा ोह रम्.. (४) हरे वण वाले एवं कामवष इं ज म लेते ही सारे संसार को का शत कर दे ते ह. ह र नामक घोड़ के वामी इं हाथ म हरे रंग का आयुध एवं श ु के ाण हरण करने वाला व रखते ह. (४) इ ो हय तमजुनं व ं शु ै रभीवृतम्. अपावृणो र भर भः सुतमुदगा ् ह र भराजत.. (५) इं ने कमनीय, ेत वण, ध मले ए, वेगवान् एवं प थर ारा नचोड़े गए सोम को आवरणर हत कया है एवं घोड़ के साथ मलकर प णय ारा चुराई गई गाएं गुफा से बाहर नकाली ह. (५)
सू —४५
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ म ै र ह र भया ह मयूररोम भः. मा वा के च यम वं न पा शनोऽ त ध वेव ताँ इ ह.. (१) हे इं ! मद करने वाले एवं मयूर के समान रोम वाले घोड़ के साथ तुम इस य म आओ. पाशबंधक जस कार प ी को फांस लेता है, उसी कार तु ह कोई तबं धत न करे. तुम म थल को पार करने वाले प थक के समान उ ह पार करके य म आओ. (१) वृ खादो वलं जः पुरां दम अपामजः. थाता रथ य हय र भ वर इ ो हा चदा जः.. (२) हे वृ हंता, मेघ- वदारक, जल को े रत करने वाले, श ुनगर के वमदक एवं बलवान् श ु को भी न करने वाले इं ! दोन घोड़ को हांकने के लए हमारे सामने रथ पर बैठो. (२) ग भीराँ उदध रव तुं पु य स गा इव. सुगोपा यवसं धेनवो यथा दं कु या इवाशत.. (३) हे इं ! तुम गहरे सागर को जैसे जल से भरते हो एवं कुशल वाले जैसे जौ आ द से गाय को पु बनाते ह, उसी कार इस यजमान को भी पु करो. जैसे गाएं जौ को ा त करती ह अथवा ना लयां बड़े तालाब म प ंचती ह, उसी कार सोम तु ह ा त होते ह. (३) आ न तुजं र य भरांशं न तजानते. वृ ं प वं फलमङ् क व धूनुही स पारणं वसु.. (४) हे इं ! पता जस कार समझदार पु को अपनी संप का एक भाग दे दे ता है, उसी कार हम श ुपराभवकारी पु दो. जैसे पके फल तोड़ने के लए अंकुश पेड़ को कंपा दे ता है, उसी कार तुम हम अ भलाषा पूण करने वाला धन दो. (४) वयु र वराळ स म ः वयश तरः. स वावृधान ओजसा पु ु त भवा नः सु व तमः.. (५) हे इं ! तुम धनवान्, वग के राजा, भले वा य बोलने वाले एवं महान् क तशाली हो. हे ब त ारा तु त कए गए इं ! तुम अपनी श से बढ़ते ए हमारे अ तशयशोभन अ वाले बनो. (५)
सू —४६
दे वता—इं
यु म य ते वृषभ य वराज उ य यूनः थ वर य घृ वेः. अजूयतो व णो वीया३णी ुत य महतो महा न.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे यु करने वाले, कामवष , धना धप त, समथ, न य-त ण, श ुपराभवकारी, जरार हत, व धारी, तीन लोक म स एवं महान् इं ! तु हारे वीरकम महान् ह. (१) महाँ अ स म हष वृ ये भधन पृ सहमानो अ यान्. एको व य भुवन य राजा स योधया यया च जनान्.. (२) हे पू य एवं उ इं ! तुम महान्, अपने धन को पार ले जाने वाले, श ारा श ु को हराने वाले एवं सम त संसार के अकेले राजा हो. तुम श ु का नाश करो एवं अपने भ को अपने थान पर ढ़ करो. (२) मा ाभी र रचे रोचमानः दे वे भ व तो अ तीतः. म मना दव इ ः पृ थ ाः ोरोमहो अ त र ा जीषी.. (३) तेज वी, सभी के ारा अ ेय एवं सोम के वामी इं पवत से महान् बल म दे व से व श , धरती, आकाश एवं वशाल अंत र से भी व तृत ह. (३) उ ं गभीरं जनुषा यु१ ं व चसमवतं मतीनाम्. इ ं सोमासः द व सुतासः समु ं न वत आ वश त.. (४) हे महान्, गंभीर, वभाव से ही उ , सभी जगह ा त व तु तक ा के र क इं ! एक दन पहले नचोड़ा गया सोम तु हारे पास उसी कार जाता है, जस कार स रताएं सागर म समा जाती ह. (४) यं सोम म पृ थवी ावा गभ न माता बभृत वाया. तं ते ह व त तमु ते मृज य वयवो वृषभ पातवा उ.. (५) हे इं ! धरती और आकाश तु हारी कामना से गभ धारण करने वाली माता के समान सोम को धारण करते ह. हे कामवष इं ! अ वयुगण उसी सोम को तु हारे लए े षत करते ह एवं तु हारे पीने के लए उसे शु करते ह. (५)
सू —४७
दे वता—इं
म वाँ इ वृषभो रणाय पबा सोममनु वधं मदाय. आ स च व जठरे म व ऊ म वं राजा स दवः सुतानाम्.. (१) हे जलवषक एवं म त के वामी इं ! तुम पुरोडाशा द के साथ सोमरस को सं ाम एवं स ता के लए पओ. तुम मद करने वाले सोम को अ धक मा ा म अपने पेट म भरो. तुम एक दन पहले नचोड़े गए सोम के वामी हो. (१) सजोषा इ सगणो म ः सोमं पब वृ हा शूर व ान्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ज ह श ूँरप मृधो नुद वाथाभयं कृणु ह व तो नः.. (२) हे शूर, दे व से मले ए, म त से यु , वृ हंता एवं य कम जानने वाले इं ! तुम सोमरस पओ, हमारे श ु का नाश करो, हसक का हनन करो एवं हमारे लए सभी कार के अभय दो. (२) उत ऋतु भऋतुपाः पा ह सोम म दे वे भः स ख भः सुतं नः. याँ आभजो म तो ये वा वह वृ मदधु तु यमोजः.. (३) हे ऋतुपालक इं ! अपने म म त एवं दे व के साथ हमारे ारा नचोड़े ए सोम को पओ. यु म सहायता पाने के लए तुमने जन म त क सेवा क , जन म त ने तु ह यु म वामी मानकर सहायता क , उ ह म त ने तु ह परा मी बनाया. तभी तुमने वृ का वध कया. (३) ये वा हह ये मघव वध ये शा बरे ह रवो ये ग व ौ. ये वा नूनमनुमद त व ाः पबे सोमं सगणो म ः.. (४) हे मघवा एवं अ के वामी इं ! जन म त ने वृ को मारते समय तु ह बढ़ाया, शंबर वध म तु हारी सहायता क , गाय के लए प णय से होने वाले यु म साथ दया और जो व ान् म द्गण आज भी तु ह स करते ह, उ ह म त के साथ मलकर तुम सोम पओ. (४) म व तं वृषभं वावृधानमकवा र द ं शास म म्. व ासाहमवसे नूतनायो ं सहोदा मह तं वेम.. (५) हम म त से यु , जलवषक, बढ़ने वाले, श ुर हत, द -गुणसंप , शासनक ा, सभी श ु को परा जत करने वाले, उ तथा म त को श दे ने वाले इं को नवीन र ा के लए बुलाते ह. (५)
सू —४८
दे वता—इं
स ो ह जातो वृषभः कनीनः भतुमावद धसः सुत य. साधोः पब तकामं यथा ते रसा शरः थमं सो य य.. (१) जलवषक, तुरंत उ प एवं कमनीय इं ह व-स हत सोमरस धारण करने वाले यजमान क र ा कर. हे इं ! समय-समय पर सोमपान क इ छा होने पर तुम सब दे व से पहले ही गो ध- म त सोम पओ. (१) य जायथा तदहर य कामऽशोः पीयूषम पबो ग र ाम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं ते माता प र योषा ज न ी महः पतुदम आ स चद े.. (२) हे इं ! जस दन तुमने ज म लया, उसी दन तुमने यास लगने पर पवत पर उ प होने वाली सोमलता का ताजा रस पया था. तु हारे महान् पता के घर म तु ह ज म दे ने वाली युवती माता ने ध पलाने से पहले तु ह सोमरस पलाया था. (२) उप थाय मातरम मै त ममप यद भ सोममूधः. यावय चरद् गृ सो अ या महा न च े पु ध तीकः.. (३) इं ने माता के समीप जाकर अ मांगा. इं ने माता के तन म ध के प म वतमान तेज वी सोम को दे खा. इं श ु को अपने-अपने थान से गराते ए घूमने लगे एवं अनेक कार से अंग संचालन करके वृ हनन आ द महान् कम कए. (३) उ तुराषाळ भभू योजा यथावशं त वं च एषः. व ार म ो जनुषा भभूयामु या सोमम पब चमूषु.. (४) श ु को भय द, शी तापूवक श ु को हराने वाले एवं श ु को हराने वाले परा म से यु इं ने अपने शरीर को इ छानुसार व वध कार का बनाया, अपनी श से व ा नामक असुर को हराया एवं चमस म रखे ए सोम को चुरा कर पया. (४) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (५) धन- ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (५)
सू —४९
दे वता—इं
शंसा महा म ं य म व ा आ कृ यः सोमपाः कामम न्. यं सु तुं धषणे व वत ं घनं वृ ाणां जनय त दे वाः.. (१) हे होता! महान् इं क तु त करो. उनक र ा पाकर सभी मनु य य म सोम पीकर मनोवां छत फल पाते ह. धरती, आकाश एवं सम त दे व ने शोभन कम एवं पापनाशक इं को ज म दया. ा ने इं को संसार का अ धप त बनाया. (१) यं नु न कः पृतनासु वराजं ता तर त नृतमं ह र ाम्. इनतमः स व भय ह शूषैः पृथु या अ मनादायुद योः.. (२) यु म अपने तेज से सुशो भत, ह र नामक घोड़ वाले रथ म बैठे ए, सव म नेता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं यु म सेना के दो भाग करने वाले इं को कोई हरा नह सकता. सेना के सव म वामी वह इं श ु क श सोख लेने वाले म त के साथ ती वेग धारण करके श ु के ाण को न करते ह. (२) सहावा पृ सुतर णनावा ानशी रोदसी मेहनावान्. भगो न कारे ह ो मतीनां पतेव चा ः सुहवो वयोधाः.. (३) बलवान् इं श शाली घोड़े के समान सं ाम म श ु सेना को पारकर वहां जाते ह एवं धरती-आकाश को ा त करके धनवान् बनते ह. य म सूय दे व के समान हवनीय एवं कमनीय इं तोता के पता तथा भली कार बुलाए जाने पर अ दे ने वाले बनते ह. (३) धता दवो रजस पृ ऊ व रथो न वायुवसु भ नयु वान्. पां व ता ज नता सूय य वभ ा भागं धषणेव वाजम्.. (४) इं वग तथा आकाश के धारणक ा, सव वतमान, अपने रथ के समान ऊपर चलने वाले, म त क सहायता ा त करने वाले, रा के आ छादक, सूय के ज मदाता एवं पूवज क वाणी के समान उपभोग यो य कमफल के प म ा त अ का वभाग करने वाले ह. (४) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (५) धन- ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (५)
सू —५०
दे वता—इं
इ ः वाहा पबतु य य सोम आग या तु ो वृषभो म वान्. ओ चाः पृणतामे भर ैरा य ह व त व१: काममृ याः.. (१) इं वाहा श द ारा दए गए सोम को पएं. जन इं का यह सोमरस है, वे य म आकर व नक ा क हसा करने वाले, कामवष एवं म त से यु ह. परम ापक इं हमारे ारा दए गए सोम आ द से संतु ह एवं हमारा दया आ ह इं के शरीर क इ छाएं पूरी करे. (१) आ ते सपयू जवसे युन म ययोरनु दवः ु मावः. इह वा धेयुहरयः सु श पबा व१ य सुषत ु य चारोः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम य म शी प ंच सको, इस लए हम तु हारे रथ म प रचारक प घोड़े जोड़ते ह. पुरातन तुम उन घोड़ क ग त के अनुसार चलते हो. हे सुंदर ठोड़ी वाले इं ! घोड़े तु ह य म लाव. तुम आकर सुंदर एवं भली-भां त नचोड़ा गया सोम पओ. (२) गो भ म म ुं द धरे सुपार म ं यै ाय धायसे गृणानाः. म दानः सोमं प पवाँ ऋजी ष सम म यं पु धा गा इष य.. (३) ऋ वज् अ भल षत फल दे ने वाले एवं तु तय ारा स कए जाने यो य इं को े ता और चरायु ा त के न म गो ध मले सोम से स करते ह. हे सोम के वामी इं ! तुम स होते ए सोमपान करो एवं हम तोता को य कम के न म ब त सी गाएं दो. (३) इमं कामं म दया गो भर ै वता राधसा प थ . वयवो म त भ तु यं व ा इ ाय वाहः कु शकासो अ न्.. (४) हे इं ! हमारी इस धना भलाषा को गाय , घोड़ एवं द तयु धन से पूरा करो. इन संप य ारा हम स बनाओ. वगा द सुख के अ भलाषी एवं य कम म कुशल कु शकगो ीय ऋ षय ने मं ारा यह तु त क है. (४) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (५) धन ा त वाले सं ाम म उ साहपूण, धनवान्, सकल व के नेता, तु तयां सुनने वाले, श ु को भयंकर, यु म रा स वनाशकारी एवं श ु के धन के वजेता इं को हम र ा के लए बुलाते ह. (५)
सू —५१
दे वता—इं
चषणीधृतं मघवानमु य१ म ं गरो बृहतीर यनूषत. वावृधानं पु तं सुवृ भरम य जरमाणं दवे दवे.. (१) मानव के धारणक ा, धनयु , तु त-समूह ारा शंसनीय, त ण बढ़ते ए तोता ारा अनेक बार बुलाए गए, मरणर हत एवं शोभन तु तय ारा त दन तूयमान इं को हमारे वशाल तु त-वचन संतु कर. (१) शत तुमणवं शा कनं नरं गरो म इ मुप य त व तः. वाजस न पू भदं तू णम तुरं धामसाचम भषाचं व वदम्.. (२) शत तु, जल के वामी, म त स हत सवजगत् के नेता, अ दाता, श ु नगर के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भेदनक ा, यु म शी जाने वाले, जल को े रत करने वाले, तेज धारण करने वाले, श ुपराभवकारी एवं वग ा त कराने वाले इं के पास हमारी तु तयां सभी कार से प ंच. (२) आकरे वसोज रता पन यतेऽनेहसः तुभ इ ो व य त. वव वतः सदन आ ह प ये स ासाम भमा तहनं तु ह.. (३) श ु का बल न करने वाले इं क धन के साधन यु म सब तु त करते ह. वह पापर हत इं तु तय को वीकार करते ह एवं यजमान के घर म सोमपान से परम स होते ह. हे व म ! श ु का पराभव एवं संहार करने वाले इं क तु त करो. (३) नृणामु वा नृतमं गी भ थैर भ वीरमचता सबाधः. सं सहसे पु मायो जहीते नमो अ य दव एक ईशे.. (४) हे मनु य के उ म नेता एवं परमवीर इं ! रा स ारा बा धत ऋ वज् तु तय एवं उ थ से मुख प से तु हारी पूजा करते ह. वृ हनन आ द स कम करने वाले इं श पाने के लए गमन करते ह. एकमा पुरातन एवं सव जगत् के वामी इं को नम कार है. (४) पूव र य न षधो म यषु पु वसू न पृ थवी बभ त. इ ाय ाव ओषधी तापो र य र त जीरयो वना न.. (५) मनु य पर इं अनेक कार से अनुशासन करते ह. इं के लए धरती नाना कार के धन धारण करती है. वग, ओष धयां, जल, मनु य एवं वन इं के न म धन क र ा करते ह. (५) तु यं ा ण गर इ तु यं स ा द धरे ह रवो जुष व. बो या३ परवसो नूतन य सखे वसो ज रतृ यो वयो धाः.. (६) हे अ के वामी इं ! ऋ वज् तु हारे न म तो एवं तु त मं वा तव म धारण करते ह. तुम उनका सेवन करो. हे सबको नवास दे ने वाले, सखा एवं ा त इं ! तु हारे न म दए गए अ भनव ह व को जानो तथा तु तक ा को अ दो. (६) इ म व इह पा ह सोमं यथा शायाते अ पबः सुत य. तव णीती तव शूर शम ा ववस त कवयः सुय ाः.. (७) हे म त से यु इं ! तुमने राजा शायात के य म जस कार सोमरस पआ था, उसी कार इस य म भी पओ. हे शूर! तु हारे बाधाहीन नवास म थत शोभन य करने वाले बु मान् तु ह ह दे कर तु हारी सेवा करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स वावशान इह पा ह सोमं म र स ख भः सुतं नः. जातं य वा प र दे वा अभूष महे भराय पु त व े.. (८) हे इं ! सोमरस पीने क अ भलाषा करते ए तुम अपने म म त के साथ इस य म आओ एवं हमारे ारा नचोड़ा गया सोम पओ. हे ब त ारा बुलाए गए इं ! तु हारे ज म लेते ही सब दे व ने तु ह महान् यु के लए वभू षत कया. (८) अ तूय म त आ परेषोऽम द मनु दा तवाराः. ते भः साकं पबतु वृ खादः सुतं सोमं दाशुषः वे सध थे.. (९) हे म तो! जलवषण क ेरणा के कारण इं तु हारे म ह. म त ने इं को स कया था. वृ हंता इं उनके साथ यजमान के अपने घर म नचोड़े गए सोम को पएं. (९) इदं
वोजसा सुतं राधानां पते. पबा व१ य गवणः.. (१०)
हे धन के वामी एवं तु तय गए सोम को ज द पओ. (१०)
ारा पूजनीय इं ! तु हारे उ े य से श
ारा नचोड़े
य ते अनु वधामस सुते न य छ त वम्. स वा मम ु सो यम्.. (११) हे इं ! ह अ के प ात् तु हारे लए जो सोम नचोड़ा गया है, उस म अपने शरीर को डु बो दो. सोमपान के यो य तुमको वह सोमरस स करे. (११) ते अ ोतु कु यो: े
णा शरः.
बा शूर राधसे.. (१२)
हे इं ! वह सोमरस तु हारी दोन कोख को भर दे . तो के साथ नचोड़ा गया वह सोम तु हारे शरीर को ा त करे. हे शूर! यह सोम धन के लए तु हारी भुजा को ा त करे. (१२)
सू —५२ धानाव तं कर भणमपूपव तमु थनम्. इ
दे वता—इं ातजुष व नः.. (१)
हे इं ! भुने ए जौ वाले, दही से मले स ु से यु , पुरोडाश स हत एवं उ थ मं के उ चारणपूवक ातःकाल के य म दए गए सोम का तुम सेवन करो. (१) पुरोळाशं पच यं जुष वे ा गुर व च. तु यं ह ा न स ते.. (२) हे इं ! तुम पके ए पुरोडाश का भ ण करो एवं उसे भ ण करने के लए य न करो. हवन यो य पुराडोश तु हारे लए जाता है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गर नः. वधूयु रव योषणाम्.. (३) हे इं ! हमारे पुरोडाश को खाओ तथा हमारी तु तय का उसी कार सेवन करो, जस कार कामी पु ष सुंदर नारी क सेवा करता है. (३) पुरोळाशं सन ुत ातःसावे जुष व नः. इ
तु ह ते बृहन्.. (४)
हे पुराण होने के नाते स इं ! इस ातःकालीन य म हमारे पुरोडाश का भ ण करो. इससे तु हारा कम महान् होगा. (४) मा य दन य सवन य धानाः पुरोळाश म कृ वेह चा म्. य तोता ज रता तू यथ वृषायमाण उप गी भरी े .. (५) हे इं ! दोपहर के य म भुने ए जौ के शोभन पुरोडाश का यहां आकर भ ण करो. तु हारी सेवा म त पर, तु हारी तु त करने के लए बैल के समान इधर-उधर शी ता से घूमने वाला तोता तु हारी उ म तु त जब करता है, तब तुम पुरोडाश खाते हो. (५) तृतीये धानाः सवने पु ु त पुरोळाशमा तं मामह व नः. ऋभुम तं वाजव तं वा कवे य व त उप श ेम धी त भः.. (६) हे ब त ारा तु त कए गए इं ! तृतीय सवन अथात् सं याकालीन य म हमारे भुने ए जौ एवं हवन कए गए पुरोडाश को भ ण ारा महान् बनाओ. हे ऋभु से यु , धनयु पु वाले तथा क व इं ! हम ह हाथ म लेकर तु तय ारा तु हारी सेवा करते ह. (६) पूष वते ते चकृमा कर भं ह रवते हय ाय धानाः. अपूपम सगणो म ः सोमं पब वृ हा शूर व ान्.. (७) हे सूय स हत इं ! हम तु हारे लए दही मला स ू तैयार करते ह. हे ह र नामक एवं हरे रंग के घोड़ वाले इं ! तु हारे लए हम जौ भूनते ह. तुम म त के साथ आकर पुरोडाश खाओ. हे वृ नाशक, शूर एवं व ान् इं ! तुम सोम पओ. (७) त धाना भरत तूयम मै पुरोळाशं वीरतमाय नृणाम्. दवे दवे स शी र तु यं वध तु वा सोमपेयाय धृ णो.. (८) हे अ वयुगण! मनु य म वीरतम इं के लए शी भुने जौ तथा पुरोडाश दो. हे श ुपराभवकारी इं ! तु ह को ल य करके त दन क गई एक सौ तु तयां तु ह सोमपान के लए उ साहपूण कर. (८)
सू —५३
दे वता—इं , पवत आ द
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ापवता बृहता रथेन वामी रष आ वहतं सुवीराः. वीतं ह ा य वरेषु दे वा वधथां गी भ रळया मद ता.. (१) हे इं एवं पवत! तुम बड़े रथ ारा शोभन एवं पु -स हत अ लाओ. हे दे व! हमारे य म ह का भ ण करो एवं उससे स होकर हमारे तु त वचन ारा वृ ा त करो. (१) त ा सु कं मघव मा परा गाः सोम य नु वा सुषुत य य . पतुन पु ः सचमा रभे त इ वा द या गरा शचीवः.. (२) हे मघवा! इस य म तुम कुछ समय सुखपूवक रहो. यहां से जाओ मत. हम भली कार नचोड़े गए सोम से शी ही तु हारा य करते ह. हे श शाली इं ! पु जस कार पता के व का छोर पकड़ लेता है, उसी कार हम मधुर तु तयां बोलते ए तु हारा व पकड़ते ह. (२) शंसावा वय त मे गृणीही ाय वाहः कृणवाव जु म्. एदं ब हयजमान य सीदाथा च भू थ म ाय श तम्.. (३) हे अ वयु! हम दोन तु त करगे. तुम मुझे उ र दो. हम दोन इं के लए य तु तयां करगे. तुम यजमान के कुश पर बैठो. हम दोन ारा इं के लए कया गया उ थ शंसनीय हो. (३) जायेद तं मघव से यो न त द वा यु ा हरयो वह तु. यदा कदा च सुनवाम सोमम न ् वा तो ध वा य छ.. (४) हे मघवा! प नी ही घर है एवं वही पु ष क यो न है. ह र नामक घोड़े तु ह उसी प नीयु घर म ले जाव. हम जब कभी सोमरस नचोड़, तब तु हारा त अ न तु हारे सामने आ जाए. (४) परा या ह मघव ा च याही ात भय ा ते अथम्. य ा रथ य बृहतो नधानं वमोचनं वा जनो रासभ य.. (५) हे धन के वामी इं ! तुम या तो इस य से अपने नवास थान पर जाओ अथवा इस य म आओ. हे भरणक ा इं ! दोन थान पर तु हारा योजन है. वहां जाने के लए अपने वशाल रथ पर बैठो तथा यहां रहने के लए हन हनाते ए घोड़ को रथ से अलग कर दो. (५) अपाः सोमम त म या ह क याणीजाया सुरणं गृहे ते. य ा रथ य बृहतो नधानं वमोचनं वा जनो द णावत्.. (६) हे इं ! यह ठहर कर सोम पओ और अपने घर जाओ. तु हारे घर म सुंदरी एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क याणी प नी है. घर जाने के लए तुम अपने वशाल रथ पर बैठो अथवा यहां ठहरने के लए घोड़ को खोलकर खाने-पीने दो. (६) इमे भोजा अ रसो व पा दव पु ासो असुर य वीराः. व ा म ाय ददतो मघा न सह सावे तर त आयुः.. (७) हे इं ! य करने वाले ये सुदासवंशी भोज नामक य, उनके याजक अनेक अं गरागो ीय ऋ ष एवं दे व से बलवान् के पु म त् इस अ मेध य म गु व ा म को महान् धन दे ते ए मेरे धन को बढ़ाव. (७) पं पं मघवा बोभवी त मायाः कृ वान त वं१ प र वाम्. य वः प र मु तमागा वैम ैरनृतुपा ऋतावा.. (८) इं इ छानुसार प बदल लेते ह. माया करते ए इं अपने शरीर को नाना कार का बनाते ह. स ययु होकर भी बना ऋतु के सोमपान करने वाले इं अपने तु त-मं से बुलाए जाने पर एक मु त म वगलोक से तीन सवन के य म प ंच जाते ह. (८) महाँ ऋ षदवजा दे वजूतोऽ त ना स धुमणवं नृच ाः. व ा म ो यदवह सुदासम यायत कु शके भ र ः.. (९) महान्, इं य से परवत अथ दे खने वाले, उ वल तेज उ प करने वाले, तेज ारा आकृ व मनु य के उपदे शक व ा म ने जलपूण स रता को रोक दया था. जब व ा म ने सुदास का य कराया, तब इं ने कु शकगो ीय ऋ षय के साथ ेम का आचरण कया. (९) हंसाइव कृणुथ ोकम भमद तो गी भर वरे सुते सचा. दे वे भ व ा ऋषयो नृच सो व पब वं कु शकाः सो यं मधु.. (१०) हे व ो, ऋ षय व नेता को उपदे श दे ने वालो एवं कु शक गो म उ प पु ो! य म प थर ारा सोम नचोड़े जाने पर तुम तु तय ारा दे व को स करते ए हंस के समान मं का उ चारण करो तथा दे व के साथ सोम पओ. (१०) उप ेत कु शका त े य वम ं राये मु चता सुदासः. राजा वृ ं जङ् घन ागपागुदगथा यजाते वर आ पृ थ ाः.. (११) हे कु शकगो ीय पु ो! अ के पास जाओ एवं सावधान रहो. राजा सुदास का अ द वजय ारा धन पाने के लए छोड़ दो. राजा इं ने वृ को पूव, प म एवं उ र दशा म मारा था. राजा सुदास पृ वी के उ म भाग म य कर. (११) य इमे रोदसी उभे अह म मतु वम्. व ा म य र त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ेदं भारतं जनम्.. (१२)
हे पु ो! म व ा म धरती और आकाश भरतवंशीय लोग क र ा करे. (१२)
(१३)
ारा इं क
व ा म ा अरासत
े ाय व
हम व ा म के पु
ने व धारी इं का तो
तु त कराता ं. यह तो
णे. कर द ः सुराधसः.. (१३) कया. इं हम शोभन धन वाला कर.
क ते कृ व त क कटे षु गावो ना शरं े न तप त घमम्. आ नो भर मग द य वेदो नैचाशाखं मघव धया नः.. (१४) हे इं ! अनाय लोग के जनपद म गाएं तु हारे लए कुछ भी नह करगी. न वे सोमरस म मलाने के लए ध दे ती ह और न य पा को अपने ध से द त कर सकती ह. हे मघवा! वे गाएं हमारे पास ले आओ और मगंद का धन भी हम दो. तुम नीच वंश वाले लोग का धन हम दान करो. (१४) ससपरीरम त बाधमाना बृह ममाय जमद नद ा. आ सूय य हता ततान वो दे वे वमृतमजुयम्.. (१५) अ न व लत करने वाले ऋ षय ारा हम द गई, अ ान को रोकने वाली एवं श द के प म सब जगह फैलने वाली वाणी बृहद् प धारण करती है. सूय क पु ी वाणी-दे वता इं आ द दे व के समीप यर हत एवं अमृत प अ का वचार करती है. (१५) ससपरीरभर य ू मे योऽ ध वः पा चज यासु कृ षु. सा प या३ न मायुदधाना यां मे पल तजमद नयो द ः.. (१६) ा ण, य, वै य, शू एवं नषाद के धन से अ धक धन ग प प म व तृत वा दे वता हम शी दान कर. द घायु वाले जमद न आ द ऋ षय ने जो वाणी मुझे द , वह सूय पी वाणी मुझे नवीन अ वाला बनावे. (१६) थरौ गावौ भवतां वीळु र ो मेषा व व ह मा युगं व शा र. इ ः पात ये ददतां शरीतोर र नेमे अ भ नः सच व.. (१७) ग तशील अ थर हो. रथ का धुरा ढ़ हो. दं ड एवं जुआ न टू टे. गरने वाली क ल को टू टने से पहले ही इं धारण कर. हे न न होने वाले ने मयु रथ! हमारे सामने आओ. (१७) बलं धे ह तनूषु नो बल म ानळु सु नः. बलं तोकाय तनयाय जीवसे वं ह बलदा अ स.. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हमारे शरीर म बल दो एवं हमारे बैल को बलवान् करो. हे बल दे ने वाले इं ! हमारे पु एवं पौ को चरजीवी होने के लए बल दो. (१८) अ भ य व ख दर य सारमोजो धे ह प दने शशपायाम्. अ वीळो वी ळत वीळय व मा यामाद मादव जी हपो नः.. (१९) हे इं ! हमारे रथ के सार प ख दर तथा शीशम के काठ को ढ़ करो. हे जुए! हमने तु ह ढ़ बनाया है. तुम ढ़ बनो. इस चलते ए रथ से हम गरा नह दे ना. (१९) अयम मा वन प तमा च हा मा च री रषत्. व या गृहे य आवसा आ वमोचनात्.. (२०) वन प तय से बना आ यह रथ हम न छोड़े और न वन करे. हम लोग जब तक घर न प ंच, जब तक हमारा रथ चले और जब तक हम रथ से घोड़े अलग न कर द, तब तक हमारा क याण हो. (२०) इ ो त भब ला भन अ या े ा भमघव छू र ज व. यो नो े धरः स पद यमु म तमु ाणो जहातु.. (२१) हे शूर एवं धन वामी इं ! हम श ु वनाशका रय को े एवं व वध र ा उपाय ारा स करो. जो हमसे े ष करे, वे नीचे गरे तथा हम जससे े ष कर उसे आप याग द. (२१) परशुं च तप त श बलं च वृ त. उखा च द येष ती य ता फेनम य त.. (२२) हे इं ! हमारे श ु कु हाड़ी को दे खकर वृ के समान संत त ह , सेमल के फूल के समान अनायास ही उनके अंग गर पड़ एवं हमारे मं बल से वे भोजन पकाने वाली हांडी के समान मुंह से फेन गराव. (२२) न सायक य च कते जनासो लोधं नय त पशु म यमानाः. नावा जनं वा जना हासय त न गदभं पुरो अ ा य त.. (२३) हे मनु यो! तुम व ा म के मं क श नह जानते हो. तप या न होने के लोभ से चुप बैठे ए मुझे तुम पशु के समान बांधकर ले जा रहे हो. सव मूख क हंसी नह उड़ाता और न गधे को घोड़े के सामने लाया जाता है. (२३) इम इ भरत य पु ा अप प वं च कतुन प वम्. ह व य मरणं न न यं यावाजं प र णय याजौ.. (२४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! भरतवंशीय व श र होना जानते ह, मलना नह जानते. वे सं ाम म व श गो ीय जन के त स चे श ु के समान घोड़े दौड़ाते ह एवं धनुष उठाते ह. (२४)
सू —५४
दे वता— व ेदेव
इमं महे वद याय शूषं श कृ व ई ाय ज ुः. शृणोतु नो द ये भरनीकैः शृणो व न द ैरज ः.. (१) सब लोग महान्, य म मंथन ारा उ प एवं सबके ारा तु त यो य अ न को ल य करके यह सुखकर तो बार-बार बोलते ह. अ न श ु का दमन करने म कुशल, तेज से यु एवं द तेज से नरंतर म लत होकर हमारे इस तो को सुने. (१) म ह महे दवे अचा पृ थ ै कामो म इ छ चर त जानन्. ययोह तोमे वदथेषु दे वाः सपयवो मादय ते सचायोः.. (२) हे तोता! तुम महान् आकाश एवं महती पृ वी के मह व को जानते ए उनक तु त करो. मेरा मनोरथ सभी भोग क अ भलाषा करता है. मानव के य म धरती-आकाश क सेवा के इ छु क दे वगण मलकर तु त करने म स होते ह. (२) युवोऋतं रोदसी स यम तु महे षु णः सु वताय भूतम्. इदं दवे नमो अ ने पृ थ ै सपया म यसा या म र नम्.. (३) हे धरती-आकाश! तु हारी तु त वा त वक बने. तुम हमारे य क समा त एवं हम महान् अ युदय दे ने म समथ बनो. हे अ न! धरती एवं आकाश को नम कार है. म ह व से उनक सेवा करता ं एवं उनसे धन मांगता ं. (३) उतो ह वां पू ा आ व व ऋतावरी स यवाचः. नर ां स मथे शूरसातौ वव दरे पृ थ व वे वदानाः.. (४) हे स यधारक धरती और आकाश! पुरातन स यवाद ऋ षय ने तुमसे वां छत व तुएं ा त क थ . हे पृ वी! यु म जाने वाले लोग भी तु हारा मह व जानते ए तु हारी वंदना करते ह. (४) को अ ा वेद क इह वोच े वाँ अ छा प या३का समे त. द एषामवमा सदां स परेषु या गु ेषु तेषु.. (५) उस स य बात को कौन जानता है? उसे कौन करता है? दे व के सामने कौन सा माग भली-भां त जाता है? वग म थत दे व थान से नीचे जो थान दखाई दे ते ह एवं जो उ म तथा क सा य त ारा ा त होते ह, उन थान को कौन सा माग जाता है? (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क वनृच ा अ भ षीमच ऋत य योना वघृते मद ती. नाना च ाते सदनं यथा वेः समानेन तुना सं वदाने.. (६) क व एवं मानव को दे खने वाले सूय इस धरती-आकाश को सभी जगह दे खते ह. स , जल एवं ओष धय को धारण करने वाले तथा समान कम ारा एकता को ा त धरती-आकाश जल के उ प थल अंत र म इस कार अलग-अलग थान म रहते ह, जैसे प ी अपने घ सले अलग-अलग बनाते ह. (६) समा या वयुते रेअ ते ुवे पदे त थतुजाग के. उत वसारा युवती भव ती आ व ु ाते मथुना न नाम.. (७) एक- सरे से एकता को ा त, पृथक्पृथक् थत एवं वनाशर हत धरती-आकाश जाग क होकर थर अंत र म इस कार थत ह, जैसे दो जवान ब हन ह . वे दोन मलकर जोड़े का नाम ा त करती ह. (७) व ेदेते ज नमा सं व व ो महो दे वा ब ती न थेते. एजद् ुवं प यते व मेकं चर पत वषुणां व जातम्.. (८) ये धरती-आकाश सम त व तु का वभाग करते ह एवं महान् दे व को धारण करके भी ःखी नह होते. जंगम एवं थावर व एकमा धरती को ा त करता है. चंचल प ी नाना प धारण करके इनके बीच म थत होते ह. (८) सना पुराणम ये यारा महः पतुज नतुजा म त ः. दे वासो य प नतार एवै रो प थ ुते त थुर तः.. (९) महान्, सबके पालक एवं जननक ा आकाश का सनातन व, ाचीनता एवं एक ही थान से अपना तथा उसका ज म म जानता ं. इस लए म उसे अपनी ब हन वीकार करता ं. उस आकाश के व तीण माग म भ - भ दे व अपने-अपने वाहन स हत तु त करते ए थत ह. (९) इमं तोमं रोदसी वी यृ दराः शृणव न ज ः. म ः स ाजो व णो युवान आ द यासः कवयः प थानाः.. (१०) हे धरती-आकाश! हम तु हारे इस तो को बोलते ह. सोमरस पेट म रखने वाले, अ न पी ज ा से यु , भली-भां त द त, न य त ण, ांतदश एवं अपने-अपने कम का व तार करने वाले म , व ण एवं आ द य इस तो को सुन. (१०) हर यपा णः स वता सु ज रा दवो वदथे प यमानः. दे वेषु च स वतः ोकम ेराद म यमा सुव सवता तम्.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे ने के न म हाथ म सोना लए ए एवं शोभन वचन वाले स वता दे व य के तीन सवन म आकाश से आते ह. हे स वता! तोता का तो ा त करो एवं हमारे लए सम त अ भल षत फल दान करो. (११) सुकृ सुपा णः ववाँ ऋतावा दे व व ावसे ता न नो धात्. पूष व त ऋभवो मादय वमू व ावाणो अ वरमत .. (१२) शोभन जगत् के क ा, सुंदर हाथ वाले, धनयु एवं स य संक प व ा दे व र ा के लए हम अ भल षत फल द. हे ऋभुओ! तुम पूषा के साथ मलकर हम स करो, य क सोम नचोड़ने के लए प थर उठाने वाले ऋ वज ने यह य कया है. (१२) व ु था म त ऋ म तो दवो मया ऋतजाता अयासः. सर वती शृणव य यासो धाता र य सहवीरं तुरासः.. (१३) तेज वी रथ वाले, ऋ नामक आयुध यु , ोतमान, श ु को मारने वाले, य से उ प , न य ग तशील एवं य के यो य म द्गण तथा सर वती हमारे तो को सुन. हे शी ता करने वाले म तो! हम पु स हत धन दो. (१३) व णुं तोमासः पु द ममका भग येव का रणो याम न मन्. उ मः ककुहो य य पूव न मध त युवतयो ज न ीः.. (१४) हमारा यह धनमूलक तो तथा पू य मं न य व तृत इस य म ब कमा व णु को ा त हो. सबको ज म दे ने वाली एवं पर पर र थत दशाएं उनक आ ा का उ लंघन नह करत . व णु का पाद व ेप महान् है. (१४) इ ो व ैव य३: प यमान उभे आ प ौ रोदसी म ह वा. पुर दरो वृ हा धृ णुषेणः सङ् गृ या न आ भरा भू र प ः.. (१५) सम त साम य से यु इं ने अपनी म हमा से धरती और आकाश दोन को पूण कर दया है. श ु नगर का वंस करने वाले, वृ वनाशक एवं श ुपराभवका रणी सेना के वामी इं ! तुम पशु को एक करके अ धक मा ा म हम दो. (१५) नास या मे पतरा ब धुपृ छा सजा यम नो ा नाम. युवं ह थो र यदौ नो रयीणां दा ं र ेथे अकवैरद धा.. (१६) हे बंधु क अ भलाषा जानने के इ छु क अ नीकुमारो! तुम हमारे पालनक ा बनो. तुम दोन का मलन अ यंत सुंदर है. तुम दोन हमारे लए महान् धन दे ने वाले बनो. तु हारा कोई तर कार नह कर सकता. ह व दे ने वाले हम उ म कम से र त करो. (१६) मह
ः कवय ा नाम य
दे वा भवथ व इ े .
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सख ऋभु भः पु
त
ये भ रमां धयं सातये त ता नः.. (१७)
हे मेधावी दे वो! जस कम से तुमने इं लोक म दे व व ा त कया है, तु हारे वे कम महान् ह. हे ब त ारा बुलाए गए एवं ऋभु के साथी इं ! हमारी यह तु त धन ा त करने के लए वीकार करो. (१७) अयमा णो अ द तय यासोऽद धा न व ण य ता न. युयोत नो अनप या न ग तोः जावा ः पशुमाँ अ तु गातुः.. (१८) सूय, अ द त, य के यो य दे वगण एवं हसार हत कम वाले व ण हमारी र ा कर. तुम सब हमारे माग के पतनकारक कम को र करो. हमारा घर पशु तथा संतान से पूण हो. (१८) दे वानां तः पु ध सूतोऽनागा ो वोचतु सवताता. शृणोतु नः पृ थवी ौ तापः सूय न ै व१ त र म्.. (१९) अनेक थान म दे व के त प म स अ न हम सभी जगह नरपराध घो षत कर. धरती, आकाश, जल, सूय एवं न से भरा आ वशाल आकाश हमारी तु त सुने. (१९) शृ व तु नो वृषणः पवतासो व ु म े ास इळया मद तः. आ द यैन अ द तः शृणोतु य छ तु नो म तः शम भ म्.. (२०) अ भल षत फल दे ने वाले म द्गण एवं याचक क अ भलाषा पूरी करने वाले थर पवत ह से स होते ए हमारी तु त सुन. अ द त अपने पु के साथ हमारी तु त सुन एवं म द्गण हम क याणकारी सुख द. (२०) सदा सुगः पतुमाँ अ तु प था म वा दे वा ओषधीः सं पपृ . भगो मे अ ने स ये न मृ या उ ायो अ यां सदनं पु ोः.. (२१) हे अ न! हमारा माग सुगम एवं अ से पूण हो. हे दे वगण! मधुर जल से ओष धय को स चो. हे अ न! तु हारी म ता ा त करके हमारा धन न न हो. हम धन एवं भूत अ का थान ा त कर. (२१) वद व ह ा स मषो दद म य ् १ सं ममी ह वां स. व ाँ अ ने पृ सु ता े ष श ूनहा व ा सुमना द दही नः.. (२२) हे अ न! ह का वाद लो, हमारे अ को भली कार का शत करो एवं उन द त अ को हमारे सामने लाओ. सं ाम म उन सम त श ु को जीतो एवं स मन से हमारे सभी दन को का शत बनाओ. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —५५
दे वता— व ेदेव, अ न आ द
उषसः पूवा अध यद् ूषुमह ज े अ रं पदे गोः. ता दे वानामुप नु भूष मह े वानामसुर वमेकम्.. (१) पूवव तनी उषा जब समा त होती है, तब अ वनाशी सूय नामक महान् यो त आकाश अथवा सागर से उ प होती है. इसके बाद दे व-संबंधी कम आरंभ हो जाते ह एवं यजमान दे व के समीप उप थत होते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (१) मो षू णो अ जु र त दे वा मा पूव अ ने पतरः पद ाः. पुरा योः स नोः केतुर तमह े वानामसुर वमेकम्.. (२) हे अ न! इस समय दे वगण एवं कमानुसार दे वपद पाने वाले पुरातन पतर हमारे कम म बाधा न डाल. पुरातन धरती-आकाश के म य उ दत एवं य का संकेत करने वाले सूय हमारी हसा न कर. दे व का मुख बल एक ही है. (२) व मे पु ा पतय त कामाः श य छा द े पू ा ण. स म े अ नावृत म दे म मह े वानामसुर वमेकम्.. (३) हे अ न! मेरी अनेक अ भलाषाएं इधर-उधर जाती ह. अ न ोम आ द के बहाने हम पुरानी तु तयां का शत करते ह. य के न म अ न के व लत होने पर हम स य बोलगे. दे व का मुख बल एक ही है. (३) समानो राजा वभृतः पु ा शये शयासु युतो वनानु. अ या व सं भर त े त माता मह े वानामसुर वमेकम्.. (४) द यमान एक ही अ न य के न म अनेक थान पर वहार म लाए जाते ह. वे वेद पर सोते ह एवं का से बनी अर ण म वभ होकर नवास करते ह. इनके धरतीआकाश पी माता- पता म से एक इ ह उ प होते ही भरण करता है एवं सरी माता केवल धारण करती है. दे व का मुख बल एक ही है. (४) आ पूवा वपरा अनू स ो जातासु त णी व तः. अ तवतीः सुवते अ वीता मह े वानामसुर वमेकम्.. (५) अ न सूखे ाचीन वृ म वतमान ह, नए वृ म उ प म से रहते ह तथा इसी समय उ प प ल वत वन प तय म अंतभूत होते ह, ओष धयां कसी अ य के गभाधान के बना केवल अ न के संसग से गभवती होकर पु प, फल आ द को ज म दे ती ह. दे व का मुख बल एक ही है. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शयुः पर तादध नु माताब धन र त व स एकः. म य ता व ण य ता न मह े वानामसुर वमेकम्.. (६) धरती-आकाश पी माता- पता के पु सूय छपते समय प म दशा म सोते ह. उदयकाल म वे ही सूय बंधनर हत होकर आकाश म चलते ह. यह सारा काम म और व ण का है. दे व का मुख बल एक ही है. (६) माता होता वदथेषु स ाळ व ं चर त े त बु नः. र या न र यवाचो भर ते मह े वानामसुर वमेकम्.. (७) दो लोक के बनाने वाले, य के होता एवं य म भली-भां त सुशो भत अ न सूय प से, आकाश म घूमते ह एवं सभी कम के मूलकारण बनकर धरती पर रहते ह. मधुर वाणी वाले तोता उनके लए मधुर तो बोलते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (७) शूर येव यु यतो अ तम य तीचीनं द शे व मायत्. अ तम त र त न षधं गोमह े वानामसुर वमेकम्.. (८) समीप म वतमान अ न के सामने आने वाले सभी ाणी इस कार पीछे भागते ह, जैसे यु करने वाले शूर के सामने से कायर लोग भागते ह. सबके ारा जाने गए अ न जल का नाश करने वाली वाला अपने भीतर धारण करते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (८) न वेवे त प लतो त आ व तमहां र त रोचनेन. वपू ष ब द भ नो व च े मह े वानामसुर वमेकम्.. (९) सबके पालनक ा एवं दे व के त अ न इन ओष धय म आव यक प से वतमान ह एवं सूय के साथ-साथ धरती-आकाश के बीच म चलते ह. नाना प धारण करने वाले वह अ न हम य क ा को वशेष कृपा से दे खते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (९) व णुग पाः परमं पा त पाथः या धामा यमृता दधानः. अ न ा व ा भुवना न वेद मह े वानामसुर वमेकम्.. (१०) ा त, र क, य एवं यर हत तेज धारण करने वाले अ न परम थान क र ा करते ह. अ न उन सब भुवन को जानते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (१०) नाना च ाते य या३ वपूं ष तयोर य ोचते कृ णम यत्. यावी च यद षी च वसारौ मह े वानामसुर वमेकम्.. (११) रात और दन का जोड़ा नाना कार के प धारण करता है. इन दो ब हन म एक काले रंग क है और सरी शु ल वण होने के कारण द त होती है. दे व का मुख बल एक ही है. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
माता च य हता च धेनू सब घे धापयेते समीची. ऋत य ते सदसीळे अ तमह े वानामसुर वमेकम्.. (१२) माता धरती और पु ी ौ अंत र म ध दे ने वाली गाय के समान मलकर एक सरी को अपना रस पलाती ह. जल के थान अंत र के म य थत धरती-आकाश क म तु त करता ं. दे व का मुख बल एक ही है. (१२) अ य या व सं रहती ममाय कया भुवा न दधे धेनु धः. ऋत य सा पयसा प वतेळा मह े वानामसुर वमेकम्.. (१३) धरती के पु अ न को जल धारा पी ज ा से चाटती ई ौ बादल के गजन के प म श द करती है. ौ पी गाय धरती को जलहीन बनाकर अपने मेघ प तन को जल से भरती है. सूखी धरती सूय के जल से भीगती है. दे व का मुख बल एक ही है. (१३) प ा व ते पु पा वपूं यू वा त थौ य व रे रहाणा. ऋत य स व चरा म व ा मह े वानामसुर वमेकम्.. (१४) धरती ब त से थावर-जंगम प से अपने को ढकती है एवं उ त होकर तीन लोक को ा त करने वाले सूय को चाटती ई ठहरती है. म आ द य के थान को जानता आ उनक सेवा करता ं. दे व का मुख बल एक ही है. (१४) पदे इव न हते द मे अ त तयोर यद् गु मा वर यत्. स ीचीना प या३ सा वषूची मह े वानामसुर वमेकम्.. (१५) शोभन दवारा धरती-आकाश के म य रखे ए दो चरण के समान जान पड़ते ह. इनम से रा पी चरण गूढ़ एवं सरा दवस पी चरण प है. इनके मलन माग अथात् काल को पु या मा एवं पापा मा दोन ही ा त करते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (१५) आ धेनवो धुनय ताम श ीः सब घाः शशया अ धाः. न ान ा युवतयो भव तीमह े वानामसुर वमेकम्.. (१६) वषा ारा सबको स करने वाली, शशुर हता, आकाश म वतमान, रसहीन न होने वाली, जल प ध दे ने वाली, पर पर म लत एवं अ यंत नवीन दशाएं कांपती रह. दे व का मुख बल एक ही है. (१६) यद यासु वृषभो रोरवी त सो अ य म यूथे न दधा त रेतः. स ह पावा स भगः स राजा मह े वानामसुर वमेकम्.. (१७) जल बरसाने वाले बादल पी इं अ य दशा म बार-बार गजन करते ह एवं अ य दशा म जल क वषा करते ह. वह जल फकने वाले, सबके सेवनीय एवं राजा ह. दे व का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मुख बल एक ही है. (१७) वीर य नु व ं जनासः नु वोचाम व र य दे वाः. षो हा यु ाः प चप चा वह त मह े वानामसुर वमेकम्.. (१८) हे मनु यो! शूर इं के सुंदर घोड़ का हम शी भां त-भां त से वणन करते ह. उ ह दे वगण जानते ह. वे ऋतु के प म छः एवं हेमंत, श शर के मलकर एक हो जाने से पांच अ के प म इं को ढोते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (१८) दे व व ा स वता व पः पुपोष जाः पु धा जजान. इमा च व ा भुवना य य मह े वानामसुर वमेकम्.. (१९) सबके ेरक एवं नाना प धारी व ा दे व जा को अनेक कार से उ प करते ह एवं पालते ह. संपूण भुवन उ ह के ह. दे व का मुख बल एक ही है. (१९) मही समैर च वा समीची उभे ते अ य वसुना यृ े. शृ वे वीरो व दमानो वसू न मह े वानामसुर वमेकम्.. (२०) इं ने वशाल एवं एक- सरे से मले ए धरती-आकाश दोन को पशुप य से पूण कया है. ये दोन इं के तेज से पूरी तरह ा त ह. वीर इं श ु क संप छ नने के लए स ह. दे व का मुख बल एक ही है. (२०) इमां च नः पृ थव व धाया उप े त हत म ो न राजा. पुरःसद: शमसदो न वीरा मह े वानामसुर वमेकम्.. (२१) व का पालन करने वाले एवं हमारे राजा इं धरती एवं आकाश के समीप रहते ह. वीर म त् सं ाम म इं के आगे रहते ह तथा उनके घर म नवास करते ह. दे व का मुख बल एक ही है. (२१) न ष वरी त ओषधी तापो र य त इ पृ थवी बभ त. सखाय ते वामभाजः याम मह े वानामसुर वमेकम्.. (२२) हे मेघ प इं ! ओष धय ने तुमसे स पाई है, जल तु ह से नकले ह एवं धरती तु हारे भोग के यो य धन को धारण करती है. तु हारे म हम धन के भागी बन, दे व का मुख बल एक ही है. (२२)
सू —५६
दे वता— व ेदेव
न ता मन त मा यनो न धीरा त दे वानां थमा ुवा ण. न रोदसी अ हा वे ा भन पवता ननमे त थवांसः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मायावी असुर एवं व ान् इं आ द दे व के थम थर एवं स कम म बाधा नह डालते. े ष-भाव से हीन धरती-आकाश जा के साथ दे व के लए व नकारक नह बनते. धरती पर ऊंचे खड़े पवत को कोई झुका नह सकता. (१) षड् भाराँ एको अचर बभ यृतं व ष मुप गाव आगुः. त ो मही परा त थुर या गुहा े न हते द यका.. (२) एक थर वष छः ऋतु को धारण करता है. स य एवं अ तशय वृ सूय प संव सर को करण ा त करती ह. उ प और न होने वाले तीन लोक एक- सरे के ऊपर थत ह. उन म ही वग और अंत र गुहा म छपे ह. एकमा धरती ही दखाई दे ती है. (२) पाज यो वृषभो व प उत युधा पु ध जावान्. यनीकः प यते मा हनावा स रेतोधा वृषभः श तीनाम्.. (३) ी म, वषा एवं हेमंत-तीन ऋतुएं संव सर का दय ह एवं वसंत, शरद् एवं हेमंत तीन ऋतुएं तन ह. जल बरसाने वाला, व वध पधारी, जौ, गे ं आ द अनेक कार क जा से यु , ी म, वषा तथा शीत तीन गुण स हत एवं मह वशाली संव सर आता है. वह वीय धारण म समथ है एवं सबके लए जल लाता है. (३) अभीक आसां पदवीरबो या द यानाम े चा नाम. आप द मा अरम त दे वीः पृथ ज तीः प र षीमवृ
न्.. (४)
संव सर ओष धय के समीप रहकर फल-पु पा द उ पादन के लए सावधान रहते ह. म आ द य का चै आ द मनोहर नाम बोलता ं. ोतमान एवं अलग-अलग बहने वाले जल चार मास तक संव सर को स करते ह एवं शेष आठ मास म छोड़ दे ते ह. (४) ी षध था स धव ः कवीनामुत माता वदथेषु स ाट् . ऋतावरीय षणा त ो अ या रा दवो वदथे प यमानाः.. (५) हे न दयो! तीन गुण वाले तीन लोक दे व के नवास थान ह. तीन लोक के बनाने वाले सूय य के राजा ह. जलपूण एवं आकाश म गमन करने वाली इला, सर वती एवं भारती पर पर मली ई दे वयां य के तीन सवन म आव. (५) रा दवः स वतवाया ण दवे दवे आ सुव न अ ः. धातु राय आ सुवा वसू न भग ाता धषणे सातये धाः.. (६) हे आ द य! वगलोक से त दन तीन बार आकर हम लोग को धन दो. हे सबके ारा सेवा यो य एवं सबके र क आ द य! हम पशु, कनक एवं र न प तीन कार का धन दो. हे वा दे वी! हम धनलाभ के लए े रत करो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रा दवः स वता सोषवी त राजाना म ाव णा सुपाणी. आप द य रोदसी च व र नं भ त स वतुः सवाय.. (७) स वता दन म तीन बार हम धन द. द तमान् एवं शोभन हाथ वाले हम व तृत धरती-आकाश, म -व ण, अंत र एवं स वता दे व क ेरणा से मनचाहा अथ चाहते ह. (७) मा णशा रोचना न यो राज यसुर य वीराः. ऋतावान इ षरा ळभास रा दवो वदथे स तु दे वाः.. (८) ु तमान तीन उ म थान ह, ज ह कोई न नह कर सकता. इन तीन थान म संव सर के अ न, वायु एवं सूय तीन पु सुशो भत होते ह. य ा द कम से यु , शी ग त वाले एवं अ तर करणीय दे वगण हमारे य के तीन सवन म आव. (८)
सू —५७
दे वता— व ेदेव
मे व व वाँ अ वद मनीषां धेनुं चर त युतामगोपाम्. स ा हे भू र धासे र तद नः प नतारो अ याः.. (१) ानवान् इं इधर-उधर जाती ई, अकेली इ छानुसार घूमती ई गाय के समान मेरी दे व-संबंधी तु त को जान. इं और अ न इस तु त पी गाय क शंसा कर, जससे तुरंत ही अ धक अ भल षत फल हा जाता है. (१) इ ः सु पूषा वृषणा सुह ता दवो न ीताः शशयं े. व े यद यां रणय त दे वाः वोऽ वसवः सु नम याम्.. (२) इं ! पूषा, कामवष एवं शोभन हाथ वाले अ नीकुमार स होकर आकाश म सोने वाले मेघ से मनचाही वृ ा त करते ह. हे नवास थान दे ने वाले व ेदेव! इस वेद पर रमण करो, जससे हम तु हारे ारा दया आ सुख पा सक. (२) या जामयो वृ ण इ छ त श नम य तीजानते गभम मन्. अ छा पु ं धेनवो वावशाना मह र त ब तं वपूं ष.. (३) जो ओष धयां जल बरसाने वाले इं क श को चाहती ह, वे न होकर इं क गभाधान क श जानती ह. फल क कामना करने वाली एवं सबको स करने वाली ओष धयां भां त-भां त के प धारण करने वाले जौ, गे ं आ द पु के समान घूमती ह. (३) अ छा वव म रोदसी सुमेके ा णो युजानो अ वरे मनीषा. इमा उ ते मनवे भू रवारा ऊ वा भव त दशता यज ाः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य म सोमरस नचोड़ने के लए प थर लेकर हम शोभन प वाले धरती-आकाश के सामने होकर तु त प वाणी से शंसा करते ह. अ न को वरण करने यो य, दशनीय एवं पू य द तयां मनु य के वहार के लए ऊपर मुख करती ह. (४) या ते ज ा मधुमती सुमेधा अ ने दे वेषू यत उ ची. तयेह व ाँ अवसे यज ाना सादय पायया चा मधू न.. (५) हे अ न! तु हारी जो वाला- पणी जीभ जलपूण एवं बु यु है एवं दे व को बुलाने के लए ेरणा दे ती है, उसी ज ा से य के यो य सम त दे व को हमारी र ा के न म इस य म बैठाओ एवं मादक सोम पलाओ. (५) या ते अ ने पवत येव धारास ती पीपय े व च ा. ताम म यं म त जातवेदो वसो रा व सुम त व ज याम्.. (६) हे अ न दे व! व वध पधा रणी एवं हम यागकर अ य न जाने वाली तु हारी उ मबु हम लोग को उसी कार बढ़ाए, जस कार बादल से उ प जलधारा वन प तय को बढ़ाती है. हे नवासदाता एवं जातवेद अ न! हम वही पर हतसमथ एवं सवजन हतका रणी बु दो. (६)
सू —५८
दे वता—अ नीकुमार
धेनुः न य का यं हाना तः पु र त द णायाः. आ ोत न वह त शु यामोषासः तोमो अ नावजीगः.. (१) स करने वाली उषा पुरातन-अ न के न म सुंदर ध दे ती है. उषा का पु सूय उषा के भीतर वचरण करता है. उ वल ग त वाला दवस सव काशक सूय को धारण करता है. उषा से पहले ही अ नीकुमार क तु त करने वाले जागते ह. (१) सुयु वह त जरेथाम म
त वामृतेनो वा भव त पतरेव मेधाः. पणेमनीषां युवोरव कृमा यातमवाक्.. (२)
हे अ नीकुमारो! रथ म भली कार जुड़े ए घोड़े स य पी रथ के ारा य म आने के लए तु ह वहन करते ह. पु जस कार माता- पता को दे खकर जाता है, उसी कार य तु हारे सामने जाते ह. आसुरी बु को हमसे ब त र करो. हम तु हारे लए ह तैयार करते ह. तुम हमारे सामने आओ. (२) सुयु भर ैः सुवृता रथेन द ा वमं शृणुतं ोकम े ः. कम वां यव त ग म ा व ासो अ ना पुराजाः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! सुंदर प हय वाले रथ म बैठकर एवं भली कार जुते ए अ ारा ख चे जाकर तुम दोन तोता क तु तयां सुनो. मेधावी पुरातन ऋ षय ने या तुमसे नह कहा क तुम दोन हमारी वृ क हा न मत करो. (३) आ म येथामा गतं क चदे वै व े जनासो अ ना हव ते. इमा ह वां गोऋजीका मधू न म ासो न द ो अ े.. (४) हे अ नीकुमारो! हमारी तु त को जानो और अ ारा य म पधारो. सभी तोता तु ह बुलाते ह. वे म के समान तु ह ध मला आ एवं मादक सोमरस दे ते ह. सूय उषा के आगे उदय होते ह. (४) तरः पु चद ना रजां याङ् गूषो वां मघवाना जनेषु. एह यातं प थ भदवयानैद ा वमे वां नधयो मधूनाम्.. (५) हे अ नीकुमारो! अनेक लोक को अपने तेज से तर कृत करते ए तुम दोन दे वमाग ारा यहां आओ. संप शाली अ नीकुमारो! तोता के पास तु हारे लए बोला जाने वाला तो है. हे श ुनाशको! तु हारे लए मदकारक सोमरस के पा तैयार ह. (५) पुराणमोकः स यं शवं वां युवोनरा वणं ज ा ाम्. पुनः कृ वानाः स या शवा न म वा मदे म सह नू समानाः.. (६) हे अ नीकुमारो! तुम दोन क पुरानी म ता सेवा करने यो य एवं क याण करने वाली है. हे हमारे य कम के नेताओ! तु हारा धन जा वी गंगा म है. तुम दोन क सुख मै ी को बार-बार ा त करते ए मादक सोमरस से हम भी शी स ह . (६) अ ना वायुना युवं सुद ा नयु सजोषसा युवाना. नास या तरोअ यं जुषाण सोमं पबतम धा सुदानू.. (७) हे शोभन साम य से यु , न य त ण, अस यर हत एवं शोभन फल दे ने वाले अ नीकुमारो! वायु और नयुत के साथ मलकर थायी ेमयु एवं नाशर हत तुम दोन दवस छपने पर सोम पान करो. (७) अ ना प र वा मषः पु चीरीयुग भयतमाना अमृ ाः. रथो ह वामृतजा अ जूतः प र ावापृ थवी या त स ः.. (८) हे अ नीकुमारो! ब त से ह व पी अ तु हारे समीप जाते ह. तर कारहीन एवं य कम म संल न तोता तु तय ारा तु हारी सेवा करते ह. तोता ारा ख चा गया तु हारा जल बरसाने वाला रथ धरती-आकाश के बीच म शी गमन करता है. (८) अ ना मधुषु मो युवाकुः सोम तं पातमा गतं रोणे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रथो ह वां भू र वपः क र
सुतावतो न कृतमाग म ः.. (९)
हे अ नीकुमारो! मधुर-रस से यु सोमरस को पओ एवं हमारे घर आओ. तु हारा अ तशय धन दे ने वाला रथ सोम नचोड़ने वाले यजमान के शु घर म बार-बार आता है. (९)
सू —५९
दे वता— म
म ो जना यातय त ुवाणो म ो दाधार पृ थवीमुत ाम्. म ः कृ ीर न मषा भ च े म ाय ह ं घृतव जुहोत.. (१) तु त कए जाने पर म दे व सभी लोग को खेती आ द काम म लगा दे ते ह. वे धरती और आकाश दोन को धारण करते ह एवं य कम करने वाल को भली कार दे खते ह. घी मला आ ह म के लए हवन करो. (१) स म मत अ तु य वा य त आ द य श त तेन. न ह यते न जीयते वोतो नैनमंहो अ ो या ततो न रात्.. (२) हे आ द य दे व! जो गाय का घृत लेकर तु ह ह दे ता है, वह मनु य अ का वामी बने. तुम जसक र ा करते हो, उसे न कोई न कर सकता है और न हरा सकता है. उसे पास से या र से पाप भी नह छू सकता. (२) अनमीवास इळया मद तो मत वो व रम ा पृ थ ाः. आ द य य तमुप य तो वयं म य सुमतौ याम.. (३) हे म ! नरोग एवं अ के कारण स हम धरती के व तृत भाग म घुटने टे ककर इ छानुसार चलते ए आ द य के य के समीप नवास करते ह. हम लोग आ द य क कृपा म रह. (३) अयं म ो नम यः सुशेवो राजा सु ो अज न वेधाः. त य वयं सुमतौ य य या प भ े सौमनसे याम.. (४) सबके नम कार करने यो य, सुख से से , सव जगत् के वामी, शोभन बलयु एवं सबके वधाता सूय उ प ए ह. उन य पा सूय क अनु ह बु तथा क याण करने वाली म ता का हम पाव. (४) महाँ आ द यो नमसोपस ो यातय जनो गृणते सुशेवः. त मा एत प यतमाय जु म नौ म ाय ह वरा जुहोत.. (५) महान् आ द य लोग को अपने-अपने कम म लगाने वाले एवं नम कार ारा सेवा करने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो य ह. वे तु त करने वाल के अ न म ह डालो. (५)
त स होते ह. उन अ यंत तु त यो य म के न म
म य चषणीधृतोऽवो दे व य सान स. ु नं च
व तमम्.. (६)
वषा ारा मनु य का पालन करने वाले म का अ सबके ारा भोगयो य एवं उनका धन अ तशय क तयु है. (६) अ भ यो म हना दवं म ो बभूव स थाः. अ भ वो भः पृ थवीम्.. (७) जस म ने अपनी म हमा से अंत र अ से भली कार पूण कया है. (७)
को हरा दया है, उसी क तशाली ने धरती को
म ाय प च ये मरे जना अ भ शवसे. स दे वा व ा बभ त.. (८) ा ण आ द पांच जन श ु को हराने वाले बल से यु म सभी दे व को धारण करते ह. (८) म ो दे वे वायुषु जनाय वृ ब हषे. इष इ द गुण वाले मनु य म जो अ दे ते ह. (९)
सू —६०
म के लए ह व दे ते ह. वे
ता अकः.. (९)
कुश छे दन करता है, उसे म दे व क याणकारी
दे तवा—ऋभुगण
इहेह वो मनसा ब धुता नर उ शजो ज मुर भ ता न वेदसा. या भमाया भः तजू तवपसः सौध वना य यं भागमानश.. (१) हे ऋभुओ! तु हारे कम को सब लोग मन से जानते ह. हे नेताओ एवं सुध वा के पु ो! तुम अपने ान से उन कम को जान लेते हो, जन कम ारा तुम श ु को हराने वाला तेज पाने के लए य के भाग क अ भलाषा करते हो. (१) या भः शची भ मसाँ अ पशत यया धया गाम रणीत चमणः. येन हरी मनसा नरत त तेन दे व वमृभवः समानश.. (२) हे ऋभुओ! जस श ारा तुमने चमस के चार भाग कए थे, जस बु से तुमने गाय को चमयु कया था एवं जस ान से तुमने इं के ह र नामक घोड़ को बनाया, उ ह कम ारा तुमने दे व व पाया है. (२) इ
य स यमृभवः समानशुमनोनपातो अपसो दध वरे.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सौध वनासो अमृत वमे ररे व ् वी शमी भः सुकृतः सुकृ यया.. (३) अं गरा के पु ऋभु ने य कम ारा इं क म ता भली कार ा त करके ाण धारण कए ह. सुध वा के पु एवं प व कम करने वाले ऋभुगण दे व व ा त के हेतु एवं शोभन कम से यु होकर अमृत पद को ा त कर चुके ह. (३) इ े ण याथ सरथं सुते सचाँ अथो वशानां भवथा सह या. न वः तमै सुकृता न वाघतः सौध वना ऋभवो वीया ण च.. (४) हे ऋभुओ! तुम इं के साथ एक रथ पर बैठकर सोम नचोड़ने के थान य म जाओ एवं यजमान क तु तयां वीकार करो. हे सुध वा के पु ो एवं मेधावी ऋभुओ! तु हारे शोभन कम क सीमा जानना संभव नह है और न तु हारी श क . (४) इ ऋभु भवाजव ः समु तं सुतं सोममा वृष वा गभ योः. धये षतो मघव दाशुषो गृहे सौध वने भः सह म वा नृ भः.. (५) हे इं ! तुम अ वाले ऋभु के साथ मलकर जल ारा भली कार गीले एवं प थर ारा नचोड़े ए सोम को दोन हाथ से पकड़कर पओ. हे मघवा! तुम तु त से ेरणा पाकर यजमान के घर म सुध वा के पु ऋभु के साथ सोम पीकर स बनो. (५) इ ऋभुमा वाजवा म वेह नोऽ म सवने श या पु ु त. इमा न तु यं वसरा ण ये मरे ता दे वानां मनुष धम भः.. (६) हे ब त ारा तु त कए गए इं ! तुम ऋभु तथा अ से यु होकर एवं इं ाणी को साथ लेकर हमारे इस तृतीय सवन म स बनो. तु हारे सोमपान के लए ये दन एवं अ न आ द दे व तथा मनु य के कम न त ह. (६) इ ऋभु भवा ज भवाजय ह तोमं ज रतु प या ह य यम्. शतं केते भ र षरे भरायवे सह णीथो अ वर य होम न.. (७) हे इं ! तुम अ यु ऋभु के साथ तोता को अ दे ते ए इस य म तोता का तो सुनने के लए आओ. सौ म त एवं चलने म कुशल घोड़ के साथ तुम यजमान ारा हजार कार से तैयार कए गए सोम वाले य म आओ. (७)
सू —६१
दे वता—उषा
उषो वाजेन वा ज न चेताः तोमं जुष व गृणतो मघो न. पुराणी दे व युव तः पुर धरनु तं चर स व वारे.. (१) हे अ एवं धनयु उषा! तुम उ म ानसंप होकर तोता के तो ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को वीकार
करो. हे सबके ारा वरण करने यो य, पुरातन, युवती एवं ब त य कम के अनुसार चलती हो. (१)
ारा तुत उषा! तुम
उषो दे म या व भा ह च रथा सूनृता ईरय ती. आ वा वह तु सुयमासो अ ा हर यवणा पृथुपाजसो ये.. (२) हे मरणर हत, सोने के रथ वाली, य एवं स य वाणी बोलती ई उषा! तुम सूय करण से का शत बनो. महान् बलशाली, लाल रंग वाले एवं रथ म सरलता से जोड़ने यो य घोड़े तुझ सुनहरे रंग वाली को बुलाव. (२) उषः तीची भुवना न व ो वा त यमृत य केतुः. समानमथ चरणीयमाना च मव न या ववृ व.. (३) हे सम त ा णय के सामने आनेवाली एवं मरणर हत सूय का ान कराने वाली उषा! तुम आकाश म ऊंची ठहरती हो. हे अ त नवीन उषा! एक ही माग म चलने क इ छु क तुम बार-बार उसी माग म इस तरह चलो जैसे आकाश म सूय का प हया एक ही माग पर चलता है. (३) अव यूमेव च वती मघो युषा या त वसर य प नी. व१जन ती सुभगा सुदंसा आ ता वः प थ आ पृ थ ाः.. (४) धन क वा मनी उषा कपड़े के समान फैले अंधकार को न करती ई सूय क प नी बनकर चलती है. अपना तेज उ प करती ई, शोभन-धन वाली एवं अ नहो आ द उ म कम से यु उषा आकाश ओर धरती के अंत तक का शत होती है. (४) अ छा वो दे वीमुषसं वभात वो भर वं नमसा सुवृ म्. ऊ व मधुधा द व पाजो अ े रोचना चे र वस क्.. (५) हे तोताओ! तुम अपने सामने शोभन पाती ई उषा क सुंदर तु त नम कार स हत करो. तु त धारण वाली उषा आकाश म ऊपर जाने वाला तेज धारण करती है. तेज वनी एवं दे खने म सुंदर उषा अ छ तरह चमकती है. (५) ऋतावरी दवो अकरबो या रेवती रोदसी च म थात्. आयतीम न उषसं वभात वाममे ष वणं भ माणः.. (६) स ययु उषा को द तेज के कारण सब जानते ह. धनवाली उषा अपने व वध प से धरती-आकाश को भर दे ती है. हे अ न! तु हारे सामने आती ई एवं काशयु उषा से मांगते ए तुम सुंदर धन पाते हो. (६) ऋत य बु न उषसा मष य वृषा मही रोदसी आ ववेश. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मही म य व ण य माया च े व भानुं व दधे पु
ा.. (७)
जल बरसाने वाले सूय स य प दन के आरंभ म उषा को े रत करते ए वशाल धरती-आकाश के बीच म वेश करते ह. महती उषा म एवं व ण क भा बनकर इस कार अपना काश सब जगह फैलाती है, जैसे सोना अपनी चमक फैलाता है. (७)
दे वता—इं , व ण आ द
सू —६२
इमा उ वां भृमयो म यमाना युवावते न तु या अभूवन्. व१ या द ाव णा यशो वां येन मा सनं भरथः स ख यः.. (१) हे इं व व ण! श ु ारा सताई ई एवं घूमती ई तु हारी जाएं बलवान् श ु ारा न न हो जाव. तु हारा वह यश कहां है, जससे तुम हम म को अ दे ते हो? (१) अयुम वां पु तमो रयीय छ ममवसे जोहवी त. सजोषा व ाव णा म दवा पृ थ ा शृणुतं हवं मे.. (२) हे इं व व ण! धन का इ छु क एवं महान् यजमान अपनी र ा के लए तुम दोन को सदा बुलाता है. तुम दोन म त , ल ु ोक एवं धरती के साथ मलकर मेरी तु त सुनो. (२) अ मे त द ाव णा वसु याद मे र यम तः सववीरः. अ मा व ीः शरणैरव व मा हो ा भारती द णा भः.. (३) हे इं व व ण! हमारे पास मनचाहा उ म धन हो. हे म तो! हमारे पास सब काम म कुशल एवं वीर पु ह एवं दे वप नयां वर दे कर हमारी र ा कर. अ नप नी हो ा एवं सूयप नी भारती द णा के प म गाएं दे कर हमारी र ा कर. (३) बृह पते जुष व नो ह ा न व दे . रा व र ना न दाशुषे.. (४) हे सब दे व के हतकारी बृह प त! इन लोग के ह उ म धन दो. (४)
का सेवन करो एवं यजमान को
शु चमकबृह प तम वरेषु नम यत. अना योज आ चके.. (५) हे ऋ वजो! तुम य म तु तय मांगता ं, जसे श ु न हरा सक. (५) वृषभं चषणीनां व कामवष , व
ारा प व बृह प त क सेवा करो. म उनसे वह बल
पमदा यम्. बृह प त वरे यम्.. (६)
प नामक बैल क सवारी वाले, तर कार न करने यो य एवं सबके
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सेवा यो य बृह प त से म मनचाहा फल मांगता ं. (६) इयं ते पूष ाघृणे सु ु तदव न सी. अ मा भ तु यं श यते.. (७) हे पूषादे व! यह अ तशय नवीन एवं शोभन तु त तु हारे लए है. इसे हम तु हारे न म बोलते ह. (७) तां जुष व गरं मम वाजय तीमवा धयम्. वधूयु रव योषणाम्.. (८) हे पूषा! तुम मेरी तु त पी वाणी को वीकार करो. कामी पु ष जस कार नारी के समीप जाता है, उसी कार तुम मेरी अ क अ भलाषा से पूण तु त के सामने आओ. (८) यो व ा भ वप य त भुवनां सं च प य त. स नः पूषा वता भुवत्.. (९) जो सूय सब लोक को वशेष ह, वे हमारे र क ह. (९)
प से दे खते ह एवं सभी व तु
को वा तव म जानते
त स वतुवरे यं भग दे व य धीम ह. धयो यो नः चोदयात्.. (१०) हम स वता दे व के उस कया. (१०)
े तेज का यान करते ह, ज ह ने हमारी बु
को े रत
दे व य स वतुवयं वाजय तः पुरं या. भग य रा तमीमहे.. (११) अ क अ भलाषा करते ए हम लोग तेज वी स वता दे व के धन का दान उनक तु त ारा चाहते ह. (११) दे वं नरः स वतारं व ा य ैः सुवृ
भः. नम य त धये षताः.. (१२)
य कमकुशल एवं मेधावी अ वयु आ द य करने क भावना से े रत होकर ह तु तय ारा स वता दे व क सेवा करते ह. (१२)
एवं
सोमो जगा त गातु वद् दे वानामे त न कृतम्. ऋत य यो नमासदम्.. (१३) माग को जानने वाला सोमरस गंत म जाता है. (१३) सोमो अ म यं
थान दखाता है एवं दे व के बैठने यो य य
पदे चतु पदे च पशवे. अनमीवा इष करत्.. (१४)
सोम हम मानव तथा दो पैर और चार पैर वाले पशु
को रोगर हत अ दे . (१४)
अ माकमायुवधय भमातीः सहमानः. सोमः सध थमासदत्.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
थल
सोमदे व हमारी आयु बढ़ाते ए एवं य हमारे य म बैठ. (१५)
म व न डालने वाले श ु
को हराते ए
आ नो म ाव णा घृतैग ू तमु तम्. म वा रजां स सु तू.. (१६) हे शोभन कम वाले म व व ण! हमारी गोशाला को ध से स च दो एवं हमारे घर को मधुर रस से भर दो. (१६) उ शंसा नमोवृधा म ा द
य राजथः. ा घ ा भः शु च ता.. (१७)
हे प व कम वाले म व व ण! तुम ब त ारा तुत एवं ह अ से वृ हो. तुम वशाल तु तय ारा धन का मह व पाकर सुशो भत बनो. (१७)
को ा त
गृणाना जमद नना योनावृत य सीदतम्. पातं सोममृतावृधा.. (१८) हे म व व ण! तुम जमद न ऋ ष ारा तुत होकर य म बैठो. य कम का फल बढ़ाने वाले तुम दोन सोम पओ. (१८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
चतुथ मंडल सू —१
दे वता—अ न, व ण
वां ने सद म सम यवो दे वासो दे वमर त ये रर इ त वा ये ररे. अम य यजत म य वा दे वमादे वं चेतसं व मादे वं जनत चेतसम्.. (१) हे शी गामी अ न दे व! बराबर वाल से पधा करते ए इं ा द दे व तु ह यु के लए े रत करते ह एवं यजमान य म दे व को बुलाने के लए ेरणा दे ते ह. हे य यो य, मरणर हत, तेज वी एवं उ म- ान वाले अ न! दे व ने तु ह य क ा मानव म आने एवं व भ य म उप थत रहने के लए ज म दया है. (१) स ातरं व णम न आ ववृ व दे वाँ अ छा सुमती य वनसं ये ं य वनसम्. ऋतावानमा द यं चषणीधृतं राजानं चषणीधृतम्.. (२) हे अ न! तुम अपने भाई, ह व ारा सेवा यो य, य का भाग करने वाले, अ तशय शंसनीय, जल के वामी, अ द त के पु , जल दे कर मनु य को धारण करने वाले, शोभनबु संप एवं राजमान व णदे व को तोता के त अ भमुख करो. (२) सखे सखायम या ववृ वाशुं न च ं र येव रं ा मर यं द म रं ा. अ ने मृळ कं व णे सचा वदो म सु व भानुषु. तोकाय तुजे शुशुचान शं कृ य म यं द म शं कृ ध.. (३) हे दशनीय एवं सखा अ न! तुम अपने म व ण को उसी कार हमारी ओर अ भमुख करो, जैसे चलने म कुशल एवं रथ म जुते ए घोड़े तेज चलने वाले प हए को ल य क ओर ले जाते ह. तुमने व ण एवं म त क सहायता से सुखकारक ह पाया है. हे तेज वी अ न! हमारे पु -पौ को सुखी करो एवं हमारा क याण करो. (३) वं नो अ ने व ण य व ा दे व य हेळोऽवया ससी ाः. य ज ो व तमः शोशुचानो व ा े षां स मुमु य मत्.. (४) हे उपाय को जानने वाले अ न! तुम हमारे ऊपर होने वाला व णदे व का ोध र करो. हे सबसे अ धक य क ा, ह के अ तशय वहन करने वाले एवं द तशाली अ न! सभी पाप को हमसे र करो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स वं नो अ नेऽवमो भवोती ने द ो अ या उषसो ु ौ. अव य व नो व णं रराणो वी ह मृळ कं सुहवो न ए ध.. (५) हे अ न! तुम र ा करने के लए एवं उषा क समा त पर य कम के न म हमारे अ यंत समीप आओ. हे हमारे दए ए ह से स अ न! तुम व ण ारा कए जाने वाले रोग का नाश करो एवं यह सुखदायक ह व खाओ. हे हमारे ारा भली कार बुलाए गए अ न! हमारे पास आओ. (५) अ य े ा सुभग य स दे व य च तमा म यषु. शु च घृतं न त तम यायाः पाहा दे व य मंहनेव धेनोः.. (६) परम सेवनीय अ न क उ म कृपा मनु य म उसी कार नतांत पू य है, जस कार ध क कामना करने वाले दे व के लए गाय का शु , तरल एवं गरम ध अथवा गाय मांगने वाले मनु य के लए धा गाय. (६) र य ता परमा स त स या पाहा दे व य ज नमा य नेः. अन ते अ तः प रवीत आगा छु चः शु ो अय रो चानः.. (७) अ न दे व के तीन स एवं वा त वक ज म (अ न, वायु, सूय) क सभी अ भलाषा करते ह. आकाश म अपने तेज से घरे ए सबके शोधक, तेज वी, अनंत द त से यु एवं सबके वामी अ न हमारे य म आव. (७) स तो व ेद भ व स ा होता हर यरथो रंसु ज ः. रो हद ो वपु यो वभावा सदा र वः पतुमतीव संसत्.. (८) दे व के त, सुनहरे रथ वाले एवं सुंदर वाला से यु अ न सभी य थल म जाने क अ भलाषा करते ह. लाल घोड़ वाले, परम सुंदर एवं कां तशाली अ से पूण वे घर के समान सदा रमणीय लगते ह. (८) स चेतय मनुषो य ब धुः तं म ा रशनया नय त. स े य य यासु साध दे वो मत य सध न वमाप.. (९) य के बंधु अ न य काय म लगे ए मनु य को जानते ह. अ वयुगण तु त पी वशाल र सी से अ न को उ र-वेद म लाते ह. वे अ भलाषाएं पूरी करते ए यजमान के घर म रहते ह एवं उसके साथ एक पता धारण कर लेते ह. (९) स तू नो अ ननयतु जान छा र नं दे वभ ं यद य. धया य े अमृता अकृ व ौ पता ज नता स यमु न्.. (१०) सब जानते ए अ न अपने उ म र न को शी हमारे सामने लाव. मरणर हत सब दे व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ने य कम के हेतु अ न को बनाया है. आकाश उसका जनक तथा पालनक ा है एवं अ वयु घी क आ तय से उसे स चते ह. (१०) स जायत थमः प यासु महो बु ने रजसो अ य योनौ. अपादशीषा गुहमानो अ तायोयुवानो वृषभ य नीळे .. (११) े अ न यजमान के घर एवं वशाल आकाश क मूल पी पृ वी म उ प होते ह. बना पैर और सर वाले अ न अपने शरीर को छपाकर बादल के घर अथात् आकाश म धुएं का प धारण करते ह. (११) शध आत थमं वप याँ ऋत य योना वृषभ य नीळे . पाह युवा वपु यो वभावा स त यासोऽजनय त वृ णे.. (१२) हे अ न! तु तसंप जल के उ प थान एवं बादल के घ सले के तु य आकाश म बजली के प म वतमान तु हारे पास तेज सबसे पहले प ंचता है. सात य होता अ भलाषा करने यो य, अ यंत सुंदर एवं द तसंप अ न को ल य करके तु त करते ह. (१२) अ माकम पतरो मनु या अ भ से ऋतमाशुषाणः. अ म जाः सु घा व े अ त ा आज ुषसो वानाः.. (१३) इस लोक म हमारे पूवज अं गरा य करते ए अ न के सामने गए थे. उ ह ने उषा का आ ान करते ए पवत क गुफा म वतमान, अंधकार म थत एवं प णय ारा चुराई गई धा गाय को ा त कया था. (१३) ते ममृजत द वांसो अ तदे षाम ये अ भतो व वोचन्. प य ासो अ भ कारमच वद त यो त कृप त धी भः.. (१४) उन अं गरा ने गाय को छपाने वाले पवत को तोड़ते ए अ न क सेवा क . अ य ऋ षय ने उनका यह काय सभी जगह कहा. पशु के नकलने के उपाय जानने हेतु अं गरा ने अ भमत फल दे ने वाले अ न क तु त करते ए काश पाया एवं अपने बु बल से य कया. (१४) ते ग ता मनसा मु धं गा येमानं प र ष तम म्. हं नरो वचसा दै ेन जं गोम तमु शजो व वुः.. (१५) य कम के नेता एवं अ न क कामना करने वाले अं गरा ने गाय को पाने के वचार से ढ़बंद, गाय को रोकने वाले, चार ओर फैले ए, कठोर, गाय से यु एवं गोशाला के समान पवत को अ न संबंधी तु तय से उद्घा टत कर दया था. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ते म वत थमं नाम धेनो ः स त मातुः परमा ण व दन्. त जानतीर यनूषत ा आ वभुवद णीयशसा गोः.. (१६) हे अ न! तु त करने वाले अं गरा ने माता वाणी से संबं धत एवं तु त म सहायक श द को पहले जाना. बाद म तु तसंबंधी इ क स छं द का ान ा त कया. इसके प ात् सबको जानती ई उषा क तु त क . फर सूय के तेज से अ ण वण क उषा उ प ई. (१६) नेश मो धतं रोचत ौ े ा उषसौ भानुरत. आ सूय बृहत त द ाँ ऋजु मतषु वृ जना च प यन्.. (१७) उषा क ेरणा से रात का अंधकार न आ एवं आकाश चमकने लगा. इसके बाद उषा का काश उ प आ. मनु य के सत् एवं असत् कम को दे खते ए सूय महान् पवत के ऊपर प ंच गए. (१७) आ द प ा बुबुधाना य ा द नं धारय त ुभ म्. व े व ासु यासु दे वा म धये व ण स यम तु.. (१८) अं गरा ने सूय दय के बाद प णय ारा चुराई गई गाय को जानते ए पीछे से उन गाय को भली-भां त दे खा एवं दे व ारा दए गए गो प धन को पाया. अं गरा के सभी घर म सभी दे व पधारे. हे म तु य एवं व ण के रोग का नाश करने वाले अ न! यजमान को स य फल ा त हो. (१८) अ छा वोचेय शुशुचानम नं होतारं व भरसं य ज म्. शु यूधो अतृण गवाम धो न पूतं प र ष मंशोः.. (१९) अ यंत द तशाली, दे व को बुलाने वाले, व के पोषक एवं सबसे अ धक य क ा अ न को ल य करके हम तु तयां बोलते ह. यजमान तु हारी आ त के न म गाय के थन से प व ध का दोहन एवं सोमरस पी अ को प व करते ए घर म ेपण न करके केवल तु त ही बोलते ह. (१९) व ेषाम द तय यानां व ेषाम त थमानुषाणाम्. अ नदवानामव आवृणानः सुमृळ को भवतु जातवेदाः.. (२०) अ न सभी य यो य दे व क माता के समान पोषक एवं सभी मनु य के लए अ त थ के समान पू य ह. तोता का अ भ ण करने वाले एवं सव अ न सुखदाता ह . (२०)
सू -२
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो म य वमृत ऋतावा दे वो दे वे वर त नधा य. होता य ज ो म ा शुच यै ह ैर नमनुष ईरय यै.. (१) जो मरणर हत एवं द अ न मनु य म स ययु , इं ा द दे व के श ु को हराने वाले, दे व को बुलाने वाले एवं सबसे अ धक य क ा ह, वे अपने महान् तेज से द त होने एवं यजमान को वग भेजने के लए उ र वेद पर था पत कए गए ह. (१) इह वं सूनो सहसो नो अ जातो जाताँ उभयाँ अ तर ने. त ईयसे युयुजान ऋ व ऋजुमु का वृषणः शु ां .. (२) हे बल के पु एवं दशनीय अ न! तुम आज हमारे य म उ प ए हो एवं अपने सीधे, मोटे , तेज वी तथा श शली घोड़ को रथ म जोतकर नभ से भ दे व और मनु य के बीच ह वहन के लए त बनते हो. (२) अ या वृध नू रो हता घृत नू ऋत य म ये मनसा ज व ा. अ तरीयसे अ षा युजानो यु मां दे वा वश आ च मतान्.. (३) हे स य प अ न! म तु हारे लाल रंग वाले, मन से भी अ धक वेगशाली एवं अ तथा जल बरसाने वाले घोड़ क तु त करता ं. उन तेज वी घोड़ को रथ म जोतकर य के पा दे व एवं सेवा करने वाले मनु य के बीच भली-भां त जाते हो. (३) अयमणं व णं म मेषा म ा व णू म तो अ नोत. व ो अ ने सुरथः सुराधा ए वह सुह वषे जनाय.. (४) हे उ म अ , उ म रथ एवं उ म धन वाले अ न! तुम उ म ह व वाले यजमान के लए अयमा, व ण, म , इं व णु, म द्गण एवं अ नीकुमार को बुलाओ. (४) गोमाँ अ नेऽ वमाँ अ ी य ो नृव सखा सद मद मृ यः. इळावाँ एषो असुर जावा द घ र यः पृथुबु नः सभावान्.. (५) हे श शाली अ न! हमारा यह य गाय, भेड़ एवं घोड़ से यु हो. अ वयु एवं यजमान वाला य सदै व न न करने यो य, ह अ से यु , पु -पौ आ द स हत, लगातार चलने वाला, धनपूण, अनेक संप य का कारण तथा उपदे शक ा से भरा हो. (५) य त इ मं जभर स वदानो मूधानं वा ततपते वाया. भुव त य वतवाँ: पायुर ने व मा सीमघायत उ य.. (६) हे अ न! जो मनु य पसीना बहाकर तु हारे लए लक ड़यां ढोकर लाता है एवं तु ह पाने क अ भलाषा से अपना सर लकड़ी के बोझे से ःखी करता है, उसे तुम धनशाली ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनाते हो, पालन करते हो एवं अ न कामना करने वाल से उसक र ा करते हो. (६) य ते भराद यते चद ं न शष म म त थमुद रत्. आ दे वयु रनधते रोणे त म य ुवो अ तु दा वान्.. (७) हे अ न! जो अ क अ भलाषा करने वाले तु हारे लए ह अ धारण करता है, नशा करने वाला सोम अ धक मा ा म दे ता है, पू य अ त थ के समान तु ह उ र वेद पर था पत करता है एवं दे व बनने क अ भलाषा से तु ह अपने घर म व लत करता है, उसका पु प का आ तक एवं व श दानी हो. (७) य वा दोषा य उष स शंसा यं वा वा कृणवते ह व मान्. अ ो न वे दम आ हे यावा तमंहसः पीपरो दा ांसम्.. (८) हे अ न! जो पु ष रात म या ातःकाल तु हारी तु त करता है अथवा हाथ म य ह लेकर तु ह स करता है, य शाला म सुनहरी काठ वाले घोड़े के समान घूमते ए तुम द र ता से उसे बचाओ. (८) य तु यम ने अमृताय दाशद् व वे कृणवते यत ुक्. न स राया शशमानो व योष ैमंहः प र वरदघायोः.. (९) हे मरणर हत अ न! जो यजमान तु ह ह दे ता है, अथवा माला हाथ म लेकर तु हारी सेवा करता है, वह तो को बोलने वाला यजमान धनहीन न हो तथा हसक का क उसे न छू सके. (९) य य वम ने अ वरं जुजोषो दे वो मत य सु धतं रराणः. ीतेदस ो ा सा य व ासाम य य वधतो वृधासः.. (१०) हे स , युवक एवं द तशाली अ न! तुम जस यजमान का भली कार अ पत एवं हसार हत अ खाते हो, वह होता अव य स होता है. अ न क सेवा करने वाले जस यजमान का य होता आ द बढ़ाते ह, हम उसीसे संबंध रखगे. (१०) च म च चनव व ा पृ ेव वीता वृ जना च मतान्. राये च नः वप याय दे व द त च रा वा द तमु य.. (११) व ान् अ न मनु य के पु य एवं पाप को उसी कार अलग कर द. जस कार घोड़ को पालने वाला कोमल और कठोर पीठ वाले घोड़ को अलग-अलग छांट दे ता है. हे अ न दे व! हम सुंदर संतान के साथ धन दो. तुम दान करने वाले को धन दो और दानहीन से धन को बचाओ. (११) क व शशासुः कवयोऽद धा नधारय तो या वायोः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अत वं
याँ अ न एता पड् भः प येर ताँ अय एवैः.. (१२)
हे अ न! मनु य के घर म रहने वाले तर कारशू य एवं ांतदश दे व ने तुझ मेधावी से होता बनने के लए कहा है. हे य वामी! तुम अपने ग तशील तेज से इन दशनीय एवं आ ययु दे व को दे खो. (१२) वम ने वाघते सु णी तः सुतसोमाय वधते य व . र नं भर शशमानाय घृ वे पृथु मवसे चष ण ाः.. (१३) हे अ तशय युवा, द तयु , मनु य क अ भलाषा पूरी करने वाले एवं उ र वेद पर था पत करने यो य अ न! सोम नचोड़ने वाले व तु हारी सेवा तथा तु त करने वाले यजमान क र ा के लए उसे अ धक मा ा म आनंददायक एवं उ म धन दो. (१३) अधा ह य यम ने वाया पड् भह ते भ कृमा तनू भः. रथं न तो अपसा भु रजोऋतं येमुः सु य आशुषाणाः.. (१४) हे अ न! हम हाथ , पैर एवं शरीर के अ य अवयव ारा जस योजन के लए तु ह उ प करते ह, उ म कम वाले एवं य ा द कम म त लीन अं गरा भी अपनी भुजा से अर णमंथन करके तु ह उसी कम के लए इस कार उ प करते ह, जस कार कारीगर रथ तैयार करता है. (१४) अधा मातु षसः स त व ा जायेम ह थमा वेधसो नॄन्. दव पु ा अ रसो भवेमा जेम ध ननं शुच तः.. (१५) हम आठ े मेधावी (छः अं गरा एवं सातव वामदे व) जन ने उषा माता से अ न क करण को लया है. तेज वी सूय के पु हम अं गरा द तयु होते ए गोधन को रोकने वाले एवं जलपूण पवत को भेदगे. (१५) अधा यथा नः पतरः परासः नासो अ न ऋतमाशुषाणाः. शुचीदय द ध तमु थशासः ामा भ द तो अ णीरप न्.. (१६) हे अ न! हमारे े , पुरातन एवं स चे य के करने म संल न पूवज ने तेज वी थान तथा द त ा त क थी, उ थमं बोलकर अंधकार को न कया था तथा प णय ारा चुराई गई लाल रंग वाली गाय को बाहर नकाला था. (१६) सुकमाणः सु चो दे वय तोऽयो न दे वा ज नमा धम तः. शुच तो अ नं ववृध त इ मूव ग ं प रषद तो अ मन्.. (१७) यागा द शोभन काय करने वाले, उ म-द तसंप एवं दे व क अ भलाषा करने वाले तोतागण य ा द ारा अपना मनु यज म इस कार नमल कर रहे ह, जस कार लोहार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ध कनी के ारा लोहे को साफ करता है. अ न को द तशाली करते एवं इं को बढ़ाते ए उन लोग ने य के चार ओर बैठकर महान् गोधन को ा त कया था. (१७) आ यूथेव ुम त प ो अ य े वानां य ज नमा यु . मतानां च वशीरकृ वृधे चदय उपर यायोः.. (१८) हे तेज वी अ न! अं गरा के पवत म बंद गोसमूह को इं ने उसी कार दे खा, जस कार लोग अ वाले घर म पशुसमूह को दे खते ह. अं गरा ारा लाई ग गाय से जाएं संप बनी थ . वामी संतान के पालन एवं दास अपने पालन म समथ ए थे. (१८) अकम ते वपसो अभूम ऋतमव ुषसो वभा तः. अनूनम नं पु धा सु ं दे व य ममृजत ा च ःु .. (१९) हे अ न! हम तु हारी सेवा करते ए शोभन कम वाले बन. काश वाली उषाएं सबको तेज से ढक दे ती ह तथा स ताकारक अ न को अनेक बार पूण प से धारण करती ह. हे तेज वी अ न! हम तु हारे मनोहर तेज क सेवा करके शोभनकमयु बन. (१९) एता ते अ न उचथा न वेधोऽवोचाम कवये ता जुष व. उ छोच वे कृणु ह व यसो नो महो रायः पु वार य ध.. (२०) हे वधाता एवं मेधावी अ न! अपने उ े य से बोले गए इस मं समूह को वीकार करो एवं उ त होकर हम परमसंप शाली बनाओ. हे ब त ारा वरण करने यो य अ न! हम महान् धन दो. (२०)
सू -३
दे वता—अ न
आ वो राजानम वर य ं होतारं स ययजं रोद योः. अ नं पुरा तन य नोर च ा र य पमवसे कृणु वम्.. (१) हे यजमानो! व के समान ुवमृ यु से पहले ही य के वामी, दे व को बुलाने वाले, श ु को लाने वाले, धरती-आकाश को अ दे ने वाले एवं सुनहरी भा से यु अ न क अपनी र ा के न म ह व से सेवा करो. (१) अयं यो न कृमा यं वयं ते जायेव प य उशती सुवासाः. अवाचीनः प रवीतो न षीदे मा उ ते वपाक तीचीः.. (२) हे अ न! जस कार प त क अ भलाषा करती ई एवं शोभन व वाली प नी अपने समीप प त को थान दे ती है, उसी कार हम तु हारे लए उ र वेद प थान न त करते ह. हे उ म कम वाले अ न! तुम दे व से घरे ए हमारे सामने बैठो. सम त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु तयां तु हारे स मुख ह गी. (२) आशृ वते अ पताय म म नृच से सुमृळ काय वेधः. दे वाय श तममृताय शंस ावेव सोता मधुषु मीळे .. (३) हे तु तक ाओ! तो सुनने वाले, मादर हत, मनु य को दे खने वाले, शोभन सुखदाता एवं मरणर हत अ न दे व के लए तो बोलो. प थर के समान सोमरस नचोड़ने वाले यजमान भी अ न क तु त करते ह. (३) वं च ः श या अ ने अ या ऋत य बो यृत च वाधीः. कदा त उ था सधमा ा न कदा भव त स या गृहे ते.. (४) हे अ न! तुम हमारे इस य कम के दे व बनो. हे स यय वाले एवं शोभनकमयु अ न! तुम हमारे तो को जानो. हम स करने वाले तु हारे तो हमारे घर म कब बोले जावगे एवं तु हारे साथ म ता हमारे घर म कब बनेगी? (४) कथा ह त णाय वम ने कथा दवे गहसे क आगः. कथा म ाय मी षे पृ थ ै वः कदय णे कद्भगाय.. (५) हे अ न! तुम व ण एवं स वता के समीप हमारी नदा य करते हो? हमसे या अपराध आ है? तुमने कामवष म , पृ वी, अयमा एवं भग को हमारा पाप य बताया? (५) क यासु वृधसानो अ ने क ाताय तवसे शुभंये. प र मने नास याय े वः कद ने ाय नृ ने.. (६) हे अ न! य म बढ़ते ए तुम अ तशय बलशाली, शुभ फलदाता एवं सव गमनशील अ नीकुमार , वायु, धरती एवं पा पय का नाश करने वाले इं से हमारे पाप के वषय म य कहते हो? (६) कथा महे पु भराय पू णे क ाय सुमखाय ह वद. क णव उ गायाय रेतो वः कद ने शरवे बृह यै.. (७) हे अ न! हमारे पाप क वह कहानी महान् एवं पु कारक पूषा, पूजनीय एवं ह वदाता , ब त ारा शं सत व णु अथवा महान् संव सर से य कहते हो? (७) कथा शधाय म तामृताय कथा सूरे बृहते पृ त वोऽ दतये तुराय साधा दवो जातवेद
मानः. क वान्.. (८)
हे अ न! स य प, म द्गण, महान् सूय, दे वी अ द त एवं वेगशाली वायु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा पूछे
जाने पर हमारे पाप क बात उ ह य बताते हो? हे सव अ न! तुम सब कुछ जानते ए दे व के पास जाओ. (८) ऋतेन ऋतं नयतमीळ आ गोरामा सचा मधुम प वम ने. कृ णा सती शता धा सनैषा जामयण पयसा पीपाय.. (९) हे अ न! हम गाय से उस ध क याचना करते ह जो य से न य संबं धत है. वे गाएं वयं स ची होते ए भी मधुर ध दे ती ह. वे गाएं वयं काली ह, पर त े -वण, ाणधारक एवं जा को अमर बनाने वाले ध से पु करती ह. (९) ऋतेन ह मा वृषभ द ः पुमाँ अ नः पयसा पृ ेन. अ प दमानो अचर योधा वृषा शु ं हे पृ धः.. (१०) कामवष एवं े अ न स य प एवं पालन करने वाले ध से भरे रहते ह. अ दे ने वाले वे अ न एक जगह रहकर भी सब जगह चलते ह. जलवषक सूय बादल से जल हते ह. (१०) ऋतेना स भद तः सम रसो नव त गो भः. शुनं नरः प र षद ुषासमा वः वरभव जाते अ नौ.. (११) मेधा त थ आ द अं गरागो ीय ऋ षय ने य के ारा गाय को रोकने वाले पहाड़ को उखाड़ फका था एवं वे अपनी गाय के पास प ंच गए थे. उन य नेता ने सुख से उषा को पाया था. अर णमंथन ारा अ न उ प होने पर सूय दे व कट ए. (११) ऋतेन दे वीरमृता अमृ ा अण भरापो मधुम र ने. वाजी न सगषु तुभानः सद म वतवे दध युः.. (१२) हे अ न! अमृत का कारण, बाधार हत एवं मधुर जल से भरी ई द न दयां य क ेरणा से सदा इस कार बहती रहती ह, जस कार आगे बढ़ने के लए े रत घोड़ा बढ़ता है. (१२) मा क य य ं सद मद्धुरो गा मा वेश य मनतो मापेः. मा ातुर ने अनृजोऋणं वेमा स युद ं रपोभुजेम.. (१३) हे अ न! हमारे हसक, बु पड़ोसी अथवा हमारे अ त र कसी भी बंधु के य म मत जाना तथा कु टलबु वाले हमारे ाता का ह धारण मत करना. हम श ु अथवा म का दया अ भोग म न लाकर केवल तु हारे ारा दए गए अ का ही उपभोग करगे. (१३) र ा णो अ ने तव र णेभी रार ाणः सुमख ीणानः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त फुर व ज वीड् वंहो ज ह र ो म ह च ावृधानम्.. (१४) हे उ म धन वाले, हम लोग के महान् र क एवं ह ारा स अ न! तुम अपनी र ा ारा स हम उ त बनाओ, श शाली पाप का नाश करो एवं महान् तथा वृ - ा त व न का नाश करो. (१४) ए भभव सुमना अ ने अक रमा पृश म म भः शूर वाजान्. उत ा य रो जुष व सं ते श तदववाता जरेत.. (१५) हे अ न! मेरी इन पू य तु तय ारा स मन बनो. हे शूर! तो के साथ हमारे अ को वीकार करो. हे ह ा तक ा अ न! हमारे मं को वीकार करो. दे व क तु त के न म बने मं तु ह बढ़ाव. (१५) एता व ा व षे तु यं वेधो नीथा य ने न या वचां स. नवचना कवये का ा यशं सषं म त भ व उ थैः.. (१६) हे वधाता, य कम के ानी एवं ांतदश ! हम बु मान् लोग तु ह ल य करके फल ा त कराने वाली, गूढ़, सभी कार कहने यो य एवं व ान ारा बनाई ई सम त तु तय को एक साथ बोलते ह. (१६)
सू -४
दे वता—अ न
कृणु व पाजः स त या ह राजेवामवाँ इभेन. तृ वीमनु स त ण ू ानोऽ ता स व य र स त प ैः.. (१) हे अ न! बहे लया जस कार जाल फैलाता है, उसी कार तुम अपने भयनाशक तेजसमूह को फैलाओ. राजा जस कार अपने मं ी के साथ चलता है, उसी कार तुम भी अपने तेज के साथ आगे बढ़ो. तेज चलने वाली श ुसेना के पीछे चलते ए तुम उसका नाश करो एवं अपने अ यंत त त तेज से रा स का हनन करो. (१) तव मास आशुया पत यनु पृश धृषता शोशुचानः. तपूं य ने जु ा पत ानसे दतो व सृज व वगु काः.. (२) हे अ न! तु हारी घूमने वाली एवं शी गा मनी करण सब जगह फैलती ह. तुम अ यंत द त होकर हराने वाले तेज से श ु को जलाओ. हे श ु ारा न न होने वाले अ न! तुम अपनी वाला ारा तेज चनगा रय तथा उ का को चार ओर फैलाओ. (२) त पशो व सृज तू णतमो भवा पायु वशो अ या अद धः. यो नो रे अघशंसो यो अ य ने मा क े थरा दधष त्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ तशय वेगशाली अ न! श ु को बाधा प ंचाने वाली करण को वशेष प से फैलाओ. हे हसार हत अ न! जो र रहकर हमारा बुरा चाहता है अथवा पास रहकर हमारे अ न क इ छा करता है, तुम उससे हम लोग क र ा करो. हम तु हारे ह. कोई हम हरा न सके. (३) उद ने त या तनु व य१ म ाँ ओषता महेते. यो नो अरा त स मधान च े नीचा तं ध यतसं न शु कम्.. (४) हे तेज वाला वाले अ न! उठो एवं रा स के नाश म लगो, श ु के व अपनी वालाएं फैलाओ एवं तेज-समूह ारा श ु को जलाओ. हे भली कार व लत अ न! जो हमसे श ुता रखता हो उस नीच को सूखी लकड़ी के समान जला दो. (४) ऊ व भव त व या य मदा व कृणु व दै ा य ने. अव थरा तनु ह यातुजूनां जा ममजा म मृणी ह श ून्.. (५) हे अ न! तुम तैयार हो जाओ और हमसे अ धक बलशाली रा स को एक-एक करके मारो, अपने द तेज का आ व कार करो, ा णय को लेश दे ने वाले रा स के धनुष को डोरी से हीन बनाओ तथा हमारे ारा परा जत अथवा अपरा जत सभी श ु को समा त करो. (५) स ते जाना त सुम त य व य ईवते णे गातुमैरत्. व ा य मै सु दना न रायो ु ना यय व रो अ भ ौत्.. (६) हे अ तशय युवा, गमनशील एवं े अ न! तु हारी तु त करने वाला तु हारा अनु ह ा त करता है. हे य वामी अ न! तुम उसके लए संपूण प से उ म दवस, धन एवं र न को लेकर उसके घर के सामने का शत बनो. (६) सेद ने अ तु सुभगः सुदानुय वा न येन ह वषा य उ थैः. प ीष त व आयु ष रोणे व द े मै सु दना सास द ः.. (७) हे अ न! जो तु ह न य ह एवं मं से स करना चाहता है, वह शोभन-धन वाला एवं दानशील हो, क ठनता से मलने वाली सौ वष क आयु ा त करे, उसके सभी दन उ म ह एवं उसका य फल दे ने वाला हो. (७) अचा म ते सुम त घो यवा सं ते वावाता जरता मयं गीः. व ा वा सुरथा मजयेमा मे ा ण धारयेरनु ून्.. (८) हे अ न! हम तु हारी शोभन-बु क उपासना करते ह. बार-बार तु ह ा त होने के वचार से बोली गई वाणी गूंजती ई तु हारी तु त करे. हम सुंदर घोड़ एवं शोभन रथ से यु होकर तु ह अलंकृत कर. तुम त दन हम लोग को धनसंप बनाओ. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इह वा भूया चरे प म दोषाव तद दवांसमनु ून्. ळ त वा सुमनसः सपेमा भ ु ना त थवांसो जनानाम्.. (९) हे रात- दन द त होने वाले अ न! ब त से लोग इस संसार म त दन तु हारी सेवा करते ह. हम भी श ुजन क संप यां तु हारी कृपा से अपने अ धकार म करते ए तथा अपने घर म पु -पौ के साथ ड़ा करते ए स मन से तु हारी सेवा कर. (९) य वा व ः सु हर यो अ न उपया त वसुमता रथेन. त य ाता भव स त य सखा य त आ त यमानुष जुजोषत्.. (१०) हे अ न! सुंदर घोड़ वाला एवं य के यो य संप य का वामी जो पु ष अ यु रथ के ारा तु हारे पास आता है, तुम उसक र ा करते हो, जो पु ष म से तु हारा अ त थ स कार करता है, उसके तुम म बनते हो. (१०) महो जा म ब धुता वचो भ त मा पतुग तमाद वयाय. वं नो अ य वचस क होतय व सु तोदमूनाः.. (११) हे होता, अ तशय युवा एवं शोभन-बु अ न! तो ारा हमने तु हारी म ता ा त क है. उससे हम अपने श ु रा स का नाश कर. यह तो हम अपने पता गौतम से ा त आ है. हे श ुनाशक अ न! हमारे इन तु तवचन को जानो. (११) अ व ज तरणयः सुशेवा अत ासोऽवृका अ म ाः. ते पायवः स य चो नष ा ने तव नः पा वमूर.. (१२) हे सव अ न! तु हारी जाग क, न य ग तशील, उ म-सुख दे ने वाली, आल यहीन, हसार हत, कभी न थकने वाली, पर पर मली ई एवं र क करण हमारे य म बैठकर हमारी र ा कर. (१२) ये पायवो मामतेयं ते अ ने प य तो अ धं रतादर न्. रर ता सुकृतो व वेदा द स त इ पवो नाह दे भुः.. (१३) हे अ न! तु हारी र ा करने वाली एवं क णा यु करण ने ममता के अंधे पु द घतमा क शाप से र ा क थी. हे सब कुछ जानने वाले अ न! तुम उन उ म कम वाली करण क र ा करते हो. न करने क इ छा रखने वाले श ु भी उसे समा त नह कर सके. (१३) वया वयं सध य१ वोता तव णी य याम वाजान्. उभा शंसा सूदय स यतातेऽनु ु या कृण याण.. (१४) हे अल जत गमन वाले अ न! हम तोता तु हारी कृपा से धनयु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं र त होकर
तु हारी ेरणा से अ ा त कर. हे स य को व तृत करने वाले एवं पापनाशक अ न! हमारे र एवं समीपवत श ु को न करो तथा मशः सब काय पूरे करो. (१४) अया ते अ ने स मधा वधेम त तोमं श यमानं गृभाय. दहाशसो र सः पा १ मा हो नदो म वहो अव ात्.. (१५) हे अ न! इस द त तु त ारा हम तु हारी सेवा कर. हमारी तु त को हण करो एवं तु त न करने वाले रा स को जलाओ. हे म ारा पूजनीय अ न! ोह एवं नदा करने वाल के अपयश से हम बचाओ. (१५)
सू -५
दे वता—अ न
वै ानराय मी षे सजोषाः कथा दाशेमा नये बृह ाः. अनूनेन बृहता व थेनोप तभाय प म रोधः.. (१) पर पर समान ेम रखने वाले हम ऋ वज् और यजमान कामवष एवं भासमान महान् वै ानर अ न को कस कार ह द? थूना जस कार छ पर को धारण करता है, उसी कार अ न अपने वशाल एवं संपूण शरीर से वग को धारण करते ह. (१) मा न दत य इमां म ं रा त दे वो ददौ म याय वधावान्. पाकाय गृ सो अमृतो वचेता वै ानरो नृतमो य ो अ नः.. (२) हे होताओ! वै ानर अ न क नदा मत करो. वे ह पाकर हम मरणशील एवं पूणान वाले यजमान को यह दान दे ते ह. वे मेधावी, मरणर हत, व श बु वाले, नेता म े तथा महान् ह. (२) साम बहा म ह त मभृ ः सह रेता वृषभ तु व मान्. पदं न गोरपगू हं व व ान नम ं े वोच मनीषाम्.. (३) म यम और उ म दो थान म वराजमान, ती ण तेज वाले, अ धक सारयु , कामवष , ब धनी, खोई ई गाय के चरण च के समान रह यपूण एवं जानने यो य अ न हमारे पू य एवं य तो को बार-बार जानकर हम बताव. (३) ताँ अ नबभस मज भ त प ेन शो चषा यः सुराधाः. ये मन त व ण य धाम या म य चेततो ुवा ण.. (४) शोभन धनयु एवं तीखे दांत वाले अ न अ यंत तापकारी तेज ारा उ ह न कर जो जानने वाले म और व ण के य तथा ुवतेज क नदा करते ह. (४) अ ातरो न योषणो तः प त रपो न जनयो रेवाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पापासः स तो अनृता अस या इदं पदमजनता गभीरम्.. (५) बंध-ु बांधवर हत नारी के समान य ा द यागकर जाने वाले, प त से े ष करने वाली य के समान राचारी, पापी, मानस तथा वा चक-स य-र हत लोग नरक को ा त होते ह. (५) इदं मे अ ने कयते पावका मनते गु ं भारं न म म. बृह धाथ धृषता गभीरं य ं पृ ं यसा स तधातु.. (६) हे प व क ा अ न! जैसे अ प-श वाले पर भारी बोझा लादा जाता है, उसी कार तु हारा कम मेरे लए भारी है, पर म उसका याग नह करता. तुम मुझे य, अ धक, श ु को हराने वाले अ से यु , गंभीर, महान्, पश करने यो य एवं सात कार का धन दान करो. (६) त म वे३व समना समानम भ वा पुनती धी तर याः. सस य चम ध चा पृ ेर े प आ पतं जबा .. (७) उपयु एवं हम प व करने वाली तु त कम के साथ शी ही वै ानर के पास प ंचे. वह तु त वै ानर अ न के द तमंडल पृ वी से न त वगलोक के ऊपर घूमने के लए दे व ने पूव दशा म था पत क है. (७) वा यं वचसः क मे अ य गुहा हतमुप न ण वद त. य याणामप वा रव पा त यं पो अ ं पदं वेः.. (८) मेरे इस वचन के अ त र कहने यो य अ य बात या है? जानने वाले लोग कहते ह क ध काढ़ने वाले जस ध को जल के समान नकालते ह, उसे वै ानर अ न गुफा म छपाकर रखते ह एवं फैली ई धरती के सव य तथा े थान क र ा करते ह. (८) इदमु य म ह महामनीकं य या सचत पू गौः. ऋत य पदे अ ध द ानं गुहा रघु य घुय वेद.. (९) धा गाय ारा अ नहो ा द के लए से वत, अ यंत चमकता आ, गुफा म शी ग तशील, स , महान् एवं पू य सूयमंडल पी वै ानर अ न को म जान चुका ं. (९) अध त ु ानः प ोः सचासामनुत गु ं चा पृ ेः. मातु पदे परमे अ त षद्गोवृ णः शो चषः यत य ज ा.. (१०) द यमान वै ानर अ न धरती-आकाश पी माता- पता के बीच म ा त रहकर गाय के थन म छपे ए ध को मुंह से पीने के लए जागृत ए थे. कामवष , द त एवं आहवानीय प से न त वै ानर अ न क जीभ गोमाता के थन प उ म थान म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उप थत है. (१०) ऋतं वोचे नमसा पृ मान तवाशसा जातवेदो यद दम्. वम य य स य व ं द व य वणं य पृ थ ाम्.. (११) मुझ यजमान से य द कोई नम कार करके पूछे तो म स य क ंगा. हे जातवेद अ न! य द तु हारी तु त से हम धन मलेगा तो उसके वामी तु ह बनोगे. सबके धन भी तु हारे ही ह, चाहे वे धन वग म ह या धरती पर. (११) क नो अ य वणं क र नं व नो वोचो जातवेद क वान्. गुहा वनः परमं य ो अ य रेकु पदं न नदाना अग म.. (१२) इस धन का साधन प धन या है? हतकर धन या है? हे जातवेद! तुम इस बात को जानते हो, इस लए हम बताओ. धन ा त के माग का गूढ़ उपाय भी हम बताओ. हम नदा के पा बने बना गंत थान को पा सक. (१२) का मयादा वयुना क वामम छा गमेम रघवो न वाजम्. कदा नो दे वीरमृत य प नीः सूरो वणन ततन ुषासः.. (१३) पूव आ द दशा क सीमा, पदाथ ान एवं रमणीय व तुएं या ह? इ ह हम उसी कार ा त कर, जस कार तेज दौड़ने वाला घोड़ा यु भू म म प ंच जाता है. काशयु , मरणर हत, सूय का पालन करने वाली एवं ज म दे ने वाली उषाएं हम अपने काश से कब घेरगी? (१३) अ नरेण वचसा फ वेन ती येन कृधुनातृपासः. अधा ते अ ने क महा वद यनायुधास आसता सच ताम्.. (१४) हे अ न! ह -अ से र हत तु तय एवं अथहीन ओछे वचन ारा अतृ त लोग इस संसार म तु हारे वषय म जो कुछ कहते ह, वह थ है, ह - पी साधन के बना वे लोग ःख उठाते ह. (१४) अ य ये स मधान य वृ णो वसोरनीकं दम आ रोच. श सानः सु शीक पः तन राया पु वारो अ ौत्.. (१५) यजमान के क याण के न म व लत, कामवष एवं नवास थान दे ने वाले अ न क वालाएं य शाला क ओर चमकती ह. तेजधारी, रमणीय बल वाले व अनेक यजमान ारा तुत अ न इस कार का शत होते ह, जस कार अ आ द धन से राजा शोभा पाता है. (१५)
सू -६
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऊ व ऊ षु णो अ वर य होतर ने त दे वताता यजीयान्. वं ह व म य स म म वेधस र स मनीषाम्.. (१) हे य के होता एवं य क ा म े अ न! हमारे य म तुम ऊंचे थान पर बैठो, श ु के सम त धन पर अ धकार करो एवं यजमान क तु त को बढ़ाओ. (१) अमूरो होता यसा द व १ नम ो वदथेषु चेताः. ऊ व भानुं स वतेवा े मेतेव धूमं तभाय प ाम्.. (२) ग भ, य पूण करने वाले, ह षत करने वाले एवं अ धक ान-यु अ न य म जा के साथ बैठते ह, उ दत सूय के समान ऊपर क ओर मुंह करते ह एवं अपने धुएं को आकाश के ऊपर इस कार था पत करते ह, जस कार थूना अपने ऊपर बांस आ द को रखता है. (२) यता सुजूण रा तनी घृताची द उ व नवजा ना ः प ो अन
णद् दे वता तमुराणः. सु धतः सुमेकः.. (३)
भली कार पकड़ी ई और पुरानी घृताची (पा वशेष) घी से भरी ई है. य को बढ़ाने वाले अ वयु द णा कर रहे ह. ताजा बनाया आ यूप ऊंचा उठता है. आ मण करने वाला एवं द त वाला कुठार भी पशु क ओर चलता है. (३) तीण ब ह ष स मधाने अ ना ऊ व अ वयुजुजुषाणो अ थात्. पय नः पशुपा न होता व े त दव उराणः.. (४) वेद पर कुश बछ जाने एवं अ न के व लत हो जाने पर अ वयु उ ह स करने के लए उठता है. य पूण करने वाले एवं पुरातन अ न थोड़े ह को भी ब त बनाते ए इस कार तीन बार पशु क प र मा करते ह, जस कार पशु को पालने वाला. (४) प र मना मत रे त होता नम ो मधुवचा ऋतावा. व य य वा जनो न शोका भय ते व ा भुवना यद ाट् .. (५) ये होता, स करने वाले, मधुरभाषी एवं य के वामी अ न सी मत चाल से पशु के चार ओर घूमते ह. इनका काश घोड़े के समान चार ओर भागता है. अ न के व लत होने पर सभी ाणी डर जाते ह. (५) भ ा ते अ ने वनीक स घोर य सतो वषुण य चा ः. न य े शो च तमसा वर त न व मान त वी३ रेप आ धुः.. (६) हे शोभन वाला वाले, भयजनक एवं सव ा त अ न! तु हारी रमणीय एवं क याणी मू त भली कार दखाई दे ती है. तु हारी द त को अंधकार नह रोक सकता एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व वंसकारी रा स तु हारे शरीर म पाप का वेश नह करा सकते. (६) न य य सातुज नतोरवा र न मातरा पतरा नू च द ौ. अधा म ो न सु धतः पावको३ नद दाय मानुषीषु व ु.. (७) हे वषाकारक अ न! तु हारे पशु आ द दान को अ य लोग नह रोक सकते. माता- पता के समान धरती-आकाश भी तु ह ेरणा दे ने म समथ नह होते. भली कार तृ त एवं शु करने वाले अ न मानव जा म म के समान का शत होते ह. (७) य प च जीज संवसानाः वसारो अ नं मानुषीषु व ु. उषबुधमथय ३ न द तं शु ं वासं परशुं न त मम्.. (८) य के समान पर पर मली ई मनु य क दस उंग लयां मंथन ारा ातःकाल जागने वाले, ह -भ णक ा, करण ारा द त, सुंदर मुख वाले एवं तेज परशु के समान रा सहननक ा अ न को उ प करती ह. (८) तव ये अ ने ह रतो घृत ना रो हतास ऋ व चः व चः. अ षासो वृषण ऋजुमु का आ दे वता तम त द माः.. (९) हे अ न! नाक के नथुन से फेन गराने वाले, लाल रंग वाले, सीधे चलने वाले, द तशाली, कामवष , साधनयु एवं सुंदर घोड़े ऋ वज ारा हमारे य क ओर बुलाए जाते ह. (९) ये ह ये ते सहमाना अयास वेषासो अ ने अचय र त. येनासो न वसनासो अथ तु व वणसो मा तं न शधः.. (१०) हे अ न! तु हारी श ु को परा जत करने वाली, गमनशील, द त व सेवा करने यो य करण घोड़ के समान अपने गंत थान पर जाती ह एवं म त के समान अ धक आवाज करती ह. (१०) अका र स मधान तु यं शंसा यु थं यजते ू धाः. होतारम नं मनुषो न षे नम य त उ शजः शंसमायोः.. (११) हे व लत अ न! तु हारे लए हमने तो बनाया है. उसी को होतागण बोलते ह. यजमान तु हारे न म य करते ह. इस लए तुम हम धन दो. ऋ वज् मानव ारा शंसनीय व दे व को बुलाने वाले अ न क पूजा करने के लए हम धन क कामना से बैठे ह. (११)
सू -७
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अय मह थमो धा य धातृ भह ता य ज ो अ वरे वी ः. यम वानो भृगवी व चुवनेषु च ं व वं वशे वशे.. (१) आ वान् एवं अ य भृगुवंशी ऋ षय ने वन म दावा न प से दशनीय एवं सम त जा के वामी अ न को व लत कया था. वे ही दे व को बुलाने वाले, अ तशय य क ा, य म ऋ वज ारा तु य एवं दे व म सव े अ न य क ा ारा था पत कए गए ह. (१) अ ने कदा त आनुष भुव े व य चेतनम्. अधा ह वा जगृ रे मतासो व वी म्.. (२) हे ोतमान एवं मानव हण करते ह. (२)
ारा पू य अ न! तु हारा तेज कब ग तशील होगा? मनु य तु ह
ऋतावानं वचेतसं प य तो ा मव तृ भः. व ेषाम वराणां ह कतारं दमेदमे.. (३) मायार हत, व श - ान वाले, तार से भरे ए आकाश के समान चनगा रय से यु एवं सम त य क वृ करने वाले अ न को दे खते ए ऋ वज ने उ ह येक य शाला म हण कया. (३) आशुं तं वव वतो व ा य षणीर भ. आ ज ुः केतुमायवो भृगवाणं वशे वशे.. (४) मनु य सम त जा को परा जत करने वाले, ती ग त, यजमान के त, झंडे के समान ान कराने वाले एवं द तमान् अ न को सभी जा के क याण के लए लाते ह. (४) तम होतारमानुष च क वांसं न षे दरे. र वं पावकशो चषं य ज ं स त धाम भः.. (५) ऋ वज् आ द मानव ने स , मशः दे व को बुलाने वाले, ानसंप , रमणीय, प व काश वाले, े य क ा एवं सात तेज से यु अ न को था पत कया था. (५) तं श तीषु मातृषु वन आ वीतम तम्. च ं स तं गुहा हतं सुवेदं कू चद थनम्.. (६) माता के समान जलसमूह म एवं वृ म वतमान, सुंदर, जलने के डर से ा णय ारा असे वत, व च , गुहा म छपे ए, शोभन धनयु एवं सभी जगह ह क अ भलाषा करने वाले अ न को ऋ वज ने था पत कया था. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सस य य युता स म ध ू ृत य धाम णय त दे वाः. महाँ अ ननमसा रातह ो वेर वराय सद म तावा.. (७) दे वगण ातःकाल न द याग कर जल के कारणभूत य म अ न को स करते ह. महान्, नम कारपूवक ह दए गए एवं स ययु अ न सदा ही यजमान के य को जान. (७) वेर वर य या न व ानुभे अ ता रोदसी स च क वान्. त ईयसे दव उराणो व रो दव आरोधना न.. (८) हे व ान् य के त, काय को जानने वाले, धरती और आकाश के म य भाग से भली-भां त प र चत, पुरातन, थोड़े ह को अ धक करने म समथ, अ तशय व ान् एव दे व के त अ न! तुम दे व को ह व दे ने के लए वग क सी ढ़य पर चढ़ते हो. (८) कृ णं त एम शतः पुरो भा र व१ चवपुषा मदे कम्. यद वीता दधते ह गभ स जातो भवसी तः.. (९) हे द तशाली अ न! तु हारा गमन माग काला है, तु हारे आगे-आगे चलता है एवं तु हारा ग तशील तेज पशा लय म सव म है. यजमान तु ह न पाकर तु हारी उ प म कारण का को रखते ह. इसके बाद तुम शी उ प होकर यजमान के त बनते हो. (९) स ो जात य द शानमोजो यद य वातो अनुवा त शो चः. वृण त मामतसेषु ज ां थरा चद ा दयते व ज भैः.. (१०) अर णमंथन के प ात् उ प अ न का तेज ऋ वज को दखाई दे ता है. जब अ न क लपट को ल य करके हवा चलती है तो अ न अपनी वाला को वृ से मला दे ते ह एवं थर का को अपने तेज से जला दे ते ह. (१०) तृषु यद ा तृषुणा वव तृषुं तं कृणुते य ो अ नः. वात य मे ळ सचते नजूव ाशुं न वाजयते ह वे अवा.. (११) अ न अपनी लपट ारा लक ड़य को शी ही जला दे ते ह. महान् अ न वयं को तेज चलने वाला त बनाते ह एवं लक ड़य को वशेष प से जलाते ए वायु क श से सहायता लेते ह. जस कार सवार घोड़े को श शाली बनाता है, उसी कार अ न अपनी करण को बलयु करते ह. (११)
सू -८ तं वो व वेदसं ह वाहमम यम्. य ज मृ
दे वता—अ न से गरा.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम तु त ारा सम त धन के वामी, दे व को ह व प ंचाने वाले, मरणर हत, अ तशय य पा एवं दे व त अ न को बढ़ाते ह. (१) स ह वेदा वसु ध त महाँ आरोधनं दवः. स दे वाँ एह व त.. (२) वे महान् अ न यजमान के धन का दान ह एवं वग क सी ढ़य को जानते ह. वे दे व को इस य म लाव. (२) स वेद दे व आनमं दे वाँ ऋतायते दमे. दा त
या ण च सु.. (३)
वे तेजयु अ न यजमान से मशः दे व के य शाला म यजमान को य धन दे ते ह. (३) स होता से
त नम कार कराना जानते ह एवं
यं च क वाँ अ तरीयते. व ाँ आरोधनं दवः.. (४)
दे व का आ ान करने वाले अ न तकम एवं वग क सी ढ़य को जानकर धरतीआकाश के म य म चलते ह. (४) ते याम ये अ नये ददाशुह दा त भः. य पु य त इ धते.. (५) जो यजमान अ न को ह दे कर स व लत करते ह, हम उ ह के समान बन. (५)
करते ह, बढ़ाते ह एवं स मधा
ारा
ते राया ते सुवीयः ससवांसो व शृ वरे. ये अ ना द धरे वः.. (६) जो यजमान अ न क सेवा करते ह, वे अ न क सेवा से धन पाकर एवं पौ ा द ारा स बनते ह. (६)
स
पु -
अ मे रायो दवे दवे सं चर तु पु पृहः. अ मे वाजास ईरताम्.. (७) ऋ वज् आ द ारा चाहा गया धन य क ेरणा दे . (७) स व
षणीनां शवसा मानुषाणाम्. अ त
मेधावी अ न अपनी श करते ह. (८)
सू -९
त दन हम यजमान के समीप आवे एवं अ हम
ारा मानव जा
ेव व य त.. (८) के न करने यो य पाप सवथा न
दे वता—अ न
अ ने मृळ महाँ अ स य ईमा दे वयुं जनम्. इयेथ ब हरासदम्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे महान् अ न! हम लोग को सुखी करो एवं दे व क अ भलाषा करने वाले यजमान के पास कुश पर बैठने के लए आओ. (१) स मानुषीषु ळभो व ु ावीरम यः. तो व ेषां भुवत्.. (२) रा स आ द ारा अ ह सत, मानव मरणर हत अ न सब दे व के त बन. (२)
जा
म भली
कार गमन करने वाले एवं
स सद्म प र णीयते होता म ो द व षु. उत पोता न षीद त.. (३) ऋ वज ारा य शाला म लाए गए अ न य पोता बनकर बैठते ह. (३) उत ना अ नर वर उतो गृहप तदमे. उत
ा न षीद त.. (४)
वे अ न य म दे वप नी, अ वयु, गृहप त अथवा वे ष
ा बनकर बैठते ह. (४)
वरीयतामुपव ा जनानाम्. ह ा च मानुषाणाम्.. (५)
हे अ न! तुम य करने के इ छु क लोग का ह हो. (५) वेषी
म शंसनीय होता बनते ह अथवा
य
चाहते हो एवं य कम के उपव ा
यं१ य य जुजोषो अ वरम्. ह ं मत य वो हवे.. (६)
हे अ न! तुम जस यजमान के य म ह वहन करने का काम वीकार कर लेते हो, उसका तकम करने क भी अ भलाषा करते हो. (६) अ माकं जो य वरम माकं य म रः. अ माकं शृणुधी हवम्.. (७) हे अं गरा अ न! तुम हमारे य क सेवा करो, हमारे ह व को वीकार करो तथा हमारे तो को सुनो. (७) प र ते ळभो रथोऽ माँ अ ोतु व तः. येन र स दाशुषः.. (८) हे अ न! तुम जस रथ क सहायता से सभी दशा म जाकर ह क र ा करते हो, तु हारा वही लभ रथ मेरे चार ओर रहे. (८)
दे वता—अ न
सू -१० अ ने तम ा ं न तोमैः
दे ने वाले यजमान
तुं न भ ं
द पृशम्. ऋ यामा त ओहैः.. (१)
हे अ न! हम ऋ वज् इं आ द दे व को ा त करने वाली तु तय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा अ
के
समान ढोने वाले, य क ा के समान उपकारक, भ एवं अधा
ने
तोभ य द
य तुमको बढ़ाते ह. (१)
य साधोः. रथीऋत य बृहतो बभूथ.. (२)
हे अ न! तुम इसी समय हमारे भ , बढ़े ए, मनचाहे फल दे ने वाले, स य एवं महान् य के नेता हो. (२) ए भन अकभवा नो अवाङ् व१ण यो तः. अ ने व े भः सुमना अनीकैः.. (३) हे सूय के समान तेज वी तथा सम त तेजयु इन पूजनीय तो ारा हमारे सामने आओ. (३) आ भ े अ गी भगृण तोऽ ने दाशेम. शु
व शोभन गमन वाले अ न! तुम हमारे
ते दवो न तनय त शु माः.. (४)
हे अ न! हम आज इन तु तय ारा तु हारी शंसा करते ए तु ह ह व दगे. तु हारी करने वाली वालाएं सूय क करण के समान श द करती ह. (४) तव वा द ा ने सं
हे अ न! तु हारा शोभा पाता है. (५)
रदा चद इदा चद ोः.
ये
मो न रोचत उपाके.. (५)
यतम काश रात- दन अलंकार के समान पदाथ के समीप आकर
घृतं न पूतं तनूररेपाः शु च हर यम्. त े
मो न रोचत वधावः.. (६)
हे अ के वामी अ न! तु हारा शरीर शु घृत के समान पापर हत है. तु हारा शु एवं रमणीय तेज अलंकार के समान चमकता है. (६) कृतं च
मा सने म े षोऽ न इनो ष मतात्. इ था यजमाना तावः.. (७)
हे स ययु अ न! यजमान के पाप को न करते हो. (७)
ारा उ प होने पर भी चरंतन तुम न य ही यजमान
शवा नः स या स तु ा ा ने दे वेषु यु मे. सा नो ना भः सदने स म ूधन्.. (८) हे ोतमान अ न! तु हारे त हमारी म ता एवं बंधु व भाव क याणकारी हो. यह भावना दे व थान एवं सम त य म हमारा आधार हो. (८)
सू -११
दे वता—अ न
भ ं ते अ ने सह स नीकमुपाक आ रोचते सूय य. शद् शे द शे न या चद तं श आ पे अ म्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे श शाली अ न! तु हारा य तेज दन के समय चार ओर का शत होता है. तु हारा काशयु एवं दशनीय तेज रात म भी दखाई दे ता है. हे पवान् अ न! ऋ वज् आ द तुम म चकना एवं सुंदर अ डालते ह. (१) व षा ने गृणते मनीषां खं वेपसा तु वजात तवानः. व े भय ावनः शु दे वै त ो रा व सुमहो भू र म म.. (२) हे अनेक बार ज म लेने वाले एवं ऋ वज ारा तुत अ न! य कम के ारा तु त करने वाले यजमान के लए तुम पु यलोक के ार खोलो. हे द यमान एवं शोभन तेज वाले अ न! दे व के साथ मलकर तुम यजमान को जो धन दे ते हो, वही अ धक एवं उ म धन हम दो. (२) वद ने का ा व मनीषा व था जाय ते रा या न. वदे त वणं वीरपेशा इ था धये दाशुषे म याय.. (३) हे अ न! ह वहन और दे व को बुलाने का काम, तु त पी वचन एवं पूजा करने यो य उ थ तुम ही से उ प होते ह. स यकम वाले एवं ह दान करने वाले यजमान के लए व ांत प एवं धन तुमसे ही नकलता है. (३) व ाजी वाज भरो वहाया अ भ कृ जायते स यशु मः. व यदवजूतो मयोभु वदाशुजूजुवाँ अ ने अवा.. (४) हे अ न! तुमसे बलवान्, ह अ वहन करने वाला, महान् य क ा एवं स ची श से यु पु उ प होता है. दे व ारा े रत एवं सुख दे ने वाला धन एवं शी गामी तथा वेगशाली अ भी तु ह से उ प होता है. (४) वाम ने थमं दे वय तो दे वं मता अमृत म ज म्. े षोयुतमा ववास त धी भदमूनसं गृहप तममूरम्.. (५) हे मरणर हत दे व म थम, काशयु , दे व को स करने वाली ज ा वाले, पाप र करने वाले, रा सदमनकारी मन से यु , गृहप त एवं ग भ अ न! दे व क कामना करने वाले यजमान तु तय ारा तु हारी भली कार सेवा करते ह. (५) आरे अ मदम तमारे अंह आरे व ां म त य पा स. दोषा शवः सहसः सूनो अ ने यं दे व आ च सचसे व त.. (६) हे बलपु , रा म क याणकारी एवं ोतमान अ न! तुम क याण करने के लए हमारी सेवा करते हो. तुम अम त, पाप और म त को हमारे पास से र करो. (६)
सू —१२
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य वाम न इ धते यत ु ते अ ं कृणव स म हन्. स सु ु नैर य तु स व वा जातवेद क वान्.. (१) हे अ न! जो यजमान ुच उठाकर तु ह व लत करता है एवं दन म तीन बार तु ह ह अ दे ता है, हे जातवेद! वह तु ह संतु करने वाले धन आ द से बढ़ते ए तु हारे तेज को जानता आ धन ारा श ु को पूरी तरह हरावे. (१) इ मं य ते जभर छ माणो महो अ ने अनीकमा सपयन्. स इधानः त दोषामुषासं पु य य सचते न म ान्.. (२) हे महान् अ न! जो तु हारे लए धन लाता है तथा लकड़ी ढोने से थककर महान् तेज क सेवा करता आ रात और दन के समय तु ह व लत करता है, वह संतान एवं पशु से पु होकर श ु का नाश करता आ धन ा त करता है. (२) अ नरीशे बृहतः य या नवाज य परम य रायः. दधा त र नं वधते य व ो ानुषङ् म याय वधावान्.. (३) अ न महान् बल, उ कृ अ एवं पशु आ द धन के वामी ह. अ तशय युवा एवं अ यु अ न अपनी सेवा करने वाले यजमान को रमणीय धन दे ते ह. (३) य च ते पु ष ा य व ा च भ कृमा क चदागः. कृधी व१ माँ अ दतेरनागा ेनां स श थो व वग ने.. (४) हे अ तशय युवा अ न! य प हम अ ान के कारण तु हारी सेवा करने वाल के त कुछ पाप करते ह, फर भी तुम हम धरती पर पापर हत बनाओ. चार ओर फैले ए हमारे पाप को ढ ला करो. (४) मह द न एनसो अभीक ऊवा े वानामुत म यानाम्. मा ते सखायः सद म षाम य छा तोकाय तनयाय शं योः.. (५) हे अ न! तु हारे सखा प हमने दे व अथवा मनु य के त जो महान् एवं व तृत पाप कया है, उससे हम कभी पी ड़त न ह . तुम हमारे पु और पौ के लए शां त एवं सुख दो. (५) यथा ह य सवो गौय च प द षताममु चता यज ाः. एवो व१ म मु चता ंहः ताय ने तरं न आयुः.. (६) हे पूजा के यो य एवं नवास दे ने वाले अ न! जस कार तुमने बंधे ए पैर वाली गौरी नामक गाय को छु ड़ाया था, उसी कार हम पाप से छु ड़ा लो. हे अ न! अपने ारा बढ़ाई ई हमारी आयु को और अ धक बढ़ाओ. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१३
दे वता—अ न
य न षसाम म य भातीनां सुमना र नधेयम्. यातम ना सुकृतो रोणमु सूय यो तषा दे व ए त.. (१) शोभन मन वाले अ न अंधकार- वना शनी उषा का मनोहर काश फैलने के समय से पहले ही बढ़ने लगते ह. हे अ नीकुमारो! तुम यजमान के घर जाओ. सूय दे व काश के साथ आ रहे ह. (१) ऊ व भानुं स वता दे वो अ ेद ् सं द व वद्ग वषो न स वा. अनु तं व णो य त म ो य सूय द ारोहय त.. (२) स वता दे व ऊपर जाने वाली करण का सहारा लेते ह. करण जब सूय को आकाश पर चढ़ाती ह, तब व ण, म एवं अ य दे व अपने कम इस कार ारंभ करते ह, जैसे धूल उड़ाता आ बैल गाय के पीछे चलता है. (२) यं सीमकृ व तमसे वपृचे ुव म े ा अनव य तो अथम्. तं सूय ह रतः स त य ः पशं व य जगतो वह त.. (३) सृ करने वाले दे व ने संसार का काय न याग कर अंधकार को सभी कार से र करने के न म जस सूय को बनाया, ह र नामक सात महान् घोड़े सम त ा णय को जानने वाले उस सूय को ढोते ह. (३) व ह े भ वहर या स त तुमव य सतं दे व व म. द व वतो र मयः सूय य चमवावाधु तमो अ व१ तः.. (४) हे सूय दे व! तुम व का नवाह करने वाला रस हण करने के लए अपनी करण फैलाते ए एवं काले रंग क रात को न करते ए अपने अ यंत वेगवान् घोड़ के सहारे चलते हो. सूय क कांपती ई करण आकाश के म य चमड़े के समान फैले ए अंधकार को न करती ह. (४) अनायतो अ नब ः कथायं यङ् ङु ानोऽव प ते न. कया या त वधया को ददश दवः क भः समृतः पा त नाकम्.. (५) पास म रहने वाले, बंधनर हत एवं अधोमुख सूय को कोई बाधा नह प ंचा सकता. ऊ वमुख सूय कस श से चलते ह? आकाश म खंभे के समान सूय वग का पालन करते ह, इसे कसने दे खा है? (५)
सू —१४
दे वता—अ न आ द
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य न षसो जातवेदा अ य े वो रोचमाना महो भः. आ नास यो गाया रथेनेमं य मुप नो यातम छ.. (१) जातवेद अ न दे व तेज से द त उषा को ल य करके बढ़ते ह. हे परम ग तशाली अ नीकुमारो! तुम रथ ारा हमारे य के सामने आओ. (१) ऊ व केतुं स वता दे वो अ े यो त व मै भुवनाय कृ वन्. आ ा ावापृ थवी अ त र ं व सूय र म भ े कतानः.. (२) सारे संसार के लए काश दे ते ए स वता दे व ऊ वमुखी करण का सहारा लेते ह. सूय ने सबको वशेष प से दे खते ए करण से धरती, आकाश और अंत र को ा त कया है. (२) आवह य णी य तषागा मही च ा र म भ े कताना. बोधय ती सु वताय दे ु१षा ईयते सुयुजा रथेन.. (३) धन को धारण करने वाली, लाल रंग यु , तेजधा रणी, महान्, करण के कारण रंगबरंगी एवं जानने वाली उषा आई थ . उषादे वी सोए ए ा णय को जगाती ई भली कार जोते गए रथ ारा सुख पाने के लए आती ह. (३) आ वां व ह ा इह ते वह तु रथा अ ास उषसो ु ौ. इमे ह वां मधुपेयाय सोमा अ म य े वृषणा मादयेथाम्.. (४) हे अ नीकुमारो! उषाकाल होने पर अ धक बोझा ढोने वाले एवं ग तशील घोड़े तु ह इस य म सब ओर से लाव. हे कामव षयो! यह सोमरस तु हारे पीने के लए है. य म सोमपान से स बनो. (४) अनायतो अ नब ः कथायं यङ् ङु ानोऽव प ते न. कया या त वधया को ददश दवः क भः समृतः पा त नाकम्.. (५) पास म रहने वाले, बंधनर हत एवं ऊ वमुख-सूय को कोई बाधा नह प ंचा सकता. ऊ वमुख-सूय कस श से चलते ह? आकाश के खंभे के समान सूय वग का पालन करते ह, इसे कसने दे खा है? (५)
सू —१५
दे वता—अ न, सोम आ द
अ नह ता नो अ वरे वाजी स प र णीयते. दे वो दे वेषु य यः.. (१) दे व को बुलाने वाले, इं ा द दे व के म य तेज वी एवं य के यो य अ न शी गामी अ के समान हमारे य म चार ओर से लाए जाते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पर
व
वरं या य नी रथी रव. आ दे वेषु यो दधत्.. (२)
यजमान ारा इं ा द दे व को दया गया ह धारण करते ए अ न दन म तीन बार रथ म बैठे पु ष के समान चार ओर से य म जाते ह. (२) प र वाजप तः क वर नह ा य मीत्. दध ना न दाशुषे.. (३) अ का पालन करने वाले एवं मेधावी अ न ह धन दे ते ए ह को चार ओर से घेरते ह. (३) अयं यः सृ
दे ने वाले यजमान के लए रमणीय
ये पुरो दै ववाते स म यते. ुमाँ अ म द भनः.. (४)
जो अ न दे व वात के पु सृजव के लए पूव दशा म अ न द त धारण करते ह. (४) अ य घा वीर ईवतोऽ नेरीशीत म यः. त मज भ य मी
व लत होते ह, वे श ुनाशक षः.. (५)
तु त करने म कुशल मनु य तीखे तेज वाले, अ भल षत फल दे ने वाले एवं ग तशीलअ न को वश म कर ल. (५) तमव तं न सान सम षं न दवः शशुम्. ममृ य ते दवे दवे.. (६) यजमान घोड़े के समान ह अ न क त दन सेवा कर. (६) बोध
ढोने म समथ व आकाश के पु सूय के समान तेज वी
मा ह र यां कुमारः साहदे ः. अ छा न त उदरम्.. (७)
राजा सहदे व के पु कुमार ने जब हमसे दोन घोड़ को दे ने क बात कही थी, तब हम उ ह ले आए थे. (७) उत या यजता हरी कुमारा साहदे ात्. यता स आ ददे .. (८) (८)
सहदे व के पु कुमार से हमने पूजनीय एवं ग तशील घोड़ को उसी दन ले लया था. एष वां दे वाव ना कुमारः साहदे ः द घायुर तु सोमकः.. (९)
हे तेज वी अ नीकुमारो! तु ह तृ त करने वाला सहदे व का पु कुमार सोमक राजा अ धक अव था वाला हो. (९) तं युवं दे वाव ना कुमारं साहदे म्. द घायुषं कृणोतन.. (१०) हे तेज वी अ नीकुमारो! तुम सहदे व के पु कुमार को द घ आयु वाला बनाओ. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१६
दे वता—इं
आ स यो यातु मघवाँ ऋजीषी व व य हरय उप नः. त मा इद धः सुषुमा सु महा भ प वं करते गृणानः.. (१) सोम एवं स य को धारण करने वाले इं हमारे पास आव. उनके घोड़े हमारी ओर दौड़. हम यजमान उन इं के लए इस य म सारयु सोम नचोड़ रहे ह. हमारे ारा तुत इं हमारी इ छा पूरी कर. (१) अव य शूरा वनो ना तेऽ म ो अ सवने म द यै. शंसा यु थमुशनेव वेधा कतुषे असुयाय म म.. (२) हे शूर इं ! जैसे माग समा त होने पर लोग घोड़े को छोड़ दे ते ह, उसी कार मा यं दन सवन के समय तुम हम छु टकारा दे दो, जससे हम तु ह स कर सक. हे सव एवं असुर वनाशक इं ! हम यजमान उशना के समान तु हारे त सुंदर तु त बोलते ह. (२) क वन न यं वदथा न साध वृषा य सेकं व पपानो अचात्. दव इ था जीजन स त का न ा च च ु वयुना गृण तः.. (३) क व के समान गूढ़ काय का साधन करते ए कामवष इं जब सोमरस को अ धक मा ा म पीकर उसके त आदर कट करते ह, तब वग से सात करण वा तव म उ प करते ह. तु त क जाती ई सूय करण दन म भी मनु य को ान कराती ह. (३) व१ य े द सु शीकमकम ह योती चुय व तोः. अ धा तमां स धता वच े नृ य कार नृतमो अ भ ौ.. (४) जब महान् एवं तेज प वग करण से भली कार दखाई दे ने लगता है, तब दे वगण उस वग म रहने के लए द तयु होते ह. उ म नेता सूय ने आकर मनु य के ठ क से दे खने के लए घने अंधकार को न कर दया है. (४) वव इ ो अ मतमृजी यु१ भे आ प ौ रोदसी म ह वा. अत द य म हमा व रे य भ यो व ा भुवना बभूव.. (५) सोम वाले इं असी मत म हमा धारण करते ह एवं अपनी म हमा से धरती-आकाश को भर दे ते ह. इं ने सारे संसार को परा जत कर दया है, इस लए इनक म हमा सबसे अ धक है. (५) व ा न श ो नया ण व ानपो ररेच स ख भ नकामैः. अ मानं च े ब भ वचो भ जं गोम तमु शजो व व ुः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सम त मानव- हतकारी काय को जानते ए इं ने अ भलाषापूण एवं म प म त क सहायता से जल बरसाया था. जन म त ने अपने श द से पवत को भेद दया था, उ ह ने इं को स करने के लए गोशाला को ढक दया था. (६) अपो वृ ं व वांसं पराह ाव े व ं पृ थवी सचेताः. ाणा स समु या यैनोः प तभव छवसा शूर धृ णो.. (७) हे इं ! अ धक मा ा म लोक का पालन करने वाले तु हारे व ने जल को रोकने वाले मेघ को ेरणा द थी एवं चेतना वाली धरती तुमसे मली थी. हे शूर एवं पराभवकारी इं ! तुम बल के कारण लोकपालक बनकर सागर एवं आकाश के जल को ेरणा दो. (७) अपो यद पु त ददरा वभुव सरमा पू ते. स नो नेता वाजमा द ष भू र गो ा ज रो भगृणानः.. (८) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! जब तुमने वषा के जल के उ े य से मेघ को वद ण कया था, उससे पहले ही सरमा ने तु ह प णय ारा चुराई गई गाएं बता द थ . अं गरागो ीय ऋ षय ारा तुत होकर मेघ को वद ण करते ए तुमने हमको ब त सा अ दया एवं हमारा आदर कया. (८) अ छा क व नृमणो गा अ भ ौ वषाता मघव ाधमानम्. ऊ त भ त मषणो ु न तौ न मायावान ा द युरत.. (९) हे धन के वामी एवं मनु य ारा मा य इं ! तुम कु स ऋ ष के समीप धन दे ने क अ भलाषा से गए. कु स ने तुमसे ाथना क क उसके श ु से यु करो. तुमने उसे श ु के आ मण से बचाया एवं कपट तथा वेदो कम से हीन जानकर तुमने कु स के श ु को यु म मारा. (९) आ द यु ना मनसा या तं भुव े कु सः स ये नकामः. वे योनौ न षदतं स पा व वां च क स त च नारी.. (१०) हे इं ! श ु को न करने क भावना से तुम कु स के घर गए. कु स ने तु हारी म ता पाने क अ तशय अ भलाषा क . इसके बाद तुम दोन इं -भवन म बैठे. स यद शनी तु हारी प नी शची तुम दोन का समान प दे खकर संशय म पड़ गई. (१०) या स कु सेन सरथमव यु तोदो वात य हय रीशानः. ऋ ा वाजं न ग यं युयूष क वयदह पायाय भूषात्.. (११) हे इं ! बु मान् कु स हण करने यो य अ के समान सरलग त घोड़ को अपने रथ म जोड़कर जस दन आप य से पार आ, हे श ुनाशक एवं वायु स श वेगशाली अ के वामी इं ! उस दन तुम कु स क र ा क इ छा करते ए उसके साथ एक रथ म गए थे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(११) कु साय शु णमशुषं न बह ः प ये अ ः कुयवं सह ा. स ो द यू मृण कु येन सूर ं वृहतादभीके.. (१२) हे इं ! तुमने कु स के न म ःखदाता शु ण असुर को मारा. दवस के पूव भाग म तुमने कुयव असुर को मारने के साथ ही हजार रा स का अपने व से नाश कया एवं सं ाम म सूय का च नामक आयुध तोड़ डाला. (१२) वं प ुं मृगयं शूशुवांसमृ ज ने वैद थनाय र धीः. प चाश कृ णा न वपः सह ा कं न पुरो ज रमा व ददः.. (१३) हे इं ! तुमने प ु एवं उ त ा त मृगय असुर को मारा था. वद थ के पु ऋ ज ा को तुमने कैद कया एवं काले रंग वाले पचास हजार रा स को मारा. बुढ़ापा जस कार स दय को न करता है, उसी कार तुमने शंबर रा स के नगर को वद ण कया. (१३) सूर उपाके त वं१ दधानो व य े चे यमृत य वपः. मृगो न ह ती त वषीमुषाणः सहो न भीम आयुधा न ब त्.. (१४) हे मरणर हत इं ! जब तुम सूय के समीप शरीर धारण करते हो, तब तु हारा प सुशो भत होता है. तुम हाथी के समान श ु क सेना जलाते ए आयुध धारण करते हो एवं शेर के समान भयंकर हो. (१४) इ ं कामा वसूय तो अ म वम हे न सवने चकानाः. व यवः शशमानास उ थैरोको न र वा सु शीव पु ः.. (१५) इं क कामना एवं धन क अ भलाषा करने वाले, यु के समान य म इं से याचना करने वाले, अ के इ छु क एवं तो ारा इं क तु त करते ए यजमान इं के समीप जाते ह. उस समय इं नवास थान के समान सुंदर एवं ल मी के समान रमणीय होते ह. (१५) त म इ ं सुहवं वेम य ता चकार नया पु ण. यो मावते ज र े ग यं च म ू वाजं भर त पाहराधाः.. (१६) हे यजमानो! तुम हमारे क याण के न म मानव हतकारी स कम करने वाले, चाहने यो य धन के वामी एवं मेरे समान तोता को शी सं ह यो य अ दे ने वाले इं का सुंदर आ ान करते हो. (१६) त मा यद तरश नः पता त क म च छू र मु के जनानाम्. घोरा यदय समृ तभवा यध मा न त वो बो ध गोपाः.. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे शूर इं ! मनु य के कसी यु म य द हमारे म य तेज व गरे अथवा हे वामी! हमारा श ु के साथ भयानक यु हो रहा हो, उस समय तुम हमारे शरीर के र क बनना. (१७) भुवोऽ वता वामदे व य धीनां भुवः सखावृको वाजसातौ. वामनु म तमा जग मो शंसो ज र े व ध याः.. (१८) हे इं ! वामदे व के य के र क बनो. हे हसार हत! यु म मेरे म बनो. हे बु हम तु हारी ओर आते ह. तुम तु तक ा क सदा शंसा करो. (१८)
मान्!
ए भनृ भ र वायु भ ् वा मघव मघव व आजौ. ावो न ु नैर भ स तो अयः पो मदे म शरद पूव ः.. (१९) हे धन के वामी इं ! हम सभी यु म धन से पूण हो. ुलोक के समान ओज से यु अपने सहायक म त के साथ मलकर आप श ु को हराव. हम कई साल तक रा दवस आपको मु दत करते रह. (१९) एवे द ाय वृषभाय वृ णे ाकम भृगवो न रथम्. नू च था नः स या वयोषदस उ ोऽ वता तनूपाः.. (२०) बढ़ई जस कार रथ बनाते ह, उसी कार हम कामवष एवं न य त ण इं के लए तो क रचना करते ह. हम ऐसा आचरण करगे, जससे इं के साथ हम लोग क मै ी बनी रहे व तेज वी तथा शरीरपालक इं हम लोग के र क ह . (२०) नू ु त इ नू गृणान इषं ज र े न ो३ न पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (२१) हे इं ! जस कार जल नद को पूण कर दे ता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय तथा हमारी तु तय को वीकार करके हमारी अ वृ करो. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमने तु हारे लए नई तु तयां क ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (२१)
सू —१७
दे वता—इं
वं महाँ इ तु यं ह ा अनु ं मंहना म यत ौः. वं वृ ं शवसा जघ वा सृजः स धूँर हना ज सानान्.. (१) हे महान् इं ! व तृत धरती और आकाश ने तु हारे बल को वीकार कया था. तुमने अपने बल से वृ को मारा एवं उसके ारा सत न दय को वतं कया. (१) तव वसो ज नम ेजत ौ रेज म भयसा व य म योः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋघाय त सु व१: पवतास आद ध वा न सरय त आपः.. (२) हे द तशाली इं ! तु हारे ज म के समय भय से धरती-आकाश कांप उठे थे, महान् मेघ ने तु हारे अधीन होकर ा णय क यास मटाई थी एवं जलहीन म दे श म जल बहाया था. (२) भनद् ग र शवसा व म ण ा व कृ वानः सहसान ओजः. वधीद्वृ ं व ेण म दसानः सर ापो जवसा हतवृ णीः.. (३) श ु को हराने वाले इं ने अपना तेज का शत करते ए व चलाकर श ारा पवत का भेदन कया. इं ने सोमपान से स होकर व ारा वृ रा स का वध कया. वृ के वध के बाद जल वेग से बहने लगा. (३) सुवीर ते ज नता म यत ौ र य कता वप तमो भूत्. य जजान वय सुव मनप युतं सदसो न भूम.. (४) हे तु त यो य, उ म व से यु , वग से युत न होने वाले एवं मह वशाली इं ! तु ह ज म दे ने वाले जाप त ने वयं उ म पु वाला माना. इं को ज म दे ने वाले जाप त का यह कम अ यंत उ म आ. (४) य एक इ यावय त भूमा राजा कृ ीनां पु त इ ः. स यमेनमनु व े मद त रा त दे व य गृणतो मघोनः.. (५) सम त जा के राजा, अनेक लोग ारा बुलाए गए एवं दे व म मुख इं श ु का भय न करते ह. सभी यजमान धन के वामी एवं तु त करने वाले बंधु सहसा इं दे व को ल य करके तु त करते ह. (५) स ा सोमा अभव य व े स ा मदासो बृहतो म द ाः. स ाभवो वसुप तवसूनां द े व ा अ धथा इ कृ ीः.. (६) यह स य है क सभी सोम इं के ह. यह भी स य है क नशा करने वाले सोम महान् इं को ब त स करते ह. यह भी स य है क इं न केवल धन के अ पतु पशु आ द सम त संप य के वामी ह. हे इं ! तुम धन के लए सम त जा को धारण करते हो. (६) वमध थमं जायमानोऽमे व ा अ धथा इ कृ ीः. वं त वत आशयानम ह व ण े मघव व वृ ः.. (७) हे इं ! तुमने पूवकाल म उ प होकर वृ के भय से सभी जा क र ा क थी. तुमने थल को जलपूण करने के उ े य से जल नरोधक वृ को व से काट दया था. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स ाहणं दाधृ ष तु म ं महामपारं वृषां सुव म्. ह ता यो वृ ं स नतोत वाजं दाता मघा न मघवा सुराधाः.. (८) हम तु तक ा ब त से श ु के हंता, धषक, रे क, महान्, वनाशर हत, कामवष एवं शोभन व धारण करने वाले इं क तु त करते ह. वे वृ असुर को मारने वाले, अ दे ने वाले, शोभन धनयु एवं धनदानक ा ह. (८) अयं वृत ातयते समीचीय आ जषु मघवा शृ व एकः. अयं वाजं भर त यं सनो य य यासः स ये याम.. (९) धन के वामी इं सं ाम म अ तीय सुने जाते ह. वे एक श ु सेना को न कर दे ते ह एवं यजमान को दे ने यो य अ को धारण करते ह. हम इं के म बनकर य ह . (९) अयं शृ वे अध जय ुत न यमुत यदा स यं कृणुते म यु म ो व ं
कृणुते युधा गाः. हं भयत एजद मात्.. (१०)
यह सुना जाता है क इं श ु के वजेता एवं वनाशक ह. यह यु के ारा श ु को मारते ए गाएं छ न लेते ह. इं जब वा तव म ोध धारण करते ह, तब सम त थावर एवं जंगम डर जाता है. (१०) स म ो गा अजय सं हर या सम या मघवा यो ह पूव ः. ए भनृ भनृतमो अ य शाकै रायो वभ ा स भर व वः.. (११) धन वामी इं ने असुर को जीता. उनके रमणीय धन, अ समूह एवं सेना क जीता. इं अपनी श य ारा सभी मनु य म े , तोता क तु त सुनकर धन को बांटने वाले एवं धन धारणक ा ह. (११) कय व द ो अ ये त मातुः कय पतुज नतुय जजान. यो अ य शु मं मु कै रय त वातो न जूतः तनय र ैः.. (१२) इं अपने माता एवं पता के पास से कतना अ धक बल ा त करते ह? इं ने अपने पता जाप त के पास से इस संसार को उ प कया है एवं उनके पास से बार-बार संसार का बल ा त करते ह. तोता ह व दे ने के लए इं को इस कार बुलाते ह, जैसे हवा बादल को े रत करती है. (१२) य तं वम य तं कृणोतीय त रेणुं मघवा समोहम्. वभ नुरश नमाँ इव ौ त तोतारं मघवा वसौ धात्.. (१३) हे धन वामी इं ! तुम नधन को धनवान् बनाते हो. व धारी, आकाश के समान व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श ुनाशक ा इं सम त पाप का नाश करते एवं अपने तु तक ा को धन दे ते ह. (१३) अयं च मषण सूय य येतशं रीरम ससृमाणम्. आ कृ ण जु राणो जघ त वचो बु ने रजसो अ य योनौ.. (१४) इं ने सूय के च नामक आयुध को रोका एवं तु त करने वाले एतश ऋ ष क र ा क . काले रंग व टे ढ़ चाल वाले बादल ने तेज के मूल एवं जल के उ प थान आकाश म वराजमान इं को भगोया. (१४) अ स यां यजमानो न होता.. (१५) जस कार यजमान रात म भी इं को ह ऐ य दान करता है. (१५)
दे ता है, उसी कार इं भी उसे धन एवं
ग त इ ं स याय व ा अ ाय तो वृषणं वाजय तः. जनीय तो ज नदाम तो तमा यावयामोऽवते न कोशम्.. (१६) हम मेधासंप तोतागण गाय , घोड़ , अ एवं ी क अ भलाषा करते ह. कुएं से पानी नकालने के लए लोग जस कार पा को नीचा करते ह, उसी कार हम कामवष , प नी दे ने वाले एवं अ मट र ा करने वाले क म ता पाने के लए झुकते ह. (१६) ाता नो बो ध द शान आ पर भ याता म डता सो यानाम्. सखा पता पतृतमः पतॄणां कतमु लोकमुशते वयोधाः.. (१७) हे व ास यो य, र क, सवदश , उपदे शक ा एवं सोमयाजी लोग को सुख दे ने वाले इं ! तुम म , पता, बाबा, पतर को बनाने वाले एवं वग क अ भलाषा करने वाले यजमान को अ दे ते हो. (१७) सखीयताम वता बो ध सखा गृणान इ तुवते वयो धाः. वयं ा ते चकृमा सबाध आ भः शमी भमहय त इ .. (१८) हे इं ! हम तु हारी म ता के इ छु क ह. हमारी र ा करो. हमारी तु त सुनकर तुम हमारे म बनो तथा तोता को अ दो. हे इं ! हम बाधा उप थत होने पर भी तु हारी तु त करते ह एवं तु हारी पूजा करते ह. (१८) तुत इ ो मघवा य वृ ा भूरी येको अ ती न ह त. अ य यो ज रता य य शम कदवा वारय ते न मताः.. (१९) यु म हमारी तु त सुनकर इं अकेले ही ब त से श ु को मार डालते ह. इं तु तक ा को ेम करते ह. तु तक ा के क याण को कोई भी दे व या मानव नह रोक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सकता. (१९) एवा न इ ो मघवा वर शी कर स या चषणीधृदनवा. वं राजा जनुषां धे मे अ ध वो मा हनं य ज र े.. (२०) हे धन के वामी, जा को धारण करने वाले, श ुर हत एवं भां त-भां त के श द से यु इं ! तुम हमारी तु त को स य करो. तुम सभी ज मधा रय के राजा हो. तुम तोता को जो यश दे ते हो, वह अ धक मा ा म हम दो. (२०) नू ु त इ नू गृणान इषं ज र े न ो३ न पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (२१) हे इं ! जस कार जल नद को पूण करता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय को तथा हमारी तु तय को वीकार करके हमारी अ वृ करो. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमने तु हारे न म नई तु तयां बनाई ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (२१)
सू —१८
दे वता—इं
अयं प था अनु व ः पुराणो यतो दे वा उदजाय त व े. अत दा ज नषी वृ ो मा मातरममुया प वे कः.. (१) इं बोले—“यो न से ज म लेने का माग परंपरागत एवं सनातन है. सम त दे व एवं मनु य उसी माग से नकले ह. गभ म वृ ा त करने वाले तुम भी इसी माग से ज म लो. सरा माग अपना कर माता क मृ यु का काम मत करो.” (१) नाहमतो नरया गहैत र ता पा ा गमा ण. ब न मे अकृता क वा न यु यै वेन सं वेन पृ छै .. (२) वामदे व ने कहा—“हम इस गम यो न-माग से ज म नह लगे. हम तरछे होकर बगल से नकलगे. हम ब त से बना कए ए काम करने ह— कसी के साथ यु एवं कसी के साथ वाद ववाद.” (२) परायत मातरम वच न नानु गा यनु नू गमा न. व ु गृहे अ पब सोम म ः शतध यं च वोः सुत य.. (३) इं बोले—“य द हम पुरातन यो न-माग से नह नकलगे तो हमारी माता मर जाएगी. इस कार हम शी बाहर नकलगे.” वामदे व कहने लगे—“इं ने व ा के घर म प थर ारा नचोड़े गए एवं सैकड़ र न ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के मू य वाले सोमरस को पया.” (३) क स ऋध कृणव ं सह ं मासो जभार शरद पूव ः. नही व य तमानम य तजातेषूत ये ज न वाः.. (४) “अ द त इं को सैकड़ मास और वष तक गभ म रखे रही. इं ने यह नयम के तकूल काय य कया?” इसे सुनकर अ द त ने उ र दया—“हे वामदे व! जो लोग उ प हो चुके ह अथवा भ व य म ह गे, उन म से कसी के भी साथ इं क समानता नह हो सकती.” (४) अव मव म यमाना गुहाक र ं माता वीयणा यृ म्. अथोद था वयम कं वसान आ रोदसी अपृणा जायमानः.. (५) अंधेरे सू तका घर म पैदा होने वाले इं को नदा के यो य समझकर माता अ द त ने परम श शाली बना दया. इं अपने तेज को धारण करके उठ खड़े ए और ज म लेते ही उ ह ने धरती-आकाश को घेर लया. (५) एता अष यललाभव तीऋतावरी रव सङ् ोशमानाः. एता व पृ छ क मदं भन त कमापो अ प र ध ज त.. (६) पानी से भरी ई न दयां इस कार गजन करती ई बह रही ह, जैसे इं क मह ा का घोष कर रही ह. उनसे पूछो क ये या कहती ह? इं ने जल को रोकने वाले मेघ को भेदा था. या वे न दयां उसी का वणन कर रही ह? (६) कमु वद मै न वदो भन ते याव ं द धष त आपः. ममैता पु ो महता वधेन वृ ं जघ वाँ असृज स धून्.. (७) इं को जो ह या का पाप लगा है, उस संबंध म व ान का या कहना है? यह पाप जल म फेन प से उप थत है. मेरे पु इं ने बलपूवक व चलाकर वृ को मारा. इसके बाद न दय को बहाया. (७) मम चन वा युव तः परास मम चन वा कुषवा जगार. मम चदापः शशवे ममृड्युमम च द ः सहसोद त त्.. (८) वामदे व कहने लगे—“हे इं ! मतवाली युवती माता अ द त ने तु ह ज म दया. इसी समय कुषवा नाम क रा सी ने मतवाली बनकर तु ह नगल लया. जल से म त होकर तु ह सुख प ंचाया. इं स होकर सू तकागृह म ही उस रा सी को मारने लगे.” (८) मम चन ते मघव ंसो न व व वाँ अप हनू जघान. अधा न व उ रो बभूवा छरो दास य सं पण वधेन.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धन के वामी इं ! ंस नामक रा स ने मतवाला बनकर तुम पर आ मण कया एवं तु हारी नाक और ठोड़ी पर चोट क . इसके बाद तुम अ धक श शाली बन गए एवं तुमने अपने व से उसका सर काट दया. (९) गृ ः ससूव थ वरं तवागामनाधृ यं वृषभं तु म म्. अरी हं व सं चरथाय माता वयं गातुं त व इ छमानम्.. (१०) एक बार याई ई गाय जस कार बछड़े को ज म दे ती है, उसी कार अ द त ने अपनी इ छा से कामवष एवं अजेय इं को ज म दया. वे अ धक अव था वाले, बलसंप , ेरणा करने वाले एवं चलने के लए शरीर के इ छु क ह. (१०) उत माता म हषम ववेनदमी वा जह त पु दे वाः. अथा वीद्वृ म ो ह न य सखे व णो वतरं व
म व.. (११)
माता अ द त अपने महान् पु इं से पूछने लगी—“हे पु ! ये दे वगण तु हारा याग कर रहे ह.” इसे सुनकर इं ने व णु से कहा—“हे म व णु! तुम परा म करके वृ को मारो.” (११) क ते मातरं वधवामच छयुं क वाम जघांस चर तम्. क ते दे वो अ ध माड क आसी ा णाः पतरं पादगृ .. (१२) हे इं ! तु हारी माता को वधवा कसने बनाया? तु हारे सोते समय तु ह कसने मारने क इ छा क थी? तु हारी अपे ा सुख दे ने वाला दे व कौन सा है? कसने तु हारे पता के पैर पकड़कर उनक ह या क ? (१२) अव या शुन आ ा ण पेचे न दे वेषु व वदे म डतारम्. अप यं जायाममहीयमानामधा मे येनो म वा जभार.. (१३) हमने खाने यो य व तु के न होने पर कु े क आंत को पकाया था. उस समय कोई दे व हमारी र ा करने वाला नह मला. हम अपनी प नी को अपमा नत होता दे खते रहे. हम केवल इं ने ही आनं दत कया. (१३)
सू —१९
दे वता—इं
एवा वा म व व े दे वासः सुहवास ऊमाः. महामुभे रोदसी वृ मृ वं नरेक मद्वृणते वृ ह ये.. (१) हे व धारी इं ! इस य म आए ए सम त दे वगण भली कार बुलाए गए एवं र ा करने म समथ ह. वे आकाश एवं पृ वी के साथ वृ नाश के लए तु ह ही बुलाते ह. तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु तपा , परम गुणशाली एवं सुंदर हो. (१) अवासृज त ज यो न दे वा भुवः स ा ळ स ययो नः. अह ह प रशयानमणः वतनीररदो व धेनाः.. (२) हे वक सत स य के समान एवं सारे संसार के राजा इं ! दे व ने तु ह उसी कार वृ वध के लए े रत कया, जस कार कोई वय क पता अपने पु को कसी काम के लए उ सा हत करता है. तुमने पानी को रोककर सोए ए वृ को मारा एवं सबको सुख दे ने वाली स रता को गहरा बनाया. (२) अतृ णुव तं वयतमबु यमबु यमानं सुषुपाण म . स त त वत आशयानम ह व ेण व रणा अपवन्.. (३) हे इं ! तुमने पूणमासी वाले दन अपने व क सहायता से तृ तर हत, श हीन, नबु , बुरे वचार वाले, सोए ए एवं शांत जल को रोकने वाले वृ का वध कया. (३) अ ोदय छवसा ाम बु नं वाण वात त वषी भ र ः. हा यौ ना शमान ओजोऽवा भन ककुभः पवतानाम्.. (४) जस तरह वायु श ारा जल को ु ध कर दे ता है, उसी कार श शाली इं अपनी श ारा आकाश को अपने तेज से पूण करके जल को छ - भ कर दे ते ह. श क इ छा करने वाले इं पवत के पंख काट डालते ह. (४) अ भ द जनयो न गभ रथाइव ययुः साकम यः. अतपयो वसृत उ ज ऊम वं वृताँ अ रणा इ स धून्.. (५) हे इं ! म द्गण एवं रथ वृ वध के समय तु हारे पास इस कार प ंचे थे, जस कार माता पु के पास जाती है. तुमने स रता को जलपूण कया, मेघ को वद ण कया एवं का आ जल वा हत कया. (५) वं महीमव न व धेनां तुव तये व याय र तीम्. अरमयो नमसैजदणः सुतरणाँ अकृणो र स धून्.. (६) हे इं ! तुमने वशाल, सबक अ भलाषा पूण करने वाली एवं तुव त और व य राजा को मनोवां छत फल दे ने वाली धरती को जल एवं अ से यु कर दया था. तुमने जल को ऐसा कर दया था क उसे सरलता से पार कया जा सके. (६) ा ुवो नभ वो३ व वा व ा अप व ुवत ऋत ाः. ध वा य ाँ अपृण ृ षाणाँ अधो ग ः तय ३ दं सुप नीः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं जस कार अपनी श ुनाशक सेना को पूण करते ह, उसी कार इ ह ने कनार को तोड़ने वाली, जल से भरी ई एवं अ पैदा करने म सहायक न दय को पूण कया था एवं यासे लोग क यास बुझाई थी, इं ने ऐसी गाय का ध काढ़ा, जन पर रा स ने अ धकार कर लया था तथा जो बछड़ा पैदा कर चुक थ . (७) पूव षसः शरद गूता वृ ं जघ वाँ असृज स धून्. प र ता अतृण धानाः सीरा इ ः वतवे पृ थ ा.. (८) इं ने वृ रा स को मारकर अंधकार ारा लपट ई अनेक उषा एवं संव सर को उसके बंधन से छु ड़ाया था. इसके साथ ही वृ ारा रोके ए जल को वा हत कया था. इं ने मेघ के चार ओर थत एवं वृ रा स ारा रोक गई न दय को धरती के ऊपर बहने यो य बनाया. (८) व ी भः पु म ुवो अदानं नवेशना रव आ जभथ. १ धो अ यद हमाददानो नभू ख छ समर त पव.. (९) हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! तुमने उप ज का नामक वशेष क ड़ ारा खाए ए अ पु को व मीक से बाहर नकाला था. अंधे अ पु ने सांप के समान भली कार दे खा, य क उसके उप ज का ारा खाए ए अंग को इं ने पूववत् कर दया था. (९) ते पूवा ण करणा न व ा व ाँ आह व षे करां स. यथायथा वृ या न वगूतापां स राज या ववेषीः.. (१०) हे बु मान् राजन् एवं सब कुछ जानने वाले इं ! तुमने जस कार वषण काय कए एवं मनु य को संप करने वाली वषा करने म संपक काय कए, वामदे व ने उनका य का य वणन कर दया है. (१०) नू ु त इ नू गृणान इषं ज र े न ो३ पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (११) हे इं ! जस कार जल नद को पूण करता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय क तथा हमारी तु तयां वीकार करके हमारी अ वृ करो. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमने तु हारे न म नई तु तयां बनाई ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (११)
सू —२०
दे वता—इं
आ न इ ो रादा न आसाद भ कृदवसे यास ः. ओ ज े भनृप तव बा ः स े सम सु तुव णः पृत यून्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भलाषाएं पूण करने वाले, श शाली, यु थल म श ु का नाश करने वाले, हाथ म व धारणक ा, जा के पालक एवं तेज वी म त से घरे ए इं हम आ य दे ने के लए पास अथवा र से आव. (१) आ न इ ो ह र भया व छावाचीनोऽवसे राधसे च. त ा त व ी मघवा वर शीमं य मनु नो वाजसातौ.. (२) इं हमारी र ा करने एवं धन दान करने के लए ह र नामक घोड़ क सहायता से हमारे सामने आव. व धारी, धन के वामी एवं महान् इं यु म उप थत होने के बाद हमारे इस य म आव. (२) इमं य ं वम माक म पुरो दध स न य स तुं नः. नीव व सनये धनानां वया वयमय आ ज येम.. (३) हे इं ! हमारे इस य म सामने उप थत होकर तुम इसे पूण करो. हे व धारी इं ! शकारी जस कार हरण का शकार करता है, उसी कार हम भी धन पाने के लए तु हारी श के ारा सं ाम म वजय ा त कर. (३) उश ु षु णः सुमना उपाके सोम य नु सुषुत य वधावः. पा इ तभृत य म वः सम धसा ममदः पृ ेन.. (४) हे अ के वामी इं ! तुम स मन से हमारे पास आओ एवं हमारी कामना करते ए भली कार नचोड़े गए नशीले सोमरस को पओ. तुम मा यं दन सवन म बोली जाती ई तु तयां सुनते ए सोमरस पओ एवं स बनो. (४) व यो रर श ऋ ष भनवे भवृ ो न प वः सृ यो न जेता. मय न योषाम भम यमानोऽ छा वव म पु त म म्.. (५) पके ए फल वाले वृ एवं आयुधसंचालन म कुशल यु वजेता वीर के समान, नए ऋ षय ारा अनेक कार से तुत एवं ब त से यजमान ारा बुलाए गए इं क हम उसी कार शंसा करते ह, जैसे कामी पु ष सुंदर नारी क शंसा करता है. (५) ग रन यः वतवाँ ऋ व इ ः सनादे व सहसे जात उ ः. आदता व ं थ वरं न भीम उद्नेव कोशं वसुना यृ म्.. (६) पवत के समान वशाल, तेज वी, श ु को परा जत करने वाले एवं ाचीन काल म उ प इं पानी से भरे ए पा के समान पूण ओज वी एवं व को धारण करने वाले ह. (६) न य य वता जनुषा व त न राधस आमरीता मघ य. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ ावृषाण त वषीव उ ा म यं द
पु
त रायः.. (७)
हे इं ! जब से तुम उ प ए हो, तभी से न तो कोई तु ह रोकने वाला है और न तु हारे ारा य के न म दए ए धन को कोई न कर सकता है. हे कामवष , श शाली, तेज वी एवं ब त से यजमान ारा बुलाए गए इं ! हम धन दो. (७) ई े रायः य य चषणीनामुत जमपवता स गोनाम्. श ानरः स मथेषु हावा व वो रा शम भनेता स भू रम्.. (८) हे इं ! तुम लोग क संप एवं घर को दे खने के अ त र रा स ारा रोक गाय को छु ड़ाते हो. हे इं ! तुम नेता के समान जा का शासन करते हो एवं यु हारक ा हो. हम वपुल धनरा श दो. (८)
ई म
कया त छृ वे श या श च ो यया कृणो त मु का च वः. पु दाशुषे वच य ो अंहोऽथा दधा त वणं ज र े.. (९) अ तशय बु मान् इं कस जा-श से यु ह? महान् इं अपने बु बल से ही बड़े-बड़े काम को पूरा करते ह. वे यजमान के बड़े-बड़े पाप को न करने के साथ-साथ तु तक ा को धन दे ते ह. (९) मा नो मध रा भरा द त ः दाशुषे दातवे भू र य े. न े दे णे श ते अ म त उ थे वाम वय म तुव तः.. (१०) हे इं ! हमारी हसा मत करो, हमारा पोषण करो. जो वपुल धनरा श ह दाता को दे ने के लए है, वह हम दो, य क हम तु हारी तु त करते ह. इस दानयो य एवं शंसनीय य म हम तु हारी भली कार तु त करगे. (१०) नू ु त इ नू गृणान इषं ज र े न ो३ न पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (११) हे इं ! जस कार जल स रता को पूण करता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय क तथा हमारी तु तयां सुनकर उ ह वीकार करो एवं हमारा अ बढ़ाओ. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमने तु हारे न म नवीन तु तयां बनाई ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (११)
सू —२१
दे वता—इं
आ या व ोऽवस उप न इह तुतः सधमाद तु शूरः. वावृधान त वषीय य पूव ौन म भभू त पु यात्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारे साथ स होने वाले, शूर, वृ को ा त, भूत-बलसंप एवं सूय के समान श ुपराभवकारी व श को बढ़ाने वाले इं हमारी तु तयां सुनकर हमारी र ा के लए यहां य म पधार. (१) त ये दह तवथ वृ या न तु व ु न य तु वराधसो नॄन्. य य तु वद यो३ न स ाट् सा ा त ो अ य त कृ ीः.. (२) हे तोताओ! तुम इस य म नेता म त क तु त करो, जो इं के बल व प ह. अ तशय यश वी एवं असी मत धनसंप इं का श ु को हराने वाला एवं भ क र ा करने वाला कम श ु क जा को उसी कार पराभूत कर दे ता है, जस कार य क यो यता रखने वाला राजा सबको हराता है. (२) आ या व ो दव आ पृ थ ा म ू सम ा त वा पुरीषात्. वणरादवसे नो म वान् परावतो वा सदना त य.. (३) हम लोग क र ा के न म इं म त के साथ वग, धरती, अंत र , जल, आ द य मंडल, रवत थान अथवा जल के थान मेघ से यहां आव. (३) थूर य रायो बृहतो य ईशे तमु वाम वथे व म्. यो वायुना जय त गोमतीषु धृ णुया नय त व यो अ छ.. (४) हम थूल एवं वशाल धन के वामी, ाणवायु प बल ारा श ु सेना को वजय करने वाले, ग भ एवं तु तक ा को उ म धन दान करने वाले इं को ल य करके तु त करते ह. (४) उप यो नमो नम स तभाय य त वाचं जनय यज यै. ऋ सानः पु वार उ थैरे ं कृ वीत सदनेषु होता.. (५) सम त लोक का तंभन करके, य के न म गजन पी व न करने वाले, ह हण करके वषा ारा लोग को अ दे ने वाले एवं उ म तो ारा तु त करने यो य इं को हम बुलाते ह. (५) धषा य द धष य तः सर या सद तो अ मौ शज य गोहे. आ रोषाः पा य य होता यो नो महा संवरणेषु व ः.. (६) इं क तु त के इ छु क एवं यजमान के घर म रहने वाले तोता के तु त करते ए समीप उप थत होते ही इं आव एवं यु म हम लोग के सहायक ह . इं यजमान के होता एवं असहनीय ोध वाले ह. (६) स ा यद भावर य वृ णः सष
शु मः तुवते भराय.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
गुहा यद मौ शज य गोहे
य
ये ायसे मदाय.. (७)
व का भरणपोषण करने वाले, जाप त के पु एवं कामवष इं क श तु त करने वाले यजमान क सेवा करती है, वा त वक प से यजमान का पालन करने के लए गुफा पी दय म उ प होती है, यजमान के गृह व य कम म थत रहती है, यजमान क अ भलाषापू त एवं स ता के लए उ प होती है तथा यजमान का पालन करती है. (७) व य रां स पवत य वृ वे पयो भ ज वे अपां जवां स. वदद्गौर य गवय य गो यद वाजाय सु यो३ वह त.. (८) इं ने मेघ पी ार को खोलकर जलसमूह ारा जल को वेग के साथ वा हत कया. जब शोभन-य कम करने वाला यजमान इं के लए सुंदर ह धारण करता है, तो उसे धन और गौर एवं गवय नामक पशु क ा त होती है. (८) भ ा ते ह ता सुकृतोत पाणी य तारा तुवते राध इ . का ते नष ः कमु नो मम स क नो हषसे दातवा उ.. (९) हे इं ! तु हारे क याण करने वाले हाथ उ म कम के अनु ान के साथ यजमान को धन दान करते ह. तु हारी थ त या है? तुम हम स य नह बनाते? हम धन दे ने के लए दया य नह करते? (९) एवा व व इ ः स यः स ाड् ढ ता वृ ं व रवः पूरवे कः. पु ु त वा नः श ध रायो भ ीय तेऽवसो दै य.. (१०) स ययु , धन के वामी एवं वृ रा स का नाश करने वाले इं तु त सुनकर यजमान को धन दे ते ह. हे ब त ारा तुत इं ! हमारी तु त के बदले हम धन दो. उससे हम द अ का भोग करगे. (१०) नू ु त इ नू गृणान इषं ज र े न ो३ न पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (११) हे इं ! जस कार जल स रता को पूण करता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय क तथा हमारी तु तयां सुनकर उ ह वीकार करो एवं हमारा अ बढ़ाओ. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमने तु हारे न म नवीन तु तयां बनाई ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (११)
सू —२२ य इ ो जुजुषे य च व
दे वता—इं त ो महा कर त शु या चत्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तोमं मघवा सोममु था यो अ मानं शवसा ब दे त.. (१) जो महान् एवं श शाली इं हमारे ह अ का सेवन करते ह एवं उसक अ भलाषा करते ह, वे धन के वामी ह. बलपूवक व को धारण करके आने वाले इं ह , अ , तु तसमूह, सोमरस एवं उ थ को वीकार करते ह. (१) वृषा वृष धं चतुर म य ु ो बा यां नृतमः शचीवान्. ये प णीमुषणाम ऊणा य याः पवा ण स याय व े.. (२) कामवष , उ , नेता म े एवं कम करने वाले इं दोन हाथ से चार धार वाले एवं वषाकारक व को श ु के ऊपर फकते ह. वे आ छादन करने वाली उस प णी नद का आ य पाने के लए सेवा करते ह जो मै ी काय के लए भ - भ दे श को घेरती है. (२) यो दे वो दे वतमो जायमानो महो वाजे भमह शु मैः. दधानो व ं बा ो श तं ाममेन रेजय भूम.. (३) दाता म े एवं द तशाली जो इं उ प होते ही महान् अ एवं बल से यु ए थे, वे दोन भुजा म अपने अ भल षत व को धारण करके अपनी श से धरती एवं आकाश को कं पत करते थे. (३) व ा रोधां स वत पूव ऋ वा ज नम ेजत ा. आ मातरा भर त शु या गोनृव प र म ोनुव त वाताः.. (४) इं के ज म के समय ही सम त उ त दे श, पवत, अनेक सागर, धरती और आकाश उनके भय से कांपने लगे थे. बलशाली इं ग तशील सूय के माता- पता प धरती-आकाश को धारण करते ह. इं क ेरणा से वायु मनु य के समान श द करती है. (४) ता तू त इ महतो महा न व े व सवनेषु वा या. य छू र धृ णो धृषता दधृ वान ह व ेण शवसा ववेषीः.. (५) हे महान् इं ! तुम महान् हो और तुम हमारे तीन सवन म तु त करने यो य हो. हे ग भ, शूर एवं सम त लोक को धारण करने वाले इं ! तुमने श ु को परा जत करने वाले व ारा बलपूवक अ ह रा स को न कया था. (५) ता तू ते स या तु वनृ ण व ा धेनवः स ते वृ ण ऊ नः. अधा ह वद्वृषमणो भयानाः स धवो जवसा च म त.. (६) हे अ धक बलशाली इं ! तु हारे वे सारे काम न त प से स य ह. हे कामवष इं ! तु हारे डर से सभी गाएं अपने थन से अ धक मा ा म ध टपकाती ह. हे कामवष दय वाले इं ! तु हारे डर से न दयां अ धक वेग से बहती ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ाह ते ह रव ता उ दे वीरवो भ र तव त वसारः. य सीमनु मुचो बद्बधाना द घामनु स त य दय यै.. (७) हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! तुमने जब वृ रा स ारा रोक ई न दय को द घका लक बंधन के प ात् इ छानुसार बहने के लए वतं कया था, तभी उन द स रता ने तु हारे ारा होने वाली र ा के कारण तु हारी तु त क थी. (७) पपीळे अंशुम ो न स धुरा वा शमी शशमान य श ः. अम य ् शुशुचान य य या आशुन र मं तु ोजसं गोः.. (८) मदकारक नचोड़ा आ सोमरस तु हारे समीप प ंचे. तेज चलने वाला सवार जस कार घोड़े क लगाम पकड़कर उसे आगे बढ़ाता है, उसी कार तुम भी तेज वी तोता क तु तय को हमारे पास आने के लए े रत करो. (८) अ मे व ष ा कृणु ह ये ा नृ णा न स ा स रे सहां स. अ म यं वृ ा सुहना न र ध ज ह वधवनुषो म य य.. (९) हे सहनशील इं ! तुम श ु को हराने वाला, े एवं उ त बल हम सदा दान करो, मारने यो य श ु को हमारे वश म लाओ एवं हसक लोग के आयुध का नाश करो. (९) अ माक म सु शृणु ह व म ा म यं च ाँ उप मा ह वाजान्. अ म यं व ा इषणः पुर धीर माकं सु मघव बो ध गोदाः.. (१०) हे इं ! तुम हमारी तु तयां सुनो, हम व वध कार का अ दान करो तथा हमारे लए गाय दे ने वाले बनो. (१०)
दो, सभी बु
यां हम
नू ु त इ नू गृणान इषं ज र े न ो३ न पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (११) हे इं ! जस कार जल स रता को पूण करता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय क तथा हमारी तु तयां सुनकर उ ह वीकार करो एवं हमारा अ बढ़ाओ. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं हमने तु हारे न म नवीन तु तयां बनाई ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (११)
सू —२३
दे वता—इं
कथा महामवृध क य होतुय ं जुषाणो अ भ सोममूधः. पब ुशानो जुषमाणो अ धो वव ऋ वः शुचते धनाय.. (१) हमारी तु त इं को कस कार बढ़ावे? इं स होकर कस होता के य म जाव? ******ebook converter DEMO Watermarks*******
महान् इं सोमरस पीते ए एवं ह प अ क अ भलाषा करते ए कस यजमान को दे ने के लए उ वल वण आ द धारण करते ह? (१) को अ य वीरः सधमादमाप समानंश सुम त भः को अ य. कद य च ं च कते क ती वृधे भुव छशमान य य योः.. (२) कौन वीर इं के साथ सं ाम म जाता है एवं कौन इं क कृपा ा त करता है? पता नह इं का व च धन कब वत रत होगा? इं तु त करते ए यजमान क वृ और र ा के लए कब वृ ह गे? (२) कथा शृणो त यमान म ः कथा शृ व वसाम य वेद. का अ य पूव पमातयो ह कथैनमा ः पपु र ज र े.. (३) इं न जाने कस कार तु तक ा क तु तयां सुनते ह एवं तु त करने वाले क र ा के उपाय को जानते ह. इं के स दान कौन से ह? (३) कथा सबाधः शशमानो अ य नशद भ वणं द यानः. दे वो भुव वेदा म ऋतानां नमो जगृ वाँ अ भय जुजोषत्.. (४) श ु ारा पी ड़त होने पर इं क तु त करने वाले एवं य कम करके स होने वाले यजमान इं ारा द ई संप कस कार ा त करते ह? ह प अ को हण करके इं जब स होते ह तभी हमारी तु तय को वशेष प से जानते ह. (४) कथा कद या उषसो ु ौ दे वो मत य स यं जुजोष. कथा कद य स यं स ख यो ये अ म कामं सुयुजं तत े.. (५) इं उषाकाल आरंभ होने पर कब और कस कार मनु य क मै ी वीकार करते ह? जो तोता इं के त शोभन ह व एवं तो दान करते ह, उनके त इं अपनी म ता कस कार कट करते ह? (५) कमादम ं स यं स ख यः कदा नु ते ा ं वाम. ये सु शो वपुर य सगाः व१ण च तम मष आ गोः.. (६) हे इं ! हम यजमान श ु का पराभव करने वाले तु हारी मै ी एवं ातृ ेम को अपने म तोता से कब कहगे? इं के सभी उ ोग तोता के क याण के लए होते ह. सूय के समान ग तशील इं के सुंदर शरीर को सभी चाहते ह. (६) हं जघांस वरसम न ां ते त े त मा तुजसे अनीका. ऋणा च ऋणया न उ ो रे अ ाता उषसो बबाधे.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ोह करने वाले, हसाका रय एवं इं को न जानने वाली रा सी को मारने क इ छा से अपने तेज आयुध को अ धक तेज बनाते ह. उषाकाल म हम ऋण बाधा प ंचाते ह. ऋणहंता इं हमारे अनजाने ही र से इन उषा को पी ड़त करते ह. (७) ऋत य ह शु धः स त पूव ऋत य धी तवृ जना न ह त. ऋत य ोको ब धरा ततद कणा बुधानः शुचमान आयोः.. (८) ऋतदे व भूत जल के वामी ह. उनक तु त पाप को न करती है. ऋतदे व क ानजनक एवं द त तु त वचन बहरे आदमी के कान म भी वेश करता है. (८) ऋत य हा ध णा न स त पु ण च ा वपुषे वपूं ष. ऋतेन द घ मषण त पृ ऋतेन गाव ऋतमा ववेशुः.. (९) शरीरधारी ऋतदे व के अनेक ढ़ धारक एवं आनंदकारक प ह. तोता ऋतदे व से अ धक अ क अ भलाषा करते ह. ऋतदे व के कारण ही गाएं य म वेश करती ह. (९) ऋतं येमान ऋत म नो यृत य शु म तुरया उ ग ुः. ऋताय पृ वी ब ले गभीरे ऋताय धेनू परमे हाते.. (१०) तोता अपनी तु तय ारा ऋतदे व को वश म करने के लए ऋतदे व क सेवा करते ह. ऋतदे व का बल जल क कामना करता है. व तीण एवं अग य धरती-आकाश पर ऋतदे व का ही अ धकार है. धरती-आकाश गाय के समान उ ह ध दे ते ह. (१०) नू ु त इ नू गृणानं इषं ज र े न ो३ न पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (११) हे इं ! जस कार जल स रता को पूण करता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय क तथा हमारी तु तयां सुनकर उ ह वीकार करो एवं हमारा अ बढ़ाओ. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमने तु हारे न म नवीन तु तयां बनाई ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (११)
सू —२४
दे वता—इं
का सु ु तः शवसः सूनु म मवाचीनं राधस आ ववतत्. द द ह वीरो गृणते वसू न स गोप त न षधां नो जनासः.. (१) कस कार क शोभन तु त परम बलशाली एवं हमारे सामने वतमान इं को हम धन दे ने के लए े रत कर सकती है? हे यजमानो! वीर एवं पशु आ द धन के वामी इं हम तु तक ा को हमारे श ु क संप द. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स वृ ह ये ह ः स ई ः स सु ु त इ ः स यराधाः. स याम ा मघवा म याय यते सु वये व रवो धात्.. (२) तु त यो य इं श ु का नाश करने के लए बुलाए जाते ह. वे भली कार से तु त सुनकर यजमान के लए धन दे ते ह. धन के वामी इं तु त क कामना करने वाले यजमान को भली कार से धन दे ते ह. (२) त म रो व य ते समीके र र वांस त वः कृ वत ाम्. मथो य यागमुभयासो अ म र तोक य तनय य सातौ.. (३) मनु य यु म इं को ही बुलाते ह. यजमान तप या ारा अपने शरीर को ीण बनाकर इं को ही अपना र क नयु करते ह. यजमान और तु तक ा मलकर पु और पौ पाने के लए उ ह दाता इं का सहारा लेते ह. (३) तूय त तयो योग उ ाशुषाणासो मथो अणसातौ. सं य शोऽववृ त यु मा आ द ेम इ य ते अभीके.. (४) हे परम श शाली इं ! सभी जगह फैले ए मनु य जल ा त करने के लए एक होकर य करते ह. यु क इ छा से जब लोग सं ाम म एक होते ह तो कुछ भा यशाली लोग ही इं का मरण कर पाते ह. (४) आ द नेम इ यं यज त आ द प ः पुरोळाशं र र यात्. आ द सोमो व पपृ यादसु वीना द जुजोष वृषभं यज यै.. (५) यु काल म कुछ यो ा श शाली इं क पूजा करते ह, कुछ यो ा पुरोडाश पकाकर इं को दे ते ह. उस समय सोम नचोड़ने वाले यजमान सोमरस न नचोड़ने वाले यजमान को धन का भाग नह दे ते. कुछ लोग कामवष इं के न म य करने का संक प करते ह. (५) कृणो य मै व रवो य इ थे ाय सोममुशते सुनो त. स ीचीनेन मनसा ववेन त म सखायं कृणुते सम सु.. (६) सोमरस क अ भलाषा करने वाले इं के न म जो सोम नचोड़ता है, इं उस यजमान को धनी बनाते ह. जो आनंदभाव से इं को चाहते एवं सोमरस नचोड़ते ह, उ ह इं म बनाते ह. (६) य इ ाय सुनव सोमम पचा प त भृ जा त धानाः. त मनायो चथा न हय त म दधद्वृषणं शु म म ः.. (७) जो इं के लए सोम नचोड़ते ह, पुरोडाश पकाते ह एवं जौ भूनते ह, उ ह तोता क तु तयां वीकार करके इं यजमान के न म इ छा पूरी करने वाला बल धारण करते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. (७) यदा समय चे घावा द घ यदा जम य यदयः. अ च दद् वृषणं प य छा रोण आ न शतं सोमसु
ः.. (८)
श ु को मारने वाले महान् इं सं ाम म जब श ु को जानकर द घ काल तक संल न रहते ह, उस समय इं क प नी य शाला म ऐसे इं को बुलाती है जो ऋ वज् ारा नचोड़े गए सोमरस को पीकर उ े जत हो जाते ह एवं मनोकामनाएं पूरी करते ह. (८) भूयसा व नमचर कनीयोऽ व तो अका नषं पुनयन्. स भूयसा कनीयो ना ररेची ना द ा व ह त वाणम्.. (९) कसी को अ धक का थोड़ा मू य मला. वह खरीदार से बोला—“म ने यह व तु नह बेची. अभी मुझे और मू य दो.” खरीदने वाले ने मू य नह बढ़ाया और कहा—“म ब त दे ख चुका ं. समथ या असमथ कैसा भी हो, बेचते समय जो मू य न त हो जाता है, उसी पर जमा रहता है.” (९) क इमं दश भममे ं णा त धेनु भः. यदा वृ ा ण जंघनदथैनं मे पुनददत्.. (१०) मेरे इस इं को दस गाय के बदले कौन मोल लेता है? शत यह है क जब इं तु हारे श ु का वध कर चुके ह तो इ ह लौटा दे ना. (१०) नू ु त इ नू गृणान इषं ज र े न ो३ न पीपेः. अका र ते ह रवो न ं धया याम र यः सदासाः.. (११) हे इं ! जस कार जल स रता को पूण करता है, उसी कार तुम पूववत ऋ षय क तथा हमारी तु तयां सुनकर उ ह वीकार करो एवं हमारा अ बढ़ाओ. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमने तु हारे न म नवीन तु तयां बनाई ह. हम रथ के वामी एवं तु हारे सेवक बन. (११)
सू —२५
दे वता—इं
को अ नय दे वकाम उश य स यं जुजोष. को वा महेऽवसे पायाय स म े अ नौ सुतसोम ई े .. (१) आज कौन मानव हतैषी, दे वा भलाषी एवं कामनापूण मनु य इं के साथ म ता करना चाहता है? सोमरस नचोड़ने वाला कौन सा यजमान अ न व लत होने पर महान् तथा पार प ंचाने वाले आ य के लए इं क तु त करता है? (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को नानाम वचसा सो याय मनायुवा भव त व त उ ाः. क इ य यु यं कः स ख वं को ा ं व कवये क ऊती.. (२) कौन यजमान सोमरस के पा इं को तु त पी वचन से नम कार करता है? कौन इं क तु त क कामना करता है? इं ारा द ई गाय को कौन रखता है? कौन इं क सहायता चाहता है? कौन इं के साथ म ता अथवा भाईचारा रखने का इ छु क है? कौन ांतदश इं से र ा क ाथना करता है? (२) को दे वानामवो अ ा वृणीते क आ द याँ अ द त यो तरी े . क या ना व ो अ नः सुत यांशोः पब त मनसा ववेनम्.. (३) आज कौन यजमान इं आ द दे व से र ा क ाथना करता है? कौन आ द य, अ द त एवं जल से ाथना करता है? अ नीकुमार, इं एवं अ न कस यजमान क तु त से स होकर उसके ारा नचोड़े ए सोमरस को पीते ह? (३) त मा अ नभारतः शम यंस यो प या सूयमु चर तम्. य इ ाय सुनवामे याह नरे नयाय नृतमाय नृणाम्.. (४) ह व के वामी अ न उस यजमान के लए सुख द एवं वह ब त काल तक उदय होते ए सूय को दे खे जो कहता है क म नेता, मानव के हतैषी एवं मानव म े इं के लए सोमरस नचोडंगा. (४) न तं जन त बहवो न द ा उव मा अ द तः शम यंसत्. यः सुकृ य इ े मनायुः यः सु ावीः यो अ य सोमी.. (५) जो यजमान इं के न म सोमरस नचोड़ने का संक प करते ह, उ ह न थोड़े और न ब त श ु जीत सक. अ द त उ ह सुख द. शोभन एवं तु त क कामना करने वाले यजमान इं के य ह. भली-भां त समीप जाने वाले एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान इं के य ह . (५) सु ा ः ाशुषाळे ष वीरः सु वेः प कृणुते केवले ः. नासु वेरा पन सखा न जा म ा ोऽवह तेदवाचः.. (६) श ु को शी हराने वाले तथा वीर इं अपने समीप आने वाले तथा सोमरस नचोड़ने वाले यजमान के पुराडोश को तुरंत वीकार कर लेते ह. इं सोमरस न नचोड़ने वाले यजमान के न म ा त, सखा अथवा बंधु नह बनते. इं तु तहीन क हसा करते ह. (६) न रेवता प णना स य म ोऽसु वता सुतपाः सं गृणीते. आ य वेदः खद त ह त न नं व सु वये प ये केवलो भूत्.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमरस पीने वाले इं धनवान्, लोभी एवं सोमरस न नचोड़ने वाले यजमान से म ता नह रखते. वे ऐसे लोग के थ धन को प करके न कर दे ते ह. इं सोमरस नचोड़ने वाले एवं ह पकाने वाले यजमान के ही घ न म बनते ह. (७) इ ं परेऽवरे म यमास इ ं या तोऽव सतास इ म्. इ ं य त उत यु यमाना इ ं नरो वाजय तो हव ते.. (८) उ कृ , नकृ अथवा म यम चलते ए अथवा बैठे ए, घर म रहने वाले अथवा यु करते ए एवं अ क इ छा करने वाले लोग इं को पुकारते ह. (८)
सू —२६
दे वता—इं
अहं मनुरभवं सूय ाहं क ीवाँ ऋ षर म व ः. अहं कु समाजुनेयं यृ ेऽहं क व शना प यता मा.. (१) म ही मनु था. म ही स वता ं. मेधावी क ीवान् ऋ ष भी म ही ं. मने अजुनी के पु कु स को अलंकृत कया था. म ही उशना क व ं. हे मनु यो! मुझे दे खो. (१) अहं भू ममददामायायाहं वृ दाशुषे म याय. अहमपो अनयं वावशाना मम दे वासो अनु केतमायन्.. (२) मने आय मनु के लए धरती द थी. ह दे ने वाले लोग को वषा पी जल म ही दे ता ं. म कलकल श द करते ए जल को सभी थान पर लाया था. दे वगण मेरे ही संक प का अनुगमन करते ह. (२) अहं पुरो म दसानो ैरं नव साकं नवतीः श बर य. शततमं वे यं सवताता दवोदासम त थ वं यदावम्.. (३) मने सोमरस पीने से मतवाला होकर शंबर असुर के न यानवे नगर को एक ही साथ न कर दया है. मने य म अ त थय का वागत-स कार करने वाले दवोदास को सौ सागर दए थे. (३) सु ष व यो म तो वर तु येनः येने य आशुप वा. अच या य वधया सुपण ह ं भर मनवे दे वजु म्.. (४) हे म द्गण! येन प ी अ य प य क अपे ा उ म हो. येन प य म भी सबसे तेज चलने वाला येन धान हो, य क वही बना प हय वाले रथ ारा दे व से से वत सोम प ह को मनु जाप त के न म वग से लाया था. (४) भर द वरतो वे वजानः पथो णा मनोजवा अस ज. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तूयं ययौ मधुना सो येनोत वो व वदे येनो अ .. (५) येन प ी जब बाधक को डराता आ सोम लाया था, तब व तीण माग म वह मन के समान ती ग त से उड़ा था. वह येन सोम प अ के साथ शी उड़ा था, इस लए उसने इस संसार म स पाई थी. (५) ऋजीपी येनो ददमानो अंशुं परावतः शकुनो म ं मदम्. सोमं भर ा हाणो दे वावा दवो अमु मा रादादाय.. (६) सीधा उड़ने वाला येन प ी र या ा से सोम लाते समय दे व के साथ आ एवं नशा करने वाले स सोम को ढ़तापूवक लाया था. (६) आदाय येनो अभर सोमं सह ं सवाँ अयुतं च साकम्. अ ा पुर धरजहादरातीमदे सोम य मूरा अमूरः.. (७) येन प ी हजार एवं अयुत (दस हजार) य के साथ सोम पी अ को लाया था. सोम लाने पर ब एवं ा इं ने सोम के नशे के कारण श ु का नाश कया. (७)
सू —२७
दे वता— येन
गभ नु स वेषामवेदमहं दे वानां ज नमा न व ा. शतं मा पुर आयसीरर ध येनो जवसा नरद यम्.. (१) मने गभ म रहते ए ही इं ा द दे व के सभी ज म को जाना था. इससे पहले सैकड़ लौह शरीर ने हमारी र ा क थी एवं हम येन प ी के समान आ मा के प म शरीर से नकाला था. (१) न घा स मामप जोषं जभाराभीमास व सा वीयण. ईमा पुर धरजहादराती त वाताँ अतर छू शुवानः.. (२) वह गभ पूण प से मेरे ान का अपहरण नह कर सका. मने गभ थत ःख को ान पी ती ण बल ारा हराया. सबके ेरक परमा मा ने गभ थत श ु का नाश कया. उसने पूण प धारण करके क प ंचाने वाले वायु को र कया. (२) अव य ेनो अ वनीदध ो व य द वात ऊ ः पुर धम्. सृज द मा अव ह प यां कृशानुर ता मनसा भुर यन्.. (३) सोम लाते समय येन प ी ने वग से नीचे क ओर मुंह करके श द कया. सोम के रखवाल ने उससे सोम छ न लया. बाण छोड़ने वाले कृशानु नामक सोमर क ने धनुष पर डोरी चढ़ाई, तब येन प ी मन के समान ती ग त से सोम ले आया. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ ज य ई म ावतो न भु युं येनो जभार बृहतो अ ध णोः. अ तः पत पत य य पणमध याम न सत य त े ः.. (४) अ नीकुमार जस कार श शाली र क वाले थान से भु यु नामक राजा को उठाकर ले गए थे, उसी कार इं ारा र त महान् वगलोक से सीधा चलने वाला येन प ी सोम ले आया था. उस समय यु म कृशानु के बाण से घायल प ी का एक पंख गर गया था. (४) अध ेतं कलशं गो भर मा प यानं मघवा शु म धः. अ वयु भः यतं म वो अ म ो मदाय त ध पब यै शूरो मदाय (५) यु
त ध पब यै..
इस समय शूर इं ेत, घड़े म भरे ए, गाय के ध से मले ए, तृ तकारक सार से एवं अ वयुगण ारा दए अ तथा मधुर सोम का पान कर. (५)
सू —२८
दे वता—इं और सोम
वा युजा तव त सोम स य इ ो अपो मनवे स ुत कः. अह हम रणा स त स धूनपावृणोद प हतेव खा न.. (१) हे सोम! इं ने तु हारी म ता पाकर उसक सहायता से मनु य के लए जल को वा हत कया. उसने वृ को मारा, बहने वाले जल को ेरणा द एवं जलधारा को रोकने वाले ार खोले. (१) वा युजा न खद सूय ये ं सहसा स इ दो. अ ध णुना बृहता वतमानं महो हो अप व ायु धा य.. (२) हे सोम! इं ने तु हारा सहारा लेकर तुरंत ेरक सूय के दो प हय वाले रथ के एक प हए को महान् बल से तोड़ डाला. वह रथ महान् अंत र म ऊपर वतमान था. इं ने अपने परम श ु सूय के सव गामी रथ का प हया न कर दया. (२) अह ो अदहद न र दो पुरा द यू म य दनादभीके. ग रोणे वा न यातां पु सह ा शवा न बह त्.. (३) हे सोम! यु म तु ह पाकर श ु श शाली बने. इं और अ न ने दोपहर से पहले ही श ु को समा त कर दया. जैसे चोर र ार हत एवं जनशू य थान से जाने वाले धनी लोग को मार डालता है, उसी कार इं ने हजार क सं या वाली सेनाएं समा त कर द . (३) व
मा सीमधमाँ इ
द यू वशो दासीरकृणोर श ताः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अबाधेथाममृणतं न श ून व दे थामप च त वध ैः.. (४) हे इं ! तुमने इन द युजन को सब गुण से हीन कया एवं य कमर हत दास को न दत बनाया. हे इं एवं सोम! तुम दोन श ु को बाधा प ंचाओ, उ ह मारो और उनक ह या के बदले म यजमान से पूजा वीकार करो. (४) एवा स यं मघवाना युवं त द सोमोवम ं गोः. आद तम प हता य ा र रचथुः ा तृदाना.. (५) हे सोम! तुम और इं —दोन ने अ एवं गाय का समूह दान कया. तुमने प णय ारा रोक गई गाय को एवं उन प णय क भू मय को बल ारा मु कया था. हे इं एवं सोम! तुम दोन श ुनाशका रय ने जो कया, वह स य है. (५)
सू —२९
दे वता—इं
आ नः तुत उप वाजे भ ती इ या ह ह र भम दसानः. तर दयः सवना पु याङ् गूषे भगृणानः स यराधाः.. (१) हे स , वामी, तु तय ारा पू जत एवं स य-धन वाले इं ! तुम हमारी तु तयां सुनकर हमारी र ा के न म अपने अ क सहायता से हमारे अ पूण य म आओ. (१) आ ह मा या त नय क वा यमानः सोतृ भ प य म्. व ो यो अभी म यमानः सु वाणे भमद त सं ह वीरैः.. (२) मानव के हतैषी एवं सव इं सोम नचोड़ने वाले ऋ वज ारा बुलाए जाने पर हमारे य के न म आव. इं सुंदर घोड़ वाले, भयर हत, सोमरस नचोड़ने वाल ारा बुलाए गए एवं वीर म त के साथ स रहते ह. (२) ावयेद य कणा वाजय यै जु ामनु दशं म दय यै. उ ावृषाणो राधसे तु व मा कर इ ः सुतीथाभयं च.. (३) हे तोताओ! तुम इं के कान को तु तयां सुनाओ, जससे इं श शाली एवं सभी दशा म परम स बन सक. सोमरस पान से श शाली बने इं धन ा त के लए मुझ ाथ को भयर हत कर. (३) अ छा यो ग ता नाधमानमूती इ था व ं हवमानं गृण तम्. उप म न दधानो धुया३ शू सह ा ण शता न व बा ः.. (४) हाथ म व धारण करने वाले इं अपने वश म रहने वाले हजार और सैकड़ घोड़ को रथ के जुए म जोड़ते ह एवं र ा क याचना करने वाले, मेधावी एवं स ता भरी तु तयां ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करने वाले यजमान के समीप जाते ह. (४) वोतासो मघव व ा वयं ते याम सूरयो गृण तः. भेजानासो बृह व य राय आका य य दावने पु ोः.. (५) हे तु त-यो य, महान् द त वाले एवं अ धक अ वाले इं ! तु हारे तु हारी तु त करने वाले हम मेधावी लोग तु हारे धन के पा बने ह. (५)
दे वता—इं
सू —३० नकर
ारा र त,
व
रो न यायाँ अ त वृ हन्. न करेवा यथा वम्.. (१)
हे वृ हंता इं ! संसार म कोई भी तु हारी अपे ा उ म एवं शंसनीय नह है. हे इं ! तु हारे समान कोई स नह है. (१) स ा ते अनु कृ यो व ा च े व वावृतुः. स ा महाँ अ स ुतः.. (२) हे इं ! जाएं तु हारे पीछे उसी कार चल, जस कार गाड़ी सभी जगह प हए के पीछे जाती है. हे इं ! तुम वा तव म महान् एवं स हो. (२) व े चनेदना वा दे वास इ
युयुधुः. यदहा न मा तरः.. (३)
हे इं ! असुर को जीतने क इ छा से दे व ने तु हारी सहायता से बल ा त करके असुर के साथ यु कया. इसी हेतु तुमने रात- दन श ु का नाश कया. (३) य ोत बा धते य
कु साय यु यते. मुषाय इ
हे इं ! उस सं ाम म तुमने यु रथ का प हया चुराया था. (४)
सूयम्.. (४)
करने वाले कु स एवं उसके सहायक के लए सूय के
य दे वाँ ऋघायतो व ाँ अयु य एक इत्. व म
वनूँरहन्.. (५)
हे इं ! तुम अकेले ने दे व को बाधा प ंचाने वाले सभी रा स के साथ यु उन हसक को मारा. (५) य ोत म याय कम रणा इ
कया एवं
सूयम्. ावः शची भरेतशम्.. (६)
हे इं ! उस सं ाम म तुमने एतश ऋ ष क र ा के लए सूय क हसा क एवं एतश ऋ ष को बचाया. (६) कमा ता स वृ ह मघव म युम मः. अ ाह दानुमा तरः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वृ नाशक एवं धन वामी इं ! उसके प ात् तुम आकाश म दनुपु वृ का नाश कया. (७) एतद्घे त वीय१ म
चकथ प यम्.
ो धत ए एवं दन के समय
यं य हणायुवं वधी हतरं दवः.. (८)
हे इं ! तुमने अपनी श को साम यपूण बनाया और वग क पु ी उस उषा का वध कया जो तु ह मारना चाहती थी. (८) दव द्घा
हतरं महा महीयमानाम्. उषास म
सं पणक्.. (९)
हे इं ! तुमने वग क पु ी तथा पूजा के यो य उषादे वी को पीस डाला. (९) अपोषा अनसः सर सं प ादह ब युषी. न य स श थद्वृषा.. (१०) कामवष इं ने जब उषा क गाड़ी तोड़ डाली तो डरी ई उषा टू ट उतरी. (१०)
ई गाड़ी से नीचे
एतद या अनः शये सुस प ं वपा या. ससार स परावतः.. (११) इं ारा तोड़ी गई उषा क गाड़ी वपाशा नद के कनारे गरी. उषा उससे र चली गई. (११) उत स धुं वबा यं वत थानाम ध हे इं ! तुमने अपने बु जगह था पत कया. (१२) उत शु ण य धृ णुया
म. प र ा इ
बल से जलपूण एवं
मायया.. (१२)
थत न दय को धरती के ऊपर सभी
मृ ो अ भ वेदनम्. पुरो यद य सं पणक्.. (१३)
हे पराजयकारी इं ! जब तुमने शु ण असुर के नगर को भली कार न तभी उसका धन भी छ न लया था. (१३) उत दासं कौ लतरं बृहतः पवताद ध. अवाह
कया था,
श बरम्.. (१४)
हे इं ! तुमने कुलतर के पु शंबर नामक दास को बृहत् पवत पर अधोमुख कर मारा था. (१४) उत दास य व चनः सह ा ण शतावधीः. अ ध प च ध रव.. (१५) हे इं ! जस कार प हए के चार ओर शंकु होते ह, उसी कार व च नामक दास के चार ओर हजार-पांच सौ सेवक थे. तुमने उनका वध कया. (१५) उत यं पु म ुवः परावृ ं शत तुः. उ थे व आभजत्.. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शत तु इं ने अ ु के पु परावृ
को तो
का भागी बनाया. (१६)
उत या तुवशाय अ नातारा शचीप तः. इ ो व ाँ अपारयत्.. (१७) शचीप त एवं व ान् इं ने यया त के शाप के कारण अ भषेकहीन तुवश एवं य नामक राजा को अ भषेक यो य बनाया. (१७) उत या स आया सरयो र
पारतः. अणा च रथावधीः.. (१८)
हे इं ! सरयू के पार रहने वाले राजा औव और च रथ वयं को आय कहते थे. तुमने उनका वध तुरंत कया. (१८) अनु ा ज हता नयोऽ धं ोणं च वृ हन्. न त े सु नम वे.. (१९) हे वृ नाशक इं ! तुमने सभी संबं धय ारा यागे गए अंधे और लूले पर कृपा क थी. तु हारे ारा दए ए सुख को कोई न नह कर सकता. (१९) शतम म मयीनां पुरा म ो
ा यत्. दवोदासाय दाशुषे.. (२०)
इं ने प थर के बने ए सौ नगर ह अ वापय भीतये सह ा
दे ने वाले दवोदास को दए. (२०)
शतं हथैः. दासाना म ो मायया.. (२१)
इं ने दभी त के क याण के लए अपनी श आयुध से मार डाला था. (२१) स घे ता स वृ ह समान इ
ारा तीस हजार रा स को अपने
गोप तः. य ता व ा न च युषे.. (२२)
हे श ुनाशक, गाय के पालक एवं सभी यजमान को समान समझने वाले इं ! तुमने इन सभी श ु को हराया था. (२२) उत नूनं य द
यं क र या इ
हे इं ! तुमने अपनी श तु ह नह हरा पाया है. (२३)
प यम्. अ ा न क दा मनत्.. (२३)
को साम यपूण बना लया है, इस लए आज तक कोई भी
वामंवामं त आ रे दे वो ददा वयमा. वामं पूषा वामं भगो वामं दे वः क ळती.. (२४) हे श ु वदारक इं ! पूषा दे व तु ह उ म धन द. बना दांत वाले पूषा एवं भग तु ह उ म धन द. (२४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —३१ कया न
दे वता—इं आ भुव ती सदावृधः सखा. कया श च या वृता.. (१)
सदा बढ़ते ए, पूजनीय एवं म प इं कस तपण के कारण हमारे सामने आएंगे? वे कस वचारपूण कम के कारण हमारे अ भमुख ह गे? (१) क वा स यो मदानां मं ह ो म सद धसः.
हा चद जे वसु.. (२)
हे इं ! पूजनीय, स य एवं अ तशय मदकारक कौन सा सोमरस तु ह श ु न करने के लए मु दत करेगा? (२)
का धन
अभी षु णः सखीनाम वता ज रतॄणाम्. शतं भवा यू त भः.. (३) हे इं ! तुम म प तोता लोग के सामने आओ. (३)
के र क बनकर अनेक कार से र ा करते ए हम
अभी न आ ववृ व च ं न वृ मवतः नयु
षणीनाम्.. (४)
हे इं ! तुम हम सेवक लोग क तु त से स होकर हमारे चार ओर गोल च कर के प म थत रहो. (४) वता ह
तूनामा हा पदे व ग छ स. अभ
सूय सचा.. (५)
हे इं ! तुम य कम के थान म अपना थल जानकर ही आते हो. हम सूय के साथ तु ह मरण करते ह. (५) सं य इ
म यवः सं च ा ण दध वरे. अध वे अध सूय.. (६)
हे इं ! तु हारे लए बनाई ई तु तयां एवं प र माएं जब हमारे ारा धारण क जाती ह, तब वे सबसे पहले तु हारे त और बाद म सूय के त होती ह. (६) उत मा ह वामा र मघवानं शचीपते. दातारम वद धयुम्.. (७) हे शचीप त इं ! लोग तु ह धन का वामी, तोता द तशाली कहते ह. (७) उत मा स इ प र शशमानाय सु वते. पु
को मनोवां छत फल दे ने वाला व
च मंहसे वसु.. (८)
हे इं ! तुम तु तकारी और सोमा भषवकारी यजमान को पल भर म ब त सा धन दे ने वाले हो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न ह मा ते शतं चन राधो वर त आमुरः. न यौ ना न क र यतः.. (९) हे इं ! बाधक रा स तु हारी सैकड़ संप य को न श ुनाशक बल को भी नह रोक सकते. (९)
नह कर सकते. वे तु हारे
अ माँ अव तु ते शतम मा सह मूतयः. अ मा व ा अ भ यः.. (१०) हे इं ! तु हारे सैकड़ -हजार र ासाधन हमारी र ा कर. तु हारे सभी यास हमारी र ा कर. (१०) अ माँ इहा वृणी व स याय व तये. महो राये द व मते.. (११) हे इं ! तुम इस य म हम यजमान को म ता, अ वनाशी भाव एवं द तशाली महान् धन का भागी बनाओ. (११) अ माँ अ वड् ढ व हे
राया परीणसा. अ मा व ा भ
हे इं ! तुम महान् धन के ारा हमारी से हमारी र ा करो. (१२)
त भः.. (१२)
त दन र ा करो. तुम अपने सभी र ासाधन
अ म यं ताँ अपा वृ ध जाँ अ तेव गोमतः. नवाभ र ो त भः.. (१३) हे इं ! तुम र ा के नवीन उपाय खोलो, जनम गाएं रहती ह . (१३)
ारा शूर के समान हमारे लए उन गोशाला
के ार
अ माकं धृ णुया रथो ुमाँ इ ानप युतः. ग ुर युरीयते.. (१४) हे इं ! हमारा श ु वनाशकारी, द तशाली, वनाशर हत, बैल और घोड़ से यु सभी जगह जावे. उस रथ के साथ-साथ हमारी भी र ा करो. (१४)
रथ
अ माकमु मं कृ ध वो दे वेषु सूय. व ष ं ा मवोप र.. (१५) हे सव ेरक इं ! दे व म हमारा यश उसी कार उ कृ बनाओ, जस कार तुमने वषा करने म स म आकाश को सभी लोग के ऊपर धारण कया है. (१५)
दे वता—इं
सू —३२ आ तू न इ
वृ ह
माकमधमा ग ह. महा मही भ
त भः.. (१)
हे श ुहंता एवं महान् इं ! तुम अपने महान् र ासाधन को लेकर शी ही हम लोग के समीप आओ. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भृ म द्घा स तूतु जरा च
च णी वा. च ं कृणो यूतये.. (२)
हे पूजनीय इं ! तुम मणशील होते ए भी हमारे अभी दाता हो. तुम व च कम वाली जा क र ा-हेतु धन दे ते हो. (२) द ेभ
छशीयांसं हं स ाध तमोजसा. स ख भय वे सचा.. (३)
हे इं ! जो यजमान तु हारे साथ मल जाते ह, तुम उनके ऐसे महान् श ु अपनी श से समा त कर दे ते हो जो घोड़े के समान उछलते ह. (३) वय म
को भी
वे सचा वयं वा भ नोनुमः. अ माँअ माँ इ दव.. (४)
हे इं ! हम यजमान तु हारे साथ संगत ह. हम तु हारी पया त तु त करते ह. तुम हमारी भली कार र ा करो. (४) सन
ा भर वोऽनव ा भ
त भः. अनाधृ ा भरा ग ह.. (५)
हे व धारी इं ! तुम मनोहर, अ न दत एवं सर लेकर हमारे सामने आओ. (५) भूयामो षु वावतः सखाय इ
ारा आ मणर हत र ासाधन को
गोमतः. युजो वाजाय घृ वये.. (६)
हे इं ! हम तुम जैसे गो वामी के म ह. हम पया त अ पाने के लए तु हारे साथ मलते ह. (६) वं (७)
ेक ई शष इ
वाज य गोमतः. स नो य ध मही मषम्.. (७)
हे इं ! एकमा तु ह गाय से यु न वा वर ते अ यथा य
धन के वामी हो. तुम हम अ धक मा ा म अ दो.
स स तुतो मघम्. तोतृ य इ
गवणः.. (८)
हे तु त यो य इं ! जब तोता क तु तयां सुनकर तुम उ ह धन दे ना चाहते हो, तब तु हारी अ भलाषा को कोई भी बदल नह सकता. (८) अ भ वा गोतमा गरानूषत
दावने. इ
वाजाय घृ वये.. (९)
हे इं ! गौतम नामक ऋ ष ने धन एवं अ धक मा ा वाले अ को पाने के लए वाणी ारा तु हारी तु त क . (९) ते वोचाम वीया३ या म दसान आ जः. पुरो दासीरभी य.. (१०) हे इं ! तुमने सोमरस पीने के कारण स होकर आ मणकारी असुर के नगर म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाकर उ ह भ न कर डाला. हम तु हारी उसी श
का बार-बार वणन करते ह. (१०)
ता ते गृण त वेधसो या न चकथ प या. सुते व
गवणः.. (११)
हे तु तपा इं ! तुमने पूवकाल म जन कठोरतापूण काय का दशन कया था, सोम नचोड़ने के प ात् व ान् लोग उ ह का वणन करते ह. (११) अवीवृध त गोतमा इ
वे तोमवाहसः. ऐषु धा वीरव शः.. (१२)
हे इं ! तो को वहन करने वाले गौतमवंशीय ऋ षय ने तु ह अपनी तु तय बढ़ाया है. तुम इ ह पु -पौ वाला अ दो. (१२) य च (१३)
श तामसी
ारा
साधारण वम्. तं वा वयं हवामहे.. (१३)
हे इं ! य प तुम ब त से यजमान के साधारण दे व हो, फर भी हम तु ह बुलाते ह. अवाचीनो वसो भवा मे सु म वा धसः. सोमाना म
सोमपाः.. (१४)
हे य म नवास करने वाले इं ! तुम इन यजमान के सामने आओ. हे सोम पीने वाले इं ! तुम सोमप पी अ से स बनो. (१४) अ माकं वा मतीनामा तोम इ
य छतु. अवागा वतया हरी.. (१५)
हम तु तक ा क तु तयां तु ह हमारे पास लाव. अपने ह र नामक दोन घोड़ को हमारे सामने लाओ. (१५) पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गर नः. वधूयु रव योषणाम्.. (१६) हे इं ! तुम हमारे ारा पकाए गए पुरोडाश का भ ण करो. कामी लोग जस कार नारी क बात पूरी करते ह, उसी कार तुम हमारी तु त साथक करो. (१६) सह ं
तीनां यु ाना म मीमहे. शतं सोम य खायः.. (१७)
हम तु तक ा इं से हजार सीखे ए तेज ग त वाले घोड़े तथा सोमरस के सैकड़ कलश मांगते ह. (१७) सह ा ते शता वयं गवामा यावयाम स. अ म ा राध एतु ते.. (१८) हे इं ! हम तु हारी हजार और सैकड़ गाय को अपनी ओर आक षत करते ह. हमारा धन तु हारे समीप प ंचे. (१८) दश ते कलशानां हर यानामधीम ह. भू रदा अ स वृ हन्.. (१९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हम तुमसे दस घड़े भर कर वण मांगते ह. तुम हम इससे अ धक दे ते हो. (१९) भू रदा भू र दे ह नो मा द ं भूया भर. भू र घे द
द स स.. (२०)
हे अ धक दान करने वाले इं ! हम ब त सा धन दो. थोड़ा मत दो. तुम हम ब त धन दे ना चाहते हो. (२०) भू रदा
स ुतः पु
ा शूर वृ हन्. आ नो भज व राध स.. (२१)
हे वृ नाशक एवं शूर इं ! तुम ब त से यजमान म अ धक दे ने वाले के हो. तुम हम धन का भागी बनाओ. (२१)
पम
स
ते ब ू वच ण शंसा म गोषणो नपात्. मा यां गा अनु श थः.. (२२) हे बु मान् इं ! हम तु हारे पीले रंग वाले दोन घोड़ क शंसा करते ह. हे गाय दे ने वाले इं ! तुम तोता का नाश नह करते. इन दो घोड़ ारा तुम हमारी गाय को न मत करना. (२२) कनीनकेव व धे नवे पदे अभके. ब ू यामेषु शोभेते.. (२३) हे इं ! तु हारे पीले रंग के घोड़े य म इस कार सुशो भत होते ह, जस कार ढ़, नए एवं छोटे से वृ म सुंदर कठपुतली छपे प म शोभा पाती ह. (२३) अरं म उ या णेऽरमनु या णे. ब ू यामे व धा.. (२४) हे इं ! हम चाहे बैल जुड़े ए रथ म बैठकर चल अथवा बना उसके पैदल चल, तु हारे हसा न करने वाले पीले घोड़े हमारी या ा म क याण कर. (२४)
सू —३३
दे वता—ऋभुगण
ऋभु यो त मव वाच म य उप तरे ैतर धेनुमीळे . ये वातजूता तर ण भरेवैः प र ां स ो अपसो बभूवुः.. (१) हम ऋभु के समीप अपनी तु तय को त के समान भेजते ह. हम सोमरस तैयार करने के लए ऋभु से धा गाय मांगते ह. ऋभुगण वायु के समान ती ग तशील तथा संसार के उपकारक कम करने वाले ह एवं वेगशाली घोड़ क सहायता से तुरंत आकाश को सभी ओर से घेर लेते ह. (१) यदारम ृभवः पतृ यां प र व ी वेषणा दं सना भः. आ द े वानामुप स यमाय धीरासः पु मवह मनायै.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस समय ऋभु ने अपने माता- पता को प रचया ारा वृ से युवा बनाया एवं अ य उ म काय ारा शोभा ा त क , उसी समय इं आ द दे व क म ता उ ह ा त ई. धीर ऋभुगण यजमान के लए गौ आ द संप य ारा पु धारण करते ह. (२) पुनय च ु ः पतरा युवाना सना यूपेव जरणा शयाना. ते वाजो व वाँ ऋतु र व तो मधु सरसो नोऽव तु य म्.. (३) ऋभु ने कटे ए काठ के समान जीण एवं पड़े रहने वाले अपने माता- पता को न य त ण बना दया. वे वाज, वभु और ऋभु इं के साथ मलकर सोमरस का पान कर एवं हमारे य क र ा कर. (३) य संव समृभवो गामर य संव समृभवो मा अ पशन्. य संव समभर भासो अ या ता भः शमी भरमृत वमाशुः.. (४) ऋभु ने एक वष तक मरी ई गाय क र ा क . वे एक वष तक उसके शरीर क भा को सुर त रखे रहे. एक वष ऋभु ने गाय के अवयव को रखा था. इन काय से ऋभु को अमर पद ा त आ. (४) ये आह चमसा ा करे त कनीया ी कृणवामे याह. क न आह चतुर करे त व ऋभव त पनय चो वः.. (५) बड़े ऋभु ने कहा—“हम चमस को दो बनावगे.” उससे छोटे ऋभु ने कहा—“हम एक चमस के तीन करगे.” सबसे छोटा ऋभु बोला—“हम चमस के चार भाग करगे.” हे ऋभुओ! तु हारे गु व ा ने चमस के चार भाग करने वाली बात मान ली. (५) स यमूचुनर एवा ह च ु रनु वधामृभवो ज मुरेताम्. व ाजमानां मसाँ अहेवावेन व ा चतुरो द ान्.. (६) मानव पधारी ऋभु ने स ची बात कही थी. उ ह ने जैसा कहा था, वैसा कया. चमस के चार भाग करने के तुरंत बाद ऋभुगण तृतीय सवन म वधा के भागी बने. दवस के समान तेज वी चार चमस को दे खकर व ा ने उ ह लेने क अ भलाषा कट क . (६) ादश ू यदगो या त ये रण ृभवः सस तः. सु े ाकृ व नय त स धू ध वा त ोषधी न नमापः.. (७) जसे छपाया नह जा सकता, ऐसे सूय के घर म ऋभुगण अ त थ के प म स कार पाते ए बारह दन तक सुखपूवक रहते ह. जब वे सूने खेत को वषा ारा फसल से भरापूरा एवं न दय को वाहशील बनाते ह, उस समय जलर हत थान म ओष धयां उ प होती ह एवं नचले थान म पानी भर जाता है. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रथं ये च ु ः सुवृतं नरे ां ये धेनुं व जुवं व पाम्. त आ त वृभवो र य नः ववसः वपसः सुह ताः.. (८) ज ह ने सुंदर प हय वाला रथ बनाया था एवं सबको ेरणा दे ने वाली व पा गौ का नमाण कया था, वे शोभन-कम वाले, शोभन-अ के वामी एवं सुंदर हाथ से यु ऋभुगण हम धन दान कर. (८) अपो ेषामजुष त दे वा अ भ वा मनसा द यानाः. वाजो दे वानामभव सुकम य ऋभु ा व ण य व वा.. (९) इं ा द दे व ने ऋभु के कम को वीकार कया. वे दे वगण अनु हयु मन से ऋभु को वर दे ने के कारण द तशाली थे. शोभनकम वाले वाज (सबसे छोटे ऋभु) दे व के संबंधी थे, सबसे बड़े ऋभु इं के संबंधी एवं म यम ऋभु अथात् वभु व ण से संबं धत ए. (९) ये हरी मेधयो था मद त इ ाय च ु ः सुयुजा ये अ ा. ते राय पोषं वणा य मे ध ऋभवः ेमय तो न म म्.. (१०) जन ऋभु ने अपनी बु एवं तु तय ारा ह र नामक घोड़ को ह षत कया, ज ह ने उन सुंदर घोड़ को इं के लए भली कार से यु कया, वे ही ऋभुगण म के समान हमारी मंगल कामना करते ए हम पु , अ एवं धन दान कर. (१०) इदा ः पी तमुत वो मदं धुन ऋते ा त य स याय दे वाः. ते नूनम मे ऋभवो वसू न तृतीये अ म सवने दधात.. (११) चमस बनाने के प ात् दे व ने तीसरे सवन म तुम ऋभु को सोमरस एवं उससे उ प स ता द . तप वी के अ त र दे वगण कसी के म नह बनते. हे महान् ऋभुओ! तृतीय सवन म तुम हम न त प से धन दो. (११)
सू —३४
दे वता—ऋभुगण
ऋभु व वा वाज इ ो नो अ छे मं य ं र नधेयोप यात. इदा ह वो धषणा दे ामधा पी त सं मदा अ मता वः.. (१) हे ऋभु, वभु, वाज एवं इं ! तुम लोग हम र न दान करने के लए इस य म आओ. इस समय वाणी- पी दे वी ने तु हारे लए सोमपान क स ता धारण क है. सोमरस पीने से उ प स ता तु ह ा त हो. (१) वदानासो ज मनो वाजर ना उत ऋतु भऋभवो मादय वम्. सं वो मदा अ मत सं पुर धः सुवीराम मे र यमेरय वम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम पी अ से सुशो भत ऋभुओ! तुम दे व ेणी म अपना ज म जानकर दे व के साथ आनं दत बनो. सोमपान से उ प मद एवं तु त तु ह ा त ई है. तुम हम पु एवं पौ से यु धन दो. (२) अयं वो य ऋभवोऽका र यमा मनु व दवो द ध वे. वोऽ छा जुजुषाणासो अ थुरभूत व े अ योत वाजाः.. (३) हे ऋभुओ! यह य तुम लोग के उ े य से कया गया है. तुम द तसंप होकर मनु य के समान उसे अपने उदर म धारण करो. तु हारी सेवा करने वाला सोमरस तु हारे समीप रहता है. हे ऋभुओ! तुम सब अ ेणी म गने जाते हो. (३) अभू वो वधते र नधेय मदा नरो दाशुषे म याय. पबत वाजा ऋभवो ददे वो म ह तृतीयं सवनं मदाय.. (४) हे नेता ऋभुओ! तु हारी कृपा से तु त ारा सेवा करने वाले एवं ह दे ने वाले यजमान को तृतीय सवन म र न पी द णा दे ना संभव हो. हे वाजगण एवं ऋभुओ! तीसरे सवन म हम तु हारी स ता के लए पया त मा ा म सोमरस दे ते ह. तुम उसे पओ. (४) आ वाजा यातोप न ऋभु ा महो नरो वणसो गृणानाः. आ वः पीतयोऽ भ प वे अ ा ममा अ तं नव व इव मन्.. (५) हे नेता प वाजगण एवं ऋभुगण! तुम लोग महान् धन क तु त करते ए हमारे समीप आओ. दन के अंत अथात् तीसरे सवन के समय पानयो य सोमरस उसी कार तु हारे नकट आता है, जस कार बछड़ वाली गाएं अपने घर क ओर आती ह. (५) आ नपातः शवसो यातनोपेमं य ं नमसा यमानाः. सजोषसः सूरयो य य च थ म वः पात र नधा इ व तः.. (६) हे बल के पु ऋभुओ! हमारी तु तय से बुलाए ए तुम य के समीप आओ. इं के संबंधी होने के कारण तुम उ ह के साथ स रहते हो एवं मेधावी हो. तुम इं के साथ आकर मधुर सोम पओ एवं र नदान करो. (६) सजोषा इ व णेन सोमं सजोषाः पा ह गवणो म ः. अ ेपा भऋतुपा भः सजोषा ना प नीभी र नधा भः सजोषाः.. (७) हे इं ! तुम व ण के साथ स होकर सोम पओ. हे तु तयो य इं तुम म त के साथ स होकर सोम पओ. सबसे पहले सोमरस पीने वाले ऋतुपालक दे व , दे वप नय एवं र न दे ने वाले दे व के साथ तुम सोम पओ. (७) सजोषस आ द यैमादय वं सजोषस ऋभवः पवते भः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सजोषसो दै ेना स व ा सजोषसः स धुभी र नधे भः.. (८) हे ऋभुओ! तुम आ द य , पव के समय पूजे जाने वाले दे व एवं र नदान करने वाली न दय के साथ मलकर स बनो. (८) ये अ ना ये पतरा य ऊती धेनुं तत ुऋभवो ये अ ा. ये अंस ा य ऋध ोदसी ये व वो नरः वप या न च ु ः.. (९) जन ऋभु ने रथ नमाण पी सेवा से अ नीकुमार को स कया, माता- पता को बुढ़ापे क जीणता से युवा बनाकर स कया, ज ह ने धेनु और घोड़े को बनाया, दे व के लए कवच का नमाण कया, धरती व आकाश को अलग-अलग कया, वे ापक, नेता एवं शोभन संतान ा त के लए काय करने वाले ह. (९) ये गोम तं वाजव तं सुवीरं र य ध थ वसुम तं पु ुम्. ते अ ेपा ऋभवो म दसाना अ मे ध ये च रा त गृण त.. (१०) जो ऋभुगण गाय , अ , पु -पौ , नवास थान यु तथा अ धक अ वाले धन के वामी ह, वे सबसे पहले सोमरस पीने वाले, स एवं दान क शंसा करने वाले ह. वे हम धन द. (१०) नापाभूत न वोऽतीतृषामा नःश ता ऋभवो य े अ मन्. स म े ण मदथ सं म ः सं राजभी र नधेयाय दे वाः.. (११) हे ऋभुओ! तुम यहां से चले मत जाना. हम तु ह अ धक यासा नह रखगे. हे दे व प ऋभुओ! तुम अ न दत प म धन दे ने के लए इं , म द्गण एवं द तशाली दे व के साथ स बनो. (११)
सू —३५
दे वता—ऋभुगण
इहोप यात शवसो नपातः सौध वना ऋभवो माप भूत. अ म ह वः सवने र नधेयं गम व मनु वो मदासः.. (१) हे बल के पु एवं सुध वा क संतान ऋभुओ! तुम इस य म आओ. तुम यहां से र मत जाओ. हमारे पास य म र न दे ने वाले इं के बाद मदकारक सोमरस तु हारे पास जावे. (१) आग ृभूणा मह र नधेयमभू सोम य सुषुत य पी तः. सुकृ यया य वप यया चँ एकं वच चमसं चतुधा.. (२) इस तृतीय-सवन नामक य म ऋभु का र नदान मेरे पास आवे. तुम लोग ने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नचोड़ा आ सोम पया था. तुमने अपनी कुशलता एवं कम क इ छा ारा एक चमस के चार भाग कर दए थे. (२) कृणोत चमसं चतुधा सखे व श े य वीत. अथैत वाजा अमृत य प थां गणं दे वानामृभवः सुह ताः.. (३) हे ऋभुओ! तुमने चमस के चार टु कड़े करके कहा था—“हे म अ न! कृपा करो.” अ न ने उ र दया—“हे वाजगण एवं ऋभुओ! तुम कुशल लोग वग के माग से जाओ.” (३) कमयः व चमस एष आस यं का ेन चतुरो वच . अथा सुनु वं सवनं मदाय पात ऋभवो मधुनः सो य य.. (४) वह चमस कैसा था, जसे तुमने कुशलता से चार भाग म वभ कया था? हे ऋ वजो! ऋभु क स ता के लए सोम नचोड़ो. हे ऋभुओ! तुम मधुर सोमरस पओ. (४) श याकत पतरा युवाना श याकत चमसं दे वपानम्. श या हरी धनुतरावत े वाहावृभवो वाजर नाः.. (५) हे रमणीय सोम वाले ऋभुओ! तुमने अपने कम से माता- पता को युवा बनाया था. तुमने कमकौशल से ही चमस को चार भाग म बांटकर दे व के पीने यो य बनाया था. अपनी कुशलता से ही तुमने इं को ढोने वाले दो शी गामी घोड़ को बनाया था. (५) यो वः सुनो य भ प वे अ ां ती ं वाजासः सवनं मदाय. त मै र यमृभवः सववीरमा त त वृषणे म दसानाः.. (६) हे अ के वामी एवं कामवष ऋभुओ! दन क समा त पर जो यजमान तु हारी स ता के लए तेज नशे वाला सोम नचोड़ता है, तुम स होकर उसे पु -पौ से यु संप दे ते हो. (६) ातः सुतम पबो हय मा य दनं सवनं केवलं ते. समृभु भः पब व र नधे भः सख या इ चकृषे सुकृ या.. (७) हे ह र नामक अ के वामी इं ! तुम ातःकाल नचोड़े गए सोम को पओ. दोपहर का य तु हारा ही है. हे इं ! तुमने उ म कम ारा जन ऋभु को अपना म बनाया है उन र नदाता ऋभु के साथ तुम सोमपान करो. (७) ये दे वासो अभवता सुकृ या येना इवेद ध द व नषेद. ते र नं धात शवसो नपातः सौध वना अभवतामृतासः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋभुओ! तुम शोभन कम ारा दे व बने थे एवं ग के समान वगलोक म बैठे थे. तुम बल, पु एवं र नदान करो. हे सुध वा के पु ो! तुम मरणर हत ए थे. (८) य ृतीयं सवनं र नधेयमकृणु वं वप या सुह ताः. त भवः प र ष ं व एत सं मदे भ र ये भः पब वम्.. (९) हे शोभन हाथ वाले ऋभुओ! तुमने रमणीय कम क इ छा से तीसरे सवन को रमणीय सोमरस के दान से यु बनाया था, इस लए तुम मु दत इं य से भली कार नचोड़ा आ सोमरस पओ. (९)
सू —३६
दे वता—ऋभुगण
अन ो जातो अनभीशु यो३ रथ च ः प र वतते रजः. मह ो दे य वाचनं ामृभवः पृ थव य च पु यथ.. (१) हे ऋभुओ! तु हारे ारा अ नीकुमार को दया आ तीन प हय वाला रथ घोड़ और र सय के अभाव म भी आकाश म घूमता है. तु हारा यह काम शंसा के यो य है. यह कम तु हारे दे व व को स करता है. इसके ारा तुम धरती और आकाश का पोषण करते हो. (१) रथं ये च ु ः सुवृतं सुचेतसोऽ व र तं मनस प र यया. ताँ ऊ व१ य सवन य पीतय आ वो वाजा ऋभवो वेदयाम स.. (२) सुंदर अंतःकरण वाले ऋभु ने मन के यान से भली कार चलने वाले प हय से यु एवं कु टलताहीन रथ बनाया. हे वाजगण एवं ऋभुओ! इस तीसरे सवन म सोमरस पीने के लए हम तु ह बुलाते ह. (२) त ो वाजा ऋभवः सु वाचनं दे वेषु व वो अभव म ह वनम्. ज ी य स ता पतरा सनाजुरा पुनयुवाना चरथाय त थ.. (३) हे वाजगण, ऋभुगण एवं वभुगण! तु हारी यह वशेषता दे व म स अपने वृ माता- पता को दोबारा युवा एवं चलने- फरने यो य बनाया. (३)
है क तुमने
एकं व च चमसं चतुवयं न मणो गाम रणीत धी त भः. अथा दे वे वमृत वमानश ु ी वाजा ऋभव त उ यम्.. (४) हे ऋभुओ! तुमने एक चमस को चार भाग म बांटा एवं अपनी कुशलता से बना चमड़े वाली गाय को चमड़े से ढक दया. यही तुम म अमरता पाई जाती है. हे वाजगण एवं ऋभुओ! तु हारा यह काम शंसा करने यो य है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋभुतो र यः थम व तमो वाज ुतासो यमजीजन रः. व वत ो वदथेषु वा यो यं दे वासोऽवथा स वचष णः.. (५) वह मुख एवं अ यु धन ऋभु के पास से हमारे पास आवे, जसे स नेता ऋभु ने वाजगण के साथ मलकर उ प कया था. वभु ारा अ नीकुमार के लए बनाया रथ य म वशेष शंसनीय है. हे दे वो! तुम जसक र ा करते हो, वह वशेष प से शंसनीय बन जाता है. (५) स वा यवा य ऋ षवच यया स शूरो अ ता पृतनासु रः. स राय पोषं स सुवीय दधे यं वाजो व वाँ ऋभवो यमा वषुः.. (६) वाजगण, ऋभु एवं वभु जस मनु य क र ा करते ह, वह बलवान्, रणकुशल, ऋ ष, तु तयो य, शूर, श ु को हराने वाला, यु म अपराजेय तथा धन, पु एवं पु -पौ ा द धारण करने वाला होता है. (६) े ं वः पेशो अ ध धा य दशतं तोमो वाजा ऋभव तं जुजु न. धीरासो ह ा कवयो वप त ता व एना णा वेदयाम स.. (७) हे वाजगण एवं ऋभुगण! तु हारे ारा धारण कया आ प दशनीय होता है. हमने तु हारे यो य यह तो बनाया है, तुम इसे वीकार करो. हम तो ारा तुम बु मान् क व और ानी दे व को अपनी ाथना सुनाते ह. (७) यूयम म यं धषणा य प र व ांसो व ा नया ण भोजना. ुम तं वाजं वृषशु ममु ममा नो र यमृभव त ता वयः.. (८) हे ऋभुओ! हमारी तु त के बदले तुम मानव- हत करने वाली सभी उपभोग क व तु को जानकर बनाओ. हमारे न म द तसंप , श उ प करने वाला एवं बली श ु का नाश करने वाला अ उ प करो. (८) इह जा मह र य रराणा इह वो वीरव ता नः. येन वयं चतयेमा य या तं वाजं च मृभवो ददा नः.. (९) हे ऋभुओ! तुम हमारे इस य म स होकर पु -पौ ा द, धन एवं भृ य से यु यश संपादन करो. हम ऐसा सुंदर अ दो, जसे खाकर हम अ य लोग से े बन सक. (९)
सू —३७
दे वता—ऋभुगण
उप नो वाजा अ वरमृभु ा दे वा यात प थ भदवयानैः. यथा य ं मनुषो व वा३ सु द ध वे र वाः सु दने व ाम्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सुंदर ऋभुओ एवं वाजगण! जस कार तुम दवस को शोभन बनाने के लए मनु य का य धारण करते हो, उसी कार दे वमाग ारा हमारे य म आओ. (१) ते वो दे मनसे स तु य ा जु ासो अ घृत न णजो गुः. वः सुतासो हरय त पूणाः वे द ाय हषय त पीताः.. (२) आज हमारे वे सभी य तु हारे मन को स करने वाले बन एवं घी से मला आ सोमरस तु ह ा त हो. चमस म भरा आ सोमरस तु हारी इ छा करता है. वह पीने के प ात् तु ह य कम के लए े रत करे. (२) युदायं दे व हतं यथा वः तोमो वाजा ऋभु णो ददे वः. जु े मनु व परासु व ु यु मे सचा बृह वेषु सोमम्.. (३) हे वाजगण एवं ऋभुगण! तीन सवन म पीने यो य एवं दे व हतकारी सोम को जो लोग तु ह दे ते ह, इसी कार के लोग के बीच एक होकर एवं परम द काशयु दे व के म य मनु के समान बनकर हम तु हारे उ े य से सोम धारण करते ह. (३) पीवोअ ाः शुच था ह भूतायः श ा वा जनः सु न काः. इ य सूनो शवसो नपातोऽनु व े य यं मदाय.. (४) हे ऋभुओ! तुम व थ घोड़ एवं द तयु रथ वाले हो. तु हारी ठो ड़यां लोहे के समान ह. तुम अ के वामी एवं उ म दानशील हो. हे इं के पु ो एवं बल क संतानो! यह ातःकाल का य तु हारी स ता के लए कया गया है. (४) ऋभुमृभु णो र य वाजे वा ज तमं युजम्. इ (५)
व तं हवामहे सदासातमम नम्..
हे ऋभुओ! हम अ यंत प से बढ़ने वाले धन, सं ाम म परम श शाली र क तथा सदा दानशील, अ से यु एवं इं से संबं धत तु हारे गण को पुकारते ह. (५) से भवो यमवथ यूय म
म यम्. स धी भर तु स नता मेधसाता सो अवता.. (६)
हे ऋभुओ! तुम एवं इं जस य म अ यु बनता है. (६)
क र ा करते हो, वही
े बु
य से यु
एवं
व नो वाजा ऋभु णः पथ तन य वे. अ म यं सूरयः तुता व ा आशा तरीष ण.. (७) हे वाजगण एवं ऋभुओ! हम य का माग बताओ. हे मेधा वयो! हम अपनी तु त के बदले सारी दशा को जीतने वाला बल दो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं नो वाजा ऋभु ण इ नास या र यम्. सम ं चष ण य आ पु श त मघ ये.. (८) हे वाजगण, ऋभुओ, इं एवं अ नीकुमारो! तुम हम तु तक ा लोग को दे ने के न म अ धक मा ा म धन एवं अ का वचन दो. (८)
सू —३८
दे वता— ावा-पृ वी आ द
उतो ह वां दा ा स त पूवा या पू य सद यु नतोशे. े ासां ददथु वरासां घनं द यु यो अ भभू तमु म्.. (१) हे ावा-पृ वी! ाचीन काल म सद यु नामक राजा ने धन पाकर मांगने वाले लोग को दया था. तुमने उसे घोड़ा, पु एवं द युजन को न करने यो य बल दया था. (१) उत वा जनं पु न ष वानं द ध ामु ददथु व कृ म्. ऋ ज यं येनं ु षत सुमाशुं चकृ यमय नृप त न शूरम्.. (२) हे ावा-पृ वी! तुम दोन गमनशील, ब त से श ु को रोकने वाली, सम त जा क र ा करने वाली, शोभन-ग त वाली, द तशा लनी, तेज चलने वाली एवं राजा के समान शूर द ध ा को धारण करते हो. (२) यं सीमनु वतेव व तं व ः पू मद त हषमाणः. पड् भगृ य तं मेधयुं न शूरं रथतुरं वात मव ज तम्.. (३) धरती-आकाश उस द ध ा को धारण करते ह, जसक तु त स तापूवक सभी मनु य कया करते ह. जस तरह जल नीचे बहता है, वे उसी तरह ग तशील, यु क इ छा करने वाले, वीर के समान दशा को लांघने हेतु त पर, रथ पर बैठकर चलने वाले एवं हवा क तरह तेज चलने वाले ह. (३) यः मा धानो ग या सम सु सनुतर र त गोषु ग छन्. आ वऋजीको वदथा न च य रो अर त पयाप आयोः.. (४) जो दे व मले ए पदाथ को सं ाम म पृथक्-पृथक् करता आ उपभोग करने के लए सभी दशा म जाता है, जसक श कट है, जो जानने यो य बात को जानता है एवं तु त करने वाले यजमान के श ु का तर कार करता है. (४) उत मैनं व म थ न तायुमनु ोश त तयो भरेषु. नीचायमानं जसु र न येनं व ा छा पशुम च यूथम्.. (५) लोग सं ाम म द ध ा दे व को दे खकर उसी कार चीखते- च लाते ह, जस कार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कोई मनु य व चुराने वाले चोर को दे खकर च लाता है. जस कार नीचे क ओर उतरते ए भूखे बाज को दे खकर प ी भाग जाते ह, उसी कार अ एवं पशु समूह को न करने के वचार से चलने वाले द ध ा को दे खकर लोग भाग उठते ह. (५) उत मासु थमः स र य वेवे त े णभी रथानाम्. जं कृ वानो ज यो न शु वा रेणुं रे रह करणं दद ान्.. (६) द ध ा दे व असुर क सेना म जाने के इ छु क होकर उन म े थान पाते ए रथ क पं य के साथ चलते ह. वे मानव- हतकारी घोड़े के समान अलंकृत ह, धूल उड़ाते ह एवं लगाम को बार-बार चबाते ह. (६) उत य वाजी स रऋतावा शु ूषमाण त वा समय. तुरं यतीषु तुरय ृ ज योऽ ध ुवोः करते रेणुमृ न्.. (७) द ध ा दे व इस कार के घोड़ के समान यु म सहनशील, श ु के अ पर अ धकार करने वाले, अपने अंग से ही अपनी सेवा करने वाले, सीधे चलने वाले, असुर सेना म वेगपूण, धूल उड़ाने वाले एवं उस धूल को अपनी ही भ ह पर गराने वाले ह. (७) उत मा य त यतो रव ोऋघायतो अ भयुजो भय ते. यदा सह म भ षीमयोधी वतुः मा भव त भीम ऋ न्.. (८) असुर द ध ा दे व से इस कार डरते ह, जस कार लड़ने वाले लोग श द करते ए व से डरते ह. वे चार ओर हजार लोग से यु करते ए उ े जत अव था म अ यंत भयंकर लगते ह. कोई भी उ ह रोकने का साहस नह कर पाता. (८) उत मा य पनय त जना जू त कृ ो अ भभू तमाशोः. उतैनमा ः स मथे वय तः परा द ध ा असर सह ैः.. (९) मनु य इन द ध ा दे व क सवा धक ग त क तु त करते ह. वे मनु य क अ भलाषा पूरी करने वाले एवं ा त ह. वे इनसे कहते ह क जब आप हजार सै नक के साथ चलगे तो श ु हार जाएंगे. (९) आ द ध ाः शवसा प च कृ ीः सूय इव यो तषाप ततान. सह साः शतसा वा यवा पृण ु म वा स ममा वचां स.. (१०) सूय जस कार अपनी यो त से जल का व तार करते ह, उसी कार द ध ा दे व अपने बल से पांच कार क जा क वृ करते ह. सैकड़ और हजार धन दे ने वाले वेगशाली द ध ा दे व हमारी तु तयां सुनकर मधुर फल द. (१०)
सू —३९
दे वता—द ध ा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आशुं द ध ां तमु नु वाम दव पृ थ ा उत च कराम. उ छ तीमामुषसः सूदय व त व ा न रता न पषन्.. (१) हम शी ग त वाले द ध ा दे व क ज द -ज द तु त करगे. हम धरती और आकाश से उनके सामने घास फकगे. अंधकार नाश करने वाली उषाएं हमारी र ा कर एवं सब सुख से हम पार लगाव. (१) मह क यवतः तु ा द ध ा णः पु वार य वृ णः. यं पू यो द दवांसं ना नं ददथु म ाव णा ततु रम्.. (२) य कम करने वाला म महान्, ब त ारा इ छत एवं कामवष द ध ा दे व क तु त करता ं. हे म व व ण! तुम दोन र ा करने वाले एवं अ न क तरह काशयु द ध ा दे व को मानव के क याण के लए धारण करते हो. (२) यो अ य द ध ा णो अकारी स म े अ ना उषसो ु ौ. अनागसं तम द तः कृणोतु स म ेण व णेना सजोषाः.. (३) जो यजमान उषा के फैलने एवं य ा न के व लत होने पर अ पधारी द ध ा दे व क तु त करते ह, द ध ा दे व अ द त, म और व ण के साथ मलकर उसे पापर हत बनाते ह. (३) द ध ा ण इष ऊज महो यदम म ह म तां नाम भ म्. व तये व णं म म नं हवामह इ ं व बा म्.. (४) हम अ एवं बल के साधक, महान् एवं तु तक ा के क याणक ा द ध ा दे व क तु त करगे. हम व ण, म , अ न एवं व धारी इं को अपने क याण के लए बुलाते ह. (४) इ मवे भये व य त उद राणा य मुप य तः. द ध ामु सूदनं म याय ददथु म ाव णा नो अ म्.. (५) यु के लए उ ोग करने वाले एवं य क तैयारी करने वाले, ये दोन लोग इं के समान ही द ध ा दे व को भी बुलाते ह. हे म व ण! तुम मनु य को ेरणा दे ने वाले अ पी द ध ा दे व को धारण करते हो. (५) द ध ा णो अका रषं ज णोर य वा जनः. सुर भ नो मुखा कर ण आयूं ष ता रषत्.. (६) हम जयशील, ापक एवं वेगशाली द ध ा दे व क तु त करते ह. वे हमारी च ु आ द इं य को आनं दत एवं हमारी आयु को अ धक कर. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —४०
दे वता—द ध ा
द ध ा ण इ न च कराम व ा इ मामुषसः सूदय तु. अपाम ने षसः सूय य बृह पतेरा रस य ज णोः.. (१) हम द ध ा दे व क शी तु त करते ह. सम त उषाएं हम य कम क जल, अ न, उषा, सूय, बृह प त एवं अं गरापु ज णु क तु त करगे. (१)
ेरणा द. हम
स वा भ रषो ग वषो व यस व या दष उषस तुर यसत्. स यो वो वरः पत रो द ध ावेषमूज वजनत्.. (२) चलने वाले, भरणकुशल, गाय को े रत करने वाले एवं सेवा के इ छु क म रहने वाले द ध ा दे व इ छत उषाकाल म अ क कामना कर. शी ता से चलने वाले, स य प से चलने वाले, वेगशाली एवं उछल-उछल कर चलने वाले द ध ा दे व अ , बल एवं वग को उ प कर. (२) उत मा य वत तुर यतः पण न वेरनु वा त ग धनः. येन येव जतो अङ् कसं प र द ध ा णः सहोजा त र तः.. (३) जस कार प ीसमूह प य के पीछे -पीछे उड़ता है, उसी कार वेगवान् लोग शी चलने वाले एवं अ धक अ भलाषायु द ध ा दे व का अनुगमन कर. वे येन प ी के समान तेज उड़ने वाले एवं र क ह. सब लोग अ क इ छा से इनके साथ चलते ह. (३) उत य वाजी प ण तुर य त ीवायां ब ो अ पक आस न. तुं द ध ा अनु संतवी व पथामङ् कां य वापनीफणत्.. (४) अ पी द ध ा दे व ीवा, क ा एवं मुख म बंधे होकर भी चलने के लए शी ता करते ह. ये अ धक बलशाली होकर य क ओर जाने वाले टे ढ़े रा त पर सब जगह शी चलते ह. (४) हंसः शु चष सुर त र स ोता वे दषद त थ रोणसत्. नृष रस तसद् ोमसद जा गोजा ऋतजा अ जा ऋतम्.. (५) सूय द तशाली आकाश म रहते ह. वायु अंत र म नवास करते ह. होता वेद पर थत रहते ह. अ त थ घर म नवास करते ह. ऋत मनु य म, उ म थान म, य म एवं आकाश म नवास करते ह तथा जल, सूय करण , स य एवं पवत म उ प ए ह. (५)
सू —४१
दे वता—इं एवं व ण
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ा को वां व णा सु नमाप तोमो ह व माँअमृतो न होता. यो वां द तुमाँ अ म ः प पश द ाव णा नम वान्.. (१) हे इं एवं व ण! अमर होता अ न जस कार तु ह ा त होता है, उसी कार कौन सी ह स हत तु त तु हारी कृपा करेगी? हे इं एवं व ण! हमारे ारा कही गई तु तयां य एवं ह से यु तुम दोन को पसंद आव. (१) इ ा ह यो व णा च आपी दे वौ मतः स याय य वान्. स ह त वृ ा स मथेषु श ूनवो भवा मह ः स शृ वे.. (२) हे इं एवं व ण! जो ह प म अ लेकर म ता के लए तुम दोन को भाई बनाता है, वह अपने पाप का नाश करता है. वह यु म श ु को न करके महान् र ासाधन के कारण स होता है. (२) इ ा ह र नं व णा धे े था नृ यः शशमाने य ता. यद सखाया स याय सोमैः सुते भः सु यसा मादयैते.. (३) हे इं एवं व ण! तुम इस कार तु त करने वाले हम मनु य के लए रमणीय धन दे ने वाले बनो. य द तुम दोन म यजमान के सखा हो एवं उसके ारा नचोड़े ए सोमरस से स हो तो हम धन दो. (३) इ ा युवं व णा द ुम म ो ज मु ा न व ध ं व म्. यो नो रेवो वृक तदभी त त म ममाथाम भभू योजः.. (४) हे उ इं एवं व ण! तुम अपना तेज वी एवं द त व नामक आयुध श ु पर चलाओ. जो श ु हमारे ारा दमन नह कया जा सकता, दान नह दे ता एवं हसा करने वाला है, उसके त तुम अपना श ुपराजयकारी बल योग करो. (४) इ ा युवं व णा भूतम या धयः ेतारा वृषभेव धेनोः. सा नो हीय वसेव ग वी सह धारा पयसा मही गौः.. (५) हे इं एवं व ण! बैल जस कार गाय को स करता है, उसी कार तुम तु त को स करो. जस कार गाय घास खाकर हजार धार के प म ध दे ती ह, उसी कार तु त पी गाय हमारी इ छा पूरी करे. (५) तोके हते तनय उवरासु सूरो शीके वृषण प ये. इ ा नो अ व णा यातामवो भद मा प रत यायाम्.. (६) हे इं एवं व ण! हम पु -पौ के साथ-साथ उपजाऊ भू म क ा त कराने, ब त समय तक सूय के दशन कराने एवं संतान उ प क श दान करने के लए अंधेरी रात ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म र ासाधन लेकर तुम श ु
के नाश को तैयार हो जाओ. (६)
युवा म वसे पू ाय प र भूती ग वषः वापी. वृणीमहे स याय याय शूरा मं ह ा पतरेव श भू.. (७) हे इं एवं व ण! हम गाय पाने क इ छा से तु हारे पास स र ा क ाथना लेकर आए ह. तुम श शाली, बंधुतु य, शूर एवं अ तशय पू य दे व से हम उसी कार म एवं ेम मांगते ह, जस कार पु पता से याचना करता है. (७) ता वां धयोऽवसे वाजय तीरा ज न ज मुयुवयूः सुदानू. ये न गाव उप सोमम थु र ं गरो व णं मे मनीषाः.. (८) हे शोभन फल दे ने वाले दोन दे वो! र न क अ भलाषा करती ई हमारी तु तयां र ा के न म उसी कार तु हारे पास जाती ह, जस कार वीर पु ष सं ाम क अ भलाषा करता है. जस कार गाएं सोमरस क शोभा बढ़ाने के हेतु उसके समीप रहती ह, उसी कार हमारी तु तयां इं और व ण के समीप जाती ह. (८) इमा इ ं व णं मे मनीषा अ म ुप वण म छमानाः. उपेम थुज ार इव व वो र वी रव वसो भ माणाः.. (९) जस कार धन पाने क इ छा से लोग धनी के पास जाते ह, उसी कार हमारी तु तयां धन पाने क अ भलाषा से इं और व ण के पास जाती ह. लोग भखा रणी य के समान अ को मांगते ए इं के पास जाते ह. (९) अ य मना र य य पु े न य य रायः पतयः याम. ता च ाणा ऊ त भन सी भर म ा रायो नयुतः सच ताम्.. (१०) हम लोग अपने-आप घोड़ , रथ , पु एवं थायी संप के वामी बन. वे दोन ग तशील दे व र ा के नवीन साधन के साथ हमारे सामने घोड़े और धन उप थत कर. (१०) आ नो बृह ता बृहती भ ती इ यातं व ण वाजसातौ. य वः पृतनासु ळा त य वां याम स नतार आजेः.. (११) हे महान् इं एवं व ण! तुम दोन वशाल र ा साधन के साथ आओ. अ ा त के हेतु होने वाले जस यु म श ु के आयुध चमकते ह, हम उस यु म तु हारी कृपा से वजयी ह . (११)
सू —४२
दे वता— सद यु आ द
मम ता रा ं य य व ायो व े अमृता यथा नः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुं सच ते व ण य दे वा राजा म कृ े पम य व ेः.. (१) य जा त म उ प एवं सम त जा के वामी हम लोग का रा य दो कार का है. सम त दे व हमारे ह, जैसे क सारी जा हमारी है. पवान् एवं सम त जा के धारणक ा हम लोग के य क सेवा दे व करते ह. हम सबसे े ह. (१) अहं राजा व णो म ं ता यसुया ण थमा धारय त. तुं सच ते व ण य दे वा राजा म कृ े पम य व ेः.. (२) हम ही राजा व ण ह. दे वगण असुरनाशकारी े -बल हमारे लए ही धारण करते ह. पवान् एवं सम त जा के धारणक ा हम लोग के य क सेवा दे व करते ह. हम सबसे े ह. (२) अह म ो व ण ते म ह वोव गभीरे रजसी सुमेके. व ेव व ा भुवना न व ा समैरयं रोदसी धारयं च.. (३) हम ही इं और व ण ह. मह ा के कारण व तृत, गंभीर एवं सुंदर प वाले धरतीआकाश भी हम ह. व ान् हम व ा के समान सम त ा णय को ेरणा दे ते ह एवं धरतीआकाश को धारण करते ह. (३) अहमपो अ प वमु माणा धारयं दवं सदन ऋत य. ऋतेन पु ो अ दतेऋतावोत धातु थय भूम.. (४) स चने वाले जल को हमने ही बरसाया था एवं जल के थान आकाश को धारण कया था. जल के कारण ही हम अ द त-पु अथात् य के वामी बने थे. हमने ही ा त आकाश को तीन भाग म बांटा था. (४) मां नरः व ा वाजय तो मां वृताः समरणे हव ते. कृणो या ज मघवाह म इय म रेणुम भभू योजाः.. (५) सुंदर घोड़ के वामी एवं यु के अ भलाषी नेता हमारे ही पीछे चलते ह एवं यु थल म एक होकर हम ही पुकारते ह. हम ही इं बनकर यु करते ह एवं श ुपराभवकारी बल से यु होकर धूल उड़ाते ह. (५) अहं ता व ा चकरं न कमा दै ं सहो वरते अ तीतम्. य मा सोमासो ममद य थोभे भयेते रजसी अपारे.. (६) सब स काम हमने ही कए ह. दे व के न हारने वाले बल से यु होने के कारण हम कोई नह रोक सकता. जब सोमरस एवं तु तयां हम मतवाला कर दे ती ह, तब व तृत धरती-आकाश भी डर जाते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व े व ा भुवना न त य ता वी ष व णाय वेधः. वं वृ ा ण शृ वषे जघ वा वं वृताँ अ रणा इ स धून्.. (७) हे व ण! तु हारे काम को सारा संसार जानता है. हे तोता! व ण के न म तु त बोलो. हे इं ! ऐसा सुना जाता है क तुमने बै रय का वध कया था. तुमने ढक ई न दय को वा हत कया था. (७) अ माकम पतर त आस स त ऋषयो दौगहे ब यमाने. त आयज त सद युम या इ ं न वृ तुरमधदे वम्.. (८) गह के पु पु कु स जब कैद कर लए गए तो स तऋ ष हमारे इस रा य के पालनक ा बने थे. उ ह ने पु कु स क प नी के क याण के लए य करके सद यु को पाया था. वह इं के समान श ुनाशक एवं आधा दे व था. (८) पु कु सानी ह वामदाश े भ र ाव णा नमो भः. अथा राजानं सद युम या वृ हणं दथुरधदे वम्.. (९) हे इं एवं व ण! स तऋ षय क ेरणा से पु कु स क प नी ने ह एवं तु तय ारा तु ह स कया था. इसके बाद तुमने उसे श ुनाशकारी एवं आधे दे व सद यु को दान कया था. (९) राया वयं ससवांसो मदे म ह ेन दे वा यवसेन गावः. तां धेनु म ाव णा युवं नो व ाहा ध मनप फुर तीम्.. (१०) हम तुम दोन क तु त करके धन ारा स ह . दे वगण ह ारा एवं गाएं घास से संतु ह . हे इं एवं व ण! व का नाश करने वाले तुम दोन हम हसार हत धन दो. (१०)
सू —४३
दे वता—अ नीकुमार
क उ व कतमो य यानां व दा दे वः कतमो जुषाते. क येमां दे वीममृतेषु े ां द ेषाम सु ु त सुह ाम्.. (१) य के यो य दे व म कौन दे व इस तु त को सुनेगा? कौन वंदनशील दे व इसे वीकार करेगा? हम इस अ तशय य, ु तयु , शोभन-अ से यु , इस उ म तु त को कस दे व के दय म थान दलाएं? (१) को मृळा त कतम आग म ो दे वानामु कतमः श भ व ः. रथं कमा वद माशुं यं सूय य हतावृणीत.. (२) हम कौन सा दे वता सुखी करेगा? कौन दे वता हमारे य म सबसे पहले आएगा? दे व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के म य कौन सा दे व हमारा अ धक क याण करेगा? शी दौड़ने वाला रथ कौन सा है, जसने सूय क पु ी का वरण पाया है? ता पय यह है क उ गुण केवल अ नीकुमार म ही ह. (२) म ू ह मा ग छथ ईवतो ू न ो न श प रत यायाम्. दव आजाता द ा सुपणा कया शचीनां भवथः श च ा.. (३) रा बीतने पर इं अपनी श का दशन करते ह. हे अ नीकुमारो! तुम दोन उसी कार ग तशील होकर सोम नचोड़ने वाले दवस म शी आओ. वग से आए ए, द गुणयु एवं शोभन ग त वाले तुम दोन के कम म कौन सा कम े है? (३) का वां भू पमा तः कया न आ ना गमथो यमाना. को वां मह यजसो अभीक उ यतं मा वी द ा न ऊती.. (४) कौन सी तु त तुम दोन के गुण क सीमा हो सकती है? हे अ नीकुमारो! कस तु त ारा बुलाए जाने पर तुम दोन हमारे पास आओगे? तु हारे महान् ोध को समीप म कौन सह सकता है? हे जल नमाता एवं श ुनाशकारी अ नीकुमारो! हमारी र ा करो. (४) उ वां रथः प र न त ामा य समु ाद भ वतते वाम्. म वा मा वी मधु वां ुषाय य स वां पृ ो भुरज त प वाः.. (५) हे अ नीकुमारो! तुम दोन का रथ वगलोक के चार ओर भली कार चलता है एवं समु से तु हारे पास आता है. हे जल- नमाता एवं श ु वनाशक अ नीकुमारो! अ वयु लोग मधुर ध के साथ सोमरस मलाते ए भुने ए जौ लेकर उप थत ह. (५) स धुह वां रसया स चद ा घृणा वयोऽ षासः प र मन्. त षु वाम जरं चे त यानं येन पती भवथः सूयायाः.. (६) बादल ने अपने जल से तुम दोन के घोड़ को भगोया था. तु हारे द तयु घोड़े प य के समान तेज चलते ह. तु हारा वह रथ भली कार स है, जस पर तुम सूयपु ी को बैठाकर लाए थे. (६) इहेह य ां समना पपृ े सेयम मे सुम तवाजर ना. उ यतं ज रतारं युवं ह तः कामो नास या युव क्.. (७) हे समान मन वाले अ नीकुमारो! हम जो तु त तु हारे समीप भेजते ह, वह हमारे लए फल दे ने वाली हो. हे सुंदर अ वाले अ नीकुमारो! तुम तु त करने वाले क र ा करो. हे नास यो! हमारी कामना तु हारे ही आ त है. (७)
सू —४४
दे वता—अ नीकुमार
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं वां रथं वयम ा वेम पृथु यम ना स त गोः. यः सूया वह त व धुरायु गवाहसं पु तमं वसूयुम्.. (१) हे अ नीकुमारो! हम तु हारे शी चलने वाले एवं गाय से मलाने वाले रथ को पुकारते ह. वह रथ सूयक या को धारण करने वाला, बैठने के न म का आसन से यु , तु तयां ा त करने वाला एवं अ धक संप यु है. (१) युवं यम ना दे वता तां दवो नपाता वनथः शची भः. युवोवपुर भ पृ ः सच ते वह त य ककुहासो रथे वाम्.. (२) हे वगपु अ नीकुमारो! तुम दोन दे व अपने कम ारा स शोभा ा त करते हो. जब महान् अ तु ह रथ म ढोते ह, तब सोमरस तु हारे शरीर को ा त करता है. (२) को वाम ा करते रातह ऊतये वा सुतपेयाय वाकः. ऋत य वा वनुषे पू ाय नमो येमानो अ ना ववतत्.. (३) आज सोम दे ने वाला कौन सा यजमान अपनी र ा, सोमरसपान अथवा य क पू त के लए तु तय ारा शंसा करता है? हे अ नीकुमारो! नम कार करने वाला कौन तु ह अपने य क ओर ख चता है? (३) हर ययेन पु भू रथेनेमं य ं नास योप यातम्. पबाथ इ मधुनः सो य य दधथो र नं वधते जनाय.. (४) हे अनेक पधारी अ नीकुमारो! तुम दोन अपने वण न मत रथ ारा इस य आओ, मधुर सोमरस पओ एवं सेवा करने वाले यजमान को रमणीय धन दो. (४)
म
आ नो यातं दवो अ छा पृ थ ा हर ययेन सुवृता रथेन. मा वाम ये न यम दे वय तः सं य दे ना भः पू ा वाम्.. (५) तुम दोन वण न मत एवं भली कार घूमने वाले रथ ारा वग से हमारे पास आते हो. तु हारी अ भलाषा करने वाले अ य यजमान तु ह रोक न ल, इसी लए हमने पहले तु हारी तु त कर ली है. (५) नू नो र य पु वीरं बृह तं द ा ममाथामुभये व मे. नरो य ाम ना तोममाव सध तु तमाजमी हासो अ मन्.. (६) हे अ नीकुमारो! तुम अनेक पु -पौ से यु महान् धन शी दो. पु मीढ के ऋ वज ने तु हारी तु त क है और अजमीढ के ऋ वज ने उसका साथ दया है. (६) इहेह य ां समना पपृ े सेयम मे सुम तवाजर ना. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ यतं ज रतारं युवं ह
तः कामो नास या युव क्.. (७)
हे समान मन वाले अ नीकुमारो! हम जो तु त तु हारे समीप भेजते ह, वह हमारे लए फल दे ने वाली हो. हे सुंदर अ वाले अ नीकुमारो! तुम तु त करने वाले क र ा करो. हे नास यो! हमारी कामना तु हारे ही आ त है. (७)
सू —४५
दे वता—अ नीकुमार
एष य भानु दय त यु यते रथः प र मा दवो अ य सान व. पृ ासो अ म मथुना अ ध यो त तुरीयो मधुनो व र शते.. (१) यह सूय उदय होता है. तुम दोन का रथ सभी ओर चलता है एवं चमकते ए सूय के साथ ऊंचे थान म प ंचता है. इस रथ के ऊपरी भाग म तीन कार का अ मला आ है तथा चौथी सं या सोमरस से भरे ए चमड़े के पा क है. (१) उ ां पृ ासो मधुम त ईरते रथा अ ास उषसो ु षु. अपोणुव त तम आ परीवृतं व१ण शु ं त व त आ रजः.. (२) तीन कार के अ से यु , सोमरस-स हत एवं घोड़ वाला तु हारा रथ उषा के आरंभकाल म ही चार ओर फैले ए अंधकार को न करता आ एवं सूय के समान तेज को फैलाता आ सामने क ओर जाता है. (२) म वः पबतं मधुपे भरास भ त यं मधुने यु ाथां रथम्. आ वत न मधुना ज वथ पथो त वहेथे मधुम तम ना.. (३) तुम सोम पीने वाले मुख से सोम पओ. सोम पाने के लए तुम अपना य रथ अ यु करके यजमान के घर तक लाओ. हे अ नीकुमारो! तुम सोमरसपूण चमड़े का पा धारण करके अपने माग सोमरस ारा स तापूण बनाओ. (३) हंसासो ये वां मधुम तो अ धो हर यपणा उ व उषबुधः. उद ुतो म दनो म द न पृशो म वो न म ः सवना न ग छथः.. (४) तु हारे पास माग म शी चलने वाले, माधुययु , ोह न करने वाले, सुनहरे रंग के पंख से यु , ढोने वाले, ातःकाल म जागने वाले, जल फैलाने वाले, स तादाता एवं सोम का पश करने वाले घोड़े ह. उन घोड़ ारा तुम हमारे य म उसी कार आओ, जस कार शहद क म खी शहद के पास जाती है. (४) व वरासो मधुम तो अ नय उ ा जर ते त व तोर ना. य ह त तर ण वच णः सोमं सुषाव मधुम तम भः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं यु जल से हाथ धोने वाले, य कम के पूरक एवं सभी बात को दे खने वाले अ वयु प थर क सहायता से जब सोमरस नचोड़ते ह, तब उ म य के साधन एवं सोमयु गाहप य आ द अ न एक साथ रहने वाले अ नीकुमार क त दन तु त करते ह. (५) आके नपासो अह भद व वतः व१ण शु ं त वतः आ रजः. सूर द ा युयुजान ईयते व ाँ अनु वधया चेतथ पथः.. (६) करण दवस के ारा अंधकार को न करती ई सूय के समान उ वल तेज का व तार करती ह. हे अ नीकुमारो! सूय अपने रथ म घोड़े जोड़कर चलते ह. तुम दोन सोमरस लेकर चलते ए उनका रा ता बताओ. (६) वामवोचम ना धय धा रथः व ो अजरो यो अ त. येन स ः प र रजां स याथो ह व म तं त रणं भोजम छ.. (७) हे अ नीकुमारो! य कम करने वाले हम तु हारी तु त करते ह. तु हारा रथ शोभन अ वाला एवं न य त ण है. उसके ारा तुम तुरंत तीन लोक म घूम आते हो. उसीसे तुम हमारे ह यु , शी गामी एवं भोजयु य म आओ. (७)
सू —४६
दे वता—वायु एवं इं
अ ं पबा मधूनां सुतं वायो द व षु. वं ह पूवपा अ स.. (१) हे वायु! वग ा त कराने वाले य म तुम सबसे पहले नचोड़े ए सोमरस को पओ. तुम सबसे पहले सोम पीने वाले हो. (१) शतेना नो अ भ
भ नयु वाँ इ सार थः. वायो सुत य तृ पतम्.. (२)
हे वायु! तुम नयुत अथात् लोकक याण वाले हो एवं इं तु हारे सार थ ह. तुम अग णत अ भलाषाएं पूण करने हेतु आओ एवं नचोड़ा आ सोमरस पओ. (२) आ वां सह ं हरय इ वायू अ भ यः. वह तु सोमपीतये.. (३) हे इं एवं वायु! सोमरस पीने के लए हजार घोड़े तु ह यहां लाव. (३) रथं हर यव धुर म वायू व वरम्. आ ह थाथो द व पृशम्.. (४) हे इं एवं वायु! तुम वण न मत आसन वाले, शोभन-य -यु रथ पर बैठो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं वग को छू ने वाले
रथेन पृथुपाजसा दा ांसमुप ग छतम्. इ वायू इहा गतम्.. (५) हे इं एवं वायु! तुम अ धक श प ंचने के लए इस य म आओ. (५)
शाली रथ
ारा ह
दे ने वाले यजमान के समीप
इ वायू अयं सुत तं दे वे भः सजोषसा. पबतं दाशुषो गृहे.. (६) हे इं और वायु! तुम दोन अ य दे व के साथ मै ीपूण बनकर ह के घर म इस सोम को पओ. (६)
दे ने वाले यजमान
इह याणम तु वा म वायू वमोचनम्. इह वां सोमपीतये.. (७) हे इं और वायु! तुम यहां आओ और सोमरस पीने के लए यहां अपने घोड़े रथ से अलग करो. (७)
सू —४७
दे वता—इं , वायु
वायो शु ो अया म ते म वो अ ं द व षु. आ या ह सोमपीतये पाह दे व नयु वता.. (१) हे वायु! म तचया द ारा प व होकर सबसे पहले तु हारे न म मधुर सोमरस लाता ,ं य क म वग म जाना चाहता ं. हे अ भषवणीय दे व! तुम अपने अ ारा सोमपान के लए यहां आओ. (१) इ वायवेषां सोमानां पी तमहथः. युवां ह य ती दवो न नमापो न स यक्.. (२) हे वायु! तुम और इं इन सोम को पीने क यो यता रखते हो. इस तरह सोम तुम दोन के पास जाते ह, जैसे जल नीचे थान क ओर चलता है. (२) वाय व शु मणा सरथं शवस पती. नयु व ता न ऊतय आ यातं सोमपीतये.. (३) हे वायु! तुम और इं बल के वामी हो एवं घोड़ से यु लोग क र ा एवं सोमपान करने के लए यहां आओ. (३)
एक ही रथ पर चढ़ते हो. हम
या वां स त पु पृहो नयुतो दाशुषे नरा. अ मे ता य वाहसे वायू न य छतम्.. (४) हे नेता एवं य पूणक ा इं व वायु! तु हारे पास ब त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा अ भल षत अ ह, उ ह
हम ह दाता
को दे दो. (४)
दे वता—वायु
सू —४८ व ह हो ा अवीता वपो न रायो अयः. वायवा च े ण रथेन या ह सुत य पीतये.. (१)
हे वायु! तुम श ु को भयकं पत करने वाले राजा के समान सर ारा बना पया आ सोम सबसे पहले पओ एवं तु तक ा को धनसंप करो. हे वायु! तुम सोमरस पीने के लए स तादायक रथ ारा आओ. (१) नयुवाणो अश ती नयु वाँ इ सार थः. वायवा च े ण रथेन या ह सुत य पीतये.. (२) हे वायु! तुम सभी शंसा से यु , घोड़ के वामी एवं इं के सहायक बनकर अपने अ दाता रथ ारा सोम पीने हेतु आओ. (२) अनु कृ णे वसु धती येमाते व पेशसा. वायवा च े ण रथेन या ह सुत य पीतये.. (३) हे वायु! काले रंग वाले, धन को धारण करने वाले एवं व यु पीछे चलते ह. तुम आनंददायक रथ ारा सोम पीने हेतु आओ. (३)
धरती-आकाश तु हारे
वह तु वा मनोयुजो यु ासो नव तनव. वायवा च े ण रथेन या ह सुत य पीतये.. (४) हे वायु! मन के समान ती ग त वाले एवं एक- सरे से मलकर चलने वाले न यानवे घोड़े तु ह लाते ह. हे वायु! तुम अपने आनंद द रथ ारा सोम पीने के लए आओ. (४) वायो शतं हरीणां युव व पो याणाम्. उत वा ते सह णो रथ आ यातु पाजसा.. (५) हे वायु! तुम सौ व थ अ तु हारा रथ शी ता से आवे. (५)
सू —४९ इदं वामा ये ह वः
को अपने रथ म जोड़ो अथवा हजार को. उनसे यु
दे वता—इं , बृह प त य म ाबृह पती. उ थं मद श यते.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं एवं बृह प त! तुम दोन के मुख म सोम आनंद दे ने वाली तु तयां भी बोली जा रही ह. (१)
प ह व डालने के साथ-साथ तु ह
अयं वां प र ष यते सोम इ ाबृह पती. चा मदाय पीतये.. (२) हे इं एवं बृह प त! यह सोमरस पीने के न म तु हारे मुंह म डाला जाता है. (२) आ न इ ाबृह पती गृह म (३)
एवं तु ह स ता दे ने के ल य से
ग छतम्. सोमपा सोमपीतये.. (३)
हे सोमपानक ा इं एवं बृह प त! तुम दोन सोमरस पीने के लए हमारे घर आओ. अ मे इ ाबृह पती र य ध ं शत वनम्. अ ाव तं सह णम्.. (४) हे इं एवं बृह प त! हम सौ गाय एवं हजार घोड़ से यु
धन दान करो. (४)
इ ाबृह पती वयं सुते गी भहवामहे. अ य सोम य पीतये.. (५) हे इं एवं बृह प त! हम सोम नचुड़ जाने पर सोमरस पीने के लए तु तय दोन को बुलाते ह. (५)
ारा तुम
सोम म ाबृह पती पबतं दाशुषो गृहे. मादयेथां तदोकसा.. (६) हे इं एवं बृह प त! तुम ह करके स बनो. (६)
सू —५०
दे ने वाले यजमान के घर म सोम पओ एवं वह नवास
दे वता—बृह प त आ द
य त त भ सहसा व मो अ ता बृह प त षध थो रवेण. तं नास ऋषयो द यानाः पुरो व ा द धरे म ज म्.. (१) य का पालन करने वाले एवं श द के ारा तीन थान म वतमान बृह प त ने अपनी श ारा दस दशा को थर कया है. स तादायक जीभ वाले बृह प तय को ाचीन ऋ षय एवं मेधा वय ने सबसे आगे था पत कया था. (१) धुनेतयः सु केतं मद तो बृह पते अ भ ये न तत े. पृष तं सृ मद धमूव बृह पते र ताद य यो नम्.. (२) हे शोभन बु वाले बृह प त! तुम उन ऋ वज के लए फलदाता, उ त करने वाले एवं अ हसक बनकर उनके वशाल य क र ा करते हो जो तु ह स करते ह, तु हारी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु त करते ह एवं जनके चलने से श ु कांप उठते ह. (२) बृह पते या परमा परावदत आ ऋत पृशो न षे ः. तु यं खाता अवता अ धा म वः ोत य भतो वर शम्.. (३) हे बृह प त! तु हारे य म आने वाले अ परम उ च थान वग से आते ह. जस कार खोदे ए कुएं म चार ओर से धाराएं नकलती ह, उसी कार प थर क सहायता से नचोड़े गए सोमरस तु तय के साथ तु ह गीला बनाव. (३) बृह प तः थमं जायमानो महो यो तषः परमे ोमन्. स ता य तु वजातो रवेण व स तर मरधम मां स.. (४) बृह प त महान् द तशाली सूय के वशाल आकाश म जब पहली बार उ प ए थे, तब उ ह ने सात मुख वाला, अनेक कार का प धारण करके, श दयु एवं ग तशील तेज से एकाकार होकर अंधकार का नाश कया था. (४) स सु ु भा स ऋ वता गणेन वलं रोज फ लगं रवेण. बृह प त या ह सूदः क न द ावशती दाजत्.. (५) बृह प त ने शोभन तु त करने वाले एवं द तसंप अं गरा के साथ मलकर श द करते ए बल नामक असुर को न कया था एवं श द करते ए ही ह क ेरणा करने वाली रंभाती ई गाय को बाहर नकाला था. (५) एवा प े व दे वाय वृ णे य ै वधेम नमसा ह व भः. बृह पते सु जा वीरव तो यं याम पतयो रयीणाम्.. (६) हम लोग इसी तरह पालक, सब दे व के त न ध एवं कामवष बृह प त क सेवा ह , य एवं तु तय ारा करगे. हे बृह प त! इस कार हम उ म संतान एवं वीर सै नक स हत धन के वामी हो सकगे. (६) स इ ाजा तज या न व ा शु मेण त थाव भ वीयण. बृह प त यः सुभृतं बभ त व गूय त व दते पूवभाजम्.. (७) वही राजा अपनी श के ारा सभी श ु के बल को हराता है जो बृह प त का भली कार भरण-पोषण करता है और सव थम भाग पाने वाले के प म उनक तु त करता है. (७) स इ े त सु धत ओक स वे त मा इळा प वते व दानीम्. त मै वशः वयमेवा नम ते य म ा राज न पूव ए त.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वही राजा भली कार तृ त होकर अपने घर म रहता है, धरती उसे सभी काल म फल से बढ़ाती है एवं जाएं अपने आप उसके सामने झुक रहती ह, जस राजा के समीप ा सबसे पहले जाते ह. (८) अ तीतो जय त सं धना न तज या युत या सज या. अव यवे यो व रवः कृणो त णे राजा तमव त दे वाः.. (९) वह राजा बाधा के बना श ु एवं अपनी जा के धन पर अ धकार करके महान् बनता है एवं दे व उसी क र ा करते ह, जो धनहीन एवं र ा के इ छु क ा ण को धन दे ता है. (९) इ सोमं पबतं बृह पतेऽ म य े म दसाना वृष वसू. आ वां वश व दवः वाभुवोऽ मे र य सववीरं न य छतम्.. (१०) हे बृह प त! तुम और इं इस य म स होकर यजमान को धन दो एवं सोमरस पओ. संपूण शरीर को ा त करने म समथ सोम तु हारे शरीर म वेश करे. तुम हम पु पौ यु धन दान करो. (१०) बृह पत इ वधतं नः सचा सा वां सुम तभू व मे. अ व ं धयो जगृतं पुर धीजज तमय वनुषामरातीः.. (११) हे बृह प त और इं ! तुम हम बढ़ाओ. हमारे त तु हारी दया भावना एक ही साथ हो. तुम हमारे य कम क र ा करो, हमारी बु य को जगाओ एवं हम यजमान के श ु से यु करो. (११)
सू —५१
दे वता—उषा
इदमु य पु तमं पुर ता यो त तमसो वयुनावद थात्. नूनं दवो हतरो वभातीगातुं कृणव ुषसो जनाय.. (१) यह हमारे ारा तु त कया गया, सव स , परम व तृत एवं कां तयु तेज पूव दशा म अंधकार से उ दत आ था. न य ही सूय क पु ी प एवं द तशा लनी उषाएं यजमान को ग तशील बनाने क साम य रखती थ . (१) अ थु च ा उषसः पुर ता मता इव वरवोऽ वरेषु. ू ज य तमसो ारो छ तीर छु चयः पावकाः.. (२) य म गाड़े गए खंभ के समान सुंदर एवं रंग- बरंगी उषाएं पूव दशा को घेरकर थत होती ह. उषाएं बाधा डालने वाले अंधकार का ार खोलती ई द तयु एवं प व बनकर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
चमकती ह. (३) उ छ तीर चतय त भोजा ाधोदे यायोषसो मघोनीः. अ च े अ तः पणयः सस वबु यमाना तमसो वम ये.. (३) आज अंधकार का नाश करती एवं धन क वा मनी उषाएं भोजन दे ने वाले यजमान को सोमरस आ द दान करने के हेतु उ सा हत करती ह. चेतनार हत गाढ़े अंधकार म दान न दे ने वाले प ण लोग चेतनार हत होकर पड़े रहे. (३) कु व स दे वीः सनयो नवो वा यामो बभूया षसो वो अ . येना नव वे अ रे दश वे स ता ये रेवती रेव ष.. (४) हे काशयु एवं धनशा लनी उषाओ! तु हारा वही पुराना या नया रथ आज य म अनेक बार आवे, जस रथ के ारा तुमने सात छं द प मुख वाले, नौ गाय अथवा दस गाय वाले अं गरावंशीय ऋ षय को द त कया था. (४) यूयं ह दे वीऋतयु भर ैः प र याथ भुवना न स ः. बोधय ती षसः सस तं पा चतु पा चरथाय जीवम्.. (५) दे द तयु उषाओ! तुम सोते ए मनु य एवं पशु प जीव को गमन के लए जगाती ई य म जाने वाले घोड़ क सहायता से सारे व का तुरंत मण कर लो. (५) व वदासां कतमा पुराणी यया वधाना वदधुऋभूणाम्. शुभं य छु ा उषस र त न व ाय ते स शीरजुयाः.. (६) वे ाचीन उषाएं कहां ह, जनके लए ऋभु ने चमस बनाने का काम कया था? जब तेजो व श उषाएं काश फैलाती ह, तब एक समान होने के कारण वे नई या पुरानी नह जान पड़त . (६) ता घा ता भ ा उषसः पुरासुर भ ु ना ऋजजातस याः. या वीजानः शशमान उ थैः तुव छं स वणं स आप.. (७) अपने आगमन मा से धन दे ने वाली, य के न म एवं स व फल दे ने वाली उषाएं क याणकारी प म पहले उ प ई थ । य करने वाले मं ारा उन उषा क तु तयां करके एवं छं द ारा शंसा करके तुरंत धन लाभ करते थे. (७) ता आ चर त समना पुर ता समानतः समना प थानाः. ऋत य दे वीः सदसो बुधाना गवां न सगा उषसो जर ते.. (८) सव समान एवं
स
उषाएं पूव दशा म केवल आकाश से सब जगह घूमती ह एवं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य शाला को ान का वषय बनाती बनती ह. (८)
जल उ प करने वाली करण के सामन शंसापा
ता इ वे३व समना समानीरमीतवणा उषस र त. गूह तीर वम सतं श ः शु ा तनू भः शुचयो चानाः.. (९) वे एक प वाली, समान व अन गनत रंग से यु उषाएं अपने द तशाली शरीर ारा काश फैलाती ई एवं अपनी करण से महान् अंधकार का नाश करती ई वचरण करती ह. (९) र य दवो हतरो वभातीः जाव तं य छता मासु दे वीः. योनादा वः तबु यमानाः सुवीय य पतयः याम.. (१०) हे तेज वी सूय क पु यो एवं द तशाली उषाओ! तुम हम पु -पौ ा द से यु धन दो. हम सुख ा त के कारण तु ह जगा रहे ह. इस कार हम पु -पौ यु धन के वामी ह गे. (१०) त ो दवो हतरो वभाती प ुव उषसो य केतुः. वयं याम यशसो जनेषु तद् ौ ध ां पृ थवी च दे वी.. (११) हे तेज वी सूय क पु ी पी उषाओ! हम य के ापक प म तुमसे ाथना कर रहे ह क हम सब लोग के म य म यश और अ के वामी बन. वग एवं द तपूण धरती हमारा वह यश धारण करे. (११)
सू —५२ त या सूनरी जनी
दे वता—उषा ु छ ती प र वसुः. दवो अद श
हता.. (१)
भली कार तुत, ा णय क कुशल ने ी एवं उ म फल को ज म दे ने वाली सूयपु ी उषा दखाई दे ती है एवं रात बीतने पर अंधेरे का नाश करती है. (१) अ ेव च ा षी माता गवामृतावरी. सखाभूद नो षाः.. (२) घोड़े के समान सुंदर, द तशा लनी, करण क माता एवं य अ नीकुमार के साथ तुत हो. (२)
क
वा मनी उषा
उत सखा य नो त माता गवाम स. उतोषो व व ई शषे.. (३) हे उषा! तुम अ नीकुमार क सखा, करण क माता एवं धन क वा मनी हो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यावयद् े षसं वा च क व सूनृताव र. हे स य वचन वाली एवं श ु कराने वाली को जगाते ह. (४) तभ ाअ
त तोमैरभु म ह.. (४)
को र भगाने वाली उषा! हम तु तय
त गवां सगा न र मयः. ओषा अ ा उ
ारा तुझ ान
यः.. (५)
शंसा के यो य करण दखाई दे ती ह. उषा ने संसार को वषा क धारा के समान तेज से भर दया है. (५) आप ुषी वभाव र
ाव य तषा तमः. उषो अनु वधामव.. (६)
हे कां तशा लनी उषा! तुम जगत् को तेज से पूण करती ई अंधकार को र भगाओ. इसके प ात् ह व पी अ क र ा करो. (६) आ ां तनो ष र म भरा त र नमु हे उषा! तुम द त आकाश से यु ा त करो. (७)
सू —५३
यम्. उषः शु े ण शो चषा.. (७) होकर करण
ारा वग एवं
य अंत र
को
दे वता—स वता
त े व य स वतुवाय महद्वृणीमहे असुर य चेतसः. छ दयन दाशुषे य छ त मना त ो महाँ उदया दे वो अ ु भः.. (१) हम बलशाली एवं उ म बु ाथना करते ह, जस धन को वे ह वह धन हम दान कर. (१)
वाले स वता दे व के उस वरणीय एवं पू य धन क दे ने वाले यजमान को अपने आप दे ते ह. महान् स वता
दवो ध ा भुवन य जाप तः पश ं ा प त मु चते क वः. वच णः थय ापृण ुवजीजन स वता सु नमु यम्.. (२) वग एवं अ य सब लोक को धारण करने वाले, जा का पालन करने वाले एवं क व स वता दे व पीले रंग का कवच पहनते ह. अनेक कार से दे खने वाले स वता स होकर भी जगत् को तेज से भरते ए चलते ह एवं शंसा के यो य सुख उ प करते ह. (२) आ ा रजां स द ा न पा थवा ोकं दे वः कृणुते वाय धमणे. बा अ ा स वता सवीम न नवेशय सुव ु भजगत्.. (३) स वता दे व अपने तेज ारा पृ वीलोक एवं वगलोक को पूण करते ए अपने धारण ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कम क शंसा करते ह. वे अनु ा प म भुजाएं फैलाते ह एवं अपने काश से जगत् को अपने काम म लगाते ह. (३)
त दन
अदा यो भुवना न चाकशद् ता न दे वः स वता भ र ते. ा ा बा भुवन य जा यो धृत तो महो अ म य राज त.. (४) स वता दे व अ य ा णय से परा जत न होते ए सब लोक को का शत करते ह एवं सभी ा णय के त क र ा करते ह. वे व क जा के क याण के न म अपनी भुजा को फैलाते ह एवं त धारण करने वाले इस महान् व के वामी ह. (४) र त र ं स वता म ह वना ी रजां स प रभू ी ण रोचना. त ो दवः पृ थवी त इ व त भ तैर भ नो र त मना.. (५) स वता दे व अपने मह व ारा सबको परा जत करते ए तीन अंत र , तीन लोक एवं तीन तेज वी त व —अ न, वायु और आ द य, तीन वग एवं तीन पृ वय को ा त करते ह. वे तीन त ारा वयं हम सबका पालन कर. (५) बृह सु नः सवीता नवेशनो जगतः थातु भय य यो वशी. स नो दे वः स वता शम य छ व मे याय व थमंहसः.. (६) पया त धन के वामी, कम क अनु ा दे ने वाले, सबके ारा गंत एवं थावर जंगम दोन को वश म रखने वाले स वता दे व हमारे तीन लोक म थत पाप के नाश के हेतु हम क याण दान कर. (६) आग दे व ऋतु भवधतु यं दधातु नः स वता सु जा मषम्. स नः पा भरह भ ज वतु जाव तं र यम मे स म वतु.. (७) स वता दे व ऋतु के साथ आव, हमारे घर क वृ कर एवं हम पु -पौ से यु अ द. वे रात और दन हमारे त स रह एवं हम पु -पौ वाला धन दान कर. (७)
सू —५४
दे वता—स वता
अभू े वः स वता व ो नु न इदानीम उपवा यो नृ भः. व यो र ना भज त मानवे यः े ं नो अ वणं यथा दधत्.. (१) उ दत ए स वता दे व क हम शी ही वंदना करगे. मनु य इस समय अथात् ातः एवं तृतीय सवन म होतागण सूय क तु त कर. जो स वता मानव को र दान करते ह, वे हम इस य म उ म धन द. (१) दे वे यो ह थमं य ये योऽमृत वं सुव स भागमु मम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ द ामानं स वत ूणुषेऽनूचीना जी वता मानुषे यः.. (२) हे स वता दे व! तुम सव थम य के यो य दे व के लए अमरता का साधन सोम उ प करते हो. इसके बाद ह दाता यजमान को का शत करते हो तथा मनु य को पता, पु व पौ के म से जीवन दे ते हो. (२) अ च ी य चकृमा दै े जने द नैद ःै भूती पू ष वता. दे वेषु च स वतमानुषेषु च वं नो अ सुवतादनागसः.. (३) हे स वता दे व! अ ान के कारण, बल अथवा श शाली लोग के माद के कारण, ऐ य अथवा सेवा संबंधी गव के कारण तु हारे त ही नह , दे व अथवा मनु य के त जो पाप हमने कया है, तुम हम उस सब पाप से र हत बनाओ. (३) न मये स वतुद य त था व ं भुवनं धार य य त. य पृ थ ा व रम ा व रव म दवः सुव त स यम य तत्.. (४) स वता दे व का यह काम वरोध के यो य नह है, य क वे सारे व को धारण करते ह. सुंदर उंग लय वाले स वता धरती और आकाश को व तृत होने क ेरणा दे ते ह. (४) इ ये ा बृह यः पवते यः याँ ए यः सुव स प यावतः. यथायथा पतय तो वये मर एवैव त थुः स वतः सवाय ते.. (५) हे स वता दे व! हम लोग म इं ही पू य ह. तुम हम पवत से भी अ धक ऊंचा बनाओ एवं इन सब यजमान को घर वाले नवास थान दो. इस कार वे चलते समय तु हारे शासन म रहगे एवं तु हारी आ ा मानगे. (५) ये ते रह स वतः सवासो दवे दवे सौभगमासुव त. इ ो ावापृ थवी स धुर रा द यैन अ द तः शम यंसत्.. (६) हे स वता! जो यजमान तु हारे न म त दन तीन बार सौभा यजनक सोमरस नचोड़ते ह, इं , धरती, आकाश, जलपूण सधु एवं आ द य के साथ अ द त उस यजमान के साथ-साथ हम भी धन द. (६)
सू —५५
दे वता— व ेदेव
को व ाता वसवः को व ता ावाभूमी अ दते ासीथां नः. सहीयसो व ण म मता को वोऽ वरे व रवो धा त दे वाः.. (१) हे वसुओ! तुम म र ा करने वाला कौन है एवं कौन ःख र करने वाला है? हे अखंडनीय धरती आकाश! तुम हमारी र ा करो. हे इं एवं ा! तुम पराभवकारी लोग से ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम बचाओ. हे दे वो! तुम म से कौन धन का दान करता है? (१) ये धामा न पू ा यचा व य छा वयोतारो अमूराः. वधातारो व ते दधुरज ा ऋतधीतयो च त द माः.. (२) जो दे व तु तक ा को ाचीन थान दे ते ह, जो ःख को पृथक् करते ह, जो मूढ़ताहीन ह एवं अंधकार का नाश करते ह, वे ही दे व वधाता ह एवं न य हमारी इ छाएं पूरी करते ह. स यकम वाले एवं दशनीय वे दे व शो भत होते ह. (२) प या३म द त स धुमकः व तमीळे स याय दे वीम्. उभे यथा नो अहनी नपात उषासान ा करतामद धे.. (३) हम म ता ा त करने के न म सबके ारा गंत दे वमाता अ द त, सधु एवं व तदे वी क मं ारा तु त करते ह. धरती-आकाश हमारी भली-भां त र ा कर. रात एवं दन के दे व हमारी अ भलाषा पूण कर. (३) यमा व ण े त प था मष प तः सु वतं गातुम नः. इ ा व णू नृव षु तवाना शम नो य तममव थम्.. (४) अयमा एवं व ण हमारे लए य का माग बताते ह. ह व प अ के वामी अ न हम सुखकर गमन माग दखाते ह. इं एवं व णु भली कार तु तयां सुनकर हम पु -पौ ा द यु धन एवं श संप रमणीय सुख दान कर. (४) आ पवत य म तामवां स दे व य ातुर भग य. पा प तज यादं हसो नो म ो म या त न उ येत.् . (५) पवत, म द्गण तथा भग नामक दे व से हम र ा क ाथना करते ह. वामी व ण मानव संबंधी पाप से हमारी र ा कर. म हमारी र ा हमको म समझकर कर. (५) नू रोदसी अ हना बु येन तुवीत दे वी अ ये भ र ैः. समु ं न संचरणे स न यवो घम वरसो न ो३ अप न्.. (६) हे ावा-पृ वी! जस कार धन चाहने वाला सागर से उसके म य म जाने के लए ाथना करता है, उसी कार हम भी इ काय पूरा करने हेतु अ हबु य के साथ तु हारी तु त करते ह. वे दे व श द करती ई न दय को बहने यो य बनाव. (६) दे वैन दे द त न पातु दे व ाता ायताम यु छन्. न ह म य व ण य धा समहाम स मयं सा व नेः.. (७) दे वमाता अ द त अ य दे व के साथ हमारी र ा कर. इं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मादहीन होकर हमारा पालन
कर. म , व ण एवं अ न के सोम प अ अनु ान ारा बढ़ावगे. (७) अ नरीशे वस
क हम हसा नह कर सकते. हम उ ह
या नमहः सौभग य. ता य म यं रासते.. (८)
अ न धन एवं महान् सौभा य के वामी ह. वे हम धन एवं सौभा य दान कर. (८) उषो मघो या वह सूनृते वाया पु . अ म यं वा जनीव त.. (९) हे धन वा मनी, शोभन धन दो. (९)
य-स य- प वाली एवं अ वती उषा! तुम हम अ धक मा ा म
त सु नः स वता भगो व णो म ो अयमा. इ ो नो राधसा गमत्.. (१०) स वता, भग, व ण, म , अयमा एवं इं हम द. (१०)
सू —५६
जस धन के साथ आते ह, वह धन वे सब
दे वता— ावा-पृ वी
मही ावापृ थवी इह ये े चा भवतां शुचय रकः. य स व र े बृहती व म व ुव ो ा प थाने भरेवैः.. (१) हे महान् एवं वशाल ावा-पृ वी! इस य म द तयु मं से तेज वी बनो, य क जल बरसाने वाले बादल व तृत एवं महान् धरती-आकाश को था पत करते ह तथा गमनशील व स म त के साथ सभी जगह गरजते ह. (१) दे वी दे वे भयजते यज रै मनती त थतु माणे. ऋतावरी अ हा दे वपु े य य ने ी शुचय रकः.. (२) य के यो य, जा क हसा न करने वाले, अभी वषा करने वाले, स यशील, ोहहीन, दे व को उ प करने वाले एवं य के नेता धरती-आकाश य पा दे व के साथ मलकर द तशाली मं को ा त कर. (२) स इ वपा भुवने वास य इमे ावापृ थवी जजान. उव गभीरे रजसी सुमेके अवंशे धीरः श या समैरत्.. (३) संसार म वही उ म कम वाला है, जसने इस धरती-आकाश को उ प कया है एवं जस धैयशाली ने व तृत, अचंचल, शोभन- प-यु एवं बना आधार वाले धरती-आकाश को अपने कुशलतापूण काय ारा भली-भां त े रत कया है. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नू रोदसी बृह न व थैः प नीव रषय ती सजोषाः. उ ची व े यजते न पातं धया याम र यः सदासाः.. (४) हे हम अ दे ने को इ छु क एवं पर पर मले ए धरती-आकाश! तुम दोन व तृत, फैले ए एवं य के यो य होकर हम प नी स हत वशाल धन दो तथा हमारी र ा करो. हम अपने य कम के फल के कारण रथ एवं दास के वामी बन. (४) वां म ह वी अ युप तु त भरामहे. शुची उप श तये.. (५) हे ु तसंप धरती-आकाश! तु ह ल य करके हम महान् तु त करगे. हम ाथना करने के लए तुम शु के समीप आते ह. (५) पुनाने त वा मथः वेन द ेण राजथः. ऊ ाथे सना तम्.. (६) हे द -गुण-स हत धरती-आकाश! तुम अपनी मू तय एवं श को प व करते ए सुशो भत बनो एवं सदा य को वहन करो. (६)
य
ारा एक- सरे
मही म य साधथ तर ती प ती ऋतम्. प र य ं न षेदथुः.. (७) हे महान् धरती-आकाश! तुम अपने म तोता क अ भलाषा पूरी करो. तुम अ का वभाग एवं य को पूण करके चार ओर बैठो. (७)
दे वता— े प त आ द
सू —५७ े य प तना वयं हतेनेव जयाम स. गाम ं पोष य वा स नो मृळाती शे.. (१)
हम बंधु तु य े प त क सहायता से े को वजय करगे. वे हमारी गाय एवं घोड़ को पु दान करते ए हम इसी कार सुखी कर. (१) े य पते मधुम तमू म धेनु रव पयो अ मासु धु व. मधु तं घृत मव सुपूतमृत य नः पतयो मृळय तु.. (२) हे े प त! गाएं जस कार ध दे ती ह, उसी कार तुम मधु टपकाने वाला, घी के समान प व एवं मधुर जल हम दो. य के वामी हम सुखी कर. (२) मधुमतीरोषधी ाव आपो मधुम ो भव व त र म्. े य प तमधुमा ो अ व र य तो अ वेनं चरेम.. (३) ओष धयां,
ुलोक, जल-समूह, आकाश एवं
े प त हमारे लए मधुयु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह . हम
श ु
क हसा से बचकर उनके पीछे चल. (३) शुनं वाहाः शुनं नरः शुनं कृषतु ला लम्. शुनं वर ा ब य तां शुनम ामु दङ् गय.. (४)
हमारे बैल सुखपूवक भार वहन कर, सेवकगण सुखपूवक खेती का काम कर, हमारे हल सुखपूवक धरती जोत, हमारी र सयां सुखपूवक बांधी जाव एवं पशु को हांकने वाला चाबुक सुखपूवक चलाया जावे. (४) शुनासीरा वमां वाचं जुषेथां य
व च थुः पयः. तेनेमामुप स चतम्.. (५)
हे शुन एवं सीर! तुम हमारी तु त को वीकार करो. तुमने आकाश म जस जल का नमाण कया था, उसीसे तुम इस धरती को स चो. (५) अवाची सुभगे भव सीते व दामहे वा. यथा नः सुभगास स यथा नः सुफलास स.. (६) हे सौभा यवती सीता अथात् हल क नोक! तुम धरती के नीचे जाओ. हम तु हारी वंदना करते ह, जससे तुम हम शोभन फल एवं शोभन धन दान करो. (६) इ ः सीतां न गृ ातु तां पूषानु य छतु. सा नः पय वती हामु रामु रां समाम्.. (७) इं सीता को हण कर एवं पूषा उसक र ा कर. धरती जलपूण बनकर हम आने वाले वष म फसल द. (७) शुनं नः फाला व कृष तु भू म शुनं क नाशा अ भ य तु वाहैः. शुनं पज यो मधुना पयो भः शुनासीरा शुनम मासु ध म्.. (८) हमारे फाल सुखपूवक धरती को जोत. हलवाहे बैल के साथ भी सुखपूवक चल. बादल मधुर जल से धरती को स च. हे शुन एवं सीर! हम सुख दो. (८)
सू —५८
दे वता—अ न आ द
समु ा ममधुमाँ उदार पांशुना सममृत वमानट् . घृत य नाम गु ं यद त ज ा दे वानाममृत य ना भः.. (१) गाय के थन से ध क मधु भरी धाराएं नकलती ह. मनु य उनके कारण मरणर हत बनते ह. घृत का नाम र णीय इसी लए है क वह दे व क जीभ एवं अमृत का क है. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वयं नाम वामा घृत या म य े धारयामा नमो भः. उप ा शृणव छ यमानं चतुः शृङ्गोऽवमीद्गौर एतत्.. (२) हम यजमान घी क शंसा करते ह एवं उसे इस य म आदरपूवक धारण करते ह. ा इस तु त को सुन. गौ दे व इस संसार का पालन करते ह. चार वेद उनके स ग के समान ह. (२) च वा र शृङ्गा यो अ य पादा े शीष स त ह तासो अ य. धा ब ो वृषभो रोरवी त महो दे वो म या आ ववेश.. (३) य ा मक अ न के स ग के समान चार वेद ह. सवन के प म इसके तीन चरण ह. ोदन एवं व य के प म इसके दो सर ह. छं द के प म इसके सात हाथ ह. अभी वष ये अ न दे वमं , क प एवं ा ण इन तीन बंधन से बंधे ह एवं महान् श द करते ह. वे महान् दे व मानव के बीच व ह. (३) धा हतं प ण भगु मानं ग व दे वासो घृतम व व दन्. इ एकं सूय एकं जजान वेनादे कं वधया न त ुः.. (४) असुर ने गाय म ध, दही एवं घी तीन पदाथ छपाए थे. दे व ने उ ह खोज लया. इं एवं सूय ने एक-एक पदाथ उ प कया. दे व ने कां तपूण अ न से घृत उ प कया. (४) एता अष त ा समु ा छत जा रपुणा नावच .े घृत य धारा अ भ चाकशी म हर ययो वेतसो म य आसाम्.. (५) आकाश से असी मत ग त वाला जल नीचे गरता है. रोकने वाला श ु इसे नह दे ख सकता. हम उसे दे ख सकते ह एवं उसके म य म छपी अ न को भी दे ख सकते ह. (५) स य व त स रतो न धेना अ त दा मनसा पूयमानाः. एते अष यूमयो घृत य मृगा इव पणोरीषमाणाः.. (६) स ता दे ने वाली नद के समान ही घी क धाराएं अ न पर गरती ह. वे दय के बीच रहने वाले मन ारा प व ह. ाध के डर से जस कार हरण भागते ह, उसी कार घी क धाराएं चलती ह. (६) स धो रव ा वने शूघनासो वात मयः पतय त य ाः. घृत य धारा अ षो न वाजी का ा भ द ू म भः प वमानः.. (७) नद का जल जस कार नचले थान क ओर तेजी से बहता है, उसी कार घी क धाराएं सीमा को पार करके आगे बढ़ती ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भ व त समनेव योषाः क या य१: मयमानासो अ नम्. घृत य धाराः स मधो नस त ता जुषाणो हय त जातवेदाः.. (८) जस कार क याणी नारी मुसकुराती ई त मय च से प त क ओर बढ़ती है, उसी कार घी क धाराएं अ न क ओर जाती ह. वे भली कार द त होकर मलती ह. अ न उ ह सेवन करता आ उनक कामना करता है. (८) क याइव वहतुमेतवा उ अ य ाना अ भ चाकशी म. य सोमः सूयते य य ो घृत य धारा अ भ त पव ते.. (९) हम दे खते ह क जस कार क या प त के समीप जाने के लए शृंगार करती है, उसी कार घृत क धाराएं अ न के समीप जाने के लए अपना प नखारती ह, जस थान पर सोम नचोड़ा जाता है अथवा य आरंभ होता है, उसी थान क ओर घी क धाराएं चलती ह. (९) अ यषत सु ु त ग मा जम मासु भ ा वणा न ध . इमं य ं नयत दे वता नो घृत य धारा मधुम पव ते.. (१०) हे ऋ वजो! गाय के समीप जाओ एवं उनक शोभन तु त करो. वे हमको क याणकारी धन द एवं हमारे इस य को दे व के समीप ले जाव. घृत क धाराएं मधुरतापूवक चलती ह. (१०) धाम ते व ं भुवनम ध तम तः समु े १ तरायु ष. अपामनीके स मथे य आभृत तम याम मधुम तं त ऊ मम्.. (११) तु हारा तेज सारे व म ा त है. वह सागर म वाडवा न, आकाश म सूय, दय म वै ानर, अ म आहार, जल म व ुत व सं ाम म वीरता के प म है. इस कार सभी ाणी तु हारे तेज के आ त ह. उसक घृत पी धारा का मधुर रस हम चखते ह. (११)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पंचम मंडल सू —१
दे वता—अ न
अबो य नः स मधा जनानां य ाइव वयामु जहानाः
त धेनु मवायतीमुषासम्. भानवः स ते नाकम छ.. (१)
गाय के समान आने वाली उषा के प ात् अ वयु आ द क स मधा व लत होते ह. अ न क शखाएं महान् ह. अ न व तृत शाखा वाले वृ आकाश क ओर बढ़ते ह. (१)
ारा अ न के समान
अबो ध होता यजथाय दे वानू व अ नः सुमनाः ातर थात्. स म य शदद श पाजो महा दे व तमसो नरमो च.. (२) होता अ न दे वसंबंधीय के न म व लत होते ह. वे ातःकाल स मन से ऊपर क ओर उठते ह. व लत अ न का तेज वी बल दखाई दे ता है. इस कार महान् दे व तम से मु होते ह. (२) यद गण य रशनामजीगः शु चरङ् े शु च भग भर नः. आ णा यु यते वाजय यु ानामू व अधय जु भः.. (३) र सी के समान संसार के ापार को रोकने वाले अंधकार को अ न जब हण करते ह, तब वे द त होकर उ वल करण से संसार को कट करते ह. इसके बाद अ न बढ़ ई एवं अ क कामना करने वाली घृत धारा से मलते ह एवं ऊपर उठकर लपट से उ ह पीते ह. (३) अ नम छा दे वयतां मनां स च ूंषीव सूय सं चर त. यद सुवाते उषसा व पे ेतो वाजी जायते अ े अ ाम्.. (४) यजमान का मन उसी कार अ न के स मुख जाता है, जस कार ा णय क आंख सूय क ओर जाती ह. धरती-आकाश जब उषा के साथ अ न को उ प करते ह, उस ातःकाल म अ न उ मवण वाले घोड़ के समान उ प होते ह. (४) जन
ह जे यो अ े अ ां हतो हते व षो वनेषु.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दमेदमे स त र ना दधानोऽ नह ता न षसादा यजीयान्.. (५) उ प करने यो य अ न ातःकाल उ प होते ह एवं द तशाली बनकर अपने म वन म थत होते ह. उसके बाद अ न सात सुंदर वालाएं धारण करते ह एवं येक य शाला म होता तथा यजनीय बनकर बैठते ह. (५) अ नह ता यसीद जीयानुप थे मातुः सुरभा उ लोके. युवा क वः पु नः ऋतावा धता कृ ीनामुत म य इ ः.. (६) अ न होता एवं यजनीय के प म धरती माता क गोद म बने एवं घृत आ द से सुगं धत वेद नामक थान म बैठते ह. युवा, क व एवं अनेक थान वाले अ न सबके धारक एवं य वामी बनकर यजमान के बीच व लत होते ह. (६) णु यं व म वरेषु साधुम नं होतारमीळते नमो भः. आ य ततान रोदसी ऋतेन न यं मृज त वा जनं घृतेन.. (७) यजमान मेधावी, य का फल दे ने वाले एवं होता अ न क तु त वचन ारा शंसा करते ह. जो अ न जल ारा न य धरती-आकाश का व तार करते ह, यजमान उन अ यु -अ न क सदा सेवा करते ह. (७) माजा यो मृ यते वे दमूनाः क व श तो अ त थः शवो नः. सह शृ ो वृषभ तदोजा व ाँ अ ने सहसा ा य यान्.. (८) सबको प व करने वाले अ न अपने थान म पूजे जाते ह. क वय ारा शं सत अ न हमारे लए अ त थ के समान पू य एवं सुखकर ह. अ न का स बल अप र मत वाला वाला, कामवष एवं अ य सबको पराभूत करने वाला है. (८) स ो अ ने अ ये य याना वय मै चा तमो बभूथ. ईळे यो वपु यो वभावा यो वशाम त थमानुषीणाम्.. (९) हे अ न! तुम य को ा त करके अपने अ य तेज को परा जत करते ए उ प होते हो. तुम तु तयो य, द तकारक, उ वल, ा णय के य एवं मानव के अ त थ हो. (९) तु यं भर त तयो य व ब लम ने अ तत ओत रात्. आ भ द य सुम त च क बृह े अ ने म ह शम भ म्.. (१०) हे अ तशय युवा अ न! मानव-समूह पास एवं र से तु ह ब ल दे ते ह. तुम अ तशय तु तक ा क तु त वीकार करते हो. हे अ न! तु हारे ारा दया आ सुख महान् एवं क याणकारी है. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ रथं भानुमो भानुम तम ने त यजते भः सम तम्. व ा पथीनामुव १ त र मेह दे वा ह वर ाय व .. (११) हे तेज वी अ न! तुम आज दे व के साथ द तशाली एवं सवाग सुंदर रथ पर चढ़ो. माग को जानने वाले तुम वशाल आकाश म होकर दे व को ह भ ण के लए यहां लाते हो. (११) अवोचाम कवये मे याय वचो व दा वृषभाय वृ णे. ग व रो नमसा तोमम नौ दवीव ममु चम ेत्.. (१२) हम मेधावी, प व , कामवष व युवा अ न के न म वंदनापूण तो बोलते ह. ग व र ऋ ष आकाश म द त एवं व तृत ग त वाले आ द य के समान अ न के त नम कारपूण तु त बोलते ह. (१२)
सू —२
दे वता—अ न
कुमारं माता युव तः समु धं गुहा बभ त न ददा त प े. अनीकम य न मन जनासः पुरः प य त न हतमरतौ.. (१) युवती माता ने कुमार को रा ते म चलते समय घायल हो जाने पर गुफा म रखा, उसके पता को नह दया, लोग उसके ह सत प को नह दे खते ह, कतु असुंदर थान म रखा आ दे खते ह. (१) कमेतं वं युवते कुमारं पेषी बभ ष म हषी जजान. पूव ह गभः शरदो ववधाप यं जातं यदसूत माता.. (२) हे युवती! तुम हसा करने वाली होकर भी कुमार को य धारण करती हो? पूजनीया अर ण ने अ न पी कुमार को ज म दया है. अर ण म गभ प अ न कई वष तक बढ़ते रहे. माता ने जस पु को ज म दया, उसे हमने दे खा. (२) हर यद तं शु चवणमारा े ादप यमायुधा ममानम्. ददानो अ मा अमृतं वपृ व कं माम न ाः कृणव नु थाः.. (३) हमने सुनहरी वाला पी दांत वाले, उ वल-वण एवं आयुध के समान वालाएं बनाने वाले अ न को दे खा. हमने अ न क अ वनाशी एवं सव ा पनी तु त क है. इं के वरोधी एवं तु त न करने वाले हमारा या कर सकते ह? (३) े ादप यं सनुत र तं सुम ूथं न पु शोभमानम्. न ता अगृ ज न ह षः प ल नी र ुवतयो भव त.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमने े म गोसमूह के समान चुपचाप घूमते ए एवं वयं अ धक प से सुशो भत अ न को दे खा है. लोग पशाची के आ मण के समय वाली अ न क पीली वाला को वीकार नह करते, अ न पुनः उ प ए एवं उनक वृ ा वालाएं युवा बन ग . (४) के मे मदकं व यव त गो भन येषां गोपा अरण दास. य जगृभुरव ते सृज वाजा त प उप न क वान्.. (५) हमारे रा को गाय से पृथक् कसने कया था? या उन गाय के साथ र क नह था? हमारे रा पर अ धकार करने वाले लोग न ह . हमारी अ भलाषा को जानने वाले अ न हमारे पशु को नकट लाव. (५) वसां राजानं वस त जनानामरातयो न दधुम यषु. ा य ेरव तं सृज तु न दतारो न ासो भव तु.. (६) ा णय के राजा एवं मानव के नवास प अ न को श ु ने जा म छपाकर रखा है. अ गो वाले वृ के तो अ न को उजागर कर एवं हमारे नदक नदा के पा बन. (६) शुन छे पं न दतं सह ा ूपादमु चो अश म ह षः. एवा मद ने व मुमु ध पाशा होत क व इह तू नष .. (७) हे अ न! तुमने भली कार बंधे ए शुनःशेप ऋ ष को हजार प वाले यूप से छु ड़ाया था, य क उसने तु हारी तु त क थी. हे होता एवं ानसंप अ न! इस वेद पर बैठो एवं हम सभी बंधन से मु करो. (७) णीयमानो अप ह मदै येः मे दे वानां तपा उवाच. इ ो व ाँ अनु ह वा चच तेनाहम ने अनु श आगाम्.. (८) हे अ न! तुम ु होने पर हमारे पास से चले जाते हो. दे व का त पालन करने वाले इं ने हमसे यह कहा था. व ान् इं ने तु ह दे खा था. हे अ न! उनके अनुशासन म रहकर हम तु हारे समीप आवगे. (८) व यो तषा बृहता भा य नरा व व ा न कृणुते म ह वा. ादे वीमायाः सहते रेवाः शशीते शृ े र से व न े.. (९) अ न महान् तेज ारा वशेष कार से चमकते ह. एवं अपनी म हमा ारा सभी पदाथ को कट करते ह. वे व लत होकर आसुरी ःखजनक माया को न करते ह एवं रा स को न करने हेतु वाला पी स ग को पैना बनाते ह. (९) उत वानासो द व ष व ने त मायुधा र से ह तवा उ. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मदे चद य
ज त भामा न वर ते प रबाधो अदे वीः.. (१०)
श द करने वाली अ न क वालाएं तीखे आयुध के समान रा स को न करने के लए वग म उ प होती ह. ह षत होने पर अ न का काश रा स को पीड़ा दे ता है. बाधा प ंचाने वाली असुर-सेना अ न को नह रोक पाती. (१०) एतं ते तोमं तु वजात व ो रथं न धीरः वपा अत म्. यद द ने त वं दे व हयाः ववतीरप एना जयेम.. (११) हे अनेक प-धारक अ न! धीर एवं शोभन कम वाले लोग जस कार रथ बनाते ह, उसी कार हम तोता ने तु हारे लए तु तयां बनाई ह. हे अ न! य द तुम इसे वीकार कर लो तो हम व तृत जय ा त करगे. (११) तु व ीवो वृषभो वावृधानोऽश व१यः समजा त वेदः. इतीमम नममृता अवोच ब ह मते मनवे शम यंस व मते मनवे शम यंसत्.. (१२) अनेक वाला वाले, कामवष एवं बढ़ते ए अ न अबाध प से श ु के धन पर अ धकार करते ह. यह बात दे व ने अ न से कही थी. वे य करने वाले एवं ह व दे ने वाले लोग को सुख द. (१२)
सू —३
दे वता—अ न
वम ने व णो जायसे य वं म ो भव स य स म ः. वे व े सहस पु दे वा व म ो दाशुषे म याय.. (१) हे अ न! तुम उ प होते ही व ण, (अंधकार नवारक एवं व लत) होकर म ( हतकारी) बन जाते हो. सब दे वगण तु हारे पीछे चलते ह. हे बल के पु ! ह दे ने वाले यजमान के इं तु ह हो. (१) वमयमा भव स य कनीनां नाम वधावनगु ं बभ ष. अ त म ं सु धतं न गो भय पती समनसा कृणो ष.. (२) हे अ न! तुम क या के लए अयमा ( नयमन करने वाले) बनते हो. हे वधावान् अ न! तुम ही गोपनीय नाम ‘वै ानर’ धारण करते हो. जब तुम प त-प नी को एक मन वाला बना दे ते हो, तब वे तु ह म मानकर गाय के ध-घी से स चते ह. (२) तव ये म तो मजय त य े ज नम चा च म्. पदं य णो पमं नधा य तेन पा स गु ं नाम गोनाम्.. (३) हे अ न! तु हारे बैठने के लए म द्गण अंत र को साफ करते ह. हे इं ! तु हारे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न म व णु का ापक पद न त है, जो व ु संबंधी, च व च , मनोहर एवं अग य है, उसी पद पर रहकर तुम गोपनीय नामक उदक धारण करते हो. (३) तव या सु शो दे व दे वाः पु दधाना अमृतं सप त. होतारम नं मनुषो न षे दश य त उ शजः शंसमायोः.. (४) हे अ न! तु हारी समृ के ारा ही इं आ द दे व दशनीय बनते ह एवं ी त धारण करते ए अमृत ा त करते ह. ऋ वज् फल चाहने वाले यजमान के क याण के न म ह दे ते ए होता प अ न क सेवा करते ह. (४) न व ोता पूव अ ने यजीया का ैः परो अ त वधावः. वश य या अ त थभवा स स य ेन वनव े व मतान्.. (५) हे अ न! तु हारे अ त र कोई होता, य करने वाला एवं ाचीन नह है. हे अ के वामी अ न! भ व य म भी कोई तु हारे समान नह होगा. तुम जस ऋ वज् के अ त थ बनते हो. वह य करके श ु को न कर दे ता है. (५) वयम ने वनुयाम वोता वसूयवो ह वषा बु यमानाः. वयं समय वदथे व ां वयं राया सहस पु मतान्.. (६) हे अ न! हम तु हारे ारा सुर त होकर श ु को पी ड़त करगे. धन क कामना करने वाले हम तु ह ह ारा व लत करते ह. हम य म यश एवं यु म वजय ा त कर. हे बलपु अ न! हम धन के साथ पु -पौ को ा त कर. (६) यो न आगो अ येनो भरा यधीदघमघशंसे दधात. जही च क वो अ भश तमेताम ने यो नो मचय त येन.. (७) जो हमारे त पाप या अपराध करता है, अ न उस पापी के त बुरा वहार कर. हे जानकार अ न! जो पाप या अपराध ारा हमारे काम म बाधा डालता है, उसी पापी को न करो. (७) वाम या ु ष दे व पूव तं कृ वाना अयज त ह ैः. सं थे यद न ईयसे रयीणां दे वो मतवसु भ र यमानः.. (८) हे द तयु अ न! ाचीन यजमान तु ह दे व का त बनाते ए उषाकाल म य करते थे. हे अ न! ह एक हो जाने के बाद तुम तेज वी बनते हो एवं नवास दे ने वाले मानव ारा व लत कए जाते हो. (८) अव पृ ध पतरं यो ध व ा पु ो य ते सहसः सून ऊहे. कदा च क वो अ भ च से नोऽ ने कदाँ ऋत च ातयासे.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे बलपु अ न! जो यजमान तु ह पता जानता आ पु के समान तु हारे ह को धारण करता है, उसे तुम पाप से अलग कर दो. हे जानकार अ न! तुम हम कब दे खोगे? हे य क ेरणा दे ने वाले अ न! तुम हम अ छे रा ते पर जाने क ेरणा कब दोगे? (९) भू र नाम व दमानो दधा त पता वसो य द त जोषयासे. कु व े व य सहसा चकानः सु नम नवनते वावृधानः.. (१०) हे नवासदाता एवं पालनक ा अ न! तुम हम कब दे खोगे? तुम उस ह व को वीकार करते हो जो तु हारे नाम क बार-बार वंदना करके द जाती है. यजमान ारा ब त ह व पाने के इ छु क एवं बल से यु अ न वृ पाकर सुख दे ते ह. (१०) वम ज रतारं य व व ा य ने रता त प ष. तेना अ पवो जनासोऽ ातकेता वृ जना अभूवन्.. (११) हे वामी एवं अ तशय युवा अ न! तुम तु तक ा पर अनु ह करके उसे सभी पाप से छु ड़ा दे ते हो. उसे चोर दखाई दे ने लगते ह एवं अनजाने चह्न वाले श ु लोग उससे र हो जाते ह. (११) इमे यामास व गभूव वसवे वा त ददागो अवा च. नाहायम नर भश तये नो न रीषते वावृधानः परा दात्.. (१२) वे तु तसमूह तु हारे सामने जाते ह. नवासदाता अ न के सामने अपराध को वीकार करते ह. अ न हमारी तु त से बढ़ते ए हम नदक अथवा हसक के हाथ म न स पे. (१२)
सू —४
दे वता—अ न
वाम ने वसुप त वसूनाम भ म दे अ वरेषु राजन्. वया वाजं वाजय तो जयेमा भ याम पृ सुतीम यानाम्.. (१) हे संप य के वामी अ न! हम तु ह ल य करके य म तु त करते ह. हे तेज वी अ न! हम अ के अ भलाषी तु हारी कृपा से अ ा त कर एवं मानव क सेना को जीत. (१) ह वाळ नरजरः पता नो वभु वभावा सु शीको अ मे. सृगाहप याः स मषो दद म य ् १ सं ममी ह वां स.. (२) ह वहन करने वाले अ न जरार हत होकर हमारे पालक बन एवं हमारे त ापक, तेज वी एवं दशनीय ह . हे अ न! शोभन गाहप य से यु अ को तुम भली कार दान करो तथा हम चुर मा ा म अ दो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वशां क व व प त मानुषीणां शु च पावकं घृतपृ म नम्. न होतारं व वदं द ध वे स दे वेषु वनते वाया ण.. (३) हे ऋ वजो! तुम मानवी जा के वामी, मेधावी, प व , सर को प व करने वाले, द त शरीर, होता एवं सव अ न को धारण करो. वे दे व के संगृहीत धन को हम लोग म बांटते ह. (३) जुष वा न इळया सजोषा यतमानो र म भः सूय य. जुष व नः स मधं जातवेद आ च दे वा ह वर ाय व .. (४) हे अ न! तुम धरती के साथ ेमयु एवं सूय करण के साथ ग तयु होकर हमारी तु तयां वीकार करो. हे जातवेद! हमारे ारा द गई स मधा को वीकार करो. तुम ह भोजन के न म दे व को बुलाओ एवं ह वहन करो. (४) जु ो दमूना अ त थ रोण इमं नो य मुप या ह व ान्. व ा अ ने अ भयुजो वह या श ूयतामा भरा भोजना न.. (५) हे अ न! तुम महान्, शांत च एवं अ त थ के समान पू य बनकर हमारे इस य म आओ. हे जानकार अ न! तुम सभी श ु को न करो एवं श ुता करने वाल का धन छ न लो. (५) वधेन द युं ह चातय व वयः कृ वान त वे३ वायै. पप ष य सहस पु दे वा सो अ ने पा ह नृतम वाजे अ मान्.. (६) हे अ न! तुम यजमान पी पु को अ दे ते हो एवं श ु का आयुध करते हो. हे नेता म े अ न! तुम सं ाम म हमारी र ा करो. (६)
ारा वनाश
वयं ते अ ने उ थे वधेम वयं ह ःै पावक भ शोचे. अ मे र य व वारं स म वा मे व ा न वणा न धे ह.. (७) हे अ न! हम लोग तो -समूह एवं ह अ ारा तु हारी सेवा करगे. हे प व क ा तथा क याणकारी काशयु अ न! हम सबके ारा चाहा गया धन दो एवं सभी संप यां हम दान करो. (७) अ माकम ने अ वरं जुष व सहसः सूनो षध थ ह म्. वयं दे वेषु सुकृतः याम शमणा न व थेन पा ह.. (८) हे अ न! हम लोग के य को वीकार करो. हे बल के पु एवं तीन थान म रहने वाले अ न! तुम ह को वीकार करो. हम दे व के म य रहकर शोभन कम करने वाले बन. तुम तीन कार के उ म सुख ारा हमारी र ा करो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ा न नो गहा जातवेदः स धुं न नावा रता त प ष. अ ने अ व मसा गृणानो३ माकं बो य वता तनूनाम्.. (९) हे जातवेद अ न! जस कार म लाह नाव क सहायता से या य को नद के पार ले जाता है, उसी कार तुम हम सम त पाप के पार प ंचाओ. हे अ न! अ के समान हमारी तु तय को भी वीकार करके तुम हमारे शरीर र क प म स बनो. (९) य वा दा क रणा म यमानोऽम य म य जोहवी म. जातवेदो यशो अ मासु धे ह जा भर ने अमृत वम याम्.. (१०) हे अ न! हम मरणशील लोग तु तपूण मन से तुम मरणर हत क तु त करते ए तु ह बार-बार बुलाते ह. हे जातवेद! हम संतान दो, जसके अ व छे द के कारण हम मरणर हत बन सक. (१०) य मै वं सुकृते जातवेद उ लोकम ने कृणवः योनम्. अ नं स पु णं वीरव तं गोम तं र य नशते व त.. (११) हे जातवेद अ न! तुम जस उ म कमशील यजमान के त सुखकारी अनु ह करते हो, वह अ , पु , वीय एवं गाय से यु होकर नाशहीन धन पाता है. (११)
दे वता—आ ी
सू —५
सुस म ाय शो चषे घृतं ती ं जुहोतन. अ नये जातवेदसे.. (१) हे ऋ वजो! तुम जातवेद, भली कार ारा हवन करो. (१)
व लत एवं द तसंप अ न म पया त घृत
नराशंसः सुषूदतीमं य मदा यः. क व ह मधुह यः.. (२) हसा के अयो य, मेधावी एवं शोभन हाथ वाले नाराशंस नामक अ न इस य भली कार े रत कर. (२) ई ळतो अ न आ वहे ं च मह
को
यम्. सुखै रथे भ तये.. (३)
हे तु त- वषय अ न! हमारी र ा के लए तुम सुखदाता रथ ारा सुंदर एवं को यहां लाओ. (३)
य इं
ऊण दा व थ वा य१का अनूषत. भवा नः शु सातये.. (४) हे ब ह! तुम ऊनी कंबल के समान सुखपूवक फैलो. तोता तु हारी तु त करते ह. हे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द त! हम धन दो. (४) दे वी ारो व य वं सु ायणा न ऊतये.
य ं पृणीतन.. (५)
हे ार क दे वयो! तुम सुखपूवक गमन का साधन हो. तुम अलग-अलग होकर हमारी र ा के न म य को पूण करो. (५) सु तीके वयोवृधा य
ऋत य मातरा. दोषामुषासमीमहे.. (६)
शोभन प वाली, अ बढ़ाने वाली, महती एवं य का नमाण करने वाली रा उषा दे वय क हम तु त करते ह. (६)
तथा
वात य प म ी ळता दै ा होतारा मनुषः. इमं नो य मा गतम्.. (७) हे अ न एवं आ द य से उ प दो होताओ! तुम दोन तु त सुनकर वायु के समान तेज चलते हो. तुम हमारे इस य म आओ. (७) इळा सर वती मही त ो दे वीमयोभुवः. ब हः सीद व धः.. (८) इडा, सर वती एवं मही तीन दे वयां सुखकारक ह. वे हसार हत होकर इस य बैठ. (८)
म
शव तव रहा ग ह वभुः पोष उत मना. य ेय े न उदव.. (९) हे व ा! तुम सुखकर होकर इस य म आओ. तुम पोषक प म येक य म हमारी भली कार र ा करो. (९)
ा त हो. तुम
य वे थ वन पते दे वानां गु ा नामा न. त ह ा न गामय.. (१०) ह
हे वन प त! तुम जस थान म दे व के गोपनीय नाम को जानते हो, उसी थान म को प ंचाओ. (१०) वाहा नये व णाय वाहे ाय म द् यः. वाहा दे वे यो ह वः.. (११)
यह ह व अ न और व ण, इं और म द्गण तथा सम त दे व को वाहा के दया गया है. (११)
सू —६
दे वता—अ न
अ नं तं म ये यो वसुर तं यं य त धेनवः. अ तमव त आशवोऽ तं न यासो वा जन इषं तोतृ य आ भर.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पम
हम उस अ न क तु त करते ह, जो नवासदाता है, जो घर के समान सबका आ य है, जसे गाएं, शी चलने वाले घोड़े एवं न य ह दान करने वाले यजमान स करते ह. हे अ न! तुम तोता के लए अ दो. (१) सो अ नय वसुगृणे सं यमाय त धेनवः. समव तो रघु वः सं सुजातासः सूरय इषं तोतृ य आ भर.. (२) वह ही अ न है, जसक तु त नवासदाता के प म क जाती है. गाएं, तेज चलने वाले घोड़े एवं उ म कुल म उ प मेधावी जन जसके समीप जाते ह. हे अ न! तुम तु त करने वाल के लए अ लाओ. (२) अ न ह वा जनं वशे ददा त व चष णः. अ नी राये वाभुवं स ीतो या त वाय मषं तोतृ य आ भर.. (३) सबके य कम को दे खने वाले अ न यजमान को अ स हत पु दे ते ह. अ न स होकर ऐसा धन दे ने के लए जाते ह, जो सव ा त एवं सबका य है. हे अ न! तुम तु तक ा के लए अ लाओ. (३) आ ते अ न इधीम ह ुम तं दे वाजरम्. य या ते पनीयसी स म दय त वीषं तोतृ य आ भर.. (४) हे द तशाली एवं जलर हत अ न! हम तु ह सभी कार से व लत करते ह. तु हारी तु त के यो य द त वग म का शत होती है. हे अ न! तुम तु त करने वाल के लए अ लाओ. (४) आ ते अ न ऋचाः ह वः शु य शो चष पते. सु द म व पते ह वाट् तु यं यत इषं तोतृ य आ भर.. (५) हे द त के वामी, आह्लाद दे ने वाले, श ुनाशक, जा के पालक एवं ह वहन करने वाले अ न! तु हारे उ े य से मं के साथ ह का होम कया जाता है. हे अ न! तुम तु त करने वाल के लए अ लाओ. (५) ो ये अ नयोऽ नषु व ं पु य त वायम्. ते ह वरे त इ वरे त इष य यानुष गषं तोतृ य आ भर.. (६) ये लौ कक अ न गाहप य आ द अ नय म सम त आव यक संप य को पो षत करते ह. ये अ न स करते ह, चार ओर ा त होते ह एवं लगातार अ क इ छा करते ह. हे अ न! तुम तु त करने वाल के लए अ लाओ. (६) तव ये अ ने अचयो म ह ाध त वा जनः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये प व भः शफानां जा भुर त गोना मषं तोतृ य आ भर.. (७) हे अ न! तु हारी ये वालाएं अ य धक प म अ वा मनी होकर बढ़. ये वालाएं पतन के ारा खुर वाली गाय क इ छा कर. हे अ न! तुम तु तक ा के लए अ लाओ. (७) नवा नो अ न आ भर तोतृ यः सु ती रषः. ते याम य आनृचु वा तासो दमेदम इषं तोतृ य आ भर.. (८) हे अ न! तुम हम तोता को नए घर के साथ ही अ भी दो. हम लोग येक य शाला म तु हारी पूजा करते ए तु ह त के प म पा सक. हे अ न! तुम तु त करने वाल के लए अ लाओ. (८) उभे सु स पषो दव ीणीष आस न. उतो न उ पुपूया उ थेषु शवस पत इषं तोतृ य आ भर.. (९) हे स ताकारक अ न! तुम अपने मुख म घी से भरे ए दो चमस धारण करते हो. हे बल के पु अ न! तुम य म हम लोग को सफल बनाओ. हे अ न! तुम तु तक ा के लए अ लाओ. (९) एवाँ अ नमजुयमुग भय े भरानुषक्. दधद मे सुवीयमुत यदा य मषं तोतृ य आ भर.. (१०) इस कार भ जन तु तयां एवं य लेकर अ न के पास जाते ह तथा उ ह था पत करते ह. अ न हम उ म पु -पौ ा द स हत तेज चलने वाले घोड़े द. हे अ न! तुम तु त करने वाल के लए अ लाओ. (१०)
दे वता—अ न
सू —७ सखायः सं वः स य च मषं तोमं चा नये. व ष ाय तीनामूज न े सह वते.. (१)
हे म प ऋ वजो! तुम यजमान के क याण के न म अ यंत वृ पु एवं श शाली अ न के लए अ एवं तु त दान करो. (१) कु ा च अह त
ा त, बल के
य समृतौ र वा नरो नृषदने. म धते स नय त ज तवः.. (२)
वे अ न कहां ह, ज ह य शाला म पाकर ऋ वज् स हो जाते ह, ज ह पूजा करके व लत कया जाता है एवं जनके हेतु जंतु को उ प कया जाता है? (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सं य दषो वनामहे सं ह ा मानुषाणाम्. उत ु न य शवस ऋत य र ममा ददे .. (३) जब हम अ न को अ दे ते ह एवं वे हमारा ह वीकार करते ह, तब वे तेज वी अ क श ारा जल हण करने वाली करण को अपनाते ह. (३) स मा कृणो त केतुमा न ं च र आसते. पावको य न पती मा मना यजरः.. (४) जब प व करने वाले एवं जरार हत अ न वन प तय को जलाते ह, तब वे रात म र तक के लोग को ान करा दे ते ह. (४) अव म य य वेषणे वेदं प थषु जु त. अभीमह वजे यं भूमा पृ ेव ः.. (५) पु (५)
अ न क सेवा के समय गरी ई घी क बूंद को अ वयु लोग वाला म डाल दे ते ह. जस कार पता क गोद म चढ़ जाता है, उसी कार घी क धाराएं अ न पर चढ़ती ह. यं म यः पु पृहं वद य धायसे. वादनं पतूनाम तता त चदायवे.. (६)
यजमान ब त लोग ारा अ भल षत, सबको धारण करने वाले, अ वाद लेने वाले एवं यजमान को नवास दे ने वाले अ न को जानते ह. (६)
का भली कार
स ह मा ध वा तं दाता न दा या पशुः. ह र म ुः शु चद ृभरु नभृ त व षः.. (७) अ न घास खाने वाले पशु के समान जलहीन एवं घास, लकड़ी आ द से भरे ए थान को छ करते ह. अ न सुनहरी दाढ़ वाले, उ वल दांत वाले, महान्, बाधा र हत एवं श शाली ह. (७) शु चः म य मा अ व व धतीव रीयते. सुषूरसूत माता ाणा यदानशे भगम्.. (८) वे अ न व लत होते ह, जनके लए यजमान अ ऋ ष के समान ह व दे ने जाते ह एवं जो फरसे के समान वृ का नाश करते ह. अर ण पी माता ने उन अ न को ज म दया था जो संसार का उपकार करते ह एवं अ हण करते ह. (८) आ य ते स परासुतेऽ ने शम त धायसे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऐषु ु नमुत व आ च ं म यषु धाः.. (९) हे घृतभोजी अ न! हमारी तु तयां सबके पालक तु ह सुख द. तुम तु तक ा धन, अ एवं शां त दान करो. (९)
को
इ त च म युम ज वादातमा पशुं ददे . आद ने अपृणतोऽ ः सास ा यू नषः सास ा ृन्.. (१०) हे अ न! इस कार सर ारा न करने यो य तु तय का उ चारण करने वाले ऋ ष तु हारी कृपा से पशु ा त करते ह. ह दान करने वाले ऋ ष अ तु हारी कृपा से द यु एवं वरो धय को बार-बार परा जत कर. (१०)
सू —८
दे वता—अ न
वाम न ऋतायवः समी धरे तनं नास ऊतये सह कृत. पु ं यजतं व धायसं दमूनसं गृहप त वरे यम्.. (१) हे बल ारा उ प पुरातन अ न! पुराने य क ा आ य पाने के लए तु ह भली कार व लत करते ह. तुम अ तशय आह्लादक, य के यो य, व वध अ के वामी, गृहप त एवं वरण करने यो य हो. (१) वाम ने अ त थ पू वशः शो च केशं गृहप त न षे दरे. बृह केतुं पु पं धन पृतं सुशमाणं ववसं जर षम्.. (२) हे अ त थ के समान पू य, ाचीन, द त वाल पी केश वाले, अनेक प वाले, धनदाता, सुख दे ने वाले, भली-भां त र ा करने वाले एवं पुराने वृ को न करने वाले अ न! यजमान ने तु ह गृहप त के प म थान दया है. (२) वाम ने मानुषीरीळते वशो हो ा वदं व व च र नधाततम्. गुहा स तं सुभग व दशतं तु व वणसं सुयजं घृंत यम्.. (३) हे शोभन धन वाले, य के ाता, सत्-असत् के ववेचक र न दे ने वाल म उ म, गुहा म थत, सबके दशनीय, अ धक श द करने वाले, शोभन-य क ा एवं घी का आ य लेने वाले अ न! यजमान तु हारी तु त करते ह. (३) वाम ने धण स व धा वयं गी भगृण तो नमसोप से दम. स नो जुष व स मधानो अ र दे वो मत य यशसा सुद त भः.. (४) हे सबको धारण करने वाले अ न! हम अनेक कार के तो एवं नम कार ारा तु हारी तु त करते ए तु हारे समीप जाते ह. तुम धन दे कर हम स करो. हे अं गरापु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न! तुम अ छ तरह
व लत होकर यजमान के यश के ारा स बनो. (४)
वम ने पु पो वशे वशे वयो दधा स नथा पु ु त. पु य ा सहसा व राज स व षः सा ते त वषाण य नाधृषे.. (५) हे अनेक पधारी अ न! तुम ाचीन काल के समान सभी यजमान को धन दे ते हो. हे ब त ारा तुत अ न! तुम अपनी श से ही ब त से अ के वामी बनते हो. तुझ द तशाली क द त को कोई परा जत नह कर सकता. (५) वाम ने स मधानं य व दे वा तं च रे ह वाहनम्. उ यसं घृतयो नमा तं वेषं च ुद धरे चोदय म त.. (६) हे अ तशय युवा अ न! तुम भली कार व लत बनो. दे व ने तु ह अपना ह वहन करने वाला त बनाया था. दे व तथा मानव ने परम ग तसंप , घृत से उ प एवं भली कार बुलाए गए अ न को द तशाली ने के समान धारण कया था. (६) वाम ने दव आ तं घृतैः सु नायवः सुष मधा समी धरे. स वावृधान ओषधी भ तो३ भ यां स पा थवा व त से.. (७) हे अ न! ाचीन तथा सुख चाहने वाले यजमान तु ह घी के ारा बुलाकर उ म स मधा से व लत करते ह. तुम बढ़ने पर ओष धय ारा स चे जाते हो एवं पा थव अ को कट करके वतमान रहते हो. (७)
सू —९
दे वता—अ न
वाम ने ह व म तो दे वं मतास ईळते. म ये वा जातवेदसं स ह ा व यानुषक्.. (१) हे द तशाली अ न! मनु य ह लेकर तु हारी तु त करते ह. हे जातवेद! हम तु हारी तु त करते ह. तुम हवन क साम ी को सदा वहन करते हो. (१) अ नह ता दा वतः य य वृ ब हषः. सं य ास र त यं सं वाजासः व यवः.. (२) जन अ न के साथ सभी य चलते ह एवं यजमान को क त दलाने वाला ह ज ह ा त होता है. वह ह साम ी दे ने वाले एवं कुश उखाड़ने वाले यजमान के य के लए दे व को बुलाते ह. (२) उत म यं शशुं यथा नव ज न ारणी. धतारं मानुषीणां वशाम नं व वरम्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भोजन के पाक ारा मानव का पोषण करने वाले एवं य को सुशो भत करने वाले अ न को दोन अर णयां नए बालक के समान ज म दे ती ह. (३) उत म गृभीयसे पु ी न ायाणाम्. पु यो द धा स वना ने पशुन यवसे.. (४) हे अ न! जस कार टे ढ़ चाल वाले सांप का ब चा क ठनाई से पकड़ा जाता है, उसी कार तु ह पकड़ना भी क ठन है. घास म छोड़ा आ पशु जैसे घास खाता है, उसी कार तुम वन को जला दे ते हो. (४) अध म य याचयः स य संय त धू मनः., यद मह तो द ुप मातेव धम त शशीते मातरी यथा.. (५) जस धूमयु अ न क लपट भली कार सब ओर फैलती ह, तीन थान म रहने वाले वे अ न अपने आप अपनी लपट आकाश म इस तरह बढ़ाते ह, जैसे लोहार ध कनी के ारा आग भड़काता है. अ न ध कनी वाले लोहार के समान अपने को तेज करते ह. (५) तवाहम न ऊ त भ म य च श त भः. े षोयुतो न
रता तुयाम म यानाम्.. (६)
हे म अ न! हम तु हारे ारा क गई र ा एवं तु हारी तु तय क सहायता से श ु मनु य के पाप पी काय से पार हो जाव. (६) तं नो अ ने अभी नरो र य सह व आ भर. स ेपय स पोषय व ाज य सातय उतै ध पृ सु नो वृधे.. (७) हे श शाली एवं ह वाहक अ न! तुम स धन हमारे समीप लाओ एवं हमारे श ु को परा जत करके हम लोग का पोषण करो. तुम हम अ दो एवं यु म हम समृ बनाओ. (७)
सू —१०
दे वता—अ न
अ न ओ ज मा भर ु नम म यम गो. नो राया परीणसा र स वाजाय प थाम्.. (१) हे अबाध ग त वाले अ न! तुम हमारे लए सबसे उ म धन लाओ. हम सव धन से मलाओ एवं हमारे लए अ पाने का माग बनाओ. (१) वं नो अ ने अ त वा द य मंहना. वे असुय१ मा ह ाणा म ो न य यः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ात
हे आ य प अ न! तुम हमारे य ा द कम से स होकर हमारे लए धन का दान करो. तुम म श ुनाश का बल थत है. तुम सूय के समान हमारे य पूण करो. (२) वं नो अ न एषां गयं पु च वधय. ये तोमे भः सूरयो नरो मघा यानशुः.. (३) हे अ न! व ान् लोग ने तु हारी तु तयां करके उ म धन ा त कया था. तुम हम तु तक ा के धन एवं पु को बढ़ाओ. (३) ये अ ने च ते गरः शु भ य राधसः. शु मे भः शु मणो नरो दव ेषां बृह सुक तब ध त मना.. (४) हे आ ादकारक अ न! तु हारी शोभन तु त करने वाले लोग अ पी धन ा त करते ह एवं श शाली बनकर अपने बल से श ु को न करके क तलाभ करते ह. वह क त वग से भी वशाल है. गय ऋ ष तु ह वयं जगाते ह. (४) तव ये अ ने अचयो ाज तो य त धृ णुया. प र मानो न व ुतः वानो रथो न वाजयुः.. (५) हे अ न! तु हारी अ यंत ग भ करण द त वाली बनकर बजली क तरह श द करते ए रथ क तरह एवं अ चाहने वाल के समान सब जगह जाती ह. (५) नू नो अ न ऊतये सबाधस रातये. अ माकास सूरयो व ा आशा तरीष ण.. (६) हे अ न! तुम हमारी शी र ा करो एवं द र ता मटाने के लए हम धन दान करो. हमारी संतान एवं हमारे म भी तु हारी तु त से अपनी अ भलाषाएं पूण कर. (६) वं नो अ ने अ रः तुतः तवान आ भर. होत व वासहं र य तोतृ यः तवसे च न उतै ध पृ सु नो वृधे.. (७) हे अं गरावंशीय ऋ षय ारा तुत अ न! पुराने ऋ षय ने तु हारी तु त क थी एवं नए भी कर रहे ह. महान् य को परा जत करने वाला धन हम दो. हे दे व के होता अ न! तुम अपने तोता अथात् हम तु त करने क श दो एवं यु म हम समृ बनाओ. (७)
सू —११
दे वता—अ न
जन य गोपा अज न जागृ वर नः सुद ः सु वताय न से. घृत तीको बृहता द व पृशा ुम भा त भरते यः शु चः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
लोग क र ा करने वाले, सदा जागरणशील एवं सबके ारा शंसनीय श वाले अ न ने सर के नवीन क याण के हेतु ज म लया है. घृत के कारण व लत शरीर वाले, अ धक तेज से यु एवं शु अ न ऋ वज के लए द तशाली बनते ह. (१) य य केतुं थमं पुरो हतम नं नर षध थे समी धरे. इ े ण दे वैः सरथं स ब ह ष सीद होता यजथाय सु तुः.. (२) ऋ वज ने य का संकेत करने वाले, यजमान ारा सव े थान म था पत एवं इं आ द के समान अ न को तीन थान म व लत कया था. उ म कम वाले एवं दे व को बुलाने वाले अ न बछे ए कुश पर य पूरा करने के लए बैठे थे. (२) असंमृ ो जायसे मा ोः शु चम क व द त ो वव वतः. घृतेन वावधय न आ प धूम ते केतुरभव व तः.. (३) हे अ न! तुम अर णय पी माता से नबाध ज म लेते हो. तुम प व , सबके ारा शं सत, व ान, यजमान ारा व लत एवं पूववत -ऋ षय ारा घी क सहायता से बढ़ाए गए हो. हे आ तपूण अ न! तु हारा धुआं तु हारे झंडे के प म आकाश म थत है. (३) अ नन य मुप वेतु साधुया नं नरो व भर ते गृहेगृहे. अ न तो अभव वाहनोऽ नं वृणाना वृणते क व तुम्.. (४) सम त पु षाथ को स करने वाले अ न हमारे य म आव. लोग घर-घर म अ न को धारण करते ह. ह वहन करने वाले अ न दे व के त ए थे. लोग य पूण करने वाले के प म अ न का आदर करते ह. (४) तु येदम ने मधुम मं वच तु यं मनीषा इयम तु शं दे . वां गरः स धु मवावनीमहीरा पृण त शवसा वधय त च.. (५) हे अ न! तु हारे लए ये मधुरतम तु त वा य ह. ये तु तयां तु हारे दय म सुख उ प कर. जस कार महान् न दयां सागर को पूण करती ह, उसी कार ये तु तयां तु ह श शाली बनाकर बढ़ाव. (५) वाम ने अ रसो गुहा हतम व व द छ याणं वनेवने. स जायसे म यमानः सहो मह वामा ः सहस पु म रः.. (६) हे गुफा म छपे ए एवं वनवृ के बीच अव थत अ न! तु ह अं गरागो ीय ऋ षय ने ा त कया था. हे अं गरा ऋ षय से संबं धत अ न! तुम अ धक श ारा अर ण मंथन करने से उ प होते हो, इस लए सब तु ह श पु कहते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१२
दे वता—अ न
ा नये बृहते य याय ऋत य वृ णे असुराय म म. घृतं न य आ ये३ सुपूतं गरं भरे वृषभाय तीचीम्.. (१) महान्, य के यो य, जल बरसाने वाले, श शाली एवं कामना पूण करने वाले अ न के मुख म य करते समय जो घृत डाला है, हमारी तु तयां अ न को उसी के समान स कर. (१) ऋतं च क व ऋत म च क यृत य धारा अनु तृ ध पूव ः. नाहं यातुं सहसा न येन ऋतं सपा य ष य वृ णः.. (२) हे अ न! हमारे ारा क गई तु त जानो, इ ह वीकार करो तथा जल बरसाने के लए हमारे अनुकूल बनो. हम बल ारा य कम का व वंस नह करते और न कोई वेद- व काय करते ह. हम द तशाली एवं कामवष अ न क तु त करते ह. (२) कया नो अ न ऋतय ृतेन भुवो नवेदा उचथ य न ः. वेदा मे दे व ऋतुपा ऋतूनां नाहं प त स नतुर य रायः.. (३) हे अ न! तुम जल क वषा करते ए कस श से हमारे य कम को जान लेते हो? ऋतु क र ा करने वाले एवं द तशाली अ न हम जान. अ न मुझ भ के पशु आ द के वामी ह. इस बात को या म नह जानता? (३) के ते अ ने रपवे ब धनासः के पायवः स नष त ुम तः. के धा सम ने अनृत य पा त क आसतो वचसः स त गोपाः.. (४) श ु का बंधन करने वाले, लोकर क, दानशील एवं द तसंप लोग कौन ह? ये सब अ न के सेवक ह. अस य धारण करने वाले का र क एवं वचन को आ य दे ने वाला कौन है? अथात् अ न का कोई भ इस कार का नह है. (४) सखाय ते वषुणा अ न एते शवासः स तो अ शवा अभूवन्. अधूषत वयमेते वचो भऋजूयते वृ जना न ुव तः.. (५) हे अ न! तु हारे तोता सब जगह फैले ए ह. ये पहले ःखी थे, अब सुखी ए ह. हम सरल आचरण करने वाल को जो वचन कहता था, वह हमारा श ु वयं न हो गया. (५) य ते अ ने नमसा य मी ऋतं स पा य ष य वृ णः. त य यः पृथुरा साधुरेतु स ाण य न ष य शेषः.. (६) हे द तशाली एवं कामवष अ न! तु हारी तु त करने वाला तथा तु हारे न म य ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करने वाला यजमान व तृत घर ा त करता है. तु हारा सेवक कामना पूण करने वाला पु ा त करता है. (६)
दे वता—अ न
सू —१३
अच त वा हवामहेऽच तः स मधीम ह. अ ने अच त ऊतये.. (१) हे अ न! हम तु हारी पूजा करते ए तु ह बुलाते ह एवं तु ह र ा के लए तु हारी पूजा करते ह. (१) अ नेः तोमं मनामहे स म
द व पृशः. दे व य
व लत करते ह. हम
वण यवः.. (२)
हम लोग धन क अ भलाषा से द तशाली एवं आकाश को छू ने वाले अ न क पु षाथ स करने वाली तु त करते ह. (२) अ नजुषत नो गरो होता यो मानुषे वा. स य
ै ं जनम्.. (३)
मनु य के बीच थत रहकर दे व को बुलाने वाले अ न हमारी तु तयां वीकार कर एवं दे वय संबंधी साम ी का वहन कर. (३) वम ने स था अ स जु ो होता वरे यः. वया य ं व त वते.. (४) हे सदा स होता, लोग ारा वरण करने यो य एवं पु सहायता से य का व तार करते ह. (४)
अ न! यजमान तु हारी
वाम ने वाजसातमं व ा वध त सु ु तम्. स नो रा व सुवीयम्.. (५) हे े अ दाता एवं भली कार तुत अ न! बु उ म बल दो. (५) अ ने ने मरराँ इव दे वाँ वं प रभूर स. आ राध
मान् होता तु ह बढ़ाते ह. तुम हम
मृ
से.. (६)
हे अ न! प हए क ने म जस कार अर को अपने म थत करती है, उसी कार तुम दे व को परा जत करते हो. तुम तोता को भली कार धन दो. (६)
सू —१४
दे वता—अ न
अ नं तोमेन बोधय स मधानो अम यम्. ह ा दे वेषु नो दधत्.. (१) हे यजमान! अमर-अ न को तु तय
ारा बृ
करो. वे
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व लत होकर हमारा ह
दे व के पास ले जाएंगे. (१) तम वरे वीळते दे वं मता अम यम्. य ज ं मानुषे जने.. (२) मनु य य म उस द तसंप , मरणर हत एवं मानव जा अ न क तु त करते ह. (२) तं ह श
म अ तशय य पा
त ईळते ुचा दे वं घृत ता. अ नं ह ाय वो हवे.. (३)
ब त से तोता घी से पूण ुच लेकर दे व के समीप वहन करने के न म य शाला म अ न दे व क तु त करते ह. (३) अ नजातो अरोचत न द यू
यो तषा तमः. अ व दद्गा अपः व.. (४)
अर णय के मंथन से ा भूत अ न अपने तेज से य वनाशकारी द युजन एवं अंधकार को समा त करते ए का शत होते ह. गाएं, जल एवं सूय अ न से ही कट ए ह. (४) अ नमीळे यं क व घृतपृ ं सपयत. वेतु मे शृणव वम्.. (५) हे मनु यो! तु त यो य, ांतदश एवं घृत के कारण द त शखा वाले अ न क पूजा करो. अ न हमारे इस आ ान को सुनते ए आव. (५) अ नं घृतेन वावृधुः तोमे भ व चष णम्. वाधी भवच यु भः.. (६) ऋ वज ने घी एवं तु तय ारा शोभन यान वाले तथा तु तय क कामना करने वाले दे व के साथ व दशक अ न को घी क सहायता से बढ़ाया. (६)
सू —१५
दे वता—अ न
वेधसे कवये वे ाय गरं भरे यशसे पू ाय. घृत स ो असुरः सुशेवो रायो धता ध णो व वो अ नः.. (१) हम वधाता, ांतदश , तु त के यो य, यश वी, मु य, घृत प ह व ारा स होने वाले, बलशाली, शोभन सुखयु , धन के पोषक, ह वाहक एवं नवास थान दे ने वाले अ न के लए तु तयां न मत करते ह. (१) ऋतेन ऋतं ध णं धारय त य य शाके परमे ोमन्. दवो धम ध णे से षो नॄ ातैरजाताँ अ भ ये नन ुः.. (२) जो यजमान ऋ वज क सहायता से वण को धारण करने वाले, य शाला म बैठे ए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं नेता दे व को ा त करते ह, वे यजमान य वेद पी उ म थान पर धारण करते ह. (२)
के धारक व स य व प अ न को उ र
अंहोयुव त व त वते व वयो मह रं पू ाय. स संवतो नवजात तुतुया संहं न ु म भतः प र ु ः.. (३) मु य अ न के लए रा स ारा ा य ह दे ने वाले यजमान अपने शरीर को पापर हत बनाते ह. नवजात अ न ु सह के समान एक त श ु को र भगाव. सव वतमान श ु मुझसे र ह . (३) मातेव य रसे प थानो जन नं धायसे च से च. वयोवयो जरसे य धानः प र मना वषु पो जगा स.. (४) सव स अ न सभी मनु य को माता के समान धारण करते ह. सब लोग धारण एवं दशन के न म अ न क ाथना करते ह. धायमाण होते समय अ न सब अ को पका दे ते ह एवं नाना प होकर वयं सब ा णय के समीप जाते ह. (४) वाजो नु ते शवस पा व तमु ं दोघं ध णं दे व रायः. पदं न तायुगुहा दधानो महो राये वतय म पः.. (५) हे द तशाली अ न! महान् अ भलाषा को पूण करने वाले एवं धन को धारण करने वाले ह पी अ तु हारी संपूण श क र ा कर. चोर जस कार गुफा म छपाकर धन क र ा करता है, उसी कार तुम महान् धन ा त करने के लए माग का शत करते ए अ मु न को स करो. (५)
सू —१६
दे वता—अ न
बृह यो ह भानवेऽचा दे वाया नये. यं म ं न श त भमतासो द धरे पुरः.. (१) य म द तशाली अ न के लए ह प बृहत् अ दया जाता है. इस लए तुम भी ोतमान अ न क अचना करो. इन अ न को मनु य ने म के समान अ भाग म था पत कया एवं तु तयां क . (१) स ह ु भजनानां होता द य बा ो:. व ह म नरानुष भगो न वारमृ व त.. (२) जो अ न दे व के समीप ह प ंचाते ह, जो भुजा के बल से यु लए दे व को बुलाते ह एवं सूय के समान उ म धन लोग को दे ते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह, वे मनु य के
अ य तोमे मघोनः स ये वृ शो चषः. व ा य म तु व व ण समय शु ममादधुः.. (३) हम म ता पाने के लए धन के वामी एवं व तृत तेज वाले अ न क तु त करते ह. ब श दकारी एवं धन के वामी अ न म ऋ वज् एवं ह तो ारा श का आघात करते ह. (३) अधा
न एषां सुवीय य मंहना. त म
ं न रोदसी प र वो बभूवतुः.. (४)
हे अ न! हम यजमान को तुम ऐसा बल दो, जसका वरण सब करना चाहते ह. धरती और आकाश ने महान् सूय के समान वण करने यो य अ न को हण कया था. (४) नू न ए ह वायम ने गृणान आ भर. ये वयं ये च सूरयः व त धामहे सचोतै ध पृ सु नो वृधे.. (५) हे अ न! तुम तु त सुनकर हमारे य म शी आओ एवं हम उ म धन दान करो. हम यजमान एवं तोता मलकर तु हारी तु त करते ह. तुम यु म हम वजयी बनाओ. (५)
सू —१७
दे वता—अ न
आ य ैदव म य इ था त ां समूतये. अ नं कृते व वरे पू रीळ तावसे.. (१) हे दे व! ऋ वज् लोग अपने तेज से बढ़े ए अ न को तृ त करने के लए तो बुलाते ह. वे शोभन य म अ न को र ा के न म बुलाते ह. (१)
ारा
अ य ह वयश तर आसा वधम म यसे. तं नाकं च शो चषं म ं परो मनीषया.. (२) हे परम यश वी तोता! तुम अपनी उ मबु ारा श द म अ न क तु त करते हो. अ न ःखर हत, व च तेज वाले, तु त यो य एवं सव े ह. (२) अ य वासा उ अ चषा य आयु तुजा गरा. दवो न य य रेतसा बृह छोच यचयः.. (३) जो अ न जगत्-र ण-समथ, तु त से यु एवं आ द य के समान द तशाली ह, जन अ न क भा से सारा जगत् ा त है एवं जनक वशाल द तयां का शत होती ह, उ ह अ न क भा से आ द य काश वाला बनता है. (३) अ य वा वचेतसो द म य वसु रथ आ. अधा व ासु ह ोऽ न व ु श यते.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शोभन म त वाले ऋ वज् इस दशनीय अ न के य से धन और रथ ा त करते ह. य के न म बुलाए गए अ न व लत होने के बाद ही सब जा म का शत होते ह. (४) नू न इ वायमासा सच त सूरयः. ऊज नपाद भ ये पा ह श ध व तय उतै ध पृ सु नो वृधे.. (५) हे अ न! हम शी वह धन दान करो. जसे तु त करने वाले तुमसे तु त ारा पाते ह. हे बल के पु अ न! हम अ भलाषक को अ दो एवं आप य से हमारी र ा करो. हम तुमसे धन क याचना करते ह. सं ाम म हमारी समृ के लए तुम कारण बनो. (५)
सू —१८
दे वता—अ न
ातर नः पु यो वशः तवेता त थः. व ा न यो अम य ह ा मतषु र य त.. (१) ब त से लोग के यारे अ न यजमान को धन दे ने वाले एवं अ त थ ह. ातःकाल तुत एवं मरणर हत अ न यजमान के अ धकार म रहने वाले सभी ह क कामना करते ह. (१) ताय मृ वाहसे व य द य मंहना. इ ं स ध आनुष तोता च े अम य.. (२) हे अ न! शु ह व-वहन करने वाले त (अ के पु ) के लए तुम अपनी श दान करो. हे मरणर हत अ न! वे सवदा तु हारे लए सोम धारण करते ह एवं तु हारी तु त करते ह. (२) तं वो द घायुशो चषं गरा वे मघोनाम्. अ र ो येषां रथो दाव ीयते.. (३) हे अ दाता एवं रगामी-द तय वाले अ न! हम ध नक के क याण के न म तु तय ारा तु हारा आ ान करते ह. उनका रथ यु म श ु ारा ह सत न होकर आगे बढ़े . (३) च ा वा येषु द ध तरास ु था पा त ये. तीण ब हः वणरे वां स द धरे प र.. (४) जन ऋ वज ारा य संबंधी व वध कम कए जाते ह. जो अपने मुख से उ चारण करके तु तय क र ा करते ह, उन ऋ वज ारा य म बछे ए कुश पर अ रखे जाते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. (४) ये मे प चाशतं द र ानां सध तु त. ुमद ने म ह वो बृह कृ ध मघोना नृवदमृत नृणाम्.. (५) हे मरणर हत अ न! जो धनी मनु य तु हारी तु त के तुरंत बाद मुझे पचास घोड़े दे ते ह, तुम उ ह द तशाली एवं सेवक स हत अ दो. (५)
दे वता—अ न
सू —१९ अ यव थाः
जाय ते
व ेव
केत. उप थेमातु व च े.. (१)
जो अ न धरती-माता क गोद म थत पदाथ को दे खते ह, वे ही व अशोभन दशा को जानकर र कर. (१) जु रे व चतय तोऽ न मषं नृ णं पा त. आ
ऋष क
हां पुरं व वशुः.. (२)
हे अ न! जो लोग तु हारे भाव को जानते ए सदा य के लए तु ह बुलाते ह एवं बुलाकर तु तय तथा ह ारा तु हारे बल क र ा करते ह, वे श ु क अग य नगरी म वेश करते ह. (२) आ ै ेय य ज तवो ुम ध त कृ यः. न क ीवो बृह थ एना म वा न वाजयुः.. (३) गले म सुवणालंकार धारण करने वाले, महान् तो बोलने वाले एवं अ के अ भलाषी संसारी लोग तु तय ारा अंत र वत व ुत्-अ न क श बढ़ाते ह. (३) यं धं न का यमजा म जा योः सचा. घम न वाजजठरोऽद धः श तो दभः.. (४) ध से मले ए ह अ को उदर म रखने वाले, श ु ारा अ ह सत एवं सदा श ु क हसा करने वाले अ न धरती और आकाश के सहायक होकर हमारे कमनीय एवं ध के समान य तो को सुन. (४) ळ ो र म आ भुवः१ सं भ मना वायुना वे वदानः. ता अ य स धृषजो न त माः सुसं शता व यो व णे थाः.. (५) हे द तशाली एवं वन म अपनी वाला से बनी भ म ारा ड़ा करते ए अ न! तुम ेरक वायु ारा ात होकर हमारे सामने आओ. तु हारी श ुनाशक वालाएं हमारे समीप आकर कोमल बन. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —२०
दे वता—अ न
यम ने वाजसातम वं च म यसे र यम्. तं नो गी भः वा यं दे व ा पनया युजम्.. (१) हे अ दाता म े अ न! हमारे ारा दए गए जस ह को तुम धन समझते हो, उसी वणीय एवं तु तयु ह पी धन को दे व के समीप ले जाओ. (१) ये अ ने नेरय त ते वृ ा उ य शवसः. अप े षो अप
रोऽ य त य स रे.. (२)
हे अ न! जो पशु आ द धन से समृ लोग तु हारे लए ह व नह दे त,े वे अ से अ यंत हीन बनते ह. तुम वेद- व कम करने वाले असुर का वरोध एवं हसा करो. (२) होतारं वा वृणीमहेऽ ने द
य साधनम्. य ेषु पू
गरा य व तो हवामहे.. (३)
हे दे व को बुलाने वाले एवं बल के साधक अ न! अ के वामी हम लोग तु हारा वरण करते ह एवं य म े मानकर तु त-वचन से तु हारी शंसा करते ह. (३) इ था यथा त ऊतये सहसाव दवे दवे. राय ऋताय सु तो गो भः याम सधमादो वीरैः याम सधमादः.. (४) हे अ न! ऐसी कृपा करो, जससे हम त दन तु हारी र ा ा त कर. हे शोभन य के वामी! ऐसा करो, जससे हम धन पा सक. य कर सक, गाएं पा सक एवं पु -पौ के साथ स हो सक. (४)
दे वता—अ न
सू —२१
मनु व वा न धीम ह मनु व स मधीम ह. अ ने मनु वद रो दे वा दे वयते यज.. (१) हे अ न! हम मनु के समान तु ह धारण एवं व लत करते ह. हे अंगारयु तुम दे व क कामना करने वाले यजमान का य करो. (१)
अ न!
वं ह मानुषे जनेऽ ने सु ीत इ यसे. ुच वा य यानुष सुजात स परासुते.. (२) हे अ न! तुम तो ारा स होकर मानवलोक म व लत होते हो. हे सुजात एवं घृतयु अ के वामी अ न! ह से पूण ुच तु ह सदा ा त करता है. (२) वां व े सजोषसो दे वासो तम त. सपय त वा कवे य ेषु दे वमीळते.. (३) हे
ांतदश अ न! सब दे व ने पर पर
स
होकर, तु ह अपना त बनाया था.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इसी लए य (३)
म तु हारी सेवा करते ए यजमान दे व को बुलाने हेतु तु हारी सेवा करते ह.
दे वं वो दे वय यया नमीळ त म यः. स म ः शु द द त य यो नमासदः सस य यो नमासदः.. (४) हे द तशाली अ न! यजमान दे वय के न म तु हारी तु त करते ह. हे वालायु अ न! तुम ह व से समृ होकर चमको. मुझ सस ऋ ष के य थान म तुम ठहरो. (४)
दे वता—अ न
सू —२२ व साम
वदचा पावकशो चषे. यो अ वरे वी
ो होता म तमो व श.. (१)
हे व सामा ऋ ष! तुम अ ऋ ष के समान प व काश वाले अ न क पूजा करो. वे य म सभी ऋ वज ारा तु य, दे व को बुलाने वाले एवं मानव म सबसे अ धक पू य ह. (१) य१ नं जातवेदसं दधाता दे वमृ वजम्.
य ए वानुषग ा दे व च तमः.. (२)
हे यजमानो! तुम जातवेद, ु तमान एवं ऋतु अनुसार य करने वाले अ न को धारण करो. दे व को अ तशय य व य -साधन के प म हमारे ारा दया गया ह व आज अ न को ा त हो. (२) च क वमनसं वा दे वं मतास ऊतये. वरे य य तेऽवस इयानासो अम म ह.. (३) हे द तशाली एवं ानसंप मन वाले अ न! तु हारे समीप जाते ए हम मनु य तुझ संभवनीय को तृ त करने के लए तु त करते ह. (३) अ ने च क १ य न इदं वचः सह य. तं वा सु श द पते तोमैवध य यो गी भः शु भ य यः.. (४) हे बलपु अ न! हमारी इस सेवा पी तु त को जानो. हे सुंदर नाक वाले एवं गृह वामी अ न! अ ऋ ष के पु तु ह तु तय ारा व त एवं वचन से अलंकृत करते ह. (४)
सू —२३
दे वता—अ न
अ ने सह तमा भर ु न य ासहा र यम्. व ा य षणीर या३सा वाजेषु सासहत्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! मुझ ु न ऋ ष को उ म बल से यु एवं श ु को परा जत करने वाला पु दो, जो तु त से यु होकर यु म सामने आने वाले श ु को हरा दे . (१) तम ने पृतनाषहं र य सह व आ भर. वं ह स यो अ तो दाता वाज य गोमतः.. (२) हे बलवान् अ न! तुम स य व प एवं महान् तथा गोयु सेना को हराने वाला पु दो. (२)
अ दे ने वाले हो. मुझे श ु
व े ह वा सजोषसो जनासो वृ ब हषः. होतारं सद्मसु यं त वाया पु .. (३) हे अ न! पर पर स एवं कुश बछाने वाले सब ऋ वज् य शाला म दे व को बुलाने वाले एवं सव य तुमसे उ म धन मांगते ह. (३) स ह मा व चष णर भमा त सहो दधे. अ न एषु ये वा रेव ः शु द द ह ुम पावक द द ह.. (४) हे अ न! वे व -चषाण ऋ ष श ु हसक बल धारण कर. हे तेज वी अ न! हमारे घर म तुम धनयु काश करो. हे पापनाशक अ न! तुम द तशाली होकर काश करो. (४)
सू —२४
दे वता—अ न
अ ने वं नो अ तम उत ाता शवो भवा व यः.. (१) वसुर नवसु वा अ छा न ुम मं र य दाः.. (२) हे वरणीय, र क एवं सुखकर अ न! तुम हमारे समीपवत बनो. हे नवास एवं अ दाता अ न! तुम हम ा त होकर हम अ यंत उ वल धन दो. (१, २) स नो बो ध ध ु ी हवमु या णो अघायतः सम मात्.. (३) तं वा शो च द दवः सु नाय नूनमीमहे स ख यः.. (४) हे अ न! तुम हम जानो एवं हमारी पुकार सुनो. सभी पाप चाहने वाले लोग से हम बचाओ. हे अपने तेज से द त अ न! हम तुमसे सुख एवं पु क याचना करते ह. (३, ४)
सू —२५
दे वता—अ न
अ छा वो अ नमवसे दे वं गा स स नो वसुः. रास पु ऋषूणामृतावा पष त षः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धन के अ भलाषी ऋ षयो! तुम र ा के लए अ न क तु त करो. अ नहो के न म यजमान के घर म रहने वाले अ न हमारी अ भलाषा पूण कर. ऋ षय के पु एवं स ययु अ न हम श ु से सुर त कर. (१) स ह स यो यं पूव च े वास मी धरे. होतारं म ज म सुद त भ वभावसुम्.. (२) ाचीन ऋ षय एवं दे व ने दे व को बुलाने वाले, स ताकारक जीभ वाले, शोभन द तय से यु एवं भा वाले जस अ न को व लत कया था, वे स य त ह. (२) स नो धीती व र या े या च सुम या. अ ने रायो दद ह नः सुवृ भवरे य.. (३) हे शोभन तु तय ारा शं सत एवं वरण करने यो य अ न! तुम हमारे अ तशय शंसनीय एवं े सेवा पी कम से एवं तु तय से स होकर हम धन दो. (३) अ नदवेषु राज य नमत वा वशन्. अ नन ह वाहनोऽ नं धी भः सपयत.. (४) हे यजमान! जो अ न दे व के बीच म दे वता प म का शत होते ह, मनु य म आहवानीय आ द प से व ह एवं जो हमारा ह दे व के पास ले जाते ह, तुम तु तय ारा उ ह अ न क सेवा करो. (४) अ न तु व व तमं तु व ाणमु तम्. अतूत ावय प त पु ं ददा त दाशुषे.. (५) अ न ह दे ने वाले यजमान को ऐसा पु द जो अनेक कार के अ का वामी, व वध तो से यु , उ म श ु से परा जत न होने वाला एवं अपने कम से पूवज के य को स करने वाला हो. (५) अ नददा त स प त सासाह यो युधा नृ भः. अ नर यं रघु यदं जेतारमपरा जतम्.. (६) अ न हम स यपालक यु म प रजन क सहायता से श ु वाला, स जन का पालक, श ुजयी एवं परम वेगशाली पु द. (६)
को परा जत करने
य ा ह ं तद नये बृहदच वभावसो. म हषीव व य व ाजा उद रते.. (७) सव े
तो अ न के उ े य से बोला जाता है. हे भायु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न! हम अ धक मा ा
म अ दो, य क महान् धन एवं अ तु ह से उ प होता है. (७) तव ुम तो अचयो ावेवो यते बृहत्. उतो ते त यतुयथा वानो अत मना दवः.. (८) हे अ न! तु हारी लपट काश वाली ह. तुम सोमलता कुचलने वाले प थर के समान महान् हो. तुम वयं ोतमान हो. तु हारा श द मेघगजन के समान है. (८) एवाँ अ नं वसूयवः सहसानं वव दम. स नो व ा अ त षः पष ावेव सु तुः.. (९) धन क इ छा करने वाले हम लोग बल का आचरण करने वाले अ न क वंदना करते ह. वे शोभनकम वाले अ न हम उसी कार श ु से पार कर. जस कार नाव स रता के पार लगाती है. (९)
सू —२६
दे वता—अ न
अ ने पावक रो चषा म या दे व ज या. आ दे वा व य च.. (१) हे शोधक एवं द तशाली अ न! तुम अपनी द त और दे व को स करने वाली ज ा से य म दे व को बुलाओ तथा उनके न म य करो. (१) तं वा घृत नवीमहे च भानो व शम्. दे वाँ आ वीतये वह.. (२) हे घृत ेरक एवं अनेक वशाल लपट वाले अ न! तुझ सव ह. ह भ ण करने के लए तुम दे व को बुलाओ. (२)
ा क हम याचना करते
वी तहो ं वा कवे ुम तं स मधीम ह. अ ने बृह तम वरे.. (३) हे ांतदश , ह भ ण करने वाले, य को सुशो भत करने वाले, द तशाली एवं महान् अ न! हम य म तु ह स मधा ारा व लत करते ह. (३) अ ने व े भरा ग ह दे वे भह दातये. होतारं वा वृणीमहे.. (४) हे अ न! तुम सब दे व के साथ ह दे ने वाले यजमान के य म आओ. इसी लए हम दे व को बुलाने वाले तुमसे ाथना करते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमानाय सु वत आ ने सुवीय वह. दे वैरा स स ब ह ष.. (५) हे अ न! तुम सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को शोभन बल दान करो एवं दे व के साथ कुश पर बैठो. (५) स मधानः सह जद ने धमा ण पु य स. दे वानां त उ यः.. (६) हे हजार को जीतने वाले अ न! तुम ह वय बनकर य कम को बढ़ाते हो. (६) य१ नं जातवेदसं हो वाहं य व दधाता दे वमृ वजम्.. (७)
ारा
व लत, शं सत एवं दे व के त
म्.
हे यजमानो! तुम जातवेद, य को वहन करने वाले, अ तशय युवा, ु तयु अनुसार य करने वाले अ न को था पत करो. (७)
एवं ऋतु
य ए वानुषग ा दे व च तमः. तृणीत ब हरासदे .. (८) आज काशमान तोता ारा दया गया ह व लगातार दे व के पास प ंच,े हे ऋ वज्! तुम अ न के बैठने के लए कुश बछाओ. (८) एदं म तो अ ना म ः सीद तु व णः. दे वासः सवया वशा.. (९) म द्गण, अ नीकुमार, म , व ण आ द दे व अपने सभी सा थय को लेकर इन कुश पर बैठ. (९)
सू —२७
दे वता—अ न
अन व ता स प तमामहे मे गावा चे त ो असुरो मघोनः. ैवृ णो अ ने दश भः सह ैव ानर य ण केत.. (१) हे सकल मानव के नेता, साधु का पालन करने वाले, अ तशय ानसंप , बलवान् एवं धन वामी अ न! वृ ण के पु य ण नामक राज ष ने गाड़ी स हत दो बैल एवं दस हजार वण मु ाएं मुझे द . इस दान से वह स हो गया. (१) यो मे शता च वश त च गोनां हरी च यु ा सुधुरा ददा त. वै ानर सु ु तो वावृधानोऽ ने य छ य णाय शम.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वै ानर! जस य ण ने मुझे सौ वणमु ाएं, बीस गाएं एवं रथ म जुते ए दो घोड़े दए थे, तुम हमारी तु तय ारा व लत होकर उसे सुख दो. (२) एवा ते अ ने सुम त चकानो न व ाय नवमं सद युः. यो मे गर तु वजात य पूव यु े ना भ य णो गृणा त.. (३) हे अ न! जस य ण ने ब त संतान वाले हम लोग क अनेक तु तयां सुनकर स तापूवक मन से व भ व तुएं हण करने को कहा था, उसी कार तुझ अ तशय तु त यो य क अ त नवीन तु तय क कामना करने वाले सद यु ने भी कहा था. (३) यो म इ त वोच य मेधाय सूरये. दद चा स न यते दद मेधामृतायते.. (४) हे अ न! जो धन का याचक दानी अ मेध नामक राज ष के पास आकर याचना करता है, उस तु तकारी भ ुक को वे धन दे ते ह. य के इ छु क उस अ मेध को तुम धन दो. (४) य य मा प षाः शतमु षय यु णः. अ मेध य दानाः सोमाइव या शरः.. (५) हे अ न! अ मेध ारा क ई कामना पूण करने वाले बैल ने मुझे इस कार स कया है, जस कार दही, ध एवं स ू से मला आ सोम तु ह स करता है. (५) इ ा नी शतदा य मेधे सुवीयम्. ं धारयतं बृह व सूय मवाजरम्.. (६) हे इं एवं अ न! तुम याचक को अन गनत धन दे ने वाले अ मेध के लए आकाश थत सूय के समान शोभन बलयु महान् एवं अमर धन दो. (६)
सू —२८
दे वता—अ न
स म ो अ न द व शो चर े यङ् ङु षसमु वया व भा त. ए त ाची व वारा नमो भदवाँ ईळाना ह वषा घृताची.. (१) व लत अ न द तयु आकाश म तेज फैलाते ह एवं उषाकाल म व तृत होकर शोभा पाते ह. तो ारा इं आ द क शंसा करती , पुरोडाश आ द से यु ु लेकर च व वारा पूवा भमुख जाती ह. (१) स म यमानो अमृत य राज स ह व कृ व तं सचसे व तये. व ं स ध े वणं य म व या त यम ने न च ध इ पुरः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! तुम व लत होकर जल पर अ धकार करते हो एवं ह दाता यजमान के मंगल के लए र ा करते हो. तुम जस यजमान के पास जाते हो, वह सभी कार क संप धारण करता है. वह तु हारे सामने तु हारे स कार यो य ह को रखता है. (२) अ ने शध महते सौभगाय तव ु ना यु मा न स तु. सं जा प यं सुयममा कृणु व श य ू ताम भ त ा महां स.. (३) हे अ न! हम शोभन धन वाला बनाने के लए हमारे श ु का नाश करो. तु हारा तेज उ कृ हो. तुम हम प त-प नी के संबंध को नय मत एवं हमारे श ु के तेज को न करो. (३) स म य महसोऽ ने व दे तव यम्. वृषभो ु नवाँ अ स सम वरे व यसे.. (४) हे व लत एवं परम तेज वी अ न! हम यजमान तु हारी तु त करते ह. तुम कामवष एवं धनवान् हो तथा य म भली कार व लत होते हो. (४) स म ो अ न आ त दे वा य वं ह ह वाळ स.. (५)
व वर.
हे यजमान ारा बुलाए गए एवं शोभन य से यु अ न! तुम भली कार होकर इं ा द दे व का हवन करो. तुम ह वहन करने वाले हो. (५)
व लत
आ जुहोता व यता नं य य वरे. वृणी वं ह वाहनम्.. (६) हे ऋ वजो! तुम हमारा य आरंभ होने पर ह ढोने वाले अ न म हवन करो, उनक सेवा करो, उ ह ा त करो एवं अपना ह दे व के समीप प ंचाने के लए उ ह वरण करो. (६)
सू —२९
दे वता—इं एवं उशना
ययमा मनुषो दे वताता ी रोचना द ा धारय त. अच त वा म तः पूतद ा वमेषामृ ष र ा स धीरः.. (१) मनु के य के तीन तेज एवं अंत र म होने वाले तीन काशयु को म त ने धारण कया है. हे इं ! प व -श वाले म त् तु हारी तु त करते ह. हे धीर इं ! तुम इ ह दे खने वाले हो. (१) अनु यद म तो म दसानमाच ं प पवांसं सुत य. आद व म भ यद ह ह पो य रसृज सतवा उ.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जब म त ने नचोड़े ए सोमरस को पीकर स इं क तु त क , तब इं ने व उठाया, श ु का नाश कया एवं वृ ारा रोक गई वशाल जलरा श को बहने के लए छोड़ा. (२) उत ाणो म तो मे अ ये ः सोम य सुषुत य पेयाः. त ह ं मनुषे गा अ व ददह ह प पवाँ इ ो अ य.. (३) हे महान् म तो! तुम इं के साथ मलकर इस भली कार नचोड़े गए सोम को पओ. इसी ह ने यजमान को गाएं दलाई ह एवं इसी को पीकर इं ने अ ह को मारा था. (३) आ ोदसी वतरं व कभाय सं व ान यसे मृगं कः. जग त म ो अपजगुराणः त स तमव दानवं हन्.. (४) इं ने सोमरस पीने के बाद ही व तृत धरती-आकाश को तं भत कया था एवं ग तशील बनकर हरन के समान भागते ए वृ को डराया था. इं ने छपे ए एवं सांस लेते ए वृ को आ छादनर हत करके मारा. (४) अध वा मघव तु यं दे वा अनु व े अद ः सोमपेयम्. य सूय य ह रतः पत तीः पुरः सती परा एतशे कः.. (५) हे धन वामी इं ! तु हारे इस काय के बदले सभी दे व ने तु ह पीने के लए सोम दया था. तुमने एतश ऋ ष के क याण के लए सामने से आते ए सूय के घोड़ को रोक दया था. (५) नव यद य नव त च भोगा साकं व ेण मघवा ववृ त्. अच ती ं म तः सध थे ै ु भेन वचसा बाधत ाम्.. (६) जब धन के वामी इं ने शंबर के न यानवे नगर को व ारा एक साथ न कर दया था, तब म त ने यु भू म म ही ु प् छं द ारा इं क तु त क थी. इं ने म त क तु त से श शाली बनकर शंबर को बाधा प ंचाई. (६) सखा स ये अपच ूयम नर य वा म हषा ी शता न. ी साक म ो मनुषः सरां स सुतं पबद्वृ ह याय सोमम्.. (७) अ न ने अपने म इं के लए शी ही तीन सौ भस को पकाया था. इं ने वृ को मारने के लए मनु के तीन पा म भरे ए सोम को एक साथ पी लया था. (७) ी य छता म हषाणामघो मा ी सरां स मघवा सो यापाः. कारं न व े अ त दे वा भर म ाय यद ह जघान.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धन वामी इं ! जब तुमने तीन सौ भस का मांस खाया, सोमरस से भरे तीन पा को पया एवं वृ को मारा, तब सब दे व ने सोमपान से पूण तृ त इं को उसी कार बुलाया, जस कार मा लक अपने दास को बुलाता है. (८) उशना य सह यै३रयातं गृह म जूजुवाने भर ैः. व वानो अ सरथं ययाथ कु सेन दे वैरवनोह शु णम्.. (९) हे इं ! जब तुम और उशना क व सबको परा जत करने वाले एवं शी चलने वाले घोड़ के ारा कु स ऋ ष के घर गए थे, उस समय तुम श ु क हसा करते ए सम त दे व एवं कु स के साथ एक रथ पर बैठकर चले थे. तुमने शु ण असुर को मारा था. (९) ा य च मवृहः सूय य कु साया य रवो यातवेऽकः. अनासो द यूँरमृणो वधेन न य ण आवृणङ् मृ वाचः.. (१०) हे इं ! तुमने सूय के रथ के एक प हए को पहले ही अलग कर दया था एवं सरा प हया कु स को इस लए दे दया था क वह धन पा सके. तुमने श द न करने वाले द यु को सं ाम म व ारा वाणीर हत करके मारा था. (१०) तोमास वा गौ रवीतेरवध र धयो वैद थनाय प ुम्. आ वामृ ज ा स याय च े पच प र पबः सोमम य.. (११) हे इं ! गौ रवी त ऋ ष के तो तु ह बढ़ाव. तुमने वद धन के पु ऋ ज ा के क याण के न म प ु नामक असुर को अपने वश म कया था. ऋ ज ा ने तु हारी म ता पाने के लए पुरोडाश पकाकर तु हारे सामने रखा था एवं तुमने उसका सोमरस पया था. (११) नव वासः सुतसोमास इ ं दश वासो अ यच यकः. ग ं च वम पधानव तं तं च रः शशमाना अप न्.. (१२) नौ एवं दस महीन तक चलने वाले य के क ा अं गरावंशीय ऋ षय ने सोम नचोड़कर तु तय ारा इं क पूजा क थी. तु त करते ए अं गरावंशीय ऋ षय ने असुर ारा छपाए ए गोसमूह को छु टकारा दलाया था. (१२) कथो नु ते प र चरा ण व ा वीया मघव या चकथ. या चो नु न ा कृणवः श व े ता ते वदथेषु वाम.. (१३) हे धन वामी इं ! तुमने जो परा म कट कया था, उसे जानते ए भी हम तु हारे सामने कस कार कट कर? हे श शाली इं ! तुम जो भी नया परा म दखाओगे, हम य म उसका वणन करगे. (१३) एता व ा चकृवाँ इ
भूयपरीतो जनुषा वीयण.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
या च ु व
कृणवो दधृ वा ते वता त व या अ त त याः.. (१४)
हे श ु ारा अपरा जत इं ! तुमने अपनी नजी श ारा इन अनेक लोक को बनाया है. हे व धारी इं ! श ु को शी परा जत करते ए तुम जो कुछ करोगे, तु हारे उस काय को कोई अ धक नह कर सकता. (१४) इ यमाणा जुष व या ते श व न ा अकम. व ेव भ ा सुकृता वसूयू रथं न धीरः वपा अत म्.. (१५) हे सवा धक बलवान् इं ! तु हारे न म हमने जो नए तो बनाए ह, उ ह तुम वीकार करो. बु मान्, शोभन-कम करने वाले एवं धन के इ छु क हम लोग ने ये तो रथ एवं कपड़ के समान तु ह अपण कए ह. (१५)
सू —३०
दे वता—इं एवं ऋणंचय
व१ य वीरः को अप य द ं सुखरथमीयमानं ह र याम्. यो राया व ी सुतसोम म छ तदोको ग ता पु त ऊती.. (१) व धारी एवं ब त ारा बुलाए गए इं धन के साथ-साथ सोमरस नचोड़ने वाले यजमान क अ भलाषा पूण करते ए यजमान क र ा करने के न म उसके घर म चले जाते ह. वे वीर इं कहां ह? ह र नामक घोड़ ारा ख चे जाते ए सुखदायक रथ पर बैठकर चलने वाले इं को कसने दे खा है? (१) अवाचच ं पदम य स व ं नधातुर वाय म छन्. अपृ छम याँ उत ते म आ र ं नरो बुबुधाना अशेम.. (२) हमने इं के छपे ए एवं भयानक थान को दे खा है. हम ढूं ढ़ते ए अपनी थापना करने वाले इं के उस थान म गए ह. हमने सरे व ान से इं के वषय म पूछा है. उन नेता एवं ा नय ने कहा क हमने इं को ा त कर लया है. (२) नु वयं सुते या ते कृतानी वाम या न नो जुजोषः. वेदद व ा छृ णव च व ा वहतेऽयं मघवा सवसेनः.. (३) हे इं ! तुमने जो कम कए ह, हम तोतागण सोम नचुड़ जाने पर उनका उ म वणन करते ह. तुमने भी हमारे जन कम को वीकार कया है, उ ह न जानने वाले लोग जान ल. जानने वाले लोग उ ह न जानने वाल को सुनाव. धन वामी एवं ानी इं अपनी सभी सेना स हत जानने वाले एवं सुनाने वाल के समीप जाव. (३) थरं मन कृषे जात इ
वेषीदे को युधये भूयस त्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ मानं च छवसा द ुतो व वदो गवामूवमु याणाम्.. (४) हे इं ! तुमने ज म लेते ही अपना मन थर कया एवं अकेले ही अन गनत रा स से यु करने के लए चल पड़े. तुमने अपनी श ारा गाय को छपाने वाले पवत को तोड़ डाला था एवं धा गाय को पाया था. (४) परो य वं परम आज न ाः पराव त ु यं नाम ब त्. अत द ादभय त दे वा व ा अपो अजय ासप नीः.. (५) हे सव च एवं सव कृ इं ! तुमने र र तक स नाम को धारण करते ए ज म लया था. उस समय सभी दे व तुमसे डर गए थे एवं तुमने वृ ारा रोके गए सम त जल को जीत लया था. (५) तु येदेते म तः सुशेवा अच यक सु व य धः. अ हमोहानमप आशयानं माया भमा यनं स द ः.. (६) हे इं ! ये उ म सुख दे ने वाले तोता तु तय ारा तु हारी शंसा करते ह एवं तु ह पलाने के लए अ पी सोम नचोड़ते ह. इं ने अपनी श य ारा दे व को बाधा प ंचाने वाले एवं जलसमूह को रोककर सोए ए मायावी वृ रा स को हराया था. (६) व षू मृधो जनुषा दान म व ह गवा मघव स चकानः. अ ा दास य नमुचेः शरो यदवतयो मनवे गातु म छन्.. (७) हे धन वामी इं ! हमारी तु त सुनकर तुमने दे व को बाधा प ंचाने वाले वृ को व से मारते ए ज म से ही उसके अनुचर रा स आ द क हसा क थी. हे इं ! इस यु म तुम मुझ मनु को सुख दे ने क इ छा से नमु च नामक दास का सर तोड़ दो. (७) युजं ह मामकृथा आ द द शरो दास य नमुचेमथायन्. अ मानं च वय१ वतमानं च येव रोदसी म यः.. (८) हे इं ! जस कार तुमने गजन करने वाले एवं घूमते ए बादल को न कया था, उसी कार नमु च नामक दास का सर तोड़कर उसी समय हमारे साथ म ता क थी. उस समय म त के भय से धरती और आकाश प हए क तरह घूमने लगे थे. (८) यो ह दास आयुधा न च े क मा कर बला अ य सेनाः. अ त य भे अ य धेने अथोप ै ुधये द यु म ः.. (९) नमु च नामक दास ने य को अपने यु का साधन बनाया. इसक सारी सेना मेरा या कर सकती है? यह सोचते ए इं ने उनके बीच से उसक यारी दो सुंद रय को अपने घर म रख लया एवं नमु च से लड़ने के लए चल दए. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सम गावोऽ भतोऽनव तेहेह व सै वयुता यदासन्. सं ता इ ो असृजद य शाकैयद सोमासः सुषुता अम दन्.. (१०) नमु च ारा चुराई गई गाएं अपने बछड़ से बछु ड़ जाने पर इधर-उधर भटक रही थ . व ु ऋ ष ारा नचोड़े गए सोमरस ने इं को स कया, तब इं ने श शाली म त के साथ मलकर व ु क गाय को बछु ड़े ए बछड़ से मला दया था. (१०) यद सोमा ब ुधूता अम द रोरवीद्वृषभः सादनेषु. पुर दरः प पवाँ इ ो अ य पुनगवामददा याणाम्.. (११) जब व ु ारा नचोड़े गए सोमरस ने इं को स कया था, तब कामवष इं ने यु म अ धक श द कया था. पुरंदर इं ने सोमरस पया एवं व ु क धा गाएं उ ह वापस दलवा द . (११) भ मदं शमा अ ने अ गवां च वा र ददतः सह ा. ऋण चय य यता मघा न य भी म नृतम य नृणाम्.. (१२) हे अ न! ऋणंचय राजा के सेवक ने, जो शम दे श के नवासी थे, मुझे चार हजार गाएं दे कर भला काम कया था. सव े नेता ऋणंचय ारा दए गए गो प धन को मने वीकार कया था. (१२) सुपेशसं माव सृज य तं गवां सह ै शमानो अ ने. ती ा इ ममम ः सुतासोऽ ो ु ौ प रत यायाः.. (१३) हे अ न! शम दे श क जा ने मुझे अलंकार, व ा द से सुशो भत करके हजार गाएं द थ . रात बीतने पर अथात् ातः नचोड़े ए सोमरस ने इं को स कया. (१३) औ छ सा रा ी प रत या याँ ऋण चये राज न शमानाम्. अ यो न वाजी रघुर यमानो ब ु वायसन सह ा.. (१४) शम दे श के राजा ऋणंचय के समीप ही मेरी वह ग तशील रात बीत गई थी. वेगवान् घोड़े के सामन शी तापूवक आने वाले व ु ऋ ष ने चार हजार गाएं ा त क थ . (१४) चतुःसह ं ग य प ः तय भी म शमे व ने. घम तः वृजे य आसीदय मय त वादाम व ाः.. (१५) हे अ न! हमने शम दे श क जा से चार हजार गाएं ा त क थ . उनके पास महावीर के समान सोने का जो उ म वण कलश य के काम आने के लए था, उसे हमने गाय का ध काढ़ने के लए ले लया. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —३१
दे वता—इं
इ ो रथाय वतं कृणो त यम य था मघवा वाजय तम्. यूथेव प ो ुनो त गोपा अ र ो या त थमः सषासन्.. (१) धन के वामी इं , जस अ ा भलाषी रथ पर बैठते ह, उसे हांकते भी ह. जैसे वाला पशु के समूह को हांकता है, उसी कार इं श ु को भगाते ह. अपरा जत एवं दे व े इं श ु के धन को चाहते ए चलते ह. (१) आ व ह रवो मा व वेनः पश राते अ भ नः सच व. न ह व द व यो अ यद यमेनां ज नवत कथ.. (२) हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! तुम सबके स मुख भली कार गमन करो. तुम हमारे त इ छार हत मत होना. हे व वध धन के वामी! तुम हमारी सेवा वीकार करो. हे इं ! तुमसे े कोई नह है. तुम प नीर हत को प नीयु करते हो. (२) उ सहः सहस आज न दे द इ इ या ण व ा. ाचोदय सु घा व े अ त व यो तषा संववृ व मोऽवः.. (३) जब सूय का काश उषा के काश से उ प होकर े बनता है, तब इं यजमान को सभी कार का धन दे ते ह. वे पवत के म य से धा गाय को छु ड़ाते ह एवं अपने काश से ढकने वाले अंधकार को न करते ह. (३) अनव ते रथम ाय त व ा व ं पु त ुम तम्. ाण इ ं महय तो अकरवधय हये ह तवा उ.. (४) हे अनेक जन ारा बुलाए गए इं ! ऋभु ने तु हारे रथ को घोड़ से जुड़ने यो य बनाया था एवं व ा ने तु हारे व को चमकाया था. अं गरावंशीय ऋ षय ने अपने तो ारा वृ को मारने के लए तु ह उ े जत कया था. (४) वृ णे य े वृषणो अकमचा न ावाणो अ द तः सजोषाः. अन ासो ये पवयोऽरथा इ े षता अ यवत त द यून्.. (५) हे कामवष इं ! जब वषा करने म समथ म त ने तु हारी तु त क , तब सोम नचोड़ने वाले प थर भी स तापूवक मल गए थे. बना रथ एवं बना घोड़ वाले म त ने इं क ेरणा पाकर असुर को परा जत कया था. (५) ते पूवा ण करणा न वोचं नूतना मघव या चकथ. श वो य भरा रोदसी उभे जय पो मनवे दानु च ाः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धन के वामी इं ! हम तु हारे पुराने और नए साहसपूण काय क तु त करते ह. तुमने वे कम कए थे. हे व वाले इं ! तुम धरती-आकाश को वश म करते ए मनु य के लए व च जल को धारण करते हो. (६) त द ु ते करणं द म व ा ह यद् न ोजो अ ा ममीथाः. शु ण य च प र माया अगृ णाः प वंय प द यूँरसेधः.. (७) हे सुंदर एवं बु मान् इं ! तुमने वृ को मारकर जो अपनी श को सब पर कट कया है वह न त प से तु हारा कम था. हे इं ! तुमने शु ण असुर क युवती प नी को अपने अ धकार म कया एवं यु म श ु को बाधा प ंचाई. (७) वमपो यदवे तुवशायारमयः सु घाः पार इ . उ मयातमवहो ह कु सं सं ह य ामुशनार त दे वाः.. (८) हे इं ! तुमने न दय के कनारे खड़े होकर य और तुवश नामक राजा को ऐसा जल दान कया जो वन प तय को बढ़ाने वाला था. हे इं ! तुम और कु स आ मणकारी शु ण से लड़ने गए थे. भयानक शु ण को मारकर तुमने कु स को घर प ंचाया. तब उशना क व के साथ सभी दे व ने तु हारा वागत कया था. (८) इ ाकु सा वहमाना रथेना वाम या अ प कण वह तु. नः षीम यो धमथो नः षध था मघोनो दो वरथ तमां स.. (९) हे इं एवं कु स! एक रथ पर बैठे ए तुम दोन को घोड़े यजमान के पास ले जाव. तुमने शु ण को जल से बाहर नकाला था एवं धनी यजमान के दय को ढकने वाला अंधकार र कया था. (९) वात य यु ा सुयुज द ा क व दे षो अजग व युः. व े ते अ म तः सखाय इ ा ण त वषीमवधन्.. (१०) अव यु नामक व ान् ऋ ष ने वायु क ग त से चलने वाले एवं रथ म ठ क से जुड़े ए घोड़ को ा त कया था. हे इं ! अव यु के सभी म तोता ने तु हारा बल अपनी तु तय ारा बढ़ाया. (१०) सूर थं प रत यायां पूव कर परं जूजुवांसम्. भर च मेतशः सं रणा त पुरो दध स न य त तुं नः.. (११) इं ने सं ाम म एतश ऋ ष के साथ लड़ने वाले सूय का तेज चलने वाला रथ ग तहीन कर दया था. एतश के क याण के लए इं ने पहले सूय के रथ का एक प हया छ न लया था. उसीसे इं असुर का नाश करते ह. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आयं जना अ भच े जगामे ः सखाय सुतसोम म छन्. वद ावाव वे द याते य य जीरम वय र त.. (१२) हे मनु यो! सोम नचोड़ने वाले अपने म यजमान क इ छा करते ए इं तु ह धन दे ने के लए आते ह. अ वयु जस सोमरस नचोड़ने के साधन प थर को चलाते ह, वह श द करता आ य वेद पर प ंचता है. (१२) ये चाकन त चाकन त नू ते मता अमृत मो ते अंह आरन्. वाव ध य यूँ त तेषु धे ोजो जनेषु येषु ते याम.. (१३) हे मरणर हत इं ! धन- ा त के लए जो लोग बार-बार तु हारी अ भलाषा करते ह, उस मरणशील के पास कोई पाप नह जाता. तुम यजमान पर कृपा करो. जन लोग के बीच हम तु त कर रहे ह, उ ह तुम अपना बनाओ एवं बल दो. (१३)
सू —३२
दे वता—इं
अदद समसृजो व खा न वमणवा ब धानाँ अर णाः. महा त म पवतं व य ः सृजो व धारा अव दानवं हन्.. (१) हे इं ! तुमने मेघ को वद ण कया एवं जल नकलने का माग खोल दया. इस कार बाधक मेघ को वस जत कया है. तुमने वशाल मेघ को उ मु करके पानी बरसाया एवं वृ दानव को मारा. (१) वमु साँ ऋतु भब धानाँ अरंह ऊधः पवत य व न्. अह च युतं शयानं जघ वाँ इ त वषीमध थाः.. (२) हे व के वामी इं ! तुम वषा ऋतु म बंधे ए मेघ को मु करो एवं पवत को श संप बनाओ. हे श शाली इं ! तुमने जल म सोए ए वृ को मारा एवं अपनी श को स बनाया. (२) य य च महतो नमृग य वधजघान त वषी भ र ः. य एक इद तम यमान आद माद यो अज न त ान्.. (३) श
अ तीय इं ने अकेले ही हरन के समान तेज चलने वाले वृ के आयुध को अपनी ारा न कया. उस समय वृ के शरीर से सरा बलवान् रा स उ प आ. (३) यं चदे षां वधया मद तं महो नपातं सुवृधं तमोगाम्. वृष भमा दानव य भामं व ेण व ी न जघान शु णम्.. (४)
बरसने वाले मेघ को व से मारने वाले व धारी इं ने शु ण असुर को मारा. वह असुर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा णय का अ खाकर स था, वषा करने वाले मेघ का र क था एवं तमोगुण पी अंधकार के त ग तशील था. (४) यं चद य तु भ नष मममणो वद दद य मम. यद सु भृता मद य युयु स तं तम स ह य धाः.. (५) हे श शाली इं ! तुमने नशीले सोमरस को पीकर यु क अ भलाषा करने वाले वृ को डराकर अंधेरे म छपने पर ववश कया था. तुमने अपने आपको बलतार हत समझने वाले वृ का मम उसके काय से जान लया था. (५) यं च द था क पयं शयानमसूय तम स वावृधानम्. तं च म दानो वृषभः सुत यो चै र ो अपगूया जघान.. (६) नचोड़े ए सोमरस को पीने से स ए कामवष इं ने अंत र म सुखकारी जल के बीच सोने वाले एवं घने अंधकार म बढ़ते ए वृ को व ऊंचा उठाकर मारा था. (६) उ द ो महते दानवाय वधय म सहो अ तीतम्. यद व य भृतौ ददाभ व य ज तोरधमं चकार.. (७) इं ने जब उस महान् दानव वृ को मारने के लए बाधाहीन व उठाया था एवं व का हार करके उसे मारा था, तब वृ को व के सभी ा णय से नीचे बना दया था. (७) यं चदण मधुपं शयानम स वं व ं म ाद ः. अपादम ं महता वधेन न य ण आवृणङ् मृ वाचम्.. (८) अ त बली इं ने बादल को रोककर सोने वाले, जल के र क, श ु का नाश करने वाले एवं सबको आ छादन करने वाले वृ को पकड़ा. इसके बाद इं ने चरणर हत, प रमाणहीन एवं वन -वाणी वाले वृ को अपने श शाली व ारा मार डाला. (८) को अ य शु मं त वष वरात एको धना भरते अ तीतः. इमे चद य यसो नु दे वी इ यौजसो भयसा जहाते.. (९) इं के शोषण करने वाले बल को कौन रोक सकता है? अ तीत इं अकेले ही श ु क संप यां छ न लेते ह. श शाली धरती-आकाश वेगयु इं के बल के कारण भयभीत होकर शी चलने लगे. (९) य मै दे वी व ध त जहीत इ ाय गातु शतीव येमे. सं यदोजो युवते व मा भरनु वधा ने तयो नम त.. (१०) द तशाली एवं वयं का आ वग इं के सामने नीचा हो जाता है. धरती कामनापूण ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नारी के समान इं को आ मसमपण करती है. इं जब अपनी श को सभी जा मला दे ते ह, तब लोग बलशाली इं के सामने मपूवक झुकते ह. (१०)
म
एकं नु वा स प त पा चज यं जातं शृणो म यशसं जनेषु. तं मे जगृ आशसो न व ं दोषा व तोहवमानास इ दम्.. (११) हे इं ! हमने ऋ षय से तु ह मानव म मुख, स जन का पालनक ा, पंचजन के क याण के लए उ प एवं यश वी सुना है. रात- दन तु त करने वाले एवं अ भलाषा का वणन करने वाले हमारे पु -पौ अ तशय तु तपा इं को ा त कर. (११) एवा ह वामृतुथा यातय तं मघा व े यो ददतं शृणो म. क ते ाणो गृहते सखायो ये वाया नदधुः काम म .. (१२) हे इं ! तुम समय-समय पर ा णय को े रत करते हो एवं तु त करने वाले को धन दे ते हो, हमने ऐसा सुना है. जो तोता अपनी इ छा तुम म थत कर दे ते ह, तु हारे म वे तुमसे या ा त करते ह? (१२)
सू —३३
दे वता—इं
म ह महे तवसे द ये नॄ न ाये था तवसे अत ान्. यो अ मै सुम त वाजसातौ तुतो जने समय केत.. (१) म परम बल संवरण ऋ ष परम श शाली इं के लए उ म तु त बोलता ं. उससे मेरे समान लोग श शाली बनगे. सं ाम म अ लाभ करने के उ े य से तु त सुनकर इं मुझ संवरण के तोता पर कृपा कर. (१) स वं न इ धयसानो अकहरीणां वृष यो म ेः. या इ था मघव नु जोषं व ो अ भ ायः स जनान्.. (२) हे कामवष एवं धन वामी इं ! तुम हमारा यान करते ए एवं स ता उ प करने वाले तो के कारण रथ म जुते ए घोड़ क लगाम पकड़ते ए अपने श ु को परा जत करो. (२) न ते त इ ा य१ म वायु ासो अ ता यदसन्. त ा रथम ध तं व ह ता र मं दे व यमसे व ः.. (३) हे महान् इं ! जो हम लोग अथात् तु हारे भ से भ ह, तुमसे जो संयु नह ह एवं य कम अथात् य नह करते ह, वे तु हारे मनु य नह ह. हे हाथ म व लेने वाले इं ! हमारे य म आने के लए तुम रथ को वयं हांकते हो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु य इ स यु था गवे चकथ वरासु यु यन्. तत े सूयाय चदोक स वे वृषा सम सु दास य नाम चत्.. (४) हे इं ! तु हारे नजी तो ब त से ह. तुम उपजाऊ धरती पर वषा के जल के न म जल तबंधक का नाश करते हो. कामवष इं ! तुम सूय के थान अंत र म वषा रोकने वाले रा स के साथ यु करके उनका नाम तक मटा दे ते हो. (४) वयं ते त इ ये च नरः शध ज ाना याता रथाः. आ मा ग याद हशु म स वा भगो न ह ः भृथष े ु चा ः.. (५) हे इं ! हम तु हारे सेवक ऋ वज् और यजमान-य करके तु हारा बल बढ़ाते ह एवं हवन करने के लए तु हारे समीप जाते ह. हे ापक बलशाली इं ! तु हारी कृपा से यु म हमारे पास शंसनीय यो ा उसी कार आव, जस कार भग के समीप गए थे. (५) पपृ े य म वे ोजो नृ णा न च नृतमानो अमतः. स न एन वसवानो र य दाः ायः तुषे तु वमघ य दानम्.. (६) हे पूजनीय श वाले, सव ापक एवं मरणर हत इं ! तुम अपने तेज से जगत् को ढककर हम उ वल वण का धन पया त मा ा म दो. हम अ धक धन वाले इं के दान क शंसा करते ह. (६) एवा न इ ो त भरव पा ह गृणतः शूर का न्. उत वचं ददतो वाजसातौ प ी ह म वः सुषुत य चारोः.. (७) हे शूर इं ! तु तक ा एवं ऋ वज् हम लोग क तुम र ा करो. तुम यु प धारण करके हमारे ारा नचोड़ा आ सोम पीकर स बनो. (७)
म आ छादक
उत ये मा पौ कु य य सूरे सद यो हर णनो रराणाः. वह तु मा दश येतासो अ य गै र त य तु भनु स े.. (८) ग र त गो म उ प पु कु स के पु , वण के वामी एवं ेरक सद यु ारा दए गए सफेद रंग के दस घोड़े हमारा रथ ख च. रथ म घोड़े जोड़ने का काम हम शी कर लगे. (८) उत ये मा मा ता य शोणाः वामघासो वदथ य रातौ. सह ा मे यवतानो ददान आनूकमय वपुषे नाचत्.. (९) म ता के पु व के ारा दए गए लाल रंग के घोड़े शी ग त से हम ढोव. मुझ पू य को उ ह ने हजार सं या म धन एवं शरीर के गहने दए ह. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत ये मा व य य जु ा ल म य य सु चो यतानाः. म ा रायः संवरण य ऋषे जं न गावः यता अ प मन्.. (१०) ल मण के पु व यक ारा दए ए द तशाली एवं वहन करने म समथ घोड़े हम ढोव? गाएं जस कार गोचर भू म म जाती ह, उसी कार व यक ारा दया आ धन मुझ संवरण ऋ ष के घर म आवे. (१०)
सू —३४
दे वता—इं
अजातश ुमजरा वव यनु वधा मता द ममीयते. सुनोतन पचत वाहसे पु ु ताय तरं दधातन.. (१) हे ऋ वजो! अजातश ु, श ुहंता एवं अ ीण, वगदाता तथा अ धक ह ा त करने वाले इं के न म पुरोडाश पकाओ तथा सोमरस नचोड़ो. वे इं तो धारण करने वाले एवं ब त ारा तुत ह. (१) आ यः सोमेन जठरम प ताम दत मघवा म वो अ धसः. यद मृगाय ह तवे महावधः सह भृ मुशना वधं यमत्.. (२) इं ने सोमरस से अपना पूरा पेट भर लया था एवं वे मधुर सोमरस पीकर स ए थे. इं ने मृग असुर को मारने के लए अपने असी मत तेज वाले महान् व को उठाया था. (२) यो अ मै स ं उत वा य ऊध न सोमं सुनो त भव त ुमाँ अह. अपाप श ततनु मूह त तनूशु ं मघवा यः कवासखः.. (३) जो यजमान महान् इं के लए रात- दन सोमरस नचोड़ते ह, वे द तशाली बनते ह. जो लोग धमकाय करना चाहते ह, शोभन अलंकार आ द धारण करते ह, कतु धनवान् होकर भी बुरे लोग को अपना म बनाते ह, श शाली इं ऐसे लोग का याग कर दे ते ह. (३) य यावधी पतरं य य मातरं य य श ो ातरं नात ईषते. वेती य यता यतङ् करो न क बषाद षते व व आकरः.. (४) इं ने जस अय क ा के पता, माता एवं ाता का वध कया था, उसके समीप से भी वे र नह जाते, अ पतु उसके ारा दए गए ह क कामना करते ह. शासनक ा एवं धन वामी इं पाप से र नह भागते. (४) न प च भदश भव यारभं नासु वता सचते पु यता चन. जना त वेदमुया ह त वा धु नरा दे वयुं भज त गोम त जे.. (५) इं श ु का नाश करने के लए पांच या दस सहायक क इ छा नह करते. सोम न ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नचोड़ने वाले एवं अपने बांधव का पोषण न करने वाले के साथ इं नह मलते, ऐसे लोग को वे क दे ते ह अथवा मार डालते ह एवं अपने भ को गाय से पूण गोशाला का अ धकारी बनाते ह. (५) व व णः समृतौ च मासजोऽसु वतो वषुणः सु वतो वृधः. इ ो व य द मता वभीषणो यथावशं नय त दासमायः.. (६) इं सं ाम म श ु को न करने के लए अपने रथ के प हए को तेज चलाते ह. वे सोम न नचोड़ने वाले से र रहते ह एवं सोम नचोड़ने वाले क वृ करते ह. व के श क, डराने वाले एवं वामी इं दासकम करने वाल को वश म रखते ह. (६) सम पणेरज त भोजनं मुषे व दाशुषे भज त सूनरं वसु. ग चन यते व आ पु जनो यो अ य त वषीमचु ु धत्.. (७) इं दान न करने वाले का धन चुराने के लए लोभी ब नय के समान जाते ह एवं मानवशोभा बढ़ाने वाले उस धन को ह दाता यजमान को दे ते ह. जो इं के बल को उ े जत करता है वह वप म पड़ता है. (७) सं य जनौ सुधनौ व शधसाववे द ो मघवा गोषु शु षु. युजं १ यमकृत वेप युद ग ं सृजते स व भधु नः.. (८) धनवान् इं जब शोभन धन वाले एवं सवसाधनसंप दो लोग को उ म गाय के लए झगड़ता दे खते ह तो य करने वाले क सहायता करते ह. बादल को कं पत करने वाले इं य क ा को गाएं दे ते ह. (८) सह सामा नवे श गृणीषे श म न उपमां केतुमयः. त मा आपः संयतः पीपय त त म ममव वेषम तु.. (९) हे अ न प इं ! हम अप र मत धन दान करने वाले अ ऋ ष क तु त करते ह जो अ नवेश के पु एवं उपमा के प म स ह. उ ह जल भली कार संतु कर एवं उनका धन बल और द त वाला हो. (९)
सू —३५
दे वता—इं
य ते सा ध ोऽवस इ तु मा भर. अ म यं चषणीसहं स नं वाजेषु रम्.. (१) हे इं ! तु हारा अ तशय साधक य कम हमारी र ा करे. वह कम सबको परा जत करने वाला एवं शु है. यु म सरे उसे नह हरा सकते. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य द ते चत ो य छू र स त त ः. य ा प च तीनामव त तु नु आ भर.. (२) हे शूर इं ! चार वष , तीन लोक एवं पांच जन से संबं धत जो तु हारी र ा है, वह हम दान करो. (२) आ तेऽवो वरे यं वृष तम य महे. वृषजू त ह ज ष आभू भ र तुव णः.. (३) हे कामपूरक म े , वषा करने वाले एवं श ु को शी मारने वाले इं ! तु हारा र ाकाय उ म है. हम उसे पुकारते ह. तुम सव ापक म त के साथ हमारी र ा करो. (३) वृषा स राधसे ज षे वृ ण ते शवः. व ं ते धृष मनः स ाह म प यम्.. (४) हे इं ! तुम कामवष हो, यजमान को धन दे ने हेतु उ प ए हो एवं तु हारा बल अ भलाषापूरक है. तु हारा मन श शाली एवं वरो धय को हराने वाला है. तु हारा पौ ष समूह न करने वाला है. (४) वं त म म यम म य तम वः. सवरथा शत तो न या ह शवस पते.. (५) हे व धारी, शत तु एवं श के वामी इं ! तुम श ुता का आचरण करने वाले के त अपने सव गामी रथ ारा चलते हो. (५) वा मद्वृ ह तम जनासो वृ ब हषः. उ ं पूव षु पू हव ते वाजसातये.. (६) हे श ु को मारने वाले इं ! य म कुश बछाने वाले यजमान यु म सहायता के लए व उठाए ए एवं जा के म य ाचीन तुझ इं को ही पुकारते ह. (६) अ माक म रं पुरोयावानमा जषु. सयावानं धनेधने वाजय तमवा रथम्.. (७) हे इं ! तुम हमारे तर, यु म आगे चलने वाले, अनुचर स हत व यु कार के धन क इ छा करने वाले रथ क र ा करो. (७)
म सभी
अ माक म े ह नो रथमवा पुर या. वयं श व वाय द व वो दधीम ह द व तोमं मनामहे.. (८) हे इं ! तुम हमारे पास आ मीय बनकर आओ एवं अपनी उ म बु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा हमारे रथ
क र ा करो. हे अ तशय श शाली एवं द त इं ! हम तु हारी कृपा से ा त धन तु ह अपण करते ह एवं तु हारी तु त करते ह. (८)
सू —३६
दे वता—इं
स आ गम द ो यो वसूनां चकेत ातुं दामनो रयीणाम्. ध वचरो न वंसग तृषाण कमानः पबतु धमंशुम्.. (१) इं हमारे य म आव. जो इं धन को जानते ह, वे कैसे ह? वे धन दे ने वाले ह. धनुधारी के समान उ म ग त वाले एवं अ यंत यासे इं ध म त सोम पएं. (१) आ ते हनू ह रवः शूर श े ह सोमो न पवत य पृ े. अनु वा राज वतो न ह वन् गी भमदे म पु त व े.. (२) हे ह र नामक अ के वामी एवं शूर इं ! हमारे ारा दया आ सोम पवत के समान ऊंची तु हारी ठोढ़ तक चढ़े . हे द तशाली एवं ब त ारा बुलाए गए इं ! घोड़े जस कार घास से तृ त होते ह, उसी कार हम अपनी तु तय ारा तु ह संतु करगे. (२) च ं न वृ ं पु त वेपते मनो भया मे अमते रद वः. रथाद ध वा ज रता सदावृध कु व ु तोष मघव पु वसुः.. (३) हे ब त ारा बुलाए गए एवं व धारी इं ! द र ता से मेरा मन धरती पर चलने वाले प हए के समान कांपता है. हे सदा बढ़ने वाले एवं धन वामी इं ! पुरावसु नामक ऋ ष तु ह रथ पर बैठा जानकर तु हारी तु त अ धकता से करते ह. (३) एष ावेव ज रता त इ े य त वाचं बृहदाशुषाणः. स ेन मघव यं स रायः द ण रवो मा व वेनः.. (४) हे इं ! अ धक फल को शी भोगने के इ छु क तोता लोग तु हारी उसी कार तु त करते ह, जस कार सोम कूटने वाले प थर क करते ह. हे धन के वामी एवं ह र नामक घोड़ वाले इं ! तुम दाएं और बाएं दोन हाथ से धन बांटते हो. तुम हम वफल मनोरथ मत करना. (४) वृषा वा वृषणं वधतु ौवृषा वृष यां वहसे ह र याम्. स नो वृषा वृषरथः सु श वृष तो वृषा व भरे धाः.. (५) हे कामवषक इं ! वषा करने वाला वग तु हारी वृ करे. हे वषा करने वाले इं ! तुम इ छापूरक घोड़ ारा ढोए जाते हो. हे शोभन ठोड़ी वाले, क याण वष रथ वाले एवं व धारी इं ! सं ाम म तुम हमारी र ा करो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो रो हतौ वा जनौ वा जनीवा भः शतैः सचमानाव द . यूने सम मै तयो नम तां ुतरथाय म तो वोया.. (६) हे म तो! जस अ वामी राजा ुतरथ ने हम लाल रंग के दो घोड़े एवं तीन सौ गाएं द थ , उस त ण राजा के लए सभी जाएं न बन. (६)
सू —३७
दे वता—इं
सं भानुना यतते सूय याजु ानो घृतपृ ः व चाः. त मा अमृ ा उषसो ु छा य इ ाय सुनवामे याह.. (१) सूय के तेज के साथ सभी जगह बुलाए जाते ए अ न द त वाला के कारण का शत होने का य न करते ह. उस समय जो यजमान कहता है क म इं के न म सोमरस नचोड़ता ं. उसके त उषा हसापूण नह रहती है. (१) स म ा नवनव तीणब हयु ावा सुतसोमो जराते. ावाणो य ये षरं वद ययद वयुह वषाव स धुम्.. (२) अ न व लत करने वाला, कुश बछाने वाला एवं हाथ म प थर उठाकर सोम नचोड़ने वाला यजमान यानपूवक तु त करता है. जस अ वयु का प थर मधुर श द करता है, वह ह के साथ नद म नान करता है. (२) वधू रयं प त म छ ये त य वहाते म हषी म षराम्. आ य व या थ आ च घोषा यु सह ा प र वतयाते.. (३) प नी य म अपने प त के गमन क इ छा करती ई, उसके पीछे चलती है. इं इसी कार क म हषी को लाते ह. अ धक श द करने वाला इं का रथ हमारे समीप धन लावे एवं अग णत कार क संप यां चार ओर बखेरे. (३) न स राजा थते य म ती ं सोमं पब त गोसखायम्. आ स वनैरज त ह त वृ ं े त तीः सुभगो नाम पु यन्.. (४) वह राजा कभी ःखी नह होता, जसके य म इं ध म मला आ नशीला सोमरस पीते ह. वे अपने सेवक के साथ चलते ह, श ु को मारते ह, जा क र ा करते ह एवं सुखपूवक इं क तु तय म वृ करते ह. (४) पु या ेमे अ भ योगे भवा युभे वृतौ संयती सं जया त. यः सूय यो अ ना भवा त य इ ाय सुतसोमो ददाशत्.. (५) इं को नचुड़ा आ सोमरस दे ने वाला बंधुबांधव का पोषण करता है, ा त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धन क र ा एवं अ ा त धन क ा त करता है, न य वतमान रात- दन को जीतता है एवं सूय तथा अ न का य बनता है. (५)
सू —३८
दे वता—इं
उरो इ राधसो व वी रा तः शत तो. अधा नो व चषणे ु ना सु मंहय.. (१) हे शत तु इं ! तु हारे वशाल धन का दान महान् है. हे सव इं ! हम महान् धन दान करो. (१)
ा एवं शोभन धन वाले
यद म वा य मषं श व द धषे. प थे द घ ु मं हर यवण रम्.. (२) हे अ तशय बलवान् एवं हर यवण वाले इं ! य प तुम चुर अ दे ते हो, फर भी वह सब जगह लभ कहा जाता है. (२) शु मासो ये ते अ वो मेहना केतसापः. उभा दे वाव भ ये दव म राजथः.. (३) हे व धारी इं ! पूजनीय, स कम वाले एवं तु हारे बल प म त् तथा तुम दोन ही धरती पर मनचाही ग त के लए समथ हो. (३) उतो नो अ य क य च य तव वृ हन्. अ म यं नृ णमा भरा म यं नृमण यसे.. (४) हे वृ नाशक इं ! हम तु हारे भ ह. तुम हम कसी द हम लाग को धनी बनाना चाहते हो. (४)
का धन लाकर दे ते हो. तुम
नू त आ भर भ भ तव शम छत तो. इ याम सुगोपाः शूर याम सुगोपाः.. (५) हे शत तु इं ! तु हारे पास प ंचकर हम शी धनी बन. हे शूर इं ! हम तु हारे ारा सुर त ह . (५)
सू —३९
दे वता—इं
य द च मेहना त वादातम वः. राध त ो वद स उ ययाह या भर.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व च - प वाले एवं व धारी इं ! तु हारे पास दे ने के लए वशाल संप दे ने वाले इं ! वह धन तुम हम दोन हाथ से दो. (१)
है. हे धन
य म यसे वरे य म ु ं तदा भर. व ाम त य ते वयमकूपार य दावने.. (२) हे इं ! जो अ तु ह उ म जान पड़ता हो, उसे हम दो. हम उस शुभ अ को पाने के पा बन. (२) य े द सु रा यं मनो अ त ुतं बृहत्. तेन हा चद व आ वाजं द ष सातये.. (३) हे इं ! तुम दान करने के वषय म ब त दे कर हमारे त आदर दखाते हो. (३)
स
हो. हे व धारी! तुम सारपूण अ
मं ह ं वो मघोनां राजानं चषणीनाम्. इ मुप श तये पूव भजुजुषे गरः.. (४) तोता सेवा करने के वचार से ह प धन वाल म अ तशय पू य एवं जा नेता इं क ाचीन एवं नवीन तो ारा तु त करते ह. (४)
के
अ मा इ का ं वच उ थ म ाय शं यम्. त मा उ वाहसे गरो वध य यो गरः शु भ य यः.. (५) इं के न म ही ये का , वचन, उ थ एवं तु तयां बनाई गई ह. तो को वीकार करने वाली उ ह इं के समीप अ वंशी ऋ ष तो बोलते ह एवं तेज वी बनते ह. (५)
सू —४०
दे वता—इं व सूय
आ या भः सुतं सोमं सोमपते पब. वृष वृष भवृ ह तम.. (१) हे इं ! तुम हमारे य म आओ. हे सोमप त इं ! प थर से कूटकर नचोड़े गए सोम को पओ. हे कामवष एवं श ु के अ तशय हंता इं वषाकारी म त के साथ तुम सोमरस पओ. (१) वृषा ावा वृषा मदो वृषा सोमो अयं सुतः. वृष वृष भवृ ह तम.. (२) सोमरस नचोड़ने का साधन प प थर, सोमरस पीने का नशा एवं यह नचुड़ा आ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम सब आनंद दे ने वाले ह. हे कामवष एवं श ु वाले म त के साथ सोमरस पओ. (२) वृषा वा वृषणं वे व च ाभ वृष वृष भवृ ह तम.. (३)
के अ तशय हंता इं ! तुम वषा करने
त भः.
हे व धारी एवं कामवष इं ! सोमरस पलाने वाले हम व च र ा के कारण तु ह बुलाते ह. हे कामवष एवं श ु के अ तशय हंता इं ! तुम वषा करने वाले म त के साथ सोमरस पओ. (३) ऋजीषी व ी वृषभ तुराषाट् छु मी राजा वृ हा सोमपावा. यु वा ह र यामुप यासदवाङ् मा य दने सवने म स द ः.. (४) इं सोमरस के वामी, व धारण करने वाले, कामवष श ुहननक ा, श शाली, राजा वृ को मारने वाले व सोमरस पीने वाले ह. वे ह र नामक घोड़ को अपने रथ म जोड़कर हमारे सामने आव एवं मा यं दन सवन म सोमरस पीकर स ह . (४) य वा सूय वभानु तमसा व यदासुरः. अ े व था मु धो भुवना यद धयुः.. (५) हे सूय! जब वभानु नामक असुर ने तु ह माया ारा न मत अंधकार से ढक लया था, तब सभी लोक अंधकारपूण हो गए थे. वहां के नवासी मूढ़ होकर अपने-अपने थान को भी नह जान पा रहे थे. (५) वभानोरध य द माया अवो दवो वतमाना अवाहन्. गू हं सूय तमसाप तेन तुरीयेण णा व दद ः.. (६) हे इं ! जब तुमने सूय के नीचे वाले थान म फैली ई वभानु क द माया को र भगा दया था, तब कम म बाधक अंधकार ारा ढके ए सूय को अ ऋ ष ने चार ऋचाएं बोलकर ा त कया था. (६) मा मा ममं तव स तम इर या धो भयसा न गारीत्. वं म ो अ स स यराधा तौ मेहावतं व ण राजा.. (७) सूय ने अ से कहा—“हे अ ! इस कार क अव था म पड़ा म तु हारा सेवक ं. इस अ क इ छा के कारण ोह करने वाले असुर भयजनक अंधकार ारा मुझे न नगल ल. तुम मेरे म एवं स य का पालन करने वाले हो. तुम एवं व ण मेरी र ा करो.” (७) ा णो ा युयुजानः सपयन् क रणा दे वा मसोप श न्. अ ः सूय य द व च ुराधा वभानोरप माया अघु त्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा ण अ ने सूय को उपदे श दया, इं के न म सोम नचोड़ने हेतु प थर को आपस म रगड़ा. तो ारा दे व क सेवा एवं अपने मं के बल से सूय पी ने को अंत र म था पत कया. अ ने वभानु क माया को र कर दया. (८) यं वै सूय वभानु तमसा व यदासुरः. अ य तम व व द १ ये अश नुवन्.. (९) वभानु नामक असुर ने जस सूय को अंधकार वतं कया. अ य कसी म इतनी श नह थी. (९)
सू —४१
ारा जकड़ लया था, अ
ने उसे
दे वता— व ेदेव
को नु वां म ाव णावृताय दवो वा महः पा थव य वा दे . ऋत य सा सद स ासीथां नो य ायते वा पशुषो न वाजान्.. (१) हे म एवं व ण! मेरे अ त र कौन यजमान तु हारा य करने क इ छा कर सकता है? तुम वग, वशाल धरती एवं आकाश म रहकर हमारी र ा करते हो. य करने वाले मुझ यजमान को तुम पशु एवं अ दो तथा उनक र ा करो. (१) ते नो म ो व णो अयमायु र ऋभु ा म तो जुष त. नमो भवा ये दधते सुवृ तोमं ाय मी षे सजोषाः.. (२) हे म , व ण, अयमा, आयु, इं , ऋभुओ एवं म तो! तुम सब हमारे शोभन एवं पापर हत तो तथा नम कार को वीकार करो. दयालु के साथ स होकर तुम हमारी सेवा वीकार करो. (२) आ वां ये ा ना व यै वात य प म य य पु ौ. उत वा दवो असुराय म म ा धांसीव य यवे भर वम्.. (३) हे अ भलाषा का दमन करने वाले अ नीकुमारो! हम तु ह इस कारण पुकारते ह क अपना रथ वायु के समान वेग से चलाओ. हे ऋ वजो! तुम ु तशाली एवं ाणहरण करने वाले के लए सुंदर तो एवं ह अ तैयार करो. (३) स णो द ः क वहोता तो दवः सजोषा वातो अ नः. पूषा भगः भृथे व भोजा आ ज न ज मुरा तमाः.. (४) य को वीकार करने वाले, मेधा वय ारा बुलाए गए, तीन थान म उ प होकर भी सूय के समान स ता दे ने वाले एवं व र क वायु, अ न एवं पूषा दे व हमारे य म आशुगामी अ के समान शी आव. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वो र य यु ा ं भर वं राय एषेऽवसे दधीत धीः. सुशेव एवैरौ शज य होता ये व एवा म त तुराणाम्.. (५) हे म तो! तुम हम अ यु संप दान करो. तोताजन धन पाने एवं उसक र ा के न म तु हारी तु त करते ह. उ शज के पु क ीवान् राजा के होता अ तेज चलने वाले घोड़े पाकर सुखी ह . तु हारे दए ए वे घोड़े वेगवान् ह . (५) वो वायुं रथयुजं कृणु वं दे वं व ं प नतारमकः. इषु यव ऋतसापः पुर धीव वीन अ प नीरा धये धुः.. (६) हे ऋ वजो! तुम तेज वी, वशेष प से कामपूरक एवं तु तयो य वायुदेव को य म जाने के लए अचनीय तु तय ारा वशेष कार से रथ पर बैठाओ. ग तशा लनी य का पश करने वाली, पवती एवं शंसायो य दे व प नयां हमारे य म आव. (६) उप व एषे व े भः शूषैः य दव तय रकः. उषासान ा व षीव व मा हा वहतो म याय य म्.. (७) हे महती उषा एवं रा ! हम वंदना के यो य अ य दे व के साथ-साथ तु हारे लए सुखकर एवं ान कराने वाले मं ारा ह दे ते ह. तुम यजमान के सभी कम को जानकर य म आओ. (७) अ भ वो अच पो यावतो नॄ वा तो प त व ारं रराणः. ध या सजोषा धषणा नमो भवन पत रोषधी राय एषे.. (८) हम अनेक भ के पोषक व य के नेता आप दे व क तु त धन पाने के लए ह दे कर करते ह. हम वा तुप त, व ा, धनदा ी व अ य दे व के साथ रहने वाले धषणा, वन प तय एवं ओष धय क तु त करते ह. (८) तुजे न तने पवताः स तु वैतवो ये वसवो न वीराः. प नत आ यो यजतः सदा नो वधा ः शंसं नय अ भ ौ.. (९) वे मेघ जो वीर के समान संसार को नवास थान दे ने वाले, शोभन ग तयु , तु त यो य, सबके ा त करने यो य, य के पा एवं सदा मानव का हत करने वाले ह, हमारे लए व तृत दान के अनुकूल बन. (९) वृ णो अ तो ष भू य य गभ तो नपातमपां सुवृ . गृणीते अ नरेतरी न शूषैः शो च केशो न रणा त वना.. (१०) हम अंत र म थत एवं वषा करने वाले, बादल के गभ प एवं जल के र क व ुत प अ न क तु त पापर हत एवं शोभन तो ारा करते ह. तीन थान म ा त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वे अ न मेरे गमन के समय अपनी लपट से मुझ पर होकर जंगल को जलाते ह. (१०)
ोध नह करते, अ पतु
व लत
कथा महे याय वाम क ाये च कतुषे भगाय. आप ओषधी त नोऽव तु ौवना गरयो वृ केशाः.. (११) हम अ गो वाले ऋ ष महान् क तु त कस कार कर? हम सव भग से धन पाने के लए कौन सी तु त बोल? वे पवत हमारी र ा कर, जनके केश जल, ओष धयां, घी, वन और वृ ह. (११) शृणोतु न ऊजा प त गरः स नभ तरीयाँ इ षरः प र मा. शृ व वापः पुरो न शु ाः प र ुचो बबृहाण या े ः.. (१२) बल के वामी, आकाशचारी, अ तशय तरण वाले, ग तशील एवं चार ओर जाने वाले वायु हमारी तु तयां सुन. नगर के समान शु एवं वशाल पवत के चार ओर वाली जलधारा हमारी तु तयां सुने. (१२) वदा च ु महा तो ये व एवा वाम द मा वाय दधानाः. वय न सु व१ आव य त ुभा मतमनुयतं वध नैः.. (१३) हे महान् म तो! तुम हमारी तु तय को शी जानो. हे दशनीय! हम सुंदर ह लेकर तु हारी तु त करते ह. म द्गण हमारे सामने भले बनकर आव एवं हमारे त ोभ रखने वाले मरणधमा श ु को अपने आयुध से मार. (१३) आ दै ा न पा थवा न ज माप ा छा सुमखाय वोचम्. वध तां ावो गर ा ा उदा वध ताम भषाता अणाः.. (१४) हम द -ज म एवं पृ वी-संबंधी जल पाने के लए सुंदर य वाले म त को आ त दे ते ह. हमारी तु तयां अथ का शत करती ई आनंदपूवक बढ़ एवं म त ारा पो षत न दयां जल से पूण ह . (१४) पदे पदे मे ज रमा न धा य व ी वा श ा या पायु भ . सष ु माता मही रसा नः म सू र भरऋजुह त ऋजुव नः.. (१५) हम सदा-सवदा उस भू म क तु त करते ह, जो श शा लनी, अपनी र ा श य ारा हमारे उप व नवारण करने वाली, सबका नमाण करने वाली, महती एवं सार प है. वह स एवं मेधावी तोता के अनुकूल बनकर क याणका रणी हो. (१५) कथा दाशेम नमसा सुदानूनेवया म तो अ छो ौ वसो म तो अ छो ौ. मा नोऽ हबु यो रषे धाद माकं भू पमा तव नः.. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम शोभन दान वाले म त क तु तय ारा कस कार सेवा कर? कस कार क तु त ारा उनक उ चत पूजा कर? ातःकाल जागने वाले दे व हमारी हसा न कर एवं हमारे श ु को न करने वाले ह . (१६) इ त च ु जायै पशुम यै दे वासो वनते म य व आ दे वासो वनते म य वः. अ ा शवां त वो धा सम या जरां च मे नऋ तज सीत.. (१७) हे दे वो! यजमान लोग संतान एवं पशु पाने के लए शी तु हारी सेवा करते ह. नऋ त इस य म उ म अ ारा मेरा शरीर पु बनाव एवं मेरा बुढ़ापा र कर. (१७) तां वो दे वाः सुम तमूजय ती मषम याम वसवः शसा गोः. सा नः सुदानुमृळय ती दे वी त व ती सु वताय ग याः.. (१८) हे द तशाली वसुओ! हम तु हारी गाय पी तु त से श कारक ध पी अ कर. वह शोभन दान वाली दे वी हम सुख प ंचाती ई शी हमारे सामने आवे. (१८)
ात
अ भ न इळा यूथ य माता म द भ वशी वा गृणातु. उवशी वा बृह वा गृणाना यू वाना भृथ यायोः.. (१९) गाय के समूह का नमाण करने वाली इड़ा एवं उवशी सब न दय के साथ मलकर हम पर अनु ह कर. परम द तशाली उवशी श द करती ई हमारे य क शंसा करती है एवं यजमान को अपने काश से ढकती है. (१९) सष ु न ऊज ऊज
सू —४२
य पु ेः.. (२०)
राजा को पु करने वाले दे वगण हमारी बार-बार र ा कर. (२०)
दे वता— व ेदेव
श तमा व णं द धती गी म ं भगमा द त नूनम याः. पृष ो नः प चहोता शृणो वतूतप था असुरो मयोभुः.. (१) अ यंत सुखकारक तु तवचन, ह दान आ द कम के साथ व ण म , भग एवं अ द त के पास प ंच. अंत र म थत ाण आ द पांच वायु के साधक, अबाध ग त वाले, ाणदाता एवं सुख के आधार वायु हमारी तु तयां सुन. (१) त मे तोमम द तजगृ या सूनुं न माता ं सुशेवम्. यं दे व हतं यद यहं म े व णे य मयोभु.. (२) जस कार माता अपने पु को छाती से लगा लेती है, उसी कार मेरे दयहारी एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ म सुखदाता तो को अ द त वीकार कर. जो तु तवचन आनंददाता ह, उ ह हम म और व ण को दे ते ह. (२)
य, दे व हतकारी एवं
उद रय क वतमं कवीनामुन ैनम भ म वा घृतेन. स नो वसू न यता हता न च ा ण दे वः स वता सुवा त.. (३) हे ऋ वजो! तुम ांतद शय म े एवं सामने वतमान अ न को स करो. हम इ ह मधुर सोम एवं घृत ारा स कर. वे हम हतकारक, उ म एवं स ताकारक सोना द. (३) स म णो मनसा ने ष गो भः सं सू र भह रवः सं व त. सं णा दे व हतं यद त सं दे वानां सुम या य यानाम्.. (४) हे इं ! तुम स मन से हम गोयु करते हो. हे ह र नामक घोड़ वाले! तुम हम मेधावी पु , क याण, पया त अ एवं य के यो य दे व क कृपा से मलाते हो. (४) दे वो भगः स वता रायो अंश इ ो वृ य स तो धनानाम्. ऋभु ा वाज उत वा पुर धरव तु नो अमृतास तुरासः.. (५) द तशाली भग, स वता, धन के वामी व ा, वृ हंता इं धन को जीतने वाले ऋभु ा, वाज एवं पुरं ध आ द हमारे य म आकर हमारी र ा कर. (५) म वतो अ तीत य ज णोरजूयतः वामा कृता न. न ते पूव मघव ापरासो न वीय१ नूतनः क नाप.. (६) हम यजमान म त स हत इं के कम को कहते ह. इं यु से नह भागते, वजयी होते ह एवं जरार हत ह. हे धन वामी इं ! तु हारी श न पुराने लोग जान सके अैर न उनके परवत . कोई नया भी तु ह नह जान सका. (६) उप तु ह थमं र नधेयं बृह प त स नतारं धनानाम्. यः शंसते तुवते श भ व ः पु वसुरागम जो वानम्.. (७) हे अंतरा मा! तुम सबसे पहले र न-धारण करने वाले एवं धन दे ने वाले बृह प त क तु त करो. वे तु त करने वाले यजमान के लए अ तशय सुखदाता ह एवं पुकारने वाले यजमान के पास महान् धन लेकर जाते ह. (७) तवो त भः सचमाना अ र ा बृह पते मघवानः सुवीराः. ये अ दा उत वा स त गोदा ये व दाः सुभगा तेषु रायः.. (८) हे बृह प त! तु हारी सुर ा पाकर लोग हसार हत, धनसंप ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं शोभन पु
वाले
बनते ह. तु हारा अनु ह पाने वाल म जो संप शाली लोग अ , गाय या कपड़े का दान करते ह, उनके पास धन हो. (८) वसमाणं कृणु ह व मेषां भु अप ता सवे वावृधाना
ते अपृण तो न उ थैः. षः सूया ावय व.. (९)
हे बृह प त! तुम ऐसे लोग का धन न कर दो जो अपना धन हम तु तक ा को न दे कर उसका वयं उपभोग करते ह. जो त का पालन नह करते ह एवं मं से े ष रखते ह, वे लोग इस संसार म बढ़ रहे ह. तुम उ ह सूय से अलग करो. (९) य ओहते र सो दे ववीतावच े भ तं म तो न यात. यो वः शम शशमान य न दा ु ा कामा करते स वदानः.. (१०) हे म तो! जो यजमान दे वय म रा स को बुलाता है जो तु हारे कम क तु त करने वाले क नदा करता है और जो सांसा रक भोग के लए लेश उठाता है, उसे तुम बना प हय वाले रथ ारा अंधकार म डाल दो. (१०) तमु ु ह यः वषुः सुध वा यो व य य त भेषज य. य वा महे सौमनसाय ं नमो भदवमसुरं व य.. (११) हे आ मा! तुम उ ह दे व क तु त करो, जो शोभन-धनुष वाले एवं सभी ओष धय के वामी ह, महान् आ म-क याण के लए उ ह श शाली का य एवं सेवा करो. (११) दमूनसो अपसो ये सुह ता वृ णः प नीन ो व वत ाः. सर वती बृह वोत राका दश य तीव रव य तु शु ाः.. (१२) दानशील मन वाले एवं हाथ से कुशलतापूवक शोभनकम करने वाले ऋभुगण वषा करने वाले इं क प नयां स रताएं वभु ारा न मत सर वती नद व परम द तशा लनी राका कामनाएं पूण करने वाली एवं द त ह. वे हम धन द. (१२) सू महे सुशरणाय मेधां गरं भरे न स जायमानाम्. य आहना हतुव णासु पा मनानो अकृणो ददं नः.. (१३) महान् एवं उ म-शरण दे ने वाले इं के त म बु म ापूण नवर चत तु तय को बोलता ं. वे वषा करने वाले, क या पी धरती क न दय को प दे ने वाले एवं हमारे लए जल का नमाण करने वाले ह. (१३) सु ु तः तनय तं वन मळ प त ज रतनूनम याः. यो अ दमाँ उद नमाँ इय त व त ु ा रोदसी उ माणः.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे तोताओ! तु हारी सुंदर तु त गजन करने वाले, वषा-संबंधी श द से यु एवं जल वामी बादल के पास प ंचे. वे जल एवं बजली को धारण करने वाले ह तथा आकाश को का शत करते ए चलते ह. (१४) एष तोमो मा तं शध य सूनूँयुव यूँ द याः. कामो राये हवते मा व युप पृषद ाँ अयासः.. (१५) हमारा यह तो के पु म त क श के स मुख भली कार उप थत हो. वे त ण ह. हे मन! अ भलाषा मुझे धन के लए आक षत करती है. बुंद कय वाले घोड़ पर य के त आने वाले म त क तु त करो. (१५) ै तोमः पृ थवीम त र ं वन पत रोषधी राये अ याः. ष दे वोदे वः सुहवो भूतु म ं मा नो माता पृ थवी मतौ धात्.. (१६) धन क कामना से कया गया यह तो पृ वी, अंत र , वन प तय एवं ओष धय को ा त हो. हमारे त सम त दे व शोभन आ ान वाले बन. माता धरती हम बु म न डाले. (१६) उरौ दे वा अ नबाधे याम.. (१७) हे दे वो! हम तु हारे ारा दए गए महान् सुख का नबाध भोग कर. (१७) सम नोरवसा नूतनेन मयोभुवा सु णीती गमेम. आ नो र य वहतमोत वीराना व ा यमृता सौभगा न.. (१८) हम अ नीकुमार क परम नवीन एवं सुख दे ने वाली र ा का अनुभव कर. हे मरणर हत अ नीकुमारो! तुम हम धन, वीर पु एवं सौभा य दो. (१८)
सू —४३
दे वता— व ेदेव
आ धेनवः पयसा तू यथा अमध ती प नो य तु म वा. महो राये बृहतीः स त व ो मयोभुवो ज रता जोहवी त.. (१) मीठे जल से भरी ई न दयां हसा न करती तेज चाल से हमारे समीप आव. वशेष प से स करने वाले तोता वशाल संप पाने के उ े य से सुखसा धका सात न दय का आ ान कर. (१) आ सु ु ती नमसा वतय यै ावा वाजाय पृ थवी अमृ े. पता माता मधुवचाः सुह ता भरेभरे नो यशसाव व ाम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम शोभन तु तय एवं ह ारा हसार हत धरती-आकाश को अ लाभ के न म स करना चाहते ह. माता- पता के समान, मधुर/वचनयु एवं सुंदर हाथ वाले धरतीआकाश सम त सं ाम म हमारी र ा कर. (२) अ वयव कृवांसो मधू न वायवे भरत चा शु म्. होतेव नः थम पा य दे व म वो र रमा ते मदाय.. (३) हे अ वयुजनो! तुम मधुर आ य एवं ह तैयार करके उ म सोमरस सबसे पहले वायुदेव को दान करो. हे वायुदेव! तुम भी होता क तरह इस सोम को सबसे पहले पओ. हे दे व! यह सोम हम तु हारी स ता के लए दे रहे ह. (३) दश पो यु ते बा अ सोम य या श मतारा सुह ता. म वो रसं सुगभ त ग र ां च न दद् हे शु मंशुः.. (४) ऋ वज क शी ता करने वाली दस उंग लयां एवं सोमरस नचोड़ने वाले हाथ प थर को पकड़ते ह. शोभन उंग लय वाला ऋ वज् स होता आ उ च पवत पर उ प सोमलता का मधुर रस टपकाता है. सोमलता से ेत रस नकलता है. (४) असा व ते जुजुषाणाय सोमः हरी रथे सुधुरा योगे अवा ग
वे द ाय बुहते मदाय. या कृणु ह यमानः.. (५)
हे सेवा करने वाले इं ! तु हारे काय , श एवं महान् मद के कारण तु हारे लए सोमरस नचोड़ा गया है. हे इं ! हमारे ारा पुकारे जाने पर तुम सुंदर जुए म जुते ए दोन घोड़ को रथ म जोड़कर वह रथ हमारे सामने लाओ. (५) आ नो महीमरम त सजोषा नां दे व नमसा रातह ाम्. मधोमदाय बृहतीमृत ामा ने वह प थ भदवयानैः.. (६) हे अ न! तुम स तापूवक हमारे साथ दे व को ा त होने वाले माग ारा महान्, सव गमनशील, ह के साथ य को जानने वाली, ह ा त करने वाली एवं वशाल गुना दे वी को सोमरस पीकर स होने के लए ह वहन करो. (६) अ त यं थय तो न व ा वपाव तं ना नना तप तः. पतुन पु उप स े आ घम अ नमृतय सा द.. (७) मेधावी ऋ वज ने य क कामना से ह पा अ न के ऊपर रख दया है. वह ऐसा जान पड़ता है क पता क गोद म पु हो अथवा मोटा पशु आग म तपाया जा रहा हो. (७) अ छा मही बृहती श तमा गी तो न ग व ना व यै. मयोभुवा सरथा यातमवा ग तं न ध धुरमा णन ना भम्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारी यह पूजनीय, वशाल एवं सुख दे ने वाली तु त इस य म बुलाने हेतु अ नीकुमार के पास उसी कार जाए, जस कार त जाता है. हे सुख दे ने वाले अ नीकुमारो! तुम लोग एक रथ पर बैठकर सम पत सोम के सामने इस कार आओ, जस कार धुरी के पास क ल जाती है. (८) त सो नमउ तुर याहं पू ण उत वायोर द . या राधसा चो दतारा मतीनां या वाज य वणोदा उत मन्.. (९) बु
म श शाली एवं शी गमन करने वाले पूषा एवं वायु क तु त करता ं. ये मानव य को धन एवं अ के लए े रत करने वाले एवं धनदाता ह. (९) आ नाम भम तो व व ाना पे भजातवेदो वानः. य ं गरो ज रतुः सु ु त च व े ग त म तो व ऊती.. (१०)
हे जातवेद अ न! हमारे ारा आ त होकर तुम व वध नाम एवं प धारण करने वाले म त को य म लाते हो. हे म तो! तुम सब अपने र ा साधन स हत यजमान के य , वाणी एवं शोभन तु तय के समीप उप थत रहो. (१०) आ नो दवो बृहतः पवतादा सर वती यजता ग तु य म्. हवं दे वी जुजुषाणा घृताची श मां नो वाचमुशती शृणोतु.. (११) य क पा दे वी सर वती ुलोक अथवा वशाल अंत र से य म आव. उदक-वषा करने वाली वह स तापूवक हमारी तु त को सुने और उसका अथ जाने. (११) आ वेधसं नीलपृ ं बृह तं बृह प त सदने सादय वम्. साद ो न दम आ द दवांसं हर यवणम षं सपेम.. (१२) श शाली, नीली पीठ वाले एवं महान् बृह प त को य शाला म बैठाओ. वे बीच म बैठकर पूरे घर म काश बखेरते ह, सुनहरे रंग वाले एवं तेज वी ह तथा हमारे ारा पू जत ह. (१२) आ धण सबृह वो रराणो व े भग वोम भ वानः. ना वसान ओषधीरमृ धातुशृ ो वृषभो वयोधाः.. (१३) सबके धारणक ा, परम द तशाली, अ भलाषाएं पूण करने वाले, सम त र ा साधन स हत बुलाए गए, लपट तथा ओष धय को धारण करने वाले, अबाध ग त, तीन कार क वाला को धारण करने वाले, वषा करने वाले एवं अ धारक अ न हमारे य म आव. (१३) मातु पदे परमे शु
आयो वप यवो रा परासो अ मन्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुशे ं नमसा रातह ाः शशुं मृज यायवो न वासे.. (१४) यजमान के होता, ह पा उठाने वाले ऋ वज् माता पी धरती के वशाल एवं उ वल वेद प थान पर बैठते ह. सांसा रक लोग पैदा ए बालक क शरीर वृ के न म जस कार उसक मा लश करते ह, उसी कार उ प अ न का पोषण तु तय से कया जाता है. (१४) बृह यो बृहते तु यम ने धयाजुरो मथुनासः सच त. दे वोदे वः सुहवो भूतु म ं मा नो माता पृ थवी मतौ धात्.. (१५) हे महान् अ न! य कम करते ए बुढ़ापे को ा त ीपु ष तु ह अ धक मा ा म अ भट करते ह. सभी दे व हमारे लए शोभन आ ान वाले ह . धरती माता हम बु म न डाले. (१५) उरौ दे वा अ नबाधे याम.. (१६) हे दे वगण! हम असीम सुख ा त कर. (१६) सम नोरवसा नूतनेन मयोभुवा सु णीती गमेम. आ नो र य वहतमोत वीराना व ा यमृता सौभगा न.. (१७) हम अ नीकुमारो क परम नवीन सुख दे ने वाली र ा का अनुभव कर. हे मरणर हत अ नीकुमारो! तुम हम धन, वीर पु एवं सम त सौभा य दो. (१७)
सू —४४
दे वता— व ेदेव
तं नथा पूवथा व थेमथा ये ता त ब हषदं व वदम्. तीचीनं वृजनं दोहसे गराशुं जय तमनु यासु वधसे.. (१) हे अंतरा मा! पुराने यजमान, हमारे पूवज, सम त ाणी एवं आधु नक लोग जस कार दे व म े , कुश पर वराजने वाले, सव , हमारे सामने उप थत, श शाली, शी गामी एवं सबको हराने वाले इं क तु त करके सफल मनोरथ ए थे, उसी कार तुम भी बनो. (१) ये सु शी पर य याः व वरोचमानः ककुभामचोदते. सुगोपा अ स न दभाय सु तो परो माया भऋत आस नाम ते.. (२) हे वग म द तशाली इं ! ग तहीन-मेघ के भीतर के शोभन-जल को तुम सभी ा णय के हत के लए सम त दशा म प ंचाओ. हे शोभन-कम करने वाले इं ! तुम ा णय के र क बनो, उनक हसा मत करो. तुम आसुरी माया से परे हो, इस लए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स यलोक म तु हारा नाम है. (२) अ यं ह वः सचते स च धातु चा र गातुः स होता सहोभ रः. स ाणो अनु ब हवृषा शशुम ये युवाजरो व ुहा हतः.. (३) अ न स य, फलसाधक एवं सबको धारण करने वाले ह को सदा वीकार करते ह. अ न बाधाहीन ग त वाले, होम- न पादक एवं श दाता ह. वे कुश पर बैठने वाले, वषाकारी, ओष धय म थत, शशु, युवा एवं जरार हत ह. (३) व एते सुयुजो याम ये नीचीरमु मै य य ऋतावृधः. सुय तु भः सवशासैरभीशु भः वनामा न वणे मुषाय त.. (४) य म जाने क इ छु क, न न ग तशील, यजमान ारा ा त करने यो य, य बढ़ाने वाली, शोभन गमनशील एवं सब पर शासन करने वाली करण ारा सूय नचले थान म भरे जल को चुराता है. (४) स भुराण त भः सुतेगृभं वया कनं च गभासु सु व ः. धारवाके वृजुगाथ शोभसे वध व प नीर भ जीवो अ वरे.. (५) हे शोभन तु तय वाले अ न! लकड़ी के बने पा म रखे एवं नचोड़े ए सोमरस को पीकर एवं मनोहर तु तय को सुनकर जब तुम स होते हो, तब तुम ऋ वज से वशेष शोभा पाते हो. तुम य म सबको जीवन दे ने वाली एवं सबका र ण करने वाली वाला को बढ़ाओ. (५) या गेव द शे ता गु यते सं छायया द धरे स या वा. महीम म यमु षामु यो बृह सुवीरमनप युतं सहः.. (६) यह सम त दे व का समूह जैसा दखाई दे ता है वैसा ही वणन कया जाता है. अ भलाषा पूण करने वाली उस द त से वे जल म अपना प थर करते ह. वे महान् एवं ब त दे ने वाला धन महान् वेग, वीरतायु पु एवं समा त न होने वाला बल द. (६) वे य ुज नवा वा अ त पृधः समयता मनसा सूयः क वः. ंसं र तं प र व तो गयम माकं शम वनव वावसुः.. (७) सव , असुर के साथ यु के इ छु क, आगे चलने वाले, अपनी प नी उषा के साथ आगे बढ़ने के अ भलाषी एवं धन के वामी सूय हमारे लए द तशाली एवं सम त र ासाधन वाला घर और संपूण सुख द. (७) यायांसम य यतुन य केतुन ऋ ष वरं चर त यासु नाम ते. या म धा य तमप यया वद उ वयं वहते सो अरं करत्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ तशय वृ ऋ षय ारा तुत एवं गमनशील सूय! जन तु तय म तु हारे त ा भाव है, तु ह स करने वाले कम से यु उन तु तय ारा यजमान तु हारी सेवा करते ह. वे जस बात क कामना करते ह, उसे वा त वक प से जान लेते ह. अपनी इ छा से तु हारी सेवा करने वाले पया त फल पाते ह. (८) समु मासामव त थे अ मा न र य त सवनं य म ायता. अ ा न हा द वण य रेजते य ा म त व ते पूतब धनी.. (९) हमारा धान तो उसी कार सूय को ा त हो, जस कार स रताएं सागर के पास जाती ह. य शाला म क गई सूय तु त कभी समा त नह होती, जस थान म सूय के त प व भावना रहती है, वहां यजमान क अ भलाषा कभी अपूण नह रहती. (९) स ह य मनस य च भरेवावद य यजत य स ेः. अव सार य पृणवाम र व भः श व ं वाजं व षा चद यम्.. (१०) हम , मनस, अवद, यजत, स एवं अव सार नामक ऋ ष व ान के भी पू य एवं सबके कामपूरक सूय से ा नय ारा भोगने यो य अ क पू त कराते ह. (१०) येन आसाम द तः क यो३ मदो व वार य यजत य मा यनः. सम यम यमथय येतवे व वषाणं प रपानम त ते.. (११) व वार, यजत एवं मायी नामक ऋ षय का सोमरस-संबंधी नशा बाज के समान तेज एवं अ द त के समान व तृत है. वे सोमरस पीने के लए एक- सरे से याचना करते ह एवं अंत म वशेष कार का मद ा त करते ह. (११) सदापृणो यजतो व षो वधी ा वृ ः ु व य वः सचा. उभा स वरा ये त भा त च यद गणं भजते सु याव भः.. (१२) सदापृण, यजत, वा वृ , ुत वत एवं तय नामक ऋ ष तु हारे हतैषी बनकर तु हारे श ु का नाश कर. ये ऋ ष दोन लोक क कामना को ा त करके द तसंप बनते ह. ये व वध तो ारा व दे व क उपासना करते ह. (१२) सुत भरो यजमान य स प त व ासामूधः स धयामुद चनः. भर े नू रसव छ ये पयोऽनु ुवाणो अ ये त न वपन्.. (१३) मुझ अव सार नामक यजमान के य म सुतंभर नामक ऋ ष फल का पालन करते ह. वे सभी य कम को उ त फल क ओर े रत करते ह. गाय ध दे ती ह. मधुर ध बांटा जाता है. न ा से जागकर अव सार इस कार बोलते ए अ ययन करते ह. (१३) यो जागार तमृचः कामय ते यो जागार तमु सामा न य त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो जागार तमयं सोम आह तवाहम म स ये योकाः.. (१४) जो दे व य शाला म सदा जा त रहते ह, ऋचाएं उनक कामना करती ह. तो जागने वाले दे व को ही ा त होते ह, जागने वाले दे व से सोम ने कहा—“म तु हारा ं, म तु हारे नयत थान म तु हारे साथ र ं.” (१४) अ नजागार तमृचः कामय तेऽ नजागार तमु सामा न य त. अ नजागार तमयं सोम आह तवाहम म स ये योकाः.. (१५) अ न दे व य शाला म सदा जागने वाले ह, ऋचाएं उनक कामना करती ह. सदा जागने वाले अ न दे व को ही तो ा त होते ह. जागने वाले अ न दे व से सोमरस कहे —“म तु हारा ं. हे अ न! म तु हारे न त थान म तु हारे साथ र ं.” (१५)
सू —४५ वदा दवो व य अपावृत जनी
दे वता— व ेदेव मु थैराय या उषसो अ चनो गुः. वगा रो मानुषीदव आवः.. (१)
इं ने अं गरागो ीय ऋ षय क तु त सुनकर व फका. इससे आने वाली उषा क करण सभी जगह फैल ग . अंधकार के समूह को समा त करके सूय का शत होते ह एवं मानव के ार खोल दे ते ह. (१) व सूय अम त न यं सादोवाद् गवां माता जानती गात्. ध वणसो न १: खादोअणाः थूणेव सु मता ं हत ौः.. (२) सूय पदाथ के भ प के समान ही प रव तत प धारण करते रहते ह. करण क माता उषा सूय दय क बात जानती ई आकाश से उतरती है. कनार को तोड़ने वाली न दयां जल से भरकर बहती ह. वग घर म गड़े ए लकड़ी के खंभे के समान थर हो जाता है. (२) अ मा उ थाय पवत य गभ महीनां जनुषे पू ाय. व पवतो जहीत साधत ौरा ववास तो दसय त भूम.. (३) महान् तु तय का नमाण करने वाले ाचीन ऋ षय के समान हम तु त करते ह तो बादल से जल बरसता है. आकाश अपना काय पूण करता है इस लए पानी बरसता है. य कम करने वाले अं गरागो ीय ऋ ष ब त अ धक थक जाते ह. (३) सू े भव वचो भदवजु ै र ा व१ नी अवसे व यै. उ थे भ ह मा कवयः सुय ा आ ववास तो म तो यज त.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं एवं अ न! हम लोग अपनी र ा के लए तुम दोन को दे व ारा वीकार करने यो य उ म तु तय से बुलाते ह. शोभन य करने वाले ानीजन म त के समान य सेवा करते ए तुम दोन को स करने का य न करते ह. (४) एतो व१ सु यो३ भवाम छु ना मनवामा वरीयः. आरे े षां स सनुतदधामायाम ा चो यजमानम छ.. (५) हे दे वो! य के दन तुम वशेष प से हमारे समीप आओ. इस दन हम शुभकम वाले बनते ह, श ु को परा जत करते ह, छपे ए श ु को समा त करते ह एवं यजमान के सामने जाते ह. (५) एता धयं कृणवामा सखायोऽप या माताँ ऋणुत जं गोः. यया मनु व श श ं जगाय यया व ण वङ् कुरापा पुरीषम्.. (६) हे म ो! आओ. हम लोग मलकर तु त कर. इन तु तय से चुराई गई गाय के भवन का ार खुलता है. इ ह से मनु ने व श श नामक असुर को जीता था एवं इ ह क सहायता से व णक तु य क ीवान् ने वन म जाकर जल पाया था. (६) अनूनोद ह तयतो अ राच येन दश मासो नव वाः. ऋतं यती सरमा गा अ व द ा न स या रा कार.. (७) इस य म ऋ वज ारा सोमलता कूटने के लए काम म आने वाले प थर श द करते ह. इ ह प थर क सहायता से नचुड़े ए सोम ारा नव व एवं दश व य करने वाले अ वंशी ऋ षय ने इं क पूजा क थी. सरमा ने य म आकर गाय को ा त कराया एवं अं गरागो ीय ऋ षय के तो सफल ए. (७) व े अ या ु ष मा हनायाः सं यद् गो भर रसो नव त. उ स आसां परमे सध थ ऋत य पथा सरमा वदद्गाः.. (८) इस पूजनीया उषा का काश फैलते ही अं गरागो ीय ऋ षय ने गाय को ा त कया. गोशाला म ध हा जाने लगा, य क स य माग से सरमा ने गाय को दे ख लया था. (८) आ सूय यातु स ता ः े ं यद यो वया द घयाथे. रघुः येनः पतयद धो अ छा युवा क वद दयद्गोषु ग छन्.. (९) सात घोड़ के वामी सूय हमारे सामने आव. सूय क लंबी या ा का े द घ-गमन अपे त करता है. सूय ती गामी येन के समान ह के समीप आते ह. अ तशय युवा एवं ानी सूय अपनी करण के साथ चलते ए वशेष प से का शत होते ह. (९) आ सूय अ ह छु मण ऽयु
य
रतो वीतपृ ाः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उद्ना न नावमनय त धीरा आशृ वतीरापो अवाग त न्.. (१०) सूय द तशाली जल पर आ ढ़ होते ह. सूय जब अपने रथ म सुंदर पीठ वाले घोड़ को जोड़ते ह, तब धीर यजमान उ ह जल पर चलने वाली नाव के समान ले आते ह एवं सूय क आ ा मानने वाली जलरा श झुक जाती है. (१०) धयं वो अ सु द धषे वषा ययातर दश मासो नव वाः. अया धया याम दे वगोपा अया धया तुतुयामा यंहः.. (११) हे दे वो! हम तु हारी सब कुछ दे ने वाली तु त को जल ा त न म बोल रहे ह. नव व य करने वाले अ गो ीय ऋ षय ने इ ह के सहारे दस महीने बताए थे. इ ह तु तय के कारण हम दे व ारा र त ह एवं पाप को लांघ सक. (११)
सू —४६
दे वता— व ेदेव आ द
हयो न व ाँ अयु ज वयं धु र तां वहा म तरणीमव युवम्. ना या व म वमुचं नावृतं पुन व ा पथः पुरएत ऋजु नेष त.. (१) सब कुछ जानने वाले त ऋ ष ने य म अपने आपको इस तरह लगा दया है, जैसे घोड़ा गाड़ी म जुत जाता है. हम अ वयु एवं होता भी उस उ ार करने वाले एवं र ाकारक काय का बोझा ढोते ह. हम इससे छू टना नह चाहते और न इसे बार-बार ढोना चाहते ह. माग को जानने वाले दे व आगे चलते ए सरलतापूवक लोग को ले चल. (१) अ न इ व ण म दे वाः शधः य त मा तोत व णो. उभा नास या ो अध नाः पूषा भगः सर वती जुष त.. (२) हे इं , अ न, व ण एवं म दे व! हम बल दो. म द्गण एवं व णु भी हम बल द. दोन अ नीकुमार, , सम त दे व क प नयां, पूषा, भग एवं सर वती हमारी तु त को वीकार कर. (२) इ ा नी म ाव णा द त वः पृ थव ां म तः पवताँ अपः. वे व णुं पूषणं ण प त भगं नु शंसं स वतारमूतये.. (३) हम र ा के न म इं , अ न, म , व ण, अ द त, धरती, आकाश, म द्गण, पवत, जल, व णु, पूषा, ण प त एवं भग को बुलाते ह. (३) उत नो व णु त वातो अ धो वणोदा उत सोमो मय करत्. उत ऋभव उत राये नो अ नोत व ोत व वानु मंसते.. (४) व णु अथवा अ हसक वायु अथवा धन दे ने वाले सोम हम सुख द. ऋभुगण, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नीकुमार, व ा एवं वभु हम धन दे ने के लए स ह . (४) उत य ो मा तं शध आ गम बृह प तः शम पूषोत नो यम
व यं यजतं ब हरासदे . यं१ व णो म ो अयमा.. (५)
वगलोक म रहने वाले तथा पूजा के यो य म द्गण बछे ए कुश पर बैठने के लए हमारे पास आव. बृह प त, पूषा, व ण, म तथा अयमा हम घर से संबं धत सभी सुख द. (५) उत ये नः पवतासः सुश तयः सुद तयो न १ ामणे भुवन्. भगो वभ ा शवसावसा गम चा अ द तः ोतु मे हवम्.. (६) शोभन तु तय वाले पवत एवं उ म दान वाली न दयां हमारी र ा का कारण बन. धन को बांटने वाले भग अ के साथ हमारे पास आव. सव ा त अ द त मेरी तु त को सुन. (६) दे वानां प नी शतीरव तु नः ाव तु न तुजये वाजसातये. याः पा थवासो या अपाम प ते ता नो दे वीः सुहवाः शम य छत.. (७) दे वप नयां हमारी तु तय क अ भलाषा करती ई हमारी र ा कर. वे बलवान् पु एवं अ पाने के लए हमारी र ा कर. हे दे वयो! आप धरती पर रहो अथवा आकाश म, पर हम सुख दान करो. (७) उत ना तु दे वप नी र ा य१ ना य नी राट् . आ रोदसी व णानी शृणोतु तु दे वीय ऋतुजनीनाम्.. (८) दे वप नयां हमारे ह को खाएं. इं ाणी, अ नायी, द तयु व णानी दे वी हमारा ह भ ण कर. दे वप नय के म य ऋतु भ ण कर. (८)
सू —४७
अ नी, रोदसी एवं क दे वी हमारा ह
दे वता— व ेदेव
यु ती दव ए त ुवाणा मही माता हतुब धय ती. आ ववास ती युव तमनीषा पतृ य आ सदने जो वाना.. (१) सेवा करती ई, न यत णी व तु त वाली उषा बुलाने पर वग से दे व के साथ य शाला म आती ह, मानव को य काय म लगाती ह और धरती को इस कार चेतन बनाती ह, जैसे कोई माता क या को बोध दे ती है. (१) अ जरास तदप ईयमाना आत थवांसो अमृत य ना भम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अन तास उरवो व तः स प र ावापृ थवी य त प थाः.. (२) अप र मत, ा त एवं काशन प कम करती ई सूय करण सूय मंडल के साथ एक होकर वग, धरती एवं आकाश म ग तशील होती ह. (२) उ ा समु ो अ षः सुपणः पूव य यो न पतुरा ववेश. म ये दवो न हतः पृ र मा व च मे रजस पा य तौ.. (३) अ भलाषाएं पूण करने वाले, दे व को मु दत करने वाले, द तशाली व शोभनग तयु रथ ने अंत र क पूव दशा म वेश कया था. इसके बाद वग के बीच म छपे ए, व वध रंग वाले एवं सव ापक सूय आकाश के पूव और प म भाग म वचरण करके र ा करते रह. (३) च वार ब त ेमय तो दश गभ चरसे धापय ते. धातवः परमा अ य गावो दव र त प र स ो अ तान्.. (४) अपने क याण क अ भलाषा वाले चार ऋ वज् तु तय एवं ह ारा सूय को धारण करते ह. दश- दशाएं सूय को चलने के लए े रत करती ह. सूय क तीन कार क करण उ मतापूवक आकाश के अंत तक शी तापूवक गमन करती ह. (४) इदं वपु नवचनं जनास र त य त थुरापः. े यद बभृतो मातुर ये इहेह जाते य या३ सब धू.. (५) हे ऋ वजो! सामने दखाई दे ता आ यह मंडल अ तशय तु त यो य है. इसम शोभन न दयां बहती ह एवं हमारा पालन करती ह. अंत र के अ त र माता- पता के समान धरती और आकाश थत रात- दन इसीसे उ प होते ह एवं इसे धारण करते ह. (५) व त वते धयो अ मा अपां स व ा पु ाय मातरो वय त. उप े वृषणो मोदमाना दव पथा व वो य य छ.. (६) इसी सूय के लए बु मान् यजमान य कम आरंभ करते ह. उषा पी माताएं इसी के लए तेज वी कपड़े बुनती ह. वषाकारी सूय के मलन से स प नी पी करण आकाश माग से हमारे पास आती ह. (६) तद तु म ाव णा तद ने शं योर म य मदम तु श तम्. अशीम ह गाधमुत त ां नमो दवे बृहते सादनाय.. (७) हे म व व ण! यह तो हमारे सुख का कारण हो. हे अ न! यह तो हम सुख द. हम लंबी आयु एवं त ा का अनुभव कर. द तशाली, महान् एवं सबको सुख दे ने वाले सूय को नम कार है. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —४८
दे वता— व ेदेव
क याय धा ने मनामहे व ाय वयशसे महे वयम्. आमे य य रजसो यद आँ अपो वृणाना वतनो त मा यनी.. (१) हम सबके य व ुत-् संबंधी तेज क तु त कब करगे? बल एवं यश उसका आधार ह एवं वह सबका पू य है. वह श सब ओर से प र मत लगने वाले आकाश म वषा का व तार करती है. वह ावती एवं आकाश को ढकने वाली है. (१) ता अ नत वयुनं वीरव णं समा या वृतया व मा रजः. अपो अपाचीरपरा अपेजते पूवा भ तरते दे वयुजनः.. (२) या उषाएं ऋ वज ारा धारण करने यो य ान का व तार करती ह? वे एक प वाली आवरण श से सारे संसार को ढक लेती ह. दे व क अ भलाषा करने वाले लोग पूवव तनी एवं भ व य म आने वाली उषा को छोड़कर सामने उप थत वतमान उषा से अ ान को लांघते ह. (२) आ ाव भरह ये भर ु भव र ं व मा जघ त मा य न. शतं वा य य चर वे दमे संवतय तो व च वतय हा.. (३) प थर ारा रात एवं दन म तैयार कए गए सोमरस से स होकर इं मायावी वृ को मारने के लए व को तेज बनाते ह. इं पी सूय क सैकड़ करण दन को लाती एवं वदा करती ई आकाश म घूमती ह. (३) ताम य री त परशो रव यनीकम यं भुजे अ य वपसः. सचा य द पतुम त मव यं र नं दधा त भर तये वशे.. (४) अपने वामी का अ भमत पूरा करने वाले परशु के समान हम अ न क द त को दे खते ह. इस पवान् सूय क करण का वणन हम सुख पाने के न म करते ह. अ न दे व हमारे सहायक होकर य शाला म आते ह एवं यजमान को अ से भरा आ घर तथा उ म धन दे ते ह. (४) स ज या चतुरनीक ऋ ते चा वसानो व णो यत रम्. न त य व पु ष वता वयं यतो भगः स वता दा त वायम्.. (५) अ न रमणीय तेज को धारण करते ए अंधकार पी श ु का नाश करते ह एवं चार दशा म वाला पी लपट फैला कर सुशो भत होते ह. हम पु ष के समान आचरण करने वाले अ न को नह जानते, य क भग पी महान् स वता हम उ म धन दे ते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —४९
दे वता— व ेदेव
दे वं वो अ स वतारमेषे भगं च र नं वभज तमायोः. आ वां नरा पु भुजा ववृ यां दवे दवे चद ना सखीयन्.. (१) तुम यजमान के क याण के लए हम आज स वता एवं भग के समीप जाते ह. ये दोन यजमान को धन दे ते ह. हे नेता एवं ब त भोग करने वाले अ नीकुमारो! तु हारी म ता क अ भलाषा करते ए हम त दन तु हारे सामने जाते ह. (१) त याणमसुर य व ा सू ै दवं स वतारं व य. उप ुवीत नमसा वजान ये ं च र नं वभज तमायोः.. (२) हे अंतरा मा! तुम श ु का नाश करने वाले सूयदे व को वापस आया जानकर तु तय ारा शंसा करो. उ ह मानव को उ म र न एवं धन बांटने वाला जानकर ह एवं तु तयां सम पत करो. (२) अद या दयते वाया ण पूषा भगो अ द तव त उ ः. इ ो व णुव णो म ो अ नरहा न भ ा जनय त द माः.. (३) पोषणक ा, सेवा करने यो य एवं टु कड़े न होने वाले अ न अपनी वाला ारा उ म लकड़ी को खाते ह एवं तेज का व तार करते ह. इं , व णु, व ण, म , अ न आ द दशनीय दे वगण हमारे दवस को क याणमय बनाते ह. (३) त ो अनवा स वता व थं त स धव इषय तो अनु मन्. उप य ोचे अ वर य होता रायः याम पतयो वाजर नाः.. (४) स वता दे व का कोई तर कार नह कर पाया. वे हम उ म धन द. बहती ई न दयां उसी धन के लए ग तशील ह . हम य के होता बनकर इस लए तो बोलते ह क हम धन के वामी बन एवं हमारे पास उ म अ हो. (४) ये वसु य ईवदा नमो य म े व णे सू वाचः. अवै व वं कृणुता वरीयो दव पृ थ ोरवसा मदे म.. (५) जन यजमान ने वसु को ग तशील अ भट कया है एवं म व ण के त ज ह ने तु तयां बोली ह, उ ह महान् तेज ा त हो. हे दे वो! तुम उ ह े सुख दो. हम धरती और आकाश क र ा पाकर स ह . (५)
सू —५०
दे वता— व ेदेव
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ो दे व य नेतुमत वुरीत स यम्. व ो राय इषु य त ु नं वृणीत पु यसे.. (१) सभी मनु य स वता दे व से म ता क याचना कर, सब लोग उनसे धन क कामना कर एवं पु के लए धन पाव. (१) ते ते दे व नेतय चेमाँ अनुशसे. ते राया ते ा३पृचे सचेम ह सच यैः.. (२) हे स वता दे व! हम यजमान तथा होता आ द अ य लोग जो तु तयां करते ह, वे सब तु हारी ही ह. तुम हमारी अ भलाषाएं पूण करो एवं दोन कार के लोग को धनी बनाओ. (२) अतो न आ नॄन तथीनतः प नीदश यत. आरे व ं पथे ां षो युयोतु यूयु वः.. (३) अतः इस य के नेता एवं अ त थ के समान पू य दे व क सेवा करो एवं दे वप नय क सेवा करो. सबको वभ करने वाले स वता रवत भाग म उप थत बै रय को हमसे र रख. (३) य व र भ हतो वद् ो यः पशुः. नृमणा वीरप योऽणा धीरेव स नता.. (४) जस य म य को धारण करने वाला एवं यूप से बांधने यो य पशु यूप के पास जाता है. उस य म यजमान वीर प नयां, पु , घर, धरती, धन आ द पाता है. (४) एष ते दे व नेता रथ प तः शं र यः. शं राये शं व तय इषः तुतो मनामहे दे व तुतो मनामहे.. (५) हे स वता दे व! तु हारा यह रथ धन से यु एवं सबका पालन करने वाला है. यह हमारे लए सुख दान करे. हम सुख, धन एवं अ पाने के लए तु तयां करते ह. हम तु त यो य स वता क तु त करते ह. (५)
सू —५१
दे वता— व ेदेव
अ ने सुत य पीतये व ै मे भरा ग ह. दे वे भह दातये.. (१) हे अ न! तुम सम त दे व के साथ सोमरस पीने के लए ह दाता यजमान के पास आओ. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋतधीतय आ गत स यधमाणो अ वरम्. अ नेः पबत ज या.. (२) हे स ची तु तय वाले दे वो! तुम स यधारण करते हो. तुम हमारे य अ न पी जीभ से सोमरस पओ. (२)
म आओ और
व े भ व स य ातयाव भरा ग ह. दे वे भः सोमपीतये.. (३) हे मेधावी एवं सेवा करने यो य अ न! तुम ातःकाल आने वाले के साथ सोमरस पीने हेतु आओ. (३) अयं सोम मू सुतोऽम े प र ष यते. य इ ाय वायवे.. (४) ये सोमरस एवं उसे नचोड़ने वाले प थर ह. सोमरस नचोड़कर पा भरा गया है. यह इं एवं वायु के लए य है. (४) वायवा या ह वीतये जुषाणो ह दातये. पबा सुत या धसो अ भ यः.. (५) हे वायु! तुम ह दान करने वाले यजमान के एवं आकर नचोड़ा आ सोमरस पओ. (५) इ ता
त स होकर सोमरस पीने हेतु आओ
वायवेषां सुतानां पी तमहथः. ुषेथामरेपसाव भ यः.. (६)
हे वायु! तुम और इं इस सोमरस को पीने क यो यता रखते हो. तुम नबाध होकर सोमरस का सेवन करो एवं इसी के उ े य से यहां आओ. (६) सुता इ ाय वायवे सोमासो द या शरः. न नं न य त स धवोऽ भ यः.. (७) इं एवं वायु के लए दही मला सोमरस तैयार कया है. वह सोम तु हारी ओर नीचे बहने वाली स रता के समान प ंचे. (७) सजू व े भदवे भर यामुषसा सजूः. आ या ने अ व सुते रण.. (८) हे अ न! तुम सम त दे व के साथ आओ एवं अ नीकुमार तथा उषा के साथ म ता था पत करो. तुम य म आकर सोमरस ारा उसी कार स बनो, जस कार अ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ ष स ता ा त करते ह. (८) सजू म ाव णा यां सजूः सोमेन व णुना. आ या ने अ व सुते रण.. (९) हे अ न! तुम म , व ण, सोम एवं व णु के साथ आओ तथा य म नचोड़ा आ सोमरस पीकर अ ऋ ष के समान स बनो. (९) सजूरा द यैवसु भः सजू र े ण वायुना. आ या ने अ व सुते रण.. (१०) हे अ न! तुम आ द य, वसु , इं एवं वायु के साथ आओ एवं य म नचोड़ा आ सोमरस पीकर अ ऋ ष के समान स बनो. (१०) व त नो ममीताम ना भगः व त दे द तरनवणः. व त पूषा असुरो दधातु नः व त ावापृ थवी सुचेतुना.. (११) अ नीकुमार, भग एवं अ द तदे वी हमारा क याण कर. स यशील एवं बलदाता पूषा हमारा क याण कर. शोभन ानसंप धरती-आकाश भी हमारा क याण कर. (११) व तये वायुमुप वामहै सोमं व त भुवन य य प तः. बृह प त सवगणं व तये व तय आ द यासो भव तु नः.. (१२) हम क याण के लए वायु क तु त करते ह. सब लोक के पालक सोम क भी हम ाथना करते ह. हम दे वसमूह के साथ बृह प त क तु त क याण के लए करते ह. आ द यगण हमारा क याण कर. (१२) व े दे वा नो अ ा व तये वै ानरो वसुर नः व तये. दे वा अव वृभवः त तये व त नो ः पा वंहसः.. (१३) इस य के प व दन सभी दे व हमारा क याण कर. सभी मनु य के नेता एवं घर दे ने वाले अ न हमारा क याण कर. द तशाली ऋभुगण हमारी र ा एवं क याण कर. हमारा क याण कर एवं हम पाप से बचाव. (१३) व त म ाव णा व त प ये रेव त. व तनइ ा न व त नो अ दते कृ ध.. (१४) हे म व ण! हमारा क याण करो. हे धन क वा मनी एवं माग को हतकर बनाने वाली दे वी! तुम हमारा क याण करो. इं तथा अ न हमारा क याण कर. हे अ द त तुम हमारा क याण करो. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व त प थामनु चरेम सूयाच मसा वव. पुनददता नता जानता सं गमेम ह.. (१५) जस कार सूय और चं नबाध प से अपने माग पर चलते ह, उसी कार हम भी क याण माग पर चल. ऐसे बंधु म से हमारा मलन हो, जो ब त दन से बछु ड़कर भी ो धत नह ह एवं हमारा मरण करते ह. (१५)
सू —५२
दे वता—म द्गण
यावा धृ णुयाचा म ऋ व भः. ये अ ोघमनु वधं वो मद त य याः.. (१) हे ऋ ष यावा ! तुम धीरतापूवक तु तपा म त क पूजा करो. वे य के पा ह एवं त दन ह व पी अ को नबाध प म पाकर स होते ह. (१) ते ह थर य शवसः सखायः स त धृ णुया. ते याम ा धृष न मना पा त श तः.. (२) वे धीर ह एवं थर श के म ह. वे माग म हमारी संतान क र ा करते ह. (२)
मण करने वाले ह एवं अपने आप
ते प ासो नो णोऽ त क द त शवरीः. म तामधा महो द व मा च म महे.. (३) ग तशील एवं जल बरसाने वाले म द्गण रा य को लांघते ए हमारे पास आते ह, इसी कारण म त का तेज धरती एवं आकाश म ा त तथा तु त यो य है. (३) म सु वो दधीम ह तोमं य ं च धृ णुया. व े ये मानुषा युगा पा त म य रषः.. (४) हे अ वयु एवं होताओ! तुम लोग धीरतापूवक म त क तु त करते एवं ह दे ते हो. इसका या कारण है? केवल यही कारण है क वे मनु य को हसक श ु से बचाते ह. (४) अह तो ये सुदानवो नरो असा मशवसः. य ं य ये यो दवो अचा म यः.. (५) हे होताओ! पूजा यो य, शोभन दान वाले, य कम के नेता, पया त श पा एवं द तशाली म त क अचना य साधन ारा करो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शाली य के
आ मैरा युधा नर ऋ वा ऋ ीरसृ त. अ वेनाँ अह व ुतो म तो ज झती रव भानुरत मना दवः.. (६) वषा करने वाले महान् म द्गण चमकने वाले आभरण एवं आयुध से सुशो भत ह तथा मेघ का भेदन करने के लए आयुध चलाते ह. कल-कल बहने वाले जल के समान बजली म त के पीछे चलती है एवं उसका काश वयं ही इधर-उधर फैलता है. (६) ये वावृध त पा थवा य उराव त र आ. वृजने वा नद नां सध थे वा महो दवः.. (७) जो म द्गण धरती एवं आकाश म वृ महान् वग के थान म उ त कर. (७)
ा त करते ह, वे न दय क धारा
एवं
शध मा तमु छं स स यशवसमृ वसम्. उत म ते शुभे नरः प ा युजत मना.. (८) हे तोताओ! म त के अ यंत व तृत एवं स य पर आधा रत उ म बल क तु त करो. वषा करने वाले म द्गण जल बरसाने के लए अपने आप सबक र ा के वचार से प र म करते ह. (८) उत म ते प यामूणा वसत शु यवः. उत प ा रथानाम भ द योजसा.. (९) प णी नामक नद म रहने वाले म द्गण सबको शु करने वाले काश से घरे रहते ह. वे रथ के प हए क ने म एवं अपनी श ारा बादल को भेदते ह. (९) आपथयो वपथयोऽ त पथा अनुपथाः. एते भम ं नामा भय ं व ार ओहते.. (१०) अ भमुख चलने वाले, वमुख चलने वाले, तकूल माग म चलने वाले एवं अनुकूल माग म चलने वाले इन चार नाम वाले म द्गण व तृत होकर हमारे य को धारण कर. (१०) अधा नरो योहतेऽधा नयुते ओहते. अधा पारावता इ त च ा पा ण द या.. (११) वषा आ द इ काय के नेता दे वगण संसार को धारण करते ह. सबको मलाने वाले जगत् को धारण करते ह. रवत आकाश के ह, तार आ द को धारण करने वाले दे व का प व च एवं दशनीय है. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
छ दः तुभः कुभ यव उ समा क रणो नृतुः. ते मे के च तायव ऊमा आस श वषे.. (१२) छं द ारा तु त करने वाले एवं जल के अ भलाषी तोता ने म त क ाथना क एवं यासे गोतम के लए कुआं बनवाया. म त म से कुछ ने चोर के समान छपकर हमारी र ा क थी एवं कुछ प प से हमारी श बढ़ाने म कारण बने थे. (१२) य ऋ वा ऋ व ुतः कवयः स त वेधसः. तमृषे मा तं गणं नम या रमया गरा.. (१३) हे यावा ऋ ष! तुम दशनीय, व ुत पी आयुध धारण करने वाले, बु सबके नमाता म द्गण क रमणीय वा य ारा तु त करो. (१३)
मान् एवं
अ छ ऋषे मा तं गणं दाना म ं न योषणा. दवो वा धृ णव ओजसा तुता धी भ रष यत.. (१४) हे ऋ ष! तुम ह दे ते ए एवं तु तयां करते ए म त के समीप आ द य के समान जाओ. हे श ारा श ु को हराने वाले म तो! तुम हमारी तु तयां सुनकर वगलोक से हमारे य म आओ. (१४) नू म वान एषां दे वाँ अ छा न व णा. दाना सचेत सू र भयाम ुते भर भः.. (१५) तोता म त को तु त ारा शी ा त करके अ य दे व को पाने क अ भलाषा नह करते. वे ानी, शी ग तशील के प म स एवं फल दे ने वाले म त से दान पाते ह. (१५) ये मे ब वेषे गां वोच त सूरयः पृ वोच त मातरम्. अधा पतर म मणं ं वोच त श वसः.. (१६) जब म अपने बंधु को खोज रहा था, तब समथ म त ने मुझे बताया क पृ माता है. उ ह ने अ के वामी को अपना पता बताया. (१६) स त मे स त शा कन एकमेका शता द ः. यमुनायाम ध ुतमु ाधो ग ं मृजे न राधो अ
उनक
ं मृजे.. (१७)
उनचास सं या वाले श शाली म त ने एक होकर मुझे सैकड़ गाएं द . म त ारा दए गए गो प अथवा अ प धन को हमने गंगा तट पर ा त कया. (१७)
सू —५३
दे वता—म द्गण
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को वेद जानमेषां को वा पुरा सु ने वास म ताम्. य ुयु े कला यः.. (१) इन म त का ज म कौन जानता है? म त का सुख सव थम कसने अनुभव कया? जब इ ह ने रथ म पृ को जोड़ा था, तब इनक श कसने जानी? (१) ऐता थेषु त थुषः कः शु ाव कथा ययुः. क मै स ुः सुदासे अ वापय इळा भवृ यः सह.. (२) म त को रथ पर बैठा आ कसने सुना था? इनके गमन का ढं ग कौन जानता है? बंधु प एवं वषाकारक म द्गण अ लेकर कस दानशील के लए अवतीण होते ह? (२) ते म आ य आययु प ु भ व भमदे . नरो मया अरेपस इमा प य त ु ह.. (३) तेज वी घोड़ पर सवार होकर जो म द्गण सोमरस का आनंद ा त करने आए थे, उ ह ने मुझसे कहा क वे नेता, मानव हतकारी एवं आस र हत ह. हे ऋ ष! इस कार के म त को दे खकर उनक तु त करो. (३) ये अ षु ये वाशीषु वभानवः ाया रथेषु ध वसु.. (४)
ु खा दषु.
हे म तो! तु हारे आभरण , आयुध , माला , सीने पर पहने जाने वाले गहन , हाथपैर एवं उन म पहने जाने वाले कंकण , रथ एवं धनुष म जो बल आ त है, उसक हम तु त करते ह. (४) यु माकं मा रथाँ अनु मुदे दधे म तो जीरदानवः. वृ ी ावो यती रव.. (५) हे शी दान करने वाले म तो! वषा के न म सभी जगह जाने वाली द त के समान तु हारे रथ को दे खकर हम मु दत होते ह. (५) आ यं नरः सुदानवो ददाशुषे दवः कोशमचु यवुः. व पज यं सृज त रोदसी अनु ध वना य त वृ यः.. (६) नेता एवं शोभन दान वाले म द्गण ह व दे ने वाले यजमान के क याण के लए आकाश से बादल को बरसाते ह. वे धरती एवं आकाश के क याण के लए बादल को छोड़ते ह. वषा करने वाले म त् सभी जगह जाने वाले जल के साथ गमन करते ह. (६) ततृदानाः स धवः ोदसा रजः
स ुधनवो यथा.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ा अ ा इवा वनो वमोचने व य त त ए यः.. (७) भेदन कए गए बादल से नकली ई जल-धाराएं वेग के साथ आकाश म इस कार गमन करती ह, जस कार धा गाय ध दे ती है. शी गामी अ जस कार माग पर चलते ह, उसी कार न दयां तेजी से बहती ह. (७) आ यात म तो दव आ त र ादमा त. माव थात परावतः.. (८) हे म तो! तुम अंत र , वग अथवा इहलोक से यहां आओ. तुम रवत थान म मत रहो. (८) मा वो रसा नतभा कुभा ु मुमा वः स धु न रीरमत्. मा वः प र ा सरयुः पुरी ष य मे इ सु नम तु वः.. (९) हे म तो! रसा, अ नतभा एवं कुभा नाम क न दयां एवं सभी जगह जाने वाली सधु तु ह न रोके. जलपूण सरयू नद तु ह न रोके. तु हारे आने का सुख हम ा त हो. (९) तं वः शध रथानां वेषं गणं मा तं न सीनाम्. अनु य त वृ यः.. (१०) हे म तो! तु हारे नवीन रथ के वेग एवं द त क हम शंसा करते ह. वषा म त के पीछे -पीछे चलती है. (१०) शधशध व एषां ातं ातं गण णं सुश त भः. अनु ामेम धी त भः.. (११) हे म तो! हम सुंदर तु तय एवं ह गण के पीछे चलते ह. (११) क मा अ सुजाताय रातह ाय एना यामेन म तः.. (१२) (१२)
दे ने आ द कम
ारा तु हारे बल , समूह एवं
ययुः.
म द्गण आज कस उ म ह व दे ने वाले यजमान के पास अपने रथ
ारा जाएंगे?
येन तोकाय तनयाय धा यं१ बीजं वह वे अ तम्. अ म यं त न य ईमहे राधो व ायु सौभगम्.. (१३) हे म तो! तुम जस कृपालु मन से हमारे पु -पौ के लए न न होने वाले अ के बीज दे ते हो, उसी मन से हम भी अ के बीज दो. हम तुमसे पूण आयु एवं सौभा ययु धन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मांगते ह. (१३) अतीयाम नद तरः व त भ ह वाव मरातीः. वृ ् वी शं योराप उ भेषजं याम म तः सह.. (१४) हे म तो! हम क याण ारा पाप को यागकर नदक-श ु पर वजय ा त कर. तु हारे ारा क गई वषा से हम सुख, पाप का नाश, जल, गाय एवं ओष धय को पाव. (१४) सुदेवः समहास त सुवीरो नरो म तः स म यः. यं ाय वे याम ते.. (१५) हे पू जत एवं नेता म तो! तुम जस मनु य क र ा करते हो, वह अ य दे व का कृपापा एवं उ म पु -पौ वाला बनता है. हम तु हारे सेवक इसी कार बन. (१५) तु ह भोजा तुवतो अ य याम न रण गावो न यवसे. यतः पूवा इव सख रनु य गरा गृणी ह का मनः.. (१६) हे ऋ ष! तु त करने वाले इस यजमान के य म तुम फल दे ने वाले म त क तु त करो. गाएं जैसे घास चरने के लए चलती ई स होती ह, उसी कार म त् स ह . तेज चलने वाले म त को पुराने म के समान बुलाओ एवं तु त क अ भलाषा करने वाले म त क वचन से तु त करो. (१६)
सू —५४
दे वता—म द्गण
शधाय मा ताय वभानव इमां वाचमनजा पवत युते. घम तुभे दव आ पृ य वने ु न वसे म ह नृ णमचत.. (१) वाय , तेज वाले, पवत को युत करने वाले, धूप का शोषण करने वाले, वग से आने वाले, रथ के उप रभाग पर वराजमान एवं तेज वी अ वाले म त के बल क शंसा करो तथा उ ह पया त अ दो. (१) वो म त त वषा उद यवो वयोवृधो अ युजः प र यः. सं व ुता दध त वाश त तः वर यापोऽवना प र यः.. (२) हे म तो! तु हारे द त, जगत् क र ा के लए जल के इ छु क, अ क वृ करने वाले, चलने के लए रथ म जोड़ने वाले सभी ओर गमनशील, बजली के साथ संगत होने वाले व तीन थान म श द करने वाले गण कट होते ह एवं जलरा श धरती पर गरने लगती है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ु महसो नरो अ म द वो वात वषो म तः पवत युतः. अ दया च मु रा ा नीवृतः तनयदमा रभसा उदोजसः.. (३) बजली पी तेज वाले, वषा आ द के नेता, प थर के आयुध वाले, द त ा त करने वाले, पवत को युत करने वाले, बार-बार जल दे ने वाले, व को े रत करने वाले, मलकर गजन करने वाले एवं उद्धृत बलसंप म द्गण वषा के न म कट होते ह. (३) १ ू ु ा हा न श वसो १ त र ं व रजां स धूतयः. व यद ाँ अजथ नाव यथा व गा ण म तो नाह र यथ.. (४) हे ो! तुम रा एवं दन को कट करो. हे सवथा समथ म तो! तुम अंत र तथा अ य लोक को व तृत करो. हे कंपाने वाले म तो! सागर जस कार नाव को हलाता है, उसी कार तुम बादल को चंचल बनाओ एवं श ुनगर को न करो. हे म तो! हमारी हसा मत करना. (४) त य वो म तो म ह वनं द घ ततान सूय न योजनम्. एता न यामे अगृभीतशो चषोऽन दां य ययातना ग रम्.. (५) हे म तो! जस कार सूय अपना काश फैलाते ह अथवा दे व के घोड़े र- र तक जाते ह, उसी कार तोता तु हारे बल एवं मह व को र तक स बनाते ह. हे म तो! तुमने उस पवत को तोड़ा था, जस म प णय ने चुराए ए घोड़े छपाए थे. (५) अ ा ज शध म तो यदणसं मोषथा वृ ं कपनेव वेधसः. अध मा नो अरम त सजोषस ु रव य तमनु नेषथा सुगम्.. (६) हे वषा करने वाले एवं वृ के समान बादल को कं पत करने वाले म तो! तु हारी श सुशो भत हो रही है. हे पर पर ी तसंप म तो! जस कार आंख माग दशन करती ह, उसी कार तुम हम सरल माग से रमणीय धन के समीप प ंचाओ. (६) न स जीयते म तो न ह यते न ेध त न थते न र य त. ना य राय उप द य त नोतय ऋ ष वा यं राजानं वा सुषूदथ.. (७) हे म तो! तुम जस ऋ ष या राजा को य कम म लगाते हो, वह सर ारा न हारता है और न मारा जाता है. वह न ीण होता है, न क पाता है और न उसे कोई बाधा प ंचा सकता है. उसका धन एवं र ा साधन भी कभी समा त नह होते. (७) नयु व तो ाम जतो यथा नरोऽयमणो न म तः कव धनः. प व यु सं य दनासो अ वर ु द त पृ थव म वो अ धसा.. (८) नयुत नाम वाले घोड़ के वामी, संयु
पदाथ को पृथक् करने वाले तथा नेता, सूय
******ebook converter DEMO Watermarks*******
के समान तेज वी म द्गण जल से यु होते ह. वे श शाली बनकर कुएं, तालाब आ द नचले थान को जल से भर दे ते ह एवं श द करते ए धरती को मधुर जल से स च दे ते ह. (८) व वतीयं पृ थवी म यः व वती ौभव त य यः. व वतीः प या अ त र याः व व तः पवता जीरदानवः.. (९) यह व तृत धरती म त के लए है, व तृत वग भी ग तशील म त के लए है. आकाश का माग म त के चलने के लए व तृत है एवं बादल म त के लए शी वषा करते ह. (९) य म तः सभरसः वणरः सूय उ दते मदथा दवो नरः. न वोऽ ाः थय ताह स तः स ो अ या वनः पारम ुथ.. (१०) हे समान श वाले एवं सबके नेता म तो! तुम वग के नेता हो. तुम सूय नकलने पर सोमपान करके स होते हो. तुम घोड़े चलाने म श थलता नह करते एवं तुम सभी लोक के माग को पार करते हो. (१०) अंसेषु व ऋ यः प सु खादयो व ःसु मा म तो रथे शुभः. अ न ाजसो व ुतो गभ योः श ा शीषसु वतता हर ययीः.. (११) हे म तो! तु हारे कंध पर आयुध, पैर म कटक, सीने पर हार एवं रथ पर द त वराजमान ह. तु हारे हाथ म अ न के समान चमकने वाली बजली तथा शीश पर व तृत सुनहरी पगड़ी है. (११) तं नाकमय अगृभीतशो चषं श प पलं म तो व धूनुथ. सम य त वृजना त वष त य वर त घोषं वततमृतायवः.. (१२) हे ग तशील म तो! तुम असुर ारा अप त न होने वाले तेज से यु वग एवं उ वल जलसमूह को भां त-भां त से चंचल बनाओ. जब तुम हमारे ारा दया आ ह पाकर श शाली बनते हो, अ तशय द त धारण करते हो एवं जल बरसाना चाहते हो, तब भयानक प से गरजते हो. (१२) यु माद य म तो वचेतसो रायः याम र यो३ वय वतः. न यो यु छ त त यो३ यथा दवो३ मे रार त म तः सह णम्.. (१३) हे व श ानसंप म तो! रथ के वामी हम लोग तु हारे ारा अ यु धन ा त कर. वह धन कभी समा त नह होता, जैसे आकाश से सूय कभी लु त नह होता. हे म तो! हम असी मत धनयु बनाकर सुखी करो. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यूयं र य म तः पाहवीरं यूयमृ षमवथ साम व म्. यूयमव तं भरताय वाजं यूयं ध थ राजानं ु म तम्.. (१४) हे म तो! तुम अ भल षत पु -पौ ा द स हत धन हम दो एवं सोमपान क ेरणा दे ने वाले ऋ ष क र ा करो. तुम दे वय करने वाले राजा यावा को संप दो एवं सुखी बनाओ. (१४) त ो या म वणं स ऊतयो येना व१ण ततनाम नॄँर भ. इदं सु मे म तो हयता वचो य य तरेम तरसा शतं हमाः.. (१५) हे शी र ा करने वाले म तो! हम तुमसे धन क याचना करते ह. उसके ारा हम सूय करण के समान अपने प रवार का व तार कर सक. हे म तो! तुम इस तु त को पसंद करो, जससे हम सौ हेमंत को पार कर सक. (१५)
सू —५५
दे वता—म द्गण
य यवो म तो ाज यो बृह यो द धरे मव सः. ईय ते अ ैः सुयमे भराशु भः शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (१) अ तशय य पा , का शत आयुध वाले एवं सीने पर सोने के हार पहनने वाले म द्गण अ धक अ धारण करते ह. वे सरलता से वश म होने यो य एवं ती ग त वाले अ ारा वहन कए जाते ह. म त के रथ जल के पीछे चलते ह. (१) वयं द ध वे त वष यथा वद बृह महा त उ वया व राजथ. उता त र ं म मरे ोजसा शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (२) हे म तो! तु हारे ान क साम य असी मत है. तुम वयं ही श धारण करते हो. हे महान् म तो! तुम व तृत प से सुशो भत बनो एवं अपने तेज से आकाश को भर दो. म त के रथ जल के पीछे चलते ह. (२) साकं जाताः सु वः साकमु तः ये चदा तरं वावृधुनरः. वरो कणः सूय येव र मयः शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (३) एक साथ उ प होने वाले महान् म त् एक साथ ही वषा करते ह. वे शोभा पाने के लए अ तशय वृ ए ह. वे सूय करण के समान यागा द कम के उ म नेता ह. पानी क ओर चलने वाले म त के रथ सबसे पीछे रहते ह. (३) आभूषे यं वो म तो म ह वनं द े यं सूय येव च णम्. उतो अ माँ अृमत वे दधातन शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म तो! तु हारी मह ा शंसनीय है एवं प सूय के समान सुंदर है. तुम हम मरणर हत बनाओ. जल क ओर जाने वाले म त का रथ सबसे पीछे चलता है. (४) उद रयथा म तः समु तो यूयं वृ वषयथा पुरी षणः. न वो द ा उप द य त धेनवः शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (५) हे जलयु म तो! तुम अंत र से जल को े रत करके वषा करो. हे श ुनाशक म तो! तु हारे स करने वाले बादल कभी जलर हत नह होते. जल क ओर जाने वाले म त का रथ सबसे पीछे चलता है. (५) यद ा धूषु पृषतीरयु वं हर यया य काँ अमु वम्. व ा इ पृधो म तो यथ शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (६) हे म तो! जब तुम रथ के अ भाग म बुंद कय वाली घो ड़य को जोड़ते हो, तब सोने के बने कवच को उतार दे ते हो. तुम सभी सं ाम म वजय ा त करते हो. जल क ओर जाने वाले म त का रथ सबसे पीछे चलता है. (६) न पवता न न ो वर त वो य ा च वं म तो ग छथे तत्. उत ावापृ थवी याथना प र शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (७) हे म तो! न दयां अथवा पहाड़ तु ह रोकने म समथ नह ह. तुम जहां जाना चाहते हो, वहां अव य प ंच जाते हो. वषा करने के लए तुम धरती-आकाश म फैल जाते हो. जल क ओर जाने वाले म त का रथ सबसे पीछे चलता है. (७) य पू म तो य च नूतनं य ते वसवो य च श यते. व य त य भवथा नवेदसः शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (८) हे नवास थान दे ने वाले म तो! ाचीन काल म जो य कए गए अथवा वतमान काल म कए जा रहे ह, जो कुछ ाथना या तु त क जाती है, तुम उस सबको भली-भां त जानो. जल क ओर जाने वाले म त का रथ सबसे पीछे चलता है. (८) मृळत नो म तो मा व ध ना म यं शम ब तं व य तन. अ ध तो य स य य गातन शुभं यातामनु रथा अवृ सत.. (९) हे म तो! हम सुखी बनाओ. हम कोप से न मत करो, अ पतु हमारे सुख का व तार करो. हमारी तु त सुनकर तुम हमारे त म ता का भाव बनाओ. पानी क ओर चलने वाले म त का रथ सबसे पीछे रहता है. (९) यूयम मा यत व यो अ छा नरंह त यो म तो गृणानाः. जुष वं नो ह दा त यज ा वयं याम पतयो रयीणाम्.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म तो! तुम हम ऐ य के समीप ले आओ एवं हमारी तु तय से स होकर हम पाप से र करो. हे य पा म तो! तुम हमारा दया आ ह वीकार करो. हम लोग व वध संप य के वामी बन. (१०)
दे वता—म द्गण
सू —५६ अ ने शध तमा गणं प ं मे भर भः. वशो अ म तामव ये दव ोचनाद ध.. (१)
हे अ न! चमकते ए आभरण से यु एवं श ु को हराने म कुशल म त के गण को आज बुलाओ. हम आज द तशाली वग से अपने सामने उप थत होने के लए म त को बुलाते ह. (१) यथा च म यसे दा त द मे ज मुराशसः. ये ते ने द ं हवना यागम ता वध भीमस शः.. (२) हे अ न! जस कार तुम दय म म त के त पूजा का भाव रखते हो, उसी कार वे हमारे समीप शुभकामनाएं लेकर आव. जो केवल पुकार सुनकर तु हारे समीप आ जाते ह, ऐसे भयानक द खने वाले म त को ह दे कर बढ़ाओ. (२) मी मतीव पृ थवी पराहता मद ये य मदा. ऋ ो न वो म तः शमीवाँ अमो ो गौ रव भीमयुः.. (३) धरती पर रहने वाली एवं बल राजा वाली जा जस कार सरे से पी ड़त होकर अपने वामी के समीप जाती है, उसी कार म त का स समूह हमारे पास आता है. हे म तो! तु हारा समूह अ न के समान कुशल एवं भीषण बैल से यु गौ के समान धष हो. (३) न ये रण योजसा वृथा गावो न धुरः. अ मानं च वय१ पवतं ग र यावय त याम भः.. (४) म द्गण धष बैल के समान अपने ही ओज से श ु का नाश करते ह. वे गरजने वाले, ा त एवं जलवषा ारा संसार को स करने वाले मेघ को अपने गमन ारा बरसने को ववश करते ह. (४) उ
नूनमेषां तोमैः समु तानाम्. म तां पु तममपू
हे म तो! उठो. हम तो अपूव म त को बुलाते ह. (५)
गवां सग मव
ये.. (५)
ारा उ त ा त, अ तशय महान् व जलरा श के समान
******ebook converter DEMO Watermarks*******
युङ् वं षी रथे युङ् वं रथेषु रो हतः. युङ् वं हरी अ जरा धु र वोळहवे व ह ा धु र वो हवे.. (६) हे म तो! तुम अपने रथ म चमक ले रंग क घो ड़य अथवा लाल रंग के घोड़ को जोड़ो. बोझा ढोने म मजबूत ह र नामक शी गामी घोड़ को तुम बोझा ढोने म लगाओ. (६) उत य वा य ष तु व व ण रह म धा य दशतः. मा वो यामेषु म त रं कर तं रथेषु चोदत.. (७) हे म तो! तु हारे रथ म जुड़े ए द तशाली, जोर से श द करने वाले एवं सुंदर घोड़े तु हारे ारा इस कार से हांके जाते ह क तु हारी या ा म वलंब नह करते. (७) रथं नु मा तं वयं व युमा वामहे. आ य म त थौ सुरणा न ब ती सचा म सु रोदसी.. (८) हम लोग म त के उस अ पूण रथ का आ ान करते ह, जस रथ म रमणीय जल को धारण करने वाली म त क माता बैठती है. (८) तं वः शध रथेशुभं वेषं पन युमा वे. य म सुजाता सुभगा महीयते सचा म सु मी
षी.. (९)
हे म तो! हम सुशो भत, द त, तु तयो य तु हारे उस रथ का आ ान करते ह, जस म शोभन उ प वाली व सौभा य वाली म त्माता वराजती है. (९)
सू —५७
दे वता—म द्गण
आ ास इ व तः सजोषसो हर यरथाः सु वताय ग तन. इयं वो अ म त हयते म त तृ णजे न दव उ सा उद यवे.. (१) हे इं से यु , पर पर ी त संप , सोने के रथ पर बैठे ए एवं पु म तो! तुम सरल गमन वाले हमारे य म आओ. हमारी तु त तु हारी कामना करती है. जस कार तुमने यासे एवं जल चाहने वाले गोतम के पास वग से आकर जल प ंचाया था, उसी कार तुम हमारे समीप आओ. (१) वाशीम त ऋ म तो मनी षणः सुध वान इषुम तो नष णः. व ाः थ सुरथा पृ मातरः वायुधा म तो याथना शुभम्.. (२) हे भ ण साधनयु , छु री वाले, मन वी, शोभन-धनुष के वामी, बाण वाले, तूणीर वाले, शोभन अ एवं रथ वाले म तो! तुम लोग शोभन आयुध धारण करो. हे पृ पु म तो! तुम हमारे क याण के लए आगमन करो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धूनुथ ां पवता दाशुषे वसु न वो वना जहते यामनो भया. कोपयथ पृ थव पृ मातरः शुभे य ाः पृषतीरयु वम्.. (३) हे म तो! तुम आकाश म बादल को इधर-उधर बखेरो तथा ह व दे ने वाले यजमान को धन दो. तु हारे आने के डर से वन कांपने लगते ह. हे उ एवं पृ पु म तो! वषा ारा धरती को वच लत करो. तुम अपने रथ म बुंद कय वाली घो ड़यां जोड़ते हो. (३) वात वषो म तो वष न णजो यमाइव सुस शः सुपेशसः. पश ा ा अ णा ा अरेपसः व सो म हना ौ रवोरवः.. (४) म द्गण सदा द तसंप , वषाकारक, अ नीकुमारो के समान शोभन सा य वाले, शोभन प, पीले घोड़ वाले, लाल रंग के घोड़ के वामी, पापर हत, श ुनाशक ा एवं आकाश के समान व तृत ह. (४) पु सा अ म तः सुदानव वेषस शो अनव राधसः. सुजातासो जनुषा मव सो दवो अका अमृतं नाम भे जरे.. (५) अ धक जल से यु , आभरण से सुशो भत, शोभन दानशील, द त आकृ त वाले, यर हत धन के वामी, उ म ज म वाले, ज म से ही सीने पर सोने का हार धारण करने वाले एवं पू य म द्गण वग से आकर अमृत ा त करते ह. (५) ऋ यो वो म तो अंसयोर ध सह ओजो बा ोव बलं हतम्. नृ णा शीष वायुधा रथेषु वो व ा वः ीर ध तनूषु प पशे.. (६) हे म तो! तु हारे कंध पर ऋ नामक आयुध, भुजा म श ु को परा जत करने वाला बल, शीश पर सुनहरी पग ड़यां, रथ म भां त-भां त के अ -श तथा शरीर म शोभा वराजमान है. (६) गोमद ाव थव सुवीरं च व ाधो म तो ददा नः. श तं नः कृणुत यासो भ ीय वोऽवसो दै य.. (७) हे म तो! तुम हम गाय , घोड़ , रथ, उ म संतान एवं सोने से यु म तो! हम समृ बनाओ. हम तु हारी उ म र ा ा त कर. (७)
अ दो. हे
पु
हये नरो म तो मृळता न तुवीमघासो अमृता ऋत ाः. स य ुतः कवयो युवानो बृहद् गरयो बृह माणाः.. (८) हे नेता, असी मत धन के वामी, मरणर हत, जल बरसाने वाले, स य के कारण स , मेधावी व त ण म तो! तुम ब त सी तु तय के वषय एवं अ धक वषा करने वाले हो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —५८
दे वता—म द्गण
तमु नूनं त वषीम तमेषां तुषे गणं मा तं न सीनाम्. य आ ा अमव ह त उते शरे अमृत य वराजः.. (१) आज हम म त के तेज वी, तु तयो य, अ यंत नवीन, शी गामी अ वाले, श अ धकता के कारण सब जगह प ंचने वाले, जल के वामी एवं भासंप गण क करते ह. (१)
क तु त
वेषं गणं तवसं खा दह तं धु न तं मा यनं दा तवारम्. मयोभुवो ये अ मता म ह वा व द व व तु वराधसो नॄन्.. (२) हे होता! तुम द तशाली, श संप , कंकण से सुशो भत हाथ वाले, सबको कं पत करने वाले, ानयु एवं धन दे ने वाले म त क तु त करो. सुख दे ने वाले, असी मत ऐ यसंप अ धक धन वाले एवं नेता म त क वंदना करो. (२) आ वो य तूदवाहासो अ वृ ये व े म तो जुन त. अयं यो अ नम तः स म एतं जुष वं कवयो युवानः.. (३) सब जगह ा त, वषा को े रत करने वाले एवं जल को ढोने वाले म त् आज हमारे पास आव. हे मेधावी एवं युवक म तो! इस व लत अ न के ारा तुम लोग स बनो. (३) यूयं राजान मय जनाय व वत ं जनयथा यज ाः. यु मदे त मु हा बा जूतो यु म सद ो म तः सुवीरः.. (४) हे य पा म त तुम यजमान को ऐसा पु दो जो श ु को प तत करने वाला व वभु नामक दे वता ारा न मत हो. हे म तो! तुमसे ा त होने वाला पु वभुजबल से श ुनाशक, श ु पर हाथ उठाने वाला, अग णत अ का वामी एवं शोभन श वाला हो. (४) अरा इवेदचरमा अहेव जाय ते अकवा महो भः. पृ ेः पु ा उपमासो र भ ाः वया म या म तः सं म म ुः.. (५) हे म तो! तुम सब रथच के अर के समान एक साथ ही उ प ए हो एवं दन के समान एक बराबर हो. पृ के पु उ कृ ह एवं तेज से उ प ए ह. ती ग त वाले म द्गण अपनी ही ेरणा से भली कार जल बरसाते ह. (५) य ाया स पृषती भर ैव ळु प व भम तो रथे भः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ोद त आपो रणते वना यवो यो वृषभः
दतु ौः.. (६)
हे म तो! जब तुम बुंद कय वाली घो ड़य ारा ख चे जाने वाले एवं मजबूत प हय वाले रथ पर बैठकर आते हो, तब जल बरसता है, वन के वृ टू ट जाते ह, सूय करण ारा न मत एवं बरसने वाला बादल नीचे क ओर मुंह करके गरजता है. (६) थ याम पृ थवी चदे षां भतव गभ व म छवो धुः. वाता ा धुयायुयु े वष वेदं च रे यासः.. (७) म त के आने से धरती उपजाऊ बनती है. जस कार प त प नी म गभ धारण करता है, उसी कार म द्गण धरती म अपना गभ रखते ह. पु म त् तेज चलने वाले घोड़ को अपने रथ के जुए म जोड़कर वषा पी पसीना उ प करते ह. (७) हये नरो म तो मृळता न तुवीमघासो अमृता ऋत ाः. स य ुतः कवयो युवानो बृहद् गरयो बृह माणाः.. (८) हे नेता, असी मत धन के वामी, मरणर हत, जल बरसाने वाले, स य के कारण स , मेधावी एवं त ण म तो! तुम ब त सी तु तय के वषय एवं अ धक वषा करने वाले हो. (८)
सू —५९
दे वता—म द्गण
वः पळ सु वताय दावनेऽचा दवे पृ थ ा ऋतं भरे. उ ते अ ा त ष त आ रजोऽनु वं भानुं थय ते अणवैः.. (१) हे म तो! ह दाता तु ह ह ा त कराने के लए भली-भां त से तु त करते ह. हे होता! तुम वग क पूजा करो एवं धरती क तु तयां बोलो. म द्गण र- र तक पानी बरसाते ह, आकाश म सव घूमते ह एवं बादल के साथ अपना तेज व तृत करते ह. (१) अमादे षां भयसा भू मरेज त नौन पूणा र त थयती. रे शो ये चतय त एम भर तमहे वदथे ये तरे नरः.. (२) म त के भय से धरती इस तरह कांपती है, जस कार सवा रय से भरी ई नाव हलती ई चलती है. म द्गण र दखाई दे ने पर भी अपनी ग त के कारण मालूम हो जाते ह. नेता म द्गण धरती-आकाश के बीच म रहकर अ धक ह पाने का य न करते ह. (२) गवा मव यसे शृ मु मं सूय न च ू रजसो वसजने. अ या इव सु व१ ारवः थान मया इव यसे चेतथा नरः.. (३) हे म तो! जस कार गाय के सर पर उ म स ग होते ह, उसी कार तुम शोभा के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
लए सर पर पगड़ी रखते हो. सूय जस कार दे खने म सहायक तेज फैलाते ह, उसी कार तुम जल बरसाते हो. हे नेता म तो! तुम अ के समान तेज चलने वाले एवं सुंदर तथा यजमान के समान य काय को जानने वाले हो. (३) को वो महा त महतामुद व क का ा म तः को ह प या. यूयं ह भू म करणं न रेजथ य र वे सु वताय दावने.. (४) हे पूजायो य म तो! तु हारी पूजा कौन कर सकता है? तुम लोग क तु तयां कौन पढ़ सकता है? तु हारे पौ ष का वणन कौन कर सकता है? जब तुम उ म जल का दान करने के लए वृ करते हो तो धरती को करण के समान कं पत बना दे ते हो. (४) अ ाइवेद षासः सब धवः शूराइव युधः ोत युयुधुः. मयाईव सुवृधो वावृधुनरः सूय य च ुः मन त वृ भः.. (५) घोड़ के समान तेज चलने वाले, तेज वी व समान बंधुता वाले म द्गण पर पर ेम करने वाले शूर के समान यु करते ह. नेता म द्गण बु शाली मानव के समान बढ़ते ह एवं वषा के ारा सूय के तेज को ढक लेते ह. (५) ते अ ये ा अक न ास उ दोऽम यमासो महसा व वावृधुः. सुजातासो जनुषा पृ मातरो दवो मया आ नो अ छा जगातन.. (६) श ु का नाश करने वाले म त म न कोई छोटा है, न बड़ा है और न म यम है. वे सभी तेज म बड़े ह. हे शोभन-ज म वाले, पृ एवं मानव हतकारी म तो! तुम अपने ज म थान आकाश से हमारे सामने भली कार आओ. (६) वयो न ये ेणीः प तुरोजसा ता दवो बृहतः सानुन प र. अ ास एषामुभये यथा व ः पवत य नभनूँरचु यवुः.. (७) हे म तो! जस तरह पं बनाकर उड़ने वाले प ी ऊंचे और वशाल पवत के ऊपर बलपूवक उड़ते ए सम त आकाश म उड़ते ह, उसी कार तुम भी उड़ते हो. यह बात दे वता और मनु य दोन ही जानते ह क तु हारे घोड़े बादल से पानी गराते ह. (७) ममातु ौर द तव तये नः सं दानु च ा उषसो यत ताम्. आचु यवु द ं कोशमेत ऋषे य म तो गृणानाः.. (८) धरती और आकाश हमारी सं या क वृ के लए वषा कर. व च दान करने वाली उषा हमारी भलाई के लए य न करे. हे ऋ ष! ये पु म द्गण तु हारी तु तयां वीकार करके आकाश से वषा नीचे गराव. (८)
सू —६०
दे वता—अ न एवं म त्
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ईळे अ नं ववसं नमो भ रह स ो व चय कृतं नः. रथै रव भरे वाजय ः द ण म तां तोममृ याम्.. (१) म यावा ऋ ष के तो ारा उ म र ा करने वाले अ न क तु त करता ं. अ न यहां आकर मेरे य कम को जान. लोग जस कार रथ क सहायता से इ छत थान पर प ंच जाते ह, उसी कार हम अ क अ भलाषा से पूण तो ारा अपना अ भमत पूरा कर. हम द णा ारा म त के समूह को बढ़ाव. (१) आ ये त थुः पृषतीसु ुतासु सुखेषु ा म तो रथेषु. वना च ा जहते न वो भया पृ थवी च े जते पवत त्.. (२) हे पु म तो! तुम बुंद कय वाली स घो ड़य ारा ख चे जाते ए एवं शोभन ार वाले रथ पर बैठते हो. हे अ धक बलसंप म तो! जब तुम रथ पर बैठते हो, तब तु हारे भय से वन, धरती एवं पवत कांपने लगते ह. (२) पवत म ह वृ ो बभाय द व सानु रेजत वने वः. य ळथ म त ऋ म त आपइव स य चो धव वे.. (३) हे म तो! जब तुम भयंकर श द करते हो, उस समय महान् व तृत पवत भी डर जाते ह एवं वग के शखर भी कांपने लगते ह. हे म तो! जब तुम हाथ म आयुध लेकर ड़ा करते हो, तब जल के समान तेज दौड़ते हो. (३) वराइवे ै वतासो हर यैर भ वधा भ त वः प प े. ये ेयांस तवसो रथेषु स ा महां स च रे तनूषु.. (४) ववाह के यो य धनी नवयुवक जस तरह सोने के गहन एवं जल म नान ारा अपने शरीर को सुंदर बनाता है, उसी तरह सव े व श शाली म द्गण रथ पर एक त होकर अपने शरीर म महान् शोभा धारण करते ह. (४) अ ये ासो अक न ास एते सं ातरो वावृधुः सौभगाय. युवा पता वपा एषां सु घा पृ ः सु दना म यः.. (५) समान श वाले म द्गण आपस म छोटे या बड़े नह ह. वे सौभा य के लए ातृ ेम के साथ बड़े ए ह. म त के पता न य युवा एवं शोभन कम वाले ह. इनक माता पृ गाय के समान हने यो य ह. ये दोन म त को क याणकारी ह . (५) य मे म तो म यमे वा य ावमे सुभगासो द व . अतो नो ा उत वा व१ या ने व ा वषो य जाम.. (६) हे म तो! तुम उ म, म यम एवं अधम वग म रहते हो. हे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु ो! इन तीन थान से
हमारे पास आओ. हे अ न! हम जो ह
तु ह द, उसे तुम जानो. (६)
अ न य म तो व वेदसो दवो वह व उ राद ध णु भः. ते म दसाना धुनयो रशादसो वामं ध यजमानाय सु वते.. (७) हे सव म तो! तुम और अ न वग के े भाग म शखर पर थत बनो. तुम हमारी तु तय एवं ह से स होकर हमारे श ु को डराओ तथा मार डालो. तुम सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को संप दो. (७) अ ने म ः शुभय ऋ व भः सोमं पब म दसानो गण भः. पावके भ व म वे भरायु भव ानर दवा केतुना सजूः.. (८) हे वै ानर अ न! तुम अपने पूववत वालासमूह से यु होकर शोभासंप , तु तयो य, समूह प म रहने वाले, प व करने वाले, उ त के ारा स करने वाले एवं द घ जीवनयु म त के साथ स बनो एवं सोमरस पओ. (८)
सू —६१
दे वता—म द्गण आ द
के ा नरः े तमा य एकएक आयय. परम याः परावतः.. (१) (१)
हे सव म नेताओ! तुम कौन हो? तुम रवत आकाश से एक-एक करके आते हो. व१ वोऽ ाः वा३ भीशवः कथं शेक कथा यय. पृ े सदो नसोयमः.. (२)
हे म तो! तु हारे घोड़े और उनक लगाम कहां है? तुम शी कैसे चल पाते हो एवं तु हारी ग त कैसी है? तु हारे घोड़ क पीठ पर जीन एवं दोन नथन म लगाम दखाई दे ती है. (२) जघने चोद एषां व स था न नरो यमुः. पु कृथे न जनयः.. (३) हे म तो! तु हारे घोड़ क जंघा पर कोड़े लगते ह. हे नेताओ! ना रयां पु को ज म दे ने के लए जस कार जांघ फैलाती ह, उसी कार तुम घोड़ को जांघ फैलाने पर ववश करते हो. (३) परा वीरास एतन मयासो भ जानयः. अ नतपो यथासथ.. (४) हे वीर! मानव हतकारी एवं शोभन ज म वाले म तो! तु हारा रंग तपे ए अ न के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समान है. (४) सन सा ं पशुमुत ग ं शतावयम्. यावा तुताय या दोव रायोपबबृहत्.. (५) जस रानी शशीयसी ने मुझ यावा लया था, वही मुझे घोड़ा, गाय एवं मेष के
ारा तुत राजा तरंत को दोन भुजा म भर प म सैकड़ कार का पशु धन द. (५)
उत वा ी शशीयसी पुंसो भव त व यसी. अदे व ादराधसः.. (६) दे व क तु त न करने वाले तथा धनदान न करने वाले पु ष से महान् है. (६)
ी शशीयसी ब त
व या जाना त जसु र व तृ य तं व का मनम्. दे व ा कृणुते मनः.. (७) जो शशीयसी थत, यासे एवं धना भलाषी को जानती है, वह अपने मन म दे व क स ता के लए दान का वचार करती है. (७) उत घा नेमो अ तुतः पुमाँ इ त ुवे प णः. स वैरदे य इ समः.. (८) तु त करने वाला म कहता ं क शशीयसी के दे व के उ े य से दान करने म सदा समान ह. (८)
त तरंत क उ चत शंसा नह
ई. वे
उत मेऽरप ुव तमम षी त यावाय वत नम्. व रो हता पु मी हाय येमतु व ाय द घयशसे.. (९) ा तयौवना एवं स च शशीयसी ने मुझ यावा को माग बताया. उसके दए ए लाल रंग के घोड़े मुझे परम यश वी एवं मेधावी पु मीढ के पास ले गए. (९) यो मे धेनूनां शतं वैदद यथा ददत्. तर तइव मंहना.. (१०) वदद के पु पु मीढ ने भी तुरंत राजा के समान ही हम सौ गाएं एवं अ य ब त सी संप यां द ह. (१०) य वह त आशु भः पब तो म दरं मधु. अ
वां स द धरे.. (११)
जो म द्गण तेज घोड़ ारा लाए गए थे, वे मदकारक सोमरस पीते ए यहां भां तभां त क तु तयां सुनते ह. (११) येषां
या ध रोदसी व ाज ते रथे वा. द व
मइवोप र.. (१२)
जन म त क शोभा से धरती और आकाश चमक उठते ह, वे रथ पर इस कार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बैठते ह, जैसे वग म सूय वराजता है. (१२) युवा स मा तो गण वेषरथो अने ः. शुभंयावा त कुतः.. (१३) वे म द्गण युवक, तेज वी रथ वाले, नदार हत, शोभनग त वाले एवं बाधाहीन ग त वाले ह. (१३) को वेद नूनमेषां य ा मद त धूतयः. ऋतजाता अरेपसः.. (१४) म त के उस थान को कौन जानता है, जहां श ु को भय से कं पत करने वाले, य के न म उ प एवं पापर हत म त् स होते ह. (१४) यूयं मत वप यवः णेतार इ था धया. ोतारो याम तषु.. (१५) हे तु त क अ भलाषा करने वाले म तो! तुम यजमान क तु त सुनकर उ ह वग दान करते हो एवं य म उनका आ ान सुनते हो. (१५) ते नो वसू न का या पु
ा रशादसः. आ य यासो ववृ न.. (१६)
हे श ुनाशक, य के पा एवं मु दतकारक धन वाले म तो! तुम लोग को मनचाहा धन दो. (१६) एतं मे तोममू य दा याय परा वह. गरो दे व रथी रव.. (१७) हे रा दे वी! तुम मेरी इस तु त को मेरे पास से रथवी त के पास ले जाओ. रथ वामी जस कार रथ पर सामान ले जाता है, उसी कार तुम इ ह प ंचाओ. (१७) उत मे वोचता द त सुतसोमे रथवीतौ. न कामो अप वे त मे.. (१८) हे रा दे वी! सोमरस नचोड़ने वाले रथवी त से तुम यह कहना क उसक पु ी के मुझ यावा का लगाव कम नह आ है. (१८)
त
एष े त रथवी तमघवा गोमतीरनु. पवते वप तः.. (१९) (१९)
वह धनवान् रथवी त गोमती के कनारे रहता है. उसका घर हमालय के समीप है.
सू —६२
दे वता— म व व ण
ऋतेन ऋतम प हतं ुवं वां सूय य य वमुच य ान्. दश शता सह त थु तदे कं दे वानां े ं वपुषामप यम्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम सूय के उस मंडल को दे खते ह जो स य प, जल से आ छा दत एवं शा त है. जहां तुम दोन क थ त है, वहां के घोड़ को तोता मु करता है. वहां एक हजार करण रहती ह एवं वही तेज वी दे व म एकमा उ म है. (१) त सु वां म ाव णा म ह वमीमा त थुषीरह भ े. व ाः प वथः वसर य धेना अनु वामेकः प वरा ववत.. (२) हे म एवं व ण! तु हारा मह व इस लए स है क उसके ारा सदा घूमने वाले सूय ने वषा ऋतु के थावर जल को हा था. तुम ग तशील सूय क सभी करण को चमक ला बनाते हो. तु हारा अकेला रथ धीरेधीरे चले. (२) अधारयतं पृ थवीमुत ां म राजाना व णा महो भः. वधयतमोषधीः प वतं गा अव वृ सृजतं जीरदानू.. (३) हे तोता को राजा बनाने वाले म एवं व ण! तुम अपने तेज से धरती-आकाश को धारण कए हो. हे शी दान करने वाले म व व ण! तुम ओष धय को व तृत करो. गाय क सं या बढ़ाओ तथा जल बरसाओ. (३) आ वाम ासः सुयुजो वह तु यतर मय उप य ववाक्. घृत य न णगनु वतते वामुप स धवः द व र त.. (४) हे म एवं व ण रथ म ठ क तरह से जुड़े ए तु हारे घोड़े तुम दोन को ढोव एवं सार थ ारा लगाम ख चने पर शी क. जल वयं तु हारे पीछे चलता है एवं तु हारी कृपा से ही पुरानी न दयां बहती ह. (४) अनु ुतामम त वध व ब ह रव यजुषा र माणा. नम व ता धृतद ा ध गत म ासाथे व णेळा व तः.. (५) हे शरीर के स तेज को बढ़ाने वाले, अ के वामी एवं श शाली म व व ण! जस कार मं से य क र ा क जाती है, उसी कार तुम य के ारा धरती क र ा करो. तुम य शाला म थत रथ पर बैठो. (५) अ वह ता सुकृते पर पा यं ासाथे व णेळा व तः. राजाना म णीयमाना सह थूणं बभृथः सह ौ.. (६) हे उदार हाथ वाले एवं य क ा यजमान क पाप से र ा करने वाले म व व ण! तुम य भू म म यजमान क र ा करते हो. तुम दोन सुशो भत एवं ोधर हत होकर संप एवं हजार खंभ वाला भवन धारण करते हो. (६) हर य न णगयो अ य थूणा व ाजते द १ ाजनीव. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भ े
े े न मता त वले वा सनेम म वो अ धग य य.. (७)
म एवं व ण का रथ सोने का बना आ है. उसके खंभे भी सोने के ह. वह आकाश म बजली के समान चमकता है. हम घृत, सोम आ द से सुशो भत य भू म म रथ के ऊपर सोमरस था पत कर. (७) हर य पमुषसो ु ावयः थूणमु दता सूय य. आ रोहथो व ण म गतमत ाथे अ द त द त च.. (८) हे म एवं व ण! तुम उषाकाल होने एवं सूय दय के प ात् अपने लोहे क क ल वाले वण न मत रथ म बैठकर चलो. तुम द त और अ द त दोन को दे खो. (८) य ं ह ं ना त वधे सुदानू अ छ ं शम भुवन य गोपा. तेन नो म ाव णाव व ं सषास तो जगीवांसः याम.. (९) हे शोभन दान वाले एवं व क र ा करने वाले म व व ण! तुम दोन अ तशय महान्, बाधार हत एवं नद ष सुख धारण करते हो. उसी सुख के ारा तुम हमारी र ा करो. हम इ छत धन को पाने वाले एवं श ु को जीतने वाले बन. (९)
सू —६३
दे वता— म व व ण
ऋत य गोपाव ध त थो रथं स यधमाणा परमे ोम न. यम म ाव णावथो युवं त मै वृ मधुम प वते दवः.. (१) हे जल के र क एवं स यधम से यु म एवं व ण! तुम व तृत आकाश म थत अपने रथ म बैठते हो. हे म व व ण! इस य म तुम जस यजमान क र ा करते हो, उसके लए आकाश से मधुर वषा होती है. (१) स ाजाव य भुवन य राजथो म ाव णा वदथे व शा. वृ वां राधो अमृत वमीमहे ावापृ थवी व चर त त यवः.. (२) हे वग को दे खने वाले म एवं व ण! तुम इस य म सुशो भत होकर संसार पर शासन करते हो. हम तुमसे धन, वषा एवं वग क ाथना करते ह. तु हारी करण धरती एवं आकाश म फैलती ह. (२) स ाजा उ ा वृषभा दव पती पृ थ ा म ाव णा वचषणी. च े भर ै प त थो रवं ां वषयथो असुर य मायया.. (३) हे परम सुशो भत, उ , जल बरसाने वाले, धरती तथा आकाश के वामी एवं सबको दे खने वाले म व व ण! तुम सुंदर मेघ के साथ हमारी तु त सुनने को आओ एवं मेघ के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
साम य से आकाश से जल बरसाओ. (३) माया वां म ाव णा द व ता सूय यो त र त च मायुधम्. तम ेण वृ ा गूहथो द व पज य सा मधुम त ईरते.. (४) हे म एवं व ण! आकाश म यह तु हारी माया है, जो शोभन प वाले तु हारे आयुध के प म तेज वी सूय वचरण करता है. तुम बादल और वषा ारा आकाश म सूय क र ा करते हो. हे बादल! तुम म एवं व ण क ेरणा से मधुर जल बरसाते हो. (४) रथं यु ते म तः शुभे सुखं शूरो न म ाव णा ग व षु. रजां स च ा व चर त त यवो दवः स ाजा पयसा न उ तम्.. (५) हे म व व ण! यु ाथ शूर के समान म द्गण जलवषा करने के लए तु हारी कृपा से सुंदर ार वाले रथ म घोड़े जोड़ते ह एवं व भ लोक म घूमते ह. हे भली कार सुशो भत म एवं व ण! तुम म त के साथ हमारे क याण के लए आकाश से वषा करो. (५) वाचं सु म ाव णा वरावत पज य ां वद त वषीमतीम्. अ ा वसत म तः सु मायया ां वषयतम णामरेपसम्.. (६) हे म व व ण! तु हारी कृपा से बादल अ का साधक, मनोहर एवं तेज वी गजन करता है. म द्गण अपनी शोभन या ा ारा बादल को ढक लेते ह. तुम म द्गण के साथ आकाश से लाल रंग क तथा दोषर हत वषा करते हो. (६) धमणा म ाव णा वप ता ता र ेथे असुर य मायया. ऋतेन व ं भुवनं व राजथः सूयमा ध थो द व च यं रथम्.. (७) हे बु संप म व व ण! तुम वषा ारा य क र ा करते हो एवं बादल क माया के कारण जल के ारा सारे संसार को सुशो भत बनाते हो. तुम ग तशील एवं पू य सूय को आकाश म धारण करो. (७)
सू —६४
दे वता— म व व ण
व णं वो रशादसमृचा म ं हवामहे. प र जेव बा ोजग वांसा वणरम्.. (१) हम इस मं ारा श ुनाशक, वग के नेता एवं बा बल से गोसमूह के समान आगे बढ़ने वाले म एवं व ण का आ ान करते ह. (१) ता बाहवा सुचेतुना
य तम मा अचते. शेव हजाय वां व ासु ासु जोगुवे.. (२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म एवं व ण! तुम दोन अपनी अ तशय बु ारा मनोयोग के साथ तु त करने वाले मुझ तोता को वां छत सुख दो. तु हारे ारा दया आ शंसनीय सुख सारी धरती पर गमन करता है. (२) य ूनम यां ग त म य यायां पथा. अ य
य य शम य हसान य स रे.. (३)
जब हम न त प से ग त ा त हो, तब हम म म का सुख हम अपने घर म मले. (३) युवा यां म ाव णोपमं धेयामृचा. य
ारा दखाए माग से चल एवं
य
ये मघोनां तोतॄणां च पूधसे.. (४)
हे म एवं व ण! तुम दोन क तु त ारा हम ऐसा धन ा त करगे, जसके कारण धन वा मय एवं तोता के घर म पधा होने लगे. (४) आ नो म सुद त भव ण सध थ आ. वे ये मघोनां सखीनां च वृधसे.. (५) ह
हे म एवं व ण! तुम शोभन द त से यु होकर हमारे य म आओ, हम धन वामी, दे ने वाले एवं तु हारे म ह. तुम हमारे घर को संप बनाओ. (५) युवं नो येषु व ण
ं बृह च बभृथः. उ णो वाजसातये कृतं राये व तये.. (६)
हे म एवं व ण! तुम अपनी तु तय के कारण हमारे लए श धारण करते हो. तुम हमारे लए अ , धन एवं क याण दान करो. (६)
एवं पया त अ
उ छ यां मे यजता दे व े शद्ग व. सुतं सोमं न ह त भरा पड् भधावतं नरा ब तावचनानसम्.. (७) हे नेता म व व ण! उषाकाल क सुंदर करण वाले ातः सवन म एवं दे वय म नचोड़े गए सोमरस के कारण स होकर तुम अपने घोड़ क सहायता से मुझ अचनाना के पास आओ. (७)
सू —६५
दे वता— म व व ण
य केत स सु तुदव ा स वीतु नः व णो य य दशतो म ो ना वनते गरः.. (१) जो शोभन कम वाला तोता दे व म े तुम दोन क तु त जानता है एवं सुंदर तुम दोन — म व व ण— जसक तु तय को वीकार करते हो, वही हम तु त के वषय म बतावे. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता ह े वचसा राजाना द घ ु मा. ता स पती ऋतावृध ऋतावाना जनेजने.. (२) शंसनीय तेज वाले, वामी, ब त र से पुकार सुनने वाले, यजमान के र क एवं य क वृ करने वाले म व व ण सभी तोता के क याण के लए घूमते ह. (२) ता वा मयानोऽवसे पूवा उप ुवे सचा. व ासः सु चेतुना वाजाँ अ भ दावने.. (३) हे पुरातन म एवं व ण! म तु हारे समीप प ंचकर अपनी र ा के लए ाथना करता .ं तुम शोभन ान वाल क तु त म उ म घोड़े एवं व वध अ पाने के लए करता ं. (३) म ो अंहो दा याय गातुं वनते. म य ह तूवतः सुम तर त वधतः.. (४) म पापी तोता को भी गृह वामी बनने का उपाय बताते ह. य द सेवक हसा करने वाला हो, तब भी म शोभन बु रखते ह. (४) वयं म याव स याम स थ तमे. अनेहस वोतयः स ा व णशेषसः.. (५) हम यजमान म क परम स र ा के अंतगत ह . हे म ! पापर हत हम तु हारे ारा र त होकर शी ही व ण को पु तु य य बन. (५) युवं म ेमं जनं यतथः सं च नयथः. मा मघोनः प र यतं मो अ माकमृषीणां गोपीथे न उ यतम्.. (६) हे म व व ण! तुम मुझ तोता के पास आकर मेरी इ छा पूरी करो. मुझ ह धारण करने वाले का तुम याग न करना एवं हम ऋ षय तथा पु को मत छोड़ना. सोमय म हमारी र ा करना. (६)
दे वता— म व व ण
सू —६६ आ च कतान सु तू दे वौ मत रशादसा. व णाय ऋतपेशसे दधीत यसे महे.. (१)
हे ानी ! तुम शोभन कम वाले एवं श ुनाशक म व व ण को पुकारो तथा जल प, अ के वामी एवं महान् व ण को ह दो. (१) ता ह
म व तं स यगसुय१ माशाते.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अध तेव मानुषं व१ण धा य दशतम्.. (२) हे म व व ण! तु हारी श असुर वना शनी एवं वरोधर हत है. तु हारा महान् बल ा त है. सूय जैसे आकाश म द खता है, वैसे ही तुम अपनी दशनीय श य म था पत करो. (२) ता वामेषे रथानामुव ग ू तमेषाम्. रातह य सु ु त दधृ तोमैमनामहे.. (३) हे रातह ऋ ष क तु तयां सुनने वाले म व व ण! हम इस लए तु हारी तु त करते ह क तुम र तक फैले माग म चलने वाले हमारे रथ क र ा के लए चलते हो. (३) अधा ह का ा युवं द य पू भर ता. न केतुना जनानां चकेथे पूतद सा.. (४) हे तु तयो य, शु बलसंप एवं मुझ चतुर य मान क तु त से च कत म व व ण! तुम अनुकूल मन से यजमान क तु त सुनते हो. (४) त तं पृ थ व बृह व एष ऋषीणाम्. यसानावरं पृ व त र त याम भः.. (५) हे धरती! हम ऋ षय क अ क अ भलाषा पूरी करने के लए तु हारे ऊपर ब त सा जल है. ग तशील म व व ण गमन ारा ब त सा जल बरसाते ह. (५) आ य ामीयच सा म वयं च सूरयः. च े ब पा ये यतेम ह वरा ये.. (६) हे र तक दे खने वाले म व व ण! हम यजमान एवं तोतागण तु हारे परम व तृत एवं ब त से आकृ करने वाले वरा य म प ंच. (६)
सू —६७
दे वता— म व व ण
ब ळ था दे व न कृतमा द या यजतं बृहत्. व ण म ायम व ष ं माशाथे.. (१) हे अ द तपु म , व ण एवं अयमा दे व! तुम वा त वक हतकारक, व तृत एवं वशाल बल धारण करते हो. (१) आ य ो न हर ययं व ण म सदथः. धतारा चषणीनां य तं सु नं रशादसा.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प म वतमान, य के लए
हे मानवर क एवं श ुनाशक म व व ण! तुम क याणकारी एवं रमणीय य भू म म जब आते हो तो हम सुख दे ते हो. (२) व े ह व वेदसो व णो म ो अयमा. ता पदे व स रे पा त म य रषः.. (३) सब कुछ जानने वाले म , व ण, एवं अयमा अपने-अपने पद के अनु प हमारे य म स म लत होते ह एवं हसक से भ क र ा करते ह. (३) ते ह स या ऋत पृश ऋतावानो जनेजने. सुनीथासः सुदानव ऽहो च यः.. (४) स यफल दे ने वाले, जलवषक एवं य के वामी म व व ण येक यजमान को स चा माग दखाते ह, शोभन दान दे ते ह एवं पापी तोता को भी वशाल धन दे ते ह. (४) को नु वां म ा तुतो व णो वा तनूनाम्. त सु वामेषते म तर य एषते म तः.. (५) हे म एवं व ण! तुम दोन म कोई तु त न करने यो य नह है. हम अ ऋ ष तु हारी शरण जाते ह. (५)
गो ो प
दे वता— म व व ण
सू —६८ वो म ाय गायत व णाय वपा गरा. म ह ावृतं बृहत्.. (१)
हे ऋ वजो! तुम र तक फैलने वाली वाणी से म और व ण क महाबली म व व ण! इस वशाल य म आओ. (१) स ाजा या घृतयोनी म दे वा दे वेषु श ता.. (२)
तु त करो. हे
ोभा व ण .
म व व ण सबके वामी, जल को ज म दे ने वाले, द तशाली एवं दे व म शंसनीय ह. (२) ता नः श ं पा थव य महो रायो द म ह वां ं दे वेषु.. (३) वे म व व ण हम पा थव एवं द व ण! तु हारा बल तु य एवं दे व म स
य. धन अ धक मा ा म दे ने म समथ ह. हे म व है. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋतमृतेन सप ते षरं द माशाते. अ हा दे वौ वधते.. (४) म व व ण जल के ारा य को स चत करते ए वृ ोहर हत म व व ण! तुम दोन बढ़ते हो. (४) वृ
यजमान को घेरते ह. हे
ावा री यापेष पती दानुम याः. बृह तं गतमाशाते.. (५)
आकाश से जल बरसाने वाले, मनचाहा फल दे ने वाले, अ के वामी एवं दाता के अनुकूल म व व ण य म आने के लए महान् रथ पर बैठते ह. (५)
सू —६९ ी रोचना व ण वावृधानावम त
त
दे वता— म व व ण त ू ी ण म धारयथो रजां स. य यानु तं र माणावजुयम्.. (१)
हे म व व ण! तुम चमकते ए तीन वग , तीन अंत र एवं तीन भूलोक को धारण करते हो एवं य यजमान के प तथा कम क सदा र ा करते हो. (१) इरावतीव ण धेनवो वां मधुम ां स धवो म .े य त थुवृषभास तसॄणां धषणानां रेतोधा व म ु तः.. (२) हे म व व ण! तु हारी आ ा से गाएं धा होती ह एवं न दयां मधुर जल दे ती ह. तु हारी कृपा से जल बरसाने वाले, जल धारण करने वाले एवं तेज वी अ न, वायु, आ द य दे व धरती, आकाश एवं वग के वामी बनते ह. (२) ातदवीम द त जोहवी म म य दन उ दता सूय य. राये म ाव णा सवतातेळे तोकाय तनयाय शं योः.. (३) हम ऋ ष ातःकाल एवं मा यं दन य के समय अ द तदे वी को बार-बार बुलाते ह. हे म व व ण! हम धन, पु -पौ , सुख एवं शां त के लए तुम दोन क तु त करते ह. (३) या धतारा रजसो रोचन योता द या द ा पा थव य. न वां दे वा अमृता आ मन त ता न म ाव णा ुवा ण.. (४) हे द , अ द तपु एवं वग तथा भूलोक को धारण करने वाले म व व ण! हम तु हारी तु त करते ह. तु हारे व ु काय को मरणर हत इं आ द दे व भी न नह कर सकते ह. (४)
सू —७०
दे वता— म व व ण
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु
णा च य यवो नूनं वां व ण. म वं स वां सुम तम्.. (१)
हे म व व ण! तुम दोन का र ा काय न य ही सबसे अ धक वशाल है. हम तु हारी सुम त ा त कर. (१) ता वां स यग
ाणेषम याम धायसे. वयं ते
ा याम.. (२)
हे ोहर हत एवं ःख से बचाने वाले म व व ण! हम तु हारे तोता भोजन हेतु अ ा त कर एवं संप बन. (२) पातं नो
ा पायु भ त ायेथां सु ा ा. तुयाम द यू तनू भः.. (३)
हे ःख से बचाने वाले म व व ण! तुम अपने र ा साधन ारा हमारी र ा करो तथा अपनी पालनश ारा हमारा पालन करो. हम अपने पु क सहायता से श ु को समा त कर. (३) मा क या त तू य ं भुजेमा तनू भः. मा शेषसा मा तनसा.. (४) हे अद्भुत कम करने वाले म व व ण! हम कसी के प व धन का भी उपभोग न कर. तु हारी कृपा से हम वयं एवं हमारे पु -पौ अ य के धन पर न पल. (४)
सू —७१
दे वता— म व व ण
आ नो ग तं रशादसा व ण म बहणा. उपेम चा म वरम्.. (१) हे श ुनाशक एवं श ु ेरक म व व ण! तुम हमारे इस अ हसक य म आओ. (१) व
य ह चेतसा व ण म राजथः. ईशाना प यतं धयः.. (२)
हे उ म ान संप म व व ण! तुम सारे जगत् के अ धकारी हो. हे वा मयो! तुम अपनी कृपा ारा हमारे कम सफल बनाओ. (२) उप नः सुतमा गतं व ण म दाशुषः. अ य सोम य पीतये.. (३) हे म व व ण! हम ह दाता
सू —७२
ारा नचोड़े गए सोम को पीने के लए आओ. (३)
दे वता— म व व ण
आ म े व णे वयं गी भजु मो अ वत्. न ब ह ष सदतं सोमपीतये.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम अ ऋ ष के समान मं कुश पर बैठ. (१)
ारा म व व ण को बुलाते ह. वे सोमरस पीने के लए
तेन थो ुव ेमा धमणा यातय जना. न ब ह ष सदतं सोमपीतये.. (२) हे म व व ण! तुम व को धारण करने वाले त के कारण अपने थान पर थत रहते हो. ऋ वज् तु हारे य कम म लगे रहते ह. तुम दोन सोमरस पीने के लए कुश पर बैठो. (२) म
नो व ण जुषेतां य म ये. न ब ह ष सदतां सोमपीतये.. (३)
हे म व व ण! तुम दोन हमारे य को अपनी इ छापू त के लए वीकार करो. तुम दोन सोमरस पीने के लए कुश पर बैठो. (३)
सू —७३
दे वता—अ नीकुमार
यद थः पराव त यदवाव य ना. य ा पु पु भुजा यद त र आ गतम्.. (१) हे अनेक य के भोगने वाले अ नीकुमारो! आज चाहे तुम रवत वग म हो, चाहे प ंचने यो य आकाश म हो और चाहे अनेक थान म हो, तुम सभी थान से यहां आओ. (१) इह या पु भूतमा पु दं सां स ब ता. वर या यामय गू वे तु व मा भुजे.. (२) हे ब त से यजमान को संतु करने वाले, अनेक य कम को धारण करने वाले, वरण करने यो य तथा अ य ारा न रोके जाने वाले अ नीकुमारो! म तु हारे समीप आता ं. म तुम दोन को अपनी र ा के लए अपने य म बुलाता ं. (२) ईमा य पुषे वपु ं रथ य येमथुः. पय या ना षा युगा म ा रजां स द यथः.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम दोन ने सूय का प तेज वी बनाने के लए अपने रथ का एक प हया थर कर लया है एवं अपनी श से मानव के काल को न त करने के लए रथ के सरे प हए के सहारे लोक म घूमते हो. (३) त षु वामेना कृतं व ा य ामनु वे. नाना जातावरेपसा सम मे ब धुमेयथुः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! जस तो ारा म तु हारी तु त करता ं, वह भली कार पूरा हो. हे अलग-अलग उ प एवं पापर हत दे वो! मुझे अ धक मा ा म अ दो. (४) आ य ां सूया रथं त घु यदं सदा. प र वाम षा वयो घृणा वर त आतपः.. (५) हे अ नीकुमारो! तु हारी प नी सूया जब तु हारे साथ शी चलने वाले रथ पर बैठती है, तब चमक ली, द त एवं फैलने वाली करण तु हारे सब ओर बखरती ह. (५) युवोर केत त नरा सु नेन चेतसा. घम य ामरेपसं नास या ना भुर य त.. (६) हे नेता अ नीकुमारो! हमारे पता अ ने आग बुझ जाने के सुख से कृत मन होकर तुम दोन क तु त क थी. तु हारे तो ारा उ ह ने उस अ न को सुखकर समझा, जो असुर ने उ ह जलाने को लगाई थी. (६) उ ो वां ककुहो य यः शृ वे यामेषु स त नः. य ां दं सो भर ना नराववत त.. (७) हे नेता अ नीकुमारो! तु हारा उ , ऊंचा, ग तशील एवं सदा घूमने वाला रथ य स है. तु हारे र ा य न ारा ही हमारे पता अ जी वत रहे थे. (७)
म
म व ऊ षु मधूयुवा ा सष प युषी. य समु ा त पषथः प वाः पृ ो भर त वाम्.. (८) हे सोमरस मलाने वाले एवं दयालु च अ नीकुमारो! हमारी मधुर रस से भगोने वाली तु त तु हारी सेवा करती है. तुम जब अंत र के पार चले जाते हो तो हमारे ारा द ह तु हारा भरण करता है. (८) स य म ा उ अ ना युवामा मयोभुवा. ता याम याम तमा याम ा मृळय मा.. (९) हे अ नीकुमारो! ाचीन लोग ने जो तु ह सुख दे ने वाला कहा है, वह स य है. तुम य म बुलाने यो य एवं सुख दे ने यो य बनो. (९) इमा ा ण वधना यां स तु श तमा. या त ाम रथाँइवावोचाम बृह मः.. (१०) ये महान् तु तयां अ नीकुमार को अ तशय सुख दे ने वाली ह . बढ़ई जस कार रथ बनाता है, उसी कार हमने ये महान् तु तयां कही ह. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —७४
दे वता—अ नीकुमार
कू ो दे वाव ना ा दवो मनावसू. त वथो वृष वसू अ वामा ववास त.. (१) हे तु त पी धन के वामी एवं कामवष अ नीकुमारो! आज तुम धरती पर होकर उस तु त समूह को सुनो, जसके ारा अ तु हारी सेवा करते ह. (१)
थत
कुह या कुह नु ुता द व दे वा नास या. क म ा यतथो जने को वां नद नां सचा.. (२) वे दे व अ नीकुमार आज कहां ह? आज वे वग म कहां नवास कर रहे ह? तुम कस यजमान के पास आते हो? कौन तु हारी तु तय का सहायक होगा? (२) कं याथः कं ह ग छथः कम छा यु ाथे रथम्. कय ा ण र यथो वयं वामु मसी ये.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम कस यजमान के त गमन करते हो, कसके पास प ंचते हो एवं कसके सामने जाने के लए रथ म घोड़े जोड़ते हो? तुम कसक तु तय से स होते हो? हम तु ह पाने क इ छा करते ह. (३) पौरं च युद ुतं पौर पौराय ज वथः. यद गृभीततातये सह मव ह पदे .. (४) हे पौर ारा तुत अ नीकुमारो! तुम जल बरसाने वाले बादल को पौर ऋ ष के पास भेजो. शूर जस कार गरजते ए सह को मार गराता है, उसी कार य काय म त पौर के नकट तुम बादल को बरसाओ. (४) यवाना जुजु षो व म कं न मु चथः. युवा यद कृथः पुनरा काममृ वे व वः.. (५) तुमने जराजीण यवन ऋ ष के शरीर से या य बुढ़ापे को इस कार अलग कर दया था, जस कार यो ा अपना कवच उतार दे ता है. जब तुमने उ ह बारा युवा बनाया तो उ ह ने वधू ारा चाहने यो य प पाया. (५) अ त ह वा मह तोता म स वां स श नू ुतं म आ गतमवो भवा जनीवसू.. (६)
ये.
हे दे व अ नीकुमारो! हम तु हारे तोता तु हारे सामने रह. हे अ यु पुकार सुनकर र ासाधन स हत आओ. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे वो! तुम हमारी
को वाम पु णामा व वे म यानाम्. को व ो व वाहसा को य ैवा जनीवसू.. (७) हे अ वामी अ नीकुमारो! आज कौन मनु य तु हारी सबसे अ धक सेवा करता है? हे ा नय ारा शरोधाय! तु ह य ारा कौन स करता है. (७) आ वां रथो रथानां ये ो या व ना. पु चद मयु तर आङ् गूषो म य वा.. (८) हे अ नीकुमारो! तु हारा रथ इस थान पर आवे. वह अ य दे व के रथ से तेज चलने वाला, हमारी हतकामना करने वाला, हमारे वरो धय का तर कार करने वाला एवं सभी यजमान म तु त का वषय है. (८) शमू षु वां मधूयुवा माकम तु चकृ तः. अवाचीना वचेतसा व भः येनेव द यतम्.. (९) हे सोमरस यु अ नीकुमारो! तु हारी बार-बार क गई तु त हम सुख दे ने वाली हो. हे व श ान वालो! तुम हमारे सामने बाज प ी के समान आओ. (९) अ ना य क ह च छु य ू ात ममं हवम्. व वी षु वां भुजः पृ च त सु वां पृचः.. (१०) हे अ नीकुमारो! तुम जहां कह भी हो, हमारी इस पुकार को सुनो. तु हारे समीप जाने के इ छु क उ म-ह तु ह ा त हो. (१०)
सू —७५
दे वता—अ नीकुमार
त यतमं रथे वृषणं वसुवाहनम्. तोता वाम नावृ षः तोमेन त भूष त मा वी मम ुतं हवम्.. (१) हे अ नीकुमारो! तु हारा तोता ऋ ष तु हारे अ तशय य, कामवष एवं धन ढोने वाले रथ को तु तय ारा सुशो भत करता है. हे मधु- व ा जानने वाले! तुम हमारी पुकार सुनो. (१) अ यायातम ना तरो व ा अहं सना. द ा हर यवतनी सुषु ना स धुवाहसा मा वी मम ुतं हवम्.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम अ य यजमान को छोड़कर हमारे पास आओ, जससे हम अपने सभी वरो धय का सदा तर कार कर सक. हे श ु का नाश करने वाले, सोने के रथ वाले, शोभन-धन के वामी एवं न दय को वा हत करने वाले अ नीकुमारो! तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मधु व ा वशारद हो. तुम हमारी पुकार सुनो. (२) आ नो र ना न ब ताव ना ग छतं युवम्. ा हर यवतनी जुषाणा वा जनीवसू मा वी मम ुतं हवम्.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम र न को धारण करते ए हमारे पास आओ. हे तु त यो य, सोने के रथ के वामी, अ पी धन से यु एवं मधु व ा जानने वाले अ नीकुमारो! तुम हमारी पुकार सुनो. (३) सु ु भो वां वृष वसू रथे वाणी या हता. उत वां ककुहो मृगः पृ ः कृणो त वापुषो मा वी मम ुतं हवम्.. (४) हे धन बरसाने वाले अ नीकुमारो! मुझ उ म तोता क वाणी पी तु त तु हारे लए बनाई गई है. तुम दोन को खोजने वाला महान् यजमान तु ह ह दान करता है. हे मधु व ा जानने वाले अ नीकुमारो! तुम मेरी पुकार सुनो. (४) बो ध मनसा र ये षरा हवन ुता. व भ यवानम ना न याथो अ या वनं मा वी मम ुतं हवम्.. (५) हे ानयु मन वाले, रथ वामी, शी ग तशील एवं आह्वान को ज द सुनने वाले अ नीकुमारो! तुम अपने घोड़े पर चढ़कर कपटर हत यवन ऋ ष के समीप प च ं े थे. हे मधु व ा जानने वाले अ नीकुमारो! तुम मेरी पुकार सुनो. (५) आ वां नरा मनोयुजोऽ ासः ु षत सवः. वयो वह तु पीतये सह सु ने भर ना मा वी मम ुतं हवम्.. (६) हे नेता अ नीकुमारो! तु हारी इ छा मा से रथ म जुड़ने वाले, व च प वाले एवं शी चलने वाले घोड़े तु ह ठाट-बाट के साथ सोमरस पीने के लए यहां लाव. हे मधु व ा जानने वाले अ नीकुमारो! तुम मेरी पुकार सुनो. (६) अ नावेह ग छतं नास या मा व वेनतम्. तर दयया प र व तयातमदा या मा वी मम ुतं हवम्.. (७) हे अ नीकुमारो! इस य म आओ. हे स य- व प वालो! तुम हमारे त अ भलाषार हत मत होना. हे अपरा जतो एवं वा मयो! तुम छपे ए थान से भी हमारे य म आओ. हे मधु व ा जानने वालो! तुम हमारी पुकार सुनो. (७) अ म य े अदा या ज रतारं शुभ पती. अव युम ना युवं गृण तमुप भूषथो मा वी मम ुतं हवम्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अपराजेय एवं जल के वामी अ नीकुमारो! तुम इस य म तु त करने वाले अव यु ऋ ष पर कृपा करो. हे मधु व ा जानने वालो! तुम हमारी पुकार सुनो. (८) अभू षा श पशुरा नरधा यृ वयः. अयो ज वां वृष वसू रथो द ावम य मा वी मम ुतं हवम्.. (९) उषाकाल हो गया है. उ वल करण वाली अ न वेद पर था पत कर द गई है. हे धन बरसाने वाले एवं श ुनाशक अ नीकुमारो! तु हारा नाशहीन रथ घोड़ से यु है. हे मधु व ा जानने वालो! तुम मेरी पुकार सुनो. (९)
सू —७६
दे वता—अ नीकुमार
आ भा य न षसामनीकमु ाणां दे वया वाचो अ थुः. अवा चा नूनं र येह यातं पी पवांसम ना घमम छ.. (१) सुखदायक अ न ातःकाल व लत होते ह. मेधावी तोता क दे वसंबंधी तु तयां गाई जाती ह. हे रथ वामी अ नीकुमारो! तुम इस य म मेरे सामने आओ एवं य को भली-भां त व तृत करो. (१) न सं कृतं ममीतो ग म ा त नूनम नोप तुतेह. दवा भ प वेऽवसाग म ा यव त दाशुषे श भ व ा.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम मेरे सु चसंप य का नाश मत करो, अ पतु तु त सुनकर इसके समीप आओ. तुम ातःकाल र ासाधन स हत आओ एवं वरो धय को समा त करके ह दाता को सुखी बनाओ. (२) उता यातं सङ् गवे ातर ो म य दन उ दता सूय य. दवा न मवसा श तमेन नेदान पी तर ना ततान.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम दोन मु त म, ातः, दोपहर के समय, अपरा काल म, रात म, दन म अथवा कसी भी सु वधाजनक समय म आकर सुख दे ने वाली र ा करो. इस समय अ नीकुमार के अ त र कोई सोमरस नह पी सकता. (३) इदं ह वां द व थानमोक इमे गृहा अ नेदं रोणम्. आ नो दवो बृहतः पवतादाद् यो यात मषमूज वह ता.. (४) हे अ नीकुमारो! यह य वेद का ाचीन थान तु हारा घर है. हे अ नीकुमारो! यह घर एवं नवास थान तु हारा ही है. तुम हमारे लए अंत र चारी बादल से जल लेकर आओ. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सम नोरवसा नूतनेन मयोभुवा सु णीती गमेम. आ नो र य वहतमोत वीराना व ा यमृता सौभगा न.. (५) हम अ नीकुमार क र ा एवं शोभन आगमन को ा त कर. हे मरणर हतो! तुम हम सब संप , संतान तथा सभी कार का सौभा य दो. (५)
सू —७७
दे वता—अ नीकुमार
ातयावाणा थमा यज वं पुरा गृ ादर षः पबातः. ात ह य म ना दधाते शंस त कवयः पूवभाजः.. (१) हे ऋ वजो! य म ातःकाल उप थत होने वाले अ नीकुमार का सबसे पहले यजन करो. वे लालची एवं दान न करने वाले रा स से पहले ही सोम पीते ह. अ नीकुमार ातःकाल ही य धारण करते ह, इस लए ाचीन ऋ षगण उनक शंसा करते थे. (१) ातयज वम ना हनोत न सायम त दे वया अजु म्. उता यो अ म जते व चावः पूवः पूव यजमानो वनीयान्.. (२) हे ऋ वजो! तुम ातःकाल ही अ नीकुमार क पूजा करो एवं उ ह ह दो. सं याकाल दया गया ह असे होता है, इस लए दे व उसे वीकार नह करते. हमसे पहले जो भी य करता है अथवा सोम से उ ह तृ त करता है, वही यजमान दे व का अ धक य होता है. (२) हर य वङ् मधुवण घृत नुः पृ ो वह ा रथो वतते वाम्. मनोजवा अ ना वातरंहा येना तयाथो रता न व ा.. (३) हे अ नीकुमारो! तु हारा सोने से मढ़ा आ, आकषक रंग वाला, जल बरसाने वाला, मन के समान शी गामी एवं वायु के स श चलने वाला रथ अ धारण करके आता है. उस रथ ारा तुम सभी गम माग को पार करते हो. (३) यो भू य ं नास या यां ववेष च न ं प वो ररते वभागे. स तोकम य पीपर छमी भरनू वभासः सद म ुतुयात्.. (४) जो यजमान य का ह वभ करते समय अ नीकुमार को अ धक अ दे ता है, वह य कम ारा अपनी संतान का पालन करता है. अ न अ व लत रहने पर सदा हसा करते ह. (४) सम नोरवसा नूतनेन मयोभुवा सु णीती गमेम. आ नो र य वहतमोत वीराना व ा यमृता सौभगा न.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम अ नीकुमार क र ा एवं शोभन आगमन को ा त कर. हे मरणर हतो! तुम हम सब सपं , संतान तथा सभी कार का सौभा य दो. (५)
सू —७८
दे वता—अ नीकुमार
अ नावेह ग छतं नास य मा व वेनतम्. हंसा वव पततमा सुताँ उप.. (१) हे अ नीकुमारो! इस य म आओ. हे नास यो! तुम हमारे त उदासीन मत बनो. हंस जस कार नमल पानी के पास आता है, उसी कार तुम हमारे सोमरस के पास आओ. (१) अ ना ह रणा वव गौरा ववानु यवसम्. हंसा वव पततमा सुताँ उप.. (२) हे अ नीकुमारो! जस कार हरण एवं गौरमृग घास तथा हंस साफ पानी के पास आते ह, उसी कार तुम हमारे सोमरस के पास आओ. (२) अ ना वा जनीवसू जुषेथां य म ये. हंसा वव पततमा सुताँ उप.. (३) हे अ ा त के लए घर दे ने वाले अ नीकुमारो! हमारी इ छा पूरी करने के लए इस य म आओ. हंस जैसे साफ पानी के पास जाते ह, वैसे ही तुम हमारे सोमरस के पास आओ. (३) अ य ामवरोह ृबीसमजोहवी ाधमानेव योषा. येन य च जवसा नूतनेनाग छतम ना श तमेन.. (४) हे अ नीकुमारो! हमारे पता अ ने तु हारी तु त क . य द ी क मनुहार क जाए तो वह प त क इ छा पूण करती है, उसी कार अ ऋ ष ने अ नदाह से छु टकारा पाया. हे अ नीकुमारो! तुम अपने सुखदायक रथ ारा बाज प ी क अ तीय चाल ारा हमारी र ा करने आओ. (४) व जही व वन पते यो नः सू य वा इव. ुतं मे अ ना हवं स तव च मु चतम्.. (५) हे लकड़ी के बने सं क! तुम ब चा ज मती नारी क यो न के समान खुल जाओ. हे अ नीकुमारो! तुम मुझ स तव ऋ ष क पुकार सुनकर इस सं क से मुझे छु ड़ाओ. (५) भीताय नाधमानाय ऋषये स तव ये. माया भर ना युवं वृ ं सं च व चाचथः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तुम भयभीत एवं ाथना करते ए स तव लए बंद सं क को खोलो. (६)
ऋ ष के छु टकारे के
यथा वातः पु क रण स म य त सवतः. एवा ते गभ एजतु नरैतु दशमा यः.. (७) स तव ऋ ष अपनी प नी से कहते ह—“हवा जस कार सरोवर के जल को सब ओर से कं पत करती है, उसी कार तु हारा दस महीने का गभ ग तशील हो.” (७) यथा वातो यथा वनं यथा समु एज त. एवा वं दशमा य सहावे ह जरायुणा.. (८) “वायु, वन एवं समु जस कार कांपते ह, उसी कार तु हारा दस मास का गभ जरायु के साथ बाहर आवे.” (८) दश मासा छशयानः कुमारो अ ध मात र. नरैतु जीवो अ तो जीवो जीव या अ ध.. (९) “माता के गभ म दस मास तक सोने वाला कुमार संपूण जीवधारी के माता के गभ से बाहर आवे.” (९)
सू —७९
प म जी वत
दे वता—उषा
महे नो अ बोधयोषो राये द व मती. यथा च ो अबोधयः स य व स वा ये सुजाते अ सूनृते.. (१) हे द तशा लनी, शोभन ज म वाली, तु त सुनकर अ दान करने वाली एवं स य यश वाली उषादे वी! हम अ धक धन पाने के लए, जैसे पहले जगाया था, वैसे ही जागृत करो. (१) या सुनीथे शौच थे ौ छो हत दवः. सा ु छ सहीय स स य व स वा ये सुजाते अ सूनृते.. (२) हे वग क पु ी उषा! तुमने शुच थ के पु सुनी थ का अंधकार भगाया था. हे श शा लनी, शोभन ज म वाली एवं अ द तु तयु उषा! तुम स य वा का अंधकार मटाओ. (२) सा नो अ ाभर सु ु छा हत दवः. यो ौ छः सहीय स स य व स वा ये सुजाते अ सूनृते.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वग क पु ी एवं धन लाने वाली उषादे वी! तुम हमारा अंधकार समा त करो. हे श शा लनी, शोभन ज म वाली एवं अ द तु तवाली उषा! तुमने व यपु स य वा का अंधकार मटाया था. (३) अ भ ये वा वभाव र तोमैगृण त व यः. मघैमघो न सु यो दाम व तः सुरातयः सुजाते अ सूनृते.. (४) हे काशवाली एवं धन वा मनी उषा! जो ऋ वज् तु तय ारा तु हारी ाथना करते ह, वे संप शाली एवं ऐ यसंप होते ह. हे शोभन-ज म वाली एवं अ द तु त वाली उषा! लोग दानशील बनने को तु ह याद करते ह. (४) य च ते गणा इमे छदय त मघ ये. प र च यो दधुददतो राधो अ यं सुजाते अ सूनृते.. (५) हे उषा! तु हारे जो भ धन ा त के लए तु हारी ाथना कर रहे ह, वे सब यर हत ह दे ने के लए हमारे अनुकूल बने ह. हे शोभन ज म वाली उषा! लोग अ पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (५) ऐषु धा वीरव श उषो मघो न सू रषु. ये नो राधां य या मघवानो अरासत सुजाते अ सूनृते.. (६) हे धन वा मनी उषा! इन यजमान तोता को वीर संतान के साथ अ दो. वे धन वामी बनकर अ य धन दगे. हे शोभन ज म वाली उषा! लोग अ पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (६) ते यो ु नं बृह श उषो मघो या वह. ये नो राधां य ा ग ा भज त सूरयः सुजाते अ सूनृते.. (७) हे धन वा मनी उषा! उस यजमान के लए उ म धन एवं पया त अ दो जो हम घोड़ और गाय के साथ धन दे ता है. हे शोभन ज म वाली उषा! लोग घोड़ा पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (७) उत नो गोमती रष आ वहा हत दवः. साकं सूय य र म भः शु ै ः शोच र च भः सुजाते अ सूनृते.. (८) हे वगपु ी उषा! तुम हमारे लए सूय करण एवं अ न क उ वल लपट के साथ गाएं और धन दो. हे शोभन-ज म वाली उषा! लोग अ पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (८) ु छा
हत दवो मा चरं तनुथा अपः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ने वा तेनं यथा रपुं तपा त सूरो अ चषा सुजाते अ सूनृते.. (९) हे वगपु ी उषा! तुम काश फैलाओ. हमारे य कम म आने म वलंब मत करो. राजा जस कार अपने श ु एवं चोर को ःखी करता है, उसी कार सूय तु ह ताप न दे . हे शोभन ज म वाली उषा! लोग अ पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (९) एताव े ष वं भूयो वा दातुमह स. या तोतृ यो वभावयु छ ती न मीयसे सुजाते अ सुनृते.. (१०) हे उषा! तुम हम ा थत या अ ा थत सभी कार का धन दे सकती हो. हे द तवाली उषा! तुम तोता के लए अंधकार मटाती हो एवं उनक हसा नह करत . हे शोभन ज म वाली उषा! लोग अ पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (१०)
सू —८०
दे वता—उषा
ु ामानं बृहतीमृतेन ऋतावरीम ण सुं वभातीम्. त दे वीमुषसं वरावह त त व ासो म त भजर ते.. (१) मेधावी ऋ वज् तो ारा द तयु रथ वाली, महती, य म आदरणीया, लाल रंग वाली, अंधकारना शनी एवं सूय के आगे रहने वाली उषा दे वी क तु त करते ह. (१) एषा जनं दशता बोधय ती सुगा पथः कृ वती या य े. बृह था बृहती व म वोषा यो तय छ य े अ ाम्.. (२) दशनीया उषा सोने वाल को जगाती है एवं माग को सरल बनाती ई सूय के आगे चलती है. वशाल रथ वाली, महान् एवं व ा पनी उषा दवस से पहले ही काश फैलाती है. (२) एषा गो भर णे भयुजाना ेध ती र यम ायु च े . पथो रद ती सु वताय दे वी पु ु ता व वारा व भा त.. (३) द तशा लनी, ब त ारा आ त एवं सबके ारा अ भल षत उषादे वी रथ म लाल रंग के बैल को जोड़कर अन र धन को थायी करती है. (३) एषा ेनी भव त बहा आ व कृ वाना त वं पुर तात्. ऋत य प थाम वे त साधु जानतीव न दशो मना त.. (४) अंत र के दो भाग म थत यह उ वल उषा पूव दशा से अपना शरीर कट कर रही है. वह जगत् को अपना ान कराती ई सूय के माग पर भली कार चल रही है. यह दशा क हसा नह करती. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एषा शु ा न त वो वदानो वव नाती शये नो अ थात्. अप े षो बाधमाना तमां युषा दवो हता यो तषागात्.. (५) उषा नान करके उठ ई एवं अलंकृत नारी के समान हमारे सामने उप थत होती है. वगपु ी उषा अपने अंधकार पी श ु को समा त करती ई काश फैलाती है. (५) एषा तीची हता दवो नॄ योषेव भ ा न रणीते अ सः. ू वती दाशुषे वाया ण पुन य तयुव तः पूवथाकः.. (६) वग क पु ी उषा क याण करने वाली नारी के समान हमारे सामने अपना प कट करती है. उषा ह दाता यजमान को धन दे ती ई सदा युवती रहकर काश बखेरती है. (६)
सू —८१
दे वता—स वता
यु ते मन उत यु ते धयो व ा व य बृहतो वप तः. व हो ा दधे वयुना वदे क इ मही दे व य स वतुः प र ु तः.. (१) मेधावी लोग बु शाली, महान् एवं शंसनीय स वता दे व क आ ा से य काय म अपना मन लगाते ह. स वता होता के काय को जानते ए उ ह अपने-अपने काय म लगाते ह. स वता दे व क तु त महती है. (१) व ा पा ण त मु चते क वः ासावी ं पदे चतु पदे . व नाकम य स वता वरे योऽनु याणमुषसो व राज त.. (२) मेधावी स वता व वध प धारण करते ह एवं पशु व मानव के लए क याण क आ ा दे ते ह. े स वता दे व वग को का शत करते ह एवं उषा के उ दत होने के प ात् काश फैलाते ह. (२) य य याणम व य इ युदवा दे व य म हमानमोजसा. यः पा थवा न वममे स एतशो रजां स दे वः स वता म ह वना.. (३) अ य दे व जन स वता दे व के पीछे चलकर मह व एवं श ा त करते ह एवं जो पृ वी आ द लोक को अपनी म हमा से सी मत करके सुशो भत होते ह, वे स वता दे व शो भत होकर वराजमान ह . (३) उत या स स वत ी ण रोचनोत सूय य र म भः समु य स. उत रा ीमुभयतः परीयस उत म ो भव स दे व धम भः.. (४) हे स वता! तुम तीन काशयु लोक म जाकर सूय क करण से मलते हो एवं रात के दोन ओर चलते हो. तुम जगत् को धारण करने वाले कम ारा म बन जाते हो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उते शषे सव य वमेक इ त पूषा भव स दे व याम भः. उतेदं व ं भुवनं व रजा स यावा ते स वतः तोममानशे.. (५) हे स वता! तुम अकेले ही सब कम क अनु ा दे ते हो एवं अपनी करण ारा तुम ही पूषा बनते हो. तुम इस सम त व को धारण करके सुशो भत हो. यावा ऋ ष तु हारी तु त करता है. (५)
दे वता—स वता
सू —८२ त स वतुवृणीमहे वयं दे व य भोजनम्. े ं सवधातमं तुरं भग य धीम ह.. (१)
हम स वता दे व के उस स एवं भोगयो य धन क ाथना करते ह. हम भग नामक दे व से े , सबको धारण करने वाला एवं श ुनाशक धन ा त कर. (१) अ य ह वयश तरं स वतुः क चन न मन त वरा यम्.. (२) स वता दे व के वयं स , परम सकता. (२)
यम्. स
एवं सव य ऐ य को कोई न
नह कर
स ह र ना न दाशुषे सुवा त स वता भगः. तं भागं च मीमहे.. (३) स वता एवं भग नामक दे व ह दाता यजमान को धन दान करते ह. हम उनसे व च धन क कामना करते ह. (३) अ ा नो दे व स वतः जाव सावीः सौभगम्. परा ः व यं सुव.. (४) हे स वता दे व! आज हम पु , पौ व धन दान करो एवं ःख बढ़ाने वाली द र ता को न करो. (४) व ा न दे व स वत रता न परा सुव. य ं त आ सुव.. (५) हे स वता दे व! हमारे अमंगल को र भगाओ एवं सभी क याण को हमारे समीप लाओ. (५) अनागसो अ दतये दे व य स वतुः सवे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ा वामा न धीम ह.. (६) हम य क ा स वता दे व क आ ा म रहकर अ द त दे वी के सम त धन को धारण कर. (६)
त अपराधहीन रह एवं
आ व दे वं स प त सू ै र ा वृणीमहे. स यसवं स वतारम्.. (७) हम य क ा आज सब दे व के स वता दे व क सेवा करते ह. (७)
त न ध, स जन के पालक एवं स य के शासक
य इमे उभे अहनी पुर ए य यु छन्. वाधीदवः स वता.. (८) शोभन-कम वाले स वता दे व चलते ह. (८) य इमा व ा जाता या ावय त च सुवा त स वता.. (९)
मादर हत होकर रात और दन दोन के आगे-आगे ोकेन.
स वता दे व सभी ा णय को अपनी तु त सुनाते ह एवं उ ह ेरणा दे ते ह. (९)
सू —८३
दे वता—पज य
अ छा वद तवसं गी भरा भः तु ह पज यं नमसा ववास. क न दद्वृषभो जीरदानू रेतो दधा योषधीषु गभम्.. (१) हे तोता! सामने जाकर बलवान् पज य को अपना अ भ ाय ठ क से बताओ, तु त वचन से उनक शंसा करो एवं ह अ ारा उनक सेवा करो. गजन श द करने वाले, वषाकारक एवं शी दान करने वाले पज य ओष धय म गभ धारण करते ह. (१) व वृ ान् ह युत ह त र सो व ं बभाय भुवनं महावधात्. उतानागा ईषते वृ यावतो य पज यः तनयन् ह त कृतः.. (२) पज य वृ और रा स का नाश करते ह. सारा संसार इनके महान् वध से डरता है. वषा करने वाले पज य जब गजन करते ए क मय का नाश करते ह तो पापर हत लोग भी इनके डर से भागते ह. (२) रथीव कशया ाँ अ भ प ा व ता कृणुते व या३ अह. रा संह य तनथा उद रते य पज यः कृणुते व य१ नभः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रथी यो ा जस कार कोड़े से घोड़ को मारता आ यो ा को कट करता है, उसी कार पज य बरसने वाले बादल को कट करते ह. पज य जब आकाश को वषा से यु करते ह, तब उनका गजन सह के समान र से उ प होता है. (३) वाता वा त पतय त व ुत उदोषधी जहते प वते वः. इरा व मै भुवनाय जायते य पज यः पृ थव रेतसाव त.. (४) जब पज य वषा के जल से धरती क र ा करते ह, तब हवाएं जोर से चलती ह, बज लयां गरती ह, ओष धयां उगती ह एवं आकाश टपकने लगता है. उस समय धरती सारे जगत् का क याण करने वाली बनती है. (४) य य ते पृ थवी न मी त य य ते शफव जभुरी त. य य त ओषधी व पाः सः नः पज य म ह शम य छ.. (५) वे पज य हम महान् सुख द. जनके कम से पृ वी बार-बार झुकती है, खुर वाले पशु पाले जाते ह एवं ओष धयां नाना प धारण करती ह. (५) दवो नो वृ म तो ररी वं प वत वृ णो अ य धाराः. अवाङे तेन तन य नुने पो न ष च सुरः पता नः.. (६) हे म तो! आकाश से हमारे लए वषा करो एवं ापक मेघ क धाराएं नीचे गराओ. हे पज य! जल बरसाते ए तुम इस गरजने वाले बादल के साथ हमारे सामने आओ. पज यदे व जल बरसाते ए भी हमारे पालक ह. (६) अ भ द तनय गभमा धा उद वता प र द या रथेन. त सु कष व षतं य चं समा भव तू तो नपादाः.. (७) हे पज य! श द एवं गजन करो, ओष धय म गभ पी जल धारण करो, जलयु रथ ारा सब ओर जाओ एवं चमड़े क मशक के समान बंधे ए मेघ को नीचे क ओर खोलो, जससे ऊंचे-नीचे थान बराबर हो जाव. (७) महा तं कोशमुदचा न ष च यद तां कु या व षताः पुर तात्. घृतेन ावापृ थवी ु ध सु पाणं भव व या यः.. (८) हे पज य! तुम जल के कोश प मेघ को ऊपर ले जाकर नीचे क ओर बरसाओ. न दयां जल से भरकर पूव क ओर बह. धरती-आकाश को जल से गीला बनाओ. गाय के लए भली कार पीने यो य जल हो जाए. (८) य पज य क न द तनयन् हं स कृतः. तीदं व ं मोदते य कं च पृ थ ाम ध.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे पज य! जब तुम गजन करते ए पापी मेघ को न करते हो, उस समय यह सारा संसार स होता है तथा जगत् क सब व तुएं मु दत होती ह. (९) अवष वषमु षू गृभायाकध वा य येतवा उ. अजीजन ओषधीभ जनाय कमुत जा योऽ वदो मनीषाम्.. (१०) हे पज य! तुमने जल बरसाया. अब जल रोक लो. तुमने सूखे थान को जलपूण कर दया है, ज ह बचाकर चलना पड़ता है. तुमने जा के भोजन के लए ओष धयां एवं जल उ प कया, इस कारण तु ह उनक तु तयां ा त . (१०)
दे वता—पृ वी
सू —८४ ब ळ था पवतानां ख ं बभ ष पृ थ व. या भू म व व त म ा जनो ष म ह न.. (१) हे महती एवं श करती हो. (१)
शा लनी पृ वी! तुम सभी ा णय को स करती हो एवं धारण
तोमास वा वचा र ण त ोभ य ु भः. या वाजं न हेष तं पे म य यजु न.. (२) हे वचरण करने वाली पृ वी! तोता ग तशील तो से तु हारी शंसा करते ह. हे ेतरंग वाली! तुम घोड़े के समान गरजने वाले बादल को र फकती हो. (२) हा च ा वन पती मया दध य जसा. य े अ य व ुतो दवो वष त वृ यः.. (३) हे पृ वी! तु हारे बादल जब चमकते ए जल बरसाते ह, तब तुम अपनी श वन प तय को धारण करती हो. (३)
सू —८५
ारा
दे वता—व ण
स ाजे बृहदचा गभीरं यं व णाय ुताय. व यो जघान श मतेव चम प तरे पृ थव सूयाय.. (१) हे अ ! तुम भली कार राजमान, सव स व उप व न करने वाले व ण के त गंभीर एवं य वचन बोलो. कसाई जस कार मरे ए पशु का चमड़ा फैलाता है, उसी कार व ण सूय के मण हेतु अंत र को व तृत करते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वनेषु १ त र ं ततान वाजमव सु पय उ यासु. सु तुं व णो अ व१ नं द व सूयमदधा सोमम ौ.. (२) व ण ने वन के ऊपर अंत र को फैलाया है. वे घोड़ म बल, गाय म ध, दय म य काय का संक प, जल म अ न, वग म सूय एवं पवत पर सोमलता का व तार करते ह. (२) नीचीनबारं व णः कव धं ससज रोदसी अ त र म्. तेन व य भुवन य राजा यवं न वृ ुन भूम.. (३) व ण धरती, वग और अंत र के क याण के लए मेघ के नीचे क ओर जल नकलने का माग बनाते ह. वषा जैसे जौ आ द अ को गीला करती है, उसी कार व के राजा व ण धरती को गीला करते ह. (३) उन भू म पृ थवीमुत ां यदा धं व णो व दत्. सम ेण वसत पवतास त वषीय तः थय त वीराः.. (४) व ण जब वषा पी ध क अ भलाषा करते ह तो वे धरती, अंत र एवं वग को गीला करते ह. पवत बादल ारा घेर लए जाते ह एवं श शाली म त् बादल को श थल करते ह. (४) इमामू वासुर य ुत य मह मायां व ण य वोचम्. मानेनेव त थवाँ अ त र े व यो ममे पृ थव सूयण.. (५) हम व ण क असुरघा तनी माया का वणन करते ह. व ण ने अंत र म रहकर सूय के ारा धरती-आकाश को इस कार नापा है, जैसे कोई डंडे से नापता है. (५) इमामू नु क वतम य मायां मह दे व य न करा दधष. एकं य द्ना न पृण येनीरा स च तीरवनयः समु म्.. (६) अ यंत मेधावी व णदे व क तु त का कोई वरोध नह कर सकता. जलपूण अनेक न दयां अकेले सागर को नह भर पात . (६) अय यं व ण म यं वा सखायं वा सद मद् ातरं वा. वेशं वा न यं व णारणं वा य सीमाग कृमा श थ तत्.. (७) हे व ण! दान दे ने वाले, म , सखा, अपराध को न करो. (७) कतवासो य
ाता, पड़ोसी एवं गूंगे के
रपुन द व य ा घा स यमुत य
व .
******ebook converter DEMO Watermarks*******
त कए गए हमारे
सवा ता व य श थरेव दे वाधा ते याम व ण
यासः.. (८)
हे व ण! बेईमान जुआरी जस कार जानबूझ कर अपराध करता है, उसी कार हमने जानकर या अनजाने म जो पाप कया है, उसे तुम पके फल के समान हमसे र करो. हे व ण! हम तु हारे य बन. (८)
दे वता—इं व अ न
सू —८६ इ ा नी यमवथ उभा वाजेषु म यम्. हा च स भेद त ु ना वाणी रव
तः.. (१)
हे इं एवं अ न! सं ाम म तु हारे ारा र त लोग उसी कार श ु के सुर त धन का नाश करते ह, जस कार व ान् अपने वरोधी के तक को काटता है. (१) या पृतनासु रा या वाजेषु वा या. या प च चषणीरभी ा नी ता हवामहे.. (२) जो यु म हराए नह जा सकते, जो यु म शंसा के पा ह एवं जो पांच वण क र ा करते ह, उन इं एवं अ न क हम तु त करते ह. (२) तयो रदमव छं व त मा द ु मघोनोः. त णा गभ योगवां वृ न एषते.. (३) श ुपराभवकारी बलयु इं एवं अ न जब एक रथ म बैठकर गाय को चुराने वाले वृ का नाश करने हेतु चलते ह तब उन धन वा मय के हाथ म तेज धार वाला एवं चमक ला व होता है. (३) ता वामेषे रथाना म ा नी हवामहे. पती तुर य राधसो व ांसा गवण तमा.. (४) हम वेग के वामी, दान के अ धप त, सब कुछ जानने वाले तथा तु तय ारा अ तशय शंसनीय इं व अ न क तु त इस लए करते ह क वे यु म हमारे रथ को आगे बढ़ाव. (४) ता वृध तावनु ू मताय दे वावदभा. अह ता च पुरो दधऽशेव दे वाववते.. (५) हे मनु य के समान सदा बढ़ने वाले तेज वी एवं पू य इं व अ न दे व! हम अ पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवे ा न यामहा व ह ं शू यं घृतं न पूतम भः. ता सू रषु वो बृह य गृण सु दधृत मषं गृण सु दधृतम्.. (६) हे इं एवं अ न! तु हारे लए प थर ारा पीस कर नचोड़े गए सोमरस के समान ह दया गया है. तुम ानीजन के लए महान् अ तथा तु तक ा को पया त अ दो. (६)
सू —८७
दे वता—म द्गण
वो महे मतयो य तु व णवे म वते ग रजा एवयाम त्. शधाय य यवे सुखादये तवसे भ द द ये धु न ताय शवसे.. (१) एवयाम त् नामक ऋ ष क तु तयां म त के वामी एवं श शाली, अ तशय य पा , शोभन आभरण वाले, तेज वी, तु त-अ भलाषी एवं शी गामी म त के पास जाव. (१) ये जाता म हना ये च नु वयं व ना ुवत एवयाम त्. वा त ो म तो नाधृषे शवो दाना म ा तदे षामधृ ासो ना यः.. (२) एवयाम त् ऋ ष महान् व णु के साथ उ प होने वाले एवं य ान के वयं ाता म त क तु त करते ह. हे म तो! तु हारा बल कमफल दे ने वाला एवं अपराजेय है. तुम पवत के समान थर हो. (२) ये दवो बृहतः शृ वरे गरा सुशु वानः सु व एवयाम त्. न येषा मरी सध थ ई आँ अ नयो न व व ुतः प ासो धुनीनाम्.. (३) एवयाम त् ने तु तय ारा उन म त क उपासना क जो व तृत वग से उपासक क पुकार सुनते ह, द त एवं शोभन ह, ज ह अपने थान से नकालने म कोई समथ नह है तथा अपने आप का शत होने वाली न दय को जो वाहशील बनाते ह. (३) स च मे महतो न मः समान मा सदस एवयाम त्. यदायु मना वाद ध णु भ व पधसो वमहसो जगा त शेवृधो नृ भः.. (४) वशाल ग त वाले म द्गण व तृत एवं साधारण अंत र से नकले ह. एवयाम त् उनसे आने क ाथना करते ह. म त् जब अपने आप चलने वाले घोड़े रथ म जोड़ते ह, तब वे अ तीय, व श बलयु एवं सुख बढ़ाने वाले जान पड़ते ह. (४) वनो न वोऽमवा ज े यद्वृषा वेषो य य त वष एवयाम त्. येना सह त ऋ त वरो चषः थार मानो हर ययाः वायुधास इ मणः.. (५) हे वाधीन तेजयु , थर र मय वाले, सोने के गहन वाले, शोभन आयुधधारी एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ त वामी म तो! तु हारा श शाली, जल बरसाने वाला, तेज वी, ग तशील, बढ़ा आ एवं श ु को परा जत करने वाला श द एवयाम त् को कं पत न करे. (५) अपारो वो म हमा वृ शवस वेषं शवोऽव वेवयाम त्. थातारो ह सतौ सं श थन ते न उ यता नदः शुशु वांसो ना नयः.. (६) हे अपार म हमा वाले एवं अ तशय श शाली म तो! तु हारा बल एवयाम त् क र ा करे. नयमब य का ान कराने म तु ह समथ हो एवं अ न के समान व लत हो. तुम श ु से हमारी र ा करो. (६) ते ासः सुमखा अ नयो यथा तु व ु ना अव वेवयाम त्. द घ पृथु प थे स पा थवं येषाम मे वा महः शधा य तैनसाम्.. (७) वे पु एवं अ न के समान शोभन य वाले म त् एवयाम त् क र ा कर, जनके कारण अंत र पी द घ एवं व तृत गृह स आ है एवं जन पापर हत म त क ग त म महान् बल है. (७) अ े षो नो म तो गातुमेतन ोता हवं ज रतुरेवयाम त्. व णोमहः सम यवो युयोतन म यो३ न दं सनाप े षां स सनुतः.. (८) हे े षर हत म तो! तुम तोता एवं एवयाम त् के ग तशील तो को सुनने हेतु आओ और उसे सुनो. हे व णु के साथ य भाग पाने वाले म तो! यो ा जस कार श ु को भगाता है, उसी कार तुम हमारे मन म छपे पाप को र करो. (८) ग ता नो य ं य याः सुश म ोता हवमर एवयाम त्. ये ासो न पवतासो ोम न यूयं त य चेतसः यात धतवो नदः.. (९) हे य पा म तो! तुम हमारे य को पूण करने हेतु यहां आओ. हे व नर हत म तो! तुम एवयाम त् क पुकार सुनो. हे उ म धन संप म तो! तुम अ यंत वशाल पवत के समान अंत र म रहकर नदक को वश म करो. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ष म मंडल सू —१
दे वता—अ न
वं ने थमो मनोता या धयो अभवो द म होता. वं स वृष कृणो रीतु संहो व मै सहसे सह यै.. (१) हे अ न! तु ह दे व म े हो. उनका मन तुमसे संब है. हे दशनीय! तुम ही इस य म दे व को बुलाने वाले हो. हे कामवष ! सभी श ु को परा जत करने के लए तुम हम अ तीय श दो. (१) अधा होता यसीदो यजीया नळ पद इषय ी ः सन्. तं वा नरः थमं दे वय तो महो राये चतय तो अनु मन्.. (२) हे अ तशय य पा व होता अ न! तुम ह हण करके शंसनीय बनते ए य वेद पर बैठो. दे व बनने क कामना करते ए ऋ वज् आ द वशाल धन पाने के लए तुझ दे वो म अ न का अनुगमन करते ह. (२) वृतेव य तं ब भवस ३ ै वे र य जागृवांसो अनु मन्. श तम नं दशतं बृह तं वपाव तं व हा द दवांसम्.. (३) हे द तशाली, दशनीय, महान्, ह के वामी, सभी काल म काशयु एवं वसु के माग से गमन करने वाले अ न! धन के अ भलाषी यजमान तु हारा अनुगमन करते ह. (३) पदं दे व य नमसा तः व यवः व आप मृ म्. नामा न च धरे य या न भ ायां ते रणय त स ौ.. (४) अ चाहने वाले यजमान तु तय के साथ अ न के थान म जाकर सर ारा बाधार हत धन पाते ह. हे अ न! तु हारा दशन हो जाने पर वे तु हारी तु तय म आनंद पाते ह एवं तु हारे य संबंधी नाम को बोलते ह. (४) वां वध त तयः पृ थ ां वां राय उभयासो जनानाम्. वं ाता तरणे चे यो भूः पता माता सद म मानुषाणाम्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! ऋ वज् आ द तु ह वेद पर व लत करते ह. इसके कारण उनका पशुधन एवं पशु से अ त र धन बढ़ता है. हे ःख वनाशक अ न! तुम तु त सुनकर मनु य के र क एवं माता- पता बन जाते हो. (५) सपय यः स यो व व१ नह ता म ो न षसादा यजीयान्. तं वा वयं दम आ द दवांसमुप ुबाधो नमसा सदे म.. (६) पू य, य, जा का होम पूण करने वाले, आनंद द एवं अ तशय य पा अ न य वेद पर बैठते ह. हे य शाला म व लत अ न! हम घुटने झुकाकर तो बोलते ए तु हारे पास बैठ. (६) तं वा वयं सु यो३ न म ने सु नायव ईमहे दे वय तः. वं वशो अनयो द ानो दवो अ ने बृहता रोचनेन.. (७) हे तु त-यो य अ न! शोभन दयसंप सुख के इ छु क एवं दे वा भलाषी हम लोग तु हारी तु त करते ह. हे तेज वी अ न! तुम महान् द त से का शत होकर हम तोता को वग प ंचाओ. (७) वशां क व व प त श तीनां नतोशनं वृषभं चषणीनाम्. ेतीष ण मषय तं पावकं राजतम नं यजतं रयीणाम्.. (८) हम लोग यजमाना द न य जा के वामी, ांतदश , श ुनाशक, कामना पूण करने वाले, तोता के गंत , अ के नमाता एवं द तयु अ न क तु त धन पाने के लए करते ह. (८) सो अ न ईजे शशमे च मत य त आनट् स मधा ह दा तम्. य आ त प र वेदा नमो भ व े स वामा दधते वोतः.. (९) हे अ न! जो यजमान तु हारा य करता है, तु हारी तु त करता है, स मधा के साथ तु ह ह दे ता है, तु तय के साथ तु ह आ त दे ता है, वह तु हारे ारा र त होकर सभी संप यां ा त करता है. (९) अ मा उ ते म ह महे वधेम नमो भर ने स मधोत ह ैः. वेद सूनो सहसो गी भ थैरा ते भ ायां सुमतौ यतेम.. (१०) हे महान् अ न! हम तु तय , स मधा एवं ह ारा तु हारी ब त सेवा करते ह. हे बलपु अ न! हम तो एवं तु तवचन ारा वेद पर तु हारी सेवा करते ह तथा तु हारा क याणकारी अनु ह पाने का य न करते ह. (१०) आ य तत थ रोदसी व भासा वो भ
व य१ त
ः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बृह
वाजैः थ वरे भर मे रेव
र ने वतरं व भा ह.. (११)
हे अ न! तुमने अपनी द त से धरती-आकाश को का शत कया है. तुम तु तयां सुनकर र ा करते हो. तुम महान् अ एवं चुर धन के साथ हमारे समीप व लत बनो. (११) नृव सो सद म े मे भू र तोकाय तनयाय प ः. पूव रषो बृहतीरारेअघा अ मे भ ा सौ वसा न स तु.. (१२) हे धन वामी अ न! हम सेवक स हत धन एवं हमारे पु -पौ कामपूरक व पापर हत पया त अ एवं क याणकारी सौभा य दो. (१२) पु पु
को पशु दो. हम
य ने पु धा वाया वसू न राज वसुता ते अ याम्. ण ह वे पु वार स य ने वसु वधते राज न वे.. (१३)
हे धनयु एवं तेज वी अ न! हम तुमसे अनेक कार क संप अ न! हम तुमसे ब त से धन पाव. (१३)
सू —२
ा त कर. हे सव य
दे वता—अ न
वं ह ैतव शोऽ ने म ो न प यसे. वं वचषणे वो वसो पु न पु य स.. (१) हे अ न! तुम सूखी लक ड़य से यु ह पर म के समान टू टते हो. हे सबको वशेष प से दे खने वाले एवं धन वामी अ न! हमारे अ और पु को बढ़ाओ. (१) वां ह मा चषणयो य े भग भरीळते. वां वाजी या यवृको रज तू व चष णः.. (२) हे अ न! जाजन य साधन, इ एवं तु तय ारा तु हारी सेवा करते ह. हसक से सुर त, वषा पी जल के ेरक एवं सव ा सूय तु हारे समीप जाते ह. (२) सजोष वा दवो नरो य य केतु म धते. य य मानुषो जनः सु नायुजु े अ वरे.. (३) हे य का संकेत करने वाले अ न! पर पर ेम रखने वाले ऋ वज् तु ह करते ह. मनु के वंशज यजमान सुख पाने क इ छा से तु ह य म बुलाते ह. (३) ऋध ते सुदानवे धया मतः शशमते. ऊती ष बृहतो दवो षो अंहो न तर त.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व लत
हे शोभनदानशील अ न! जो मरणधमा यजमान य क ा बनकर तु हारी तु त करता है, वह संप शाली बने. हे द त एवं महान् अ न! तु हारे ारा र त यजमान भयानक पाप के समान श ु पर आ मण करता है. (४) स मधा य त आ त न श त म य नशत्. वयाव तं स पु य त यम ने शतायुषम्.. (५) हे अ न! जो मनु य हमारी मं यु आ त को स मधा सौ वष तक पु -पौ यु गृह को पाता है. (५)
ारा व तृत करता है, वह
वेष ते धूम ऋ व त द व ष छु आततः. सूरो न ह ुता वं कृपा पावक रोचसे.. (६) हे द तशाली अ न! तु हारा नमल धुआं अंत र म व तृत होकर बादल के प म चलता है. हे प व क ा अ न! तुम तु तयां सुनकर सूय के समान द त यु होते हो. (६) अधा ह व वी ोऽ स यो नो अ त थः. र वः पुरीव जूयः सूनुन यया यः.. (७) हे जा म तु य अ न! तुम हम अ त थतु य य, नगर म वतमान हतसाधक के समान रमणीय एवं पु के समान पालन करने यो य हो. (७) वा ह ोणे अ यसेऽ ने वाजी न कृ ः. प र मेव वधा गयोऽ यो न ायः शशुः.. (८) हे अ न! मंथन प काय से तु हारा अर ण म होना मालूम होता है. घोड़ा जस कार सवार को ढोता है, उसी कार तुम ह वहन करो. हे वायुतु य सव गामी अ न! तुम अ एवं घर दे ते हो. तुम उ प होते ही घोड़े के समान टे ढ़े चलते हो. (८) वं या चद युता ने पशुन यवसे. धामा ह य े अजर वना वृ त श वसः.. (९) हे अ न! तुम मजबूत लक ड़य को घास खाने वाले घोड़े के समान भ ण करते हो. हे जरार हत एवं द त अ न! तु हारी वालाएं वन को न कर दे ती ह. (९) वे ष वरीयताम ने होता दमे वशाम्. समृधो व पते कृणु जुष व ह म रः.. (१०) हे अ न! तुम य क अ भलाषा करने वाले लोग के घर म य के होता के प म वेश करते हो. हे जापालक, हम समृ करो. हे अंगार प अ न! हमारा ह वीकार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करो. (१०) अ छा नो म महो दे व दे वान ने वोचः सुम त रोद योः. वी ह व तं सु त दवो नॄ षो अंहां स रता तरेमा ता तरेम तवावसा तरेम.. (११) हे अनुकूल द त वाले एवं धरती-आकाश म वतमान अ न दे व! तुम हमारी तु त दे व को भली कार बताओ. हम तोता को शोभन गृह के साथ सुख दो. हम श ु को न करके पाप के पार जाव. तु हारी कृपा से हम श ु से छु टकारा पाव. (११)
सू —३
दे वता—अ न
अ ने स ष े तपा ऋतेजा उ यो तनशते दे वयु े. यं वं म ेण व णः सजोषा दे व पा स यजसा मतमंहः.. (१) हे अ न! य पालनक ा एवं य के हेतु ज म दे ने वाला यजमान चरकाल जी वत रहे एवं दे वा भलाषी बनकर तु हारी वशाल यो त धारण करे. हे अ न दे व! तुम म एवं व ण के साथ मलकर तेज ारा पाप से उसक र ा करते हो. (१) ईजे य े भः शशमे शमी भऋध ाराया नये ददाश. एवा चन तं यशसामजु नाहो मत नशते न तः.. (२) समृ धन वाले अ न को ह दे ने वाला यजमान सम त य म सफल एवं चां ायणा द त ारा शांत बनाता है, यश वी संतान से र हत नह होता तथा पाप व घमंड से र रहता है. (२) सूरो न य य श तररेपा भीमा यदे त शुचत त आ धीः. हेष वतः शु धो नायम ोः कु ा च वो वस तवनेजाः.. (३) हे सूयतु य एवं पापर हत दशन वाले अ न! तु हारी भयानक वालाएं सभी जगह जाती ह. रा म रंभाती ई गाय के समान व तृत, सबके नवास एवं वन म उ प अ न ब त कम थान म रमणीय होते ह. (३) त मं चदे म म ह वप अ य भसद ो न यमसान असा. वजेहमानः परशुन ज ां वन ावय त दा ध त्.. (४) अ न का माग ती ण एवं प परम द तशाली है. वे घोड़ के समान मुख से घास आ द भ ण करते ह. वे फरसे के समान काठ पर अपनी जीभ चलाते ह एवं सोने को गलाते ए सुनार के समान पघला दे ते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स इद तेव त धाद स य छशीत तेजोऽयसो न धाराम्. च ज तरर तय अ ोवन ष ा रघुप मजंहाः.. (५) अ न बाण फकने वाले के समान अपनी वालाएं आगे बढ़ाते ह एवं फरसे क धार के समान तेज करते ह. वे व च ग त एवं पैर सकोड़कर रात म वृ पर नवास करने वाले प ी के समान रात बताते ह. (५) स रेभो न त व त उ ाः शो चषा रारपी त म महाः. न ं य ईम षो यो दवा नॄनम य अ षो यो दवा नॄन्.. (६) अ न तु तयो य सूय के समान तेज वी करण फैलाते ह, सबके अनुकूल काश बढ़ाते ए अपने तेज से श द करते ह एवं रात म का शत होकर लोग को दन के समान अपने-अपने काम म लगा दे ते ह. तेज वी एवं मरणर हत अ न दन म दे व के त अपनी करण भेजते ह. (६) दवो न य य वधतो नवीनोद्वृषा ओषधीषु नूनोत्. घृणा न यो जसा प मना य ा रोदसी वसुना दं सुप नी.. (७) अ न द त सूय के समान करण व तृत करने वाले, कामपूरक व तेज वी ह तथा ओष धय के म य म भारी व न करते ह. द त एवं ग तशील तेज ारा चलने वाले अ न हमारे श ु को वश म करते ए धरती-आकाश को धन से पूण करते ह. (७) धायो भवा यो यु ये भरक व ु द व ो वे भः शु मैः. शध वा यो म तां तत ऋभुन वेषो रभसानो अ ौत्.. (८) जो अ न वयं रथ म जुड़ने वाले घोड़ के समान करण के साथ आगे बढ़ते ह, वे अपने तेज ारा बजली के समान चमकते ह. म त क श सी मत करने वाले, सूय के समान तेज वी एवं वेगशाली अ न का शत होते ह. (८)
सू —४
दे वता—अ न
यथा होतमनुषो दे वताता य े भः सूनो सहसो यजा स. एवा नो अ समना समानानुश न उशतो य दे वान्.. (१) हे दे व को बुलाने वाले एवं बलपु अ न! तुमने जस कार मनुवंशी यजमान के य को ह ारा पूण कया था, उसी कार आज य पा दे व को अपने समान समझकर य पूरा करो. (१) स नो वभावा च णन व तोर नव दा वे
नो धात्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ायुय अमृतो म यषूषभु द त थजातवेदाः.. (२) दन म काशक ा, सूय के समान तेज वी, जानने यो य, सबके जीवन हेत,ु मरणर हत, सदा चलने वाले, सब ा णय के ाता एवं यजमान म ातःकाल जागने वाले अ न हम वंदनीय अ द. (२) ावो न य य पनय य वं भासां स व ते सूय न शु ः. व य इनो यजरः पावकोऽ य च छ थ पू ा ण.. (३) तोता जस अ न के महान् कम क तु त करते ह, वे अ न सूय के समान उ वल ह एवं अपने तेज म छपे रहते ह. युवा एवं प व क ा अ न अपने काश से सबको ढकते ह एवं रा स तथा उनके नगर को समा त करते ह. (३) व ा ह सूनो अ य स ा च े अ नजनुषा मा म्. स वं न ऊजसन ऊज धा राजेव जेरवृके े य तः.. (४) हे बलपु अ न! तुम वंदनीय हो. अ न ह पर बैठकर वभाव से यजमान को घर एवं अ दे ते ह. हे अ दाता अ न! तुम हम अ दो, राजा के समान हमारे श ु को जीतो एवं हमारी बाधार हत य शाला म व ाम करो. (४) न त यो वारणम म वायुन रा य ये य ू न्. तुयाम य त आ दशामरातीर यो न तः पततः प र त्.. (५) अ न अपने अंधकारनाशक तेज को तीखा बनाते ह, ह को खाते ह, वायु के समान सब पर शासन करते ह एवं रात का अंधेरा मटाते ह. हे अ न! हम तु हारी कृपा से उसे जीत, जो तु ह ह नह दे ता. हम पर आ मण करने वाले श ु के पास तुम अ के समान जाकर उ ह समा त करो. (५) आ सूय न भानुम रकर ने तत थ रोदसी व भासा. च ो नय प र तमां य ः शो चषा प म ौ शजो न द यन्.. (६) हे अ न! तुम सूयदे व के समान काशपूण एवं अचनीय करण ारा धरती-आकाश को भर दे ते हो. माग म चलने वाला सूय जस कार अंधकार का नाश करता है, उसी कार अ न अंधकार को मटाते ह. (६) वां ह म तममकशोकैववृमहे म ह नः ो य ने. इ ं न वा शवसा दे वता वायुं पृण त राधसा नृतमाः.. (७) हे परम तु त यो य एवं पू यद त से यु अ न! तुम हमारी वशाल तु त सुनो! तु त करने म कुशल ऋ वज् इं के समान श संप एवं ग तशील तु ह ह ारा स ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह. (७) नू नो अ नेऽवृके भः व त वे ष रायः प थ भः प यहः. ता सू र यो गृणते रा स सु नं मदे म शत हमाः सुवीराः.. (८) हे अ न! तुम बना चोर वाले माग से हम शी क याणकारी धन के पास ले जाओ, पाप से छु ड़ाओ एवं तोता को मलने वाले सुख हम दो. हम उ म संतान पाकर सौ वष तक जी वत रह. (८)
सू —५
दे वता—अ न
वे वः सूनुं सहसो युवानम ोघवाचं म त भय व म्. य इ व त वणा न चेता व वारा ण पु वारो अ ुक्.. (१) हम बल के पु , युवक, शंसनीय वाणी ारा तु तयो य, अ तशय-त ण, उ म ान वाले, ब त ारा तुत एवं यजमान से ोह न करने वाले अ न को तु तय ारा बुलाते ह. वे तु तक ा को सव य धन दे ते ह. (१) वे वसू न पुवणीक होतद षा व तोरे ररे य यासः. ामेव व ा भुवना न य म सं सौभगा न द धरे पावके.. (२) हे अनेक वाला वाले एवं दे व को बुलाने वाले अ न! य करने यो य यजमान ह प धन तु ह रात- दन दे ते रहते ह. दे व ने धरती के समान अ न म भी सब ा णय को था पत कया है. (२) वं व ु दवः सीद आसु वा रथीरभवो वायाणाम्. अत इनो ष वधते च क वो ानुष जातवेदो वसू न.. (३) हे अ न! तुम ाचीन तथा अवाचीन जा म व श प से थत हो एवं य काय ारा लोग को रमणीय धन दे ते हो. हे जातवेद एवं ानसंप अ न! तुम इसी हेतु यजमान को धन दो. (३) यो नः सनु यो अ भदासद ने यो अ तरो म महो वनु यात्. तमजरे भवृष भ तव वै तपा त प तपसा तप वान्.. (४) हे अनुकूल द त वाले अ न! जो छपे थान म रहकर बाधा प ंचाता है अथवा समीप रहकर हमारी हसा करता है, ऐसे श ु को अपने जरार हत तेज से समा त करो. हे कामवष व अ धक तृ त अ न! तुम तेज वी हो. (४) य ते य ेन स मधा य उ थैरक भः सूनो सहसो ददाशत्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स म य वमृत चेता राया ु नेन वसा व भा त.. (५) बलपु एवं अमर अ न! य , स मधा, तो एवं वचन ारा तु हारी सेवा करने वाला यजमान मनु य के बीच उ म ानी होकर धन तथा तेज वी अ से शो भत होता है. (५) स त कृधी षत तूयम ने पृधो बाध व सहसा सह वान्. य छ यसे ु भर ो वचो भ त जुष व ज रतुघ ष म म.. (६) हे अ न! तुम जस काम के लए भेजे गए हो, उसे ज द पूरा करो. हे बलवान्! तुम बल ारा श ु को समा त करो. हे तेजयु अ न! तुम तोता क तु तयां वीकार करो. (६) अ याम तं कामम ने तवोती अ याम र य र यवः सुवीरम्. अ याम वाजम भ वाजय तोऽ याम ु नमजराजं ते.. (७) हे अ न! हम तु हारी र ा पाकर वां छत फल पाव. हे धन वामी अ न! हम उ म संतानयु धन का उपभोग कर तथा अ के इ छु क होकर अ ा त कर. हे जरार हत अ न! हम तु हारे अजर यश को पाव. (७)
सू —६
दे वता—अ न
न सा सहसः सूनुम छा य ेन गातुमव इ छमानः. वृ नं कृ णयामं श तं वीती होतारं द ं जगा त.. (१) अ का इ छु क तोता तु त यो य एवं बलपु अ न के समीप नवीन य के स हत जाता है. अ न वन न करने वाले, काले माग वाले, ेतवण, य यु , होता एवं द ह. (१) स तान त यतू रोचन था अजरे भनानद य व ः. यः पावकः पु तमः पु ण पृथू य नरनुया त भवन्.. (२) जो अ न प व करने वाले, अ तशय महान् ह एवं मोट लक ड़य को खाते ए चलते ह, वे ेतवण, श द करने वाले, अंत र म थत, जरार हत एवं बार-बार गरजने वाले म त से यु तथा अ तशय युवा ह. (२) व ते व व वातजूतासो अ ने भामासः शुचे शुचय र त. तु व ासो द ा नव वा वना वन त धृषता ज तः.. (३) हे प व अ न! तु हारी पवन े रत द त वालाएं सभी ओर चलती ई ा त होती ह तथा ब त सी लक ड़य को खाती ह. नवीन ग त वाली अ न वालाएं अपनी द त ारा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वन को जलाती ह. (३) ये ते शु ासः शुचयः शु च मः ां वप त व षतासो अ ाः. अध म त उ वया व भा त यातयमानो अ ध सानु पृ ेः.. (४) हे द तशाली अ न! तु हारी तेजपूण वालाएं धरती से घास पी बाल को मूंड़ती ह एवं व छं द घोड़ के समान इधर-उधर जाती ह. इस समय तु हारी मणशील वालाएं नाना प वाली धरती के पवत पर चढ़ती ई वशेष प से शोभा पाती ह. (४) अध ज ा पापती त वृ णो गोषुयुधो नाश नः सृजाना. शूर येव स तः ा तर ने वतुभ मो दयते वना न.. (५) जैसे चुराई गई गाय के लए लड़ने वाले इं का व बार-बार चलता था, उसी कार कामवष अ न क वालाएं नकलती ह. वीर क ढ़ता के समान अस अ न क भयानक वालाएं वन को जलाती ह. (५) आ भानुना पा थवा न यां स मह तोद य धृषता तत थ. स बाध वाप भया सहो भः पृधो वनु य वनुषो न जूव.. (६) हे अ न! तुम अपनी द त वाला से धरती के सब गंत थान पर अ धकार करो, भयंकर आप य को रोको, अपने तेज से पधा करने वाल क हसा करो एवं श ु का नाश करो. (६) स च च ं चतय तम मे च च तमं वयोधाम्. च ं र य पु वीरं बृह तं च च ा भगृणते युव व.. (७) हे व च एवं आकषक श वाले तथा आनंदकारी अ न! हम स ताकारक तु तय वाल को तुम व च , अ तीय यश दे ने वाला, अ धारण करने वाला एवं संतान से यु धन दान करो. (७)
सू —७
दे वता—वै ानर (अ न)
मूधानं दवो अर त पृ थ ा वै ानरमृत आ जातम नम्. क व स ाजम त थ जनानामास ा पा ं जनय त दे वाः.. (१) तोता ने वग के शीश तु य, धरती पर चलने वाले, सभी जन से संबं धत, य के न म उ प , मेधावी, तेज वी, यजमान के य के लए सतत गमनशील, मुख तु य एवं र क अ न को उ प कया. (१) ना भ य ानां सदनं रयीणां महामाहावम भ सं नव त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वै ानरं र यमम वराणां य
य केतुं जनय त दे वाः.. (२)
तोतागण य क ना भ, धन के नवास थान एवं महान् ह के आ य अ न क भली-भां त तु त करते ह. दे व य का नयं ण करने वाले एवं झंडे के समान य का ापन करने वाले वै ानर अ न को उ प करते ह. (२) व ो जायते वा य ने व रासो अ भमा तषाहः. वै ानर वम मासु धे ह वसू न राज पृहया या ण.. (३) हे काशयु वै ानर अ न! ह धारण करने वाला तु हारी कृपा से मेधावी बनता है एवं तु हारे वीर सेवक श ु का पराभव करते ह. तुम हम सबका अ भल षत धन दो. (३) वां व े अमृत जायमानं शशुं न दे वा अ भ सं नव ते. तव तु भरमृत वमाय वै ानर य प ोरद दे ः.. (४) हे दो अर णय से पु के समान उ प एवं मरणर हत अ न! सभी दे व तु हारी तु त करते ह. हे वै ानर! जब तुम धरती-आकाश के म य का शत होते हो, तब यजमान तु हारे य के ारा अमर पद पाते ह. (४) वै ानर तव ता न ता न महा य ने न करा दधष. य जायमानः प ो प थेऽ व दः केतुं वयुने व ाम्.. (५) हे वै ानर अ न! तु हारे स महान् काय म कोई बाधा नह डाल सकता, य क तुमने धरती-आकाश पी माता- पता क गोद म ज म लेकर दन का ान कराने वाले सूय को था पत कया. (५) वै ानर य व मता न च सा सानू न दवो अमृत य केतुना. त ये व ा भुवना ध मूध न वया इव ः स त व ुहः.. (६) वै ानर अ न के जलसूचक तेज से वग के उ च थल बने ह एवं सागर म सम त जल थत रहता है. उसीसे शाखा के समान सात न दयां नकलती ह. (६) व यो रजां य ममीत सु तुव ानरो व दवो रोचना क वः. प र यो व ा भुवना न प थेऽद धो गोपा अमृत य र ता.. (७) उ म कम वाले वै ानर अ न ने लोक को बनाया. ांतदश अ न ने वग के तेज वी न को एवं सभी ओर वतमान ा णय को बनाया. अपरा जत एवं पालनक ा अ न जल क र ा करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८
दे वता—वै ानर (अ न)
पृ य वृ णो अ ष य नू सहः नु वोचं वदथा जातवेदसः. वै ानराय म तन सी शु चः सोमइव पवते चा र नये.. (१) हम य म ा त, कामवष , तेज वी एवं जातवेद अ न क श य का वणन करते ह. वै ानर अ न के लए नवीन एवं प व तु तयां सोमरस के समान उ प होती ह. (१) स जायमानः परमे ोम न ता य न तपा अर त. १ त र म मतीत सु तुव ानरो म हना नाकम पृशत्.. (२) य ा द त का पालन करने वाले वै ानर अ न उ म थान म ज म लेकर त क र ा करते एवं अंत र को नापते ह. शोभनकमक ा वै ानर अपने तेज से वग को छू ते ह. (२) त ना ोदसी म ो अ तोऽ तवावदकृणो यो तषा तमः. व चमणीव धषणे अवतय ै ानरो व मध वृ यम्.. (३) सबके सखा एवं अद्भुत वै ानर अ न ने धरती-आकाश को वशेष प से थर कया है तथा तेज ारा अंधकार को मटाया है. उ ह ने अंत र को चमड़े के समान फैलाया है. वे सम त श य को धारण करते ह. (३) अपामुप थे म हषा अगृ णत वशो राजानमुप त थुऋ मयम्. आ तो अ नमभर व वतो वै ानरं मात र ा परावतः.. (४) अ न को महान् म त ने अंत र म धारण कया एवं मानव ने अचनीय वामी के प म उनक तु त क . वायु दे व के त के प म रवत सूयमंडल से वै ानर को लाए. (४) युगेयुगे वद यं गृण योऽ ने र य यशसं धे ह न सीम्. प ेव राज घशंसमजर नीचा न वृ व ननं न तेजसा.. (५) हे य पा अ न! समय-समय पर नवीन तु तय का उ चारण करने वाल को तुम धन एवं यश वी पु दो. हे तेज वी एवं जरार हत अ न! व जस कार वृ को गरा दे ता है, उसी कार तुम अपने तेज से श ु का नाश करो. (५) अ माकम ने मघव सु धारयाना म मजरं सुवीयम्. वयं जयेम श तनं सह णं वै ानर वाजम ने तवो त भः.. (६) हे अ न! हम ह
पी धन के वा मय को अपहरणर हत, नाशर हत एवं शोभन-वीय
******ebook converter DEMO Watermarks*******
से यु (६)
धन दो. हे वै ानर! हम तु हारी र ा पाकर सैकड़ एवं हजार
कार का अ पाव.
अद धे भ तव गोपा भ र ेऽ माकं पा ह षध थ सूरीन्. र ा च नो द षां शध अ ने वै ानर च तारीः तवानः.. (७) हे य पा एवं तीन लोक म वतमान अ न! तुम अपने अपराजेय एवं र ा करने वाले तेज ारा हम तु तक ा क र ा करो. है वै ानर! हम ह दाता के बल क र ा करो तथा तु तक ा को बढ़ाओ. (७)
सू —९
दे वता—वै ानर (अ न)
अह कृ णमहरजुनं च व वतते रजसी वे ा भः. वै ानरो जायमानो न राजावा तर यो तषा न तमां स.. (१) काली रात और उजला दन अपनी वृ य ारा धरती व आकाश को पृथक् करते ह. वै ानर अ न तेज वी के समान उ प होकर अपने काश से अंधकार का नाश करते ह. (१) नाहं त तुं न व जाना योतुं न यं वय त समरेऽतमानाः. क य व पु इह व वा न परो वदा यवरेण प ा.. (२) हम ताना-बाना नह जानते. लगातार य न करके बुने गए कपड़े से भी हम प र चत नह ह. इस लोक म रहने वाले पता का उपदे श सुनने वाला पु सरे लोक क बात कैसे कह सकता है? (२) स इ तुं स व जाना योतुं स व वा यृतुथा वदा त. य चकेतदमृत य गोपा अव र परो अ येन प यन्.. (३) वै ानर अ न ही ताने-बाने को जानते ह एवं समय-समय पर कहने यो य बात कहते ह. जल के र क एवं भूलोक म वचरण करने वाले अ न सूय प से सबको दे खते ए जगत् को जानते ह. (३) अयं होता थमः प यतेम मदं यो तरमृतं म यषु. अयं स ज े ुव आ नष ोऽम य त वा३ वधमानः.. (४) हे मनु यो! वै ानर अ न सबसे पहले होता ह. इ ह दे खो. ये मरणधमा मानव म जठरा न प से मरणर हत ह. ये अ न ुव, ापक, अ वनाशी, शरीरधारी एवं बढ़ने वाले जाने जाते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ु ं यो त न हतं शये कं मनो ज व ं पतय व तः. व व े दे वाः समनसः सकेता एकं तुम भ व य त साधु.. (५) वै ानर अ न क ुव, मन क अपे ा भी ती गा मनी एवं सुख का माग दखाने वाली यो त चलने वाले ा णय के भीतर छपी है. सभी दे व एक अ भलाषा एवं एक मत वाले होकर य के धानक ा वै ानर के सामने जाते ह. (५) व मे कणा पतयतो व च ुव ३दं यो त दय आ हतं यत्. व मे मन र त रआधीः क व या म कमु नू म न ये.. (६) वै ानर के व वध श द सुनने के लए हमारे कान, प दे खने के लए आंख व यो त को समझने के लए हमारी बु उ सुक रहती है. हमारा मन वै ानर संबंधी चता से चंचल रहता है. हम वै ानर के कस प को कह अथवा मान? (६) व े दे वा अनम य भयाना वाम ने तम स त थवांसम्. वै ानरोऽवतूतये नोऽम य ऽवतूतये नः.. (७) हे अंधकार म थत वै ानर अ न! अंधकार से डरते ए सभी दे व तु ह नम कार करते ह. मरणर हत वै ानर अपनी र ा ारा हमारी र ा कर. (७)
सू —१०
दे वता—अ न
पुरो वो म ं द ं सुवृ य त य े अ नम वरे द ध वम्. पुर उ थे भः स ह नो वभावा व वरा कर त जातवेदाः.. (१) हे ऋ वजो! तुम वतमान एवं बाधार हत य म स ताकारक द एवं दोषर हत अ न को तो पाठ करते ए अपने सामने था पत करो, य क वशेष द तशाली अ न हमारे य को शोभन बनाते ह. (१) तमु ुमः पुवणीक होतर ने अ न भमनुष इधानः. तोमं यम मै ममतेव शूषं घृतं न शु च मतयः पव ते.. (२) हे द तमान्, दे व को बुलाने वाले एवं अनेक वाला वाले अ न! तुम अ य अ नय के साथ व लत होते ए मनु य के उस तो को सुनो, जसे तोता ममता नारी के समान बोलते ह एवं घी के समान तु ह भट करते ह. (२) पीपाय स वसा म यषु यो अ नये ददाश व उ थैः. च ा भ तमू त भ शो च ज य साता गोमतो दधा त.. (३) जो मेधावी यजमान तो के समान अ न को इ दे ता है. वह अ के ारा समृ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा त करता है. व च करण वाले अ न अपने अनोखे र ासाधन गोशाला का उपभोग करने वाला बनाते ह. (३)
ारा उसे गाय से भरी
आ यः प ौ जायमान उव रे शा भासा कृ णा वा. अध ब च म ऊ याया तरः शो चषा द शे पावकः.. (४) काले माग वाले अ न ने उ प होकर अपनी र से दखने वाली यो त ारा धरतीआकाश को भर दया है. प व क ा अ न रा के महान् अंधकार को अपनी करण से समा त करते ए दखाई दे ते ह. (४) नू न ं पु वाजा भ ती अ ने र य मघव य धे ह. ये राधसा वसा चा य या सुवीय भ ा भ स त जनान्.. (५) हे अ न! हम ह प अ धा रय को र ा साधन एवं व वध अ के साथ व च धन दो. हम ऐसे पु दो जो धन, अ एवं परा म ारा सर को परा जत कर सक. (५) इमं य ं चनो धा अ न उश यं त आसानो जु ते ह व मान्. भर ाजेषु द धषे सुवृ मवीवाज य ग य य सातौ.. (६) हे अ न! ह धारी यजमान ारा बैठकर हवन कए य साधन अ को वीकार करो तथा भर ाजवंशीय ऋ षय के नद ष तो वीकार करते ए उन पर ऐसी कृपा करो, जससे वे व वध अ पा सक. (६) व े षांसीनु ह वधयेळां मदे म शत हमाः सुवीराः.. (७) हे अ न! श ु को वशेष प से न करो एवं हमारा अ बढ़ाओ. हम शोभन संतान स हत सौ वष तक स रह. (७)
सू —११
दे वता—अ न
यज व होत र षतो यजीयान ने बाधो म तां न यु . आ नो म ाव णा नास या ावा हो ाय पृ थवी ववृ याः.. (१) हे दे व को बुलाने वाले एवं उ म य क ा अ न! तुम हमारे ारा ा थत होकर इस य म श ुबाधक म त के उ े य से हवन करो तथा इस य म म , व ण, अ नीकुमार एवं धरती-आकाश को अपने साथ लाओ. (१) वं होता म तमो नो अ ुग तदवो वदथा म यषु. पावकया जु ा३ व रासा ने यज व त वं१ तव वाम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न दे व! तुम मन य म वतमान इस य म दे व को बुलाने वाले अ तशय तु तपा व हमसे ोह न रखने वाले हो. तुम शु करने वाली एवं दे वमुख पणी वाला से अपने ‘ व कृत’ नामक शरीर का यजन करो. (२) ध या च वे धषणा व दे वा म गृणते यज यै. वे प ो अ रसां य व ो मधु छ दो भन त रेभ इ ौ.. (३) हे अ न! धन का कारण बनी ई तु त तु हारी कामना करती है, य क तु हारे कारण यजमान दे व के न म य करने म समथ होता है. अं गरा े तु तक ा ह एवं मेधावी भर ाज य म छं द का उ चारण करते ह. (३) अ द ुत वपाको वभावा ने यज व रोदसी उ ची. आयुं न यं नमसा रातह ा अ त सु यसं प च जनाः.. (४) बु मान् एवं तेज वी अ न भली कार का शत होते ह. हे अ न! तुम व तृत धरती-आकाश क ह से पूजा करो. लोग जस कार अ त थ क पूजा करते ह, उसी कार यजमान ह ारा अ न को स करते ह. (४) वृ े ह य मसा ब हर नावया म ु घृतवती सुवृ ः. अ य स सदने पृ थ ा अ ा य य ः सूय न च ुः.. (५) जब ह के साथ कुश अ न के पास लाया जाता है एवं कुश पर घी से भरा नद ष ुच रखा जाता है, तब धरती पर अ न के नवास प वेद को बनाया जाता है एवं य काय सूय के काश के समान व तृत होता है. (५) दश या नः पुवणीक होतदवे भर ने अ न भ रधानः. रायः सूनो सहसो वावसाना अ त सेम वृजनं नांहः.. (६) हे अनेक वाला वाले एवं दे व को बुलाने वाले अ न! तुम अ य द त वाली अ नय के साथ व लत होकर हम धन दो. हे बलपु अ न! तु ह ह से ढकने वाले हम पाप पी श ु से र ह . (६)
सू —१२
दे वता—अ न
म ये होता रोणे ब हषो राळ न तोद य रोदसी यज यै. अयं स सूनुः सहस ऋतावा रा सूय न शो चषा ततान.. (१) दे व को बुलाने वाले तथा य के वामी अ न धरती-आकाश के न म य करने के लए यजमान के घर म थत होते ह. बल के पु एवं य स हत अ न र रहकर भी सूय के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समान अपनी करण का व तार करते ह. (१) आ य म वे वपाके यज य ाज सवतातेव नु ौः. षध थ तत षो न जंहो ह ा मघा न मानुषा यज यै.. (२) हे य के यो य एवं राजमान अ न! सभी तोता तुझ बु मान् अ न म शी य करते ह. तुम तीन लोक म थत होने के कारण मनु य के े ह को दे व के पास सूय क ती ग त से ले जाओ. (२) ते ज ा य यार तवनेराट् तोदो अ व वृधसानो अ ौत्. अ ोघो न वता चेत त म म य ऽव ओषधीषु.. (३) जन अ न क वाला परम तेज वनी होकर वन म का शत होती है, वे बढ़कर अपने माग म सूय के समान का शत होते ह एवं वायु के समान सबसे ोहर हत एवं अमर बनकर ओष धय के त वत होते ए सारे संसार का ान कराते ह. (३) सा माके भरेतरी न शूषैर नः वे दम आ जातवेदाः. व ् ो व वन् वा नाव ः पतेव जारया य य ैः.. (४) हमारे य गृह म जातवेद अ न क तु त उसी कार क जाती है, जस कार य क ा उ ह सुख दे ने वाली तु तयां बोलते ह. यजमान अ न क सेवा करते ह. अ न वृ को खाने वाले, वन का सहारा लेने वाले तथा बैल के समान शी आने वाले ह. (४) अध मा य पनय त भासो वृथा य दनुया त पृ वीम्. स ो यः प ो व षतो धवीयानृणो न तायुर त ध वा राट् .. (५) अ न जब बना य न के ही वन को जलाते ए वहां क धरती पर चलते ह तो तोता म यलोक म अ न क वाला क तु त करते ह. चोर के समान तेज और नबाध प म चलने वाले अ न म भू म म सुशो भत होते ह. (५) स वं नो अव दाया व े भर ने अ न भ रधानः. वे ष रायो व या स छु ना मदे म शत हमाः सुवीराः.. (६) हे गमनशील अ न! तुम सभी कार क अ नय के साथ व लत होकर नदा से हमारी र ा करो व हम धन दे कर श ु का नाश करो. हम शोभन संतान को पाकर सौ वष तक स रह. (६)
सू —१३
दे वता—अ न
व ा सुभग सौभगा य ने व य त व ननो न वयाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ु ी र यवाजो वृ तूय दवो वृ री
ो री तरपाम्.. (१)
हे शोभन धन वाले अ न! सभी उ म धन तुमसे उ प ए ह. जस कार वृ से शाखाएं उ प होती ह, उसी कार तुमसे पशुसमूह, यु म श ु को जीतने वाली श एवं आकाश से वषा शी उ प होती है. तुम सबके तु तयो य बनकर जल को उ प करते हो. (१) वं भगो न आ ह र न मषे प र मेव य स द मवचाः. अ ने म ो न बृहत ऋत या स ा वाम य दे व भूरेः.. (२) हे सेवा करने यो य अ न! हम रमणीय धन दो. हे दशनीय काश वाले अ न! तुम वायु के समान सब जगह फैलो. अ न दे व! तुम म के समान वशाल य साधन एवं पया त धन के दाता बनो. (२) स स प तः शवसा ह त वृ म ने व ो व पणेभ त वाजम्. यं वं चेत ऋतजात राया सजोषा न ापां हनो ष.. (३) हे उ म ानसंप व य के न म उ प अ न! तुम जल के पु व ुत् से मलकर जस को धन दे ना चाहते हो, वह स जन का र क व बु मान् होकर श ारा श ु का नाश करता है तथा प ण लोग क श छ न लेता है. (३) य ते सूनो सहसो गी भ थैय ैमत न श त वे ानट् . व ं स दे व त वारम ने ध े धा यं१ प यते वस ैः.. (४) हे बलपु अ न दे व! जो यजमान तु त वचन , तो एवं य साधन ारा य वेद म तु हारा ती ण काश प ंचाता है, वह पया त अ धारण करता है तथा संप य को पाता है. (४) ता नृ य आ सौ वसा सुवीरा ने सूनो सहसः पु यसे धाः. कृणो ष य छवसा भू त प ो वयो वृकायारये जसुरये.. (५) हे बलपु अ न! हमारे पोषण के न म तुम श ु से लाया आ शोभन अ हम संतान स हत दो. तुम पशु व धदही प जो अ दानहीन असुर से ा त करते हो वह अ धक मा ा म हम दो. (५) व ा सूनो सहसो नो वहाया अ ने तोकं तनयं वा ज नो दाः. व ा भग भर भ पू तम यां मदे म शत हमाः सुवीराः.. (६) हे बलपु एवं महान् अ न! तुम हमारे हतोपदे शक बनो तथा हम अ के साथ-साथ पु -पौ दो. हम सम त तु तय ारा अपनी कामना को ा त कर तथा सौ वष तक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ म संतान के साथ जएं. (६)
दे वता—अ न
सू —१४ अ ना यो म य वो धयं जुजोष धी त भः. भस ु ष पू इषं वुरीतावसे.. (१)
जो मनु य तु तय के साथ अ न क य कम से सेवा करता है, वह अ य लोग क अपे ा तापी बनकर अपनी संतान क र ा के लए श ु का धन ा त करता है. (१) अ नर चेता अ नवध तम ऋ षः. अ नं होतारमीळते य ेषु मनुषो वशः.. (२) अ न ही उ म ानसंप ह, वे य कम क र ा के कुशलतम क ा एवं सबके ा ह. यजमान के ऋ वज् य म अ न को दे व का बुलाने वाला बताकर तु त करते ह. (२) नाना १ नेऽवसे पध ते रायो अयः. तूव तो द युमायवो तैः सी तो अ तम्.. (३) हे अ न! श ु इ छा करते ह. श ु ह. (३)
के धन तु हारे तोता क र ा के लए एक- सरे से पहले जाने क क हसा करते ए तु हारे तोता य ारा य हीन को हराना चाहते
अ नर सामृतीषहं वीरं ददा त स प तम्. य य स त शवसः स च श वो भया.. (४) अ न तोता को करने यो य कम को करने वाला, श ु का सामना करने वाला तथा उ म कम को पूण करने वाला पु दे ते ह. उसे दे खकर उसक श से डरे ए श ु कांपने लगते ह. (४) अ न ह व ना नदो दे वो मतमु य त. सहावा य यावृतो र यवाजे ववृतः.. (५) श शाली एवं ानसंप अ न उस यजमान क नदक से र ा करते ह, जसका ह य म रा स आ द से अछू ता होता है एवं जो अ य दे व के यजमान से पृथक् होता है. (५) अ छा नो म महो दे व दे वान ने वोचः सुम त रोद योः. वी ह व तं सु त दवो नॄ षो अंहां स रता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अनुकूल द त वाले एवं धरती-आकाश म वतमान अ न दे व! तुम हमारी तु त दे व को भली कार बताओ एवं हम तोता को शोभनगृह के साथ सुख दो. हम श ु को न करके पाप के पार जाव, तु हारी कृपा से हम श ु से छु टकारा पाव. (६)
सू —१५
दे वता—अ न
इममू षु वो अ त थमुषबुधं व ासां वशां प तमृ से गरा. वेती वो जनुषा क चदा शु च य क् चद गभ यद युतम्.. (१) हे भर ाज! तुम ातःकाल जागने वाले, जा के र क, सदा ग तशील एवं वतः प व अ न को तु तय ारा भली-भां त स करो. अ न सदा ुलोक से य म आते ह एवं दोषर हत ह को खाते ह. (१) म ं न यं सु धतं भृगवो दधुवन पतावी मू वशो चषम्. स वं सु ीतो वीतह े अद्भुत श त भमहयसे दवे दवे.. (२) हे अर ण प का म सुर त, तु तयो य, ऊ वगामी वाला वाले एवं व च अ न! भृगु ने तु ह म के समान अपने घर म था पत कया. उ म तु तय ारा त दन पूजा करने वाले भर ाज के त तुम भली कार स बनो. (२) स वं द यावृको वृधो भूरयः पर या तर य त षः. रायः सूनो सहसो म य वा छ दय छ वीतह ाय स थो भर ाजाय स थः.. (३) हे बाधकर हत अ न! तुम य क ा यजमान को बढ़ाने वाले तथा रवत एवं समीपवत श ु से र ा करने वाले हो. हे बलपु अ न! तुम सवथा बढ़कर मनु य म भर ाज को धन एवं गृह दो. (३) ु ानं वो अ त थ वणरम नं होतारं मनुषः व वरम्. त व ं न ु वचसं सुवृ भह वाहमर त दे वमृ से.. (४) हे भर ाज! तुम ह वहन करने वाले, द तसंप , अपने अ त थ, वग के नेता, मनु के य म दे व को बुलाने वाले, शोभनय वाले, मेधावी, तेजपूणवाणी वाले एवं सबके वामी अ न दे व को उ म तु तय से स करो. (४) पावकया य तय या कृपा ाम ु च उषसो न भानुना. तूव याम ेतश य नू रण आ यो घृणे न ततृषाणो अजरः.. (५) जो अ न उषा के काश के समान पावक एवं ान कराने वाली द त से धरती पर वराजमान होते ह एवं सूय के व सं ाम म एतश ऋ ष क र ा ज ह ने श ु हसक वीर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के समान क थी, हे भर ाज! ऐसे सवभ क तथा सदायुवा अ न को तुम स करो. (५) अ नम नं वः स मधा व यत यं यं वो अ त थ गृणीष ण. उप वो गी भरमृतं ववासत दे वो दे वष े ु वनते ह वाय दे वो दे वेषु वनते ह नो वः.. (६) हे तोताओ! तुम अ तशय तेज वी, अ त थ के समान पू य एवं तु तयो य अ न का अ न के ही समान स मधा से वागत करो तथा मरणर हत अ न दे व के समीप जाकर सेवा करो. वे स मधाएं एवं हमारी सेवा वीकार कर लेते ह. (६) स म म नं स मधा गरा गृणे शु च पावकं पुरो अ वरे ुवम्. व ं होतारं पु वारम हं क व सु नैरीमहे जातवेदसम्.. (७) हम स मधा ारा द त अ न क तु तय ारा शंसा करते ह, सबको प व करने वाले एवं ुव अ न को हम अपने य म धारण करते ह तथा मेधावी दे व को बुलाने वाले, अनेक जन ारा वरण करने यो य, सबके अनुकूल ांतदश एवं सब ा णय को जानने वाले अ न क सुखकर तु तय ारा सेवा करते ह. (७) वां तम ने अमृतं युगेयुगे ह वाहं द धरे पायुमी म्. दे वास मतास जागृ व वभुं व प त नमसा न षे दरे.. (८) हे मरणर हत, येक काल म ह वहन करने वाले, पालक एवं तु तयो य अ न! दे व एवं मानव ने तु ह त बनाया था. उ ह ने जागरणशील ा त एवं जापालक अ न को नम कार ारा य म था पत कया था. (८) वभूष न उभयाँ अनु ता तो दे वानां रजसी समीयसे. य े धी त सुम तमावृणीमहेऽध मा न व थः शवो भव.. (९) हे अ न! तुम दे व और मानव को अलंकृत करते ए एवं य कम म दे व के त बनते ए धरती-आकाश म वचरण करते हो. हम य कम एवं शोभन तु तय से तु हारी सेवा करते ह, इस लए तुम तीन लोक म रहकर हम सुख दो. (९) तं सु तीकं सु शं व चम व ांसो व रं सपेम. स य द् व ा वयुना न व ा ह म नरमृतेषु वोचत्.. (१०) हम अ प बु वाले लोग तुझ अ तशय व ान्, शोभन अंग वाले, दे खने म सुंदर एवं उ म ग त वाले अ न क सेवा करते ह. सबको जानने वाले अ न अमर दे व को हमारा ह बताव एवं दे व का यजन कर. (१०) तम ने पा युत तं पप ष य त आनट् कवये शूर धी तम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य
य वा न श त वो द त वा त म पृण
शवसोत राया.. (११)
हे शूर एवं ांतदश अ न! तुम उस क र ा करते हो एवं अ भलाषाएं पूण करते हो, जो तु हारी तु त करता है. जो य साधन ह का सं कार करता है अथवा उसे उ म बनाता है, तुम उस को बल संप करके धन से पूण करते हो. (११) वम ने वनु यतो न पा ह वमु नः सहसाव व ात्. सं वा व म वद येतु पाथः सं र यः पृहया यः सह ी.. (१२) हे अ न! श ु से हमारी र ा करो. हे श शाली अ न! पाप से हमारी र ा करो. हमारा दोषर हत ह ा तु हारे समीप प ंचे एवं तु हारा दया आ हजार कार का धन हम मले. (१२) अ नह ता गृहप तः स राजा व ा वेद ज नमा जातवेदाः. दे वानामुत यो म यानां य ज ः स यजतामृतावा.. (१३) दे व को बुलाने वाले, गृह के वामी, द तशाली एवं सबको जानने वाले अ न सभी ज मधा रय को जानते ह. दे व एवं मानव म अ तशय य क ा एवं स यशील अ न उ म प से दे व का यजन कर. (१३) अ ने यद वशो अ वर य होतः पावकशोचे वे ् वं ह य वा. ऋता यजा स म हना व य ह ा वह य व या ते अ .. (१४) हे य संप करने वाले एवं प व काश वाले अ न! इस समय तुम यजमान के क क कामना करो. तुम दे व के य क ा हो, इस लए दे वयजन करो. हे अ तशय युवा अ न! तुम अपने मह व से सव ापक ए हो. आज तु ह जो भी ह दया जावे, उसे वहन करो. (१४) अ भ यां स सु धता न ह यो न वा दधीत रोदसी यज यै. अवा नो मघव वाजसाताव ने व ा न रता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम.. (१५) हे अ न! वेद पर भली-भां त रखे ह व प अ को दे खो. धरती-आकाश म य करने के न म तु हारी थापना क गई है. हे धन वामी अ न! अ न म क यु म हमारी र ा करो. तु हारे ारा सुर त होकर हम सभी पाप से छू ट जाव. (१५) अ ने व े भः वनीक दे वै णाव तं थमः सीद यो नम्. कुला यनं घृतव तं स व े य ं नय यजमानाय साधु.. (१६) हे शोभन वाला वाले एवं दे व मुख अ न! कंबल से यु घ सले के समान एवं घृतसंप वेद पर सभी दे व के साथ बैठो तथा य क ा यजमान के क याण के न म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उसका य दे व के समीप ले जाओ. (१६) इममु यमथववद नं म थ त वेधसः. यमङ् कूय तमानय मूरं या ा यः.. (१७) ऋ वज् अथवा ऋ ष के समान इस अ न का मंथन करते ह एवं दे व के म य से नकलकर इधर-उधर भागते ए बु संप अ न को अंधकार के म य से लाते ह. (१७) ज न वा दे ववीतये सवताता व तये. आ दे वान् व यमृताँ ऋतावृधो य ं दे वेषु प पृशः.. (१८) हे अ न! तुम दे व क कामना करने वाले यजमान के क याण के न म य म उ प होओ, य बढ़ाने वाले दे व का यजन करो एवं हमारे य को दे व के पास ले जाओ. (१८) वयमु वा गृहपते जनानाम ने अकम स मध बृह तम्. अ थू र नो गाहप या न स तु त मेन न तेजसा सं शशा ध.. (१९) हे य पालनक ा अ न! मनु य म हम ही तुमको स मधा ारा बढ़ाते ह. हमारे गाहप य-य , पु , पशुधन आ द से संप ह . तुम हम तीखे तेज से मलाओ. (१९)
दे वता—अ न
सू —१६
वम ने य ानां होता व ेषां हतः. दे वे भमानुषे जने.. (१) हे अ न! तुम सम त य बनाया है. (१)
को पूण करने वाले हो. दे व ने मानवी जा
म तु ह होता
स नो म ा भर वरे ज ा भयजा महः. आ दे वा व य च.. (२) हे अ न! तुम स ता दे ने वाली वाला दे व को यहां लाओ एवं उ ह ह दो. (२) वे था ह वेधो अ वनः पथ दे वा अ ने य ेषु सु तो.. (३) हे य वधाता एवं शोभनय कमयु शी ता से जानते हो. (३) वामीळे अध
ारा हमारे य म दे व का यजन करो. तुम
सा. अ न! तुम य म दे व के छोटे एवं बड़े माग को
ता भरतो वा ज भः शुनम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ईजे य ेषु य यम्.. (४) हे अ न! भरत ने सुख पाने के लए ऋ वज के साथ मलकर तु हारी तु त क थी एवं तुझ य यो य अ न का ह ा ारा यजन कया था. (४) व ममा वाया पु दवोदासाय सु वते. भर ाजाय दाशुषे.. (५) हे अ न! तुमने सोमरस नचोड़ने वाले दवोदास को जस कार उ म धन अ धक मा ा म दए थे, उसी कार ह दे ने वाले मुझ भर ाज को दो. (५) वं तो अम य आ वहा दै ं जनम्. शृ व व य सु ु तम्.. (६) हे मरणर हत एवं दे व त अ न! तुम मेधावी भर ाज क शोभन तु त को सुनते ए इस य म दे व को लाओ. (६) वाम ने वा यो३ मतासो दे ववीतये. य ेषु दे वमीळते.. (७) हे अ न दे व! शोभन चतन वाले मनु य दे व को स करने के हेतु य तु त करते ह. (७) तव (८)
य
स शमुत
म तु हारी
तुं सुदानवः. व े जुष त का मनः.. (८)
हे अ न! हम सब दानशील यजमान तु हारे दशनीय तेज क पूजा तथा सेवा करते ह. वं होता मनु हतो व रासा व
रः. अ ने य
दवो वशः.. (९)
हे वाला ारा ह वहन करने वाले एवं उ म व ान् अ न! मनु ने तु ह य का होता नयु कया है. तुम दे व का यजन करो. (९) अ न आ या ह वीतये गृणानो ह दातये. न होता स स ब ह ष.. (१०) हे अ न! दे व को ह दे ने के लए तु हारी तु त क जा रही है. तुम ह लए आओ एवं बछे ए कुश पर बैठो. (१०) तं वा स म
र रो घृतेन वधयाम स. बृह छोचा य व
हे अगांर प अ न! हम स मधा अ न! तुम अ धक द त बनो. (११)
एवं घृत
भ ण के
.. (११)
ारा तु ह बढ़ाते ह. हे अ तशय युवा
स नः पृथु वा यम छा दे व ववास स. बृहद ने सुवीयम्.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न दे व! तुम हम व तीण शंसनीय महान् शोभन व श
से यु
धन दो. (१२)
वाम ने पु कराद यथवा नरम थत. मू न व य वाघतः.. (१३) हे अ न! शीश के समान सारे जगत् को धारण करने वाले कमल प पर अथवा ऋ ष ने तु हारा मंथन कया था. (१३) तमु वा द यङ् ङृ षः पु ईधे अथवणः. वृ हणं पुर दरम्.. (१४) हे श ुहंता एवं असुर-नगरनाशक अ न! अथवा ऋ ष के पु द यङ् ने तु ह कया था. (१४)
व लत
तमु वा पा यो वृषा समीधे द युह तमम्. धन यं रणेरणे.. (१५) हे श ुहंता एवं येक यु म धन जीतने वाले अ न! पा यवृषा नामक ऋ ष ने तु ह भली कार व लत कया था. (१५) ए षु वा ण तेऽ न इ थेतरा गरः. ए भवधास इ भः.. (१६) हे अ न! यहां आओ. हम तु हारे न म उ म तु तयां बोलते ह, उ ह एवं इसी कार क अ य बात को सुनो. तुम इस सोमरस ारा बढ़ो. (१६) य व च ते मनो द ं दधस उ रम्. त ा सदः कृणवसे.. (१७) हे अ न! जस कसी यजमान के त तु हारा मन अनु हपूण है, उसे तुम श उ म अ दे ते हो एवं वह नवास करते हो. (१७)
दायक
न ह ते पूतम प व ेमानां वसो. अथा वो वनवसे.. (१८) हे अ न! तु हारा तेज हमारी को न करने वाला न हो. तुम थोड़े यजमान को ही गृह दे ते हो. तुम हमारी सेवा वीकार करो. (१८) आ नरगा म भारतो वृ हा पु चेतनः. दवोदास य स प तः.. (१९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम ह के वामी, दवोदास राजा के श ु का नाश करने वाले अ धक ान वाले एवं यजमान के पालक अ न से तु तय के स हत मलते ह. (१९) स ह व ा त पा थवा र य दाश म ह वना. व व वातो अ तृतः.. (२०) का को जलाने वाले, श ु के आ मण से र हत एवं अपरा जत अ न अपनी म हमा से सभी सांसा रक संप यां हम द. (२०) स नव वीयसा ने ु नेन संयता. बृह त थ भानुना.. (२१) हे अ न! तुम ाचीन के समान ही नवीन तेज से यु आकाश का व तार करते हो. (२१)
होकर अपनी करण
ारा
वः सखायो अ नये तोमं य ं च धृ णुया. अच गाय च वेधसे.. (२२) ह
हे म ऋ वजो! तुम य वधाता एवं श ु वनाशक अ न के दो. (२२)
त यह तो गाओ तथा
स ह यो मानुषा युगा सीद ोता क व तुः. त ह वाहनः.. (२३) दे व को बुलाने वाले, परम मेधावी, मानव के य के समय दे व त एवं ह करने वाले अ न हमारे य म बछाये ए कुश पर बैठ. (२३)
वहन
ता राजाना शु च ता द या मा तं गणम्. वसो य ीह रोदसी.. (२४) हे नवास थान दे ने वाले अ न! तुम इस य म द तसंप व ण, आ द य म द्गण तथा धरती-आकाश का यजन करो. (२४)
एवं प व कमा म ,
व वी ते अ ने स रषयते म याय. ऊज नपादमृत य.. (२५) (२५)
हे बलपु एवं मरणर हत अ न! तु हारा शंसायो य तेज यजमान को अ वा दा अ तु े ोऽ वा व व तसुरे णाः. मत आनाश सुवृ म्.. (२६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे ता है.
हे अ न! य कम ारा तु हारी सेवा करने वाला यजमान े एवं शोभन धन वाला हो तथा सदा तु हारी तु त करता रहे. (२६) ते ते अ ने वोता इषय तो व मायुः. तर तो अय अरातीव व तो अय अरातीः.. (२७) अ
हे अ न! तु हारे तोता तु हारे ारा र त होकर एवं अ क इ छा करते ए सम त को ा त कर, आ मणकारी श ु को हराव एवं उ ह मार डाल. (२७) अ न त मेन शो चषा यास अ नन वनते र यम्.. (२८)
ं. य१ णम्.
अ न अपने तीखे तेज ारा सम त रा स का वनाश कर एवं हम धन द. (२८) सुवीरं र यमा भर जातवेदो वचषणे. ज ह र ां स सु तो.. (२९) हे जातवेद एवं वशेष ा अ न! तुम इसे शोभन पु ा द से यु वाले! रा स का नाश करो. (२९)
धन दो. हे शोभन कम
वं नः पा ह ं सो जातवेदो अघायतः. र ा णो ण कवे.. (३०) हे जातवेद अ न! तुम पाप से हमारी र ा करो. हे मं चाहने वाल से हमारी र ा करो. (३०)
के रच यता अ न! अ हत
यो नो अ ने रेव आ म वधाय दाश त. त मा ः पा ंहसः.. (३१) हे अ न! बुरे अ भ ाय वाला जो एवं पाप से हमारी र ा करो. (३१) वं तं दे व ज या प र बाध व मत यो नो जघांस त.. (३२)
हम श
दखाता है, उससे हमारी र ा करो
कृतम्.
हे अ न दे व! उस को तुम अपनी वाला हमारी हसा करना चाहता है. (३२) भर ाजाय स थः शम य छ सह य. अ ने वरे यं वसु.. (३३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा भली कार जलाओ, जो
हे श ु को परा जत करने वाले अ न! मुझ भर ाज को तुम व तृत सुख एवं चाहने यो य धन दो. (३३) अ नवृ ा ण जङ् घनद् वण यु वप यया. स म ः शु आ तः.. (३४) व लत शु लवण एवं ह ारा बुलाए गए अ न तु तयां सुनकर तोता कामना करते ए श ु को न कर. (३४)
क
गभ मातुः पतु पता व द ुतानो अ रे. सीद ृत य यो नमा.. (३५) पृ वी पी माता के गभ के समान, अ वनाशी वेद पर व लत तथा ह ारा ुलोक पी पता का पालन करने वाले अ न य वेद पर बैठकर श ु का वनाश कर. (३५) जावदा भर जातवेदो वचषणे. अ ने य दय व.. (३६) हे जातवेद एवं वशेष ा अ न! जो अ संतान के साथ हम दो. (३६)
दे व के म य वग म द त होता है, उसे
उप वा र वस शं य व तः सह कृत. अ ने ससृ महे गरः.. (३७) हे बलपु एवं शोभनदशन वाले अ न! इ ा तु तयां बोलते ह. (३७)
धारण करने वाले हम तु हारे लए
उप छाया मव घृणेरग म शम ते वयम्. अ ने हर यऽस शः.. (३८) हे वण के समान काशयु तु हारी शरण म आते ह. (३८)
तेज वाले एवं द तसंप अ न! इम छाया के समान
य उ इव शयहा त मशृङ्गो न वंसगः. अ ने पुरो रो जथ.. (३९) अ न श शाली धनुधारी के समान बाण से श ु को मारने वाले एवं तेज स ग वाले बैल के समान ह. हे अ न! तुमने रा स के नगर को न कया है. (३९) आ यं ह ते न खा दनं शशुं जातं न ब त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वशाम नं व वरम्.. (४०) हे ऋ वजो! सुंदर य को पूण करने वाले अ न क सेवा करो. अ वयु अ न को इस कार हाथ से पकड़ते ह, जैसे कोई बाघ आ द के ब चे को पकड़ता है. (४०) दे वं दे ववीतये भरता वसु व मम्. आ वे योनौ न षीदतु.. (४१) हे अ वयुगण! तुम दे व को खलाने के न म म ह डालो. अ न अपनी वेद पर बैठ. (४१) आ जातं जातवेद स
ोतमान एवं धन को जानने वाले अ न
यं शशीता त थम्. योन आ गृहप तम्.. (४२)
हे अ वयुगण! उ प ए, अ त थ के समान पू य एवं गृह वामी अ न को जातवेद नामक सुखकर अ न म थत करो. (४२) अ ने यु वा ह ये तवा ासो दे व साधवः. अरं वह त म यवे.. (४३) हे अ न दे व! अपने उन सुशील घोड़ को रथ म जोड़ो, जो तु ह य ले जाते ह. (४३)
क ओर ठ क से
अ छा नो या ा वहा भ यां स वीतये. आ दे वा तसोमपीतये.. (४४) हे अ न! तुम हमारे सामने आओ. तुम ह भ ण एवं सोमपान करने के लए दे व को बुलाओ. (४४) उद ने भारत ुमदज ेण द व ुतत्. शोचा व भा जर.. (४५) हे ह वहन करने वाले अ न! तुम अपने तेज को बढ़ाते ए व लत होओ. हे युवा एवं परम द तसंप अ न! तुम नबाध तेज ारा का शत बनो. (४५) वीती यो दे वं मत व येद नमीळ ता वरे ह व मान्. होतारं स ययजं रोद यो ानह तो नमसा ववासेत्.. (४६) ह वाहक यजमान ह प शोभन अ ारा कसी भी दे वता क सेवा करता है, उस य म अ न बुलाए जाते ह. यजमान हाथ जोड़कर एवं नम कार करता आ धरती-आकाश म वतमान दे व को बुलाने वाले ह ारा यजनयो य अ न क सेवा कर. (४६) आ ते अ न ऋचा ह व दा त ं भराम स. ते ते भव तू ण ऋषभासो वशा उत.. (४७) हे अ न! हम दय ारा सुंदर बनाई गई ऋचा को ह के समान तु ह दे ते ह. हमारा दया आ ह तु हारे लए गाय एवं बैल के प म प रव तत हो. (४७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नं दे वासो अ य म धते वृ ह तमम्. येना वसू याभृता तृ हा र ां स वा जना.. (४८) दे वगण मुख, वृ को भली कार मारने वाले एवं रा स से धन छ नने वाले अ न को व लत करते ह. (४८)
सू —१७
दे वता—इं
पबा सोमम भ यमु तद ऊव ग ं म ह गृणान इ . व यो धृ णो व धषो व ह त व ा वृ म म या शवो भः.. (१) हे उ इं ! तुमने अं गरागो ीय ऋ षय क तु त सुनकर जस सोमरस के उ े य से प णय ारा चुराई गई गाय को खोजा था, उस सोमरस को पओ. हे हाथ म व धारण करने वाले एवं श ुनाशक इं ! तुमने अपनी श य ारा सभी श ु को मारा था. (१) स पा ह य ऋजीषी त ो यः श वान् वृषभे यो मतीनाम्. यो गो भ भृ ो ह र ाः स इ च ाँ अ भ तृ ध वाजान्.. (२) हे सोमलता का फोक धारण करने वाले इं ! तुम श ु से र ा करने वाले, सुंदर ठोड़ी वाले एवं तोता क इ छा पूरी करने वाले हो. हे इं ! तुम पवत के भेदक, व धारी एवं घोड़ को रथ म जोड़ने वाले हो. तुम अपना व च अ हम पर कट करो. (२) एवा पा ह नथा म दतु वा ु ध वावृध वोत गी भः. आ वः सूय कृणु ह पी पहीषो ज ह श ूँर भ गा इ तृ ध.. (३) हे इं ! ाचीन काल के समान ही हमारा सोम पओ. सोम तु ह स कर तुम हमारी तु तय को सुनकर बढ़ो. तुम सूय को कट करो. हम अ ा त कराओ, श ु को न करो एवं प णय ारा चुराई गई गाएं खोजो. (३) ते वा मदा बृह द वधाव इमे पीता उ य त ुम तम्. महामनूनं तवसं वभू त म सरासो ज ष त साहम्.. (४) हे अ के वामी इं ! पया आ सोमरस तुझ तेज वी को ब त स करे एवं स च दे . तुम महान् सवगुणसंप वभू तयु एवं श ुपराजयकारी हो. (४) ये भः सूयमुषसं म दसानोऽवासयोऽप हा न द त्. महाम प र गा इ स तं नु था अ युतं सदसः प र वात्.. (५) हे इं ! जस सोम से स होकर तुमने गाढ़े अंधकार को न करते ए सूय एवं उषा को अपने-अपने थान पर था पत कया तथा उस पवत के टु कड़े कर दए जो प णय ारा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
चुराई ई गाएं छपाए ए था तथा अपनी श
से थर था. (५)
तव वा तव त ं सना भरामासु प वं श या न द धः. औण र उ या यो व हो वाद्गा असृजो अ र वान्.. (६) हे इं ! तुमने अपने काय , बु और साम य ारा कमजोर गाय को धा बनाया है, गाय के बाहर जाने के लए पवत म ार बनाए ह एवं अं गरागो ीय ऋ षय से मलकर उ ह घेरे से वतं कया है. (६) प ाथ ां म ह दं सो ु१व मुप ामृ वो बृह द तभायः. अधारयो रोदसी दे वपु े ने मातरा य ऋत य.. (७) हे महान् इं ! तुमने अपने महान् कम ारा धरती को वशेष प से पूण बनाया है, व तृत आकाश को थर कया है एवं दे व के माता- पता प धरती-आकाश को धारण कया है. धरती-आकाश अ त ाचीन एवं उदक के ज मदाता ह. (७) अध वा व े पुर इ दे वा एकं तवसं द धरे भराय. अदे वो यद यौ ह दे वा वषाता वृणत इ म .. (८) जब वृ असुर ने सं ाम के लए दे व को ललकारा तो उ ह ने तु ह ही अपने आगे चलने वाला बनाया. हे बलवान् इं ! म त के यु म भी तु ह वरण कया गया था. (८) अध ौ े अप सा नु व ाद् तानम यसा व य म योः. अ ह य द ो अ योहसानं न च ायुः शयथे जघान.. (९) हे अ धक अ के वामी इं ! जब तुमने आ मणकारी वृ को धरती पर सोने के लए मार डाला था, तब तु हारे ोध एवं व से आकाश भी कांप गया था (९) अध व ा ते मह उ व ं सह भृ ववृत छता म्. नकाममरमणसं येन नव तम ह सं पणगृजी षन्.. (१०) हे उ इं ! व ा ने तु हारे लए हजार धार एवं सौ टु कड़ वाला व बनाया था. हे सोमलता का नीरस अंश हण करने वाले इं ! तुमने उस व ारा न त अ भलाषा वाले श ु से भड़ने को उतावले एवं गजन करते ए वृ को पीस डाला था. (१०) वधा यं व े म तः सजोषाः पच छतं म हषाँ इ तु यम्. पूषा व णु ी ण सरां स धाव वृ हणं म दरमंशुम मै.. (११) हे इं ! पर पर समान ी त वाले म द्गण तु ह तो ारा बढ़ाते ह. तु हारे लए पूषा तथा व णु ने सौ भसे पकाए ह तथा तीन पा को नशीले एवं श ुनाशक सोम से भरा है. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(११) आ ोदो म ह वृतं नद नां प र तमसृज ऊ ममपाम्. तासामनु वत इ प थां ादयो नीचीरपसः समु म्.. (१२) हे इं ! तुमने वृ ारा रोक ई सब ओर थत न दय के जल को बंधनमु कया था एवं जलसमूह क उ प क थी. तुमने न दय के माग को नीचा बनाया है तथा उनके जल को सागर म प ंचाया है. (१२) एवा ता व ा चकृवांस म ं महामु मजुय सहोदाम्. सुवीरं वा वायुधं सुव मा न मवसे ववृ यात्.. (१३) हमारी नवीन तु तयां इस कार सभी काम करने वाले, महान्, उ , न ययुवा, श दाता, शोभन वीर वाले, शोभन व धारी, उ म आयुध के वामी इं को र ा के लए े रत कर. (१३) स नो वाजाय वस इषे च राये धे ह ुमत इ व ान्. भर ाजे नृवत इ सूरी द व च मै ध पाय न इ .. (१४) हे इं ! तुम श शाली एवं बु मान् हम लोग को बल, श , अ एवं धन दान करो. हम भर ाजगो ीय ऋ षय को सेवक तथा तु त करने वाले पु -पौ से यु करो एवं भ व य म हमारी र ा करो. (१४) अया वाजं दे व हतं सनेम मदे म शत हमाः सुवीराः.. (१५) इस तु त ारा हम इं सौ वष तक स ह . (१५)
सू —१८
ारा दया आ अ
ा त कर एवं शोभन संतान वाले होकर
दे वता—इं
तमु ु ह यो अ भभू योजा व व वातः पु त इ ः. अषा हमु ं सहमानमा भग भवध वृषभं चषणीनाम्.. (१) हे भर ाज ऋ ष! उस इं क तु त करो जो श ु को परा जत करने वाले, तेज से यु , श ु हसक, अपरा जत एवं ब त ारा बुलाए गए ह. तुम इन तु तवचन ारा अपरा जत, ओज वी, श ुनाशक एवं जा क इ छा पूण करने वाले इं को बढ़ाओ. (१) स यु मः स वा खजकृ सम ा तु व ो नदनुमाँ ऋजीषी. बृह े णु यवनो मानुषीणामेकः कृ ीनामभव सहावा.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ! यो ा, दाता, धूल उड़ाने वाले, यजमान के साथ स , वषा ारा ब त को स करने वाले, गजनयु , तीन सवन म सोम पीने वाले, यु क ा मुख एवं मनु क सभी जा के र क ह. (२) वं ह नु यददमायो द यूँरेकः कृ ीरवनोरायाय. अ त व ु वीय१ त इ न वद त त तुथा व वोचः.. (३) हे स इं ! तुम य कमर हत लोग को शी वश म करो. एकमा तु ह ने य क ा को पु , वासा द दए ह. तुम म वह श अब है या नह . समय-समय पर तुम श को कट करो. (३) स द ते तु वजात य म ये सहः स ह तुरत तुर य. उ मु य तवस तवीयोऽर य र तुरो बभूव.. (४) हे श शाली इं ! ब त से य म कट होने वाले एवं हमारे श ु क हसा करने वाले तुम म अ धक बल है, ऐसा म मानता ं. तु हारा बल उ श ु ारा वश म न होने वाला एवं श ु को वश म करने वाला है. (४) त ः नं स यम तु यु मे इ था वद वलम ङ् गरो भः. ह युत यु मेषय तमृणोः पुरो व रो अ य व ाः.. (५) हे ढ़ पवत को गराने वाले एवं दशनीय इं ! तु हारे साथ हमारी म ता चरकाल तक रहे. तुमने तु तक ा अं गरागो ीय ऋ षय के ऊपर श चलाने वाले बल नामक असुर को मारा एवं उसके सभी नगर तथा उनके ार को न कर दया. (५) स ह धी भह ो अ यु ईशानकृ मह त वृ तूय. स तोकसाता तनये स व ी वत तसा यो अभव सम सु.. (६) हे ओज वी एवं तोता को समथ बनाने वाले इं ! तुम महान् सं ाम म तोता ारा बुलाए जाते हो. पु एवं पौ ा त के लए बुलाए जाने वाले व धारी इं वशेष प से वंदनीय ह. (६) स म मना ज नम मानुषाणामम यन ना न त स . स ु नेन स शवसोत राया स वीयण नृतमः समोकाः.. (७) इं ने अपने अ वनाशी एवं श ु को झुकाने वाले बल से मानवसमूह पर अ धकार पाया है. इं यश, बल, धन एवं वीय से नेता म े तथा साथ नवास करने वाले बनते ह. (७) स यो न मुहे न मथू जनो भू सुम तुनामा चुमु र धु न च. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वृण प ुं श बरं शु ण म ः पुरां यौ नाय शयथाय नू चत्.. (८) वे इं यु म कभी क वमुख नह होते एवं म या व तु को ज म नह दे ते. स नाम वाले इं ने चुमु र, प ,ु शंबर, शु ण एवं धु न नामक रा स को मारा है. वे उनके नगर को गराने एवं उन श ु को मारने के लए शी काम करते ह. (८) उदावता व सा प यसा च वृ ह याय रथ म त . ध व व ं ह त आ द ण ा भ म द पु द ा मायाः.. (९) हे उ तशील एवं श ुनाशक बल से यु इं ! तुम वृ को मारने के लए रथ पर बैठो एवं अपने दा हने हाथ म व धारण करो. हे वशाल धन के वामी इं ! तुम असुर क माया को समा त करो. (९) अ नन शु कं वन म हेती र ो न ध यश नन भीमा. ग भीरय ऋ वया यो रोजा वानयद् रता द भय च.. (१०) हे व के समान भयानक इं ! अ न जस कार सूखे वन को जला दे ती है, उसी कार तुम अपने व से रा स को जलाओ. इं ने अपरा जत एवं महान् व ारा श ु को न कया. सं ाम म गजन करने वाले इं श ु का भेदन करते ह. (१०) आ सह ं प थ भ र राया तु व ु न तु ववाजे भरवाक्. या ह सूनो सहसो य य नू चददे व ईशे पु योतोः.. (११) हे ब धनसंप , बल के पु एवं ब त ारा पुकारे गए इं ! कोई भी असुर तु ह बलर हत नह कर सकता. तुम धनयु होकर हजार सवा रय ारा शी हमारे सामने आओ. (११) तु व ु न य थ वर य घृ वे दवो रर शे म हमा पृ थ ाः. ना य श ुन तमानम त न त ः पु माय य स ोः.. (१२) परम यश वी, उ तशील एवं श ुपराभवकारी इं क म हमा धरती-आकाश से भी महान् है. अ धक बु वाले एवं श ुनाशक इं को न कोई मारने वाला है, न समानता करने वाला है और न आ य है. (१२) त े अ ा करणं कृतं भू कु सं यदायुम त थ वम मै. पु सह ा न शशा अ भ ामु ूवयाणं धृषता ननेथ.. (१३) हे इं ! आज तु हारा वह कम का शत होता है. तुमने शु ण असुर से कु स को, श ु से आयु एवं दवोदास को बचाया था. तुमने अ त थ व राजा को शंबर रा स का धन दलाया. हे इं ! तु हारे पराभवकारी व ने शंबर को मारकर धरती पर तेज चलने वाले ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दवोदास को वप
से बचाया. (१३)
अनु वा ह ने अध दे व दे वा मद व े क वतमं कवीनाम्. करो य व रवो बा धताय दवे जनाय त वे गृणानः.. (१४) हे इं ! सभी तोता इस समय मेघ का भेदन करने के लए तुझ परम मेधावी क तु त कर रहे ह. तुम तु तयां सुनकर उसी समय द र तथा पी ड़त यजमान एवं उसक संतान को धन दे ते हो. (१४) अनु ावापृ थवी त ओजोऽम या जहत इ दे वाः. कृ वा कृ नो अकृतं य े अ यु थं नवीयो जनय व य ैः.. (१५) हे इं ! धरती, आकाश एवं मरणर हत सम त दे व तु हारे बल को वीकार करते ह. हे ब कमक ा इं ! तुम अपना अन कया काम करो. इसके बाद तुम य म अ धक नवीन तो को ज म दो. (१५)
सू —१९
दे वता—इं
महाँ इ ो नृवदा चष ण ा उत बहा अ मनः सहो भः. अम य ् वावृधे वीयायो ः सुकृतः कतृ भभूत्.. (१) जैसे राजा मनु य क कामना पूण करता है, उसी कार तोता क इ छा पूरी करने वाले इं आव. दोन लोक म परा म दखाने वाले एवं श ुसेना ारा अपरा जत इं हमारे सामने वीरता के काय के लए बढ़ते ह. व तृत शरीर एवं गुण वाले इं को यजमान भली कार जानते ह. (१) इ मेव धषणा सातये धाद्बृह तमृ वमजरं युवानम्. अषा हेन शवसा शूशुवांसं स ो वावृधे असा म.. (२) हमारी तु त दान के न म महान्, गमनशील, युवा एवं श ु ारा अपरा जत बल से उ त इं को ा त होती है. इं उ प होते ही अ धक मा ा म बढ़ गए थे. (२) पृथू कर ना ब ला गभ ती अ म य ् १ सं ममी ह वां स. यूथेव प ः पशुपा दमूना अ माँ इ ा या ववृ वाजौ.. (३) हे शांत मन वाले इं ! तुम अ दे ने के लए अपने व तीण, कायकुशल एवं अ धक दे ने वाले हाथ को हमारे सामने करो. जस कार वाला पशु के समूह को हांकता है, उसी कार तुम यु म हमारा संचालन करो. (३) तं व इ ं च तनम य शाकै रह नूनं वाजय तो वेम. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यथा च पूव ज रतार आसुरने ा अनव ा अ र ाः.. (४) अ के अ भलाषी हम तोता इस य म म त स हत श ुनाशक एवं स इं को बुलाते ह. हे इं ! ाचीन तोता जस कार नदा, पाप एवं हसार हत उ प ए थे, उसी कार हम भी ह . (४) धृत तो धनदाः सोमवृ ः स ह वाम य वसुनः पु ुः. सं ज मरे प या३ रायो अ म समु े न स धवो यादमानाः.. (५) इं य कमधारक, धन दे ने वाले, सोमरस ारा उ त, अ भल षत धन के वामी एवं अ धक अ वाले ह. तोता का हत करने वाले धन उसी कार इं के समीप जाते ह, जस कार बहती ई न दयां सागर म मलती ह. (५) श व ं न आ भर शूर शव ओ ज मोजो अ भभूत उ म्. व ा ु ना वृ या मानुषाणा म यं दा ह रवो मादय यै.. (६) हे शूर इं ! हम सव े बल दो. हे श ु पराजयकारी इं ! हम अस एवं उ म ओज दो. हे ह र नामक अ के वामी! हम स करने के लए मानवकामना के पूरक सभी धन दो. (६) य ते मदः पृतनाषाळमृ इ तं न आ भर शूशुवांसम्. येन तोक य तनय य सातौ मंसीम ह जगीवांसस वोताः.. (७) हे इं ! तु हारा जो उ साह श -ु सेना को न करने वाला एवं अपरा जत है, उस बढ़े ए उ साह को हम दो. हम तु हारे ारा र त होकर उसी उ साह के कारण पु एवं पौ के लाभ के लए तु हारी तु त करगे. (७) आ नो भर वृषणं शु म म धन पृतं शूशुवांसं सुद म्. येन वंसाम पृतनासु श ू तवो त भ त जाम रजामीन्.. (८) हे इं ! हम अ भलाषापूरक, धनपालक, उ त एवं परमद तु हारी र ा के कारण हम उस सै यश ारा बंधु एवं श ु
सै यश दान करो. का नाश कर. (८)
आ ते शु मो वृषभ एतु प ादो रादधरादा पुर तात्. आ व तो अ भ समे ववा ङ ु नं वव े मे.. (९) हे इं ! तु हारा कामवष बल प म, उ र, द ण एवं पूव दशा से हमारे सामने आवे, वह बल सभी ओर से हमारे समीप आवे. तुम हम सभी सुख से यु धन दो. (९) नृव इ
नृतमा भ ती वंसीम ह वामं ोमते भः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ई े ह व व उभय य राज धा र नं म ह थूरं बृह तम्.. (१०) हे इं ! हम तु हारी उ म र ा ारा सेवक एवं यश से यु धन का उपभोग कर. हे राजन्! तुम द एवं पा थव धन के वामी हो. इस लए हम महान्, वपुल एवं गुणयु धन दो. (१०) म व तं वृषभं वावृधानमकवा र द ं शास म म्. व ासहमवसे नूतनायो ं सहोदा मह तं वेम.. (११) हम नवीन र ा ा त करने के लए इस य म म त स हत, कामवष उ त, श ु ारा अपमानर हत, तेज वी, शासक, सबको परा जत करने वाले उ एवं बल द इं को बुलाते ह. (११) जनं व म ह च म यमानमे यो नृ यो र धया ये व म. अधा ह वा पृ थ ां शूरसातौ हवामहे तनये गो व सु.. (१२) हे व धारी इं ! हम जन लोग म रहते ह, उनक अपे ा वयं को बड़ा समझने वाले को तुम वश म करो. हम इस समय यु म पु , गाय , एवं जल को पाने के लए तु ह बुलाते ह. (१२) वयं त ए भः पु त स यैः श ोः श ो र इ याम. न तो वृ ा युभया न शूर राया मदे म बृहता वोताः.. (१३) हे ब त ारा बुलाए ए इं ! हम म ता के प रचायक इन तु त वचन ारा तु हारी सहायता से अपने सभी श ु को मारते ए उनसे े बन. हे शूर इं ! हम तु हारे ारा र त होकर महान् धन से स ह . (१३)
सू —२०
दे वता—इं
ौन य इ ा भ भूमाय त थौ र यः शवसा पृ सु जनान्. तं नः सह भरमुवरासां द सूनो सहसो वृ तुरम्.. (१) हे बलपु इं ! हम ऐसा पु दो जो सं ाम म श ु पर उसी कार आ मण कर सके, जस कार सूय ा णय को आ ांत करते ह. वह हजार धन का वामी, उपजाऊ धरती का अ धकारी एवं श ु का नाशक हो. (१) दवो न तु यम व स ासुय दे वो भधा य व म्. अ ह यद्वृ मपो व वांसं ह ृजी ष व णुना सचानः.. (२) हे इं ! यह बात स य है क तु तक ा ने तुम म सूय के समान बल धारण कया है. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋजीषी इं ! तुमने व णु के साथ मलकर जल को रोकने वाले वृ का नाश कया. (२) तूव ोजीया तवस तवीया कृत े ो वृदधमहाः. ् राजाभव मधुनः सो य य व ासां य पुरां द नुमावत्.. (३) हसक के हसक, परम ओज वी, अ तशय बलशाली एवं तोता को अ दे ने वाले इं ने सभी पु रय को वद ण करने वाला व ा त कया, तभी वे मधुर सोम के राजा बने. (३) शतैरप पणय इ ा दशोणये कवयेऽकसातौ. वधैः शु ण याशुष य मायाः प वो ना ररेची कं चन .. (४) हे इं ! ब त अ दे ने वाले एवं मेधावी कु स से यु करने वाले सौ सेना के साथ प ण तु हारी सहायता के कारण भाग गए. इं ने सम त श य वाले शु ण असुर के कपट को समा त करके उसका सभी अ छ न लया. (४) महो हो अप व ायु ध य व य य पतने पा द शु णः. उ ष सरथं सारथये क र ः कु साय सूय य सातौ.. (५) शु ण असुर जब व लगने से धरती पर गरा, तब उसक सब श न हो गई. इं ने सूय को ा त करने के न म अपने सार थ कु स ारा रथ आगे बढ़वाया. (५) येनो न म दरमंशुम मै शरो दास य नमुचेमथायन्. ाव म सा यं सस तं पृण ाया स मषा सं व त.. (६) ग ड़ इं के लए नशीला सोम लाए. इं ने भी उप वी नमु च का शर मथ डाला एवं सय के पु न म नामक ऋ ष क सोते समय ाण र ा क . साथ ही उसे धन, अ एवं क याण से यु कया. (६) व प ोर हमाय य हाः पुरो व छवसा न ददः. सुदाम त े णो अ मृ यमृ ज ने दा ं दाशुषे दाः.. (७) हे व धारी इं ! तुमने अ धक माया वाले प ु असुर के ढ़ नगर को अपने बल ारा तोड़ा था. हे शोभन दान वाले इं ! तुमने ह दे ने वाले ऋ ज ा नामक राजा को बाधार हत धन दया था. (७) स वेतसुं दशमायं दशो ण तूतु ज म ः व भ सु नः. आ तु ं श दभं ोतनाय मातुन सीमुप सृजा इय यै.. (८) मनचाहा सुख दे ने वाले इं ने अ त धनी वेतसु, दशो ण, तूतु ज, तु एवं इभ नामक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
असुर को ोतन राजा के समीप जाने को इस कार ववश कर दया था, जस कार पु माता के पास जाने को ववश होता है. (८) स त
पृधो वनते अ तीतो ब ं वृ हणं गभ तौ. री अ य तेव गत वचोयुजा वहत इ मृ वम्.. (९)
श ु ारा अपरा जत इं अपने हाथ म श ुमारक व को धारण करके श ु का हनन करते ह. शूर जस कार रथ म बैठता है, उसी कार इं अपने घोड़ पर बैठते ह. केवल वचन ारा चलने वाले वे घोड़े इं को ढोव. (९) सनेम तेऽवसा न इ पूरवः तव त एना य ैः. स त य पुरः शम शारद द दासीः पु कु साय श न्.. (१०) हे इं ! तु हारी र ा के कारण हम नवीन धन का उपभोग करते ह. तोता लोग इन तो वाले य म तु हारी तु त करते ह. तुमने य कम म बाधा डालने वाली श ु जा को मारकर पु कु स राजा को धन दया. तुमने शरत असुर के सात नगर को व ारा तोड़ा था. (१०) वं वृध इ पू भूव रव य श ु ने का ाय. परा नववा वमनुदेयं महे प ो ददाथ वं नपातम्.. (११) हे इं ! ाचीनकाल म तुमने क वपु उशना को धन दे ने क इ छा से तोता को बढ़ाया था एवं नववा व नामक असुर को मारकर श ु ारा पकड़े ए पु को उशना के पास प ंचाया (११) वं धु न र धु नमतीऋणोरपः सीरा न व तीः. य समु म त शूर प ष पारया तुवशं य ं व त.. (१२) हे इं ! तुम श ु को कंपाने वाले हो. तुमने व न नामक असुर ारा रोक ई न दय को वा हत बनाया. हे शूर इं ! जब तुम समु लांघकर पार जाते हो, तब तुम य और तुवसु को सागर पार कराते हो. (१२) तव ह य द व माजौ स तो धुनीचुमुरी या ह स वप्. द दय द ु यं सोमे भः सु व दभी त र मभृ तः प य१ कः.. (१३) हे इं ! सं ाम म तु हारे ही काय स ह. सं ाम म तुमने धु न एवं चुमु र नामक असुर को सुलाया था. स मधाएं एक करने वाले तथा इ ा पकाने वाले दभी त राजा ने सोमरस नचोड़कर तु ह तेज वी बनाया था. (१३)
सू —२१
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमा उ वा पु तम य कारोह ं वीर ह ा हव ते. धयो रथे ामजरं नवीयो र य वभू तरीयतो वच या.. (१) हे शूर इं ! अ धक य कम क अ भलाषा करने वाले भर ाज नामक तोता क शंसनीय तु तयां तुझ बुलाने यो य को बुलाती ह. हे रथ म बैठे ए, जरार हत एवं अ तशय नवीन इं ! े वभू तयां ह ा के प म तु ह ा त होती ह. (१) तमु तुष इ यो वदानो गवाहसं गी भय वृ म्. य म दवम त म ा पृ थ ाः पु माय य र रचे म ह वम्.. (२) य (२)
हम उन इं क तु त करते ह जो सब कुछ जानते ह, तु तय ारा पाने यो य ह एवं ारा उ त ए ह. परम बु मान् इं क मह ा धरती और आकाश से भी अ धक है. स इ मोऽवयुनं तत व सूयण वयुनव चकार. कदा ते मता अमृत य धामेय तो न मन त वधावः.. (३)
इं ने ही ाननाशक एवं वृ ारा व तृत अंधकार को सूय के ारा काशवान् बनाया है. हे बलशाली एवं मरणर हत इं ! तु हारे वग के उद्दे य से य करने के इ छु क लोग कसी क हसा नह करते. (३) य ता चकार स कुह व द ः कमा जनं चर त कासु व ु. क ते य ो मनसे शं वराय को अक इ कतमः स होता.. (४) जस इं ने स कम कए ह वे कहां ह, कन लोग के बीच घूमते ह एवं कस दशा म थत ह? इं ! कौन सा य तु हारे मन को सुख दे ता है? कौन सा मं तु हारा वरण करता है? तु ह वरण करने वाला होता कौन सा है? (४) इदा ह ते वे वषतः पुराजाः नास आसुः पु कृ सखायः. ये म यमास उत नूतनास उतावम य पु त बो ध.. (५) हे अनेक कम करने वाले इं ! पूव काल म उ प होने वाले अं गरा आ द ाचीन ऋ षय ने वतमान काल के समान काय करके तु हारी म ता ा त क थी. म यकालीन एवं नवीन ऋ षय ने भी तु हारी तु त क है. हे ब त ारा बुलाए गए इं ! तुम मुझ अवाचीन भर ाज क तु तय को जानो. (५) तं पृ छ तोऽवरासः परा ण ना त इ ु यानु येमुः. अचाम स वीर वाहो यादे व व ता वा महा तम्.. (६) हे शूर, मं
ारा ा त करने यो य एवं उ
गुण से यु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ! नवीन ऋ ष तु हारी
तु त करते ए तु हारे ाचीन एवं उ कृ काय को मं वचन के ारा बांधने का य न करते ह. हम जो बात जानते ह, उ ह के ारा तुझ महान् क पूजा करते ह. (६) अ भ वा पाजो र सो व त थे म ह ज ानम भ त सु त . तव नेन यु येन स या व ेण धृ णो अप ता नुद व.. (७) हे इं ! रा स क सेना तु हारे सामने खड़ी होती है. तुम भी उस महान् एवं उ त सेना के सामने डट जाओ. हे श ु पराभवकारी इं ! तुम ाचीन, साथ रखने यो य एवं न यसहायक व ारा उ ह र भगाओ. (७) स तु ध ु ी नूतन य यतो वीर का धायः. वं ा३ पः द व पतृणां श द्बभूथ सुहव ए ौ.. (८) हे तोता के र क एवं वीर इं ! आधु नक एवं तु त करने के इ छु क हम लोग के वचन को तुम सुनो. तु ह य म सुद ं र आ ान सुनकर अं गरागो ीय ऋ षय के चरकाल बंधु बने थ. (८) ोतये व णं म म ं म तः कृ वावसे नो अ . पूषणं व णुम नं पुर धं स वतारमोषधीः पवतां .. (९) हे भर ाज! हमारी र ा के लए तुम इस समय व ण, म , म द्गण, पूषा, व णु, सव मुख-अ न, स वता, ओष धय एवं पवत को तु त ारा स करो. (९) इम उ वा पु शाक य यो ज रतारो अ यच यकः. ुधी हवमा वतो वानो न वावाँ अ यो अमृत वद त.. (१०) हे परम श शाली एवं अ तशय य पा इं ! ये तोता लोग तो ारा तु हारी पूजा करते ह. हे मरणर हत इं ! तु त का वषय बनकर तुम मुझ तोता क पुकार सुनो. तु हारे समान सरा कोई नह है. (१०) नू म आ वाचमुप या ह व ान् व े भः सूनो सहसो यज ैः. ये अ न ज ा ऋतसाप आसुय मनुं च ु परं दसाय… (११) हे बलपु एवं व ान् इं ! तुम सभी दे व के साथ शी मेरे तु त वचन के सामने आओ. अ न उन दे व क जीभ है, जो य का पश करते ह एवं ज ह ने श ुनाश के हेतु मनु को असुर क अपे ा श शाली बनाया. (११) स नो बो ध पुरएता सुगेषूत गषु प थकृ दानः. ये अ मास उरवो व ह ा ते भन इ ा भ व वाजम्.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे माग- नमाता एवं व ान् इं ! तुम सुगम और गम दोन कार के माग म हमारे आगे चलो. हे इं ! अपने मर हत, महान् एवं वहनकुशल अ ारा हमारे लए अ लाओ. (१२)
सू —२२
दे वता—इं
य एक इ षणीना म ं तं गी भर यच आ भः. यः प यते वृषभो वृ णयावा स यः स वा पु मायः सह वान्.. (१) जो एकमा इं जा ारा वप य म बुलाने यो य ह, जो तोता क पुकार सुनकर दौड़े आते ह, जो कामवष , श शाली, स यभाषी, श ुनाशक, वशाल बु वाले एवं श ुपराभवकारी ह, उ ह हम इन तु तय ारा बुलाते ह. (१) तमु नः पूव पतरो नव वाः स त व ासो अ भ वाजय तः न ाभं ततु र पवते ाम ोघवाचं म त भः श व म्.. (२) नौ महीने वाला य करने वाले, बु मान्, हमारे स त अं गरा आ द पूव पु ष ने आ मणकारी श ु का दमन करने वाले, ग तसंप , अ त मणहीन आदे श वाले तथा पवत पर थत इं को अ का वामी बनाकर तु तयां क . (२) तमीमह इ म य रायः पु वीर य नृवतः पु ोः. यो अ कृधोयुरजरः ववा तमा भर ह रवो मादय यै… (३) हम इं से ब त पु -पौ स हत, अनेक सेवक स हत, व वध पशु से यु , सदा रहने वाला, नाशर हत एवं सुख दे ने वाला धन मांगते ह. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! तुम हमारे सुख के लए हम वह धन दो. (३) त ो व वोचो य द ते पुरा च ज रतार आनशुः सु न म . क ते भागः क वयो ख ः पु त पु वसोऽसुर नः.. (४) हे इं ! तु हारे पुराने तोता ने जस सुख को ा त कया था, उसे हम भी बताओ. हे धर श ु को ःख दे ने वाले ब त ारा बुलाए ए, असुरनाशक एवं अ धक संप वाले इं ! तु हारे लए कौन सा भाग एवं ह न त कया गया है? (४) तं पृ छ ती व ह तं रथे ा म ं वेपी व वरी य य नू गीः. तु व ाभं तु वकू म रभोदां गातु मषे न ते तु म छ.. (५) य कम करने वाले एवं गुणवणनयु वाणी वाले यजमान व धारी, रथ पर बैठने वाले, अनेक य को वीकार करने वाले एवं अनेक य के करने हेतु श दे ने वाले इं क पूजा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह. वह यजमान सुख ा त करके श ु को ललकारता है. (५) अया ह यं मायया वावृधानं मनोजुवा वतवः पवतेन. अ युता च ळता वोजो जो व हा धृषता वर शन्.. (६) हे वयं श शाली इं ! तुमने मन म समान ग तशील व अनेक धार वाले व ारा माया के सहारे बढ़ने वाले वृ को न कया. हे शोभन-तेज वाले एवं महान् इं ! तुमने उसी तेज वी व ारा वनाशर हत, ढ़ एवं अ श थल श ुनग रय को तोड़ा. (६) तं वो धया न या श व ं नं नव प रतंसय यै. स नो व द नमानः सुव े ो व ा य त गहा ण.. (७) हम ाचीन ऋ षय के समान अ त नवीन तु तय ारा अ तशय श शाली एवं ाचीन इं का यश बढ़ाते ह. सीमार हत एवं शोभन वाहन वाले इं हम सभी पाप से सुर त रख. (७) आ जनाय णे पा थवा न द ा न द पयोऽ त र ा. तपा वृष व तः शो चषा ता षे शोचय ामप .. (८) हे इं ! तुम स जन पु ष के वरोधी लोग के लए धरती, वग और अंत र के थान को अ तशय ःखदायी बना दो. हे कामवष इं ! तुम अपने तेज से सव ा त रा स को जलाओ एवं उन े षय को जलाने के लए धरती और आकाश को तपाओ. (८) भुवो जन य द य राजा पा थव य जगत वेषस क्. ध व व ं द ण इ ह ते व ा अजुय दयसे व मायाः.. (९) हे द तदशन इं ! तुम धरती एवं वग म रहने वाले लोग के वामी हो. हे जरा र हत इं ! अपने दा हने हाथ म व धारण करो एवं रा स क सभी माया को समा त करो. (९) आ संयत म णः व तं श ुतूयाय बृहतीममृ ाम्. यया दासा याया ण वृ ा करो व सुतुका ना षा ण.. (१०) हे इं ! हम श ु पर वजय पाने के हेतु वशाल, अ ह सत, एक भूत एवं क याणका रणी संप दो. हे व धारी इं ! उस क याण ारा तुमने य कमर हत मनु य को य शील बनाया एवं श ु लोग को भली कार ह सत कया. (१०) स नो नयु ः पु त वेधो व वारा भरा ग ह य यो. न या अदे वो वरते न दे व आ भया ह तूयमा म य ् क्.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ब त ारा बुलाए गए, य कम के वधाता एवं अ तशय य पा इं ! तुम सबके ारा पसंद कए गए घोड़ क सहायता से हमारे समीप आओ. दे व एवं दानव ारा न रोके जाने वाले घोड़ के ारा तुम हमारे सामने आओ. (११)
सू —२३ सुत इ वं न म इ सोमे तोमे य ा यु ा यां मघव ह र यां ब
दे वता—इं ण श यमान उ थे. ं बा ो र या स.. (१)
हे इं ! जब सोमरस नचुड़ जाता है, महान् तो बोलना आरंभ हो जाता है एवं वै दक तु तयां होने लगती ह, तब तुम अपने रथ म घोड़े जोड़ते हो. हे धन वामी इं ! तुम दोन हाथ म व उठाकर रथ म जुड़े ए दो घोड़ क सहायता से आते हो. (१) य ा द व पाय सु व म वृ ह येऽव स शूरसातौ. य ा द य ब युषो अ ब यदर धयः शधत इ द यून्.. (२) हे इं ! तुम वग से उस यु म उप थत होकर ह दाता यजमान क र ा करते हो, जस म वीर स म लत होते ह. तुम भयर हत होकर य काय म कुशल एवं भयभीत यजमान को बाधा प ंचाने वाले द युजन को वश म करते हो. (२) पाता सुत म ो अ तु सोमं णेनी ो ज रतारमूती. कता वीराय सु वय उ लोकं दाता वसु तुवते क रये चत्.. (३) इं नचोड़े ए सोम को पीने वाले ह. इं य कम म कुशल एवं भली कार सोम नचोड़ने वाले एवं तु तक ा यजमान को नवास थान एवं धन दे ते ह. (३) ग तेया त सवना ह र यां ब व ं प पः सोम द दगाः. कता वीरं नय सववीरं ोता हवं गृणतः तोमवाहाः.. (४) व धारण करने वाले, सोमरस पीने वाले, गाएं दे ने वाले, मानव हतकारी एवं अनेक पु से यु पु दे ने वाले, तोता क तु तयां सुनने वाले एवं तो ारा सेवनीय इं इन तीन सवन म अपने घोड़ क सहायता से जाते ह. (४) अ मै वयं य ावान त व म इ ाय यो नः दवो अप कः. सुते सोमे तुम स शंस थे ाय वधनं यथासत्.. (५) हमारे क याण के लए पोषण आ द कम करने वाले ाचीन इं जन तो को चाहते ह, उ ह हम बोलते ह. सोमरस नचुड़ जाने पर हम उ ह बुलाते ह. वेदमं का उ चारण करते ए हम इं को इस कार ह दे ते ह, जससे उनक उ त हो सके. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा ण ह चकृषे वधना न ताव इ म त भ व व मः. सुते सोमे सुतपाः श तमा न रा य ् ा या म व णा न य ैः.. (६) हे इं ! जस कार के तो को तुमने वयं बढ़ाया है, हम उसी कार के तो क बु पूवक रचना करते ह. हे सोमपानक ा इं ! जब सोमरस नचुड़ जाता है, तब हम तु हारे न म अ तशय सुख दे ने वाले, सुदंर ह से यु एवं भावपूण तो बोलते ह. (६) स नो बो ध पुरोळाशं रराणः पबा तु सोम गोऋजीक म . एदं ब हयजमान य सीदो ं कृ ध वायत उ लोकम्.. (७) हे इं ! तुम स होकर हमारा पुरोडाश वीकार करो. गाय के ध-दही से मले सोमरस को पओ, यजमान ारा बछाए ए कुश पर बैठो एवं अपने भ यजमान का घर व तीण करो. (७) स म द वा नु जोषमु वा य ास इमे अ ुव तु. ेमे हवासः पु तम मे आ वेयं धीरवस इ य याः.. (८) हे उ इं ! तुम अपनी इ छा के अनुकूल स बनो. ये सोम तु ह ा त ह , हमारी तु तयां ब त ारा बुलाए ए इं को ा त ह . हे इं ! तु ह यह तु त हमारी र ा के न म ववश करे. (८) तं वः सखायः सं यथा सुतेषु सोमे भर पृणता भोज म म्. कु व मा अस त नो भराय न सु व म ोऽवसे मृधा त.. (९) हे तोताओ! तुम सोमरस नचुड़ जाने पर दाता इं क अ भलाषाएं सोमरस ारा पूण करो. इं के लए अ धक मा ा म सोमरस मले, जससे वे हमारा पोषण कर सक. इं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान क तृ त म बाधा नह डालते ह. (९) एवे द ः सुते अ ता व सोमे भर ाजेषु य द मघोनः. अस था ज र उत सू र र ो रायो व वार य दाता.. (१०) भर ाज ऋ ष ने सोमरस नचुड़ जाने पर ह प धन वाले यजमान के वामी इं क तु त इस कार क है, जससे इं तु तक ा को स माग क ेरणा दे ने वाले एवं सूय य धन के दाता बन. (१०)
सू —२४
दे वता—इं
वृषा मद इ े ोक उ था सचा सोमेषु सुतपा ऋजीषी. अच यो मघवा नृ य उ थै ु ो राजा गराम तो तः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमरस-यु य म इं क सोमपान से उ प स ता यजमान क अ भलाषा पूरी करने वाली हो. वै दक मं वाली तु त भी यजमान क इ छा पूरी करे. सोम पीने वाले, सोमलता का रसहीन अंश वीकारने वाले एवं धनवान् इं मानव क तु तय ारा पूजा करने यो य ह. वग म रहने वाले एवं तु तय के वामी इं पूणतया र ा करते ह. (१) ततु रव रो नय वचेताः ोता हवं गृणत उ ू तः. वसुः शंसो नरां का धाया वाजी तुतो वदथे दा त वाजम्.. (२) श ु के हसक, वीर, मानव हतकारी, वशेष- ानी हमारी तु त सुनने वाले, तु तक ा के वशेष र क, नवास थान दे ने वाले, तोता के शंसनीय, तु तय को समझने वाले एवं अ के वामी इं य म बुलाए जाने पर अ दे ते ह. (२) अ ो न च योः शूर बृह वृ य नु ते पु त वया
ते म ा र रचे रोद योः. ू३ तयो र पूव ः.. (३)
हे शूर इं ! तु हारी म हमा तु हारे रथ के प हय के अ के समान धरती-आकाश से बढ़ जाती है. हे ब त ारा बुलाए ए इं ! तु हारी ब त सी र ाएं वृ क शाखा के समान बढ़ती ह. (३) शचीवत ते पु शाक शाका गवा मव ुतयः स चरणीः. व सानां न त तय त इ दाम व तो अदामानः सुदामन्.. (४) हे अनेक य कमक ा एवं बु मान् इं ! तु हारी श यां गाय के समान माग पर चलती ह. हे शोभन-दान वाले इं ! तु हारी श यां बछड़ क र सय के समान वयं बंधनहीन रहकर श ु को बांधती ह. (४) अ यद कवरम य ोऽस च स मु राच र ः. म ो नो अ ा व ण पूषाय वश य पयता त.. (५) इं आज जो काम करते ह, कल उसक अपे ा वल ण काय करते ह, वे बार-बार सत् एवं असत् काय करते ह. इस य म इं के अ त र म , व ण, पूषा एवं स वता हमारी अ भलाषा पूरी कर. (५) व वदापो न पवत य पृ ा थे भ र ानय त य ैः. तं वा भः सु ु त भवाजय त आ ज न ज मु गवाहो अ ा.. (६) हे इं ! तोता ह और तु तय ारा तुमसे इस कार अपनी मनचाही व तुएं ा त करते ह, जस कार पवत के ऊपरी भाग से जल मलता है. हे तु तय ारा वंदना करने यो य इं ! तु त करने वाले एवं अ के इ छु क भर ाजगो ीय ऋ ष तु तयां लेकर तु हारे समीप इस कार जाते ह, जस कार घोड़े ज द से यु म उप थत होते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न यं जर त शरदो न मासा न ाव इ मवकशय त. वृ य च धताम य तनूः तोमे भ थै श यमाना.. (७) वष एवं मास इं को बूढ़ा नह बनाते. दन भी उ ह बल नह करते. हमारी तु तयां सुनकर महान् इं का शरीर बढ़े . (७) न वीळवे नमते न थराय न शधते द युजूताय तवान्. अ ा इ य गरया वा ग भीरे च व त गाधम मै.. (८) हमारी तु तयां सुनकर इं ढ़शरीर एवं यु म अ वचल रहने वाले यजमान के वश म नह होते और न द यु ारा उ सा हत तथा े रत यजमान क ही बात मानते ह. महान् पवत भी इं के लए सुगम ह एवं अ धक गहरा थान भी इं से बच नह सकता. (८) ग भीरेण न उ णाम ेषो य ध सुतपाव वाजान्. था ऊ षु ऊ व ऊती अ रष य ो ु ौ प रत यायाम्.. (९) हे बलवान् एवं सोम पीने वाले इं ! तुम गंभीर एवं व तृत मन से हम अ तथा श दो. तुम हमारी हसा न करते ए रात- दन हमारी र ा के लए तैयार रहो. (९) सच व नायमवसे अभीक इतो वा त म पा ह रषः. अमा चैनमर ये पा ह रषो मदे म शत हमाः सुवीराः.. (१०) हे इं ! तुम य कम के नेता यजमान क र ा करो एवं समीपवत तथा रवत श ु से उसे बचाओ. तुम घर म तथा जंगल म यजमान क र ा करो. हम शोभन-संतान वाले बनकर सौ वष तक स रह. (१०)
सू —२५
दे वता—इं
या त ऊ तरवमा या परमा या म यमे शु म त. ता भ षु वृ ह येऽवीन ए भ वाजैमहा उ .. (१) हे बलवान् इं ! तु हारे जो अधम, म यम एवं उ म र ा-साधन ह, उनके ारा यु म हमारी भली-भां त र ा करो. हे उ एवं महान् इं ! तुम हम भोजन के साधन प अ से यु करो. (१) आ भः पृधो मथतीर रष य म य थया म यु म . आ भ व ा अ भयुजो वषूचीरायाय वशोऽव तारीदासीः.. (२) हे इं ! हमारी तु तय से स होकर हमारी श ुघा तनी सेना क र ा करते ए श ु के कोष को समा त करो. इ ह तु तय से स होकर य करने वाले यजमान के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क याण के लए या काय को न करने वाली सभी जा
को समा त करो. (२)
इ जामय उत येऽजामयोऽवाचीनासो वनुषो युयु े. वमेषां वथुरा शवां स ज ह वृ या न कृणुही पराचः.. (३) हे इं ! जो नकट या र थत श ु हमारे सामने न आकर हमारी हसा करने के लए तैयार ह, तुम उन श ु के बल को हीन करो उनक श समा त करो एवं उ ह हमसे वमुख बनाओ. (३) शूरो वा शूरं वनते शरीरै तनू चा त ष य कृ वैते. तोके वा गोषु तनये यद सु व दसी उवरासु वैते.. (४) हे इं ! वीर तु हारा अनु ह पाकर अपनी शारी रक श से वरोधी वीर को मार डालता है. शरीर से शोभा पाते ए वे दोन एक- सरे के वरोध म यु करते ह तथा पु , पौ , गाय, जल एवं ऊपजाऊ भू म के वषय म जोर-जोर से बात करते ह. (४) न ह वा शूरो न तुरो न धृ णुन वा योधो म यमानो युयोध. इ न क ् वा य येषां व ा जाता य य स ता न.. (५) हे इं ! शूर, श ुनाशक, वजय पाने वाले एवं यु म ु होते ए यो ा तु हारे साथ यु करने को तैयार नह होते. हे इं ! इन लोग म कोई भी तु हारे बराबर नह है. तुम उन सबको हराते हो. (५) स प यत उभयोनृ णमयोयद वेधसः स मथे हव ते. वृ े वा महो नृव त ये वा च व ता य द वत तसैते.. (६) दास-दा सय वाले घर के लए जो दो आपस म लड़ते ह, उन म से वही धन पाता है, जसके ऋ वज् इं के न म हवन करते ह. (६) अध मा ते चषणयो यदे जा न अ माकासो ये नृतमासो अय इ
ातोत भवा व ता. सूरयो द धरे पुरो नः.. (७)
हे इं ! तु हारे तोता जब भय से कांपने लग तो तुम उनका पालन एवं र ण करो. हे इं ! हमारे जो पु ष य काय के नेता ह एवं ज ह ने हम धान बनाया है, तुम उनक र ा करो. (७) अनु ते दा य मह इ याय स ा ते व मनु वृ ह ये. अनु मनु सहो यज े दे वे भरनु ते नृष े.. (८) हे महान् इं ! तु हारा ऐ य बढ़ाने के न म श ुवध के लए तु ह सभी श ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यां द गई
ह. हे य पा इं ! यु म तु ह सभी दे व ने ऐसा बल दया है, जससे तुम श ु करने के साथ ही सबको धारण कर सको. (८)
का नाश
एवा न पृधः समजा सम व रार ध मथतीरदे वीः. व ाम व तोरवसा गृण तो भर ाजा उत त इ नूनम्.. (९) हे इं ! तुम इस कार तु तयां सुनकर यु म श ु सेना को मारने के लए हम े रत करो एवं हसा करती ई असुर सेना को वश म करो. हे इं ! हम भर ाजवंशीय ऋ ष तु हारी तु त करते ए अ के साथ ही नवास थान ा त कर. (९)
सू —२६
दे वता—इं
ुधी न इ याम स वा महो वाज य सातौ वावृषाणाः. सं य शोऽय त शूरसाता उ ं नोऽवः पाय अह दाः.. (१) हे इं ! हम तोता तु ह सोमरस से स चते ए महान् अ पाने के लए बुलाते ह. तुम हमारी पुकार सुनो. जब लोग यु के लए जाव, तब हम लोग क उ म र ा करना. (१) वां वाजी हवते वा जनेयो महो वाज य ग य य सातौ. वां वृ े व स प त त ं वां च े मु हा गोषु यु यन्.. (२) हे इं ! वा जनी के पु भर ाज सबके ारा चाहने यो य महान् अ को पाने के लए ह यु होकर तु ह बुलाते ह. उप व सामने आने पर म स जन के पालक एवं के वनाशक इं को बुलाता ं. म गाय के हेतु श ु से लड़ता आ उ ह मु क से मार डालता ं. (२) वं क व चोदयोऽकसातौ वं कु साय शु णं दाशुषे वक्. वं शरो अममणः पराह त थ वाय शं यं क र यन्.. (३) हे इं ! तुम भागव ऋ ष को अ पाने के लए े रत करो. तुमने ह दाता कु स के क याण के लए शु ण असुर को मारा था. तुमने अ त थ व को सुखी करने के लए वयं को अजेय समझने वाले शंबर असुर का सर काट दया. (३) वं रथं भरो योधमृ वमावो यु य तं वृषभं दश ुम्. वं तु ं वेतसवे सचाह वं तु ज गृण त म तूतोः.. (४) हे इं ! तुमने वृषभ राजा को यु का साधन रथ दया था. वृषभ जब दस दन तक चलने वाला यु लड़ रहा था, तब तुमने उसक र ा क थी. तुमने राजा वेतस का सहायक बनकर तु असुर को मारा था एवं तु त करने वाले तु ज नामक राजा क उ त क थी. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं त थ म बहणा कः य छता सह ा शूर द ष. अव गरेदासं श बरं ह ावो दवोदासं च ा भ ती.. (५) हे श ुनाशक इं ! तुमने शंसनीय काय कया है. हे शूर इं ! तुमने शंबर असुर के सैकड़ एवं हजार यो ा को वद ण कया था. तुमने पवत से उ प एवं य ा द कम के वघातक शंबर असुर को मारा था एवं व च र ासाधन ारा दवोदास का पालन कया था. (५) वं ा भम दसानः सोमैदभीतये चुमु र म स वप्. वं र ज पठ नसे दश य ष सह श या सचाहन्.. (६) हे इं ! तुमने ापूवक कए गए य एवं सोमरस से स होकर दभी त राजा के क याण के लए चुमु र नामक असुर को मारा. तुमने पठ नस को रा य दे ते समय अपनी बु ारा साठ हजार यो ा को एक साथ ही मार डाला. (६) अहं चन त सू र भरान यां तव याय इ सु नमोजः. वया य तव ते सधवीर वीरा व थेन न षा श व .. (७) हे वीर से यु एवं अ तशय श शाली इं ! तोतागण श ु वजयी एवं भुवन-र क के प म तु ह मानकर तु हारे दए ए सुख एवं बल क तु त करते ह. हे इं ! हम भर ाजगो ीय ऋ ष तु हारे ारा दए गए उ म बल और सुख को अपने तोता के साथ ा त कर. (७) वयं ते अ या म ु न तौ सखायः याम म हन े ाः. ातद नः ीर तु े ो घने वृ ाणां सनये धनानाम्.. (८) हे पूजनीय इं ! हम तु हारे तोता इस धन न म क तो ारा तु हारे अ तशय य बन. तदन के पु ी हमारे राजा ह. वे श ु के नाश एवं धनलाभ म सबसे े ह . (८)
दे वता—इं
सू —२७
कम य मदे क व य पीता व ः कम य स ये चकार. रणा वा ये नष द क ते अ य पुरा व व े कमु नूतनासः.. (१) इं ने सोमरस से स होकर, सोमरस को पीकर एवं इससे म ता रखकर या काम कया? हे इं ! ाचीन एवं नवीन तोता ने य शाला म तुमसे या पाया? (१) सद य मदे स
य पीता व ः सद य स ये चकार.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
रणा वा ये नष द स े अ य पुरा व व े स नूतनासः.. (२) इं ने सोमरस से स होकर, सोमरस पीकर एवं सोमरस से म ता था पत करके उ म कम कए. हे इं ! ाचीन एवं नवीन तोता ने तुमसे य शाला म स कम ा त कया था. (२) न ह नु ते म हमनः सम य न मघवन् मघव व य व . न राधसोराधसो नूतन ये न कद श इ यं ते.. (३) हे धन वामी इं ! हम तु हारे समान कसी मह वशाली एवं धनी को नह जानते. तु हारे समान धन का भी हम ान नह है. हे इं ! तु हारे समान श कोई नह दखाता. (३) एत य इ यमचे त येनावधीवर शख य शेषः. व य य े नहत य शु मा वना च द परमो ददार.. (४) हे इं ! हम तु हारा वह बल नह जानते, जसके ारा तुमने वर शख नामक रा स के पु का वध कया था. हे इं ! तु हारे ारा फके गए व के श द से ही अ तशय बली वर शख के पु मर गए थे. (४) वधी द ो वर शख य शेषोऽ याव तने चायमानाय श न्. वृचीवतो य रयूपीयायां ह पूव अध भयसापरो दत्.. (५) इं ने चायमान राजा के पु अ यवत को मनचाहा धन दे ते ए वर शख के पु का वध कया था. इं ने जब ह रयू पया नामक नद के एक ओर खड़े वर शख के प रवारी वृचीवान् को मारा, तब उस नद के सरे कनारे पर खड़े वर शख के पु भय से मर गए. (५) श छतं व मण इ साकं य ाव यां पु त व या. वृचीव तः शरवे प यमानाः पा ा भ दाना यथा यायन्.. (६) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! तु ह यु म मारकर यश चाहने वाले, तु ह मारने के लए आ मणकारी, य पा को तोड़ते ए एवं कवच धारण करने वाले वर शख के एक सौ तीस पु य ावती नद के समीप एक साथ ही मारे गए. (६) य य गावाव षा सूयव यू अ त षु चरतो रे रहाणा. स सृ याय तुवशं परादाद्वृचीवतो दै ववाताय श न्.. (७) जन इं के तेज वी, सुंदर घास के इ छु क एवं बार-बार घास का वाद लेने वाले घोड़े धरती-आकाश के म य घूमते ह, उन इं ने तुवश राजा को सृंजय के लए भट कर दया एवं दे ववाक वंश के राजा अ यवत के क याण के लए वर शख के पु को वश म कया. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
याँ अ ने र थनो वश त गा वधूमतो मघवा म ं स ाट् . अ यावत चायमानो ददा त णाशेयं द णा पाथवानाम्.. (८) हे अ न! अ धक धन दे ने वाले एवं राजय करने वाले राजा चायमान के पु अ यवत ने हम भर ाजगो ीय ऋ षय के लए य स हत रथ एवं बीस गाएं द ह. पृथव ु ंश म उ प राजा अ यवत क द णा कसी के ारा न नह क जा सकती. (८)
सू —२८
दे वता—गो व इं
आ गावो अ म ुत भ म सीद तु गो े रणय व मे. जावतीः पु पा इह यु र ाय पूव षसो हाना.. (१) गाएं हमारे घर आव और हमारा क याण कर. वे हमारी गोशाला म बैठ एवं हमारे ऊपर स ह . इस गोशाला क तरह-तरह के रंग वाली गाएं बछड़ वाली होकर इं के न म ातःकाल ध द. (१) इ ो य वने पृणते च श युपे दा त न वं मुषाय त. भूयोभूयो र य मद य वधय भ े ख ये न दध त दे वयुम्.. (२) इं य करने वाले एवं तु तय ारा स करने वाले को मनचाहा धन दे ते ह. वे उ ह सदा धन दे ते ह, कभी छ नते नह . वे बराबर ऐसे लोग का धन बढ़ाते ह एवं दे व को चाहने वाले को श ु ारा भ न होने वाले थान म रखते ह. (२) न ता नश त न दभा त त करो नासामा म ो थरा दधष त. दे वाँ या भयजते ददा त च यो ग ा भः सचते गोप तः सह.. (३) वे गाएं न न ह . चोर उ ह चुराव नह . श ु का श उन पर न गरे. गाय का वामी जन गाय ारा इं के न म य करता है एवं ज ह इं को दया जाता है, उन गाय के साथ उनका वामी अ धक समय तक रहे. (३) न ता अवा रेणुककाटो अ ुते न सं कृत मुप य त ता अ भ. उ गायमभयं त य ता अनु गावो मत य व चर त य वनः.. (४) धूल उड़ाने वाले एवं यु के लए आए ए घोड़े उन गाय को न पाव. वे गाएं वशसन सं कार को न ा त कर. य क ा मनु य क गाएं व तृत एवं भयर हत थान म घूम. (४) गावो भगो गाव इ ो मे अ छान् गावः सोम य थम य भ ः. इमा या गावः स जनास इ इ छामीद्धृदा मनसा च द म्.. (५) गाएं हमारा धन ह . इं हम गाएं द. गाएं हम उ म सोमरस के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प म भ य द. हे
मनु यो! इसी कार क गाएं इं बन जाती ह. हम
ापूण मन से इं को चाहते ह. (५)
यूयं गावो मेदयथा कृशं चद ीरं च कृणुथा सु तीकम्. भ ं गृहं कृणुथ भ वाचो बृह ो वय उ यते सभासु.. (६) हे गायो! तुम हम ब ल बनाओ. तुम बले एवं असुंदर को भी सुंदर शरीर वाला बनाओ. हे भ वचन वाली गायो! हमारे घर को क याणमय बनाओ. य सभा म तु हारे महान् अ का वणन होता है. (६) जावतीः सूयवसं रश तीः शु ा अपः सु पाणे पब तीः मा वः तेन ईशत माघशंसः प र वो हेती य वृ याः.. (७) हे गायो! तुम संतान वाली बनो, खाने के न म सुंदर तनके तोड़ो एवं सुख से पीने यो य तालाब आ द से साफ पानी पओ. चोर तु हारा मा लक न बने. हसक पशु तुम पर आ मण न कर. काल प परमे र का आयुध तुमसे र रहे. (७) उपेदमुपपचनमासु गोषूप पृ यताम्. उप ऋषभ य रेत युपे
तव वीय.. (८)
हे इं ! तु ह श शाली बनाने के लए इन गाय के पु होने क ाथना क जा रही है. तु हारी श के लए गाय को गभवती बनाने वाले सांड़ क श क ाथना क जा रही है. (८)
सू —२९
दे वता—इं
इ ं वो नरः स याय सेपुमहो य तः सुमतये चकानाः. महो ह दाता व ह तो अ त महामु र वमवसे यज वम्.. (१) हे यजमानो! तु हारे म पी ऋ वज् म ता पाने के लए इं क सेवा करते ह. वे महान् तो बोलते ए इं क कृपा चाहते ह. हाथ म व धारण करने वाले इं महान् धनदाता ह. तुम र ा के हेतु महान् एवं सुंदर इं क पूजा करो. (१) आ य म ह ते नया म म ुरा रथे हर यये रथे ाः. आ र मयो गभ योः थूरयोरा व ासो वृषणो युजानाः.. (२) जन इं के हाथ म मानव- हतकारी धन रहता है, जो सोने के बने रथ पर बैठते ह, जनक मोट भुजा म करण समाई ई ह एवं जनके कामवषक घोड़े रथ म जुड़े ए ह, उनक हम तु त करते ह. (२) ये ते पादा व आ म म ुधृ णुव ी शवसा द णावान्. वसानो अ कं सुर भ शे कं व१ण नृत व षरो बभूथ.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! भर ाज ऋ ष ऐ य पाने के लए तु हारे चरण म अपनी सेवा भट करते ह. तुम व धारणक ा, श ुपराभवकारी एवं श ारा द णा प धन तोता को दे ते हो. हे नेता इं ! तुम सबको दखाई दे ने के वचार से शंसनीय एवं न यगमन वाला प धारण करके सूय के समान घूमते हो. (३) स सोम आ म तमः सुतो भू म प ः प यते स त धानाः. इ ं नरः तुव तो कारा उ था शंस तो दे ववाततमाः.. (४) सोमरस नचुड़ जाने पर उस म भली-भां त से ध-दही मलाया गया है. इसके बाद ही पुरोडाश पकाया गया है एवं जौ भूने गए ह. य के नेता ऋ वज् ह प अ धारण करते ए इं क तु तयां करते ह एवं उ थ को बोलते ए दे व के नकट जाते ह. (४) न ते अ तः शवसो धा य य व तु बाबधे रोदसी म ह वा. आ ता सू रः पृण त तूतुजानो यूथेवा सु समीजमान ऊती.. (५) हे इं ! तु हारी श का अंत नह है. धरती-आकाश भी तु हारे महान् बल से डरते ह. गोर क जस कार पानी के ारा गाय को संतु बनाता है, उसी कार तोता तृ त करने वाले ह व से तु ह भली-भां त स करते ह. (५) एवे द ः सुहव ऋ वो अ तूती अनूती ह र श ः स वा. एवा ह जातो असमा योजाः पु च वृ ा हन त न द यून्.. (६) हरे रंग क ठोड़ी वाले इं इस कार ठ क से बुलाने यो य ह. इं वयं आव अथवा न आव, पर तोता को धन दे ते ह. इस कार उ प ए इं सवा धक श शाली होने के कारण बड़े-बड़े श ु एवं रा स को मारते ह. (६)
सू —३०
दे वता—इं
भूय इ ावृधे वीयायँ एको अजुय दयते वसू न. र रचे दव इ ः पृ थ ा अध मद य त रोदसी उभे.. (१) इं वीरतापूण-काय करने के लए बार-बार बढ़े ह. मुख एवं जरार हत इं तोता को धन दे ते ह एवं धरती-आकाश से भी बढ़कर ह. इनका आधा भाग ही धरती-आकाश के बराबर है. (१) अधा म ये बृहदसुयम य या न दाधार न करा मना त. दवे दवे सूय दशतो भू स ा यु वया सु तुधात्.. (२) हम इं के उस बल क तु त करते ह, जो असुर को मारने म कुशल है. इं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जन काम
को धारण करते ह, कोई भी उ ह न नह कर सकता. इं त दन गोलाकार सूय को दे खने यो य बनाते ह. शोभन-कम वाले इं ने सारे संसार को व तृत कया है. (२) अ ा च ू च दपो नद नां यदा यो अरदो गातु म . न पवता अ सदो न से वया हा न सु तो रजां स.. (३) हे इं ! पहले के समान आज भी तु हारा न दय से संबं धत जल पी कम व मान है. तुमने इनके बहने के लए माग बनाया था. खाना खाने के लए बैठे मनु य के समान पवत तु हारी आ ा से बैठ गए थे. हे शोभन कम वाले इं ! तुमने लोक को ढ़ बनाया है. (३) सयम वावाँ अ ती दे वो न म य यायान्. अह ह प रशयानमण ऽवासृजो अपो अ छा समु म्.. (४) हे इं ! यह बात स य है क तु हारे समान सरा नह है. कोई भी मनु य या दे व तुमसे बड़ा नह है. तुमने जल को रोककर सोए ए मेघ को मारा एवं जल को समु म बहने के लए वतं बनाया. (४) वमपो व रो वषूची र हम जः पवत य. राजाभवो जगत षणीनां साकं सूय जनयन् ामुषासम्.. (५) हे इं ! तुमने वृ असुर ारा रोके ए जल को बहने के लए व छं द बनाया एवं मेघ के ढ़ जलावरोध को न कया था. तुम सूय, उषा एवं वग को एक साथ ही का शत करते ए जा के राजा बने. (५)
सू —३१
दे वता—इं
अभूरेको र यपते रयीणामा ह तयोर धथा इ कृ ीः. व तोके अ सु तनये च सुरेऽवोच त चषणयो ववाचः.. (१) हे धनप त इं ! तुम धन के एकमा वामी हो. हे इं ! तुम अपने दोन हाथ म जा को धारण करते हो. जाएं, पु , जल एवं वीर पु पाने के न म हम तु हारी तु त करते ह. (१) व ये पा थवा न व ा युता च यावय ते रजां स. ावा ामा पवतासो वना न व ं हं भयते अ म ा ते.. (२) हे इं ! मेघ तु हारे भय के कारण व तृत एवं आकाश म उ प जल को बरसाते ह. वैसे वह जल नीचे गराने यो य नह है. तु हारे आगमन से धरती-आकाश, पवत, वन एवं सम त ाणी डरते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं कु सेना भ शु ण म ाशुषं यु य कुयवं ग व ौ. दश प वे अध सूय य मुषाय म ववे रपां स.. (३) हे इं ! तुमने शु ण नामक बल असुर के वरोध म कु स के साथ रहकर यु कया था एवं सं ाम म कुयव का वध कया था. तुमने यु म सूय के रथ का एक प हया चुरा लया था एवं पापकारी रा स को इस संसार से भगा दया था. (३) वं शता यव श बर य पुरो जघ था ती न द योः. अ श ो य श या शचीवो दवोदासाय सु वते सुत े भर ाजाय गृणते वसू न.. (४) हे इं ! तुमने शंबर असुर क सौ अजेय नग रय को न कर दया था. हे बु मान् एवं नचुड़े ए सोमरस ारा खरीदे गए इं ! तुमने सोमरस नचोड़ने वाले दवोदास को बु म ापूवक धन दया एवं तु त करने वाले भर ाज को संप यां द . (४) स स यस व महते रणाय रथमा त तु वनृ ण भीमम्. या ह प थ वसोप म च ुत ावय चष ण यः.. (५) हे श शाली यो ा वाले तथा अ धक धनसंप इं ! तुम महान् रण के लए अपने भयानक रथ पर बैठो. हे उ म-माग वाले इं ! तुम हमारी र ा के लए हमारे सामने आओ. हे स इं ! अ य जा क अपे ा हम स बनाओ. (५)
सू —३२
दे वता—इं
अपू ा पु तमा य मै महे वीराय तवसे तुराय. वर शने व णे श तमा न वचां यासा थ वराय त म्.. (१) हमने महान्, वीर, श शाली, शी ता करने वाले, वशेष प से तु तयो य, व धारी एवं उ त इं के लए अपने मुख के ारा अनोखी, बड़ी एवं सुखकारक तु तयां क ह. (१) स मातरा सूयणा कवीनामवासय जद गृणानः. वीधी भऋ व भवावशान उ णामसृज दानम्.. (२) इं ने माता के समान धरती-आकाश को अं गरागो ीय ऋ षय के क याण के न म सूय ारा चमकाया था एवं अं गरा क तु त सुनकर पवत के टु कड़े कए थे. इं ने शोभन यान वाली तु तयां सुनकर गाय को बंधनमु कया था. (२) स व भऋ व भग षु श मत ु भः पु कृ वा जगाय. पुरः पुरोहा स ख भः सखीय हा रोज क व भः क वः सन्.. (३) वीरतापूण अनेक कम करने वाले इं ने ह वहन करने वाले तु तक ा एवं पालथी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मारकर बैठे ए अं गरागो ीय ऋ षय का साथ दे कर उनके श ु को जीता. नगर को न करने वाले एवं ानी इं ने म ता मानने वाले अं गरा क म ता के कारण रा स के नगर न कए. (३) स नी ा भज रतारम छा महो वाजे भमह पु वीरा भवृषभ तीनामा गवणः सु वताय
शु मैः. या ह.. (४)
हे कामपूरक एवं तु तय ारा सेवा करने यो य इं ! तुम अपने तो को मनु य म सुखी बनाने के लए महान् अ , महान् बल एवं सुंदर बछे ड़ वाली घो ड़य के साथ उनके सामने आते हो. (४) स सगण शवसा त ो अ यैरप इ ो द णत तुराषाट् . इ था सृजाना अनपावृदथ दवे दवे व वषुर मृ यम्.. (५) हसक को हराने वाले इं सदा उ त बल के ारा न य चलने वाले तेज से मलकर सूय के द णायन होने पर जल को वतं करते ह. इस कार उ प जल कभी वापस न लौटने के लए शांत समु म त दन मलता है. (५)
सू —३३
दे वता—इं
य ओ ज इ तं सु नो दा मदो वृष व भ दा वान्. सौव ं यो वनव व ो वृ ा सम सु सासहद म ान्.. (१) हे अ भलाषापूरक इं ! हम अ तशय श शाली, तु तय ारा तु ह स करने वाला, शोभन य करने वाला व ह दाता पु भली कार दो. वह पु सुंदर घोड़े पर सवार होकर सं ाम म श ु के सुंदर घोड़ को मारे एवं श ु को परा जत करे. (१) वां ही३ ावसे ववाचो चषणयः शूरसातौ. वं व े भ व पण रशाय वोत इ स नता वाजमवा.. (२) हे इं ! व वध प से तु तयां करने वाले मनु य यु म र ा के न म तु ह बुलाते ह. तुमने मेधावी अं गरा के साथ मलकर प णय का वशेष प से नाश कया था. तु हारे ारा र त ही अ ा त करता है. (२) वं ताँ इ ोभयाँ अ म ा दासा वृ ा याया च शूर. वध वनेव सु धते भर कैरा पृ सु द ष नृणां नृतम.. (३) हे शूर इं ! तुम द यु एवं आय दोन कार के श ु का नाश करते हो. हे नेता म े इं ! लकड़हारा जैसे वन को काटता है, उसी कार तुम अपने तीखे आयुध से सं ाम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मश ु
को काटते हो. (३)
स वं न इ ाकवा भ ती सखा व ायुर वता वृधे भूः. वषाता यद् वयाम स वा यु य तो नेम धता पृ सु शूर.. (४) हे सब जगह जाने वाले इं ! तुम दोषर हत र ा साधन ारा उ त के लए हमारी र ा करो तथा हमारे म बनो. हे शूर इं ! हम अपने कुछ सै नक के साथ सं ाम करते ए धन ा त करने के लए तु ह बुलाते ह. (४) नूनं न इ ापराय च या भवा मृळ क उत नो अ भ ौ. इ था गृण तो म हन य शम द व याम पाय गोषतमाः.. (५) हे इं ! तुम आज एवं अ य दन म न त प से हमारे बनो एवं हमारे समीप आकर हम सुखी बनाओ. हम इस कार क तु तय ारा गाय के वामी बनकर तु हारे ारा द तेज वी सुख म थत रह. (५)
सू —३४
दे वता—इं
सं च वे ज मु गर इ पूव व च व त व वो मनीषाः. पुरा नूनं च तुतय ऋषीणां पर पृ इ अ यु थाका.. (१) हे इं ! तुम म ब त से तु त-वचन मलते ह. तोता क व तृत वचारधाराएं तु ह से नकलती ह. ाचीन एवं वतमान ऋ षय क तु तयां, मं एवं उपासना इं के वषय म एक- सरे से बढ़कर ह. (१) पु तो यः पु गूत ऋ वाँ एकः पु श तो अ त य ैः. रथो न महे शवसे युजानो ३ मा भ र ो अनुमा ो भूत्.. (२) हम लोग ब त ारा बुलाए गए, ब त ारा ो सा हत महान्, अ तीय एवं ब त ारा तुत इं को य ारा स करते ह. इं रथ के समान महान् श ा त करने के लए हमारे ारा सदा तु त का वषय बन. (२) न यं हस त धीतयो न वाणी र ं न तीद भ वधय तीः. य द तोतारः शतं य सह ं गृण त गवणसं शं तद मै.. (३) सेवाकम एवं तु त-वचन इं को बाधा नह प ंचा सकते. इं क वृ करती ई तु तयां उनके सामने जाती ह. सैकड़ एवं हजार तोता तु तपा इं क तु त करके उ ह स करते ह. (३) अ मा एत १ चव मासा म म इ े यया म सोमः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जनं न ध व भ सं यदापः स ा वावृधुहवना न य ैः.. (४) आज य म इं को तो के साथ अ पत करने हेतु मं -स हत सोमरस तैयार है. जस कार म भू म क ओर बहने वाला जल मनु य का पालन करता है, उसी कार य के साथ दए गए ह इं को पु कर. (४) अ मा एत म ा षम मा इ ाय तो ं म त भरवा च. अस था मह त वृ तूय इ ो व ायुर वता वृध .. (५) तोता ारा इं के लए यह तो इस लए बोला जाता है, जससे सं ाम म वह हमारे र क एवं वृ क ा ह . (५)
सू —३५
दे वता—इं
कदा भुव थ या ण कदा तो े सह पो यं दाः. कदा तोमं वासयोऽ य राया कदा धयः कर स वाजर नाः.. (१) हे इं ! हमारी तु तयां तु ह पाकर कब रथ पर चढ़गी? मुझ तोता को तुम हजार लोग का पोषण करने वाली गाएं कब दोगे? मेरे तो को धन से यु कब करोगे? तुम य कम को अ से सुशो भत कब करोगे? (१) क ह व द य ृ भनॄ वीरैव रा ीळयासे जयाजीन्. धातु गा अ ध जया स गो व ु नं वव े मे.. (२) हे इं ! तुम हमारे सै नक को श ु सै नक एवं हमारी संतान को श ुसंतान के साथ कब भड़ाओगे तथा यु म श ु को कब जीतोगे? तुम श ु क ध, दही एवं घी दे ने वाली गाय को अ धक सं या म कब जीतोगे? हे इं ! तुम हम ा त धन कब दोगे? (२) क ह व द य ज र े व सु कृणवः श व . कदा धयो न नयुतो युवासे कदा गोमघा हवना न ग छाः.. (३) हे अ तशय बलवान् इं ! तुम तु तक ा को सभी कार का अ कब दोगे? तुम य कम एवं तु तय को अपने म कब मलाओगे? तुम तो को गाय दे ने वाला कब बनाओगे? (३) स गोमघा ज र े अ पी पहीषः सु घा म
ा वाज वसो अ ध धे ह पृ ः. धेनुं भर ाजेषु सु चो याः.. (४)
हे इं ! हम तु त करने वाले भर ाजगो ीय ऋ षय को गाएं दे ने वाला एवं श शाली घोड़ से यु स अ दो. तुम अ तथा सरलता से ही जाती गाय को हम दो एवं उ ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द त बनाओ. (४) तमा नूनं वृजनम यथा च छू रो य छ व रो गृणीषे. मा नररं शु घ य धेनोरा रसा णा व ज व.. (५) हे इं ! तुम हमारे श ु को मृ यु से मलाओ. हे शूर एवं श ुहंता इं ! हम तु हारी तु त करते ह. हे ेत ध दे ने वाली गो के दाता इं ! हम तु हारी तु तय से कभी क नह . हे बु मान् इं ! अं गरागो वाल को अ से तृ त करो. (५)
सू —३६
दे वता—इं
स ा मदास तव व ज याः स ा रायोऽध ये पा थवासः. स ा वाजानामभवो वभ ा य े वष े ु धारयथा असुयम्.. (१) हे इं ! यह बात स य है क तु हारी सोमपान से उ प स ता सबको हतकारक होती है. तीन लोक म थत तु हारी संप यां भी लोग का हत करती ह. तुम न संदेह अ दे ने वाले एवं दे व म बल धारण करने वाले हो. (१) अनु येजे जन ओजो अ य स ा द धरे अनु वीयाय. यूमगृभे धयेऽवते च तुं वृ य प वृ ह ये.. (२) यजमान इं के बल क सदा वशेष कार से पूजा करता है. यह स य है क वीरता का काम करने के लए इं को आगे रखता है. श ु क घनी पं के रोकने वाले, हसक एवं उन पर आ मण करने वाले इं वृ रा स को मारने के लए जाते ह. (२) तं स ीची तयो वृ या न प या न नयुतः स र म्. समु ं न स धव उ थशु मा उ चसं गर आ वश त.. (३) पर पर संगत म द्गण एवं वीयबल से यु तथा रथ म जुते ए अ इं क सेवा करते ह. न दयां जस कार समु से मलती ह, उसी कार मं - धान तु तयां सव ापक इं से मलती ह. (३) स राय खामुप सृजा गृणानः पु प तबभूथासमो जनानामेको व
य व म व वः. य भुवन य राजा.. (४)
हे इं ! तुम तु तयां सुनकर धन क स रता बहा दो. धन ब त को स ता एवं नवास थान दे ने वाला है. तुम मनु य के अ तीय वामी एवं सारे संसार के राजा हो. (४) स तु ु ध ु या यो वोयु न भू म भ रायो अयः. असो यथा नः शवसा चकानो युगेयुगे वयसा चे कतानः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! सुनने यो य तो को ज द सुनो एवं हमारी सेवा क कामना करते ए सूय के समान श ु का धन जीतो. तुम समय-समय पर बल से तु त के वषय और इ ा ारा भली-भां त ात होकर पहले के समान हमारे पास रहो. (५)
सू —३७
दे वता—इं
अवा थं व वारं त उ े यु ासो हरयो वह तु. क र वा हवते ववानृधीम ह सधमाद ते अ .. (१) हे उ इं ! तु हारे रथ म जुड़े ए घोड़े तु हारे सब लोग ारा पूजा यो य रथ को मेरे सामने लाव. गुण वाले तोता अथात् भर ाज तु ह बुलाते ह. हम आज तु हारे साथ स होते ए उ त कर. (१) ो दोणे हरयः कमा म पुनानास ऋ य तो अभूवन्. इ ो नो अ य पू ः पपीयाद् ु ो मद य सो य य राजा.. (२) हरे रंग का सोमरस हमारे य म बहता है एवं प व बनकर कलश म सीधी तरह जाता है. पुरातन, द तशाली एवं इस नशीले सोमरस के राजा इं इस सोमरस को पएं. (२) आस ाणासः शवसानम छे ं सुच े र यासो अ ाः. अ भ व ऋ य तो वहेयुनू च ु वायोरमृतं व द येत्.. (३) चार ओर चलने वाले एवं शोभन प हय वाले रथ म जुड़े ए घोड़े रथ पर बैठे ए इं को हमारे सामने लाव. अमृत-तु य सोमरस पी ह व हवा से न सूखे. (३) व र ो अ य द णा मयत ो मघोनां तु वकू मतमः. यया व वः प रया यंहो मघा च धृ णो दयसे व सूरीन्.. (४) अ तशय श शाली एवं भां त-भां त के काम करने वाले इं ह -अ के वामी लोग के म य यजमान को द णा दे ते ह. हे व धारी इं ! तुम उसी द णा ारा पाप का नाश करते हो. हे श ुनाशक इं ! उसी द णा से तुम तोता को धन तथा संतान दे ते हो. (४) इ ो वाज य थ वर य दाते ो गी भवधतां वृ महाः. इ ो वृ ं ह न ो अ तु स वा ता सू रः पृणा त तूतुजानः.. (५) इं महान् बल के दाता ह . तेज वी इं हमारी तु तय के कारण वृ ा त कर. श ुनाशक इं जल रोकने वाले को मार. इं अ यंत शी तापूवक वे धन हम द. (५)
सू —३८
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपा दत उ न प यस धी त दै
तमो मह भषद् ुमती म तम्. य याम न य रा त वनते सुदानुः.. (१)
अ तशय व च इं हमारे चमस से सोमरस पएं एवं अपने से संबं धत हमारी महती एवं द तमती तु त वीकार कर. शोभन दान वाले इं दे व कम करने वाले यजमान क य म शंसा यो य तु त एवं ह वीकार कर. (१) रा चदा वसतो अ य कणा घोषा द य त य त ुवाणः. एयमेनं दे व तववृ या म य ् १ ग मयमृ यमाना.. (२) इं के कान र से ही तु तयां सुनने को आते ह. तोता इं क तु त करते ह. दे व के आ ान के प म यह तु त अपने आप ेरणा दे ती ई इं को मेरी ओर ले आवे. (२) तं वो धया परमया पुराजामजर म म यनू यकः. ा च गरो द धरे सम म हाँ तोमो अ ध वध द े .. (३) हे ाचीन काल म उ प एवं जरार हत इं ! हम अ त उ म तु तय एवं ह ा से तु त करते ह. तु तय एवं ह ा को इं वीकार करते ह. इं के त कही गई तु त बढ़ती है. (३) वधा ं य उत सोम इ ं वधाद् गर उ था च म म. वधाहैनमुषसो याम ोवधा मासाः शरदो ाव इ म्.. (४) य एवं सोमरस इं को बढ़ाते ह. ह , तु तयां, मं एवं पूजा व धयां इं को बढ़ाती ह. उषा, दन एवं रात क ग तयां इं को बढ़ाती ह. मास, संव सर एवं दन इं को बढ़ाते ह. (४) एवा ज ानं सहसे असा म वावृधानं राधसे च ुताय. महामु मवसे व नूनमा ववासेम वृ तूयषु.. (५) हे बु मान्, उ कार से उ प , श ु को हराने के लए ब त अ धक बढ़े ए, महान् एवं उ इं ! हम यु म बल, धन एवं र ा पाने के लए तु हारी सेवा करते ह. (५)
सू —३९
दे वता—इं
म य कवे द य व े व म मनो वचन य म वः. अपा न त य सचन य दे वेषो युव व गृणते गोअ ाः.. (१) हे इं ! तुम हमारे नशीले, वीरता ेरक, द , बु मान स ताकारक सोम को पओ एवं हम गाएं आ द धन दो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा शं सत,
स
एवं
अयमुशानः पय मु ा ऋतधी त भऋतयु युजानः. जद णं व वल य सानुं पण वचो भर भ योध द ः.. (२) इन इं ने पवत के ारा घरी ई गाय के उ ार क इ छा से य करने वाले अं गरागो ीय ऋ षय क स ची तु तय से भा वत होकर असुर को सहायता करने वाले पवत को तोड़ा एवं अपने स आयुध से प णय से यु कया. (२) अयं ोतयद ुतो १ ू दोषा व तोः शरद इ र . इमं केतुमदधुनू चद ां शु चज मन उषस कार.. (३) हे इं ! इस सोमरस ने द तर हत रात, दन, वष आ द को का शत कया था. दे व ने पहले सोम को दवस के झंडे के प म वीकार कया था. इसी सोमरस ने उषा को शोभनज म वाली बनाया था. (३) अयं रोचयद चो चानो३यं वासयद् ृ१ तेन पूव ः. अयमीयत ऋतयु भर ैः व वदा ना भना चष ण ाः.. (४) इ ह द तशू य इं ने सूय के प म का शत होकर सब लोक को काशयु एवं तेज के ारा उषा को तेजपूण कया था. जा क अ भलाषाएं पूरी करने वाले इं ने तु तय के अनुसार चलने वाले घोड़ से ख चे गए एवं धन ा त करने वाले रथ पर बैठकर गमन कया था. (४) नू गृणानो गृणते न राज षः प व वसुदेयाय पूव ः. अप ओषधीर वषा वना न गा अवतो नॄनृचसे ररी ह.. (५) हे ाचीन एवं तेज वी इं ! तुम तु त सुनकर धन के पा तोता को अ धक अ दो. तुम उसे जल, ओष धयां, वषहीन वन, गाएं, घोड़े एवं सेवक दान करो. (५)
सू —४०
दे वता—इं
इ पब तु यं सुतो मदायाव य हरी व मुचा सखाया. उत गाय गण आ नष ाथा य ाय गृणते वयो धाः.. (१) हे इं ! यह सोम तु हारा नशा बढ़ाने के लए नचोड़ा गया है. तुम इसे पओ. अपने म प घोड़ को रथ म जोतो एवं या ा के बाद उ ह छोड़ दो. तुम तोता के बीच बैठकर तु तयां गाओ एवं अपने तोता को अ दो. (१) अ य पब य य ज ान इ मदाय वे अ पबो वर शन्. तमु ते गावो नर आपो अ र ं सम पीतये सम मै.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे महान् इं ! तुमने ज म लेते ही जस कार सोमरस पया था, उसी कार स ता पाने के लए यह सोम पओ. तु हारे पीने के लए गाएं, जल, प थर एवं सोमलता एक क गई ह. (२) स म े अ नौ सुत इ सोम आ वा वह तु हरयो व ह ाः. वायता मनसा जोहवीमी ा या ह सु वताय महे नः.. (३) हे इं ! अ न व लत एवं सोमरस नचुड़ जाने पर तु हारे वहनकुशल घोड़े तु ह इस य म लाव. हम अपना मन तुम म लगाकर बार-बार बुलाते ह. तुम हमारी वशाल समृ के लए आओ. (३) आ या ह श शता ययाथे महा मनसा सोमपेयम्. उप ा ण शृणव इमा नोऽथा ते य त वे३ वयो धात्.. (४) हे इं ! तुम पहले सोमरस पीने के लए कई बार आए थे. सोमपान करने क महती अ भलाषा वाले मन से इस समय भी आओ एवं हमारी इन तु तय को सुनो. यजमान तु हारे शरीर को पु बनाने के लए तु ह सोमरस दान कर. (४) य द द व पाय य ध य ा वे सदने य वा स. अतो नो य मवसे नयु वा सजोषाः पा ह गवणो म
ः.. (५)
हे तु तपा एवं अ के वामी इं ! तुम रवत वग म, कसी अ य थान म अथवा अपने घर म कह भी होओ, म त के साथ हमारी र ा के लए इस य म आओ. (५)
सू —४१
दे वता—इं
अहेळमान उप या ह य ं तु यं पव त इ दवः सुतासः. गावो न व वमोको अ छे ा ग ह थमो य यानाम्.. (१) हे इं ! तुम ोधर हत होकर इस य म आओ. तु हारे न म ही प व सोमलता को नचोड़ा गया है. गाएं जस कार गोशाला म वेश करती ह, उसी कार सोमरस कलश म रखा है. हे य पा म े इं ! तुम यहां आओ. (१) या ते काकु सुकृता या व र ा यया श पब स म व ऊ मम्. तया पा ह ते अ वयुर था सं ते व ो वतता म ग ुः.. (२) हे इं ! तुम अपनी सु न मत एवं लंबी जीभ के ारा जस तरह अब तक सोमरस पीते रहे हो, उसी कार आज भी पओ. सोमरस लेकर अ वयु तु हारे सामने खड़ा है. हे इं ! श ु क गाय को जीतने का इ छु क तु हारा व श ु का नाश करे. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एष सो वृषभो व प इ ाय वृ णे समका र सोमः. एतं पब ह रवः थात य ये शषे द व य ते अ म्.. (३) यह तरल, अ भलाषापूरक एवं व वध प वाला सोमरस मनोवां छत फल दे ने वाले इं के लए तैयार कया गया है. हे ह र नामक घोड़ के वामी, सबके अ धप त एवं ढ़ इं ! तुम उस सोम को पओ, जसके ऊपर तु हारा अ धकार है एवं जो तु हारा भोजन है. (३) सुतः सोमो असुता द व यानयं य े ा च कतुषे रणाय. एतं त तव उप या ह य ं तेन व ा त वषीरा पृण व.. (४) हे इं ! नचोड़ा आ सोमरस बना नचुड़ी ई सोमलता से उ म है. हे वचारशील इं ! सोमरस तु हारे लए स करने वाला है. हे श ु वजयी इं ! तुम य के साधन प सोम के समीप आओ तथा इसे पीकर अपनी श य को पूण करो. (४) याम स वे या वाङरं ते सोम त वे भवा त. शत तो मादय वा सुतेषु ा माँ अव पृतनासु व ु.. (५) वृ यु
हे इं ! हम तु ह बुलाते ह. तुम हमारे सामने आओ. हमारा यह सोमरस तु हारी शरीर के लए पया त है. हे शत तु इं ! तुम यह नचुड़ा आ सोमरस पीकर स बनो एवं म सभी ओर से हमारी र ा करो. (५)
दे वता—इं
सू —४२ य मै पपीषते व ा न व षे भर. अर माय ज मयेऽप ाद्द वने नरे.. (१)
हे अ वयुगण! पीने के इ छु क, सब कुछ जानने वाले, अ धक ग तशील, य उप थत रहने वाले, सबसे आगे चलने वाले एवं यु के नेता इं को सोमरस दो. (१) एमेनं
येतन सोमे भः सोमपातमम्. अम े भऋजी षण म ं सुते भ र
म
भः.. (२)
हे अ वयुगण! तुम सोमरस लेकर अ त अ धक सोम पीने वाले इं के पास जाओ. तुम नचोड़े ए सोम से भरे पा को लेकर श ुंजयी इं के पास जाओ. (२) यद सुते भ र
भः सोमे भः
तभूषथ. वेदा व
य मे धरो धृष त मदे षते.. (३)
हे अ वयुगण! नचुड़े ए एवं द तशाली सोमरस के साथ तुम इं के सामने जाओ. मेधावी इं तु हारी सभी इ छाएं जानते ह एवं श ु का नाश करते ए अ भलाषाएं पूरी करते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ माअ मा इद धसोऽ वय भरा सुतम्. कु व सम य जे य य शधतोऽ भश तेरव परत्.. (४) हे अ वयुगण! एकमा इं को ही नचोड़े ए सोमरस को ह के जीतने यो य एवं उ साह भरे श ु के े ष से हमारी र ा कर. (४)
प म दो. इं सभी
दे वता—इं
सू —४३
य य य छ बरं मदे दवोदासाय र धयः. अयं स सोम इ
ते सुतः पब.. (१)
हे इं ! जस सोमरस को पीने से उ प मद के कारण तुमने राजा दवोदास के क याण के लए शंबर असुर को मारा था, वही सोमरस तु हारे लए नचोड़ा गया है. तुम इसे पओ. (१) य य ती सुतं मदं म यम तं च र से. अयं स सोम इ
ते सुतः पब.. (२)
हे इं ! सोमलता का नशीला रस ातः, म या एवं सं या के य म नचोड़ा जाता है. तुम उसे पीते हो. वही सोमरस तु हारे लए नचोड़ा गया है. तुम इसे पओ. (२) य य गा अ तर मनो मदे
हा अवासृजः. अयं स सोम इ
ते सुतः पब.. (३)
हे इं ! जस सोमरस के नशे म तुमने पवत के घेरे म ढ़तापूवक बंद गाय को छु ड़ाया था, वही सोमरस तु हारे लए नचोड़ा गया है. इसे तुम पओ. (३) य य म दानो अ धसो माघोनं द धषे शवः. अयं स सोम इ
ते सुतः पब.. (४)
हे इं ! जस सोमरस प अ के कारण स होकर तुम अ तशय बल धारण करते हो, वही सोमरस तु हारे लए नचोड़ा गया है. इसे तुम पओ. (४)
सू —४४
दे वता—इं
यो र यवो र य तमो यो ु नै ु नव मः. सोमः सुतः स इ तेऽ त वधापते मदः.. (१) हे धन के वामी एवं वधा प सोम के र क इं ! जो सोमरस धन से अ यंत यु द त यश के कारण परम तेज वी है, वह सोमरस नचुड़ने पर तु ह स ता दे . (१) यः श म तु वश म ते रायो दामा मतीनाम्. सोमः सुतः स इ तेऽ त वधापते मदः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं
हे अ तशय सुखदाता एवं वधा प सोमरस के र क इं ! जो सोम तु ह परम सुखकारक एवं तोता को धन दे ने वाला है, वही सोमरस नचुड़ने पर तु ह स ता दे . (२) येन वृ ो न शवसा तुरो न वा भ त भः. सोमः सुतः स इ तेऽ त वधापते मदः.. (३) हे सोम प अ के र क इं ! तुम जस सोमरस को पीकर परम बलवान् बनते हो एवं अपने र क म त के साथ मलकर श ु का नाश करते हो, वही सोमरस नचुड़ने पर तु ह स ता दान करे. (३) यमु वो अ हणं गृणीषे शवस प तम्. इ ं व ासाहं नरं मं ह ं व चष णम्.. (४) हे यजमानो! हम तु हारे क याण के न म भ पर अनु ह करने वाले, श के वामी, सभी श ु को हराने वाले, य कम के नेता, अ तशय दाता एवं सबको दे खने वाले इं क तु त करते ह. (४) यं वधय तीद् गरः प त तुर य राधसः. त म व य रोदसी दे वी शु मं सपयतः.. (५) इं संबंधी तु तय ारा इं का श ुधनह ा बल बढ़ता है. द बल क सेवा करते ह. (५)
धरती-आकाश उसी
त उ थ य बहणे ायोप तृणीष ण. वपो न य योतयो व य ोह त स तः.. (६) हे तोताओ! इं के लए अपने तो क मह ा बढ़ाओ. इं सवकाय कुशल समान सदा तु हारी र ा करते ह. (६)
के
अ वदद्द ं म ो नवीया पपानो दे वे यो व यो अचैत्. ससवा तौला भध तरी भ या पायुरभव स ख यः.. (७) इं य कम म कुशल यजमान को जानते ह. म एवं अ यंत ताजा सोमरस पीने वाले इं तोता के लए े धन दे ते ह. ह प अ से यु एवं धरती को कं पत करने वाले म त के साथ रहने वाले इं तोता क र ा क अ भलाषा से आते ह एवं उनक र ा करते ह. (७) ऋत य प थ वेधा अपा य ये मनां स दे वासो अ न्. दधानो नाम महो वचो भवपु शये वे यो ावः.. (८) य के माग म सबको दे खने वाला सोमरस पया गया है. इं का मन अपनी ओर ख चने के लए सोम ऋ वज ारा तैयार कया गया है. इं श ुपराभवकारी एवं महान् ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शरीर धारण करते ए हमारी तु तय से स होकर आ वभूत ह . (८) ु मं द ं धे मे सेधा जनानां पूव ररातीः. म वष यो वय कृणु ह शची भधन य साताव माँ अ वड् ढ.. (९) हे इं ! हम अ यंत द तशाली बल दो. हम तोता लोग के ब त से श ु को हमसे र करो, अपनी े बु य ारा हम उ म धन दो एवं धन का भोग करने के लए हमारी र ा करो. (९) इ तु य म मघव भूम वयं दा े ह रवो मा व वेनः. न करा पद शे म य ा कम र चोदनं वा ः.. (१०) हे धन वामी इं ! हम तु हारे लए ही ह. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हम ह दाता के तकूल मत होना. तु हारे अ त र मनु य म हमारा कोई भी बंधु नह है. हे य इं ! इसी लए ाचीन लोग ने तु ह धन का ेरक कहा है. (१०) मा ज वने वृषभ नो ररीथा मा ते रेवतः स य रषाम. पूव इ न षधो जनेषु ज सु वी वृहापृणतः.. (११) हे अ भलाषापूरक इं ! हम हा नकारक रा स को मत स पना. तुझ धन वामी क म ता पाकर हम ःखी न ह . श ु तक तु हारी र सयां फैली ई ह. तुम सोम न नचोड़ने वाल को मारो एवं इ न दे ने वाल को समा त करो. (११) उद ाणीव तनय यत ो राधां य ा न ग ा. वम स दवः का धाया मा वादामान आ दभ मघोनः.. (१२) गरजते ए पज य जस कार मेघ को ज म दे ते ह, उसी कार इं होता को दे ने के लए घोड़े एवं गो- हतकारी धन उ प करते ह. तुम ाचीन काल से तोता के र क हो. धनी लोग दानहीन बनकर हम क न द. (१२) अ वय वीर महे सुताना म ाय भर स ा य राजा. यः पू ा भ त नूतना भग भवावृधे गृणतामृषीणाम्.. (१३) हे वीर अ वयुगण! महान् इं को सोमरस भट दो. वे सोम के राजा ह. ये तु तक ा ऋ षय क ाचीन एवं नवीन तु तय से वृ को ा त ए ह. (१३) अ य मदे पु वपा स व ा न ो वृ ा य ती जघान. तमु हो ष मधुम तम मै सोमं वीराय श णे पब यै.. (१४) व ान् एवं अ तीय इं ने इस सोमरस के नशे म अनेक वरोधी श ु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को मार
डाला. हे अ वयुगण! इसी शोभन हनु वाले एवं वीर इं को वह माधुययु दो. (१४)
सोमरस पीने को
पाता सुत म ो अ तु सोमं ह ता वृ ं व ेण म दसानः. ग ता य ं परावत द छा वसुध नाम वता का धायाः.. (१५) इं इस नचोड़े ए सोमरस को पएं एवं स होकर व ारा वृ को मार. सबको घर दे ने वाले, तोता के य कम के र क एवं यजमान के पालक इं र दे श से भी हमारे य म आव. (१५) इदं य पा म पान म य यममृतमपा य. म स था सौमनसाय दे वं १ मद् े षो युयव यंहः.. (१६) सोमरस इं का य, अनुकूल एवं पीने यो य है. इस अमृत प सोमरस को पीकर इं स ह तथा हमारे ऊपर कृपा करके हमारे श ु एवं पाप को र भगाव. (१६) एना म दानो ज ह शूर श ू ा ममजा म मघव म ान्. अ भषेणाँ अ या३ दे दशाना पराच इ मृणा जही च.. (१७) हे धन वामी इं ! इस सोमरस को पीकर तुम स बनो एवं हमारे नकटवत एवं रवत श ु को न करो. हे इं ! जो श ु सै नक हमारे सामने आकर बार-बार ह थयार डाल दे ते ह, उ ह हमसे र करके न करो. (१७) आसु मा णो मघव पृ व१ म यं म ह व रवः सुगं कः. अपां तोक य तनय य जेष इ सूरी कृणु ह मा नो अधम्.. (१८) हे धन वामी इं ! इन सभी सं ाम म हम महान् धन क ा त सरल बनाओ. तुम हम तोता को जल, पु , पौ क जय के न म समृ बनाओ एवं श ुनाश क श दो. (१८) आ वा हरयो वृषणो युजाना वृषरथासो वृषर मयोऽ याः. अ म ा चो वृषणो व वाहो वृ णे मदाय सुयुजो वह तु.. (१९) हे इं ! तु हारे अ भलाषापूरक अपने आप रथ म जुड़ने वाले, अ भलाषापूरक रथ को ढोने वाले, ढ ली लगाम वाले, न यग तशील, हमारे सामने आने वाले, सदायुवा, व ढोने वाले एवं भली कार रथ म जुड़े ए घोड़े नशीले सोम को पीने के लए तु ह यहां लाव. (१९) आ ते वृष वृषणो ोणम थुघृत ुषो नोमयो मद तः. इ तु यं वृष भः सुतानां वृ णे भर त वृषभाय सोमम्.. (२०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ भलाषापूरक इं ! तु हारे जल बरसाने वाले युवा घोड़े पानी फैलाने वाली सागर तंरग के समान स होकर तु हारे रथ म जुड़े ए ह. हे कामवष एवं युवा इं ! अ ययुगण तु ह प थर क सहायता से नचोड़ा गया सोमरस भट करते ह. (२०) वृषा स दवो वृषभः पृ थ ा वृषा स धूनां वृषभः तयानाम्. वृ णे ते इ वृषभ पीपाय वा रसो मधुपेयो वराय.. (२१) हे इं ! तुम ह ारा वग को तृ त करने वाले, धरती के अ भलाषापूरक, वषा ारा न दय को भरने वाले एवं थावरजंगम सकल व के कामपूरक हो. हे अ भलाषापूरक एवं वषाकारक इं ! तु हारे लए ही मधुर सोमरस तैयार कया गया है. (२१) अयं दे वः सहसा जायमान इ े ण युजा प णम तभायत्. अयं व य पतुरायुधानी रमु णाद शव य मायाः.. (२२) द तशाली सोम ने अपने म इं के साथ ज म लेकर प ण को बलपूवक रोक लया था. इसी सोमरस ने गो प धन को पवत म छपाकर रखने वाले अक याणकारी प णय क माया एवं आयुध बेकार कए थे. (२२) अयमकृणो षसः सुप नीरयं सूय अदधा यो तर तः. अयं धातु द व रोचनेषु तेषु व ददमृतं नगू हम्.. (२३) इसी सोमरस ने उषा के शोभनपालक सूय को सुशो भत कया था एवं सूय मंडल के बीच म यो त क थापना क थी. तीन सवन म तीन कार से वतमान इसी सोमरस ने तेज वी तीन लोक के बीच छपे ए अमृत को पाया था. (२३) अयं ावापृ थवी व कभायदयं रथमयुन स तर मम्. अयं गोषु श या प वम तः सोमो दाधार दशय ामु सम्.. (२४) इसी सोमरस ने धरती-आकाश को अपने थान पर थत कया था. इसी ने सात करण वाला रथ तैयार कया था. इस सोम ने ही गाय के म य अपने आप न मत होने वाले एवं अनेक धारा वाले ध को धारण कया था. (२४)
सू —४५
दे वता—इं व बृह प त
य आनय परावतः सुनीती तुवशं य म्. इ ः स नो युवा सखा.. (१) जो इं ! अपनी उ म नी त ारा तुवश एवं य नामक राजा इं हमारे म ह . (१)
को र से लाए, वे युवा
अ व े च यो दधदनाशुना चदवता. इ ो जेता हतं धनम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं तु त न करने वाले को भी अ दे ते ह एवं धीमी चाल वाले घोड़े पर चढ़कर श ु के छपे धन को जीतते ह. (२) महीर य णीतयः पूव त श तयः. ना य ीय त ऊतयः.. (३) इं क उ म नी तयां महान् एवं तु तयां अनेक ह. इं के र ासाधन कभी समा त नह होते. (३) सखायो बु
वाहसेऽचत
हे म प तोताओ! मं दे ते ह. (४)
च गायत. स ह नः म तमही.. (४) ारा बुलाने यो य इं क पूजा एवं तु त करो. वे हम उ म
वमेक य वृ ह वता योर स. उते शे यथा वयम्.. (५) हे वृ नाशक इं ! तुम एक या दो तोता र ा करते हो. (५) नयसी त
के र क हो. हमारे जैसे लोग क तु ह
षः कृणो यु थशं सनः. नृ भः सुवीर उ यसे.. (६)
हे इं ! े ष करने वाल को हमसे र करो एवं हम तोता शोभनपु दे ने वाले इं क तु त करते ह. (६) ाणं
को समृ
बनाओ. मनु य
वाहसं गी भः सखायमृ मयम्. गां न दोहसे वे.. (७)
म गाय के समान अ भलाषा प ध हने के लए इं को तु तय महान्, तु तयां वीकार करने वाले एवं म ह. (७) य य व ा न ह तयो चुवसू न न
ारा बुलाता ं. इं
ता. वीर य पृतनाषहः.. (८)
ऋ ष लोग ने कहा था क श ुसेना को हराने वाले वीर इं के दोन हाथ म सभी कार क संप यां ह. (८) व
हा न चद वो जनानां शचीपते. वृह माया अनानत.. (९)
हे व धारी एवं य के वामी इं ! तुम श ु के ढ़ नगर को भ न करो. हे न झुकने वाले इं ! तुम श ु क माया को समा त करो. (९) तमु वा स य सोमपा इ
वाजानां पते. अ म ह व यवः.. (१०)
हे स य वभाव, सोम पीनेवाले एवं धन के वामी इं ! हम अ क अ भलाषा से तु ह बुलाते ह. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तमु वा यः पुरा सथ यो वा नूनं हते धने. ह ः स ुधी हवम्.. (११) हे इं ! तुम ाचीन काल म पुकारने यो य थे एवं वतमान काल म श ु के छपे ए धन को पाने के लए बुलाए जाते हो. हम तु ह बुलाते ह. तुम हमारी पुकार सुनो. (११) धी भरव
रवतो वाजाँ इ
वा यान्. वया जे म हतं धनम्.. (१२)
हे इं ! हमारी तु तयां सुनकर तुम स होते हो. तु हारी कृपा से हम अपने घोड़ श ु के घोड़ , उ म अ एवं छपे ए धन को जीतने यो य बनते ह. (१२) अभू वीर गवणो महाँ इ यु
ारा
धने हते. भरे वत तसा यः.. (१३)
हे वीर, तु त यो य एवं महान् इं ! तुम श ु म श ु को जीतने वाले हो. (१३)
के छपे ए धन के न म
होने वाले
या त ऊ तर म ह म ूजव तमास त. तया नो हनुही रथम्.. (१४) हे श ुनाशक इं ! तुम अपनी अ तशय ती ग त से हमारे रथ को श ु वजय के न म आगे बढ़ाओ. (१४) स रथेन रथीतमोऽ माकेना भयु वना. जे ष ज णो हतं धनम्.. (१५) हे रथ वा मय म े एवं जयशील इं ! तुम हमारे श ुपराजयकारी रथ ारा श ु के छपे धन को जीतते हो. (१५) य एक इ म ु ह कृ ीनां वचष णः. प तज े वृष तुः.. (१६) उ ह एकमा इं क तु त करो जो जा वाले के प म उ प ए थे. (१६)
के वामी, वशेष
यो गृणता मदा सथा प ती शवः सखा. स वं न इ
मृळय.. (१७)
हे र ा ारा सुखदाता एवं सखा इं ! ाचीन काल म तुम हम तोता अब भी हम सुखी करो. (१७) ध व व ं गभ यो र ोह याय व
ा एवं वषा करने
के बंधु थे. तुम
वः. सासही ा अ भ पृधः.. (१८)
हे व धारी इं ! तुम रा स को मारने के हेतु व वाली असुर सेना को हराते हो. (१८) नं रयीणां युजं सखायं क रचोदनम्.
धारण करते हो एवं वरोध करने
वाह तमं वे.. (१९)
म सबके आ द, धन ा त करने वाले, सखा, तोता को ो सा हत करने वाले एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं
के ारा बुलाने यो य इं को बुलाता ं. (१९) स ह व ा न पा थवाँ एको वसू न प यते. गवण तमो अ गुः.. (२०)
अ तशय तु तपा एवं अबाध ग त वाले इं ही धरती के सब धन के एकमा ह. (२०) स नो नयु
रा पृण कामं वाजे भर
भः. गोम
वामी
ग पते धृषत्.. (२१)
हे गोपालक इं ! तुम घो ड़य के साथ आकर हमारी अ भलाषा अ , घोड़ एवं गाय से भली-भां त पूरी करो. (२१) त ो गाय सुते सचा पु
ताय स वने. शं यद्गवे न शा कने.. (२२)
हे तोताओ! गाय को जैसे घास सुख दे ती है, उसी कार सोमरस इं को सुखी बनाता है. सोमरस नचुड़ जाने पर यह तो ब त ारा बुलाए गए, श ुनाशक एवं दानशील इं के लए सुखकर होता है. तुम लोग इं को बुलाओ. (२२) न घा वसु न यमते दानं वाज य गोमतः. य सीमुप वद् गरः.. (२३) नवास थान दे ने वाले इं तब हम अनेक गाय स हत अ तु तयां सुनते ह. (२३) कु व स य
दे ते ह, जब वे हमारी
ह जं गोम तं द युहा गमत्. शची भरप नो वरत्.. (२४)
द युवधक ा इं कु व स क अन गनत गाय वाली गोशाला म गए. इं ने अपनी बु से उन छपी ई गाय को कट कया. (२४) इमा उ वा शत तोऽ भ
णोनुवु गरः. इ
व सं न मातरः.. (२५)
हे सैकड़ कार के य करने वाले इं ! जस कार गाएं बछड़ के पास बार-बार जाती ह, उसी कार हमारी तु तयां तु हारे समीप प ंच. (२५) णाशं स यं तव गौर स वीर ग ते. अ ो अ ायते भव.. (२६) हे इं ! तु हारी म ता न नह हो सकती. तुम गाय चाहने वाले को गाय दे ने वाले एवं घोड़ा चाहने वाल को घोड़ा दे ने वाले बनो. (२६) स म द वा
धसो राधसे त वा महे. न तोतारं नदे करः.. (२७)
हे इं ! महान् धन के उद्दे य से दए ए सोमरस से तुम स बनो तथा अपने तोता को नदक के अ धकार म मत करो. (२७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमा उ वा सुतेसुते न
ते गवणो गरः. व सं गावो न धेनवः.. (२८)
हे तु तय ारा शंसनीय इं ! येक बार सोमरस नचुड़ जाने पर हमारी तु तयां उसी कार तु हारे पास प ंचती ह, जस कार धा गाएं बछड़ के पास जाती ह. (२८) पु तमं पु णां तोतृणां ववा च. वाजे भवाजयताम्.. (२९) हे अनेक श ु के नाशक इं ! व वध तु तय वाले य म हम तोता ह ा ारा तु ह बलवान् बनाव. (२९) अ माक म
क तु तयां
भूतु ते तोमो वा ह ो अ तमः. अ मा ये महे हनु.. (३०)
हे इं ! हमारी परम उ तकारक तु तयां तु हारे समीप प ंच. तुम हम महान् धन पाने के लए े रत करो. (३०) अ ध बृबुः पणीनां व ष े मूध (३१)
थात्. उ ः क ो न गाङ् गयः.. (३१)
बृबु प णय के बीच इतने ऊंचे थान पर बैठा था, जतना ऊंचा गंगा का तट होता है. य य वायो रव व
ा रा तः सह णी. स ो दानाय मंहते.. (३२)
बृबु ने मुझ धन चाहने वाले को एक हजार गाएं हवा के समान तेज ग त से दान क थ . (३२) त सु नो व े अय आ सदा गृण त कारवः. बृबुं सह दातमं सू र सह सातमम्.. (३३) हम तोता सदा उ ह े बृबु क तु त करते ह. वे हम हजार गाएं दे ने वाले, व ान् एवं हजार तु तय के पा ह. (३३)
सू —४६
दे वता—इं
वा म हवामहे साता वाज य कारवः. वां वृ े व स प त नर वां का ा ववतः.. (१) हे इं ! हम तोता अ ा त के कारण तु ह बुलाते ह. अ य लोग तुझ स जन पालक को घोड़ वाले सं ाम म वजय पाने के लए बुलाते ह. (१) स वं न व ह त धृ णुया महः तवानो अ वः. गाम ं र य म सं कर स ा वाजं न ज युषे.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व च , हाथ म व धारण करने वाले, व के वामी, श ुनाशक एवं महान् इं ! यु म श ु को जीतने वाले को तुम जस कार ब त सा अ दे ते हो, उसी कार तुम हमारी तु तय से स होकर हम गाएं व रथ ख चने म कुशल घोड़े दो. (२) यः स ाहा वचष ण र ं तं महे वयम्. सह मु क तु वनृ ण स पते भवा सम सु नो वृधे.. (३) जो इं बल श ु को मारने वाले एवं सबको दे खने वाले ह, उ ह हम बुलाते ह. हे हजार शेप ( लग ) वाले, ब धनसंप एवं स जन पालक इं ! यु म तुम हम समृ बनाओ. (३) बाधसे जनान् वृषभेव म युना घृषौ मीळह ऋचीषम. अ माकं बो य वता महाधने तनू व सु सूय.. (४) हे ऋचा के अनुकूल प वाले इं ! तुम श ुबाधक यु म बैल के समान ोध म भरकर हमारे श ु को पी ड़त करो. धन- न म क महायु म तुम हमारे र क बनो. हम संतान, जल एवं सूयदशन ा त कर. (४) इ ये ं न आ भरँ ओ ज ं पपु र वः. येनेमे च व ह त रोदसी ओभे सु श ाः.. (५) हे व च , हाथ म व धारण करने वाले एवं सुंदर ठोड़ी वाले इं ! जस अ के ारा तुम वग एवं धरती का पोषण करते हो, हम वही अ धक शंसनीय, परम बलकारक एवं पु कारक अ दो. (५) वामु मवसे चषणीसहं राज दे वेषु महे. व ा सु नो वथुरा प दना वसोऽ म ा सुषहा कृ ध.. (६) हे तेज वी, दे व म सवा धक उ एवं श ु को हराने वाले इं ! हम अपनी र ा के न म तु ह बुलाते ह. हे नवास थान दे ने वाले इं ! तुम सब रा स को र भगाओ एवं हमारे श ु को सरलता से हराने यो य बनाओ. (६) य द ना षी वाँ ओजो नृ णं च कृ षु. य ा प च तीनां ु नमा भर स ा व ा न प या.. (७) हे इं ! मानव जा म जो बल एवं धन है अथवा पांच वण म जो अ है, वह सब महान् श य के साथ हम दो. (७) य ा तृ ौ मघवन् ावा जने य पूरौ क च वृ यम्. अ म यं त री ह सं नृषा ेऽ म ा पृ सु तुवणे.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धन वामी इं ! तुम हम तृ ,ु एवं पु नामक राजा कार हम यु आरंभ होने पर श ु को जीत सकगे. (८)
का सम त बल दो. इस
इ धातु शरणं व थं व तमत्. छ दय छ मघव य म ं च यावया द ुमे यः.. (९) हे इं ! ह प धन वाले लोग तथा हमारे लए तीन धातु से बना आ, तीन क से बचाने वाला, वनाशर हत एवं छाया करने वाला घर दो. श ु के आयुध हमसे र करो. (९) ये ग ता मनसा श ुमादभुर भ न त धृ णुया. अध मा नो मघव गवण तनूपा अ तमो भव.. (१०) हे धन वामी एवं तु तयां सुनने वाले इं ! जन श ु ने हमारी गाएं छ नने क इ छा से आ मण कया है अथवा जो बलपूवक हम पर हार करते ह, तुम उनसे हमारे एकमा र क बनो. (१०) अध मा नो वृधे भवे नायमवा यु ध. यद त र े पतय त प णनो द व त ममूधानः.. (११) हे इं ! इस समय तुम हमारे वृ क ा बनो. जब आकाश म पंख वाले, तेज नोक वाले एवं चमक ले बाण गरते ह, उस समय जो हमारी र ा करता है, तुम उसक र ा करो. (११) य शूरास त वो वत वते या शम पतॄणाम्. अध मा य छ त वे३ तने च छ दर च ं यावय े षः.. (१२) जब यु म शूर श ु को अपने शरीर का बल दखाते ह एवं श ु से उनके पूवज के य थान को छ नते ह, उस समय तुम हमारी और हमारी संतान क शरीर-र ा के लए आयुध-र क कवच चुपचाप दे दे ना. तुम हमारे श ु को भगाओ. (१२) य द सग अवत ोदयासे महाधने. असमने अ व न वृ जने प थ येनाँ इव व यतः.. (१३) हे इं ! महान् धन के न म सं ाम आरंभ होने पर हमारे घोड़ को ऊंचे-नीचे रा ते पर इस कार आगे बढ़ाना, जस कार कु टल पथ पर मांस का इ छु क बाज बढ़ता है. (१३) स धूँ रव वण आशुया यतो य द लोशमनु व ण. आ ये वयो न ववृत या म ष गृभीता बा ोग व.. (१४) हे इं ! जब हमारे घोड़े भय के कारण जोर से हन हनाएं, उस समय तुम भुजा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा
लगाम के सहारे पकड़े ए हमारे घोड़ को े रत करो. जससे वे गो न म क सं ाम म नीचे बहने वाली स रता अथवा मांस के अ भलाषी बाज के समान आगे बढ़. (१४)
सू —४७
दे वता—सोम, पृ वी आ द
वा कलायं मधुमाँ उतायं ती ः कलायं रसवाँ उतायम्. उतो व१ य प पवांस म ं न क न सहत आहवेषु.. (१) यह नचोड़ा आ सोमरस वा द , मधुर, ती एवं रसवाला है. इसे पीने वाले इं के सामने यु म कोई ठहर नह सकता. (१) अयं वा रह म द आस य ये ो वृ ह ये ममाद. पु ण य यौ ना श बर य व नव त नव च दे ो३ हन्.. (२) यह सोमरस इस य म ब त मदकारक था. वृ हनन के समय इं इसी से मदम थे. इसी ने शंबर क न यानवे नग रय तथा सेना का नाश कया था. (२)
ए
अयं मे पीत उ दय त वाचमयं मनीषामुशतीमजीगः. अयं षळु व र ममीत धीरो न या यो भुवनं क चनारे.. (३) यह सोमरस पीने पर मेरी वाणी को तेज करता है एवं मनचाही बु दान करता है. इसी धीर सोमरस ने छः अव था को बनाया है. कोई भी ाणी इससे र नह रह सकता. (३) अयं स यो व रमाणं पृ थ ा व माणं दवो अकृणोदयं सः. अयं पीयूषं तसृषु व सु सोमो दाधारोव१ त र म्.. (४) इस सोमरस ने धरती का व तार और वग क ढ़ता क है. इसी ने ओष ध, जल और गो—तीन उ म आधार म रस धारण कया है. यही व तृत आकाश को धारण करता है. (४) अयं वद च शीकमणः शु स नामुषसामनीके. अयं महा महता क भनेनोद् ामा त नाद् वृषभो म वान्.. (५) उ वल आकाश म रहने वाली उषा से पहले सोमरस ही व च काश वाले सूय का काश ा त करता है. यह जल बरसाने वाला सोम म त से मलकर महान् बल के ारा मजबूत खंभ के सहारे वग को धारण करता है. (५) धृष पब कलशे सोम म वृ हा शूर समरे वसूनाम्. मा य दने सवन आ वृष व र य थानो र यम मासु धे ह.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे शूर इं ! तुम कलश म रखा आ सोमरस पओ और धन न म क यु म श ु का नाश करो. हे धनपा इं ! दोपहर के य म सोमरस से अपना पेट भरो एवं हम धन दो. (६) इ णः पुरएतेव प य नो नय तरं व यो अ छ. भवा सुपारो अ तपारयो नो भवा सुनी त त वामनी तः.. (७) हे इं ! आगे चलने वाले मागदशक के समान हमको दे खो, हमारे सामने उ म धन लाओ तथा हम ःख एवं श ु से पार करो. तुम उ म नेता बनकर हम धन क ओर चलाओ. (७) उ ं नो लोकमनु ने ष व ा वव यो तरभयं व त. ऋ वा त इ थ वर य बा उप थेयाम शरणां बृह ता.. (८) श (८)
हे व ान् इं ! हम व तीण वग म ले चलो. वह वग काशपूण एवं भयर हत है. हे शाली इं ! हम तु हारी सुंदर एवं ढ़ भुजा पर अपनी र ा के लए भरोसा करते ह. व र े न इ व धुरे धा व ह योः शताव योरा. इषमा व ीषां व ष ां मा न तारी मघव ायो अयः.. (९)
हे सैकड़ संप य के वामी इं ! वहन करने म कुशल घोड़ ारा ख चे जाने वाले व तृत रथ पर हम बैठाओ. तुम हमारे लए भां त-भां त के अ म से उ म अ दो. हे धन वामी इं ! धन के वषय म कोई भी हमसे आगे न नकल सके. (९) इ मृळ म ं जीवातु म छ चोदय धयमयसो न धाराम्. य क चाहं वायु रदं वदा म त जुष व कृ ध मा दे वव तम्.. (१०) हे इं ! मुझे सुखी बनाओ, मेरे द घ जीवन क इ छा करो एवं मेरी बु को तलवार क धार के समान तेज करो. तु ह अपना बनाने के लए म जो कुछ कर रहा ,ं उसे समझो एवं मुझे दे व पी र क से यु करो. (१०) ातार म म वतार म ं हवेहवे सुहवं शूर म म्. या म श ं पु त म ं व त नो मघवा धा व ः.. (११) म श ु से र ा करने वाले तथा अ भलाषापूरक इं को बुलाता ं. म शोभन आ ान वाले एवं शूर इं को बुलाता ं. म सवकायसमथ एवं ब त ारा बुलाए गए इं को बुलाता ं. धन वामी इं मुझे क याण द. (११) इ ः सु ामा ववाँ अवो भः सुमृळ को भवतु व वेदाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बाधतां े षो अभयं कृणोतु सुवीय य पतयः याम.. (१२) भली-भां त र ा करने वाले एवं धन वामी इं अपने र ा-साधन से मुझे सुखदाता ह . सब कुछ जानने वाले इं हमारे श ु को मार एवं हम अभय बनाव. हम इं क कृपा से शोभन वीर के वामी बन. (१२) त य वयं सुमतौ य य या प भ े सौमनसे याम. स सु ामा ववाँ इ ो अ मे आरा चद् े षः सनुतयुयोतु.. (१३) हम य पा इं क शोभन-अनु ह-बु एवं क याणकारी- म ता-भाव के पा बन. शोभन, र क और धनवान् इं े ष करने वाल को हमसे र कर. (१३) अव वे इ वतो नो म गरो ा ण नयुतो धव ते. उ न राधः सवना पु यपो गा व युवसे स म न्.. (१४) हे इं ! जलसमूह जस कार नचले थान क ओर बहता है, उसी कार तोता क तु तयां, सोम प तो वशाल धन व व तृत सोमरस तु हारे पास जाते ह. हे व धारी इं ! तुम सोमरस म गोरस एवं जल भली कार मलाते हो. (१४) क तव कः पृणा को यजाते य म मघवा व हावेत्. पादा वव हर यम यं कृणो त पूवमपरं शची भः.. (१५) कौन इं क तु त कर सकता है, कौन इ ह स कर सकता है एवं कौन इनका य कर सकता है? इं अपने को सदा उ जानते ह. इं माग म आगेपीछे पड़ने वाले पैर के समान तोता को अपनी बु ारा कभी अपने आगे और कभी अपने पीछे रखते ह. (१५) शृ वे वीर उ मु ं दमाय यम यम तनेनीयमानः. एधमानद् वळु भय य राजा चो कूयते वश इ ो मनु यान्.. (१६) इं बलश ु का दमन करते ए एवं तोता के लए बार-बार थान बदलते ए वीर के प म स होते ह. सोमरस न नचोड़ने वाले उ त लोग के े षी तथा द -पा थव दोन संप य के वामी इं अपने सेवक को र ा के लए बार-बार बुलाते ह. (१६) परा पूवषां स या वृण वततुराणो अपरे भरे त. अनानुभूतीरवधू वानः पूव र ः शरद ततरी त.. (१७) इं ाचीन य क ा क म ता याग दे ते ह एवं उनक हसा करते ए साधारण य क ा के म बनते ह. इं प रचयार हत जा को छोड़कर तोता के साथ अनेक वष तक रहते ह. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पं पं त पो बभूव तद य पं तच णाय. इ ो माया भः पु प ईयते यु ा य हरयः शता दश.. (१८) इं दे व के त न ध बनकर भ - भ दे व का प धारण करते ह. इनका एक प अ य दे व के दशन के लए होता है. इं माया ारा अनेक प बनाकर यजमान के सामने आते ह. इं के रथ म एक हजार घोड़े जोड़े जाते ह. (१८) युजानो ह रता रथे भू र व ेह राज त. को व ाहा षतः प आसत उतासीनेषु सू रषु.. (१९) इं अपने रथ म घोड़े जोड़ते ए तीन लोक म अनेक जगह शोभा पाते ह. इं के अ त र ऐसा कौन है जो तोता के बीच जाकर इनके श ु के पास खड़ा रह सके. (१९) अग ू त े माग म दे वा उव सती भू मरं रणाभूत्. बृह पते च क सा ग व ा व था सते ज र इ प थाम्.. (२०) हे दे वो! हम घूमतेघूमते गो-संचारर हत थान म आ गए ह. यहां क व तृत धरती द यजुन को आनंद दे ती है. हे बृह प त! तुम गाय को खोजने म हम ेरणा दो. हे इं ! इस कार ःख अनुभव करते ए तोता को माग बताओ. (२०) दवे दवे स शीर यमध कृ णा असेधदप स नो जाः. अह दासा वृषभो व नय तोद जे व चनं श बरं च.. (२१) इं आकाश के एक भाग से सूय प म कट होकर बाद वाला आधा भाग का शत करने के लए त दन समान प वाली काली रात को समा त करते ह. वषा करने वाले इं ने ‘उदव ’ नामक थान म धन चाहने वाले दास —शंबर एवं वच को मारा था. (२१) तोक इ ु राधस त इ दश कोशयीदश वा जनोऽदात्. दवोदासाद त थ व य राधः शा बरं वसु य भी म.. (२२) हे इं ! तोक ने तु हारे तोता अथात् हम दस घोड़े और सोने से भरे दस कोश दए थे. अ त थ व ने शंबर को जीतकर जो धन पाया था, वही हमने दवोदास से हण कया. (२२) दशा ा दश कोशा दश व ा धभोजना. दशो हर य प डा दवोदासादसा नषम्.. (२३) मने दवोदास से दस घोड़े, सोने के दस कोश, दस कार के भोजन, व दस पड ा त कए थे. (२३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं सोने के
दश रथा
मतः शतं गा अथव यः. अ थः पायवेऽदात्.. (२४)
अ थ ने वायु को घोड़ स हत दस रथ एवं अथव गो वाले ऋ षय को सौ गाएं द थ . (२४) म ह राधे व ज यं दधानान्. भर ाजा सा
यो अ यय .. (२५)
सबक भलाई के लए महान् धन धारण करने वाले भर ाजगो ीय ऋ षय क सृंजयपु पु तोक ने पूजा क थी. (२५) वन पते वीड् व ो ह भूया अ म सखा तरणः सुवीरः. गो भः स ो अ स वीळय वा थाता ते जयतु जे वा न.. (२६) हे का ारा न मत रथ! तुम ढ़ अवयव वाले बनो. तुम हमारे म उ तकारक एवं शोभन वीर से यु बनो. तुम गोचम से बंधे हो, हम ढ़ बनाओ. तु हारा भरोसा करने वाले रथी वीर श ु को जीत. (२६) दव पृ थ ाः पय ज उ तं वन प त यः पयाभृतं सहः. अपामो मानं प र गो भरावृत म य व ं ह वषा रथं यज.. (२७) हे अ वयुगण! वग एवं धरती पर सार प अंश से बने ए, वन प त के ढ़ अंश से न मत, जल क ग त से यु , गाय के चमड़े से ढके ए एवं इं के व के समान रथ को ल य करके य करो. (२७) इ य व ो म तामनीकं म य गभ व ण य ना भः. सेमां ना ह दा त जुषाणो दे व रथ त ह ा गृभाय.. (२८) हे द रथ! तुम इं के व , म त के आगे चलने वाले, म के गभ एवं व ण क ना भ हो. इस य म तुम य या दे खते ए ह वीकार करो. (२८) उप ासय पृ थवीमुत ां पु ा ते मनुतां व तं जगत्. स भे सजू र े ण दे वै रा वीयो अप सेध श ून्.. (२९) हे ं भ! धरती और आकाश को श दपूण कर दो. चर और अचर ाणी तु हारे श द को जान ल. तुम इं तथा अ य दे व के साथ मलकर हमारे श ु को ब त र भगाओ. (२९) आ दय बलमोजो न आ धा नः न ह सु रता बाधमानः. अप ोथ भे छु ना इत इ य मु र स वीळय व.. (३०) हे ं भ! हमारे श ु
को लाओ एवं हम ओज तथा बल दो. तुम श ु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को बाधा
प च ं ाते ए श द करो. हमारा ःख जनके सुख का कारण है, ऐसे लोग को भगाओ. तुम इं क मु का हो. तुम हम ढ़ता दो. (३०) आमूरज यावतयेमाः केतुमद् भवावद त. सम पणा र त नो नरोऽ माक म र थनो जय तु.. (३१) हे इं ! श ु ारा रोक गई हमारी गाय को ले आओ. सबको ान कराने के लए यह ं भ बार-बार बज रही है. हमारे सै नक घोड़ पर चढ़कर घूम रहे ह. हे इं ! हमारे रथ पर बैठे सै नक जय पाव. (३१)
सू —४८
दे वता—अ न
य ाय ा वो अ नये गरा गरा च द से. वयममृतं जातवेदसं यं म ं न शं सषम्.. (१) हे तोताओ! तुम सभी य म वृ अ न क तो ारा बार-बार शंसा करो. हम मरणर हत, जातवेद व म के समान य अ न क बार-बार शंसा करते ह. (१) ऊज नपातं स हनायम मयुदाशेम ह दातये. भुवद् वाजे व वता भुवद्वृध उत ाता तनूनाम्.. (२) हम अपने ऊपर वा तव म स एवं बलपु अ न क शंसा करते ह. दे व के लए ह वहन करने वाले अ न को हम ह दे ते ह. अ न यु म हमारे र क, उ तकारक एवं हमारे पु के ाणक ा ह . (२) वृषा ने अजरो महा वभा य चषा. अज ेण शो चषा शोशुच छु चे सुद त भः सु द द ह.. (३) हे अ भलाषापूरक, जरार हत एवं महान् अ न! तुम द त से का शत होते हो. हे तेज वी एवं न यद त से द तयु अ न! तुम अपनी शोभन द तय ारा हम का शत करो. (३) महो दे वा यज स य यानुष व वोत दं सना. अवाचः स कृणु नेऽवसे रा व वाजोत वं व.. (४) हे अ न! तुम महान् दे व का य करने वाले हो, इस लए हमारे य म भी दे व क सतत पूजा करो तथा हमारी र ा के लए दे व को हमारे सामने लाओ. तुम हम ह अ दो एवं हमारा दया आ ह वीकार करो. (४) यमापो अ यो वना गभमृत य प त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सहसा यो म थतो जायते नृ भः पृ थ ा अ ध सान व.. (५) हे य के गभ अ न! जल, प थर एवं अर ण प का तु ह श शाली बनाते ह. तुम मनु य ारा बलपूवक मथे जाते हो एवं धरती के उ च थान म कट होते हो. (५) आ यः प ौ भानुना रोदसी उभे धूमेन धावते द व. तर तमो द श ऊ या वा यावा व षो वृषा यावा अ षो वृषा.. (६) जो अ न अपनी द त से धरती-आकाश को पूण करते ह, धुएं के साथ आकाश म दौड़ते ह, वे ही द तसंप एवं अ भलाषापूरक अ न काली रात म अंधकार मटाते ए दे खे जाते ह. वे ही अ न रा य के ऊपर थत ह. (६) बृह र ने अ च भः शु े ण दे व शो चषा. भर ाजे स मधानो य व रेव ः शु द द ह ुम पावक द द ह.. (७) हे अ तशय युवा एवं द तयु अ न दे व! तुम भर ाज ारा व लत होकर अपनी वशाल करण ारा हमारे लए धन दो एवं जलो. हे शु करने वाले अ न! तुम जलो. (७) व ासां गृहप त वशाम स वम ने मानुषीणाम्. शतं पू भय व पा ंहसः समे ारं शतं हमाः तोतृ यो ये च दद त.. (८) हे अ न! तुम सम त मानव जा के गृहप त हो. हे अ तशय युवा अ न! म तु ह सौ वष तक व लत रखूंगा. तुम अपने सैकड़ र ा साधन ारा मुझे तथा ह दे ने वाले तोता को पाप से बचाओ. (८) वं न ऊ या वसो राधां स चोदय. अ य राय वम ने रथीर स वदा गाधं तुचे तु नः.. (९) हे व च तथा नवास थान दे ने वाले अ न! तुम र ासाधन के साथ धन को हमारी ओर े रत करो. तु ह इस धन के नेता हो. हमारी संतान को शी ही त ा दलाओ. (९) प ष तोकं तनयं पतृ भ ् वमद धैर यु व भः. अ ने हेळां स दै ा युयो ध नोऽदे वा न रां स च.. (१०) हे अ न! तुम अपने एक त एवं हसार हत र ासाधन ारा हमारे पु -पौ पालन करो. दे व का ोध हमारे पास से हटाओ एवं हमारी मानवबाधा र करो. (१०)
का
आ सखायः सब घां धेनुमज वमुप न सा वचः. सृज वमनप फुराम्.. (११) हे म ो! तुम नई तु तयां बोलते ए धा गाय के पास प ंचो. उसके धपीते बछड़ को उससे इस कार अलग करो क उसे हा न न हो. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या शधाय मा ताय वभानवे वोऽमृ यु धु त. या मृळ के म तां तुराणां या सु नैरेवयावरी.. (१२) हे म ो! उस गाय के पास जाओ जो सहनशील, वाधीन, तेज एवं वेगशाली म त को अमर बनाने के लए ध पी अ दे ती है एवं सुखकारक वषाजल के साथ आती है. (१२) भर ाजायाव धु त
ता. धेनुं च व दोहस मषं च व भोजसम्.. (१३)
हे म तो! तुम भर ाज के लए दो कार के सुख का बंध करो. पया त ध दे ने वाली गाय एवं सबके खाने यो य अ दो. (१३) तं व इ ं न सु तुं व ण मव मा यनम्. अयमणं न म ं सृ भोजसं व णुं न तुष आ दशे.. (१४) हे म तो! म धन पाने के लए तु हारी तु त करता ं. तुम इं के समान शोभन कम वाले, व ण के समान बु मान्, सूय के समान तु तपा एवं व णु के समान धनदाता हो. (१४) वेषं शध न मा तं तु व व यनवाणं पूषणं सं यथा शता. सं सह ा का रष चष ण य आँ आ वगू हा वसू कर सुवेदा नो वसू करत्.. (१५) मश ु ारा अपराजेय एवं पोषक म द्बल क इस लए तु त करता ं क वे मुझे एक साथ ही हजार कार क संप यां द. म द्गण छपा आ धन हमारे लए कट कर एवं हम धन का ान कराव. (१५) आ मा पूष ुप व शं सषं नु ते अ पकण आघृणे. अघा अय अरातयः.. (१६) हे पूषा! तुम ज द से मेरे पास आओ. हे द तसंप ! म तु हारे कान के समीप तु त करता ं. तुम आ मण करने वाले श ु को भगाओ. (१६) मा काक बीरमुदवृ ् हो वन प तमश ती व ह नीनशः. मोत सूरो अह एवा चन ीवा आदधते वेः.. (१७) हे पूषा! तुम काक का भरण करने वाले वृ को न मत करो, अ पतु मेरी नदा करने वाल को मटाओ. जैसे बहे लयां च ड़य को फंसाने के लए जाल फैलाता है, उसी कार कोई श ु मुझे न बांध सके. (१७) ते रव तेऽवृकम तु स यम्. अ छ य दध वतः सुपूण य दध वतः.. (१८) (१८)
हे पूषा! तु हारी म ता दही से भरे ए एवं छ र हत चमपा के समान बाधार हत हो.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
परो ह म यर स समो दे वै त या. अ भ यः पूषन् पृतनासु न वमवा नूनं यथा पुरा.. (१९) हे पूषा! तुम धन के ारा मनु य से ऊंचे एवं दे व के समान हो. यु म हमारी ओर कृपा रखना. ाचीन काल के समान ही तुम इस समय हमारी र ा करना. (१९) वामी वाम य धूतयः णी तर तु सूनृता. दे व य वा म तो म य य वेजान य य यवः.. (२०) हे कंपाने वालो एवं य पा म तो! तु हारी जो स य पी एवं धन क ेरणा दे ने वाली वाणी यजमान को मनचाहा धन दे ती है, वही वाणी हमारी माग-द शका बने. (२०) स य चकृ तः प र ां दे वो नै त सूयः. वेषं शवो द धरे नाम य यं म तो वृ हं शवो ये ं वृ हं शवः.. (२१) जन म त के असी मत काय सूय के समान आकाश म व तृत हो जाते ह, वे द त, य के यो य एवं श ुनाशक बल धारण करते ह. उनका श ुनाशक बल सबसे उ म है. (२१) सकृ (२२)
ौरजायत सकृ
मरजायत. पृ या
धं सकृ पय तद यो नानु जायते..
एक बार वग उ प आ. एक ही बार धरती बनी. म त क माता पृ ध काढ़ा गया. इसके बाद कुछ भी उ प नह आ. (२२)
सू —४९
से एक बार
दे वता— व ेदेव
तुषे जनं सु तं न सी भग भ म ाव णा सु नय ता. त आ गम तु त इह ुव तु सु ासो व णो म ो अ नः.. (१) म नई तु तय ारा शोभन-कम वाले दे व क शंसा करता ं. म तोता के सुख क अ भलाषा करने वाले म व व ण क तु त करता ं. शोभनबलसंप म , व ण एवं अ न यहां आव और मेरी तु तयां सुन. (१) वशो वश ई म वरे व त तुमर त युव योः. दवः शशुं सहसः सूनुम नं य य केतुम षं यज यै.. (२) म सम त जा के य म तु त के यो य, दपर हत कम वाले, वग एवं धरती के वामी, वग एवं श के पु व य के केतु अ न का य करने के लए यजमान क ेरणा दे ता ं. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ष य हतरा व पे तृ भर या प पशे सूरो अ या. मथ तुरा वचर ती पावके म म ुतं न त ऋ यमाने.. (३) चमकते ए सूय क रात- दन पी दो वपरीत पवाली क याएं ह. उन म एक तार से सुशो भत है और सरी सूय से. एक सरी का वरोध करके घूमती ई एवं प व करने वाली रात- दन क जोड़ी हमारी तु तयां सुनकर स ह . (३) वायुम छा बृहती मनीषा बृह य व वारं रथ ाम्. ुत ामा नयुतः प यमानः क वः क व मय स य यो.. (४) हमारी महान् तु त महान् धन के वामी, सबके आदरणीय एवं अपने रथ को पूण करने वाले वायु के सामने उप थत हो. हे अ तशय य पा , द तसंप रथ वाले, रथ म जुते ए घोड़ को वश म रखने वाले एवं रदश वायु! तुम मेधावी तोता क धन से पूजा करो. (४) स मे वपु छदयद नोय रथो व मा मनसा युजानः. येन नरा नास येषय यै व तयाथ तनयाय मने च.. (५) अ नीकुमार का वह रथ मेरे शरीर को अपने तेज से ढक ले, जो वशेष तेज वी है एवं सोचने मा से जस म घोड़े जुड़ जाते ह. हे नेता अ नीकुमारो! उसी रथ के ारा तुम तोता एवं उसके पु -पौ क अ भलाषा पूण करने जाओ. (५) पज यवाता वृषभा पृ थ ाः पुरीषा ण ज वतम या न. स य ुतः कवयो य य गी भजगतः थातजगदा कृणु वम्.. (६) हे वषाकारक पज य एवं वायु! आकाश से ा त करने यो य एवं पूरक जल बरसाओ. हे तो सुनने वाले एवं मेधावी म तो! तुम जसके तो सुनकर स बनो, उसको धनसंप करना. (६) पावीरवी क या च ायुः सर वती वीरप नी धयं धात्. ना भर छ ं शरणं सजोषा राधष गृणते शम यंसत्.. (७) प व बनाने वाली, व च पवाली, व च ग तवाली एवं वीर-प नी सर वती हमारे य प कम को पूरा करे. वह दे वप नय के साथ स होकर तोता को दोषर हत तथा ठं ड एवं हवा क ग त से र हत घर एवं सुख दे . (७) पथ पथः प रप त वच या कामेन कृतो अ यानळकम्. स नो रास छु ध ा ा धयं धयं सीषधा त पूषा.. (८) अ भल षत फल पाकर वश म होने वाला तोता सभी माग के वामी एवं पूजनीय सूय के सामने तु तय स हत उप थत हो. पूषा हम सोने के स ग वाली गाएं द एवं हमारे सभी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
काम को पूरा कर. (८) थमभाजं यशसं वयोधां सुपा ण दे वं सुगभ तमृ वम्. होता य जतं प यानाम न व ारं सुहवं वभावा.. (९) दे व को बुलाने वाले एवं द तसंप अ न सबके थम वभागक ा, स एवं अ धारण करने वाले, सुंदर हाथ वाले, दानशील, शोभन-बा वाले, भासमान, गृह थ ारा यजनीय एवं सुखपूवक बुलाने यो य व ा का य कर. (९) भुवन य पतरं गी भराभी ं दवा वधया म ौ. बृह तमृ वमजरं सुषु नमृध घुवेम क वने षतासः.. (१०) हे तोता! इन तो ारा रात- दन लोकपालक क वृ करो. हम बु मान् ारा े रत होकर महान्, दशनीय, जरार हत एवं शोभन-सुख वाले का हवन समृ के साथ कर. (१०) आ युवानः कवयो य यासो म तो ग त गृणतो वर याम्. अच ं च ज वथा वृध त इ था न तो नरो अ र वत्.. (११) हे अ तशय युवा, ानसंप एवं य पा म तो! तुम यजमान क सुंदर तु त के समीप आओ. हे नेताओ! तुम इस कार वृ पाकर एवं ग तशील करण के समान ा त होकर वल ण वृ वाले थान को वषा ारा स चो. (११) वीराय तवसे तुरायाजा यूथेव पशुर र तम्. स प पृश त त व ुत य तृ भन नाकं वचन य वपः.. (१२) हे तोता! अ तशय वीर, श शाली एवं ग तशील म त के लए इस कार तु त करो, जस कार वाला पशु को हांकता है. आकाश म जस कार तारे होते ह, उसी कार म द्गण बु मान् तोता क सुनने यो य तु तय को अपने शरीर पर धारण कर. (१२) यो रजां स वममे पा थवा न णुमनवे बा धताय. त य ते शम ुपद माने राया मदे म त वा३ तना च.. (१३) हे तोता! जन व णु ने क म पड़े मनु के क याण के न म तीन लोक को तीन चरण के ारा नाप लया था, वह ही तु हारी य शाला म द थान म नवास कर एवं हम पु -पौ स हत धन से स ह . (१३) त ोऽ हबु यो अ रक त पवत त स वता चनो धात्. तदोषधी भर भ रा तषाचो भगः पुर ध ज वतु राये.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारे तु तयां सुनकर ातः जागने वाले अ न, पवत एवं स वता हम जल के साथ अ द. व ेदेव ओष धय के साथ हम वही अ द. अ धक बु वाले भग नामक दे व हम धन क ेरणा द. (१४) नू नो र य र यं चष ण ां पु वीरं मह ऋत य गोपाम्. यं दाताजरं येन जना पृधो अदे वीर भ च माम वश आदे वीर य१ (१५)
वाम..
हे व ेदेव! तुम हम रथयु अनेक जा को पूण करने वाला अनेक पु स हत यर हत एवं महान् य का साधन धन अ एवं घर दो. इसके ारा हम दे वय न करने वाले श ु को परा जत कर एवं दे वय करने वाल को सहारा द. (१५)
सू —५०
दे वता— व ेदेव
वे वो दे वीम द त नमो भमृळ काय व णं म म नम्. अ भ दामयमणं सुशेवं ातॄ दे वा स वतारं भगं च.. (१) हे दे वो! म सुख पाने क इ छा से तु तय के ारा अ द त, व ण, म , अ न, श ुहंता एवं सेवायो य अयमा, स वता, भग एवं र ा करने वाले सभी दे व को बुलाता ं. (१) सु यो तषः सूय द पतॄननागा वे सुमहो वी ह दे वान्. ज मानो य ऋतसापः स याः वव तो यजता अ न ज ाः.. (२) हे शोभनद त वाले सूय! द से उ प एवं सुंदर काश वाले दे व को हमारे अनुकूल बनाओ. वे दे व दो ज म वाले, य को यार करने वाले, स य बोलने वाले, धनसंप , य के पा एवं अ न ज ह. (२) उत ावापृ थवी मु बृह ोदसी शरणं सुषु ने. मह करथो व रवो यथा नोऽ मे याय धषणे अनेहः.. (३) हे वग और धरती! तुम हम अ धक बल दो. हे वग एवं धरती! हमारे उ म सुख के लए हम बड़ा घर दो. ऐसा य न करो, जससे हमारे पास वशाल संप हो जाए. हे धारणशील धरती वग! हम पापर हत बनाने के लए घर दो. (३) आ नो य सूनवो नम ताम ा तासो वसवोऽधृ ाः. यद मभ मह त वा हतासो बाधे म तो अ ाम दे वान्.. (४) हे नवास थान दे ने वाले एवं परा जत न होने वाले पु म द्गण! इस समय बुलाने पर तुम हमारे पास आओ. वे यु म महान् सुख दे ने वाले ह. इस कारण हम उ ह बुलाते ह. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(४) म य येषु रोदसी नु दे वी सष पूषा अ यधय वा. ु वा हवं म तो य याथ भूमा रेज ते अ व न व े .. (५) काशयु वग एवं धरती जन म त के साथ संयु ह, तोता को धनसंप करने वाले पूषा जनक सेवा करते ह, ऐसे म द्गण हमारी पुकार सुनकर जब आते ह, उस समय व तृत माग म पड़ने वाले ाणी कांप उठते ह. (५) अ भ यं वीरं गवणसमच ं णा ज रतनवेन. व द वमुप च तवानो रास ाजाँ उप महो गृणानः.. (६) हे तोता! नवीन तु तय ारा तु तयो य एवं वीर इं क तु त करो. इं इस कार बुलाए जाते ए हमारी पुकार सुन एवं हम अ धक अ द. (६) ओमानमापो मानुषीरमृ ं धात तोकाय तनयाय शं योः. यूयं ह ा भषजो मातृतमा व य थातुजगतो ज न ीः.. (७) हे मनु य हतकारी जल! हमारे पु एवं पौ को क नाशक एवं सुखसाधन अ दो. तुम चर एवं अचर ा णय को उ प करने वाले एवं माता से भी बढ़कर च क साक ा हो. (७) आ नो दे वः स वता ायमाणो हर यपा णयजतो जग यात्. यो द वाँ उषसो न तीकं ूणते ु दाशुषे वाया ण.. (८) र ा करने वाले, हाथ म सोना लए ए एवं य पा स वता हमारे य म भली-भां त आव. वे ह दाता यजमान को उषा के समान उ वल धन दे ते ह. (८) उत वं सूनो सहसो नो अ ा दे वाँ अ म वरे ववृ याः. यामहं ते सद म ातौ तव याम नेऽवसा सुवीरः.. (९) हे श पु अ न! आज दे व को इस य म बार-बार लाओ. म तु हारे धनदान म सदा वतमान र ं. हे अ न! म तु हारी र ा के कारण शोभन पु -पौ वाला बनूं. (९) उत या मे हवमा जग यातं नास या धी भयुवमङ् ग व ा. अ न मह तमसोऽमुमु ं तूवतं नरा रतादभीके.. (१०) हे व ान् अ नीकुमारो! तुम सेवा से यु मेरे तो के समीप आओ एवं अ के समान हम भी अंधकार से छु ड़ाओ. हे नेताओ! हम ःख दे ने वाले यु से बचाओ. (१०) ते नो रायो ुमतो वाजवतो दातारो भूत नृवतः पु
ोः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दश य तो द ाः पा थवासो गोजाता अ या मृळता च दे वाः.. (११) हे दे वो! हम द तसंप , बलयु एवं संतानस हत तथा ब त के ारा शंसा के यो य धन दो. वग म रहने वाले, धरती पर रहने वाले, गाय से उ प एवं जल से उ प दे वगण हमारी इ छा पूरी कर. (११) ते नो ः सर वती सजोषा मीळ् म तो व णुमृळ तु वायुः. ऋभु ा वाजो दै ो वधाता पज यावाता प यता मषं नः.. (१२) वषा करने वाले , सर वती, व णु, वायु, ऋभु ा, वाज और वधाता दे व पर पर ेम रखते ए हम सुखी कर. पज य एवं वायु हमारे अ को बढ़ाव. (१२) उत य दे वः स वता भगो नोऽपां नपादवतु दानु प ः. व ा दे वे भज न भः सजोषा ौदवे भः पृ थवी समु ै ः.. (१३) स स वता दे व, भग, जल के पौ एवं दान दे ने वाले अ न हमारी र ा कर. दे व एवं दे वप नय के साथ स व ा, दे व के साथ स वग एवं सागर के साथ स धरती हमारी र ा कर. (१३) उत नोऽ हबु यः शृणो वज एकपा पृ थवी समु ः. व े दे वा ऋतावृधो वानाः तुता म ाः क वश ता अव तु.. (१४) अ हबु य, अजएकपाद, पृ वी एवं समु हमारी तु तयां सुन. य को बढ़ाने वाले, बुलाए ए एवं तु त कए ए मं के वषय तथा मेधावी ऋ षय के ारा शं सत व ेदेव हमारी र ा कर. (१४) एवा नपातो मम त य धी भभर ाजा अ यच यकः. ना तासो वसवोऽधृ ा व े तुतासो भूता यज ाः.. (१५) मेरे पु अथात् भर ाजगो ीय ऋ ष पूजायो य मं के ारा दे व क तु त करते ह. हे य पा दे वो! तुम ह ारा आ त, नवास थान दे ने वाले, अपराजेय एवं दे वप नय के साथ पूजे जाते हो. (१५)
सू —५१
दे वता— व ेदेव
उ य च ुम ह म योराँ ए त यं व णयोरद धम्. ऋत य शु च दशतमनीकं मो न दव उ दता ौत्.. (१) सूय, म एवं व ण का स , काश करने वाला, व तृत, य, अ ह सत, शु एवं दशनीय तेज सबके सामने ऊपर उठता है एवं आकाश के आभूषण के समान का शत होता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. (१) वेद य ी ण वदथा येषां दे वानां ज म सनुतरा च व ः. ऋजु मतषु वृ जना च प य भ च े सूरो अय एवान्.. (२) जो सूय तीन जानने यो य थान को जानते ह, जो मेधावी—सूय इन तीन लोक म छपे दे व के ज म थान को जानते ह, वे ही मानव क भलाई-बुराई को दे खते ह एवं मानव के वामी बनकर अ भलाषाएं पूरी करते ह. (२) तुष उ वो मह ऋत य गोपान द त म ं व णं सुजातान्. अयमणं भगमद धधीतीन छा वोचे सध यः पावकान्.. (३) हम महान्, य के र क एवं शोभन ज म वाले अ द त, म , व ण, अयमा एवं भग क तु त करते ह. म अ ह सत कम वाले, धनसंप एवं प व करने वाले दे व का यश वणन करता ं. (३) रशादसः स पत रद धा महो रा ः सुवसन य दातॄन्. यूनः सु ा यतो दवो नॄना द या या व द त वोयु.. (४) हे हसक को र भगाने वाले, स जन का पालन करने वाले, अपराजेय, महान्, वामी, शोभन- नवास थान दे ने वाले, युवा शोभन-बल वाले, सव ापक एवं वग के नेता आ द यो! म अपनी प रचया करने वाली अ द त क शरण जाता ं. (४) ौ३ पतः पृ थ व मातर ुग ने ातवसवो मृळता नः. व आ द या अ दते सजोषा अ म यं शम ब लं व य त.. (५) हे पता प वग, माता प धरती एवं ाता प अ न तथा वसुओ! तुम सब हम सुखी करो. हे सब आ द यो एवं अ द त! तुम समान ेम वाले होकर हम अ धक सुख दो. (५) मा नो वृकाय वृ ये सम मा अघायते रीरधता यज ाः. यूयं ह ा र यो न तनूनां यूयं द य वचसो बभूव.. (६) हे य पा दे वो! हमारा अ न चाहने वाले वृक एवं वृक को हमे मत स पना. तुम ही हमारे शरीर, बल और वाणी के र क रहे हो. (६) मा व एनो अ यकृतं भुजेम मा त कम वसवो य चय वे. व य ह यथ व दे वाः वयं रपु त वं री रषी .. (७) हे दे वो! तु हारे कृपापा हम सर के ारा कए गए पाप का क न भोग. हे वसुओ! ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम वह काम न कर, जसके लए तुम मना करो. हे व ेदेव! तुम सबके वामी हो. हमारा श ु अपने शरीर का वयं नाश करे. (७) नम इ ं नम आ ववासे नमो दाधार पृ थवीमुत ाम्. नमो दे वे यो नम ईश एषां कृतं चदे नो नमसा ववासे.. (८) नम कार सबसे बढ़कर है. इसी कारण म नम कार करता ं. नम कार ने ही धरती और वग को धारण कया है. दे व को नम कार है. नम कार इन दे व का वामी है. म नम कार ारा पाप को र करता ं. (८) ऋत य वो र यः पूतद ानृत य प यसदो अद धान्. ताँ आ नमो भ च सो नॄ व ा व आ नमे महो यज ाः.. (९) हे य पा दे वो! तुम य के नेता, शु श वाले य शाला म नवास करने वाले, अपराजेय, रदश , नेता एवं महान् हो. म तु हारे सामने नम कार-वचन के साथ झुकता ं. (९) ते ह े वचस त उ न तरो व ा न रता नय त. सु ासो व णो म ो अ नऋतधीतयो व मराजस याः.. (१०) व ण, म और अ न उ म-श संप , स य-कम वाले एवं तोता ह. वे े तेज वाले ह. वे हमारे सभी गुण का नाश कर. (१०)
के
त स चे
ते न इ ः पृ थवी ाम वधन् पूषा भगो अ द तः प च जनाः. सुशमाणः ववसः सुनीथा भव तु नः सु ा ासः सुगोपाः.. (११) इं , पृ वी, पूषा, भग, अ द त और पंचजन हमारे पृ वी के नवास थान को बढ़ाव. ये दे वगण हमारे त उ मसुख दे ने वाले, शोभन-अ दाता, सफलतापूवक मागदशक, शोभनर क एवं ाणदाता बन. (११) नू स ानं द ं नं श दे वा भार ाजः सुम त या त होता. आसाने भयजमानो मयेधैदवानां ज म वसूयुवव द.. (१२) हे दे वो! भर ाजगो ीय होता अथात् मुझको एक द -भवन दान करो. म तु हारी कृपा चाहता ं. यजमान अ य मेधावी- तोता के साथ बैठकर धन क अ भलाषा से दे व के समूह क वंदना करता है. (१२) अप यं वृ जनं रपुं तेनम ने रा यम्. द व म य स पते कृधी सुगम्.. (१३) हे स जन के र क अ न! तुम कु टल, पापकारी, ःखदायी एवं क से वश म आने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले श ु को हमसे र करो एवं हम सुख दो. (१३) ावाणः सोम नो ह कं स ख वनाय वावशुः. जही य१ णं प ण वृको ह षः.. (१४) हे सोम! हमारे प थर तु हारी म ता क अ भलाषा करते ह. तुम अ धक खाने वाले प ण को मारो. वह न य ही बुरा है. (१४) यूयं ह ा सुदानव इ ये ा अ भ वः. कता नो अ व ा सुगं गोपा अमा.. (१५) हे इं - मुख दे वो! तुम शोभन-दान वाले एवं द तसंप हो. हमारे माग को सुर त बनाओ एवं सुख दो. (१५) अ प प थामग म ह व तगामनेहसम्. येन व ाः प र षो वृण व दते वसु.. (१६) हम उस सुगम एवं पापर हत माग को पा गए ह, जस पर चलने से सभी श ु न होते ह और धन ा त होता है. (१६)
सू —५२
दे वता— व ेदेव
न त वा न पृ थ ानु म ये न य ेन नोत शमी भरा भः. उ ज तु तं सु व१: पवतासो न हीयताम तयाज य य ा.. (१) म इस य को वग एवं धरती के दे व के यो य नह मानता. म इसे अपने ारा अथवा अ य ारा संपा दत य के समान भी नह समझता. अ तयाज के ऋ वज् अ यंतहीन बन एवं सब पवत उसे पीड़ा प ंचाव. (१) अ त वा यो म तो म यते नो तपूं ष त मै वृ जना न स तु
वा यः यमाणं न न सात्. ा षम भ तं शोचतु ौः.. (२)
हे म तो! जो वयं को हमसे े मानता है अथवा हमारे ारा क ई तु त क नदा करता है, सारे तेज उसके बाधक ह तथा वग उस य वरोधी को जलावे. (२) कम वा णः सोम गोपां कम वा र भश तपां नः. कम नः प य स न मानान् षे तपु ष हे तम य.. (३) हे सोम! ऋ षगण तु ह मं र क एवं नदा से उ ार करने वाला य कहते ह? तुम श ु ारा हमारी नदा य दे खते रहते हो? उन ा ण वरो धय के ऊपर तुम अपना ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तापकारी आयुध चलाओ. (३) अव तु मामुषसो जायमाना अव तु मा स धवः प वमानाः. अव तु मा पवतासो ुवासोऽव तु मा पतरो दे व तौ.. (४) उ प होने वाली उषाएं मेरी र ा कर. व तृत न दयां मेरी र ा कर. थर पवत मेरी र ा कर. य म उप थत पतर मेरी र ा कर. (४) व दान सुमनसः याम प येम नु सूयमु चर तम्. तथा कर सुप तवसूनां दे वाँ ओहानोऽवसाग म ः.. (५) हम सदा शोभन-मन वाले ह . हम उदय होते ए सूय को दे ख. उ म धन के वामी अ न हमारे दए ह ारा दे व को धारण करते ए हम उ कार का बनाव. (५) इ ो ने द मवसाग म ः सर वती स धु भः प वमाना. पज यो न ओषधी भमयोभुर नः सुशंसः सुहवः पतेव.. (६) जल से व तृत सर वती नद एवं इं र ा के उ े य से हमारे पास आव. पज य ओष धय के साथ मलकर हमारे लए सुखदाता बन एवं अ न हमारे लए पता के समान सुखपूवक, तु य एवं सुख से बुलाने यो य ह . (६) व े दे वास आ गत शृणुता म इमं हवम्. एदं ब ह न षीदत.. (७) हे व ेदेव! आओ, मेरी पुकार सुनो और इन कुश पर बैठो. (७) यो वो दे वा घृत नुना ह ेन
तभूष त. तं व उप ग छथ.. (८)
हे दे वो! जो घी के मले ए ह जाओ. (८)
ारा तु हारी सेवा करते ह, तुम सब उसके पास
उप नः सूनवो गरः शृ व वमृत य ये. सुमृळ का भव तु नः.. (९) अमृत के पु
व ेदेवगण हमारी तु तयां सुन और हम शोभन सुख दे ने वाले ह . (९)
व े दे वा ऋतावृध ऋतु भहवन ुतः. जुष तां यु यं पयः.. (१०) य को बढ़ाने वाले एवं वशेष वशेष काल पर तो सुनने वाले व ेदेव अपने यो य ध वीकार कर. (१०) तो म ो म द्गण व ृ मान् म ो अयमा. इमा ह ा जुष त नः.. (११) इं , म द्गण, व ा, म और अयमा हमारे तो
और ह
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को वीकार कर. (११)
इमं नो अ ने अ वरं होतवयुनशो यज. च क वा दै ं जनम्.. (१२) हे दे व को बुलाने वाले अ न! दे वसमूह म उ म दे व को जानकर हमारा य कम उ ह क मयादा के अनुसार पूरा करो. (१२) व े दे वाः शृणुतेमं हवं मे ये अ त र े य उप व . ये अ न ज ा उत वा यज ा आस ा म ब ह ष मादय वम्.. (१३) व ेदेव मेरी इस पुकार को सुन, चाहे वे अंत र म रहते ह अथवा वग के समीप. अ न पी ज ा ारा अथवा कसी साधन से य का भोग करने वाले इन कुश पर बैठकर सोमरस ारा स बन. (१३) व े दे वा मम शृ व तु य या उभे रोदसी अपां नपा च म म. मा वो वचां स प रच या ण वोचं सु ने व ो अ तमा मदे म.. (१४) व ेदेव, य पा , वग, पृ वी एवं अ न हमारी इन तु तय को सुन. हम तु ह पंसद न आने वाले तु त-वचन न कह. हम तु हारे समीप सुख पाते ए स ह . (१४) ये के च मा म हनो अ हमाया दवो ज रे अपां सध थे. ते अ म य मषये व मायुः प उ ा व रव य तु दे वाः.. (१५) महान् व संहारक बु वाले जो दे वगण धरती, वग एवं अंत र हम और हमारी संतान को रात- दन जीवन भर अ द. (१५)
मउप
ए ह, वे
अ नीपज याववतं धयं मेऽ म हवे सुहवा सु ु त नः. इळाम यो जनयद् गभम यः जावती रष आ ध म मे.. (१६) हे अ न और पज य! तुम हमारे य काय क र ा करो. हे शोभन आ ान वाले दे वो! हमारी सुदंर तु त को सुनो. तुम म से पज य अ उ प करता है एवं अ न गभ उ प करते ह. तुम हम संतान-यु अ दो. (१६) तीण ब ह ष स मधाने अ नौ सू े न महा नमसा ववासे. अ म ो अ वदथे यज ा व े दे वा ह व ष मादय वम्.. (१७) हे य पा व ेदेव! हमारे इस य म कुश बछ जाने पर, अ न व लत हो जाने पर एवं मेरे ारा तो उ चारण-पूवक तु हारी सेवा करने पर, तुम ह ारा तृ त बनो. (१७)
सू —५३
दे वता—पूषा
वयमु वा पथ पते रथं न वाजसातये. धये पूष यु म ह.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे मागपालक पूषा! हम अ लाभ एवं य पू त के लए तु ह यु सामने करते ह. (१)
म रथ के समान अपने
अ भ नो नय वसु वीरं यतद णम्. वामं गृहप त नय.. (२) हे पूषा! मानव हतकारी, धन के धनदानक ा एक गृह वामी हम दो. (२)
ारा द र ता न
अ द स तं चदाघृणे पूष दानाय चोदय. पणे
करने वाला,
ाचीन काल म
दा मनः.. (३)
हे द तसंप पूषा! दान न दे ने वाले को दान करने क मृ बनाओ. (३)
ेरणा दो एवं प ण का मन भी
व पथो वाजसातये चनु ह व मृधो ज ह. साध तामु नो धयः.. (४) हे उ पूषा! अ लाभ के लए सब रा ते साफ करो, बाधक को न करो एवं हमारा य काय पूरा करो. (४) प र तृ ध पणीनामारया दया कवे. अथेम म यं र धय.. (५) हे ानसंप पूषा! लौहदं ड ारा प णय के दय घायल करो एवं उ ह हमारे वश म करो. (५) व पूष ारया तुद पणे र छ
द
यम्. अथेम म यं र धय.. (६)
हे पूषा! लौहदं ड से प ण का दय घायल करो. उसके मन म दान क करो एवं उसे हमारे वश म लाओ. (६)
य इ छा उ प
आ रख क करा कृणु पणीनां दया कवे. अथेम म यं र धय.. (७) हे ानसंप पूषा! प णय के दय पर चह्न बनाओ, उनके मन कोमल करो तथा उ ह हमारे वश म लाओ. (७) यां पूष
चोदनीमारां बभ याघृणे. तया सम य दयमा रख क करा कृणु.. (८)
हे द तशाली पूषा! तुम अ क ेरणा करने वाला लौहदं ड धारण करते हो. उससे सभी लो भय के दय पर नशान बनाओ एवं उ ह कोमल करो. (८) या ते अ ा गोओपशाघृणे पशुसाधनी. त या ते सु नमीमहे.. (९) हे द तशाली पूषा! तु हारा जो लौहदं ड गाय एवं पशु हम सुख चाहते ह. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को चलाने वाला है, उसीसे
उत नो गोष ण धयम सां वाजसामुत. नृवत् कृणु ह वीतये.. (१०) हे पूषा! हमारे उपभोग के न म हमारे य को गाय, घोड़ा, अ एवं सेवक दे ने वाला बनाओ. (१०)
दे वता—पूषा
सू —५४ सं पूषन् व षा नय यो अ
सानुशास त. य एवेद म त वत्.. (१)
हे पूषा! हम ऐसे व ान् से मलाओ जो हम सरल माग क श ा दे एवं न धन को बतावे. (१) समु पू णा गमेम ह यो गृहाँ अ भशास त. इम एवे त च वत्.. (२) हम पूषा क कृपा से ऐसे से संगत ह , जो हमारे खोए ए पशु दखावे एवं कहे क ये ही तु हारे पशु ह. (२) पू ण
ं न र य त न कोशोऽव प ते. नो अ य
से यु
घर को
थते प वः.. (३)
पूषा का च प आयुध कभी समा त नह होता. इसका कोश कभी खाली नह होता. इसक धार भोथरी नह होती. (३) यो अ मै ह वषा वध तं पूषा प मृ यते. थमो व दते वसु.. (४) जो यजमान ह ारा पूषा क सेवा करता है, उसे पूषा थोड़ी भी हा न नह प ंचाते. वही सबसे धन पाता है. (४) पूषा गा अ वेतु नः पूषा र
ववतः. पूषा वाजं सनोतु नः.. (५)
पूषा र ा के लए हमारी गाय के पीछे चल. वे हमारे घोड़ क र ा कर एवं हम अ द. (५) पूष नु
गा इ ह यजमान य सु वतः. अ माकं तुवतामुत.. (६)
हे पूषा! र ा करने के न म सोमरस नचोड़ने वाले यजमान क अथवा तु तयां करते ए हम लोग क गाय के पीछे चलो. (६) मा कनश माक रष माक सं शा र केवटे . अथा र ा भरा ग ह.. (७) हे पूषा! हमारी गाएं न न ह , बाघ आ द उनको मार नह एवं न वे कुएं म ही गर. तुम सुर त गाय के साथ आओ. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शृ व तं पूषणं वय मयमन वेदसम्. ईशानं राय ईमहे.. (८) (८)
तो सुनने वाले, द र ता न करने वाले एवं सबके वामी पूषा से हम धन मांगते ह. पूष तव ते वयं न र येम कदा चन. तोतार त इह म स.. (९)
हे पूषा! हम तु हारे य कम म लगकर कभी मारे न जाव. इस समय हम तु हारी तु त करने वाले ह . (९) प र पूषा पर ता
तं दधातु द णम्. पुनन न माजतु.. (१०)
पूषा अपने दा हने हाथ से हमारी गाय को सरल माग पर चलाव एवं खोई ई गाय को वापस लाव. (१०)
दे वता—पूषा
सू —५५
ए ह वां वमुचो नपादाघृणे सं सचावहै. रथीऋत य नो भव.. (१) हे द तशाली एवं जाप तपु पूषा! तु हारा तोता मेरे पास आवे. हम दोन मल. तुम हमारे य के र क बनो. (१) रथीतमं कप दनमीशानं राधसो महः. रायः सखायमीमहे.. (२) (२)
हम अ तशय र क, कपद वाले, महान् धन के वामी एवं म पूषा से धन मांगते ह. रायो धारा याघृणे वसो रा शरजा . धीवतोधीवतः सखा.. (३)
हे द तशाली पूषा! तुम धन क धारा हो, धन का ढे र हो एवं बकरे ही तु हारे घोड़े ह. तुम सभी तोता के म ह . (३) पूषणं व१जा मुप तोषाम वा जनम्. वसुय जार उ यते.. (४) हम बकरे पी घोड़ वाले एवं अ के ेमी कहलाते ह. (४)
वामी पूषा क तु त करते ह. वे अपनी ब हन उषा
मातु द धषुम वं वसुजारः शृणोतु नः. ाते
य सखा मम.. (५)
हम माता प रा के प त पूषा क तु त करते ह. वे अपनी ब हन उषा के ेमी सूय से हमारी तु त सुन. इं के भाई पूषा हमारे म ह . (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आजासः पूषणं रथे नशृ भा ते जन यम्. दे वं वह तु ब तः.. (६) (६)
रथ म जुड़े ए बकरे तोता
के आधार पूषा को रथ म धारण करते ए यहां लाव.
दे वता—पूषा
सू —५६
य एनमा ददे श त कर भा द त पूषणम्. न तेन दे व आ दशे.. (१) जो पूषा को घी मले ए जौ के स ू खाने वाला कहकर तु त करता है, उसे अ य दे वता क तु त नह करनी पड़ती. (१) उत घा स रथीतमः स या स प तयुजा. इ ो वृ ा ण ज नते.. (२) रथ वा मय म ह. (२)
े एवं स जन के पालक पूषा दे व से मलकर इं श ु
उतादः प षे ग व सूर
ं हर ययम्. यैरय थीतमः.. (३)
रे क एवं रथ वा मय म चलाते ह. (३) यद
वा पु
को मारते
े पूषा सूय के सोने से बने रथ का प हया भली कार
ु त वाम द म तुमः. त सु मो म म साधय.. (४)
हे ब त ारा तुत, दशनीय एवं ानसंप पूषा! जस धन- ा त के उ े य से हम तु हारी तु त करते ह, उसी धन को हम दो. तुम स हो. (४) इमं च नो गवेषणं सातये सीषधो गणम्. आरात् पूष स ुतः.. (५) हे पूषा! इन गाय के अ भलाषी लोग को गाय का समूह ा त कराओ. तुम र दे श म स हो. (५) आ ते व तमीमह आरे अघामुपावसुम. अ ा च सवतातये हे पूषा! हम आज और कल के य र ा पापर हत एवं धनयु होती है. (६)
सू —५७
सवतातये.. (६)
क पू त के लए तु हारी र ा चाहते ह. तु हारी
दे वता—इं व पूषा
इ ा नु पूषणा वयं स याय व तये. वेम वाजसातये.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं और पूषा! आज हम अपनी भलाई के लए, तु हारी म ता एवं अ पाने के लए तु ह बुलाते ह. (१) सोमम य उपासद पातवे च वोः सुतम्. कर भम य इ छ त.. (२) हे इं व पूषा! तुम म से एक अथात् इं चमस म नचुड़े ए सोमरस पीने के लए जाते ह तथा सरे अथात् पूषा जौ का स ू खाना चाहते ह. (२) अजा अ य य व यो हरी अ य य स भृता. ता यां वृ ा ण ज नते.. (३) हे पूषा एवं इं ! तुम म से पहले को बकरे ख चते ह एवं सरे को दो मोटे ताजे घोड़े. इं उ ह घोड़ क सहायता से वृ को मारते ह. (३) य द ो अनय तो महीरपो वृष तमः. त ा पूषाभव सचा.. (४) जब अ धक वषा करने वाले इं ग तशील महाजल बरसाते ह, तब पूषा उनके सहायक बनते ह. (४) तां पू णः सुम त वयं वृ
य
वया मव. इ
य चा रभामहे.. (५)
जैसे कोई पेड़ क मजबूत डाल पर बैठता है, उसी कार हम इं एवं पूषा क कृपा का सहारा लेते ह. (५) उ पूषणं युवामहेऽभीशूँ रव सार थः. म ा इ ं व तये.. (६) हम पूषा एवं इं को अपने महान् क याण के लए उसी कार अपने पास बुलाते ह, जैसे सार थ लगाम ख चता है. (६)
सू —५८
दे वता—पूषा
शु ं ते अ य जतं ते अ य षु पे अहनी ौ रवा स. व ा ह माया अव स वधावो भ ा ते पूष ह रा तर तु.. (१) हे पूषा! तु हारा शु लवण प अथात् दन अलग है एवं कृ णवण प अथात् रात अलग है. रात- दन पर पर भ प वाले ह. तुम सूय के समान तेज वी हो. हे अ वामी पूषा! तुम सब ान को धारण करते हो. तु हारा दान क याणकारी हो. (१) अजा ः पशुपा वाजप यो धय वो भुवने व े अ पतः. अ ां पूषा श थरामु रीवृजत् स च ाणो भुवना दे व ईयते.. (२) बकरे प घोड़ वाले, पशुपालक, अ पूण घर वाले, तोता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को स करने वाले एवं
सारे संसार के ऊपर था पत पूषा दे व सब उठाकर आकाश म घूमते ह (२)
ा णय को
का शत करते ह एवं लौहदं ड
या ते पूष ावो अ तः समु े हर ययीर त र े चर त. ता भया स यां सूय य कामेन कृत व इ छमानः.. (३) हे पूषा! तु हारी जो सोने से बनी ई नाव समु के बीच म चलती ह, उनके ारा तुम सूय के त बनकर चलते हो. तुम अ क अ भलाषा करते ए तोता ारा पशु भट करके वश म कर लए जाते हो. (३) पूषा सुब धु दव आ पृ थ ा इळ प तमघवा द मवचाः. यं दे वासो अददः सूयायै कामेन कृतं तवसं व चम्.. (४) पूषा वग एवं धरती के शोभनबंधु, अ के वामी, धनसंप , दशनीय प वाले, श शाली, वे छा से भट कए गए पशु के कारण स होने वाले एवं शोभनग त ह. दे व ने उ ह सूयप नी को दे दया था. (४)
सू —५९
दे वता—इं व अ न
नु वोचा सुतेषु वां वीया३ या न च थुः. हतासो वां पतरो दे वश व इ ा नी जीवथो युवम्.. (१) हे इं एवं अ न! सोमरस नचुड़ जाने पर हम तु हारे उन वीरतापूण काय का वणन करते ह, जो तुमने समय-समय पर कए ह. दे व के श ु मारे गए और तुम दोन जी वत हो. (१) ब ळ था म हमा वा म ा नी प न आ. समानो वां ज नता ातरा युवं यमा वहेहमातरा.. (२) हे इं एवं अ न! तु हारे ज म क म हमा स ची एवं शंसनीय है. तुम दोन के एक पता ह. तुम दोन जुड़वां भाई हो. व तीण धरती तु हारी माता है. (२) ओ कवांसा सुते सचाँ अ ा स ती इवादने. इ ा व१ नी अवसेह व णा वयं दे वा हवामहे.. (३) हे इं एवं अ न! जैसे घोड़ का जोड़ा एक साथ घास क ओर जाता है, उसी कार तुम दोन नचुड़े ए सोमरस क ओर गमन करते हो. हम अपनी र ा के न म व धारी एवं दाना द गुण वाले तुम दोन को बुलाते ह. (३) य इ ा नी सुतेषु वां तव े वृतावृधा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जोषवाकं वदतः प हो षणा न दे वा भसथ न.. (४) हे य क वृ करने वाले इं एवं अ न! तु हारा तो स है. जो यजमान सोमरस नचुड़ जाने पर ी तर हत श द से तु हारी बुरी तु त करता है उसका सोमरस तुम कभी नह वीकार करते. (४) इ ा नी को अ य वां दे वौ मत केत त. वषूचो अ ा युयुजान ईयत एकः समान आ रथे.. (५) हे इं ! एवं अ न! जब तुम म से एक इं भां त-भां त से चलने वाले घोड़ को रथ म जोड़कर अ न के साथ एक रथ म बैठकर जाता है तो कौन मनु य इस काय को जान सकता है? अथात् कोई नह . (५) इ ा नी अपा दयं पूवागा प ती यः. ह वी शरो ज या वावद चर ंश पदा य मीत्.. (६) हे इं एवं अ न! यह बना चरण वाली उषा चरण वाली जा से पहले धरती पर आती है. यह बना शीश क होकर भी ा णय क वाणी से ब त से श द करती ई घूमती है. इस कार यह तीस कदम आगे बढ़ गई है. (६) इ ा नी आ ह त वते नरो ध वा न बा ोः. मा नो अ म महाधने परा व ग व षु.. (७) हे इं एवं अ न! यु करने वाले लोग हाथ म धनुष फैलाते ह. गाय को ढूं ढ़ने से संबं धत महान् यु म तुम दोन हम छोड़ना नह . (७) इ ा नी तप त माघा अय अरातयः. अप े षां या कृतं युयुतं सूयाद ध.. (८) हे इं एवं अ न! वार करने को तैयार एवं आ मणकारी श ुसेना हम ःखी कर रही है. उ ह तुम र भगाओ एवं सूय का दशन भी मत करने दो. (८) इ ा नी युवोर प वसु द ा न पा थवा. आ न इह य छतं र य व ायुपोषसम्.. (९) हे इं एवं अ न! द और पा थव दोन संपूण आयु को पु करने वाला धन दो. (९)
कार के धन तु हारे ही ह. इस य म हम
इ ा नी उ थवाहसा तोमे भहवन ुता. व ा भग भरा गतम य सोम य पीतये.. (१०) हे तु तयां सुनकर आने वाले एवं तु तमं
से यु
सुनने वाले इं एवं अ न! हमारी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु तय से स होकर इस सोमरस को पीने के लए आओ. (१०)
सू —६०
दे वता—इं व अ न
थद्वृ मुत सनो त वाज म ा यो अ नी स री सपयात्. इर य ता वस य भूरेः सह तमा सहसा वाजय ता.. (१) वे लोग श ु को मारते ह एवं अ ा त करते ह जो लोग श ुपराभवक ा इं एवं अ न क सेवा करते ह, वे वशाल धन के वामी एवं बल से श ु को बुरी तरह हराने वाले ह. (१) ता यो ध म भ गा इ नूनमपः व षसो अ न ऊ हाः. दशः व षस इ च ा अपो आ अ ने युवसे नयु वान्.. (२) हे इं एवं अ न! यह बात स य है क तुमने खोई ई गाय , जल , सूय एवं उषा के न म यु कया था. हे इं एवं अ वामी अ न! तुम दोन ने संसार को दशा , सूय, उषा , व च जल एवं गाय से यु कया था. (२) आ वृ हणा वृ ह भः शु मै र यातं नमो भर ने अवाक्. युवं राधो भरकवे भ र ा ने अ मे भवतमु मे भः.. (३) हे वृ हंता इं एवं अ न! तुम श ु को न करने वाली श य एवं हमारे द ह ा के साथ हमारे सामने आओ. हे इं एवं अ न! तुम दोषर हत एवं उ म धन लेकर हमारे सामने आओ. (३) ता वे ययो रदं प े व ं पुरा कृतम्. इ ा नी न मधतः.. (४) म उ ह इं एवं अ न को बुलाता ,ं जनके वीरतापूण कम का ऋ षय ने वणन कया है, एवं जो अपने तोता क हसा नह करते. (४) उ ा वघ नना मृध इ ा नी हवामहे. ता नो मृळात ई शे.. (५) हम उ एवं वशेष प से श ुहंता इं एवं अ न को बुलाते ह. वे इस सं ाम म हम सुखी बनाव. (५) हतो वृ ा याया हतो दासा न स पती. हतो व ा अप
षः.. (६)
स जन का पालन करने वाले इं एवं अ न य क ा एवं य कमहीन लोग कए ए उप व शांत करते ह एवं सारे श ु को मारते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा
इ ा नी युवा ममे३ भ तोमा अनूषतः. पबतं श भुवा सुतम्.. (७) हे इं एवं अ न! ये तोता तु हारी शंसा करते ह. हे सुख दे ने वाले इं एवं अ न! इस सोमरस को पओ. (७) या वां स त पु पृहो नयुतो दाशुषे नरा. इ ा नी ता भरा गतम्.. (८) हे इं एवं अ न! तुम अपने उन घोड़ पर सवार होकर आओ, जो ब त लोग अ भल षत ह एवं ह दे ने वाले यजमान के लए ज मे ह. (८)
ारा
ता भरा ग छतं नरोपेदं सवनं सुतम्. इ ा नी सोमपीतये.. (९) हे इं एवं अ न! इस य म नचोड़े गए सोमरस को पीने के लए तुम नयुत के साथ आओ. (९) तमी ळ व यो अ चषा वना व ा प र वजत्. कृ णा कृणो त ज या.. (१०) हे तोता! उन अ न क तु त करो जो अपनी लपट से सभी वन को घेर लेते ह एवं अपनी जीभ से उ ह काला कर दे ते ह. (१०) यइ
आ ववास त सु न म
य म यः. ु नाय सुतरा अपः.. (११)
जो मनु य व लत अ न म इं के ल य से सुखदायक ह व दे ता है, इं उसके अ ो पादन के लए शोभन जल बरसाते ह. (११) ता नो वाजवती रष आशू पपृतमवतः. इ म नं च वो हवे.. (१२) ह
हे इं एवं अ न! हम श प ंचा सक. (१२)
शाली अ एवं तेज चलने वाले घोड़े दो, जससे हम तु ह
उभा वा म ा नी आ व या उभा राधसः सह मादय यै. उभा दातारा वषां रयीणामुभा वाज य सातये वे वाम्.. (१३) हे इं एवं अ न! म वशेष प से तु हारा हवन करने के लए, ह ारा स करने के लए एवं अ पाने के लए तु ह बुलाता ं. तुम अ एवं धन दे ने वाले हो. (१३) आ नो ग े भर ैवस ३ ै प ग छतम्. सखायौ दे वौ स याय श भुवे ा नी ता हवामहे.. (१४) हे इं एवं अ न! तुम गाय , घोड़ एवं धन के साथ हमारे पास आओ. हम इं एवं अ न दे व को म ता तथा सुख के लए बुलाते ह. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ा नी शृणुतं हवं यजमान य सु वतः. वीतं ह ा या गतं पबतं सो यं मधु.. (१५) हे इं एवं अ न! तुम सोमरस नचोड़ने वाले यजमान क पुकार सुनो, उसके ह अ भलाषा करो. उसके य म आओ एवं उसका मधुर सोम पओ. (१५)
क
दे वता—सर वती
सू —६१
इयमददा भसमृण युतं दवोदासं व य ाय दाशुषे. या श तमाचखादावसं प ण ता ते दा ा ण त वषा सर व त.. (१) इन सर वती ने ह दे ने वाले व य को शी गामी एवं ऋण से छु टकारा दलाने वाला दवोदास नामक पु दया था. इ ह ने सदा अपने को तृ त करने वाले एवं दान न करने वाले प ण को न कया था. तु हारे ये दान महान् ह. (१) इयं शु मे भ बसखा इवा ज सानु गरीणां त वषे भ म भः. पारावत नीमवसे सुवृ भः सर वतीमा ववासेम धी त भः.. (२) यह सर वती अपने बल एवं महान् लहर ारा कनारे के पहाड़ क चो टय को इस कार तोड़ती ह, जस कार कमल क जड़ खोदने वाला क चड़ को बखेर दे ता है, म रवत वृ ा द को न करने वाली सर वती क अपनी तु तय एवं य कम ारा अपनी र ा के न म सेवा करता ं. (२) सर व त दे व नदो नबहय जां व य बृसय य मा यनः. उत त योऽवनीर व दो वषमे यो अ वो वा जनीव त.. (३) हे सर वती! दे व नदक एवं सव - ा त मायावी वृ असुर का नाश करो. हे अ क वा मनी! तुम असुर ारा छ नी ई धरती मनु य को दलाओ एवं इनके लए जल वा हत करो. (३) णो दे वी सर वती वाजे भवा जनीवती. धीनाम व यवतु.. (४) अ क वा मनी एवं तोता कर. (४)
क र ा करने वाली सर वती अ
ारा हमारी र ा
य वा दे व सर वतयुप ूते धने हते. इ ं न वृ तूय.. (५) हे सर वती दे वी! जो तोता धन न म क यु तुम उसक र ा करो. (५)
म इं के समान तु हारी तु त करता है,
वं दे व सर व यवा वाजेषु वा ज न. रदा पूषेव नः स नम्.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ यु दो. (६)
सर वती दे वी! तुम स ांम म हमारी र ा करो एवं सूय के समान हम धन
उत या नः सर वती घोरा हर यवत नः. वृ नी व
सु ु तम्.. (७)
स , श ु को डराने वाली सोने के रथ वाली एवं श ु हमारी शोभन तु त क अ भलाषा कर. (७)
को मारने वाली सर वती
य या अन तो अ त तवेष र णुरणवः. अम र त रो वत्.. (८) सर वती का बल अनंत, अपरा जत, द तयु , ग तशील एवं जलस हत है तथा बारबार श द करता आ घूमता है. (८) सा नो व ा अ त
षः वसॄर या ऋतावरी. अत हेव सूयः.. (९)
सर वती हम सभी श ु से छु टकारा पाने तथा जल से भरी अ य न दयां पार करने म हमारी सहायता कर. जस कार सूय सदा चलता रहता है, उसी कार सर वती सदा बह. (९) उत नः
या
यासु स त वसा सुजु ा. सर वती तो या भूत्.. (१०)
हमारी सबसे अ धक या, गंगा आ द सात ब हन वाली एवं पुराने ऋ षय से वत सर वती हमारी तु तयां सुन. (१०)
ारा
आप ुषी पा थवा यु रजो अ त र म्. सर वती नद पातु.. (११) धरा संबंधी व तीण लोक , अंत र एवं आकाश को अपने तेज से पूण करने वाली सर वती नदक से हमारी र ा कर. (११) षध था स तधातुः प च जाता वधय ती. वाजेवाजे ह ा भूत्.. (१२) तीन लोक म ा त, गंगा आ द सात-संबं धय वाली एवं पांच-वग को बढ़ाने वाली सर वती येक यु म बुलाने यो य है. (१२) या म ह ना म हनासु चे कते ु ने भर या अपसामप तमा. रथ इव बृहती व वने कृतोप तु या च कतुषा सर वती.. (१३) माहा य के ारा महान्, यश से यु व अ य न दय म धान सर वती सव े जलवाली मानी जाती है. जाप त ने सर वती को व तार के लए अ धक गुण वाली बनाया है. (१३) सर व य भ नो ने ष व यो माप फरीः पयसा मा न आ धक्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जुष व नः स या वे या च मा व
े ा यरणा न ग म.. (१४)
हे सर वती! हम स धन के पास ले चलो. हमारी अवन त मत करो. हम जल ारा पीड़ा न प ंचाओ. हमारे मै ीकाय और वेश को वीकार करो. हम तु हारे पास से वन अथवा बुरे थान म न जाव. (१४)
सू —६२
दे वता—अ नीकुमार
तुषे नरा दवो अ य स ता ना वे जरमाणो अकः. या स उ ा ु ष मो अ ता युयूषतः पयु वरां स.. (१) म वग के नेता एवं भुवन के वामी अ नीकुमार क तु त करता ं एवं मं उनक शंसा करता आ उ ह बुलाता ं. वे तुरंत श ु का नवारण करते ह तथा रा समा त पर धरती को ढकने वाला अंधेरा र करते ह. (१)
ारा क
ता य मा शु च भ माणा रथ य भानुं चू रजो भः. पु वरां य मता ममानापो ध वा य त याथो अ ान्.. (२) मेरे य क ओर आते ए अ नीकुमार अपने नमल तेज से अपने रथ क द त कट करते ह एवं व वध तेज को असी मत बनाते ए जल ा त के लए अपने घोड़ को म भू म के पार ले जाते ह. (२) ता ह य तयदर मु े था धय ऊहथुः श द ैः. मनोजवे भ र षरैः शय यै प र थदाशुषो म य य.. (३) हे उ अ नीकुमारो! तुम यजमान के द र घर को समृ बनाने के लए जाते हो. तुम तोता ारा अ भल षत एवं मन के समान वेगशाली घोड़ ारा तोता को वग म ले जाओ एवं ह दे ने वाले मनु य के श ु को गहरी न द म सुला दो. (३) ता न सो जरमाण य म मोप भूषतो युयुजानस ती. शुभं पृ मषमूज वह ता होता य नो अ ुग् युवाना.. (४) रथ म घोड़े जोड़ते ए, शोभन अ , पु एवं रस को वहन करते ए अ नीकुमार नए तोता के तो के समीप जाते ह. हे होता, ाचीन एवं ोहहीन अ न! युवा अ नीकुमार का य करो. (४) ता व गू द ा पु शाकतमा ना न सा वचसा ववासे. या शंसते तुवते श भ व ा बभूवतुगृणते च राती.. (५) म नवीन तु तय ारा उ ह चर, अनेक-कम करने वाले तथा ाचीन अ नीकुमार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क सेवा करता ं, जो तो रचना करने वाले एवं तु त बोलने वाले अनेक कार का दान करने वाले ह. (५)
को सुखदाता एवं
ता भु युं व भर यः समु ा ु य सूनुमूहथू रजो भः. अरेणु भय जने भभुज ता पत भर यसो न प थात्.. (६) तुमने तुग के पु भु यु क सागर म नाव टू ट जाने पर र ा क एवं अंत र वाले रथस हत घोड़ क सहायता से सागर से बाहर नकाला. (६)
म चलने
व जयुषा र या यातम ुतं हवं वृषणा व म याः. दश य ता शयवे प यथुगा म त यवाना सुम त भुर यू.. (७) हे रथ वामी अ नीकुमारो! तुम अपने वजयीरथ ारा माग म खड़े पहाड़ को न करो. हे कामपूरको! तुम पु चाहने वाली यजमान-प नी क पुकार सुनो, तोता क अ भलाषा पूण करो, अपने तोता क बछड़ा न दे ने वाली गाय को धा बनाओ तथा शोभनबु वाले बनकर सब जगह जाओ. (७) य ोदसी दवो अ त भूमा हेळो दे वानामुत म य ा. तदा द या वसवो यासो र ोयुजे तपुरघं दधात.. (८) हे धरती-आकाश, आ द यो, वसुओ और म तो! अ नीकुमार के सेवक मनु य के त दे व का जो महान् ोध है, उस तापकारी ोध का योग रा स के वामी को मारने के लए करो. (८) य राजानावृतुथा वदध जसो म ो व ण केतत्. ग भीराय र से हे तम य ोघाय च चस आनवाय.. (९) जो मनु य सभी लोक के वामी अ नीकुमार क समय-समय पर सेवा करता है, उसे म और व ण जानते ह. वह महाबली रा स एवं ोहा मक वचन बोलने वाले मनु य पर श फकता है. (९) अ तरै ै तनयाय व त ुमता यातं नृवता रथेन. सनु येन यजसा म य य वनु यताम प शीषा ववृ म्.. (१०) हे अ नीकुमारो! तुम उ म प हय , काशयु एवं सार थ वाले रथ पर सवार होकर संतान दे ने के लए हमारे घर आओ एवं छपे ए ोध ारा अपने भ के व नक ा के सर काट डालो. (१०) आ परमा भ त म यमा भ नयु यातमवमा भरवाक्. ह य चद् गोमतो व ज य रो वत गृणते च राती.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तुम अपने उ म, म यम एवं अधम घोड़ क सहायता से हमारे सामने आओ. तुम सुर त एवं गाय से भरी गोशाला का ार खोलो और मुझ तु तक ा को भली-भां त का धन दो. (११)
सू —६३
दे वता—अ नीकुमार
व१ या व गू पु ता तो न तोमोऽ वद म वान्. आ यो अवाङ् नास या ववत े ा सथो अ य म मन्.. (१) सुंदर एवं ब त ारा बुलाए गए अ नीकुमार जहां कह रहते ह, वह ह स हत तो उ ह त के समान ा त ह . इसी तो ने अ नीकुमार को मेरी ओर अ भमुख कया था. हे अ नीकुमारो! तुम तोता क तु तय पर परम स होते हो. (१) अरं मे ग तं हवनाया मै गृणाना यथा पबाथो अ धः. प र ह य तयाथो रषो न य परो ना तर तुतुयात्.. (२) हे अ नीकुमारो! मेरे बुलाने पर तुम भली कार आओ एवं मेरी तु त सुनकर सोमरस पओ. श ु से हमारे घर क इस कार र ा करो क कोई भी उसे हा न न प ंचावे (२) अका र वाम धसो वरीम ता र ब हः सु ायणतमम्. उ ानह तो युवयुवव दा वां न तो अ य आ न्.. (३) हे अ नीकुमारो! तु हारे कारण सोमरस नचोड़ा गया है, मुलायम कुश बछाए गए ह, तु हारी कामना करता आ तोता हाथ जोड़कर तु त करता है एवं तु ह ा त करते ए प थर सोमरस नकाल रहे ह. (३) ऊ व वाम नर वरे व था होता गूतमना उराणोऽयु
रा तरे त जू णनी घृताची. यो ना या हवीमन्.. (४)
हे अ नीकुमारो! ह एवं घृत के वामी अ न तु हारे य म ऊंचे उठते ह. जो तोता तु हारा तो बोलता है, वही तोता अनेक य क ा एवं उ साही होता है. (४) अ ध ये हता सूय य रथं त थौ पु भुजा शतो तम्. माया भमा यना भूतम नरा नृतू ज नम य यानाम्.. (५) हे ब त के र क अ नीकुमारो! सूयपु ी तु हारे शतर क रथ म आ य लेने के लए बैठ थी. तुम य पा , दे व क इसी ज म क बु से बु मान् नेता और नृ य करने वाले बनो. (५) युवं ी भदशता भरा भः शुभे पु मूहथुः सूयायाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वां वयो वपुषेऽनु प त
ाणी सु ु ता ध या वाम्.. (६)
हे अ नीकुमारो! तुम इस दशनीय कां त के ारा अपनी प नी सूया क शोभा के लए पु ा त करो. तु हारे घोड़े शोभा पाने के लए दौड़. हे भली कार तुत दे वो! शोभन तु तयां तु ह ा त ह . (६) आ वां वयोऽ ासो व ह ा अ भ यो ना या वह तु. वां रथो मनोजवा असज षः पृ इ षधो अनु पूव ः.. (७) हे अ नीकुमारो! तेज चलने वाले व बोझा ढोने म कुशल घोड़े तु ह सोम पी अ के समीप ले जाव. तु हारा मन के समान तेज चलने वाला रथ अपनाने-यो य, चाहने-यो य एवं अ धक मा ा वाले सोम पी अ के हेतु छोड़ा गया है. (७) पु ह वां पु भुजा दे षणं धेनुं नइषं प वतमस ाम्. तुत वां मा वी सु ु त रसा ये वामनु रा तम नम्.. (८) हे ब त का पालन करने वाले अ नीकुमारो! तु हारा धन ब त है. हम सर के पास न जाने वाली तथा स करने वाली गाय एवं अ दो. हे मु दत होने वाले अ नीकुमारो! तोता, तु तयां एवं तु हारे दान के उ े य से तैयार कया जाने वाला सोमरस तु हारे लए है. (८) उत म ऋ े पुरय य र वी सुमी हे शतं पे के च प वा. शा डो दा र णनः म ीन् दश वशासो अ भषाच ऋ वान्.. (९) पु य क सी सीधी और तेज चलने वाली दो घो ड़यां, सुमीढ् व क सौ गाएं और पे क के पके ए अ मेरे पास ह. शांड नामक राजा ने अ नीकुमार के तोता को सोने का बना रथ, सुंदर दस घोड़े और श ु को हराने वाले घोड़े दए थे. (९) सं वां शता नास या सह ा ानां पु प था गरे दात्. भर ाजाय वीर नू गरे दा ता र ां स पु दं ससा युः.. (१०) हे अ नीकुमारो! पु पंथा नामक राजा ने तु हारे तोता को सैकड़ और हजार घोड़े दए थे. हे वीरो! तु हारे तोता मुझ भर ाज को यह द णा द. हे अनेक कम करने वाले दे वो! तु हारी कृपा से रा स न ह . (१०) आ वां सु ने व रम सू र भः याम्.. (११) हे अ नीकुमारो! मै व ान के साथ तु हारा दया आ सुखद धन ा त क ं . (११)
सू —६४
दे वता—उषा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ य उषसो रोचमाना अ थुरपां नोमयो श तः. कृणो त व ा सुपथा सुगा यभू व वी द णा मघोनी.. (१) चमकती ई व शु लवण वाली उषाएं शोभा के लए पानी क लहर के समान उठती ह. धन क वा मनी, शंसा यो य एवं समृ करने वाली उषा सभी थान को सुंदरमाग वाला एवं सुगम बनाती है. (१) भ ा द उ वया व भा यु े शो चभानवो ामप तन्. आ वव ः कृणुषे शु भमानोषो दे व रोचमाना महो भः.. (२) हे दे वी उषा! तुम क याणी जान पड़ती हो एवं व तीण होकर शोभा पा रही हो. तु हारी चमक ली करण आकाश से गर रही ह. तुम महान् तेज से सुशो भत एवं द त होकर अपना प कट करती हो. (२) वह त सीम णासो श तो गावः सुभगामु वया थानाम्. अपेजते शूरो अ तेव श ून् बाधते तमो अ जरो न वो हा.. (३) लाल रंग क एवं चमक ली करण सुभगा, व तृत एवं उ म उषा को वहन करती ह. जस कार अ फकने वाला शूर श ु को र भगाता है, उसी कार उषा अंधकार को भगाती है तथा शी गामी सेनाप त के समान अंधेरे को रोकती है. (३) सुगोत ते सुपथा पवते ववाते अप तर स वभानो. सा न आ वह पृथुयाम ृ वे र य दवो हत रषय यै.. (४) हे उषा दे वी! पहाड़ एवं बना हवा वाले थान तु हारे लए सुगम एवं सरल माग वाले ह . हे वयं काश वाली उषा! तुम अंत र को पार करती हो. वशाल रथवाली, दशनीय एवं वग क पु ी उषा हम अ भलाषा करने यो य धन द. (४) सा वह यो भरवातोषो वरं वह स जोषमनु. वं दवो हतया ह दे वी पूव तौ मंहना दशता भूः.. (५) हे उषा! तुम बना वराम लए घोड़ क सहायता से तोता के लए ेमपूवक धन ढोती हो. हे वगपु ी उषा दे वी! तुम थम आ ान म पूजा के यो य एवं दशनीय बनो. (५) उ े वय सतेरप त र ये पतुभाजो ु ौ. अमा सते वह स भू र वाममुषो दे व दाशुषे म याय.. (६) हे उषा दे वी! तु हारे कट होने पर च ड़यां अपने घ सल से उड़ती ह एवं अ पैदा करने वाले मनु य अपने घर से नकलते ह. तुम अपने समीपवत एवं ह दाता मनु य को ब त धन दे ती हो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —६५
दे वता—उषा
एषा या नो हता दवोजाः ती छ ती मानुषीरजीगः. या भानुना शता रा या व ा य तर तमस द ू न्.. (१) वग से उ प , अतएव वग क पु ी उषा हमारे क याण के लए अंधकार मटाती ई मानवी जा को का शत करती है. यह चमक ली करण के ारा रा के अंत म तेज वी तार एवं अंधकार को तर कृत करती ई दखाई दे ती है. (१) व त युर णयु भर ै ं भा युषस रथाः. अ ं य य बृहतो नय ती व ता बाध ते तम ऊ यायाः.. (२) चमक ले रथ वाली उषाएं ातःकाल वशालय का थम भाग पूरा करती ई, लाल रंग वाले घोड़ क सहायता से व तृत गमन करती ह, व च प से शोभा पाती ह तथा रात के अंधेरे को समा त करती ह. (२) वो वाज मषमूज वह ती न दाशुष उषसो म याय. मघोनीव रव प यमाना अवो धात वधते र नम .. (३) हे उषाओ! तुम ह दे ने वाले मनु य को क त, बल, अ और रस धारण कराती ई धन वा मनी एवं ग तशील बनती हो. आज मुझ सेवक को पु -पौ यु अ एवं र न दो. (३) इदा ह वो वधते र नम तीदा वीराय दाशुष उषासः. इदा व ाय जरते य था न म मावते वहथा पुरा चत्.. (४) हे उषाओ! तु हारे पास अपने सेवक को इसी समय दे ने के लए धन है एवं वीर ह दाता को इसी समय दे ने के लए धन है. बु मान् तोता को इसी समय दे ने के लए तु हारे पास धन है. मुझ जैसे उ थ मं जानने वाले के लए तुम पहले के समान धन दो. (४) इदा ह त उषो अ सानो गो ा गवाम रसो गृण त. १कण ब भ णा च स या नृणामभव े व तः.. (५) हे पवत क चो टय का आदर करने वाली उषा! अं गरागो ीय ऋ षय ने तु हारी कृपा से गाय का समूह तुरंत ा त कया एवं आदरणीय तो ारा अंधकार का वनाश कया. नेता प अं गरागो ीय ऋ षय क दे व वषयक तु त स य ई थी. (५) उ छा दवो हतः नव ो भर ाजव धते मघो न. सुवीरं र य गृणते ररी गायम ध धे ह वो नः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वग पु ी उषा! पुराने लोग के समान हमारे लए भी तुम अंधेरा र करो. हे धनवा मनी उषाओ! भर ाज के समान सेवा एवं तु त करने वाले मुझको पु -पौ से यु धन दो. हम ब त ारा अ भल षत-अ अ धक मा ा म दो. (६)
सू —६६
दे वता—म द्गण
वपुनु त च कतुषे चद तु समानं नाम धेनु प यमानम्. मत व य ोहसे पीपाय सकृ छु ं हे पृ धः.. (१) व ान् तोता के सामने म त का पर पर समान, अ तशय- थर, स करने वाला एवं सवदा ग तशील प शी कट हो. वह प म यलोक म वन प त के प म अ भलाषा पूरी करने को कट होता है एवं वष म एक बार आकाश से सफेद रंग का जल टपकाता है. (१) ये अ नयो न शोशुच धाना य म तो वावृध त. अरेणवो हर ययास एषां साकं नृ णैः प ये भ भूवन्.. (२) जो म त् जलती ई अ नय के समान का शत होते ह एवं अपनी इ छानुसार ने तगुने बढ़ते ह, उनके रथ धू लर हत एवं सोने के अलंकार वाले ह. वे धन एवं बल के साथ कट होते ह. (२) य ये मी षः स त पु ा यां ो नु दाधृ वभर यै. वदे ह माता महो मही षा से पृ ः सु वे३ गभमाधात्.. (३) जो म त् कामवष के पु ह एवं धारण करने वाला अंत र ज ह भरण करने म समथ है, उन म त क परम स एवं महती माता पृ मानव के शोभनज म के लए गभ धारण करती है. (३) न य ईष ते जनुषोऽया व१ तः स तोऽव ा न पुनानाः. नयद् े शुचयोऽनु जोषमनु या त वमु माणाः.. (४) म द्गण अपने तु तक ा के पास सवारी से नह जाते, अ पतु सबके अंतःकरण म रहकर पाप को न करते ह. द तशाली म द्गण जब तोता क इ छानुसार जल हते ह, तब शोभा से यु होकर अपने शरीर को कट करते एवं धरती को स चते ह. (४) म ू न येषु दोहसे चदया आ नाम धृ णु मा तं दधानाः. न ये तौना अयासो म ा नू च सुदानुरव यास ान्.. (५) म त के
त भावशाली मा त तो का उ चारण करके तोता शी ही अ भलाषाएं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूरी कर लेते ह. जो तरो हत, ग तशील एवं महान् ह, उ ह उ -म त को शोभनह व धारण करने वाला यजमान ोधर हत करता है. (५) त इ ाः शवसा धृ णुषेणा उभे युज त रोदसी सुमेके. अध मैषु रोदसी वशो चरामव सु त थौ न रोकः.. (६) उ एवं श शाली म द्गण श शाली-सेवा को शोभन प वाले धरती-आकाश से मलाते ह. प नी म यमा वाक् म त म अपनी द त के साथ रहती है. श शाली म त का कोई भी बाधक नह है. (६) अनेनो वो म तो यामो अ व मज यरथीः. अनवसो अनभीशू रज तू व रोदसी प या या त साधन्.. (७) हे म तो! तु हारा रथ पापर हत हो. तोता सार थ न होने पर भी जस रथ को चलाता है, वह बना घोड़ वाला, भोजनशू य एवं पाशर हत होकर भी जल का ेरक एवं तोता क अ भलाषा पूण करने वाला बनकर वग, धरती एवं आकाश म चलता है. (७) ना य वता न त ता व त म तो यमवथ वाजसातौ. तोके वा गोषु तनये यम सु स जं दता पाय अध ोः.. (८) हे म तो! यु म तुम जसक र ा करते हो, उसका न कोई ेरक होता है और न कोई हसक. तुम जसके पु , पौ , गाय एवं जल क र ा करते हो, वह यु म तेज वी श ु क भी गाय को न करता है. (८) च मक गृणते तुराय मा ताय वतवसे भर वम्. य सहां स सहसा सह ते रेजते अ ने पृ थवी मखे यः.. (९) हे अ न! श द करने वाले, शी ग त वाले एवं अपनी श वाले म त को दशनीय ह व दो. वे अपने बल से श ु का बल परा जत करते ह. आदरणीय म त से पृ वी कांपती है. (९) वषीम तो अ वर येव द ु ष ृ ु यवसो जु ो३ ना नेः. अच यो धुनयो न वीरा ाज ज मानो म तो अधृ ाः.. (१०) य
के समान काश वाले, शी गामी, आग क लपट के समान द तशाली एवं श ु को कंपाने वाले वीर के समान आदरणीय म द्गण तेज वी शरीर वाले तथा अपराजेय ह. (१०) तं वृध तं मा तं ाज य सूनुं हवसा ववासे. दवः शधाय शुचयो मनीषा गरयो नाप उ ा अ पृ न्.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म उन वृ शाली व तेज वी खड् ग-वाले पु क सेवा तो ारा करता ं. तोता क प व तु तयां उ बनकर म त के बल क उसी कार समानता करती ह, जस कार बादल करते ह. (११)
सू —६७
दे वता— म व व ण
व ेषां वः सतां ये तमा गी भ म ाव णा वावृध यै. सं या र मेव यमतुय म ा ा जनाँ असमा बा भः वैः.. (१) हे सकल व म े म एवं व ण! म तु तय ारा तु ह बढ़ाता ं. पर पर असमान एवं उ म- नयंता तुम दोन र सी के समान मनु य को बांध लेते हो. (१) इयं म ां तृणीते मनीषोप या नमसा ब हर छ. य तं नो म ाव णावधृ ं छ दय ां व यं सुदानू.. (२) हे य म एवं व ण! मेरी यह तु त तु ह ढक लेती है, ह के साथ तु हारे पास जाती है एवं तु हारे य म प ंचती है. हे शोभनदान वाले म और व ण! हम ठं ड और हवा रोकने वाला तथा श ु ारा अ व जत घर दो. (२) आ यातं म ाव णा सुश युप या नमसा यमाना. सं याव ः थो अपसेव चना छधीयत तथो म ह वा.. (३) हे म और व ण! शोभनवचन वाले तो एवं ह ा ारा बुलाए ए तुम दोन आओ. कम का अ धकारी जस कार कम ारा अ चाहने वाले लोग को वश म करता है, उसी कार तुम अपने मह व से ऐसे लोग को वश म करो. (३) अ ा न या वा जना पूतब धू ऋता यद् गभम द तरभर यै. या म ह महा ता जायमाना घोरा मताय रपवे न द धः.. (४) अ के समान बलशाली, प व तु तय वाले एवं स ययु म एवं व ण को अ द त ने गभ के प म धारण कया. अ द त ने महान् लोग से भी बड़े एवं हसक क भी हसा करने वाले म और व ण को धारण कया. (४) व े य ां मंहना म दमानाः ं दे वासो अदधुः सजोषाः. प र य थो रोदसी च व स त पशो अद धासो अमूराः.. (५) सब दे व ने पर पर ेमपूवक तु हारे मह व क तु त करते ए बल धारण कया था. तुमने व तृत धरती-आकाश को परा जत कया है एवं तु हारी करण अपरा जत तथा श शा लनी ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता ह ं धारयेथे अनु ून् ं हेथे सानुमुपमा दव ोः. हो न उत व दे वो भू ममाता ां धा सनायोः.. (६) हे म और व ण! तुम त दन बल धारण करते हो. तुम अंत र के उ त दे श को खंभे के समान ढ़ करते हो. तु हारे ारा ढ़ कए गए न एवं संपूण दे व मानव के ह से तृ त होकर धरती और आकाश को ा त करते ह. (६) ता व ं धैथे जठरं पृण या आ य स सभृतयः पृण त. न मृ य ते युवतयोऽवाता व य पयो व ज वा भर ते.. (७) हे म एवं व ण! तुम अपना पेट सोमरस से भरने के लए यजमान क र ा करते हो. हे व ज वा! जब ऋ वज् य शाला को भर दे ते ह एवं तुम जल बरसाते हो. उस समय युव तयां—स रताएं धूल से परा जत नह होत , अ पतु सूखी, न दयां भी जल से भर जाती ह. (७) ता ज या सदमेदं सुमेधा आ य ां स यो अर तऋते भूत्. त ां म ह वं घृता ाव तु युवं दाशुषे व च य मंहः.. (८) हे घृत एवं अ धारण करने वाले म और व ण! शोभनबु वाले लोग तु तवचन ारा तुमसे सदा जल क याचना करते ह. जस कार तु हारा भ य म मायार हत होता है, उसी कार तु हारा मह व हो. तुम ह दाता का पाप न करो. (८) य ां म ाव णा पूध या धाम युव धता मन त. न ये दे वास ओहसा न मता अय साचो अ यो न पु ाः.. (९) हे म एवं व ण! तु हारे य एवं तु हारे ारा कए जाते ए य कम को जो अयाजक लोग तुमसे पधा करते ए न करते ह, जो दे व एवं मानव तो नह बोलते, जो कम करते ए भी य हीन ह एवं जो पु यु नह ह, उन सबको न करो. (९) व य ाचं क तासो भर ते शंस त के च वदो मनानाः. आ ां वाम स या यु था न कदवे भयतथो म ह वा.. (१०) हे म एवं व ण! मेधावी उद्गाता जब अलग-अलग तु तयां बोलते ह, कुछ अ न आ द दे व क तु त करते ए तो बोलते ह एवं तु हारे उ े य से हम स चे मं बोलते ह, तब तुम अ य दे व के साथ मत चले जाना. (१०) अवो र था वां छ दषो अ भ ौ युवो म ाव णाव कृधोयु. अनु यद् गावः फुरानृ ज यं धृ णुं य णे वृषणं युनजन्.. (११) हे र क म और व ण! जस समय तु तयां बोली जाती ह एवं यजमान य ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म
सरल-ग त, श ु-पराभवकारी तथा कामवष सोमरस को तुत करते ह, उस समय तुम घर दे ने के लए आते हो और तु हारा दया आ घर न नह होता. (११)
सू —६८
दे वता—इं व व ण
ु ी वां य उ तः सजोषा मनु वद् वृ ब हषो यज यै. आ य इ ाव णा वषे अ महे सु नाय मह आववतत्.. (१) हे महान् इं व व ण! आज य म ऋ वज ारा तु हारे न म वही सोमरस तैयार कया गया है, जो मनु के समान यजमान ारा कुश बछाने के प ात् महान् एवं सुख के लए कया जाता है. (१) ता ह े ा दे वताता तुजा शूराणां श व ा ता ह भूतम्. मघोनां मं ह ा तु वशु म ऋतेन वृ तुरा सवसेना.. (२) हे इं व व ण! तुम े , य म धन दे ने वाले एवं शूर म अ तशय श शाली हो. तुम दानक ा म अ त महान्, अ तशय बलयु , स य ारा श ु क हसा करने वाले एवं सभी सेना के वामी हो. (२) ता गृणी ह नम ये भः शूषैः सु ने भ र ाव णा चकाना. व ेणा यः शवसा ह त वृ ं सष य यो वृजनेषु व ः.. (३) हे भर ाज! तु तयो य, श शा लय व सुखी लोग ारा शं सत इं एवं व ण क तु त करो. इन म एक व ारा वृ को मारता है और सरा बु मान् श ारा तोता के उप व म र क बनता है. (३) ना य र वावृध त व े दे वासो नरां वगूताः. ै य इ ाव णा म ह वा ौ पृ थ व भूतमुव .. (४) हे इं एवं व ण! मनु य म यां और पु ष एवं सब दे व वयं त पर होकर जब तु तय ारा तु हारी वृ करते ह, तब तुम इन तोता के वामी बनो. हे ावा-पृ वी! तुम भी इनके वामी बनो. (४) स इ सुदानुः ववाँ ऋतावे ा यो वां व ण दाश त मन्. इषा स ष तरे ा वा वंसद् र य र यवत जनान्.. (५) हे इं एवं व ण! जो यजमान अपने आप तु ह ह दे ता है, वह शोभनदान वाला, धनवान् एवं य क ा बने. ऐसा दाता जयशील श ु से जीतता है एवं धन के साथ संप शाली-पु ा त करता है. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यं युवं दा वराय दे वा र य ध थो वसुम तं पु ुम्. अ मे स इ ाव णावा प या यो भन वनुषामश तीः.. (६) हे इं एवं व ण दे वो! तुम ह दे ने वाले यजमान को सपं एवं ब वध अ वाला जो धन दे ते हो, श ु संबंधी अपयश को मटाने वाला वही धन हम दो. (६) उत नः सु ा ो दे वगोपाः सु र य इ ाव णा र यः यात्. येषां शु मः पृतनासु सा ा स ो ु ना तरते ततु रः.. (७) यु
हे इं एवं व ण! हम तोता को सुर त व दे व ारा र त धन दो. हमारा बल म श ु को परा जत एवं ह सत करके उनके यश का शी तर कार करे. (७) नू न इ ाव णा गृणाना पृङ् ं र य सौ वसाय दे वा. इ था गृण तो म हन य शध ऽपो न नावा रता तरेम.. (८)
हे इं एवं व ण दे वो! तुम हमारी तु त सुनकर हम शोभन अ के लए धन दो. हम महान् कहकर तु हारे बल क तु त करते ह. जैसे लोग नाव के सहारे जल को पार करते ह, उसी कार हम पाप से पार ह . (८) स ाजे बृहते म म नु यमच दे वाय व णाय स थः. अयं य उव म हना म ह तः वा वभा यजरो न शो चषा.. (९) हे तोता! राजा के शासक एवं वराट व ण दे व के न म य एवं सभी कार वशाल तो पढ़ो. वे मह वयु , महान् कम वाले, बु मान्, तेज वी एवं जरार हत होने के साथ-साथ धरती-आकाश को का शत करते ह. (९) इ ाव णा सुतपा वमं सुतं सोमं पबतं म ं धृत ता. युवो रथो अ वरं दे ववीतये त वरसरमुप या त पीतये.. (१०) हे सोमक ा इं एवं व ण! इस नशीले एवं नचोड़े ए सोमरस को पओ. हे तधारको! तु हारा रथ दे व के साथ सोमपान के न म य के माग पर बढ़ता है. (१०) इ ाव णा मधुम म य वृ णः सोम य वृषणा वृषेथाम्. इदं वाम धः प र ष म मे आस ा म ब ह ष मादयेथाम्.. (११) हे कामवष इं व व ण! तुम अ तशय मधुर, अ भलाषापूरक एवं वृ क ा सोम का पान करो. हमने यह सोम प अ तु हारे लए ही पा म रखा. इन कुश पर बैठकर सोमपान से स बनो. (११)
सू —६९
दे वता—इं व व णु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सं वां कमणा स मषा हनोमी ा व णू अपस पारे अ य. जुषेथां य ं वणं च ध म र ैनः प थ भः पारय ता.. (१) हे इं एवं व णु! म तु हारे न म तो एवं ह व दान करता ं. इस उ थ क समा त पर तुम य का सेवन करना. हम उप वर हत माग पर पार ले जाने वाले तुम दोन धन दो. (१) या व ासां ज नतारा मतीना म ा व णू कलशा सोमधाना. वां गरः श यमाना अव तु तोमासो गीयमानासो अकः.. (२) हे सम त तु तय के जनक एवं कलश प म सोमरस के आधार इं एवं व णु! बोली जाती ई तु तयां तु ह ा त ह . तोता ारा गाए जाते ए तो तु हारे पास प ंच. (२) इ ा व णू मदपती मदानामा सोमं यातं वणो दधाना. सं वाम व ु भमतीनां सं तोमासः श यमानास उ थैः.. (३) हे मदकारक-सोम के वामी इं एवं व णु! तुम धन दे ते ए सोमरस के सामने आओ. तोता के तो एवं बोले जाते ए उ थ तु ह तेज के साथ ा त ह . (३) आ वाम ासो अ भमा तषाह इ ा व णू सधमादो वह तु. जुषेथां व ा हवना मतीनामुप ा ण शृणुतं गरो मे.. (४) हे इं एवं व णु! हसक को हराने वाले एवं पर पर स होने वाले घोड़े तु ह वहन कर. तुम तोता के सम त तो के साथ-साथ मेरे तु तवचन को भी सुनो. (४) इ ा व णू त पनया यं वां सोम य मद उ च माथे. अकृणुतम त र ं वरीयोऽ थतं जीवसे नो रजां स.. (५) हे इं एवं व णु! तुम सोम के नशे म महान् कम करते हो, अंत र को व तृत बनाते हो एवं लोग को हमारे जीवन म उपयोगी बनाते हो. ये सब कम शंसा के यो य ह. (५) इ ा व णू ह वषा वावृधना ाम ाना नमसा रातह ा. घृतासुती वणं ध म मे समु ः थः कलशः सोमधानः.. (६) हे सोम ारा बढ़े ए इं एवं व णु! तुम घी एवं अ से यु हो. तुम सोम के उ म भाग का सेवन करने वाले यजमान ारा नम कार के साथ ह दान करने वाले हो. तुम सागर एवं कलश के प म सोम के आधार हो. तुम हम धन दो. (६) इ ा व णू पबतं म वो अ य सोम य द ा जठरं पृणेथाम्. आ वाम धां स म दरा य म ुप ा ण शृणुतं हवं मे.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे दशनीय इं एवं व णु! तुम इस नशीले सोमरस को पीकर अपना पेट भरो. नशीला सोम अ के प म तु ह ा त हो. तुम मेरी तु तयां और पुकार सुनो. (७) उभा ज यथुन परा जयेथे न परा ज ये कतर नैनोः. इ व णो यदप पृधेथां ेधां सह ं व तदै रयेथाम्.. (८) हे वजयी इं एवं व णु! तुम कभी हारते नह हो. इन दोन म कोई भी हारने वाला नह है. तुमने जसे तीन थान पर थत कया एवं असं य व तु के लए असुर के साथ पधा क , उसे अपने परा म से पा लया. (८)
सू —७०
दे वता— ावा-पृ वी
घृतवती भुवनानाम भ योव पृ वी मधु घे सुपेशसा. ावापृ थवी व ण य धमणा व क भते अजरे भू ररेतसा.. (१) हे ावा-पृ वी! तुम जलयु , ा णय के आ य- थल, व तीण, अनेक काय के प म स , जल-दोहन करने वाली, सुंदर प वाली, सबके नयामक व ण ारा अलग-अलग धा रत, न य एवं ब त श वाली हो. (१) अस ती भू रधारे पय वती घृतं हाते सुकृते शु च ते. राज ती अ य भुवन य रोदसी अ मे रेतः स चतं य मनु हतम्.. (२) हे पर पर पृथक्, अनेक धारा वाली, जलयु एवं प व कम वाली ावा-पृ वी! तुम उ मकम करने वाले को जल दे ती हो. इस संसार क वा मनी ावा-पृ वी! तुम मानव हतकारी श हम दो. (२) यो वामृजवे मणाय रोदसी मत ददाश ध णे स साध त. जा भजायते धमण प र युवोः स ा वषु पा ण स ता.. (३) हे सकल भुवन क नवास ावा-पृ वी! जो मनु य तु हारे सरल गमन के लए ह दे ता है, वह अपनी कामनाएं पूण करता है एवं पु -पौ ा द के ारा उ त करता है. कम के ऊपर वतमान तु हारा वीय नाना प धारण करता है. (३) घृतेन ावापृ थवी अभीवृते घृत या घृतपृचा घृतावृधा. उव पृ वी होतृवूय पुरो हते ते इ ा ईळते सु न म ये.. (४) ावा-पृ वी जल से ढक ई, जल को सहारा दे ती ई, जल से ा त, जल क वृ करने वाली, व तृत, स व य म यजमान ारा पुर कृत ह. व ान् य करने के न म इनसे सुख क याचना करते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मधु नो ावापृ थवी म म तां मधु ता मधु घे मधु ते. दधाने य ं वणं च दे वता म ह वो वाजम मे सुवीयम्.. (५) जल रण करने वाली, जल टपकाने वाली, जल के न म कम करने वाली, दे वता प, हम लोग को य , धन, वशाल-यश, अ एवं शोभनवीरता दे ती ई ावा-पृ वी हम मधु से स च. (५) ऊज नो ौ पृ थवी च प वतां पता माता व वदा सुदंससा. संरराणे रोदसी व श भुवा स न वाजं र यम मे स म वताम्.. (६) हे पता ौ एवं माता पृ वी! हम अ दो. सबको जानने वाली, शोभनकम वाली, पर पर रमण करती ई एवं सबको सुख दे ने वाली ावा-पृ वी हम संतान, बल एवं धन द. (६)
सू —७१
दे वता—स वता
उ य दे वः स वता हर यया बा अयं त सवनाय सु तुः. घृतेन पाणी अ भ ु णुते मखो युवा सुद ो रजसो वधम ण.. (१) शोभनकम वाले स वता दे व अपनी वणमय भुजा को दान के लए उठाते ह. महान्, न ययुवा व शोभनबु स वता लोक को धारण करने के लए अपने जलपूण हाथ को बढ़ाते ह. (१) दे व य वयं स वतुः सवीम न े े याम वसुन दावने. यो व य पदो य तु पदो नवेशने सवे चा स भूमनः.. (२) हम उ ह स वता दे व के अनु ात एवं शंसनीय दान पाने म समथ ह , जो सभी एवं चतु पद और ा णय क थ त और ज म म वतं ह. (२)
पद
अद धे भः स वतः पायु भ ् वं शवे भर प र पा ह नो गयम्. हर य ज ः सु वताय न से र ा मा कन अघशंस ईशत.. (३) हे स वता! तुम अपने अ ह सत एवं सुखकारक तेज ारा हमारे घर क र ा करो. हे हर यवाक्! तुम नवीन सुख एवं र ा के कारण बनो. हमारा अ हत चाहने वाला हमारा वामी न हो. (३) उ य दे वः स वता दमूना हर यपा णः तदोषम थात्. अयोहनुयजतो म ज आ दाशुषे सुव त भू र वामम्.. (४) दानयु मन वाले, वणमय हाथ वाले, सोने क ठोड़ी वाले, य के पा व स वचन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले स वता दे व रा (४)
क समा त पर उठ. वे ह दाता यजमान के लए ब त सा अ द.
उ अयाँ उपव े व बा हर यया स वता सु तीका. दवो रोहां य ह पृ थ ा अरीरम पतयत् क चद वम्.. (५) स वता ा यानदाता के समान अपने वणमय एवं शोभन अवयव वाले हाथ को उठाव. वे धरती से आकाश के थान म प ंच एवं सभी ग तशील व तु को आनंद द. (५) वामम स वतवाममु ो दवे दवे वामम म यं सावीः. वाम य ह य य दे व भूरेरया धया वामभाजः याम.. (६) हे स वता! हम आज धन दो एवं कल भी धन दे ना. हम त दन धन दो. हे दे व! तुम नवास के कारण प वशाल धन के दाता हो. हम इस तु त ारा धन के भागी बनगे. (६)
सू —७२
दे वता—इं व सोम
इ ासोमा म ह त ां म ह वं युवं महा न थमा न च थुः. युवं सूय व वदथुयुवं व१ व ा तमा यहतं नद .. (१) हे इं एवं सोम! तु हारा मह व बड़ा है. तुमने महान् भूत को बनाया था. तुमने सूय और जल क खोज क है एवं सभी नदक व अंधकार का नाश कया है. (१) इ ासोमा वासयथ उषामु सूय नयथो यो तषा सह. उप ां क भथुः क भनेना थतं पृ थव मातरं व.. (२) हे इं एवं सोम! तुम उषा को का शत करो एवं सूय को उसक यो त के साथ ऊपर उठाओ. तुम अंत र के ारा वग को थर करो एवं पृ वी माता को स बनाओ. (२) इ ासोमाव हमपः प र ां हथो वृ मनु वां ौरम यत. ाणा यैरयतं नद नामा समु ा ण प थुः पु ण.. (३) हे इं एवं सोम! तुम जल को रोकने वाले वृ नामक रा स का वध करो. वग ने तु ह माना है. तुम न दय के जल को े रत करो व समु को जल से भर दो. (३) इ ासोमा प वमामा व त न गवा म धथुव णासु. जगृभतुरन पन मासु श च ासु जगती व तः.. (४) हे इं एवं सोम! तुमने गाय के कोमल थन म पु कारक ध धारण कया है. तुमने भ - भ रंग वाली गाय म कसी के ारा न कने वाला तथा ेतवण का ध धारण कया ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. (४) इ ासोमा युवमङ् ग त मप यसाचं ु यं रराथे. युवं शु मं नय चष ण यः सं व थुः पृतनाषाहमु ा.. (५) हे इं एवं सोम! तुम हम उ ार करने वाला, संतानयु एवं शंसनीय धन शी दो. हे अ त शूरो! तुम मानव म क याणकारी एवं श ुसेना को हराने वाला बल बढ़ाओ. (५)
सू —७३
दे वता—बृह प त
यो अ भ थमजा ऋतावा बृह प तरा रसो ह व मान्. बह मा ाघमस पता न आ रोदसी वृषभो रोरवी त.. (१) पवत का भेदन करने वाले, सबसे पहले उ प , स ययु , अं गरा के पु , य के भागी, दोन लोक म ग तशील, अ तशय द त थान म रहने वाले एवं हमारे पालनक ा बृह प त कामपूरक बनकर धरती-आकाश म गजन करते ह. (१) जनाय च ईवत उ लोकं बृह प तदव तौ चकार. न वृ ा ण व पुरो ददरी त जय छ ूँर म ा पृ सु साहन्.. (२) जो बृह प त तु त करने वाले को य म थान दे ते ह, वे ही ढकने वाले अंधकार को र करते ए यु म श ु को जीतते ह एवं अ म को हराते ह. वे रा स के नगर को बार-बार जलाते ह. (२) बृह प तः समजय सू न महो जान् गोमतो दे व एषः. अपः सषास व१ र तीतो बृह प तह य म मकः.. (३) इन बृह प त दे व ने असुर के धन के साथ-साथ उनक गाय से पूण गोचर भू म को जीता था. बृह प त कसी के ारा न रोके जाते ए य कम ारा वग को भोगने क इ छा करते ह एवं मं ारा श ु का नाश करते ह. (३)
सू —७४
दे वता—सोम व
सोमा ा धारयेथामसुय१ वा म योऽरम ुव तु. दमेदमे स त र ना दधाना शं नो भूतं पदे शं चतु पदे .. (१) हे सोम एवं ! तुम हम असुर के समान श दो. हमारे य येक घर म तु ह पूरी तरह ा त कर. हे सात र न धारण करने वालो! तुम हमारे अ त र दो पैर वाले मानव एवं चार पैर वाले पशु के लए क याणकारी बनो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमा ा व वृहतं वषूचीममीवा या नो गयमा ववेश. आरे बाधेथां नऋ त पराचैर मे भ ा सौ वसा न स तु.. (२) हे सोम एवं ! हमारे घर म जो रोग समाया आ है, उसे र भगाओ एवं द र ता को बाधा प ंचाकर हमसे र भगाओ. हमारे पास क याणकारी अ हो. (२) सोमा ा युवमेता य मे व ा तनूषु भेषजा न ध म्. अव यतं मु चतं य ो अ त तनूषु ब ं कृतमेनो अ मत्.. (३) हे सोम एवं ! तुम हमारे शरीर को लाभ प ंचाने वाली सभी ओष धयां धारण करो. हमारे ारा कया आ जो पाप हमारे शरीर म बंधा है, उसे श थल करके र भगाओ. (३) त मायुधौ त महेती सुशेवौ सोमा ा वह सु मृळतं नः. नो मु चतं व ण य पाशाद् गोपायतं नः सुमन यमाना.. (४) हे सोम एवं ! तुम द त धनुष वाले, तेज बाण वाले एवं शोभनसुख दे ने वाले हो. शोभन तो क इ छा करते ए तुम दोन इस संसार म हम सुखी बनाओ, व ण के पाश से छु ड़ाओ एवं हमारी र ा करो. (४)
सू —७५
दे वता—वम आ द
जीमूत येव भव त तीकं य म या त समदामुप थे. अना व या त वा जय वं स वा वमणो म हमा पपतु.. (१) यु के आरंभ होने पर यह राजा जब कवच पहन कर जाता है, तब इसका प बादल के समान जान पड़ता है. हे राजा! तुम श ु ारा बना बधे शरीर से जय ा त करो. कवच क यह म हमा तु हारी र ा करे. (१) ध वना गा ध वना ज जयेम ध वना ती ाः समदो जयेम. धनुः श ोरपकामं कृणो त ध वना सवाः दशो जयेम.. (२) हम धनुष के ारा गाय एवं यु को जीतगे. हम धनुष क सहायता से श ु क उ त एवं मदवाली सेना को जीतगे. हमारा धनुष श ु क अ भलाषाएं न करे. हम धनुष ारा सब दशा को जीत. (२) व य तीवेदा गनीग त कण यं सखायं प रष वजाना. योषेव शङ् े वतता ध ध व या इयं समने पारय ती.. (३) यु भू म म पार लगाने वाली यह धनुष क डोरी धनुष पर व तृत होकर य वचन बोलने क अ भलाषा सी करती ई यारी बात कहने के लए धनुधारी के कान के समीप ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आती है. प त का आ लगन करके बात करने वाली नारी के समान यह डोरी बाण को छू कर श द करती है. (३) ते आचर ती समनेव योषा मातेव पु ं बभृतामुप थे. अप श ून् व यतां सं वदाने आ न इमे व फुर ती अ म ान्.. (४) धनुष क दोन को टयां पर पर य आचरण करने वाली ना रय के समान काय करती ई यु म राजा क इस कार र ा कर, जस कार माता पु क र ा करती है. ये पर पर वरोध छोड़कर जाती ई इस राजा के अ म को मारकर श ु को बेध द. (४) ब नां पता ब र य पु ा कृणो त समनावग य. इषु धः सङ् काः पृतना सवाः पृ े नन ो जय त सूतः.. (५) यह तरकस ब त से बाण का पता है. ब त से बाण इसके पु ह. बाण नकालने पर इससे ा श द होता है. तरकस यो ा क पीठ पर बंधा आ है, यु को जानकर बाण को ज म दे ता है एवं सब सेना को जीतता है. (५) रथे त य त वा जनः पुरो य य कामयते सुषार थः. अभीशूनां म हमानं पनायत मनः प ादनु य छ त र मयः.. (६) उ म सार थ रथ पर बैठकर अपने सामने वाले घोड़ को जहां चाहता है, वहां ले जाता है. हे मनु यो! उन लगाम क म हमा बखानो. घोड़े के मुंह से पीछे क ओर जाती ई लगाम सार थ के मन के अनुसार घोड़ को वश म करती ह. (६) ती ान् घोषान् कृ वते वृषपाणयोऽ ा रथे भः सह वाजय तः. अव ाम तः पदै र म ान् ण त श ुँरनप य तः.. (७) धूल उड़ाते ए एवं रथ के साथ तेज दौड़ते ए घोड़े जोर से हन हनाते ह. वे यु भागते ए हसक श ु को अपनी टाप से कुचलते ह. (७)
से न
रथवाहनं ह वर य नाम य ायुधं न हतम य वम. त ा रथमुप श मं सदे म व ाहा वयं सुमन यमानाः.. (८) ह व जस कार अ न को बढ़ाता है, उसी कार रथ ारा ढोया गया श ु का धन इस राजा को बढ़ाता है. रथ पर राजा के आयुध और कवच रखे रहते ह. स च हम भर ाजवंशी सदा उस रथ के पास जाव. (८) वा षंसदः पतरो वयोधाः कृ े तः श व तो गभीराः. च सेना इषुबला अमृ ाः सतोवीरा उरवो ातसाहाः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रथ क र ा करने वाले सै नक श ु के वा द अ को न करके अपने यो ा को अ दे ने वाले एवं वप म आ य लेने यो य ह. ये सै नक श शाली, गंभीर, व च सेना वाले, बाण पी श वाले, ह सत न होने वाले, वीरतापूण, वशाल एवं श ुसमूह को हराने वाले ह. (९) ा णासः पतरः सो यासः शवे नो ावापृ थवी अनेहसा. पूषा नः पातु रताद् ऋतावृधो र ा मा कन अघशंस ईशत.. (१०) हे ा णो, पतरो और य को बढ़ाने वाले सोम तैयार करने वालो! हमारी र ा करो. पापर हत ावा-पृ थवी हमारा क याण कर. पूषा पाप से हमारी र ा कर. श ु हमारा वामी न बने. (१०) सुपण व ते मृगो अ या द तो गो भः स ा पत त सूता. य ा नरः सं च व च व त त ा म य मषवः शम यंसन्.. (११) बाण शोभनपंख धारण करता है. हरण का स ग इसका दांत है. गाय से बनी तांत ारा बंधा आ बाण ेरणा के अनुसार ल य पर गरता है. नेता जहां मलकर या अलग-अलग घूमते ह, वहां ये बाण हम शरण द. (११) ऋजीते प र वृङ् ध नोऽ मा भवतु न तनूः. सोमो अ ध वीतु नोऽ द तः शम य छतु.. (१२) हे बाण! हम सब कार से बढ़ाओ. हमारा शरीर प थर के समान हो. सोम हमारा प पात करता आ बोले. अ द त हम सुख द. (१२) आ जङ् घ तसा वेषां जघनाँ उप ज नते. अ ाज न चेतसोऽ ा सम सु चोदय.. (१३) हे कोड़े! उ म ान वाले सार थ तु हारे ारा घोड़ को पीठ और जांघ पर चोट करते ह. तुम यु म घोड़ को ेरणा दो. (१३) अ ह रव भोगैः पय त बा ं याया हेतुं प रबाधमानः. ह त नो व ा वयुना न व ान् पुमा पुमांसं प र पातु व तः.. (१४) धनुषधारी के हाथ म बंधा आ चमड़ा धनुष क डोरी क चोट से हाथ क र ा करता आ सांप के समान लपटा है एवं सब बात को जानता आ पौ ष ारा धनुषधारी क र ा करता है. (१४) आला ा या शी यथो य या अयो मुखम्. इदं पज यरेतस इ वै दे ै बृह मः.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जहर म बुझे ए, हसक नोक वाले, लोहे के अ भाग वाले एवं पज य से उ प वशाल बाण दे व को नम कार है. (१५) अवसृ ा परा पत शर े सं शते. ग छा म ा प व मामीषां कं चनो छषः.. (१६) हे मं ारा तेज कए ए एवं हसाकुशल बाण! तुम छोड़े जाने पर जाओ और श ु पर गरो. उन म से कसी को भी मत छोड़ना. (१६) य बाणाः स पत त कुमारा व शखा इव. त ा नो ण प तर द तः शम य छतु व ाहा शम य छतु.. (१७) जस यु म मुं डत शर कुमार के समान बाण गरते ह, वहां हम सदा सुख द. (१७)
ण प त एवं अ द त
ममा ण ते वमणा छादया म सोम वा राजामृतेनानु व ताम्. उरोवरीयो व ण ते कृणोतु जय तं वानु दे वा मद तु.. (१८) हे राजन्! म तु हारे मम थल को कवच से ढकता ं. राजा सोम तु ह अमृत से ढक. व ण तु ह बड़े से बड़ा सुख द. तु हारी वजय पाने के बाद दे व स ह . (१८) यो नः वो अरणो य दे वा तं सव धूव तु
न ो जघांस त. वम ममा तरम्.. (१९)
हमारे जो प रवारी जन हमसे स नह ह एवं जो र रहकर हम मारना चाहते ह, सभी दे व उ ह मार. मं ही हमारी र ा करने वाले कवच ह. (१९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स तम मंडल सू —१
दे वता—अ न
अ नं नरो द ध त भरर योह त युती जनय त श तम्. रे शं गृहप तमथयुम्.. (१) य के नेता ऋ वज् शंसायो य, र से दखाई दे ने वाले, गृहप त एवं ग तशील अ न को हाथ क ग त एवं उंग लय क सहायता से अर ण से उ प करते ह. (१) तम नम ते वसवो यृ व सु तच मवसे कुत त्. द ा यो यो दम आस न यः.. (२) जो अ न घर म पूजनीय एवं न य थे, उ ह शोभनदशन वाले अ न को सभी भय से बचाने के लए व स पु ने घर म रखा. (२) े ो अ ने द द ह पुरो नोऽज या सू या य व . वां श त उप य त वाजाः.. (३) हे अ तशय युवा अ न! तुम भली कार व लत होकर अपनी ग तशील वाला के साथ हमारे क याण के लए य शाला म चमको. ब त से अ तु हारे पास जाते ह. (३) ते अ नयोऽ न यो वरं नः सुवीरासः शोशुच त ुम तः. य ा नरः समासते सुजाताः.. (४) शोभनज म वाले ऋ वज् जहां बैठते ह, वहां अ न लौ कक अ नय क अपे ा क याणकारी, संतान दे ने वाले एवं अ धक द तशाली होकर चमकते ह. (४) दा नो अ ने धया र य सुवीरं वप यं सह य श तम्. न यं यावा तर त यातुमावान्.. (५) हे श ु को हराने म कुशल अ न! हमारी तु तयां सुनकर हम ऐसा क याणकर, संतान वाला, शोभन पु -पौ वाला एवं े धन दो, जसे हसक श ु बा धत न कर सक. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उप यमे त युव तः सुद ं दोषा व तोह व मती घृताची. उप वैनमरम तवसूयुः.. (६) अ न से न ययु एवं ह स हत जु रात- दन शोभनबल वाले अ न के पास आती है. तोता के धन क अ भलाषा करती ई अ न क द त अ न के पास आती है. (६) व ा अ नेऽप दहारातीय भ तपो भरदहो ज थम्. न वरं चातय वामीवाम्.. (७) हे अ न! तुमने जन तेज से भयानक श द करने वाले रा स को जलाया था, उ ह तेज से सम त श ु को जलाओ व ताप न करके रोग को मटाओ. (७) आ य ते अ न इधते अनीकं व स शु उतो न ए भः तवथै रह याः.. (८)
द दवः पावक.
हे े , शुभ, तेज वी एवं शोधक अ न! जो तु हारा तेज बढ़ाते ह, उन पर तुम जस कार स होते हो, उसी कार हमारे तो से स होकर इस य म आओ. (८) व ये ते अ ने भे जरे अनीकं मता नरः प यासः पु उतो न ए भः सुमना इह याः.. (९)
ा.
हे अ न! जो पतर के हतकारक एवं य कम के नेता लोग तु हारे तेज को अनेक थान म बांटते ह, तुम उन पर जस कार स होते हो, उसी कार हमारे तो से स होकर इस य म थत बनो. (९) इमे नरो वृ ह येषु शूरा व ा अदे वीर भ स तु मायाः. ये मे धयं पनय त श ताम्.. (१०) जो लोग मेरे उ म य कम क तु त करते ह, वे ही शूर नेता यु को परा जत कर. (१०)
म असुर क माया
मा शूने अ ने न षदाम नृणां माशेषसोऽवीरता प र वा. जावतीषु यासु य.. (११) हे अ न! हम पु ा द से शू य घर म न रह, न हम सर के घर म नवास कर. हे घर के हतैषी अ न दे व! पु एवं वीर से यु हम तु हारी सेवा करते ए जायु घर म रह. (११) यम ी न यमुपया त य ं जाव तं वप यं यं नः. वज मना शेषसा वावृधानम्.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे घोड़ के वामी अ न! हम सगे पु से वृ दो, जस य यु घर म तुम न य आते हो. (१२)
पाता आ ऐसा शोभन संतानयु
घर
पा ह नो अ ने र सो अजु ात् पा ह धूतरर षो अघायोः. वा युजा पृतनायूँर भ याम्.. (१३) हे अ न! हम े षयु रा स से बचाओ. हम दान न करने वाले, पापी और हसक से बचाओ. हम तु हारी सहायता से सेना के इ छु क लोग को परा जत कर. (१३) सेद नर न र य व या य वाजी तनयो वीळु पा णः. सह पाथा अ रा समे त.. (१४) हमारा बलवान्, ढ़ हाथ वाला एवं हजार अ वाला पु नाशर हत तो अ न क सेवा करता है, वह अ न अ य अ नय को परा जत करे. (१४)
ारा जस
सेद नय वनु यतो नपा त समे ारमंहस उ यात्. सुजातासः प र चर त वीराः.. (१५) वे अ न ही ह, जो अपने व लत करने वाले को हसक एवं वशाल पाप से बचाते ह तथा शोभनज म वाले वीर जनक सेवा करते ह. (१५) अयं सो अ नरा तः पु ा यमीशानः स म द धे ह व मान्. प र यमे य वरेषु होता.. (१६) वे ही अ न अनेक य म बुलाए जाते ह, ज ह ऐ य चाहने वाला एवं ह यु यजमान भली कार जलाता है एवं य म होता जनक प र मा करता है. (१६) वे अ न आहवना न भूरीशानास आ जु याम न या. उभा कृ व तो वहतू मयेधे.. (१७) हे अ न! हम धन के वामी बनकर अ नहो ा द न यकम को धारण करने वाले तो बोलते ए य म ब त से ह दगे. (१७) इमो अ ने वीततमा न ह ाज ो व त न सुरभी ण तु.. (१८) हे अ न! तुम इन अ त सुंदर ह इस ह क कामना कर. (१८)
दे वता तम छ. को दे व के समीप लेकर जाओ.
मा नो अ नेऽवीरते परा दा वाससेऽमतये मा नो अ यै. मा नः ुधे मा र स ऋतावो मा नो दमे मा वन आ जु थाः.. (१९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
येक दे व हमारे
हे अ न! हम संतानहीन मत बनाओ. हम बुरे कपड़े और बुरी बु मत दे ना. हम भूख और रा स को मत स पना. हे स ययु अ न! हम न घर म मारना और न वन म. (१९) नू मे ा य न उ छशा ध वं दे व मघव यः सुषूदः. रातौ यामोभयास आ ते यूयं पात व त भः सदा नः.. (२०) हे अ न! मेरे लए अ को वशेष प से शु करना. हे दे व! हम ह यु को तुम अ दो. हम यजमान और तोता दोन तु हारे दान के पा बन. तुम सदा क याण ारा हमारा पालन करो. (२०) वम ने सुहवो र वस क् सुद ती सूनो सहसो दद ह. मा वे सचा तनये न य आ धङ् मा वीरो अ म य व दासीत्.. (२१) हे श के पु , शोभन आ ान वाले एवं रमणीयदशन अ न! तुम उ म काश के साथ द त बनो! तुम मेरे पु के सहायक बनो एवं उसे मत जलाओ. हमारा मानव हतकारी पु न न हो. (२१) मा नो अ ने भृतये सचैषु दे वे े व नषु वोचः. मा ते अ मा मतयो भृमा च े व य सूनो सहसो नश त.. (२२) हे सहायक अ न! ऋ वज ारा अ नय के व लत होने पर उनसे हम ःखपूवक मरण के लए मत कहो. हे व लत एवं बलपु अ न! तु हारी बु म से भी हम न ा त हो. (२२) स मत अ ने वनीक रेवानम य य आजुहो त ह म्. स दे वता वसुव न दधा त यं सू ररथ पृ छमान ए त.. (२३) हे शोभनतेज वाले एवं दे वता प अ न! तु ह ह दे ने वाला मनु य धनवान् होता है. वे अ न दे व यजमान को धन दे ते ह, जनके पास धन चाहने वाला तोता पूछने के लए जाता है. (२३) महो नो अ ने सु वत य व ान् र य सू र य आ वहा बृह तम्. येन वयं सहसाव मदे मा व तास आयुषा सुवीराः.. (२४) हे अ न! तुम हमारे महान् क याणकारी काय को जानते हो. हम तोता को तुम महान् धन दो. हे बलपु अ न! उस धन से हम यर हत, पूण आयु वाले व शोभन पु -पौ वाले होकर स बन. (२४) नू मे ा य न उ छशा ध वं दे व मघव यः सुषूदः. रातौ यामोभयास आ ते यूयं पात व त भः सदा नः.. (२५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! मेरे लए तुम अ को वशेष प से शु करना. हे दे व! हम ह यु तुम अ दो. हम यजमान और तोता दोन तु हारे दान के पा बन. सदा क याण हमारा पालन करो. (२५)
सू —२
को ारा
दे वता—आ ी
जुष व नः स मधम ने अ शोचा बृह जतं धूममृ वन्. उप पृश द ं सानु तूपैः सं र म भ ततनः सूय य.. (१) हे अ न! आज हमारी स मधा को वीकार करो. य के यो य एवं शंसनीय धुआं उठाते ए जल एवं अपनी गम लपट से ऊंचे आकाश को छु ओ. तुम सूय से मल जाओ. (१) नराशंस य म हमानमेषामुप तोषाम यजत य य ैः. ये सु तवः शुचयो धयंधाः वद त दे वा उभया न ह ा.. (२) जो दे व शोभनकम वाले, तेज वी, य कम के धारक एवं दोन कार के ह को वीकार करने वाले ह, हम उन दे व के बीच म य यो य एवं मनु य ारा शंसनीय अ न क म हमा का वणन तु तय ारा करते ह. (२) ईळे यं वो असुरं सुद म त तं रोदसी स यवाचम्. मनु वद नं मनुना स म ं सम वराय सद म महेम.. (३) हे अ वयुगण! तुम तु त के यो य, श शाली, शोभनबु वाले, धरती-आकाश के बीच म दे व के त प म वचरण करने वाले, स यवचन, मनु य के समान और मन ारा व लत अ न को य के लए पूजते हो. (३) सपयवो भरमाणा अ भ ु वृ ते नमसा ब हर नौ. आजु ाना घृतपृ ं पृष द वयवो ह वषा मजय वम्.. (४) सेवा करने के अ भलाषी एवं घुटन के सहारे बैठकर पा म सोमरस भरते ए अ वयु ह के साथ अ न को ब ह दे ते ह. हे अ वयुगण! घी से भीगे ए एवं बड़ी-बड़ी बूंद वाले ब ह को ह के साथ अ न म वहन करो. (४) वा यो३ व रो दे वय तोऽ श यू रथयुदवताता. पूव शशुं न मातरा रहाणे सम ुवो न समने व न्.. (५) शोभनकम वाले, दे व क अ भलाषा करने वाले एवं रथ चाहने वाले लोग ने य म ार का सहारा लया, अ वयुगण य म ाचीना जु एवं उपभृ त को नद के समान घी से ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स चते ह. वे अ न को इसी कार चाटती ह, जस कार गाय अपने बछड़े को चाटती है. (५) उत योषणे द े मही न उषासान ा सु घेव धेनुः. ब हषदा पु ते मघोनी आ य ये सु वताय येताम्.. (६) पा
युवा, द , महान्, कुश पर बैठे ए, ब त ारा तुत, संप के वामी एवं य के नशा- दवस कामधेनु गाय के समान क याण के न म हमारा आ य ल. (६) व ा य ेषु मानुषेषु का म ये वां जातवेदसा यज यै. ऊ व नो अ वरं कृतं इवेषु ता दे वेषु वनथो वाया ण.. (७)
हे मेधावी, धनसंप एवं मनु य ारा कए जा रहे य म काम करने वाले होताओ! म य करने के हेतु तु हारी तु त करता ं. तु तयां पूण हो जाने पर हमारे य को दे व क ओर े रत करो एवं दे व के पास व मान धन हम दो. (७) आ भारती भारती भः सजोषा इळा दे वैमनु ये भर नः. सर वती सार वते भरवाक् त ो दे वीब हरेदं सद तु.. (८) सूय क प नी भारती अथात् अ न सूयसंबं धय तथा इस मनु यलोक के दे व के साथ आव. सर वती म य थत दे व के साथ पधार. तीन दे वयां य म कुश पर बैठ. (८) त तुरीपमध पोष य नु दे व व व रराणः य व. यतो वीरः कम यः सुद ो यु ावा जायते दे वकामः.. (९) हे व ा दे व! तुम स होते ए ऐसा शी ताकारक एवं पोषक वीय हम दान करो, जसके ारा हम कायकुशल, श शाली, सोम नचोड़ने हेतु प थर उठाने वाले, दे वा भलाषी एवं वीरपु उ प कर. (९) वन पतेऽव सृजोप दे वान नह वः श मता सूदया त. से होता स यतरो यजा त यथा दे वानां ज नमा न वेद.. (१०) हे वन प त! दे व को हमारे पास लाओ. अ न प वन प त सं कारक होकर दे व के त ह को े रत कर. वे ही दे व के बुलाने वाले बनकर य करते ह. वे दे व का ज म जानते ह. (१०) आ या ने स मधानो अवाङ् इ े ण दे वैः सरथं तुरे भः. ब हन आ ताम द तः सुपु ा वाहा दे वा अमृता मादय ताम्.. (११) हे
व लत अ न! तुम इं एवं शी ता करने वाले अ य दे व के साथ एक रथ पर
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बैठकर हमारे सामने आओ. शोभनपु वाली अ द त हमारे कुश पर बैठ. मरणर हत दे वगण वाहा के साथ एकाकार बनकर स ह . (११)
सू —३
दे वता—अ न
अ नं वो दे वम न भः सजोषा य ज ं तम वरे कृणु वम्. यो म यषु न ु वऋतावा तपुमूधा घृता ः पावकः.. (१) हे दे वो! तुम अ य अ नय के साथ का शत एवं अ तशय य पा उन अ न दे व को य म दे व का त बनाओ, जो मनु य म अ धक थर, य यु , तापस हत तेज वाले, घृतयु अ वाले व शु क ा ह. (१) ोथद ो न यवसेऽ व य यदा महः संवरणा य थात्. आद य वातो अनु वा त शो चरध म ते जनं कृ णम त.. (२) जस समय दा प अ न घास खाते एवं हन हनाने वाले घोड़ के समान पेड़ म थत रहते ह, उस समय उनक द त वायु के सहारे का शत होती है. हे अ न! इसके प ात् तु हारा माग काले रंग का हो जाता है. (२) उ य ते नवजात य वृ णोऽ ने चर यजरा इधानाः. अ छा ाम षो धूम ए त सं तो अ न ईयसे ह दे वान्.. (३) हे नवजात एवं कामपूरक अ न! तु हारी जो धूमर हत वालाएं उठती ह, उनको कट करता आ धुआं आकाश म जाता है. हे अ न! तुम त बनकर दे व के पास जाते हो. (३) व य य ते पृ थ ां पाजो अ े ृषु यद ा समवृ ज भैः. सेनेव सृ ा स त ए त यवं न द म जु ा ववे .. (४) हे अ न! जस समय तुम वाला पी दांत से का पी अ को खाते हो, उस समय तु हारा तेज शी ता से धरती पर फैलता है. तु हारी वाला सेना के समान उ मु होकर जाती है. हे दशनीय अ न! तुम अपनी वाला से का म जौ आ द के समान वेश करते हो. (४) त म ोषा तमुष स य व म नम यं न मजय त नरः. न शशाना अ त थम य योनौ द दाय शो चरा त य वृ णः.. (५) अ तशय युवा अ त थ के समान पू य अ न को य शाला म रात- दन व लत करते ए लोग सततगामी अ के समान उनक पूजा करते ह. बुलाए ए एवं अ भलाषापूरक अ न क शखा द त होती है. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुस े वनीक तीकं व य मो न रोचस उपाके. दवो न ते त यतुरे त शु म ो न सूरः त च भानुम्.. (६) हे शोभनतेज वाले अ न! तुम जस समय सूय के समान हमारे पास वशेष प से चमकते हो. उस समय तु हारा प भली-भां त दशनीय होता है. तु हारा तेज वग से व के समान नकलता है. तुम सुंदर सूय के समान अपना काश फैलाते हो. (६) यथा वः वाहा नये दाशेम परीळा भघृतव ह ैः. ते भन अ ने अ मतैमहो भः शतं पू भरायसी भ न पा ह.. (७) हे अ न! हम जस कार ग एवं घी आ द मले ह ारा वाहा श द के साथ तु ह आ त दे ते ह, उसी कार तुम असी मत तेज के साथ लौह न मत सौ नग रय ारा हमारी र ा करो. (७) या वा ते स त दाशुषे अधृ ा गरो वा या भनृवती याः. ता भनः सूनो सहसो न पा ह म सूरी रतॄ ातवेदः.. (८) हे बलपु जातवेद एवं दानशील अ न! तुम अपनी शखा एवं संतानयु जा क र ा करने वाले वचन ारा हमारी र ा करो तथा शंसनीय ह दे ने वाले तोता क र ा करो. (८) नय पूतेव व ध तः शु चगात् वया कृपा त वा३ रोचमानः. आ यो मा ो शे यो ज न दे वय याय सु तुः पावकः.. (९) वशु अ न जस समय अपनी वशाल कृपा से द त होकर का से तेज फरसे के समान नकलते ह, उस समय कमनीय, शोभनकम वाले, पावक एवं माता प दो अर णय से उ प अ न य के यो य बनते ह. (९) एता नो अ ने सौभगा दद प तुं सुचेतसं वतेम. व ा तोतृ यो गृणते च स तु यूयं पात व त भः सदा नः.. (१०) हे अ न! हम ये ही धन दान करो. हम य कम करने वाला तथा उ म ानयु ा त कर. सारा धन तोता एवं गान करने वाल को मले. तुम क याणसाधन हमारी सदा र ा करो. (१०)
सू —४
दे वता—अ न
वः शु ाय भानवे भर वं इ ं म त चा नये सुपूतम्. यो दै ा न मानुषा जनूं य त व ा न व ना जगा त.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु ारा
हे ह वहन करने वाले लोगो! तुम शुभ एवं द त के लए शु ह करो. अ न दे व तथा मानव से उ प सभी पदाथ के म य अपनी बु
एवं तु त सम पत ारा चलते ह. (१)
स गृ सो अ न त ण द तु यतो य व ो अज न मातुः. सं यो वना युवते शु चदन् भू र चद ा स मद स ः.. (२) जो अ तशय युवा अ न माता प अर णय से उ प ए ह, वे ही मेधावी अ न त ण बन. द त वाला पी दांत वाले अ न वन को आ मसात् करते ह एवं शी ही ब त से अ को खाते ह. (२) अ य दे व य संस नीके यं मतासः येतं जगृ े. न यो गृभं पौ षेयीमुवोच रोकम नरायवे शुशोच.. (३) मनु य शु अ न को मुख थान म गृहीत करते ह. अ न मनु य ारा क गई सेवा वीकार करते ह. वे मानव के क याण के लए इस कार द त होते ह क श ु उ ह सहन नह कर पाते. (३) अयं क वरक वषु चेता मत व नरमृतो न धा य. स मा नो अ जु रः सह वः सदा वे सुमनसः याम.. (४) श (४)
क व, काशक एवं मरणर हत अ न अक व एवं मरणधमा लोग म वराजमान ह. हे शाली अ न! हम लोक म तु हारे त शोभनमन वाले ह . तुम हमारी हसा मत करना. आ यो यो न दे वकृतं ससाद वा १ नरमृताँ अतारीत्. तमोषधी व नन गभ भू म व धायसं बभ त.. (५)
अ न ने बु ारा दे व को तारा है. वे दे व ारा बनाए ए थान पर बैठते ह. ओष धयां, वृ एवं भू म सबके धारणक ा एवं गभ प को अपने म रखते ह. (५) ईशे १ नरमृत य भूरेरीशे रायः सुवीय य दातोः. मा वा वयं सहसाव वीरा मा सवः प र षदाम मा वः.. (६) अ न अ धक मा ा म अमृत दे ने म समथ ह. वे उ म वीय वाला धन दे सकते ह. हे बलवान् अ न! हम संतानहीन, पर हत एवं बना सेवा के न बैठ. (६) प रष ं रण य रे णो न य य रायः पतयः याम. न शेषो अ ने अ यजातम यचेतान य मा पथो व ः.. (७) ऋणर हत
का धन पया त होता है. हम न य धन के वामी ह . हे अ न! हमारी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
संतान सर से उ प नह है. तुम हमारा माग अ ा नय का मत समझो. (७) न ह भायारणः सुशेवोऽ योदय मनसा म तवा उ. अधा चदोकः पुन र स ए या नो वा यभीषाळे तु न ः.. (८) अ य से उ प पु स ता एवं सुख दे ने वाला होने पर भी मन से पु प म हण नह होता. वह अपने ही थान पर प ंच जाता है. अ का वामी, श ु को हराने वाला एवं नव उ प पु हमारे समीप आवे. (८) वम ने वनु यतो न पा ह वमु नः सहसाव व ात्. सं वा व म वद येतु पाथः सं र यः पृहया यः सह ी.. (९) हे अ न! तुम हसक से हमारी र ा करो. हे श शाली अ न! तुम हम पाप से बचाओ. दोषर हत अ ह व के प म तु ह ा त हो. हम हजार कार का अ भलषणीय धन मले. (९) एता नो अ ने सौभगा दद प तुं सुचेतसं वतेम. व ा तोतृ यो गृणते च स तु यूयं पात व त भः सदा नः.. (१०) हे अ न! हम ये ही धन दान करो. हम य कम करने वाला तथा उ म ानयु ा त कर. सारा धन तोता और गान करने वाल को मले. तुम क याणसाधन हमारी सदा र ा करो. (१०)
सू —५ ा नये तवसे भर वं गरं दवो अरतये पृ थ ाः. यो व ेषाममृतानामुप थे वै ानरो वावृधे जागृव
पु ारा
दे वता—वै ानर अ न ः.. (१)
हे तोताओ! वृ एवं अंत र व धरती पर चलने वाले अ न क वै ानर अ न य म जागने वाले मरणर हत दे व के साथ बढ़ते ह. (१)
तु त करो. वे
पृ ो द व धा य नः पृ थ ां नेता स धूनां वृषभः तयानाम्. स मानुषीर भ वशो व भा त वै ानरो वावृधानो वरेण.. (२) स रता के नेता, जल को बरसाने वाले एवं तेजयु जो अ न धरती और आकाश म ग तशील होते ह, वे ही वै ानर अ न उ म ह के ारा बढ़ते ए मानव जा के सामने शोभा पाते ह. (२) व या वश आय स नीरसमना जहतीभ जना न. वै ानर पूरवे शोशुचानः पुरो यद ने दरय द दे ः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वै ानर अ न! उस समय तु हारे भय से काले रंग क जाएं आपस म बखरकर भोजन यागती ई भाग गई थ , जस समय तुमने द त होकर राजा पु के क याण के लए उसके श ु के नगर को जलाया था. (३) तव धातु पृ थवी उत ौव ानर तम ने सच त. वं भासा रोदसी आ तत थाज ेण शो चषा शोशुचानः.. (४) हे वै ानर अ न! धरती, आकाश और वग-तीन तु ह यारा लगने वाला काम करते ह. तुम न य तेज से द तमान होकर धरती-आकाश को व तृत करते हो. (४) वाम ने ह रतो वावशाना गरः सच ते धुनयो घृताचीः. प त कृ ीनां र यं रयीणां वै ानरमुषसां केतुम ाम्.. (५) हे वै ानर अ न! तुम जा के वामी, धन के नेता तथा उषा व दवस के केतु हो. तु हारी कामना करते ए अ एवं मानव क पापर हत तथा ह यु तु तयां तु हारी सेवा करती ह. (५) वे असुय१ वसवो यृ व तुं ह ते म महो जुष त. वं द यूँरोकसो अ न आज उ यो तजनय ायाय.. (६) हे म क पूजा करने वाले अ न! वसु ने तुम म बल धारण कया है एवं तु हारे य को वीकार कया है. तुम य क ा के लए अ धक तेज उ प करते ए द यु को उनके थान से नकालो. (६) स जायमानः परमे ोम वायुन पाथः प र पा स स ः. वं भुवना जनय भ प याय जातवेदो दश यन्.. (७) हे वै ानर! परम ोम म तुम सूय प से उ प होकर वायु के समान सबसे पहले सोमरस पीते हो. हे जातवेद अ न! तुम जल को उ प करते ए एवं पु वत् पालनीय यजमान क अ भलाषाएं पूरी करते ए बजली के प म गरजते हो. (७) ताम ने अ मे इषमेरय व वै ानर म ु त जातवेदः. यया राधः प व स व वार पृथु वो दाशुषे म याय.. (८) हे जातवेद, सबके ारा वरणीय एवं वै ानर अ न! तुम हम वही द तमान अ दो, जसके ारा तुम धन क र ा करते हो एवं ह दाता मनु य को व तृत क त दे ते हो. (८) तं नो अ ने मघव यः पु ंु र य न वाजं ु यं युव व. वै ानर म ह नः शम य छ े भर ने वसु भः सजोषाः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! हम धन वा मय को ब त सा अ , धन एवं स बल दो. हे वै ानर अ न! तुम एवं वसु के साथ समान ी त-वाले होकर हम महान् सुख दो. (९)
सू —६
दे वता—वै ानर अ न
स ाजो असुर य श तं पुंसः कृ ीनामनुमा य. इ येव तवस कृता न व दे दा ं व दमानो वव म.. (१) म श ुनग रय को न करने वाले क वंदना करता ं. म वंदना करता आ सारे लोक के वामी, बलवान्, वीर एवं जा के तु तयो य और बलवान् इं के समान वै ानर अ न के कम एवं तु तय को कहता ं. (१) क व केतुं धा स भानुम े ह व त शं रा यं रोद योः. पुर दर य गी भरा ववासेऽ ने ता न पू ा महा न.. (२) दे व ा , केतु प, पवत धारण करने वाले, द तयु करने वाले, सुखकर एवं धरतीआकाश के राजा अ न को स करते ह. म तु त ारा श ुनग रय को न करने वाले अ न के ाचीन एवं महान् काय को तु तवचन ारा गाता ं. (२) य तून् थनो मृ वाचः पण र ाँ अवृधाँ अय ान्. ता द यूँर न ववाय पूव कारापराँ अय यून्.. (३) अ न य न करने वाले, केवल बात करने वाले, वचन ारा हसा करने वाले, ार हत व तु तय ारा वृ न करने वाले ा णय को र भगाव एवं मुख बनकर अ य य शू य को नीचा बनाव. (३) यो अपाचीने तम स मद तीः ाची कार नृतमः शची भः. तमीशानं व वो अ नं गृणीषेऽनानतं दमय तं पृत यून्.. (४) जन अ तशय नेता अ न ने काशर हत अंधकार म पड़ी जा को स करके अपनी बु से सरलपथगा मनी बनाया, म उ ह धन वामी तथा न तार हत एवं यु ा भला षय का दमन करने वाले अ न क तु त करता ं. (४) यो दे ो३ अनमय ध नैय अयप नी षस कार. स न या न षो य ो अ न वश े ब ल तः सहो भः.. (५) जन अ न ने आसुरी व ा को आयुध ारा हीन बनाया है एवं सूयप नी उषा को उ प कया है, उ ह महान् अ न ने बल ारा जा को रोककर राजा न ष को कर दे ने वाला बनाया था. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य य शम ुप व े जनास एवै त थुः सुम त भ माणाः. वै ानरो वरमा रोद योरा नः ससाद प ो प थम्.. (६) सभी मनु य सुख ा त के न म जस वै ानर अ न क कृपा क ाथना करते ए ह एवं कम के साथ उप थत होते ह, वे ही अपने माता- पता के समान वग और धरती के बीच म उप थत अंत र म आए थे. (६) आ दे वो ददे बु या३ वसू न वै ानर उ दता सूय य. आ समु ादवरादा पर मादा नददे दव आ पृ थ ाः.. (७) सूय नकल आने पर वै ानर अ न अंत र धरती एवं वग से भी अंधकार ले लेते ह. (७)
सू —७
के अंधकार को ले लेते ह. वे अंत र ,
दे वता—अ न
वो दे वं चत् सहसानम नम ं न वा जनं हषे नमो भः. भवा नो तो अ वर य व ा मना दे वेषु व वदे मत ः.. (१) हे रा स को हराने वाले तथा अ के समान वेगशाली अ न दे व! हम ह य का त बनाते ह. हे व ान् अ न! तुम दे व म वृ जलाने वाले के नाम से (१)
ारा तु ह स हो.
आ या ने प या३अनु वा म ो दे वानां स यं जुषाणः. आ सानु शु मैनदय पृ थ ा ज भे भ व मुशध वना न.. (२) हे स करने वाले अ न! तुम दे व के साथ म ता का आचरण करते ए अपने तेज ारा धरती पर ऊंचे लताकुंज को श दपूण करो तथा अपने वाला पी दांत से वन को जलाते ए अपने माग से आओ. (२) ाचीनो य ः सु धतं ह ब हः ीणीते अ नरी ळतो न होता. आ मातरा व वारे वानो यतो य व ज षे सुशेवः.. (३) हे अ तशय युवा अ न! जब तुम शोभन सुखपूवक ज म लेते हो, तब य का भली कार अनु ान कया जाता है एवं कुश बछाए जाते ह. तु त सुनकर अ न और होता तृ त होते ह. सबके य धरती आकाश भी बुलाए जाते ह. (३) स ो अ वरे र थरं जन त मानुषासो वचेतसो य एषाम्. वशामधा य व प त रोणे३ नम ो मधुवचा ऋतावा.. (४) वशेष व ान् लोग य म नेता अ न को तुरंत उ प करते ह. य क ा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का ह
वहन करने वाले, व प त, स क ा, मधुर वचन वाले एवं य यु था पत होते ह. (४)
अ न मनु य के घर म
असा द वृतो व राजग वान न ा नृषदने वधता. ौ यं पृ थवी वावृधाते आ यं होता यज त व वारम्.. (५) होता प से ह ढोने वाले, ा, सबको धारण करने वाले एवं वगलोक से आए ए वे अ न मानव के घर म बैठे ह, ज ह वग व धरती बढ़ाते ह और होता जन सव य अ न का य करता है. (५) एते ु ने भ व मा तर त म ं ये वारं नया अत न्. ये वश तर त ोषमाणा आ ये मे अ य द धय ृत य.. (६) वे लोग अ ारा व को पालते ह, ज ह ने तु तयो य मं का पया त सं कार कया है, जन लोग ने सुनने क इ छा से अ न को बढ़ाया है एवं स यभूत अ न को जलाया है. (६) नू वाम न ईमहे व स ा ईशानं सूनो सहसो वसूनाम्. इषं तोतृ यो मघव य आन ूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे बलपु एवं वसु के वामी अ न! व स गो ीय ऋ षय को जो तु हारे तोता एवं ह वयु ह. तुम अ ारा शी ा त करो एवं क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (७)
सू —८
दे वता—अ न
इ धे राजा समय नमो भय य तीकमा तं घृतेन. नरो ह े भरीळते सबाध आ नर उषसामशो च.. (१) द त एवं ह व के वामी अ न तु तय के साथ व लत होते ह. उनका प घृत ारा बुलाया जाता है एवं नेता जन एक ह के साथ उनक तु त करते ह. अ न उषा के आगे भली कार जलते ह. (१) अयमु य सुमहाँ अवे द होता म ो मनुषो य ो अ नः. व भा अकः ससृजानः पृ थ ां कृ णप वरोषधी भवव े.. (२) दे व को खुलाने वाले, स ताकारक एवं महान् अ न मानव ारा वशाल जाने जाते ह एवं काश फैलाते ह. काले माग वाले अ न धरती पर उ प होकर ओष धय क सहायता से बढ़ते ह. (२) कया नो अ ने व वसः सुवृ कामु वधामृणवः श यमानः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कदा भवेम पतयः सुद रायो व तारो
र य साधोः.. (३)
हे अ न! तुम ह व के कारण हमारी तु त को वीकार करोगे. हमारी तु त सुनकर तुम कस वधा को पाओगे? हे शोभनदान वाले अ न! हम ऐसे धन के वामी एवं वभाग करने वाले कब बनगे जो श ु ारा ह सत न हो सके और पया त हो? (३) ायम नभरत य शृ वे व य सूय न रोचते बृह ाः. अ भ यः पू ं पृतनासु त थौ ुतानो दै ो अ त थः शुशोच.. (४) स अ न यजमान ारा उस समय स अ धक तेज वी होकर चमकते ह. जन अ न ने यु दे व के अ त थ अ न व लत ए. (४)
होते ह, जस समय वे सूय के समान म पु को हराया था वे द तशाली एवं
अस वे आहवना न भू र भुवो व े भः सुमना अनीकैः. तुत द ने शृ वषे गृणानः वयं वध व त वं सुजात.. (५) हे अ न! तुम म ब त सी आ तयां होती ह. तुम सम त तेज के साथ स मन बनो एवं तोता क तु तयां सुनो. हे शोभनज म वाले अ न! तुम तुत होकर वयं अपना शरीर बढ़ाओ. (५) इदं वचः शतसाः संसह मुद नये ज नषी बहाः. शं य तोतृ य आपये भवा त ुमदमीवचातनं र ोहा.. (६) सौ गाय का वभाग करने वाले, हजार गाय से यु एवं व ा व कम के ारा महान् व स ने यश कर, रोग नवारक, रा स का नाश करने वाला, तोता व पु ा द को सुख दे ने वाला यह तो अ न के त रचा है. (६) नू वाम न ईमहे व स ा ईशानं सूनो सहसो वसूनाम्. इषं तोतृ यो मघव य आन ूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे बलपु एवं वसु तु हारे तोता ह, तुम अ (७)
सू —९
के वामी अ न! व स गो ीय ऋ षय को जो ह वयु एवं ारा शी ा त करो एवं क याणसाधन ारा हमारी र ा करो.
दे वता—अ न
अबो ध जार उषसामुप था ोता म ः क वतमः पावकः. दधा त केतुमुभय य ज तोह ा दे वेषु वणं सुकृ सु.. (१) सब ा णय को पुराना बनाने वाले, दे व को बुलाने वाले, स ताकारक, अ तशय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बु मान् एवं शोधक अ न उषा के बीच जागते ह. वे दो और चार पैर वाले ा णय क पहचान, दे व म ह एवं शुभकम वाले यजमान म धन धारण करते ह. (१) स सु तुय व रः पणीनां पुनानो अक पु भोजसं नः. होता म ो वशां दमूना तर तमो द शे रा याणाम्.. (२) जन अ न ने प णय के गाय के रोकने वाले ार खोले थे, वे ही शोभनकमा ह. उ ह ने हमारे लए अ धक धा गाय का पू य-समूह खोजा था. दे व के बुलाने वाले, स ताकारक एवं शांत मन वाले अ न रा एवं यजमान का अंधकार र करते ह. (२) अमूरः क वर द त वव वा सुसंस म ो अ त थः शवो नः. च भानु षसां भा य ेऽपां गभः व१ आ ववेश.. (३) अमूढ़, ा , द नतार हत, द तशाली, शोभनगृह वाले, म अ त थ एवं हमारा क याण करने वाले अ न व च काश वाले बनकर ातःकाल का शत होते ह एवं जल के गभ के प म उ प होकर ओष धय म व होते ह. (३) ईळे यो वो मनुषो युगेषु समनगा अशुच जातवेदाः. सुस शा भानुना यो वभा त त गावः स मधानं बुध त.. (४) हे अ न! तुम य के समय मनु य ारा तु त के यो य हो. जातवेद अ न यु म स म लत होकर चमकते ह एवं करण ारा दशनयो य होते ह. तु तयां व लत अ न को जगाती ह. (४) अ ने या ह यं१ मा रष यो दे वाँ अ छा कृता गणेन. सर वत म तो अ नापो य दे वान् र नधेयाय व ान्.. (५) हे अ न! तुम तकम करने के लए दे व के समीप जाओ. तोता तथा उनके गण क हसा मत करना. तुम हम र न दे ने के लए सर वती, म द्गण, अ नीकुमार, जल एवं अ य दे व का य करते हो. (५) वाम ने स मधानो व स ो ज थं ह य राये पुर धम्. पु णीथा जातवेदो जर व यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे अ न! व स ऋ ष तु ह व लत करते ह. तुम रा स क ह या करो. हे जातवेद! तुम वशाल तो से दे व क तु त करो एवं क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (६)
सू —१०
दे वता—अ न
उषो न जारः पृथु पाजो अ े व ुत छोशुचानः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वृषा ह रः शु चरा भा त भासा धयो ह वान उशतीरजीगः.. (१) अ न उषा के ेमी सूय के समान व तृत तेज का आ य लेते ह. अ यंत द तशाली, अ भलाषापूरक, ह क ेरणा दे ने वाले एवं शु च अ न य कम को े रत करते ए अपनी द त से का शत करते ह एवं अपने अ भला षय को जागृत करते ह. (१) व१ण व तो षसामरो च य ं त वाना उ शजो न म म. अ नज मा न दे व आ व व ा वद् तो दे वयावा व न ः.. (२) अ न दन म उषा के सामने सूय के समान द त होते ह. य का व तार करने वाले ऋ वज् सुंदर तो पढ़ते ह. व ान्, दे व के त, दे व के पास जाने वाले एवं अ तशयदाता अ न सबको वत करते ह. (२) अ छा गरो मतयो दे वय तीर नं य त वणं भ माणाः. सुस शं सु तीकं व चं ह वाहमर त मानुषाणाम्.. (३) दे व क अ भलाषा करती ई व धन क याचना करती ई तु त प वा णयां दे खने म शोभन, सुंदर प वाले, उ म ग त वाले, ह वहनक ा एवं मानव के वामी अ न के सामने जाती ह. (३) इ ं नो अ ने वसु भः सजोषा ं े भरा वहा बृह तम्. आ द ये भर द त व ज यां बृह प तमृ व भ व वारम्.. (४) हे अ न! तुम वसु के साथ मलकर इं को एवं के साथ मलकर महा को हमारे क याण के न म बुलाओ. तुम आ द य के साथ मलकर सबका हत चाहने वाली अ द त को तथा तु तयो य अं गरा दे व के साथ मलकर सबके य बृह प त को बुलाओ. (४) म ं होतारमु शजो य व म नं वश ईळते अ वरेषु. स ह पावाँ अभव यीणामत ो तो यजथाय दे वान्.. (५) रा
कामना करते ए मनु य तु तयो य व अ तशय युवा अ न क तु त य म करते ह. के वामी अ न य के न म ह दाता क ओर से आल यर हत त बने थे. (५)
सू —११
दे वता—अ न
महाँ अ य वर य केतो न ऋते वदमृता मादय ते. आ व े भः सरथं या ह दे वै य ने होता थमः सदे ह.. (१) हे य का व ापन करने वाले अ न! तुम महान् हो. तु हारे बना दे वगण स नह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
होते. तुम रथ के वामी बनकर सब दे व के साथ आओ एवं मुख होता बनकर यहां बछे ए कुश पर बैठो. (१) वामीळते अ जरं याय ह व म तः सद म मानुषासः. य य दे वैरासदो ब हर नेऽहा य मै सु दना भव त.. (२) हे वशेष ग त वाले अ न! ह वाले लोग तुमसे सदा तकम क ाथना करते ह. तुम जसके बछे ए कुश पर दे व के साथ बैठते हो, उसके दन शोभन बन जाते ह. (२) द ोः च कतुवसू न वे अ तदाशुषे म याय. मनु वद न इह य दे वा भवा नो तो अ भश तपावा.. (३) हे अ न! ऋ वज् यजमान क ओर से तु हारे बीच दन म तीन बार ह डालते ह. हे अ न! तुम मनु के समान इस य म दे व का यजन करो हमारे त बनो एवं हम श ु से बचाओ. (३) अ नरीशे बृहतो अ वर या न व य ह वषः कृत य. तुं य वसवो जुष ताथा दे वा द धरे ह वाहम्.. (४) अ न वशाल य के वामी एवं सभी सं कृत ह के प त ह. वसु अ न के य कम क सेवा करते ह. दे व ने अ न को ह वाहक बनाया है. (४) आ ने वह ह वर ाय दे वा न ये ास इह मादय ताम्. इमं य ं द व दे वेषु धे ह यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे अ न! तुम दे व को ह व-भ ण करने के हेतु बुलाओ. इं आ द दे व इस य म स ह . इस य को वग म दे व को दान करो एवं हम अपने क याणसाधन से सुर त बनाओ. (५)
सू —१२
दे वता—अ न
अग म महा नमसा य व ं यो द दाय स म ः वे रोणे. च भानुं रोदसी अ त व वा तं व तः य चम्.. (१) अ तशय युवा, अपने घर म व लत होकर द त होने वाले, व तृत ावा-पृ थवी के म य म थत, व च वाला वाले, भली कार बुलाए गए एवं सब जगह ग तशील अ न के समीप हम नम कार के साथ गमन करते ह. (१) स म ा व ा रता न सा ान नः वे दम आ जातवेदाः. स नो र षद् रतादव ाद मा गृणत उत नो मघोनः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपनी मह ा से सारे पाप को परा जत करने वाले जातवेद अ न य शाला म तु त का वषय बनते ह. वे हम पाप एवं न दत कम से बचाव एवं हम ह वयु जन क र ा कर. (२) वं व ण उत म ो अ ने वां वध त म त भव स ाः. वे वसु सुषणना न स तु यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) हे अ न! तु ह व ण और म हो. व स गो ीय ऋ ष तु तय ारा तु ह बढ़ाते ह. तुम म रहने वाले धन हमारे लए सुलभ ह . तुम क याणकारी उपाय से हमारी र ा करो. (३)
सू —१३
दे वता—वै ानर अ न
ा नये व शुचे धय धेऽसुर ने म म धी त भर वम्. भरे ह वन ब ह ष ीणानो वै ानराय यतये मतीनाम्.. (१) हे म ो! सबको उ त करने वाले, कम के धारणक ा एवं असुर वनाशक अ न के त सुंदर तु तयां बोलो. म स होकर कामपूरक वै ानर अ न को य म ह व एवं तु त सम पत करता ं. (१) वम ने शो चषा शोशुचान आ रोदसी अपृणा जायमानः. वं दे वाँ अ भश तेरमु चो वै ानर जातवेदो म ह वा.. (२) हे अ न! तुमने काश ारा उ वल बनकर ज म लेते ही ावापृ वी को भर दया था. हे वै ानर जातवेद! तुमने अपने मह व से दे व को श ु से छु ड़ाया था. (२) जातो यद ने भुवना यः पशू गोपा इयः प र मा. वै ानर णे व द गातुं यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) हे अ न! तुम सूय से ज म लेने वाले, सबके वामी एवं सब जगह ग तशील हो. गोपाल जैसे पशु को दे खता है, उसी कार जब तुम र ा क से ा णय को दे खते हो, तब तुम तु तय का फल ा त करो. हे वै ानर! तुम क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (३)
सू —१४
दे वता—अ न
स मधा जातवेदसे दे वाय दे व त भः. ह व भः शु शो चषे नम वनो वयं दाशेमा नये.. (१) हम व स गो ीय ऋ ष स मधा ारा जातवेद अ न क सेवा करते ह. हम दे व तु तय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा अ न क सेवा करगे. हम ह धारी लोग ह सेवा करगे. (१)
ारा उ
वल द त वाले अ न क
वयं ते अ ने स मधा वधेम वयं दाशेम सु ु ती यज . वयं घृतेना वर य होतवयं दे व ह वषा भ शोचे.. (२) हे अ न! हम स मधा ारा तु हारी सेवा करगे. हे य शोभन तु तय ारा तु हारी सेवा करगे. हे क याणकारी वाला अ न दे व! हम घृत और ह ारा तु हारी सेवा करगे. (२)
के यो य अ न! हम वाले एवं य के होता
आ नो दे वे भ प दे व तम ने या ह वषट् कृ त जुषाणः. तु यं दे वाय दाशतः याम यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) हे अ न! तुम हमारे ह का सेवन करो और दे व के साथ हमारे य म आओ. हम अ न दे व के सेवक बन. तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (३)
दे वता—अ न
सू —१५ उपस ाय मी
ष आ ये जु ता ह वः. यो नो ने द मा यम्.. (१)
हे अ वयुगण! समीप बैठने यो य, अ भलाषापूरक, परम समीप, संबंधी एवं बंधु प अ न के मुख म ह व डालो. (१) यः प च चषणीर भ नषसाद दमेदमे. क वगृहप तयुवा.. (२) क व, गृहपालक एवं युवा अ न पंचजन के सामने
येक घर म थत होते ह. (२)
स नो वेदो अमा यम नी र तु व तः. उता मा पा वंहसः.. (३) हमारे मं कर. (३)
प अ न हमारे धन को सम त बाधक से बचाव और पाप से हमारी र ा
नवं नु तोमम नये दवः येनाय जीजनम्. व वः कु व ना त नः.. (४) हम वग के बाज प ी के समान अ न को नया तो सम पत करते ह. वे हम ब त सा धन द. (४) पाहा य य
यो शे र यव रवतो यथा. अ े य
य शोचतः.. (५)
य के ारंभ म व लत होने वाले अ न क द तयां संतानयु आंख के लए अ भलषणीय होती ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धन के समान
सेमां वेतु वषट् कृ तम नजुषत नो गरः. य ज ो ह वाहनः.. (६) अ तशय य पा एवं ह कर. (६)
वहन करने वाले अ न हमारे ह
और तु तय को वीकार
न वा न य व पते ुम तं दे व धीम ह. सुवीरम न आ त.. (७) हे समीप जाने यो य, जा के वामी, सब यजमान ारा बुलाए गए, द तशाली एवं क याणकारी तो वाले अ न दे व! हमने तु ह था पत कया है. (७) पउ
द द ह व नय वया वयम्. सुवीर वम मयुः.. (८)
हे अ न! तुम दन-रात व लत रहो. तु हारे कारण हम शोभन अ नय वाले ह. तुम हमारी कामना करते ए क याणकारी तो वाले बनो. (८) उप वा सातये नरो व ासो य त धी त भः. उपा रा सह णी.. (९) हे अ न! मेधावी यजमान य कम ारा धन पाने के लए तु हारे पास जाते ह. हमारी हजार अ र वाली एवं नाशर हत तु त तु ह ा त हो. (९) अ नी र ां स सेध त शु शो चरम यः. शु चः पावक ई ः.. (१०) शु वाला वाले, मरणर हत, शु , प व क ा एवं तु तयो य अ न रा स को बाधा प ंचाव. (१०) स नो राधां या भरेशानः सहसो यहो. भग दातु वायम्.. (११) (११)
हे बल के पु एवं सकल जगत् के वामी अ न! हम धन दो. भगदे व भी हम धन द. वम ने वीरव शो दे व स वता भगः. द त दा त वायम्.. (१२)
(१२)
हे अ न! तुम हम संतानयु अ ने र ा णो अंहसः
धन दो. स वता दे व, भग और अ द त भी हम धन द.
त म दे व रीषतः. त प ैरजरो दह.. (१३)
हे अ न! हम पाप से बचाओ. हे जरार हत अ न दे व! तुम अपने अ तशय तापदायक तेज ारा श ु को जलाओ. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अधा मही न आय यनाधृ ो नृपीतये. पूभवा शतभु जः.. (१४) हे अपरा जत अ न! तुम इस समय हमारे मनु य क र ा के लए लौह से बनी व तृत नगरी बनाओ. (१४) वं नः पा ंहसो दोषाव तरघायतः. दवा न मदा य.. (१५) हे अपराजेय एवं अंधकार को न करने वाले अ न! तुम पाप और श ु से हमारी रातदन र ा करो. (१५)
सू —१६
दे वता—अ न
एना वो अ नं नमसोज नपातमा वे. यं चे त मर त व वरं व य तममृतम्.. (१) हे यजमान! म श पु , य, अ तशय ानशील, ग तशील, शोभनय वाले, सबके त और मरणर हत अ न को इस तु त ारा तु हारे क याण के लए बुलाता ं. (१) स योजते अ षा व भोजसा स व वा तः. सु ा य ः सुशमी वसूनां दे वे राधो जनानाम्.. (२) काशयु एवं सबके पालक अ न अपने रथ म घोड़ को जोतते ह एवं शी ता से दे व के पास जाते ह. हे भली कार बुलाए गए एवं शोभन तु त वाले अ न! तुम य प एवं शोभनकम वाले हो. व स गो ीय ऋ ष का ह व अ न के पास जाए. (२) उद य शो चर थादाजु ान य मी षः. उद्धूमासो अ षासो द व पृशः सम न म धते नरः.. (३) बुलाए गए एवं अ भलाषापूरक अ न का तेज ऊपर उठता है. शोभन एवं आकाश को छू ने वाले धुएं उठ रहे ह. लोग अ न को व लत कर रहे ह. (३) तं वा तं कृ महे यश तमं दे वाँ आ वीतये वह. व ा सूनो सहसो मतभोजना रा व त वेमहे.. (४) हे बलपु एवं अ तशय यश वाले अ न! हम तु ह त बनाते ह. तुम ह भ ण के लए दे व को बुलाओ. जब हम तु हारी याचना करते ह, तभी हम मानव का भोग दो. (४) वम ने गृहप त वं होता नो अ वरे. वं पोता व वार चेता य वे ष च वायम्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सव य अ न! तुम हमारे य म गृहप त हो. तुम ही होता, पोता और व श वाले हो. तुम उ म ह का यजन एवं भ ण करो. (५)
ान
कृ ध र नं यजमानाय सु तो वं ह र नधा अ स. आ न ऋते शशी ह व मृ वजं सुशंसो य द ते.. (६) हे शोभन कम वाले अ न! तुम यजमान को र न दो, य क तुम र न दे ने वाले हो. हमारे य म सब ऋ वज को कुशल बनाओ एवं बढ़ने वाले होता को बढ़ाओ. (६) वे अ ने वा त यासः स तु सूरयः. य तारो ये मघवानो जनानामूवा दय त गोनाम्.. (७) हे भली कार बुलाए गए अ न! तु हारे तोता सबके मानव एवं गाय का दान करते ह, वे भी य बन. (७)
य बन. जो धनसंप दाता
येषा मळा घृतह ता रोण आँ अ प ाता नषीद त. ताँ ाय व सह य हो नदो य छा नः शम द घ ुत्.. (८) हे बलपु अ न! उन घर को ोह और नदा करने वाल से बचाओ, जन म हाथ म घी लए ए अ पणी दे वी पूण प से बैठती ह. हम ब त समय तक सुनने यो य सुख दो. (८) स म या च ज या व रासा व रः. अ ने र य मघव यो न आ वह ह दा त च सूदय.. (९) हे ह वहन करने वाले एवं अ तशय व ान् अ न! अपनी स करने वाली एवं मुख म रहने वाली जीभ के ारा हम ह धारक को धन दो एवं ह दे ने वाले को य कम म लगाओ. (९) ये राधां स दद य ा मघा कामेन वसो महः. ताँ अंहसः पपृ ह पतृ भ ् वं शतं पू भय व ् य.. (१०) हे अ तशय युवा अ न! जो यजमान वशाल यश क कामना से स करने वाले एवं अ प ह दे ते ह, उ ह पाप से बचाओ एवं र ासाधन पी सौ नग रय ारा उनका पालन करो. (१०) दे वो वो वणोदाः पूणा वव ् या सचम्. उ ा स च वमुप वा पृण वमा द ो दे व ओहते.. (११) हे यजमान! धन दे ने वाले अ न दे व तु हारे ह
से भरे ए ुच क इ छा करते ह. तुम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमरस से पा भरो और सोमरस का दान करो. इसके बाद अ न दे व तु ह धारण करगे. (११) तं होतारम वर य चेतसं व दे वा अकृ वत. दधा त र नं वधते सुवीयम नजनाय दाशुषे.. (१२) दे व ने उ म बु सेवा करने वाले एवं ह
अ न को य वहन करने वाला एवं बुलाने वाला बनाया है. अ न दे ने वाले को शोभन वीय वाला धन द. (१२)
दे वता—अ न
सू —१७ अ ने भव सुष मधा स म
उत ब ह वया व तृणीताम्.. (१)
हे अ न! तुम शोभन-स मधा
ारा
व लत बनो. अ वयु कुश फैलाव. (१)
उत ार उशती व य तामुत दे वाँ उशत आ वहेह.. (२) हे अ न! दे व क कामना करने वाले य शाला ार का आ य लो एवं य क कामना करने वाले दे व को इस य म लाओ. (२) अ ने वी ह ह वषा य
दे वा
व वरा कृणु ह जातवेदः.. (३)
हे जातवेद अ न! तुम दे व के सामने जाओ, ह व ारा दे व का य शोभनय वाला बनाओ. (३) व वरा कर त जातवेदा य
करो और उ ह
े वाँ अमृता प य च.. (४)
हे जातवेद अ न! तुम मरणर हत दे व को शोभनय वाला करो, ह व से उनका य करो और उ ह तो से स करो. (४) वं व व ा वाया ण चेतः स या भव वा शषो नो अ .. (५) हे व श बु
वाले अ न! हम सब संप यां दो. हमारे आशीवाद आज स चे ह . (५)
वामु ते द धरे ह वाहं दे वासो अ न ऊज आ नपातम्.. (६) हे बलपु अ न! तु ह उ ह दे व ने ह
वहन करने वाला बनाया है. (६)
ते ते दे वाय दाशतः याम महो नो र ना व दध इयानः.. (७) हे द तशाली अ न! हम ह दाता
को याचना करने पर महान् धन दो. (७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१८ वे ह य पतर इ वे गावः सु घा वे
दे वता—इं व सुदास व ा वामा ज रतारो अस वन्. ा वं वसु दे वयते व न ः.. (१)
हे इं ! हमारे पतर ने तु हारा तु तक ा बनकर सम त उ म धन को ा त कया था. तु हारी गाएं सरलता से ही जाने वाली ह एवं तुम अ के वामी हो. तुम दे व के अ भला षय को अ धक दे ते हो. (१) राजेव ह ज न भः े येवाव ु भर भ व क वः सन्. पशा गरो मघवन् गो भर ै वायतः शशी ह राये अ मान्.. (२) हे इं ! तुम अपनी प नय के साथ राजा के समान शोभा पाते हो. हे व ान् एवं क व इं ! तोता को वण आ द धन, गाय एवं अ से सभी कार संप बनाओ. हम तु हारे अ भलाषी ह. तुम धन ा त के लए हमारा सं कार करो. (२) इमा उ वा प पृधानासो अ म ा गरो दे वय ती प थुः. अवाची ते प या राय एतु याम ते सुमता व शमन्.. (३) हे इं ! इस य म पर पर पधा करती ई एवं स करने वाली तु तयां तु हारे पास जाती ह. तु हारे धन का माग हमारी ओर हो. तु हारी कृपा से हम सुखी ह . (३) धेनुं न वा सूयवसे ुप ा ण ससृजे व स ः. वा म मे गोप त व आहा न इ ः सुम त ग व छ.. (४) हे इं ! जस कार उ म घास वाली गोशाला म गाय को हा जाता है, उसी कार तु ह हने क इ छा से व स ने तो पी बछड़ा बनाया है. संसारभर तु ह ही गाय का वामी कहता है. तुम हमारी शोभन तु त के समीप आओ. (४) अणा स च प थाना सुदास इ ो गाधा यकृणो सुपारा. शध तं श युमुचथ य न ः शापं स धूनामकृणोदश तीः.. (५) हे तु तयो य इं ! तुमने सुदास राजा के लए प णी नद क भयानक धारा को भी उथला और सरलता से पार करने यो य बनाया था. तुमने तोता के त उस शाप को न कया था, जो न दय म बाढ़ लाता है एवं उनका वाह रोकता है. (५) पुरोळा इ ुवशो य रु ासी ाये म यासो न शता अपीव. ु च ु भृगवो व सखा सखायमतर षूचोः.. (६) तुवश नाम के एक य कुशल एवं अ गामी राजा थे. जल म मछली के समान नयं त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रहने पर भी भृगुवंशी एवं वंशी यो ा ने सुदास एवं तुवश को आमने-सामने कर दया. इं ने इन दोन म से अपने म सुदास का उ ार कर दया एवं तुवश को मार डाला. (६) आ प थासो भलानसो भन ता लनासो वषा णनः शवासः. आ योऽनय सधमा आय य ग ा तृ सु यो अजग युधा नॄन्.. (७) ह को पकाने वाले, भ मुख, तप या के कारण बल, हाथ म स ग लए ए एवं सारे संसार के क याणकारी लोग इं क तु त करते ह. इं सोमपान से म होकर आय क गाएं हसक से छु ड़ा लाए थे. इं ने गाएं ा त क थ एवं यु म श ु को मारा था. (७) रा यो३ अ द त ेवय तोऽचेतसो व जगृ े प णीम्. म ा व क् पृ थव प यमानः पशु क वरशय चायमानः. (८) बुरे वचार वाले एवं मंदबु श ु ने वशाल प णी नद को खोदकर उसके तट गरा दए थे. इं क कृपा से सुदास धरती पर व तृत हो गए और उ ह ने चायमान के पु क व को पालतू पशु के समान मारकर धरती पर सुला दया था. (८) ईयुरथ न यथ प णीमाशु नेद भ प वं जगाम. सुदास इ ः सुतुकाँ अ म ानर धय मोनुषे व वाचः.. (९) इं ारा कनारे ठ क करने पर प णी नद का जल उ चत दशा म बहने लगा, उसका इधर-उधर जाना क गया. सुदास का अ भी अपने माग पर चला. इं ने सुदास के क याण के लए थ बात करने वाले श ु को संतानस हत वश म कया था. (९) ईयुगावो न यवसादगोपा यथाकृतम भ म ं चतासः. पृ गावः पृ न े षतासः ु च ु नयुतो र तय .. (१०) जस कार बना वाले क गाएं जौ के खेत क ओर जाती ह, उसी कार पृ माता ारा भेजे गए एवं पर पर स म लत म द्गण पूव न य के अनुसार अपने म इं क ओर गए थे. म त े घोड़े भी स होकर इं क ओर गए. (१०) एकं च यो वश त च व या वैकणयोजना ाजा य तः. द मो न स शशा त ब हः शूरः सगमकृणो द एषाम्.. (११) राजा सुदास ने क त लाभ करने के लए प णी नद के दोन तट पर बसे ए इ क स मनु य को मार डाला. युवा अ वयु जस कार य शाला म कुश को काटता है, उसी कार सुदास ने श ु को काटा. इं ने सुदास क सहायता के लए म त को उ प कया है. (११) अध ुतं कवषं वृ म वनु
ं न वृण व बा ः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वृणाना अ स याय स यं वाय तो ये अमद नु वा.. (१२) व बा इं ने ुत, कवष, वृ व नाम के लोग को पानी म डु बा दया था. इस अवसर पर ज ह ने तु हारी तु त क , उ ह ने म बनकर तु हारी म ता ा त क . (१२) व स ो व ा ं हता येषा म ः पुरः सहसा स त ददः. ानव य तृ सवे गयं भा जे म पू ं वदथे मृ वाचम्.. (१३) इं ने ुत आ द क सम त ढ़ नग रय एवं सात कार के र ासाधन को बल ारा न कर दया था तथा अनु के पु का धन तृ सु को दे दया था. हे इं ! हम यु म कठोरवचन वाले श ु को जीत सक. (१३) न ग वोऽनवो व ष ः शता सुषुपुः षट् सह ा. ष व रासो अ ध षड् वोयु व े द य वीया कृता न.. (१४) गाय क अ भलाषा करने वाले अनु और के छयासठ हजार छयासठ वीर सै नक इं क सेवा के इ छु क सुदास के कारण मारे गए थे. ये सब काय इं क वीरता के ह. (१४) इ े णैते तृ सवो वे वषाणा आपो न सृ ा अधव त नीचीः. म ासः कल वन् ममाना ज व ा न भोजना सुदासे.. (१५) ये तृ सु लोग इं के बुरे म एवं ानहीन ह. ये इं के साथ यु करने लगे और यु छोड़ने क इ छा से इस कार भागे, जैसे नीचे क ओर बहने वाला पानी दौड़ता है. सुदास के ारा रोकने पर उ ह ने योग क सब चीज सुदास को दे द . (१५) अध वीर य शृतपाम न ं परा शध तं नुनुदे अ भ ाम्. इ ो म युं म यु यो ममाय भेजे पथो वत न प यमानः.. (१६) इं ने ऐसे लोग को मारकर धरती पर गरा दया था जो श थे, इं को नह मानते थे, ह के पालक और उ साही थे. इं ने कर दया. सुदास का श ु पलायन के माग पर चला गया. (१६)
शाली सुदास के हसक ो धय का ोध समा त
आ ेण च े कं चकार स ं च पे वेना जघान. अव व यावृ द ः ाय छ ा भोजना सुदासे.. (१७) इं ने द र सुदास से उस समय एक काम कराया था. सह जैसे श ु को बकरे तु य सुदास से मरवाया, यूप, तुला श ु को सुई के समान सुदास से व कराया. इं ने सब धन सुदास को दे दया. (१७) श
तो ह श वो रारधु े भेद य च छधतो व द र धम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मता एनः तुवतो यः कृणो त त मं त म
जहव
म .. (१८)
हे इं ! तु हारे ब त से श ु तु हारे वश म हो गए ह. उ साही ना तक को वश म करो. ना तक तु हारी तु त करने वाल का अ हत करता है. इसके व श शाली वीर को भेजो एवं उसे अपने व से मारो. (१८) आव द ं यमुना तृ सव ा भेदं सवताता मुषायत्. अजास श वो य व ब ल शीषा ण ज ुर ा न.. (१९) इस यु म इं ने ना तक भेद को मारा था एवं यमुना ने तृ सु व इं को स कया था. अज, श ु एवं य ु जनपद ने घोड़ के सर इं को भेट म दए थे. (१९) न त इ सुमतयो न रायः स च े पूवा उषसो न नू नाः. दे वकं च मा यमानं जघ थाव मना बृहतः श बरं भेत्.. (२०) हे इं ! तु हारी नवीन तथा ाचीन कृपाएं एवं संप यां उषा के ारा वणन नह क जा सकत . तुमने म यमान के पु दे वक का वध कया एवं बड़ा पहाड़ उठाकर शंबर का भेद कया. (२०) ये गृहादमम वाया पराशरः शतयातुव स ः. न ते भोज य स यं मृष ताधा सू र यः सु दना ु छान्.. (२१) हे इं ! अनेक रा स को न करने वाले पराशर एवं व स ऋ ष तु हारी कामना करके अपने घर को गए एवं उ ह ने तु हारी तु त क . वे अपने पालनक ा क अथात् तु हारी म ता नह भूले थे. उनके दन सदा शोभन होते ह. (२१) े न तुदववतः शते गो ा रथा वधूम ता सुदासः. अह ने पैजवन य दानं होतेव स पय म रेभन्.. (२२) हे अ न! मने इं क तु त करके राजा दे ववान के नाती एवं पजवन के पु सुदास से रथ पाया था. म होता के समान य शाला म जाता ं. (२२) च वारो मा पैजवन य दानाः म यः कृश ननो नरेके. ऋ ासो मा पृ थ व ाः सुदास तोकं तोकाय वसे वह त.. (२३) पजवन के पु राजा सुदास को ा एवं दान के त प, सोने के अलंकार से सुशो भत, ऊंचे-नीचे थान म भी सीधे चलने वाले एवं पृ वी पर थत चार घोड़े पु के समान पालनीय व स को पु के यश के लए ढोते ह. (२३) य य वो रोदसी अ त व शी णशी ण वबभाजा वभ ा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स ते द ं न वतो गृण त न यु याम धम शशादभीके.. (२४)
यु
जन सुदास का यश व तृत ावा-पृ थवी म फैला है, ज ह ने दाता बनकर येक े को धन दया है, उन सुदास क तु त सात लोक इं के समान करते ह. न दय ने म यु याम ध नामक श ु को मार डाला था. (२४) इमं नरो म तः स तानु दवोदासं न पतरं सुदासः. अ व ना पैजवन य केतं णाशं मजरं वोयु.. (२५)
हे नेता म तो! पता दवोदास के ही समान राजा सुदास क भी सेवा करो एवं पजवन के पु सुदास के घर क र ा करो. सुदास क सेना जरार हत एवं अ वनाशी हो. (२५)
सू —१९
दे वता—इं
य त मशृ ो वृषभो न भीम एकः कृ ी यावय त व ाः. यः श तो अदाशुषो गय य य ता स सु वतराय वेदः.. (१) जो तीखे स ग वाले एवं भयानक बैल के समान अकेले ही सारे श ु को भगा दे ते ह एवं जो य न करने वाले ब त से लोग के घर छ न लेते ह, वे ही अ तशय सोमरस नचोड़ने वाले को धन दे ते ह. (१) वं ह य द कु समावः शु ूषमाण त वा समय. दासं य छु णं कुयवं य मा अर धय आजुनेयाय श न्.. (२) हे इं ! तुमने उस समय शरीर से शु ूषा पाकर यु म कु स क र ा क थी, जस समय तुमने अजुनी के पु कु स को धन दे ते ए दास, शु ण और कुयव को वश म कया था. (२) वं धृ णो धृषता वीतह ं ावो व ा भ त भः सुदासम्. पौ कु सं सद युमावः े साता वृ ह येषु पू म्.. (३) हे श ुनाशक इं ! तुम अपने धषक व ारा र ा के सभी साधन योग म लाकर ह दे ने वाले सुदास को बचाओ. भू म के कारण होने वाले यु म पु कु स के पु सद यु एवं पु क र ा करो. (३) वं नृ भनृमणो दे ववीतौ भूरी ण वृ ा हय हं स. वं न द युं चुमु र धु न चा वापयो दभीतये सुह तु.. (४) हे य के नेता ारा तु तयो य इं ! तुमने सं ाम म म त के साथ मलकर ब त से श ु को मारा था. हे ह र नामक अ के वामी इं ! तुमने दभी त के क याण के लए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द यु, चुमु र और धु न को अपने व
ारा सुला दया था. (४)
तव यौ ना न व ह त ता न नव य पुरो नव त च स ः. नवेशने शततमा ववेषीरह च वृ ं नमु चमुताहन्.. (५) हे व ह त इं ! तु हारे बल ऐसे ह क तुमने शंबर क न यानवे नग रय को तुरंत ही न कर डाला था. अपने नवास के लए सौव नगरी म वेश कया था तथा वृ और नमु च को मारा था. (५) सना ता त इ भोजना न रातह ाय दाशुषे सुदासे. वृ णे ते हरी वृषणा युन म तु ा ण पु शाक वाजम्.. (६) हे इं ! ह दे ने वाले यजमान सुदास के लए तु हारे ारा दए ए धन सनातन ए थे. हे ब कम वाले एवं अ भलाषापूरक इं ! तु ह लाने के लए दो मनचाहे घोड़े म रथ म जोड़ता ं. तु तयां तुम बलशाली के पास जाव. (६) मा ते अ यां सहसाव प र ावघाय भूम ह रवः परादै . ाय व नोऽवृके भव थै तव यासः सू रषु याम.. (७) हे श शाली एवं अ वामी इं ! इस य म हम आदान और पाप के भागी न बन. हम अपने बाधार हत र ासाधन ारा बचाओ. हम तु हारे तोता म य ह . (७) यास इ े मघव भ ौ नरो मदे म शरणे सखायः. न तुवशं न या ं शशी त थ वाय शं यं क र यन्.. (८) हे धन वामी इं ! तु हारे य म हम तोता के नेता, तु हारे म एवं य बनकर अपने घर म स ह . अ त थय क पूजा करने वाले सुदास को सुख दे ते ए तुवश एवं या नामक राजा को वश म करो. (८) स ु ते मघव भ ौ नरः शंस यु थशास उ था. ये ते हवे भ व पण रदाश मा वृणी व यु याय त मै.. (९) हे धन वामी इं ! हम तु हारे य म नेता और उ थ बोलने वाले ह. हम तु ह ह दे ने के साथ-साथ तु ह दान न दे ने वाले प णय को भी दानशील बनाते ह. तुम हम म ता के लए वीकार करो. (९) एते तोमा नरां नृतम तु यम म य चो ददतो मघा न. तेषा म वृ ह ये शवो भूः सखा च शूरोऽ वता च नृणाम्.. (१०) हे नेता
म
े इं ! य के नेता
के इस समूह ने य
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मह
दे कर तु ह हमारी
ओर उ मुख बना दया है. यु (१०)
म तुम उ ह नेता
के क याणकारी, म एवं र क बनो.
नू इ शूर तवमान ऊती जूत त वा वावृध व. उप नो वाजा ममी प ती यूयं पात व त भः सदा नः.. (११) हे शूर इं ! तुम तु तयां सुनकर और मं के भागी बनकर अपने शरीर से बढ़ो तथा हम अ व घर दो. तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (११)
सू —२०
दे वता—इं
उ ो ज े वीयाय वधावा च रपो नय य क र यन्. ज मयुवा नृषदनमवो भ ाता न इ एनसो मह त्.. (१) श शाली एवं ओज वी इं अपना वीय का शत करने के लए उ प ए ह. मानव हतकारी इं जो कम करना चाहते ह, वह अव य करते ह. र ासाधन के साथ य भवन म जाने वाले इं हम महान् पाप से बचाव. (१) ह ता वृ म ः शूशुवानः ावी ु वीरो ज रतारमूती. कता सुदासे अह वा उ लोकं दाता वसु मु रा दाशुषे भूत्.. (२) वधमान होकर वृ का वध करने वाले वीर इं तोता को अपने र ा साधन से सुर त करते ह. वे सुदास के लए जनपद का नमाण करने वाले एवं यजमान को धन दे ने वाले ह. (२) यु मो अनवा खजकृ सम ा शूरः स ाषाड् जनुषेमषा हः. ास इ ः पृतना: वोजा अधा व ं श ूय तं जघान.. (३) यो ा, श ुर हत, यु करने वाले, झगड़ालू, शूर, अनेक जन को परा जत करने वाले, वभाव से ही अपरा जत एवं उ म श वाले इं श ुसेना के माग म बाधा डालते ह एवं श ुता करने वाले का वध करते ह. (३) उभे च द रोदसी म ह वा प ाथ त वषी भ तु व मः. न व म ो ह रवा म म सम धसा मदे षु वा उवोच.. (४) हे अ धक संप शाली इं ! तुमने अपने मह व और श से ावा-पृ थवी दोन को पूण कया. ह र नामक अ के वामी इं श ु पर व फकते ए य म सोमरस ारा से वत होते ह. (४) वृषा जजान वृषणं रणाय तमु च ारी नय ससूव. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यः सेनानीरध नृ यो अ तीनः स वा गवेषणः स धृ णुः.. (५) पता क यप ने अ भलाषापूरक इं को यु के न म उ प कया है. नारी ने भी मानव हतैषी इं को ज म दया है. इं मानव के सेनाप त, वामी सारे संसार के ई र, श ुहंता, गाय क खोज करने वाले एवं श ु को हराने वाले ह. (५) नू च स ेषते जनो न रेष मनो यो अ य घोरमा ववासात्. य ैय इ े दधते वां स य स राय ऋतपा ऋतेजाः.. (६) जो य ारा इं के श ुबाधक मन क सेवा करता है, वह न कभी थान से होता है और न न होता है. जो इं के त य के ारा तु तयां प ंचाता है, उसे य के पालक एवं य म उ प इं धन द. (६) य द पूव अपराय श य यायान् कनीयसो दे णम्. अमृत इ पयासीत रमा च च यं भरा र य नः.. (७) हे आकषक इं ! पहली पीढ़ जो धन बाद वाली पीढ़ को दे ती है, जो धन बड़ा छोटे से पाता है और जो धन पता से ा त करके पु मरणर हत के समान घर से परदे श जाता है, ये तीन कार के आकषक धन हम दो. (७) य तइ यो जनो ददाशदस रेके अ वः सखा ते. वयं ते अ यां सुमतौ च न ाः याम व थे अ नतो नृपीतौ.. (८) हे व धारी इं ! जो य सखा तु ह ह दे ता है, वह तु हारे दान का पा रहे. हम हसार हत होकर तु हारी कृपा के कारण अ धक अ वाले बन एवं मानवर क घर म नवास कर. (८) एष तोमो अ च दद्वृषा त उत तामुमघव प . राय कामो ज रतारं त आग वम श व व आ शको नः.. (९) हे धनशाली इं ! यह टपकता आ सोमरस तु हारे लए ं दन कर रहा है. तोता तु हारी तु तयां कर रहे ह. हे श ! तु हारे तोता को धन क अ भलाषा ई है. तुम उ ह शी धन दो. (९) स न इ वयताया इषे धा मना च ये मघवानो जुन त. व वी षु ते ज र े अ तु श यूयं पात व त भः सदा नः.. (१०) हे इं ! अपने दए ए अ का उपभोग करने के लए हमारी र ा करो. जो अपने आप तु ह ह दे ते ह, उनक भी र ा करो. तु हारे तोता म तु हारी शंसनीय तु तयां करने क श हो. तुम क याणसाधन से सदा हमारी र ा करो. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —२१
दे वता—इं
असा व दे वं गोऋजीकम धो य म ो जनुषेमुवोच. बोधाम स वा हय य ैब धा नः तोमम धसो मदे षु.. (१) द एवं ग म त सोमरस नचोड़ा गया है. ये इं इस सोम पी अ म वभाव से स म लत रहते ह. हे ह र नामक घोड़ वाले इं ! हम य के ारा तु ह हमारी बात बताते ह। तुम सोम के नशे म हमारी बात समझो. (१) य त य ं वपय त ब हः सोममादो वदथे वाचः. यु य ते यशसो गृभादा रउप दो वृषणो नृषाचः.. (२) यजमान य म जाते ह और कुश बछाते ह. य म सोमलता कूटने के प थर भयानक श द करते ह. यश वी, र तक श द करने वाले, ऋ वज को मलाने वाले एवं अ भलाषापूरक प थर प थर से बने घर से लए जाते ह. (२) वम वतवा अप कः प र ता अ हना शूर पूव ः. व ाव े र यो३ न धेना रेज ते व ा कृ मा ण भीषा.. (३) हे शूर इं ! तुमने वृ ारा रोके ए जल को वा हत कया था. तु हारे कारण ही न दयां रथ वा मय के समान नकलती ह. सारा संसार तु हारे भय से कांपता है. (३) भीमो ववेषायुधे भरेषामपां स व ा नया ण व ान्. इ ः पुरो ज षाणो व धो व ह तो म हना जघान.. (४) इं ने मानव हतकारी एवं सब काम को जानने वाले आयुध ारा भयंकर बनकर असुर को घेरा था एवं उनके नगर को कं पत बनाया था. महान् एवं हाथ म व धारण करने वाले इं ने असुर को मारा था. (४) न यातव इ जूजुवुन न व दना श व वे ा भः. स शधदय वषुण य ज तोमा श दे वा अ प गुऋतं नः.. (५) हे इं ! रा स हमारी हसा न कर. हे अ तशय बली इं ! वे रा स हम जाहीन न बनाव. वामी इं कु टल के मारने म उ साह दखाते ह. चयहीन लोग हमारे य म बाधा न बन. (५) अ भ वे भूरध म ते व ङ् म हमानं रजां स. वेना ह वृ ं शवसा जघ थ न श ुर तं व वद ुधा ते.. (६) हे इं ! तुम कम
ारा धरती पर वतमान ा णय को परा जत करते हो. सब लोक
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मलकर भी तु हारी म हमा से नह बढ़ सकते. तुमने अपनी श के ारा श ु तु हारा अंत नह पाते. (६)
से वृ को मारा था. यु
दे वा े असुयाय पूवऽनु ाय म मरे सहां स. इ ो मघा न दयते वष े ं वाज य जो व त सातौ.. (७) हे इं ! ाचीन दे व और रा स ने श योग एवं हसा करने म वयं को तुमसे हीन माना था. इं श ु को हराकर उनका धन अपने भ को दे ते ह. तोता अ पाने के लए इं क तु त करते ह. (७) क र वामवसे जुहावेशान म सौभग य भूरेः. अवो बभूथ शतमूते अ मे अ भ ु वावतो व ता.. (८) हे वामी इं ! तोता तु ह अपनी र ा के लए बुलाता है. हे ब त क र ा करने वाले इं ! तुम हमारे वपुल धन के र क बने थे. तु हारे समान श शाली य द कोई हमारा हसक हो तो उसे रोको. (८) सखाय त इ व ह याम नमोवृधासो म हना त . व व तु मा तेऽवसा समीके३ ऽभी तमय वनुषां शवां स.. (९) हे इं ! हम तु त ारा तु ह बढ़ाते ए सदा तु हारे म रह. हे मह व ारा सबक र ा करने वाले इं ! तु हारी र ा के सहारे े होता यु म अभय होकर हसक क श न कर. (९) स न इ वयताया इषे धा मना च ये मघवानो जुन त. व वी षु ते ज र े अ तु श यूयं पात व त भः सदा नः.. (१०) हे इं ! अपने दए ए अ का उपभोग करने के लए हमारी र ा करो. जो लोग अपने आप तु ह ह दे ते ह, उनक भी र ा करो. तु हारे तोता मुझ म तु हारी शंसनीय तु तयां करने क श हो. तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (१०)
सू —२२
दे वता—इं
पबा सोम म म दतु वा यं ते सुषाव हय ा ः. सोतुबा यां सुयतो नावा.. (१) हे इं ! तुम सोमरस पओ. सोम तु ह स करे. हे ह र नामक घोड़ के वामी! जैसे लगाम ारा घोड़ा वश म कया जाता है, उसी कार सोमरस नचोड़ने वाले के दोन हाथ ारा पकड़े गए प थर ने तु हारे लए सोम तैयार कया है. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ते मदो यु य ा र त येन वृ ा ण हय हं स. स वा म भूवसो मम ु.. (२) हे ह र नामक घोड़ के वामी एवं अ धक धन वाले इं ! जो सोम तु हारे अनुकूल भली कार नचोड़ा गया एवं नशीला है एवं जसे पीकर तुम रा स को मारते हो, वह सोमरस तु ह स बनावे. (२) बोधा सु मे मघव वाचमेमां यां ते व स ो अच त श तम्. इमा सधमादे जुष व.. (३) हे धन वामी इं ! म व स तु हारी शंसा के कार समझो एवं य म उ ह वीकार करो. (३)
प म जो बात कहता ं, उ ह भली
ु ी हवं व पपान या े ब धा व याचतो मनीषाम्. ध कृ वा वां य तमा सचेमा.. (४) हे इं ! मुझ सोमपानक ा के प थर क पुकार सुनो एवं तु त करने वाले व ान् क तु त समझो. तुम मेरे सहायक बनकर मेरी इन सेवा को समझो. (४) न ते गरो अ प मृ ये तुर य न सु ु तमसुय य व ान्. सदा ते नाम वयशो वव म.. (५) हे श ु हसक इं ! तु हारी श को जानने वाला म तु हारी तु तय को नह याग सकता. म तु हारा असाधारण यशवाला नाम सदा बोलूंगा. (५) भू र ह ते सवना मानुषेषु भू र मनीषी हवते वा मत्. मारे अ म मघव यो कः.. (६) हे इं ! मनु य म तु हारे ब त से सवन ह. तोता तु ह ही अ धक बुलाता है. चरकाल तक अपने को हमसे अलग मत रखना. (६) तु ये दमा सवना शूर व ा तु यं वं नृ भह ो व धा स.. (७)
ा ण वधना कृणो म.
हे शूर इं ! ये सब सवन तु हारे हेतु ही ह. ये उ तकारक तो म तु हारे न म बोलता ं. तुम अनेक कार से मानव ारा बुलाने यो य हो. (७)
ही
नू च ु ते म यमान य द मोद ुव त म हमानमु . न वीय म ते न राधः.. (८) हे दशनीय इं ! तु हारी तु तयां सुनकर तु हारी म हमा कौन नह जानेगा? हे उ इं ! ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु हारी श
और धन को कौन नह समझेगा. (८)
ये च पूव ऋषयो ये च नू ना इ ा ण जनय त व ाः. अ मे ते स तु स या शवा न यूयं पात व त भः सदा नः.. (९) हे इं ! सभी ाचीन एवं नवीन ऋ ष तु हारे लए तो बनाते ह. तु हारी म ता हमारे लए मंगलकारी हो. तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (९)
सू —२३
दे वता—इं
उ ा यैरत व ये ं समय महया व स . आ यो व ा न शवसा ततानोप ोता म ईवतो वचां स.. (१) ऋ षय ने सब तु तयां अ पाने क अ भलाषा से कही ह. हे व स ! तुम भी तो व ह ारा इं क पूजा करो. जस इं ने अपनी श से सम त लोक को व तृत कया है, वे मुझ समीपगामी क तु तयां सुन. (१) अया म घोष इ दे वजा म रर य त य छु धो ववा च. न ह वमायु कते जनेषु तानीदं हां य त प य मान्.. (२) हे इं ! जब ओष धयां बढ़ती ह, तब दे व को य लगने वाले श द बोले जाते ह. मानव म कोई भी अपनी आयु नह जानता. तुम हमारे पाप को र करो. (२) युजे रथं गवेषणं ह र यामुप ा ण जुजुषाणम थुः. व बा ध य रोदसी म ह वे ो वृ ा य ती जघ वान्.. (३) म इं के गाय को खोजने वाले रथ को ह र नामक अ से यु करता ं. सब लोग तु तयां वीकार करने वाले इं क सेवा करते ह. इं ने अपनी श से ावा-पृ थवी को बाधा प ंचाई है तथा श ुसमूह का नाश कया है. (३) आप प युः तय ३ न गावो न ृतं ज रतार त इ . या ह वायुन नयुतो नो अ छा वं ह धी भदयसे व वाजान्.. (४) हे इं ! जस कार बना याई गाय मोट होती है, उसी कार तु हारी कृपा से जल बढ़े एवं तु हारे तोता जल को ा त कर. वायु जस कार घोड़ के पास जाती है, उसी कार तुम हमारे पास आओ. तुम य कम ारा अ दे ते हो. (४) ते वा मदा इ मादय तु शु मणं तु वराधसं ज र े. एको दे व ा दयसे ह मतान म छू र सवने मादय व.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! नशीला सोम तु ह स करे. तुम तोता को श शाली एवं धनवान् पु दे ते हो. हे शूर इं ! दे व म एकमा तु ह मानव के त दया करते हो. तुम इस य म स बनो. (५) एवे द ं वृषणं व बा ं व स ासो अ यच यकः. स नः तुतो वीरव ातु गोम ूयं पात व त भः सदा नः.. (६) व स गो ीय ऋ ष इसी कार तु तय ारा अ भलाषापूरक एवं व बा इं क पूजा करते ह. वे तु त सुनकर हम वीर एवं गाय से यु धन द. हे इं ! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (६)
सू —२४
दे वता—इं
यो न इ सदने अका र तमा नृ भः पु त या ह. असो यथा नोऽ वता वृधे च ददो वसू न ममद सोमैः.. (१) हे इं ! तु हारे सदन के लए थान बनाया गया है. हे ब त ारा बुलाए गए इं ! म त के साथ उस सदन से आओ एवं तुम र ा के समान ही हमारी वृ करो. हम धन दो एवं हमारे सोमरस ारा स बनो. (१) गृभीतं ते मन इ बहाः सुतः सोमः प र ष ा मधू न. वसृ धेना भरते सुवृ रय म ं जो वती मनीषा.. (२) हे दोन थान म पू य इं ! हमने तु हारे मन को हण कर लया है. सोमरस नचोड़ा है एवं मधु से पा को भर लया है. म यम वर से उ च रत एवं समा त ाय यह तु त इं को बार-बार बुलाती ई गूंजती है. (२) आ नो दव आ पृ थ ा ऋजी ष दं ब हः सोमपेयाय या ह. वह तु वा हरयो म य चमा षम छा तवसं मदाय.. (३) हे ऋजीषी इं ! हमारे इस य म सोमरस पीने के लए वग एवं अंत र से आओ. ह र नामक अ तु ह हमारे सामने स ता के लए तु तय क ओर वहन कर. (३) आ नो व ा भ त भः सजोषा जुषाणो हय या ह. वरीवृजत् थ वरे भः सु श ा मे दधद्वृषणं शु म म .. (४) हे ह र नामक घोड़ के वामी एवं शोभन ठोड़ी वाले इं ! तुम सब कार के र ासाधन के साथ म त को लेकर श ु क अ धक हसा करते ए हम अ भलाषापूरक एवं श शाली पु दो, तु तयां सुनो एवं हमारे पास आओ. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एष तोमो मह उ ाय वाहे धुरी३ वा यो न वाजय धा य. इ वायमक ई े वसूसनां दवीव ाम ध नः ोमतं धाः.. (५) रथ के घोड़े के समान श शाली यह मं समूह महान्, उ एवं व भारवहन समथ इं को ल य करके बनाया गया है. हे इं ! यह तोता तुमसे धन मांगता है. तुम हम वग के समान तेज वी पु दो. (५) एवा न इ वाय य पू ध ते मह सुम त वे वदाम. इषं प व मघवद् यः सुवीरां यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे इं ! इस कार तुम हम उ म धन से पूण करो. हम तु हारी महती दया ा त कर. हम ह वाल को वीर पु से यु अ दो एवं सभी क याणसाधन से हमारी र ा करो. (६)
सू —२५
दे वता—इं
आ ते मह इ ो यु सम यवो य समर त सेनाः. पता त द ु य य बा ोमा ते मनो व व य ् १ व चारीत्.. (१) हे उ , महान् एवं मानव हतैषी इं ! तु हारी ोधभरी सेनाएं जब यु करती ह, तब तु हारे हाथ म थत व हमारी र ा के लए गरे. तु हारा सब ओर जाने वाला मन वच लत न हो. (१) न गइ थ म ान भ ये नो मतासो अम त. आरे तं शंसं कृणु ह न न सोरा नो भर स भरणं वसूनाम्.. (२) हे इं ! यु म जो लोग हमारे सामने आकर हम परा जत करते ह, उन श ु करो. हमारी नदा के इ छु क का नाम मटा दो. हम धन का समूह दो. (२)
का नाश
शतं ते श ूतयः सुदासे सह ं शंसा उत रा तर तु. ज ह वधवनुषो म य या मे ु नम ध र नं च धे ह.. (३) हे साफा वाले इं ! तु हारे सैकड़ र ासाधन एवं हजार कामनाएं एवं धन मुझ सुदास के ह . हसक मनु य के आयुध का तुम नाश करो एवं हमारे लए द तशाली यश एवं र न दो. (३) वावतो ही वे अ म वावतोऽ वतुः शूर रातौ. व ेदहा न त वषीव उ ँ ओकः कृणु व ह रवो न मध ः.. (४) हे इं ! म तु हारे समान महान् के य कम म लगा ं. म तु हारे समान र क के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दान म नयु ं. हे बली एवं उ इं ! सब दन हमारे लए घर बनाओ. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हमारी हसा मत करो. (४) कु सा एते हय ाय शूष म े सहो दे वजूत मयानाः. स ा कृ ध सुहना शूर वृ ा वयं त ाः सनुयाम वाजम्.. (५) हम ह र नामक घोड़ वाले इं के लए ये सुखकर तु तयां बनाते ह एवं इं से दे व े रत बल क याचना करते ह. हम सभी ःख को पार करके बल ा त करगे. हे शूर इं ! हम सदा श ुहनन म समथ बनाओ. हम अ तशय सुर त होकर अ ा त कर. (५) एवा न इ वाय य पू ध ते मह सुम त वे वदाम. इषं प व मघव यः सुवीरां यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे इं ! इस कार तुम हम उ म धन से पूण करो. हम ह अ दो एवं सभी क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (६)
सू —२६
वाल को वीर पु
से यु
दे वता—इं
न सोम इ मसुतो ममाद ना ाणो मघवानं सुतासः. त मा उ थं जनये य जुजोष ृव वीयः शृणव था नः.. (१) धन वामी इं के उ े य से न नचोड़ा आ एवं तु तहीन सोमरस उ ह स नह करता. इं क सेवा करने वाला म राजा के ारा भी आदरपूवक सुनने यो य एवं नवीन मं समूह इं के न म पढ़ता ं. (१) उ थउ थे सोम इ ं ममाद नीथेनीथे मघवानं सुतासः. यद सबाधः पतरं न पु ाः समानद ा अवसे हव ते.. (२) येक मं समूह के पाठ के समय सोम धन वामी इं को स करता है. येक तो के समय नचोड़े गए सोमरस इं को तृ त करते ह. पर पर म लत एवं समान उ साह वाले ऋ वज् इं को अपनी र ा के लए उसी कार बुलाते ह, जस कार पु पता को बुलाते ह. (२) चकार ता कृणव ूनम या या न ुव त वेधसः सुतेषु. जनी रव प तरेकः समानो न मामृजे पुर इ ः सु सवाः.. (३) सोमरस नचुड़ जाने पर तोतागण जन कम का वणन करते ह, इं ने ाचीन काल म वे सब कम कए ह एवं इस समय अ य कम भी करते ह. प त जस कार प नी का मदन करता है, उसी कार इं ने अकेले ही श ुनग रय को तहस-नहस कर डाला. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवा तमा त शृ व इ एको वभ ा तर णमघानाम्. मथ तुर ऊतयो य य पूव र मे भ ा ण स त या ण.. (४) इं के वषय म ऋ वज् कहते ह क वे अकेले ही धन बांटने एवं वप य से पार करने वाले ह. यह भी सुना गया है क इं के पास पर पर मले अनेक र ासाधन ह. इं क कृपा से हम य क याण द व तुएं मल. (४) एवा व स इ मूतये नृ कृ ीनां वृषभं सुते गृणा त. सह ण उप नो मा ह वाजान् यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) व स ऋ ष सोमरस नचुड़ जाने पर मनु य क र ा के लए जा के अ भलाषापूरक इं क तु त इस कार करते ह. हे इं ! हमारे हजार कार के अ एवं क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —२७
दे वता—इं
इ ं नरो नेम धता हव ते य पाया युनजते धय ताः. शूरो नृषाता शवस कान आ गोम त जे भजा वं नः.. (१) जब यु क तैयारी होने लगती है तो नेता यु म इं को बुलाते ह. हे शूर, मनु य के पोषक एवं श क कामना करने वाले इं ! हम गाय वाली गोशाला म प ंचाओ. (१) य इ शु मो मघव ते अ त श ा स ख यः पु त नृ यः. वं ह हा मघव वचेता अपा वृ ध प रवृतं न राधः.. (२) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! तु हारा जो बल है, उसे अपने सखा तोता को दो. तुमने ढ़ श ुनग रय को छ भ कया है. तुम बु का काश करके छपा आ धन हमारे लए कट करो. (२) इ ो राजा जगत षणीनाम ध म वषु पं यद त. ततो ददा त दाशुषे वसू न चोद ाध उप तुत दवाक्.. (३) इं पशु आ द ग तशील ा णय एवं मनु य के वामी ह. धरती म नाना प धन है, उसके राजा भी इं ह. ह दाता को धन दे ने वाले इं हमारी तु त सुनकर धन हमारे सामने भेज. (३) नू च इ ो मघवा स ती दानो वाजं न यमते न ऊती. अनूना य य द णा पीपाय वामं नृ यो अ भवीता स ख यः.. (४) हमने धन वामी एवं दानशील इं को म त के साथ बुलाया है. वे हमारी र ा के लए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शी ही अ द. जो इं
तोता
को संपूण धन दे ते थे, वे ही मनु य को उ म धन द. (४)
नू इ राये व रव कृधी न आ ते मनो ववृ याम मघाय. गोमद ाव थवद् तो यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे इं ! धन ा त के लए शी धन दो. हम पू य तु तय ारा तु हारा मन अपनी ओर ख च लगे. तुम हम गाय , अ एवं रथ का वामी बनाओ एवं क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —२८
दे वता—इं
ा ण इ ोप या ह व ानवा च ते हरयः स तु यु ाः. व े च वा वहव त मता अ माक म छृ णु ह व म व.. (१) हे इं ! तुम जानते ए हमारी तु तय के समीप आओ. तु हारे घोड़े हमारे सामने ही रथ म जुड़े ह. हे सबको स करने वाले इं ! य प तु ह सभी लोग बुलाते ह, फर भी तुम हमारी पुकार सुनो. (१) हवं त इ म हमा ानड् य पा स शव स ष ृ ीणाम्. आ य ं द धषे ह त उ घोरः स वा ज न ा अषा हः.. (२) हे श शाली इं ! जस समय तुम ऋ षय के तो क र ा करते हो, उस समय तु हारी म हमा तु तक ा को ा त करे. हे उ इं ! जस समय तुम अपने हाथ म व पकड़ते हो, उस समय कम ारा भयंकर बनकर श ु को असहनीय हो जाते हो. (२) तव णीती जो वाना सं य ॄ रोदसी ननेथ. महे ाय शवसे ह ज ऽे तूतु ज च ूतु जर श त्.. (३) हे इं ! जो लोग तु हारे कहने के अनुसार तु हारी बार-बार तु त करते ह, उ ह तुम लोक एवं धरती पर था पत करते हो. तुमने महान् श एवं धन लेने के लए ज म लया है. तु हारा यजमान य र हत क हसा करता है. (३) ए भन इ ाह भदश य म ासो ह तयः पव ते. त य च े अनृतमनेना अव ता व णो मायी नः सात्.. (४) हे इं ! तु हारी म ता का ढ ग करने वाले लोग आ रहे ह. इनसे धन छ नकर हम दो. पाप न करने वाले एवं बु मान् व ण हमारा जो पाप दे ख. उससे हम हर कार से छु ड़ाएं. (४) वोचेमे द ं मघवानमेनं महो रायो राधसो य द ः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो अचतो
कृ तम व ो यूयं पात व त भः सदा नः.. (५)
हम उसी धन वामी इं क तु त करते ह, जसने हम आराधना के यो य महान् धन दया एवं तोता के तु तकम क र ा क . हे इं ! तुम क याणसाधन से हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —२९
दे वता—इं
अयं सोम इ तु यं सु व आ तु या ह ह रव तदोकाः. पबा व१ य सुषुत य चारोददो मघा न मघव यानः.. (१) हे इं ! यह सोम तु हारे लए नचोड़ा गया है. हे ह र नामक अ वाले इं ! उसे सेवन करने हेतु शी आओ. भली कार नचोड़े गए इस सुंदर सोमरस को पओ. हे धन वामी इं ! हमारी याचना सुनकर हम धन दो. (१) वीर कृ त जुषाणोऽवाचीनो ह र भया ह तूयम्. अ म ू षु सवने मादय वोप ा ण शृणव इमा नः.. (२) हे महान् एवं श शाली इं ! तुम तु तय को सुनते ए अपने घोड़ क सहायता से शी हमारी ओर आओ. तुम इस य म भली कार मु दत बनो एवं हमारी इन तु तय को सुनो. (२) का ते अ यरङ् कृ तः सू ै ः कदा नूनं ते मघवन् दाशेम. व ा मतीरा ततने वायाधा म इ शृणवो हवेमा.. (३) हे इं ! हमारे ारा क ई तु तय ारा तु हारी शोभा कैसे होती है? हे धन वामी इं ! हम कब तु ह स कर? म तु हारी कामना करता आ ही सब तु तयां बोलता ं, इस लए मेरी इन तु तय को सुनो. (३) उतो घा ते पु या३ इदास येषां पूवषामशृणोऋषीणाम्. अधाहं वा मघव ोहवी म वं न इ ा स म तः पतेव.. (४) हे इं ! वे सब ाचीन ऋ ष मानव हतकारी थे, जनक तु तयां तुमने सुन . हे धन वामी इं ! इस लए म तु ह बार-बार बुलाता ं. तुम पता के समान मेरे बंधु हो. (४) वोचेमे द ं मघवानमेनं महो रायो राधसो य द ः. यो अचतो कृ तम व ो यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हम उसी धन वामी इं क तु तयां करते ह. जसने हम आराधना के यो य महान् धन दया एवं तोता के तु तकाय क र ा क . हे इं ! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करो. (५)
सू —३०
दे वता—इं
आ नो दे व शवसा या ह शु म भवा वृध इ रायः अ य. महे नृ णाय नृपते सुव म ह ाय प याय शूर.. (१) हे श शाली इं दे व! तुम अपनी श ारा हमारे पास आओ एवं हमारे धन के बढ़ाने वाले बनो. हे नृप त, शोभनव वाले एवं शूर इं ! तुम महान् बली एवं श ुनाशक बनो. (१) हव त उ वा ह ं ववा च तनूषु शूराः सूय य सातौ. वं व ेषु से यो चनेषु वं वृ ा ण र धया सुह तु.. (२) हे बुलाने यो य इं ! लोग यु म शरीरर ा एवं सूय ा त के लए तु ह बुलाते ह. सब मनु य म तु ह सेनाप त होने यो य हो. तुम अपने सुहंतु व ारा श ु को हमारे वश म करो. (२) अहा य द सु दना ु छादधो य केतुमुपमं सम सु. य१ नः सीददसुरो न होता वानो अ सुभगाय दे वान्.. (३) हे इं ! जब अ छे दन आते ह और तुम वयं को यु के समीप वतमान समझते हो, तब दे व के बुलाने वाले एवं बलवान् अ न हम धन दे ने के लए दे व को बुलाते ए य म थत होते ह. (३) वयं ते त इ ये च दे व तव त शूर ददतो मघा न. य छा सू र य उपमं व थं वाभुवो जरणाम व त.. (४) हे शूर इं दे व! हम तु हारे ह. जो ह दे ते ए तु हारी तु त करते ह, वे भी तु हारे ही ह. उन तोता को उ म धन दो. वे सुसमृ होकर बुढ़ापा ा त कर. (४) वोचेमे द ं मघवानमेनं महो रायो राधसो य द ः. यो अचतो कृ तम व ो यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हम उसी धन वामी इं क तु तयां करते ह, जसने हम आराधना के यो य महा धन दया है एवं तोता के तु तकाय क र ा क है. हे इं ! तुम क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (५)
सू —३१
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व इ ाय मादनं हय ाय गायत. सखायः सोमपा ने.. (१) हे म ो! तुम ह र नामक अ तु तयां गाओ. (१) शंसे
वाले एवं सोमरस पीने वाले इं को स करने वाली
थं सुदानव उत ु ं यथा नरः. चकृमा स यराधसे.. (२)
हे इं ! तुम हम अ दे ने के अ भलाषी बनो. हे शत तु! तुम हम गाय दे ने क कामना करो. हे नवासदाता इं ! तुम हम सोना दे ने क कामना करो. (२) वं न इ
वाजयु वं ग ुः शत तो. वं हर ययुवसो.. (३)
हे तोता! शोभनदान वाले एवं स यधन इं के त जस कार अ य तोता द तकारक तो बोलते ह, उसी कार तुम भी बोलो और हम भी बोलगे. (३) वय म
वायवोऽ भ
णोनुमो वृषन्. व
व१ य नो वसो.. (४)
हे अ भलाषापूरक इं ! तु हारी अ भलाषा करने वाले हम लोग तु हारी अ धक तु त करते ह. हे नवासदाता इं ! हमारी तु त को तुम शी जानो. (४) मा नो नदे च व वेऽय र धीररा णे. वे अ प
तुमम.. (५)
हे वामी इं ! तुम हम कठोर वचन बोलने वाले, नदा करने वाले एवं द नहीन के वश म मत करना. मेरा तो तु ह ा त हो. (५) वं वमा स स थः पुरोयोध वृ हन्. वया
त ुवे युजा.. (६)
हे वृ हंता इं ! तुम कवच के समान हमारे र क, सब जगह स करने वाले हो. म तु हारी सहायता से श ु का नाश क ं गा. (६) महाँ उता स य य तेऽनु वधावरी सहः. म नाते इ हे इं ! तुम महान् हो. तु हारे बल को अ यु
व हमारे आगे यु
रोदसी.. (७) ावा-पृ थवी वीकार करते ह. (७)
तं वा म वती प र भुव ाणी सयावरी. न माणा सह ु भः.. (८) हे इं ! तु हारे साथ चलने वाले तेज के कारण से यु तु त तु ह ा त हो. (८) ऊ वास वा व दवो भुव द ममुप
ा त होती ई एवं तोता
के वचन
व. सं ते नम त कृ यः.. (९)
हे वग के समीप एवं दशनीय इं ! हमारे सोम तु हारे उ े य से पूण ह एवं जाएं तु ह णाम करती ह. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वो महे म हवृधे भर वं चेतसे सुम त कृणु वम्. वशः पूव ः चरा चष ण ाः.. (१०) हे महान् धन को बढ़ाने वाले पु षो! तुम महान् इं के उ े य से सोम तैयार करो एवं उ म ान वाले इं के त शोभन तु त बोलो. हे जा क अ भलाषा पूण करने वाले इं ! जो लोग तु ह ह से पूण करते ह, तुम उनके सामने जाओ. (१०) उ चसे म हने सुवृ म ाय जनय त व ाः. त य ता न न मन त धीराः.. (११) बु मान् लोग महान् ा त वाले एवं महान् इं को ल य करके तु तय एवं ह नमाण करते ह. धीर पु ष इं संबंधी त को न नह करते ह. (११)
का
इ ं वाणीरनु म युमेव स ा राजानं द धरे सह यै. हय ाय बहया समापीन्.. (१२) हे तोता! सब कार से व के वामी एवं बाधाहीन ोध वाले इं क तु तयां श ु को परा जत करने के लए क जाती ह. तुम इं क तु त के लए बंधु को े रत करो. (१२)
सू —३२
दे वता—इं
मो षु वा वाघत नारे अ म रीरमन्. आरा ा चत् सधमादं न आ गहीह वा स ुप ु ध.. (१) हे इं ! हमसे रवत यजमान तु ह पाकर स न ह . इस लए तुम र से भी हमारे य म आओ एवं हमारी तु त सुनो. (१) इमे ह ते कृतः सुते सचा मधौ न म आसते. इ े कामं ज रतारो वसूयवो रथे न पादमा दधुः.. (२) हे इं ! तु हारे न म नचोड़े गए सोमरस के चार ओर ये तोता इस कार बैठते ह, जैसे शहद पर मधुम खयां बैठती ह. धनकामी तोता इं को अपनी तु त इस कार सम पत करते ह, जस कार लोग रथ पर पैर रखते ह. (२) राय कामो व ह तं सुद णं पु ो न पतरं वे.. (३) धन का अ भलाषी म व धारी एवं शोभनदान वाले इं को इस कार बुलाता ,ं जस कार पता को पु बुलाता है. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इम इ ाय सु वरे सोमासो द या शरः. ताँ आ मदाय व ह त पीतये ह र यां या ोक आ.. (४) दही मला आ यह सोमरस इं के लए ही नचोड़ा गया है. हे व ह त इं ! इस सोम को आनंद हेतु पीने के लए अपने घोड़ ारा य शाला क ओर आओ. (४) व छ कण ईयते वसूनां नू च ो म धषद् गरः. स ः सह ा ण शता दद क द स तमा मनत्.. (५) इं के कान याचना सुनने वाले ह. उनसे हम धन मांगते ह. वे इ ह सुनकर न फल न कर. जो इं याचना के बाद ही हजार एवं सैकड़ दान दे ते ह, उन दे ने के इ छु क इं को कोई न रोके. (५) स वीरो अ त कुत इ े ण शूशुवे नृ भः. य ते गभीरा सवना न वृ ह सुनो या च धाव त.. (६) हे वृ हंता इं ! जो तु हारे लए गहरा सोम नचोड़ता है एवं तु हारे पीछे चलता है, वह वीर है. वह वरोधर हत एवं सेवक ारा से वत रहता है. (६) भवा व थं मघव मघोनां य समजा स शधतः. व वाहत य वेदनं भजेम ा णाशो भरा गयम्.. (७) हे धन वामी इं ! तुम ह दे ने वाल के उप व रोकने वाले कवच बनो एवं उनके उ साही श ु को न करो. हम तु हारे ारा वन श ु का धन ा त कर, हम ऐसा घर दो जो मु कल से न हो सके. (७) सुनोता सोमपा ने सोम म ाय व णे. पचता प रवसे कृणु व म पृण पृणते मयः.. (८) हे सेवको! तुम सोम पीने वाले एवं व धारी इं के लए सोम नचोड़ो, इं को तृ त करने के लए पुरोडाश पकाओ एवं इं के य क कम करो. इं यजमान को सुख दे ते ए ह को पूरा करते ह. (८) मा ेधत सो मनो द ता महे कृणु वं राय आतुजे. तर ण र जय त े त पु य त न दे वासः कव नवे.. (९) हे सेवको! तुम सोम वाले य को न मत करो, उ साही बनो एवं महान् श ुनाशक इं से धन पाने के लए य कम करो. शी काम करने वाला जीतता है, घर म नवास करता है एवं पु होता है. दे व बुरा काम करने वाले का साथ नह दे ते. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न कः सुदासो रथं पयास न रीरमत्. इ ो य या वता य य म तो गम स गोम त जे.. (१०) शोभनदान वाले का रथ न कोई र फक सकता है एवं न उसे कोई अपने वाथ के लए पकड़ सकता है. इं एवं म द्गण जसके र क ह, वह गाय वाली गोशाला म जाएगा. (१०) गम ाजं वाजय म य य य वम वता भुवः. अ माकं बो य वता रथानाम माकं शूर नृणाम्.. (११) हे इं ! तुम जस मनु य के र क बनोगे, वह तु तय ारा तु ह श शाली बनाता आ अ ा त करेगा. हे शूर इं ! तुम हमारे रथ एवं पु ा द के र क बनो. (११) उ द व य र यतऽशो धनं न ज युषः. य इ ो ह रवा दभ त तं रपो द ं दधा त सो म न.. (१२) वजयी के धन के समान इं का भाग सभी दे व से अ धक है. ह र नामक अ के वामी इं जस यजमान को श शाली बनाते ह, उसे श ु नह मार सकते. (१२) म मखव सु धतं सुपेशसं दधात य ये वा. पूव न सतय तर त तं य इ े कमणा भुवत्.. (१३) हे मनु यो! अ धक, वधानयु एवं सुंदर मं को य पा दे व म इं को ही अ पत करो. जो अपने कम से इं का मन आक षत कर लेता है, उसे अनेक पाश नह बांधते. (१३) क त म वावसुमा म य दधष त. ा इ े मघव पाय द व वाजी वाजं सषास त.. (१४) हे इं ! जो इं ! जो तु हारे त
तु हारे मन म रहता है, उसे कौन आदमी दबा सकता है? हे धन वामी ालु होकर ह व दे ता है, वह वग एवं भ व य म अ पाता है. (१४)
मघोनः म वृ ह येषु चोदय ये दद त या वसु. तव णीती हय सू र भ व ा तरेम रता.. (१५) हे धनवान् इं ! जो तु ह य धन दे ते ह, उ ह तुम यु म उ सा हत करो. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हम तु हारी कृपा से अपने तोता स हत पाप से पार हो जाव. (१५) तवे द ावमं वसु वं पु य स म यमम्. स ा व य परम य राज स न क ् वा गोषु वृ वते.. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! यह अधम धन तु हारा है. तुम म यम धन के वामी हो. तुम सम त उ म धन के राजा हो. यह बात स य है क गो संबंधी दान दे ने से तु ह कोई रोक नह सकता. (१६) वं व य धनदा अ स ुतो य भव याजयः. तवायं व ः पु त पा थवोऽव युनाम भ ते.. (१७) हे इं ! तुम व को धन दे ने वाले हो. होने वाले यु म भी तुम धनद के प म स हो. हे ब त ारा बुलाए गए इं ! र ा के न म सभी लोग तुमसे धन मांगते ह. (१७) य द यावत वमेतावदहमीशीय. तोतार म धषेय रदावसो न पाप वाय रासीय.. (१८) हे इं ! जतने धन के तुम ई र हो, उतने के ही हम भी वामी बन. हे धन दे ने वाले इं ! म धन से तोता क र ा क ं गा एवं पाप के लए धन नह ं गा. (१८) श य े म महयते दवे दवे राय आ कुह च दे . न ह वद य मघव आ यं व यो अ त पता चन.. (१९) हे इं ! तु हारा पूजक पु ष कह हो, म उसे त दन दान ं गा. हे धनी इं ! तु हारे अ त र हमारा कोई भी जातीय एवं पता नह है. (१९) तर ण र सषास त वाजं पुर या युजा. आ व इ ं पु तं नमे गरा ने म त ेव सु वम्.. (२०) शी कम करने वाला महान् कम के सहारे अ का भोग करता है. जैसे बढ़ई उ म लकड़ी क बनी प हए क ने म को झुकाता है, उसी कार म ब त ारा बुलाए ए इं को तु त ारा झुकाऊंगा. (२०) न ु ती म य व दते वसु न ध े तं र यनशत्. सुश र मघव तु यं मावते दे णं य पाय द व. (२१) बुरी तु तयां करने वाला मनु य धन ा त नह करता. धन हसक के पास भी नह जाता. हे धन वामी इं ! वग एवं भ व य म मुझ जैसे को जो दे ने यो य है, उसे उ मकम वाला ही पा सकता है. (२१) अ भ वा शूर नोनुमोऽ धाइव धेनवः. ईशानम य जगतः व शमीशान म त थुषः.. (२२) हे शूर इं ! हम बना ही गाय के समान चमस म सोम भरकर तु हारी तु त करते ह. तुम जंगम ा णय एवं थर पदाथ के वामी एवं सबको दे खने वाले हो. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न वावाँ अ यो द ो न पा थवो न जातो न ज न यते. अ ाय तो मघव वा जनो ग त वा हवामहे.. (२३) हे धन वामी इं ! तु हारे समान वग अथवा धरती म न कोई उ प ज म लेगा. हम घोड़ा, अ एवं गो चाहते ए तु ह बुलाते ह. (२३)
आ है और न
अभी षत तदा भरे यायः कनीयसः. पु वसु ह मघव सनाद स भरेभरे च इ ः.. (२४) हे ये इं ! मुझ क न को वह धन दो. तुम चरकाल से अ धक धन वाले हो एवं येक य म बुलाए जाते हो. (२४) परा णुद व मघव म ा सुवेदा नो वसू कृ ध. अ माकं बो य वता महाधने भवा वृधः सखीनाम्.. (२५) हे धन वामी इं ! श ु को हमसे पराङ् मुख करो एवं हमारे लए धन को सुलभ बनाओ. तुम हमारे र क बनो एवं हम म के महान् धन के बढ़ाने वाले बनो. (२५) इ तुं न आ भर पता पु े यो यथा. श ा णो अ म पु त याम न जीवा यो तरशीम ह.. (२६) हे इं ! हमारे लए ान लाओ. जैसे पता पु को दे ता है, वैसे ही तुम हम धन दो. हे ब त ारा बुलाए गए इं ! हम य जीवी त दन सूय को ा त कर. (२६) मा नो अ ाता वृजना रा यो३ मा शवासो अव मुः. वया वयं वतः श तीरपोऽ त शूर तराम स.. (२७) हे इं ! अ ात हसक एवं श ु लोग हम पर आ मण न कर. हे शूर इं ! हम न होकर तु हारे साथ ब त से काय म सफलता ा त कर. (२७)
सू —३३
दे वता—व स एवं उनके पु
य चो मा द णत कपदा धयं ज वासो अ भ ह म ः. उ वोचे प र ब हषो नॄ मे राद वतवे व स ाः.. (१) गोरे रंग वाले, य कम पूण करने वाले एवं शर के द ण भाग म चोट रखने वाले व स पु मुझे स करते ह. म य से उठता आ उनसे कहता ं क हे व स पु ो! मुझसे र मत जाओ. (१) रा द मनय ा सुतेन तरो वैश तम त पा तमु म्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पाश ु न य वायत य सोमा सुता द ोऽवृणीता व स ान्.. (२) व स पु वयत्सुत पाश ु न का र से तर कार करके चमस म भरे सोमरस को पीते ए इं को ले आए थे. इं ने भी उसे छोड़कर सोमरस नचोड़ने वाले व स पु को वीकार कया था. (२) एवे ु कं स धुमे भ ततारेवे ु कं भेदमे भजघान. एवे ु कं दाशरा े सुदासं ाव द ो णा वो व स ाः.. (३) इसी कार व स पु ने सुखपूवक सधु नद को पार कया था. इसी कार इ ह ने भेद नामक श ु को मारा. हे व स पु ो! इसी कार दाशरा यु म तु हारे मं क श से इं ने सुदास राजा क र ा क थी. (३) जु ी नरो णा वः पतृणाम म यं न कला रषाथ. य छ वरीषु बृहता रवेणे े शु ममदधाता व स ाः.. (४) हे नेताओ! तु हारे तो से पतर स होते ह. म अपने आ म को जाने के लए रथ का प हया चला रहा ं. तुम ीण मत होना. हे व स पु ो! तुमने श वरी नामक ऋचा ारा एवं े श द से इं का बल पाया है. (४) उद् ा मवे ृ णजो ना थतासोऽद धयुदाशरा े वृतासः. व स य तुवत इ ो अ ो ं तृ सु यो अकृणो लोकम्.. (५) यासे एवं राजा से घरे ए व स पु ने वषा क याचना करते ए दाशरा यु म इं को सूय के समान ऊपर उठाया था. व स क तु तयां इं ने सुनी थ एवं तृ सु राजा को व तृत रा य दया था. (५) द डाइवेदगो ् अजनास आस प र छ ा भरता अभकासः. अभव च पुरएता व स आ द ृ सूनां वशो अ थ त.. (६) जस कार गाय को हांकने वाले डंडे सं या म कम एवं सी मत आकार के होते ह, उसी कार श ु से घरे ए भरतवंशी अ पसं यक थे. इसके बाद व स ऋ ष भरतवं शय के पुरो हत बने एवं तृ सु राजा क जा बढ़ने लगी. (६) यः कृ व त भुवनेषु रेत त ः जा आया यो तर ाः. यो घमास उषसं सच ते सवा इ ाँ अनु व व स ाः.. (७) अ न, वायु और सूय—तीन लोक म जल उ प करते ह. ये तीन े जा एवं अ तशय द तमान ह. ये तीन द तशाली उषा का वरण करते ह. व स के पु इ ह जानते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूय येव व थो यो तरेषां समु येव म हमा गभीरः. वात येव जवो ना येन तोमो व स ा अ वेतवे वः.. (८) हे व स पु ो! तु हारी म हमा सूय के समान का शत एवं सागर के समान गंभीर है. वायुवेग के समान तु हारी म हमा का भी सरा कोई अनुमान नह कर सकता. (८) त इ यं दय य केतैः सह व शम भ सं चर त. यमेन ततं प र ध वय तोऽ सरस उप से व स ाः.. (९) वे व स पु अपने दय के ान ारा अंत हत होकर हजार शाखा घूमते ह. वे यम ारा व ता रत व को बुनते ए अ सरा के पास गए. (९)
वाले संसार म
व त ु ो यो तः प र स हानं म ाव णा यदप यतां वा. त े ज मोतैकं व स ाग यो य वा वश आजभार.. (१०) हे व स ! तु ह बजली के समान यो त प आ मा का याग करते ए म व व ण ने दे खा था. वह तु हारा एक ज म था. इससे पहले अग य तु ह तु हारे वास थान से लाए थे. (१०) उता स मै ाव णो व स ोव या मनसोऽ ध जातः. सं क ं णा दै ेन व े दे वाः पु करे वादद त.. (११) हे व स ! तुम म व व ण के पु हो. हे न्! तुम उवशी के मन से उ प ए हो. उवशी को दे खकर म व अ ण का वीय ख लत आ था. उस समय सभी दे व ने द तो बोलते ए तु ह पु कर म धारण कया था. (११) स केत उभय य त ा सह दान उत वा सदानः. यमेन ततं प र ध व य य सरसः प र ज े व स ः.. (१२) उ म ान वाले व स वग एवं धरती दोन को जानकर हजार दान करने वाले अथवा सव व दान करने वाले ए थे. यम के ारा व तृत व को बुनने क अ भलाषा से व स अ सरा से उ प ए थे. (१२) स े ह जाता व षता नमो भः कु भे रेतः स षचतुः समानम्. ततो ह मान उ दयाय म या तो जातमृ षमा व स म्.. (१३) य म द त म और व ण ने सरे लोगो क तु तयां एवं ाथनाएं मान कर अपना वीय एक साथ घड़े म ख लत कया था. उस घड़े से अग य उ प ए. लोग व स ऋ ष को भी उसी घड़े से उ प बताते ह. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ थभृतं सामभृतं बभ त ावाणं ब वदा य े. उपैनमा वं सुमन यमाना आ वो ग छा त तृदो व स ः.. (१४) हे तृ सुओ! व स तु हारे पास आ रहे ह. तुम स चत होकर उनक पूजा करना. व स सबसे आगे रहकर मं समूह एवं सोम को धारण करते ह. प थर ारा सोम कूटने वाले अ वयु को धारण करते ह एवं क बताते ह. (१४)
दे वता— व ेदेव
सू —३४
शु ै तु दे वी मनीषा अ म सुत ो रथो न वाजी.. (१) द त व सब अ भलाषा को दे ने वाली तु त वेगशाली एवं सुसं कृत रथ के समान हमारे पास से दे व के पास जावे. (१) व ः पृ थ ा दवो ज न ं शृ व यापो अध र तीः.. (२) बहने वाला जल वग और धरती दोन क उ प
जानता है एवं तु तयां सुनता है. (२)
आप द मै प व त पृ वीवृ ेषु शूरा मंस त उ ाः.. (३) व तृत जल इन इं को तृ त करते ह. श ुबाधा होने पर उ एवं शूर लोग इं क तु त करते ह. (३) आ धू व मै दधाता ा न ो न व ी हर यबा ः.. (४) इं के आगमन के लए घोड़ को रथ के आगे जोड़ो. इं व धारी एवं सोने के हाथ वाले ह. (४) अभ
थाताहेव य ं यातेव प म मना हनोत.. (५)
हे मनु यो! य के सामने जाओ एवं या ी के समान य माग पर वयं ही चलो. (५) मना सम सु हनोत य ं दधात केतुं जनाय वीरम्.. (६) हे सेवको! यु म अपने आप जाओ. लोग को ान कराने वाले एवं पापनाशक य को धारण करो. (६) उद य शु मा ानुनात बभ त भरं पृ थवी न भूम.. (७) इस य के बल के कारण ही सूय उ दत होता है. धरती जस कार ा णय का भार वहन करती है, उसी कार य भी करता है. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या म दे वाँ अयातुर ने साध ृतेन धयं दधा म.. (८) हे अ न! म अ हसा द नयम से यु य ारा अपनी अ भलाषाएं पूण करता आ दे व को बुलाता ं एवं उनके न म य कम करता ं. (८) अ भ वो दे व धयं द ध वं
वो दे व ा वाचं कृणु वम्.. (९)
हे मनु यो! तुम भी दे व को ल य करके उ तु तवचन बोलो. (९)
वल कम करो एवं दे व से संबं धत
आ च आसां पाथो नद नां व ण उ ः सह च ाः.. (१०) उ एवं हजार आंख वाले व ण इन न दय का जल दे खते ह. (१०) राजा रा ानां पेशो नद नामनु म मै व ण रा के राजा एवं न दय को जाने वाला है. (११)
ं व ायु.. (११) प दे ने वाले ह. इनका बल बाधार हत एवं सव
अ व ो अ मा व ासु व व ुं कृणोत शंसं न न सोः .. (१२) हे दे वो! सम त जा तेजहीन बनाओ. (१२) ेतु द ुद ्
म हमारी र ा करो एवं हमारी नदा के इ छु क
को
षामशेवा युयोत व व प तनूताम्.. (१३)
श ु के असुखकारी आयुध सब ओर हट जाव. हे दे वो! शरीर का पाप हमसे र करो. (१३) अवी ो अ नह ा मो भः े ो अ मा अधा य तोमः.. (१४) ह भ ण करने वाले अ न हमारे नम कार से अ धक स होकर हमारी र ा कर. हम अ न क तु तयां करते ह. (१४) सजूदवे भरपां नपातं सखायं कृ वं शवो नो अ तु.. (१५) हे तोताओ! जल के पु अ न को दे व के साथ अपना म बनाओ. वे हमारे लए क याणकारी ह . (१५) अ जामु थैर ह गृणीषे बु ने नद नां रजःसु षीदन्.. (१६) जल से उ प , न दय के जल म थत और जल के पु अ न क तु त मं जाती है. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा क
मा नोऽहबु यो रषे धा मा य ो अ य (१७)
अ न हम हसक के हाथ म न स पे. य क कामना करने वाले का य उत न एषु नृषु वो धुः
(१८)
ध तायोः.. (१७) ीण न हो.
राये य तु शध तो अयः.. (१८)
दे वगण हमारे मनु य के लए अ धारण कर एवं धन के लए उ सा हत श ु मर जाव. तप त श ुं व१ण भूमा महासेनासो अमे भरेषाम्.. (१९)
जैसे सूय धरती को त त करता है, उसी कार वशाल सेना वाले राजा दे व के बल से अपने श ु को बाधा प ंचाते ह. (१९) आ य ः प नीगम य छा व ा सुपा णदधातु वीरान्.. (२०) जब दे वप नयां हमारे सामने आती ह, तब शोभनहाथ वाले व ा हम पु द. (२०) त नः तोमं व ा जुषेत याद मे अरम तवसूयुः.. (२१) (२१)
व ा हमारे तो
को वीकार कर. पया त बु
वाले व ा हम धन दे ने के इ छु क ह .
ता नो रास ा तषाचो वसू या रोदसी व णानी शृणोतु. व ी भः सुशरणो नो अ तु व ा सुद ो व दधातु रायः.. (२२) दान दे ने म कुशल दे वप नयां हम धन द. ावा-पृ थवी और व णप नी हमारा तो सुन. क याण दे ने वाले व ा उप व का नवारण करने वाली दे वप नय के साथ हमारे लए शरण बन एवं हम धन द. (२२) त ो रायः पवता त आप त ा तषाच ओषधी त ौः. वन प त भः पृ थवी सजोषा उभे रोदसी प र पासतो नः.. (२३) पवत समूह, सम त जल, दानकुशल दे वप नयां, ओष धयां एवं वग हमारे उस धन का पालन कर. ावा-पृ थवी हमारी र ा कर. (२३) अनु त व रोदसी जहातामनु ु ो व ण इ सखा. अनु व े म तो ये सहासो रायः याम ध णं धय यै.. (२४) हम धारण करने यो य धन के पा ह . व तृत ावा-पृ थवी द त के नवास इं , इं के म व ण एवं श ु का पराभव करने वाले म द्गण हमारा अनुगमन कर. (२४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त इ ो व णो म ो अ नराप ओषधीव ननो जुष त. शम याम म तामुप थे यूयं पात व त भः सदा नः.. (२५) इं , व ण, म , अ न, जल, ओष धयां एवं वृ हमारे इस तो को सुन. म त के समीप रहकर हम सुखी रहगे. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (२५)
सू —३५
दे वता— व ेदेव
शं न इ ा नी भवतामवो भः शं न इ ाव णा रातह ा. श म ासोमा सु वताय शं योः शं न इ ापूषणा वाजसातौ.. (१) इं एवं अ न अपने र ासाधन ारा हमारे लए शां तकारक ह . यजमान ारा ह ा त करने वाले इं एवं व ण हमारे लए शां तदाता ह . इं एवं सोम हमारे लए शां त तथा सुख के कारण बन. इं तथा पूषा हम यु म शां तकारक ह . (१) शं नो भगः शमु नः शंसो अ तु शं नः पुर धः शमु स तु रायः. शं नः स य य सुयम य शंसः शं नो अयमा पु जातो अ तु.. (२) भग एवं नराशंस हमारे लए शां त दे ने वाले ह . पुरं एवं सम त संप यां हम शां त द. शोभन यम से यु स य का वचन हम शां तदाता हो. अनेक बार उ प अयमा हमारे लए शां त द. (२) शं नो धाता शमु धता नो अ तु शं न उ ची भवतु वधा भः. शं रोदसी बृहती शं नो अ ः शं नो दे वानां सुहवा न स तु.. (३) धाता दे व एवं धता व ण हम शां त द. अ के साथ धरती हम शां त दे . वशाल ावापृ थवी हम शां त द. दे व क उ म तु तयां हम शां त द. (३) शं नो अ न य तरनीको अ तु शं नो म ाव णाव ना शम्. शं नः सुकृतां सुकृता न स तु शं न इ षरो अ भ वातु वातः.. (४) यो त पी मुख वाले अ न हम शां त द. म , व ण एवं अ नीकुमार हम शां त द. उ म कम करने वाले के उ म कम हम शां त द. चलने वाली हवा हम शां त दे . (४) शं नो ावापृ थवी पूव तौ शम त र ं शये नो अ तु. शं न ओषधीव ननो भव तु शं नो रजस प तर तु ज णुः.. (५) ावा-पृ थवी पहली बार पुकारने पर ही हम शां त द. अंत र हमारे दे खने के लए शां तदाता हो. ओष धयां तथा वृ हम शां त द. लोक के प त इं हम शां त द. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शं न इ ो वसु भदवो अ तु शमा द ये भव णः सुशंसः. शं नो ो े भजलाषः शं न व ा ना भ रह शृणोतु.. (६) वसु के साथ इं दे व हम शां त द. शोभन तु त वाले व ण आ द य के साथ हम शां त द. ःखनाशक के साथ हम शां त द. इस य म व ादे व प नय के साथ हम शां त द एवं हमारी तु तयां सुन. (६) शं नः सोमो भवतु शं नः शं नो ावाणः शमु स तु य ाः. शं नः व णां मतयो भव तु शं नः व१: श व तु वे दः.. (७) सोम एवं तु तसमूह हम शां त द. सोम कूटने के साधन प थर एवं य हम शां त द. यूप के नाम हम शां त द. ओष धयां एवं य दे वी हमारे लए शां तकारक ह . (७) शं नः सूय उ च ा उदे तु शं न त ः दशो भव तु. शं नः पवता ुवयो भव तु शं नः स धवः शमु स वापः.. (८) व तृत तेज वाला सूय हमारी शां त के लए उ दत हो. चार महा दशाएं हमारी शां त के लए ह . ढ़ पवत हम शां त द. न दयां एवं जल हम शां त द. (८) शं नो अ द तभवतु ते भः शं नो भव तु म तः वकाः. शं नो व णुः शमु पूषा नो अ तु शं नो भ व ं श व तु वायुः.. (९) य कम के साथ अ द त हम शां त द. शोभन तु त वाले म द्गण हमारे लए शां तकारक ह . व णु एवं पूषा हमारे लए शां त द. अंत र एवं वायु हमारे लए शां त द. (९) शं नो दे वः स वता ायमाणः शं नो भव तूषसो वभातीः. शं नः पज यो भवतु जा यः शं नः े य प तर तु श भुः.. (१०) र ा करते ए स वता दे व हम शां त द. अंधकार का नाश करती ई उषाएं हम शां त द. बादल हमारी जा के लए शां तकारक ह . सुख दे ने वाले े प त हम शां त द. (१०) शं नो दे वा व दे वा भव तु शं सर वती सह धी भर तु. शम भषाचः शमु रा तषाचः शं नो द ाः पा थवाः शं नो अ याः.. (११) द तयु व ेदेव हम शां त द. सर वती य कम के साथ हम शां त द. य एवं दान करने वाले हम शां त द. वग, पृ थवी एवं अंत र हम शां त द. (११) शं नः स य य पतयो भव तु शं नो अव तः शमु स तु गावः. शं न ऋभवः सुकृतः सुह ताः शं नो भव तु पतरो हवेषु.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स यपालक दे व हमारे लए शां त के कारण ह . घोड़े एवं गाएं हम शां त द. शोभनकम एवं हाथ वाले ऋभु हम शां त द. तु तयां बोली जाने पर पतर हम शां त द. (१२) शं नो अज एकपा े वो अ तु शं नोऽ हबु य१: शं समु ः. शं नो अपां नपा पे र तु शं नः पृ भवतु दे वगोपा.. (१३) अजएकपाद दे व हम शां त द. अ हबु य एवं समु हम शां त द. उप व से पार प ंचाने वाले अपांनपात् हम शां त द. दे व ारा र त पृ हम शां त द. (१३) आ द या ा वसवो जुष तेदं यमाणं नवीयः. शृ व तु नो द ाः पा थवासो गोजाता उत ये य यासः.. (१४) आदय, एवं वसु उ प , धरती पर उ प एवं पृ
का समूह हमारे इस नए बनाए ए तो को सुने. वग म से उ प य पा अ य दे व भी इसे सुन. (१४)
ये दे वानां य या य यानां मनोयज ा अमृता ऋत ाः. ते नो रास तामु गायम यूयं पात व त भः सदा नः.. (१५) जो दे व य पा दे व के भी य पा एवं मनु के यजनीय ह, जो मरणर हत एवं स य जानने वाले ह, वे आज हम वशाल क त वाला पु द एवं क याणसाधन से सदा हमारी र ा कर. (१५)
सू —३६
दे वता— व ेदेव
ै ु सदना त य व र म भः ससृजे सूय गाः. त व सानुना पृ थवी स उव पृथु तीकम येधे अ नः.. (१) हमारा तो य शाला से सूय आ द दे व के पास भली कार जाव. सूय ने अपनी करण से वषा का जल बनाया है. पृ थवी अपने पवत क चो टय ारा व तृत प म फैली है. धरती के व तृत अंग के ऊपर अ न व लत होते ह. (१) इमां वां म ाव णा सुवृ मषं न कृ वे असुरा नवीयः. इनो वाम यः पदवीरद धो जनं च म ो य त त ुवाणः.. (२) हे श शाली म एवं व ण! म ह प अ के समान नवीन तु त तु ह सुनाता ं. तुम म एक व ण सबके वामी, श ु ारा अपरा जत एवं धमाधम के नणायक ह एवं सरे म हमारी तु त सुनकर ा णय को अपने काम म लगाते ह. (२) आ वात य जतो र त इ या अपीपय त धेनवो न सूदाः. महो दवः सदने जायमानोऽ च दद् वृषभः स म ूधन्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वायु क ग तयां सब ओर शोभा पाती ह. ध दे ने वाली गाय क वृ होती है. महान् एवं सूय के थान अंत र म उ प वषाकारक मेघ अंत र म गरजता है. (३) गरा य एता युनज री त इ या सुरथा शूर धायू. यो म युं र र तो मना या सु तुमयमणं ववृ याम्.. (४) हे शूर इं ! जो तु हारे यारे, शोभनग त एवं भारवाहक ह र नामक घोड़ को तु त करता आ रथ म जोड़ता है, तुम उसके य म आओ. म उन शोभनकम वाले अयमा को तु त के ारा बुलाता ,ं जो हसा करने वाले मेरे श ु का ोध न करते ह. (४) यज ते अ य स यं वय नम वनः व ऋत य धामन्. व पृ ो बाबधे नृ भः तवान इदं नमो ाय े म्.. (५) अ वाले यजमान अपने य म थत रहकर कम करते ए क म ता चाहते ह. नेता को तु त सुनकर अ दे ते ह. म को नम कार करता ं. (५) आ य साकं यशसो वावशानाः सर वती स तथी स धुमाता. याः सु वय त सु घाः सुधारा अ भ वेन पयसा पी यानाः.. (६) जन न दय म सधु जल क माता है, सर वती जन म सातव ह, वे अ भलाषा पूण करने म समथ एवं शोभनधारा वाली स रताएं वा हत होती ह. अपने जल से भरी ई अ वाली एवं कामना करती ई न दयां एक साथ आव. (६) उत ये नो म तो म दसाना धयं तोकं च वा जनोऽव तु. मा नः प र यद रा चर यवीवृध यु यं ते रयं नः.. (७) स एवं वेगशाली म द्गण हमारे य और पु क र ा कर. ा त एवं संचरण करने वाली वा दे वी सर वती हमारे अ त र कसी को न दे ख. ये दोन मलकर हमारे धन को बढ़ाव. (७) वो महीमरम त कृणु वं पूषणं वद यं१ न वीरम्. भगं धयोऽ वतारं नो अ याः सातौ वाजं रा तषाचं पुर धम्.. (८) हे तोताओ! तुम सोमर हत एवं व तृत धरती को बुलाओ. य के यो य एवं वीर पूषा को बुलाओ. तुम इस य म हमारे कम के र क भग एवं दानकुशल व ाचीन बाज को बुलाओ. (८) अ छायं वो म तः ोक ए व छा व णुं न ष पामवो भः. उत जायै गृणते वयो धुयूयं पात व त भः सदा नः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म तो! हमारी ये तु तयां तु हारे सामने जाव. ये हमारे र क एवं गभपालक व णु के पास जाव. वे तोता को संतान एवं अ द. तुम अपने क याणसाधन से हमारी सदा र ा करो. (९)
सू —३७
दे वता— व ेदेव
आ वो वा ह ो वहतु तव यै रथो वाजा ऋभु णो अमृ ः. अ भ पृ ैः सवनेषु सोमैमदे सु श ा मह भः पृण वम्.. (१) हे व तीण तेज के आधार प ऋभुओ! ढोने म अ धक समथ, शंसा के यो य एवं अबा धत रथ तु ह वहन करे. हे सुंदर ठोड़ी वाले ऋभुओ! तुम हमारे य म आनंद के लए ध, दही एवं स ू से मला महान् सोम पीकर अपना पेट भरो. (१) यूयं ह र नं मघव सु ध थ व श ऋभु णो अमृ म्. सं य ेषु वधाव तः पब वं व नो राधां स म त भदय वम्.. (२) श
हे वगदश ऋभुओ! हम ह प अ वाल को नाशर हत र न दो. इसके प ात् तुम शाली बनकर सोमपान करो. तुम अपनी कृपा से हम धन दो. (२) उवो चथ ह मघव दे णं महो अभ य वसुनो वभागे. उभा ते पूणा वसुना गभ ती न सूनृता न यमते वस ा.. (३)
हे धनवान् इं ! तुम महान् एवं अ प धन के वभाग के समय धन का सेवन करते हो. तु हारे दोन हाथ धन से पूण ह. तु हारी वाणी भुजा को नह रोकती. (३) व म वयशा ऋभु ा वाजो न साधुर तमे यृ वा. वयं नु ते दा ांसः याम कृ व तो ह रवो व स ाः.. (४) हे असाधारण यश वी, ऋभु के वामी एवं य साधक इं ! तुम अ के समान तोता के घर जाओ. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हम व स पु तु ह ह दे ते ए तु हारी तु त कर. (४) स नता स वतो दाशुषे च ा भ ववेषो हय धी भः. वव मा नु ते यु या भ ती कदा न इ राय आ दश येः.. (५) हे ह र नामक घोड़ के वामी एवं हमारी तु तय से ा त इं ! तुम ह दाता यजमान को पया त धन दे ते हो. हे इं ! तुम हम धन कब दोगे? आज हम तु हारे यो य र ण से यु ह . (५) वासयसीव वेधस वं नः कदा न इ वचसो बुबोधः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ तं ता या धया र य सुवीरं पृ ो नो अवा युहीत वाजी.. (६) हे इं ! तुम हमारी तु तय को कब समझोगे? हम तोता को तुम इसी समय अपने थान म आ य दो. तु हारा श शाली घोड़ा हमारी तु त के कारण संतानस हत अ हमारे घर लावे. (६) अ भ यं दे वी नऋ त द शे न त इ ं शरदः सुपृ ः. उप ब धुजरद मे य ववेशं यं कृणव त मताः.. (७) दे वी नऋ त वामी बनाने के लए इं को ा त करती है. शोभन अ वाले वष इं को ा त करते ह. मरणशील तोता इं को अपने घर म बैठाता है. तीन लोक को धारण करने वाले इं अ को पचाने वाला बल दे ते ह. (७) आ नो राधां स स वतः तव या आ रायो य तु पवत य रातौ. सदा नो द ः पायुः सष ु यूयं पात व त भः सदा नः.. (८) हे स वता! तु तयो य धन तु हारे पास से हमारे समीप आवे. मेघ ारा धन दे ने पर धन हम ा त हो. द एवं र क इं हमारी सदा र ा कर. तुम क याणसाधन ारा सदा हमारी र ा करो. (८)
सू —३८
दे वता—स वता
उ य दे वः स वता ययाम हर ययीमम त याम श ेत्. नूनं भगो ह ो मानुषे भ व यो र ना पु वसुदधा त.. (१) स वता जस वणमय प का आ य लेते ह, उसीको उ प करते ह। सूय न य ही मनु य ारा तु तयो य ह. व वध संप य वाले स वता तोता को रमणीय धन दे ते ह. (१) उ
त स वतः ु य१ य हर यपाणे भृतावृत य. ु व पृ वीमम त सृजान आ नृ यो मतभोजनं सुवानः.. (२) १
हे स वता! तुम उदय करो. हे सोने के हाथ वाले स वता! तुम हमारी अ भलाषा पूण करने के लए हमारा तो सुनो. तुम व तृत एवं असी मत भा उ प करते हो एवं तोता को मानवभोग यो य धन दे ते हो. (२) अ प ु तः स वता दे वो अ तु यमा च े वसवो गृण त. स नः तोमा म य१ नो धा े भः पातु पायु भ न सूरीन्.. (३) हम स वता दे व क तु त कर. सब दे व जनक तु त करते ह, वे ही नम कारयो य ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स वता हमारे तो कर. (३)
एवं अ
को धारण कर तथा सम त र ासाधन
ारा तोता
क र ा
अ भ यं दे द तगृणा त सवं दे व य स वतुजुषाणा. अ भ स ाजो व णो गृण य भ म ासो अयमा सजोषाः.. (४) स वता दे व क आ ा का पालन करती ई अ द त दे वी उनक तु त करती ह. भली कार सुशो भत व ण आ द उनक तु त करते ह. म एवं अयमा समान ेम ारा उनक तु त करते ह. (४) अ भ ये मथो वनुषः सप ते रा त दवो रा तषाचः पृ थ ाः. अ हबु य उत नः शृणोतु व येकधेनु भ न पातु.. (५) दान करने वाले एवं सेवा नपुण यजमान पर पर संगत होकर वग एवं धरती के म स वता क सेवा करते ह. अ हबु य हमारा तो सुन. सर वती मुख धेनु ारा हमारा भली-भां त पालन कर. (५) अनु त ो जा प तमसी र नं दे व य स वतु रयानः. भगमु ोऽवसे जोहवी त भगमनु ो अध या त र नम्.. (६) जापालक स वता दे व हमारी याचना सुनकर अपना स धन हम द. उ तोता हमारी र ा के लए भग नामक दे व को बार-बार बुलाता है. असमथ तोता भग से र न मांगता है. (६) शं नो भव तु वा जनो हवेषु दे वताता मत वः वकाः. ज भय तोऽ ह वृकं र ां स सने य मद्युयव मीवाः.. (७) य के तो के समय सी मत ग त एवं शोभन अ वाले वाजी नामक दे व हम सुख दे ने वाले ह . वे हननक ा एवं चोर रा स को न करते ए पुराने रोग को हमसे पृथक् कर. (७) वाजेवाजेऽवत वा जनो नो धनेषु व ा अमृता ऋत ाः. अ य म वः पबत मादय वं तृ ता यात प थ भदवयानैः.. (८) हे बु मान्, मरणर हत एवं स य को जानने वाले वाजी नामक दे वो! तुम धन के कारण होने वाले येक यु म हमारी र ा करो. तुम इस सोम को पीकर मु दत बनो एवं दे वयान माग ारा जाओ. (८)
सू —३९
दे वता— व ेदेव
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऊ व अ नः सुम त व वो अ े तीची जू णदवता तमे त. भेजाते अ र येव प थामृतं होता न इ षतो यजा त.. (१) ऊपर क ओर ग त करने वाले अ न मुझ तोता क शोभन तु त को सुन. सब लोग को बूढ़ा बनाने वाली एवं पूव क ओर मुंह करने वाली उषा य म जाती है. ायु यजमान एवं उसक प नी रथ वा मय के समान य माग पर आते ह. हमारे ारा भेजा आ तोता य करता है. (१) वावृजे सु या ब हरेषामा व पतीव बी रट इयाते. वशाम ो षसः पूव तौ वायुः पूषा व तये नयु वान्.. (२) इन यजमान का शोभन अ से यु कुश ा त होता है. इस समय हमारी जा के पालक एवं घो ड़य के वामी वायु एवं पूषा जा के क याण के लए रा संबंधी उषा क पहली पुकार सुनकर अंत र म आते ह. (२) मया अ वसवो र त दे वा उराव त र े मजय त शु ाः. अवाक् पथ उ यः कृणु वं ोता त य ज मुषो नो अ य.. (३) वसुगण इस य म धरती पर रमण कर. व तृत अंत र म थत एवं द तशाली म त क सेवा होती है. हे तेज चलने वाले वसुओ एवं म तो! तुम अपना माग हमारे सामने करो. अपने समीप गए ए हमारे इस त क पुकार सुनो. (३) ते ह य ेषु य यास ऊमाः सध थं व े अ भ स त दे वाः. ताँ अ वर उशतो य य ने ु ी भगं नास या पुर धम्.. (४) वे स , य पा एवं र क व ेदेव य म एक साथ ही आते ह. हे अ न! हमारे य म हमारी अ भलाषा करने वाले दे व का य करो तथा भग, अ नीकुमार एवं इं का शी यजन करो. (४) आ ने गरो दव आ पृ थ ा म ं वह व ण म म नम्. आयमणम द त व णुमेषां सर वती म तो मादय ताम्.. (५) हे अ न! तुम तु तयो य म , व ण, इं , अ न, अयमा, अ द त एवं व णु को वग एवं धरती से हमारे य म बुलाओ. सर वती एवं म द्गण हम यजमान से स ह . (५) ररे ह ं म त भय यानां न कामं म यानाम स वन्. धाता र यम वद यं सदासां स ीम ह यु ये भनु दे वैः.. (६) हम य पा दे व के लए अपनी तु तय के साथ ह दे ते ह. अ न हमारी कामना का वरोध न करते ए हमारे य म फैल. हे दे वो! तुम उपे ा न करने एवं सदा उपभोग करने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो य धन हम दो. हम आज अपने सहायक दे व से मलगे. (६) नू रोदसी अ भ ु ते व स ैऋतावानो व णो म ो अ नः. य छ तु च ा उपमं नो अक यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) व स गो ीय ऋ षय ने आज धरती एवं आकाश क भली कार तु त क है. उ ह ने य वाले व ण, म एवं अ न क भी तु त क है. मु दत करने वाले दे व हम जा के यो य एवं सबसे अ छा अ द एवं क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा कर. (७)
सू —४०
दे वता— व ेदेव
ओ ु वद या३ समेतु त तोमं दधीम ह तुराणाम्. यद दे वः स वता सुवा त यामा य र ननो वभागे.. (१) हे दे वो! तु हारे मन ारा संपा दत होने वाला सुख हम ा त हो. हम तेज चलने वाले दे व के लए तो बनाते ह. र न के वामी स वता आज जो धन हमारे पास भेजगे, हम उसी धन के भागी ह गे. (१) म त ो व णो रोदसी च भ ु म ो अयमा ददातु. ददे ु दे दती रे णो वायु य युवैते भग .. (२) म एवं व ण, ावा-पृ थवी, इं एवं अयमा हम वही तोता ारा शं सत धन द. अ द त दे वी हम धन द. वायु एवं भग हमारे लए उसी धन क योजना कर. (२) से ो अ तु म तः स शु मी यं म य पृषद ा अवाथ. उतेम नः सर वती जुन त न त य रायः पयता त.. (३) हे ह रण प वाहनसाधन वाले म तो! तुम जस मनु य क र ा करते हो, वह उ एवं बलवान् हो. अ न, सर वती आ द दे वगण जस यजमान को य क ेरणा दे ते ह, उसके धन का कोई बाधक नह है. (३) अयं ह नेता व ण ऋत य म ो राजानो अयमापो धुः. सुहवा दे द तरनवा ते नो अंहो अ त पष र ान्.. (४) य को ा त करने वाले ये श शाली व ण, म एवं अयमा दे व हमारे य कम को धारण करते ह. कसी के ारा न क सकने वाली अ द त दे वी हमारी पुकार सुने. ये दे व हम बाधा प ंचाए बना हमारे पाप को न कर. (४) अ य दे व य मी षो वया व णोरेष य भृथे ह व भः. वदे ह ो यं म ह वं या स ं व तर ना वरावत्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(५)
अ य दे व य म ह ारा ा त करने यो य एवं अ भलाषापूरक व णु के अंश प ह. हम अपना सुख एवं मह व दे ते ह. हे अ नीकुमारो! तुम हमारे ह वाले घर म आओ. मा पूष घृण इर यो व ी य ा तषाच रासन्. मयोभुवो नो अव तो न पा तु वृ प र मा वातो ददातु.. (६)
हे द तशाली पूषा! सबक वरणीय सर वती एवं दानकुशल दे वप नयां इस य म हम जो धन द, उसका वघात मत करना. सुख दे ने वाले एवं ग तशील दे व हमारी र ा कर एवं सब ओर जाने वाले वायु हम वषा पी जल द. (६) नू रोदसी अ भ ु ते व स ैऋतावानो व णो म ो अ नः. य छ तु च ा उपमं नो अक यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) व स गो ीय ऋ षय ने आज धरती एवं आकाश क भली कार तु त क है. उ ह ने य वाले व ण, म एवं अ न क भी तु त क है. मु दत करने वाले दे व हम पूजा के यो य एवं सबसे अ छा अ द एवं क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा कर. (७)
सू —४१
दे वता—इं ा द
ातर नं ात र ं हवामहे ात म ाव णा ातर ना. ातभगं पूषणं ण प त ातः सोममुत ं वेम.. (१) हम तोता अ न, इं , म , व ण एवं अ नीकुमार को ातःकाल बुलाते ह. हम ातःकाल भग, पूषा, ण प त, सोम एवं का आ ान करते ह. (१) ात जतं भगमु ं वेम वयं पु म दतेय वधता. आ ं म यमान तुर ाजा च ं भगं भ ी याह.. (२) जो व के धारक, जयशील, उ एवं अ द तपु ह, हम ातःकाल उ ह भगदे व को बुलाते ह. द र तोता एवं धनसंप राजा दोन ही भगदे व क तु त करते ए कहते ह —“हम भोग के यो य धन दो.” (२) भग णेतभग स यराधो भगेमां धयमुदवा दद ः. भग णो जनय गो भर ैभग नृ भनृव तः याम.. (३) हे भग! तुम उ म नेता एवं स यधन हो. हम अ भल षत धन दे कर हमारी तु त सफल करो. हे भग! हम गाय एवं घोड़ ारा उ त बनाओ. हे भग! हम पु ा द ारा मनु य वाले ह . (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उतेदान भगव तः यामोत त व उत म ये अ ाम्. उतो दता मघव सूय य वयं दे वानां सुमतौ याम.. (४) हे भगदे व! हम इस समय एवं दन का म य ा त होने पर धनी बन. हे धन वामी भग! हम सूय दय के समय दे व क कृपा ा त कर. (४) भग एव भगवाँ अ तु दे वा तेन वयं भगव तः याम. तं वा भग सव इ जोहवी त स नो भग पुरएता भवेह.. (५) हे दे वो! भग ही धनवान् ह . उसी धन से हम भी धनवान् ह . हे भग! सब लोग तु ह बार-बार बुलाते ह. इस य म तुम हमारे अनुगामी बनो. (५) सम वरायोषसो नम त द ध ावेव शुचये पदाय. अवाचीनं वसु वदं भगं नो रथ मवा ा वा जन आ वह तु.. (६) घोड़ा जस कार चलने यो य माग पर जाता है, उसी कार उषा दे वी हमारे य म आव. तेज चलने वाले घोड़े जैसे रथ को लाते ह, उसी कार उषा भग को हमारे सामने लाव. (६) अ ावतीग मतीन उषासो वीरवतीः सदमु छ तु भ ाः. घृतं हाना व तः पीता यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) भ ा, अ , गाय एवं पु ा द जन से यु जल बरसाती ई तथा सभी गुण वाली उषा हमारा रात का अंधकार मटाव. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
सू —४२
दे वता— व ेदेव
ाणो अ रसो न त दनुनभ य य वेतु. धेनव उद ुतो नव त यु याताम अ वर य पेशः.. (१) अं गरा नाम के ऋ ष सब जगह ा त ह . पज य हमारे तो क वशेष प से अ भलाषा कर. न दयां जल स चती ई वा हत ह . यजमान एवं उसक प नी य का प बनाव. (१) सुग ते अ ने सन व ो अ वा यु वा सुते ह रतो रो हत . ये वा स षा वीरवाहो वे दे वानां ज नमा न स ः.. (२) हे अ न! चरकाल से ा त तु हारा माग सुगम हो. तु हारे काले और लाल रंग के जो घोड़े तु ह य शाला म ले जाते ए शोभा पाते ह, उ ह तुम रथ म जोड़ो. म य शाला म बैठा आ दे व को बुलाता ं. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समु वो य ं महय मो भः होता म ो र रच उपाके. यज व सु पुवणीक दे वाना य यामरम त ववृ याः.. (३) हे दे वो! नम कार करते ए ये तोता तु हारे य क भली कार पूजा करते ह. हमारे पास बैठा आ एवं तु तशील होता सरे होता से े है. हे यजमान! तुम दे व का य करो. हे अ धक तेज वाले अ न! तुम य यो य भू म को प रव तत करो. (३) यदा वीर य रेवतो रोणे योनशीर त थरा चकेतत्. सु ीतो अ नः सु धतो दम आ स वशे दा त वाय मय यै.. (४) सबके अ त थ अ न जब वीर एवं धनी यजमान को घर म सुखपूवक सोए ए जान पड़ते ह तथा य शाला म भली कार रखे ए अ न स होते ह, उस समय वे अपने समीप वाले लोग को धन दे ते ह. (४) इमं नो अ ने अ वरं जुष व म व े यशसं कृधी नः. आ न ा ब हः सदतामुषासोश ता म ाव णा यजेह.. (५) हे अ न! हमारे इस य को वीकार करो. हम इं एवं म द्गण के सामने यश वी बनाओ, रात म एवं उषाकाल म कुश पर बैठो तथा य के अ भलाषी म व व ण क इस य म पूजा करो. (५) एवा नं सह यं१ व स ो राय कामो व य य तौत्. इषं र य प थ ाजम मे यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) धन क अ भलाषा वाले व स ने इसी कार श पु अ न क तु त धनलाभ के लए क थी. अ न हमारे अ , धन और बल क वृ कर. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (६)
सू —४३
दे वता— व ेदेव
वो य ष े ु दे वय तो अच ावा नमो भः पृ थवी इष यै. येषां ा यसमा न व ा व व वय त व ननो न शाखाः.. (१) हे दे वो! जन मेधा वय के तो वृ क शाखा के समान सब ओर वशेष प से जाते ह, वे ही दे वा भलाषी तोता य म अपनी तु तय ारा सभी दे व क अचना करते ह. वे ही दे व को ा त करने के लए ावा-पृ थवी क अचना करते ह. (१) य एतु हे वो न स त छ वं समनसो घृताचीः. तृणीत ब हर वराय साधू वा शोच ष दे वयू य थुः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारा य शी गामी अ के समान दे व के पास जावे. हे ऋ वजो! तुम एकमत होकर ुच को उठाओ एवं य के न म कुश को भली-भां त बछाओ. हे अ न! तु हारी दे वा भला षणी लपट ऊपर क ओर उठ. (२) आ पु ासो न मातरं वभृ ाः सानौ दे वासो ब हषः सद तु. आ व ाची वद यामन व ने मा नो दे वताता मृध कः.. (३) वशेष प से पालनीय पु जस कार माता क गोद म बैठता है, उसी कार दे वगण कुश बछ ई वेद के ऊंचे थान पर बैठ. हे अ न! जु तु हारी य के यो य वाला को भली कार स चे. तुम यु म हमारे श ु क सहायता मत करना. (३) ते सीषप त जोषमा यज ा ऋत य धाराः सु घा हानाः. ये ं वो अ मह आ वसूनामा ग तन समनसो य त .. (४) य के पा इं ा द दे व जल क सुख से हने यो य धारा को बरसाते ए हमारी सेवा को पया त प म वीकार कर. हे दे वो! आज तुम सब धन म पू य अपना धन लाओ तथा वयं भी समान प से स होकर आओ. (४) एवा नो अ ने व वा दश य वया वयं सहसाव ा ाः. राया युजा सधमादो अ र ा यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे अ न! तुम इसी कार हम जा के म य धन दो. हे श शाली अ न! हम तु हारे ारा यागे न जाव तथा न ययु धन के साथ स एवं अपरा जत ह . हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (५)
सू —४४
दे वता—द ध ा
द ध ां वः थमम नोषसम नं स म ं भगमूतये वे. इ ं व णुं पूषणं ण प तमा द या ावापृ थवी अपः वः.. (१) हे तोताओ! तु हारी र ा के लए सबसे पहले म द ध ा दे व को बुलाता .ं इसके बाद अ नीकुमार , उषा, व लत अ न और भग नामक दे व को बुलाता ं. म इं , व णु, पूषा, ण प त, आ द य , ावा-पृ थवी, जल एवं सूय को बुलाता ं. (१) द ध ामु नमसा बोधय त उद राणा य मुप य तः. इळां दे व ब ह ष सादय तोऽ ना व ा सुहवा वेम.. (२) हम तो ारा द ध ा दे व को जगाते एवं े रत करते ए य के समीप जाते ह, कुश पर इडा दे वी को था पत करते ह एवं शोभन आ ान वाले उन मेधावी अ नीकुमार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को बुलाते ह. (२) द ध ावाणं बुबुधानो अ नमुप व ु उषसं सूय गाम्. नं मँ तोव ण य ब ुं ते व ा मद् रता यावय तु.. (३) द ध ा दे व को जगाता आ म अ न, उषा, सूय एवं भू म क तु त करता .ं म अ भमा नय को न करने वाले व ण के महान् एवं पीले रंग के घोड़े क तु त करता .ं वे हमसे सभी पाप र कर. (३) द ध ावा थमो वा यवा े रथानां भव त जानन्. सं वदान उषसा सूयणा द ये भवसु भर रो भः.. (४) सभी अ म मुख, शी गामी एवं ग तशील द ध ा जानने यो य बात को भली कार जानकर उषा, सूय, आ द य , वसु और अं गरा के साथ सहमत होकर बैठते ह. (४) आ नो द ध ाः प यामन वृत य प थाम वेतवा उ. शृणोतु नो दै ं शध अ नः शृ व तु व े म हषा अमूराः.. (५) द ध ा दे व य माग पर अनुगमन करने के इ छु क हम लोग के माग को स च. अ न हमारे दै वी बल एवं तो को सुन. मूढ़तार हत एवं महान् व ेदेव मेरी तु त सुन. (५)
सू —४५
दे वता—स वता
आ दे वो यातु स वता सुर नोऽ त र ा वहमानो अ ैः. ह ते दधानो नया पु ण नवेशय च सुव च भूम.. (१) शोभनर न से यु , अपने तेज से अंत र को पूण करने वाले एवं अपने घोड़ ारा ढोए जाते ए स वता दे व अनेक मानव हतकारी धन को हाथ म धारण करते ह. वे ा णय को था पत करते ह एवं कम म लगाते ह. वे यहां आव. (१) उद य बा श थरा बृह ता हर यया दवो अ ताँ अन ाम्. नूनं सो अ य म हमा प न सूर द मा अनु दादप याम्.. (२) दान के न म फैलाई ई, वशाल एवं सोने क भुजा को स वता दे व अंत र म ा त कर. हम स वता क उसी म हमा क आज शंसा कर रहे ह. सूय भी स वता को कम क इ छा द. (२) स घा नो दे वः स वता सहावा सा वष सुप तवसू न. व यमाणो अम तमु च मतभोजनमध रासते नः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेज वी व धन के पालक स वता दे व हमारे लए सब ओर से धन को े रत करते ह. वे व तीण ग त वाले प को धारण करते ए इस समय हम मानव के भोग म आने वाला धन द. (३) इमा गरः स वतारं सु ज ं पूणगभ तमीळते सुपा णम्. च ं वयो बृहद मे दधातु यूयं पात व त भः सदा नः.. (४) ये वा णयां शोभन ज ा वाले, संपूण धनयु एवं शोभनपा ण वाले स वता क तु त करती ह. वे हम व च एवं महान् धन द. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारा सदा पालन करो. (४)
सू —४६
दे वता—
इमा ाय थरध वने गरः ेषवे दे वाय वधा वे. अषा हाय सहमानाय वेधसे त मायुधाय भरता शृणोतु नः.. (१) हे तोताओ! तुम ढ़ धनुष वाले, शी गामी बाण वाले, अ यु अपरा जत, सबको जीतने वाले, बनाने वाले तथा ती ण आयुध के वामी क तु त करो. वे हमारी तु त सुन. (१) स ह येण य य ज मनः सा ा येन द य चेत त. अव व ती प नो र रानमीवो जासु नो भव.. (२) को वग एवं पृ वी पर रहने वाले ऐ य ारा जाना जा सकता है. हे ! हमारी जाएं तु हारी तु तयां करती ह. तुम उनक र ा करते ए हमारे घर आओ एवं उसे रोगहीन बनाओ. (२) या ते द ुदवसृ ा दव प र मया च र त प र सा वृण ु नः. सह ं ते व पवात भेषजा मा न तोकेषु तनयेषु री रषः.. (३) हे ! अंत र से छोड़ी गई बजली जो धरती पर घूमती है, वह हम याग दे . हे व पवात ! तु हारी हजार ओष धयां हम मल. तुम हमारे पु -पौ क ह या मत करना. (३) मा नो वधी मा परा दा मा ते भूम सतौ ही ळत य. आ नो भज ब ह ष जीवशंसे यूयं पात व त भः सदा नः.. (४) हे ! तुम हम मत मारना एवं हमारा याग मत करना. हम तु हारे ोध के बंधन म न रह. तुम ा णय ारा शं सत य का हम भागी बनाओ. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारी र ा करो. (४)
सू —४७
दे वता—जल
आपो यं वः थमं दे वय त इ पानमू ममकृ वतेळः. तं वो वयं शु चम र म धृत ुषं मधुम तं वनेम.. (१) हे जल प दे वो! दे वा भलाषी अ वयु ने तु हारी सहायता से इं के पीने के यो य, धरती से उ प जो सोमरस पहले तैयार कया था, इस समय हम भी तु हारे उसी शु , पापर हत, वषा पी जल से स चने यो य एवं मधुर सोमरस का सेवन करगे. (१) तमू ममापो मधुम मं वोऽपां नपादव वाशुहेमा. य म ो वसु भमादयाते तम याम दे वय तो वो अ .. (२) हे अप दे वो! तु हारे उस मधुर सोम नामक रस क शी ग त वाले अपांनपात् अथात् अ न र ा कर. वसु के साथ इं जस म स होते ह, हम आज दे व क कामना करते ए उसी का सेवन करगे. (२) शतप व ाः वधया मद तीदवीदवानाम प य त पाथः. ता इ य न मन त ता न स धु यो ह ं घृतव जुहोत.. (३) सैकड़ प व प वाले एवं अपने अ के ारा मनु य को स करते ए जल दे व इं ा द दे व के भी थान म वेश करते ह. वे इं के य कम का वनाश नह करते ह. हे अ वयुजनो! सधु के लए घी से मले ह का हवन करो. (३) याः सूय र म भराततान या य इ ो अरदद् गातुमू मम्. ते स धवो वा रवो धातना नो यूयं पात व त भः सदा नः.. (४) हे सधु प जलो! सूय अपनी करण ारा जनका व तार करते ह एवं जनके लए इं ने गमनयो य माग का उद्घाटन कया है, तुम वे ही हो. तुम हमारे लए धन धारण करो. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (४)
सू —४८
दे वता—ऋभु
ऋभु णो वाजा मादय वम मे नरो मघवानः सुत य. आ वोऽवाचः तवो न यातां व वो रथं नय वतय तु.. (१) हे नेता एवं धन वामी ऋभुओ! तुम हमारा सोमरस पीकर मतवाले बनो. अब तुम जाओ. तु हारे कायक ा एवं समथ अ तु हारे मानव हतकारी रथ को हमारी ओर मोड़. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋभुऋभु भर भ वः याम व वो वभु भः शवसा शवां स. वाजो अ माँ अवतु वाजसाता व े ण युजा त षेम वृ म्.. (२) हे ऋभुओ! हम तु हारी सहायता से व तृत एवं धनवान् बन. हम तु हारी श से श ु को परा जत कर. यु म वाज हमारी र ा कर. हम इं को पाकर श ु से पार पा लगे. (२) ते च पूव र भ स त शासा व ाँ अय उपरता त व वन्. इ ो व वाँ ऋभु ा वाजो अयः श ो मथ या कृणव व नृ णम्.. (३) इं एवं ऋभु हमारे श ु क अनेक सेना को अपनी आ ा से मार डालते ह. वे यु म सम त श ु का हनन करते ह. श ुनाशक इं , ऋभु ा एवं वाज श ु के बल को समा त करगे. (३) नू दे वासो व रवः कतना नो भूत नो व ेऽवसे सजोषाः. सम मे इषं वसवो दद रन् यूयं पात व त भः सदा नः.. (४) द तशाली ऋभुओ! हम आज धन दो. तुम सब समान प से स होकर हमारे र क बनो. स ऋभु हम अ द. हे दे वो! तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (४)
सू —४९
दे वता—जल
समु ये ाः स लल य म या पुनाना य य न वशमानाः. इ ो या व ी वृषभो रराद ता आपो दे वी रह मामव तु.. (१) समु जन म बड़ा है, ऐसे जल सबको शु करते ह, सदा ग तशील ह एवं अंत र के म य से जाते ह. व धारी एवं अ भलाषापूरक इं ने ज ह का होने पर व छं द कया था, वे जल दे वता इस थान म हमारी र ा कर. (१) या आपो द ा उत वा व त ख न मा उत वाप याः वय ाः. समु ाथा याः शुचयः पावका ता आपो दे वी रह मामव तु.. (२) जो जल अंत र से उ प होते ह, नद के प म बहते ह, जो खोद कर नकाले जाते ह अथवा जो अपने आप उ प होकर सागर क ओर ग त करते ह, जो द तयु एवं प व करने वाले ह, वे दे वी प जल यहां हमारी र ा कर. (२) यासां राजा व णो या त म ये स यानृते अवप य नानाम्. मधु तः शुचयो याः पावका ता आपो दे वी रह मामव तु.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जन जल के राजा व ण अपनी जल पी जा म स य एवं म या को जानते ए म यम लोक म जाते ह, वे मधुरस बरसाने वाली, द तयु एवं प व करने वाली जल पी दे वयां यहां हमारी सदा र ा कर. (३) यासु राजा व णो यासु सोमो व े दे वा यासूज मद त. वै ानरो या व नः व ता दे वी रह मामव तु.. (४) जन म राजा व ण एवं सोम रहते ह, सम त दे व जन म अ पाकर मु दत होते ह एवं वै ानर अ न जन म व होते ह, वे ही जल पी दे वयां यहां हमारी र ा कर. (४)
सू —५०
दे वता— म आ द
आ मां म ाव णेह र तं कुलाययद् व य मा न आ गन्. अजकावं शीकं तरो दधे मा मां प ेन रपसा वद स ः.. (१) हे म एवं व ण! इस लोक म हमारी र ा करो. थान बनाने वाला एवं वशेष प से बढ़ने वाला वष हमारी ओर न आवे. अज का शीक नामक वष समा त हो. सांप हमारे पैर क व न न पहचान सके. (१) य जाम प ष व दनं भुवद ीव तौ प र कु फौ च दे हत्. अ न छोच प बाधता मतो मा मां प ेन रपसा वद स ः.. (२) हे द तशाली अ न! पेड़ क डा लय म अनेक प का बंदन नामक जो वष होता है एवं जो घुटने एवं टखने को फुला दे ता है, हमारे लोग से उस वष को र करो. छपकर आने वाला सांप हम पग व न से न पहचान सके. (२) य छ मलौ भव त य द षु यदोषधी यः प र जायते वषम्. व े दे वा न रत त सुव तु मा मां प ेन रपसा वद स ः.. (३) जो वष शा मली नामक वृ म होता है एवं जो वष न दय एवं ओष धय म ज म लेता है, व ेदेव उस वष को हमसे र कर. छपकर आने वाला सांप हमारी पग व न न पहचान सके. (३) याः वतो नवत उ त उद वतीरनुदका याः. ता अ म यं पयसा प वमानाः शवा दे वीर शपदा भव तु सवा न ो अ श मदा भव तु.. (४) ऊंचे दे श म, नीचे दे श म, श शाली दे श म, जल वाले दे श म एवं बना पानी वाले दे श म बहती ई जो न दयां हम जल से भगोती ह, वे क याणका रणी नद पी दे वयां ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारे शपद नामक रोग को न कर एवं अ हसक बन. (४)
सू —५१
दे वता—आ द य
आ द यानामवसा नूतनेन स ीम ह शमणा श तमेन. अनागा वे अ द त वे तुरास इमं य ं दधतु ोषमाणाः.. (१) हम आ द य के नवीन र ासाधन ारा क याणकारी एवं अ तशय शां तदायक घर ा त कर. शी ता करने वाले आ द य हमारी इस तु त को सुनकर यजमान को अपराध र त एवं द र ताहीन बनाव. (१) आ द यासो अ द तमादय तां म ो अयमा व णो र ज ाः. अ माकं स तु भुवन य गोपाः पब तु सोममवसे नो अ .. (२) आ द य, अ द त, अ यंत सरल वभाव वाले म , व ण एवं अयमा मु दत ह . संसार के र क दे वगण हमारे ही र क ह . वे आज हमारी र ा के लए सोमरस पएं. (२) आ द या व े म त व े दे वा व ऋभव व े. इ ो अ नर व ा तु ु वाना यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) हमने सब आ द य (१२), सब म त (४९), सब दे व (३३३३), सब ऋभु (३), इं , अ न एवं अ नीकुमार क तु त क . हे दे वो! तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (३)
सू —५२
दे वता—आ द य
आ द यासो अ दतयः याम पूदव ा वसवो म य ा. सनेम म ाव णा सन तो भवेम ावापृ थवी भव तः.. (१) हे आ द यो! हम अखंडनीय ह . हे वसु नामक र क दे वो! तुम मनु य के पालक बनो. हे म ाव ण! तु हारी सेवा करते ए हम धन को भोग. हे ावा-पृ थवी! तु हारी कृपा से हम वभू तसंप ह . (१) म त ो व णो मामह त शम तोकाय तनयाय गोपाः. मा वो भुजेमा यजातमेनो मा त कम वसवो य चय वे.. (२) म एवं व ण हम स सुख द एवं हमारे पु -पौ क र ा कर. सरे के कए ए अपराध का फल हम न भोग. हे वसुओ! हम वह कम न कर, जसके कारण तुम नाश कर दे ते हो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुर यवोऽ रसो न त र नं दे व य स वतु रयानाः. पता च त ो महान् यज ो व े दे वाः समनसो जुष त.. (३) शी ता करने वाले अं गरा ने स वता दे व से याचना करके उनका जो रमणीय धन ा त कया था, व स के पता महान् य शील व ण एवं अ य सम त दे व समान प से स होकर वही धन हम द. (३)
सू —५३
दे वता— ावा-पृ थवी
ावा य ैः पृ थवी नमो भः सबाध ईळे बृहती यज े. ते च पूव कवयो गृण तः पुरो मही द धरे दे वपु े.. (१) म ऋ वज स हत उसी य यो य एवं व तृत ावा-पृ थवी क तु त य एवं नम कार के साथ करता ं, जो वशाल एवं दे व को ज म दे ने वाली ह एवं ाचीन क वय ने तु त करते ए ज ह सबसे आगे रखा था. (१) पूवजे पतरा न सी भग भः कृणु वं सदने ऋत य. आ नो ावापृ थवी दै ेन जनेन यातं म ह वां व थम्.. (२) हे तोताओ! तुम अपनी नवीन तु तय ारा पूव-उ प , माता- पता प एवं य के थान ावा-पृ थवी को सबसे आगे था पत करो. हे ावा-पृ थवी! तुम अपना महान् एवं उ म धन दे ने के लए दे व के साथ हमारे समीप आओ. (२) उतो ह वां र नधेया न स त पु ण ावापृ थवी सुदासे. अ मे ध ं यदसद कृधोयु यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) हे ावा-पृ थवी! शोभनह दाता यजमान को दे ने के लए तु हारे पास अ धक उ म धन है. तुम न होने वाला धन हम दो. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (३)
सू —५४
दे वता—वा तो प त
वा तो पते त जानी मा वावेशो अनमीवो भवा नः. य वेमहे त त ो जुष व शं नो भव पदे शं चतु पदे .. (१) हे वा तो प त! हम जगाओ तथा हमारे घर को शोभन एवं रोगर हत बनाओ. हम तुमसे जो धन मांगते ह, वह हम दो. तुम हमारे मनु य एवं पशु के लए क याणकारी बनो. (१) वा तो पते तरणो न ए ध गय फानो गो भर े भ र दो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अजरास ते स ये याम पतेव पु ा
त नो जुष व.. (२)
हे वा तो प त! तुम हमारे धन को बढ़ाओ एवं उसका व तार करो. हे सोम के समान स करने वाले दे व! हम तु हारे म बनकर घोड़ एवं गाय के वामी तथा जरार हत ह . जस कार पता पु क र ा करता है, उसी कार तुम हमारी र ा करो. (२) वा तो पते श मया संसदा ते स ीम ह र वया गातुम या. पा ह ेम उत योगे वरं नो यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) हे वा तो प त! हम तु हारे सुखकारक, सुंदर एवं संप यु थान से संगत ह . तुम हमारे ा त एवं अ ा त धन क र ा करो. हे दे वो! तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (३)
दे वता—वा तो प त आ द
सू —५५ अमीवहा वा तो पते व ा
पा या वशन्. सखा सुशेव ए ध नः.. (१)
हे रोगनाशक वा तो प त! तुम सम त सुखदायक बनकर बढ़ो. (१)
प म
वेश करते
ए हमारे सखा एवं
यदजुन सारमेय दतः पश य छसे. वीव ाज त ऋ य उप वेषु ब सतो न षु वप.. (२) हे ेत एवं पीले रंग के कु !े जब भूंकते समय तुम दांत नकालते हो, तब आयुध के समान चमकते ए तु हारे दांत ह ठ म ब त अ छे लगते ह. इस समय तुम भली कार सोओ. (२) तेनं राय सारमेय त करं वा पुनःसर. तोतॄ न य राय स कम मा छु नायसे न षु वप.. (३) हे एक थान म बार-बार आने वाले सारमेय! तुम चोर और लुटेर के पास जाओ. इं के तोता हम लोग के पास य आते हो? हम क य दे ते हो? तुम सुखपूवक सोओ. (३) वं सूकर य द ह तव ददतु सूकरः. तोतॄ न य राय स कम मा छु नायसे न षु वप.. (४) तुम सूअर को वद ण करो एवं सूअर तु ह वद ण करे. इं के तोता हम लोग के पास य आते हो? हम क य दे ते हो? तुम सुखपूवक सोओ. (४) स तु माता स तु पता स तु ा स तु व प तः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सस तु सव ातयः स वयम भतो जनः.. (५) हे सारमेय! तु हारी माता सोव, तु हारे पता सोव, तुम वयं सोओ, घर का मा लक सोवे, सब बांधव सोव एवं चार ओर से सब लोग सोव. (५) य आ ते य चर त य प य त नो जनः. तेषां सं ह मो अ ा ण यथेदं ह य तथा.. (६) जो हमारे दे श म ठहरता है, चलता है अथवा हम दे खता है, हम उसक आंख फोड़ दे ते ह. वह घर के समान शांत व न ल हो जाता है. (६) सह शृ ो वृषभो यः समु ा दाचरत्. तेना सह येना वयं न जनान् वापयाम स.. (७) हजार करण वाले जो कामवषक सूय समु से उदय होते ह, उनक सहायता से हम सब लोग को सुला दगे. (७) ो ेशया व श े या नारीया त पशीवरीः. यो याः पु यग धा ताः सवाः वापयाम स.. (८) जो यां आंगन म सोने वाली, सवारी पर सोने वाली, चारपाई पर सोने वाली एवं गंध वाली ह, उन सबको हम सुला दगे. (८)
दे वता—म द्
सू —५६ क अ
ा नरः सनीळा
ये कां तयु नेता, एक घर म रहने वाले, महादे व के पु , मानव हतकारी एवं शोभन वाले म द्गण कौन ह. (१) न क षां जनूं ष वेद ते अ
(२)
य मया अधा व ाः.. (१)
व े मथो ज न म्.. (२)
इनके ज म को कोई नह जानता, अपने ज म क बात वे म त् ही आपस म जानते ह. अ भ वपू भ मथो वप त वात वनसः येना अ पृ न्.. (३)
म त् अपने संचरण के ारा आपस म मलते ह. ये हवा के समान तेज उड़ने वाले बाज के समान आपस म पधा करते ह. (३) एता न धीरो न या चकेत पृ य धो मही जभार.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(४)
धीर
इन सवाग ेत म त को जानते ह. पृ
सा वट् सुवीरा म
ने इ ह अंत र म धारण कया था.
र तु सना सह ती पु य ती नृ णम्.. (५)
वह जा म त के कारण चरकाल से श ु एवं शोभनपु वाली हो. (५) यामं ये ाः शुभा शो भ ाः
या स म
को हराती ई धन को पु करने वाली
ा ओजो भ
ाः.. (६)
म त् जाने यो य थान को सबसे अ धक जाते ह, अलंकार से ब त अ धक सुशो भत ह, शोभायु एवं ओज से उ ह. (६) उ ं व ओजः थरा शवां यधा म
गण तु व मान्.. (७)
हे म तो! तु हारा तेज उ और बल थत हो. तुम बु
वाले बनो. (७)
शु ो वः शु मः ु मी मनां स धु नमु न रव शध य धृ णोः.. (८) हे म तो! तु हारा बल सब ओर शोभा वाला एवं तु हारे मन ोधपूण ह. श ु पराभवकारी एवं श शाली म द्गण का वेग तोता के समान अनेक कार का श द करता है. (८) सने य म ुयोत द ुं मा वो म त रह णङ् नः.. (९) (९)
हे म तो! पुराने आयुध हमारे पास से अलग करो. तु हारी ू रम त हम
ा त न करे.
या वो नाम वे तुराणामा य ृप म तो वावशानाः.. (१०) हे शी ता करने वाले म तो! तु हारे यारे नाम हम पुकारते ह. अ भलाषापूरक म द्गण इससे तृ त होते ह. (१०) वायुधास इ मणः सु न का उत वयं त व१: शु भमानाः.. (११) शोभन आयुध वाले, ग तशील एवं सुंदर अलंकार वाले म द्गण अपने शरीर को सजाते ह. (११) शुची वो ह ा म तः शुचीनां शु च हनो य वरं शु च यः. ऋतेन स यमृतसाप आय छु चज मानः शुचयः पावकाः.. (१२) हे म तो! तुम शु
के लए शु
ह
हो. तुम शु
के लए म शु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य करता ं.
जल को छू ने वाले म त् स य को ा त करते ह. शु भी शु करते ह. (१२)
जल वाले एवं शु
म द्गण सर को
अंसे वा म तः खादयो वो व ःसु मा उप श याणाः. व व ुतो न वृ भी चाना अनु वधामायुधैय छमानाः.. (१३) हे म तो! तु हारे कंध पर खा द नामक अलंकार तथा सीन पर उ म हार वराजमान ह. जैसे वषा करने वाले मेघ के साथ बजली शोभा दे ती है, उसी कार जल दान के समय तुम भी अपने आयुध से सुशो भत होते हो. (१३) बु या व ईरते महां स नामा न य यव तर वम्. सह यं द यं भागमेतं गृहमेधीयं म तो जुष वम्.. (१४) हे म तो! अंत र म उ प होने वाले तु हारे तेज वशेष प से ग त करते ह. हे वशेष य पा म तो! तुम जल को बढ़ाओ. हे म तो! गृह वा मय ारा दए गए घर म उ प एवं हजार सं या वाले य का एक भाग सेवन करो. (१४) य द तुत य म तो अधीथे था व य वा जनो हवीमन्. म ू रायः सुवीय य दात नू च म य आदभदरावा.. (१५) हे म तो! तुम अ यु मेधावी तोता के ह स हत तो को जानते हो. इस लए उस शोभनपु वाले को शी धन दो. श ु उस धन को न न कर. (१५) अ यासो न ये म तः व चो य शो न शुभय त मयाः. ते ह य ाः शशवो न शु ा व सासो न ळनः पयोधाः.. (१६) जो म द्गण सतत ग तशील घोड़े के समान शोभनग त वाले, उ सव दे खने वाले, मनु य के समान शोभाशाली एवं घर म रहने वाले ब च के समान शो भत ह, वे खेलते ए बालक के समान एवं जल धारणक ा ह. (१६) दश य तो नो म तो मृळ तु व रव य तो रोदसी सुमेके. आरे गोहा नृहा वधो वो अ तु सु ने भर मे वसवो नम वम्.. (१७) संप यां दे ते ए एवं अपनी म हमा से सुंदर ावा-पृ थवी को पूण करते ए म द्गण हम सुखी कर. हे म तो! तु हारा मानवनाशक एवं गोनाशक आयुध हमसे र रहे. हे वासदाता म तो! तुम सुख के साथ हमारे सामने आओ. (१७) आ वो होता जोहवी त स ः स ाच रा त म तो गृणानः. य ईवतो वृषणो अ त गोपाः सो अ यावी हवते व उ थैः.. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म तो! य शाला म बैठा आ होता तु हारे सब जगह जाने वाले दान क शंसा करता आ तु ह बार-बार बुलाता है. हे अ भलाषापूरक म तो! जो य क ा यजमान का र क है, वह होता मायार हत होकर तो ारा तु हारी शंसा करता है. (१८) इमे तुरं म तो रामय तीमे सहः सहस आ नम त. इमे शंसं वनु यतो न पा त गु े षो अर षे दध त.. (१९) ये म द्गण शी तापूवक य करने वाले यजमान को स करते ह एवं श शाली लोग को श ारा झुकाते ह. ये तोता को हसक से बचाते ह, पर ह न दे ने वाले मनु य के त ब त े ष रखते ह. (१९) इमे र ं च म तो जुन त भृ म च था वसवो जुष त. अप बाध वं वृषण तमां स ध व ं तनयं तोकम मे.. (२०) ये म द्गण धनी और नधन दोन को ेरणा दे ते ह. हे वासदाता एवं कामपूरक म तो! दे वगण जैसा चाहते ह, उसी के अनुसार तुम अंधकार मटाओ तथा हम अ धक मा ा म पु पौ दो. (२०) मा वो दा ा म तो नरराम मा प ा म र यो वभागे. आ नः पाह भजतना वस े३ यद सुजातं वृषणो वो अ त.. (२१) हे म तो! हम तु हारे दान क सीमा से बाहर न रह. हे रथ वामी म तो! धन बांटते समय हम पीछे मत रखना एवं चाहने यो य धन का वामी बनाना. हे अ भलाषापूरक म तो! तुम हम अपने शोभन उ प वाले धन का भागी बनाना, (२१) सं य न त म यु भजनासः शूरा य वोषधीषु व ु. अध मा नो म तो यास ातारो भूत पृतना वयः.. (२२) लए
हे
पु म तो! जस समय शूर लोग यु म अनेक ओष धय एवं जा को जीतने के ोधयु होते ह, उस समय तुम श ु से हमारी र ा करना. (२२)
भू र च म
म तः प या यु था न या वः श य ते पुरा चत्. ः पृतनासु सा हा म र स नता वाजमवा.. (२३)
हे म तो! तुमने हमारे पतर के क याण के लए ब त से काम कए थे. तु हारे जन ाचीन काय क शंसा क जाती है, उ ह भी तु ह ने कया था. तु हारी सहायता से तेज वी लोग यु म श ु को हराते ह एवं तोता अ ा त करता है. (२३) अ मे वीरो म तः शु य तु जनानां यो असुरो वधता. अपो येन सु तये तरेमाध वमोको अ भ वः याम.. (२४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म तो! हमारा पु श शाली हो. वह बु मान् एवं श ु को सहन करने वाला हो. हम शोभन नवास पाने के लए उसक सहायता से श ु को वश म करगे एवं तु हारी आ मीयता का थान ा त करगे. (२४) त इ ो व णो म ो अ नराप ओषधीव ननो जुष त. शम याम म तामुप थे यूयं पात व त भः सदा नः.. (२५) इं , व ण, म , अ न, जल, ओष धयां एवं वृ हमारे तो को सुन. म त के समीप रहकर हम सुखी रहगे. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (२५)
सू —५७
दे वता—म द्गण
म वो वो नाम मा तं यव ाः य ेषु शवसा मद त. ये रेजय त रोदसी च व प व यु सं यदयासु ाः.. (१) हे य पा म तो! मु दत तोता य म तु हारी तु त श ारा करते ह. वे म द्गण व तृत ावा-पृ थवी को कं पत करते ह, बादल से जल बरसाते ह एवं उ बनकर सब जगह जाते ह. (१) नचेतारो ह म तो गृण तं णेतारी यजमान य म म. अ माकम वदथेषु ब हरा वीतये सदत प याणाः.. (२) म द्गण तु त करने वाले मनु य को खोजते ह एवं यजमान क कामना पूरी करते ह. हे म तो! तुम लोग स होकर सोमरस पीने के लए हमारे य म कुश पर बैठो. (२) नैतावद ये म तो यथेमे ाज ते मैरायुधै तनू भः. आ रोदसी व पशः पशानाः समानम य ते शुभे कम्.. (३) ये म द्गण जतना दान करते ह, उतना सरे लोग नह करते. ये अपने हार , अलंकार एवं शरीर से सुशो भत होते ह. ा त द तवाले म द्गण ावा-पृ थवी को का शत करते ए शोभा के लए समान आभूषण धारण करते ह. (३) ऋध सा वो म तो द ुद तु य आगः पु षता कराम. मा व त याम प भूमा यज ा अ मे वो अ तु सुम त न ा.. (४) हे म तो! तु हारा स आयुध हमसे र रहे. य पा म तो! य प मनु य होने के कारण हम ब त सी भूल करते ह, पर हम तु हारे आयुध के ल य न ह . तु हारी अ धक अ दे ने वाली कृपा हमारी है. (४) कृते चद म तो रण तानव ासः शुचयः पावकाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
णोऽवत सुम त भयज ाः
वाजे भ तरत पु यसे नः.. (५)
म द्गण हमारे य कम से स ह . म द्गण नदार हत, शु एवं सर को प व करने वाले ह. हे य पा म तो! हमारी तु तय के कारण हमारी र ा वशेष प से करो एवं हम अ के ारा पु होने के लए बढ़ाओ. (५) उत तुतासो म तो तु व े भनाम भनरो हव ष. ददात नो अमृत य जायै जगृत रायः सूनृता मघा न.. (६) वे म द्गण हमारी तु त सुनकर ह भ ण कर। नेता म द्गण जल के साथ वतमान ह. हे म तो! हमारी जा के लए उदक दो तथा ह दाता यजमान को स व एवं धनदान करो. (६) आ तुतासो म तो व ऊती अ छा सूरी सवताता जगात. ये न मना श तनो वधय त यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे म तो! तुम तु त सुनकर सम त र ासाधन के साथ य म आओ तथा अपने तोता को अपने आप सैकड़ सुख से यु करो. तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
सू —५८
दे वता—म द्गण
साकमु े अचता गणाय यो दै य धा न तु व मान्. उत ोद त रोदसी म ह वा न ते नाकं नऋतेरवंशात्.. (१) हे तोताओ! तुम सदा वषा करने वाले म द्गण क पूजा करो. वे दे व थान वग म सबसे अ धक बु मान् ह. वे अपनी म हमा से ावा-पृ थवी को भी भ न कर दे ते ह. वे वग को धरती और अंत र क अपे ा अ धक ा त बना दे ते ह. (१) जनू ो म त वे येण भीमास तु वम यवोऽयासः. ये महो भरोजसोत स त व ो वो याम भयते व क्.. (२) हे भयानक, अ धक बु वाले एवं ग तशील म तो! तु हारा ज म तेज वाले से आ है. तुम तेज एवं बल से भावशाली ए हो. तु हारे गमन म सूय को दे खने वाले सब लोग डरते ह. (२) बृह यो मघव यो दधात जुजोष म तः सु ु त नः. गतो ना वा व तरा त ज तुं णः पाहा भ त भ तरेत.. (३) हे म तो! तुम ह धारण करने वाले को ब त सा अ दो एवं हमारी शोभन तु त को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अव य सुनो, जस माग से म द्गण जाते ह, वह ा णय को कभी न नह करता. वे अपने चाहने यो य र ासाधन से हम बढ़ाव. (३) यु मोतो व ो म तः शत वी यु मोतो अवा स रः सह ी. यु मोतः स ाळु त ह त वृ ं त ो अ तु धूतयो दे णम्.. (४) हे म तो! तु हारे ारा र त तोता सैकड़ धन का वामी होता है. तु हारी र ा पाकर वह आ मण करने वाला, श -ु पराजयकारी, साहसी एवं हजार धन का वामी बनता है. तु हारे ारा र त होकर वह स ाट् एवं श ुहंता बनता है. हे कंपाने वाले म तो! तु हारा दया आ धन बढ़े . (४) ताँ आ य मी षो ववासे कु व ंस ते म तः पुननः. य स वता जही ळरे यदा वरव तदे न ईमहे तुराणाम्.. (५) म अ भलाषापूरक क सेवा करता ं. वे कई बार हमारे सामने आव. जस महान् पाप से म द्गण नाराज होते ह, वह पाप हम अपने तो ारा न कर दगे. (५) सा वा च सु ु तमघोना मदं सू ं म तो जुष त. आरा चद् े षो वृषणो युयोत यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हमने धन वामी म त क शोभन तु त इस तो म गाई है. वे उसे वीकार कर. हे अ भलाषापूरक म तो! तुम श ु को र से ही अलग कर दो. तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (६)
सू —५९
दे वता—म द्गण
यं ाय व इद मदं दे वासो यं च नयथ. त मा अ ने व ण म ायम म तः शम य छत.. (१) हे दे वो! तोता को भय से बचाओ. हे म तो! तुम अ न, व ण, म और अयमा जसे अ छे माग पर ले आते हो, उसे सुख दो. (१) यु माकं दे वा अवसाह न य ईजान तर त षः. स यं तरते व मही रषो यो वो वराय दाश त.. (२) हे दे वो! तु हारे ारा र त य दन म जो य करता है, जो श ु पर आ मण करता है, जो अपने नवास थान को बढ़ाता है, वह तु ह अ धक ह इस लए दे ता है क तु ह सरी जगह जाने से रोक सके. (२) न ह व रमं चन व स ः प रमंसते. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ माकम म तः सुते सचा व े पबत का मनः.. (३) हे म तो! तुम म जो अवर है, म उसे छोड़कर भी तु त नह करता. हमारा सोम नचुड़ जाने पर तुम सब सोमा भलाषी बनकर एवं मलकर उसे पओ. (३) न ह व ऊ तः पृतनासु मध त य मा अरा वं नरः. अ भ व आव सुम तनवीयसी तूयं यात पपीषवः.. (४) हे नेता म तो! जसे तुम अ भल षत धन दे ते हो, उसे तु हारी र ा यु म श ु से चाहती है. तु हारी नवीन कृपा हमारे सामने आवे. हे सोमपान के अ भलाषी म तो! तुम ज द आओ. (४) ओ षु घृ वराधसो यातना धां स पीतये. इमा वो ह ा म तो ररे ह कं मो व१ य ग तन.. (५) हे पर पर मले ए धन वाले म तो! तुम सोम पी ह भोगने के लए भली कार आओ. म तु ह यह ह व दे ता ं. तुम सरी जगह मत जाओ. (५) आ च नो ब हः सदता वता च नः पाहा ण दातवे वसु. अ ेध तो म तः सो ये मधौ वाहेह मादया वै.. (६) हे म तो! हमारे कुश पर बैठो. तुम हमारा चाहा आ धन दे ने के लए हमारे समीप आओ. इस य म तुम मदकारक सोमरस को वाहा कहकर पओ और मु दत बनो. (६) सव त व१: शु भमाना आ हंसासो नीलपृ ा अप तन्. व ं शध अ भतो मा न षेद नरो न र वाः सवने मद तः.. (७) हे छपे ए म तो! तुम अपने अंग को अलंकार से सुशो भत करते ए नीले रंग वाले हंस के समान आओ. मेरे य म जस तरह सब मनु य स ह, उसी कार म द्गण भी आकर बैठ. (७) यो नो म तो अ भ णायु तर ा न वसवो जघांस त. हः पाशा त स मुची त प ेन ह मना ह तना तम्.. (८) हे शंसा के यो य म तो! सबके ारा तर कृत जो आदमी अशोभन प से ोध करके हमारे च को ःखी करना चाहता है, वह पाप के ोही व ण दे व के पाश से हम बांधेगा. तुम उसे तापकारी आयुध से मारो. (८) सा तपना इदं ह वम त त जुजु न. यु माकोती रशादसः.. (९) हे श ुतापक म तो! यही तु हारा ह व है. हे श ुभ क म तो! तुम अपनी र ा ारा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारे ह व का सेवन करो. (९) गृहमेधास आ गत म तो माप भूतन. यु माकोती सुदानवः.. (१०) हे शोभनदान वाले म तो! तु हारा य घर म कया जाता है. तुम अपनी र ा आओ, जाओ मत. (१०)
स हत
इहेह वः वतवसः कवयः सूय वचः. य ं म त आ वृणे.. (११) (११)
हे वयं बढ़े ए,
ांतदश एवं सूय के रंग वाले म तो! म य क क पना करता ं.
य बकं यजामहे सुग धं पु वधनम्. उवा क मव ब धना मृ योमु ीय मामृतात्.. (१२) हम सुगं ध वाले एवं पु बढ़ाने वाले यंबक का य करते ह. हे दे व! जैसे डंठल से बेर टू टता है, उसी कार हम मृ युबंधन से मु करो, अमृत से नह . (१२)
सू —६० यद सूय वोऽनागा उ वयं दे व ा दते याम तव
दे वता—सूय आ द म ाय व णाय स यम्. यासो अयमन् गृण तः.. (१)
हे सूय दे व! आज उदय होते ए तुम य द हम सब दे व के म य पापर हत कहो तो हे द नतार हत सूय! हम म व व ण के लए वा तव म न पाप हो जाएंगे. हे अयमा! हम तु हारी तु त करते ए सबके य ह . (१) एष य म ाव णा नृच ा उभे उदे त सूय अ भ मन्. व य थातुजगत गोपा ऋजु मतषु वृ जना च प यन्.. (२) हे म व व ण! ये ही मानव के दे खने वाले सूय ावा-पृ थवी क ओर उ दत होते ह. सूय सब थावर एवं ग तशील ा णय के पालनक ा ह तथा मानव म पाप और पु य दे खते ह. (२) अयु स त ह रतः सध था ा वह त सूय घृताचीः. धामा न म ाव णा युवाकुः सं यो यूथेव ज नमा न च े.. (३) हे म व व ण! सूय ने अंत र म हरे रंग के सात घोड़ को अपने रथ म जोता है. जल दान करने वाले वे घोड़े सूय को ढोते ह. तुम दोन क अ भलाषा करने वाले सूय उ दत होकर लोक एवं ा णय को इस कार दे खते ह, जस कार वाला गाय के समूह को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे खता है. (३) उ ां पृ ासो मधुम तो अ थुरा सूय अ ह छु मणः. य मा आ द या अ वनो रद त म ो अयमा व णः सजोषाः.. (४) हे म व व ण! तुम दोन के लए अ एवं मीठे पुरोडाश तैयार कए गए थे. सूय द तशाली अंत र म आरोहण करते ह एवं म , अयमा व व ण समान ी त वाले होकर उनके लए माग न त करते ह. (४) इमे चेतारो अनृत य भूरे म ो अयमा व णो ह स त. इम ऋत य वावृधु रोणे श मासः पु ा अ दतेरद धाः.. (५) ये म , व ण और अयमा अ धक पाप के नाशक ह. सुखकारक, अपरा जत एवं अ द तपु ये सब य भवन म वृ ा त करते ह. (५) इमे म ो व णो ळभासोऽचेतसं च चतय त द ैः. अ प तुं सुचेतसं वत त तर दं हः सुपथा नय त.. (६) ये आ द य, म और व ण कसी से हारने वाले नह ह. ये अपनी श से ानर हत को भी ानी बना दे ते ह एवं य क ा तथा शोभन ान वाले के पास प ंचकर उसके पाप का नाश करते ए उ म माग पर ले जाते ह. (६) इमे दवो अ न मषा पृ थ ा क वांसो अचेतसं नय त. ाजे च ो गाधम त पारं नो अ य व पत य पषन्.. (७) ये म ा द पृ वी एवं अंत र के ा णय को सवदा जानते ए अ ानी य को य कम म े रत करते ह. इनक साम य से नद के नीचे गहराई म भी धरातल होता है. ये हम व तृत य कम के पार प ंचाते ह. (७) यद् गोपावद द तः शम भ ं म ो य छ त व णः सुदासे. त म ा तोकं तनयं दधाना मा कम दे वहेळनं तुरासः.. (८) अयमा, म एवं व ण ह दाता यजमान को र ासाधन से यु एवं क याणकारी सुख दे ते ह, उसी सुख के साथ हम पु -पौ को धारण करते ए कोई ऐसा कम न कर जो तुम शी ता करने वाले दे व को नाराज कर दे . (८) अव वे द हो ा भयजेत रपः का ण ुतः सः. प र े षो भरयमा वृण ू ं सुदासे वृषणा उ लोकम्.. (९) हे दे वो! हमसे े ष रखने वाला जो
य वेद पर कम करता आ दे व क तु त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नह करे, वह व ण के ारा ह सत होकर समा त हो जावे. अयमा हम े ष करने वाले रा स से अलग रख. हे कामपूरक म व व ण! मुझ ह दाता को तुम व तृत थान दान करो. (९) सव समृ त वे येषामपी येन सहसा सह ते. यु म या वृषणो रेजमाना द य च म हना मृळता नः.. (१०) इन म ा द दे व क संग त नगूढ़ एवं द त होती है. वे अपने छपे ए बल से श ु को परा जत करते ह. हे अ भलाषापूरक म ा द दे वो! हमारे वरोधी तु हारे डर से कांप जाते ह. तुम अपने बल के मह व से हम सुखी बनाओ. (१०) यो सी
णे सुम तमायजाते वाज य सातौ परम य रायः. त म युं मघवानो अय उ याय च रे सुधातु.. (११)
जो यजमान अ एवं उ कृ धन क ा त के लए तु हारी तु त म अपनी शोभनबु लगाता है, धन वामी अयमा आ द उसक तु त वीकार करते ह एवं उसके व तृत नवास के लए उ म थान बनाते ह. (११) इयं दे व पुरो ह तयुव यां य ेषु म ाव णावका र. व ा न गा पपृतं तरो नो यूयं पात व त भः सदा नः.. (१२) हे म व व णदे व! तु हारे य म यह पूजा पी तु त क गई है. इसे वीकार करके हमारे सभी ःख को न करो. (१२)
सू —६१
दे वता— म व व ण
उ ां च ुव ण सु तीकं दे वयोरे त सूय तत वान्. अ भ यो व ा भुवना न च े स म युं म य वा चकेत.. (१) हे ोतमान म व व ण! तु हारे च ु प एवं स दययु तेज का व तार करते ए उदय होते ह. जो सूय सारे लोक को दे खते ह, वे मनु य क तु तय को भली कार जानते ह. (१) वां स म ाव णावृतावा व ो म मा न द घ ु दय त. यय ा ण सु तू अवाथ आ य वा न शरदः पृणैथे.. (२) हे म व व ण! स , मेधावी, य क ा एवं चरकाल तक सुनने वाले व स तु हारे लए तु तयां बोलते ह. शोभनकम वाले तुम दोन उनक तु त क र ा करते हो एवं अनेक वष से उनका य पूण कर रहे हो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ोरो म ाव णा पृ थ ाः दव ऋ वाद्बृहतः सुदानू. पशो दधाथे ओषधीषु व वृध यतो अ न मषं र माणा.. (३) हे म व व ण! तुमने व तृत पृ वी एवं गुण तथा प के कारण वशाल अंत र क प र मा क है. हे शोभनदान वाले दे वी! तुम दोन स य पर चलने वाले का सदा पालन करते ए ओष धय एवं जा के प धारण करते हो. (३) शंसा म य व ण य कम शु मो रोदसी ब धे म ह वा. अय मासा अय वनामवीराः य म मा वृजनं तराते.. (४) हे ऋ ष! तुम म एवं व ण के तेज क शंसा करो. उनक श अपने मह व के ारा ावा-पृ थवी को अलग-अलग धारण करती है. य न करने वाले के मास बना पु के बीत. य के त उनक बु बल बढ़ावे. (४) अमूरा व ा वृषणा वमा वां न यासु च ं द शे न य म्. हः सच ते अमृता जनानां न वां न या य चते अभूवन्.. (५) हे मूढ़तार हत, ापक एवं अ भलाषापूरक म व व ण! तु हारी तु तय म आ य एवं आदर दखाई नह दे ता. अथात् तु हारी तु तयां स ची ह. लोग क झूठ तु त तु हारे श ु वीकार करते ह. तु हारे त कए गए तो रह यपूण होते ए भी अ ान के कारण न बन. (५) समु वां य ं महयं नमो भ वे वां म ाव णा सबाधः. वां म मा यृचसे नवा न कृता न जुजुष मा न.. (६) हे म व व ण! म तु तय के ारा तु हारे य क पूजा करता ं एवं बाधा के नवारण हेतु तु ह बुलाता ं. मने तु हारे लए नए तो बनाए ह. मेरे ारा एक त तु तयां तु ह स कर. (६) इयं दे व पुरो ह तयुव यां य ेषु म ाव णावका र. व ा न गा पपृतं तरो नो यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे म व व ण दे व! तु हारे य म यह पूजा पी तु त क गई है. इसे वीकार करके हमारे सभी ःख को न करो एवं अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
सू —६२
दे वता— म व व ण
उ सूय बृहदच य े पु व ा ज नम मानुषाणाम्. समो दवा द शे रोचमानः वा कृतः सुकृतः कतृ भभूत्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूय ऊपर क ओर उठते ए व तृत एवं अ धक तेज का आ य ल एवं मानव के सभी समूह को सहारा द. वे दन म चमकते ए समान दखाई दे ते ह. वे जाप त ारा क गई तु तयां सुनकर ती बन. (१) स सूय त पुरो न उद्गा ए भः तोमे भरेतशे भरेवैः. नो म ाय व णाय वोचोऽनागसो अय णे अ नये च.. (२) हे सूय! इन तो पी ग तशील अ के ारा तुम ऊपर उठते ए हम सबके सामने गमन करो. तुम म , व ण, अयमा एवं अ न के पास जाकर हम नरपराध बताना. (२) व नः सह ं शु धो रद वृतावानो व णो म ो अ नः. य छ तु च ा उपमं नो अकमा नः कामं पूपुर तु तवानाः.. (३) ःख रोकने वाले एवं स ययु व ण, म तथा अ न हम हजार क सं या म धन द. वे स ताकारक दे व हम शंसनीय एवं आदरयो य व तुएं द तथा हमारी तु त सुनकर हमारी अ भलाषाएं पूरी कर. (३) ावाभूमी अ दते ासीथां नो ये वां ज ःु सुज नमान ऋ वे. मा हेळे भूम व ण य वायोमा म य यतम य नृणाम्.. (४) हे अखंडनीय एवं महती ावा-पृ थवी! हम सुंदर ज म वाले तु ह जानते ह. तुम हमारी र ा करो. हम व ण, वायु एवं मानव के य म के ोध के पा न बन. (४) बाहवा ससृतं जीवसे न आ नो ग ू तमु तं घृतेन. आ नो जने वयतं युवाना ुतं मे म ाव णा हवेमा.. (५) हे म व व ण! अपनी भुजाएं फैलाओ एवं हमारे जीवन के लए उस भू म को जल से स चो, जस पर हमारी गाएं चलती ह. तुम हम मनु य म स बनाओ. हे न य त णो! हमारी पुकार सुनो. (५) नू म ो व णो अयमा न मने तोकाय व रवो दध तु. सुगा नो व ा सुपथा न स तु यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) म , व ण एवं अयमा हमारे लए एवं हमारे पु के लए धन द. सभी माग हमारे लए उ म एवं चलने म सरल ह . हे दे वो! तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (६)
सू —६३
दे वता—सूय व व ण
उ े त सुभगो व च ाः साधारणः सूय मानुषाणाम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
च ु म य व ण य दे व मव यः सम व क् तमां स.. (१) शोभनभा य वाले, सब मनु य के त समान, म एवं व ण के च ु के समान एवं द तशाली सूय उ दत हो रहे ह. वे चमड़े के समान अंधकार को लपेटते ह. (१) उ े त सवीता जनानां महान् केतुरणवः सूय य. समानं च ं पया ववृ स यदे तशो वह त धूषु यु ः.. (२) मनु य को अपने-अपने काम म लगाने वाले, पू य, ापन एवं जल दे ने वाले सूय सबके प हय को समान प से चलाने क इ छा से उ दत होते ह. रथ म जुड़े ए हरे रंग के घोड़े सूय को ख चते ह. (२) व ाजमान उषसामुप थाद् रेभै दे यनुम मानः. एष मे दे वः स वता च छ द यः समानं न मना त धाम.. (३) अ तशय द तशाली ये सूय तोता क तु तयां सुनकर मु दत होते ए उषा के बीच म उ दत होते ह. ये स वता दे व मेरी अ भलाषाएं पूरी करते ह. ये सभी ा णय के लए एक प अपने तेज को संकु चत नह करते. (३) दवो म उ च ा उदे त रे अथ तर ण ाजमानः. नूनं जनाः सूयण सूता अय था न कृणव पां स.. (४) अ त तेज वी, द तशाली, र तक जाने वाले एवं तारक सूय अंत र म चमकते ए उ दत होते ह. सूय से उ प लोग न य ही क समझकर कम करते ह. (४) य ा च ु रमृता गातुम मै येनो न द य वे त पाथः. त वां सूर उ दते वधेम नमो भ म ाव णोत ह ैः.. (५) मरणर हत दे व ने अंत र म सूय के लए माग बनाया था. वह माग उड़ते ए ग के समान अंत र का अनुगमन करता है. हे म व व ण! सूय के उदय होने पर हम नम कार वह ारा तु हारी सेवा करगे. (५) नू म ो व णो अयमा न मने तोकाय व रवो दध तु. सुगा नो व ा सुपथा न स तु यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) म , व ण एवं अयमा हमारे लए तथा हमारे पु के लए धन द. सभी माग हमारे लए उ म एवं चलने म सरल ह . हे दे वो! तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (६)
सू —६४
दे वता— म व व ण
******ebook converter DEMO Watermarks*******
द व य ता रजसः पृ थ ां वां घृत य न णजो दद रन्. ह ं नो म ो अयमा सुजातो राजा सु ो व णो जुष त.. (१) हे म व व ण! तुम अंत र एवं पृ वी म ा त जल के वामी हो. तु हारी ेरणा से मेघ जल को प दे ता है. हमारे ह को म , शोभनज म वाले अयमा, राजा एवं शोभनश वाले व ण वीकार कर. (१) आ राजाना मह ऋत य गोपा स धुपती या यातमवाक्. इळां नो म ाव णोत वृ मव दव इ वतं जीरदानू.. (२) हे राजन्, महान् य के र क, न दय के पालनक ा एवं श शाली म व व ण! तुम हमारे सामने आओ. हे शी दान करने वाले म व व ण! तुम आकाश से हम अ और वृ दो. (२) म त ो व णो दे वो अयः सा ध े भः प थ भनय तु. व था न आद रः सुदास इषा मदे म सह दे वगोपाः.. (३) म , व ण और अयमा हम चाहे जब े माग ारा ले जाव. अयमा शोभन दाता के पास जाकर हमारी बात कह. हम दे व ारा र त होकर उनके दए अ एवं संतान के साथ स ह . (३) यो वां गत मनसा त दे तमू वा धी त कृणवद्धारय च. उ ेथां म ाव णा घृतेन ता राजाना सु ती तपयेथाम्.. (४) हे शा ता म व व ण! तु तय के साथ जो तु हारा रथ बनाता है, तु हारे न म े कम करता है एवं य म तु ह धारण करता है, उसे जल से स चो एवं शोभन नवास वाला बनाकर तृ त करो. (४) एष तोमो व ण म तु यं सोमः शु ो न वायवेऽया म. अ व ं धयो जगृतं पुर धीयूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे म व व ण! यह तो मने तुम दोन एवं वायु के लए कया है. यह सोम के समान द त है. तुम हमारे य म आओ, हमारी तु त को जानो एवं अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —६५
दे वता— म व व ण
त वां सूर उ दते सू ै म ं वे व णं पूतद म्. ययोरसुय१ म तं ये ं व य याम ा चता जग नु.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूय नकल आने पर म उसे एवं प व श वाले व ण को बुलाता ं. इनका बल ीण न होने वाला एवं अ धक है. ये सं ाम म सभी श ु को जीतते ह. (१) ता ह दे वानामसुरा तावया ता नः तीः करतमूजय तीः. अ याम म ाव णा वयं वां ावा च य पीपय हा च.. (२) वे दोन श शाली एवं े दे व हमारी जा को उ त बनाव. हे म व व ण! हम तु ह ा त कर. ावा-पृ थवी एवं दन-रात हम तृ त कर. (२) ता भू रपाशावनृत य सेतू र येतू रपवे म याय. ऋत य म ाव णा पथा वामपो न नावा रता तरेम.. (३) वे दोन वपुल पाश वाले, य न करने वाले के बंधनक ा एवं श ु मनु य के लए र त मणीय ह. हे म व व ण! जस कार नाव के ारा जल को पार करते ह, उसी कार हम तु हारे य ारा ःख से पार हो जाव. (३) आ नो म ाव णा ह जु घृतैग ू तमु त मळा भः. त वाम वरमा जनाय पृणीतमुदनो ् द य चारोः.. (४) हे म व व ण! हमारे ह यु य म आओ एवं जल के साथ-साथ अ ारा भी हमारी गोचर-भू म को पूण करो. हमारे अ त र इस संसार म तु ह उ म ह कौन दे गा? तुम अंत र म होने वाला एवं उ म जल दो. (४) एष तोमो व ण म तु यं सोमः शु ो न वायवेऽया म. अ व ं धयो जगृतं पुर धीयूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे म व व ण! यह तो मने तुम दोन एवं वायु के लए बनाया है. यह सोम के समान द त है. तुम हमारे य म आओ, हमारी तु त को जानो एवं अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —६६
दे वता—आ द य आ द
म योव णयोः तोमो न एतु शू यः. नम वा तु वजातयोः.. (१) बार-बार ा भूत होने वाले म एवं व ण का सुखदाता तथा अ यु समीप जावे. (१)
तो उनके
या धारय त दे वाः सुद ा द पतरा. असुयाय महसा.. (२) शोभन-बलयु , श
क र ा करने वाले एवं कृ तेज वाले म व व ण को दे व
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ने धारण कया है. (२) ता नः तपा तनूपा व ण ज रतॄणाम्. म साधयतं धयः.. (३) वे दोन हमारे घर एवं शरीर के र क ह. हे म व व ण! तुम तोता कम को पूरा करो. (३)
के तु त प
यद सूर उ दतेऽनागा म ो अयमा. सुवा त स वता भगः.. (४) पापहंता म , अयमा, स वता एवं भग आज सूय नकलने पर हमारा इ धन द. (४) सु ावीर तु स यः
नु याम सुदानवः. ये नो अंहोऽ त प त.. (५)
हे शोभनदान वाले दे वो! तु हारे आने पर हमारा नवास- थान सुर त हो. तुम हमारे पाप को न करो. (५) उत वराजो अ द तरद ध य त य ये. महो राजान ईशते.. (६) म ा द दे व एवं अ द त हसा-र हत य के वामी ह. वे धन के भी वामी ह. (६) त वां सूर उ दते म ं गृणीषे व णम्. अयमणं रशादसम्.. (७) म सूय दय वेर बाद म , व ण एवं श ुनाशक अयमा क तु त करता ं. (७) राया हर यया म त रयमवृकाय शवसे. इयं व ा मेधसातये.. (८) यह तु त हम रमणीय धन के सथ अपरा जत श तु त य -लाभ के लए हो. (८)
दे ने वाली हो. हे ा णो! यह
ते याम दे व व ण ते म सू र भः सह. इषं व धीम ह.. (९) हे व ण एवं म ! हम ऋ वज को साथ लेकर तु हारी तु त करने वाले ह गे. हे दे व! हम अ एवं जल धारण कर. (९) बहवः सूरच सोऽ न ज ा ऋतावृधः. ी ण ये येमु वदथा न धी त भ व ा न प रभू त भः.. (१०) महान्, सूय के समान काशयु , अ न पी जहवा वाले एवं य को बढ़ाने वाले म ा द दे व श ु को हराने वाले कम ारा हम व तृत नवास- थान दे ते ह. (१०) व ये दधुः शरदं मासमादहय म ुं चा चम्. अना यं व णो म ो अयमा ं राजान आशत.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म , व ण एवं अयमा ने सुशो भत होकर सर ारा अ ा त बल पाया है तथा संव सर, मास, दवस, रा एवं ऋचा क रचना क है. (११) त ो अ मनामहे सू ै ः सूर उ दते. यदोहते व णो म ो अयमा यूयमृत य र यः.. (१२) हे उदक के नेता व ण, म और अयमा! तुम जस धन को धारण करते हो, हम आज सूय नकलने पर वही धन तु तय ारा मांगते ह. (१२) ऋतावान ऋतजाता ऋतावृधो घोरासो अनृत षः. तेषां वः सु ने सु छ द मे नरः याम ये च सूरयः.. (१३) हे य यु , य के लए उ प , य बढ़ाने वाले, भयानक एवं य हीन से े ष करने वाले नेताओ! हम एवं अ य ऋ वज् ही तु हारे सुखदायक धन के अ धकारी ह. (१३) उ य शतं वपु दव ए त त रे. यद माशुवह त दे व एतशो व मै च से अरम्.. (१४) वह दशनीय मंडल अंत र के समीप उदय होता है. ग तशील एवं हरे रंग का घोड़ा उस मंडल को इस हेतु धारण करता है, जससे सब लोग उसे दे ख सक. (१४) शी णः शी ण जगत त थुष प त समया व मा रजः. स त वसारः सु वताय सूय वह त ह रतो रथे.. (१५) सात ग तशील अ म तक के भी म तक अथात् सव च थावर एवं जंगम के वामी एवं रथ म सवार सूय को व के क याण के लए संसार के समीप लाते ह. (१५) त च ुदव हतं शु मु चरत्. प येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम्.. (१६) च ु के समान सबके काशक, दे व हतकारक एवं उ वष दे ख और जी वत रह. (१६) का े भरदा या यातं व ण ुमत्. म
वल सूय नकल रहे ह. हम सौ
सोमपीतये.. (१७)
हे अपराजेय एवं तेज वी म तथा व ण! तुम हमारे तो सुनकर सोम पीने के लए आओ. (१७) दवो धाम भव ण म
ा यातम हा. पबतं सोममातुजी.. (१८)
हे ोहर हत म व व ण! तुम वग से आओ और श ु करो. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क हसा करते ए सोमपान
आ यातं म ाव णा जुषाणावा त नरा. पातं सोममृतावृधा.. (१९) हे य नेता म व व ण! तुम सोम पी आ त को वीकार करते ए आओ एवं य क वृ करते ए सोमपान करो. (१९)
सू —६७
दे वता—अ नीकुमार
त वां रथं नृपती जर यै ह व मता मनसा य येन. यो वां तो न ध यावजीगर छा सूनुन पतरा वव म.. (१) हे ऋ वज् व यजमान पी मनु य के वामी अ नीकुमारो! हम ह एवं तो लेकर तु हारे रथ क तु त करने जाते ह. हे तु तयो य अ नीकुमारो! जैसे पु पता को जगाता है, उसी कार त प म जगाने वाले तु हारे रथ को अपने सामने आने के लए म तु त करता ं. (१) अशो य नः स मधानो अ मे उपो अ तमस द ताः. अचे त केतु षसः पुर ता ये दवो हतुजायमानः.. (२) अ न हमारे ारा व लत होकर का शत होते ह, वे लोग अंधकार वाले भाग को भी दे खते ह. ापन करने वाले सूय उषा वाली पूव दशा म शोभा के लए उ दत होते ह एवं लोग उ ह दे खते ह. (२) अ भ वां नूनम ना सुहोता तोमैः सष नास या वव वान्. पूव भयातं प या भरवा व वदा वसुमता रथेन.. (३) हे शोभन होता एवं तु त बोलने वाले अ नीकुमारो! हम तु तसमूह ारा तु हारी सेवा करते ह. तुम जल को जानने वाले एवं धनयु रथ पर चढ़कर च लत माग ारा आओ. (३) अवोवा नूनम ना युवाकु वे य ां सुते मा वी वसूयुः. आ वां वह तु थ वरासो अ ाः पबाथो अ मे सुषुता मधू न.. (४) हे र क एवं मधु व ा कुशल अ नीकुमारो! जब तु हारी अ भलाषा से सोमरस नचुड़ जाता है तब म धन क इ छा से तु हारी तु त करता ं. तु हारे व थ घोड़े तु ह यहां लाव. तुम हमारे ारा भली कार नचोड़े गए सोमरस को पओ. (४) ाचीमु दे वा ना धयं मेऽमृ ां सातये कृतं वसूयुम्. व ा अ व ं वाज आ पुर धी ता नः श ं शचीपती शची भः.. (५) हे अ नीकुमारो! तुम हमारी सरला, अपरा जत एवं धन चाहने वाली बु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को लाभ के
लए उ चत बनाओ. सं ाम म भी हमारी बु हमारे कम के ारा हम धन दो. (५)
क र ा करो. हे य पालक अ नीकुमारो!
अ व ं धी व ना न आसु जाव े तो अ यं नो अ तु. आ वां तोके तनये तूतुजानाः सुर नासो दे ववी त गमेम.. (६) हे अ नीकुमारो! इन य कम म हमारी र ा करो. हमारा वीय ीणतार हत एवं संतान उ प करने यो य हो. अपने पु एवं पौ को मनचाहा धन दे ते ए हम शोभनर न लाभ कर एवं दे व को ा त करके य म आव. (६) एष य वां पूवग वेव स ये न ध हतो मा वी रातो अ मे. अहेळता मनसा यातमवाग ता ह ं मानुषीषु व ु.. (७) हे मधु य अ नीकुमारो! जस कार त म के वागत के लए आगे चलता है, उसी कार यह सोम पी न ध हमारे ारा तु हारे लए संक पत है. ोधर हत मन से हमारे सामने आओ एवं मानवी जा म वतमान ह को खाओ. (७) एक म योगे भुरणा समाने प र वां स त वतो रथो गात्. न वाय त सु वो दे वयु ा ये वां धूषु तरणयो वह त.. (८) हे भरण-पोषण करने वाले अ नीकुमारो! जब तुम एक थान पर मलते हो तो तु हारा रथ सात न दय के पार जाता है. शोभनज म वाले एवं द श से यु तु हारे घोड़े तु हारे रथ को तेजी से ख चते ह और कभी नह थकते. (८) अस ता मघव यो ह भूतं ये राया मघदे यं जुन त. ये ब धुं सूनृता भ तर ते ग ा पृ च तो अ ा मघा न.. (९) आस र हत तुम दोन उन लोग के लए उ प यो य ह तु ह दे ते ह, जो स य वचन से अपने बंधु गोधन एवं अ धन दे ते ह. (९)
ए हो जो धनी ह एवं धन ा त के को बढ़ाते ह एवं मांगने वाल को
नू मे हवमा शृणुतं युवाना या स ं व तर ना वरावत्. ध ं र ना न जरतं च सूरीन् यूयं पात व त भः सदा नः.. (१०) हे न यत ण अ नीकुमारो! तुम आज मेरी पुकार सुनो, ह यु र नदान करो एवं तोता क उ त करो. हे दे वो! तुम अपने क याणसाधन र ा करो. (१०)
सू —६८
घर म आओ, ारा हमारी सदा
दे वता—अ नीकुमार
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ शु ा यातम ना व ा गरो द ा जुजुषाणा युवाकोः. ह ा न च तभृता वीतं नः.. (१) हे द तयु , शोभन अ वाले एवं श ुहंता अ नीकुमारो! तुम अपने भ तु तय क कामना करो एवं हमारे ारा तुत ह का भ ण करो. (१)
क
वाम धां स म ा य थुररं ग तं ह वषो वीतये मे. तरो अय हवना न ुतं नः.. (२) हे अ नीकुमारो! तु हारे लए मदकारक अ था पत ह. तुम हमारा ह भ ण करने के लए ज द आओ. तुम हमारे श ु क पुकार का तर कार करके हमारी पुकार सुनो. (२) वां रथो मनोजवा इय त तरो रजां य ना शतो तः. अ म यं सूयावसू इयानः.. (३) हे सूय के साथ रहने वाले अ नीकुमारो! तु हारा मन के समान तेज चलने वाला एवं सैकड़ र ासाधन से यु रथ हमारी ाथना पर लोग का तर कार करके हमारे य म आता है. (३) अयं ह य ां दे वया उ अ व वव आ व गू व ो ववृतीत ह ैः.. (४)
सोमसु ुव याम्.
हे सुंदर अ नीकुमारो! तु हारी अ भलाषा से सोमलता कूटने वाला प थर ऊंचा श द करता है, उस समय मेधावी ऋ वज् तु ह ह ारा आक षत करता है. (४) च ं ह य ां भोजनं व त य ये म ह व तं युयोतम्. यो वामोमानं दधते यः सन्.. (५) हे अ नीकुमारो! तु हारा जो व च धन है, उसे हम दो. जो तु हारे य ह एवं तु हारा दया आ धन धारण करते ह, उन अ ऋ ष से म ह वत को अलग करो. (५) उत य ां जुरते अ ना भू यवानाय ती यं ह वद. अ ध य प इ तऊ त ध थः.. (६) हे अ नीकुमारो! तुमने अपने तु तक ा एवं ह दाता वृ पास से लाकर जो प दया था, वह स है. (६) उत यं भु युम ना सखायो म ये ज नर पषदरावा यो युवाकुः (७)
यवन ऋ ष को मृ यु के
रेवासः समु े .
बुरे सा थय ने भु यु को समु म याग दया था. हे अ नीकुमारो! तु ह ने उसे पार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया. वह तु हारा भ
एवं अनुकूलचारी रहा. (७)
वृकाय च जसमानाय श मुत ुतं शयवे यमाना. याव याम प वतमपो न तय च छ य ना शची भः.. (८) हे अ नीकुमारो! तुमने ीण होते ए वृक ऋ ष को अपने कम एवं बु ारा धन दया. पुकार लगाते ए शंयु क बात तु ह ने सुनी और बूढ़ गाय को जलपूण नद के समान धा बना दया. (८) एष य का जरते सू ै र े बुधान उषसां सुम मा. इषा तं वधद या पयो भयूयं पात व त भः सदा नः.. (९) हे अ नीकुमारो! यह शोभनबु वाला तोता उषा से पहले ही जागकर सू ारा तु हारी तु त करता है. उसे अ , ध एवं गाय ारा बढ़ाओ. हे दे वो! अपने क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (९)
सू —६९
दे वता—अ नीकुमार
आ वां रथो रोदसी ब धानो हर ययो वृष भया व ैः. घृतवत नः प वभी चान इषां वो हा नृप तवा जनीवान्.. (१) हे अ नीकुमारो! जवान घोड़ वाला तु हारा रथ आवे. वह रथ ावा-पृ थवी को बा धत करने वाला, सोने का बना आ, प हय म जल धारण करने वाला, डंड ारा चमकता आ, अ ढोने वाला, यजमान ारा द ह से यु एवं यजमान का नेता है. (१) स प थानो अ भ प च भूमा व धुरो मनसा यातु यु ः. वशो येन ग छथो दे वय तीः कु ा च ामम ना दधाना.. (२) हे अ नीकुमारो! जस रथ पर बैठकर तुम कसी भी थान म दे वा भलाषी यजमान के पास प ंच जाते हो, वह पांच भूत को स करने वाला, तीन वंधुर (सार थ के बैठने क जगह) से यु एवं हमारी तु तय का पा है. (२) व ा यशसा यातमवा द ा न ध मधुम तं पबाथः. व वां रथो व वा३ यादमानोऽ ता दवो बाधते वत न याम्.. (३) हे श ुनाशक अ नीकुमारो! सुंदर घोड़ ारा शोभन अ लेकर तुम हमारे सामने आओ एवं मधुरतापूण सोम का पान करो. सूय के साथ गंत क ओर जाने वाला तु हारा रथ तेज चलने के कारण अपने प हय से वग के भाग को पीड़ा प ंचाता है. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
युवोः यं प र योषावृणीत सूरो हता प रत यायाम्. य े वय तमवथः शची भः प र ंसमोमना वां वयो गात्.. (४) हे अ नीकुमारो! तु हारी प नी सूयपु ी रात के समय तु हारे रथ को घेरती है. तुम जस समय य कम ारा दे वा भलाषी क र ा करते हो, उस समय द त अ तु हारे समीप आता है. (४) यो ह य वां र थरा व त उ ा रथो युजानः प रया त व तः. तेन नः शं यो षसो ु ौ य ना वहतं य े अ मन्.. (५) हे रथ वामी अ नीकुमारो! तु हारा रथ तेज को ढकता आ घोड़ क सहायता से माग म चलता है. हे अ नीकुमारो! उषाकाल होने पर हमारे पाप के शमन एवं सुख क ा त के लए उस रथ ारा हमारे य म आओ. (५) नरा गौरेव व ुतं तृषाणा माकम सवनोप यातम्. पु ा ह वां म त भहव ते मा वाम ये न यम दे वय तः.. (६) हे नेता अ नीकुमारो! हरणी के समान चमकते ए सोम को पीने क इ छा से हमारे सवन म आओ. यजमान ब त से य म तु ह तु तय ारा बुलाते ह. जससे अ य दे वा भलाषी तु ह न रोक पाव. (६) युवं भु युमव व ं समु उ हथुरणसो अ धानैः. पत भर मैर थ भदसना भर ना पारय ता.. (७) हे अ नीकुमारो! तुमने समु म डू बते ए भु यु को ीण न होने वाले, न थकने वाले एवं तेज चलने वाले घोड़ ारा एवं अपने शारी रक य न ारा पार लगाया. (७) नू मे हवमा शृणुतं युवाना या स ं व तर ना वरावत्. ध ं र ना न जरतं च सूरीन् यूयं पात व त भः सदा नः.. (८) हे न यत ण अ नीकुमारो! हमारी पुकार सुनो, हमारे ह वाले घर म आओ. र न दो एवं तोता को बढ़ाओ. हे दे वो! तुम अपने क याणसाधन के ारा हमारी सदा र ा करो. (८)
सू —७०
दे वता—अ नीकुमार
आ व वारा ना गतं नः त थानमवा च वां पृ थ ाम्. अ ो न वाजी शुनपृ ो अ थादा य सेदथु ुवसे न यो नम्.. (१) हे सबके य अ नीकुमारो! तुम हमारे य म आओ. धरती पर य वेद ही तु हारा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
थान कहा गया है. जस कार तेज चलने वाला घोड़ा अपने थान पर शांत रहता है, उसी कार सुखदायक पीठ वाला घोड़ा तु हारे पास रहे. (१) सष सा वां सुम त न ाता प घम मनुषो रोणे. यो वां समु ा स रतः पप यत वा च सुयज ु ा युजानः.. (२) हे अ नीकुमारो! अ तशय अ यु शोभन तु त तु हारी सेवा करती है. धूप मानव क य शाला म तप रही है. वह धूप तु ह ा त करने के लए न दय और सागर को वषा ारा भरती है. जस कार रथ म घोड़े जोड़े जाते ह, उसी कार तु ह य म यु कया जाता है. (२) या न थाना य ना दधाथे दवो य वोषधीषु व ु. न पवत य मूध न सद तेषं जनाय दाशुषे वह ता.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम वग लोक से आकर वशाल ओष धय एवं जा म जो थान धारण करते हो, उसे ह दाता यजमान को दो और वयं पवत क चोट पर थत बनो. (३) च न ं दे वा ओषधी व सु य ो या अ वैथे ऋषीणाम्. पु ण र ना दधतौ य१ मे अनुपूवा ण च यथुयुगा न.. (४) हे अ नीकुमारो! तुम हमारी ओष धय एवं जल क अ भलाषा करो, य क तुम ऋ षय क इन व तु को वीकार करते हो. तुमने पूववत दं प तय को आकृ कया था. तुम हम अनेक र न दो. (४) शु व ु ांसा चद ना पु य भ ा ण च ाथे ऋषीणाम्. त यातं वरमा जनाया मे वाम तु सुम त न ा.. (५) हे अ नीकुमारो! तुमने तु तयां सुनकर ऋ षय के अनेक य कम को दे खा है. तुम मुझ यजमान के घर म आओ. तुम अ के वषय म हम पर कृपा करो. (५) यो वां य ो नास या ह व मान् कृत ा समय ३ भवा त. उप यातं वरमा व स ममा ा यृ य ते युव याम्.. (६) हे अ नीकुमारो! जो तु तपरायण, ह यु एवं ऋ वज से यु व स तु हारा यजमान है, उसी े के पास जाओ. ये तु तयां यहां आने के लए तु हारी तु त करती ह. (६) इयं मनीषा इयम ना गी रमां सुवृ वृषणा जुषेथाम्. इमा ा ण युवयू य म यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ भलाषापूरक अ नीकुमारो! यह तु त एवं यह वाणी तु हारे लए है. तुम इस शोभन तु त को वीकार करो. ये सम त य कम तु हारी कामना करते ए तु ह ा त ह . हे दे वो! क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
सू —७१
दे वता—अ नीकुमार
अप वसु षसो न जहीते रण कृ णीर षाय प थाम्. अ ामघा गोमघा वां वेम दवा न ं श म म ुयोतम्.. (१) रात अपनी ब हन उषा के पास से हट जाती है. काली रात उजले दन के लए रा ता छोड़ती है. हे अ एवं गो प धन के वामी अ नीकुमारो! हम तु ह बुलाते ह. तुम रातदन हमारे पास से श ु को र करो. (१) उपायातं दाशुषे म याय रथेन वामम ना वह ता. युयुतम मद नराममीवां दवा न ं मा वी ासीथां नः.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम अपने रथ ारा ह दे ने वाले यजमान के लए उ म धन लाते ए आओ एवं अ क कमी और रोग हमसे र रहे. मधु वामी अ नीकुमारो! तुम रात- दन हमारी र ा करो. (२) आ वां रथमवम यां ु ौ सु नायवो वृषणो वतय तु. यूमगभ तमृतयु भर ैरा ना वसुम तं वहेथाम्.. (३) हे अ नीकुमारो! सुखपूवक जोते गए एवं कामवषक घोड़े उषाकाल होने पर तु हारे रथ को यहां लाव. सुखदायक करण वाले एवं धनयु रथ को तुम जल दान करने वाले अ क सहायता से आगे बढ़ाओ. (३) यो वां रथो नृपती अ त वो हा व धुरो वसुमाँ उ यामा. आ न एना नास योप यातम भ य ां व यो जगा त.. (४) हे यजमान का पालन करने वाले अ नीकुमारो! तु हारा रथ वहन करने वाला, तीन वंधुरा वाला, धनयु , दनभर चलने वाला एवं ापक प से ग तशील है. म उसी रथ ारा आने के लए तु हारी तु त कर रहा ं. (४) युवं यवानं जरसोऽमुमु ं न पेदव ऊहथुराशुम म्. नरंहस तमसः पतम न जा षं श थरे धातम तः.. (५) हे अ नीकुमारो! तुमने यवन क वृ ाव था र क , पे नामक राजा के लए यु म तेज चलने वाला घोड़ा भेजा, अ को पाप एवं अंधेरे को पार कया एवं जा ष को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रा य युत होने पर पुनः था पत कया. (५) इयं मनीषा इयम ना गी रमां सुवृ वृषणा जुषेथाम्. इमा ा ण युवयू य मन् यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे अ भलाषापूरक अ नीकुमारो! यह तु त एवं वाणी तु हारे लए है. तुम इस शोभन तु त को वीकार करो. ये सम त य कम तु हारी कामना करते ए तु ह ा त ह . हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (६)
सू —७२ आ गोमता नास या रथेना ावता पु अ भ वां व ा नयुतः सच ते पाहया
दे वता—अ नीकुमार े ण यातम्. या त वा शुभाना.. (१)
हे अ नीकुमारो! तुम गो, अ एवं धन से संप रथ के ारा आओ. ब त सी तु तयां तु हारी सेवा करती ह. तुम चाहने यो य शोभा एवं शरीर से यु हो. (१) आ नो दे वे भ प यातमवाक् सजोषसा नास या रथेन. युवो ह नः स या प या ण समानो ब धु त त य व म्.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम समान ी त वाले दे व को लेकर रथ ारा हमारे सामने आओ. तु हारे साथ हमारी पैतृक म ता है. हमारे एवं तु हारे बांधव एवं धन समान ही है. (२) उ तोमासो अ नोरबु ाम ा युषस दे वीः. आ ववास ोदसी ध येमे अ छा व ो नास या वव .. (३) तु तयां अ नीकुमार को भली कार जगाती ह. बंधुता पी सम त य कम उषा को जगाते ह. बु मान् व स तु तयो य ावा-पृ थवी क सेवा करता आ अ नीकुमार के सामने तु त करता है. (३) व चे छ य ना उषासः वां ा ण कारवो भर ते. ऊ व भानुं स वता दे वो अ ेदबृ ् हद नयः स मधा जर ते.. (४) हे अ नीकुमारो! उषाएं अंधकार का नाश करती ह. तोता तु हारी तु त वशेष प से करते ह. स वता दे व ऊंचे तेज को धारण करते ह एवं स मधा ारा व लत अ न क तु त क जाती है. (४) आ प ाता ास या पुर तादा ना यातमधरा द ात्. आ व तः पा चज येन राया यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तुम पूव, प म, उ र एवं द ण से आओ. तुम पांच वण का हत करने वाली संप य के साथ सब ओर से आओ. हे दे वो! क याणसाधन ारा तुम सदा हमारी र ा करो. (५)
सू —७३
दे वता—अ नीकुमार
अता र म तमस पारम य त तोमं दे वय तो दधानाः. पु दं सा पु तमा पुराजाम या हवेते अ ना गीः.. (१) हम दे व क अ भलाषा से तु तयां बोलते ए अंधकार के पार जाव. हे अनेक कम वाले, परम वशाल, पहले उ प ए एवं मरणर हत अ नीकुमारो! तोता तु ह बुलाता है. (१) यु यो मनुषः सा द होता नास या यो यजते व दते च. अ ीतं म वो अ ना उपाक आ वां वोचे वदथेषु य वान्.. (२) हे अ नीकुमारो! तु हारा य मनु य यहां बैठा है. जो तु हारा य एवं वंदना करता है, उसके पास ठहरकर तुम उसका मधुर सोमरस पओ, म अ यु होकर तु ह बुलाता ं. (२) अहेम य ं पथामुराणा इमां सुवृ वृषणा जुषेथाम्. ु ीवेव े षतो वामबो ध त तोमैजरमाणो व स ः.. (३) महान् तो बोलने वाले हम आने वाले दे व के लए य एवं ह व बढ़ाते ह. हे अ भलाषापूरक अ नीकुमारो! इस शोभन तु त को वीकार करो. जस कार तेज दौड़ने वाला त आता है, उसी कार म व स तु तयां करता आ तु हारे स मुख बु ं. (३) उप या व गमतो वशं नो र ोहणा स भृता वीळु पाणी. सम धां य मत म सरा ण मा नो म ध मा गतं शवेन.. (४) ह -वहन करने वाले, रा सनाशक, पु शरीर वाले एवं मजबूत हाथ वाले दोन अ नीकुमार हमारी जा के समीप आव. हे अ नीकुमारो! तुम स ताकारक अ से मलो, हमारी हसा मत करो एवं क याणसाधन के साथ आओ. (४) आ प ाता ास या पुर तादा ना यातमधरा द ात्. आ व तः पा चज येन राया यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे अ नीकुमारो! तुम पूव, प म, उ र एवं द ण से आओ. तुम पांच वण का हत करने वाली संप के साथ सब ओर से आओ. हे दे वो! क याणसाधन ारा तुम सदा हमारी र ा करो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —७४
दे वता—अ नीकुमार
इमा उ वां द व य उ ा हव ते अ ना. अयं वाम े ऽवसे शचीवसू वशं वशं ह ग छथः.. (१) हे नवासदाता अ नीकुमारो! वग चाहने वाले लोग तु ह बुलाते ह. हे कम पी धन के वामी अ नीकुमारो! यह व स भी र ा के लए तु ह बुलाता है, य क तुम सब जा के पास जाते हो. (१) युवं च ं ददथुभ जनं नरा चोदे थां सूनृतावते. अवा थं समनसा न य छतं पबतं सो यं मधु.. (२) हे नेता अ नीकुमारो! तु हारे पास जो उपभोग के यो य धन है, उसे तोता के पास जाने क ेरणा दो. तुम समान प से स होकर अपना रथ हमारे सामने लाओ एवं मधुर सोमरस पओ. (२) आ यातमुप भूषतं म वः पबतम ना. धं पयो वृषणा जे यावसू मा नो म ध मा गतम्.. (३) हे अ नीकुमारो! आओ, हमारे पास बैठो एवं सोमरस पओ. हे अ भलाषापूरक एवं धन जीतने वाले अ नीकुमारो! जल का दोहन करो, हम मत मारो एवं जाओ. (३) अ ासो ये वामुप दाशुषो गृहं युवां द य त ब तः. म ूयु भनरा हये भर ना दे वा यातम मयू.. (४) हे नेता अ नीकुमारो! जो घोड़े तु ह ह दाता यजमान के घर म धारण करते ए प ंचते ह, उ ह तेज चलने वाले घोड़ क सहायता से तुम हमारी कामना करते ए आओ. (४) अधा ह य तो अ ना पृ ः सच त सूरयः. ता यंसतो मघव यो व ु ं यश छ दर म यं नास या.. (५) हे अ नीकुमारो! तु तय के उ चारण के साथ चलने वाला यजमान एवं बु तोता ब त सा अ धारण करते ह. हम अ धा रय को थायी यश एवं घर दो. (५)
मान्
ये ययुरवृकासो रथा इव नृपातारो जनानाम्. उत वेन शवसा शूशुवुनर उत य त सु तम्.. (६) हे अ नीकुमारो! सरे का धन हण न करने वाले एवं मनु य म ऋ वज का र ण करने वाले जो यजमान रथ के समान तु हारे समीप आते ह, वे अपनी श से बढ़ते ह एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शोभनघर म आ य पाते ह. (६)
सू —७५
दे वता—उषा
ु षा आवो द वजा ऋतेनाऽऽ व कृ वाना म हमानमागात्. १ अप ह तम आवरजु म र तमा प या अजीगः.. (१) उषा ने अंत र म उ प होकर काश फैलाया एवं वह अपने तेज से अपनी म हमा कट करती ई आई. उषा ने सबके अ य श ु पी अंधकार को र भगाया एवं ा णय के वहार के लए अ तशय गंत माग को कट कया. (१) महे नो अ सु वताय बो युषो महे सौभगाय य ध. च ं र य यशसं धे मे दे व मतषु मानु ष व युम्.. (२) हे उषा! आज हमारी महान् सुख ा त के लए जागो एवं हम महान् सौभा य दो. हे मानव हतका रणी उषादे वी! हम यशयु व च धन दो एवं हम मानव को अ वाला पु दो. (२) एते ये भानवो दशताया ा उषसो अमृतास आगुः. जनय तो दै ा न ता यापृण तो अ त र ा थुः.. (३) दशनीय उषा क ये वशाल, आ यजनक एवं वनाशर हत करण दे वसंबंधी य आरंभ करती ई एवं अंत र को ा त करती ई आती ह एवं फैलती ह. (३)
का
एषा या युजाना पराका प च तीः प र स ो जगा त. अ भप य ती वयुना जनानां दवो हता भुवन य प नी.. (४) वग क पु ी एवं भुवन का पालन करने वाली उषा ा णय क पहचान करती है एवं र दे श म थत होकर भी उ ोग करती ई पांच वण के पास जाती है. (४) वा जनीवती सूय य योषा च ामघा राय ईशे वसूनाम्. ऋ ष ु ता जरय ती मघो युषा उ छ त व भगृणाना.. (५) अ क वा मनी सूय क प नी एवं व च धन से यु उषा सभी धन क अ धका रणी है. ऋ षय ारा तुत, बुढ़ापे तक लंबी उ दे ने वाली एवं धनयु ा उषा यजमान क तु तयां सुनकर काश करती है. (५) त ुतानाम षासो अ ा ाअ ु सं वह तः. ष या त शु ा व पशा रथेन दधा त र नं वधते जनाय.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द तशा लनी उषा को वहन करने वाले, तेज वी एवं रंग बरंगे घोड़े दखाई दे रहे ह. उ वल वण वाली उषा अनेक पवाले रथ ारा सब जगह जाती है एवं अपने भ को र न दे ती है. (६) स या स ये भमहती मह दवी दे वे भयजता यज ैः. जद् हा न दद याणां त गाव उषसं वावश त.. (७) स ची, महती एवं य पा उषादे वी अ य स चे, महान् एवं य पा दे व के साथ मलकर ढ़तर अंधकार का नाश करती है एवं गाय के घूमने हेतु काश दे ती है. गाएं उषा क कामना करती ह. (७) नू नो गोम रव े ह र नमुषो अ ाव पु भोजो अ मे. मा नो ब हः पु षता नदे कयूयं पात व त भः सदा नः.. (८) हे उषा! हम गाय , वीर एवं अ से यु धन दो. तुम हम ब त सा अ दो. तुम पु ष के बीच हमारे य क नदा मत करना. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (८)
सू —७६ उ
दे वता—उषा
यो तरमृतं व ज यं व ानरः स वता दे वो अ ेत्. वा दे वानामज न च ुरा वरकभुवनं व मुषाः.. (१)
सबके नेता स वता दे व वनाशर हत एवं सवजन- हतकारी यो त का आ य लेकर ऊंचे उठते ह. वे दे वकम अथात् य के हेतु उ प ए ह. उषा ने सभी दे व का ने बनकर सारे लोक को आ व कृत कया है. (१) मे प था दे वयाना अ मध तो वसु भ र कृतासः. अभू केतु षसः पुर ता ती यागाद ध ह य यः.. (२) मने हसा न करने वाले एवं तेज ारा प र कृत दे वयान माग दे खे ह. उषा का कराने वाला काश पूव दशा म था. वह उषा हमारे सामने ऊंचे थान से आती है. (२)
ान
तानीदहा न ब ला यास या ाचीनमु दता सूय य. यतः प र जारइवाचर युषो द े न पुनयतीव.. (३) हे उषा! तु हारा जो तेज सूय से पहले उ दत होता है एवं जस तेज के सामने तुम अपने प त सूय के समीप सा वी नारी के समान दखाई दे ती हो, तु हारा वह तेज अ धक मा ा म है. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त इ े वानां सधमाद आस ृतावानः कवयः पू ासः. गू हं यो तः पतरो अ व व द स यम ा अजनय ुषासम्.. (४) जन स ययु , ांतदश व पूवकाल म उ प पतर ने अंधकार से ढके तेज को ा त कया एवं स यमं श वाला बनकर उषा को उ प कया, वे दे व के साथ-साथ मु दत होते थे. (४) समान ऊव अ ध स तासः सं जानते न यत ते मथ ते. ते दे वानां न मन त ता यमध तो वसु भयादमानाः.. (५) वे पतर प ण ारा चुराई गाय को ा त करने हेतु मले थे एवं एक न य पर प ंचे थे. या उ ह ने मलकर य न नह कया था? अथात् अव य कया था. वे दे वसंबंधी य कम का वनाश नह करते थे एवं हत न करते ए उषा के वासदाता तेज से मलते थे. (५) त वा तोमैरीळते व स ा उषबुधः सुभगते तु ु वांसः. गवां ने ी वाजप नी न उ छोषः सुजाते थमा जर व.. (६) हे सुंदरी उषा! ातःकाल जगाने वाले व स वंशीय ऋ ष तो ारा तु हारी बार-बार तु त करते ह. हे गाएं ा त कराने वाली एवं अ दा ी उषा! हमारे लए काश करो. हे शोभनज म वाली उषा! तु हारी तु त सव थम हो. (६) एषा ने ी राधसः सूनृतानामुषा उ छ ती र यते व स ैः. द घ ुतं र यम मे दधाना यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) तु तय क ने ी उषा अंधकार न करती ई तोता को एवं हम सव स धन दे ती है. हम व स गो ीय ऋ ष इस क तु त करते ह. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
सू —७७
दे वता—उषा
उपो चे युव तन योषा व ं जीवं सुव त चरायै. अभूद नः स मधे मानुषाणामक य तबाधमाना तमां स.. (१) यौवन ा त नारी के समान उषा सम त जीव को संचार के लए े रत करती ई सूय के पास का शत होती है. अ न मनु य ारा व लत करने यो य ए ह एवं अंधकार मटाने वाला काश फैलाते ह. (१) व ं तीची स था उद था श ासो ब ती शु म ैत्. हर यवणा सु शीकस गवां माता ने य ामरो च.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सब ओर से सुडौल उषा सबके सामने उ दत है एवं उ वल तेज को धारण करके बढ़ रही है. सुनहरे रंग वाली, दे खने यो य तेज वाली, वा णय क माता एवं दन क ने ी उषा सुशो भत है. (२) दे वानां च ुः सुभगा वह ती ेतं नय ती सु शीकम म्. उषा अद श र म भ ा च ामघा व मनु भूता.. (३) दे व क आंख के समान तेज धारण करने वाली, सुंदरी, अपनी करण से का शत व च धन वाली एवं जगद् वहार के लए उ त उषा सुदशन सूय को त े करती ई दखाई दे रही है. (३) अ तवामा रे अ म मु छोव ग ू तमभयं कृधी नः. यावय े ष आ भरा वसू न चोदय राधो गृणते मघो न.. (४) हे उषा! तुम हमारे समीप धनयु एवं श ु को र करती ई काश करो. हमारी व तृत गोचर धरती को भयर हत बनाओ. श ु को अलग करो एवं श ु के धन हम दो. हे धन वा मनी उषा! तोता के पास आने के लए धन को ेरणा दो. (४) अ मे े े भभानु भ व भा षो दे व तर ती न आयुः. इषं च नो दधती व वारे गोमद ाव थव च राधः.. (५) हे उषादे वी! तुम हमारी आयु बढ़ाती ई हमारे सामने उ म करण के साथ काशयु बनो. हे सबक कमनीया उषा! हमारे लए अ , गाय , अ एवं रथ से यु धन धारण करती ई काश करो. (५) यां वा दवो हतवधय युषः सुजाते म त भव स ाः. सा मासु धा र यमृ वं बृह तं यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे शोभनज म वाली वगपु ी उषा! हम व स गो ीय लोग तु ह तु तय ारा बढ़ाते ह. तुम हम द त एवं महान् धन दो. हे दे वो! क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (६)
सू —७८
दे वता—उषा
त केतवः थमा अ ू वा अ या अ चयो व य ते. उषो अवाचा बृहता रथेन यो त मता वामम म यं व .. (१) हे उषा! तुमसे पहले उ प एवं तु हारा ान कराने वाले काश दखाई दे रहे ह. तु ह कट करने वाली करण सब ओर फैल रही ह. हमारे सामने वतमान यो तयु एवं वशाल रथ ारा हमारे लए उ म धन लाओ. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त षीम नजरते स म ः त व ासो म त भगृण तः. उषा या त यो तषा बाधमाना व ा तमां स रताप दे वी.. (२) व लत होकर अ न सब जगह बढ़ते ह. व ान् ऋ वज् तु तय ारा उषा क ाथना करते ह. काश ारा अंधकार को न करती ई उषा दे वी हमारे पाप समा त करती ई आती है. (२) एता उ याः य न् पुर ता यो तय छ ती षसो वभातीः. अजीजन सूय य म नमपाचीनं तमो अगादजु म्.. (३) ये स , भात करने वाली एवं तेज को बढ़ाने वाली उषाएं पूव दशा म दखाई दे ती ह. उषा ने सूय, अ न और य को ज म दया, जससे नीचे जाने वाला एवं अ य अंधकार न हो गया. (३) अचे त दवो हता मघोनी व े प य युषसं वभातीम्. आ था थं वधया यु यमानमा यम ासः सुयुजो वह त.. (४) वगपु ी एवं धन वा मनी उषा को सब जानते ह. भात करने वाली उषा को सब लोग दे खते ह. उषा अ यु रथ पर सवार है एवं भली कार जुड़े ए घोड़े इस रथ को वहन करते ह. (४) त वा सुमनसो बुध ता माकासो मघवानो वयं च. त वलाय वमुषसो वभातीयूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे उषा! हमारे शोभनमन वाले तथा धन वामी लोग एवं हम आज तु ह जगाते ह. हे भातका रणी उषाओ! तुम संसार को नेहयु कर दो. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —७९
दे वता—उषा
ु षा आवः प या३ जनानां प च तीमानुषीब धय ती. १ सुस भ भभानुम े सूय रोदसी च सावः.. (१) मनु य का हत करने वाली उषा अंधकार मटाती है, मानव क पांच े णय को जगाती है एवं उ म तेज वाली करण ारा सूय का सहारा लेती है. सूय अपने तेज से ावा-पृ थवी को ढक लेता है. (१) ते दवो अ ते व ू वशो न यु ा उषसो यत ते. सं ते गाव तम आ वतय त यो तय छ त स वतेव बा .. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उषाएं अंत र के भाग म तेज फैलाती ह एवं जा के समान मलकर अंधकारनाश के लए य न करती ह. हे उषा! तु हारी करण अंधकार का नाश करती ह एवं सूय के हाथ के समान सबको काश दे ती ह. (२) अभू षा इ तमा मघो यजीजनत् सु वताय वां स. व दवो दे वी हता दधा य र तमा सुकृते वसू न.. (३) सव े वा मनी एवं धनशा लनी उषा उ प ई है एवं उसने सबके क याण के लए अ पैदा कया है. वग क पु ी एवं अ तशय ग तशील उषा दे वी शोभनकम करने वाले के लए धन धारण करती है. (३) ताव षो राधो अ म यं रा व याव तोतृ यो अरदो गृणाना. यां वा ज ुवृषभ या रवेण व ह य रो अ े रौण ः.. (४) हे उषा! हम भी तुम उतना धन दो, जतना तुमने ाचीन तोता क तु त सुनकर दया था. लोग वृषभ नामक तो के वर से तु ह जानते ह. तुमने प णय ारा गाय क चोरी के समय मजबूत ार खोला था. (४) दे वंदेवं राधसे चोदय य म य सूनृता ईरय ती. ु छ ती नः सनये धयो धा यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे उषा! येक तोता को धन के लए े रत करती ई, शोभनवचन को हमारी ओर भेजती ई एवं अंधकार का नाश करती ई तुम हमारे लए धनदान हेतु अपनी बु थर करो. हे दे वी! तुम अपने क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (५)
सू —८०
दे वता—उषा
त तोमे भ षसं व स ा गी भ व ासः थमा अबु न्. ववतय त रजसी सम ते आ व कृ वत भुवना न व ा.. (१) व स गो ीय व तु तय एवं मं समूह ारा उषा को सभी लोग से पहले जगाते ह. उषा समान भाग वाली ावा-पृ थवी को ढक लेती है एवं सारे भुवन को कट करती है. (१) एषा या न मायुदधाना गूढ्वी तमो यो तषोषा अबो ध. अ ए त युव तर याणा ा च कत सूय य म नम्.. (२) यह वही उषा है जो नवयौवन धारण करती ई एवं अपने तेज ारा छपे ए अंधकार को न करती ई सबको जगाती है. उषा ल जाशील युवती के समान सूय के आगे-आगे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
चलती है तथा सूय, अ न और य को कट करती है. (२) अ ावतीग मतीन उषासो वीरवतीः सदमु छ तु भ ाः. घृतं हाना व तः पीता यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) अ एवं गाय से यु , पु दे ने वाली तथा शंसनीय उषाएं अंधकार को सदा र कर. उषाएं जल हती ई सब जगह बढ़ती ह. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (३)
सू —८१
दे वता—उषा
यु अद याय यु१ छ ती हता दवः. अपो म ह य त च से तमो यो त कृणो त सूनरी.. (१) वग क पु ी उषा अंधकार मटाती ई एवं आती ई दखाई दे ती है. सब लोग दे ख सक, इस हेतु यह रात के महान् अंधकार का नाश करती है. मानव क शोभन ने ी उषा काश करती है. (१) उ याः सृजते सूयः सचाँ उ म चवत्. तवे षो ु ष सूय य च सं भ े न गमेम ह.. (२) सूय अपनी करण को एक साथ बखेरते ह एवं वयं कट होकर आकाश के न को द तशाली बनाते ह. हे उषा! तु हारे और सूय के चमकने पर हम अ से मल. (२) त वा हत दव उषो जीरा अभु म ह. या वह स पु पाह वन व त र नं न दाशुषे मयः.. (३) हे वगपु ी उषा! शी तापूवक कम करने वाले हम तु ह जगाएं. हे धन वा मनी उषा! तुम वशाल धन के समान ही यजमान के लए र न एवं सुख का वहन करती हो. (३) उ छ ती या कृणो ष मंहना म ह यै दे व व शे. त या ते र नभाज ईमहे वयं याम मातुन सूनवः.. (४) हे अंधकारना शनी एवं म हमाशा लनी महादे वी उषा! तुम सब जग को जगाने एवं दे खने म समथ बनाती हो. हे र न वा मनी! हम तुमसे याचना करते ह. हम तु ह माता के लए पु के समान य ह . (४) त च ं राध आ भरोषो य घ ु मम्. य े दवो हतमतभोजनं त ा व भुनजामहै.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे उषा! वह व च धन हम दो, जो र र तक स है. हे वगपु ी! तु हारे पास मानव के उपभोग के यो य जो धन है, वह हम दो. हम उसका उपभोग करगे. (५) वः सू र यो अमृतं वसु वनं वाजाँ अ म यं गोमतः. चोद य ी मघोनः सूनृताव युषा उ छदप धः.. (६) हे उषा! तोता को नाशर हत एवं नवासयु यश दो. हम गाय वाला धन दो. यजमान को ेरणा दे ने वाली एवं स य से ेम करने वाली उषा श ु को र कर. (६)
सू —८२
दे वता—इं व व ण
इ ाव णा युवम वराय नो वशे जनाय म ह शम य छतम्. द घ य युम त यो वनु य त वयं जयेम पृतनासु ः.. (१) हे इं व व ण! तुम हमारे प रचारक के लए य करने के न म वशाल गृह दो. जो श ु हमारे अ धक समय तक य करने वाले सेवक को मारना चाहता है, हम उस बु को यु म जीतगे. (१) स ाळ यः वराळ य उ यते वां महा ता व ाव णा महावसू. व े दे वासः परमे ोम न सं वामोजो वृषणा सं बलं दधुः.. (२) हे महान् एवं परम धनी इं एवं व ण! तुम म से एक स ाट् एवं सरे वराट् ह. हे अ भलाषापूरको! सब दे व ने तु ह उ म आकाश म तेज के साथ ही बल दान कया था. (२) अ वपां खा यतृ मोजसा सूयमैरयतं द व भुम्. इ ाव णा मदे अ य मा यनोऽ प वतम पतः प वतं धयः.. (३) हे इं एवं व ण! तुमने बलपूवक जल के ार खोले एवं आकाश म वतमान सूय को चलने के लए े रत कया. इस मादक सोम का नशा चढ़ने पर तुम जलर हत न दय को जलपूण करो एवं हमारे कम को सफल बनाओ. (३) युवा म ु सु पृतनासु व यो युवां ेम य सवे मत वः. ईशाना व व उभय य कारव इ ाव णा सुहवा हवामहे.. (४) हे इं एवं व ण! यु भू म म श ुसेना के म य फंसे ए तोता एवं पैर सकोड़कर बैठे ए अं गरागो ीय नौ ऋ ष र ा के लए तु ह ही बुलाते ह. हे द एवं पा थव धन के वा मयो एवं सुखपूवक बुलाने यो यो! हम तु ह बुलाते ह. (४) इ ाव णा य दमा न च थु व ा जाता न भुवन य म मना. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ेमेण म ो व णं व य त म
ः शुभम य ईयते.. (५)
हे इं एवं व ण! तुमने लोक के सम त ा णय को अपनी श से बनाया है. म र ा के हेतु व ण क सेवा करते ह. इं म त के सहयोग से उ बनकर शोभन अलंकार ा त करते ह. (५) महे शु काय व ण य नु वष ओजो ममाते ुवम य य वम्. अजा मम यः थय तमा तर े भर यः वृणो त भूयसः.. (६) महान् धन पाने के लए काश उपल ध करने हेतु इं एवं व ण को शी बल ा त हो जाता है. इनका वह बल थायी है. इन म से एक तु त एवं य न करने वाले क हसा करते ह एवं सरे लघु उपाय से ही ब त से श ु को बाधा प ंचाते ह. (६) न तमंहो न रता न म य म ाव णा न तपः कुत न. य य दे वा ग छथो वीथो अ वरं न तं मत य नशते प रह्वृ तः.. (७) हे इं एवं व णदे व! तुम जस मनु य के य म जाते हो एवं जसक कामना करते हो, उसके पास पाप, पाप के फल एवं संताप नह जाते. उसे कसी कार क बाधा भी नह होती. (७) अवाङ् नरा दै ेनावसा गतं शृणुतं हवं य द मे जुजोषथः. युवो ह स यमुत वा यदा यं माड क म ाव णा न य छतम्.. (८) हे नेता इं एवं व ण! य द तुम मुझसे स हो तो अपने द र ासाधन के साथ आओ एवं मेरी पुकार सुनो. तु हारी मै ी एवं बंधुता सुख का साधन है. उ ह हम दान करो. (८) अ माक म ाव णा भरेभरे पुरोयोधा भवतं कृ ् योजसा. य ां हव त उभये अध पृ ध नर तोक य तनय य सा तषु.. (९) हे श ु को ख चने वाली श से यु इं एवं व ण! तुम येक यु म हमारे आगे लड़ने वाले बनो. ाचीन एवं नवीन दोन कार के तोता पु एवं पौ ा त वाले अवसर पर तु ह बुलाते ह. (९) अ मे इ ो व णो म ो अयमा ु नं य छ तु म ह शम स थः. अव ं यो तर दतेऋतावृधो दे व य ोकं स वतुमनामहे.. (१०) इं , व ण, म एवं अयमा हम धन एवं परम व तृत घर द. य क वृ करने वाली अ द त क यो त हमारे लए हा नकारक न हो. हम स वता दे व क तु त कर. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८३
दे वता—इं व व ण
युवां नरा प यमानास आ यं ाचा ग तः पृथुपशवो ययुः. दासा च वृ ा हतमाया ण च सुदास म ाव णावसावतम्.. (१) हे नेता इं एवं व ण! मोटे फरसे वाले यजमान तु हारी म ता चाहते ए गाय पाने क अ भलाषा से पूव क ओर गए. तुम दास , बाधक एवं य परायण श ु का नाश करो एवं र ासाधन ारा सुदास क र ा करो. (१) य ा नरः समय ते कृत वजो य म ाजा भव त क चन यम्. य ा भय ते भुवना व श त ा न इ ाव णा ध वोचतम्.. (२) हे इं एवं व ण! उस यु म तुम हमारे प पात क बात करना, जस म मनु य झंडे उठाकर लड़ने के लए मलते ह, जस म कुछ भी य नह होता एवं ाणी जस म वग के दशन करते ह. (२) सं भू या अ ता व सरा अ ते ाव णा द व घोष आ हत्. अ थुजनानामुप मामरातयोऽवागवसा हवन ुता गतम्.. (३) हे इं एवं व ण! धरती क सब फसल सै नक ारा व त दखाई दे रही ह एवं उनका कोलाहल अंत र म फैल रहा है. मेरे यो ा के सम त वरोधी मेरे समीप आ गए ह. हे पुकार सुनने वालो! र ासाधन के साथ हमारे सामने आओ. (३) इ ाव णा वधना भर त भेदं व व ता सुदासमावतम्. ा येषां शृणुतं हवीम न स या तृ सूनामभव पुरो ह तः.. (४) हे इं एवं व ण! तुमने आयुध ारा वश म न होने वाले भेद को मारा एवं राजा सुदास क र ा क . तुमने मेरे यजमान तृ सुवंशीय ऋ षय क तु तयां सुन एवं यु काल म उनका पुरो हत कम सफल आ. (४) इ ाव णाव या तप त माघा यय वनुषामरातयः. युवं ह व व उभय य राजथोऽध मा नोऽवतं पाय द व.. (५) हे इं एवं व ण! श ु बाधा प ंचा रहे ह. तुम दोन करो. (५)
के आयु मुझे घेर रहे ह एवं हसक के बीच फंसे मुझको श ु कार क संप य के वामी हो, अतः यु के दन हमारी र ा
युवां हव त उभयाय आ ज व ं च व वो व णं च सातये. य राज भ श भ नबा धतं सुदासमावतं तृ सु भः सह.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यु के समय सुदास और तृ सु दोन धन पाने के लए इं एवं व ण को बुलाते ह. वहां तुमने दस राजा ारा पी ड़त सुदास के साथ तृ सु को भी बचाया. (६) दश राजानः स मता अय यवः सुदास म ाव णा न युयुधुः. स या नृणाम सदामुप तु तदवा एषामभव दे व तषु.. (७) हे इं एवं व ण! य न करने वाले दस राजा मलकर भी अकेले सुदास से यु नह कर सके. ह धारण करने वाले नेता प ऋ वज क तु तयां भी सफल एवं उनके य म सब दे व उप थत ए. (७) दाशरा े प रय ाय व तः सुदास इ ाव णाव श तम्. य चो य नमसा कप दनो धया धीव तो अ प त तृ सवः.. (८) हे इं एवं व ण! जहां नमल, जटाधारी एवं य -कम क ा तृ सु ने ह अ एवं तु तय से सेवा क , उसी दाशरा यु म दस राजा ारा घरे ए सुदास को तुमने श शाली बनाया था. (८) वृ ा य यः स मथेषु ज नते ता य यो अ भ र ते सदा. हवामहे वां वृषणा सुवृ भर मे इ ाव णा शम य छतम्.. (९) हे इं एवं व ण! तुम म से एक सं ाम म श ु का नाश करता है एवं सरा सदा य कम क र ा करता है. हे अ भलाषापूरको! हम शोभन तु तय ारा तु ह बुलाते ह. तुम हम सुख दो. (९) अ मे इ ो व णो म ो अयमा ु नं य छ तु म ह शम स थः. अव ं यो तर दतेऋतावृधो दे व य ोकं स वतुमनामहे.. (१०) इं , व ण, म एवं अयमा हम धन एवं परम व तृत घर द. य क वृ करने वाली अ द त क यो त हमारे लए हा नकर न हो. हम स वता दे व क तु त कर. (१०)
सू —८४
दे वता—इं व व ण
आ वां राजानाव वरे ववृ यां ह े भ र ाव णा नमो भः. वां घृताची बा ोदधाना प र मना वषु पा जगा त.. (१) हे सुशो भत इं व व ण! म इस य म अ एवं तु तय ारा तु ह बार-बार बुलाता ं. हाथ म पकड़ी ई व व वध प वाली जु (घी का चमचा) अपने आप तु हारी ओर जाती है. (१) युवो रा ं बृह द व त ौय सेतृ भरर जु भः सनीथः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प र नो हेळो व ण य वृ या उ ं न इ ः कृणव लोकम्.. (२) हे इं एवं व ण! तु हारा वग प व तृत रा वषा ारा सबको स करता है. तुम पा पय को बना र सी वाली बाधा अथात् रोगा द से बांधो. व ण का ोध हमसे र जावे एवं इं हमारे नवास थान को व तृत कर. (२) कृतं नो य ं वदथेषु चा ं कृतं ा ण सू रषु श ता. उपो र यदवजूतो न एतु णः पाहा भ त भ तरेतम्.. (३) हे इं एवं व ण! हमारे घर म होने वाले य को शोभन बनाओ एवं हमारे तोता क तु तयां उ म करो. तु हारे ारा े रत धन हमारे पास आवे. तुम पृहणीय र ासाधन ारा हम बढ़ाओ. (३) अ मे इ ाव णा व वारं र य ध ं वसुम तं पु ुम्. य आ द यो अनृता मना य मता शूरो दयते वसू न.. (४) हे इं एवं व ण! हमारे लए ऐसा धन दो जो सबके वरण करने यो य हो एवं अ से पू रत नवास थान दो. जो शूर एवं अ द तपु व ण अस य का नाश करते ह, वे ही तोता को असी मत धन दे ते ह. (४) इय म ं व णम मे गीः ाव ोके तनये तूतुजाना. सुर नासो दे ववी त गमेम यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) मेरी यह तु त इं एवं व ण के पास प ंचे. मेरी तु त पु एवं पौ क र ा का कारण बने. हम शोभनर न वाले होकर य ा त कर. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —८५
दे वता—इं व व ण
पुनीषे वामर सं मनीषां सोम म ाय व णाय जु त्. घृत तीकामुषसं न दे व ता नो याम ु यतामभीके.. (१) हे इं एवं व ण! म तु हारे उ े य से अ न म सोम क आ त फकता आ उषा दे वी के समान द त अवयव वाली एवं रा स से असंपृ तु त अ पत करता ं. इं व व ण यु म हमारी र ा कर. (१) पध ते वा उ दे व ये अ येषु वजेषु द वः पत त. युवं ताँ इ ाव णाव म ा हतं पराचः शवा वषूचः.. (२) हे इं एवं व ण! जन यु म श ु हम ललकारते ह एवं वजा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पर आयुध गरते ह,
उन म तुम सब श ु
को आयुध से र भगाओ एवं उनका नाश करो. (२)
आप वयशसः सदःसु दे वी र ं व णं दे वता धुः. कृ ीर यो धारय त व ा वृ ा य यो अ ती न ह त.. (३) वाधीन यशवाले एवं ोतमान सम त सोम घर म इं एवं व ण दे व को धारण करते ह. इन म एक जा को वभ करके पालन करता है एवं सरा अपरा जत श ु को मारता है. (३) स सु तुऋत चद तु होता य आ द य शवसा वां नम वान्. आववतदवसे वां ह व मानस द स सु वताय य वान्.. (४) हे श शाली एवं अ द तपु म ाव ण! जो नम कार के ारा तु हारी सेवा करता है, वही होता शोभन कमवाला एवं य दाता हो. जो ह यु होकर तु ह बार-बार बुलाता है, वह यजमान अ का वामी होकर फल पाने वाला बने. (४) इय म ं व णम मे गीः ाव ोके तनये तूतुजाना. सुर नासो दे ववी त गमेम यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) मेरी यह तु त इं एवं व ण के पास प ंचे. मेरी तु त पु एवं पौ क र ा का कारण बने. हम शोभनर न वाले होकर य ा त कर. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (५)
सू —८६
दे वता—व ण
धीरा व य म हना जनूं ष व य त त भ रोदसी च व . नाकमृ वं नुनुदे बृह तं ता न ं प थ च भूम.. (१) व ण के ज म उनक म हमा से थर होते ह. व ण ने व तृत ावा-पृ थवी को धारण कया है, महान् आकाश और दशनीय न को दो बार ेरणा द है तथा धरती को वशाल बनाया है. (१) उत वया त वा३ सं वदे त कदा व१ तव णे भुवा न. क मे ह म णानो जुषेत कदा मृळ कं सुमना अ भ यम्.. (२) या म अपने शरीर के साथ अथवा व ण के साथ थर र ं? या म व ण म अपना मन संल न क ं ? व ण ोध न करते ए मेरे ह को य वीकार करगे? म शोभनमन से सुंदर व ण को कब दे खूंगा. (२) पृ छे तदे नो व ण द ूपो ए म च कतुषो वपृ छम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समान म मे कवय दा रयं ह तु यं व णो णीते.. (३) हे व ण! तु हारे दशन का इ छु क होकर म वह पाप पूछता ं. म व वध पूछने के लए व ान के समीप गया ं. सब व ान ने मुझसे एक ही बात कही है क व ण तुमसे नाराज ह. (३) कमाग आस व ण ये ं य तोतारं जघांस स सखायम्. त मे वोचो ळभ वधावोऽव वानेना नमसा तुर इयाम्.. (४) हे व ण! मेरा ऐसा या महान् अपराध है क तुम मेरे म तोता को मारना चाहते हो? हे अपराजेय एवं तेज वी व ण! मुझे वह अपराध बताओ जससे म उसका ाय करके नरपराध बनूं एवं नम कार के साथ शी तु हारे समीप आऊं. (४) अ व धा न प या सृजा नोऽव या वयं चकृमा तनू भः. अव राज पशुतृपं न तायुं सृजा व सं न दा नो व स म्.. (५) हे व ण! हमारी पैतृक ोहभावना को हमसे अलग करो. हमने अपने शरीर से जो अपराध कया है, उससे भी हम मु करो. हे सुशो भत व ण! मुझ व स क दशा चुराकर लाए पशु को ाय प म घास खलाने अथवा र सी से बंधे बछड़े के समान है. तुम मुझे पाप से छु ड़ाओ. (५) न स वो द ो व ण ु तः सा सुरा म यु वभीदको अ च ः. अ त याया कनीयस उपारे व नेदनृत य योता.. (६) हे व ण! वह पाप हमारे बल के कारण नह है. माद, ोध, जुआ अथवा अ ान के प म दे वग त ही उसका कारण है. छोटे को पाप क ओर वृ करने म बड़ा कारण बनता है. व भी पाप से मलाने वाला है. (६) अरं दासो न मी षे करा यहं दे वाय भूणयेऽनागाः. अचेतयद चतो दे वो अय गृ सं राये क वतरो जुना त.. (७) म पापर हत होकर अ भलाषापूरक एवं व पालक व ण क सेवा दास के समान पया त प म क ं गा. सबके वामी व ण दे व, मुझ ानर हत को ान संप कर. अ तशय व ान् व ण तोता को धन पाने के लए े रत कर. (७) अयं सु तु यं व ण वधावो द तोम उप त द तु. शं नः ेमे शमु योगे नो अ तु यूयं पात व त भः सदा नः.. (८) हे अ वामी व ण! तु हारे न म बनाया आ यह तो तु हारे मन म समा जाए. हमारा े और योग मंगलमय हो. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(८)
सू —८७
दे वता—व ण
रद पथो व णः सूयाय ाणा स समु या नद नाम्. सग न सृ ो अवतीऋताय चकार महीरवनीरह यः.. (१) व ण ने सूय के लए अंत र म माग दया व सागर का जल स रता को दान कया. घोड़ा जस कार घोड़ी के समीप जाता है, उसी कार शी गमन के लए व ण ने दन से महान् रात को अलग कया. (१) आ मा ते वातो रज आ नवीनो पशुन भू णयवसे ससवान्. अ तमही बृहती रोदसीमे व ा ते धाम व ण या ण.. (२) हे व ण! तु हारे ारा े रत वायु जगत् क आ मा है एवं जल को सब ओर भेजता है. जैसे घास डालने पर पशु बोझा ढोता है, उसी कार वायु अ पाकर व का भरण करता है. व तृत ावा-पृ थवी के म य म थत तु हारे सभी थान य ह. (२) प र पशो व ण य म द ा उभे प य त रोदसी सुमेके. ऋतावानः कवयो य धीराः चेतसो य इषय त म म.. (३) शंसनीय ग त वाले व ण के सब सहायक शोभन प वाली ावा-पृ थवी को भलीभां त दे खते ह. वे कमयु , य करने के लए ढ़, बु मान् एवं व ण क तु त करने वाले क वय को भी दे खते ह. (३) उवाच मे व णो मे धराय ः स त नामा या बभ त. व ा पद य गु ा न वोच ुगाय व उपराय श न्.. (४) व ण ने मुझ मेधावी से कहा था क धरती इ क स नाम धारण करती है. व ान् एवं मेधावी व ण ने मुझ अंतेवासी को उपदे श दे ते ए हमलोक क गु त बात को भी बताया है. (४) त ो ावो न हता अ तर म त ो भूमी पराः षड् वधानाः. गृ सो राजा व ण एतं द व ेङ्खं हर ययं शुभे कम्.. (५) इन व ण म तीन वग, तीन भू मयां एवं छः दशाएं न हत ह. शंसनीय वामी व ण ने सुनहरे झूले के समान सूय को काश के लए बनाया है. (५) अव स धुं व णो ौ रव थाद् सो न ेतो मृग तु व मान्. ग भीरशंसो रजसो वमानः सुपार ः सतो अ य राजा.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूय के समान द त, पानी क बूंद के समान ेत, ह रण के समान श शाली, महान् तो वाले, जल के रच यता, ःख से छु टकारा दलाने क श से यु एवं इस संसार के वामी व ण ने सागर को थर बनाया है. (६) यो मृळया त च ु षे चदागो वयं याम व णे अनागाः. अनु ता य दतेऋध तो यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) व ण अपराध करने वाले पर भी दया करते ह. म द नतार हत व ण से संबं धत त को बढ़ाता आ पापर हत बनूंगा. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
सू —८८
दे वता—व ण
शु युवं व णाय े ां म त व स मी षे भर व. य ईमवा चं करते यज ं सह ामघं वृषणं बृह तम्.. (१) हे व स ! तुम अ भलाषापूरक व ण के त वयं शु एवं य लगने वाली तु त उ चा रत करो. वे य यो य, अनेक धन के वामी, अ भलाषापूरक एवं व तृत सूय को हमारे सामने लाते ह. (१) अधा व य स शं जग वान नेरनीकं व ण य मं स. व१यद म धपा उ अ धोऽ भ मा वपु शये ननीयात्.. (२) म इस समय शी ता से व ण के दशन करके अ न क वाला क तु त करता ं. जस समय व ण प थर क सहायता से नचोड़े गए शोभन सोमरस को अ धक मा ा म पी लेते ह, उस समय मुझे अपने शोभनरथ के दशन कराते ह. (२) आ य हाव व ण नावं अ ध यदपां नु भ राव
य समु मीरयाव म यम्. ेङख ईङखयावहै शुभे कम्.. (३)
जस समय म और व ण नाव पर सवार ए थे. नाव को हमने सागर के बीच चलाया था एवं जल पर तैरती ई नाव पर हम थे, उस समय हमने नाव पी झूले पर सुख के न म ड़ा क थी. (३) व स ं ह व णो ना ाधा ष चकार वपा महो भः. तोतारं व ः सु दन वे अ ां या ु ाव ततन या षासः.. (४) मेधावी व ण ने रात एवं दन का व तार करते ए उ म दन म तोता मुझ व स को नाव पर चढ़ाया था एवं र ासाधन ारा शोभनकम वाला बनाया था. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व१ या न नौ स या बभूवुः सचावहे यदवृकं पुरा चत्. बृह तं मानं व ण वधावः सह ारं जगमा गृहं ते.. (५) हे व ण! हमारी पुरातन म ता कहां ई थी? हम उसी पुरानी एवं वनाशर हत म ता को नभा रहे ह. हे अ वामी व ण! म तु हारे अ त व तृत एवं ार वाले घर म जाऊं. (५) य आ प न यो व ण यः स वामागां स कृणव सखा ते. मा त एन व तो य न् भुजेम य ध मा व ः तुवते व थम्.. (६) हे व ण! जो व स तु हारा सगा पु है, जसने पूवकाल म तु हारा य बनकर अपराध कए ह, वह इस समय तु हारा म हो. हे य वामी व ण! हम पापयु होकर भोग को न भोग. हे मेधावी व ण! तुम तोता को घर दो. (६) ु ासु वासु तषु य तो १ मत् पाशं व णो मुमोचत्. व अवो व वाना अ दते प था ूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हम ुवभू म पर नवास करते ए तु त बोलते ह. व ण हमारे फंद को छु ड़ाएं. हम टु कड़े न होने वाली धरती के पास से व ण के र ासाधन का भोग कर. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
दे वता—व ण
सू —८९ मो षु व ण मृ मयं गृहं राज हं गमम्. मृळा सु
मृळय.. (१)
हे वामी व ण! म तु हारे ारा दया आ मट् ट का घर ा त न क ं . हे शोभनधन वाले व ण! मुझे सुखी बनाओ एवं मुझ पर दया करो. (१) यदे म
फुर व
तन मातो अ वः. मृळा सु
मृळय.. (२)
हे आयुध वाले व ण! तु हारे ारा बंधा आ म ठं ड से कांपता आ एवं वायु े रत बादल के समान आता ं. हे शोभनधन वाले व ण! मुझे सुखी बनाओ एवं मुझ पर दया करो. (२) वः समह द नता तीपं जगमा शुचे. मृळा सु
मृळय.. (३)
हे धन वामी एवं नमल व ण! म असमथता के कारण क कम का वरोधी बना ं. हे शोभनधन वाले व ण! मुझे सुखी बनाओ एवं मुझ पर दया करो. (३) अपां म ये त थवांसं तृ णा वद ज रतारम्. मृळा सु
मृळय.. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे शोभनधन वाले व ण! सागर म रहकर भी यासे मुझ तोता को सुखी बनाओ एवं मुझ पर दया करो. (४) य कं चेदं व ण दै े जनेऽ भ ोहं मनु या३ राम स. अ च ी य व धमा यूयो पम मा न त मादे नसो दे व री रषः.. (५) हे व ण! हम मनु य दे व के त जो ोह करते ह अथवा अ ानता के कारण तु हारे जस य कम को भूल जाते ह, उन पाप के कारण हम मत मारना. (५)
सू —९०
दे वता—वायु
वीरया शुचयो द रे वाम वयु भमधुम तः सुतासः. वह वायो नयुतो या छा पबा सुत या धसो मदाय.. (१) हे वीर वायु! अ वयुगण ारा तु हारे लए शु एवं मधुर सोमरस दया जाता है. तुम अपने घोड़ को रथ म जोड़ो, हमारे सामने आओ एवं मादकता के हेतु हमारा नचोड़ा आ सोमरस पओ. (१) ईशानाय त य त आनट् शु च सोमं शु चपा तु यं वायो. कृणो ष तं म यषु श तं जातोजातो जायते वा य य.. (२) हे सबके वामी वायु! तु ह जो उ म आ त दे ता है एवं हे सोमपानक ा वायु! जो तु ह प व सोमरस दे ता है, उसे तुम सभी मनु य म स बनाते हो. वह सव स होकर धन का पा बनता है. (२) राये नु यं ज तू रोदसीमे राये दे वी धषणा धा त दे वम्. अध वायुं नयुतः स त वा उत ेतं वसु ध त नरेके.. (३) इस ावा-पृ थवी ने वायु को धन के लए उ प कया है एवं काशयु तु त धन के लए ही वायु दे व को धारण करती है. इस समय वायु के अ उनक सेवा करते ह एवं द र ता क थ त म वे घोड़े धन दाता वायु को हमारे य म लाते ह. (३) उ छ ुषसः सु दना अ र ा उ यो त व व द यानाः. ग ं च वमु शजो व व ु तेषामनु दवः स ुरापः.. (४) शोभन दन लाने वाली पापर हत उषाएं अंधकार मटाएं एवं द तसंप होकर वायु क कृपा से व तृत काश पाव. वायु क तु त करने वाले अं गरा ने गोधन ा त कया. ाचीन जल अं गरा के पीछे बहे. (४) ते स येन मनसा द यानाः वेन यु ासः तुना वह त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ वायू वीरवाहं रथं वामीशानयोर भ पृ ः सच ते.. (५) हे सबके वामी इं एवं वायु! स यजमान स चे मन से तु त करते ए एवं द तसंप बनकर अपने कम ारा तु हारे उस रथ को अपने य म ख चते ह, जो वीर ारा ख चने यो य ह. य म ह प अ तु हारी सेवा करते ह. (५) ईशानासो ये दधते वण गो भर े भवसु भ हर यैः. इ वायू सूरयो व मायुरव वीरैः पृतनासु स ः.. (६) हे इं एवं वायु! जो साम य वाले लोग हम गांव , घोड़ , नवास थान एवं वण आ द धन के साथ सुख दे ते ह, वे ही दाता यु म घोड़ एवं वीर पु ष क सहायता के सव ा त अ जीत लेते ह. (६) अव तो न वसो भ माणा इ वायू सु ु त भव स ाः. वाजय तः ववसे वेम यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) घोड़ के समान ह -वहन करने वाले, अ क ाथना करने वाले एवं बल के इ छु क व स गण शोभनर ा के न म उ म तु तय ारा इं एवं वायु को बुलाते ह. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी र ा करो. (७)
सू —९१
दे वता—वायु
कु वद नमसा ये वृधासः पुरा दे वा अनव ास आसन्. ते वायवे मनवे बा धतायावासय ुषसं सूयण.. (१) ाचीन काल म जन वयोवृ तोता ने वायु दे व के हेतु शी बनाए गए ब त से तो ारा स ा त क , उ ह ने वप म पड़े मनु य क र ा के न म वायु को ह दे ने के लए सूय के साथ उषा को संगत कया. (१) उश ता ता न दभाय गोपा मास पाथः शरद पूव ः. इ वायू सु ु तवा मयाना माड कमी े सु वतं च न म्.. (२) हे कामना करने यो य, ग तशील एवं र क इं व वायु! तुम हमारी हसा न करके अनेक मास एवं वष तक हमारी र ा करना. हमारी शोभन तु त समीप जाती ई तुमसे सुख एवं शंसायो य उ म धन क याचना करती है. (२) पीवोअ ाँ र यवृधः सुमेधाः त े ः सष नयुताम भ ीः. ते वायवे समनसो व त थु व े रः वप या न च ु ः.. (३) शोभनबु वाले एवं अपने घोड़ को आ य दे ने वाले ेतवण वायु अ धक अ के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वामी एवं धनसंप य क सेवा करते ह. समान मन वाले वे लोग भी वायु के लए य करने के वचार से थत ह एवं अपनी संतान को लाभ दे ने वाले काय कर चुके ह. (३) याव र त वो३ यावदोजो याव र सा द यानाः. शु च सोमं शु चपा पातम मे इ वायू सदतं ब हरेदम्.. (४) हे प व सोमरस को पीने वाले इं एवं वायु! जब तक तु हारे शरीर क ग त है, जब तक बल है एवं जब तक ऋ वज् ान पी बल से द तशाली ह, तब तक तुम हमारे प व सोमरस को पओ एवं इन कुश पर बैठो. (४) नयुवाना नयुतः पाहवीरा इ वायू सरथं यातमवाक्. इदं ह वां भृतं म वो अ मध ीणाना व मुमु म मे.. (५) हे पृहायो य तोता वाले इं एवं वायु! अपने घोड़ को एक ही रथ म जोड़ो एवं हमारे सामने लाओ. इस मधुर सोमरस का उ म भाग तु हारे न म है. तुम इसे पीकर स बनो एवं हम पाप से छु ड़ाओ. (५) या वां शतं नयुतो याः सह म वायू व वाराः सच ते. आ भयातं सु वद ा भरवा पातं नरा तभृत य म वः.. (६) हे इं एवं वायु! सबके ारा वरण करने यो य तु हारे जो घोड़े सैकड़ तथा हजार क सं या म तु हारी सेवा करते ह, उ ह शोभन धनदाता अ क सहायता से तुम हमारे सामने आओ. हे नेताओ! उ र-वेद पर लाए गए सोम को पओ. (६) अव तो न वसो भ माणा इ वायू सु ु त भव स ाः. वाजय तः ववसे वेम यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) घोड़ के समान ह वहन करने वाले, अ क ाथना करने वाले एवं बल के इ छु क व स गण शोभनर ा के न म उ म तु तय ारा इं एवं वायु को बुलाते ह. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (७)
सू —९२
दे वता—वायु
आ वायो भूष शु चपा उप नः सह ं ते नयुतो व वार. उपो ते अ धो म मया म य य दे व द धषे पूवपेयम्.. (१) हे वशु सोमरस के पीने वाले वायु! हमारे पास आओ. हे सबके वरणीय वायु! तु हारे हजार घोड़े ह. हे वायु! तुम जस सोमरस को सबसे पहले पीने का अ धकार रखते हो, वही नशीला सोम पा म रखा है. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोता जीरो अ वरे व थात् सोम म ाय वायवे पब यै. य ां म वो अ यं भर य वयवो दे वय तः शची भः.. (२) शी काम करने वाले एवं सोमरस नचोड़ने वाले अ वयु ने इं तथा वायु को पीने के लए य म सोमरस था पत कया है. हे इं एवं वायु! दे व क कामना करने वाले अ वयु लोग ने अपने कम ारा इस य म सोमरस का उ म भाग तु हारे लए तैयार कया है. (२) या भया स दा ांसम छा नयु वाय व ये रोणे. न नो र य सुभोजसं युव व न वीरं ग म ं च राधः.. (३) हे वायु! य शाला म थत ह दाता यजमान का य पूण करने के लए जन घोड़ के ारा तुम उसके सामने जाते हो, उ ह क सहायता से हमारे य म आओ. हम शोभन अ वाला धन, वीरपु , गाय एवं अ के प म ऐ य दान करो. (३) ये वायव इ मादनास आदे वासो नतोशनासो अयः. न तो वृ ा ण सू र भः याम सास ांसो युधा नृ भर म ान्.. (४) जो तोता अपनी तु तय ारा इं एवं वायु को तृ त करने वाले एवं द गुण से यु ह, वे श ु का नाश करते ह. उ ह तोता क सहायता से हम अपने श ु का नाश करते ए श ु को यु म हराव. (४) आ नो नयु ः श तनी भर वरं सह णी भ प या ह य म्. वायो अ म सवने मादय व यूयं पात व त भः सदा नः.. (५) हे वायु! अपने सैकड़ एवं हजार घोड़ क सहायता से हमारे य के पास आओ एवं इस य म सोमरस पीकर स बनो. हे दे वो! र ासाधन ारा हमारा सदा क याण करो. (५)
सू —९३
दे वता—इं व अ न
शु च नु तोमं नवजातम े ा नी वृ हणा जुषेथाम्. उभा ह वां सुहवा जोहवी म ता वाजं स उशते धे ा.. (१) हे वृ हंता इं एवं अ न! तुम मेरे प व एवं इसी समय न म तो को आज सुनो. सुखपूवक बुलाने यो य तुम दोन को म बार-बार बुलाता ं. जो यजमान तु हारी कामना करता है, उसे शी अ दो. (१) ता सानसी शवसाना ह भूतं साकंवृधा शवसा शूशुवांसा. य तौ रायो यवस य भूरेः पृङ् ं वाज य थ वर य घृ वेः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सबके ारा सेवनीय इं एवं अ न! तुम बल के समान श ुनाश करो. तुम एक साथ उ त करते ए, बल ारा बढ़ते ए एवं अ धक धन के वामी हो. तुम हम श ु वनाशक एवं थूल अ दो. (२) उपो ह य दथं वा जनो गुध भ व ाः म त म छमानाः. अव तो न का ां न माणा इ ा नी जो वतो नर ते.. (३) ह धारण करने वाले, बु मान् इं एवं अ न क कृपा चाहने वाले जो यजमान अपनी कमभावना ारा य को ा त करते ह, वे ही नेता लोग इं व अ नसंबंधी य कम को ा त करके उसी कार उ ह बार-बार बुलाते ह, जैसे घोड़ा शी ही यु भू म को ा त कर लेता है. (३) गी भ व ः म त म छमान ई े र य यशसं पूवभाजम्. इ ा नी वृ हणा सुव ा नो न े भ तरतं दे णैः.. (४) हे इं एवं अ न! तु हारी कृपाबु क इ छा करने वाले व स वंशी व यश दे ने वाले एवं सव थम उपभोग यो य धन पाने के लए तु हारी तु त करते ह. हे श ुनाशक एवं शोभन आयुध वाले इं व अ न! नवीन एवं दानयो य धन ारा हम बढ़ाओ. (४) सं य मही मथती पधमाने तनू चा शूरसाता यतैते. अदे वयुं वदथे दे वयु भः स ा हतं सोमसुता जनेन.. (५) हे इं एवं अ न! महान्, एक सर का नाश करती ई एक सरी को ललकारती ई एवं यु का य न करती ई श ुसेना को अपने तेज ारा न करो. तुम सोमरस नचोड़ने वाले एवं दे व क अ भलाषा करने वाले यजमान क सहायता से दे व क कामना न करने वाले लोग का नाश करो. (५) इमामु षु सोमसु तमुप न ए ा नी सौमनसाय यातम्. नू च प रम नाथे अ माना वां श ववृतीय वाजैः.. (६) इं एवं अ न! मै ीभाव पाने के लए हमारे इस सोमरस नचोड़ने के उ सव म आओ. तुम हमारे अ त र कसी को भी मत जानो. वे केवल हम ही जानते ह, इस लए हम अ धक अ ारा बुलाते ह. (६) सो अ न एना नमसा स म ोऽ छा म ं व ण म ं वोचेः. य सीमाग कृमा त सु मृळ तदयमा द तः श थ तु.. (७) हे अ न! तुम इस अ ारा व लत होकर म , इं एवं व ण से कहो क वह मेरा भ है. हम लोग से जो अपराध आ है, उससे हमारी र ा करो. अयमा तथा अ द त हमारे अपराध को हमसे र कर. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एता अ न आशुषाणास इ ीयुवोः सचा य याम वाजान्. मे ो नो व णुम तः प र य यूयं पात व त भः सदा नः.. (८) हे अ न! शी तापूवक इस य का सहारा लेते ए हम एक साथ तु हारे ारा दया आअ ा त कर. इं , व णु एवं म द्गण हम यागकर सरे को न दे ख. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा सदा हमारी र ा करो. (८)
दे वता—इं व अ न
सू —९४ इयं वाम य म मन इ ा नी पू
तु तः. अ ाद्वृ
रवाज न.. (१)
हे इं एवं अ न! इस तोता से यह उ म तु त उसी कार उ प बादल से वषा होती है. (१)
ई है, जस कार
शृणुतं ज रतुहव म ा नी वनतं गरः. ईशाना प यतं धयः.. (२) हे इं एवं अ न! तुम तोता क पुकार सुनो और उसक सबके वामी हो, इस लए य कम को पूरा करो. (२)
तु त वीकार करो. तुम
मा पाप वाय नो नरे ा नी मा भश तये. मा नो रीरधतं नदे .. (३) हे नेता इं एवं अ न! हम हीनभाव, पराजय एवं नदा के वश म मत करना. (३) इ े अ ना नमो बृह सुवृ
मेरयामहे. धया धेना अव यवः.. (४)
हम अपनी र ा क अ भलाषा से व तृत ह स हत- तु तवचन इं एवं अ न के पास भेजते ह. (४) ता ह श
प अ , शोभन तु त एवं य कम-
त ईळत इ था व ास ऊतये. सबाधो वाजसातये.. (५)
बु मान् लोग अपनी र ा के लए इं व अ न दोन क इस कार तु त करते ह. समान क भोगने वाले लोग अ पाने के लए तु त करते ह. (५) ता वां गी भ वप यवः य व तो हवामहे. मेधसाता स न यवः.. (६) तु त करने के इ छु क ह अ से यु एवं धन क अ भलाषा वाले हम य का फल पाने के लए तु त ारा उन दोन को बुलाते ह. (६) इ ा नी अवसा गतम म यं चषणीसहा. मा नो ःशंस ईशत.. (७) हे श ु
को हराने वाले इं एवं अ न! तुम अ लेकर हमारे पास आओ. बुरे वचन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बोलने वाला हमारा वामी न बने. (७) मा क य नो अर षो धू तः णङ् म य य. इ ा नी शम य छतम्.. (८) हे इं एवं अ न! हम कसी भी मनु य ारा हसा ा त न हो. हम तुम सुख दो. (८) गोम
र यव सु य ाम ावद महे. इ ा नी त नेम ह.. (९)
हे इं एवं अ न! हम तुमसे जन गाय , वण एवं अ उसका हम उपभोग कर. (९)
से यु
धन को मांगते ह,
य सोम आ सुते नर इ ा नी अजोहवुः. स तीव ता सपयवः.. (१०) सोमरस नचुड़ जाने पर य कम के नेता जनसेवा क अ भलाषा से उ म घोड़ वाले इं एवं अ न को बार-बार बुलाते ह. (१०) उ थे भवृ ह तमा या म दाना चदा गरा. आङ् गूषैरा ववासतः.. (११) हम उ थ , तु तय एवं तो अ न क सेवा करते ह. (११)
ारा श ुनाशक म
े एवं अ तशय स इं एवं
ता वद् ःशंसं म य व ांसं र वनम्. आभोगं ह मना हतमुद ध ह मना हतम्.. (१२) हे इं एवं अ न! तुम वचार एवं बुरे ान वाले, श शाली एवं हमारी संप का अपहरण करने वाले मनु य को आयुध ारा इस कार न करो जैसे घड़ा फोड़ा जाता है. (१२)
सू —९५
दे वता—सर वती
ोदसा धायसा स एषा सर वती ध णमायसी पूः. बाबधाना र येव या त व ा अपो म हना स धुर याः.. (१) यह सर वती नद लोहे के ारा बनी नगरी के समान सबको धारण करती ई ाणघातक जल के साथ बहती है. जस कार सार थ सबको पीछे छोड़कर आगे नकल जाता है, उसी कार यह अपनी म हमा ारा सब जलपूण न दय को बाधा दे कर आगे बढ़ती है. (१) एकाचेत सर वती नद नां शु चयती ग र य आ समु ात्. राय ेत ती भुवन य भूरेघृतं पयो हे ना षाय.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सभी न दय म प व एवं पवत से नकलकर सागर तक जाने वाली सर वती नद ने ही केवल राजा न ष क ाथना को समझा. सर वती ने न ष को सारे संसार का पया त धन दान करके ध का दोहन कया था. (२) स वावृधे नय योषणासु वृषा शशुवृषभो य यासु. स वा जनं मघव यो दधा त व सातये त वं मामृजीत.. (३) मानव का हत एवं वषा करने वाले सर वान् नामक वायु य के यो य ी अथात् जरासमूह के बीच वृ को ा त ए. वे ह धारण करने वाले यजमान को श शाली संतान दे ते ह एवं उनके क याण के लए शरीर का सं कार करते ह. (३) उत या नः सर वती जुषाणोप वत् सुभगा य े अ मन्. मत ु भनम यै रयाना राया युजा च रा स ख यः.. (४) शोभनधन वाली सर वती स होकर इस य म हमारी तु त सुन. घुटने टे ककर समीप जाने वाले दे व से यु सर वती धन से न य संप होकर अपने म के लए मशः दया वाली बन. (४) इमा जु ाना यु मदा नमो भः त तोमं सर व त जुष व. तव शम यतमे दधाना उप थेयाम शरणं न वृ म्.. (५) हे सर वती! इस य का हवन करते ए हम लोग तु तय ारा तुमसे धन ा त करगे. तुम हमारी तु त वीकार करो. हम तु हारे सवा धक य घर म रहते ए तु हारे साथ इस कार मलगे, जस कार प ी अपने आ य थल वृ से मलते ह. (५) अयमु ते सर व त व स ो ारावृत य सुभगे ावः. वध शु े तुवते रा स वाजान् यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे शोभनधन वाली सर वती! यह व स तु हारे लए य के ार खोलता है. हे उ वल वण वाली सर वती दे वी! तुम वृ ा त करो एवं तोता को अ दो. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारा सदा पालन करो. (६)
सू —९६
दे वता—सर वती व सर वान्
बृह गा यषे वचोऽसुया नद नाम्. सर वती म महया सुवृ भः तोमैव स रोदसी.. (१) हे व स ! तुम न दय म सवा धक श शा लनी सर वती के लए तो का गान करो एवं ावा-पृ थवी म थत सर वती क पूजा दोषहीन तो ारा करो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उभे य े म हना शु े अ धसी अ ध य त पूरवः. सा नो बो य व ी म सखा चोद राधो मघोनाम्.. (२) हे उ वल वण वाली सर वती! तु हारी म हमा से मनु य द एवं पा थव दोन कार का अ ा त करता है. तुम र ा वाली बनकर हम जानो एवं म त क सखी के प म ह दाता को धन दान करो. (२) भ म ा कृणव सर व यकवारी चेत त वा जनीवती. गृणाना जमद नव तुवाना च व स वत्.. (३) क याण करने वाली सर वती हमारा क याण ही कर. शोभन ग त वाली एवं अ वा मनी सर वती हम म बु उ प कर. म जमद न के समान तु हारी तु त कर रहा ं. तुम व स अथात् मेरे उपयु तो पाओ. (३) जनीय तो व वः पु ीय तः सुदानवः. सर व तं हवामहे.. (४) प नी एवं पु क कामना करने वाले एवं शोभन दानयु तु त करते ह. (४)
हम तोता नामक दे व क
ये ते सर व ऊमयो मधुम तो घृत तः. ते भन ऽ वता भव.. (५) हे सर वान् दे व! तु हारा जो जलसमूह रसयु र ा करो. (५)
एवं वषा करने वाला है, उसीसे हमारी
पी पवांसं सर वतः तनं यो व दशतः. भ ीम ह जा मषम्.. (६) हम सबके दशनीय एवं बु एवं अ ा त कर. (६)
सू —९७
शाली सर वान् दे व के जलधारक तो को पाकर बु
दे वता—इं आ द
य े दवो नृषदने पृ थ ा नरो य दे वयवो मद त. इ ाय य सवना न सु वे गम मदाय थमं वय .. (१) जस य म दे व क कामना करने वाले ऋ वज् स होते ह, जस य म धरती के नेता इं के न म हर बार सोमरस नचोड़ते ह, इं स ता पाने के लए उसी य म वग से सव थम आव एवं उनके घोड़े भी आव. (१) आ दै ा वृणीमहेऽवां स बृह प तन मह आ सखायः. यथा भवेम मी षे अनागा यो नो दाता परावतः पतेव.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म ो! हम अ भलाषापूरक बृह प त के त इस कार पापर हत बन क वे उसी कार धन लाकर द, जस कार पता र दे श से धन लाकर पु को स पता है. (२) तमु ये ं नमसा ह व भः सुशेवं ण प त गृणीषे. इ ं ोको म ह दै ः सष ु यो णो दे वकृत य राजा.. (३) म अ तशय स एवं शोभन मुख वाले बृह प त क तु त नम कार एवं ह अ ारा करता ं. दे व के यो य हमारा मं इं क सेवा करे. इं दे व ारा न मत तो के वामी ह. (३) स आ नो यो न सदतु े ो बृह प त व वारो यो अ त. कामो रायः सुवीय य तं दा पष ो अ त स तो अ र ान्.. (४) वे बृह प त हमारे य थान पर बैठ जो सबके ारा वरण करने यो य ह. वे हमारी धन एवं उ मबल से संबं धत अ भलाषा को पूरा कर. हम उप व त को वे हसा से बचाकर श ु के पास प ंचाव. (४) तमा नो अकममृताय जु ममे धासुरमृतासः पुराजाः. शु च दं यजतं प यानां बृह प तमनवाणं वेम.. (५) सव थम उ प ए मरणर हत दे वगण हम पूजा का साधन प अ अ धक मा ा म द. प व तु तय वाले, गृह थ ारा यजनीय एवं पराभवर हत बृह प त को हम बुलाते ह. (५) तं श मासो अ षासो अ ा बृह प त सहवाहो वह त. सह य नीलव सध थं नभो न पम षं वसानाः.. (६) सुखकर, तेज वी, मलकर वहन करने वाले एवं सूय के समान काशयु बृह प त को वहन कर. उनके पास श एवं नवास करने यो य घर है. (६)
घोड़े
स
स ह शु चः शतप ः स शु यु हर यवाशी र षरः वषाः. बृह प तः स वावेश ऋ वः पु स ख य आसु त क र ः.. (७) बृह प त प व एवं व वध वाहन वाले ह. वे सबके शोधक ह. वे हतकर एवं रमणीय वाणी बोलते ह. वे गमनशील, वग का भोग करने वाले, शोभन नवास वाले एवं दशनीय ह. वे अपने तोता को े अ दे ते ह. (७) दे वी दे व य रोदसी ज न ी बृह प त वावृधतुम ह वा. द ा याय द ता सखायः करद् णे सुतरा सुगाधा.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बृह प त दे व को उ प करने वाली ावा-पृ थवी प दे वी अपनी म हमा से उ ह बढ़ाव. हे म ो! तुम भी बढ़ाने यो य बृह प त को बढ़ाओ. उ ह ने अ वृ के लए सुख से तरण करने यो य एवं नान म जल को बनाया है. (८) इयं वां ण पते सुवृ े ाय व णे अका र. अ व ं धयो जगृतं पुर धीजज तमय वनुषामरातीः.. (९) हे हमण प त! मने यह शोभन वचन पी तु त तु हारे एवं व धारी इं के लए बनाई है. तुम हमारे य क र ा करो, अनेक तु तयां सुनो एवं हम भ पर आ मण करने वाली श ुसेना का नाश करो. (९) बृह पते युव म व वो द येशाथे उत पा थव य. ध ं र य तुवते क रये च ूयं पात व त भः सदा नः.. (१०) हे बृह प त! तुम एवं इं दोन कार के पा थव एवं द धन के वामी हो. इस लए तुम तु तक ा को धन दे ते हो. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारा सदा पालन करो. (१०)
सू —९८
दे वता—इं व बृह प त
अ वयवोऽ णं धमंशुं जुहोतन वृषभाय तीनाम्. गौरा े द याँ अवपान म ो व ाहे ा त सुतसोम म छन्.. (१) हे अ वयु लोगो! मानव म े इं के लए चकर एवं नचोड़े ए सोमरस को भट करो. गौरमृग र थत जल को जानकर जस तेजी से आता है, इं पीने यो य सोम का ान होने पर सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को खोजते ए उससे भी तेजी से आते ह. (१) य धषे द व चाव ं दवे दवे पी त मद य व . उत दोत मनसा जुषाण उश थतान् पा ह सोमान्.. (२) हे इं ! बीते ए दन म जस शोभन अ प सोम को तुम धारण करते थे, अब भी त दन उसी सोम को पीने क अ भलाषा करो. हे इं ! तुम दय एवं मन से हमारे क याण क कामना करते ए स मुख रखे सोम को पओ. (२) ज ानः सोमं सहसे पपाथ ते माता म हमानमुवाच. ए प ाथोव१ त र ं युधा दे वे यो व रव कथ.. (३) हे इं ! तुमने ज म लेते ही बल ा त के लए सोमरस पया था. माता अ द त ने तु हारी म हमा का वणन कया. तुमने व तृत आकाश को अपने तेज से भर दया था. तुमने यु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा दे व के लए धन ा त कया. (३) य ोधया महतो म यमाना सा ाम तान् बा भः शाशदानान्. य ा नृ भवृत इ ा भयु या तं वया ज सौ वसं जयेम.. (४) हे इं ! अपने आपको बड़ा मानने वाले यो ा के साथ तुम जब हमारा यु कराओगे, तब उन हसक श ु को हम हाथ से ही हरा दगे. हे इं ! य द म त को साथ लेकर तुम वयं यु करोगे, तो हम तु हारी सहायता से उस शोभन अ ा त वाले यु म वजय पाएंगे. (४) े य वोचं थमा कृता न नूतना मघवा या चकार. यदे ददे वीरस ह माया अथाभव केवलः सोमो अ य.. (५) म इं के ाचीन काय का वणन करता ं. इं ने जो नए काय कए ह, म उ ह भी कहता ं. इं ने असुर क माया को परा जत कया है, इस लए सोमरस केवल इं के लए ही है. (५) तवेदं व म भतः पश १ ं य प य स च सा सूय य. गवाम स गोप तरेक इ भ ीम ह ते यत य व वः.. (६) हे इं ! ा णय के लए हतकारक व चार ओर थत है. उसे तुम सूय के काश क सहायता से दे खते हो. यह व तु हारा ही है. एकमा तु ह गाय के वामी हो. हम तु हारे ारा दया आ धन भोगते ह. (६) बृह पते युव म व वो द येशाथे उत पा थव य. ध ं र य तुवते क रये च ूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे बृह प त! तुम एवं इं दोन कार के पा थव एवं द धन के वामी हो. इस लए तुम तु तक ा को धन दे ते हो. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारा सदा पालन करो. (७)
सू —९९
दे वता—इं व व णु
परो मा या त वा वृधान न ते म ह वम व ुव त. उभे ते व रजसी पृ थ ा व णो दे व वं परम य व से.. (१) हे व णु! श द, पश आ द पंचत मा ा से अतीत तु हारा शरीर जब वामन अवतार के समय बढ़ता है, तब तु हारी म हमा कोई नह जान सकता. हम तु हारे दो लोक अथात् धरती एवं अंत र को जानते ह, पर परम लोक को तुम ही जानते हो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न ते व णो जायमानो न जातो दे व म ह नः परम तमाप. उद त ना नाकमृ वं बृह तं दाधथ ाच ककुभं पृ थ ाः.. (२) हे व णुदेव! धरती पर ज म ा त एवं भ व य म उ प होने वाल म कोई भी तु हारी म हमा का अंत नह पा सकता. तुमने दशनीय एवं वशाल वगलोक ऊपर धारण कया है. तुमने पृ वी क पूव दशा को भी धारण कया है. (२) इरावती धेनुमती ह भूतं सूयव सनी मनुषे दश या. त ना रोदसी व णवेते दाधथ पृ थवीम भतो मयूखैः.. (३) हे ावा-पृ थवी! तुम तोता मनु य को दान करने क अ भलाषा से अ , धेनु एवं शोभन जौ से यु ई हो. हे व णु! तुमने ावा-पृ थवी को अनेक कार से धारण कया है. तुमने पृ वी को सव थत पवत क सहायता से धारण कया है. (३) उ ं य ाय च थु लोकं जनय ता सूयमुषासम नम्. दास य चद्वृष श य माया ज नथुनरा पृतना येषु.. (४) हे इं एवं व णु! तुम दोन ने सूय, उषा एवं अ न को उ प करके यजमान के लए व तृत वगलोक को बनाया है. हे नेताओ! तुमने वृष श नामक दास क माया को यु म समा त कर दया था. (४) इ ा व णू ं हताः श बर य नव पुरो नव त च थ म्. शतं व चनः सह ं च साकं हथो अ यसुर य वीरान्.. (५) हे इं एवं व णु! तुमने शंबर असुर क सु ढ़ न यानवे नग रय को समा त कया था. तुमने व च नामक असुर के सैकड़ और हजार वीर को न कया. (५) इयं मनीषा बृहती बृह तो मा तवसा वधय ती. ररे वां तोमं वदथेषु व णो प वत मषो वृजने व .. (६) हमारी यह वशाल तु त महान्, व मशाली एवं श शाली इं व व णु को बढ़ाएगी. हे इं एवं व णु! हमने य म तु हारी तु त क है. यु म तुम हमारा अ बढ़ाना. (६) वषट् ते व णवास आ कृणो म त मे जुष व श प व ह म्. वध तु वा सु ु तयो गरो मे यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे व णु! म य म तु हारे लए अपने मुख से वषट् श द बोलता .ं हे तेज वी व णु! तुम हमारे ह को वीकार करो. हमारी शोभन तु त के वा य तु हारी वृ कर. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारा सदा पालन करो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१००
दे वता— व णु
नू मत दयते स न य यो व णव उ गायाय दाशत्. यः स ाचा मनसा यजात एताव तं नयमा ववासात्.. (१) जो मनु य ब त से लोग ारा शंसायो य व णु को ह दे ता है, एक साथ ब त से मं बोलकर पूजा करता है एवं मानव हतकारी व णु क सेवा करता है, वह मनु य अपने इ छत धन को शी ा त करता है. (१) वं व णो सुम त व ज याम युतामेवयावो म त दाः. पच यथा नः सु वत य भूरेर ावतः पु य रायः.. (२) हे व णु! तुम हम पर ऐसी कृपा करो जो सबका हत करने वाली एवं दोषहीन हो. तुम ऐसी कृपा करो, जससे भली कार ा त करने यो य, अनेक अ से यु एवं ब त को स करने वाला धन ा त हो. (२) दवः पृ थवीमेष एतां व च मे शतचसं म ह वा. व णुर तु तवस तवीया वेषं य थ वर य नाम.. (३) व णुदेव ने सौ करण वाली धरती पर अपनी म हमा से तीन बार चरण रखा. वृ भी वृ व णु हमारे वामी ह . वृ ा त व णु का प तेजशाली है. (३)
से
व च मे पृ थवीमेष एतां े ाय व णुमनुषे दश यन्. ुवासो अ य क रयो जनास उ त सुज नमा चकार.. (४) धरती को मानव के नवास के न म दे ने के वचार से व णु ने उस पर तीन बार चरण रखे. व णु के तोता न ल हो जाते ह. शोभन ज म वाले व णु ने व तृत नवास थान बनाया है. (४) त े उ श प व नामायः शंसा म वयुना न व ान्. तं वा गृणा म तवसमत ा य तम य रजसः पराके.. (५) हे तेज वी व णु! तु तय के वामी एवं जानने यो य बात को जानने वाले हम आज तु हारे स नाम को कहगे. हम वृ र हत होकर भी अ यंत वृ शाली तु हारी तु त करगे. तुम रज अथात् धरालोक के परे रहते हो. (५) क म े व णो प रच यं भू य व े श प व ो अ म. मा वप अ मदप गूह एत द य पः स मथे बभूथ.. (६) हे व णु! म तु हारा नाम करण से यु
बताता ं. इस नाम को वीकार न करना या
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु ह उ चत है? तुमने यु छपाओ. (६)
म सरा
प धारण कया था. तुम हमसे अपना
प मत
वषट् ते व णवास आ कृणो म त मे जुष व श प व ह म्. वध तु वा सु ु तयो गरो मे यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे व णु! म य म तु हारे लए अपने मुख से वषट् श द बोलता .ं हे तेज वी व णु! तुम हमारे ह को वीकार करो. हमारी शोभन तु त के वा य तु हारी वृ कर. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारा सदा पालन करो. (७)
सू —१०१
दे वता—पज य
त ो वाचः वद यो तर ा या एत े मधुदोघमूधः. स व सं कृ वन् गभमोषधीनां स ो जातो वृषभो रोरवी त.. (१) हे ऋ ष! उ ह तीन वचन को बोलो, जनके अ भाग म ओम है एवं जो जल का दोहन करते ह. पज य अपने साथ रहने वाली बजली पी अ न को उ प करते ह एवं ओष धय म गभ धारण करते ह. वे शी उ प होकर बैल के समान बार-बार श द करते ह. (१) यो वधन ओषधीनां यो अपां यो व य जगतो दे व ईशे. स धातु शरणं शम यंस वतु यो तः व भ ् य१ मे.. (२) ओष धय एवं जल को बढ़ाने वाले तथा सारे संसार के वामी पज य तीन कार क भू मय से यु घर एवं सुख दान कर. पज य हम तीन ऋतु म रहने वाली शोभन यो त द. (२) तरी व व त सूत उ व थावशं त वं च एषः. पतुः पयः त गृ णा त माता तेन पता वधते तेन पु ः.. (३) पज य का एक प ब चे दे ने म असमथ बूढ़ गाय के समान है और सरा प गाय के समान जल सव करने वाला है. पज य इ छानुसार अपना शरीर बदलते ह. धरती माता भूलोक पी पता से जल पी ध लेती है. इसके पता एवं ा णवग पी पु बढ़ते ह. (३) य मन् व ा न भुवना न त थु त ो ाव ेधा स ुरापः. यः कोशास उपसेचनासो म वः ोत य भतो वर शम्.. (४) पज य दे व वे ह, जन म सभी भुवन थत ह. उन म ुलोक आ द तीन लोक थत ह एवं जन म तीन थान से जल टपकता है. सबके भगोने वाले तीन कार के मेघ पज य के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
चार ओर जल बरसाते ह. (४) इदं वचः पज याय वराजे दो अ व तरं त जुजोषत्. मयोभुवो वृ यः स व मे सु प पला ओषधीदवगोपाः.. (५) वयं द त पज य के न म यह तो बनाया गया है. पज य यह तो यह उनके मन को भावे. हमारा सुख नमाण करने वाली वषा हो. पज य ओष धयां फलवती ह . (५)
वीकार कर. ारा सुर त
स रेतोधा वृषभः श तीनां त म ा मा जगत त थुष . त म ऋतं पातु शतशारदाय यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) वे पज य अनेक ओष धय के लए बैल के समान वीय धारण करते ह. थावर और जंगम क आ मा पज य म ही थत है. पज य ारा बरसाया आ जल सौ वष तक जी वत रहने के लए मेरी र ा करे. हे दे वो! तुम क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (६)
दे वता—पज य
सू —१०२ पज याय
गायत दव पु ाय मी
षे. स नो यवस म छतु.. (१)
हे तोताओ! अंत र के पु एवं सेचन करने वाले पज य के लए तु तयां गाओ. (१) यो गभमोषधीनां गवां कृणो यवताम्. पज यः पु षीणाम्.. (२) पज य दे व ओष धय , गाय , घो ड़य एवं
य म गभ धारण करते ह. (२)
त मा इदा ये ह वजुहोता मधुम मम्. इळां नः संयतं करत्.. (३) उ ह पज य दे व के न म दे व के मुख प अ न म अ तशय मधुर ह करो. पज य हमारे लए न त अ द. (३)
सू —१०३
का होम
दे वता—मंडूक
संव सरं शशयाना ा णा तचा रणः. वाचं पज य ज वतां म डू का अवा दषुः.. (१) मढक त करने वाले तोता क तरह एक वष तक सोने के बाद बादल के स ताकारक वाणी बोलते ह. (१) द ा आपो अ भ यदे नमाय
त न शु कं सरसी शयानम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
त
गवामह न मायुव सनीनां म डू कानां व नुर ा समे त.. (२) मढक सूखे चमड़े के समान तालाब म सोए ए थे. वग का जल जब उन पर बरसता है, तब वे बछड़े वाली गाय के समान श द करने लगते ह. (२) यद मेनाँ उशतो अ यवष ृ यावतः ावृ यागतायाम्. अ खलीकृ या पतरं न पु ो अ यो अ यमुप वद तमे त.. (३) वषा ऋतु आने पर जब पज य अ भलाषा करने वाले एवं यासे मढक पर जल बरसाते ह, उस समय मढक ‘अ खल’ श द करते ए एक- सरे के पास इस कार जाते ह, जस कार खल खलाता आ बालक पता के पास जाता है. (३) अ यो अ यमनु गृ णा येनोरपां सग यदम दषाताम्. म डू को यद भवृ ः क न क पृ ः स पृङ् े ह रतेन वाचम्.. (४) जल बरसने के समय दो कार के मढक स होते ह एवं वषा के जल से भीगकर लंबी छलांग लगाते ह. भूरे रंग का मढक हरे रंग वाले मढक के साथ अपना वर मलाता है. उस समय एक मढक सरे पर अनु ह करता है. (४) यदे षाम यो अ य य वाचं शा येव वद त श माणः. सव तदे षां समृधेव पव य सुवाचो वदथना य सु.. (५) जब एक मढक सरे के श द का इस तरह अनुकरण करता है, जस तरह श य गु के श द दोहराता है एवं जल के ऊपर उछलते ए सब मढक श द करते ह. हे मढको! उस समय तु हारे शरीर के सभी जोड़ ठ क हो जाते ह. (५) गोमायुरेको अजमायुरेकः पृ रेको ह रत एक एषाम्. समानं नाम ब तो व पाः पु ा वाचं प पशुवद तः.. (६) मढक म से कोई गाय क तरह बोलता है और कोई बकरी क तरह. एक का रंग भूरा होता है और सरे का हरा. एक नाम धारण करते ए सब भ प वाले होते ह. मढक भ भ कार के श द करते ए कट होते ह. (६) ा णासो अ तरा े न सोमे सरो न पूणम भतो वद तः. संव सर य तदहः प र य म डू काः ावृषीणं बभूव.. (७) हे मढको! जस दन अ धक वषा हो, उस दन तुम इस कार श द करते ए तालाब म चार ओर घूमो, जस कार अ तरा नामक य म ाहमण सोमरस के चार ओर मं पढ़ते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा णासः सो मनो वाचम त कृ व तः प रव सरीणम्. अ वयवो घ मणः स वदाना आ वभव त गु ा न के चत्.. (८) ये मढक उसी कार बोलते ह, जस कार सोमरस धारण करने वाले तोता वा षक तु त करते ह. वग का आचरण करने वाले ऋ वज के समान धूप से गीले शरीर वाले एवं बल म छपे ए मढक कट होते ह. (८) दे व ह त जुगुपु ादश य ऋतुं नरो न मन येते. संव सरे ावृ यागतायां त ता घमा अ ुवते वसगम्.. (९) नेता के समान ये मढक दे व न मत नयम का पालन करते ह तथा बारह महीन के प म आने वाली ऋतु को न नह करते. एक वष बीतने पर जब वषा आती है तो गरमी के ताप से ःखी मढक गड् ढ से बाहर नकलते ह. (९) गोमायुरदादजमायुरदा पृ रदा रतो नो वसू न. गवां म डू का ददतः शता न सह सावे तर त आयुः.. (१०) गाय क तरह बोलने वाला, बकरी क तरह बोलने वाला, भूरे रंग का एवं हरे रंग का मढक हम सपं दे . हजार ओष धय को उ प करने वाली वषाऋतु म मढक सैकड़ गाएं दे ते ए हमारी आयुवृ कर. (१०)
दे वता—सोम आ द
सू —१०४
इ ासोमा तपतं र उ जतं यपयतं वृषणा तमोवृधः. परा शृणीतम चतो योषतं हतं नुदेथां न शशीतम णः.. (१) हे इं तथा सोम! तुम रा स को क दो तथा उनको न करो. हे अ भलाषापूरको! तुम अंधकार म बढ़ने वाले रा स को नीचे गराओ. तुम अ ानी रा स को परांगमुख करके न करो, जलाओ, मारो, फक दो एवं मनु यभ ी रा स को घायल करो. (१) इ ासोमा समघशंसम य१घं तपुयय तु च र नवाँ इव. षे ादे घोरच से े षो ध मनवायं कमी दने.. (२) हे इं एवं सोम! तुम पाप क शंसा करने वाले रा स को भली कार न करो. तुम अपने तेज ारा संत त रा स को इस कार समा त कर दो, जस कार अ न म डाला आ च लु त हो जाता है. ाहमण से े ष रखने वाले, मांसभ क, डरावने ने वाले एवं कठोरभाषी रा स के त ऐसा वहार करो, जससे उनके त तु हारा सदा े ष रहे. (२) इ ासोमा
कृतो व े अ तरनार भणे तम स
व यतम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यथा नातः पुनरेक नोदय
ाम तु सहसे म युम छवः.. (३)
हे इं एवं सोम! तुम बुरे कम करने वाले रा स को वारक म थल एवं आ यहीन अंधकार म फक कर मारो, जससे एक भी रा स जी वत न उठ सके. ोधयु तु हारा वह स बल रा स को दबाने म समथ हो. (३) इ ासोमा वतयतं दवो वधं सं पृ थ ा अघशंसाय तहणम्. उ तं वय१ पवते यो येन र ो वावृधानं नजूवथः.. (४) हे इं एवं सोम! तुम अंत र से हननसाधन आयुध उ प करो. पाप क शंसा करने वाले के लए तुम धरती से आयुध उ प करो. तुम बादल से उस घातक व को उ प करो जसने बढ़े ए रा स को न कया था. (४) इ ासोमा वतयतं दव पय नत ते भयुवम मह म भः. तपुवधे भरजरे भर णो न पशाने व यतं य तु न वरम्.. (५) हे इं एवं सोम! अंत र के चार ओर आयुध को भेजो. तुम अ न के ारा तपाए ए, संतापदायक, हार वाले, जरार हत एवं प थर से न मत हननसाधन आयुध ारा रा स के आसपास के थान वद ण करो. इससे वे रा स चुपचाप भाग जाएंगे. (५) इ ासोमा प र वां भूतु व त इयं म तः क या ेव वा जना. यां वां हो ां प र हनो म मेधयेमा ा ण नृपतीव ज वतम्.. (६) हे इं एवं सोम! जस कार दोन ओर बंधी ई र सी घोड़े को बांधती है, उसी कार यह तु त तु ह भा वत करे. म बु बल से यह तु त तु हारे पास भेज रहा ं. राजा जस कार धन से मांगने वाले क इ छा पूरी करता है, उसी कार तुम इस तु त को सफल बनाओ. (६) त मरेथां तुजय रेवैहतं हो र सो भङ् गुरावतः. इ ासोमा कृते मा सुगं भू ो नः कदा चद भदास त हा.. (७) हे इं एवं सोम! तुम शी चलने वाले घोड़ क सहायता से आओ. तुम ोही एवं तोड़फोड़ करने वाले रा स को न करो. कम वाले रा स को सुख ा त न हो. वह ोहभावना के कारण हम कभी न कभी मार सकता है. (७) यो मा पाकेन मनसा चर तम भच े अनृते भवचो भः. आपइव का शना सङ् गृभीता अस वासत इ व ा.. (८) हे इं ! जो रा स मुझ स चे मन एवं आचरण वाले को अस यवाद कहता है, वह झूठ बोलने वाला रा स इस कार न हो जाए, जस कार मुट्ठ म बंद पानी समा त हो जाता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. (८) ये पाकशंसं वहर त एवैय वा भ ं षय त वधा भः. अहये वा तान् ददातु सोम आ वा दधातु नऋते प थे.. (९) जो रा स मुझ स यवाद को अपने वाथ के कारण बदनाम करते ह एवं जो बली रा स मुझ भले आदमी को दोषी ठहराते ह, सोमदे व उ ह सांप को दे द अथवा पाप दे व क गोद म धारण कर. (९) यो ना रसं द स त प वो अ ने यो अ ानां यो गवां य तनूनाम्. रपुः तेनः तेयकृ मेतु न ष हीयतां त वा३ तना च.. (१०) हे अ न! जो रा स हमारे अ का रस न करना चाहता है, जो हमारी गाय , घोड़ एवं संतान के सार समा त करना चाहता है, वह श ु, चोर एवं धन छ नने वाला नाश को ा त हो. वह अपने शरीर एवं संतान दोन से नाश को ा त हो. (१०) परः सो अ तु त वा३ तना च त ः पृ थवीरधो अ तु व ाः. त शु यतु यशो अ य दे वा यो ना दवा द स त य न म्.. (११) रा स शरीर एवं संतान दोन से हीन हो. वह तीन लोक के नीचे चला जाए. हे दे वो! जो रा स हम रात- दन मारना चाहता है, उसका यश सूख जाए. (११) सु व ानं च कतुषे जनाय स चास च वचसी प पृधाते. तयोय स यं यतर जीय त द सोमोऽव त ह यासत्.. (१२) व ान् यह बात सरलता से जान सकता है क स य एवं अस य बात म पर पर वरोध होता है, उन म सोम स य एवं सरल बात का पालन करते ह एवं अस य बात का नाश करते ह. (१२) न वा उ सोमो वृ जनं हनो त न ह त र ो ह यास द तमुभा व
यं मथुया धारय तम्. य सतौ शयाते.. (१३)
पापी एवं झूठ बोलने वाला श शाली हो, तब भी सोम उसे नह छोड़ते. वे अस यवाद एवं रा स को मारते ह. ये दोन मरकर इं के बंधन म सोते ह. (१३) य द वाहमनृतदे व आस मोघं वा दे वाँ अ यूहे अ ने. कम म यं जातवेदो णीषे ोघवाच ते नऋथं सच ताम्.. (१४) हे अ न! या म झूठे दे व क भ करता ं अथवा फल न दे ने वाले दे व का उपासक ? ं फर तुम मुझसे य ु हो? झूठ बोलने वाले ही तु हारी हसा वशेष प से ा त कर. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(१४) अ ा मुरीय य द यातुधानो अ म य द वायु ततप पू ष य. अधा स वीरैदश भ व यूया यो मा मोघं यातुधाने याह.. (१५) म व स य द रा स होऊं अथवा म पु ष का जीवन न करता होऊं तो म आज ही मर जाऊं. नह तो जो मुझे थ ही रा स कहकर पुकारता है, उसके दस वीर पु मर जाव. (१५) यो मायातुं यातुधाने याह यो वा र ाः शु चर मी याह. इ तं ह तु महता वधेन व य ज तोरधम पद .. (१६) जो रा स मुझ अरा स को रा स कहता है एवं वयं को प व बतलाता है, उसे इं अपने महान् आयुध ारा न कर द. वह सभी ा णय क अपे ा अधम बन. (१६) या जगा त खगलेव न मप हा त वं१ गूहमाना. व ाँ अन ताँ अव सा पद ावाणो न तु र स उप दै ः.. (१७) जो रा स रात के समय उ लू के समान अपना शरीर छपाकर चलता है, वह नीचे को मुंह करके गहरे गड् ढे म गरे. सोमरस कुचलने के प थर भी अपने श द से उसे न कर. (१७) व त वं म तो व व१ छत गृभायत र सः सं पन न. वयो ये भू वी पतय त न भय वा रपो द धरे दे वे अ वरे.. (१८) हे म तो! तुम जा नीचे उतरते ह अथवा जो एवं पीस डालो. (१८)
म अनेक कार से थत बनो. जो रा स रात म प ी बनकर व लत य म बाधा डालते ह, उ ह अपनी इ छानुसार पकड़ो
वतय दवो अ मान म सोम शतं मघव सं शशा ध. ा ादपा ादधरा द ाद भ ज ह र सः पवतेन.. (१९) हे इं ! अंत र से अपना व चलाओ. हे धन वामी इं ! सोमरस के कारण शी काय करने वाले यजमान को शु करो. तुम अपने पव वाले व ारा पूव, प म, द ण एवं उ र म वतमान रा स को न करो. (१९) एत उ ये पतय त यातव इ ं द स त द सवोऽदा यम्. शशीते श ः पशुने यो वधं नूनं सृजदश न यातुम यः.. (२०) जो रा स कु
के समान झपटते ह एवं जो अ हसनीय इं क हसा करना चाहते ह,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं उन कप टय को मारने के लए अपना व व शी फक. (२०)
तेज करते ह. इं उन रा स के ऊपर अपना
इ ो यातूनामभवत् पराशरो ह वमथीनाम या३ ववासताम्. अभी श ः परशुयथा वनं पा ेव भ द सत ए त र सः.. (२१) इं हसक क भी हसा करने वाले ह. जस कार कु हाड़ा वन को काटता है एवं हथौड़ा बरतन को पीटता है, उसी कार रा स को न करते ए इं ह -मंथन करने वाले एवं अपने स मुख उप थत भ क र ा के लए आते ह. (२१) उलूकयातुं शुशुलूकयातुं ज ह यातुमुत कोकयातुम्. सुपणयातुमुत गृ यातुं षदे व मृण र इ .. (२२) हे इं ! जो रा स उ लु के समान रात म लोग क हसा करते ह, जो भे ड़या, कु ा, चकवा, बाज एवं ग के समान लोग क हसा करते ह, उ ह अपने पाषाण पी व ारा न कर दो. (२२) मा नो र ो अ भ न ातुमावतामपो छतु मथुना या कमी दना. पृ थवी नः पा थवात् पा वंहसोऽ त र ं द ा पा व मान्.. (२३) हम रा स न घेर. क दे ने वाले रा स के जोड़े हमसे र ह . ये रा स या श द कहते ए च कर लगाते ह? पृ वी पा थव पाप से हमारी र ा करे एवं अंत र द पाप से हम बचाए. (२३) इ ज ह पुमांसं यातुधानमुत यं मायया शाशदानाम्. व ीवासो मूरदे वा ऋद तु मा ते श सूयमु चर तम्.. (२४) हे इं ! नर रा स का नाश करो एवं माया ारा सर क हसा करने वाली मादा रा सी को भी न करो. वनाश पी ड़ा करने वाले रा स धड़ के प म पड़े ह एवं उगते ए सूय को न दे ख सक. (२४) त च व व च वे सोम जागृतम्. र ो यो वधम यतमश न यातुम यः.. (२५) हे सोम! तुम एवं इं येक को भां त-भां त से दे खो एवं जागो. तुम रा स के ऊपर अपना व प आयुध फको. (२५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ म मंडल सू —१
दे वता—इं
मा चद य शंसत सखायो मा रष यत. इ म तोता वृषणं सचा सेतु मु था च शंसत.. (१) हे म तोताओ! तुम इं के अ त र कसी क तु त मत करो. तुम ीण मत बनो. सोमरस नचुड़ जाने पर एक होकर अ भलाषापूरक इं क तु त करते ए बार-बार तो बोलो. (१) अव णं वृषभं यथाजुरं गां न चषणीसहम्. व े षणं संवननोभयङ् करं मं ह मुभया वनम्.. (२) हे तोताओ! बैल के समान श ुनाशक, युवा बैल के समान श म ु ानव को जीतने वाले, श ु से े ष रखने वाले, तोता ारा सेवायो य, कृपा ारा द एवं पा थव दोन कार का धन दे ने वाले, दाता म े एवं दोन कार के धन से यु इं क तु त करो. (२) य च वा जना इमे नाना हव त ऊतये. अ माकं े म भूतु तेऽहा व ा च वधनम्.. (३) द हे इं ! ये लोग य प अपनी र ा के लए तु हारी भां त-भां त से तु तयां करते ह परंतु हमारा यह तो तु हारा सदै व वृ कारक हो. (३) व ततूय ते मघवन् वप तोऽय वपो जनानाम्. उप म व पु पमा भर वाजं ने द मूतये.. (४) हे धन वामी इं ! तु हारे व ान् तोता तु हारे श ु लोग को भय के कारण कंपन उ प करते ह एवं बार-बार वप य को पार कर जाते ह. तुम हमारे पास आओ एवं हमारी र ा के लए हम अनेक प वाला एवं समीपवत अ दो. (४) महे चन वाम वः परा शु काय दे याम्. न सह ाय नायुताय व वो न शताय शतामघ.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व धारी इं ! म तु ह अ धकतम मू य म भी नह बेचूंगा. हे हाथ म व रखने वाले इं ! म हजार, दस हजार अथवा असी मत धन के बदले भी नह बेच सकता. (५) व याँ इ ा स मे पतु त ातुरभु तः. माता च मे छदयथः समा वसो वसु वनाय राधसे.. (६) हे इं ! तुम मेरे पता क अपे ा भी अ धक संप शाली हो. तुम मेरे न भागने वाले भाई से भी महान् हो. हे नवासयु इं ! तुम एवं मेरी माता मलकर मुझे ापक धन के लए पू जत करो. (६) वेयथ वेद स पु ा च ते मनः. अल ष यु म खजकृत् पुर दर गाय ा अगा सषुः.. (७) हे इं ! तुम कहां गए? तुम कहां हो? तु हारा मन व भ दशा म रहता है. हे यु कुशल, यु क ा एवं श ुनगरी को भेदने वाले इं ! आओ. तोता तु हारी तु तयां गाते ह. (७) ा मै गाय मचत वावातुयः पुर दरः. या भः का व योप ब हरासदं यास ी भन पुरः.. (८) हे तोताओ! इस इं के लए गाने यो य तु तयां गाओ. श ुनगरी का भेदन करने वाले इं सबके लए सेवा करने यो य ह. जन ऋचा को सुनकर इं व धारण करके क वपु के य म बछे कुश पर बैठे थे एवं श ु क नग रय को तोड़ा था, उ ह ऋचा ारा गाने यो य तु त गाओ. (८) ये ते स त दश वनः श तनो ये सह णः. अ ासो ये ते वृषणो रघु व ते भन तूयमा ग ह.. (९) हे इं ! तु हारे जो दश योजन चलने वाले सौ एवं एक हजार घोड़े ह, वे अ भलाषापूरक एवं शी गामी ह. उन घोड़ क सहायता से यहां शी आओ. (९) आ व१ सब घां वे गाय वेपसम्. इ ं धेनुं सु घाम या मषमु धारामरङ् कृतम्.. (१०) आज म ध दे ने वाली, शंसनीय चाल वाली एवं सरलता से हने यो य इं पी गाय क तु त करता ं. इसके अ त र वह गाय उदक पी अनेक धारा वाली एवं मनचाही वषा करने वाली है. (१०) य ुदत् सूर एतशं वङ् कू वात य प णना. वहत् कु समाजुनेयं शत तु सरद् ग धवम तृतम्.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस समय सूय ने एतश नामक राज ष को ःख दया, उस समय टे ढ़े चलने वाले एवं वायु के समान तेज दौड़ने वाले घोड़ ने अजुन के पु कु स ऋ ष को वहन कया था. व वध कम करने वाले इं करण वाले एवं अपरा जत सूय पर छपकर आ मण करने गए थे. (११) य ऋते चद भ षः पुरा ज ु य आतृदः. स धाता स धं मघवा पु वसु र कता व तं पुनः.. (१२) इं शीश कटने पर र नकलने के पहले ही जोड़ने वाले के अभाव म भी शीश और धड़ को जोड़ दे ते ह. धनवान् एवं अनेक धन के वामी इं अलग-अलग भाग को सुधार दे ते ह. (१२) मा भूम न ् याइवे वदरणा इव. वना न न ज हता य वो रोषासो अम म ह.. (१३) हे इं ! तु हारी कृपा से हम ीण, ःखी एवं शाखाहीन वन के समान संतानहीन न ह . हे व धारी इं ! हम घर म रहते ए तु हारी तु त कर. (१३) अम महीदनाशवोऽनु ास वृ हन्. सकृ सु ते महता शूर राधसानु तोमं मुद म ह.. (१४) हे वृ हंता इं ! हम धीरे-धीरे, उ तार हत एवं भ के साथ तु हारी तु त बोलगे. (१४)
व
ापूवक ह व प महान् धन
य द तोमं मम वद माक म म दवः. तरः प व ं ससृवांस आशवो म द तु तु यावृ ् धः.. (१५) इं य द हमारी तु त सुन ल तो हमारे व भाव से रखे ए, दशाप व भाव ारा शु , एकधन नामक जल से वृ को ा त एवं नशीले सोमरस उ ह स कर सकते ह. (१५) आ व१ सध तु त वावातुः स युरा ग ह. उप तु तमघोनां वाव वधा ते व म सु ु तम्.. (१६) हे इं ! अ य लोग के साथ क जाती ई अपने सेवक तोता क तु त सुनकर शी उसके पास आओ. ह व धारण करने वाले अ य तोता क तु तयां भी तु हारे पास प ंच. इस समय म तु हारी शोभन तु त क कामना करता ं. (१६) सोता ह सोमम भरेमेनम सु धावत. ग ा व ेव वासय त इ रो नधु व णा यः.. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ वयु लोगो! प थर क सहायता से सोमलता का रस नचोड़ो तथा उसे पानी म धोओ. लोग गो ध मले सोमरस को कपड़े से ढककर न दय से जल हते ह. (१७) अध मो अध वा दवो बृहतो रोचनाद ध. अया वध व त वा गरा ममा जाता सु तो पृण.. (१८) हे इं ! तुम धरती अथवा वशाल काशपूण अंत र से आकर मेरी वशाल तु त सुनो और वृ ा त करो. हे शोभन प वाले इं ! मेरी इस व तृत तु त को सुनकर मनु य क अ भलाषा पूरी करो. (१८) इ ाय सु म द तमं सोमं सोता वरे यम्. श एणं पीपय या धया ह वानं न वाजयुम्.. (१९) हे अ वयु लोगो! इं के लए सबसे अ धक नशीला एवं वरण करने यो य सोमरस भट करो. हे इं ! तुम सम त य काय ारा स करने वाले एवं अ चाहने वाले यजमान को उ तशील बनाओ. (१९) मा वा सोम य ग दया सदा याच हं गरा. भू ण मृगं न सवनेषु चु ु धं क ईशानं न या चषत्.. (२०) हे इं ! य म म सोमरस नचोड़कर एवं तु त ारा सदा तुमसे याचना करके तु ह ो धत न बनाऊं. तुम सबके भरणपोषण करने वाले एवं सह के समान भयानक हो. ऐसा कौन है जो सबके वामी तुमसे याचना नह करता. (२०) मदे ने षतं मदमु मु ण े शवसा. व ेषां त तारं मद युतं मदे ह मा ददा त नः.. (२१) अ धक बल से यु इं मादक तोता ारा दया गया नशीला सोमरस पएं. सोमरस का नशा होने पर इं हम श ु को जीतने वाला एवं उनका गव न करने वाला पु द. (२१) शेवारे वाया पु दे वो मताय दाशुषे. स सु वते च तुवते च रासते व गूत अ र ु तः.. (२२) इं दे व य म ह दे ने वाले मनु य को ब त ारा वरण करने यो य धन दे ते ह. सब काम म त पर एवं ेरक ारा शं सत इं सोमरस नचोड़ने वाले एवं तु त करने वाले को धन दे ते ह. (२२) ए या ह म व च ेण दे व राधसा. सरो न ा युदरं सपी त भरा सोमे भ
फरम्.. (२३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं दे व! तुम आओ और दशनीय धन ारा स बनो. तुम म त के साथ पए जाते ए सोमरस से अपने तालाब के समान वशाल उदर को भर लो. (२३) आ वा सह मा शतं यु ा रथे हर यये. युजो हरय इ के शनो वह तु सोमपीतये.. (२४) हे इं ! हम से यु रथ पर ढोव. (२४)
सैकड़ और हजार घोड़े सोमरस पीने के लए तु ह सोने के बने
आ वा रथे हर यये हरी मयूरशे या. श तपृ ा वहतां म वो अ धसो वव ण य पीतये.. (२५) मोर के रंग वाले एवं सफेद पीठ वाले घोड़े तु तयो य मधुर सोमरस पीने के लए इं को सोने के बने रथ म बैठा कर ढोव. (२५) पबा व१ य गवणः सुत य पूवपा इव. प र कृत य र सन इयमासु त ा मदाय प यते.. (२६) हे तु तय ारा शंसनीय इं ! तुम सव थम सोमरस पीने वाले क तरह नचोड़े ए सोमरस को पओ. यह शु , रसीला, नशीला एवं सुंदर सोमरस नशा उ प करने के लए ही बनाया गया है. (२६) य एको अ त दं सना महाँ उ ो अ भ तैः. गम स श ी न स योषदा गम वं न प र वज त.. (२७) जो इं अपने काय ारा एकमा महान् एवं शूर ह, जो सबको परा जत करने वाले एवं सर पर टोप धारण करने वाले ह, केवल वे ही आव एवं हमसे अलग न ह . वे हमारे तो को सुनकर हमारे सामने आव एवं हमारा याग न कर. (२७) वं पुरं च र वं वधैः शु ण य सं पणक्. वं भा अनु चरो अध ता य द ह ो भुवः.. (२८) हे इं ! तुमने शु ण असुर के चलते फरते नवास थान को अपने व से पीस डाला था. हे तोता एवं य क ा—दोन के ारा बुलाने यो य इं ! तुमने तेज वी होकर शु ण असुर का पीछा कया था. (२८) मम वा सूर उ दते मम म य दने दवः. मम प वे अ पशवरे वसवा तोमासो अवृ सत.. (२९) हे नवास थान दे ने वाले इं ! तुम सूय दय के समय, दोपहर होने पर, दन क समा त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पर एवं रात के समय मेरी तु तय को मुझे लौटाओ. (२९) तु ह तुहोदे ते घा ते मं ह ासो मघोनाम्. न दता ः पथी परम या मघ य मे या तथे.. (३०) हे मेधा त थ ऋ ष! तुम मुझ राजा आसंग क बार-बार तु त एवं ाथना करो. म धन वाल म सबसे अ धक धन दे ने वाला ं. मुझ उ त माग एवं े आयुध वाले के बल के सामने सर के घोड़े हार जाते ह. (३०) आ यद ा वन वतः याहं रथे हम्. उत वाम य वसुन केत त यो अ त या ः पशुः.. (३१) हे मेधा त थ! जब घोड़े घास आ द आहार ले चुके, तब मने ास हत उ ह तु हारे रथ म जोड़ा था. य वंश म उ प एवं पशु का वामी म सुंदर धन का दान करना जानता ं. (३१) य ऋ ा म ं मामहे सह वचा हर यया. एष व ा य य तु सौभगास य वन थः.. (३२) जस आसंग राजा ने मुझ मेधा त थ को वणज टत चमा तरण के स हत ग तशील धन दया था, उस आसंग का श द करने वाला रथ श ु क सभी संप य को जीत ले. (३२) अध लायो गर त दासद यानास ो अ ने दश भः सह ैः. अधो णो दश म ं श तो नळाइव सरसो नर त न्.. (३३) हे अ न! लयोग राजा के पु आसंग मुझे दस हजार गाएं दान करके सभी दान करने वाल से आगे नकल गए. जस कार तालाब से कमल नाल नकलते ह, उसी कार आसंग क गोशाला से अ भलाषापूरक एवं द तशाली पशु बाहर नकले. (३३) अ व य थूरं द शे पुर तादन थ ऊ रवर बमाणः. श ती नाय भच याह सुभ मय भोजनं बभ ष.. (३४) आसंग राजा के सामने क ओर बना हड् डी वाला, लंबा एवं नीचे क ओर लटकता आ थूल अथात् पु ष य दे खकर उसक प नी ने कहा—हे आय! भोग का उ म साधन धारण करते हो. (३४)
सू —२
दे वता—इं
इदं वसो सुतम धः पबा सुपूणमुदरम्. अनाभ य रमा ते.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे नवास थान दे ने वाले इं ! इस नचोड़े ए सोमरस को पओ. हे सवथा भयर हत इं ! तु हारे पेट भली कार भर जाव. हम तु ह सोमरस दे ते ह. (१) नृ भधूतः सुतो अ ैर ो वारैः प रपूतः. अ ो न न ो नद षु.. (२) नेता ारा धोया गया, कपड़ क सहायता से नचोड़ा गया एवं मेष के बाल से प व कया गया सोमरस नद म नान कए ए घोड़े के समान शो भत है. (२) तं ते यवं यथा गो भः वा मकम ीण तः. इ
वा म सधमादे .. (३)
हे इं ! जस कार जौ को गाय के ध म मलाकर वा द बनाया जाता है, उसी कार हमने गो ध मलाकर सोमरस को वा द कया है. म वह सोमरस पीने के लए तु ह य से बुलाता ं. (३) इ
इ सोमपा एक इ ः सुतपा व ायुः. अ तदवान् म या .. (४)
दे व एवं मानव के बीच म एकमा इं ही सोमरस पीने वाले ह. वे सोम पीने के लए सब अ से यु ह. (४) न यं शु ो न राशीन तृ ा उ
चसम्. अप पृ वते सुहादम्.. (५)
जस कोमल दय वाले इं को द तवाला सोम, ध आ द से मला सोम तथा तृ त दे ने वाला पुरोडाश अ स नह करता, उसी इं क हम तु त करते ह. (५) गो भयद म ये अ म मृगं न ा मृगय ते. अ भ सर त धेनु भः.. (६) बहे लए जस कार ह रण को खोजते ह, उसी कार हमारे अ त र लोग गो ध आ द से मले सोमरस क सहायता से इं को खोजते ह. वे लोग तु तयां बोलते ए गलत ढं ग से इं के सामने जाते ह, इस लए उ ह ा त नह करते. (६) यइ
य सोमाः सुतासः स तु दे व य. वे ये सुतपाव्नः.. (७)
नचोड़े ए सोमरस को पीने वाले इं दे व के लए य शाला म तीन कार का सोमरस बनाया जावे. (७) यः कोशासः ोत त त
व१: सुपूणाः. समाने अ ध भामन्.. (८)
एक ही य म तीन कार के कलश सोमरस को धारण करते ह एवं तीन चमस भी सोने से पूण ह. (८) शु चर स पु नः ाः ीरैम यत आशीतः. द ना म द ः शूर य.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! तुम प व , अनेक पा सबसे अ धक स करते हो. (९) इमे त इ
म भरे ए एवं ध-दही से म त हो. तुम शूर इं को
सोमा ती ा अ मे सुतासः. शु ा आ शरं याच ते.. (१०)
हे इं ! ये तीखे सोम तु हारे लए ह. हमारे ारा नचोड़े ए एवं द तशाली ध-दही से मले ए सोम तु हारी अ भलाषा करते ह. (१०) ताँ आ शरं पुरोळाश म े मं सोमं ीणी ह. रेव तं ह वा शृणो म.. (११) हे इं ! तुम सोम तथा ध-दही आ द को मलाओ. इस कार म तु ह धन वाले के म समझूं. (११)
प
सु पीतासो यु य ते मदासो न सुरायाम्. ऊधन न ना जर ते.. (१२) हे इं ! जस कार पी ई शराब अतःकरण म पर पर वरोधी भाव उठाकर यु कराती है, उसी कार पया आ सोम भी दय म यु करता है. तोता सोमपूण इं क र ा गाय के थन के समान करते ह. (१२) रेवाँ इ े वतः तोता या वावतो मघोनः. े ह रवः ुत य.. (१३) हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! तुम धनवान् हो. तु हारा तोता भी धनवान् हो, तु हारे समान धनी एवं स का तोता भी धन वाला ही होता है. (१३) उ थं चन श यमानमगोर ररा चकेत. न गाय ं गीयमानम्.. (१४) तु त न करने वाले के श ु इं गाए जाते ए उ थ को जान लेते ह. उस समय गाने यो य गान गाया जाता है. (१४) मा न इ
पीय नवे मा शधते परा दाः. श ा शचीवः शची भः.. (१५)
हे इं ! तुम मुझे हसा करने वाले श ु के हाथ म मत स पना. तुम मुझे परा जत करने वाले के अ धकार म भी मत स पना. हे श शाली इं ! तुम अपने कम ारा हम श शाली बनाओ. (१५) वयमु वा त ददथा इ
वाय तः सखायः. क वा उ थे भजर ते.. (१६)
हे इं ! हम तु हारे म एवं तु हारी कामना करने वाले ह. हम तोता का योजन तु हारी तु त करना है. हम क वगो ीय उ थ मं ारा तु हारी तु त करते ह. (१६) न घेम यदा पपन व
पसो न व ौ. तवे
तोमं चकेत.. (१७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व धारी एवं कमयु इं ! तु हारे इस अ भनव य म म कसी अ य का तो नह बोलता. म केवल तु हारी तु तयां ही जानता ं. (१७) इ छ त दे वाः सु व तं न व ाय पृहय त. य त मादमत ाः.. (१८) दे वता सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को चाहते ह. सोए ए चाहता. दे व तं ाहीन होकर नशीला सोम ा त करते ह. (१८) ओ षु
को कोई नह
या ह वाजे भमा णीथा अ य१ मान्. महाँ इव युवजा नः.. (१९)
हे इं ! तुम अ स हत हमारे सामने भली-भां त आओ. जस कार गुणी प नी पर ोध नह करता, उसी कार तुम हम पर ोध मत करो. (१९) मो व१
युव त
हणावा सायं करदारे अ मत्. अ ीरइव जामाता.. (२०)
हे श ु ारा असहय इं ! आज बुलाने पर हमारे पास आना. जैसे बुरा जमाई बुलाए जाने पर शाम को प ंचता है, ऐसा तुम मत करना. (२०) व ा
य वीर य भू रदावर सुम तम्.
षु जात य मनां स. (२१)
हम इस वीर इं क अ धक धन दे ने वाली क याणबु म उ प इं को जानते ह. (२१)
को जानते ह. हम तीन लोक
आ तू ष च क वम तं न घा व शवसानात्. यश तरं शतमूतेः.. (२२) हे अ वयु! क वगो ीय ऋ षय से यु श शाली एवं सैकड़ र ासाधन से यु जानते. (२२)
इं के लए सोमरस अ पत करो. हम अ तशय इं क अपे ा यश वी कसी अ य को नह
ये ेन सोत र ाय सोमं वीराय श ाय. भरा पब याय. (२३) हे सोमरस नचोड़ने वाले अ वयु! मानव हतकारी, वीर एवं बलशाली इं के लए मुख प म सोमरस दो. इं सोमरस पएं. (२३) यो वे द ो अ
थ व ाव तं ज रतृ यः. वाजं तोतृ यो गोम तम्.. (२४)
जो इं सुखकारक तोता को भली कार जानते ह, वे य और गाय से यु अ द. (२४)
और तोता
को घोड़
प यंप य म सोतार आ धावत म ाय. सोमं वीराय शूराय.. (२४) हे सोमरस नचोड़ने वालो! तुम म करने यो य, वीर एवं शूर इं के लए सब जगह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु तयो य सोमरस दो. (२५) पाता वृ हा सुतमा घा गम ारे अ मत्. न यमते शतमू तः.. (२६) सोमरस पीने वाले एवं वृ नाशक इं आव. वे हमसे र न जाव. सैकड़ र ासाधन वाले इं श ु को वश म कर. (२६) एह हरी
युजा श मा व तः सखायम्. गी भः ुतं गवणसम्.. (२७)
ह अ से यु एवं सुखकारक घोड़े तु तय इं को यहां ले आव. (२७)
ारा
स
एवं सेवा करने यो य म
वादवः सोमा आ या ह ीताः सोमा आ या ह. श ृषीवः शचीवो नायम छा सधमादम्.. (२८) हे शर ाण वाले, ऋ षय से यु एवं श शाली इं ! यह सोम वा द है. तुम आओ. सोम म ध-दही को मला दया गया है. तुम आओ. ये तोता इस समय तु ह अपने सामने बुलाते ह. (२८) तुत या वा वध त महे राधसे नृ णाय. इ
का रणं वृध तः.. (२९)
हे इं ! य कम करने वाल को बढ़ाते ए तोता एवं तो धन एवं बल पाने के लए तु हारी वृ करते ह. (२९) गर या ते गवाह उ था च तु यं ता न. स ा द धरे शवां स.. (३०) हे तु तय ारा वहन करने यो य इं ! तु हारे न म जो तु तयां एवं उ थ ह, वे सब एक होकर तु हारी श को धारण करते ह. (३०) एवेदेष तु वकू मवाजाँ एको व ह तः. सनादमृ ो दयते.. (३१) इं अनेक कम करने वाले, अ तीय एवं व धारी ह. श ु तोता को अ दे ते ह. (३१) ह ता वृ ं द णेने ः पु
पु
ारा सदा अपराजेय इं
तः. महा मही भः शची भः.. (३२)
ब त से लोग ारा अनेक बार बुलाए गए एवं महान् कम हाथ से वृ का नाश करते ह. (३२) य मन् व ा षणय उत यौ ना
ारा महान् इं अपने दा हने
यां स च. अनु घे म द मघोनः.. (३३)
सभी जाएं जनके अधीन ह, जन म युत न होने वाली श ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं जो श ु को हराने
वाले ह, वे ही इं अपने यजमान के अनुकूल बनते ह. (३३) एष एता न चकारे ो व ा योऽ त शृ वे. वाजदावा मघोनाम्.. (३४) (३४)
सव
स
एवं ह
भता रथं ग
धारणक ा
को अ दे ने वाले इं ने ये सारे काम कए ह.
तमपाका च मव त. इनो वसु स ह वो हा.. (३५)
हार करने वाले इं जस ग तशील एवं गाय क कामना करने वाले तोता को अप वबु वाले तोता के च कर से बचाते ह, वह तोता धन का वामी बनकर ह वहन करता है. (३५) स नता व ो अव
ह ता वृ ं नृ भः शूरः. स योऽ वता वध तम्.. (३६)
बु मान् इं घोड़ क सहायता से इ छत थान पर जाते ह. शूर इं नेता म त क सहायता से वृ को मारते ह. वे अपने यजमान के स चे र क ह. (३६) यज वैनं
यमेधा इ ं स ाचा मनसा. यो भू सोमैः स यम ा.. (३७)
हे यमेध ऋ ष! इं के पीकर स होते ह. (३७)
त
ा रख कर य करो. सफल कृपा वाले इं सोमरस
गाथ वसं स प त व कामं पु मानम्. क वासो गात वा जनम्.. (३८) हे क वगो ीय ऋ षयो! तुम गाने यो य यश वाले, स जन के पालक, अ के इ छु क, अनेक दे श म जाने वाले एवं ग तशील इं क तु त करो. (३८) य ऋते चद्गा पदे यो दात् सखा नृ यः शचीवान्. ये अ म काम यन्.. (३९) म व शोभनकम वाले इं ने गाय के पैर के नशान न होने पर भी गाएं खोजकर दे व को द थ . दे व ने इं के ारा अपनी अ भलाषा पूण क . (३९) इ था धीव तम वः का वं मे या त थम्. मेषो भूतो३ भ य यः.. (४०) हे व धारी इं ! तुमने बादल के प म ग त करते ए सामने जाकर क व के पु मेधा त थ ऋ ष को ा त कया था. (४०) श ा व भ दो अ मै च वाययुता ददत्. अ ा परः सह ा.. (४१) हे राजा व भ ! तुमने दाता बनकर मुझे चालीस हजार गाएं द ह. तुमने मुझे बाद म आठ हजार और द ह. (४१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत सु ये पयोवृधा माक रण य न या. ज न वनाय मामहे.. (४२) मने धन उ प के लए सव स , जल बढ़ाने वाले, तु तक ा के त दयालु ावा-पृ थवी क तु त क थी. (४२)
ा णय के नमाता एवं
दे वता—राजा पाक थामा व इं
सू —३
पबा सुत य र सनो म वा न इ गोमतः. आ पन बो ध सधमा ो वृध३ े ऽ माँ अव तु ते धयः.. (१) हे इं ! हमारे नचोड़े ए सरस एवं गो धयु सोमरस को पीकर स बनो. हे हमारे साथ स होने यो य इं ! तुम हमारे म के प म हम उ त बनाने के लए बढ़ो. तु हारी कृपा हमारी र ा करे. (१) भूयाम ते सुमतौ वा जनो वयं मा नः तर भमातये. अ मा च ा भरवताद भ भरा नः सु नेषु यामय.. (२) हम तु हारी कृपा के कारण अ के वामी बन. तुम श ु का प लेकर हम मत मारना. अपने व वध र ासाधन ारा हम बचाओ एवं सदा सुखी बनाओ. (२) इमा उ वा पु वसो गरो वध तु या मम. पावकवणाः शुचयो वप तोऽ भ तोमैरनूषत.. (३) हे अनेक संप य के वामी इं ! मेरे ये तु तवचन तु हारी वृ तेज वी एवं प व व ान् लोग तु हारी तु त करते ह. (३)
कर. अ न के समान
अयं सह मृ ष भः सह कृतः समु इव प थे. स यः सो अ य म हमा गृणे शवो य ेषु व रा ये.. (४) ये इं हजार ऋ षय क श के सहारे उ त को ा त ए ह. इं क वा त वक म हमा का वणन ाहमण के रा य प य म कया जाता है. (४) इ म े वतातय इ ं य य वरे. इ ं समीके व ननो हवामह इ ं धन य सातये.. (५) हम इं को य बुलाते ह. (५)
के ारंभ म एवं समा त पर बुलाते ह. हम सेवा करते ए इं को
इ ो म ा रोदसी प थ छव इ ः सूयमरोचयत्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ े ह व ा भुवना न ये मर इ े सुवानास इ दवः.. (६) इं ने अपनी श क मह ा से ावा-पृ थवी का व तार कया है एवं सूय को चमक ला बनाया है. सम त भुवन इं के नयम म बंधे ह. सोमरस इं के अ धकार म है. (६) अ भ वा पूवपीतय इ तोमे भरायवः. समीचीनास ऋभवः सम वरन् ा गृण त पू म्.. (७) हे इं ! तोता लोग सबसे पहले सोमरस पीने को तु तय ारा तु ह बुलाते ह. ऋभुगुण पर पर मलकर तु हारी तु त करते ह. ने भी तुझ ाचीन क तु त क थी. (७) अ ये द ो वावृधे वृ यं शवो मदे सुत य व ण व. अ ा तम य म हमानमायवोऽनु ु व त पूवथा.. (८) सोमरस पीने के बाद जब सारे शरीर म नशा चढ़ता है तब इं इसी यजमान क श और ओज बढ़ाते ह. तोता जस कार पहले इं क म हमा क तु त करते थे, उसी कार आज भी करते ह. (८) त वा या म सुवीय तद् पूव च ये. येना य त यो भृगवे धने हते येन क वमा वथ.. (९) हे शोभनश वाले इं ! म सबसे पहले उ म अ पाने के लए तुमसे याचना करता ं. म तुमसे वह श एवं अ मांगता ,ं जसके ारा तुमने य हीन लोग का हतकारी धन भृगु को दया एवं क व क र ा क . (९) येना समु मसृजो महीरप त द वृ ण ते शवः. स ः सो अ य म हमा न स शे यं ोणीरनुच दे .. (१०) हे इं ! तु हारा वह बल अ भलाषापूरक है, जसने सागर का पया त जल बनाया. तु हारी म हमा क सीमा नह है. धरती उसी म हमा के पीछे चलती है. (१०) श धी न इ य वा र य या म सुवीयम्. श ध वाजाय थमं सषासते श ध तोमाय पू .. (११) हे इं ! म तुमसे जो शोभनबल वाला धन मांगता ं, मुझे वह धन दान करो. सेवा करने को इ छु क एवं ह धारण करने वाले यजमान को सबसे पहले धन दो. हे ाचीन इं ! तोता को इसके बाद धन दे ना. (११) श धी नो अ य य
पौरमा वथ धय इ
सषासतः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
श ध यथा शमं यावकं कृप म
ावः वणरम्.. (१२)
हे इं ! तो के ारा सेवा करने वाले हमारे यजमान को वह धन दो, जस धन के ारा तुमने राजा पु क र ा क थी. तुमने जस कार शम, यावक एवं कृप क र ा क थी, वैसे ही शोभन ह व वाले यजमान क र ा करो. (१२) क ो अतसीनां तुरी गृणीत म यः. न ही व य म हमान म यं वगृण त आनशु:.. (१३) वह कौन नया है जो सदा ग तशील एवं ेरणा द तु तय ारा इं क तु त करे. इं क तु त करने वाले तोता इं क म हमा एवं पहचान को नह पा सकते. (१३) क तुव त ऋतय त दे वत ऋ षः को व ओहते. कदा हवं मघव सु वतः क तुवत आ गमः.. (१४) हे इं दे व! कौन तु त करने वाला तु हारे लए य पूण करने क अ भलाषा करता है? कौन बु मान् ऋ ष तु हारी तु त करने क साम य रखता है? हे धन वामी इं ! तुम सोमरस नचोड़ने वाले क पुकार पर कब आते हो? तुम तोता के बुलाने पर कब आते हो? (१४) उ ये मधुम मा गरः तोमास ईरते. स ा जतो धनसा अ तोतयो वाजय तो रथा इव.. (१५) स एवं अ तशय मधुर तु तवचन एवं तो श ु वजयी, धन वामी, वनाशहीनर ासाधन वाले एवं अ ा भलाषी रथ के समान बोले जाते ह. (१५) क वाइव भृगवः सूया इव व म तमानशुः. इ ं तोमे भमहय त आयवः यमेधासो अ वरन्.. (१६) क वगो ीय ऋ षय के समान भृगुगो ीय ऋ षय ने भी स एवं सव ा त इं को पाया है. यमेध नामक लोग ने इं क म हमा बढ़ाते ए तु तय ारा पूजा क थी. (१६) यु वा ह वृ ह तम हरी इ परावतः. अवाचीनो मघव सोमपीतय उ ऋ वे भरा ग ह.. (१७) हे वृ हनन म परमकुशल इं ! तुम अपने दोन घोड़ को रथ म जोतो. हे धन वामी एवं श शाली इं ! तुम सोमरस पीने के लए दशनीय म त के साथ र के थान से हमारे सामने आओ. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमे ह ते कारवो वावशु धया व ासो मेधसातये. स वं नो मघव गवणो वेनो न शृणुधी हवम्.. (१८) हे इं ! य कम करने वाले एवं बु मान् ये यजमान य म स म लत होने के लए तु हारी तु तयां बोलते ह. हे धन वामी एवं तु तयो य इं ! जस कार अ भलाषी यान से सुनता है, उसी कार तुम हमारी पुकार सुनो. (१८) न र बृहती यो वृ ं धनु यो अ फुरः. नरबुद य मृगय य मा यनो नः पवत य गा आजः.. (१९) हे इं ! तुमने वशाल धनुष ारा वृ को मारा था. तुमने मायावी अबुद एवं मृग को मारा था. तुमने पवत से गाय को बाहर नकाला था. (१९) नर नयो चु न सूय नः सोम इ नर त र ादधमो महाम ह कृषे त द
यो रसः. प यम्.. (२०)
हे इं ! तुमने अंत र से वशाल एवं हसक वृ को हटाकर अपनी श को का शत कया. उस समय सभी अ नयां, सूय एवं इं को स करने वाले सोमरस का शत ए थे. (२०) यं मे र ो म तः पाक थामा कौरयाणः. व ेषां मना शो भ मुपेव द व धावमानम्.. (२१) इं एवं म त ने मुझे जो कुछ दान कया, वही कु यान के पु पाक थामा ने दया. वह धन सम त संप य के बीच इस कार शोभा पाता है, जस कार वग म ग त करता आ तेज वी सूय. (२१) रो हतं मे पाक थामा सुधुरं क य ाम्. अदा ायो वबोधनम्.. (२२) पाक थामा ने मुझे लाल रंग वाला, शोभन पीठ वाला, लगाम से यु क संप य का ान कराने वाला घोड़ा दया था. (२२) य मा अ ये दश
एवं भां त-भां त
त धुरं वह त व यः. अ तं वयो न तु यम् ् .. (२३)
उस घोड़े के आगे चलने वाले दस घोड़े मुझे वहन करते ह. इसी तरह तु के पु भु यु को घोड़ ने वहन कया था. (२३) आ मा पतु तनूवास ओजोदा अ य नम्. तुरीय म ो हत य पाक थामानं भोजं दातारम वम्.. (२४) अपने पता के उपयु
पु , नवास हेतु घर एवं ओज वी पदाथ दे ने वाले, श ु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
के
नाशक एवं उपभोग करने वाले तथा लाल रंग का घोड़ा दान करने वाले पाक थामा क तु त म करता ं. (२४)
सू —४
दे वता—इं आ द
यद ागपागुदङ् य वा यसे नृ भः. समा पु नृषूतो अ यानवेऽ स शध तुवशे.. (१) हे इं ! य प तुम पूव, प म, उ र एवं द ण के दे श म रहने वाले तोता ारा बुलाए जाते हो, तथा प तोता ारा राजा अनु के पु के पास जाने को े रत होते हो. तोता तु ह तुवश के पास जाने के लए भी े रत करते ह. (१) य ा मे शमे यावके कृप इ मादयसे सचा. क वास वा भः तोमवाहस इ ा य छ या ग ह.. (२) हे इं ! जैसे तुम म, शम, यावक एवं कृप नामक राजा के साथ स होते हो, फर भी तो मरण रखने वाले क वगो ीय ऋ ष तु ह तो सुनाते ह. तुम आओ. (२) यथा गौरो अपा कृतं तृ य े यवे रणम्. आ प वे नः प वे तूयमा ग ह क वेषु सु सचा पब.. (३) हे इं ! जैसे गौर मृग पानी के लए यासा होने पर बना घास वाले एवं जलपूण थान पर आता है, उसी कार हम क वगो ीय ऋ षय क म ता पाकर तुम शी आओ और हमारे साथ सोमरस पओ. (३) म द तु वा मघव े दवो राधोदे याय सु वते. आमु या सोमम पब मू सुतं ये ं त धषे सहः.. (४) हे धन वामी इं ! सोमरस तु ह इस कार म करे क तुम उसे नचोड़ने वाले को धन दो. तुमने यह सोमरस पया है. तुमने इसी महान् एवं शंसायो य सोमरस के लए अ धक मा ा म श धारण क है. (४) च े सहसा सहो बभ म युमोजसा. व े त इ पृतनायवो यहो न वृ ाइव ये मरे.. (५) इं ने अपनी श ारा श ु को वश म कया है एवं अपने ओज से सर का समा त कया है. हे महान् इं ! तु हारे सभी श ु वृ के समान धराशायी हो गए ह. (५) सह ेणेव सचते यवीयुधा य त आनळु प तु तम्. पु ं ावग कृणुते सुवीय दा ो त नम उ भः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ोध
हे इं ! जो तु हारी तु त करता है, वह यु म व के समान व म दखने वाले हजार वीर ा त करता है. जो नम कार श द के साथ तु ह ह दे ता है वह शोभन वीययु पु ा त करता है. (६) मा भेम मा म मो य स ये तव. मह े वृ णो अ भच यं कृतं प येम तुवशं य म्.. (७) हे उ इं ! तु हारी म ता पाकर हम न भयभीत ह और न थक. हे अ भलाषापूरक इं ! तु हारे महान् काय कहने यो य ह. हमने तुवश एवं य राजा को दे खा है. (७) स ामनु फ यं वावसे वृषा न दानो अ य रोष त. म वा स पृ ाः सारघेण धेनव तूयमे ह वा पब.. (८) अ भलाषापूरक इं ने अपने शरीर के वामभाग से सभी ा णय को ढक लया है. ह व दे ने वाला इं को ो धत नह करता है. हे इं ! शहद मले ए एवं आनंद दे ने वाले सोमरस के सामने ज द आओ एवं उसे पओ. (८) अ ी रथी सु प इद् गोमाँ इ द ते सखा. ा भाजा वयसा सचते सदा च ो या त सभामुप.. (९) हे इं ! तु हारा म घोड़ वाला, रथवाला, गोवाला एवं स दययु बनता है. वह शी ा त होने वाला धन पाता है एवं सबके लए स ता उ प करता आ सभा म जाता है. (९) ऋ यो न तृ य वपानमा ग ह पबा सोमं वशा अनु. नमेघमानो मघव दवे दव ओ ज ं द धषे सहः.. (१०) जैसे यासा ऋ य मृग जल के पास आता है, उसी कार तुम पा म रखे गए सोमरस के सामने आओ एवं उसे इ छा के अनुसार पओ. हे धन वामी इं ! तुम त दन नीचे क ओर वषा करते ए अ यंत ओजवाला बल धारण करो. (१०) अ वय ावया वं सोम म ः पपास त. उप नूनं युयुजे वृषणा हरी आ च जगाम वृ हा.. (११) हे अ वयुगण! तुम सोमरस पीने के इ छु क इं के लए सोम नचोड़ो. दोन अ भलाषापूरक घोड़े रथ म जोते गए ह एवं वृ नाशक इं आए ह. (११) वयं च स म यते दाशु रजनो य ा सोम य तृ प स. इदं ते अ ं यु यं समु तं त ये ह वा पब.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम जस ह दाता का सोम पीकर संतोष पाते हो, इस बात को वह अपने आप ही जानता है. तु हारे यो य सोमरस पा म रखा है. तुम उसके पास आकर उसे पओ. (१२) रथे ाया वयवः सोम म ाय सोतन. अ ध न या यो व च ते सु व तो दा
वरम्.. (१३)
हे अ वयुगण! रथ पर बैठे इं के लए सोमरस नचोड़ो. चमड़े के ऊपर एक प थर पर सरा प थर रखा है. यजमान य पूरा करने वाले सोमरस को नचोड़ता आ सुशो भत है. (१३) उप नं वावाता वृषणा हरी इ मपसु व तः. अवा चं वा स तयोऽ वर यो वह तु सवने प.. (१४) अ भलाषापूरक एवं अंत र म बार-बार चलने वाले ह र नामक घोड़े इं को हमारे य म लाव. य क शोभा बढ़ाने वाले एवं ग तशील घोड़े तु ह य के पास ले जाव. (१४) पूषणं वृणीमहे यु याय पु वसुम्. स श श पु त नो धया तुजे राये वमोचन.. (१५) हम अ धक पाने के लए पूषा का वरण करते ह. हे ब त ारा बुलाए गए एवं पाप से छु टकारा दलाने वाले इं ! तुम और पूषा ऐसी इ छा करो क हम अपनी बु से धन पाने और श ुनाश के लए यो य बन. (१५) सं नः शशी ह भु रजो रव ुरं रा व रायो वमोचन. वे त ः सुवद े मु यं वसु यं वं हनो ष म यम्.. (१६) हे इं ! नाई के हाथ म रहने वाला छु रा जतना तेज होता है, हमारी बु उतनी ही तेज करो. हे पाप से छु ड़ाने वाले इं ! हम धन दो. तु हारी गाएं हमारे लए सरलता से मल जाव. वही धन तुम तोता को दे ते हो. (१६) वे म वा पूष ृ से वे म तोतव आघृणे. न त य वे यरणं ह त सो तुषे प ाय सा ने.. (१७) हे पूषा! म तु ह स करना चाहता ं. हे द तसंप पूषा! म तु हारी तु त करना चाहता ं. म कसी अ य दे वता क तु त नह करना चाहता, य क वे सुख नह दे ते. हे नवास दे ने वाले पूषा! तोता एवं साममं जानने वाले प को वह धन दो. (१७) परा गोवा यवसं क चदाघृणे न यं रे णो अम य. अ माकं पूष वता शवो भव मं ह ो वाजसातये.. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे द तशाली एवं मरणर हत पूषा! हमारी गाएं कस समय चरकर लौटती ह? हमारा गोधन न य हो. हे अ भलाषापूरक पूषा! तुम हमारे र क और क याणक ा बनो. तुम हम अ दे ने के लए महान् बनो. (१८) थूरं राधः शता ं कु य द व षु. रा वेष य सुभग य रा तषु तुवशे वम म ह.. (१९) द तशाली एवं सौभा ययु राजा कुरंग ने वग पाने के लए य कया. उस म हमने ब त से मनु य के साथ सौ घोड़ के अ त र ब त सा धन पाया. (१९) धी भः साता न का व य वा जनः यमेधैर भ ु भः. ष सह ानु नमजामजे नयूथा न गवामृ षः.. (२०) मुझ मेधा त थ ने क वपु तथा ह धारण करने वाले मेधा त थ ऋ ष ारा तथा उनके तोता ारा सेवा करने यो य और तेज वी यमेध नामक ऋ षय ारा से वत परम प व साठ हजार गाय को य के अंत म पाया. (२०) वृ ा
मे अ भ प वे अरारणुः. गां भज त मेहनाऽ ं भज त मेहना.. (२१)
मुझे गाय पी धन मला तो घोड़ ने भी स ता कट क थी. उनका ता पय यह था क मेधा त थ ने उ म गाएं और घोड़े पाए ह. (२१)
दे वता—अ नीकुमार
सू —५
रा दहेव य स य ण सुर श तत्. व भानुं व धातनत्.. (१) र रहकर भी पास द खने वाली एवं द तशाली उषा जब सब कुछ सफेद कर दे ती है, तब काश को अनेक कार से फैलाती है. (१) नृव
ा मनोयुजा रथेन पृथुपाजसा. सचेथे अ नोषसम्.. (२)
हे नेता के समान एवं दशनीय अ नीकुमारो! तुम अपने रथ ारा उषा से मलो. तु हारे पया त अ वाले रथ म तु हारे ारा इ छा करते ही घोड़े जुड़ जाते ह. (२) युवा यां वा जनीवसू
त तोमा अ
त. वाचं तो यथो हषे.. (३)
हे अ वामी अ नीकुमारो! तुम उन तु तय पर यान दो जो तु हारे लए बनाई गई ह. जैसे त अपने मा लक क बात सुनने के लए ाथना करता है, उसी कार हम आपसे ाथना करते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु
या ण ऊतये पु म ा पु वसू. तुषे क वासो अ ना.. (४)
हे ब त के य, ब त को आनंद दे ने वाले एवं ब त धन वाले अ नीकुमारो! हम क वगो ीय ऋ ष अपनी र ा के लए तु हारी तु त करते ह. (४) मं ह ा वाजसातमेषय ता शुभ पती. ग तारा दाशुषो गृहम्.. (५) हे अ तशय महान्, अ दे ने वाल म उ म, तोता को अ दे ने वाले एवं शोभनधन के वामी अ नीकुमारो! तुम ह दाता के घर जाते हो. (५) ता सुदेवाय दाशुषे सुमेधाम वता रणीम्. घृतैग ू तमु तम्.. (६) हे अ नीकुमारो! सुंदर दे व का यजन करने वाले ह दाता के लए शोभनय साधन एवं नाशर हत भू म को स चो. (६)
का
आ नः तोममुप व ूयं येने भराशु भः. यातम े भर ना.. (७) हे अ नीकुमारो! अपने शंसनीय चाल वाले घोड़ पर चढ़कर हमारा तो सुनने ब त ज द आओ. (७) ये भ त ः परावतो दवो व ा न रोचना.
र ू प रद यथः.. (८)
हे अ नीकुमारो! तीन दन और तीन रात तक तुम घोड़ क सहायता से द त वाले थान पर आओ. (८) उत नो गोमती रष उत सातीरह वदा. व पथः सातये सतम्.. (९) हे ातःकाल तु तयो य अ नीकुमारो! हम गाय से यु धन दो. हम उपभोग के लए माग भी दो. (९)
अ एवं उपभोग के यो य
आ नो गोम तम ना सुवीरं सुरथं र यम्. वो हम ावती रषः.. (१०) हे अ नीकुमारो! हमारे लए गाय , घोड़ , शोभनपु , सुंदर रथ एवं अ से यु दो. (१०)
धन
वावृधाना शुभ पती द ा हर यवतनी. पबतं सो यं मधु.. (११) वृ
हे शोभन पदाथ के वामी, दशन के यो य व सोने के माग वाले अ नीकुमारो! तुम ा त करके मधुर सोम पओ. (११) अ म यं वा जनीवसू मघव य स थः. छ दय तमदा यम्.. (१२)
हे य प धन वाले अ नीकुमारो! हम धनवान का सब ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कार से व तृत एवं
हा नर हत घर हो. (१२) न षु
जनानां या व ं तूयमा गतम्. मो व१ याँ उपारतम्.. (१३)
हे अ नीकुमारो! तुम शी आकर मनु य क तु तय क र ा करो. तुम कसी सरे के पास मत जाओ. (१३) अ य पबतम ना युवं मद य चा णः. म वो रात य ध या.. (१४) हे तु तयो य अ नीकुमारो! तुम हमारे सोमरस पओ. (१४)
ारा दया आ, नशीला, शोभन एवं मधुर
अ मे आ वहतं र य शतव तं सह णम्. पु
ुं व धायसम्.. (१५)
हे अ नीकुमारो! हम सैकड़ और हजार कार का, ब त सबको धारण करने वाला धन वहन करके लाओ. (१५) पु
ा च
वां नरा व य ते मनी षणः. वाघ
ारा
शंसनीय एवं
र ना गतम्.. (१६)
हे नेता अ नीकुमारो! व ान् लोग तु ह अनेक थान म बुलाते ह. तुम अपने वहनसाधन अ ारा आओ. (१६) जनासो वृ ब हषो ह व म तो अरङ् कृतः. युवां हव ते अ ना.. (१७) हे अ नीकुमारो! कुश उखाड़ने वाले, ह -संप तु ह बुलाते ह. (१७)
एवं अ धक य
करने वाले लोग
अ माकम वामयं तोमो वा ह ो अ तमः. युवा यां भू व ना.. (१८) हे अ नीकुमारो! हमारा यह तु तसमूह तु ह सबसे अ धक वहन करने वाला एवं तु हारा समीपवत हो. (१८) यो ह वां मधुनो
तरा हतो रथचषणे. ततः पबतम ना.. (१९)
हे अ नीकुमारो! तु हारे रथ के म य भाग म जो सोमरस से भरा आ चमपा रखा है, उससे तुम सोम पओ. (१९) तेन नो वा जनीवसू प े तोकाय शं गवे. वहतं पीवरी रषः.. (२०) हे अ प धन वाले अ नीकुमारो! हमारे पशु सहायता से पया त अ सरलतापूवक लाओ. (२०)
, पु
एवं गाय के हेतु उस रथ क
उत नो द ा इष उत स धूँरह वदा. अप ारेव वषथः.. (२१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ातःकाल जानने यो य अ नीकुमारो! हमारे लए द हमारे लए स रता को बहाओ. (२१)
जल मेघ के छ से दो एवं
कदा वां तौ ्यो वध समु े ज हतो नरा. य ां रथो व भ पतात्.. (२२) हे नेता अ नीकुमारो! समु म फके ए तु पु भु यु ने तु त ारा तु ह न जाने कब बुलाया था? इसीसे अ स हत तु हारा रथ वहां प ंच गया. (२२) युवं क वाय नास या प र ताय ह य. श
तीदश यथः.. (२३)
हे अ नीकुमारो! तुमने महल के नचले भाग म रा स श ु ऋ ष को अनेक कार क र ाएं दान क थ . (२३)
ारा बांधे गए क व
ता भरा यातमू त भन सी भः सुश त भः. य ां वृष वसू वे.. (२४) हे अ भलाषापूरक एवं धनसंप अ नीकुमारो! म तु ह जब बुलाऊं, तब तुम अपने नवीन एवं शसंनीय र ासाधन के साथ आओ. (२४) यथा च क वमावतं
यमेधमुप तुतम्. अ
श
ारम ना.. (२५)
हे अ नीकुमारो! तुमने जस कार क व, आवत, उप तुत एवं तु तक ा अ र ा क थी, उसी कार हमारी र ा करो. (२५) यथोत कृ
क
े धनऽशुं गो वग यम्. यथा वाजेषु सोभ रम्.. (२६)
हे अ नीकुमारो! तुमने जस कार अं ु के धन, अग य क गाय और सौभ र के अ क र ा क थी, उसी कार हमारी र ा करो. (२६) एताव ां वृष वसू अतो वा भूयो अ ना. गृण तः सु नमीमहे.. (२७) हे अ भलाषापूरक एवं धनयु अ नीकुमारो! हम तु हारी तु त करते ए तुमसे सी मत एवं सीमा से अ धक धन मांगते ह. (२७) रथं हर यव धुरं हर याभीषुम ना. आ ह थाथो द व पृशम्.. (२८) हे अ नीकुमारो! सोने ारा न मत सार थ थान वाले एवं सुनहरी लगाम वाले अपने रथ पर बैठकर आओ. (२८) हर ययी वां र भरीषा अ ो हर ययः. उभा च ा हर यया.. (२९) हे अ नीकुमारो! तु ह ढोने वाले रथ का जुआ सोने का है, धुरी सोने क है एवं प हए सोने के ह. (२९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेन नो वा जनीवसू परावत दा गतम्. उपेमां सु ु त मम.. (३०) हे अ एवं धन के वामी अ नीकुमारो! इस रथ पर बैठकर तुम र से भी आओ. तुम हमारी शोभन तु त के समीप आओ. (३०) आ वहेथे पराका पूव र
ताव ना. इषो दासीरम या.. (३१)
हे मरणर हत अ नीकुमारो! तुम दास क नग रय को भ न करते ए र से हमारे लए अ लाओ. (३१) आ नो ु नैरा वो भरा राया यातम ना. पु (३२)
ा नास या.. (३२)
हे ब त के म अ नीकुमारो! तुम हमारे पास अ , यश और धन लेकर आओ. एह वां ु षत सवो वयो वह तु प णनः. अ छा व वरं जनम्.. (३३)
हे अ नीकुमारो! वाभा वक प से चकने एवं पंख वाले प य के समान शी गामी घोड़े तु ह शोभनय वाले यजमान के पास ले जाव. (३३) रथं वामनुगायसं य इषा वतते सह. न च म भ बाधते.. (३४) हे अ नीकुमारो! तु हारा अ लेकर चलने वाला एवं तोता आ रथ एवं रथ का प हया श ुसेना ारा बा धत नह होता. (३४)
ारा शंसा कया
हर ययेन रथेन व पा ण भर ैः. धीजवना नास या.. (३५) हे मन के समान तेज चलने वाले अ नीकुमारो! आगे पैर बढ़ाने वाले घोड़ से यु , वण न मत रथ ारा हमारे पास आओ. (३५) युवं मृगं जागृवांसं वदथो वा वृष वसू. ता नः पृङ्
मषा र यम्.. (३६)
हे अ भलाषापूरक धन वाले अ नीकुमारो! तुम सदा जगाने वाला एवं खोजने यो य सोमरस पीते हो. तुम हम अ दो. (३६) ता मे अ ना सनीनां व ातं नवानाम्. यथा च चै ः कशुः शतमु ानां दद सह ा दश गोनाम्.. (३७) हे अ नीकुमारो! तुम मुझे दे ने के लए े एवं भोगयो य धन को जानो. चे दवंश म उ प राजा कशु ने मुझे सौ ऊंट और हजार गाएं द ह. तुम उ ह जानो. (३७) यो मे हर यस शो दश रा ो अमंहत. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अध पदा इ चै
य कृ य म ना अ भतो जनाः.. (३८)
जस कशु राजा ने मेरी सेवा म सोने के रंग के दस राजा राजा कशु के पैर के तले सब जाएं रहती ह. (३८)
को नयु
कया, उसी
मा करेना पथा गा ेनेमे य त चेदयः. अ यो ने सू ररोहते भू रदाव रो जनः.. (३९) चे दवंशीय राजा जस माग से जाते ह, उससे सरा कोई नह जा सकता. कशु क अपे ा कोई अ धक दान दे ने वाला एवं व ान् नह है. (३९)
दे वता—इं
सू —६
महाँ इ ो य ओजसा पज यो वृ माँ इव. तोमैव स य वावृधे.. (१) वषा करने वाले मेघ के समान महान् श बढ़ते ह. (१) जामृत य प तः
वाले इं पु तु य तोता क
तु तय से
य र त व यः. व ा ऋत य वाहसा.. (२)
आकाश को पूण करने वाले घोड़े जस समय इं को वहन करते ह, उस समय व ान् तोता य धारण करने वाले तो ारा इं क तु त करते ह. (२) क वा इ ं यद त तोमैय
य साधनम्. जा म ुवत आयुधम्.. (३)
क वगो ीय ऋ षय ने तो का भाई कहा जाता है. (३)
ारा इं को य का साधन बनाया है. इसी लए उ ह य
सम य म यवे वशो व ा नम त कृ यः. समु ायेव स धवः.. (४) इं के ोध से भयभीत होकर सभी जाएं इं को इस कार णाम करती ह, जस कार न दयां सागर के सामने झुकती ह. (४) ओज तद य त वष उभे य समवतयत्. इ इं जस श प है. (५)
ारा
मव रोदसी.. (५)
ावा-पृ थवी को चमड़े के समान लपेटकर रखते ह, वह श
व चद्वृ य दोधतो व ेण शतपवणा. शरो बभेद वृ णना.. (६) इं ने सौ धार वाले व
ारा कांपते ए वृ का सर काट डाला था. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमा अ भ
णोनुमो वपाम ेषु धीतयः. अ नेः शो चन द ुतः.. (७)
हे इं ! हम अ न के समान तेज वी इन तो पढ़गे. (७) गुहा सती प मना
को तोता
के आगे रहकर बार-बार
य छोच त धीतयः. क वा ऋत य धारया.. (८)
बु म थत जो तु तयां अपने आप इं के पास जाकर का शत होती ह, उ ह क वगो ीय ऋ ष सोम क धारा से मलाते ह. (८) तम
नशीम ह र य गोम तम नम्.
हे इं ! हम गाय एवं घोड़ से यु अ पाव. (९) अह म
धन ा त कर. हम सर से पहले ान पाने के लए
पतु प र मेधामृत य ज भ. अहं सूय इवाज न.. (१०)
मने ही स चे पता इं क कृपा उ प आ ं. (१०) अहं
पूव च ये.. (९)
ा त क है. म सूय के समान काशयु
होकर
नेन म मना गरः शु भा म क ववत्. येने ः शु म म धे.. (११)
म अपने पता क व के समान वेद प तो से अपनी वाणी को अलंकृत करता ं. इस तो ारा इं बल धारण करते ह. (११) ये वा म
न तु ु वुऋषयो ये च तु ु वुः. ममे ध व सु ु तः.. (१२)
हे इं ! जो ऋ ष तु हारी तु त करते ह अथवा जो तु हारी तु त नह करते ह, इन दोन कार के ऋ षय म मेरी तु त शंसा पाकर बढ़े . (१२) यद य म युर वनी
वृ ं पवशो जन्. अपः समु मैरयत्.. (१३)
इं के ोध ने जस समय वृ को टु कड़ेटुकड़े करके काटते ए व न क थी, उस समय जल को सागर क ओर भेजा था. (१३) न शु ण इ
धण स व ं जघ थ द य व. वृषा
शृ वषे.. (१४)
हे इं ! तुमने शु ण नामक द यु पर अपना धारण करने यो य व इं ! तुम अ भलाषापूरक सुने जाते हो. (१४) न ाव इ मोजसा ना त र ा ण व
चलाया था. हे उ
णम्. न व च त भूमयः.. (१५)
ु ोक, अंत र एवं धरती व धारी इं को अपनी श से ल ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा त नह कर सकते ह.
(१५) य तइ
महीरपः तभूयमान आशयत्. नतं प ासु श थः.. (१६)
हे इं ! जो वृ तु हारे महान् जल को रोक कर अंत र ग तशील जल के म य मारा था. (१६) य इमे रोदसी मही समीची समज भीत्. तमो भ र हे इं ! जस वृ ने व तृत एवं पर पर म लत तुमने अंधकार म वलीन कर दया था. (१७) यइ
यतय वा भृगवो ये च तु ु वुः. ममे
म सोया था, उसे तुमने
तं गुहः.. (१७) ावा-पृ थवी को ढक लया था, उसे
ुधी हवम्.. (१८)
हे उ इं ! जो संयमी अं गरागो ीय ऋ ष एवं भृगुगो ीय ऋ ष तु हारी तु त करते ह, उनके म य म मेरी तु त सुनो. (१८) इमा त इ
पृ यो घृतं हत आ शरम्. एनामृत य प युषीः.. (१९)
हे इं ! ये य को पूण करने वाली गाएं घी तथा ध दे ती ह. (१९) या इ
व वासा गभमच
रन्. प र धमव सूयम्.. (२०)
हे इं ! इन सव वाली गाय ने मुख से अ खाकर इस कार गभ धारण कया है, जस कार सूय के चार ओर जल रहता है. (२०) वा म छवस पते क वा उ थेन वावृधुः. वां सुतास इ दवः.. (२१) हे श के वामी इं ! क वगो ीय ऋ षय ने तु ह उ थ सोम ने तु ह बढ़ाया. (२१) तवे द
ारा बढ़ाया. नचोड़े ए
णी तषूत श तर वः. य ो वत तसा यः.. (२२)
हे व धारी इं ! जब तुम मागदशक बनते हो, तब उ म तु त एवं वशाल य जाता है. (२२) आनइ (२३)
कया
मही मषं पुरं न द ष गोमतीम्. उत जां सुवीयम्.. (२३)
हे इं हमारे लए महान्, गाय स हत अ एवं शोभनवीय वाला पु दे ने क इ छा करो. उत यदा
ंयद
ना षी वा. अ े व ु द दयत्.. (२४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुमने राजा न ष क था, वह हम दो. (२४)
जा
के सामने शी गामी घोड़े के समान जो जल दया
अ भ जं न त नषे सूर उपाकच सम्. य द
मृळया स नः.. (२५)
हे व ान् इं ! तुम हमारी गोशाला को पास से दे खने म गाय से पूण करो एवं हम सुखी बनाओ. (२५) यद त वषीयस इ
राज स
तीः. महाँ अपार ओजसा.. (२६)
हे इं ! तुम अपने बल का दशन करके धरती के राजा बनते हो. तुम अपने बल के कारण ही महान् एवं अपराजेय हो. (२६) तं वा ह व मती वश उप ुवत ऊतये. उ हे परम ापक इं ! ह के लए तु त करते ह. (२७)
यस म
भः.. (२७)
धारणक ा लोग तु ह सोमरस ारा स करके अपनी र ा
उप रे गरीणां स थे च नद नाम्. धया व ो अजायत.. (२८) य कम के कारण इं पवत के भाग म एवं न दय के संगम पर उ प होते ह. (२८) अतः समु मु त
क वाँ अव प य त. यतो वपान एज त.. (२९)
जो ापक इं सूय प म संसार म वहार करते ह, वे ही ऊपर के लोक म रहकर नीचे क ओर मुंह करके सागर को दे खते ह. (२९) आद
थत
न य रेतसो यो त प य त वासरम्. परो य द यते दवा.. (३०)
इं जस समय ुलोक के ऊपर द त ा त करते ह, उसी समय लोग ाचीन एवं जल बरसाने वाले इं क नवास थान दे ने वाली द त को दे खते ह. (३०) क वास इ श
ते म त व े वध त प यम्. उतो श व वृ यम्.. (३१)
हे इं ! सब क वगो ीय ऋ ष तु हारी बु एवं पु षाथ को बढ़ाते ह. हे परम शाली इं ! वे तु हारी श को भी बढ़ाते ह. (३१) इमां म इ
सु ु त जुष व
सु मामव. उत
वधया म तम्.. (३२)
हे इं ! हमारी इस शोभन तु त को वीकार करो एवं हमारी भली कार र ा करो. तुम हमारी बु को भी बढ़ाओ. (३२) उत या वयं तु यं वृ व वः. व ा अत म जीवसे.. (३३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वृ ा त एवं व धारी इं ! हम बु व तार कया है. (३३)
मान ने जीवन पाने के लए तु हारी तु त का
अ भ क वा अनूषतापो न वता यतीः. इ ं वन वती म तः.. (३४) क वगो ीय ऋ ष इं क तु त करते ह. जस कार जल नीचे क ओर बहते ह, उसी कार हमारी तु त अपने इं क सेवा के उपयु बन जाती है. (३४) इ मु था न वावृधुः समु मव स धवः. अनु म युमजरम्.. (३५) जस कार स रताएं सागर को बढ़ाती ह, उसी जरार हत इं अ नवा रत कोप वाले ह. (३५) आ नो या ह परावतो ह र यां हयता याम्. इम म
कार तु तयां इं को बढ़ाती ह. सुतं पब.. (३६)
हे इं ! सुंदर घोड़ क सहायता से र दे श से हमारे पास आओ एवं इस नचोड़े ए सोमरस को पओ. (३६) वा मद्वृ ह तम जनासो वृ ब हषः. हव ते वाजसातये.. (३७) (३७)
हे श ुनाशक म
े इं ! कुश उखाड़ने वाले लोग अ पाने के लए तु ह बुलाते ह.
अनु वा रोदसी उभे च ं न व यतशम्. अनु सुवानास इ दवः.. (३८) हे इं ! ावा-पृ थवी उसी कार तु हारे पीछे चलते ह, जस कार रथ के प हए घोड़ के पीछे चलते ह. नचोड़ा आ सोमरस भी तु हारे पीछे चलता है. (३८) म द वा सु वणर उते
शयणाव त. म वा वव वतो मती.. (३९)
हे इं ! शयणा दे श के समीप वाले तालाब पर सभी ऋ षय ने य आरंभ कया है. उस म तुम आनंदयु बनो एवं सेवक क तु तय से स ता पाओ. (३९) वावृधान उप
व वृषा व यरोरवीत्. वृ हा सोमपातमः.. (४०)
अ तशय वृ ा त, अ भलाषापूरक, व धारी, सोमरस पीने वाल म उ म एवं वृ नाशक इं ुलोक के समीप भारी श द करते ह. (४०) ऋ ष ह पूवजा अ येक ईशान ओजसा. इ
चो कूयसे वसु.. (४१)
हे इं ! तुम पहले ज मे ए ऋ ष हो. तुम अपने बल से दे व के एकमा हम बार-बार धन दो. (४१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वामी हो. तुम
अ माकं वा सुताँ उप वीतपृ ा अ भ यः. शतं वह तु हरयः.. (४२) (४२)
हे इं ! हमारा सोम एवं अ
हण करने के लए शं सत पीठ वाले सौ घोड़े तु ह लाव.
इमां सु पू ा धयं मधोघृत य प युषीम्. क वा उ थेन वावृधुः.. (४३) क वगो ीय ऋ ष उ थ मं कर. (४३) इ
ारा पूवज का मधुर जल बढ़ाने वाला य कम उ त
म महीनां मेधे वृणीत म यः. इ ं स न यु तये.. (४४)
मनु य लोग धन क इ छा से अथवा र ा पाने के लए वशेष प से महान् दे व के बीच म इं को ही वीकार करते ह. (४४) अवा चं वा पु
ुत
यमेध तुता हरी. सोमपेयाय व तः.. (४५)
हे ब त ारा तुत इं ! य को ेम करने वाले ऋ षय सोमरस पीने के लए तु ह हमारे सामने लाव. (४५)
ारा तु त ा त सौ घोड़े
शतमहं त र दरे सह ं पशावा ददे . राधां स या ानाम्.. (४६) (४६)
हे इं ! मने पशु के पु
त रदर से सैकड़ एवं हजार क सं या म धन हण कया है.
ी ण शता यवतां सह ा दश गोनाम्. द प ाय सा ने.. (४७) साम का ान रखने वाले प थ . (४७)
को राजा त रदर ने तीन सौ घोड़े एवं दस हजार गाएं द
उदानट् ककुहो दवमु ा चतुयुजो ददत्. वसा या ं जनम्.. (४८) राजा त रदर ने उ त पाकर सोने के चार बोझ स हत ऊंट एवं दास के य वंशीय राजा को दए. इस कार उसने वग ा त कया. (४८)
सू —७ य
प म
दे वता—म द्गण ु भ मषं म तो व ो अ रत्. व पवतेषु राजथ.. (१)
हे म तो! जब व ान् ाहमण तीन सवन म शंसनीय अ डालते ह, तब तुम पवत म का शत होते हो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यद त वषीयवो यामं शु ा अ च वम्. न पवता अहासत.. (२) हे श के इ छु क एवं शोभन म तो! जब तुम रथ म घोड़े जोड़ते हो, तब तु हारे भय से पवत भी कांप जाते ह. (२) उद रय त वायु भवा ासः पृ मातरः. धु
त प युषी मषम्.. (३)
श द करने वाले एवं पृ के पु म द्गण हवा बढ़ाने वाला अ दान करते ह. (३)
बु
वप त म तो महं म द्गण जब हवा करते ह. (४)
ारा बादल को ऊपर उठाते ह एवं
वेपय त पवतान्. य ामं या त वायु भः.. (४) के साथ चलते ह, तब वषा को बखेरते ह एवं पहाड़ को कं पत
न य ामाय वो ग र न स धवो वधमणे. महे शु माय ये मरे. (५) हे म तो! तु हारे रथ के गमन के लए पवत का माग नयत है. न दयां र ा एवं महान् बल पाने के लए न त माग वाली ह. (५) यु माँ उ न मूतये यु मा दवा हवामहे. यु मा य य वरे.. (६) (६)
हे म तो! हम तु ह अपनी र ा के लए रात म, दन म एवं य के आरंभ म बुलाते ह. उ
ये अ ण सव
ा यामे भरीरते. वा ा अ ध णुना दवः.. (७)
वे ही लाल रंग वाले, व च एवं श द करने वाले म द्गण अपने रथ ारा ऊंचे भाग से आते ह. (७)
ुलोक के
सृज त र ममोजसा प थां सूयाय यातवे. ते भानु भ व त थरे.. (८) जो म द्गण सूय के चलने के लए करण पी माग बनाते ह, वे अपने तेज थत रहते ह. (८)
ारा
इमां मे म तो गर ममं तोममृभु णः. इमं मे वनता हवम्.. (९) हे म तो! मेरे इस तु तवचन को मानो. हे महान् म तो! मेरे इस तो को वीकार करो एवं मेरी इस पुकार को पूरा करो. (९) ी ण सरां स पृ यो
ेव
णे मधु. उ सं कव धमु णम् ..(१०)
व धारी इं के लए पृ य ने सोमरस को झरन , जल और मेघ से हा था. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म तो य
वो दवः सु नय तो हवामहे. आ तू न उप ग तन.. (११)
हे म तो! अपने सुख क इ छा करते ए हम तु ह वग से जस समय बुलाते ह, उस समय हमारे पास ज द आओ. (११) यूयं ह ा सुदानवो
ा ऋभु णो दमे. उत चेतसो मदे .. (१२)
हे शोभनदान वाले, पु एवं महान् म तो! तुम य शाला म नशीला सोमरस पीकर शोभन ान वाले बन जाते हो. (१२) आ नो र य मद युतं पु
ुं व धायसम्. इयता म तो दवः.. (१३)
हे शु म तो! हमारे लए वग से नशा टपकाने वाला, ब त से लोग एवं सबका भरण करने वाला अ लाओ. (१३) अधीव यद् गरीणां यामं शु ा अ च वम्. सुवानैम द व इ
ारा शं सत
भः.. (१४)
हे शु म तो! जब तुम पहाड़ के ऊपर अपना रथ ले जाते हो, तब तुम नचोड़े ए सोमरस के कारण मतवाले होते हो. (१४) एतावत
दे षां सु नं भ ेत म यः. अदा य य म म भः.. (१५)
तोता अपने तो ये
ारा अपराजेय म त से अपना सुख मांगता है. (१५)
साइव रोदसी धम यनु वृ
भः. उ सं ह तो अ तम्.. (१६)
म द्गण संपूण मेघ को हते ह और पानी क बूंद के समान वषा के पृ थवी को ठ क से घेर लेते ह. (१६)
(१७)
उ
वाने भरीरत उ थै
पृ
के पु म त् श द करते ए अपने रथ , हवा
ारा
ावा-
वायु भः. उ तोमैः पृ मातरः.. (१७) एवं मं
ारा ऊपर जाते ह.
येनाव तुवशं य ं येन क वं धन पृतम्. राये सु त य धीम ह.. (१८) हे म तो! जस साधन से तुमने तुवश एवं य क र ा क थी तथा धन चाहने वाले क व क र ा क थी, हम धन पाने के लए उसी र ासाधन का यान करते ह. (१८) इमा उ वः सुदानवो घृतं न प युषी रषः. वधा का व य म म भः.. (१९) हे शोभन दान वाले म तो! घी क तरह शरीर को पु करने वाले इस अ क वृ क व क तु तय क भां त करो. (१९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व नूनं सुदानवो मदथा वृ ब हषः.
ा को वः सपय त.. (२०)
हे शोभनदान वाले म तो! तु हारे लए कुश उखाड़े गए ह. तुम इस समय कस थान पर स हो? कौन तोता तु हारी सेवा कर रहा है? (२०) नह मय
वः पुरा तोमे भवृ
ब हषः. शधा ऋत य ज वथ.. (२१)
हे य म संल न म तो! तुम हमारे तो सुनने से पहले ही सर क तु तय से अपना य संबंधी बल बढ़ाते हो, यह बात उ चत नह है. (२१) समु ये महतीरपः सं ोणी समु सूयम्. सं व ं पवशो दधुः.. (२२) म त ने व तृत ओष धय म जल का संयोग कया था, ावा-पृ थवी को यथा थान अव थत कया था, सूय को अपने थान पर रखा एवं वृ को टु कड़ेटुकड़े करने के लए व धारण कया. (२२) व वृ ं पवशो ययु व पवताँ अरा जनः. च ाणा वृ ण प यम्.. (२३) वामीर हत एवं श शाली उ साह का दशन करते ए म त ने पवत के समान वृ के टु कड़ेटुकड़े कर दए थे. (२३) अनु
त य यु यतः शु ममाव ुत
तुम्. अ व ं वृ तूय.. (२४)
म द्गण ने यु करते ए त क श वृ हनन के समय इं क र ा क थी. (२४) व ु
तथा य कम क र ा क थी. उ ह ने
ता अ भ वः श ाः शीष हर ययीः. शु ा
त
ये.. (२४)
चमकते ए आयुध हाथ म रखने वाले, द तशाली एवं शोभायु बढ़ाने के लए अपने सर पर टोप धारण कया. (२५) उशना य परावत उ णो र मयातन. ौन च द
म त ने सुंदरता
या.. (२६)
हे म तो! तुम उशना ऋ ष क तु त सुनकर अपने वषा करने वाले रथ ारा र थान से आए थे. उस समय धरती डर से ुलोक के समान कांपने लगी थी. (२६) आ नो मख य दावनेऽ ै हर यपा ण भः. दे वास उप ग तन.. (२७) म त् दे व हमारे य का फल दे ने के लए सोने के पैर वाले घोड़ क सहायता से आए थे. (२७) यदे षां पृषती रथे
वह त रो हतः. या त शु ा रण पः.. (२८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इन म त के रथ को जस समय सफेद ब वाली हर नयां ख चती ह एवं रो हतमृग वहन करता है, उस समय सुंदर म त् जाते ह और जल बहता है. (२८) सुषोमे शयणाव याज के प याव त. ययु नच या नरः.. (२९) यु
नेता म द्गण ऋजीक दे श म वतमान शयणावत थान के तालाब के पास बनी सोमरस य शाला म अपने रथ के प हए नीचे क ओर करके जाते ह. (२९) कदा ग छाथ म त इ था व ं हवमानम्. माड के भनाधमानम्.. (३०)
हे म तो! तुम इस कार पुकारने वाले, याचना करते ए एवं बु सुख का कारण धन लेकर कब आओगे? (३०) क
मान् तोता के पास
नूनं कध यो य द मजहातन. को वः स ख व ओहते.. (३१)
हे तु त ारा स होने वाले म तो! तुमने इं को कब छोड़ा? तु हारी म ता कसने चाही थी. (३१) सहो षु णो व ह तैः क वासो अ नं म
ः. तुषे हर यवाशी भः.. (३२)
हे क वगो ीय ऋ षयो! हाथ म व धारण करने वाले एवं सोने के बने काठ खोदने के आयुध से यु म त के साथ-साथ अ न क तु त करो. (३२) ओ षु वृ णः य यूना न से सु वताय. ववृ यां च ावाजान्.. (३३) म अ भलाषापूरक, व श प से य पा व व च ग त वाले म त को भली कार ा त होने वाले नवीन धन के लए दयालु बनाता ं. (३३) गरय
जहते पशानासो म यमानाः. पवता
ये मरे.. (३४)
म त ारा पीड़ा एवं बाधा प ंचाए जाने पर भी पवत अपने थान से हटते नह ह. पवत थर रहते ह. (३४) आ णयावानो वह य त र ेण पततः. धातारः तुवते वयः.. (३५) र र तक जाने वाले अ वाले को अ दे ते ह. (३५) अ न ह जा न पू
आकाश माग से चलकर म त को लाते ह एवं तु त करने
छ दो न सूरो अ चषा. ते भानु भ व त थरे.. (३६)
अ न ने अपने तेज से सव मुख बनकर शंसनीय सूय के समान ज म लया है. म द्गण अपनी द तय के ारा भ भ थान म थत ह. (३६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८
दे वता—अ नीकुमार
आ नो व ा भ त भर ना ग छतं युवम्. द ा हर यवतनी पबतं सो यं मधु.. (१) हे दशनीय अ नीकुमारो! अपने सोने के रथ ारा सभी र ासाधन को लेकर आओ एवं मधुर सोमरस पओ. (१) आ नूनं यातम ना रथेन सूय वचा. भुजी हर यपेशसा कवी ग भीरचेतसा.. (२) हे ह वभो ा, सोने से अलंकार धारण करने वाले, तु तयो य एवं शंसनीय ान वाले अ नीकुमारो! सूय के समान चमक ले रथ के ारा हमारे समीप आओ. (२) आ यातं न ष पया त र ात् सुवृ भः. पबाथो अ ना मधु क वानां सवने सुतम्.. (३) हे अ नीकुमारो! हमारी शोभन तु तयां सुनकर तुम अंत र लोक से धरती पर आओ एवं क वगो ीय ऋ षय के य म नचोड़े ए सोमरस को पओ. (३) आ नो यातं दव पया त र ादध या. पु ः क व य वा मह सुषाव सो यं मधु.. (४) हे म यलोक को ेम करने वाले अ नीकुमारो! वग एवं अंत र ऋ ष के पु ने यहां तु हारे लए मधुर सोमरस नचोड़ा है. (४)
से आओ. क व
आ नो यातमुप ु य ना सोमपीतये. वाहा तोम य वधना कवी धी त भनरा.. (५) हे अ नीकुमारो! सोम पीने के लए हमारे इस तु तपूण य म आओ. हे वृ करने वाले, क व एवं नेता अ नीकुमारो! अपनी बु और काम से तोता को बढ़ाओ. (५) य च
वां पुर ऋषयो जु रेऽवसे नरा. आ यातम ना गतमुपेमां सु ु त मम.. (६)
हे नेता अ नीकुमारो! पुराने समय म ऋ षय ने तु ह जब भी अपनी र ा के लए बुलाया, तब तुम आए थे. तुम मेरी इस शोभन तु त को सुनकर आओ. (६) दव
ोचनाद या नो ग तं व वदा. धी भव स चेतसा तोमे भहवन ुता.. (७)
हे सूय को जानने वाले अ नीकुमारो! तुम वग एवं अंत र से हमारे समीप आओ. हे तोता को उ म ान दे ने वाले अ नीकुमारो! बु के साथ आओ. हे पुकार सुनने वाले ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नीकुमारो! तो
के साथ आओ. (७)
कम ये पयासतेऽ म तोमे भर ना. पु ः क व य वामृ षग भव सो अवीवृधत्.. (८) मेरे अ त र कौन तो ारा अ नीकुमार क उपासना कर सकता है? क व के पु व स ऋ ष ने तु ह अपनी तु तय ारा बढ़ाया. (८) आ वां व इहावसेऽ तोमे भर ना. अ र ा वृ ह तमा ता नो भूतं मयोभुवा.. (९) हे अ नीकुमारो! तोता ने तु त ारा तु ह र ण के लए बुलाया है. तुम श ुहंता, पापर हत और शोभन हो. तुम हमारे लए सुख का वषण करो. (९) आ य ां योषणा रथम त ा जनीवसू. व ा य ना युवं धीता यग छतम्.. (१०) हे य ोपयु धन वाले अ नीकुमारो! सूया नामक नारी तु हारे रथ पर सवार ई थी. तुम सभी मनचाहे पदाथ पाओ. (१०) अतः सह न णजा रथेना यातम ना. व सो वां मधुम चोऽशंसी का ः क वः.. (११) हे अ नीकुमारो! तुम अपने थान से हजार प वाले रथ ारा आओ. मेधावी पता के मेधावी पु व स ऋ ष ने मधुर वचन बोले थे. (११) पु म ा पु वसू मनोतरा रयीणाम्. तोमं मे अ ना वमम भ व अनूषाताम्.. (१२) हे अ धक मोद वाले, पया त धन वाले एवं धनदाता अ नीकुमारो! तुम संसार का वहन करते ए मेरी इस तु त क शंसा करो. (१२) आ नो व ा या ना ध ं राधां य या. कृतं न ऋ वयावतो मा नो रीरधतं नदे .. (१३) हे अ नीकुमारो! हम शंसनीय संप यां दो एवं समय पर संतान उ प करने यो य बनाओ. तुम हम श ु के अ धकार म मत दे ना. (१३) य ास या पराव त य ा थो अ य बरे. अतः सह न णजा रथेना यातम ना.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे स य वभाव वाले अ नीकुमारो! चाहे तुम र रहो, चाहे समीप रहो. तुम अपने थान से हजार प वाले रथ के ारा आओ. (१४) यो वां नास यावृ षग भव सो अवीवृधत्. त मै सह न णज मषं ध ं घृत तम्.. (१५) हे अ नीकुमारो! जस व स ऋ ष ने तु ह अपने तु तवचन के ारा बढ़ाया, उनके लए घी टपकाने वाला हजार प का अ दो. (१५) ा मा ऊज घृत तम ना य छतं युवम्. यो वां सु नाय तु व सूया ानुन पती.. (१६) हे दान के अ धप त अ नीकुमारो! तोता के लए घी टपकाने वाला एवं बलकारक अ दो. इ ह ने धन क इ छा करके हमारे सुख के लए तु त क थी. (१६) आ नो ग तं रशादसेमं तोमं पु भुजा. कृतं नः सु यो नरेमा दातम भ ये.. (१७) हे श ुभ क एवं अ धक ह व का उपयोग करने वाले अ नीकुमारो! तुम हमारी तु त सुनने के लए आओ. हम शोभन धन वाला बनाओ एवं सांसा रक व तुएं दो. (१७) आ वां व ा भ त भः यमेधा अ षत. राज ताव वराणाम ना याम तषु.. (१८) हे अ नीकुमारो! यमेध ऋ षय ने य बुलाया था. तुम य म शोभा पाओ. (१८)
के समय तु ह सभी र ासाधन स हत
आ नो ग तं मयोभुवा ना श भुवा युवम्. यो वां वप यू धी त भग भवतसो अवीवृधत्.. (१९) हे सुख दे ने वाले, रोगनाश करने वाले एवं तु त-यो य अ नीकुमारो! जन ऋ षय ने तु ह तु तय ारा बढ़ाया था, उनके सामने आओ. (१९) या भः क वं मेधा त थ या भवशं दश जम्. या भग शयमावतं ता भन ऽवतं नरा.. (२०) हे नेता अ नीकुमारो! जन साधन से तुमने क व, मेधा त थ, वश, दश ज एवं गोशय क र ा क थी, उ ह साधन ारा हम अ पाने के लए बचाओ. (२०) या भनरा सद युमावतं कृ े धने. ता भः व१ माँ अ ना ावतं वाजसातये.. (२१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे नेता अ नीकुमारो! जन र ासाधन से तुमने धन पाने के अ भलाषी सद यु को बचाया था, उ ह के ारा हम अ पाने के लए बचाओ. (२१) वां तोमाः सुवृ यो गरो वध व ना. पु ा वृ ह तमा ता नो भूतं पु पृहा.. (२२) हे ब त क र ा करने वाले एवं श ुनाशक म े अ नीकुमारो! दोषर हत तु तवचन एवं तो तु ह बढ़ाव! तुम हमारे लए अनेक कार से चाहने यो य बनो. (२२) ी ण पदा य नोरा वः सा त गुहा परः. कवी ऋत य प म भरवा जीवे य प र.. (२३) अ नीकुमार का तीन प हय वाला रथ छपा रहने के बाद कट होता है. हे बु अ नीकुमारो! य पूण करने म सहायक अपने रथ ारा हमारे सामने आओ. (२३)
मान्
दे वता—अ नीकुमार
सू —९
आ नूनम ना युवं व स य ग तमवसे. ा मै य छतमवृकं पृथु छ दयुयुतं या अरातयः.. (१) हे अ नीकुमारो! तुम व स ऋ ष क र ा के लए न त प से गए थे. तुम इ ह बाधार हत एवं व तृत घर दो एवं इनके श ु को समा त करो. (१) यद त र े य
व य प च मानुषाँ अनु. नृ णं त
हे अ नीकुमारो! जो धन अंत र वह हम दो. (२)
म ना.. (२)
म, वग म अथवा पांच वग वाले लोग के पास है,
ये वां दं सां या ना व ासः प रमामृशुः. एवे का व य बोधतम्.. (३) हे अ नीकुमारो! जस बु मान् तोता ने बार-बार तु हारे य उसे जानो. इसी कार क व के पु के य को जानो. (३)
का अनु ान कया है
अयं वां घम अ ना तोमेन प र ष यते. अयं सोमो मधुमा वा जनीवसू येन वृ ं चकेतथः.. (४) हे अ नीकुमारो! तु हारा य संबंधी कड़ाह मं बोलने के साथ गीला कया जाता है. हे अ एवं धन के वामी अ नीकुमारो! यह वही मीठा सोमरस है, जसे पीकर तुमने वृ को जाना था. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यद सु य न पतौ यदोषधीषु पु दसंसा कृतम्. तेन मा व म ना.. (५) हे अनेक कम वाले अ नीकुमारो! तुमने वन प तय एवं ओष धय म जो पाक धारण कया है, उसके ारा हमारी र ा करो. (५) य ास या भुर यथो य ा दे व भष यथः. अयं वां व सो म त भन व धते ह व म तं ह ग छथः.. (६) हे स चे वभाव वाले एवं द गुणसंप अ नीकुमारो! तुमने संसार का भरण कया है एवं सबको रोगर हत बनाया है. व सगो ीय ऋ ष तु ह तु तय ारा ा त नह करते, तुम ह व धारण करने वाल के पास आते हो. (६) आ नूनम नोऋ षः तोमं चकेत वामया. आ सोमं मधुम मं घम स चादथव ण.. (७) हे अ नीकुमारो! मुझ व स ऋ ष ने उ म बु के ारा तु हारे तो को जाना था. मने अथवा ऋ ष ारा मंथन क गई अ न म अ तशय मधुर सोमरस एवं धम नामक ह व को डाला था. (७) आ नूनं रघुवत न रथं त ाथो अ ना. आ वां तोमा इमे मम नभो न चु यवीरत.. (८) हे अ नीकुमारो! तुम तेज चलने वाले रथ पर चढ़ो. सूय के समान द तशाली ये मेरे तो तु हारे सामने आते ह. (८) यद वां नास यो थैराचु युवीम ह. य ा वाणी भर नेवे का व य बोधतम्.. (९) हे स य प अ नीकुमारो! आज हम तु त वा य और मं क सहायता से तु ह जस कार से ले आते ह, उसी कार क व के पु क तु तय को सुनो. (९) य ां क ीवाँ उत य य ऋ षय ां द घतमा जुहाव. पृथी य ां वै यः सादने वेवेदतो अ ना चेतयेथाम्.. (१०) हे अ नीकुमारो! जस कार तु ह क ीवान्, एवं द घतमा ऋ षय एवं राजा वेन के पु पृथु ने अपनी य शाला म बुलाया था, उसी कार म भी तु हारी तु त कर रहा ं. तुम इसे जानो. (१०) यातं छ द पा उत नः पर पा भूतं जग पा उत न तनूपा. व त तोकाय तनयाय यातम्.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तुम गृहपालक के प म आओ और हमारे लए अ यंत पु क ा बनो. तुम हमारे संसार तथा हमारे शरीर के पालनक ा बनो. तुम हमारे पु और पौ के घर म आओ. (११) य द े ण सरथं याथो अ ना य ा वायुना भवथः समोकसा. यदा द ये भऋभु भः सजोषसा य ा व णो व मणेषु त थः.. (१२) हे अ नीकुमारो! तुम य द इं के साथ एक रथ पर बैठकर आते हो, य द वायु के साथ एक थान म रहते हो, य द अ द त के पु ऋभु के साथ स रहते हो तथा य द व णु के कदम के साथ चलते हो तो हमारे पास आओ. (१२) यद ा नावहं वेय वाजसातये. य पृ सु तुवणे सह त े म नोरवः.. (१३) म अ नीकुमार को जब बुलाऊं, तभी वे मेरे यु म सहायता के लए आव. अ नीकुमार के श ुनाशन म वजयी र ासाधन े है. (१३) आ नूनं यातम नेमा ह ा न वां हता. इमे सोमासो अ ध तुवशे यदा वमे क वेषु वामथ.. (१४) हे अ नीकुमारो! इन ह का नमाण तु हारे न म आ है. तुम अव य आओ. यह सोम य और तुवशु राजा के पास उप थत है, तु हारे लए बनाया गया है एवं क वपु को दया गया है. (१४) य ास या पराके अवाके अ त भेषजम्. तेन नूनं वमदाय चेतसा छ दव साय य छतम्.. (१५) हे स य व प अ नीकुमारो! जो ओष धयां समीप और र के उ ह आप हम ा त कराएं. वमद क तरह व स को भी घर दो. (१५)
े
म मलती ह,
अभु यु दे ा साकं वाचाहम नोः. ावद ा म त व रा त म य यः.. (१६) म अ नीकुमार संबंधी द तो के साथ जागा ं. हे उषादे वी! मेरी तु त को सुनकर अंधकार मटाओ और मानव को धन दो. (१६) बोधयोषो अ ना दे व सूनृते म ह. य होतरानुष मदाय वो बृहत्.. (१७) हे शोभन ने
वाली एवं महान् उषादे वी! अ नीकुमार को जगाओ एवं उ त बनाओ.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुम उनके आनंद के लए अ धक मा ा म सोमरस तैयार करो. (१७) य षो या स भानुना सं सूयण रोचसे. आ हायम नो रथो व तया त नृपा यम्.. (१८) हे उषा! जब तुम अपने काश के साथ ग त करती हो, तब सूय के समान द त वाली लगती हो. उस समय अ नीकुमार का रथ मानव के य म जाता है. (१८) यदापीतासो अंशवो गावो न ऊध भः. य ा वाणीरनूषत दे वय तो अ ना.. (१९) हे अ नीकुमारो! जस समय पीले रंग क सोमलता को गाय के थन क तरह नचोड़ा जाता है एवं दे व को चाहने वाले लोग तु त करते ह, उस समय हमारी र ा करो. (१९) ु नाय
शवसे
नृषा ाय शमणे.
द ाय चेतसा.. (२०)
हे उ म ान वाले अ नीकुमारो! तुम लोग धन के लए, बल के लए, मनु य भोगने यो य सुख के लए तथा उ त के लए हमारी र ा करो. (२०) य ूनं धी भर ना पतुय ना नषीदथः. य ा सु ने भ
ारा
या.. (२१)
हे अ नीकुमारो! चाहे तुम अपने पता के समान ुलोक म बैठे होओ अथवा सुखपूवक शंसनीय घर म रहते होओ, दोन जगह से हमारे पास आओ. (२१)
सू —१०
दे वता—अ नीकुमार
य थो द घ स न य ादो रोचने दवः. य ा समु े अ याकृते गृहेऽत आ यातम ना.. (१) हे अ नीकुमारो! चाहे तुम शंसनीय य शाला वाले म यलोक म रहते होओ तथा ुलोक के द तशाली भाग म अथवा आकाश म नवास करते हो. तुम इन थान से हमारे पास आओ. (१) य ा य ं मनवे सं म म थुरेवे का व य बोधतम्. बृह प त व ा दे वाँ अहं व इ ा व णू अ नावाशुहेषसा.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम लोग ने जस कार मनु के लए य को सफल बनाया था, उसी कार क व के य को भी समझो. म बृह प त सभी दे व , इं , व णु एवं ग तशील अ वाले अ नीकुमार को बुलाता ं. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या व१ ना वे सुदंससा गृभे कृता. ययोर त णः स यं दे वे व या यम्.. (३) म शोभन कम वाले एवं हमारा ह व य वीकार करने के लए कट होने वाले अ नीकुमार को बुलाता ं. अ नीकुमार क म ता सभी दे व म उ म मानी जाती है. (३) ययोर ध य ा असूरे स त सूरयः. ता य या वर य चेतसा वधा भया पबतः सो यं मधु.. (४) य जन अ नीकुमार को वश म रखते ह एवं बना तोता वाले दे श म भी जनक तु त होती है, वे य के उ म जानकार ह. वे वधा श द के साथ मधुर सोमरस पएं. (४) यद ा नावपा य ा थो वा जनीवसू. यद् न व तुवशे यदौ वे वामथ मा गतम्.. (५) हे अ एवं धन के वामी अ नीकुमारो! इस समय तुम लोग चाहे पूव दशा म होओ, चाहे प मी दशा म, चाहे हयु, अनु, तुवशु एवं य राजा के पास हो, म तु ह वह से बुलाता ं. तुम मेरे पास आओ. (५) यद त र े पतथः पु भुजा य े मे रोदसी अनु. य ा वधा भर ध त थो रथमत आ यातम ना.. (६) हे अ धक ह व भ ण करने वाले अ नीकुमारो! तुम चाहे अंत र म गमन करते होओ अथवा ावा-पृ थवी क ओर जा रहे होओ, अथवा तेज पी रथ पर बैठे होओ, इन सभी थान से आओ. (६)
दे वता—अ न
सू —११ वम ने तपा अ स दे व आ म य वा. वं य े वी
ः.. (१)
हे अ न दे व! तुम मनु य म य कम क र ा करने वाले हो एवं य म शंसा करने यो य हो. (१) वम स श यो वदथेषु सह य. अ ने रथीर वराणाम्.. (२) (२)
हे श ु
को हराने वाले अ न! तुम य
म शंसा करने यो य एवं य
******ebook converter DEMO Watermarks*******
के नेता हो.
स वम मदप
षो युयो ध जातवेदः. अदे वीर ने अरातीः.. (३)
हे जातवेद अ न! तुम हमारे श ु को हमसे अलग करो. हे अ न! दे व से े ष रखने वाले श ुसेना को तुम अलग करो. (३) अ त च स तमह य ं मत य रपोः. नोप वे ष जातवेदः.. (४) (४)
हे जातवेद अ न! तुम श ु के पास रहकर भी कभी उसके य क इ छा नह करते. मता अम य य ते भू र नाम मनामहे. व ासो जातवेदसः.. (५) हम मरणधमा ाहमण तुझ मरणर हत अ न क वशाल तु तयां करगे. (५) व ं व ासोऽवसे दे वं मतास ऊतये. अ नं गी भहवामहे.. (६)
हम मरणधमा ाहमण मेधावी अ न दे व को अपनी र ा क बुलाते ह और ह ारा उ ह स करते ह. (६)
से तु तय
ारा
आ ते व सो मनो यम परमा च सध थात्. अ ने वांकामया गरा.. (७) हे अ न! व सगो ीय ऋ ष तु हारे उ म नवास थान से तु ह बुला लेते ह. वे अपनी तु त ारा हमारी कामना करते ह. (७) पु
ा ह स ङ् ङ स वशो व ा अनु भुः. सम सु वा हवामहे.. (८)
हे अ न! तुम ब त से थान को समान प से दे खते हो. इस लए तुम सारी जा मा लक हो. हम तु ह यु म बुलाते ह. (८)
के
सम व नमवसे वाजय तो हवामहे. वाजेषु च राधसम्.. (९) हम अ क अ भलाषा से यु म अ न व च धन वाले ह. (९)
म अपनी र ा करने के लए अ न को बुलाते ह. यु
नो ह कमी ो अ वरेषु सना च होता न स स. वां चा ने त वं प य वा म यं च सौभगमा यज व.. (१०) हे अ न! तुम य म पू य, ाचीन, ब त समय से हवन करने वाले, तु त के यो य एवं य म थत रहने वाले हो. तुम अपना शरीर ह व से स करो और हम सौभा य दो. (१०)
सू —१२
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यइ
सोमपातमो मदः श व चेत त. येना हं स य१ णं तमीमहे.. (१)
हे सोमरस पीने वाल म े एवं अ तशय बलशाली इं ! तुम स होकर अपने क जानते हो. हम तु हारी उस स ता क याचना करते ह, जसके कारण तुम रा स को मारते हो. (१) येना दश वम गुं वेपय तं वणरम्. येना समु मा वथा तमीमहे.. (२) हे इं ! हम तुमसे उसी मदपूण थ त म आने क याचना करते ह, जसके कारण तुमने अं गरागो ीय, अंधकार नाश करने वाले सूय एवं समु क र ा क थी. (२) येन स धुं महीरपो रथाँ इव चोदयः. प थामृत य यातवे तमीमहे.. (३) हे इं ! जस मद के कारण तुम वशाल जल का रथ के समान सागर क ओर भेजते हो, हम य के माग पर चलने के लए तुमसे उसी मद क दशा म होने क याचना करते ह. (३) इमं तोमम भ ये घृतं न पूतम वः. येना नु स ओजसा वव थ.. (४) हे व धारी इं ! हम मनचाहा फल दे ने के लए घृत के समान प व हमारे उस तो को जानो, जसे सुनकर तुम तुरंत अपने बल से हमारी अ भलाषा पूरी करते हो. (४) इमं जुष व गवणः समु इव प वते. इ
व ाभ
त भवव थ.. (५)
हे तु तयां सुनने वाले इं ! हमारे इस तो को वीकार करो. यह चं ोदय के समय बढ़ने वाले सागर के समान बढ़ता है. तुम उसी तो के कारण हम सम त र ासाधन ारा क याण दे ते हो. (५) यो नो दे वः परावतः स ख वनाय मामहे. दवो न वृ
थय वव थ.. (६)
हे इं दे व! तुमने र दे श से आकर हमारी मै ीभावना बढ़ाने के लए हम धन दया है. तुम हमारा धन अंत र से होने वाली वषा के समान बढ़ाओ एवं हम क याण दे ने क इ छा करो. (६) वव ुर य केतव उत व ो गभ योः य सूय न रोदसी अवधयत्.. (७) इं जब सूय के समान ावा-पृ थवी को वषा ारा बढ़ाते ह, तब इं के रथ पर लगे झंडे एवं उनका व हम अनेक क याण दे ते ह. (७) य द वृ
स पते सह ं म हषाँ अघः. आ द इ
यं म ह
वावृधे.. (८)
हे अ तशय महान् एवं स जन के पालक इं ! जस समय तुमने हजार महान् रा स ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को मारा था, उसके बाद ही तु हारा बल महान्
प से बढ़ा था. (८)
इ ः सूय य र म भ यशसानमोष त. अ नवनेव सास हः
वावृधे.. (९)
जस कार अ न वन को जलाते ह, उसी कार इं सूय क करण रा स को ठ क से जलाते ह एवं श ु को परा जत करते ए बढ़ते ह. (९) इयं त ऋ वयावती धी तरे त नवीयसी. सपय ती पु
ारा बाधक
या ममीत इत्.. (१०)
हे इं ! व भ ऋतु म होने वाले य कम से यु , अ तशय नवीन, आदर करती ई एवं अ धक स ताकारक यह तु त तु हारे पास जाती है. (१०) गभ य
य दे वयुः
तुं पुनीत आनुषक्. तोमै र
य वावृधे ममीत इत्.. (११)
य करने वाला तोता इं को दयालु करने क अ भलाषा से दशाप व पान हेतु सोमरस को पुनीत करता है, तो ारा इं को बढ़ाता है एवं तो गुण को सी मत करता है. (११)
ारा इं के ारा इं के
स न म य प थ इ ः सोम य पीतये. ाची वाशीव सु वते ममीत इत्.. (१२) म तोता को धन दे ने वाले इं ने सोमरस पीने के लए अपना शरीर उसी कार बढ़ा लया है, जस कार सोमरस नचोड़ने वाला यजमान अपने तु तवचन का व तार करता है एवं इं के गुण क सीमा बांधता है. (१२) यं व ा उ थवाहसोऽ भ म रायवः घृतं न प य आस यृत य यत्.. (१३) मेधावी एवं तो वहन करने वाले मनु य जन इं को भली कार मु दत करते ह, उ ह इं के मुख म म घृत के समान ह डालूग ं ा. (१३) उत वराजे अ द तः तोम म ाय जीजनत्. पु
श तमूतय ऋत य यत्.. (१४)
अ द त ने अपनी र ा के वचार से वयं द त के लए ब त संबंधी तो उ प कया था. (१४)
ारा शं सत एवं य
अ ध व य ऊतयेऽनूषत श तये. न दे व व ता हरी ऋत य यत्.. (१५) ऋ वज् र ा एवं शंसा पाने के लए इं क तु त करते ह. हे इं दे व! इस समय व वध कम करने वाले घोड़े तु ह य के लए ढोते ह. (१५) य सोम म
वणवय ाघ
त आ ये. य ा म सु म दसे स म
हे इं ! य प तुम व णु के आने पर सोमरस पीते हो अथवा जलपु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भः.. (१६) त राज ष के
य म सोमरस पीते हो अथवा म त के आने पर सोमरस पीते हो, फर भी तुम हमारा सोम पीकर ही स बनो. (१६) य ाश
पराव त समु अ ध म दसे. अ माक म सुते रणा स म
भः.. (१७)
हे श शाली इं ! य प तुम रवत सोमरस से स होते हो, तथा प हमारा सोमरस नचुड़ जाने पर उसके ारा स बनो. (१७) य ा स सु वतो वृधो यजमान य स पते. उ थे वा य य र य स स म मं
भः.. (१८)
हे स जन के पालक इं ! तुम सोमरस नचोड़ने वाले जस यजमान को बढ़ाते हो एवं से स होते हो, उसका सोमरस पीकर मु दत बनो. (१८) दे वंदेवं वोऽवस इ
म ं गृणीष ण. अधा य ाय तुवणे
ानशुः.. (१९)
हे यजमान! तु हारी र ा के लए म जन इं क तु तयां करना चाहता ं, मेरी तु तयां शी सेवा एवं य के लए उसी इं को ा त कर. (१९) य े भय वाहसं सोमे भः सोमपातमम्. हो ा भ र ं वावृधु ानशुः.. (२०) तोतागण य ारा यजमान को फल दे ने वाले एवं सोमरस पीने वाल म े इं को सोम एवं तु तय ारा बढ़ाते एवं ा त करते ह. (२०) महीर य णीतयः पूव त श तयः. व ा वसू न दाशुषे
ानशुः.. (२१)
इं का धनदान महान् एवं यश व तृत है. इं ह दाता यजमान को दे ने के लए सभी धन ा त करते ह. (२१) इ ं वृ ाय ह तवे दे वासो द धरे पुरः. इ ं वाणीरनूषता समोजसे.. (२२) दे व ने वृ को मारने के लए इं को अपने अ भाग म वामी बनाकर रखा था. वा णयां उ चत बल पाने के लए इं क ठ क से तु त करती ह. (२२) महा तं म हना वयं तोमे भहवन ुतम्. अकर भ
णोनुमः समोजसे.. (२३)
हम सवा धक महान् एवं पुकार सुनने वाले इं को उ चत बल क तथा मं ारा तुत करते ह. (२३) न यं व व तो रोदसी ना त र ा ण व (२४)
ा त के लए तो
णम्. अमा दद य त वषे समोजसः..
ावा-पृ थवी और आकाश जस व धारी इं को अपने से अलग नह कर सकते, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ ह इं क श यद
से श
पाने हेतु सारा संसार द त होता है. (२४)
पृतना ये दे वा वा द धरे पुरः. आ द े हयता हरी वव तुः.. (२५)
हे इं ! जब दे व ने तु ह सं ाम म वामी के घोड़ ने तु ह ढोया था. (२५) यदा वृ ं नद वृतं शवसा व
प म आगे कया था, उसी समय सुंदर
वधीः. आ द े हयता हरी वव तुः.. (२६)
हे व धारी इं ! तुमने जल को रोकने वाले वृ को जस समय मारा था, उसी समय तु हारे सुंदर घोड़ ने तु ह ढोया था. (२६) यदा ते व णुरोजसा ी ण पदा वच मे. आ द े हयता हरी वव तुः.. (२७) हे इं ! तु हारे छोटे भाई व णु ने जस समय अपने बल से तीन लोक को अपने तीन कदम से नापा था, उसी समय तु हारे सुंदर घोड़ ने तु ह ढोया था. (२७) यदा ते हयता हरी वावृधाते दवे दवे. आ द े व ा भुवना न ये मरे.. (२८) हे इं ! तु हारे सुंदर घोड़े जब म बांधा था. (२८) यदा ते मा ती वश तु य म
त दन बढ़े थे, उसी के बाद तुमने सारे संसार को नयम नये मरे. आ द े व ा भुवना न ये मरे.. (२९)
हे इं ! जब तु हारी म द्गण पी जा तु हारे लए सब ा णय को नयम म बांधती ह, उसी के बाद तुम सारे व को नय मत करते हो. (२९) यदा सूयममुं द व शु ं यो तरधारयः. आ द े व ा भुवना न ये मरे.. (३०) हे इं ! तुम उ वल काश वाले सूय को जस समय ुलोक म धारण करते हो, उसी समय सारे संसार को नयम म बांधते हो. (३०) इमां त इ
सु ु त व इय त धी त भः. जा म पदे व प त
ा वरे.. (३१)
हे इं ! बु मान् तोता य म स ता दे ने वाली शोभन तु त अपने सेवाकाय ारा इस कार तु हारे पास भेजता है जस कार लोग अपने बंधु उ म थान म भेजते ह. (३१) यद य धाम न
य समीचीनासो अ वरन्. नाभा य
य दोहना ा वरे.. (३२)
हे इं ! य म तु हारे तेज को स करने के लए तोता एक होकर जब ऊंचे वर से तु त बोलते ह, उस समय तुम धरती क ना भ प य क वेद पर धन दो. (३२) सुवीय व ं सुग म द नः. होतेव पूव च ये ा वरे.. (३३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! मुझे शोभन श , सुंदर घोड़े एवं अ छ गाएं दो. मने ान पाने के लए य म होता के समान पहले ही तु त क थी. (३३)
दे वता—इं
सू —१३ इ ः सुतेषु सोमेषु
तुं पुनीत उ यम्. वदे वृध य द सो महा ह षः.. (१)
इं सोमरस नचुड़ जाने पर य करने वाले एवं तोता को प व करते ह एवं बढ़े ए बल के लाभ के लए महान् ए ह. (१) स थमे
ोम न दे वानां सदने वृधः. सुपारः सु व तमः सम सु जत्.. (२)
वे इं व तृत ोम प दे व थान म दे व को बढ़ाते ह. इं य कम पूरा करने वाले, शोभन यश वाले एवं जल पीने के लए वृ के वजेता ह. (२) तम े वाजसातय इ ं भराय शु मणम्. भवा नः सु ने अ तमः सखा वृधे.. (३) म अ ा त के हेतु होने वाले सं ाम म सहायता के लए श शाली इं को बुलाता ं. हे इं ! तुम हमारा इ छत धन बढ़ाने के लए हमारे म बनो. (३) इयं त इ
गवणो रा तः र त सु वतः. म दानो अ य ब हषो व राज स.. (४)
हे तु तय ारा सेवा करने यो य इं ! सोमरस नचोड़ने वाले यजमान क यह आ त तु ह ा त होती है. तुम स होकर इस य म वराजो. (४) नूनं त द
द
नो य वा सु व त ईमहे. र य न
मा भरा व वदम्.. (५)
हे इं ! सोमरस नचोड़ने वाले हम जस धन क अ भलाषा करते ह, वह हम दो. तुम हम वग दे ने वाला व च धन दो. (५) तोता य े वचष णर त शधयद् गरः. वया इवानु रोहते जुष त यत्.. (६) हे इं ! वशेष प से दे खने वाले तोता जस समय तु हारे त श ु को हराने म समथ तु तयां करते ह एवं उनके ारा तु ह स करते ह, उस समय तुम म सभी गुण इस कार आ जाते ह जैसे एक वृ म ब त सी शाखाएं होती ह. (६) नव जनया गरः शृणुधी ज रतुहवम्. मदे मदे वव था सुकृ वने.. (७) हे इं ! तुम पहले के समान तोता ारा तु तयां उ प कराओ एवं तोता क पुकार सुनो. तुम सोमरस ारा स ता ा त करके शोभन कम करने वाले यजमान को मनचाहा फल दे ते हो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ळ य य सूनृता आपो न वता यतीः. अया धया य उ यते प त दवः.. (८) इं क स ची बात नीचे क ओर बहने वाली जलधारा के समान वहार करती ह. हमारी इस तु त ारा वग के वामी क शंसा होती है. (८) उतो प तय उ यते कृ ीनामेक इ शी. नमोवृधैरव यु भः सुते रण.. (९) वश म करने वाले एकमा इं ही मनु य का पालन करने वाले कहे गए ह. हे इं ! तुम तु तय ारा बढ़ने वाल एवं र ा के इ छु क लोग के साथ सोमरस पीकर स बनो. (९) तु ह ुतं वप तं हरी य य स णा. ग तारा दाशुषो गृहं नम वनः.. (१०) हे तोता! व ान् एवं स इं क तु त करो. उनके दोन श ु वजयी घोड़े ह दाता यजमान के घर जाने वाले ह. (१०) तूतुजानो महेमतेऽ े भः ु षत सु भः. आ या ह य माशु भः श म
ते.. (११)
हे महाफल दे ने वाली बु से यु इं ! तुम शी चलने वाले एवं चकने घोड़े के साथ य म आओ. उस य म तु ह सुख मलता है. (११) इ हे श एवं तोता
श व स पते र य गृण सु धारय. वः सू र यो अमृतं वसु वनम्.. (१२) शा लय म े एवं स जन के पालक इं ! हम तु त करने वाल को धन दो को मरणर हत तथा ापक यश दो. (१२)
हवे वा सूर उ दते हवे म य दने दवः. जुषाण इ
स त भन आ ग ह.. (१३)
हे इं ! म तु ह सूय नकलने पर एवं दोपहर के समय बुलाता ं. तुम स होकर अपने तेज चलने वाले घोड़ के ारा आओ. (१३) आ तू ग ह
तु व म वा सुत य गोमतः. त तुं तनु व पू
यथा वदे .. (१४)
हे इं ! शी आओ एवं य म जाओ. वहां गाय के ध से मले ए सोमरस से स बनो. तुम पूवज ारा कए ए य को उसी कार बढ़ाओ, जस कार म जानता ं. (१४) य छ ा स पराव त यदवाव त वृ हन्. य ा समु े अ धसोऽ वतेद स.. (१५) हे श शाली एवं वृ हंता इं ! तुम चाहे रवत थान म होओ, चाहे समीपवत थान म होओ, चाहे सागर म होओ, सब थान से आओ एवं सोमरस पीकर स बनो. (१५) इ ं वध तु नो गर इ ं सुतास इ दवः. इ े ह व मती वशो अरा णषुः.. (१६) हमारी तु तयां एवं नचोड़े ए सोमरस इं को बढ़ाव. ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धारण करने वाली जाएं
इं के
त
तम
ा रखती ह. (१६) ा अव यवः व वती भ
त भः. इ ं
ोणीरवधय वया इव.. (१७)
बु मान् एवं र ा चाहने वाले तोता इं को तृ त करने वाली तु तय ारा बढ़ाते ह. सब लोक वृ क शाखा के समान इं के अधीन होकर उ ह बढ़ाते ह. (१७) क केषु चेतनं दे वासो य म नत. त म ध तु नो गरः सदावृधम्.. (१८) दे व ने क क नाम के य म चैत य करने वाले इं को य के यो य बनाया था. सदा बढ़ने वाले इं को हमारी तु तयां बढ़ाव. (१८) तोता य े अनु त उ था यृतुथा दधे. शु चः पावक उ यते सो अ तः.. (१९) हे इं ! तु हारा तोता येक ऋतु के अनुसार अनुकूल कम करता आ उ थ को बोलता है. शु , प व करने वाले एवं आ यजनक तुम तु त का वषय बनते हो. (१९) तद
य चेत त य ं
नेषु धामसु. मनो य ा व त धु वचेतसः.. (२०)
वे ही पु म त् अपने पुराने थान म वतमान ह, जनक तु त वशेष ान वाले तोता करते ह. (२०) य द मे स यामावर इम य पा
धसः. येन व ा अ त
षो अता रम.. (२१)
हे इं ! य द तुम मुझे अपनी म ता दो एवं इस सोमरस को पओ, म सभी श ु हरा सकता ं. (२१) कदा त इ
गवणः तोता भवा त श तमः. कदा नो ग े अ
को
े वसौ दधः.. (२२)
हे तु तयां वीकार करने वाले इं ! तु हारा तोता कब अ तशय सुखी होगा? तुम हम कब गाय एवं अ वाले घर म रखोगे. (२२) उत ते सु ु ता हरी वृषणा वहतो रथम्. अजुय य म द तमं यमीमहे.. (२३) हे जरार हत इं ! तु हारे भली कार तुत एवं अ भलाषापूरक घोड़े तु हारे रथ को यहां लाव. हे अ तशय स इं ! हम तुमसे याचना करते ह. (२३) तमीमहे पु
ु तं य ं
ना भ
त भः. न ब ह ष
ये सददध
महान् एवं ब त ारा तुत इं से हम ाचीन सोमा तय य कुश पर बैठ एवं दो कार का ह वीकार कर. (२४)
ता.. (२४) ारा याचना करते ह. वे
वध वा सु पु ु त ऋ ष ु ता भ त भः. धु व प युषी मषमवा च नः.. (२५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ब त ारा तुत इं ! तुम ऋ षय एवं हम उ तशील अ दो. (२५) इ
ारा शं सत अपने र ासाधन
ारा हम बढ़ाओ
वम वतेदसी था तुवतो अ वः. ऋता दय म ते धयं मनोयुजम्.. (२६)
हे व धारणक ा इं ! तुम सब कार तोता क र ा करते हो. तु हारे स चे तो के ारा म तु हारी दया ा त करता ं. (२६) इह या सधमा ा युजानः सोमपीतये. हरी इ
त सू अ भ वर.. (२७)
हे इं ! तुम अपने स , स म लत प से स एवं व तृत धन वाले घोड़ को रथ म जोड़ कर इस य म सोमरस पीने के लए आओ. (२७) अ भ वर तु ये तव यु
ासः स त
यम्. उतो म वती वशो अ भ यः..(२८)
हे इं ! तु हारे अनुचर पु म द्गण इस आ ययो य य म ा त ह एवं म त से जाएं भी हमारे ह को ा त कर. (२८) इमा अ य तूतयः पदं जुष त य
व. नाभा य
य सं दधुयथा वदे .. (२९)
इं क ये म त् पी जाएं श ु का नाश करती ई अपने आ य थल वगलोक क सेवा करती ह एवं य क ना भ पणी उ रवेद पर इस कार थत रहती ह क हम धन पा सक. (२९) अयं द घाय च से ा च य य वरे. ममीते य मानुष वच य.. (३०) इं ाचीन य शाला म य आरंभ होने पर उसे पूवापर प से दे खकर इस कार पूण करते ह, जससे दे खने यो य फल मल सके. (३०) वृषाय म
ते रथ उतो ते वृषणा हरी. वृषा वं शत तो वृषा हवः.. (३१)
हे इं ! तु हारा यह रथ अ भलाषापूरक है तथा तु हारे घोड़े क कामना पूरी करने वाले ह. हे शत तु इं ! तुम एवं तु हारे आहवान दोन ही अ भलाषापूरक ह . (३१) वृषा ावा वृषा मदो वृषा सोमो अयं सुतः. वृषा य ो य म व स वृषा हवः.. (३२) हे इं ! सोमलता कूटने वाले प थर, सोमरस का नशा व नचोड़ा आ सोम अ भलाषापूरक ह. जस य म तुम ा त होते हो, वह कामना पूरी करने वाला है. तु हारा आहवान इ छापूरक है. (३२) वृषा वा वृषणं वे व
च ाभ
त भः. वाव थ ह
त ु त वृषा हव:.. (३३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व धारी एवं अ भलाषापूरक इं ! ह व सेचन करने वाला म व च तु तय ारा तु ह बुलाता ं. तुम अपनी तु तयां वीकार करो. तु हारा आहवान अ भलाषापूरक है. (३३)
दे वता—इं
सू —१४
य द ाहं यथा वमीशीय व व एक इत्. तोता मे गोषखा यात्.. (१) हे इं ! जस कार तुम एकमा धन वामी हो, उसी कार य द म भी ऐ य वाला बन जाऊं तो मेरा तोता भी गाय वाला बन जाएगा. (१) श ेयम मै द सेयं शचीपते मनी षणे. यदहं गोप तः याम्.. (२) हे श शाली इं ! य द तु हारी कृपा से म गाय का वामी बन जाऊं तो इस तोता को दे ने क इ छा क ं गा एवं इसके ारा मांगी ई संप ं गा. (२) धेनु इ
सूनृता यजमानाय सु वते. गाम ं प युषी हे.. (३)
हे इं ! तु हारी स ची एवं उ त करने वाली तु त नचोड़ने वाले यजमान को गाएं और घोड़े दे ती है. (३) न ते वता त राधस इ
दे वो न म यः. य
हे इं ! तुम तु त सुनकर तोता दे वता है एवं न मनु य. (४) य इ मवधय
म
धा
गाय बनकर सोमरस
स स तुतो मघम्.. (४)
को जो धन दे ना चाहते हो, उसे रोकने वाला न कोई
वतयत्. च ाण ओपशं द व.. (५)
य ने इं को बढ़ाया था, य क इं ने ुलोक म जाकर मेघ को सुलाते ए धरती को थर कया था. (५) वावृधान य ते वयं व ा धना न ज युषः. ऊ त म ा वृणीमहे.. (६) हे वधमान एवं श ु ह. (६)
के सभी धन जीतने वाले इं ! हम तु हारी र ा को ा त करते
१ त र म तर मदे सोम य रोचना. इ ो यद भन लम्.. (७) इं ने सोमरस के नशे म तेज वी अंत र कया है. (७)
को बढ़ाया है एवं श
शाली मेघ का नाश
उद्गा आजद रो य आ व कृ व गुहा सतीः. अवा चं नुनुदे बलम्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ने गुहा म छपी ई गाय को बाहर नकालकर अं गरागो ीय ऋ षय को दया था एवं गाय को चुराने वाले बल को धा कर दया था. (८) इ े ण रोचना दवो
हा न ं हता न च. थरा ण न पराणुदे.. (९)
इं ने द तशाली न नीचे नह गरा सकता. (९)
को श
शाली एवं ढ़ कया था. उन थर न
को कोई
अपामू ममद व तोम इ ा जरायते. व ते मदा अरा जषुः.. (१०) हे इं ! एक- सरे के ऊपर चलने वाली सागर क तरंग के समान तु हारी तु तयां शी ता से ग त करती ह. तु हारे मद वशेष प से द तशाली बनते ह. (१०) वं ह तोमवधन इ ा यु थवधनः. तोतॄणामुत भ कृत्.. (११) (११)
हे इं ! तुम तु तय एवं उ थ इ
ारा बढ़ने वाले हो एवं तोता
का क याण करते हो.
म के शना हरी सोमपेयाय व तः. उप य ं सुराधसम्.. (१२)
केश धारण करने वाले दो घोड़े शोभनधन वाले इं को य के समीप ले जाते ह. (१२) अपां फेनेन नमुचेः शर इ ोदवतयः व ा यदजयः पृधः.. (१३) व
हे इं ! जब तुमने वरोध करने वाली सभी असुर-सेना को हराया था, उसी समय पर जल का फेन लपेटकर तुमने नमु च का सर काटा था. (१३) माया भ
ससृ सत इ
ामा
तः. इव द यूँरधूनुथाः.. (१४)
हे इं ! तुमने माया के ारा व तार पाने के इ छु क एवं वग पर चढ़ने के अ भलाषी श ु रा स को धा कर दया था. (१४) असु वा म
संसदं वषूच
नाशयः. सोमपा उ रो भवन्.. (१५)
हे सोमपानक ा इं ! तुमने अ यंत उ कृ होकर सोमरस न नचोड़ने वाले लोग को पर पर वरोध ारा नबल बनाकर समा त कया. (१५)
दे वता—इं
सू —१५ तवभ
गायत पु
तं पु
ु तम्. इ ं गी भ त वषमा ववासत.. (१)
उ ह इं क तु त करो, ज ह ब त ने बुलाया है और ब त ने जनक तु त क है. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु तवचन यय
ारा महान् इं क सेवा करो. (१) बहसो बृह सहो दाधार रोदसी. गर र ाँ अपः ववृष वना.. (२)
ावा-पृ थवी दोन थान म पू य इं क महती श ावा-पृ थवी को धारण करती है. इं अपनी श ारा शी गामी बादल एवं बहने वाले जल को धारण करते ह. (२) स राज स पु
ु तँ एको वृ ा ण ज नसे. इ
जै ा व या च य तवे. (३)
हे ब त ारा तुत इं ! तुम द तशाली बनते हो. तुम जीतने-यो य धन एवं सुनने यो य यश को नयं त करने के लए अकेले ही श ु का वध करते हो. (३) तं ते मदं गृणीम स वृषणं पृ सु सास हम्. उ लोककृ नुम वो ह र यम्.. (४) हे व धारी इं ! हम तु हारे अ भलाषापूरक, यु म श ु को हराने वाले, थान बनाने वाले एवं ह र नामक घोड़ ारा सेवायो य साहस क शंसा करते ह. (४) येन योत यायवे मनवे च ववे दथ. म दानो अ य ब हषो व राज स.. (५) हे इं ! तुमने जस मद के कारण आयु एवं मनु के हेतु काश पड को द त कया था, उसी मद से स होकर तुम इस वशाल य के क ा के प म सुशो भत हो. (५) तद ा च उ थनोऽनु ु व त पूवथा. वृषप नीरपो जया दवे दवे.. (६) हे इं ! तोता पहले के समान आज भी तु हारी तु त करते ह. तुम उस जल को त दन वाय करो, जसके वामी बादल ह. (६) तव य द
यं बृह व शु ममुत
तुम्. व ं शशा त धषणा वरे यम्.. (७)
हे इं ! यह तु त तु हारे बल को व तृत करती है. तु हारा बल तु हारे कम एवं व तेज करता है. (७) तव ौ र
प यं पृ थवी वध त वः. वामापः पवतास
हे इं ! वगलोक तु हारी श तु ह स करते ह. (८)
को
ह वरे.. (८)
और धरती तु हारा यश बढ़ाती है. पवत एवं अंत र
वां व णुबृहन् यो म ो गृणा त व णः. वां शध मद यनु मा तम्.. (९) हे इं ! महान् व नवास थान दे ने वाले व णु, म एवं व ण तु हारी तु त करते ह. म त क श तु हारे मद के प ात् म होती है. (९) वं वृषा जनानां मं ह इ ज षे. स ा व ा वप या न द धषे.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम अ भलाषापूरक एवं मानव म अ तशय महान् बनकर ज म लेते हो. तुम शोभन संतान के साथ सम त धन दान हेतु धारण करते हो. (१०) स ा वं पु
ु तँ एको वृ ा ण तोशसे. ना य इ ात् करणं भूय इ व त.. (११)
हे ब त ारा तुत इं ! तुम अकेले ही महान् श ु अ त र कोई भी वध आ द नह कर सकता. (११) यद
को न
करते हो. इं
के
म मश वा नाना हव त ऊतये. अ माके भनृ भर ा वजय.. (१२)
हे इं ! जस यु तोता ारा उस यु
म र ा के लए अनेक कार से तु हारी तु त क जाती है, हमारे म बुलाए जाने पर श ु को जीतो. (१२)
अरं याय नो महे व ा
पा या वशन्. इ ं जै ाय हषया शचीप तम्.. (१३)
हे तोता! हमारे वशाल घर के लए इं के ा त धन पाने के लए श शाली इं क शंसा करो. (१३)
प क तु त करो एवं वजय द
दे वता—इं
सू —१६
स ाजं चषणीना म ं तोता न ं गी भः. नरं नृषाहं मं ह म्.. (१) हे तोताओ! तु तय ारा शंसनीय, नेता, श ु पराजयकारी, सवा धक दाता एवं मानव स ाट् इं क तु त करो. (१) य म ु था न र य त व ा न च व या. अपामवो न समु े .. (२) इं के त उ थ एवं सभी शंसनीय ह ा उसी कार शोभा पाते ह, जस कार जल क तरंग सागर म सुशो भत होती ह. (२) तं सु ु या ववासे ये राजं भरे कृ नुम्. महो वा जनं स न यः.. (३) म धन पाने के लए शंसनीय म द तशाली, सं ाम म महान्, व म द शत करने वाले व श शाली इं क शोभन तु तय ारा सेवा करता ं. (३) य यानूना गभीरा मदा उरव त
ाः. हषुम तः शूरसातौ.. (४)
इं का सोमपान का नशा पया त, गंभीर, व तीण, श ुनाशक एवं यु वाला है. (४) त म नेषु हते व धवाकाय हव ते. येषा म
ते जय त.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म स ता दे ने
तोता लोग श ु का धन दे खकर प पात ा त करने के लए इं को बुलाते ह. इं जनका प पात करते ह, वे वजयी होते ह. (५) त म यौ नैराय त तं कृते भ षणयः. एष इ ो व रव कृत्.. (६) मनु य श शाली तो एवं य कम तोता को धन दे ने वाले ह. (६) इ ो
े
ऋ ष र ः पु
पु
ारा उ ह इं को वामी बनाते ह. इं ही
तः. महा मही भः शची भः.. (७)
इं सवा धक महान्, ऋ ष, अनेक काय के कारण महान् ह. (७)
ारा कई बार बुलाए ए एवं वृ वधा द महान्
स तो यः स ह ः स यः स वा तु वकू मः. एक
स भभू तः.. (८)
इं तु त करने यो य, बुलाने यो य, स य वभाव, श ुनाशक, अनेक कम करने वाले एवं अकेले होने पर भी श ुपराजयकारी ह. (८) तमक भ तं साम भ तं गाय ै षणयः. इ ं वध त
तयः.. (९)
मं ा लोग एवं साधारण जन उन इं को यजुवद के पूजोपयोगी मं , सामवेद के गाने यो य मं एवं गाय ी छं द म ल खत तु तय ारा बढ़ाते ह. (९) णेतारं व यो अ छा कतारं यो तः सम सु. सास ांसं युधा म ान्..(१०) यु
इं अ भमुख होकर शंसनीय धन दे ने वाले, यु के ारा श ु को हराने वाले ह. (१०) स नः प ः पारया त व त नावा पु
पूण करने वाले एवं ब त कुशलपूवक पार कर. (११) स वं न इ
म जय पी काश करने वाले एवं
तः. इ ो व ा अ त
षः.. (११)
ारा बुलाए गए इं हम नाव के
ारा सभी श ु
से
वाजे भदश या च गातुया च. अ छा च नः सु नं ने ष.. (१२)
हे इं ! तुम अपनी श लाओ. (१२)
सू —१७ आ या ह सुषुमा ह त इ
ारा हम धन एवं माग दान करो. तुम सुख को हमारे सामने
दे वता—इं सोमं पबा इमम्. एदं ब हः सदो मम.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आओ तु हारे लए हम सोमरस नचोड़ते ह. तुम इस सोम को पओ एवं हमारे ारा बछाए गए इन कुश पर बैठो. (१) आ वा
युजा हरी वहता म
के शना. उप
ा ण नः शृणु.. (२)
हे इं ! मं के कारण रथ म जुड़ने वाले एवं केश से यु म आकर तुम हमारी तु तयां सुनो. (२) ाण वा वयं युजा सोमपा म
घोड़े तु ह यहां लाव. इस य
सो मनः. सुताव तो हवामहे.. (३)
हे इं ! सोमरस से यु व सोमरस नचोड़ने वाले हम तोता यो य तु तय सोमपान करने वाले को बुलाते ह. (३) आ नो या ह सुतावतोऽ माकं सु ु ती प. पबा सु श
ारा तुम
धसः.. (४)
हे इं ! सोमरस नचोड़ने वाले हम लोग के सामने आओ एवं हमारी तु तयां सुनो. हे शोभन शर ाण वाले इं ! सोम प ह का भोग करो. (४) आ ते स चा म कु योरनु गा ा व धावतु. गृभाय ज या मधु.. (५) हे इं ! तु हारी दोन कोख को म सोमरस से पूण करता ं. सोमरस तु हारे शरीर के सभी भोग को ा त करे. तुम जीभ ारा मधुर सोमरस वीकार करो. (५) वा
े अ तु संसुदे मधुमा त वे३तव. सोमः शम तु ते दे .. (६)
हे इं ! यह माधुयपूण सोम तु हारे शोभनदान वाले शरीर के लए अ यंत वाद वाला हो. यह सोम तु हारे दय के लए सुखकारक हो. (६) अयमु वा वचषणे जनी रवा भ संवृतः. हे वशेष
ा इं ! यह सोम
सोम इ
सपतु.. (७)
ी के समान ढका आ बनकर तु हारे समीप जाए. (७)
तु व ीवो वपोदरः सुबा र धसो मदे . इ ो वृ ा ण ज नते.. (८) व तीण ीवा वाले, बड़े पेट वाले एवं शोभन भुजा म होकर श ु का नाश करते ह. (८) इ
े ह पुर वं व
येशान ओजसा. वृ ा ण वृ ह
से यु
इं सोम प ह
से
ह.. (९)
हे इं ! तुम अपने बल से सारे जगत् के वामी बनकर हमारे सामने आओ. हे वृ नाशक इं ! तुम श ु को मारो. (९) द घ ते अ वङ् कुशो येना वसु य छ स. यजमानाय सु वते.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तु हारा वह अंकुश बड़ा हो, जससे तुम सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को धन दे ते हो. (१०) अयं त इ
सोमो नपूतो अ ध ब ह ष. एहीम य वा पब.. (११)
हे इं ! यह सोम तु हारे लए वेद पर बछे ए कुश पर वशेष प से शु है. तुम यहां आओ एवं इसे शी पओ. (११) शा चगो शा चपूजनायं रणाय ते सुतः. आख डल
कया गया
यसे.. (१२)
हे श शाली, गाय के वामी एवं स पूजन वाले इं ! तु हारी स ता के लए यह सोमरस नचोड़ा गया है. हे श ुनाशक इं ! तुम तु तय ारा बुलाए जाते हो. (१२) य ते शृ वृषो नपात् णपा कु डपा यः. य म द न आ मनः.. (१३) हे शृंगवृष ऋ ष के पु इं ! कु डपाट् य नामक य तु हारा थापक है. ऋ षय ने उस य म मन लगाया है. (१३) वा तो पते ुवा थूणांस ं सो यानाम्. सो भे ा पुरो श तीना म ो मुनीनां सखा.. (१४) हे गृह के वामी इं ! घर क छत रोकने वाले लकड़ी के खंभे थर ह . हम सोमरस नचोड़ने वाल के शरीर म र ायो य बल दो. तरल सोम वाले एवं श ु नग रय का नाश करने वाले इं ऋ षय के सखा ह . (१४) पृदाकुसानुयजतो गवेषण एकः स भ भूयसः. भू णम ं नय ुजा पूरां गृभे ं सोम य पीतये.. (१५) सांप के समान ऊंचे सर वाले, य के पा एवं गाय को दे ने वाले इं अकेले होने पर भी ब त से श ु को परा जत करते ह. तोता भरण करने वाले एवं ापक इं को सोमरस पीने के लए हमारे सामने लाते ह. (१५)
दे वता—आ द य आ द
सू —१८ इदं ह नूनमेषां सु नं भ ेत म यः. आ द यानामपू इस समय अ द तपु दे व क अनवाणो
सवीम न.. (१)
ेरणा से तोता अ भनव सुख क याचना कर. (१)
ेषां प था आ द यानाम्. अद धाः स त पायवः सुगेवृधः.. (२)
इन अ द तपु
के माग सर के गमन से र हत एवं हसाशू य ह. वे माग पालन करने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले और सुखवधक ह. (२) त सु नः स वता भगो व णो म ो अयमा. शम य छ तु स थो यद महे.. (३) हम जस व तृत सुख क याचना करते ह, वही हम स वता, भग, व ण, म एवं अयमा द. (३) दे वे भद
दतेऽ र भम ा ग ह. म सू र भः पु
य सुशम भः.. (४)
हे दे व अ द त! तुम जसका भरण करती हो, उसक कोई हसा नह कर सकता. तुम ब त को य हो. तुम शोभन सुख वाले एवं बु मान् दे व के साथ भली कार आओ. (४) ते ह पु ासो अ दते व
षां स योतवे. अंहो
च योऽनेहसः.. (५)
अ द त के वे पु े षी रा स को अलग करना जानते ह. बड़े-बड़े काम को करने वाले एवं र क दे व हम पाप से अलग करना चाहते ह. (५) अ द तन दवा पशुम द तन
म याः. अ द तः पा वंहसः सदावृधा. (६)
अ द त दन म हमारे पशु क र ा कर. बाहर एवं भीतर से समान रहने वाली अ द त रात म हमारे पशु क र ा कर. वे हम सदा बढ़ने वाले पाप से बचाव. (६) उत या नो दवा म तर द त
या गमत्. सा श ता त मय करदप
तु त के यो य वे अ द त अपने र ासाधन शां तदाता सुख द एवं हमारे बाधक को र कर. (७)
ारा दन म हमारे पास आव, हम
उत या दै ा भषजा शं नः करतो अ ना. युयुयाता मतो रपो अप दे व के भगाव. (८)
स
धः.. (७)
धः.. (८)
वै अ नीकुमार हम सुख द, हमसे पाप को हटाव एवं श ु
शम नर न भः कर छं न तपतु सूयः. शं वातो वा वरपा अप
को र
धः.. (९)
अ न दे व गाहप या द व वध अ नय ारा हम आरो य का सुख द. सूय हमारे लए सुखदाता बनकर तप. पापर हत वायु सुख दे ने के लए बहे एवं श ु को हमसे र रख. (९) अपामीवामप
धमप सेधत म तम्. आ द यासो युयोतना नो अंहसः.. (१०)
हे आ द यो! हमसे रोग को र करो, श ु को अलग हटाओ एवं हमसे र रखो. आ द यगण हम पाप से अलग कर. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बु
को
युयोता श म मदाँ आ द यास उताम तम्. ऋधग् े षः कृणुत व वेदसः.. (११) हे आ द यो! हसक श ु एवं को हमसे अलग करो. (११)
-बु
को हमसे र करो. हे सव आ द यो! श ु
त सु नः शम य छता द या य मुमोच त. एन व तं चदे नसः सुदानवः.. (१२) हे शोभनदान वाले आ द यो! तु हारा जो सुख पापी तोता को भी पाप से छु ड़ाता है, उसे हम दो. (१२) यो नः क
र तर
वेन म यः. वैः ष एवै र रषी युजनः.. (१३)
जो मनु य हम रा स बनकर न करना चाहता है, वह अपने ही पाप से न हो जावे तथा अपने आप र चला जावे. (१३) स म मघम वद् ःशंसं म य रपुम्. यो अ म ा हणावाँ उप युः.. (१४) उस अपक त वाले श ु-मनु य को पाप ा त करे जो है एवं हमारे आगेपीछे दो कार का वहार करता है. (१४) पाक ा थन दे वा
तापूवक हम मारना चाहता
सु जानीथ म यम्. उप युं चा युं च वसवः.. (१५)
हे नवास थानदाता आ द य दे वो! तुम प रप व ान वाले हो. तुम अपने मन म कपट और कपटहीन—दोन कार के लोग को जानते हो. (१५) आ शम पवतानामोतापां वृणीमहे. ावा ामारे अ म प कृतम्.. (१६) हम अ भमुख होकर पवतसंबंधी एवं जलसंबंधी सुख का वरण करते ह. ावा-पृ थवी पाप को हमसे र ले जाव. (१६) ते नो भ े ण शमणा यु माकं नावा वसवः. अ त व ा न
रता पपतन.. (१७)
हे नवासदाता आ द यो! अपनी क याणकारी एवं सुखद नाव के ारा हम सब पाप के पार प ंचाओ. (१७) तुचे तनाय त सु नो ाघीय आयुज वसे. आ द यासः सुमहसः कृणोतन.. (१८) हे शोभन-तेज वाले आ द यो! हमारे पु लंबी आयु दो. (१८)
और पौ
को एवं हमारे जीवन को ब त
य ो हीळो वो अ तर आ द या अ त मृळत. यु मे इ ो अ प म स सजा ये.. (१९) हे आ द यो! हमारा य तु हारे समीप ही वतमान है. तुम हम सुखी करो. तु हारे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सजातीय बनकर हम सदा तु हारे भ बृह
रहगे. (१९)
थं म तां दे वं ातारम ना. म मीमहे व णं व तये.. (२०)
हम भ के र क इं , अ नीकुमार , म एवं व ण से सु ढ़ तथा शीतातप वारण करने वाला घर अपनी र ा के लए मांगते ह. (२०) अनेहो म ायम ृव
ण शं यम्.
व थं म तो य त न छ दः.. (२१)
हे म , अयमा, व ण एवं म द्गण! तुम हम ऐसा घर दो जो हसाशू य, पु ा द से यु , शंसा यो य व शीत, आतप, वषा—तीन का नवारक हो. (२१) ये च
मृ युब धव आ द या मनवः म स.
सू न आयुज वसे तरेतन.. (२२)
हे आ द यो! जो लोग मृ यु के ब त समीप ह, उनके जीवन के लए उनक आयु बढ़ाओ. (२२)
सू —१९
दे वता—अ न आ द
तं गूधया वणरं दे वासो दे वमर त दध वरे. दे व ा ह मो हरे.. (१) हे तोताओ! सबके नेता स अ न क तु त करो. ऋ वज् सबके वामी अ न दे व के समीप जाते ह एवं दे व को ह दे ते ह. (१) वभूतरा त व च शो चषम नमी ळ व य तुरम्. अ य मेध य सो य य सोभरे ेम वराय पू म्.. (२) हे मेधावी सौभ र! अ धक दे ने वाले, व च -द तसंप इस सोमसा य य के नयंता एवं पुरातन अ न क तु त य पू त के लए करो. (२) य ज ं वा ववृमहे दे वं दे व ा होतारमम यम्. अ य य
य सु तुम्..(३)
हे अ तशय-य पा , दे व म सव म दे व को बुलाने वाले, मरणर हत एवं इस य के शोभनक ा अ न! हम तु ह बुलाते ह. (३) ऊज नपातं सुभगं सुद द तम नं े शो चषम्. स नो म य व ण य सो अपामा सु नं य ते द व.. (४) अ का पालन करने वाले शोभन धनयु , उ म द तसंप एवं े काश वाले अ न क म तु त करता ं. वे हमारे लए ुलोक म म एवं व ण के सुख का वचार करके तथा जल दे वता के सुख के लए य कर. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यः स मधा य आ ती यो वेदेन ददाश मत अ नये. यो नमसा व वरः.. (५) जो मनु य स मधा ारा, आ तय ारा, वेदा ययन ारा एवं सुंदर य नम कार ारा अ न क सेवा करता है. (५)
करते समय
त येदव तो रंहय त आशव त य ु नतमं यशः. न तमंहो दे वकृतं कुत न न म यकृतं नशत्.. (६) उसी के ापक अ वेगपूवक चलते ह, उसी का यश सबसे अ धक द त होता है और उसे वेदकृत या मनु यकृत कोई भी पाप नह लगता. (६) व नयो वो अ न भः याम सूनो सहस ऊजा पते. सुवीर वम मयुः.. (७) हे बल के पु एवं ह अ के वामी अ न! हम तु हारे गाहप या द अ न वाले बनगे. तुम शोभन वीर वाले बनकर हमारी र ा करो. (७)
प
ारा शोभन
शंसमानो अ त थन म योऽ नी रथो न वे ः. वे ेमासो अ प स त साधव वं राजा रयीणाम्.. (८) अ न शंसा करते ए अ त थ के समान तोता के हतैषी एवं रथ के समान इ छत फल दे ने वाले ह. हे अ न! तुम म उ चत र ासाधन ह एवं तुम धन के वामी हो. (८) सो अ ा दा
वरोऽ ने मतः सुभग स शं यः. स धी भर तु स नता.. (९)
हे शोभन-धन वाले अ न! य करने वाला मनु य स यफल से यु यो य एवं तो ारा सेवनीय हो. (९)
बने. वह शंसा के
य य वमू व अ वराय त स य रः स साधते. सो अव ः स नता स वप यु भः स शूरैः स नता कृतम्.. (१०) हे अ न! जस यजमान का य पूण करने के लए तुम ऊ वग त वाले बनते हो, वह नवासयु वीर का वामी बनकर अपना काम पूरा करता है, अ ारा ा त वजय को पाता है एवं शूर व बु मान ारा से वत होता है. (१०) य या नवपुगृहे तोमं चनो दधीत व वायः. ह ा वा वे वष ष:.. (११) जस यजमान के घर म सबके ारा वरणीय करते ह, उसका दय दे व के पास जाता है. (११)
प वाले अ न तो व अ
व य वा तुवतः सहसो यहो म ूतम य रा तषु. अवोदे वमुप रम य कृ ध वसो व व षो वचः.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वीकार
हे बल से यु एवं नवास थान दे ने वाले अ न! बु मान् तोता के ह दान म य क ा का वचन दे व के नीचे एवं मानव के ऊपर करो. (१२) यो अ नं ह दा त भनमो भवा सुद मा ववास त. गरा वा जरशोच षम्.. (१३) जो यजमान ह दे कर एवं नम कार ारा शोभन बलयु अ न उपासना करता है अथवा तु तय ारा ग तशील तेज वाले अ न क सेवा करता है वह समृ शाली बनता है. (१३) स मधा यो न शती दाशद द त धाम भर य म यः. व े स धी भः सुभगो जनाँ अ त ु नै दन इव ता रषत्.. (१४) जो मनु य इस अ न के आकार से अ वभा य गाहप या द क वलनशील स मधा के ारा सेवा करता है, वह अपने य कम ारा शोभन संप वाला बनकर तेज वी यश ारा सब मनु य को इस कार पार कर जाता है जैसे जल सब बाधाएं पार करके आगे बढ़ता है. (१४) तद ने ु नमा भर य सासह सदने कं चद णम्. म युं जन य
ः.. (१५)
हे अ न! हम वह धन दो जो घर म वतमान रा स आ द को परा जत करता है एवं पापबु मनु य के ोध को दबाता है. (१५) येन च े व णो म ो अयमा येन नास या भगः. वयं त े शवसा गातु व मा इ वोता वधेम ह.. (१६) अ न के जस तेज ारा व ण, म , अयमा, अ नीकुमार एवं भग सबको काश दे ते ह. श ारा तो जानने वाल म े हम इं ारा सुर त होकर अ न के उसी तेज क सेवा करते ह. (१६) ते घेद ने वा यो३ ये वा व
नद धरे नृच सम्. व ासो दे व सु तुम्.. (१७)
हे मेधावी अ न दे व! तुम मनु य के सा ी एवं शोभन कम वाले हो. जो बु ऋ वज् तु ह धारण करते ह, वे शोभन यान वाले बनते ह. (१७)
मान्
त इ े द सुभग त आ त ते सोतुं च रे द व. त इ ाजे भ ज युमह नं ये वे कामं ये ररे.. (१८) हे शोभनधन वाले अ न! वे ही यजमान तु हारे य के लए वेद बनाते ह, तु ह आ त दे ते ह, द तशाली दन म सोमरस नचोड़ते ह एवं बल ारा वशाल संप जीतते ह, जो तु हारे त अ भलाषा रखते ह. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भ ो नो अ नरा तो भ ा रा तः सुभग भ ो अ वरः. भ ा उत श तयः.. (१९) ह ारा तृ त अ न हमारे लए क याणकारी हो. हे शोभन धन वाले अ न! तु हारा दान हमारा क याण करने वाला हो. तु हारा य और तु हारी तु तयां हम क याण द. (१९) भ ं मनः कृणु व वृ तूय येना सम सु सासहः. अव थरा तनु ह भू र शधतां वनेमा ते अ भ भः.. (२०) हे अ न! सं ाम म हमारे त अपना मन शोभन बनाओ. उस मन के ारा तुम यु म श ु को परा जत करो. तुम सर को परा जत करने वाले श ु के महान् बल को नीचा दखाओ. हम ह और तो ारा तु हारी सेवा करगे. (२०) ईळे गरा मनु हतं यं दे वा तमर त ये ररे. य ज ं ह वाहनम्.. (२१) जाप त मनु ारा था पत अ न क म तु त करता ं. सवा धक य क ा, ह करने वाले एवं ई र अ न को दे व ने त बनाकर भेजा. (२१)
वहन
त मज भाय त णाय राजते यो गाय य नये. यः पशते सूनृता भः सूवीयम नघृते भरा तः.. (२२) हे तोता! तेज वाला वाले, न य त ण एवं सुशो भत अ न के त ह -अ से संबं धत गाना गाओ. वे अ न शोभन एवं स य वचन क तु त सुनकर एवं घृत क आ त पाकर तोता को शोभन वीय दे ते ह. (२२) यद घृते भरा तो वाशीम नभरत उ चाव च. असुर इव न णजम्.. (२३) श
घृत के ारा बुलाए ए अ न जस समय ऊपर तथा नीचे श द करते ह, उस समय वे शाली सूय के समान अपना प का शत करते ह. (२३) यो ह ा यैरयता मनु हतो दे व आसा सुग धना. ववासते वाया ण व वरो होता दे वो अम यः.. (२४)
जाप त मनु ारा था पत एवं द तशाली अ न अपने सुगं ध वाले मुख ारा हमारा ह दे व के पास भेजते ह. शोभनय वाले अ न यजमान को उ म धन दे ते ह एवं दे व को बुलाते ह वे मरणर हत एवं द तशाली ह. (२४) यद ने म य वं यामहं म महो अम यः. सहसः सूनवा त.. (२५) हे बल के पु , घृत ारा आ त एवं अनुकूल द त वाले अ न! म मरणधमा तु हारी उपासना से तु हारे समान मरणर हत हो जाऊं. (२५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न वा रासीया भश तये वसो न पाप वाय स य. न मे तोतामतीवा न हतः याद ने न पापया.. (२६) हे वासदाता अ न! म म या अपवाद के लए तुम पर आ ोश नह क ं गा और न पाप के लए तु हारा अपमान क ं गा. मेरा तोता भी ऐसा नह करेगा. बु हीन श ु बनकर मुझे बाधा न प ंचाव. (२६) पतुन पु ः सुभृतो रोण आ दे वाँ एतु
णो ह वः.. (२७)
भली कार भरणक ा अ न हमारे य गृह म हमारा ह व दे व को इस कार प ंचाव जस कार पु पता क सेवा करता है. (२७) तवाहम न ऊ त भन द ा भः सचेय जोषमा वसो. सदा दे व य म यः.. (२८) हे वासदाता अ न! तु हारे समीपवत र ासाधन पाने के लए सेवा क ं . (२८)
ारा म मनु य सदा तु हारी स ता
तव वा सनेयं तव रा त भर ने तव श त भः. वा मदा ः म त वसो ममा ने हष व दातवे.. (२९) हे अ न! तु हारी प रचया पी कम ारा म तु हारी सेवा क ं गा. तु ह ह दे कर एवं तु हारी शंसा करके म तु हारी सेवा क ं गा. हे वासदाता अ न! हमवाद तु ह मेरा उ मबु र क कहते ह. हे अ न! दान के लए स बनो. (२९) सो अ ने तवो त भः सुवीरा भ तरते वाजभम भः. य य वं स यमावरः.. (३०) यु
हे अ न! तुम जस यजमान क म ता वीकार करते हो, वह तु हारे शोभन पु र ा ारा वृ पाता है. (३०)
से
तव सो नीलवा वाश ऋ वय इ धानः स णवा ददे . वं महीनामुषसाम स यः पो व तुषु राज स.. (३१) हे सोम से स चे गए, वणशील, शकट पी नीड़ वाले, श द करते ए, ऋतु उ प एवं व लत अ न! तु हारे लए सोमरस दया जाता है. तुम महती उषा के हो एवं रात के समय सारी व तु म सुशो भत होते हो. (३१)
म य
तमाग म सोभरयः सह मु कं व भ मवसे. स ाजं ासद यवम्.. (३२) हम सौभ र लोग र ा पाने के वचार से हजार तेज वाले, शोभन प यु , भली कार सुशो भत एवं राज ष सद यु ारा तुत अ न के पास आए ह. (३२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य य ते अ ने अ ये अ नय उप तो वयाइव. वपो न ु ना न युवे जनानां तव ा ण वधयन्.. (३३) हे अ न! जस कार वृ म शाखाएं रहती ह, उसी कार तुम म गाहप य आ द अ य अ नयां समा हत ह. मनु य के म य रहने वाला म तु हारी श यां अपनी तु त ारा बढ़ाता आ अ य तोता के सामने उ वल यश पाऊंगा. (३३) यमा द यासो अ हः पारं नयथ म यम्. मघोनां व ेषां सुदानवः.. (३४) हे ोहर हत एवं शोभन-दान वाले आ द यो! सभी ह धारी मानव के ारंभ कए कम के अंत तक प ंचाते हो, वह फल पाता है. (३४)
त जसे तुम
यूयं राजानः कं च चषणीसहः य तं मानुषाँ अनु. वयं ते वो व ण म ायम यामे त य र यः.. (३५) हे शोभायु एवं श ु को हराने वाले आ द यो! तुम घातक मनु य को न करो. हे व ण, म एवं अयमा दे वो! हम ही तु हारे य के नेता ह गे. (३५) अदा मे पौ कु यः प चाशतं सद युवधूनाम्. मं ह ो अयः स प तः.. (३६) उ म दानी, वामी, स जन के पालक एवं पु कु स के पु प नयां दान क ह. (३६)
सद यु ने मुझे पचास
उत मे ययोव ययोः सुवा वा अ ध तु व न. तसॄणां स ततीनां यावः णेता भुव सु दयानां प तः.. (३७) शोभन नवास वाली स रता के तट पर रहने वाले, काले रंग के बैल को आगे बढ़ाने वाले, पू य, धनदान करने म समथ एवं दो सौ दस गाय के वामी सद यु ने मुझे धन एवं व दए ह. (३७)
सू —२० आ ग ता मा रष यत
दे वता—म द्गण थावानो माप थाता सम यवः. थरा च म य णवः.. (१)
हे थान करने वाले म तो! आओ. तुम हम मत मारना. तुम समान प से होने पर ढ़ पवत को भी कंपा सकते हो. तुम हमसे र मत रहो. (१) वीळु प व भम त ऋभु ण आ ासः सुद त भः. इषा नो अ ा गता पु पृहो य मा सोभरीयवः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ो धत
द तशाली नवास थान वाले एवं पु म तो! तुम ऐसे रथ ारा आओ, जनके प हय क ने मयां शोभन द त वाली ह. हे ब त ारा अ भल षत म तो! मुझ सौभ र के त मन म दयालु बनकर एवं अ लेकर आज य म आओ. (२) व ा ह
याणां शु ममु ं म तां शमीवताम्. व णोरेष य मी
हम कम वाले एवं कृपाजल से स चने वाले जानते ह. (३) व
षाम्.. (३)
पु म त एवं व णु के उ बल को
पा न पापत त छु नोभे युज त रोदसी. ध वा यैरत शु खादयो यदे जथ वभानवः.. (४)
हे शोभन आयुध वाले एवं व श द त वाले म तो! तु हारे आने से जो कंपन होता है, उससे सारे प गर पड़ते ह, वृ ा द थावर ःखी होते ह, ावा-पृ थवी दोन कांप उठते ह एवं गमनशील जल बहने लगता है. (४) अ युता च ो अ म ा नानद त पवतासो वन प तः. भू मयामेषु रेजते.. (५) हे म तो! जस समय तुम यु म जाते हो, उस समय अ युत पवत एवं वन प तयां बार-बार श द करती ह तथा धरती कांपती है. (५) अमाय वो म तो यातवे ौ जहीत उ रा बृहत्. य ा नरो दे दशते तनू वा व ां स बा ोजसः.. (६) हे म तो! तु हारे बलपूवक गमन को थान दे ने के वचार से ुलोक वशाल अंत र से ऊपर चला गया है. उस अंत र म ब श संप एवं नेता म द्गण अपने शरीर म द त आभरण धारण करते ह. (६) वधामनु
यं नरो म ह वेषा अमव तो वृष सवः. वह ते अ त सवः.. (७)
नेता, द त, श शाली, वषा प एवं कु टलतार हत म द्गण ह महती शोभा धारण करते ह. (७)
अ पाने के लए
गो भवाणो अ यते सोभरीणां रथे कोशे हर यये. गोब धवः सुजातास इषे भुजे महा तो नः परसे नु.. (८) सौभ र आ द ऋ षय क तु तय से सोने के बने रथ के म यभाग म म त क वीणा कट हो रही ह. गाएं जनक माता ह, शोभन ज म वाले एवं महानुभाव म द्गण हमारे अ , भोग एवं स ता के लए दयालु ह . (८) त वो वृषद
यो वृ णो शधाय मा ताय भर वम्. ह ा वृष या णे.. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम क वषा से स चने वाले अ वयुगण! वषा करने वाले म त क श बढ़ाने के लए ह अ पत करो. इस ह के ारा म द्गण वषाकारक एवं उ मग त वाले बनते ह. (९) वृषण ेन म तो वृष सुना रथेन वृषना भना. आ येनासो न प णो वृथा नरो ह ा नो वीतये गत.. (१०) हे नेता म तो! सेचन-समथ अ से यु , वषाकारक प से यु एवं वष क ना भयु रथ पर चढ़कर ह के समीप इस कार शी आओ, जस कार बाज प ी आता है. (१०) समानम
येषां व ाज ते
मासो अ ध बा षु. द व ुत यृ यः.. (११)
इन म त का प कट करने वाला आभरण समान है, इनक भुजा सुनहरे हार वराजते ह. इनके हाथ म आयुध चमकते ह. (११)
म तेज वी
त उ ासो वृषण उ बाहवो न क नूषु ये तरे. थरा ध वा यायुधा रथेषु वोऽनीके व ध यः.. (१२) उ , वषाकारक एवं श शाली भुजा वाले म द्गण अपने शरीर क र ा का कोई य न नह करते. हे म तो! तु हारे रथ पर धनुष एवं बाण थर है. सेना के अ भाग म तु हारी ही वजय होती है. (१२) येषामण न स थो नाम वेषं श तामेक म जे. वयो न प यं सहः.. (१३) जल के समान सब ओर व तृत एवं द तशाली म त का नाम एक है, फर भी वे तोता के भोग के लए उसी कार यथे ह. जस कार पता से मला आ अ होता है. (१३) ता व द व म त ताँ उप तु ह तेषा ह धुनीनाम्. अराणां न चरम तदे षां दाना म ा तदे षाम्.. (१४) हे अंतरा मा! उन म त क तु त करो एवं वंदना करो. म त का दान म हमायु है. महान् म त क अपे ा हम उसी कार छोटे ह, जस कार कसी महान् वामी का हीन सेवक होता है. (१४) सुभगः स व ऊ त वास पूवासु म तो
ु षु. यो वा नूनमुतास त.. (१५)
हे म तो! तु हारी र ा ा त करके तोता ाचीनकाल म शोभन धनवाला बना था. जो तोता है, वह अव य तु हारा भ बनता है. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य य वा यूयं त वा जनो नर आ ह ा वीतये गथ. अ भ ष ु नै त वाजसा त भः सु ना वो धूतयो नशत्.. (१६) हे नेताओ एवं सबको कं पत करने वाले म तो! जस ह धारी यजमान का ह भोग करने के लए तुम आते हो, वह तु हारे द तशाली अ एवं अ के भोग ारा तु हारे सुख को चार ओर व तृत करता है. (१६) यथा
य सूनवो दवो वश यसुर य वेधसः. युवान तथेदसत्.. (१७)
पु , जल के क ा एवं सदा युवा म द्गण ुलोक से आकर हम चाह, हमारी तु त म इतना भाव हो. (१७) ये चाह त म तः सुदानवः म मी ष र त ये. अत दा न उप व यसा दा युवान आ ववृ वम्.. (१८) जो शोभनदान वाले यजमान म त क पूजा करते ह एवं जो वषाकारक म त क ह ारा सेवा करते ह, हम उन दोन कार के ह. हे युवा म तो! हम धन दे ने का न य मन म करके हमसे मलो. (१८) यून ऊ षु न व या वृ णः पावकाँ अ भ सोभरे गरा. गाय गा इव चकृषत्.. (१९) हे सौभ र ऋ ष! तुम न य त ण, वषाकारक एवं प व क ा म त क तु त अ तशय नवीन वा य ारा उस सुंदर प से करो, जस कार कसान अपने बैल क शंसा करता है. (१९) साहा ये स त मु हेव ह ो व ासु पृ सु होतृषु. वृ ण ा सु व तमान् गरा व द व म तो अह.. (२०) म द्गण सम त यो ा ारा आ ान करने पर श ु को हराते ह. हे सौभ र! इस समय बुलाने यो य म ल के समान, वषाकारक, सबको स करने वाले एवं परम यश वी म त क तु त शोभनवचन ारा करो. (२०) गाव द्घा सम यवः सजा येन म तः सब धवः. रहते ककुभो मथः.. (२१) हे समान ोध वाले म तो! तु हारी माता गाएं भी समान जा त एवं समान बंधु वाली होने के कारण दशा के प म एक- सर को चाटती ह. (२१) मत ो नृतवो मव स उप ातृ वमाय त. अ ध नो गात म तः सदा ह व आ प वम त न ु व.. (२२) हे नृ य करने वाले एवं व
थल पर सोने के आभूषण धारण करने वाले म तो! मनु य
******ebook converter DEMO Watermarks*******
भी तु हारी म ता पाने के लए तु हारे पास आता है. इस लए तुम हमारे प के बनकर बोलो. अ यंत धारण करने यो य य म तु हारा बंधु व सदा वतमान रहता है. (२२) म तो मा त य न आ भेषज य वहता सुदानवः. यूयं सखायः स तयः.. (२३) हे शोभन दान वाले, सखा एवं ग तशील म तो! तुम अपनी ओष ध हमारे समीप लाओ. (२३) या भः स धुमवथ या भ तूवथ या भदश यथा वम्. मयो नो भूतो त भमयोभुवः शवा भरसच षः.. (२४) हे सुख दे ने वाले एवं श ुशू य म तो! जन र ासाधन ारा तुम समु क र ा करते हो, जनके ारा तोता के श ु को न करते हो, जनसे तुमने गौतम को कुआं दया था, सब कार का क याण करने वाले उ ह र ासाधन ारा हम सुर ा दान करो. (२४) य स धौ यद स यां य समु े षु म तः सुब हषः. य पवतेषु भेषजम्.. (२५) हे शोभन यश वाले म तो! सधु तथा अ स नी नद समु ह. (२५)
एवं पहाड़ म जो ओष धयां
व ं प य तो बभृथा तनू वा तेना नो अ ध वोचत. मा रपो म त आतुर य न इ कता व तं पुनः.. (२६) वे सब ओष धयां पहचानकर हमारे शरीर क च क सा के लए ले आओ. हे म तो! हम लाग के बाधा वाले अंक को इस कार पुनः ठ क करो, जससे रोगी का रोग र हो जाए. (२६)
सू —२१ वयमु वामपू
दे वता—इं थूरं न क च र तोऽव यवः. वाजे च ं हवामहे.. (१)
हे अपूव इं ! हम र ा पाने क इ छा से तु ह सोमरस ारा पु करके इस कार बुलाते ह, जैसे कोई गुणी मनु य को बुलाता है. तुम सं ाम म भां त-भां त के प धारण करते हो. (१) उप वा कम ूतये स नो युवो ाम यो धृषत्. वा म य वतारं ववृमहे सखाय इ सान सम्.. (२) हे इं ! हम य कम क र ा के लए तु हारे पास आते ह. युवा, उ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं
श ुपराभवकारी इं हमारे सामने आव. हे इं ! तु हारे म हम लोग सेवा करने यो य एवं सबके र क तु हारा वरण करते ह. (२) आ याहीम इ दवोऽ पते गोपत उवरापते. सोमं सोमपते पब.. (३) हे अ के वामी, गाय का पालन करने वाले, उपजाऊ भू म के वामी एवं सेनाप त इं ! यहां आओ और सोमरस पओ. (३) वयं ह वा ब धुम तमब धवो व ास इ ये मम. या ते धामा न वृषभ ते भरा ग ह व े भः सोमपीतये.. (४) हे बांधव वाले इं ! हम बांधवहीन व तु हारे समीप म ता से आते ह. हे अ भलाषापूरक इं ! तुम अपने सम त तेज के साथ सोमरस पीने के लए आओ. (४) सीद त ते वयो यथा गो ीते मधौ म दरे वव णे. अ भ वा म
नोनुमः.. (५)
हे इं ! गाय के ध-दही से मले ए मदकारक एवं वग ा त के हेतु तु हारे सोमरस म हम प य के समान नवास करते ह एवं तु हारी तु त करते ह. (५) अ छा च वैना नमसा वदाम स क मु द धयः. स त कामासो ह रवो द द ् वं मो वयं स त नो धयः.. (६) हे इं ! हम तु हारे अ भमुख होकर इस तो ारा तु हारी तु त करते ह. तुम य थ चता करते हो? हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! तु हारी ब त सी अ भलाषाएं ह. तुम दान करने वाले हो. हम एवं हमारे य कम तु हारे ही समीप ह. (६) नू ना इ द
ते वयमूती अभूम न ह नू ते अ वः. व ा पुरा परीणसः.. (७)
हे इं ! तु हारी र ा पाकर हम नवीन ही रहगे. हे व धारी इं ! पहले हम तु ह सब जगह ा त नह जानते थे, पर इस समय जान गए ह. (७) व ा स ख वमुत शूर भो य१मा ते ता व ीमहे. उतो सम म ा शशी ह नो वसो वाजे सु श गोम त.. (८) हे शूर इं ! हम तु हारी म ता एवं भो य को जानते ह. हे व धारी इं ! हम तु हारी ये ही दोन व तुएं मांगते ह. हे नवास थानदाता एवं शोभन टोप वाले इं ! हम गाय आ द से यु सभी धन से संप करो. (८) यो न इद मदं पुरा
व य आ ननाय तमु वः तुषे. सखाय इ मूतये.. (९)
हे म ऋ वजो! जो इं
ाचीन समय म यह सारा धन हमारे लए लाए थे, तु हारी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
र ा के लए म उ ह इं क तु त करता ं. (९) हय ं स प त चषणीसहं स ह मा यो अम दत. आ तु नः स वय त ग म ं तोतृ यो मघवा शतम्.. (१०) ह र नामक अ के वामी, स जन के पालक व श ु को दबाने वाले इं क तु त वही कर सकता है, जो स होता है. वे धन वामी इं तोता के लए सौ गाएं और घोड़े लाए थे. (१०) वया ह व ुजा वयं
त स तं वृषभ ुवीम ह. सं थे जन य गोमतः.. (११)
हे वषा करने वाले इं ! हम तु हारी सहायता से गाय के कारण होने वाले सं ाम म ललकारने वाले श ु को जीतगे. (११) जयेम कारे पु त का रणोऽ भ त ेम ः. नृ भवृ ं ह याम शूशुयाम चावे र णो धयः.. (१२) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! हम यु म श ु को जीतगे एवं बु परा जत करगे. हम नेता म त क सहायता से वृ को मारगे एवं य कम म वृ इं ! हमारे य कम क र ा करो. (१२) अ ातृ ो अना वमना प र
लोग को करगे. हे
जनुषा सनाद स. युधेदा प व म छसे.. (१३)
हे इं ! तुम अपने ज मकाल से ही भाइय से हीन, बना नेता वाले एवं बांधवहीन हो. तुम जो म ता चाहते हो, उसे यु ारा ा त करते हो. (१३) नक रेव तं स याय व दसे पीय त ते सुरा ः. यदा कृणो ष नदनुं समूह या द पतेव यसे.. (१४) हे इं ! तुम केवल धनवान् को ही अपनी म ता के लए वीकार नह करते, इसका या कारण है? ऐसे लोग शराब पीते ह एवं तु हारा वरोध करते ह. जब तुम अपने तोता को संप दे ते हो, उस समय वह तु ह ऐसे पुकारता है, जैसे कोई अपने पता को पुकारता है. (१४) मा ते अमाजुरो यथा मूरास इ
स ये वावतः. न षदाम सचा सुते.. (१५)
हे इं ! तुम जैसे दे व क म ता के त अ ानी बनकर हम सोमरस नचोड़ना न छोड़ द. हम सोमरस नचोड़ने के बाद एक जगह बैठगे. (१५) मा ते गोद नरराम राधस इ मा ते गृहाम ह. हा चदयः मृशा या भर न ते दामान आदभे.. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे गाएं दे ने वाले इं ! तु हारे सेवक हम धनर हत न ह एवं कसी सरे से धन न मांग. हे वामी इं ! तुम हम थर धन दो. तु हारे दए ए धन को कोई न नह कर सकता. (१६) इ ो वा घे दय मघं सर वती वा सुभगा द दवसु. वं वा च दाशुषे.. (१७) मुझ ह दाता सौभ र को या इं ने यह धन दया है? या शोभन धनवाली सर वती ने मुझे संप द है? हे राजा च ! यह धन या केवल तु ह दया है? (१७) च इ ाजा राजका इद यके यके सर वतीमनु. पज य इव ततन वृ ा सह मयुता ददत्.. (१८) बादल जस कार वषा ारा धरती को सभी संप य से यु बनाते ह, उसी कार राजा च सर वती नद के कनारे रहने वाले अ य राजा को हजार धन दे कर स करते ह. (१८)
सू —२२
दे वता—अ नीकुमार
ओ यम आ रथम ा दं स मूतये. यम ना सुहवा वतनी आ सूयायै त थथुः.. (१) हे शोभन-आ ान वाले एवं का शत माग वाले अ नीकुमारो! सूया को प नी प म वरण करने के लए तुम जस रथ पर बैठे थे, म अपनी र ा के न म उसी अ तसुंदर रथ को बुलाता ं. (१) पूवापुषं सुहवं पु पृहं भु युं वाजेषु पू म्. सचनाव तं सुम त भः सोभरे व े षसमनेहसम्.. (२) हे सौभ र ऋ ष! क याणका रणी तु तय ारा पूववत तोता को पु करने वाले, य म शोभन आ ान वाले, ब त ारा अ भल षत, सबके र क, यु म आगे रहने वाले, सबके ारा से , श ु से े ष करने वाले एवं पापर हत इस रथ क तु त करो. (२) इह या पु भूतमा दे वा नमो भर ना. अवाचीना ववसे करामहे ग तारा दाशुषो गृहम्.. (३) हे अनेक श ु को परा जत करने वाले, द गुणयु एवं ह दाता यजमान के घर जाने वाले अ नीकुमारो! हम इस य कम क र ा के लए तु ह अपने सामने बुलावगे. (३) युवो रथ य प र च मीयत ईमा य ा मष य त. अ माँ अ छा सुम तवा शुभ पती आ धेनु रव धावतु.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तु हारे रथ का एक प हया वगलोक म चलता है एवं सरा तु हारे साथ चलता है. हे जल के वामी अ नीकुमारो! तु हारी क याणका रणी बु इस कार हमारे समीप आवे, जस कार गाय बछड़े के पास आती है. (४) रथा यो वां व धुरो हर याभीशुर ना. प र ावापृ थवी भूष त ुत तेन नास या गतम्.. (५) हे अ नीकुमारो! ऐसा स है क सार थ के तीन थान वाला एवं सोने क लगाम वाला तु हारा रथ ावा-पृ थवी को अपने काश से चमकाता है. तुम उसी रथ से हमारे पास आओ. (५) दश य ता मनवे पू द व यवं वृकेण कषथः. ता वाम सुम त भः शुभ पती अ ना तुवीम ह.. (६) हे अ नीकुमारो! तुमने ाचीनकाल म ुलोक का जल राजा मनु को दे कर हल ारा जौ क खेती करना सखाया था. हे जल के वामी अ नीकुमारो! आज उ म तो ारा हम तु हारी तु त करते ह. (६) उप नो वा जनीवसू यातमृत य प थ भः. ये भ तृ वृषणा ासद यवं महे ाय ज वथः.. (७) हे अ एवं धन के वामी अ नीकुमारो! य के माग ारा हमारे पास आओ. हे धन दे ने वाले अ नीकुमारो! इसी माग ारा तुमने सद यु के पु तृ को महान् संप दे कर तृ त कया था. (७) अयं वाम भः सुतः सोमो नरा वृष वसू. आ यातं सोमपीतये पबतं दाशुषो गृहे.. (८) हे नेता एवं तोता को धन बरसाने वाले अ नीकुमारो! तु हारे लए यह सोमरस प थर क सहायता से नचोड़ा गया है. तुम सोमपान के लए आओ और ह दाता यजमान के घर म सोम पओ. (८) आ ह हतम ना रथे कोशे हर यये वृष वसू. यु
ाथां पीवरी रषः.. (९)
हे धन बरसाने वाले अ नीकुमारो! सोने क लगाम से यु , आयुध के कोश के समान एवं आनंददाता रथ पर चढ़ो तथा हम वशाल अ दो. (९) या भः प थमवथो या भर गुं या भब ुं वजोषसम्. ता भन म ू तूयम ना गतं भष यतं यदातुरम्.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तुमने जन र ासाधन ारा प थ, अ गु एवं सोमरस ारा वशेष प से स करने वाले ब ु क र ा क थी, उ ह र ासाधन ारा तुरंत शी ग त से हमारे समीप आओ तथा रोगी का इलाज करो. (१०) यद गावो अ गू इदा चद ो अ ना हवामहे. वयं गी भ वप यवः.. (११) हे यु म श ु का शी वध करने वाले अ नीकुमारो! य कम म शी ता करने वाले एवं मेधावी हम लोग दन के इसी थम भाग म तु तवचन ारा तु ह बुलाते ह. (११) ता भरा यातं वृषणोप मे हवं व सुं व वायम्. इषा मं ह ा पु भूतमा नरा या भः व वावृधु ता भरा गतम्.. (१२) हे कृपावषा करने वाले अ नीकुमारो! सब दे व ारा वरण करने यो य एवं भ भ प वाले हमारे आ ान को सुनकर उन सब र ासाधन के साथ आओ. हे ह चाहने वाले, अ धक धन दे ने वाले एवं यु म अनेक श ु को हराने वाले अ नीकुमारो! जन र ासाधन ारा तुमने कुएं का जल बढ़ाया था, उ ह के साथ यहां आओ. (१२) ता वदा चदहानां ताव ना व दमान उप ुवे. ता ऊ नमो भरीमहे.. (१३) इस ातःकाल म म उन अ नीकुमार क वंदना करता आ उनक एवं तो ारा उन दोन से धनसंप मांगता ं. (१३)
तु त करता ं
ता व ोषा ता उष स शुभ पती या याम ु वतनी. मा नो मताय रपवे वा जनीवसू परो ाव त यतम्.. (१४) हम जल क र ा करने वाले एवं शंसायो य माग पर चलने वाले अ नीकुमार को रा , उषा एवं दवस—सभी काल म बुलाते ह. हे अ नीकुमारो! हमारे श ु को अ एवं धन मत दे ना. (१४) आ सु याय सु यं ाता रथेना ना वा स णी. वे पतेव सोभरी.. (१५) हे अ भलाषापूरक अ नीकुमारो! मुझ सुखयो य के लए तुम ातःकाल के समय रथ ारा सुख लाओ. म सौभ र ऋ ष अपने पता के समान ही तु ह बुलाता ं. (१५) मनोजवसा वृषणा मद युता म ुङ्गमा भ त भः. आरा ा च तम मे अवसे पूव भः पु भोजसा.. (१६) हे मन के समान शी ग तशाली, धन बरसाने वाले, श न ु ाशक एवं ब त के र क अ नीकुमारो! अपने शी गामी र ासाधन ारा हमारी र ा के लए हमारे पास आओ. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ नो अ ावद ना व तया स ं मधुपातमा नरा. गोम
ा हर यवत्.. (१७)
हे अ धक सोम पीने वाले नेता एवं दशनीय अ नीकुमारो! हमारे घर को अ , गाय एवं वण से यु बनाओ. (१७) सु ावग सुवीय सु ु वायमनाधृ ं र वना. अ म ा वामायाने वा जनीवसू व ा वामा न धीम ह.. (१८) हम शोभनदान यो य, सुंदर बल से यु , सबके ारा वरण करने यो य एवं श शाली पु ष ारा भी परा जत न होने वाला धन तुमसे ा त कर. हे श एवं धन वाले अ नीकुमारो! तु हारे आने पर हम धन ा त करगे. (१८)
दे वता—अ न
सू —२३
ई ळ वा ह ती ं१ यज व जातवेदसम्. च र णुधूममगृभीतशो चषम्.. (१) श ु के वरोध म गमन करने वाले अ न क तु त करो. सभी उ प ा णय को जानने वाले, सब ओर ग तशील धुएं वाले व रा स ारा बाधाहीन यो त अ न क पूजा ह ारा करो. (१) दामानं व चषणेऽ नं व मनो गरा. उत तुषे व पधसो रथानाम्.. (२) हे ानसे सब अथ दे ने वाले व मना नामक ऋ ष! तु तवचन शंसा करो. वे यजमान को रथ आ द संप दे ते ह. (२) येषामाबाध ऋ मय इषः पृ श ु जनके ह
न भे. उप वदा व
व दते वसु.. (३)
को सामने से बाधा प ंचाने वाले एवं ऋचा ारा पूजा करने यो य अ न अ एवं सोमरस हण करते ह, वे ही यजमान धन पाते ह. (३)
उद य शो चर था
दयुषो
१जरम्. तपुज भ य सु ुतो गण यः.. (४)
भली कार द तशाली, तापदाता दाढ़ वाले, शोभन द तयु आ य लेने वाले अ न का जरार हत तेज उठता है. (४) उ
ारा अ न क
त
एवं यजमान का
व वर तवानो दे ा कृपा. अ भ या भासा बृहता शुशु व नः.. (५)
हे शोभन य तु त कए जाते ए, चार ओर जाती ई वलनशील अ न! तुम तेज वी वाला के साथ बैठो. (५)
स
द त से यु
अ ने या ह सुश त भह ा जु ान आनुषक्. यथा तो बभूथ ह वाहनः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं
हे ह वहन करने वाले अ न! तुम दे व के त हो, इस लए दे व को ह शोभन तु तय के साथ आओ. (६) अ नं वः पू
दे ते ए
वे होतारं चषणीनाम्. तमया वाचा गृणे तमु वः तुषे.. (७)
म मनु य के य पूण करने वाले एवं ाचीन अ न को बुलाता ं. म इन तु तवचन ारा उनक शंसा करता ं एवं तु हारे लए उ ह बुलाता ं. (७) य े भर त तुं यं कृपा सूदय त इत्. म ं न जने सु धतमृताव न.. (८) व च कम वाले, म के समान थत, ह ारा तृ त अ न क कृपा से अपनी साम य के अनुसार य करने वाले यजमान क अ भलाषा पूरी होती है. (८) ऋतावानमृतायवो य हे यजमानो! य ारा करो. (९)
य साधनं गरा. उपो एनं जुजुषुनमस पदे .. (९)
के साधन एवं य
के वामी क सेवा ह यु
य
म तु तवचन
अ छा नो अ र तमं य ासो य तु संयतः. होता यो अ त व वा यश तमः.. (१०) हमारे नय मत य अं गरा परम यश वी ह. (१०)
म े अ न के सामने जाव. अ न मनु य म होता एवं
अ ने तव वे अजरे धानासो बृह ाः. अ ा इव वृषण त वषीयवः.. (११) श
हे जरार हत अ न! तु हारी द त वाली एवं वशाल र मयां कामवष अ द शत करती ह. (११)
के समान
स वं न ऊजा पते र य रा व सुवीयम्. ाव न तोके तनये सम वा.. (१२) यु
हे श के वामी अ न! तुम हम शोभन द त वाला धन दो. हमारे पु , पौ म वतमान धन क र ा करो. (१२)
एवं
य ा उ व प तः शतः सु ीतो मनुषो व श. व द े नः त र ां स सेध त.. (१३) जा के पालक एवं ह ारा तेज कए गए अ न भली कार स होकर जब य क ा के घर म थत होते ह, तब सब रा स को समा त कर दे ते ह. (१३) ु
ने नव य मे तोम य वीर व पते. न मा यन तपुषा र सो दह.. (१४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वीर एवं जापालक अ न! हमारी नवीन तु तय को सुनो एवं अपने ताप वाले तेज से मायावी रा स को जलाओ. (१४) न त य मायया चन रपुरीशीत म यः. यो अ नये ददाश ह दा त भः.. (१५) श ु लोग माया ारा भी उसे वश म नह कर सकते, जो ह दाता ऋ वज को ह व दे ता है. (१५) वा वसु वदमु
ारा अ न
युर ीणा षः. महो राये तमु वा स मधीम ह.. (१६)
वयं को धन क वषा करने वाला बनाने क इ छा से ऋ ष ने धन दे ने वाले तुझ अ न को स कया था. हम महान् धन पाने के लए उसी अ न को जलाते ह. (१६) उशना का
वा न होतारमसादयत्. आय ज वा मनवे जातवेदसम्.. (१७)
हे अ न! क वपु उशना नामक ऋ ष ने राजा मनु के क याण के लए तेरे सामने य करने वाले एवं जातवेद अ न को था पत कया था. (१७) व े ह वा सजोषसो दे वासो तम त. ु ी दे व थमो य यो भुवः.. (१८) हे अ न! सभी दे व ने मलकर तु ह अपना त बनाया था. हे दे व म मुख अ न! तुम शी ही य के यो य बन गए थे. (१८) इमं घा वीरो अमृतं तं कृ वीत म यः. पावकं कृ णवत न वहायसम्.. (१९) वीर मनु य ने इन मरणर हत, प व करने वाले, काले माग वाले एवं महान् अ न को अपना त बनाया था. (१९) तं वेम यत ुचः सुभासं शु शो चषम्. वशाम नमजरं
नमी
म्.. (२०)
हाथ म ुच हण करने वाले हम शोभन द त वाले, शु तेजयु , मनु य यो य एवं जरार हत अ न को बुलाते ह. (२०)
ारा तु त
यो अ मै ह दा त भरा त मत ऽ वधत्. भू र पोषं स ध े वीरव शः.. (२१) जो मनु य ह दाता ऋ वज ारा इस अ न को आ त दे ता है, वह अ धक पु करने वाला तथा वीर संतान से यु धन ा त करता है. (२१) थमं जातवेदसम नं य ेषु पू म्.
त ुगे त नमसा ह व मती.. (२२)
ह से यु ुच दे व म धान, जातवेद एवं ाचीन अ न के समीप नम कार के हेतु साथ जाता है. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ भ वधेमा नये ये ा भ
वत्. मं ह ा भम त भः शु शो चषे.. (२३)
हम ऋ ष के समान ही उ वल तेज वाले अ न क सेवा अ यंत शंसायो य एवं पू यतम तु तय ारा करते ह. (२३) नूनमच वहायसे तोमे भः थूरयूपवत्. ऋषे वैय द याया नये.. (२४) हे के पु ऋ ष व मना! तुम थूलयूप नामक ऋ ष के समान ही महान् एवं यजमान के घर म उ प अ न क पूजा तो ारा करो. (२४) अ त थ मानुषाणां सूनुं वन पतीनाम्. व ा अ नमवसे
नमीळते.. (२५)
मेधावी यजमान र ा के लए मनु य के अ त थ, वन प तय के पु तथा ाचीन अ न क तु त करते ह. (२५) महो व ाँ अ भषतो३ भ ह ा न मानुषा. अ ने न ष स नमसा ध ब ह ष.. (२६) हे तु त यो य अ न! सभी महान् तोता का ह वीकार करो. (२६)
के सामने तुम कुश पर बैठो एवं मानव
वं वा नो वाया पु वं व रायः पु पृहः. सुवीय य जावतो यश वतः.. (२७) श
हे अ न! हम गौ आ द वरणीय संप तथा ब त वाले पु -पौ से यु एवं क त वाला हो. (२७)
ारा इ छत धन दो जो शोभन
वं वरो सुषा णेऽ ने जनाय चोदय. सदा वसो रा त य व श ते.. (२८) हे वरणीय, नवास थान दे ने वाले एवं अ तशय युवा अ न! सोम का सुंदर गान करने वाल के त सदा धन को े रत करो. (२८) वं ह सु तूर स वं नो गोमती रषः. महो रायः सा तम ने अपा वृ ध.. (२९) (२९)
हे अ न! तुम शोभन दाता हो. हम पशु
से यु
अ एवं दे ने यो य महान् धन दो.
अ ने वं यशा अ या म ाव णा वह. ऋतावाना स ाजा पूतद सा.. (३०) हे अ न! तुम यश वी हो. तुम य यु , भली कार द तशाली एवं यु व व ण को इस य म ले आओ. (३०)
सू —२४
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बल वाले म
सखाय आ शषाम ह
े ाय व
णे. तुष ऊ षु वो नृतमाय धृ णवे.. (१)
हे म एवं ऋ वजो! हम व धारी इं के लए यह तो बनावगे. तु हारे क याण के लए यु का नेतृ व करने वाले एवं श ु को हराने वाले इं क म तु त क ं गा. (१) शवसा
स ुतो वृ ह येन वृ हा. मघैमघोनो अ त शूर दाश स.. (२)
हे इं ! तुम श के कारण स हो एवं वृ को मारने के कारण वृ हर कहलाते हो. हे शूर इं ! तुम धनवान् को धन दे कर अ धक धनी बनाते हो. (२) स नः तवान आ भर र य च
व तमम्. नरेके च ो ह रवो वसुद दः.. (३)
हे इं ! तुम हमारी तु त सुनकर हम नाना वध अ से यु धन अ धक मा ा म दो. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! तुम नकलते समय ही श ु को भगाने वाले एवं हम धन दे ने वाले होते हो. (३) आ नरेकमुत
यम
द ष जनानाम्. धृषता धृ णो तवमान आ भर.. (४)
हे श ुनाशक इं ! तुम हमारी तु त सुनकर हम तोता तु मन ारा वह धन हम दो. (४)
को
य धन दखाओ एवं
न ते स ं न द णं ह तं वर त आमुरः. न प रबाधो ह रवो ग व षु.. (५) हे ह र नामक घोड़ वाले इं ! गाय को खोजते समय वरोधी प के यो ा न तु हारा बायां हाथ हटा सकते ह और न दायां. सं ाम म बाधा प ंचाने वाले असुर भी यह नह कर सकते. (५) आ वा गो भ रव जं गी भऋणो य वः. आ मा कामं ज रतुरा मनः पृण.. (६) हे व धारी इं ! लोग जस कार गाय के साथ गोशाला म जाते ह, इसी कार म तु तय के साथ तु हारे पास आता ं. तुम मुझ तोता क धन संबंधी अ भलाषा एवं मनोकामना पूरी करो. (६) व ा न व मनसो धया नो वृ ह तम. उ
णेतर ध षू वसो ग ह.. (७)
हे असुर- वनाशक म े , उ , नवास थान दे ने वाले एवं नेता इं ! व मना ऋ ष के सभी तो को सुनकर आओ. (७) वयं ते अ य वृ ह व ाम शूर न सः. वसोः पाह य पु
त राधसः.. (८)
हे वृ नाशक, शूर एवं ब त ारा बुलाए गए इं ! हम तु हारी कृपा से नवीन, चाहने यो य एवं सुखसाधक धन ा त कर. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ
यथा
त तेऽपरीतं नृतो शवः. अमृ ा रा तः पु
त दाशुषे.. (९)
हे सबको नचाने वाले इं ! तु हारा बल श ु ारा दबाया नह जा सकता. हे ब त ारा बुलाए गए इं ! ह दाता यजमान को तु हारे ारा दया आ धन श ु ारा न नह होता. (९) आ वृष व महामह महे नृतम राधसे.
ह द्
मघव मघ ये.. (१०)
हे अ तशय पूजनीय एवं नेता म े इं ! श ु का महान् धन ा त करने के लए सोमरस से अपना उदर भरो. हे धनवान् इं ! धनलाभ के लए तुम श ु के ढ़ नगर को भी न करो. (१०) नू अ य ा चद व व ो ज मुराशसः. मघव छ ध तव त ऊ त भः.. (११) हे व धारी इं ! तुमसे पहले हमने अ य दे व से धना द पाने क आशाएं क थ . हे धनवान् इं ! तुम र ा के साथ हमारी आशाएं पूरी करो. (११) न १ नृतो वद यं व दा म राधसे. राये ु नाय शवसे च गवणः.. (१२) हे सबको नचाने वाले एवं तु त यो य इं ! म बल द अ , धन, तेज वी यश एवं बल पाने के लए तु हारे अ त र कसी को नह पाता. (१२) ए
म ाय स चत पबा त सो यं मधु.
राधसा चोदयाते म ह वना.. (१३)
हे ऋ वजो! तुम इं के लए सोमरस नचोड़ो. वे ही मधुर सोमरस पीएं. वे अपने मह व से तोता को अ के साथ धन भी दे ते ह. (१३) उपो हरीणां प त द ं पृ च तम वम्. नूनं ु ध तुवतो अ म ह र नामक अ .ं म ऋ ष का पु
य.. (१४)
के वामी एवं अपना बल सर को दे ने वाले इं क तु त करता ं. मेरी तु त सुनो. (१४)
न १ पुरा चन ज े वीरतर वत्. नक राया नैवथा न भ दना.. (१५) हे इं ! ाचीनकाल म तुमसे अ धक वीर, धनसंप , श ु एवं तु त यो य कोई नह आ. (१५)
पर आ मण करने वाला
ए म वो म द तरं स च वा वय अ धसः. एवा ह वीरः तवते सदावृधः.. (१६) हे अ वयुगण! तुम मदकारक सोमलता के अ तशय मदकारक अंश सोमरस को इं के लए नचोड़ो. वीर एवं सदा बढ़ने वाले इं क ही तु त क जाती है. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ श
थातहरीणां न क े पू
तु तम्. उदानंश सा न भ दना.. (१७)
हे ह र नामक अ के वामी इं ! पूववत ऋ षय अथवा धन के कारण नह लांघ सकता. (१७)
ारा क गई तु हारी तु त को कोई
तं वो वाजानां प तम म ह व यवः. अ ायु भय े भवावृधे यम्.. (१८) हम अ के अ भलाषी बनकर ऐसे य ारा अ प त एवं वधनशील इं को बुलाते ह, जो मादहीन ऋ वज ारा कए जाते ह. (१८) एतो व ं तवाम सखायः तो यं नरम्. कृ ीय व ा अ य येक इत्.. (१९) हे म ऋ वजो! शी आओ. हम तु त यो य, नेता एवं अकेले ही सब श ु सेना को परा जत करने वाले इं क तु त करगे. (१९) अगो धाय ग वषे ु ाय द यं वचः. घृता वाद यो मधुन वोचत.. (२०) हे ऋ वजो! तु तय का वरोध न करने वाले, तु त के अ भलाषी व द तशाली इं के लए घी और शहद से भी अ धक वा द तु तवचन बोलो. (२०) य या मता न वीया३ न राधः पयतवे. यो तन व म य त द णा.. (२१) जस इं क वीरता के कम असी मत ह, जसका धन श ु नह पा सकते एवं जसका धनदान सब तोता को इस कार ा त करता है, जैसे काश आकाश म फैलता है. (२१) तुही ं
वदनू म वा जनं यमम्. अय गयं मंहमानं व दाशुषे.. (२२)
हे व मना ऋ ष! उ ह श ु ारा अ हसनीय, श शाली एवं तोता ारा नयं त इं क तु त ऋ ष के समान करो. वामी इं ह दाता यजमान को पूजनीय घर दे ते ह. (२२) एवा नूनमुप तु ह वैय दशमं नवम्. सु व ा सं चकृ यं चरणीनाम्.. (२३) हे पु व मना ऋ ष! मानव के दसव ाण, शंसनीय, उ म, व ान् व बार-बार नम कार करने यो य इं क तु त करो. (२३) वे था ह नऋतीनां व ह त प रवृजम्. अहरहः शु युः प रपदा मव.. (२४) हे व ह त इं ! सूय जस कार त दन प य के उड़ने से प र चत रहते ह, उसी कार तुम रा स क ग तयां समझते हो. (२४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त द ाव आ भर येना दं स कृ वने.
ता कु साय श थो न चोदय.. (२५)
हे अ यंत दशनीय इं ! हम अपना आ य दो, जससे हम य कम करने वाले यजमान क र ा कर सक. तुमने दो तरह से कु स ऋ ष क र ा क थी. उसी कार हमारी भी र ा करो. (२५) तमु तवा नूनमीमहे न ं दं स स यसे. स वं नो व ा अ भमातीः स णः.. (२६) हे अ तशय दशनीय एवं तु तयो य इं ! इस समय हम तुमसे धन क याचना करते ह. तुम हमारे सभी श ु क सेना को हराने वाले हो. (२६) य ऋ ादं हसो मुच ो वाया स त स धुषु. वधदास य तु वनृ ण नीनमः.. (२७) जो रा स से उ प पाप से छु टकारा दलाते ह एवं जो सात न दय के तट पर रहने वाले यजमान को धन दे ते ह, तुम वही इं हो. हे अ तशय धनी इं ! श ु रा स के वध के लए श नीचे फको. (२७) यथा वरो सुषा णे स न य आवहो र यम्.
े यः सुभगे वा जनीव त.. (२८)
हे राजा व ! तुमने अपने पता राजा सुषामा के क याण के लए जैसे धन दान कया था, उसी कार हम, एवं उसके प रवार वाल को धन दो. हे शोभन धन एवं अ वाली उषा! तुम भी हम धन दो. (२८) आ नाय य द णा
ाँ एतु सो मनः. थूरं च राधः शतव सह वत्.. (२९)
मानव हतकारी एवं सोमरस वाले यजमान व क द णा एवं उसके पु ा त हो. हमारे पास सौ और हजार क सं या म थूल धन आवे. (२९)
को
य वा पृ छाद जानः कुहया कुहयाकृते. एषो अप तो वलो गोमतीमव त त.. (३०) हे उषा! जो लोग तुमसे पूछ क राजा व कहां रहते ह तो उनसे कहना—सबको आ य दे ने वाले एवं श ु को रोकने वाले व गोमती के कनारे रहते ह. (३०)
सू —२५ ता वां व
दे वता— म व णा द य गोपा दे वा दे वेषु य या. ऋतावाना यजसे पूतद सा.. (१)
हे सब लोक के र क, द गुणयु एवं दे व म य पा म व व ण! तुम ह दान के लए यजमान के समीप आओ. हे ऋ ष! तुम य यु एवं प व श वाले म व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ण का यजन करो. (१) म ा तना न र या३ व णो य सु तुः. सना सुजाता तनया धृत ता.. (२) शोभन—य कम वाले म व व ण धन एवं रथ के वामी ह. वे ब त समय पूव शोभन ज म वाले, अ द तपु एवं तधारी ह. (२) ता माता व वेदसासुयाय महसा. मही जजाना द तऋतावरी.. (३) महती एवं स ययु अ द त ने सबको जानने वाले, उ कृ तेज वाले म व व ण को असुरनाश करने वाली श के लए उ प कया है. (३) महा ता म ाव णा स ाजा दे वावसुरा. ऋतावानावृतमा घोषतो बृहत्.. (४) महान्, भली कार सुशो भत, श य को का शत करते ह. (४) नपाता शवसो महः सूनू द
शाली एवं स ययु
म व व ण अपने काश से
य सु तू. सृ दानू इषो वा व ध
तः.. (५)
महान् बल के नाती, वेग के पु , शोभन कम वाले एवं अ धक धन दे ने वाले म व व ण अ के थान म रहते ह. (५) सं या दानू न येमथु द ाः पा थवी रषः. नभ वतीरा वां चर तु वृ यः.. (६) हे म व व ण! तुम धन, द वाली वषा तु हारे पास रहे. (६)
अ एवं धरती पर उ प होने वाला अ दे ते हो. जल
अ ध या बृहतो दवो३ भ यूथेव प यतः. ऋतावाना स ाजा नमसे हता.. (७) हे स ययु , भली कार सुशो भत एवं ह को ेम करने वाले म व व ण! तुम दे व को स करने के लए इस कार दे खते हो, जस कार बैल गाय के झुंड को दे खता है. (७) ऋतावाना नषेदतुः सा ा याय सु तू. धृत ता
या
माशतुः.. (८)
स ययु एवं शोभन कम वाले म व व ण! भली कार सुशो भत होने के लए यहां बैठो. हे त धारण करने वाले एवं श शाली म व व ण! तुम बल को ा त करो. (८) अ ण द्गातु व रानु बणेन च सा. न च मष ता न चरा न च यतुः.. (९) आंख ारा सबको दे खने से पहले ही जानने वाले, सबको अपने-अपने कम म े रत करने वाले एवं चरंतन म व व ण ःसह तेज से यु ह. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत नो दे
दत
यतां नास या. उ य तु म तो वृ शवसः.. (१०)
अ द तदे वी एवं अ नीकुमार हमारी र ा कर. अ धक वेग वाले म द्गण हमारी र ा कर. (१०) ते नो नावमु यत दवा न ं सुदानवः. अ र य तो न पायु भः सचेम ह.. (११) हे शोभन-दान वाले एवं अ ह सत म तो! तुम रात- दन हमारी नाव क र ा करो. तु हारे पालन से हम एक ह गे. (११) अ नते व णवे वयम र य तः सुदानवे. ु ध वयाव स धो पूव च ये.. (१२) हम पालन के कारण अबा धत होकर हसा न करने वाले एवं शोभन दान यु व णु क तु त करगे. हे सं ाम म अकेले जाने वाले एवं तोता को धन दे ने वाले व णु! पूवकाल म य ारंभ करने वाले यजमान क तु त सुनो. (१२) त ाय वृणीमहे व र ं गोपय यम्. म ो य पा त व णो यदयमा.. (१३) हम े , सबके र क एवं वरण करने यो य धन का आ य लेते ह. इस धन क र ा म , व ण और अयमा करते ह. (१३) उत नः स धुरपां त म त तद ना. इ ो व णुम ढ् वांसः सजोषसः.. (१४) जल बरसाने वाले बादल, म द्गण, अ नीकुमार, इं , व ण एवं सभी अ भलाषापूरक दे व मलकर हमारी र ा कर. (१४) ते ह मा वनुषो नरोऽ भमा त कय य चत्. त मं न ोदः
त न त भूणयः.. (१५)
सेवा करने यो य एवं य कम के नेता वे दे वगण शी गमन करके कसी भी श ु का अ भमान इस कार न कर दे ते ह, जस कार तेज बहने वाला जल वृ को उखाड़ दे ता है. (१५) अयमेक इ था पु
च े व व प तः. त य ता यनु व राम स.. (१६)
मनु य का पालन करने वाले ये म अकेले ही ब त से धान को अपने तेज से इस कार दे खते ह. हम तु हारे क याण के लए म के त का आचरण करते ह. (१६) अनु पूवा यो या सा ा य य स म. म य ता व ण य द घ ुत्.. (१७) हम भली कार सुशो भत होने वाले व ण के ाचीन गृह को ा त ह गे. हम अ यंत स म के त भी करगे. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प र यो र मना दवोऽ ता ममे पृ थ ाः. उभे आ प ौ रोदसी म ह वा.. (१८) म वग एवं पृ वी के अं तम भाग को अपने तेज ारा का शत करते ह एवं ावापृ थवी दोन को अपने मह व से पूण करते ह. (१८) उ
य शरणे दवो यो तरयं त सूयः. अ नन शु ः स मधान आ तः.. (१९)
सबके ेरक म व ण सूय के थान अंत र म अपना काश फैलाते ह. अ न के समान द तशाली, ह ारा बढ़े ए एवं सबके ारा बुलाए गए वे दे व आकाश म थत होते ह. (१९) वचो द घ स नीशे वाज य गोमतः. ईशे प वोऽ वष य दावने.. (२०) हे तोता! व तृत घर वाले य म म व व ण क तु त करो. व ण पशु के वामी ह. वे महान् तकारक अ दे ने म समथ ह. (२०)
वाले धन
त सूय रोदसी उभे दोषा व तो प ुवे. भोजे व माँ अ यु चरा सदा.. (२१) म म व व ण के तेज, ावा-पृ थवी एवं दन-रात क तु त करता ं. हे व ण! हम सदा दाता के सामने ले जाओ. (२१) ऋ मु
यायने रजतं हरयाणे. रथं यु मसनाम सुषाम ण.. (२२)
उ गो म उ प एवं सुषामा के पु राजा व ने जब दान दे ना आरंभ कया था, तब हम सीधा चलने वाला, चांद का बना आ एवं दो घोड़ से यु रथ मला था. व का रथ श ु का जीवन, धन आ द हरण करता है. (२२) ता मे अ
ानां हरीणां नतोशना. उतो नु कृ
ानां नृवाहसा.. (२३)
राजा व ारा हमारे लए ऐसे दो घोड़े शी दए जाव, जो ह र नामक घोड़ के समूह म श ु को अ धक बाधा प ंचाने वाले, यु म कुशल एवं मनु य का वहन करने वाले ह . (२३) मदभीशू कशाव ता व ा न व या मती. महो वा जनावव ता सचासनम्.. (२४) बु
म म ा द दे व क अ त नवीन तु त ारा शोभन र सय वाले, हंटर से यु , मान के यो य एवं तेज चलने वाले दो घोड़े ा त करता ं. (२४)
सू —२६
दे वता—अ नीकुमार आ द
युवो षू रथं वे सध तु याय सू रषु. अतूतद ा वृषणा वृष वसू.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अपरा जत श वाले, अ भलाषापूरक एवं दानयु धन वाले अ नीकुमारो! म तोता के बीच शी गमन के लए तु हारे रथ को बुलाता ं. (१) युवं वरो सुषा णे महे तने नास या. अवो भयाथो वृषणा वृष वसू.. (२) हे स य प, अ भलाषापूरक एवं दानशील धन वाले अ नीकुमारो! मेरे पता राजा सुषामा को महा धन दे ने के लए तुम लोग जस कार आते थे, उसी कार तुम अपने र ासाधन के साथ आओ. (२) ता वाम हवामहे ह े भवा जनीवसू. पूव रष इषय ताव त पः.. (३) हे अ यु धन वाले एवं ब त अ चाहने वाले अ नीकुमारो! आज रात बीत जाने के बाद हम तु ह ह ारा बुलाएंगे. (३) आ वां वा ह ो अ ना रथो यातु ुतो नरा. उप तोमा तुर य दशथः
ये.. (४)
हे नेता अ नीकुमारो! वहन करने म सवा धक समथ एवं स तु हारा रथ आवे. तुम शी तापूवक तु त करने वाल को संप दे ने के लए उसक तु तयां सुनो. (४) जु राणा चद ना म येथां वृष वसू. युवं ह
पषथो अ त
षः.. (५)
हे अ भलाषापूरक धन वाले अ नीकुमारो! तुम कु टल श ु को अपने सामने उप थत समझो. तुम दोन हो, इस लए े ष करने वाले श ु को क दो. (५) द ा ह व मानुषङ् म ू भः प रद यथः. धय
वा मधुवणा शुभ पती.. (६)
हे दशनीय, य कम से स होने वाले, मादक शरीर वाले, शोभा वाले एवं जल के पालक अ नीकुमारो! शी गामी घोड़ ारा य थल पर ज द आओ. (६) उप नो यातम ना राया व पुषा सह. मघवाना सुवीरावनप युता.. (७) हे अ नीकुमारो! तुम व पालक धन के साथ हमारे समीप आओ. तुम धनी, शूर एवं न हारने वाले हो. (७) आ मे अ य ती १ म नास या गतम्. दे वा दे वे भर सचन तमा.. (८) हे इं एवं अ नीकुमारो! तुम अ तशय से वत होकर दे व के साथ आज मेरे इस य म आओ. (८) वयं ह वां हवामह उ
य तो
हे मेधावी अ नीकुमारो! हम
वत्. सुम त भ प व ा वहा गतम्.. (९) के समान धन क कामना करते ए तु ह बुलाते ह.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुम हमारे य म आओ. (९) अ ना वृषे तु ह कु व े वतो हवम्. नेद यसः कूळयातः पण त.. (१०) हे ऋ ष व मना! अ नीकुमार क तु त करो. वे अनेक बार तु हारी पुकार सुनकर समीपवत श ु एवं प णय को मार. (१०) वैय
य ुतं नरोतो मे अ य वेदथः. सजोषसा व णो म ो अयमा.. (११)
हे नेता अ नीकुमारो! के पु मुझ व मना क पुकार सुनो और समझो. व ण, म एवं अयमा मलकर मेरी पुकार सुन. (११) युवाद
य ध या युवानीत य सू र भः. अहरहवृषणा म ं श तम्.. (१२)
हे तु त-यो य एवं अ भलाषापूरक अ नीकुमारो! तुम तोता अथवा उनके लए ले जाते हो, वह त दन मुझे दो. (१२)
को जो धन दे ते हो
यो वां य े भरावृतोऽ धव ा वधू रव. सपय ता शुभे च ाते अ ना.. (१३) हे अ नीकुमारो! व से ढक वधू के समान जो तु हारे य से आवृत रहता है, तुम उसक सेवा करते ए उसका क याण करो. (१३) यो वामु
च तमं चकेत त नृपा यम्. व तर ना प र यातम मयू.. (१४)
हे अ नीकुमारो! घर म अ यंत ापक एवं नेता ारा पीने यो य सोमरस जो भली कार तु ह दे ना जानता है, वह म ं. तुम मेरे पास आने क इ छा से मेरे घर आओ. (१४) अ म यं सु वृष वसू यातं व तनृपा यम्. वषु हेव य मूहथु गरा.. (१५) हे अ भलाषापूरक धन वाले अ नीकुमारो! नेता ारा पीने यो य सोमरस पीने के लए हमारे घर आओ. श ु का वध करने वाले बाण के समान हमारे तु तवचन से य समा त करो. (१५) वा ह ो वां हवानां तोमो तो व रा. युवा यां भू व ना.. (१६) हे नेता अ नीकुमारो! तोता के तो म मेरा तो तु ह वहन करने म सवा धक समथ त बनकर तु ह बुलावे एवं स ता दे ने वाला हो. (१६) यददो दवो अणव इषो वा मदथो गृहे. ु त म मे अम या.. (१७) हे मरणर हत अ नीकुमारो! तुम ुलोक के नीचे इस सागर म अथवा तु ह चाहने वाले ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमान के घर म सुख से बैठे होओ. तुम हमारा यह तो सुनो. (१७) उत या ेतयावरी वा ह ा वां नद नाम्. स धु हर यवत नः.. (१८) न दय म सबसे अ धक बहने वाली एवं सोने के माग वाली तु त के साथ तु हारे समीप जाती है. (१८)
ेतयावरी नामक नद
मदे तया सुक या ना ेतया धया. वहेथे शु यावाना.. (१९) हे शोभन गमन वाले अ नीकुमारो! शोभन तु त वाली, ेत जल वाली एवं दोन कनार पर बसे लोग का पोषण करने वाली ेतयावरी नद को वा हत करो. (१९) यु वा ह वं रथासहा युव व पो या वसो. आ ो वायो मधु पबा माकं सवना ग ह.. (२०) हे वायु! तुम रथ ख चने यो य दोन घोड़ को रथ म जोड़ो. हे नवास थान दे ने वाले वायु! उन पोषण-यो य घोड़ को सं ाम म मलाओ. इसके बाद तुम मधु पओ एवं तीन सवन म आओ. (२०) तव वायवृत पते व ु जामातर त. अवां या वृणीमहे.. (२१) हे य पालक क ा, को ा त करते ह. (२१)
ा के जमाई एवं व च कम करने वाले वायु! हम तु हारे पालन
व ु जामातरं वयमीशानं राय ईमहे. सुताव तो वायुं ु ना जनासः.. (२२) हम लोग ा के दामाद एवं सबके वामी वायु के ह. वायु ारा दए धन से हम धनी ह गे. (२२) वायो या ह शवा दवो वह वा सु व
त सोमरस नचोड़कर धन मांगते
म्. वह व महः पृथुप सा रथे.. (२३)
हे वायु! वगलोक से क याण को यहां लाओ एवं शोभन ग त वाले रथ को चलाओ. हे महान् वायु! मोट बगल वाले घोड़ को अपने रथ म जोड़ो. (२३) वां ह सु सर तमं नृषदनेषु महे. ावाणं ना पृ ं मंहना.. (२४) हे अ तशय सुंदर व म हमा से सबको ा त करने वाले वायु! जस कार सोमरस नचोड़ने के लए प थर बुलाया जाता है, उसी कार य म हम तु ह बुलाते ह. (२४) स वं नो दे व मनसा वायो म दानो अ यः. कृ ध वाजाँ अपो धयः.. (२५) हे दे व म मुख वायु दे व! तुम मन से स होकर हम अ , जल एवं य कम दान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करो. (२५)
सू —२७
दे वता— व ेदेवगण
अ न थे पुरो हतो ावाणो ब हर वरे. ऋचा या म म तो ण प त दे वाँ अवो वरे यम्.. (१) इस ोतपूण य म अ न क थापना सोमरस कुचलने वाले प थर एवं कुश के अगले भाग म ई है. म म द्गण ण प त एवं अ य दे व से वरण यो य र ा क याचना करता ं. (१) आ पशुं गा स पृ थव वन पतीनुषासा न मोषधीः. व े च नो वसवो व वेदसो धीनां भूत ा वतारः.. (२) हे अ न! तुम रात तथा दन म हमारे य के पशु, य भू म, वन प त एवं ओष धय के समीप आते हो. हे नवास थान दे ने वाले व ेदेव! तुम हमारे य कम के र क बनो. (२) सून ए व वरो३ ना दे वेषु पू ः. आ द येषु व णे धृत ते म सु व भानुषु.. (३) हमारा ाचीन य अ न तथा अ य दे व के पास भली कार जावे. हमारा य आ द य , तधारी व ण एवं सब ओर तेज फैलाने वाले म त के समीप जावे. (३) व े ह मा मनवे व वेदसो भुव वृधे रशादसः. अ र े भः पायु भ व वेदसो य ता नोऽवृकं छ दः.. (४) अ धक धन वाले एवं श ुनाशक व ेदेव मनु क वृ करने वाले ह . हे सव दे वो! सर ारा अबा धत र ासाधन ारा हम चोर के भय से र हत घर दो. (४) आ नो अ समनसो ग तो व े सजोषसः. ऋचा गरा म तो दे दते सदने प ये म ह.. (५) हे व ेदेव! तो के त समान वचार वाले एवं संगत होकर तु तवचन एवं ऋचाएं सुनने क अ भलाषा से आज हमारे पास आओ. हे म तो एवं महान् अ द त! हमारे य गृह म आओ. (५) अ भ या म तो या वो अ ा ह ा म याथन. आ ब ह र ो व ण तुरा नर आ द यासः सद तु नः.. (६) हे म द्गण! अपने यारे घोड़ को हमारे य म भेजो. हे म ! ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पाने के लए हमारे
य म आओ. इं , व ण तथा यु म श ु का शी वध करने वाले व नेता आ द य हमारे ारा बछाए ए कुश पर बैठ. (६) वयं वो वृ ब हषो हत यस आनुषक्. सुतसोमासो व ण हवामहे मनु व द ा नयः.. (७) हे व ण! हम लोग कुश बछाकर, ुच म ह भरने के बाद अ न म डालकर, सोमरस नचोड़ कर एवं अ न को व लत करके तु ह बुलाते ह. (७) आ यात म ता व णो अ ना पूष माक नया धया. इ आ यातु थमः स न यु भवृषा यो वृ हा गृणे.. (८) हे म द्गण, व णु, अ नीकुमारो एवं पूषा! मेरी तु त सुनने के साथ ही य म आओ. दे व म ये इं भी आव. तोता कामपूरक इं क तु त वृ हंता के प म करते ह. (८) व नो दे वासो अ होऽ छ ं शम य छत. न यद् रा सवो नू चद ततो व थमादधष त.. (९) हे ोहहीन दे वो! हम बाधार हत घर दो. हे नवास थान दे ने वाले दे वो! समीप अथवा र से आकर हमारे घर को न नह करना. (९) अ त ह वः सजा यं रशादसो दे वासो अ या यम्. णः पूव मै सु वताय वोचत म ू सु नाय न से.. (१०) हे श ुनाशक दे वो! तुम म समान जा त का भाव एवं बंधुता है. ाचीन अ युदय एवं नवीन धन पाने का साधन शी एवं भली कार हम बताओ. (१०) इदा ह वः उप तु त मदा वाम य भ ये. उप वो व वेदसो नम युराँ असृ य या मव.. (११) हे सवधनसंप दे वो! म अ पाने क अ भलाषा से इसी समय तु हारा उ म धन पाने के लए ऐसी तु त करता ं, जसे कसी ने पहले नह सुना. (११) उ य वः स वता सु णी तयोऽ था व वरे यः. न पाद तु पादो अ थनोऽ व पत य णवः.. (१२) हे शोभन तु त वाले म तो! तुम लोग से ऊपर जाने वाले एवं वरणीय स वता जब उदय होते ह, तब मनु य, पशु, प ी एवं याचना करने वाले लोग अपने-अपने काम म लग जाते ह. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व दे वं वोऽवसे दे व दे वम भ ये. दे व दे वं वेम वाजसातये गृण तो दे ा धया.. (१३) हम द तशाली तु त ारा शंसा करते ए येक दे व को य कम क र ा, मनचाही व तु क ा त एवं अ पाने के लए बुलाते ह. (१३) दे वासो ह मा मनवे सम वयो व े साकं सरातयः. ते नो अ ते अपरं तुचे तु नो भव तु व रवो वदः.. (१४) समान ोध वाले व ेदेव मनु को धन आ द दे ने के लए एक साथ ही त पर ह . वे आज एवं अ य दन म मेरे तथा मेरे पु के लए धन दे ने वाले ह . (१४) वः शंसा य हः सं थ उप तुतीनाम्. न तं धू तव ण म म य यो वो धाम योऽ वधत्.. (१५) हे ोहर हत दे वो! तु तय के आधार पर य म म तु हारी भली कार तु त करता ं. हे व ण एवं म ! तु हारे शरीर क वृ के लए जो ह व धारण करता है, उसे श ु बाधा नह प ंचाते. (१५) स यं तरते व मही रषो यो वो वराय दाश त. जा भजायते धमण पय र ः सव एधते.. (१६) हे दे वो! वह मनु य अपना घर बढ़ाता है, जो वरणीय धन पाने के लए तु ह ह दे ता है. वह अ वृ करता है, जा क वृ करता है एवं तु हारे य कम के कारण अबा धत होकर बढ़ता है. (१६) ऋते स व दते युधः सुगे भया य वनः. अयमा म ो व णः सरातयो यं ाय ते सजोषसः.. (१७) दे व को ह दे ने वाला यु के बना भी धन पाता है, सुंदर ग त वाले अ ारा माग म चलता है तथा म , व ण एवं अयमा समान दान वाले बनकर तथा पर पर मलकर उसक र ा करते ह. (१७) अ े चद मै कृणुथा य नं ग चदा सुसरणम्. एषा चद मादश नः परो नु सा ेध ती व न यतु.. (१८) हे दे वो! अग य एवं गम माग पर भी हमारा गमन तुम सरल बनाओ. यह व क हसा न करता आ शी ही हमसे र न हो जाए. (१८) यद सूय उ त
य
ा ऋतं दध.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कसी
य
ु च बु ध व वेदसो य ा म य दने दवः.. (१९)
हे स करने वाले बल से यु दे वो! आज सूय का उदय होने पर हमारे लए क याणकारक घर दो. हे सब धन के वामी दे वो! सूया त के समय, ातःकाल अथवा दोपहर के समय हम घर दो. (१९) य ा भ प वे असुरा ऋतं यते छ दयम व दाशुषे. वयं त ो वसवो व वेदस उप थेयाम म य आ.. (२०) हे बु संप , सम त धन के वामी एवं नवास थान दे ने वाले दे वो! इस य म तु हारे आने के उ े य से ह व दे ने वाले एवं य क ओर जाने वाले यजमान को तुम घर दे ते हो तो हम तु हारे उसी क याणकारी घर म तु हारी पूजा करगे. (२०) यद सूर उ दते य म य दन आतु च. वामं ध थ मनवे व वेदसो जु ानाय चेतसे.. (२१) हे सम त धन के वामी दे वो! आज सूय दय के समय, दोपहर को एवं शाम के समय हवन करने वाले तथा उ म ानी मनु के लए तुम सुंदर धन धारण करते हो. (२१) वयं त ः स ाज आ वृणीमहे पु ो न ब पा यम्. अ याम तदा द या जु तो ह वयन व योऽनशामहै.. (२२) हे भली कार सुशो भत दे वो! तु हारे पु -तु य हम ब त के भोगयो य उसी धन क याचना करते ह. हे आ द यो! हम उस धन को ा त कर एवं य करते ए उस धन के ारा अ धक संप ता ा त कर. (२२)
दे वता— व ेदेव
सू —२८ ये
श त य परो दे वासो ब हरासदन्. वद ह
तासनन्.. (१)
जो ततीस दे वता कुश पर बैठे थे, वे हम समझ एवं दोन
कार का धन द. (१)
व णो म ो अयमा म ा तषाचो अ नयः. प नीव तो वषट् कृताः.. (२) मने व ण, म एवं यजमान को धन दे ने वाले अ नय को वषट् के ारा प नीस हत बुलाया है. (२) ते नो गोपा अपा या त उद
इ था यक्. पुर ता सवया वशा.. (३)
वे व णा द दे व अपने सभी अनुचर के साथ सामने से, पीछे से, ऊपर से और नीचे से ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारी र ा कर. (३) यथा वश त दे वा तथेदस दे षां न करा मनत्. अरावा च न म यः.. (४) दे व जैसा चाहते ह, वैसा ही होता है, दे व क अ भलाषा को कोई न नह कर सकता. दे व का चाहा आ अदाता मनु य भी न नह होता. (४) स तानां स त ऋ यः स त ु ना येषाम्. स तो अ ध
यो धरे.. (५)
सात म त के सात तरह के आयुध ह. इनके सात आभरण ह एवं ये सात कार क द तयां धारण करते ह. (५)
दे वता— व ेदेव
सू —२९ ब ुरेको वषुणः सूनरो युवा
यङ् े हर ययम्.. (१)
पीले रंग वाले, सव ग तशील, रा य के नेता, युवक एवं अकेले सोमदे व सोने के गहने का शत करते ह. (१) यो नमेक आ ससाद ोतनोऽ तदवेषु मे धरः.. (२) दे व के म य सवा धक तेज वी, मेधावी, एवं अकेले अ न अपना थान पाते ह. (२) वाशीमेको बभ त ह त आयसीम तदवेषु न ु वः.. (३) दे व के म य न ल थान म वतमान व ा दे व हाथ म लोहे क कु हाड़ी धारण करते ह. (३) व मेको बभ त ह त आ हतं तेन वृ ा ण ज नते.. (४) अकेले इं हाथ म पकड़ा आ व ह. (४) त ममेको बभ त ह त आयुधं शु च
धारण करते ह और उससे श ु
का नाश करते
ो जलाषभेषजः.. (५)
प व , उ एवं सुखकर ओष धय वाले करते ह. (५)
एकाक ह. वे हाथ म तीखा आयुध धारण
पथ एकः पीपाय त करो यथाँ एष वेद नधीनाम्.. (६) एकमा पूषा माग क र ा करते ह एवं चोर के समान सम त धन को जानते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ी येक उ गायो व च मे य दे वासो मद त.. (७) ब त क तु त के पा व णु ने अकेले ही तीन चरण से सभी भुवन म गमन कया था. इन लोग म दे व स होते ह. (७) व भ ा चरत एकया सह
वासेव वसतः.. (८)
अ ारा चलने वाले दो अ नीकुमार वासी पु ष के समान एक नारी सूया के साथ रहते ह. (८) सदो ा च ाते उपमा द व स ाजा स परासुती.. (९) भली कार सुशो भत घृत प ह व वाले एवं एक- सरे के उपमान म एवं व ण दो दे व ुलोक पी को बनाते ह. (९) अच त एके म ह साम म वत तेन सूयमरोचयन्.. (१०) अ वंशी ऋ ष महान् साममं बोलते ए सूय को द तशाली बनाते ह. (१०)
सू —३०
दे वता— व ेदेव
न ह वो अ यभको दे वासो न कुमारकः. व े सतोमहा त इत्.. (१) हे दे वो! तुम म कोई शशु या कुमार नह है. तुम सभी महान् हो. (१) इ त तुतासो असथा रशादसो ये थ य
श च. मनोदवा य यासः.. (२)
हे श ुनाशक एवं मनु के य के पा दे वो! तुम ततीस हो, ऐसा कहकर तु हारी तु त क जाती है. (२) ते न ा वं तेऽवत त उ नो अ ध वोचत. मा नः पथः प या मानवाद ध रं नै परावतः.. (३) हे दे वो! हम रा स से बचाओ, हमारी र ा करो एवं हमसे अ छ तरह बोलो. हमारे पता मनु के रागत माग से हम मत करना. (३) ये दे वास इह थन व े वै ानरा उत. अ म यं शम स थो गवेऽ ाय य छत.. (४) हे व ेदेव एवं अ न! तुम यहां थत होओ. तुम हम सव दो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स
सुख, गाय एवं घोड़ा
सू —३१
दे वता—य
यो यजा त यजात इ सुनव च पचा त च.
ेद
य चाकनत्.. (१)
जो यजमान य करता है, दे व के लए ह दे ता है, सोमरस नचोड़ता है एवं पुरोडाश पकाता है, वह इं संबंधी मं को बार-बार बोलता है. (१) पुरोळाशं यो अ मै सोमं ररत आ शरम्. पा द ं श ो अंहसः.. (२) जो यजमान इं को पुरोडाश एवं गाय के ध से मला सोमरस दे ता है, उसे इं पाप से बचाते ह, यह न त है. (२) त य ुमाँ अस थो दे वजूतः स शूशुवत्. व ा व व म या.. (३) दे व क पूजा करने वाले यजमान के पास दे व ारा भेजा आ तेज वी रथ आता है. यजमान उस रथ ारा श ु क सम त बाधा को न करता आ समृ होता है. (३) अ य जावती गृहेऽस
ती दवे दवे. इळा धेनुमती हे.. (४)
इस यजमान के घर म संतानयु , कह न जाने वाला एवं गाय स हत अ ा त कया जाता है. (४)
त दन
या द पती समनसा सुनुत आ च धावतः. दे वासो न यया शरा.. (५) हे दे वो! जो प तप नी समान वचार से सोमरस नचोड़ते ह, उसे दशाप व करते ह एवं तीसरे सवन म उस म गो ध मलाते ह. (५)
ारा शु
त ाश ाँ इतः स य चा ब हराशाते. न ता वाजेषु वायतः.. (६) वे भोजन के यो य अ दे व से ा त करते ह, मलकर य के कुश पर बैठते ह एवं कसी के पास अ मांगने नह जाते. (६) न दे वानाम प तः सुम त न जुगु तः. वो बृह वासतः.. (७) हे दे वो! वे प तप नी दे व के त बुरी बात नह करते एवं तु हारे त शोभन बु समा त करना नह चाहते. वे अ धक अ ारा तु हारी सेवा करते ह. (७) पु णा ता कुमा रणा व मायु वे शशु करते ह. (८)
को
ुतः. उभा हर यपेशसा.. (८)
एवं कुमार वाले प तप नी सोने के गहन से यु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
होकर पूण आयु ा त
वी तहो ा कृत सू दश य तामृताय कम्. समूधो रोशमं हतो दे वेषु कृणुतो वः.. (९) य को ेम करने वाले प तप नी दे व को ह दे ते ए उपयु पा को धनदान करते ह एवं संतानवृ के लए पु ष एवं नारी जनन य का संयोग करते ह. वे दे व क सेवा करते ह. (९) आ शम पवतानां वृणीमहे नद नाम्. आ व णोः सचोभुवः.. (१०) हम पवत के सुख, न दय के सुख एवं सम त दे व के साथ व णु के सुख क कामना करते ह. (१०) ऐतु पूषा र यभगः व त सवधातमः. उ र वा व तये.. (११) धन दे ने वाले, सबके सेवनीय व धना द ारा सबका पोषण करने वाले पूषा र ासाधन के साथ आव. पूषा के आने पर व तृत माग हमारे लए सुखकर हो. (११) अरम तरनवणो व ो दे व य मनसा. आ द यानामनेह इत्.. (१२) श ु ारा परा जत न होने वाले पूषादे व के सब तोता पया त आ द य का दान पापर हत ही होता है. (१२)
ा से यु
होते ह.
यथा नो म ो अयमा व णः स त गोपाः. सुगा ऋत य प थाः.. (१३) जस कार म , अयमा एवं व ण हमारे र क ह, उसी कार हमारे य माग सुगम ह . (१३) अ नं वः पू
गरा दे वमीळे वसूनाम्. सपय तः पु
यं म ं न े साधसम्.. (१४)
हे दे वो! म तु हारे अ वत अ न दे व क तु त धन ा त के लए करता ं. तु हारे सबसे े आशीष ब त के य म के समान े साधक होते ह. (१४) म ू दे ववतो रथः शूरो वा पृ सु कासु चत्. दे वानां य इ मनो यजमान इय यभीदय वनो भुवत्.. (१५) शूर का रथ जस कार सेना म वेश करता है, उसी कार दे व के भ का रथ शी गम माग म जाता है. दे व क मनचाही पूजा करने वाला यजमान य न करने वाले को हरा दे ता है. (१५) न यजमान र य स न सु वाय न दे वयो. दे वानां य इ मनो यजमान इय यभीदय वनो भुवत्.. (१६) हे यजमान, सोमरस, नचोड़ने वाले एवं दे वकामी ! तुम न ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नह होगे. जो
यजमान दे व क मनपसंद पूजा करना चाहता है, वह य (१६)
न करने वाले को हरा दे ता है.
न क ं कमणा नश योष योष त. दे वानां य इ मनो यजमान इय यभीदय वनो भुवत्.. (१७) जो यजमान दे व का मनचाहा य करना चाहता है उसे अपने कम ारा कोई वश म नह कर सकता, उसे कोई थान से हटा नह सकता तथा वह पु ा द ारा र हत नह होता. दे व क मनचाही पूजा का अ भलाषी य न करने वाले को हराता है. (१७) असद सुवीयमुत यदा म्. दे वानां य इ मनो यजमान इय यभीदय वनो भुवत्.. (१८) दे व का मनचाहा य करने का इ छु क यजमान शोभन वीयवाला पु पाता है एवं अ यु धन ा त करता है. जो यजमान दे व क मनचाही पूजा करता है, वह य न करने वाले को हरा दे ता है. (१८)
दे वता—इं
सू —३२ कृता यृजी षणः क वा इ
य गाथया. मदे सोम य वोचत.. (१)
हे क वगो ीय ऋ षयो! जब इं अपनी कहानी सुनकर स हो जाव, तब तुम ऋजीष वाले सोम का वणन करो. (१) यः सृ ब दमनश न प ुं दासमहीशुवम्. वधी
ो रण पः.. (२)
उ इं ने जल को बहने के लए े रत करते ए सु वद, अनश न, प ,ु दास और अहीशुव को मारा था. (२) यबुद य व पं व माणं बृहत तर. कृषे त द (३)
प यम्.. (३)
हे इं ! महान् मेघ के जलावरोधक थान म छे द करो एवं यह वीरतापूण काय पूरा करो. त ुताय वो धृष ूणाशं न गरेर ध. वे सु श मूतये.. (४)
हे तोताओ! म तु हारी ाथनाएं सुनने के लए श ु का नाश करने वाले एवं शोभन हनु वाले इं को उसी कार बुलाता ं, जस कार बादल से पानी क ाथना क जाती है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स गोर
य व जं म दानः सो ये यः. पुरं न शूर दष स.. (५)
हे शूर इं ! तुम स होकर सोमरस के यो य तोता के लए गोशाला एवं अ शाला के ार उसी कार खोल दे ते हो, जस कार श ु नाग रक के ार. (५) य द मे रारणः सुत उ थे वा दधसे चनः. आरा प वधा ग ह.. (६) हे इं ! तुम मेरे ारा नचोड़े गए सोमरस अथवा न मत तो अ दे ते हो तो र दे श से अ लेकर मेरे पास आओ. (६) वयं घा ते अ प म स तोतार इ
से स हो एवं मुझे
गवणः. वं नो ज व सोमपाः.. (७)
हे तु त यो य इं ! हम तु हारे तोता ह. हे सोमरस पीने वाले इं ! तुम हम स करते हो. (७) उत नः पतुमा भर संरराणो अ व तम्. मघव भू र ते वसु.. (८) हे धनयु है. (८)
इं ! तुम स होकर हम समा त न होने वाला अ दो. तु हारा धन ब त
उत नो गोमत कृ ध हर यवतो अ नः. इळा भः सं रभेम ह.. (९) हे इं ! हम गाय , घोड़ और सोने वाला बनाओ. हम अ से यु बृब
हो. (९)
थं हवामहे सृ कर नमूतये. साधु कृ व तमवसे.. (१०)
हम महान् मं वाले, भुजाएं फैलाए ए एवं लोक क र ा के लए भली कार य न करने वाले इं को लोक क र ा के लए बुलाते ह. (१०) यः सं थे च छत तुराद कृणो त वृ हा. ज रतृ यः पु वसुः.. (११) इं सं ाम म अनेक वीरतापूण काय करने वाले श ुवधक ा, वृ हंता एवं तोता अ धक अ दे ने वाले ह. (११) स नः श
दा शक ानवाँ अ तराभरः. इ ो व ा भ
वे श शाली इं हम भी श हमारे दोष को र कर. (१२)
को
त भः.. (१२)
शाली बनाव. दानशील इं अपने सभी र ासाधन
ारा
यो रायो३ व नमहा तसुपारः सु वतः सखा. त म म भ गायत.. (१३) जो इं , धन के पालक, महान्, शोभन त, समा त वाले एवं सोमरस नचोड़ने वाले के म ह, उ ह इं क तु त करो. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आय तारं म ह थरं पृतनासु वो जतम्. भूरेरीशानमोजसा.. (१४) इं य म आने वाले, यु धन के वामी ह. (१४)
म अ यंत थर, अ को जीतने वाले एवं श
ारा ब त
न कर य शचीनां नय ता सूनृतानाम्. न कव ा न दा द त.. (१५) इं के शोभन कम का नयं ण करने वाला कोई नह है. इं दान नह करते, ऐसा कोई नह कह सकता. (१५) न नूनं
णामृणं ाशूनाम त सु वताम्. न सोमो अ ता पपे.. (१६)
सोमरस नचोड़ने और पीने वाले ा ण पर दे वऋण नह रहता. अ धक धन के बना कोई सोमरस नह पी सकता है. (१६) प य इ प गायत प य उ था न शंसत.
ा कृणोत प य इत्.. (१७)
हे गायको! तु त यो य इं के लए गाओ. हे तोताओ! इं के लए मं बोलो एवं तो बनाओ. (१७) प य आ द दर छता सह ा वा यवृतः. इ ो यो य वनो वृधः.. (१८) तु त यो य, बलवान्, य वधक एवं श ु हजार श ु को वद ण कया है. (१८) व षू चर वधा अनु कृ ीनाम वा वः. इ (१९)
हे बुलाने यो य इं ! जा
के ह
ारा न घरने वाले इं ने सैकड़ और पब सुतानाम्.. (१९)
के समीप जाओ एवं नचोड़ा आ सोमरस पओ.
पब वधैनवानामुत य तु ये सचा. उताय म
य तव.. (२०)
हे इं ! अपनी गाय के बदले खरीदे गए एवं जल क सहायता से तैयार कए गए इस अपने सोमरस को पओ. (२०) अती ह म युषा वणं सुषुवांसमुपारणे. इमं रातं सुतं पब.. (२१) हे इं ! ोध के साथ एवं बुरे थान म सोमरस नचोड़ने वाले को लांघकर चले जाओ. हमारे ारा दए ए इस सोमरस को पओ. (२१) इ ह त ः परावत इ ह प च जनाँ अ त. धेना इ ावचाकशत्.. (२२) हे इं ! तुमने हमारी तु तय को समझा है. इस लए आगे-पीछे तथा आसपास से एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
गंधव , पतर , दे व , असुर और रा स को लांघकर हमारे पास आओ. (२२) सूय र मं यथा सृजा ऽऽ वा य छ तु मे गरः. न नमापो न स यक्.. (२३) हे इं ! जस कार सूय करण दे ते ह, उसी कार तुम मुझे धन दो. जैसे जल नीचे थान म प ंच जाता है उसी कार मेरी तु तयां तु हारे पास प ंच. (२३) अ वयवा तु ह ष च सोमं वीराय श णे. भरा सुत य पीतये.. (२४) हे अ वयुगण! शोभन जबड़ वाले एवं वीर इं के लए सोमरस दो एवं उ ह सोमरस पीने के लए बुलाओ. (२४) य उद्नः फ लगं भन य१ स धूँरवासृजत्. यो गोषु प वं धारयत्.. (२५) इं ने जल के लए मेघ को वद ण कया, जलधारा ध धारण कया. (२५)
को नीचे गराया एवं गाय म
अह वृ मृचीषम औणवाभमहीशुवम्. हमेना व यदबुदम्.. (२६) द तशाली इं ने वृ , औणनाभ एवं अहीशुव को मारा एवं तुषार जल से बादल का भेदन कया. (२६) व उ ाय न ु रेऽषा हाय स णे. दे व ं
गायत.. (२७)
हे उद्गाताओ! तुम उ , श ुनाशक, श ुपराभवकारी और श ु हरण करने वाले इं के लए दे व क कृपा से तु तयां गाओ. (२७)
का धन बलपूवक
यो व ा य भ ता सोम य मदे अ धसः. इ ो दे वेषु चेत त.. (२८) इं
पए ए सोमरस का नशा चढ़ने पर सम त य कम दे व को बताते ह. (२८)
इह या सधमा ा हरी हरय के या. वो हाम भ यो हतम्.. (२९) सुनहरे बाल वाले एवं ह र नामक घोड़े एक साथ इं को इस य म सोमरस के सामने ले आव. (२९) अवा चं वा पु
ुत
पी ह
यमेध तुता हरी. सोमपेयाय व तः.. (३०)
हे ब त ारा तुत इं ! यमेध ऋ ष ारा शं सत ह र नामक घोड़े तु ह सोमरस पीने के लए हमारे सामने लाव. (३०)
सू —३३
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वयं घ वा सुताव त आपो न वृ ब हषः. पव य वणेषु वृ हन् प र तोतार आसते.. (१) हे इं ! सोमरस नचोड़ने वाले हम लोग इस कार तु हारे पास आते ह, जैसे जल नीचे क ओर जाता है. प व सोमरस नचुड़ जाने पर कुश बछाने वाले तोता तु हारी सेवा करते ह. (१) वर त वा सुते नरो वसो नरेक उ थनः. कदा सुतं तृषाण ओक आ गम इ व द व वंसगः.. (२) हे नवासदाता एवं नेता इं ! उ थ बोलने वाले लोग सोमरस नचुड़ जाने पर तु हारी तु त करते ह. सोमरस पीने के लए यारे इं बैल के समान श द करते ए यहां कब आएंगे. (२) क वे भधृ णवा धृष ाजं द ष सह णम्. पश पं मघवन् वचषणे म ू गोम तमीमहे.. (३) हे श ु को दबाने वाले इं ! क ववंशीय ऋ षय को हजार क सं या म अ दो. हे धनयु एवं वशेष वाले इं ! हम लोग श शाली, पीले रंग के एवं गाय वाले अ को मांगते ह. (३) पा ह गाया धसो मद इ ाय मे या तथे. यः सं म ो हय यः सुते सचा व ी रथो हर ययः.. (४) हे मेधा त थ ऋ ष! सोमरस पओ एवं उसका नशा होने पर ह र नामक घोड़ को रथ म जोड़ने वाले सोमरस नचोड़ने म सहायक, व धारी एवं सोने के रथ वाले इं के तो पढ़ो. (४) यः सुष ः सुद ण इनो यः सु तुगृणे. य आकरः सह ा यः शतामघ इ ो यः पू भदा रतः.. (५) जनका दायां एवं बायां दोन हाथ सुंदर ह, जो वामी, शोभन कम करने वाले एवं हजार कम करने वाले ह तथा जो सैकड़ संप य वाले, श ुनग रय को तोड़ने वाले एवं य म थर ह, उ ह इं क तु त करो. (५) यो धृ षतो योऽवृतो यो अ त म ुषु तः. वभूत ु न यवनः पु ु तः वा गौ रव शा कनः.. (६) जो श ु को दबाने वाले श ु के घेरे से र हत, यु म आ य दे ने वाले, अ धक धन वाले, ब त ारा तुत एवं य कम म लगे यजमान के लए ध दे ने वाली गाय के समान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भलाषापूरक ह, उ ह इं क तु त करो. (६) क वेद सुते सचा पब तं क यो दधे. अयं यः पुरो व भन योजसा म दानः श य धसः.. (७) सुंदर जबड़े वाले, सोमरस पीकर मतवाले, श ुनग रय को तोड़ने वाले व सोमरस के नचुड़ जाने पर ऋ वज के साथ सोम पीने वाले इं को कौन जानता है और कौन उनके लए अ दे ता है? (७) दाना मृगो न वारणः पु ा चरथं दधे. न क ् वा न यमदा सुते गमो महाँ र योजसा.. (८) जैसे श ह ु ा थय क खोज करने वाला हाथी मदजल धारण करता है, उसी कार इं ब त से य म जाने के लए मद धारण करते ह. हे इं ! तु ह कोई वश म नह कर सकता. तुम नचोड़े ए सोमरस क ओर आओ. हे महान् इं ! तुम अपने बल से सभी जगह घूमते हो. (८) य उ ः स न ृ तः थरो रणाय सं कृतः. य द तोतुमघवा शृणव वं ने ो योष या गमत्.. (९) इं
जब उ , श ु के घेरे से र हत, थर, यु के लए श से सुशो भत एवं धनवान् तोता क पुकार सुन लेते ह तो अ य न जाकर वह जाते ह. (९) स य म था वृषेद स वृषजू तन ऽवृतः. वृषा शृ वषे पराव त वृषो अवाव त ुतः.. (१०)
हे उ इं ! यह स य है क तुम अ भलाषापूरक, अ भलाषापूरक ारा आकृ व श ु से बना घरे ए हो. हे उ इं ! तुम अ भलाषापूरक सुने जाते हो. तुम र एवं समीप के थान म अ भलाषापूरक के प म स हो. (१०) वृषण ते अभीशवो वृषा कशा हर ययी. वृषा रथो मघव वृषणा हरी वृषा वं शत तो.. (११) हे धन वामी इं ! तु हारे घोड़ क लगाम अ भलाषापूरक ह. तु हारा सोने का हंटर अ भलाषापूरक है. हे शत तु! तु हारा रथ, तु हारे घोड़े एवं तुम वयं अ भलाषापूरक हो. (११) वृषा सोता सुनोतु ते वृष ृजी प ा भर. वृषा दध वे वृषणं नद वा तु यं थातहरीणाम्.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ भलाषापूरक इं ! तु हारे लए सोमरस नचोड़ने वाला अ भलाषापूरक होकर सोमरस नचोड़े. हे सरल ग त वाले इं ! हम धन दो. हे ह र नामक अ के सामने थत होने वाले एवं अ भलाषापूरक इं ! जल म सोम नचोड़ने वाले ने उसे तु हारे लए धारण कया है. (१२) ए या ह पीतये मधु श व सो यम्. नायम छा मघवा शृणवद् गरो ो था च सु तुः.. (१३) हे अ तशय बलवान् इं ! मधुर सोमरस पीने के लए यहां आओ. धनवान् एवं शोभन य कम वाले इं बना आए ए तु तयां तो एवं मं नह सुनते. (१३) वह तु वा रथे ामा हरयो रथयुजः. तर दय सवना न वृ ह येषां या शत तो.. (१४) हे वृ हंता एवं सैकड़ बु य वाले इं ! रथ म जुते ए घोड़े अ य लोग के य तर कार करके तुझ रथ म थर वामी को हमारे य म लाव. (१४)
का
अ माकम ा तमं तोमं ध व महामह. अ माकं ते सवना स तु श तमा मदाय ु सोमपाः.. (१५) हे परमपू य इं ! आज अ यंत समीपवत हमारे तोम नामक य को धारण करो. हे द तशाली एवं सोमरस पीने वाले इं ! तु हारे मद के लए होने वाले हमारे य क याणकारक ह . (१५) न ह ष तव नो मम शा े अ य य र य त. यो अ मा वीर आनयत्.. (१६) जो शूर इं हमारा नेतृ व करते ह. वे मेर,े तु हारे अथवा कसी अ य के शासन म स नह होते. (१६) इ (१७)
द्घा तद वी
या अशा यं मनः. उतो अह
तुं रघुम्.. (१७)
इं ने ही कहा था—“ ी के मन पर शासन संभव नह है
ी क बु
छोट होती है.”
स ती चद्घा मद युता मथुना वहतो रथम्. एवेदधू ् वृ ण उ रा.. (१८) सोमरस क ओर जाने वाले इं के दोन घोड़े रथ को वहन करते ह. इस कामवषक इं का रथ सबसे े है. (१८) अधः प य व मोप र स तरां पादकौ हर. मा ते कश लकौ श ी ह ा बभू वथ.. (१९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कार
इं ने कहा—“हे ायो ग! तुम नीचे दे खो, ऊपर मत दे खो. तुम पैर को आपस म मलाओ. तु हारे ह ठ एवं कमर को कोई न दे खे. तुम तोता होते ए भी ी हो.” (१९)
सू —३४
दे वता—इं
ए या ह ह र भ प क व य सु ु तम्. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (१) हे इं ! तुम अपने ह र नामक घोड़ के ारा क वगो ीय ऋ षय क सुंदर तु त के सामने आओ. हे द तह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (१) आ वा ावा वद ह सोमी घोषेण य छतु. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (२) हे इं ! इस य म सोमलता कुचलने के प थर तु ह सोम वाला कहते ए तु हारे लए सोम द. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (२) अ ा व ने मरेषामुरां न धूनुते वृकः. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (३) इस य म सोमलता कुचलने वाले प थर सोमलता को इस कार कं पत करते ह, जस कार भे ड़या भेड़ को कंपाता है. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (३) आ वा क वा इहावसे हव ते वाजसातये. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (४) हे इं ! क वगो ीय ऋ ष तु ह र ा एवं अ पाने के लए इस य म बुलाते ह. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (४) दधा म ते सुतानां वृ णे न पूवपा यम्. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (५) हे इं ! य के ारंभ म जस कार अ भलाषापूरक वायु को सोमरस दया जाता है, उसी कार तु ह नचोड़ा आ सोमरस म ं गा. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (५) म पुर धन आ ग ह व तोधीन ऊतये. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (६) हे वग कुटुं बी इं ! तुम हमारे पास आओ. हे व र क इं ! हमारी र ा के लए आओ. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो इस लए ुलोक म जाओ. (६) आ नो या ह महेमते सह ोते शतामघ. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (७) हे महाबु शाली, हजार र ासाधन वाले तथा अ धक धनयु इं ! तुम हमारे समीप आओ. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (७) आ वा होता मनु हतो दे व ा व द ः. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (८) हे इं ! दे वता म तु त यो य दे व को बुलाने वाला एवं मनु य ारा गृह म था पत अ तु ह अ वहन करे. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (८) आ वा मद युता हरी येनं प ेव व तः. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (९) हे इं ! जस कार बाज अपने दोन पंख को ढोता है, उसी कार मतवाले ह र नामक घोड़े तु ह वहन कर. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (९) आ या य आ प र वाहा सोम य पीतये. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (१०) हे वामी इं ! तुम चार ओर से आओ. तु हारे पीने के लए म वाहा बोलकर सोमरस दे ता ं. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (१०) आ नो या प ु यु थेषु रणया इह. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (११) (११)
हे इं ! उ थ मं
के पाठ के समय तुम इस य के समीप आओ एवं हम स करो.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स पैरा सु नो ग ह संभृतैः स भृता ः. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (१२) हे पु अ वाले इं ! तुम अपने पु एवं समान प वाले घोड़ के ारा आओ. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (१२) आ या ह पवते यः समु या ध व पः. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (१३) हे इं ! तुम पवत, अंत र एवं वग से आओ. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (१३) आ नो ग ा य ा सह ा शूर द ह. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (१४) हे शूर इं ! तुम हम हजार गाएं एवं घोड़े भली कार दो. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (१४) आ नः सह शो भरायुता न शता न च. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (१५) हे इं ! हम हजार, दस हजार एवं सौ मनचाही व तुएं दो. हे द त ह व वाले इं ! तुम ुलोक का शासन करते हो, इस लए ुलोक म जाओ. (१५) आयद
द हे सह ं वसुरो चषः. ओ ज म
ं पशुम्.. (१६)
धन ारा द त हम हजार लोग और हमारे नेता इं श ह. (१६)
शाली घोड़ को हण करते
य ऋ ा वातरंहसोऽ षासो रघु यदः. ाज ते सूया इव.. (१७) वे सरल ग त वाले, वायु के समान ती गामी, तेज वी एवं थोड़े भीगे ए घोड़े सूय के समान शोभा पाते ह. (१७) पारावत य रा तषु व च े वाशुषु. त ं वन य म य आ.. (१८) रथ के प हय को चलाने वाले इन घोड़ को पारावत ने जस समय दया था, उस समय म वन म था. (१८)
सू —३५
दे वता—अ नीकुमार
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नने े ण व णेन व णुना द यै ै वसु भः सचाभुवा. सजोषसा उषसा सूयण च सोमं पबतम ना.. (१) हे अ नीकुमारो! तुम अ न, इं , व ण, व णु, आ द य , के साथ मलकर सोमरस पओ. (१)
, वसु
उषा तथा सूय
व ा भध भभुवनेन वा जना दवा पृ थ ा भः सचाभुवा. सजोषसा उषसा सूयण च सोमं पबतम ना.. (२) हे श शाली अ नीकुमारो! तुम सम त बु य , सब ा णय , ुलोक, पृ वी, पवत , उषा तथा सूय के साथ मलकर सोमरस पओ. (२) व ैदवै भरेकादशै रहा म भृगु भः सचाभुवा. सजोषसा उषसा सूयण च सोमं पबतम ना.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम इस य म ह उषा एवं सूय के साथ सोमरस पओ. (३)
भ ण करने वाले ततीस दे व , म त , भृगु
,
जुषेथां य ं बोधतं हव य मे व ेह दे वौ सवनाव ग छतम्. सजोषसा उषसा सूयण चेषं नो वो हम ना.. (४) हे अ नीकुमारो! तुम इस य का सेवन करो एवं मेरी पुकार सुनो. तुम इस य के तीन सवन म आओ एवं उषा व सूय के साथ मलकर अ वीकार करो. (४) तोमं जुषेथां युवशेव क यनां व ेह दे वौ सवनाव ग छतम्. सजोषसा उषसा सूयण चेषं नो वो हम ना.. (५) हे दे व अ नीकुमारो! जस कार युवक क या क पुकार पर यान दे ते ह, उसी कार तुम हमारे य म तो को वीकार करो. तुम इस य के तीन सवन म आओ एवं उषा व सूय के साथ मलकर हमारा अ वीकार करो. (५) गरो जुषेथाम वरं जुषेथां व ेह दे वौ सवनाव ग छतम्. सजोषसा उषसा सूयण चेषं नो वो हम ना.. (६) हे दे व अ नीकुमारो! तुम हमारी तु त सुनो, य को वीकार करो, इस य के तीन सवन म आओ एवं उषा व सूय के साथ मलकर हमारा अ हण करो. (६) हा र वेव पतथो वने प सोमं सुतं म हषेवाव ग छथः. सजोषसा उषसा सूयण च व तयातम ना.. (७) हे अ नीकुमारो! हा र व प ी जस कार जल पर गरते ह, उसी कार तुम सोमरस ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पर गरो. भसा जस कार जल क ओर आता है, उसी कार तुम सोमरस क ओर आओ. तुम उषा एवं सूय के साथ मलकर तीन सवन म आओ. (७) हंसा वव पतथो अ वगा वव सोमं सुतं म हषेवाव ग छथः. सजोषसा उषसा सूयण च व तयातम ना.. (८) हे अ नीकुमारो! हंस एवं प थक जस कार जल पर गरते ह, उसी कार तुम सोमरस पर गरो. भसा जस कार जल क ओर आता है, उसी कार तुम सोम क ओर आओ. तुम उषा एवं सूय के साथ मलकर तीन सवन म आओ. (८) येना वव पतथो ह दातये सोमं सुतं म हषेवाव ग छथः. सजोषसा उषसा सूयण च व तयातम ना.. (९) हे अ नीकुमारो! तुम यजमान के नचोड़े ए सोमरस क ओर बाज के समान तेजी से आओ. जस कार भसा पानी क ओर आता है, उसी कार तुम सोम क ओर आओ. तुम उषा एवं सूय के साथ मलकर तीन सवन म आओ. (९) पबतं च तृ णुतं चा च ग छतं जां च ध ं वणं च ध म्. सजोषसा उषसा सूयण चोज नो ध म ना.. (१०) हे अ नीकुमारो! सोमरस पओ, तृ त बनो, आओ व हम संतान एवं धन दो. तुम सूय एवं उषा के साथ मलकर हम बल दो. (१०) जयतं च तुतं च चावतं जां च ध ं वणं च ध म्. सजोषसा उषसा सूयण चोज नो ध म ना.. (११) हे अ नीकुमारो! तुम श ु को जीतो, तोता क शंसा एवं र ा करो तथा हम संतान व धन दो. तुम उषा व सूय के साथ मलकर हम बल दो. (११) हतं च श ू यततं च म णः जां च ध ं वणं च ध म्. सजोषसा उषसा सूयण चोज नो ध म ना.. (१२) हे अ नीकुमारो! तुम श ु को मारो एवं म तुम उषा व सूय के साथ मलकर हम बल दो. (१२)
के साथ चलो. हम संतान व धन दो.
म ाव णव ता उत धमव ता म व ता ज रतुग छथो हवम्. सजोषसा उषसा सूयण चा द यैयातम ना.. (१३) हे अ नीकुमारो! तुम म , व ण, धम व म त के साथ तोता क पुकार सुनने आओ. तुम उषा, सूय एवं आ द य के साथ आओ. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ र व ता उत व णुव ता म व ता ज रतुग छथो हवम्. सजोषसा उषसा सूयण चा द यैयातम ना.. (१४) हे अ नीकुमारो! तुम अं गरा, व णु एवं म त के साथ तोता क पुकार सुनने जाओ. तुम उषा, सूय एवं आ द य के साथ आओ. (१४) ऋभुम ता वृषणा वाजव ता म व ता ज रतुग छथो हवम्. सजोषसा उषसा सूयण चा द यैयातम ना.. (१५) हे अ नीकुमारो! तुम ऋभु , अ भलाषापूरक बाज एवं म त के साथ तोता क पुकार सुनने जाओ. तुम उषा, सूय एवं आ द य के साथ आओ. (१५) ज वतमुत ज वतं धयो हतं र ां स सेधतममीवाः. सजोषसा उषसा सूयण च सोमं सु वतो अ ना.. (१६) हे अ नीकुमारो! तुम तो तथा य को जीतो, रा स को मारो एवं रोग को वश म करो. तुम उषा तथा सूय के साथ मलकर यजमान का सोमरस पओ. (१६) ं ज वतमुत ज वतं नॄ हतं र ां स सेधतममीवाः. सजोषसा उषसा सूयण च सोमं सु वतो अ ना.. (१७) हे अ नीकुमारो! तुम य एवं यो ा को जीतो, रा स को मारो तथा रोग को वश म करो. तुम उषा और सूय के साथ मलकर यजमान का सोमरस पओ. (१७) धेनू ज वतमुत ज वतं वशो हतं र ां स सेधतममीवाः. सजोषसा उषसा सूयण च सोमं सु वतो अ ना.. (१८) हे अ नीकुमारो! तुम गाय एवं अ को जीतो. तुम रा स को मारो तथा रोग को वश म करो. तुम सूय तथा उषा के साथ मलकर यजमान का सोम पओ. (१८) अ े रव शृणुतं पू तु त यावा य सु वतो मद युता. सजोषसा उषसा सूयण चा ना तरोअ यम्.. (१९) हे श ु का गव न करने वाले अ नीकुमारो! जस कार तुमने अ मु न क तु त सुनी, उसी कार मुझ यावा क भी सुनो. तुम उषा और सूय के साथ मलकर ातःकाल सोमरस पओ. (१९) सगा इव सृजतं सु ु ती प यावा य सु वतो मद युता. सजोषसा उषसा सूयण चा ना तरोअ यम्.. (२०) हे श ु
का गव न करने वाले अ नीकुमारो! मुझ सोमरस नचोड़ने वाले यावा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
क शोभन तु त को तुम आभरण के समान समझो. तुम उषा और सूय के साथ मलकर ातःकाल सोमरस पओ. (२०) र म रव य छतम वराँ उप यावा य सु वतो मद युता. सजोषसा उषसा सूयण चा ना तरोअ यम्.. (२१) हे श ु का गव न करने वाले अ नीकुमारो! जस कार घोड़ा लगाम के सहारे चलता है, उसी कार मुझ सोमरस नचोड़ने वाले यावा क तु त सुनकर तुम चले आओ. तुम सूय एवं उषा के साथ मलकर ातःकाल सोमरस पओ. (२१) अवा थं न य छतं पबतं सो यं मधु. आ यातम ना गतमव युवामहं वे ध ं र ना न दाशुषे.. (२२) हे अ नीकुमारो! अपना रथ हमारे सामने लाओ, मधुर सोमरस पओ, य म आओ व सोमरस के सामने प ंचो. म र ा क अ भलाषा से तु ह बुलाता ं. तुम मुझ ह दाता को र न दो. (२२) नमोवाके थते अ वरे नरा वव ण य पीतये. आ यातम ना गतमव युवामहं वे ध ं र ना न दाशुषे.. (२३) हे नेता अ नीकुमारो! मुझ हवनशील के ारा होने वाले इस नमोवा य वाले य म तुम सोमरस पीने आओ. म र ा क अ भलाषा से तु ह बुलाता ं. तुम मुझ ह दाता को र न दान करो. (२३) वाहाकृत य तृ पतं सुत य दे वाव धसः. आ यातम ना गतमव युवामहं वे ध ं र ना न दाशुषे.. (२४) हे दे व अ नीकुमारो! तुम वाहा श द के ारा कए ए सोमरस से तृ त बनो. तुम सोमरस के सामने आओ. म र ा भलाषी बनकर तु ह बुलाता ं. तुम मुझ ह दाता को र न दो. (२४)
सू —३६
दे वता—इं
अ वता स सु वतो वृ ब हषः पबा सोमं मदाय कं शत तो. यं ते भागमधारय व ाः सेहानः पृतना उ यः सम सु ज म वाँ इ
स पते.. (१)
हे ब कम वाले इं ! तुम सोमरस नचोड़ने वाले एवं कुश बछाने वाले यजमान के र क हो. हे स जनपालक इं ! दे व ने तु हारे लए सोमरस का जो भाग न त कया है उसे सम त श ुसेना एवं वेग को परा जत करके तथा जल के बीच म वजयी बनकर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पओ. (१) ाव तोतारं मघव व वां पबा सोमं मदाय कं शत तो. यं ते भागमधारयन् व ाः सेहानः पृतना उ यः सम सु ज म वाँ इ (२)
स पते..
हे इं ! तुम तोता क र ा करो तथा सोमरस पीकर अपनी र ा करो. हे स जनपालक एवं ब कम वाले इं ! दे व ने तु हारे लए सोमरस का जो भाग न त कया है, उसे सम त श ुसेना एवं वेग को परा जत करके तथा जल के बीच म वजयी बनकर पओ. (२) ऊजा दे वाँ अव योजसा वां पबा सोमं मदाय कं शत तो. यं ते भागमधारयन् व ाः सेहानः पृतना उ यः सम सु ज म वाँ इ (३)
स पते..
हे इं ! तुम ह अ ारा दे व क तथा बल ारा अपनी र ा करते हो. हे स जनपालक तथा ब कम वाले इं ! दे व ारा सोमरस के अपने न त भाग को तुम सम त श ु एवं वेग को परा जत करके तथा जल के बीच वजयी बनकर पओ. (३) ज नता दवो ज नता पृ थ ाः पबा सोमं मदाय कं शत तो. यं ते भागमधारयन् व ाः सेहानः पृतना उ यः सम सु ज म वाँ इ (४)
स पते..
हे इं ! तुम ुलोक एवं धरती के जनक हो. हे स जनपालक तथा ब कम वाले इं ! दे व ारा सोमरस के अपने न त भाग को तुम सम त श ु एवं वेग को परा जत करके तथा जल के बीच वजयी बनकर पओ. (४) ज नता ानां ज नता गवाम स पबा सोमं मदाय कं शत तो. यं ते भागमधारयन् व ाः सेहानः पृतना उ यः सम सु ज म वाँ इ (५)
स पते..
हे इं ! तुम घोड़ तथा गाय के जनक हो. हे स जनपालक तथा ब कम वाले इं ! दे व ारा सोमरस के अपने न त भाग को तुम सम त श ु एवं वेग को परा जत करके तथा जल के बीच वजयी बनकर पओ. (५) अ ीणां तोमम वो मह कृ ध पबा सोमं मदाय कं शत तो. यं ते भागमधारयन् व ाः सेहानः पृतना उ यः सम सु ज म वाँ इ (६)
स पते..
हे पवत के वामी इं ! अ गो ीय ऋ षय के तो का आदर करो. हे स जनपालक एवं ब कम वाले इं ! दे व ारा सोमरस के अपने न त भाग को तुम सम त श ु एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वेग को परा जत करके तथा जल के वजयी बनकर पओ. (६) यावा य सु वत था शृणु यथाशृणोर ेः कमा ण कृ वतः. सद युमा वथ वमेक इ ृषा इ ा ण वधयन्.. (७) हे इं ! तुमने जस कार अ क तु तयां सुनी थ , उसी कार सोमरस नचोड़ने वाले तथा य कम करने वाले मुझ यावा ऋ ष क तु तय को भी सुनो. हे इं ! तुमने अकेले ही तु तय को बढ़ाते ए यु म सद यु क र ा क थी. (७)
सू —३७
दे वता—इं
े ं द वृ तूय वा वथ सु वतः शचीपत इ व ा भ त भः. मा य दन य सवन य वृ ह ने पबा सोम य व वः.. (१) हे श शाली इं ! यु म तुम सम त र ासाधन ारा ा ण एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान क र ा करो. हे नदार हत, व धारी एवं वृ हंता इं ! तुम मा यं दन सवन का सोमरस पओ. (१) सेहान उ पृतना अ भ हः शचीपत इ व ा भ मा य दन य सवन य वृ ह ने पता सोम य व
त भः. वः.. (२)
हे य कम के वामी एवं उ इं ! तुम श ु क सभी सेना को परा जत करके सभी र ासाधन ारा ा ण क र ा करो. हे नदार हत व धारी एवं वृ हंता इं ! तुम मा यं दन सवन करके सोमरस पओ. (२) एकराळ य भुवन य राज स शचीपत इ व ा भ त भः. मा य दन य सवन य वृ ह ने पबा सोम य व वः.. (३) हे य वामी इं ! तुम इस भवन के एकमा राजा के प म सुशो भत हो. तुम अपने सम त र ासाधन ारा ा ण क र ा करो. हे नदार हत, व धारी एवं वृ हंता इं ! तुम मा यं दन सवन म सोमरस पओ. (३) स थावाना यवय स वमेक इ छचीपत इ व ा भ त भः. मा य दन य सवन य वृ ह ने पबा सोम य व वः.. (४) हे य वामी इं ! एकमा तुम ही एक- सरे से मले ए ुलोक एवं धरती को अलग करते हो. तुम अपने सम त र ासाधन ारा ा ण क र ा करो. हे नदार हत, व धारी एवं वृ हंता इं ! तुम मा यं दन सवन म सोमरस पओ. (४) े य च युज वमी शषे शचीपत इ व ा भ त भः. म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मा य दन य सवन य वृ ह ने
पबा सोम य व
वः.. (५)
हे य वामी इं ! तुम सम त र ासाधन के ारा सारे संसार एवं योग ेम के वामी हो. हे नदार हत, व धारी एवं वृ हंता इं ! तुम मा यं दन सवन म सोमरस पओ. (५) ाय वमव स न वमा वथ शचीपत इ व ा भ त भः. मा य दन य सवन य वृ ह ने पबा सोम य व वः.. (६) हे य वामी इं ! तुम सम त र ासाधन से व को बल दे ने का कारण बनते हो एवं आ त क र ा करते हो. हे नदार हत, व धारी एवं वृ हंता इं ! तुम मा यं दन सवन म सोमरस पओ. (६) यावा य रेभत तथा शृणु यथाशृणोर ःे कमा ण कृ वतः. सद युमा वथ वमेक इ ृषा इ ा ण वधयन्.. (७) हे इं ! तुमने जस कार अ क तु तयां सुनी थ , उसी कार सोमरस नचोड़ने वाले एवं य कम करने वाले यावा ऋ ष क तु तय को भी सुनो. हे इं ! तुमने अकेले ही तु तय को बढ़ाते ए यु म सद यु क र ा क थी. (७)
सू —३८ य
दे वता—इं व अ न
य ह थ ऋ वजा स नी वाजेषु कमसु. इ ा नी त य बोधतम्.. (१)
हे इं व अ न! तुम शु समझो. (१)
एवं य के ऋ वज् हो. तुम यु
एवं य कम म मेरी तु त
तोशासा रथयावाना वृ हणापरा जता. इ ा नी त य बोधतम्.. (२) हे श ुनाशक, रथ ारा चलने वाले, वृ हंता एवं अपरा जत इं व अ न! मेरी तु तय को जानो. (२) इदं वां म दरं म वधु
भनरः. इ ा नी त य बोधतम्.. (३)
हे इं व अ न! य के नेता ने तु हारे लए पाषाण क सहायता से मधुर सोमरस तैयार कया है. तुम मेरी तु त समझो. (३) जुषेथां य म ये सुतं सोमं सध तुती. इ ा नी आ गतं नरा.. (४) हे य के नेता एवं समान प से तुत इं व अ न! य म स म लत होओ एवं य के न म नचोड़े ए सोमरस क ओर आओ. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमा जुषेथां सवना ये भह ा यूहथुः. इ ा नी आ गतं नरा.. (५) हे य के नेता इं व अ न! तुम जन सवन के ारा ह स म लत बनो. तुम यहां आओ. (५)
वहन करते हो, उ ह म
इमां गाय वत न जुषेथां सु ु त मम. इ ा नी आ गतं नरा.. (६) हे य के नेता इं व अ न! तुम गाय ी छं द म न मत इस तु त को वीकार करो एवं यहां आओ. (६) ातयाव भरा गतं दे वे भज यावसू. इ ा नी सोमपीतये.. (७) हे श ुधन जीतने वाले इं व अ न! तुम ातःकाल आने वाले दे व के साथ सोमरस पीने के लए आओ. (७) यावा अ
य सु वतोऽ ीणां शृणुतं हवम्. इ ा नी सोमपीतये.. (८)
हे इं और अ न! तुम सोमरस नचोड़ने वाले यजमान मुझ यावा क पुकार सोमरस पीने के लए सुनो. (८) एवा वाम
एवं मेरे ऋ वज्
ऊतये यथा व त मे धराः. इ ा नी सोमपीतये.. (९)
हे इं व अ न! तु ह पूवकाल म व ान ने जस कार बुलाया था, उसी कार म र ा एवं सोमपान के लए तु ह बुलाता ं. (९) आहं सर वतीवतो र ा योरवो वृणे. या यां गाय मृ यते.. (१०) म उ ह तु तशाली इं व अ न से अपनी र ा क गाय ी छं द वाले साममं बोले जाते ह. (१०)
सू —३९ अ नम तो यृ मयम नमीळा यज यै. अ नदवाँ अन ु न उभे ह वदथे क वर त र त
ाथना करता ,ं जनके लए
दे वता—अ न यं१ नभ ताम यके समे.. (१)
ऋक् मं के यो य अ न क म तु त करता ं. म य के यो य अ न क तु त करता ं. अ न हमारे य म ह ारा दे व का यजन कर. व ान् अ न धरती-आकाश के बीच तकाय करते ह. वे सभी श ु को मार. (१) य ने न सा वच तनूषु शंसमेषाम्. यराती ररा णां व ा अय अराती रतो यु छ वामुरो नभ ताम यके समे.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! हमारे शरीर पर जो श ु क भ व य म हसा होने वाली है, उसे समा त करो. तुम ह दे ने वाल के श ु को जलाओ. आ मण करने वाले सभी बु हीन श ु यहां से चले जाव. अ न सभी श ु क हसा कर. (२) अ ने म मा न तु यं कं घृतं न जु आस न. स दे वेषु च क वं स पू ः शवो तो वव वतो नभ ताम यके समे.. (३) हे अ न! म तु हारे मुख म सुखकर घी के समान सुंदर तो का हवन करता ं. तुम दे व के त क गई हमारी तु त को जानो. तुम ाचीन, सुखकर एवं दे व त हो. अ न सभी श ु क हसा कर. (३) त द नवयो दधे यथायथा कृप य त. ऊजा तवसूनां शं च यो मयो दधे व
यै दे व यै नभ ताम यके समे.. (४)
तोता जो-जो अ मांगते ह, अ न वही-वही अ दान करते ह. ह अ के ारा बुलाए गए अ न यजमान को शां तकारक एवं वषय के उपभोग से उ प सुख दे ते ह. अ न सभी दे व के आ ान म रहते ह. वे सभी श ु को मार. (४) स चकेत सहीयसा न ेण कमणा. स होता श तीनां द णा भरभीवृत इनो त च ती ं१ नभ ताम यके समे.. (५) अ नश प ु राजय संबंधी व वध कम ारा जाने जाते ह एवं सभी दे व के होता ह. पशु से घरे ए एवं श ु के वरोध म जाने वाले अ न सभी श ु का नाश कर. (५) अ नजाता दे वानाम नवद मतानामपी यम्. अ नः स वणोदा अ न ारा ूणुते वा तो नवीयसा नभ ताम यके समे.. (६) अ न दे व का ज म एवं मानव का रह य जानते ह. धन दे ने वाले अ न शोभन एवं नवीन आ त पाकर धन का ार खोल दे ते ह. वे सभी श ु को मार. (६) अ नदवेषु संवसुः स व ु य या वा. स मुदा का ा पु व ं भूमेव पु य त दे वो दे वेषु य यो नभ ताम यके समे.. (७) अ न दे व एवं य यो य जा म नवास करते ह. वे धरती के समान स तापूवक सारे काय का पोषण करते ह. दे व म य के सवा धक पा अ न सभी श ु को मार. (७) यो अ नः स तमानुषः तो व ेषु स धुषु. तमाग म प यं म धातुद युह तमम नं य ेषु पू
नभ ताम यके समे.. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सात मनु य वाले, सभी न दय म आ त एवं तीन थान वाले अ न ने मांधाता के लए श ु का अ धक हनन कया था. य म मुख अ न सभी श ु को मार. (८) अ न ी ण धातू या े त वदथा क वः. स रेकादशाँ इह य च प य च नो व ो तः प र कृतो नभ ताम यके समे.. (९) ांतदश एवं धरती आ द तीन थान म रहने वाले अ न दे व के त, ा एवं अलंकृत होकर इस य म ततीस दे व का यजन कर एवं हमारी अ भलाषा पूरी कर. अ न सभी श ु को मार. (९) वं नो अ न आयुषु वं दे वेषु पू व व एक इर य स. वामापः प र ुतः प र य त वसेतवो नभ ताम यके समे.. (१०) हे अ न! तुम अकेले होते ए भी मानो दे व के वामी हो. हे सेतु प अ न! तु हारे चार तरफ जल रहता है. तुम सभी श ु को मारो. (१०)
सू —४०
दे वता—इं व अ न
इ ा नी युवं सु नः सह ता दासथो र यम्. येन हा सम वा वीळु च सा हषीम नवनेव वात इ भ ताम यके समे.. (१) हे इं व अ न! तुम श ु को हराते ए हम धन दो. अ न वायु क सहायता से जस कार वन को जलाते ह, उसी कार लोग अ न ारा दए धन क सहायता से श ु को हराते ह. अ न सभी श ु को मार. (१) न ह वां व यामहेऽथे म जामहे श व ं नृणां नरम्. स नः कदा चदवता गमदा वाजसातये गमदा मेधसातये नभ ताम यके समे.. (२) हे इं व अ न! हम तुमसे धन क याचना नह करते. हम तो सबके नेता एवं सबसे अ धक श शाली इं का य करते ह. इं कभी अ दे ने के लए और कभी य ात करने के लए घोड़े पर चढ़कर आते ह. इं एवं अ न सभी श ु को मार. (२) ता ह म यं भराणा म ा नी अ ध तः. ता उ क व वना कवी. पृ माना सखीयते सं धीतम ुतं नरा नभ ताम यके समे.. (३) स इं एवं अ न सं ाम के बीच म नवास करते ह. हे ांतदश नेताओ! क वजन ारा पूछने पर तु ह म ता के इ छु क यजमान ारा कए ए य कम क ा या करते हो. इं एवं अ न सभी श ु का नाश कर. (३) अ यच नभाकव द ा नी यजसा गरा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ययो व मदं जग दयं ौः पृ थवी म १प थे बभृतो वसु नभ ताम यके समे.. (४) हे नाभाक! य और तु त के ारा इं और अ न क पूजा करो. इ ह म सारा संसार थत है और इ ह क गोद म ुलोक एवं वशाल धरती धन धारण करते ह. ये दोन सभी श ु को न कर. (४) ा ण नभाकव द ा न या मर यत. या स तबु नमणवं ज बारमपोणुत इ ईशान ओजसा नभ ताम यके समे.. (५) नाभाक जैसे ऋ ष इं एवं अ न क तु त करते ह. वे दोन सात जड़ एवं बंद ार वाले सागर को अपने तेज ारा ढक लेते ह. इं अपने तेज के कारण सबके वामी ह. इं एवं अ न सभी श ु को मार. (५) अ प वृ पुराणवद् तते रव गु पतमोजो दास य द भय. वयं तद य स भृतं व व े ण व भजेम ह नभ ताम यके समे.. (६) हे इं ! पुराना मनु य जैसे लता क बाहर नकली ई शाखा को काटता है, उसी कार तुम हमारे श ु को काटो एवं दास नामक रा स का वनाश करो. हम इं क कृपा से दास ारा एक त धन का भोग करगे. इं और अ न हमारे सभी श ु को मार. (६) य द ा नी जना इमे व य ते तना गरा. अ माके भनृ भवयं सास ाम पृत यतो वनुयाम वनु यतो नभा ताम यके समे.. (७) जो लोग धन और तु तय ारा इं तथा अ न को बुलाते ह, उनके म य हम नाभाकगो ीय लोग सेवा क इ छा करते ए अपने लोग को साथ लेकर श ु को परा जत करगे एवं तु त करने वाल को अपनाएंगे. इं और अ न सभी श ु को न कर. (७) या नु ेताववो दव उ चरात उप ु भः. इ ा योरनु तमुहाना य त स धवो या स ब धादमु चतां नभ ताम यके समे.. (८) जो ेत वण के इं एवं अ न अपनी द त ारा नीचे से ुलोक से ऊपर जाते ह, उ ह के य कम को अनु ान करते ए यजमान ह धारण करते ह. उ ह ने न दय को बंधन से छु ड़ाया था. वे सभी श ु को मार. (८) पूव इ ोपमातयः पूव त श तयः सूनो ह व य ह रवः. व वो वीर यापृचो या नु साध त नो धयो नभ ताम यके समे.. (९) हे ह र नामक घोड़ वाले, रे णाक ा, स करने वाले, वीर एवं धनी इं ! तु हारी समानता करने वाली ब त सी व तुएं ह. तु हारी ाचीन तु तयां हमारी बु को पूण कर. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं एवं अ न सभी श ु
को न कर. (९)
तं शशीता सुवृ भ वेषं स वानमृ मयम्. उतो नु च ओजसा शु ण या डा न भेद त जेष ववतीरपो नभ ताम यके समे.. (१०) हे तोताओ! द त, धन दे ने वाले व ऋक् मं के यो य इं का सं कार शोभन- तु तय ारा करो. अपनी श ारा शु ण असुर क संतान का नाश करने वाले इं वग का जल जीतते ह. इं एवं अ न सभी श ु को मार. (१०) तं शशीता व वरं स यं स वानमृ वयम्. उतो नु च ओहत आ डा शु ण य भेद यजैः ववतीरपो नभ ताम यके समे.. (११) हे तोताओ! शोभन-य वाले वनाशर हत, धनसंप एवं ऋतु के अनुकूल य का सं कार तु तय ारा करो. य के अ भमुख जाने वाले इं शु ण असुर क संतान को मारते ह एवं वग का जल जीतते ह. इं एवं अ न सभी श ु को मार. (११) एवे ा न यां पतृव वीयो म धातृवद र वदवा च. धातुना शमणा पातम मान् वयं याम पतयो रयीणाम्.. (१२) मने अपने पता मांधाता एवं अं गरा ऋ ष के समान नवीन तु तय को बोला है. वे तीन कमर वाले मकान को दे कर हमारी र ा कर. हम धन के वामी ह . (१२)
सू —४१
दे वता—व ण
अ मा ऊ षु भूतये व णाय म योऽचा व रे यः. यो धीता मानुषाणां प ो गा इव र त नभ ताम यके समे.. (१) हे तोता! अ धक धन पाने के लए व ण एवं अ धक व ान् म त क तु त करो. वे गाय के समान ही मानव के पशु क र ा करते ह. व ण हमारे सभी श ु को मार. (१) तमू षु समना गरा पतॄणां च म म भः. नाभाक य श त भयः स धूनामुपोदये स त वसा स म यमो नभ ताम यके समे.. (२) म शोभन- तु त ारा व ण तथा तो ारा पतर क शंसा करता ं. म नाभाक ऋ ष ारा न मत शंसा से व ण क तु त करता ं. व ण न दय के समीप उ दत होते ह. उनक सात ब हन ह, जन म वे बीच के ह. वे सभी श ु को मार. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स पः प र ष वजे यू१ ो मायया दधे स व ं प र दशतः. त य वेनीरनु तमुष त ो अवधय भ ताम यके समे.. (३) व ण रा य का आ लगन करते ह. दशनीय व ण उ त करते ए अपनी माया ारा संसार को धारण करते ह. व ण के त क कामना करने वाले ातः, दोपहर एवं सं या तीन काल के य को बढ़ाते ह. वे सभी श ु को समा त कर. (३) यः ककुभो नधारयः पृ थ ाम ध दशतः. स माता पू पदं त ण य स यं स ह गोपा इवेय नभ ताम यके समे.. (४) जो व ण पृ वी के ऊपर दशनीय बनकर दशा को धारण करते ह, वे ाचीन वग एवं हमारे वचरण थान धरती के नमाता ह. वे वामी बनकर गाय क र ा करते ह. वे हमारे सभी श ु को मार. (४) यो धता भुवनानां य उ ाणामपी या३ वेद नामा न गु ा. स क वः का ा पु पं ौ रव पु य त नभ ताम यके समे.. (५) जो व ण भुवन को धारण करने वाले एवं र मय तथा गुहा म छपे नाम को जानते ह, वे ही बु मान् व ण ुलोक के समान क वकृत का का पोषण करते ह. वे सभी श ु को समा त कर. (५) य मन् व ा न का ा च े ना भ रव ता. तं जूती सपयत जे गावो न संयुजे युजे अ ाँ अयु त नभ ताम यके समे.. (६) हे मेरे सेवको! तीन थान म रहने वाले व ण क शी सेवा करो. जस कार ना भ म प हया थत रहता है उसी कार सब का व ण म थत रहते ह. जस कार गाय को गोशाला म ले जाते ह, उसी कार हमारे श ु घोड़ को रथ म जोड़ते ह. व ण सब श ु को मार. (६) य आ व क आशये व ा जाता येषाम्. प र धामा न ममृश ण य पुरो गये व े दे वा अनु तं नभ ताम यके समे.. (७) सारी दशा को ा त करने वाले व ण चार ओर फैले ए श ुनगर को न करते ह. सब दे वता व ण के रथ के आगे य कम का अनु ान करते ह. व ण सब श ु को मार. (७) स समु ो अपी य तुरो ा मव रोह त न यदासु यजुदधे. स माया अ चना पदा तृणा ाकमा ह भ ताम यके समे.. (८) समु का
प धारण करने वाले व ण छपकर शी ही सूय के समान वग म प ंचते
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह एवं इन दशा म जा को दान दे ते ह. व ण द तशाली थान ारा माया का नाश करते ह एवं वग पर आरोहण करते ह. व ण सब श ु का नाश कर. (८) यय त े ा वच णा त ो भूमीर ध तः. रा ण प तुव ण य ुवं सदः स स ताना मर य त नभ ताम यके समे.. (९) अंत र म नवास करने वाले जस व ण के तीन त े तेज तीन भू मय को व तृत करते ह, उस व ण का थान व ु है. व ण सात न दय के वामी ह. वे सभी श ु को मार. (९) यः ेताँ अ ध न णज े कृ णाँ अनु ता. स धाम पू ममे यः क भेन व रोदसी अजो न (१०)
ामधारय भ ताम यके समे..
जो व ण अपनी करण को दन म ेत एवं रात म काली बना दे ते ह, उ ह ने अपने कम के उ े य से ुलोक, अंत र एवं धरती को बनाया है. सूय जस कार ुलोक को धारण करते ह, उसी कार व ण अंत र के ारा ावा-पृ थवी को धारण करते ह. व ण सभी श ु को मार. (१०)
सू —४२
दे वता—व ण आ द
अ त नाद् ामसुरो व वेदा अ ममीत व रमाणं पृ थ ाः. आसीद ा भुवना न स ाड् व े ा न व ण य ता न.. (१) सम त धन के वामी एवं श शाली व ण ने ुलोक को धारण कया, धरती के प रमाण को नापा एवं सभी भुवन के स ाट् बनकर बैठे. व ण के सभी काय इसी कार के ह. (१) एवा व द व व णं बृह तं नम या धीरममृत य गोपाम्. स नः शम व थं व यंस पातं नो ावापृ थवी उप थे.. (२) हे तोता! इस कार महान् व ण क वंदना करो. अमृत के र क एवं धीर व ण को नम कार करो. व ण हम तीन मं जल वाला मकान द. व ण क गोद म वतमान हम लोग क र ा ावा-पृ थवी कर. (२) इमां धयं श माण य दे व तुं द ं व ण सं शशा ध. यया त व ा रता तरेम सुतमाणम ध नावं हेम.. (३) हे व ण दे व! मुझ अनु ानक ा के य कम,
ान एवं बल को तेज बनाओ. हम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सरलतापूवक पार प ंचने वाली ऐसी नाव पर चढ़गे, जसके सहारे हम सभी पाप के पार जा सक. (३) आ वां ावाणो अ ना धी भ व अचु यवुः. नास या सोमपीतये नभ ताम यके समे.. (४) हे स य प वाले अ नीकुमारो! व ान् ऋ वज् एवं सोमरस नचोड़ने के काम आने वाले प थर अपने-अपने कम के ारा सोमरस पान हेतु तु हारे सामने आते ह. अ नीकुमार हमारे श ु को मार. (४) यथा वाम र ना गी भ व ो अजोहवीत्. नास या सोमपीतये नभ ताम यके समे.. (५) हे स य प अ नीकुमारो! व ान् अ ऋ ष ने अपनी तु तय ारा तु ह जस कार सोमरस पीने के लए बुलाया था, उसी कार म भी बुलाता ं. अ नीकुमार सभी श ु को मार. (५) एवा वाम ऊतये यथा व त मे धराः. नास या सोमपीतये नभ ताम यके समे.. (६) हे स य प अ नीकुमारो! मेधा वय ने तु ह जस कार सोमरस पीने के लए बुलाया था, उसी कार म अपनी र ा के लए बुलाता ं. अ नीकुमार सब श ु को मार. (६)
दे वता—अ न
सू —४३
इमे व य वेधसोऽ नेर तृतय वनः. गरः तोमास ईरते.. (१) हमारे तोता बु करते ह. (१) अ मै ते
मान्, वधाता एवं यजमान क हसा न करने वाले अ न क तु त
तहयते जातवेदो वचषणे. अ ने जना म सु ु तम्.. (२)
हे जातवेद एवं वशेष ा अ न! तुम मुझे दान दे ने वाले हो. म तु हारे लए शोभन तु तय का नमाण करता ं. (२) आरोका इव घेदह त मा अ ने तव वषः. द (३)
वना न ब स त.. (३)
हे अ न! तु हारी तीखी करण आरोचमान पशु
के समान दांत से वन को खाती ह.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हरयो धूमकेतवो वातजूता उप हरणशील, वायु जाते ह. (४)
व. यत ते वृथम नयः.. (४)
ारा े रत एवं धूम पी वज वाले अ न अंत र
एते ये वृथम नय इ सः सम अलग-अलग
म अलग-अलग
त. उषासा मव केतवः.. (५)
व लत ये अ नयां उषा
के झंड के समान दखाई दे ती ह. (५)
कृ णा रजां स प सुतः याणे जातवेदसः. अ नय ोध त
म.. (६)
जातवेद अ न जस समय धरती पर सूखी लक ड़य को जलाते ह, तब अ न के गमन के समय धरती क धूल काली हो जाती है. (६) धा स कृ वान ओषधीब सद नन वाय त. पुनय त णीर प.. (७) अ न ओष धय को अ समझकर भ ण करते ए शांत नह होते. वे युवा ओष धय क ओर जाते ह. (७) ज ा भरह न मद चषा ज
णाभवन्. अ नवनेषु रोचते.. (८)
अ न अपनी वाला पी जीभ के ारा वन प तय को झुकाते ह एवं अपने तेज के ारा उ ह खाकर वन म सुशो भत होते ह. (८) अ व ने स ध व सौषधीरनु
यसे. गभ स
ायसे पुनः.. (९)
हे अ न! जल म तु हारे वेश करने का थान है. तुम ओष धय को रोकते हो एवं उ ह ओष धय म गभ प म थत होते हो. (९) उद ने तव तद् घृतादच रोचत आ तम्. नसानं जु ो३ मुखे.. (१०) हे अ न! तुम घृत होती है. (१०)
ारा आ त
ुच का मुंह चाटते हो एवं तु हारी वाला सुशो भत
उ ा ाय वशा ाय सोमपृ ाय वेधसे. तोमै वधेमा नये.. (११) खाने यो य ह व वाले, अ भलाषा करने यो य अ वाले, सोम एवं घृत से यु एवं अ भलाषा के वधाता अ न क सेवा हम तु तय ारा करते ह. (११) उत वा नमसा वयं होतवरे य तो. अ ने स म
पीठ वाले
रीमहे.. (१२)
हे दे व को बुलाने वाले एवं वरणीय जा वाले अ न! हम स मधा एवं नम कार के ारा तुमसे याचना करते ह. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत वा भृगुव छु चे मनु वद न आ त. अङ् गर व वामहे.. (१३) हे शु एवं बुलाए गए अ न! हम भृगु ऋ ष, अं गरा ऋ ष एवं राजा मनु के समान तु ह बुलाते ह. (१३) वं
ने अ नना व ो व ेण स सता. सखा स या स म यसे.. (१४)
हे व ान्, साधु एवं सखा अ न! तुम व ान्, साधु एवं सखा अ नय क सहायता से जलते हो. (१४) स वं व ाय दाशुषे र य दे ह सह णम्. अ ने वीरवती मषम्.. (१५) हे स दो. (१५)
अ न! तुम बु
मान् ह दाता को हजार धन एवं वीर संतान से यु
धन
अ ने ातः सह कृत रो हद शु च त. इमं तोमं जुष व मे.. (१६) हे यजमान के ाता, श के ारा उ प रो हत नामक अ वाले अ न! तुम मेरे इस तो को वीकार करो. (१६) उत वा ने मम तुतो वा ाय
के वामी एवं शु कम
तहयते. गो ं गाव इवाशत.. (१७)
हे अ न! मेरी तु तयां तु हारे पास उसी कार जा रही ह, जस कार उ सुक गाएं रंभाती ई गोशाला म बछड़ के पास जाती ह. (१७) तु यं ता अ र तम व ाः सु तयः पृथक्. अ ने कामाय ये मरे.. (१८) हे अं गरा म े अ न! सारी जाएं अपनी अ भलाषापू त के लए अलग-अलग तु हारे पास आती ह. (१८) अ नं धी भमनी षणो मे धरासो वप तः. अ स ाय ह वरे.. (१९) वा भमानी, मेधावी एवं व ान् यजमान अ पाने के लए अ न को य कम स करते ह. (१९) तं वाम मेषु वा जनं त वाना अ ने अ वरम्. व
होतारमीळते.. (२०)
हे श शाली, ह वहन करने वाले, दे व को बुलाने वाले एवं स य शाला म य का व तार करने वाले यजमान तु हारी तु त करते ह. (२०) पु
ारा
अ न!
ा ह स ङ् ङ स वशो व ा अनु भुः. सम सु वा हवामहे.. (२१)
हे अ न! य क तुम भु एवं ब त से दे श म सभी जा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को समान
प से दे खने
वाले हो, इस लए हम तु ह यु
म बुलाते ह. (२१)
तमी ळ व य आ तोऽ न व ाजते घृतैः. इमं नः शृणव वम्.. (२२) घृत के साथ आ तयां पाकर वराजमान एवं हमारे इस आ ान को सुनने वाले अ न क तु त करो. (२२) तं वा वयं हवामहे शृ व तं जातवेदसम्. अ ने न तमप (२३)
षः.. (२३)
हे अ न! तुम जातवेद, श ुनाशक एवं हमारी पुकार सुनने वाले हो. हम तु ह बुलाते ह. वशां राजानम तम य ं धमणा ममम्. अ नमीळे स उ वत्.. (२४)
म जा के राजा, अद्भुत एवं य कम के अ य तु त सुन. (२४)
अ न क तु त करता ं. वे मेरी
अ नं व ायुवेपसं मय न वा जनं हतम्. स तं न वाजयाम स.. (२५) हम सवगत-श वाले, बलशाली एवं मानव के समान सबके हतकारी अ न को अपनी तु तय ारा अ के समान श शाली बनाते ह. (२५) न मृ ा यप
षो दहन् र ां स व हा. अ ने त मेन द द ह.. (२६)
हे अ न! तुम हसक और े षय को न करते ए एवं रा स को जलाते ए ती ण तेज के ारा द त बनो. (२६) यं वा जनास इ धते मनु वद र तम. अ ने स बो ध मे वचः.. (२७) हे अं गरा म े अ न! तु ह जस कार मनु ने लोग जलाते ह. तुम मेरी तु त जानो. (२७)
व लत कया था, उसी कार ये
यद ने द वजा अ य सुजा वा सह कृत. तं वा गी भहवामहे.. (२८) हे अ न! तुम वगलोक म उ प , अंत र तु त ारा बुलाते ह. (२८)
म उ प एवं श
से उ प हो. हम तु ह
तु यं घे े जना इमे व ाः सु तयः पृथक्. धा स ह व य वे.. (२९) (२९)
हे अ न! ये सब सेवक एवं शोभन जाएं तु हारे भ ण के लए अलग अ दे ती ह.
ते घेद ने वा योऽहा व ा नृच सः. तर तः याम गहा.. (३०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! हम तु हारे लए ही शोभन कम वाले एवं सभी दवस म त व गम थान को पार करगे. (३०) अ नं म ं पु
यं शीरं पावकशो चषम्.
ा बनकर
म े भरीमहे.. (३१)
हम स , ब त के य, य म सोने वाले एवं प व द त वाले अ न से मनोहर तथा मादक तो ारा याचना करते ह. (३१) स वम ने वभावसुः सृज सूय न र म भः. शध तमां स ज नसे.. (३२) हे द त पी धन वाले अ न! तुम सूय के समान करण अंधकार का नाश करते हो. (३२)
ारा अपनी श
बढ़ाते ए
त े सह व ईमहे दा ं य ोपद य त. वद ने वाय वसु.. (३३) हे श शाली अ न! तु हारा जो वरण एवं दान यो य धन ीण नह होता, हम उसी क याचना करते ह. (३३)
दे वता—अ न
सू —४४
स मधा नं व यत घृतैब धयता त थम्. आ मन् ह ा जुहोतन.. (१) हे ऋ वजो! अ त थ के समान य अ न क स मधा ारा सेवा करो, उ ह घृत ारा जगाओ. व लत अ न म ह का हवन करो. (१) अ ने तोमं जुष व मे वध वानेन म मना. सू
हे अ न! तुम मेरे तु त मं क कामना करो. (२)
त सू ा न हय नः.. (२)
को वीकार करो, इस मनोहर तो
ारा बढ़ो एवं हमारे
अ नं तं पुरो दधे ह वाहमुप ुवे. दे वाँ आ सादया दह.. (३) म दे व के त एवं ह वहन करने वाले अ न को अपने सामने था पत करता ं तथा उनक तु त करता ं. वे इस य म दे व को बैठाव. (३) उ े बृह तो अचयः स मधान य द दवः. अ ने शु ास ईरते.. (४) हे द तशाली अ न! जब तुम करण ऊपर उठती ह. (४)
व लत होते हो, तब तु हारी बढ़
उप वा जु ो३ मम घृताचीय तु हयत. अ ने ह ा जुष व नः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ई एवं वलंत
हे अ भलाषा करने वाले अ न! मेरा घृत धारण करने वाला ुच तु हारे पास जावे. तुम हमारे ह को वीकार करो. (५) म ं होतारमृ वजं च भानुं वभावसुम्. अ नमीळे स उ वत्.. (६) यु
म स , दे व को बुलाने वाले, ऋ वज्, व च काश वाले एवं द त पी धन से अ न क तु त करता ं. अ न मेरी तु त सुन. (६) नं होतारमी
ं जु म नं क व तुम्. अ वराणाम भ यम्.. (७)
म ाचीन, दे व को बुलाने वाले, तु तयो य, से वत, काय पूण करने वाले एवं य आ य लेने वाले अ न क तु त करता ं. (७)
का
जुषाणो अ र तमेमा ह ा यानुषक्. अ ने य ं नय ऋतुथा.. (८) हे अं गरा म े अ न! तुम ऋतु के अनुसार पूण करो. (८)
म से हमारे ह
का सेवन करो एवं हमारे य
को
स मधान उ स य शु शोच इहा वह. च क वान् दै ं जनम्.. (९) हे सेवा वीकार करने वाले एवं उ वल द तयु अ न! तुम दे व के भ जन को जानते ए इस य म आओ. (९)
व लत होते ए एवं
व ं होतारम हं धूमकेतुं वभावसुम्. य ानां केतुमीमहे.. (१०) यु
हम मेधावी, दे व को बुलाने वाले, श ुतार हत, धूम पी वजा वाले, द त पी धन से एवं य क पताका के समान अ न से अपनी अ भल षत व तुएं मांगते ह. (१०) अ ने न पा ह न वं
(११)
त म दे व रीषतः. भ ध े षः सह कृत.. (११)
हे श
ारा उ प अ न! हसक से हमारी र ा करो एवं श ु
अ नः
नेन म मना शु भान त वं१ वाम्. क व व ेण वावृधे..(१२)
बु मान् अ न ाचीन एवं सुंदर तो मेधा वय के साथ बढ़ते ह. (१२)
का भेदन करो.
ारा अपने शरीर को सुशो भत बनाते ए
ऊज नपातमा वेऽ नं पावकशो चषम्. अ म य े व वरे.. (१३) म अ के पु एवं प व द त वाले अ न को इस हसाशू य य म बुलाता ं. (१३) स नो म मह वम ने शु े ण शो चषा. दे वैरा स स ब ह ष.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म के पूजनीय अ न! तुम उ पर बैठते हो. (१४)
वल तेज से यु
होकर दे व के साथ य के कुश
यो अ नं त वो३ दमे दे वं मतः सपय त. त मा इ दय सु.. (१५) जो मनु य धन ा त के लए अपने घर म अ न क सेवा करता है, अ न उसीको धन दे ते ह. (१५) अ नमूधा दवः ककु प तः पृ थ ा अयम्. अपां रेतां स ज व त.. (१६) दे व के म तक, ुलोक के कूबड़ और धरती के प त अ न जल के ा णय को स करते ह. (१६) उद ने शुचय तव शु ा ाज त ईरते. तव योत यचयः.. (१७) हे अ न! तु हारी नमल, शु लवण और द त वाली करण तु हारे तेज को े रत करती ह. (१७) ई शषे वाय य ह दा या ने वप तः. तोता यां तव शम ण.. (१८) हे वग के प त अ न! तुम वरणीय एवं दे ने यो य धन के वामी हो. म सुख के न म तु हारा तोता बनूं. (१८) वाम ने मनी षण वां ह व त च
भः. वां वध तु नो गरः.. (१९)
हे अ न! मनीषी लोग तु हारी तु त करते ए य कम हमारी तु तयां तु ह बढ़ाव. (१९)
ारा तु ह स
करते ह.
अद ध य वधावतो त य रेभतः सदा. अ नेः स यं वृणीमहे.. (२०) हम हसार हत, श चाहते ह. (२०)
शाली, दे व के त एवं दे व क तु त करने वाले अ न क म ता
अ नः शु च ततमः शु च व ः शु चः क वः. शुची रोचत आ तः.. (२१) अ तशय शु कम वाले, शु बुलाने पर सुशो भत होते ह. (२१)
मेधावी, प व व य काय समा त करने वाले अ न
उत वा धीतयो मम गरो वध तु व हा. अ ने स य य बो ध नः.. (२२) (२२)
हे अ न! मेरी तु तयां एवं य कम तु ह सदा बढ़ाव. तुम हमारी म ता को सदा जानो.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यद ने यामहं वं वं वा घा या अहम्. यु े स या इहा शषः.. (२३) हे अ न! य द म तु हारे समान ब त धन वाला हो जाऊं और तुम मेरे समान द र बन जाओ, तब तु हारा आशीवाद स य हो. (२३) वसुवसुप त ह कम य ने वभावसुः. याम ते सुमताव प.. (२४) हे अ न! तुम द त पी धन वाले, धन वामी व नवास थान दे ने वाले हो. हम तु हारे अनु ह म रह. (२४) अ ने धृत ताय ते समु ायेव स धवः. गरो वा ास ईरते.. (२५) हे य कम धारण करने वाले अ न! मेरी तु तयां तु हारे समीप उसी कार प ंचती ह, जस कार न दयां समु के पास जाती ह. (२५) युवानं व प त क व व ादं पु वेपसम्. अ नं शु भा म म म भः.. (२६) म तु तय ारा न यत ण, जा के वामी, क व, सभी ह वय को खाने वाले एवं ब त कम करने वाले अ न को सुशो भत करता ं. (२६) य ानां र ये वयं त मज भाय वीळवे. तोमै रषेमा नये.. (२७) हम य के नेता, तीखी वाला चाहते ह. (२७)
वाले एवं श
शाली अ न के लए तु तयां करना
अयम ने वे अ प ज रता भूतु स य. त मै पावक मृळय.. (२८) हे सेवा यो य एवं प व क ा अ न! हमारा तोता तु हारी तु त करे और तुम उसे सुख दो. (२८) धीरो
यद्मसद् व ो न जागृ वः सदा. अ ने द दय स
व.. (२९)
हे अ न! तुम धीर, ह व म थत रहने वाले एवं मेधावी के समान जा सदा जागृत रहते हो एवं सदा अंत र म द त रहते हो. (२९) पुरा ने
रते यः पुरा मृ े यः कवे.
के हत म
ण आयुवसो तर.. (३०)
हे क व एवं वासदाता अ न! हम पा पय एवं हसक के सामने से बचाकर हमारी उमर बढ़ाओ. (३०)
सू —४५
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ घा ये अ न म धते तृण त ब हरानुषक्. येषा म ो युवा सखा.. (१) युवा इं जनके म ह, वे ऋ ष मलकर अ न को भली कार जाते ह एवं कुश बछाते ह. (१) बृह
द म एषां भू र श तं पृथुः व ः. येषा म ो युवा सखा.. (२)
युवा इं जनके म ह, उन ऋ षय क स मधाएं बड़ी ह, तो ब त ह और य महान् ह. (२) अयु श
इ ुधा वृतं शूर आज त स व भः. येषा म ो युवा सखा.. (३)
युवा इं जनके म ह, ऐसे यो ा न होने पर भी श ु से वीरतापूवक उ ह झुकाते ह. (३) आ बु दं वृ हा ददे जातः पृ छ
ारा घर कर अपनी
मातरम्. क उ ाः के ह शृ वरे.. (४)
इं ने उ प होते ही बाण उठा लया और अपनी माता से पूछा—“उ एवं श स कौन है?” (४)
ारा
त वा शवसी वदद् गराव सो न यो धषत्. य ते श ु वमाचके.. (५) हे इं ! श शा लनी माता ने तु ह उ र दया—“जो तु हारे साथ श ुता का आचरण करता है वह पवत पर दशनीय हाथी के समान यु करता है.” (५) उत वं मघव छृ णु य ते व
वव
तत्. य ळया स वीळु तत्.. (६)
हे धन वाले इं ! तुम हमारी तु त सुनो. तु हारा तोता जो चाहता है, उसे तुम वही दे ते हो. तुम जसे ढ़ करते हो, वह अव य ढ़ हो जाता है. (६) यदा ज या या जकृ द ः व यु प. रथीतमो रथीनाम्.. (७) यु क ा एवं शोभन अ वाले अ भलाषी इं जब यु सबसे धान होते ह. (७) व षु व ा अ भयुजो व
करने जाते ह तब वे र थय म
व व यथा वृह. भवा नः सु व तमः.. (८)
हे व धारी इं ! तुम इस कार बढ़ो क तुमसे सारी जा वृ लए सवा धक अ दे ने वाले बनो. (८)
को ा त हो. तुम हमारे
अ माकं सु रथं इ ः कृणोतु सातये. न यं धूव त धूतयः.. (९) वे इं हम अभी फल दे ने के लए अपना सुंदर रथ हमारे सामने था पत कर, जनक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हसा हसक भी न कर सक. (९) वृ याम ते प र
षोऽरं ते श
दावने. गमेमे द
हे इं ! हम याचना करने के लए तु हारे श ु पया त दाता इं ! हम तु हारे पास जाव. (१०) शनै
गोमतः.. (१०) के पास न जाव. हे गाय वाले एवं
तो अ वोऽ ाव तः शत वनः. वव णा अनेहसः.. (११)
हे व धारी इं ! तुम धीरे-धीरे जाते ए इन घोड़ वाले, अ धक धनसंप , चतुर एवं उप वर हत हो. (११) ऊ वा ह ते दवे दवे सह ा सूनृता शता. ज रतृ यो वमंहते.. (१२) हे इं ! यजमान तु हारे तोता के लए दे ता है. (१२) व ा ह वा धन य म आदा रणं यथा गयम्.. (१३)
त दन सैकड़ एवं हजार उ म सुखसाधन
हा चदा जम्.
हे इं ! हम तु ह धन जीतने वाला, ढ़ श ु को भी भ न करने वाला, श ु छ नने वाला एवं घर के समान र ा करने वाला जानते ह. (१३)
का धन
ककुहं च वा कवे म द तु धृ ण व दवः. आ वा प ण यद महे.. (१४) हे क व, श ुपराभवकारी एवं व णकवृ वाले इं ! जब हम तुमसे अभी व तु क याचना कर, उस समय हमारा सोम बैल क ठाट के समान ऊंचा होकर तु ह स करे. (१४) य ते रेवाँ अदाशु रः ममष मघ ये. त य नो वेद आ भर.. (१५) हे इं ! जो धनवान् होकर तुम धन वामी के लए दान नह करता अथवा तु हारी नदा करता है, उसका धन हमारे पास ले आओ. (१५) इम उ वा व च ते सखाय इ
सो मनः. पु ाव तो यथा पशुम्.. (१६)
हे इं ! सोमरस नचोड़ने वाले मेरे वे म तु ह उसी कार दे खते ह, जस कार घास लाने वाले लोग पशु को दे खते ह. (१६) उत वाब धरं वयं ु कण स तमूतये. रा दह हवामहे.. (१७) हे ब धरतार हत एवं सुनने म स म कान वाले इं ! य म र ा के न म तु ह हम र से बुलाते ह. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य छु ूया इमं हवं मष च
या उत. भवेरा पन अ तमः.. (१८)
हे इं ! हमारी यह पुकार सुनो, अपना बल श ु सवा धक बंधु बनो. (१८) य च
ते अ प
के लए असहनीय बनाओ एवं हमारे
थजग वांसो अम म ह. गोदा इ द
बो ध नः.. (१९)
हे इं ! जब हम द र ता से परेशान होकर तु हारे पास जाव और तु त कर, उस समय तुम हम गाय दे ने के लए जागना. (१९) आ वा र भं न ज यो रर मा शवस पते. उ म स वा सध थ आ.. (२०) हे बलप त इं ! कमजोर बूढ़ा जस कार लकड़ी का सहारा लेता है, उसी कार हम तु ह ा त कर एवं य म तु हारी कामना कर. (२०) तो म ाय गायत पु नृ णाय स वने. न कय वृ वते यु ध.. (२१) जस इं को यु तो पढ़ो. (२१)
म कोई नह हरा सकता, उस दानशील व ब त धन वाले इं के लए
अ भ वा वृषभा सुते सुतं सृजा म पीतये. तृ पा
ुही मदम्.. (२२)
हे श शाली इं ! सोमरस नचुड़ जाने पर म सोमरस पीने के लए तु ह दे ता ं. तुम तृ त बनो एवं नशीला सोमरस पओ. (२२) मा वा मूरा अ व यवो मोपह वान आ दभन्. माक
षो वनः.. (२३)
हे इं ! बु हीन लोग अपनी र ा क इ छा से तु हारी हसा न कर और न तु हारी हंसी उड़ाव. उन ा ण े षय के पास मत जाना. (२३) इह वा गोपरीणसा महे म द तु राधसे. सरो गौरो यथा पब.. (२४) हे इं ! लोग महान् धन पाने के लए तु ह गाय के ध से मले सोमरस ारा स कर. तुम गौरमृग के समान सोमरस पओ. (२४) या वृ हा पराव त सना नवा च चु युवे. ता संस सु
वोचत.. (२५)
वृ हंता इं ने र दे श म जो सनातन एवं नवीन धन दया है, उसे व ान् लोग सभा म बताव. (२५) अ पबत् क वः सुत म ः सह बा े . अ ादे द प यम्.. (२६) हे इं ! तुमने क ऋ ष ारा नचोड़ा गया सोमरस पया एवं उनके श ु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को मारा.
इस अवसर पर इं का पु षाथ उद्द त आ. (२६) स यं त ुवशे यदौ वदानो अ वा यम्.
ानट् तुवणे श म.. (२७)
हे इं ! तुमने तुवश और य नामक राजा के स य कम को स चा जानकर उनक स ता के लए उनके श ु अ वा य को सं ाम म घेरा था. (२७) तर ण वो जनानां दं वाज य गोमतः. समानमु
शं सषम्.. (२८)
हे तोताओ! तु हारे पु -पौ ा द के तारक, श ुनाशक, गाय से यु सबके त समान इं क म तु त करता ं. (२८)
अ दे ने वाले एवं
ऋभु णं न वतव उ थेषु तु यावृ ् धम्. इ ं सोमे सचा सुते.. (२९) तो उ चारण के साथ सोमरस नचुड़ जाने पर एवं उ थ मं का उ चारण आरंभ होने पर म धन पाने के लए महान् तथा जलवषक इं क शंसा करता ं. (२९) यः कृ त द
यो यं
शोकाय ग र पृथुम्. गो यो गातुं नरेतवे.. (३०)
जन इं ने लोक ऋ ष क ाथना पर जल नकलने के ार समान एवं व तृत मेघ को व छ कया था, उ ह जल के नकलने के लए माग बनाया था. (३०) य धषे मन य स म दानः े दय स. मा त क र
मृळय.. (३१)
हे इं ! तुम स होकर जो शुभ व तु धारण करते हो, जसक पूजा करते हो, जो दे ते हो, वह हमारे लए य नह करते? तुम हम सुखी करो. (३१) द ं च
वावतः कृतं शृ वे अ ध
म. जगा व
ते मनः.. (३२)
हे इं ! तु हारे समान थोड़ा भी कम करने वाला तु हारा मन मेरे पास आवे. (३२) तवे ताः सुक तयोऽस ुत श तयः. य द
धरती पर
हो जाता है.
मृळया स नः.. (३३)
हे इं ! जनके ारा तुम हम सुखी करते हो, वे शोभन ही रह. (३३) मा न एक म ाग स मा यो त
स
स
यां एवं तु तयां तु हारी
षु. वधीमा शूर भू रषु.. (३४)
हे शूर इं ! हम एक, दो, तीन अथवा ब त अपराध करने पर मत मारना. (३४) बभया ह वावत उ द भ भ णः. द मादहमृतीषहः.. (३५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तु हारे समान उ , श ु पर हार करने वाले, पाप को श ु क हसा करने वाले दे व के कारण म भयर हत बनूं. (३५)
ीण करने वाले एवं
मा स युः शूनमा वदे मा पु य भूवसो. आवृ वद्भूतु ते मनः.. (३६) हे अ धक धन वाले इं ! म तुमसे तु हारे म एवं पु क वृ तु हारा मन मुझसे न फरे. (३६)
क बात कहता ं.
को नु मया अ म थतः सखा सखायम वीत्. जहा को अ मद षते.. (३७) हे मनु यो! इं के अ त र कौन ोधर हत म है जो अपने म से कहे क मने कसे मारा है एवं मुझसे कौन भागता है? (३७) एवारे वृषभा सुतेऽ स व भूयावयः.
नीव नवता चरन्.. (३८)
हे कामपूरक इं ! एवार नामक ारा नचोड़ा गया सोम उसे ब त धन न दे कर धूत के समान तु हारे पास आता है. सभी दे व नीचे मुंह करके नकल गए. (३८) आ त एता वचोयुजा हरी गृ णे सुम था. यद
य इ दः.. (३९)
हे इं ! म वचनमा से रथ म जुड़ने वाले एवं शोभन र ायु तु हारे ह र नामक अ को अपने सामने लाने के लए हाथ से ख चता ं. तुम ा ण को धन दे ते हो. (३९) भ ध व ा अप
षः प र बाधो जही मृधः. वसु पाह तदा भर.. (४०)
हे इं ! तुम सभी श ुसेना का भेदन करो, श ु एवं हम अ भलषणीय धन दो. (४०) य ळा व
य
क हसा करो, यु
को बंद करो
थरे य पशाने पराभृतम्. वसु पाह तदा भर.. (४१)
हे इं ! तुमने जो अ भलषणीय धन ढ़- थान, थर- थान व सं द ध- थान म रखा है, वह हमारे लए लाओ. (४१) य य ते व मानुषो भूरेद
य वेद त. वसु पाह तदा भर.. (४२)
हे इं ! तु हारे ारा दया आ जो धन सब मनु य जानते ह, उस अ भलषणीय धन को हमारे पास लाओ. (४२)
सू —४६ वावतः पु वसो वय म
दे वता—इं आ द णेतः. म स थातहरीणाम्.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ धक धन वाले व य कम के पार ले जाने वाले इं ! हम तु हारे समान आ त ह. तुम ह र नामक घोड़ के वामी हो. (१)
के
वां ह स यम वो व दातार मषाम्. व दातारं रयीणाम्.. (२) हे व धारी इं ! यह बात स य है क हम तु ह अ
एवं धन का दाता जानते ह. (२)
आ य य ते म हमानं शतमूते शत तो. गी भगृण त कारवः.. (३) हे असं य र ासाधन वाले एवं ब कमक ा इं ! तोता तु हारी म हमा को तु तय ारा गाते ह. (३) सुनीथो घा स म य यं म तो यमयमा. म ः पा य हः.. (४) वही मनु य य संप होता है, जसक र ा ोहर हत म द्गण, अयमा एवं म करते ह. (४) दधानो गोमद व सुवीयमा द यजूत एधते. सदा राया पु पृहा.. (५) आ द य ारा अनुगृहीत यजमान गाय एवं अ से यु होकर तथा शोभनवीय वाली संतान धारण करता आ ब त ारा अ भल षत धन के साथ बढ़ता है. (५) त म ं दानमीमहे शवसानमभीवम्. ईशानं राय ईमहे.. (६) (६)
हम
स ,श
शाली, भी तार हत एवं सबके वामी इं से दे ने यो य धन मांगते ह.
त म ह स यूतयो व ा अभीरवः सचा. तमा वह तु स तयः पु वसुं मदाय हरयः सुतम्.. (७) सब जगह जाने वाली, भी तार हत एवं सहायक म सेना इं क है. ग तशील ह र नामक अ ब त धन वाले इं को नचोड़े ए सोमरस के नकट स ता के लए ले आवे. (७) य ते मदो वरे यो य इ वृ ह तमः. य आद दः व१नृ भयः पृतनासु रः.. (८) हे इं ! तु हारा मद वहन करने यो य है. जो यु म श ु का अ धक वध करने वाला है. उसीके ारा तुम श ु से धन छ नते हो. वह मद यु म बड़ी क ठनाई से पार कया जाता है. (८) यो रो व वार वा यो वाजे व त त ता. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स नः श व सवना वसो ग ह गमेम गोम त जे.. (९) हे सबके वरण करने यो य, वास थान दे ने वाले एवं अ तशय श शाली इं ! यु म ःख से तरने यो य व श ुतारक मद के साथ हमारे य म आओ. हम गाय वाली गोशाला म जाएंगे. (९) ग ो षु णो यथा पुरा योत रथया. व रव य महामह.. (१०) हे महाधन वाले इं ! हमारे मन म पहले जस कार गाय, अ एवं रथ क अ भलाषा होने पर तुमने उसे पूरा कया था, उसी कार हम अब भी दे ना है. (१०) न ह ते शूर राधसोऽ तं व दा म स ा. दश या नो मघव ू चद वो धयो वाजे भरा वथ.. (११) हे इं ! यह बात स य है क म तु हारे धन का अंत नह जानता ं. हे धनी एवं व इं ! हम शी धन दो एवं अ ारा हमारे य कम क र ा करो. (११)
वाले
य ऋ वः ावय सखा व त े ् स वेद ज नमा पु ु तः. तं व े मानुषा युगे ं हव ते त वषं यत ुचः.. (१२) जो इं दशनीय, ऋ वज् पी म से यु , ब त ारा तुत एवं संसार के सभी ा णय को जानते ह, सब लोग ह व हाथ म लेकर उ ह श शाली इं को सदा बुलाते ह. (१२) स नो वाजे व वता पु वसुः पुनः थाता. मघवा वृ हा भुवत्.. (१३) (१३)
वे ब त धन वाले, धनसंप एवं वृ हंता इं यु
म र ा एवं आगे थत रहने वाले ह .
अ भ वो वीरम धसो मदे षु गाय गरा महा वचेतसम्. इ ं नाम ु यं शा कनं वचो यथा.. (१४) हे तोताओ! तुमसे जस छं द म संभव हो, उसी म सोम का नशा हो जाने पर वीर, श ु को हराने वाले, व श बु संप , सव स व श शाली इं क तु त महान् वा य ारा करो. (१४) दद रे ण त वे द दवसु द दवाजेषु पु यु
हे ब त म अ यु
त वा जनम्. नूनमथ.. (१५)
ारा बुलाए गए इं ! तुम इसी समय मेरे शरीर को बल दे ने वाले बनो. तुम धन दो तथा हमारे पु आ द को धन दो. (१५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ेषा मर य तं वसूनां सास ांसं च द य वपस:. कृपयतो नूनम यथ.. (१६) सम त संप य के वामी, श ु को रोकने वाले, यु एवं हराने वाले इं क तु त करो. इं शी धन दगे. (१६)
म श ु को कं पत करने वाले
महः सु वो अर मषे तवामहे मी षे अरङ् गमाय ज मये. य े भग भ व मनुषां म ता मय स गाये वा नमसा गरा.. (१७) हे महान्, अ भलाषापूरक, सव गमनशील, ती ग त वाले इं ! म तु हारे आने क इ छा करता ं. हे म त के नेता एवं सब ा णय के वामी इं ! हम य , तु तय एवं नम कार ारा तु हारे गुण गाते ह. (१७) ये पातय ते अ म भ गरीणां नु भरेषाम्. य ं म ह वणीनां सु नं तु व वणीनां ा वरे.. (१८) जो म द्गण बादल के बहने वाले एवं श कारक जल के साथ गरते ह, उ ह महान् व न वाले म त के न म हम य करगे एवं उनके ारा दया आ सुख पावगे. (१८) भ ं मतीना म श व ा भर. र यम म यं यु यं चोदय मते ये ं चोदय मते.. (१९) हे इं ! तुम बु वाल को न करने वाले हो. हम तुमसे याचना करते ह. हे अ तशय श शाली इं ! हमारे लए उ चत धन हम दो. हे धन े रत करने वाली बु से यु इं दे व! हम उ म धन दो. (१९) स नतः सुस नत च चे त सुनृत. ासहा स ाट् स र सह तं भु युं वाजेषु पू म्.. (२०) हे दाता, उ , व च , अ तशय- ानी, शोभन-स ययु , श ु को हराने वाले एवं सबके वामी इं ! तुम श ु को हराने वाला, सहनशील, भोग यो य तथा थायी धन हम सं ाम म दो. (२०) आ स एतु य ईवदाँ अदे वः पूतमाददे . यथा च शो अ ः पृथु व स कानीते३ या
ु याददे .. (२१)
वे अ के पु वश यहां आव, जो दे व नह ह एवं ज ह ने क या के पु पृथु वा से धन ा त कया था. (२१) ष सह ा यायुतासनमु ानां वश त शता. दश यावीनां शता दश य षीणां दश गवां सह ा.. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वश ने कहा—“मने अ पु पृथु वा से साठ हजार एवं दस हजार घोड़े, बीस सौ ऊंट, काले रंग क दस घो ड़यां एवं तीन जगह पर भूरे रंग वाली दस हजार गाएं पाई ह. (२२) दश यावा ऋध यो वीतवारास आशवः. म ा ने म न वावृतुः.. (२३) श ु को मारने वाले, अ धक वेग वाले व अ त श रथ का प हया आगे ख चते ह. (२३)
शाली दस हजार काले रंग के घोड़े
दानासः पृथु वसः कानीत य सुराधसः. रथं हर ययं ददन् मं ह ः सू ररभू ष मकृत वः.. (२४) शोभन धन वाले, क यापु पृथु वा का दान यही है. उ ह ने सोने का रथ दया है, अ तशय दाता एवं सबके ेरक पृथु वा ने अ धक बढ़ ई क त ा त क है. (२४) आ नो वायो महे तने या ह मखाय पाजसे. वयं ह ते चकृमा भू र दावने स म ह दावने.. (२५) हे वायु! तुम महान् धन एवं पू य बल दे ने के लए हमारे पास आओ. हम अ धक धन दे ने वाले तु हारी तु त उसी समय करते ह. (२५) यो अ े भवहते व त उ ा ः स त स ततीनाम्. ए भः सोमे भः सोमसु ः सोमपा दानाय शु पूतपाः.. (२६) हे सोमरस पीने वाले एवं द त तथा प व सोमरस पीने वाले वायु! अ ारा चलने वाले, गृह म नवास करने वाले एवं चौदह सौ स र गाय के साथ चलने वाले पृथु वा तु ह सोमरस दे ने के लए ही सोमरस नचोड़ने वाल के साथ मले ह. (२६) यो म इमं च मनाम द च ं दावने. अरट् वे अ े न षे सुकृ व न सुकृ राय सु तुः.. (२७) जो पृथु वा दान क व तु —गाय , घोड़ आ द के वषय म सोचकर मन ही मन स ए थे, उन शोभन कम वाले ने अपने रा य के अ य —अ व, अ , न ष एवं सुकृ य को उ म कम करने क आ ा द . (२७) उच ये३ वपु ष यः वराळु त वायो घृत नाः. अ े षतं रजे षतं शुने षतं ा म त ददं नु तत्.. (२८) हे वायु! जो पृथु वा उच य एवं वयु नामक राजा से भी अ धक सुशो भत ह एवं घृत के समान शु ह, उ ह ने घोड़ , गध और कु पर लादकर जो अ भेजा है, वह यही है, यह सब तु हारी कृपा है. (२८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अध
य म षराय ष
सह ासनम्. अ ाना म वृ णाम्.. (२९)
इस समय धन आ द का दान करने वाले राजा पृथु वा क कृपा से मने घोड़ के समान अ भलाषापूरक साठ हजार गाय को पाया. (२९) गावो न यूथमुप य त व य उप मा य त व यः.. (३०) गाएं जस कार अपने झुंड म जाती ह, उसी कार पृथु वा ारा दए ए ब धया बैल मेरे पास आते ह. (३०) अध य चारथे गणे शतमु ाँ अ च दत्. अध नेषु वश त शता.. (३१) ऊंट का समूह जस समय वन को जा रहा था, उस समय पृथु वा ने मुझे सौ ऊंट दे ने के लए बुलाया था एवं मुझे दे ने के लए वह बीस हजार गाएं भी लाए थे. (३१) शतं दासे ब बूथे व त आ ददे . ते ते वाय वमे जना मद ती गोपा मद त दे वगोपाः.. (३२) मुझ बु मान् ा ण ने गाय और अ के र क ब बूथ नामक दास से सौ गाएं और सौ घोड़े पाए थे. हे वायु! ये सब लोग तु हारे ह. वे इं एवं दे व ारा सुर त होकर स होते ह. (३२) अध या योषणा मही तीची वशम
म्. अ ध
मा व नीयते.. (३३)
इस समय महती पू या, सामने मुंह करके खड़ी, सोने के गहने पहने ए एवं राजा पृथु वा ारा मेरे लए दान क गई युवती को अ पु वश अथात् मेरे सामने लाया जा रहा है. (३३)
सू —४७
दे वता—आ द य
म ह वो महतामवो व ण म दाशुषे. यमा द या अ भ हो र था नेमघं नशदनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१) हे महान् म एवं व ण! ह व दे ने वाले यजमान क तुम जो र ा करते हो, वह महान् है. हे आ द यो! तुम श ु के हाथ से जस यजमान क र ा करते हो, उसे पाप नह छू सकता. तु हारी र ाएं उप वर हत एवं शोभन ह. (१) वदा दे वा अघानामा द यासो अपाकृ तम. प ा वयो यथोप र १ मे शम य छतानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे आ द य दे वो! तुम पाप को र करना जानते हो. प ी जस कार अपने ब च के ऊपर पंख फैला लेते ह, उसी कार तुम हम सुख दो. तु हारी र ाएं उप वर हत एवं शोभन ह. (२) १ मे अ ध शम त प ा वयो न य तन. व ा न व वेदसो व या मनामहेऽनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (३) हे आ द यो! तु हारे पास प य के पंख के समान जो सुख है, वह हम दो. हे सब धन के वामी आ द यो! हम तुमसे घर के उपयु सभी संप यां मांगते ह. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (३) य मा अरासत यं जीवातुं च चेतसः. मनो व य घे दम आ द या राय ईशतेऽनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतय:.. (४) उ म बु वाले आ द य जस मनु य के लए घर एवं जीवनोपयोगी अ दे ते ह, उसे दे ने के लए ये सभी धन के वामी बन जाते ह. इनक र ा उप वर हत एवं शोभन है. (४) प र णो वृणज घा गा ण र यो यथा. यामे द य शम या द यानामुताव यनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (५) रथ वाले घोड़े जस कार बुरा माग याग दे ते ह, उसी कार हमारे पाप हम छोड़ द. हम इं एवं आ द य के र ासाधन ा त करगे. इनक र ा उप वर हत एवं शोभन है. (५) प रह्वृतेदना जनो यु माद य वाय त. दे वा अद माश वो यमा द या अहेतनानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (६) हे शी गमन वाले दे वो! तप आ द के नयम से पी ड़त लोग ही तु हारे ारा दया आ धन पाते ह. तुम जस यजमान को ा त होते हो, वह अ धक धन पाता है. (६) न तं त मं चन यजो न ासद भ तं गु . य मा उ शम स थ आ द यासो अरा वमनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (७) हे सब ओर से वशाल आ द यो! जस यजमान को तुम सुख दे ते हो, वह तीखे वभाव वाला होकर भी ोध से ःखी नह होता और न उसे अप रहाय ःख ा त होता है. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (७) यु मे दे वा अ प म स यु य तइव वमसु. यूयं महो न एनसो यूयमभा यतानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (८) हे आ द यो! यो ा जस कार कवच क र ा म रहते ह, उसी कार हम तु हारी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुर ा म रहगे. तुम हम बड़े एवं छोटे पाप से बचाओ. तु हारी र ा उप वर हत व शोभन है. (८) अ द तन उ य व द तः शम य छतु. माता म य रेवतोऽय णो व ण य चानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (९) अ द त हमारी र ा कर एवं हम सुख द. अ द त म , धन वी अयमा एवं व ण क माता ह. अ द त क र ा उप वर हत एवं शोभन है. (९) य े वाः शम शरणं य ं यदनातुरम्. धातु य यं१ तद मासु व य तनानेहसो व ऊतय सुऊतयो व ऊतयः.. (१०) हे आ द यो! हम शरण लेने यो य, शरण के यो य, सबके ारा सेवनीय, रोगर हत, तीन गुण से यु एवं घर के अनुकूल सुख दान करो. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१०) आ द या अव ह यता ध कूला दव पशः. सुतीथमवतो यथानु नो नेषथा सुगमनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (११) हे आ द यो! जस कार तट पर खड़ा आ जल को दे खता है, उसी कार तुम हम न न थ लोग को दे खो. घोड़े को जस कार उ म घाट पर ले जाते ह उसी कार हम शोभन माग पर ले जाओ. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (११) नेह भ ं र वने नावयै नोपया उत. गवे च भ ं धेनवे वीराय च व यतेऽनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१२) हे आ द यो! हमसे े ष करने वाले श शाली को इस धरती पर सुख न मले. तु हारा सुख गाय, नई याई धेनु एवं अ क अ भलाषा रखने वाले शोभन पु को ा त हो. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१२) यदा वयदपी यं१ दे वासो अ त कृतम्. ते त मा य आरे अ म धातनानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१३) हे आ द य दे वो! जो छपे ए अथवा प पाप ह, उन म से एक भी मुझ आ य त को न हो. मुझसे पाप को र रखो. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१३) य च गोषु व यं य चा मे हत दवः. ताय त भावया याय परा वहानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१४) हे वण क पु ी एवं वभावरी उषा! हमारी गाय म अथवा हम म जो ःख छपा है, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वह मुझ आ य त के क याण के लए र करो. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१४) न कं वा घा कृणवते जं वा हत दवः. ते व यं सवमा ये प र द यनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१५) हे वग क पु ी उषा! आभरण बनाने वाले सुनार अथवा माला बनाने वाले का जो ःख है वह मुझ आ य त के पास से र चला जावे. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१५) तद ाय तदपसे तं भागमुपसे षे. ताय च ताय चोषो व यं वहानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१६) हे उषा! मुझ आ य त ारा व म मधु, खीर आ द भोजन पाने पर ः व का क र करो. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१६) यथा कलां यथा शफं यथ ऋणं स याम स. एवा व यं सवमा ये सं नयाम यनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१७) हे उषा! जस कार य म ब ल दए गए पशु के दय, खुर, स ग आ द अंग म से लए जाते ह अथवा जस कार ऋण धीरे-धीरे दया जाता है, उसी कार आ य त के सभी बुरे थान धीरे-धीरे र करो. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१७) अजै मा ासनाम चाभूमानागसो वयम्. उषो य मा व यादभै माप त छ वनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः.. (१८) हे दे वी उषा! आज हम जीतगे एवं पापर हत ह गे. आज हम सुख ा त करगे. हम जस बुरे व से डर रहे ह, उसके पाप से हम बचाओ. तु हारी र ा उप वर हत एवं शोभन है. (१८)
सू —४८
दे वता—सोम
वादोरभ वयसः सुमेधाः वा यो व रवो व र य. व े यं दे वा उत म यासो मधु ुव तो अ भ स चर त.. (१) शोभन-बु एवं अ ययन से यु म अ यंत पूजा ा त करने वाले एवं वा द अ का भ ण कर सकूं. व ेदेव एवं सभी मनु य उस अ को मधु कहते ए घूमते ह. (१) अत ागा अ द तभवा यवयाता हरसो दै य. इ द व य स यं जुषाणः ौ ीव धुरमनु राय ऋ याः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! तुम दय के भीतर गमन करने वाले, द नतार हत एवं दे व का ोध र करने वाले हो. हे सोम! तुम इं क म ता ा त करके शी आकर उसी कार हमारा धन वहन करो, जस कार घोड़ा बोझा ढोता है. (२) अपाम सोमममृता अभूमाग म यो तर वदाम दे वान्. क नूनम मा कृणवदरा तः कमु धू तरमृत म य य.. (३) हे मरणर हत सोम! हम तु ह पीकर अमर बनगे, वग म जाएंगे एवं दे व को ा त करगे. श ु हमारा या कर लेगा? मुझ मनु य का हसक श ु या बगाड़ लेगा. (३) शं नो भव द आ पीत इ दो पतेव सोम सूनवे सुशेवः. सखेव स य उ शंस धीरः ण आयुज वसे सोम तारीः.. (४) हे सोम! पीने के प ात् तुम दय के उसी कार सुखदाता बनो, जस कार पता पु को सुख प ंचाता है. तुम इस कार सुखदाता बनो, जस कार म म को सुख दे ता है. हे अनेक जन ारा शं सत धीर सोम! जीवन के लए हमारी आयु बढ़ाओ. (४) इमे मा पीता यशस उ यवो रथं न गावः समनाह पवसु. ते मा र तु व स र ा त मा ामा वय व दवः.. (५) यह पए ए, यशकारक एवं र ण के इ छु क सोम मुझे इस कार य कम से बांध द, जस कार ब धया बैल र सी क गांठ ारा रथ से बंधा रहता है. सोम मुझे च र से बचाव एवं भचार से र कर. (५) अ नं न मा म थतं सं दद पः च य कृणु ह व यसो नः. अथा ह ते मद आ सोम म ये रेवाँ इव चरा पु म छ.. (६) हे सोम! पीने के बाद तुम मुझे म थत अ न के समान भली कार द त करो, भली कार दे खो एवं अ तशय धनशाली बनाओ. म तु हारे मद के लए तु त करता ं. तुम धनवान् बनकर पु बनो. (६) इ षरेण ते मनसा सुत य भ ीम ह प य येव रायः. सोम राजन् ण आयूं ष तारीरहानीव सूय वासरा ण.. (७) हम अ भलाषापूण मन से नचोड़े ए सोमरस को पैतृक धन के समान योग म लाएंगे. हे राजा सोम! हमारी आयु इस कार बढ़ाओ, जस कार सूय दन को बढ़ाते ह. (७) सोम राजन् मृळया नः व त तव म स या३ त य व . अल त द उत म यु र दो मा नो अय अनुकामं परा दाः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे राजा सोम! हम वनाशर हत बनाने के लए सुखी करो. तधारी हम तु हारे ही ह, इसे जानो. हे इं ! हमारा श ु ोध म भरा आ एवं वृ ा त करके जा रहा है. इसके ोध से हमारा उ ार करो. (८) वं ह न त वः सोम गोपा गा ेगा े नषस था नृच ाः. य े वयं मनाम ता न स नो मृळ सुषखा दे व व यः.. (९) हे सोम! तुम हमारे शरीर के र क य कम के येक अंग के नेता को दे खने वाले एवं बैठने वाले हो. हे दे व! हम तु हारे त म व न डालते ह, फर भी तुम उ म म एवं े अ वाले बनकर हम सुखी करो. (९) ऋ दरेण स या सचेय यो मा न र ये य पीतः. अयं यः सोमो यधा य मे त मा इ ं तरमे यायुः.. (१०) म उदर को बाधा न प ंचाने वाले सखा सोम से मलूंगा. पए ए सोम मेरी हसा न कर. हे ह र नामक अ वाले इं ! म याचना करता ं क पया आ सोम चरकाल तक हमारे उदर म रहे. (१०) अप या अ थुर नरा अमीवा नर स त मषीचीरभैषुः. आ सोमो अ माँ अ ह हाया अग म य तर त आयुः.. (११) क ठनता से हटने वाली एवं ढ़ पीड़ाएं र ह . वे पीड़ाएं श शा लनी बनकर हम कं पत और भयभीत करती ह. महान् सोम हमारे समीप आया है. जस सोम के पीने से हमारी आयु बढ़ती है, उसे हम ा त कर. (११) यो न इ ः पतरो सु पीतोऽम य म या आ ववेश. त मै सोमाय ह वषा वधेम मृळ के अ य सुमतौ याम.. (१२) हे पतरो! जो मरणर हत सोम पए जाने पर हम मानव के दय म व आ है, हम ह धारणक ा यजमान उसी सोम क सेवा करगे एवं उसक कृपा म रहगे. (१२) वं सोम पतृ भः सं वदानोऽनु ावापृ थवी आ तत थ. त मै त इ दो ह वषा वधेम वयं याम पतयो रयीणाम्.. (१३) हे सोम! तुम पतर के साथ मलकर ावा-पृ थवी का व तार करते हो. हम ह व के ारा तु हारी सेवा कर एवं धन के वामी बन. (१३) ातारो दे वा अ ध वोचता नो मा नो न ा ईशत मोत ज पः. वयं सोम य व ह यासः सुवीरासो वदथमा वदे म.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे र क दे वो! हमसे मीठे वचन बोलो. व हम अपने वश म न कर और नदा करने वाले हमारी नदा न कर. हम सदा सोम के य रह एवं शोभन संतान पाकर तु तय का उ चरण कर. (१४) वं नः सोम व तो वयोधा वं व वदा वशा नृच ाः. वं न इ द ऊ त भः सजोषा: पा ह प ाता त वा पुर तात्.. (१५) हे चार ओर से अ दे ने वाले, वग ा त कराने वाले एवं सब मनु य को दे खने वाले सोम! तुम वेश करो. हे इं ! तुम र ासाधन को साथ लेकर पीछे और आगे से हमारी र ा करो. (१५)
दे वता—अ न
सू —४९ अ न आ या आ वामन ु
न भह तारं वा वृणीमहे. यता ह व मती य ज ं ब हरासदे .. (१)
हे अ न! तुम य के यो य अ य अ नय के साथ आओ. हम होता के प म तु हारा वरण करते ह. अ वयुजन ारा हाथ म उठाया गया एवं घृतपूण ुच तु ह कुश पर सब ओर बैठावे. (१) अ छा ह वा सहसः सूनो अ रः च ु र य वरे. ऊज नपातं घृतकेशमीमहेऽ नं य ेषु पू म्.. (२) हे बल के पु एवं अं गरागो ीय अ न! य म तु ह ा त करने के लए ुच चलते ह. हम पालनक ा, द त वाला वाले एवं ाचीन अ न क य म तु त करते ह. (२) अ ने क ववधा अ स होता पावक य यः. म ो य ज ो अ वरे वी ो व े भः शु म म भः.. (३) हे अ न! तुम मेधावी, कमफल का नमाण करने वाले, प व क ा, दे व को बुलाने वाले एवं य के यो य हो. हे द त अ न! तुम स करने यो य, अ तशय य पा एवं य म मेधावी ऋ वज ारा मननीय तो ारा तु त करने यो य हो. (३) अ ोघमा वहोशतो य व दे वाँ अज वीतये. अ भ यां स सु धता वसो ग ह म द व धी त भ हतः.. (४) हे अ तशय युवा एवं न य अ न! मुझ ोहशू य यजमान क अ भलाषा करने वाले दे व को ह भ ण के लए लाओ. हे नवास थान दे ने वाले अ न! सु न हत अ को लेकर आओ एवं तु तय ारा था पत होकर स बनो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व म स था अ य ने ातऋत क वः. वां व ासः स मधान द दव आ ववास त वेधसः.. (५) हे अ न! तुम र क, स चे, अ धक बु मान् एवं सभी कार वशाल हो. हे भली कार द त अ न! मेधावी तोता तु हारी सेवा करते ह. (५) शोचा शो च द द ह वशे मयो रा व तो े महाँ अ स. दे वानां शमन् मम स तु सूरयः श ूषाहः व नयः.. (६) हे अ तशय प व अ न! तुम वयं द त बनो एवं हम द त बनाओ तथा जा और तोता को सुख दो. तुम महान् हो. मेरे तोता दे व ारा दया आ सुख ा त कर एवं शोभन अ न वाले बन. (६) यथा चद्वृ मतसम ने स ूव स म. एवा दह म महो यो अ म ुग् म मा क वेन त.. (७) हे म के पूजक अ न! तुम धरती पर जस कार सूखे काठ को जलाते हो, उसी कार जो हमारा ोही है एवं जो हमारे त बु रखता है, उसे जलाओ. (७) मा नो मताय रपवे र वने माघशंसाय रीरधः. अ ेध तर ण भय व शवे भः पा ह पायु भः.. (८) हे अ तशय युवा अ न! हम श शाली श ु मानव एवं अ न चाहने वाले के वश म मत करना. तुम हसार हत, तारने वाले एवं सुखकर पालनोपाय ारा हमारी र ा करो. (८) पा ह नो अ न एकया पा १त तीयया. पा ह गी भ तसृ भ जा पते पा ह चतसृ भवसो.. (९) हे श के वामी एवं नवास थान दे ने वाले अ न! पहली, सरी, तीसरी एवं चौथी ऋचा से स होकर हमारी र ा करो. (९) पा ह व मा सो अरा णः म वाजेषु नोऽव. वा म ने द ं दे वतातय आ प न ामहे वृधे.. (१०) हे अ न! सभी रा स एवं दानर हत लोग से हमारी र ा करो तथा हम यु म श ु से बचाओ. हे समीपतम एवं बंधु अ न! हम य स एवं आ मवृ के लए तु हारा यजन करते ह. (१०) आ नो अ ने वयोवृधं र य पावक शं यम्. रा वा च न उपमाते पु पृहं सुनीती वयश तरम्.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे प व करने वाले अ न! हम अ बढ़ाने वाला एवं शंसनीय धन दो. हे समीपवत एवं संप प अ न! हम अपने शोभन नेतृ व ारा ऐसा धन दो जो ब त ारा चाहने यो य एवं अ तशय क त दे ने वाला हो. (११) येन वंसाम पृतनासु शधत तर तो अय आ दशः. स वं नो वध यसा शचीवसो ज वा धयो वसु वदः.. (१२) हे अ न! हम वह धन दो, जसक सहायता से हम यु म वेगशाली श ु एवं श फकने वाल को जीत एवं उ ह मार. हे बु ारा नवास थान दे ने वाले अ न! हम बढ़ाओ एवं हमारे धन दे ने वाले य को पूरा करो. (१२) शशानो वृषभो यथा नः शृङ्गे द व वत्. त मा अ य हनवो न तधृषे सुज भः सहसो य ः.. (१३) अ न बैल के समान अपने स ग बढ़ाते ए वाला को कं पत करते ह. अ न क ठोड़ी पी वालाएं तीखी ह. इ ह कोई रोक नह सकता. बलपु अ न के दांत शोभन ह. (१३) न ह ते अ ने वृषभ तधृषे ज भासो य त से. स वं नो होतः सु तं ह व कृ ध वं वा नो वाया पु .. (१४) हे अ भलाषापूरक अ न! तु हारे दांत के समान वाला को कोई रोक नह सकता, इस लए तुम बढ़ते हो. हे होता अ न! तुम हमारे ह का भली कार हवन करो एवं हम वरण करने यो य धन अ धक मा ा म दो. (१४) शेषे वनेषु मा ोः सं वा मतास इ धते. अत ो ह ा वह स ह व कृत आ द े वेषु राज स.. (१५) हे अ न! अर णयां तु हारी माताएं ह. उनके भीतर रहकर तुम वन म सोते हो. मनु य तु ह भली कार जलाते ह. तुम आल यर हत होकर ह दाता यजमान के क याण के लए दे व को पास ले आओ तथा उनके बीच सुशो भत बनो. (१५) स त होतार त मद ळते वा ने सु यजम यम्. भन य तपसा व शो चषा ा ने त जनाँ अ त.. (१६) हे अ भमत दे ने वाले, ीणतार हत एवं अपने तापपूण तेज से मेघ को छ - भ करने वाले अ न! सात तोता तु हारी तु त करते ह. तुम मनु य को लांघकर हमारे पास आओ. (१६) अ नम नं वो अ गुं वेम वृ ब हषः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नं हत यसः श ती वा होतारं चषणीनाम्.. (१७) हे यजमानो! कुश छ करने वाले एवं ह डालने वाले हम तु हारे लए अ न को बुलाते ह. अ न सवदा घर म वतमान, होता एवं सब जा के य कम को धारण करने वाले ह. (१७) केतेन शम सचते सुषाम य ने तु यं च क वना. इष यया नः पु पमा भर वाजं ने द मूतये.. (१८) हे अ न! यजमान शोभन सामवेद वाले एवं सुखसाधन य म बु मान् मनु य से मलकर तु तय ारा शंसा करते ह. तुम हमारी र ा के लए अपनी इ छा से समीप म वतमान एवं अनेक प वाले अ लाओ. (१८) अ ने ज रत व प त तेपानो दे व र सः. अ ो षवा गृहप तमहाँ अ स दव पायु रोणयुः.. (१९) हे तु त यो य अ न दे व! तुम जापालक, रा स को क दे ने वाले. यजमान के घर के र क, गृह वामी, महान् एवं ुलोक का पालन करने वाले हो. तुम यजमान के घर म सदा रहते हो. (१९) मा नो र आ वेशीदाघृणीवसो मा यातुयातुमावताम्. परोग ू य नरामप ुधम ने सेध र वनः.. (२०) हे द त पी धन वाले अ न! हमारे भीतर रा स एवं पीड़ा का वेश न हो. अ ाभाव एवं बलवान् रा स को हमसे र रखो. (२०)
सू —५०
दे वता—इं
उभयं शृणव च न इ ो अवा गदं वचः. स ा या मघवा सोमपीतये धया श व आ गमत्.. (१) इं हमारे दोन कार के वचन को शी सुन. इं हमारे य कम के साथ रहकर धनवान् तथा श शाली ह एवं सोमरस पीने के लए आव. (१) तं ह वराजं वृषभं तमोजसे धषणे न त तुः. उतोपमानां थमो न षीद स सोमकामं ह ते मनः.. (२) ावा-पृ थवी ने वयं सुशो भत एवं अ भलाषापूरक इं का सं कार तेज पाने के लए कया था. हे इं ! तुम अपने समान दे व म मुख बनकर य वेद पर बैठो. तु हारा मन सोमरस का इ छु क है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ वृष व पु वसो सुत ये ा धसः. व ा ह वा ह रवः पृ सु सास हमधृ ं च धृ व णम्.. (३) हे अ धक धनी इं ! तुम नचोड़े ए सोमरस से अपने उदर को स चो. हे ह र नामक अ के वामी इं ! हम इ ह सं ाम म श ु को हराने वाला, सर ारा परा जत न होने वाला एवं सर को दबाने वाला जानते ह. (३) अ ा मस य मघव तथेदस द वा यथा वशः. सनेम वाजं तव श वसा म ू च तो अ वः.. (४) हे इं ! यह स य है क तुम धन के वामी एवं स य के र क हो. हम अपने य कम ारा फल के अ भलाषी ह . हे टोपधारी इं ! तु हारी र ा के कारण हम अ का सेवन कर. हे व धारी इं ! हम शी ही श ु को परा जत करगे. (४) श यू३ षु शचीपत इ व ा भ त भः. भगं न ह वा यशसं वसु वदमनु शूर चराम स.. (५) हे श के वामी इं ! अपने सम त र ासाधन ारा हम अभी फल दो. हे शूर, यश वी एवं धनदाता इं ! हम भा य के समान तु हारी सेवा करगे. (५) पौरो अ य पु कृद् गवाम यु सो दे व हर ययः. न क ह दानं प रम धष वे य ा म तदा भर.. (६) हे इं ! तुम अ को पूण करने वाले, गाय क सं या बढ़ाने वाले, सोने के शरीर वाले एवं झरने के समान हो. हम तुम जो दान दे ना चाहते हो उसे कोई रोक नह सकता, इस लए हम जब-जब मांग, तब-तब हम धन दे ना. (६) वं
े ह चेरवे वदा भगं वसु ये. उ ावृष व मघवन् ग व य उ द ा म ये.. (७)
हे इं ! तुम आओ और धनदान के लए हम भोग के यो य धन दो. हे धन वामी इं ! मुझ गाय चाहने वाले को गाय दो और अ चाहने वाले को अ दो. (७) वं पु सह ा ण शता न च यूथा दानाय मंहसे. आ पुर दरं चकृम व वचस इ ं गाय तोऽवसे.. (८) हे इं ! तुम अनेक हजार एवं सौ गाय का समूह दे ने के लए वीकृ त दे ते हो. हम व वध उ म वचन बोलते ए एवं नगर का भेदन करने वाले इं क तु त करते ए अपनी र ा के हेतु उ ह अपनी ओर ले आवगे. (८) अ व ो वा यद वधद् व ो वे
ते वचः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स
मम द वाया शत तो ाचाम यो अहंसन.. (९)
हे अनेक कम करने वाले, ाचीन- ोध वाले एवं सं ाम म अपना मह व का शत करने वाले इं ! कोई बु र हत हो या बु मान् हो, य द वह तु हारी तु त करता है तो तु हारी दया से आनंद ा त करता है. (९) उ बा कृ वा पुर दरो य द मे शृणव वम्. वसूयवो वसुप त शत तुं तोमै र ं हवामहे.. (१०) ऊपर भुजा उठाए ए, श ु का वध करने वाले एवं श ुनगर को व त करने वाले इं य द मेरी पुकार सुन तो धन क कामना करने वाले हम लोग धन वामी एवं असी मत बु वाले इं को तो ारा बुलावगे. (१०) न पापासो मनामहे नारायासो न ज हवः. य द व ं वृषणं सचा सुते सखायं कृणवामहै.. (११) पु य न करने वाले हम इं को नह मानते. धनर हत एवं अ न क उपासना करने वाले हम इं को नह मानते. इस समय सोमरस नचुड़ जाने पर हम अ भलाषापूरक इं को अपना म बनाते ह. (११) उ ं युयु म पृतनासु सास हमृणका तमदा यम्. वेदा भृमं च स नता रथीतमो वा जनं य म नशत्.. (१२) हम उ , यु म श ु को जीतने वाले, ऋण के समान फल द तु त वाले एवं कसी से न दबने वाले इं को अपनी ओर मलाते ह. रथ वा मय म े इं तेज चलने वाले घोड़े को पहचानते ह. दाता इं अनेक यजमान म ा त ह. (१२) यत इ भयामहे ततो नो अभयं कृ ध. मघव छ ध तव त ऊ त भ व षो व मृधो ज ह.. (१३) हे इं ! हम जस हसक से डरते ह, उससे हम भयर हत बनाओ. हे धन वामी एवं श शाली इं ! हम भयर हत करने के लए अपने र क पु ष ारा हमारे हसक श ु को मारो. (१३) वं ह राध पते राधसो महः य या स वधतः. तं वा वयं मघव गवणः सुताव तो हवामहे.. (१४) हे धन वामी इं ! तु ह सेवक का महान् धन एवं घर बढ़ाते हो. हे धन वामी एवं तु तपा अ न! हम सोमरस नचोड़ने वाले तु ह बुलाते ह. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ः पळु त वृ हा पर पा नो वरे यः. स नो र ष चरमं स म यमं स प ा पातु नः पुरः.. (१५) सव , वृ हंता, सर का पालन करने वाले एवं वरणीय इं हमारे बड़े एवं बीच वाले पु क र ा कर. इं आगे और पीछे से हमारी र ा कर. (१५) वं नः प ादधरा रा पुर इ न पा ह व तः. आरे अ म कृणु ह दै ं भयमारे हेतीरदे वीः.. (१६) हे इं ! तुम पीछे , आगे, नीचे, ऊपर एवं सब ओर से हमारी र ा करो. तुम हमारे पास से रा स के आयुध एवं दे व का भय र करो. (१६) अ ा ा ः इ ा व परे च नः. व ा च नो ज रतृ स पते अहा दवा न ं च र षः.. (१७) हे इं ! आज, कल एवं परस हमारी र ा करना. हे साधुपालक इं ! हम तोता र ा रात एवं दन सब समय करना. (१७)
क
भ शूरो मघवा तुवीमघः स म ो वीयाय कम्. उभा ते बा वृषणा शत तो न या व ं म म तुः.. (१८) धन वामी, सर को हराने वाले, शूर एवं अ धक संप वाले इं वीरता के लए सबसे मलते ह. हे ब त कम वाले इं ! तु हारी दोन अ भलाषापूरक भुजाएं व धारण कर. (१८)
सू —५१ ो अ मा उप तु त भरता य जुजोष त. उ थै र य मा हनं वयो वध त सो मनो भ ा इ
दे वता—इं य रातयः.. (१)
हे ऋ वजो! इं सेवा करते ह, इस लए उनके पास जाकर तु त करो. लोग सोमरस पीने वाले इं के अ को उ थ मं ारा बढ़ाते ह. इं के दान क याण करने वाले ह. (१) अयुजो असमो नृ भरेकः कृ ीरया यः. पूव र त वावृधे व ा जाता योजसा दा इ
य रातयः.. (२)
कसी क सहायता न लेने वाले, अ तीय, दे व म मुख और वनाशर हत इं जा का अ त मण करके बढ़ते ह. इं के दान क याण करने वाले ह. (२) अ हतेन चदवता जीरदानुः सषास त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाचीन
वा य म
त व वीया ण क र यतो भ ा इ
य रातयः.. (३)
शी दान करने वाले इं अपने ारा अ े रत घोड़े के ारा भोग करना चाहते ह. हे साम य दे ने वाले इं ! तु हारा मह व तु त के यो य है. इं के दान क याण करने वाले ह. (३) आ या ह कृणवाम त इ ा ण वधना. ये भः श व चाकनो भ मह व यते भ ा इ
य रातयः.. (४)
हे इं ! आओ. हम तु हारी उ साहवधक तु तयां करते ह. हे अ तशय श शाली इं ! तुम ये तु तयां सुनकर अ चाहने वाले तोता का क याण करने क अ भलाषा करते हो. इं का दान क याण करने वाला है. (४) धृषत द्धृष मनः कृणोषी य वम्. ती ैः सोमैः सपयतो नमो भः तभूषतो भ ा इ
य रातयः.. (५)
हे इं ! तु हारा मन अ तशय श ुधषक है. तुम नशीले सोम ारा सेवा करने वाले एवं नम कार ारा अलंकृत करने वाले यजमान को असीम फल दे ते हो. इं के दान क याण करने वाले ह. (५) अव च ऋचीषमोऽवताँ इव मानुषः. जु ् वी द य सो मनः सखायं कृणुते युजं भ ा इ
य रातयः.. (६)
मनु य जस कार कुएं को दे खता है, उसी कार तु तय से घरे ए इं हम कृपापूवक दे खते ह एवं दे खने के बाद सोमरस वाले यजमान को अपना म बना लेते ह. इं के दान क याण करने वाले ह. (६) व े त इ वीय दे वा अनु तुं द ः. भुवो व य गोप तः पु ु त भ ा इ
य रातयः.. (७)
हे इं तु हारा अनुकरण करते ए सभी दे व श एवं बु को धारण करते ह. हे सभी गाय के वामी इं ! तुम ब त ारा तुत हो. इं के दान क याण करने वाले ह. (७) गृणे त द ते शव उपमं दे वतातये. य ं स वृ मोजसा शचीपते भ ा इ य (८)
य रातयः.. (८)
हे इं ! तु हारी उपमा दे ने यो य श क म य के न म तु त करता ं. हे वामी इं ! तुमने बल ारा वृ का हनन कया था. इं के दान क याण करने वाले ह.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
समनेव वपु यतः कृणव मानुषा युगा. वदे त द ेतनमध ुतो भ ा इ य रातयः.. (९) े रखने वाली युवती जस कार शरीर चाहने वाले पु ष को वश म करती है, उसी म कार इं मनु य को वश म रखते ह. इं लोग को काल का ान कराते ह. इं के दान क याणकारक ह. (९) उ जात म ते शव उ वामु व तुम्. भू रगो भू र वावृधुमघव तव शम ण भ ा इ
य रातयः.. (१०)
हे अनेक पशु वाले एवं धन वामी इं ! जो लोग तु हारे ारा दया आ सुख भोगते ह, वे तु हारे बल को तु ह एवं तु हारे य को अ धक मा ा म बढ़ाते ह. इं का दान क याणकारक है. (१०) अहं च वं च वृ ह सं यु याव स न य आ. अरातीवा चद वोऽनु नौ शूर मंसते भ ा इ
य रातयः.. (११)
हे वृ हंता इं ! जब तक धन ा त न हो जाए, तब तक हम और तुम मलकर रह. हे व धारी एवं शूर इं ! दान न दे ने वाला भी तु हारे दान क शंसा करता है. इं के दान क याणकारक ह. (११) स य म ा उ तं वय म ं तवाम नानृतम्. महाँ असु वतो वधो भू र योत ष सु वतो भ ा इ
य रातयः.. (१२)
हम न त प से इं क स ची तु त करगे. हम झूठ नह बोलगे. इं सोमरस न नचोड़ने वाल का वध करते ह एवं सोमरस नचोड़ने वाल को अ धक यो त दे ते ह. (१२)
सू —५२
दे वता—इं
स पू महानां वेनः तु भरानजे. य य ारा मनु पता दे वेषु धय आनजे.. (१) मुख एवं पूजनीय यजमान को य कम म सुंदर इं आते ह. दे व के म य म जा के पालक मनु ने ही इं को पाने का ार ा त कया था. (१) दवो मानं नो सद सोमपृ ासो अ यः. उ था
च शं या.. (२)
सोमरस कुचलने के साधन प थर ने वग का नमाण करने वाले इं का याग नह कया. उ थमं एवं तु तयां बोलने यो य ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स व ाँ अ रो य इ ो गा अवृणोदप. तुषे तद य प यम्.. (३) उपाय जानने वाले इं ने अं गरागो ीय ऋ षय के लए गाय को कट कया था. इं के उस वीर कम क म तु त करता ं. (३) स नथा क ववृध इ ो वाक य व णः. शवो अक य होम य म ा ग ववसे.. (४) पहले के समान इस समय भी क वय को बढ़ाने वाले, तोता का काय वहन करने वाले एवं सुखकर इं पूजनीय सोमरस के होम के समय हमारी र ा के लए आव. (४) आ नु ते अनु तुं वाहा वर य य यवः. ा मका अनूषते गो य दावने.. (५) हे इं ! वाहा दे वी के प त अ न का य करने वाले लोग अनु म से तु हारे ही कम क शंसा करते ह, तोता शी धन पाने के लए तु हारी तु त करते ह. (५) इ े व ा न वीया कृता न क वा न च. यमका अ वरं व ः.. (६) क
तोतागण जस इं को हसार हत जानते ह, उ ह इं कम वतमान ह. (६)
म सम त श
यां एवं
य पा चज यया वशे े घोषा असृ त. अ तृणाद् बहणा वपो३ ऽय मान य य यः.. (७) जब चार वण एवं नषाद जा के साथ इं क तु त करते ह, तब वामी इं अपनी म हमा से श ु का वध करते ह एवं मेधावी के आदर के पा बनते ह. (७) इयमु ते अनु ु त कृषे या न प या. ाव
य वत नम्.. (८)
हे इं ! तु हारी यह तु त इस लए क जा रही है, य क तुमने वीरतापूण काय को कया है. तुम रथ के प हए क र ा करो. (८) अ य वृ णो
ोदन उ
म जीवसे. यवं न प आ ददे .. (९)
वषाकारक इं ारा व वध अ पाकर लोग जीवन के लए तरह-तरह के काम करते ह एवं श ु के समान जौ खाते ह. (९) त धाना अव यवो यु मा भद पतरः. याम म वतो वृधे.. (१०) हे ऋ वजो! तो धारण करने वाले एवं र ा भलाषी हम तु हारे साथ मलकर म त स हत इं क वृ करने के लए अ के पालक ह . (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बळृ वयाय धा न ऋ व भः शूर नोनुमः. जेषामे
वया युजा.. (११)
हे य काल म उ प , तेज वी एवं शूर इं ! हम मं करगे एवं तु हारी सहायता से श ु को जीतगे. (११)
ारा तु हारी वा त वक तु त
अ मे ा मेहना पवतासो वृ ह ये भर तौ सजोषाः. यः शंसते तुवते धा य प इ ये ा अ माँ अव तु दे वाः.. (१२) भयंकर एवं वषा करने वाले बादल एवं यु म पुकार सुनकर श ु का नाश करने वाले इं मं पाठ करने वाले एवं तोता के समीप ज द आते ह. वे इं एवं मुख दे व हमारी र ा कर. (१२)
दे वता—इं
सू —५३ उ वा म द तु तोमाः कृणु व राधो अ वः. अव
षो ज ह.. (१)
हे व धारी इं ! तु तयां तु ह अ धक स कर. तुम हम धन दो एवं ा ण े षय को मारो. (१) पदा पण रराधसो न बाध व महाँ अ स. न ह वा क न
त.. (२)
हे इं ! तुम प णय और य धनर हत लोग को पैर से दबाकर पी ड़त करो. हे महान् इं ! कोई भी तु हारा त ं नह है. (२) वमी शषे सुताना म
वमसुतानाम्. वं राजा जनानाम्.. (३)
हे इं ! तुम नचोड़े ए सोम एवं बना नचोड़े ए सोम के वामी तथा अ के राजा हो. (३) ए ह े ह यो द ा३ घोष चषणीनाम्. ओभे पृणा स रोदसी.. (४) हे इं ! आओ. तुम मानवक याण के लए य शाला को श दपूण करते ए वग से आओ. तुम वषा ारा धरती व आकाश को भर दे ते हो. (४) यं च पवतं ग र शतव तं सह णम्. व तोतृ यो रो जथ.. (५) हे इं ! तुमने तोता से यु मेघ को व से भ
के क याण के लए टु कड़ वाले एवं सैकड़ तथा हजार जल कया था. (५)
वयमु वा दवा सुते वयं न ं हवामहे. अ माकं काममा पृण.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! सोमरस नचुड़ जाने पर हम तु ह रात एवं दन म बुलाते ह. तुम हमारी अ भलाषा पूरी करो. (६) व१ य वृषभो युवा तु व ीवो अनानतः.
ा क तं सपय त.. (७)
वषा करने वाले, न य युवक, वशाल गरदन वाले और न झुकने वाले इं कहां ह? कौन तोता उनक पूजा करता है? (७) क य व सवनं वृषा जुजु वाँ अव ग छ त. इ ं क उ वदा चके.. (८) (८)
वषा करने वाले इं
स होकर आते ह. कौन यजमान इं क तु त करना जानता है.
कं ते दाना अस त वृ ह कं सुवीया. उ थे क उ वद तमः.. (९) हे वृ हंता इं ! यजमान ारा दए ए दान या तु हारी सेवा करते ह? मं पढ़ते समय या शोभन- तो तु हारी सेवा करते ह? यु म कौन तु हारे अ धक समीप रहता है? (९) अयं ते मानुषे जने सोमः पु षु सूयते. त ये ह
वा पब.. (१०)
हे इं ! म मानव के बीच म तु हारे लए सोमरस नचोड़ता ं. तुम सोमरस के पास आओ एवं उसे पओ. (१०) अयं ते शयणाव त सुषोमायाम ध
यः. आज क ये म द तमः.. (११)
हे इं ! यह सोमरस तु ह कु े के तृण वाले तालाब म अ धक स करता है. वह तालाब आज क दे श क सुषोमा नद के तट पर है. (११) तम राधसे महे चा ं मदाय घृ वये. एही म
वा पब.. (१२)
हे इं ! हमारा धन बढ़ाने एवं श ुनाशक मद के लए उसी सुंदर सोमरस को पओ एवं सोमरस क ओर ज द जाओ. (१२)
सू —५४ यद
दे वता—इं ागपागुदङ् य वा यसे नृ भः. आ या ह तूयमाशु भः.. (१)
हे इं ! तुम हमारे अ वयुजन ारा पूव, प म, उ र एवं नीचे क दशा म बुलाए जाते हो. तुम अपने घोड़ क सहायता से ज द आओ. (१) य ा
वणे दवो मादयासे वणरे. य ा समु े अ धसः.. (२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम वगलोक के अमृत टपकाने वाले थान पर वग ा त कराने वाले, धरती के य थल अथवा अ दे ने वाले अंत र म स होते हो. (२) आ वा गी भमहामु ं वे गा मव भोजसे. इ
सोम य पीतये.. (३)
हे महान् एवं वशाल इं ! म तु ह सोमरस पीने के लए उसी कार बुलाता ,ं जस कार गाय को घास खाने के लए बुलाया जाता है. (३) आतइ
म हमानं हरयो दे व ते महः. रथे वह तु ब तः.. (४)
हे इं ! रथ म जुड़े ए घोड़े तु हारे मह व को तेज करके भली कार वहन कर. (४) इ
गृणीष उ तुषे महाँ उ ईशानकृत्. ए ह नः सुतं पब.. (५)
हे महान्, उ एवं ऐ यकारी इं ! लोग ारा तुमसे याचना क जाती है एवं तु हारी तु त क जाती है. आकर हमारा सोमरस पओ. (५) सुताव त वा वयं य व तो हवामहे. इदं नो ब हरासदे .. (६) हे इं हम सोमरस नचोड़कर एवं च पुरोडाश आ द लेकर अपने इन कुश पर बैठने के लए तु ह बुलाते ह. (६) य च
श तामसी
साधारण वम्. तं वा वयं हवामहे.. (७)
हे इं ! तुम ब त से यजमान के बुलाते ह. (७) इदं ते सो यं म वधु
त समान
भनरः. जुषाण इ
वहार करने वाले हो. इस लए हम तु ह त पब.. (८)
हे इं ! हमारे अ वयुगण प थर क सहायता से तु हारे लए मधुर सोमरस नचोड़ते ह. तुम स होकर उसे पओ. (८) व ाँ अय वप तोऽ त य तूयमा ग ह. अ मे धे ह वो बृहत्.. (९) हे वामी इं ! तुम सभी तोता व तृत यश दो. (९)
का अ त मण करके मुझे दे खो, शी आओ एवं
दाता मे पृषतीनां राजा हर यवीनाम्. मा दे वा मघवा रषत्.. (१०) हर यवण गाएं दे ने वाले इं हमारे राजा ह . हे दे वो! इं हमारी हसा न कर. (१०) सह े पृषतीनाम ध
ं बृह पृथु. शु ं हर यमा ददे .. (११)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म हजार गाय के ऊपर धारण कए ए, महान्, व तृत, आ ादकारक एवं नमल हर य को वीकार करता ं. (११) नपातो गह य मे सह ेण सुराधसः. वो दे वे व त.. (१२) मुझ अर त एवं ःखी के संबंधी लोग हजार धन वाले ह . दे व क है. (१२)
सू —५५
स ता अ दे ती
दे वता—इं
तरो भव वद सु म सबाध ऊतये. बृहद् गाय तः सुतसोमे अ वरे वे भरं न का रणम्.. (१) हे ऋ वजो! तुम ःखी होने पर वेगशाली अ ारा आकर धन दे ने वाले इं क सेवा बृह साम गाकर करो. म नचोड़े ए सोमरस वाले य म इं को उसी कार बुलाता ,ं जस कार कोई कुटुं बपोषक एवं हतकारी को बुलाता है. (१) न यं ा वर ते न थरा मुरो मदे सु श म धसः. य आ या शशमानाय सु वते दाता ज र उ यम्.. (२) धष असुर, थरदे व एवं मरणशील मनु य यु म जस इं का नवारण नह कर सकते, ऐसे इं सोमरस पीने के कारण उ प होने वाला आनंद पाने के लए अपने तोता को शंसनीय धन दे ते ह. (२) यः श ो मृ ो अ ो यो वा क जो हर ययः. स ऊव य रेजय यपावृ त म ो ग य वृ हा.. (३) इं
श सेवा करने यो य, अ व ा म नपुण, अद्भुत सोने के शरीर वाले एवं वृ नाशक वपुल गाय को बाहर लाकर कं पत करते ह. (३) नखातं च ः पु स भृतं वसू द प त दाशुषे. व ी सु श ो हय इत् कर द ः वा यथा वशत्.. (४)
ह दे ने वाले यजमान का धरती म गड़ा आ एवं संगृहीत ब त धन ऊपर उठाने वाले, व धारी, शोभन ना सका वाले एवं ह र नामक घोड़ के वामी इं जो चाहते ह, उसे य ा द के ारा पूरा कर दे ते ह. (४) य ाव थ पु ु त पुरा च छू र नृणाम्. वयं त इ सं भराम स य मु थं तुरं वचः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ब त ारा तुत एवं शूर इं ! तुमने ाचीन यजमान से जो कामना क थी, उसे हम तुरंत पूरा कर रहे ह. हम य , उ थ अथवा तु तवचन तु ह शी सम पत करते ह. (५) सचा सोमेषु पु त व वो मदाय ु सोमपाः. वम कृते का यं वसु दे ः सु वते भुवः.. (६) हे ब त ारा बुलाए ए, व धारी एवं सोमरस पीने वाले इं ! सोमरस नचुड़ जाने पर तुम नशा करने के लए हमारे साथ रहो. सोमरस नचोड़ने वाले तोता को कमनीय धन तु ह दे ते हो. (६) वयमेन मदा ोऽपीपेमेह व णम्. त मा उ अ समना सुतं भरा नूनं भूषत ुते.. (७) हम इन इं को आज और कल सोमरस पलाकर तृ त करगे. हे अ वयुजनो! उ ह इं के लए यु म नचोड़ा आ सोमरस ले आओ. इं इस समय तो सुनकर आव. (७) वृक द य वारण उराम थरा वयुनेषू भूष त. सेमं नः तोमं जुजुषाण आ गही च या धया.. (८) चोर सबको हा नकारक एवं प थक का वनाशक ा होकर भी इं के काय म अनुकूलता धारण करता है. हे इं ! हमारे तो को ेम करते ए एवं व च तु तय से भा वत होकर आओ. (८) क व१ याकृत म या त प यम्. केनो नु कं ोमतेन न शु ुवे जनुषः प र वृ हा.. (९) ऐसा कौन सा पु षाथ है जो इं ने न कया हो? कस सुनने यो य पु षाथ के साथ इं नह सुने जाते? इं क वृ वध वाली घटना उनके ज म से ही सुनी जा रही है. (९) क महीरधृ ा अ य त वषी: क वृ नो अ तृतम्. इ ो व ान् बेकनाटाँ अह श उत वा पण र भ.. (१०) इं क महती श कब श ुधषक नह ई है? इं का व य कब वधर हत रहा? इं सभी सूद खाने वाल , दन गनने वाले कमहीन एवं प णय को ताड़न आ द के ारा परा जत करते ह. (१०) वयं घा ते अपू पु तमासः पु त व हे वृ हंता, ब त
ा ण वृ हन्. वो भृ त न भराम स.. (११)
ारा बुलाए गए एवं व धारी इं ! हम ब त से लोग वेतन के समान
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु हारे ही न म नवीन तु तयां अ पत करते ह. (११) पूव वे तु वकू म ाशसो हव त इ ोतयः. तर दयः सवना वसो ग ह श व ु ध मे हवम्.. (१२) हे अनेक कम करने वाले इं ! तुमसे ब त सी आशाएं संबं धत ह एवं तोता तु ह बुलाते ह. इस लए तुम हमारे श ु के य का तर कार करके हमारे य म आओ. हे अ तशय श शाली इं ! मेरी पुकार सुनो. (१२) वयं घा ते वे इ न ह वद यः पु
व ा अ प म स. त क न मघव त म डता.. (१३)
हे इं ! हम तु हारे ही ह और तु हारी तु त करते ह. हे ब त धन वामी इं ! तु हारे अ त र कोई भी सुख दे ने वाला नह है. (१३)
ारा बुलाए गए एवं
वं नो अ या अमते त ुधो३ भश तेरव पृ ध. वं न ऊती तव च या धया श ा श च गातु वत्.. (१४) हे इं ! तुम हम द र ता, भूख एवं नदा से बचाओ. हे महाबली एवं माग जानने वाले इं ! तुम अपनी र ा एवं व च य कम के साथ हम हमारे मनचाहे पदाथ दो. (१४) सोम इ ः सुतो अ तु कलयो मा बभीतन. अपेदेष व माय त वयं घैषो अपाय त.. (१५) हे मह ष क ल के पु ो! तु हारा नचोड़ा आ सोमरस इं के लए ही हो. तुम मत डरो. ये रा स आ द तुमसे र जा रहे ह. वे वयं ही भाग रहे ह. (१५)
दे वता—आ द य
सू —५६ या ु
याँ अव आ द या या चषामहे. सुमृळ काँ अ भ ये.. (१)
हम अ भल षत धन पाने के लए आ द य से र ा क याचना करते ह. (१)
य जा त वाले एवं भली
कार सुखदाता
म ो नो अ यंह त व णः पषदयमा. आ द यासो यथा व ः.. (२) म , व ण, अयमा और आ द य हम पाप से पार उतार, य क वे हमारे ःसह काय को जानते ह. (२) तेषां ह च मु यं१ व थम त दाशुषे. आ द यानामरङ् कृते.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ द य का व च एवं तु तयो य धन ह यजमान के लए है. (३)
दे ने वाले एवं पया त य
करने वाले
म ह वो महतामवो व ण म ायमन्. अवां या वृणीमहे.. (४) हे व ण, म एवं अयमा! तुम महान् हो एवं यजमान के हम तु हारी र ा क ाथना करते ह. (४) जीवा ो अ भ धेतना द यासः पुरा हथात्. क
त तु हारी र ा महान् है.
थ हवन ुतः.. (५)
हे आ द यो! हम जी वत के पास दौड़कर आओ. हे पुकार सुनने वाले आ द यो! हमारी मृ यु से पहले आना. (५) य ः ा ताय सु वते व थम त य छ दः. तेना नो अ ध वोचत.. (६) हे आ द यो! सोमरस नचोड़ने के काम से थके ए यजमान के लए तु हारे पास जो उ म धन एवं घर है, उससे हम स करके हमसे अ छ -अ छ बात करो. (६) अ त दे वा अंहो व त र नमनागसः. आ द या अ तैनसः.. (७) हे दे वो! पापी के पास महान् पाप है एवं पापहीन के पास उ म पु य है. हे पापर हत आ द यो! हमारी अ भलाषा पूरी करो. (७) मा नः सेतुः सषेदयं महे वृण ु न प र. इ
इ
ुतो वशी.. (८)
जाल हम लोग को न बांधे. जाल हम महान् य कम के लए छोड़ दे . इं सबको वश म करने वाले ह. (८) मा नो मृचा रपूणां वृ जनानाम व यवः. दे वा अ भ
स
एवं
मृ त.. (९)
हे र ा के इ छु क दे वो! हम छु ड़ाओ. हम हसा करने वाले श ु बांधना. (९)
के जाल म मत
उत वाम दते म हं दे ुप ुवे. सुमृळ काम भ ये.. (१०) हे महान् एवं सुख दे ने वाली अ द त दे वी! मनचाहा फल पाने के लए म तु हारी तु त करता ं. (१०) प ष द ने गभीर आँ उ पु े जघांसतः. मा क तोक य नो रषत्.. (११) हे अ द त! हमारा सब ओर से पालन करो. उथले एवं पु हसक का जाल हमारे पु को न मारे. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को ःखी करने वाले जल म
अनेहो न उ
जउ
च व सतवे. कृ ध तोकाय जीवसे.. (१२)
हे व तीण गमन वाली एवं महती अ द त! हम पापहीन को जी वत रखो, जससे हमारे पु जी वत रह सक. (१२) ये मूधानः
तीनामद धासः वयशसः. ता र
ते अ हः.. (१३)
सबसे मूध य, मनु य क हसा न करने वाले, वाधीन यश वाले एवं ोहर हत आ द य हमारे य कम क र ा करते ह. (१३) ते न आ नो वृकाणामा द यासो मुमोचत. तेनं ब
मवा दते.. (१४)
हे आ द यो! म हसक के जाल म इस कार फंस गया ,ं जैसे लोग चोर को पकड़ते ह. हे अ द त! तुम हम छु ड़ाओ. (१४) अपो षु ण इयं श रा द या अप म तः. अ मदे वज नुषी.. (१५) हे आ द यो! यह जाल एवं बु श
हमारी हसा न करके हमसे र जाए. (१५)
वः सुदानव आ द या ऊ त भवयम्. पुरा नूनं बुभु महे.. (१६)
हे शोभन दान करने वाले आ द यो! तु हारी र ा समय भी ब त से सुख भोगगे. (१६) श
तं ह चेतसः
के कारण हम पहले के समान इस
तय तं चदे नसः. दे वाः कृणुथ जीवसे.. (१७)
हे उ म ान वाले दे वो! हमारी ओर बार-बार आने वाले पापी श ु के लए हमसे अलग करो. (१७) त सु नो न ं स यस आ द या य मुमोच त. ब धाद् ब
को हमारे जीवन
मवा दते.. (१८)
हे अ द त एवं आ द यो! वह शंसनीय जाल हम छोड़ने के कारण सेवायो य बने जो तु हारी कृपा से हम छोड़ता है. जैसे बंधन बंधे ए पु ष को छोड़ता है, उसी कार यह जाल हम छोड़ता है. (१८) ना माकम त त र आ द यासो अ त कदे . यूयम म यं मृळत.. (१९) हे आ द यो! हमारा वेग तु हारे समान नह है. तु हारा वेग हम जाल से छु ड़ा सकता है. तुम हम सुखी करो. (१९) मा नो हे त वव वत आ द याः कृ मा श ः. पुरा नु जरसो वधीत्.. (२०) हे आ द यो! या ारा बनाया आ यह हसक जाल वव वान् के पु यम के जाल ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के समान इस समय कमजोर हम लोग को पहले के समान न मारे. (२०) व षु े षो
ंह तमा द यासो व सं हतम्. व व व वृहता रपः.. (२१)
हे आ द यो! हमारे े षय एवं पा पय का वनाश करो तथा इस जाल एवं सब जगह फैले ए पाप का नाश करो. (२१)
सू —५७
दे वता—इं
आ वा रथं यथोतये सु नाय वतयाम स. तु वकू ममृतीषह म श व स पते.. (१) हे अ तशय श शाली, हसक को हराने वाले, ब त कम करने वाले एवं स जनपालक इं ! हम सुर ा और सुख पाने के लए तु ह रथ के समान बार-बार बुलाते ह. (१) तु वशु म तु व तो शचीवो व या मते. आ प ाथ म ह वना.. (२) व
हे अ धक श शाली, अनेक कम करने वाले, अ धक बु ापक मह व ारा संसार को ा त कया है. (२)
मान् एवं पूजनीय इं ! तुमने
य य ते म हना महः प र माय तमीयतुः. ह ता व ं हर ययम्.. (३) हे महान् इं ! तु हारी म हमा के कारण तु हारे हाथ धरती म सब जगह हर यमय व को पकड़ते ह. (३)
ात
व ानर य व प तमनानत य शवसः. एवै चषणीनामूती वे रथानाम्.. (४) श
हे म तो! म सम त श ु पर आ मण करने वाले एवं श ु ारा न झुकने वाली के वामी इं को तु हारी सेना एवं रथ के गमन के साथ बुलाता ं. (४) अ भ ये सदावृधं वम हेषु यं नरः. नाना हव त ऊतये.. (५)
हे यजमानो! म तु हारी सहायता के लए सदा बढ़ने वाले इं को आने के लए नवेदन करता ं. उ ह मनु य यु म अपनी ा के न म भां त-भां त से बुलाते ह. (५) परोमा मृचीषम म मु ं सुराधसम्. ईशानं च सूनाम्.. (६) म असी मत शरीर वाले, तु त के अनु प संप य के वामी इं को बुलाता ं. (६)
पधारी, उ , शोभनधन से यु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं
तं त म ाधसे मह इ ं चोदा म पीतये. यः पू ामनु ु तमीशे कृ ीनां नृतुः.. (७) म नेता, य के मुख थान म बैठने वाले एवं मनु य क मब को महान् धन पाने क आशा से सोमरस पीने के लए बुलाता ं. (७)
तु त सुनने वाले इं
न य य ते शवसान स यमानंश म यः. न कः शवां स ते नशत्.. (८) हे श शाली इं ! मनु य तु हारी म ता ा त नह कर सकता. तु हारी श भी कोई नह पा सकता. (८) वोतास वा युजा सु सूय मह नम्. जयेम पृ सु व
य को
वः.. (९)
हे व धारी इं ! हम तु हारे ारा र त होकर तु हारी सहायता से यु जीतगे. जससे जल म नान एवं सूयदशन कर सक. (९)
म महान् धन
तं वा य े भरीमहे तं गी भ गवण तम. इ यथा चदा वथ वाजेषु पु मा यम्.. (१०) हे तु तय ारा अ य धक स इं ! मुझ अ धक बु वाले को तुम जस कार क तु तय और य के कारण बचा सको, म उसी कार क तु तय और य ारा तुमसे याचना करता ं. (१०) य य ते वा स यं वा य
णी तर वः. य ो वत तसा यः.. (११)
हे व धारी इं ! तु हारी म ता एवं धना द का नमाण अ यंत हषकारक है. तु हारा वशेष प से व तृत करने यो य है. (११) उ ण त वे३ तन उ
याय न कृ ध. उ णो य ध जीवसे.. (१२)
हे इं ! तुम हमारे पु , पौ एवं नवास थान के न म के लए हमारी मनचाही व तुएं दो. (१२)
चुर धन दो. तुम हमारे जीवन
उ ं नृ य उ ं गव उ ं रथाय प थाम्. दे ववी त मनामहे.. (१३) हे इं ! हम तुमसे ाथना करते ह क हमारे मनु य , गाय एवं रथ के माग का क याण करो. हम तुमसे य क ाथना करते ह. (१३) उप मा षड् ा ा नरः सोम य ह या. त
त वा रातयः.. (१४)
सोमरस पीने से उ प नशे के कारण छः राजा वा द भोग साथ लेकर दो-दो के समूह म हमारे पास आते ह. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ ा व ोत आ ददे हरी ऋ
य सून व. आ मेध य रो हता.. (१५)
राजपु इं ोत से मने सरल ग त वाले दो घोड़े ा त कए ह एवं ऋ के पु से हरे रंग के तथा अ मेध के पु से लाल रंग के घोड़े पाए ह. (१५) सुरथाँ आ त थ वे वभीशूँरा . आ मेधे सुपेशसः.. (१६) मने अ त थ व के पु इं ोत से सुंदर रथ वाले एवं ऋ घोड़ को पाया है. मने अ मेध से सुंदर घोड़े पाए ह. (१६)
के पु से सुंदर लगाम वाले
षळ ाँ आ त थ व इ ोते वधूमतः. सचा पूत तौ सनम्.. (१७) मने ऋ एवं अ मेध के पु ारा दए गए घोड़ के साथ ही शु य कम वाले एवं अ त थ व के पु इं ोत ारा घो ड़य स हत दए गए घोड़ को हण कया है. (१७) ऐषु चेतद्वृष व य तऋ े व षी. वभीशुः कशावती.. (१८) इन सरल ग त वाले घोड़ म गभाधान यो य घोड़ से यु , शोभायमान एवं सुंदर लगाम वाली घो ड़यां भी जान पड़ती ह. (१८) न यु मे वाजब धवो न न सु न म यः. अव म ध द धरत्.. (१९) हे अ दे ने वाले छः राजाओ! नदा करने वाला नह बोलता. (१९)
दे वता—व ण
सू —५८ व
भी तु हारे सामने नदा का वचन
ु भ मषं म द राये दवे. धया वो मेधसातये पुर या ववास त.. (१)
हे अ वयुगण! तुम वीर को ह षत करने वाले इं के लए तीन तंभ से यु अ का सं ह करो. इं परम बु यु य कम ारा य आरंभ करने के लए तु हारा स कार करते ह. (१) नदं व ओदतीनां नदं योयुवतीनाम्. प त वो अ यानां धेनूना मषु य स.. (२) हे यजमानो! उषा को उ प करने वाले, न दय को श दायमान करने वाले एवं अव य गाय के पालक इं को बुलाओ. तुम गाय के ध क इ छा करते हो. (२) ता अ य सूददोहसः सोमं ीण त पृ यः. ज म दे वानां वश वा रोचने दवः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वे चतकबरे रंग क गाएं तीन सवन म इं से संबं धत सोमरस को अपने ध से म त करती ह जो दे व के ज म थान एवं आ द य के मनपसंद ुलोक म वेश कर सकती ह एवं जनके ध से कुआं भर सकता है. (३) अभ
गोप त गरे मच यथा वदे . सूनुं स य य स प तम्.. (४)
गाय के पालक, य के पु एवं साधु का पालन करने वाले इं क कार करो, जस कार वे य के त जाने का रा ता जान सक. (४) आ हरयः ससृ
तु त उसी
रेऽ षीर ध ब ह ष. य ा भ स वामहे.. (५)
द तशाली एवं ह रतवण के अ इं को कुश पर था पत कर. हम वहां थत इं क तु त करगे. (५) इ ाय गाव आ शरं
ेव
णे मधु. य सीमुप रे वदत्.. (६)
जस समय व धारी इं समीप म रखे ए सोमरस को ा त करते ह, उस समय गाएं इं के लए मधुर ध दे ती ह जो सोमरस म मलाया जा सके. (६) उ द् न य व पं गृह म ग व ह. म वः पी वा सचेव ह ः स त स युः पदे .. (७) म एवं इं जस समय सूय के नवास थान म जाते ह, उस समय मधुर सोमरस पीकर सबके सखा आ द य के इ क स थान म हम एक त ह . (७) अचत ाचत
यमेधासो अचत. अच तु पु का उत पुरं न धृ वचत.. (८)
हे
यमेध ऋ ष के वंश वाले लोगो! इं क वशेष प से पूजा करो. तु हारे पु और तुम इं क इस कार पूजा करो, जस कार श ु का नगर न करने वाले वीर क पूजा क जाती है. (८) अव वरा त गगरो गोधा प र स न वणत्. प ा प र च न कद द ाय ो तम्.. (९) घघर व न करता आ यु का बाजा बज रहा है. हाथ पर बंधा आ गोह का चमड़ा भी श द कर रहा है. पीले रंग क धनुषडोरी श द कर रही है. इं को ल य करके इस समय तु त बोलो. (९) आ य पत ये यः सु घा अनप फुरः. अप फुरं गृभायत सोम म ाय पातवे.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस समय सफेद रंग क , शोभन जल दे ने वाली एवं ब त अ धक बढ़ बहती ह, उस समय तुम इं के पीने के लए सोमरस को ले जाओ. (१०)
ई न दयां
अपा द ो अपाद न व े दे वा अम सत. व ण इ दह य मापो अ यनूषत व सं सं श री रव.. (११) इं ने सोमरस पया एवं अ न ने सोमरस पया. दे वगण सोमरस पीकर तृ त ए. व ण सोमरस पीने के लए य शाला म नवास कर. गाएं जस कार बछड़े से मलने दौड़ती ह, उसी कार उ थ मं व ण क तु त करते ह. (११) सुदेवो अ स व ण य य ते स त स धवः. अनु र त काकुदं सू य सु षरा मव.. (१२) हे व ण! तुम शोभन दे व हो. तु हारे समु पी तालु म गंगा आ द सात न दयां इस कार गरती ह जस कार सूय के सामने करण गरती ह. (१२) यो त रफाणयत् सुयु ाँ उप दाशुषे. त वो नेता त द पु पमा यो अमु यत.. (१३) जो इं व वध गमन वाले के रथ म भली कार जुते ए घोड़ को ह दाता यजमान के पास जाने के लए चलाते ह, वे उपमा दे ने यो य ह, य म आते ह, य के फल के नेता ह एवं उदक उ प करते ह. वे असुर आ द से मु रहते ह. (१३) अती श ओहत इ ो व ा अ त षः. भनत्कनीन ओदनं प यमानं परो गरा.. (१४) श (इं ) यु म सभी श ु का अ त मण करके चलते ह. वे सभी े षय को छोड़ दे ते ह. सुंदर एवं मेघ के ऊपर वतमान इं गजन एवं व के श द से ता ड़त करके मेघ का भेदन करते ह. (१४) अभको न कुमारकोऽ ध त वं रथम्. स प म हषं मृगं प े मा े वभु तुम्.. (१५) बालक के समान छोटे शरीर वाले कुमार इं शंसनीय रथ पर बैठते ह. इं महान् एवं माता- पता के सामने इधरधर दौड़ने वाले मृगशावक के समान अनेक कम वाले मेघ को वषा के लए े रत करते ह. (१५) आ तू सु श द पते रथं त ा हर ययम्. अध ु ं सचेव ह सह पादम षं व तगामनेहसम्.. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे शोभन-ना सका वाले एवं गृह वामी इं ! तुम रथ पी घर म बैठो. वह रथ सोने का बना आ है, द त, अनेक प हय वाला, कुशलतापूवक चलने वाला एवं पापर हत है. हम दोन उस रथ म मल. (१६) तं घे म था नम वन उप वराजमासते. अथ चद य सु धतं यदे तव आवतय त दावने.. (१७) ह -अ धारण करने वाले लोग इस कार वराजमान इं क उपासना करते ह. जब इं को चलकर वयं आने एवं दान के यो य तु तयां े रत करती ह, तब इं का भली कार था पत धन ा त होता है. (१७) अनु न यौकस: यमेधास एषाम्. पूवामनु य त वृ ब हषो हत यस आशत.. (१८) यमेध ऋ ष के प रवार वाले लोग ने दे व के पुराने थान अथात् वग को ा त कया है, मु य दान के ल य से कुश का व तार कया है तथा सोमरस आ द ा त कया है. (१८)
सू —५९
दे वता—इं
यो राजा चषणीनां याता रथे भर गुः. व ासां त ता पृतनानां ये ो यो वृ हा गृणे.. (१) म जा के राजा, रथ ारा चलने वाले, गमन म नबाध, सभी सेना वाले, ये एवं वृ हंता इं क तु त करता ं. (१)
को तारने
इ ं तं शु भ पु ह म वसे य य ता वधत र. ह ताय व ः त धा य दशतो महो दवे न सूयः.. (२) हे पु ह मा ऋ ष! तुम अपनी र ा के लए इं को अलंकृत करो. तु हारे वधाता इं का वभाव उ एवं कोमल दो कार का है. इं अपने हाथ म दशनीय एवं आकाश म सूय के समान दखाई दे ने वाला व धारण करते ह. (२) न क ं कमणा नश कार सदावृधम्. इ ं न य ै व गूतमृ वसमधृ ं धृ वोजसम्.. (३) जो य साधन ारा सदा वृ करने वाले, सबके तु तयो य, महान् अ य ारा पराभवर हत एवं सबको दबाने वाली श से यु इं को य साधन ारा अपने अनुकूल बना लेते ह, उनके कम म कोई बाधा उ प नह कर सकता. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अषा हमु ं पृतनासु सास ह य म मही यः. सं धेनवो जायमाने अनोनवु ावः ामो अनोनवुः.. (४) म सर के लए असहनीय, उ व श ु सेना को परा जत करने वाले इं क तु त करता ं. इं के ज म के समय वशाल एवं वेगशा लनी गाय ने, ुलोक तथा धरती ने तु त क थी. (४) यद् ाव इ ते शतं शतं भूमी त युः. न वा व सह ं सूया अनु न जातम रोदसी.. (५) हे इं ! य द सौ ौ एवं सौ भू मयां हो जाव, तब भी तु ह नापा नह जा सकता. हे व धारी इं ! सौ सूय तु ह का शत नह कर सकते और न आठ ावा-पृ थवी तु हारी सीमा बना सकते ह. (५) आ प ाथ म हना वृ या वृष व ा श व शवसा. अ माँ अव मघव गोम त जे व च ा भ त भः.. (६) हे अ भलाषापूरक, अ तशय श शाली, धन वामी एवं व धारी इं ! तुमने अपनी महान् श ारा श ु क आयुध बरसाने वाली सेना को वश म कया है. तुम नाना र ासाधन ारा श ु से हमारी गोशाला क र ा करो. (६) न सीमदे व आप दषं द घायो म यः. एत वा च एतशा युयोजते हरी इ ो युयोजते.. (७) हे द घ आयु वाले इं ! दे व को न मानने वाला मनु य सब अ ा त नह करता. जो मनु य इं के ेतवण अ को रथ म जोड़ता है, इं अपने घोड़ क सहायता से उसी के य म आते ह. (७) तं वो महो महा य म ं दानाय स णम्. यो गाधेषु य आरणेषु ह ा वाजे व त ह ः.. (८) हे महान् ऋ वजो! दान पाने के लए तुम उस पू य इं क सेवा करो. इं जल ा त के लए नचले थान म प ंचने के लए तथा यु म वजय पाने के लए बुलाने यो य ह. (८) उ षु णो वसो महे मृश व शूर राधसे. उ षु म ै मघव मघ य उ द वसे महे.. (९) हे नवास थान दे ने वाले एवं शूर इं ! महान् अ दे ने के लए हम उ त करो. हे धन वामी एवं शूर इं ! हम महान् धन एवं वशाल क त दे ने का यास करो. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं न इ ऋतयु वा नदो न तृ प स. म ये व स व तु वनृ णोव न दासं श थो हथैः.. (१०) हे य ा भलाषी इं ! तुम अपने नदक का धन छ नकर ब त स होते हो. हे अ धक धन वाले इं ! हमारी र ा के लए तुम हम अपनी दोन जांघ के बीच छपा लो एवं हमसे े ष करने वाले दास को आयुध ारा मारो. (१०) अ य तममानुषमय वानमदे वयुम्. अव वः सखा धुवीत पवतः सु नाय द युं पवतः.. (११) हे इं ! तु हारे म पवत ऋ ष तु हारे अ त र कसी अ य के लए य करने वाले, मानव से भ , य र हत व दे व को न मानने वाले को वग से नीचे गरा दे ते ह एवं द यु को मृ यु क ओर े रत करते ह. (११) वं न इ ासां ह ते श व दावने. धानानां न सं गृभाया मयु ः सं गृभाया मयुः.. (१२) हे श शाली इं ! तुम हम दे ने क अ भलाषा से गाय को इस कार हण करो, जस कार जौ हाथ म लए जाते ह. तुम हम दे ने क अ भलाषा से अ धक व तुएं हाथ म लो. (१२) सखायः तु म छत कथा राधाम शर य. उप तु त भोजः सू रय अ यः.. (१३) अ वयु म ो! तुम इं संबंधी य करने क इ छा करो. हम श ु हसक इं क तु त कैसे करगे? श ु को खाने वाले एवं म के र क इं श ु को झुकाते ह. (१३) भू र भः समह ऋ ष भब ह म ः त व यसे. य द थमेकेमेक म छर व सा पराददः.. (१४) हे सब लोग ारा पू य इं ! ब त से ऋ षय और ऋ वज ारा तु हारी तु त क जाती है. हे श ुनाशक इं ! तुम तोता को एक-एक करके अनेक कार से बछड़े दे ते हो. (१४) कणगृ ा मघवा शौरदे ो व सं न
य आनयत्. अजां सू रन धातवे.. (१५)
धनी इं सं ाम म श ु से छ नी ई गाय को एवं उनके बछड़ को कान पकड़कर हमारे पास इस कार ले आव, जस कार बालक बकरी को पानी पलाने ले जाता है. (१५)
सू —६०
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं नो अ ने महो भः पा ह व
या अरातेः. उत
षो म य य.. (१)
हे अ न! तुम महाधन दे कर दानर हत लोग से हमारी र ा करो एवं हम श ु लोग से बचाओ. (१) न ह म युः पौ षेय ईशे ह वः
यजात. व मद स पावान्.. (२)
हे य ज म वाले अ न! पु ष का तेज वी हो. (२) स नो व े भदवे भ ज नपा
ोध तु ह बाधा नह प ंचा सकता. तुम ही रात म
शोचे. र य दे ह व वारम्.. (३)
हे श के नाती एवं तु त यो य काश वाले अ न! तुम सब दे व के साथ मलकर हम सबके वरण करने यो य धन दो. (३) न तम ने अरातयो मत युव त रायः. यं ायसे दा ांसम्.. (४) हे अ न! तुम जस ह दाता यजमान का पालन करते हो, उसे धनी एवं दानर हत लोग अपने से अलग नह कर सकते. (४) यं वं व मेधसाताव ने हनो ष धनाय. स तवोती गोषु ग ता.. (५) हे अ न! जस ह दाता यजमान का तुम य म धन दे ने के लए े रत करते हो, वह तु हारे ारा सुर त होकर गाय वाला बनता है. (५) वं र य पु वीरम ने दाशुषे मताय.
णो नय व यो अ छ.. (६)
हे अ न! तुम ह दे ने वाले मनु य को अनेक वीर पु हम भी नवास थान दे ने यो य धन दो. (६)
से यु
धन दे ते हो, इस लए
उ या णो मा परा दा अघायते जातवेदः. रा ये३ मताय.. (७) हे जातवेद अ न! हमारी र ा करो. हम पाप क इ छा करने वाले एवं हसकबु मनु य को मत स पो. (७) अ ने मा क े दे व य रा तमदे वो युयोत. वमी शषे वसूनाम्.. (८) हे द तशाली अ न! तुम धन के वामी हो. कोई भी दे वर हत र नह कर सकता. (८)
तु हारे दान को
स नो व व उप मा यूज नपा मा हन य. सखे वसो ज रतृ यः.. (९) हे बल के नाती, सखा एवं नवास थान दे ने वाले अ न! तुम हम तोता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को महान्
धन दो. (९) अ छा नः शीरशो चषं गरो य तु दशतम्. अ छा य ासो नमसा पु वसुं पु श तमूतये.. (१०) हमारी तु तयां जलाने वाली वाला से यु एवं दशनीय अ न के सामने जाव. र ा पाने के लए हमारे य ह अ से यु होकर अ धक धन वाले एवं ब त ारा शं सत अ न के समीप जाएं. (१०) अ नं सूनुं सहसो जातवेदसं दानाय वायाणाम्. ता यो भूदमृतो म य वा होता म तमो व श.. (११) सभी तु तयां वरण करने यो य, धनदान के न म , बल के पु एवं जातधन अ न के सामने जाएं. मरणर हत अ न मनु य म दो प म रहते ह. दे व म अमर एवं मानव म होम पूरा करने वाले तथा जा म अ तशय स करने वाले. (११) अ नं वो दे वय यया नं य य वरे. अ नं धीषु थमम नमव य नं ै ाय साधसे.. (१२) हे यजमानो! म तु हारे दे वसंबंधी य के आरंभ होने पर अ न क तु त करता ं. म य ारंभ करने के समय, बंध-ु भाव ा त होने पर एवं े -लाभ होने पर सब दे व से पहले अ न क तु त करता ं. (१२) अ न रषां स ये ददातु न ईशे यो वायाणाम्. अ नं तोके तनये श द महे वसुं स तं तनूपाम्.. (१३) वरण करने यो य धन के वामी अ न हम म को अ द. हम नवास थान दे ने वाले एवं अंग का पालन करने वाले अ न से अपने पु और पौ के लए ब त सा धन मांगते ह. (१३) अ नमी ळ वावसे गाथा भः शीरशो चषम्. अ नं राये पु मी ह ुतं नरोऽ नं सुद तये छ दः.. (१४) हे पु मीढ ऋ ष! तुम मं ारा दाहक वाला वाले अ न क तु त र ा एवं धन पाने के लए करो. अ य यजमान भी अ न क तु त करते ह. तुम अ न से मेरे लए घर मांगो. (१४) अ नं े षो योतवै नो गृणीम य नं शं यो दातवे. व ासु व व वतेव ह ो भुव तुऋषूणाम्.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम श ु से बचने के लए सुख एवं भयहीनता के लए अ न क तु त करते ह. संपूण जा के र क अ न ऋ षय को नवास थान दे ने वाले तथा बुलाने यो य ह. (१५)
दे वता—अ न
सू —६१
ह व कृणु वमा गमद वयुवनते पुनः. व ाँ अ य शासनम्.. (१) हे अ वयुगण! अ न आए ह. तुम उ ह शी ह क पुनः सेवा करते ह. (१)
दो. ह
दे ना जानने वाले अ वयु य
न त मम यं१ शुं सीद ोता मनाव ध. जुषाणो अ य स यम्.. (२) होता तीखी वाला वाले अ न क म ता यजमान से कराता आ अ न के पास बैठता है. (२) अ त र छ त तं जने
ं परो मनीषया. गृ ण त ज या ससम्.. (३)
होता अपनी बु के बल से यजमान का मनोरथ पूरा करने के लए ःख न करने वाले अ न को सामने था पत करना चाहते ह. होता बाद म अ न क तु तयां बोलते ए हण करते ह. (३) जा यतीतपे धनुवयोधा अ ह नम्. षदं ज यावधीत्.. (४) अ य दे ने वाले अ न सबसे ऊपर वतमान अंत र को भी अ त मण कर जाते ह. अपनी वाला से मेघ का वध करने वाले अ न जल को मु करने के लए ऊपर चढ़ते ह. (४) चर व सो श ह नदातारं न व दते. वे त तोतव अ यम्.. (५) बछड़े के समान इधर-उधर घूमने वाले एवं ेत रंग वाले अ न को इस संसार म रोकने वाला कोई नह मलता, वे तोता के तो क कामना करते ह. (५) उतो व य य महद ाव ोजनं बृहत्. दामा रथ य द शे.. (६) अंत र म आ द य पी अ न के रथ म घोड़े जोड़ने का महान् एवं वशाल काय दखाई दे ता है तथा रथ क र सयां दखाई दे ती ह. (६) ह त स तैकामुप ा प च सृजतः. तीथ स धोर ध वरे.. (७) श द करने वाले सधु तट पर सात ऋ वज् जल का दोहन करते ह. इन म भी दो शेष पांच को यु करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ दश भ वव वत इ ः कोशमचु यवीत्. खेदया
वृता दवः.. (८)
यजमान ने दस उंग लय ारा इं से याचना क . इं ने आकाश म तीन कार क करण ारा मेघ से जल टपकाया. (८) पर
धातुर वरं जू णरे त नवीयसी. म वा होतारो अ
ते.. (९)
तीन रंग वाले एवं वेगवान् अ न अपनी नवीन वाला के साथ य म जाते ह. अ वयु आ द घी एवं मधु से उसक पूजा करते ह. (९) स च त नमसावतमु चाच ं प र मानम्. नीचीनबारम तम्.. (१०) अ वयु नम कार के ारा अवनत, ऊपर थत च ओर ार वाले एवं अ ीण अ न को स चते ह. (१०)
वाले, सब ओर
ा त, नीचे क
अ यार मद यो न ष ं पु करे मधु. अवत य वसजने.. (११) आदर करते ए अ वयुगण समीपवत एवं र क अ न के वसजन के समय वशालपा म मधु स करते ह. (११) गाव उपावतावतं मही य
य र सुदा. उभा कणा हर यया.. (१२)
हे गायो! य के लए दोहन के समय तुम र क अ न के पास जाओ. अ न के दोन कान सोने के ह. (१२) आ सुते स चत
यं रोद योर भ यम्. रसा दधीत वृषभम्.. (१३)
हे अ वयुगण! ध ह लेने के बाद ावा-पृ थवी पर आ त ध को स चो. इसके बाद बकरी के ध म अ न को था पत करो. (१३) ते जानत वमो यं१ सं व सासो न मातृ भः. मथो नस त जा म भः.. (१४) गाय ने अपने नवासदाता अ न को जाना. बछड़े जस कार अपनी माता से मलते ह, उसी कार गाएं अपने साथ क सरी गाय को लेकर अ न से मलती ह. (१४) उप
वेषु ब सतः कृ वते ध णं द व. इ े अ ना नमः वः.. (१५)
वाला के ारा भ ण करने वाले अ न का अ अंत र म इं और अ न का पोषण करता है. इं एवं अ न को ह अ दो. (१५) अधु
प युषी मशमूज स तपद म रः. सूय य स त र म भः.. (१६)
अ वयु वायु एवं ग तशील मा य मक वाक् के ारा सूय क सात करण से बढ़े ए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ एवं रस को हते ह. (१६) सोम य म ाव णो दता सूर आ ददे . तदातुर य भेषजम्.. (१७) हे म व व ण! नकल आने पर सूय सोमरस हण करते ह. वह हण हम बीमार क दवा है. (१७) उतो व य य पदं हयत य नधा यम्. प र ां ज यातनत्.. (१८) सोमरस दे ने वाले मुझ हयत ऋ ष का थान ह अपनी वाला से ुलोक को भरते ह. (१८)
रखने यो य है. वहां बैठकर अ न
दे वता—अ नीकुमार
सू —६२ उद राथामृतायते यु
ाथाम ना रथम्. अ त षद्भूतु वामवः.. (१)
हे अ नीकुमारो! य क अ भलाषा करने वाले मेरे लए उ त बनो एवं य म आने के लए रथ म घोड़े जोड़ो. तु हारी र ा हमारे समीप रहे. (१) न मष
जवीयसा रथेना यातम ना. अ त षद्भूतु वामवः.. (२)
हे अ नीकुमारो! आंख के नमेष से भी अ धक ग तशील रथ आओ. तु हारी र ा हमारे समीप रहे. (२)
ारा हमारे य
म
उप तृणीतम ये हमेन घमम ना. अ त षद्भुतू वामवः.. (३) हे अ नीकुमारो! असुर ारा अ न म फके ए अ लए जल छड़को. तु हारी र ा हमारे समीप रहे. (३)
ऋ ष क जलन र करने के
कुह थः कुह ज मथुः कुह येनेव पेतथुः. अ त षद्भूतु वामवः.. (४) हे अ नीकुमारो! तुम कहां हो, कहां जाते हो और बाज के समान कहां गरते हो? तु हारी र ा हमारे समीप रहे. (४) यद क ह क ह च छु ूयात ममं हवम्. अ त षद्भूतु वामवः.. (५) हे अ नीकुमारो! हम यह पता नह है क आज तुम कहां और कब हमारी पुकार सुनोगे? तु हारी र ा हमारे पास रहे. (५) अ ना याम तमा ने द ं या या यम्. अ त षद्भूतु वामवः.. (६) म उ चत समय पर बुलाने यो य अ नीकुमार एवं उनके समीपवत बंधु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के पास
जाता ं. तु हारी र ा हमारे पास रहे. (६) अव तम ये गृहं कृणुतं युवम ना. अ त षद्भूतु वामव:.. (७) हे अ नीकुमारो! तुमने अ समीप रहे. (७)
क र ा के लए घर बनाया था. तु हारी र ा हमारे
वरेथे अ नमातपो वदते व व ये. अ त षद्भूतु वामवः.. (८) हे अ नीकुमारो! मनोहर तु त करने वाले क उ णता से र ा करो. तु हारी र ा हमारे समीप रहे. (८) स तव राशसा धाराम नेरशायत. अ त षद्भूतु वामवः.. (९) मह ष स तव ने तुम अ नीकुमार क तु त करके अ न को मंजूषा से नकालकर पुनः उसीम सुला दया था. तु हारी र ा हमारे पास रहे. (९) इहा गतं वृष वसू शृणुतं म इमं हवम्. अ त षद्भूतु वामवः.. (१०) हे वषाकारक एवं धनसंप अ नीकुमारो! यहां आओ और हमारी पुकार सुनो. तु हारी र ा हमारे पास रहे. (१०) क मदं वां पुराणव जरतो रव श यते. अ त षद्भूतु वामवः.. (११) हे अ नीकुमारो! तु ह पुराने एवं बुड्ढे है? तु हारी र ा हमारे साथ रहे. (११)
के समान बार-बार य बुलाना पड़ता
समानं वां सजा यं समानो ब धुर ना. अ त षद्भूतु वामवः.. (१२) हे अ नीकुमारो! तु हारे ज म एवं बंधु समान ह. तु हारी र ा हमारे पास रहे. (१२) यो वां रजां य ना रथो वया त रोदसी. अ त षद्भूतु वामवः.. (१३) हे अ नीकुमारो! तु हारा रथ सारे लोक एवं हमारे साथ रहे. (१३) आ नो ग े भर
ैः सह ै प ग छतम्. अ त षद्भूतु वामवः.. (१४)
हे अ नीकुमारो! हजार गाय एवं अ हमारे पास रहे. (१४) मा नो ग े भर
ावा-पृ थवी म घूमता है. तु हारी र ा
को लेकर हमारे पास आओ, तु हारी र ा
ैः सह े भर त यतम्. अ त षद्भूतु वामवः.. (१५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! हजार गाय एवं अ पास रहे. (१५)
को हमसे र मत करना. तु हारी र ा हमारे
अ ण सु षा अभूदक य तऋतावरी. अ त षद्भूतु वामवः.. (१६) हे अ नीकुमारो! ेत वण वाली उषा काश फैलाती ई सब जगह जाती है. तु हारी र ा हमारे पास रहे. (१६) अ ना सु वचाकशद्वृ ं परशुमाँ इव. अ त षद्भूतु वामवः.. (१७) हे अ नीकुमारो! जस कार लकड़हारा कु हाड़ी से पेड़ काटता है, उसी अ न अंधकार को मटाते ह. तु हारी र ा हमारे पास रहे. (१७)
कार
पुरं न धृ णवा ज कृ णया बा धतो वशा. अ त षद्भूतु वामवः.. (१८) हे श ु को दबाने वाले ऋ ष स तव ! तुम काले सं क म बंद थे. बाद म अ नीकुमार क कृपा से तुमने बाहर नकल कर उसे जला दया था. अ नीकुमार क र ा हमारे पास रहे. (१८)
दे वता—अ न आ द
सू —६३ वशो वशो वो अ त थ वाजय तः पु यम्. अ नं वो य वचः तुषे शूष य म म भः.. (१)
हे अ ा भलाषी ऋ वजो एवं यजमानो! तुम सारी जा के अ त थ एवं ब त के य अ न क सेवा तु त ारा करो. म तु हारी सुख ा त के लए सुंदर तु तय ारा गूढ़वचन बोलता ं. (१) यं जनासो ह व म तो म ं न स परासु तम्. शंस त श त भः.. (२) लोग ह ह. (२)
धारण करके एवं घी का हवन करते ए अ न क तु त सूय के समान करते
प यांसं जातवेदसं यो दे वता यु ता. ह ा यैरय अ न तोता के य कम क वग म ले जाने वाले ह. (३)
व.. (३)
शंसा करने वाले, जातवेद तथा य म डाले गए ह
आग म वृ ह तमं ये म नमानवम्. य य ुतवा बृह ा अनीक एधते.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को
म पाप का भली कार नाश करने वाले, शंसनीय एवं मानव हतकारी उन अ न क तु त करता ,ं जनक वाला म ुतवा एवं महान् ऋ पु य कम करते ह. (४) अमृतं जातवेदसं तर तमां स दशतम्. घृताहवनमी
म्.. (५)
म मरणर हत, जातवेद, अंधकार का नाश करने वाले, घृत ारा हवन करने यो य एवं तु तपा अ न के पास जाता ं. (५) सबाधो यं जना इमे३ऽ नं ह
भरीळते. जु ानासो यत ुचः.. (६)
अ भलाषायु अ वयु आ द य करते ए एवं हाथ म ुच लेकर ह तु त करते ह. (६)
ारा अ न क
इयं ते न सी म तर ने अधा य मदा. म सुजात सु तोऽमूर द मा तथे.. (७) स , शोभन-ज म वाले, शोभन-य वाले, बु मान्, दशनीय एवं अ त थ के समान पू य अ न! म तु ह नवीन तु त अ पत करता ं. (७) सा ते अ ने श तमा च न ा भवतु
या. तया वध व सु ु तः.. (८)
हे अ न! वह तु त तु ह अ यंत सुखकर, अ धक अ दे ने वाली एवं तु त ारा भली-भां त तुत होकर बढ़ो. (८)
य हो. तुम मेरी
सा ु नै ु ननी बृह पोप व स वः. दधीत वृ तूय.. (९) हमारे ारा क जाती ई तु त अ धक अ यु अ धारण करे. (९)
है. वह यु
म अ के ऊपर अ धक
अ मद्गां रथ ां तवेष म ं न स प तम्. य य वां स तूवथ प यंप यं च कृ यः.. (१०) जाएं अ न क तु त तेज चलने वाले घोड़े तथा स जन का पालन करने वाले इं के समान करती ह. अ न हमारे रथ को धन से भरते एवं श ारा श ु के अ और धन को न करते ह. (१०) यं वा गोपवनो गरा च न द ने अ रः. स पावक ुधी हवम्.. (११) हे सव गमनशील एवं प व क ा अ न! गोपवन ऋ ष ने तु ह अ तशय अ दाता बनाया था. तुम उनक पुकार सुनो. (११) स वा जनास ईळते सबाधो वाजसातये. स बो ध वृ तूय.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! ःखी लोग अ एवं धन पाने के लए तु हारी तु त करते ह. तुम यु जागो. (१२)
म
अहं वान आ ुतव ण मद यु त. शधासीव तुका वनां मृ ा शीषा चतुणाम्.. (१३) म य द ा के लए बुलाए जाने पर श ुगवनाशक, ऋ पु एवं त ु वा नामक राजा ारा दए गए बाल वाले चार घोड़ का शीश इस कार पश करता ,ं जस कार लोग बाल को छू ते ह. (१३) मां च वार आशवः श व य व नवः. सुरथासो अ भ यो व वयो न तु यम्.. (१४) अ तशय अ वाले राजा ुतवा के तगामी एवं शोभन रथ म जुते ए चार घोड़े अ को इस कार ढोते ह, जस कार अ नीकुमार ारा भेजी गई नाव ने तुंग के पु भु यु को वहन कया था. (१४) स य म वा महेन द प यव दे दशम्. नेमापो अ दातरः श व ाद त म यः.. (१५) हे महती प णी नद एवं महान् जल! म तुमसे स ची बात कहता ं. इस श राजा ुतवा क अपे ा कोई भी मनु य अ धक घोड़े नह दे सकता है. (१५)
शाली
दे वता—अ न
सू —६४
यु वा ह दे व तमाँ अ ाँ अ ने रथी रव. न होता पू ः सदः.. (१) हे अ न! रथी जस कार घोड़ को रथ म जोड़ता है, उसी कार तुम भी दे व को बुलाने म कुशल अपने घोड़ को रथ म जोड़ो. तुम धान होता बनकर बैठो. (१) उत नो दे व दे वाँ अ छा वोचो व
रः.
ा वाया कृ ध.. (२)
हे अ न दे व! तुम दे व के समीप हम अ धक व ान् बताओ एवं हमारे वरणयो य धन को दे व के पास प ंचाओ. (२) वं ह य व
सहसः सूनवा त. ऋतावा य यो भुवः.. (३)
हे अ तशय युवा, बल के पु एवं सब ओर से बुलाए गए अ न! तुम स ययु के यो य हो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं य
अयम नः सह णो वाज य श तन प तः. मूधा कवी रयीणाम्.. (४) ये अ न सैकड़ और हजार ह. (४)
कार के अ
के पालक, े , मेधावी एवं धन के वामी
तं ने ममृभवो यथा नम व स त भः. नेद यो य म रः.. (५) हे ग तशील अ न! ऋभुगण जस कार रथ क ने म को लाते ह, उसी कार तुम अ य दे व के साथ य को लाओ. (५) त मै नूनम भ वे वाचा व प न यया. वृ णे चोद व सु ु तम्.. (६) हे व प नामक ऋ ष! तुम न य वचन शोभन तु त करो. (६)
ारा द तशाली एवं वषाकारक अ न क
कमु वद य सेनया नेरपाकच सः. प ण गोषु तरामहे.. (७) हम बड़ी आंख वाले अ न क प ण क हसा करगे? (७) मा नो दे वानां वशः
वाला पी सेना
ारा गाय क
ा त के लए कस
नाती रवो ाः. कृशं न हासुर याः.. (८)
हे अ न! हम दे वप रचारक को उसी कार न छोड़, जस कार लोग धा नह छोड़ते अथवा गाएं अपने छोटे बछड़ को नह छोड़त . (८) मा नः सम य
गाय को
१: प र े षसो अंह तः. ऊ मन नावमा वधीत्.. (९)
सागर क लहर जस कार नाव को बाधा प ंचाती ह, उसी कार सभी श ु बु हम बाधा न प ंचावे. (९)
क
नम ते अ न ओजसे गृण त दे व कृ यः. अमैर म मदय.. (१०) हे अ न दे व! जाएं श पाने के लए तु ह नम कार करती ह. तुम अपनी श ारा श ु को म दत करो. (१०) कु व सु नो ग व येऽ ने संवे षषो र यम्. उ कृ
य
ण कृ ध.. (११)
हे अ न! गाय क खोज करने के लए हम ब त सा धन दो. हे समृ अ न! हम समृ बनाओ. (११)
बनाने वाले
मा नो अ म महाधने परा व भारभृ था. संवग सं र य जय.. (१२) हे अ न! भार ढोने वाला जस कार अंत म भार को छोड़ दे ता है, उसी कार तुम हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यु
म छोड़ मत दे ना. श ु अ यम म
ारा संगृहीत धन को तुम हमारे लए जीतो. (१२)
या इयम ने सष ु
हे अ न! यह भय हमारे अ त र को बढ़ाओ. (१३)
छु ना. वधा नो अमव छवः.. (१३) लोग के पास जाए. तुम यु
म हमारे बल एवं वेग
य याजुष म वनः शमीम मख य वा. तं घेद नवृधाव त.. (१४) जस नम कार करने वाले एवं दोषहीन य यु करते ह, उसी के पास अ न जाते ह. (१४)
का य कम अ न वीकार
पर या अ ध संवतोऽवराँ अ या तर. य ाहम म ताँ अव.. (१५) हे अ न! श ु क सेना को हमारी सेना बीच म ,ं तुम उसक र ा करो. (१५)
से परा जत कराओ. म जस सेना के
व ा ह ते पुरा वयम ने पतुयथावसः. अधा ते सु नमीमहे.. (१६) हे पालक अ न! हम पहले के समान इस समय भी तु हारी र ा को जानते ह. उस समय हम तुमसे सुख मांगते ह. (१६)
सू —६५
दे वता—इं
इमं नु मा यनं व इ मीशानमोजसा. म व तं न वृ
से.. (१)
म य शाली, अपनी श ारा सब पर शासन करने वाले एवं म त के साथ इं को श ु का छे दन करने के लए बुलाता ं. (१) अय म ो म सखा व वृ या भन छरः. व ेण शतपवणा.. (२) इं ने म त के साथ मलकर सौ पव वाले व
ारा वृ का सर काटा. (२)
वावृधानो म सखे ो व वृ मैरयत्. सृज समु या अपः.. (३) इं म त क सहायता लेकर बढ़े . इं ने वृ का सर काटा और अंत र बनाया. (३)
का जल
अयं ह येन वा इदं वम वता जतम्. इ े ण सोमपीतये.. (४) ये इं वह ही ह, ज ह ने म त को साथ लेकर सोमरस पीने के लए वग को जीता था. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म व तमृजी षणमोज व तं वर शनम्. इ ं गी भहवामहे.. (५) हम म त से यु , ऋजीष के भागी, वृ ह. (५) इ ं
यु
एवं महान् इं को तु तय
नेन म मना म व तं हवामहे. अ य सोम य पीतये.. (६)
हम इस सोम को पीने के लए म त स हत इं को ाचीन तो म वाँ इ
मीढ् वः पबा सोमं शत तो. अ म य े पु
हे फलदायक, शत तु, म त से यु आकर सोमरस पओ. (७) तु ये द
ारा बुलाते
एवं ब त
ारा बुलाते ह. (६)
ु त.. (७)
ारा बुलाए गए इं ! तुम इस य म
म वते सुताः सोमासो अ वः. दा य त उ थनः.. (८)
हे व धारी इं ! म त स हत तु हारे लए सोमरस नचोड़ा गया है. उ थ मं बोलने वाले लोग मन से तु ह बुलाते ह. (८) पबे द
म सखा सुतं सोम द व षु. व ं शशान ओजसा.. (९)
हे म त के म इं ! तुम हमारे य ारा व को तेज करो. (९) उ
म नचोड़ा आ सोमरस पओ एवं अपनी श
ोजसा सह पी वी श े अवेपयः. सोम म
हे इं ! तुम पा म भरे सोमरस को पीकर श को कंपाओ. (१०) अनु वा रोदसी उभे
माणमकृपेताम्. इ
चमू सुतम्.. (१०) के साथ बड़े होओ एवं अपने जबड़
य युहाभवः.. (११)
हे श ु का वनाश करने वाले इं ! जब तुम द यु लोग का नाश करते हो, तभी ावा-पृ थवी दोन तु हारा क याण करते ह. (११) वाचम ापद महं नव
मृत पृशम्. इ ात् प र त वं ममे.. (१२)
म इं क तु त करता ं तथा आठ एवं नौ दशा भी इं से कम समझता ं. (१२)
सू —६६
मय
पश करने वाली तु त को
दे वता—इं
ज ानो नु शत तु व पृ छ द त मातरम्. क उ ाः के ह शृ वरे.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(१)
शत तु इं ने ज म लेते ही अपनी माता से पूछा—“कौन उ एवं कौन
स
है?”
आद शव य वीदौणवाभमहीशुवम्. ते पु स तु न ु रः.. (२) इं क माता शवसी ने तभी कहा—“ऊणनाभ, अहीशुव आ द अनेक असुर ह. तुम उ ह समा त करो.” (२) स म ा वृ हा खद खे अराँ इव खेदया. वृ ो द युहाभवत्.. (३) वृ नाशक इं ने उ ह एक साथ इस कार ख चा जस कार र सी से च ख चे जाते ह. इं द युजन को मारकर बढ़े . (३) एकया
तधा पब साकं सरां स
शतम्. इ ः सोम य काणुका.. (४)
इं ने एक साथ ही सोमरस से भरे ए तीन सुंदर उ थ मं अ भ ग धवमतृणदबु नेषु रजः वा. इ ो इं ने ा ण क वृ
के अरे
को पी लया. (४)
य इद्वृधे.. (५)
के लए आधारर हत अंत र म मेघ को सब ओर से मारा. (५)
नरा व यद् ग र य आ धारय प वमोदनम्. इ ो बु दं वाततम्.. (६) इं ने मनु य के लए पके ए अ का नमाण करने के लए बड़ा सा बाण लेकर बादल को छे दा. (६) शत न इषु तव सह पण एक इत्. य म
चकृषे युजम्.. (७)
हे इं ! तुम यु म जस एकमा बाण क सहायता लेते हो, उस म आगे फलक ह एवं पीछे हजार पंख ह. (७) तेन तोतृ य आ भर नृ यो ना र यो अ वे. स ो जात ऋभु र.. (८) हे इं ! हम तोता , हमारे पु और हमारी नग रय के भोग के लए उसी बाण क सहायता से पया त धन ले आओ. तुम ज म के समय ही वशाल एवं थर थे. (८) एता यौ ना न ते कृता व ष ा न परीणसा. दा वीड् वधारयः.. (९) हे इं ! तुमने इन उ कृ , अ तशय बढ़े ए एवं चार ओर फैले पवत को बनाया है. तुम इ ह बु म थर प से धारण करो. (९) व े ा व णुराभर म वे षतः. शतं म हषा ीरपाकमोदनं वराह म एमुषम्.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आकाश म घूमने वाले एवं तु हारे ारा े रत आ द य तु हारे ारा बनाए जल संसार को दे ते ह. इं ने सौ भस, ध के साथ पका आ भात एवं जल चुराने वाला बादल बनाया. (१०) तु व ं ते सुकृतं सूमयं धनुः साधुबु दो हर ययः. उभा ते बा र या सुसं कृत ऋ पे च वृधा.. (११) हे इं ! तु हारा धनुष अनेक बाण फकने वाला, भली कार बना आ एवं सुखदाता है तथा तु हारा बाण सोने का है. तु हारी भुजाएं रमणीय, भली कार अलंकृत एवं यु म हनन करने वाली ह. (११)
दे वता—इं
सू —६७ पुरोळाशं नो अ धस इ
सह मा भर. शता च शूर गोनाम्.. (१)
हे इं ! हमारे दए ए पुरोडाश अ को वीकृत करके हम सौ और हजार गाएं दो. (१) आ नो भर
नं गाम म य
नम्. सचा मना हर यया.. (२)
हे इं ! हम सोने के मनोहर अलंकार के साथ गाएं, घोड़े और तेल दो. (२) उत नः कणशोभना पु
ण धृ णवा भर. वं ह शृ वषे वसो.. (३)
हे श ु को न करने वाले एवं नवास थान दे ने वाले इं ! हमने तु हारा यश सुना है. तुम हम ब त से कान के गहने दो. (३) नक वृधीक इ
ते न सुषा न सुदा उत. ना य व छू र वाघतः.. (४)
हे शूर इं ! तु हारे अ त र कोई भी बढ़ाने वाला नह है. तु हारे अ त र कोई भी सं ाम म सहायता करने वाला एवं उ म दाता नह है. तु हारे अ त र यजमान का कोई इं नह है. (४) नक म ो नकतवे न श ः प रश वे. व ं शृणो त प य त.. (५) श शाली इं कसी का न तर कार करते ह और न कसी से परा जत हो सकते ह. इं संसार को सुनते और दे खते ह. (५) स म युं म यानामद धो न चक षते. पुरा नद क षते.. (६) अपराजेय इं कसी के भी को थान नह दे ते. (६)
त मन म
ोध नह करते. इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नदा के पूव मन म नदा
व इ पूणमुदरं तुर या त वधतः. वृ नः सोमपा नः.. (७) शी ता करने वाले, वृ नाशक एवं सोमरस पीने वाले इं का उदर यजमान के य से ही पूण है. (७) वे वसू न स ता व ा च सोम सौभगा. सुदा वप रह्वृता.. (८) हे सोमरस पीने वाले इं ! हमारे अ भल षत पदाथ तु हारे पास एक ह. तुम म सभी सौभा य म लत ह. तु हारे शोभन दान कु टलतार हत होते ह. (८) वा म वयुमम कामो ग ु हर ययुः. वाम युरेषते.. (९) (९)
हे इं ! मेरा मन जौ, गाय, सोने और घोड़े का अ भलाषी बनकर तु हारे समीप जाता है. तवे द ाहमाशसा ह ते दा ं चना ददे . दन य वा मघव स भृत य वा पू ध यव य का शना.. (१०)
हे इं ! तु हारी आशा करके ही म हाथ म दरांत धारण करता ं. तुम पहले दन काटे और साफ कए जौ से मेरी मुट्ठ पूरी करो. (१०)
दे वता—सोम
सू —६८ अयं कृ नुरगृभीतो व ज
द सोमः. ऋ ष व ः का ेन.. (१)
ये सोम सब कुछ करने वाले, अ ारा गृहीत न होने वाले, सबके नेता, फल को उ प करने वाले, ानवान्, मेधावी एवं तो ारा पू य ह. (१) अ यूण त य नं भष
व ं य ुरम्. ेम धः य ः ोणो भूत्.. (२)
सोम नंग को ढकते ह एवं सभी रो गय क च क सा करते ह. सोम ऊंचे होने पर भी दे खते ह और लूले होकर भी चलते ह. (२) वं सोम तनूकृद् यो े षो योऽ यकृते यः. उ य ता स व थम्.. (३) हे सोम! तुम शरीर का छे दन करने वाले अ य रा स के करते हो. (३)
य काय से हमारी र ा
वं च ी तव द ै दव आ पृ थ ा ऋजी षन्. यावीरघ य चद् े षः.. (४) हे ऋजीष वाले सोम! तुम अपनी जा और बल
ारा ुलोक एवं धरती से हम मारने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले श ु के काय को अलग करो. (४) अ थनो य त चेदथ ग छा न
षो रा तम्. ववृ यु तृ यतः कामम्.. (५)
य द धन क अ भलाषा करने वाले धनी के पास जाते ह तो उ ह दान ा त होता है एवं मांगने वाले क अ भलाषा पूरी होती है. (५) वद पू
न मुद मृतायुमीरयत्. ेमायु तारीदतीणम्.. (६)
जब कोई अपना ाचीन काल म न आ धन ा त करता है उस समय सोम उसे य काय क ेरणा दे ते ह एवं द घ जीवन ा त कराते ह. (६) सुशेवो नो मृळयाकुर त तुरवातः. भवा नः सोम शं दे .. (७) हे पए ए सोम! तुम हमारे दय म शोभन सुख वाले, सुखदाता सावधान बु ग तहीन एवं क याणकारी होते हो. (७)
वाले,
मा नः सोम सं वी वजो मा व बी भषथा राजन्. मा नो हा द वषा वधीः.. (८) हे राजा सोम! हम तुम चंचल अंग वाला एवं भयभीत मत बनाओ. तुम काश ारा हमारे दय का वध मत करो. (८) अव य वे सध थे दे वानां मतीरी े. राज प षः सेध मीढ् वो अप धः सेध.. (९) हे राजा सोम! तु हारे नवास थान म दे व क कोपबु र करो. सोमरस पलाने वाले, हसक को मारो. (९)
को
दे वता—इं
सू —६९ न १ यं बळाकरं म डतारं शत तो. तवं न इ हे इं ! म तु हारे अ त र प ंचाओ. (१) यो नः श
वेश न करे. तुम श ु
मृळय.. (१)
कसी सुखदाता को नह मानता. तुम ही मुझे सुख
पुरा वथाऽमृ ो वाजसातये. स वं न इ
मृळय.. (२)
जन हसार हत इं ने ाचीन काल म अ पाने के लए हमारी र ा क थी, वह हम सदा सुखी कर. (२) कम र चोदनः सु वान या वतेद स. कु व
व
णः शकः.. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे आराधक को े रत करने वाले इं ! तुम सोमरस नचोड़ने वाले क र ा करो. तुम हम ब त धन वाला बनाओ. (३) इ
णो रथमव प ा च स तम वः. पुर तादे नं मे कृ ध.. (४)
हे व धारी इं ! तुम हमारे पीछे खड़े ए रथ क र ा करो एवं उसे सामने लाओ. (४) ह तो नु कमाससे थमं नो रथं कृ ध. उपमं वाजयु वः.. (५) हे श ुहंता इं ! तुम इस समय चुप य हो? तुम हमारे रथ को सव मुख बनाओ. हमारा अ भल षत अ तु हारे पास है. (५) अवा नो वाजयुं रथं सुकरं ते क म प र. अ मा तसु ज युष कृ ध.. (६) हे इं ! हमारे अ चाहने वाले रथ क र ा करो. तु हारे लए कौन सा काम सुकर नह है? तुम हम सं ाम म सुखपूवक जीतने वाला बनाओ. (६) इ
व पूर स भ ा त ए त न कृतम्. इयं धीऋ वयावती.. (७)
हे इं ! तुम ढ़ बनो. तुम अ भलाषा पूरी करने वाले हो. य क याणका रणी तु त तु ह ा त होती है. (७)
संपादन करने वाली
मा सीमव आ भागुव का ा हतं धनम्. अपावृ ा अर नयः.. (८) हे इं ! नदनीयहमारे पास न आवे. व तृत दशा हो एवं श ु न हो जाव. (८)
म छपा आ धन हमारा
तुरीयं नाम य यं यदा कर त म स. आ द प तन ओहसे.. (९) हे इं ! जब तुमने अपना चौथा नाम ‘य य’ धारण कया, तभी हमने य क कामना क . तुम ही हमारे पालक और र क हो. (९) अवीवृध ो अमृता अम द दे क ूदवा उत या दे वीः. त मा उ राधः कृणुत श तं ातम ू धयावसुजग यात्.. (१०) हे मरणर हत दे वो! एक ु ऋ ष अपनी तु त ारा तु ह और तु हारी प नय को बढ़ाता एवं स करता है. तुम हम अ धक धन दो. य कम प धन वाले इं ातःकाल शी जाव. (१०)
सू —७०
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ तू न इ
ुम तं च ं ाभं सं गृभाय. महाह ती द णेन.. (१)
हे बड़े हाथ वाले इं ! तुम हम दे ने के लए तु त यो य, व च और हण करने यो य धन अपने दा हने हाथ म धारण करो. (१) व ा ह वा तु वकू म तु वदे णं तुवीमघम्. तु वमा मवो भः.. (२) हे अनेक कम वाले, अ धक दे ने वाले, अ धक के वामी एवं वशाल र ासाधन वाले इं ! हम तु ह जानते ह. (२) न ह वा शूर दे वा न मतासो द स तम्. भीमं न गां वारय ते.. (३) हे शूर इं ! जब तुम दान क इ छा करते हो तो दे वता तथा मनु य तु ह उसी कार नह रोक सकते, जस कार भयानक बैल को नह रोका जा सकता. (३) एतो व ं तवामेशानं व वः वराजम्. न राधसा म धष ः.. (४) हे सेवको! आओ और इं क तु त करो. इं धन के वामी एवं द तशाली ह. इं धन के ारा हम बाधा न द. (४) तोष प गा सष
व साम गीयमानम्. अ भ राधसा जुगुरत्.. (५)
हे ऋ वजो! इं तु हारी तु त क शंसा कर एवं उसी के अनु प गीत गाएं. इं गाया जाता आ साम सुन एवं धनयु होकर हमारे ऊपर कृपा कर. (५) आ नो भर द णेना भ स ेन
मृश. इ
मा नो वसो नभाक्.. (६)
हे इं ! हमारा भरण करो, दा हने एवं बाएं हाथ से हम धन दो तथा हम धन से र मत करो. (६) उप
म वा भर धृषता धृ णो जनानाम्. अदाशू र य वेदः.. (७)
हे इं ! तुम धन के समीप जाओ. हे श ुधषक इं ! तुम दान न करने वाले का धन हम दो. (७) इ
य उ नु ते अ त वाजो व े भः स न वः. अ मा भः सु तं सनु ह.. (८)
हे इं ! तु हारा जो धन ा ण दो. (८) स ोजुव ते वाजा अ म यं व
ारा ा त करने यो य है, हमारे मांगने पर वह धन हम ाः. वशै म ू जर ते.. (९)
हे इं ! सबको स करने वाले तु हारे अ हमारे पास शी आव. हमारे तोता अनेक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भलाषा
से यु
होकर शी तु हारी तु त कर. (९)
दे वता—इं
सू —७१ आ (१)
व परावतोऽवावत वृ हन्. म वः
त भम ण.. (१)
हे वृ हंता इं ! य म नशीले सोमरस के
त तुम र और पास के थान से आओ.
ती ाः सोमास आ ग ह सुतासो माद य णवः पबा दधृ यथो चषे.. (२) हे इं ! तेज नशा करने वाला सोमरस नचोड़ा गया है. तुम हमारे य म आओ, सोमरस पओ एवं उससे स होकर उसक सेवा करो. (२) इषा म द वा तेऽरं वराय म यवे. भुव इ
शं दे .. (३)
हे इं ! सोमरस पी अ के ारा तुम स बनो. वह तुम म श ु नवारक करने के लए पया त हो. सोम तु हारे दय म सुख उ प करे. (३)
ोध उ प
आ वश वा ग ह यु१ था न च यसे. उपमे रोचने दवः.. (४) हे श ुर हत इं ! शी आओ. तोता उ थ मं म बुलाते ह. (४) तु यायम
भः सुतो गो भः ीतो मदाय कम्.
ारा तु ह ुलोक के दे व से द त य सोम इ
यते..(५)
हे इं ! तु हारे लए यह सोमरस प थर क सहायता से नचोड़ा गया है एवं गाय का ध मलाकर उसे तु हारे सुख के लए य म होम कया जा रहा है. (५) इ
ु ध सु मे हवम मे सुत य गोमतः. व पी त तृ तम ु ह.. (६)
हे इं ! मेरी पुकार सुनो, हमारे ारा नचोड़े गए गो ध म त सोमरस को पओ तथा व वध कार क स ता अनुभव करो. (६) यइ
चमसे वा सोम मूषु ते सुतः. पबेद य वमी शषे.. (७)
हे इं ! जो सोमरस चमस एवं चमू नामक पा तुम इसके वामी हो. (७)
म रखा आ है, उसे तुम पओ, य क
यो अ सु च मा इव सोम मूषु द शे. पबेद य वमी शषे.. (८) हे इं ! चमू नामक पा म सोमरस इस कार दखाई दे ता है, जैसे जल म चं द खता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. तुम इसे पओ, य क तुम इसके वामी हो. (८) यं ते येनः पदाभर रो रजां य पृतम्. पबेद य वमी शषे.. (९) हे इं ! बाज प ी का प धारण करने वाली गाय ी अंत र के र क का तर कार करके श ु ारा न छु ए गए जस सोमरस को पैर ारा लाई थी, उसे तुम पओ, य क तुम उसके वामी हो. (९)
दे वता— व ेदेव
सू —७२
दे वाना मदवो मह दा वृणीमहे वयम्. वृ णाम म यमूतये.. (१) हे अ भलाषापूरक दे वो! हम अपने य के उ े य से तु हारी वशाल र ा पाने के लए ाथना करते ह. (१) ते नः स तु युजः सदा व णो म ो अयमा. वृधास
चेतसः.. (२)
हे दे वो! शोभन तु त वाले एवं हमारे धनवधक व ण, म एवं अयमा हमारे सहायक ह . (२) अ त नो व पता पु नौ भरपो न पषथ. यूयमृत य र यः.. (३) हे य के नेता दे वो! जस कार नाव जल के पार ले जाती है, उसी कार तुम हम वशाल श ुसेना के पार ले जाओ. (३) वामं नो अ वयम वामं व ण शं यम्. वामं
ावृणीमहे.. (४)
हे अयमा दे व! हम अपनाने यो य धन दो. हे व ण! हमारे पास सबके करने यो य धन हो. हम तुमसे धन मांगते ह. (४)
ारा शंसा
वाम य ह चेतस ईशानासो रशादसः. नेमा द या अघ य यत्.. (५) हे उ म ान वाले एवं श ु को भगाने वाले दे व ! तुम उ म धन के वामी हो. हे आ द यो! वह धन हमारे पास न आए जो पाप ारा कमाया गया हो. (५) वय म ः सुदानवः
य तो या तो अ व ा. दे वा वृधाय महे.. (६)
हे शोभनदान वाले दे वो! हम चाहे अ नहो हेतु घर म रहते ह अथवा स मधाएं लाने हेतु माग म ह , हम तु ह ह ारा बढ़ने के लए बुलाते ह. (६) अ ध न इ ै षां व णो सजा यानाम्. इता म तो अ ना.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! व णु, म द्गण एवं अ नीकुमारो! समान जा त वाले लोग म तुम हमारे ही पास आओ. (७) ातृ वं सुदानवोऽध
ता समा या. मातुगभ भरामहे.. (८)
हे शोभनदान वाले दे वो! हम समान प से तु हारी माता के गभ से दो-दो के उ प होना कट करगे. इसके बाद आपक बंधुता स करगे. (८) यूयं ह ा सुदानव इ
ये ा अ भ वः. अधा च उत ुवे.. (९)
हे शोभनदान वाले एवं द तशाली दे वो! इं तुम म बड़े ह. तुम मेरे य तु हारी बार-बार तु त करता ं. (९)
म बैठो. म
दे वता—अ न
सू —७३ े ं वो अ त थ तुषे म मव हे यजमानो! म तु हारे करता ं. (१)
पम
यम्. अ नं रथं न वे म्.. (१)
यतम, अ त थ तथा रथ के समान धनवाहक अ न क तु त
क व मव चेतसं यं दे वासो अध
ता. न म य वादधुः.. (२)
इं आ द दे व ने मनु य म जस अ न को दो प से था पत कया है एवं जो कृ ानी पु ष के समान ह, उन अ न क म तु त करता ं. (२) वं य व दाशुषो नॄँ: पा ह शृणुधी गरः. र ा तोकमुत मना.. (३) हे अ तशय युवा अ न! तुम ह दे ने वाले यजमान का पालन करो. हमारी तु तयां सुनो और वयं ही हमारी संतान क र ा करो. (३) कया ते अ ने अ र ऊज नपा प तु तम्. वराय दे व म यवे.. (४) हे सव ग तशील एवं श के पु अ न! तुम सबके वरण करने यो य एवं श ु अपमान करने वाले हो. म कस तो ारा तु हारी तु त क ं . (४) दाशेम क य मनसा य
का
य सहसो यहो. क वोच इदं नमः.. (५)
हे बल के पु अ न! हम कस कार यजमान के मन के अनुकूल ह नम कार कब बोलू? ं (५) अधा वं ह न करो व ा अ म यं सु तीः. वाज वणसो गरः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु ह द? म यह
हे अ न! तुम ही हमारी तु तयां सुनकर हम उ म धन, घर एवं अ
दान करो. (६)
क य नूनं परीणसो धयो ज व स द पते. गोषाता य य ते गरः.. (७) हे गाहप य अ न! तुम इस समय कसके व च य कम से स होते हो? तु हारी तु तयां गाय का लाभ कराने वाली होती ह. (७) तं मजय त सु तुं पुरोयावानमा जषु. वेषु येषु वा जनम्.. (८) श
यजमान अपनी य शाला म शोभन बु शाली अ न क पूजा करते ह. (८)
वाले, यु
म आगे चलने वाले एवं
े त ेमे भः साधु भन कय न त ह त यः. अ ने सुवीर एधते.. (९) हे अ न! जो मारता. जो अपने श ु
सू —७४
उ म र ासाधन के साथ अपने घर म रहता है, उसे कोई नह को वयं मारता है, वह शोभन संतान के साथ बढ़ता है. (९)
दे वता—अ नीकुमार
आ मे हवं नास या ना ग छतं युवम्. म यः सोम य पीतये.. (१) स य व प अ नीकुमारो! तुम मेरी पुकार सुनकर मधुर सोमरस पीने के लए मेरे य म आओ. (१) इमं मे तोमम नेमं मे शृणुतं हवम्. म वः सोम य पीतये.. (२) (२)
हे अ नीकुमारो! मधुर सोमरस पीने के लए मेरी इन तु तय एवं पुकार को सुनो. अयं वां कृ णो अ ना हवते वा जनीवसू. म वः सोम य पीतये.. (३)
हे अ यु धन के वामी अ नीकुमारो! यह कृ ण नामक ऋ ष मधुर सोमरस पीने के लए तु ह बुलाता है. (३) शृणुतं ज रतुहवं कृ ण य तुवतो नरा. म वः सोम य पीतये.. (४) हे नेता अ नीकुमारो! तु त करने वाले कृ ण ऋ ष क पुकार सुनो और मधुर सोमरस पीने के लए आओ. (४) छ दय तमदा यं व ाय तुवते नरा. म वः सोम य पीतये.. (५) हे नेता अ नीकुमारो! तु त करने वाले ा ण कृ ण के लए श ु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क हसा से
र हत घर दो एवं सोमरस पीने के लए आओ. (५) ग छतं दाशुषो गृह म था तुवतो अ ना. म वः सोम य पीतये.. (६) हे अ नीकुमारो! इस कार तु त करते ए तोता के घर तुम मधुर सोमरस पीने के लए जाओ. (६) यु
ाथां रासभं रथे वीड् व े वृष वसू. म वः सोम य पीतये.. (७)
हे अ भलाषापूरक धन वाले अ नीकुमारो! मधुर सोमरस पीने के लए ढ़ अंग वाले अपने रथ म गध को जोड़ो. (७) व धुरेण
वृता रथेना यातम ना. म वः सोम य पीतये.. (८)
हे अ नीकुमारो! मधुर सोमरस पीने के लए तीन वंधुरा क सहायता से आओ. (८)
तथा तीन कोन वाले रथ
नू मे गरो नास या ना ावतं युवम्. म वः सोम य पीतये.. (९) हे स य व प अ नीकुमारो! तुम मधुर सोमरस पीने के लए मेरे तु तवचन क ओर ज द आओ. (९)
सू —७५
दे वता—अ नीकुमार
उभा ह द ा भषजा मयोभुवोभा द य वचसो बभूवथुः. ता वां व को हवते तनूकृथे मा नो व यौ ं स या मुमोचतम्.. (१) हे दशनीय दे व के वै एवं सुख दे ने वाले अ नीकुमारो! तुम लोग द ारा क गई उप थ त के समय उप थत थे. म व क नामक ऋ ष तु ह संतान ा त के उ े य से बुलाता ं. हम ऋ षय और तोता क म ता मत तोड़ना. तुम अपने घोड़े यहां आकर रथ से अलग करो. (१) कथा नूनं वां वमना उ तव ुवं धयं ददथुव य इ ये. ता वां व को हवते तनूकृथे मा नो व यौ ंस या मुमोचतम्.. (२) हे अ नीकुमारो! वमना नामक ऋ ष ने कस कार तु हारी तु त क थी, क तुमने उसे धन दे ने के लए अपने मन म न य कया? उसी कार म व क ऋ ष तु ह बुलाता ं. हमारी म ता न छू टे . यहां आकर तुम अपने घोड़ क लगाम अलग करो. (२) युवं ह मा पु भुजेममेधतुं व णा वे ददथुव य इ ये. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता वां व को हवते तनूकृथे मा नो व यौ ं स या मुमोचतम्.. (३) हे ब त का पालन करने वाले अ नीकुमारो! मेरे पु व णायु को धन दे ने क इ छा से तुमने धन दया था. म अ क ऋ ष संतान पाने के उ े य से तु ह बुलाता ं. हमारी म ता न मत करना. तुम यहां आकर अपने घोड़ क लगाम अलग करो. (३) उत यं वीरं धनसामृजी षणं रे च स तमवसे हवामहे. य य वा द ा सुम तः पतुयथा मा नो व यौ ं स या मुमोचतम्.. (४) हे अ नीकुमारो! हम वीर, धन का उपभोग करने वाले, ऋजीश यु एवं र थत व णायु को बुलाते ह. उसक तु त भी मुझ पता के समान ही सरस है. हमारी म ता को अलग मत करो. तुम यहां आकर अपने घोड़ क लगाम अलग करो. (४) ऋतेन दे वः स वता शमायत ऋत य शृ मु वया व प थे. ऋतं सासाह म ह च पृत यतो मा नो व यौ ं स या मुमोचतम्.. (५) हे अ नीकुमारो! स य के ारा सूय अपनी करण शांत करते ह. उसके बाद वे स य के स ग के समान अपनी करण का व तार करते ह. सूय यु करने वाले श ु को वा तव म परा जत करते ह. हमारी म ता अलग न हो. तुम यहां आकर अपने घोड़ो क लगाम अलग करो. (५)
दे वता—अ नीकुमार
सू —७६
ु नी वां तोमो अ ना वन सेक आ गतम्. म वः सुत य स द व यो नरा पातं गौरा ववे रणे.. (१) हे अ नीकुमारो! ु नीक तु हारा तोता है. वषा ऋतु म जस कार कुएं का पानी पास आ जाता है, उसी कार तुम आओ. हे नेताओ! यह तोता द तशाली य म नशीले सोमरस को य समझता है. गौर मृग जस कार तालाब म पानी पीता है, उसी कार तुम सोमरस पओ. (१) पबतं घम मधुम तम ना ब हः सीदतं नरा. ता म दसाना मनुषो रोण आ न पातं वेदसा वयः.. (२) हे अ नीकुमारो! मधुर एवं पा म टपकने वाले सोमरस को पओ. हे नेताओ! य के कुश पर बैठो. तुम यजमान क य शाला म स होकर पुरोडाश आ द के साथ सोमरस पओ. (२) आ वां व ा भ
त भः
यमेधा अ षत.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता व तयातमुप वृ ब हषो जु ं य ं द व षु.. (३) हे अ नीकुमारो! य को ेम करने वाला यजमान तु ह सम त र ासाधन के साथ बुलाता है. कुश बछाने वाले यजमान का जो ह सब दे व वीकार करते ह, उसे वीकार करने के लए तुम ातःकाल आओ. (३) पबतं सोमं मधुम तम ना ब हः सीदतं सुमत्. ता वावृधाना उप सु ु त दवो ग तं गौरा ववे रणम्.. (४) हे अ नीकुमारो! मधुर सोमरस पओ एवं शोभन कुश पर बैठो. गौर मृग जस कार पानी पीने के लए तालाब पर आते ह, उसी कार तुम बढ़कर हमारी तु त क ओर आओ. (४) आ नूनं यातम ना े भः ु षत सु भः. द ा हर यवतनी शुभ पती पातं सोममृतावृधा.. (५) हे अ नीकुमारो! तुम द तशाली पवाले घोड़ के साथ यहां आओ. हे दशनीय सोने के रथ वाले, जल के वामी एवं य क वृ करने वाले अ नीकुमारो! सोमरस पओ. (५) वयं ह वां हवामहे वप यवा व ासो वाजसातये. ता व गू द ा पु दं ससा धया ना ु ा गतम्.. (६) हम तोता एवं ा ण लोग अ पाने के लए तु ह बुलाते ह. हे दशनीय एवं व वध कम वाले अ नीकुमारो! तुम हमारी तु त सुनकर शी आओ. (६)
सू —७७
दे वता—इं
तं वो द ममृतीषहं वसोम दानम धसः. अ भ व सं न वसरेषु धेनव इ ं गी भनवामहे.. (१) हम दशनीय, श ु को परा जत करने वाले, नवास थान दे ने वाले एवं सोमरस पीकर स बने ए इं को तु तय ारा इस कार बुलाते ह, जस कार गाएं गोशाला म इं को बुलाती ह. (१) ु ं सुदानुं त वषी भरावृतं ग र न पु भोजसम्. ुम तं वाजं श तनं सह णं म ू गोम तमीमहे.. (२) हम द तशाली, शोभन-दान वाले, बल से यु तथा पवत के समान अनेक लोग का पालन करने वाले, इं से बोलने वाले पु -पौ , हजार एवं सैकड़ धन से यु गाएं एवं अ शी मांगते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न वा बृह तो अ यो वर त इ वीळवः. य स स तुवते मावते वसु न क दा मना त ते.. (३) हे इं ! वशाल एवं ढ़ पवत भी तु ह नह रोक पाते. मुझ जैसे तोता को तुम जो धन दे ना चाहते हो, तु ह उससे कोई नह रोक सकता. (३) यो ा स वा शवसोत दं सना व ा जाता भ म मना. आ वायमक ऊतये ववत त यं गोतमा अजीजनन्.. (४) हे इं ! ान एवं बल के ारा तुम श ु का संहार करते हो. तुम अपने कम एवं बल से सभी ा णय को हराते हो. तु हारी पूजा करने वाला यह तोता अपनी र ा के न म तु हारी सेवा म लगता है. गौतम वंश के ऋ षय ने तु ह अपने य म कट कया है. (४) ह र र ओजसा दवो अ ते य प र. न वा व ाच रज इ पा थवमनु वधां वव थ.. (५) हे इं ! तुम अपने बल ारा ुलोक से भी महान् बनते हो. मृ युलोक तु ह कर पाता. तुम हमारा ह -अ वहन करने क इ छा करो. (५)
ा त नह
न कः प र मघव मघ य ते य ाशुषे दश य स. अ माकं बो युचथ य चो दता मं ह ो वाजसातये.. (६) हे धन वामी इं ! तुम ह दाता यजमान को जो धन दे ते हो, उससे तु ह कोई नह रोक पाता. तुम अ तशय दानशील एवं धन के ेरक बनकर मुझ उच य ऋ ष का तो सुनो. (६)
सू —७८
दे वता—इं
बृह द ाय गायत म तो वृ ह तमम्. येन यो तरजनय ृतावृधो दे वं दे वाय जागृ व.. (१) हे म तो! इं के लए पाप न करने वाले एवं वशाल साममं का गायन करो. य वधक दे व ने सामगान के ारा इं के लए द तयु एवं जागरणशील यो त के प म सूय को बनाया. (१) अपाधमद भश तीरश तहाथे ो ु याभवत्. दे वा त इ स याय ये मरे बृह ानो म द्गण.. (२) तो न करने वाले लोग को मारने वाले इं ने श ु ारा होने वाली हसा र क . इसके प ात् इं यश वी बने. हे वशाल द तयु एवं म त स हत इं ! सभी दे व ने तु ह अपनी म ता के लए पाया. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व इ ाय बृहते म तो ाचत. वृ ं हन त वृ हा शत तुव ेण शतपवणा.. (३) हे म तो! महान् इं के लए तो बोलो. शत तु एवं वृ हंता इं ने सौ धार वाले व से वृ असुर का नाश कया. (३) अ भ भर धृषता धृष मनः व े असद् बृहत्. अष वापो जवसा व मातरो हनो वृ ं जया वः.. (४) हे श ु को हराने के लए ढ़ न य इं ! तु हारा अ महान् है. ढ़ दय ारा वह धन तुम हम दो. हमारी माता के समान जल तेजी के साथ भू मय पर जावे. तुम जल रोकने वाले वृ असुर का नाश करो तथा अपने आपको जीतो. (४) य जायथा अपू मघव वृ ह याय. त पृ थवीम थय तद त ना उत ाम्.. (५) हे अभूतपूव एवं धन वामी इं ! जब वृ क ह या करने के लए तुमने धरती को ढ़ एवं ुलोक को व कया. (५) त े य ो अजायत तदक उत ह कृ तः. त म भभूर स य जातं य च ज वम्.. (६) हे इं ! उस समय तु हारे लए यश एवं स तादायक मं उ प उ प एवं भ व य म ज म लेने वाले संसार को परा जत कया. (६)
ए. उस समय तुमने
आमासु प वमैरय आ सूय रोहयो द व. घम न साम तपता सुवृ भजु ं गवणसे बृहत्.. (७) हे इं ! उस समय तुमने क ची उ वाली गाय को धा बनाया एवं सूय को ुलोक म चढ़ाया. हे तोताओ! साममं ारा जस कार सोमरस को बढ़ाया जाता है, उसी कार तु तय ारा इं को बढ़ाओ. तु त के यो य इं के लए व तृत एवं ी तकर साममं गाओ. (७)
सू —७९
दे वता—इं
आ नो व ासु ह इ ः सम सु भूषतु. उप ा ण सवना न वृ हा परम या ऋचीषमः.. (१) सभी यु म बुलाने यो य इं हमारी तु तय का अनुभव कर. इं वृ नाशक, वशाल या वाले एवं तु तय ारा अ भमुख करने यो य ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं दाता थमो राधसाम य स स य ईशानकृत्. तु व ु न य यु या वृणीमहे पु य शवसो महः.. (२) हे इं ! तुम सबसे मु य, धनदाता एवं स य हो. तुम तोता को ऐ य वाला बनाओ. हे ब त धन वाले, बल के पु एवं महान् इं ! हम तु हारे यो य धन को वरण करते ह. (२) ा त इ गवणः य ते अन त ता. इमा जुष व हय योजने या ते अम म ह.. (३) हे तु त यो य एवं ह र नामक अ वाले इं ! हम तु हारे गुण से पूण तु तयां करते ह. वे तुमसे मलने यो य ह. उ ह तुम वीकार करो. हम तु हारे लए जतनी तु तयां कर रहे ह, उ ह वीकार करो. (३) वं ह स यो मघव नानतो वृ ा भू र यृ से. स वं श व व ह त दाशुषेऽवा चं र यमा कृ ध.. (४) हे स यशील, धन वामी एवं कसी से न दबने वाले इं ! तुम अनेक रा स का नाश करते हो. हे हाथ म व धारण करने वाले एवं अ तशय श शाली इं ! तुम ह दाता यजमान को सामने जाने वाला धन दो. (४) व म यशा अ यृजीषी शवस पते. वं वृ ा ण हं य ती येक इदनु ा चषणीधृता.. (५) हे श के वामी एवं ऋषीज के अ धकारी इं ! तुम यश वी बनो. तुमने अकेले ही श ु क हसा करने वाले व ारा ऐसे रा स को मारा जन पर न कोई आ मण कर सकता था और न ज ह कोई जीत सकता था. (५) तमु वा नूनमसुर चेतसं राधो भाग मवेमहे. महीव कृ ः शरणा त इ ते सु ना नो अ वन्.. (६) हे श शाली एवं उ म ान वाले इं ! हम तुमसे पैतृक संप के समान धन मांगते ह. तु हारा घर तु हारे यश के समान वशाल प से अंत र म थत है. तु हारे सुख हम ा त कर. (६)
सू —८०
दे वता—इं
क या३ वारवायती सोमम प ुता वदत्. अ तं भर य वी द ाय सुनवै वा श ाय सुनवै वा.. (१) जल क ओर नान हेतु जाती ई क या अपाला ने माग म सोमलता ा त क . उसने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमलता को घर लाते समय कहा—“म श (१)
शाली इं के लए तु हारा रस नचोड़ती ं.”
असौ य ए ष वीरको गृहंगृहं वचाकशत्. इमं ज भसुतं पब धानाव तं कर भणमपूपव तमु थनम्.. (२) हे वीर एवं द तशाली इं ! तुम सोमरस पीने के लए सभी घर म जाते हो. भुने ए जौ (स )ू , पुरोडाश एवं उ थ मं से यु सोमरस को पओ जो मने अपने दांत से नचोड़ा है. (२) आ चन वा च क सामोऽ ध चन वा नेम स. शनै रव शनकै रवे ाये दो प र व.. (३) हे इं ! म तु ह जानना चाहती ं. इस समय म तु ह ा त नह करती ं. हे सोम! मेरे दांत से दबकर तुम पहले धीरे-धीरे एवं बाद म जोर से बहो. (३) कु व छक कु व कर कु व ो व यस करत्. कु व प त षो यती र े ण स मामहै.. (४) वे इं मुझ अपाला को अनेक बार समथ कर एवं ब त बार धनसंप बनाव. वचारोग के कारण प त ारा छोड़ी ई म इं से मलती ं. (४) इमा न ी ण व पा तानी
व रोहय. शर तत योवरामा ददं म उपोदरे.. (५)
हे इं ! मेरे पता के केशर हत शीश, खेत और मेरे उदर के नीचे वाले थान इन तीन को उपजाऊ बनाओ. (५) असौ च या न उवरा दमां त वं१ मम. अथो तत य य छरः सवा ता रोमशा कृ ध.. (६) हे इं ! मेरे पता का जो ऊसर खेत है, मेरे शरीर का जो वचादोष के कारण लोमर हत गोपनीय थान है एवं मेरे पता का जो सर है, इन म खेत को उपजाऊ एवं शेष दो को बाल से यु बनाओ. (६) खे रथ य खेऽनसः खे युग य शत तो. अपाला म पू कृणोः सूय वचम्.. (७) हे सौ य वाले इं ! तुमने रथ के बड़े छे द, गाड़ी के मंझोले छे द एवं जुए के छे द से नकाल कर अपाला क वचा को सूय के समान भायु कया. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८१
दे वता—इं
पा तमा वो अ धस इ म भ गायत. व ासाहं शत तुं मं ह ं चषणीनाम्.. (१) हे ऋ वजो! सोमरस पीने वाले अपने इं क वशेष प से तु त करो. इं सभी श ु को हराने वाले, सौ य करने वाले एवं जा को सवा धक धन दे ने वाले ह. (१) पु
तं पु
ु तं गाथा यं१ सन ुतम्. इ
इ त वीतन.. (२)
हे ऋ वजो! तुम अनेक लोग ारा बुलाए ए, ब त से लोग यो य एवं सनातन प से स दे व वशेष को इं कहना. (२) इ
ारा तु त, य गान के
इ ो महानां दाता वाजानां नृतुः. महाँ अ भ वा यमत्.. (३)
हम महान् अ दे ने वाले, ब सं यक धन दे ने वाले और सबको बचाने वाले इं हमारे सामने आकर धन दान कर. (३) अपा
श य धसः सुद
य हो षणः. इ दो र ो यवा शरः.. (४)
शोभन ना सका वाले इं ने भली कार होम करने वाले सुद नामक ऋ ष के दए ए सोमरस को पया था, जो भुने ए जौ से मला तथा पा म नचुड़ रहा था. (४) त व भ ाचते ं सोम य पीतये. त द य य वधनम्.. (५) हे ऋ वजो! सोमरस पीने के लए इं सोमपान ही इं को बढ़ाता है. (५)
के सामने जाकर उनक
तु त करो. वह
अ य पी वा मदानां दे वो दे व यौजसा. व ा भ भुवना भुवत्.. (६) द तशाली इं सोम के नशीले रस को पीकर अपनी श परा जत करते ह. (६)
ारा सारे संसार को
यमु वः स ासाहं व ासु गी वायतम्. आ यावय यूतये.. (७) हे तोता! ब त को परा जत करने वाले एवं सभी तु तवचन म लए भली कार बुलाओ. (७)
ा त इं को र ा के
यु मं स तमनवाणं सोमपामनप युतम्. नरमवाय तुम्.. (८) श ुसंहारक, स ा वाले, अ य ारा अना ांत, सोमरस पीने वाले, यु अपरा जत एवं नेता इं को कोई बाधा नह प ंचा सकता. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मश ु
ारा
श ाणइ
राय आ पु
व ाँ ऋचीषम. अवा नः पाय धने.. (९)
हे तु त ारा संबोधन करने यो य एवं व ान् इं ! श ु बार दो. (९) अत (१०)
द
का धन लेकर हम अनेक
ण उपा या ह शतवाजया. इषा सह वाजया.. (१०)
हे इं ! ुलोक से ही सैकड़ अ अयाम धीवतो धीयोऽव
ःश
एवं हजार श
य से यु
गोदरे. जयेम पृ सु व
होकर हमारे पास आओ.
वः.. (११)
हे समथ इं ! य कमयु हम यु म श ु को जीतने के लए य करगे. हे पवत को वद ण करने वाले एवं व धारी इं ! हम यु म घोड़ के ारा वजयी बनगे. (११) वयमु वा शत तो गावो न यवसे वा. उ थेषु रणयाम स.. (१२) हे अनेक कम वाले इं ! गोपाल गाय को जस कार जौ के खेत म वशेष स करता है, उसी कार हम तु ह उ थ ारा स करगे. (१२) व ा ह म य वनानुकामा शत तो. अग म व
प से
ाशसः.. (१३)
हे सौ य वाले इं ! संसार के सभी लोग इ छाएं रखते ह. हे व धारी इं ! हम भी मनचाही व तुएं ा त कर. (१३) वे सु पु शवसोऽवृ न् कामकातयः. न वा म ा त र यते.. (१४) हे बलपु इं ! अ भलाषापूण श द बोलने वाले लोग तु हारा सहारा लेते ह. कोई भी दे व तुमसे बढ़कर नह हो सकता. (१४) स नो वृष स न या सं घोरया
व वा. धया व
पुर या.. (१५)
हे अ भलाषापूरक इं ! तुम सवा धक धन दे ने वाली, श ु श ु को भगाने वाली एवं अनेक को धारण करने वाली य करो. (१५) य ते नूनं शत त व
को भयभीत करने वाली, या के ारा हमारा पालन
ु नतमो मदः. तेन नूनं मदे मदे ः.. (१६)
हे सौ य वाले इं ! ाचीनकाल म हमने तु हारे लए जो सवा धक य वाला सोमरस नचोड़ा था, उसके ारा मु दत होकर एवं धन दे कर हम स बनाओ. (१६) य ते च
व तमो य इ
वृ ह तम. य ओजोदातमो मदः.. (१७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हमने तु हारे न म अ तशय क त वाला, पाप का सवा धक नाशक एवं अ तशय बलदाता सोमरस नचोड़ा है. (१७) व ा ह य ते अ व वाद ः स य सोमपाः. व ासु द म कृ षु.. (१८) हे व धारी, यथाथ कम वाले, सोमरस पीने वाले एवं दशनीय इं ! सभी यजमान के पास तु हारा दया आ जो धन है, हम उसीको जानते ह. (१८) इ ाय म ने सुतं प र ोभ तु नो गरः. अकमच तु कारवः.. (१९) जो सोमरस नशा करने वाले इं के लए नचोड़ा गया है, उसक तु त हमारे वचन कर. हम तु त करने वाले सोमरस क पूजा कर. (१९) य मन् व ा अ ध
यो रण त स त संसदः. इ ं सुते हवामहे.. (२०)
जन इं म सभी कां तयां आ त ह एवं सात होता का समूह ज ह सोमरस दे कर स होता है, उन इं को म सोमरस नचुड़ जाने पर बुलाता ं. (२०) क केषु चेतनं दे वासो य म नत. त म ध तु नो गरः.. (२१) हे दे वो! तुमने क क अथात् यो त, गौ और वायु पाने के लए ानसाधन य का व तार कया था. हमारी तु तयां उस य को बढ़ाव. (२१) आ वा वश व दवः समु मव स धवः. न वा म ा त र यते.. (२२) हे इं ! स रताएं जस कार सागर म गरती ह, उसी कार सोमरस तुम म वेश करे. कोई भी दे व तुमसे बढ़कर नह है. (२२) व
थ म हना वृष भ ं सोम य जागृवे. य इ
जठरेषु ते.. (२३)
हे अ भलाषापूरक एवं जागरणशील इं ! तुम अपनी म हमा के ारा सोमरस पीने म सबसे अ धक ए हो. हे इं ! सोमरस तु हारे उदर म वेश करता है. (२३) अरं त इ
कु ये सोमो भवतु वृ हन्. अरं धाम य इ दवः.. (२४)
हे वृ हंता इं ! सोमरस तु हारे उदर के लए पया त हो. नचोड़ा गया सोमरस तु हारे शरीर के लए पया त हो. (२४) अरम ाय गाय त ुतक ो अरं गवे. अर म म ुतक .ं (२५)
य धा ने.. (२५)
ऋ ष इं से अ , गाएं एवं नवास थान पाने के लए पया त तु त करता
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अरं ह मा सुतेषु णः सोमे व श
भूष स. अरं ते श
दावने.. (२६)
हे इं ! हमारे सोमरस नचुड़ जाने पर तुम उ ह पीने के लए पया त हो. हे दानशील एवं शाली इं ! सोमरस तु हारे लए पया त हो. (२६) पराका ा चद व वां न
त नो गरः. अरं गमाम ते वयम्.. (२७)
हे व धारी इं ! हमारे तु तवचन र रहकर भी तु ह ा त ह . तुमसे हम पया त धन ा त कर. (२७) एवा
स वीरयुरेवा शूर उत थरः. एवा ते रा यं मनः.. (२८)
हे इं ! तुम वीर क इ छा करने वाले, शूर एवं थर हो. तु हारा मन आराधना करने यो य है. (२८) एवा रा त तुवीमघ व े भधा य धातृ भः. अधा च द
मे सचा.. (२९)
हे अ धक धन वाले इं ! सभी यजमान तु हारा दया आ धन धारण करते ह. तुम मेरे साथी बनो. (२९) मो षु
ेव त युभुवो वाजानां पते. म वा सुत य गोमतः.. (३०)
हे अ के वामी इं ! तुम तोता के समान आलसी मत बनना. तुम गो ध मला आ सोमरस पीकर स बनो. (३०) मा न इ ा या३ दशः सूरो अ ु वा यमन्. वा युजा वनेम तत्.. (३१) हे इं ! रात के समय फैलने वाले रा स हमारे अ धकारी न बन. तु हारी सहायता से हम उनका वनाश करगे. (३१) वये द (३२)
युजा वयं
त ुवीम ह पृधः. वम माकं तव म स.. (३२)
हे इं ! तु हारी सहायता से हम श ु वा म
को भगा दगे. तुम हमारे हो और हम तु हारे ह.
वायवोऽनुनोनुवत रान्. सखाय इ
कारवः.. (३३)
हे इं ! तु हारी अ भलाषा एवं बार-बार तु त करने वाले तु हारे म ारा तु हारी सेवा करते ह. (३३)
सू —८२
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तोता तु तय
उद्घेद भ ुतामघं वृषभं नयापसम्. अ तारमे ष सूय.. (१) हे शोभन वीय वाले इं ! तुम स यजमान के चार ओर जाते हो. (१)
धन वाले, अ भलाषापूरक, मानव हतैषी एवं दाता
नव यो नव त पुरो बभेद बा ोजसा. अ ह च वृ हावधीत्.. (२) वृ हंता इं ने भुजा कया. (२)
क श
से न यानवे श ुपु रय को तोड़ा एवं मेघ का हनन
स न इ ः शवः सखा ावद् गोम वमत्. उ धारेव दोहते.. (३) वे क याणकारी एवं सखा इं बड़ी धारा घोड़ , गाय एवं जौ से यु धन द. (३)
से ध दे ने वाली गाय के समान हमारे लए
यद क च वृ ह ुदगा अ भ सूय. सव त द
ते वशे.. (४)
हे वृ हंता एवं सूय पी इं ! इस समय व उ दत ए हो एवं सारा व तु हारे वश म है. (४) य ा वृ हे वृ है. (५)
म जो भी पदाथ ह, तुम उनके सामने
स पते न मरा इ त म यसे. उतो त स य म व.. (५) ा त एवं स जनपालक इं ! तुम अपने को जो मरणर हत मानते हो, वह स य
ये सोमासः पराव त ये अवाव त सु वरे. सवा ताँ इ हे इं ! समीपवत अथवा रवत सबके सामने जाते हो. (६)
ग छ स.. (६)
थान म जो सोमरस नचोड़ा जाता है, तुम उस
त म ं वाजयाम स महे वृ ाय ह तवे. स वृषा वृषभो भुवत्.. (७) हम महान् वृ रा स को मारने के लए उस इं को बुलाते ह. अ भलाषापूरक इं हमारे लए धन बरसाव. (७) इ ः स दामने कृत ओ ज ः स मदे हतः. ु नी
ोक स सो यः.. (८)
अ तशय तेज वी, सोमरस पीने के लए न त, यश वी, तु त यो य एवं सोम के अ धकारी इं को जाप त ने दान करने के लए बनाया था. (८) गरा व ो न स भृतः सबलो अनप युतः. वव ऋ वो अ तृतः.. (९) तोता ारा तु तयां सुनकर व के समान ती ण बनाए गए, बलवान् अपरा जत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द तशाली एवं यु म श ु क इ छा करते ह. (९)
से न दबने वाले इं
ग च ः सुगं कृ ध गृणान इ
तोता
के लए धन आ द वहन करने
गवणः. वं च मघवन् वशः.. (१०)
हे तु त करने यो य एवं तोता ारा तुत इं ! तुम गम माग को भी हमारे लए सुगम बनाओ. हे धन वामी इं ! तुम हमारी कामना करो. (१०) य य ते नू चदा दशं न मन त वरा यम्. न दे वो ना गुजनः.. (११) हे इं ! लोग तु हारे आदे श और शासन का वरोध न पहले करते थे और न अब करते ह. दे व और यु म शी तापूवक जाने वाले वीर—दोन ही तु हारा वरोध नह करते. (११) अधा ते अ त कुतं दे वी शु मं सपयतः. उभे सु श रोदसी.. (१२) (१२)
हे शोभन-टोप वाले इं ! द तयु
ावा-पृ थवी तु हारे अबाध बल क पूजा करती ह.
वमेतदधारयः कृ णासु रो हणीषु च. प णीषु शत् पयः.. (१३) हे इं ! तुम काले और लाल रंग वाली गाय म उ
वल ध धारण करते हो. (१३)
व यदहेरध वषो व े दे वासो अ मुः. वद मृग य ताँ अमः.. (१४) वृ असुर के तेज से डरकर सब दे व भाग गए थे. वे वृ
पी पशु से डर गए थे. (१४)
आ मे नवरो भुवद्वृ हा द प यम्. अजातश ुर तृतः.. (१५) वृ हंता इं ने वृ का नवारण कया, अपने बल का योग कया एवं वे अजातश ु बने. (१५) ुतं वो वृ ह तमं
शध चषणीनाम्. आ शुषे राधसे महे.. (१६)
हे ऋ वजो! म स , सवा धक श ुहंता एवं बली इं क महान् धन दलाने के लए करता ं. (१६) अया धया च ग या पु णाम पु
तु त तुम जा
को
ु त. य सोमेसोम आभवः.. (१७)
हे अनेक गाय वाले एवं ब त ारा तुत इं ! तुम हमारे येक सोमरस को पीने के लए उप थत ए हो. हम गो-अ भला षणी बु वाले ह गे. (१७) बो ध मना इद तु नो वृ हा भूयासु तः. शृणोतु श
आ शषम्.. (१८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वृ हंता एवं अनेक सोमा भषव के ल य इं हमारी अ भलाषा जान. श हमारी तु त सुन. (१८) कया व ऊ या भ
शाली इं
म दसे वृषन्. कया तोतृ य आ भर.. (१९)
हे अ भलाषापूरक इं ! तुम कन र ासाधन तोता को धन दोगे? (१९)
ारा हम मु दत करोगे एवं कस कार
क य वृषा सुते सचा नयु वा वृषभो रणत्. वृ हा सोमपीतये.. (२०) अ भलाषापूरक म त के वामी, वषाकारक एवं वृ हंता इं कस यजमान तु तय के साथ नचोड़े गए सोम को पीने के लए रमण करते ह. (२०)
ारा
अभी षु ण वं र य म दसानः सह णम्. य ता बो ध दाशुषे.. (२१) हे इं ! तुम हमारे दए ए सोम से स होकर हमारे लए हजार धन दो एवं ह दाता यजमान को धन दे ने का वचार करो. (२१) प नीव तः सुता इम उश तो य त वीतये. अपां ज म नचु पुणः.. (२२) ये जलयु सोम नचोड़े गए ह. इं हम पी ल, ऐसी अ भलाषा करते ए सोम इं के पास जाते ह. पीने पर स ता दे ने वाला सोम जल म जाता है. (२२) इ ा हो ा असृ ते
वृधासो अ वरे. अ छावभृथमोजसा.. (२३)
हमारे य म इं को बढ़ाते ए एवं य करने वाले सात होता य तेजयु होकर इं का वसजन करते ह. (२३)
क समा त पर
इह या सधमा ा हरी हर यके या. वो हामा भ यो हतम्.. (२४) इं के साथ ही तपण करने यो य एवं सुनहरे बाल वाले ह र नामक घोड़े इस य म रखे ए अ क ओर इं को ले जाव. (२४) तु यं सोमाः सुता इमे तीण ब ह वभावसो. तोतृ य इ मा वह.. (२५) हे द तशाली धन वाले अ न! तु हारे लए ही ये सोम नचोड़े गए ह एवं कुश बछाए गए ह. हम पर कृपा के न म इं को सोमरस पीने के लए बुलाओ. (२५) आ ते द ं व रोचना दध ना व दाशुषे. तोतृ य इ मचत.. (२६) हे इं को ह व दे ने वाले ऋ वजो एवं यजमानो! इं तु हारे लए एवं तोता द तशाली बल और र न द. तुम इं क पूजा करो. (२६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के लए
आ ते दधामी
यमु था व ा शत तो. तोतृ य इ
हे शत तु इं ! म तु हारे लए श .ं हे इं ! तुम हम सुख दो. (२७)
मृळय.. (२७)
शाली सोम एवं सभी तु तय का संपादन करता
भ भ ं न आ भरेषमूज शत तो. य द
मृळया स नः.. (२८)
हे शत तु इं ! य द तुम हम सुखी करना चाहते हो तो हम क याणकारी एवं सुखकारक धन दो, अ दो तथा बल दो. (२८) स नो व ा या भर सु वता न शत तो. य द
मृळया स नः.. (२९)
हे शत तु इं ! य द तुम हम सुखी करना चाहते हो तो हमारे लए सभी मंगल दो. (२९) वा मद्वृ ह तम सुताव तो हवामहे. य द
मृळया स नः.. (३०)
हे असुरहंता म े इं ! तुम हम सुखी करना चाहते हो तो सोमरस नचोड़ने वाले हम तु ह बुलाते ह. (३०) उप नो ह र भः सुतं या ह मदानां पते. उप नो ह र भः सुतम्.. (३१) हे सोम के वामी इं ! तुम हर नामक घोड़ क सहायता से हमारे ारा नचोड़े गए सोम के समीप आओ. (३१) ता यो वृ ह तमो वद इ ः शत तुः. उप नो ह र भः सुतम्.. (३२) शत तु एवं श ह ु ंता म े इं दो कार से जाने जाते ह. हे इं ! ह र नामक घोड़ क सहायता से हमारे ारा नचोड़े ए सोम के समीप आओ. (३२) वं ह वृ ह ेषां पाता सोमानाम स. उप नो ह र भः सुतम्.. (३३) हे वृ हंता इं ! तुम सोमरस पीने वाले हो, इस लए हमारे ारा नचोड़े ए सोमरस के पास ह र नामक घोड़ क सहायता से आओ. (३३) इ
इषे ददातु न ऋभु णमृभुं र यम्. वाजी ददातु वा जनम्.. (३४)
इं अ दे ने के लए हम धनदाता ऋभु ा एवं ऋभु नामक दे व को द. श हम अपने भाई वाज को द. (३४)
सू —८३
दे वता—म द्गण
गौधय त म तां व युमाता मघोनाम्. यु ा व रथानाम्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शाली इं
धनवान् म त क माता, अ क अ भलाषा करने वाली, म त को संयु एवं सव पूजनीय पृ म त को सोमरस पलाती ह. (१)
करने वाली
य या दे वा उप थते ता व े धारय ते. सूयामासा शे कम्.. (२) सभी दे व पृ से रहते ह. (२)
क गोद म रहकर त धारण करते ह. सूय एवं चं मा उसके समीप सुख
त सु नो व े अय आ सदा गृण त कारवः. म तः सोमपीतये.. (३) इधर-उधर जाने वाले हमारे सब तोता सोमरस पीने के लए सदा म त क करते ह. (३)
तु त
अ त सोमो अयं सुतः पब य य म तः. उप वराजो अ ना.. (४) यह सोम नचोड़ा गया है. वयं तेज वी म द्गण एवं अ नीकुमार उसका अंश पीते ह. (४) पब त म ो अयमा तना पूत य व णः. म , अयमा और व ण दशाप व ज म पाने वाले सोम को पीते ह. (५)
षध थ य जावतः.. (५)
ारा छने ए, तीन पा
म
थत एवं शंसनीय
उतो व य जोषमाँ इ ः सुत य गोमतः. ातह तेव म स त.. (६) होता जस कार ातःकाल दे व क तु त करता है, उसी कार इं हमारे नचोड़े गए व गाय के ध-दही से मले ए सोम क तु त ारा शंसा करते ह. (६) कद वष त सूरय तर आप इव
ारा
धः. अष त पूतद सः.. (७)
बु मान् एवं जल के समान तरछे चलने वाले म द्गण कब द त होते ह. श ुहननक ा एवं प व श वाले म द्गण हमारे य क ओर आते ह. (७) क ो अ महानां दे वानामवो वृणे. मना च द मवचसाम्.. (८) हे महान्, दशनीय तेज वाले एवं वयं द तशाली म तो! म तु हारा पालन कब वरण क ं गा? (८) आ ये व ा पा थवा न प थ ोचना दवः. म तः सोमपीतये.. (९) म उ ह म त को सोमरस पीने के लए बुलाता ं. ज ह ने सभी पा थव व तु तेज वी व गक व तु को व तृत कया है. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं
या ु पूतद सो दवो वो म तो वे. अ य सोम य पीतये.. (१०) हे प व बल वाले एवं अपने तेज से ही द त म तो! म इस सोमरस को पीने के लए तु ह बुलाता ं. (१०) या ु ये व रोदसी त तभुम तो वे. अ य सोम य पीतये.. (११) जन म त ने बुलाता ं. (११)
ावा-पृ थवी को त ध कया है, म उ ह को सोमरस पीने के लए
यं नु मा तं गणं ग र ां वृषणं वे. अ य सोम य पीतये.. (१२) म सव स , पवत पर थत एवं जल को बरसाने वाले म त को सोमरस पीने के लए बुलाता ं. (१२)
सू —८४
दे वता—इं
आ वा गरो रथी रवाऽ थुः सुतेषु गवणः. अ भ वा समनूषते व सं न मातरः.. (१) हे तु तपा इं ! सोमरस नचुड़ जाने पर हमारी तु तयां रथ पर बैठे वीर के समान तु हारे पास थत होती ह. हे इं ! गाएं जस कार बछड़ को दे खकर रंभाती है, उसी कार हमारी तु तयां तुमसे संबं धत ह. (१) आ वा शु ा अचु यवुः सुतास इ गवणः. पबा व१ या धस इ व ासु ते हतम्.. (२) हे तु त यो य इं ! पा को चमकाते ए एवं हमारे ारा नचोड़े गए सोम तु हारे पास आव. तुम इस सोम को पओ. चार ओर से च -पुरोडाश आ द तु हारे समीप आव. (२) पबा सोमं मदाय क म येनाभृतं सुतम्. वं ह श तीनां पती राजा वशाम स.. (३) हे इं ! वाज प-धा रणी गाय ी ारा लाए गए एवं हम लोग ारा नचोड़े गए सोमरस को नशे के लए सुखपूवक पओ. तुम सभी म द्गण के पालनक ा और अपने तेज से द तशाली हो. (३) ु ी हवं तर या इ य वा सपय त. ध सुवीय य गोमतो राय पू ध महाँ अ स.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म तर ी नामक ऋ ष तु हारी सेवा करता ं. तुम मेरी पुकार सुनो. तुम महान् हो. तुम शोभन संतान वाला एवं गौयु धन हम दो. (४) इ य ते नवीयस गरं म ामजीजनत्. च क व मनसं धयं नामृत य प युषीम्.. (५) हे इं ! जस यजमान ने तु हारे लए नवीन एवं स करने वाला तु तवचन बनाया है, उस यजमान के लए तुम ाचीन, स चा, बड़ा एवं सबके मन को पसंद आने वाला र ाकाय करो. (५) तमु वाम यं गर इ मु था न वावृधुः. पु य य प या सषास तो वनामहे.. (६) हमारी तु तयां एवं उ थमं ने जस इं को बढ़ाया है हम उसीक तु त करते ह. हम इं के अनेक पु षाथ को भोगने क इ छा से उनक सेवा करते ह. (६) एतो व ं तवाम शु ं शु े न सा ना. शु ै थैवावृ वांसं शु आशीवा मम ु.. (७) हे ऋ षयो! ज द आओ. हम शु सामगीत एवं शु उ थमं ारा इं को पापर हत करके उनक तु त करगे. दशाप व से शु कए गए एवं गो ध आ द से म त सोम उ तशील इं को मु दत कर. (७) इ शु ो न आ ग ह शु ः शु ा भ त भः. शु ो र य न धारय शु ो मम सो यः.. (८) हे इं ! तुम शु हो. तुम हमारे य म आओ. तुम शु र ण वाले म त के साथ आओ और पापर हत बनकर हम शु धन दो. हे सोमयो य एवं शु इं तुम ह षत बनो. (८) इ शु ो ह नो र य शु ो र ना न दाशुषे. शु ो वृ ा ण ज नसे शु ो वाजं सषास स.. (९) शु
हे शु इं ! तुम हम धन दो. हे शु इं ! तुम ह दाता यजमान के लए र न दो. तुम होकर श ु को मारते हो एवं अ दे ने क अ भलाषा करते हो. (९)
सू —८५
दे वता—इं
अ मा उषास आ तर त याम म ाय न मू याः सुवाचः. अ मा आपो मातरः स त त थुनृ य तराय स धवः सुपाराः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं से डरी ई उषाएं अपनी ग त बढ़ाती रहती ह. इं के कारण ही सब रा यां नशांत म शोभनवा य वाली बनती ह. इं के कारण ही सात न दयां मानव हतका रणी एवं सरलता से पार होने यो य रहती ह. (१) अ त व ा वथुरेणा चद ा ः स त सानु सं हता गरीणाम्. न त े वो न म य तुतुया ा न वृ ो वृषभ कार.. (२) इं ने बना कसी क सहायता से अपने व ारा इ क स पवतशृंग को तोड़ा था. अ भलाषापूरक इं ने जो काम कए ह, उ ह न दे व कर सकते ह और न मानव. (२) इ य व आयसो न म इ य बा ोभू य मोजः. शीष य तवो नरेक आस ेष त ु या उपाके.. (३) इं का व उनके हाथ म ढ़तापूवक पकड़ा गया है और उनक भुजा म अ धक श है. यु के लए चलते समय इं के सर पर टोप आ द होते ह एवं उनका आदे श सुनने के लए लोग समीप प ंचते ह. (३) म ये वा य यं य यानां म ये वा यवनम युतानाम्. म ये वा स वना म केतुं म ये वा वृषभं चषणीनाम्.. (४) हे इं ! म तु ह य यो य य म सबसे े समझता .ं म तु ह ढ़ पवत को तोड़ने वाला मानता ं. म तु ह सेना का झंडा मानता ं. म तु ह जा क अ भलाषाएं पूरी करने वाला मानता ं. (४) आ य ं बा ो र ध से मद युतमहये ह तवा उ. पवता अनव त गावः ाणो अ भन त इ म्.. (५) हे इं ! जस समय तुम अपनी भुजा म श ु का गव न करने वाला तथा मेघ को मारने वाला व धारण करते हो एवं जस समय मेघ एवं उन म भरा आ जल गजन करता है, उस समय तोता इं के समीप जाते ए उनक तु त करते ह. (५) तमु वाम य इमा जजान व ा जाता यवरा य मात्. इ े ण म ं द धषेम गी भ पो नमो भवृषभं वशेम.. (६) हम उस इं क तु त करते ह, जसने इन सब जीव को उ प कया है एवं सभी व तुएं जनके बाद पैदा ई ह. हम उ ह इं के साथ म ता करगे एवं तु तय तथा नम कार ारा अ भलाषापूरक इं के सामने आएंगे. (६) वृ य वा सथाद षमाणा व े दे वा अज य सखायः. म र स यं ते अ वथेमा व ाः पृतना जया स.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! जो व ेदेव तु हारे म थे, उ ह ने वृ असुर क सांस से भयभीत होकर तु ह छोड़ दया था. उस समय म त के साथ तु हारी म ता था पत ई उसके बाद तुमने सभी श ुसेना को जीत लया. (७) ःष वा म तो वावृधाना उ ा इव राशयो य यासः. उप वेमः कृ ध नो भागधेयं शु मं त एना ह वषा वधेम.. (८) हे इं ! तरसठ य यो य म त ने गाय के समान झुंड बनाकर तु ह बढ़ाया था. हम तु हारे समीप आते ह. तुम हम उपभोग के यो य अ दो. हम अपने ह ारा तु हारा बल बढ़ावगे. (८) त ममायुधं म तामनीकं क त इ त व ं दधष. अनायुधासो असुरा अदे वा े ण ताँ अप वप ऋजी षन्.. (९) हे इं ! तु हारा आयुध तेज है और म त क सेना तु हारे साथ है. कौन तु हारे व के तकूल आचरण कर सकता है? हे सोम पीने वाले इं ! तुम अपने च ारा आयुधहीन एवं दे व े षी असुर को र भगाओ. (९) मह उ ाय तवसे सुवृ ेरय शवतमाय प ः. गवाहसे गर इ ाय पूव ध ह त वे कु वद वेदत् .. (१०) हे तोता! मुझे पशु दान करने के लए महान्, श शाली, उ त एवं परम क याणकारी इं क शोभन तु त करो. तु त के यो य इं के लए तुम ब त सी तु तयां करो. इं हमारे पु के लए ब त धन द. (१०) उ थवाहसे व वे मनीषा णा न पारमीरया नद नाम्. न पृश धया त व ुत य जु तर य कु वद वेदत्.. (११) हे तोता! जस कार ना वक नाव ारा या य को पार प ंचाता है, उसी कार तुम मं ारा ा त होने यो य एवं महान् इं के पास तु तयां भेजो. अपनी तु त ारा स एवं अ तशय स तादायक इं को हमारे पास प ंचाओ. इं हमारी संतान के लए ब त धन द. (११) त वड् ढ य इ ो जुजोष तु ह सु ु त नमसा ववास. उप भूष ज रतमा व यः रावया वाचं कु वद वेदत्.. (१२) हे ऋ वज्! इं जो चाहते ह, तुम वही करो. हे तोता! शोभन तु त करने वाले इं क तु त करो एवं नम कार ारा उनक सेवा करो. तुम अपने को अलंकृत करो. रोओ मत. इं को अपना तु तवचन सुनाओ. इं तु ह ब त धन द. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अव सो अंशुमतीम त दयानः कृ णो दश भः सह ैः. आव म ः श या धम तमप ने हतीनृमणा अध .. (१३) शी ग त वाला एवं दस हजार सेना को साथ लेकर चलने वाला कृ ण नामक असुर अंशुमती नद के कनारे रहता था. इं ने उस च लाने वाले असुर को अपनी बु से खोजा एवं मानव- हत के लए उसक वधका रणी सेना का नाश कया. (१३) समप यं वषुणे चर तमुप रे न ो अंशुम याः. नभो न कृ णमवत थवांस म या म वो वृ णो यु यताजौ.. (१४) इं ने कहा—“मने अंशुमती नद के कनारे गुफा म घूमने वाले कृ ण असुर को दे खा है. वह द तशाली सूय के समान जल म थत है. हे अ भलाषापूरक म तो! म यु के लए तु ह चाहता ं. तुम यु म उसे मारो.” (१४) अध सो अंशुम या उप थेऽधारय वं त वषाणः. वशो अदे वीर या३ चर तीबृह प तना युजे ः ससाहे.. (१५) तेज चलने वाला कृ ण असुर अंशुमती नद के कनारे द तशाली बनकर रहता था। इं ने बृह प त क सहायता से काली एवं आ मण हेतु आती ई सेना का वध कया. (१५) वं ह य स त यो जायमानोऽश ु यो अभवः श ु र . गू हे ावापृ थवी अ व व दो वभुमद् यो भुवने यो रणं धाः.. (१६) हे इं ! वह काय तु ह ने कया था. तु ह ज म लेकर सात श ु को न करने वाले बने थे. तुमने अंधकारपूण ावा-पृ थवी को ा त कया था. तुमने महान् भवन के लए आनंद दया था. (१६) वं ह यद तमानमोजो व ेण व वं शु ण यावा तरो वध ै वं गा इ
धृ षतो जघ थ. श येद व दः.. (१७)
हे व धारी इं ! तुमने वह काय कया है. तुमने अ तीय यो ा बनकर अपने व से शु ण का बल न कया था. तुमने अपने आयुध से राज ष कु स के क याण के लए कृ ण असुर को नीचे क ओर मुंह करके मारा था तथा अपनी श से श ु क गाएं ा त क थ . (१७) वं ह यद्वृषभ चषणीनां घनो वृ ाणां त वषो बभूथ. वं स धूँरसृज त तभानान् वमपो अजयो दासप नीः.. (१८) हे इं ! तुमने वह काय कया है. हे अ भलाषापूरक इं ! तुम मनु य के भावी उप व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को न करने वाले हो. तुम श शाली ए थे. तुमने क ारा अ धकार म कए गए जल को जीता था. (१८)
ई न दय को बहाया था एवं दास
स सु तू र णता यः सुते वनु म युय अहेव रेवान्. य एक इ यपां स कता स वृ हा तीद यमा ः.. (१९) इं शोभन बु वाले, नचोड़े ए सोम से स होने वाले श ु ारा अ वन ोध वाले, दन के समान धनयु , बना कसी क सहायता से मानव हतकारी कम करने वाले, श ुनाशक एवं श ुसमूह के वरोधी ह. (१९) स वृ हे षणीधृ ं सु ु या ह ं वेम. स ा वता मघवा नोऽ धव ा स वाज य व य य दाता.. (२०) हम श ुहंता, मानवपोषक एवं बुलाने यो य इं को अपनी शोभन तु त ारा बुलाते ह. इं हमारे वशेष र क, धन वामी, हमारे त स मानपूवक बोलने वाले एवं अ व क त चाहने वाले ह. (२०) स वृ हे ऋभु ाः स ो ज ानो ह ो बभूव. कृ व पां स नया पु ण सोमो न पीतो ह ः स ख यः.. (२१) वे वृ हंता एवं महान् इं ज म लेने के तुंरत बाद बुलाने यो य हो गए थे. इं ब त से मानव हतसाधक काय करते ए पए ए सोम के समान म ारा बुलाने यो य बने थे. (२१)
सू —८६
दे वता—इं
या इ भुज आभरः ववा असुरे यः. तोतार म मघव य वधय ये च वे वृ ब हषः.. (१) हे सुखयु एवं धन वामी इं ! तुम असुर के पास से जो धन छ न लाये हो, उस धन से तोता को बढ़ाओ. वह तोता तु हारे लए कुश बछा चुका है. (१) य म द धषे वम ं गां भागम यम्. यजमाने सु व त द णाव त त मन् तं धे ह मा पणौ.. (२) हे इं ! तु हारे पास जो घोड़े, गाएं एवं अ वनाशी धन है, वह सोमरस नचोड़ने वाले तथा द णा दे ने वाले यजमान को दो, दान न करने वाले प ण को मत दो. (२) य इ स य तोऽनु वापमदे वयुः. वैः ष एवैमुमुर पो यं र य सनुतध ह तं ततः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! दे व क अ भलाषा न करने वाला एवं य र हत जो व दे खने के लए सोता है, वह अपनी ग तय ारा ही अपने पोषण यो य धन का नाश करे. तुम उसे कमर हत दे श म भेजो. (३) य छ ा स पराव त यदवाव त वृ हन्. अत वा गी भ ुग द के श भः सुतावाँ आ ववास त.. (४) हे श शाली एवं वृ हंता इं ! तुम चाहे र रहो अथवा पास म रहो, सोमरस नचोड़ने वाला यजमान उन ह र नामक घोड़ ारा तु ह य म ले जाता है, जनके बाल धरती से आकाश क ओर जाते ह. (४) य ा स रोचने दवः समु या ध व प. य पा थवे सदने वृ ह तम यद त र आ ग ह.. (५) हे श ुनाशक म े इं ! तुम चाहे वग के द त वाले थान म हो, चाहे समु के बीच कसी थान म हो, चाहे धरती के कसी थान म हो अथवा अंत र म हो, हमारे पास आओ. (५) स नः सोमेषु सोमपाः सुतेषु शवस पते. मादय व राधसा सूनृतावते राया परीणसा.. (६) हे सोमरस पीने वाले एवं श के वामी इं ! सोमरस नचुड़ जाने पर तुम बलसाधक एवं शोभन वचन वाले अ तथा पया त धन ारा हम मु दत करो. (६) मा न इ परा वृण भवा नः सधमा ः. वं न ऊती व म आ यं मा न इ परा वृणक्.. (७) हे इं ! हमारा याग मत करो. हमारे साथ सोमरस पीकर तुम स बनो. तुम ही हमारे र क बनो. तु ह हमारे बंधु हो. तुम हमारा याग मत करो. (७) अ मे इ सचा सुते न षदा पीतये मधु. कृधी ज र े मघव वो महद मे इ सचा सुते.. (८) हे इं ! सोमरस नचुड़ जाने पर मधुर सोम पीने के लए तुम हमारे साथ बैठो. हे धन वामी इं ! तोता को वशाल र ासाधन दो एवं सोमरस नचुड़ जाने पर हमारे साथ बैठो. (८) न वा दे वास आशत न म यासो अ वः. व ा जाता न शवसा भभूर स न वा दे वास आशत.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व धारी इं ! तु ह न दे वता ा त कर सकते ह और न मनु य, तुम अपनी श ारा सभी ा णय को परा जत करते हो. दे वगण तु ह ा त नह कर सकते. (९) व ाः पृतना अ भभूतरं नरं सजू तत ु र ं जजनु राजसे. वा व र ं वर आमु रमुता मो ज ं तवसं तर वनम्.. (१०) सभी सेनाएं मलकर श ुपराभवकारी एवं सबके नेता इं को आयुध आ द ारा श शाली बनाते ह तथा तोता अपने य को काशपूण बनाने के लए सूय प इं को उ प करते ह. तोता कम ारा बलशाली, अ भमुख होकर श ुहंता उ , अ तशय तेज वी, उ तशील एवं वेगशाली इं क तु त धन पाने के लए करते ह. (१०) सम रेभासो अ वर ं सोम य पीतये. वप त यद वृधे धृत तो ोजसा समू त भः.. (११) रेभ ऋ ष ने सोमरस पीने के लए इं क भली-भां त तु त क थी. जब लोग ह व बढ़ाने के लए वगर क इं क तु त करते ह, तब तधारी इं श और र ासाधन लेकर उनसे मलते ह. (११) ने म नम त च सा मेशं व ा अ भ वरा. सुद तयो वो अ होऽ प कण तर वनः समृ व भः.. (१२) तोता नमनशील इं को दे खते ही नम कार करते ह. मेधावी ा ण मेघ के समान उपकारी इं को दे खकर तु तयां बोलते ह. हे शोभन द त वाले, ोहर हत एवं शी ता करने वाले तोताओ! तुम इं के कान के पास ऋ वेद के पूजामं बोलो. (१२) त म ं जोहवी म मघवानमु ं स ा दधानम त कुतं शवां स. मं ह ो गी भरा च य यो ववत ाये नो व ा सुपथा कृणोतु व ी.. (१३) म उस श शाली, धन वामी, स चा बल धारण करने वाले एवं श ु ारा न रोके जाने वाले इं को बुलाता ं. अ तशय पू य एवं य के यो य इं हमारी तु तयां सुनकर सामने आव. व धारी इं सभी माग को हमारी धन ा त के लए शोभन बनाव. (१३) वं पुर इ च कदे ना ोजसा श व श नाशय यै. व ा न भुवना न व न् ावा रेजेते पृ थवी च भीषा.. (१४) हे अ तशय बलशाली एवं श ुमारणसमथ इं ! तुम शंबर क इन नग रय को श ारा न करना जानते हो. हे व धारी इं ! तु हारे भय से सभी ाणी एवं ावा-पृ थवी कांपते ह. (१४) त म ऋत म
शूर च पा वपो न व
रता त प ष भू र.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कदा न इ
राय आ दश ये व
य य पृहया य य राजन्.. (१५)
हे शूर एवं व वध पधारी इं ! तु हारा स स य मेरी र ा करे. हे व धारी इं ! ना वक जस कार जल से पार करता है, उसी कार तुम हम महान् पाप से पार करो. हे राजा इं ! तुम व वध प वाला एवं अ भलाषा करने यो य धन हम कब दोगे? (१५)
दे वता—इं
सू —८७
इ ाय साम गायत व ाय बृहते बृहत्. धमकृते वप ते पन यवे.. (१) हे उद्गाताओ! मेधावी, महान्, य कमक ा, व ान् एवं तो बृहत् साम गाकर सुनाओ. (१)
के अ भलाषी इं को
व म ा भभूर स वं सूयमरोचयः. व कमा व दे वो महाँ अ स.. (२) हे इं ! तुम श ु को हराने वाले हो. तुमने सूय को तेज वी बनाया है. तुम व कमा, व ेदेव एवं महान् हो. (२) व ाज
यो तषा व१रग छो रोचनं दवः. दे वा त इ
स याय ये मरे.. (३)
हे इं ! तुम अपनी यो त ारा सूय के काशक बनकर वग को द तशाली बनाने गए थे. दे व ने तु हारी म ता के लए य न कया था. (३) ए
नो ग ध
यः स ा जदगो ः. ग रन व त पृथुः प त दवः.. (४)
हे यतम, महान् लोग को जीतने वाले, कसी के ारा न छपने वाले, पवत के समान चार ओर व तृत एवं वग के वामी इं ! तुम हमारे पास आओ. (४) अ भ ह स य सोमपा उभे बभूथ रोदसी. इ ा स सु वतो वृधः प त दवः.. (५) हे स य प वाले एवं सोमपानक ा इं ! तुमने ावा-पृ थवी को परा जत कया है. तुम सोमरस नचोड़ने वाले के वधक एवं वग के वामी हो. (५) वं ह श तीना म
दता पुराम स. ह ता द योमनोवृधः प त दवः.. (६)
हे इं ! तुम श ु क अनेक नग रय को तोड़ने वाले हो. तुम द युजन के हंता, मनु य को बढ़ाने वाले और वग के वामी हो. (६) अधा ही
गवण उप वा कामा महः ससृ महे. उदे व य त उद भः.. (७)
हे तु त-यो य इं ! जस कार जल
ड़ा करते ए लोग सर पर जल उछालते ह,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उसी कार हम महान् एवं चाहने यो य तो तु हारी ओर भेजते ह. (७) वाण वा य ा भवध त शूर
ा ण. वावृ वांसं चद वो दवे दवे.. (८)
हे शूर एवं व धारी इं ! जस कार न दयां जल से सागर को बढ़ाती ह, उसी कार तोता तु ह बढ़ाते ह. तुम तो ारा बढ़ने वाले हो. (८) यु
त हरी इ षर य गाथयोरौ रथ उ युगे. इ वाहा वचोयुजा.. (९)
तोता ग तशील इं के वशाल जुए वाले महान् रथ म इं को ढोने वाले एवं आ ा मा से जुड़ जाने वाले ह र नामक अ को तो के साथ जोड़ते ह. (९) वं न इ ा भरँ ओजो नृ णं शत तो वचषणे. आ वीरं पृतनाषहम्.. (१०) हे ब कम करने वाले, वशेष प से दे खने वाले, श वाले इं ! हम तुमसे श और बल मांगते ह. (१०)
यु
एवं सेना को परा जत करने
वं ह नः पता वसो वं माता शत तो बभू वथ. अधा ते सु नमीमहे.. (११) हे नवास थान दे ने वाले एवं ब कमक ा इं ! तुम हमारे पता एवं माता बनो. हम तुमसे सुख क याचना करगे. (११) वां शु मन् पु
त वाजय तमुप ुवे शत तो. स नो रा व सुवीयम्.. (१२)
हे श शाली, ब त ारा बुलाए गए एवं ब कमक ा इं ! तुम बल क इ छा करने वाले हो. हम तु हारी तु त करते ह. तुम हम शोभन संतान वाला धन दो. (१२)
सू —८८
दे वता—इं
वा मदा ो नरोऽपी य व भूणयः. स इ तोमवाहसा मह ु युप वसरमा ग ह.. (१) हे व धारी इं ! ह व धारण करने वाले यजमान ने तु ह आज और कल सोमरस पलाया था. तुम हम तो धा रय क तु तयां सुनो एवं हमारे घर के पास आओ. (१) म वा सु श ह रव तद महे वे आ भूष त वेधसः. तव वां युपमा यु या सुते व गवणः.. (२) हे शोभन साफा वाले, घोड़ के वामी एवं तु तयो य इं ! सेवक तु हारे लए सोमरस नचोड़ते ह. तुम उसे पीकर स बनो, हम तुमसे यही याचना करते ह. सोमरस नचुड़ जाने पर तु हारे अ उपमायो य एवं शंसनीय ह . (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाय तइव सूय व े द य भ त. वसू न जाते जनमान ओजसा त भागं न द धम.. (३) हे सेवको! सूय क करण जस कार सूय से मली रहती ह, उसी कार तुम सूय के सभी धन का भोग करो. इं ने श ारा धन उ प कए ह. भ व य म भी वह धन उ प करगे. हम उनका धन पैतृक भाग के समान लगे. (३) अनशरा त वसुदामुप तु ह भ ा इ य रातयः. सो अ य कामं वधतो न रोष त मनो दानाय चोदयन्.. (४) हे तोता! इं क तु त करो. वह पापर हत को धन दे ते ह एवं दानशील ह. इं का दान क याणकारी है. इं यजमान के लए धन दे ने को अपने मन को े रत करते ह, उसक अ भलाषा म बाधा नह डालते. (४) वम तू त व भ व ा अ स पृधः. अश तहा ज नता व तूर स वं तूय त यतः.. (५) हे इं । तुम यु म सभी श स ु ेना को परा जत करते हो. हे श ुबाधक इं ! तुम दै यहंता, असुर के श ु को उ प करने वाले एवं सम त श ु के हसक हो. (५) अनु ते शु मं तुरय तमीयतुः ोणी शशुं मातरा. व ा ते पृधः थय त म यवे वृ ं य द तूव स.. (६) हे इं ! जस कार माता पु के पीछे चलती है, उसी कार ावा-पृ थवी तु हारी श ुनाशक बल के पीछे चलती ह. हे इं ! जब तुम वृ का वध करते हो, तब तु हारे ोध को दे खकर सभी सेनाएं छ होती ह. (६) इत ऊती वो अजरं हेतारम हतम्. आशुं जेतारं हेतारं रथीतममतूत तु यावृ ् धम्.. (७) हे सेवको! तुम अपनी र ा के लए जरार हत, श ु को भगाने वाले, कसी से भा वत न होने वाले, शी गामी, श ुंजयी व जल को बढ़ाने वाले इं को आगे करो. (७) इ कतारम न कृतं सह कृतं शतमू त शत तुम्. समान म मवसे हवामहे वसवानं वसूजुवम्.. (८) हम श ु वनाशक, सर ारा न न होने वाले, अनेक र ासाधन से यु , अनेक कम वाले, सबके त समान, धन को घेरने वाले एवं यजमान के पास धन भेजने वाले इं को अपनी र ा के लए बुलाते ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८९
दे वता—इं
अयं त ए म त वा पुर ता े दे वा अ भ मा य त प ात्. यदा म ं द धरो भाग म ा द मया कृणवो वीया ण.. (१) हे इं ! म अपने पु को साथ लेकर तु हारे आगे-आगे श ु को जीतने के लए चलता ं. सब दे व मेरे पीछे चलते ह. तुम श ु के ह से का धन मेरे लए धारण करते हो, इस लए मेरे साथ पौ ष दखाओ. (१) दधा म ते मधुनो भ म े हत ते भागः सुतो अ तु सोमः. अस वं द णतः सखा मेऽधा वृ ा ण जङ् घनाव भू र.. (२) हे इं ! म तु हारे लए नशीले सोमरस का भाग सबसे पहले रखता ं. नचोड़ा आ सोम तु हारे दय म थान पावे. तुम म बनकर मेरी दा हनी ओर बैठो. इसके बाद हम दोन ब त से रा स को मारगे. (२) सु तोमं भरत वाजय त इ ाय स यं य द स यम त. ने ो अ ती त नेम उ व आह क ददश कम भ वाम.. (३) हे यु के इ छु क लोगो! य द इं का होना स ची बात है तो उनके लए स य पतु तयां अ पत करो. भृगु गो वाले नेम ऋ ष का कहना है क इं नह ह. इं को कसने दे खा है? हम कसक तु त कर? (३) अयम म ज रतः प य मेह व ा जाता य य म म ा. ऋत य मा दशो वधय याद दरो भुवना ददरी म.. (४) इं नेम के पास जाकर बोले—“हे तु त करने वाले नेम! म यहां ं. यहां खड़े ए मुझको दे खो. म अपनी म हमा से संसार के सभी ा णय को परा जत करता ं. य का उपदे श करने वाले व ान् मुझे तु तय ारा बढ़ाते ह. वद ण करने क आदत वाला म सब लोग को वद ण करता ं.” (४) आ य मा वेना अ ह ृत यँ एकमासीनं हयत य पृ े. मन मे द आ यवोचद च द छशुम तः सखायः.. (५) य क कामना करने वाले लोग ने सुंदर अंत र क पीठ पर बैठे ए मुझको जब उ त बनाया था, तब उन लोग के मन ने मेरे दय से कहा था क मेरे ब च वाले म मेरे लए रो रहे ह. (५) व े ा ते सवनेषु वा या या चकथ मघव
सु वते.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पारावतं य पु स भृतं व वपावृणोः शरभाय ऋ षब धवे.. (६) हे धन वामी इं ! तुमने य म सोमरस नचोड़ने वाल के लए जो कुछ कया है, वे अनंत कम कहने यो य ह. परावत ारा एक कया गया जो ब त सा धन था, उसे तुमने ऋ षय के म शरभ के लए कट कया था. (६) नूनं धावता पृथङ् नेह यो वो अवावरीत्. न ष वृ य मम ण व म ो अपीपतत्.. (७) इस समय जो श ु दौड़ता है, जो यहां अलग थत नह है एवं जो तु ह आवृत नह करता, उस श ु के मम थान म इं अपना व मारते ह. (७) मनोजवा अयमान आयसीमतर पुरम्. दवं सुपण ग वाय सोमं व ण आभरत्.. (८) मन के समान वेगवाले ग ड़ चलते ए लोग से बनी नग रय को पार कर गए. वे वग म जाकर व धारी इं के लए सोम लाए. (८) समु े अ तः शयत उद्ना व ो अभीवृतः. भर य मै संयतः पुरः वणा ब लम्.. (९) जो व समु के बीच म सोता है एवं जो जल से घरा आ है, सं ाम म आगे चलने वाले श ु उसी व का उपहार पाते ह. (९) य ाग् वद य वचेतना न रा ी दे वानां नषसाद म ा. चत ऊज हे पयां स व वद याः परमं जगाम.. (१०) दे व को स करने वाली तेजपूण वाणी न जाने ए अथ को कट करती ई जस समय य म थत होती है, उस समय चार दशाएं इसके लए अ और जल हती ह. पता नह इसका े धन कहां जाता है? (१०) दे व वाचमजनय त दे वा तां व पाः पशवो वद त. सा नो म े षमूज हाना धेनुवाग मानुप सु ु तैतु.. (११) दे वगण जस द त वाली म यमा वाणी को उ प करते ह, उसीको सब पशु बोलते ह. स करने वाली वह वाणी अ एवं रस बरसाती ई हमारे ारा तुत होकर गाय के समान हमारे पास आए. (११) सखे व णो वतरं व म व ौद ह लोकं व ाय व कभे. हनाव वृ ं रणचाव स धू न य य तु सवे वसृ ाः.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म व णु! तुम अ धक परा म दखाओ. हे ुलोक! तुम व को जाने के लए थान दो. तुम और म दोन वृ को मारगे व न दय को सागर क ओर ले जाएंगे. न दयां इं क आ ा के अनुसार बह. (१२)
सू —९०
दे वता— म व व ण
ऋध ग था स म यः शशमे दे वतातये. यो नूनं म ाव णाव भ य आच े ह दातये.. (१) जो मनु य यजमान क अ भलाषा पूण करने के लए म व व ण को अपने सामने करता है, वह इस कार य के लए ह व तैयार करता है, यह स य है. (१) वष ा उ च सा नरा राजाना द घ ु मा. ता बा ता न दं सना रथयतः साकं सूय य र म भः.. (२) अ यंत बढ़े ए बल वाले, दे खने म वशाल, य कम के नेता, द तशाली व अ तशय व ान् वे म व व ण दोन भुजा के समान सूय क करण के साथ कम करते ह. (२) यो वां म ाव णा जरो तो अ वत्. अयःशीषा मदे रघुः.. (३) हे म व व ण! जो ग तशील यजमान तु हारे सामने जाता है, वह दे व का त होता है, उसका सर सोने से सुशो भत होता है एवं नशीला सोम ा त करता है. (३) न यः संपृ छे न पुनहवीतवे न संवादाय रमते. त मा ो अ समृते यतं बा यां न उ यतम्.. (४) हे म व व ण! जो श ु भली कार पूछने पर भी स नह होता और जो बार-बार बुलाने एवं बातचीत करने पर भी आनं दत नह होता, आज हम उसके साथ यु से बचाओ. हम उसक भुजा से बचाओ. (४) म ाय ाय णे सच यमृतावसो. व यं१ व णे छ ं वचः तो ं राजसु गायत.. (५) हे य पी धन वाले उद्गाताओ! तुम म एवं अयमा के लए सेवा करने यो य एवं य शाला म उ प तु तयां सुनाओ. तुम व ण के लए स ता दे ने वाले गीत गाओ एवं द तशाली म , अयमा और व ण क शंसा करो. (५) ते ह वरे अ णं जे यं व वेकं पु ं तसॄणाम्. ते धामा यमृता म यानामद धा अ भ च ते.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वे दे व पृ वी, अंत र तथा ुलोक तीन को लाल रंग वाला, जय का साधन व नवास थान दे ने वाला एक सूय पी पु दे ते ह. वे मरणर हत एवं अपराजेय दे वगण मनु य के थान को दे खते ह. (६) आ मे वचां यु ता ुम मा न क वा. उभा यातं नास या सजोषसा त ह ा न वीतये.. (७) हे स ययु अ नीकुमारो! तुम दोन एक साथ मेरे ारा कहे गए एवं परम द तशाली वचन सुनने के लए, य कम दे खने के लए एवं ह खाने के लए आओ. (७) रा त य ामर सं हवामहे युवा यां वा जनीवसू. ाच हो ां तर ता वतं नरा गृणाना जमद नना.. (८) हे अ एवं धन के वामी अ नीकुमारो! तु हारा रा स को न मलने वाला दान जस समय हम मांगगे, उस समय तुम जमद न क पूव क ओर मुंह वाली तु त सुनकर उसे बढ़ाते ए य के नेता के प म आओ. (८) आ नो य ं द व पृशं वायो या ह सुम म भः. अ तः प व उप र ीणानो३यं शु ो अया म ते.. (९) हे वायु! तुम हमारी शोभन तु तयां सुनकर हमारे वग को छू ने वाले य म आओ. घी, वेदमं , कुश आ द प व व तु के बीच म थत यह उ वल सोम तु हारे लए न त है. (९) वे य वयुः प थभी र ज ैः त ह ा न वीतये. अधा नयु व उभय य नः पब शु च सोमं गवा शरम्.. (१०) हे नयुत नाम अ वाले वायु! अ वयु अ तशय सरल माग से जाता है एवं तु हारे खाने के लए ह ले जाता है. तुम हमारे शु एवं गो ध आ द से म त दोन कार के सोमरस को पओ. (१०) ब महाँ अ स सूय बळा द य महाँ अ स. मह ते सतो म हमा पन यतेऽ ा दे व महाँ अ स.. (११) हे सूय! यह स य है क तुम महान् हो. हे आ द य! तुम महान् हो, यह स य है. तुम महान् हो इस लए तोता तु हारी म हमा क शंसा करते ह. हे द तशाली सूय! तुम महान् हो, यह स य है. (११) बट् सूय वसा महाँ अ स स ा दे व महाँ अ स. म ा दे वानामसुयः पुरो हतो वभु यो तरदा यम्.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सूय! यह स य है क तुम यश के कारण महान् हो. हे द तशाली सूय! यह स य है क तुम मह व वाले दे व म महान्, असुर के हंता व दे व को हत का उपदे श दे ने वाले हो. तु हारा तेज महान् और कसी से ह सत होने वाला नह है. (१२) इयं या नी य कणी पा रो ह या कृता. च ेव यद याय य१ तदशसु बा षु.. (१३) सूय ने यह जो नीचे को मुख वाली, तु तयु , प वाली एवं काशयु उषा उ प क है, वह चतकबरी गाय के समान ांड के बीच म अनेक थान वाली दस दशा म दे खी जाती है. (१३) जा ह त ो अ यायमीयु य१ या अकम भतो व व े. बृह त थौ भुवने व तः पवमानो ह रत आ ववेश.. (१४) तीन जाएं अ न को पार करके चली गई ह. अ य जाएं तु तयो य अ न के चार ओर आ य लए ए ह. महान् आ द य भुवन म थत ह एवं वायु ने दशा म वेश कया है. (१४) माता ाणां हता वसूनां वसा द यानाममृत य ना भः. नु वोचं च कतुषे जनाय मा गामनागाम द त व ध .. (१५) हे मनु यो! जो गाय क माता, वसु क पु ी आ द य क ब हन, ध का नवास थान, अपराधर हत एवं हीनताहीन है, उस गाय का वध मत करो. यह बात मने बु मान् लोग से कही थी. (१५) वचो वदं वाचमुद रय त व ा भध भ प त मानाम्. दे व दे वे यः पययुष गामा मावृ म य द चेताः.. (१६) बोलने क श दे ने वाली, वचन उ चारण करने वाली, सभी वचन के साथ उप थत होने वाली, द तशा लनी एवं दे व के हत के लए मुझे जानने वाली गाय का याग अ प बु वाले लोग ही करते ह. (१६)
सू —९१
दे वता—अ न
वम ने बृह यो दधा स दे व दाशुषे. क वगृहप तयुवा.. (१) हे द तयु , ांतकम वाले, गृहपालक व न ययुवा अ न! तुम इ को अ धक अ दे ते हो. (१) स न ईळानया सह दे वाँ अ ने व युवा. च क भानवा वह.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे ने वाले यजमान
हे व श द त वाले अ न! तुम जानने वाले बनकर हमारे सेवापूण एवं तु तयु वचन से दे व को यहां लाओ. (२) वया ह व ुजा वयं चो द ेन य व
. अ भ मो वाजसातये.. (३)
हे अ तशय युवा एवं धन ेरक म े अ न! हम तु ह सहायक के पाने के लए श ु को परा जत करगे. (३)
प म पाकर अ
औवभृगुव छु चम वानवदा वे. अ नं समु वाससम्.. (४) म समु म रहने वाले एवं शु बुलाता ं. (४) वे वात वनं क व पज य
अ न को औव, भृगु और अ वान ऋ षय के साथ ं सहः. अ नं समु वाससम्.. (५)
म वायु के समान श द करने वाले, क व, मेघ के समान गजन करने वाले, बली एवं समु म नवास करने वाले अ न को बुलाता ं. (५) आ सवं स वतुयथा भग येव भु ज वे. अ नं समु वाससम्.. (६) म सागर म रहने वाले अ न को सूय के ज म एवं भग नामक दे व के भाग के समान बुलाता ं. (६) अ नं वो वृध तम वराणां पु तमम्. अ छा न े सह वते.. (७) हे ऋ वजो! तुम श शा लय के बंध,ु बलवान्, वाला वशाल अ न के समीप जाओ. (७) अयं यथा न आभुव व ा
पेव त या. अ य
ारा बढ़ते ए व अ तशय
वा यश वतः.. (८)
हे ऋ वजो! अ न के समीप इस कार जाओ क अ न हमारे क अ न संबंधी य कम से अ वाले बनगे. (८) अयं व ा अ भ अ
को बढ़ाव. हम
योऽ नदवेषु प यते. आ वाजै प नो गमत्.. (९)
जो अ न दे व के समीप जाकर मनु य क सभी संप यां ा त करते ह, वही अ न के साथ हमारे समीप आव. (९) व ेषा मह तु ह होतॄणां यश तमम्. अ नं य ेषु पू म्.. (१०)
हे तोता! इस य म सभी होता करो. (१०)
म परम यश वी एवं य
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म धान अ न क तु त
शीरं पावकशो चषं ये ो यो दमे वा. द दाय द घ ु मः.. (११) दे व म मुख एवं व ान म े अ न य क ा के घर म व लत होते ह. हे तोताओ! प व काश वाले एवं य शाला म सोने वाले अ न क तु त करो. (११) तमव तं न सान स गृणी ह व शु मणम्. म ं न यातय जनम्.. (१२) हे मेधावी तोता! तुम घोड़े के समान सेवा करने यो य, श श ुनाश करने वाले अ न क तु त करो. (१२)
शाली एवं म के समान
उप वा जामयो गरो दे दशतीह व कृतः. वायोरनीके अ थरन्.. (१३) हे अ न! यजमान के न म बोली गई तु तयां सगी बहन के समान तु हारे गुण दखाती ई सेवा करती ह एवं वायु के समीप था पत करती ह. (१३) यय
धा ववृतं ब ह त थावस दनम्. आप
दधा पदम्.. (१४)
अ न के तीन कुश बंधनहीन एवं बना ढके ह. अ न म जल क भी थ त है. (१४) पदं दे व य मी
षोऽनाधृ ा भ
अ भलाषापूरक एवं द तयु एवं र ा से यु है. अ न क
त भः. भ ा सूय इवोप क्.. (१५) अ न का थान श ु ारा आ मण न करने यो य सूय के स श सेवा यो य है. (१५)
अ ने घृत य धी त भ तेपानो दे व शो चषा. आ दे वा व य च.. (१६) हे द तशाली अ न! तुम घृत के खजान से तृ त होकर दे व को बुलाओ एवं उनका यजन करो. (१६) तं वाजन त मातरः क व दे वासो अ रः. ह वाहमम यम्.. (१७) हे क व, मरणर हत, ह वहन करने वाले एवं स अं गरा अ न! जस माताएं ब च को ज म दे ती ह, उसी कार दे व ने तु ह उ प कया है. (१७)
कार
चेतसं वा कवेऽ ने तं वरे यम्. ह वाहं न षे दरे.. (१८) हे क व, उ म बु वाले, वरण करने यो य, दे व के त एवं इ अ न! दे वगण तु हारे चार ओर बैठते ह. (१८)
वहन करने वाले
न ह मे अ य या न व ध तवन व त. अथैता भरा म ते.. (१९) हे अ न! मेरे पास गाय नह है. मेरे पास लक ड़यां काटने वाला कुठार भी नह है. ऐसा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
साधनहीन म तु ह धारण करता ं. (१९) यद ने का न का न चदा ते दा ता जुष व य व .. (२०)
ण द म स.
हे युवा-अ न! तु हारे लए म जो भी कुछ लक ड़यां धारण करता ,ं तुम उ ह वीकार करो. (२०) यद युप ज
का य
ो अ तसप त. सव तद तु ते घृतम्.. (२१)
हे अ न! जन का को तु हारी वाला खाती है एवं जनको लांघकर जाती है, वह सब काठ तु हारे लए घी के समान ह . (२१) अ न म धानो मनसा धयं सचेत म यः. अ नमीधे वव व भः.. (२२) मनु य लक ड़य क सहायता से अ न को व लत करता आ मन क य कम करता है. वह ऋ वज ारा अ न को बढ़ाता है. (२२)
सू —९२
ा के साथ
दे वता—म द्गण व अ न
अद श गातु व मो य म ता यादधुः. उपो षु जातमाय य वधनम नं न त नो गरः.. (१) यजमान जन अ न म य कम का आ ान करता है, वे ही माग को जानने वाल म े उ प ए ह. आय को बढ़ाने वाले एवं उ प अ न के समीप हमारी तु तयां जाती ह. (१) दै वोदासो अ नदवाँ अ छा न म मना. अनु मातरं पृ थव व वावृते त थौ नाक य सान व.. (२) दवोदास के ारा बुलाए ए अ न ने पृ वी माता के सामने य म दे व के लए ह वहन नह कया, य क दवोदास ने अ न को बलपूवक बुलाया था. अ न वग के ऊंचे थान पर ही रहे. (२) य मा े ज त कृ य कृ या न कृ वतः. सह सां मेधसाता वव मनाऽ नं धी भः सपयत.. (३) हे मनु यो! क य कम करने वाले लोग से अ य जाएं कांपती ह, इस लए हजार संप य के दे ने वाले अ न क सेवा तुम वयं अपने कम ारा करो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यं राये ननीष स मत य ते वसो दाशत्. स वीरं ध े अ न उ थशं सनं मना सह पो षणम्.. (४) हे नवास थान दे ने वाले अ न! तुम अपने जस तोता को धन दे ने के हेतु सबका नेता बनाना चाहते हो, एवं जो तोता तु हारे लए ह दे ता है, वह अपने आप ही उ थमं का बोलने वाला, हजार का पोषण करने वाला एवं वीर पु ा त करता है. (४) स हे चद भ तृण वाजमवता स ध े अ त वः. वे दे व ा सदा पु वसो व ा वामा न धीम ह.. (५) हे वशाल धन वाले अ न! जो यजमान तु ह ह दे ता है, वह श ु क ढ़ नगरी म भी थत अ को अपने घोड़ ारा न करता है तथा ीण न होने वाला अ धारण करता है. हम भी तुम म थत सभी उ म धन को ा त करगे. (५) यो व ा दयते वसु होता म ो जनानाम्. मधोन पा ा थमा य मै तोमा य य नये.. (६) दे व को बुलाने वाले व स , जो अ न मनु य को अ दे ते ह, उ ह अ न को नशीले सोमरस के थम पा ा त होते ह. (६) अ ं न गीभ र यं सुदानवो ममृ य ते दे वयवः. उभे तोके तनये द म व पते प ष राधो मघोनाम्.. (७) हे दशनीय एवं जा के पालक अ न! शोभनदान वाले एवं दे व क अ भलाषा करने वाले यजमान तु तय ारा उसी कार तु हारी सेवा करते ह, जस कार रथ ख चने वाले घोड़े क सेवा क जाती है. तुम यजमान के पु और पौ को धन वाल का धन दो. (७) मं ह ाय गायत ऋता ने बृहते शु शो चषे. उप तुतासो अ नये.. (८) हे तोताओ! तुम दाता करो. (८)
म े ,य
वामी, महान् व द त तेज वाले अ न क तु त
आ वंसते मघवा वीरव शः स म ो ु या तः. कु व ो अ य सुम तनवीय य छा वाजे भरागमत्.. (९) धन वाले व यश वी अ न यजमान को यश दे ने वाला अ दान करते ह. इन अ न क नवीनतम अनु हबु अ के साथ हमारे पास ब त बार आवे. (९) े मु
याणां तु ासावा त थम्. अ नं रथानां यमम्.. (१०)
हे तोता!
य म अ तशय
य, अ त थ एवं रथ का नयमन करने वाले अ न क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु त करो. (१०) उ दता यो न दता वे दता व वा य यो ववत त. रा य य वणे नोमयो धया वाजं सषासतः.. (११) हे तोता! जो जानने वाले व य यो य अ न उ प एवं स धन को लाते ह, जो कम ारा यु क इ छा करते ह एवं जस अ न क वालाएं नीचे मुख करके बहने वाली सागर तरंग के समान क ठनाई से पार क जा सकती ह, उसी अ न क तु त करो. (११) मा नो णीताम त थवसुर नः पु
शसत एषः. यः सुहोता व वरः.. (१२)
नवास थान दे ने वाले, अ त थ, अनेक जन ारा तुत, दे व के शोभन आ ानक ा व शोभन-य वाले अ न को हमारे पास आने से कोई भी न रोके. (१२) मो ते रष ये अ छो क र वामी े
भवसोऽ ने के भ दे वैः. याय रातह ः व वरः.. (१३)
हे नवास थान दे ने वाले अ न! जो तोता तु तय एवं सुखकर अनुगमन ारा तु हारी सेवा करते ह, उनक कोई हसा न करे. ह दे ने वाला तोता भी ह वहन आ द तकम के लए तु हारी तु त करता है. (१३) आ ने या ह म सखा े भः सोमपीतये. सोभया उप सु ु त मादय व वणरे.. (१४) हे म त के सखा अ न! तुम हमारे शोभन य म पु म त के साथ सोमरस पीने के लए आओ. तुम मुझ सौभ र ऋ ष क शोभन- तु त के समीप आओ एवं सोमरस पीकर स बनो. (१४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नवम मंडल सू —१
दे वता—पवमान सोम
वा द या म द या पव व सोम धारया. इ ाय पातवे सुतः.. (१) हे सोम! इं के पीने के लए तु ह नचोड़ा गया है. तुम अ तशय मादक और मादक धारा से नचुड़ो. (१) र ोहा व चष णर भ यो नमयोहतम्. णा सध थमासदत्.. (२) रा स के हंता और सबके दशक सोम वण ारा चोट खाकर एवं ोणकलश म थत होकर य वेद पर बैठते ह. (२) व रवोधातमो भव मं ह ो वृ ह तमः. प ष राधो मघोनाम्.. (३) हे सोम! तुम धन के अ तशय दाता, दाता वाले बनो. तुम धनी श ु का धन हम दो. (३)
म
े एवं श ु
का सवदा वध करने
अ यष महानां दे वानां वी तम धसा. अ भ वाजमुत वः.. (४) (४)
हे सोम! तुम अ लेकर महान् दे व के य के समीप आओ. तुम हम बल और अ दो. वाम छा चराम स त ददथ दवे दवे. इ दो वे न आशसः.. (५)
हे सोम! हम त दन तु हारी भली कार सेवा करते ह. हमारा यही काम है. हमारी आशा तु हारे अ त र सरी जगह नह है. (५) पुना त ते प र ुतं सोमं सूय य शु
हे सोम! सूय क पु ी करती है. (६)
हता. वारेण श ता तना.. (६)
ा तु हारे नचुड़े ए रस को व तृत तथा न य दशाप व से
तमीम वीः समय आ गृ ण त योषणो दश. वसारः पाय द व.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य म सोमरस नचोड़ने वाले दन सभी ब हन के समान दस उंग लयां सोम को भली कार हण करती ह. (७) तम ह व य ुवो धम त बाकुरं
तम्.
धातु वारणं मधु.. (८)
उंग लयां ही सोम को नचोड़ने वाले थान पर ले जाती ह एवं नचोड़ती ह. सोम प मधु तीन थान म रहता है तथा श ु का नाश करने वाला है. (८) अभी३ मम या उत ीण त धेनवः शशुम्. सोम म ाय पातवे.. (९) हसा के अयो य गाएं इस बछड़े पी सोम को इं के पीने के लए अपने ध का म ण करके शु बनाती ह. (९) अ ये द ो मदे वा व ा वृ ा ण ज नते. शूरो मघा च मंहते.. (१०) शूर इं इसी सोम के नशे म मतवाले होकर सभी श ु यजमान को धन दे ते ह. (१०)
का नाश करते ह तथा
दे वता—पवमान सोम
सू —२ पव व दे ववीर त प व ं सोम रं ा. इ
म दो वृषा वश.. (१)
हे सोम! तुम दे वा भलाषी बनकर वेग से नचुड़ो तथा प व बनो. हे अ भलाषापूरक सोम! तुम इं म वेश करो. (१) आ व य व म ह सरो वृषे दो ु नव मः. आ यो न धण सः सदः.. (२) हे महान्! अ भलाषापूरक, अ तशय यश वी तथा सबको धारण करने वाले सोम! तुम जल के प म हमारे पास आओ एवं अपने थान पर बैठो. (२) अधु त
यं मधु धारा सुत य वेधसः. अपो व स सु तुः.. (३)
नचोड़े ए एवं अ भलाषापूरक सोमरस क शोभनकम वाले सोम जल को ढकते ह. (३)
य उंग लयां मधु को
हती ह.
महा तं वा महीर वापो अष त स धवः. यद्गो भवास य यसे.. (४) हे महान् सोम! य म जस समय तु ह गो ध क धाराएं ढकती ह, उस समय बहने वाले महान् जल तु हारी ओर आते ह. (४) समु ो अ सु मामृजे व भो ध णो दवः. सोमः प व े अ मयुः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रस रण करने वाले एवं वग के धारणक ा सोम संसार को धारण करते ए हम चाहते ह एवं जल म शु होते ह. (५) अ च दद्वृषा ह रमहा म ो न दशतः. सं सूयण रोचते.. (६) कामवषक ह रतवण, महान् एवं म के समान दशनीय सोम ं दन करते एवं सूय के समान चमकते ह. (६) गर त इ द ओजसा ममृ य ते अप युवः. या भमदाय शु भसे.. (७) हे इं ! य कम क इ छा संबंधी वे ही तु तयां तु हारे बल ारा शु तु तय ारा तुम म बनने के लए सुशो भत होते हो. (७)
होती ह, जन
तं वा मदाय घृ वय उ लोककृ नुमीमहे. तव श तयो महीः.. (८) हे सोम! तु हारी शंसाएं महान् ह. तुमने श ु को परा जत करने वाले यजमान के लए उ म लोग क रचना क है. हम पद पाने के लए तु हारी याचना करते ह. (८) अ म य म द व युम वः पव व धारया. पज यो वृ माँ इव.. (९) हे इं क अ भलाषा करने वाले सोम! तुम वषा करने वाले मेघ के समान हमारे सामने मादक अमृत क धारा के समान गरो. (९) गोषा इ दो नृषा अ य सा वाजसा उत. आ मा य हे य क
य पू ः.. (१०)
ाचीन आ मा सोम! तुम गाएं, संतान, घोड़े एवं अ दे ने वाले हो. (१०)
सू —३
दे वता—पवमान सोम
एष दे वो अम यः पणवी रव द य त. अ भ ोणा यासदम्.. (१) ये मरणर हत एवं द तशाली सोम थत होने के लए कलश क ओर प ी के समान जाते ह. (१) एष दे वो वपा कृतोऽ त
रां स धाव त. पवमानो अदा यः.. (२)
उंग लय ारा नचोड़ा गया सोमरस टपकता आ श ु सोमरस को कोई परा जत नह कर सकता. (२)
को मारने के लए जाता है.
एष दे वो वप यु भः पवमान ऋतायु भः. ह रवाजाय मृ यते.. (३) टपकने वाला द तशाली सोमरस य ा भलाषी तोता ारा इस तरह सजाया जाता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है, जैसे यु
के लए घोड़े को सजाया जाता है. (३)
एष व ा न वाया शूरो य व स व भः. पवमानः सषास त.. (४) ये शूर सोम अपनी श
य
ारा सभी संप य को लाकर हम बांटना चाहते ह. (४)
एष दे वो रथय त पवमानो दश य त. आ व कृणो त व वनुम्.. (५) टपकते ए सोमदे व हमारे य म आने के लए रथ चाहते ह, हमारी अ भलाषाएं पूरी करते ह एवं श द कट करते ह. (५) एष व ैर भ ु तोऽपो दे वो व गाहते. दध ना न दाशुषे.. (६) ह. (६)
तोता
ारा तुत ये सोमदे व ह दाता यजमान को र न दे ते ए जल म वेश करते
एष दवं व धाव त तरो रजां स धारया. पवमानः क न दत्.. (७) ये टपकने वाले सोम श द करते ए सारे संसार को तर कृत करते ए वग को जाते ह. (७) एष दवं
ासर रो रजां य पृतः. पवमानः व वरः.. (८)
शोभन य वाले एवं अपरा जत पवमान सोम सभी लोक को तर कृत करते ए वग को जाते ह. (८) एष
नेन ज मना दे वो दे वे यः सुतः. ह रः प व े अष त.. (९)
हरे रंग वाले एवं द तशाली सोम पुराने ज म से ही दे व के लए नचुड़ कर दशाप व म रहने के लए जाते ह. (९) एष उ य पु
तो ज ानो जनय षः. धारया पवते सुतः.. (१०)
ये अनेक कम वाले सोम उ प होते ही अ गरते ह. (१०)
सू —४
को ज म दे ते ए नचुड़कर धारा प म
दे वता—पवमान सोम
सना च सोम जे ष च पवमान म ह वः. अथा नो व यस कृ ध.. (१) हे महान्, अ एवं पवमान सोम! हमारे य म दे व क सेवा करो, श ु हम ेय दान करो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को जीतो एवं
सना यो तः सना व१ व ा च सोम सौभगा. अथा नो व यस कृ ध.. (२) हे सोम! हम यो त, वग, सम त-सौभा य एवं क याण दो. (२) सना द मुत
तुमप सोम मृधो ज ह. अथा नो व यस कृ ध.. (३)
हे सोम! हम बल एवं ान दो. श ु
को मारो तथा हम सौभा य दो. (३)
पवीतारः पुनीतन सोम म ाय पातवे. अथा नो व यस कृ ध.. (४) हे सोमरस नचोड़ने वालो! इं के पीने के लए सोमरस नचोड़ो एवं हमारे लए क याण दान करो. (४) वं सूय न आ भज तव
वा तवो त भः. अथा नो व यस कृ ध.. (५)
हे सोम! अपने काय एवं र ण दान करो. (५) तव
ारा तुम हम सूय के समीप प ंचाओ एवं हम मंगल
वा तवो त भ य प येम सूयम्. अथा नो व यस कृ ध.. (६)
हे सोम! हम तु हारे य क याण करो. (६) अ यष वायुध सोम
एवं र ा
के कारण चरकाल तक सूय को दे ख. तुम हमारा
बहसं र यम्. अथा नो व यस कृ ध.. (७)
हे शोभन आयुध वाले सोम! तुम हमारा क याण करो. (७)
ुलोक एवं धरती पर बढ़ने वाला धन हम दो एवं
अ य१षानप युतो र य सम सु सास हः. अथा नो व यस कृ ध.. (८) हे सं ाम म श ु ारा अपरा जत तथा श ुपराभवकारी सोम! तुम हम धन दो तथा हमारा क याण करो. (८) वां य ैरवीवृधन् पवमान वधम ण. अथा नो व यस कृ ध.. (९) हे पवमान सोम! लोग ने अपनी वृ क याण दो. (९) रयन
के लए तु ह य
के ारा बढ़ाया था. तुम हम
म न म दो व ायुमा भर. अथा नो व यस कृ ध.. (१०)
हे सोम! तुम हम घोड़ के समान सव जाने वाला तथा व च धन दो एवं हमारा क याण करो. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —५
दे वता—आ ी
स म ो व त प तः पवमानो व राज त. ीणन् वृषा क न दत्.. (१) भली कार द त वाले, सबके वामी एवं अ भलाषापूरक सोम श द करते ह एवं दे व को स करते ए वराजमान ह. (१) तनूनपात् पवमानः शृङ्गे शशानो अष त. अ त र ेण रारजत्.. (२) (२)
जल के नाती पवमान सोम ऊंचे थान म बढ़ते ए अंत र से कलश क ओर बढ़ते ह. ईळे यः पवमानो र य व राज त ुमान्. मधोधारा भरोजसा.. (३)
तु तयो य, अभी दाता और द तशाली सोम जल क धारा अपने तेज से सुशो भत होते ह. (३)
के साथ गरते ए
ब हः ाचीनमोजसा पवमानः तृणन् ह रः. दे वेषु दे व ईयते.. (४) हरे रंग के एवं द तशाली सोम य बल से जाते ह. (४)
म पूव क ओर कुश बछाते ए अपने तेज पी
उदातै जहते बृहद् ारो दे वी हर ययीः. पवमानेन सु ु ताः.. (५) वणमयी ारदे वयां पवमान सोम के साथ तुत होकर व तृत दशा ओर चढ़ती ह. (५)
म ऊपर क
सु श पे बृहती मही पवमानो वृष य त. न ोषासा न दशते.. (६) इस समय पवमान सोम शोभन प वाली, वशाल, महान् और दशन करने यो य दवस नशा क अ भलाषा करते ह. (६) उभा दे वा नृच सा होतारा दै ा वे. पवमान इ ो वृषा.. (७) म दोन कार के दे व —मानव ा और दे व का होम करने वाल को बुलाता ं. पवमान सोम द त और अ भलाषापूरक ह. (७) भारती पवमान य सर वतीळा मही. इमं नो य मा गम त ो दे वीः सुपेशसः.. (८) हमारे सोम-संबंधी य वाली दे वयां आव. (८)
म भारती, सर वती एवं महती इडा नामक तीन शोभन प
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ारम जां गोपां पुरोयावानमा वे. इ
र ो वृषा ह रः पवमानः जाप तः.. (९)
म पूव म उ प , जा के पालक एवं दे व के आगे चलने वाले व ा दे व को बुलाता ं. हरे रंग के पवमान सोम दे व के वामी एवं अ भलाषापूरक ह. (९) वन प त पवमान म वा समङ् ध धारया. सह व शं ह रतं ाजमानं हर ययम्.. (१०) हे पवमान सोम! कभी हरे रंग वाले तथा कभी सुनहरे रंग के, द तशाली एवं हजार शाखा वाले वन प त दे व का मधुर धारा से सं कार करो. (१०) व े दे वाः वाहाकृ त पवमान या गत. वायुबृह प तः सूय ऽ न र ः सजोषसः.. (११) हे व ेदेव! वायु, बृह प त, सूय, अ न और इं ! तुम सब एक होकर पवमान सोम क ओर वाहा श द के साथ जाओ. (११)
दे वता—पवमान सोम
सू —६
म या सोम धारया वृषा पव व दे वयुः. अ ो वारे व मयुः.. (१) हे अ भलाषापूरक, दे वकामी एवं हम चाहने वाले सोम! तुम हमारी र ा करो तथा मादक धारा से दशाप व म टपको. (१) अ भ यं म ं मद म द व (२)
इ त र. अ भ वा जनो अवतः.. (२)
हे सोम! तुम वामी हो. इस लए मादक धाराएं बरसाओ एवं हम श अ भ यं पू
शाली घोड़े दो.
मदं सुवानो अष प व आ. अ भ वाजमुत वः.. (३)
हे सोम! तुम नचुड़ते ए उस ाचीन एवं नशीले रस को दशाप व नामक पा म टपकाओ तथा हम अ एवं बल दो. (३) अनु
सास इ दव आपो न वतासरन्. पुनाना इ माशत.. (४)
तग त वाले और टपकते ए सोम इस कार इं के पीछे चलते ह, जस कार जल नीचे क ओर बहते ह एवं उ ह ा त करते ह. (४) यम य मव वा जनं मृज त योषणो दश. वने
ळ तम य वम्.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वन म
य के समान दस उंग लयां दशाप व पा को छोड़कर श ड़ा करने वाले सोम क सेवा करती ह. (५)
शाली घोड़े के समान
तं गो भवृषणं रसं मदाय दे ववीतये. सुतं भराय सं सृज.. (६) अ भलाषापूरक एवं पीने के बाद दे व को मु दत करने के लए नचोड़े गए सोमरस म सं ाम क सफलता के लए गाय का ध मलाओ. (६) दे वो दे वाय धारये ाय पवते सुतः. पयो यद य पीपयत्.. (७) इं के न म नचोड़ा आ सोमरस धारा के तृ त करता है. (७) आ मा य
य रं ा सु वाणः पवते सुतः.
प म टपकता है. सोम का रस इं को
नं न पा त का म्.. (८)
नचोड़ा आ सोमरस य क आ मा है. वह यजमान क अ भलाषा पूरी करता आ जोर से टपकता है एवं ाचीन काल से स अपने ांतदश प क र ा करता है. (८) एवा पुनान इ युमदं म द वीतये. गुहा च धषे गरः.. (९) हे अ तशय मदकारक सोम! तुम इं क अ भलाषा से उनके पीने के हेतु टपकते ए य शाला म अपना श द भर दे ते हो. (९)
सू —७
दे वता—पवमान सोम
असृ म दवः पथा धम ृत य सु यः. वदाना अ य योजनम्.. (१) शोभन ी वाले इं का संबंध जानने वाले सोम कम म य माग से बनाए जाते ह. (१) धारा म वो अ यो महीरपो व गाहते. ह वह व षु व
ः.. (२)
ह म े एवं तु तयो य सोम महान् जल म नान करते ह. सोम क उ म धाराएं गरती ह. (२) युजो वाचो अ यो वृषाव च द ने. सद्मा भ स यो अ वरः.. (३) अ भलाषापूरक, स य प, हसार हत एवं सव धान सोम जल म मले य शाला क ओर जाते ए श द करते ह. (३)
ए एवं
प र य का ा क वनृ णा वसानो अष त. ववाजी सषास त.. (४) ांत कम वाले सोम जब धन को धारण करते ए तोता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क तु तय को जानते
ह, उस समय श
शाली इं य म आना चाहते ह. (४)
पवमानो अ भ पृधो वशो राजेव सीद त. यद मृ व त वेधसः.. (५) जस समय काम करने वाले लोग इस सोम को े रत करते ह, उस समय पवमान सोम य म व न डालने वाले लोग क ओर राजा के समान जाते ह. (५) अ ो वारे प र
यो ह रवनेषु सीद त. रेभो वनु यते मती.. (६)
हरे रंग वाले एवं दे व के य सोम जल म मलकर मेष क बाल वाली खाल पर बैठते ह एवं श द करते ए तु तयां सुनते ह. (६) स वायु म म ना साकं मदे न ग छ त. रणा यो अ य धम भः.. (७) जो सोमरस नचोड़ने के काय म अ नीकुमार को ा त करता है. (७)
स
होता है, वह
स तापूवक वायु, इं एवं
आ म ाव णा भगं म वः पव त ऊमयः. वदाना अ य श म भः.. (८) जन यजमान के सोमरस क लहर म , व ण एवं भगदे व क ओर गरती ह, वे सोम को जानते ए सुख से मलते ह. (८) अ म यं रोदसी र य म वो वाज य सातये. वो वसू न सं जतम्.. (९) हे ावा-पृ थवी! तुम नशीले सोमरस को पाने के लए हम अ , धन एवं पशु दो. (९)
दे वता—पवमान सोम
सू —८ एते सोमा अ भ
यम
य कामम रन्. वध तो अ य वीयम्.. (१)
यह सोम इं का बल बढ़ाते ए इं के अ भल षत एवं
य सोम को बरसाव. (१)
पुनानास मूषदो ग छ तो वायुम ना. ते नो धा तु सुवीयम्.. (२) स शोभन श इ
सोम नचुड़ते ह, चमस म द. (२)
थत होते ह एवं वायु को ा त होते ह. वायु हम
य सोम राधसे पुनानो हा द चोदय. ऋत य यो नमासदम्.. (३)
हे सोम! तुम नचुड़ते ए एवं अ भल षत बनकर इं को स करने के लए य के मुख थान पर बैठो एवं इं को े रत करो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मृज त वा दश
पो ह व त स त धीतयः. अनु व ा अमा दषुः.. (४)
हे सोम! दस उंग लयां तु हारी सेवा करती ह. सात होता तु ह स करते ह. मेधावी तोता तु ह म करते ह. (४) दे वे य वा मदाय कं सृजानम त मे यः. सं गो भवासयाम स.. (५) हे मेष के बाल एवं जल के म ण से तैयार सोमरस! म दे व को स करने के लए तु ह गाय के ध-दही आ द म मलाता ं. (५) पुनानः कलशे वा व ा य षो ह रः. प र ग ा य त.. (६) नचुड़ते ए, कलश म भली कार थत, द तशाली एवं हरे रंग के सोम गाय के ध-दही आ द को व के समान ढकते ह. (६) मघोन आ पव व नो ज ह व ा अप
षः. इ दो सखायमा वश.. (७)
हे सोम! तुम हम धनवान क ओर टपको, हमारे सभी श ु म इं के शरीर म वेश करो. (७) वृ श
का नाश करो एवं अपने
दवः प र व ु नं पृ थ ा अ ध. सहो नः सोम पृ सु धाः.. (८)
हे सोम! दो. (८)
ुलोक से धरती पर वषा करो, धरती पर अ उ प करो एवं यु
म हम
नृच सं वा वय म पीतं व वदम्. भ ीम ह जा मषम्.. (९) अ
हम नेता को दे खने वाले, सव व इं ा त कर. (९)
सू —९ पर
ारा पए ए सोमरस को पीकर संतान एवं
दे वता—पवमान सोम या दवः क ववयां स न यो हतः. सुवानो या त क व तुः.. (१)
मेधावी एवं ांतकमा सोम नचोड़ने के त त के बीच दबकर एवं नचुड़कर ुलोक के अ तशय य प य के पास जाते ह. (१) याय प यसे जनाय जु ो अ हे. वी यष च न या.. (२) हे सोम! तुम अपने नवास थान प, ोह न करने वाले एवं तु तक ा मनु य के सेवन के लए पया त होकर अ के साथ य म आओ. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स सूनुमातरा शु चजातो जाते अरोचयत्. महा मही ऋतावृधा.. (३) उ प , शु , उ म ह व प एवं पु के समान सोम व तृत य बढ़ाने वाली एवं माता के समान ावा-पृ थवी को का शत करते ह. (३) स स त धी त भ हतो न ो अ ज वद हः. या एकम
वावृधुः.. (४)
न दय ने जन ीणतार हत एवं मु य सोम को बढ़ाया, वे सोम उंग लय नचुड़कर ोहर हत सात न दय को स करते ह. (४) ता अ भ स तम तृतं महे युवानमा दधुः. इ
म
ारा
तव ते.. (५)
हे इं ! तु हारे य म वतमान एवं हसार हत सोम को उंग लय ने महान् कम के लए धारण कया था. (५) अ भ व रम यः स त प य त वाव हः.
वदवीरतपयत्.. (६)
य का भार वहन करने वाले, मरणर हत एवं दे व को अ तशय स ता दे ने वाले सोम सात न दय को दे खते ह. सोम कुएं के प म पूण होकर न दय को तृ त करते ह. (६) अवा क पेषु नः पुम तमां स सोम यो या. ता न पुनान जङ् घनः.. (७) हे पु ष प सोम! क प के दन म हमारी र ा करो. हे पवमान सोम! तुम यु यो य रा स को न करो. (७) नू न से नवीयसे सू ाय साधया पथः.
करने
नव ोचया चः.. (८)
हे सोम! तुम य पीमाग ारा हमारी नवीन एवं शंसनीय तु तय के समीप शी आओ एवं पहले के समान अपना काश फैलाओ. (८) पवमान म ह वो गाम ं रा स वीरवत्. सना मेधां सना वः.. (९) बु
हे पवमान सोम! तुम हम संतानयु दो एवं हमारे मनोरथ पूरे करो. (९)
सू —१०
एवं महान् अ , गाएं एवं घोड़े दे ते हो. तुम हम
दे वता—पवमान सोम
वानासो रथा इवाव तो न व यवः. सोमासो राये अ मुः.. (१) रथ और घोड़े के समान श द करने वाले नचुड़ते ए सोम श ु अ भलाषा करते ए यजमान को धन दे ने के लए आते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का अ छ नने क
ह वानासो रथा इव दध वरे गभ योः. भरासः का रणा मव.. (२) रथ के समान य थल क ओर जाते ए सोम को ऋ वज् अपने हाथ म इस कार धारण करते ह, जस कार भारवाहक हाथ म भार उठाते ह. (२) राजानो न श त भः सोमासो गो भर
ते. य ो न स त धातृ भः.. (३)
जस कार राजा शंसा से व य सात होता गाय के ध-दही आ द से मलकर सं कृत होते ह. (३)
से स होते ह, उसी कार सोम
प र सुवानास इ दवो मदाय बहणा गरा. सुता अष त धारया.. (४) के
नचुड़ते ए सोम तु त पी महान् वचन के साथ नचुड़कर म बनाने के लए धारा प म चलते ह. (४) आपानासो वव वतो जन त उषसो भगम्. सूरा अ वं व त वते.. (५)
इं के मद पीने के थान के समान, उषा का भा य उ प करते ए एवं नीचे गरते ए सोम श द करते ह. (५) अप ारा मतीनां
ना ऋ व त कारवः. वृ णो हरस आयवः.. (६)
तु तयां करने वाले, पुराने एवं अ भलाषापूरक सोम को पीने वाले मनु य य के ार को खोलते ह. (६) समीचीनास आसते होतारः स तजामयः. पदमेक य प तः.. (७) उ म, सात भाइय के समान और एकमा सोम का थान पूण करने वाले सात होता य म बैठते ह. (७) नाभा ना भ न आ ददे च ु
सूय सचा. कवेरप यमा हे.. (८)
म ना भ के समान य के आधार सोम को अपनी ना भ म धारण करता ं. हमारी आंख सूय से मलती ह. म क व प सोम क धारा को हता ं. (८) अभ
या दव पदम वयु भगुहा हतम्. सूरः प य त च सा.. (९)
शोभन-श वाले एवं द तशाली इं अपने आंख से दे ख सकते ह. (९)
सू —११
य सोम का दय म छपा रहने पर भी
दे वता—पवमान सोम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उपा मै गायता नरः पवमानाये दवे. अ भ दे वाँ इय ते.. (१) हे ऋ वजो! य करने के लए दे व के अ भमुख जाने के इ छु क एवं टपकते ए सोमरस के लए गाओ. (१) अ भ ते मधुना पयोऽथवाणो अ श युः. दे वं दे वाय दे वयु.. (२) हे सोम! अथवा-गो ीय ऋ षय ने तु हारे द तशाली एवं दे वा भलाषी रस को इं के लए मीठे गो ध से मलाया है. (२) स नः पव व शं गवे शं जनाय शमवते. शं राज ोषधी यः.. (३) हे द तशाली सोम! तुम हमारी गाय , संतान , अ बरसाओ. (३)
एवं ओष धय के लए सुख
ब वे नु वतवसेऽ णाय द व पृशे. सोमाय गाथमचत.. (४) हे तु तक ाओ! तुम लोग पगल वण, बलशाली, र ाभ एवं वाले सोम क तु त करो. (४) ह त युते भर
ुलोक को पश करने
भः सुतं सोमं पुनीतन. मधावा धावता मधु.. (५)
हे ऋ वजो! अपने पावन सार ारा अ भ ुत सोम को पावन बनाओ एवं मादक सोम को गो ध से म त करो. (५) नमसे प सीदत द नेद भ ीणीतन. इ
म े दधातन.. (६)
हे तोताओ! नम कार करके सोम का सा करके इं के लए उसे तुत करो. (६)
य ा त करो एवं उस म दही म त
अ म हा वचष णः पव व सोम शं गवे. दे वे यो अनुकामकृत्.. (७) हे सोम! तुम श ुधषक हो. तुम व च एवं दे व को संतु कारक हो. तुम हमारी गाय के लए सरलता से अ भ ुत होओ. (७) इ ाय सोम पातवे मदाय प र ष यसे. मन
मनस प तः.. (८)
हे मन के ाता एवं वामी सोम! तुम इं के पीने के लए एवं नशा करने के लए पा म भरे जाते हो. (८) पवमान सुवीय र य सोम ररी ह नः. इ द व े ण नो युजा.. (९) हे नचुड़ते ए एवं गीले सोम! तुम इं के साथ मलकर हम शोभन बल वाला धन दो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(९)
दे वता—पवमान सोम
सू —१२
सोमा असृ म दवः सुता ऋत य सादने. इ ाय मधुम माः.. (१) नचुड़े ए एवं अ तशय मधुर सोम य शाला म इं के लए न मत कए जाते ह. (१) अ भ व ा अनूषत गावो व सं न मातरः. इ ं सोम य पीतये.. (२) गाएं जस कार ध पीने के लए बछड़ को बुलाती ह, उसी कार मेधावी यजमान सोम पीने के लए इं को बुलाते ह. (२) मद यु
े त सादने स धो मा वप त्. सोमो गौरी अ ध
तः.. (३)
नशीला रस टपकाने वाले तथा व ान् सोम नद क तरंग एवं म यमा वाणी म थान पाते ह. (३) दवो नाभा वच णोऽ ो वारे महीयते. सोमो यः सु तुः क वः.. (४) शोभन-बु वाले, क व एवं वशेष पर पू जत होते ह. (४)
ा सोम अंत र क ना भ के समान मेष के बाल
यः सोमः कलशे वाँ अ तः प व आ हतः. त म ः प र ष वजे.. (५) कलश एवं दशाप व नामक पा म रखे सोमरस क करण म सोमदे व वेश करते ह. (५) वाच म (६)
र य त समु या ध व प. ज वन् कोशं मधु तम्.. (६)
सोम जल बरसाने वाले मेघ को स करते ए अंत र के ढ़ थल म श द करते ह. न य तो ो वन प तध नाम तः सब घः. ह वानो मानुषा युगा.. (७)
न य तु त कए जाते ए एवं अमृत हने वाले सोम नामक वन प त मनु य के एकएक दन को स करते ए य म नवास करते ह. (७) अभ
या दव पदा सोमो ह वानो अष त. व य धारया क वः.. (८)
क व सोम अंत र से े रत होकर मेधा वय ारा न मत धारा के थान को ा त करते ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प म अपने
य
आ पवमान धारय र य सह वचसम्. अ मे इ दो वाभुवम्.. (९) हे पवमान सोम! तुम हम ब त द तय वाले एवं सुंदर भवन से यु
घर दो. (९)
दे वता—सोम
सू —१३ सोमः पुनानो अष त सह धारो अ य वः. वायो र
य न कृतम्.. (१)
प व करने वाले एवं हजार धारा वाले सोम मेष के बाल के बने दशाप व को पार करके वायु और इं के पीने हेतु पा म जाते ह. (१) पवमानमव यवो व म भ
गायत. सु वाणं दे ववीतये.. (२)
हे र ा चाहने वाले उद्गाताओ! शोधक दे व को स करने वाले एवं दे व के पीने के न म नचुड़े ए सोम को ल य करके गाओ. (२) पव ते वाजसातये सोमाः सह पाजसः. गृणाना दे ववीतये.. (३) अ यंत श
दाता एवं तु त वाले सोम अ
ा त एवं य पू त के लए टपकते ह. (३)
उत नो वाजसातये पव व बृहती रषः. ुम द दो सुवीयम्.. (४) हे सोम! हम अ दे ने के लए द तयु
एवं श
वाली धाराएं गराओ. (४)
ते नः सह णं र य पव तामा सुवीयम्. सुवाना दे वास इ दवः.. (५) नचुड़ते ए सोमदे व! हम हजार धन एवं शोभन श
द. (५)
अ या हयाना न हेतृ भरसृ ं वाजसातये. व वारम माशवः.. (६) शी गामी सोम ेरक ारा े रत होकर इस कार मेष के बाल के बने दशाप व को पार करते ह, जस कार यु के त े रत घोड़े दौड़ते ह. (६) वा ा अष ती दवोऽ भ व सं न धेनवः. दध वरे गभ योः.. (७) जैसे रंभाती ई गाएं बछड़ क ओर जाती ह, इसी कार श द करते ए सोम पा क ओर जाते ह. ऋ वज् हाथ म सोम को धारण करते ह. (७) जु इ ाय म सरः पवमान क न दत्. व ा अप हे इं के लए मारो. (८)
षो ज ह.. (८)
य एवं मद करने वाले सोम! तुम श द करते ए हमारे सभी श ु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को
अप न तो अरा णः पवमानाः व शः. योनावृत य सीदत.. (९) (९)
हे अदाता
को मारने वाले एवं सब थान से दे खने वाले सोम! तुम य शाला म बैठो.
दे वता—सोम
सू —१४ प र ा स यद क वः स धो माव ध
तः. कारं ब त् पु पृहम्.. (१)
मेधावी एवं नद क तरंग म आ त सोम ब त ह. (१)
ारा बहने यो य श द करते ए बहते
गरा यद सब धवः प च ाता अप यवः. प र कृ व त धण सम्.. (२) पर पर बंधुता का भाव रखने वाले, पांच जा तय वाले एवं य कम के इ छु क लोग सोम को धारक वचन ारा अलंकृत करते ह. (२) आद य शु मणो रसे व े दे वा अम सत. यद गो भवसायते.. (३) जब सोमरस को गाय के ध म मलाया जाता है, तब सभी दे व श नशे म मु दत होते ह. (३)
शाली सोम के
न रणानो व धाव त जह छया ण ता वा. अ ा सं ज ते युजा.. (४) भेड़ के बाल से बने दशाप व से नकलकर सोम नीचे टपकता है एवं इस य अपने म इं से मलता है. (४)
म
न ती भय वव वतः शु ो न मामृजे युवा. गाः कृ वानो न न णजम्.. (५) सोम यजमान क उंग लय मा लश क जाती है. (५) अत
ारा इस कार मसले जाते ह, जस कार द त अ
ती तर ता ग ा जगा य
क
ा. व नु मय त यं वदे .. (६)
उंग लय ारा नचोड़े जाते ए सोम गाय के ध-दही म मलने के लए तरछे चलते ह एवं श द करते ह. (६) अभ
पः सम मत मजय ती रष प तम्. पृ ा गृ णत वा जनः.. (७)
मसलती ई उंग लयां अ पर चढ़ती ह. (७)
के वामी सोम से मलती ह एवं श
******ebook converter DEMO Watermarks*******
शाली सोम क पीठ
प र द ा न ममृश
ा न सोम पा थवा. वसू न या
हे सोम! तुम वग य एवं पा थव सभी अ भलाषी बनकर आओ. (८)
कार के धन का पश करते
ए हमारे
दे वता—सोम
सू —१५ एष धया या य
ा शूरो रथे भराशु भः. ग छ
उंग लय ारा नचोड़े ए ये शूर सोम य बनाए ए वग म जाते ह. (१) एष पु
मयुः.. (८)
के
य न कृतम्.. (१) ारा शी गामी रथ म बैठकर इं के
धयायते बृहते दे वतातये. य ामृतास आसते.. (२)
जस वशाल य म दे वगण बैठते ह, उस म सोम ब त से कम क इ छा करते ह. (२) एष हतो व नीयतेऽ तः शु ावता पथा. यद तु
त भूणयः.. (३)
ह वधान म था पत सोम आहवानीय दे श क ओर ले जाए जाते ह. इस समय अ वयु आ द शोभा वाले माग से उ ह दे व को दे ते ह. (३) एष शृ ा ण दोधुव छशीते यू यो३ वृषा. नृ णा दधान ओजसा.. (४) श ारा हमारे लए धन धारण करने वाले सोम अपने ऊपर वाले भाग को इस कार कंपाते ह, जैसे श शाली सांड़ अपने स ग हलाता है. (४) एष
म भरीयते वाजी शु े भरंशु भः. प तः स धूनां भवन्.. (५)
वेगशाली एवं द त करण से यु अ वयु आ द के साथ जाते ह. (५)
सोम सभी बहने वाले रस के वामी के
पम
एष वसू न प दना प षा य यवाँ अ त. अव शादे षु ग छ त.. (६) ये सोम ढकने वाले एवं पी ड़त करने वाले रा स को अपने अंश ह. (६)
ारा लांघ कर जाते
एतं मृज त म यमुप ोणे वायवः. च ाणं मही रषः.. (७) ऋ वज् अ धक रस टपकाने वाले सोम को ोणकलश म नचोड़ते ह. (७) एतमु यं दश
पो मृज त स त धीतयः. वायुधं म द तमम्.. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दस उंग लयां और सात ऋ वज् रा स को मारने म आयुध के समान एवं अ तशय मादक सोम को मसलते ह. (८)
दे वता—सोम
सू —१६
ते सोतार ओ यो३ रसं मदाय घृ वये. सग न त येतशः.. (१) हे सोम! तु हारा रस नचोड़ने वाले तु हे ावा-पृ थवी के बीच इं को श ुनाश करने के उ े य से नचोड़ते ह. सोम न मत होने वाले घोड़े के समान चलते ह. (१) वा द
य र यमपो वसानम धसा. गोषाम वेषु स म.. (२)
हम रस नचोड़ने वाले बल के नेता, जल को ढकने वाले, अ से यु धा बनाने वाले सोम को नचोड़ने के कम म उंग लयां मलाते ह. (२) अन तम सु
एवं गाय को
रं सोमं प व आ सृज. पुनीही ाय पातवे.. (३)
हे अ वयु! श ु ारा अ ा त, अंत र म वतमान व अ य दशाप व पर डालो एवं इं के पीने के लए शु करो. (३) पुनान य चेतसा सोमः प व े अष त.
ारा अपरा जत सोम को
वा सध थमासदत्.. (४)
सोम तु त ारा प व पदाथ म से एक ह. सोम दशाप व पर जाते ह. इसके बाद कम बल से ोण कलश म प ंचते ह. (४) वा नमो भ र दव इ
सोमा असृ त. महे भराय का रणः.. (५)
हे इं ! श उ प करने वाले सोम नम कार वाले तो न म तु हारे पास जाते ह. (५) पुनानो
पे अ ये व ा अष भ
के साथ महान् सं ाम के
यः. शूरो न गोषु त त.. (६)
भेड़ के बाल से बने व अथात् दशाप व के ारा छाने गए एवं सभी शोभा को धारण करते ए सोम गाय के कारण होने वाले सं ाम म थर वीर के समान पा म वतमान ह. (६) दवो न सानु प युषी धारा सुत य वेधसः. वृथा प व े अष त.. (७) जस कार अंत र से जल नीचे बरसता है, उसी कार श करने वाली धाराएं दशाप व पर जाती ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दाता सोम क तृ त
वं सोम वप तं तना पुनान आयुषु. अ ो वारं व धाव स.. (८) हे सोम! तुम मनु य म तोता क र ा करते हो. तुम कपड़े से छनकर भेड़ के बाल से बने ए दशाप व पर जाते हो. (८)
दे वता—सोम
सू —१७
न नेनेव स धवो न तो वृ ा ण भूणयः. सोमा असृ माशवः.. (१) जस कार न दयां नीचे क ओर बहती ह, उसी कार श ुहंता, शी गामी एवं सोम ोणकलश म जाते ह. (१)
ात
अ भ सुवानास इ दवो वृ यः पृ थवी मव. इ ं सोमासो अ रन्.. (२) जस कार वषा धरती पर गरती है, उसी कार नचुड़ा आ सोमरस इं को स करने के लए नीचे गरता है. (२) अ यू मम सरो मदः सोमः प व े अष त. व न
ां स दे वयुः.. (३)
बड़ी-बड़ी लहर वाले, नशीले एवं मु दत सोम रा स का वनाश करते ए दे व को पाने क अ भलाषा से दशाप व पर जाते ह. (३) आ कलशेषु धाव त प व े प र ष यते. उ थैय ेषु वधते.. (४) य म सोम तेजी से कलश म जाते ह, दशाप व पर डाले जाते ह और उ थमं साथ बढ़ते ह. (४) अ त ी सोम रोचना रोह
ाजसे दवम्. इ ण सूय न चोदयः.. (५)
हे सोम! तुम तीन लोक का अ त मण करके ग तशील होकर सूय को े रत करो. (५) अ भ व ा अनूषत मूध य
के
य कारवः. दधाना
ुलोक को का शत करते हो. तुम स
यम्.. (६)
य का अनु ान करने वाले तोता सोम नचोड़ने वाले दन सोम पर उनक तु त करते ह. (६)
रखते ए
तमु वा वा जनं नरो धी भ व ा अव यवः. मृज त दे वतातये.. (७) हे सोम! य के नेता अ वयु आ द अ अ यु सोम को शु करते हो. (७)
क अ भलाषा करके य
******ebook converter DEMO Watermarks*******
के न म
तुम
मधोधारामनु र ती ः सध थमासदः. चा ऋताय पीतये.. (८) हे सोम! तुम मधुर सोम क धारा क ओर बहो, तीखे रस वाले बनकर इस नचोड़ने वाले थान पर बैठो एवं य म दे व के न म सुंदर पीने के पदाथ बनो. (८)
दे वता—सोम
सू —१८
प र सुवानो ग र ाः प व े सोमो अ ाः. मदे षु सवधा अ स.. (१) ये सोम दशाप व पर गरते ह एवं नचोड़े जाने के समय पाषाण पर थत रहते ह. हे सोम! तुम नशीली व तु म सव म हो. (१) वं व
वं क वमधु
जातम धसः. मदे षु सवधा अ स.. (२)
हे व वध कार से स करने वाले एवं मेधावी सोम! तुम अ से उ प मधुर रस दो. तुम मादक पदाथ म सव े हो. (२) तव व े सजोषसो दे वासः पी तमाशत. मदे षु सवधा अ स.. (३) हे सोम! सभी दे व समान म सबसे उ म हो. (३)
प से स होकर तु ह ा त करते ह. तुम नशीली व तु
आ यो व ा न वाया वसू न ह तयोदधे. मदे षु सवधा अ स.. (४) जो सोम सभी वरण यो य धन को तोता व तु म उ म ह. (४)
के हाथ म दे ते ह, वे सभी नशीली
य इमे रोदसी मही सं मातरेव दोहते. मदे षु सवधा अ स.. (५) जस कार एक बालक दो माता का ध पीता है, उसी कार सोम दोन को हते ह. सोम सभी मादक पदाथ म े ह. (५)
ावा-पृ थवी
प र यो रोदसी उभे स ो वाजे भरष त. मदे षु सवधा अ स.. (६) सोम शी ही अ धारक ह. (६)
ारा
ावा-पृ थवी को ढक दे ते ह. सोम सभी नशीले पदाथ के
स शु मी कलशे वा पुनानो अ च दत्. मदे षु सवधा अ स.. (७) ये बली सोम शो धत होने के समय कलश के नीचे श द करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१९
दे वता—सोम
य सोम च मु यं द ं पा थवं वसु. त ः पुनान आ भर.. (१) हे सोम! जो व च , शंसनीय, द सब दान करो. (१) युवं ह थः वपती इ
एवं पृ वी का धन है, तुम नचुड़ते ए हम वह
सोम गोपती. ईशाना प यतं धयः.. (२)
हे सोम! तुम एवं इं सबके वामी एवं गाय का पालन करते हो. तुम हमारे य कम को पूरा करो. (२) वृषा पुनान आयुषु तनय ध ब ह ष. ह रः स यो नमासदत्.. (३) अ भलाषापूरक सोम शु होते समय अ वयु आ द के बीच श द करते ह. ह रतवण सोम कुश के ऊपर अपने थान पर बैठते ह. (३) अवावश त धीतयो वृषभ या ध रेत स. सूनोव स य मातरः.. (४) सोम पी बछड़े कामना करती ह. (४)
ारा पी जाती ई वसतीवरी पी गाएं सोम के सारवान् होने क
कु वद्वृष य ती यः पुनानो गभमादधत्. याः शु ं
हते पयः.. (५)
ध आ द म मलाए जाते ए सोम अ भलाषा करने वाली वसतीवरी के गभ के अपना रस अनेक बार धारण करते ह. जल द त रस को हते ह. (५)
पम
उप श ापत थुषो भयसमा धे ह श ुषु. पवमान वदा र यम्.. (६) हे शु हमारे श ु
कए जाते ए सोम! हमारी जो अ भल षत व तुएं ह, उ ह हमारे समीप लाओ. को भयभीत करो एवं उनका धन ा त करो. (६)
न श ोः सोम वृ यं न शु मं न वय तर. रे वा सतो अ त वा.. (७) हे नचोड़े जाते ए सोम! श ु चाहे र हो या पास हो, तुम उसके तेज एवं अ का वनाश करो. (७)
सू —२०
दे वता—सोम
क वदववीतयेऽ ो वारे भरष त. सा ा व ा अ भ पृधः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मेधावी सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व से छनकर दे व के पीने के लए जाते ह. श ु का आ मण सहन करने वाले सोम सभी श ु को परा जत करते ह. (१) स ह मा ज रतृ य आ वाजं गोम त म व त. पवमानः सह णम्.. (२) शु
होते ए वे सोम तोता
के लए गाय से यु
हजार
कार का अ दे ते ह. (२)
प र व ा न चेतसा मृशसे पवसे मती. स नः सोम वो वदः.. (३) हे सोम! तुम हमारे अनुकूल मन बनाकर हम सभी कार के धन दे ते हो. तुम तु तयां सुनकर रस दे ते हो. तुम हम अ दो. (३) अ यष बृह शो मघवद् यो ुवं र यम्. इषं तोतृ य आ भर.. (४) हे सोम! महान् यश हमारी ओर भेजो, ह दाता यजमान को थायी धन दो एवं तोता को अ दो. (४) वं राजेव सु तो गरः सोमा ववे शथ. पुनानो व े अ त.. (५) हे शोभनकम वाले सोम! तुम शु होकर हमारी तु त उसी कार वीकार करो, जस कार राजा तु तयां वीकार करता है. हे सोम! तुम प व करने वाले एवं अनोखे हो. (५) स व र सु
रो मृ यमानो गभ योः. सोम मूषु सीद त.. (६)
य ा द के वहन करने वाले वे सोम अंत र म वतमान होकर हाथ रगड़े जाते ह एवं चमू नामक पा म थत होते ह. (६)
ारा क ठनाई से
ळु मखो न मंहयुः प व ं सोम ग छ स. दध तो े सुवीयम्.. (७) हे ड़ाशील एवं दान दे ने वाले सोम! तुम तोता के लए शोभन बल दे ते ए दान के समान दशाप व म जाते हो. (७)
सू —२१
दे वता—सोम
एते धाव ती दवः सोमा इ ाय घृ वयः. म सरासः व वदः.. (१) द त श ु को परा जत करने वाले, म त बनाने वाले एवं वग ा त कराने वाले सोम इं के पास जाते ह. (१) वृ व तो अ भयुजः सु वये व रवो वदः. वयं तो े वय कृतः.. (२) नचोड़ने क या का आ य लेने वाले एवं रस नचोड़ने वाले को धन ा त कराने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले सोम तोता को अ दे ते ह. (२) वृथा (३)
ळ त इ दवः सध थम येक मत्. स धो मा
अनायास
रन्.. (३)
ड़ा करते ए सोम एक साथ ही ोणकलश एवं वसतीवरी म टपकते ह.
एते व ा न वाया पवमानास आशत. हता न स तयो रथे.. (४) जस कार रथ म जुड़े घोड़े रथ को मनचाहे थान क ओर ले जाते ह, उसी कार नचोड़े जाते ए सोम हम सभी कार धन द. (४) आ म पश म दवो दधाता वेनमा दशे. यो अ म यमरावा.. (५) हे सोम! जो यजमान हम चुपचाप दान करता है, उस अ भलाषा करने वाले यजमान को नाना कार का धन दो. (५) ऋभुन र यं नवं दधाता केतमा दशे. शु ाः पव वमणसा.. (६) हे सोम! रथ का मा लक जस कार रथ हांकने वाले को नदश दे ता है, उसी कार तुम इस यजमान को ान दो एवं द त होकर बरसो. (६) एत उ ये अवीवश का ां वा जनो अ त. सतः ासा वषुम तम्.. (७) ये सोम य क अ भलाषा करते ह. अ यु के घर म अपना नवास बनाया एवं तोता क बु
दे वता—सोम
सू —२२ एते सोमास आशवो रथा इव
सोम ने ोणकलश से नकलकर यजमान को े रत कया. (७)
वा जनः. सगाः सृ ा अहेषत.. (१)
अ वयु ारा सं कृत सोम दशाप व से इस कार नीचे जाते ह, जस कार यु रथ और घोड़े तेज चलते ह. (१)
म
एते वाता इवोरवः पज य येव वृ यः. अ ने रव मा वृथा.. (२) (२)
ये सोम महान् वायु, बादल क वषा एवं अ न क एते पूता वप तः सोमासो द या शरः. वपा
वाला
के समान नकलते ह.
ानशु धयः.. (३)
शु , बु यु एवं दही मले ए ये सोम ान के ारा हमारी बु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य को
ा त करते
ह. (३) एते मृ ा अम याः ससृवांसो न श मुः. इय
तः पथो रजः.. (४)
दशाप व ारा शो धत एवं मरणर हत सोम ह रखने के थान से जाते ए माग एवं लोक म जाने क इ छा करते ह तथा थकते नह ह. (४) एते पृ ा न रोदसो व य तो
ानशुः. उतेदमु मं रजः.. (५)
ये सोम ावा-पृ थवी के ऊपर अनेक कार से वचरण करके फैलते ह एवं उ म ुलोक म जाते ह. (५) त तुं त वानमु ममनु वत आशत. उतेदमु मा यम्.. (६) न दयां य का व तार करने वाले एवं उ म सोम को ा त करती ह. सोम इस काय को उ म बनाते ह. (६) वं सोम प ण य आ वसु ग ा न धारयः. ततं त तुम च दः.. (७) हे सोम! तुम प णय के पास से गाय का समूह एवं धन लाते हो तथा य का व तार करने वाला श द करते हो. (७)
सू —२३
दे वता—सोम
सोमा असृ माशवो मधोमद य धारया. अ भ व ा न का ा.. (१) शी चलने वाले सोम नशीले रस क मधुर धारा के साथ सभी तु तय को सुनकर कट होते ह. (१) अनु
नास आयवः पदं नवीयो अ मुः. चे जन त सूयम्.. (२)
अ के समान शी गामी एवं ाचीन सोम ने सूय को द त करने के लए नवीन थान पर गमन कया है. (२) आ पवमान नो भराय अदाशुषो गयम्. कृ ध जावती रषः.. (३) हे पवमान सोम! तुम दान न करने वाले श ु का धनपूण घर हम दो तथा हम संतान वाले अ से यु बनाओ. (३) अ भ सोमास आयवः पव ते म ं मदम्. अ भ कोशं मधु तम्.. (४) ग तशील सोम नशीला रस तथा रस टपकाने वाले कोश रत करते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमो अष त धण सदधान इ
यं रसम्. सुवीरो अ भश तपाः.. (५)
सोम व को धारण करने वाले, इं य क वृ शोभन श से यु एवं हसा से बचाने वाले ह. (५)
करने वाले, रस धारण करने वाले,
इ ाय सोम पवसे दे वे यः सधमा ः. इ दो वाजं सषास स.. (६) हे य के पा सोम! तुम इं एवं अ य दे व के लए रस टपकाते हो एवं हम अ दे ने क अ भलाषा करते हो. (६) अ य पी वा मदाना म ो वृ ा य त. जघान जघन च नु.. (७) इस अ तशय नशीले सोम को पीकर अना ांत इं ने श ु भी मारते ह. (७)
दे वता—सोम
सू —२४
सोमासो अध वषुः पवमानास इ दवः. ीणाना अ सु मृ (१)
को पहले मारा और अब
त.. (१)
सं कृत एवं द तशाली सोम जाते ह एवं उंग लय से मलकर जल म मसले जाते ह. अ भ गावो अध वषुरापो न वता यतीः. पुनाना इ माशत.. (२)
ग तशील सोम नीचे बहने वाले जल के समान दशाप व म प ंचते ह एवं स करने के उ े य से इं को ा त करते ह. (२) पवमान ध व स सोमे ाय पातवे. नृ भयतो व नीयसे.. (३) हे पवमान सोम! मनु य तु ह चाहे जहां ले जाव. तुम वह रहकर इं के पीने के उ े य से इं के पास प ंचते हो. (३) वं सोम नृमादनः पव व चषणीसहे. स नय अनुमा ः.. (४) हे मनु य को मतवाला करने वाले सोम! तुम श ु के लए टपको. (४) इ दो यद
भः सुतः प व ं प रधाव स. अर म
को परा जत करने वाले यो ा
य धा ने.. (५)
हे सोम! जब तुम प थर ारा कुचले जाकर दशाप व क ओर दौड़ते हो, तब तुम इं के उदर के लए पया त होते हो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पव य वृ ह तमो थे भरनुमा ः. शु चः पावको अ तः.. (६) हे श ु का सवा धक हनन करने वाले, उ मं ारा तु त करने यो य, शु , सर को प व करने वाले एवं अद्भुत सोम! तुम टपको. (६) शु चः पावक उ यते सोमः सुत य म वः. दे वावीरघशंसहा.. (७) मादक सोमलता का नचुड़ा आ रस शु एवं सर को प व करने वाला कहलाता है. वह दे व को तृ त करने वाला एवं असुरहंता है. (७)
दे वता—पवमान सोम
सू —२५
पव व द साधनो दे वे यः पीतये हरे. म द् यो वायवे मदः.. (१) हे ह रतवण, बल के साधक एवं नशीले सोम! तुम म त , वायु एवं अ य दे व के पीने के लए टपको. (१) पवमान धया हतो३ भ यो न क न दत्. धमणा वायुमा वश.. (२) हे नचोड़े जाते ए एवं हमारी उंग लय ारा पकड़े गए सोम! तुम श द करते ए अपने थान म वेश करो. तुम य कम के साथ वायु के पा म वेश करो. (२) सं दे वैः शोभते वृषा क वय नाव ध
यः. वृ हा दे ववीतमः.. (३)
अपने थान म थत, अ भलाषापूरक, ांत बु वाले, सबके य, वृ का नाश करने वाले एवं दे व क अ धक अ भलाषा करने वाले पवमान सोम दे व के साथ भली कार शोभा पाते ह. (३) व ा
पा या वश पुनानो या त हयतः. य ामृतास आसते.. (४)
नचोड़े जाते ए सुंदर सोम वहां जाते ह, जहां दे व नवास करते ह. (४) अ षो जनय गरः सोमः पवत आयुषक्. इ ं ग छ क व तुः.. (५) ांत ा वाले एवं द तशाली सोम अपने समीपवत इं को ए टपकते ह. (५)
ा त करके श द करते
आ पव व म द तम प व ं धारया कवे. अक य यो नमासदम्.. (६) हे अ तशय मादक एवं ांत ा वाले सोम! तुम पूजनीय इं के थान को ा त करने के लए दशाप व को पार करके धारा के प म बहो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —२६ तममृ
दे वता—पवमान सोम त वा जनमुप थे अ दतेर ध. व ासो अ
ा धया.. (१)
मेधावी अ वयु आ द वेगशाली सोम को धरती क गोद म अपनी उंग लय और तु तय ारा मसलते ह. (१) तं गावो अ यनूषत सह धारम तम्. इ ं धतारमा दवः.. (२) तु तयां अनेक धारा वाले, ीणतार हत, द तशाली एवं वग को धारण करने वाले सोम क तु त करती ह. (२) तं वेधां मेधया
पवमानम ध
व. धण स भू रधायसम्.. (३)
लोग सबको धारण करने वाले, अनेक कम के क ा, वधाता एवं प व होते ए सोम को वग क ओर भेजते ह. (३) तम
भु रजो धया संवसानं वव वतः. प त वाचो अदा यम्.. (४)
सेवा करने वाले ऋ वज् पा म रहने वाले, तु तय के वामी एवं अ हसनीय सोम को दोन हाथ क उंग लय के ारा आगे बढ़ाते ह. (४) तं सानाव ध जामयो ह र ह व य
भः. हयतं भू रच सम्.. (५)
उंग लयां हरे रंग वाले, सुंदर एवं ब त को दे खने वाले सोम को ऊंचे थान क ओर े रत करती ह. (५) तं वा ह व त वेधसः पवमान गरावृधम्. इ द व ाय म सरम्.. (६) हे तु तय ारा बढ़ते ए, द तशाली, नशीले एवं नचुड़ते ए सोम! ऋ वज् तु ह इं के पास जाने के लए े रत करते ह. (६)
सू —२७
दे वता—पवमान सोम
एष क वर भ ु तः प व े अ ध तोशते. पुनानो न प मेधावी, चार ओर से तुत एवं प व होते दशाप व से ह रण के काले चमड़े पर जाते ह. (१)
धः.. (१)
ए सोम श ु
एष इ ाय वायवे व ज प र ष यते. प व े द साधनः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का वनाश करके
सबको जीतने वाले एवं श जाता है. (२)
दाता सोम को दशाप व पर इं एवं वायु के लए स चा
एष नृ भ व नीयते दवो मूधा वृषा सुतः. सोमो वनेषु व वत्.. (३) ु ोक के सर के समान, अ भलाषापूरक, सव , नचुड़े ए एवं का पा ल सोम ऋ वज ारा अनेक कार से ले जाए जाते ह. (३)
म रखे ए
एष ग ुर च दत् पवमानो हर ययुः. इ ः स ा जद तृतः.. (४) हमारे लए गाय और धन क इ छा करते ए, द तशाली, असुर को जीतने वाले एवं वयं सर ारा अ ह सत सोम नचुड़ते समय श द करते ह. (४) एष सूयण हासते पवमानो अ ध
व. प व े म सरो मदः.. (५)
नशा करने वाले सोम जस समय नचोड़े जाते ह, उस समय सूय उ ह ुलोक म छोड़ते ह. (५) एष शु य स यदद त र े वृषा ह रः. पुनाना इ
र मा.. (६)
ये श शाली, अ भलाषापूरक, ह रतवण, द तशाली एवं नचुड़ते ए सोम दशाप व पर गरते ह एवं इं को ा त होते ह. (६)
सू —२८
दे वता—सोम
एष वाजी हतो नृ भ व व मनस प तः. अ ो वारं व धाव त.. (१) ये ग तशील, अ वयु ारा पा पर रखे ए, सव व तो के वामी सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर चलते ह. (१) एष प व े अ रत् सोमो दे वे यः सुतः. व ा धामा या वशन्.. (२) (२)
दे व के लए नचोड़े गए सोमदे व शरीर म वेश पाने के लए दशाप व पर गरते ह. एष दे वः शुभायतेऽ ध योनावम यः. वृ हा दे ववीतमः.. (३)
ये मरणर हत, श ुहंता और दे व क अ तशय अ भलाषा करने वाले सोम अपने थान म शोभा पाते ह. (३) एष वृषा क न द श भजा म भयतः. अ भ ोणा न धाव त.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये अ भलाषापूरक, श द करने वाले एवं दस उंग लय पा अथात् ोण कलश क ओर जाते ह. (४)
ारा पकड़े ए सोम का से बने
एष सूयमरोचयत् पवमानो वचष णः. व ा धामा न व वत्.. (५) ये नचोड़े जाते ए, सबके ा, सबको जानने वाले सोम सूय के साथ-साथ सभी तेज वी पदाथ को द त करते ह. (५) एष शु यदा यः सोमः पुनानो अष त. दे वावीरघशंसहा.. (६) ये नचोड़े ए सोम, श चलते ह. (६)
सू —२९
शाली, अ हसनीय, दे व के र क एवं पापनाशक होकर
दे वता—सोम
ा य धारा अ र वृ णः सुत यौजसा. दे वाँ अनु भूषतः.. (१) श
अ भलाषापूरक, नचोड़े ए दे व को भा वत करने के इ छु क सोम क धाराएं अपनी से बहती ह. (१) स तं मृज त वेधसो गृण तः कारवो गरा. यो तज ानमु यम्.. (२)
तोता, य करने वाले एवं कायक ा लोग द तशाली, बढ़े ग तशील सोम को तु तय ारा शु करते ह. (२)
ए, तु त यो य एवं
सुषहा सोम ता न ते पुनानाय भूवसो. वधा समु मु यम्.. (३) हे अ धक धन के वामी सोम! जब तुम शु कए जाते हो, जब तु हारे तेज शोभा वाले बनते ह, तब तुम तु त यो य एवं समु तु य ोणकलश को भरो. (३) व ा वसू न स
य पव व सोम धारया. इनु े षां स स यक्.. (४)
हे सोम! सम त धन को हम दे ने के लए जीतते ए धारा सभी श ु को एक साथ र भगाओ. (४)
के
प म नीचे गरो.
र ा सु नो अर षः वना सम य क य चत्. नदो य मुमु महे.. (५) हे सोम! दान न करने वाले एवं अ य सभी नदक से हमारी र ा करो. ऐसे साधन ारा हमारी र ा करो, जससे हम मु हो सक. (५) ए दो पा थवं र य द ं पव व धारया. ुम तं शु ममा भर.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे कुचले जाते ए सोम! तुम धारा के के साथ तुम द त वाला बल लाओ. (६)
प म नीचे गरो. वग य एवं धरती संबंधी धन
दे वता—सोम
सू —३०
धारा अ य शु मणो वृथा प व े अ रन्. पुनानो वाच म य त.. (१) इन श शाली सोम क धाराएं बना नचुड़ते समय व न करते ह. (१) इ
म के ही दशाप व पर गर रही ह, सोम
हयानः सोतृ भमृ यमानः क न दत्. इय त व नु म
ऋ वज ारा दशाप व पर शु इं संबंधी व न करते ह. (२)
यम्.. (२)
कए जाते ए द तशाली सोम श द करते ह तथा
आ नः शु मं नृषा ं वीरव तं पु पृहम्. पव व सोम धारया.. (३) हे सोम! तुम अपनी धारा से हमारे वरोधी लोग को हराने वाला, संतानयु ब त ारा चाहने यो य बल रत करो. (३)
व
सोमो अ त धारया पवमानो अ स यदत्. अ भ ोणा यासदम्.. (४) (४)
नचोड़े जाते ए सोम ोणकलश म जाने के लए दशाप व को पार करके टपकते ह. अ सु वा मधुम मं ह र ह व य
भः. इ द व ाय पीतये.. (५)
हे हरे रंग के एवं अ यंत नशीले सोम! तुम जल म रहते हो. लोग इं को पलाने के लए तु ह प थर से कूटते ह. (५) सुनोता मधुम मं सोम म ाय व
णे. चा ं शधाय म सरम्.. (६)
हे ऋ वजो! तुम मधुर रस वाले सुंदर व नशीले सोम को इं के लए नचोड़ो. इसे पीकर इं हम बल दगे. (६)
सू —३१
दे वता—सोम
सोमासः वा य१: पवमानासो अ मुः. र य कृ व त चेतनम्.. (१) शोभनकम वाले एवं नचुड़ते ए सोम हम
स
करने वाला धन दे ते ए कलश क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ओर जा रहे ह. (१) दव पृ थ ा अ ध भवे दो ु नवधनः. भवा वाजानां प तः.. (२) हे अ बनो. (२)
के वामी सोम! तुम ुलोक और धरती संबंधी द तशाली धन को बढ़ाने वाले
तु यं वाता अ भ य तु यमष त स धवः. सोम वध त ते महः.. (३) हे सोम! वायु तु ह तृ त दे ने वाले ह एवं न दयां तु हारे लए ही बहती ह. ये दोन तु हारी म हमा बढ़ाव. (३) आ याय व समेतु ते व तः सोम वृ यम्. भवा वाज य स थे.. (४) हे सोम! तुम वायु और जल क सहायता से बढ़ो. अ भलाषापूरक बल तु ह चार ओर से ा त हो. तुम अ ा त कराने वाले बनो. (४) तु यं गावो घृतं पयो ब ो
े अ तम. व ष े अ ध सान व.. (५)
हे पीले रंग के सोम! गाएं तु हारे लए ऊंचे थान पर बैठो. (५)
ीण न होने वाला ध-दही दे ती ह. तुम बढ़े एवं
वायुध य ते सतो भुवन य पते वयम्. इ दो स ख वमु म स.. (६) हे शोभन आयुध वाले एवं लोक के वामी सोम! हम तु हारी म ता चाहते ह. (६)
दे वता—सोम
सू —३२
सोमासो मद युतः वसे नो मघोनः. सुता वदथे अ मुः.. (१) (१)
नशा करने वाले सोम नचुड़कर ह दाता यजमान को अ दे ने के लए य म जाते ह. आद
(२)
त य योषणो ह र ह व य
भः. इ
म ाय पीतये.. (२)
त ऋ ष क उंग लयां हरे रंग के सोम को इं के पीने के लए प थर से कुचलती ह. आद हंसो यथा गणं व
यावीवश म तम्. अ यो न गो भर यते.. (३)
हंस जस कार मानव-समूह म घुसता है, उसी कार यह सोम सभी तोता क बु म वेश करते ह. जस कार घोड़े को नान कराते ह, उसी कार सोम जल से स चे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाते ह. (३) उभे सोमावचाकश मृगो न त ो अष स. सीद ृत य यो नमा.. (४) हे गाय के ध-दही से मले ए सोम! तुम हरन के समान ावा-पृ थवी को दे खते ए य के थान म बैठने हेतु जाते हो. (४) अ भ गावो अनूषत योषा जार मव
यम्. अग ा ज यथा हतम्.. (५)
हे सोम! यां जस कार अपने यारे ेमी क तु त करती ह, उसी कार लोग क वाणी तु हारी शंसा करती है. शूर जस कार सं ाम म जाता है, उसी कार सोम अपने न त थान म जाते ह. (५) अ मे धे ह ुम शो मघवद् य म ं च. स न मेधामुत वः.. (६) हे सोम! मुझ ह
अ धारी तोता को द तवाला अ , धन, बु
और यश दो. (६)
दे वता—सोम
सू —३३
सोमासो वप तोऽपां न य यूमयः. वना न म हषा इव.. (१) मेधावी सोम ोणकलश क ओर इस कार जाते ह, जस कार पानी म लहर उठती ह. बूढ़ा हरण जैसे जंगल क ओर जाता है, उसी कार सोम पा से नीचे जाते ह. (१) अ भ ोणा न ब वः शु ा ऋत य धारया. वाजं गोम तम रन्.. (२) पीले रंग वाले एवं द तशाली सोम गोयु प म ोणकलश म गरते ह. (२)
अ
दान करते ए अमृत क धारा के
सुता इ ाय वायवे व णाय म द् यः. सोमा अष त व णवे.. (३) नचोड़े ए सोम इं , व ण, म द्गण एवं व णु के पास जाते ह. (३) त ो वाच उद रते गावो मम त धेनवः. ह ररे त क न दत्.. (४) ऋक्, यजु एवं साम के प म तीन तु तयां बोली जा रही ह. स करने वाली गाएं रंभा रही ह. हरे रंग वाले सोम श द करते ए जाते ह. (४) अभ
ीरनूषत य
ऋत य मातरः. ममृ य ते दवः शशुम्.. (५)
तोता ा ण य क माता के सामने महान् तु तय का उ चारण कर रहे ह. ुलोक के शशु के समान सोम मसले जा रहे ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रायः समु ां तुरोऽ म यं सोम व तः. आ पव व सह णः.. (६) हे सोम! चार समु से घरी धनपूण धरती को चार ओर से हम दो. तुम हमारी हजार अ भलाषाएं पूरी करो. (६)
दे वता—सोम
सू —३४ सुवानो धारया तने
ह वानो अष त. जद्
नचुड़ते ए सोम अ वयु क नग रय को श थल बनाते ह. (१)
हा
ोजसा.. (१)
ेरणा से दशाप व म जाते ह तथा श ु
क
ढ़
सुत इ ाय वायवे व णाय म द् यः. सोमो अष त व णवे.. (२) नचोड़े ए सोम इं , वायु, व ण, म द्गण एवं व णु के पास जाते ह. (२) वृषाणं वृष भयतं सु व त सोमम
भः. ह त श मना पयः.. (३)
अ वयु आ द रस बरसाने वाले एवं हाथ म पकड़े ए सोमरस को नचोड़ने वाले प थर ारा हते ह. वे कम पी बल ारा सोमरस पी ध हते ह. (३) भुव
त य म य भुव द ाय म सरः. सं
पैर यते ह रः.. (४)
त ऋ ष का यह नशीला सोम अपने एवं इं के पीने के लए शु का सोम ध आ द के साथ मलाया जाता है. (४) अभीमृत य व पं हते पृ मातरः. चा
हो रहा है. हरे रंग
यतमं ह वः.. (५)
पृ के पु म द्गण इस य के थान, इं आ द के सोम को हते ह. (५)
य, होम के साधन व मनोहर
समेनम ता इमा गरो अष त स ुतः. धेनूवा ो अवीवशत्.. (६) हमारी सरल तु तयां चलती ई सोम के साथ मलती ह. श द करते ए सोम उन स करने वाली तु तय क अ भलाषा करते ह. (६)
सू —३५
दे वता—सोम
आ नः पव व धारया पवमान र य पृथुम्. यया यो त वदा स नः.. (१) हे नचुड़ते ए सोम! तुम धारा के
प म हमारे चार ओर गरो तथा अपनी धारा के
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा हम व तीण धन एवं तेज वी वग दो. (१) इ दो समु मीङ् खय पव व व मेजय. रायो धता न ओजसा.. (२) श
हे जल को े रत करने वाले तथा सभी श ु ारा हम धन दे ने वाले बनो. (२)
को कं पत करने वाले सोम! तुम अपनी
वया वीरेण वीरवोऽ भ याम पृत यतः. रा णो अ भ वायम्.. (३) हे वीर वाले सोम! हम तु हारे बल क सहायता से यु परा जत करगे. हम वरण करने यो य धन दो. (३) वाज म
चाहने वाले श ु
को
र य त सषास वाजसा ऋ षः. ता वदान आयुधा.. (४)
तेज वी, अ दे ने वाले, सबके ा एवं त व आयुध को जानने वाले सोम यजमान का भरणपोषण करने क इ छा से अ दे ते ह. (४) तं गी भवाचमीङ् खयं पुनानं वासयाम स. सोमं जन य गोप तम्.. (५) म उन सोम क तु तवचन ारा शंसा करता ,ं जो यजमान को गाएं दे ते ह. म नचुड़ते ए सोम को थान दे ता ं. (५) व ो य य ते जनो दाधार धमण पतेः. पुनान य भूवसोः.. (६) सभी यजमान य कम के पालक, प व होते ए एवं अ धक धन वाले सोम के काम म मन लगाते ह. (६)
दे वता—सोम
सू —३६
अस ज र यो यथा प व े च वोः सुतः. का म वाजी य मीत्.. (१) पा
रथ म जुड़ा आ घोड़ा जस कार यु म चलता है, उसी कार चमू नामक दोन म नचोड़े गए एवं दशाप व पर छाने गए सोम य म ग त करते ह. (१) स व ः सोम जागृ वः पव व दे ववीर त. अ भ कोशं मधु तम्.. (२)
हे य वहन करने वाले, जाग क एवं दे वा भलाषी सोम! तुम रस टपकाने वाले, दशाप व से छनकर ोणकलश म गरो. (२) स नो योत ष पू
पवमान व रोचय.
वे द ाय नो हनु.. (३)
हे ाचीन एवं नचुड़ते ए सोम! हमारे लए द थान को का शत करो तथा हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य कम एवं श
ा तक
ेरणा दो. (३)
शु भमान ऋतायु भमृ यमानो गभ योः. पवते वारे अ ये.. (४) य के अ भलाषी ऋ वज ारा अलंकृत एवं हाथ से बने दशाप व से छनते ह. (४)
ारा मसले गए सोम भेड़ के बाल
स व ा दाशुषे वसु सोमो द ा न पा थवा. पवतामा त र या.. (५) वे नचोड़े जाते ए सोम ह वदाता यजमान को सभी धन द. (५)
ुलोक, भूलोक और अंत र
संबंधी
आ दव पृ म युग युः सोम रोह स. वीरयुः शवस पते.. (६) हे अ के पालक सोम! तुम तोता के लए गाएं, घोड़े एवं वीर संतान दे ने के अ भलाषी बनकर वग क पीठ पर चढ़ो. (६)
सू —३७ स सुतः पीतये वृषा सोमः प व े अष त. व न
दे वता—सोम ां स दे वयुः.. (१)
इं के पीने के लए नचोड़े गए, अ भलाषापूरक, रा स का नाश करने वाले एवं दे वा भलाषी सोम भेड़ के बाल ारा बने दशाप व से छनकर ोणकलश म जाते ह. (१) स प व े वच णो ह ररष त धण सः. अ भ यो न क न दत्.. (२) सबके ा, हरे रंग वाले एवं सबको धारण करने वाले वे सोम पहले दशाप व पर जाते ह. बाद म श द करते ए ोणकलश म गरते ह. (२) स वाजी रोचना दवः पवमानो व धाव त. र ोहा वारम यम्.. (३) वे वेगशाली, वग को का शत करने वाले, रा स के हंता एवं नचुड़ते ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके जाते ह. (३) स
त या ध सान व पवमानो अरोचयत्. जा म भः सूय सह.. (४)
वह सोम त ऋ ष के समु त य म नचुड़कर अपने बढ़े ए तेज के साथ सूय को का शत करते ह. (४) स वृ हा वृषा सुतो व रवो वददा यः. सोमो वाज मवासरत्.. (५) वे वृ नाशक, अ भलाषापूरक, नचुड़े ए, य क ा को धन दे ने वाले एवं अ य ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा
अपराजेय सोम इस तरह कलश म जाते ह, जैसे यु स दे वः क वने षतो३ भ ोणा न धाव त. इ
म कोई घोड़ा चलता है. (५) र ाय मंहना.. (६)
वे द तशाली, भीगे ए, अ वयु के ारा े रत एवं महान् सोम अ वयु क के न म ोणकलश म जाते ह. (६)
ेरणा से इं
दे वता—सोम
सू —३८
एष उ य वृषा रथोऽ ो वारे भरष त. ग छन् वाजं सह णम्.. (१) अ भलाषापूरक सोम रथ के समान ग तशील होकर यजमान को हजार अ दे ने के लए भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके कलश म जाते ह. (१) एतं
त य योषणो ह र ह व य
भः. इ
म ाय पीतये.. (२)
त ऋ ष क उंग लयां इस भीगे ए एवं हरे रंग के सोम को इं के पीने के लए प थर से कुचल रही ह. (२) एतं यं ह रतो दश ममृ य ते अप युवः. या भमदाय शु भते.. (३) पकड़ने के वभाव वाली दस उंग लयां कम क इ छु क बनकर सोम को नचोड़ रही ह. इन उंग लय ारा सोम इं के नशे के लए शु कए जाते ह. (३) एष य मानुषी वा येनो न व ु सीद त. ग छ
ारो न यो षतम्.. (४)
ये सोम मानव जा म बाज प ी के समान बैठते ह. जैसे कोई यार अपनी ेयसी के पास चुपचाप जाता है, उसी कार सोम करते ह. (४) एष य म ो रसोऽव च े दवः शशुः. य इ वारमा वशत्.. (५) वग के पु वे सोम मादक रस के प म सबको दे खते ह तथा द त सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व म वेश करते ह. (५) एष य पीतये सुतो ह ररष त धण सः.
द यो नम भ
यम्.. (६)
ये पीने के लए नचोड़े गए, हरे रंग के एवं सबके धारक सोम श द करते ए अपने य थान ोणकलश म जाते ह. (६)
सू —३९
दे वता—सोम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आशुरष बृह मते प र
येण धा ना. य दे वा इ त वन्.. (१)
हे महान् बु वाले सोम! दे व के अ तशय य शरीर म धारा के ारा शी गमन करो. तुम यह कहते ए जाओ—“जहां दे व ह, म वह जा रहा ं.” (१) प र कृ व न कृतं जनाय यातय षः. वृ
दवः प र व.. (२)
हे सोम! तुम असं कृत थान को सं कृत करते ए एवं य ज म दे ते ए आकाश से बरसो. (२)
करने वाले यजमान को
सुत ए त प व आ व ष दधान ओजसा. वच ाणो वरोचयन्.. (३) द त धारण करते ए एवं सबको दे खते ए नचोड़े गए सोम सबको द त बनाते ह एवं अपनी श से दशाप व पर जाते ह. (३) अयं स यो दव प र रघुयामा प व आ. स धो मा दशाप व पर स चे जाते ए सोम पानी क लहर के ऊपर तेज चाल से जाते ह. (४)
रत्.. (४) प म टपकते ह एवं ुलोक के
आ ववासन् परावतो अथो अवावतः सुतः. इ ाय स यते मधु.. (५) नचुड़े ए सोम रवत एवं समीपवत दे व तथा इं क सेवा के लए मधु के समान स चे जाते ह. (५) समीचीना अनूषत ह र ह व य
भः. योनावृत य सीदत.. (६)
हे दे वो! भली कार मले ए तोता तु तयां करते ह एवं प थर क सहायता से हरे रंग के सोम को े रत करते ह. इस लए तुम य म बैठो. (६)
सू —४०
दे वता—सोम
पुनानो अ मीद भ व ा मृधो वचष णः. शु भ त व ं धी त भः.. (१) नचुड़ते ए एवं सबको दे खने वाले सोम सभी हसक श ु मेधावी सोम को तु तय ारा अलंकृत करते ह. (१)
को लांघ गए. लोग
आ यो नम णो हद्गम द ं वृषा सुतः. ुवे सद स सीद त.. (२) लाल रंग वाले सोम ोणकलश म जा रहे ह. इसके बाद अ भलाषापूरक एवं नचुड़े ए सोम इं के समीप जाते ह एवं न त थान पर बैठते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नू नो र य महा म दोऽ म यं सोम व तः. आ पव व सह णम्.. (३) हे नचुड़े ए सोम! तुम चार ओर से हमारे लए अग णत एवं महान् धन लाओ. (३) व ा सोम पवमान ु नानी दवा भर. वदाः सह णी रषः.. (४) हे नचुड़ते ए द तशाली सोम! तुम ब त कार का अ हमारे पास लाओ एवं हम हजार कार का अ दो. (४) स नः पुनान आ भर र य तो े सुवीयम्. ज रतुवधया गरः.. (५) हे नचुड़ते ए सोम! तुम हमारे तोता उनक तु तय को बढ़ाओ. (५) पुनान इ दवा भर सोम
बहसं र यम्. वृष
के लए शोभन पु वाला धन लाओ तथा दो न उ यम्.. (६)
हे नचुड़ते ए सोम! तुम हमारे लए ावा-पृ थवी म बढ़े अ भलाषापूरक सोम! तुम हम तु त के यो य धन दो. (६)
सू —४१
ए धन को लाओ. हे
दे वता—सोम
ये गावो न भूणय वेषा अयासो अ मुः. न तः कृ णामप वचम्.. (१) नचुड़े ए, ग तशील, तेज चलने वाले एवं द तशाली सोम काले चमड़े वाले लोग को मारते ए घूमते ह, तुम उनक तु त करो. (१) सु वत य मनामहेऽ त सेतुं रा म्. सा ांसो द युम तम्.. (२) शोभन-सोम य न करने वाले तथा द युजन को परा जत करना चाहते ह. वे बंधनकारी तथा बु रा स को दबाने क अ भलाषा रखते ह. हम सोम क इन दोन इ छा क शंसा करते ह. (२) शृ वे वृ े रव वनः पवमान य शु मणः. चर त व ुतो द व.. (३) सोम का श द वषा के समान सुनाई दे ता है तथा नचुड़ते ए एवं श द तयां अंत र म चलती ह. (३)
शाली सोम क
आ पव व मही मषं गोम द दो हर यवत्. अ ाव ाजवत् सुतः.. (४) हे सोम! तुम नचुड़कर हमारे सामने गाय , वण, घोड़ और बल से यु लाओ. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
महान् अ
स पव व वचषण आ मही रोदसी पृण. उषाः सूय न र म भः.. (५) हे सूयदशक सोम! तुम नीचे क ओर गरो एवं उस रस से व तृत ावा-पृ थवी को इस कार पूण कर दो, जस कार सूय करण से दन को पूण करता है. (५) प र णः शमय या धारया सोम व तः. सरा रसेव व पम्.. (६) हे सोम! न दयां अपनी धारा से जस कार भूलोक को पूण करती ह, उसी कार तुम अपनी सुखकारी धारा के ारा हम चार ओर से पूण करो. (६)
दे वता—सोम
सू —४२
जनयन्रोचना दवो जनय सु सूयम्. वसानो गा अपो ह रः.. (१) ये हरे रंग के सोम ुलोकसंबंधी न , ह आ द को तथा अंत र करते ह. इसके बाद नीचे बहने वाले जल से धरती को ढकते ह. (१) एष
म सूय को उ प
नेन म मना दे वो दे वे य प र. धारया पवते सुतः.. (२)
ाचीन तो के साथ नचुड़ते ए ये सोम अपनी धारा से दे व के लए सब ओर से गरते ह. (२) वावृधानाय तूवये पव ते वाजसातये. सोमाः सह पाजसः.. (३) असी मत श हानः
वाले सोम बढ़े ए अ को शी पाने के लए नचोड़े जाते ह. (३)
न म पयः प व े प र ष यते.
द दे वाँ अजीजनत्.. (४)
सोम ाचीन रस को टपकाते ए दशाप व पर स चे जाते ह एवं श द करते ए दे व को अपने समीप उ प करते ह. (४) अ भ व ा न वाया भ दे वाँ ऋतावृधः. सोमः पुनानो अष त.. (५) नचोड़े जाते ए ये सोम सभी वरण करने यो य धन एवं य वधक दे व के पास जाते ह. (५) गोम ः सोम वीरवद ाव ाजव सुतः. पव व बृहती रषः.. (६) हे सोम! तुम नचुड़कर हम गाय , ब त सी संतान , घोड़ तथा सं ाम म ा त धन के साथ ब त सा अ दो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —४३
दे वता—सोम
यो अ य इव मृ यते गो भमदाय हयतः. तं गी भवासयाम स.. (१) जो सुंदर सोम चलने वाले घोड़े के समान दे व के नशे के लए गाय के ध-दही आ द म मलाए जाते ह, तु तय ारा हम उ ह को स करगे. (१) तं नो व ा अव युवो गरः शु भ त पूवथा. इ
म ाय पीतये.. (२)
र ा क अ भला षणी हमारी सब तु तयां इं के पीने के लए सोम को पहले के समान ही द तशाली बनाती ह. (२) पुनानो या त हयतः सोमो गी भः प र कृतः. व य मे या तथेः.. (३) नचुड़ते ए सुंदर सोम तु तय से सुशो भत होकर मुझ मेधावी मे या त थ के क याण के लए ोणकलश म जाते ह. (३) पवमान वदा र यम म यं सोम सु यम्. इ दो सह वचसम्.. (४) हे नचुड़ते ए एवं छनते ए सोम! तुम हम शोभन ी से यु धन दो. (४) इ र यो न वाजसृ क न
एवं ब त द त वाला
त प व आ. यद ार त दे वयुः.. (५)
सोम यु म जाने वाले घोड़े के समान दशाप व म श द करते ह. सोम जब नीचे टपकते ह, तब दे व के अ भलाषी बनकर श द करते ह. (५) पव व वाजसातये व य गृणतो वृधे. सोम रा व सुवीयम्.. (६) हे सोम! तु त करने वाले मुझ मे या त थ को अ दे ने एवं बढ़ाने के लए टपको. तुम हम शोभन श वाला पु दो. (६)
सू —४४
दे वता—पवमान सोम
ण इ दो महे तन ऊ म न ब दष स. अ भ दे वाँ अया यः.. (१) हे सोम! तुम हम महान् धन दे ने के लए आते हो. अया य ऋ ष तु हारी तरंग को धारण करते ए पूजा करने के लए दे व क ओर आते ह. (१) मती जु ो धया हतः सोमो ह वे पराव त. व य धारया क वः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मेधावी तोता क तु तय ारा से वत, ांत-कम वाले सोम य अपनी धारा को र दे श तक व तृत करते ह. (२)
म
थत होकर
अयं दे वेषु जागृ वः सुत ए त प व आ. सोमो या त वचष णः.. (३) ये जागरणशील एवं नचुड़े ए सोम दे व के लए सभी ओर जाते ह एवं प व होने के लए दशाप व पर प ंचते ह. (३) स नः पव व वाजयु
ाण ा म वरम्. ब ह माँ आ ववास त.. (४)
हे सोम! ऋ वज् तु हारी सेवा करते ह. तुम हमारे लए अ क इ छा करते ए एवं हमारे य को क याणकारी बनाते ए टपको. (४) स नो भगाय वायवे व वीरः सदावृधः. सोमो दे वे वा यमत्.. (५) मेधावी ा ण सोम को भग और वायु दे व के लए े रत करते ह. सोम न य वृ होकर हमारे लए दे व का धन द. (५) स नो अ वसु ये
तु वद् गातु व मः. वाजं जे ष वो बृहत्.. (६)
हे य को ा त करने वाल म े एवं पु यलोक के माग को भली कार जानने वाले सोम! आज हम धन दे ने के लए महान् अ एवं बल को जीतो. (६)
दे वता—सोम
सू —४५
स पव व मदाय कं नृच ा दे ववीतये. इ द व ाय पीतये.. (१) हे नेता को दे खने वाले सोम! तुम य क पू त एवं इं के पीने के बाद मद तथा सुख के लए टपको. (१) स नो अषा भ
यं१ व म ाय तोशसे. दे वा स ख य आ वरम्.. (२)
हे सोम! तुम हमारे त बनो. तुम इं के पीने के लए हो. तुम दे व से हमारे लए धन मांगो. (२) उत वाम णं वयं गो भर
य
मो मदाय कम्. व नो राये रो वृ ध.. (३)
हे लाल रंग वाले सोम! हम नशे के लए तु ह गाय के ध से शु लए धन के ार खोलो. (३) अ यू प व म मी ाजी धुरं न याम न. इ दवेषु प यते.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह. तुम हमारे
जस कार चलते समय घोड़ा रथ के जुए से आगे नकल जाता है, उसी कार सोम दशाप व को लांघकर दे व के पास जाते ह. (४) समी सखायो अ वर वने
ळ तम य वम्. इ ं नावा अनूषत.. (५)
भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके जल म ड़ा करने वाले इस सोम क तु त तोताबंधु भली कार करते ह तथा वचन ारा सोम के गुण का वणन करते ह. (५) तया पव व धारया यया पीतो वच से. इ दो तो े सुवीयम्.. (६) हे सोम! जस रसधारा को पीने वाले चतुर तोता को तुम शोभन वीय दान करते हो, उसी धारा से नीचे बहो. (६)
दे वता—सोम
सू —४६ असृ दे ववीतयेऽ यासः कृ
ा इव. र तः पवतावृधः.. (१)
पवत पर उ प एवं रस टपकाते ए सोम य जस कार कायकुशल घोड़ा सजाया जाता है. (१)
म उसी कार तैयार कए जाते ह,
प र कृतास इ दवो योषेव प यावती. वायुं सोमा असृ त.. (२) जैसे पता वाली क या अलंकृत होकर वर के पास जाती है, उसी कार नचोड़े जाते ए सोम वायु को ा त होते ह. (२) एते सोमास इ दवः य व त मू सुताः. इ ं वध त कम भः.. (३) द तशाली, अ से यु , नचोड़ने के पा अपने कम से इं को स करते ह. (३)
म रखे ए एवं इस य म वतमान सोम
आ धावता सुह यः शु ा गृ णीत म थना. गो भः ीणीत म सरम्.. (४) हे शोभन हाथ वाले ऋ वजो! दौड़कर आओ, मथानी से सफेद रंग वाले सोम को हण करो एवं नशा करने वाले सोम को गाय के ध, दही आ द से मलाओ. (४) स पव व धन
य य ता राधसो महः. अ म यं सोम गातु वत्.. (५)
हे श ु के धन को जीतने वाले, अभी माग को ा त कराने वाले एवं हमारे लए महान् धन के दाता सोम! तुम टपको. (५) एतं मृज त म य पवमानं दश
पः. इ ाय म सरं मदम्.. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दस उंग लयां मसलने यो य, टपकते ए एवं नशीले इस सोम को इं के न म प व करती ह. (६)
दे वता—पवमान सोम
सू —४७
अया सोमः सूकृ यया मह द यवधत. म दान उद्वृषायते.. (१) नचोड़ने क इस शोभन या ारा सोम दे व के लए वृ होकर बैल के समान श द करते ह. (१)
को ा त ए ह एवं स
कृतानीद य क वा चेत ते द युतहणा. ऋणा च धृ णु यते.. (२) इन सोम के असुरनाशन आ द कम हमने कए ह. श ु के ऋण भी चुकाते ह. (२) आ सोम इ
को हराने वाले सोम यजमान
यो रसो व ः सह सा भुवत्. उ थं यद य जायते.. (३)
जस समय इं संबंधी मं बोले जाते ह, तभी इं का य करने वाले, बलवान् व व के समान हसाशू य सोम हमारे लए असी मत धन दे ते ह. (३) वयं क व वधत र व ाय र न म छ त. यद ममृ यते धयः.. (४) जब ांत कम वाले सोम उंग लय ारा शु कए जाते ह, तभी वे मेधावी तोता को अ भलाषापूरक इं से रमणीय धन दलाना चाहते ह. (४) सषासतू रयीणां वाजे ववता मव. भरेषु ज युषाम स.. (५) हे सोम! सं ाम म जाने वाले घोड़े को जस कार घास द जाती है, उसी कार तुम सं ाम म जीतने वाल को श ु के धन दे ते हो. (५)
सू —४८
दे वता—पवमान सोम
तं वा नृ णा न ब तं सध थेषु महो दवः. चा ं सुकृ ययेमहे.. (१) हे महान् ुलोक के समान थान म थत, हमारे लए धन एवं क याण धारण करने वाले एवं नचुड़ते ए सोम! हम शोभन या ारा तुमसे धन मांगते ह. (१) संवृ धृ णुमु यं महाम ह तं मदम्. शतं पुरो हे श ु
णम्.. (२)
के नाशक, शंसा के यो य, पूजा के यो य, ब त से कम करने वाले, नशीले
******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं श ु
क नग रय को न करने वाले सोम! हम तुमसे धन मांगते ह. (२)
अत वा र यम भ राजानं सु तो दवः. सुपण अ
थभरत्.. (३)
हे शोभन-कम वाले तथा धन दे ने के लए राजा सोम! बाज प ी तु ह वग से लाया था. (३) व
मा इ व शे साधारणं रज तुरम्. गोपामृत य वभरत्.. (४)
बाज प ी जल बरसाने वाले, य के र क एवं सबको दे खने वाले दे व के रस सोम को समान प से लाया था. (४) अधा ह वान इ श
यं यायो म ह वमानशे. अ भ कृ चष णः.. (५)
य कम को वशेष प से दे खने वाले, यजमान को मनचाहा फल दे ने वाले एवं अपनी का योग करने वाले सोम शंसा के यो य मह व ा त करते ह. (५)
दे वता—पवमान सोम
सू —४९
पव व वृ मा सु नोऽपामू म दव प र. अय मा बृहती रषः.. (१) हे सोम! तुम हमारे लए ुलोक से वषा गराओ एवं जल क लहर ले आओ. तुम हम वशाल अ का यर हत समूह दो. (१) तया पव व धारया यया गाव इहागमन्. ज यास उप नो गृहम्.. (२) हे सोम! तुम उस धारा से नीचे टपको, जससे श ु जाव. (२)
के जनपद क गाएं हमारे घर आ
घृतं पव व धारया य ेषु दे ववीतमः. अ म यं वृ मा पव.. (३) हे य म दे व क अ तशय अ भलाषा करने वाले सोम! हम भागववंशी ऋ षय के लए तुम धीमी धारा से बरसो. (३) स न ऊज
१ यं प व ं धाव धारया. दे वासः शृणव ह कम्.. (४)
हे सोम! तुम नचुड़ते समय हम अ दे ने के लए भेड़ के बाल से बने दशाप व को धारा के ारा ा त करो. तु हारे श द को दे व सुन. (४) पवमानो अ स यद
ां यपजङ् घनत्.
नव ोचयन् चः.. (५)
ये नचुड़ते ए सोम रा स को मारते ए एवं अपनी द तय को पहले के समान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का शत करते ए टपकते ह. (५)
दे वता—पवमान सोम
सू —५०
उ े शु मास ईरते स धो म रव वनः. वाण य चोदया प वम्.. (१) हे सोम! तु हारा वेग सागर क लहर के समान चलता है. तुम धनुष से छोड़े ए बाण के समान श द करो. (१) सवे त उद रते त ो वाचो मख युवः. यद
ए ष सान व.. (२)
हे सोम! तुम जस समय उ त एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व पर जाते हो, तब तु हारी उ प के समय य करने के अ भलाषी यजमान के मुख से ऋक्, यजु एवं साम के प म तीन वचन नकलते ह. (२) अ ो वारे प र
यं ह र ह व य
भः. पवमानं मधु तम्.. (३)
दे व के य, हरे रंग वाले, प थर क सहायता से पीसे गए, रस टपकाने वाले एवं नचुड़ते ए सोम को ऋ वज् भेड़ के बाल से बने दशाप व पर रखते ह. (३) आ पव व म द तम प व ं धारया कवे. अक य यो नमासदम्.. (४) हे अ तशय नशीले एवं ांत-कम वाले सोम! तुम पूजा के यो य इं का थान पाने के लए धारा के प म दशाप व पर गरो. (४) स पव व म द तम गो भर
ानो अ ु भः. इ द व ाय पीतये.. (५)
हे अ तशय मादक सोम! तुम वा द बनाने वाले गाय के ध, घी आ द से मलकर इं के पीने के लए टपको. (५)
सू —५१ अ वय अ
दे वता—पवमान सोम भः सुतं सोमं प व आ सृज. पुनीही ाय पातवे.. (१)
हे अ वयुगण! प थर क सहायता से पीसे ए सोम को दशाप व पर डालो. तुम इसे इं के पीने के लए शु करो. (१) दवः पीयूषमु मं सोम म ाय व
णे. सुनोता मधुम मम्.. (२)
हे अ वयुगण! अ य धक मधुर, वग के अमृत के समान एवं उ म सोम को व धारी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं के लए नचोड़ो. (२) तव य इ दो अ धसो दे वा मधो
ते. पवमान य म तः.. (३)
हे सोम तु हारे नचुड़ते ए एवं नशीले रस को इं ा द दे व एवं म त् ा त करते ह. (३) वं ह सोम वधय सुतो मदाय भूणये. वृष
तोतारमूतये.. (४)
हे नचुड़े ए सोम! तुम दे व को उ त बनाते ए एवं अ भलाषा तुरंत नशा दे ने एवं र ा करने के लए तोता के पास जाते हो. (४)
क पू त करते ए
अ यष वच ण प व ं धारया सुतः. अ भ वाजमुत वः.. (५) हे वशेष बु मान् सोम! तुम नचुड़कर दशाप व क ओर धारा के हमारे लए अ एवं क त दो. (५)
प म प ंचो एवं
दे वता—पवमान सोम
सू —५२
प र ु ः सन यभर ाजं नो अ धसा. सुवानो अष प व आ.. (१) द तशाली एवं धन दे ने वाले सोम अ के साथ हमारे बल को बढ़ाव. हे सोम! तुम नचुड़ कर दशाप व पर गरो. (१) तव
ने भर व भर ो वारे प र
यः. सह धारो या ना.. (२)
हे सोम! तु हारा दे व को स करने वाला, हजार धारा सहायता से भेड़ के बाल से बने दशाप व पर जाता है. (२)
वाला रस ाचीन माग क
च न य तमीङ् खये दो न दानमीङ् खय. वधैवध नवीङ् खय.. (३) हे सोम हम च के समान पूण भोजन दो. हे द तशाली सोम! हम दे ने यो य व तु दो. हे चोट खाकर बहने वाले सोम! तुम प थर के हर से रस टपकाओ. (३) न शु म म दवेषां पु
त जनानाम्. यो अ माँ आ ददे श त.. (४)
हे ब त ारा बुलाए गए सोम! जन श ु उनका बल न करो. (४)
का बल हम बाधा के लए ललकारता है,
शतं न इ द ऊ त भः सह ं वा शुचीनाम्. पव व मंहय यः.. (५) हे धन दे ने वाले सोम! तुम हमारी र ा करने के लए सैकड़ हजार नमल धारा बहो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म
सू —५३
दे वता—पवमान सोम
उ े शु मासो अ थू र ो भ द तो अ वः. नुद व याः प र पृधः.. (१) हे प थर वाले सोम! तु हारे वेग रा स को वद ण करते ए उठते ह. ललकारती ई जो श ुसेनाएं हम बाधा प ंचाती ह, तुम उ ह न करो. (१) अया नज नरोजसा रथस े धने हते. तवा अ ब युषा दा.. (२) हे अपने बल से श ु को मारने वाले सोम! म भयर हत दय से इस लए तु हारी तु त करता ं क तुम मेरे रथ म श ु का धन रखो. (२) अ य ता न नाधृषे पवमान य
ा. ज य वा पृत य त.. (३) बु
रा स नह सह सकते. जो तुमसे
ऋ वज् नशीला रस टपकाने वाले, ह रतवण, श लए जल म डालते ह. (४)
शाली एवं मादक सोम को इं के
यु
हे नचुड़ते ए सोम! तु हारे इस कम को करना चाहता है, उसे तुम बाधा दो. (३) तं ह व त मद युतं ह र नद षु वा जनम्. इ म ाय म सरम्.. (४)
दे वता—पवमान सोम
सू —५४ अय
नामनु ुतं शु ं
े अ यः. पयः सह सामृ षम्.. (१)
व ान् ऋ वज् सोम के ाचीन, द तशाली, उ वाले एवं कमफल के ा रस को हते ह. (१)
वल, असी मत अ भलाषा
को दे ने
अयं सूय इवोप गयं सरां स धाव त. स त वत आ दवम्.. (२) यह सोम सूय के समान सारे संसार को दे खते ह, तीस उ थ पा वग से लेकर पृ वी तक सात न दय को घेरते ह. (२)
क ओर जाते ह एवं
अयं व ा न त त पुनानो भुवनोप र. सोमो दे वो न सूयः… (३) नचोड़े जाते ए यह सोमदे व सूय के समान सभी लोक के ऊपर रहते ह. (३) प र णो दे ववीतये वाजाँ अष स गोमतः. पुनान इ द व युः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यु
हे नचुड़ते ए एवं इं ा भलाषी सोम! तुम हमारे य अ बरसाओ. (४)
के लए चार ओर से गाय से
दे वता—पवमान सोम
सू —५५
यवंयवं नो अ धसा पु पु ं प र व. सोम व ा च सौभगा.. (१) हे सोम! तुम हम अ के साथ पके सौभा यसूचक संप यां भी दो. (१)
ए जौ अ धक मा ा म दो तथा अ य
इ दो यथा तव तवो यथा ते जातम धसः. न ब ह ष
ये सदः.. (२)
हे सोम प अ ! तुम अपनी तु तय एवं ज म के अनु प हमारे य म अपने कुश पर बैठो. (२)
य
उत नो गो वद व पव व सोमा धसा. म ूतमे भरह भः.. (३) हे सोम! तुम हम गाएं एवं घोड़े दे ते हो. तुम थोड़े दन म ही अ के साथ धारा के म टपको. (३)
प
यो जना त न जीयते ह त श ुमभी य. स पव व सह जत्.. (४) हे असं य श ु को जीतने वाले सोम! तुम श ु सकते. तुम टपको. (४)
सू —५६ प र सोम ऋतं बृहदाशुः प व े अष त. व न
को मारते हो, श ु तु ह नह मार
दे वता—पवमान सोम ां स दे वयुः.. (१)
शी ग त वाले व दे व के अ भलाषी सोम दशाप व पर थत होकर रा स को न करते ह एवं हम वशाल अ दे ते ह. (१) य सोमो वाजमष त शतं धारा अप युवः. इ
य स यमा वशन्.. (२)
जब सोम क य ा भला षणी सौ धाराएं इं क म ता ा त करती ह, तब वह हमारे लए अ दे ते ह. (२) अ भ वा योषणो दश जारं न क यानूषत. मृ यसे सोम सातये.. (३) हे सोम! क या जस कार अपने यार को बुलाती है, उसी कार श द करती ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दस
उंग लयां हम धन दे ने के लए तु ह मसलती ह. (३) व म ाय व णवे वा र दो प र व. नॄ नेता
हे
तोतॄ पा ंहसः.. (४)
य रस वाले सोम! तुम इं और व णु के लए रस टपकाओ एवं य कम के तथा अपने तोता क पाप से र ा कर . (४)
दे वता—पवमान सोम
सू —५७
ते धारा अस तो दवो न य त वृ यः. अ छा वाजं सह णम्.. (१) हे सोम! जस कार ुलोक से होने वाली जलवषा जा को हजार तरह का अ दे ती है, उसी कार तु हारी आस र हत धाराएं हम अ दे ती ह. (१) अभ
या ण का ा व ा च ाणो अष त. ह र तु
ान आयुधा.. (२)
हरे रंग वाले सोम अपने सभी ी तकर कम को दे खते ए एवं अपने आयुध को रा स के त फकते ए हमारे य म आते ह. (२) स ममृजान आयु भ रभो राजेव सु तः. येनो न वंसु षीद त.. (३) ऋ वज ारा यु करते ए एवं शोभन कम वाले सोम भयर हत राजा अथवा बाज प ी के समान जल म बैठते ह. (३) स नो व ा दवो वसूतो पृ थ ा अ ध. पुनान इ दवा भर.. (४) (४)
हे नचुड़ते ए सोम! तुम वग एवं पृ वी पर थत सारी संप यां हमारे लए लाओ.
सू —५८
दे वता—पवमान सोम
तर स म द धाव त धारा सुत या धसः. तर स म द धाव त.. (१) दे व को मद दे ने वाले सोम अपने तोता को पाप से बचाते ह. नचोड़े गए एवं दे व के अ सोम क धाराएं गरती ह. तोता को पाप से बचाने वाले एवं दे वमदकारी सोम दौड़ते ह. (१) उ ा वेद वसूनां मत य दे वसः. तर स म द धाव त.. (२) इस सोम क धन दे ने वाली व द तयु
धारा यजमान क र ा करना जानती है.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तोता
को पाप से बचाने वाले एवं दे वमदकारी सोम ग त करते ह. (२) व योः पु ष योरा सह ा ण द हे. तर स म द धाव त.. (३)
हमने व और पु षं त नामक राजा से हजार धन लए ह. तोता बचाने वाले एवं दे वमदकारी सोम चलते ह. (३)
को पाप से
आ ययो शतं तना सह ा ण च द हे. तर स म द धाव त.. (४) हमने व एवं पु षं त नामक राजा से हजार व बचाने वाले एवं दे वमदकारी सोम चलते ह. (४)
(१)
को पाप से
दे वता—पवमान सोम
सू —५९ पव व गो जद ज
लए ह. तोता
ज सोम र य जत्. जाव नमा भर.. (१)
हे गाय , घोड़ , संसार एवं रमणीय धन को जीतने वाले सोम! तुम नीचे क ओर गरो. पव वाद् यो अदा यः पव वौषधी यः. पव व धषणा यः.. (२) हे सोम! तुम जल, करण , ओष धय एवं प थर से नीचे क ओर बहो. (२) वं सोम पवमानो व ा न
रता तर. क वः सीद न ब ह ष.. (३)
हे नचुड़ते ए सोम! तुम रा स वाले सोम! तुम कुश पर बैठो. (३)
ारा होने वाले सभी उप व न करो. हे
ांत कम
पवमान व वदो जायमानोऽभवो महान्. इ दो व ाँ अभीद स.. (४) हे नचुड़ते ए सोम! तुम यजमान को सब कुछ दो. तुम उ प होते ही महान् हो गए थे. द तशाली सोम! तुम सब श ु को अपने तेज से परा जत करते हो. (४)
सू —६०
दे वता—पवमान सोम
गाय ेण गायत पवमानं वचष णम्. इ ं सह च सम्.. (१) हे तोताओ! वशेष नामक सोम ारा करो. (१)
वाले, हजार ने
वाले एवं नचुड़ते ए सोम क तु त गाय ी
तं वा सह च समथो सह भणसम्. अ त वारमपा वषुः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे हजार ारा यमान, हजार का भरण करने वाले एवं नचुड़ते ए सोम! ऋ वज् तु ह भेड़ के बाल से बने दशाप व क सहायता से शु करते ह. (२) अ त वारा पवमानो अ स यद कलशाँ अ भ धाव त. इ
य हा ा वशन्.. (३)
नचुड़ते ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके टपकते ह एवं इं के दय म वेश करते ए ोणकलश म जाते ह. (३) इ
य सोम राधसे शं पव व वचषणे. जाव े त आ भर.. (४)
हे वशेष ा सोम! तुम इं को स करने के लए अपना सुखकर रस नीचे टपकाओ एवं हमारे लए संतान उ पादन म समथ अ दो. (४)
सू —६१
दे वता—पवमान सोम
अया वीती प र व य त इ दो मदे वा. अवाह वतीनव.. (१) हे सोम! तुम इं के उपभोग के लए उस रस के प म नीचे गरो, जसने सं ाम म श ु क न यानवे नग रय को समा त कया था. (१) पुरः स इ था धये दवोदासाय श बरम्. अध यं तुवशं य म्.. (२) सोमरस ने एक ही दन म श ु नग रय के वामी शंबर, य एवं तुवश नामक राजा को स चे कम वाले दवोदास के वश म कर दया था. (२) प र णो अ म वद्गोम द दो हर यवत्. रा सह णी रषः.. (३) हे अ ा त करने वाले सोम! तुम हमारे लए घोड़ा, गाय एवं वण से यु कार का अ दो. (३)
अनेक
पवमान य ते वयं प व म यु दतः. स ख वमा वृणीमहे.. (४) हे टपकने वाले एवं दशाप व को गीला करने वाले सोम! हम तुमसे म ता क करते ह. (४)
ाथना
ये ते प व मूमयोऽ भ र त धारया. ते भनः सोम मृळय.. (५) हे सोम! तु हारी जो लहर धारा के सुखी करो. (५)
प म दशाप व पर गरती ह, हम उसके ारा
स नः पुनान आ भर र य वीरवती मषम्. ईशानः सोम व तः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सम त धन के वामी एवं नचुड़ते ए सोम! तुम शु संतानयु धन चार ओर से लाओ. (६) एतमु यं दश
होते ए हमारे लए धन एवं
पो मृज त स धुमातरम्. समा द ये भर यत.. (७)
न दय के पु सोम को दस उंग लयां मसलती ह. सोम आ द य के साथ मलते ह. (७) स म े णोत वायुना सुत ए त प व आ. सं सूय य र म भः.. (८) नचोड़े ए सोम दशाप व म इं , वायु एवं सूय क करण के साथ मलते ह. (८) स नो भगाय वायवे पू णे पव व मधुमान्. चा म े व णे च.. (९) हे मधुर रस से यु , क याण व प एवं नचुड़े ए सोम! तुम भग, वायु, पूषा, म एवं व ण के लए टपको. (९) उ चा ते जातम धसो द व ष
या ददे . उ ं शम म ह वः.. (१०)
हे सोम! तु हारा अ ुलोक म उ प होता है तथा तु हारा एवं महान् सुख और अ धरती पर है. (१०)
ुलोक म व मान, उ
एना व ा यय आ ु ना न मानुषाणाम्. सषास तो वनामहे.. (११) इन सोम क सहायता से मनु य के सभी धन को भली कार ा त करते ए एवं बांटने क इ छा करते ए भोगगे. (११) स न इ ाय य यवे व णाय म द् यः. व रवो व प र व.. (१२) हे धन दे ने वाले सोम! तुम हमारे य के पा इं , व ण एवं म त के लए धारा के प म नीचे गरो. (१२) उपो षु जातम तुरं गो भभ ं प र कृतम्. इ ं दे वा अया सषुः.. (१३) दे वगण भली-भां त उ प , जल के ारा े रत, श ुनाशक व गाय के ध-दही आ द से अलंकृत सोम के पास जाते ह. (१३) त म ध तु नो गरो व सं सं श री रव. य इ
य दं स नः.. (१४)
हमारी तु तयां इं के दय ाही सोम को उसी कार भली-भां त बढ़ाव, जैसे बढ़े ए ध वाली माताएं ब च को बढ़ाती ह. (१४) अषा णः सोम शं गवे धु
व प युषी पषम्. वधा समु मु यम्.. (१५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! तुम हमारी गाय को सुख दो. तुम हमारे लए अ धक अ तथा शंसनीय जल बढ़ाओ. (१५) पवमानो अजीजन व
ं न त युतम्. यो तव ानरं बृहत्.. (१६)
शु होते ए सोम ने वै ानर नामक यो त को व था क वग का व तार हो सके. (१६) पवमान य ते रसो मदो राज
के समान इस लए उ प
कया
छु नः. व वारम मष त.. (१७)
हे द तशाली सोम! जब तुम शु होते हो तो तु हारा रा सनाशक एवं मदकारक रस भेड़ के बाल से बने ए दशाप व पर जाता है. (१७) पवमान रस तव द ो व राज त ुमान्. यो त व ं व शे.. (१८) हे शु होते ए सोम! तु हारा बढ़ा आ एवं द तशाली रस वशेष प से सुशो भत होता है तथा अपने तेज से व को ा त करके दे खने यो य बनाता है. (१८) य ते मदो वरे य तेना पव वा धसा. दे वावीरघशंसहा.. (१९) हे सोम! तुम अपने दे वा भलाषी, रा सहंता, सबके वरण करने यो य एवं नशीले रस को अ के साथ टपकाओ. (१९) ज नवृ म म यं स नवाजं दवे दवे. गोषा उ अ सा अ स.. (२०) हे सोम! तुमने श ु वृ को मारा, दे ते हो. (२०) स म
त दन सं ाम म भाग लया एवं तुम गाएं तथा घोड़े
ो अ षो भव सूप था भन धेनु भः. सीद
ेनो न यो नमा.. (२१)
हे शोभन वाद वाले गाय के ध, दही आ द से मले ए सोम! तुम बाज प ी के समान शी अपने थान पर बैठते ए सुशो भत बनो. (२१) स पव व य आ वथे ं वृ ाय ह तवे. व वांसं महीरपः.. (२२) हे सोम! तुमने वशाल जल को रोकने वाले वृ के मारने के लए इं क र ा क थी. तुम इस समय नीचे गरो. (२२) सुवीरासो वयं धना जयेम सोम मीढ् वः. पुनानो वध नो गरः.. (२३) हे स चने वाले एवं शु होते अं गरागो ीय अमहीयु आ द ऋ ष श ु
ए सोम! तुम हमारी तु तय को बढ़ाओ. हम के धन जीत. (२३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वोतास तवावसा याम व व त आमुरः. सोम तेषु जागृ ह.. (२४) हे सोम! हम तु हारे ारा र त होकर अपने श ु य कम म जागृत बनो. (२४) अप न पवते मृधोऽप सोमो अरा णः. ग छ
को पाते ही मार डाल. तुम हमारे
य न कृतम्.. (२५)
सोम श ु को मारते ए, धनदान न करने वाल को मारते ए तथा इं के थान को पाते ए धारा के प म गरे थे. (२५) महो नो राय आ भर पवमान जही मृधः. रा वे दो वीरव शः.. (२६) हे शु होते ए सोम! हमारे लए महान् धन लाओ, हम मारने वाले श ु तथा हम संतानयु यश दो. (२६)
को मारो
न वा शतं चन तो राधो द स तमा मनन्. य पुनानो मख यसे.. (२७) हे सोम! जब तुम शु होते ए हम धन दे ना चाहते हो, उस समय हम धन दे ने वाले तुमको ब त से श ु भी नह रोक पाते. (२७) पव वे दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने. व ा अप हे नचुड़े ए एवं स चने वाले सोम! तुम धारा के बनाओ तथा सभी श ु को मारो. (२८)
षो ज ह.. (२८)
प म टपको, हम जनपद म यश वी
अ य ते स ये वयं तवे दो ु न उ मे. सास ाम पृत यतः.. (२९) हे इस य म वतमान सोम! जब हम तु हारी म ता ा त कर लगे एवं तु हारे ारा दए गए े अ से पु हो जाएंगे तो यु के इ छु क श ु को मारगे. (२९) या ते भीमा यायुधा त मा न स त धूवणे. र ा सम य नो नदः.. (३०) हे सोम! तु हारे जो भयंकर, तीखे और श ुवध करने वाले आयुध ह, उनके ारा हम सभी श ु क नदा से बचाओ. (३०)
सू —६२
दे वता—पवमान सोम
एते असृ म दव तरः प व माशवः. व ा य भ सौभगा.. (१) ऋ वज् सभी धन को पाने के उ े य से शी ग त वाले एवं शु दशाप व के समीप ले जाते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
होते ए सोम को
व न तो श
रता पु सुगा तोकाय वा जनः. तना कृ व तो अवते.. (२)
ब त से पाप को न करने वाले तथा हमारे पु शाली सोम दशाप व के समीप जाते ह. (२)
और अ
को सुख दे ने वाले
कृ व तो व रवो गवेऽ यष त सु ु तम्. इळाम म यं संयतम्.. (३) सोम हमारे लए और हमारी गाय के लए सुख दे ने वाला धन तथा अ दे ते ए हमारी शोभन तु त के सामने जाते ह. (३) असा ंशुमदाया सु द ो ग र ाः. येनो न यो नमासदत्.. (४) पवत पर उ प , नशे के लए नचोड़े गए व जल म बढ़े ए सोम बाज प ी के समान अपने थान पर आकर बैठते ह. (४) शु म धो दे ववातम सु धूतो नृ भः सुतः. वद त गावः पयो भः.. (५) गाएं अपने ध के ारा दे व के ा थत सोम प शोभन अ को वा द बनाती ह. ऋ वज ारा नचोड़े गए सोम जल के ारा शु होते ह. (५) आद म ं न हेतारोऽशूशुभ मृताय. म वो रसं सधमादे .. (६) ऋ वज् अमरता पाने के लए इस नशीले सोम के रस को य म इस कार अलंकृत करते ह, जैसे यु म जाने वाला घोड़ा सजाया जाता है. (६) या ते धारा मधु तोऽसृ म द ऊतये. ता भः प व मासदः.. (७) हे सोम! तु हारी जो मधुर रस टपकाने वाली धाराएं र ा के लए बनाई जाती ह, उनके साथ तुम दशाप व पर बैठो. (७) सो अष ाय पीतये तरो रोमा य या. सीद योना वने वा.. (८) हे नचोड़े ए सोम! तुम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके इं के लए अपने पा म अपने थान पर टपको. (८) व म दो प र व वा द ो अ रो यः. व रवो वद् घृतं पयः.. (९) हे वा द एवं हम धन दे ने वाले सोम! तुम अं गरागो ीय ऋ वज के लए ध और घी बरसाओ. (९) अयं वचष ण हतः पवमानः स चेत त. ह वान आ यं बृहत्.. (१०) ये वशेष ा, पा म रखे ए एवं प व होते ए सोम! जल म उ प महान् अ को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े रत करते ए सबके ारा जाने जाते ह. (१०) एष वृषा वृष तः पवमानो अश तहा. कर सू न दाशुषे.. (११) ये अ भलाषापूरक, बैल के समान कम करने वाले, रा स को मारने वाले एवं शु ए सोम ह दाता यजमान को धन दे ते ह. (११) आ पव व सह णं र य गोम तम नम्. पु
होते
ं पु पृहम्.. (१२)
हे सोम! तुम हजार सं या वाला, गाय से यु , अ स हत, ब त को स करने वाला एवं अनेक ारा चाहने यो य धन दो. (१२) एष य प र ष यते ममृ यमान आयु भः. उ गायः क व तुः.. (१३) ब त
ारा तुत एवं
ांत कम वाले ये सोम मनु य
ारा शु
होते ए बहते ह. (१३)
सह ो तः शतामघो वमानो रजसः क वः. इ ाय पवते मदः.. (१४) असी मत र ा वाले, ब त धन के वामी, लोक के नमाता, नशीले सोम इं के लए टपकते ह. (१४) गरा जात इह तुत इ
ांत-कम वाले और
र ाय धीयते. वय ना वसता वव.. (१५)
उ प एवं तु तय ारा शं सत सोम इं के न म जैसे प ी अपने घ सले म जाता है. (१५)
इस य म इस कार जाते ह,
पवमानः सुतो नृ भः सोमो वाज मवासरत्. चमूषु श मनासदम्.. (१६) ऋ वज ारा नचोड़े गए सोम अपनी श ह, जैसे कोई यु म जाता है. (१६) तं
पृ े
व धुरे रथे यु
से य
थान म बैठने हेतु इस कार जाते
त यातवे. ऋषीणां स त धी त भः.. (१७)
ऋ षय का रथ य है. उस म सोम नचोड़ने के तीन काल, तीन पीठ, तीन वेद, तीन थान एवं सात छं द सात र सयां ह. ऋ वज् सोम पी रथ को दे व के पास जाने के लए जोतते ह. (१७) तं सोतारो धन पृतमाशुं वाजाय यातवे. ह र हनोत वा जनम्.. (१८) हे सोमरस नचोड़ने वाले लोगो! धन क सृ करने वाले, श शाली एवं शी ग त वाले सोम पी घोड़े को य पी यु म जाने के लए ेरणा दो. (१८) आ वश कलशं सुतो व ा अष भ यः. शूरो न गोषु त त.. (१९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नचोड़े ए, ोणकलश क ओर जाते ए तथा हमारे लए सब संप यां दे ते ए सोम य भू म म इस कार भयर हत होकर ठहरते ह, जैसे श ु से जीते ए पशु म शूर ठहरता है. (१९) आ त इ दो मदाय क पयो ह यायवः. दे वा दे वे यो मधु.. (२०) हे सोम! तोतागण तु हारा मधुर रस दे व के मद के न म
हते ह. (२०)
आ नः सोमं प व आ सृजता मधुम मम्. दे वे यो दे व ु मम्.. (२१) हे ऋ वजो! दे व के अ यंत दशाप व पर शु करो. (२१)
य व अ य धक मधुर हमारे सोम को इं ा द दे व के लए
एते सोमा असृ त गृणानाः वसे महे. म द तम य धारया.. (२२) ु कए जाते ए ये सोम ऋ वज त को बनाते ह. (२२)
ारा महान् अ पाने के लए अ यंत नशीली धारा
अ भ ग ा न वीतये नृ णा पुनानो अष स. सन ाजः प र व.. (२३) हे शु होते ए सोम! तुम भ ण यो य बनने के लए गाय के ध आ द से मलते हो. तुम हम अ दे ते ए टपको. (२३) उत नो गोमती रषो व ा अष प र ु भः. गृणानो जमद नना.. (२४) हे सोम! तुम मुझ जमद न क शं सत अ दो. (२४) पव व वाचो अ यः सोम च ा भ
तु त सुनकर मुझे गाय से यु
एवं सभी जगह
त भः. अ भ व ा न का ा.. (२५)
हे मुख सोम! तुम हमारी तु तयां सुनकर पू य र ासाधन के साथ बरसो एवं हमारे तु तवा य के अनुसार फल दो. (२५) वं समु या अपोऽ यो वाच ईरयन्. पव व व मेजय.. (२६) हे व को कंपाने वाले एवं मुख सोम! तुम हमारे तु तवचन को े रत करते ए अंत र से जलवषा करो. (२६) तु येमा भुवना कवे म ह ने सोम त थरे. तु यमष त स धवः.. (२७) हे ांत कम वाले सोम! तु हारी म हमा से ही ये लोक थत ह एवं न दयां तु हारी ही आ ा का पालन करती ह. (२७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ते दवो न वृ यो धारा य यस तः. अ भ शु ामुप तरम्.. (२८) हे सोम! तु हारी अलग-अलग धाराएं आकाश से गरने वाली वषा के समान सफेद रंग के भेड़ के बाल से बने दशाप व क ओर जाती ह. (२८) इ ाये ं पुनीतनो ं द ाय साधनम्. ईशानं वी तराधसम्.. (२९) शु
हे ऋ वजो! उ , बल के साधक, धन के वामी एवं धन दे ने वाले सोम को इं के लए करो. (२९) पवमान ऋतः क वः सोमः प व मासदत्. दध तो े सुवीयम्.. (३०)
स चे, ांतकम वाले एवं शु होते ए सोम हमारी तु त सुनकर उ म श करते ए दशाप व पर बैठते ह. (३०)
धारण
दे वता—पवमान सोम
सू —६३
आ पव व सह णं र य सोम सुवीयम्. अ मे वां स धारय.. (१) हे सोम! हमारे लए अ धक सं या वाला एवं शोभन श हम अ दो. (१)
से यु
धन बरसाओ तथा
इषमूज च प वस इ ाय म स र तमः. चमू वा न षीद स.. (२) पा
हे अ तशय मादक सोम! तुम इं के लए अ एवं रस टपकाते हो तथा चमस नामक म बैठे हो. (२) सुत इ ाय व णवे सोमः कलशे अ रत्. मधुमाँ अ तु वायवे.. (३)
इं , व णु एवं वायु के लए नचोड़े गए सोम ोणकलश म गरते ह एवं मधुर रस वाले ह. (३) एते असृ माशवोऽ त
रां स ब वः. सोमा ऋत य धारया.. (४)
पीले रंग वाले व शी ग तयु धावा बोलते ह. (४)
ये सोम जल क धारा से न मत होते ह एवं रा स पर
इ ं वध तो अ तुरः कृ व तो व मायम्. अप नतो अरा णः.. (५) सोम इं को बढ़ाते ए, उदक को े रत करने वाले, हमारे काम के लए सभी रस को भला बनाते ए एवं दान न दे ने वाल का नाश करते ए जाते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुता अनु वमा रजाऽ यष त ब वः. इ ं ग छ त इ दवः.. (६) (६)
पीले रंग के एवं नचोड़े ए सोम इं क ओर जाते ए अपने थान को ा त करते ह. अया पव व धारया यया सूयमरोचयः. ह वानो मानुषीरपः.. (७)
हे सोम! तुम उस धारा से नीचे टपको, जस धारा के ारा तुमने मनु य के हतकारक जल को े रत करते ए सूय को का शत कया है. (७) अयु
सूर एतशं पवमानो मनाव ध. अ त र ेण यातवे.. (८)
प व होते ए सोम मानव के हत एवं अंत र जोड़ते ह. (८) उत या ह रतो दश सूरो अयु
यातवे. इ
र
म ग त के लए सूय के रथ म घोड़े इ त ुवन्.. (९)
इं श द का उ चारण करते ए सोम दश दशा एतश नामक घोड़े जोड़ते ह. (९)
म जाने के लए सूय के रथ म
परीतो वायवे सुतं गर इ ाय म सरम्. अ ो वारेषु स चत.. (१०) हे तोताओ! तुम इं एवं वायु के लए नचोड़े गए नशीले सोम को इस थान से उठाकर भेड़ के बाल से बने दशाप व पर स चो. (१०) पवमान वदा र यम म यं सोम
रम्. यो णाशो वनु यता.. (११)
हे प व होते ए सोम! तुम हम ऐसा धन दो जो हसक श ु ारा न न हो सके और श ु जसका पार न पा सके. (११) अ यष सह णं र य गोम तम नम्. अ भ वाजमुत वः.. (१२) हे सोम! तुम हम ब त सं या वाला, गाय से यु और अ ा त कराओ. (१२) सोमो दे वो न सूय ऽ
एवं अ स हत धन दो तथा हम बल
भः पवते सुतः. दधानः कलशे रसम्.. (१३)
सूय के समान तेज वी एवं प थर क सहायता से नचोड़े गए सोम अपना रस ोणकलश म धारण करते ए टपकते ह. (१३) एते धामा याया शु ा ऋत य धारया. वाजं गोम तम रन्.. (१४) ये नचुड़ते ए एवं उ वल सोम यजमान के घर क ओर गाय से यु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ दे ते ए
जल क धारा के
प म नीचे गरते ह. (१४)
सुता इ ाय व
णे सोमासो द या शरः. प व म य रन्.. (१५)
व धारी इं के लए नचोड़े गए एवं गाय के ध से म त सोम दशाप व को पार करके टपकते ह. (१५) सोम मधुम मो राये अष प व आ. मदो यो दे ववीतमः.. (१६) हे सोम! तुम अपने अ तशय मादक एवं दे वा भलाषी रस को हम धन दे ने के लए दशाप व पर गराओ. (१६) तमी मृज यायवो ह र नद षु वा जनम्. इ ऋ वज् लोग हरे रंग के, श जल म मसलते ह. (१७)
म ाय म सरम्.. (१७)
शाली, नशीले एवं प व
ए उस सोम को इं के लए
आ पव व हर यवद ावत् सोम वीरवत्. वाजं गोम तमा भर.. (१८) हे सोम! तुम हमारे लए वण, घोड़ और संतान से यु गाय से यु धन दो. (१८)
धन बरसाओ एवं हमारे लए
प र वाजे न वाजयुम ो वारेषु स चत. इ ाय मधुम मम्.. (१९) हे ऋ वजो! तुम यु ा भलाषी व अ तशय मधुर सोम को इं के लए भेड़ के बाल से बने दशाप व पर यु के समान स चो. (१९) क व मृज त म य धी भ व ा अव यवः. वृषा क न दष त.. (२०) र ा क अ भलाषा करते ए बु मान् ऋ वज् उंग लय क सहायता से मसलने यो य एवं ांतकम वाले सोम को मसलते ह. अ भलाषापूरक एवं श द करते ए सोम धारा के प म गरते ह. (२०) वृषणं धी भर तुरं सोममृत य धारया. मती व ाः सम वरन्.. (२१) बु वाले ऋ वज् अ भलाषापूरक एवं जल बरसाने वाले सोम को उंग लय एवं तु तय के साथ जल क धारा के प म े रत करते ह. (२१) पव व दे वायुष ग ं ग छतु ते मदः. वायुमा रोह धमणा.. (२२) हे द तशाली सोम! धारा के प म गरो. तु हारा नशीला रस आस जावे. तुम अपने धारक रस ारा वायु को ा त करो. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं के पास
पवमान न तोशसे र य सोम वा यम्.
यः समु मा वश.. (२३)
हे शु होते ए सोम! तुम श ु के शंसा यो य धन को सभी कार न करते हो. हे य सोम! तुम ोणकलश म जाओ. (२३) अप नन् पवसे मृधः
तु व सोम म सरः. नुद वादे वयुं जनम्.. (२४)
हे नशीले एवं श ु को न करने वाले सोम! तुम हम बु क अ भलाषा न करने वाले रा स को समा त करो. (२४)
दे ते ए छनते हो. तुम दे व
पवमाना असृ त सीमाः शु ास इ दवः. अ भ व ा न का ा.. (२५) तु त वा य को सुनने वाले, उ ारा न मत होते ह. (२५)
वल, द तशाली एवं शु
पवमानास आशवः शु ा असृ म दवः. न तो व ा अप ऋ वज ारा शी ग त वाले, शोभन, द तशाली एवं शु हनन करने के लए न मत होते ह. (२६)
होते ए सोम ऋ वज षः.. (२६) होते ए सोम, श ु
का
पवमाना दव पय त र ादसृ त. पृ थ ा अ ध सान व.. (२७) शु
होते ए सोम वग एवं धरती के उ त थान एवं दे वय म न मत होते ह. (२७)
पुनानः सोम धारये दो व ा अप
धः. ज ह र ां स सु तो.. (२८)
हे द तशाली एवं शोभनकम वाले सोम! तुम धारा के और रा स को मारो. (२८)
प म छनते ए सभी श ु
अप न सोम र सोऽ यष क न दत्. ुम तं शु ममु मम्.. (२९) हे सोम! तुम रा स का हनन करते ए एवं श द करते ए हम द तशाली एवं बल दो. (२९)
े
अ मे वसू न धारय सोम द ा न पा थवा. इ दो व ा न वाया.. (३०) हे द तशाली सोम! तुम ुलोक एवं धरती से संबं धत सभी वरण करने यो य धन को हम दो. (३०)
सू —६४
दे वता—पवमान सोम
वृषा सोम ुमाँ अ स वृषा दे व वृष तः. वृषा धमा ण द धषे.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! तुम अ भलाषापूरक एवं द तशाली हो. हे द तशाली एवं अ भलाषापूरक सोम! तुम दे व और मानव के उपयोगी कम को धारण करते हो. (१) वृ ण ते वृ यं शवो वृषा वनं वृषा मदः. स यं वृषन् वृषेद स.. (२) हे अ भलाषापूरक सोम! तु हारा बल, तु हारी सेवा एवं तु हारा मद अ भलाषापूरक है. तुम वा तव म अ भलाषापूरक हो. (२) अ ो न च दो वृषा सं गा इ दो समवतः. व नो राये रो वृ ध.. (३) हे अ भलाषापूरक सोम! तुम घोड़े के समान हन हनाते हो. तुम हम गाएं एवं घोड़े दो और हमारे लए धन के ार खोलो. (३) असृ त
वा जनो ग ा सोमासो अ या. शु ासो वीरयाशवः.. (४)
ऋ वज ने श शाली, उ वल एवं वेगशाली सोम का नमाण गाय , घोड़ और संतान को पाने क अ भलाषा से कया है. (४) शु भमाना ऋतायु भमृ यमाना गभ योः. पव ते वारे अ ये.. (५) य ा भलाषी यजमान ारा अलंकृत एवं दोन हाथ से मसले जाते ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर छनते ह. (५) ते व ा दाशुषे वसु सोमा द ा न पा थवा. पव तामा त र या.. (६) वे सोम ह बरसाव. (६)
दे ने वाले यजमान के लए ुलोक, धरती एवं अंत र
पवमान य व व
म उ प सभी धन
ते सगा असृ त. सूय येव न र मयः.. (७)
हे सबको दे खने वाले एवं छनते ए सोम! तु हारी बनती ई धार इस समय सूय करण के समान चमकती ई न मत होती ह. (७) केतुं कृ व दव प र व ा
पा यष स. समु ः सोम प वसे.. (८)
हे रस भरे ए सोम! तुम हमारी पहचान करते ए हमारे लए सभी बरसाओ एवं हम भां त-भां त का धन दो. (८)
प अंत र
से
ह वानो वाच म य स पवमान वधम ण. अ ा दे वो न सूयः.. (९) हे छनते ए सोम! जब तुम सूय दे व के समान दशाप व पर प ंचते हो, तब तुम ेरणा पाकर श द करते हो. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ः प व चेतनः
यः कवीनां मती. सृजद ं रथी रव.. (१०)
ान कराने वाले व दे व के य सोम ांतकम वाले तोता क तु तयां सुनकर प व होते ह. जैसे रथी घोड़े को चलाता है, उसी कार सोम अपनी लहर आगे बढ़ाते ह. (१०) ऊ मय ते प व आ दे वावीः पय रत्. सीद ृत य यो नमा.. (११) हे सोम! तु हारी दे वा भला षणी लहर य के थान म दशाप व पर बैठती ह. (११) स नो अष प व आ मदो यो दे ववीतमः. इ द व ाय पीतये.. (१२) हे द तशाली, नशीले एवं अ तशय दे वा भलाषी सोम! तुम इं के पीने के लए हमारे दशाप व पर गरो. (१२) इषे पव व धारया मृ यमानो मनी ष भः. इ दो चा भ गा इ ह.. (१३) ऋ वज ारा मसले जाते ए हे सोम! तुम हम अ दे ने के लए टपको एवं तेज वी अ के साथ हमारी गाय के समीप आओ. (१३) पुनानो व रव कृ यूज जनाय गवणः. हरे सृजान आ शरम्.. (१४) हे तु तय ारा शंसनीय, हरे रंग वाले, ध म डाले जाते ए एवं प व होते ए सोम! तुम यजमान को अ और धन दो. (१४) पुनानो दे ववीतय इ
य या ह न कृतम्. ुतानो वा ज भयतः.. (१५)
हे श शाली, यजमान ारा गृहीत, य सोम! तुम इं के थान पर जाओ. (१५)
के न म
शु
होते ए एवं द तशाली
ह वानास इ दवोऽ छा समु माशवः. धया जूता असृ त.. (१६) (१६)
वेगशाली एवं अंत र
क ओर े रत सोम उंग लय से आकृ होकर न मत होते ह.
ममृजानास आयवो वृथा समु म दवः. अ म ृत य यो नमा.. (१७) मसले जाते ए एवं ग तशील सोम बना कारण ही अंत र एवं जलपा क ओर जाते ह. (१७) प र णो या
मयु व ा वसू योजसा. पा ह नः शम वीरवत्.. (१८)
हे हम चाहने वाले सोम! तुम श ारा हमारे सभी धन क र ा के लए आओ तथा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारे संतान वाले घर क र ा करो. (१८) ममा त व रेतशः पदं युजान ऋ व भः.
य समु आ हतः.. (१९)
हे सोम! जब तुम ढोने वाले घोड़े के समान हन हनाते हो और तोता ारा तु तयां सुनने के लए य थल म बुलाए जाते हो, तब तुम जल म थत होते हो. (१९) आ य ो न हर ययमाशुऋत य सीद त. जहा य चेतसः.. (२०) शी ग त वाले सोम जब य के सुनहरे थान पर बैठते ह, तब तो न बोलने वाल के य को छोड़ दे ते ह. (२०) अ भ वेना अनूषतेय
त चेतसः. म ज य वचेतसः.. (२१)
सुंदर तोता सोम क तु त करते ह, शोभन बु चाहते ह एवं बु हीन लोग नरक म डू बते ह. (२१)
वाले लोग सोम के लए य करना
इ ाये दो म वते पव व मधुम मः. ऋत य यो नमासदम्.. (२२) हे अ तशय मधुर सोम! तुम य टपको. (२२)
के थान पर बैठने के लए एवं इं के पीने के हेतु
तं वा व ा वचो वदः प र कृ व त वेधसः. सं वा मृज यायवः.. (२३) हे छनते ए सोम! व ान् एवं य कम करने वाले तोता तु ह अलंकृत करते ह और मनु य तु ह भली कार मसलते ह. (२३) रसं ते म ो अयमा पब त व णः कवे. पवमान य म तः.. (२४) हे ांतकमा एवं टपकने वाले सोम! तु हारा रस म , अयमा, व ण और म द्गण पीते ह. (२४) वं सोम वप तं पुनानो वाच म य स. इ दो सह भणसम्.. (२५) हे द तशाली एवं प व होते ए सोम! तुम हम ऐसा वचन दो, जो हजार का भरण करने वाला एवं बु ारा प व हो. (२५) उतो सह भणसं वाचं सोम मख युवम्. पुनान इ दवा भर.. (२६) हे द तशाली एवं छनते ए सोम! तुम हम ऐसी वाणी दो, जो हजार का भरण करने वाली एवं हम धन दे ने क अ भलाषा वाली हो. (२६) पुनान इ दवेषां पु त जनानाम्. यः समु मा वश.. (२७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ब त ारा बुलाए गए एवं छनते ए सोम! तुम इस य म तो बोलने वाले लोग के यारे बनकर ोणकलश म घुसो. (२७) द व ुत या चा प र ोभ या कृपा. सोमाः शु ा गवा शरः.. (२८) उ वल, चमकती ई द त से यु गाय के ध म मलते ह. (२८)
एवं चार ओर श द करने वाली धारा वाले सोम
ह वानो हेतृ भयत आ वाजं वा य मीत्. सीद तो वनुषो यथा.. (२९) जैसे यु सोम तोता
थल म वेश करने वाले यो ा आ मण करते ह, उसी कार श ारा े रत एवं संयत होकर य भू म पर चलते ह. (२९)
ऋध सोम व तये स
मानो दवः क वः. पव व सूय
हे बु मान् एवं शोभन श के लए वग से बरसो. (३०)
शाली
शे.. (३०)
वाले सोम! तुम सबसे मलकर सबके क याण और दशन
दे वता—पवमान सोम
सू —६५
ह व त सूरमु यः वसारो जामय प तम्. महा म ं महीयुवः.. (१) हे सोम! कायकुशल एवं पर पर म ता रखने वाली मेरी उंग लयां पी यां तु हारा रस नचोड़ने क अ भलाषा से तु हारे रण को े रत करती ह. तुम शोभन-वीय वाले, सबके पालनक ा, महान् एवं द तशाली हो. (१) पवमान चा चा दे वो दे वे य प र. व ा वसू या वश.. (२) हे दशाप व से छनते ए सोम! तुम अपने संपूण तेज के ारा द त होकर दे व के पास से सब धन हम दो. (२) आ पवमान सु ु त वृ
दे वे यो वः. इषे पव व संयतम्.. (३)
हे शु होते ए सोम! तुम दे व क शोभा के लए शोभन तु त वाली वषा करो एवं अ के लए हमारे पास वषा को भेजो. (३) वृषा
स भानुना ुम तं वा हवामहे. पवमान वा यः.. (४)
हे सोम! तुम अ भमत फल दे ने वाले हो. हे शु लोग तेजोद त तुमको अपने य म बुलाते ह. (४)
होते ए सोम! हम शोभन कम वाले
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ पव व सुवीय म दमानः वायुध. इहो व दवा ग ह.. (५) हे शोभन-आयुध वाले सोम! तुम दे व को स करते ए हम शोभन वीय वाला पु दो एवं इस य म आओ. (५) यद
ः प र ष यसे मृ यमानो गभ योः. णा सध थम ुषे.. (६)
हे सोम! तुम दोन हाथ से मसले एवं जल से भगोए जाते हो. तुम ोणपा म ठहरकर चमस आ द पा म भरे जाते हो. (६) सोमाय
व पवमानाय गायत. महे सह च से.. (७)
हे तोताओ! तुम दशाप व से छनते ए महान् एवं हजार शंसा म ऋ ष के समान गीत गाओ. (७) य य वण मधु तं ह र ह व य
भः. इ
तु तय वाले सोम क
म ाय पीतये.. (८)
हे अ वयुगण! तुम श ु को रोकने वाले, रस टपकाने वाले, हरे रंग से यु द तशाली सोम को इं के पीने के न म प थर क सहायता से नचोड़ो. (८)
एवं
त य ते वा जनो वयं व ा धना न ज युषः. स ख वमा वृणीमहे.. (९) हे सोम! तुम श वरण करते ह. (९)
शाली एवं श ु
का धन जीतने वाले हो. हम तु हारी म ता का
वृषा पव व धारया म वते च म सरः. व ा दधान ओजसा.. (१०) हे अ भलाषापूरक सोम! तुम धारा के प म ोणकलश तक आओ एवं इं के लए स तादायक बनो. तुम अपनी श से सभी धन तोता को दे ते हो. (१०) तं वा धतारमो यो३: पवमान व शम्. ह वे वाजेषु वा जनम्.. (११) हे छनते ए सोम! तुम तु ह यु म भेजता ं. (११)
ावा-पृ थवी के धारणक ा, सबके
ावश
शाली हो. म
अया च ो वपानया ह रः पव व धारया. युजं वाजेषु चोदय.. (१२) हे मेरी उंग लय से नचुड़े ए एवं हरे रंग वाले सोम! तुम ोणकलश म जाओ एवं अपने म इं को सं ाम म भेजो. (१२) आ न इ दो मही मषं पव व व दशतः. अ म यं सोम गातु वत्.. (१३) हे सव ा एवं द तशाली सोम! तुम हम ब त सा अ दो. हे सोम! हमारे लए वग ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का माग बताओ. (१३) आ कलशा अनूषते दो धारा भरोजसा. ए
य पीतये वश.. (१४)
हे टपकने वाले सोम! तुझ ओज वी क नरंतर धारा से यु ोणकलश क तोता तु त करते ह. तुम इं के पीने के लए ोणकलश म वेश करो. (१४) य य ते म ं रसं ती ं ह य
भः. स पव वा भमा तहा.. (१५)
हे सोम! तु हारे ज द नशा करने वाले जस रस को अ वयु प थर क सहायता से हते ह, तुम श ु का हनन करते ए उसी रस को बरसाओ. (१५) राजा मेधा भरीयते पवमानो मनाव ध. अ त र ेण यातवे.. (१६) जस समय मनु य य करते ह, उस समय राजा सोम अंत र जाते ए शं सत होते ह. (१६) आ न इ दो शत वनं गवां पोषं व यु
माग से ोणकलश म
म्. वहा भग मूतये.. (१७)
हे द तशाली सोम! तुम सौ गाय वाला, गाय को पु करने वाला व शोभन अ धन हमारी र ा के लए दो. (१७) आ नः सोम सहो जुवो
से
पं न वचसे भर. सु वाणो दे ववीतये.. (१८)
हे दे व क स ता के लए नचुड़ते ए सोम! हम सव गमनयो य बल एवं सव काश के नए प दो. (१८) अषा सोम ुम मोऽ भ ोणा न रो वत्. सीद
ेनो न यो नमा.. (१९)
हे सोम! जस कार बाज प ी श द करता आ अपने घ सले म आता है, उसी कार तुम द तशाली बनकर ोणकलश म जाते हो. (१९) अ सा इ ाय वायवे व णाय म द् यः. सोमो अष त व णवे.. (२०) जल म मलने वाले सोम इं , वायु, व ण, व णु एवं म द्गण के लए बहते ह. (२०) इषं तोकाय नो दधद म यं सोम व तः. आ पव व सह णम्.. (२१) हे सोम! तुम हमारे पु के लए अ दे ते ए हमारे लए सब ओर से हजार तरह का धन बरसाओ. (२१) ये सोमासः पराव त ये अवाव त सु वरे. ये वादः शयणाव त.. (२२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं के न म रवत अथवा परवत थान म तथा शयणावत नामक तालाब म नचुड़ने वाले सोम हम अ भमत फल द. (२२) य आज केषु कृ वसु ये म ये प यानाम्. ये वा जनेषु प चसु.. (२३) आज क एवं कृ व नामक दे श म नचुड़ने वाले तथा सर वती और पांच न दय के समीप नचुड़ने वाले सोम हम अ भमत फल द. (२३) ते नो वृ
दव प र पव तामा सुवीयम्. सुवाना दे वास इ दवः.. (२४)
वे नचोड़े गए, द तशाली एवं चमस आ द पा होने वाली वषा एवं शोभन बलयु पु द. (२४)
म टपकते ए सोम हम आकाश से
पवते हयतो ह रगृणानो जमद नना. ह वानो गोर ध व च.. (२५) दे व क अ भलाषा करते ए, ह रतवण, गाय के चमड़े पर रखे ए एवं जमद न ऋ ष ारा तुत सोम दशाप व के ारा शु होते ह. (२५) शु ासो वयोजुवो ह वानासो न स तयः. ीणाना अ सु मृ
त.. (२६)
ऋ वज ारा द तशाली, अ दे ते ए एवं गाय के ध से म त सोम जल म इस कार मसले जाते ह, जैसे घोड़े को नान कराया जाता है. (२६) तं वा सुते वाभुवो ह वरे दे वतातये. स पव वानया चा.. (२७) हे सोम! य म ऋ वज् तु ह प थर क सहायता से इं ा द दे व के लए नचोड़ते ह. तुम द त वाली धारा के साथ ोणकलश म गरो. (२७) आ ते द ं मयोभुवं व म ा वृणीमहे. पा तमा पु पृहम्.. (२८) हे सोम! हम तोता आज तु हारे सुखदाता, धना द के वहन करने वाले, श ु करने वाले एवं ब त ारा अ भल षत बल को वरण करते ह. (२८)
से र ा
आ म मा वरे यमा व मा मनी षणम्. पा तमा पु पृहम्.. (२९) हे मदकारक व सबके ारा वरण करने यो य सोम! बु मान्, मनीषी, सबके र क तथा ब त ारा अ भलाषा के यो य तुमको हम वरण करते ह. (२९) आ र यमा सुचेतुनमा सु तो तनू वा. पा तमा पु पृहम्.. (३०) हे शोभन-कम वाले सोम! हम तु हारे धन का वरण करते ह. तुम हमारे पु को धन दो. हे सबके र क एवं ब त ारा अ भल षत सोम! हम तु हारी सेवा करते ह. (३०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —६६
दे वता—अ न व पवमान सोम
पव व व चषणेऽ भ व ा न का ा. सखा स ख य ई
ः.. (१)
हे सबके दे खने वाले, सखा एवं तु त यो य सोम! हम सखा कम एवं तु तय को दे खकर हमारे क याण के लए बरसो. (१) ता यां व (२)
हे शु
के सभी अ भलषणीय
य राज स ये पवमान धामनी. तीची सोम त थतुः.. (२)
होते सोम! तु हारे जो दो टे ढ़े प े ह, उनसे तुम सारे संसार के राजा बनते हो.
प र धामा न या न ते वं सोमा स व तः. पवमान ऋतु भः कवे.. (३) हे शु होते ए एवं ांतकम वाले सोम! तु हारा तेज चार ओर फैला है. तुम ऋतु के साथ सुशो भत हो. (३) पव व जनय षोऽ भ व ा न वाया. सखा स ख य ऊतये.. (४) हे सखा सोम! हम म ए आओ. (४)
क तु तय पर यान दे कर हमारी र ा के लए हम अ दे ते
तव शु ासो अचयो दव पृ े व त वते. प व ं सोम धाम भः.. (५) हे सोम! तु हारी वलनशील एवं तेजपूण र मयां ुलोक के ऊपर वाले भाग पर जल का व तार करती ह. (५) तवेमे स त स धवः
शषं सोम स ते. तु यं धाव त धेनवः.. (६)
हे सोम! ये सात न दयां तु हारा शासन मानती ह एवं गाएं तु हारे लए ही ध दे ने के हेतु दौड़कर आती ह. (६) सोम या ह धारया सुत इ ाय म सरः. दधानो अ
त वः.. (७)
हे हमारे ारा नचोड़े गए एवं इं को नशा कराने वाले सोम! तुम हमारे लए अ य धन दे ते ए दशाप व से नकलकर ोणकलश म जाओ. (७) समु वा धी भर वर ह वतीः स त जामयः. व माजा वव वतः.. (८) (८)
हे मेधावी सोम! यजमान के य म तु त करते ए सात होता तु हारी शंसा करते ह.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मृज त वा सम ुवोऽ े जीराव ध व ण. रेभो यद यसे वने.. (९) हे सोम! जब तुम श द करते ए जल म मलते हो, तब हम अ धक श द करते ए एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व पर तु ह नचोड़ते ह. (९) पवमान य ते कवे वा ज सगा असृ त. अव तो न व यवः.. (१०) हे ांत बु वाले एवं अ यु सोम! जब तुम दशाप व से छनते हो, तब यजमान के लए अ लाने क इ छु क तु हारी धाराएं घोड़ के समान दौड़ती ह. (१०) अ छा कोशं मधु तमसृ ं वारे अ ये. अवावश त धीतयः.. (११) ऋ वज ारा मधुर रस टपकाने वाले सोम ोणकलश म जाने के लए सदा दशाप व पर गराए जाते ह. हमारी उंग लयां सोम को बार-बार मसलना चाहती ह. (११) अ छा समु म दवोऽ तं गावो न धेनवः. अ म ृत य यो नमा.. (१२) जस कार नई याई ई गाएं ध दे कर गोशाला क ओर जाती ह, उसी कार सोम ोणकलश एवं य शाला क ओर जाते ह. (१२) ण इ दो महे रण आपो अष त स धवः. यद् गो भवास य यसे.. (१३) हे सोम! जब तु ह गाय के ध, दही आ द म मलाया जाता है तब जल हमारे वशाल य क ओर आते ह. (१३) अ य ते स ये वय मय
त वोतयः. इ दो स ख वमु म स.. (१४)
हे सोम! तु हारी पूजा के अ भलाषी एवं तु हारे मै ीकम म स य चाहते ह. (१४) आ पव व ग व ये महे सोम नृच से. ए
थत हम लोग तु हारा
य जठरे वश.. (१५)
हे सोम! तुम अं गरागो ीय ऋ षय क गाएं खोजने वाले, महान् तथा मानव का कमफल दे खने वाले इं के लए शु बनो एवं इं के उदर म वेश करो. (१५) महाँ अ स सोम ये उ ाणा म द ओ ज ः. यु वा स छ
जगेथ.. (१६)
हे सोम! तुम महान्, दे व को स करने वाले एवं परम शंसनीय हो. हे पवमान सोम! तुम उ बल वाले लोग म अ तशय ओज वी हो. तुमने श ु के साथ यु करते ए उनका धन जीत लया था. (१६) य उ े य दोजीया छू रे य
छू रतरः. भू रदा य
मंहीयान्.. (१७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम उ ह. (१७)
म अ तशय उ , शूर म अ तशय शूर एवं अ धक दान करने वाल म महान्
वं सोम सूर एष तोक य साता तनूनाम्. वृणीमहे स याय वृणीमहे यु याय.. (१८) हे शोभन वीय वाले सोम! हम अ एवं पु क संतान दो. हम मै ी और सहायता के लए तु हारा वरण करते ह. (१८) अ न आयूं ष पवस आ सुवोज मषं च नः. आरे बाध व
छु नाम्.. (१९)
हे पवमान सोम प अ न! तुम हमारे जीवन क र ा करते हो. तुम हम बल तथा अ दो एवं श ु को हमसे र रखकर पीड़ा प ंचाओ. (१९) अ नऋ षः पवमानः पा चज यः पुरो हतः. तमीमहे महागयम्.. (२०) अ न पांच वण के हतैषी, सबके ा, प व होते ए पुरो हत एवं यजमान तु य ह. हम अ न से याचना करते ह. (२०)
ारा
अ ने पव व वपा अ मे वचः सुवीयम्. दध य म य पोषम्.. (२१) (२१)
हे शोभन कम वाले अ न! तुम हम शोभन श पवमानो अ त
वाला तेज, धन एवं गाएं दान करो.
धोऽ यष त सु ु तम्. सूरो न व दशतः.. (२२)
पवमान सोम श ु को हराते ह, शोभन तु त सामने से वीकार करते ह एवं सूय के समान सबको दे खते ह. (२२) स ममृजान आयु भः य वा यसे हतः. इ र यो वच णः.. (२३) मनु य ारा बार-बार नचोड़े जाते ए अ के वामी, यजमान के लए हतैषी एवं सबके ा सोम दे व के समीप सदा जाते ह. (२३) पवमान ऋतं बृह छु ं यो तरजीजनत्. कृ णा तमां स जङ् घनत्.. (२४) पवमान सोम ने काले अंधकार को समा त करते ए स य प, तेज उ प कया था. (२४) पवमान य जङ् नतो हरे
ापक व द तशाली
ा असृ त. जीरा अ जरशो चषः.. (२५)
बार-बार अंधकार का वनाश करते ए, ह रतवण, ग तशील तेज से यु एवं शु होते ए सोम को आनं दत करने वाली व तेज बहने वाली धाराएं दशाप व म गरती ह. (२५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पवमानो रथीतमः शु े भः शु श तमः. ह र
ो म द्गणः.. (२६)
रथ वा मय म े , यश वी लोग म परम यश वी, हरी धारा वाले एवं म त क सहायता से यु सोम अपनी द तय से सबको ा त करते ह. (२६) पवमानो
व
म भवाजसातमः. दध तो े सुवीयम्.. (२७)
अ दे ने वाल म े व पवमान तो बोलने वाले को शोभन वीय वाला पु दे ने वाले सोम अपनी द तय से सारे संसार को ा त कर ल. (२७) सुवान इ र ाः प व म य यम्. पुनान इ
र मा.. (२८)
प व होते ए सोम भेड़ के बाल से बने कंबल को पार करके टपकते ह अथात् प व होते ए सोम इं के पास प ंच. (२८) एष सोमो अ ध व च गवां
ळय
भः. इ ं मदाय जो वत्.. (२९)
ये करण पी सोम गाय के चमड़े के ऊपर प थर से न म सोम को बुलाया. (२९)
ड़ा करते ह. इं ने मद के
य य ते ु नव पयः पवमानाभृतं दवः. तेन नो मृळ जीवसे.. (३०) हे प व होते ए सोम! बाज प ी पणी गाय ी ारा ुलोक से लाया गया व अ यु ध तु हारा अपना है. हम उसके ारा चरजीवन पाने के लए सुखी बनाओ. (३०)
दे वता—पवमान सोम
सू —६७ वं सोमा स धारयुम
ओ ज ो अ वरे. पव व मंहय यः.. (१)
हे सोम! तुम अ तशय आनंददाता, परम तेज वी एवं हमारे य धारा के अ भलाषी हो. तुम तोता को धन दे ते ए नीचे गरो. (१)
म नचुड़ने वाली
वं सुतो नृमादनो दध वा म स र तमः. इ ाय सू रर धसा.. (२) हे सोम! तुम ऋ वज को आनं दत करने वाले, य धारण करने वाले, व ान् एवं हमारे ारा नचोड़े गए हो. तुम ह प अ के साथ इं को अ तशय मद करने वाले बनो. (२) वं सु वाणो अ
भर यष क न दत्. ुम तं शु ममु मम्.. (३)
हे सोम! तुम प थर क सहायता से नचोड़े जाकर श द करते ए ोणकलश म आओ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तथा द तशाली उ म बल ा त करो. (३) इ
ह वानो अष त तरो वारा य या. ह रवाजम च दत्.. (४)
प थर ारा कूटे गए सोम भेड़ के बाल से बने कंबल को पार करके नकलते ह. हरे रंग के सोम अ से कहते ह क म तु हारे साथ मलकर इं को बुलाता ं. (४) इ दो
मष स व वां स व सौभगा. व वाजा सोम गोमतः.. (५)
हे सोम! तुम भेड़ के बाल से बने दशाप व से छनते हो तथा ह व प अ , सौभा य एवं गाय वाला धन ा त करते हो. (५) आ न इ दो शत वनं र य गोम तम नम्. भरा सोम सह णम्.. (६) हे पा से छनते ए सोम! तुम हम सौ गाय , उ म पशु वाला धन दो. (६)
, घोड़ एवं हजार संप य
पवमानास इ दव तरः प व माशवः. इ ं यामे भराशत.. (७) भेड़ क ऊन से बने दशाप व को पार करके धारा के प म कलश म गरते ए एवं शी नशा करने वाले सोम अपनी ग तय से इं को ा त होते ह. (७) ककुहः सो यो रस इ
र ाय पू ः. आयुः पवत आयवे.. (८)
सव े , पूवज ारा न मत, इं को ा त होने वाला एवं पा सव ग तशील इं के लए कलश म प व होता है. (८)
म छनता आ सोमरस
ह व त सूरमु यः पवमानं मधु तम्. अ भ गरा सम वरन्.. (९) उंग लयां रस टपकाने वाले एवं य कम के ेरक सोम को नचुड़ने के लए े रत करती ह तथा तोता अपनी तु तय ारा उनक भली-भां त शंसा करते ह. (९) अ वता नो अजा ः पूषा याम नयाम न. आ भ बकरे को वाहन बनाने वाले पूषादे व ना रय का भागी बनाव. (१०)
क यासु नः.. (१०)
येक या ा म हमारी र ा कर एवं हम कमनीय
अयं सोमः कप दने घृतं न पवते मधु. आ भ
क यासु नः.. (११)
हमारा यह सोम क याणकारी मुकुट वाले पूषा को मादक घी के समान ा त होता है. वे कमनीय ना रयां द. (११) अयं त आघृणे सुतो घृतं न पवते शु च. आ भ क यासु नः.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सव चमकने वाले पूषा! तु हारे लए नचोड़ा गया यह सोम तु ह शु ा त होता है. तुम हम कमनीय ना रयां दो. (१२)
घी के समान
वाचो ज तुः कवीनां पव व सोम धारया. दे वेषु र नधा अ स.. (१३) हे तोता के वचन के ज मदाता सोम! तुम धारा के य क ा को र न दे ने वाले हो. (१३)
प म ोणकलश म गरो. तुम
आ कलशेषु धाव त येनो वम व गाहते. अ भ ोणा क न दत्.. (१४) जैसे बाज प ी श द करता आ अपने घ सले म जाता है, उसी कार छनते ए सोम श द करके ोणकलश म जाते ह. (१४) पर
सोम ते रसोऽस ज कलशे सुतः. येनो न त ो अष त.. (१५)
हे सोम! तु हारा रस ोणकलश म छनकर चमस आ द पा बाज प ी के समान शी ता से इं के पास जाता है. (१५) पव व सोम म दय
म वभ
होता है तथा
ाय मधुम मः.. (१६)
हे अ तशय मधुर रस वाले एवं मादक सोम! तुम इं के लए आओ. (१६) असृ दे ववीतये वाजय तो रथा इव.. (१७) जस कार श ध ु न के इ छु क लोग रथ भेजते ह, उसी कार ऋ वज ने अ वाले सोम को दे व के लए दया है. (१७) ते सुतासो म द तमाः शु ा वायुमसृ त.. (१८) अ यंत मादक एवं द तशाली सोम ने वायु को बनाया है. (१८) ा णा तु ो अ भ ु तः प व ं सोम ग छ स. दध तो े सुवीयम्.. (१९) हे सोम! तुम प थर से म दत होकर एवं तोता को शोभन धना द दे कर दशाप व क ओर याण करते हो. (१९) एष तु ो अ भ ु तः प व म त गाहते. र ोहा वारम यम्.. (२०) हे सोम! तुम प थर से कुचले ए एवं तोता ारा शं सत होकर रा स का हनन कर दो एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व को लांघकर ोणकलश म आओ. (२०) यद त य च रके भयं व द त मा मह. पवमान व त ज ह.. (२१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(२१)
हे पवमान सोम! जो भय समीप, र अथवा इस थान म है, उसे भली कार न करो. पवमानः सो अ नः प व ेण वचष णः. यः पोता स पुनातु नः.. (२२) वे सबके
ा, प व होते ए एवं दशाप व से छने ए सोम हम पापर हत कर. (२२)
य े प व म च य ने वततम तरा.
तेन पुनी ह नः.. (२३)
हे प व करने वाले अ न! तु हारा जो शु करने वाला तेज करण के बीच वतमान है, उसके ारा हमारे पु ा द बढ़ाने वाले शरीर को पापर हत करो. (२३) य े प व म चवद ने तेन पुनी ह नः.
सवैः पुनी ह नः.. (२४)
हे अ न! तु हारा जो शोभन करण वाला तेज है, अपने उसी तेज से हम पापर हत करो तथा सोमरस नचोड़ने क या से हम प व करो. (२४) उभा यां दे व स वतः प व ेण सवेन च. मां पुनी ह व तः.. (२५) हे सबके ेरक एवं द तशाली सोम! तुम अपने प व तेज एवं नचुड़ने क इन दोन से मुझे सभी कार पापर हत करो. (२५)
या—
भ ् वं दे व स वतव ष ैः सोम धाम भः. अ ने द ैः पुनी ह नः.. (२६) हे सबके ेरक, द तशाली एवं प व करने के गुण से यु एवं साम य वाले तीन तेज ारा हम पापर हत करो. (२६)
अ न! तुम अपने बढ़े ए
पुन तु मां दे वजनाः पुन तु वसवो धया. व े दे वाः पुनीत मा जातवेदः पुनी ह मा.. (२७) यजमान मुझे पापर हत कर. वसुदाता, जातवेद, द जन और सम त दे व अपने कम से मुझे पापर हत कर. (२७) याय व
य द व सोम व े भरंशु भः. दे वे य उ मं ह वः.. (२८)
हे सोम! हम भली कार बढ़ाओ एवं अपनी सभी करण शंसनीय व कलश म डालो. (२८) उप
ारा दे व के न म
अत
यं प न तं युवानमा तीवृधम्. अग म ब तो नमः.. (२९)
हम सबको स करने वाले, अ धक श दकारी, त ण, आ तय सोम के समीप नम कार करते ए जाते ह. (२९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा बढ़ने वाले
अला य य परशुननाश तमा पव व दे व सोम. आखुं चदे व दे व सोम.. (३०) आ मणकारी श ु का फरसा उसी का नाश करे. हे द तशाली सोम! तुम हमारे सामने आओ एवं सबका हनन करने वाले श ु को मारो. (३०) यः पावमानीर ये यृ ष भः स भृतं रसम्. सव स पूतम ा त व दतं मात र ना.. (३१) जो ऋ षय ारा पवमान सोमदे व के वषय म न मत वेदमं है, वह वायु ारा प व सभी कार का अ खाता है. (३१)
पी रस को पढ़ता
पावमानीय अ ये यृ ष भः स भृतं रसम्. त मै सर वती हे ीरं स पमधूदकम्.. (३२) जो ा ण ऋ षय ारा पवमान सोमदे व के वषय म न मत वेदमं अ ययन करता है, उसके लए सर वती ध एवं मादक सोम हती ह. (३२)
सू —६८
पी रस का
दे वता—पवमान सोम
दे वम छा मधुम त इ दवोऽ स यद त गाव आ न धेनवः. ब हषदो वचनाव त ऊध भः प र ुतमु या न णजं धरे.. (१) नशीले सोम धा गाय के समान इं के लए रस टपकाते ह. रंभाती ई एवं कुश पर बैठ ई धा गाएं अपने थन से टपकने वाले सोमरस को ध के प म धारण करती ह. (१) स रो वद भ पूवा अ च द पा हः थय वादते ह रः. तरः प व ं प रय ु यो न शया ण दधते दे व आ वरम्.. (२) श द करके कलश क ओर जाते ए, तोता क तु तय को सामने सुनते ए हरे रंग के सोम ओष धय को फलयु बनाते ह, दशाप व को पार करके तेजी से बहते ह, रा स को मारते और यजमान को वरण करने यो य धन दे ते ह. (२) व यो ममे य या संयती मदः साकंवृधा पयसा प वद ता. मही अपारे रजसी ववे वदद भ ज तं पाज आ ददे .. (३) नशीले सोम ने पर पर मली ई ावा-पृ थवी को बनाया है. उन एक साथ बढ़ने वाली एवं नाशर हत ावा-पृ थवी को सोम ने अपने रस से स चा है. सोम ने वशाल एवं सीमार हत ावा-पृ थवी को सबको ात कराके सब ओर ग त वाला एवं नाशर हत बल ा त कया. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स मातरा वचर वाजय पः मे धरः वधया प वते पदम्. अंशुयवेन प पशे यतो नृ भः सं जा म भनसते र ते शरः.. (४) मेधावी सोम ावा-पृ थवी के बीच घूमते ए एवं अंत र के जल को बरसने क ेरणा दे ते ए श ु के साथ उ रवेद को स चते ह. सोम ऋ वज ारा जौ के स ू म मलाए जाते ह, उंग लय से मलते ह एवं ा णय क र ा करते ह. (४) सं द ेण मनसा जायते क वऋत य गभ न हतो यमा परः. यूना ह स ता थमं व ज तुगुहा हतं ज नम नेममु तम्.. (५) जल के गभ, दे व ारा नयं त एवं ांत कम वाले सोम बढ़े ए मन से धरती पर ज म लेते ह. युवा सूय एवं सोम ज म के समय से ही अलग-अलग जाने जाते ह. उनका आधा ज म का शत एवं आधा छपा रहता है. (५) म य पं व व मनी षणः येनो यद धो अभर परावतः. तं मजय त सुवृधं नद वाँ उश तमंशुं प रय तमृ मयम्.. (६) व ान् लोग नशीले सोम का प जानते ह. बाज पी सोम प अ को र से लाई थी. भली कार बढ़ने वाले, दे वा भलाषी, सभी ओर ग तशील एवं तु तयो य सोम को ऋ वज् जल म मसलते ह. (६) वां मृज त दश योषणः सुतं सोम ऋ ष भम त भध त भ हतम्. अ ो वारे भ त दे व त भनृ भयतो वाजमा द ष सातये.. (७) हे ऋ षय ारा नचोड़े गए एवं पा म रखे सोम! दोन हाथ से उ प दस उंग लयां तु तय एवं य कम के साथ तु ह भेड़ के बाल से बने दशाप व म छानती ह. य कम के नेता ऋ वज से गृहीत सोम तोता के लए अ दे ते ह. (७) प र य तं व यं सुषंसदं सोमं मनीषा अ यनूषत तुभः. यो धारया मधुमाँ ऊ मणा दव इय त वाचं र यषाळम यः.. (८) मन से नकली ई तु तयां पा म सभी ओर जाते ए, दे व ारा अ भल षत एवं शोभन थान वाले सोम क शंसा करती ह. नशीले रस वाले सोम जल के साथ आकाश से ोणकलश म गरते ह. श ु का धन छ नने वाले एवं मरणर हत सोम वाणी को े रत करते ह. (८) अयं दव इय त व मा रजः सोमः पुनानः कलशेषु सीद त. अ ग भमृ यते अ भः सुतः पुनान इ व रवो वद यम्.. (९) सोम ुलोक के सभी जल को बरसने के लए े रत करते ह, दशाप व से शु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
होकर
ोणकलश म जाते ह व जल , प थर एवं ध से सुशो भत होते ह. नचुड़े ए एवं छने ए सोम तोता को य एवं वरण करने यो य धन दे ते ह. (९) एवा नः सोम प र ष यमानो वयो दध च तमं पव व. अ े षे ावापृ थवी वेम दे वा ध र यम मे सुवीरम्.. (१०) हे दान करते ए एवं जल ारा चार ओर से स चे जाते ए सोम! तुम हम अ तशय व च अ दो. हम े षर हत ावा-पृ थवी को पुकारते ह. हे दे वो! हम वीर संतान के साथ धन दो. (१०)
सू —६९
दे वता—पवमान सोम
इषुन ध वन् त धीयते म तव सो न मातु प स यूध न. उ धारेव हे अ आय य य ते व प सोम इ यते.. (१) पवमान सोम पी इं के त हम अपनी तु त इस कार अ पत करते ह, जस कार धनुष पर बाण रखा जाता है. जस कार बछड़ा गाय के थन का ध पीने के लए ज म लेता है, उसी कार इं के नशे के लए सोम क उ प ई है. जस कार धा गाय बछड़े के सामने आकर ध दे ती है, उसी कार इं तोता के सामने आकर व वध अ भलाषाएं पूरी करते ह. इं के य म सोम क आव यकता पड़ती है. (१) उपो म तः पृ यते स यते मधु म ाजनी चोदते अ तरास न. पवमानः संत नः नता मव मधुमा सः प र वारमष त.. (२) तोता ारा सोम प इं क तु त क जाती है एवं इं के न म सोमरस म जल मलाया जाता है. नशीले सोमरस क धारा इं के मुख म प ंचती है. जस तरह मारने म कुशल यो ा का बाण शी ही नशाने पर प ंच जाता है, उसी कार व तृत, मादक रस वाले, छनने वाले एवं शी ग तशील सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर आते ह. (२) अ े वधूयुः पवते प र व च नीते न तीर दतेऋतं यते. ह रर ा यजतः संयतो मदो नृ णा शशानो म हषो न शोभते.. (३) जल पी वधू से मलने के लए सोम भेड़ के चमड़े पर आते ह. सोम य म आकर धरती पर उ प ओष धय को यजमान के लए फूल वाली बनाते ह. हरे रंग वाले, सबके य -यो य एवं संगृहीत सोम श ु को परा जत करते ह. महान् के समान सव ापक सोम श ु के बल को ीण करते ए अपने तेज से चमकते ह. (३) उ ा ममा त त य त धेनवो दे व य दे वी पय त न कृतम्. अ य मीदजुनं वारम यम कं न न ं प र सोमो अ त.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस कार वीयसेचन करने वाला बैल गरजता है तथा गाएं उसक ओर जाती ह, उसी कार श द करके ोणकलश म जाने वाले सोम का अनुगमन धाराएं करती ह. सोम सफेद रंग वाले एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करते ह एवं अपने कवच के समान ध से अपने को ढकते ह. (४) अमृ े न शता वाससा ह ररम य न णजानः प र त. दव पृ ं बहणा न णजे कृतोप तरणं च वोनभ मयम्.. (५) ह रतवण एवं मरणर हत सोम मसले जाते समय वतः ेत ध पी व से चार ओर से ढक जाते ह. सोम ने सूय को ुलोक के ऊपर पापनाशी शोधन के लए था पत कया था तथा ावा-पृ थवी के ऊपर आ द य का तेज इस लए था पत कया था, जससे सब शु हो सक. (५) सूय येव र मयो ाव य नवो म सरासः सुपः साकमीरते. त तुं ततं प र सगास आशवो ने ा ते पवते धाम क चन.. (६) सूय क करण के समान सब जगह बहने वाले, नशीले, श ु को मारने वाले, चमस म फैले ए एवं न मत सोम व तृत एवं धाग से बने व के चार ओर जाते ह. सोम इं के अ त र कसी के लए नह छनते. (६) स धो रव वणे न न आशवो वृष युता मदासो गातुमाशत. शं नो नवेशे पदे चतु पदे ऽ मे वाजाः सोम न तु कृ यः.. (७) जस कार न दयां सागर म मलती ह, उसी कार ऋ वज ारा नचोड़े गए नशीले सोम इं के पास प ंचते ह. हे सोम! हमारे घर म पशु एवं प रवारीजन को सुख दो तथा हम अ और संतान दो. (७) आ नः पव व वसुम र यवद ावद् गोम वम सुवीयम्. यूयं ह सोम पतरो मम थन दवो मूधानः थता वय कृतः.. (८) हे सोम! तुम हम वसु, वण, अ , गाय व जौ से यु एवं शोभन वीय वाला धन दो. हे सोम! तुम मेरे पता अं गरा ऋ ष के भी पता हो. तुम वग के शीश पर थत एवं अ क ा हो. (८) एते सोमाः पवमानास इ ं रथाइव सुताः प व म त य य ं ह वी व
ययुः सा तम छ. ह रतो वृ म छ.. (९)
जस कार इं के रथ सं ाम क ओर जाते ह, उसी कार हमारे ारा नचोड़े गए एवं छनते ए सोम इं के समीप जाते ह. प थर क सहायता से नचोड़े गए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करते ह. हरे रंग के सोम बुढ़ापे को छोड़कर वषा को े रत करते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. (९) इ द व ाय बृहते पव व सुमृळ को अनव ो रशादाः. भरा च ा ण गृणते वसू न दे वै ावापृ थवी ावतं नः.. (१०) हे सोम! तुम महान् इं के लए प व बनो. तुम इं को भली-भां त सुख दे ने वाले, नदार हत एवं बाधक को हराने वाले हो. तुम मुझ तोता को आ ादक धन दो. ावापृ थवी उ म धन दे कर हमारी र ा कर. (१०)
सू —७०
दे वता—पवमान सोम
र मै स त धेनवो े स यामा शरं पू ोम न. च वाय या भुवना न न णजे चा ण च े य तैरवधत.. (१) शु होते ए सोम के लए ाचीन लोग ारा कए गए य म इ क स गाएं ध दे ती ह. सोम जब य ारा बढ़े , तब उ ह ने अपनी शु के लए चार शोभन जल बनाए. (१) स भ माणो अमृत य चा ण उभे ावा का ेना व श थे. ते ज ा अपो मंहना प र त यद दे व य वसा सदो व ः.. (२) जब यजमान य करते ए शोभन जल मांगते ह, तब सोम धरती-आकाश को जल से भर दे ते ह. सोम अपनी म हमा ारा अ तशय तेज वी जल को ढकते ह. ऋ वज् ह धारण करके द तशाली सोम का थान जान गए. (२) ते अ य स तु केतवोऽमृ यवोऽदा यासो जनुषी उभे अनु. ये भनृ णा च दे ा च पुनत आ द ाजानं मनना अगृ णत.. (३) सोम का ान कराने वाली, मरणर हत एवं ह सत न होने वाली करण थावर-जंगम दोन क र ा कर. इ ह ापक करण ारा सोम बल एवं दे वयो य अ दे ते ह. नचोड़ने क या के बाद ही द तशाली सोम को उ म तु तयां मलती ह. (३) स मृ यमानो दश भः सुकम भः म यमासु मातृषु मे सचा. ता न पानो अमृत य चा ण उभे नृच ा अनु प यते वशौ.. (४) सोम शोभन-कम वाली दस उंग लय ारा मसले जाकर लोक को दे खने के लए अंत र थत म यमा वाक् म रहते ह. मनु य को दे खने वाले सोम क याणकारी जल क वषा के लए य कम क र ा करते ए अंत र से मानव और दे व दोन को दे खते ह. (४) स ममृजान इ याय धायस ओभे अ ता रोदसी हषते हतः. वृषा शु मेण बाधते व मतीरादे दशानः शयहेव शु धः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दशाप व के ारा छाने जाते ए सोम व धारणक ा इं के बल के न म ावापृ थवी के बीच वतमान रहते ह एवं सब ओर जाते ह. जस कार वीर अपने वरोधी भट को आयुध ारा मारते ह, उसी कार अ भलाषापूरक सोम बु तथा ःखद असुर को अपने बल ारा बार-बार बाधा प ंचाते ह. (५) स मातरा न द शान उ यो नानददे त म ता मव वनः. जान ृतं थमं य वणरं श तये कमवृणीत सु तुः.. (६) जैसे गाय का बछड़ा रंभाता आ जाता है, उसी कार पवमान सोम अपने माता- पता ावा-पृ थवी को दे खते ए एवं श द करते ए सब जगह जाते ह. म द्गण भी इसी कार श द करते ए चलते ह. शोभन कम वाले सोम उ म जल को जानते ए शंसा के लए मेरे अ त र कस शोभन मानव को वरण करगे? (६) व त भीमो वृषभ त व यया शृङ्गे शशानो ह रणी वच णः. आ यो न सोमः सुकृतं न षीद त ग यी व भव त न णग यी.. (७) श ु को भयंकर, भ के अ भलाषापूरक एवं सबको दे खने वाले सोम अपना बल दखाने क इ छा से अपने हरे रंग के दो स ग को तेज करते ए श द करते ह. सोम अपने ठ क से बनाए ए थान पर बैठते ह. भेड़ का चमड़ा और गाय का चमड़ा सोम को शु करते ह. (७) शु चः पुनान त वमरेपसम े ह र यधा व सान व. जु ो म ाय व णाय वायवे धातु मधु यते सुकम भः.. (८) द तशाली व हरे रंग के सोम अपने पापर हत शरीर को शु करते ए भेड़ के बाल के दशाप व पी ऊंचे थान पर जाते ह. शोभन कम वाले ऋ वज् पया त जल, ध तथा दही मले ए सोम को म , व ण एवं वायु के लए दे ते ह. (८) पव व सोम दे ववीतये वृषे य हा द सोमधानमा वश. पुरा नो बाधाद् रता त पारय े व दशा आहा वपृ छते.. (९) हे जलवषक सोम! तुम दे व के पीने के न म टपको. हे सोम! इं के य पा म वेश करो. रा स हम ःखी कर, इससे पहले ही हम उनसे बचाओ. रा ता जानने वाला जस कार रा ता पूछने वाले को माग बताता है, उसी कार सोम हम य माग बताकर र ा कर. (९) हतो न स तर भ वाजमष ये दो जठरमा पव व. नावा न स धुम त प ष व ा छू रो न यु य व नो नदः पः.. (१०) हे सोम! जस कार घोड़ा ेरणा पाकर यु म जाता है, उसी कार तुम ोणकलश म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाओ तथा ऋ वज क ेरणा से इं के पेट म प ंचो. हे व ान् सोम! ना वक जैसे नाव ारा लोग को नद के पार प ंचाता है, उसी कार तुम हम पाप के पार भेजो. तुम शूर के समान हमारे श ु को मारो और हम नदक से बचाओ. (१०)
सू —७१
दे वता—पवमान सोम
आ द णा सृ यते शु या३सदं वे त हो र सः पा त जागृ वः. ह ररोपशं कृणुते नभ पय उप तरे च वो ३ न णजे.. (१) सोम-संबंधी य म ऋ वज को द णा द जाती है. श शाली सोम ोणकलश म वेश करते ह. जागरणशील सोम अपने तोता को ोही रा स से बचाते ह. हरे रंग वाले सोम सबके धारण करने वाले एवं आकाश के तल-जल को बनाते ह तथा ावा-पृ थवी को ढकने के लए तथा अंधकार मटाने के लए सूय को थर करते ह. (१) कृ हेव शूष ए त रो वदसुय१ वण न रणीते अ य तम्. जहा त व पतुरे त न कृतमुप ुतं कृणुते न णजं तना.. (२) श द करते ए सोम श ुहननक ा यो ा के समान जाते ह एवं अपने असुर बाधक बल को कट करते ह. सोम बुढ़ापे का याग करते ह तथा पीने यो य के प म ोणकलश म जाते ह. सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर अपने ग तशील प को ठहराते ह. (२) अ भः सुतः पवते गभ योवृषायते नभसा वेपते मती. स मोदते नसते साधते गरा ने न े अ सु यजते परीम ण.. (३) प थर और भुजा क सहायता से नचोड़े गए सोम पा म जाते ह एवं बैल के समान आचरण करते ह. तु तय से शं सत सोम अंत र के साथ सब जगह जाते ह एवं स होते ह. सोम पा म मलते ह, तु तयां सुनकर तोता को धन दे ते ह, जल म शु होते ह एवं य म पूजे जाते ह. (३) प र ु ं सहसः पवतावृधं म वः स च त ह य य स णम्. आ य मन्गावः सु ताद ऊध न मूध ण य यं वरीम भः.. (४) श शाली एवं मादक सोम द तशाली ुलोक म नवास करने वाले, पवत को बढ़ाने वाले एवं श ुनग रय को न करने वाले इं को स चते ह. ह भ ण करने वाली गाएं अपने उठे ए तन म भरे उ म ध को अपनी म हमा से इं को दे ती ह. (४) समी रथं न भु रजोरहेषत दश वसारो अ दते प थ आ. जगा प य त गोरपी यं पदं यद य मतुथा अजीजनन्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस कार रथ को यु म भेजा जाता है, उसी कार दोन हाथ क दस उंग लयां सोम को य थल म भेजती ह. तोता जस समय सोम का थान बनाते ह, उसी समय गाय का ध सोम के पास जाता है. (५) येनो न यो न सदनं धया कृतं हर ययमासदं दे व एष त. ए रण त ब ह ष यं गरा ो न दे वाँ अ ये त य यः.. (६) जस कार बाज प ी अपने नवास- थान को जाता है, उसी कार द तशाली सोम य कम ारा न मत एवं वणमय थान को जाते ह. तोता य म यारे सोम क तु त करते ह. य के यो य सोम घोड़े के समान शी ता से दे व के पास प ंच जाते ह. (६) परा ो अ षा दवः क ववृषा पृ ो अन व गा अ भ. सह णी तय तः परायती रेभो न पूव षसो व राज त.. (७) द तशाली, बु मान् एवं प धारा वाले सोम दशाप व से ोणकलश म आते ह. सोम अ भलाषापूरक, तीन सवन म रहने वाले, तु तय के अनुकूल श द करने वाले, हजार आंख वाले, पा व कलश म आने-जाने वाले एवं अनेक उषा म श द करते ए सुशो भत होने वाले ह. (७) वेषं पं कृणुते वण अ य स य ाशय समृता सेध त धः. अ सा या त वधया दै ं जनं सं सु ु ती नसते सं गोअ या.. (८) सोम क श ु नवारक करण अपने प को द तशाली करती है. वह यु म सोती है, श ु को रोकती है, जल दे ती ई ह अ के साथ दे वभ मनु य के पास आती है एवं शोभन तु तय से मलती है. सोम उन वा य से मलते ह, जनके ारा तोता गाय को पाने क ाथना करता है. (८) उ व े यूथा प रय रावीद ध वषीर धत सूय य. द ः सुपण ऽव च त ां सोमः प र तुना प यते जाः.. (९) जैसे गाय को दे खकर सांड़ गरजता है, उसी कार तु तयां सुनकर सोम श द करते ह. सोम सूय करण के प म ुलोक म रहते ह, ुलोक म उ प एवं शोभन ग त वाले ह, धरती को दे खते ह एवं य के ारा जा को ान कराते ह. (९)
सू —७२
दे वता—पवमान सोम
ह र मृज य षो न यु यते सं धेनु भः कलशे सोमो अ यते. उ ाचमीरय त ह वते मती पु ु त य क त च प र यः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ वज् हरे रंग वाले सोम को मसलते ह, सोम क सेवा घोड़े के समान क जाती है. ोण म थत सोम गाय के ध, दही से मलाए जाते ह. जब सोम श द करते ह, तब तोता तु तयां करते ह. इसके बाद सोम ब त सी तु तयां करने वाले तोता को धन से स करते ह. (१) साकं वद त बहवो मनी षण इ य सोमं जठरे यदा ः. यद मृज त सुगभ तयो नरः सनीळा भदश भः का यं मधु.. (२) ऋ वज् जब ोणकलश पी इं जठर म सोम को हते ह एवं शोभन बा वाले य कम के नेता अपनी दस उंग लय से अ भलषणीय एवं नशीले सोम को मसलते ह, उस समय ब त से बु मान् तोता एक साथ तु तयां बोलते ह. (२) अरममाणो अ ये त गा अ भ सूय य यं हतु तरो रवम्. अ व मै जोषमभर नंगृसः सं यी भः वसृ भः े त जा म भः.. (३) दे व को स करने के लए पा म वेश करने वाले सोम गो ध आ द को ल य करते ह. वे सूय क य पु ी उषा के वर का तर कार करते ह. तोता सोम क पया त तु त करता है. सोम दोन भुजा से उ प एवं पर पर मली ई ग तशील उंग लय से मलते ह. (३) नृधूतो अ षुतो ब ह ष यः प तगवां दव इ ऋ वयः. पुर धवा मनुषो य साधनः शु च धया पवते सोम इ ते.. (४) हे इं ! य कम करने वाले मनु य ारा शो भत, प थर क सहायता से नचोड़े गए, दे व को स करने वाले, गाय के वामी, पुराने पा म गरने वाले, ऋतु म उ प , अनेक य कम वाले, मानव के य के साधन एवं दशाप व से शु सोम तु हारे लए धारा प म य के पा म गरते ह. (४) नृबा यां चो दतो धारया सुतोऽनु वधं पवते सोम इ ते. आ ाः तू समजैर वरे मतीवन ष च वो३रासद रः.. (५) हे इं ! य कम के नेता मनु य ारा े रत एवं धारा के प म नचुड़ने वाले सोम तु हारा बल बढ़ाने के लए आते ह. तुम सोमरस पीकर य कम को पूरा करते हो. तुमने य म श ु को भली-भां त जीता है. हरे रंग वाले सोम चमू नामक पा म इस कार बैठते ह, जस कार प ी वृ पर बैठते ह. (५) अंशुं ह त तनय तम तं क व कवयोऽपसो मनी षणः. समी गावो मतयो य त संयत ऋत य योना सदने पुनभुवः.. (६) क व, कमवाले एवं बु मान् ऋ वज् श द करते ए, ीणतार हत एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ांतकम वाले
सोम को नचोड़ते ह. इसके बाद बार-बार उ प होने वाली गाएं एवं तु तयां पर पर मलकर य थान अथात् उ रवेद सोम से मलती ह. (६) नाभा पृ थ ा ध णो महो दवो३ऽपामूम स धु व त तः. इ य व ो वृषभो वभूवसुः सोमो दे पवते चा म सरः.. (७) महान् ुलोक को धारण करने वाले, धरती के ना भ प उ रवेद पर थत, न दय के जल के भीतर छपे ए, इं के व के समान, अ भलाषा-पूरक व व तृत धन वाले सोम इं के हत सुंदर मदकारक बनकर सुख के लए जाते ह. (७) स तू पव व प र पा थवं रजः तो े श ाधू वते च सु तो. मा नो नभा वसुनः सादन पृशो र य पश ं ब लं वसीम ह.. (८) हे शोभन-कम वाले सोम! तीन सवन म तु त करने वाले को धन दे ते ए धरा लोक को ल य करके शी बरसो. तुम हम घर, पु आ द दे ने वाले धन से अलग मत करो. हम पीले रंग का व वध वण प धन ा त कर. (८) आ तू न इ दो शतदा व ं सह दातु पशुम र यवत्. उप मा व बृहती रेवती रषोऽ ध तो य पवमान नो ग ह.. (९) हे पवमान सोम! हम अनेक दान वाला, अ स हत, हजार दान से यु , पशु स हत व वणयु धन शी दो. तुम हम पशु से यु अ दो. तुम हमारा तो सुनने के लए आओ. (९)
सू —७३
दे वता—पवमान सोम
वे स य धमतः सम वर ृत य योना समर त नाभयः. ी स मू न असुर आरभे स य य नावः सुकृतमपीपरन्.. (१) नचोड़े जाते ए सोम क करण य क ठोड़ी अथात् उ रवेद पर मलती ह. सोमरस य के उ प थान म मलते ह. श शाली सोम उठे ए तीन लोक को मानव व दे व के चलने के लए बनाते ह. स य प सोम क नाव के समान थत चार था लयां शोभन कम वाले यजमान को मनचाहा सुख दे कर पूजती ह. (१) स यक् स य चो म हषा अहेषत स धो माव ध वेना अवी वपन्. मधोधारा भजनय तो अक म या म य त वमवीवृधन्.. (२) पूजा के यो य ऋ वज् पर पर मलकर सोमरस को अ छ तरह नचोड़ते ह. इसके वग आ द कमफल चाहने वाले ऋ वज् स रता के जल म सोम को कं पत करते ह. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तोता ने प व तु तयां बोलते ए इं के अ तशय धारा से बढ़ाया है. (२)
य तेज को नशीले सोमरस क
प व व तः प र वाचमासते पतैषां नो अ भ र त तम्. महः समु ं व ण तरो दधे धीरा इ छे कुध णे वारभम्.. (३) शु करने क श से यु सोमरस क करण मा य मका वाक् के चार ओर बैठती ह. इन करण के ाचीन पता सोम काशन प कम क र ा करते ह. अपने तेज से सबको ढकने वाले सोम अपनी करण से अंत र को ढकते ह. धीर ऋ वज् सबको धारण करने वाले जल म सोम को मलाना आरंभ करते ह. (३) सह धारेऽव ते सम वर दवो नाके मधु ज ा अस तः. अ य पशो न न मष त भूणयः पदे पदे पा शनः स त सेतवः.. (४) हजार धाराएं बरसाने वाले अंत र म वतमान सोमरस क करण नीचे थत धरती को वृ यु करती ह. ुलोक के ऊंचे थान म थत, मधुपूण जीभ वाली एक- सरे से अलग सोमरस क अपनी करण तेज चलती ई कभी पलक नह गरात . इस कार सोम क करण थान- थान पर पा पय को बाधा प ंचाती ह. (४) पतुमातुर या ये सम वर ृचा शोच तः संदह तो अ तान्. इ ामप धम त मायया वचम स न भूमनो दव प र.. (५) ावा-पृ थवी पी माता- पता से अ धक मा ा म उ प होने वाली सोम क करण ऋ वज क तु तय से द त होती ई य कम न करने वाल को न करती ह एवं इं से े ष करने वाले व काले चमड़े वाले रा स को अपनी बु ारा धरती एवं आकाश से र भगाती ह. (५) ना मानाद या ये सम वर छ् लोकय ासो रभस य म तवः. अपान ासो ब धरा अहासत ऋत य प थां न तर त कृतः.. (६) तु त के अनुसार चलने वाली एवं शी ग त का अ भमान करने वाली सोम क करण ाचीन अंत र से एक साथ उ प ई थ . ानसे शू य एवं दे व क तु तयां न सुनने वाले पापी लोग उन करण का याग कर दे ते ह. पापी लोग स य के माग से चलकर पार नह प ंचते. (६) सह धारे वतते प व आ वाचं पुन त कवयो मनी षणः. ास एषा म षरासो अ हः पशः व च सु शो नृच सः.. (७) य पूण करने वाले एवं बु मान् ऋ वज् अनेक धारा वाले, व तृत एवं शु सोम म थत मा य मका वाणी क तु त करते ह. ग तशील, तोता से ोह न करने वाले, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शोभन ग त वाले, नेता एवं दे खने म सुंदर म द्गण मा य मका वाणी क तु त करने वाल के वश म हो जाते ह. (७) ऋत य गोपा न दभाय सु तु ी ष प व ा १ तरा दधे. व ा स व ा भुवना भ प य यवाजु ा व य त कत अ तान्.. (८) य के र क एवं शोभन कम वाले सोम को कोई रोकता नह . सोम अपने दय म तीन प व —अ न, वायु एवं सूय को धारण करते ह. सब कुछ जानने वाले सोम सब लोक को दे खते ह एवं य कम न करने वाले अ य लोग को नीचे क ओर मुंह करके पी ड़त करते ह. (८) ऋत य त तु वततः प व आ ज ाया अ े व ण य मायया. धीरा स मन त आशता ा कतमव पदा य भुः.. (९) स य प य का व तार करने वाले, दशाप व म फैले सोम व ण क जीभ के अ भाग के समान जल म रहते ह. य कम करने वाले उन सोम को पाते ह. जो य कम करने म असमथ ह, वे नरक म जाते ह. (९)
सू —७४
दे वता—पवमान सोम
शशुन जातोऽव च द ने व१य ा य षः सषास त. दवो रेतसा सचते पयोवृधा तमीमहे सुमती शम स थः.. (१) जल म उ प पवमान सोम नीचे क ओर मुंह करके बालक के समान रोते ह. श शाली घोड़े के समान चलने वाले सोम वगलोक का सहारा लेना चाहते ह. वे गाय एवं ओष धय के रस के साथ वग से धरती पर आते ह. हम शोभन तु तय के ारा उन सोम से धनसंप घर मांगते ह. (१) दवो यः क भो ध णः वातत आपूण अंशुः पय त व तः. सेमे मही रोदसी य दावृता समीचीने दाधार स मषः क वः.. (२) वगलोक को तं भत करने वाले, धरती के धारणक ा, सब जगह व तृत एवं पा म भरे ए सोम क करण चार ओर जाती ह. सोम ने व तृत ावा-पृ थवी को धारण कया था. य कम करने वाले सोम तोता को अ द. (२) म ह सरः सुकृतं सो यं मधूव ग ू तर दतेऋतं यते. इशे यो वृ े रत उ यो वृषापां नेता य इतऊ तऋ मयः.. (३) य म जाने वाले इं के लए भली-भां त सं कृत एवं सोम मला आ मधुर रस पीने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो य होता है. हमारे य म आने वाले इं का माग व तृत होता है. वे धरती पर गरने वाली वषा के वामी ह. धा गाय के हतकारक, जल बरसाने वाले एवं य के नेता इं हमारे य म जाने से तु तयो य होते ह. (३) आ म व भो ते घृतं पय ऋत य ना भरमृतं व जायते. समीचीनाः सुदानवः ीण त तं नरो हतमव मेह त पेरवः.. (४) सोम आ द य प आकाश से सारपूण घी व ध हते ह. य क ना भ प सोम से अमृत उ प होता है. शोभनदान वाले यजमान मलकर सोम को स करते ह. य का नेतृ व करने वाली एवं सबक र क सोम करण धरती पर जल बरसाती ह. (४) अरावीदं शुः सचमान ऊ मणा दे वा ं१ मनुषे प व त वचम्. दधा त गभम दते प थ आ येन तोकं च तनयं च धामहे.. (५) जलसमूह म मलाए जाते ए सोम श द करते ह एवं दे व का पालन करने वाले अपने शरीर को यजमान के क याण के लए पा म गराते ह. सोम अपनी करण ारा धरती पर उ प ओष धय म गभधारण करते ह. उसी गभ क सहायता से हम पु और पौ पाते ह. (५) सह धारेऽव ता अस त तृतीये स तु रज स जावतीः. चत ो नाभो न हता अवो दवो ह वभर मृतं घृत तः.. (६) जल क अनेक धारा वाले वगलोक म वतमान, एक- सरे से मली ई एवं जा को उ प करने वाली सोम करण धरती पर गर. सोम ने उन चार करण को वग के नीचे था पत कया है. जल बरसाने वाली वे करण दे व को ह व दे ती ह एवं ओष धय म अमृत भरती ह. (६) े ं पं कृणुते य सषास त सोमो मीढ् वाँ असुरो वेद भूमनः. त धया शमी सचते सेम भ व व कव धमव दष णम्.. (७) पा म प ंचकर सोम पा का प उ वल कर दे ते ह. अ भलाषापूरक एवं श शाली सोम तोता को ब त धन दे ना जानते ह, अपनी बु क सहायता से उ म कम को ा त करते ह एवं आकाश म घरे ए जलपूण मेघ को फाड़ते ह. (७) अध ेतं कलशं गो भर ं का म ा वा य मी ससवान्. आ ह वरे मनसा दे वय तः क ीवते शत हमाय गोनाम्.. (८) जस कार यु म यो ा से े रत घोड़ा मनचाही दशा को लांघ जाता है, उसी कार सोम सफेद रंग वाले एवं जलपूण कलश को लांघते ह. दे व क कामना करने वाले ऋ वज् सोम क तु तयां करते ह. सोम ने अ धक चलने वाले क ीवान् ऋ ष को पशु दए थे. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ः सोम पपृचान य ते रसोऽ ो वारं व पवमान धाव त. स मृ यमानः क व भम द तम वद वे ाय पवमान पीतये.. (९) हे पवमान सोम! जल म मलने वाला तु हारा रस भेड़ के बाल से बने दशाप व क ओर अनेक कार से दौड़ता है. हे अ तशय नशीले सोम! तुम बु मान् ऋ वज ारा प व होकर इं के पीने हेतु वा द बनो. (९)
सू —७५
दे वता—पवमान सोम
अ भ या ण पवते चनो हतो नामा न य ो अ ध येषु वधते. आ सूय य बृहतो बृह ध रथं व व चम ह च णः.. (१) अ के लए हतकारी सोम संसार के य एवं नीचे बहने वाले जल के चार ओर टपकते ह. महान् सोम जल के भीतर बढ़ते ह. सबको दे खने वाले सोम महान् सूय के वशाल एवं सब ओर चलने वाले रथ पर चढ़ते ह. (१) ऋत य ज ा पवते मधु यं व ा प त धयो अ या अदा यः. दधा त पु ः प ोरपी यं१ नाम तृतीयम ध रोचने दवः.. (२) स य प य क ज ा के समान सोम यारा एवं मादक रस टपकाते ह. सोम श द करने वाले, इस य कम के पालक एवं रा स ारा अपराजेय ह. ुलोक को द त करने वाला सोम जब नचोड़ा जाता है, तब यजमान ऐसा नाम धारण करता है जसे उसके मातापता भी नह जानते. (२) अव ुतानः कलशाँ अ च द ृ भयमानः कोश आ हर यये. अभीमृत य दोहना अनूषता ध पृ उषसो व राज त.. (३) य का दोहन करने वाले ऋ वज् द तशाली एवं नेता ारा वणमय चमड़े पर रखे गए सोम को नचोड़ते ह. सोम श द करते ए ोणकलश क ओर जाते ह. तीन सवन म वतमान सोम य के दन ातःकाल सुशो भत होते ह. (३) अ भः सुतो म त भ नो हतः रोचय ोदसी मातरा शु चः. रोमा य ा समया व धाव त मधोधारा प वमाना दवे दवे.. (४) प थर क सहायता से नचोड़े गए, अ के लए हतकारक एवं शु सोम जगत् का नमाण करने वाली ावा-पृ थवी को का शत करके भेड़ के बाल से बने दशाप व पर जाते ह एवं जल से मली ई मादक सोम क धार त दन दशाप व पर गरती है. (४) प र सोम
ध वा व तये नृ भः पुनानो अ भ वासया शरम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये ते मदा आहनसो वहायस ते भ र ं चोदय दातवे मघम्.. (५) हे सोम! हमारे क याण के लए चार ओर दौड़ो. तुम य कम के नेता ारा प व होकर ध, दही को ढको. तु हारे जो श दयु , श घ ु ातक एवं महान् रस ह, उनके कारण इं को े रत करो क वे हम महान् धन द. (५)
सू —७६
दे वता—पवमान सोम
धता दवः पवते कृ ो रसो द ो दे वानामनुमा ो नृ भः. ह रः सृजानो अ यो न स व भवृथा पाजां स कृणुते नद वा.. (१) सबको धारण करने वाले, शोधन के यो य, रसा मक दे व के बल, ऋ वज ारा तु त यो य, हरे रंग वाले, ा णय ारा उ प एवं सीखे ए घोड़े के समान वेग वाले सोम वग से टपकते ह. (१) शूरो न ध आयुधा गभ योः व१: सषास थरो ग व षु. इ य शु ममीरय प यु भ र ह वानो अ यते मनी ष भः.. (२) सोम वीर पु ष के समान अपने दोन हाथ म आयुध धारण करते ह. सोम गाय को खोजने के संबंध म वग म जाने क इ छा से रथ वाले बने थे. इं के बल को े रत करते ए सोम य कम के इ छु क बु मान ारा भेजे जाकर गाय के ध म मलाए जाते ह. (२) इ
य सोम पवमान ऊ मणा त व यमाणो जठरे वा वश. णः प व व ुद ेव रोदसी धया न वाजाँ उप मा स श तः.. (३)
हे पवमान सोम! तुम बढ़ते ए अपनी ब त सी धारा ारा इं के पेट म घुसो. बजली जस कार बादल का दोहन करती है, उसी कार तुम अपने कम ारा ावापृ थवी का दोहन करके हम अ धक अ दे ते हो. (३) व य राजा पवते व श ऋत य धी तमृ षषाळवीवशत्. यः सूय या सरेण मृ यते पता मतीनामसम का ः.. (४) जगत् के राजा सोम नचुड़ते ह. वग को दे खने वाले इं के कम ऋ षय से भी उ म है. सोम ने इं के य कम क कामना क . सोम सूय क करण ारा शु होते ह. हमारी तु तय के पालनक ा सोम का कम क वय से उ कृ है. (४) वृषेव यूथा प र कोशमष यपामुप थे वृषभः क न दत्. स इ ाय पवसे म स र तमो यथा जेषाम स मथे वोतयः.. (५) हे अ भलाषापूरक सोम! जस कार बैल गाय के समूह म जाता है, उसी कार तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अंत र म रहकर गजन करते हो एवं ोणकलश म आते हो. तुम अ यंत नशीले बनकर इं के लए नचुड़ते हो. तु हारे ारा र त होकर हम यु म वजयी बन. (५)
सू —७७
दे वता—पवमान सोम
एष कोशे मधुमाँ अ च द द य व ो वपुषो वपु रः. अभीमृत य सु घा घृत तो वा ा अष त पयसेव धेनवः.. (१) इं के व के समान, मधुर रस यु एवं बीज को बोने वाल म े सोम ोणकलश म श द करते ह. फल का दोहन करने वाली, जल बरसाने वाली एवं श द करने वाली सोम करण रंभाती ई गाय के समान जाती ह. (१) स पू ः पवते यं दव प र येनो मथाय द षत तरो रजः. स म व आ युवते वे वजान इ कृशानोर तुमनसाह ब युषा.. (२) ाचीन सोम नचुड़ते ह. अपनी माता के ारा भेजा आ बाज प ी सोम को वग से लाया था. सोम अपने मधुर रस को तीन लोक से अलग करते ह. कृशानु नाम वाले धनुषधारी के बाण से डरकर सोम इधर-उधर जाते ए मधुर रस के साथ मलते ह. (२) ते नः पूवास उपरास इ दवो महे वाजाय ध व तु गोमते. ई े यासो अ ो३न चारवो ये जुजुषुह वह वः.. (३) य के समान दशनीय, रमणीय, ह का भ ण करने वाले, ाचीन तथा आधु नक सोम मुझ महान् गो वामी के पास अ पाने के लए आव. (३) अयं नो व ा वनव नु यत इ ः स ाचा मनसा पु ु तः. इन य यः सदने गभमादधे गवामु जम यष त जम्.. (४) ब त से लोग ारा शं सत व अ न क उ रवेद पर वतमान सोम हम मारने वाले श ु को जानकर मार. सोम ओष धय म गभ धारण करते ह एवं हमारी धा गाय के समूह क ओर जाते ह. (४) च दवः पवते कृ ो रसो महाँ अद धो व णो यते. असा व म ो वृजनेषु य योऽ यो न यूथे वृषयुः क न दत्.. (५) सब कम के क ा, कमकुशल, रसा मक, अ धक गुण वाले व अपराजेय सोम इधरउधर जाते ह. वप आने पर सबके म सोम श द करते ए इस कार बरसते ह, जस कार घोड़ा घो ड़य म जाता है. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —७८
दे वता—पवमान सोम
राजा वाचं जनय स यददपो वसानो अ भ गा इय त. गृ णा त र म वर य ता वा शु ो दे वानामुप या त न कृतम्.. (१) द तशाली सोम श द उ प करते ए नचुड़ते ह एवं जल को आ छा दत करते ए तु तय को ा त करते ह. सोम का फोक भेड़ के बाल से बना दशाप व हण करता है. सोम शु होकर दे व के थान को जाते ह. (१) इ ाय सोम प र ष यसे नृ भनृच ा ऊ मः क वर यसे वने. पूव ह ते ुतयः स त यातवे सह म ा हरय मूषदः.. (२) हे सोम! तुम ऋ वज ारा इं के लए नचोड़े जाते हो. हे मेधावी एवं य क ा को कृपापूवक दे खने वाले सोम! तुम े रत होकर जल म मलते हो. तु हारे जाने के लए ब त से छ ह. तु हारी हजार ा त एवं हरे रंग वाली करण प थर पर थत ह. (२) समु या अ सरसो मनी षणमासीना अ तर भ सोमम रन्. ता ह व त ह य य स ण याच ते सु नं पवमानम तम्.. (३) अंत र म रहने वाली अ सराएं य म बैठकर मेधावी सोम को नचोड़ती ह. वे य शाला को स चने वाले सोम को बढ़ाती ह एवं उससे अ य सुख क याचना करती ह. (३) गो ज ः सोमो रथ ज र य ज व जद ज पवते सह जत्. यं दे वास रे पीतये मदं वा द ं सम णं मयोभुवम्.. (४) हमारे लए गाय , रथ, वण, वग, जल एवं हजार धन के जेता सोम प व कए जाते ह. दे व ने नशीले, अ यंत वादपूण, रसा मक, लाल रंग वाले एवं सुखद सोम को पीने के लए बनाया है. (४) एता न सोम पवमानो अ मयुः स या न कृ व वणा यष स. ज ह श ुम तके रके च य उव ग ू तमभयं च न कृ ध.. (५) हे सोम! तुम इन धन को हम वा तव म दे ते ए, शु होते ए शु होते हो. जो श ु समीप अथवा र थत हो, उसे मारो एवं हमारे माग को व तृत करके हम अभय दो. (५)
सू —७९
दे वता—पवमान सोम
अचोदसो नो ध व व दवः सुवानासो बृह वेषु हरयः. व च नश इषो अरातयोऽय नश त स नष त नो धयः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वशाल द त वाले, य म नचुड़ते ए ह रतवण सोम अपने-आप हमारे पास आव. हम अ न दे ने वाले एवं श ु न ह . दे वगण हमारे कम को वीकार कर. (१) णो ध व व दवो मद युतो धना वा ये भरवतो जुनीम स. तरो मत य क य च प रह्वृ त वयं धना न व धा भरेम ह.. (२) मद टपकाने वाले सोम एवं धन हमारे पास आव. इनक सहायता से हम श श ु को जीत एवं येक मनु य क बाधा को पार करके सदा धन ा त कर. (२)
शाली
उत व या अरा या अ र ह ष उता य या अरा या वृको ह षः. ध व तृ णा समरीत ताँ अ भ सोम ज ह पवमान रा यः.. (३) वे सोम अपने श ु के हननक ा और हमारे श ु के नाशक ह. जैसे म थल म लोग को यास घेरे रहती है, वैसे ही सोम श ु को घेरते ह. हे सोम! इन दोन कार के श ु को मारो. (३) द व ते नाभा परमो य आददे पृ थ ा ते ः सान व पः. अ य वा ब स त गोर ध व य१ सु वा ह तै मनी षणः.. (४) हे सोम! तु हारे उ म अंश वग म रहकर ह हण करते ह एवं वह से धरती के ऊंचे थान पर गरकर वृ बन गए ह. प थर तु हारा भ ण करते ह एवं बु मान् लोग गाय के चमड़े पर हाथ से तु हारा रस नकालते ह. (४) एवा त इ दो सु वं सुपेशसं रसं तु त थमा अ भ यः. नदं नदं पवमान न ता रष आ व ते शु मो भवतु यो मदः.. (५) हे सोम! मुख अ वयुजन इस समय शोभन एवं सुंदर रस को नचोड़ते ह. हे पवमान सोम! तुम हमारे येक श ु को न करो. तु हारा श दे ने वाला, य एवं नशीला रस कट हो. (५)
सू —८०
दे वता—पवमान सोम
सोम य धारा पवते नृच स ऋतेन दे वा हवते दव प र. बृह पते रवथेना व द ुते समु ासो न सवना न व चुः.. (१) यजमान को दे खने वाले सोम क धारा टपकती है. सोम य के ारा ुलोक के ऊपर वतमान दे व का हनन करते ह. सोम तोता के श द से चमकते ह एवं जस तरह धरती को सागर घेरे ए है, उसी कार वे तीन सवन को ा त करते ह. (१) यं वा वा ज या अ यनूषतायोहतं यो नमा रोह स ुमान्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मघोनामायुः
तर म ह व इ ाय सोम पवसे वृषा मदः.. (२)
हे अ यु सोम! कसी के ारा न न होने वाली तु तयां तु हारी शंसा करती ह. तुम द तशाली बनकर वणमय हाथ ारा सं कृत थान क ओर बढ़ते हो. हे वषा करने वाले एवं नशीले सोम! तुम ह वाले यजमान क आयु एवं महान् अ बढ़ाते ए इं के हेतु नचुड़ते हो. (२) ए
य कु ा पवते म द तम ऊज वसानः वसे सुम लः. यङ् स व ा भुवना भ प थे ळ ह रर यः य दते वृषा.. (३)
अ य धक नशीले, श दाता रस को ढकते ए व शोभन क याण दे ने वाले सोम यजमान को अ दे ने के लए इं क कोख म नचुड़ते ह. वे सभी ा णय को बढ़ाते ह. वेद पर ड़ा करते ए ह रतवण, ग तशाली एवं बरसने वाले सोम टपकते ह. (३) तं वा दे वे यो मधुम मं नरः सह धारं हते दश पः. नृ भः सोम युतो ाव भः सुतो व ा दे वाँ आ पव वा सह जत्.. (४) हे सोम! मनु य एवं उनक दस उंग लयां दे व के लए अ यंत मधुर एवं हजार धारा वाले सोम को हती ह. हे सोम! तुम मनु य ारा प थर क सहायता से नचुड़कर एवं हजार धन को जीतकर दे व को तृ त करो. (४) तं वा ह तनो मधुम तम भ ह य सु वृषभं दश पः. इ ं सोम मादय दै ं जनं स धो रवो मः पवमानो अष स.. (५) सुंदर हाथ वाले लोग क दस उंग लयां प थर क सहायता से मधुर रस वाले एवं अ भलाषापूरक सोम को हती ह. हे सोम! तुम नचुड़ते ए तथा इं एवं अ य दे व को स करते ए सागर क लहर के समान जाते हो. (५)
सू —८१
दे वता—पवमान सोम
सोम य पवमान योमय इ य य त जठरं सुपेशसः. द ना यद मु ीता यशसा गवां दानाय शूरमुदम दषुः सुताः.. (१) जब नचोड़े ए सोम गाय क श प दही के साथ मलकर यजमान क अ भलाषा पूरी करने के लए शूर इं को उ म करते ह, तब शु सोम क सुंदर लहर इं के पेट म जाती ह. (१) अ छा ह सोमः कलशाँ अ स यदद यो न वो हा रघुवत नवृषा. अथा दे वानामुभय य ज मनो व ाँ अ ो यमुत इत यत्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम रथ ख चने वाले घोड़े के समान ोणकलश के सामने जाते ह. शी ग त वाले एवं अ भलाषापूरक सोम दे व के दोन ज म को जानते ए इस धरती एवं ुलोक म य को ा त करते ह. (२) आ नः सोम पवमानः करा व व दो भव मघवा राधसो महः. श ा वयोधो वसवे सु चेतुना मा नो गयमारे अ म परा सचः.. (३) हे शु होते ए सोम! तुम हम गो आ द धन सब ओर से दो. हे द तशाली एवं धनी सोम! तुम हम महान् धन दो. हे धारण करने वाले सोम! मुझ सेवक के लए अपने उ म ान के ारा सुख दो एवं हम दे ने यो य धन हमसे र मत करो. (३) आ नः पूषा पवमानः सुरातयो म ो ग छ तु व णः सजोषसः. बृह प तम तो वायुर ना व ा स वता सुयमा सर वती.. (४) शोभन दान करने वाले पूषा, सोम, म , व ण, बृह प त, म त्, वायु, अ नीकुमार, व ा, स वता एवं शोभन शरीर वाली सर वती मलकर हमारे य म आव. (४) अभे ावापृ थवी व म वे अयमा दे वो अ द त वधाता. भगो नृशंस उव१ त र ं व े दे वाः पवमानं जुष त.. (५) सव ापक ावा-पृ थवी, अयमा दे व, अ द त, वधाता, अंत र एवं व ेदेव नचुड़ते ए सोम का सेवन कर. (५)
सू —८२
शंसनीय भग, व तृत
दे वता—पवमान सोम
असा व सोमो अ षो वृषा हरी राजेव द मो अ भ गा अ च दत्. पुनानो वारं पय य यं येनो न यो न घृतव तमासदम्.. (१) द तशाली, वषा करने वाले एवं ह रतवण सोम नचोड़े गए. राजा के समान दशनीय सोम जल को ल य करके श द करते ह. सोम शु होकर भेड़ के बाल से बने दशाप व क ओर ऐसे जाते ह. जैसे बाज अपने घ सले क ओर जाता है. सोम अपने जलपूण थान क ओर नचुड़ते ह. (१) क ववध या पय ष मा हनम यो न मृ ो अ भ वाजमष स. अपसेध रता सोम मृळय घृतं वसानः प र या स न णजम्.. (२) हे ांतदश सोम! तुम य करने क इ छा से पूजनीय दशाप व क ओर जाते हो एवं जल से धुलकर यु म जाने वाले घोड़े के समान चलते हो. हे सोम! तुम जल म मलकर दशाप व क ओर जाते हो. तुम हमारे सभी पाप को न करके हम सुखी करो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पज यः पता म हष य प णनो नाभा पृ थ ा ग रषु यं दधे. वसार आपो अ भ गा उतासर सं ाव भनसते वीते अ वरे.. (३) महान् एवं प वाले सोम के पता मेघ ह. वे सोम धरती क ना भ के समान पवत के प थर पर रहते ह. उंग लयां गाय का ध जल के पास ले जाती ह. सोम शोभन य म प थर के साथ मलते ह. (३) जायेव प याव ध शेव मंहसे प ाया गभ शृणु ह वी म ते. अ तवाणीषु चरा सु जीवसेऽ न ो वृजने सोम जागृ ह.. (४) हे धरती के पु सोम! म जो तु तयां बोलता ,ं उ ह सुनो. प नी जैसे अपने प त को सुख दे ती है, उसी कार तुम यजमान को सुख दे ते हो. तुम हमारे जीवन के लए हमारी तु तय के म य ग तशील बनो. हे तु त यो य सोम! तुम हमारे श शाली श ु के त सावधान रहना. (४) यथा पूव यः शतसा अमृ ः सह साः पयया वाज म दो. एवा पव य सु वताय न से तव तम वापः सच ते.. (५) हे सोम! तुमने जस कार पूववत मह षय को सैकड़ एवं हजार संप यां द थ , उसी कार इस समय हमारी नवीन उ त के लए टपको. जल तु हारे कम के लए तुमसे मलते ह. (५)
सू —८३
दे वता—पवमान सोम
प व ं ते वततं ण पते भुगा ा ण पय ष व तः. अत ततनून तदामो अ ुते शृतास इ ह त त समाशत.. (१) हे मं के वामी सोम! तु हारा प व अंश सब जगह व तृत है. तुम भु बनकर पीने वाले के अंग म फैल जाते हो. तु हारे प व अंश को तप यार हत एवं अप रप व ा त नह कर सकता. प रप व एवं य करने वाले लोग ही तु हारे प व अंश को ा त करते ह. (१) तपो प व ं वततं दव पदे शोच तो अ य त तवो थरन्. अव य य पवीतारमाशवो दव पृ म ध त त चेतसा.. (२) श ु को क दे ने वाले सोम का प व अंश ुलोक के ऊंचे थान पर व तृत है। उसक तेज वी करण व वध कार से थत होती ह. सोम का शी गामी रस यजमान क र ा करता है. इसके बाद वह दे व के समीप जाने वाली बु से वग के ऊंचे थान म मलता है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ च षसः पृ र य उ ा बभ त भुवना न वाजयुः. माया वनो म मरे अ य मायया नृच सः पतरो गभमा दधुः.. (३) सूय से संबं धत एवं मुख सोम द तशाली बनते ह. जल बरसाने वाले सोम अ क इ छा करते ए ा णय को पु करते ह. इन बु मान् सोम क बु ारा मनु य को दे खने वाले दे व संसार को बनाते ह एवं पालक दे व ओष धय म गभ धारण करते ह. (३) ग धव इ था पदम य र त पा त दे वानां ज नमा य तः. गृ णा त रपुं नधया नधाप तः सुकृ मा मधुनो भ माशत.. (४) जल के धारणक ा आ द य सोम के थान क र ा करते ह. अद्भुत सोम दे व के ज म क र ा करते ह एवं पाश के वामी बनकर हमारे श ु को पाश म जकड़ते ह. अ तशय पु यशाली लोग मधुर सोम का रस पान करते ह. (४) ह वह व मो म ह स दै ं नभो वसानः प र या य वरम्. राजा प व रथो वाजमा हः सह भृ जय स वो बृहत्.. (५) हे जलयु सोम! तुम जल को आ छा दत करते ए वशाल य शाला म जाते हो. हे प व रथ वाले राजा सोम! तुम यु म जाते हो. हे अप र मत गमन वाले सोम! तुम हमारे लए ब त सा अ जीतते हो. (५)
सू —८४
दे वता—पवमान सोम
पव व दे वमादनो वचष णर सा इ ाय व णाय वायवे. कृधी नो अ व रवः व तम तौ गृणी ह दै ं जनम्.. (१) हे दे व को स करने वाले, वशेष ा एवं जल दे ने वाले सोम! तुम इं , व ण एवं वायु के लए टपको, हम वनाशर हत धन दो एवं इस वशाल धरती पर मुझे दे व का भ कहकर पुकारो. (१) आ य त थौ भुवना यम य व ा न सोमः प र ता यष त. कृ व स चृतं वचृतम भ य इ ः सष युषसं न सूयः.. (२) जो मरणर हत सोम भुवन म ा त ह एवं सभी लोक क चार ओर से र ा करते ह, वही सोम य को फलयु असुर से वमुख करते ए इस कार उसी य का सहारा लेते ह, जैसे सूय व को का शत करके उसी का सहारा लेते ह. (२) आ यो गो भः सृ यत ओषधी वा दे वानां सु न इषय ुपावसुः. आ व ुता पवते धारया सुत इ ं सोमो मादय दै ं जनम्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो दे व के सुख के न म चं करण ारा ओष धय म था पत कए जाते ह, वे दे व के समीप जाने के इ छु क, श ु से धन ा त करने वाले सोम सभी दे व के साथ इं को स करते ह एवं द तयु धारा के साथ नचुड़ते ह. (३) एष य सोमः पवते सह ज इ ः समु मु दय त वायु भरे
वानो वाच म षरामुषबुधम्. य हा द कलशेषु सीद त.. (४)
हजार धन के नेता सोम तो के त जाने वाली व ातःकाल बु वाणी को े रत करते ए प व होते ह एवं वायु ारा े रत होकर इं के य ोणकलश म जाते ह. (४) अ भ यं गावः पयसा पयोवृधं सोमं ीण त म त भः व वदम्. धन यः पवते कृ ो रसो व ः क वः का ेना वचनाः.. (५) ध बढ़ाने वाले सोम को अपने ध से भगोने के लए गाएं आती ह. सोम तु तयां सुनकर सब कुछ दान करते ह. कम करने म कुशल, रसयु , मेधावी, क व, अ यु एवं श ु का धन जीतने वाले सोम य कम ारा शु होते ह. (५)
सू —८५
दे वता—पवमान सोम
इ ाय सोम सुषुतः प र वाऽपामीवा भवतु र सा सह. मा ते रस य म सत या वनो वण व त इह स व दवः.. (१) हे सोम! तुम भली कार नचुड़कर इं के लए सब ओर जाओ. रा स के साथ-साथ हमारे रोग भी र ह . पापी लोग तु हारा रस पीकर मु दत न ह . इस य म तु हारे रस धनयु ह . (१) अ मा समय पवमान चोदय द ो दे वानाम स ह यो मदः. ज ह श ूँर या भ दनायतः पबे सोममव नो मृधो ज ह.. (२) हे पवमान सोम! हम सं ाम क ओर भेजो. तुम दे व म द , य एवं मदकारक हो. हम तु हारी तु त के इ छु क ह. तुम हमारे श ु को मारो एवं हमारे पास आओ. हे इं ! तुम सोमरस पओ और हमारे श ु को मारो. (२) अद ध इ दो पवसे म द तम आ मे य भव स धा स मः. अ भ वर त बहवो मनी षणो राजानम य भुवन य नसते.. (३) हे अ ह सत एवं अ यंत नशीले सोम! तुम शु होते हो. तुम वयं ही उ म होकर इं के भ य बनते हो. ब त से तोता इस संसार के राजा सोम क तु त करते ह एवं उसके समीप जाते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सह णीथः शतधारो अ त इ ाये ः पवते का यं मधु. जय े म यषा जय प उ ं नो गातुं कृणु सोम मीढ् वः.. (४) अनेक कार क आंख वाले, असी मत धारा से यु एवं अद्भुत सोम इं के लए मनचाहा मधुर रस टपकाते ह. हे सोम! तुम हमारे लए खेत और जल को जीतकर दशाप व क ओर आओ एवं जल बरसाने वाले बनकर हमारा माग चौड़ा करो. (४) क न द कलशे गो भर यसे १ यं समया वारमष स. ममृ यमानो अ यो न सान स र य सोम जठरे सम रः.. (५) हे श द करते ए एवं ोणकलश म थत सोम! तुम गाय के ध-दही म मलाए जाते हो एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व के पास जाते हो. मसले जाते ए तुम घोड़े के समान सेवा करने यो य हो. तुम इं के पेट म टपको. (५) वा ः पव व द ाय ज मने वा र ाय सुहवीतुना ने. वा म ाय व णाय वायवे बृह पतये मधुमाँ अदा यः.. (६) हे वादयु सोम! तुम द ज म वाले दे व एवं शोभन नाम वाले इं के लए रस टपकाओ. तुम मधुर रस वाले एवं सर ारा अपराजेय हो. तुम म , व ण, वायु और बृह प त के लए रस बरसाओ. (६) अ यं मृज त कलशे दश पः व ाणां मतयो वाच ईरते. पवमाना अ यष त सु ु तमे ं वश त म दरास इ दवः.. (७) अ वयु लोग क दस उंग लयां घोड़े के समान ग तशील सोम को कलश म मसलती ह. ा ण के बीच बैठे तोता तु तयां बोलते ह. शु होते ए सोम जाते ह. नशीले सोम इं के उदर म वेश करते ह. (७) पवमानो अ यषा सुवीयमुव ग ू त म ह शम स थः. मा कन अ य प रषू तरीशते दो जयेम वया धनंधनम्.. (८) हे सोम! तुम शु होते ए हम शोभन श , दो कोस धरती और वशाल घर दो. तुम हमारे य कम से े ष करने वाल को हमारा वामी मत बनाओ. हम तु हारी कृपा से ब त धन जीत. (८) अ ध ाम थाद्वृषभो वच णोऽ च दवो रोचना क वः. राजा प व म ये त रो व वः पीयूषं हते नृच सः.. (९) बरसने वाले एवं वशेष ा सोम ुलोक म थत थे. सोम ने ुलोक म तार को चमकाया. क व एवं राजा सोम दशाप व को लांघकर जाते ह. मनु य को दे खने वाले सोम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श द करते ए वग के अमृत को हते ह. (९) दवो नाके मधु ज ा अस तो वेना ह यु णं ग र ाम्. अ सु सं वावृधानं समु आ स धो मा मधुम तं प व आ.. (१०) मधुर वचन बोलने वाले वेनगो ीय ऋ ष य के ह वधान नामक थान म अलग-अलग सोमरस नचोड़ते ह एवं ऊंचे थान म थत जल बरसाने वाले, जल म बढ़ने वाले एवं रस प सोम को सागर के समान वशाल ोणकलश म जल क लहर से स चते ह. वे मीठे रस वाले सोम को दशाप व म नचोड़ते ह. (१०) नाके सुपणमुपप तवांसं गरो वेनानामकृप त पूव ः. शशुं रह त मतयः प न ततं हर ययं शकुनं ाम ण थाम्.. (११) ु ोक म उ प , शोभन प वाले एवं गरने वाले सोम क शंसा हमारी तु तयां ल करती ह. रोते ए शशु के समान शु करने यो य, वणमय, पंख से यु एवं धरती पर थत सोम को हमारी तु तयां ा त करती ह. (११) ऊ व ग धव अ ध नाके अ था भानुः शु े ण शो चषा ौ ा
ा पा तच ाणो अ य. च ोदसी मातरा शु चः.. (१२)
उ त एवं करण धारण करने वाले सोम आ द य के म य थत होते ह एवं इस आ द य के सभी प को दे खते ह. सूय म थत सोम द त तेज के ारा का शत होते ह. द त वाले सूय व का नमाण करने वाली ावा-पृ थवी को का शत करते ह. (१२)
सू —८६
दे वता—पवमान सोम
त आशवः पवमान धीजवो मदा अष त रघुजा इव मना. द ाः सुपणा मधुम त इ दवो म द तमासः प र कोशमासते.. (१) हे पवमान सोम! तु हारे ापक, मन के समान तेज चाल वाले तथा नशीले रस, तेज चलने वाली घो ड़य के बछड़ के समान वयं ही चलते ह. वग म उ प , शोभन प वाले, मधुरतायु एवं अ यंत नशीले रस ोणकलश म जाते ह. (१) ते मदासो म दरास आशवोऽसृ त र यासो यथा पृथक्. धेनुन व सं पयसा भ व ण म म दवो मधुम त ऊमयः.. (२) हे सोम! मदकारक, ा त एवं घोड़े के समान तेज चलने वाले रस अलग-अलग बनाए जाते ह. वे मधुर व अ धक रस वाले सोम व धारी इं के पास उसी कार जाते ह, जस कार धा गाय बछड़े के पास जाती है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ यो न हयानो अ भ वाजमष व व कोशं दवो अ मातरम्. वृषा प व े अ ध सानो अ ये सोमः पुनान इ याय धायसे.. (३) हे सोम! तुम े रत अ के समान सं ाम म जाओ. हे सब जानने वाले सोम! तुम ुलोक से जल के नमाता ोणकलश के पास जाओ. वषा करने वाले सोम के धारणक ा इं के लए भेड़ के बाल से बने दशाप व पर शु होते ह. दशाप व पवत क चोट के समान ऊंचा है. (३) त आ नीः पवमान धीजुवो द ा असृ पयसा धरीम ण. ा तऋषयः था वरीरसृ त ये वा मृज यृ षषाण वेधसः.. (४) हे पवमान सोम! तु हारी फैलने वाली, मन के समान वेग वाली, द एवं ध से यु धाराएं ोणकलश म गरती ह. हे ऋ षय ारा से वत सोम! तु हारा नमाण करने वाले ऋ ष तु हारी धाराएं ोणकलश के म य म कर दे ते ह. (४) व ा धामा न व च ऋ वसः भो ते सतः प र य त केतवः. ान शः पवसे सोम धम भः प त व य भुवन य राज स.. (५) हे सबको दे खने वाले भु सोम! तु हारी व तृत करण सभी तेज को का शत करती ह. हे ापक सोम! तुम रस-धारा के प म नचुड़ते हो एवं सकल भुवन के वामी के प म सुशो भत होते हो. (५) उभयतः पवमान य र मयो ुव य सतः प र य त केतवः. यद प व े अ ध मृ यते ह रः स ा न योना कलशेषु सीद त.. (६) शु होते ए, न ल एवं वतमान सोम का ान कराने वाली करण इधर-उधर चलती ह. हरे रंग वाले एवं थत रहने वाले सोम जब दशाप व पर छाने जाते ह, तब ोणकलश म कते ह. (६) य य केतुः पवते व वरः सोमो दे वानामुप या त न कृतम्. सह धारः प र कोशमष त वृषा प व म ये त रो वत्.. (७) य का ान कराने वाले एवं शोभन य वाले सोम नचोड़े जाते ह. वे सोम दे व के वशु थान को जाते ह, हजार धारा वाले बनकर ोणकलश म प ंचते ह एवं स चने वाले सोम श द करते ए दशाप व को पार करके नीचे जाते ह. (७) राजा समु ं न ो३ व गाहतेऽपामू म सचते स धुषु तः. अ य था सानु पवमानो अ यं नाभा पृ थ ा ध णो महो दवः.. (८) राजा सोम अंत र
एवं वहां थत जल म मलते ह तथा जल नीचे बरसाते ह. जल म
******ebook converter DEMO Watermarks*******
थत सोम पुकारे जाने पर दशाप व पी ऊंचे थान पर थत होते ह जो धरती पर ना भ ह. सोम महान् ुलोक को धारण करने वाले ह. (८) दवो न सानु तनय च दद् ौ य य पृ थवी च धम भः. इ य स यं पवते ववे वद सोमः पुनानः कलशेषु सीद त.. (९) सोम ुलोक के ऊंचे थान को श दपूण करते ए च लाते ह एवं अपनी श से ावा-पृ थवी को धारण करते ह. सोम इं क म ता को जानते ए छनते ह एवं ोणकलश म थत होते ह. (९) यो तय य पवते मधु यं पता दे वानां ज नता वभूवसुः. दधा त र नं वधयोरपी यं म द तमो म सर इ यो रसः.. (१०) य के काशक सोम दे व के य मीठे रस को टपकाते ह. दे व के पालक, सबको उ प करने वाले एवं अ धक धन वाले सोम ावा-पृ थवी का रमणीय धन तोता को दे ते ह. अ यंत नशीले सोम इं को बढ़ाने वाले एवं रसपूण ह. (१०) अ भ द कलशं वा यष त प त दवः शतधारो वच णः. ह र म य सदनेषु सीद त ममृजानोऽ व भः स धु भवृषा.. (११) ग तशील, ुलोक के वामी, सौ धारा वाले, वशेष ा व ह रतवण सोम दे व के म के समान य म श द करते ए ोणकलश म थत होते ह. सोम छानने के साधन दशाप व क सहायता से शु कए गए एवं वषाकारक ह. (११) अ े स धूनां पवमानो अष य े वाचो अ यो गोषु ग छ त. अ े वाज य भजते महाधनं वायुधः सोतृ भः पूयते वृषा.. (१२) पवमान एवं उ म सोम जल , मा य मका वाणी एवं करण के आगे जाते ह. शोभन आयुध वाले एवं वषक सोम अ पाने के लए सं ाम करते ह एवं ऋ वज ारा नचोड़े जाते ह. (१२) अयं मतवा छकुनो यथा हतोऽ े ससार पवमान ऊ मणा. तव वा रोदसी अ तरा कवे शु च धया पवते सोम इ ते.. (१३) तो यु , शो धत होते ए एवं े रत सोमरस के साथ प ी के समान दशाप व क ओर जाते ह. हे मेधावी इं ! शु सोम तु हारे य कम के कारण ही ावा-पृ थवी के म य नचोड़े जाते ह. (१३) ा प वसानो यजतो द व पृशम त र ा भुवने व पतः. वज ानो नभसा य मी नम य पतरमा ववास त.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वग को छू ने वाले, तेज प कवच को पहनने वाले, य के यो य एवं जल से अंत र को पूण करने वाले सोम जल म मलकर एवं वग को उ प करते ए जल के साथ बहते ह एवं जल के पालक तथा ाचीन इं क सेवा करते ह. (१४) सो अ य वशे म ह शम य छ त यो अ य धाम थमं ानशे. पदं यद य परमे ोम यतो व ा अ भ सं या त संयतः.. (१५) सोम इं को वेश करने म ब त सुख दे ते ह. सोम ने इं के तेजपूण शरीर को पहले ा त कया था. उ म वेद के ऊपर सोम का थान है. सोमरस से तृ त होकर इं सभी यु म जाते ह. (१५) ो अयासी द र य न कृतं सखा स युन मना त स रम्. मयइव युव त भः समष त सोमः कलशे शतया ना पथा.. (१६) सोम इं के पेट म जाते ह. म होने के कारण सोम इं के उदर को क नह प ंचाते. पु ष जस कार युव तय से मलते ह, उसी कार सोम जल म मलते ह एवं सौ छे द वाले दशाप व के माग से कलश म जाते ह. (१६) वो धयो म युवो वप युवः पन युवः संवसने व मुः. सोमं मनीषा अ यनूषत तुभोऽ भ धेनवः पयसेम श युः.. (१७) हे सोम! तु हारा यान करने वाले एवं तु हारे मादक श द एवं तु त को सुनने क इ छा करने वाले तोता नवासयो य य शाला म चलते- फरते ह. मन को वश म करने वाले तोता तु हारी तु त करते ह एवं गाएं तु ह अपने ध से भगोती ह. (१७) आ नः सोम संयतं प युषी मष म दो पव व पवमानो अ धम्. या नो दोहते रह स षी ुम ाजव मधुम सुवीयम्.. (१८) हे द त एवं शु होते ए सोम! तुम हम एक कया आ, वृ यु एवं ासर हत अ दो. वह अ तीन सवन म बना बाधा के ा त होता है. वह श दयु , श शाली, मधुर एवं शोभन संतान दे ने वाला है. (१८) वृषा मतीनां पवते वच णः सोमो अ ः तरीतोषसो दवः. ाणा स धूनां कलशाँ अवीवश द य हा ा वश मनी ष भः.. (१९) तोता के अ भलाषापूरक, वशेष प से दे खने वाले व दवस, उषा एवं ुलोक को बढ़ाने वाले तथा जल के उ पादक सोम शु होते ह, कलश म वेश करना चाहते ह तथा मनी षय ारा शं सत होकर इं के उदर म जाने के लए टपकते ह. (१९) मनी ष भः पवते पू ः क वनृ भयतः प र कोशाँ अ च दत्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त य नाम जनय मधु र द
य वायोः स याय कतवे.. (२०)
ाचीन क व एवं ऋ वज ारा नय मत सोम कलश म जाने के लए श द करते ए नचुड़ते ह. सोम इं एवं वायु के साथ म ता करने के लए इं के न म जल उ प करते ह एवं मधुर रस टपकाते ह. (२०) अयं पुनान उषसो व रोचयदयं स धु यो अभव लोककृत्. अयं ः स त हान आ शरं सोमो दे पवते चा म सरः.. (२१) शु होते ए सोम उषा को वशेष प से का शत करते ह. लोकक ा सोम जल म बढ़ते ह. इ क स गाय का ध हते ए मदकारक सोम उदर म जाने के लए टपकते ह. (२१) पव व सोम द ेषु धामसु सृजान इ दो कलशे प व आ. सीद य जठरे क न द ृ भयतः सूयमारोहयो द व.. (२२) हे कलश एवं दशाप व म न मत एवं द त सोम! तुम दे व के उदर म नचुड़ो. इं के पेट म जाकर श द करने वाले एवं ऋ वज ारा बुलाए ए सोम ने सूय को ल ु ोक म आरो हत कया. (२२) अ भः सुतः पवसे प व आँ इ द व य जठरे वा वशन्. वं नृच ा अभवो वच ण सोम गो म रो योऽवृणोरप.. (२३) हे सोम! तुम प थर क सहायता से नचुड़कर इं के पेट म वेश करते ए दशाप व पर छाने जाते हो. हे वशेष ा सोम! तुम मानव को कृपा से दे खते हो. तुमने अं गरागो ीय ऋ षय के क याण के लए उस पवत को आवरणर हत कया जो गाएं छपाए ए था. (२३) वां सोम पवमानं वा योऽनु व ासो अमद व यवः. वां सुपण आभर व परी दो व ा भम त भः प र कृतम्.. (२४) हे शु होते ए सोम! शोभन कम वाले मेधावी तोता र ा क अ भलाषा से तु हारी तु त करते ह. हे व वध तु तय से अलंकृत सोम! शोभन पंख वाला बाज तु ह वगलोक से लाया. (२४) अ े पुनानं प र वार ऊ मणा ह र नव ते अ भ स त धेनवः. अपामुप थे अ यायवः क वमृत य योना म हषा अहेषत.. (२५) भेड़ के बाल से बने दशाप व पर रस के ारा सब ओर से शु होते ए हरे रंग के सोम से सात न दयां मलती ह. महान् पु ष मेधावी सोम को अंत र के जल म जाने को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े रत करते ह. (२५) इ ः पुनानो अ त गाहते मृधो व ा न कृ व सुपथा न य यवे. गाः कृ वानो न णजं हयतः क वर यो न ळ प र वारमष त.. (२६) द तशाली सोम प व होते समय यजमान के क याण के लए सभी माग सुगम बनाते ए श ु को हराकर कलश म जाते ह. सुंदर एवं मेधावी सोम अ के समान ड़ा करते ए एवं अपना प गो ध के समान बनाते ए भेड़ के बाल से बने दशाप व पर जाते ह. (२६) अस तः शतधारा अ भ यो ह र नव तेऽव ता उद युवः. पो मृज त प र गो भरावृतं तृतीये पृ े अ ध रोचने दवः.. (२७) आपस म मली ई, सौ धारा वाली व सोम का सहारा लेने वाली सूय करण हरे रंग के सोम को ा त करती ह. उंग लयां करण से ढके ए सोम एवं ुलोक के द त थान पर थत सोम को मसलती ह. (२७) तवेमाः जा द य रेतस वं व य भुवन य राज स. अथेदं व ं पवमान ते वशे व म दो थमो धामधा अ स.. (२८) हे सोम! तु हारे द त वीय से ये सब जाएं उ प ई ह. तुम सारे संसार के वामी हो. यह सारा व तु हारे वश म है. तुम सबसे मुख एवं तेजधारी हो. (२८) वं समु ो अ स व व कवे तवेमाः प च दशो वधम ण. वं ां च पृ थव चा त ज षे तव योत ष पवमान सूयः.. (२९) हे मेधावी सोम! तुम जलवषा के साधन एवं व को जानने वाले हो. ये पांच दशाएं तु ह ही आधार बनाती ह. तुम ुलोक एवं पृ वी को धारण करते हो एवं सूय तु हारी यो त को व तृत करता है. (२९) वं प व े रजसो वधम ण दे वे यः सोम पवमान पूयसे. वामु शजः थमा अगृ णत तु येमा व ा भुवना न ये मरे.. (३०) हे शु होते ए सोम! तुम दे व के न म रस धारण करने वाले दशाप व पर नचोड़े जाते हो. अ भलाषा करने वाले मुख पुरो हत तु ह हण करते ह. सारे ाणी तु हारे लए अपने-आपको अ पत करते ह. (३०) रेभ ए य त वारम यं वृषा वने वव च द रः. सं धीतयो वावशाना अनूषत शशुं रह त मतयः प न तम्.. (३१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श द करने वाले सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करते ह. वषा करने वाले एवं हरे रंग के सोम जल म ं दन करते ह. यान करने वाली एवं सोम क कामना करने वाली तु तयां शशु के समान सं कारयो य एवं श द करते ए सोम को अपना वषय बनाती ह. (३१) स सूय य र म भः प र त त तुं त वान वृतं यथा वदे . नय ृत य शषो नवीयसीः प तजनीनामुप या त न कृतम्.. (३२) सोम तीन सवन के ारा य का व तार करते ए अपने-आपको सूय करण से घेरते ह एवं य को जानते ह. जा के पालक सोम यजमान क नवीन तु तय को ा त करते ए शु पा म जाते ह. (३२) राजा स धूनां पवते प त दव ऋत य या त प थ भः क न दत्. सह धारः प र ष यते ह रः पुनानो वाचं जनय ुपावसुः.. (३३) न दय के ई र एवं वग के वामी सोम शु कए जाते ह एवं श द करते ए य के माग से जाते ह. असीम धारा वाले सोम ऋ वज ारा पा म भरे जाते ह. सोम हरे रंग वाले, श द करते ए, शु होने वाले एवं समीप जाने वाले ह. (३३) पवमान म ण व धाव स सूरो न च ो अ या न प या. गभ तपूतो नृ भर भः सुतो महे वाजाय ध याय ध व स.. (३४) हे पवमान सोम! तुम अ धक रस दे ते हो. हे सूय के समान पू य सोम! तुम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर जाते हो. हे ब त ारा प व एवं ऋ वज ारा प थर क सहायता से नचोड़े गए सोम! तुम महान् यु म धन ा त के लए जाते हो. (३४) इषमूज पवमाना यष स येनो न वंसु कलशेषु सीद स. इ ाय म ा म ो मदः सुतो दवो व भ उपमो वच णः.. (३५) हे पवमान सोम! तुम अ और बल को ा त करते हो. बाज जस कार अपने घ सले म जाता है, उसी कार तुम कलश म थत होते हो. हे सोम! तुम वग के समान, वग को साधने वाले एवं वशेष ा हो. तु हारा नशीला रस इं के लए नचोड़ा गया है. (३५) स त वसारो अ भ मातरः शशुं नवं ज ानं जे यं वप तम्. अपां ग धव द ं नृच सं सोमं व य भुवन य राजसे.. (३६) माता जस कार बालक के पास जाती है, उसी कार सात न दयां नवीन उ प , जीतने वाले, व ान्, जल को ज म दे ने वाले, जलधारणक ा, वग म उ प एवं मानव को दे खने वाले सोम के पास जाती ह. (३६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ईशान इमा भुवना न वीयसे युजान इ दो ह रतः सुप यः. ता ते र तु मधुमद्घृतं पय तव ते सोम त तु कृ यः.. (३७) हे सबके वामी ह रतवण एवं घो ड़य को रथ म जोड़ने वाले सोम! तुम सारे लोक म जाते हो. वे घो ड़यां तु हारे लए मीठा एवं उ वल जल लाव तथा सभी लोग तु हारे त म रह. (३७) वं नृच ा अ स सोम व तः पवमान वृषभ ता व धाव स. स नः पव व वसुम र यव यं याम भुवनेषु जीवसे.. (३८) हे सोम! तुम सभी लोक को दे खने वाले हो. हे जलवषक सोम! तुम व वध कार से ग त करते हो. तुम हम गाय एवं वण से यु धन दो तथा हम संसार म जी वत रहने म समथ ह . (३८) गो व पव व वसु व र य व े तोधा इ दो भुवने व पतः. वं सुवीरो अ स सोम व व ं वा व ा उप गरेम आसते.. (३९) हे गाय! धन और सोना दे ने वाले तथा जल धारण करने वाले सोम! तुम रस टपकाओ. तुम शोभन श वाले एवं सबको जानने वाले हो. ये तोता तु तय ारा तु हारी उपासना करते ह. (३९) उ म व ऊ मवनना अ त पदपो वसानो म हषो व गाहते. राजा प व रथो वाजमा ह सह भृ जय त वो बृहत्.. (४०) मधुर सोम का रस तु तय को उ त करता है. महान् सोम जल को ढकते ए कलश म जाते ह. दशाप व राजा सोम का रथ है. अप र मत गमन वाले सोम यु म जाते ह एवं हमारे लए ब त सा अ जीतते ह. (४०) स भ दना उ दय त जावती व ायु व ाः सुभरा अह द व. जाव यम प यं पीत इ द व म म यं याचतात्.. (४१) सबके पास जाने वाले सोम संतान दे ने वाली एवं शोभन भरण से यु तु तय को भली कार े रत करते ह. हे सोम! जब इं तु ह पी ल तो तुम उनसे हमारे लए संतानस हत अ एवं घर भरने वाला धन मांगो. (४१) सो अ े अ ां ह रहयतो मदः चेतसा चेतयते अनु ु भः. ा जना यातय तरीयते नरा च शंसं दै ं च धत र.. (४२) सोम सब ा णय के चेतनायु होने के साथ ही ातः के काश के साथ जाने जाते ह. हरे रंग वाले, सुंदर, नशीले, मानव एवं दे व ारा शं सत धन यजमान को दे ने वाले एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धरती तथा वग के जीव को अपने-अपने काम म लगाने वाले सोम भाग म जाते ह. (४२)
ावा-पृ थवी के म य
अ ते ते सम ते तुं रह त मधुना य ते. स धो छ् वासे पतय तमु णं हर यपावाः पशुमासु गृ णते.. (४३) ऋ वज् सोमरस को गाय के ध-दही के साथ तरह-तरह से मलाते ह एवं उसका वाद लेते ह. वे सोम को मधु के साथ म त करते ह. जल के ऊपर उठने पर नीचे क ओर टपकने वाले व तृ त करने वाले सोम को हर य के ारा प व करते ए ऋ वज् इस कार जल म जाते ह, जस कार पशु नान आ द के लए तालाब म जाते ह. (४३) वप ते पवमानाय गायत मही न धारा य धो अष त. अ हन जूणाम त सप त वचम यो न ळ सरद्वृषा ह रः.. (४४) हे ऋ वजो! व ान् एवं शु होते ए सोम के लए तु तयां गाओ. जस कार वषा क वशाल-धारा बाधा को पार करके आगे बढ़ती है, उसी कार सोम रस पी अ को लांघकर आगे बढ़ते ह. सांप जस कार अपनी कचुली छोड़ता है, उसी कार सोम का रस अपनी लता को छोड़ता है. वषा करने वाले व ह रतवण सोम घोड़े के समान ड़ा करते ए दशाप व से ोणकलश म जाते ह. (४४) अ ेगो राजा य त व यते वमानो अ ां भुवने व पतः. ह रघृत नुः सु शीको अणवो योतीरथः पवते राय ओ यः.. (४५) आगे चलने वाले, सुशो भत व जल म शु कए गए सोम क तु त क जाती है. दन का नमाण करने वाले, जल म थत, हरे रंग वाले, जल उ प करने वाले, सुंदर, जल से यु एवं यो तपूण रथ वाले सोम घर दे ते ह. (४५) अस ज क भो दव उ तो मदः प र धातुभुवना यष त. अंशुं रह त मतयः प न तं गरा य द न णजमृ मणो ययुः.. (४६) वगलोक को धारण करने वाले, उ त एवं नशीले सोम नचोड़े जाते ह. तीन धारा वाले सोम सारे सवन म घूमते ह. जब तोता प वाले सोम क तु तयां करते ह, तब पुरो हत श दयु सोम क कामना करते ह. (४६) ते धारा अ य वा न मे यः पुनान य संयतो य त रंहयः. यद् गो भ र दो च वोः सम यस आ सुवानः सोम कलशेषु सीद स.. (४७) हे सोम! छनते समय तु हारी चंचल धाराएं भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके जाती ह. जब तुम चमू नामक पा के ऊपर जल के साथ मलाए जाते हो, उस समय तुम नचोड़ते ए कलश म थत होते हो. (४७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पव व सोम तु व उ योऽ ो वारे प र धाव मधु यम्. ज ह व ान् र स इ दो अ णो बृह दे म वदथे सुवीराः.. (४८) हे हमारी तु त के जानने वाले व उ थमं ारा शंसा करने यो य सोम! तुम हमारे य के लए टपको तथा भेड़ के बाल से बने दशाप व पर अपना मधुर रस गराओ. हे द तशाली सोम! तुम मानव का भ ण करने वाले सब रा स को मारो. शोभन संतान वाले हम महान् धन पाकर य म तु हारी ब त तु त करगे. (४८)
सू —८७
दे वता—पवमान सोम
तु व प र कोशं न षीद नृ भः पुनानो अ भ वाजमष. अ ं न वा वा जनं मजय तोऽ छा बह रशना भनय त.. (१) हे सोम! दौड़कर आओ और ोणकलश म बैठो. तुम ऋ वज ारा प व होते ए यजमान को अ दो. अ वयुजन य म ले जाने के लए सोम को जल ारा इस कार साफ करते ह, जस कार श शाली घोड़े को नहलाया जाता है. (१) वायुधः पवते दे व इ रश तहा वृजनं र माणः. पता दे वानां ज नता सुद ो व भो दवो ध णः पृ थ ाः.. (२) शोभन आयुध वाले, द तशाली, रा स का नाश करने वाले, उप व से र ा करने वाले, दे व के पालनक ा, उ प करने वाले, शोभन श यु , वग को सहारा दे ने वाले एवं धरती के धारक सोम नचुड़ते ह. (२) ऋ ष व ः पुरएता जनानामृभुध र उशना का ेन. स च वेद न हतं यदासामपी यं१ गु ं नाम गोनाम्.. (३) ऋ ष, मेधावी, सबके आगे चलने वाले, द तशाली एवं धीर उशना अपने तो गाय म छपे ए एवं गोपनीय ध को ा त करते ह. (३)
ारा
एष य ते मधुमाँ इ सोमो वृषा वृ णे प र प व े अ ाः. सह साः शतसा भू रदावा श मं ब हरा वा य थात्.. (४) हे वषा करने वाले इं ! तु हारे लए मधुर एवं वषक सोम दशाप व म होकर छनते ह. सैकड़ और हजार धन के दे ने वाले, अ धक धन के दाता, न य एवं श शाली सोम य म थत रहते ह. (४) एते सोमा अ भ ग ा सह ा महे वाजायामृताय वां स. प व े भः पवमाना असृ व यवो न पृतनाजो अ याः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये सोम गाय के ध, दही व हजार अ को ल य करके दशाप व के छे द से छनते ए महान् अ और अमृत के लए इस कार शु कए जाते ह, जस कार सेना को जीतने वाला घोड़ा नहलाया जाता है. (५) प र ह मा पु तो जनानां व ासर ोजना पूयमानः. अथा भर येनभृत यां स र य तु ानो अ भ वाजमष.. (६) ब त ारा बुलाए ए एवं शु होते ए सोम मनु य को सभी भो य अ दे ते ह. हे बाज के ारा लाए ए सोम! हम अ एवं धन दो तथा अ पी रस क ओर जाओ. (६) एष सुवानः प र सोमः प व े सग न सृ ो अदधावदवा. त मे शशानो म हषो न शृङ्गे गा ग भ शूरो न स वा.. (७) ये नचुड़ते ए एवं टपकने वाले सोम छोड़े ए घोड़े के समान दशाप व क ओर दौड़ते ह. सोम अपने स ग को तेज करने वाले भसे के समान एवं गाय चाहने वाले शूर के समान दौड़ते ह. (७) एषा ययौ परमाद तर े ः कू च सती व गा ववेद. दवो न व ु तनय तय ैः सोम य ते पवत इ धारा.. (८) सोमरस क यह धारा ऊंचे थान से पा क ओर जाती है. इसी धारा ने प णय ारा छपाई ई गाय को ा त कया था. हे इं ! बजली के समान श द करने वाली यह सोमधारा तु हारे लए ही गरती है. (८) उत म रा श प र या स गोना म े ण सोम सरथं पुनानः. पूव रषो बृहतीज रदानो श ा शचीव तव ता उप ु त्.. (९) हे शु होते ए सोम! तुमने इं के साथ एक रथ पर बैठकर प णय ारा चुराई ई गाय को ा त कया था. हे शी फलदाता सोम! हम तु हारी तु त करते ह. तुम हम वशाल धन दो. हे अ यु सोम! सारा अ तु हारा है. (९)
सू —८८
दे वता—पवमान सोम
अयं सोम इ तु यं सु वे तु यं पवते वम य पा ह. वं ह यं चकृषे वं ववृष इ ं मदाय यु याय सोमम्.. (१) हे इं ! यह सोम तु हारे लए नचोड़े और छाने जाते ह. तुम इ ह पओ. तुम जस सोम को बनाते हो व वरण करते हो, उसीको मद ा त और सहायता के लए पओ. (१) स रथो न भु रषाळयो ज महः पु ण सातये वसू न. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आद व ा न या ण जाता वषाता वन ऊ वा नव त.. (२) लोग ब त सा धन लाने के लए रथ के समान भार ढोने वाले महान् सोम को रथ के समान ही जीतते ह. यु के अ भलाषी मनु य महान् धन दे ने वाले सोम को सं ाम म ले जाते ह. (२) वायुन यो नयु वाँ इ यामा नास येव हव आ श भ व ः. व वारो वणोदाइव म पूषेव धीजवनोऽ स सोम.. (३) हे सोम! तुम वायु के समान अ वाले तथा मनचाहे थान पर जाने वाले, अ नीकुमार के समान पुकार सुनते ही सबको सुख दे ने वाले, धन दे ने वाले के समान सबके वरणीय एवं सूय के समान मनोवेग वाले हो. (३) इ ो न यो महा कमा ण च ह ता वृ ाणाम स सोम पू भत्. पै ो न ह वम हना नां ह ता व या स सोम द योः.. (४) हे सोम! तुमने इं के समान महान् कम कए ह. तुम श ु के नाशक एवं उनके नगर को तोड़ने वाले हो. तुम अ हवंश के लोग को घोड़े के समान ज द आकर मारते हो. तुम सब श ु को मारने वाले हो. (४) अ नन यो वन आ सृ यमानो वृथा पाजां स कृणुते नद षु. जनो न यु वा महत उप द रय त सोमः पवमान ऊ मम्.. (५) जस तरह अ न वन म उ प होकर अपनी श दखाते ह, उसी तरह सोम जल म पैदा होकर अपना बल दखाते ह. सोम यु करने वाले वीर के समान श ु के पास भयंकर श द करते ए अ धक रस को े रत करते ह. (५) एते सोमा अ त वारा य ा द ा न कोशासो अ वषाः. वृथा समु ं स धवो न नीचीः सुतासो अ भ कलशाँ असृ न्.. (६) जैसे अंत र से बरसने वाली मेघवषा एवं न दयां अपने-आप नीचे क ओर जाती ह, उसी कार यह छनते ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके ोणकलश क ओर जाते ह. (६) शु मी शध न मा तं पव वानऽ भश ता द ा यथा वट् . आपो न म ू सुम तभवा नः सह ा साः पृतनाषा न य ः.. (७) हे श शाली सोम! तुम म त क श के समान टपको. तुम वग क जा के समान अ न त प से बहो एवं जल के समान हम शी मु दो. हे अनेक प वाले सोम! तुम सेना को जीतने वाले इं के समान य के पा हो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रा ो नु ते व ण य ता न बृहद्गभीरं तव सोम धाम. शु च ् वम स यो न म ो द ा यो अयमेवा स सोम.. (८) हे सोम! म तु हारे य कम को राजा व ण के समान शी करता ं. तु हारा तेज वशाल एवं गंभीर है. तुम य म के समान शु च हो एवं अयमादे व के समान पू य हो. (८)
सू —८९
दे वता—पवमान सोम
ो य व ः प या भर या दवो न वृ ः पवमानो अ ाः. सह धारो असद य१ मे मातु प थे वन आ च सोमः.. (१) फल वहन करने वाले सोम य के माग से आकाश क वषा के समान बहते ह. हजार धारा वाले सोम हमारे पास या ुलोक के पास बैठते ह. (१) राजा स धूनामव स वास ऋत य नावमा ह ज ाम्. अ सु सो वावृधे येनजूतो ह पता ह पतुजाम्.. (२) गाय के राजा सोम ध म मलते ह एवं य पी सरलगा मनी नाव म बढ़ते ह. बाज प ी ारा लाए गए सोम जल म बढ़ते ह. अ वयु एवं अ य लोक ुलोक के पु सोम को हते ह. (२) सहं नस त म वो अयासं ह रम षं दवो अ य प तम्. शूरो यु सु थमः पृ छते गा अ य च सा प र पा यु ा.. (३) यजमान श ुनाशक, जल ेरक, हरे रंग वाले और ुलोक के पालक सोम को ा त करते ह. यु म शूर एवं दे व म मुख सोम प णय ारा चुराई ई गाय वाले थान का माग पूछते ह. इं सोम क सहायता से ही व का पालन करते ह. (३) मधुपृ ं घोरमयासम ं रथे यु यु च ऋ वम्. वसार जामयो मजय त सनाभयो वा जनमूजय त.. (४) मीठे पछले भाग वाला, भयानक, ग तशील एवं सुंदर सोम य म उसी कार पकड़ा जाता है, जैसे रथ म घोड़े को जोतते ह. उंग लयां ब हन और भाइय के समान आपस म मलकर सोम को शु करती ह एवं समान नयम पालन करने वाले अ वयु सोम को श शाली बनाते ह. (४) चत घृत हः सच ते समाने अ तध णे नष ाः. ता ईमष त नमसा पुनाना ता व तः प र ष त पूव ः.. (५) घी दे ने वाली चार गाएं इस सोम क सेवा करती ह. वे गाएं सबको धारण करने वाले ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अंत र म एक साथ बैठ ह. अ के ारा प व होने वाली वे अनेक वशाल गाएं सोम को चार ओर से ा त करती ह. (५) व भो दवो ध णः पृ थ ा व ा उत तयो ह ते अ य. अस उ सो गृणते नयु वा म वो अंशुः पवत इ याय.. (६) वग को सहारा दे ने वाले एवं धरती के धारणक ा सोम के हाथ म सारी जाएं ह. सोम तु त करते ह. मधुर रसयु एवं इं के लए नचुड़ने वाले सोम तु हारे लए अ से यु ह . (६) व व वातो अ भ दे ववी त म ाय सोम वृ हा पव व. श ध महः पु य रायः सुवीय य पतयः याम.. (७) हे श शाली, महान् एवं श ुनाशक सोम! तुम दे व एवं इं के पीने के न म टपको. हम तु हारी कृपा से अ यंत सुखदायक एवं शोभन वीय वाले धन के वामी बन. (७)
सू —९०
दे वता—पवमान सोम
ह वानो ज नता रोद यो रथो न वाजं स न य यासीत्. इ ं ग छ ायुधा सं शशानो व ा वसु ह तयोरादधानः.. (१) अ वयु आ द के ारा े रत व ावा-पृ थवी को उ प करने वाले सोम रथ के समान अ दान करते ए जाते ह. सोम इं के पास जाकर अपने आयुध तेज करते ह एवं हम दे ने के लए सभी धन अपने हाथ म धारण करते ह. (१) अ भ पृ ं वृषणं वयोधामाङ् गूषाणामवावश त वाणीः. वना वसानो व णो न स धू व र नधा दयते वाया ण.. (२) तीन सवन वाले, वषाकारक एवं अ धारण करने वाले सोम को तोता के वचन श दयु करते ह. सोम व ण के समान जल को ढकते ए तोता को र न एवं धन दे ते ह. (२) शूर ामः सववीरः सहावा ेता पव व स नता धना न. त मायुधः ध वा सम वषा हः सा ान् पृतनासु श ून्.. (३) हे शूर, समुदाय के वामी एवं वीर से यु सोम! तुम साम य वाले, वजयी धन को एक करने वाले, तीखे आयुध वाले, ती ग त वाले, धनुष के धारक, यु म असहनीय एवं श ुसेना को हराने वाले हो. (३) उ ग ू तरभया न कृ व समीचीने आ पव वा पुर धी. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपः सषास ुषसः व१गाः सं च दो महो अ म यं वाजान्.. (४) हे व तृत माग वाले सोम! तुम तोता को अभयदान दे ते ए ावा-पृ थवी को मलाते ए बरसो. तुम हम महान् अ दे ने के लए उषा, आ द य एवं करण को ा त करने क इ छा करते ए श द करते हो. (४) म स सोम व णं म स म ं म सी म दो पवमान व णुम्. म स शध मा तं म स दे वा म स महा म म दो मदाय.. (५) हे द तशाली एवं शु होते ए सोम! तुम व ण, म , व णु, श एवं अ य दे व को नशे के ारा तृ त करो. (५)
शाली म त्, इं
एवा राजेव तुमाँ अमेन व ा घ न नद रता पव व. इ दो सू ाय वचसे वयो धा यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे य यु सोम! तुम राजा के समान श ारा सारे पाप को न करते ए टपको. हे द तशाली सोम! हमारा सुंदर तो सुनकर हम अ दो एवं हम क याण द साधन ारा र त करो. (६)
सू —९१
दे वता—पवमान सोम
अस ज व वा र ये यथाजौ धया मनोता थमो मनीषी. दश वसारो अ ध सानो अ ेऽज त व सदना य छ.. (१) यु भू म म जैसे घोड़े क मा लश क जाती है, उसी कार य म श द करने वाले, दे व के मनचाहे, दे व म े एवं तु तय के वामी सोम तु तय के साथ न मत कए जाते ह. सगी ब हन के समान दस उंग लयां य शाला क ओर फल ढोने वाले सोम को भेड़ के बाल से बने दशाप व पी ऊंचे थान क ओर े रत करती ह. (१) वीती जन य द य क ैर ध सुवानो न ये भ र ः. यो नृ भरमृतो म य भममृजानोऽ व भग भर ः.. (२) न षवंशी तोता ारा नचोड़े ए एवं दे व के समीप रहने वाले सोम य म आते ह. मरणर हत सोम मरणधमा ऋ वज ारा भेड़ के बाल से बने दशाप व , गाय के चमड़े एवं जल ारा शु होते ए य म जाते ह. (२) वृषा वृ णे रो वदं शुर मै पवमानो शद त पयो गोः. सह मृ वा प थ भवचो वद व म भः सूरो अ वं व या त.. (३) अ भलाषापूरक, अ धक श द करने वाले एवं शु होने वाले सोम वषक इं के पीने के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
लए गाय के सफेद ध के पास जाते ह. तो यु , तु तय के ाता एवं शोभन वीय वाले सोम हसार हत हजार माग से सू म छ वाले दशाप व को पार करके ोणकलश म जाते ह. (३) जा हा च सः सदां स पुनान इ द ऊणु ह व वाजान्. वृ ोप र ा ज ु ता वधेन ये अ त रा पनायमेषाम्.. (४) हे सोम! रा स क ढ़ नग रय को न करो. हे दशाप व म शु होते ए सोम! हमारे लए अ लाओ. तुम समीप या र से आने वाले रा स के वामी को आयुध क सहायता से काटो. (४) स ये
नव से व वार सू ाय पथः कृणु ह ाचः. षहासो वनुषा बृह त ताँ ते अ याम पु कृ पु ो.. (५)
हे सबके ारा वरण करने यो य सोम! तुम ाचीन काल के समान रहकर मुझ नवीन सू और शोभन तु तय वाले माग को ाचीन बनाओ. हे अनेक कम वाले एवं अ धक श द करने वाले सोम! तु हारे जो अंश रा स के लए अस , हसायु एवं महान् ह, उ ह हम य म ा त कर. (५) एवा पुनानो अपः व१गा अ म यं तोका तनया न भू र. शं नः े मु योत ष सोम योङ् नः सूय शये ररी ह.. (६) हे शु होते ए सोम! तुम हम जल, वग, गाएं एवं पु -पौ दो एवं हमारे खेत का क याण करो. हे सोम! अंत र म यो तय को व तृत करो एवं हम चरकाल तक सूय को दे खने दो. (६)
सू —९२
दे वता—पवमान सोम
प र सुवानो ह ररंशुः प व े रथो न स ज सनये हयानः. आप छ् लोक म यं पूयमानः त दे वाँ अजुषत यो भः.. (१) जस कार यु म श ुवध के लए रथ तैयार कया जाता है, उसी कार ऋ वज ारा े रत व हरे रंग वाले सोम दे व के संतोष के लए दशाप व पर जाते ह. शु होते ए सोम इं संबंधी तो को ा त करते ह एवं ह अ से दे व क सेवा करते ह. (१) अ छा नृच ा असर प व े नाम दधानः क वर य योनौ. सीदन् होतेव सदने चमूषूपेम म ृषयः स त व ाः.. (२) मनु य को दे खने वाले व बु
मान् सोम जल को धारण करते ह एवं अपने थान
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दशाप व म उसी कार फैलते ह, जस कार होता दे व क तु त करने के लए य म वेश करता है. इसके बाद सोम चमू नामक पा म जाते ह. सात मेधावी ऋ ष तो ारा सोम के पास जाते ह. (२) सुमेधा गातु व दे वः सोमः पुनानः सद ए त न यम्. भुव ेषु का ेषु र ताऽनुजना यतते प च धीरः.. (३) शोभन बु वाले, माग के ाता एवं सभी दे व के समीपवत सोम शु होकर वनाशर हत ोणकलश म जाते ह. सब तो म रमण करने वाले तथा धीर सोम पांच जन का अनुगमन करने का य न करते ह. (३) तव ये सोम पवमान न ये व े दे वा य एकादशासः. दश वधा भर ध सानो अ े मृज त वा न ः स त य ः.. (४) हे शु होते ए सोम! ये ततीस दे व तु हारे ह एवं वग म रहते ह. दस उंग लयां भेड़ के बाल से बने तथा पवत शखर के समान ऊंचे दशाप व म तु ह जल के ारा शु करती ह एवं सात महान् न दयां तु ह प व बनाती ह. (४) त ु स यं पवमान या तु य व े कारवः संनस त. यो तयद े अकृणो लोकं ाव मनुं द यवे करभीकम्.. (५) पवमान सोम का वह स थान हम ा त हो, जहां सभी तोता एक होते ह. सोम क जो यो त दन के लए काश दे ती ह, उसने मनु क भली-भां त र ा क . सोम ने अपना तेज रा स के लए न करने वाला कया था. (५) प र स ेव पशुमा त होता राजा न स यः स मती रयानः. सोमः पुनानः कलशाँ अयासी सीद मृगो न म हषो वनेषु.. (६) दे व को बुलाने वाले जस कार ब ल पशु वाली य शाला म जाते ह. स चे काम वाला राजा जस कार यु म जाता है, उसी कार प व होते ए सोम भसे के समान जल म रहकर ोणकलश म जाते ह. (६)
सू —९३
दे वता—पवमान सोम
साकमु ो मजय त वसारो दश धीर य धीतयो धनु ीः. ह रः पय व जाः सूय य ोणं नन े अ यो न वाजी.. (१) एक साथ स चने वाली एवं पर पर ब हन के समान दस उंग लयां सोम को शु करती ह. वे उंग लयां धीर सोम क ेरक ह. हरे रंग वाले सोम सूय क प नी दशा क ओर जाते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. सोम तेज चलने वाले घोड़े के समान ोणकलश म जाते ह. (१) सं मातृ भन शशुवावशानो वृषा दध वे पु वारो अ ः. मय न योषाम भ न कृतं य सं ग छते कलश उ या भः.. (२) जैसे माताएं ब चे को धारण करती ह, उसी कार दे व क अ भलाषा करने वाले, अ भलाषापूरक एवं ब त ारा वरण करने यो य सोम जल ारा धारण कए जाते ह. पु ष जस कार नारी के पास जाता है, उसी कार सोम अपने सं कृत थान म जाते ए ोणकलश म गाय के ध-दही आ द से मलते ह. (२) उत प य ऊधर याया इ धारा भः सचते सुमेधाः. मूधानं गावः पयसा चमू व भ ीण त वसु भन न ै ः.. (३) सोम गाय के थन को ध से भरते ह. शोभन बु वाले सोम धारा के प म नीचे गरते ह. जस कार धुले ए कपड़े से कोई व तु ढक द जाती है, उसी कार गाएं अपने ेत ध से चमू नामक पा म रखे ए सोम को ढकती ह. (३) स नो दे वे भः पवमान रदे दो र यम नं वावशानः. र थरायतामुशती पुर धर म य ् १गा दावने वसूनाम्.. (४) हे शु होते ए सोम! तुम दे व के साथ मलकर हम धन दो. हे सोम! तुम दे व क अ भलाषा करते ए हम अ वाला धन दो. हम रथ वामी लोग क अ भलाषा करने वाली सोम क बु अनेक कार का धन दे ने के लए हमारे सामने आवे. (४) नू नो र यमुप मा व नृव तं पुनानो वाता यं व म्. व दतु र दो तायायुः ातम ू धयावसुजग यात्.. (५) हे शु होते ए सोम! तुम हमारे लए शी संतानयु धन दो, जल को सबका आनंददाता बनाओ व तोता क आ था बढ़ाओ. हे बु ारा धन ा त करने वाले सोम! ज द हमारे य क ओर आओ. (५)
सू —९४
दे वता—पवमान सोम
अ ध यद म वा जनीव शुभः पध ते धयः सूय न वशः. अपो वृणानः पवते कवीय जं न पशुवधनाय म म.. (१) जस समय सोम को घोड़े के समान सजाया जाता है एवं सोम क करण सूय क करण के समान उ प होती ह, उस समय उंग लयां पर पर होड़ लगाकर सोम का रस नचोड़ती ह. तोता क इ छा करने वाले सोम जल को ढकते ए इस कार पा म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
गरते ह, जस कार वाला पशु
को पु बनाने के लए गोशाला म जाता है. (१)
ता ू व मृत य धाम व वदे भुवना न थ त. धयः प वानाः वसरे न गाव ऋताय तीर भ वाव इ म्.. (२) सोम जल धारण करने वाले अंत र को अपने तेज से दो भाग म बांटते ए उनके बीच से जाते ह. सव सोम के लए भुवन व तृत हो जाते ह. ध दे ने वाली गाएं जस कार गोशाला म रंभाती ह, उसी कार स करने वाली एवं य क अ भलाषा करने वाली तु तयां य म सोम को पुकारती ह. (२) प र य क वः का ा भरते शूरो न रथो भुवना न व ा. दे वेषु यशो मताय भूष द ाय रायः पु भूषु न ः.. (३) बु मान् सोम जब तो क ओर जाते ह, तब वे शूर के रथ के समान व वध कार का गमन करते ह. सोम दे व का धन तोता को दे ते ह. सोम अपने ारा दए गए धन क वृ के लए अनेक य शाला म तु त के वषय बनते ह. (३) ये जातः य आ न रयाय यं वयो ज रतृ यो दधा त. यं वसाना अमृत वमाय भव त स या स मथा मत ौ.. (४) सोम संप दे ने के लए उ प होते ह. सोम धन दे ने के लए लता से नकलते ह. सोम तोता को अ एवं आयु दे ते ह. सोम से संप ा त करके तोतागण अमर बन गए ह. सोम के उ प होने पर यु सफल होते ह. (४) इषमूजम य१षा ं गामु यो तः कृणु ह म स दे वान्. व ा न ह सुषहा ता न तु यं पवमान बाधसे सोम श ून्.. (५) हे सोम! हम अ , ओज, अ व गाय दो, हमारे लए काश का व तार करो एवं दे व को संतु करो. हे शु होते ए सोम! तु हारे लए रा स पराजेय ह. तुम सभी श ु को न करो. (५)
सू —९५
दे वता—पवमान सोम
क न त ह ररा सृ यमानः सीद वन य जठरे पुनानः. नृ भयतः कृणुते न णजं गा अतो मतीजनयत वधा भः.. (१) भली कार नचोड़े जाने वाले एवं हरे रंग के सोम बार-बार श द करते ह तथा छनते ए ोणकलश के भीतर बैठकर श द करते ह. ऋ वज ारा पकड़े गए सोम गाय के ध आ द को ढकते ए अपना आकार कट करते ह. हे तोताओ! ऐसे सोम के लए ह के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
साथ तु तयां अ पत करो. (१) ह रः सृजानः प यामृत येय त वाचम रतेव नावम्. दे वो दे वानां गु ा न नामा व कृणो त ब ह ष वाचे.. (२) म लाह जस कार नाव को आगे बढ़ाता है, उसी कार न मत होते ए एवं हरे रंग वाले सोम य क उपयोगी वाणी को े रत करते ह. द तशाली सोम य म तोता के सामने दे व के छपे ए प को कट करते ह. (२) अपा मवे मय ततुराणाः मनीषा ईरते सोमम छ. नम य ती प च य त सं चा च वश युशती श तम्.. (३) जैसे पानी क लहर ज द उठती ह, उसी कार दे व तु त के लए शी ता करने वाले तोता के मन क वा मनी तु तय को सोम क ओर भेजते ह. सोम को नम कार करने वाली तु तयां सोम के पास जाती ह. अ भलाषा करने वाली तु तयां अ भलाषा वाले सोम म व होती ह. (३) तं ममृजानं म हषं न सानावंशुं ह यु णं ग र ाम्. तं वावशानं मतयः सच ते तो बभ त व णं समु े .. (४) ऋ वज् मसले जाते ए, भसे के समान ऊंचे थान पर थत, अ भलाषापूरक एवं नचुड़ने के लए प थर के बीच म रखे ए सोम को हते ह. तु तयां अ भलाषा करने वाले सोम क सेवा करती ह. तीन थान म थत इं श ु नवारक सोम को श ुवध के लए अंत र म धारण करते ह. (४) इ य वाचमुपव े व होतुः पुनान इ दो व या मनीषाम्. इ य यथः सौभगाय सुवीय य पतयः याम.. (५) हे सोम! अ वयु जस कार होता को ो सा हत करता है, उसी कार तुम शु होते ए अपनी बु को उ ह धन दे ने क ओर लगाओ. जब तुम और सोम य म साथ-साथ रहो, तब हम सौभा य वाले ह एवं शोभन संतान वाले धन के अ धप त ह . (५)
सू —९६
दे वता—पवमान सोम
सेनानीः शूरो अ े रथानां ग े त हषते अ य सेना. भ ा कृ व हवा स ख य आ सोमो व ा रभसा न द े.. (१) सेनाप त एवं शूर सोम श ु क गाएं पाने क इ छा करते ए यु म रथ के आगे जाते ह. इससे सोम क सेना स होती है. सोम इं के आहवान को अपने म यजमान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के लए क याणकारी बनाते ए ध आ द हण करते ह. ध आ द इं के शी आगमन के कारण ह. (१) सम य ह र हरयो मृज य हयैर न शतं नमो भः. आ त त रथ म य सखा व ाँ एना सुम त या य छ.. (२) उंग लयां हरे रंग वाले सोम का रस नचोड़ती ह. सोम अपनी ा त एवं न मत बनाने वाली करण के साथ दशाप व प असं कृत रथ म बैठते ह. इसके बाद इं के म एवं व ान् सोम दशाप व से चलकर उ म तु तय वाले तोता के पास प ंचते ह. (२) स नो दे व दे वताते पव व महे सोम सरस इ पानः. कृ व पो वषय ामुतेमामुरोरा नो व रव या पुनानः.. (३) हे द तशाली एवं इं के पीने यो य सोम! तुम दे व ारा व तृत हमारे य म इं के उ म पान के लए नचुड़ो. हे जल उ प करने वाले, ावा-पृ थवी को वषा से भगाने वाले, व तृत अंत र से आते ए एवं वशु होते ए सोम! तुम धन आ द दे कर हमारी सेवा करो. (३) अजीतयेऽहतये पव व व तये सवतातये बृहते. त श त व इमे सखाय तदहं व म पवमान सोम.. (४) हे सोम! हमारी वजय, अ वनाश, अ हसा एवं य के लए हमारे सामने आओ. मेरे सब म तु हारी र ा चाहते ह. हे पवमान सोम! म भी तु हारी र ा चाहता ं. (४) सोमः पवते ज नता मतीनां ज नता दवो ज नता पृ थ ाः. ज नता नेज नता सूय य ज नते य ज नतोत व णोः.. (५) तु तय , होते ह. (५)
ुलोक, पृ वी, अ न, सूय, इं एवं व णु को उ प करने वाले सोम शु
ा दे वानां पदवीः कवीनामृ ष व ाणां म हषो मृगाणाम्. येनो गृ ाणां व ध तवनानां सोमः प व म ये त रेभन्.. (६) ऋ वज के ा, क वय क पदरचना करने वाले, बु मान के ऋ ष, जंगली जानवर के भसे, प य के बाज एवं अ के व ध त सोम श द करते ए दशाप व से पार जाते ह. (६) ावी वप ाच ऊ म न स धु गरः सोमः पवमानो मनीषाः. अ तः प य वृजनेमावरा या त त वृषभो गोषु जानन्.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शु होते ए सोम लहर वाली नद के समान मन से उ प तु तय को े रत करते ह. जल बरसाने वाले एवं गाय को जानने वाले सोम छपी ई व तु को दे खते ए बल ारा नवारण न करने यो य बल का सहारा लेते ह. (७) स म सरः पृ सु व व वातः सह रेता अ भ वाजमष. इ ाये दो पवमानो मनी यं१ शो ममीरय गा इष यन्.. (८) हे मदकारक, यु म श ु का नाश करने वाले, ा त न होने वाले एवं हजार जलधारा वाले सोम! श ु क श पर अ धकार करो. हे शु होते ए एवं बु मान् सोम! तुम श द को े रत करते ए अपनी करण को इं के पास भेजो. (८) प र यः कलशे दे ववात इ ाय सोमो र यो मदाय. सह धारः शतवाज इ वाजी न स तः समना जगा त.. (९) दे वगण रमणीय एवं स तादायक सोम के पास जाते ह. श शाली घोड़ा जस कार यु म जाता है, उसी कार अनेक धारा वाले, अ यंत बलशाली एवं टपकने वाले सोम इं को नशा करने के लए ोणकलश म जाते ह. (९) स पू वसु व जायमानो मृजानो अ सु अ भश तपा भुवन य राजा वदद् गातुं
हानो अ ौ. णे पूयमानः.. (१०)
ाचीन, धन ा त करने वाले, ज म लेते ही जल म शु होने वाले, प थर क सहायता से नचुड़ने वाले, श ु से र ा करने वाले, ा णय के राजा एवं य कम के लए नचुड़ने वाले सोम यजमान के माग बताते ह. (१०) वया ह नः पतरः सोम पूव कमा ण च ु ः पवमान धीराः. व व वातः प रध रपोणु वीरे भर ैमघवा भवा नः.. (११) हे पवमान सोम! हमारे कमकुशल पतर ने तु हारी सहायता से ही य कम कए थे. तुम वेगशाली अ क सहायता से श ु को न करते ए रा स को र हटाओ तथा हमारे लए धनदाता बनो. (११) यथापवथा मनवे वयोधा अ म हा व रवो व व मान्. एवा पव व वणं दधान इ े सं त जनयायुधा न.. (१२) हे सोम! तुम ाचीनकाल म जस कार मनु के लए अ दे ने वाले, श ुसंहारक ा, धनदाता एवं पुरोडाशा ददाता बने थे, उसी कार हम भी धन दे ने के लए आओ, इं के समीप ठहरो एवं उ ह आयुध दो. (१२) पव व सोम मधुमाँ ऋतावापो वसानो अ ध सानो अ े. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अव ोणा न घृतवा त सीद म द तमो म सर इ पानः.. (१३) हे नशीले रस से यु एवं य वामी सोम! तुम जल म रहते ए भेड़ के बाल से बने दशाप व प ऊंचे थान पर छनो. हे अ यंत मादक, इं के पीने यो य एवं नशीले सोम! तुम जल के साथ ोणकलश म ठहरो. (१३) वृ दवः शतधारः पव व सह सा वाजयुदववीतौ. सं स धु भः कलशे वावशानः समु या भः तर आयुः.. (१४) हे अनेक धारा वाले, य म यजमान को हजार धन दे ने वाले एवं यजमान के अ क अ भलाषा करने वाले सोम! तुम आकाश से वषा करो एवं हमारी आयु को बढ़ाते ए ोणकलश म जल एवं गो ध से मलो. (१४) एष य सोमो म त भः पुनानोऽ यो न वाजी तरतीदरातीः. पयो न धम दते र षरमु वव गातुः सुयमो न वो हा.. (१५) सोम तो के साथ शु कए जाते ह एवं ग तशील अ के समान श ु को लांघकर जाते ह. वे गाय के ध के समान शु , व तृत माग के समान आ य यो य एवं बोझा ढोने वाले घोड़े के समान तोता के नयं ण म रहते ह. (१५) वायुधः सोतृ भः पूयमानोऽ यष गु ं चा नाम. अ भ वाजं स त रव व याऽ भ वायुम भ गा दे व सोम.. (१६) हे शोभन आयुध वाले एवं ऋ वजो ारा शु कए जाते ए सोम! तुम अपने छपे ए एवं सुंदर रसा मक प को धारण करो. हम जब अ क अ भलाषा हो, तब तुम हम अ दो. हे सोमदे व! तुम हम जीवन एवं गाएं दो. (१६) शशुं ज ानं हयतं मृज त शु भ त व म तो गणेन. क वग भः का ेना क वः स सोमः प व म ये त रेभन्.. (१७) म द्गण शशु के समान थत, उ प एवं सबके ारा अ भल षत सोम को मसलते ह तथा फलवाहक सोम को अपने सात गण ारा सुशो भत करते ह. मेधावी एवं क वकम ारा क व कहलाने वाले सोम श द करते ए एवं तु तयां सुनते ए दशाप व को लांघकर जाते ह. (१७) ऋ षमना य ऋ षकृ वषाः सह णीथः पदवीः कवीनाम्. तृतीयं धाम म हषः सषास सोमो वराजमनु राज त ु प्.. (१८) ऋ षय के समान मन से सब कुछ दे खने वाले, सबके ा, सबको ा त होने वाले, हजार के ारा शं सत, क वय क श दरचना पूण करने वाले एवं परमपू य सोम ुलोक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म रहने क अ भलाषा करते ह तथा शं सत होकर द तशाली इं को का शत करते ह. (१८) चमूष ेनः शकुनो वभृ वा गो व स आयुधा न ब त्. अपामू म सचमानः समु ं तुरीयं धाम म हषो वव .. (१९) चमू नामक पा म वतमान, शंसायो य, श शाली, पा म वहार करने वाले, यजमान को गाय ा त कराने वाले, आयुधधारणक ा, जल के ेरक, समु क सेवा वीकार करने वाले एवं महान् सोम चतुथ धाम अथात् चं लोक का सेवन करते ह. (१९) मय न शु त वं मृजानोऽ यो न सृ वा सनये धनानाम्. वृषेव यूथा प र कोशमष क न द च वो३रा ववेश.. (२०) अलंकृत शरीर वाले मनु य के समान अपने शरीर को शु करते ए, धन पाने के लए ग तशील घोड़े के समान चलने वाले, गोसमूह से मलने वाले बैल के समान श द करने वाले एवं पा म जाते ए सोम श द करते ए बार-बार चमू नामक पा पर बैठते ह. (२०) पव वे दो पवमानो महो भः क न द प र वारा यष. ळ च वो३रा वश पूयमान इ ं ते रसो म दरो मम ु.. (२१) हे सोम! ऋ वज ारा शु होकर टपको एवं बार-बार श द करते ए भेड़ के बाल से बने दशाप व म जाओ. तुम ड़ा करते ए चमू नामक पा म वेश करो. तु हारा नशीला रस इं को मु दत करे. (२१) ा य धारा बृहतीरसृ ो गो भः कलशाँ आ ववेश. साम कृ व साम यो वप द े य भ स युन जा मम्.. (२२) सोम क बड़ी-बड़ी धाराएं न मत क जाती ह. गाय के ध, दही आ द से मलकर सोम ोणकलश म वेश करते ह. सामगान म कुशल एवं सब जानने वाले सोम साममं को गाते ए इस कार पा म जाते ह, जस कार लंपट मनु य अपने म क प नी के पास जाता है. (२२) अप न े ष पवमान श ू यां न जारो अ भगीत इ ः. सीद वनेषु शकुनो न प वा सोमः पुनानः कलशेषु स ा.. (२३) हे शु होते ए व तोता ारा शं सत सोम! तुम श ु का नाश करते ए इस कार आते हो, जस कार यार अपनी ेयसी के पास जाता है. जस कार उड़ने वाला प ी वनवृ पर बैठता है, उसी कार सोम कलश म थत होते ह. (२३) आ ते चः पवमान य सोम योषेव य त सु घाः सुधाराः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह ररानीतः पु वारो अ व च द कलशे दे वयूनाम्.. (२४) हे शु होते ए सोम! पु के न म ध पलाने वाली य के समान यजमान के लए धन दे ने वाली एवं शोभन धारा वाली द तयां पा म जाती ह. हरे रंग वाले, ऋ वज ारा लाए गए एवं अनेक जन ारा वरण करने यो य सोम जल म एवं दे वा भलाषी यजमान के घर म बार-बार श द करते ह. (२४)
सू —९७
दे वता—पवमान सोम
अ य ेषा हेमना पूयमानो दे वो दे वे भः समपृ रसम्. सुतः प व ं पय त रेभ मतेव स पशुमा त होता.. (१) रे णा करने वाले, वण ारा शु होते ए एवं द तशाली सोम अपना रस दे व के साथ संयु करते ह. नचुड़ते ए सोम श द करके उसी कार दशाप व क ओर जाते ह. जस कार ऋ वज् यजमान के भली कार बने ए एवं पशुयु य गृह म जाता है. (१) भ ा व ा सम या३ वसानो महा क व नवचना न शंसन्. आ व य व च वोः पूयमानो वच णो जागृ वदववीतौ.. (२) हे सोम! तुम क याणकारक, सं ाम म हतकारी एवं आ छादक तेज को धारण करने वाले हो. तुम महान्, क व, तो क शंसा करने वाले, सबके वशेष ा एवं जागरणशील हो. तुम य म चमू नामक पा म वेश करो. (२) समु यो मृ यते सानो अ े यश तरो यशसां ैतो अ मे. अ भ वर ध वा पूयमानो यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) यश पाने वाल म परम यश वी, धरती पर उ प एवं य सोम ऊंचे तथा भेड़ के बाल से बने दशाप व पर शु कए जाते ह. हे सोम! शु होते ए अंत र म भली कार श द करो एवं क याणकारक साधन से सदा हमारी र ा करो. (३) गायता यचाम दे वा सोमं हनोत महते धनाय. वा ः पवाते अ त वारम मा सीदा त कलशं दे वयुनः.. (४) हे तोताओ! सोम क भली-भां त तु त करो, दे व क पूजा करो एवं महान् धन पाने के लए सोम को े रत करो. वा द सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर छनते ह एवं दे वा भलाषी बनकर ोणकलश म जाते ह. (४) इ दवानामुप स यमाय सह धारः पवते मदाय. नृ भः तवानो अनु धाम पूवमग ं महते सौभगाय.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हजार धारा वाले सोम दे व क म ता ा त करते ए उनके नशे के लए कलश आ द म नचुड़ते ह. सोम य कम के नेता ारा शं सत होकर अपने ाचीन थान ुलोक को जाते ह एवं महान् सौभा य पाने के लए इं के पास जाते ह. (५) तो े राये ह ररषा पुनान इ ं मदो ग छतु ते भराय. दे वैया ह सरथं राधो अ छा यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे हरे रंग वाले एवं शु होते ए सोम! जब हम तु हारी तु त कर, तब तुम हम धन दे ने के लए आओ. तु हारा नशीला रस सं ाम को रेणा दे ने के लए इं के पास जाए. तुम दे व के रथ पर बैठकर हमारे सामने आओ एवं क याणकारक साधन ारा हमारी र ा करो. (६) का मुशनेव व ु ाणो दे वो दे वानां ज नमा वव . म ह तः शु चब धुः पावकः पदा वराहो अ ये त रेभन्.. (७) उशना ऋ ष के समान तो बोलते ए वृषगण नामक ऋ ष इं आ द दे व का ज म भली कार बताते ह. अनेक कम वाले, प व तेज से यु , पाप को न करने वाले एवं शोभन दन वाले सोम श द करते ए पा म जाते ह. (७) हंसास तृपलं म युम छामाद तं वृषगणा अयासुः. आङ् गू यं१ पवमानं सखायो मष साकं वद त वाणम्.. (८) श ु ारा सताए गए वृषगण नाम के ऋ ष श ु से डरकर तेज हार करने वाले एवं श ुनाशक सोम को ल य करके य शाला म जाते ह. सोम के म तोता सबके अ भगमन यो य, श ु ारा अस एवं छनने वाले सोम के त बाज के साथ गाते ह. (८) स रंहत उ गाय य जू त वृथा ळ तं ममते न गावः. परीणसं कृणुते त मशृ ो दवा ह रद शे न मृ ः.. (९) सोम अ यंत शी चलते ह. सरे लोग ब त ारा शंसनीय एवं अनायास खेल करने वाले सोम का अनुगमन नह कर सकते. तीखे तेज वाले सोम अ धक काश करते ह. अंत र म वतमान सोम दन म हरे और रात म काशयु दखाई दे ते ह. (९) इ वाजी पवते गो योघा इ े सोमः सह इ व मदाय. ह त र ो बाधते पयरातीव रवः कृ व वृजन य राजा.. (१०) श शाली एवं ग तशील सोम इं के त श दाता रस भेजते ए उनके नशे के लए नचुड़ते ह व रा स का नाश करते ह. वरण करने यो य धन दे ने वाले एवं बल के वामी सोम श ु को बाधा प ंचाते ह. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अध धारया म वा पृचान तरो रोम पवते अ धः. इ र य स यं जुषाणो दे वो दे व य म सरो मदाय.. (११) प थर क सहायता से नचुड़ने वाले एवं मदभरी धारा ारा दे व क पूजा करने वाले सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके ोणकलश म गरते ह. इं क म ता ा त करने वाले, द तशाली एवं नशीले सोम इं को मद प ंचाने के लए छनते ह. (११) अ भ या ण पवते पुनानो दे वो दे वा वेन रसेन पृ चन्. इ धमा यृतुथा वसानो दश पो अ त सानो अ े.. (१२) स करने वाले एवं धारण करने वाले तेज को समय-समय पर ढकते ए, ड़ाशील एवं अपने रस से दे व क अचना करते ए पवमान सोम टपकते ह. दस उंग लयां भेड़ के बाल से बने और ऊंचे दशाप व पर सोम को भेजती ह. (१२) वृषा शोणो अ भक न दद्गा नदय े त पृ थवीमुत ाम्. इ येव व नुरा शृ व आजौ चेतय ष त वाचमेमाम्.. (१३) लाल बैल जस कार श द करता आ गाय के पास जाता है, उसी कार श द उ प करता आ सोम धरती और वग के पास जाता है. लोग यु म इं के समान ही सोम का श द सुनते ह. सोम सबको अपना प रचय दे ते ए जोर से श द करते ह. (१३) रसा यः पयसा प वमान ईरय े ष मधुम तमंशुम्. पवमानः संत नमे ष कृ व ाय सोम प र ष यमानः.. (१४) हे वाद लेने यो य, ध से मले ए, नचुड़ने वाले एवं श दक ा सोम! तुम मधुर रस को पाते हो. हे जल से भीगे ए एवं शु सोम! तुम अपनी धारा को व तृत बनाते ए इं के लए जाते हो. (१४) एवा पव व म दरो मदायोद ाभ य नमय वध नैः. प र वण भरमाणो श तं ग ुन अष प र सोम स ः.. (१५) हे नशीले सोम! तुम जल हण करने वाले बादल को अपने आयुध से वषा के लए नीचा बनाते ए नशे के लए टपको. हे ेत वण धारण करने वाले, दशाप व म सचते ए एवं हमारी गाय क कामना करते ए सोम! तुम सब ओर जाओ. (१५) जु ् वी न इ दो सुपथा सुगा युरौ पव व व रवां स कृ वन्. घनेव व व रता न व न ध णुना ध व सानो अ े.. (१६) हे द तशाली सोम! तुम तु तय से स होकर हमारे लए वै दक माग और वरणीय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धन को सुख से ा त कराते ए व तृत ोणकलश म टपको. तुम लोहे के आयुध से रा स को मारते ए ऊंचे एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व पर धारा के साथ जाओ. (१६) वृ नो अष द ां जग नु मळावत शंगय जीरदानुम्. तुकेव वीता ध वा व च वन् ब धूँ रमाँ अवराँ इ दो वायून्.. (१७) हे सोम! हमारे लए ुलोक म उ प , गमनशील, अ यु , सुख दे ने वाली एवं शी दान करने वाली वषा करो. संतान के समान सुंदर, म तु य एवं धरती से संबं धत वायु को खोजते ए तुम यहां आओ. (१७) थं न व य थतं पुनान ऋजुं च गातुं वृ जनं च सोम. अ यो न दो ह ररा सृजानो मय दे व ध व प यावान्.. (१८) हे सोम! गांठ के समान पाप से बंधे ए मुझे तुम प व बनाओ तथा मुझे माग एवं श दो. हे हरे रंग वाले व दशाप व पर रखे जाते ए सोम! तुम घोड़े के समान श द करते हो. श ुनाशक एवं घर दे ने वाले द त सोम! तुम मेरे पास आओ. (१८) जु ो मदाय दे वतात इ दो प र णुना ध व सानो अ े. सह धारः सुर भरद धः प र व वाजसातौ नृष े.. (१९) हे पया त मद से यु सोम! तुम दे वय म ऊंचे एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व पर बहने वाली धारा के साथ जाओ. हे अनेक धारा से यु एवं शोभनगंध वाले सोम! तुम अपरा जत होकर मनु य ारा सहन करने यो य यु म अ लाभ के लए जाओ. (१९) अर मानो येऽरथा अयु ा अ यासो न ससृजानास आजौ. एते शु ासो ध व त सोमा दे वास ताँ उप याता पब यै.. (२०) जस कार बना र सी का, रथर हत व बना बंधन का घोड़ा सजकर यु म अपने ल य को ा त करता है, उसी कार य म बनाए गए एवं द त सोम ज द से ोणकलश क ओर जाते ह. हे दे वो! ोणकलश म आने वाले सोम को पीने के लए हमारे पास आओ. (२०) एवा न इ दो अ भ दे ववी त प र व नभो अण मूषु. सोमो अ म यं का यं बृह तं र य ददातु वीरव तमु म्.. (२१) हे सोम! हमारे य को ल य करके अपना रस ुलोक से चमू नामक पा म गराओ. सोम हम मनचाहा, महान्, वीर संतान से यु एवं बलपूण अ द. (२१) त
द मनसो वेनतो वा ये य वा धम ण ोरनीके.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आद माय वरमा वावशाना जु ं प त कलशे गाव इ म्.. (२२) जब अ भलाषा करने वाले तोता का वचन इसका सं कार करता है और योग ेम संबंधी दे हाती के मुख म थत वाणी राजा क तु त करती है, तब वरण करने यो य, दे व के नशे के लए पया त, सबके पालक एवं कलश म थत सोम क अ भलाषा करती ई गाएं इसके पास आती ह. (२२) दानुदो द ो दानु प व ऋतमृताय पवते सुमेधाः. धमा भुवद्वृज य य राजा र म भदश भभा र भूम.. (२३) ु ोक म उ प , दाता को धन दे ने वाले, दाता क अ भलाषा करने वाले एवं ल शोभन बु संप सोम स चे इं के लए रस टपकाते ह. राजा सोम बल धारण करने वाले ह. दस उंग लयां अ धक मा ा म सोम को धारण करती ह. (२३) प व े भः पवमानो नृच ा राजा दे वानामुत म यानाम्. ता भुव यपती रयीणामृतं भर सुभृतं चा व ः.. (२४) दशाप व ारा शु होते ए, मनु य को दे खने वाले, मनु य एवं दे व के राजा, धन के पालक व असीम धन के वामी सोम दे व और मानव दोन म क याणकारी एवं शोभन जल धारण करते ह. (२४) अवा इव वसे सा तम छे य वायोर भ वी तमष. स नः सह ा बृहती रषो दा भवा सोम वणो व पुनानः.. (२५) हे सोम! तुम हमारे धनलाभ तथा इं व वायु के पीने के लए घोड़े के समान ज द आओ एवं हम अनेक कार के अ धक अ दो. हे शु होते ए सोम! तुम हम धन दे ने वाले बनो. (२५) दे वा ो नः प र ष यमानाः यं सुवीरं ध व तु सोमाः. आय यवः सुम त व वारा होतारो न द वयजो म तमाः.. (२६) दे व को तृ त करने वाले व सब ओर से पा म गरते ए सोम हम शोभन पु से यु घर दान कर. अ भमुख य करने यो य, सबके वरणीय, होता के समान इं आ द का य करने वाले एवं अ यंत नशीले सोम हमारे सामने आव. (२६) एवा दे व दे वताते पव व महे सोम सरसे दे वपानः. मह म स हताः समय कृ ध सु ाने रोदसी पुनानः.. (२७) हे द तशाली एवं दे व के पीने यो य सोम! तुम दे व ारा व तार वाले य म दे व के महान् मदपान के लए टपको. हम तु हारे ारा े रत होकर यु म महान् श ु को भी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
परा जत कर. तुम शु (२७)
होते ए हमारे लए
ावा-पृ थवी को शोभन नवास वाली बनाओ.
अ ो न दो वृष भयुजानः सहो न भीमो मनसो जवीयान्. अवाचीनैः प थ भय र ज ा आ पव व सैमनसं न इ दो.. (२८) हे ऋ वज ारा मलाए जाते ए, सह के समान भयंकर व मन से भी अ धक तेज चलने वाले सोम! तुम घोड़े के समान श द करते हो. तुम अ यंत सरल माग ारा हम मन क स ता दो. (२८) शतं धारा दे वजाता असृ सह मेनाः कवयो मृज त. इ दो स न ं दव आ पव व पुरएता स महतो धन य.. (२९) हे सोम! दे व के लए उ प तु हारी हजार धाराएं बनाई जा रही ह. बु मान् लोग तु हारी हजार धारा को शु करते ह. हमारी संतान के लए वग से भोग का साधन धन दान करो. तुम महान् धन के आगे चलते हो. (२९) दवो न सगा अससृ म ां राजा न म ं मना त धीरः. पतुन पु ः तु भयतान आ पव व वशे अ या अजी तम्.. (३०) जस कार सूय क दन नमा ी करण बनाई जाती ह, उसी कार राजा, म एवं वीर सोम क लहर का नमाण होता है. जस कार य कम के ारा य न करने वाला पु पता को परा जत नह करता, उसी कार तुम इस जा को कभी परा जत मत करो. (३०) ते धारा मधुमतीरसृ वारा य पूतो अ ये य ान्. पवमान पवसे धाम गोनां ज ानः सूयम प वो अकः.. (३१) हे सोम! जब तुम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके जाते हो, तब तु हारी मधु वाली धाराएं बनती ह. हे शु होते ए एवं धारक सोम! तुम गाय के ध क ओर छनते हो और उ प होते ए अपने तेज से आ द य को पूण करते हो. (३१) क न ददनु प थामृत य शु ो व भा यमृत य धाम. स इ ाय पवसे म सरवा ह वानो वाचं म त भः कवीनाम्.. (३२) नचुड़ते ए सोम य के माग पर बार-बार श द करते ह. हे अमृत के थान एवं शु लवण सोम! तुम वशेष प से चमकते हो. हे तोता क बु के साथ श द भेजने वाले एवं मदकारक सोम! तुम इं के लए छनते हो. (३२) द ः सुपण ऽव च सोम प व धाराः कमणा दे ववीतौ. ए दो वश कलशं सोमधानं द ह सूय योप र मम्.. (३३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे द एवं शोभन पतन वाले सोम! तुम य कम के ारा अपनी धाराएं गराते ए नीचे क ओर दे खो एवं ोणकलश क ओर जाओ. तुम श द करते ए सूय क कां त ा त करो. (३३) त ो वाच ईरय त व ऋत य धी त णो मनीषाम्. गावो य त गोप त पृ छमानाः सोमं य त मतयो वावशानाः.. (३४) यजमान तीन वेद से संबं धत तु तयां बोलता है तथा सोम को य को धारण करने वाली एवं क याणकारक तु तय क ेरणा दे ता है. गाएं जस कार सांड़ क ओर जाती ह, उसी कार गाएं अपने ध से सोम को म त करने के लए जाती ह. अ भलाषा करते ए तोता सोम के पास जाते ह. (३४) सोमं गावो धेनवो वावशानाः सोमं व ा म त भः पृ छमानाः. सोमः सुतः पूयते अ यमानः सोमे अका ु भः सं नव ते.. (३५) स करने वाली गाएं सोम क कामना करती ह. मेधावी तोता अपनी तु तय ारा सोम को पूछते ह. गाय के ध से मले ए एवं नचुड़े ए सोम ऋ वज ारा शु कए जाते ह. ु प् छं द म बोले गए मं सोम के पास जाते ह. (३५) एवा नः सोम प र ष यमान आ पव व पूयमानः व त. इ मा वश बृहता रवेण वधया वाचं जनया पुरं धम्.. (३६) हे सोम! तुम पा म नचुड़ते ए एवं छनते ए हम क याण ा त कराओ, महान् श द करते ए इं के उदर म वेश करो, हमारे तु तवचन को बढ़ाओ एवं हमारा ान बढ़ाओ. (३६) आ जागृ व व ऋता मतीनां सोमः पुनानो असद चमूषु. सप त यं मथुनासो नकामा अ वयवो र थरासः सुह ताः.. (३७) जागरणशील, स ची तु तय के ाता एवं शु होते ए सोम चमू नामक पा म बैठते ह. आपस म मले ए, अ यंत अ भलाषी, य के नेता एवं हाथ म क याण रखने वाले पुरो हत तथा अ वयु दशाप व म सोम को छू ते ह. (३७) स पुनान उप सूरे न धातोभे अ ा रोदसी व ष आवः. या च य यसास ऊती स तू धनं का रणे न यंसत्.. (३८) जस कार संव सर सूय के पास जाता है, उसी कार शु होते ए सोम इं के पास जाते ह एवं ावा-पृ थवी दोन को अपनी म हमा से पूण करते ह. सोम अपने तेज से अंधकार का नाश करते ह. जस यारे सोम क अ यंत य धाराएं र ा करती ह, वह हम इस कार धन द, जस कार सेवक को वेतन मलता है. (३८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स व धता वधनः पूयमानः सोमो मीढ् वाँ अ भ नो यो तषावीत्. येना नः पूव पतरः पद ाः व वदो अ भ गा अ मु णन्.. (३९) दे व को बढ़ाने वाले, वयं बढ़ने वाले, दशाप व ारा शु व अ भलाषापूरक सोम अपने तेज से हमारी र ा कर. प णय ारा चुराई ई गाय के पद च जानने वाले एवं सूय के ाता हमारे पतर सोमपान के ारा अंधकारपूण गुफा म जाकर पशु को ले आए थे. (३९) अ ा समु ः थमे वधम नय जा भुवन य राजा. वृषा प व े अ ध सानो अ े बृह सोमो वावृधे सुवान इ ः.. (४०) जल बरसाने वाले एवं राजा सोम व तृत एवं जलधारक अंत र म जा को उ प करते ए सबसे आगे नकल जाते ह. अ भलाषापूरक, नचुड़ते ए एवं द त सोम भेड़ के बाल से बने ऊंचे दशाप व पर ब त बढ़ते ह. (४०) मह सोमो म हष कारापां यद्गभ ऽवृणीत दे वान्. अदधा द े पवमान ओजोऽजनय सूय यो त र ः.. (४१) महान् सोम ने ब त से काम कए ह. जल के गभ प सोम ने दे व का सहारा लया है. पवमान सोम ने इं को ओज दया है एवं सूय म तेज उ प कया है. (४१) म स वायु म ये राधसे च म स म ाव णा पूयमानः. म स शध मा तं म स दे वा म स ावापृ थवी दे व सोम.. (४२) हे सोम! हम अ और धन दे ने के लए तुम वायु को मु दत करो. तुम प व होते ए म ाव ण को स करो तथा म त के बल एवं दे व को म करो. हे तु तयो य सोम! तुम ावा-पृ थवी को नशे म कर दो. (४२) ऋजुः पव व वृ जन य ह तापामीवां बाधमानो मृध . अ भ ीण पयः पयसा भ गोना म य वं तव वयं सखायः.. (४३) हे सरल ग त वाले, उप व न करने वाले, रोग पी रा स को बाधा प ंचाने वाले एवं हमारे हसक श ु को समा त करने वाले सोम! तुम टपको. तुम अपने रस को गाय के ध म मलाते ए हमारे और इं के म बनो. (४३) म वः सूदं पव व व व उ सं वीरं च न आ पव वा भगं च. वद वे ाय पवमान इ दो र य च न आ पव वा समु ात्.. (४४) हे सोम! तुम मधुरता बरसाने वाले और धन के वषक अपने रस को टपकाओ तथा हम वीरपु एवं भोगयो य अ दो. हे सोम! तुम शु होते ए इं के लए चकर बनो तथा हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अंत र से धन दो. (४४) सोमः सुतो धारया यो न ह वा स धुन न नम भ वा य ाः. आ यो न व यमसद पुनानः स म ग भरसर सम ः.. (४५) नचुड़े ए सोम अपनी धारा के ारा ती गामी अ के समान जाकर रहने वाली नद क तरह नीचे ोणकलश म गरते ह. शु सोम ोणकलश म बैठते ह एवं गाय के ध आ द म मलाए जाते ह. (४५) एष य ते पवत इ सोम मूषु धीर उशते तव वान्. वच ा र थरः स यशु मः कामो न यो दे वयतामस ज.. (४६) हे कामना करने वाले इं ! धीर एवं वेगशाली सोम तु हारे लए चमू नामक पा म गरते ह, सबको दे खने वाले, रथयु एवं स ची श वाले सोम दे व क इ छा करने वाले यजमान के लए अ भलाषापूरक के समान बनाए जाते ह. (४६) एष नेन वयसा पुनान तरो वपा स हतुदधानः. वसानः शम व थम सु होतेव या त समनेषु रेभन्.. (४७) ाचीन अ से प व होते ए, सबका दोहन करने वाली धरती के प को अपने तेज से ढकते ए, तीन ऋतु से बचाने वाली य शाला को ढकते ए एवं जल म थत सोम य म इस कार श द करते ए जाते ह, जस कार तोता तो बोलता आ जाता है. (४७) नू न वं र थरो दे व सोम प र व च वोः पूयमानः. अ सु वा द ो मधुमाँ ऋतावा दे वो न यः स वता स यम मा.. (४८) हे अ भलाषा करने यो य एवं रथ वामी सोम! तुम हमारे य म चमू नामक पा म शु होते ए जल म ज द एवं सब ओर से गरो. वादपूण, मधुरता भरे, य वामी एवं सबके ेरक सोम दे वता के समान स ची तु तय वाले ह. (४८) अ भ वायुं वी यषा गृणानो३ऽ भ म ाव णा पूयमानः. अभी नरं धीजवनं रथे ामभी ं वृषणं व बा म्.. (४९) हे तुत सोम! तुम पान के न म वायु के पास जाओ. तुम शु होते ए म व व ण के पास जाओ. तुम सबके नेता, मन के समान वेगशाली एवं रथ म बैठे ए अ नीकुमार के पास जाओ तथा अ भलाषापूरक एवं व बा इं के पास जाओ. (४९) अ भ व ा सुवसना यषा भ धेनूः सु घाः पूयमानः. अ भ च ा भतवे नो हर या य ा थनो दे व सोम.. (५०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! हमारे लए तुम धारण करने यो य व लाओ. तुम शु होकर हमारे लए धा गाएं लाओ. तुम हमारे भरणपोषण के लए आ ादक सोना तथा रथ म जुड़ने वाले घोड़े दो. (५०) अभी नो अष द ा वसू य भ व ा पा थवा पूयमानः. अ भ येन वणम वामा याषयं जमद नव ः.. (५१) हे दशाप व ारा शु होते ए सोम! तुम हम द एवं पा थव सभी कार के धन दो. हम तु हारे ारा द ई श से धन का उपभोग कर. हम जमद न ऋ ष के समान धन पाने म समथ ह . (५१) अया पवा पव वैना वसू न माँ व इ दो सर स ध व. न द वातो न जूतः पु मेध कवे नरं दात्.. (५२) हे सोम! इस शु होती ई सोमधारा के ारा सभी धन बरसाओ. हे सोम! जो लोग तु ह मानते ह, उनके जल म जाओ. सोम के शु होने क वेला म सबका ान कराने वाले एवं वायु के समान वेग वाले आ द य तथा अनेक य वाले इं भी उनके पास जाते ह. हे सोम! मुझ तु तक ा को आ द य और इं पु द. (५२) उत न एना पवया पव वा ध त ु े वा य य तीथ. ष सह ा नैगुतो वसू न वृ ं न प वं धूनव णाय.. (५३) हे सबके आ य यो य सोम! हमारे श दतीथ पी स य म इस प व धारा के ारा टपको. जस कार वृ पका आ फल गराता है, उसी कार श ुनाशक सोम ने श ु वजय के लए हम साठ हजार धन दए. (५३) महीमे अ य वृषनाम शूषे माँ वे वा पृशने वा वध े. अ वापय गुतः ेहय चापा म ाँ अपा चतो अचेतः.. (५४) घोड़ एवं बा ारा कए जाने वाले यु म सोम के दो महान् कम बाण बरसाना और श ु को हराना श ुनाशक होते ह. इन दोन काय ारा सोम ने श ु का वध कया एवं यु भू म से भगाया. हे सोम! श ु और अ न चयन करने वाल को र भगाओ. (५४) सं ी प व ा वतता ये य वेकं धाव स पूयमानः. अ स भगो अ स दा य दाता स मघवा मघवद् य इ दो.. (५५) हे सोम! तुम तीन व तृत प व को भली कार ा त करते हो. तुम शु होते ए भेड़ के बाल से बने दशाप व क ओर दौड़ते हो. हे सोम! तुम भोगयो य, दे ने यो य धन के दाता एवं धनवान क अपे ा अ धक धनी हो. (५५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एष व व पवते मनीषी सोमो व य भुवन य राजा. साँ ईरय वदथे व व वारम ं समया त या त.. (५६) सबको जानने वाले, मेधावी व सकल भुवन के वामी सोम टपकते ह. सोम य म अपना रस े रत करते ए भेड़ के बाल से बने दशाप व के पास दोन ओर से जाते ह. (५६) इ ं रह त म हषा अद धाः पदे रेभ त कवयो न गृ ाः. ह व त धीरा दश भः पा भः सम ते पमपां रसेन.. (५७) महान् एवं अ ह सत दे व सोम का आ वादन करते ह. सोम से धन क अ भलाषा करने वाले तोता जस कार श द करते ह, उसी कार सोम का वाद लेने वाले दे व उनक धारा के समीप श द करते ह. कुशल ऋ वज् दस उंग लय के ारा सोम को मसलते ह एवं जल के साथ सोम का रस मलाते ह. (५७) वया वयं पवमानेन सोम भरे कृतं व चनुयाम श त्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (५८) हे शु होते ए सोम! तु हारी सहायता से हम यु म अनेक व श काम कर. म , व ण, अ द त, सधु, पृ वी और वगलोक धन ारा हमारा आदर कर. (५८)
सू —९८
दे वता—पवमान सोम
अ भ नो वाजसातमं र यमष पु पृहम्. इ दो सह भणसं तु व ु नं व वासहम्.. (१) हे द त सोम! हम पया त अ दे ने वाला, ब त ारा अ भल षत, अनेक कार से भरणपोषण करने वाला एवं बड़ को हराने वाला पु दो. (१) प र य सुवानो अ यं रथे न वमा त. इ र भ णा हतो हयानो धारा भर ाः.. (२) नचुड़ते ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर ऐसे थत होते ह, जैसे रथ म बैठा आ पु ष कवच धारण करता है. तोता ारा शं सत सोम ोणकलश म भरते ए धारा के प म गरते ह. (२) प र य सुवानो अ ा इ र े मद युतः. धारा य ऊ व अ वरे ाजा नै त ग युः.. (३) नचोड़े जाते ए सोम दे व के ारा नशे के लए े रत होकर भेड़ के बाल से बने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दशाप व पर सब ओर से छनते ह. य म मुख गाय क अ भलाषा करने वाले सोम जस कार धारा के प म जाते ह, उसी तेजपूण द त के साथ अंत र म जाते ह. (३) स ह वं दे व श ते वसु मताय दाशुषे. इ दो सह णं र य शता मानं ववास स.. (४) हे सोम! तुम ब त से मनु य और मुझ यजमान को दान दे ते हो. हे द तशाली सोम! तुम सैकड़ और हजार कार का धन दे ते हो. (४) वयं ते अ य वृ ह वसो व वः पु पृहः. न ने द तमा इषः याम सु न या गो.. (५) हे श ुनाशक सोम! हम तु हारे ह. हे नवास थान दे ने वाले सोम! हम तु हारे ारा द एवं ब त ारा अ भलाषा यो य धन के ब त पास रह. हे अबाध ग त वाले सोम! हम सुख के ब त पास रह. (५) य प च वयशसं वसारो अ संहतम्. य म य का यं नापय यू मणम्.. (६) काम करने के लए इधर-उधर जाने वाली दस उंग लय ारा प थर क सहायता से नचोड़े गए, इं के य, सबके ारा अ भल षत एवं लहर वाले सोम को जल म नान कराती ह. (६) प र यं हयतं ह र ब ुं पुन त वारेण. यो दे वा व ाँ इ प र मदे न सह ग छ त.. (७) सबके ारा अ भलाषा यो य, हरे रंग वाले व मटमैले वणयु सोम को भेड़ के बाल से बने दशाप व ारा छाना जाता है. सोम अपना नशीला रस लेकर सभी दे व के पास जाते ह. (७) अ य वो वसा पा तो द साधनम्. यः सू रषु वो बृह धे व१ण हयतः.. (८) तुम लोग सोम ारा सुर त होकर इसके श साधन रस को पओ. सबके अ भल षत सोम सूय के समान तोता को महान् धन दे ते ह. (८)
ारा
स वां य ेषु मानवी इ ज न रोदसी. दे वो दे वी ग र ा अ ेध तं तु व व ण.. (९) हे मनु ारा अ धकृत एवं तेजपूण
ावा-पृ थवी! सोम ने तुम दोन को य म उ प
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया है. अ धक श द वाले य म ऋ वज ने सोमरस नचोड़ा. (९) इ ाय सोम पातवे वृ ने प र ष यसे. नरे च द णावते दे वाय सदनासदे .. (१०) हे सोम! तुम वृ हंता इं के पान हेतु पा म नचोड़े जाते हो. तुम ऋ वज को द णा दे ने वाले एवं दे व को ह दे ने क इ छा से य शाला म बैठे ए यजमान को फल दे ने के लए नचोड़े जाते हो. (१०) ते नासो ु षु सोमाः प व े अ रन्. अप ोथ तः सनुत र तः ात ताँ अ चेतसः.. (११) येक ातःकाल म ाचीन सोम दशाप व के ऊपर नचोड़े जाते ह. सोम छपे ए, ानर हत एवं चोर को ातःकाल ही भगा दे ते ह. (११) तं सखायः पुरो चं यूयं वयं च सूरयः. अ याम वाजग यं सनेम वाजप यम्.. (१२) हे म ो! हम और तुम दोन ही वशेष ान वाले ह. हम सामने सुशो भत एवं बलकारक उ म गंध वाले सोम को पएं. हम बलकारक सोम क सेवा कर. (१२)
सू —९९
दे वता—पवमान सोम
आ हयताय धृ णवे धनु त व त प यम्. शु ां वय यसुराय न णजं वपाम े महीयुवः.. (१) सबके ारा अ भलाषा यो य एवं श ु को न करने वाले सोम के लए पौ ष कट करने वाले धनुष पर डोरी चढ़ाई जाती है. पूजा के अ भलाषी ऋ वज् लोग बु मान् दे व के आगे श शाली सोम के लए सफेद रंग का दशाप व फैलाते ह. (१) अध पा प र कृतो वाजाँ अ भ गाहते. यद वव वतो धयो ह र ह व त यातवे.. (२) रात बीतने पर जल से सुशो भत सोम अ को ल य करके जाते ह. सेवा करने वाले यजमान क कम करने वाली दस उंग लयां हरे रंग के सोम को पा म भेजती ह. (२) तम य मजयाम स मदो य इ पातमः. यं गाव आस भदधुः पुरा नूनं च सूरयः.. (३) हम सोम के उस रस को शु करते ह, जो नशीला एवं इं के ारा अ यंत पेय है. ग तशील तोता उस रस को पहले भी मुख ारा पीते थे और इस समय भी पीते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं गाथया पुरा या पुनानम यनूषत. उतो कृप त धीतयो दे वानां नाम ब तीः.. (४) तोतागण ाचीन गाथा ारा शु होते ए सोम क तु त करते ह. दे व के काय के लए मुड़ने वाली उंग लयां दे व को सोम- प ह व दे ने के लए समथ होती ह. (४) तमु माणम ये वारे पुन त धण सम्. तं न पूव च य आ शासते मनी षणः.. (५) मेधावी यजमान पानी से भीगे ए एवं सबको धारण करने वाले सोम को भेड़ के बाल से बने दशाप व पर शु करते ह एवं दे व को अपनी बात बताने के लए त के समान सोम क ाथना करते ह. (५) स पुनानो म द तमः सोम मूषु सीद त. पशौ न रेत आदध प तवच यते धयः.. (६) अ यंत नशीले सोम शु होकर चमू नामक पा म थत होते ह. गाय म वीय धारण करने वाले बैल के समान चमू पा म रस डालने वाले एवं य कम के वामी सोम क तु त क जाती है. (६) स मृ यते सुकम भदवो दे वे यः सुतः. वदे यदासु संद दमहीरपो व गाहते.. (७) दे व के लए नचोड़े गए एवं द तशाली सोम को ऋ वज् शु करते ह. जा भली कार दान करने वाले माने गए सोम महान् जल म नहाते ह. (७)
म
सुत इ दो प व आ नृ भयतो व नीयसे. इ ाय म स र तम मू वा न षीद स.. (८) हे नचुड़े ए और व तृत सोम! तुम ऋ वज अ यंत नशीले सोम! तुम इं के लए चमू नामक पा
ारा दशाप व पर ले जाए जाते हो. हे म बैठते हो. (८)
दे वता—पवमान सोम
सू —१०० अभी नव ते अ हः य म य का यम्. व सं न पूव आयु न जातं रह त मातरः.. (१)
गाएं जस कार थम अव था म उ प बछड़े को चाटती ह, उसी कार ोहर हत जल इं के य एवं सुंदर सोम के पास जाते ह. (१) पुनान इ दवा भर सोम बहसं र यम्. वं वसू न पु य स व ा न दाशुषो गृहे.. (२) हे द तशाली एवं शु
होते ए सोम! तुम हमारे लए दोन लोक म बढ़ने वाला धन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
लाओ एवं यजमान के घर म रहकर उसके पृ वी संबंधी एवं द
धन को पु करो. (२)
वं धयं मनोयुजं सृजा वृ न त यतुः वं वसू न पा थवा द ा च सोम पु य स.. (३) हे सोम! तुम अपने मन के समान वेग वाली सोम क धारा को पा म उसी कार गराओ. जस कार मेघ वषा करते ह. तुम धरती संबंधी एवं द धन को बढ़ाते हो. (३) प र ते ज युषो यथा धारा सुत य धाव त. रंहमाणा १ यं वारं वाजीव सान सः.. (४) हे नचुड़े ए सोम! तोता ारा सेवा यो य एवं वेग वाली तु हारी धारा भेड़ के बाल से बने दशाप व पर इस कार दौड़ती है, जैसे श ुंजयी वीर का घोड़ा दौड़ता है. (४) वे द ाय नः कवे पव व सोम धारया. इ ाय पातवे सुतो म ाय व णाय च.. (५) हे इं , म और व ण के पान हेतु नचुड़े ए तथा बल दे ने के लए धारा के प म नीचे गरो. (५)
ांतदश सोम! तुम हम ान और
पव व वाजसातमः प व े धारया सुतः. इ ाय सोम व णवे दे वे यो मधुम मः.. (६) हे अ तशय अ दाता एवं नचुड़े ए सोम! तुम धारा के व णु आ द दे व के लए मधुरतम बनो. (६)
प म नीचे गरो एवं इं ,
वां रह त मातरो ह र प व े अ हः. व सं जातं न धेनवः पवमान वधम ण.. (७) हे पवमान सोम! पैदा ए बछड़ को जस कार गाएं चाटती ह, उसी कार ह धारक य म ोहर हत एवं माता के समान जल हरे रंग वाले तुमको चाटते ह. (७) पवमान म ह व े भया स र म भः. शध तमां स ज नसे व ा न दाशुषो गृहे.. (८) हे सोम! तुम अपनी नाना वध करण के साथ महान् और आ ययो य अंत र म जाते हो. हे वेगशाली सोम! तुम ह वदाता यजमान के घर म ठहर कर अंधकार पी सभी रा स को समा त करते हो. (८) वं ां च म ह त पृ थव चा त ज षे. (९) हे महान् कम वाले सोम! तुम
त ा पममु चथाः पवमान म ह वना..
ावा-पृ थवी को ठ क से धारण करते हो. हे पवमान
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम! तुम मह व से यु
होकर कवच धारण करते हो. (९)
सू —१०१
दे वता—पवमान सोम
पुरो जती वो अ धसः सुताय माद य नवे. अप ानं थ न सखायो द घ ज म्.. (१) हे म तोताओ! सामने थत एवं भ ण करने यो य सोम के नचुड़े ए एवं अ यंत नशीले रस को पीने के लए आए लंबी जीभ वाले कु को रोको. (१) यो धारया पावकया प र य दते सुतः. इ र ो न कृ
ः.. (२)
नचुड़े ए और य कम म े सोम अपनी प व धारा से चार ओर इसी कार जाते ह, जस कार घोड़ा दौड़ता है. (२) तं रोषमभी नरः सोम व ा या धया. य ं ह व य
भः.. (३)
ऋ वज् लोग इस अ हसनीय एवं य यो य सोम को सम त अ भलाषा के सहारे प थर क सहायता से नचोड़ते ह. (३)
से पूण बु
सुतासो मधुम माः सोमा इ ाय म दनः. प व व तो अ र दे वा ग छ तु वो मदाः.. (४) पा
अ यंत नशीले, मधुर एवं नचुड़े ए सोम दशाप व म वतमान होकर इं के न म म छनते ह. हे सोम! तु हारा मादक रस दे व के पास जावे. (४) इ र ाय पवत इ त दे वासो अ ुवन्. वाच प तमख यते व येशान ओजसा.. (५)
दे व ने ऐसा कहा है क सोम इं के लए टपकते ह. तु तय के पालक एवं श संसार के वामी सोम तु तय ारा पूजा क इ छा करते ह. (५) सह धारः पवते समु ो वाचमीङ् खयः. सोमः पती रयीणां सखे
ारा
य दवे दवे.. (६)
रस के आधार, तु तय क ेरणा दे ने वाले, धन के वामी एवं इं के म सोम हजार धारा वाले बनकर टपकते ह. (६) अयं पूषा र यभगः सोमः पुनानो अष त. प त व
य भूमनो
य ोदसी उभे.. (७)
सबके पोषक, सेवा करने यो य व धन के कारण सोम शु होकर कलश म जाते ह. सब ा णय के वामी सोम अपने तेज से ावा-पृ थवी को का शत करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समु (८)
या अनूषत गावो मदाय घृ वयः. सोमासः कृ वते पथः पवमानास इ दवः..
यारे एवं अ यंत द त तु तवचन सोम क छनने के लए माग बनाते ह. (८)
शंसा करते ह. शु
होते ए सोम अपने
य ओ ज तमा भर पवमान वा यम्. यः प च चषणीर भ र य येन वनामहै.. (९) हे सोम! तुम अपना परम ओज वी एवं शंसनीय रस टपकाओ. पांच जन के समीप रहने वाले तु हारे रस ारा हम धन ा त कर. (९) सोमाः पव त इ दवोऽ म यं गातु व माः. म ाः सुवाना अरेपसः वा यः व वदः.. (१०) अ यंत मागदशक, द तशाली, दे व के म , पापर हत, उ म यान वाले एवं सब कुछ जानने वाले सोम नचुड़ते ए हमारे पास आ रहे ह. (१०) सु वाणासो भ ताना गोर ध व च. इषम म यम भतः सम वरन् वसु वदः.. (११) गाय के चमड़े पर ात होते ए, प थर क सहायता से भली कार नचोड़े गए एवं धन ा त कराने वाले सोम चार ओर से भली-भां त श द कर रहे ह. (११) एते पूता वप तः सोमासो द या शरः. सूयासो न दशतासो जग नवो ुवा घृते.. (१२) दशाप व क सहायता से शु कए गए, मेधावी, दही से म त, जल म चलने वाले एवं थर सोम पा म सूय के समान दखाई दे ते ह. (१२) सु वान या धसो मत न वृत त चः. अप ानमराधसं हता मखं न भृगवः.. (१३) नचोड़े जाते ए एवं उपभोग यो य सोम का स श द य व नक ा कु े को र करे. हे तोताओ! भृगुवंशी लोग ने जैसे पहले भग को मारा था, उसी कार तुम उस य कम के बाधक कु े को मारो. (१३) आ जा मर के अ त भुजे न पु ओ योः. सर जारो न योषणां वरो न यो नमासदम्.. (१४) दे व के म सोम दशाप व से इस कार मल जाते ह, जस कार र क माता- पता क भुजा म पु आ जाता है. जार पु ष जस कार ी को पाने के लए दौड़ता है, उसी कार सोम ोणकलश क ओर जाते ह. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स वीरो द साधनो व य त त भ रोदसी. ह रः प व े अ त वेश न यो नमासदम्.. (१५) श के साधन वे सोम वीर ह एवं अपने तेज से ावा-पृ थवी को ढकते ह. य करने वाला यजमान जस कार अपने घर म बैठता है, उसी कार हरे रंग वाले सोम अपने कलश म बैठते ह. (१५) अ ो वारे भः पवते सोमो ग े अ ध व च. क न दद्वृषा ह र र या ये त न कृतम्.. (१६) सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व से छनते ह. अ भलाषापूरक एवं हरे रंग वाले सोम श द करते ए इं के उ म थान को जाते ह. (१६)
दे वता—पवमान सोम
सू —१०२
ाणा शशुमहीनां ह व ृत य द ध तम्. व ा प र
या भुवदध
ता.. (१)
य करते ए एवं महान् जल के पु सोम य के काशक रस को बहाते ए सभी य ह को ा त करते ह तथा ावा-पृ थवी म वतमान ह. (१) उप
त य पा यो३रभ
यद् गुहा पदम्. य
य स त धाम भरध
यम्.. (२)
मुझ त के य क गुफा म वतमान एवं प थर के समान ढ़ रस नचोड़ने के त त पर प ंचे ऋ वज् य धारण करने वाले गाय ी आ द सात छं द ारा सोम क तु त करते ह. (२) ीण
त य धारया पृ े वेरया र यम्. ममीते अ य योजना व सु तुः.. (३)
हे सोम! मुझ त के तीन सवन म धारा के प म बही एवं सामगीत के गान के समय धनदाता इं को ले आओ. शोभन वृ वाला तोता इं को ा त होने वाले तो बोलता है. (३) ज ानं स त मातरो वेधामशासत
ये. अयं ुवो रयीणां चकेत यत्.. (४)
माता के समान सात गाय ी आ द छं द उ प एवं य धारक सोम क के ऐ य के लए करते ह, य क सोम धन के न त जानने वाले ह. (४)
शंसा यजमान
अ य ते सजोषसो व े दे वासो अ हः. पाहा भव त र तयो जुष त यत्.. (५) सब दे व श ुर हत होकर सोम के य
म मलते ह एवं अ भलाषा के यो य बनते ह.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
रमणशील दे व सोम का सेवन करते ह. (५) यमी गभमृतावृधो शे चा मजीजनन्. क व मं ह म वरे पु पृहम्.. (६) य वधक जल ने गभ के समान सोम को य म दे खने के लए पैदा कया है. सोम सबके क याणकारक, क व, परमपू य एवं ब त के ारा अ भल षत ह. (६) समीचीने अ भ मना य
ऋत य मातरा. त वाना य मानुष यद
ते.. (७)
सोम पर पर मली ई, वशाल व य क माता के समान ावा-पृ थवी के पास अपने आप जाते ह. य का व तार करने वाले अ वयु सोम को जल म मलाते ह. (७) वा शु े भर भऋणोरप जं दवः. ह व ृत य द ध त ा वरे.. (८) हे सोम! तुम अपने ान व द तवाली इं य के ारा अंत र एवं हसार हत य म धारक रस को े रत करो. (८)
का अंधकार न करो
दे वता—पवमान सोम
सू —१०३
पुनानाय वेधसे सोमाय वच उ तम्. भृ त न भरा म त भजुजोषते.. (१) हे सोम के (१)
त ऋ ष! तुम दशाप व ारा शु होते ए, य वधाता एवं तु तय ारा स त उसी कार त परता से वचन कहो, जस कार नौकर अपना वेतन मांगता है.
प र वारा य या गो भर
ानो अष त. ी षध था पुनानः कृणुते ह रः.. (२)
गाय के ध म मले ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर जाते ह. हरे रंग वाले सोम शु होकर तीन थान को अपना बनाते ह. (२) प र कोशं मधु तम ये वारे अष त. अ भ वाणीऋषीणां स त नूषत.. (३) सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व के सात छं द सोम क तु त करते ह. (३)
ारा अपना रस ोणकलश म भेजते ह. ऋ षय
प र णेता मतीनां व दे वो अदा यः. सोमः पुनान
वो वश
रः.. (४)
तु तय के नेता, सबके दे व, अ ह सत एवं हरे रंग के सोम रस नचोड़ने वाले त त पर बैठते ह. (४) प र दै वीरनु वधा इ े ण या ह सरथम्. पुनानो वाघ ाघ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रम यः.. (५)
हे सोम! तुम इं के साथ एक ही रथ पर बैठकर दे व क सेना के पास जाओ. शु होते ए, मरणर हत एवं ऋ वज ारा ढोये जाते ए सोम तोता को धन दे ते ह. (५) प र स तन वाजयुदवो दे वे यः सुतः.
ान शः पवमानो व धाव त.. (६)
घोड़े के समान यु के इ छु क, द तशाली, दे व के लए नचोड़े गए, पा एवं दशाप व ारा शु होते ए सोम चार ओर दौड़ते ह. (६)
सू —१०४ सखाय आ न षीदत पुनानाय
म फैले ए
दे वता—पवमान सोम गायत. शशुं न य ैः प र भूषत
ये.. (१)
हे म तोताओ! बैठो और शु होते ए सोम के लए तु तयां गाओ. जैसे मां-बाप ब च को आभूषण आ द से सजाते ह, उसी कार य यो य ह से सोम को सजाओ. (१) समी व सं न मातृ भः सृजता गयसाधनम्. दे वा ं१ मदम भ
शवसम्.. (२)
हे ऋ वजो! घर दे ने वाले, दे व के र क, नशा करने वाले एवं परम श शाली सोम को माता प जल से इस कार मलाओ, जैसे बछड़े को गाय के पास ले जाते ह. (२) पुनाता द साधनं यथा शधाय वीतये. यथा म ाय व णाय शंतमः.. (३) हे ऋ वजो! श दे ने वाले सोम को दशाप व ारा शु रसपान और म ाव ण क सुख ा त के साधन ह. (३)
करो. सोम वेग, दे व के
अ म यं वा वसु वदम भ वाणीरनूषत. गो भ े वणम भ वासयाम स.. (४) हे धनदाता सोम! हमारी वाणी इस लए तु हारी तु त करती है क तुम हम धन दो. हम तु हारे फेलने वाले रस को गाय के ध के साथ मलाते ह. (४) स नो मदानां पत इ दो दे व सरा अ स. सखेव स ये गातु व मो भव.. (५) हे मद वामी सोम! तु हारा प द त है. जैसे एक म बताता है, उसी कार तुम हम माग बताने वाले बनो. (५)
सरे म को स चा माग
सने म कृ य१ मदा र सं कं चद णम्. अपादे वं युमंहो युयो ध नः.. (६) हे सोम! तुम हमारे साथ पुरानी म ता नभाओ. तुम अ धक खाने वाले, न तार हत एवं बाहरी-भीतरी माया वाले रा स को मारो और हमारे पाप से यु करो. (६)
सू —१०५
दे वता—पवमान सोम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं वः सखायो मदाय पुनानम भ गायत. शशुं न य ैः वदय त गू त भः.. (१) हे ऋ वज् म ो! दे व के नशे के लए शु होने वाले सोम क तु त करो. ब चे को जस कार गहन से सजाते ह, उसी कार य सा य ह और तु तय से सोम को सुशो भत करो. (१) सं व सइव मातृ भ र
ह वानो अ यते. दे वावीमदो म त भः प र कृतः.. (२)
दे व के र क, नशीले, तु तय ारा सुशो भत एवं े रत सोम जल के साथ उसी कार मलाए जाते ह, जस कार माता गाय अपने बछड़े को अपने थन से मलाती है. (२) अयं द ाय साधनोऽयं शधाय वीतये. अयं दे वे यो मधुम मः सुतः.. (३) ये सोम दे व के बल के साधन, वेगजनक और भ य बनते ह एवं इं ा द दे व को मधुरता दान करते ह. (३) गोम इ दो अ व सुतः सुद ध व. शु च ते वणम ध गोषु द धरम्.. (४) हे शोभन बल वाले सोम! तुम नचुड़कर हमारे लए गाय और घोड़ से यु लाओ. म तु हारे प व रस को गाय के ध के साथ मलाता ं. (४) स नो हरीणां पत इ दो दे व सर तमः. सखेव स ये नय
धन
चे भव.. (५)
हे घोड़ के वामी एवं अ तशय द तशाली सोम! तुम ऋ वज के हतसाधक होकर हमारे लए द त वाले बनो. (५) सने म वम मदाँ अदे वं कं चद णम्. सा ाँ इ दो प र बाधो अप युम्.. (६) हे सोम! तुम हमारे साथ पुरानी म ता नभाओ. न ताशू य एवं अ धक खाने वाले रा स को हमसे र भगाओ. तुम श ु को परा जत करते ए हम बाधा प ंचाने वाले लोग को पी ड़त करो. तुम हम बाहरी और भीतरी माया रखने वाल से बचाओ. (६)
सू —१०६
दे वता—पवमान सोम
इ म छ सुता इमे वृषणं य तु हरयः. ु ी जातास इ दवः व वदः.. (१) शी उ प , पा म टपकते ए, सब कुछ जानने वाले, हरे रंग के एवं नचुड़े ए सोम अ भलाषापूरक इं के समीप जाव. (१) अयं भराय सान स र ाय पवते सुतः. सोमी जै य चेत त यथा वदे .. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सं ाम के लए सहारा लेने यो य एवं नचुड़े ए सोम इं के लए पा म टपकते ह. जैसे इं सारे ससांर को जानते ह, वैसे ही सोम जयशील इं को जानते ह. (२) अ ये द ो मदे वा ाभं गृ णीत सान सम्. व ं च वृषणं भर सम सु जत्.. (३) सोम से उ प नशा चढ़ने पर इं सबके आ ययो य एवं गृहीत धनुष को धारण करते ह. जल के लए वृ रा स को जीतने वाले इं वषाकारक व को धारण करते ह. (३) ध वा सोम जागृ व र ाये दो प र व. ुम तं शु ममा भरा व वदम्.. (४) हे जागने वाले सोम! तुम टपको. हे सोम! तुम इं के लए रस नीचे गराओ तथा द तशाली एवं सबको जानने वाला बल हम दो. (४) इ ाय वृषणं मदं पव व व दशतः. सह यामा प थकृ च णः.. (५) हे सबके दशनीय, हजार माग वाले, यजमान को माग दखाने वाले एवं वशेष सोम! तुम इं के लए अपना वषाकारक एवं नशीला रस टपकाओ. (५)
ा
अ म यं गातु व मो दे वे यो मधुम मः. सह ं या ह प थ भः क न दत्.. (६) हे दे व के लए परम वा द एवं श द करते ए सोम! तुम हमारे लए माग बताने वाले हो. तुम अनेक माग से कलश म आओ. (६) पव व दे ववीतय इ दो धारा भरोजसा. आ कलशं मधुमा सोम नः सदः.. (७) हे सोम! तुम दे व के उपभोग के लए धारा नशीले रस वाले सोम! तुम कलश म बैठो. (७) तव
के
पमश
के साथ नीचे गरो. हे
सा उद ुत इ ं मदाय वावृधुः. वां दे वासो अमृताय कं पपुः.. (८)
हे सोम! जल क ओर बहने वाला तु हारा रस इं को नशा करने के लए बढ़ता है. दे वगण मरणर हत बनने के लए तु हारे सुखकर रस पीते ह. (८) आ नः सुतास इ दवः पुनाना धावता र यम्. वृ हे नचुड़ते ए एवं जल बनाने वाले सोम! तुम शु वषाकारक अंत र के बनाने वाले तथा सव हो. (९)
ावो री यापः व वदः.. (९) होते ए हमारे लए धन लाओ. तुम
सोमः पुनान ऊ मणा ो वारं व धाव त. अ े वाचः पवमानः क न दत्.. (१०) छनते ए सोम अपनी धारा के प म भेड़ के बाल से बने दशाप व क ओर जाते ह एवं तोता के सामने भां त-भां त का श द करते ह. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धी भ ह व त वा जनं वने
ळ तम य वम्. अ भ
पृ ं मतयः सम वरन्.. (११)
तोतागण श शाली, जल म ड़ा करने वाले एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करने वाले सोम को तु तय ारा बढ़ाते ह. तु तयां सवन वाले सोम क शंसा करती ह. (११) अस ज कलशाँ अ भ मी हे स तन वाजयुः. पुनानो वाचं जनय स यदत्.. (१२) जस कार घोड़ा यु के लए तैयार कया जाता है, उसी कार यजमान के लए अ चाहने वाले सोम कलश म तैयार कए जाते ह. छनते ए सोम श द करते ह एवं पा म टपकते ह. (१२) पवते हयतो ह रर त
रां स रं ा. अ यष
तोतृ यो वीरव शः.. (१३)
अ भलाषायो य एवं हरे रंग वाले सोम वेग के साथ टे ढ़े-मेढ़े दशाप व पर छनते ह एवं तोता को संतानयु धन दे ते ह. (१३) अया पव व दे वयुमधोधारा असृ त्. रेभ प व ं पय ष व तः.. (१४) हे दे वा भलाषी सोम! तुम अपनी धारा के प म नीचे गरो. तु हारे मधुर रस क धाराएं बनाई जाती ह. तुम श द करते ए सब ओर से दशाप व पर जाते हो. (१४)
दे वता—पवमान सोम
सू —१०७ परीतो ष चता सुतं सोमो य उ मं ह वः. दध वाँ यो नय अ व१ तरा सुषाव सोमम
भः.. (१)
हे ऋ वजो! जो सोम दे व के उ म ह व ह, मानव हतैषी ह एवं अंत र म जाते ह तथा ज ह अ वयुजन ने प थर क सहायता से कुचला है, तुम य कम के बाद उन सोम को जल से स चो. (१) नूनं पुनानोऽ व भः प र वाद धः सुर भ तरः. सुते च वा सु मदामो अ धसा ीण तो गो भ
रम्.. (२)
हे अ हसनीय, अ यंत सुगं ध वाले एवं छनते ए सोम! तुम भेड़ के बाल से बने दशाप व म होकर नीचे टपको. तु हारे नचुड़ जाने पर हम तु ह स ु और गाय के धदही से मलाते ह एवं जल म थत तु हारी सेवा करते ह. (२) प र सुवान
से दे वमादनः
तु र
वच णः.. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व को म त करने वाले, य क ा, द तशाली एवं वशेष सबके दशन के लए टपकते ह. (३)
वाले सोम नचुड़ते ए
पुनानः सोम धारयापो वसानो अष स. आ र नधा यो नमृत य सीद यु सो दे व हर ययः.. (४) हे सोम! तुम छनते समय जल म नवास करते ए धारा के प म दशाप व म जाते हो. हे र नदाता सोम! तुम य थल म बैठते हो. हे द तशाली सोम! तुम बहने वाले एवं वणमय हो. (४) हान ऊध द ं मधु यं नं सध थमासदत्. आपृ ं ध णं वा यष त नृ भधूतो वच णः.. (५) सोम मदकारक एवं द लता को हते ए अपने ाचीन थान अथात् अंत र म बैठते ह. इसके बाद ऋ वज ारा शो धत एवं सबके ा सोम ज द से य म पूछने यो य एवं य के आधार यजमान को अ दे ने के लए जाते ह. (५) पुनानः सोम जागृ वर ो वारे प र यः. वं व ो अभवोऽ र तमो म वा य ं म म नः.. (६) हे जागरणशील एवं य सोम! तुम छनते समय भेड़ के बाल से बने दशाप व पर टपकते हो. तुम मेधावी एवं पतर के नेता हो. तुम हमारे य को अपने मीठे रस से भर दो. (६) सोमो मीढ् वा पवते गातु व म ऋ ष व ो वच णः. वं क वरभवो दे ववीतम आ सूय रोहयो द व.. (७) अ भलाषापूरक, मागदशक म े , सबको दखाने वाले, मेधावी एवं वशेष ा सोम टपकते ह. हे बु मान् एवं दे वा भला षय म उ म सोम! तुम सूय को अंत र म कट करते हो. (७) सोम उ षुवाणः सोतृ भर ध णु भरवीनाम्. अ येव ह रता या त धारया म या या त धारया.. (८) नचोड़ने वाले ऋ वज ारा नचुड़े ए सोम ऊंचे एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व पर जाते ह. सोम अपनी नशीली एवं हरे रंग क धारा के ारा ोणकलश म जाते ह. (८) अनूपे गोमा गो भर ाः सोमो धा भर ाः. समु ं न संवरणा य म म द मदाय तोशते.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
गाय के ध से मले ए सोम टपकते ह. सोम अपने को मलाने के लए ध के साथ छनते ह. जल जस कार सागर म जाता है, उसी कार सोम का रस ोणकलश म जाता है. नशीला सोम नशा करने के लए नचोड़ा जाता है. (९) आ सोम सुवानो अ भ तरो वारा य या. जनो न पु र च वो वश रः सदो वनेषु द धषे.. (१०) हे प थर क सहायता से नचुड़े ए सोम! तुम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करके छनते हो. हरे रंग के सोम चमू नामक पा म इस कार वेश करते ह, जस कार मनु य नगर म वेश करता है. हे सोम! तुम ोणकलश म थान बनाते हो. (१०) स मामृजे तरो अ वा न मे यो मी हे स तन वाजयुः. अनुमा ः पवमानो मनी ष भः सोमो व े भऋ व भः.. (११) वजया भलाषी लोग जस कार यु म जाने वाले घोड़े को सजाते ह, उसी कार भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करने वाले एवं अ ा भलाषी सोम सजाए जाते ह. (११) सोम दे ववीतये स धुन प ये अणसा. अंशोः पयसा म दरो न जागृ वर छा कोशं मधु तम्.. (१२) हे सोम! सागर को जस कार जल से भरते ह, उसी कार तु ह भी दे व के पीने के लए जल से पूण कया जाता है. हे शराब के समान नशीले एवं जागरणशील सोम! तुम सोमलता के रस के साथ रस एक करने वाले ोणकलश म जाते हो. (१२) आ हयतो अजुने अ के अ त यः सूनुन म यः. तम ह व यपसो यथा रथं नद वा गभ योः.. (१३) अ भलाषा करने यो य, सबको स करने वाले एवं पु के समान शु बनाने यो य सोम सफेद रंग के दशाप व पर जाते ह. वेग वाले लोग रथ को जस कार तेजी से सं ाम क ओर दौड़ाते ह, उसी कार दोन हाथ क उंग लयां सोम को जल म मसलती ह. (१३) अ भ सोमास आयवः पव ते म ं मदम्. समु या ध व प मनी षणो म सरासः व वदः.. (१४) गमनशील सोम अपने नशीले रस को चार ओर बहाते ह. मनीषी, नशीले एवं सबको जानने वाले सोम ोणकलश के ऊपर दशाप व के ऊंचे भाग पर रस गराते ह. (१४) तर समु ं पवमान ऊ मणा राजा दे व ऋतं बृहत्. अष म य व ण य धमणा ह वान ऋतं बृहत्.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शु होते ए द तशाली, अ यंत स य प एवं राजा सोम ोणकलश म धारा के म गरते ह. े रत एवं अ यंत स य सोम म और व ण क र ा के लए बहते ह. (१५)
प
नृ भयमानो हयतो वच णो राजा दे वः समु यः.. (१६) ऋ वज ारा नय मत, अ भलाषा करने यो य, वशेष सोम अंत र म उ प होकर इं के लए टपकते ह. (१६)
ा, द तशाली एवं राजा
इ ाय पवते मदः सोमो म वते सुतः. सह धारो अ य मष त तमी मृज यायवः.. (१७) नशीले एवं नचुड़े ए सोम म त स हत इं के लए छनते ह. हजार धारा सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार करते ह. (१७)
वाले
पुनान मू जनय म त क वः सोमो दे वेषु र य त. अपो वसानः प र गो भ रः सीद वने व त.. (१८) चमू नामक पा म नचोड़े जाते ए, तु त उ प करते ए एवं मेधावी सोम दे व के समीप जाते ह. जल को ढकते ए एवं काठ से बने ोण कलश म बैठे ए सोम गाय के ध-दही ारा ढके जाते ह. (१८) तवाहं सोम रारण स य इ दो दवे दवे. पु ण ब ो न चर त मामव प रध र त ताँ इ ह.. (१९) हे द तशाली सोम! म तु हारी म ता म त दन स रहता ं. हे पीले रंग वाले सोम! तु हारे म को ब त से रा स बाधा प ंचाते ह. तुम उ ह मारो. (१९) उताहं न मुत सोम ते दवा स याय ब ऊध न. घृणा तप तम त सूय परः शकुना इव प तम.. (२०) हे पीले रंग वाले सोम! म रात- दन तु हारी म ता म आनं दत रहता .ं हम द त से व लत एवं परम थान म थत तु हारे समीप उसी कार जाते ह, जस कार प ी सूय का अ त मण करते ह. (२०) मृ यमानः सुह य समु े वाच म व स. र य पश ं ब लं पु पृहं पवमाना यष स.. (२१) हे शोभन उंग लय वाले एवं मसले जाते ए सोम! तुम अंत र म अपना श द भेजते हो. हे पवमान सोम! तुम तोता को पीले रंग का, अ धक एवं ब त ारा चाहने यो य धन दे ते हो. (२१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मृजानो वारे पवमानो अ ये वृषाव च दो वने. दे वानां सोम पवमान न कृतं गो भर ानो अष स.. (२२) हे वषाकारक सोम, मसले जाते ए एवं भेड़ के बाल से बने दशाप व पर छनते ए सोम! तुम ोणकलश म श द करते हो. हे पवमान सोम! तुम गाय के ध, दही के साथ मलकर दे व के व छ थान को जाते हो. (२२) पव व वाजसातयेऽ भ व ा न का ा. वं समु ं थमो व धारयो दे वे यः सोम म सरः.. (२३) हे सोम! सारी तु तय को यान म रखकर तुम अ लाभ के लए टपको. हे दे व के मदकारक एवं सब दे व म मुख सोम! तुम समु को वशेष प से धारण करते हो. (२३) स तू पव व प र पा थवं रजो द ा च सोम धम भः. वां व ासो म त भ वच ण शु ं ह व त धी त भः.. (२४) हे सोम! तुम धारण करने वाल के साथ पा थव एवं द लोक म रस टपकाओ. हे वशेष ा एवं ेत वण सोम! बु मान् लोग तु तय और उंग लय ारा तु ह रस बहाने के लए े रत करते ह. (२४) पवमाना असृ त प व म त धारया. म व तो म सरा इ या इया मेधाम भ यां स च.. (२५) शु होते ए, म त से यु , नशीले, इं ारा से वत व तोता क तु तय एवं ह को ल य करके चले जाने वाले सोम दशाप व को पार करके अपनी धारा के प म बनते ह. (२५) अपो वसानः प र कोशमषती हयानः सोतृ भः. जनय यो तम दना अवीवशद्गाः कृ वानो न न णजम्.. (२६) जल म नवास करने वाले व नचोड़ने वाल ारा े रत सोम ोणकलश म जाते ह. सोम द त उ प करते ए एवं गाय के ध आ द को अपने प म मलाते ए इस समय तु तय क अ भलाषा करते ह. (२६)
सू —१०८ पव व मधुम म इ ाय सोम
दे वता—पवमान सोम तु व मो मदः. म ह ु तमो मदः.. (१)
हे अ तशय मधुर, अ तशय बु दाता, महान्, अ यंत द त एवं मदकारक सोम! तुम इं के हेतु नशीले बनकर टपको. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य य ते पी वा वृषभो वृषायतेऽ य पीता व वदः. स सु केतो अ य मी दषोऽ छा वाजं नैतशः.. (२) हे सोम! अ भलाषापूरक इं तु ह पीकर बैल के समान आचरण करते ह. तुझ सव ा सोम को पीकर इं शोभन ान वाले बनते ह तथा श ु के अ पर उसी कार आ मण करते ह, जस कार घोड़ा यु थल क ओर जाता है. (२) वं
१ दै ा पवमान ज नमा न ुम मः. अमृत वाय घोषयः.. (३)
हे शु होते ए सोम! तुम अ यंत द तशाली बनकर दे व को मरणर हत बनाने के लए उ ह ल य करके शी श द करते हो. (३) येना नव वो द यङ् ङपोणुते येन व ास आ परे. दे वानां सु ने अमृत य चा णो येन वां यानशुः.. (४) नई शैली से य करने वाले अं गरा ऋ ष ने जस सोम को पीकर प णय ारा चुराई ई गाय का ार खोला था, जसे पीकर ा ण ने चोरी गई ई गाएं पाई थ एवं जस सोम क सहायता से यजमान ने य आरंभ होने पर क याणकारक अमृत जल से संबं धत अ पाए थे, वे सोम दे व को अमर बनाने के लए श द करते ह. (४) एष य धारया सुतोऽ ो वारे भः पवते म द तमः.
ळ ू मरपा मव.. (५)
अ यंत मादक, जलसमूह के समान खेल खेलने वाले नचुड़े ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व से अपनी धाराएं कलश म गराते ह. (५) य उ या अ या अ तर मनो नगा अकृ तदोजसा. अ भ जं त नषे ग म ं वम व धृ णवा ज.. (६) जन सोम ने ग तशील अंत र म थत मेघ से अपनी श ारा वषा कराई थी, वे ही सोम गाय और घोड़ के समूह को सब जगह फैलाते ह. हे श ुपराभवकारी सोम! तुम कवचधारी यो ा के समान असुर को मारो. (६) आ सोता प र ष चता ं न तोमम तुरं रज तुरम्. वन
मुद तम्.. (७)
हे ऋ वजो! अ के समान वेगशाली, तु तयो य, जल एवं तेज के ेरक, जल ख चने वाले एवं जल म डू बे ए सोम को नचोड़ो एवं जल से स चो. (७) सह धारं वृषभं पयोवृधं यं दे वाय ज मने. ऋतेन य ऋतजातो ववावृधे राजा दे व ऋतं बृहत्.. (८) हे ऋ वजो! हजार धारा
वाले, अ भलाषापूरक, जल बढ़ाने वाले एवं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य सोम को
दे व के न म बढ़ते ह. (८)
नचोड़ो. जल म उ प
द तशाली, स चे, महान् एवं राजा सोम जल से
अ भ ु नं बृह श इष पते दद ह दे व दे वयुः. व कोशं म यमं युव.. (९) हे अ के वामी एवं तु तयो य सोम! तुम दे वा भलाषी बनकर हमारे लए द अ धक मा ा म दो. (९)
अ
आ व य व सुद च वोः सुतो वशां व न व प तः. वृ दवः पव व री तमपां ज वा ग व ये धयः.. (१०) हे शोभन बल वाले सोम! तुम चमू नामक पा पर नचुड़ कर एवं राजा के समान जा के भारवहनक ा बनकर पधारो, अंत र से जल क ग त नीचे करो एवं गाय क अ भलाषा रखने वाले यजमान का य कम पूरा करो. (१०) एतमु यं मद युतं सह धारं वृषभं दवो
ः. व ा वसू न ब तम्.. (११)
ऋ वज् मादकता टपकाने वाले, हजार धारा धारण करने वाले सोम का दोहन करते ह. (११)
से यु , अ भलाषापूरक एवं सभी धन
वृषा व ज े जनय म यः तप यो तषा तमः. स सु ु तः क व भ न णजं दधे धा व य दं ससा.. (१२) श द उ प करते ए व अपनी यो त से अंधकार का नाश करते ए अ भलाषापूरक एवं मरणर हत सोम जाने जाते ह. बु मान ारा शं सत सोम गाय के ध-दही म मलाए जाते ह. य कम को तीन सवन म सोम ही धारण करते ह. (१२) स सु वे यो वसूनां यो रायामानेता य इळानाम्. सोमो यः सु तीनाम्.. (१३) जो सोम धन , गाय , अ जाते ह. (१३)
एवं शोभनगृह के लाने वाले ह, वे ऋ वज
ारा नचोड़े
य य न इ ः पबा य म तो य य वायमणा भगः. आ येन म ाव णा करामह ए मवसे महे.. (१४) हमारे जस सोम को इं , म त्, अयमा एवं भग पीते ह एवं जसके ारा हम म , व ण और इं को अपनी र ा के लए अ भमुख करते ह, वे ही सोम नचोड़े जाते ह. (१४) इ ाय सोम पातवे नृ भयतः वायुधो म द तमः. पव व मधुम मः.. (१५) हे ऋ वज
ारा संयत, शोभन आयुध वाले, अ यंत मादक तथा अ धक मधुर सोम!
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुम इं के पीने के लए अपना रस बहाओ. (१५) इ य हा द सोमधानमा वश समु मव स धवः. जु ो म ाय व णाय वायवे दवो व भ उ मः.. (१६) हे म , व ण और वायु के लए पया त, वग के धारणक ा, उ म एवं इं के य सोम! न दयां जस कार सागर म वेश करती ह, उसी कार तुम ोणकलश म वेश करो. (१६)
दे वता—पवमान सोम
सू —१०९ पर
ध वे ाय सोम वा म ाय पू णे भगाय.. (१)
हे वा द सोम! तुम इं , म , व ण, पूषा और भग नामक दे व के लए पा टपको. (१) इ
ते सोम सुत य पेयाः
हे नचोड़े ए सोम! इं रस पएं. (२)
म
वे द ाय व े च दे वाः.. (२) ान और बल पाने के लए तु हारा रस पएं. सारे दे व तु हारा
एवामृताय महे याय स शु ो अष द ः पीयूषः.. (३) हे द तशाली, द दे ने के लए छनो. (३)
एवं दे व के पीने यो य सोम! तुम हम अमर बनाने एवं वशाल घर
पव व सोम महा समु ः पता दे वानां व ा भ धाम.. (४) हे महान्, रस बहाने वाले एवं सबके पालक सोम! तुम दे व के सभी शरीर को ल य करके शु बनो. (४) शु ः पव व दे वे यः सोम दवे पृ थ ै शं च जायै.. (५) हे सोम! तुम द तशाली बनकर दे व के लए छनो तथा सुख दो. (५)
ावा-पृ थवी और जा को
दवो धता स शु ः पीयूषः स ये वधम वाजी पव व.. (६) हे द तशाली, पीने यो य, वगलोक के धारणक ा एवं श स चे य म टपको. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शाली सोम! तुम इस
पव व सोम ु नी सुधारो महामवीनामनु पू ः.. (७) हे यश वी, शोभनधारा के छ से होकर बहो. (७)
वाले एवं ाचीन सोम! तुम भेड़ के बाल से बने दशाप व
नृ भयमानो ज ानः पूतः र ऋ वज धन द. (८)
ा न म ः व वत्.. (८)
ारा संय मत, उ प , प व , मोदयु
इ ः पुनानः जामुराणः कर दे व को बढ़ाने वाले एवं शु पव व सोम
ान
एवं सबको जानने वाले सोम हम सब
वणा न नः.. (९)
होते ए सोम हम संतान एवं सभी धन द. (९)
वे द ाया ो न न ो वाजी धनाय.. (१०)
हे अ के समान जल से धोए गए एवं वेगशाली सोम! तुम हम ान, बल और धन दे ने के लए टपको. (१०) तं ते सोतारो रसं मदाय पुन त सोमं महे ु नाय.. (११) हे सोम! रस नचोड़ने वाले लोग नया एवं महान् अ पाने के लए तु हारा रस शु करते ह. (११) शशुं ज ानं ह र मृज त प व े सोमं दे वे य इ म्.. (१२) ऋ वज् जल के पु , ज म लेने वाले, ह रतवण एवं द तशाली सोम को दे व के लए दशाप व पर छानते ह. (१२) इ ः प व चा मदायापामुप थे क वभगाय.. (१३) क याणकारक एवं बु होते ह. (१३) बभ त चा व
मान् सोम जल के समान अंत र म मद एवं धन के लए शु
य नाम येन व ा न वृ ा जघान.. (१४)
सोम इं के क याणकारी शरीर का पोषण करते ह, उसी शरीर से इं ने सब रा स को मारा. (१४) पब य य व े दे वासो गो भः ीत य नृ भः सुत य.. (१५) गाय के ध-दही से मले ए एवं ऋ वज
ारा नचोड़े ए सोम को सभी दे व पीते ह.
(१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुवानो अ ाः सह धार तरः प व ं व वारम म्.. (१६) छाने जाते ए एवं हजार धारा करके अनेक कार से बहते ह. (१६) स वा य ाः सह रेता अ (१७)
श
वाले सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व को पार
मृजानो गो भः ीणानः.. (१७)
शाली, अ धक जल वाले व जल म मसले जाते ए सोम सभी ओर बहते ह. सोम याही
हे ऋ वज म जाओ. (१८)
य कु ा नृ भयमानो अ
भः सुतः.. (१८)
ारा संय मत एवं प थर क सहायता से नचोड़े गए सोम! तुम इं के पेट
अस ज वाजी तरः प व म ाय सोमः सह धारः.. (१९) श शाली एवं हजार धारा तैयार कए जाते ह. (१९) अ
वाले सोम दशाप व के
ारा छान कर इं के लए
येनं म वो रसेने ाय वृ ण इ ं मदाय.. (२०)
ऋ वज् अ भलाषापूरक इं के नशे के लए गाय के मीठे ध के साथ सोम को मलाते ह. (२०) दे वे य वा वृथा पाजसेऽपो वसानं ह र मृज त.. (२१) श
हे जल म रहने वाले ह रतवण सोम! ऋ वज् तु ह बना दे ने के लए शु करते ह. (२१) इ
म के दे व के पीने एवं उ ह
र ाय तोशते न तोशते ीण ु ो रण पः.. (२२)
जल एवं ध के साथ मले ए, श जाते ह. (२२)
दाता एवं जल के ेरक सोम इं के लए नचोड़े
दे वता—पवमान सोम
सू —११० पयूषु ध व वाजसातये प र वृ ा ण स णः. ष तर या ऋणया न ईयसे.. (१) हे सोम! तुम अ पाने के लए यु
म जाओ. हे सहनशील सोम! तुम श ु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
के पास
जाओ. तुम हमारे अंग के वनाशक बनकर श ु
को मारने के लए जाओ. (१)
अनु ह वा सुतं सोम मदाम स महे समयरा ये. वाजाँ अ भ पवमान गाहसे.. (२) हे नचुड़े ए सोम! हमारे ऋ वज् तु हारी तु त करते ह. हे शु होते ए सोम! तुम अपने महान् रा य म मनु य का पालन करने के लए श ु क सेना क ओर जाते हो. (२) अजीजनो ह पवमान सूय वधारे श मना पयः. गोजीरया रंहमाणः पुर या.. (३) हे शु होते ए सोम! तुमने जलधारण करने वाले अंत र म अपने बल से सूय को उ प कया है. तुम तोता को गाएं दे ने वाले, ान से यु एवं वेगशाली हो. (३) अजीजनो अमृत म य वाँ ऋत य धम मृत य चा णः. सदासरो वाजम छा स न यदत्.. (४) हे मरणर हत सोम! तुमने स चे एवं क याणकारी जल को धारण करने वाले अंत र म सूय को इस लए उ प कया था क वह मनु य के सामने जा सके. तुम सबक सेवा करते ए सदा सं ाम क ओर जाते हो. (४) अ य भ ह वसा तत दथो सं न कं च जनपानम तम्. शया भन भरमाणो गभ योः.. (५) हे सोम! जस कार कोई मनु य सरे लोग के पानी पीने के लए न यजल वाला तालाब खोदता है अथवा कोई भुजा क दस उंग लय से अंज ल बना कर जल भरता है, उसी कार तुम अ ा त के लए दशाप व को पार करके जाते हो. (५) आद के च प यमानास आ यं वसु चो द ा अ यनूषत. वारं न दे वः स वता ूणुते.. (६) द तशाली सूय तब तक अंधकार भी नह हटा पाए थे क तभी सूय को दे खने वाले एवं द वसु च नामक लोग ने अपने म सोम क तु त आरंभ कर द थी. (६) वे सोम थमा वृ ब हषो महे वाजाय वसे धयं दधुः. स वं नो वीर वीयाय चोदय.. (७) हे सोम! ाचीन एवं य के न म कुश तोड़ने वाले यजमान ने महान् बल और अ पाने के लए तुम म अपनी बु को धारण कया था. हे वीर सोम! तुम सं ाम म बल दशन के लए हम भी भेजो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दवः पीयूषं पू य यं महो गाहा व आ नरधु त. इ म भ जायमानं सम वरन्.. (८) लोग वग से पीने यो य, ाचीन व शंसनीय सोम को महान् तथा गहन अंत र अ भमुख होकर हते ह. तोता इं को ल य करके उ प सोम क तु त करते ह. (८)
के
अध य दमे पवमान रोदसी इमा च व ा भुवना भ म मना. यूथे न नः ा वृषभो व त से.. (९) हे शु होते ए सोम! तुम इस ावा-पृ थवी, लोक एवं सभी ा णय पर अपने बल से इस कार अ धकार कर लेते हो, जस कार कोई बैल गाय के झुंड का अ धकारी बन जाता है. (९) सोमः पुनानो अ ये वारे शशुन ळ पवमानो अ ाः. सह धारः शतवाज इ ः.. (१०) हजार धारा वाले, सैकड़ श य से यु , द तशाली एवं छनते ए सोम भेड़ के बाल से बने दशाप व पर ब चे के समान खेल करते ह. (१०) एष पुनानो मधुमाँ ऋतावे ाये ः पवते वा वाजस नव रवो व योधाः.. (११)
मः.
शु होते ए, मधुरता यु , य वाले, द तशाली, नचुड़ने वाले, वा द रस धारा के समूह प, अ के दाता, धन लाभ कराने वाले एवं आयु दे ने वाले सोम इं के लए छनते ह. (११) स पव व सहमानः पृत यू सेध ां यप गहा ण. वायुधः सास ा सोम श ून्.. (१२) हे सोम! तुम यु ा भलाषी श ु को हराते ए, गम रा स को र भगाते ए एवं शोभन आयुध धारा करके श ु को ःखी करते ए शु बनो. (१२)
सू —१११
दे वता—पवमान सोम
अया चा ह र या पुनानो व ा े षां स तर त वयु व भः सूरो न वयु व भः. धारा सुत य रोचते पुनानो अ षो ह रः. व ाय प ू ा प रया यृ व भः स ता ये भऋ व भः.. (१) शु
होते ए सोम अपने हरे रंग वाली एवं सुंदर धारा से इसी कार सब रा स का
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नाश करते ह, जस कार सूय अपनी करण के ारा अंधकार को मटाते ह. सोम क धारा का शत होती है. शु होते ए ह रत वण सोम का शत होते ह. सोम सात छं द वाली तु तय एवं रसहरण करने वाले तेज के ारा सभी न को ा त करते ह. (१) वं य पणीनां वदो वसु सं मातृ भमजय स व आ दम ऋत य धी त भदमे. परावतो न साम त ा रण त धीतयः. धातु भर षी भवयो दधे रोचमानो वयो दधे.. (२) हे सोम! तुमने प णय ारा चुराया आ गोधन ा त कया था. तुम य थल म य के धारण करने वाले जल से अ छ तरह शु होते हो. तु हारा श द र पर गाए जाने वाले साम मं के समान सुनाई दे ता है. तु हारा श द सुनकर यजमान स होते ह. उ वल सोम तीन लोक को धारण करने वाले जल क द तय के ारा तोता को अ दे ते ह. (२) पूवामनु दशं या त चे कत सं र म भयतते दशतो रथो दै ो दशतो रथः. अ म ु था न प ये ं जै ाय हषयन्. व य वथो अनप युता सम वनप युता.. (३) सबको जानने वाले सोम पूव दशा क ओर जाते ह. हे सोम! तु हारा दशनीय एवं द रथ सूय क करण के साथ मलता है. मनु य ारा क ई तु तयां इं के पास जाती ह एवं इं को वजय पाने के लए ह षत करती ह. व भी इं के पास जाता है. हे सोम! तुम व इं श ु से अपरा जत रहकर तु तयां सुनते हो. (३)
दे वता—पवमान सोम
सू —११२
नानानं वा उ नो धयो व ता न जनानाम्. त ा र ं तं भष ा सु व त म छती ाये दो प र व.. (१) हे सोम! हमारे तथा अ य लोग के कम व वध कार के होते ह. बढ़ई लकड़ी काटना चाहता है, वै रोग क च क सा करना चाहता है एवं ा ण सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को चाहता है. हे सोम! तुम इं के लए रस बहाओ. (१) जरती भरोषधी भः पण भः शकुनानाम्. कामारो अ म भ ु भ हर यव त म छती ाये दो प र व.. (२) पुरानी लक ड़य एवं प य के पंख को शला ारा घसकर बाण बनाए जाते ह. कारीगर बाण बेचने के लए धनी लोग को खोजते ह. हे सोम! तुम इं के लए अपना रस नीचे गराओ. (२) का रहं ततो भषगुपल
णी नना.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नाना धयो वसूयवोऽनु गा इव त थमे ाये दो प र व.. (३) म तोता ं, मेरा पु वै है और मेरी पु ी कंड पर जौ भूनने वाली है. जस कार गाएं गोशाला म अलग-अलग घूमती ह, उसी कार हम सब धन क इ छा से अलग-अलग काम करते ह. हे सोम! तुम इं के लए रस गराओ. (३) अ ो वो हा सुखं रथं हसनामुपम णः. शेपो रोम व तौ भेदौ वा र म डू क इ छती ाये दो प र व.. (४) मं जल पर प ंचने वाला क याणकारी घोड़ा एवं दरबारी लोग हंसी-मजाक क इ छा करते ह. पु ष जनन य जस कार रोम वाला छे द चाहती है एवं मढक जल चाहता है, उसी कार म सोम क इ छा करता ं. हे सोम! तुम इं के लए अपना रस बरसाओ. (४)
सू —११३
दे वता—पवमान सोम
शयणाव त सोम म ः पबतु वृ हा. बलं दधान आ म न क र य वीय मह द ाये दो प र व.. (१) श
श ुनाशक इं शयणावत नामक तालाब म सोम को पएं एवं आ म व ासी व महान् शाली बन. हे सोम! तुम इं के लए रस टपकाओ. (१) आ पव व दशां पत आज का सोम मीढ् वः. ऋतवाकेन स येन या तपसा सुत इ ाये दो प र व.. (२)
हे दशा के वामी एवं अ भलाषापूरक सोम! तुम ऋजीक दे श से आकर रस बरसाओ. तु ह शु एवं स चे तु तवचन व ा तथा तप के ारा नचोड़ा जाता है. हे सोम! तुम इं के लए रस बरसाओ. (२) पज यवृ ं म हषं तं सूय य हताभरत्. तं ग धवाः यगृ ण तं सोमे रसमादधु र ाये दो प र व.. (३) ा नामक सूयपु ी मेघ के समान समृ और महान् सोम को वग से लाई थी. गंधव ने उस सोम को पकड़कर उस म रस डाला. हे सोम! तुम इं के लए रस टपकाओ. (३) ऋतं वद ृत ु न स यं वद स यकमन्. ां वद सोम राज धा ा सोम प र कृत इ ाये दो प र व.. (४) हे स चे यश वाले, यथाथ कम करने वाले, नचुड़ते ए व सबके वामी सोम! तुम य , स य और ा का उ चारण करते ए दे वपोषक यजमान के ारा अलंकृत होकर इं के लए रस नीचे गराते हो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स यमु य बृहतः सं व त सं वाः. सं य त र सनो रसाः पुनानो णा हर इ ाये दो प र व.. (५) वा त वक उ और महान् सोम क नीचे गरने वाली धारा बह रही है. रस वाले सोम का यह रस बह रहा है. हे हरे रंग के सोम! तुम ा ण ारा शु होते ए इं के लए रस नीचे गराओ. (५) य ा पवमान छ द यां३ वाचं वदन्. ा णा सोमे महीयते सोमेनान दं जनय
ाये दो प र व.. (६)
हे शु होते ए सोम! तु हारे न म सात छं द के ारा बनाई ई तु त को बोलने वाले, प थर क सहायता से तु हारा रस नचोड़ते ए तथा तु हारे ारा दे व म आनंद उ प करने वाले ा ण क जहां पूजा होती है, तुम वहां इं के लए रस नीचे गराओ. (६) य यो तरज ं य मँ लोके व हतम्. त म मां धे ह पवमानामृते लोके अ त इ ाये दो प र व.. (७) हे सोम! जस लोक म न य यो त है, वग छपा आ है, उसी अमर एवं लोक म मुझे ले चलो. तुम इं के लए रस बरसाओ. (७)
यर हत
य राजा वैव वतो य ावरोधनं दवः. य ामूय तीराप त माममृतं कृधी ाये दो प र व.. (८) हे सोम! जस लोक म वव वान् के पु राजा ह, जहां वग का ार है एवं जहां गंगा आ द वशाल न दयां थत ह, मुझे उसी मरणर हत लोक म ले चलो एवं इं के लए अपना रस नीचे गराओ. (८) य ानुकामं चरणं नाके दवे दवः. लोका य यो त म त त माममृतं कृधी ाये दो प र व.. (९) हे सोम! वग के जस तीसरे लोक म सूय क करण उनक इ छा के अनुकूल ह ओर जहां यो त वाले लोग रहते ह, उस लोक म प ंचाकर मुझे अमर बनाओ तथा इं के लए अपना रस नीचे गराओ. (९) य कामा नकामा य न य व पम्. वधा च य तृ त त माममृतं कृधी ाये दो प र व.. (१०) हे सोम! जस लोक म अ भल षत एवं ाथनीय इं ा द दे व रहते ह, जहां सबके ापक सूय का थान है और जहां वधा श द के साथ दया गया अ एवं तृ त है, वहां मुझे अमर बनाओ तथा इं के लए अपना रस नीचे गराओ. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ान दा मोदा मुदः मुद आसते. काम य य ा ताः कामा त माममृतं कृधी ाये दो प र व.. (११) हे सोम! जस लोक म आनंद, मोह और सुख रहते ह व जहां सब अ भलाषाएं पूरी हो जाती ह, वहां मुझे मरणर हत बनाओ एवं इं के लए अपना रस नीचे गराओ. (११)
सू —११४
दे वता—पवमान सोम
य इ दोः पवमान यानु धामा य मीत्. तमा ः सु जा इ त य ते सीमा वध मन इ ाये दो प र व.. (१) शु होते ए सोम के तेज का जो ा ण अनुगमन करता है, लोग उसे शोभन जा वाला कहते ह. जो अपना मन सोम के अनुकूल बना लेता है, उसे भी भा यशाली कहते ह. हे सोम! तुम इं के लए रस टपकाओ. (१) ऋषे म कृतां तोमैः क यपो धय गरः. सोमं नम य राजानं यो ज े वी धां प त र ाये दो प र व.. (२) हे क यप ऋ ष! मं रचना करने वाल क तु तय के आधार पर अपने वचन को बढ़ाते ए राजा सोम को नम कार करो. सोम वन प तय के पालक के प म उ प ए ह. हे सोम! तुम इं के लए टपको. (२) स त दशो नानासूयाः स त होतार ऋ वजः. दे वा आ द या ये स त ते भः सोमा भ र न इ ाये दो प र व.. (३) हे सोम! ये जो सात दशाएं सूय का आ य ह, होम करने वाले जो सात ऋ वज् ह तथा आ द य आ द जो सात सूय ह, उनके साथ मलकर हमारी र ा करो. हे सोम! इं के लए रस टपकाओ. (३) य े राज छृ तं ह व तेन सोमा भ र नः. अरातीवा मा न तारी मो च नः क चनामम द ाये दो प र व.. (४) हे राजा सोम! तु हारे लए जो ह व पकाया गया है, उससे हमारी र ा करो. श ु हमारा वध न करे एवं हमारा धन आ द कुछ भी न न कर. तुम इं के लए रस टपकाओ. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दशम मंडल सू —१
दे वता—अ न
अ े बृह ुषसामू व अ था जग वा तमसो यो तषागात्. अ नभानुना शता व आ जातो व ा स ा य ाः.. (१) महान् अ न ातःकाल म व लत होकर वाला के प म रहते ह एवं अंधकार से नकलकर अपने तेज के ारा य थल म जाते ह. शोभन वाला वाले एवं य के लए उ प अ न अपने अंधकारनाशक तेज के ारा सभी य गृह को पूण करते ह. (१) स जातो गभ अ स रोद योर ने चा वभृत ओषधीषु. च ः शशुः प र तमां य ू मातृ यो अ ध क न दद्गाः.. (२) हे उ प , क याणकारक व अर णय के म य वशेष प से म थत अ न! तुम ावापृ थवी के गभ हो. हे व च रंग वाले एवं वृ के बालक अ न! तुम अपने तेज से अंधकार प श ु को हराते हो. तुम माता के समान वन प तय म श द करते ए ज म लेते हो. (२) व णु र था परमम य व ा ातो बृह भ पा त तृतीयम्. आसा यद य पयो अ त वं सचेतसो अ यच य .. (३) जानते ए, उ प , महान् एवं ापक अ न मुझ त ऋ ष क र ा कर. अपने मुख ारा अ न से जल क याचना करने वाले यजमान त मय होकर अ न क पूजा करते ह. (३) अत उ वा पतुभृतो ज न ीर ावृधं त चर य ैः. ता ये ष पुनर य पा अ स वं व ु मानुषीषु होता.. (४) हे अ वधक अ न! सारे संसार को धारण करने वाली और उ प करने वाली ओष धयां अ के कारण तु हारी सेवा करती ह. तुम सूखे वृ के पास दावा न के रथ म जाते हो. तुम मानव जा के होता हो. (४) होतारं च रथम वर य य य य य केतुं श तम्. य ध दे व य दे व य म ा या व१ नम त थ जनानाम्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम संप पाने के लए दे व को बुलाने वाले, व वध प रथ वाले, झंडे के समान य के ापक, ेत वण वाले, अपनी मह ा से इं के पास जाने वाले एवं यजमान के पू य अ न क शी तु त करते ह. (५) स तु व ा यध पेशना न वसानो अ ननाभा पृ थ ाः. अ षो जातः पद इळायाः पुरो हतो राज य ीह दे वान्.. (६) हे द तशाली अ न! तुम अपने सोने के समान तेज को धारण करते ए धरती क ना भ के समान उ र वेद पर उ प हो. तुम शोभा धारण करके एवं पूव दशा म थत होकर दे व क पूजा करो. (६) आ ह ावापृ थवी अ न उभे सदा पु ो न मातरा तत थ. या छोशतो य व ाथा वह सह येह दे वान्.. (७) हे अ न! जस कार पु माता- पता को धन से बढ़ाता है, उसी कार तुम सदा ावा-पृ थवी दोन का व तार करते हो. हे अ तशय युवा अ न! तुम अपने अ भलाषी लोग को ल य करके जाओ. हे श पु अ न! इस य म दे व को लाओ. (७)
सू —२
दे वता—अ न
प ी ह दे वाँ उशतो य व व ाँ ऋतूँऋतुपते यजेह. ये दै ा ऋ वज ते भर ने वं होतॄणाम याय ज ः.. (१) हे अ तशय युवा अ न! तुम तु तयां सुनने के अ भलाषी दे व को स करो. हे दे वय के समय के वामी अ न! इस य म तुम य के समय को जानकर दे व क पूजा करो. हे होता म े अ न! तुम दे व के पुरो हत के साथ दे व क पूजा करो. (१) वे ष हो मुत पो ं जनानां म धाता स वणोदा ऋतावा. वाहा वयं कृणवामा हव ष दे वो दे वा यज व नरहन्.. (२) हे धन दे ने वाले तथा स ययु अ न! तुम होता और पोता ारा क ई तु तय क कामना करते हो तथा मेधावी हो. हम वाहा श द के साथ दे व को जो ह व दे ते ह, उससे द तशाली एवं शंसनीय अ न दे व क पूजा कर. (२) आ दे वानाम प प थामग म य छ नवाम तदनु वो म्. अ न व ा स यजा से होता सो अ वरा स ऋतू क पया त.. (३) हम दे व के माग अथवा वेद-पथ पर चल. हम जो भी काय आरंभ कर, उसे भली कार समा त कर सक. वेद का माग जानने वाले अ न वेद क पूजा कर. मानव के होता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ नय
को कर एवं उनका समय न त कर. (३)
य ो वयं अ न
मनाम ता न व षां दे वा अ व रासः. मा पृणा त व ा ये भदवाँ ऋतु भः क पया त.. (४)
हे दे वो! आप अ तशय धनवान् ह और हम अ ानी ह. हमने आपसे संबं धत कम याग दए ह, इसे आप जानते ह. इस बात को जानने वाले अ न हमारे सभी कम को पूण कर. अ न य के यो य समय के ारा दे व को समथ बनाते ह. (४) य पाक ा मनसा द नद ा न य य म वते म यासः. अ न ोता तु व जान य ज ो दे वाँ ऋतुशो यजा त.. (५) बल मनु य ानर हत होने के कारण जन य कम को नह जानते, होता एवं अ तशय य क ा अ न उनको जानते ह. वे य के यो य समय म दे व का य कर. (५) व ेषां वराणामनीकं च ं केतुं ज नता वा जजान. स आ यज व नृवतीरनु ाः पाहा इषः ुमती व ज याः.. (६) हे अ न! वधाता ने तु ह सभी य के धान, नाना प एवं ापक के प म उ प कया है. तुम हम दास से यु भू म दो. हे अ भलाषा यो य अ न! तुम हम तु तमं से यु और सव हतकारी अ दो. (६) यं वा ावापृ थवी यं वाप व ा यं वा सुज नमा जजान. प थामनु व ा पतृयाणं ुमद ने स मधानो व भा ह.. (७) हे अ न! ावा-पृ थवी और अंत र ने तु ह ज म दया. शोभन ज म वाले जाप त ने तु ह उ प कया. हे पतृमाग जानने वाले एवं व लत अ न! तुम द तशाली होकर वराजते हो. (७)
सू —३
दे वता—अ न
इनो राज र तः स म ो रौ ो द ाय सुषुमाँ अद श. च क भा त भासा बृहता स नीमे त शतीमपाजन्.. (१) हे द तशाली, सबके वामी, दे व के पास ह व लेकर जाने वाले, व लत, श ु के लए भयानक एवं वन प तय म थत अ न! तु ह लोग यजमान क धनवृ के लए दे खते ह. सबको जानने वाले अ न वशेष प से द त धारण करते ह तथा अपने महान् तेज के ारा ेत वण क द त फैलाते ए जाते ह. (१) कृ णां यदे नीम भ वपसा भू जनय योषां बृहतः पतुजाम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऊ व भानुं सूय य तभाय दवो वसु भरर त व भा त.. (२) अ न व के पालक सूय से उ प उषा को उ प करते ए अपनी वाला काली रात को परा जत करते ह. गमनशील अ न वग म फैलने वाली अपनी करण सूय के काश को ऊपर रोकते ए वशेष प से चमकते ह. (२)
से ारा
भ ो भ या सचमान आगा वसारं जारो अ ये त प ात्. सु केतै ु भर न व त ुश वणर भ रामम थात्.. (३) द त उषा ारा से वत क याणकारी अ न आए. इसके श ु को न करने वाले अ न, अपनी ब हन उषा के पास जाते ह. अपने शोभन ान और द त तेज के साथ थत अ न अपने नवारक ेत वण के तेज ारा काले अंधकार को मटाते ह. (३) अ य यामासो बृहतो न व नू न धाना अ नेः स युः शव य. ई य वृ णो बृहतः वासो भामासो याम व क े.. (४) महान् अ न क द तयु करण तु तक ा को बाधा नह प ंचात सखा, क याणक ा, तु तमय, अ भलाषापूरक, महान् एवं शोभन मुख वाले अ न क करण ती ण होकर त त करने के लए दे व के पास जाती ह एवं स होती ह. (४) वना न य य भामासः पव ते रोचमान य बृहतः सु दवः. ये े भय ते ज ैः ळु म व ष े भभानु भन त ाम्.. (५) तेज वी, महान् और शोभन द त वाले अ न क करण श द करती ई जाती ह. अ न अपने अ यंत शंसनीय, परम तेज वी, ड़ा करने वाले एवं अ धक बड़े तेज के ारा वग को ा त करते ह. (५) अ य शु मासो द शानपवेजहमान य वनय यु ः. ने भय श दवतमो व रेभ रर तभा त व वा.. (६) द तशाली श वाले और दे व लोक म गमन क इ छा वाले अ न क करण शोषक बनकर श दायमान ह एवं दे व म मुख गमनशील अ न त े वण होकर अपनी द त बखेरते ह. (६) स आ व म ह न आ च स स दव पृ थ ोरर तयुव योः. अ नः सुतुकः सुतुके भर ै रभ व रभ वाँ एह ग याः.. (७) हे अ न! हमारे य म महान् दे व को लाओ. हे पर पर मले ए ावा-पृ थवी म सूय के रथ से जाने वाले अ न! तुम हमारे य म बैठो. हे तोता ारा सुखपूवक ा त करने यो य एवं वेगशाली अ न! तुम सरल ग त वाले एवं ती गामी अ ारा हमारे य म आओ. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(७)
सू —४
दे वता—अ न
ते य त इय म म म भुवो यथा व ो नो इवेषु. ध व व पा अ स वम न इय वे पूरवे न राजन्.. (१) हे अ न! म तु हारे लए ह व दे ता ं एवं सुंदर तु तयां बोलता ं. हे सबके वंदनीय अ न! तुम हमारे आ ान म आते हो. हे ाचीन एवं सबके वामी अ न! जस कार म थल म छोटा जलाशय भी सुखद होता है, उसी कार तुम य क ा मनु य को धन दे कर सुखदाता बनते हो. (१) यं वा जनासो अ भ स चर त गाव उ ण मव जं य व . तो दे वानाम स म यानाम तमहाँ र स रोचनेन.. (२) हे अ तशय युवा अ न! ठं ड से परेशान गाएं जस कार गरम पशुशाला म जाती ह, उसी कार यजमान फल पाने के लए तु हारी सेवा करते ह. हे महान् अ न! तुम दे व और मानव के त हो एवं ावा-पृ थवी के बीच से ह व लेकर अंत र म घूमते हो. (२) शशुं न वा जे यं वधय ती माता बभ त सचन यमाना. धनोर ध वता या स हय गीषसे पशु रवावसृ ः.. (३) हे जयशील अ न! पु के समान तु हारा पोषण करती ई एवं तुमसे संपक चाहती ई धरती माता तु ह धारण करती ह. हे अ भलाषी अ न! तुम अंत र के स माग से य म आते हो. जस कार छोड़ा आ पशु पशुशाला म जाना चाहता है, उसी कार तुम ह व लेकर दे व के पास जाना चाहते हो. (३) मूरा अमूर न वयं च क वो म ह वम ने वम व से. शये व र त ज याद े र ते युव त व प तः सन्.. (४) हे मूढ़ता र हत एवं ानी अ न! हम मूख होने के कारण तु हारी म हमा नह जानते ह, कतु तुम हमारा मह व जानते हो. अ न ओष धय म नवास करते ह एवं वाला पी जीभ से ह खाते ए चलते ह. जा के वामी अ न आ तय का वाद लेते ह. (४) कू च जायते सनयासु न ो वने त थौ प लतो धूमकेतुः. अ नातापो वृषभो न वे त सचेतसो यं णय त मताः.. (५) नवीनतम अ न कसी थान म उ प होते ह तथा ाचीन वृ म रहते ह. त े वण वाले एवं धुएं से जाने गए अ न वन म रहते ह. नान के बना ही शु रहने वाले अ न बैल ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के समान जल के पास जाते ह. मनु य एक च होकर अ न को स करते ह. (५) तनू यजेव त करा वनगू रशना भदश भर यधीताम्. इयं ते अ ने न सी मनीषा यु वा रथं न शुचय र ै ः.. (६) हे अ न! जस कार वन म घूमने वाले एवं चोरी के काम म ाण दे ने के लए तैयार दो चोर या ी को र सी से बांधकर ख चते ह, उसी कार हमारे दो हाथ दस उंग लय क सहायता से तु ह मथते ह. हे अ न! तु हारे लए यह नई तु त है. जस कार रथ म घोड़े जोड़े जाते ह, उसी कार तुम अपने तेज को इस य म मलाओ. (६) च ते जातवेदो नम ेयं च गीः सद म धनी भूत्. र ाणो अ ने तनया न तोका र ोत न त वो३ अ यु छन्.. (७) हे बु मान् अ न! हमारे ारा तु ह दया गया अ और क गई तु त सदा बढ़ती रहे. तुम हमारे पु -पौ क सदा र ा करो तथा सावधानी से हमारे अंग को रखाओ. (७)
सू —५
दे वता—अ न
एकः समु ो ध णो रयीणाम मद्धृदो भू रज मा व च े. सष यूध न यो प थ उ स य म ये न हतं पदं वेः.. (१) धन के उद्गम, धन को धारण करने वाले, अनोखे एवं व वध ज म वाले अ न हमारे मन क अ भलाषा को जानते ह तथा अंत र के समीप वतमान रहकर रा का सेवन करते ह. हे अ न! मेघ म छपे ए थान पर जाओ. (१) समानं नीळं वृषणो वसानाः सं ज मरे म हषा अवती भः. ऋत य पदं कवयो न पा त गुहा नामा न द धरे परा ण.. (२) आ तयां पूण करने वाले यजमान एकमा अ न को मं से आ छा दत करके घो ड़य को ा त कर चुके ह. बु मान् लोग जल के नवास थान अ न क र ा करते ह एवं अंत र म थत अ न के द नाम को दय म धारण करते ह. (२) ऋता यनी मा यनी सं दधाते म वा शशुं ज तुवधय ती. व य ना भ चरतो ुव य कवे तुं मनसा वय तः.. (३) स य एवं य कम से यु ावा-पृ थवी अ न को धारण करते ह एवं समय क सीमा म घरे शशु प अ न को माता- पता के समान बढ़ाते ह. मनु य सभी थावर और जंगम ा णय क ना भ के समान धान तथा मेधावी वै ानर नामक अ न का मन म यान करते ए सुखी होते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋत य ह वतनयः सुजात मषो वाजाय दवः सच ते. अधीवासं रोदसी वावसाने घृतैर ैवावृधाते मधूनाम्.. (४) य आरंभ करने वाले, अ भल षत व तु के इ छु क एवं ाचीन यजमान श पाने के लए शोभनज म वाले अ न क सेवा करते ह. सारे संसार के ढकने वाले ावा-पृ थवी ने तीन लोक म तीन प म रहने वाले अ न को जल से संबं धत अ क सहायता से बढ़ाया. (४) स त वसॄर षीवावशानो व ा म व उ जभारा शे कम्. अ तयमे अ त र े पुराजा इ छ व म वद पूषण य.. (५) तोता ारा शं सत व सबको जानने वाले अ न ने सारी ब हन के समान द तपूण सात करण को मादकतापूण य से इस लए ऊपर उठाया क सुखपूवक सब पदाथ को दे ख सक. ाचीन काल म उ प अ न ने ावा-पृ थवी के म य म थत अंत र म अपनी करण को नय मत कया. यजमान क अ भलाषा करने वाले अ न ने धरती को अपना वषावाला प दया. (५) स त मयादाः कवय तत ु तासामेका मद यं रो गात्. आयोह क भ उपम य नीळे पथां वसग ध णेषु त थौ.. (६) मेधा वय ने सात मयादा को छोड़ दया है. इन काय म से एक को करने वाला भी पाप को ा त करता है. मनु य को पाप से रोकने वाले अ न समीपवत मानवलोक म, सूय करण के वचरने के थान म एवं जल म रहते ह. (६) अस च स च परमे ोमन् द य ज म दते प थे. अ नह नः थमजा ऋत य पूव आयु न वृषभ धेनुः.. (७) अ न सृ से पहले अ ओर सृ के प ात् प म रहते ह. अ न ने परम धाम आकाश म सूय से ज म पाया है. अ न हमसे पहले उ प ए ह एवं य से पहले वतमान थे. वे गाय ओर बैल दोन प म ह. (७)
सू —६
दे वता—अ न
अयं स य य शम वो भर नेरेधते ज रता भ ौ. ये े भय भानु भऋषूणां पय त प रवीतो वभावा.. (१) ये वे ही अ न ह, जनक र ा पाकर य के समय तोता अपने घर म बढ़ता है. द तशाली अ न सूय करण के शंसनीय तेज से यु होकर सब जगह जाते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो भानु भ वभावा वभा य नदवे भऋतावाज ः. आ यो ववाय स या स ख योऽप रह्वृतो अ यो न स तः.. (२) स ययु , अपरा जत एवं द तशाली अ न दे व के तेज से अनेक कार से का शत होते ह. अ न बना थके ए अपने म यजमान के पास उनके काम करने के लए इस कार जाते ह, जस कार घोड़ा लगातार चलता रहता है. (२) ईशे यो व या दे ववीतेरीशे व ायु षसो ु ौ. आ य म मना हव य नाव र रथः क ना त शूषैः.. (३) जो अ न सभी दे वय के वामी ह एवं सव ग तशील ह, वे अ न ातःकाल यजमान के य के भी भु ह. यजमान अ न म उनका मनचाहा ह व डालते ह, इस लए यजमान के रथ श ु ारा रोके नह जाते. (३) शूषे भवृधो जुषाणो अकदवाँ अ छा रघुप वा जगा त. म ो होता स जु ा३ य ज ः स म ो अ नरा जघ त दे वान्.. (४) ह से बड़े ए तो से से वत अ न इं ा द दे व से मलने के लए तेज चलते ए जाते ह. तु तयो य दे व को बुलाने वाले, य पा म उ म एवं दे व से यु अ न दे व के त ह व ले जाते ह. (४) तमु ा म ं न रेजमानम नं गी भनमो भरा कृणु वम्. आ यं व ासो म त भगृण त जातवेदसं जु ं सहानाम्.. (५) हे ऋ वजो! भोग के दे ने वाले व वाला के प म कांपते ए अ न को इं के समान तु तय एवं ह से हमारे अ भमुख करो. मेधावी तोता श ुसेना को हराने वाले, दे व को बुलाने वाले एवं जातवेद अ न क आदरपूवक तु त करते ह. (५) सं य म व ा वसू न ज मुवाजे ना ाः स तीव त एवैः. अ मे ऊती र वाततमा अवाचीना अ न आ कृणु व.. (६) हे अ न! शी गामी अ जस कार सं ाम म एक होते ह, उसी कार सभी संप यां तुम म मलती ह. हे अ न! तुम इं के र ासाधन को हमारे अ भमुख करो. (६) अधा ने म ा नष ा स ो ज ानो ह ो बभूथ. तं ते दे वासो अनु केतमाय धावध त थमास ऊमाः.. (७) हे अ न! तुम मह व से व लत होते ए य शाला म बैठकर उसी समय आ त डालने यो य ए थे, इस लए ह दाता ऋ वज् और यजमान तु हारी इस कार क पहचान का अनुगमन करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —७
दे वता—अ न
व त नो दवो अ ने पृ थ ा व ायुध ह यजथाय दे व. सचेम ह तव द म केतै या ण उ भदव शंसैः.. (१) हे द गुण यु अ न! हम य क ा के लए ावा-पृ थवी से लाकर क याण दान करो. हे दशनीय अ न! हम तु ह ा त कर. तुम अनेक शंसनीय र ासाधन से हमारी र ा करो. (१) इमा अ ने मतय तु यं जाता गो भर ैर भ गृण त राधः. यदा ते मत अनु भोगमानड् वसो दधानो म त भः सुजात.. (२) हे अ न! ये तु तयां तु हारे लए बोली गई ह. तुम अ और गाय के साथ हमारे लए धन दे ते हो, इस लए हम तु हारी तु त करते ह. हे तेज से सबको ढकने वाले, शोभनकम से उ प एवं हम धन दे ने वाले अ न! जब लोग तु हारा दया आ धन ा त करते ह, तब तु हारी तु त क जाती है. (२) अ नं म ये पतरम नमा पम नं ातरं सद म सखायम्. अ नेरनीकं बृहतः सपय द व शु ं यजतं सूय य.. (३) म अ न को ही पता, बंध,ु ाता तथा न य म मानता ं. म अ न के मुख क उसी कार सेवा करता ं, जस कार ुलोक म थत, पूजायो य एवं द तशाली सूयमंडल क आराधना क जाती है. (३) स ा अ ने धयो अ मे सनु ीय ायसे दम आ न यहोता. ऋतावा स रो हद ः पु ु ु भर मा अह भवामम तु.. (४) हे अ न! तु हारे वषय म हमारे ारा क गई तु तयां पूण ई ह. हे न य होता व य यु अ न! तुम हमारी य शाला म उप थत रहकर हमारी र ा करते हो. म तु हारे सहयोग से य क ा बनूं तथा लाल रंग के घोड़े एवं ब त सा धन ा त क ं , जससे उ म दवस म तु ह ह मल सके. (४) ु भ हतं म मव योगं नमृ वजम वर य जारम्. बा याम नमायवोऽजन त व ु होतारं यसादय त.. (५) द तय से यु , म के समान यु करने वाले अ न को यजमान ने भुजा स पा. (५)
करने यो य, पुराने ऋ वज् एवं य को समा त ारा उ प कया तथा दे व को बुलाने का काम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वयं यज व द व दे व दे वा कं ते पाकः कृणवद चेताः. यथायज ऋतु भदव दे वानेवा यज व त वं सुजात.. (६) हे द तशाली अ न! तुम ल ु ोक म रहने वाले दे व का य करो. क ची बु वाले और ानर हत लोग तु हारे बना या कर सकगे? हे शोभन ज म वाले अ न! तुमने जस कार समयसमय पर दे व के य कए ह, उसी कार अपना भी य करो. (६) भवा नो अ नेऽ वतोत गोपा भवा वय कृ त नो वयोधाः. रा वा च नः सुमहो ह दा त ा वोत न त वो३ अ यु छन्.. (७) हे अ न! तुम और अ दोन कार के भय से हमारी र ा करो. तुम हमारे लए अ उ प करो एवं अ दो. हे शोभन पूजा यो य अ न! तुम हम ह साम ी का दान करो एवं हमारे शरीर का पालन करो. (७)
सू —८
दे वता—अ न व इं
केतुना बृहता या य नरा रोदसी वृषभो रोरवी त. दव द ताँ उपमाँ उदानळपामुप थे म हषो ववध.. (१) अ न बड़ा झंडा लेकर ावा-पृ थवी के बीच म जाते ह एवं दे व को बुलाने के लए बैल के समान श द करते ह. अ न ुलोक से र या समीप रहकर उसे ा त करते ह एवं जल के भंडार अंत र म बजली के प म बढ़ते ह. (१) मुमोद गभ वृषभः ककु ान ेमा व सः शमीवाँ अरावीत्. स दे वता यु ता न कृ व वेषु येषु थमो जगा त.. (२) अ भलाषापूरक एवं उ त तेज वाले अ न ावा-पृ थवी के म य म स होते ह. ातःकाल एवं नशा के स पु एवं य कम करने वाले अ न श द करते ह. वे य म उ साहपूण कम करते ह, अपने थान म रहते ह एवं दे व के मुख बनकर जाते ह. (२) आ यो मूधानं प ोरर ध य वरे द धरे सूरो अणः. अ य प म षीर बु ना ऋत य योनौ त वो जुष त.. (३) अ न अपने माता- पता ावा-पृ थवी के सर पर अपने तेज से रमण करते ह. य क ा शोभनश वाले अ न के तेज को य म धारण करते ह. अ न के पतन के समय सुशो भत तोता य के थान म ा त अ न के शरीर क सेवा करते ह. (३) उषउषो ह वसो अ मे ष वं यमयोरभवो वभावा. ऋताय स त द धषे पदा न जनय म ं त वे३ वायै.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे शंसनीय अ न! तुम त दन उषाकाल से पहले ही आ जाते हो तथा आपस म मले ए रात- दन को का शत करते हो. तुम अपने शरीर से सूय को उ प करते ए य के न म सात थान म बैठो. (४) भुव ुमह ऋत य गोपा भुवो व णो य ताय वे ष. भुवो अपां नपा जातवेदो भुवो तो य य ह ं जुजोषः.. (५) हे अ न! तुम च ु के समान य को का शत करने वाले तथा र क हो. जब तुम व ण के प म जाते हो तब तुम र क बनते हो. हे जातवेद अ न! तु ह जल के नाती एवं उस यजमान के त बनते हो, जसका ह व तुम वीकार कर लेते हो. (५) भुवो य य रजस नेता य ा नयु ः सचसे शवा भः. द व मूधानं द धषे वषा ज ाम ने चकृषे ह वाहम्.. (६) हे अ न! तुम अंत र म क याणकारी अ वाले दे व से मलकर य और जल के नेता बनते हो. तुम धान एवं सबका उपभोग करने वाले सूय को वग म धारण करते हो एवं अपनी जीभ को ह वहन करने वाली बनाते हो. (६) अ य तः तुना व े अ त र छ धी त पतुरेवैः पर य. सच यमानः प ो प थे जा म ुवाण आयुधा न वे त.. (७) य के भाग से बढ़ ई श वाले त ऋ ष ने अपने र ासाधन से यु होकर, य के म य म अपना भाग चाहते ए उ म एवं जगत्पालक इं को य के ारा म बनाया. माता- पता प ावा-पृ थवी के म य म वतमान य म ऋ वज स हत त ने इं के अनुकूल तो बोलते ए आयुध ा त कए. (७) स प या यायुधा न व ा न े षत आ यो अ ययु यत्. शीषाणं स तर मं जघ वा वा य च ः ससृजे तो गाः.. (८) अपने पता के आयुध को जानने वाले एवं इं के ारा े रत आ यपु कया. उसने सात र मय वाले शरा का वध कया और व ा के पु व छ न ल . (८) भूरी द उ दन वा य च
त ने यु प क गाएं
तमोजोऽवा भनत् स प तम यमानम्. प य गोनामाच ाण ी ण शीषा परा वक्.. (९)
स जन के पालक इं ने वयं को शूर मानने वाले एवं अ त र तेज धारण करने वाले व ापु को मार डाला. इं ने व ा के पु व प क गाय को बुलाते ए उसके तीन सर को काट दया. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —९
दे वता—जल
आपो ह ा मयोभुव ता न ऊज दधातन. महे रणाय च से.. (१) हे सुख के आधार जल! तुम हम अ पाने के यो य बनाओ तथा हम महान् व रमणीय ान दो. (१) यो वः शवतमो रस त य भाजयतेह नः. उशती रव मातरः.. (२) हे जल! पु क उ त चाहने वाली माताएं जस कार उसे ध दे ती ह, उसी कार तुम अपना सुखकर रस हम दो. (२) त मा अर माम वो य य याय ज वथ. आपो जनयथा च नः.. (३) हे जल! तुम जस पाप को न करने के लए हमसे स ए हो, हम उसी पाप के नाश के लए तु हारे पास शी जाते ह. तुम हम जनन के यो य बनाओ. (३) शं नो दे वीर भ य आपो भव तु पीतये. शं योर भ व तु नः.. (४) द जल हमारे य के लए सुखदाता ह एवं पीने यो य बन. जल हमारे ऊपर शु हेतु बरस, हमारे उ प रोग को मटाव तथा अनु प रोग को हमसे अलग रख. (४) ईशाना वायाणां य ती षणीनाम्. अपो याचा म भेषजम्.. (५) जल अ भलाषायो य व तु के वामी एवं मानव को नवास थान दे ने वाले ह. हम जल से दवा क ाथना कर. (५) अ सु मे सोमो अ वीद त व ा न भेषजा. अ नं च व श भुवम्.. (६) सोम ने मुझसे कहा क जल के भीतर सभी दवाएं एवं संसार को सुखी करने वाले अ न रहते ह. (६) आपः पृणीत भेषजं व थं त वे३ मम. यो च सूय शे.. (७) हे जल! तुम मेरे शरीर क र ा करने वाली दवा तक सूय को दे ख सक. (७) इदमापः
वहत य कं च
रतं म य. य ाहम भ
को पु करो, जससे हम ब त दन ोह य ा शेप उतानृतम्.. (८)
हे जल! मुझ म जो कुछ पाप है, मने जो ोह कया है, मेरा जो पतन आ है अथवा मने जो झूठ बोला है, उसे मुझसे र करो. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आपो अ ा वचा रषं रसेन समग म ह. पय वान न आ ग ह तं मा सं सृज वचसा.. (९) आज म जल म घुसा ं. मने जल का रस पया है. हे अ न! तुम जलयु जाओ एवं मुझे तेज वी बनाओ. (९)
सू —१०
बनकर
दे वता—यमयमी
ओ च सखायं स या ववृ यां तरः पु चदणवं जग वान्. पतुनपातमा दधीत वेधा अ ध म तरं द यानः.. (१) यमी बोली– इस नजन एवं व तृत प म आकर म तुझ सखा से संभोग सुख पाने के लए स मुख ई ं. तुम माता के उदर से ही मेरे साथ हो. वधाता यह चाहते ह क तु हारे संसग से मेरे उदर से जो पु पैदा हो, वह हमारे पता का यो य नाती हो. (१) न ते सखा स यं व ेत सल मा य षु पा भवा त. मह पु ासो असुर य वीरा दवो धतार उ वया प र यन्.. (२) यम ने उ र दया– तु हारा साथी यम तु हारे साथ ऐसी म ता नह चाहता. तुम ब हन होने के कारण इस संबंध के यो य नह हो. महान् एवं श शाली जाप त के वगधारणक ा पु अथात् दे व दे ख रहे ह. (२) उश त घा ते अमृतास एतदे क य च यजसं म य य. न ते मनो मन स धा य मे ज युः प त त व१मा व व याः.. (३) यमी ने कहा– जाप त आ द दे व या य ना रय के साथ इस कार का संबंध रखना चाहते ह. मानव के लए यह संबंध या य है. तुम अपने मन को मेरे अनुकूल बनाओ एवं जाप त के समान तुम भी पु के ज मदाता के प म मेरे शरीर म वेश करो. (३) न य पुरा चकृमा क नूनमृता वद तो अनृतं रपेम. ग धव अ व या च योषा सा नो ना भः परमं जा म त ौ.. (४) यम बोला– हमने पहले ऐसा कभी नह कया. हम स य बोलते ए अस य से र रहते ह. अंत र म जल धारण करने वाले सूय एवं अंत र म रहने वाली उनक प नी सर यू हमारे पता-माता ह. इस कार हम सगे भाईब हन ह. (४) गभ नु नौ ज नता द पती कदव व ा स वता व पः. न कर य मन त ता न वेद नाव य पृ थवी उत ौः.. (५) यमी कहने लगी– पक ा, शुभाशुभ ेरक एवं सवा मक जाप त ने गभ म ही हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प त-प नी बना दया था. जाप त के काम का कोई भी वरोध नह करता है. हमारे दं पती होने क बात ावा-पृ थवी जानते ह. (५) को अ य वेद थम या ः क ददश क इह वोचत्. बृह म य व ण य धाम क व आहनो वी या नॄन्.. (६) यमी बोली– पहले दन के संभोग को कौन जानता है! उसे कसने दे खा है? उसे कौन बताएगा? हे मो और बंधन का नणय करने वाले यम! तुम म और व ण के थान अथात् दन-रात के वषय म या कहते हो. (६) यम य मा य यं१ काम आग समाने योनौ सहशे याय. जायेव प ये त वं र र यां व चद्वृहव े र येव च ा.. (७) तुझ यम क अ भलाषा मुझ यमी के त जागृत हो. एक ही श या पर साथ-साथ सोने के लए प नी जस कार प त के सामने अपना शरीर द शत करती है, उसी कार म अपना शरीर का शत क ं गी. आओ, हम दोन रथ के दो प हय के समान एक ही काय म लग. (७) न त त न न मष येते दे वानां पश इह ये चर त. अ येन मदाहनो या ह तूयं तेन व वृह र येव च ा.. (८) यम ने कहा– यहां जो दे व के गु तचर घूमते ह, वे न कभी कते ह और न आंख बंद करते ह. हे ःख दे ने वाली यमी! तुम मेरे अ त र कसी अ य के पास शी जाओ एवं रथ के प हय के समान एक चवाला काय करो. (८) रा ी भर मा अह भदश ये सूय य च म ु ु ममीयात्. दवा पृ थ ा मथुना सब धू यमीयम य बभृयादजा म.. (९) सभी यजमान रात और दन का क पत भाग यम को द. सूय का तेज यम के लए बार-बार उ दत हो. आपस म संबंध रखने वाले रात- दन ावा और पृ थवी के साथ यम के बंधु ह. यमी अपने भाई यम के अ त र कसी अ य को अपना बनाव. (९) आ घा ता ग छानु रा युगा न य जामयः कृणव जा म. उप बबृ ह वृषभाय बा म य म छ व सुभगे प त मत्.. (१०) आगे चलकर ऐसा समय आएगा, जब ब हन अपने भाई के अ त र कसी अ य को प त बनावगी. हे सुंदरी! मेरे अ त र कसी अ य को प त बनाने क क पना करो और अपनी भुजा को वीयाधान करने वाले उस पु ष का उपधान बनाओ. (१०) क ातास दनाथं भवा त कमु वसा य ऋ त नग छात्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
काममूता ब े ३ त पा म त वा मे त वं१ सं पपृ ध.. (११) यमी कहने लगी– उस भाई के होने से या लाभ है, जसके रहते ए भी ब हन प त वहीन रहे. उस ब हन के होने से या लाभ है, जसके होते ए भाई ःख उठाए. म काममू छत होकर ये वचन बोल रही ं. तुम मेरे शरीर से अपना शरीर भली-भां त मलाओ. (११) न वा उ ते त वा त वं१ सं पपृ यां पापमा यः वसारं नग छात्. अ येन म मुदः क पय व न ते ाता सुभगे व ेतत्.. (१२) यम कहने लगा– हे यमी! म तु हारे शरीर से अपना शरीर नह मलाना चाहता. जो अपनी ब हन के साथ संभोग करता है, उसे लोग पापी कहते ह. हे सुंदरी! मेरे अ त र कसी अ य पु ष के साथ आमोद मोद करो. तु हारा भाई यह काम करना नह चाहता. (१२) बतो बता स यम नैव ते मनो दयं चा वदाम. अ या कल वां क येव यु ं प र वजाते लबुजेव वृ म्.. (१३) यमी बोली– मुझे खेद है क तुम ब त कमजोर हो. म तु हारे मन को नह समझ पा रही ं. र सी जस कार घोड़े को बांधती है और लता जस कार वृ से लपट जाती है, उसी कार अ य ी तु हारा आ लगन करती है. (१३) अ यमू षु वं य य य उ वां प र वजाते लबुजेव वृ म्. त य वा वं मन इ छा स वा तवाधा कृणु व सं वदं सुभ ाम्.. (१४) यम ने कहा– हे यमी! लता जस कार वृ को लपेटती है, उसी कार तुम मेरे अ त र अ य पु ष का आ लगन करो. वह पु ष भी तु हारा आ लगन करे. तुम उस पु ष का मन जीतने क कामना करो और वह पु ष तु हारा मन जीतने क इ छा करे. तुम उसी के साथ क याणकारी सहवास करो. (१४)
सू —११
दे वता—अ न
वृषा वृ णे हे दोहसा दवः पयां स य ो अ दतेरदा यः. व ं स वेद व णो यथा धया स य यो यजतु य याँ ऋतून्.. (१) वषा करने वाले, महान् और अपराजेय अ न ने ह व बरसाने वाले यजमान के लए दोहन या ारा आकाश से जल गराया. व ण अपनी बु से सारे संसार को जानते ह. य यो य अ न अनुकूल ऋतु म य कर. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रपद्ग धव र या च योषणा नद य नादे प र पातु मे मनः. इ य म ये अ द त न धातु नो ाता नो ये ः थमो व वोच त.. (२) अ न के गुण का वणन करने वाली गंधवप नी एवं जल से सं कृत आ त ने अ न को वशेष तृ त कया है. मेरा मन तु तय के उ चारण म भली-भां त लगा रहे. खंडनर हत अ न हम य के बीच म थत कर. यजमान म मु य अथात् मेरे बड़े भाई अ न क वशेष प से तु त कर. (२) सो च ु भ ा ुमती यश व युषा उवास मनवे ववती. यद मुश तमुशतामनु तुम नं होतारं वदथाय जीजनन्.. (३) भ ा, श दयु एवं अ वाली उषा यजमान के लए आ द य के साथ शी उ दत ई. उस समय य ा भला षय के ऊपर स होने वाले एवं दे व को बुलाने वाले अ न को उ प कया गया. (३) अध यं सं व वं वच णं वराभर द षतः येनो अ वरे. यद वशो वृणते द ममाया अ नं होतारमध धीरजायत.. (४) बाज प ी अ न ारा े रत होकर य म महान्, सू मदश तथा न कम न अ धक सोम को ले आया. जब आय यजमान उस दशनीय व दे व के आह्वान करने यो य अ न क ाथना करते ह, तब होता य या आरंभ करते ह. (४) सदा स र वो यवसेव पु यते हो ा भर ने मनुषः व वरः. व य वा य छशमान उ यं१ वाजं ससवाँ उपया स भू र भः.. (५) हे अ न! तुम पशु को पु करने वाली घास के समान सदा रमणीय हो. तुम मनु य के ह से शोभन य वाले बनो. तुम तोता क तु तय क शंसा करते ए एवं ह का उपभोग करते ए ब त से दे व के साथ जाते हो. (५) उद रय पतरा जार आ भग मय त हयतो इ य त. वव व ः वप यते मख त व यते असुरो वेपते मती.. (६) हे अ न! तुम अपना काश अपने माता- पता ावा-पृ थवी क ओर इस कार भेजो, जस कार सूय अपनी यो त इनक ओर भेजते ह. य क कामना करने वाला यजमान स चे मन से य करना चाहता है एवं तु त वचन बोलने का इ छु क है. अ वयु य कम को पूरा करने को उ सुक है. ा तो को बढ़ाते ह एवं उनक बु य के वषय म कभीकभी शंका करने लगती है. (६) य ते अ ने सुम त मत अ सहसः सूनो अ त स शृ वे. इषं दधानो वहमानो अ ैरा स ुमाँ अमवा भूष त ून्.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे बलपु अ न! जो मनु य तु हारी दया पर बैठकर चलने वाला, द तशाली, बली एवं करता है. (७)
चाहता है, वह स , अ दाता, घोड़ त दन सुशो भत होता आ तु हारी सेवा
यद न एषा स म तभवा त दे वी दे वेषु यजता यज . र ना च य भजा स वधावो भागं नो अ वसुम तं वीतात्.. (८) हे य -यो य अ न! जब हमारी तु तयां दे व के बीच म का शत होती ह, उस समय तुम हम र न दे ते हो. हे वधायु अ न! उस समय हम धन का भाग ा त कर. (८) ु ी नो अ ने सदने सध थे यु वा रथममृत य व नुम्. ध आ नो वह रोदसी दे वपु े मा कदवानामप भू रह या.. (९) हे अ न! तुम दे व के साथ य शाला म रहकर हमारे तु तवचन को सुनो, अमृत बरसाने वाले रथ को जोड़ो व दे व के माता- पता ावा-पृ थवी को हमारे पास लाओ. तुम दे व को छोड़कर मत जाओ. तुम यह रहो. (९)
सू —१२
दे वता—अ न
ावा ह ामा थमे ऋतेना भ ावे भवतः स यवाचा. दे वो य मता यजथाय कृ व सीद ोता यङ् वमसुं यन्.. (१) स य बोलने वाले एवं मुख ावा-पृ थवी सबसे पहले य म अ न का आ ान कर. अ न दे व मानव को य के लए े रत करते ए एवं दे व को बुलाने के लए वाला पी ाण को धारण करके वेद पर बैठ. (१) दे वो दे वा प रभूऋतेन वहा नो ह ं थम क वान्. धूमकेतुः स मधा भाऋजीको म ो होता न यो वाचा यजीयान्.. (२) द तशाली, सभी दे व म मुख, सब कुछ जानने वाले, धुएं पी वजा से यु , स मधा के कारण ऊंची वाला वाले, तु तयो य, न य एवं वाणी ारा यजमान का य करने वाले अ न दे व के समीप जाते ए य के साथ-साथ हमारा ह ले जाव. (२) वावृ दे व यामृतं यद गोरतो जातासो धारय त उव . व े दे वा अनु त े यजुगु हे यदे नी द ं घृतं वाः.. (३) अ न दे व के अपने तेज से जो जल उ प होता है, उस जल से उ प होने वाले वृ ावा-पृ थवी को धारण करते ह तथा सभी दे व तु हारे दए ए जल क शंसा करते ह. तु हारी उ वल द त द एवं बरसने वाले जल को हती है. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अचा म वां वधायापो घृत नू ावाभूमी शृणुतं रोदसी मे. अहा यद् ावोऽसुनी तमय म वा नो अ पतरा शशीताम्.. (४) हे अ न! तुम मेरे य कम को बढ़ाओ. हे वषा का जल उ प करने वाले ावा-पृ थवी! तुम मेरी तु त सुनो. तोता जस समय य तु त करते ह, उस समय तुम वषा करके सबको शु करो. (४) क व ो राजा जगृहे कद या त तं चकृमा को व वेद. म मा जु राणो दे वा छ् लोको न याताम प वाजो अ त.. (५) या द तशाली अ न ने हमारी तु तयां और ह व वीकार कर लया है? या हमने अ न के प रचरण का कम कया है? इन बात को कौन जानता है? म के समान नेहपूवक बुलाने से अ न आ जाते ह. हमारी यह तु त एवं ह अ दे व के पास जावे. (५) म व ामृत य नाम सल मा य षु पा भवा त. यम य यो मनवते सुम व ने तमृ व पा यु छन्.. (६) मरणर हत सूय का अपराधर हत एवं मधुरतायु जल धरती पर नाना प धारण करता है. यम के अपराध को सूय जानते ह. हे महान् अ न! माद न करते ए सूय क र ा करो. (६) य म दे वा वदथे मादय ते वव वतः सदने धारय ते. सूय यो तरदधुमा य१ ू प र ोत न चरतो अज ा.. (७) अ न के य म उप थत रहने पर दे व स होते ह एवं सूय के य वेद प थान म अपने आपको था पत करते ह. दे व ने सूय म तेज तथा चं मा म रात को था पत कया. न न होने वाले सूय और चं काश पाते ह. (७) य म दे वा म म न स चर यपी ये३ न वयम य व . म ो नो अ ा द तरनागान् स वता दे वो व णाय वोचत्.. (८) ान पी अ न के य म उप थत रहने पर दे वगण अपने-अपने अ धकार म लग जाते ह. हम अ न के छपे ए प को नह जानते. इस य म म , अ द त एवं सूय पापनाशक अ न के सामने हमको पापर हत बताव. (८) ु ी नो अ ने सदने सध थे यु वा रथममृत य व नुम्. ध आ नो वह रोदसी दे वपु े मा कदवानामप भू रह याः.. (९) हे अ न! तुम य शाला म सब दे व के साथ रहकर हमारी तु तयां सुनो, अमृत बरसाने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले अपने रथ म घोड़े जोड़ो व दे व के माता- पता ावा-पृ थवी को हमारे पास लाओ. तुम दे व को छोड़कर मत जाओ और यह रहो. (९)
सू —१३
दे वता—ह वधान शकट
युजे वां पू नमो भ व ोक एतु प येव सूरेः. शृ व तु व े अमृत य पु ा आ ये धामा न द ा न त थुः.. (१) हे ह व धारण करने वाली गा ड़यो! म ाचीन मं का उ चारण करके एवं तु हारे ऊपर सोम आ द लादकर प नीशाला से ले जाता ं. तोता क आ त के समान मेरी तु तयां दे व के समीप जाव. द धाम म रहने वाले दे व एवं अमरपु इस बात को सुन. (१) यमे इव यतमाने यदै तं वां भर मानुषा दे वय तः. आ सीदतं वमु लोकं वदाने वास थे भवत म दवे नः.. (२) हे गा ड़यो! जब तुम जुड़वां संतान के समान एक साथ जाती हो, तब दे वपूजक लोग तु हारे ऊपर ब त सी हवन क साम ी लादते ह. तुम अपने थान को जानती ई वहां रहो एवं हमारे सोम के लए शोभन थान वाली बनो. (२) प च पदा न पो अ वरोहं चतु पद म वे म तेन. अ रेण त मम एतामृत य नाभाव ध सं पुना म… (३) हे गा ड़यो! म तु हारे ऊपर य के पांच उपकरण को रखता ,ं नयमपूवक चार छं द का योग करता ं, ओम् का उ चारण करके य काय पूरा करता ं एवं य क ना भ पर सोमरस को शु करता ं. (३) दे वे यः कमवृणीत मृ युं जायै कममृतं नावृणीत. बृह प त य मकृ वत ऋ ष यां यम त वं१ ा ररेचीत्.. (४) दे व म कसे मृ यु के पास भेजा जाए एवं जा म से कसे अमर न बनाया जाए? यजमान दे व के पालक एवं फलदाता वशाल य को करते ह. इस कारण यम हमारे शरीर को मौत के पास नह भेजते. (४) स त र त शशवे म वते प े पु ासो अ यवीवत ृतम्. उभे इद योभय य राजत उभे यतेते उभय य पु यतः.. (५) तोतागण पता के समान एवं शंसायो य सोम के लए सात छं द वाली तु तयां बोलते ह. सोम के पु तु य ऋ वज् भी स ची तु तयां बोलते ह. ह व ढोने वाली दोन गा ड़यां दे व और मानव दोन क ईश ह, य कम पूरा करने का य न करती ह तथा दोन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का पोषण करती ह. (५)
सू —१४
दे वता— पतृलोक आ द
परे यवांसं वतो महीरनु ब यः प थामनुप पशानम्. वैव वतं स मनं जनानां यमं राजानं ह वषा व य.. (१) हे यजमान! तुम पतर के वामी यम क पुरोडाश आ द के ारा सेवा करो. यम ब त से पु यकम करने वाल को सुख दे ने वाले थान म ले जाते ह, ब त का माग सरल बनाते ह एवं सभी मनु य क मं जल एक है. (१) यमो नो गातुं थमो ववेद नैषा ग ू तरपभतवा उ. य ा नः पूव पतरः परेयुरेना ज ानाः प या३ अनु वाः.. (२) सबके मुख यम हमारे माग को जानते ह. यम के माग का नाश कोई नह कर सकता. जस माग से पूववत पतर गए ह, उसीसे हम सब लोग जाव. (२) मातली क ैयमो अ रो भबृह प तऋ व भवावृधानः. याँ दे वा वावृधुय च दे वा वाहा ये वधया ये मद त.. (३) इं क नामक पतर क सहायता से, यम अं गरा नामक पतर क सहायता से और बृह प त ऋ व नामक पतर क सहायता से बढ़ते ह. दे व क संवधना करने वाले एवं दे व ारा संबं धत लोग भी बढ़ते ह. दे व म कोई वाहा और कोई वधा के ारा स होता है. (३) इमं यम तरमा ह सीदा रो भः पतृ भः सं वदानः. आ वा म ाः क वश ता वह वेना राज ह वषा मादय व.. (४) हे यम! अं गरा नामक पतर के साथ एकता रखते ए तुम इस व तृत य म आकर बैठो. व ान् ऋ वज ारा बोले ए मं तु ह बुलाव. हे वामी यम! तुम इस ह व से स बनो. (४) अ रो भरा ग ह य ये भयम वै पै रह मादय व. वव व तं वे यः पता तेऽ म य े ब ह या नष .. (५) हे यम! नाना प धारी एवं य क ा अं गरा के साथ इस य म पधारो एवं यजमान को स करो. म तु हारे पता वव वान् को बुलाता ं. वे इस य म बैठकर यजमान को स कर. (५) अ रसो नः पतरो नव वा अथवाणो भृगवः सो यासः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेषां वयं सुमतौ य यानाम प भ े सौमनसे याम.. (६) नवीन आगमन वाले अं गरा, अथवा और भृगु नामक पतर सोमरस के अ धकारी ह. हम उन य पा पतर क कृपा पाव एवं उनक कृपा के कारण क याण ा त कर. (६) े ह े ह प थ भः पू भय ा नः पूव पतरः परेयुः. उभा राजाना वधया मद ता यमं प या स व णं च दे वम्.. (७) हे मेरे पता! जन ाचीन माग से हमारे पूववत पतर गए ह, उ ह से तुम भी पधारो. तुम वहां वधा से स होते ए यम एवं व णदे व—दोन वा मय को दे खो. (७) सं ग छ व पतृ भः सं यमेने ापूतन परमे ोमन्. ह वायाव ं पुनर तमे ह सं ग छ व त वा सुवचाः.. (८) हे मेरे पता! तुम उ म वग म जाकर अपने पतर से, यम से और अपने ौत, मात कम के फल से मलो. तुम अपना पाप छोड़कर यमान नामक घर म आओ एवं शोभन द त वाले शरीर से मलो. (८) अपेत वीत व च सपतातोऽ मा एतं पतरो लोकम न्. अहो भर र ु भ ं यमो ददा यवसानम मै.. (९) हे मशान पर रहने वाले पशाचो! यहां से चले जाओ, हट जाओ. पतर ने इस थान को हमारे इस मरे ए यजमान के लए बनाया है. यम ने दवस , जल और रा य से यु यह थान इस मरने वाले को दया है. (९) अ त व सारमेयौ ानौ चतुर ौ शबलौ साधुना पथा. अथा पतॄ सु वद ाँ उपे ह यमेन ये सधमादं मद त.. (१०) हे अ न! तुम सरमा के पु , चार आंख वाले एवं चतकबरे दो कु को पार करके उ म माग के ारा जाते ए यम के साथ स रहने वाल एवं शोभन ानसंप पतर के समीप जाओ. (१०) यौ ते ानो यम र तारौ चतुर ौ प थर ी नृच सौ. ता यामेनं प र दे ह राज व त चा मा अनमीवं च धे ह.. (११) हे वामी यम! जो तु हारे घर के र क, चार आंख वाले, माग क र ा करने वाले एवं मनु य ारा शं सत दो कु े ह, उनसे इस मृत क र ा करो एवं इसे क याण एवं रोगहीनता दो. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ णसावसुतृपा उ बलौ यम य तौ चरतो जनाँ अनु. ताव म यं शये सूयाय पुनदातामसुम ेह भ म्.. (१२) लंबी नाक वाले, सर के ाण से तृ त होने वाले, अ यंत बली एवं यम के त जो दो कु े ह, वे आज हम सूय का दशन करने के लए यहां क याणकारी ाण द. (१२) यमाय सोमं सुनुत यमाय जु ता ह वः. यमं ह य ो ग छ य न तो अरङकृतः.. (१३) हे ऋ वजो! यम के लए सोमरस नचोड़ो तथा ह व का होम करो. अ न को त बनाने वाला एवं अलंकृत य यम के पास जाता है. (१३) यमाय घृतव
वजुहोत
च त त. स नो दे वे वा यम घमायुः
जीवसे.. (१४)
हे ऋ वजो! यम के लए घी वाला ह व होम करो एवं उनक सेवा करो. यम दे व हम लंबा जीवन बताने के लए अ धक आयु द. (१४) यमाय मधुम मं रा े ह ं जुहोतन. इदं नम ऋ ष यः पूवजे यः पूव यः प थकृद् यः.. (१५) हे ऋ वजो! वामी यम के लए अ यंत मधुर ह व का होम करो. हमारे जन पूवज ऋ षय ने पहले यह माग बनाया है, उनके लए नम कार है. (१५) क के भः पत त षळु व रेक मद्बृहत्. ु गाय ी छ दां स सवा ता यम आ हता.. (१६) यम क क नामक य को ा त करते ह, छः थान म रहते ह एवं एक व तृत संसार म घूमते ह. ु प्, गाय ी आ द सब छं द यम क तु त म यु ह. (१६)
सू —१५
दे वता— पतृलोक
उद रतामवर उ परास उ म यमाः पतरः सो यासः. असुं य ईयुरवृका ऋत ा ते नोऽव तु पतरो हवेषु.. (१) उ म, म यम और अधम—तीन े णय के पतर कृपा करते ए हमारा ह व हण कर. हमारी हसा न करने वाले और हमारे य को जानने वाले जो पतर हमारी ाणर ा करने आए ह, वे य म हमारी र ा कर. (१) इदं पतृ यो नमो अ व ये पूवासो य उपरास ईयुः. ये पा थवे रज या नष ा ये वा नूनं सुवृजनासु व ु.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो बाबा आ द पतर पहले मरे ह, जो बड़े भाई आ द पतर बाद म मरे ह, जो पृ थवी पर ज म लेकर आ गए ह अथवा जो शोभन धन वाली जा के बीच ह, उनके लए यह नम कार है. (२) आहं पतॄ सु वद ाँ अ व स नपातं च व मणं च व णोः. ब हषदो ये वधया सुत य भज त प व त इहाग म ाः.. (३) मने ऐसे पतर को पाया है जो मेरी भ को भली-भां त जानते ह. मने ापक य क न यता एवं पूरा करने का उपाय भी पाया है. जो पतर कुश पर बैठकर सोमरस पीते ए स होते ह, वे इस कम म आव. (३) ब हषदः पतर ऊ य१वा गमा वो ह ा चकृमा जुष वम्. त आ गतावसा श तमेनाथा नः शं योररपो दधात.. (४) हे कुश पर बैठने वाले पतरो! इस समय तुम हमारी र ा करो. हमने तु हारे लए ये ह तैयार कए ह, तुम इनका उपभोग करो. तुम आओ और र ा करते ए हमारा क याण करो. तुम हम सुखी करो, हमारा ःख मटाओ और हम पापर हत बनाओ. (४) उप ताः पतरः सो यासो ब ह येषु न धषु येषु. त आ गम तु त इह ुव व ध ुव तु तेऽव व मान्.. (५) कुश के ऊपर य रखे जाने के बाद सोमरस के म े ी पतर बुलाए गए ह. वे वहां आव, हमारी तु तयां सुन, तु तयां सुनकर अपनी स ता कट कर एवं हमारी र ा कर. (५) आ या जानु द णतो नष ेमं य म भ गृणीत व े. मा ह स पतरः केन च ो य आगः पु षता कराम.. (६) हे पतरो! तुम सब मेरी दा हनी ओर धरती पर घुटने टे ककर बैठो और तुम सब इस य क शंसा करो. हम पु ष होने के कारण भूल से पाप कर बैठते ह. तुम कसी पाप के कारण हमारी हसा मत करो. (६) आसीनासो अ णीनामुप थे र य ध दाशुषे म याय. पु े यः पतर त य व वः य छत त इहोज दधात.. (७) हे लाल वाला के समीप बैठने वाले पतरो! ह दे ने वाले मनु य को धन दो, तुम यजमान के पु को धन दो तथा हमारे इस य म धन धारण करो. (७) ये नः पूव पतरः सो यासोऽनू हरे सोमपीथं व स ाः. ते भयमः संरराणो हव युश ुश ः तकामम ु.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारे सोमरस तैयार करने वाले, उ म व धारक एवं नयमपूवक दे वा द को सोमपान कराने वाले ाचीन पतर यम के साथ एवं यम उनके साथ ह व आ द का उपभोग करना चाहते ह. यम उन पतर के साथ अपनी इ छा के अनुसार ह भ ण कर. (८) ये तातृषुदव ा चेहमाना हो ा वदः तोमत ासो अकः. आ नै या ह सु वद े भरवाङ् स यैः का ैः पतृ भघमस
ः.. (९)
हे अ न! य करने के ाता, तो और मं के बनाने वाले एवं म से दे व व पाने वाले जो पतर यासे ह, उ ह हमारे सामने लेकर आओ. वे पतर वशेष प र चत, ववादर हत, य म बैठने वाले एवं ह हण करने वाले ह. (९) ये स यासो ह वरदो ह व पा इ े ण दे वैः सरथं दधानाः. आ ने या ह सह ं दे वव दै ः परैः पूवः पतृ भघमस ः.. (१०) हे अ न! जो पतर स चे, ह भ ण करने वाले, सोम पीने वाले, इं ा द दे व के साथ एक रथ पर बैठने वाले, दे वाराधन क ा, पहले वाले, उनके बाद वाले एवं य म बैठने वाले ह. उन पतर के साथ आओ. (१०) अ न वा ाः पतर एह ग छत सदःसदः सदत सु णीतयः. अ ा हव ष यता न ब ह यथा र य सववीरं दधातन.. (११) हे अ न वा नामक पतरो! यहां आओ और वागत वीकार करके अपने-अपने आसन पर बैठो एवं कुश पर फैले ए ह को खाओ. इसके बाद हम पु -पौ से यु धन दो. (११) वम न ई ळतो जातवेदोऽवा ादाः पतृ यः वधया ते अ
ा न सुरभी ण कृ वी. वं दे व यता हव ष.. (१२)
हे सबको जानने वाले अ न! हमने तु हारी तु त क है. तुमने हमारा ह सुंग धत बनाकर पतर को दया है. पतर ‘ वधा’ श द के साथ दया आ ह व भ ण कर. हे अ न दे व! तुम हमारे य न ारा संपा दत ह का भ ण करो. (१२) ये चेह पतरो ये च नेह याँ व याँ उ च न व . वं वे थ य त ते जातवेदः वधा भय ं सुकृतं जुष व.. (१३) हे जातवेद अ न! तुम उन सब पतर को जानते हो, जो यहां आए ह, जो यहां नह आए ह, ज ह हम जानते ह और ज ह हम नह जानते ह. तुम वधा श द के साथ कए गए हमारे य को वीकार करो. (१३) ये अ नद धा ये अन नद धा म ये दवः वधया मादय ते. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ते भः वराळसुनी तमेतां यथावशं त वं क पय व.. (१४) हे वयं काश अ न! जो पतर अ न ारा जलाए गए ह एवं जो नह जलाए गए ह, वे सब वग के बीच म वधा श द के साथ दए गए ह से स होते ह. तुम उन पतर के साथ मलकर उनके दे व शरीर को उनक इ छा के अनुसार बनाओ. (१४)
सू —१६
दे वता—अ न
मैनम ने व दहो मा भ शोचो मा य वचं च पो मा शरीरम्. यदा शृतं कृणवो जातवेदोऽथेमेनं हणुता पतृ यः.. (१) हे अ न! इस मरे ए को पूरी तरह मत जलाओ. इसे क मत प ंचाओ. इसके चमड़े और शरीर को इधर-उधर मत बखेरो. हे जातवेद अ न! जब तुम इसे पका चुको, तभी इसे पतर के पास भेज दे ना. (१) शृतं यदा कर स जातवेदोऽथेमेनं प र द ा पतृ यः. यदा ग छा यसुनी तमेतामथा दे वानां वशनीभवा त.. (२) हे अ न! तुम इस मरे ए शरीर को जब पका लो, तभी इसे पतर के पास प ंचा दे ना. जब यह दोबारा ाण ा त करेगा, तब दे व के वश म रहेगा. (२) सूय च ुग छतु वातमा मा ां च ग छ पृ थव च धमणा. अपो वा ग छ य द त ते हतमोषधीषु त त ा शरीरैः.. (३) हे मरे ए ! तु हारी आंख सूय को और तु हारा ाण वायु को ा त हो. तुम अपने धा मक काय के कारण वग या धरती पर जाओ. य द जल म तु हारा सुख है तो वहां जाओ. तुम अपने शरीर के ारा ओष धय म थत रहो. (३) अजो भाग तपसा तं तप व तं ते शो च तपतु तं ते अ चः. या ते शवा त वो जातवेद ता भवहैनं सुकृतामु लोकम्.. (४) हे अ न! इस मरे ए का जो भाग ज मर हत है, उसीको तुम अपने ताप से तपाओ. तु हारी वाला एवं काश उसे तपावे. हे जातवेद अ न! तुम अपने क याणकारी प के ारा इसे उ म कम करने वाल के लोक म ले जाओ. (४) अव सृज पुनर ने पतृ यो य त आ त र त वधा भः. आयुवसान उप वेतु शेषः सं ग छतां त वा जातवेदः.. (५) हे अ न! जो मरा आ तु हारी आ त बनकर वधा श द के साथ ऊपर जाता है, उसे पतर के समीप जाने क ेरणा दो. इसके शरीर का शेष भाग जीवन ा त करे. हे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जातवेद अ न! यह
शरीर से पुनः मले. (५)
य े कृ णः शकुन आतुतोद पपीलः सप उत वा ापदः. अ न ादगदं कृणोतु सोम यो ा णाँ आ ववेश.. (६) हे मृत ! तु हारे जस अंग को कौवे ने नोचा है अथवा च ट , सांप या अ य कसी पशु ने काटा है, अ न उस सबको रोगर हत कर. ा ण के शरीर म वेश करने वाले सोम भी तु ह नरोग बनाव. (६) अ नेवम प र गो भ य व सं ोणु व पीवसा मेदसा च. ने वा धृ णुहरसा ज षाणो दधृ वध य पयङ् खयाते.. (७) हे ेत! तुम गाय के चमड़े के साथ-साथ आग क लपट पी कवच को पहनो. तुम चब और मांस से ढक जाओ. ऐसा होने पर अपने तेज से तु ह पराभूत करने वाले एवं अ यंत स अ न तु ह नह जलावगे. वे तु ह वशेष प से जलाने को तैयार ह. (७) इमम ने चमसं मा व ज रः यो दे वानामुत सो यानाम्. एष य मसो दे वपान त म दे वा अमृता मादय ते.. (८) हे अ न! इस चमस को इधर-उधर मत करना. यह सोमरस पीने वाले दे व का यह चमस दे व के सोमपान के लए है. इसे पाकर मरणर हत दे व स होते ह. (८)
य है.
ादम नं हणो म रं यमरा ो ग छतु र वाहः. इहैवाय मतरो जातवेदा दे वे यो ह ं वहतु जानन्.. (९) म मांस जलाने वाली तेज आग को र करता ं. पाप को ढोने वाली वह आग यम के दे श म जावे. यहां ही ये सरे अ न ह, ऐसा जानते ए हम दे व के लए ह ले जाते ह. (९) यो अ नः ा ववेश वो गृह ममं प य तरं जातवेदसम्. तं हरा म पतृय ाय दे वं स घम म वा परमे सध थे.. (१०) मांस जलाने वाली चता क अ न तु हारे इस घर म वेश कर गई है. म उ ह घर से नकालता ं. म सरे जातवेद अ न को दे खता आ उ म थान म य के लए ा त करता ं. यह अ न मेरे य को लेकर वग म जाव. (१०) यो अ नः वाहनः पतॄ य तावृधः. े ह ा न वोच त दे वे य पतृ य आ.. (११) जो अ न ा क साम ी को पतर तक ढोने वाले, य को बढ़ाने वाले एवं दे व पतर का य करने वाले ह, म उ ह के पास होम क साम ी ले जाता ं. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उश त वा न धीम श तः स मधीम ह. उश ुशत आ वह पतॄ ह वषे अ वे.. (१२) हे अ न! म तु हारी कामना करता आ तु ह था पत करता ं एवं व लत करता ं. तुम भी कामना करते ए ह क अ भलाषा करने वाले दे व के पास होम क साम ी इस लए ले जाओ क वे उसे खा सक. (१२) यं वम ने समदह तमु नवापया पुनः. कया व रोहतु पाक वा कशा.. (१३) हे अ न! तुमने जसे जलाया है, उसे पुनः बुझाओ. जस जगह पर कुछ जल भरा हो और अनेक शाखा वाली पक ब खड़ी हो. (१३) शी तके शी तकाव त ा दके ा दकाव त. म डू या३ सु सं गम इमं व१ नं हषय.. (१४) हे शीतल एवं वन प तय से यु पृ थवी! तुम लोग को स करती हो. तु हारे ऊपर ब त आ ादक वन प तयां ह. तुम ऐसी वषा लाओ, जससे मढक संतु ह . तुम अ न को स करो. (१४)
सू —१७
दे वता—सर यू आ द
व ा ह े वहतुं कृणोतीतीदं व ं भुवनं समे त. यम य माता पयु माना महो जाया वव वतो ननाश… (१) व ा अपनी क या सर यू का ववाह करने वाले ह. ववाह क तैयारी म सारा संसार स म लत है. यम और यमी क माता का जब सूय से ववाह आ, तब सूय क प नी उ र कु दे श से चली गई. (१) अपागूह मृतां म य यः कृ वी सवणामद वव वते. उता नावभर दासीदजहा ा मथुना सर यूः.. (२) मरणर हत सर यू को मनु य के बीच छपाया गया और सर यू के समान सरी ी बनाकर सूय को द गई. सर यू उस समय घोड़ी के प म छपाई गई थी. उसने अ नीकुमार को गभ के प म धारण कया और दो बालक को जुड़वां प म ज म दया. (२) पूषा वेत यावयतु व ानन पशुभुवन य गोपाः. स वैते यः प र दद पतृ योऽ नदवे यः सु वद ये यः.. (३) हमारी भ को जानने वाले, अमर पशु से यु एवं सारे संसार के र क पूषा तु ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इस लोक म छु ड़ाव. अ न तु ह धन दे ने वाले दे व को द. (३) आयु व ायुः प र पास त वा पूषा वा पातु पथे पुर तात्. य ासते सुकृतो य ते ययु त वा दे वः स वता दधातु.. (४) सारे संसार के जीवन पूषा तु हारी आयु क र ा कर. वे तु हारे गंत वग म पहले से वतमान ह. पु य वाले लोग जहां रहते ह, वहां वे गए ह, पूषा तु ह वह ले जाव. (४) पूषेमा आशा अनु वेद सवाः सो अ माँ अभयतमेन नेषत्. व तदा आघृ णः सववीरोऽ यु छ पुर एतु जानन्.. (५) पूषा इन सारी दशा को जानते ह. वे हम भयर हत दशा से ले चल. क याण करने वाले, द तयु , सब वीर से यु एवं हम जानने वाले पूषा मादर हत होकर हमारे सामने आव. (५) पथे पथामज न पूषा पथे दवः पथे पृ थ ाः. उभे अ भ यतमे सध थे आ च परा च चर त जानन्.. (६) सबसे उ म माग म पूषा ने ज म लया है. वे धरती और वग के उ म माग म उ प ए ह. पूषा क दोन यतमाएं अथात् ावा-पृ थवी साथ-साथ रहती ह. पूषा उ ह वशेष प से जानते ए घूमते ह. (६) सर वत दे वय तो हव ते सर वतीम वरे तायमाने. सर वत सुकृतो अ य त सर वती दाशुषे वाय दात्.. (७) दे व क इ छा से य करने वाले सर वती को बुलाते ह. य के व तार के समय पु यकम करने वाल ने सर वती को बुलाया. सर वती यजमान को धन द. (७) सर व त या सरथं ययाथ वधा भद व पतृ भमद ती. आस ा म ब ह ष मादय वानमीवा इष आ धे मे.. (८) हे सर वती! तुम पतर के साथ वधा के उ चारणपूवक दए गए ह से स होती ई उसके साथ एक रथ पर बैठकर आओ. इस य के फैले ए कुश पर बैठकर आनंद करो एवं हम नरोग बनाओ तथा अ दो. (८) सर वत यां पतरो हव ते द णा य म भन माणाः. सह ाघ मळो अ भागं राय पोषं यजमानेषु धे ह.. (९) हे सर वती! पतर लोग द ण क ओर आकर एवं य म इधर-उधर चलते ए तु ह बुलाते ह. तुम इस य म यजमान के लए अनेक जन ारा पूजनीय अ एवं धन का भाग ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दो. (९) आपो अ मा मातरः शु धय तु घृतेन नो घृत वः पुन तु. व ं ह र ं वह त दे वी ददा यः शु चरा पूत ए म.. (१०) माता प जल हम शु करे, घृत के समान बहने वाला जल हम शु करे एवं द जल हमारे सम त पाप को बहाकर ले जावे. हम शु और प व होकर जल से बाहर आते ह. (१०) स क द थमाँ अनु ू नमं च यो नमनु य पूवः. समानं यो नमनु स चर तं सं जुहो यनु स त हो ाः.. (११) नचुड़ता आ सोमरस पा थव एवं ुलोक को ल य करके बहता है. हम सात होता इस थान पर और इसके आधार पूव थान पर वचरण करने वाले सोम का हवन करते ह. (११) य ते सः क द त य ते अंशुबा युतो धषणाया उप थात्. अ वय वा प र वा यः प व ा ं ते जुहो म मनसा वषट् कृतम्.. (१२) हे सोम! तु हारा जो रस टपकता है, तु हारा जो लता भाग पुरो हत के हाथ से रस नचोड़ने वाले प थर के ऊपर थत है तथा जो भाग दशाप व के ऊपर रखा आ है, हम मन से उन सबको नम कार करते ए हवन करते ह. (१२) य ते सः क ो य ते अंशुरव यः परः ुचा. अयं दे वो बृह प तः सं तं स चतु राधसे.. (१३) हे सोम! तु हारा जो रस बाहर आ गया है अथवा तु हारा जो लता भाग ुच के नीचे गर गया है, हम धन दे ने के लए बृह प त दे व उन दोन को जल से मलाव. (१३) पय वतीरोषधयः पय व मामकं वचः. अपां पय व द पय तेन मा सह शु धत.. (१४) हे जल! वन प तयां ध के समान रस से भरी ई ह. हमारा तु तवचन भी ध के समान रस से भरा है. तु हारा जो सार अंश ध के समान है, उससे तुम हम शु करो. (१४)
सू —१८
दे वता—मृ यु आ द
परं मृ यो अनु परे ह प थां य ते व इतरो दे वयानात्. च ु मते शृ वते ते वी म मा नः जां री रषो मोत वीरान्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे मृ यु दे व! तुम दे वयान से भ माग ारा यजमान से र हट जाओ. हे ने वाले एवं सब कुछ सुनने वाले मृ यु दे व! म तुमसे कहता ं क हमारी संतान और हमारे वीर को मत मारना. (१) मृ योः पदं योपय तो यदै त ाघीय आयुः तरं दधानाः. आ यायमानाः जया धनेन शु ाः पूता भवत य यासः.. (२) हे मृत के संबं धयो! तुम मृ यु के माग अथात् पतृयान को छोड़ो. इस कार तुम लंबी आयु ा त करोगे. हे य करने वाले यजमानो! तुम संतान एवं गाय आ द धन से संप होकर ज ममरण के ःख से शु एवं प व बनो. (२) इमे जीवा व मृतैराववृ भू ा दे व तन अ . ा चो अगाम नृतये हसाय ाघीय आयुः तरं दधानाः.. (३) ये जीते ए लोग मरे ए य के पास से लौट आव. आज हमारा पतृमेध य क याणकारी हो. हम नृ य और हा य क ओर उ मुख ह एवं अ धक लंबी अव था धारण कर. (३) इमं जीवे यः प र ध दधा म मैषां नु गादपरो अथमेतम्. शतं जीव तु शरदः पु चीर तमृ युं दधतां पवतेन.. (४) म जी वत पु -पौ क र ा के प थर के प म मृ यु क सीमा रखता ं. कोई अ य इस मरणमाग से न जावे. ये लोग सैकड़ वष जी वत रह एवं इस प थर के ारा मृ यु को अपने से र रख. (४) यथाहा यनुपूव भव त यथ ऋतव ऋतु भय त साधु. यथा न पूवमपरो जहा येवा धातरायूं ष क पयैषाम्.. (५) हे धाता! जस कार दन पर दन बीतते ह एवं ऋतुएं ऋतु के प ात् ठ क से जाती ह, उसी कार पहले पैदा ए पता आ द के सामने बाद म उ प ए पु आ द नह मरते ह. हमारे प रवार क आयु इसी कार थर रखो. (५) आ रोहतायुजरसं वृणाना अनुपूव यतमाना य त . इह व ा सुज नमा सजोषा द घमायुः कर त जीवसे वः.. (६) हे मृतक के पु -पौ ा द लोगो! बुढ़ापे को धारण करते ए तुम लोग जीवन म थत रहो. तुम म से अथात् बड़े के बाद छोटा, काय को य न से करते रहो. तु हारे साथ काम म लगे ए शोभन-ज म वाले व ा दे व तु हारी आयु लंबी बनाव. (६) इमा नारीर वधवाः सुप नीरा
नेन स पषा सं वश तु.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अन वोऽनमीवाः सुर ना आ रोह तु जनयो यो नम े.. (७) ये सधवा एवं शोभन प नयां-ना रयां घृत और अ के साथ अपने घर म वेश कर. ये यां आंसु के बना रोगर हत और शोभनधन वाली बनकर अपने घर म सबसे पहले प ंच. (७) उद व नाय भ जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष ए ह. ह त ाभ य द धषो तवेदं प युज न वम भ सं बभूथ.. (८) हे मृतक क प नी! तुम अपने पु और घर का यान करके यहां से उठो. तुम इस मरे ए के पास य सोई हो? आओ. तुम इस पु ष से पा ण हण और गभाधान के अनु प वहार कर चुक हो. तुम इसके साथ मरने का वचार छोड़ो. (८) धनुह तादाददानो मृत या मे ाय वचसे बलाय. अ ैव व मह वयं सुवीरा व ाः पृधो अ भमातीजयेम.. (९) म जार ण, तेज और बल ा त के लए मरे ए य के हाथ से धनुष लेकर कह रहा ं. हे मृत ! तुम यह रहो. हम शोभन संतान वाले होकर इस लोक म सब श ु को जीत. (९) उप सप मातरं भू ममेतामु चसं पृ थव सुशेवाम्. ऊण दा युव तद णावत एषा वा पातु नऋते प थात्.. (१०) हे मृत ! तुम इस व तृत, ा त एवं सुख दे ने वाली धरती माता के पास जाओ. हे य क द णा दे ने वाले मृतक! युवती ी एवं भेड़ के बाल के समूह के समान कोमल तृण वाली यह धरती तु हारी ह ड् डय क र ा करे. (१०) उ छ् व च व पृ थ व मा न बाधथाः सूपायना मै भव सूपव चना. माता पु ं यथा सचा येनं भूम ऊणु ह.. (११) हे पृ थवी! तुम मरे ए को ऊंचा रखो. इसे बाधा मत दो. तुम इसके लए शोभन उपचार एवं शोभन थ त वाली बनो. माता जस कार अपने व से पु को ढक लेती है, उसी कार धरती उस मृतक क अ थय को ढक ल. (११) उ छ् व चमाना पृ थवी सु त तु सह ं मत उप ह य ताम्. ते गृहासो घृत तो भव तु व ाहा मै शरणाः स व .. (१२) धरती इस मृतक क ह ड् डय के ऊपर ऊंचे ट ले के प म थत हो. हजार धू लकण इसके ऊपर जम जाव. वे धू लकण इसके लए घी टपकाने वाले घर बन एवं इसको सभी दन म सहारा द. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ े त ना म पृ थव व परीमं लोगं नदध मो अहं रषम्. एतां थूणां पतरो धारय तु तेऽ ा यमः सादना ते मनोतु.. (१३) हे ह ड् डय से पूण घट! म तु हारे ऊपर धरती को उठाकर रखता ं. तु हारे ऊपर म प थर रखता ,ं जससे मट् ट गरकर तु ह न न करे. पतर लोग तु हारी इस खूंट को धारण कर, जसे गाड़कर मने तु ह बांधा है. यम यहां तु हारा थान वीकार कर. (१३) तीचीने मामहनी वाः पण मवा दधुः. तीच ज भा वाचम ं रशनया यथा.. (१४) हे जाप त! जस कार बाण के पछले भाग म पंख लगाये जाते ह, उसी कार मुझ संकुसुक ऋ ष को दे व ने संव सर के पू य दन के प म रखा है. घोड़ को जस कार लगाम के सहारे रोका जाता है, उसी कार तुम मेरी पू य तु त को वीकार करो. (१४)
दे वता—गौ
सू —१९ न वत वं मानु गाता मा सष रेवतीः. अ नीषोमा पुनवसू अ मे धारयतं र यम्.. (१)
हे गायो! तुम हमारे पास लौट आओ. तुम हमारे अ त र कसी के पास मत जाओ. हे धनयु गायो! तुम हम ध से स चो. हे बार-बार धन दे ने वाले अ न और सोम! तुम हम धन दो. (१) पुनरेना न वतय पुनरेना या कु . इ
एणा न य छ व नरेना उपाजतु.. (२)
हे मेरी आ मा! इन गाय को बार-बार अपनी ओर मोड़ो और बार-बार वश म करो. इं इ ह तु हारे वश म कर तथा अ न इ ह उपयोगी बनाव. (२) पुनरेता न वत ताम म पु य तु गोपतौ. इहैवा ने न धारयेह त तु या र यः.. (३) ये गाएं बार-बार लौटकर मेरे पास आव एवं मुझ गोपाल के पास आकर पु ह . हे अ न! इन गाय को मेरे पास ही रखो. यह गाय प धन मेरे पास ही रहे. (३) य यानं ययनं सं ानं य परायणम्. आवतनं नवतनं यो गोपा अ प तं वे.. (४) म ाथना करता ं क मुझे गाय से भरी ई गोशाला ा त हो. गाएं मेरे घर आव. म गाय को पहचानूं व गाय को चराने जाऊं. गाएं मेरे घर से वन म जाव और चरने के बाद वापस लौट. म गाय पालने वाल क भी ाथना करता ं. (४) य उदानड्
यनं य उदानट् परायणम्. आवतनं नवतनम प गोपा न वतताम्.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो गोपाल खोई ई गाय क सब ओर खोज करता है, जो गाय को घर वापस ले जाता है, जो गाय को घर से चराने ले जाता है और चराकर लौटता है, वह सकुशल लौट आवे. (५) आ नवत न वतय पुनन इ
गा दे ह. जीवा भभुनजामहै.. (६)
हे इं ! तुम हमारी ओर आओ एवं गाय को हमारी ओर लाओ. तुम हम गाएं दो. हम अ धक दन जीने वाली गाय का ध पएं. (६) प र वो व तो दध ऊजा घृतेन पयसा. ये दे वाः के च य या ते र या सं सृज तु नः.. (७) हे सव थत दे वो! म गाय के ध, दही व घृत से तु हारी सेवा करता ं जो य के यो य दे व ह, वे हम गाय प धन से मलाव. (७) आ नवतन वतय न नवतन वतय. भू या त ः
दश ता य एना न वतय.. (८)
हे मेरी आ मा! गाय को मेरे पास लाओ. हे गायो! तुम मेरे पास आओ. भू म और चार दशा से गाय को मेरे पास लाओ. गाएं भी उ थान से मेरे पास लौट आव. (८)
दे वता—अ न
सू —२० भ ं नो अ प वातय मनः.. (१)
हे अ न! तुम मेरे मन को क याण के यो य बनाओ. (१) अ नमीळे भुजां य व ं शासा म ं धरीतुम्. य य धम व१ रेनीः सपय त मातु धः.. (२) म ह व का भोग करने वाले दे व के म य सबसे छोटे , अनुशासन के ारा म एवं अपराजेय अ न क तु त करता ं. बछड़े जस कार गाय का थन पीकर जीते ह, उसी कार अ न के य कम म सम त दे व, आ तयां और तु तयां सेवा करती ह. (२) यमासा कृपनीळं भासाकेतुं वधय त. ाजते े णदन्.. (३) तोता य कम के आधार पर वाला से पहचाने जाने वाले अ न को बढ़ाते ह. तोता को मनचाहा फल दे ने वाले अ न का शत होते ह. (३) अय वशां गातुरे त
यदानड् दवो अ तान्. क वर ं द ानः.. (४)
यजमान के आ ययो य अ न द त होकर जब ऊपर उठते ह, उस समय मेधावी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न ुलोक के अं तम भाग एवं मेघ को जुष
ा त करते ह. (४)
ा मानुष यो व त थावृ वा य े. म व स पुर ए त.. (५)
यजमान के य म ह व का उपभोग करने वाले अ न अनेक वाला ऊपर उठते ह एवं य क उ र वेद को नापते ए सबके सामने आते ह. (५)
वाले बनकर
स ह ेमो ह वय ः ु ीद य गातुरे त. अ नं दे वा वाशीम तम्.. (६) वे ही अ न सबके पालन के कारण ह, वे ही ह एवं य ह. अ न दे व को बुलाने के लए शी जाते ह. दे वगण तु तवचन से यु अ न के पास आते ह. (६) य ासाहं व इषेऽ नं पूव य शेव य. अ े ः सूनुमायुमा ः.. (७) म उ कृ सुख क ा त के लए अ न क सेवा करना चाहता ं. अ न दे व को बुलाने हेतु जाने वाले, प थर के पु व य वहन करने वाले ह. (७) नरो ये के चा मदा व े े वाम आ युः. अ नं ह वषा वध तः.. (८) ह व के ारा अ न को बढ़ाते ए हमारे जो भी पु -पौ ह, वे सभी पशु आ द धन के पास बैठ. (८) कृ णः त े ोऽ षो यामो अ य न ऋ हर य पं ज नता जजान.. (९)
उत शोणो यश वान्.
अ न का रथ काले रंग वाला, ेत वणयु , चमक ला, महान्, सीधा चलने वाला, लाल एवं यश वी है. वधाता ने उसे सुनहरे रंग का बनाया है. (९) एवा ते अ ने वमदो मनीषामूज नपादमृते भः सजोषाः. गर आ व सुमती रयान इषमूज सु त व माभाः.. (१०) हे श के नाती अ न! ह व प अमर धन से यु वमद नामक ऋ ष ने उ म बु क कामना करते ए तु हारे लए ये तु तवचन कहे ह. तुम इ ह वीकार करके वमद को धन, बल, शोभनगृह एवं सभी कार के धन दो. (१०)
सू —२१
दे वता—अ न
आ नं न ववृ भह तारं वा वृणीमहे. य ाय तीणब हषे व वो मदे शीरं पावकशो चषं वव से.. (१) हे अ न! हम कुश बछे ए य क पूणता के लए अपनी बनाई ई तु तय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा दे व
को बुलाने वाले तु हारा वरण करते ह. तुम ओष धय म सोने वाले, प व द तयु महान् हो. (१)
एवं
वामु ते वाभुवः शु भ य राधसः. वे त वामुपसेचनी व वो मद ऋजी तर न आ त वव से.. (२) हे अ न! वयं काश से द त एवं व तृत धन वाले यजमान तु हारी शोभा बढ़ाते ह. टपकने वाली एवं सरल ग तयु आ त तुझ महान् अ न को स करने के लए जाती है. (२) वे धमाण आसते जु भः स चती रव. कृ णा पा यजुना व वो मदे व ा अ ध
यो धषे वव से.. (३)
हे अ न! य धारण करने वाले यजमान य के जु नामक पा से उसी कार तु हारी सेवा करते ह, जस कार वषा का जल धरती को स चता है. हे महान् अ न! दे व क स ता के लए तुम काले और ेत रंग क वाला के प म सब शोभा धारण करते हो. (३) यम ने म यसे र य सहसाव म य. तमा नो वाजसातये व वो मदे य ेषु च मा भरा वव से.. (४) हे श शाली एवं मरणर हत अ न! तुम जस धन को उ म मानते हो, उसे अ लाभ के लए हमारे पास ले आओ. हे महान् अ न! तुम सब दे व क स ता के लए धन लाओ. (४) अ नजातो अथवणा वद ा न का ा. भुव तो वव वतो व वो मदे यो यम य का यो वव से.. (५) अथवा ऋ ष ारा उ प कए गए अ न सभी तु तय को जानते ह एवं दे व को बुलाने के लए यजमान के त बनते ह. महान् अ न यजमान के य एवं ाथनीय बनते ह. (५) वां य े वीळतेऽ ने य य वरे. वं वसू न का या व वो मदे व ा दधा स दाशुषे वव से.. (६) हे अ न! य आरंभ होने पर एवं ह व समीप आने पर यजमान तु हारी ाथना करते ह. हे महान् अ न! तुम ह व दे ने वाले वमद ऋ ष के लए सभी उ म धन दे ते हो. (६) वां य े वृ वजं चा म ने न षे दरे. घृत तीकं मनुषो व वो मदे शु ं चे त म भ वव से.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे महान् होता नामधारी, रमणीय, घी क आ त से पूण मुख वाले, व लत व ा त तेज के कारण ानयु अ न! यजमान आनंद पाने के लए तु ह नय मत प से था पत करते ह. (७) अ ने शु े ण शो चषो थयसे बृहत्. अ भ द वृषायसे व वो मदे गभ दधा स जा मषु वव से.. (८) हे महान् अ न! तुम अपने उ वल तेज के कारण अ धक स होते हो. तुम समयसमय पर बैल के समान श द करते हो. हे महान् अ न! तुम सोम आ द क स ता के लए अपनी ब हन के समान ओष धय म गभ धारण करते हो. (८)
सू —२२
दे वता—इं
कुह ुत इ ः क म जने म ो न ूयते. ऋषीणां वा यः ये गुहा वा चकृषे गरा.. (१) इं आज कहां स ह? आज वे म के समान कस के पास सुने जाते ह? या इं क तु तयां ऋ षय के नवास थान अथवा गुफा म क जाती ह? (१) इह त ु इ ो अ मे अ तवे व यृचीषमः. म ो न यो जने वा यश े असा या.. (२) इं आज इस य म स ह. आज हम व धारी एवं तु त के यो य इं क तु तयां करते ह. इं तोता को म के समान असाधारण यश दे ने वाले ह. (२) महो य प तः शवसो असा या महो नृ ण य तूतु जः. भता व य धृ णोः पता पु मव यम्.. (३) श के वामी, महान्, अनंत गुणयु व तोता को महान् धन दे ने वाले इं श ुपराभवकारी व धारण करते ह. पता जस कार पु क अ भल षत व तु क र ा करता है, उसी कार इं हमारी मनचाही व तु क र ा कर. (३) युजानो अ ा वात य धुनी दे वो दे व य व वः. य ता पथा व मता सृजानः तो य वनः.. (४) हे व धारी एवं द तशाली इं ! तुम द तशाली, वायु से भी तेज चलने वाले एवं तेज वी माग से जाने वाले ह र नामक घोड़ को रथ म जोड़कर यु म जाने का माग बनाते ए शं सत होते हो. (४) वं या च ात या ागा ऋ ा मना वह यै. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ययोदवो न म य य ता न क वदा यः.. (५) हे इं ! तुम अपने आप उन वायु वेग से यु एवं सरल माग पर चलने वाले घोड़ को हांकते ए हमारे सामने आते हो, जनको हांकने वाला अथवा जनक श जानने वाला दे व अथवा मनु य कोई भी नह है. (५) अध म तोशना पृ छते वां कदथा न आ गृहम्. आ ज मथुः पराका व म म यम्.. (६) हे इं एवं अ न! अपने थान को जाते ए तुमसे उशना ऋ ष ने पूछा—“तुम लोग कस लए हमारे घर आए हो? तुम इतनी अ धक र ल ु ोक और धरती से हमारे घर केवल अनु हवश आते हो.” (६) आनइ
पृ सेऽ माकं
ो तम्. त वा याचामहेऽवः शु णं य
मानुषम्.. (७)
हे इं ! हमारे ारा एक त इस य साम ी का तुम तब तक भ ण करो, जब तक तु ह तृ त न मले. हम तुमसे अ , र ा एवं ऐसी श चाहते ह, जससे तुम रा स का वनाश करते हो. (७) अकमा द युर भ नो अम तुर य तो अमानुषः. वं त या म ह वधदास य द भय.. (८) हे इं ! हमारे चार ओर य कम से शू य, कसी को न मानने वाले, वेद तु त के तकूल कम करने वाले एवं मानवो चत वहार से र हत द यु ह. हे श ुनाशक इं ! तुम शूर म त के साथ हमारी र ा करो. (८) वं न इ
शूर शूरै त वोतासो बहणा. पु
ा ते व पूतयो नव त ोणयो यथा.. (९)
हे शूर इं ! तुम शूर म त के साथ हमारी र ा करो. तु हारे ारा र त हम श ु वनाश म समथ बन. तु हारे दए ए अ भल षत पदाथ तोता को इस कार घेरते ह, जस कार सेवक अपने वामी को घेरते ह. (९) वं ता वृ ह ये चोदयो नॄ कापाणे शूर व वः. गुहा यद कवीनां वशां न शवसाम्.. (१०) हे व धारी एवं शूर इं ! तुम यु म श ुनाश के लए े रत करते हो, जस समय तोता क न वासी दे व के हो. (१०) म ू ता त इ
दाना स आ ाणे शूर व
वः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स म त को उस समय त बोली ई तु तयां सुनते
य
शु ण य द भयो जातं व ं सयाव भः.. (११)
हे शूर एवं व धारी इं ! यु े म शी होने वाले तु हारे दान क तोता तु त करते ह. तुमने म त को साथ लेकर शु ण असुर के पूरे वंश का नाश कर डाला. (११) माकु य ग शूर व वीर मे भूव भ यः. वयंवयं त आसां सु ने याम व वः.. (१२) हे शूर इं ! हमारी महान् ाथनाएं न फल न ह . हे व धारी इं ! तु हारी कृपा से हम सब अ भलाषाएं एवं सुख भोग. (१२) अ मे ता त इ स तु स या हस ती प पृशः. व ाम यासां भुजो धेनूनां न व वः.. (१३) हे इं ! तु हारे त क गई हमारी तु तयां स ची ह एवं तु ह क न द. हे व धारी इं ! लोग जस कार गाय के ध का उपभोग करते ह, उसी कार हम तु हारी कृपा से भोग को ा त कर. (१३) अह ता यदपद वधत ाः शची भव ानाम्. शु णं प र द ण ायवे न श थः.. (१४) हे इं ! हाथ और पैर से वहीन यह धरती दे व क या से ही बढ़ है. पृ वी के चार ओर थत शु ण असुर को तुमने इस लए मारा क सब लोग चल फर सक. (१४) पबा पबे द शूर सोमं मा रष यो वसवान वसुः सन्. उत ाय व गृणतो मघोनो मह रायो रेवत कृधी नः.. (१५) हे शूर इं ! तुम सोमरस को ज द ज द पओ. हे धन वामी इं ! तुम स होकर हमारी हसा मत करना तथा तु त करने वाले यजमान क र ा करना. तुम हम अ धक धन दे कर धनी बनाओ. (१५)
सू —२३
दे वता—इं
यजामह इ ं व द णं हरीणां र यं१ व तानाम्. म ु दोधुव वथा भू सेना भदयमानो व राधसा.. (१) हम द ण हाथ म व धारण करने वाले एवं अनेक कम म कुशल घोड़ को रथ म जोड़ने वाले इं क पूजा करते ह. इं सोमपान के बाद अपनी दाढ़ हलाते ए ऊपर कट ए एवं अपनी सेवा ारा व वध श ु को मारते ए तोता को धन दे ते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हरी व य या वने वदे व व ो मघैमघवा वृ हा भुवत्. ऋभुवाज ऋभु ाः प यते शवोऽव णौ म दास य नाम चत्.. (२) इं के ह र नामक दो घोड़ ने वन म घास ा त क है. इं इन दोन घोड़ और धन क सहायता से धनवान् बनकर वृ को मारने म सफल ए. इं द त, श शाली, महान् व धन के वामी ह. (म द युजन का नाम मटा ं गा.) (२) यदा व ं हर य मदथा रथं हरी यम य वहतो व सू र भः. आ त त मघवा सन ुत इ ो वाज य द घ वस प तः.. (३) इं जब सुनहरे रंग का व उठाते ह, उस समय व ान के साथ एक रथ पर बैठे ए इं को घोड़े ख चते ह. इं अ एवं महान् क त के वामी ह. (३) सो च ु वृ यू या३ वा सचाँ इ ः म ू ण ह रता भ ु णुते. अव वे त सु यं सुते मधू दद्धूनो त वातो यथा वनम्.. (४) वशाल वषा जस कार पशुसमूह को भगोती है, उसी कार इं हरे रंग के सोम से अपनी दाढ़ भगोते ह. इसके बाद इं शोभन य शाला म जाते ह और वहां नचुड़े ए सोमरस को पीकर अपनी दाढ़ को इस कार हलाते ह जस कार वायु वन को हलाते ह. (४) यो वाचा ववाचो मृ वाचः पु सह ा शवा जघान. त दद य प यं गृणीम स पतेव य त वष वावृधे शवः.. (५) इं वचनमा से तरह-तरह क बात करने वाले श ु को चुप करके उन सैकड़ हजार श ु को मारते ह. हम उस इं के पु षाथ क शंसा करते ह, जो पु क श बढ़ाने वाले पता के समान मनु य को बलवान् बनाते ह. (५) तोमं त इ वमदा अजीजन पू पु तमं सुदानवे. व ा य भोजन मन य यदा पशुं न गोपाः करामहे.. (६) हे शोभन-दान करने वाले इं ! वमदवं शय ने तु हारे लए अनोखी व व तृत तु त बनाई है. हम राजा इं क तृ त का साधन जानते ह. वाला जस कार घास दखाकर पशु को अपने पास बुलाता है, उसी कार हम ह का लालच दे कर इं को अपने समीप बुलाते ह. (६) मा कन एना स या व यौषु तव चे वमद य च ऋषेः. व ा ह ते म त दे व जा मवद मे ते स तु स या शवा न.. (७) हे इं ! मुझ वमद ऋ ष और तु हारे बीच जो म ता है, उसे कोई भी अलग न करे. हे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द तशाली इं ! हम ब हन-भाई क म ता के समान तु हारी अनु ह बु हमारे लए तु हारी म ता क याणकारक हो. (७)
सू —२४
को जानते ह.
दे वता—इं व अ नीकुमार
इ सोम ममं पब मधुम तं चमू सुतम्. अ मे र य न धारय व वो मदे सह णं पु वसो वव से.. (१) हे इं ! प थर से कुचलकर नचोड़ा आ यह मधुर सोमरस पओ. हे अ धक धन वाले तथा महान् इं ! सोमरस का अ धक नशा होने पर तुम हजार धन दो. (१) वां य े भ थै प ह भरीमहे. शचीपते शचीनां व वो मदे े ं नो धे ह वाय वव से.. (२) हे इं ! य , तु तय तथा ह के ारा हम तुमसे अ भल षत धन मांगते ह. हे कमपालक इं ! तुम सभी कम क र ा करते हो. तुम सोमरस का वशेष नशा चढ़ने पर हम उ म धन दे कर महान् बनो. (२) य प तवायाणाम स र य चो दता. इ तोतॄणाम वता व वो मदे षो नः पा ंहसो वव से.. (३) हे इं ! तुम अ भल षत व तु के वामी एवं तोता को कम क ेरणा दे ने वाले हो. हे इं ! तुम तोता के र क हो. तुम सोमरस का वशेष मद होने पर श ु से हमारी र ा करो और महान् बनो. (३) युवं श ा माया वना समीची नरम थतम्. वमदे न यद ळता नास या नरम थतम्.. (४) हे श ुवधसमथ, बु मान् एवं पर पर मले ए अ नीकुमारो! तुमने अर णमंथन करके अ न को उ प कया था. हे स य प अ नीकुमारो! वमद क तु त सुनकर तुमने अर ण मथकर अ न जलाई. (४) व े दे वा अकृप त समी यो न पत योः. नास याव ुव दे वाः पुनरा वहता द त.. (५) हे अ नीकुमारो! मंथन के समय मली ई अर णय से जब आग क चनगा रयां नकलने लग तब सारे दे व ने तु हारी शंसा क एवं कहा—“ऐसा दोबारा करो.” (५) मधुम मे परायणं मधुम पुनरायनम्. ता नो दे वा दे वतया युवं मधुमत कृतम्.. (६) हे अ नीकुमारो! मेरा घर से बाहर नकलना और घर वापस आना स ताकारक हो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे द तशाली दे वो! अपनी मह ा से हम उ
सू —२५
दोन काम म संतु करो. (६)
दे वता—सोम
भ ं नो अ प वातय मनो द मुत तुम्. अधा ते स ये अ धसो व वो मदे रण गावो न यवसे वव से.. (१) हे सोम! हमारे मन को े रत करके क याणकारी, द एवं य कम करने वाला बनाओ. तुम महान् हो, इस लए तु हारा होने पर तोता तु हारी म ता म उसी कार रमण करे, जस कार गाएं घास के त आनं दत होती ह. (१) द पृश त आसते व ेषु सोम धामसु. अधा कामा इमे मम व वो मदे त ते वसूयवो वव से.. (२) हे सोम! तोता लोग अपनी तु तय से तु हारे मन को हरते ए सब थान पर बैठते ह. तु हारा नशा हो जाने पर धन के इ छु क मेरे मन म तरहतरह क अ भलाषाएं उ प होती ह, इस लए तुम महान् हो. (२) उत ता न सोम ते ाहं मना म पा या. अधा पतेव सूनवे व वो मदे मृळा नो अ भ च धा व से.. (३) हे सोम! म अपनी प रप व बु से तु हारे य कम का प रणाम दे खता ं. हे सोमरस! तुम अपना नशा चढ़ने पर हमारे त उसी कार अनुकूल बनो, जस कार पता पु के त अनुकूल होता है. तुम श ुवध करके हमारी र ा करो, य क तुम महान् हो. (३) समु य त धीतयः सगासोऽवताँ इव. तुं नः सोम जीवसे व वो मदे धारया चमसाँ इव वव से.. (४) हे सोम! कलश जल नकालने के लए जैसे कुएं म जाता है, वैसे ही हमारी तु तयां तु हारे पास जाती ह. तुम महान् हो, इस लए हमारे जीवन के न म इस य को इस कार धारण करो, जस कार लोग चमस को धारण करते ह. (४) तव ये सोम श भ नकामासो ृ वरे. गृ स य धीरा तवसो व वो मदे जं गोम तम नं वव से.. (५) हे सोम! न त अ भलाषा वाले धीर य ने य कम ारा तु ह संतु कया है. तुम महान् एवं बु मान् हो. तुम सोमरस का नशा होने पर हम गाय से यु गोशाला एवं घोड़े दो, य क तुम महान् हो. (५) पशुं नः सोम र स पु ा व तं जगत्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समाकृणो ष जीवसे व वो मदे व ा स प य भुवना वव से.. (६) हे सोम! हमारे पशु एवं नाना प म थत इस व क र ा करो. तुम सोमरस का मद होने पर सारे जगत् म खोजकर हमारे जीवन के लए आव यक व तुएं ला दे ते हो, इस लए तुम महान् हो. (६) वं नः सोम व तो गोपा अदा यो भव. सेध राज प धो व वो मदे मा नो ःशंस ईशता वव से.. (७) हे अपराजेय सोम! तुम सभी कार से हमारी र ा करने वाले बनो. हे राजा सोम! तुम हमारे श ु को र करो. सोम का नशा होने पर नदक हमारा वामी न बने, इस लए तुम महान् हो. (७) वं नः सोम सु तुवयोधेयाय जागृ ह. े व रो मनुषो व वो मदे हो नः पा ंहसो वव से.. (८) हे शोभन कम वाले सोम! तुम हम अ दे ने के लए सावधान रहो. तुम खेत दे ने वाल म उ म हो. सोम का नशा होने पर तुम श ु मनु य एवं पाप से हमारी र ा करो, य क तुम महान् हो. (८) वं नो वृ ह तमे ये दो शवः सखा. य स हव ते स मथे व वो मदे यु यमाना तोकसातौ वव से.. (९) हे श ुहंता म े सोम! अ यंत महान् सं ाम म यु करते ए श ु जब सब ओर से ललकारते ह, तब तुम हमारी र ा करो. तुम इं के क याणकारक म हो. तुम वशेष मद के कारण महान् हो. (९) अयं घ स तुरो मद इ य वधत यः. अयं क ीवतो महो व वो मदे म त व य वधय व से.. (१०) सोम शी काम करने वाले, नशीले एवं इं को तृ त दे ने वाले ह. वे हमारी बु को बढ़ाव. सोम ने महान् मेधावी क ीवान् ऋ ष क बु को बढ़ाया था. वे वशेष मद के कारण महान् ह. (१०) अयं व ाय दाशुषे वाजाँ इय त गोमतः. अयं स त य आ वरं व वो मदे ा धं ोणं च ता रष व से.. (११) सोम बु मान् यजमान को पशुयु अ दे ते ह. एवं सात होता को उ म धन दान करते ह. सोम ने अंधे द घतमा ऋ ष को आंख दे कर और लंगड़े परावृज ऋ ष को पैर दे कर वशेष प से बढ़ाया था. सोम वशेष मद के कारण महान् ह. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —२६ छा मनीषाः पाहा य त नयुतः.
दे वता—पूषा द ा नयु थः पूषा अ व ु मा हनः.. (१)
हमारे अ भलाषा यो य एवं नय मत तु तवचन पूषादे व को ा त करने के लए भली कार जाते ह. दशनीय, जाने के लए सदा रथ जोड़ने वाले एवं महान् पूषादे व आकर हमारी र ा कर. (१) य य य म ह वं वाता यमयं जनः. व आ वंस
त भ केत सु ु तीनाम्.. (२)
यह मेधावी यजमान सूयमंडल म थत महान् जलसमूह को य लाव. पूषादे व यजमान क शोभन तु तयां जान. (२)
या ारा धरती पर
स वेद सु ु तीना म न पूषा वृषा. अ भ सुरः ुषाय त जं न आ ुषाय त.. (३) सोम के समान रस बरसाने वाले पूषादे व शोभन तु तय को जानते ह. सुंदर पूषा हम पर जल बरसाते ह एवं हमारी गोशाला को स चते ह. (३) मंसीम ह वा वयम माकं दे व पूषन्. मतीनां च साधनं व ाणां चाधवम्.. (४) हे अ भलाषा को पूरा करने वाले एवं बु हम तु हारी तु त करते ह. (४)
मान को भी कं पत करने वाले पूषादे व!
य धय ानाम हयो रथानाम्. ऋ षः स यो मनु हतो व य यावय सखः.. (५) य के आधे भाग के भागी, रथ म घोड़ के ारा चलने वाले, सबको दे खने वाले एवं मानव के हतैषी पूषादे व श ु को र भगाने वाले म ह. (५) आधीषमाणायाः प तः शुचाया शुच य च. वासोवायोऽवीनामा वासां स ममृजत्.. (६) संतान उ प करने म समथ बकरी और बकरे के वामी पूषा भेड़ के बाल के दशाप व नामक व बुनते ह एवं शु करते ह. (६) इनो वाजानां प त रनः पु ीनां सखा.
म ु हयतो धो
वृथा यो अदा यः.. (७)
ई र पूषा अ के वामी एवं पु कारक व तु के म ह. श ु ारा अपराजेय पूषा अपने अ भल षत यजमान का सोमरस पीकर अनायास ही अपनी दाढ़ को हलाते ह. (७) आ ते रथ य पूष जा धुरं ववृ युः. व
या थनः सखा सनोजा अनप युतः.. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे पूषा! बकरे तु हारे रथ क धुरी आगे ख चते ह. तुम सभी याचक के म , ब त ज म लेने वाले एवं अपने अ धकार से युत न होने वाले हो. (८) अ माकमूजा रथं पूषा अ व ु मा हनः. भुव ाजानां वृध इमं न शृणव वम्.. (९) महान् पूषादे व अपने बल के ारा हमारे रथ क र ा कर, हमारे अ हमारी इस पुकार को सुन. (९)
सू —२७
को बढ़ाव और
दे वता—इं
अस सु मे ज रतः सा भवेगो य सु वते यजमानाय श म्. अनाशीदामहम म ह ता स य वृतं वृ जनाय तमाभुम्.. (१) इं ने कहा—“हे तोता! मेरी ऐसी शोभन मनोवृ है क म सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को मनचाहा फल दे ता ं. जो मुझे ह नह दे ता, अस य भाषण करता है एवं पापकम करना चाहता है, उसे म पूरी तरह न कर दे ता ं.” (१) यद दहं युधये संनया यदे वयू त वा३ शूशुजानान्. अमा ते तु ं वृषभं पचा न ती ं सुतं प चदशं न ष चम्.. (२) ऋ ष ने कहा—“हे इं ! जस समय म दे वय न करने वाले एवं केवल अपने शरीर को पालने म लगे ए लोग से यु करने जाता ं. उस समय ऋ वज के साथ मलकर बैल का मांस पकाता ं एवं पं ह दन म अथात् त दन तेज नशे वाले सोमरस को तु हारे लए दे ता ं.” (२) नाहं तं वेद य इ त वी यदे वयू समरणे जघ वान्. यदावा य समरणमृघावदा द मे वृषभा ुव त.. (३) इं ने कहा—“म ऐसे कसी को नह जानता जो यह कहता हो क मने दे वय करने वाल को यु म मारा है. म भयानक यु म जाकर जब दे वय र हत लोग का नाश करता ,ं तब व ान् लोग मेरे उस वीरकम का व तार से वणन करते ह.” (३) यद ातेषु वृजने वासं व े सतो मघवानो म आसन्. जना म वे ेम आ स तमाभुं तं णां पवते पादगृ .. (४) “ जस समय म सहसा सामने आए यु म स म लत होता ं, उस समय सारे ऋ ष मेरे आसपास बैठते ह. म जा के क याण के लए उस चार ओर घूमने वाले श ु को जीतता ं तथा उसके पैर पकड़कर उसे पवत के ऊपर फक दे ता ं.” (४) न वा उ मां वृजने वारय ते न पवतासो यदहं मन ये. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मम वना कृधुकण भयात एवेदनु ू करणः समेजात्.. (५) “मुझे यु म कोई रोक नह पाता. य द म मन म कोई न य क ं तो पवत भी उसका वरोध नह कर सकते. मेरे गजन से बहरा भी डर जाता है. सूय भी त दन मेरे भय से कांपते ह.” (५) दश व शृतपाँ अ न ा बा दः शरवे प यमानान्. घृषुं वा ये न न ः सखायम यू वेषु पवयो ववृ युः.. (६) “म इस संसार म सोमरस आ द ह व को वयं पीने वाल , मुझ इं को न मानने वाल , भुजा से मेरे यजमान को टु कड़े-टु कड़े करने वाल एवं उ ह मारने के लए आने वाल को शी दे खता ं. मुझ महान् एवं सबके म इं क जो नदा करते ह, उनके ऊपर मेरा आयुध व शी हार करता है.” (६) अभूव ी ु१ आयुरानड् दष ु पूव अपरो नु दषत्. े पव ते प र तं न भूतो यो अ य पारे रजसो ववेष.. (७) ऋ ष ने कहा—“हे इं ! तुम हमारे सामने आते हो और धरती को जल से स चते हो. तुमने अ धक आयु पाई है. तुमने पूवकाल म श ु को न कया और उसके बाद भी श ु न कए. तुम इस व तृत व म ा त हो. ावा-पृ थवी दोन तुमको नह नाप सकते.” (७) गावो यवं युता अय अ ता अप यं सहगोपा र तीः. हवा इदय अ भतः समाय कयदासु वप त छ दयाते.. (८) इं ने कहा—“ब त सी गाएं एक होकर जौ खा रही ह. म वामी के समान वाल के साथ इधर-उधर घूमती ई उन गाय को दे खता ं. वे गाएं बुलाने पर वामी के पास आ जाती ह. गाय का वामी गाय से ब त सा ध हता है.” (८) सं य यं यवसादो जनानामहं यवाद उव े अ तः. अ ा यु ोऽवसातार म छादथो अयु ं युनज व वान्.. (९) ऋ ष ने अपने मन म कहा—“संसार म जौ के तनके खाने वाले पशु मेरे ही प ह. अ खाने वाले मनु य भी मुझसे भ नह ह. धरती के आंगन और व तृत आकाश म जो अंतयामी है, वह म ही ं. दय पी आकाश म रहने वाले इं अपने भ को चाहते ह. इं योगर हत एवं संसार क वषयवासना म अ धक फंसे को भी ठ क रा ते पर लाते ह. (९) अ े मे मंससे स यमु ं पा च य चतु पा संसृजा न. ी भय अ वृषणं पृत यादयु ो अ य व भजा न वेदः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ने कहा—“इस तो म मने जो कहा है, वह स य है. इसे तुम जान लो. म दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु को बनाता ं. जो अपने पु ष को य के व लड़ने भेजता है, उसका धन म यु के बना ही छ नकर अपने भ को दे ता ं.” (१०) य यान ा हता जा वास क तां व ाँ अ भ म याते अ धाम्. कतरो मे न त तं मुचाते य वहाते य वा वरेयात्.. (११) “मुझ इं से उ प दशनहीना क या कृ त को मुझ म लीन जानते ए कौन आ य दे गा? वृ आ द श ु पर व कौन सा दे व फकता है? इस श ु को मेरे अ त र न कोई वहन कर सकता है और न वरण कर सकता है.” (११) कयती योषा मयतो वधूयोः प र ीता प यसा वायण. भ ा वधूभव त य सुपेशाः वयं सा म ं वनुते जने चत्.. (१२) “ऐसी कतनी यां ह जो मानव जीवन के भोग दान करने वाले एवं ी के अ भलाषी पु ष के त धन अथवा शंसा के कारण आस हो जाती ह. जो सुग ठत शरीर वाली भली नारी होती है, वह ब त से पु ष म से अपने मन के अनुकूल प त चुन लेती है.” (१२) प ो जगार य चम शी णा शरः त दधौ व थम्. आसीन ऊ वामुप स णा त यूङ्ङु ानाम वे त भू मम्.. (१३) सूय अपनी करण ारा जल सोख लेते ह, अपने समीप गए ए जल का उपभोग करते ह तथा वषा का जल अपनी करण ारा सबके सर पर बरसाते ह. सूय अपने मंडल म थत होकर अपनी ऊ वगा मनी करण को फकते ह एवं करणसमूह के साथ धरती पर व तृत काश का अनुगमन करते ह. (१३) बृह छायो अपलाशो अवा त थौ माता व षतो अ गभः. अ य या व सं रहती ममाय कया भुवा न दधे धेनु धः.. (१४) न य ग तशील व महान् आ द य बना प के पेड़ के समान छायार हत ह. वषा ारा लोक नमाण करने वाले, आलंबनर हत एवं तीन लोक के गभ के समान आ द य ह भ ण करते ह. ुलोक पधारी गाय अ द त के पु को ेम के साथ चाटती ई पो षत करती है. ौ पणी गाय आ द य को अपने थन के समान धारण करती है. (१४) स त वीरासो अधरा दाय ो रा ात् समज मर ते. नव प ाता थ वम त आय दश ा सानु व तर य ः.. (१५) इं पी जाप त के शरीर से व ा म आ द सात ऋ षय ने ज म लया. जाप त के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शरीर के ऊपर वाले भाग से बाल ख य आ द आठ ऋ ष उ प ए. भृगु आ द नौ ऋ ष जाप त के पछले भाग से ज मे. अं गरा आ द ऋ षय क उ प अ भाग से ई. ये सब ऋ ष य ांश का भाग करने वाले ुलोक के ऊंचे भाग को बढ़ाते ह. (१५) दशानामेकं क पलं समानं तं ह व त तवे पायाय. गभ माता सु धतं व णा ववेन तं तुषय ती बभ त.. (१६) अं गरा आ द दस ऋ षय म जाप त के समान क पल को य पूण करने क द गई. संतु होकर कृ त माता ने जाप त ारा था पत गभ धारण कया. (१६)
ेरणा
पीवानं मेषमपच त वीरा यु ता अ ा अनु द व आसन्. ा धनुं बृहतीम व१ तः प व व ता चरतः पुन ता.. (१७) जाप त के पु अं गरा आ द ऋ षय ने मोटे बकरे को पकाया. जुआ खेलने के थान म दे व के पासे फके गए. इन अं गरा म से दो धन के समान स ता दे ने वाले क पल को लेकर मं उ चारण के साथ अपने शरीर को शु करने के लए जल म घूमने लगे. (१७) व ोशनासो व व च आय पचा त नेमो न ह प दधः. अयं मे दे वः स वता तदाह व ् इ नव स पर ः.. (१८) अनेक कार से जाप त को पुकारते ए नाना ग तय वाले अं गरा आए. उन म से आधे ऋ ष जाप त के लए ह पकाते ह, आधे नह पकाते. सूय दे व ने यह बात मुझसे कही है. का एवं घी का भोजन करने वाले अ न जाप त को धारण करते ह. (१८) अप यं ामं वहमानमारादच या वधया वतमानम्. सष ययः युगा जनानां स ः श ा मनानो नवीयान्.. (१९) मने दे खा है क जाप त र से ा णय का नमाण करते ह. वे च र हत वधा के ारा अपने आपको धारण करते ह. वामी इं यजमान के य काल का नमाण करते ह. वे नवीन शरीर धारण करके शी ही श ुनाश करते ह. (१९) एतौ मे गावौ मर य यु ौ मो षु सेधीमु र मम ध. आप द य व नश यथ सूर मक उपरो बभूवान्.. (२०) मुझ श ुमारक इं के रथ म जुड़े ए दो सुपू जत एवं श ु के पास प च ं ने वाले ह र नामक घोड़ को मत रोको. बार-बार उनक तु त करो. वषा का जल भी इं क ग त को ा त करता है. मेघ बना कसी म के उन थान को पार कर जाते ह. (२०) अयं यो व ः पु धा ववृ ोऽवः सूय य बृहतः पुरीषात्. व इदे ना परो अ यद त तद थी ज रमाण तर त.. (२१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह इं का व महान् सूय मंडल के नीचे वाले भाग से वषा के लए गरता है. इसके अ त र अ य भी थान ह. तोता बना कसी म के उन थान को पार कर जाते ह. (२१) वृ ेवृ े नयता मीमयद्गौ ततो वयः पतान् पू षादः. अथेदं व ं भुवनं भयात इ ाय सु व षये च श त्.. (२२) वृ
से बने ए येक धनुष पर चढ़ ई गाय क तांत क डोरी श द करती है. उससे श ु का नाश करने वाले बाण नकलते ह. उस समय इं के लए सोमरस नचोड़ता आ एवं ऋ ष के लए य क द ण दे ता आ भी यह सारा संसार भय से कांपता है. (२२) दे वानां माने थमा अ त कृ त ादे षामुपरा उदायन्. य तप त पृ थवीमनूपा ा बृबूकं वहतः पुरीषम्.. (२३) दे व के नमाण के समय ये बादल सबसे पहले दे खे गए. इं ारा इन मेघ के छे दन के बाद जल ऊपर आया. पज य, वायु और सूय ये तीन धरती पर खड़े वृ को पकाते ह. सबको भा वत करने वाले वायु और सूय सबको स करने वाला जल बरसाते ह. (२३) सा ते जीवातु त त य व मा मैता गप गूहः समय. आ वः वः कृणुते गूहते बुसं स पा र य न णजो न मु यते.. (२४) हे ऋ ष! सूय ही तु हारे ाणाधार ह. तुम य म सूय का यह व प जानो. उसे छपाना मत. सूय का वह गमन करण के प म जाकर लोक को का शत करता है. सूय वग का आ व कार करते ह एवं जल को सोखते ह. सूय अपनी ग त कभी नह छोड़ते. (२४)
सू —२८
दे वता—इं
व ो १ यो अ रराजगाम ममेदह शुरो ना जगाम. ज ीया ाना उत सोमं पपीया वा शतः पुनर तं जगायात्.. (१) इं के पु वसुक क ी कहती है—“इं के अ त र सभी दे व हमारे य म आए ह. मेरे ससुर इं नह आए, यह आ य है. वे आते तो भुना आ जौ का स ू खाते और सोमरस पीते. वे शोभन आदर करके फर अपने घर चले जाते.” (१) स रो वद्वृषभ त मशृ ो व म त थौ व रम ा पृ थ ाः. व े वेनं वृजनेषु पा म यो मे कु ी सुतसोमः पृणा त.. (२) इं ने कहा—“म तीखे स ग वाले बैल के समान गजन करता आ पृ वी के ऊंचे और ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व तृत थान म रहता ं. म सभी यु नचोड़कर मेरा पेट भर दे ता है.” (२)
म उस यजमान क र ा करता ं जो सोमरस
अ णा ते म दन इ तूया सु व त सोमा पब स वमेषाम्. पच त ते वृषभाँ अ स तेषां पृ ेण य मघव यमानः.. (३) इं क पु वधू ने कहा—“हे इं ! यजमान प थर क सहायता से तु हारे लए सोमरस तैयार करते ह. तुम सोमरस पीते हो. यजमान बैल का मांस पकाते ह और तुम उसे खाते हो. उस समय तुम यजमान ारा बुलाए जाते हो.” (३) इदं सु मे ज रतरा च क तीपं शापं न ो वह त. लोपाशः सहं य चम साः ो ा वराहं नरत क ात्.. (४) “हे श ुनाशक इं ! तुम मुझ म इतनी साम य दे दो क मेरी इ छामा से न दय का जल उलटा बहने लगे. मेरे ारा भेजा आ सह अपने पर झपटने वाले सह को भगा दे एवं गीदड़ वन से सूअर को भगा दे .” (४) कथा त एतदहमा चकेतं गृ स य पाक तवसो मनीषाम्. वं नो व ाँ ऋतुथा व वोचो यमध ते मघव े या धूः.. (५) “हे इं ! मुझ अ पबु म इतनी श कहां है क तुझ ाचीन एवं बु मान् दे व क तु त कर सकूं. हे सव एवं धन वामी इं ! तुम समयसमय पर हम बताते हो, इस लए हम तु हारी तु त का कुछ भाग सरलता से वहन कर लेते ह.” (५) एवा ह मां तवसं वधय त दव मे बृहत उ रा धूः. पु सह ा न शशा म साकमश ुं ह मा ज नता जजान.. (६) इं ने कहा—“ तोता मुझ ाचीन इं क तु त इन श द म करते ह क मुझ महान् इं का व तार ुलोक से भी अ धक व तृत है. म एक साथ ही हजार श ु को न कर सकता ं. उ प करने वाले ने मुझे श ुर हत बनाया है.” (६) एवा ह मां तवसं ज ु ं कम कम वृषण म दे वाः. वध वृ ं व ेण म दसानोऽप जं म हना दाशुषे वम्.. (७) इं पु वसुक ने कहा—“हे इं ! दे वगण मुझे तु हारे ही समान महान्, येक काय म शूर एवं अ भलाषापूरक समझते ह. मने स तापूवक व के ारा वृ का वध कया था. मने अपनी म हमा से ही यजमान को गाय का समूह दया था.” (७) दे वास आय परशूँर ब वना वृ तो अ भ वड् भरायन्. न सु वं ् १ दधतो व णासु य ा कृपीटमनु त ह त.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
“दे वगण आते ह और मेघ के वध के लए व को धारण करते ह. वे म त के साथ मेघ का भेदन करके वषा का जल बरसाते ह. वे शोभन जल न दय म धारण करते ह. वे जहां भी जल दे खते ह, उसे वषा करने के लए सोख लेते ह.” (८) शशः ुरं य चं जगारा लोगेन भेदमारात्. बृह तं च हते र धया न वय सो वृषभं शूशुवानः.. (९) “मेरे ारा े रत खरगोश अपने पर झपटने वाले सह आ द को पकड़ लेता है. म र से मट् ट का ढे ला फककर पवत को फोड़ दे ता ं. म बड़े को छोटे के वश म कर दे ता ं. मेरे कारण छोटा बछड़ा श शाली होकर सांड़ से लड़ने जाता है.” (९) सुपण इ था नखमा सषायाव ः प रपदं न सहः. न म हष त यावा गोधा त मा अयथं कषदे तत्.. (१०) “ पजरे म बंद सह जस कार चार ओर पंजा मारता है, उसी कार बाज का प धारण करके सोमलता लेने को गई गाय ी वगलोक म अपने नाखून रगड़ती है.” इं बंधे ए पैर वाले भसे के समान यासे थे. गाय ी उनके लए सोमलता ले आई. (१०) ते यो गोधा अयथं कषदे त े णः तपीय य ैः. सम उ णोऽवसृ ाँ अद त वयं बला न त वः शृणानाः.. (११) जो म त् आ द दे व इं के सोमरस से तृ त होते ह, उनके लए गाय ी बना प र म के ही सोमलता ले आती है. वे य म इं से बचे ए सब सोमरस का भोग करते ह एवं अपने आप श ुसेना का नाश करते ह. (११) एते शमी भः सुशमी अभूव ये ह वरे त व१: सोम उ थैः. नृव द ुप नो मा ह वाजा द व वो द धषे नाम वीरः.. (१२) जो लोग सोमयाग म तु तय से अपने शरीर को बढ़ाते ह. वे इं क आ ा से सोम के आ जाने पर शोभन कम वाले बन. हे इं ! तुम मनु य के समान श द को बोलते ए हमारे लए अ लाते हो. हे शूर इं ! तुम वग म ‘दान वामी’ नाम धारण करते हो. (१२)
सू —२९
दे वता—इं
वने न वा यो यधा य चाक छु चवा तोमो भुरणावजीगः. य ये द ः पु दनेषु होता नृणां नय नृतमः पावान्.. (१) हे अ नीकुमारो! प ी जस कार डर से चार ओर दे खता आ पेड़ पर बने घ सले म अपने ब चे रखता है, उसी कार मने य न करके यह तो बनाया है. अनेक दन म इन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तो ारा बुलाने पर मानव हतैषी, नेता के होता एवं े या क इं य पूरा करते ह एवं रात म भी सोमरस हण करते ह. (१) ते अ या उषसः ापर या नृतौ याम नृतम य नृणाम्. अनु शोकः शतमावह ॄ कु सेन रथो यो अस ससवान्.. (२) हे नेता म े इं ! हम इस एवं अ य ातःकाल म तु हारी तु त करके उ म बन. तु हारी तु त करके शोक ऋ ष ने सौ मनु य को अनुयायी के प म पाया था और तु त के कारण ही कु स ऋ ष तु हारे साथ रथ पर बैठे थे. (२) क ते मद इ र यो भू रो गरो अ यु१ ो व धाव. क ाहो अवागुप मा मनीषा आ वा श यामुपमं राधो अ ैः.. (३) हे इं ! कौन सा नशा तु ह सबसे अ धक स करता है? हे श शाली इं ! हमारे तु तवचन सुनकर तुम य शाला के ार क ओर दौड़ो. तु हारी तु त के ारा म कब उ म वाहन ा त क ं गा एवं कब अ के साथ धन अपनी ओर ख च सकूंगा. (३) क ु न म वावतो नॄ कया धया करसे क आगन्. म ो न स य उ गाय भृ या अ े सम य यदस मनीषाः.. (४) हे इं ! तुम कब हमारा ह व भ ण करके एवं हमारी तु त सुनकर य कम ारा हम अपने समान बनाओगे? तुम कब आओगे? हे वशाल क त वाले इं ! तुम स चे म के समान अ ारा सबका भरण करते हो. तुम तु त करने पर सबका भरणपोषण करते हो. (४) रे य सूरो अथ न पारं ये अ य कामं ज नधा इव मन्. गर ये ते तु वजात पूव नर इ त श य ैः.. (५) हे इं ! पु ष जस कार अपनी प नी क अ भलाषा पूण करता है, उसी कार तुम य क ा क इ छा पूरी करो, य क तुम सूय के समान दाता हो. हे अनेक पधारी इं ! जो यजमान ह के साथ ाचीन तु तयां तु हारे लए बोलते ह, उ ह संप बनाओ. (५) मा े नु ते सु मते इ पूव ौम मना पृ थवी का ेन. वराय ते घृतव तः सुतासः वा भव तु पीतये मधू न.. (६) हे इं ! तु हारे श ुनाशक कम से शी न मत एवं व तृत ावा-पृ थवी तु हारी माता के समान है. घृतयु सोमरस पीकर एवं वा द ह खाकर तुम स बनो. (६) आ म वो अ मा अ सच म म ाय पूण स ह स यराधाः. स वावृधे व रम ा पृ थ ा अ भ वा नयः प यै .. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं स चे धनदाता ह, इस लए पा को पूरा भरकर मधुर सोमरस दो. इं धरती से भी अ धक व तृत ह. मानव हतकारी इं अपने काय और पु षाथ से बढ़ते ह. (७) ान ळ ः पृतनाः वोजा आ मै यत ते स याय पूव ः. आ मा रथं न पृतनासु त यं भ या सुम या चोदयासे.. (८) शोभन श वाले इं ने श ुसेना को घेर लया. श ु के े सै नक इं से म ता करने का य न करते ह. हे इं ! तुम जस कार पूवकाल म बु मान् आदमी के समान यु के लए रथ पर चढ़ते रहे हो, उसी कार आज भी इस य म आने के लए आदर के साथ अपने रथ पर बैठो. (८)
सू —३०
दे वता—जल
दे व ा णे गातुरे वपो अ छा मनसो न यु . मह म य व ण य धा स पृथु यसे रीरधा सुवृ म्.. (१) य के समय सोमरस दे व के न म उस कार शी जल क ओर जाव, जस कार मन तेज चलता है. हे अ वयुजनो! म एवं व तृत ग त इं के लए महान् सोम को शु करो. (१) अ वयवो ह व म तो ह भूता छाप इतोशती श तः. अव या े अ णः सुपण तमा य वमू मम ा सुह ताः.. (२) हे ह धारण करने वाले अ वयुजनो! तुम सोम से यु हो जाओ. सोमरस नचोड़ने क अ भलाषा करने वाले तुम सोमरस क कामना करने वाले जल क ओर जाओ. हे सुंदर हाथ वाले अ वयुजनो! यह सोम लाल रंग के प ी क तरह नीचे गरता है, उसे तरंग के प म दशाप व पर डालो. (२) अ वयवोऽप इता समु मपां नपातं ह वषा यज वम्. स वो दद मम ा सुपूतं त मै सोमं मधुम तं सुनोत.. (३) हे अ वयुजनो! यहां से जलपूण सागर म जाओ तथा जल के नाती अथात् अ न दे व का होम करो. वे अ न आज तु ह अ यंत शु जल क लहर दान कर तुम उनके लए मधुर सोमरस नचोड़ो. (३) यो अ न मो द दयद व१ तय व ास ईळते अ वरेषु. अपां नपा मधुमतीरपो दा या भ र ो वावृधे वीयाय.. (४) जो जल के नाती अ न दे व जल के भीतर का
के बना भी जलते ह एवं ा ण
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य म जनक तु त करते ह, वे हम ऐसा मधुर जल द, जसे पीकर इं वीरता के कम करने के लए बढ़. (४) या भः सोमो मोदते हषते च क याणी भयुव त भन मयः. ता अ वय अपो अ छा परे ह यदा स चा ओषधी भः पुनीतात्.. (५) हे अ वयुजनो! जस कार सुंदरी युव तय से मलकर पु ष ह षत और स होते ह, उसी कार जन जल से मलकर सोम मु दत होते ह, उ ह जल को लाने के लए जाओ. लाए ए जल से सोम को धोओ और सोम के साथ-साथ दशाप व को शु करो. (५) एवे ूने युवतयो नम त यद मुश ुशतीरे य छ. सं जानते मनसा सं च क ेऽ वयवो धषणाप दे वीः.. (६) जस कार अ भलाषापूण युवक, पु ष क कामना करने वाली युवती को पाकर न हो जाता है, उसी कार जल सोम क ओर अनुकूल बनकर बहते ह. अ वयुजन एवं उनक तु तय से जलदे व का वशेष प रचय है. दोन एक- सरे के उपकार को दे खते ह. (६) यो वो वृता यो अकृणो लोकं यो वो म ा अ भश तेरमु चत्. त मा इ ाय मधुम तमू म दे वमादनं हणोतनापः.. (७) हे जलो! जस इं ने तु हारे मेघ ारा घरे होने पर नकलने के लए माग बनाया एवं जसने तु ह मेघ क क ठन पकड़ से छु ड़ाया, उसी इं के लए मधुरतापूण तथा दे व को मु दत करने वाली अपनी लहर भेजो. (७) ा मै हनोत मधुम तमू म गभ यो वः स धवो म व उ सः. घृतपृ मी म वरे वापो रेवतीः शृणुता हवं मे.. (८) हे बहने वाले जलो! तु हारे गभ के समान मधुर रस वाला जो झरना है, उसक मधुर तरंग को इं के लए भेजो. हे धनयु जलो! मेरी पुकार सुनो. तु हारी तरंग य म घृतयु एवं शंसनीय है. (८) तं स धवो म सर म पानमू म हेत य उभे इय त. मद युतमौशानं नभोजां प र त तुं वचर तमु सम्.. (९) हे बहने वाले जलो! तु हारी जो तरंग इस लोक और परलोक—दोन के लए लाभ करती है, उसी मदका रणी तरंग को इं के पान के लए भेजो. तु हारी तरंग नशा करने वाली, सोम के साथ मलने क इ छु क, अंत र म उ प एवं तीन लोक म घूमने के लए ऊपर जाती है. (९) आववृततीरध नु
धारा गोषुयुधो न नयवं चर तीः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋषे ज न ीभुवन य प नीरपो व द व सवृधः सयोनीः.. (१०) हे अ वयु! ऐसे जल क वंदना करो, जो जल के लए यु करने वाले इं क आ ा से अनेक धारा म गरकर सोमरस म मलना चाहते ह, जो संसार को उ प करने वाले एवं र क ह तथा जो सोम के साथ एक ही थान म बढ़ते ह. (१०) हनोता नो अ वरं दे वय जा हनोत सनये धनानाम्. ऋत य योगे व य वमूधः ु ीवरीभूतना म यमापः.. (११) हे ऋ वजो! दे वपूजा के लए हमारे य को े रत करो, धन ा त के लए हमारे पास तु तयां भेजो एवं य के अवसर पर हमारे लए सोमरस से भरा आ चमपा खोलो. हे ऋ वज ारा छोड़े जाते ए जल! तुम हमारे लए सुखकर बनो. (११) आपो रेवतीः यथा ह व वः तुं च भ ं बभृथामृतं च. राय थ वप य य प नीः सर वती तद्गृणते वयो धात्.. (१२) हे धनयु जल! तुम धन के नवास हो. हमारे इस क याणकारी य को पूरा करके हमारे लए अमृत लाओ. तुम हमारे धन एवं शोभन संतान के पालक बनो. सर वती तोता को धन द. (१२) त यदापो अ मायतीघृतं पयां स ब तीमधू न. अ वयु भमनसा सं वदाना इ ाय सोमं सुषुतं भर तीः.. (१३) हे जल! म दे खता ं क तुम मेरे य क ओर आते ए घृत, ध एवं शहद लाते हो. अ वयु हमारे साथ स चे मन से बात करते ह तथा तुम भली कार नचोड़ा आ सोम इं के लए धारण करते हो. (१३) एमा अ म ेवतीज वध या अ वयवः सादयता सखायः. न ब ह ष ध न सो यासोऽपां न ा सं वदानास एनाः.. (१४) हे अ वयु म ो! धन से यु व जीव के लए लाभकारी जल हमारे य क ओर आ रहे ह. तुम जल को था पत करो. इन जल का वषा के दे व अथात् अपांनपात् से प रचय है. सोमरस से मलाने यो य इस जल को कुश पर था पत करो. (१४) आ म ाप उशतीब हरेदं य वरे असद दे वय तीः. अ वयवः सुनुते ाय सोममभू वः सुशका दे वय या.. (१५) कामना करता आ जल हमारे य क वेद पर बछे कुश पर आता है एवं दे व को स करने क अ भलाषा से थत होता है. हे अ वयुजनो! ऐसा जानकर तुम इं के लए सोमरस नचोड़ो. जल के आने के कारण ही इस समय तु हारा दे वय सरल हो सका है. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(१५)
सू —३१
दे वता— व ेदेव
आ नो दे वानामुप वेतु शंसो व े भ तुरैरवसे यज ः. ते भवयं सुषखायो भवेम तर ते व ा रता याम.. (१) हम तोता के तु तयो य एवं य पा इं शी गामी म त के साथ हमारी र ा के लए आव. हम उन दे व के शोभन सखा बन एवं सभी पाप से पार हो जाव. (१) प र च मत वणं मम या त य पथा नमसा ववासेत्. उत वेन तुना सं वदे त ेयांसं द ं मनसा जगृ यात्.. (२) मनु य सभी कार से दे वय के लए धन क अ भलाषा कर एवं धन पाकर ह ारा य के माग से दे व क सेवा कर. वे अपने ान से दे व का यान कर एवं अ त शंसनीय तथा सव ापक अंतरा मा को मन से हण कर. (२) अधा य धी तरससृ मंशा तीथ न द ममुप य यूमाः. अ यान म सु वत य शूषं नवेदसो अमृतानामभूम.. (३) दे वय क या आरंभ हो गई है. जस कार तीथ म तपण वाले जल के अंश दे व के पास जाते ह, उसी कार हमारे दए ए तृ तकारक ह दशनीय एवं छोटे -बड़े दे व के पास जाते ह. हमने व तृत वग का सुख पाया है और हम दे व का व प जानने वाले बन. (३) न य ाक यात् वप तदमूना य मा उ दे वः स वता जजान. भगो वा गो भरयमेमन या सो अ मै चा छदय त यात्.. (४) अपनी जा के वामी जाप त दानो सुक होकर फल दे ने क अ भलाषा कर. य क ा को स वता दे व ने फल दया है. तु त ारा स इं एवं अयमा मुझे फल द. सुंदर प वाले सभी दे व मुझे फल द. (४) इयं सा भूया उषसा मव ा य ुम तः शवसा समायन्. अ य तु त ज रतु भ माणा आ नः श मास उपय तु वाजाः.. (५) जस समय तु त अ भलाषी दे वगण श द करते ए तेज चाल से मेरे पास आए, उस समय यह धरती ातःकाल के काश से भर गई. सुखकारक अ हमारे पास आवे. (५) अ येदेषा सुम तः प थानाभव पू ा भूमना गौः. अ य सनीळा असुर य योनौ समान आ भरणे ब माणाः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इस समय हमारी दे व तु त दे व के पास जाने के लए पहले के समान व तृत हो रही है. मुझ श के य म सब दे व अपने अनुकूल थान हण कर एवं मेरे लए उ म फल द. मेरा य सब दे व का पोषक है. (६) क व नं क उ स वृ आस यतो ावापृ थवी न त ुः. संत थाने अजरे इतऊती अहा न पूव षसो जर त.. (७) वह कौन सा वन अथवा कौन सा वृ है, जससे साम ी लेकर दे व ने ावा-पृ थवी को बनाया है? दे व ारा सुर त ावा-पृ थवी ठ क से थत एवं जरार हत ह, जब क ाचीन दन एवं उषाएं जीण हो गई ह. (७) नैतावदे ना परो अ यद यु ा स ावापृ थवी बभ त. वचं प व ं कृणुत वधावा यद सूय न ह रतो वह त.. (८) ावा-पृ थवी ही सबसे बढ़कर नह ह. उनसे बढ़कर भी कोई है. वह जा को बनाने वाला और ावा-पृ थवी का र क है. उस अ के वामी ने उस समय अपने शरीर का नमाण कया था, जस समय सूय के घोड़ ने उनका रथ ख चना भी आरंभ नह कया था. (८) तेगो न ाम ये त पृ व महं न वातो व ह वा त भूम. म ो य व णो अ यमानोऽ नवने न सृ शोकम्.. (९) र मसमूह वाले सूय व तृत धरती का अ त मण करके नह जाते और वायु भी समथ होते ए वषा को छ - भ नह करते. म एवं व ण कट होकर इस कार काश करते ह, जस कार अ न वन को का शत कर सकते ह. (९) तरीय सूत स ो अ यमाना थर थीः कृणुत वगोपा. पु ो य पूवः प ोज न श यां गौजगार य पृ छान्.. (१०) बूढ़ गाय जस कार वीय से स चत होकर शी ही ब चा पैदा करती है, उसी कार ःख न करने वाली एवं अपनी र ा करने वाली अर णयां अ न को उ प करती ह. अ न माता- पता के समान दोन अर णय से ाचीनकाल म उ प ए थे, इस लए उनके पु ह. शमी वृ पर ज म लेने वाली अर ण प गाय क खोज क जाती है. (१०) उत क वं नृषदः पु मा त यावो धनमाद वाजी. कृ णाय शद प वतोधऋतम न कर मा अपीपेत्.. (११) वेदवाही लोग क व को नृषद का पु कहते ह. काले रंग वाले एवं ह ा धारक क व ने धन ा त कया. अ न ने क व के लए अपना शोभन प कट कया. क व के अ त र अ न के लए वैसा य कोई नह कर सकता. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —३२
दे वता— व ेदेव
सु म ता धयसान य स ण वरे भवराँ अ भ षु सीदतः. अ माक म उभयं जुजोष त य सो य या धसो बुबोध त.. (१) इं अपने घोड़े इं ागमन क चता करने वाले मुझ यजमान के य म आने के लए हांकते ह. उ म माग से ह व दे ने वाले यजमान के ह और तु तय को ल य करके इं आव. इं आकर हमारा ह भ ण कर एवं तु तयां सुन. इं मेरे सोमरस और ह का वाद लेते ह. (१) वी या स द ा न रोचना व पा थवा न रजसा पु ु त. ये वा वह त मु र वराँ उप ते सु व व तु व वनाँ अराधसः.. (२) हे ब त ारा शं सत इं ! तुम द काश को धरती पर फैलाते ए जाते हो. तु हारे घोड़े तु ह बार-बार ढोकर हमारे य क ओर लाव. वे घोड़े हम धनहीन तोता को धनसंप कर. (२) त द मे छ स पुषो वपु रं पु ो य जानं प ोरधीय त. जाया प त वह त व नुना सुम पुंस इ ो वहतुः प र कृतः.. (३) इं मुझे वही चम कारपूण एवं धन के समान ज म दे ने क कृपा कर, जसे पाकर पु पता का धन ा त करता है. यजमान क प नी यजमान को भले श द ारा अपने पास बुलाती है. सोमरस उस उ म पु ष के पास भली कार जावे. (३) त द सध थम भ चा द धय गावो य छास वहतुं न धेनवः. माता य म तुयूथ य पू ा भ वाण य स तधातु र जनः.. (४) हे इं ! उस थान को अपने तेज से का शत करो, जहां तु त प धा रणी गाएं मलती ह. तु तय क ाचीन एवं पूजा यो य माता गाय ी के सात छं द उसी थान पर ह. (४) वोऽ छा र रचे दे वयु पदमेको े भया त तुव णः. जरा वा ये वमृतेषु दावने प र व ऊमे यः स चता मधु.. (५) हे यजमानो! दे व क अ भलाषा करते ए अ न तु हारे थान पर जाते ह. अकेले इं के साथ होता के पास से तु हारे य म शी आते ह. तु त भी इन मरणर हत दे व से धन दलाने म समथ होती है. तुम अपने र क दे व के लए सोमरस पलाओ. (५) नधीयमानमपगू हम सु मे दे वानां तपा उवाच. इ ो व ाँ अनु ह वा चच तेनाहम ने अनु श आगाम्.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व म उ म एवं य क र ा करने वाले इं ने अ वयु ारा जल म न हत अ न के वषय म बताया है. हे अ न! व ान् इं ने तु ह बाद म दे खा था, म उसी इं के उपदे श के अनुसार तु हारे पास आया ं. (६) अ े व े वदं ाट् स ै त े वदानु श ः. एत ै भ मनुशासन योत ु त व द य सीनाम्.. (७) माग न जानने वाले लोग जानने वाल से पूछते ह. माग जानने वाले के नदश के अनुसार वह इ छत थान पर प ंच जाता है. इसी अनुशासन के ारा खोजने पर जल का माग ा त हो सकता है. (७) अ े ाणीदमम माहापीवृतो अधय मातु धः. एमेनमाप ज रमा युवानमहेळ वसुः सुमना बभूव.. (८) ये अ न आज ही अर णमंथन से उ प ए ह. सोमरस नचोड़ने वाले इ ह अ य ले जाना चाहते ह. तेज से ढके ए अ न, धरतीमाता के ध के समान सोमरस पीते ह. न य युवा अ न को ह से मली ई तु त ा त होती है. इस हेतु अ न ोधर हत, धन दे ने वाले एवं शोभन मनयु ए ह. (८) एता न भ ा कलश याम कु वण ददतो मघा न. दान इ ो मघवानः सो अ वयं च सोमो द यं बभ म.. (९) हे कलावान् एवं तोता क तु तयां सुनने वाले इं ! तुम तोता को धन दे ते हो. हे तो पी धन वाले तोताओ! यह इं तु हारे त दाता ही रह. जस सोम को म पेट म रखता ,ं वे भी तु हारे लए दाता रह. (९)
सू —३३
दे वता—कु
वण
मा युयु े युजो जनानां वहा म म पूषणम तरेण. व े दे वासो अध मामर ःशासुरागा द त घोष आसीत्.. (१) यजमान को य कम म नयु करने वाले दे व ने मुझ कवष ऋ ष को कु वण के त नयु कया है. मने पूषा को माग से वहन कया है. सभी दे व ने मेरी र ा क . चार ओर यह ह ला मचा आ था क क ठनता से वश म आने वाला ऋ ष आ गया है. (१) सं मा तप य भतः सप नी रव पशवः. न बाधते अम तन नता जसुवन वेवीयते म तः.. (२) मेरी पस लयां मुझे सौत
य के समान ब त ःख दे रही ह. बु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हीनता, न नता और
बलता मुझे पी ड़त कर रही ह. मेरी बु दे खकर प ी कांपते ह. (२)
उसी कार कांपती है, जस कार शकारी को
मूषो न श ा द त मा यः तोतारं ते शत तो. सकृ सु नो मघव मृळयाधा पतेव नो भव.. (३) हे इं ! चूहे जस कार तांत को खाते ह, उसी कार मेरी मान सक चताएं मुझे खाए जा रही ह. हे शत तु इं ! म तु हारा तोता ं. हे धन वामी इं ! एक बार मेरी र ा करो एवं मेरे पता के समान बनो. (३) कु
वणमावृ ण राजानं ासद यवम्. मं ह ं वाघतामृ षः.. (४)
म कवष ऋ ष यजमान को दे ने के लए े धनदाता एवं सद यु के पु कु पास धन मांगने गया था. (४)
वण के
य य मा ह रतो रथे त ो वह त साधुया. तवै सह द णे.. (५) जब म रथ म बैठता था, तब हरे रंग के तीन घोड़े मुझे भली कार ढोते थे. य हजार वण मु ाएं पाने वाला म लोग ारा शं सत होता था. (५) यय
म
वादसो गर उपम वसः पतुः. े ं न र वमूचुषे.. (६)
हे राजन्! यश क चचा चलने पर लोग तु हारे पता का ांत दे ते थे. उनक बात मुझे इस कार चकर लगती थ , जस कार सेवक को इनाम म दया आ खेत लगता है. (६) अ ध पु ोपम वो नपा म ा तथे र ह. पतु े अ म व दता.. (७) हे ांतयो य क त वाले म ा त थ के पु ! तुम मेरे पास आओ. म तु हारे पता का तोता ं. (७) यद शीयामृतानामुत वा म यानाम्. जीवे द मघवा मम.. (८) य द म मरणर हत दे व और मरणशील मानव का वामी होता तो मुझे धन दे ने वाले अथात् तु हारे पता जी वत रहते. (८) न दे वानाम त तं शता मा चन जीव त. तथा युजा व वावृते.. (९) सौ आ मा वाला भी दे व क मयादा लांघकर जी वत नह रह सकता. इसी कारण सा थय से हमारा वयोग होता है. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —३४
दे वता—अ अथात् पासे
ावेपा मा बृहतो मादय त वातेजा इ रणे ववृतानाः. सोम येव मौजवत य भ ो वभीदको जागृ वम म छान्.. (१) वण दे श म उ प बड़े-बड़े पासे जुआ खेलने के त ते पर इधर-उधर बखरते ए मुझे आनं दत करते ह. जीत-हार म हष-शोक जगाने वाला पासा मुझे उसी कार सुख दे ता है, जस कार मुंजवान् पवत पर उ प सोमलता का रस पीकर सुख मलता है. (१) न मा ममेथ न जहीळ एषा शवा स ख य उत म मासीत्. अ याहमेकपर य हेतोरनु तामप जायामरोधम्.. (२) यह प नी न मुझसे कभी अ स ई और न इसने कभी मुझसे ल जा क . यह मेरे म और मेरे त सुखकारी थी. इस कार सवथा अनुकूल प नी को भी मने एकमा पास के कारण याग दया. (२) े अ
ूरप जाया ण न ना थतो व दते म डतारम्. येव जरतो व य य नाहं व दा म कतव य भोगम्.. (३)
सास जुआ खेलने वाले क नदा करती है एवं प नी उसे छोड़ जाती है. य द वह धन मांगे तो उसे कोई दे ने वाला नह मलता. जस कार बूढ़े घोड़े का कुछ भी मू य नह लगता, उसी कार मुझ जुआरी का कह आदर नह होता. (३) अ ये जायां प र मृश य य य यागृध े दने वा य१ ः. पता माता ातर एनमा न जानीमो नयता ब मेतम्.. (४) श शाली पासे जस जुआरी के धन को लालच क से दे खते ह, उसक भचा रणी प नी का सरे लोग पश करते ह. जुआरी के माता, पता एवं भाई कज मांगने वाल से कहते ह—“हम इसे नह जानते. इसे बांधकर ले जाओ.” (४) यदाद ये न द वषा ये भः परायद् योऽव हीये स ख यः. यु ता ब वो वाचम तँ एमीदे षां न कृतं जा रणीव.. (५) जब म न य कर लेता ं क जुआ नह खेलूंगा, तब म आए ए जुआरी म को याग दे ता ं. कतु जब जुआ खेलने के त ते पर फके ए पीले रंग वाले पासे श द करते ह, तब म उस थान क ओर ऐसे चला जाता ं, जैसे भचा रणी ी संकेत थान पर प ंच जाती है. (५) सभामे त कतवः पृ छमानो जे यामी त त वा३ शूशुजानः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ासो अ य व तर त कामं
तद ने दधत आ कृता न.. (६)
जुआरी शरीर से द त होकर एवं यह कहता आ जुआघर म जाता है क कौन धन वाला आया है? म उसे जीतूंगा. कभी-कभी पासे जुआरी क कामना पूरी करते ह और कभी उसके वरोधी जुआरी के अनुकूल कम धारण करके उसक इ छा पूरी करते ह. (६) अ ास इदङ् कु शनो नतो दनो नकृ वान तपना ताप य णवः. कुमारदे णा जयतः पुनहणो म वा स पृ ाः कतव य बहणा.. (७) कभी-कभी पासे अंकुश के समान चुभने वाले, दय को टु कड़े-टु कड़े करने वाले एवं गरम पदाथ के समान जलाने वाले बन जाते ह. पासे जीतने वाले जुआरी के लए पु ज म के समान आनंददाता एवं मधु से लपटे ए लगते ह, पर हारने वाले क तो जान नकाल लेते ह. (७) प चाशः ळ त ात एषां दे वइव स वता स यधमा. उ य च म यवे ना नम ते राजा चदे यो नम इ कृणो त.. (८) स चे धम वाले स वता दे व जस कार आकाश म वचरण करते ह, उसी कार तरेपन पासे जुआ खेलने के त ते पर ड़ा करते ह. ये पासे उ एवं ोधी के भी वश म नह आते. राजा तक इन पास के सामने झुकता है. (८) नीचा वत त उप र फुर यह तासो ह तव तं सह ते. द ा अ ारा इ रणे यु ताः शीताः स तो दयं नदह त.. (९) पासे कभी नीचे गरते ह और कभी ऊपर उछलते ह. ये बना हाथ के होकर भी हाथवाल को परा जत करते ह. ये द पासे जुआ खेलने के त ते पर फके जाते समय अंगार बन जाते ह. ये छू ने म ठं डे ह, पर हारने वाले के मन को जलाते ह. (९) जाया त यते कतव य हीना माता पु य चरतः व वत्. ऋणावा ब य न म छमानोऽ येषाम तमुप न मे त.. (१०) अ न त थान म घूमने वाले जुआरी क प नी उसके बना ःखी होती है एवं माता परेशान रहती है. सर का कज चढ़ जाने से जुआरी डरता है. वह सर के धन को चुराने क इ छा करता है. रात म घर आता है. (१०) यं ् वाय कतवं ततापा येषां जायां सुकृतं च यो नम्. पूवाह्णे अ ा युयुजे ह ब ू सो अ नेर ते वृषलः पपाद.. (११) जुआरी सर क सुखी प नय और अ छ कार बने ए घर को दे खकर ःखी होता है. जो जुआरी सवेरे के समय पीले रंग के घोड़े पर बैठता है, वही शाम को कपड़ के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अभाव म शीत से
ाकुल होकर आग के पास सोता है. (११)
यो वः सेनानीमहतो गण य राजा ात य थमो बभूव. त मै कृणो म न धना ण म दशाहं ाची त तं वदा म.. (१२) हे पासो! तु हारे समूह का जो सेनाप त राजा एवं मुख है, म उसके लए नम कार करता ं. म दस उंग लय से हाथ जोड़कर स य कहता ं क भ व य म म जुए से धन नह कमाऊंगा. (१२) अ ैमा द ः कृ ष म कृष व व े रम व ब म यमानः. त गावः कतव त जाया त मे व च े स वतायमयः.. (१३) हे जुआरी! मेरी बात को मह वपूण समझकर तुम पास से मत खेलो. खेती से जो धन मले, उसीको ब त मानकर स रहो. खेती से ब त सी गाएं एवं प नी ा त होगी, स वता वामी ने मुझसे ऐसा कहा है. (१३) म ं कृणु वं खलु मृळता नो मा नो घोरेण चरता भ धृ णु. न वो नु म यु वशतामरा तर यो ब ूणां सतौ व तु.. (१४) हे पासो! हम अपना म बना लो एवं हम सुखी करो. तुम हमारे ऊपर अपने भयंकर तथा अस भाव का योग मत करो. तु हारा ोध हमारे श ु म वेश करे. श ु तुम पीले रंग वाले पास के बंधन म शी आ जाव. (१४)
सू —३५
दे वता— व ेदेव
अबु मु य इ व तो अ नयो यो तभर त उषसो ु षु. मही ावापृ थवी चेततामपोऽ ा दे वानामव आ वृणीमहे.. (१) इं से संबं धत अ नयां उषा ारा अंधकारनाश के समय तेज धारण करते ए जाग गई ह. व तृत ावा एवं पृ थवी भी चेतनायु ह . आज म दे व क र ा का वरण करता ं. (१) दव पृ थ ोरव आ वृणीमहे मातॄ स धू पवता छयणावतः. अनागा वं सूयमुषासमीमहे भ ं सोमः सुवानो अ ा कृणोतु नः.. (२) हम ावा-पृ थवी से अपनी र ा क ाथना करते ह. म माता तु य न दय एवं कु े म थत पवत से भी र ा क याचना करता ं. हे सूय एवं उषा! म तुम दोन से ाथना करता ं क मुझे पापर हत रखो. जाने जाते ए सोम आज हमारा मंगल कर. (२) ावा नो अ पृ थवी अनागसो मही ायेतां सु वताय मातरा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उषा उ छ यप बाधतामघं व य१ नं स मधानमीमहे.. (३) व तृत एवं माता- पता के समान ावा-पृ थवी से हम ाथना करते ह क वे सुख पाने के लए हम न पाप लोग क र ा कर. अंधकार का वनाश करती ई उषा हमारे पाप को समा त करे. हम व लत अ न से सुख क याचना करते ह. (३) इयं न उ ा थमा सुदे ं रेव स न यो रेवती ु छतु. आरे म युं वद य धीम ह व य१ नं स मधानमीमहे.. (४) धन क वा मनी, मु या एवं पाप का नाश करने वाली उषा हम दान यो य धन दे . हम बुरे धन वाले के ोध से र रहना चाहते ह. हम व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (४) याः स ते सूय य र म भ य तभर ती षसो ु षु. भ ा नो अ वसे ु छत व य१ नं स मधानमीमहे.. (५) जो उषाएं सूय करण के साथ मलती ह एवं काश को धारण करके अंधकार का नाश करती ह, वे आज हम अ दे ने के लए अनुकूल ह एवं अंधकार का नाश कर. हम व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (५) अनमीवा उषस आ चर तु न उद नयो जहतां यो तषा बृहत्. आयु ाताम ना तूतु ज रथं व य१ नं स मधानमीमहे.. (६) रोगर हत उषाएं हमारे पास आव एवं व तृत अ न तेज से मलकर ऊपर उठ. अ नीकुमार हमारे पास आने के लए अपने तेज चलने वाले रथ म घोड़े जोत. हम व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (६) े ं नो अ स वतवरे यं भागमा सुव स ह र नधा अ स. रायो ज न धषणामुप ुवे व य१ नं स मधानमीमहे.. (७) हे स वता दे व! आज हम े एवं वरण करने यो य धन दो. तुम उ म र न दे ने वाले हो. हम धन उ प करने वाली तु तयां बोलते ह. हम व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (७) पपतु मा त त य वाचनं दे वानां य मनु या३ अम म ह. व ा इ ाः पळु दे त सूयः व य१ नं स मधानमीमहे.. (८) य का दे व तु त पी भाग हमारी र ा करे. हम उसे जानते ह. सूय येक भात म सभी व तु को प करते ए आते ह. हम व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ े षो अ ब हषः तरीम ण ा णां योगे म मनः साध ईमहे. आ द यानां शम ण था भुर य स व य१ नं स मधानमीमहे.. (९) आज य म कुश बछाए जा चुके ह एवं सोमरस नचोड़ने का एक प थर सरे पर रख दया गया है. इस समय मेरा मन अ भल षत व तु पाने के लए े षर हत दे व क शरण जाता है. हम व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (९) आ नो ब हः सधमादे बृह व दे वाँ ईळे सादया स त होतॄन्. इ ं म ं व णं सातये भगं व य१ नं स मधानमीमहे.. (१०) हे अ न! हमारे व तृत एवं द त यश म तुम सात होता व इं , म , व ण, भग आ द दे व को भली कार बुलाओ. हम धन ा त के लए दे व क तु त करगे. हम व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (१०) त आ द या आ गता सवतातये वृधे नो य मवता सजोषसः. बृह प त पूषणम ना भगं व य१ नं स मधानमीमहे.. (११) हे स आ द यो! तुम हमारे य के लए आओ एवं हमारे क याण के लए संयत होकर य म बैठो. हम बृह प त, पूषा, अ नीकुमार , भग एवं व लत अ न से क याण क याचना करते ह. (११) त ो दे वा य छत सु वाचनं छ दरा द याः सुभरं नृपा यम्. प े तोकाय तनयाय जीवसे व य१ नं स मधानमीमहे.. (१२) हे आ द य दे वो! तुम अपना य पूण करो एवं हम मानव क र ा करने वाला मनपसंद घर दो. हम व लत अ न से अपने पशु , संतान एवं जीवन के वषय म क याण क याचना करते ह. (१२) व े अ म तो व ऊती व े भव व नयः स म ाः. व े नो दे वा अवसा गम तु व म तु वणं वाजो अ मे.. (१३) आज सभी म त् सब कार से हमारी र ा कर एवं सभी अ नयां व लत ह . सभी दे व हमारी र ा के लए आव तथा सब कार के अ व संप हम ा त ह . (१३) यं दे वासोऽवथ वाजसातौ यं ाय वे यं पपृथा यंहः. यो वो गोपीथे न भय य वेद ते याम दे ववीतये तुरासः.. (१४) हे दे वो! हम य के ऐसे आतुर बन, जसक तुम यु म र ा करते हो, जनका ाण करते हो एवं ज ह पापर हत करके उनक अ भलाषा पूण करते हो एवं जो तु हारा सहारा पाकर भय को जानते भी नह . (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —३६
दे वता— व ेदेव
उषासान ा बृहती सुपेशसा ावा ामा व णो म ो अयमा. इ ं वे म तः पवताँ अप आ द या ावापृ थवी अपः वः.. (१) म महान् एवं शोभन प वाली उषा व रा और ावा-पृ थवी, व ण, म , अयमा, इं , म द्गण, पवतसमूह, जल , आ द य , अंत र एवं अ य दे व को य म बुलाता ं. (१) ौ नः पृ थवी च चेतस ऋतावरी र तामंहसे रषः. मा वद ा नऋ तन ईशत त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (२) शोभन बु वाली एवं य के यो य ावा-पृ थवी हम हसक एवं पाप से बचाव. बुरी बु वाली मृ यु हम पर अ धकार न कर सके. हम आज दे व क उसी र ा क याचना करते ह. (२) व मा ो अ द तः पा वंहसो माता म य व ण य रेवतः. वव यो तरवृकं नशीम ह त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (३) धन के वामी म और व ण क माता अ द त पाप से हमारी र ा कर. हम वनाशर हत यो त को पूण प से शी ा त कर. दे व से आज हम उसी र ा क याचना करते ह. (३) ावा वद प र ां स सेधतु व यं नऋ त व म णम्. आ द यं शम म तामशीम ह त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (४) सोमरस नचोड़ने के काम आने वाले दोन प थर श द करते ए रा स को र भगाव एवं बुरे सपन , मृ यु और सबको खाने वाले रा स को हमसे हटाव. हम आ द य एवं म त से संबं धत सुख ा त कर. हम आज दे व क उसी स र ा क याचना करते ह. (४) ए ो ब हः सीदतु प वता मळा बृह प तः साम भऋ वो अचतु. सु केतं जीवसे म म धीम ह त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (५) इं भली कार कुश पर बैठ. तु तवचन वशेष प से बोले जाव. साममं ारा शं सत बृह प त हमारी अ भलाषा पूरी कर. हम जीवन के लए शोभन ान एवं धन ा त कर. आज हम दे व से उसी स र ा क याचना करते ह. (५) द व पृशं य म माकम ना जीरा वरं कृणुतं सु न म ये. ाचीनर ममा तं घृतेन त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (६) हे अ नीकुमारो! तुम हमारे य
को वग छू ने वाला, शी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ग तयु
व हसार हत
बनाओ. तुम हमारी अ भलाषापू त के लए हम सुख दो तथा घृत ारा आ त द गई अ न को दे व के त अ भमुख बनाओ. आज हम दे व से उसी स र ा क याचना करते ह. (६) उप ये सुहवं मा तं गणं पावकमृ वं स याय शंभुवम्. राय पोषं सौ वसाय धीम ह त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (७) म शोभन आ ान वाले, शु क ा, दशनीय, सुखदाता व धन के पोषक म द्गण को म ता पाने के लए बुलाता ं तथा वशेष प से अ पाने के लए म उनका यान करता ं. हम आज दे व से वशेष र ा क याचना करते ह. (७) अपां पे ं जीवध यं भरामहे दे वा ं सुहवम वर यम्. सुर मं सोम म यं यमीम ह त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (८) हम जल का पालन करने वाले, जीव को ध य करने वाले, दे व को तृ त दे ने वाले, शोभन तु त वाले, य क शोभा व शोभन द तयु सोम को धारण करते ह एवं उनसे श क याचना करते ह. आज हम दे व से वही स र ा मांगते ह. (८) सनेम त सुस नता स न व भवयं जीवा जीवपु ा अनागसः. षो व वगेनो भरेरत त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (९) हम और हमारे पु द घजीवी तथा अपराधर हत बनकर एवं अपनी संतान के साथ बांटकर सोमरस का पान कर. हम ा ण से े ष करने वाले लोग सब कार के पाप से पूण ह . आज हम दे व से उसी र ा क याचना करते ह. (९) ये था मनोय या ते शृणोतन य ो दे वा ईमहे त दातन. जै ं तुं र यम रव श त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (१०) हे मनु य का य पाने के यो य दे वो! तुम हमारी तु त सुनो. हम तुमसे जो कुछ मांगते ह, वह हम दो. हम जय दान करने वाला ान व धन एवं संतान से यु यश दो. आज हम दे व से उसी स र ा क याचना करते ह. (१०) महद महतामा वृणीमहेऽवो दे वानां बृहतामनवणाम्. यथा वसु वीरजातं नशामहै त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (११) हम आज े , महान् और अ तीय दे व से अ धक र ा क ाथना करते ह. आज हम दे व से उसी वशेष र ा क ाथना करते ह, जससे हम धन एवं संतान ा त हो सके. (११) महो अ नेः स मधान य शम यनागा म े व णे व तये. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े े याम स वतुः सवीम न त े वानामवो अ ा वृणीमहे.. (१२) हम महान् एवं व लत अ न से सुख व म व ण से पापहीनता तथा क याण ा त कर. हम सूय से सव म सुख ा त कर. आज हम दे व से उसी वशेष र ा क याचना करते ह. (१२) ये स वतुः स यसव य व े म य ते व ण य दे वाः. ते सौभगं वीरवद्गोमद ो दधातन वणं च म मे.. (१३) जो दे व स य वभाव वाले स वता, म और व ण के य म उप थत रहते ह, वे हम सौभा य, संतान एवं गाय से यु अ , पूजनीय धन एवं पु यकम द. (१३) स वता प ाता स वता पुर ता स वतो रा ा स वताधरा ात्. स वता नः सुवतु सवता त स वता नो रासतां द घमायुः.. (१४) सूय दे व हम प म, पूव, उ र एवं द ण दशा एवं द घ आयु द. (१४)
सू —३७
म सभी अ भल षत धन दान कर
दे वता—सूय
नमो म य व ण य च से महो दे वाय त तं सपयत. रे शे दे वजाताय केतवे दव पु ाय सूयाय शंसत.. (१) हे ऋ वजो! तुम म और व ण को दे खने वाले महान्, द तशाली, र रहते ए भी सबको दे खने वाले, दे व के वंश म उ प , संसार का ान कराने वाले एवं वग के पु तु य सूय को नम कार करके य आ द से उनक पूजा तथा शंसा करो. (१) सा मा स यो ः प र पातु व तो ावा च य ततन हा न च. व म य वशते यदे ज त व हापो व ाहोदे त सूयः.. (२) ये स यवचन मेरी सभी कार से र ा कर, जनके सहारे आकाश एवं दन थत ह, सभी ाणी जनके आ त ह, जनके भाव से ा णसमूह ग त करता है, जल बहता है एवं सदा सूय उगता है. (२) न ते अदे वः दवो न वासते यदे तशे भः पतरै रथय स. ाचीनम यदनु वतते रज उद येन यो तषा या स सूय.. (३) हे सूय दे व! जब तुम अपने ग तशाली घोड़ को रथ म जोड़ने क इ छा करते हो, तब कोई भी ाचीन रा स तु हारे समीप नह रहता. तु हारी वह स यो त जल के पीछे चलती है, जसके साथ तुम उ दत होते हो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
येन सूय यो तषा बाधसे तमो जग च व मु दय ष भानुना. तेना म ाम नरामना तमपामीवामप व यं सुव.. (४) हे सूय दे व! तुम जस यो त से अंधकार का नाश करते हो एवं जस करण से सारे संसार को चमकाते हो, उसी के ारा हमारा अ ाभाव, य हीनता, रोगसमूह एवं बुरे व न करो. (४) व य ह े षतो र स तमहेळय ु चर स वधा अनु. यद वा सूय प वामहै तं नो दे वा अनु मसीरत तुम्.. (५) हे े रत सूय दे व! तुम ोध न करते ए सभी यजमान के य क र ा करते हो एवं ातःकाल के य के बाद उ दत होते हो. आज जब हम तु हारा नाम ल, तभी दे व हमारे य को वीकार कर. (५) तं नो ावापृ थवी त आप इ ः शृ व तु म तो हवं वचः. मा शूने भूम सूय य स श भ ं जीव तो जरणामशीम ह.. (६) ावा-पृ थवी, इं , जल एवं म त् हमारा आ ान एवं तु तवचन सुन. हम सूय क कृपा पाकर ःख ा त न कर, अ पतु चरकाल तक ाण धारण करते ए क याण एवं यौवन का भोग कर. (६) व ाहा वा सुमनसः सुच सः जाव तो अनमीवा अनागसः. उ तं वा म महो दवे दवे यो जीवाः त प येम सूय.. (७) हे सूय दे व! हम स मन, सुदशन, संतानयु , रोगर हत एवं न पाप होकर सदा तु हारा य कर. हे म का आदर करने वाले सूय! हम चरंजीवी बनकर तु ह त दन उ दत होता आ दे ख. (७) म ह यो त ब तं वा वच ण भा व तं च ुषेच ुषे मयः. आरोह तं बृहतः पाजस प र वयं जीवाः त प येम सूय.. (८) हे वशेष वाले सूय! हम चरंजीवी बनकर त दन तु हारा दशन कर. तुम महान् यो त धारण करने वाले, द तशाली, सब दे खने वाल क आंख के लए सुखकर एवं महान् सागर के ऊपर आरोहण करते हो. (८) य य ते व ा भुवना न केतुना चेरते न च वश ते अ ु भः. अनागा वेन ह रकेश सूया ा ा नो व यसाव यसो द ह.. (९) हे हरे बाल वाले सूय! तु हारी जस पहचान के कारण सभी ाणी वशेष प से ग त करते ह और रात के समय व ाम करते ह, तुम अपनी पहचान को लेकर त दन उगो एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम तु ह दे ख. (९) शं नो भव च सा शं नो अ ा शं भानुना शं हमा शं घृणेन. यथा शम व छमसद् रोणे त सूय वणं धे ह च म्.. (१०) हे सूय! तुम अपने तेज, दवस, करण, शीतलता एवं उ णता के ारा हमारे लए क याणकारी बनो. हम चाहे माग म ह या अपने घर म, तुम हम यह व च संप दो. (१०) अ माकं दे वा उभयाय ज मने शम य छत पदे चतु पदे . अद पब जयमानमा शतं तद मे शं योररपो दधातन.. (११) हे दे वो! तुम हमारे पद और चतु पद दोन कार के ा णय को सुख दो. सब ाणी खाते-पीते एवं श शाली बन. तुम ा णय को सुख एवं पापहीनता दान करो. (११) य ो दे वा कृम ज या गु मनसो वा युती दे वहेळनम्. अरावा यो नो अ भ छु नायते त म तदे नो वसवो न धेतन.. (१२) हे नवास थान दे ने वाले दे वो! हमने वचन अथवा मन के योग से तु हारा जो अपमान कया है, उस पाप को तुम उस पर डालो जो हम पर आ मण करके हमारे त पाप का आचरण करता है. (१२)
सू —३८
दे वता—इं
अ म इ पृ सुतौ यश व त शमीव त द स ाव सातये. य गोषाता धृ षतेषु खा दषु व व पत त द वो नृषा े.. (१) हे इं ! तुम यश दे ने वाले व पर पर हार से यु यु म सहनाद करते हो एवं धन पाने के लए हमारी र ा करते हो. गाय का लाभ कराने वाले एवं मानव को परा जत करने वाले यु म यो ा एक- सरे को न करते ह एवं द त आयुध चार ओर गरते ह. (१) स नः ुम तं सदने ूणु ह गोअणसं र य म वा यम्. याम ते जयतः श मे दनो यथा वयमु म स त सो कृ ध.. (२) हे स इं ! तुम हमारे घर म इतनी शंसनीय संप भर दो क गाएं सागर के जल के समान पया त मा ा म ह . हे श ! हम तु हारी वजय पर श शाली बन. हे वासदाता इं ! हम जो कामना कर, उसे पूरा करो. (२) यो नो दास आय वा पु ु तादे व इ युधये चकेत त. अ मा भ े सुषहाः स तु श व वया वयं ता वनुयाम सङ् गमे.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ब त ारा शं सत इं ! जो दास, आय अथवा रा स हमारे साथ यु करना चाहते ह. वे सब श ु तु हारी कृपा से हमारे ारा सरलता से हार जाव. हम तु हारी कृपा से उ ह यु म मार डाल. (३) यो द े भह ो य भू र भय अभीके व रवो व ृषा े. तं वखादे स नम ु ं नरमवा च म मवसे करामहे.. (४) त जो इं मानव संहारक यु म धन ा त करते ह, वे चाहे थोड़े मनु य ारा पुकारे जाव अथवा ब त ारा उन पर शु , सव स एवं य के नेता इं को आज हम अपने अनुकूल बनाते ह. (४) ववृजं ह वामह म शु वानानुदं वृषभ र चोदनम्. मु च व प र कु सा दहा ग ह कमु वावा मु कयोब
आसते.. (५)
हे अ भलाषापूरक इं ! हमने सुना है क तुम वयं अपने बंधन काटने वाले, आशातीत बल दे ने वाले एवं अपने भ के ेरक हो. तुम यहां आओ और कु स के बंधन से वयं को छु ड़ाओ. तु हारे समान भुज य का बंधन य सहन करता है? (५)
सू —३९
दे वता—अ नीकुमार
यो वां प र मा सुवृद ना रथो दोषामुषासो ह ो ह व मता. श मास तमु वा मदं वयं पतुन नाम सुहवं हवामहे.. (१) हे अ नीकुमारो! तु हारा जो रथ सब ओर जाने वाला व ठ क से बंधा है एवं जसे रात- दन बुलाना यजमान अपना क समझता है, हम अ तशय चरंतन उसी रथ का नाम इस कार लेते ह, जस कार पु आनंदपूवक पता का नाम लेता है. (१) चोदयतं सूनृताः प वतं धय उ पुर धीरीरयतं त म स. यशसं भागं कृणुतं नो अ ना सोमं न चा ं मघव सु न कृतम्.. (२) हे अ नीकुमारो! हम मधुर वचन बोलने को े रत करो, हमारे य कम को पूण करो व हम म ब त सी बु यां उ प करो. हम इन तीन क कामना करते ह. हम यश वी धन दो. हम सोमरस के समान यजमान को स करने वाले बन. (२) अमाजुर वथो युवं भगोऽनाशो द वतारापम य चत्. अ ध य च ास या कृश य च ुवा मदा भषजा त य चत्.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम पता के घर म वृ होती ई भा यहीन घोषा के लए वर खोजकर सौभा यशाली बने. तुम चलने म असमथ एवं अ यंत न न जा त वाल के र क ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनते हो. लोग तु ह अंधे और बल का ही नह , य का वै भी कहते ह. (३) युवं यवानं सनयं यथा रथं पुनयुवानं चरथाय त थुः. न ौ यमूहथुरद् य प र व े ा वां सवनेषु वा या.. (४) हे अ नीकुमारो! जस कार बढ़ई पुराने रथ को नया बनाकर चलने यो य कर दे ता है, उसी कार तुमने वृ यवन ऋ ष को जवान बनाकर चलने- फरने लायक कर दया था. तुमने तु के पु भु यु को जल के ऊपर तैराकर कनारे पर लगा दया था. तु हारे वे काय य के समय वशेष प से वणन करने यो य ह. (४) पुराणा वां वीया३ वा जनेऽथो हासथु भषजा मयोभुवा. ता वां नु न ाववसे करामहेऽयं नास या द रयथा दधत्.. (५) हे अ नीकुमारो! म लोग के सामने तु हारे सभी पुराने वीर कम का वणन करती ं. तुम दोन सुख दे ने वाले वै हो. म तुमसे र ा पाने के लए तु हारी तु त करती ं. मेरी तु त पर यजमान ा करते ह. (५) इयं वाम े शृणुतं मे अ ना पु ायेव पतरा म ं श तम्. अना पर ा असजा याम तः पुरा त या अ भश तेरव पृतम्.. (६) हे अ नीकुमारो! म तु ह बुलाता ं. तुम मेरी पुकार सुनो. जस कार पता पु को सीख दे ता है, उसी कार तुम मुझे सखाओ. म बंधुर हत, ानशू य जा तर हत एवं बु हीन ं. तुम ग त से पहले ही मेरी र ा करो. (६) युवं रथेन वमदाय शु युवं यूहथुः पु म य योषणाम्. युवं हवं व म या अग छतं युवं सुषु त च थुः पुर धये.. (७) हे अ नीकुमारो! तुम पु म क क या शुं युव को वमद के साथ ववाह करने के लए रथ ारा ले गए थे. तुम व मती ारा बुलाए जाने पर आए थे एवं तुमने उस बु मती के लए शोभन ऐ य दया था. (७) युवं व य जरणामुपेयुषः पुनः कलेरकृणुतं युव यः. युवं व दनमृ यदा पथुयुवं स ो व पलामेतवे कृथः.. (८) हे अ नीकुमारो! तुमने बुढ़ापे को ा त एवं मेधावी क ल ऋ ष को बारा जवान बना दया था. तुमने वंदन नामक ऋ ष को कुएं से नकाला था एवं लंगड़ी व पला को लोहे का पैर लगाकर चलने यो य बना दया था. (८) युवं ह रेभं वृषणा गुहा हतमुदैरयतं ममृवांसम ना. युवमृबीसमुत त तम य ओम व तं च थुः स तव ये.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ भलाषापूरक अ नीकुमारो! तुमने गुफा म पड़े ए एवं मरणास रेभ ऋ ष को बाहर नकाला था. तुमने सात बंधन से बंधे एवं जलते ए अ नकुंड म फके गए अ ऋ ष के लए वषा करके अ न शांत कर द थी. (९) युवं त े ं पेदवेऽ ना ं नव भवाजैनवती च वा जनम्. चकृ यं ददथु ावय सखं भगं न नृ यो ह ं मयोभुवम्.. (१०) हे अ नीकुमारो! तुमने राजा पे के लए न यानवे घोड़ के साथ एक श शाली घोड़ा दया था. वह घोड़ा श ु पर वजय पाने वाला व श ु के म को भगाने वाला था. वह मनु य के लए आ ान करने यो य, सुखदाता एवं धन के समान सेवनीय था. (१०) न तं राजानाव दते कुत न नांहो अ ो त रतं न कभयम्. यम ना सुहवा वतनी पुरोरथं कृणुथः प या सह.. (११) हे वामी! द नतार हत, शोभन आ ान वाले एवं शंसनीय माग वाले अ नीकुमारो! तुम जस प तप नी को अपने रथ के अगले भाग म बैठा लेते हो, उसे न पाप लगता है, न दशा उसके पास आती है और न उसे कसी से भय रहता है. (११) आ तेन यातं मनसो जवीयसा रथं यं वामृभव ु र ना. य य योगे हता जायते दव उभे अहनी सु दने वव वतः.. (१२) हे अ नीकुमारो! मन के समान वेगशाली उसी रथ पर बैठकर आओ, जसे तु हारे लए ऋभु नामक दे व ने बनाया था एवं जस रथ के संयोग से सूयपु ी उषा ज म लेती है व सूय से शोभन दन-रात उ प होते ह. (१२) ता व तयातं जयुषा व पवतम प वतं शयवे धेनुम ना. वृक य च तकाम तरा या ुवं शची भ सताममु चतम्.. (१३) हे अ नीकुमारो! तुम उसी जयशील रथ के ारा पवत क ओर जाने वाले माग पर जाओ एवं शंयु के लए बूढ़ गाय को पुनः धा बना दो. तुमने भे ड़ए के मुंह म फंसी ई व तका नामक च ड़या को अपने कम के भाव से छु ड़ाया था. (१३) एतं वां तोमम नावकमात ाम भृगवो न रथम्. यमृ ाम योषणां न मय न यं न सूनुं तनयं दधानाः.. (१४) हे अ नीकुमारो! भृगुवं शय ने जस कार रथ बनाया, उसी कार हमने तु हारे लए यह तो बनाया है. जस कार दामाद को दे ने के लए क या का शृंगार कया जाता है, उसी कार हमने यह रथ सजाया है. हम इस तो को य क ा पु के समान सदा धारण करते ह. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —४०
दे वता—अ नीकुमार
रथं या तं कुह को ह वां नरा त ुम तं सु वताय भूष त. ातयावाणं व वं वशे वशे व तोव तोवहमानं धया श म.. (१) हे य के नेता अ नीकुमारो! तु हारे द तशाली य क ओर ातःकाल चलने वाले, ा त, सब मनु य के पास त दन धन प ंचाने वाले एवं ग तशील रथ क पूजा मेरे समान कस यजमान ने कहां क है? (१) कुह व ोषा कुह व तोर ना कुहा भ प वं करतः कुहोषतुः. को वां शयु ा वधवेव दे वरं मय न योषा कृणुते सध थ आ.. (२) हे अ नीकुमारो! तुम रात और दन म कहां रहते हो? तु हारा समय कहां बीतता है? तुम कहां नवास करते हो? जस कार वधवा अपने दे वर को और सधवा अपने प त को चारपाई पर बुलाती है, उसी कार मेरे अ त र कौन यजमान तु ह य वेद पर अपने अनुकूल बनाता है? (२) ातजरेथे जरणेव कापया व तीव तोयजता ग छथो गृहम्. क य व ा भवथ: क य वा नरा राजपु ेव सवनाव ग छथः.. (३) हे य के नेता अ नीकुमारो! जस कार ातःकाल परम ऐ य वाले राजा को जगाया जाता है, उसी कार तु ह ातःकाल जगाने के लए तु तयां पढ़ जाती ह. हे य के यो य अ नीकुमारो! तुम त दन यजमान के घर जाते हो. तुम कस यजमान के दोष समा त करते हो एवं राजकुमार के साथ कसके य म जाते हो? (३) युवां मृगेव वारणा मृग यवो दोषा व तोह वषा न यामहे. युवं हो ामृतुथा जु ते नरेषं जनाय वहथः शुभ पती.. (४) हे वरण करने वाले अ नीकुमारो! बहे लए जस कार शा ल क इ छा करते ह, उसी कार ह लेकर म तु ह रात- दन बुलाता ं. हे य के नेता अ नीकुमारो! यजमान समयसमय पर तु हारे लए आ त दे ते ह. तुम वषा के जल के वामी होने के कारण यजमान के लए अ दे ते हो. (४) युवां ह घोषा पय ना यती रा ऊचे हता पृ छे वां नरा. भूतं मे अ उत भूतम वेऽ ावते र थने श मवते.. (५) हे य के नेता अ नीकुमारो! राजा क ीवान् क पु ी म घोषा इधर-उधर दौड़कर तु हारी बात करती ं एवं तु हारे ही वषय म पूछती ं. तुम रात- दन मेरे यहां रहो एवं अ व रथ से यु मेरे भतीजे को यहां से नकाल दो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
युवं कवी ः पय ना रथं वशो न कु सो ज रतुनशायथः. युवोह म ा पय ना म वासा भरत न कृतं न योषणा.. (६) हे मेधावी अ नीकुमारो! तुम लोग रथ पर बैठकर कु स के समान तोता के घर जाते हो. तु हारे मधु को मधुम खयां इस कार अपने मुंह म भर लेती ह, जस कार युवती संभोग म रत रहती है. (६) युवं ह भु युं युवम ना वशं युवं श ारमुशनामुपारथुः. युवो ररावा प र स यमासते युवोरहमवसा सु नमा चके.. (७) हे अ नीकुमारो! तुमने भु यु, वश, अ और उशना का उ ार कया. ह दे ने वाला यजमान तु हारी म ता ा त करता है. म तु हारी र ा के ारा मलने वाले सुख क कामना करता ं. (७) युवं ह कृशं युवम ना शयुं युवं वध तं वधवामु यथः. युवं स न यः तनय तम नाप जमूणुथः स ता यम्.. (८) हे अ नीकुमारो! तुमने कृश, शंयु, अपने सेवक ओर वधवा व मती का उ ार कया था. तुम ही अपने यजमान के लए गरजते ए तथा ग तशील ार वाले मेघ को भेदकर जल बरसाते हो. (८) ज न योषा पतय कनीनको व चा ह वी धो दं सना अनु. आ मै रीय ते नवनेव स धवोऽ मा अ े भव त त प त वनम्.. (९) हे अ नीकुमारो! तु हारी कृपा से म युवती बन गई ं और मेरी कामना करने वाला प त आ गया है. तु हारे ारा क गई वषा के बाद पेड़पौधे उग आए ह. जस कार नीचे बहने वाली न दयां सागर क ओर जाती ह, उसी कार पौधे इन क ओर बढ़ रहे ह. इस प त को ऐसा यौवन ा त हो, जसे कोई न न कर सके. (९) जीवं द त व मय ते अ वरे द घामनु स त द धयुनरः. वामं पतृ यो य इदं समे ररे मयः प त यो जनयः प र वजे.. (१०) जो लोग अपनी प नय के वयोग म रोते ह, प नय को य म अपने समीप बैठाते ह, उ ह अपनी व तृत बांह म समेटते ह और उनसे संतान उ प करके उ ह पतृय म े रत करते ह, उनक यां सुख के साथ उनका आ लगन करती ह. (१०) न त य व त षु वोचत युवा ह य ुव याः े त यो नषु. यो य य वृषभ य रे तनो गृहं गमेमा ना त म स.. (११) हे अ नीकुमारो! म प तप नी के संसग वाले सुख को नह जानती. मुझे उस वषय म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बताओ. मुझ युवती के घर म मेरा युवा प त नवास करता है. म केवल यही कामना करती ं क म य, युव तय को चाहने वाले एवं श शाली प त को ा त क ं . (११) आ वामग सुम तवा जनीवसू य ना सु कामा अयंसत. अभूतं गोपा मथुना शुभ पती या अय णो या अशीम ह.. (१२) हे अ एवं धन वाले तथा उदक के वामी अ नीकुमारो तु हारी कृपा पर पर मलकर मेरे समीप आवे. मेरे मन क अ भलाषाएं पूरी ह . तुम मेरे र क बनो. म प त के घर जाकर उसक यारी बनूं. (१२) ता म दसाना मनुषो रोण आ ध ं र य सहवीरं वच यवे. कृतं तीथ सु पाणं शुभ पती थाणुं पथे ामप म त हतम्.. (१३) हे स होते ए अ नीकुमारो! म तु हारी तु त क अ भलाषा करती ं. तुम मेरे प त के घर म पु ा दयु धन था पत करो. हे जल के वामी अ नीकुमारो! जब म प त के घर जाऊं तब तुम पानी के घाट का जल पीने यो य बनाओ. मेरे माग म य द कोई सूखा आ वृ या बु वाला हो, तुम उसे भी हटाओ. (१३) व वद कतमा व ना व ु द ा मादयेते शुभ पती. क न येमे कतम य ज मतु व य वा यजमान य वा गृहम्.. (१४) हे दशनीय एवं जल के वामी अ नीकुमारो! तुम आज कस जनपद और कन जा म आनंद पाते हो? कसने तु ह बांधकर रखा है एवं तुम कस बु मान् यजमान के घर जाते हो? (१४)
सू —४१
दे वता—अ नीकुमार
समानमु यं पु तमु यं१ रथं च ं सवना ग न मतम्. प र मानं वद यं सुवृ भवयं ु ा उषसो हवामहे.. (१) हे अ नीकुमारो! तु हारे पास एक ही शं सत एवं ब त ारा आ त रथ है. तीन प हय वाला वह रथ य म जाता है. हम उस चार ओर घूमने वाले एवं य के लए हतकारी रथ को त दन ातःकाल सुद ं र तु तय ारा बुलाते ह. (१) ातयुजं नास या ध त थः ातयावाणं मधुवाहनं रथम्. वशो येन ग छथो य वरीनरा क रे ं होतृम तम ना.. (२) हे स य का पालन करने वाले एवं नेता अ नीकुमारो! तुम ातःकाल घोड़ से यु होने वाले, ातःकाल चलने वाले एवं मधुकारक रथ पर बैठो. उसी रथ पर बैठकर तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य शील जा
के समीप एवं तु तक ा के ऋ षयु
घर को जाते हो. (२)
अ वयु वा मधुपा ण सुह यम नधं वा धृतद ं दमूनसम्. व य वा य सवना न ग छथोऽत आ यातं मधुपेयम ना.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम मुझ हाथ म सोम धारण करने वाले, शोभनह त, श शाली, दाने छु क एवं अ न का आधान करने वाले अ वयु के पास आओ. य द तुम कसी बु मान् यजमान के य म जा रहे हो, तब भी उन य को छोड़ कर हमारा सोमरस पीने के लए आओ. (३)
सू —४२
दे वता—इं
अ तेव सु तरं लायम य भूष व भरा तोमम मै. वाचा व ा तरत वाचमय न रामय ज रतः सोम इ म्.. (१) हे अंतरा मा! धनुधारी जस कार सीने म घुसने वाला बाण छोड़ता है, उसी कार तुम इं को सुशो भत करते ए उसक तु त करो. हे मेधावी तोताओ! तुम अपने तु तवचन से श ु क तु तय को परा जत करो एवं सोमय म इं को आक षत करो. (१) दोहेन गामुप श ा सखायं बोधय ज रतजार म म्. कोशं न पूण वसुना यृ मा यावय मघदे याय शूरम्.. (२) हे तोता! गाय जस कार ध दे ती है, उसी कार इं अ भलाषा पूण करते ह. तुम म इं को वश म करो एवं जारतु य इं को जगाओ. लोग जस कार धन से भरे ए पा को उलटा करके उस म से भरा धन नकालते ह, उसी कार तुम धन दे ने के लए शूर इं को अ भमुख करो. (२) कम वा मघव भोजमा ः शशी ह मा शशयं वा शृणो म. अ वती मम धीर तु श वसु वदं भग म ा भरा नः.. (३) हे धन वामी इं ! लोग तु ह तोता का इ य कहते ह? मने तु ह दाता सुना है, इस लए तुम धन दे कर तोता को संप करो. हे श ! मेरी बु य कम म नपुण हो एवं मेरा भा य धन ा त कराने वाला बनाओ. (३) वां जना ममस ये व स त थाना व य ते समीके. अ ा युजं कृणुते यो ह व मा ासु वता स यं व शूरः.. (४) हे इं ! लोग यु म तु ह सहायता के लए पुकारते ह. यु म श ु के साथ थत लोग तु ह बुलाते ह. इं ह वाले आ ाता को अपना म बनाते ह एवं सोमरस न नचोड़ने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाले पु ष के साथ म ता नह चाहते ह. (४) धनं न प ं ब लं यो अ मै ती ा सोमाँ आसुनो त य वान्. त मै श ू सुतुका ातर ो न व ा युव त ह त वृ म्.. (५) जो ह वाला यजमान इं के लए इस कार नशीला सोमरस नचोड़ता है, जस कार कोई द र को दे ने के लए गाय या अ आ द धन का सं कार करता है, इं उसके श शाली, संतानस हत एवं शोभन आयुध वाले श ु को उससे अलग हटाते ह एवं उसका उप व शांत करते ह. (५) य म वयं द धमा शंस म े यः श ाय मघवा कामम मे. आरा च स भयताम य श ु य मै ु ना ज या नम ताम्.. (६) हमने जन इं क तु त क है, वे धनवान् इं हमारी इ छा पूरी करते ह. इं के श ु र होते ए भी डरते ह एवं श ु के जनपद क संप इं के अ धकार म आ जाती है. (६) आरा छ ुमप बाध व रमु ो यः श बः पु त तेन. अ मे धे ह यवमद्गोम द कृधी धयं ज र े वाजर नाम्.. (७) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! तु हारा जो उ व है, उससे श ु को हमारे पास से भगाओ. हे इं ! हम जौ और गाय वाला धन दो. तुम अपने तोता क तु त अ एवं र न उ प करने वाली बनाओ. (७) यम तवृषसवासो अ म ती ाः सोमा ब ला तास इ म्. नाह दामानं मघवा न यंस सु वते वह त भू र वामम्.. (८) अनेक धारा म माधुय बरसाता आ एवं तेज नशे वाला सोमरस व वध अ से मलकर जस समय इं के शरीर म वेश करता है, उस समय इं सोमरसदाता यजमान को कभी नह रोकते. इसके अ त र वे सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को अ धक मा ा म शोभन धन दे ते ह. (८) उत हाम तद ा जया त कृतं य छ् व नी व चनो त काले. यो दे वकामो न धना ण स म ं राया सृज त वधावान्.. (९) जुआरी जस कार अपने को चुनौती दे ने वाले वरोधी जुआरी को दे खकर पकड़ लेता है, उसी कर इं अपने वरोधी यो ा के साथ भां त-भां त का यु करके उसे हराते ह. जो दे व क पूजा क अ भलाषा से धन क कंजूसी नह करता, श शाली इं उसीको धनसंप बनाते ह. (९) गो भ रेमाम त रेवां यवेन ुधं पु
त व ाम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वयं राज भः थमा धना य माकेन वृजनेना जयेम.. (१०) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! हम द र ता से आई बु को तु हारी कृपा से पशु क सहायता से पार कर एवं यव ारा व तृत भूख शांत कर. हम राजा के साथ रहकर अपनी श ारा मु य धन को ा त कर. (१०) बृह प तनः प र पातु प ा तो र मादधरादघायोः. इ ः पुर ता त म यतो नः सखा स ख यो व रवः कृणोतु.. (११) बृह प त हम पापी श ु से प म, उ र और द ण दशा म य भाग म हमारी र ा कर. म के म इं हम धन द. (११)
सू —४३
म बचाव. इं पूव एवं
दे वता—इं
अ छा म इ ं मतयः व वदः स ीची व ा उशतीरनूषत. प र वज ते जनयो यथा प त मय न शु युं मघवानमूतये.. (१) मुझ अं गरागो ीय कृ ण ऋ ष क सब कुछ ा त कराने वाली, व तृत एवं अ भलाषापूण तु तयां इं क भली कार तु त करती ह. प नयां जस कार प त का पश करती ह, उसी कार मेरी तु तयां र ा पाने के हेतु धन वामी इं के समीप जाती ह. (१) न घा व गप वे त मे मन वे इ कामं पु त श य. राजेव द म न षदोऽ ध ब ह य म सु सोमेऽवपानम तु ते.. (२) हे ब त ारा बुलाए गए एवं दशनीय इं ! तु हारी ओर अ भमुख मेरा मन अ य कसी क ओर नह जाता है. म अपनी अ भलाषा तु ह पर था पत करता ं. राजा जस कार अपने महल म बैठता है, उसी कार तुम य के कुश पर बैठो. इस शोभन सोम के त तु हारी पीने क अ भलाषा हो. (२) वषूवृ द ो अमते त ुधः स इ ायो मघवा व व ईशते. त ये दमे वणे स त स धवो वयो वध त वृषभ य शु मणः.. (३) इं बु और भूख से बचाने के लए हमारे चार ओर रह. वे ही धन वामी इं सम त संप य के वामी ह. अ भलाषापूरक एवं तेज वी क आ ा से ये सात न दयां दे श म अ बढ़ाती ह. (३) वयो न वृ ं सुपलाशमासद सोमास इ ं म दन मूषदः. ैषामनीकं शवसा द व ुत द व१मनवे यो तरायम्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प ी जस कार शोभन प वाले वृ का सहारा लेते ह, उसी कार नशा करने वाले एवं पा म भरे ए सोम इं के पास जाते ह. सोम के नशे से इं का मुख चमकने लगता है. इं मनु य के लए सूय नामक उ म यो त द. (४) कृतं न नी व चनो त दे वने संवग य मघवा सूय जयत्. न त े अ यो अनु वीय शक पुराणो मघव ोत नूतनः.. (५) जुआरी जस कार जुआघर म अपने को जीतने वाले सरे जुआरी को खोजता है, उसी कार धन वामी इं वषा का वरोध करने वाले सूय को हराने के लए ढूं ढ़ता है. हे धन वामी इं ! कोई भी नया-पुराना तु हारी श के अनुसार काम नह कर सकता. (५) वशं वशं मघवा पयशायत जनानां धेना अवचाकशद्वृषा. य याह श ः सवनेषु र य त स ती ैः सौमैः सहते पृत यतः.. (६) धन वामी इं येक मनु य म सोते ह. अ भलाषापूरक इं मनु य क तु तय पर यान दे ते ह. श जसके य म रमण करते ह, वह नशीला सोमरस पीकर श ु को परा जत करता है. (६) आपो न स धुम भ य सम र सोमास इ ं कु याइव दम्. वध त व ा महो अ य सादने यवं न वृ द ेन दानुना.. (७) जब सोमरस सागर क ओर जाने वाली न दय के समान अथवा तालाब क ओर जाने वाली ना लय के समान इं के पास जाते ह, तब मेधावी ा ण य म इं का तेज वषा के द जल से बढ़े ए जौ के समान बढ़ा दे ते ह. (७) वृषा न ु ः पतय जः वा यो अयप नीरकृणो दमा अपः. स सु वते मघवा जीरदानवेऽ व द यो तमनवे ह व मते.. (८) लोक म जस कार एक बैल ोध म भरकर सरे बैल क ओर झपटता है, उसी कार इं मेघ को मारकर अपने ारा पालने यो य जल को हमारी ओर े रत करते ह. धन वामी इं सोमरस नचोड़ने वाले, शी दानक ा एवं ह धारक यजमान के लए तेज दान करते ह. (८) उ जायतां परशु य तषा सह भूया ऋत य सु घा पुराणवत्. व रोचताम षो भानुना शु चः व१ण शु ं शुशुचीत स प तः.. (९) इं का व तेजी के साथ हमारे श ु के वध म लग जावे. य को दोहन करने वाली बात ाचीन काल के समान ह . इं का शत होते ए अपनी द त से शु तापूवक तेज धारण कर. स जन के पालक इं सूय के समान व लत होते ए द त ह . (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
गो भ रेमाम त रेवां यवेन ध ु ं पु त व ाम्. वयं राज भः थमा धना य माकेन वृजनेना जयेम.. (१०) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! हम द र ता से आई ई बु को तु हारी कृपा से पशु क सहायता से पार कर एवं य ारा अपनी व तृत भूख शांत कर. हम राजा के साथ रहकर अपनी श ारा मु य धन को ा त कर. (१०) बृह प तनः प र पातु प ा तो र मादधरादघायोः. इ ः पुर ता त म यतो नः सखा स ख यो व रवः कृणोतु.. (११) बृह प त हम पापी श ु से प म, उ र और द ण दशा म बचाव. इं पूव और म य भाग म हमारी र ा कर. हम म के म इं हम धन द. (११)
सू —४४
दे वता—इं
आ या व ः वप तमदाय यो धमणा तूतुजान तु व मान्. व ाणो अ त व ा सहां यपारेण महता वृ येन.. (१) वे धन वामी इं स ता पाने के लए अपने रथ म बैठकर हमारे य म आव, जो शी ता से बढ़कर श ु के बल को अपनी असी मत श य से ीण करते ह. (१) सु ामा रथः सुयमा हरी ते म य व ो नृपते गभ तौ. शीभं राज सुपथा या वाङ् वधाम ते पपुषो वृ या न.. (२) हे मनु य के पालक इं ! तु हारा रथ शोभन थ त वाला, तु हारे घोड़े वश म रहने वाले एवं व तु हारी बांह म रहने वाला है. हे वामी इं ! शोभन माग ारा शी हमारे सामने आओ. हम सोमरस पलाकर तु हारी श बढ़ाते ह. (२) ए वाहो नृप त व बा मु मु ास त वषास एनम्. व सं वृषभं स यशु ममेम म ा सधमादो वह तु.. (३) श शाली, वशाल शरीर वाले एवं पर पर स रहने वाले इं के घोड़े मनु य के पालक, हाथ म व धारण करने वाले, श शाली, श ु सेना को नबल बनाने वाले, अ भलाषापूरक व ववादर हत श वाले इं को हमारे समीप लाव. (३) एवा प त ोणसाचं सचेतसमूजः क भं ध ण आ वृषायसे. ओजः कृ व सं गृभाय वे अ यसो यथा के नपाना मनो वृधे.. (४) हे इं तु ह सबके पालक, ोणकलश म रहने वाले, जा वाले एवं बलधारणक ा सोमरस से अपने पेट को भरते हो. तुम मुझे श दो एवं अपना बनाओ. हम बु मान को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बढ़ाने म तु ह समथ हो. (४) गम मे वसू या ह शं सषं वा शषं भरमा या ह सो मनः. वमी शषे सा म ा स स ब ह यनाधृ या तव पा ा ण धमणा.. (५) हे इं ! म तु हारी तु त करता ं, इस लए सारी संप मेरे पास आवे. तुम मुझ सोमरस वाले के शोभन य म आओ. तुम धन के वामी हो. तुम इन बछे ए कुश पर बैठो. तु हारे सोमरस के पा को रा स छू भी नह सकते. (५) पृथक् ाय थमा दे व तयोऽकृ वत व या न रा. न ये शेकुय यां नावमा हमीमव ते य वश त केपयः.. (६) हे इं ! जो मुख एवं दे व को बुलाने वाले लोग तु हारी कृपा से अलग-अलग वग म गए, उ ह ने अ य ारा यश के काय कए थे. जो य प नाव पर नह चढ़ सके, वे पापकमा, ऋणयु एवं नीच बने रहते ह. (६) एवैवापागपरे स तु ोऽ ा येषां युज आयुयु े. इ था ये ागुपरे स त दावने पु ण य वयुना न भोजना.. (७) जो लोग इसी कार बु एवं य र हत ह, वे अधोगामी रह. जन य न करने वाल के श शाली घोड़े रथ म जुड़ते ह, वे नरक म जाते ह. जो मरने से पहले ही दे व को ह दे ते ह, वे वग म जाते ह. वग म शोभन व तुएं अ धक मा ा म रहती ह. (७) गर र ा ज े मानाँ अधारयद् ौः दद त र ा ण कोपयत्. समीचीने धषणे व कभाय त वृ णः पी वा मद उ था न शंस त.. (८) इं ने पेट भरने वाले सोम को पीकर गमनशील एवं कांपने वाले मेघ को थर कया. उस समय वग ं दन करने लगा और अंत र कु पत हो उठे . इं पर पर मली ई ावापृ थवी को उसी दशा म रखते ह. (८) इमं बभ म सुकृतं ते अङ् कुशं येना जा स मघव छफा जः. अ म सु ते सवने अ वो यं सुत इ ौ मघव बो याभगः.. (९) हे धन वामी इं ! म तु हारे लए तु त पी शोभन अंकुश धारण करता ं. इससे े रत होकर तुम श ुसेना को न करने वाले अपने हा थय को क चते हो. इस सोमयाग म तु हारा नवास हो. तुम सेवनीय बनकर य म हमारी तु तयां सुनो. (९) गो भ रेमाम त रेवां यवेन ध ु ं पु त व ाम्. वयं राज भः थमा धना य माकेन वृजनेना जयेम.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ब त ारा बुलाए गए इं ! हम द र ता से आई ई बु को तु हारी कृपा तथा पशु क सहायता से पार कर एवं यव ारा अपनी व तृत भूख शांत कर. हम राजा के साथ रहकर अपनी श ारा मु य धन को ा त कर. (१०) बृह प तनः प र पातु प ा तो र मादधरादघायोः. इ ः पुर ता त म यतो नः सखा स ख यो व रवः कृणोतु.. (११) बृह प त हम पापी श ु से प म, उ र और द ण दशा म बचाव. इं पूव और म य भाग म हमारी र ा कर. हम म के म इं हम धन द. (११)
सू —४५
दे वता—अ न
दव प र थमं ज े अ नर मद् तीयं प र जातवेदाः. तृतीयम सु नृमणा अज म धान एनं जरते वाधीः.. (१) अ न सबसे पहले ुलोक के ऊपर आ द य प म उ प ए. अ न सरी बार जातवेद के प म हमारे बीच उ प ए. तीसरी बार वे जल म पैदा ए. मानव हतकारी अ न नरंतर जलते रहते ह. शोभन यान वाले लोग अ न क तु त करते ह. (१) व ा ते अ ने ेधा या ण व ा ते धाम वभृता पु ा. व ा ते नाम परमं गुहा य ा तमु सं यत आजग थ.. (२) हे अ न! हम तीन थान म थत तु हारे तीन प जानते ह एवं अनेक थान पर थत तु हारे तेज को जानते ह. हम तु हारे गूढ़ एवं स नाम को जानते ह. हम उस उ प थान को भी जानते ह एवं उसे भी जानते ह. (२) समु े वा नृमणा अ व१ तनृच ा ईधे दवो अ न ऊधन्. तृतीये वा रज स त थवांसमपामुप थे म हषा अवधन्.. (३) हे अ न! मानव- हतैषी व णदे व ने तु ह सागर के म य थत जल म व लत कया. मानव को दे खने वाले सूय ने तु ह आकाश पी तन म जलाया. तु हारा तीसरा थान मेघ के बीच जल म है. महान् दे व तु ह बढ़ाते ह. (३) अ दद नः तनय व ौः ामा रे रह धः सम न्. स ो ज ानो व ही म ो अ यदा रोदसी भानुना भा य तः.. (४) दावा न का ं दन इस कार आ जैसे आकाश म बजली कड़कती हो. अ न धरती को चाटते एवं लता को जलाते ह. तुरंत उ प अ न द त होकर अपने ारा जलाई ई व तु को दे खते ह एवं अपनी करण से धरती और आकाश के म य भाग को का शत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह. (४) ीणामुदारो ध णो रयीणां मनीषाणां ापणः सोमगोपाः. वसुः सूनुः सहसो अ सु राजा व भा य उषसा मधानः.. (५) अ न वभू तय के दाता, धन के धारणक ा, मनचाही व तुएं दे ने वाले, सोमरस के र क, सबको बसाने वाले, श के पु , जल म थत एवं सबके वामी ह. ातःकाल के ारंभ म व लत अ न वशेष शोभा धारण करते ह. (५) व य केतुभुवन य गभ आ रोदसी अपृणा जायमानः. वीळुं चद म भन पराय ना यद नमयज त प च.. (६) व का ान कराने वाले व जल के गभ प अ न उ प होते ही धरती-आकाश को घेर लेते ह. जब मनु य क पांच जा तयां अ न का य करती ह, तब जाते ए ढ़ मेघ को भी भेद दे ती ह. (६) उ श पावको अर तः सुमेधा मत व नरमृतो न धा य. इय त धूमम षं भ र छु े ण शो चषा ा मन न्.. (७) ह व चाटने वाले, सम त लोक को शु करने वाले, सब ओर ग तशील, शोभन ा वाले व मरणर हत अ न मरणधमा मानव म रहते ह. अ न धूम को े रत करते ह एवं तेज वी प धारण करते ए, उ वल करण से वग को ा त करते ह. (७) शानो म उ वया ौद् मषमायुः ये चानः. अ नरमृतो अभव यो भयदे नं ौजनय सुरेताः.. (८) दे खने म तेज वी अ न अ यंत का शत होते ह. सभी जगह जाने वाले अ न शोभा के लए धष प से चमकते ह. वे अ और वन प तय से अमर बने ह. अ न को शोभन वीय वाले आ द य ने ज म दया है. (८) य ते अ कृणव शोचेऽपूपं दे व घृतव तम ने. तं नय तरं व यो अ छा भ सु नं दे वभ ं य व .. (९) हे क याणकारक द त वाले, द तशाली एवं अ तशय युवा अ न! तु हारे लए आज जस यजमान ने घी वाला पुआ बनाया है, उस उ म को तुम धन क ओर ले जाओ एवं उस दे वसेवक यजमान को सुख दो. (९) आ तं भज सौ वसे व न उ थउ थ आ भज श यमाने. यः सूय यो अ ना भवा यु जातेन भनद ज न वैः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! तुम शोभन ह वाले य के समय यजमान को मनचाहा फल दो एवं तो के उ चारण के समय भी उसक अ भलाषा पूरी करो. वह यजमान सूय और अ न का य हो एवं उ प तथा भ व य म ज म लेने वाले पु क सहायता से श ु का नाश करे. (१०) वाम ने यजमाना अनु ू व ा वसु द धरे वाया ण. वया सह वण म छमाना जं गोम तमु शजो व व ुः.. (११) हे अ न! यजमान तु हारे लए त दन सभी उ म धन को धारण करते ह. रा स ारा चुराए गए गोधन क अ भलाषा करने वाले मेधावी दे व ने तु हारे साथ रा स क पशुशाला का ार खोला. (११) अ ता ननरां सुशेवो वै ानर ऋ ष भः सोमगोपाः. अ े षे ावापृ थवी वेम दे वा ध र यम मे सुवीरम्.. (१२) हम ऋ षय ने मानव को शोभन सुख दे ने वाले, सभी मानव के हतैषी व सोम के ारा र णीय अ न क तु त क . हम े षर हत ावा-पृ थवी का आ ान करते ह. हे दे वो! तुम हम शोभन संतानयु धन दो. (१२)
सू —४६
दे वता—अ न
होता जातो महा भो व ृष ा सीददपामुप थे. द धय धा य स ते वयां स य ता वसू न वधते तनूपाः.. (१) मानव म रहने वाले, अंत र क गोद म बजली के प म बैठे ए, गुण के कारण पू य व अंत र के ाता अ न उ प होते ही यजमान के होता बने. य धारणक ा अ न वेद पर थत कए गए ह. हे व स ! वे अ न तुझ प रचारक के लए अ एवं धन दे ने वाले तथा शरीरर क बन. (१) इमं वध तो अपां सध थे पशुं न न ं पदै रनु मन्. गुहा चत तमु शजो नमो भ र छ तो धीरा भृगवोऽ व दन्.. (२) लोग जस कार पैर के नशान दे खकर चुराए ए पशु का पीछा करते ह, उसी कार तु हारी सेवा करने वाले ऋ षय ने जल के बीच तु ह ढूं ढ़ा. तु हारी कामना करने वाले एवं बु मान् भृगुवंशी ऋ षय ने एकांत म छपे ए अ न को तु तय ारा ा त कया. (२) इमं तो भूय व द द छ वैभूवसो मूध य यायाः. स शेवृधो जात आ ह यषु ना भयुवा भव त रोचन य.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वभूवस के पु त ऋ ष ने पाने क इ छा करके इन महान् अ न को धरती के ऊपर ा त कया था. सुख बढ़ाने वाले एवं युवा अ न यजमान के घर म सभी ओर से उ प होकर वग क ना भ बनते ह. (३) म ं होतारमु शजो नमो भः ा चं य ं नेतारम वराणाम्. वशामकृ व र त पावकं ह वाहं दधतो मानुषेषु.. (४) मादक, होम न पादक, ग तशील, य के यो य, य के नेता, य शाला म वतमान, शोधक एवं ह वाहक अ न को मनु य म धारण करने वाले तथा अ न क अ भलाषा करने वाले ऋ वज ने तु तय ारा स कया. (४) भूजय तं महां वपोधां मूरा अमूरं पुरां दमाणम्. नय तो गभ वनां धयं धु ह र म ुं नावाणं धनचम्.. (५) हे तोता! तुम जयशील, महान् एवं मेधा वय को धारण करने वाले अ न क तु त करने म समथ बनो. सभी लोग बु मान्, पु रय को न करने वाले, अर ण के गभ प, तु तयो य, हरे रंग के बाल के समान, वाला से यु एवं ी तकर तो वाले अ न को ह दे कर अपने कम को ा त करते ह. (५) न प यासु तः तभूय प रवीतो योनौ सीदद तः. अतः सङ् गृ या वशां दमूना वधमणाय ैरीयते नॄन्.. (६) अ न गाहप य आ द तीन थान म व तृत, यजमान के गृह को थर करने के इ छु क व चार ओर वाला से घरे ए य शाला म थत वेद पर बैठते ह. अ न यहां से जा के ह लेकर एवं पुरोडाश आ द वीकृत करके दे व को दे ने क इ छा से य कम के श ु का नयं ण करते ए दे व के समीप जाते ह. (६) अ याजरासो दमाम र ा अच मासो अ नयः पावकाः. तीचयः ा ासो भुर यवो वनषदो वायवो न सोमाः.. (७) इस यजमान के पास जरार हत, श ु पर शासन करने वाली, पूजा के यो य वाला से यु , शु करने वाली ेतवण, शी ग त वाली, जा का भरण करने वाली, वन म रहने वाली एवं सोम के समान ग तशील अ नयां ह. (७) ज या भरते वेपो अ नः वयुना न चेतसा पृ थ ाः. तमायवः शुचय तं पावकं म ं होतारं द धरे य ज म्.. (८) अ न अपनी वाला के ारा य कम को धारण करते ह एवं धरती क र ा के लए अनु हपूवक तु तयां वीकार करते ह. ग तशील मनु य द तशाली, शु करने वाले, तु तयो य, होम न पादक एवं अ तशय य पा अ न को धारण करते ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ावा यम नं पृ थवी ज न ामाप व ा भृगवो यं सहो भः. ईळे यं थमं मात र ा दे वा तत ुमनवे यज म्.. (९) अ न को ावा-पृ थवी ने ज म दया है. जल , व ा और भृगु ने तेज कया है. वायु तथा अ य दे व ने अ न को मानव के य के लए बनाया है. (९)
ारा ा त
यं वा दे वा द धरे ह वाहं पु पृहो मानुषासो यज म्. स याम ने तुवते वयो धाः दे वय यश ः सं ह पूव ः.. (१०) हे ह वहन करने वाले अ न! दे व ने तु ह धारण कया. हे य यो य अ न! अ भलाषाएं करने वाले मनु य ने तु ह धारण कया. हे अ न! य म मुझ तोता को अ दो. दे वा भलाषी यजमान तुमसे ब त से यश ा त करता है. (१०)
सू —४७
दे वता— वकुंठा संबंधी इं
जगृ मा ते द ण म ह तं वसूयवो वसुपते वसूनाम्. व ा ह वा गोप त शूर गोनाम म यं च ं वृ णं र य दाः.. (१) हे ब त से धन के वामी इं ! हम धन क अ भलाषा से तु हारा दायां हाथ पकड़ते ह. हे शूर इं ! हम तु ह ब त सी गाय का वामी जानते ह. तुम हम वषक एवं व च धन दो. (१) वायुधं ववसं सुनीथं चतुः समु ं ध णं रयीणाम्. चकृ यं शं यं भू रवारम म यं च ं वृषणं र य दाः.. (२) हे इं ! हम तु ह शोभन आयुध वाला, उ म र ा से यु , सुंदर नयन वाला, चार सागर को यश से ा त करने वाला, धन को धारण करने वाला, बार-बार तु त करने यो य एवं अनेक ःख का नवारक जानते ह. तुम हम वषक एवं व च धन दो. (२) सु
ाणं दे वव तं बृह तमु ं गभीरं पृथुबु न म . ुतऋ षमु म भमा तषाहम म यं च ं वृषणं र य दाः.. (३)
हे इं ! तुम हम शोभन तु तय वाला, दे व को मानने वाला, महान्, व तृत, गंभीर, व तृत मूल वाला, व श ान वाला, श शाली व श ुपराभवकारी पु दो. तुम हम वषक अैर व च धन दो. (३) सन ाजं व वीरं त ं धन पृतं शूशुवांसं सुद म्. द युहनं पू भद म स यम म यं च ं वृषणं र य दाः.. (४) हे इं ! तुम हम अ ा त करने वाला, मेधावी, तारने वाला, धनपूण करने वाला, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वृ यु , शोभनबल वाला, श ुहंता, श ु नग रय को तोड़ने वाला एवं स चे कम वाला पु दो. तुम हम वषक एवं व च धन दो. (४) अ ाव तं र थनं वीरव तं सह णं श तनं वाज म . भ ातं व वीरं वषाम म यं च ं वृषणं र य दाः.. (५) हे इं ! तुम हम घोड़ से यु , रथ वामी, वीर पु ष वाला, सैकड़ और हजार संप य वाला, क याणकारी सेवक से घरा आ, व व वीर से यु एवं सबक सेवा करने वाला पु दो. तुम हम वषक एवं व च धन दो. (५) स तगुमृतधी त सुमेधां बृह प त म तर छा जगा त. य आ रसो नमसोपस ोऽ म यं च ं वृषणं र य दाः.. (६) म सात गाय का वामी, स यकम वाला, शोभन बु यु एवं वशाल मं का वामी ं. दे व क तु त मेरे पास आती है. अं गरा गो म उ प म नम कार के साथ दे व के पास जाता ं. हे इं ! तुम हम वषक एवं व च धन दो. (६) वनीवानो मम तास इ ं तोमा र त सुमती रयानाः. द पृशो मनसा व यमाना अ म यं च ं वृषणं र य दाः.. (७) मुझ सुंदर भाव वाले क त स श तु तयां हमारे त इं क अनुकूल बु क याचना करती ई इं के पास जाती ह. म ोता के मन को छू ने वाली तु तयां स चे मन से करता ं. हे इं ! तुम हम वषक एवं व च धन दो. (७) य वा या म द त इ बृह तं यमसमं जनानाम्. अ भ तद् ावापृ थवी गृणीताम म यं च ं वृषणं र य दाः.. (८) हे इं ! म तुमसे जो मांगता ं, वह तुम मुझे दो. मुझे ऐसा बड़ा घर दो, जो कसी के पास नह है. ावा-पृ थवी हम यह द. तुम हम वषक और व च धन दो. (८)
सू —४८
दे वता—इं
अहं भुवं वसुनः पू प तरहं धना न सं जया म श तः. मां हव ते पतरं न ज तवोऽहं दाशुषे व भजा म भोजनम्.. (१) म ही धन का असाधारण वामी रहा ं. म सदा धन को जीतता रहा ं. यजमान मुझे ही बुलाते ह. पु जैसे पता को अ दे ता है, वैसे ही म ह दाता यजमान को अ दे ता ं. (१) अह म ो रोधो व ो अथवण ताय गा अजनयमहेर ध. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अह द यु यः प र नृ णमा ददे गो ा श न् दधीचे मात र ने.. (२) मने अथवा के पु द यङ् का शर काट डाला था. कुएं म गरे ए त क र ा के लए मने मेघ म जल धारण कया था एवं श ु से धन छ ना था. मने मात र ा के पु दधी च के क याण के लए जलर क मेघ को न बनाया था. (२) म ं व ा व मत दायसं म य दे वासोऽवृज प तुम्. ममानीकं सूय येव रं मामाय त कृतेन क वन च.. (३) व ा ने मेरे लए लोहे का व बनाया था. दे वगण मेरे लए य पूरा करते ह. मेरी सेवा सूय के समान तर है. लोग मेरे ारा भूतकाल म कए गए एवं भ व य म कए जाने वाले काय के कारण मेरे पास आते ह. (३) अहमेतं ग यम ं पशुं पुरी षणं सायकेना हर ययम्. पु सह ा न शशा म दाशुषे य मा सोमास उ थनो अम दषुः.. (४) जब यजमान मुझे सोमरस एवं तु तय से स करते ह, तब म आयुध के ारा श ु क गाय , घोड़ , धन एवं धा पशु को जीतता ं तथा ह दाता यजमान के क याण के लए अनेक श को तेज करता ं. (४) अह म ो न परा ज य इ नं न मृ यवेऽव त थे कदा चन. सोम म मा सु व तो याचता वसु न मे पूरवः स ये रषाथन.. (५) म धन का वामी ं. मेरे धन को कोई जीत नह पाता. म कभी भी मृ यु का ल य नह बनता. हे सोमरस नचोड़ने वाले यजमानो! तुम मनचाहा धन मुझसे ही मांगो. हे मनु यो! मेरी म ता का वनाश कभी मत करो. (५) अहमेता छा सतो ा े ं ये व ं युधयेऽकृ वत. आ यमानाँ अव ह मनाहनं हा वद नम युनम वनः.. (६) मने अ धक श शाली व दो-दो के प म मुझ व धारी इं के साथ लड़ने के लए तैयार व यु के लए ललकारने वाले श ु को कठोर वचन कहकर मार डाला. म वयं नह झुका. मने उ ह झुका दया. (६) अभी३दमेकमेको अ म न षाळभी ा कमु यः कर त. खले न पषान् त हा म भू र क मा न द त श वोऽ न ाः.. (७) म अकेला ही एक श ु को हराता ं. श ु को सहन न करने वाला म दो को भी परा जत करता ं. तीन श ु मेरा या कर लगे? कसान जस कार ख लयान म अनाज को कुचलता है, उसी कार म ब त से श ु को न कर दे ता ं. मुझ इं के वरोधी श ु मेरी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या नदा कर सकते ह? (७) अहं गुङ्गु यो अ त थ व म कर मषं न वृ तुरं व ु धारयम्. य पणय न उत वा कर हे ाहं महे वृ ह ये अशु व.. (८) मने गुंगु नामक जनपद क र ा के लए अ त थ व के पु दवोदास ऋ ष को वप नवारक, श ुनाशक एवं जा म अ के समान सेवनीय बनाकर था पत कया था. म पणय और करंज नामक श ु के वध वाले यु म ब त स आ था. (८) मे नमी सा य इषे भुजे भूदगवामे ् षे स या कृणुत ता. द ुं यद य स मथेषु मंहयमा ददे नं शं यमु यं करम्.. (९) मेरे तोता सबके आ य यो य तथा अ व भोग के दाता होते ह. लोग गाय को खोजने एवं म ता पाने के लए दो कार से मेरी तु त करते ह. म जब अपने तोता क वजय के लए यु म आयुध हण करता ं, तब इसे शंसा और तु त के यो य बना दे ता ं. (९) नेम म द शे सोमो अ तग पा नेममा वर था कृणो त. स त मशृ ं वृषभं युयु सन् ह त थौ ब ले ब ो अ तः.. (१०) दो यु करने वाल म जो सोमय करने वाला होता है, उसी क र ा करने वाला इं व से उसे अपराजेय बनाता है. जो सोमय नह करता, वह तीखे बाण बरसाने वाले के साथ लड़ने को तैयार होता है, पर अंधकार म बंध जाता है. (१०) आ द यानां वसूनां याणां दे वी दे वानां न मना म धाम. ते मा भ ाय शवसे तत ुरपरा जतम तृतमषा हम्.. (११) म इं , आ द य , वसु एवं दे व का थान न नह करता ं. इन दे व ने मुझ अपरा जत, अ ह सत एवं न झुकने वाले इं को क याण एवं अ के लए बनाया था. (११)
सू —४९
दे वता— वकुंठा संबंधी इं
अहं दां गृणते पू व वहं कृणवं म ं वधनम्. अहं भुवं यजमान य चो दताय वनः सा व म भरे.. (१) मने अपने तोता को अ धक धन दया. मने अपनी वृ करने वाले य का अनु ान कया. म अपने यजमान को धन दे ता ं तथा य न करने वाले सभी को यु म परा जत करता ं. (१) मां धु र ं नाम दे वता दव म ापां च ज तवः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अहं हरी वृषणा व ता रघू अहं व ं शवसे धृ वा ददे .. (२) वग म वचरण करने वाले दे व व धरती तथा जल के जंतु ने मेरा नाम ‘इं ’ रखा है. म य म जाने के लए हरे रंग वाले, श शाली, व वध कम वाले एवं शी गामी अ को रथ म जोड़ता ं तथा धषक व को श ा त करने के लए धारण करता ं. (२) अहम कं कवये श थं हथैरहं कु समावमा भ त भः. अहं शु ण य थता वधयमं न यो रर आय नाम द यवे.. (३) मने उशना ऋ ष को सुखवास दे ने के लए अ क को अनेक आयुध से मारा. मने अनेक र ासाधन से कु स क र ा क . मने शु ण असुर को मारने के लए व उठाया. मने द युजन को ‘आय’ नाम से नह पुकारा. (३) अहं पतेव वेतसूँर भ ये तु ं कु साय म दभं च र धयम्. अहं भुवं यजमान य राज न य रे तुजये न याधृषे.. (४) मने अ भलाषा करने वाले कु स ऋ ष के अ धकार म वेतसु नामक दे श इस कार दे दया था, जस कार पता पु को अपनी संप दे ता है. मने तु और व दभ नामक य को भी कु स के अ धकार म दे दया. म यजमान को राजा बनाता ं. जस कार पता पु को दे ता है, उसी कार म यजमान को य व तुएं दे ता ं. (४) अहं र धयं मृगयं ुतवणे य मा जहीत वयुना चनानुषक्. अहं वेशं न मायवेऽकरमहं स ाय पड् गृ भमर धयम्.. (५) जब ुतवा ऋ ष मेरे समीप आए और उ ह ने मेरी तु त क , तब मने उनके क याण के लए रांथय नामक असुर को वश म कया. मने वेश असुर को न ऋ ष तथा षड् गृ भ असुर को स ऋ ष के क याण के लए वश म कया. (५) अहं स यो नववा वं बृह थं सं वृ ेव दासं वृ हा जम्. य धय तं थय तमानुष रे पारे रजसो रोचनाकरम्.. (६) म वह इं ं, जसने नववा व और बृह थ को वृ के समान मारा था. मने बढ़ते ए एवं स दोन असुर को उ वल लोक से बाहर नकाल दया था. (६) अहं सूय य प र या याशु भः ैतशे भवहमान ओजसा. य मा सावो मनुष आह न णज ऋध कृषे दासं कृ ं हथैः.. (७) म शी गामी एवं उ वल वण अ ारा ढोया जाकर अपने बल से सूय क प र मा करता ं. जब यजमान का सोम अ भषव मुझे बुलाता है, उस समय म हनन साधन आयुध ारा श ु को ढे र करता ं. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अहं स तहा न षो न रः ा ावयं शवसा तुवशं य म्. अहं य१ यं सहसा सह करं नव ाधतो नव त च व यम्.. (८) म सात श ु नग रय को न करने वाला व बंधनक ा म े तुवश और य को स कया. मने अपने अ य तोता को श श ु क उ तशील न यानवे नग रय को व त कया. (८)
ं. मने अपने बल से शाली बनाया तथा
अहं स त वतो धारयं वृषा व वः पृ थ ां सीरा अ ध. अहमणा स व तरा म सु तुयुधा वदं मनवे गातु म ये.. (९) म वषा करने वाला .ं मने बहने वाली सात न दय को धरती पर धारण कया है. म शोभन य करने वाला ं. म लोग को जल दे ता ं. मने यु के ारा मनु य के चलने के लए माग दया है. (९) अहं तदासु धारयं यदासु न दे व न व ाधारय शत्. पाह गवामूधः सु व णा वा मधोमधु ा यं सोममा शरम्.. (१०) इन गाय के थन म मने जैसा द त, पृहणीय एवं मधुर ध धारण कया है, वैसा कोई भी दे व नह रख सकता. नद म जस कार जल बहता है, उसी कार तन म ध रहता है एवं वह सोमरस म मलकर सुखद बन जाता है. (१०) एवा दे वाँ इ ो व े नॄन् यौ नेन मघवा स यराधाः. व े ा ते ह रवः शचीवोऽ भ तुरासः वयशो गृण त.. (११) इस कार धनवान् एवं स य धन वाले इं अपने बल से दे व एवं मानव को वशेष ग तशील बनाते ह. हे ह र नामक अ वाले एवं व वध कम के क ा इं ! सारा संसार तु हारे वश म है. ऋ वज् शी तापूवक तु हारे यश का वणन करते ह. (११)
सू —५०
दे वता— वकुंठा संबंधी इं
वो महे म दमानाया धसोऽचा व ानराय व ाभुवे. इ य य य सुमखं सहो म ह वो नृ णं च रोदसी सपयतः.. (१) हे तोता! सबके नेता, सबको बनाने वाले, महान् एवं सोम से स होने वाले इं क अचना करो. इं के शंसनीय बल, महान् अ और सुख क पूजा ावा-पृ थवी करते ह. (१) सो च ु स या नय इनः तुत कृ य इ ो मावते नरे. व ासु धूषु वाजकृ येषु स पते वृ े वा व१ भ शूर म दसे.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श
म ता के कारण मनु य के हतैषी, सबके ई र, सबके ारा शं सत इं मुझ जैसे ारा बार-बार सेवनीय ह. हे स जन के पालक एवं शूर इं ! सभी क ठन काय एवं ारा संप होने वाले कम म तथा जल ा त के लए सब तु हारी पूजा करते ह. (२) के ते नर इ ये त इषे ये ते सु नं सध य१ मय ान्. के ते वाजायासुयाय ह वरे के अ सु वासूवरासु प ये.. (३)
हे इं ! वे महान् लोग कौन ह जो तुमसे अ , धनस हत सुख एवं क याण ा त करते ह? तु ह असुर वनाश यो य श दान करने वाला सोमरस दे ने वाले लोग कौन ह? अपनी उपजाऊ भू मय पर वषा का जल एवं बल पाने के लए तु ह ह व दे ने वाले लोग कौन ह? (३) भुव व म णा महा भुवो व ष े ु सवनेषु य यः. भुवो नॄँ यौ नो व म भरे ये म ो व चषणे.. (४) हे इं ! तुम हमारी तु त से महान् बने हो. तुम सभी य म य का भाग पाने के यो य हो. तुम सभी यु म श ु को हराने वाले बने हो. हे सबके दशक इं ! तुम सव म मं के समान हो. (४) अवा नु कं यायान् य वनसो मह त ओमा ां कृ यो व ः. असो नु कमजरो वधा व ेदेता सवना तूतुमा कृषे.. (५) हे सव म इं ! तुम तोता क शी र ा करो. मनु य तु हारी महती र ाश को जानते ह. तुम जरार हत होकर ह व आ द से शी बढ़ो एवं इन सभी य को शी पूण करो. (५) एता व ा सवना तूतुमा कृषे वयं सूनो सहसो या न द धषे. वराय ते पा ं धमणे तना य ो म ो ो तं वचः.. (६) हे श के पु इं ! तुम जन य को धारण करते हो, उ ह शी ही पूण करते हो. हे श ुनाशक ा इं ! तु हारा पा हमारी र ा करे, तु हारा धन हमको धारण करे एवं य , मं और वा य तु हारे समीप उप थत ह . (६) ये ते व कृतः सुते सचा वसूनां च वसुन दावने. ते सु न य मनसा पथा भुव मदे सुत य सो य या धसः.. (७) हे मेधावी इं ! जो तोता व वध धन एवं नवास थान पाने क इ छा से सोमरस नचुड़ जाने पर तु हारी सेवा करते ह, वे उस समय मनोमाग से सुख पाने के अ धकारी बनते ह. नचुड़े ए सोमरस का नशा उ ह चढ़ जाता है. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —५१
दे वता—अ न आ द
मह बं थ वरं तदासी ेना व तः ववे शथापः. व ा अप य धा ते अ ने जातवेद त वो दे व एकः.. (१) दे व ने अ न से कहा—“हे अ न! वह आवरण वशाल एवं थूल था, जससे लपटे ए तुम जल म व ए थे. हे जातवेद अ न! तु हारे व वध कार के शरीर को एक दे व ने दे खा.” (१) को मा ददश कतमः स दे वो यो मे त वो ब धा पयप यत्. वाह म ाव णा य य ने व ा स मधो दे वयानीः.. (२) अ न ने उ र दया—“मुझे कसने दे खा था? वह कौन सा दे व है, जसने मेरे व वध शरीर को दे खा था? हे म और व ण! मुझ अ न क द त एवं दे वय साधन दे ह कहां है? यह बताओ.” (२) ऐ छाम वा ब धा जातवेदः व म ने अ वोषधीषु. तं वा यमो अ चके च भानो दशा त याद तरोचमानम्.. (३) दे व कहने लगे—“हे जातवेद अ न! जल और ओष धय म अनेक कार से घुसे ए तु ह हम कहां खोज? हे व च करण वाले अ न! दस आवास थान म अ यंत काशमान तु ह यम ने पहचान लया था.” (३) हो ादहं व ण ब यदायं नेदेव मा युनज दे वाः. त य मे त वो ब धा न व ा एतमथ न चकेताहम नः.. (४) अ न बोले—“हे व ण! म ह -वहन के काय से डरकर यहां आ गया ं. म चाहता ं क दे वगण मुझे पहले के समान ह वहन के काय म न लगाव. इसी भय के कारण मेरा शरीर अनेक कार से जल म छपा है. म अब यह ह वहन का काम वीकार नह क ं गा.” (४) ए ह मनुदवयुय कामोऽरङ् कृ या तम स े य ने. सुगा पथः कृणु ह दे वयाना वह ह ा न सुमन यमानः.. (५) दे व ने कहा—“हे अ न! आओ, यजमान दे व का अ भलाषी एवं य करने का इ छु क है. तुम तेजपुंज को धारण करते ए भी अंधकार म हो. दे व के त आने वाले लोग का माग सरल बनाओ एवं स च होकर ह -वहन करो. (५) अ नेः पूव ातरो अथमेतं रथीवा वानम वावरीवुः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त माद् भया व ण रमायं गौरो न े ोर वजे यायाः.. (६) अ न ने कहा—“हे दे वो! रथी जस कार माग पर चला जाता है, उसी कार मेरे तीन भाई मशः ह -वहन करते ए समा त हो गए. हे व ण! इसी डर से म र चला आया ं. गौरमृग जस कार धनुधारी क या से डरता है, उसी कार म ह वहन काय से कांपता ं.” (६) कुम त आयुरजरं यद ने यथा यु ो जातवेदो न र याः. अथा वहा स सुमन यमानो भागं दे वे यो ह वषः सुजात.. (७) दे व ने कहा—“हे अ न! हम तु ह जरार हत आयु दान करते ह. हे जातवेद! इस आयु से यु होकर तुम नह मरोगे. हे शोभन ज म वाले अ न! तुम स च होकर यजमान ारा दए गए ह का भाग दे व के पास ले जाओ.” (७) याजा मे अनुयाजाँ केवलानूज व तं ह वषो द भागम्. घृतं चापां पु षं चौषधीनाम ने द घमायुर तु दे वाः.. (८) अ न ने कहा—“हे दे वो! तुम मुझे य के ारंभ वाले, अंत वाले तथा असाधारण ह भाग अ धक मा ा म दो. तुम मुझे जल का सार अंश घृत, ओष धय से उ प धान भाग एवं द घ आयु दो.” (८) तव याजा अनुयाजा केवल ऊज व तो ह वषः स तु भागाः. तवा ने य ो३यम तु सव तु यं नम तां दश त ः.. (९) दे व ने कहा—“हे अ न! य के ारंभ वाले, अंत वाले तथा असाधारण ह भाग अ धक मा ा म तु हारे ह . यह पूरा य तु हारा हो और चार दशाएं तु हारे सामने आदर से झुक.” (९)
सू —५२
दे वता— व ेदेव
व े दे वाः शा तन मा यथेह होता वृतो मनवै य ष . मे ूत भागधेयं यथा वो येन पथा ह मा वो वहा न.. (१) अ न ने मन ही मन कहा—“हे व ेदेवो। तुमने मुझे होता के प म वरण कया है. मुझे यहां बैठकर जो मं पढ़ना है, वह मुझे बताओ. मेरा और तु हारा भाग कौन सा है, यह मुझे बताओ. मुझे वह माग भी बताओ, जससे म ह तु हारे पास ले जाऊं. (१) अहं होता यसीदं यजीयान् व े दे वा म तो मा जुन त. अहरहर ना वयवं वां ा स म व त सा तवाम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म होता के रथ म बैठा ं और य क ं गा. सभी दे व और म त ने मुझे इस काय के लए े रत कया है. हे अ नीकुमारो। तु ह त दन अ वयु का काम करना है. चं मा ा ह गे. तुम दोन के लए आ त ा त होगी. (२) अयं यो होता क स यम य कम यूहे य सम त दे वाः. अहरहजायते मा समा यथा दे वा द धरे ह वाहम्.. (३) यह जो होता है, वह या काम करता है? वह यजमान के ारा होम कया आ ह वहन करता है. उस ह को दे व धारण करते ह. त दन और तमास हवन होता है. इस काय के लए दे व ने मुझे नयु कया है. (३) मां दे वा द धरे ह वाहमप लु ं ब कृ ा चर तम्. अ न व ा य ं नः क पया त प चयामं वृतं स तत तुम्.. (४) मुझ पलायन करने वाले एवं अनेक गम थान म घूमने वाले अ न को दे व ने ह वहन करने वाला नयु कया था. दे व ने यह सोचा था क ये अ न सब कुछ जानते ह, इस लए हमारे पांच माग , तीन कार एवं सात छं द क तु तय वाले य को पूण करगे. (४) आ वो य यमृत वं सुवीरं यथा वो दे वा व रवः करा ण. आ बा ोव म य धेयामथेमा व ाः पृतना जया त.. (५) हे दे वो! म तु हारी ह -वहन पी सेवा करता ं, इस लए तुमसे मरणर हत होने एवं संतानयु होने क याचना करता ं. म इं क दोन भुजा म व दे ता ं, जससे वे सभी श ु सेना को जीतते ह.” (५) ी ण शता ी सह ा य नं श च दे वा नव चासपयन्. औ घृतैर तृण ब हर मा आ द ोतारं यसादय त.. (६) तीन हजार तीन सौ उनतालीस दे व ने अ न क सेवा क . दे व ने अ न को घृत से भगोया, उनके लए कुश बछाए एवं होता बनाकर य म बैठाया. (६)
सू —५३
दे वता—अ न
यमै छाम मनसा सो३यमागा य व ा प ष क वान्. स नो य े वताता यजीया ह ष सद तरः पूव अ मत्.. (१) हम मन से जन अ न क कामना करते थे, वे आ गए ह. अ न य को जानते ह और अपने शरीर को पूण करते ह. य क ा म े अ न हमारे य म होम करते ह. हम दे व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से पूव म, वतमान अ न दे व के म य बैठे ह. (१) अरा ध होता नषदा यजीयान भ यां स सु धता न ह यत्. यजामहै य या ह त दे वाँ ईळामहा ई ाँ आ येन.. (२) होता और य क ा म े अ न य वेद पर बैठकर आ त के यो य ए ह. वे भली-भां त रखे ए च , पुरोडाश आ द को सब ओर से इस लए दे खते ह क य के यो य दे व का शी होम कर और तु तयो य दे व क तु त कर. (२) सा वीमकदववी त नो अ य य ज ाम वदाम गु ाम्. स आयुरागा सुर भवसानो भ ामकदव त नो अ .. (३) अ न हमारे दे वागमन वाले य काय को भली-भां त पूण कर. हम य क गूढ़ ज ा के समान अ न को ा त कर चुके ह. वे अ न सुगं ध एवं आयु को धारण करते ए आए ह एवं आज हमारे दे वा ान पी य को क याणमय कया है. (३) तद वाचः थमं मसीय येनासुराँ अ भ दे वा असाम. ऊजाद उत य यासः प च जना मम हो ं जुष वम्.. (४) हम आज उस मुख वचन का उ चारण कर, जसके कारण हम तथा दे वगण असुर को परा जत कर सक. हे अ भ ण करने वाले एवं य के यो य पंचजनो! तुम हमारे होम का सेवन करो. (४) प च जना मम हो ं जुष तां गोजाता उत ये य यासः. पृ थवी नः पा थवा पा वंहसोऽ त र ं द ा पा व मान्.. (५) पंचजन मेरे आ ान को वीकार कर. भू म से उ प एवं य पा दे व मेरे अ नहो का सेवन कर. पृ वी हम पा थव पाप तथा अंत र हम द पाप से बचावे. (५) त तुं त व जसो भानुम व ह यो त मतः पथो र धया कृतान्. अनु बणं वयत जोगुवामपो मनुभव जनया दै ं जनम्.. (६) हे अ न! तुम य का व तार करते ए लोकभासक सूय का अनुगमन करो तथा उन यो तपूण माग क र ा करो, ज ह य कम ारा ा त कया जाता है. अ न तोता का काय दोषर हत बनाव. हे अ न! तुम तु तयो य बनो और दे वसमूह को य ा भमुख बनाओ. (६) अ ानहो न तनीत सो या इ कृणु वं रशना ओत पशत. अ ाव धुरं वहता भतो रथं येन दे वासो अनय भ यम्.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोमरस के यो य दे वो! तुम रथ म घोड़ को जोड़ो, लगाम साफ करो एवं घोड़ को सजाओ. तुम सार थ के बैठने वाले आठ थान से यु रथ को सूय के साथ य म लाओ. इसी रथ के ारा दे वगण य म आते ह. (७) अ म वती रीयते सं रभ वमु त तरता सखायः. अ ा जहाम ये अस शेवाः शवा वयमु रेमा भ वाजान्.. (८) अ म वती नामक नद बह रही है. य म आने के लए इस नद को पार करने हेतु उठो और इसे पार कर जाओ. हे म बने ए दे वो! हम असुख को याग कर नद पार कर और सुखकर अ को पाव. (८) व ा माया वेदपसामप तमो ब पा ा दे वपाना न श तमा. शशीते नूनं परशुं वायसं येन वृ ादे तशो ण प तः.. (९) व ा पा बनाना जानते ह. अ तशय शोभन कम वाले व ा दे व के पानकम म यु सोमपा को धारण करते ह. वे उ म लोहे से बने ए कुठार को तेज करते ह. ण पत व ा उसी कुठार से लकड़ी काटते ह. (९) सतो नूनं कवयः सं शशीत वाशी भया भरमृताय त थ. व ांसः पदा गु ा न कतन येन दे वासो अमृत व मानशुः.. (१०) हे मेधा वयो! उस कुठार को तेज करो, जसके ारा सोमपान के लए पा बनाए जाते ह. हे व ानो! तुम ऐसा गु त नवास थान बनाओ, जसके कारण दे व ने अमर व ा त कया. (१०) गभ योषामदधुव समास यपी येन मनसोत ज या. स व ाहा सुमना यो या अ भ सषास नवनते कार इ ज तम्.. (११) उन ऋभु ने मरी ई गाय के चमड़े म कसी गाय को धारण कया तथा उस मरी ई गाय के मुख म बछड़े को रखा. यह काय उ ह ने दे व व क कामना करने वाले मन के ारा कया. आव यक प से सभी दवस म उ म तु तयां हण करने वाले ऋभुगण श ु को जीतते ह. (११)
सू —५४
दे वता—इं
तां सु ते क त मघव म ह वा य वा भीते रोदसी अ येताम्. ावो दे वाँ आ तरो दासमोजः जायै व यै यद श इ .. (१) हे धन वामी इं ! म तु हारे मह व के कारण आई ई शोभन क त का वणन करता ं. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जब ावा-पृ थवी ने भयभीत होकर तु ह बुलाया था, तब तुमने दे व क र ा क , रा स क श न क एवं यजमान को बल दान कया. (१) यदचर त वा वावृधानो बलानी ुवाणो जनेषु. माये सा ते या न यु ा या ना श ुं ननु पुरा व व से.. (२) हे इं ! तुमने अपने शरीर को बढ़ाते ए एवं मनु य को घोषणा करते ए जन वृ वधा द बलसा य काय को कया था, वह केवल माया थी. तु हारा सब यु भी माया मा है. इस समय ही तु हारा कोई श ु नह है तो ाचीनकाल म कस कार रहा होगा? (२) क उ नु ते म हमनः सम या म पूव ऋषयोऽ तमापुः. य मातरं च पतरं च साकमजनयथा त व१: वायाः.. (३) हे इं ! या हमसे पहले ऋ षय ने तु हारी संपूण म हमा का पार पाया था? तुमने अपने माता- पता पी ावा-पृ थवी को अपने शरीर से उ प कया था. (३) च वा र ते असुया ण नामादा या न म हष य स त. वम ता न व ा न व से ये भः कमा ण मघव चकथ.. (४) हे पू य इं ! तु हारे चार असुरनाशक और अपराजेय शरीर ह. हे धन वामी इं ! तुम इन सबको जानते हो, जनके ारा वृ वधा द कम करते हो. (४) वं व ा द धषे केवला न या या वया च गुहा वसू न. काम म मे मघव मा व तारी वमा ाता व म ा स दाता.. (५) हे इं ! तुम इन सब असाधारण संप य को जानते हो, जो कट एवं छपी ई ह. तुम मेरी अ भलाषा पूरी करो. तु ह आ ा करते हो और तु ह दे ने वाले हो. (५) यो अदधा यो त ष यो तर तय असृज मधुना सं मधू न. अध यं शूष म ाय म म कृतो बृह थादवा च.. (६) जन इं ने सूय आ द तेज वी पदाथ म यो त धारण क है एवं ज ह ने मधु के ारा सोमरस को मधुर बनाया, उन इं के लए वशाल उ थमं के रच यता ऋ षय ने श दाता तो बोला है. (६)
सू —५५
दे वता—इं
रे त ाम गु ं पराचैय वा भीते अ येतां वयोधै. उद त नाः पृ थव ामभीके ातुः पु ा मघव त वषाणः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तु हारा शरीर र है, इस लए पराङ् मुख मनु य के लए वह अ का शत है. जस समय डरे ए ावा-पृ थवी तु ह अ के लए बुलाते ह, उस समय तुम धरती के ऊपर आकाश को पकड़कर रखते हो एवं अपने भाई मेघ के जल को द त करते हो. (१) मह ाम गु ं पु पृ येन भूतं जनयो येन भ म्. नं जातं यो तयद य यं याः सम वश त प च.. (२) हे इं ! तु हारा अ य के ारा अ ात एवं ब त ारा अ भल षत आकाश पी शरीर अ यंत व तृत है. उसी से तुमने भूत और भ व यत् को उ प कया है. उसीसे तु हारा य त व ाचीन यो त अथात् आ द य उ प आ. उसी के कारण पंचजन स ए. (२) आ रोदसी अपृणादोत म यं प च दे वाँ ऋतुशः स तस त. चतु ंशता पु धा व च े स पेण यो तषा व तेन.. (३) इं ने अपने शरीर से ावा-पृ थवी एवं अंत र को पूण कया है एवं पांच दे व , सात त व तथा च तीस दे वगण को अनेक कार से दे खते ह. इं यह काय समान प वाली अपनी व तृत यो त क सहायता से करते ह. (३) य ष औ छः थमा वभानामजनयो येन पु य पु म्. य े जा म वमवरं पर या मह मह या असुर वमेकम्.. (४) हे उषा! तुमने न आ द तेज वी पदाथ को सबसे पहले काश दया. उसी तेज से तुमने पु को अ धक पु बनाया. तुम उ त थ त वाली हो, तथा प तु हारी म ता हम न न थ त वाल के साथ है. यही तु हारा एकमा मह व और श पूणता है. (४) वधुं द ाणं समने ब नां युवानं स तं प लतो जगार. दे व य प य का ं म ह वा ा ममार स ः समान.. (५) यु आ द अनेक काय करने वाले एवं यु म ब त से श ु को भगाने वाले युवा पु ष को इं क आ ा से बुढ़ापा नगल लेता है. इं दे व का साम य दे खए क कल जो ठ क से काय कर रहा था, वह आज मर गया है. (५) शा मना शाको अ णः सुपण आ यो महः शूरः सनादनीळः. य चकेत स य म मोघं वसु पाहमुत जेतोत दाता.. (६) श संप व लाल रंग वाला एक प ी आ रहा है जो महान्, शूर, ाचीन एवं बना घ सले वाला है. वह जो करना चाहता है, वह अव य स य होता है एवं कभी असफल नह होता. वह अ भलषणीय संप जीतता है एवं तोता को दे ता है. (६) ऐ भददे वृ या प या न ये भरौ द्वृ ह याय व ी. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ये कमणः
यमाण य म ऋतेकममुदजाय त दे वाः.. (७)
व धारी इं ने इन म त के साथ वषा करने वाली श ा त क एवं वृ क ह या करके वषा ारा धरती को स चा. महान् इं ारा कए गए वषा काय म म द्गण वयं ही सहायक बनते ह. (७) युजा कमा ण जनय व ौजा अश तहा व मना तुराषाट् . पी वी सोम य दव आ वृधानः शूरो नयुधाधम यून्.. (८) सव ात श वाले, रा सनाशक, अ यंत मन वी एवं श ु पर शी वजय ा त करने वाले इं म त क सहायता से सभी काय करते ह. इं ने वग से आकर सोमपान कया और अपना शरीर बढ़ाया. शूर इं ने आयुध से श ु को मारा. (८)
सू —५६
दे वता— व ेदेव
इदं त एकं पर ऊ त एकं तृतीयेन यो तषा सं वश व. संवेशने त व१ ा रे ध यो दे वानां परमे ज न े.. (१) ऋ ष अपने मरे ए पु वाजी से कहते ह:— तु हारा एक अंश अ न, सरा वायु और तीसरा तेज वी आ मा है. इन तीन अंश से अ न, वायु और आ मा म अपने शरीर के वेश के समय क याणकारी प म बढ़ो तथा दे व के परम-जनक सूय के लोक म य बनो. (१) तनू े वा ज त वं१ नय ती वामम म यं धातु शम तु यम्. अ तो महो ध णाय दे वा दवीव यो तः वमा ममीयाः.. (२) हे वाजी! तु हारे शरीर को अपने म मलाती ई यह धरती तु हारे और हमारे दोन के लए क याण करे. तुम अपने थान से प तत न होकर यो त धारण करने के लए दे व और वग म थत सूय के साथ अपनी आ मा को मला दो. (२) वा य स वा जनेना सुवेनीः सु वतः तोमं सु वतो दवं गाः. सु वतो धम थमानु स या सु वतो दे वा सु वतोऽनु प म.. (३) हे पु ! तुम अ रस से श शाली एवं सुंदर हो. तुम अपने तो क ेरणा से तो संबंधी दे व के समीप वग म जाओ. तुम अपने ारा संपा दत, मुख एवं स चे फल वाले धम का अनुगमन करो. तुम इं ा द दे व और सूय का अनुगमन करो. (३) म ह न एषां पतर ने शरे दे वा दे वे वदधुर प तुम्. सम व चु त या य वषुरैषां तनूषु न व वशुः पुनः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व व को ा त हमारे पतर ने दे व क म हमा ा त क एवं दे व के साथ य काय पूण कए. जो तेज वी व तुएं ह, वे सब उनके साथ मल ग . पतर दे व के शरीर म वेश कर गए ह. (४) सहो भ व ं प र च मू रजः पूवा धामा य मता ममानाः. तनूषु व ा भुवना न ये मरे ासारय त पु ध जा अनु.. (५) हमारे पतर ने अपनी श य से सारे लोक क प र मा क है तथा उन थान पर गए ह, जहां सरे नह जा पाते. उ ह ने अपने शरीर म सभी लोक को नय मत कया है एवं जा पर अपना भु व अनेक कार से था पत कया है. (५) धा सूनवोऽसुरं व वदमा थापय त तृतीयेन कमणा. वां जां पतरः प यं सह आवरे वदधु त तुमाततम्.. (६) आ द य के पु दे व ने जा उ प प तीसरे कम ारा श शाली एवं वग ाता आ द य को दो कार से था पत कया था. हमारे पतर ने अपनी संतान को उ प करके उनके शरीर म पैतृक बल था पत कया. उ ह ने चर थायी वंश था पत कया. (६) नावा न ोदः वां जां बृह
दशः पृ थ ाः व त भर त गा ण व ा. थो म ह वावरे वदधादा परेषु.. (७)
मनु य नाव से नद पार करने के समान धरती क व भ दशा का अ त मण करते ह. लोग क याण ारा जस कार सभी वप य के पार जाते ह, उसी कार बृह थ ऋ ष ने अपनी श से अपने पु को समीपवत एवं रवत पदाथ म था पत कया. (७)
दे वता—मन
सू —५७ मा
गाम पथो वयं मा य ा द
सो मनः. मा तः थुन अरातयः.. (१)
हे इं ! हम सुपथ से वच लत न ह तथा सोमरस वाले यजमान के य से र न रह. श ु हमारे बीच म न आव. (१) यो य
य साधन त तुदवे वाततः. तमा तं नशीम ह.. (२)
जो अ न य का वशेष साधन है एवं आहवनीय आ द प से दे व के समीप तक व तृत है, उस सब ओर से बुलाए गए अ न को हम ा त कर. (२) मनो वा वामहे नाराशंसेन सोमेन. पतॄणां च म म भः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पतर के चमस म थत सोम के ारा हम मन को शी बुलाते ह. हम पतर के तो ारा मन को बुलाते ह. (३) आ त एतु मनः पुनः
वे द ाय जीवसे. योक् च सूय शे.. (४)
हे सुबंध!ु तु हारा मन अ भचरणक ा के समीप से पुनः आवे. यह य काय करने एवं बल द शत करने के लए आवे. तु हारा मन जी वत रहने एवं सूय के शी दशन करने हेतु आवे. (४) पुननः पतरो मनो ददातु दै ो जनः. जीवं ातं सचेम ह… (५) (५)
हमारे पतर का समूह एवं दे वगण सभी इं य को वापस कर द. हम उ ह ा त कर. वयं सोम ते तव मन तनूषु ब तः. जाव तः सचेम ह.. (६)
हे सोमदे व! हम तु हारे कम एवं शरीर म मन लगाव एवं संतानयु म लग. (६)
होकर तु हारे काम
दे वता—मृत सुबंधु का मन
सू —५८
य े यमं वैव वतं मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (१) वव वान् के पु यम के पास, जो र रहते ह, तु हारा जो मन गया है, उसे हम लौटाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (१) य े दवं य पृ थव मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (२) तु हारा जो मन र तक पृ वी या वग के पास गया है, उसे हम लौटाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (२) य े भू म चतुभृ
मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (३)
तु हारा जो मन चार ओर ढाल वाली धरती पर र तक गया है, उसे हम लौटाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (३) य े चत ः
दशो मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (४)
तु हारा जो मन चार दशा म र तक चला गया है, उसे हम वापस लौटाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य े समु मणवं मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (५) तु हारा जो मन जल से भरे ए रवत समु के पास गया है, उसे हम वापस लौटाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (५) य े मरीचीः वतो मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (६) तु हारा जो मन र तक चार ओर जाने वाली सूय करण के पास गया है, उसे हम वापस लौटाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (६) य े अपो यदोषधीमनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (७) तु हारा जो मन रवत जल एवं ओष धय म गया है, उसे हम वापस बुलाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (७) य े सूय य षसं मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (८) तु हारा जो मन रवत सूय एवं उषा के पास गया है, उसे हम वापस बुलाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (८) य े पवता बृहतो मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (९) तु हारा जो मन रवत पवत तक गया है, उसे हम वापस बुलाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (९) य े व मदं जग मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (१०) तु हारा जो मन इस व म र तक चला गया है, उसे हम वापस बुलाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (१०) य े पराः परावतो मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (११) तु हारा जो मन अ तशय परवत थान म र तक चला गया है, उसे हम वापस बुलाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (११) य े भूतं च भ ं च मनो जगाम रकम्. त आ वतयामसीह याय जीवसे.. (१२) हे सुबंधु! तु हारा जो मन कसी रवत भू एवं भ व य थान पर गया है, उसे हम वापस बुलाते ह. तुम इस संसार म नवास करने के लए जीते हो. (१२)
सू —५९
दे वता— नऋ त-असुनी त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आद तायायुः तरं नवीयः थातारेव तुमता रथ य. अध यवान उ वी यथ परातरं सु नऋ त जहीताम्.. (१) जस कार सार थ वाले रथ पर चढ़ा आ सुख ा त करता है, उसी कार सुबंधु क यौवनयु आयु बढ़े . ासवाली आयु का आदमी अपनी मनपसंद आयु ा त करता है. तु हारा पाप न हो. (१) साम ु राये न धम व ं करामहे सु पु ध वां स. ता नो व ा न ज रता मम ु परातरं सु नऋ त जहीताम्.. (२) हम परम आयु प धन पाने के लए सामगान के साथ-साथ भ ण यो य अ एक करते ह. नऋ त हमारे सभी अ का भ ण कर एवं र दे श को चले जाव. (२) अभी व१यः प यैभवेम ौन भू म गरयो ना ान्. ता नो व ा न ज रता चकेत परातरं सु नऋ त जहीताम्.. (३) हम बल ारा अपने श ु को उसी कार ठ क से हटाव, जस कार आकाश धरती को परा जत करता है. पवत जस कार बादल क ग त रोक लेते ह, उसी कार हम श ु क ग त रोक. नऋ त हमारी तु त सुन और र चली जाव. (३) मो षु णः सोम मृ यवे परा दाः प येम नु सूयमु चर तम्. ु भ हतो ज रमा सू नो अ तु परातरं सु नऋ त जहीताम्.. (४) हे सोम! हम मृ यु के हाथ म मत दो. हम उ दत होते ए सूय को ब त समय तक दे ख. दवस से े रत हमारी वृ ाव था सुखकर हो. नऋ त हमारी तु त सुनकर र चली जाव. (४) असुनीते मनो अ मासु धारय जीवातवे सु तरा न आयुः. रार ध नः सूय य स श घृतेन वं त वं वधय व.. (५) हे असुनी तदे वी! हम पर कृपा करो और जी वत रहने के लए हमारी आयु भली कार बढ़ाओ. हम सूय के चरदशन के लए था पत करो. तुम हमारे दए ए घी से अपना शरीर बढ़ाओ. (५) असुनीते पुनर मासु च ुः पुनः ाण मह नो धे ह भोगम्. योक् प येम सूयमु चर तमनुमते मृळया नः व त.. (६) हे असुनी तदे वी! हम पुनः च ु दान करो. भोग करने के लए हम म ाण था पत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करो. हम उ दत होते ए सूय को ब त समय तक दे ख. हे अनुम त! अ वनाश पाने के लए हमारी र ा करो. (६) पुनन असुं पृ थवी ददातु पुन दवी पुनर त र म्. पुननः सोम त वं ददातु पुनः पूषा प यां३ या व तः.. (७) पृ वी हम पुनः ाण दान करे. ुलोक और अंत र शरीर दान कर. पूषा हम व तकारक वा य द. (७)
हम पुनः ाण द. सोम हम पुनः
शं रोदसी सुब धवे य ऋत य मातरा. भरतामप य पो ौः पृ थ व मा रपो मो षु ते क चनाममत्.. (८) महान् ावा-पृ थवी सुबंधु का क याण कर. उदक का नमाण करने वाली ावापृ थवी पाप को र कर. हे सुबंधु! ावा-पृ थवी के होते ए कोई भी पाप तु हारी हसा न कर सक. (८) अव के अव का दव र त भेषजा. मा च र वेककं भरतामप य पो ौः पृ थ व (९)
मा रपो मो षु ते क चनाममत्..
वग म जो दो या तीन ओष धयां वचरण करती ह, उन म से एक जो धरती पर वचरण करती है, वह सुबंधु क हसा र करे. हे सुबंधु! वग एवं व तृत पृ वी तु हारे अमंगल र कर एवं कसी कार का अ न न कर. (९) स म े रय गामनड् वाहं य आवह शीनरा या अनः. भरतामप य पो ौः पृ थ व मा रपो मो षु ते क चनाममत्.. (१०) हे इं ! जो बैल उशीनर क प नी क गाड़ी ले गया था, उसे े रत करो. हे सुबंधु! वग एवं व तृत पृ वी तु हारे अमंगल र कर एवं कसी कार भी अ न न कर. (१०)
सू —६०
दे वता—राजा असमा त आ द
आ जनं वेषस शं माहीनानामुप तुतम्. अग म ब तो नमः.. (१) हम असमा त राजा के द त एवं महान् पु ष करते ए गए. (१)
ारा शं सत जनपद म नम कार धारण
असमा त नतोशनं वेषं नय यनं रथम्. भजेरथ य स प तम्.. (२) हम श ुहंता, तेज वी, रथ के समान सबक अ भलाषा पूण करने वाले, भजेरथ को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
परा जत करने वाले एवं स जनपालक राजा असमा त के दे श म गए. (२) यो जना म हषाँ इवा तत थौ पवीरवान्. उतापवीरवा युधा.. (३) वे राजा असमा त हाथ म तलवार ल अथवा न ल, पर यु म अपने श ु कार परा जत कर दे ते ह, जस कार सह भस को मार डालता है. (३)
को इस
य ये वाकु प ते रेवा मरा येधते. दवीव प च कृ यः.. (४) जस जनपद म इ वाकु राजा धनी, श ुसंहारक एवं र ाकाय म नयु होकर बढ़ते ह, उस जनपद म रहने वाले पंचजन इस कार सुखी होकर उ त करते ह, जस कार वग म रहने वाले बढ़ते ह. (४) इ
ासमा तषु रथ ो ेषु धारय. दवीव सूय शे.. (५)
हे इं ! जस कार तुमने सूय को सबके दशन के लए आकाश म थत कया है, उसी कार वीर को रथा ढ़ राजा असमा त का अनुगमन करने के लए े रत करो. (५) अग य य नद् यः स ती युन रो हता. पणी य मीर भ व ा ाज राधसः.. (६) हे राजा असमा त! तुम अग य ऋ ष को स करने वाले बांधव के लए धन ा त हेतु लाल रंग के घोड़ को रथ म जोड़ो. तुम य न करने वाले एवं लोभी प णय को भली कार हराओ. (६) अयं मातायं पतायं जीवातुरागमत्. इदं तव सपणं सुब धवे ह न र ह.. (७) हे सुबंध!ु जो अ न आए ह, वे ही तु हारे माता, पता एवं जीवनदाता ह. तु हारा शरीर यही है. इस म थत होओ. (७) यथा युगं वर या न त ध णाय कम्. एवा दाधार ते मनो जीवातवे न मृ यवेऽथो अ र तातये.. (८) जस कार रथ को धारण करने के लए जुआ र सय से बांधा जाता है, उसी कार अ न ने जी वत रहने, अ वनाशी बनने एवं मृ यु से र रहने के लए तु हारे मन को धारण कर लया है. (८) यथेयं पृ थवी मही दाधारेमा वन पतीन्. एवा दाधार ते मनो जीवातवे न मृ यवेऽथो अ र तातये.. (९) जस कार यह व तृत पृ वी इन बड़े-बड़े वृ
को धारण करती है, उसी कार अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ने जी वत रहने, अ वनाशी बनने एवं मृ यु से र रहने के लए तु हारे मन को धारण कर लया है. (९) यमादहं वैव वता सुब धोमन आभरम्. जीवातवे न मृ यवेऽथो अ र तातये.. (१०) मने वव वान् के पु यम से सुबंधु का मन इस लए छ न लया है क वे जी वत रह, मृ यु से र ह और अ वनाशी बन. (१०) य१ वातोऽव वा त य प त सूयः. नीचीनम या हे य भवतु ते रपः.. (११) हे सुबंध!ु वायु ुलोक से नीचे क ओर बहते ह एवं सूय नीचे क ओर तपते ह. जस कार गाय का ध नीचे क ओर हा जाता है, उसी कार तु हारा पाप तुमसे नीचे गरे. (११) अयं मे ह तो भगवानयं मे भगव रः. अयं मे व भेषजोऽयं शवा भमशनः.. (१२) मेरा यह हाथ सौभा यशाली ही नह , अ तशय सौभा यशाली है. यह सबके लए ओष ध तु य एवं सबको छू कर क याण दे ने वाला है. (१२)
सू —६१
दे वता— व ेदेव
इद म था रौ ं गूतवचा वा श याम तराजौ. ाणा यद य पतरा मंहने ाः पष प थे अह ा स त होतॄन्.. (१) ह सा बांटने वाले माता- पता ने नाभाने द का ह सा न दे कर जो तु त क , वही तु त करके उ त-वचन नाभाने द अं गरा गो वाले ऋ षय के य म गए एवं भूली ई बात सात होता को बताकर य समा त कया. (१) स इ ानाय द याय व व यवानः सूदैर ममीत वे दम्. तूवयाणो गूतवच तमः ोदो न रेत इतऊ त स चत्.. (२) वे
दे व तोता को धन दे ने के लए एवं श ु को न करने के लए य वेद पर कट ए एवं श ुनाशक अ उ ह दए. बादल जस कार जल बरसाते ह, उसी कार शी गमन वाले एवं उ त-वचन ने चार ओर अपनी श दखाई. (२) मनो न येषु हवनेषु न मं वपः श या वनुथो व ता. आ यः शया भ तु वनृ णो अ या ीणीता दशं गभ तौ.. (३) हे अ नीकुमारो! म तु ह बुलाता ं. तुम उस तोता का य संबंधी य न दे खकर मन के समान ती ग त से य क ओर आते हो. जो ह लेकर सामने से मुझ य म वृ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमान क उंग लयां पकड़कर एवं च पकाते ए तु हारा नाम लेता है. (३) कृ णा यद्गो व णीषु सीद वो नपाता ना वे वाम्. वीतं मे य मा गतं मे अ ं वव वांसा नेषम मृत ू.. (४) हे वगपु अ नीकुमारो! जस समय काली रात लाल रंग वाली उषा म बदलने लगती है, उस समय म तु हारा आ ान करता ं. मेरे ह अ क अ भलाषा करने के लए तुम मेरे य म आओ. अ के समान उसे हण करो और मेरे त ोह को भुला दो. (४) थ य य वीरकम म णदनु तं नु नय अपौहत्. पुन तदा वृह त य कनाया हतुरा अनुभृतमनवा.. (५) जाप त का पु उ प करने म समथ वीय सव म है. जाप त ने अपने उस मानवहतकारी वीय का याग कया, जसे उ ह ने अपनी सुंदर उषा के शरीर म स चत कया था. (५) म या य क वमभवदभीके कामं कृ वाने पत र युव याम्. मनान ेतो जहतु वय ता सानौ न ष ं सुकृत य योनौ.. (६) जस समय पता ने अपनी युवती क या के साथ यथे छ कम कया, उस समय उनके संभोग कम के समीप ही थोड़ा वीय गरा. पर पर अ भगमन करते ए उन दोन ने वह वीय य के ऊंचे थान यो न म छोड़ा था. (६) पता य वां हतरम ध क मया रेतः स मानो न ष चत्. वा योऽजनय दे वा वा तो प त तपां नरत न्.. (७) जस समय पता ने अपनी पु ी के साथ संभोग कया उस समय धरती से मलकर वीय याग कया. शोभन कम वाले दे व ने उसी वीय से तर क दे व वा तो प त का उ पादन कया. (७) स वृषा न फेनम यदाजौ मदा परैदप द चेताः. सर पदा न द णा परावृङ् न ता नु मे पृश यो जगृ े.. (८) इं ने नमु च का वध करने के लए सं ाम म जस कार फेन फका, उसी कार वा तो प त हमसे र जा रहे ह. अं गरागो ीय ऋ षय ने द णा के प म हम जो गाएं द थ , उ ह अ पमन वाले वा तो प त ने वीकार नह कया, जब क वे उ ह हण करने म समथ थे. (८) म ू न व ः जाया उप दर नं न न न उप सीद धः. स नते मं स नतोत वाजं स धता ज े सहसा यवीयुत्.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जा को क प ंचाने वाले और अ न के समान जा को जलाने वाले रा स य म शी नह आते. नंगे रहनेवाले रा स आ द रात म य क अ न के पास नह आते. रा स से यु करने वाले एवं य के धारक अ न का और अ को वीकार करते ए बलपूवक उ प ए. (९) म ू कनायाः स यं नव वा ऋतं वद त ऋतयु बहसो य उप गोपमागुरद णासो अ युता
म मन्. न्.. (१०)
नौ मास के अनु ान के ारा गाएं ा त करने वाले अं गरागो ीय ऋ षय ने स य भाषण करते ए एवं कमनीय तु तयां बोलते ए य समा त कया. वे इहलोक और परलोक म उ त होकर इं के समीप प ंचे एवं उ ह ने द णार हत य करके अ वनाशी फल ा त कया. (१०) म ू कनायाः स यं नवीयो राधो न रेत ऋत म ुर यन्. शु च य े रे ण आयज त सब घायाः पय उ यायाः.. (११) हे इं ! अं गरागो ीय ऋ षय ने कमनीय गाय क म ता शी ा त करके अमृततु य ध दे ने वाली गाय का ध य म होम कया. उस समय नई संप के समान स चत करने वाला जल ा त कया. (११) प ा य प ा वयुता बुध ते त वी त व री रराणः. वसोवसु वा कारवोऽनेहा व ं ववे वणमुप ु.. (१२) तोता इस कार कहते ह क इं अपने तोता से ब त अ धक ेम करते ह. तोता प णय ारा चुराई गई अपनी गाय को जान पाव, उससे पहले ही वे गाय को खोजकर ले आते ह. (१२) त द व य प रष ानो अ म पु सद तो नाषदं ब भ सन्. व शु ण य सं थतमनवा वद पु जात य गुहा यत्.. (१३) इं के चार ओर वतमान से वका र मयां काश दे ने के लए जाती ह. इन परम श शाली इं ानुचर ने नृषदपु शु ण को न करने क इ छा क . इं अनेक कार से ा भूत शु ण का मम जानते ह. उसका जो मम गुहा म छपा है, उसे भी जानते ह. (१३) भग ह नामोत य य दे वाः व१ण ये षध थे नषे ः. अ नह नामोत जातवेदाः ुधी नो होतऋत य होता ुक्.. (१४) जस अ न संबंधी तेज के समीप कुश पर दे वगण वग के समान बैठते ह, अ न के उस तेज का नाम भग है. अ न के तेज का नाम जातवेदा है. हे होम संप करने वाले अ न! तु ह य संबंधी दे व को बुलाने वाले हो. तुम ोहर हत होकर हमारी पुकार सुनो. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत या मे रौ ाव चम ता नास या व गूतये यज यै. मनु वद्वृ ब हषे रराणा म हत यसा व ु य यू.. (१५) हे इं ! वे स पु एवं द तशाली अ नीकुमार मेरी तु त एवं य को वीकार कर. वे मनु के य के समान मेरे य म भी स ह . वे जा को धन द तथा य के यो य बन. (१५) अयं तुतो राजा व द वेधा अप व तर त वसेतुः. स क ीव तं रेजय सो अ नं ने म न च मवतो रघु .. (१६) ये सबके वधाता सोम राजा सबके ारा शं सत ह. हमने भी उनक शंसा क है. जस सोम क करण जगद्बंधक ह, वे त दन अंत र को लांघते ह. घोड़े जस कार रथ के प हए क ने म को कं पत करते ह, उसी कार सोम क ीवान् ऋ ष और अ न को कंपाते ह. (१६) स ब धुवतरणो य ा सबधु धेनुम वं ह यै. सं य म ाव णा वृ उ थै य े भरयमणं व थैः.. (१७) वे अ न दोन लोक का क याण करने वाले ह. वे वशेष प से तारक एवं य क ा ह. अ न ने धा गाय को उस समय हने यो य बनाया, जब वह याने यो य नह थी. शंयु ऋ ष ने महान् एवं शंसनीय मं ारा म , व ण और अयमा क तु त क . (१७) त धुः सू र द व ते धयंधा नाभाने द ो रप त वेनन्. सा नो ना भः परमा य वा घाहं त प ा क तथ दास.. (१८) हे वग म थत सूय! तु हारा बंधु म नाभाने द तु हारा कमधारण करता ं एवं गाय क अ भलाषा करता आ तु हारी तु त करता ं. वग हमारा एवं सूय का उ प थान है. म सूय से कुछ ही पीढ़ पीछे ं. (१८) इयं मे ना भ रह मे सध थ ममे मे दे वा अयम म सवः. जा अह थमजा ऋत येदं धेनुर ह जायमाना.. (१९) यह वग ही मेरा उ प उनका ं. जगण स य प यह सब उ प कया. (१९)
थान है. यही मेरा नवास थान है. सभी दे व मेरे ह एवं म ा से पहले उ प ए. य पणी गाय ने वयं उ प होकर
अधासु म ो अर त वभावाव य त वत नवनेषाट् . ऊ वा य े णन शशुद म ू थरं शेवृधं सूत माता.. (२०) वे अ न स , ग तशील, दोन लोक म जाने वाले एवं का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को परा जत करने वाले
ह. ऊ वमुख, सेना के समान शंसनीय, श ु अ न को अर ण ने उ प कया. (२०)
का दमन करने वाले, थर एवं सुखवधक
अधा गाव उपमा त कनाया अनु ा त य क य च परेयुः. ु ध वं सु वणो न वं याळा न य वावृधे सूनृता भः.. (२१) तु तयां करते-करते थके ए मुझ नाभाने द क उ म तु तयां इं के समीप जाती ह. हे शोभन-धन वाले अ न! हमारी तु तयां इं के समीप जाती ह. हे शोभन-धन वाले अ न! हमारी तु तयां सुनो और हमारे इं का यजन करो. तुम अ मेध य करने वाले मुझ मनु के पु को तु तय से बढ़ाते हो. (२१) अध व म व १ मा महो राये नृपते व बा ः. र ा च नो मघोनः पा ह सूरीननेहस ते ह रवो अ भ ौ.. (२२) हे व बा एवं नरपालक इं ! हमने वशाल धन क अ भलाषा क है, उसे तुम जानो. तुम हम ह धारक एवं तु त ेरक क र ा करो. हे ह र नामक घोड़ के वामी इं ! हम तु हारी म पापर हत बन. (२२) अध य ाजाना ग व ौ सर सर युः कारवे जर युः. व ः े ः स ेषां बभूव परा च व त पषदे नान्.. (२३) हे द तशाली म व व ण! अं गरागो ीय ऋ ष य कर रहे थे, उस समय यम गाय पाने क इ छा से गए. उनक तु त करने का इ छु क, ा ण नाभाने द उनका अ तशय य आ उनका य पूरा हो और उ ह पार प ंचावे. (२३) अधा व य जे य य पु ौ वृथा रेभ त ईमहे त नु. सर युर य सूनुर ो व ा स वस सातौ.. (२४) हम गौएं पाने क इ छा से जयशील व ण क शी तु त करते ए उनके समीप अनायास याचना करते ह. शी गामी अ इस व ण का पु है. हे व ण! तुम ा ण के समान पू य एवं अ दे ने वाले हो. (२४) युवोय द स याया मे शधाय तोमं जुजुषे नम वान्. व य म ा गरः समीचीः पूव व गातुदाश सूनृतायै.. (२५) हे म व व ण! अ धारण करने वाला अ वयु तुम दोन क श शाली म ता के लए तु हारी सेवा करता है. तु हारी म ता ा त करके अं गरागो ीय ऋ ष को सभी थान के अनुकूल वचन सुनाई दगे. जस कार ाचीन माग चलने के लए सुखकर होता है, उसी कार तुम अपनी य और स य तु त हम दान करो. (२५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स गृणानो अ दववा न त सुब धुनमसा सू ै ः. वध थैवचो भरा ह नूनं वै त पयस उ यायाः.. (२६) दे व के परम बंधु व ण नम कार और शोभन तु तय से शं सत होकर बढ़. धा गाय के ध क धारा उनके य के लए बहे. (२६) त ऊ षु णो महो यज ा भूत दे वास ऊतये सजोषाः. ये वाजाँ अनयता वय तो ये था नचेतारो अमूराः.. (२७) हे य के अ धकारी दे वो! तुम हमारी महती र ा के लए संगत बनो. हे अं गरागो ीय ऋ षयो! य के लए व वध कार से य न करते ए तुम मेरे लए अ लाओ. तुम इस समय मोहर हत होकर गाय ा त करो. (२७)
सू —६२ ये य ेन द णया सम ा इ ते यो भ म रसो वो अ तु
दे वता— व ेदेव य स यममृत वमानश. त गृ णीत मानवं सुमेधसः.. (१)
हे अं गरागो ीय ऋ षयो! तुम लोग य संबंधी एवं द णा के ारा सामू हक प से इं क म ता एवं अमरता ा त कर चुके हो. तु हारा क याण हो. हे शोभन मेधा वाले अं गराओ! तुम मुझ मनुपु को इस समय वीकार करो. म भली कार तु हारा य क ं गा. (१) य उदाज पतरो गोमयं व वृतेना भ द प रव सरे वलम्. द घायु वम रसो वो अ तु त गृ णीत मानवं सुमेधसः.. (२) हे पतृतु य अं गराओ! तुम हमारे पता के समान हो. तुम प णय ारा चुराई गई गाय को पवत से नकाल लाए थे. तुमने एक वष तक य करके बल नामक असुर को न कया. तु ह द घायु ा त हो. हे अं गराओ! तुम मुझ मनुपु को इस समय वीकार करो. म भली कार तु हारा य क ं गा. (२) य ऋतेन सूयमारोहयन् द थय पृ थव मातरं व. सु जा वम रसो वो अ तु त गृ णीत मानवं सुमेधसः.. (३) हे अं गराओ! तुम लोग ने य के ारा सूय को वगलोक म था पत कया एवं सबक माता पृ वी को स कया. तु ह शोभन जा ा त हो. हे अं गराओ! तुम मुझ मनुपु को इस समय वीकार करो. म भली कार तु हारा य क ं गा. (३) अयं नाभा वद त व गु वो गृहे दे वपु ा ऋषय त छृ णोतन. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सु
यम रसो वो अ तु
त गृ णीत मानवं सुमेधसः.. (४)
हे दे वपु अं गरा ऋ षयो! यह नाभाने द तु हारे य गृह के क याणकारी वचन बोलता है. तुम उसे सुनो. तु ह शोभन- तेज ा त हो. हे अं गराओ! तुम मुझ मनुपु को इस समय वीकार करो. म भली कार तु हारा य क ं गा. (४) व पास इ षय त इद्ग भीरवेपसः. ते अ रसः सूनव ते अ नेः प र ज रे.. (५) ऋ षगण नाना प वाले ह एवं अं गरा गंभीर कम वाले ह. अ न के पु के अं गरा सभी ओर उ प ए ह. (५) ये अ नेः प र ज रे व पासो दव प र. नव वो नु दश वो अ र तमः सचा दे वेषु मंहते.. (६) व वध प वाले जो अं गरा ुलोक से अ न के चार ओर उ प अथवा दस मास तक य करके गाय प धन ा त कया है. अं गरा दे व के साथ हम धन दे ते ह. (६)
ए ह, उ ह ने नौ म सव े अ न
इ े ण युजा नः सृज त वाघतो जं गोम तम नम्. सह ं मे ददतो अ क य१: वो दे वे व त.. (७) य कम करने वाले अं गरा पशुशाला का उ ार कया. अं गरा
ने इं के साथ मलकर गाय और अ से यु म सव े अ न दे व के साथ हम धन दे ते ह. (७)
नूनं जायतामयं मनु तो मेव रोहतु. यः सह ं शता ं स ो दानाय मंहते.. (८) वे साव ण मनु जल से भीगे बीज के समान शी बढ़. वे हजार घोड़ से यु गौएं तुरंत दे ने के लए तैयार ह. (८)
सैकड़
न तम ो त क न दव इव सा वारभम्. साव य य द णा व स धु रव प थे.. (९) मनु जब दानकम आरंभ करते ह तो कोई भी उनक समानता नह करता. वे सोने के पवत के समान थत ह. साव ण मनु क द णा नद के समान सब जगह बढ़ती है. (९) उत दासा प र वषे म
ी गोपरीणसा. य तुव मामहे.. (१०)
क याण करने वाले, गाय से यु के भोजन के लए पशु दे ते ह. (१०)
एवं दास के समान य और तुवसु नामक राजा मनु
सह दा ामणीमा रष मनुः सूयणा य यतमानैतु द णा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सावणदवाः
तर वायुय म
ा ता असनाम वाजम्.. (११)
हजार गौएं दे ने वाले एवं मनु य के नेता मनु को कोई हा न नह प ंचा सकता. मनु क द णा सूय के साथ तीन लोक म स हो. दे वगण साव ण मनु क आयु बढ़ाव. य कम म आल य न करने वाले हम मनु से अ ा त कर. (११)
सू —६३
दे वता—प या और व त
परावतो ये द धष त आ यं मनु ीतासो ज नमा वव वतः. ययातेय न य य ब ह ष दे वा आसते ते अ ध ुव तु नः.. (१) जो दे वगण र दे श से आकर मनु य के साथ म ता था पत करते ह, मानव ारा स होकर जो दे व वैव वत मनु से उ प मनु य को धारण करते ह एवं जो दे व न षपु यया त राज ष के य म बैठते ह, वे धन आ द दे कर हम पू जत कर. (१) व ा ह वो नम या न व ा नामा न दे वा उत य या न वः. ये थ जाता अ दतेरद् य प र ये पृ थ ा ते म इह ुता हवम्.. (२) हे दे वो! तु हारे सभी नाम नम कार के यो य, वंदनीय एवं य के यो य ह. जो दे व अ द त, जल एवं पृ वी से उ प ए ह, वे यहां हमारी पुकार को सुन. (२) ये यो माता मधुम प वते पयः पीयूषं ौर द तर बहाः. उ थशु मान् वृषभरा व स ताँ आ द याँ अनु मदा व तये.. (३) पृ वी माता जन दे व के लए मधुर ध बहाती है और अद न तथा बादल से घरा आ आकाश जनके लए अमृत धारण करता है, उन शंसनीय श वाले, वषा करने वाले, शोभन कम वाले एवं अ द तपु दे व के लए तु त करो. (३) नृच सो अ न मष तो अहणा बृह े वासो अमृत वमानशुः. योतीरथा अ हमाया अनागसो दवो व माणं वसते व तये.. (४) बना पलक गराए य कम के नेता को दे खने वाले दे व ने लोक क र ा के लए व तृत अमृत ा त कया था. तेज वी रथ वाले, व नर हत य कम वाले व पापर हत दे वगण लोग के क याण के लए वग के उ त दे श म रहते ह. (४) स ाजो ये सुवृधो य माययुरप रह्वृता द धरे द व यम्. ताँ आ ववास नमसा सुवृ भमहो आ द याँ अ द त व तये.. (५) अपने तेज से भली-भां त सुशो भत एवं भली कार उ त जो दे व य म आते ह एवं कसी के ारा भी अ ह सत होकर वग म रहते ह, उन महान् दे व और अ द त क सेवा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क याण के न म नम कार एवं शोभन तु तय
ारा करो. (५)
को वः तोमं राध त यं जुजोषथ व े दे वासो मनुषो य त न. को वोऽ वरं तु वजाता अरं कर ो नः पषद यंहः व तये.. (६) हे दे वो! मेरे अ त र कौन तु हारी तु त कर सकता है, जसक तुम सेवा करो? हे ाता दे वो! तुम संतान वाले बनो. मेरे अ त र कौन यजमान तु तय ारा तु हारा य अलंकृत करता है. य हम पाप से बचाकर हमारा क याण करता है. (६) ये यो हो ां थमामायेजे मनुः स म ा नमनसा स त होतृ भः. त आ द या अभयं शम य छत सुगा नः कत सुपथा व तये.. (७) सबसे पहले मनु ायु मन से सात होता के साथ अ न व लत करके तु तय ारा जन दे व का यजन करते ह, वे दे व हम नभय कर, क याण द एवं हमारी भलाई के लए सभी माग को सुगम बनाव. (७) य ई शरे भुवन य चेतसो व य थातुजगत म तवः. ते नः कृतादकृतादे नस पय ा दे वासः पपृता व तये.. (८) उ म ान वाले एवं सव दे व सम त जंगम लोक के वामी ह. हे दे वो! तुम हम कृत अथवा अकृत पाप से बचाकर आज हमारे क याण को बढ़ाओ. (८) भरे व ं सुहवं हवामहऽहोमुचं सुकृतं दै ं जनम्. अ नं म ं व णं सातये भगं ावापृ थवी म तः व तये.. (९) हम पाप से छु ड़ाने वाले, शोभन-आ ान वाले एवं शोभन कम वाले दे व के संबंधी इं को सब य म बुलाते ह. हम अ लाभ और अ वनाशी बनने के लए अ न, म , व ण, भग, ावा-पृ थवी और म त को बुलाते ह. (९) सु ामाणं पृ थव ामनेहसं सुशमाणम द त सु णी तम्. दै व नावं व र ामनागसम व तीमा हेमा व तये.. (१०) हम भली कार र ा करने वाली, व तृत, पापर हत, शोभन, सुखयु , यर हत, सु ढ़ गठन वाली, शोभन आचरण यु , न पाप एवं वनाशर हत ुलोक पी नाव पर क याण के लए चढ़. (१०) व े यज ा अ ध वोचतोतये ाय वं नो रेवाया अ भ तः. स यया वो दे व या वेम शृ वतो दे वा अवसे व तये.. (११) हे य के पा दे वो! तुम र ा के न म
हमसे कहो एवं वनाश करने वाली ग त से
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम बचाओ. हम स य प य पुकार सुनो. (११)
ारा तु ह बुलाते ह. र ा और क याण के लए तुम हमारी
अपामीवामप व ामना तमपारा त वद ामघायतः. आरे दे वा े षो अ म ुयोतनो णः शम य छता व तये.. (१२) हे दे वो! हमारे रोग और दे व का आ ान न करने वाली बु को हमसे र करो. तुम लोभमय बु को हमसे अलग करो. तुम क पापमय बु हमसे र करो. तुम श ु को हमसे र कर दो. तुम हम वशेष सुख और क याण दान करो. (१२) अ र ः स मत व एधते जा भजायते धमण प र. यमा द यासो नयथा सुनी त भर त व ा न रता व तये.. (१३) हे अ द तपु दे वो! ज ह तुम शोभन-माग से ले जाते हो एवं सभी पाप से र करके क याण दान करते हो, वे सब लोग सभी अ न से सुर त रहकर वृ ा त करते ह एवं धमकाय के प ात् संतान क उ त पाते ह. (१३) यं दे वासोऽवथ वाजसातौ यं शूरसाता म तो हते धने. ातयावाणं रथ म सान सम र य तमा हेमा व तये.. (१४) हे दे वो! अ लाभ के लए तुम जसक र ा करते हो, हे म तो! यु म सं चत धन पाने के लए तुम जस रथ क र ा करते हो, हे इं ! उसी ातःकाल यु म जाने वाले, सेवन करने यो य एवं व त न होने वाले रथ पर हम क याण के लए चढ़. (१४) व त नः प यासु ध वसु व य१ सु वृजने वव त. व त नः पु कृथेषु यो नषु व त राये म तो दधातन.. (१५) हे म तो! शोभन-पथ वाले दे श एवं म थल दोन म हमारा क याण हो. जल एवं आयुध से यु यु म हमारा क याण करो. पु को उ प करने वाली ना रय म हमारा क याण हो. तुम धनलाभ के लए हमारा क याण करो. (१५) व तर पथे े ा रे ण व य भ या वाममे त. सा नो अमा सो अरणे न पातु वावेशा भवतु दे वगोपा.. (१६) जो धरती माग पर चलने के लए क याणका रणी है, सव म धनसंप एवं य क उ र वेद पर ा त होने वाली है, वह घर एवं वन दोन म हमारी र ा करे. दे व ारा सुर त वह धरती हमारे लए सुखपूवक रहने यो य हो. (१६) एवा लतेः सूनुरवीवृध ो व आ द या अ दते मनीषी. ईशानासो नरो अम यना ता व जनो द ो गयेन.. (१७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ द तपु दे वो एवं अ द त! लु त के पु व ान् गय ऋ ष ने तुम सब लोग को बढ़ाया था. दे व क कृपा से मानव को भुता मलती है. गय ऋ ष ने दे वसमूह क तु त क थी. (१७)
सू —६४
दे वता— व ेदेव
कथा दे वानां कतम य याम न सुम तु नाम शृ वतां मनामहे. को मृळा त कतमो नो मय कर कतम ऊती अ या ववत त.. (१) य म कस तु तयो य दे व क हम भली कार तु त कर? कौन हमारी र ा करता है? कौन हम सुख दान करता है? हमारी र ा के लए कौन हमारे पास आता है. (१) तूय त तवो सु धीतयो वेन त वेनाः पतय या दशः. न म डता व ते अ य ए यो दे वेषु मे अ ध कामा अयंसत.. (२) हमारे दय म न हत बु यां य करने क इ छा करती ह. हमारी बु यां दे व क कामना करती ह. हमारी कामनाएं फल ा त के लए दे व के पास जाती ह. इन दे व के अ त र कोई भी हमारा सुखदाता नह है. हमारी अ भलाषाएं इं ा द दे व तक सी मत ह. (२) नरा वा शंसं पूषणमगो म नं दे वे म यचसे गरा. सूयामासा च मसा यमं द व तं वातमुषसम ु म ना.. (३) हे मेरे मन! मानव ारा शंसनीय, धनदान के ारा तोता का पोषण करने वाले एवं अ य ारा अग य पूषा दे व एवं दे व ारा व लत अ न दे व क तु तय ारा पूजा करो. तुम सूय, चं , यम, ुलोक म थत यम, तीन लोक म ा त इं , वायु, उषा, रा तथा अ नीकुमार क तु त करो. (३) कथा क व तुवीरवा कया गरा बृह प तवावृधते सुवृ भः. अज एकपा सुहवे भऋ व भर हः शृणोतु बु यो३ हवीम न.. (४) व ान् अ न कस कार अनेक तोता वाले एवं कस तु त से वृ यु होते ह? बृह प त दे व शोभन तु तय से बढ़ते ह. अजएकपात् एवं अ हबु य नामक दे व आ ान के समय हमारे ारा र चत शोभन- तो को सुन. (४) द य वा दते ज म न ते राजाना म ाव णा ववास स. अतूतप थाः पु रथो अयमा स तहोता वषु पेषु ज मसु.. (५) हे पृ वी! तुम सूय के ज म के समय तेज वी म एवं व ण क सेवा करती हो. सूय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वशाल रथ पर चढ़कर धीरे-धीरे जाते ह. सात होता वाले सूय के अनेक
प ह. (५)
ते नो अव तो हवन ुतो हवं व े शृ व तु वा जनो मत वः. सह सा मेधसाता वव मना महो ये धनं स मथेषु ज रे.. (६) इं के वे स घोड़े हमारा आ ान सुन जो सबक पुकार सुनते ह, माग पर सधे ए चरण रखते ह, य के समय हजार क सं या म धन दे ते ह एवं यु के समय श ु से वयं ही महान् धन ले आते ह. (६) वो वायुं रथयुजं पुर धं तोमैः कृणु वं स याय पूषणम्. ते ह दे व य स वतुः सवीम न तुं सच ते स चतः सचेतसः.. (७) हे तोताओ! रथ म घोड़े जोड़ने वाले वायु, अनेक कम करने वाले इं एवं पूषा क तु त करके उनसे अपनी म ता वीकार कराओ. वे समान बु वाले एवं ानयु होकर ातःकाल म स वता दे व का य करते ह. (७) ः स त स ा न ो महीरपो वन पती पवताँ अ नमूतये. कृशानुम तॄ त यं सध थ आ ं े षु यं हवामहे.. (८) हम य म सोम क र ा के न म इ क स जल वाली वशाल वन प तय , पवत अ न, कृशानु नामक सोमपालक गंधव, बाण चलाने वाले गंधव , न व तु तयो य को बुलाते ह. (८) सर वती सरयुः स धु म भमहो महीरवसा य तु व णीः. दे वीरापो मातरः सूद य वो घृतव पयो मधुम ो अचत.. (९) परम महान् एवं तरंग वाली सर वती, सरयू, सधु आ द इ क स न दयां र ा के लए हमारे य म आव. जल बहाने वाली एवं माता के समान ये द न दयां हम घी और मधु के समान जल दान कर. (९) उत माता बृह वा शृणोतु न व ा दे वे भज न भः पता वचः. ऋभु ा वाजो रथ प तभगो र वः शंसः शशमान य पातु नः.. (१०) वशाल द त वाली दे वमाता हमारी पुकार सुन. व ा अपने पु दे व तथा उनक प नय के साथ हमारा वचन सुन. ऋभु ा, वाज, रथप त भग व रमणीय म द्गण हम तोता क र ा कर. (१०) र वः सं ौ पतुमाँ इव यो भ ा ाणां म तामुप तु तः. गो भः याम यशसो जने वा सदा दे वास इळया सचेम ह.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म द्गण अ वाले घर के समान दे खने म सुंदर ह. पु म त क तु त क याणका रणी है. हम गाय पी धन से यु होकर मानव म यश वी बन. हे दे वो! हम सदा अ से यु ह . (११) यां मे धयं म त इ दे वा अददात व ण म यूयम्. तां पीपयत पयसेव धेनुं कु वद् गरो अ ध रथे वहाथ.. (१२) हे म तो, इं , दे वगण, व ण एवं म ! जस कार गाय ध से भरी रहती है, उसी कार तुम मेरे कम को फलयु करो. तुम हमारी तु तयां सुनकर रथ के ारा य म आए हो. (१२) कु वद नाभा य
त यथा चद य नः सजा य य म तो बुबोधथ. थमं संनसामहे त जा म वम द तदधातु नः.. (१३)
हे म तो! तुमने पहले अनेक बार जैसा हमारी मै ी को जाना है, उसी कार इस बार भी जानो. धरती क ना भतु य जस वेद पर हम ह से मलते ह, वहां दे वमाता अ द त हमारे साथ म ता कर. (१३) ते ह ावापृ थवी मातरा मही दे वी दे वा मना य ये इतः. उभे बभृत उभयं भरीम भः पु रेतां स पतृ भ स चतः.. (१४) सबका नमाण करने वाले, महान्, द एवं य के यो य ावा-पृ थवी ज म के साथ ही दे व को ा त करते ह. ये ावा-पृ थवी नाना वध उपाय से दे व और मानव क र ा करते ह तथा पतृतु य दे व के साथ जल बरसाते ह. (१४) व षा हो ा व म ो त वाय बृह प तररम तः पनीयसी. ावा य मधुषु यते बृहदवीवश त म त भमनी षणः.. (१५) बड़ का पालन करने वाली, पया त तु त वाली, दे व क अ धक तु त करने वाली एवं सोमरस नचोड़ने के कारण महती वाणी सभी उ म धन को ा त करती ह. व ान् तोता अपनी तु तय से दे व को य का अ भलाषी बनाते ह. (१५) एवा क व तुवीरवाँ ऋत ा वण यु वणस कानः. उ थे भर म त भ व ोऽपीपयद्गयो द ा न ज म.. (१६) क व अनेक कार क तु तय वाले, य के ाता, धन के इ छु क, पशु आ द के अ भलाषी एवं मेधावी गय ऋ ष ने धन क कामना करते ए उ थ और तो ारा दे व क तु त क थी. (१६) एवा लतेः सूनुरवीवृध ो व आ द या अ दते मनीषी. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ईशानासो नरो अम यना ता व जनो द ो गयेन.. (१७) हे अ द तपु दे वो और दे वमाता अ द त! लु त के पु एवं व ान् गय ऋ ष ने तुम सब लोग को बढ़ाया था. दे व क कृपा से मानव को भुता मलती है. गय ऋ ष ने दे वसमूह क तु त क थी. (१७)
सू —६५
दे वता— व ेदेव
अ न र ो व णो म ो अयमा वायुः पूषा सर वती सजोषसः. आ द या व णुम तः वबृहत् सोमो ो अ द त ण प तः.. (१) अ न, इं , म , अयमा, वायु, पूषा, सर वती, आ द यगण, व णु, म द्गण, वग, वशाल वग, सोम, , अ द त और ण प त सब मलकर अपनी म हमा से अंत र को पूण करते ह. (१) इ ा नी वृ ह येषु स पती मथे ह वाना त वा३ समोकसा. अ त र ं म ा प ुरोजसा सोमो घृत ीम हमानमीरयन्.. (२) स जन के पालक, यु म एक होकर शरीरबल से श ु का नाश करने वाले एवं महान् आकाश को अपने तेज से पूण करने वाले इं अ न के बल को घृत म त सोमरस से बढ़ाते ह. (२) तेषां ह म ा महतामनवणां तोमाँ इय यृत ा ऋतावृधाम्. ये अ सवमणवं च राध ते नो रास तां महये सु म याः.. (३) य का ाता म अपने मह व से महान् श ु ारा अपराजेय एवं य क वृ करने वाले दे व क तु त करता ं. व च धन से यु वे दे व मेघ से जल बरसाते ह. शोभन मै ी वाले वे दे व हम धन दे कर मानव म े बनाव. (३) वणरम त र ा ण रोचना ावाभूमी पृ थव क भुरोजसा. पृ ा इव महय तः सुरातयो दे वाः तव ते मनुषाय सूरयः.. (४) उ ह दे व ने अपनी श से सबके नेता सूय, आकाश म थत तेज वी न , ुलोक एवं धरती को थत कया है. द र को धन दान करने के समान तोता को धन से स मा नत करने वाले दे व मानव को े बनाते ह. हम य म ऐसे दे व क तु त करते ह. (४) म ाय श व णाय दाशुषे या स ाजा मनसा न यु छतः. ययोधाम धमणा रोचते बृहद् ययो भे रोदसी नाधसी वृतौ.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तोता को धन दे ने वाले म और व ण को ह दो. भली कार सुशो भत ये दोन मन से कभी असावधान नह होते. इनका शरीर अपने तेज से का शत होता है. व तृत ावा-पृ थवी याचना करती ई इनके समीप उप थत होती है. (५) या गौवत न पय त न कृतं पयो हाना तनीरवारतः. सा ुवाणा व णाय दाशुषे दे वे यो दाश वषा वव वते.. (६) मेरी जो धा व य संपा दका गाय बना ाथना के य म आती है, वह व ण को ह दे ने वाले तथा अ ारा अ य दे व क सेवा करने वाले मेरी र ा कर. म उस गाय क तु त करता ं. (६) दव सो अ न ज ा ऋतावृध ऋत य यो न वमृश त आसते. ां क भ १ प आ च ु रोजसा य ं ज न वी त वी३ न मामृजुः.. (७) अपने तेज से आकाश को पूण करने वाले, अ न पी ज ा वाले व य क वृ करने वाले दे व य म अपना-अपना थान पहचान कर बैठते ह. आकाश को धारण करके अपनी श से जल नकालते ह एवं य के को अपने शरीर म सुशो भत करते ह. (७) प र ता पतरा पूवजावरी ऋत य योना यतः समोकसा. ावापृ थवी व णाय स ते घृतव पयो म हषाय प वतः.. (८) सव ा त, सबके माता- पता के समान, सबसे पहले उ प होने वाले एवं समान थान वाले ावा-पृ थवी य थल म रहते ह. समान कम वाले ावा-पृ थवी पू य व ण को बहने वाले जल से स चते ह. (८) पज यावाता वृषभा पुरी षणे वायू व णो म ो अयमा. दे वाँ आ द याँ अ द त हवामहे ये पा थवासो द ासो अ सु ये.. (९) अ भलाषापूरक तथा जलयु मेघ एवं वायु को व इं , व ण, अयमा, अ द तपु दे व एवं दे वमाता अ द त को हम बुलाते ह. हम पृ वी, आकाश एवं जल म थत दे व को भी बुलाते ह. (९) व ारं वायुमृभवो य ओहते दै ा होतारा उषसं व तये. बृह प त वृ खादं सुमेधस म यं सोमं धनसा उ ईमहे.. (१०) हे ऋभुओ! हम उ ह सोम से धन क याचना करते ह जो तु हारे क याण के न म दे व को बुलाने वाले व ा, वायु एवं उषा के पास जाते ह, जो बृह प त एवं शोभन मेधा वाले इं के समीप प ंचते ह एवं इं को स करते ह. (१०) गाम ं जनय त ओषधीवन पती पृ थव पवताँ अपः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूय द व रोहय तः सुदानव आया ता वसृज तो अ ध
म.. (११)
दे व ने अ , गाय, घोड़े, वृ , वन प तय , पृ वी, पवत और जल को उ प कया है एवं सूय को आकाश म चढ़ाया है. शोभन दान वाले दे व ने धरती पर उ म काय कए ह. (११) भु युमंहसः पपृथो नर ना यावं पु ं व म या अ ज वतम्. कम ुवं वमदायोहथुयुवं व णा वं१ व कायाव सृजथः.. (१२) हे अ नीकुमारो! तुमने भु यु को उप वकारी समु से बचाया, व मती को सोने के रंग वाला पु दया, वमद ऋ ष को कामोद्द पक प नी द तथा व क ऋ ष को व णा व नामक पु दया. (१२) पावीरवी त यतुरेकपादजो दवो धता स धुरापः समु यः. व े दे वासः शृणव वचां स मे सर वती सह धी भः पुर या.. (१३) आयुध वाली एवं गजन करने वाली म यम वाणी, ुलोक को धारण करने वाले अजएकपात्, सधु, सागर का जल, व ेदेव एवं कम के साथ अनेक कार क बु य से यु सर वती मेरे वचन को सुन. (१३) व े दे वाः सह धी भः पुर या मनोयज ा अमृता ऋत ाः. रा तषाचो अ भषाचः व वदः व१ गरो सू ं जुषेरत.. (१४) कम एवं ान से यु , मानवीय य म स कार के पा , मरणर हत, स य को जानने वाले, ह हणक ा, सामने से य म स म लत होने वाले एवं सब कुछ ा त करने वाले इं ा द दे व हमारी तु तय एवं अ को हण कर. (१४) दे वा व स ो अमृता वव दे ये व ा भुवना भ त थुः. ते नो रास तामु गायम यूयं पात व त भः सदा नः.. (१५) व स वंश म उ प ऋ ष ने मरणर हत दे व क वंदना क है. वे दे व सभी लोक म थत ह. वे हम आज अ धक यश कर अ द. हे दे वो! तुम क याणकारी साधन ारा हमारी र ा करो. (१५)
सू —६६
दे वता— व ेदेव
दे वा वे बृह वसः व तये यो त कृतो अ वर य चेतसः. ये वावृधुः तरं व वेदस इ ये ासो अमृता ऋतावृधः.. (१) म अ धक अ वाले, आ द यतेज के क ा, उ म ान वाले, इं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मुख, मरणर हत व
य के ारा वृ (१)
दे व को इस लए बुलाता ं क मेरा य
बना व न के समा त हो सके.
इ सूता व ण श ा ये सूय य यो तषो भागमानशुः. म द्गणे वृजने म म धीम ह माघोने य ं जनय त सूरयः.. (२) हम इं ारा े रत, व ण ारा अनुमो दत, यो तमय सूय के माग को ा त करने वाले एवं श न ु ाशक म त क तु त करते ह. हे व ान् यजमान! उ ह इं पु म त के लए हम य क तैयारी करते ह. (२) इ ो वसु भः प र पातु नो गयमा द यैन अ द तः शम य छतु. ो े भदवो मृळया त न व ा नो ना भः सु वताय ज वतु.. (३) इं वसु के साथ हमारे घर क र ा कर. अ द त दे व के साथ हमारा क याण कर. दे व म त के साथ हम सुखी कर. व ा अपनी प नय के साथ हम अ युदय के लए स कर. (३) अ द त ावापृ थवी ऋतं मह द ा व णू म तः वबृहत्. दे वाँ आ द याँ अवसे हवामहे वसून् ा स वतारं सुदंससम्.. (४) अ द त, ावा-पृ थवी, महान् स य, इं , व णु, म त्, व तृत वग, दे व , आ द य , वसु , और उ म दान करने वाले सूय को हम अपनी र ा के लए बुलाते ह. (४) सर वा धी भव णो धृत तः पूषा व णुम हमा वायुर ना. कृतो अमृता व वेदसः शम नो यंसन् व थमंहसः.. (५) बु से यु सागर, त धारण करने वाले व ण, पूषा, मह वयु व णु, वायु, अ नीकुमार व तोता को अ दे ने वाले, मरणर हत, सव व पापनाशक दे वगण हम तीन मं जल वाला मकान द. (५) वृषा य ो वृषणः स तु य या वृषणो दे वा वृषणो ह व कृतः. वृषणा ावापृ थवी ऋतावरी वृषा पज यो वृषणो वृष तुभः.. (६) य हमारी कामनाएं पूरी कर. य के पा दे वगण हमारी अ भलाषा पूरी करने वाले ह . दे वगण, ह सं ह करने वाले, य यु ऋतावरी, पज य और तोता सब हमारी कामना कर. (६) अ नीषोमा वृषणा वाजसातये पु श ता वृषणा उप ुवे. यावी जरे वृषणो दे वय यया ता नः शम व थं व यंसतः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अभी दाता एवं ब त करता ं. ऋ वज् य म ह द. (७)
ारा शं सत अ न व सोम क तु त म अ पाने के लए ारा उनक पूजा करते ह. वे हम तीन मं जल वाला मकान
धृत ताः या य न कृतो बृह वा अ वराणाम भ यः. अ नहोतार ऋतसापो अ होऽपो असृज नु वृ तूय.. (८) तपालन म त पर, श शाली, य को अलंकृत करने वाले, महान् तेज वी, य म स म लत होने वाले, अ न ारा बुलाए ए एवं स य के पा दे व ने वृ यु के समय जल क रचना क . (८) ावापृ थवी जनय भ ताप ओषधीव नना न य या. अ त र ं व१रा प ु तये वशं दे वास त वी३ न मामृजुः.. (९) इं ा द दे व ने ावा-पृ थवी को ल य करके अपने कम से जल, ओष धयां, य के उपयोग म आने वाली पलाश आ द क लक ड़यां बनाकर श ु से र ा के लए वग और आकाश को अपने तेज ारा पूण कर दया. दे व ने अ भल षत य को अपने शरीर म अलंकृत कया. (९) धतारो दव ऋभवः सुह ता वातापज या म हष य त यतोः. आप ओषधीः तर तु नो गरो भगो रा तवा जनो य तु मे हवम्.. (१०) सुंदर हाथ वाले ऋभु वग को धारण करने वाले ह. वायु और बादल महान् श द करते ह. जल और वन प तयां हमारी तु तय को बढ़ाव. धन दे ने वाले भग एवं सूय हमारे य म आव. (१०) समु ः स धू रजो अ त र मज एकपा न य नुरणवः. अ हबु यः शृणव चां स मे व े दे वास उत सूरयो मम.. (११) सागर, स रता, धूल से भरी धरती, अंत र , अजएकपात्, गरजने वाला मेघ और अ हबु य मेरी पुकार सुन. सभी दे व एवं व ान् मेरी तु त सुन. (११) याम वो मनवो दे ववीतये ा चं नो य ं णयत साधुया. आ द या ा वसवः सुदानव इमा श यमाना न ज वत.. (१२) हे दे व! हम मानव तु ह य अपण करने वाले बन. हमारे ाचीन य को तुम पूण करो. हे आ द यो, पु म तो एवं शोभन-दान वाले वसुओ! तुम इन उ च रत तो को सुनो. (१२) दै ा होतारा थमा पुरो हत ऋत य प थाम वे म साधुया. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े यपत
तवेशमीमहे व ा दे वाँ अमृताँ अ यु छतः.. (१३)
पुरो हत म मुख व दे व को बुलाने वाले अ न एवं आ द य क सेवा म ह ारा करता ं एवं व नर हत होकर य माग का अनुगमन करता ं. म अपने समीपवत , े प त, मरणर हत एवं मादर हत सभी दे व से याचना करता ं. (१३) व स ासः पतृव ाचम त दे वाँ ईळाना ऋ षवत् व तये. ीता इव ातयः काममे या मे दे वासोऽव धूनुता वसु.. (१४) व स के पु ने अपने पता के समान तु त क . उ ह ने अपने पता के समान ही क याण पाने के लए दे व क शंसा क . स बांधव जस कार धन दे ते ह, उसी कार तुम हमारे सामने आकर हमारा अ भल षत धन हमारे समीप लाओ. (१४) दे वा व स ो अमृता वव दे ये व ा भुवना भ त थुः. ते नो रास तामु गायम यूयं पात व त भः सदा नः.. (१५) व स वंश म उ प ऋ ष ने मरणर हत दे व क वंदना क है. वे दे व सभी लोक म थत ह. वे हम आज अ धक यश दे ने वाला अ द. हे दे वो! तुम क याणकारी साधन ारा हमारी र ा करो. (१५)
सू —६७
दे वता—बृह प त
इमां धयं स तशी ण पता न ऋत जातां बृहतीम व दत्. तुरीयं व जनय ज योऽया य उ थ म ाय शंसन्.. (१) हमारे पता अं गरा ने स य से उ प एवं सात छं द वाली वशाल तु त को बनाया था. सवजन हतकारी अया य ऋ ष ने इं क शंसा करते ए एक चरण वाला तो भी बनाया. (१) ऋतं शंस त ऋजु द याना दव पु ासो असुर य वीराः. व ं पदम रसो दधाना य य धाम थमं मन त.. (२) अं गरागो ीय ऋ षय ने स य भाषण करते ए व क याण का यान करते ए य के सुंदर तेज को धारण करके ारंभ से ही बृह प त क तु त क . वे ऋ ष द त एवं बु शाली अ न के पु ह एवं उनका मन सरल है. (२) हंसै रव स ख भवावद र म मया न नहना यन्. बृह प तर भक न दद्गा उत ा तौ च व ाँ अगायत्.. (३) बृह प त ने हंस के समान श द करने वाले अपने म क सहायता से प णय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा
चुराई गई गाय का पाषाणमय ार खोला तथा रंभाती ई गाय के बंधन ढ ले कए. बृह प त ने उ च वर से तु त क तथा सब जानते ए गान कया. (३) अवो ा यां पर एकया गा गुहा त तीरनृत य सेतौ. बृह प त तम स यो त र छ ु ा आक व ह त आवः.. (४) उस अंधकारपूण गुफा म थत गाय को नीचे एक एवं ऊपर दो ार क सहायता से छपाया गया था. बृह प त ने अंधकार म काश ले जाने क इ छा करते ए तीन ार को खोला और गाय को बाहर नकाल दया. (४) व भ ा पुरं शयथेमपाच न ी ण साकमुदधेरकृ तत्. बृह प त षसं सूय गामक ववेद तनय व ौः.. (५) बृह प त रात भर सोते रहे. ातः उ ह ने गुहा का पछला भाग तोड़ा तथा बादल के समान रा स क उस गुफा के तीन ार खोल दए. बृह प त ने ातःकाल सूय एवं गाय को एक साथ दे खा. बृह प त उस समय मेघ के समान गजन कर रहे थे. (५) इ ो वलं र तारं घानां करेणेव व चकता रवेण. वेदा भरा शर म छमानोऽरोदय प णमा गा अमु णात्.. (६) बृह प त ने धा गाय क र ा करने वाले असुर को ंकार से इस कार न कर दया, जैसे अपने हाथ के आयुध से मारा हो. उ ह ने म त के साथ संयोग क इ छा करते ए प णय को लाया और गाय को वापस ले आए. (६) स स ये भः स ख भः शुच ग धायसं व धनसैरददः. ण प तवृष भवराहैघम वेदे भ वणं ानट् .. (७) बृह प त ने अपने तेज वी, स यवाद एवं धन दे ने वाले सहायक से मलकर गाय को रोकने वाले रा स को वद ण कर दया. तो के वामी बृह प त ने जल बरसाने वाले, जल का आहरण करने वाले एवं द त आगमन वाले म त के साथ गोधन को बाहर नकाला. (७) ते स येन मनसा गोप त गा इयानास इषणय त धी भः. बृह प त मथो अव पे भ या असृजत वयु भः.. (८) म त ने स चे मन से प णय ारा अप त गाय को अपने कम से ा त करके बृह प त को गाय का वामी बनाने क अ भलाषा क . बृह प त ने अपने सहयोगी म त के साथ गाय को गुफा से बाहर कया. (८) तं वधय तो म त भः शवा भः सह मव नानदतं सध थे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बृह प त वृषणं शूरसातौ भरेभरे अनु मदे म ज णुम्.. (९) हम म द्गण तथा अंत र म सह के समान गजन करने वाले, अ भलाषापूरक एवं वजयशील बृह प त को क याणका रणी तु तय के ारा बढ़ाते ह एवं सं ाम म उनक शंसा करते ह. (९) यदा वाजमसन पमा ाम रा ण स . बृह प त वृषणं वधय तो नाना स तो ब तो यो तरासा.. (१०) बृह प त जस समय नाना प वाले अ का उपयोग करते ह और जब अंत र अथवा ऊंचे थान पर चढ़ते ह, उस समय नाना दशा म थत तेज वी दे वगण अ भलाषा पूण करने वाले बृह प त क तु त अपने मुंह से करते ह. (१०) स यामा शषं कृणुता वयोधै क र च वथ वे भरेवैः. प ा मृधो अप भव तु व ा त ोदसी शृणुतं व म वे.. (११) हे दे वो! मेरी अ संबंधी तु त को स चा बनाओ. अपने गमन ारा मुझ तोता क र ा करो. मेरे श ु न ह . सबको स करने वाली ावा-पृ थवी मेरे वचन को सुन. (११) इ ो म ा महतो अणव य व मूधानम भनदबुद य. अह हम रणा स त स धू दे वै ावापृ थवी ावतं नः.. (१२) वामी एवं मह वशाली बृह प त ने महान् एवं उदकपूण मेघ का म तक काट डाला. उ ह ने जल रोकने वाले रा स को मारा एवं सात न दय को वा हत कया. हे ावापृ थवी! तुम दे व के साथ मलकर हमारी र ा करो. (१२)
सू —६८
दे वता—बृह प त
उद ुतो न वयो र माणा वावदतो अ य येव घोषाः. ग र जो नोमयो मद तो बृह प तम य१का अनावन्.. (१) खेत को जल से स चने वाले कसान पक फसल को रखाते समय जैसा श द करते ह अथवा बादल जस कार गजन करते ह अथवा बादल से गरा आ जल समूह जस कार नाद करता है, उसी कार तोता ने बृह प त क तु त क . (१) सं गो भराङ् गरसो न माणो भग इवेदयमणं ननाय. जने म ो न द पती अन बृह पते वाजयाशूँ रवाजौ.. (२) अं गरा ऋ ष के पु एवं भगदे व के समान अपने तेज से सबको ा त करते ए बृह प त गुफा म बंद गाय तक सूय का काश ले गए. सूय जस कार जनपद म अपनी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करण का संयोग करता है एवं प तप नी को पर पर मलाता है, उसी कार बृह प त ने गाय को उनके वा मय से मलाया. हे बृह प त! गाय को यु म दौड़ने वाले घोड़ के समान दौड़ाओ. (२) सा वया अ त थनी र षराः पाहाः सुवणा अनव पाः. बृह प तः पवते यो वतूया नगा ऊपे यव मव थ व यः.. (३) अ क कु ठया से जस कार जौ बाहर नकाले जाते ह, उसी कार बृह प त ने क याणकारी ध दे ने वाली, न य गमनशील, पृहणीय, शोभन वण वाली और शंसनीय प से यु गाय को पवत से बाहर नकाला. (३) आ ष ु ाय मधुन ऋत य यो नमव प क उ का मव ोः. बृह प त र मनो गा भू या उद्नेव व वचं बभेद.. (४) आदरणीय बृह प त ने धरती को जल से स चते ए एवं मेघ को वषा के न म बखेरते ए प णय ारा छ नी ई गाय को पवत से नकालकर धरातल को उनके खुर से इस कार छ भ कराया, जस कार सूय आकाश से अपनी करण गराते ह. (४) अप यो तषा तमो अ त र ा द्नः शीपाल मव वात आजत्. बृह प तरनुमृ या वल या मव वात आ च आ गाः.. (५) वायु जस कार जल से काई हटा दे ता है, उसी कार बृह प त ने सूय के काश ारा पवत का अंधकार समा त कया. हवा जस तरह बादल को हटाती है, उसी कार बृह प त ने वचार करके बल नामक रा स के थान म छपी ई गाय को बाहर नकाला. (५) यदा वल य पीयतो जसुं भेद बृह प तर नतपो भरकः. द न ज ा प र व माददा व नध रकृणो याणाम्.. (६) बृह प त ने जस समय हसक बल असुर के आयुध को सूय के समान तेज वी तथा अ न के समान तृ त करने वाले आयुध ारा छ भ कया, उसी समय गाय पर अ धकार कर लया. जीभ जस कार दांत ारा काटे ए पदाथ का भ ण करती है, उसी कार बृह प त ने बल को मारकर गाय को ा त कया. (६) बृह प तरमत ह यदासां नाम वरीणां सदने गुहा यत्. आ डेव भ वा शकुन य गभमु याः पवत य मनाजत्.. (७) बृह प त ने गुफा म रंभाने वाली गाय का वर जस समय जाना, उसी समय पवत को भेदकर अकेले ही गाएं इस कार बाहर नकाल , जस कार प ी अंडे को फोड़कर ब चा बाहर नकालता है. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ा पन ं मधु पयप य म यं न द न उद न य तम्. न जभार चमसं न वृ ाद् बृह प त वरवेणा वकृ य.. (८) बृह प त ने पवत म बंद मधुर गाय को इस कार दे खा, जस कार थोड़े जल म मछ लयां वकल दखाई दे ती ह. जस कार पेड़ क लकड़ी से सोमरस का पा चमस नकाला जाता है, उसी कार बृह प त ने पवत से गाय को बाहर नकाला. (८) सोषाम व द स व१: सो अ नं सो अकण व बबाधे तमां स. बृह प तग वपुषो वल य नम जानं न पवणो जभार.. (९) बृह प त ने गाय को दे खने के लए उषा को ा त कया तथा सूय एवं अ न क सहायता से अंधकार को मटाया. जैसे हड् डी से म जा बाहर नकाली जाती है, उसी कार बृह प त ने बल रा स क सुर ा से गाय को बाहर नकाला. (९) हमेव पणा मु षता वना न बृह प तनाकृपय लो गाः. अनानुकृ यमपुन कार या सूयामासा मथ उ चरातः.. (१०) पाला जस कार कमल के प को न कर दे ता है, उसी कार बल रा स ारा चुराई गई गाय का बृह प त ने हरण कया. यह काय सरे के ारा होना संभव नह था और न कोई इसका अनुकरण कर सकता है. इस काय से सूय और चं मा दन तथा रात म उ दत होने लगे. (१०) अ भ यावं न कृशने भर ं न े भः पतरो ाम पशन्. रा यां तमो अदधु य तरह बृह प त भनद वदद्गाः.. (११) सबका पालन करने वाले दे व ने आकाश को न से इस कार सजाया है, जस कार काले रंग के घोड़े को सोने के आभूषण से सुशो भत कया जाता है. दे व ने रात म अंधकार तथा दन म काश धारण कया. उसी समय बृह प त ने अपनी श से शलासमूह को भेदकर गाय को ा त कया. (११) इदमकम नमो अ याय यः पूव र वानोनवी त. बृह प तः स ह गो भः सो अ ैः स वीरे भः स नृ भन वयो धात्.. (१२) जन बृह प त ने अनेक ऋचा को म से कहा तथा जो आकाशवासी हो गए ह, उनको हमने नम कार कया. वे हम गाय , घोड़ , संतान एवं सेवा से यु धन द. (१२)
सू —६९ भ ा अ नेव य
दे वता—अ न य सं शो वामी णी तः सुरणा उपेतयः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यद सु म ा वशो अ इ धते घृतेना तो जरते द व ुतत्.. (१) व य ऋ ष ारा था पत अ न क मू त दे खने यो य, स ता व क याणका रणी तथा य म आगमन रमणीय हो. हम सु म लोग जब अ न को पहली बार व लत करते ह, तब घृता त पाकर तेज वी अ न हमारे ारा शं सत होते ह. (१) घृतम नेव य य वधनं घृतम ं घृत व य मेदनम्. घृतेना त उ वया व प थे सूय इव रोचते स परासु तः.. (२) वय ारा था पत अ न का घृत ही बढ़ाने वाला, आहार एवं पोषक हो. घृत क आ त पाकर अ न अ धक द त होते ह. घृत ारा हवन कए गए अ न सूय के समान का शत होते ह. (२) य े मनुयदनीकं सु म ः समीधे अ ने त ददं नवीयः. स रेव छोच स गरो जुष व स वाजं द ष स इह वो धाः.. (३) हे अ न! मनु ने जस कार तु हारी करण को द त कया था, उसी कार म सु म ऋ ष भी उ ह द त करता ं. तु हारी करण नवीन ह. तुम धनसंप होकर जलो, हमारी तु तयां वीकार करो, श ुसेना को मारो एवं हम अ दो. (३) यं वा पूवमी ळतो व य ः समीधे अ ने स इदं जुष व. स नः तपा उत भवा तनूपा दा ं र व य ददं ते अ मे.. (४) हे अ न! पहले तु ह तोता व य ने व लत कया था. तुम हमारा तो वीकार करो. तुम हमारे घर और शरीर के र क बनो. तुमने हम जो कुछ दया है, उसक र ा करो. (४) भवा ु नी वा य ोत गोपा मा वा तारीद भमा तजनानाम्. शूर इव धृ णु यवनः सु म ः नु वोचं वा य य नाम.. (५) हे व य ारा था पत अ न! तुम तेज वी एवं र क बनो. कोई भी तु हारी हसा न करे, य क तुम श ु लोग को परा जत करने वाले हो. तुम शूर के समान श ुपराभवकारी एवं श ुनाशक बनो. म तु हारे नाम का वणन करता ं. (५) सम या पव या३वसू न दासा वृ ा याया जगेथ. शूर इव धृ णु यवनो जनानां वम ने पृतनायूँर भ याः.. (६) हे अ न! तुमने मानव हतकारी एवं पवत पर उ प धन को दास से जीत कर आय को दया. तुम शूर के समान श ुजन के पराभवकारी एवं नाशक बनो तथा आ मणका रय से भड़ जाओ. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
द घत तुबृह ायम नः सह तरीः शतनीथ ऋ वा. ुमान् ुम सु नृ भमृ यमानः सु म ेषु द दयो दे वय सु.. (७) हे वशाल तु तय वाले, धान दाता, अनेक कार के ह ारा आ छा दत, अनेक आहवनीय ार से लाए गए, अ तशय द त एवं धान पुरो हत ारा अलंकृत अ न! तुम दे व क कामना करने वाले सु म एवं उसके प रवार वाल के घर म व लत बनो. (७) वे धेनुः सु घा जातवेदोऽस तेव समना सबधुक्. वं नृ भद णाव र ने सु म े भ र यसे दे वय ः.. (८) हे अ न! तु हारे पास सरलता से ही जाने वाली, एकमा सूय से संगत व अमृत दे ने वाली गाय है. तुम दे व क कामना करने वाले, द णायु एवं धान य क ा सु म वं शय ारा व लत कए जाते हो. (८) दे वा े अमृता जातवेदो म हमानं वा य ः वोचन.. य स पृ छं मानुषी वश आय वं नृ भरजय वावृधे भः.. (९) हे व य ारा था पत अ न! मरणर हत दे व ने भी तु हारी म हमा का वणन कया है. जब मानवी जा यह पूछने तु हारे पास आई क दे व के साथ असुर का नाश कौन करता है, तब तुमने सबके नेता एवं तु हारे ारा बढ़ाए गए दे व के साथ मलकर व नका रय को जीत लया. (९) पतेव पु म बभ प थे वाम ने व य ः सपयन्.. जुषाणो अ य स मधं य व ोत पूवा अवनो ाधत त्.. (१०) हे अ न! मेरे पता व य ने इस कार तु हारी सेवा क , जस कार पता गोद म बैठाकर पु का पालन करता है. हे अ तशय युवा अ न! तुमने मेरे पता क स मधाएं ा त करके वशेष बाधक श ु का भी वध कया. (१०) श द नव य समनं चददह
य श ू ृ भ जगाय सुतसोमव ः. भानोऽव ाध तम भनद्वृध त्.. (११)
उस अ न ने व य के सोमरस नचोड़ने वाले एवं य नेता ऋ वज क सहायता से सदा श ु को जीता. हे नाना तेज वाले अ न! तुमने सं ाम म उ ह जलाया. अ न ने बढ़े ए हसक को न कया. (११) अयम नव य य वृ हा सनका े ो नमसोपवा यः. स नो अजाम त वा वजामीन भ त शधतो वा य .. (१२) वय
ारा था पत वे अ न श ुहंता, ाचीन काल से वशेष द त एवं नम कार से
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु तयो य ह. तुम हमारी जा त से बाहर एवं व वध जा तय वाले श ु
सू —७०
को हटाओ. (१२)
दे वता—आ ी
इमां मे अ ने स मधं जुष वेळ पदे त हया घृताचीम्. व म पृ थ ाः सु दन वे अ ामू व भव सु तो दे वय या.. (१) हे अ न! उ र वेद पर था पत मेरी स मधा को वीकार करो तथा घी से भरे ए चमस का सेवन करो. हे शोभन बु वाले अ न! तुम उ म दन के हेतु धरती के उ त दे श म दे वय के कारण उ प वाला के साथ ऊपर उठो. (१) आ दे वानाम यावेह यातु नराशंसो व पे भर ैः. ऋत य पथा नमसा मयेधो दे वे यो दे वतमः सुषूदत्.. (२) दे व के आगे चलने वाले एवं मानव ारा शं सत अ न नाना वण वाले अ क सहायता से इस य म पधार. तु तयो य एवं दे व म मुख अ न य माग के ारा हमारा ह एवं नम कार दे व के समीप ले जाव. (२) श ममीळते याय ह व म तो मनु यासो अ नम्. व ह ैर ैः सुवृता रथेना दे वा व न षदे ह होता.. (३) ह धारण करने वाले मनु य तकम के लए अ तशय सनातन अ न क तु त करते ह. हे अ न! तुम वहनसमथ घोड़ एवं सुंदर रथ क सहायता से दे व को ले जाओ एवं होता के प म इस य म बैठो. (३) व थतां दे वजु ं तर ा द घ ा मा सुर भ भू व मे. अहेळता मनसा दे व ब ह र ये ाँ उशतो य दे वान्.. (४) हे ब ह नामक अ न! दे व ारा से वत एवं तरछा बछा आ यह हमारा कुश व तृत एवं अ यंत सुगं धत हो. तुम स च होकर ह के अ भलाषी इं - मुख दे व क पूजा करो. (४) दवो वा सानु पृशता वरीयः पृ थ ा वा मा या व य वम्. उशती ारो म हना मह दवं रथं रथयुधारय वम्.. (५) हे ार नामक दे वयो! तुम आकाश से ऊंचे थान को छु ओ एवं धरती के समान व तृत बनो. तुम दे व एवं रथ क अ भलाषा करती ई अपने मह व से दे व ारा अ ध त एवं उनके वहार के साधन रथ को धारण करो. (५) दे वी दवो हतरा सु श पे उषासान ा सदतां न योनौ. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ वां दे वास उशती उश त उरौ सीद तु सुभगे उप थे.. (६) ोतमान, ुलोक क पु य के समान एवं शोभन प वाले दन-रात य के थान म बैठ. हे अ भलाषा करने वाली एवं शोभन धन से यु दे वयो! तु हारे शोभन एवं व तृत थान म ह के इ छु क दे वगण बैठ. (६) ऊ व ावा बृहद नः स म ः या धामा य दते प थे. पुरो हतावृ वजा य े अ मन् व रा वणमा यजेथाम्.. (७) हे ऋ वज् एवं होता! तुम अ तशय व ान् हो. तुम उस समय इस य के न म धन दो, जस समय सोमरस नचोड़ने के लए प थर उठाया जाता है, महान् अ न को व लत कया जाता है एवं दे व के य य पा धरती के य थान म लाए जाते ह. (७) त ो दे वीब ह रदं वरीय आ सीदत चकृमा वः योनम्. मनु व ं सु धता हव षीळा दे वी घृतपद जुष त.. (८) हे इडा आ द तीन दे वयो! इस अ त व तृत कुश पर बैठो. हमने इसे तु हारे लए बछाया है. इडा, तेज वनी सर वती एवं द त पद वाली भारती ने जस कार मनु के य म ह का सेवन कया था, उसी कार वे हमारे य म भली कार रखे ए ह का सेवन कर. (८) दे व व य चा वमान द रसामभवः सचाभूः. स दे वानां पाथ उप व ानुश य वणोदः सुर नः.. (९) हे व ा दे व! तुमने क याणकारी प ा त कर लया है, इस लए तुम हम अं गरागो ीय ऋ षय के सहायक ए हो. हे धनदाता एवं शोभन र न वाले अ न! तुम ह क अ भलाषा करते ए एवं जानते ए दे व का भाग उनके पास ले जाओ. (९) वन पते रशनया नयूया दे वानां पाथ उप व व ान्. वदा त दे वः कृणव व यवतां ावापृ थवी हवं मे.. (१०) हे वृ से बने ए एवं व ान् य के खंभ!े तुम रशना ारा बंधकर दे व के पास अ ले जाओ. वन प त पी दे व ह का वाद ल एवं उसे दे व तक प ंचाव. ावा-पृ थवी मेरी पुकार क र ा कर. (१०) आ ने वह व ण म ये न इ ं दवो म तो अ त र ात्. सीद तु ब ह व आ यज ाः वाहा दे वा अमृता मादय ताम्.. (११) हे अ न! तुम हमारे य के न म व ण, इं एवं म को अंत र से ले आओ. य के पा दे वगण कुश पर बैठ. मरणर हत दे व वाहा श द से स ह . (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —७१
दे वता—
ान
बृह पते थमं वाचो अ ं य ैरत नामधेयं दधानाः. यदे षां े ं यद र मासी ण े ा तदे षां न हतं गुहा वः.. (१) हे बृह प त! ब चे सबसे पहले पदाथ का नाम मा जानते ह. यह उनक भाषा क पहली सीढ़ है. बालक का जो पापर हत वेदाथ ान है, वह गुहा म छपा आ रहता है. वह ान सर वती क कृपा से कट होता है. (१) स ु मव ततउना पुन तो य धीरा मनसा वाचम त. अ ा सखायः स या न जानते भ ै षां ल मी न हता ध वा च.. (२) जस कार स ू वाले भुने ए जौ सूप से शु कए जाते ह, उसी कार व ान् लोग मन म वचार करके शु भाषा बोलते ह. उस समय व ान् लोग म ता को जानते ह. इनके वचन म मंगलका रणी ल मी छपी रहती ह. (२) य ेन वाचः पदवीयमाय ताम व व द ृ षषु व ाम्. तामाभृ या दधुः पु ा तां स त रेभा अ भ सं नव ते.. (३) बु मान् मनु य य के ारा भाषा का माग जानते ह. उ ह ने ऋ षय के मन म व वाणी को जान लया है. उस भाषा को ा त करके उ ह ने अनेक दे श म फैलाया. सात छं द इसी भाषा म एक होते ह. (३) उत वः प य ददश वाचमुत वः शृ व शृणो येनाम्. उतो व मै त वं१ व स े जायेव प य उशती सुवासाः.. (४) कुछ लोग मन से वचार करके भी भाषा को नह समझ पाते. कुछ लोग भाषा को सुनकर भी नह सुनते. कसी कसी के सामने भाषा अपने शरीर को इस कार वस जत कर दे ती है, जस कार शोभन व वाली एवं प त क कामना करने वाली नारी प त के सामने अपने शरीर को द शत करती है. (४) उत वं स ते थरपीतमा ननं ह व य प वा जनेषु. अधे वा चर त माययैष वाचं शु ुवाँ अफलामपु पाम्.. (५) कसी- कसी को व ान क मंडली म उ म भाव हण करने वाले के प म त ा ा त होती है. इनक कसी भी काय म उपे ा नह क जाती. कुछ लोग फल और पु पर हत वाणी क सेवा करते ह. इनक वाणी वा त वक धेनु नह , अ पतु माया पणी धेनु है. (५) य त याज स च वदं सखायं न त य वा य प भागो अ त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यद शृणो यलकं शृणो त न ह वेद सुकृत य प थाम्.. (६) जो वेद पढ़ने वाला, म को जानने वाले म को याग दे ता है, उसक वाणी म कोई सार नह होता. वह पु ष जो भी सुनता है, थ सुनता है. वह स कम का माग नह जानता. (६) अ व तः कणव तः सखायो मनोजवे वसमा बभूवुः. आद नास उपक ास उ वे दा इव ना वा उ वे द े.. (७) आंख और कान वाले म मन का भाव का शत करने म अ तीय होते ह. कुछ लोग कमर तक गहरे तालाब के समान, कुछ मुख तक गहरे तालाब के समान एवं कुछ नान करने यो य तालाब के समान दखाई दे ते ह. (७) दा त ेषु मनसो जवेषु यद् ा णः संयज ते सखायः. अ ाह वं व ज व ा भरोह ाणो व चर यु वे.. (८) जस समय समान ान वाले अनेक ा ण दय ारा समझे जाने वाले वेदाथ के गुणदोष पर वचार करने पर एक होते ह, उस समय कसी- कसी को वशेष ान होता है एवं कोई कोई तो का अथ जानकर घूमते ह. (८) इमे ये नावाङ् न पर र त न ा णासो न सुतेकरासः. त एते वाचम भप पापया सरी त ं त वते अ ज यः.. (९) ये अ व ान् लोग इस लोक म वेद को जानने वाले ा ण ारा एवं परलोकवासी दे व के साथ य कम का आचरण नह करते. वे न तो तोता ह और न सोमय करने वाले ह. ये पाप का आ य लेने वाली लौ कक वाणी से यु होकर मूख के समान हल चलाते ए कृ षकम करते ह. (९) सव न द त यशसागतेन सभासाहेन स या सखायः. क वष पृ पतुष ण षामरं हतो भव त वा जनाय.. (१०) म के समान आचरण करने वाले एवं सभा म यश दान करने वाले यश को पाकर स होते ह. यश के कारण पाप र होता है. अ मलता है एवं श ा त होती है. इस कार यश से अनेक कार का हत होता है. (१०) ऋचां वः पोषमा ते पुपु वा गाय ं वो गाय त श वरीषु. ा वो वद त जात व ां य य मा ां व ममीत उ वः.. (११) कुछ होता अनेक ऋचा का उ चारण करते ए य म सहायक होते ह एवं कुछ लोग गाय ी छं द म साममं को गाते ह. ा नामक पुरो हत ाय क ा या करता है एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ वयु य म व वध काय करता है. (११)
दे वता—दे व
सू —७२ दे वानां नु वयं जाना वोचाम वप यया. उ थेषु श यमानेषु यः प या रे युगे.. (१)
हम प श द म दे व क उ प का वणन करते ह. ये दे व भ व य म तो उ चारण के समय तोता को दे खगे. (१) ण प तरेता सं कमार इवाधमत्. दे वानां पू
के
युगेऽसतः सदजायत.. (२)
लोहार जस कार ध कनी चलाता है, उसी कार दे व से पूव के समय म असत् से सत् उ प आ. (२)
ण प त ने दे व को उ प
दे वानां युगे थमेऽसतः सदजायत. तदाशा अ वजाय त त दे व क उ प से पहले के समय म असत् से सत् उ प उप . दशा से वृ उ प ए. (३)
कया.
ानपद प र.. (३) आ. इसके बाद दशाएं
भूज उ ानपदो भुव आशा अजाय त. अ दतेद ो अजायत द ा द तः प र.. (४) वृ से भू म उ प ई एवं भू म से दशाएं उ प बाद म द से अ द त उ प ई. (४) अ द त ज न द या
. अ द त से द
उप
ए और
हता तव. तां दे वा अ वजाय त भ ा अमृतब धवः.. (५)
हे द ! तु हारी पु ी अ द त ने दे व को उ प अमृत के बंधु दे व ने ज म लया. (५)
कया. अ द त के प ात् शंसनीय एवं
य े वा अदः स लले सुसंर धा अ त त. अ ा वो नृ यता मव ती ो रेणुरपायत.. (६) हे दे वो! जब तुम इस जल म रहकर अपने को जानते ए थत थे, तब तुम नृ य सा करने लगे. इससे ब त धूल उड़ी. (६) य े वा यतयो यथा भुवना य प वत. अ ा समु आ गू हमा सूयमजभतन.. (७) बादल जस कार वषा ारा संसार को भरते ह, उसी कार दे व ने संसार को ढक लया. उ ह ने सागर म ढके ए सूय को चमकने के लए बाहर नकाला. (७) अ ौ पु ासो अ दतेय जाता त व१ प र. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे वाँ उप ै स त भः परा माता डमा यत्.. (८) अ द त के शरीर से आठ पु उ प ए. उन म से सात के साथ वह दे वलोक म चली गई. आठवां सूय आकाश म थत आ. (८) स त भः पु ैर द त प ै पू
युगम्. जायै मृ यवे व पुनमाता डमाभरत्.. (९)
ाचीनकाल म अ द त सात पु के साथ दे वलोक म चली गई. केवल सूय को जा के ज म-मरण के लए आकाश म थर कया. (९)
सू —७३
दे वता—इं व म त्
ज न ा उ ः सहसे तुराय म ओ ज ो ब ला भमानः. अवध ं म त द माता य रं दधन न ा.. (१) गभ धारण करने वाली इं क माता ने जस इं को ज म दया, उस समय म त ने वीर इं क शंसा इस कार क —“तुम श दशन और श ुनाश के लए उ प ए हो. तुम शंसनीय, ओज वी एवं अ धक अ भमानी हो.” (१) हो नष ा पृशनी चदे वैः पु शंसेन वावृधु इ म्. अभीवृतेव ता महापदे न वा ता प वा दर त गभाः.. (२) म त के साथ-साथ इं क सेना भी इं के समीप बैठ है. म त ने वशाल तो ारा इं को बढ़ाया. जस कार बंद गो के खुलने पर गाएं बाहर नकलती ह, उसी कार अंधकार प मेघ के भीतर से वषा का जल बाहर नकला. (२) ऋ वा ते पादा य जगा यवध वाजा उत ये चद . व म सालावृका सह मासन् द धषे अ ना ववृ याः.. (३) हे इं ! तु हारे चरण महान् ह. तुम जस समय चलते हो, उस समय ऋभुगण एवं वहां उप थत दे व बढ़ते ह. तुम हजार भे ड़य को मुख म धारण करते हो तथा अ नीकुमार को घुमा सकते हो. (३) समना तू ण प या स य मा नास या स याय व . वसा ा म धारयः सह ा ना शूर ददतुमघा न.. (४) हे इं ! सं ाम क ज द होने पर भी तुम य म जाते हो. उस समय तुम अ नीकुमार क म ता धारण करते हो. हे शूर इं ! उस समय तुम हमारे लए हजार धन धारण करते हो. अ नीकुमार हमारे लए धन द. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म दमान ऋताद ध जायै स ख भ र इ षरे भरथम्. आ भ ह माया उप द युमागा महः त ा अवप मां स.. (५) इं य म अपने म म त के साथ स होते ए यजमान के लए धन दे ते ह. इं ने यजमान के न म असुर क माया को समा त कया, वषा क तथा अंधकार को न कया. (५) सनामाना चद् वसयो य मा अवाह उषसो यथानः. ऋ वैरग छः स ख भ नकामैः साकं त ा ा जघ थ.. (६) इं ने वृ को मारने के लए समान नाम वाले श ु को न कया. इं ने उषा क गाड़ी के समान ही वृ को न कया. इं द त व वृ वध के इ छु क अपने म म त के साथ वृ को मारने गए. हे इं ! तुमने श ु के सुंदर शरीर को न कया. (६) वं जघ थ नमु च मख युं दासं कृ वान ऋषये वमायम्. वं चकथ मनवे योना पथो दे व ा सेव यानान्.. (७) हे इं ! नमु च रा स तु हारे धन क अ भलाषा करता था, इस लए तुमने उसे मार डाला. तुमने मनु के सामने घातक असुर नमु च को माया वहीन कया. तुमने मनु के चलने के लए माग सुर त कर दया. वे माग सरलता से दे वलोक म जाते ह. (७) वमेता न प षे व नामेशान इ द धषे गभ तौ. अनु वा दे वाः शवसा मद युप रबु ना व नन कथ.. (८) हे इं ! तुम इस संसार को जल से पूण करते हो तथा सबके वामी बनकर हाथ म व धारण करते हो. तुम श संप हो. सभी दे व तु हारी तु त करते ह. तुम बादल का मुख नीचे क ओर करते हो. (८) च ं यद या वा नष मुतो तद मै म व च छ ात्. पृ थ ाम त षतं य धः पयो गो वदधा ओषधीषु.. (९) इं का जो च आकाश म थत है, वह इं के लए मधु दे ता है. हे इं ! तुमने धरती पर लता, घास आ द म जो ध था पत कया है, वह गाय के थन से ध के प म नकलता है. (९) अ ा दयाये त य द योजसो जातमुत म य एनम्. म यो रयाय ह यषु त थौ यतः ज इ ो अ य वेद.. (१०) कुछ लोग कहते ह क इं क उ प आ द य से ई है. म इं को बल से उ प मानता ं. इं ोध से उ प होकर अटा रय पर थत ए. इं कहां से उ प ए ह, यह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बात वही जानते ह. (१०) वयः सुपणा उप से र ं यमेधा ऋषयो नाधमानाः. अप वा तमूणु ह पू ध च ुमुमु य१ मा धयेव ब ान्.. (११) ग त करने वाली सूय करण इं के समीप प ंच . य को ेम करने वाले ऋ ष बु क याचना करते ए इं के पास गए. हे इं ! अंधकार को न करो. हमारी आंख को काश से भर दो तथा पाप से बंधे ए हम लोग को छु ड़ाओ. (११)
सू —७४
दे वता—म त्
वसूनां वा चकृष इय धया वा य ैवा रोद योः. अव तो वा ये र यम तः सातौ वनुं वा ये सु ुणं सु ुतो धुः.. (१) दे व व मानव ारा धनदान के इ छु क इं को धनदान के लए तु तय या य ारा आक षत कया जाता है. सं ाम म धन कमाने के साधन घोड़े इं को आक षत करते ह. य का आ य लेने वाले अथवा श ु का संहार करने वाले लोग इं को आक षत करते ह. (१) हव एषामसुरो न त ां व यता मनसा नसत ाम्. च ाणा य सु वताय दे वा ौन वारे भः कृणव त वैः.. (२) इं को ेरणा करता है. अ क इ ारा चुराई गई गाय काश कया, जस
दे ने वाला अं गरागो ीय ऋ षय का आ ान श द आकाश को पूण छा करने वाले दे व ने मन से धरती को ा त कया. धरती पर प णय को दे खते ए दे व ने अपने क याण के लए अपने तेज से इस कार कार सूय चमकता है. (२)
इयमेषाममृतानां गीः सवताता ये कृपण त र नम्. धयं च य ं च साध त ते नो धा तु वस १मसा म.. (३) यह इन मरणर हत दे व क तु त है. वे य म सभी कार के र न दे ते ह. दे वगण तु त और य को स करते ए हम अ धक धन दान कर. (३) आ त इ ायवः पन ता भ य ऊव गोम तं ततृ सान्. सकृ वं१ ये पु पु ां मह सह धारां बृहत न्.. (४) हे इं ! जो अं गरावंशी ऋ ष प णय ारा चुराई गई गाय का समूह उनसे छ नना चाहते ह, वे तु हारी ही तु त करते ह. एक बार उ प , अनेक संतान उ प करने वाली तथा हजार धारा म संप पी ध हाने वाली धरती पी गाय को हने के इ छु क लोग भी इं क तु त करते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शचीव इ मवसे कृणु वमनानतं दमय तं पृत यून्. ऋभु णं मघवानं सुवृ भता यो व ं नय पु ुः.. (५) हे य कम करने वाले यजमानो! कभी न झुकने वाले, श ु को वश म करने वाले, महान्, धनसंप , शोभन तु तयु , स एवं मानव हतकारी व धारण करने वाले इं क शरण म र ा पाने के लए जाओ. (५) य ावान पु तमं पुराषाळा वृ हे ो नामा य ाः. अचे त ासह प त तु व मान्यद मु म स कतवे कर त्.. (६) श ुनगर को परा जत करने वाले इं जस समय अ यंत श शाली श ु का नाश करके वृ नाशक बनते ह, उस समय धरती को जल से पूण करते ह. उस समय सबके ारा श ुपराभवकारी, सबके वामी व धनी जाने जाकर हम सबक अ भलाषा पूरी करते ह. (६)
सू —७५
दे वता—नद
सु व आपो म हमानमु मं का व चा त सदने वव वतः. स तस त ेधा ह च मुः सृ वरीणाम त स धुरोजसा.. (१) हे जल! सेवा करने वाले यजमान के घर म तोता तु हारी व तृत म हमा कथन करता है. न दयां सात-सात के प म पृ वी, अंत र और ल ु ोक म तीन कार से बहती ह. न दय म सबसे तेज बहने वाली सधु है. (१) तेऽरद णो यातवे पथः स धो य ाजाँ अ य व वम्. भू या अ ध वता या स सानुना यदे षाम ं जगता मर य स.. (२) हे सधु! तुम जस समय उपजाऊ थान क ओर बही, उस समय व ण ने तु हारे गमन के लए व तृत माग बनाया. तुम धरती के ऊपर उ चमाग से जाती हो. तुम सभी न दय के अ भाग म वराजमान हो. (२) द व वनो यतते भू योपयन तं शु ममु दय त भानुना. अ ा दव तनय त वृ यः स धुयदे त वृषभो न रो वत्.. (३) सधु नद के बहने का श द धरती से उठकर आकाश को ा त कर लेता है. सधु महान् वेग और यो तपूण लहर के साथ बहती है. सधु नद जस समय बैल के समान गरजती ई बहती है, उस समय ऐसा जान पड़ता है, जैसे आकाश से वषा हो रही हो. (३) अ भ वा स धो शशु म मातरो वा ा अष त पयसेव धेनवः. राजेव यु वा नय स व म सचौ यदासाम ं वता मन स.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस कार माता बालक के पास जाती है अथवा धा गाएं रंभाती ई बछड़ के पास जाती ह, उसी कार अ य न दयां सधु से मलती ह. जैसे यु करने वाला राजा सेना लेकर आगे बढ़ता है, उसी कार हे सधु! तुम अपनी सहायक न दय के साथ आगे जाती हो. (४) इमं मे ग े यमुने सर व त शुतु तोमं सचता प या. अ स या म द्वृधे वत तयाज क ये शृणु ा सुषोमया.. (५) हे गंगा, यमुना, सर वती, शुतु , प णी, अ स नी के साथ रहने वाली म द्वृधा, वत ता, सुषोमा और आज क या न दयो! तुम मेरी तु त को सुनो और वीकार करो. (५) तृ ामया थमं यातवे सजूः सुस वा रसया े या या. वं स धो कुभया गोमत ु मुं मेह वा सरथं या भरीयसे.. (६) हे सधु! तुम तेज बहने वाली गोमती नद के समीप जाने के लए पहले तु ामा नद से मली. बाद म तुम सुसतु, रसा, ेती, मु, कुभा और मेह नु से मलकर आगे बढ़ . तुम इन न दय के साथ बहती हो. (६) ऋजी येनी शती म ह वा प र यां स भरते रजां स. अद धा स धुरपसामप तमा ा न च ा वपुषीव दशता.. (७) सीधी बहने वाली, ेत-वणा और द त सधु नद का वेगशाली जल चार ओर बहता है. बहने वाली न दय म सधु सबसे तेज है. यह घोड़ी के समान व च और मोटे शरीर वाली नारी के समान दशनीय है. (७) व ा स धुः सुरथा सुवासा हर ययी सुकृता वा जनीवती. ऊणावती युव तः सीलमाव युता ध व ते सुभगा मधुवृधम्.. (८) शोभन अ , शोभन रथ एवं शोभन व से यु , सुनहरे रंग वाली, भली कार सजी ई, अ एवं ऊन से यु , सरकंड वाली तथा सौभा ययु सधु मधु बढ़ाने वाले फूल से ढक रहती है. (८) सुखं रथं युयुजे स धुर नं तेन वाजं स नषद म ाजौ. महा य म हमा पन यतेऽद ध य वयशसो वर शनः.. (९) सधु सुख दे ने वाले एवं अ से यु रथ को जोतती है. वह उस रथ के ारा अ दान करे. य म इस रथ क म हमा गाई जाती है. यह रथ अपरा जत, वाधीन यश वाला तथा महान् है. (९)
सू —७६
दे वता—सोमरस नचोड़ने का
******ebook converter DEMO Watermarks*******
प थर आ व ऋ स ऊजा ु व ं म तो रोदसी अन न. उभे यथा नो अहनी सचाभुवा सदःसदो व रव यात उ दा.. (१) हे प थरो! अ वाली उषा के आते ही म तु ह भली कार तैयार करता ं. तुम सोमरस ारा इं , म त् और ावा-पृ थवी को स करो. ये दे व हम म से येक के घर जाकर सेवा हण कर एवं घर को धन से पूण कर द. (१) त े ं सवनं सुनोतना यो न ह तयतो अ ः सोत र. वद १य अ भभू त प यं महो राये च ते यदवतः.. (२) हे प थरो! तुम उ म सोमरस तुत करो. तुम हाथ से पकड़े जाने पर रोके ए घोड़े के समान हो जाते हो. सोम नचोड़ने वाला यजमान श ु को हटाने वाला बल ा त करता है. यह प थर महान् धन पाने के लए घोड़े भी दे ता है. (२) त द य सवनं ववेरपो यथा पुरा मनवे गातुम ेत्. गोअण स वा े अ न ण ज ेम वरे व वराँ अ श युः.. (३) सोमरस जस कार ाचीन काल म मनु के य म आया था, उसी कार वह इस प थर ारा कुचला जाकर जल म वेश करे. यजमान ने य काल म गाय एवं अ से घरे ए व ापु के हनन के समय इन प थर का सहारा लया था. (३) अप हत र सो भङ् गुरावतः कभायत नऋ त सेधताम तम्. आ नो र य सववीरं सुनोतन दे वा ं भरत ोकम यः.. (४) हे प थरो! तोड़फोड़ करने वाले रा स का नाश करो. पाप को र करो और बु को हटाओ. हम सम त संतान से यु धन दो एवं दे व को स करने वाली तु तय का नमाण करो. (४) दव दा वोऽमव रे यो व वना चदा प तरे यः. वायो दा सोमरभ तरे योऽ ने दच पतुकृ रे यः.. (५) आ द य से भी श शाली, सुध वा से शी काय करने वाले, सोमा भषव हेतु वायु से भी अ धक वेगयु एवं अ न से भी अ धक अ साधक प थर क तुम पूजा करो. (५) भुर तु नो यशसः सो व धसो ावाणो वाचा द वता द व मता. नरो य हते का यं म वाघोषय तो अ भतो मथ तुरः.. (६) यश वी पाषाण हमारे लए नचुड़ा आ सोमरस तैयार कर. वे तु त के तेज वी वचन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के ारा हम उ वल सोमयाग म था पत कर. य कम के नेता ऋ वज् सोमय म चार ओर पर पर शी ता करते ए एवं तो बोलते ए सोमरस नचोड़ते ह. (६) सु व त सोमं र थरासो अ यो नर य रसं ग वषो ह त ते. ह यूध पसेचनाय कं नरो ह ा न मजय त आस भः.. (७) पाषाण ग तशील बनकर सोमरस नचोड़ते ह. वे तु त क इ छा करते ए अ न को स चने के लए सोमरस नचोड़ते ह. सोमरस नचोड़ने वाले लोग शेष सोमरस को पीकर अपने मुख शु करते ह. (७) एते नरः वपसो अभूतन य इ ाय सुनुथ सोमम यः. वामंवामं वो द ाय धा ने वसुवसु वः पा थवाय सु वते.. (८) हे य कम के नेता और प थरो! तुम शोभन सोमरस नचोड़ने वाले बनो एवं इं के लए सोमरस नचोड़ो. तुम द धाम के लए सुंदर धन उपा जत करो एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान के लए नवासयो य धन दो. (८)
सू —७७
दे वता—म त्
अ ष ु ो न वाचा ुषा वसु ह व म तो न य ा वजानुषः. सुमा तं न ाणमहसे गणम तो येषां न शोभसे.. (१) ह यु य के समान संसार को ज म दे ने वाले म त् तु त से स होकर इस कार धन दे ते ह, जस कार बादल पानी क बूंद बरसाते ह. म म त के महान् गुण क वा त वक पूजा नह कर पाया ं. मने म त क शोभा के लए भी तु त नह क है. (१) ये मयासो अ रकृ वत सुमा तं न पूव र त पः. दव पु ास एता न ये तर आ द यास ते अ ा न वावृधुः.. (२) म द्गण पहले मनु य थे और बाद म पु य से दे व बने. वे अपनी शोभा के लए आभूषण धारण करते ह. उ ह अनेक सेनाएं भी नह हरा सकत . वग के पु ये म त् अब दखाई नह दे ते एवं अ द त के पु ये आ मणशील म त् नह बढ़ते. (२) ये दवः पृ थ ा न बहणा मना र र े अ ा सूयः. पाज व तो न वीराः पन यवो रशादसो न मया अ भ वः.. (३) म त् अपने शरीर से ही वग और धरती क अपे ा इस कार अ त र हो गए ह, जस कार बादल से सूय बड़ा है. म त् वीर पु ष के समान तु त चाहने वाले एवं श ुघातक मानव के समान द तयु होते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यु माकं बु ने अपां न याम न वथुय त न मही थय त. व सुय ो अवागयं सु वः य व तो न स ाच आ गत.. (४) हे म तो! व तृत जल के गमन के समान जस समय तुम पर पर टकराते हो, उस समय धरती न भयभीत होती है और न बखरती है. यह अनेक प वाला व य साधन ह व तु हारे समीप जाता है. तुम अ दाता के समान एक त होकर आओ. (४) यूयं धूषु युजो न र म भ य त म तो न भासा ु षु. येनासो न वयशसो रशादसः वासो न सतासः प र ुषः.. (५) हे म तो! तुम रथ क र सी से बंधे ए घोड़ के समान ग तशील एवं ातःकालीन काश के समान तेज वी हो. तुम येन प ी के समान श ु का नाश करके यश ा त करते हो तथा प थक के समान चार ओर घूम-घूमकर जल बरसाते हो. (५) य ह वे म तः पराका ूयं महः संवरण य व वः. वदानासो वसवो रा य यारा चद् े षः सनुतयुयोत.. (६) हे म तो! तुम ब त र से सं ह करने यो य धन वहन करके लाते हो. तुम उपभोगयो य धन को ा त करके श ु को र से ही अलग कर दे ते हो. (६) य उ च य े अ वरे ा म द् यो न मानुषो ददाशत्. रेव स वयो दधते सुवीरं स दे वानाम प गोपीथे अ तु.. (७) य म बैठने वाला जो यजमान य क समा त पर म त को दान करता है, वह अ , धन और सेवक का वामी बनकर दे व के साथ सोमरस पीता है. (७) ते ह य ष े ु य यास ऊमा आ द येन ना ना श भ व ाः. ते नोऽव तु रथतूमनीषां मह याम वरे चकानाः.. (८) य के अ धकारी एवं र क म त्, आकाश के जल ारा सुख दे ते ह, तेज चलने वाले रथ से आकर हमारी बु क र ा करते ह एवं महान् ह व क अ भलाषा करते ए य म आते ह. (८)
सू —७८
दे वता—म त्
व ासो न म म भः वा यो दे वा ो३ न य ैः व सः. राजानो न च ाः सुस शः तीनां न मया अरेपसः.. (१) म द्गण य म तो बोलने वाले मेधावी तोता के समान शोभन यान वाले, य ारा दे व को तृ त करने वाले, यजमान के समान शोभन कम वाले, राजा के समान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूजनीय व दशनीय तथा गृह वामी मानव के समान पापर हत होते ह. (१) अ नन ये ाजसा मव सो वातासो न वयुजः स ऊतयः. ातारो न ये ाः सुनीतयः सुशमाणो न सोमा ऋतं यते.. (२) म द्गण अ न के समान तेज से सुशो भत, वणालंकार से यु व ः थल वाले, वायु के समान वयं मलने वाले व शी ग तशाली, उ म ा नय के समान पू य तथा शोभन नयन एवं मुख वाले सोम के समान य म जाते ह. (२) वातासो न ये धुनयो जग नवोऽ नीनां न ज ा वरो कणः. वम व तो न योधाः शमीव तः पतॄणां न शंसाः सुरातयः.. (३) म द्गण वायु के समान श ु को कं पत करने वाले व ग तशील, अ न क वाला के समान सुंदर मुख वाले, कवचधारी यो ा के समान शौय कम करने वाले एवं पतर के वचन के समान शोभन दानी ह. (३) रथानां न ये१राः सनाभयो जगीवांसो न शूरा अ भ वः. वरेयवो न मया घृत ुषोऽ भ वतारो अक न सु ु भः.. (४) म द्गण रथ के प हय के अर के समान एक आ य से संबं धत, जयशील शूर के समान द त वाले, दान करने वाले मानव के समान जल गराने वाले एवं शोभन तो करने वाल के समान उ म श द वाले ह. (४) अ ासो न ये ये ास आशवो द धषवो न र यः सुदानवः. आपो न न नै द भ जग नवो व पा अ रसो न साम भः.. (५) म द्गण घोड़ के समान शंसनीय एवं शी ग त वाले, धन धारण करने वाले रथ वा मय के समान शोभन दानयु , स रता के समान जल लेकर जाने वाले तथा अनेक पधारी अं गरागो ीय ऋ षय के समान सामगान करने वाले ह. (५) ावाणो न सूरयः स धुमातर आद दरासो अ यो न व हा. शशूला न ळयः सुमातरो महा ामो न याम ुत वषा.. (६) म द्गण जल बरसाने वाले, मेघ के समान न दय के नमाता, वंसक व के समान सदा श ुनाशक ा, शोभन माता वाले, ब च के समान ड़ाशील एवं वशाल जलसमूह के समान चलते समय द त से यु ह. (६) उषसां न केतवोऽ वर यः शुभंयवो ना भ तन्. स धवो न य ययो ाज यः परावतो न योजना न म मरे.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म द्गण उषा क करण के समान य का आ य लेने वाले, क याण क कामना करने वाले, वर के समान आभूषण से सुशो भत, न दय के समान ग तशील एवं चमक ले आयुध व र जाने वाले प थक के समान र दे श तक जाने वाले ह. (७) सुभागा ो दे वाः कृणुता सुर नान मा तोतॄ म तो वावृधानाः. अ ध तो य स य य गात सना वो र नधेया न स त.. (८) हे दे व म तो! तुम तु तय से बढ़कर हम तु त करने वाल को शोभन धन एवं र न से यु करो तथा हमारे सखा प तो को वीकार करो. तुम सदा से हम र न दान करते आए हो. (८)
सू —७९
दे वता—अ न
अप यम य महतो म ह वमम य य म यासु व ु. नाना हनू वभृते सं भरेते अ स वती ब सती भूय ः.. (१) म मरने वाली जा म मरणर हत अ न का महान् मह व दे खता ं. इनके दोन जबड़े अलग-अलग एवं दांत से भरे ए ह. ये जबड़े तोता को न चबाकर लक ड़य का भ ण करते ह. (१) गुहा शरो न हतमृधग ी अ स व ज या वना न. अ ा य मै पड् भः सं भर यु ानह ता नमसा ध व ु.. (२) अ न का म तक गु त थान म छपा आ है एवं उनक सूयचं पी आंख अलगअलग थान म थत ह. अ न का को दांत से न चबाते ए केवल जीभ से खाते ह. जा के म य अ वयु आ द इस अ न के पास पैदल चलकर आते ह और हाथ उठाकर नम कार करके ह दे ते ह. (२) मातुः तरं गु म छ कुमारो व वी धः सप व ः. ससं न प वम वद छु च तं र र ांसं रप उप थे अ तः.. (३) बालक के समान यह अ न धरती पी माता के ऊपर बड़ी-बड़ी लता एवं उनक जड़ क कामना करते ए आगे बढ़ते ह. यह धरती क गोद म सूखे वृ को पके अ के समान ा त करते ह तथा अपनी वाला से वृ को जलाते ह. (३) त ामृतं रोदसी वी म जायमानो मातरा गभ अ . नाहं दे व य म य केता नर वचेताः स चेताः.. (४) हे
ावा-पृ थवी! म तुमसे सच कह रहा ं क अर णय से उ प
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह अ न अपने
माता- पता अथात् दोन अर णय को खा लेते ह, म मनु य होने के कारण अ न दे व के वषय म नह जानता. हे अ न! तुम व वध एवं उ म ान वाले हो. (४) यो अ मा अ ं तृ वा३ दधा या यैघृतैजुहो त पु य त. त मै सह म भ व च ेऽ ने व तः यङ् ङ स वम्.. (५) जो यजमान इस अ न को शी अ दे ता है तथा ह एवं घी से हवन को पु करता है, उसे अ न अपनी हजार वाला से दे खते ह. हे अ न! तुम सभी कार हमारे अनुकूल रहते हो. (५) क दे वेषु यज एन कथा ने पृ छा म नु वाम व ान्. अ ळन् ळ ह रर वेऽद व पवश कत गा मवा सः.. (६) हे अ न! या तुमने दे व के त ोध पी पाप कया है? म इस बात को नह जानता, इस लए तुमसे पूछ रहा ं. हे ह रतवण अ न! तुम कसी थान म वहार करते ए, न करते ए एवं का आ द का भ ण करते ए उसे येक जोड़ से इस कार अलग कर दे ते हो, जैसे तलवार से गाय के टु कड़े कए जाते ह. (६) वषूचो अ ा युयुजे वनेजा ऋजी तभी रशना भगृभीतान्. च दे म ो वसु भः सुजातः समानृधे पव भवावृधानः.. (७) वन म उ प ये अ न इधर-उधर ग त करने हेतु वृ पी अ को सरल लता पी र सय से बांधकर अपने रथ म जोड़ते ह. हमारे म अ न करण से सुशो भत होकर का के टु कड़े से बढ़ते ह एवं उ ह खाते ह. (७)
सू —८०
दे वता—अ न
अ नः स तं वाजंभरं ददा य नव रं ु यं कम नः ाम्. अ नी रोदसी व चर सम ननार वीरकु पुर धम्.. (१) अ न तोता को ग तशील एवं यु म श ु का अ जीतने वाला घोड़ा, वीर एवं य ेमी पु दे ते ह. वे ावा-पृ थवी को सुशो भत बनाते ए चलते ह एवं नारी को वीर स वनी बनाते ह. (१) अ नेर सः स मद तु भ ा नमही रोदसी आ ववेश. अ नरेकं चोदय सम व नवृ ा ण दयते पु ण.. (२) य कम वाले अ न क स मधाएं क याणकारी ह . अ न अपने तेज के ारा वशाल ावा-पृ थवी म वेश करते ह. वे यु म अपने यजमान को वजय पाने के लए े रत करते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह एवं सम त श ु
को मारते ह. (२)
अ नह यं जरतः कणमावा नरद् यो नरदह ज थम्. अ नर घम उ यद तर ननृमेधं जयासृज सम्.. (३) अ न ने उस स ऋ ष जर कण क र ा क एवं जल से नकलकर ज थ नामक श ु को जलाया. अ न ने अ नकुंड म पड़े ए अ ऋ ष क र ा क तथा नृमेध ऋ ष को संतान वाला बनाया. (३) अ नदाद् वणं वीरपेशा अ नऋ ष यः सह ा सनो त. अ न द व ह मा तताना नेधामा न वभृता पुर ा.. (४) रे क वाला वाले अ न धन दे ते ह. वे हजार गाय वाले ऋ षय को पु दे ते ह, यजमान का दया आ ह व ुलोक म प ंचाते ह एवं धरती पर अनेक प धारण करते ह. (४) अ नमु थैऋषयो व य तेऽ नं नरो याम न बा धतासः. अ नं वयो अ त र े पत तोऽ नः सह ा प र या त गोनाम्.. (५) ऋ ष मं के ारा अ न को बुलाते ह. यु म श ु ारा बा धत मनु य वजय पाने के लए अ न को बुलाते ह. आकाश म उड़ते ए प ी अ न क तु त करते ह. वे हजार गाय से घरकर जाते ह. (५) अ नं वश ईळते मानुषीया अ नं मनुषो न षो व जाताः. अ नगा धव प यामृत या नेग ू तघृत आ नष ा.. (६) मानव जाएं अ न क तु त करती ह. राजा न ष से उ प संतान अ न क तु त करती है. अ न य के लए हतकारक गंधववचन सुनते ह. अ न का माग घी म डू बा आ है. (६) अ नये ऋभव तत रु नं महामवोचामा सुवृ म्. अ ने ाव ज रतारं य व ा ने म ह वणमा यज व.. (७) बु मान् ऋभु ने अ न के लए तु तयां बनाई ह. हमने भी महान् अ न क तु त क है. अ तशय युवा अ न! तोता क र ा करो एवं हम वशाल धन दो. (७)
सू —८१
दे वता— व कमा
य इमा व ा भुवना न जु षह ता यसीदत् पता नः. स आ शषा वण म छमानः थम छदवराँ आ ववेश.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न का आ ान करने वाले हमारे पता व कमा सारे संसार को अ न म हवन के लए डालकर वयं भी उसीम बैठ गए. वे तु तय ारा धन क कामना करते ए पहले अ न का आ छादन बने और बाद म उसीम वेश कर गए. (१) क वदासीद ध ानमार भणं कतम व कथासीत्. यतो भू म जनय व कमा व ामौण म हना व च ाः.. (२) सृ बनाते समय व कमा का आधार या था? उ ह ने सृ का आरंभ कहां और कस कार कया? व को दे खने वाले व कमा के कस थान पर थत होकर धरती के बाद आकाश को बनाया? (२) व त ु त व तोमुखो व तोबा त व त पात्. सं बा यां धम त सं पत ै ावाभूमी जनय दे व एकः.. (३) बा
व कमा क आंख, मुख, बा एवं चरण सब ओर फैले ए ह. उस दे व ने अकेले ही और चरण से भली-भां त ग त करके ावा और भू म को बनाया. (३) क व नं क उ स वृ आस यतो ावापृ थवी न त ुः. मनी षणो मनसा पृ छते त द य त वना न धारयन्.. (४)
वह कौन सा वन एवं वृ है, जसने ावा-पृ थवी को न पा दत कया. हे व ानो! अपने से यह पूछो क ई र भुवन को धारण करके कस पर थत होता है? (४) या ते धामा न परमा ण यावमा या म यमा व कम ुतेमा. श ा स ख यो ह व ष वधावः वयं यज व त वं वृधानः.. (५) हे ह प अ धारण करने वाले व कमा! तु हारे जो परम धाम अथवा उ म, म यम एवं साधारण शरीर ह, उ ह ह ा त करके हम दो. तुम अपने शरीर को बढ़ाते ए वयं य करो. (५) व कमन् ह वषा वावृधानः वयं यज व पृ थवीमुत ाम्. मु व ये अ भतो जनास इहा माकं मघवा सू रर तु.. (६) हे व कमा! तुम ह से बढ़कर वयं धरती एवं ौ को पू जत करो, इस य म य न करने वाले लोग मू छत ह एवं धन वामी व कमा वगफल दे ने वाले ह . (६) वाच प त व कमाणमूतये मनोजुवं वाजे अ ा वेम. स नो व ा न हवना न जोष श भूरवसे साधुकमा.. (७) हम मं
क र ा करने वाले व कमा को आज य म अपनी र ा के लए बुलाते ह.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वे हमारे सभी हवन को वीकार कर एवं हमारी र ा के लए सबके सुखो पादक एवं भले काम करने वाले बन. (७)
सू —८२
दे वता— व कमा
च ुषः पता मनसा ह धीरो घृतमेने अजन नमाने. यदे द ता अद ह त पूव आ दद् ावापृ थवी अ थेताम्.. (१) शरीर को उ प करने वाले, वयं को अ तीय समझने वाले एवं धीर व कमा ने सबसे पहले जल को उ प कया. इसके प ात् जल म इधर उधर चलने वाले ावा-पृ थवी का नमाण कया. व कमा ने ावा-पृ थवी के ाचीन एवं अं तम भाग को ढ़ करके स कया. (१) व कमा वमना आ हाया धाता वधाता परमोत सं क्. तेषा म ा न स मषा मद त य ा स तऋषी पर एकमा ः.. (२) वशाल मन वाले व कमा वयं महान् ह. वे सृ का नमाण करने वाले वृ क ा, े एवं सब कुछ दे खने वाले ह. व ान् लोग कहते ह क स त षय से भी ऊंचे थान को वे अकेले ही दे खते ह. उन स त षय क अ भलाषाएं ह ा ारा पूण होती ह. (२) यो नः पता ज नता यो वधाता धामा न वेद भुवना न व ा. यो दे वानां नामधा एक एव तं स ं भुवना य य या.. (३) जो व कमा हमारा पालन करने वाले, उ प करने वाले व व के उ पादक ह तथा दे व के तेज एवं सभी भुवन को जानते ह. जो एकमा दे व का नाम रखने वाले ह, सब ाणी उ ह के वषय म जानना चाहते ह. (३) त आयज त वणं सम मा ऋषयः पूव ज रतारो न भूना. असूत सूत रज स नष े ये भूता न समकृ व मा न.. (४) जन ऋ षय ने थावर और जंगम प व का नमाण हो जाने पर सभी ा णय को बनाया, उ ह ऋ षय ने ाचीन तोता के समान धन य करके य कया. (४) परो दवा पर एना पृ थ ा परो दे वे भरसुरैयद त. कं वद्गभ थमं द आपो य दे वाः समप य त व े.. (५) वह ई र ुलोक, धरती, दे व व असुर से महान् ह. जल ने वह कौन सा गभ धारण कया था, जहां सभी दे व ने वयं को पर पर मला आ दे खा. (५) त मद्गभ थमं द आपो य दे वाः समग छ त व े. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अज य नाभाव येकम पतं य म व ा न भुवना न त थुः.. (६) जल ने उ ह व कमा को गभ म धारण कया था. वह सब दे व एक- सरे से मले. उस ज मर हत क ना भ म ांड थत है. उसीम सारा संसार थत है. (६) न तं वदाथ य इमा जजाना य ु माकम तरं बभूव. नीहारेण ावृता ज या चासुतृप उ थशास र त.. (७) जस व कमा ने उन सब ा णय को उ प कया था, उसे तुम नह जानते. तु हारा दय उसे जानने क यो यता नह रखता. लोग अ ान पी पाले से ढक कर तरह-तरह क बात करते ह. वे भोजन करते ए भां त-भां त क तु तयां करते ह और वग म जाने का य न करते ह. (७)
सू —८३
दे वता—म यु
य ते म योऽ वध सायक सह ओजः पु य त व मानुषक्. सा ाम दासमाय वया युजा सह कृतेन सहसा सह वता.. (१) हे व के समान सारपूण एवं बाण के समान श ुनाशक म यु! जो यजमान तु हारी पूजा करता है, वह ओज एवं बल धारण करता है एवं सं ाम म सभी श ु को जीतता है. तु हारी सहायता से हम दास और आय दो कार के श ु को हराव, तुम श के उ पादक एवं श शाली हो. (१) म यु र ो म युरेवास दे वो म युह ता व णो जातवेदाः. म युं वश ईळते मानुषीयाः पा ह नो म यो तपसा सजोषाः.. (२) म यु इं है. म यु ही दे व है. म यु व ण, होता और जातवेद अ न ह. सभी मानव जाएं म यु क तु त करती ह. हे म यु! तुम हमारे पता तप के साथ मलकर हमारी र ा करो. (२) अभी ह म यो तवस तवीया तपसा युजा व ज ह श ून्. अ म हा वृ हा द युहा च व ा वसू या भरा वं नः.. (३) हे अ तशय श शाली म यु! तुम हमारे य म आओ. तुम मेरे पता तप से मलकर श ु को मारो. हे श ुनाशक वृ वधक ा एवं रा स को मारने वाले म यु! तुम सब कार का धन हमारे लए लाओ. (३) वं ह म यो अ भभू योजाः वय भूभामो अ भमा तषाहः. व चष णः स रः सहावान मा वोजः पृतनासु धे ह.. (४) हे म यु! तुम श ु को हराने वाली श से संप ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वयं ही उ प
ु
श ुपराभवकारी सबको दे खने वाले, सहनशील एवं श दान करो. (४)
शली हो. तुम सं ाम म हम ओज
अभागः स प परेतो अ म तव वा त वष य चेतः. तं वा म यो अ तु जहीळाहं वा तनूबलदे याय मे ह.. (५) हे उ म ान वाले म यु! तु हारे य कम म भाग न लेने के कारण म यु म श ु से हारकर र आ गया ं. मुझ य र हत ने तुमको ु कर दया है. तुम श दे ने के न म मेरे शरीर म आओ. (५) अयं ते अ युप मे वाङ् तीचीनः स रे व धायः. म यो व भ मामा ववृ व हनाव द यूँ त बो यापेः.. (६) हे श ु को सहनशील एवं व के धारक म यु! म तु हारा य करने वाला सेवक ं. तुम मेरे पास आओ. हे व धारी म यु! तुम मेरे पास आकर बढ़ो. तुम मुझे अपना बंधु समझो. हम दोन श ु को मार. (६) अ भ े ह द णतो भवा मेऽधा वृ ा ण जङ् घनाव भू र. जुहो म ते ध णं म वो अ मुभा उपांशु थमा पबाव.. (७) हे म यु! मेरे पास आओ और मेरे दा हनी ओर खड़े होओ. इस कार हम दोन ब त से श ु को मार सकगे. म तु हारे न म मधुर धारक और उ म सोमरस का होम करता ं. हम दोन एकांत थान म सबसे पहले सोमरस पएं. (७)
सू —८४
दे वता—म यु
वया म यो सरथमा ज तो हषमाणासो धृ षता म वः. त मेषव आयुधा सं शशाना अ भ य तु नरो अ न पाः.. (१) हे म त से यु म यु! तु हारे साथ एक रथ पर बैठकर जाते ए स , धृ , तीखे बाण वाले, आयुध को तेज करते ए एवं अ न के समान श ु को जलाने वाले नेता दे व हमारी सहायता के लए यु म आव. (१) अ न रव म यो व षतः सह व सेनानीनः स रे त ए ध. ह वाय श ू व भज व वेद ओजो ममानो व मृधो नुद व.. (२) हे म यु! तुम अ न के समान व लत होकर श ु को जलाओ. हे सहनशील एवं बुलाए गए म यु! सं ाम म हमारे सेनाप त बनो. तुम यु म श ु को मारकर उनका धन हम दो तथा हम श दान करते ए श ु को मारो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सह व म यो अ भमा तम मे ज मृण मृणन् े ह श ून्. उ ं ते पाजो न वा े वशी वशं नयस एकज वम्.. (३) हे म यु! हम पर आ मण करने वाले श ु को हराओ. तुम श ु को मारते ए, वशेष प से उनक हसा करते ए एवं सदा के लए समा त करते ए उनके पास जाओ. तु हारा उ बल रोका नह जा सकता. तुम अकेले ही श ु को वश म कर लेते हो. (३) एको ब नाम स म यवी ळतो वशं वशं युधसे सं शशा ध. अकृ वया युजा वयं ुम तं घोषं वजयाय कृ महे.. (४) हे शं सत म यु! तुम अकेले ही ब त से श ु को हरा सकते हो. तुम हमारे येक को यु के लए तीखा बनाओ. हे अ छ द त वाले म यु! तुमसे मलकर हम वजय के लए सह के समान श शाली गजन करते ह. (४) वजेषकृ द इवानव वो३ माकं म यो अ धपा भवेह. यं ते नाम स रे गृणीम स व ा तमु सं यत आबभूथ.. (५) हे म यु! तुम इं के समान वजय ा त करने वाले एवं अ न दत वचन हो. तुम इस य म हमारे वशेष र क बनो. हे श ु को सहन करने वाले म यु! हम तु हारी य तु त करते ह. हम उस श के उद्गम प तो को जानते ह जससे तुम बढ़ते हो. (५) आभू या सहजा व सायक सहो बभ य भभूत उ रम्. वा नो म या सह मे े ध महाधन य पु त संसृ ज.. (६) हे व के समान सारयु एवं बाण के समान श ुनाशक एवं श ुपराभवकारी म यु! श ु को परा जत करना तु हारा वाभा वक गुण है तथा तुम उ म तेज धारण करते हो. तुम य कम के कारण यु म हमारे त नेहपूण बनो. ब त से लोग तु ह बुलाते ह. (६) संसृ ं धनमुभयं समाकृतम म यं द ां व ण म युः. भयं दधाना दयेषु श वः परा जतासो अप न लय ताम्.. (७) व ण और म यु दोन ही हम भली कार लाया आ एवं वभ हमारे श ु अपने मन म भयभीत एवं परा जत होकर भाग जाव. (७)
सू —८५
न होने वाला अ द.
दे वता—सोम
स येनो भता भू मः सूयणो भता ौः. ऋतेना द या त त द व सोमो अ ध तः.. (१) दे व म स य प ा ने धरती को ऊपर रोक लया है एवं सूय ने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ुलोक को धारण
कया है. य के ारा दे वता थत ह एवं सोम ुलोक म थत ह. (१) सोमेना द या ब लनः सोमेन पृ थवी मही. अथो न ाणामेषामुप थे सोम आ हतः.. (२) दे वगण सोम के कारण ही श शाली बनते ह एवं सोम से ही धरती महान् बनी है. सोम इन न के समीप थत ह. (२) सोमं म यते प पवा य सं पष योष धम्. सोमं यं ाणो व न त या ा त क न.. (३) लोग जब सोमलता को पीसते ह तभी समझ लेते ह क हमने सोमरस पी लया. ा ण लोग जसे सोम समझते ह, उसे कोई भी नह पी सकता. (३) आ छ धानैगु पतो बाहतैः सोम र तः. ा णा म छृ व त स न ते अ ा त पा थवः.. (४) हे सोम! छपाने के साधन जानने वाले तोता लोग तु ह छपाकर सुर त रखते ह. तुम प थर का श द सुनते हो. धरती पर रहने वाला कोई भी मनु य तु ह नह पी सकता. (४) य वा दे व पब त तत आ यायसे पुनः. वायुः सोम य र ता समानां मास आकृ तः.. (५) हे सोम! लोग तु ह तीन सवन म पीते ह, इससे तुम बार-बार बढ़ते हो. वायु उसी कार सोम क र ा करते ह, जस कार वायु के समान आकार वाले मास, वष क र ा करते ह. (५) रै यासीदनुदेयी नाराशंसी योचनी. सूयाया भ म ासो गाथयै त प र कृतम्.. (६) सूयपु ी सूया के ववाह के समय रेभी नामक ऋचाएं उसक स खयां बनी थ तथा नाराशंसी नामक ऋचाएं उसक दा सयां बन . सूया का पूरा क याणकारी व गाथा के ारा ही बनाया गया था. (६) च रा उपबहणं च ुरा अ य
नम्. ौभू मः कोश आसी दया सूया प तम्.. (७)
ववाह के बाद वदा होते समय द ता उसक चादर एवं आंख ही अंजन बनी थ . इस समय ावा-पृ थवी उसके खजाने थे. (७) तोमा आस तधयः कुरीरं छ द ओपशः. सूयाया अ ना वरा नरासी पुरोगवः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तो सूया के रथ के प हय के अरे थे. कुरीर नामक छं द उस रथ का भीतरी भाग था. अ नीकुमार सूया के वर एवं अ न उसके आगे चलने वाले थे. (८) सोमो वधूयुरभवद ना तामुभा वरा. सूया य प ये शंस त मनसा स वताददात्.. (९) सूया ने जब प त क कामना क और स वता ने मन से अपनी क या सोम को द थी, उस समय सोम वधू क कामना करने वाले वर थे. अ नीकुमार ही सूया के वर बने. (९) मनो अ या अन आसीद् ौरासी त छ दः. शु ावनड् वाहावा तां यदया सूया गृहम्.. (१०) सूया जस समय प त के घर गई उस समय उसका मन ही उसक गाड़ी थी, आकाश परदा था तथा सूय एवं चं बैल थे. (१०) ऋ सामा याम भ हतौ गावौ ते सामना वतः. ो ं ते च े आ तां द व प था राचरः.. (११) ऋ वेद और सामवेद ारा व णत सूय एवं चं मा पी दो बैल सूया क गाड़ी को ख च रहे थे. हे सूया! तु हारे कान ही गाड़ी के प हए थे एवं आकाश उस रथ का माग था. (११) शुची ते च े या या
ानो अ आहतः. अनो मन मयं सूयारोह यती प तम्.. (१२)
हे सूया प तगृह के लए चलते समय दोन कान तु हारी गाड़ी के प हए थे एवं वायु उन म अर के समान थे. सूया इस कार क मन पी गाड़ी पर सवार ई. (१२) सूयाया वहतुः (१३)
ागा स वता यमवासृजत्. अघासु ह य ते गावोऽजु योः पयु ते..
गाय आ द के प म दया गया दहेज सूया के आगे-आगे चला. वह दहेज सूय ने दया था. मघा न म द गई गाएं डंडे से हांक जा रही थ . पूवा फा गुनी और उ रा फा गुनी न म सूया एवं उसका दहेज प तगृह ले जाया गया. (१३) यद ना पृ छमानावयातं च े ण वहतुं सूयायाः. व े दे वा अनु त ामजान पु ः पतराववृणीत पूषा.. (१४) हे अ नीकुमारो! जस समय तुम सूया के ववाह के वषय म पूछने के लए तीन प हय वाले रथ से गए थे, उस समय सभी दे व ने तु हारा समथन कया था और पूषा ने तु ह माता- पता के प म वीकार कया था. (१४) यदयातं शुभ पती वरेयं सूयामुप. वैकं च ं वामासी व दे ाय त थथुः.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे जल के वामी अ नीकुमारो! जस समय तुम सूया का वरण करने उसके समीप गए, उस समय तु हारा एक रथच कहां था एवं तुम दान के लए कहां थत थे? (१५) े ते च े सूय
ाण ऋतुथा व ः. अथैकं च ं यद्गुहा तद ातय इ
ः.. (१६)
हे सूया! ा ण लोग जानते ह क तु हारे शकट के सूयचं दोन प हए समय के अनुसार चलते ह. तु हारा संव सर प प हया जो गुफा म छपा आ है, उसे मेधावी लोग जानते ह. (१६) सूयायै दे वे यो म ाय व णाय च. ये भूत य चेतस इदं ते योऽकरं नमः.. (१७) सूया, दे वगण, म , व ण एवं ा णय को अभी करता ं. (१७)
फल दे ने वाल को म नम कार
पूवापरं चरतो माययैतौ शशू ळ तौ प र यातौ अ वरम्. व ा य यो भुवना भच ऋतूरँ यो वदध जायते पुनः.. (१८) दोन बालक अथात् सूय-चं अपनी श से पूव और प म म घूमते ह. ड़ा करते ए य म आते ह. इन म से पहला अथात् सूय सब लोक को दे खता है तथा सरा अथात् चं वसंत आ द ऋतु का नमाण करता आ बार-बार ज म लेता है. (१८) नवोनवो भव त जायमानोऽ ां केतु षसामे य म्. भागं दे वे यो व दधा याय च मा तरते द घमायुः.. (१९) दन के सूचक सूय उ प होने पर नए होते ह एवं उषा के सामने जाते ह. सूय आते ए दे व म य का भाग बांटते ह एवं चं मा लोग को चरजीवन दे ता है. (१९) सु कशुकं श म ल व पं हर यवण सुवृतं सुच म्. आ रोह सूय अमृत य लोकं योनं प ये वहतुं कृणु व.. (२०) हे सूया! तुम शोभन पलाश एवं शा मली वृ ारा न मत नाना प वाले सुनहरे आभूषण से यु संग ठत एवं सुंदर प हय वाले रथ पर चढ़ो. तुम अपने प त से सुखकर एवं अमृत थान पर ा त होओ. (२०) उद वातः प तवती े३षा व ावसुं नमसा गी भरीळे . अ या म छ पतृषदं ां स ते भागो जनुषा त य व .. (२१) हे व ावसु! क या के पास से उठो, य क यह क या प त वाली हो चुक है. म नम कार और तु तय ारा तु हारी तु त करता ं. पता के घर म ववाह यो य सरी क या हो तो उसक इ छा करो. यह समझ लो क तु हारे भाग के प म वही उ प ई है. (२१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उद वातो व ावसो नमसेळामहे वा. अ या म छ फ १ सं जायां प या सृज.. (२२) हे व ावसु! यहां से उठो. म नम कारपूवक तु हारी पूजा करता ं. वशाल नतंब वाली अ य क या को चाहो एवं उसे प नी बनाकर वयं से मलाओ. (२२) अनृ रा ऋजवः स तु प था ये भः सखायो य त नो वरेयम्. समयमा सं भगो नो ननीया सं जा प यं सुयमम तु दे वाः.. (२३) हे दे वो! जस माग से हमारे म क या के पता के पास जाते ह, वह माग कंटकर हत एवं सरल हो. अयमा एवं भग नामक दे व हम भली कार ले चल. प त एवं प नी भली कार मलकर रह. (२३) वा मु चा म व ण य पाशा ेन वाब ना स वता सुशेवः. ऋत य योनौ सुकृत य लोकेऽ र ां वा सह प या दधा म.. (२४) हे वधू! सुंदर मुख वाले सूय दे व ने तु ह जस बंधन से बांधा था, म तु ह व ण के उस पाश से छु ड़ाता ं. म तु ह प त के साथ स य के आधार एवं स कम के लोक प थान म न व न प से था पत करता ं. (२४) े ो मु चा म नामुतः सुब ाममुत करम्. यथेय म त (२५)
मीढ् वः सुपु ा सुभगास त..
म क या को पता के कुल से छु ड़ाता ,ं प त के कुल से नह . म प त के घर से इसे भली-भां त बांधता ं. हे अ भलाषापूरक इं ! यह सौभा य एवं शोभन पु वाली हो. (२५) पूषा वेतो नयतु ह तगृ ा ना वा वहतां रथेन. गृहा ग छ गृहप नी यथासो व शनी वं वदथमा वदा स.. (२६) हे क या! पूषा तु हारा हाथ पकड़कर यहां से ले जाव. अ नीकुमार तु ह रथ ारा ले जाव. तुम गृहप नी बनने के लए प त के घर जाओ एवं प त के वश म रहकर घर क व था करो. (२६) इह यं जया ते समृ यताम मन् गृहे गाहप याय जागृ ह. एना प या त वं१सं सृज वाधा ज ी वदथमा वदाथः.. (२७) हे वधू! तुम इस प तगृह म यारी संतान के साथ समृ बनो. इस घर म तुम गृह थी चलाने के लए सावधान रहना. इस प त के साथ अपने शरीर का संयोग करो. तुम दोन बूढ़े होने तक इस घर को अपना कहना. (२७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नीललो हतं भव त कृ यास (२८)
यते. एध ते अ या
ातयः प तब धेषु ब यते..
पाप क दे वी कृ या ोध से लालपीले रंग क हो रही है. कृ या को इस ी पर संब करके छोड़ा जाता है. इसक जा त के लोग बढ़ रहे ह एवं इसका प त बंधन म है. (२८) परा दे ह शामु यं कृ यैषा प ती भू
यो व भजा वसु. ा जाया वशते प तम्.. (२९)
मैला कपड़ा उतार दो. ा ण को धन दान करो इस कार कृ या चली जाती है और प नी प त म वेश करती है. (२९) अ ीरा तनूभव त (३०)
शती पापयामुया. प तय वो३ वाससा वम म भ ध सते..
प त य द वधू के व से अपना शरीर ढकना चाहता है तो प त का तेज वी शरीर पापधा रणी कृ या के कारण ीहीन हो जाता है. (३०) ये व व (३१)
ं वहतुं य मा य त जनादनु. पुन ता य या दे वा नय तु यत आगताः..
वधू को ा त वण प दहेज को वहन करने के लए जो ा धयां हमारे वरो धय के पास से आती ह. य भाग को हण करने वाले दे व उ ह वह लौटा द, जहां से वे आई ह. (३१) मा वद प रप थनो य आसीद त द पती. सुगे भ गमतीतामप ा वरातयः.. (३२) इन प तप नी के समीप जो व नकारी आते ह, वे समा त हो जाव. ये दोन सु वधा के ारा असु वधा को न कर द एवं इनके श ु इनसे र रह. (३२) सुम ली रयं वधू रमां समेत प यत. सौभा यम यै द वायाथा तं व परेतन.. (३३) यह वधू सौभा यशा लनी हो. सब लोग एक होकर इसे दे ख. सब लोग इसे सौभा य का आशीवाद दे कर अपने-अपने घर जाव. (३३) तृ मेत कटु कमेतदपा व षव ैतद वे. सूया यो (३४)
ा व ा स इ ाधूयमह त..
यह कपड़ा दाहजनक, कठोर, हण न करने यो य, मैला और वषयु जानने वाला ा ण ही इस वधूव को पाने का अ धकारी है. (३४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. सूया को
आशसनं वशसनमथो अ ध वकतनम्. सूयायाः प य पा ण ता न ा तु शु ध त.. (३५) सूया का प दे खो. इसके व के लपेटने वाले भाग का रंग अलग है और सर पर ओढ़ने वाला भाग अलग रंग का है. यह तीन जगह से फटा आ है. ा ही इस व को शु कर सकते ह. (३५) गृ णा म ते सौभग वाय ह तं मया प या जरद यथासः. भगो अयमा स वता पुर धम ं वा गाहप याय दे वाः.. (३६) म तु हारा हाथ सौभा य के लए पकड़ रहा .ं मुझ प त के साथ तुम वृ शरीर वाली बनो. भग, अयमा, स वता एवं पूषा आ द दे व ने तु ह इस लए दया है क म तु हारे साथ गृह थ धम का पालन कर सकूं. (३६) तां पूष छवतमामेरय व य यां बीजं मनु या३ वप त. या न ऊ उशती व याते य यामुश तः हराम शेपम्.. (३७) हे पूषा! मनु य जस नारी के गभ म बीज बोते ह, उसे तुम अ तशय क याणी बनाकर भेजो. यह हमारी जंघा क कामना करती ई अपनी जंघा को फैलावे एवं हम कामना करते ए इसक व तृत जंघा म अपनी पु ष य का वेश कराव. (३७) तु यम े पयवह सूया वहतुना सह. पुनः प त यो जायां दा अ ने जया सह.. (३८) हे अ न! सूया को चादर ओढ़ाकर सबसे पहले तु हारे ही समीप लाया जाता है. तुम प नी को संतानस हत प त के लए दे ते हो. (३८) पुनः प नीम नरदादायुषा सह वचसा. द घायुर या यः प तज वा त शरदः शतम्.. (३९) अ न ने आयु और तेज के साथ प नी पुनः प त को दान क . इसका प त द घ अव था वाला बनकर सौ बरस जए. (३९) सोमः थमो व वदे ग धव व वद उ रः. तृतीयो अ न े प त तुरीय ते मनु यजाः.. (४०) हे क या! सबसे पहले सोम ने तु ह प नी प म ा त कया. इसके बाद तु ह गंधव ने ा त कया. तेरा तीसरा प त अ न और चौथा मानव है. (४०) सोमो ददद् ग धवाय ग धव ददद नये. र य च पु ाँ ादाद नम मथो इमाम्.. (४१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम ने उस बा लका को गंधव को दया. गंधव ने अ न को दया. अ न ने यह मुझे प नी प म धन एवं पु स हत दान क . (४१) इहैव तं मा व यौ ं व मायु ुतम्. ळ तौ पु ैन तृ भम दमानौ वे गृहे.. (४२) हे वर और वधू! तुम दोन यह रहो, एक- सरे से अलग मत होओ एवं पूरी अव था ा त करो. तुम पु और ना तय के साथ खेलते ए अपने घर म स रहो. (४२) आ नः जां जनयतु जाप तराजरसाय समन वयमा. अ म लीः प तलोकमा वश शं नो भव पदे शं चतु पदे .. (४३) जाप त हम संतान द एवं हम बुढ़ापे तक साथ-साथ रख. हे वधू! तुम अमंगलर हत होकर प त के घर म वेश करो. तुम हमारे मानव एवं पशु के लए क याण कारक बनो. (४३) अघोरच ुरप त ये ध शवा पशु यः सुमनाः सुवचाः. वीरसूदवकामा योना शं नो भव पदे शं चतु पदे .. (४४) तुम ोधर हत आंख वाली होकर बढ़ो तथा प त का घात न करने वाली बनो. तुम पशु के लए क याणका रणी, शोभन मन यु एवं तेजपूण बनो. तुम वीरजननी, दे व क भ एवं सुखका रणी बनो तथा हमारे मानव और पशु का क याण करो. (४४) इमां व म मीढ् वः सुपु ां सुभगां कृणु. दशा यां पु ाना धे ह प तमेकादशं कृ ध.. (४५) हे अ भलाषापूरक इं ! तुम इस वधू को शोभन पु -वाली एवं सौभा यशा लनी बनाओ. तुम इसम मुझे दस पु को दो एवं मेरे प त को यारहवां करो. (४५) स ा ी शुरे भव स ा ी ्वां भव. नना द र स ा ी भव स ा ी अ ध दे वृषु.. (४६) हे वधू! तुम ससुर, सास, ननद और दे वर के
त महारानी बनो. (४६)
सम तु व े दे वाः समापो दया न नौ. सं मात र ा सं धाता समु दे ी दधातु नौ.. (४७) हे व दे व! तुम हमारे दय को आपस म मलाओ. वायु, धाता और सर वती हम मलाव. (४७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८६
दे वता—इं आ द
व ह सोतोरसृ त ने ं दे वममंसत. य ामदद्वृषाक परयः पु ेषु म सखा व
मा द
उ रः.. (१)
इं का वगतकथन— मने तोता से सोमरस नचोड़ने को कहा, पर उ ह ने मेरी बात नह मानी. उ ह ने मेरे थान पर मेरे पु वृषाक प क तु त क , सोमरस वाले य म वामी वृषाक प मेरे म बनकर स ए. म सबसे े ं. (१) परा ही नो अह
धाव स वृषाकपेर त थः. व द य य सोमपीतये व मा द
उ रः.. (२)
हे इं ! तुम वयं चलकर वृषाक प के समीप जाते हो. तुम सोमरस के लए सरी जगह नह जाते हो. इं सबसे े ह. (२) कमयं वां वृषाक प कार ह रतो मृगः. य मा इर यसी व१य वा पु म सु व
मा द
उ रः.. (३)
हरे रंग के हरण के तु य वृषाक प ने तु हारा या य कया है क तुम उदार बनकर उसके लए पु कारक अ दे ते हो. इं सबसे े ह. (३) य ममं वां वृषाक प य म ा भर स. ा व य ज भषद प कण वराहयु व मा द
उ रः.. (४)
हे इं ! जस य वृषाक प क तुम र ा करते हो उसके कान को कु े क अ भलाषा करने वाला कु ा काटे . इं सबसे े ह. (४) या त ा न मे क प ा षत्. शरो व य रा वषं न सुगं कृते भुवं व
मा द
उ रः.. (५)
इं ाणी ने कहा—“यजमान ारा मेरे लए न मत य ह व वृषाक प ने षत कर दए. म शी ही इसका सर काट डालूंगी. म इस कम करने वाले का सुख नह चाहती. इं सबसे े ह. (५) नम नम
ी सुभस रा न सुयाशुतरा भुवत्. त यवीयसी न स यु मीयसी व
मा द
उ रः.. (६)
कोई भी ी मेरे समान सौभा यशा लनी एवं उ म पु वाली नह है मेरे समान कोई भी ी न तो पु ष को अपना शरीर अ पत करने वाली है और न संभोग के समय जांघ को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
फैलाने वाली है. इं सबसे उ म ह.” (६) उवे अ ब सुला भके यथेवा भ व य त. भस मे अ ब स थ मे शरो मे वीव य त व
मा द
उ रः.. (७)
वृषाक प ने कहा—“हे सुंदर लाभ दान करने वाली माता! जैसे तुमने कहा है क तु हारी जंघाएं शर आ द अंग उसी कार के हो जाएंगे. तुम कोयल के समान य वचन बोलकर पता को स करो. इं सबसे े ह.” (७) क सुबाहो वङ् गुरे पृथु ो पृथुजाघने. क शूरप न न वम यमी ष वृषाक प व
मा द
उ रः.. (८)
इं ने कहा—“हे सुंदर भुजा , शोभन उंग लय , लंबे बाल व व तृत जंघा वाली एवं वीरप नी इं ाणी! तुम वृषाक प के त थ य ोध कर रही हो? इं सबसे े ह.” (८) अवीरा मव मामयं शरा र भ म यते. उताहम म वी रणी प नी म सखा व
मा द
उ रः.. (९)
इं ाणी ने कहा—“यह घातक वृषाक प मुझे प तहीना के समान समझता है. म इं प नी वीर पु वाली एवं म त क सखा ं. इं सबसे े ह.” (९) संहो ं म पुरा नारी समनं वाव ग छ त. वेधा ऋत य वी रणी प नी महीयते व
मा द
उ रः.. (१०)
“नारी स य क वधा ी व वीरमाता इं प नी य या यु सबका आदर पाती है. इं सबसे े ह.” (१०) इ ाणीमासु ना रषु सुभगामहम वम्. न या अपरं चन जरसा मरते प त व
मा द
के समय वहां जाती है एवं
उ रः.. (११)
इं ने कहा—“मने इन सब य म इं ाणी को सौभा य वाली सुना है. इसका प त अ य ना रय के समान बुढ़ापे से नह मरता. इं सबसे े ह.” (११) नाह म ा ण रारण स युवृषाकपेऋते. य येदम यं ह वः यं दे वेषु ग छ त व
मा द
उ रः.. (१२)
“हे इं ाणी! म अपने म वृषाक प के बना स नह रह सकता. उसीको स करने वाला ह व दे व के समीप जाता है. इं सबसे े ह.” (१२) वृषाकपा य रेव त सुपु आ सु नुषे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
घस इ
उ णः
यं का च करं ह व व
मा द
उ रः.. (१३)
“हे वृषाक प क प नी! तुम धनवाली, शोभनपु यु एवं शोभन पु वधू हो. तु हारे बैल को इं खा जाव एवं तु हारे सुखकर य ह व का भ ण कर. इं सबसे उ म ह.” (१३) उ णो ह मे प चदश साकं पच त वश तम्. उताहम पीव इ भा कु ी पृण त मे व मा द
उ रः.. (१४)
इं ाणी ारा े रत या क मेरे लए पं ह या बीस बैल पकाते ह. उ ह खाकर म मोटा बनता ं. या क लोग मेरी दोन कोख सोमरस से भर दे ते ह. इं सबसे े ह. (१४) वृषभो न त मशृ ोऽ तयूथेषु रो वत्. म थ त इ शं दे यं ते सुनो त भावयु व
मा द
उ रः.. (१५)
इं ाणी ने कहा—“हे इं ! तीखे सीग वाला बैल जस कार गजन करता आ गाय म रमण करता है, उसी कार तुम मेरे साथ रमण करो. द धमंथन का श द तु हारे लए क याणकारी हो. ेम क अ भला षणी इं ाणी का सोमरस नचोड़ना तु हारा क याण करे. इं सबसे े ह. (१५) न सेशे य य र बतेऽ तरा स या३ कपृत्. सेद शे य य रोमशं नषे षो वजृ भते व मा द
उ रः.. (१६)
“वह मैथुन करने म समथ नह हो सकता जसक पु ष य जांघ के बीच लटकती है. वह मैथुन करने म समथ हो सकता है, जसक बाल से यु पु ष य सोते समय व तृत होती है. इं सबसे उ म ह.” (१६) न सेशे य य रोमशं नषे षो वजृ भते. सेद शे य य र बतेऽ तरा स या३ कपृ
मा द
उ रः.. (१७)
इं ने कहा—“वह पु ष मैथुन करने म समथ नह हो सकता जसक बाल वाली पु ष य उसके सोते समय व तृत होती है, वही मैथुन करने म समथ हो सकता है जसक पु ष य जांघ के बीच म लटकती है. इं सबसे ै ह.” (१७) अय म वृषाक पः पर व तं हतं वदत्. अ स सूनां नवं च मादे ध यान आ चतं व
मा द
उ रः.. (१८)
हे इं ! यह वृषाक प पराए न धन को ा त करे. वह तलवार वध का थल नया च एवं काठ क गाड़ी ा त करे. इं सबसे े ह. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अयमे म वचाकश च व दासमायम्. पबा म पाकसु वनोऽ भ धीरमचाकशं व
मा द
उ रः.. (१९)
म यजमान को दे खता आ एवं दास तथा आय को अलग-अलग करता आ य क ओर जाता ं. म ह व पकाने वाले एवं सोमरस नचोड़ने वाले का सोमरस पीता ं तथा बु शाली यजमान को दे खता ं. इं सबसे े ह. (१९) ध व च य कृ त ं च क त व ा व योजना. नेद यसो वृषाकपेऽ तमे ह गृहाँ उप व मा द
उ रः.. (२०)
म भू म और वन म कतने योजन क री है? हे वृषाक प! तुम समीप के घर म ही आओ और य शाला म प ंचो. इं सबसे े ह. (२०) पुनरे ह वृषाकपे सु वता क पयावहै. य एष व नंशनोऽ तमे ष पथा पुन व
मा द
उ रः.. (२१)
हे वृषाक प! तुम पुनः हमारे पास आओ. म और इं ाणी तु हारे लए ी त कर काय करते ह. यह सूय जस माग से आते ह, उसीसे तुम घर म आओ. इं सबसे े ह. (२१) य द चो वृषाकपे गृह म ाजग तन. व१ य पु वघो मृगः कमग नयोपनो व
मा द
उ रः.. (२२)
हे इं एवं वृषाक प! तुम ऊपर को मुंह करके मेरे घर आओ. अनेक रसमय पदाथ को खाने वाला तथा मनु य को स करने वाला मृग कहां है? इं सबसे े ह. (२२) पशुह नाम मानवी साकं ससूव वश तम्. भ ं भल य या अभू या उदरमामय
मा द
उ रः.. (२३)
हे इं ारा छोड़े गए बाण! मनु क पु ी पशु ने एक साथ बीस पु जसका पेट मोटा था, उसका क याण आ. इं सबसे े ह. (२३)
सू —८७
को ज म दया.
दे वता—रा सहंता अ न
र ोहणं वा जनमा जघ म म ं थ मुप या म शम. शशानो अ नः तु भः स म ः स नो दवा स रषः पातु न म्.. (१) म रा स के हंता श शाली यजमान के म और अ धक थूल अ न का घृत से हवन करता ं एवं अ न के घर के पास जाता ं. वाला को तेज करने वाले अ न यजमान ारा व लत होते ह. वे हम हसक रा स से रात- दन बचाव. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अयोदं ो अ चषा यातुधानानुप पृश जातवेदः स म ः. आ ज या मूरदे वा भ व ादो वृ प ध वासन्.. (२) हे जातवेद! तुम व लत होकर एवं लोहे के समान तेज दांत वाले बनकर अपनी वाला से रा स को जलाओ. तुम अपनी जीभ के समान वाला से हसक रा स को मारो एवं मांसभ ी रा स को काटकर अपने मुंह म रख लो (२) उभोभया व ुप धे ह दं ा ह ः शशानोऽवरं परं च. उता त र े प र या ह राज भैः सं धे भ यातुधानान्.. (३) हे दोन जबड़ म दांत वाले एवं रा स हसक अ न! तुम अपनी दोन ओर क दाढ़ तेज करते ए वधयो य रा स पर जमा दो. हे द त अ न! तुम आकाश म थत रा स के समीप जाओ एवं अपने दांत से भ ण करो. (३) य ै रषूः संनममानो अ ने वाचा श यां अश न भ दहानः. ता भ व य दये यातुधानान् तीचो बा त भङ् येषाम्.. (४) हे अ न! तुम हमारे य और तु तय के ारा बाण को झुकाते ए एवं उनके फल को व के ारा तेज करते ए उन बाण से रा स के दय को बेधो तथा उनक भुजा को तोड़ दो. (४) अ ने वचं यातुधान य भ ध ह ाश नहरसा ह वेनम्. पवा ण जातवेदः शृणी ह ा व णु व चनोतु वृ णम्.. (५) हे जातवेद अ न! रा स क खाल को काट डालो. हसक व उ ह ताप से मारे. तुम रा स के शरीर के भाग अलग-अलग कर दो. मांस क इ छा करने वाले मांसाहारी जंतु इनके छ - भ शरीर को खाव. (५) य द े ान प य स जातवेद त तम न उत वा चर तम्. य ा त र े प थ भः पत तं तम ता व य शवा शशानः.. (६) हे जातवेद अ न! तुम रा स को खड़ा आ, घूमता आ, आकाश म थत, माग म चलता आ— कसी भी अव था म दे खो तो बाण फककर उसे बेध दो. (६) उताल धं पृणु ह जातवेद आलेभाना भयातुधानात्. अ ने पूव न ज ह शोशुचान आमादः वङ् का तमद वेनीः.. (७) हे जातवेद अ न! तुम मुझ तोता को आ मणकारी रा स के हाथ से अपनी ऋ य ारा बचाओ. तुम मुख एवं व लत होकर रा स को मारो. ये प ी उस रा स को खाव. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इह ू ह यतमः सो अ ने यो यातुधानो य इदं कृणो त. तमा रभ व स मधा य व नृच स ुषे र धयैनम्.. (८) हे अ न! उस रा स को भगाओ जो य म व न डालता है. हे अ तशय युवा अ न! तुम स मधा ारा व लत होकर रा स को मारो. हे मानव को दे खने वाले अ न! तुम रा स को अपने तेज के वश म करो. (८) ती णेना ने च ुषा र य ं ा चं वसु यः णय चेतः. ह ं र ां य भ शोशुचानं मा वा दभ यातुधाना नृच ः.. (९) हे अ न! तुम अपने तीखे तेज से हमारे य क र ा करो. हे उ म ान वाले अ न! इस य को धन के अनुकूल बनाओ. हे द त एवं मानवदशक अ न! तुम रा स को मारो. वे तु ह न मार सक. (९) नृच ा र ः प र प य व ु त य ी ण त शृणी ा. त या ने पृ ीहरसा शृणी ह ेधा मूलं यातुधान य वृ .. (१०) हे मानवदशक अ न! तुम मानव हसक रा स को दे खो तथा उसके तीन म तक को काट डालो. (१०) यातुधानः स त त ए वृतं यो अ ने अनृतेन ह त. तम चषा फूजय ातवेदः सम मेनं गृणते न वृङ् ध.. (११) हे अ न! रा स तीन बार तु हारी लपट म जावे. जो रा स अस य से स य को मारता है, उसे तुम अपने तेज से भ म कर दो. हे जातवेद अ न! इस रा स को मेरे सामने ही टु कड़े-टु कड़े कर दो. (११) तद ने च ःु त धे ह रेभे शफा जं येन प य स यातुधानम्. अथवव यो तषा दै ेन स यं धूव तम चतं योष.. (१२) हे अ न! गजन करते ए इस रा स पर वह डालो जो तुम खुर के समान नाखून ारा स जन को भ न करने वाले रा स पर डालते हो. द यङ् अथवा ऋ ष जस कार अपने तेज से रा स को मारते ह, उसी कार तुम अपने तेज से अस य ारा स य का हनन करने वाले रा स को मारो. (१२) यद ने अ मथुना शपातो य ाच तृ ं जनय त रेभाः. म योमनसः शर ा३ जायते या तया व य दये यातुधानान्.. (१३) हे अ न! आज ीपु ष आपस म लड़ रहे ह और तोता कड़वी बात कह रहे ह. इस कारण मन म ोध होने पर जो बाण फका जाता है, उसी बाण से तुम रा स का दय बेध ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दो. (१३) परा शृणी ह तपसा यातुधाना परा ने र ो हरसा शृणी ह. परा चषा मूरदे वा छृ णी ह परासुतृपो अ भ शोशुचानः.. (१४) हे अ न! तुम अपनी गरमी से रा स को जलाओ तथा अपने तेज से रा स को समा त करो. मूढ़ रा स को तुम अपने परम तेज से न करो. जो रा स सर के ाण हरण करके तृ त होते ह, उ ह तुम शोकम न करो. (१४) परा दे वा वृ जनं शृण तु यगेनं शपथा य तु तृ ाः. वाचा तेनं शरव ऋ छ तु मम व यैतु स त यातुधानः.. (१५) आज महान् दे व पापी रा स को समा त कर. हमारी बुरी उ यां इस रा स को लग. हमारे बाण इस अस यवाद रा स को लग. रा स ा त अ न के जाल म फंसे. (१५) यः पौ षेयेण वषा समङ् े यो अ ेन पशुना यातुधानः. यो अ याया भर त ीरम ने तेषां शीषा ण हरसा प वृ .. (१६) हे अ न! जो रा स पु ष का मांस अपने पास लाता है. जो अ आ द उपयोगी पशु का मांस एक करता है अथवा जो गाय का ध चुराता है, उसके सर को काट दो. (१६) संव सरीणं पय उ याया त य माशी ातुधानो नृच ः. पीयूषम ने यतम ततृ सा ं य चम चषा व य ममन्.. (१७) हे मानवदशक अ न! गाय के एक वष तक के ध को रा स न पी सक. जो रा स इस अमृततु य गो ध को पीने के लए आगे आवे, उसके मम को तुम अपनी वाला ार छ - भ कर डालो. (१७) वषं गवां यातुधानाः पब वा वृ य ताम दतये रेवाः. परैना दे वः स वता ददातु परा भागमोषधीनां जय ताम्.. (१८) हे अ न! रा स ारा दया आ गो ध वष हो जाए एवं रा स काटकर अ न को भट कए जाव. सूय इन रा स को हसक को स प द. रा स ओष धय का असार अंश ा त कर. (१८) सनाद ने मृण स यातुधाना वा र ां स पृतनासु ज युः. अनु दह सहमूरा ादो मा ते हे या मु त दै ायाः.. (१९) हे अ न! तुम ब त समय से रा स को बाधा प ंचा रहे हो. रा स तु ह यु म नह जीत पाए. तुम मांसभ क रा स को समूल न करो. वे तु हारे द आयुध से बच न ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सक. (१९) वं नो अ ने अधरा द ा वं प ा त र ा पुर तात्. त ते ते अजरास त प ा अघशंसं शोशुचतो दह तु.. (२०) हे अ न! तुम हम द ण, उ र, प म एवं पूव दशा से बचाओ. तु हारी अ तशय त त, जरार हत एवं व लत करण पापी रा स को भ म कर द. (२०) प ा पुर तादधरा द ा क वः का ेन प र पा ह राजन्. सखे सखायमजरो ज र णेऽ ने मता अम य वं नः.. (२१) हे द त एवं कायकुशल अ न! तुम अपने कौशल ारा हम प म, पूव, द ण एवं उ र दशा से बचाओ. हे जरामरणर हत एवं सखा अ न! म तु हारा म ं. तुम मुझे जरा एवं मृ यु को दान न करो. (२१) प र वा ने पुरं वयं व ं सह य धीम ह. धृष ण दवे दवे ह तारं भङ् गुरावताम्.. (२२) हे बल के पु अ न! तुम पूरक मेधावी धषक एवं कु टल रा स का करने वाले हो. हम तु हारा यान करते ह. (२२)
त दन नाश
वषेण भङ् गुरावतः त म र सो दह. अ ने त मेन शो चषा तपुर ा भऋ भः (२३) हे अ न! तुम तोड़फोड़ करने वाले रा स को अपने ा त एवं तीखे तेज से जलाओ. उ ह ऐसे खड् ग से मारो, जनका अगला भाग गरम है. (२३) य ने मथुना दह यातुधाना कमी दना. सं वा शशा म जागृ द धं व म म भः.. (२४) हे अ न! जो रा स प तप नी के प म यह दे खते ए घूमते ह क कहां या हो रहा है. उ ह तुम जलाओ. हे अपराजेय एवं ानी अ न! म सुंदर तु तय से तु हारी शंसा करता ं. तुम जागो. (२४) य ने हरसा हरः शृणी ह व तः त. यातुधान य र सो बलं व ज वीयम्.. (२५) हे अ न! तुम अपने तेज से रा स का तेज चार ओर न कर दो. तुम रा स के बल और तेज को न करो. (२५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —८८
दे वता—अ न व सूय
ह व पा तमजरं व व द द व पृ या तं जु म नौ. त य भमणे भुवनाय दे वा धमणे कं वधया प थ त.. (१) पीने यो य, जरार हत एवं दे व का य सोमरस पी ह सूय को जानने वाले एवं वग थ अ न को होम कया जाता है. दे वगण सोम उ पादन पू त और धारण के लए सुखकर अ न को अ से बढ़ाते ह. (१) गीण भुवनं तमसापगूळ्हमा वः वरभव जाते अ नौ. त य दे वाः पृ थवी ौ तापोऽरणय ोषधीः स ये अ य.. (२) अंधकार ारा नगला आ एवं अंधकार म छपा आ संसार अ न के उ प होने पर कट होता है. उस अ न के मै ीपूण काय से दे वगण पृ वी वग, जल एवं ओष धयां—सब स होते ह. (२) दे वे भ व षतो य ये भर नं तोषा यजरं बृह तम्. यो भानुना पृ थव ामुतेमामाततान रोदसी अ त र म्.. (३) य के यो य दे व ारा शी े रत म जरार हत एवं वशाल अ न क तु त करता ं. अ न ने अपने तेज से धरती, ौ, इनके म यभाग एवं आकाश को व तृत कया है. (३) यो होतासी थमो दे वजु ो यं समा ा येना वृणानाः. स पत ी वरं था जग छ् वा म नरकृणो जातवेदाः.. (४) जो अ न दे व ारा से वत होकर पहले होता बने थे एवं वर के अ भलाषी यजमान ज ह घी से स चते ह, उन अ न ने अपने तेज से प य ग तशील सांप आ द तथा थावरजंगम प संसार को शी ही उ प कया. (४) य जातवेदो भुवन य मूध त ो अ ने सह रोचनेन. तं वाहेम म त भग भ थैः स य यो अभवो रोद स ाः.. (५) हे जातवेद अ न! तुम आ द य के साथ तीन लोक के सर पर थत होते हो. हम तु ह अचनीय तु तय एवं मं ारा ा त करते ह. तुम य के पा एवं ावा-पृ थवी को पूण करने वाले हो. (५) मूधा भुवो भव त न म न ततः सूय जायते ात न्. मायामू तु य यानामेतामपो य ू ण र त जानन्.. (६) अ न रात के समय सभी ा णय के मूधा प बन जाते ह एवं ातः उदय होते ए सूय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बन जाते ह. अ न को य -संपादक दे व क बु सब थान म ज द -ज द चलते ह. (६)
कहा जाता है एवं वे सबको जानते ए
शे यो यो म हना स म ोऽरोचत द वयो न वभावा. त म नौ सू वाकेन दे वा ह व व आजुहवु तनूपाः.. (७) जो अ न अपने मह व के कारण दशनीय, व लत वग म थत एवं तेज वी बनकर द त होते ह, उ ह अ न के अंगर क दे व ने तु तयां पढ़ते ए ह डाला. (७) सू वाकं थममा दद नमा द वरजनय त दे वाः. स एषां य ो अभव नूपा तं ौवद तं पृ थवी तमापः.. (८) दे व ने सबसे पहले मन से सू वचन का चतन कया. इसके प ात् ह को उ प कया. वे अ न दे व के य पा एवं शरीरर क बने. उन अ न को ुलोक, पृ वी और अंत र जानते ह. (८) यं दे वासोऽजनय ता नं य म ाजुहवुभुवना न व ा. सो अ चषा पृ थव ामुतेमामृजूयमानो अतप म ह वा.. (९) जस अ न को दे व ने उ प कया, जस अ न म व क सब व तु का हवन कया जाता है. वह ही सरल ग त वाले अ न अपनी वशाल वाला से इस धरती और वग को तृ त करते ह. (९) तोमेन ह द व दे वासो अ नमजीजन छ भी रोद स ाम्. तमू अकृ वन् ेधा भुवे कं स ओषधीः पच त व पाः.. (१०) दे व ने वग म केवल तु तय ारा ावा-पृ थवी को पूण करने वाले अ न को अपनी श से उ प कया. उस सुखकारक अ न को दे व ने तीन भाग म वभ कया. वही अ न सम त ओष धय को पकाती है. (१०) यदे देनमदधुय यासो द व दे वाः सूयमा दतेयम्. यदा च र णू मथुनावभूतामा द ाप य भुवना न व ा.. (११) जस समय य के पा दे व ने इस अ न और अ द तपु दे व को वग म था पत कया, वे उस समय जोड़े से वचरण करने वाले बन गए तभी सब ा णय ने उ ह दे खा. (११) व मा अ नं भुवनाय दे वा वै ानरं केतुम ामकृ वन्. आ य ततानोषसो वभातीरपो ऊण त तमो अ चषा यन्.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व ने सारे संसार के क याण के लए वै ानर अ न को दन का ान कराने वाला बनाया है. अ न वशेष- काश वाली उषा को व तृत करते ह एवं जाते समय सारे संसार को अंधकार के समूह म डु बा दे ते ह. (१२) वै ानरं कवयो य यासोऽ नं दे वा अजनय जुयम्. न ं नम मन च र णु य या य ं त वषं बृह तम्.. (१३) व ान् एवं य पा दे व ने जरार हत सूय पी वै ानर अ न को उ प कया. अ न ने ाचीन, घूमने वाले, व तृत एवं महान् न को दे व के सामने ही तेजहीन कर दया. (१३) वै ानरं व हा द दवांसं म ैर नं क वम छा वदामः. यो म ह ना प रबभूवोव उताव ता त दे वः पर तात्.. (१४) सवदा काशमय, पैनी मेधा वाले और संसार का उपकार करने वाले अ न क हम तु त करते ह. वे वै ानर अ न अपनी म हमा से ावा-पृ थवी को भी तर कृत कर ऊपरनीचे तपते ह. (१४) े त ु ी अशृणवं पतॄणामहं दे वानामुत म यानाम्. ता या मदं व मेज समे त यद तरा पतरं मातरं च.. (१५) मने पतर , दे व एवं मानव के दो माग सुने ह. आगे बढ़ता आ यह संसार उ ह पर जाता है. माता और पता से ज मा आ इ ह से जाता है. (१५) े समीची बभृत र तं शीषतो जातं मनसा वमृ म्. स यङ् व ा भुवना न त थाव यु छ तर ण ाजमानः.. (१६) पर पर संगत ावा-पृ थवी म वचरण करते ए सबसे शीष प आ द य से उ प व तु तय से सं कृत अ न को धारण करने वाले, भावहीन, शी ता करने वाले एवं तेज वी वै ानर सभी लोक के स मुख ठहरते ह. (१६) य ा वदे ते अवरः पर य योः कतरो नौ व वेद. आ शेकु र सधमादं सखायो न त य ं क इदं व वोचत्.. (१७) जस समय पा थव अ न और वायु पर पर ववाद करते ह क हम य कम के नेता म य को कौन अ धक जानता है, उस समय म ऋ वज् य करते ह. वे यह नणय नह कर पाते क कौन ठ क है? (१७) क य नयः क त सूयासः क युषासः क यु वदापः. नोप पजं वः पतरो वदा म पृ छा म वः कवयो व ने कम्.. (१८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व ान् पतरो! म तुमसे पधा वाली बात नह कर रहा ं. म केवल जानने के लए पूछ रहा ं क अ नयां, सूय उषाएं एवं जल कतने ह. (१८) याव मा मुषसो न तीकं सुप य ३वसते मात र ः. ताव धा युप य माय ा णो होतुरवरो नषीदन्.. (१९) हे वायु! जब तक रा यां उषा के मुख से परदा नह हटा दे त , तब तक नीचे होता और तोता पा थव अ न य के समीप आकर बैठ जाते ह. (१९)
सू —८९
थत
दे वता—इं
इ ं तवा नृतमं य य म ा वबबाधे रोचना व मो अ तान्. आ यः प ौ चषणीधृ रो भः स धु यो र रचानो म ह वा.. (१) हे तोता! नेता म े इं क तु त करो. उनके मह व से सर के तेज हार जाते ह. उनक म हमा सारी धरती को पराभूत करती है. वे मानव जा को धारण करते ह. उनका मह व सागर से भी बड़ा है तथा वे अपने तेज से ावा-पृ थवी को पूण करते ह. (१) स सूयः पयु वरां ये ो ववृ या येव च ा. अ त तमप यं१न सग कृ णा तमां स व या जघान.. (२) सार थ जस कार रथ का प हया घुमाता है, उसी कार शोभन वीय वाले इं अपने अ धक तेज को चार ओर घुमाते ह. इं अपने तेज से शी ग त वाले एवं कायकुशल व के समान अंधकार को न करते ह. (२) समानम मा अनपावृदच मया दवो असमं न म्. व यः पृ ेव ज नमा यय इ काय न सखायमीषे.. (३) हे तोता! तुम मेरे साथ उन इं के लए नकृ ता र हत ावा-पृ थवी म अ तीय एवं नए तो को बोलो जो य म उ प तो को सुनने के लए उतने ही इ छु क ह, जतने क श ु को दे खने के लए ह. वे अपने म का बुरा नह चाहते. (३) इ ाय गरो अ न शतसगा अपः ेरयं सगर य बु नात्. यो अ ेणेव च या शची भ व व त भ पृ थवीमुत ाम्.. (४) मने इं के लए सव च तु तयां क ह. इन तु तय ारा मने अंत र के जल को बरसने के लए े रत कया है. वे इं अपने कम ारा ावा और पृ वी को इस कार धारण करते ह, जस कार धुरा प हय को धारण करता है. (४) आपा तम यु तृपल भमा धु नः शमीवा छ माँ ऋजीषी. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमो व ा यतसा वना न नावा ग ं
तमाना न दे भुः.. (५)
पीने के प ात् ओज उ प करने वाले प थर ारा शी ता से कूटे गए श ु को कंपाने वाले कमठ आयुधधारी एवं ग तशील सोम सभी वन को बढ़ाते ह. ये वन न तो इं क समानता कर सकते ह, न उ ह लघु बना सकते ह. (५) न य य ावापृ थवी न ध व ना त र ं ना यः सोमो अ ाः. यद य म युर धनीयमानः शृणा त वीळु ज त थरा ण.. (६) ावा-पृ थवी, उदक, अंत र एवं पवत जन इं क समानता नह कर सकते, उ ह के लए सोमरस नचोड़ा जाता है. इं का ोध जब श ु पर होता है, उस समय ये ढ़तापूवक श ु को मारते ह एवं उनके थर पदाथ को भी तोड़ डालते ह. (६) जघान वृ ं व ध तवनेव रोज पुरो अरद स धून्. बभेद ग र नव म कु भमा गा इ ो अकृणुत वयु भः.. (७) फरसा जस कार वृ को काटता है, उसी कार इं श ु को मारते ह. इं ने श ुनग रय को तोड़ा, वषा के जल से न दय को आकार दया व पहाड़ को क चे घड़े के समान फोड़ा. इं ने अपने साथी म त के साथ जल को हमारे सामने तुत कया. (७) वं ह य णया इ धीरोऽ सन पव वृ जना शृणा स. ये म य व ण य धाम युजं न चना मन त म म्.. (८) हे धीर इं ! तुम तोता को ऋण से छु ड़ाते हो. जस कार तलवार पशु क बो टयां काटती है, उसी कार तुम तोता के पाप को न करते हो. जो मूख लोग व ण और म को धारण करने वाले एवं म तु य य कम का लोप करते ह, उ ह भी इं न करते ह. (८) ये म ं ायमणं रेवाः स रः व णं मन त. य१ म ेषु वध म तु ं वृष वृषाणम षं शशी ह.. (९) हे अ भलाषापूरक इं ! जो बुरे लोग म , अयमा, म द्गण एवं व ण से े ष करते ह, उन श ु के लए तुम अपना ग तशील, कामवषक एवं द तशाली व तेज करो. (९) इ ो दव इ ईशे पृ थ ा इ ो अपा म इ पवतानाम्. इ ो वृधा म इ मे धराणा म ः ेमे योगे ह इ ः.. (१०) इं वग, धरती, जल, पवत , वृ को ही बुलाया जाता है. (१०)
एवं ा नय के वामी ह. योग और ेम के लए इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा ु य इ ः वृधो अह यः ा त र ा समु य धासेः. वात य थसः मो अ ता स धु यो र रचे त यः.. (११) इं रात, दन, अंत र , जल धारण करने वाले समु न दय एवं मानव से बढ़कर ह. (११)
व तृत वायु, धरती क सीमांत
शोशुच या उषसो न केतुर स वा ते वतता म हे तः. अ मेव व य दव आ सृजान त प ेन हेषसा ोघ म ान्.. (१२) हे इं ! तु हारा न टू टने वाला आयुध व यो त वाली उषा क करण के साथ श ु पर गरे. जैसे आकाश से गरने वाली बजली वृ को न करती है, उसी कार तुम ोह करने वाले अ म को अ यंत त त और गजन करने वाले आयुध से मारो. (१२) अ वह मासा अ व ना य वोषधीरनु पवतासः. अ व ं रोदसी वावशाने अ वापो अ जहत जायमानम्.. (१३) जैसे ही इं का ज म आ, वैसे ही मास, वन, ओष धयां, पवत, एक- सरे को चाहने वाले ावा-पृ थवी एवं जल उनके पीछे चलने लगे. (१३) क ह व सा त इ चे यासदघ य य नदो र एषत्. म ु वो य छसने न गावः पृ थ ा आपृगमुया शय ते.. (१४) हे इं ! तुमने जस तलवार को फककर पापी रा स का छे दन कया था, वह कब फक जाएगी? जस कार वधशाला म गाएं कटती ह, उसी कार तु हारे इस आयुध से चोट खाकर म से े ष करने वाले रा स धरती पर गरते ह और सो जाते ह. (१४) श य ू तो अ भ ये न तत े म ह ाध त ओगणास इ . अ धेना म ा तमसा सच तां सु यो तषो अ व ताँ अ भ युः.. (१५) हे इं ! जन रा स ने हमारे त श ुभाव रखकर हम बाधा प ंचाई है एवं एक होकर ज ह ने हम घेर लया है, वे गहरे अंधकार म डू ब जाव. उनके लए यो त वाली रात भी अंधेरी हो जाए. (१५) पु ण ह वा सवना जनानां ा ण म द गृणतामृषीणाम्. इमामाघोष वसा स त तरो व ाँ अचतो या वाङ् .. (१६) हे इं ! यजमान के ब त से य एवं तु त करते ए ऋ षय क तु तयां तु ह स करती ह. तुम इस तु त को शोभायु बताते ए अ य सब तु तक ा का तर कार करो एवं र ासाधन के साथ मेरे सामने थत होओ. (१६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवा ते वय म भु तीनां व ाम सुमतीनां नवानाम्. व ाम व तोरवसा गृण तो व ा म ा उत त इ नूनम्.. (१७) हे इं ! हम र ा करने वाले एवं तुमसे संबं धत नए-नए तो ा त कर. हम व ा म क संतान अपनी र ा के लए तु हारी तु त करते ए नाना कार क संप ा त कर. (१७) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (१८) हम इस यु म वशाल शरीर वाले, संप शाली, पुकार सुनने वाले, उ सं ाम म श ु को मारने वाले एवं श ुजन को भली कार जीतने वाले इं को अ ा त और र ा के लए बुलाते ह. (१८)
सू —९०
दे वता—पु ष
सह शीषा पु षः सह ा ः सह पात्. स भू म व तो वृ वा य त शाङ् गुलम्.. (१) वराट् पु ष के हजार शीष, हजार आंख और हजार चरण ह. वह धरती को चार ओर से घेरकर उससे दस अंगुल अ धक थत ह. (१) पु ष एवेदं सव य तं य च भ म्. उतामृत व येशानो यद ेना तरोह त.. (२) जो कुछ हो चुका है अथवा होने वाला है, वह सब वराट् पु ष ही है. वह अमृत का वामी है, य क वह कारण अव था छोड़कर जगत् अव था को धारण करता है. इस कार ाणी उसको भोगते ह. (२) एतावान य म हमातो यायाँ पू षः. पादोऽ य व ा भूता न पाद यामृतं द व.. (३) यह सारा ांड वराट् पु ष क म हमा है. वे वयं इससे बड़े ह. सभी ाणी उनके चौथाई अंश ह. इनके तीन मरणर हत अंश द लोक म रहते ह. (३) पा व उदै पु षः पादोऽ येहाभव पुनः. ततो व वङ् ाम साशनानशने अ भ.. (४) तीन चरण वाले वराट् पु ष ऊपर उठे . उनका केवल एक चरण यहां थत रहा. इसके प ात् वे भोजन करने वाली एवं भोजन न करने वाली व तु के प म ा त ए. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त मा राळजायत वराजो अ धपू षः. स जातो अ य र यत प ा (५)
ममथो पुरः..
उस आ द पु ष से ांड पी वराट् उ प आ. ांड पी वराट् से अनेक पु ष उ प ए. उ प होने के प ात् वह ांड से बड़ा आ. इसके बाद उसने भू म बनाई और भू म से जीव का शरीर बनाया. (५) य पु षेण ह वषा दे वा य मत वत. वस तो अ यासीदा यं ी म इ मः शर
वः.. (६)
जब पु ष प का प नक ह व से दे व ने य का व तार कया, उस समय वसंत ऋतु को घी, ी म को का तथा शरद् ऋतु को ह व बनाया. (६) तं य ं ब ह ष ौ
पु षं जातम तः. तेन दे वा अयज त सा या ऋषय ये.. (७)
सारी सृ से पहले उ प पु ष को य साधन के प म ब लपशु बनाकर दे व ने का प नक य कया. इस साधन म दे व , सा य और ऋ षय ने य कया. (७) त मा ा सव तः स भृतं पृषदा यम्. पशूनताँ ् े वाय ानार यान् ा या ये.. (८) जस का प नक य म उस सवा मक पु ष का हवन कया जाता है, उससे दही से मला आ घी उ प आ. उसीसे वायु दे व से संबं धत जंगली और ामीण पशु भी उ प ए. (८) त मा (९)
ा सव त ऋचः सामा न ज रे. छ दां स ज रे त मा जु त मादजायत..
उस सवा मक पु ष के का प नक होम वाले य से ऋक् और साम उ प छं द उ प ए और यजु क उ प ई. (९)
ए, उसीसे
त माद ा अजाय त ये के चोभयादतः. गावो ह ज रे त मात् तम मा जाता अजावयः.. (१०) उसी य से घोड़े उ प ए, जनके मुंह म ऊपर-नीचे दोन ओर दांत थे. उसीसे गाएं, बक रयां और भेड़ उ प . (१०) य पु षं दधुः क तधा क पयन्. मुखं कम य कौ बा का ऊ पादा उ येते.. (११) जाप त के ाण प दे व ने जब वराट् पु ष को संक प से उ प ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया, तब उ ह
कतने कार से उ प (११)
कया? उनका मुख, भुजाएं, दय और चरण कौन से कहलाते ह?
ा णोऽ य मुखमासीद् बा राज यः कृतः. ऊ तद य य ै यः पद् यां शू ो अजायत.. (१२) ा ण इनका मुख आ. य को भुजाएं बनाया गया. इनक दोन जंघा और चरण से शू उ प ए. (१२)
से वै य
च मा मनसो जात ोः सूय अजायत. मुखा द ा न ाणा ायुरजायत.. (१३) पु ष के मन से चं मा, आंख से सूय, मुख से इं व अ न तथा ाण से वायु उ प ए. (१३) ना या आसीद त र ं शी ण ौः समवतत. पद् यां भू म दशः ो ा था लोकाँ अक पयन्.. (१४) पु ष क ना भ से अंत र , शीश से लोक उ प ए. (१४)
ुलोक, चरण से भू म व कान से दशाएं और
स ता यासन् प रधय ः स त स मधः कृताः. दे वा य ं त वाना अब न पु षं पशुम्.. (१५) दे व ने जस समय का प नक य का व तार करते ए वराट् पु ष को ब लपशु के प म बांधा, उस समय य क सात प र धयां और इ क स स मधाएं बनाई ग . (१५) य ेन य मयज त दे वा ता न धमा ण थमा यासन्. ते ह नाकं म हमानः सच त य पूव सा याः स त दे वाः.. (१६) दे व ने मान सक य के ारा भौ तक य व तृत कया, उससे सभी वकार को धारण करने वाले धम सबसे पहले उ प ए. जस वग म ाचीन सा य एवं दे व ह, उसे उपासक महापु ष ा त करते ह. (१६)
सू —९१
दे वता—अ न
सं जागृव जरमाण इ यते दमे दमूना इषय ळ पदे . व य होता ह वषो वरे यो वभु वभावा सुषखा सखीयते.. (१) हे जागरणशील तोता
ारा शं सत अ न! तुम
व लत होते हो. दानशील अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ र वेद पर थत होकर अ क अ भलाषा से सम त ह व के होता बनते ह. वरण करने यो य, ापक, द तशाली एवं शोभन अ न म के समान वहार करते ह. (१) स दशत ीर त थगृहेगृहे वनेवने श ये त ववी रव. जन नं ज यो ना त म यते वश आ े त व यो३ वशं वशम्.. (२) दशनीय शोभा वाले, अ त थ एवं मान हतैषी अ न यजमान के घर और वन म नवास करते ह. वे ग तशील के समान कसी को नह छोड़ते. जा हतकारी अ न मानव के पास जाते ह एवं सभी जा का आ य लेते ह. (२) सुद ो द ःै तुना स सु तुर ने क वः का ेना स व वत्. वसुवसूनां य स वमेक इद् ावा च या न पृ थवी च पु यतः.. (३) हे सव अ न! तुम श ारा सव े श शाली, कम के ारा शोभन कम वाले एवं बु के कारण बु मान् हो. तुम अकेले ही सब धम का आ य बनते हो. ावा-पृ थवी जन धन का संवधन करते ह, तुम उ ह धारण करते हो. (३) जान ने तव यो नमृ वय मळाया पदे घृतव तमासदः. आ ते च क उषसा मवेतयोऽरेपसः सूय येव र मयः.. (४) हे अ न! तुम य वेद के ऊपर अपना घृतयु तु हारी वालाएं उषा क करण एवं सूय क वाला
नवास थान बना आ जानकर बैठो. के समान वमल ह. (४)
तव यो व य येव व ुत ा क उषसां न केतवः. यदोषधीर भसृ ो वना न च प र वयं चनुषे अ मा ये.. (५) हे अ न! तु हारी करण पी वभू तयां बरसने वाले मेघ क बजली अथवा उषा क करण के समान जान पड़ती ह. उस समय तुम ओष धय और वन को अपने मुख से भ ण करने के लए वयं उ मु जान पड़ते हो. (५) तमोषधीद धरे गभमृ वयं तमापो अ नं जनय त मातरः. त म समानं व नन वी धोऽ तवती सुवते च व हा.. (६) ओष धयां उस अ न को ऋतु के अनुसार गभ के प म धारण करती ह. जल पी माताएं अ न को ज म दे ती ह. वन क लताएं एवं वृ सदा गभयु होकर समान प से ज म दे ते ह. (६) वातोपधूत इ षतो वशाँ अनु तृषु यद ा वे वष त से. आ ते यत ते र यो३ यथा पृथक् शधा य ने अजरा ण ध तः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! जब तुम वायु ारा कं पत वन प तय के वशीभूत होकर एवं वन प तय को ा त करके इधर ग त उ प करते हो, उस समय का दहन के कारण उ प तु हारी वालाएं र थय के समान अपना तेज चा लत करती ह. (७) मेधाकारं वदथ य साधनम नं होतारं प रभूतमं म तम्. त मदभ ह व या समान म म महे वृणते ना यं वत्.. (८) म बु के जनक, य को सुशो भत करने वाले, दे व के आ ानक ा, श -ु पराभवकारी एवं माननीय अ न का वरण करता ं. उस समय अ न के अ त र कोई भी यह नणय नह कर पाता क अ न को थोड़ा ह व दया जाएगा या अ धक. (८) वा मद वृणते वायवो होतारम ने वदथेषु वेधसः. य े वय तो दध त यां स ते ह व म तो मनवो वृ ब हषः.. (९) हे अ न! तु हारी अ भलाषा करने वाले ऋ वज् इस संसार म य म तु ह को दे व का आ ानक ा वरण करते ह. दे वयजन करने के इ छु क कुश बछाने वाले एवं ह यु मनु य तु हारे लए य ीय धारण करते ह. (९) तवा ने हो ं तव पो मृ वयं तव ने ं वम न तायतः तव शा ं वम वरीय स ा चा स गृहप त नो दमे.. (१०) हे अ न! ऋतु के अनुकूल तुम ही होता और पोता का कम करते हो. य करने वाले के लए तु ह ने ा एवं अ न हो. तुम ही श ता, अ वयु, ा एवं हमारे घर म गृहप त हो. (१०) य तु यम ने अमृताय म यः स मधा दाश त वा ह व कृ त. त य होता भव स या स य१मुप ूषे यज य वरीय स.. (११) हे मरणर हत अ न! जो मनु य तु हारे लए स मधाएं दे ना चाहता है अथवा य म ह व दे ता है, तुम उसके होता बनते हो, त बनते हो, दे व को नम ंण दे ते हो एवं यजमान बनकर दे व को ह व दे ते हो. (११) इमा अ मै मतयो वाचो अ मदाँ ऋचो गरः सु ु तयः सम मत. वसूयवो वसवे जातवेदसे वृ ासु च धनो यासु चाकनत्.. (१२) अ न के लए ही यह चतन, तु तयां और वेदमं कए जाते ह. हमारे लए धन क अ भलाषा करने वाली शोभन तु तयां ऋचा पी वाणी से नकलकर अ न से मलती ह. इन तु तय के बढ़ने पर अ न संतु होकर धन क वृ करते ह. (१२) इमां
नाय सु ु त नवीयस वोचेयम मा उशते शृणोतु नः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
भूया अ तरा
य न पृशे जायेव प य उशती सुवासाः.. (१३)
ाचीन एवं तु तय क कामना करने वाले इस अ न के लए म अ यंत नवीन एवं शोभन तु तयां बोलता ं. अ न उ ह सुन. जस कार प त क कामना करने वाली एवं शोभन व से यु नारी प त के दय से अपना शरीर मलाती है, उसी कार म अ न के म य भाग का पश करता ं. (१३) य म ास ऋषभास उ णो वशा मेषा अवसृ ास आ ताः. क लालपे सोमपृ ाय वेधसे दा म त जनये चा म नये.. (१४) य के समय जस अ न म घोड़ , बैल , बजार , वभाव से ब धया मेढ़ क आ त द जाती है, उस जलपान करने वाले, सोमयु पीठ वाले व य वधाता अ न के लए म दय से शोभन तु त बोलता ं. (१४) अहा ने ह वरा ये ते ुचीव घृतं च वीव सोमः. वाजस न र यम मे सुवीरं श तं धे ह यशसं बृह तम्.. (१५) हे अ न! म च ु म घृत एवं चमस म सोम के समान तु हारे मुख म ह व डालता ं. तुम मुझे अ , धन, उ म यश स हत शोभन पु दो. (१५)
सू —९२
दे वता—नाना दे व
य य वो र यं व प त वशां होतारम ोर त थ वभावसुम्. शोच छु कासु ह रणीषु जभुरद्वृषा केतुयजतो ामशायत.. (१) हे दे वो! तुम य के नेता, मानव जा के पालक, दे व का आ ान करने वाले, रात के अ त थ एवं व वध द त वाले अ न क सेवा करो. सूखी लक ड़य को जलाने एवं हरी लक ड़य का भ ण करने वाले अ भलाषापूरक य के ापक एवं यजनीय अ न वग म सोते ह. (१) इमम पामुभये अकृ वत धमाणम नं वदथ य साधनम्. अ ुं न य मुषसः पुरो हतं तनूनपातम ष य नसते.. (२) दे व और मानव दोन ने श ारा र ण करने वाले व सबके धारक अ न को य का साधन बनाया. वायु के पु महान् और पुरो हत अ न को उषाएं सूय के समान चूमती ह. (२) बळ य नीथा व पणे म महे वया अ य यदा घोरासो अमृत वमाशता द जन य दै
ता आसुर वे. य च करन्.. (३)
तु तयो य अ न के ारा बताए ए ान को हम स य मानते ह. हमारी अ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क
आ तयां इस अ न के भ ण के लए ह . जब अ न क भयानक वालाएं अमरता ा त करती ह, उसी समय हमारे ऋ वज् उ ह ह दे ते ह. (३) ऋत य ह स त चो नमो म १रम तः पनीयसी. इ ो म ो व णः सं च क रेऽथो भगः स वता पूतद सः.. (४) व तृत ौ, व तीण वचन, फैला आ अंत र , व तारयु ौ तथा तु तयो य एवं अनंत धरती य क अ न को नम कार करते ह. प व श वाले इं , म , व ण, स वता एवं भगदे व उ प होते ह. (४) े ण य यना य त स धव तरो महीमरम त दध वरे. ये भः प र मा प रय ु यो व रो व जठरे व मु ते.. (५) बहने वाली न दयां गमनशील क सहायता से बहती ह एवं महती धरती को ढक दे ती ह. सब ओर जाने वाले इं सब ओर ग त करते ए म त क सहायता से अ यंत वेग धारण करते ह एवं महान् श द करते ए संसार को स चते ह. (५) ाणा ा म तो व कृ यो दवः येनासो असुर य नीळयः. ते भ े व णो म ो अयमे ो दे वे भरवशे भरवशः.. (६) मेघ के आवास, आकाश के बाज तु य एवं व को ख चने वाले पु म त् अपने अ धकार के काय करते ह. इन अ ा ढ़ दे व के साथ अ वाले इं , व ण, म और अयमा इन सबको दे खा है. (६) इ े भुजं शशमानास आशत सूरो शीके वृषण प ये. ये व याहणा तत रे युजं व ं नृषदनेषु कारवः.. (७) तोता इं से पालन, सूय से दे खने क श एवं अ भलाषापूरक इं से पौ ष ा त करते ह. जो तोता वशेष प से इं क शी पूजा करते ह, वे य म इं के व को अपना सहायक मानते ह. (७) सूर दा ह रतो अ य रीरम द ादा क यते तवीयसः. भीम य वृ णो जठराद भ सो दवे दवे स रः त बा धतः.. (८) सूय भी इं क आ ा पालन करने के लए घोड़ को चलाते ह एवं सबको स करते ह. सभी दे व श शाली इं से डरते ह. भयानक जलवषक, त दन सांस लेने वाले एवं बाधार हत इं अंत र से सहनशील बनकर श द करते ह. (८) तोमं वो अ ाय श वसे य राय नमसा द द न. ये भः शवः ववाँ एवयाव भ दवः सष वयशा नकाम भः.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋ वजो! जन आने वाले म त के साथ श शाली अपनी क त व तृत करने वाले एवं सुखकारक ई र ुलोक से यजमान क सेवा करते ह, आज य म उ ह न त अ भलाषा वाले म त से यु , श ुनाशक व शरण दे ने यो य को नम कार के साथ तो बनाओ. (९) ते ह जाया अभर त व वो बृह प तवृषभः सोमजामयः. य ैरथवा थमो व धारय े वा द ैभृगवः सं च क रे.. (१०) चूं क अ भलाषापूरक बृह प त एवं सोम के बंधु दे व वृ करके जा के लए अ बढ़ाते ह, इस लए उन जा के म य अथवा ऋ ष ने य के ारा सबसे पहले दे व को धारण कया. इसके बाद सभी श शाली दे व एवं भृगुवंशी ऋ षय ने जाकर य को जाना. (१०) ते ह ावापृ थवी भू ररेतसा नराशंस तुर ो यमोऽ द तः. दे व व ा वणोदा ऋभु णः रोदसी म तो व णुर हरे.. (११) नराशंस नामक य म तोता ारा अ धक जल वाली ावा-पृ थवी, यम, अ द त धन दे ने वाले व ा, ऋभुगण, क प नी, म द्गण एवं व णु चार अंग वाली अ नय के साथ पूजे जाते ह. (११) उत य न उ शजामु वया क वर हः शृणोतु बु यो३ हवीम न. सूयामासा वचर ता द व ता धया शमीन षी अ य बोधतम्.. (१२) बु मान् अ हबु य हम कामना करने वाले ऋ वज क वशाल तु त को य म सुन. हे आकाश म नवास करने वाले एवं वचरण करने वाले सूय-चं ! तुम अपनी बु से इस तो को जानो. हे ावा-पृ थवी! तुम तु त को अपनी बु से जानो. (१२) नः पूषा चरथं व दे ोऽपां नपादवतु वायु र ये. आ मानं व यो अ भ वातमचत तद ना सुहवा याम न ुतम्.. (१३) पूषा एवं सभी दे व के हतैषी तथा जल के नाती वायु हमारे ग तशील ा णय क य हेतु र ा कर. शंसनीय अ पाने के लए वायु क पूजा करो. हे शोभन आ ान वाले अ नीकुमारो! तुम य म जाते समय यह तो सुनो. (१३) वशामासामभयानाम ध तं गी भ वयशसं गृणीम स. ना भ व ा भर द तमनवणम ोयुवानं नृमणा अधा प तम्.. (१४) हम इन जा को अभय दे ने वाले, सबके म य नवास करने वाले व अपने यश को वयं उ प करने वाले अ न क शंसा तु तय ारा करते ह. हम दे वप नय के साथ थर अ द त को अपने तेज क नशा से मलाने वाले चं एवं मानव पर अनु ह करने के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भलाषी व सवपालक इं क तु त करते ह. (१४) रेभद जनुषा पूव अ रा ावाण ऊ वा अ भ च ुर वरम्. ये भ वहाया अभव च णः पाथः सुमेकं व ध तवन व त.. (१५) ाचीन अं गरा ऋ ष इस य म दे व क तु त करते ह. वे प थर ऊपर उठाकर य साधन सोम को दे खते ह. वशेष वाले इं प थर के श द से महान ए ह. इं के व ने इस माग म अ साधन जल बरसाया. (१५)
सू —९३
दे वता— व ेदेव
म ह ावापृ थवी भूतमुव नारी य न रोदसी सदं नः. ते भनः पातं स स ए भनः पातं शूष ण.. (१) हे ावा-पृ थवी! तुम महान् बनो. तुम व तीण बनो और नारी के समान हमारे घर म थत होओ. तुम अपने र ासाधन से हम श ु से बचाओ. तुम अपने इन काय से हम श ु से बचाओ. (१) य ेय े स म य दे वा सपय त. यः सु नैद घ ु म आ ववासा येनान्.. (२) वह मनु य के सभी य म दे व क सेवा करता है एवं यजमान अनेक शा सुनकर सुखकारी ह से दे व क प रचया करता है. (२)
को
व ेषा मर यवो दे वानां वामहः. व े ह व महसो व े य ेषु य याः.. (३) हे सकल भुवन के वामी दे वो! तु हारा वरणीय धन महान् है. तुम सब एवं य के अ धकारी हो. (३)
ा त तेज वाले
ते घा राजानो अमृत य म ा अयमा म ो व णः प र मा. क ो नृणां तुतो म तः पूषणो भगः.. (४) अयमा, म , सव गामी व ण अ य दे व के ऋ वज ारा शं सत , पूषा, म त् एवं भग अमृत स श ह व के वामी, सबके तु तयो य एवं मानव को सुख दे ने वाले ह. (४) उत नो न मपां वृष वसू सूयामासा सदनाय सध या. सचा य सा ेषाम हबु नेषु बु यः.. (५) हे अ नीकुमारो एवं समान धन वाले सूयचं ! अंत र म थत मेघ म जो अ हबु य थत ह, उनके साथ जल बरसाओ. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत नो दे वाव ना शुभ पती धाम भ म ाव णा उ यताम्. महः स राय एषतेऽ त ध वेव रता.. (६) हे क याण के वामी अ नीकुमारो! म एवं व ण! अपने तेज से हमारी र ा कर. इनके ारा र त यजमान अ धक धन पाता है एवं म थल के समान व तृत पाप से बच जाता है. (६) उत नो ा च मृळताम ना व े दे वासो रथ प तभगः. ऋभुवाज ऋभु णः प र मा व वेदसः.. (७) पु अ नीकुमार हमारी र ा कर. सम त दे व रथ के वामी पूषा, भग ऋभु, अ के वामी भग एवं ग तशील अ य सब दे व हम सुख द. (७) ऋभुऋभु ा ऋभु वधतो मद आ ते हरी जूजुवान य वा जना. रं य य साम च ध य ो न मानुषः.. (८) हे महान् इं ! तुम एवं तु हारी सेवा करने वाले यजमान का हष य से सुशो भत होता है. य के त तुम शी आते हो एवं तु हारे घोड़े श शाली ह. तु हारे लए गाया जाने वाला साम रा स ारा तर है. तु हारा द य मानव ारा सा य नह है. (८) कृधी नो अ यो दे व स वतः स च तुषे मघोनाम्. सहो न इ ो व भ यषां चषणीनां च ं र मं न योयुवे.. (९) हे स वता दे व! हम ल जार हत बनाओ. धनी यजमान के तोता तु हारी तु त करते ह. हमारे बल के समान इं हम मानव के य म आने के लए अपने प हय वाले रथ म वायु के समान वेग वाले घोड़ को जोड़कर शी पधार. (९) ऐषु ावापृ थवी धातं महद मे वीरेषु व चष ण वः. पृ ं वाज य सातये पृ ं रायोत तुवणे.. (१०) हे ावा-पृ थवी! तुम हमारे वीरपु को अनेक सेवा से यु बल ा त व श ुनाश के लए धन के साथ पालक अ दो. (१०) एतं शंस म ा मयु ् वं कू च स तं सहसाव भ ये सदा पा मेदतां वेदता वसो.. (११)
महान् यश दो. तुम उ ह भ ये.
हे हमारे समीप आने के अ भलाषी इं ! हमारा तोता जहां भी हो, य के लए उसक र ा करो. अ भल षत स के लए अपने ान से तोता को जानो. (११) एतं मे तोमं तना न सूय ुत ामानं वावृध त नृणाम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
संवननं ना
ं त ेवानप युतम्.. (१२)
दे वश ु के भली-भां त वनाश के समान मेरा तो ऋ वज् इस कार बढ़ाव, जस कार सूय अपनी व तृत र मय को बढ़ाता है. बढ़ई जस कार घोड़ से ख चने यो य रथ बनाता है, उसी कार मने यह तो बनाया है. (१२) वावत येषां राया यु ै षां हर ययी. नेम धता न प या वृथेव व ा ता.. (१३) हम जन दे व से धन पाना चाहते ह, उनक तु त बार-बार पढ़ते ह. यह तु त सोने के गहन के समान स ता दे ने वाली है. यु म सै नक जस कार आगे बढ़ते ह अथवा रहट के घड़े आगे चलते ह, उसी कार हमारे तो बढ़. (१३) त ःशीमे पृथवाने वेने रामे वोचमसुरे मघव सु. ये यु वाय प च शता मयु पथा व ा ेषाम्.. (१४) जो दे व पांच सौ रथ को घोड़ से यु करके हमारे समीप आने क अ भलाषा से य के माग म आते ह. उन दे व से संबं धत तो मने ःसीम, पृथवान्, वेन एवं श शाली राम के समीप बोले ह. ये सभी राजा धनसंप ह. (१४) अधी व स त त च स त च. स ो द द ता वः स ो द द पा यः स ो द द मायवः.. (१५) इन राजा
सू —९४
से ना व, पा य एवं मायव ऋ षय ने शी ही सतह र गाएं मांग . (१५)
दे वता—सोम प थर
नचोड़ने
के
ै े वद तु वयं वदाम ाव यो वाचं वदता वदद् यः. त यद यः पवताः साकमाशवः ोकं घोषं भरथे ाय सो मनः.. (१) ये प थर श द कर, हम इन प थर क तु त कर. हे ऋ वजो! तुम श द करने वाले प थर क तु त करो. हे आदरणीय ढ़ एवं सोमरस नचोड़ने म शी ता करने वाले प थरो! तुम एक इं के लए सुनने यो य श द करो. हे सोमरसयु प थरो! तुम सोम से तृ त बनो. (१) एते वद त शतव सह वद भ द त ह रते भरास भः. व ् वी ावाणः सुकृतः सुकृ यया होतु पूव ह वर माशत.. (२) ये प थर सैकड़ अथवा हजार लोग के समान श द करते ह. ये सोमलता के कारण ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हरे प थर अपने मुख से दे व को बुलाते ह. ये शोभन कम-वाले प थर य को पाकर दे व को बुलाने वाले अ न से पहले ही ह भ ण करते ह. (२) एते वद य वद ना मधु यूङ्खय ते अ ध प व आ म ष. वृ य शाखाम ण य ब सत ते सूभवा वृषभाः ेमरा वषुः.. (३) ये प थर लाल रंग के पेड़ क शाखा को खाने वाले सुभ ण बैल के समान श द करते ह. मांसभ ी मांस पकने पर जैसी हष व न करते ह, उसी कार का श द ये प थर नशीला सोम सुख से पीते समय करते ह. (३) बृह द त म दरेण म दने ं ोश तोऽ वद ना मधु. संर या धीराः वसृ भरन तपुराघोषय तः पृ थवीमुप द भः.. (४) नशा करने वाले एवं नचोड़े जाते ए सोम के ारा इं को पुकारने वाले ये प थर महान् श द करते ह. ये प थर अपने मुख से नशीला सोमरस ा त करते ह. ये प थर नचोड़ने के काम म चंचल होकर भी धीर रहते ह एवं अपने श द से धरती को गुं जत करते ए उंग लय के साथ नाचते ह. (४) सुपणा वाचम तोप ाखरे कृ णा इ षरा अन तषुः. य१ङ् न य युपर य न कृतं पु रेतो द धरे सूय तः.. (५) इन प थर का श द सुनकर ऐसा लगता है, जैसे आकाश म उड़ने वाले प ी श द कर रहे ह . ये प थर जंगल म घूमने वाले कृ णसार ह रण के समान नाचते ह. ये प थर पसे ए सोम को नीचे गराते ह एवं सूय के समान ेत वण के जल को अ धक मा ा म धारण करते ह. (५) उ ाइव वह तः समायमुः साकं यु ा वृषणो ब तो धुरः. य छ् वस तो ज साना अरा वषुः शृ व एषां ोथथो अवता मव.. (६) जस कार श शाली घोड़े मलकर रथ के जुए अपना शरीर लंबा करते ह. उसी कार य का भार बनकर सोमरस टपकाते ह. ये सोमलता को कुचलने म ए सोम को नगलते एवं श द करते ह. घोड़े के मुख से का श द सुनता ं. (६)
को धारण करके आगे बढ़ाते ह एवं वहन करने वाले ये प थर वशाल नीचे-ऊपर होने के बहाने सांस लेते नकले श द के समान म इन प थर
दशाव न यो दशक ये यो दशयो े यो दशयोजने यः. दशाभीशु यो अचताजरे यो दश धुरो दश यु ा वहद् यः.. (७) हे ऋ वजो! सोमरस नचुड़ते समय दस उंग लय ारा हण कए गए, दस उंग लय ारा द शत, दस उंग लय ारा ब , दस उंग लय पी लगाम से घोड़ के समान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वशीभूत, जरार हत एवं दस र सय से बंधे घोड़ के समान य को वहन करने वाले प थर क तु त करो. (७) ते अ यो दशय ास आशव तेषामाधानं पय त हयतम्. त ऊ सुत य सो य या धस ऽशोः पीयूषं थम य भे जरे.. (८) ये प थर दस उंग लय पी र सय का बंधन पाकर ज द -ज द काम करते ह. इनके ारा न मत सोमरस हरे रंग का होकर नकलता है. ये प थर ही नचोड़े गए सोम के रसमय अंश को अमृत अ के समान पहले हण करते ह. (८) ते सोमादो हरी इ य नसतऽशुं ह तो अ यासते ग व. ते भ धं प पवा सो यं म व ो वधते थते वृषायते.. (९) सोमरस का भ ण करने वाले ये प थर इं के घोड़ को ा त करते ह. इनका रस नकलकर गोचम के ऊपर जाता है. इन प थर ारा नकाले ए मधुर सोमरस को पीकर इं बढ़ते ह, व तृत होते ह एवं सांड़ के समान श दखाते ह. (९) वृषा वो अंशुन कला रषाथनेळाव तः सद म थना शताः. रैव येव महसा चारवः थान य य ावाणो अजुष वम वरम्.. (१०) हे प थरो! सोमलता का खंड तु ह य म रस दे गा. तुम नराश मत बनो. तुम अ वाल के समान सदा भोजन ा त करो. तुम धनी लोग के समान सदा तेजयु होकर क याणकारी बनो एवं यजमान के य का सेवन करो. (१०) तृ दला अतृ दलासो अ योऽ मणा अशृ थता अमृ यवः. अनातुरा अजराः थाम व णवः सुपीवसो अतृ षता अतृ णजः.. (११) हे प थरो! तुम वयं मर हत होकर सर को थकाने वाले, थकान से र हत, सर ारा श थल न होने वाले, मरणर हत, रोगहीन, उठने- गरने क ग त से यु , शोभन श वाले तृषार हत एवं न पृह बनो. (११) ु ा एव वः पतरो युगेयुगे ेमकामासः सदसो न यु ते. व अजुयासो ह रषाचो ह र व आ ां रवेण पृ थवीमशु वुः.. (१२) हे प थर! तु हारे पूवज पवत युग से थर ह. वे पूणकाम पवत कभी भी अपना थान नह छोड़ते. ये जरार हत पवत सोम का भोग करने वाले, हरे वृ वाले एवं अपने श द से धरती-आकाश को पूण करने वाले ह. (१२) त द द य यो वमोचने याम पाइव घे प द भः. वप तो बीज मव धा याकृतः पृ च त सोमं न मन त ब सतः.. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रथचालक माग म रथ चलाता आ जस कार श द करता है उसी कार सोमलता का रस नचोड़ने म ये प थर श द करते ह. कसान जस कार बीज बोते ह, उसी कार ये पाषाण सोमरस को व तृत करते ह. न नह करते ह. (१३) सुते अ वरे अ ध वाचम ता ळयो न मातरं तुद तः. व षू मु चा सुषुवुषो मनीषां व वत ताम य ायमानाः.. (१४) ब चे खेलते समय जस कार अपनी माता को ध का दे ते ए ह ला मचाते ह, उसी कार ये पू य प थर य म सोमरस नचोड़ते समय श द करते ह. हे तोताओ! सोमरस नचोड़ने वाले प थर क तु त करो. प थर घूमते ए श द कर. (१४)
सू —९५
दे वता—उवशी व पु रवा
हये जाये मनसा त घोरे वचां स म ा कृणवावहै नु. न नौ म ा अनु दतास एते मय कर परतरे चनाहन्.. (१) पु रवा ने कहा—“हे ःख दे ने वाली प नी! अनुरागपूण मन से ण भर मेरे समीप ठहरो. हम आज शी ही कथोपकथन कर. आज य द हमारी बात अनकही रह ग तो आने वाले दन सुखकारक नह ह गे.” (१) कमेता वाचा कृणवा तवाहं ा मषमुषसाम येव. पु रवः पुनर तं परे ह रापना वातइवाहम म.. (२) उवशी ने कहा—“केवल बात से या होगा? पूववत उषा के समान म तु हारे पास से चली गई ं. हे पु रवा! तुम अपने घर को पुनः चले जाओ. म वायु के समान ा य ं.” (२) इषुन य इषुधेरसना गोषाः शतसा न रं हः. अवीरे तौ व द व ुत ोरा न मायुं चतय त धुनयः.. (३) पु रवा ने कहा—“तु हारे बना म वजय पाने के लए तरकस से बाण नह नकाल पाता और न सैकड़ गाय को वेगपूवक श ु से छ न पाता ं. वीर वहीन रा य व था म मेरा साम य का शत नह होता. श ु को कं पत करने वाले मेरे वीर सं ाम म सहनाद नह करते. (३) सा वसु दधती शुराय वय उषो य द व तगृहात्. अ तं नन े य म चाक दवा न ं थता वैतसेन.. (४) उवशी ने कहा—“हे उषा! यह उवशी य द प तगृह म अपने ससुर को भोजन दे ना ******ebook converter DEMO Watermarks*******
चाहती तो समीपवत क से प त के रात म सोने वाले कमरे म जाती तथा रात- दन अपने प त के साथ रमणसुख भोगती.” (४) ः म मा ः थयो वैतसेनोत म मेऽ यै पृणा स. पु रवोऽनु ते केतमायं राजा मे वीर त व१ तदासीः.. (५) हे पु रवा! तुम दन म तीन बार पु ष इं य ारा ता डत करते थे. कसी सौत के साथ मेरी होड़ नह थी. म त दन तु हारे शयनक म आती थी. हे वीर राजा! तुम मेरे शरीर को सुख दे ते थे.” (५) या सुजू णः े णः सु नआ प दे च ुन थनी चर युः. ता अ योऽ णयो न स ुः ये गावो न धेनवोऽनव त.. (६) पु रवा ने कहा—“मेरे महल म तु हारे आने के बाद सुजू ण, े ण, सु न, आ प, दे च ु, ं थनी, चर यू आ द अ सराएं गो म जाने वाली गाय के समान श द करती ई नह आती थ .” (६) सम म ायमान आसत ना उतेमवध १: वगूताः. महे य वा पु रवो रणायावधय द युह याय दे वाः.. (७) उवशी ने कहा—“पु रवा के ज म के समय दे खने के लए दे वप नयां भी एक त तथा वयं बहने वाली न दय ने भी उसे आ त बनकर बढ़ाया. दे व ने यु म श ुहनन करने के लए तु हारी अ यंत वृ क .” (७) सचा यदासु जहती व कममानुषीषु मानुषो नषेवे. अप म म रस ती न भु यु ता अ स थ पृशो ना ाः.. (८) पु रवा ने कहा—“मानव पधारी पु रवा जब अमानुष पधा रणी अ सरा के सामने गए, तब वे इस कार भाग ग , जस कार हरनी ाध से र भागती है अथवा रथ म जुते ए घोड़े भागते ह. (८) यदासु मत अमृतासु न पृ सं ोणी भः तु भन पृङ् े . ता आतयो न त वः शु भत वा अ ासो न ळयो द दशानाः.. (९) जब मानव पु रवा ने मरणर हत अ सरा को वशेष प से पश करते ए वचन और कम से उनके साथ संपक था पत कया, तब वे ड़ारत अ के समान श द करके भाग ग और दखाई नह द . (९) व ु या पत ती द व ो र ती मे अ या का या न. ज न ो अपो नयः सुजातः ोवशी तरत द घमायुः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो उवशी आकाश से गरने वाली बजली के समान शु बनी तथा मेरी व तृत अ भलाषा को पूण कया, उसके गभ से मानव हतकारी पु उ प आ. उस समय उवशी ने मुझे द घ आयु दान क . (१०) ज ष इ था गोपी याय ह दधाथ त पु रवो म ओजः. अशासं वा व षी स म ह म आशृणोः कमभु वदा स.. (११) उवशी ने कहा—“हे पु रवा! धरती क र ा के लए तुम पु प म उ प ए थे. इसी हेतु तुमने मेरे उदर म अपना तेज गभ प म धारण कया था. उस समय मने तु ह बता दया था क कसी प र थ त म तु हारे पास नह र ंगी. उस समय तुमने मेरी बात नह सुनी. इस समय थ बात य कर रहे हो?” (११) कदा सूनुः पतरं जात इ छा च ा ु वतय जानन्. को द पती समनसा व यूयोदध यद नः शुरेषु द दयत्.. (१२) पु रवा ने कहा—“तु हारे उदर से उ प पु मुझे कब चाहेगा? मुझे पता प म जानकर या वह आंसू नह बहाएगा? एक- सरे को चाहने वाले प त-प नी को कौन अलग करना चाहेगा? इस समय तु हारे उदर से उ प पु पी अ न तु हारे ससुर के घर म व लत हो.” (१२) त वा ण वतयते अ ु च त े हनवा य े अ मे परे
ददा ये शवायै. तं न ह मूर मापः.. (१३)
उवशी ने कहा—“म तु हारी बात का उ र दे रही ं. मेरा पु तु हारे पास जाकर कभी आंसू नह बहाएगा. म सदा उसके क याण का यान रखूंगी. म तु हारे पु को तु हारे पास प ंचा ं गी. हे ानर हत पु रवा! अब अपने घर लौट जाओ. तुम मुझे नह पा सकोगे.” (१३) सुदेवो अ पतेदनावृ परावतं परमां ग तवा उ. अधा शयीत नऋते प थेऽधैनं वृका रभसासो अ ुः.. (१४) पु रवा ने कहा—“तु हारे साथ ड़ा करने वाला तु हारा ेमी म आज ही गर पडंगा. फर कभी नह उठूं गा. म ब त र चला जाऊंगा. म उस दशा म ही मर जाऊंगा एवं वेगशील भे ड़ए मुझे खा जाएंगे.” (१४) पु रवो मा मृथा मा प तो मा वा वृकासो अ शवास उ न्. न वै ैणा न स या न स त सालावृकाणां दया येता.. (१५) उवशी ने कहा—“हे पु रवा! तुम मत मरो. तुम धरती पर मत गरो. अशुभ भे ड़ए तु ह न खाएं. य क मै ी वा त वक नह होती. य का दय भे ड़य के दय के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समान होता है.” (१५) य पाचरं म य ववसं रा ीः शरद त ः. घृत य तोकं सकृद आ ां तादे वेदं तातृपाणा चरा म.. (१६) “मने अनेक प धारण करके मानव म मण कया है. म चार वष तक रात के समय मानव के बीच रही ं. म दन म एक बार घी पीकर तृ त हो गई ं और वचरण करती रही ं.” (१६) अ त र ां रजसो वमानीमुप श ा युवश व स ः. उप वा रा तः सुकृत य त ा वत व दयं त यते मे.. (१७) पु रवा ने कहा—“अंत र को पूण करने वाली एवं जल का नमाण करने वाली उवशी को अ तशय वासदाता पु रवा (म) वश म करता ं. शोभन कम वाला पु रवा तु हारे पास रहे. मेरा दय त त हो रहा है. तुम लौट आओ. (१७) इ त वा दे वा इम आ रैळ यथेमेत व स मृ युब धुः. जा ते दे वा ह वषा यजा त वग उ वम प मादयासे.. (१८) उवशी ने कहा—“हे इड़ा के पु पु रवा! ये सारे दे व कह रहे ह क तुम मृ यु को वश म करने वाले बनोगे. तुम ह ारा दे व का उ म य करोगे एवं वग म आनंद पाओगे.” (१८)
सू —९६
दे वता—इं के घोड़े
ते महे वदथे शं सषं हरी ते व वे वनुषो हयतं मदम्. घृतं न यो ह र भ ा सेचत आ वा वश तु ह रवपसं गरः.. (१) हे श ु हसक इं ! म य म तु हारे घोड़ क वशेष शंसा करता ं एवं तुमसे स होने क ाथना करता ं. तुम अपने ह र नामक घोड़ ारा आकर हम घी से स चो. हे शु वण इं ! मेरी तु तयां तु ह ा त ह . (१) ह र ह यो नम भ ये सम वर ह व तो हरी द ं यथा सदः. आ यं पृण त ह र भन धेनव इ ाय शूषं ह रव तमचत.. (२) हे तोताओ! पुराने तोता ने इं को य गृह क ओर े रत कया तथा इं के घोड़ को य म बुलाया. गाएं जस कार ध से भगोती ह, उसी कार उ ह ने इं को सोमरस से तृ त कया. तुम भी इं एवं उनके घोड़ क श क शंसा करो. (२) सो अ य व ो ह रतो य आयसो ह र नकामो ह ररा गभ योः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ु नी सु श ो ह रम युसायक इ े न
पा ह रता म म रे.. (३)
इं का व लोहे का बना आ, सुंदर, श न ु ाशक एवं हाथ म धारण करने यो य है. धनी, शोभन ना सका वाले, ोध म भरकर बाण ारा श ुनाश करने वाले इं को हरे रंग के सोम ारा स चा गया. (३) द व न केतुर ध धा य हयतो व च ो ह रतो न रं ा. तुदद ह ह र श ो य आयसः सह शोका अभव र भरः.. (४) तोता ने आकाश म सूय के समान इं के व को थर कया. उस व ने अपने वेग से सारी दशा को ा त कर लया. हरी ना सका वाले एवं सोमपानक ा इं ने व से श ु को मारते समय हजार कार क द त धारण क . (४) वं वमहयथा उप तुतः पूव भ र ह रकेश य व भः. वं हय स तव व मु य१मसा म राधो ह रजात हयतम्.. (५) हे हरे केश वाले इं ! तुम ाचीन यजमान ारा शं सत होकर ह व क कामना करते थे. हे हरे रंग वाले इं ! तु हारा सम त अ ा त, शंसनीय, असाधारण एवं सुंदर है. (५) ता व णं म दनं तो यं मद इ ं रथे वहतो हयता हरी. पु य मै सवना न हयत इ ाय सोमा हरयो दध वरे.. (६) वे ग तशील घोड़े व धारी, स व तु तयो य इं को रथ म बैठाकर हमारे य म लाते ह. इस कांत इं के लए य म हरे रंग का सोमरस अ धक मा ा म नचोड़ा जाता है. (६) अरं कामाय हरयो दध वरे थराय ह व हरयो हरी तुरा. अव य ह र भज षमीयते सो अ य कामं ह रव तमानशे.. (७) थर इं के लए रखा आ पया त सोमरस इं के शी गामी अ को य के त े रत करता है. जो रथ हरे रंग के घोड़ ारा सं ाम म ले जाया जाता है, वही रथ इं ारा अ भल षत एवं सोमरस से पूण य म थत होता है. (७) ह र मशा ह रकेश आयस तुर पेये यो ह रपा अवधत. अव य ह र भवा जनीवसुर त व ा रता पा रष री.. (८) हरे रंग क दाढ़ एवं केश वाले तथा लौहमय दय वाले इं शी पीने यो य हरे रंग के सोमरस को पीकर बढ़ते ह. य पी संप वाले इं को हरे रंग के घोड़े य म ले जाते ह. इं घोड़ को रथ म जोड़कर हमारी सब दशा र कर. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ुवेव य य ह रणी वपेततुः श े वाजाय ह रणी द व वतः. य कृते चमसे ममृज री पी वा मद य हयत या धसः.. (९) जस कार ुवा होम के लए नीचे गरता है, उसी कार इं क हरे रंग क आंख य पर पड़ . इं सोम प अ का भ ण करने के लए अपने हरे रंग के जबड़ को ग त दे ते ह. शु चमस म वतमान नशीले एवं सुंदर सोमरस को पीकर घोड़े अपने शरीर को सचेत बनाते ह. (९) उत म स हयत य प यो३ र यो न वाजं ह रवाँ अ च दत्. मही च धषणाहयदोजसा बृह यो द धषे हयत दा.. (१०) कमनीय इं का घर ावा-पृ थवी है. वे घोड़ से यु होकर ती ग त से यु म जाते ह. वशाल तु त बलशाली इं क कामना करती है. तुम यजमान को वशाल अ दे ते हो. (१०) आ रोदसी हयमाणो म ह वा न ंन ं हय स म म नु प यमसुर हयतं गोरा व कृ ध हरये सूयाय.. (११)
यम्.
हे अ भलाषायु इं ! तुम अपने मह व से ावा-पृ थवी को पूण करते हो एवं अ यंत नवीन तथा य तो क कामना करते हो. हे श शाली इं ! गाय के सुंदर थान को जल हरण करने वाले सूय के लए कट करो. (११) आ वा हय तं युजो जनानां रथे वह तु ह र श म . पबा यथा तभृत य म वो हय य ं सधमादे दशो णम्.. (१२) हे हरे रंग के जबड़ वाले इं ! तु हारे घोड़े रथ म जुतकर तु हारी इ छानुसार तु ह यजमान के य म ले जाव. तुम अपने लए रखा आ मधुर सोमरस पओ. तुम यु म य के साधन एवं दस उंग लय ारा नचोड़े गए सोम को पओ. (१२) अपाः पूवषां ह रवः सुतानामथो इदं सवनं केवलं ते. मम सोमं मधुम त म स ा वृष ठर आ वृष व.. (१३) हे अ के वामी इं ! तुमने ातः सवन म तैयार कया गया सोमरस पया है. यह मा यं दन सवन केवल तु हारे लए है. इस मधुर सोम का तुम वाद लो. हे अ धक वषा करने वाले इं ! सोमरस से तुम अपना उदर स चो. (१३)
दे वता—ओष ध
सू —९७ या ओषधीः पूवा जाता दे वे य
युगं पुरा.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मनै नु ब ूणामहं शतं धामा न स त च.. (१) जो ओष धयां ाचीन काल म तीन युग म दे व से उ प रंग क ओष धयां एक सौ सात थान म थत ह. (१)
ई ह, म मानता ं क वे पीले
शतं वो अ ब धामा न सह मुत वो हः. अधा शत वो यूय ममं मे अगदं कृत.. (२) हे माता के समान ओष धयो! तु हारे ज म सौ एवं तु हारे रोहण हजार ह. हे सौ कम वाली ओष धयो! तुम मुझे नरोग करो. (२) ओषधीः
तमोद वं पु पवतीः सूवरीः. अ ाइव स ज वरीव धः पार य वः.. (३)
हे फूल और फल वाली ओष धयो! तुम इस रोगी के त स बनो. तुम अ समान जयशील, उ प होने वाली एवं रो गय को रोग से पार करने वाली हो. (३)
के
ओषधी र त मातर त ो दे वी प ुवे. सनेयम ं गां वास आ मानं तव पू ष.. (४) हे माता के समान द ओष धयो! म तु हारे संबंधी वै से इस कार कहता — ं “हे च क सक! म तु ह घोड़ा, गाय, व एवं वयं को दे सकता ं.” (४) अ थे वो नषदनं पण वो वस त कृता. गोभाज इ कलासथ य सनवथ पू षम्.. (५) हे ओष धयो! तुम पीपल के वृ पर रहती हो एवं पलाश वृ पर तु हारा नवास थान है. जब तुम रोगी पु ष पर कृपा करती हो, तब तुम गाय पाने क अ धका रणी बनती हो. (५) य ौषधीः सम मत राजानः स मता वव. व ः स उ यते भष
ोहामीवचातनः.. (६)
यु म एक होने वाले राजा लोग के समान जस के पास सभी ओष धयां होती ह, उसे ा ण या भषक् कहते ह. वह रोग का नाश करता है. (६) अ ावत सोमावतीमूजय तीमुदोजसम्. आ व स सवा ओषधीर मा अ र तातये.. (७) म इस रोग का वनाश करने के लए अ वती, सोमवती, ऊजयंती, उदोजस आ द सभी ओष धय क तु त करता ं. (७) उ छु मा ओषधीनां गावो गो ा दवेरते. धनं स न य तीनामा मानं तव पू ष.. (८) हे रोगी पु ष! ओष धय से बल उसी कार बाहर नकलता है, जस कार गोशाला से गाएं बाहर जाती ह. ये ओष धयां तु ह वा य पी धन दे ती ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ कृ तनाम वो माताथो यूयं थ न कृतीः. सीराः पत णीः थन यदामय त न कृथ.. (९) हे ओष धयो! तु हारी माता का नाम इ कृ त अथात् रोग वना शका है, इस लए तुम भी इ कृ त हो. तुम रोग को बाहर नकालने वाली एवं पतनयु हो. तुम रोगी को व थ करो. (९) अ त व ाः प र ाः तेनइव जम मुः. ओषधीः ाचु यवुय कं च त वो३ रपः.. (१०) सव ा त एवं सब ओर थत ओष धयां रोग को इस कार लांघ जाती ह, जस कार चोर गोशाला को लांघ जाता है. शरीर म जो भी ा ध होती है, उसे ओष धयां न करती ह. (१०) य दमा वाजय हमोषधीह त आदधे. आ मा य म य न य त पुरा जीवगृभो यथा.. (११) जब म रोगी को श शाली बनाता आ इन ओष धय को हाथ म लेता ,ं तब रोग क आ मा उसी कार न होती है, जैसे मृ यु से जीव न हो जाता है. (११) य यौषधीः सपथा म ं प प ः. ततो य मं व बाध व उ ो म यमशी रव.. (१२) हे ओष धयो! तुम जसके अंगअंग एवं गांठगांठ म आ य लेती हो, उसके शरीर से रोग इस कार र कर दे ती हो, जस कार श शाली राजा चोर को दे श से नकाल दे ता है. (१२) साकं य म पत चाषेण क कद वना. साकं वात य ा या साकं न य नहाकया.. (१३) हे ा ध! तुम नीलकंठ, बाज, वायु अथवा गोह के समान रोगी के शरीर से ज द चली जाओ. (१३)
र
अ या वो अ यामव व या य या उपावत. ताः सवाः सं वदाना इदं मे ावता वचः.. (१४) हे ओष धयो! तुम म से पहली सरी के और सरी तीसरी के पास जावे. इस कार सब ओष धयां मलकर मेरे वचन क र ा कर. (१४) याः फ लनीया अफला अपु पा या पु पणीः. बृह प त सूता ता नो मु च वंहसः.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बृह प त से उ प फलस हत, फलर हत, पु पर हत एवं पु पयु बचाव. (१५)
ओष धयां हम रोग से
मु च तु मा शप या३दथो व या त. अथो यम य पड् बीशा सव मा े व क बषात्.. (१६) ओष धयां मुझे झूठ कसम खाने के पाप से, व ण के पाश से, यम क बेड़ी से एवं सभी दे व के पाश से बचाव. (१६) अवपत तीरवद दव ओषधय प र. यं जीवम वामहै न स र या त पू षः.. (१७) ओष धय ने वग से नीचे उतरते समय कहा था क हम जस जी वत कर जाती ह, वह न नह होता. (१७) या ओषधीः सोमरा ीब (१८)
म वेश
ः शत वच णाः. तासां वम यु मारं कामाय शं
दे ..
हे ओष ध! जो ओष धयां सोम राजा क जा ह, अग णत एवं अ त कुशल ह, तुम उन म उ म हो. तुम अ भलाषा को पूण करके मन को शां त दो. (१८) या ओषधीः सोमरा ी व ताः पृ थवीमनु. बृह प त सूता अ यै सं द (१९)
वीयम्..
जो ओष धयां! सोम राजा क जा ह, वग से आकर धरती पर फैली ह एवं वृह प त से उ प ह, वे इस रोगी को श द. (१९) मा वो रष ख नता य मै चाहं खना म वः. (२०)
प चतु पद माकं सवम वनातुरम्..
हे ओष धयो! म तु हारा खोदने वाला ं. तुम मुझे न मत करना. म जनके लए तु ह खोदता ,ं उसे भी न मत करना. हमारे दो पैर एवं चार पैर वाले जीव रोगर हत ह . (२०) या ेदमुपशृ व त या
रं परागताः. सवाः स
य वी धोऽ यै सं द वीयम्.. (२१)
जो ओष धयां मेरा यह तो सुन रही ह अथवा जो र चली गई ह, वे सब एक होकर इस रोगी को श द. (२१) ओषधयः सं वद ते सोमेन सह रा ा. य मै कृणो त ा ण तं राजन् पारयाम स.. (२२) ओष धयां राजा सोम के साथ इस कार बातचीत करती ह—“हे राजा! तोता ा ण ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जसका इलाज करता है, हम उसीको बचाती ह.” (२२) वमु मा योषधे तव वृ ा उप तयः. उप तर तु सो३ऽ माकं यो अ माँ अ भदास त.. (२३) हे ओष धयो! तुम सबसे वह हमसे नीचा बने. (२३)
सू —९८
े हो. सभी वृ
तुमसे न न ह. जो हम हा न प ंचाता है,
दे वता—अनेक
बृह पते त मे दे वता म ह म ो वा य णो वा स पूषा. आ द यैवा य सु भम वा स पज यं श तनवे वृषाय.. (१) हे बृह प त! तुम मेरे क याण के लए सब दे व के पास जाओ. तुम म , व ण, पूषा, आ द य तथा वसु के साथ इं हो. तुम राजा शंतनु के लए जल बरसाओ. (१) आ दे वो तो अ जर क वा व े वापे अ भ मामग छत्. तीचीनः त मामा ववृ व दधा म ते ुमत वाचमासन्.. (२) हे दे वा प! कोई ानी एवं ग तशील दे व त बनकर तु हारे पास से मेरे समीप आवे. हे बृह प त! तुम मेरी ओर उ मुख होकर मेरे पास आओ. म तु हारे लए द तयु तु त अपने मुख म धारण करता ं. (२) अ मे धे ह ुमत वाचमासन् बृह पते अनमीवा म षराम्. यया वृ श तनवे वनाव दवो सो मधुमाँ आ ववेश.. (३) हे बृह प त! तुम एक द तशा लनी, दोषर हत एवं गमनशील तु त को मेरे मुख म धारण करो. उसी तु त ारा शंतनु के लए आकाश से वषा आवे तथा मधुयु रस टपके. (३) आ नो सा मधुम तो वश व दे धरथं सह म्. न षीद हो मृतुथा यज व दे वा दे वापे ह वषा सपय.. (४) माधुययु वषा हम भली कार ा त करे. हे इं ! अपने रथ पर थत हजार कार का धन हम दो. हे दे वा प! हमारे य म बैठो, ऋतु के अनुसार होम करो एवं ह व ारा दे व को स करो. (४) आ षेणो हो मृ ष नषीदन् दे वा पदवसुम त च क वान्. स उ र मादधरं समु मपो द ा असृज या अ भ.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ षेण के पु दे वा प ऋ ष दे व के त शोभन वृ से यु तु त करके य करने बैठे. उस समय वे ऊपर वाले समु अथात् अंत र से नीचे वाले सागर म जल ले आए एवं द जल चार ओर बरसा. (५) अ म समु े अ यु र म ापो दे वे भ नवृता अ त न्. ता अ व ा षेणेन सृ ा दे वा पना े षता मृ णीषु.. (६) जस ऊपर वाले सागर अथात् आकाश म दे व ने जल को रोक रखा है, उस जल को ऋ षेण के पु दे वा प ने बरसाया. वह जल व छ थान पर बहने लगा. (६) य े वा पः श तनवे पुरो हतो हो ाय वृतः कृपय द धेत्. दे व ुतं वृ व न रराणो बृह प तवाचम मा अय छत्.. (७) जब दे वा प ने शंतनु का पुरो हत बनकर एवं अ नहो के लए वरण ा त करके मेघ ारा सुनने यो य एवं वषायाचक तो बोला, तब बृह प त ने उ ह बोलने क श द . (७) यं वा दे वा पः शुशुचानो अ न आ षेणो मनु यः समीधे. व े भदवैरनुम मानः पज यमीरया वृ म तम्.. (८) हे अ न! ऋ षेण के पु दे वा प मनु य ने प व होकर तु ह भली कार जलाया. तुम सभी दे व से े रत होकर वषा वाले बादल को ेरणा दो. (८) वां पूव ऋषयो गी भराय वाम वरेषु पु त व े. सह ा य धरथा य मे आ नो य ं रो हद ोप या ह.. (९) हे अ न! पूववत ऋ ष तु तयां बोलते ए तु हारे समीप आए ह. हे ब त ारा बुलाए गए अ न! इस समय सब यजमान य म तु हारे पास जाते ह. राजा शंतनु ने य म मुझे हजार कार क संप द णा के प म द . हे रो हत अ वाले अ न! तुम यहां आओ. (९) एता य ने नव तनव वे आ ता य धरथा सह ा. ते भवध व त वः शूर पूव दवो नो वृ म षतो ररी ह.. (१०) हे अ न! रथ म थत न यानवे हजार पदाथ तु ह आ त प से दए गए. हे शूर अ न! उनसे तुम अपना शरीर बढ़ाओ और आकाश से हमारे लए वषा करो. (१०) एता य ने नव त सह ा सं य छ वृ ण इ ाय भागम्. व ा पथ ऋतुशो दे वयानान यौलानं द व दे वेषु धे ह.. (११) हे अ न! इन न यानवे हजार कार के पदाथ म से वषा करने वाले इं को ह सा दो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुम दे व के गमन के सभी माग जानते हो. तुम समयानुसार कौरववंशी शंतनु को वग म थत करो. (११) अ ने बाध व व मृधो व गहापामीवामप र ां स सेध. अ मा समु ाद् बृहतो दवो नोऽपां भूमानमुप नः सृजेह.. (१२) हे अ न! तुम श ु क गम नग रय को बाधा प ंचाओ तथा रोग व रा स को र करो. तुम इस ुलोक पी वशाल सागर से हमारे लए अ धक जल बरसाओ. (१२)
सू —९९
दे वता—अ न
कं न मष य स च क वा पृथु मानं वा ं वावृध यै. क य दातु शवसो ु ौ त ं वृ तुरम प वत्.. (१) हे इं ! तुम ठ क से जानबूझकर हम व च धन दे ते हो. तुम हमारी वृ के लए वृ शील एवं शंसनीय संप दे ते हो. इं के बल क वृ के लए हम या दे ना पड़ेगा? व ा ने इं के लए वृ नाशक व बनाया और उ ह ने वषा क है. (१) स ह ुता व ुता वे त साम पृथुं यो नमसुर वा ससाद. स सनीळे भः सहानो अ य ातुन ऋते स तथ य मायाः.. (२) इं द तशाली आयुध से यु होकर य म गाए जाते सामगीत सुनने जाते ह एवं बलपूवक अनेक थान पर बैठते ह. आ द य के सातव भाई एवं सदा साथ रहने वाले म त के सहयोग से श ु को हराने वाले इं को छोड़कर कोई काय होना संभव नह है. (२) स वाजं याताप पदा य वषाता प र षद स न यन्. अनवा य छत र य वेद न छ दे वाँ अ भ वपसा भूत्.. (३) सं ाम म जाने वाले के लए इं खलनर हत ग त से जाते ह एवं श ु का धन अपने भ म बांटने क इ छा से सं ाम म थत होते ह. यु म थर इं श ु क सौ ार वाली नगरी म थत धन को जानकर अपने बल से लाते ह एवं इं यपरायण रा मा को हराते ह. (३) स य ो३ऽवनीग ववा जुहो त ध यासु स ः. अपादो य यु यासोऽरथा ो य ास ईरते घृतं वाः.. (४) मेघ म ग तशील एवं चलने म कुशल इं उ म धन वाली धरती म महान् जल को बखेरते ह. वहां चरणर हत एवं रथ वहीन अथात् छोट -छोट न दयां एक होकर बना नाव के घृत के समान जल बहाती ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स े भरश तवार ऋ वा ह वी गयमारेअव आगात्. व य म ये मथुना वव ी अ मभी यारोदय मुषायन्.. (५) तोता के बना मांगे ही धन दे ने वाले एवं महान् इं म त के साथ अपना थान छोड़ कर आव. म समझता ं क मुझ व ऋ ष के माता- पता रोगर हत हो गए ह. म श ु का धन छ नकर उ ह लाता ं. (५) स इ ासं तुवीरवं प तद षळ ं शीषाणं दम यत्. अ य तो वोजसा वृधानो वपा वराहमयोअ या हन्.. (६) वामी इं ने ह ला मचाने वाले दास का दमन कया था तथा तीन सर वाले एवं छः आंख वाले व प को मारा था. त ने इं क श से बढ़कर लोहे के समान उंग लय से वराह का नाश कया था. (६) स णे मनुष ऊ वसान आ सा वषदशसानाय श म्. स नृतमो न षोऽ म सुजातः पुरोऽ भनदह द युह ये.. (७) इं श ु ारा यु के लए ललकारे गए अपने भ को शौय आ द गुण से यु करके श ुनाश म समथ बना दे ते ह एवं उसे मारने के लए श दान करते ह. मनु य के सव े नेता एवं हमारे लए उ प इं पू य बनकर यु म श ुनग रय को भेदते ह. (७) सो अ यो न यवस उद य याय गातुं वद ो अ मे. उप य सीद द ं शरीरैः येनोऽयोपा ह त द यून्.. (८) वे इं मेघ समूह के समान घास पैदा होने के लए जल गराना चाहते ह तथा हमारे नवास थान के लए हम माग बताते ह. वे जब अपने शरीर के सभी अंग से सोम ा त करते ह, तब बाज प ी के समान लोहमय पीठ वाले बनकर श ु को मारते ह (८) स ाधतः शवसाने भर य कु साय शु णं कृपणे परादात्. अयं क वमनय छ यमानम कं यो अ य स नतोत नृणाम्.. (९) इं महान् श ु को आयुध ारा भगा दे ते ह. उ ह ने कु स के तो के कारण शु ण असुर को मारा था. इं ने तु त करने वाले उशना क व के वरो धय को वश म कया था. वे उशना एवं अ य मानव को दान दे ने वाले ह. (९) अयं दश य य भर य द मो दे वे भव णो न मायी. अयं कनीन ऋतुपा अवे ममीतार ं य तु पात्.. (१०) इं ने तोता को धन दे ने क इ छा से म त के साथ धन भेजा. इं अपने तेज के कारण व ण के समान श शाली ह. सुंदर इं समय पर र ा करने वाले जाने जाते ह. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ ह ने चार पैर वाले अर
नामक असुर को मारा. (१०)
अ य तोमे भरौ शज ऋ ज ा जं दरयद्वृषभेण प ोः. सु वा य जतो द दयद्गीः पुर इयानो अ भ वपसा भूत्.. (११) उ शज के पु ऋ ज ा ने इं क तु तय क सहायता से व ारा व ु क गोशाला तुड़वाई थी. जब सोमरस नचोड़ने वाले तथा य क ा उ शज ने तु तयां क , तब इं ने आगे बढ़ते अपने प ारा श ुनगर को परा जत कया. (११) एवा महो असुर व थाय व कः पड् भ प सप द म्. स इयानः कर त व तम मा इषमूज सु त व माभाः.. (१२) हे श शाली इं ! म व ऋ ष तु ह महान् ह व दे ने क इ छा से पैदल चलकर तु हारे पास आया ं. तुम मेरे समीप आकर मेरा क याण करो तथा मुझे अ , रस, शोभन- नवास आ द सभी व तुएं दो. (१२)
सू —१००
दे वता— व ेदेव
इ मघव वाव द ज इह तुतः सुतपा बो ध नो वृधे. दे वे भनः स वता ावतु ुतमा सवता तम द त वृणीमहे.. (१) हे धन वामी इं ! तुम हमारी भोग ा त के लए अपने समान बली श ु को मारो. तुम इस य म तु तयां सुनकर एवं सोमरस पीकर हमारी उ त का न य करो. ेरक इं अ य दे व के साथ हमारे य क र ा कर. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (१) भराय सु भरत भागमृ वयं वायवे शु चपे द द ये. गौर य यः पयसः पी तमानश आ सवता तम द त वृणीमहे.. (२) हे ऋ वजो! तुम समय-समय पर सबके पोषक इं का भोग भली कार पूरा करो. तुम सोमरस पीने वाले एवं श दस हत गमन वाले वायु के लए भाग दो. वायु दे व गौरवण वाले पशु का ध पीते ह. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (२) आ नो दे वः स वता सा वष य ऋजूयते यजमानाय सु वते. यथा दे वा तभूषेम पाकवदा सवता तम द त वृणीमहे.. (३) स वता दे व हमारे ऋजुकामी एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को पका आ अ सामने से तुत कर. उससे हम दे व को भू षत कर. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ो अ मे सुमना अ तु व हा राजा सोमः सु वत या येतु नः. यथायथा म धता न संदधुरा सवता तम द त वृणीमहे.. (४) इं हमारे त अनु हपूण च वाले बन. सब दन म द तशाली सोम हमारे तो को ा त कर. इं ऐसी कृपा कर क हम म म न हत धन पा सक. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (४) इ उ थेन शवसा प दधे बृह पते तरीता यायुषः. य ो मनुः म तनः पता ह कमा सवता तम द त वृणीमहे.. (५) ये इं शंसनीय बल ारा हमारे य को धारण करते ह. हे बृह प त! तुम मेरी आयु बढ़ाने वाले बनो. मानयु एवं उ म बु वाला य हमारा पालक बनकर हम सुख दान करे. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (५) इ य
य नु सुकृतं दै ं सहोऽ नगृहे ज रता मे धरः क वः. भू दथे चा र तम आ सवता तम द त वृणीमहे.. (६)
दे व का बल इं भली कार संपा दत करके एवं हमारी य शाला म वतमान है. अ न दे व को बुलाने वाले बु मान्, व ान् व य के पा एवं य म हमारे से ह. (६) न वो गुहा चकृम भू र कृतं ना व ं वसवो दे वहेळनम्. मा कन दे वा अनृत य वपस आ सवता तम द त वृणीमहे.. (७) हे दे वो! हम तु हारे छ थान म पाप न कर. हे वासदाता दे वो! हम तु हारे ोध के नम ोह न कर. हम झूठे प क ा त न हो. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (७) अपामीवां स वता सा वष य१ वरीय इदप सेध व यः. ावा य मधुषु यते बृहदा सवता तम द त वृणीमहे.. (८) स वता दे व हमारे रोग को र कर तथा श शाली पाप को नीचे गराव. जस थान पर सोमरस नचोड़ा जाता है, उस थान पर पाप न हो. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (८) ऊ व ावा वसवोऽ तु सोत र व ा े षां स सनुतयुयोत. स नो दे वः स वता पायुरी आ सवता तम द त वृणीमहे.. (९) हे दे वो! मुझ सोमरस नचोड़ने वाले का प थर ऊंचा हो. तुम उसी प थर से सब छपे ए श ु को हमसे अलग करो. वे स वता दे व हमारे पालक एवं शंसनीय ह. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऊज गावो यवसे पीवो अ न ऋत य याः सदने कोशे अङ् वे. तनूरेव त वो अ तु भेषजमा सवता तम द त वृणीमहे.. (१०) हे गायो! तुम घास वाले थान म बढ़ा आ रस भ ण करो. जो घास य शाला अथवा हने के थान म उगी ई हो, उसे तुम खाओ. तु हारा ध ही हमारे शरीर क ओष ध हो. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (१०) तु ावा ज रता श तामव इ इ ा म तः सुतावताम्. पूणमूध द ं य य स य आ सवता तम द त वृणीमहे.. (११) य कम के पूरक, तोता एवं सबको बूढ़ा बनाने वाले इं ही सोमरस नचोड़ने वाले यजमान के र क ह. उनक बु शंसनीय है. इं के पीने के लए ऊंचा ोणकलश सोमरस से भरा जाता है. म सबक र ा करने वाली दे वमाता अ द त का वरण करता ं. (११) च ते भानुः तु ा अ भ ः स त पृधो जर ण ा अधृ ाः. र ज या र या प आ गो तूतूष त पय ं व युः.. (१२) हे इं ! तु हारा काश व च य को पूण करने वाला एवं चाहने यो य है. तु हारी तु तयां तोता को धन दे ने वाली एवं अपराजेय ह. ऋतु के अनुकूल बनी र सी से व यु ऋ ष गाय क गरदन को ख चते ह. (१२)
सू —१०१
दे वता— व ेदेव
उद्बु य वं समनसः सखायः सम न म वं बहवः सनीळाः. द ध ाम नमुषसं च दे वी म ावतोऽवसे न ये वः.. (१) हे सखा ऋ वजो! समान मन वाले बनकर जागो. तुम अनेक होकर भी एक थान म रहने वाल के समान अ न को व लत करो. म अपनी र ा के लए द धका, उषा, अ न एवं इं को बुलाता ं. (१) म ा कृणु वं धय आ तनु वं नावम र परण कृणु वम्. इ कृणु वमायुधारं कृणु वं ा चं य ं णयता सखायः.. (२) हे म तोताओ! तुम मादक तु तयां करो, कृ ष आ द कम का व तार करो, डांड के ारा पार लगाने वाली नाव बनाओ, हल एवं जुए आ द उपकरण को सजाओ तथा य पा अ न को भली कार लाओ. (२) युन
सीरा व युगा तनु वं कृते योनौ वपतेह बीजम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
गरा च ु ः सभरा अस ो नेद य इ सृ यः प वमेयात्.. (३) हे म ऋ वजो! हल म बैल जोड़ो, जु को व तृत करो व यहां तुत खेत म बीज बोओ. हमारी तु तय के साथ अ पया त मा ा म हो. हमारा हं सया समीप क पक ई फसल पर गरे. (३) सीरा यु
त कवयो युगा व त वते पृथक्. धीरा दे वेषु सु नया.. (४)
बु मान् ऋ वज् हल जोड़ते ह एवं जुआ हल से अलग करते ह. धीर पु ष दे व का तो बोलते ह. (४) नराहावा कृणोतन सं वर ा दधातन. स चामहा अवतमु णं वयं सुषेकमनुप तम्.. (५) हे म ो! पशु के लए याऊ एवं चमड़े क र सी बनाओ. हम जलयु समथ एवं ीण न होने वाले गड् ढे से पानी लेकर स चते ह. (५)
स चने म
इ कृताहावमवतं सुवर ं सुषेचनम्. उ णं स चे अ तम्.. (६) हम चमड़े क शोभन र सय से यु भली कार स चत, जल से भरे ए एवं न सूखने वाले गड् ढे से जल लेकर स चते ह. (६) ीणीता ा हतं जयाथ व तवाहं रथ म कृणु वम्. ोणाहावमवतम मच मंस कोशं स चता नृपाणम्.. (७) हे ऋ वजो! बैल को घास आ द खलाकर तैयार करो, खेत को जोतो एवं सरलता से धा य ढोने वाला रथ तैयार करो. पशु क याऊ म एक ोण जल आता है. प थर के घेरे से घरे ए भ के समय जल क र ा करने वाले तथा मानव के जलपान के आधार अथात् कुएं को पानी से भरो. (७) जं कृणु वं स ह वो नृपाणो वम सी वं ब ला पृथू न. पुरः कृणु वमायसीरधृ ा मा वः सु ो चमसो ं हता तम्.. (८) हे ऋ वजो! गोशाला बनाओ. वही मानव के जल पीने का थान है. तुम मानव के कवच को सओ, जो अनेक एवं व तृत ह . तुम लोहे के मजबूत बरतन बनाओ तथा चमस को ढ़ करो, जससे पानी न टपके. (८) आ वो धयं य यां वत ऊतये दे वा दे व यजतां य या मह. सा नो हीय वसेव ग वी सह धारा पयसा मही गौः.. (९) हे ऋ वजो! म अपनी र ा के न म
तु हारा यान अपनी ओर आकृ करता ं.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु हारा यान य यो य, द त एवं पू य है. जस कार गाएं घास खाकर हजार धार वाला ध दे ती ह, उसी कार यह यान हमारी इ छा पूरी करे. (९) आ तू ष च ह रम ो प थे वाशी भ त ता म मयी भः. प र वज वं दश क या भ भे धुरौ त व युन .. (१०) हे अ वयुजनो! तुम काठ के बरतन म रखे ए हरे रंग के सोमरस को स चो. प थर क टं कय से यह पा बनाओ. दस उंग लयां लपेटकर इस पा को पकड़ो तथा रथ के दोन धुर म बैल जोड़ो (१०) उभे धुरौ व रा प दमानोऽ तय नेव चर त जा नः. वन प त वन आ थापय वं न षू द ध वमखन त उ सम्.. (११) रथ को ढोने वाला बैल रथ क दोन धुर को श दपूण करता आ इस कार चलता है, जस कार दो प नय का प त उनके साथ म से ड़ा करता है. लकड़ी के बने ढांचे को लकड़ी के प हय पर इस कार रखो क रथ का ढांचा नराधार न रहे. (११) कपृ रः कपृथमु धातन चोदयत खुदत वाजसातये. न यः पु मा यावयोतय इ ं सबाध इह सोमपीतये.. (१२) हे ऋ वजो! ये इं सुख को पूरा करने वाले ह. उ ह े रत करो, उनके साथ ड़ा करो एवं सुख उठाओ. तुम अ पाने के लए ऐसा करो. हे बाधा वाले ऋ वजो! अ द तपु इं को अपनी र ा के उ े य से सोमरस पीने के लए बुलाओ. (१२)
सू —१०२
दे वता—इं
ते रथं मथूकृत म ोऽवतु धृ णुया. अ म ाजौ पु त वा ये धनभ ेसु नोऽव..(१) हे मुदगल! ् यु म असहाय बने ए तु हारे रथ क श शाली इं र ा कर. हे ब त ारा बुलाए गए इं ! इस स यु म धन क कामना करने वाले हम लोग क र ा करो. (१) उ म वातो वह त वासो अ या अ धरथं यदजय सह म्. रथीरभू मुदगलानी ् ग व ौ भरे कृतं चे द सेना.. (२) मुदगलानी ् ने जस समय रथ पर बैठकर हमारी गाय को जीता, उसी समय वायु ने उसका व हलाया. गाय के जीतने वाले इस यु म वह रथ पर बैठ थी. इं सेना नाम क वह मुदगलप ् नी यु म श ु से गाएं छ न लाई. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ तय छ जघांसतो व म ा भदासतः. दास य वा मघव ाय य वा सनुतयवया वधम्.. (३) हे इं ! हम मारने के इ छु क श ु पर व या आय तुम गु त प से उसे मारो. (३)
चलाओ. हे धन वामी! हमारा श ु दास हो
उद्नो दम पब ज षाणः कूटं म तृंहद भमा तमे त. मु कभारः व इ छमानोऽ जरं बा अभर सषासन्.. (४) इस बैल ने अ यंत स होकर जल पया है. यह अपने स ग से मट् ट के ढे र को खोदता आ श ु क ओर जाता है. लटकते ए भारी अंडकोश वाला यह बैल अ क इ छा करता आ गमनशील श ु क बांह पर हार करता है. (४) य दय ुपय त एनममेहय वृषभं म य आजेः. तेन सूभव शतव सह ं गवां मुदगलः ् धने जगाय.. (५) इस बैल के समीप जाते ए मनु य ने इसे गजन करने के लए े रत कया तथा यु के बीच म इससे पेशाब कराया. इस बैल क सहायता से मुदगल ् ने उ म आहार करने वाली सैकड़ एवं हजार गाय को जीता. (५) ककदवे वृषभो यु आसीदवावची सार थर य केशी. धेयु य वतः सहानस ऋ छ त मा न पदो मुदगलानीम् ् .. (६) बैल को श ुनाश के काम म लगाया गया. इसक र सी थामने वाली मुदगलानी ् गरजने लगी. न कने वाले रथ म जुड़े ए एवं रथ के साथ दौड़ने वाले उस बैल के पीछे चलने वाले सै नक मुदगलानी ् के पीछे चले. (६) उत धमुदह य व ानुपायुन वंसगम श न्. इ उदाव प तम यानामरंहत प ा भः ककु ान्.. (७) जानने वाले मुदगल ् ने रथ के प हए को बांध दया तथा बैल को इस रथ के जुए म था पत कया. इं ने गाय के प त उस बैल को बचाया. बैल तेजी से माग पर चला. (७) शुनम ा चर कपद वर ायां दावान मानः. नृ णा न कृ व बहवे जनाय गाः प पशान त वषीरध .. (८) चाबुक और कोड़े वाला चमड़े क र सी से रथ के भाग को बांधकर सुखपूवक घूमने लगा. उसने अनेक लोग का उ ार कया तथा अनेक गाय क र ा क . (८) इमं तं प य वृषभ य यु
ं का ाया म ये घणं शयानम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
येन जगाय शतव सह ं गवां मुदगलः ् पृतना येषु.. (९) बैल का साथ दे ने वाले एवं यु क सीमा म पड़े ए घण को दे खो. मुदगल ् ने घण क सहायता से यु म सैकड़ -हजार गाय को जीता. (९) आरे अघा को व१ था ददश यं यु त त वा थापय त. ना मै तृणं नोदकमा भर यु रो धुरो वह त दे दशत्.. (१०) कसी ने पास या र के थान म ऐसा दे खा है क जसको रथ म जोतते ह, उसीको ऊपर था पत करते ह. इसे जल एवं घास नह द जाती. यह धुरा धारण करता है एवं वामी को वजयी बनाता है. (१०) प रवृ े व प त व मानट् पी याना कूच े णेव स चन्. एषै या च या जयेम सुम लं सनवद तु सातम्.. (११) मुदगलानी ् ने प र य ा ी के समान श दखाकर प त का धन ा त कया. जस कार बादल धरती पर जल बरसाता है, उसी तरह मुदगलानी ् ने बाण बरसाए. हम भी इसी कार के सार थ ारा वजय ा त कर. यह वजय हम अ दे . (११) वं व य जगत ु र ा स च ुषः. वृषा यदा ज वृषणा सषास स चोदय व णा युजा.. (१२) हे इं ! तुम सारे संसार के ने के समान ह . तुम ने वाल के भी ने हो. हे जलवषक इं ! तुम र सी ारा दो घोड़ को रथ म बांधकर चलते हो एवं धन दे ते हो. (१२)
सू —१०३
दे वता—इं
आशुः शशानो वृषभो न भीमो घनाघनः ोभण षणीनाम्. सङ् दनोऽ न मष एकवीरः शतं सेना अजय साक म ः.. (१) इं ापक श ुनाशक बैल के समान भयानक श ुघातक एवं मानव को ु ध करने वाले ह. वे श ु को लाने वाले व नमेषर हत च ु वाले ह. उ ह ने अकेले ही सैकड़ सेना को जीता है. (१) सङ् दनेना न मषेण ज णुना यु कारेण यवनेन धृ णुना. त द े ण जयत त सह वं युधो नर इषुह तेन वृ णा.. (२) हे यो ा लोगो! श ु को लाने वाले, नमेषर हत यु म जय पाने वाले यु क ा, अ य ारा वच लत न होने वाले, पराभवकारी, हाथ म बाण रखने वाले एवं जलवषक इं क सहायता पाकर वजय पाओ एवं श ु के साथ यु करो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स इषुह तैः स नष भवशी सं ा स युध इ ो गणेन. संसृ ज सोमपा बा श यु१ ध वा त हता भर ता.. (३) सबको वश म करने वाले इं हाथ म बाण धारण करने वाले तथा तूणीरधारी लोग से यु होकर यु करते ह एवं श ुसमूह से भड़ जाते ह. यु म भड़ने वाल को जीतने वाले, सोमपानक ा, भुजबल यु एवं उ त धनुष वाले इं अपने बाण से श ु का नाश करते ह. (३) बृह पते प र द या रथेन र ोहा म ाँ अपबाधमानः. भ सेनाः मृणो युधा जय माकमे य वता रथानाम्.. (४) हे रा सहंता बृह प त! तुम श ु को जीतते ए रथ पर बैठकर हमारे पास आओ. तुम श ुसेना का नाश करो, वप ी यो ा को मारो एवं हमारे रथ क र ा करके वृ पाओ. (४) बल व ाय थ वरः वीरः सह वा वाजी सहमान उ ः. अ भवीरो अ भस वा सहोजा जै म रथमा त गो वत्.. (५) हे सब ा णय का बल जानने वाले, महान् उ म वीर, साम यशाली, शी ग त वाले, श ुपराभवकारी, उ , श शाली वीर पु वाले, बल ा तक ा एवं श से उ प गाय को ा त करने वाले इं ! तुम वजय ा त करने वाले रथ पर चढ़ो. (५) गो भदं गो वदं व बा ं जय तम म मृण तमोजसा. इमं सजाता अनु वीरय व म ं सखायो अनु सं रभ वम्.. (६) हे एक साथ उ प यो ा एवं म ो! तुम मेघभेदनकारी, जल ा त करने वाले, हाथ म व धारणक ा, जयशील व ग तशील श ुसेना को श से परा जत करने वाले इं को आगे करके यु करो एवं स ता ा त करो. (६) अ भ गो ा ण सहसा गाहमानोऽदयो वीरः शतम यु र ः. यवनः पृतनाषाळयु यो३ऽ माकं सेना अवतु यु सु.. (७) दयाहीन वीर अनेक य के वामी, अ य हराने वाले सर ारा हार न करने यो य एवं श म हमारी सेना क र ा कर. (७)
ारा वच लत न होने वाले श ुसेना को ारा मेघ म वेश करने वाले इं यु
इ आसां नेता बृह प तद णा य ः पुर एतु सोमः. दे वसेनानाम भभ तीनां जय तीनां म तो य व म्.. (८) इं इन सेना
के वामी ह. बृह प त इनके द ण भाग म एवं य ोपयोगी सोम इनके
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आगे रह. म द्गण श ुनाशक एवं जयशील दे वसेना
के आगे-आगे चल. (८)
इ य वृ णो व ण य रा आ द यानां म तां शध उ म्. महामनसां भुवन यवानां घोषो दे वानां जयतामुद थात्.. (९) जलवषक इं , राजा व ण, आ द य एवं म द्गण का बल भयानक है. महामन वी, भुवन को कं पत करने वाले एवं वजयी दे व का जयजयकार उ प आ. (९) उ षय मघव ायुधा यु स वनां मामकानां मनां स. उदवृ ह वा जनां वा जना यु थानां जयतां य तु घोषाः.. (१०) श
हे इं ! हमारे आयुध को तेज एवं हमारे सै नक का मन स करो. हमारे घोड़ क तथा हमारे वजयी रथ का श द बढ़े . (१०) अ माक म ः समृतेषु वजे व माकं या इषव ता जय तु. अ माकं वीरा उ रे भव व माँ उ दे वा अवता हवेषु.. (११)
हमारी वजा के फहराए जाने के समय इं र ा कर. हमारे बाण वजय ा त कर. हमारे वीर उ म ह . हे दे वो! यु म हमारी र ा करो. (११) अमीषां च ं तलोभय ती गृहाणा ा य वे परे ह. अ भ े ह नदह सु शोकैर धेना म ा तमसा सच ताम्.. (१२) हे अ वा नामक पाप-दे वता! तुम हमारे श ु का मन लुभाते ए उनके अंग को वीकार करो. उनके समीप जाओ और शोक ारा उनके दय को जलाओ. हमारे श ु अंधे तम से यु ह . (१२) ेता जयता नर इ ो वः शम य छतु. उ ा वः स तु बाहवोऽनाधृ या यथासथ.. (१३) हे मानवो! आगे बढ़ो और वजयी बनो. इं तु ह क याण दान कर. तुम लोग जैसे अधृ य हो, वैसी ही श शा लनी तु हारी भुजाएं ह . (१३)
सू —१०४
दे वता—इ
असा व सोमः पु त तु यं ह र यां य मुप या ह तूयम्. तु यं गरो व वीरा इयाना दध वर इ पबा सुत य.. (१) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! तु हारे लए सोमरस नचोड़ा गया है. तुम अपने घोड़ ारा ज द य म आओ. े ा ण ने तु तयां करते ए तु हारे लए यह सोमरस दया है. तुम इसे पओ. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ सु धूत य ह रवः पबेह नृ भः सुत य जठरं पृण व. म म ुयम य इ तु यं ते भवध व मदमु थवाहः.. (२) हे ह र नाम के घोड़ वाले इं ! य कम करने वाले मनु य ारा नचोड़े गए और जल म व छ कए गए सोमरस को पओ तथा अपना पेट भरो. प थर ने तु हारे लए जो सोम स चा है, उससे अपना मद बढ़ाओ तथा तु तय को वीकार करो. (२) ो ां पी त वृ ण इय म स यां यै सुत य हय तु यम्. इ धेना भ रह मादय व धी भ व ा भः श या गृणानः.. (३) हे ह र नामक घोड़ वाले एवं वषाक ा इं ! तु हारे पीने के लए नचोड़े गए सोम को य म तु हारे आने का न य जानकर तु ह भट करता ं. तुम श से यु एवं शं सत होकर इस य म सम त तु तय एवं कम से स बनो. (३) ऊती शचीव तव वीयण वयो दधाना उ शज ऋत ाः. जाव द मनुषो रोणे त थुगृण तः सधमा ासः.. (४) हे श शाली इं ! तु हारी र ा से अ धारण करने वाले एवं जा को धारण करने वाले उ शजवंशी य करने क अ भलाषा से यजमान के घर म थत ए. वे तु हारी तु त के साथ-साथ स हो रहे थे. (४) णी त भ े हय सु ोः सुषु न य पु मं ह ामू त व तरे दधानाः तोतार इ
चो जनासः. तव सूनृता भः.. (५)
हे ह र नामक घोड़ के वामी, शोभन तो वाले, सुंदर धन वाले व वशाल द त वाले इं ! तु हारी शोभन तु तय ारा तोता ने अपनी तथा सर क र ा क है. (५) उप ा ण ह रवो ह र यां सोम य या ह पीतये सुत य. इ वा य ः ममाणमानड् दा ाँ अ य वर य केतः.. (६) हे ह र नाम के घोड़ वाले इं ! तुम अपने घोड़ ारा य म नचोड़े ए सोमरस को पीने जाओ. श शाली इं को ही य ा त करते ह. तुम य का वषय समझकर दान करते हो. (६) सह वाजम भमा तषाहं सुतेरणं मघवानं सुवृ म्. उप भूष त गरो अ तीत म ं नम या ज रतुः पन त.. (७) हे असीम अ वाले, श ुपराजयकारी, सोमरस म रमण करने वाले, धनयु , शोभन तु त वाले एवं यु म अ य ारा न ललकारे गए इं को सुशो भत करते ह. तोता नम कार पूवक इं क तु त करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स तापो दे वीः सुरणा अमृ ा या भः स धुमतर इ पू भत्. नव त ो या नव च व तीदवे यो गातुं मनुषे च व दः.. (८) हे श ुनग रय का भेदन करने वाले इं ! तुमने शोभन-श द वाली एवं बाधार हत गंगा आ द सात न दय ारा सागर को बढ़ाया, तुमने दे व और मानव के क याण के लए न यानवे न दय को माग ा त कराया. (८) अपो महीर भश तेरमु चोऽजागरा व ध दे व एकः. इ या वं वृ तूय चकथ ता भ व ायु त वं पुपु याः.. (९) हे इं ! तुमने वृ के पास से ब त जल गराया. इन मु जल के त एकमा तु ह सावधान थे. तुमने वृ को मारकर ा त कए गए जल से सारे संसार के ा णय का शरीर पु कया था. (९) वीरे यः तु र ः सुश त ता प धेना पु तमी े . आदयद्वृ मकृणो लोकं ससाहे श ः पृतना अ भ ः.. (१०) इं अ तशय वीर, य कम वाले एवं शोभन तु तयु ह. मेरी वाणी इं क तु त करती है. इं ने वृ को मारा, काश कया, श शाली बनकर श ु को हराया एवं श ु क सेना को समा त कया. (१०) शुनं वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धनानाम्.. (११) हे इं ! अ ा त वाले यु म म उ साह से बढ़े ए एवं धन वामी तु ह बुलाता ं. तुम य के कुशल नेता हो. तुम यु म अपने सेवक क र ा के लए भयानक प धारण करते हो, श ु को मारते एवं उनका धन जीतते हो. (११)
सू —१०५
दे वता—इं
कदा वसो तो ं हयत आव मशा ध ाः. द घ सुतं वाता याय.. (१) हे नवास थान दे ने वाले इं ! हमारा तो तुझ कामना करने वाले को कब रोकेगा? जस कार खेत क ना लयां जलपूण होती ह. उसी कार जल ा त करने के लए अ धक सोमरस नचोड़ा गया है. (१) हरी य य सुयुजा व ता वेरव तानु शेपा. उभा रजी न के शना प तदन्.. (२) ह र नामक दो घोड़े दौड़ने म कुशल ठ क-ठ क से सखाए गए एवं इन घोड़ के वामी इं दान करने आव. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ेत केश वाले ह.
अप यो र ः पापज आ मत न श माणो बभीवान्. शुभे य ुयुजे त वषीवान्.. (३) इं पापी वृ के साथ यु म मनु य के समान थककर एवं भयभीत होकर म त के समान ग तशील घोड़े रथ म जोड़. उस समय वे शोभा ा त कर. (३) सचायो र
कृष आँ उपानसः सपयन्. नदयो व तयोः शूर इ ः.. (४)
मानव क सेवा पाकर इं ने सभी संप य को एक वाले एवं वशेषकम वाले घोड़ को वश म कया. (४) अ ध य त थौ केशव ता
च व ता न पु
कया. शूर इं ने श द करने
ै. वनो त श ा यां श णीवान्.. (५)
इं शरीर पु करने के लए केश वाले एवं वशाल घोड़ पर चढ़े . इं ने अपने दोन जबड़ को चलाकर भोजन मांगा. (५) ा तौ वौजा ऋ वे भ तत शूरः शवसा. ऋभुन
तु भमात र ा.. (६)
दशनीय श वाले एवं शूर इं श के ारा म त के साथ यजमान क ह. ऋभु के रथ नमाण के समान इं ने अनेक वीरकम कए ह. (६) व ंय
शंसा करते
े सुहनाय द यवे हरीमशो हरीमान्. अ तहनुर तं न रजः.. (७)
हरी दाढ़ वाले एवं हरे रंग के घोड़ वाले इं ने द यु को मारने के लए व कया. सुंदर जबड़ वाले इं आकाश के समान व च ह. (७) अव नो वृ जना शशी चा वनेमानृचः. ना
तैयार
ा य ऋध जोष त वे.. (८)
हे इं ! हमारे पाप को समा त करो, जससे हम तु हारी तु तय ारा तु तहीन लोग को मार सक. तु तर हत य तु ह तु त वाले य के समान यारा नह होता. (८) ऊ वा य े े तनी भू
य धूषु स न्. सजूनावं वयशसं सचायोः.. (९)
हे इं ! तु हारे ऋ वज ने य शाला म जस समय तुमसे संबं धत य या आरंभ क , उस समय तुमने यजमान के साथ एक नाव पर सवार होकर उसका उ ार कया. (९) ये ते पृ
पसेचनी भू
ये द वररेपाः. यया वे पा े स चस उत्.. (१०)
हे इं ! ध दे ने वाली गाय तु हारे सोम हेतु ध दे . तुम करछु ली के ारा अपने पा म मधु लेते हो. वह व छ एवं क याणकर हो. (१०) शतं वा यदसुय
त वा सु म इ था तौद् म इ था तौत्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आवो य युह ये कु सपु ं ावो य युह ये कु सव सम्.. (११) हे श शाली इं ! सु म ने तु हारे न म इस कार क सौ तु तयां बना तथा म ने भी सौ तु तयां बना . तुमने द युह या के समय कु स के पु क र ा क थी. (११)
सू —१०६
दे वता—अ नीकुमार
उभा उ नूनं त ददथयेथे व त वाथे धयो व ापसेव. स ीचीना यातवे ेमजीगः सु दनेव पृ आ तंसयेथे.. (१) हे अ नीकुमारो! तुम हमारे ह क कामना करते हो. जुलाहा जस कार कपड़ा बुनता है, उसी कार तुम हमारी तु तय को बढ़ाते हो. यजमान तुम दोन के एक साथ आने के लए तु त करता है. तुम सूय एवं चं मा के समान अ को अलंकृत करो. (१) उ ारेव फवरेषु येथे ायोगेव ा या शासुरेथः. तेव ह ो यशसा जनेषु माप थातं म हषेवावपानात्.. (२) बैल जस कार घास के मैदान म चरते ह, उसी कार तुम य क ा लोग के पास आते हो. रथ को चलाने वाले शी गामी अ के समान तुम धन दे ने के लए तोता के पास आते हो. तुम त के समान यश वी बनो. जैसे भसे तालाब को नह छोड़ते, उसी कार तुम भी सोमपान को मत छोड़ना. (२) साकंयुजा शकुन येव प ा प व े च ा यजुरा ग म म्. अ न रव दे वयोद दवांसा प र मानेव यजथः पु ा.. (३) हे अ नीकुमारो! तुम च ड़य के पंख के समान एक- सरे से मले रहते हो. तुम इस य म दो व च पशु के समान आए हो. तुम यजमान के य म अ न के समान द तशाली हो तथा पुरो हत के समान थान म दे व क पूजा करते हो. (३) आपी वो अ मे पतरेव पु ो व े चा नृपतीव तुय. इयव पू ै करणेव भु यै ु ीवानेव हवमा ग म म्.. (४) हे अ नीकुमारो! तुम हमारे त वही ेम रखो, जो माता- पता पु के त रखते ह. तुम अ न एवं सूय के समान तेज वी एवं राजा के समान शी काम करने वाले बनो. तुम धनी के समान सर का भला करने वाले व सूय करण के समान योग दे ने वाले बनो तथा सुखी के समान इस य म आओ. (४) वंसगेव पूषया श बाता म ेव ऋता शतरा शातप ता. वाजेवो चा वयसा घ य ा मेषेवेषा सपया३ पुरीषा.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ नीकुमारो! तुम बैल के समान व थ एवं सुखदाता तथा म व ण के समान यथाथ-दश , सैकड़ सुख दे ने एवं शी तु त पाने वाले हो. तुम घोड़ के समान ह से पु एवं सूयचं मा के प म थत हो और मेढ़ के समान भो य पदाथ से पु अंग वाले बने हो. (५) सृ येव जभरी तुफरीतू नैतोशेव तुफरी पफरीका. उद यजेव जेमना मदे ता मे जरा वजरं मरायु.. (६) हे अ नीकुमारो! तुम हाथी के अंकुश के समान लोग को रोकने वाले एवं हनन करने वाले हो. तुम व धक के समान श ुहंता एवं असुर वनाशक हो. तुम जल म उ प पदाथ के समान उ वल व श शाली हो. तुम मरणधमा शरीर को यौवन दो. (६) प ेव चचरं जारं मरायु ेवाथषु ततरीथ उ ा. ऋभू नाप खरम ा खर ुवायुन पफर य यीणाम्.. (७) हे श शाली अ नीकुमारो! तुम वीर पु ष के समान मेरे घूमने वाले वृ ाव था से यु एवं मरणशील शरीर को वप य से उसी कार पार करके अनुकूल थ त म प ंचाओ, जस कार जल नीचे थान क ओर बहता है. तु ह ऋभु के समान शी गामी रथ मला है. वायु के समान तेज चलने वाला तु हारा रथ उड़कर श ु का धन छ न लाया है. (७) घमव मधु जठरे सने भगे वता तुफरी फा रवारम्. पतरेव चचरा च न णङ् मनऋ ा मन या३ न ज मी.. (८) हे अ नीकुमारो! तुम महान् वीर के समान सोमरस अपने पेट म भरते हो. तुम धन के र क तथा श ु वद णकारी आयुध वाले हो. तुम प य के समान वचरण करने वाले, चं मा के समान सुंदर, इ छा मा से सुशो भत होने वाले एवं शंसनीय य के समान य म जाने वाले हो. (८) बृह तेव ग भरेषु त ां पादे व गाधं तरते वदाथः. कणव शासुरनु ह माराथ ऽशेव नो भजतं च म ः.. (९) हे अ नीकुमारो! जस कार लंबे पैर गहरे जल को पार करने म सहायता दे ते ह, उसी कार तुम वप से पार होने म मुझे सहारा दो. तुम कान के समान तोता क तु त सुनते हो एवं य के भाग के समान सुंदर य म स म लत होते हो. (९) आरङ् गरेव म वेरयेथे सारघेव ग व नीचीनबारे. क नारेव वेदमा स वदाना ामेवोजा सूयवसा सचेथे.. (१०) हे अ नीकुमारो! गूंजती ई मधुम खयां जस कार छ े म शहद भरती ह, उसी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कार तुम गाय के थन म ध भरो. तुम मज र के समान पसीने से भीग जाओ तथा चरागाह म आहार पाने वाली बली गाय के समान य म अपना आहार ा त करो. (१०) ऋ याम तोमं सनुयाम वाजमा नो म ं सरथेहोप यातम्. यशो न प वं मधु गो व तरा भूतांशो अ नोः कामम ाः.. (११) हे अ नीकुमारो! हम तु तय का व तार करते ह एवं अ बांटते ह. तुम रथ पर सवार होकर हमारे य म आओ. गाय के थन म व तृत य के समान ध है. भूतांश ऋ ष ने अ नीकुमार का यह तो बनाकर अपनी अ भलाषा ा त क . (११)
सू —१०७
दे वता— जाप त द णा
क
पु ी
आ वरभू म ह माघोनमेषां व ं जीवं तमसो नरमो च. म ह यो तः पतृ भद मागा ः प था द णाया अद श.. (१) इन यजमान का य पूरा करने के लए इं का महान् तेज कट आ. उसके बाद सभी जीव अंधकार से मु ए. पतर ारा द ई महान् यो त हमारे सामने आई. उसी ने द णा का व तृत माग दखाया. (१) उ चा द व द णाव तो अ थुय अ दाः सह ते सूयण. हर यदा अमृत वं भज ते वासोदाः सोम तर त आयुः.. (२) द णा दे ने वाले वग म ऊंचे थान पर बैठते ह. घोड़ा दान करने वाले सूय के साथ थत होते ह. सोम दे ने वाले अमरता पाते ह तथा व दान करने वाले सोम ा त करके पूण आयु पार करते ह. (२) दै वी पू तद णा दे वय या न कवा र यो न ह ते पृण त. अथा नरः यतद णासोऽव भया बहवः पृण त.. (३) द णा य ा द द कम को पूण करती है एवं दे वपूजा का अंग है. दे वगण य न करने वाल के काम पूरे नह करते. जो लोग प व द णा दे ते ह व बदनामी से डरते ह, वे अपने सभी काम पूरे करते ह. (३) शतधारं वायुमक व वदं नृच स ते अ भ च ते ह वः. ये पृण त च य छ त सङ् गमे ते द णां हते स तमातरम्.. (४) सैकड़ धारा म बहने वाले वायु, सूय, आकाश तथा अ य मानव हतकारी दे व के लए ह दया जाता है. जो लोग सात अ धकारी पुरो हत को स करते ह, वे अपनी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भलाषाएं पूरी करते ह. (४) द णावा थमो त ए त द णावा ामणीर मे त. तमेव म ये नृप त जनानां यः थमो द णामा ववाय.. (५) ऋ वज ारा बुलाया गया यजमान सबसे मुख होता है एवं गांव का मु खया होकर आगे चलता है. जो सबसे पहले द णा दे ता है, उसीको हम मानव का पालक मानते ह. (५) तमेव ऋ ष तमु ाणमा य यं सामगामु थशासम्. स शु य त वो वेद त ो यः थमो द णया रराध.. (६) जो सबसे पहले द णा दे ता है, उसीको ऋ ष, ा, य के नेता सामगानक ा एवं तोता जानते ह. वे अ न क तीन मू तय को जानते ह. (६) द णा ं द णा गां ददा त द णा च मुत य र यम्. द णा ं वनुते यो न आ मा द णां वम कृणुते वजानन्.. (७) द णा घोड़े, गाएं एवं मन को स करने वाला सोना दे ती है. द णा ही आ मा पी अ को दे ती है. व ान् द णा को कवच के समान र ा का साधन बनाते ह. (७) न भोजा म ुन यथमीयुन र य त न थ ते ह भोजाः. इदं य ं भुवनं व ैत सव द णै यो ददा त.. (८) द णा दे ने वाले मरते नह , अ पतु दे व बनकर अमरता पा लेते ह. वे न द र बनते ह और न था अथवा लेश भोगते ह. यह सारा व एवं वग जो है, वह सब द णा हम दे ती ह. (८) भोजा ज युः सुर भ यो नम े भोजा ज युव वं१ या सुवासाः. भोजा ज युर तः पेयं सुराया भोजा ज युय अ ताः य त.. (९) द णा दे ने वाले लोग ध दे ने वाली गाय सबसे पहले ा त करते ह तथा वे ही शोभन व वाली वधू ा त करते ह. दाता लोग पेय के प म शराब पाते ह एवं चढ़ाई करने वाले श ु को जीतते ह. (९) भोजाया ं सं मृज याशुं भोजाया ते क या३ शु भमाना. भोज येदं पु क रणीव वे म प र कृतं दे वमानेव च म्.. (१०) द णा दे ने वाले को शी ही घोड़ा दया जाता है. उसीको व अलंकार से शो भत क या मलती है. उसे पु क रणी के समान साफ और दे वालय के समान व च घर दया जाता है. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भोजम ाः सु ु वाहो वह त सुवृ थो वतते द णायाः. भोजं दे वासोऽवता भरेषु भोजः श ू समनीकेषु जेता.. (११) भली कार बोझ ढोने वाले घोड़े द णादाता को वहन करते ह. उसीके लए सु न मत रथ मलता है, यु म दे वगण दाता क र ा करते ह. वह श ु को जीतता है. (११)
सू —१०८
दे वता—प ण एवं सरमा
क म छ ती सरमा ेदमानड् रे वा जगु रः पराचैः. का मे ह तः का प रत यासी कथं रसाया अतरः पयां स.. (१) प ण बोले—“हे सरमा! तुम या अ भलाषा करती ई यहां आई हो? इधर यह माग ब त र का एवं च कर वाला है, इस पर चलना क ठन है. हमारे पास ऐसी कौन सी व तु है, जसके लए तुम आई हो? तु ह आने म कतनी रात लग और तुमने नद कैसे पार क ?” (१) इ य ती र षता चरा म मह इ छ ती पणयो नधी वः. अ त कदो भयसा त आव था रसाया अतरं पयां स.. (२) सरमा बोली—“हे प णयो! म इं क ती ं और उ ह के भेजने से आई ं. म तु हारे ारा एक त गाय पी न ध को लेने क इ छा से आई ं. मेरी छलांग से डरकर नद के जल ने मुझे बचाया. इस कार मने नद का जल पार कया.” (२) क ङ् ङ ः सरमे का शीका य येदं तीरसरः पराकात्. आ च ग छा म मेना दधामाथा गवां गोप तन भवा त.. (३) प णय ने कहा—“हे सरमा! तुम जस इं क ती बनकर इतनी र आई हो, वह कैसा है और उसक सेना कैसी है? इं यहा आव. हम उ ह म वीकार करगे. वे हमारी गाय के वामी बन जाव.” (३) नाहं तं वेद द यं दभ स य येदं तीरसरं पराकात्. न तं गूह त वतो गभीरा हता इ े ण पणयः शय वे.. (४) सरमा बोली—“हे प णयो! म उन इं के हराने वाले को नह जानती. वे सबका नाश करते ह. गहरी न दयां भी उ ह नह रोक पात . वे तु ह मारकर धरती पर सुला दगे.” (४) इमा गावः सरमे या ऐ छः प र दवो अ ता सुभगे पत ती. क त एना अव सृजादयु ुता माकमायुधा स त त मा.. (५) प णय ने कहा—“हे वग क अं तम सीमा से आने वाली सुंदरी सरमा! इन गाय म से ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुम ज ह चाहो, उ ह ले सकती हो. यु तीखे आयुध ह.” (५)
के बना ये गाएं तु ह कौन दे ता? वैसे हमारे पास भी
असे या वः पणयो वचां य नष ा त वः स तु पापीः. अधृ ो व एतवा अ तु प था बृह प तव उभया न मृळात्.. (६) सरमा बोली—“हे प णयो! तु हारी बात सै नक क बात के समान नह ह. तु हारे पापी शरीर कह इं के बाण के शकार न हो जाव? कह तु हारा माग आ मणकारी दे व ारा पदद लत न हो जाए? मेरी बात न मानने पर कह बृह प त तु ह क न द.” (६) अयं न धः सरमे अ बु नो गो भर े भवसु भ यृ ः. र त तं पणयो ये सुगोपा रेकु पदमलकमा जग थ.. (७) प णय ने कहा—“हे सरमा! हमारी गाय पी संप पवत ारा सुर त है. यह गाय , घोड़ और धन से ा त है. र णसमथ प ण इस संप क र ा करते ह. गाय के रंभाने के श द से सुशो भत हमारे इस थान पर तुम थ आई हो.” (७) एह गम ृषयः सोम शता अया यो अ रसो नव वाः. त एतमूव व भज त गोनामथैत चः पणयो वम त्.. (८) सरमा बोली—“सोमपान करके मतवाले अं गरागो ीय अया य ऋ ष एवं नवगु ऋ षय का समूह यहां आएगा. वे इस गोधन का वभाग करके ले जावगे. उस समय तुमको यह अ भमान भरा वचन छोड़ना पड़ेगा.” (८) एवा च वं सरम आजग थ बा धता सहसा दै ेन. वसारं वा कृणवै मा पुनगा अप ते गवां सुभगे भजाम.. (९) प णय ने कहा—“हे सरमा! तुम दे व क श से डरकर यहां आई हो. हम त ह अपनी ब हन बनाते ह. तुम यहां से मत जाओ. हे सुंदरी! हम तु ह अपनी गाय का भाग दे ते ह.” (९) नाहं वेद ातृ वं नो वसृ व म ो व र रस घोराः. गोकामा मे अ छदय यदायमपात इत पणयो वरीयः.. (१०) सरमा ने कहा—“हे प णयो! म ब हन और भाई का संबंध नह जानती. इस संबंध को तो भयानक इं एवं अं गरा का समूह जानता है. गाय के अ भलाषी दे व ने मुझे सुर त प म भेजा है. इसी कारण म आई ं. तुम इस गोसमूह को छोड़कर र भाग जाओ. (१०) र मत पणयो वरीय उद्गावो य तु मनतीऋतेन. बृह प तया अ व द गूळ्हाः सोमो ावाण ऋषय
व ाः.. (११)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे प णयो! तुम इस थान से र भाग जाओ. घेरने वाले पवत को ट कर मारती ई गाएं इस स या त पवत से लौट जाव. बृह प त, सोम, प थर, ऋ ष एवं ा ण इस गु त थान को जान गए ह.” (११)
सू —१०९
दे वता— व ेदेव
तेऽवद थमा क बषेऽकूपारः स ललो मात र ा. वीळु हरा तप उ ो मयोभूरापो दे वीः थमजा ऋतेन.. (१) बृह प त ारा प नी याग पी पाप कए जाने पर आ द य, व ण, वायु, जलती ई अ न, सुखदायी सोम, द जल एवं जाप त ारा पहले उ पा दत संतान ने कहा. (१) सोमो राजा थमो जायां पुनः ाय छद णीयमानः. अ व तता व णो म आसीद नह ता ह तगृ ा ननाय.. (२) राजा सोम ने ल जा का याग करके बृह प तप नी जु को सबसे पहले उसे दया. म और व ण इस म म य थ बने. दे व को बुलाने वाले अ न उसे हाथ पकड़कर लाए. (२) ह तेनैव ा आ धर या जायेय म त चेदवोचन्. न ताय े त थ एषा तथा रा ं गु पतं य य.. (३) उन लोग ने बृह प त से कहा—“यह तु हारी ववा हता प नी है. तु ह इसका शरीर हाथ से हण करना चा हए. इ ह खोजने को त गया था, उसके त इसने समपण नह कया था. यह श शाली राजा के रा के समान सुर त है. (३) दे वा एत यामवद त पूव स तऋषय तपसे ये नषे ः. भीमा जाया ा ण योपनीता धा दधा त परमे ोमन्.. (४) दे व एवं तप या के लए बैठे ए स तऋ षय ने इस प नी क प व ता के वषय म कहा है. बृह प त ारा ववा हता यह नारी शु च र वाली है. तप का भाव बुरे पदाथ को भी आकाश म प ंचा दे ता है. (४) चारी चर त वे वष षः स दे वानां भव येकम म्. तेन जायाम व व दद् बृह प तः सोमेन नीतां जुह्वं१ न दे वाः.. (५) ी के अभाव म चय का पालन करने वाले जैसे बृह प त ने दे व क सेवा करके य के एक भाग के प म इसे ा त कया, उसी कार इस समय दे व से पाया. (५) पुनव दे वा अद ः पुनमनु या उत. राजानः स यं कृ वाना ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जायां पुनद ः.. (६)
दे व और मानव ने जु नामक प नी बृह प त को पुनः दान क . शपथ लेते ए राजा ने प नी को दान कया. (६) पुनदाय जायां कृ वी दे वै न क बषम्. ऊज पृ थ ा भ वायो गायमुपासते.. (७) दे व ने प नी पुनः बृह प त को द एवं इस कार उ ह पापर हत बनाया. इसके बाद सब लोग धरती का धन आपस म बांटकर सुख से रहने लगे. (७)
सू —११०
दे वता—आ ी
स म ो अ मनुषो रोणे दे वो दे वा यज स जातवेदः. आ च वह म मह क वा वं तः क वर स चेताः.. (१) हे जातवेद अ न! तुम आज मानव के घर म व लत होकर इं ा द दे व क पूजा करते हो. तोता म क पूजा करने वाले अ न! तुम तोता ारा क ई तु तयां जानते ए दे व को बुलाओ. तुम बु मान् एवं कायकुशल हो. (१) तनूनपा पथ ऋत य याना म वा सम वदया सु ज . म मा न धी भ त य मृ ध दे व ा च कृणु वरं नः.. (२) हे अ न! य के जो माग अथात् ह व ह, उ ह मधु से मलाकर अपनी शोभन- वाला पी जीभ से उनका वाद लो. तुम सुंदर भाव ारा हमारी तु तय और य को उ त बनाओ एवं हमारे य को दे व के भाग के यो य बनाओ. (२) आजु ान ई ो व ा या ने वसु भः सजोषाः. वं दे वानाम स य होता स एना य ी षतो यजीयान्.. (३) हे दे व को बुलाने वाले, ाथनीय एवं वंदना के यो य अ न! तुम वसु के साथ पधारो. हे महान् अ न! तुम दे व के होता हो. हे अ तशय य क ा अ न! तुम हमारी ाथना सुनकर इन दे व का यजन करो. (३) ाचीनं ब हः दशा पृ थ ा व तोर या वृ यते अ े अ ाम्. ु थते वतरं वरीयो दे वे यो अ दतये योनम्.. (४) ातः वेद को आ छा दत करने के लए कुश को पूव क ओर मुख करके बछाया जाता है. यह सुंदर कुश अ धक फैलाया जाता है. यह अ द त तथा अ य दे व के बैठने के लए है. (४) च वती वया व य तां प त यो न जनयः शु भमानाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे वी ारो बृहती व म वा दे वे यो भवत सु ायणाः.. (५) सुंदर प नयां अ छे कपड़े पहनती ह एवं प तय के सामने जस कार अपना शरीर कट करती ह, उसी कार य शाला के सभी ार पर दे वयां कट ह . हे ारदे वयो! ार इतने खुल जाव क दे वगण उन म होकर सरलता से जा सक. (५) आ सु वय ती यजते उपाके उषासान ा सदतां न योनौ. द े योषणे बृहती सु मे अ ध यं शु पशं दधाने.. (६) द
य भाग क अ धका रणी एवं शोभन-ग त वाली उषा व रा य शाला म बैठ. ये नारी के समान शोभन द त वाली अ यंत सुंदर एवं तेज को धारण करने वाली ह. (६) दै ा होतारा थमा सुवाचा ममाना य ं मनुषो यज यै. चोदय ता वदथेषु का ाचीनं यो तः दशा दश ता.. (७)
दे व के होता अथात् अ न और सूय सबसे पहले शोभन तु तयां बोलते ए य क ा मनु य के लए य पूण करने का काम करते ह. ये दोन पुरो हत को य कम म लगाते ह. ये याकुशल ह एवं पूव दशा म ाचीन काश उ प करते ह. (७) आ नो य ं भारती तूयमे वळा मनु व दह चेतय ती. त ो दे वीब हरेदं योनं सर वती वपसः सद तु.. (८) सूयद त हमारे य म शी आव. इड़ादे वी इस य का ान करके यहां मनु य के समान पधार. इन दोन के साथ सर वती दे वी मल एवं तीन दे वयां इस सुखकर य म बैठ. (८) य इमे ावापृ थवी ज न ी पैर पशद्भुवना न व ा. तम होत र षतो यजीया दे वं व ार मह य व ान्.. (९) हे होता! जन व ा दे व ने दे व क माता के समान ावा-पृ थवी को बनाकर उ ह भां त-भां त के ा णय से यु कया है, उ ह व ा दे व क तुम पूजा करो. तुम आज अ वाले हो, व ान् हो एवं सव े य क ा हो. (९) उपावसृज म या सम दे वानां पाथ ऋतुथा हव ष. वन प तः श मता दे वो अ नः वद तु ह ं मधुना घृतेन.. (१०) हे यूप! तुम ऋतु के अनुकूल अ एवं होम अपण करो. वन प त श मता नाम का दे व एवं अ न मधु तथा घी के साथ होम के का वाद ल. (१०) स ो जातो
ममीत य म नदवानामभव पुरोगाः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ य होतुः
द यृत य वा च वाहाकृतं ह वरद तु दे वाः.. (११)
अ न तुरंत उ प होते ही य का नमाण करने लगे एवं दे व के अ गामी त बने. य संबंधी अ न के वचन म मं पढ़े जाव, वाहा श द बोला जावे एवं दे व इ का भ ण कर. (११)
सू —१११
दे वता—इं
मनी षणः भर वं मनीषां यथायथा मतयः स त नृणाम्. इ ं स यैरेरयामा कृते भः स ह वीरो गवण यु वदानः.. (१) हे तोताओ! य - य तु हारी बु का उदय हो, वैसे-वैसे ही तुम तु तयां पढ़ो. स यकम के अनु ान ारा हम इं को बुलाते ह. वीर इं तु तय को जानकर तोता को यार करते ह. (१) ऋत य ह सदसो धी तर ौ सं गा यो वृषभो गो भरानट् . उद त वषेणा रवेण महा त च सं व ाचा रजां स.. (२) जल के आधार आकाश को धारण करने वाले इं का शत होते ह. तुरंत ज मा बछड़ा जस कार गाय से मला रहता है, उसी कार इं सव ा त ह. इं महान् श द के साथ उ प होते ह तथा व तृत जल का नमाण करते ह. (२) इ ः कल ु या अ य वेद स ह ज णुः प थकृ सूयाय. आ मेनां कृ व युतो भुवद्गोः प त दवः सनजा अ तीतः.. (३) इं ही इस तु त को सुनना जानते ह. जयशील इं ने सूय का माग बनाया है. अ युत इं ने सेना को कट कया है. इं गाय और वग के त सनातन एवं वरोधहीन ह. (३) इ ो म ा महतो अणव य ता मनाद रो भगृणानः. पु ण च तताना रजां स दाधार यो ध णं स यताता.. (४) अं गरागो ीय ऋ षय ारा शं सत होकर इं ने अपनी म हमा से वशाल मेघ का काय समा त कया था. उ ह ने अनेक जल बनाए तथा स य प वग म बल संचार कया. (४) इ ो दवः तमानं पृ थ ा व ा वेद सवना ह त शु णम्. मह चद् ामातनो सूयण चा क भ च क भनेन कभीयान्.. (५) ावा-पृ थवी के बराबर इं सभी सोम य को जानते एवं सबका संताप न करते ह. उ ह ने सूय के ारा व तृत आकाश को का शत कया. अ तशय धारणक ा इं ने खंभा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनकर आकाश को धारण कया है. (५) व ेण ह वृ हा वृ म तरदे व य शूशुवान य मायाः. व धृ णो अ धृषता जघ थाथाभवो मघव बा ोजाः.. (६) हे इं ! तुमने व से वृ को मारा. य वरोधी काय करने वाले वृ क सारी माया को भयानक व से समा त कया. हे धन वामी इं ! इसके बाद तुम अ धक श शाली बने. (६) सच त य षसः सूयण च ाम य केतवो राम व दन्. आय ं द शे दवो न पुनयतो न कर ा नु वेद.. (७) जब उषाएं सूय से मल , तब इसक करण ने व च शोभा ा त क . आकाश म जब कोई न दखाई नह दया था, तब सूय क सव गामी करण को कोई नह जान पाया. (७) रं कल थमा ज मुरासा म य याः सवे स ुरापः. व वद ं व बु न आसामापो म यं व वो नूनम तः.. (८) इं क आ ा से पहली बार जो जल बहा था, वह ब त र गया. उस जल का अ भाग एवं म तक कहां है? हे जलो! तु हारा म य भाग कहां है? (८) सृजः स धूँर हना ज सानाँ आ ददे ताः व व े जवेन. मुमु माणा उत या मुमु ेऽधेदेता न रम ते न त ाः.. (९) मु
हे इं ! तुमने मेघ के ारा सत जल को छु ड़ाकर वेग से बहाया. इं ने जब जल को करने क इ छा क , उस समय अ यंत शु जल एक थान पर नह रहे. (९) स ीचीः स धुमुशती रवाय सना जार आ रतः पू भदासाम्. अ तमा ते पा थवा वसू य मे ज मुः सूनृता इ पूव ः.. (१०)
सारे जल मलकर अ भला षणी नारी के समान सागर क ओर बढ़े . श ुनग रय को न करने वाले एवं श ु को बल बनाने वाले इं सभी जल के वामी ह. हे इं ! धरती पर थत ाचीन य पी धन एवं स तादायक तु तयां तु हार पास ग . (१०)
सू —११२
दे वता—इं
इ पब तकामं सुत य ातः साव तव ह पूवपी तः. हष व ह तवे शूर श ूनु थे भ े वीया ३ वाम.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! नचोड़े ए सोम को इ छानुसार पओ. ातःकाल नचोड़ा आ सोम सबसे पहले तु ह पीना चा हए. हे वीर! श ुवध के लए उ सा हत बनो. हम मं ारा तु हारी वीरता का बखान करते ह. (१) य ते रथो मनसो जवीयाने तेन सोमपेयाय या ह. तूयमा ते हरयः व तु ये भया स वृष भम दमानः.. (२) हे इं ! तु हारा जो रथ मन से भी अ धक तेज चलने वाला है, उसके ारा सोमरस पीने के लए आओ. जन घोड़ क सहायता से तुम आनं दत होते ए जाते हो, वे घोड़े तु ह शी वहन कर. (२) ह र वता वचसा सूय य े ै पै त वं पशय व. अ मा भ र स ख भ वानः स ीचीनो मादय वा नष .. (३) हे इं ! हरे रंग के तेज और सूय के े प ारा तुम अपने शरीर को वभू षत करो. हम म ारा बुलाए जाने पर तुम हमारे साथ मलकर बैठो और आनं दत बनो. (३) य य य े म हमानं मदे वमे मही रोदसी ना व व ाम्. तदोक आ ह र भ र यु ै ः ये भया ह यम म छ.. (४) हे इं ! सोमपान करने के बाद तु हारी जो म हमा होती है, उसे ये व तृत ावा-पृ थवी अलग नह कर सकते. तुम अपने यारे घोड़ को रथ म जोतकर यजमान के घर आओ और य अ ा त करो. (४) य य श प पवाँ इ श ूननानुकृ या र या चकथ. स ते पुर धं त वषी मय त स ते मदाय सुत इ सोमः.. (५) हे इं ! तुम जस यजमान का सोमरस पीकर अ तीय आयुध से उसके श ु को मारते हो, वही तु हारे लए अ धक तु त करता है एवं तु हारे नशे के लए उसने सोमरस नचोड़ा है. (५) इदं ते पा ं सन व म पबा सोममेना शत तो. पूण आहावो म दर य म वो यं व इद भहय त दे वाः.. (६) हे सौ य करने वाले इं ! यह पा तुमने सदा ा त कया है. तुम इसके ारा सोमरस पओ. दे व जस पा को चाहते ह, उसी मादक पा को सोमरस से पूरा भर दया गया है. (६) व ह वा म पु धा जनासो हत यसो वृषभ य ते. अ माकं ते मधुम मानीमा भुव सवना तेषु हय.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ भलाषापूरक इं ! ब त से अ सं ह करने वाले लोग तु ह अनेक थान म सोमरस पीने के लए बुलाते ह. हमारा तैयार कया आ सोम तु ह सबसे अ धक मीठा लगे एवं तुम उ ह चाहो. (७) त इ पू ा ण नूनं वीया वोचं थमा कृता न. सतीनम युर थायो अ सुवेदनामकृणो णे गाम्.. (८) हे इं ! ाचीनकाल म तुमने सबसे पहले जो वीरता दखाई थी, म उसक न य ही शंसा करता ं. तुमने जल बरसाने क इ छा से मेघ को वद ण कया एवं तोता के लए गाय पाना सुलभ बनाया. (८) न षु सीद गणपते गणेषु वामा व तमं कवीनाम्. न ऋते व यते कचनारे महामक मघम च मच.. (९) हे गण के वामी इं ! तुम तोता के समूह म बैठो. तुम कमक ा य म सवा धक कुशल हो, पास या र, तु हारे बना कोई भी य काय नह होता है. हे धन वामी इं ! हमारे तु तमं को व तृत और व च बनाओ. (९) अ भ या नो मघव ाधमाना सखे बो ध वसुपते सखीनाम्. रणं कृ ध रणकृ स यशु माभ े चदा भजा राये अ मान्.. (१०) हे धन वामी इं ! हम तु तक ा को तेज वी बनाओ. हे धनपालक एवं म इं ! हम अपना म जानो. ये यु क ा एवं स ची श वाले इं ! धन क संभावना से र हत थान म ही हम धन ा त कराओ. (१०)
सू -११३
दे वता—इं
तम य ावापृ थवी सचेतसा व े भदवैरनु शु ममावताम्. यदै कृ वानो म हमान म यं पी वी सोम य तुमाँ अवधत.. (१) ावा-पृ थवी सब दे श के साथ मलकर एक च से इं क श क र ा कर. जब वीरता के काय करतेकरते इं ने अपना मह व ा त कया, तब सोमरस पीने वाले एवं कमक ा इं बढ़े . (१) तम य व णुम हमानमोजसांशुं दध वा मधुनो व र शते. दे वे भ र ो मघवा सयाव भवृ ं जघ वाँ अभव रे यः.. (२) व णु ने सोमलता का टु कड़ा दे कर उ साह के साथ इं क उस म हमा क घोषणा क है. धन वामी इं ने साथ चलने वाले दे व क सहायता से वृ का वध कया और सव म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बने. (२) वृ ेण यद हना ब दायुधा सम थथा युधये शंसमा वदे . व े ते अ म तः सह मनावध ु म हमान म यम्.. (३) हे उ इं ! तुम जब यु के लए आयुध धारण करते ए मरने यो य वृ के साथ भड़े, तब शौय दशन के लए मने तु हारी शंसा क . उस समय सभी म त ने अपने साथ-साथ तु हारी भी म हमा बढ़ाई. (३) ज ान एव बाधत पृधः ाप य रो अ भ प यं रणम्. अवृ द मव स यदः सृजद त ना ाकं वप यया पृथुम्.. (४) इं ने ज म लेते ही श ु को बाधा प ंचाई. वीर इं ने उस सं ाम म अपना पौ ष अ धक प म कट कया, वृ को काटा, जल बरसाया एवं शोभन कम क इ छा से व तृत वग को धारण कया. (४) आ द ः स ा त वषीरप यत वरीयो ावापृ थवी अबाधत. अवाभरद्धृ षतो व मायसं शेवं म ाय व णाय दाशुषे.. (५) इं सहसा वशाल सेना क ओर दौड़े एवं अपनी उ म म हमा से धरती-आकाश को बाधा प ंचाई. श ुवध म ग भ इं ने म , व ण एवं ह दे ने वाले यजमान को सुख प ंचाने के लए लोहे का बना आ व धारण कया. (५) इ या त वषी यो वर शन ऋघायतो अरंहय त म यवे. वृ ं य ो वृ दोजसापो ब तं तमसा परीवृतम्.. (६) व वध श द करने वाले व श ु हसक इं का ोध वशाल श ुसेना पर था पत करने के लए जल नकले. उ इं ने जल धारण करने वाले और अंधकार से घरे ए वृ को बलपूवक न कया. (६) या वीया ण थमा न क वा म ह वे भयतमानौ समीयतुः. वा तं तमोऽव द वसे हत इ ो म ा पूव तावप यत.. (७) अपनी महान् श से यु करने वाले इं और वृ ने थम करने यो य जो वीरताएं द शत क , उनके ारा वृ के मारे जाने पर घना अंधकार न हो गया. इं अपनी म हमा से वीर क गणना म सबसे पहले गने जाते ह. (७) व े दे वासो अध वृ या न तेऽवधय सोमव या वच यया. र ं वृ म ह म य ह मना नन ज भै तृ व मावयत्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! सभी दे व ने सोमयु तु त क अ भलाषा से तु हारे बल को बढ़ाया. इं के आयुध व से मारे गए. आवरण करने वाले मेघ ने शी ही सबको अ का भोजन कराया. अ न जस कार अपनी वाला से ह खाते ह, उसी कार लोग ने दांत से अ खाया. (८) भू र द े भवचने भऋ व भः स ये भः स या न वोचत. इ ो धु न च चुमु र च द भय ामन या शृणुते दभीतये.. (९) हे तोताओ! उ म श द एवं मै ीपूण मं ने धु न और चुमु र नामक रा स को मारते ए ाथना सुनी. (९)
ारा इं के मै ीकाय का वणन करो. इं ापूण दय से दभी त नामक राज ष क
वं पु या भरा व ा ये भमसै नवचना न शंसन्. सुगे भ व ा रता तरेम वदो षु ण उ वया गाधम .. (१०) हे इं ! मने तो का उ चारण करते ए जन शोभन अ एवं धन क याचना क है, उ ह मुझे दान करो. म उन धन ारा पाप को पार क ं . तुम हमारे ारा कए गए तो को अ यंत आदर के साथ जानो. (१०)
सू —११४
दे वता— व ेदेव
घमा सम ता वृतं ापतु तयोजु मात र ा जगाम. दव पयो द धषाणा अवेष व दवाः सहसामानमकम्.. (१) दगंत म ा त एवं द तशाली सूय-चं ने तीन लोक को ा त कया है. वायु ने इन दोन क स ता ा त क है. दे व ने जस समय सामवेद के मं के साथ सूय को ा त कया, उस समय तीन क र ा के लए द जल बनाया. (१) त ो दे ाय नऋती पासते द घ ुतो व ह जान त व यः. तासां न च युः कवयो नदानं परेषु या गु ेषु तेषु.. (२) यजमान ह दे ने के लए अ न, सूय और वायु क उपासना करते ह. इसके बाद परम यश वी दे व इ ह जानते ह. व ान् लोग इनका आ द कारण जानते ह एवं परम गोपनीय त म संल न रहते ह. (२) चतु कपदा युव तः सुपेशा घृत तीका वयुना न व ते. त यां सुपणा वृषणा न षेदतुय दे वा द धरे भागधेयम्.. (३) चार कोन वाली वेद
पी युवती शोभन अंलकार वाली, घी से चकनी एवं तो
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को
धारण करने वाली है. उस पर ह दाता यजमान एवं पुरो हत पी दो प ी बैठते ह एवं दे वगण अपना भाग ा त करते ह. (३) एकः सुपणः स समु मा ववेश स इदं व ं भुवनं व च े. तं पाकेन मनसाप यम तत तं माता रे ह स उ रे ह मातरम्.. (४) ाणवायु पी प ी ांड पी सागर म घुसा. वह सारे संसार को दे खता है. मने प रप व मन से उसे दे खा है. उसे माता चाटती है और वह माता को चाटता है. (४) सुपण व ाः कवयो वचो भरेकं स तं ब धा क पय त. छ दां स च दधतो अ वरेषु हा सोम य ममते ादश.. (५) ांतदश व ान् परमा मा पी एक ही प ी को अनेक कार के वचन से व णत करते ह. वे य म भां त-भां त के छं द क रचना करते ह तथा सोमरस के बारह पा को था पत करते ह. (५) षट् शाँ चतुरः क पय त छ दां स च दधत आ ादशम्. य ं वमाय कवयो मनीष ऋ सामा यां रथं वतय त.. (६) व ान् ा ण चालीस छं द क क पना करते ए बारह सोमपा क थापना करते ह. वे व ान् अपनी बु से य को पूरा करके ऋक् एवं सोम मं क सहायता से अपना य पी रथ चलाते ह. (६) चतुदशा ये म हमानो अ य तं धीरा वाचा णय त स त. आ ानं तीथ क इह वोच ेन पथा पब ते सुत य.. (७) इस य पी परमा मा क चौदह वभू तयां ह. सात होता आ द धीर पु ष मं उसे पूरा करते ह. जस य माग से चलकर दे वगण सोमरस पीते ह, उस व ई र पी य का वणन कौन कर सकता है? (७)
ारा ात
सह धा प चदशा यु था यावद् ावापृ थवी ताव द त्. सह धा म हमानः सह ं यावद् व तं तावती वाक्.. (८) पं ह हजार उ थमं ावा-पृ थवी के समान ही व तृत ह. हमारे तो हजार कार क है. तो के समान वाणी भी असीम है. (८)
क म हमा
क छ दसां योगमा वेद धीरः को ध यां त वाचं पपाद. कमृ वजाम मं शूरमा हरी इ य न चकाय कः वत्.. (९) कौन व ान् छं द का योग जानता है? होता आ द सात थान के यो यवाणी का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तपादन कौन करता है? सात पुरो हत के ऊपर धान प से आठवां सकता है? इं के घोड़ को कौन जान सका है? (९)
कौन हो
भू या अ तं पयके चर त रथ य धूषु यु ासो अ थुः. म य दायं व भज ये यो यदा यमो भव त ह य हतः.. (१०) कुछ घोड़े धरती क अं तम सीमा तक घूमते ह एवं कुछ रथ क जुअर म जोड़े जाते ह. जब सूय रथ के नयंता के प म रथ म थत होते ह, तब दे वगण घोड़ को घास दे कर म नवारण करते ह. (१०)
सू —११५
दे वता—अ न
च इ छशो त ण य व थो न यो मातराव ये त धातवे. अनूधा य द जीजनदधा च नु वव स ो म ह यं१ चरन्.. (१) नवीन शशु पी अ न का ह वहन अ यंत व च है. यह बालक ध पीने के लए अपने माता- पता के पास नह जाता. माता- पता ने तन न होते ए भी बालक को ज म दया है. यह बालक ज म लेने के बाद ही महान् तकम का नवाह करता है. (१) अ नह नाम धा य द प तमः सं यो वना युवते भ मना दता. अ भ मुरा जु ा व वर इनो न ोथमानो यवसे वृषा.. (२) अनेक य काय करने वाले एवं दाता अ न को धारण कया गया है. यह काश पी दांत से वन का भ ण करते ह. जु नामक ऊंचे पा म य का भाग ा त करने वाले इं इस कार ह भ ण करते ह, जस कार श शाली बैल घास खाता है. (२) तं वो व न षदं दे वम धस इ ं ोथ तं वप तमणवम्. आसा व न शो चषा वर शनं म ह तं न सरज तम वनः.. (३) प ी के समान वृ न मत अर ण का आ य लेने वाले, अ दे ने वाले, द तशाली, श दक ा, वन के अ य धक दाहक, अ तशय ह वाहक, बैल के समान ह -वहन करने वाले अपने काश से महान् व सूय के समान माग का नमाण करने वाले अ न क तु त करो. (३) व य य ते यसान याजर ध ोन वाताः प र स य युताः. आ र वासो युयुधयो न स वनं तं नश त शष त इ ये.. (४) जरार हत, गमनशील व वन के जलाने के इ छु क अ न का थर भाव वायु के समान सब ओर वतमान रहता है. यो ा के समान श द करते ए पुरो हत य के लए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न को घेरते ह. उस समय तुम तीन मू तयां धारण करके श
का दशन करते हो. (४)
स इद नः क वतमः क वसखायः पर या तर य त षः. अ नः पातु गृणतो अ नः सूरीन नददातु तेषामवो नः.. (५) सबसे अ धक श द करने वाले श दयु तो करने वाल के म वामी व समीपवत श ु का नाश करने वाले अ न तोता का पालन कर. वे हम और व ान को आ य दे ते ह. (५) वा ज तमाय स से सु प य तृषु यवानो अनु जातवेदसे. अनु े च ो धृषता वरं सते म ह तमाय ध वनेद व यते.. (६) हे शोभन पता वाले, अ तशय अ दाता, श ुपराभवकारी एवं जातवेद अ न! म तु हारी तु त के लए शी त पर ं. म श ु ारा वप खड़ी होने पर श ुनाश म समथ अपने धनुष ारा ही र ा करने वाले होनहार एवं पू यतम अ न को ह दे ता ं. (६) एवा नमतः सह सू र भवसु वे सहसः सूनरो नृ भः. म ासो न ये सु धता ऋतायवो ावो न ु नैर भ स त मानुषान्.. (७) श के पु अ न धन पाने के लए य कम के नेता मनु य एवं व ान ारा शं सत होते ह. म के समान तृ त एवं य क कामना करने वाले व ान् तेज वी के समान अपने बल से श ु को हराते ह. (७) ऊज नपा सहसाव त वोप तुत य व दते वृषा वाक्. वां तोषाम वया सुवीरा ाघीय आयुः तरं दधानाः.. (८) हे बल के पु एवं श शाली अ न! मुझ उप तुत ऋ ष क ह बरसाने वाली तु त तु हारी वंदना करती है. हम तु हारी तु त कर एवं तु हारी कृपा से हमारी शोभन संतान लंबी आयु पाव. (८) इ त वा ने वृ ह ताँ पा ह गृणत (९)
य पु ा उप तुतास ऋषयोऽवोचन्. सूरीन्वषड् वष ळ यू वासो अन मो नम इ यू वासो अन न्..
हे अ न! वृ ह ऋ ष के उप तुत आ द पु ने इस कार तु हारी तु त क है. तुम उन तोता तथा व ान क र ा करो. उ ह ने वषट् कार एवं नमोनमः श द से तु हारी तु त क है. (९)
सू —११६
दे वता—इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पबा सोमं महत इ याय पबा वृ ाय ह तवे श व . पब राये शवसे यमानः पब म व तृप द ा वृष व.. (१) हे अ तशय श शाली इं ! तुम महान् श दखाने एवं वृ क ह या के लए सोमरस पओ. हे अ एवं श पाने के लए बुलाए जाने वाले इं ! तुम मधुर सोमरस पीकर तृ त बनो तथा जल बरसाओ. (१) अ य पब ुमतः थत ये सोम य वरमा सुत य. व तदा मनसा मादय वावाचीनो रेवते सौभगाय.. (२) हे इं ! तुम इस ह यु , उ रवेद पर था पत एवं भली कार नचोड़े गए सोमरस को पओ. तुम हम क याण दान करो, मन से स बनो तथा हम धनयु सौभा य दे ने के लए आगे बढ़ो. (२) मम ु वा द ः सोम इ मम ु यः सूयते पा थवेषु. मम ु येन व रव कथ मम ु येन न रणा स श ून्.. (३) हे इं ! द सोम तु ह मतवाला बनावे. धरतीवा सय ारा नचोड़ा गया सोम तु ह नशा दे . जस सोम के ारा तुम धन का नमाण करते हो, वह तु ह स करे. तुम जसके ारा श ु को मारते हो, वह तु ह आनं दत करे. (३) आ बहा अ मनो या व ो वृषा ह र यां प र ष म धः. ग ा सुत य भृत य म वः स ा खेदाम शहा वृष व.. (४) दोन म बढ़ाने यो य, सव जाने वाले एवं वृ दाता इं अपने घोड़ क सहायता से हमारे स चत सोम के समीप जाव. हे श ुनाशक इं ! हमारे य म गोचम पर नचोड़े गए सोमरस को पीकर स बनो एवं बैल के समान श ु को समा त कर दो. (४) न त मा न ाशय ा या यव थरा तनु ह यातुजूनाम्. उ ाय ते सहो बलं ददा म ती या श ू वगदे षु वृ .. (५) हे इं ! तुम द तयु एवं तीखे आयुध को अ धक द तशाली बनाते ए रा स के ढ़ शरीर को न करो. तुम उ हो. हम तु ह श ुहनन म समथ एवं श दाता ह दे ते ह. तुम श द करते ए श ु के बीच म जाकर उ ह काटो. (५) १य इ तनु ह वां योजः थरेव ध वनोऽ भमातीः. अम य ् वावृधानः सहो भर नभृ त वं वावृध व.. (६) हे वामी इं ! हमारे अ का व तार करो एवं श ु का व तार करो. तुम हमारे अनुकूल बढ़ते ए एवं श ु
के त अपने बल तथा धनुष से परा जत न होते ए अपने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
शरीर को व तृत करो. (६) इदं ह वमघव तु यं रातं त स ाळ णानो गृभाय. तु यं सुतो मघव तु यं प वो३ पब च थत य.. (७) हे धन वामी इं ! यह ह तु हारे लए अ पत है. हे भली कार सुशो भत इं ! इसे ोध कए बना हण करो. तु हारे लए सोमरस नचोड़ा गया है एवं पुरोडाश पकाया गया है. अपने समीप आए ए इस का तुम उपभोग करो. (७) अ द य व तः
थतेमा हव ष चनो द ध व पचतोत सोमम्. त हयाम स वा स याः स तु यजमान य कामाः.. (८)
हे इं ! अपने समीप आए ए इन ह , पकाए गए पुरोडाश एवं नचोड़े गए सोम का तुम उपभोग करो. हम अ लेकर तु ह भोजन के लए बुलाते ह. हमारे यजमान क अ भलाषाएं पूण ह . (८) े ा न यां सुवच या मय म स धा वव ेरयं नावमकः. अयाइव प र चर त दे वा ये अ म यं धनदा उ द .. (९) म इं एवं अ न के लए बनाई गई तु त सुनाता ं. जस कार सागर म नाव चलती है, उसी कार म तो ारा अपनी तु त भेजता ं. से वत दे व ऋ वज के समान हमारी सेवा करते ह. ये हमारे श ु का वनाश करने वाले एवं धनदाता ह. (९)
सू —११७
दे वता—दान
न वा उ दे वाः ुध म धं द ता शतमुप ग छ त मृ यवः. उतो र यः. पृणतो नोप द य युतापृण म डतारं न व दते.. (१) दे व ने सभी ा णय को ुधा के प म मृ यु ही दान क है. भोजन करने पर भी तो ा णय क मृ यु होती है. दे ने वाले का धन समा त नह होता. दान न करने वाले को कोई भी सुखी नह बना सकता है. (१) य आ ाय चकमानाय प वोऽ वा स फतायोपज मुषे. थरं मनः कृणुते सेवते पुरोतो च स म डतारं न वद ते.. (२) जो अ वाला भूखे भीख मांगने वाले को सामने पाकर भी अपने मन को कठोर रखता है एवं उसके सामने भोजन करता है, उसे कोई भी सुख प ंचाने वाला नह मल सकता. (२) स इ ोजो यो गृहवे ददा य कामाय चरते कृशाय. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अरम मै भव त याम ता उतापरीषु कृणुते सखायम्.. (३) जो बल अ क अ भलाषा से घूमता है, उसे अ दे ने वाला ही दाता है. उसीको य का पया त फल मलता है तथा वह श ु म भी म खोज लेता है. (३) न स सखा यो न ददा त स ये सचाभुवे सचमानाय प वः. अपा मा ेया तदोको अ त पृण तम यमरणं च द छे त्.. (४) जो सदा साथ रहने वाले एवं सेवा करने वाले म को भी अ नह दे ता, वह म नह है. ऐसे के पास से र चला जाना ही उ म है. उसका घर घर नह है, उसी समय अ य धनी दाता के यहां चले जाना चा हए. (४) पृणीया द ाधमानाय त ा ाघीयांसमनु प येत प थाम्. ओ ह वत ते र येव च ा यम यमुप त त रायः.. (५) याचना करने वाले के लए धनी को धन अव य दे ना चा हए. वह धम पी लंबा माग ा त करता है. जस कार रथ का प हया ऊपर-नीचे होता रहता है, उसी कार धन भी एक के पास से सरे के पास जाता है. (५) मोघम ं व दते अ चेताः स यं वी म वध इ स त य. नायमणं पु य त नो सखायं केवलाघो भव त केवलाद .. (६) मन म दान क भावना न रखने वाला थ ही अ ा त करता है. ऐसे का भोजन उसक मृ यु के समान है. जो न दे वता को पु बनाता है और न सखा को खलाता है, ऐसा वयं भोजन करने वाला केवल पापी होता है. (६) कृष वद
फाल आ शतं कृणो त य वानमप वृङ् े च र ैः. ावदतो वनीया पृण ा परपृण तम भ यात्.. (७)
हल खेती का काम करता आ अ य उ प करता है. वह माग पर चलता आ अपने काय से अ उ प करता है. जस कार मं बोलने वाला मं न बोलने वाले से े है, उसी कार दान दे ने वाला दान न दे ने वाले से उ म है. (७) एकपा यो चतु पादे त
पदो व च मे पा पादम ये त प ात्. पदाम भ वरे संप य पङ् प त मानः.. (८)
संप का एक भाग रखने वाला संप के दो भाग के वामी के पास मांगने जाता है. इसके बाद दो भाग संप रखने वाला तीन भाग संप रखने वाले के पास जाता है. चार भाग संप रखने वाला अपने से ने के पास जाता है. इसी कार पं ब प म छोटा बड़े के पास मांगने जाता है. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समौ च यमयो
तौ न समं व व ः स मातरा च समं हाते. समा वीया ण ाती च स तौ न समं पृणीतः.. (९)
हमारे समान प वाले दोन हाथ क धारण श समान नह है. एक ही माता से उ प गाएं बराबर ध नह दे त . जुड़वां भाइय का परा म एक जैसा नह होता. एक प रवार म ज म लेने वाले दो बराबर दान नह करते. (९)
दे वता—रा स नाशक अ न
सू —११८ अ ने हं स य१ णं द
म य वा. वे ये शु च त.. (१)
हे प व त वाले अ न! तुम मनु य के म य अपने थान पर का नाश करो. (१) उ
स वा तो घृता न
व लत होकर श ु
त मोदसे. य वा ुचः सम थरन्.. (२)
हे शोभन आ त वाले अ न! तुम उठते हो और घी पाकर स होते हो. तु हारे लए ुच उठाए जाते ह. (२) स आ तो व रोचतेऽ नरीळे यो गरा. ुचा तीकम यते.. (३) बुलाए गए एवं तु तय ारा शंसा यो य अ न पहले घी के ारा स चे जाते ह. (३)
व लत होते हो. एवं सभी दे व से
घृतेना नः सम यते मधु तीक आ तः. रोचमानो वभावसुः.. (४) घृतयु अवयव वाले अ न घृत पी ह द त वाले ह. (४)
से सचते ह. वे तु तय
ारा रोचमान एवं
जरमाणः स म यसे दे वे यो ह वाहन. तं वा हव त म याः.. (५) हे दे व का ह वहन करने वाले अ न! तुम तोता होते हो, मनु य तु ह बुलाते ह. (५)
ारा शं सत होकर
व लत
तं मता अम य घृतेना नं सपयत. अदा यं गृहप तम्.. (६) हे मनु यो! घृत ारा मरणर हत, अपराजेय एवं गृहप त अ न क सेवा करो. (६) अदा येन शो चषा ने र
वं दह. गोपा ऋत य द द ह.. (७)
हे अ न! अपने अपराजेय तेज के
ारा तुम रा स को जलाओ एवं धन के र क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनकर द तधारक बनो. (७) स वम ने तीकेन
योष यातुधा यः. उ
हे अ न! तुम अपने अ तीय तेज थान म द तशाली बनो. (८) तं वा गी भ
येषु द त्.. (८)
ारा रा स को समा त करो. तुम अपने सभी
या ह वाहं समी धरे. य ज ं मानुषे जने.. (९)
अनेक यजमान वाले ह वहनक ा एवं मानव समूह म सबसे अ धक य क ा अ न को तु त के साथ व लत कया जाता है. (९)
सू —११९
दे वता—लव पी इं
इ त वा इ त मे मनो गाम ं सनुया म त. कु व सोम यापा म त.. (१) (१)
मेरी इ छा है क म भी गाय और घोड़े का दान क ं . म कई बार सोमरस पी चुका ं. वाताइव दोधत उ मा पीता अयंसत. कु व सोम यापा म त.. (२)
पया आ सोमरस मुझे उसी कार कं पत करता एवं ऊपर उठाता है, जस कार वायु को कंपाता है. म कई बार सोमरस पी चुका ं. (२) उ मा पीता अयंसत रथम ा इवाशवः. कु व सोम यापा म त.. (३) पए ए सोमरस ने मुझे इस कार ऊपर उठाया है, जस कार तेज चाल वाले घोड़े रथ को ऊपर उठाते ह. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (३) उप मा म तर थत वा ा पु मव
यम्. कु व सोम यापा म त.. (४)
जस कार गाय रंभाती ई बछड़े के पास जाती है, उसी कार तु तयां मेरे पास आती ह. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (४) अहं त ेव व धुरं पयचा म दा म तम्. कु व सोम यापा म त.. (५) व ा जस कार रथ म सार थ के बैठने का थान बनाता है, उसी कार म तोता के मन म तु त उ प करता ं. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (५) न ह मे अ प चना छा सुः प च कृ यः. कु व सोम यापा म त.. (६) पंचजन मेरे पात से बच नह सकते. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न ह मे रोदसी उभे अ यं प ं चन (७)
त. कु व सोम यापा म त.. (७)
ावा-पृ थवी मेरे एक भाग के भी समान नह ह. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. अ भ ां म हना भुवमभी३मां पृ थव महीम्. कु व सोम यापा म त.. (८)
मने अपने मह व से सोमपान कर चुका ं. (८)
ौ एवं वशाल धरती को परा जत कया है. म अनेक बार
ह ताहं पृ थवी ममां न दधानीह वेह वा. कु व सोम यापा म त.. (९) म धरती को एक थान से उठाकर सरे थान पर रख सकता ं. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (९) ओष म पृ थवीमहं जङ् घनानीह वेह वा. कु व सोम यापा म त.. (१०) म अपने तेज से धरती अथवा अ य थान को जला सकता ं. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (१०) द व मे अ यः प ो३धो अ यमचीकृषम्. कु व सोम यापा म त.. (११) मेरा एक भाग वग म है एवं सरा मने धरती पर सोमपान कर चुका ं. (११)
थर कया है. म अनेक बार
अहम म महामहोऽ भन यमुद षतः. कु व सोम यापा म त.. (१२) म अ तशय महान ं तथा सूय प से आकाश म अ भगत ं. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (१२) गृहो या यरङ् कृतो दे वे यो ह वाहनः. कु व सोम यापा म त.. (१३) म ह व हण करता ,ं यजमान ारा सुशो भत ं एवं दे व के लए ह ं. म अनेक बार सोमपान कर चुका ं. (१३)
सू —१२०
वहन करता
दे वता—इं
त ददास भुवनेषु ये ं यतो ज उ वेषनृ णः. स ो ज ानो न रणा त श ूननु यं व े मद यूमाः.. (१) इस भुवन म वही बड़ा था, जससे उ एवं द त बल वाले सूय पी इं उ प ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ए ह.
जो इं ज म के साथ ही श ु वनाश करने लगे, सभी दे वता उनका वागत करते ह. (१) वावृधानः शवसा भूय जाः श ुदासाय भयसं दधा त. अ न च न च स न सं ते नव त भृता मदे षु.. (२) बल से बढ़ते ए, अ धक श शाली एवं श ुहंता इं दास के मन म अ धक भय उ प करते ह. ाणयु एवं ाणहीन पदाथ इं के ारा संशो धत होते ह. हे इं ! तु हारी स ता उ प होने पर सभी पो षत ाणी तु त हेतु एक होते ह. (२) वे तुम प वृ त व े यदे ते भव यूमाः. वादोः वाद यः वा ना सृजा समदः सु मधु मधुना भ योधीः.. (३) हे इं ! सभी यजमान अपना य तुम पर समा त करते ह. तु ह तृ त करने वाले लोग प नी के प म दोगुने एवं संतान के प म तगुने बनते ह. तुम घर, धन आ द से, य प नी से उ प परम य संतान से हम मलाओ. हमारी य संतान को उससे भी अ धक ना तय आ द से ड़त करो. (३) इत च वा धना जय तं मदे मदे अनुमद त व ाः. ओजीयो धृ णो थरमा तनु व मा वा दभ यातुधाना रेवाः.. (४) हे इं ! तुम जब-जब सोमपान के बाद श ु के धन को जीतकर स होते हो, तब-तब तु हारे बाद मेधावी जल ह षत होते ह. हे श ुनाशक इं ! हम अ धक श वाला धन दो, ग तयां एवं रा स तु ह बाधा न प ंचाव. (४) वया वयं शाश हे रणेषु प य तो युधे या न भू र. चोदया म त आयुधा वचो भः सं ते शशा म णा वयां स.. (५) हे इं ! तु हारे ारा अनुगृहीत होकर हम श ु का खूब नाश कर एवं यु म यु के यो य ब त से आयुध को जानते ए तु हारे व आ द को श ु क ओर े रत कर. हम तु हारे लए मं ो चारण के साथ-साथ अ का सं कार करते ह. (५) तुषे यं पु वपसमृ व मनतममा यमा यानाम्. आ दषते शवसा स त दानू सा ते तमाना न भू र.. (६) जो इं अपनी श से वृ आ द सात रा स को मारते ह एवं जो रा स के ब त से थान को ा त करते ह. हम उ ह तु तयो य अनेक प वाले द तशाली, वामी एवं परम व सनीय इं क तु त करते ह. (६) न त धषेऽवरं परं च य म ा वथावसा रोणे. आ मातरा थापयसे जग नू अत इनो ष कवरा पु
ण.. (७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! यजमान के जस घर म तुम ह प अ से तृ त होते हो, उस म सांसा रक एवं द धन था पत करते हो. तुम सबके नमाणक ा ावा-पृ थवी को ग तशील रखते हो, इस लए अनेक लौ कक व वै दक कम को ा त करते हो. (७) इमा बृह वो वव ाय शूषम यः वषाः. महो गो य य त वराजो र व ा अवृणोदप वाः.. (८) बृह व नामक ऋ ष सुखपूवक इं के लए इन मं को बोलते ह. ऋ षय म मुख एवं वग ा त कराने वाले इं महान् एवं वयं का शत पवत को अपने बल से हराते ह तथा बल असुर ारा बंद सभी ार खोलते ह. (८) एवा महा बृह वो अथवावोच वां त व१ म मेव. वसारो मात र वरीर र ा ह व त च शवसा वधय त च.. (९) अ धक गुण वाले, अथवा के पु बृह व ने अपनी वशाल तु त केवल इं के त ही नवे दत क है. पापर हत न दयां य का साधन बनकर इं को स करती ह तथा अपनी श से उ ह बढ़ाती ह. (९)
सू —१२१
दे वता— जाप त
हर यगभः समवतता े भूत य जातः प तरेक आसीत्. स दाधार पृ थव ामुतेमां क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (१) परमा मा से सबसे पहले जाप त उ प ए. वे उ प होते ही सब जगत् के वामी बने. उ ह ने धरती एवं इस ौ को धारण कया. हम पुरोडाश आ द के ारा द जाप त क सेवा कर. (१) य आ मदा बलदा य य व उपासते शषं य य दे वाः. य य छायामृतं य य मृ युः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (२) जो जाप त आ मा तथा बल को दे ने वाले ह, सभी व के ाणी जनक आ ा को शरोधाय करते ह. मरण एवं अमरता जनक छाया है, हम उ ह द जाप त क पुरोडाश आ द से सेवा करते ह. (२) यः ाणतो न मषतो म ह वैक इ ाजा जगतो बभूव. य ईशे अ य पद तु पदः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (३) जो अपने मह व से सांस लेने वाले, पलक झपकाने वाले एवं ग तशील ा णय के एकमा राजा ए ह, जो दो पैर वाले मानव एवं चार पैर वाले पशु के वामी ह, उ ह ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाप त क पूजा हम ह
ारा कर. (३)
य येमे हमव तो म ह वा य य समु ं रसया सहा ः. य येमाः दशो य य बा क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (४) जसक म हमा से ये हम वाले पवत उ प ए ह एवं यह सागर स हत धरती जसक कही जाती है, ये सब दशाएं जसक भुजाएं ह, हम उ ह जाप त क ह ारा पूजा कर. (४) येन ौ ा पृ थवी च हा येन वः त भतं येन नाकः. यो अ त र े रजसो वमानः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (५) ज ह ने ौ एवं व तृत धरती को थर कया है, ज ह ने वग तथा आ द य को धारण कया है एवं जो अंत र म जल को बनाने वाले ह, उ ह जाप त क पूजा हम ह ारा कर. (५) यं दसी अवसा त तभाने अ यै ेतां मनसा रेजमाने. य ा ध सूर उ दतो वभा त क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (६) ज ह ने र ा के वचार से श द करती ई ावा-पृ थवी को थर कया एवं द तयु इन दोन को म हमा वाला समझा, जनके आधार के कारण उ दत आ सूय का शत होता है, हम उ ह जाप त क पूजा ह ारा कर. (६) आपो ह यद् बृहती व माय गभ दधाना जनय तीर नम्. ततो दे वानां समवततासुरेकः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (७) व तृत जल ने सारे संसार को ढक लया था, जल ने गभ धारण करके अ न, आकाश आ द को ज म दया. इसके बाद दे व का एकमा र क उ प आ. हम ह ारा उ ह जाप त क पूजा करते ह. (७) य दापो म हना पयप य ं दधाना जनय तीय म्. यो दे वे व ध दे व एक आसी क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (८) जाप त को धारण करने वाले एवं य को उ प करने वाले जल को जाप त ने अपने मह व से दे खा. जो सभी दे व के म य एकमा दे व ए, हम उ ह जाप त क ह ारा सेवा कर. (८) मा नो हसी ज नता यः पृ थ ा यो वा दवं स यधमा जजान. य ाप ा बृहतीजजान क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो धरती को ज म दे ने वाले ह अथवा जस स य धम वाले ने वग को उ प कया है एवं ज ह ने आनंदवधक व तृत जल को उ प कया है, वे हमारी हसा न कर. हम ह ारा उ ह जाप त क सेवा कर. (९) जापते न वदे ता य यो व ा जाता न प र ता बभूव. य कामा ते जु म त ो अ तु वयं याम पतयो रयीणाम्.. (१०) हे जाप त! तु हारे अ त र सरा कोई भी इन सम त उ प भूत को अधीन नह कर सका. हम जस कामना से तु हारा हवन करते ह, वह हम ा त हो तथा हम धन के वामी बन. (१०)
सू —१२२
दे वता—अ न
वसुं न च महसं गृणीषे वामं शेवम त थम षे यम्. स रासते शु धो व धायसोऽ नह ता गृहप तः सुवीयम्.. (१) म सूय के समान व च तेज वाले, रमणीय, सुखकारक, अ त थ के समान पू य व े षर हत अ न क तु त करता ं. अ न व धारण करने वाली तथा शोकना शनी गाएं एवं शोभन-वीय यजमान को दे ते ह. वे होता एवं गृहप त ह. (१) जुषाणो अ ने त हय मे वचो व ा न व ान् वयुना न सु तो. घृत न ण णे गातुमेरय तव दे वा अजनय नु तम्.. (२) हे अ न! तुम तृ त होकर मेरे तो क कामना करो. हे उ म कम करने वाले अ न! तुम सभी जानने यो य बात जानते हो, तुम घृत क आ त पाकर तोता को सामगान क आ ा दो. दे वगण तु हारा काय दे खकर अपना-अपना क करते ह. (२) स त धामा न प रय म य दाश ाशुषे सुकृते मामह व. सुवीरेण र यणा ने वाभुवा य त आनट् स मधा तं जुष व.. (३) हे सात थान को ा त करने वाले व मरणर हत अ न! तुम उ म दान करने वाले एवं शोभन य क ा यजमान को धन दो. जो स मधा ारा तु ह बढ़ाता है, उसके पास उ म संप एवं संतान लेकर जाओ. (३) य य केतुं थमं पुरो हतं ह व म त ईळते स त वा जनम्. शृ व तम नं घृतपृ मु णं पृण तं दे वं पृणते सुवीयम्.. (४) ह सात अ
धारण करने वाले यजमान य के ापक, दे व म मुख, हतकारक म े एवं के वामी अ न क तु त करते ह. अ न घी क आ त पाकर ाथना सुनते ह
******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं अभी फल दे ते ह. वे दान करने वाले को उ म बल दे ते ह. (४) वं तः थमो वरे यः स यमानो अमृताय म व. वां मजय म तो दाशुषो गृहे वां तोमे भभृगवो व
चुः.. (५)
हे अ न! तुम त, सव े एवं वरण करने यो य हो. तुम बुलाए जाने पर अमरता दे ने के लए स बनो. दाता के घर म म द्गण तु ह सुशो भत करते ह एवं भृगुवंशी ऋ ष तो ारा तु ह द तशाली बनाते ह. (५) इषं ह सु घां व धायसं य ये यजमानाय सु तो. अ ने घृत नु ऋता न द तय ं प रय सु तूयसे.. (६) हे शोभन कम वाले अ न! य म संल न यजमान के लए व को तृ त करने वाली और यथे ध दे ने वाली गाय से य फल को हो. तुम घृत क आ त पाकर तीन लोक को का शत करते ए य शाला म सव वतमान हो, ग तशील हो एवं शोभन य के समान आचरण करते हो. (६) वा मद या उषसो ु षु तं कृ वाना अजय त मानुषाः. वां दे वा महया याय वावृधुरा यम ने नमृज तो अ वरे.. (७) मनु य ातःकाल होते ही तु ह त बनाकर य करते ह. हे अ न! दे वगण य म तु ह घृत के ारा व लत करके पूजा के लए बढ़ाते ह. (७) न वा व स ा अ त वा जनं गृण तो अ ने वदथेषु वेधसः. राय पोषं यजमानेषु धारय यूयं पात व त भः सदा नः.. (८) हे अ न! व स पु य म अनु ान आरंभ करके तु हारी तु त करते ह एवं अ दान करते ह. तुम यजमान के घर म अ धक अ रखो एवं क याणसाधन ारा हमारी सदा र ा करो. (८)
सू —१२३
दे वता—वेन
अयं वेन ोदय पृ गभा यो तजरायू रजसो वमाने. इममपां सङ् गमे सूय य शशुं न व ा म तभी रह त.. (१) यो त ारा घरे ए वेन नामक दे व आकाश म सूय करण से उ प जल को धरती पर गराते ह. सूय के साथ जल के मलन के समय तोता अपनी तु तय ारा वेन क अचना इस कार करते ह, जस कार माता- पता ब च को गीत से स करते ह. (१) समु ा ममु दय त वेनो नभोजाः पृ ं हयत य द श. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋत य सानाव ध व प ाट् समानं यो नम यनूषत ाः.. (२) वेन आकाश से जल क लहर को गराते ह. आकाश म उ वल मू त वाले वेन क पीठ दखाई दे ती है. वेन जल के ऊंचे थान आकाश म द त पाते ह. वेन के अनुचर ने उनके उ प थान आकाश को श द से भर दया है. (२) समानं पूव र भ वावशाना त व स य मातरः सनीळाः. ऋत य सानाव ध च माणा रह त म वो अमृत य वाणीः.. (३) चार ओर श द करते ए व बछड़े के समान व ुत्-अ न क माता तु य जल वेन के साथ आकाश म थर रहता है. जल के उ प थान उ च आकाश म बहते ए मधुर जल का श द वेन को अलंकृत करता है. (३) जान तो पमकृप त व ा मृग य घोषं म हष य ह मन्. ऋतेन य तो अ ध स धुम थु वदद्ग धव अमृता न नाम.. (४) मेधा वय ने महान् पशु के समान श द सुनकर वेन के प क क पना क . उ ह ने य से वेन को तृ त करके जलसमूह को ा त कया. जल के वामी वेन मरणर हत ह. (४) अ सरा जारमुप स मयाणा योषा बभ त परमे ोमन्. चर य य यो नषु यः स सीद प े हर यये स वेनः.. (५) व ुत् पी ी ने वेन पी पु ष को दे खकर मुसकुराते ए उनका अंत र म आ लगन कया. वेन ने ेमी के समान ेयसी पणी बजली क अ भलाषा पूरी करके सोने के क म शयन कया. (५) नाके सुपणमुप य पत तं दा वेन तो अ यच त वा. हर यप ं व ण य तं यम य योनौ शकुनं भुर युम्.. (६) हे वेन! तुम सुनहरे पंख वाले प ी के समान, वग म उड़ने वाले, व ण के त, व ुत्अ न के थान अंत र म प ी प म वतमान एवं व का भरण करने वाले हो. सब लोग दय म ेम रखते ए तु ह दे खते ह. (६) ऊ व ग धव अ ध नाके अ था यङ् च ा ब द यायुधा न. वसानो अ कं सुर भ शे कं व१ण नाम जनत या ण.. (७) वेन जल धारण करने वाले एवं वग के ऊंचे थान म रहते ह एवं अपने चार ओर व च आयुध धारण करते ह. वे सूय के समान अपने सुंदर प म चमकते ह एवं सबके अनुकूल जल को उ प करते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सः समु म भ य जगा त प य गृ य च सा वधमन्. भानुः शु े ण शो चषा चकान तृतीये च े रज स या ण.. (८) जलयु वेन अपना कम पूरा करते समय गद्ध प ी के समान र तक दे खते ए अंत र क ओर जाते ह. वे उ वल द त से का शत होकर तृतीय लोक अथात् आकाश म सबके य जल का नमाण करते ह. (८)
सू —१२४
दे वता—अ न
इमं नो अ न उप य मे ह प चयामं वृतं स तत तुम्. असो ह वाळु त नः पुरोगा योगेव द घ तम आश य ाः.. (१) हे अ न! तुम हमारे पांच नयामक वाले, तीन कार से अनु त एवं तीन होता वाले य म आओ. तुम हमारे ह वाहक बनो, हमारे पुरोगामी बनो एवं हम छोड़कर अ धक समय तक गुफा के अंधेरे म सोओ. (१) अदे वा े वः चता गुहा य प यमानो अमृत वमे म. शवं य स तम शवो जहा म वा स यादरण ना भमे म.. (२) अ न ने कहा— म दे व क ाथना से गुहा म वतमान द तहीन दशा से द त को ा त करके सबको दे खता आ अमरता ा त करता ं. भली कार पूण ए य को म का शत होकर छोड़ता ं एवं अपने चरसखा व उ प थान अर ण म चला जाता ं. (२) प य य या अ त थ वयाया ऋत य धाम व ममे पु ण. शंसा म प े असुराय शेवमय या यं भागमे म.. (३) म आकाश म गमन वाले सूय को दे खता आ ऋतु के अनु प अनेक कार के य का अनु ान करता ं. म श शाली पतर के सुख के लए होता बनकर मं बोलता ं तथा य के अनुपयु थान से उपयु थान म जाता ं. (३) ब ः समा अकरम तर म ं वृणानः पतरं जहा म. अ नः सोमो व ण ते यव ते पयाव ा ं तदवा यायन्.. (४) मने इस य थान म अनेक वष बताए ह. म यहां इं का वरण करता आ अपने पता अर ण को छोड़ता ं. मेरे छप जाने पर अ न, सोम एवं व ण का पतन होता है तथा रा म अ व था फैल जाती है. तब म आकर असुर से र ा करता ं. (४) नमाया उ ये असुरा अभूव वं च मा व ण कामयासे. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋतेन राज नृतं व व
मम रा या धप यमे ह.. (५)
मेरे आते ही रा स श हीन हो गए. हे व ण! तुम भी मेरी अ भलाषा करते हो. हे राजन्! तुम स य से म या को अलग करते ए मेरे रा के अ धप त बनो. (५) इदं व रद मदास वाममयं काश उव१ त र म्. हनाव वृ ं नरे ह सोम ह व ् वा स तं ह वषा यजाम.. (६) हे सोम! दे खो, यह वग है. यह अ यंत सुंदर था. यह काश एवं व तृत आकाश है. हे सोम! तुम आओ, जससे हम वृ का वध कर सक. तुम हवन के यो य हो. हम अ य होमसंबंधी के साथ तु हारा य कर. (६) क वः क व वा द व पमासजद भूती व णो नरपः सृजत्. ेमं कृ वाना जनयो न स धव ता अ य वण शुचयो भ र त.. (७) ांतदश म ने अपने क व व से वग म अपना तेज थर कया है. व ण ने बना यास के ही जल को बादल से नकाला. जगत् का क याण करने वाली न दयां व ण क प नी के समान द तशा लनी बनकर व ण के उ वल प को धारण करती ह. (७) ता अ य ये म यं सच ते ता ईमा े त वधया मद ती. ता वशो न राजानं वृणाना बीभ सुवो अप वृ ाद त न्.. (८) जल व ण के अ यंत वशाल तेज को धारण करते ह एवं अ पाकर स होते ह. व ण प नी के समान उन जल के पास आते ह. जस कार जा राजा के पास जाती है, उसी कार जल भयभीत होकर वृ के पास से व ण के पास जाकर ठहरते ह. (८) बीभ सूनां सयुजं हंसमा रपां द ानां स ये चर तम्. अनु ु भमनु चचूयमाण म ं न च युः कवयो मनीषा.. (९) उन भयभीत एवं द जल का साथी बनकर म ता का आचरण करने वाला हंस कहलाता है. तु तयो य एवं बार-बार जल के पीछे जाने वाले इं क शंसा व ान् मं ारा करते ह. (९)
सू —१२५
दे वता—परमा मा
अहं े भवसु भ रा यहमा द यै त व दे वैः. अहं म ाव णोभा बभ यह म ा नी अहम नोभा.. (१) वाणी दे वी कहती है— ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म , वसु , आ द य एवं सभी दे व के साथ वचरण करती ं. म म , व ण, इं , अ न एवं अ नीकुमार को धारण करती ं. (१) अहं सोममाहनसं बभ यहं व ारमुत पूषणं भगम्. अहं दधा म वणं ह व मते सु ा ३ े यजमानाय सु वते.. (२) म प थर से पीसे जाने वाले सोम, व ा, पूषा एवं भग को धारण करती ं. म ह धारण करने वाले, दे व को शोभन ह व दे ने वाले एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को धन दे ती ं. (२) अहं रा ी सङ् गमनी वसूनां च कतुषी थमा य यानाम्. तां मा दे वा दधुः पु ा भू र था ां भूयावेशय तीम्.. (३) म रा क वा मनी, धन दे ने वाली, ान वाली एवं य ोपयोगी व तु म सव म ं. दे व ने मुझे अनेक थान म धारण कया है. मेरा आधार वशाल है. म अनेक ा णय म आ व ं. (३) मया सो अ म यो वप य त यः ा ण त य ई शृणो यु म्. अम तवो मां त उप य त ु ध ुत वं ते वदा म.. (४) मेरी सहायता से ही ाणी अ खाते ह, दे खते ह, सांस लेते ह एवं कही ई बात सुनते ह. मुझे न मानने वाले ीण हो जाते ह. हे सखा! सुनो, म तु ह ा करने यो य बात बताती ं. (४) अहमेव वय मदं वदा म जु ं दे वे भ त मानुषे भः. यं कामये तंतमु ं कृणो म तं ाणं तमृ ष तं सुमेधाम्.. (५) जो दे व एवं मानव ारा से वत है, उसे म ही उपदे श दे ती ं. म जसे चाहती ं, उसे श शाली, तोता, ऋ ष एवं बु मान् बना दे ती ं. (५) अहं ाय धनुरा तनो म षे शरवे ह तवा उ. अहं जनाय समदं कृणो यहं ावापृ थवी आ ववेश.. (६) म े षी पुर रा स को मारने के लए ही के धनुष का व तार करती ं. म ही लोग के क याण के लए यु करती ं एवं ावा-पृ थवी म ा त ं. (६) अहं सुवे पतरम य मूध मम यो नर व१ तः समु े . ततो व त े भुवनानु व ोतामूं ां व मणोप पृशा म.. (७) म
ौ को उ प करती ं. आकाश परमा मा का म तक है. मेरा थान सागर के जल
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म है. वह से म सारे संसार म व तृत होती ं एवं अपने वशाल शरीर से इस पश करती ं. (७)
ुलोक का
अहमेव वात इव वा यारभमाणा भुवना न व ा. परो दवा पर एना पृ थ ैतावती म हना सं बभूव.. (८) म ही सब भुवन का नमाण करती ई वायु के समान चलती ं. मेरी म हमाएं ऐसी ह क धरती और ुलोक से भी बड़ी ं. (८)
दे वता— व ेदेव
सू —१२६ न तमंहो न रतं दे वासो अ म यम्. सजोषसो यमयमा म ो नय त व णो अ त
षः.. (१)
हे दे वो! उस पु ष को कोई भी अमंगल एवं पाप ा त नह करता, जसे अयमा, म एवं व ण मलकर श ु के हाथ से बचाते ह. (१) त वयं वृणीमहे व ण म ायमन्. येना नरंहसो यूयं पाथ नेथा च म यम त
षः.. (२)
हे व ण, म एवं अयमा! हम तुमसे उसी र ा को मांगते ह, जससे तुम मानव को न पाप करते हो एवं श ु से बचाते हो. (२) ते नूनं नोऽयमूतये व णो म ो अयमा. न य ा उ नो नेष ण प ष ा उ नः पष य त
षः.. (३)
व ण, म एवं अयमा न य ही हमारी र ा करगे. तुम हम आगे ले चलो, पाप से पार करो तथा श ु से बचाओ. (३) यूयं व ं प र पाथ व णो म ो अयमा. यु माकं शम ण ये याम सु णीतयोऽ त
षः.. (४)
हे व ण, म एवं अयमा! तुम संसार क र ा करते हो. हे शोभन-नेतृ व वाले दे वो! हम तु हारे ारा दया आ अनुकूल सुख भोग एवं श ु से बच. (४) आ द यासो अ त धो व णो म ो अयमा. उ ंम ं वेमे म नं व तयेऽ त षः.. (५) आ द य, व ण, म और अयमा हम श ु से बचाव. हम श ु से बचने एवं क याण पाने के लए उ , म द्गण, इं एवं अ न को बुलाते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नेतार ऊ षु ण तरो व णो म ो अयमा. अ त व ा न रता राजान षणीनाम त उ
षः.. (६)
व ण, म और अयमा कुशल नेता ह. ये हम पाप से र ले जाव. जा दे व हम सभी पाप एवं श ु से बचाव. (६) शुनम म यमूतये व णो म ो अयमा. शम य छ तु स थ आ द यासो यद महे अ त
के वामी
षः.. (७)
व ण, म और अयमा र ा के साथ ही हम सुख द. आ द यगण हम व तृत सुख द एवं श ु से बचाव. (७) यथा ह य सवो गौय च प द षताममु चता यज ाः. एवो व१ म मु चता ंहः ताय ने तरं न आयुः.. (८) य करते ए वसु ने पैर से बंधी ई गाय को छु ड़ा दया था. हे अ न! हम उसी कार पाप से छु ड़ाओ एवं उ म तथा वशाल आयु दो. (८)
दे वता—रा
सू —१२७ रा ी वय यदायती पु
ा दे १
भः. व ा अ ध
रा दे वी आती ई चार ओर व तृत क . (१)
योऽ धत.. (१)
एवं उ ह ने न
ारा संपूण शोभा ा त
ओव ा अम या नवतो दे ु१ तः. यो तषा बाधते तमः.. (२) मरणर हत व द रा ने व तृत आकाश को ा त कया तथा नीचे एवं ऊंचे रहने वाले पदाथ को ढक लया. रा तार के काश से अंधकार को बाधा प ंचाती है. (२) न
वसारम कृतोषसं दे ायती. अपे हासते तमः.. (३)
रा दे वी ने आकर उषा को अपनी ब हन के हा न प ंचाई. (३)
प म वीकार कया तथा अंधकार को
सा नो अ य या वयं न ते याम व म ह. वृ ो न वस त वयः.. (४) हमारे लए वह रा क याणका रणी बने, जसके आने पर हम पेड़ पर रहने वाले प य के समान सो जाते ह. (४) न ामासो अ व त न प तो न प णः. न येनास द थनः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सारा गांव शांत है. पैर से चलने वाले प ी एवं ग तशील बाज प ी सब सो रहे ह. (५) यावया वृ यं१वृकं यवय तेनमू य. अथा नः सुतरा भव.. (६) हे रा ! तुम भे ड़ए, भे ड़ए क प नी एवं चोर को हमसे र करो. तुम हमारे लए वशेष री त से सुखकारी बनो. (६) उप मा पे पश मः कृ णं
म थत. उष ऋणेव यातय.. (७)
सब व तु को ढकने वाला काला आकार वशेष उषा! इस अंधकार को ऋण के समान हटाओ. (७) उप ते गा इवाकरं वृणी व
हत दवः. रा
प से मेरे पास तक आ गया है. हे
तोमं न ज युषे.. (८)
हे रा ! तुम आकाश क क या हो. मुझ श ुजयी का यह तो तुम वीकार करो. म गाय के समान तु ह यह तो भट कर रहा ं. (८)
सू —१२८
दे वता— व ेदेव
ममा ने वच वहवे व तु वयं वे धाना त वं पुषेम. म ं नम तां दश त वया य ेण पृतना जयेम.. (१) हे अ न! सं ाम म मेरा तेज उ चत हो. हम तु ह व लत करके अपने शरीर को पु कर. चार दशाएं मेरे लए झुक. तु ह अ य बनाकर हम श ु सेना को जीत. (१) मम दे वा वहवे स तु सव इ व तो म तो व णुर नः. ममा त र मु लोकम तु म ं वातः पवतां कामे अ मन्.. (२) इं स हत सब दे व, म त्, व णु और अ न यु म मेरा साथ द. अंत र के समान व तृत लोक मेरा हो तथा वायु मेरी अ भलाषा के अनुसार चलकर मुझे प व कर. (२) म य दे वा वणमा यज तां म याशीर तु म य दे व तः. दै ा होतारो वनुष त पूवऽ र ाः याम त वा सुवीराः.. (३) दे वगण मुझ तोता को धन द. म य फल ा त क ं एवं दे व को बुलाऊं. ाचीन काल म दे व के लए हवन करने वाले मेरे अनुकूल ह . म शरीर से नरोग एवं शोभन संतान वाला बनूं. (३) म ं यज तु मम या न ह ाकू तः स या मनसो मे अ तु. एनो मा न गां कतम चनाहं व े दे वासो अ ध वोचता नः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मेरे ऋ वज् मेरे ह आ द का यजन मेरे क याण के लए कर. मेरा मनोरथ पूण हो. म कसी भी पाप को न क ं . सभी दे व मुझे आशीवाद द. (४) दे वीः षळु व नः कृणोत व े दे वास इह वीरय वम्. मा हा म ह जया मा तनू भमा रधाम षते सोम राजन्.. (५) छः वशाल दे वयां मेरी उ त कर. हे सब दे वो! मेरे य म वीरता का काय करो. म शरीर और जा संबंधी कोई हा न न उठाऊं. हे राजा सोम! हम श ु के सामने न हार. (५) अ ने म युं तनुद परेषामद धो गोपाः प र पा ह न वम्. य चो य तु नगुतः पुन ते३मैषां च ं बुधां व नेशत्.. (६) हे अ न! तुम श ु का ोध थ करके अपराजेय बनकर हमारी र ा करो. श ु अपने उ े य म असफल होकर लौटे . य द श ु के पास बु हो तो न हो जाए. (६) धाता धातॄणां भुवन य य प तदवं ातारम भमा तषाहम्. इमं य म नोभा बृह प तदवाः पा तु यजमानं यथात्.. (७) म सृ क ा के ा, सकल भुवन के र क, द , सब भय से छु ड़ाने वाले एवं श ुपराभवकारी स वता क तु त करता ं. अ नीकुमार एवं बृह प त! इस य तथा यजमान क पाप से र ा कर. (७) उ चा नो म हषः शम यंसद म हवे पु तः पु ुः. स नः जायै हय मृळये मा नो री रषो मा परा दाः.. (८) परम व तृत, पू य, ब त ारा बुलाए गए व अनेक नवास थान वाले इं इस य म हम क याण द. हे ह र नामक अ वाले इं ! तुम हमारी संतान को सुखी करो, हमारी हसा मत करो और हम मत यागो. (८) ये नः सप ना अप ते भव व ा न यामव बाधामहे तान्. वसवो ा आ द या उप र पृशं मो ं चे ारम धराजम न्.. (९) जो हमारे श ु ह, वे र चले जाव. हम इं और अ न क सहायता से उ ह बाधा प ंचाव. वसु, और आ द य मुझे सव े उ त श वाला चेतनायु सव एवं सबका वामी बनाव. (९)
सू —१२९
दे वता—परमा मा
नासदासी ो सदासी दान नासी जो नो ोमा परो यत्. कमावरीवः कुह क य शम भः कमासीद्गहनं गभीरम्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
लय क दशा म न असत् था और न सत् था. उस समय न लोक थे और न अंत र था. न कोई आवरण था और न ढकने यो य पदाथ था. कह भी न कोई ाणी था और न कोई सुख प ंचाने वाला भोग था. उस समय गहन गंभीर जल भी नह था. (१) न मृ युरासीदमृतं न त ह न रा या अ आसी केतः. आनीदवातं वधया तदे कं त मा ा य परः क चनास.. (२) उस समय न मृ यु थी और न अमृत था. न रा थी और न दन का ान था. उस समय एकमा ा ही वधा के साथ ाणयु था. उससे बढ़कर अ य कुछ भी नह था. (२) तम आसी मसा गू हम ेऽ केतं स ललं सवमा इदम्. तु ेना व प हतं यदासी पस त म हनाजायतैकम्.. (३) लय दशा म सब कुछ अंधकार से घरा आ था एवं सब ओर अंधकार था. यह सारा यमान जगत् जल के प म अ ात था. सारा व तु छ अंधकार से ढका था. महान् तप से कारणकाय प वभाग से र हत उ प आ. (३) काम तद े समवतता ध मनसो रेतः थमं यदासीत्. सतो ब धुमस त नर व द द ती या कवयो मनीषा.. (४) परमे र के मन म सबसे पहले सृ रचना क इ छा उ प ई. वही सबसे पहले मन म सृ का बीज बनी. व ान ने बु से हदय म वचार कया एवं असत् म सत् के कारण को खोजा. (४) तर ीनो वतते र मरेषामधः वदासी३ प र वदासी३त्. रेतोधा आस म हमान आस वधा अव ता य तः पर तात्.. (५) आकाश आ द क सृ करने वाले परमा मा के तेज क करण या तरछ थ , नीचे क ओर थ अथवा ऊपर क ओर थ ? बीज प कम को धारण करने वाले जीव थे एवं महान् आकाश आ द भो य थे. उस समय अ नकृ एवं भो ा उ कृ था. (५) को अ ा वेद क इह वोच कुत आजाता कुत इयं वसृ ः. अवा दे वा अ य वसजनेनाथा को वेद यत आबभूव.. (६) कौन संपूण प से जानता है और कौन इस सृ के वषय म कह सकता है? यह सृ कन- कन कारण से उ प ई है? दे वगण भूतसृ के बाद उ प ए ह. यह व जससे उ प आ है, उसे कौन जानता है? (६) इयं वसृ यत आबभूव य द वा दधे य द वा न. यो अ या य ः परमे ोम सो अ वेद य द वा न वेद.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह वशेष सृ जससे उ प ई है, पता नह वह इसे धारण करता है अथवा नह . व तृत आकाश म जो इस सृ का अ य है, पता नह वह उसे जानता है या नह जानता. (७)
सू —१३०
दे वता— जाप त
यो य ो व त त तु भ तत एकशतं दे वकम भरायतः. इमे वय त पतरो य आययुः वयाप वये यासते तते.. (१) आकाश आ द तंतु ारा जो सग प य सब ओर व तृत है, वह सौ दे व संबंधी कम से ा त है. जाप त के पालक दे व जो सारी सृ म ा त ह, वे इस पंच का नमाण करते ह. वे ही इस व तृत व के ाण ह. (१) पुमाँ एनं तनुत उ कृण पुमा व त ने अ ध नाके अ मन्. इमे मयूखा उप से सदः सामा न च ु तसरा योतवे.. (२) जाप त इस सृ पी य को व तृत करता है एवं वही इसे संकु चत करता है. वही धरती एवं वग म इस सृ पी य का व तार करता है. जाप त क करण के समान ये दे व य थान म बैठे थे. इ ह ने य पी व को बुनने के लए तरछे धागे के प म साममं का नमाण कया. (२) कासी मा तमा क नदानमा यं कमासी प र धः क आसीत्. छ दः कमासी उगं कमु थं य े वा दे वमयज त व े.. (३) जस समय सभी दे व ने जाप त का य कया, उस समय या माण था? उस समय दे वमू त या थी? उस य का फल, घृत, स मधाएं, छं द और उ थमं या थे? (३) अ नेगाय यभव सयु वो णहया स वता सं बभूव. अनु ु भा सोम उ थैमह वा बृह पतेबृहती वाचमावत्.. (४) गाय ी छं द अ न का तथा उ णक छं द स वता का सहायक आ. सोम अनु ु प् छं द से तथा तेज वी सूय उ थ छं द से यु ए. बृहती छं द ने बृह प त के वचन का सहारा लया. (४) वरा म ाव णयोर भ ी र य ु बह भागो अ ः. व ा दे वा ग या ववेश तेन चा लृ ऋषयो मनु याः.. (५) वराट् छं द म और व ण का आ त आ. ु प् छं द एवं मा यं दन का सोमरस इं के भाग म पड़ा. जगती छं द ने सभी दे व का आ य लया. इन छं द ारा ऋ षय और ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मनु य ने य क क पना क . (५) चा लृ े तेन ऋषयो मनु या य े जाते पतरो नः पुराणे. प य म ये मनसा च सा तान् य इमं य मयज त पूव.. (६) य के उ प होने पर हमारे ाचीन पतर अथात् ऋ षय और मनु य ने उ छं द क सहायता से य पूण कया. जन पूव पु ष ने इस य को पूण कया था, उ ह म मन क आंख से दे ख रहा ं. म ऐसा मानता ं. (६) सह तोमाः सहछ दस आवृतः सह मा ऋषयः स त दै ाः. पूवषां प थामनु य धीरा अ वाले भरे र यो३ न र मीन्.. (७) सात द ऋ षय ने य के मं , छं द एवं नयम एक साथ जानकर य का अनु ान कया. जस कार सार थ घोड़ क लगाम पकड़ता है, उसी कार धीर ऋ षय ने ाचीन लोग के माग का अनुसरण कया. (७)
सू —१३१
दे वता—अ नीकुमार व इं
अप ाच इ व ाँ अ म ानपापाचो अ भभूते नुद व. अपोद चो अप शूराधराच उरौ यथा तव शम मदे म.. (१) हे श ुपराभवकारी इं ! हमारे सामने, पीछे , उ र और द ण म जो श ु ह, उ ह समा त करो. हे शूर इं ! तु हारे पास वशेष सुख पाकर हम स ह . (१) कु वद यवम तो यवं च था दा यनुपूव वयूय. इहेहैषां कृणु ह भोजना न ये ब हषो नमोवृ न ज मुः.. (२) हे इं ! जौ के खेत के मा लक जस कार उसे मशः अनेक बार म काटते ह, उसी कार उन लोग क भोजन साम ी न करो जो ‘नमः’ श द का उ चारण नह करते एवं य का अनु ान नह करते. (२) न ह थूयृतुथा यातम त नोत वो ववदे स मेषु. ग त इ ं स याय व ा अ ाय तो वृषणं वाजय तः.. (३) एक प हए वाली गाड़ी उ चत समय पर कह नह प ंच सकती. उससे यु के समय भी अ नह मल सकता. गौ, अ एवं अ क अ भलाषा करने वाले लोग इं क म ता चाहते ह. (३) युवं सुरामम ना नमुचावासुरे सचा. व पपाना शुभ पती इ ं कम वावतम्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे उदक के वामी अ नीकुमारो! तुमने नमु च असुर के साथ इं के यु पर सोमरस पीकर इं के काय म सहायता द थी. (४)
के अवसर
पु मव पतराव नोभे ावथुः का द ै सना भः. य सुरामं पबः शची भः सर वती वा मघव भ णक्.. (५) हे अ नीकुमारो! जस कार माता- पता पु क र ा करते ह, उसी कार तुमने सोमरस पीकर अपने शंसनीय कम एवं श य के साथ इं क र ा क थी. हे इं ! सर वती तु हारे समीप थ . (५) इ ः सु ामा ववाँ अवो भः सुमृळ को भवतु व वेदाः. बाधतां े षो अभयं कृणोतु सुवीय य पतयः याम.. (६) उ म र क, धनवान् एवं सव इं अपने र ासाधन ारा सुख प ंचाने वाले बन. वे श ु को बाधा प ंचाव एवं हम भयर हत बनाव. हम उ म बल के वामी बन. (६) त य वयं सुमतौ य य या प भ े सौमनसे याम. स सु ामा ववाँ इ ो अ मे आरा चद् े षः सनुतयुयोतु.. (७) हम य का भाग हण करने वाले इं क क याणका रणी कृपा म रह. वे शोभन र क एवं धनी इं हमारे समीपवत एवं रवत श ु को हमसे अलग कर. (७)
सू —१३२
दे वता— म व व ण
ईजान मद् ौगूतावसुरीजानं भू मर भ भूष ण. ईजानं दे वाव नाव भ सु नैरवधताम्.. (१) वग य क ा के लए ही धन धारण करता है. भू म उसीको संप अ नीकुमार दे वय क ा को ही नाना सुखसाम ी ारा बढ़ाते ह. (१)
वाला बनाती है.
ता वां म ाव णा धारय ती सुषु ने षत वता यजाम स. युवोः ाणाय स यैर भ याम र सः.. (२) हे धरती को धारण करने वाले म व व ण! हम सुख के उ म साधन पाने के लए तु हारी पूजा करते ह. य क ा के त तुम दोन का जो म ता का भाव है, उसी के ारा हम रा स को जीत. (२) अधा च ु य धषामहे वाम भ यं रे णः प यमानाः. द ाँ वा य पु य त रे णः स वार कर य मघा न.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म व ण! जस समय हम तु हारे लए ह धारण करने क इ छा करते ह, उसी समय हम य धन के पास प ंच जाते ह. तु ह ह दे ने वाला जो धन ा त करता है, उसको कोई भी न नह कर सकता. (३) असाव यो असुर सूयत ौ वं व ष े ां व णा स राजा. मूधा रथ य चाक ैतावतैनसा तक क ु ् .. (४) हे श शाली म ! वग जसे उ प करता है, वह सूय तुमसे भ है. हे व ण! तुम सबके राजा हो. तु हारे रथ का ऊपरी भाग इधर ही आ रहा है. यह य रा स को न करने वाला है. इसे पाप नह छू पाता. (४) अ म वे३ त छकपूत एनो हते म े नगता ह त वीरान्. अवोवा य ा नू ववः यासु य या ववा.. (५) म दे व के हतैषी बन जाने के कारण मुझ शकपूत ऋ ष म थत पाप नीच श ु को न करता है. म दे व आकर हमारे शरीर क र ा कर तथा य क य साम ी को सुर त कर. (५) युवो ह माता द त वचेतसा ौन भू मः पयसा पुपूत न. अव या द द न सूरो न न र म भः.. (६) हे व श ान वाले म एवं व ण! अ द त तु हारी माता है. तुम धरती और आकाश को जल से भर दो. तुम नीचे वाले लोक म य व तुएं दो एवं सूय क करण ारा सारे संसार को प व बनाओ. (६) युवं राजावसीदतं त थं न धूषदं वनषदम्. ता नः कणूकय तीनृमेध त े अंहसः सुमेध त े अंहसः.. (७) हे म व व ण! तुम अपने-अपने कम से द तशाली बनकर अपने थान पर ठहरो. वन म घूमने वाला तु हारा रथ घोड़ के माग म थत है. तुम दोन जोर से च लाते ए श ु को हराने के लए रथ म बैठते हो. बु मान् ऋ ष नृमेध से छू ट चुके ह. (७)
सू —१३३
दे वता—इं
ो व मै पुरोरथ म ाय शूषमचत. अभीके च लोककृ स े सम सु वृ हा माकं बो ध चो दता नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (१) हे तोताओ! इं के रथ के आगे चलने वाली सेना क भली-भां त पूजा करो. इं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श ुसेना के समीप आ जाने पर भी भागते नह . वे श ु का वध करते ह. वे हमारे काय को जान. श ु के धनुष पर चढ़ ई डो रयां न ह . (१) वं स धूँरवासृजोऽधराचो अह हम. अश ु र ज षे व ं पु य स वाय तं वा प र वजामहे. नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (२) हे इं ! नीचे बहने वाली न दय को तु ह ने मु कया है. तु ह ने मेघ का नाश कया है. हे इं ! तुम श ुर हत बनकर ज म लेते हो एवं व का पालन करते हो. तु ह सव म जानकर हम तु ह तु तय से वश म करते ह. श ु के धनुष क डो रयां न ह . (२) व षु व ा अरातयोऽय नश त नो धयः. अ ता स श वे वधं यो न इ जघांस त या ते रा तद दवसु नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (३) हे इं ! सभी दानर हत श ु न ह और तु हारी तु तयां ारंभ ह . जो हम मारना चाहता है. उस श ु को तुम मारो. तु हारी दानशीलता हम धन दे तथा श ु के धनुष क डो रयां न ह . (३) यो न इ ा भतो जनो वृकायुरा ददे श त. अध पदं तम कृ ध वबाधो अ स सास हनभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (४) हे इं ! जो आयुध लए हमारे चार ओर भे ड़य के समान घूमते ह, उ ह तुम धराशायी करो. तुम श ु के बाधक एवं पराभवकारी हो. श ु के धनुष क डो रयां न ह . (४) यो न इ ा भदास त सना भय न ः. अव त य बलं तर महीव ौरध मना नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (५) हे इं ! हमारे समान ज म वाला जो नीच श ु हम न करना चाहता है, उसक श को इस कार नीचा दखाओ, जस कार आकाश धरती को अपने से नीचा रखता है. हमारे श ु के धनुष क डो रयां न ह . (५) वय म वायवः स ख वमा रभामहे. ऋत य नः पथा नया त व ा न रता नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (६) हे इं ! हम तु हारी म ता क इ छा करते ह एवं तु हारी म ता के अनुकूल काय करते ह. तुम हम पु य कम वाले माग से आगे ले चलो. हम सभी पाप से पार ह . हमारे श ु के धनुष क डो रयां न ह . (६) अ म यं सु व म
तां श या दोहते
त वरं ज र े.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ छ ो नी पीपय था नः सह धारा पयसा मही गौः.. (७) हे इं ! तुम हमारे लए यह व ा सखाओ, जससे तोता क अ भलाषा पूण हो. यह ध र ी पी बड़े थन वाली गाय हजार धारा म ध गराकर हम सुखी करे. (७)
दे वता—इं
सू —१३४
उभे य द रोदसी आप ाथोषाइव. महा तं वा महीनां स ाजं चषणीनां दे वी ज न यजीजनद् भ ा ज न यजीजनत्.. (१) हे इं ! तुम उषा के समान धरती-आकाश दोन को अपने तेज से पूण करते हो. तुम अ तशय महान् एवं मानव जा म राजा हो. दे वी एवं क याणमयी माता ने तु ह उ प कया है. (१) अव म हणायतो मत य तनु ह थरम्. अध पदं तम कृ ध यो अ माँ आ ददे श त दे वी ज न यजीजनद् भ ा ज न यजीजनत्.. (२) हे इं ! जो हमारा हनन करना चाहता है, उसके थर बल को भी तुम ीण करो. जो हमारा नाश करना चाहता है, उसे तुम अपने पैर से कुचल दो. द गुण वाली एवं क याणमयी माता ने तु ह ज म दया है. (२) अव या बृहती रषो व ा अ म हन्. शची भः श धूनुही व ा भ त भ दवी ज न यजीजनद् भ ा ज न यजीजनत्.. (३) हे श ुनाशक एवं श शाली इं ! तुम अपनी श य ारा सवसुखकारी एवं व तृत अ को हमारी ओर भेजो और सभी साधन से हमारी र ा करो. द गुणवाली एवं क याणमयी माता ने तु ह ज म दया है. (३) अव य वं शत त व व ा न धूनुषे. र य न सु वते सचा सही णी भ ज न यजीजनत्.. (४)
तभ
दवी
ज न यजीजनद्
भ ा
हे शत तु इं ! जस समय तुम सभी कार के अ े षत करोगे, उस समय सोमरस नचोड़ने वाले यजमान को हजार र ासाधन से बचाओगे. द गुण वाली एवं क याणमयी माता ने तु ह ज म दया है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अव वेदाइवा भतो व व पत तु द वः. वायाइव त तवो १ मदे तु म त दवी ज न यजीजनद् भ ा ज न यजीजनत्.. (५) इं के द तशाली आयुध पसीने क बूंद के समान चार ओर गर. वे ध के तंतु के समान फैल और बु हमसे र जाव. द गुण वाली एवं क याणमयी माता ने तु ह ज म दया है. (५) द घ ङ् कुशं यथा श बभ ष म तुमः. पूवण मघव पदाजो वयां यथा यमो दे वी ज न यजीजनद् भ ा ज न यजीजनत्.. (६) हे ानी एवं धनी इं ! तुम अपने श नामक आयुध को अंकुश के समान धारण करते हो. बकरा जस कार अपने अगले पैर से पेड़ क शाखा को ख चता है, उसी कार तुम अपनी श से श ु को ख चते हो. द गुण वाली एवं क याणमयी माता ने तु ह ज म दया है. (६) न कदवा मनीम स न करा योपयाम स म प े भर पक े भर ा भ सं रभामहे.. (७)
ु यं चराम स.
हे दे वो! हम तु हारे कम म कोई भूल नह करते. हम तु हारे कसी काम म उदासी नह बरतते. हम मं और ु त के अनुसार चलते ह एवं दोन हाथ म य साम ी लेकर य पूण करते ह. (७)
दे वता—यम
सू —१३५ य म वृ े सुपलाशे दे वैः स पबते यमः. अ ा नो व प तः पता पुराणाँ अनु वेन त.. (१)
न चकेता ने कहा—“ जस सुंदर प वाले वृ पर यम दे व के साथ भोग करते ह, जा के प त हमारे पता क इ छा है क म उसी वृ पर जाकर अपने पूवज से मलू.ं (१) पुराणाँ अनुवेन तं चर तं पापयामुया. असूय
यचाकशं त मा अ पृहयं पुनः.. (२)
मेरे पता ने नदयतापूवक आ ा द क म अपने पूवज का साथी बनूं. मने नदापूवक उनक ओर दे खा. अब म उनके त अनुराग रखता ं.” (२) यं कुमार नवं रथमच ं मनसाकृणोः. एकेषं व तः ा चमप य ध त स.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यम ने कहा—“हे कुमार न चकेता! तुमने अपने ही मन से बना प हय वाला, एक दं ड वाला, सब ओर जाने वाला व नवीन रथ चाहा था. बना वचारे ही तुम उस पर बैठ गए हो. (३) यं कुमार ावतयो रथं व े य प र. तं सामानु ावतत स मतो ना ा हतम्.. (४) हे कुमार न चकेता! तुमने मेधा वय से ऊपर आकाश म उस रथ को चलाया है. तुमने उस रथ को पता क सलाह के अनुसार चलाया है. तु हारे पता क उपदे श पी नौका पर चढ़ कर यह रथ यहां आया है.” (४) कः कुमारमजनय थं को नरवतयत्. कः व द नो ूयादनुदेयी यथाभवत्.. (५) “इस बालक को कसने ज म दया एवं इस रथ को कसने यहां भेजा?” आज मुझे यह बात कौन बताएगा क इसे कस कार उपदे श दे कर लौटाया जाए? (५) यथाभवदनुदेयी ततो अ मजायत. पुर ताद् बु न आततः प ा रयणं कृतम्.. (६) यह बालक जस बात को सुनकर जीवलोक म लौटे गा, वह इसे पहले ही बता द गई थी. पहले यम के घर जाने का पता का आदे श आ. इसके बाद लौटने क शत बताई गई.” (६) इदं यम य सादनं दे वमानं य यते. इयम य ध यते नाळ रयं गी भः प र कृतः.. (७) यम का यही नवास थान दे व ारा न मत बताया जाता है. यम क स ता के लए यह बांसुरी बजाई जाती है और इसे तु तय से सुशो भत कया जाता है. (७)
सू —१३६
दे वता—अ न, सूय, वायु
के य१ नं केशी वषं केशी बभ त रोदसी. केशी व ं व शे केशीदं यो त यते.. (१) सूय अ न, जल और ावा-पृ थवी को धारण करते ह. सूय काश के ारा संसार को दे खने यो य बनाते ह. इस काश का नाम ही सूय है. (१) मुनयो वातरशनाः पश ा वसते मला. वात यानु ा ज य त य े वासो अ व त.. (२) वातरशन के मु नपु पीले रंग के व कल धारण करते ह. दे व ने दे व व ा त कया एवं वायु क ग त से चलने लगे. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ म दता मौनेयेन वाताँ आ त थमा वयम्. शरीरेद माकं यूयं मतासो अ भ प यथ.. (३) हम सब लोक का वहार यागकर मतवाले हो गए ह और वायु के ऊपर थत ह. हे मनु यो! तुम हमारा शरीर ही दे ख पाते हो. (३) अतर ण े पत त व ा पावचाकशत्. मु नदव य दे व य सौकृ याय सखा हतः.. (४) मु न आकाश म उड़ते ह एवं सारे करने के लए ही जीते ह. (४)
प को दे खते ह. दे व के
य म मु न उ म काय
वात या ो वायोः सखाथो दे वे षतो मु नः. उभौ समु ावा े त य पूव उतापरः.. (५) मु न वायु का भोजन करने वाले, वायु के म एवं दे व प म दोन सागर म नवास करते ह. (५)
ारा अ भल षत ह. वे पूव और
अ सरसां ग धवाणां मृगाणां चरणे चरन्. केशी केत य व ा सखा वा म द तमः.. (६) केशी अ सरा व गंधव के वचरण थान अंत र म तथा पशु के वचरण थल धरती पर घूमते ह. वे सभी जानने यो य बात को जानते ह, सब रस के उ पादक ह एवं अ तशय आनंददाता है. (६) वायुर मा उपाम थ पन मा कुन मा. केशी वष य पा ेण य े णा पब सह.. (७) सूय पु म त के साथ अपने करण पी पा ारा जब जल पीते ह, उस समय वायु उस जल को हलाकर मा य मका वाणी को पूण कर दे ते ह. (७)
सू —१३७ उत दे वा अव हतं दे वा उ यथा पुनः. उताग
दे वता— व ेदेव ु षं दे वा दे वा जीवयथा पुनः.. (१)
हे दे वो! मुझ गरे ए को ऊपर उठाओ. मुझ पाप करने वाले क तुम र ा करो एवं मुझे चरजीवी बनाओ. (१) ा वमौ वातौ वात आ स धोरा परावतः. द ं ते अ य आ वातु परा यो वातु य पः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श
दो कार क वायु समु तक एवं उससे भी आगे बहती ह. हे तोता! एक वायु तु ह दे और सरी तु हारा पाप न करे. (२) आ वात वा ह भेषजं व वात वा ह य पः. वं ह व भेषजो दे वानां त ईयसे.. (३)
हे इधर जाने वाली वायु! तुम ओष धयां लाओ. हे उधर जाने वाली वायु! तुम पाप को ले जाओ. तुम सभी ओष धय के समान हो एवं दे व क त बनकर चलती हो. (३) आ वागमं श ता त भरथो अ र ता त भः. द ं ते भ माभाष परा य मं सुवा म ते.. (४) हे यजमान! म तु हारे लए सुखकारी एवं क वनाशक र ासाधन लेकर आया ं. मने तुम म क याणकारी श भरी है. म अब तु हारे रोग को र करता ं. (४) ाय ता मह दे वा ायतां म तां गणः. ाय तां व ा भूता न यथायमरपा असत्.. (५) इस थान पर दे व, म द्गण एवं सभी ाणी र ा कर. इस कार यह बने. (५)
रोगर हत
आप इ ा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः. आपः सव य भेषजी ता ते कृ व तु भेषजम्.. (६) जल ही भेषज के समान रोग को न करने वाले एवं सब ा णय के रोगनाशक ह. वे ही जल तु हारे लए ओष ध का काय कर. (६) ह ता यां दशशाखा यां ज ा वाचः पुरोगवी. अनाम य नु यां वा ता यां वोप पृशाम स.. (७) हाथ क दस उंग लय के साथ-साथ वचन के आगे-आगे जीभ चलती है. म अपने रोगनाशक हाथ ारा तु ह छू ता ं. (७)
सू —१३८
दे वता—इं
तव य इ स येषु व य ऋतं म वाना द द वलम्. य ा दश य ुषसो रण पः कु साय म म दं सयः.. (१) हे इं ! तु हारी म ता पाने के लए ह वहन करने वाले एवं य अनु ानक ा लोग ने बल रा स का नाश कर दया है. उस समय तु त होने पर तुमने कु स को उषा का काश ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे ते ए जल को छोड़ा एवं वृ के कम का वनाश कर दया. (१) अवासृजः वः चयो गरीनुदाज उ ा अ पबो मधु यम्. अवधयो व ननो अ य दं ससा शुशोच सूय ऋतजातया गरा.. (२) हे इं ! तुमने सबके ज म के हेतु प जल को छोड़ा, पवत को वच लत कया, गाय को हांककर ले गए, मधुर सोम पया एवं वन को बढ़ाया. य के लए उ प वेदमं ारा वा सत इं के कम से सूय द तशाली थे. (२) व सूय म ये अमुच थं दवो वद ासाय तमानमायः. हा न प ोरसुर य मा यन इ ो ा य चकृवाँ ऋ ज ना.. (३) सूय ने आकाश म अपना रथ चलाया तथा दे खा क आयजन दास का सामना कर रहे ह. इं ने ऋ ज ा के साथ म ता करके मायावी रा स प ु क श न कर द . (३) अनाधृ ा न धृ षतो ा य ध रदे वाँ अमृणदया यः. मासेव सूय वसु पुयमा ददे गृणानः श ूँरशृणा मता.. (४) श ुपराभवकारी इं ने अपराजेय सेना को न कर दया तथा दे व वरो धय क संप का नाश कर दया. सूय जैसे वशेष मास म धरती का रस ख चता है, उसी कार इं ने श ुनगर का धन छ न लया. (४) अयु सेनो व वा व भ दता दाशद्वृ हा तु या न तेजते. इ य व ाद बभेद भ थः ा ाम छु यूरजहा षा अनः.. (५) इं ने तु तयां सुनते-सुनते चमक ले अ से श ु को मार डाला. इं क सेना के साथ कोई लड़ नह सकता. इं सब जगह जाने वाले तथा श ुनाशक व से लोग डर. इसके बाद सूय चले और उषा ने अपनी गाड़ी चलाई. (५) एता या ते ु या न केवला यदे क एकमकृणोरय म्. मासां वधानमदधा अ ध व वया व भ ं भर त ध पता.. (६) हे इं ! तु हारा ही यह वीरकम सुना जाता है क तुमने अकेले ही य वरोधी एवं मुख रा स को मारा. तुमने आकाश के ऊपर सूय के जाने का बंध कया. ुलोक वृ ारा तोड़े गए रथच को तु हारे ारा ही धारण करता है. (६)
सू —१३९
दे वता—स वता व व ावसु
सूयर मह रकेशः पुर ता स वता यो त दयाँ अज म्. त य पूषा सवे या त व ा स प य व ा भुवना न गोपाः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूय क करण वाले एवं हरे रंग के बाल वाले स वता सदा पूव क ओर काश का उदय करते ह. स वता के ज म पर पूषा आगे बढ़ते ह. ानी स वता सारे संसार को भलीभां त दे खते एवं र ा करते ह. (१) नृच ा एष दवो म य आ त आप वान् रोदसी अ त र म्. स व ाचीर भ च े घृताचीर तरा पूवमपरं च केतुम्.. (२) स वता मनु य को दे खते ए अंत र के म य थत होते ह तथा धरती आकाश और अंत र को अपने काश से भर दे ते ह. स वता सभी दशा और उनके कोन को का शत करते ह. स वता पहले, बाद तथा बीच के माग को का शत करते ह. (२) रायो बु नः स मनो वसूनां व ा पा भ च े शची भः. दे वइव स वता स यधम ो न त थौ समरे धनानाम्.. (३) धन के मूल व संप य के संगम स वता अपनी श से सभी पदाथ को का शत करते ह. स वता द गुणयु दे व के समान स यधमा ह एवं धन संबंधी यु म थत रहते ह. (३) व ावसुं सोम ग धवमापो द शुषी त तेना ायन्. तद ववै द ो रारहाण आसां प र सूय य प रध रप यत्.. (४) हे सोम! व ावसु नामक गंधव को जब वसतीवरी थत जल ने तु हारे साथ दे खा, उस समय पु यकम के भाव से जल ऊपर आया. इन जल को े रत करने वाले इं इस बात को जानते ह. उ ह ने चार ओर सूयमंडल दे खा है. (४) व ावसुर भ त ो गृणातु द ो ग धव रजसो वमानः. य ा घा स यमुत य व धयो ह वानो धय इ ो अ ाः.. (५) वग म रहने वाले एवं जल के नमाता व ावसु गंधव यह बात हमारे सामने कह. जो बात स य है और हम उसे नह जानते, वे उस बात म हमारी बु य को े रत करते ए हमारी बु य क र ा कर. (५) स नम व द चरणे नद नामपावृणो रो अ म जानाम्. ासां ग धव अमृता न वोच द ो द ं प र जानादहीनाम्.. (६) इं ने न दय के संचरण थल अंत र म मेघ को पाया एवं प थर का बना ार खोल दया. गंधव ने इन न दय के जल क बात बताई, इं मेघ का बल ठ क से जानते ह. (६)
सू —१४०
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ने तव वो वयो म ह ाज ते अचयो वभावसो. बृह ानो शवसा वाजमु यं१ दधा स दाशुषे कवे.. (१) हे अ न! तु हारा अ शंसनीय है. हे वभावसु! तु हारी वाला ब त द तशा लनी है. हे वशाल द त वाले एवं कुशल अ न! तुम ह दाता को शंसनीय अ एवं बल दे ते हो. (१) पावकवचाः शु वचा अनूनवचा उ दय ष भानुना. पु ो मातरा वचर ुपाव स पृण रोदसी उभे.. (२) हे शोभनद त वाले, नमल तेज वाले एवं संपूण तेज वी अ न! तुम अपनी करण के साथ उ दत होते हो. तुम पु के समान माता- पता तु य ावा-पृ थवी को छू ते हो एवं उनक गोद म खेलते हो. (२) ऊज नपा जातवेदः सुश त भम द व धी त भ हतः. वे इषः सं दधुभू रवपस ोतयो वामजाताः.. (३) हे बल के पु , सबके जानने वाले एवं तु तय के साथ था पत अ न! तुम हमारे य कम से स बनो. तु हारे ऊपर अनेक प वाले एवं व च तृ त वाले सब अ रखे ए ह. (३) इर य ने थय व ज तु भर मे रायो अम य. स दशत य वपुषो व राज स पृण सान स तुम्.. (४) हे मरणर हत अ न! तुम श ु से ई या करते ए हमारा धन बढ़ाओ. तुम शोभन प से सुशो भत होते हो एवं सब फल दे ने वाले य को छू ते हो. (४) इ कतारम वर य चेतसं य तं राधसो महः. रा त वाम य सुभगां मही मषं दधा स सान स र यम्.. (५) हे अ न! तुम य का सं कार करने वाले, उ म ान वाले, महान् धन के वामी एवं उ म धन के दाता हो. तुम तु त सुनकर सौभा ययु महान् अ एवं भोगयो य धन दो. (५) ऋतावानं म हषं व दशतम नं सु नाय द धरे पुरो जनाः. ु कण स थ तमं वा गरा दै ं मानुषा युगा.. (६) मनु य ने य के वामी सब कुछ दे खने वाले एवं महान् अ न को सुख के लए धारण कया है. तु हारे कान सब कुछ सुनते ह व तुम सबसे अ धक व तृत हो. यजमान, उसक प नी एवं उसके बालक तुझ द अ न क तु त करते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१४१
दे वता— व ेदेव
अ ने अ छा वदे ह नः यङ् नः सुमना भव. नो य छ वश पते धनदा अ स न वम्.. (१) हे अ न! हमारे सामने आकर उ म बात कहो एवं हमारे वामी अ न! तुम धन दे ने वाले हो, इस लए हम धन दो. (१)
त स बनो. हे जा
के
नो य छ वयमा भगः बृह प तः. दे वाः ोत सूनृता रायो दे वी ददातु नः.. (२) अयमा, भग, बृह प त, अ य दे व एवं स य पा सर वती दे वी हम धन द. (२) सोमं राजानमवसेऽ नं गी भहवामहे. आ द या व णुं सूय ाणं च बृह प तम्.. (३) हम अपनी र ा के लए राजा सोम, अ न, आ द यगण, सूय, व णु, बृह प त एवं जाप त को तु तय ारा बुलाते ह. (३) इ वायू बृह प त सुहवेह हवामहे. यथा नः सव इ जनः स यां सुमना असत्.. (४) हम शोभन आ ान वाले इं , वायु एवं बृह प त को इस य मलकर हम धन दे ने के लए स ह . (४)
म बुलाते ह. ये सब
अयमणं बृह प त म ं दानाय चोदय. वातं व णुं सर वत स वतारं च वा जनम्.. (५) क
हे तोता! अयमा, बृह प त, इं , वायु, व णु, सर वती एवं श ेरणा करो. (५)
शाली स वता को दान
वं नो अ ने अ न भ य ं च वधय. वं नो दे वतातये रायो दानाय चोदय.. (६) हे अ न! तुम अ य अ नय के साथ मलकर हमारी तु तय एवं य को बढ़ाओ. तुम हमारे य के लए दाता को धनदान क ेरणा दो. (६)
सू —१४२
दे वता—अ न
अयम ने ज रता वे अभूद प सहसः सूनो न १ यद या यम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भ ं ह शम
व थम त त आरे हसानामप द ुमा कृ ध.. (१)
हे अ न! यह ऋ ष तु हारा तोता आ. हे बलपु अ न! तु हारे समान मेरा सरा आ मीय नह है. तु हारा तीन कोठ वाला नवास सुंदर है. हम तु हारे समीप आकर तु हारी वाला से ःखी ह, इस लए इसे र करो. (१) व े अ ने ज नमा पतूयतः साचीव व ा भुवना यृ से. स तयः स नष त नो धयः पुर र त पशुपा इव मना.. (२) हे अ न! जब तुम अ भ ण क अ भलाषा से कट होते हो, तब तु हारा ज म उ कृ होता है. तुम स चव के समान सभी लोक को सुशो भत करते हो. तु हारी इधर-उधर जाने वाली करण हमारी तु तय को ा त करती ह एवं पशुपालक के समान वे करण तु तय के आगे-आगे चलती ह. (२) उत वा उ प र वृण ब सद्बहोर न उलप य वधावः. उत ख या उवराणां भव त मा ते हे त त वष चु ु धाम.. (३) हे द तशाली अ न! तुम जलाते समय ब त से तनक को छोड़ दे ते हो एवं फसल वाली धरती को खाली कर दे ते हो. हम तु हारी व तृत वाला को ो धत न कर. (३) य तो नवतो या स ब स पृथगे ष ग धनीव सेना. यदा ते वातो अनुवा त शो चव तेव म ु वप स भूम.. (४) हे अ न! तुम जब वृ को जलाते ए ऊपर-नीचे चलते हो, तब तु हारी ग त लूटने वाली सेना के समान सबसे अलग होती है. जब हवा तु हारी वाला के पीछे चलती है, तुब तुम असीम दे श को इस कार साफ कर दे ते हो, जस कार नाई दाढ़ के बाल काटता है. (४) य य ेणयो द एकं नयानं बहवो रथासः. बा यद ने अनुममृजानो यङ् ङु ानाम वे ष भू मम्.. (५) अ न क अनेक वालाएं दखाई दे ती ह. इनके रथ अनेक ह, पर सबका गंत एक ही है. हे अ न! जब तुम अपनी वाला पी बा से वन को जलाते हो, तब न बनकर ऊंची भू म पर चढ़ते हो. (५) उ े शु मा जहतामु े अ च े अ ने शशमान य वाजाः. उ छ् व च व न नम वधमान आ वा व े वसवः सद तु.. (६) हे शं सत अ न! तु हारी वालाएं द त एवं वेग संप ह . हे वृ तुम ऊपर एवं नीचे जाओ. सभी वासदाता दे व आज तु ह ा त कर. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ए अ न!
अपा मदं ययनं समु य नवेशनम्. अ यं कृणु वेतः प थां तेन या ह वशाँ अनु.. (७) यह थान जल का आधार एवं समु का नवेश है. हे अ न! तुम सरा थान अपनाओ एवं उसी माग से इ छानुसार जाओ. (७) आयने ते परायणे वा रोह तु पु पणीः. दा पु डरीका ण समु य गृहा इमे.. (८) हे अ न! तु हारे आने एवं जाने के माग म फूल वाली ब उगे. यहां तालाब, ेत कमल और सागर का नवास थान है. (८)
सू —१४३
दे वता—अ नीकुमार
यं चद मृतजुरमथम ं न यातवे. क ीव तं यद पुना रथं न कृणुथो नवम्.. (१) हे अ नीकुमारो! तुमने य करके वृ बने अ ऋ ष को इतना श शाली बना दया था क वे घोड़े के समान चल सक. तुमने क ीवान् ऋ ष को उसी कार युवा बना दया था, जस कार बढ़ई पुराने रथ को नया कर दे ता है. (१) यं चद ं न वा जनमरेणवो यम नत. हं थं न व यतम य व मा रजः.. (२) बल असुर ने अ ऋ ष को शी गामी घोड़े के समान बांध दया था. तुमने मजबूत गांठ के समान बंधे अ को खोल दया था. वे युवक के समान धरती पर गए. (२) नरा दं स ाव ये शु ा सषासतं धयः. अथा ह वां दवो नरा पुनः तोमो न वशसे.. (३) हे य कम के नेता, अ त सुंदर एवं शुभ अ नीकुमारो! तुम अ ऋ ष को बु दे ने क इ छा करो. हे वग के नेता अ नीकुमारो! इस कार म पुनः तु हारी तु त म वेश क ं गा. (३) चते त ां सुराधसा रा तः सुम तर ना. आ य ः सदने पृथौ समने पषथो नरा.. (४) हे शोभन दान वाले एवं य कम के नेता अ नीकुमारो! हमारे घर म जब बड़े समारोह के साथ य हो रहा था, उस समय तुमने हमारी र ा क थी, इस लए हम जानते ह क हमारा दान और शोभन तु तयां तुमने जान ली ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
युवं भु युं समु आ रजसः पार ई ङ् खतम्. यातम छा पत भनास या सातये कृतम्.. (५) हे स य प अ नीकुमारो! तुमने सागर म गरे ए और तंरग पर डू बते-उतराते भु यु ऋ ष क र ा सौ डांड़ वाली नौका ारा क एवं उ ह य करने यो य बनाया. (५) आ वां सु नैः शंयूइव मं ह ा व वेदसा. सम मे भूषतं नरो सं न प युषी रषः.. (६) हे सब कुछ जानने वाले अ नीकुमारो! तुम धनी लोग के समान दाता बनकर धन के साथ हमारे पास आओ. जैसे ध गाय के थन म भर जाता है, उसी कार तुम हम धन से पूण करो. (६)
दे वता—इं
सू —१४४
अयं ह ते अम य इ र यो न प यते. द ो व ायुवधसे.. (१) हे सृ क ा इं ! यह अमृत तु य सोमरस तु ह घोड़े के समान दौड़ाता है. यह बल का आधार एवं सबका जीवन है. (१) अयम मासु का ऋभुव ो दा वते. अयं बभ यू वकृशनं मदमृभुन कृ ं मदम्.. (२) दाता इं का द त व हम लोग म शंसनीय है. इं ऊ वकृशन नामक तोता तथा य क ा का पालन ऋभु नामक दे व के समान करते ह. (२) घृषुः येनाय कृ वन आसु वासु वंसगः. अव द धेदहीशुवः.. (३) द तशाली इं अपनी जा उ ह ने बढ़ाया है. (३)
म शोभन
प से चलते ह एवं मुझ येन ऋ ष का वंश
यं सुपणः परावतः येन य पु आभरत्. शतच ं यो३ ो वत नः.. (४) ती ग त वाले येन के पु सुपण जस सोम को र दे श से लाए थे, वह सोम सैकड़ काम म उपयोगी एवं वृ का उ साह बढ़ाने वाला है. (४) यं ते येन ा मवृकं पदाभरद णं मानम धसः. एना वयो व तायायुज वस एना जागार ब धुता.. (५) हे इं ! येन तु हारे लए जो सोम अपने चरण से पकड़कर लाए ह, वह शोभन, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाचकर हत, लाल रंग का एवं य ारा अ को उ प करने वाला है. सोम के लए अ एवं जीवनयो य आयु दो एवं इसके साथ म ता करो. (५) एवा त द इ ना दे वेषु च ारयाते म ह यजः. वा वयो व तायायुः सु तो वायम मदा सुतः.. (६) इं इस सोमरस को पीकर हमारी तथा दे व क वशेष र ा करते ह. हे शोभन कम वाले इं ! हम य करने के लए अ एवं परम आयु दो. यह सोमरस हमने य के लए नचोड़ा है. (६)
दे वता—सौत क पीड़ा
सू —१४५ इमां खना योष ध वी धं बलव माम्. यया सप न बाधते यया सं व दते प तम्.. (१)
म इस परम श शाली एवं लता पणी ओष ध को खोदती ं. इसके ारा सौत को क प ंचाकर प त का ेम पाया जाता है. (१) उ ानपण सुभगे दे वजूते सह व त. सप न मे परा धम प त मे केवलं कु .. (२) हे ऊपर क ओर प वाली, सौभा य का कारण, दे व ारा े रत एवं प त को वश म करने वाली ओष ध! तुम मेरी सौत को र हटाकर मेरे प त को केवल मेरा बनाओ. (२) उ राहमु र उ रे
रा यः. अथा सप नी या ममाधरा साधरा यः.. (३)
हे उ म ओष ध! म अपने प त क भी न न थान ा त करे. (३)
धान ना रय म भी धान बनूं. मेरी सौत न न से
न या नाम गृ णा म नो अ म मते जने. परामेव परावतं सप न गमयाम स.. (४) म अपनी सौत का नाम तक नह लेती. सौत को कोई भी पंसद नह करता. म अपनी सौत को ब त र थान पर भेजती ं. (४) अहम म सहमानाथ वम स सास हः. उभे सह वती भू वी सप न मे सहावहै.. (५) हे ओष ध! म तु हारी कृपा से अपनी सौत को परा जत क ं गी. इस कार तुम भी परा जत करने वाली हो. हम और तुम दोन श शा लनी बनकर सौत को श हीन कर. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उप तेऽधां सहमानाम भ वाधां सहीयसा. मामनु ते मनो व सं गौ रव धावतु पथा वा रव धावतु.. (६) हे प त! मने तु हारे त कए के सहारे इस श शा लनी ओष ध को तु हारे सरहाने रख दया है. जस कार गाय दौड़कर बछड़े के पास चली जाती है और पानी नीचे क ओर चलता है, उसी कार तु हारा मन मेरे समीप आवे. (६)
दे वता— वशाल वन
सू —१४६ अर या यर या यसौ या व े न य स. कथा ामं न पृ छ स न वा भी रव व दत ३.. (१)
हे वशाल वन! तुम दे खते-दे खते ही न हो जाते हो. तुम गांव म जाने का माग य नह पूछते? अकेले यहां तु ह डर नह लगता? (१) वृषारवाय वदते य पाव त च चकः. आघा ट भ रव धावय र या नमहीयते.. (२) बैल के समान श द करने वाले जीव को वन म सरा जीव च च करके य उ र दे ता है? ये मानो वीणा पर वर क उ प करते ए वन का यश गाते ह. (२) उत गावइवाद युत वे मेव यते. उतो अर या नः सायं शकट रव सज त.. (३) इस वन म कह गाएं चरती सी जान पड़ती ह और कह घर से दखाई पड़ती ह. सं या के समय वन से अनेक गा ड़यां नकलती जान पड़ती ह. (३) गाम ै ष आ य त दाव ै षो अपावधीत्. वस र या यां सायम ु द त म यते.. (४) वन म एक गाय को बुलाता है और सरा लक ड़यां काटता है. वशाल वन म रहने वाला सं या के समय पशु का श द सुनकर डर सा जाता है. (४) न वा अर या नह य य े ा भग छ त. वादोः फल य ज वाय यथाकामं न प ते.. (५) वशाल वन कसी को नह मारता. य द सह, ा आ द पशु न आव तो वन के वा द फल खाकर लोग स तापूवक समय बता सकते ह. (५) आ
नग धं सुर भ ब
ामकृषीवलाम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ाहं मृगाणां मातरमर या नमशं सषम्.. (६) क तूरी आ द वन क सुगं धयां ह. खाने क व तुएं तो ब त ह, पर कोई कसान नह है. मने पशु क माता के प म वशाल वन क तु त क है. (६)
सू —१४७
दे वता—इं
े दधा म थमाय म यवेऽह यद्वृ ं नय ववेरपः. उभे य वा भवतो रोदसी अनु रेजते शु मा पृ थवी चद वः .. (१) हे इं ! तु हारे ोध पर म सवा धक ा करता ं. तुमने वृ का वध कया एवं लोक हतकारी जल का नमाण कया. हे व धारी इं ! ावा-पृ थवी तु हारे अधीन ह एवं अंत र तु हारे भय से कांपता है. (१) वं माया भरनव मा यनं व यता मनसा वृ मदयः. वा म रो वृणते ग व षु वां व ासु ह ा व षु.. (२) हे शंसनीय इं ! तुमने अ बनाने क अ भलाषा से मायावी वृ को अपनी श य ारा न कया. प णय ारा चुराई गई गाएं पाने के लए लोग तु हारी सेवा करते ह. सभी य एवं हवन म तु हारी शंसा क जाती है. (२) ऐषु चाक ध पु त सू रषु वृधासो ये मघव ानशुमघम्. अच त तोके तनये प र षु मेधसाता वा जनम ये धने.. (३) हे ब त ारा बुलाए गए एवं धनी इं ! तुम इन व ान के समीप कट होओ. ये तु हारी कृपा से धनी एवं उ त बने ह. ये लोग पु , पौ एवं अ य फल पाने के लए एवं धन के न म य म श शाली इं क पूजा करते ह. (३) स इ ु रायः सुभृत य चाकन मदं यो अ य रं ं चकेत त. वावृधो मघव दा वरो म ू स वाजं भरते धना नृ भः.. (४) जो तोता अपनी तु तय से इं को सोमपान का आनंद दे ना जानता है, वही यथे धन पाने के लए शी ाथना कर सकता है. हे धनी इं ! तु हारे ारा बढ़ाया आ एवं य म दान दे ने वाला यजमान शी ही अपने सेवक ारा धन और अ से पूण हो जाता है. (४) वं शधाय म हना गृणान उ कृ ध मघव छ ध रायः. वं नो म ो व णो न मायी प वो न द म दयसे वभ ा.. (५) हे वशाल तोता ारा शं सत एवं धनी इं ! तुम हमारे बल का व तार करो एवं हम धन दो. दशनीय इं ! तुम म और व ण के समान ानी हो. तुम हमारे लए अ दो. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१४८
दे वता—इं
सु वाणास इ तुम स वा ससवांस तु वनृ ण वाजम्. आ नो भर सु वतं य य चाक मना तना सनुयाम वोताः.. (१) हे अ धक धन वाले इं ! हम सोमरस नचोड़कर तु हारी तु त करते ह और तु हारे लए अ एक करते ह. तुम अपनी मनचाही संप हम दो. तु हारे ारा र त होकर हम वयं ही धन ा त कर. (१) ऋ व व म शूर जातो दासी वशः सूयण स ाः. गुहा हतं गु ं गू हम सु बभृम स वणे न सोमम्.. (२) हे शूर एवं दशनीय इं ! तुम ज म लेते ही सूय क सहायता से दास जा त के लोग को हराते हो. तुम गुहा म छपे एवं जल म डू बे ए को भी हरा दे ते हो. वषा होने पर हम सोमरस तुत करगे. (२) अय वा गरो अ यच व ानृषीणां व ः सुम त चकानः. ते याम ये रणय त सोमैरेनोत तु यं रथो ह भ ैः.. (३) हे मेधावी ऋ षय क तु त क अ भलाषा करने वाले व ान् एवं वामी इं ! तुम तोता क ाथना पूरी करो. हम सोम के ारा तु ह सदा स करने वाले बन. हे रथ पर बैठे ए इं ! यह सारा भो य पदाथ तु ह अ पत है. (३) इमा े तु यं शं स दा नृ यो नृणां शूर शवः. ते भभव स तुयषु चाक ुत ाय व गृणत उत तीन्.. (४) हे इं ! ये धान तु तयां तु हारे लए कही गई ह. हे वीर इं ! े मानव के लए अ दो. जो तु ह चाहते ह, उन म तुम शोभन य वाले बनो. जो तु हारा तो करने के लए एक ह, उनक र ा करो. (४) ु ी हव म शूर पृ या उत तवसे वे य याकः. ध आ य ते यो न घृतव तम वा मन न नै वय त व वाः.. (५) हे शूर इं ! तुम मुझ पृथु ऋ ष का आ ान सुनो. मुझ वेनपु के मं तु हारी तु त करते ह. मने घृतयु य शाला म आकर तु हारी तु त क है. तोता नीचे गरने वाली घी क धारा के समान ही दौड़ रहे ह. (५)
सू —१४९
दे वता—स वता
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स वता य ैः पृ थवीमर णाद क भने स वता ाम ं हत्. अ मवाधु नम त र मतूत ब ं स वता समु म्.. (१) स वता ने अनेक मं क सहायता से धरती को थर कया है एवं बना कसी सहारे के ुलोक को ढ़ता से बांध दया है. आकाश म सागर के समान थत बादल घोड़े के समान शरीर कं पत करते ह. बादल उप वर हत थान म बंधा है. उसीसे स वता जल नकालते ह. (१) य ा समु ः क भतो ौनदपां नपा स वता त य वेद. अतो भूरत आ उ थतं रजोऽतो ावापृ थवी अ थेताम्.. (२) अंत र म वायु के पाश से बंधा आ मेघ धरती को गीला करता है. जल के पु स वता उस थान को जानते ह. स वता से ही धरती व आकाश उ प ए ह एवं ावापृ थवी ने व तार पाया है. (२) प ेदम यदभव ज मम य य भुवन य भूना. सुपण अ स वतुग मा पूव जातः स उ अ यानु धम.. (३) जन दे व का य मरणर हत एवं वग म उ प सोम ारा पूरा होता है, वे स वता के बाद म ज मे ह. शोभन पंख वाले ग ड़ स वता से पहले ज मे ह. इसी कारण ग ड़ स वता को धारण करके वतमान ह. (३) गावइव ामं यूयु ध रवा ा वा ेव व सं सुमना हाना. प त रव जायाम भ नो येतु धता दवः स वता व वारः.. (४) सबके वरणीय एवं ुलोक को धारण करने वाले स वता हमारी ओर उसी कार उ सुकता से आते ह, जस कार गाएं गांव क ओर आती ह. यो ा घोड़े क ओर जाते ह. याई ई गाय बछड़े क ओर जाती है एवं प त प नी क ओर जाता है. (४) हर य तूपः स वतयथा वा रसो जु े वाजे अ मन्. एवा वाच वसे व दमानः सोम येवांशुं त जागराहम्.. (५) हे स वता! मेरे पता एवं अं गरा के पु हर य तूप ऋ ष तु ह य म जस कार बुलाते थे एवं जस कार यजमान सोमलता क र ा के न म सतक रहता है. म भी र ा के न म तु हारी वंदना करता आ तु हारी सेवा के लए उसी कार सावधान ं. (५)
दे वता—अ न
सू —१५० सम
स म यसे दे वे यो ह वाहन.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ द यै
ै वसु भन आ ग ह मृळ काय न आ ग ह.. (१)
हे दे व के लए ह वहन करने वाले तथा व लत अ न! तु ह द त कया गया है. तुम आ द य , वसु और के साथ सुख दे ने के लए इस य म पधारो. (१) इमं य मदं वचो जुजुषाण उपाग ह. मतास वा स मधान हवामहे मृळ काय हवामहे.. (२) हे अ न! यह य एवं ये तु तयां तु हारी ह. तुम से वत होते ए पास आओ. हे अ न! हम मनु य तु ह सुख के लए बुलाते ह. (२) वामु जातवेदसं व वारं गृणे धया. अ ने दे वाँ आ वह नः य ता मृळ काय
य तान्.. (३)
हे जातवेद एवं सबके ारा वरण करने यो य अ न! म तु तय ारा तु हारी शंसा करता ं. हे अ न! य त वाले अ न को हमारे सुख के लए लेकर यहां आओ. (३) अ नदवो दे वानामभव पुरो हतोऽ नं मनु या३ऋषयः समी धरे. अ नं महो धनसातावहं वे मृळ कं धनसातये.. (४) अ न दे व दे व के पुरो हत बने. मनु य और ऋ षय ने अ न को म धन पाने के लए महान् अ न को बुलाता ं. वे मुझे सुखी कर. (४)
व लत कया था.
अ नर भर ाजं ग व रं ाव ः क वं सद युमाहवे. अ नं व स ो हवते पुरो हतो मृळ काय पुरो हतः.. (५) अ न ने यु म अ , भर ाज, ग व र, क व और सद यु क र ा क है. पुरो हत व स अ न को सुख के लए बुलाते ह. (५)
सू —१५१
दे वता—
ा
या नः स म यते या यते ह वः. ां भग य मूध न वचसा वेदयाम स.. (१) ा के ारा अ न व लत होते ह एवं ह व अ न म डाला जाता है. शीश पर थत है, यह बात म तो ारा जानता ं. (१) यं े ददतः यं े ददासतः. यं भोजेषु य व वदं म उ दतं कृ ध.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा धन के
ा के ारा अ न व लत होते ह एवं ह व अ न म डाला जाता है. तुम मुझे अभी फल दो. तुम मेरे भोगा थय एवं य क ा को मनचाहा फल दो. (२) यथा दे वा असुरेषु हे य क ा
ामु ेषु च
रे. एवं भोजेषु य व व माकमु दतं कृ ध.. (३)
ा! दे व ने असुर के वषय म ह या का न य कया. तुम मेरे भ को मनचाहा फल दो. (३)
और
ां दे वा यजमाना वायुगोपा उपासते. ां द य१याकू या या व दते वसु.. (४) वायु ारा सुर त दे व एवं यजमान ा क उपासना करते ह. लोग मन के संक प के कारण ा क सेवा करते ह एवं ा के कारण धन पाते ह. (४) ां ातहवामहे ां म यं दनं प र. ां सूय य न ु च े ापयेह नः.. (५) हम ातःकाल, दोपहर के समय एवं सूय के अ त होने पर ा! हम इस संसार म ायु बनाओ. (५)
सू —१५२
ा को बुलाते ह. हे
दे वता—इं
शास इ था महाँ अ य म खादो अ तः. न य य ह यते सखा न जीयते कदा चन.. (१) म सदा इस कार इं क तु त करता — ं हे इं ! तुम महान् श ुभ क एवं अद्भुत हो. तु हारा सखा न कभी मरता है और न हारता है. (१) व तदा वश प तवृ हा वमृधो वशी. वृषे ः पुर एतु नः सोमपा अभयङ् करः.. (२) क याणदाता, जा के वामी, वृ नाशक, यु करने वाले, श ु को वश म करने वाले, अ भलाषापूरक, सोमरस पीने वाले एवं अभयक ा इं हमारे सामने आव. (२) व र ो व मृधो ज ह व वृ य हनू ज. व म यु म वृ ह म या भदासतः.. (३) हे वृ नाशक इं ! तुम रा स और श ु का नाश करो. तुम वृ के जबड़ को तोड़ दो तथा हमसे े ष करने वाले अ य श ु का ोध समा त करो. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व न इ मृधो ज ह नीचा य छ पृत यतः. यो अ माँ अ भदास यधरं गमया तमः.. (४) हे इं ! हमारे श ु को मारो तथा हमसे लड़ने के इ छु क लोग को बलहीन बनाओ. जो हम चार ओर से हा न प ंचाता है, उसे नकृ अंधकार म डाल दो. (४) अपे षतो मनोऽप ज यासतो वधम्. व म योः शम य छ वरीयो यवया वधम्.. (५) हे इं ! श ु का मनोबल तोड़ दो. जो हम जजर करना चाहता है, उस पर आयुध चलाओ. हम श ु के ोध से बचाकर सुख दो एवं श ु के आयुध को हमसे अलग करो. (५)
दे वता—इं
सू —१५३
ईङ् खय तीरप युव इ ं जातमुपासते. भेजानासः सुवीयम्.. (१) अपना कम करने क इ छु क एवं तु त के साथ इं के पास प ंचने वाली इं क माताएं उ प ए इं क सेवा करती ह एवं इं से शोभन धन ा त करती ह. (१) वम
बलाद ध सहसो जात ओजसः. वं वृष वृषेद स.. (२)
हे इं ! तुम बल, वीय और ओज के साथ उ प हमारी अ भलाषा पूण करो. (२) व म ा स वृ हा
ए हो. हे वषा करने वाले इं ! तुम
१ त र म तरः. उद् ाम त ना ओजसा.. (३)
हे इं ! तुम वृ नाशक हो एवं तुमने आकाश को व तृत कया है. तुमने अपनी श वग को ऊपर टकाया है. (३) वम
से
सजोषसमक बभ ष बा ोः. व ं शशान ओजसा.. (४)
हे इं ! तुम अपने साथी सूय को दोन हाथ से धारण करते हो एवं बलपूवक व धार तेज करते हो. (४)
क
व म ा भभूर स व ा जाता योजसा. स व ा भुव आभवः.. (५) हे इं ! तुम सभी ा णय को अपने तेज से हराते हो एवं सभी थान पर तु हारा अ धकार है. (५)
सू —१५४
दे वता—मृत
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम एके यः पवते घृतमेक उपासते. ये यो मधु धाव त ताँ े वा प ग छतात्.. (१) कुछ पतर के लए सोमरस नचोड़ा जाता है और कुछ घी का सेवन करते ह. हे ेत! तुम उन पतर के पास जाओ, जनके लए मधु बहता है. (१) तपसा ये अनाधृ या तपसा ये वययुः. तपो ये च रे मह ताँ े वा प ग छतात्.. (२) हे ेत! तुम उन पतर के समीप जाओ, जो तप या करके अपराजेय बने, जो तप या से वग गए एवं ज ह ने महान् तप कया. (२) ये यु य ते धनेषु शूरासो ये तनू यजः. ये वा सह द णा ताँ े वा प ग छतात्.. (३) हे ेत! तुम उन पतर के समीप जाओ जो यु े म यु करते ह, जन शूर ने शरीर का मोह छोड़ दया था अथवा ज ह ने हजार मु ाएं द णा म द . (३) ये च पूव ऋतसाप ऋतावान ऋतावृधः. पतॄ तप वतो यम ताँ े वा प ग छतात्.. (४) हे यम! यह ेत उ ह पतर के पास जाए जो उ म कम करके पु य वाले बने, ज ह ने य को बढ़ाया एवं ज ह ने तप या क . (४) सह णीथाः कवयो ये गोपाय त सूयम्. ऋषीन् तप वतो यम तपोजाँ अ प ग छतात्.. (५) हे यम! यह ेत उ ह तप या करने वाले एवं दे व से उ प ऋ षय के समीप जावे जो हजार कार के उ म कम कर चुके ह, बु मान् बने ह एवं जो सूय क र ा करते ह. (५)
दे वता—द र तानाश
सू —१५५ अरा य काणे वकटे ग र ग छ सदा वे. श र बठ य स व भ ते भ ् वा चातयाम स.. (१)
हे दान वरो धनी, बुरा श द करने वाली, वकृत गमन वाली व सदा ोध करने वाली द र ता! तुम पवत पर जाओ. म श र ब अपने उपाय से तु ह र भेजता ं. (१) च ो इत अरा यं
ामुतः सवा ूणा या षी. ण पते ती णशृङ्गो ष ह.. (२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो द र ता वृ , लता, मानव आ द को न करने वाली है, उसे म इस लोक और परलोक से र करता ं. हे ती ण तेज वाले ण प त! इस दान वरो धनी द र ता को यहां से र करो. (२) अदो य ा लवते स धोः पारे अपू षम्. तदा रभ व हणो तेन ग छ पर तरम्.. (३) सागर के कनारे पर जो लड़क तैर रही है, उसका कोई वामी नह है. हे ःख से न करने यो य द र ता! तुम इस पर बैठकर सरी पार चली जाओ. (३) य ाचीरजग तोरो म डू रधा णक ः. हता इ य श वः सव बुदबु ् दयाशवः.. (४) हे मंडूक के समान बुरा श द करने वाली एवं हसा करने वाली द र ताओ! जब तुम तेज चाल से चली जाती हो, तब इं के सब श ु न होकर बुलबुले के समान सो जाते ह. (४) परीमे गामनेषत पय नम षत. दे वे व त वः क इमाँ आ दधष त.. (५) इन दे व ने प णय ारा चुराई गई गाय को छु ड़ाया है, अ न को अनेक थान म था पत कया है एवं दे व को अ दया है. इन पर कौन आ मण कर सकता है? (५)
दे वता—अ न
सू —१५६
अ नं ह व तु नो धयः स तमाशु मवा जषु. तेन जे म धनंधनम्.. (१) जस कार यु म घोड़ को दौड़ाया जाता है, उसी कार हमारी तु तयां अ न को े रत कर. अ न क कृपा से हम सब धन को जीत. (१) यया गा आकरामहे सेनया ने तवो या. तां नो ह व मघ ये.. (२) हे अ न! तु हारे ारा र त जस सेना क सहायता से हमने गाएं ा त क , हम धन ा त के लए वे ही र ासाधन दो. (२) आ ने थूरं र य भर पृथुं गोम तम नम्. अङ् ध खं वतया प णम्.. (३) हे अ न! हम गाय और अ के साथ ब त सा धन दो. तुम जल से आकाश को स चो और ापारी को ापार म लगाओ. (३) अ ने न
मजरमा सूय रोहयो द व. दध
यो तजने यः.. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! तुम सदा चलने वाले जरार हत तथा लोग को काश दे ने वाले सूय को आकाश म थत करो. (४) अ ने केतु वशाम स े ः े उप थसत्. बोधा तो े वयो दधत्.. (५) हे अ न! तुम जा का ान कराने वाले, अ तशय बैठो, तु तयां और अ धारण करो. (५)
दे वता— व ेदेव
सू —१५७ इमा नु कं भुवना सीषधामे (१)
य एवं े हो. तुम य शाला म
व े च दे वाः.. (१)
हम सारे लोक को शी ही वश म कर तथा इं एवं सभी दे व
ारा सुख ा त कर.
य ं च न त वं च जां चा द यै र ः सह ची लृपा त.. (२) इं आ द य के साथ मलकर हमारे य , शरीर और जा क र ा कर. (२) आ द यै र ः सगणो म
र माकं भू व वता तनूनाम्.. (३)
हे इं ! तुम आ द य और म त क सहायता लेकर हमारे शरीर के र क बनो. (३) ह वाय दे वा असुरा यदाय दे वा दे व वम भर माणाः.. (४) दे वगण श ु
को मारकर जब लौटे , तब उनक अमरता क र ा ई. (४)
य चमकमनय छची भरा द वधा म षरां पयप यन्.. (५) तोता ने सेवा के साथ तु तय को इं के समीप भेजा. इसके बाद उ ह ने आकाश से होने वाली वषा दे खी. (५)
सू —१५८
दे वता—सूय
सूय नो दव पातु वातो अ त र ात्. अ ननः पा थवे यः.. (१) सूय ुलोक क बाधा से, वायु अंत र बाधा से हमारी र ा कर. (१)
क बाधा
से तथा अ न पृ वी क
जोषा स वतय य ते हरः शतं सवाँ अह त. पा ह नो द ुतः पत याः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे स वता! हमारी तु तयां वीकार करो. तु हारा तेज अनेक य को पाने क यो यता रखता है. तुम श ु के गरते ए उ वल आयुध से हमारी र ा करो. (२) च ुन दे वः स वता च ुन उत पवतः. च ुधाता दधातु नः.. (३) स वता दे व, पवत एवं वधाता हम आंख दान कर. (३) च ुन धे ह च ुषे च ु व यै तनू यः. सं चेदं व च प येम.. (४) हे सूय! हमारी आंख को दे खने क श दो. हम सारी व तु लए हम आंख दो. हम सभी चीज को सामू हक प से दे ख. (४) सुस शं वा वयं
को दे ख सक, इसके
त प येम सूय. व प येम नृच सः.. (५)
हे सूय! हम तु ह भली कार दे ख सक. तुम सबको भली कार दे खने वाले हो. हम मानव क आंख से सब कुछ वशेष प से दे ख. (५)
दे वता—शची
सू —१५९ उदसौ सूय अगा दयं मामको भगः. अहं त
ला प तम यसा
वषास हः.. (१)
इस सूय का उदय मेरे भा य का उदय करेगा, यह म जान गई ं. मने सब सौत को परा जत करके प त को वश म कर लया है. (१) अहं केतुरहं मूधाहमु ा ववाचनी. ममेदनु
तुं प तः सेहानाया उपाचरेत्.. (२)
म ही केतु ,ं म ही म तक ,ं म ही बल होकर वामी के मुख से मीठा वचन बुलवाती ं. मेरे प त मेरे काय क शंसा करते ह, मेरी सौत के काय क नह . मने सब सौत को हरा दया है. (२) मम पु ाः श ुहणोऽथो मे हता वराट् . उताहम म स या प यौ मे ोक उ मः.. (३) मेरे पु श ुहंता ह एवं मेरी पु ी वशेष प से शो भत होती है. म सबको वजय करती ं और मेरे प त के समीप मेरी ही क त सव े है. (३) येने ो ह वषा कृ
भवद् ु यु मः. इदं तद
हे दे वो! इं जस य के ारा श है. इससे म श ु वहीन हो गई ं. (४)
दे वा असप ना कलाभुवम्.. (४)
शाली एवं उ म अ वाले बने ह, मने वही कया
******ebook converter DEMO Watermarks*******
असप ना सप न नी जय य भभूवरी. आवृ म यासां वच राधो अ थेयसा मव.. (५) म श ुर हत एवं श ु का हनन करने वाली ं. म श ु पर वजय पाती एवं उ ह परा जत करती ं. जस कार अ थर च वाल का धन सरे ले जाते ह, उसी कार म सरी ना रय का तेज समा त कर दे ती ं. (५) समजैष ममा अहं सप नीर भभूवरी. यथाहम य वीर य वराजा न जन य च.. (६) म अपनी सब सौत को जीतती ं. म उ ह परा जत करने वाली ,ं इसी कारण म इन वीर इं एवं प रवार के अ य लोग पर अ धकार करती ं. (६)
सू —१६०
दे वता—इं
ती या भवयसो अ य पा ह सवरथा व हरी इह मु च. इ मा वा यजमानासो अ य न रीरम तु य ममे सुतासः.. (१) हे इं ! तुम शी नशा करने वाला व च पुरोडाश यु सोमरस पओ. तुम अपने ग तशील घोड़ को इधर आने के लए छोड़ो. अ य यजमान तु ह संतु नह कर पाए. हमने तु हारे लए यह सोमरस नचोड़ा है. (१) तु यं सुता तु यमु सो वास वां गरः ा या आ य त. इ े दम सवनं जुषाणो व य व ाँ इह पा ह सोमम्.. (२) हे इं ! जो सोमरस तु हारे लए नचोड़ा गया है, वह तु हारे लए ही रहेगा. उ चारण क जाती ई तु तयां तु ह बुलाती ह. तुम हमारा यह य वीकार करके सोमपान करो. तुम सब जानते हो. (२) य उशता मनसा सोमम मै सव दा दे वकामः सुनो त. न गा इ त य परा ददा त श त म चा म मै कृणो त.. (३) जो अ भलाषापूण मन से, संपूण हदय से एवं दे वा भलाषी बनकर इस इं के लए सोमरस नचोड़ता है, इं उसक गाएं न नह करते. वे उसके लए शंसनीय एवं सुंदर धन दे ते ह. (३) अनु प ो भव येषो अ य यो अ मै रेवा सुनो त सोमम्. नरर नौ मघवा तं दधा त षो ह यनानु द ः.. (४) जो धनवान् यजमान इं के लए सोमरस नचोड़ता है, इं उसके सामने य होते ह. धनी इं उसका हाथ पकड़ लेते ह एवं य वरो धय को बना कसी के कहे ए न कर दे ते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. (४) अ ाय तो ग तो वाजय तो हवामहे वोपग तवा उ. आभूष त ते सुमतौ नवायां वय म वा शुनं वेम.. (५) हे इं ! हम घोड़े, गाय एवं अ क अ भलाषा से तु हारे आगमन क ाथना करते ह. हम तु ह सुखदाता जानते ह, इस लए यह नवीन तो बनाकर तु ह बुलाते ह. (५)
सू —१६१
दे वता—इं
मु चा म वा ह वषा जीवनाय कम ातय मा त राजय मात्. ा हज ाह य द वैतदे नं त या इ ा नी मुमु मेनम्.. (१) हे रोगी! य साम ी ारा म तु ह य मा एवं राजय मा रोग से छु ड़ाता ं. म तु हारे जीवन के लए ऐसा करता ं. इस रोगी को य द कसी ह ने पकड़ा हो तो इं एवं अ न इसे उससे छु ड़ाव. (१) य द तायुय द वा परेतो य द मृ योर तकं नीत एव. तमा हरा म नऋते प थाद पाषमेनं शतशारदाय.. (२) य द इस रोगी क आयु समा त हो चुक है, यह इस लोक से गया आ सा है अथवा यह मृ यु के समीप प ंच चुका है, तब भी म मृ यु क दे वता नऋ त के पास से इसे लौटा सकता ं. मने सौ वष जीने के लए इसको छु आ है. (२) सह ा ेण शतशारदे न शतायुषा ह वषाहाषमेनम्. शतं यथेमं शरदो नयाती ो व य रत य पारम्.. (३) मने हजार आंख वाले, सौ वष वाले एवं सौ वष क आयु वाले य से इसका रोग न कया है. इं इस रोगी को सौ वष तक सभी पाप के पार ले जाव. (३) शतं जीव शरदो वधमानः शतं हेम ता छतमु वस तान्. शत म ा नी स वता बृह प तः शतायुषा ह वषेमं पुन ः.. (४) हे रोग वमु ! तुम सुखपूवक सौ शरद्, सौ वसंत एवं सौ हेमंत ऋतु तक वृ पाकर जी वत रहो. इं , अ न, स वता और बृह प त य से स होकर इसके लए सौ वष क आयु द. (४) आहाष वा वदं वा पुनरागाः पुननव. सवा सव ते च ुः सवमायु तेऽ वदम्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे रोगी! तु ह म मृ यु के मुख से पुनः वापस ले आया ं. तुम नवीन अंग वाले हो. तुम मेरे समीप आओ. मने तु हारे लए सभी अंग , ने और पूण आयु को ा त कया है. (५)
सू —१६२
दे वता—गभ क र ा
णा नः सं वदानो र ोहा बाधता मतः. अमीवा य ते गभ णामा यो नमाशये.. (१) रा सहंता अ न मं के साथ मलकर यहां से रा स को न कर. हे नारी! तु हारी यो न का आ य जो बाधाएं एवं रोग ले रहे ह एवं तु हारे गभ को हा न प ंचाते ह, वे न ह . (१) य ते गभममीवा णामा यो नमाशये. अ न ं णा सह न ादमनीनशत्.. (२) हे नारी! जो रोग अथवा उप व तु हारे माग एवं तु हारी यो न म आ त ह, रा सनाशक अ न तु तमं के साथ उसे समा त कर. (२) य ते ह त पतय तं नष नुं यः सरीसृपम्. जातं य ते जघांस त त मतो नाशयाम स.. (३) हे नारी! जो रा स आ द तु हारे प त के वीय खलन के समय, गभ म वीय के थत होने पर, गभ के चलने पर अथवा संतानो प के समय न करने क अ भलाषा करता है, उसे हम यहां से र भगाते ह. (३) य त ऊ वहर य तरा द पती शये. यो न यो अ तरारे ह त मतो नाशयाम स.. (४) हे नारी! जो रा स आ द गभनाश के लए तु हारी जंघा को फैला दे ता है, तुम प तप नी के बीच म सो जाता है अथवा जो यो न के भीतर घुस कर गरे ए पु षवीय को चाट लेता है, उसे हम यहां से र भगाते ह. (४) य वा ाता प तभू वा जारो भू वा नप ते. जां य ते जघांस त त मतो नाशयाम स.. (५) हे नारी! जो रा सा द तु हारा भाई, प त अथवा ेमी बनकर तु हारे समीप जाता है एवं तु हारी संतान को न करना चाहता है, उसे हम यहां से भगाते ह. (५) य वा व ेन तमसा मोह य वा नप ते. जां य ते जघांस त त मतो नाशयाम स.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे नारी! जो रा सा द व या सुषु त क अव था म तु ह मो हत करके तु हारे पास जाता है एवं तु हारी संतान को मारना चाहता है, उसे हम यहां से र भगाते ह. (६)
दे वता—य मा का नाश
सू —१६३
अ ी यां ते ना सका यां कणा यां छु बुकाद ध. य मं शीष यं म त का ज ाया व वृहा म ते.. (१) हे रोगी! तु हारी दोन आंख , नाक, कान , ठोड़ी, शीश, म त क एवं जीभ से म य मा रोग को बाहर नकालता ं. (१) ीवा य त उ णहा यः क कसा यो अनू यात्. य मं दोष य१मंसा यां बा यां व वृहा म ते.. (२) हे रोगी! म तु हारी गरदन क नस , ना ड़य , ह ड् डय के जोड़ , हाथ और कंध से य मा के षत रोग को र भगाता ं. (२) आ े य ते गुदा यो व न ो दयाद ध. य मं मत ना यां य नः ला श यो व वृहा म ते.. (३) हे रोगी! म तु हारी आंत , गुदा, बड़ी आंत, दय, गुद , जगर एवं अ य अंग से य मा रोग को बाहर नकालता ं. (३) ऊ यां ते अ ीवद् यां पा ण यां पदा याम्. य मं ो ण यां भासदा ं ससो व वृहा म ते.. (४) हे रोगी! म तु हारी जंघा को बाहर नकालता ं. (४)
, घुटन , टखन , पंज , नतंब , कमर एवं गुदा से य मा रोग
मेहना नंकरणा लोम य ते नखे यः. य मं सव मादा मन त मदं व वृहा म ते.. (५) हे रोगी! म तु हारी मू बाहर नकालता ं. (५)
य, बाल , नाखून आ द शरीर के सभी भाग से य मा रोग को
अ ाद ा लो नोलो नो जातं पव णपव ण. य मं सव मादा मन त मदं व वृहा म ते.. (६) हे रोगी! म तु हारे येक अंग, येक रोम, थत रोग को बाहर नकालता ं. (६)
येक जोड़ एवं अंग के कसी भी भाग म
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१६४
दे वता—बुरे सपने का नाश
अपे ह मनस पतेऽप ाम पर र. परो नऋ या आ च व ब धा जीवतो मनः.. (१) हे मेरे मन पर अ धकार करने वाले ः व दे व! तुम यहां से हटो, भाग जाओ और र घूमो. हे र थत पाप दे वता! नऋ त से तुम कहो क जी वत के मनोरथ अनेक होते ह. (१) भ ं वै वरं वृणते भ ं यु
त द णम्. भ ं वैव वते च ुब
ा जीवतो मनः.. (२)
जी वत के मनोरथ व तृत, उ म एवं अ भलाषायो य व तु को चाहने वाले एवं उ म फल के इ छु क होते ह. यम अपने क याणकारी ने से उसे दे खते ह. (२) यदाशसा नःशसा भशसोपा रम जा तो य वप तः. अ न व ा यप कृता यजु ा यारे अ म धातु.. (३) हे अ न! हम आशावान् होकर, आशार हत होकर अ भलाषा पूरी करने पर जागते समय एवं सोते समय जो बुरे कम करते ह, उ ह तुम हमसे र ले जाओ. वे लेश दे ने वाले पाप ह. (३) यद
ण पतेऽ भ ोहं चराम स. चेता न आ रसो
षतां पा वंहसः.. (४)
हे इं एवं ण प त! हमने जो पाप कया है, अं गरा के पु से हम बचाव. (४) अजै मा ासनाम चाभूमानागसो वयम्. जा व ः सङ् क पः पापो यं म तं स ऋ छतु यो नो े
चेता उस श ु प पाप
तमृ छतु.. (५)
आज हमने वजयी बनकर ा त करने यो य व तुएं पा ली ह. हम आज पापर हत हो गए ह. हमने जागते म, सोते म अथवा संक प प म जो पाप कया है, वह हमारे े षय अथवा हमसे े ष करने वाल के समीप प ंचे. (५)
सू —१६५
दे वता— व ेदेव
दे वाः कपोत इ षतो य द छ तो नऋ या इदमाजगाम. त मा अचाम कृणवाम न कृ त शं नो अ तु पदे शं चतु पदे .. (१) हे दे वो! यह कबूतर नऋ त का त है एवं बाधा प ंचाने क इ छा से हमारे पास आया ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. उसक पूजा करके हम यह अमंगल र करते ह. हमारे दासदा सय एवं गो, अ का क याण हो. (१)
आद
शवः कपोत इ षतो नो अ वनागा दे वाः शकुनो गृहेषु. अ न ह व ो जुषतां ह वनः प र हे तः प णी नो वृण ु .. (२) हे दे वो! हमारे घर म जो कबूतर भेजा गया है, वह हमारे लए शुभ हो एवं कोई अमंगल न करे. व ान् अ न हमारा ह हण कर. यह पंख वाला आयुध हम छोड़ जावे. (२) हे तः प णी न दभा य माना यां पदं कृणुते अ नधाने. शं नो गो य पु षे य ा तु मा नो हसी दह दे वाः कपोतः.. (३) यह कपोत पणी पंख वाली तलवार हम न मारे. यह व तृत अ न थापना वाले थान पर बैठे. हमारे मानव और गाय का क याण हो तथा यह कपोतदे व हमारी हसा न कर. (३) य लूको वद त मोघमेत कपोतः पदम नौ कृणो त. य य तः हत एष एत मै यमाय नमो अ तु मृ यवे.. (४) उ लू जो कहता है, वह थ हो. यह कबूतर अ न के थान म बैठता है. यह जसका त बनकर आया है, उस मृ यु दे व यम को नम कार है. (४) ऋचा कपोतं नुदत णोद मषं मद तः प र गां नय वम्. संयोपय तो रता न व ा ह वा न ऊज पता प त ः.. (५) हे दे वो! मं ारा इस भगाने यो य कबूतर को भगाओ. आनंद के साथ गाय को घास क ओर ले चलो. अ यंत शी उड़ने वाला यह कबूतर हमारे सभी पाप को अ य करता आ हमारा अ छोड़कर उड़ जावे. (५)
सू —१६६
दे वता—श ुनाश
ऋषभं मा समानानां सप नानां वषास हम्. ह तारं श ूणां कृ ध वराजं गोप त गवाम्.. (१) हे इं ! मुझे समान य का मुख, श ु का पराजयक ा, वरो धय का नाशक एवं गाय का वामी तथा वशेष प से सुशो भत बनाओ. (१) अहम म सप नहे इवा र ो अ तः. अधः सप ना मे पदो रमो सव अ भ ताः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म श ु को न करने वाला ं एवं इं के समान अपरा जत तथा अ ह सत ं. ये सभी श ु मेरे चरण म पड़े ए ह. (२) अ ैव वोऽ प न ा युभे आ न इव यया. वाच पते न षेधेमा यथा मदधरं वदान्.. (३) हे श ुओ! जस कार धनुष के दोन सरे डोरी से बांधे जाते ह, उसी कार म तु ह पाश से बांधता ं. हे वाच प त! इ ह मना कर दो क मेरी बात के बीच म न बोल. (३) अ भभूरहमागमं व कमण धा ना. आ व
मा वो तमा वोऽहं स म त ददे .. (४)
म इस सम त काय करने वाले अपने तेज से श ु को परा जत करने आया ं. हे श ुओ! म तु हारे मन, काय एवं संगठन को छ नता ं. (४) योग ेमं व आदायाहं भूयासमु म आ वो मूधानम मीम्. अध पदा म उ दत म डू का इवोदका म डू का उदका दव.. (५) हे श ओ ु ! म तु हारा योग ेम छ नकर तु हारी अपे ा उ म आ ं. म तु हारे सर पर चढ़ गया ं. जस कार मढक पानी म बोलते ह, उसी कार तुम मेरे पैर के नीचे ची कार करो. (५)
सू —१६७
दे वता—इं
तु येद म प र ष यते मधु वं सुत य कलश य राज स. वं र य पु वीरामु न कृ ध वं तपः प रत याजयः वः.. (१) हे इं ! यह मधुर सोमरस तु हारे लए नचोड़ा गया है. इस सोमरस भरे कलश के वामी तुम ही हो. तुम हम अ धक संतान वाला धन दो. तुमने तप या करके वग को जीता है. (१) व जतं म ह म दानम धसो हवामहे प र श ं सुताँ उप. इमं नो य मह बो या ग ह पृधो जय तं मघवानमीमहे.. (२) हम वग को जीतने वाले व सोमपान से स इं को नचोड़े ए सोमरस के समीप बुलाते ह. हे इं ! हमारे इस य को जानो तथा यहां आओ. हम श ु वजयी इं क शरण म आए ह. (२) सोम य रा ो व ण य धम ण बृह पतेरनुम या उ शम ण. तवाहम मघव ुप तुतौ धात वधातः कलशाँ अभ यम्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धनी इं ! राजा सोम एवं व ण के धम तथा बृह प त संबंधी य शाला म वतमान म तु हारी तु त म संल न ं. हे धाता और वधाता! मने तु हारी आ ा से कलश म रखा सोम पया है. (३) सूतो भ मकरं चराव प तोमं चेमं थमः सू र मृजे. सुते सातेन य ागमं वां त व ा म जमद नी दमे.. (४) हे इं ! मने तुमसे े रत होकर य म पुरोडाश तैयार कया है. म सव थम तोता के प म यह तो बोलता ं. (इं का उ र) हे व ा म एवं जमद न! सोमरस तैयार होने पर म जस समय तु हारे पास आऊं, उस समय तुम अपने घर म मेरी तु त करना. (४)
सू —१६८
दे वता—वायु
वात य नु म हमानं रथ य ज े त तनय य घोषः. द व पृ या य णा न कृ व ुतो ए त पृ थ ा रेणुम यन्.. (१) म रथ के समान वेग से दौड़ने वाले वायु क म हमा का वणन करता ं. वायु का श द सभी थान म गुं जत होता आ एवं वृ ा द को कंपाता आ चलता है. वायु आकाशमाग का पश करके सभी थल को लाल करते ए एवं धरती क धूल उड़ाते ए चलते ह. (१) सं ेरते अनु वात य व ा ऐनं ग छ त समनं न योषाः. ता भः सयु सरथं दे व ईयतेऽ य व य भुवन य राजा.. (२) वायु के चलने से पवत भी कांपते ह. जस कार घोड़ी यु क ओर जाती है, उसी कार पवता द वायु क ओर आते ह. वायु घो ड़य से यु रथ पर चढ़कर एवं इस सकल भुवन के वामी बनकर चलते ह. (२) अ त र े प थ भरीयमानो न न वशते कतम चनाहः. अपां सखा थमजा ऋतावा व व जातः कुत आ बभूव.. (३) वायु आकाश थत माग से चलते ए कसी भी दन शां त से नह बैठते. जल के म , सबसे थम उ प एवं श यु वायु कहां ज मे ह और कहां से आए ह? (३) आ मा दे वानां भुवन य गभ यथावशं चर त दे व एषः. घोषा इद य शृ वरे न पं त मै वाताय ह वषा वधेम.. (४) दे व क आ मा एवं भुवन के गभ प वायु इ छा के अनुसार वचरण करते ह. जस वायु का श द ही सुना जाता है, प नह दे खा जाता, उसक पूजा म ह ारा करता ं. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१६९
दे वता—गौ
मयोभूवातो अ भ वातू ा ऊज वतीरोषधीरा रश ताम्. पीव वतीज वध याः पब ववसाय प ते मृळ.. (१) आनंददा यनी वायु गाय क ओर चल. गाएं श दे ने वाली घास खाव एवं अ धक मा ा म जल पएं. हे इं ! चरण वाली तथा अ पणी गाय क र ा करो. (१) याः स पा व पा एक पा यासाम न र ा नामा न वेद. या अ रस तपसेह च ु ता यः पज य म ह शम य छ.. (२) जो गाएं समान प वाली, व भ प वाली तथा एक प वाली ह, उन गाय के नाम अ न य के कारण जानते ह. अं गरागो ीय ऋ षय ने तप या के ारा धरती पर गाय का नमाण कया है. हे पज य! उन गाय को सुख दान करो. (२) या दे वेषु त व१मैरय त यासां सोमो व ा पा ण वेद. ता अ म यं पयसा प वमानाः जावती र गो े ररी ह.. (३) हे इं ! जो गाएं दे वसंबंधी य के न म अपना शरीर दे ती ह एवं सोम जनके ध, दही, घृत आ द प को जानते ह, उ ह ध से भरकर तथा संतान यु बनाकर हमारे य म भेजो. (३) जाप तम मेता रराणो व ैदवैः पतृ भः सं वदानः. शवाः सती प नो गो माक तासां वयं जया सं सदे म.. (४) जाप त ने सम त दे व एवं पतर से सलाह करके मुझे ये गाएं दान क ह. वे इन गाय को क याण पणी बनाकर हमारी गोशाला म रखते ह, जससे हम गाय के ब चे पा सक. (४)
सू —१७०
दे वता—सूय
व ाड् बृह पबतु सो यं म वायुदध पताव व तम्. वातजूतो यो अ भर त मना जाः पुपोष पु धा व राज त.. (१) वशेष द त वाले सूय यजमान को अकु टल आयु दे ते ए मधुर सोमरस अ धक मा ा म पएं. सूय वायु ारा े रत होकर जा क र ा करते ह एवं उसका पोषण करते ए वशेष प से सुशो भत होते ह. (१) व ाड् बृह सुभृतं वाजसातमं धम दवो ध णे स यम पतम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ म हा वृ हा द युहंतमं यो तज े असुरहा सप नहा.. (२) द तशाली, व तृत, भली-भां त पु , अ का अ तशय दाता, वायु ारा धा रत, सूयमंडल म थत, वनाशर हत, श ुघातक, वृ हननक ा, रा स को मारने वाल म े , आयुध फकने वाल का घातक एवं सहज वरो धय को समा त करने वाला सूय प तेज कट होता है. (२) इदं व
े ं यो तषां यो त ाड् ाजो म ह सूय
मं व ज न ज यते बृहत्. श उ प थे सह ओजो अ युतम्.. (३)
सूय यो तय म उ म यो त, े , व को जीतने वाले, धन वजय करने वाले एवं वशाल कहलाते ह. व काशक, द तशाली एवं महान् सूय दे खने के लए व तृत अंधकारनाशक एवं अ वनाशी तेज का व तार करते ह. (३) व ाज यो तषा व१रग छो रोचनं दवः. येनेमा व ा भुवना याभृता व कमणा व दे ावता.. (४) हे सूय! तुम अपने तेज से सारे जगत् को का शत करते ए द थान म गए थे. सभी काय के हेतु व सभी य के अनुकूल सूय काश के ारा सारे लोक को भर जाते ह. (४)
दे वता—इं
सू —१७१ वं य मटतो रथ म
ावः सुतावतः. अशृणोः सो मनो हवम्.. (१)
हे इं ! तुमने सोमरस नचोड़ने वाले यट् ऋ ष के रथ क र ा क एवं सोमधारणक ा यट् क पुकार सुनी. (१) वं मख य दोधतः शरोऽव वचो भरः. अग छः सो मनो गृहम्.. (२) तुमने भय से कांपते ए य का सर शरीर से अलग कर दया. तुम सोमरसधारी यट् के घर गए. (२) वं य म
म यमा बु नाय वे यम्. मु ः
हे इं ! तुमने अ वबु न क दया था. (३) वं य म
ना मन यवे.. (३)
तु त बार-बार सुनकर वेनपु पृथु को उसके वश म कर
सूय प ा स तं पुर कृ ध. दे वानां च रो वशम्.. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तुम सायंकाल के समय प म म डू बे ए एवं दे व अगले दन पूव म ले जाते हो. (४)
ारा भी अ ात सूय को
दे वता—उषा
सू —१७२
आ या ह वनसा सह गावः सच त वत न य ध भः.. (१) (१)
हे उषा! तुम शोभन तेज के साथ आओ. भरे ए थन वाली गाएं माग पर चल रही ह. आ या ह व
ा धया मं ह ो जारय मखः सुदानु भः.. (२)
हे उषा! तुम शंसनीय तु तयां लेकर आओ. यह काल शोभन दान वाले पु ष दानयु एवं य समा त का होता है. (२) पतुभृतो न त तु म सुदानवः
ारा
त द मो यजाम स.. (३)
अ के वा मय के समान शोभन दान वाले हम धाग के समान इस य का व तार करते ह एवं उस य से उषा क पूजा करते ह. (३) उषा अप वसु तमः सं वतय त वत न सुजातता.. (४) (४)
उषा अपनी ब हन रात का अंधकार मटाती है एवं अपना रथ भली कार चलाती है.
सू —१७३
दे वता—राजा क तु त
आ वाहाषम तरे ध व ु त ा वचाच लः. वश वा सवा वा छ तु मा व ा म ध शत्.. (१) हे राजन्! मने तु ह अपने रा का वामी बनाया है. तुम हमारे बीच अ धकारी बनो एवं ढ़ तथा अ वचल होकर रहो. सभी जाएं तु ह चाह. तु हारे पास से रा य का अ धकार न हो. (१) इहैवै ध माप यो ाः पवत इवा वचाच लः. इ इवेह ुव त ेह रा मु धारय.. (२) हे राजन्! तुम पवत के समान अ वचल होकर बढ़ो एवं रा य से युत न बनो. तुम इं के समान ु होकर यहां ठहरो एवं रा को धारण करो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इम म ो अद धरद् व ु ं ुवेण ह वषा. त मै सोमो अ ध व मा उ ण प तः.. (३) इं ने ुव ह व पाकर इस राजा को आशीवाद दया है. (३)
थर बनाया है. सोम एवं
ण प त ने उसे
ुवा ौ ुवा पृ थवी व ु ासः पवता इमे. ुवं व मदं जगद् ुवो राजा वशामयम्.. (४) जस कार ुलोक, धरती, ये पवत एवं सारा व यह राजा भी अ वचल रहे. (४)
ुव है, उसी कार जा
के बीच
ुवं ते राजा व णो ुवं दे वो बृह प तः. ुवं त इ ा न रा ं धारयतां ुवम्.. (५) (५)
हे राजन्! राजा व ण, दे व बृह प त, इं एवं अ न तु हारे रा य ुव
प म धारण कर.
ु ं ुवेण ह वषा भ सोमं मृशाम स. व अथो त इ ः केवली वशो ब ल त करत्.. (६) हे राजन्! हम अ वनाशी पुरोडाश के साथ थर सोमरस को मलाते ह इस लए इं ने तु हारी जा को भ एवं कर दे ने वाली बनाया है. (६)
सू —१७४ अभीवतन ह वषा येने ो अ भवावृते. तेना मा
दे वता—राज तु त ण पतेऽ भ रा ाय वतय.. (१)
हे ण प त! जस ह व से इं ने सब कुछ ा त कया है, हम उसी ह व से य करते ह. तुम हम रा य ा त म लगाओ. (१) अ भवृ य सप नान भ या नो अरातयः. अ भ पृत य तं त ा भ यो न इर य त.. (२) हे राजन्! श ु , सेना लेकर चढ़ाई करने वाल , दानर हत लोग एवं हमसे े ष करने वाल को परा जत करो. (२) अ भ वा दे वः स वता भ सोमो अवीवृतत्. अ भ वा व ा भूता यभीवत यथास स.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे राजन्! स वता दे व, सोम एवं सभी ाणी तु हारे अनुकूल हो गए ह. इस कार तुम सबका आ य पा गए हो. (३) येने ो ह वषा कृ य
भवद् ु यु मः. इदं तद
दे वा असप नः कलाभुवम्.. (४)
हे दे वो! जस ह व ारा इं य कम वाले यश वी एवं उ म बने ह, उसी ह कया है. म इसीसे श ुर हत बना ं. (४)
ारा मने
असप नः सप नहा भरा ो वषास हः. यथाहमेषां भूतानां वराजा न जन य च.. (५) श ुर हत, श ुनाशक एवं श ुपराभवकारी म इन जा वामी बना ं. (५)
एवं मं ी आ द सेवक का
दे वता—सोमरस नचोड़ने के प थर
सू —१७५
वो ावाणः स वता दे वः सुवतु धमणा. धूषु यु य वं सुनुत.. (१) हे प थरो! स वता दे व अपने ेरणा मक कम से तु ह सोमरस नचोड़ने म लगाव. तुम सभी थान म नयु होकर सोमरस नचोड़ो. (१) ावाणो अप
छु नामप सेधत म तम्. उ ाः कतन भेषजम्.. (२)
हे प थरो! ःख प ंचाने वाली जा एवं बु लए ओष ध तु य बनाओ. (२)
को हमसे र करो. तुम गाय को हमारे
ावाण उपरे वा महीय ते सजोषसः. वृ णे दधतो वृ यम्.. (३) छोटे प थर आपस म मलकर बड़े प थर पर शोभा पा रहे ह. ये प थर रस बरसाने वाले सोम के त अपनी श का योग करते ह. (३) ावाणः स वता नु वो दे वः सुवतु धमणा. यजमानाय सु वते.. (४) हे प थरो! स वता दे व सोमय करने वाले यजमान के लए सोमरस नचोड़ने के काम म तु ह लगाव. (४)
सू —१७६
दे वता—ऋभु एवं अ न
सूनव ऋभूणां बृह व त वृजना. ामा ये व धायसोऽ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धेनुं न मातरम्.. (१)
ऋभु के पु वशाल यु करने के लए नकले. बछड़ा जस कार धा ध को पीता है, उसी कार ऋभुगण सारी धरती पर फैल गए. (१)
गाय के
दे वं दे ा धया भरता जातवेदसम्. ह ा नो व दानुषक् .. (२) हे ऋ वजो! ानी अ न दे व को द हमारा ह वहन कर. (२) अयमु य
तो से स करो. अ न व ध के अनुसार
दे वयुह ता य ाय नीयते. रथा न योरभीवृतो घृणीवा चेत त मना.. (३)
ये वही अ न ह, जो दे व के यजन क अ भलाषा रखते ह एवं होता ह. य के लए इ ह था पत कया जाता है. अ न रथ के समान ह वहनक ा, ऋ वज्, यजमान आ द से घरे ए, करण से यु एवं वयं ही य पूरा करने वाले ह. (३) अयम न
य यमृता दव ज मनः सहस
सहीया दे वो जीवातवे कृतः.. (४)
ये अ न दे व के समान मानव के भय से भी र ा करते ह. यह अ तशय श एवं आयुवृ के लए उ प ए ह. (४)
सू —१७७
शाली
दे वता—माया
पत म मसुर य मायया दा प य त वप तः. समु े अ तः कवयो व च ते मरीचीनां पद म छ त वेधसः.. (१) व ान ने वचार करके मन क आंख से जीवा मा पी प ी को दे खा. उसे असुर क माया घेर चुक थी. उन व ान ने सूयमंडल के म य म दे खा. उन वधाता ने सूय करण के थान म जाने क अ भलाषा क . (१) पत ो वाचं मनसा बभ त तां ग धव ऽवदद् गभ अ तः. तां ोतमानां वय मनीषामृत य पदे कवयो न पा त.. (२) वह आ मा पी प ी मन ही मन वचन को धारण करता है. गंधव ने यह बात उसे गभ म ही बताई है. व ान् लोग स य के माग म उस द तशा लनी, वग दे ने वाली एवं वृ क वा मनी वाणी क र ा करते ह. (२) अप यं गोपाम नप मानमा च परा च प थ भ र तम्. स स ीचीः स वषूचीवसान आ वरीव त भुवने व तः.. (३) मने र क सूय को कभी प तत होते नह दे खा, वे कभी समीपवत और कभी रवत माग से चलते ह. वे कभी ब त से व एक साथ और कभी अलग-अलग पहनते ह. वे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
संसार म बार-बार आते ह. (३)
सू —१७८
दे वता—ग ड़
यमू षु वा जनं दे वजूतं सहावानं त तारं रथानाम्. अ र ने म पृतनाजमाशुं व तये ता य महा वेम.. (१) हम श शाली, दे व ारा सोम लाने के लए े रत बलयु , सं ाम म श ु के रथ के वजेता, आ मणर हत रथ वाले एवं सेना को यु के लए े रत करने वाले ग ड़ को बुलाते ह. (१) इ येव रा तमाजो वानाः व तये नाव मवा हेम. उव न पृ वी ब ले गभीरे मा वामेतौ मा परेतौ रषाम.. (२) इं क दानश के समान ग ड़ क दानश को आ ान करने वाले हम इस पर क याण के लए नाव के समान चढ़ते ह. हे व तृत, वशाल, ापक एवं गंभीर ावापृ थवी! हम आतेजाते समय म न न ह . (२) स ः शवसा प च कृ ीः सूय इव यो तषाप ततान्. सह साः शतसा अ य रं हन मा वर ते युव त न शयाम्.. (३) जस कार सूय अपने तेज से जल का व तार करते ह, उसी कार ग ड़ ने अपने बल से पांच वण का शी व तार कया. ग ड़ क ग त हजार एवं सैकड़ कार का धन दे ने वाली है. जस कार ल य क ओर जाने वाले बाण को कोई नह रोक पाता है, उसी कार ग ड़ क ग त म बाधा नह पड़ती. (३)
सू —१७९ उ
ताव प यते
दे वता—इं य भागमृ वयम्. य द ातो जुहोतन य
ातो मम न.. (१)
हे ऋ वजो! उठो एवं इं के ऋतु अनुकूल भाग के लए य न करो. इं का भाग य द पक चुका है तो उसका होम करो और य द वह नह पका है तो उसे पकाओ. (१) ातं ह वरो व या ह जगाम सूरो अ वनो वम यम्. प र वासते न ध भः सखायः कुलपा न ाजप त चर तम्.. (२) हे इं ! ह का पाक हो चुका है. तुम हमारे पास आओ. सूय अपने माग के म य म प ंच चुके ह. वंश के र क पु जस कार इधर-उधर घूमते ए गृहप त क र ा करते ह, उसी कार अनेक सखा य क साम ी लेकर तु हारी उपासना करते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ातं म य ऊध न ातम नौ सु ातं म ये त तं नवीयः. मा य दन य सवन य द नः पबे व पु कृ जुषाणः.. (३) गाय के थन म यह ध प ह व सबसे पहले पकता है, हम लोग ऐसा मानते ह. अ न म पककर वह अ त प व एवं नवीन बनता है, यह हमारा वचार है. हे व धारी एवं अ धक धनदान करने वाले इं ! मा यं दन सवन नामक य के उस ध को तुम पओ. (३)
सू —१८०
दे वता—इं
ससा हषे पु त श ू ये ते शु म इह रा तर तु. इ ा भर द णेना वसू न प तः स धूनाम स रेवतीनाम्.. (१) हे ब त ारा बुलाए गए इं ! तुम श ु को हराते हो. तु हारा तेज े है. इस य म तु हारा दान हम मले. तुम दा हने हाथ से हम धन दो. तुम जल वाली स रता के प त हो. (१) मृगो न भीमः कुचरो ग व ाः परावत आ जग था पर याः. सृकं संशाय प व म त मं व श ू ता ह व मृधो नुद व.. (२) हे इं ! तुम भयानक पैर एवं पवतवासी पशु के समान भयानक हो. तुम रवत वगलोक से आए हो. तुम ग तशील एवं तीखे व पर सान चढ़ाकर श ु को मारो और वरो धय को र भगाओ. (२) इ म भ वाममोजोऽजायथा वृषभ चषणीनाम्. अपानुदो जनम म य तमु ं दे वे यो अकृणो लोकम्.. (३) हे इं ! तुम क से र ा करने वाले एवं सुंदर तेज को लेकर उ प ए हो. हे कामपूरक इं ! तुम हमारे त श त ु ा रखने वाले लोग का नाश करो एवं दे व के लए संसार को व तृत बनाओ. (३)
सू —१८१
दे वता— व ेदेव
थ य य स थ नामानु ु भ य ह वषो ह वयत्. धातु ुताना स वतु व णो रथ तरमा जभारा व स ः.. (१) व स के पु पृथु ह और भर ाज के सु थ ह. इन म से व स धाता, द तशाली स वता और व णु के समीप से अनु ु प् छं द वाला एवं ह व को शु करने वाला साममं लाए थे. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ व द ते अ त हतं यदासी य धाम परमं गुहा यत्. धातु ुताना स वतु व णोभर ाजो बृहदा च े अ नेः.. (२) धाता आ द ने छपा आ, ह का सं कार करने वाला व गुफा म सुर त साममं पाया. भर ाज ऋ ष धाता, द तशाली स वता, व णु और अ न के पास से उस बृहत् साममं को लाए. (२) तेऽ व द मनसा द याना यजुः क ं थमं दे वयानम्. धातु ुताना स वतु व णोरा सूयादभर घममेते.. (३) धाता आ द ने यान करते ए मन म य साधक, अ भषेक या संप करने वाले, मु य एवं दे व को ा त करने के साधन उस धममं को पाया. पुरो हत ने धाता, तेज वी स वता, व णु और सूय से इस मं को ा त कया. (३)
सू —१८२
दे वता—बृह प त
बृह प तनयतु गहा तरः पुननषदघशंसाय म म. पदश तमप म त ह था कर जमानाय शं योः.. (१) दशा को न करने वाले बृह प त हमारे पाप को न कर व हमारा अनथ चाहने वाले के ऊपर आयुध उठाव. वे श ु का नाश कर, बु का नाश कर एवं यजमान को रोग से बचाकर नभय कर. (१) नराशंसो नोऽवतु याजे शं नो अ वनुयाजो हवेषु. पदश तमप म त ह था कर जमानाय शं योः.. (२) पांच याज म नाराशंस अ न हमारी र ा कर. आ ान म अनुयाज हमारी र ा कर. वे श ु का नाश कर, बु को मटाव एवं यजमान को रोग से बचाकर नभय कर. (२) तपुमूधा तपतु र सो ये षः शरवे ह तवा उ. पदश तमप म त ह था कर जमानाय शं योः.. (३) जो तो से े ष करने वाले रा स ह, उ ह हसक असुर के नाश हेतु त त शर वाले बृह प त क द. वे अमंगल का नाश कर, बु को मटाव एवं यजमान को रोगमु करके नभय बनाव. (३)
सू —१८३
दे वता—यजमान और उसक प नी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अप यं वा मनसा चे कतानं तपसो जातं तपसो वभूतम्. इह जा मह र य रराणः जाय व जया पु काम.. (१) हे कम के ानी, तप से उ प एवं तप या से उ त यजमान! मने अपने मन क आंख से तु ह दे खा है. तुम यहां संतान एवं धन पाकर स बनो एवं पु क कामना से संतान के प म ज म लो. (१) अप यं वा मनसा द यानां वायां तनू ऋ े नाधमानाम्. उप मामु चा युव तबभूयाः जाय व जया पु कामे.. (२) हे प नी! मने मन क आंख से तु ह द तशा लनी व ऋतु के अनुसार अपने शरीर म गभाधान क कामना करती ई दे खा है. हे पु क कामना करने वाली! मेरे समीप तुम उ म त णी बनो एवं पु उ प करो. (२) अहं गभमदधामोषधी वहं व ेषु भुवने व तः. अहं जा अजनयं पृ थ ामहं ज न यो अपरीषु पु ान्.. (३) म होता ं, ओष धय म गभ धारण करता ं एवं सभी ा णय म गभ धारण का कारण बनता ं. मने धरती पर जा को ज म दया है. म य करके सब ना रय म पु उ प कर सकता ं. (३)
सू —१८४
दे वता— व णु आ द
व णुय न क पयतु व ा पा ण पशतु. आ स चतु जाप तधाता गभ दधातु ते.. (१) व णु नारी क यो न को गभाधान के यो य बनाव. व ा उस म ी एवं पु ष के च का भाग स म लत कर. जाप त यो न को वीय से स च एवं धाता तेरा गभ धारण कर. (१) गभ धे ह सनीवा ल गभ धे ह सर व त. गभ ते अ नौ दे वावा ध ां पु कर जा.. (२) हे सनीवाली! तुम गभ धारण कराओ. हे सर वती! तुम गभ क र ा करो. हे ी! सुनहरे कमल क माला पहनने वाले अ नीकुमार दे व तु हारे शरीर म गभ धारण कर. (२) हर ययी अरणी यं नम थतो अ ना. तं ते गभ हवामहे दशमे मा स सूतवे.. (३) हे प नी! अ नीकुमार जस वग न मत अर ण का मंथन करते ह, हम दशम मास म तु हारे गभ के ज म के लए उसी अर ण को बुलाते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू —१८५
दे वता—आ द य
म ह ीणामवोऽ तु ु ं म याय णः. राधष व ण य.. (१) व ण, म एवं अयमा—इन तीन दे व का द तशाली, अपराजेय एवं महान् र ण हम ा त हो. (१) न ह तेषाममा चन ना वसु वारणेषु. ईशे रपुरघशंसः.. (२) व ण, अयमा एवं म ारा अनुगृहीत तोता चाहने वाला श ु नह दबा सकता. (२) य मै पु ासो अ दतेः अ द त के ये तीन पु अ धकार नह होता. (३)
को घर, माग एवं गम थान म बुरा
जीवसे म याय. यो तय छ यज म्.. (३) जसके जीवन के लए यो त दान करते ह, उस पर श ु का
दे वता—वायु
सू —१८६ वात आ वातु भेषजं श भु मयोभु नो दे .
ण आयूँ ष ता रषत्.. (१)
वायु ओष ध बनकर हमारे दय म आव तथा हमारे लए क याण एवं सुख द. वायु हमारी आयु बढ़ाव. (१) उत वात पता स न उत ातोत नः सखा. स नो जीवातवे कृ ध.. (२) हे वायु! तुम हमारे पता भाई एवं म हो. तुम हमारे जीवन के लए य करो. (२) यददो वात ते गृहे३ मृत य न ध हतः. ततो नो दे ह जीवसे.. (३) हे वायु! तु हारे घर म जो अमृत का खजाना छपा है, उससे हमारे जीवन के लए अमृत दो. (३)
सू —१८७ ा नये वाचमीरय वृषभाय
दे वता—अ न तीनाम्. स नः पषद त
षः.. (१)
हे तोताओ! मानव क अ भलाषा पूरी करने वाले अ न क श ु से बचाव. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तु त करो. अ न हम
यः पर याः परावत तरो ध वा तरोचते. स नः पषद त
षः.. (२)
जो अ न अ यंत रवत आकाश को पार करके आए ह, वे हम श ु से बचाव. (२) यो र ां स नजूव त वृषा शु े ण शो चषा. स नः पषद त जो अ न अपनी वषाकारक एवं उ श ु से बचाव. (३)
वल वाला से रा स का नाश करते ह, वे हम
यो व ा भ वप य त भुवना सं च प य त. स नः पषद त जो अ न सारे संसार को एक-एक करके एवं सामू हक हमारी र ा कर. (४) यो अ य पारे रजसः शु ो अ नरजायत. स नः पषद त जन अ न ने इस अंत र बचाव. (५)
षः.. (३)
के पार उ
वल
षः.. (४) प से दे खते ह वे श ु
से
षः.. (५)
प म ज म लया है, वे हम श ु
से
दे वता— ानी अ न
सू —१८८
नूनं जातवेदसम ं हनोत वा जनम्. इदं नो ब हरासदे .. (१) हे ऋ वजो एवं यजमानो! लए बुलाओ. (१) अय
ानी,
ा त एवं अ वाले अ न को कुश पर बैठने के
जातवेदसो व वीर य मीळ् षः. मही मय म सु ु तम्… (२)
व ान्, यजमान के पता एवं वषाकारक अ न के लए म यह वशाल तथा शोभन तु त करता ं. (२) या चो जातवेदसो दे व ा ह वाहनीः ता भन य म वतु.. (३) अ न क जो वालाएं दे व के लए ह वहन करने वाली ह, उनके ारा अ न हमारे य क र ा कर. (३)
सू —१८९
दे वता—सूय एवं सापरा ी
आयं गौः पृ र मीदसदन् मातरं पुरः. पतरं च य
वः.. (१)
गमनशील व तेज ा त करने वाले सूय उदयाचल को पाकर अपनी माता पूव दशा को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा त करते ह. वे इसके बाद अपने पता आकाश के पास जाते ह. (१) अ त र त रोचना य ाणादपानती.
य म हषो दवम्.. (२)
इस सूय के भीतर द त वचरण करती है एवं इनके ाण के साथ ऊपर-नीचे जाती है. सूय महान् बनकर आकाश को ा त करते ह. (२) श ाम व राज त वा पत ाय धीयते.
त व तोरह ु भः.. (३)
सूय के तीस थान शोभा पाते ह एवं ग तशील सूय के लए तु त क जाती है. सूय त दन अपनी करण से शोभा पाते ह. (३)
दे वता—सृ
सू —१९०
ऋतं च स यं चाभी ा पसोऽ यजायत. ततो रा यजायत ततः समु ो अणवः.. (१) व लत तप से य और स य उ प प ात् जलपूण सागर उ प ए. (१)
ए. इसके बाद रात तथा दन उ प
समु ादणवाद ध संव सरो अजायत. अहोरा ा ण वदध जलपूण सागर से संव सर उ प एवं रात बनाए. (२)
ए. इसके
य मषतो वशी.. (२)
ए. पलक झपकाने म संसार के वामी ई र ने दन
सूयाच मसौ धाता यथापूवमक पयत्. दवं च पृ थव चा त र मथो वः.. (३) ई र ने पूवकाल के अनुसार सूय और चं मा को बनाया. उसने इसके बाद पृ वी एवं अंत र को बनाया. (३)
सू —१९१
ुलोक,
दे वता—अ न व ान
संस म ुवसे वृष ने व ा यय आ. इळ पदे स म यसे स नो वसू या भर.. (१) हे अ भलाषापूरक एवं वामी अ न! तुम सभी ा णय को भली कार म त करते हो. तुम य वेद पर व लत होते हो. तुम हम धन दो. (१) संग छ वं सं वद वं सं वो मनां स जानताम्. दे वा भागं यथा पूव स ानाना उपासते.. (२) हे तोताओ! तुम लोग आपस म मलो, एक साथ तो बोलो. तु हारे मन समान बात ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को जान. ाचीन दे व जस कार स म लत होकर य का भाग ा त करते थे, उसी कार तुम भी मलकर संप का भोग करो. (२) समानो म ः स म तः समानी समानं मनः सह च मेषाम्. समानं म म भ म ये वः समानेन वो ह वषा जुहो म.. (३) पुरो हत क तु तयां समान ह . ये लोग य म एक साथ आव. उनके मन और च भी समान ह . हे पुरो हतो! म एक ही मं से तुम सबको अ भमं त करता ं और एक ही कार के ह व से तु हारा हवन करता ं. (३) समानी व आकू तः समाना दया न वः. समानम तु वो मनो यथा वः सुसहास त.. (४) हे यजमानो व पुरो हतो! तु हारा वसाय समान हो. तु हारे दय समान ह व तु हारा मन समान हो. तुम लोग एक प म संग ठत बनो. (४) (ऋ वेद सं हता संपूण)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
«UÊ. ⁄UπÊ √ÿÊ‚ ∞◊. ∞., ¬Ë-∞ø. «UË.
laLo`Qr lkfgR; izdk'ku
© 1979 ‚¢S∑Χà ‚ÊÁ„Uàÿ ¬˝∑§Ê‡ÊŸ ‚¢S∑§⁄UáÊ — 2015
ISBN 81-7987-096-0 VP : 632.5H15
‚¢S∑Χà ‚ÊÁ„Uàÿ ¬˝∑§Ê‡ÊŸ ∑§ Á‹∞ Áfl‡fl Áfl¡ÿ ¬˝Ê. Á‹. ∞◊-12, ∑§ŸÊ≈U ‚⁄U∑§‚, Ÿß¸ ÁŒÀ‹Ë-110001 mÊ⁄UÊ ◊ÈÁº˝Ã fl ÁflÃÁ⁄UÃ
¬˝ÊÄ∑§ÕŸ ‚Ê◊ÊãÿÃÿÊ ÁmÃËÿ flŒ ∑§ M§¬ ◊¥ ¬˝Á‚h ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ë ⁄UøŸÊ ´§ÇflŒËÿ ´§øÊ•Ê¥ ∑§ Á◊üÊáÊ ‚ „ÈU߸ ◊ÊŸË ¡ÊÃË „ÒU, ÄÿÊ¥Á∑§ ´§ÇflŒ ∑§ 663 ◊¢òÊ ÿÕÊflà ÿ¡Èfl¸Œ ◊¥ ÷Ë ¬˝Ê# „UÊà „Ò¥U. Á»§⁄U ÷Ë ÿ„U Ÿ„UË¥ ∑§„UÊ ¡Ê ‚∑§ÃÊ „ÒU Á∑§ ŒÊŸÊ¥ ∞∑§ „UË ª˝¢Õ „Ò¥. ´§ÇflŒ ∑§ ◊¢òÊ ¬lÊà◊∑§ „Ò¥U, ¡’Á∑§ ÿ¡Èfl¸Œ ∑§ ªlÊà◊∑§ó“ªlÊà◊∑§Ê ÿ¡È— ”. ‚ÊÕ „UË •Ÿ∑§ ◊¢òÊ ´§ÇflŒ ‚ Á÷㟠÷Ë „Ò¥U. flSÃÈ× ÿ¡Èfl¸Œ ∞∑§ ¬hÁà ª˝¢Õ „ÒU, ¡Ê ¬ÊÒ⁄UÊÁ„Uàÿ ¬˝áÊÊ‹Ë ◊¥ ÿôÊ •ÊÁŒ ∑§◊¸ ‚¢¬ãŸ ∑§⁄UÊŸ ∑§ Á‹∞ ‚¢∑§Á‹Ã „ÈU•Ê ÕÊ. ß‚ËÁ‹∞ •Ê¡ ÷Ë ÁflÁ÷㟠‚¢S∑§Ê⁄UÊ¥ ∞fl¢ ÿôÊËÿ ∑§◊ÊZ ∑§ •ÁäÊ∑§Ê¢‡Ê ◊¢òÊ ÿ¡Èfl¸Œ ∑§ „UË „UÊà „Ò¥. ÿôÊ •ÊÁŒ ∑§◊ÊZ ‚ ‚¢’¢ÁäÊà „UÊŸ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ ÿ¡Èfl¸Œ •¬ˇÊÊ∑Χà •ÁäÊ∑§ ¡ŸÁ¬˝ÿ ⁄U„UÊ „Ò. ÿÍ¢ ÃÊ ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ë 101 ‡ÊÊπÊ∞¢ ’ÃÊ߸ ¡ÊÃË „Ò¥U, Á∑¢§ÃÈ ◊ÈÅÿÃÿÊ— ŒÊ ‡ÊÊπÊ∞¢ „UË •ÁäÊ∑§ ¬˝Á‚h „Ò¥Uó∑ΧcáÊ ÿ¡Èfl¸Œ •ÊÒ⁄U ‡ÊÈÄ‹ ÿ¡Èfl¸Œ. ßã„¥U ∑˝§◊‡Ê— ÃÒÁûÊ⁄UËÿ ∞fl¢ flÊ¡‚ŸÿË ‚¢Á„UÃÊ∞¢ ÷Ë ∑§„UÊ ¡ÊÃÊ „Ò. ߟ ◊¥ ‚ ÃÒÁûÊ⁄UËÿ ‚¢Á„UÃÊ •¬ˇÊÊ∑Χà •ÁäÊ∑§ ¬È⁄UÊŸË ◊ÊŸË ¡ÊÃË „ÒU, flÒ‚ ŒÊŸÊ¥ ◊¥ ¬˝Êÿ— ∞∑§ „UË ‚Ê◊ª˝Ë „Ò. „UÊ¢, ©UŸ ∑§ ∑˝§◊ ◊¥ ∑ȧ¿U •¢Ã⁄U „ÒU. ‡ÊÈÄ‹ ÿ¡Èfl¸Œ •¬ˇÊÊ∑Χà •ÁäÊ∑§ ∑˝§◊’h „ÒU. ß‚ ◊¥ ∑ȧ¿U ∞‚ ÷Ë ◊¢òÊ „Ò¥U, ¡Ê ∑ΧcáÊ ÿ¡Èfl¸Œ ◊¥ Ÿ„UË¥ „Ò¥. ÿ¡Èfl¸Œ ŒÊ ‚¢Á„UÃÊ•Ê¥ ◊¥ ∑§’ •ÊÒ⁄U ∑Ò§‚ Áfl÷ÊÁ¡Ã „UÊ ªÿÊóÿ„U ÃÊ ¬˝Ê◊ÊÁáÊ∑§ M§¬ ◊¥ ©U¬‹éœ Ÿ„UË¥ „ÒU, „UÊ¢, ß‚ ‚¢Œ÷¸ ◊¥ ∞∑§ ⁄UÊø∑§ ∑§ÕÊ •fl‡ÿ ¬˝øÁ‹Ã „Òó ∑§„UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU Á∑§ flŒ√ÿÊ‚ ∑§ Á‡Êcÿ fl҇ʢ¬ÊÿŸ ∑§ 27 Á‡Êcÿ Õ. ©UŸ ◊¥ ‚ ‚flʸÁäÊ∑§ ◊œÊflË Õ ÿÊôÊflÀÄÿ. ∞∑§ ’Ê⁄U fl҇ʢ¬ÊÿŸ Ÿ Á∑§‚Ë ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •¬Ÿ ‚èÊË Á‡ÊcÿÊ¥ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà Á∑§ÿÊ. ©UŸ ◊¥ ‚ ∑ȧ¿U Á‡Êcÿ ÿôÊ ∑§◊¸ ◊¥ ¬ÍáʸÃÿÊ ∑ȧ‡Ê‹ Ÿ„UË¥ Õ. •Ã— ÿÊôÊflÀÄÿ Ÿ ©UŸ •∑ȧ‡Ê‹ Á‡ÊcÿÊ¥ ∑§Ê ‚ÊÕ ŒŸ ‚ ◊ŸÊ ∑§⁄U ÁŒÿÊ. ß‚ ‚ Á‡ÊcÿÊ¥ ◊¥ •Ê¬‚Ë ÁflflÊŒ ©UΔU π«U∏Ê „ÈU•Ê. Ã’ fl҇ʢ¬ÊÿŸ Ÿ ÿÊôÊflÀÄÿ ‚ •¬ŸË Á‚πÊ߸ „ÈU߸ ÁfllÊ flʬ‚ ◊Ê¢ªË. ÿÊôÊflÀÄÿ Ÿ ÷Ë •Êfl‡Ê ◊¥ ÃÈ⁄¢Uà ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ê fl◊Ÿ ∑§⁄U ÁŒÿÊ. ÁfllÊ ∑§ ∑§áÊ ∑ΧcáÊ fláʸ ∑§ ⁄UÄà ‚ ‚Ÿ „ÈU∞ Õ.
ÿ„U Œπ ∑§⁄U ŒÍ‚⁄U Á‡ÊcÿÊ¥ Ÿ ÃËÃ⁄U ’Ÿ ∑§⁄U ©UŸ ∑§áÊÊ¥ ∑§Ê øȪ Á‹ÿÊ. ߟ Á‡ÊcÿÊ¥ mÊ⁄UÊ Áfl∑§Á‚à „UÊŸ flÊ‹Ë ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ë ‡ÊÊπÊ ÃÒÁûÊ⁄UËÿ ‚¢Á„UÃÊ ∑§„U‹Ê߸. ß‚ ÉÊ≈UŸÊ ∑§ ’ÊŒ ÿÊôÊflÀÄÿ Ÿ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§Ë •ÊÒ⁄U ©UŸ ‚ ¬ÈŸ— ÿ¡Èfl¸Œ ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ. ‚Íÿ¸ Ÿ flÊ¡ (•‡fl) ’Ÿ ∑§⁄U ÿÊôÊflÀÄÿ ∑§Ê ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ë Á‡ÊˇÊÊ ŒËˇÊÊ ŒË ÕË, ß‚Á‹∞ ÿ„U ‡ÊÊπÊ flÊ¡‚ŸÿË ∑§„U‹Ê߸. ÿ„U ∑§„UÊŸË Á∑§ÃŸË ‚ø „ÒU •ÊÒ⁄U Á∑§ÃŸË ¤ÊÍΔU, ÿ„U ’ÃÊ ¬ÊŸÊ •‚¢÷fl „ÒU. ∑ȧ¿U ÁflmÊŸ˜ ß‚ ∑§¬Ê‹∑§ÁÀ¬Ã ∑§„Uà „Ò¥U •ÊÒ⁄U ∑ȧ¿U Á◊Õ. ∑ȧ¿U ÷Ë „UÊ, ßÃŸÊ ÁŸÁ‡øà „ÒU Á∑§ ÿ¡Èfl¸Œ ôÊÊŸ (flŒ) ∑§Ë fl„U ‡ÊÊπÊ (÷ʪ) „ÒU, Á¡‚ ◊¥ ÿôÊËÿ ∑§◊ÊZ ∑§Ê flø¸Sfl „ÒU, Á¡‚ ∑§ ’‹ ¬⁄U œ◊¸ ∑§ äÊ¢äÊ’Ê¡Ê¥ Ÿ ‚ÁŒÿÊ¥ ‚ ¡Ÿ‚Ê◊Êãÿ ∑§Ê ’fl∑ͧ»§ ’ŸÊ ∑§⁄U SflÊÕ¸ ‚Êœ •ÊÒ⁄U •Ê¡ ÷Ë ÿ„UË „UÊ ⁄U„UÊ „Ò. •Ê¡ ¡’ Œ‡Ê ◊¥ ‚¢S∑Χà ∑§ ôÊÊÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ‚¢ÅÿÊ Ÿªáÿ ⁄U„U ªß¸ „ÒU, ©UŸ ◊¥ ÷Ë flÒÁŒ∑§ ‚¢S∑Χà ¡ÊŸŸ flÊ‹ ÃÊ •ÊÒ⁄U ÷Ë ∑§◊ „Ò¥U, Ã’ ÿ„U •Êfl‡ÿ∑§ „UÊ ªÿÊ „ÒU Á∑§ •ãÿ flŒÊ¥ (flÒÁŒ∑§ ª˝¢ÕÊ¥) ∑§ ‚ÊÕ‚ÊÕ ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ê ÷Ë ‚⁄U‹ Á„¢UŒË ◊¥ •ŸÈflÊŒ ¬˝SÃÈà Á∑§ÿÊ ¡Ê∞, ÃÊÁ∑§ ‚ÊœÊ⁄UáÊ ¬ÊΔU∑§ ÷Ë ‚◊¤Ê ‚∑¥§ Á∑§ ÿôÊ, ‚Ê◊ÊÁ¡∑§ ‚¢S∑§Ê⁄U •ÊÁŒ ∑§◊ÊZ ∑§Ë ∑§ÁÕà ◊„UûÊÊ ¬˝ÁìÊÁŒÃ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ß‚ flŒ ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ∑§Ê flÊSÃÁfl∑§ •Õ¸ •ÊÒ⁄U •Á÷¬˝Êÿ ÄÿÊ „Ò? øÍ¢Á∑§ •Ê⁄¢U÷ ‚ „UË ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ê ÿôÊËÿ ∑§◊ÊZ ‚ ‚¢’h ◊ÊŸÊ ªÿÊ „ÒU, ß‚Á‹∞ ¬˝Êÿ— ‚÷Ë ¬˝ÊøËŸ •ÊøÊÿÊZ Ÿ ß‚ ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ∑§ •Õ¸ ÿôÊËÿ ∑§◊ÊZ ∑§ ‚¢Œ÷¸ ◊¥ „UË Á∑§∞ „Ò¥. ߟ •ÊøÊÿÊZ ◊¥ ©Ufl≈U (1040 ߸.) •ÊÒ⁄U ◊„UËœ⁄U (1588 ߸.) ∑§ ÷Êcÿ ¬˝◊Èπ M§¬ ‚ ©UÀ‹πŸËÿ „ÒU¢, Á¡ã„UÊ¥Ÿ ‡ÊÈÄ‹ ÿ¡Èfl¸Œ ¬⁄U ÷Êcÿ Á‹π Õ. fl ÷Êcÿ •Ê¡ ÷Ë ©U¬‹éäÊ •ÊÒ⁄U ÁflÁ÷㟠ÁflmÊŸÊ¥ mÊ⁄UÊ SflË∑Χà „Ò¥. ÿ„UÊ¢ Ã∑§ Á∑§ •ÊøÊÿ¸ ©Ufl≈U ∑§Ê ÷Êcÿ Œπ ∑§⁄U „UË •ÊøÊÿ¸ ‚ÊÿáÊ Ÿ ÷Ë ÿ¡Èfl¸Œ ∑§ ÷Êcÿ ¬⁄U •¬ŸË ∑§‹◊ Ÿ„UË¥ ø‹Ê߸ „ÒU. •Ã— ÿ¡Èfl¸Œ ∑§ ¬˝SÃÈà •ŸÈflÊŒ ◊¥ •ÊøÊÿ¸ ©Ufl≈U ∑§ •ŸÈflÊŒ ∑§Ê „UË •ÊœÊ⁄U ’ŸÊÿÊ ªÿÊ „ÒU. ß‚ ◊¥ ¬˝Êÿ— ©Uã„UË¥ •ÕÊZ ∑§Ê •¬ŸÊÿÊ ªÿÊ „ÒU, ¡Ê ©Ufl≈UU ∑§Ê •÷Ëc≈U Õ. •ŸÈflÊŒ ∑§Ë ÷Ê·Ê ‚⁄U‹ ∞fl¢ ‚È’Êœ ⁄UπŸ ∑§Ê ¬˝ÿÊ‚ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU, ÃÊÁ∑§ ‚ÊœÊ⁄UáÊ ¬ÊΔU∑§ ÷Ë Áfl·ÿ ∑§Ê •Ê‚ÊŸË ‚ ‚◊¤Ê ‚∑¥§. ¬˝∑§Ê‡Ê∑§
Áfl·ÿ ‚ÍøË
¬Íflʸœ¸ ¬„U‹Ê •äÿÊÿ ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ øÊÒÕÊ •äÿÊÿ ¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ ¿UΔUÊ •äÿÊÿ ‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ •ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ ¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ ‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ ‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ •ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
31-38 39-45 46-55 56-63 64-73 74-82 83-93 94-106 107-115 116-124 125-139 140-159 160-170 171-180 181-194 195-206 207-223 224-238 239-254 255-269
©UûÊ⁄UÊœ¸ ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ¿Ué’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ •≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ ©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ß∑§ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ’ûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ¬Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ¿UûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ •«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ©ŸÃÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ øÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
270-283 284-291 292-303 304-311 312-321 322-326 327-333 334-343 344-354 355-360 361-364 365-367 368-383 384-394 395-398 399-402 403-407 408-413 414-416 417-419
¬Íflʸœ¸ ¬„U‹Ê •äÿÊÿ ÁflcÊÿ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ SflÊSâÿ •ÊÒ⁄U ‚◊ÎÁh ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê •ÁÇŸ ‚ fl˝Ã‡ÊË‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ ¬⁄U◊‡fl⁄U ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ¡‹ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ÿôÊ ◊¥ ∑§Ê◊ •ÊŸ flÊ‹ ‚ÊäÊŸ ‡Êêÿ ∑§Ê fláʸŸ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ÿôÊ ∑§Ê •Ê‚Ÿ „UÁfl ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê •Ê·ÁœÿÊ¥ ◊¥ ◊äÊÈ⁄UÃÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ’ŸÊŸ ∑§Ë ÁflÁœ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ©Uà‚Ê„Uflœ¸Ÿ ¬˝∑§Ê‡Ê »Ò§‹ÊŸ flÊ‹ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U ‚ÁflÃÊ ∑§Ë SÃÈÁà ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ ◊ÈÁÄà ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊflÁŒ∑§Ê ¬⁄U◊‡fl⁄U ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ªÈáʪʟ •ÁŒÁà Œfl ∑§Ê SflM§¬ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁÃ
◊¢òÊ
¬ÎcΔU
1-2 3-4 5 6-10 11 12-14 15-17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28-29 30 31
31 31-32 32 32-33 33 33-34 34 35 35 35 35 36 36 36 36 36-37 37 37 38 38
1 2
39 39
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ ‚Á◊œÊ ∑§Ë ¬ÁflòÊÃÊ ÿôÊ ¡‹ ∞fl¢ ∑ȧ‡Ê ∑§Ë Áfl‡Ê·ÃÊ
Áfl‡flÊfl‚È ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê •ÁÇŸ ∑§Ë ¬˝◊ÈπÃÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê‚Ÿ ¡È„ÍU ÿôÊSÕÊŸ •ÊÁŒ •ãŸŒÊÃÊ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ ‚ äÊŸ ŒŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ÿôÊ ∑§ ⁄UˇÊ∑§ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ‚ÁflÃÊ •ÊÒ⁄U ’΄US¬Áà ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ ‚Á◊œÊ •ÁÇŸ ∑§Ë ¬Á⁄UÁœ •ÁÇŸ, ߢº˝ •ÊÁŒ ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë fl¢ŒŸÊ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ¡‹œÊ⁄UÊ•Ê¥ ‚ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ÃÎåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ
3 4 5 6 7-9 10 11-12 13 14-16 17 18-28 29-33 34
39 40 40 4 0 40-41 41 41 42 42 42-43 43-45 45 45
1-2 3-19 20-22 23-26 27 28-30 31-33 34 35-36 37-40 41-43 44 45 46-47 48 49 50 51-52 53-56 57-61
46 46-49 49 49-50 50 50-51 51 51 51 51-52 52 52 53 53 53 53 53 54 54 54-55
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ‚ ÁŸflŒŸ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ªÊÿÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ߫∏UÊ ŒflË ∑§ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ê •Êª˝„U ’˝rÊÔáÊS¬Áà Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ Á◊òÊ •ÿ¸◊Ÿ •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ’ÈÁh ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ê •Êª˝„U ’„ÈM§¬Ê •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ªÎ„U ¬˝fl‡Ê ‚¢’¢œË ◊¢òÊ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ¬Ê¬Ê¥ ‚ ◊ÈÄà „UÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ß¢º˝ ∑§Ë SÃÈÁà •fl÷ÎÕ (ÿôÊ ∑§ •¢Ã ◊¥) SŸÊŸ ‚¢’¢œË ◊¢òÊ ŒÁfl¸ ŒflË ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ߢº˝ ÿ¡◊ÊŸ ‚¢flÊŒ ߢº˝ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ Á¬Ã⁄UÊ¥ ‚ ÁŸflŒŸ L§º˝ ∑§Ë SÃÈÁÃ
ÃËŸ •flSÕÊ∞¢ Á‡Êfl ‚ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§Ê◊ŸÊ
62 63
55 55
1-3 4 5 6-7 8-9 10 11 12 13-15 16-18 19 20-23 24 25 26-27 28-30 31-32 33-37
56 56-57 57 57 57-58 58 58 58 59 59-60 60 60-61 61 61 61-62 62 62 63
1 2 3-6 7 8 9 10-13 14 15 16 17
64 64 64-65 65 65-66 66 66-67 67 67 67 67-68
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ ¡‹ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê fláʸŸ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ßë¿UʬÍÁø ∑§ Á‹∞ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ÿôÊ ∑§ ‚¢∑§À¬ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ÿôÊ◊π‹Ê ‚ ™§¡Ê¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ê ÁŸflŒŸ •ÁÇŸ ‚ ÿÊøŸÊ •◊Îà SflM§¬ ¡‹ ’È⁄U ∑§Ê◊Ê¥ ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ÿôÊ ◊¥ •Ê⁄UÊœŸËÿ Œfl •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ◊¢òÊ flÊáÊË ∑§Ê SflM§¬ flʪ˜ ŒflË ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ÁŸflŒŸ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ‚Ê◊ ∑§Ê SflM§¬ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà flL§áÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊, Á◊òÊ fl flL§áÊ •ÊÁŒ ‚ ÿôÊ ◊¥ •ÊŸ ∑§Ê ÁŸflŒŸ
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ‡Ê∑§‹ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ê SflM§¬ ¬ÎâflË ∑§Ë SÃÈÁà ©UûÊ⁄UflÁŒ∑§Ê ∑§Ê SflM§¬ ÿ¡◊ÊŸ •ÊÒ⁄U ÿôÊ ÁflcáÊÈ ∑§ ÃËŸ ¬Ò⁄U ¬ÎâflË ∑§Ê SflM§¬ ŒflªáÊ •ÊÒ⁄U ÿôÊ
ÁflcáÊÈ ∑§Ë SÃÈÁà ‚ÁflÃÊ ‚ ‚„UÊÿÃÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •ÁŸc≈UU∑§Ê⁄UË ¬˝ÿʪʥ ∑§Ê ©UπÊ«∏U »¥§∑§ŸÊ Áfl‡ÊÊ‹ ªÃ¸ ∞fl¢ ÁflcáÊÈ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ªÍ‹⁄U ∑§Ë ‹∑§«∏UË ‚ ‚ÎÁc≈UU ÁflSÃÊ⁄U ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ’˝rÊÊÔ‚Ÿ ∑§Ê SflM§¬ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ‚ÁflÃÊ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∞fl¢ ©UŸ ∑§Ê SflM§¬ ÿͬflÎˇÊ ∑§Ë SÃÈÁà ∞fl¢ SflM§¬
18-21 22 23 24-25 26 27-28 29-30 31-32 33 34-38 39 40-41 42-43
68 68-69 69 69 69-70 70 70 70-71 71 71-72 72 72-73 73
1-2 3-5 6 7 8 9 10-12 13-15 16 17-19 20 21 22 23 24 25 26-36 37
74 74-75 75 75 75 75-76 76 76-77 77 77-78 78 78-79 79 79 79 79 79-81 82
¿UΔUÊ •äÿÊÿ ÿôÊ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ë ◊„UûÊÊ ÁflcáÊÈ œÊ◊ ∑§Ê ÁŸM§¬áÊ ÿôÊ ∑§Ë ‚fl¸√ÿʬ∑§ÃÊ ‚fl¸ªÈáÊ ‚¢¬ãŸ àflc≈UÊ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ◊ÈÁÄà ‚¢ÃÈÁc≈U ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ÿôÊ ∞fl¢ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ë SÃÈÁà •Êø⁄UáÊ ‡ÊÈÁh ∑§Ê •Êª˝„U àÿʪ „ÈU∞ ÃÎáÊ ∑§Ë ÁŸ¢ŒÊ ÿÊ¡∑§ •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸ •¢ª•¢ª ◊¥ ߢº˝ ∑§Ë √ÿʬ∑§ÃÊ „UÁfl ∑§ ÁflSÃÊ⁄U ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ flL§áÊ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§Ë ßë¿UÊ „UÁfl ∑§Ë üÊcΔUÃÊ •ÁÇŸ ∑§Ë ◊„UûÊÊ ÿôÊ ∑§Ë ‚»§‹ÃÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ¡‹, •ÁÇŸ ÃÕÊ ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁÃÿÊ¢ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁÃ
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊ ÃÕÊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ߢº˝ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ߢº˝ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ‚È÷fl ∑§Ê Sflÿ¢ ¬˝∑§Ê‡Ê flÊÿÈ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ •ÊÒ⁄U flÊÿÈ ‚ ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§Ê •Êª˝„U Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ ∑§Ë SÃÈÁà •Á‡flŸË ŒflÊ¥ §∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ߢº˝ ∑§ ªÈáÊÊ¥ ∑§Ê fláʸŸ ‚Ê◊ ∑§Ë ‡ÊÁÄà ߢº˝ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ¬˝‚ãŸÃÊŒÊÿ∑§ ¡‹ fl·Ê¸ ‚Ê◊ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ üÊcΔU ‚¢ÃÊŸ •ÊÒ⁄U œŸ ∑§ Á‹∞ Œfl ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ÁŒ√ÿ Œfl ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ª˝„UÊ¥ ∑§Ê •Ê◊¢òÊáÊ ‚fl¸‚¢ÃÊ· ∑§Ê⁄U∑§ ‚Ê◊⁄U‚ ŒËÉʸ ¡ËflŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ ‚Ê◊¬ÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê œ˝Èfl ŸÊ◊ ‚ ¬˝Á‚h ‚Ê◊ flø¸Sfl ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚fl¸√ÿÊ¬Ë ‚Ê◊ ‚Ê◊ ∑§Ê ª˝„UáÊ Áfl‡fl Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ‚Ê◊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ߢº˝ fl ◊L§ŒÔ˜ Œfl ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà ¡‹ ’⁄U‚ÊŸ flÊ‹ ◊L§Œ˜ªáÊ ß¢º˝ ∑§Ë ◊„UÊŸÃÊ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ‚fl¸ôÊÃÊ Á◊òÊ Œfl ∑§Ê fláʸŸ •ÁÇŸ §∑§Ë SÃÈÁà Œfl∑Χ¬Ê ∑§Ê◊ŸÊ ∑§Ê ◊„UUûfl
1-3 4 5 6 7 8 9-10 11 12-13 14 15 16 17 18 19 20 21 22-23 24 25-26 27-28 29 30-32 33-34 35 36-37 38 39-40 41 42 43-44 45-46 47-48
83 83 83-84 84 84 84 84-85 85 85 85-86 86 86 86 86 86-87 87 87 87-88 88 88 88-89 89 89-90 90 90-91 91 91 91-92 92 92 92-93 93 93
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ÁflcáÊÈ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ߢº˝ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄U∑§ •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ‚Èπ ∑§ Á‹∞ ‚ÁflÃÊ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà ¬Ê¬ ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ÿÊøŸÊ flø¸Sfl ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ÁflÃÊ Œfl §∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ‚Ȫ◊ ÿôÊ ‚ŒŸ •ÁÇŸ ‚ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‡ÊÈh flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ÿôÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà flL§áÊ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ •‚È⁄UÊ¥ ‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà ª÷¸ ∞fl¢ ¡⁄UÊÿÈ ∑§Ë ¬ÍáʸÃÊ ∞fl¢ ÁflÁflœÃÊ ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà flø¸SflflÊŸ •ÁÇŸ ߢº˝ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà ◊Á„U◊ʇÊÊÁ‹ŸË ŒflË ∑§Ë SÃÈÁà ªÊflœ ÁŸ·œ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà flÊøS¬Áà ∑§Ë SÃÈÁà Áfl‡fl∑§◊ʸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ‚Ê◊ ∑§Ê fláʸŸ ªÊÿÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ¬‡ÊÈ fl •ãŸÊÁŒ ∑§Ë ÿÊøŸÊ
1 2 3-5 6-7 8-12 13 14-16 17 18 19-20 21 22 23 24 25-27 28-30 31-32 33-37 38 39-41 42 43 44 45 46 47-50 51 52 53 54-61 62 63
94 94 94-95 95 95-96 96 96-97 97 97 97 97 97-98 98 98 98-99 99 99 99-100 100-101 101 102 102 102 102 102-103 103 103-104 104 104 104-106 106 106
1
107
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁÃ
‚Ê◊ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ¬ÊòÊ ∑§Ê fláʸŸ „UÁflcÿÊ㟠‚ ¬Íáʸ ⁄UÕ ∑§Ë SÕʬŸÊ ÿôÊ flÎÁh ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ’‹flÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ê fláʸŸ ‚àÿ◊ʪ¸ ∑§ ¬˝⁄U∑§ ‚ÁflÃÊ Œfl §∑§Ë SÃÈÁà ’΄US¬Áà ∑§Ë Áfl¡ÿ ∑§Ê◊ŸÊ ÿÈh ◊¥ Áfl¡ÿ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚Èπ ∞fl¢ •ÊÿÈ flÎÁh ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ¬ÎâflË ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ‚Ê◊ ∑§Ê ⁄UÊ¡àfl ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ßë¿UʬÍÁø ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ÁflÁ÷㟠Áfl¡ÿÊ¥ ∑§Ê fláʸŸ ŒflÊ¥ •ÊÒ⁄U ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •ÁÇŸ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê „U⁄UÊŸ ∑§Ê ÁŸflŒŸ ‚Èπ ∞fl¢ ‚◊ÎÁh ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ
2-4 5 6 7-9 10 11-12 13-19 20-21 22 23 24-27 28 29 30-34 35-36 37 38-40
107-108 108 108 108-109 109 109-110 110-111 111 111-112 112 112 113 113 113-114 114-115 115 115
1-4 5 6 7-8 9-15 16 17 18 19 20 21-22 23 24-25 26 27-28 29
116-117 117-118 118 118 118-120 120 120 120 120-121 121 121 121 122 122 122 122-123
ŒU‚flÊ¢ •äÿÊÿ ⁄UÊc≈U˛ŒÊÿË ¡‹ ∑§Ë ◊„UûÊÊ ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊¬¸áÊ ∑ȧ‡ÊÊ¥ ∑§Ë ¬ÁflòÊÃÊ ¡‹ ∑§Ë SÕʬŸÊ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ ∑§Ë SÃÈÁà ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê •Á÷·∑§ ‡ÊÁÄà ¬˝ÊÁåà ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ¡‹œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§Ê fláʸŸ ¬˝¡Ê¬Áà ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ߢº˝ Œfl ‚ ôÊÊŸ ¬˝ÊÁåà ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •Ê„ÈUÁà ‚◊¬¸áÊ ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë SÃÈÁà ‚ÈπŒÊÿË •Ê‚Ÿ fl˝ÃœÊ⁄UË ÿ¡◊ÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê fláʸŸ
¬˝⁄UáÊÊŒÊÿ∑§ Œfl „UÁfl ∑§Ë ¬Á⁄U¬ÄflÃÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ¬˝¡Ê ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊ ª˝„UáÊ ß¢º˝ ⁄UˇÊ∑§ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U
30 31 32 33-34
123 123 123 123-124
1-11 12 13 14 15-38 39 40-49 50-52 53 54-55 56-57 58-61 62 63-65 66 67 68-69 70-83
125-127 127 127 127 127-131 131 131-133 133 133-134 134 134 134-136 136 136 136-137 137 137 137-139
1-3 4 5-11 12 13-44 45 46
140 140-141 141-142 142 142-147 147 147
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ¬È⁄UÊÁ„Uà •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ‹Ê÷ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ߢº˝ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ flÊÁ¡Ÿ ÃÕÊ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∞fl¢ ◊Á„U◊Ê ¬ÎâflË ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê •ÊÒ⁄U SÃÈÁà ¡‹ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË •ÁÇŸ L§º˝ªáÊÊ¥ mÊ⁄UÊ ¬ÎâflË ∑§Ë ⁄UøŸÊ Œfl◊ÊÃÊ Á‚ŸËflÊ‹Ë ŒflË ©UπÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∞‡flÿ¸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ©πÊ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊¬¸áÊ ¬⁄U◊‡fl⁄U ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊¬¸áÊ ©UπÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ¬⁄UÊ∑˝§◊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁÃ
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê fláʸŸ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U •ÁÇŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ’¢œŸ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ flL§áÊ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •ÁÇŸ ∑§Ê ¡ã◊ ∞fl¢ ÁflSÃÊ⁄U ÿ◊ŒÍÃÊ¥ ‚ •Êª˝„U ©U·Ê ŒflË ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ
•ÁÇŸ ∑§Ê flø¸Sfl SflÁª¸∑§ ¡‹ ‚ ‡ÊÊ÷Êÿ◊ÊŸ ‚Ê◊ flÊáÊË ÁflSÃÊ⁄U ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ©UπÊ ∑§Ë ◊ÈÁÄà ∑§Ê◊ŸÊ ÁŸ´¸§Ã ŒflË ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà „U‹ ¡Êß ∑§ Á‹∞ Á∑§‚ÊŸÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ߸‡fl⁄U ‚ ∑Χ¬Ê ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •Ê·Áœ fláʸŸ ¬˝Õ◊ ¡ã◊Ê ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ¬ÎâflË ∑§Ë SÃÈÁà ’„ÈUªÈáÊË •ÁÇŸ ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁÃ
47-54 55 56 57 58-60 61 62-65 66-67 68-72 73 74 75-101 102 103 104-111 112-113 114-117
148-149 149 149 149 149-150 150 150-151 151 151-152 152 152 152-156 156 156 156-158 158 158-159
1 2-5U 6-8 9-16 17-19 20-21 22-23 24 25 26-29 30-32 33 34-35 36-54 55-58
160 160-161 161 161-162 162-163 163 163 163-164 164 164 164-165 165 165 165-169 169-170
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ‚ÎÁc≈U ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ∞fl¢ Áfl∑§Ê‚ ‚¬ÊZ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ŒflË ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ŒÍflʸ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝, •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ’΄US¬Áà ∑§Ë SÃÈÁà ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë SÃÈÁà ¬Ê⁄US¬Á⁄U∑§ ‚„Uÿʪ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ¬˝∑ΧÁà ◊¥ ◊ÊœÈÿ¸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ∑ͧ◊¸ ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ÁflcáÊÈ ∞fl¢ ߢº˝ ∑§Ë ∞∑§ÃÊ ©UπÊ ∑§Ê fláʸŸ •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ÁflÁ÷㟠©Uà¬ÁûÊÿÊ¢
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ ßc≈U∑§Ê•Ê¥ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ∞fl¢ ◊Á„U◊Ê 1-8 ¬˝¡Ê¬Áà mÊ⁄UÊ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ‚ ◊Íäʸãÿ ’˝ÊrÊÔáÊÊ¥ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ 9 ¬˝¡Ê¬Áà mÊ⁄UÊ ¡ÊŸfl⁄UÊ¥ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ 10 ßc≈U∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ 11 ßc≈U∑§Ê ∑§Ë SÃÈÁà 12-14 ◊Ê‚ fláʸŸ 15 ßc≈U∑§Ê ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ 16-27 ÁflÁ÷㟠Œfl‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ 28-31
171-173 173 173-174 174 174 175 175-178 178-180
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ‚ ‡ÊòÊÈ ∑§ ŸÊ‡Ê ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ •ÁÇŸ ∑§Ë SÕʬŸÊ ‚àÿ ∑§ Á‹∞ ⁄UÁ‡◊ÿÊ¥ ∑§Ê ¬˝øÊ⁄U¬˝‚Ê⁄U ßc≈U∑§Ê ∑§Ë SÃÈÁà ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ Áfl‡fl∑§◊ʸ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ê fláʸŸ •ÁÇŸ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∞fl¢ SflM§¬ ÁŸM§¬áÊ ß¢º˝ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ¬⁄U◊ ßc≈UU „ÒU
1 2-3 4-5 6 7-14 15 16 17 18-60 61 62-65
181 181 181-182 182-183 183-185 185 185 186 186-193 193 193-194
1-5 6 7-16 17-46 47-64 65-66
195 195-196 196-197 197-203 203-206 206
1-16
207-209
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ L§º˝ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ÃÕÊ fláʸŸ ÁflÁ÷㟠ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ »Ò§‹Ë ‡ÊÁÄÃÿÊ¢ L§º˝ Œfl ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ L§º˝ Œfl fl ªáʬÁà •ÊÁŒ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ L§º˝ Œfl ∑§Ê SflM§¬ ÁŸM§¬áÊ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ ‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§ Á‹∞ ∑§Ê◊ŸÊ
632@1
¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ∞fl¢ Áfl∑§Ê‚ Áfl‡fl∑§◊ʸ ∑§Ë SÃÈÁà ¬⁄U◊ Ãûfl ∑§Ë ÁflfløŸÊ ߢº˝ ∑§Ë flË⁄UÃÊ ’΄US¬Áà Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ߢº˝ fl flL§áÊ •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§Ê ¬⁄UÊ∑˝§◊ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ‚ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§Ê◊ŸÊ ÿôÊ ∑§Ë ◊„UûÊÊ ‚Íÿ¸ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∞fl¢ ©U¬Ê‚ŸÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ÿôÊ ◊¥ ŒflÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ê SflM§¬ ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ë ‚ŸÊ ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁÃ
17-21 22-23 24-32 33-35 36 37-49 50 51 52-55 56-57 58-60 61-64 65-73 74 75-77 78 79-85 86 87-98 99
209-210 210-211 211-212 212-213 213 213-215 215 215 215-216 216 216-217 217 217-219 219 219 220 220-221 221 221-223 223
1-27 28 29 30-34 35-38 39-40 41-43 44-45 46-48 49 50 51-57
224-230 230 230 230-231 231-232 232 232-233 233 233-234 234 234 234-235
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ÿôÊ ∑§ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ÁflÁ÷㟠◊„UËŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊¬¸áÊ Œflàfl ¬˝ÊÁåà ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ¬ÎâflË ÃÕÊ ¬˝∑ΧÁà ∑§Ë •ŸÈ∑ͧ‹ÃÊ „UÃÈ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •ÁÇŸ ∞fl¢ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ∑Χ¬Ê ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ‚Íÿ¸ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ª¢œflÊZ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ Ã¡ÁSflÃÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ flL§áÊ Œfl ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁÃ
¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ’„ÈUM§¬Ê •ÁÇŸ ‡ÊòÊÈ ÁflŸÊ‡Ê ∑§ Á‹∞ ߢº˝ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ Áfl‡fl ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ
58-60 61-67 68-71 72-77
235-236 236-237 237 237-238
1 2 3 4-5 6 7-9 10 11 12 13-16 17-20 21-23 24-25 26-31 32-35 36-37 38-42 43-44 45-47 48 49-51 52-54 55-63 64-70 71 72-79 80-93 94 95
239 239 239 239-240 240 240 240-241 241 241 241 242 242-243 243 243-244 244-245 245 245-246 246 246 246-247 247 247-248 248-249 249-250 250 250-252 252-254 254 254
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ •Ê·œ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊ Á‚¢øŸ ߢº˝ ‚πÊ flÊÿÈ ∑§Ë ‡ÊÈhÃÊ ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà Á∑§‚ÊŸ •ÊÒ⁄U •ãŸ ‚Ê◊ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‡ÊÁÄà ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ‚Ê◊ ∑§Ê SflM§¬ ÿôÊ fl ∑ȧ‡ÊÊ •ÊÁŒ ‚ ¬˝ÊÁåà œÊŸ fl ‹¬‚Ë •ÊÁŒ ‚Ê◊ ∑§Ê M§¬ „Ò¥U ´§øÊ•Ê¥ ∑§ ÁflÁflœ M§¬ ÿôÊ ∑§ ÁflÁ÷㟠•flÿflÊ¥ ‚ ¬˝ÊÁåÃÿÊ¢ ‚Ê◊ ÁŸM§¬áÊ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬ÁflòÊ SflM§¬ ‚ÁflÃÊ fl Áfl‡fl ŒflË •ÊÁŒ ‚ ¬ÁflòÊÃÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ Á¬ÃÎ ∞fl¢ Œfl ◊ʪ¸ ’…∏ÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ⁄UˇÊÊ ∞fl¢ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ Á¬ÃÎ fl¢ŒŸÊ ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁà Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊ •ÊÁŒ ‚ ©U¬‹ÁéœÿÊ¢ ß◊Ÿ ∑§ ÁflÁflœ •flÿflÊ¥ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ‡ÊÁÄÃflœ¸∑§ ‚Ê◊⁄U‚
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ flÁŒ∑§Ê SflM§¬ ÁŸM§¬áÊ ’‹ fl ¬ÈL§·ÊÕ¸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ŒflÊ¥ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ¬⁄US¬⁄U ‚¢ÿÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ¬Ê¬Ê¥ ‚ ◊ÈÁÄà ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ¡‹ ‚¢ø⁄UáÊ ’…∏ÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ‚ ÿÊøŸÊ ôÊÊŸ◊ÿ ‹Ê∑§ ¬ÊŸ ∑§Ë ßë¿UÊ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ⁄U‚ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà ◊L§ŒÔ˜ªáÊ ∑§Ë SÃÈÁà •äflÿȸ ∑§Ë SÃÈÁà ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ •Áœ¬Áà ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ •Ê·Áœ M§¬ ⁄U‚ flÎòÊ„¢UÃÊ ß¢º˝ ©U·Ê ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ߢº˝ ∑§Ë SÕʬŸÊ ÁflÉŸ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÃËŸ ŒÁflÿÊ¥ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ àflc≈UÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ߢº˝ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ‚Á◊œÊ ‚ •ÁÇŸ ¬˝Öfl‹Ÿ ß ⁄UˇÊ∑§ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •Ê·Áœ ‚ ÿÈÄà ‚Ê◊⁄U‚ ‚⁄USflÃË ∑§ ◊Êäÿ◊ ‚ ߢº˝ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ‚⁄USflÃË mÊ⁄UÊ ‚Ê◊ ∑§Ê „U⁄UáÊ ‚⁄USflÃË mÊ⁄UÊ Sflª¸ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ߢº˝ ∑§ Á‹∞ Áfl‡Ê· ’‹ ∑§Ê ‚◊ÿ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ÁòÊŒfl ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •Ê·Áœ ‚ ÿÈÄà ‚Ê◊ ◊œÈ⁄U ⁄U‚ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ‚⁄USflÃË mÊ⁄UÊ Ÿ◊ÈÁø ‚ „UÁfl ¬˝Êåà ∑§⁄UŸÊ ‚⁄USflÃË ÃÕÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ mÊ⁄UÊ ß¢º˝ ∑§Ê „UÁfl •¬¸áÊ ß¢º˝ mÊ⁄UÊ „UÁfl¬Áà ∑§Ë ⁄UˇÊÊ
1-4 5-10 11 12-13 14-17 18-22 23-24 25-26 27-28 29 30 31 32 33-35 36-40 41 42 43 44 45-54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64-65 66-68 69 70
255 255-256 256-257 257 257-258 258 259 259 259 259-260 260 260 260 260 260-261 261 261-262 262 262 262-264 264 264 264 264 264 264 265 265 265 265 265-266 266 266
ߢº˝ mÊ⁄UÊ Ÿ◊ÈÁø ‚ ⁄UˇÊÊ flL§áÊ Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ mÊ⁄UÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ∑§Ë flÎÁh ŒflÊ¥ ‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ mÊ⁄UÊ ‚Ê◊ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ÿôÊ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ
71 72 73 74 75-77 78-79 80-83 84-86 87-90
266 266 266 266-267 267 267 268 268 268-269
1-2 3-4 5-6 7-11 12-15 16-28 29-56 57-58 59-60 61
270 270 270-271 271-272 272 272-274 274-282 282 282 283
1 2 3-4 5 6-8 9-14 15-19 20 21
284 284 284 284-285 285-286 286 286-287 287-288 288
©UûÊ⁄UÊœ¸ ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ flL§áÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ •ÁÇŸ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà •ÁŒÁà ŒflË ∑§Ë SÃÈÁà ÃÕÊ •ÊuÔUÊŸ Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ’‹ ∞fl¢ •ÊÿÈ flÎÁh ∑§Ë ÿÊøŸÊ ‚fl¸ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ŒflªáÊÊ¥ mÊ⁄UÊ ¬⁄UÊ∑˝§◊ œÊ⁄UáÊ ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ê ‚Ê◊ ∑§Ë ÷¥≈U ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ áÊ◊ÿ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ÿôÊ ‚ ôÊÊŸ ∑§Ë flÎÁh •ÁÇŸ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„È¢UøŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U ∑§ Á‹∞ •Á÷·∑§UU ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∞fl¢ fl¢ŒŸÊ ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ŸÊÿ∑§
’˝ÊrÊÔáÊÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∞fl¢ ∑§◊ÊZ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ
22 23-34
288 288-291
1 2-4 5 6-8 9-12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26-27 28 29 30-31 32 33-37 38 39-44 45-48 49-50 51-52 53-65
292 292-293 293 293 293-294 294 294 294-295 295 295 295 295-296 296 296 296 296 296 296 297 297 297 297-298 298 298-299 299 299-300 300 300-301 301 301-303
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ¬⁄U◊Êà◊Ê •ÊÒ⁄U ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ÿôÊ ∑§ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê ‚¢ÿÊ¡Ÿ ÿôÊ M§¬Ë •‡fl ’˝rÊÔÊ „UÊÃÊ ‚¢flÊŒ •ÁÇŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ÿôÊ M§¬Ë ⁄UÕ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ÿôÊ ™§¡Ê¸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ë •Ÿ‡fl⁄UÃÊ Áfl¡ÿ ∑§ Á‹∞ ™§¡Ê¸ •¢’Ê ∑§Ë SÃÈÁà ªáʬÁà ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ÿôÊ ‡ÊÁÄà •ÊÒ⁄U Œfl ‡ÊÁÄà ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê Œ◊Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ¡‹ ÿôÊ ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ÁŸ⁄UÕ¸∑§ ’ÊÃ¥ Ÿ ∑§⁄¥U ¬Ífl¸¡Ê¥ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§◊ ’Ê‹Ÿ ∑§Ë ‚‹Ê„U ⁄UÊc≈˛ ∑§ Á‹∞ ¬˝¡Ê¬Áà ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ¬Ê¬ ÷Œ∑§ ÿôÊÊÁÇŸ ¬⁄U◊ÊŸ¢ŒŒÊÿË ªÁÃÁflÁœÿÊ¢ •¬ŸË „UÊÁŸ ‚ ŒÈ—π ÿôÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ÿôÊÊÁÇŸ ∑§Ë ‡ÊÊ¢Áà ‚Ê◊ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ‚ÈπŒÊÃÊ ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ’˝rÊÔÊ „UÊÃÊ ‚¢flÊŒ ÁflcáÊÈ ∑§ ÃËŸ ¬Ò⁄U ¬¢ø◊„UÊ÷ÍÃÊ¥ ◊¥ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê ⁄U◊áÊ ’˝rÊÔÊ „UÊÃÊ ‚¢flÊŒ
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÁflÁ÷㟠ŒflË ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •‹ª•‹ª ¡Ëfl ¡¢ÃÈ
1-40
304-311
1 2-3 4-6 7-9 10-13 14-22 23 24 25-26 27-28 29 30 31-34 35-37 38-41 42 43-45 46-47
312 312-313 313-314 314 315 315-317 317 317 317 317-318 318 318 318-319 319 319-320 320 320-321 321
1-2 3 4-5 6-9 10-11 12-13 14 15 16-19
322 322-323 323 323-324 324 324 324-325 325 325
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÁflÁ÷㟠•¢ªÊ¥ ‚ ŒflË ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ •ÁSÕ •ÊÒ⁄U Œfl ‡ÊÊ⁄UËÁ⁄U∑§ •¢ªÊ¥ ‚ ŒflÊ¥ ∑§Ê ‚¢’¢œ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§ÀÿÊáÊ fl ⁄UˇÊÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ÎÁc≈U ∑§Ë •Ÿ‡fl⁄UÃÊ ŒflÊ¥ ∑§Ê ¬⁄UÊ∑˝§◊ ÿôÊ ∑§Ê Á¬˝ÿ ¬ŒÊÕ¸ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ÿôÊ ‚ ßÁë¿Uà ©UŒÔ˜Œ‡ÿÊ¥ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ÿôÊ ∑§ Á„Uà ‚Êœ∑§ ∑§Êÿ¸ ÿôÊ ¬‡ÊÈ ¬⁄U ÁŸÿ¢òÊáÊ ÿôÊ ¬‡ÊÈ ∑§ •¢ª ŒflÊ¥ ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ë ¬Á⁄U¬ÄflÃÊ ÿôÊ ∑§ •‡fl ∑§Ê √ÿfl„UÊ⁄U ∞fl¢ o΢ªÊ⁄U ∑§Ê‹ªÃ Áfl÷Ê¡Ÿ •‡fl ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ ÃÕÊ •ãÿ ŒflÊ¥ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ
¿Ué’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ‚ •ŸÈ∑ͧ‹ÃÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ’΄US¬Áà Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ߢº˝ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ‚ •ãŸ fl ’‹ ∑§Ë ÿÊøŸÊ ÿôÊ ÁflSÃÊ⁄U ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ’˝ÊrÊÔáÊÊ¥ ◊¥ ’ÈÁh ‚Ê◊ ∑§Ë SÃÈÁÃ
•ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸÊ Œfl ¬ÁàŸÿÊ¥ ‚ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ◊ŒŒÊÿË fl ⁄UˇÊ∑§ ‚Ê◊
20-22 23 24 25-26
325-326 326 326 326
1-7 8-9 10 11-24 25-26 27-34 35-41 42-45
327-328 328 328 329-330 330-331 331-332 332-333 333
1-6 7 8 9 10 11 12-13 14-18 19 20 21 22 23 24-46
334-335 335 335 335 336 336 336 336-337 338 338 338 338 338-339 339-343
1-3
344
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ’΄US¬Áà Œfl ÃÕÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ‚Íÿ¸ ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ©UŸ ∑§Ë ÁŒ√ÿ ŒÁflÿÊ¥ ∑§Ê •Ê±ÔflÊŸ ¡‹ ∑§Ë •¬Ê⁄UÃÊ flÊÿÈ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ ߢº˝ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ÃËŸ ŒÁflÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ àflc≈UÊ Œfl ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ªÊŸ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÃÊ flŸS¬Áà Œfl ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ ß¢º˝ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê◊ŸÊ ©U·Ê ŒflË •ÊÒ⁄U ⁄UÊÁòÊ ŒflË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ߢº˝ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê◊ŸÊ flŸS¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ flÒ÷fl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê◊ŸÊ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê◊ŸÊ •ÁÇŸ mÊ⁄UÊ „UÊÃÊ ∑§Ê fl⁄UáÊ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ߢº˝ •ÊÁŒ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁÃ
•ÁŒÁà ∑§Ë Áfl‡ÊÊ‹ÃÊ ⁄UÊÁòÊ •ÊÒ⁄U ©U·Ê ŒflË ∑§Ê fláʸŸ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U flÊÿÈ ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ÷Ê⁄UÃË ŒflË ‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ àflc≈UÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê◊ŸÊ flŸS¬Áà Œfl ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •ª˝ªÊ◊Ë •ÁÇŸ ◊ÉÊ Œfl ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ß¢º˝ Œfl ∑§Ê ⁄UÕ ◊ÉÊ Œfl ∑§ ÃËŸ ’¢œŸ flÊÿÈ ∑§Ë SÃÈÁà •fl¸Ÿ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑ȧ‡ÊÊ¥ ∑§Ê ‚ÈπÊ‚Ÿ ÁŒ√ÿ mÊ⁄U flÊ‹Ë ŒÁflÿÊ¢ ÁŒ√ÿ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ŒÁflÿÊ¢ Áfl⁄UÊ≈˜U ÿôÊ ∑§ ŒÊ ÁŒ√ÿ „UÊÃÊ ÃËŸ ŒÁflÿÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ àflc≈UÊ Œfl ∑§Ê ¬Í¡Ÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ‚ ÁŸflŒŸ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà flË⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ Áfl¡ÿ ∑§Ê◊ŸÊ ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ŒflÊ¥ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ’ÊáÊÊ¥ ‚ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§Ê◊ŸÊ øÊ’È∑§, ⁄UÕ fl ŒÈ¢ŒÈÁ÷ •ÊÁŒ ÿÈh ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê fláʸŸ ÁflÁ÷㟠ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ‚¢’¢œ
4-5 6 7 8 9 10 11 12 13 14-17 18 19-24 25-28 29 30 31 32 33 34 35 36-37 38-46 47 48 49-57 58-60
344 345 345 345 345 345 345 346 346 346 347 347-348 348 348 349 349 349 349 349 349 349-350 350-351 351 351 351-353 353-354
1-4 5 6-22
355 355 355-360
1-3
361
ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà øÊ⁄UÊ¥ fláÊÊZ ∑§ ∑§Ã¸√ÿ ©U¬ÿÈÄà ‚¢’¢œÊ¥ ∑§Ë ÁflfløŸÊ
ß∑§ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê fláʸŸ
¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ ÃËŸ ¬Ò⁄U Áfl⁄UÊ≈˜U ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ¬ÎâflË ÃÕÊ •ãÿ ¡ËflÊ¥ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ‚ ßë¿UÊ ¬ÍÁø ∑§⁄UŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ
4 5-7 8-18 19 20-22
361 361-362 362-363 363-364 364
1-6 7 8-14 15 16
365-366 366 366-367 367 367
1-17 18 19 20 21 22-30 31 32 33 34 35 36-44 45-54 55 56 57 58 59 60-61
368-370 371 371 371 371 371-373 373 373 373 373 373 373-375 375-376 376-377 377 377 377 377 377
’ûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê fláʸŸ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ë ‡ÊÁÄà ¬⁄UU◊ ¬ÈL§· ∑§Ë √ÿʬ∑§ÃÊ ∞fl¢ •◊⁄UÃÊ ’ÈÁh ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ’˝rÊÔôÊÊŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà •ÊÒ⁄U ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ªÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§Ê äÿÊŸ ÿôÊ ⁄UˇÊ∑§ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ üÊcΔU ∑§Êÿ¸ „UÃÈ ŒflÊ¥ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ Sflª¸ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§Ê¥ ∑§ ‚¢⁄UˇÊ∑§ ‚Ê◊ ߢº˝ ∑§Ê ªÈáʪʟ ‚fl¸ ¬˝∑§Ê‡Ê∑§ ‚Íÿ¸ ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§Ãʸ flL§áÊ ÁŒ√ÿ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚ÁflÃÊ ‡ÊòÊȟʇÊË ß¢º˝ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ◊„UÊŸÃÊ ß¢º˝, flÊÿÈ, •ÁÇŸ fl ’΄US¬Áà •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ flÒ÷fl‡ÊÊ‹Ë ¬È⁄UÊÁ„Uà ߢº˝ ‚ ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§Ê •Êª˝„U Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ ∑§Ê äÿÊŸ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ ‚Ê◊¬ÊŸ ∑§Ê •Êª˝„U üÊcΔ fláÊ˸ÿ ◊¢òÊÊ¥ ‚ ŒflSÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ê ªÈáʪʟ
‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ‚ ‚¢’ÊœŸ Uߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà ‚È◊Áà ∑§ Á‹∞ •ÊÁŒàÿ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ÉÊ⁄UÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§ Á‹∞ ¬È⁄UÊÁ„Uà ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ÿôÊ ∑§Ë ¬ÍáʸÃÊ ∑§ Á‹∞ ŒflÊ¥ ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ÿôÊ ∑§§Á‹∞ ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ‚Ê◊ ∑§Ë ¬ÁflòÊÃÊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ∑§Ê fl⁄UáÊ ß¢º˝ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ flÊÿÈ Œfl ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ߢº˝ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ •Êª◊Ÿ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ø◊∑§ŒÊ⁄U ‚Ê◊ Œfl ’ÈÁh ∑§ ŒflÃÊ ∑§Ê „UÁfl ŒŸÊ flÒ‡flÊŸ⁄U ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ¬Ò⁄U ⁄UÁ„Uà ©U·Ê ŒflË ∑§Ë ªÁà flÒÒ÷fl ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ Œfl fl¢ŒŸÊ ߢº˝ •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê
62 63-67 68 69 70-71 72 73 74 75 76-83 84 85 86-87 88-89 90 91 92 93 94 95-97
378 378 378-379 379 379 379 379 379 379-380 380-381 381 381 381 382 382 382 382 382 382-383 383
1-6 7 8-9 10 11 12-15 16-19 20-23 24-25 26 27 28-30 31
384-385 385 385 385 385 385-386 386-387 387-388 388 388 388 388-389 389
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚¢∑§À¬Ê¥ ∑§Ë •ÊœÊ⁄UÁ‡Ê‹Ê ◊Ÿ ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà •ŸÈ◊Áà ŒflË ‚ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ Á‚ŸËflÊ‹Ë ŒflË ¬Ê¢ø M§¬Ê¥ flÊ‹Ë ‚⁄USflÃË ¬˝Õ◊ ¬Í¡ŸËÿ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ߢº˝ ∑§Ë SÃÈÁà ‡ÊòÊÈ¡ÿË ‚Ê◊ ∑§Ê fláʸŸ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ‚Íÿ¸ Œfl ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ ÿôÊSÕ‹Ê¥ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê
⁄UÊÁòÊ ŒflË ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ©U·Ê ŒflË ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ¬˝Ê×∑§Ê‹ ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ÷ª Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ‚Íÿ¸ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ œŸflÊŸ „UÊŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ÷ª Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ¬˝÷Êà fl‹Ê ‚ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§Ê◊ŸÊ ¬Í·Ê Œfl ‚ ’ÈÁh ∑§Ê üÊcΔU ∑§ÊÿÊZ ◊¥ ‹ªÊŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ÁflcáÊÈ mÊ⁄UÊ Áfl‡fl œÊ⁄UáÊ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ŒflÊ¥ ‚ ‡ÊòÊÈ ¬⁄UÊ¡ÿ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ‚Á„Uà •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ •ÊŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ◊L§ŒÔ˜ªáÊÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ÁŒ√ÿ ‚ÎÁc≈ Sfláʸ◊ÿ äÊŸ Áø⁄UÊÿÈ ∑§Ê◊ŸÊ ‚ ⁄UˇÊÊ ’¢œŸ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ Áfll◊ÊŸ ‚Êà ¬˝ÊáÊ fl ‚Êà ´§Á· Œflàfl œÊ⁄UáÊ ∑§ Á‹∞ ’˝rÊÔáÊS¬Áà ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ◊¢òÊÊ¥ ◊¥ ŒflÊ¥ ∑§Ê flÊ‚ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ÁŸÿ¢òÊ∑§ ŒflªáÊ
32 33 34-35 36 37 38-39 40 41-42 43-44 45 46 47 48 49U 50-51 52 53-54 55 56 57 58
389 389 389-390 390 390 390 390 391 391 391 391 391-392 392 392 392 392 393 393 393 393 394
Œfl¬ÈòÊÊ¥ ∑§Ê ‹Ê∑§ 1-3 ¬Ë¬‹ •ÊÒ⁄U ¬‹Ê‡Ê flΡÊÊ¥ ¬⁄U flÊ‚ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ 4 ‚ÈπŒÊÿË ¬ÎâflË ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ 5 ¬˝¡Ê¬Áà ‚ ¡‹œÊ⁄UÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ 6 ◊ÎàÿÈ ∑§Ê ¬Õ 7 ‚fl¸∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ∑§Ê◊ŸÊ 8-10 ¬Ê¬∑§◊ÊZ ∑§Ê ŒÍ⁄U „U≈UÊŸ ∑§Ê •Êª˝„U 11 ¡‹ ∞fl¢ •Ê·ÁœÿÊ¥ ‚ ◊ÒòÊË 12 ’¿U«∏U ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ 13 ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÿ Sflª¸‹Ê∑§ 14 ◊ÿʸŒÊ M§¬Ë ¬Á⁄UÁœ 15
395 395 395 395-396 396 396 396 396-397 397 397 397
¬Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ¬ÎâflË ŒflË ‚ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ
16-20 21 22
397-398 398 398
1 2 3-4 5-7 8 9-11 12-16 17 18-19 20 21-22 23 24
399 399 399 399-400 400 400 401 401 401-402 402 402 402 402
1 2 3 4-6 7 8 9 10-11 12 13 14-17 18 19-21
403 403 403 403-404 404 404 405 405 406 406 406-407 407 407
¿UûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ŸòÊÊ¥ •ÊÒ⁄U ∑§ÊŸÊ¥ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝Êåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ’΄US¬Áà Œfl ‚ ÁflÁ÷㟠ŒÊ· ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ê •Êª˝„U Sflÿ¢÷Í ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ ¬⁄U◊Êà◊Ê ß¢º˝ ‚ œŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ Áfl‡fl ∑§Ë ‡ÊÊ÷Ê ß¢º˝ ߢº˝, flL§áÊ, •ÁÇŸ fl Á◊òÊ •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁà ¡‹ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ‚ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§Ê◊ŸÊ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë SÃÈÁà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë SÃÈÁà ¡‹ fl •Ê·ÁœÿÊ¥ •ÊÁŒ ‚ ◊ÒòÊË ∑§Ê◊ŸÊ Á„UÃ∑§Ê⁄UË ‚Íÿ¸
‚Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ‚fl¸ÁflŒ ¬⁄U◊Êà◊Ê ÁŒ√ÿ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ ∑§Ê ÿôÊ ◊¥ •ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê◊¢òÊáÊ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ •ÁÇŸ Á‡ÊU⁄UÊœÊÿ¸ ÿôÊ ◊¥ ÁflÁ÷㟠ŒflË ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë SÃÈÁà ‚È⁄UˇÊÊ ∑§§ Á‹∞ ‚Ê◊âÿ¸‡ÊÊ‹Ë Œfl ∑§Ë •ø¸ŸÊ ¬ÎâflË ŒflË ∑§Ë SÃÈÁà ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ ¬⁄U◊Êà◊Ê ’ÈÁh ∑§ Á¬ÃÊ „Ò¥U ‚fl¸⁄UˇÊ∑§ ‚Íÿ¸ Œfl ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ë SÃÈÁÃ
•«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÿôÊ ™§¡Ê¸ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸÊ ß«∏Ê ∞fl¢ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ¬Ê·∑§ ÿôÊ ™§¡Ê¸ •Á‡flŸË fl ߢº˝ •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ê ÁŒ√ÿ ôÊÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ‚ SÃÈÁà flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ÿ◊ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ÿôÊ ÁflSÃÊ⁄U ∑§ Á‹∞ ⁄U‚◊ÿË •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ‚Èπ‡ÊÊ¢Áà ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ¬⁄U’˝rÊÔ ‚ ¬˝¡Ê ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •Êª˝„U ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •¬¸áÊ ÁŒ√ÿ ªÈáÊ flÊ‹Ë ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÈÁà ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ë SÃÈÁà ÿôÊ Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∞fl¢ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁÃ
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12-13 14 15 16 17-18 19-20 21-28
408 408 408 408 408 409 409 409 409 410 410 410 410 410-411 411 411 411-412 412-413
1-7 8-9 10-13
414-415 415-416 416
1 2 3-4 5-8 9-12
417 417 417 417-418 418
©UŸÃÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚◊ÎÁh ∞fl¢ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ŒflÊ¥ ∑§Ê •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ÁflÁ÷㟠‡ÊÊ⁄UËÁ⁄U∑§ •¢ªÊ¥ ‚ ŒflÊ¥ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢
øÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ߸‡fl⁄U ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ∑§◊¸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ‚ÊÒ fl·ÊZ Ã∑§ ¡ËŸ ∑§Ë ßë¿UÊ •¡ã◊Ê ß¸‡fl⁄U ∞∑§ „ÒU ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ë √ÿʬ∑§ÃÊ ‚ΡŸ •ÊÒ⁄U ÁflŸÊ‡Ê
ÁfllÊ ‚ •◊Îà Ãûfl ∑§Ë ¬˝ÊÁåà •Ê◊˜ ∑§Ê S◊⁄UáÊ •ÁÇŸ ‚ üÊcΔU ◊ʪ¸ ¬⁄U ‹ ¡ÊŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ •Ê∑§Ê‡Ê ◊¥ •Ê◊˜ M§¬ ◊¥ ’˝rÊÔ
13-14 15 16 17
418-419 419 419 419
¬Íflʸäʸ ¬„U‹Ê •äÿÊÿ ß· àflÊ¡¸ àflÊ flÊÿfl SÕ ŒflÊ fl— ‚ÁflÃÊ ¬˝Ê¬¸ÿÃÈ üÊcΔUÃ◊Êÿ ∑§◊¸áÊ ˘ •ÊåÿÊÿäfl◊ÉãÿÊ ˘ ßãº˝Êÿ ÷ʪ¢ ¬˝¡ÊflÃË⁄UŸ◊ËflÊ ˘ •ÿˇ◊Ê ◊Ê fl Sß ˘ ߸‡Êà ◊ÊÉÊ‡Ê ¦ ‚Ê œ˝ÈflÊ ˘ •ÁS◊Ÿ˜Ô ªÊ¬ÃÊÒ SÿÊà ’uÔUËÿ¸¡◊ÊŸSÿ ¬‡ÊÍã¬ÊÁ„U.. (1) „U ◊ŸÈcÿÊ! ‚ÁflÃÊ Œfl •Ê¬ ∑§Ê ™§¡¸SflË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flÊÿÈ •Ê¬ ∑§Ê SflSÕ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚÷Ë üÊcΔUÃÊ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚÷Ë ∑§◊¸ ∑§Ë •Ê⁄U ¬˝Á⁄Uà „UÊß∞. •Ê¬ •¬ŸÊ ÿôÊ ÷ʪ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ÷¥≈U ∑§ËÁ¡∞. ߸‡fl⁄U •Ê¬ ∑§Ê üÊcΔU ‚¢ÃÊŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ߸‡fl⁄U ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÁŸ⁄UÊªË „UÊ¥. •Ê¬§ÿˇ◊Ê (ˇÊÿ) ¡Ò‚ ÉÊÊÃ∑§ ⁄Uʪʥ ‚ ŒÍ⁄U „UÊ¥. ŒÈc≈U •ÊÒ⁄U øÊ⁄U ‹Êª •Ê¬ ∑§ ÷ÊÇÿ ÁflœÊÃÊ (ÁŸáÊʸÿ∑§) Ÿ ’Ÿ ¡Ê∞¢. •Ê¬ ∑§Ê üÊcΔU ‚¢⁄UˇÊáÊ Á◊‹. •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ‚ ŒÍ⁄U ⁄U„¥U. •Ê¬ ¬⁄U◊‡fl⁄U ∑§Ë ¿UòÊë¿UÊÿÊ ◊¥ ⁄U„¥U. •Ê¬ ªÊ¬Áà „UÊ¥. ‚Ö¡Ÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ’…U∏ÊÃ⁄UË „UÊ. •Ê¬ ∑§ ¬‡ÊÈ äÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ „UÊ. (1) fl‚Ê— ¬ÁflòÊ◊Á‚ lÊÒ⁄UÁ‚ ¬ÎÁÕ√ÿÁ‚ ◊ÊÃÁ⁄‡flŸÊ ÉÊ◊ʸ ˘ Á‚ Áfl‡flœÊ ˘ •Á‚. ¬⁄U◊áÊ œÊêŸÊ ŒÎ ¦ „USfl ◊Ê uÔUÊ◊ʸ à ÿôʬÁÃuÔUʸ·Ë¸Ã˜.. (2) „U ◊ŸÈcÿÊ! •Ê¬ flSÃÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§ ◊Êäÿ◊ (’ŸÊŸ flÊ‹) „UÊ¥. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§, ¬ÎâflË, ¬Ê‹∑§, ™§c◊Ê fl Áfl‡flœÊ⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ¬⁄U◊ á ‚ ŒÎ…∏U ’ÁŸ∞. •Ê¬ ∑§ ÿôʬÁà (ÿôÊ ◊¥ ◊ŒŒªÊ⁄U) ÷Ë ∑§ΔUÊ⁄U Ÿ „UÊ¥. (2) fl‚Ê— ¬ÁflòÊ◊Á‚ ‡ÊÃœÊ⁄¢U fl‚Ê— ¬ÁflòÊ◊Á‚ ‚„UdœÊ⁄U◊˜Ô. ŒflSàflÊ ‚ÁflÃÊ ¬ÈŸÊÃÈ fl‚Ê— ¬ÁflòÊáÊ ‡ÊÃœÊ⁄UáÊ ‚ÈåflÊ ∑§Ê◊œÈˇÊ—.. (3) •Ê¬ ¬ÁflòÊ fl‚È, ‚Ò∑§«∏UÊ¥, „U¡Ê⁄U œÊ⁄UÊ•Ê¥ flÊ‹ fl ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥. „U ◊ŸÈcÿÊ! ‚ÁflÃÊ Œfl ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥. fl •¬ŸË ‚Ò∑§«∏UÊ¥ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ß‚ ∑§ ’ÊŒ •ÊÒ⁄U Á∑§‚ ∑§Ê◊äÊŸÈ ∑§Ê ŒÈU„UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U? •ÕʸØ ©UŸ ∑§Ë ßÃŸË ∑Χ¬Ê „UÊ ¡ÊŸ ∑§ ’ÊŒ •ÊÒ⁄U Á∑§‚ ∑§Ê◊ŸÊ ∑§Ë ¬ÍÁø ’Ê∑§Ë ⁄U„U ¡ÊÃË „ÒU. (3) ÿ¡Èfl¸Œ - 31
¬Íflʸœ¸
¬„U‹Ê •äÿÊÿ
‚Ê Áfl‡flÊÿÈ— ‚Ê Áfl‡fl∑§◊ʸ ‚Ê Áfl‡flœÊÿÊ—. ßãº˝Sÿ àflÊ¢ ÷ʪ ¦ ‚Ê◊ŸÊßÁë◊ ÁflcáÊÊ „U√ÿ ¦ ⁄UˇÊ.. (4) „U ◊ŸÈcÿÊ! fl„U (‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê) ¬Íáʸ •ÊÿÈ ŒŸ flÊ‹Ë „ÒU. ‚÷Ë ∑§◊¸ ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „ÒU.U ‚÷Ë ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‡ÊÁÄà ⁄UπÃË „ÒU. ߢº˝ ∑§ ÷ʪ ◊¥ ‚Ê◊⁄U‚ Á◊‹Ê ∑§⁄UU „UÁfl ÃÒÿÊ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÁflcáÊÈ „UÁfl ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. (4) •ÇŸ fl˝Ã¬Ã fl˝Ã¢ øÁ⁄UcÿÊÁ◊ Ãë¿U∑§ÿ¢ Ãã◊ ⁄UÊäÿÃÊ◊˜Ô. ߌ◊„◊ŸÎÃÊà‚àÿ◊ȬÒÁ◊.. (5) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚¢∑§À¬‡ÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë fl˝Ã‡ÊË‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÿ„U œŸ (fl˝Ã M§¬Ë) •ÊÒ⁄U •‚àÿ ‚ ‚àÿ ∑§Ê ¬Ê ‚∑¥§. (5) ∑§SàflÊ ÿÈŸÁÄà ‚ àflÊ ÿÈŸÁÄà ∑§S◊Ò àflÊ ÿÈŸÁÄà ÃS◊Ò àflÊ ÿÈŸÁÄÃ. ∑§◊¸áÊ flÊ¢ fl·Êÿ flÊ◊˜Ô.. (6) „U ◊ŸÈcÿÊ! Á∑§‚ Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ „Ò? Á∑§‚Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU? ¬⁄U◊‡fl⁄U Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ „ÒU. üÊcΔU ∑§◊¸ ◊¥ ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ „ÒU. (6) ¬˝àÿÈc≈ U¦ ⁄UˇÊ— ¬˝àÿÈc≈UÊ ˘ •⁄UÊÃÿÊ ÁŸc≈Uåà ¦ ⁄UˇÊÊ ÁŸc≈UåÃÊ ˘ •⁄UÊÃÿ—. ©Ufl¸ãÃÁ⁄UˇÊ◊ãflÁ◊.. (7) „U ◊ŸÈcÿÊ! •Ê¬ ÿôÊ •ÊÒ⁄U ©U‚ ∑§ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. ÁŸ∑Χc≈U ⁄UÊˇÊ‚ Ÿc≈U „UÊ ª∞ „Ò¥U. •ãÿ Áfl∑§Ê⁄U ÷Ë ‚◊Êåà „UÊ ª∞ „Ò¥U. •’ „UÁfl •ÊÁŒ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ¬„È¢øŸ flÊ‹Ë flSÃÈ∞¢ (Á’ŸÊ ’ÊœÊ ∑§) •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (7) œÍ⁄UÁ‚ œÍfl¸ œÍfl¸ãâ œÍfl¸ â ÿÊS◊ÊãœÍfl¸Áà â œÍfl¸ ÿ¢ flÿ¢ œÍflʸ◊—. ŒflÊŸÊ◊Á‚ flÁqÃ◊ ¦ ‚ÁSŸÃ◊¢ ¬Á¬˝Ã◊¢ ¡Èc≈UUÃ◊¢ Œfl„ÍUÃ◊◊˜.. (8) „U ¬⁄U◊‡fl⁄U! •Ê¬ ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ‚Ê◊âÿ¸ ‚ œÍÃÊZ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. ¡Ê „U◊ ‚èÊË ∑§Ê ŒÈ—π ¬„È¢øÊà „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ¬ÊÁ¬ÿÊ¥ •ÊÒ⁄U ŒÈc≈UÊà◊Ê•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞ Á¡Ÿ ∑§Ê ‚÷Ë ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÊ¥ ◊¥ ‚flʸÁœ∑§ áSflË, ‡ÊÁÄÃŒÊÃÊ, ¬ÍáʸÃÊŒÊÿË •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (8) •OÈÃ◊Á‚ „UÁflœÊ¸Ÿ¢ ŒÎ ¦ „USfl ◊Ê uÊ◊ʸ à ÿôʬÁÃuÔUʸ·Ë¸ÃÔ˜. ÁflcáÊÈSàflÊ ∑˝§◊ÃÊ◊ÈL§ flÊÃÊÿʬ„Uà ¦ ⁄UˇÊÊ ÿë¿UãÃÊ¢ ¬Üø.. (9) „U ◊ŸÈcÿÊ! •Ê¬ Œfl ‡ÊÁÄà œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U ‚∑§Ã „Ò¥U. •Ê¬ „UÁfl œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒÎ…U∏ „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÒ⁄U •Ê¬ ∑§ ÿôÊ ∑§ ‚„UÿÊªË Á∑§‚Ë ∑§ ¬˝Áà ∑§ΔUÊ⁄U Ÿ ’Ÿ¥. ÁflcáÊÈ fl Áfl‡ÊÊ‹ flÊÿÈ◊¢«U‹ (¬ÿʸfl⁄UáÊ) •Ê¬ ¬⁄U ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. •Ê¬ ∑§Ë ¬¢ø¥Áº˝ÿÊ¢ üÊcΔU ∑§ÊÿÊZ ◊¥ ‹ª¥. (9) 32 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@2
¬Íflʸœ¸
¬„U‹Ê •äÿÊÿ
ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊ÔÔ˜. •ÇŸÿ ¡Èc≈¢U ªÎ±áÊÊêÿÇŸË·Ê◊ÊèÿÊ¢ ¡Èc≈¢U ªÎ±áÊÊÁ◊.. (10) „U ¬⁄U◊‡fl⁄U! •Ê¬ Ÿ ‚ÁflÃÊ Œfl •ÊÒ⁄U •ãÿ ŒflÊ¥ ∑§Ê ¡ŸÊ „ÒU. •Á‡flŸË Œfl ’Ê„È ‚ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬Í·Ê Œfl „UÊÕÊ¥ ‚ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •äflÿȸ (¬È⁄UÊÁ„UÃ) •ÁÇŸ ∑§Ë (∑§Ê ÷¥≈U ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞) Á¬˝ÿ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬È⁄UÊÁ„Uà •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ∑§Ê ÷¥≈U ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ©Uã„¥U Á¬˝ÿ ‹ªŸ flÊ‹ ¬ŒÊÕ¸ „UË ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (10) ÷ÍÃÊÿ àflÊ ŸÊ⁄UÊÃÿ Sfl⁄UÁ÷ÁflÅÿ·¢ ŒÎ ¦ „UãÃÊ¢ ŒÈÿʸ— ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊Èfl¸ãÃÁ⁄UˇÊ◊ãflÁ◊. ¬ÎÁÕ√ÿÊSàflÊ ŸÊ÷ÊÒ ‚ÊŒÿÊêÿÁŒàÿÊ ˘ ©U¬SÕÇŸ „U√ÿ ¦ ⁄UˇÊ.. (11) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ÁŒÁà ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. ÿôÊ∑È¢§«U ¬ÎâflË (◊ÊÃÊ) ∑§Ë ŸÊÁ÷ „ÒU. ©U‚ ◊¥ „U◊ Ÿ „UÁfl SÕÊÁ¬Ã ∑§Ë „ÒU. •Ê¬ ©U‚ „UÁfl ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê ◊ŸÈcÿ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U◊¥ •¬Ÿ ◊¥ √ÿÊÅÿÊÁÿà (◊ÊÒ¡ÍŒ) ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ê •ŸÈ÷fl „UÊ. ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê ÁflŸÊ‡Ê „UÊ. „U◊ •¢ÃÁ⁄UˇÊ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ¬⁄U Á’ŸÊ Á∑§‚Ë ’ÊœÊ ∑§ ÉÊÍ◊ÔÁ»§⁄U (Áflø⁄U) ‚∑¥§. (11) ¬ÁflòÊ SÕÊ flÒcáÊ√ÿÊÒ ‚ÁflÃÈfl¸— ¬˝‚fl ©Uà¬ÈŸÊêÿÁë¿Uº˝áÊ ¬ÁflòÊáÊ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡◊Á÷—. ŒflË⁄UÊ¬Ê •ª˝ªÈflÊ •ª˝¬ÈflÊ ª˝ ˘ ß◊◊l ÿôÊ¢ ŸÿÃʪ˝ ÿôʬÁà ¦ ‚ÈœÊÃÈ¢ ÿôʬÁâ ŒflÿÈfl◊˜Ô.. (12) „U ¡‹ Œfl! ߢº˝ Ÿ flÎòÊ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ (‚„Uÿʪ „ÃÈ) •Ê¬ ∑§Ê øÈŸÊ. •Ê¬ Ÿ flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§ ŸÊ‡Ê ◊¥ ߢº˝ ∑§Ê fl⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. •Ê¬ Ÿ flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§ ŸÊ‡Ê ◊¥ ߢº˝ ∑§Ê ‚„Uÿʪ Á∑§ÿÊ. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ Á¬˝ÿ „Ò¥U. „U◊ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬Á⁄Uc∑Χà (‡ÊÈh) ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§ Á¬˝ÿ „Ò¥U. „U◊ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬Á⁄Uc∑Χà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ∑§ÊÿÊZ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄Uà „Ò¥. (12) ÿÈc◊Ê ßãº˝ÊflÎáÊËà flÎòÊÃÍÿ¸ ÿÍÿÁ◊ãº˝◊flÎáÊËäfl¢ flÎòÊÃÍÿ¸ ¬˝ÊÁˇÊÃÊ— SÕ. •ÇŸÿ àflÊ ¡Èc≈UÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊêÿÇŸË·Ê◊ÊèÿÊ¢ àflÊ ¡Èc≈¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊. ŒÒ√ÿÊÿ ∑§◊¸áÊ ‡ÊÈãœäfl¢ ŒflÿÖÿÊÿÒ ÿmʇÊÈhÊ— ¬⁄UÊ¡ÉãÊÈÁ⁄Œ¢ flSÃë¿ÈUãœÊÁ◊.. (13) „U ¡‹ Œfl! „U◊ Œfl ‚¢’¢œË ÿôÊ ∑§ÊÿÊZ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ ∑§ •‡ÊÈh ©U¬∑§⁄UáÊ ÷Ë ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ Ÿ„UË¥ „UÊÃ. •‡ÊÈh ¡‹ ÷Ë ÿôÊ ◊¥ ª˝„UáÊ Ÿ„UË¥ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ. (13) ‡Ê◊ʸSÿflœÍà ¦ ⁄UˇÊÊflœÍÃÊ ˘ •⁄UÊÃÿÊ ÁŒàÿÊSàflªÁ‚ ¬˝Áà àflÊÁŒÁÃfl¸ûÊÈ. •Áº˝⁄UÁ‚ flÊŸS¬àÿÊ ª˝ÊflÊÁ‚ ¬ÎÕÈ’È䟗 ¬˝Áà àflÊÁŒàÿÊSàflÇflûÊÈ.. (14) ‚Èπ ∑§ •Ê‚Ÿ ‚ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥, ŒÈc≈UÊ¥ fl ŒÒàÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄U ÁŒÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê‚Ÿ ¬ÎâflË ¬⁄U •Êfl⁄UáÊ „ÒU. ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ©U‚ •Ê‚Ÿ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . •Ê¬ ¬àÕ⁄U ∑§Ë Ã⁄U„U ◊¡’Íà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê •ÊœÊ⁄ U÷Ë ¬àÕ⁄U ∑§Ë Ã⁄U„U ◊¡’Íà „ÒU. •Ê¬ ÿ¡Èfl¸Œ - 33
¬Íflʸœ¸
¬„U‹Ê •äÿÊÿ
flŸS¬Áà ‚ ÁŸÁ◊¸Ã „Ò¥U. ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (14) •ÇŸSßÍ⁄UÁ‚ flÊøÊ Áfl‚¡¸Ÿ¢ ŒflflËÃÿ àflÊ ªÎ±áÊÊÁ◊ ’΄UŒ˜Ôª˝ÊflÊÁ‚ flÊŸS¬àÿ— ‚ ˘ ߌ¢ ŒflèÿÊ „UÁfl— ‡Ê◊Ëcfl ‚ȇÊÁ◊ ‡Ê◊Ëcfl. „UÁflc∑ΧŒÁ„U „UÁflc∑ΧŒÁ„U.. (15) „U ◊ŸÈcÿÊ! „UÁfl ∑§Ê ◊¢òÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ (•ÁÇŸ ◊¥) ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Áfl‚Á¡¸Ã Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. „U „UÁfl! •Ê¬ •ÁÇŸ Œfl ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U „UÊ. „UÁfl ∑§Ê ÃÒÿÊ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê •Êπ‹ •ÊÒ⁄U ◊Í‚‹ Áfl‡ÊÊ‹ (’«∏) ¬àÕ⁄U •ÊÒ⁄U flŸS¬Áà ‚ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ߟ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ÃÒÿÊ⁄U ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê „UÁfl ÷¥≈U ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ◊Í‚‹ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ◊Í‚‹ üÊcΔU „UÁfl ÃÒÿÊ⁄U ∑§⁄U ∑§ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. „U ◊Í‚‹! •Ê¬ „UÁfl ÃÒÿÊ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •Êß∞ (¬œÊÁ⁄U∞). (15) ∑ȧÄ∑ȧ≈UÊÁ‚ ◊œÈÁ¡uÔU ˘ ¦ ß·◊Í¡¸◊ÊflŒ àflÿÊ flÿ ¦ ‚¢ÉÊÊà ¦ ‚¢ÉÊÊâ ¡c◊ fl·¸flÎh◊Á‚ ¬˝Áà àflÊ fl·¸flÎh¢ flûÊÈ ¬⁄UʬÍà ¦ ⁄UˇÊ— ¬⁄UʬÍÃÊ ˘ •⁄UÊÃÿʬ„Uà ¦ ⁄UˇÊÊ flÊÿÈflʸ ÁflÁflŸÄÃÈ ŒflÊ fl— ‚ÁflÃÊ Á„U⁄Uáÿ¬ÊÁáÊ— ¬˝ÁêÎèáÊÊàflÁë¿Uº˝áÊ ¬ÊÁáÊŸÊ.. (16) „U ‡Êêÿ (ÿôÊ ◊¥ ∑§Ê◊ •ÊŸ flÊ‹Ê ‚ÊäÊŸ)! •Ê¬ ∑ȧÄ∑ȧ≈UU „Ò¥U ÿÊŸË ◊È⁄Uª ∑§Ë Ã⁄U„U ¡ÊªM§∑§ ⁄U„UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ◊œÈ⁄U ¡Ë÷ flÊ‹ (◊ËΔUÊ ’Ê‹Ÿ flÊ‹) „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ™§U¡¸SflË ’ŸÊŸ •ÊÒ⁄U ’‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚¢ÉÊÊÃÊ¥ (‚¢ÉÊ·ÊZ) ◊¥ ŒÎ…∏UÃÊ fl ‚¢ÉÊÊÃÊ¥ ◊¥ Áfl¡ÿ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. „U ‚ͬ! „U „UÁfl! •Ê¬ ¬˝ÁÃfl·¸ ’⁄U‚Êà ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U. ÿôÊ ’⁄U‚Êà ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ Œfl •Ê¬ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. •Ê¬ ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ¬ÁflòÊ ’ŸÊ Á‹ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •‡ÊÈÁhÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄U ‹Ë ªß¸ „ÒU. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄U ÁŒÿÊ ªÿÊ „ÒU. flÊÿÈ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄U¢. fl •Ê¬ ∑§ ◊Êäÿ◊ ‚ „UÁfl ∑§Ê ‡ÊÈh (»§≈U∑§Ÿ) ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. ‚ÁflÃÊ Œfl •¬Ÿ ‚ÊŸ ∑§ Á’ŸÊ ¿UŒ flÊ‹ „UÊÕÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. (16) œÎÁc≈U⁄USÿ¬ÊÇŸ •ÁÇŸ◊Ê◊ÊŒ¢ ¡Á„U ÁŸc∑˝§√ÿÊŒ ¦ ‚œÊ Œflÿ¡¢ fl„U. œ˝Èfl◊Á‚ ¬ÎÁÕflË¥ ŒÎ ¦ „U ’˝rÊÔflÁŸ àflÊ ˇÊòÊflÁŸ ‚¡ÊÃflãÿÈȬŒœÊÁ◊ ÷˝ÊÃÎ√ÿSÿ flœÊÿ.. (17) „U ©U¬fl· Œfl (ÿôÊ ◊¥ ∑§ÊΔU ∑§Ê ¬ÊòÊ ¡Ê •ÁÇŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU)! •Ê¬ œÒÿ¸flÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Á∑§∞ ¡ÊŸ flÊ‹ ÿôÊ (•ÁÇŸ) ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ëëÊË øË¡Ê¥ •ÊÒ⁄U ◊Ê¢‚ ∑§Ê ¬∑§ÊŸ flÊ‹Ë •ÁÇŸ ¿UÊ«∏U ŒËÁ¡∞ •ÕʸØ •Ê¬ ߟ ŒÊŸÊ¥ •ÁÇŸÿÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôÊ-•ÁÇŸ (ªÊ„¸U¬àÿ) ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ œ˝Èfl (ÁSÕ⁄U) „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ŒÎ…∏UÃÊ ‚ ’Ÿ ⁄U„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ’˝ÊrÊUáÊÊ¥, ˇÊÁòÊÿÊ¥ fl üÊcΔU ¡ÊÁà flÊ‹Ê¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ flœ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (17) 34 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬„U‹Ê •äÿÊÿ
•ÇŸ ’˝rÊ ªÎèáÊËcfl œL§áÊ◊SÿãÃÁ⁄UˇÊ¢ ŒÎ ¦ „U ’˝rÊflÁŸ àflÊ ˇÊòÊflÁŸ ‚¡ÊÃflãÿȬŒœÊÁ◊ ÷˝ÊÃÎ√ÿSÿ flœÊÿ. œòʸ◊Á‚ ÁŒfl¢ ŒÎ ¦ „U ’˝rÊflÁŸ àflÊ ˇÊòÊflÁŸ ‚¡ÊÃflãÿȬŒœÊÁ◊ ÷˝ÊÃÎ√ÿSÿ flœÊÿ. Áfl‡flÊèÿSàflʇÊÊèÿ ˘ ©U¬ŒœÊÁ◊ Áø× SÕÊäfl¸ÁøÃÊ ÷ΪÍáÊÊ◊ÁX⁄U‚Ê¢ ì‚Ê Ãåÿäflêʘ.. (18) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ŒÎ…∏U ’ŸÊà „Ò¥U. •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥, ˇÊÁòÊÿÊ¥ fl üÊcΔU ¡ÊÁà flÊ‹Ê¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê flœ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ∑§Ê øÃŸÊ ŒÃ „ÒU¢. •Ê¬ „U◊¥ ™§äfl¸ªÊ◊Ë, ÁSÕ⁄UÁøûÊ ÃÕÊ ÷ÎªÈ •ÊÒ⁄U •¢Áª⁄U‚ ´§Á· ∑§ ì ∑§Ë Ã⁄U„U áSflË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (18) ‡Ê◊ʸSÿflœÍà ¦ ⁄UˇÊÊflœÍÃÊ •⁄UÊÃÿÊ ÁŒàÿÊSàflªÁ‚ ¬˝Áà àflÊÁŒÁÃfl¸ûÊÈ. Áœ·áÊÊÁ‚ ¬fl¸ÃË ¬˝Áà àflÊÁŒàÿÊSàflÇflûÊÈ ÁŒfl— S∑§ê÷ŸË⁄UÁ‚ Áœ·áÊÊÁ‚ ¬Êfl¸ÃÿË ¬˝Áà àflÊ ¬fl¸ÃË flûÊÈ.. (19) ÿôÊ ∑§Ê •Ê‚Ÿ ‚ÈπŒÊÿË „ÒU. ß‚ •Ê‚Ÿ ‚ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ fl ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê „U≈UÊÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ„U ¬ÎâflË ∑§Ê •Êfl⁄UáÊ „ÒU. ß‚Á‹∞ ¬ÎâflË ß‚ •¬ŸÊ ¡ÊŸ. „U Á‚‹ (¬àÕ⁄U)! •Ê¬ ¬fl¸Ã ‚ ©Uà¬ãŸ ∑§◊¸‡ÊÁÄà „Ò¥U. ß‚Á‹∞ ¬ÎâflË •Ê¬ ∑§Ê •¬ŸÊ ¡ÊŸ. „U ‡Êƒÿ! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë ⁄UÊ∑§ „Ò¥U. „U ‹Ê…∏U! •Ê¬ ÉÊ·¸áÊ (⁄Uª«U∏) ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ Á‚‹ ∑§Ë ¬ÈòÊË ∑§ ‚◊ÊŸ „Ò¥U. ß‚Á‹∞ Á‚‹ •Ê¬ ∑§Ê •¬ŸÊ ¡ÊŸ (19). œÊãÿ◊Á‚ ÁœŸÈÁ„U ŒflÊãʘ ¬˝ÊáÊÊÿ àflʌʟÊÿ àflÊ √ÿÊŸÊÿ àflÊ. ŒËÉÊʸ◊ŸÈ ¬˝Á‚ÁÃ◊ÊÿÈ· œÊ¢ ŒflÊ fl— ‚ÁflÃÊ Á„U⁄Uáÿ¬ÊÁáÊ— ¬˝ÁêÎèáÊÊàflÁë¿Uº˝áÊ ¬ÊÁáÊŸÊ øˇÊÈ· àflÊ ◊„ËUŸÊ¢ ¬ÿÊÁ‚.. (20) „U „UÁflœÊãÿ! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÃÎåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬˝ÊáÊ, ©UŒÊŸ (¬˝ÊáÊflÊÿÈ) √ÿÊŸ (‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹Ë ∞∑§ flÊÿÈ) ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒËÉÊʸÿÈ ŒÃ „Ò¥. ¬ÎâflË •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. •Ê¬ ŒÍœ M§¬ ◊¥ •◊Îà „Ò¥. ‚ÁflÃÊ Œfl Á¿Uº˝ ⁄UÁ„Uà ‚ÊŸ ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. (20) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊêʘ. ‚¢ fl¬ÊÁ◊ ‚◊ʬ ˘ •Ê·œËÁ÷— ‚◊ÊcÊœÿÊ ⁄U‚Ÿ. ‚ ¦ ⁄UflÃË¡¸ªÃËÁ÷— ¬ÎëÿãÃÊ ¦ ‚¢ ◊œÈ◊ÃË◊¸œÈ◊ÃËÁ÷— ¬ÎëÿãÃÊêʘ.. (21) ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡Ê ¬ÒŒÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©U‚ ¬˝∑§Ê‡Ê ◊¥ •Á‡flŸË Œfl •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê •¬Ÿ ’Ê„ÈU•Ê¥ ‚ ’…∏UÊà „Ò¥U. ¬Í·Ê Œfl •¬Ÿ „UÊÕÊ¥ ‚ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ’…U∏Êà „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ ⁄U‚ ‚ Á‚¢ø ¡Ê∞¢. fl ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê •¬Ÿ ⁄U‚ ‚ ‚Ë¥ø¥ •ÊÒ⁄U ◊œÈ⁄UÃÊ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U . fl ◊œÈ⁄UÃÊÿÈÄà ¡‹ ¬˝flÊ„UÊ¥ ‚ Á‚¢ø ¡Ê∞¢. (21) ÿ¡Èfl¸Œ - 35
¬Íflʸœ¸
¬„U‹Ê •äÿÊÿ
¡ŸÿàÿÒ àflÊ ‚¢ÿÊÒ◊ËŒ◊ÇŸÁ⁄UŒ◊ÇŸË·Ê◊ÿÊÁ⁄U· àflÊ ÉÊ◊ʸÁ‚ Áfl‡flÊÿÈL§L§¬˝ÕÊ ˘ ©UL ¬˝ÕSflÊL à ÿôʬÁ× ¬˝ÕÃÊ◊ÁÇŸc≈U àflø¢ ◊Ê Á„U ¦ ‚ËUgflSàflÊ ‚ÁflÃÊ üʬÿÃÈ flÁ·¸DÁœ ŸÊ∑§.. (22) ¬ÊŸË •ÊÒ⁄U Á¬‚ „UÈ∞ øÊfl‹ ∑§Ê Á◊‹ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. Á»§⁄U ©U‚ •ÁÇŸ ◊¥ ¬∑§ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ß‚ Á∑˝§ÿÊ ‚ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê (ÿôÊ ◊¥ •Ê„ÈUÁà ŒŸ ∑§ Á‹∞ ¬∑§Ê߸ ªß¸ Á≈UÁ∑§ÿÊ) ’ŸÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ŒËÉÊʸÿÈ fl ™§¡¸SflË ’ŸÊÃÊ „ÒU. fl„U ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ÿ‡Ê ∑§Ê •ÊÒ⁄U »Ò§‹ÊÃÊ „ÒU. ©U‚ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ‚ÁflÃÊ Œfl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë •ÁÇŸ ‚ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. (22) ◊Ê ÷◊ʸ ‚¢ÁflÄÕÊ ˘ •Ã◊L§ÿ¸ôÊÊÃ◊L§ÿ¸¡◊ÊŸSÿ ¬˝¡Ê ÷ÍÿÊàʘ ÁòÊÃÊÿ àflÊ ÁmÃÊÿ àflÒ∑§ÃÊÿ àflÊ.. (23) „U ◊ŸÈcÿÊ! «U⁄UÊ ◊Ã. ¬Ë¿U ◊à „U≈UÊ. ÿôÊ ∑§Êÿ¸ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ‚¢∑§≈U ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê „UÊÃÊ „ÒU. ∞∑§ ªÈŸË, ŒÊ ªÈŸË •ÊÒ⁄U ÃËŸ ªÈŸË Á∑§ÃŸË „UË ¬˝¡Ê „UÊ ‚÷Ë ∑§Ê ‚¢∑§≈U ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê „UÊÃÊ „Ò. (23) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊêʘ. •ÊŒŒäfl⁄U∑Χâ Œflèÿ ˘ ßãº˝Sÿ ’Ê„ÈU⁄UÁ‚ ŒÁˇÊáÊ— ‚„Ud÷ÎÁc≈U— ‡ÊÃÃ¡Ê flÊÿÈ⁄UÁ‚ ÁÃÇ◊Ã¡Ê Ám·ÃÊflœ—.. (24) „U ‚ÁflÃÊ! •Ê¬ ŒÈÁŸÿÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝∑§Ê‡Ê »Ò§‹Êà „Ò¥U. „U◊ •Á‡flŸË Œfl ∑§Ë ’Ê„ÈU•Ê¥ •ÊÒ⁄U ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ÃÎÁåà ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ŒÊÁ„UŸË ÷È¡Ê „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ á ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ Áfl∑§Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê ¡‹Ê ŒŸ flÊ‹ flÊÿÈ „Ò¥U. •Ê¬ •àÿ¢Ã ¬˝∑§Ê‡Ê ÿÈÄà fl ÃˡáÊ Ã¡flÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊÁ·ÿÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ⁄Uπà „Ò¥U. (24) ¬ÎÁÕÁfl Œflÿ¡ãÿÊ·äÿÊSà ◊Í‹¢ ◊Ê Á„U ¦ Á‚·¢ fl˝¡¢ ªë¿U ªÊcΔUÊŸ¢ fl·¸ÃÈ Ã lÊÒ’¸œÊŸ Œfl ‚Áfl× ¬⁄U◊SÿÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ ‡Êß ¬Ê‡ÊÒÿʸS◊ÊãmÁc≈U ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊SÃ◊ÃÊ ◊Ê ◊ÊÒ∑˜Ô .. (25) „U ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ (Œfl)! •Ê¬ ◊¥ ©U¬¡Ÿ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê „U◊Ê⁄U ∑§Ê⁄UáÊ ŸÈ∑§‚ÊŸ Ÿ ¬„È¢ø. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ „UflŸ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. ©U‚ ∑§ Á‹∞ (πÊŒ ∑§⁄U) Á◊≈˜≈UË „U≈UÊ߸ ªß¸ „ÒU. „U Á◊≈˜≈UË! •Ê¬ ªÊÿÊ¥ ∑§ ’Ê«∏U ◊¥ ¡Êß∞. Sflª¸‹Ê∑§ •Ê¬ ¬⁄U •¬ŸË ∑Χ¬Ê ’⁄U‚Ê∞. „U ‚ÁflÃÊ! •Ê¬ ¬ÎâflË ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ‚ m· ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê •¬Ÿ ‚Ò∑§«U∏Ê¥ ¬Ê‡ÊÊ¥ ‚ ’Ê¢œ ŒËÁ¡∞ fl ©Uã„¥U ◊ÈÄà ◊à ∑§ËÁ¡∞. (25) •¬Ê⁄UL¢§ ¬ÎÁÕ√ÿÒ Œflÿ¡ŸÊmäÿÊ‚¢ fl˝¡¢ ªë¿U ªÊcΔUÊŸ¢ fl·¸ÃÈ Ã lÊÒ’¸œÊŸ Œfl ‚Áfl× ¬⁄◊SÿÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ ‡Êß ¬Ê‡ÊÒÿʸS◊ÊãmÁc≈U ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊SÃ◊ÃÊ ◊Ê ◊ÊÒ∑˜§Ô. •⁄U⁄UÊ ÁŒfl¢ ◊Ê ¬åÃÊ º˝å‚Sà lÊ¢ ◊Ê S∑§Ÿ˜Ô fl˝¡¢ ªë¿U ªÊcΔUÊŸ¢ fl·¸ÃÈ Ã lÊÒ’¸œÊŸ 36 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬„U‹Ê •äÿÊÿ
Œfl ‚Áfl× ¬⁄U◊SÿÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ ‡Êß ¬Ê‡ÊÒÿʸS◊ÊãmÁc≈UU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊USÃ◊ÃÊ ◊Ê ◊ÊÒ∑˜§Ô.. (26) „U◊ Ÿ ŒÈc≈U •⁄UL§ ŸÊ◊∑§ ‡ÊòÊÈ ∑§Ê ¬ÎâflË ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄U ÁŒÿÊ „ÒU. Á◊≈UÔ˜≈UË ∑§Ê ÁŸ∑§Ê‹ ∑§⁄U ¡ª„U ‚Ê»§ ∑§⁄U ŒË „ÒU. •’ ©U‚ Á◊≈˜U≈UË ‚ ÁŸflŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U Á∑§ fl„U ªÊÿÊ¥ ∑§ ’Ê«∏U ◊¥ ¡Ê∞. Sflª¸‹Ê∑§ ¬ÎâflË ¬⁄U ¬ÿʸåà ’⁄U‚Êà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ‚ÁflÃÊ Á‚⁄U¡Ÿ„UÊ⁄U „ÒU¢. fl „U◊ ‚ m· ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ’¢œŸÊ¥ ‚ ’Ê¢œ Œ¥ •ÊÒ⁄U ©Uã„¥U ∑§÷Ë ◊ÈÄà Ÿ ∑§⁄¥U. (26) ªÊÿòÊáÊ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ¬Á⁄UªÎ±áÊÊÁ◊ òÊÒc≈UÈ÷Ÿ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ¬Á⁄UªÎ±áÊÊÁ◊. ¡ÊªÃŸ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ¬Á⁄UªÎ±áÊÊÁ◊. ‚Èˇ◊Ê øÊÁ‚ Á‡ÊflÊ øÊÁ‚ SÿÊŸÊ øÊÁ‚ ‚È·ŒÊ øÊSÿÍ¡¸SflÃË øÊÁ‚ ¬ÿSflÃË ø.. (27) „U ◊ŸÈcÿÊ! „◊ ÿôÊflÁŒ∑§Ê ∑§Ê ªUÊÿòÊË, ÁòÊc≈ÈU¬˜ •ÊÒ⁄U ¡ªÃË ¿¢UŒÊ¥ flÊ‹Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ ⁄Uøà „Ò¥U. ÿôÊflÁŒ∑§Ê Œ‡Ê¸ŸËÿ, ∑§ÀÿÊáÊ∑§ÊÁ⁄UáÊË, ™§¡¸ÁSflŸË fl •◊ÎÃflÃË „ÒU. (27) ¬È⁄UÊ ∑˝Í§⁄USÿ Áfl‚Î¬Ê Áfl⁄UÁå‡ÊãŸÈŒÊŒÊÿ ¬ÎÁÕflË¥ ¡ËflŒÊŸÈ◊˜Ô. ÿÊ◊Ò⁄Uÿ°‡øãº˝◊Á‚ SflœÊÁ÷SÃÊ◊È œË⁄UÊ‚Ê •ŸÈÁŒ‡ÿ ÿ¡ãÃ. ¬˝ÊˇÊáÊË⁄UÊ‚ÊŒÿ Ám·ÃÊ flœÊÁ‚.. (28) „U ¬⁄U◊‡fl⁄U! •Ê¬ flË⁄UÊ¥ ∑§ •ÊÒ⁄U ∑˝Í§⁄U ÿÈhÊ¥ ◊¥ flË⁄U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ‚fl¸Sfl „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ¡ËflŸ ŒÊŸ fl ŒÊŸ•ŸÈŒÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. äÊË⁄U ¬ÎâflË ∑§Ê ø¢º˝◊Ê ∑§Ë •Ê⁄U ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§ ©UŒ˜Œ‡ÿ ‚ SflœÊ (ÿôÊ ◊¥ ŒUË ¡ÊŸ flÊ‹Ë •Ê„ÈUÁÃ) ∑§ mÊ⁄UÊ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ÿÊ¡∑§Ê! •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ∑§Ê◊ •ÊŸ flÊ‹ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê •¬Ÿ ¬Ê‚ ‹ ∑§⁄U ’ÒÁΔU∞. ߸‡fl⁄U „U◊ ‚ m· ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê flœ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . (28) ¬˝àÿÈc≈ ¦ ⁄UˇÊ— ¬˝àÿÈc≈UÊ ˘ •⁄UÊÃÿÊ ÁŸc≈Uåà ¦ ⁄UˇÊÊ ÁŸc≈UÔUåÃÊ ˘ •⁄UÊÃÿ—. •ÁŸÁ‡ÊÃÊÁ‚ ‚¬àŸÁˇÊmÊÁ¡Ÿ¢ àflÊ flÊ¡äÿÊÿÒ ‚ê◊ÊÁÖ◊¸. ¬˝àÿÈc≈ ¦ ⁄UˇÊ— ¬˝àÿÈc≈UÊ ˘ •⁄UÊÃÿÊ ÁŸc≈Uåà ⁄UˇÊÊ ÁŸc≈UåÃÊ ˘ •⁄UÊÃÿ—. •ÁŸÁ‡ÊÃÊÁ‚ ‚¬àŸÁˇÊmÊÁ¡ŸË¥ àflÊ flÊ¡äÿÊÿÒ ‚ê◊ÊÁÖ◊¸.. (29) ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ fl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄U ÁŒÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U◊ ¬ÍáʸÃÿÊ ⁄UÁˇÊà „Ò¥U. •’ „U◊¥ ¬àŸË ‚Á„Uà ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝flÎûÊ „UÊŸÊ øÊÁ„U∞. „U◊Ê⁄U ‚ÊœŸ ÷‹ „UË ©Uß ¬ÒŸ Ÿ„UË¥ „Ò¥U, ¬⁄U¢ÃÈ ©Uã„Ê¥Ÿ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ •ÊÒ⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄U ÁŒÿÊ „ÒU. „U◊¥ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ‚È⁄UÁˇÊà ’ŸÊ Á‹ÿÊ „ÒU. „U◊ ¬àŸË ‚Á„Uà •ããÊ fl ’‹ ∑§Ë ¬˝ÊÁåàÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ããÊ fl ’‹ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ •Ê¬ ∑§Ê ‚ê◊ÊÁ¡¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (29) ÿ¡Èfl¸Œ - 37
¬Íflʸœ¸
¬„U‹Ê •äÿÊÿ
•ÁŒàÿÒ ⁄UÊSŸÊÁ‚ ÁflcáÊÊfl¸c¬ÊSÿÍ¡¸ àflʌ霟 àflÊ øˇÊÈ·Êfl¬‡ÿÊÁ◊. •ÇŸÁ¡¸uÔUÊÁ‚ ‚È„ÍUŒ¸flèÿÊ œÊêŸ œÊêŸ ◊ ÷fl ÿ¡È· ÿ¡È·.. (30) „U •ÁŒÁà Œfl! •Ê¬ ⁄U‚◊ÿ, ÁflcáÊÈ ∑§ flÊ‚ SÕ‹ fl ™§¡¸SflË „Ò¥U. „U◊ ∑§◊‹ ¡Ò‚ ŸòÊÊ¥ ‚ ’Ê⁄’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê Œπà „Ò¥U. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ë ¡Ë÷, ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ÁŸflÊ‚ SÕ‹ fl ‚fl¸òÊ √ÿʬ∑§ „Ò¥U. „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ œÊ◊œÊ◊ ¬⁄U ∞‚ Œfl ∑§Ê ¬È∑§Ê⁄¥U fl •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄¥. (30) ‚ÁflÃÈSàflÊ ¬˝‚fl ˘ ©Uà¬ÈŸÊêÿÁë¿Uº˝áÊ ¬ÁflòÊáÊ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡◊Á÷—. ‚ÁflÃÈfl¸— ¬˝‚fl ˘ ©Uà¬ÈŸÊêÿÁë¿Uº˝áÊ ¬ÁflòÊáÊ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡◊Á÷—. áÊÁ‚ ‡ÊÈ∑˝§◊Sÿ◊ÎÃ◊Á‚ œÊ◊ ŸÊ◊ÊÁ‚ Á¬˝ÿ¢ ŒflÊŸÊ◊ŸÊœÎc≈UÔ¢U Œflÿ¡Ÿ◊Á‚ (31) ‚ÁflÃÊ Ÿ ÿôÊ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. Á’ŸÊ ¿UŒ flÊ‹Ë ¬ÁflòÊ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ߟ ÿôÊ-‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ áSflË, ø◊∑§Ë‹, •◊Îà ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á¬˝ÿ ÃÕÊ •œÎc≈U (ÁflŸÿË) „ÒU¥ . •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Á∑§∞ ¡Ê ⁄U„U ß‚ ÿôÊ ∑§ ¬˝◊π È ‚ÊœŸ „ÒU¥ . (31)
38 - ÿ¡Èfl¸Œ
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ ∑ΧcáÊÊSÿÊπ⁄UcΔUÊÇŸÿ àflÊ ¡Èc≈UÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊ flÁŒ⁄UÁ‚ ’Á„¸U· àflÊ ¡ÈCÔUÊ¢ ¬˝ÊˇÊÊÁ◊ ’Á„¸U⁄UÁ‚ ‚È˝ÇèÿSàflÊ ¡Èc≈¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊.. (1) „U ‚Á◊œÊ! „U◊ ÿôÊ ◊¥ ßc≈U „UÊŸ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U flÁŒ∑§Ê! ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ÷Ë •Êfl‡ÿ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ÷Ë (¬˝ˇÊÊÁ‹Ã ∑§⁄U ∑§) ¬ÁflòÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ∑ȧ‡ÊÊ (ÿôÊ ◊¥ ¬˝ÿʪ •ÊŸ flÊ‹Ë ÉÊÊ‚)! •Ê¬ ∑§Ê ÷Ë „U◊ (¬˝ˇÊÊÁ‹Ã ∑§⁄U ∑§) ¬ÁflòÊ ∑§⁄Uà „Ò¥. (1) •ÁŒàÿÒ √ÿÈ㌟◊Á‚ ÁflcáÊÊ— SÃȬÊSÿÍáʸê◊˝Œ‚¢ àflÊ SÃÎáÊÊÁ◊ SflÊ‚SÕÊ¢ ŒflèÿÊ ÷Èfl¬Ãÿ SflÊ„UÊ ÷ÈflŸ¬Ãÿ SflÊ„UÊ ÷ÍÃÊŸÊ¢ ¬Ãÿ SflÊ„UÊ.. (2) „U ÿôÊ¡‹! •Ê¬ •ÁŒÁà (¬ÎâflË) ∑§Ê ‚Ë¥øà „Ò¥U. •Ê¬ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ‚Ë¥øà „Ò¥U.U „U SÃͬ ∑§ •Ê∑§Ê⁄U flÊ‹ ∑ȧ‡ÊÊ! ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Ÿ⁄U◊ (∑§Ê◊‹) •Ê‚Ÿ ∑§ M§¬ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê »Ò§‹ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥, ¬ÎâflˬÁÃ, ¬Îâflˬʋ∑§ •ÊÒ⁄U ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ •ÊÁŒ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§ËÁ¡∞. (2) ªãœfl¸SàflÊ Áfl‡flÊfl‚È— ¬Á⁄UŒœÊÃÈ Áfl‡flSÿÊÁ⁄UCÔ˜UÿÒ ÿ¡◊ÊŸSÿ ¬Á⁄UÁœ⁄USÿÁÇŸÁ⁄U«U ˘ ߸Á«U×. ßãº˝Sÿ ’Ê„ÈU⁄UÁ‚ ŒÁˇÊáÊÊ Áfl‡flSÿÊÁ⁄Uc≈˜UÿÒ ÿ¡◊ÊŸSÿ ¬Á⁄UÁœ⁄USÿÁÇŸÁ⁄U«U ˘ ߸Á«U×. Á◊òÊÊflL§áÊÊÒ àflÊûÊ⁄U× ¬Á⁄UœûÊÊ¢ œ˝ÈfláÊ œ◊¸áÊÊ Áfl‡flSÿÊÁ⁄UCÔ˜UÿÒ ÿ¡◊ÊŸSÿ ¬Á⁄UÁœ⁄USÿÁÇŸÁ⁄U«U ˘ ߸Á«U×.. (3) Áfl‡flÊfl‚È ª¢œfl¸ ÿôÊ ∑§Ë ¬Á⁄UÁœÿÊ¥ (ÉÊ⁄UÊ¥) ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ‚÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ •ÁŸc≈U (•◊¢ª‹) ∑§ ÁŸflÊ⁄UáÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ÿôÊ ∑§Ë ¬Á⁄UÁœÿÊ¥ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôʬÁ⁄UÁœ ߢº˝ ∑§Ë ŒÊßZ ÷È¡Ê „ÒU. ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ŒŸ flÊ‹Ë „ÒU. ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ •ÁŸc≈U (•◊¢ª‹) ÁŸflÊ⁄UáÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ÿôÊ ∑§Ë ¬Á⁄UÁœ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ ©UûÊ⁄U ‚ œ◊¸ ∑§ ‚ÊÕ ÿôÊ ∑§Ë ¬Á⁄UÁœ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ‚÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ •ÁŸc≈U (•◊¢ª‹) ∑§Ê ÁŸflÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ÿôÊ ∑§Ë ¬Á⁄UÁœ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (3) ÿ¡Èfl¸Œ - 39
¬Íflʸœ¸
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ
flËÁÄUÊòÊ¢ àflÊ ∑§fl lÈ◊ãà ¦ ‚Á◊œË◊Á„U. •ÇŸ ’΄UãÃ◊äfl⁄U.. (4) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ¬˝◊Èπ „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹, áSflË, ∑§Áfl fl ÷Íà •ÊÒ⁄U ÷Áflcÿ ∑§Ê ¡ÊŸŸ flÊ‹ „Ò¥. „U◊ ‚Á◊œÊ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÖUflÁ‹Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (4) ‚Á◊ŒÁ‚ ‚Íÿ¸SàflÊ ¬È⁄USÃÊÃ˜Ô ¬ÊÃÈ ∑§SÿÊÁ‡øŒÁ÷‡ÊSàÿÒ. ‚ÁflÃȒʸ„ÍU SÕ ˘ ™§áʸê◊˝Œ‚¢ àflÊ SÃÎáÊÊÁ◊ SflÊ‚SÕ¢ Œflèÿ ˘ •ÊàflÊ fl‚flÊ L§º˝Ê ˘ •ÊÁŒàÿÊ— ‚ŒãÃÈ.. (5) „U ‚Á◊œÊ! ‚Íÿ¸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. „U ∑ȧ‡Ê! ‚Íÿ¸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ‚Á◊œÊ •ÊÒ⁄U ∑È ‡Ê ŒÊŸÊ¥ „UË ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ŒÊŸÊ¥ ÷È¡Ê∞¢ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ÷«∏U ∑§ ’Ê‹Ê¥ ‚ ’Ÿ •Ê‚Ÿ ∑§Ê Á’¿UÊ ⁄U„U „Ò¥U. ÿ •Ê‚Ÿ „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Á’¿UÊà „Ò¥U ÃÊÁ∑§ ŒflÃÊ ‚Èπ¬Ífl¸∑§ Áfl⁄UÊ¡ ‚∑¥§. fl‚È, L§º˝ fl •ÊÁŒàÿ ¬œÊ⁄U ∑§⁄U •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. (5) ÉÊÎÃÊëÿÁ‚ ¡È„ÍUŸÊ¸êŸÊ ‚Œ¢ Á¬˝ÿáÊ œÊêŸÊ Á¬˝ÿ ¦ ‚Œ ˘ •Ê‚ËŒ ÉÊÎÃÊëÿSÿȬ÷ÎãŸÊêŸÊ ‚Œ¢ Á¬˝ÿáÊ œÊêŸÊ Á¬˝ÿ ¦ ‚Œ ˘ •Ê‚ËŒ˜Ô ÉÊÎÃÊëÿÁ‚ œ˝ÈflÊ ŸÊêŸÊ ‚Œ¢ Á¬˝ÿáÊ œÊêŸÊ Á¬˝ÿ ¦ ‚Œ ˘ •Ê‚ËŒ Á¬˝ÿáÊ œÊêŸÊ Á¬˝ÿ ¦ ‚Œ ˘ •Ê‚ËŒ. œ˝ÈflÊ •‚ŒãŸÎÃSÿ ÿÊŸÊÒ ÃÊ ÁflcáÊÊ ¬ÊÁ„U ¬ÊÁ„U ÿôÊ¢ ¬ÊÁ„U ÿôʬ®Ã ¬ÊÁ„U ◊Ê¢ ÿôÊãÿ◊˜Ô.. (6) ¡È„ÍU ŸÊ◊∑§ ÿôÊ ‚ÊœŸ ∑§Ê ÉÊË Á¬˝ÿ „Ò. (ÉÊË) ÉÊÎÃ-Á‚¢øŸ ∑§ ’ÊŒ fl„U Á¬˝ÿ œÊ◊ (ÿôÊSÕÊŸ) ¬⁄U ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl„U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ÉÊÎà ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. ©U¬÷Îà ŸÊ◊∑§ ÿôÊ ‚ÊœŸ ∑§Ê (ÉÊË) ÉÊÎÃ-Á‚¢øŸ ∑§ ’ÊŒ fl„U Á¬˝ÿ œÊ◊ (ÿôÊSÕÊŸ) ¬⁄U ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. œ˝Èfl ŸÊ◊∑§ ÿôÊ ‚ÊœŸ ∑§Ê ÉÊË Á¬˝ÿ „ÒU. ÉÊÎÃ-Á‚¢øŸ ∑§ ’ÊŒ fl„U •¬Ÿ Á¬˝ÿ œÊ◊ (ÿôÊSÕÊŸ) ¬⁄U ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ ÿôÊSÕÊŸ ¬⁄U ¬œÊ⁄UŸ fl Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôÊ, ‚ÊœŸÊ¥, ©U‚ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ •ÊÒ⁄U ©U‚ ∑§ ‚„UÊÿ∑§Ê¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (6) •ÇŸ flÊ¡Á¡mÊ¡¢ àflÊ ‚Á⁄Ucÿãâ flÊ¡Á¡Ã ¦ ‚ê◊ÊÌÖ◊. Ÿ◊Ê Œflèÿ— SflœÊ Á¬ÃÎèÿ— ‚Èÿ◊ ◊ ÷ÍÿÊSÃ◊˜Ô.. (7) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ãŸŒÊÃÊ „Ò¥$ ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ ‹Êª •ãŸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ‚ê◊ÊÁ¡¸Ã (‡ÊÈh) ∑§⁄Uà „Ò¥. „U◊ •Ê„ÈUÁà ∑§ ‚ÊÕ ŒflÃÊ•Ê¥ fl Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (7) •S∑§ãŸ◊l Œflèÿ ˘ •ÊÖÿ ¦ ‚¢Á÷˝ÿÊ‚◊æ˜UÁÉÊ˝áÊÊ ÁflcáÊÊ ◊Ê àflÊfl∑˝§Á◊·¢ fl‚È◊ÃË◊ÇŸ à ë¿UÊÿÊ◊ȬSÕ·¢ ÁflcáÊÊ— SÕÊŸ◊‚Ëà ˘ ßãº˝Ê flËÿ¸◊∑ΧáÊÊŒÍäflʸäfl⁄U ˘ •ÊSÕÊØÔ.. (8) „U •ÁÇŸ! „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Á¬¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ¬ÁflòÊ (‡ÊÈh) ÉÊËU ‹ ∑§⁄U •Ê∞ „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! ߢº˝ Ÿ •¬Ÿ ’‹ ‚ ÿôÊ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ’…∏UÊ߸. ÁflcáÊÈ Ÿ •¬Ÿ ’‹ 40 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ
‚ ÿôÊ ∑§Ê ©UãŸÁà ŒË. •Ê¬ •ããÊŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ SÕ‹ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ¿UòÊë¿UÊÿÊ ◊¥ ⁄U„UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ‚ŒÒfl ÿôÊSÕ‹ ∑§Ë ¬ÁflòÊÃÊ ∑§Ê ’ŸÊ∞ ⁄Uπ¥ª$ (8) •ÇŸ fl„UʸòÊ¢ flŒ¸Íàÿ◊flÃÊ¢ àflÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË •fl àfl¢ lÊflʬÎÁÕflË ÁSflCÔU∑ΧŒ˜Œflèÿ ˘ ßãº˝ ˘ •ÊÖÿŸ „UÁfl·Ê ÷ÍàSflÊ„UÊ ‚¢ ÖÿÊÁÃ·Ê ÖÿÊÁ×.. (9) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ë √ÿflSÕÊ •ÊÒ⁄U ÁflœÊŸ ∑§Ê •ë¿UË Ã⁄U„U ¡ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŒÍà „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ •Ê„ÈUÁà ¬„È¢UøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ fl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ߢº˝ •ãÿ ŒflÃÊ•Ê¥ ‚Á„Uà ÉÊË ∑§Ë „UÁfl ‚ ÃÎåà fl ÖÿÊÁà ‚ ÖÿÊÁà ◊¥ ∞∑§Ê∑§Ê⁄U „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) ◊ÿËŒÁ◊ãº˝ ˘ ßÁãº˝ÿ¢ ŒœÊàflS◊ÊŸÔÔ˜ ⁄UÊÿÊ ◊ÉÊflÊŸ— ‚øãÃÊ◊Ô˜Ô. •S◊Ê∑ ¦ ‚ãàflÊÁ‡Ê·— ‚àÿÊ Ÿ— ‚ãàflÊÁ‡Ê· ˘ ©U¬„ÍUÃÊ ¬ÎÁÕflË ◊ÊÃʬ◊Ê¢ ¬ÎÁÕflË ◊ÊÃÊ uÔUÿÃÊ◊ÁÇŸ⁄UÊÇŸËœ˝ÊàSflÊ„UÊ.. (10) „U ߢº˝! •Ê¬ „U◊¥ ߢº˝◊ÿ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄áÊ ∑§⁄UŸ, „U◊¥ œŸflÊŸ ’ŸÊŸ, •Ê‡ÊËflʸŒ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ fl „U◊Ê⁄UË •Ê‡ÊÊ∞¢ »§‹Ë÷Íà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ •Ê‡ÊËflʸŒ ŒËÁ¡∞. ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§ ‚◊ÊŸ „Ò. „U◊ Ÿ ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§Ë „ÒU. „U◊ ÿôÊ ∑§Ë •ÁÇŸ ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •¬Ÿ ¡Ò‚Ê Ã¡Ê◊ÿ ’ŸÊ∞¢. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‹Ê∑§Á„Uà ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (10) ©U¬„ÍÃÊ lÊÒÁc¬Ãʬ ◊Ê¢ lÊÒÁc¬ÃÊ uÔUÿÃÊ◊ÁÇŸ⁄UÊÇŸËœ˝ÊàSflÊ„UÊ. ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜Ô. ¬˝ÁêαáÊÊêÿÇŸCÔ˜UflÊSÿŸ ¬˝Ê‡ŸÊÁ◊.. (11) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! „U◊ Ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ Á¬ÃÊ ∑§Ê •¬Ÿ ‚◊ˬ (¬Ê‚) •Ê◊¢ÁòÊà Á∑§ÿÊ „ÒU. „U◊ Ÿ ©U‚ ∑§ Á¬ÃÊ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§Ë „ÒU. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê„ÈUÁà „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ‚ÁflÃÊ Œfl Ÿ •Ê„ÈUÁà ©U¬¡Ê߸ „ÒU. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •¬ŸË ÷È¡Ê•Ê¥ ‚ ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬Í·Ê Œfl ŒÊŸÊ¥ „UÊÕÊ¥ ‚ ÿôÊ ∑§ ß‚ •ãŸ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚÷Ë Œfl •ÁÇŸ ∑§ ◊Èπ ‚ •ãŸ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ (πÊŸ) ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (11) ∞Ããà Œfl ‚ÁflÃÿ¸ôÊ¢ ¬˝Ê„ÈU’θ„US¬Ãÿ ’˝rÊÔáÊ. ß ÿôÊ◊fl ß ÿôʬÁâ ß ◊Ê◊fl.. (12) „U ‚ÁflÃÊ! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ß‚ Áfl‡ÊÊ‹ ÿôÊ ∑§Ê •ŸÈcΔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U$ •Ê¬ ÿôʬÁà „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ∑§Ë fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (12) ÿ¡Èfl¸Œ - 41
¬Íflʸœ¸
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ
◊ŸÊ ¡ÍÁáȸ·ÃÊ◊ÊÖÿSÿ ’΄US¬ÁÃÿ¸ôÊÁ◊◊¢ ßÊàflÁ⁄Uc≈¢U ÿôÊ ¦ ‚Á◊◊¢ ŒœÊÃÈ. Áfl‡fl ŒflÊ‚ ˘ ß„U ◊ÊŒÿãÃÊ◊Ê 3 ê¬˝ÁÃcΔU.. (13) „U ‚ÁflÃÊ! •Ê¬ •¬Ÿ flªflÊŸ ◊Ÿ ‚ ÉÊË ∑§Ê ‚flŸ ∑§ËÁ¡∞. ’΄US¬Áà Œfl ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄UŸ fl ß‚ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U$ ÿ„U ÿôÊ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ŒÊŸÊ¥ Œfl „U◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (13) ∞·Ê à •ÇŸ ‚Á◊ûÊÿÊ flœ¸Sfl øÊ ø åÿÊÿSfl. flÁœ¸·Ë◊Á„U ø flÿ◊Ê ø åÿÊÁ‚·Ë◊Á„U. •ÇŸ flÊ¡Á¡mÊ¡¢ àflÊ ‚‚ÎflÊ ¦ ‚¢ flÊ¡Á¡Ã ¦ ‚ê◊ÊÁÖ¸◊.. (14) „U •ÁÇŸ! ÿ„U •Ê¬ ∑§Ë ’…U∏ÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ ‚Á◊œÊ „ÒU$ •Ê¬ •¬ŸË ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ ‚ÊÕ „U◊Ê⁄UË ÷Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ’…U∏ÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË ’…U∏ÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U. •ÁÇŸ •ããÊ ©U¬¡Êà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚ê◊Ê¡¸Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U •ÕʸØ •Ê¬ ∑§Ê ¡‹ ‚ ‚Ë¥øà „Ò¥U. (14) •ÇŸË·Ê◊ÿÊL§ÁîÊÁÃ◊ŸÍîÊ·¢ flÊ¡Sÿ ◊Ê ¬˝‚flŸ ¬˝Ê„UÊÁ◊. •ÇŸË·Ê◊ÊÒ Ã◊¬ŸÈŒÃÊ¢ ÿÊS◊ÊãmÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊Ê flÊ¡SÿÒŸ¢ ¬˝‚flŸÊ¬Ê„UÊÁ◊. ßãº˝ÊÇãÿÊL§ÁîÊÁÃ◊ŸÍîÊ·¢ flÊ¡Sÿ ◊Ê ¬˝‚flŸ ¬˝Ê„UÊÁ◊. ßãº˝ÊÇŸË Ã◊¬ŸÈŒÃÊ¢ ÿÊS◊ÊãmÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊Ê flÊ¡SÿÒŸ¢ ¬˝‚flŸÊ¬Ê„UÊÁ◊.. (15) „U •ÁÇŸ! „U◊ flÒ‚Ë „UË Áfl¡ÿüÊË ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U, ¡Ò‚Ë Áfl¡ÿ ‚Ê◊ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ Ÿ ¬˝Êåà ∑§Ë „ÒU. •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ©UŸ ∑§Ê ŒÍ⁄U „U≈U Ê Œ¥ ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ©UŸ ∑§Ê ŒÍ⁄U „≈UUÊ Œ¥ Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ããÊ ‚ ©U‚ Áfl¡ÿ ∑§ Á‹∞ ¬˝⁄UáÊÊ ¬Êà „Ò¥U. (15) fl‚ÈèÿSàflÊ L§º˝è ÿSàflÊÁŒàÿèÿSàflÊ ‚¢¡ÊŸÊÕÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË Á◊òÊÊflL§áÊÊÒ àflÊ flÎCU˜ÔÿÊflÃÊ◊˜.Ô √ÿãÃÈ flÿÊÄà ¦ Á⁄U„UÊáÊÊ ◊L§ÃÊ¢ ¬Î·Ã˪¸ë¿U fl‡ÊÊ ¬ÎÁ‡Ÿ÷ÍภflÊ ÁŒfl¢ ªë¿U ÃÃÊ ŸÊ flÎÁCÔU◊Êfl„U. øˇÊÈc¬Ê ˘ •ÇŸÁ‚ øˇÊÈ◊¸ ¬ÊÁ„..U (16) fl‚ȪáÊÊ¥, L§º˝ªáÊÊ¥ •ÊÒ⁄U •ÊÁŒàÿªáÊÊ¥ ∑§Ê ÿ ÃËŸ ¬Á⁄UÁœÿÊ¢ •Á¬¸Ã ∑§Ë ¡ÊÃË „Ò¥U. Á◊òʪáÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Sflª¸‹Ê∑§ ∞fl¢ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ë fl·Ê¸ ‚ ©UŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬ˇÊË ÉÊË flÊ‹Ë „UÁfl ∑§Ê πÊ ∑§⁄U ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ¬„È¢U øŸ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ „U◊Ê⁄U ÿôÊ fl „U◊Ê⁄U ŸòÊÊ¥ ∑§ ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U ÿôÊ fl „U◊Ê⁄U ŸòÊÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. (16) ÿ¢ ¬Á⁄UÁœ¢ ¬ÿ¸œàÕÊ ˘ •ÇŸ Œfl ¬ÁáÊÁ÷ªÈ¸„U˜ÿÔ◊ÊŸ—. â à ˘ ∞Ã◊ŸÈ ¡Ê·¢ ÷⁄UÊêÿ· ŸûflŒ¬øÃÿÊÃÊ ˘ •ÇŸ— Á¬˝ÿ¢ ¬ÊÕʬËÃ◊˜Ô.. (17) (*◊ûflŒ¬øÃÿÊÃÊ flÒ. ÿ. •.) „U •ÁÇŸ! ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ‚ ’øÊfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ¬Á⁄UÁœ ’ŸÊ߸ ¡ÊÃË 42 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ
„ÒU. fl„U ¬Á⁄UÁœ •Ê¬ ∑§ •ŸÈM§¬ „ÒU. fl„U ¬Á⁄UÁœ ªÈåUà „ÒU. •ÁÇŸ ß‚ ¬Á⁄UÁœ ∑§Ê ÷⁄UŸ¬Í⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U$ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ Á¬˝ÿ ¬ÊÕÿ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò.U fl ©Uã„¥U SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (17) ‚ ¦ dfl÷ÊªÊ SÕ·Ê ’΄Uã× ¬˝SÃ⁄UcΔUÊ— ¬Á⁄Uœÿʇø ŒflÊ—. ß◊Ê¢ flÊø◊Á÷ Áfl‡fl ªÎáÊãà ˘ •Ê‚lÊÁS◊Ÿ˜Ô ’Á„¸UÁ· ◊ÊŒÿäfl ¦ SflÊ„UÊ flÊ≈˜U.. (18) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ •¬Ÿ •ÊüÊ◊ fl •¬ŸË ¬Á⁄UÁœ (◊ÿʸŒÊ) ◊¥ ⁄U„Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ •Ê¬ ‚’ ∑§Ë flÊáÊË ‚ fl¢ŒŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞ •ÊÒ⁄U •ÊŸ¢UÁŒÃ „UÊß∞. •Ê¬ ‚÷Ë ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (18) ÉÊÎÃÊøË SÕÊ œÈÿÊÒ¸ ¬Êà ¦ ‚ÈêŸ SÕ— ‚ÈêŸ ◊Ê œûÊ◊˜Ô. ÿôÊ Ÿ◊‡ø à ˘ ©U¬ ø ÿôÊSÿ Á‡Êfl ‚¢ÁÃcΔUSfl ÁSflCÔU ◊ ‚¢ÁÃcΔUSfl.. (19) „U ŒÊ Œfl (¡È„ÍU •ÊÒ⁄U ©U¬÷ÎÃ)! •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ÉÊË ‚ ¬Íáʸ „UÊß∞. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ ∑§⁄U ÁSÕà ⁄UÁ„U∞. •Ê¬ „U◊ ‹ÊªÊ¥ ∑§ Á‹∞ •ë¿UÊ ◊Ÿ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÿôÊ fl ©U‚ ∑§ Œfl ©U¬÷Îà ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ÷Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ßc≈U Œfl „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝ÁÃÁcΔUà „UÊŸ •ÊÒ⁄U „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (19) •ÇŸŒéœÊÿʇÊËÃ◊ ¬ÊÁ„U ◊Ê ÁŒlÊ— ¬ÊÁ„U ¬˝Á‚àÿÒ ¬ÊÁ„U ŒÈÁ⁄UCÔ˜UÿÒ ¬ÊÁ„U ŒÈ⁄UŒ˜◊ãÿÊ •Áfl·¢ Ÿ— Á¬ÃÈ¢ ∑ΧáÊÈ. ‚È·ŒÊ ÿÊŸÊÒ SflÊ„UÊ flÊ«UÇŸÿ ‚¢fl‡Ê¬Ãÿ SflÊ„UÊ ‚⁄USflàÿÒ ÿ‡ÊÊ÷ÁªãÿÒ SflÊ„UÊ.. (20) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥, ‡ÊSòÊÊ¥ fl ŒÍÁ·Ã (Áfl·Ò‹) ÷Ê¡Ÿ ‚ ’øÊß∞. •Ê¬ ÷Ê¡Ÿ ∑§ ©UŸ Áfl·Ò‹ ÃûflÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ ‚ÈπŒ „UÊ. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ ∑§ ‚¢⁄UˇÊáÊ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹Ê¥, ŒflË ÃÕÊ ÿ‡Ê ∑§Ë ’„UŸ ‚⁄USflÃË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (20) flŒÊÁ‚ ÿŸ àfl¢ Œfl flŒ ŒflèÿÊ flŒÊ÷flSß ◊sÔ¢ flŒÊ ÷ÍÿÊ—. ŒflÊ ªÊÃÈÁflŒÊ ªÊÃÈ¢ ÁflûflÊ ªÊÃÈÁ◊Ã. ◊Ÿ‚S¬Ã ˘ ß◊¢ Œfl ÿôÊ ¦ SflÊ„UÊ flÊà œÊ—.. (21) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ ôÊÊŸ◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë ôÊÊŸflÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ôÊÊŸ SflM§¬ „UÊß∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ ªÈáÊ ªÊà „ÒU¥. •Ê¬ ◊Ÿ ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. ÿ„U ÿôÊ ŒflÊ¥ ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flÊÿÈ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U ∑§ ß‚ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (21) ‚¢’Á„¸U⁄Uæ˜UÄÃÊ ¦ „UÁfl·Ê ÉÊÎß ‚◊ÊÁŒàÿÒfl¸‚ÈÁ÷— ‚ê◊L§Áj—. ‚Á◊ãº˝Ê Áfl‡flŒflÊÁ÷⁄Uæ˜UÄÃÊ¢ ÁŒ√ÿ¢ Ÿ÷Ê ªë¿UÃÈ ÿØ SflÊ„UÊ.. (22) „U ߢº˝! ∑ȧ‡Ê ∑§ ‚◊Í„U ∑§Ê ÉÊË ÿÈÄà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ∑ȧ‡Ê ∑§ ‚◊Í„U ∑§Ê ÉÊË ÿÈÄà ∑§⁄U ∑§ ÿ¡Èfl¸Œ - 43
¬Íflʸœ¸
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ
‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ∑ȧ‡Ê ∑§ ‚◊Í„U Áfl‡fl ∑§ ‚ÊÕ ÁŒ√ÿ Ÿ÷, •Á⁄UcÿªáÊ fl fl‚ȪáÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ÁŒ√ÿ Ÿ÷ Ã∑§ ¡Ê∞¢. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (22) ∑§SàflÊ Áfl◊ÈÜøÁà ‚ àflÊ Áfl◊ÈÜøÁà ∑§S◊Ò àflÊ Áfl◊ÈÜøÁà ÃS◊Ò àflÊ Áfl◊ÈÜøÁÃ. ¬Ê·Êÿ ⁄UˇÊ‚Ê¢ ÷ʪÊÁ‚.. (23) ∑§ÊÒŸ •Ê¬ ∑§Ê ¿UÊ«∏UÃÊ „Ò? Á∑§‚Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¿UÊ«∏UÃÊ „Ò?U fl„ •Ê¬ ∑§Ê •ãÿ (ÿÊ¡∑§Ê¥ •ÊÒ⁄U ©UŸ ∑§ ¬Á⁄U¡ŸÊ¥) ∑§ Á‹∞ ¿UÊ«∏UÃÊ „ÒU. ¡Ê ÷ʪ •flÁ‡Êc≈U „ÒU, fl„U ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§ ¬Ê·áÊ ∑§ Á‹∞ „ÒU. (23) ‚¢ flø¸‚Ê ¬ÿ‚Ê ‚¢ ßÍÁ÷⁄Uªã◊Á„U ◊Ÿ‚Ê ‚ ¦ Á‡ÊflŸ. àflCÔUÊ ‚ÈŒòÊÊ ÁflŒœÊÃÈ ⁄UÊÿÊŸÈ◊Êc≈ȸU ÃãflÊ ÿÁmÁ‹CÔU◊˜Ô.. (24) „U◊ flø¸SflË „UÊ¥. „U◊ ŒÍäÊ ‚ •¬Ÿ ß ∑§Ê ¬ÊÁ·Ã ∑§⁄¥U. „U◊Ê⁄U ◊Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ◊ÿË ÷ÊflŸÊ•Ê¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ¥$ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊Ê⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ¡Ê ÷Ë ∑§◊Ë „UÊ, fl„U ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. (24U) ÁŒÁfl ÁflcáÊÈ√ÿ¸∑˝§ ¦ Sà ¡ÊªÃŸ ¿UãŒ‚Ê ÃÃÊ ÁŸ÷¸ÄÃÊ ÿÊS◊ÊãmÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊ÊãÃÁ⁄UˇÊ ÁflcáÊÈ√ÿ¸∑˝§ ¦ Sà òÊÒc≈ÈU÷Ÿ ¿UãŒ‚Ê ÃÃÊ ÁŸ÷¸ÄÃÊ ÿÊS◊ÊãmÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊— ¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ ÁflcáÊÈ√ÿ¸∑˝§ ¦ Sà ªÊÿòÊáÊ ¿UãŒ‚Ê ÃÃÊ ÁŸ÷¸ÄÃÊ ÿÊS◊ÊãmÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊ÊS◊ÊŒãŸÊŒSÿÒ ¬˝ÁÃcΔUÊÿÊ ˘ •ªã◊ Sfl— ‚¢ ÖÿÊÁ÷Ê÷Í◊.. (25) ÁflcáÊÈ Ÿ ¡ªÃË ¿¢UŒ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ¬Í⁄UÊ ÷˝◊áÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. ©Uã„UÊŸ¥ ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „ÒU¥ •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „ÒU¥, ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄U ÁŒÿÊ „ÒU. ©Uã„UÊŸ¥ ÁòÊc≈ÈU¬˜ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄U ÁŒÿÊ „ÒU. fl ªÊÿòÊË ¿UŒ¢ ¬ÎâflË ‚ ‚◊Êåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥$ •ãŸ ‚ ∞‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê „U≈UÊ ÁŒÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Ê∞¢ ÃÕÊ ÖÿÊÁà ‚¢¬ããÊ „UÊ ¡Ê∞¢. (25) Sflÿ¢÷Í⁄UÁ‚ üÊcΔUÊ ⁄UÁ‡◊fl¸øʸŒÊ ˘ •Á‚ fløʸ ◊ ŒÁ„U. ‚Íÿ¸SÿÊflÎÃ◊ãflÊflø.. (26) •Ê¬ Sflÿ¢ ÷Í, üÊcΔU ÷Í, Á∑§⁄UáÊ◊ÿ ÷Í fl flø¸SflË ÷Í „Ò¥U. „U◊ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ¬Á⁄U∑˝§◊Ê ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U „UË ¬Á⁄U∑˝§◊Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. (26) •ÇŸ ªÎ„U¬Ã ‚Ȫ΄U¬ÁÃSàflÿÊÇŸ„¢U ªÎ„U¬ÁÃŸÊ ÷ÍÿÊ‚ ¦ ‚Ȫ΄U¬ÁÃSàfl¢ ◊ÿÊÇŸ ªÎ„U¬ÁÃŸÊ ÷ÍÿÊ—. •SÕÍÁ⁄U áÊÊÒ ªÊ„¸U¬àÿÊÁŸ ‚ãÃÈ ‡Êà ¦ Á„U◊Ê— ‚Íÿ¸SÿÊflÎÃ◊ãflÊflø.. (27) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÉÊ⁄U ∑§ fl •ë¿U ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÷Ë ªÎ„U¬Áà fl •ë¿U ªÎ„U¬Áà ’Ÿ¥. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÷Ë ’Ê⁄U¢’Ê⁄U •ë¿U ªÎ„U¬Áà ’Ÿ¥. „U◊ •ë¿U ªÎ„USÕ „UÊ¥. „U◊ ‚ÊÒ fl·ÊZ Ã∑§ ÿôÊ ∑§◊¸ ∑§⁄¥U. „U◊ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ¬Á⁄U∑˝§◊Ê ∑ •ŸÈM§¬ •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄¥U. (27) •ÇŸ fl˝Ã¬Ã fl˝Ã◊øÊÁ⁄U·¢ ÃŒ‡Ê∑¢§ Ãã◊⁄UÊœË Œ◊„¢U ÿ ˘ ∞flÊÁS◊ ‚ÊÁS◊.. (28) 44 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ŒÍ‚⁄UÊ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ fl˝Ã¬Áà „Ò¥U. „U◊ ÷Ë •Ê¬ ∑§ fl˝ÃÊ¥ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U ø‹ ∑§⁄U ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ ’ŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ „U◊Ê⁄UË •Ê∑§Ê¢ˇÊÊ∞¢ »§‹Ë÷Íà ∑§Ë „Ò¥U. „U◊ ¡Ò‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà ‚◊ÿ Õ (ÿôÊ»§‹ ¬˝Êåà „UÊ ¡ÊŸ ¬⁄U ÷Ë) „U◊ flÒ‚ „UË „Ò¥U. (28) •ÇŸÿ ∑§√ÿflÊ„UŸÊÿ SflÊ„UÊ ‚Ê◊Êÿ Á¬ÃÎ◊à SflÊ„UÊ. •¬„UÃÊ ˘ •‚È⁄UÊ ⁄UˇÊÊ ¦ Á‚ flÁŒ·Œ—.. (29) Á¬Ã⁄Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ¬„È¢UøÊŸ flÊ‹ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ‚ÊÕË ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿôÊ ∑§Ë flŒË ‚ •‚È⁄U •ÊÒ⁄U ⁄UÊˇÊ‚ªáÊ ŒÍ⁄U „UÊ ª∞ „Ò¥U. (29) ÿ M§¬ÊÁáÊ ¬˝ÁÃ◊ÈÔÜø◊ÊŸÊ ˘ •‚È⁄UÊ— ‚ã× SflœÿÊ ø⁄UÁãÃ. ¬⁄UʬÈ⁄UÊ ÁŸ¬È⁄UÊ ÿ ÷⁄UãàÿÁÇŸc≈UÊ°À‹Ê∑§Êà¬˝áÊÈŒÊàÿS◊Êàʘ.. (30) ¡Ê •‚È⁄U M§¬ ’Œ‹ ∑§⁄U ÿÊ •ãÿ M§¬ ◊¥ •Ê ∑§⁄U Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã •Ê„ÈUÁà ∑§Ê πÊ ¡Êà „Ò¥U, •Ê¬ ß‚ Ã⁄U„U •¬ŸÊ èÊ⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ŸËø ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ‹Ê∑§ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (30) •òÊ Á¬Ã⁄UÊ ◊ÊŒÿäfl¢ ÿÕÊ÷ʪ◊ÊflηÊÿäflêʘ. •◊Ë◊Œãà Á¬Ã⁄UÊ ÿÕÊ÷ʪ◊ÊflηÊÁÿ·Ã.. (31) ¡Ò‚ ’Ò‹ •¬ŸÊ ÷ʪ ¬˝Êåà ∑§⁄ U∑§ ◊Œ◊Sà „UÊ ¡Êà „Ò¥U, ¬Èc≈U „UÊ ¡Êà „Ò¥U, flÒ‚ „UË Á¬ÃÎUªáÊ •¬ŸÊ ÷ʪ ¬Ê ∑§⁄U ¬Èc≈U ∞fl¢ ◊Œ◊Sà „UÊ ¡Êà „Ò¥U. (31) Ÿ◊Ê fl— Á¬Ã⁄UÊ ⁄U‚Êÿ Ÿ◊Ê fl— Á¬Ã⁄U— ‡ÊÊ·Êÿ Ÿ◊Ê fl— Á¬Ã⁄UÊ ¡ËflÊÿ Ÿ◊Ê fl— Á¬Ã⁄U— SflœÊÿÒ Ÿ◊Ê fl— Á¬Ã⁄UÊ ÉÊÊ⁄UÊÿ Ÿ◊Ê fl— Á¬Ã⁄Ê ◊ãÿfl Ÿ◊Ê fl— Á¬Ã⁄U— Á¬Ã⁄UÊ Ÿ◊Ê flÊ ªÎ„UÊ㟗 Á¬Ã⁄UÊ ŒûÊ ‚ÃÊ fl— Á¬Ã⁄UÊ Œc◊ÒÃm— Á¬Ã⁄UÊ flÊ‚ ˘ •ÊœûÊ.. (32) Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ⁄U‚ M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ‡ÊÈc∑§ M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ¡ËflŸ M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ •ããÊ M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ¬Ê·∑§ M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ©Uà‚Ê„U M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ∑˝§Êœ M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ◊ãÿÈ M§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. „U◊ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ÉÊ⁄U, flSòÊ •ÊÁŒ ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. Á¬Ã⁄ ÷Ë „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÉÊ⁄,U flSòÊ •ÊÁŒ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (32) •ÊœûÊ Á¬Ã⁄UÊ ª÷Z ∑ȧ◊Ê⁄¢U ¬Èc∑§⁄Ud¡êʘ. ÿÕ„U ¬ÈL§·Ê‚àʘ.. (33) „U Á¬ÃÎUªáÊ! •Ê¬ ª÷¸ ◊¥ „UË ’Ê‹∑§ ∑§ Á‹∞ •¡‚˝ (÷⁄U¬Í⁄U) ¬Ê·áÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞ Á¡‚ ‚ fl„U flË⁄U ’Ÿ ‚∑§. (33) ™§¡Z fl„UãÃË⁄U◊Îâ ÉÊÎâ ¬ÿ— ∑§Ë‹Ê‹¢ ¬Á⁄UdÈÃêʘ. SflœÊ SÕ Ã¬¸ÿà ◊ Á¬ÃÎΟ˜.. (34) ™§¡Ê¸ fl„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë fl ™§¡Ê¸◊ÿË ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, ŒÍœ◊ÿË ÃÕÊ •ãŸ◊ÿË ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ¡‹œÊ⁄UÊ∞¢ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ÃÎåàÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (34) ÿ¡Èfl¸Œ - 45
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ ‚Á◊œÊÁÇŸ¢ ŒÈflSÿà ÉÊÎÃҒʸœÿÃÊÁÃÁÕêʘ. •ÊÁS◊ãʘ „U√ÿÊ ¡È„UÊß.. (1) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ‚Á◊œÊ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ fl ©U‚ ∑§Ê ¡ªÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ •ÁÃÁÕ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ fl ©U‚ ◊¥ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (1) ‚È‚Á◊hÊÿ ‡ÊÊÁø· ÉÊÎâ ÃËfl˝¢ ¡È„UÊß. •ÇŸÿ ¡ÊÃflŒ‚.. (2) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ‚Á◊œÊ•Ê¥ ‚ •ë¿UË Ã⁄U„U ¬˝ÖflÁ‹Ã ‚fl¸ôÊ •ÁÇŸ ◊¥ ¬ÁflòÊ ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (2) â àflÊ ‚Á◊Áj⁄UÁX⁄UÊ ÉÊÎß flœ¸ÿÊ◊Á‚. ’΄Uë¿UÊøÊ ÿÁflcΔ˜ÿ.. (3) „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚Á◊äÊÊ•Ê¥ fl ÉÊË ‚ ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄U ’…∏UÊà „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹ ¡ÊÒ◊ÿË ÖflÊ‹Ê•Ê¥ ‚ ™¢§ø •ÊÒ⁄U ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (3) ©U¬ àflÊÇŸ „UÁflc◊ÃËÉÊθÃÊøËÿ¸ãÃÈ „Uÿ¸Ã. ¡È·Sfl ‚Á◊œÊ ◊◊.. (4) „U •ÁÇŸ! „UÁfl ∞fl¢ ÉÊÎà flÊ‹Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •Ê¬ Ã∑§ ¬„È¢Uø¥, •Ê¬ ∑§Ê ◊Ÿ „U⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U mÊ⁄UÊ ÷¥≈U ∑§Ë ªß¸ ‚Á◊äÊÊ•Ê¥ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Î ¬Ê ∑§⁄¥U. (4) ÷Í÷ȸfl— SfllÊÒ¸Á⁄Ufl ÷ÍêŸÊ ¬ÔÔÎÁÕflËfl flÁ⁄UêáÊÊ. ÃSÿÊSà ¬ÎÁÕÁfl Œflÿ¡ÁŸ ¬ÎcΔÁÇŸ◊ãŸÊŒ◊ãŸÊlÊÿÊŒœ.. (5) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÷Í, ÷Èfl (•¢ÃÁ⁄UˇÊ) •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ Áfll◊ÊŸ „Ò¥U. ¬ÎâflË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ üÊcΔU SÕÊŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃË „ÒU. „U◊ ©U‚Ë ¬ÎâflË ¬⁄U ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ©U‚ ‚ ¬Ífl¸ ÿôÊ-flÁŒ∑§Ê ¬⁄U •ÁÇŸ ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ããÊ ‚ ’‹ •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ÁŒ√ÿÃÊ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U.U „U◊ ¬ÎâflË ∑§ ‚◊ÊŸ ◊Á„U◊Ê ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. (5) •Êÿ¢ ªÊÒ— ¬ÎÁ‡Ÿ⁄U∑˝§◊ËŒ‚ŒŸÔÔ˜ ◊ÊÃ⁄¢U ¬È⁄U—. Á¬Ã⁄¢U ø ¬˝ÿãàSfl—.. (6) •ÁÇŸ Œfl ‚fl¸òÊ ÷˝◊áʇÊË‹ fl ’„ÈU⁄¢UªË ‹¬≈Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U$ fl„U ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§ ¬Ê‚ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. ÿôÊ ◊¥ fl„U ¬˝ÿàŸ¬Ífl¸∑§ Sflª¸‹Ê∑§ Á¬ÃÊ ∑§ ¬Ê‚ ¬„È¢Uø ª∞ „Ò¥U. (6) 46 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
•ãÇø⁄UÁà ⁄UÊøŸÊSÿ ¬˝ÊáÊÊŒ¬ÊŸÃË. √ÿÅÿŸÔ˜ ◊Á„U·Ê ÁŒfl◊Ô˜.. (7) •ÁÇŸ ∑§Ê á ¬˝ÊáÊflÊÿÈ •ÊÒ⁄U •¬ÊŸflÊÿÈ ∑§ M§¬ ◊¥ ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ ÷ËÃ⁄U ‚¢ø⁄UáÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. fl •¬Ÿ ©U‚ á ∑§Ê •ÊÒ⁄U »Ò§‹Êà „ÈU∞ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (7) ÁòÊ ¦ ‡ÊhÊ◊ Áfl⁄UÊ¡Áà flÊ∑Ô˜§ ¬ÃXÊÿ œËÿÃ. ¬˝Áà flSÃÊ⁄U„U lÈÁ÷—.. (8) flÊáÊË M§¬ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ê á Œ‚ ∑§ Áêȟ (ÿÊŸË ÃË‚) SÕÊŸÊ¥ ¬⁄U ‡ÊÊ÷Ê ¬ÊÃÊ „ÒU •ÕʸØ flÊáÊË ÁŒŸ⁄UÊà ∑§ ÃË‚ ◊È„ÍUø •ÊÒ⁄U ◊„UËŸ ∑§ ÃË‚ ÁŒŸ ∑§ M§¬ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊÃË „ÒU. ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ÷Ë SÃÈÁà ∑§ M§¬ ◊¥ flÊáÊË ∑§Ê á œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ÁŒŸ ◊¥ ¬˝∑§Ê‡Ê M§¬ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ flÊáÊË ∑§ M§¬ ◊¥ SÃÊòÊ ©UøÊ⁄U ¡Êà „Ò¥U. (8) •ÁÇŸÖÿʸÁÃÖÿʸÁÃ⁄UÁÇŸ— SflÊ„UÊ ‚Íÿʸ ÖÿÊÁÃÖÿʸÁ× ‚Íÿ¸— SflÊ„UÊ. •ÁÇŸfl¸øʸ ÖÿÊÁÃfl¸ø¸— SflÊ„UÊ ‚Íÿʸ fløʸ ÖÿÊÁÃfl¸ø¸— SflÊ„UÊ. ÖÿÊÁ× ‚Íÿ¸— ‚Íÿʸ ÖÿÊÁ× SflÊ„UÊ.. (9) •ÁÇŸ ¬˝∑§Ê‡Ê „Ò. ¬˝∑§Ê‡Ê •ÁÇŸ „ÒU. ¬˝∑§Ê‡Ê SflM§¬ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ „U◊ •Ê„UÈÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ¬˝∑§Ê‡Ê „ÒU. ¬˝∑§Ê‡Ê ‚Íÿ¸ „Ò. „U◊ ¬˝∑§Ê‡Ê SflM§¬ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÊáÊË •ÁÇŸ „ÒU. •ÁÇŸ flÊáÊË „ÒU. flÊáÊË SflM§¬ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÊáÊË ‚Íÿ¸ M§¬ „ÒU. ‚Íÿ¸ flÊáÊË M§¬ „Ò. „U◊ ‚Íÿ¸ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝∑§Ê‡Ê ‚Íÿ¸ M§¬ „ÒU. ‚Íÿ¸ ¬˝∑§Ê‡Ê M§¬ „Ò. „U◊ ‚Íÿ¸ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (9) ‚¡ÍŒ¸flŸ ‚ÁflòÊÊ ‚¡Í ⁄UÊòÿãº˝flàÿÊ. ¡È·ÊáÊÊ •ÁÇŸfl¸ÃÈ SflÊ„UÊ. ‚¡ÍŒ¸flŸ ‚ÁflòÊÊ ‚¡ÍL§·‚ãº˝flàÿÊ. ¡È·ÊáÊ— ‚Íÿʸ flÃÈ SflÊ„UÊ.. (10) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚Á„Uà •ÊÒ⁄U ߢº˝ÿÈÄà ⁄UÊÁòÊ ‚Á„Uà •ÁÇŸ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߟ ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ÿÈÄà (¡È«∏U „ÈU∞) •ÁÇŸ ß‚ •Ê„ÈUÁà ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ‚Á„Uà ߢº˝ÿÈÄà ©U·Ê ŒflË ∑§ ‚ÊÕ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ß‚ •Ê„ÈUÁà ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (10) ©U¬¬˝ÿãÃÊ •äfl⁄¢U ◊ãòÊ¢ flÊø ◊ÊÇŸÿ. •Ê⁄U •S◊ ø oÎáflÃ.. (11) „U◊ ÿôÊ ∑§ ‚◊ˬ ¬˝ÿÊ‚ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U (¡Ê ⁄U„U „Ò¥U). „U◊ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ◊¢òÊ ©UøÊ⁄U ⁄U„U „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U ‚◊ˬ •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U •ÊÒ⁄U ◊¢òÊÊ¥ ∑§Ê ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (11) •ÁÇŸ◊͸œÊ¸ ÁŒfl— ∑§∑ȧà¬Á× ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •ÿ◊Ô˜. •¬Ê ¦ ⁄UÃÊ ¦ Á‚ Á¡ãflÁÃ.. (12) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ◊Íœ¸ãÿ (‚flʸëø), Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÁSÕÃ, ß‚ ¬ÎâflË ∑§ SflÊ◊Ë ÿ¡Èfl¸Œ - 47
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
•ÊÒ⁄U ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¡‹ ◊¥ ¬˝ÊáÊŒÊÿË ‡ÊÁÄà «UÊ‹Ã „Ò¥U fl ¡ËflÊ¥ ∑§Ê Á¡‹Êà „Ò¥U. (12) ©U÷Ê flÊÁ◊ãº˝ÊÇŸË •Ê„ÈUfläÿÊ ©U÷Ê ⁄UÊœ‚— ‚„U ◊ÊŒÿäÿÒ. ©U÷Ê ŒÊÃÊ⁄UÊÁfl·Ê ¦ ⁄UÿËáÊÊ◊È÷Ê flÊ¡Sÿ ‚ÊÃÿ „ÈUfl flÊ◊Ô˜.. (13) „U ߢº˝! „U •ÁÇŸ! „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÿôÊ ◊¥ •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ãŸœŸ‚Á„Uà „U◊¥ ◊Œ◊Sà ’ŸÊß∞$ •Ê¬ •ãŸ •ÊÒ⁄U œŸ ∑§ ŒÊÃÊ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê „UË •ãŸ •ÊÒ⁄U œŸ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ◊¥ •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (13) •ÿ¢ à ÿÊÁŸ´¸§ÁàflÿÊ ÿÃÊ ¡ÊÃÊ •⁄UÊøÕÊ—. â ¡ÊUUŸãŸÇŸ ˘ •Ê⁄UÊ„UÊÕÊ ŸÊ flœ¸ÿÊ ⁄UÁÿ◊Ô˜.. (14) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’Ê⁄U’Ê⁄U ©Uà¬ãŸ „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. ß‚Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ë ‚◊ÊÁåà ¬⁄U •Ê¬ ¬ÈŸ— ªÎ„USÕ ∑§ ÿ„UÊ¢ ¡ã◊ ‹¥ •ÕʸØ ¬˝Ê×, ◊äÿʱŸ •ÊÒ⁄U ‚Êÿ¢∑§Ê‹ ¬˝∑§≈U „UÊ¥. ’ÊŒ ◊¥ ¬ÈŸ— ÿôÊ ∑§ Á‹∞ „U◊¥ ‚◊Îh ∑§⁄¥U. (14) •ÿÁ◊„U ¬˝Õ◊Ê œÊÁÿ œÊÃÎÁ÷„UʸÃÊ ÿÁ¡cΔUÊ •äfl⁄UcflË«U˜ÿ—. ÿ◊åŸflÊŸÊ ÷ΪflÊ ÁflL§L§øÈfl¸Ÿ·È ÁøòÊ¢ Áflèfl¢ Áfl‡ÊÁfl‡Ê.. (15) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝Õ◊ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊflÊŸ „Ò¥U. ÿôÊ ◊¥ ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ¥ mÊ⁄UÊ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ •ÊÒ⁄U SÕʬŸÊ ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê •ÊåŸflÊŸ •ÊÒ⁄U èÊÎªÈ •ÊÁŒ ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ ‚◊ÿ-‚◊ÿ ¬⁄U flŸÊ¥ ◊¥ ¬˝ÖflÁ‹Ã Á∑§ÿÊ. •Ê¬ Áfl‹ˇÊáÊ „Ò¥U. (15) •Sÿ ¬˝àŸÊ◊ŸÈ lÈà ¦ ‡ÊÈ∑˝¢§ ŒÈŒÈO •Oÿ—. ¬ÿ— ‚„UdÊ‚Ê◊ÎÁ·◊ÔÔ˜.. (16) •ÁÇŸ Œfl Áø⁄U∑§Ê‹ ‚ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ∑§Ê¢Áà ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥. ÿ¡◊ÊŸ Ÿ ŒÍœ, Œ„UË •ÊÁŒ „UÁfl ∑§Ë ‚Ê◊ª˝Ë ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ´§Á·ÿÊ¥ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ŒÍœ ŒÈ„UÊ „ÒU. (16) ÃŸÍ¬Ê ˘ •ÇŸÁ‚ Ããfl¢ ◊ ¬ÊsÊÿȌʸ ˘ •ÇŸSÿÊÿÈ◊¸ ŒÁ„U fløʸŒÊ ˘ •ÇŸÁ‚ fløʸ ◊ ŒÁ„U. •ÇŸ ÿã◊ ÃãflÊ ™§Ÿ¢ Ãã◊ ˘ •Ê¬ÎáÊ.. (17) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬È⁄UÊÁ„Uà ∑§ ß ∑§ ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÷Ë ÃŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ÊÿÈ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ (ŒËÉʸ) •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ flø¸Sfl (¬˝÷Êfl) ¬˝ŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ flø¸Sfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ë ãÿÍŸÃÊ (∑§Á◊ÿÊ¢) ŒÍ⁄U ∑§⁄U ∑§ ©U‚ ¬Íáʸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (17) ßãœÊŸÊSàflÊ ‡Êà ¦ Á„U◊Ê lÈ◊ãà ¦ ‚Á◊œË◊Á„U. 48 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@3
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
flÿSflãÃÊ flÿS∑Χà ¦ ‚„USflã× ‚„US∑ΧÃÔêʘ. •ÇŸ ‚¬àŸŒê÷Ÿ◊ŒéœÊ‚Ê •ŒÊèÿ◊Ô˜. ÁøòÊÊfl‚Ê SflÁSà à ¬Ê⁄U◊‡ÊËÿ.. (18) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ fl äÊŸflÊŸ „ÒU¥. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÿ¡◊ÊŸ ‚ÊÒ fl·¸ ∑§Ë •ÊÿÈ ¬Êà „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÿÈc◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë •ÊÿÈc◊ÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊¥ èÊË ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •Œêÿ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬àŸË ‚Á„Uà ‚ÊÒ fl·ÊZ Ã∑§ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Áfl‹ˇÊáÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ •¬ŸË ‡Ê⁄UáÊ ◊¥ ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (18) ‚¢ àfl◊ÇŸ ‚Íÿ¸Sÿ flø¸‚ʪÕÊ— ‚◊ηËáÊÊ ¦ SÃÈß. ‚¢ Á¬˝ÿáÊ œÊêŸÊ ‚◊„U◊ÊÿÈ·Ê ‚¢ flø¸‚Ê ‚¢ ¬˝¡ÿÊ ‚ ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ÁÇ◊·Ëÿ.. (19) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚Íÿ¸ ‚ ¬˝÷ÊÁflà „Ò¥U. •Ê¬ ´§Á·ÿÊ¥ ∑§Ë SÃÈÁÃÿÊ¥ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U$ •Ê¬ •Ê„ÈUÁÃ◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ Á¬˝ÿ œÊ◊ ‚ •ÊÿÈ, flø¸Sfl, ‚¢ÃÊŸ, œŸäÊÊãÿ ¬Ê·áÊ ‚Á„Uà ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (19) •ãœSÕÊãœÊ flÊ ÷ˇÊËÿ ◊„USÕ ◊„UÊ flÊ ÷ˇÊËÿÊ¡¸SÕÊ¡Z flÊ ÷ˇÊËÿ ⁄UÊÿS¬Ê·SÕ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ flÊ ÷ˇÊËÿ.. (20) „U ªÊÒ•Ê! •Ê¬ •ãŸ SflM§¬Ê „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ •ãŸ „U◊Ê⁄U Á‹∞ πÊŸ ÿÊÇÿ „UÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ ⁄U‚ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÉÊË, ŒÍœ •ÊÁŒ ⁄U‚Ë‹Ë øË¡¥ πÊŸ ÿÊÇÿ „UÊÃË „Ò¥U. •Ê¬ •ÊŒ⁄UáÊËÿÊ „Ò¥U. „U◊¥ •ÊŒ⁄U ÿÊÇÿ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ œŸflÃË „Ò¥. •Ê¬ „U◊¥ œŸË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ’‹flÃË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë ’‹flÊŸ ’ŸÊß∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ¬Èc≈U „UÊ¥. (20) ⁄UflÃË ⁄U◊äfl◊ÁS◊ãÿÊŸÊflÁS◊ãʘ ªÊcΔUUÔÁS◊°À‹Ê∑§ÁS◊ãʘ ˇÊÿ. ß„Òfl Sà ◊ʬªÊÃ.. (21) „U ⁄UflÃË (œŸ flÊ‹Ë ªÊÒ•Ê)! •Ê¬ ÿôÊ ∑§ ‚◊ÿ ÿôÊSÕ‹ ¬⁄U ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ ‚ÊÕ ⁄U„¥U. •Ê¬ ŒÈ„UË ¡ÊŸ ‚ ¬„U‹ ’Ê«∏U ◊¥ Áflø⁄¥U. •Ê¬ ‚ŒÒfl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë •Ê¥πÊ¥ ◊¥ ⁄U„¥U. •Ê¬ ÿ„UË¥ ÁŸflÊ‚ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§„UË¥ ◊à ¡Êß∞. (21) ‚ ¦ Á„UÃÊÁ‚ Áfl‡flM§åÿ͡ʸ◊ÊÁfl‡Ê ªÊÒ¬àÿŸ. ©U¬ àflÊÇŸ ÁŒflÁŒfl ŒÊ·ÊflSÃÁh¸ÿÊ flÿ◊Ô˜. Ÿ◊Ê ÷⁄Uãà ˘ ∞◊Á‚.. (22) „U ªÊÒ•Ê! •Ê¬ ’„ÈUà M§¬Ê¥ flÊ‹Ë •ÊÒ⁄U ™§¡¸SflË (áSflË) „Ò¥U . •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ªÊ¬Áà ’ŸÊÃË „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÁŒŸ⁄UÊà ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ¬Ê‚ ÁŸflÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ üÊhÊ ‚ ÷⁄U ∑§⁄U •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬Ê‚ •Êà „Ò¥U. (22) ⁄UÊ¡ãÃ◊äfl⁄UÊáÊÊ¢ ªÊ¬Ê◊ÎÃSÿ ŒËÁŒÁfl◊˜. flœ¸◊ÊŸ ¦ Sfl Œ◊.. (23) ÿ¡Èfl¸Œ - 49
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊÊ¥ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÷Ë ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ªÊ¬Áà fl •◊⁄U „Ò¥U. •Ê¬ Sflÿ¢ ÿôÊ ◊¥ ’…U∏ÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ©U¬Ê‚ŸÊ ‚ •Ê¬ ∑§ ¬Ê‚ •Êà „Ò¥U. (23) ‚ Ÿ— Á¬Ãfl ‚ÍŸflÇŸ ‚ͬÊÿŸÊ ÷fl. ‚øSflÊ Ÿ— SflSÃÿ.. (24) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ¬Ê‚ ©U‚Ë Ã⁄U„U ’Ÿ ⁄U„¥U ¡Ò‚ Á¬ÃÊ ¬ÈòÊ ∑§ ¬Ê‚ ’ŸÊ ⁄U„UÃÊ „ÒU. •Ê¬ „U◊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ‚ŒÒfl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ¬Ê‚ ⁄U„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (24) •ÇŸ àfl¢ ŸÊ •ãÃ◊ ˘ ©Uà òÊÊÃÊ Á‡ÊflÊ ÷flÊ flM§âÿ—. fl‚È⁄UÁÇŸfl¸‚ÈüÊflÊ ˘ •ë¿UÊ ŸÁˇÊ lÈ◊ûÊ◊ ¦ ⁄UÁÿ¢ ŒÊ—.. (25) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ „Ò¥U. •Ê¬ ¬Ê‹∑§, ⁄UˇÊ∑§, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl ÷ÊflË ¬ËÁ…∏UÿÊ¥ ∑§ ŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ÉÊ⁄U ŒÊÃÊ, Áfl‡flÁflÅÿÊÃ, œŸ •ÊÒ⁄U ∑§ËÁøŒÊÃÊ „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË •Ê¢π ∑§ ÃÊ⁄U fl œŸŒÊÃÊ „Ò¥U. (25) ÃãàflÊ ‡ÊÊÁøcΔU ŒËÁŒfl— ‚ÈêŸÊÿ ŸÍŸ◊Ë◊„U ‚Áπèÿ—. ‚ ŸÊ ’ÊÁœ üÊÈœË „Ufl◊ÈL§cÿÊáÊÊ •ÉÊÊÿ× ‚◊S◊Êàʘ.. (26) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÁflòÊÃ◊ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÷Ë ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ „U◊ •¬Ÿ •ë¿U ◊Ÿ ∑§ Á‹∞ ∑§Ê◊ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚ „U◊ •ë¿U Á◊òÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ßë¿UÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÊÁ¬ÿÊ¥ ‚ „U◊¥ ’øÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ¡ÊªÎà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ÁŸflŒŸ ‚ÈÁŸ∞. (26) ß«U ˘ ∞sÁŒÃ ˘ ∞Á„U ∑§ÊêÿÊ ˘ ∞Ã. ◊Áÿ fl— ∑§Ê◊œ⁄UáÊ¢ ÷ÍÿÊØ.. (27) „U ß«∏UÊ ŒflË! fl „U •ÁŒÁà ŒflË! •Ê¬ ÿ„Ê¢ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§ËÁ¡∞. „U ßÁë¿Uà ªÊÒ! •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ßë¿UÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬Í⁄UÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„UÊ¢ ¬œÊÁ⁄U∞. (27) ‚Ê◊ÊŸ ¦ Sfl⁄UáÊ¢ ∑ΧáÊÈÁ„U ’˝rÊáÊS¬Ã. ∑§ˇÊËflãâ ÿ ˘ •ÊÒÁ‡Ê¡—.. (28) „U ’˝rÊáÊS¬ÁÃ! •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ ∑§ËÁ¡∞. ¡Ò‚ ©U‡ÊË¡ ∑§ ¬ÈòÊ ∑§ˇÊËflÊŸ ∑§Ê •Ê¬ Ÿ ◊Á„U◊ÊflÊŸ ’ŸÊÿÊ, flÒ‚ „UË •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë ◊Á„U◊ÊflÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (28) ÿÊ ⁄UflÊãÿÊ •◊Ëfl„UÊ fl‚ÈÁflà¬ÈÁCÔUflh¸Ÿ—. ‚ Ÿ— Á‚·ÄÃÈ ÿSÃÈ⁄U—.. ( 29) „U ’˝rÊáÊS¬ÁÃ! •Ê¬ ⁄Uʪ„UÊ⁄UË, äÊŸflÊŸ, ∞‡flÿ¸ŒÊÃÊ, ¬ÈÁc≈UUflœ¸∑§ fl ¡ÀŒË ∑§Ê◊ ‚◊Êåà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¢. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (29) ◊Ê Ÿ— ‡Ê ¦ ‚Ê •⁄UL ·Ê œÍÁø— ¬˝áÊæ˜U ◊àÿ¸Sÿ. ⁄UˇÊÊ áÊÊ ’˝rÊÔáÊS¬Ã.. (30) 50 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
„U ’˝rÊáÊS¬ÁÃ! •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ¬⁄U œÍø, •ÿôÊË (ÿôÊ Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥) ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê ’È⁄UÊ •‚⁄U Ÿ „UÊ. (30) ◊Á„U òÊËáÊÊ◊flÊSÃÈ lÈˇÊ¢ Á◊òÊSÿÊÿ¸êáÊ—. ŒÈ⁄UÊœ·Z flL§áÊSÿ.. (31) Á◊òÊ ŒflÃÊ, •ÿ¸◊Ÿ ŒflÃÊ •ÊÒ⁄U ŒÈœ¸·¸ (¬˝’‹ ¬˝ÃʬË) flL§áÊ ÃËŸÊ¥ Œfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (31) ŸÁ„U ÷Ê◊◊Ê øŸ ŸÊäfl‚È flÊ⁄UáÊ·È. ߸‡Ê Á⁄U¬È⁄UÉÊ‡Ê ¦ ‚—.. (32) ⁄UÊ„U, ∑§ÁΔUŸ SÕÊŸ •ÊÒ⁄U ÉÊ⁄U •ÊÁŒ SÕÊŸÊ¥ ◊¥ ÷Ë ÃËŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ¬Ê¬Ë ‡ÊòÊÈ •‚⁄U Ÿ„UË¥ «UÊ‹ ‚∑§ÃÊ. (32) à Á„U ¬ÈòÊÊ‚Ê •ÁŒÃ— ¬˝ ¡Ëfl‚ ◊àÿʸÿ. ÖÿÊÁÃÿ¸ë¿Uãàÿ¡‚˝◊Ô˜.. (33) fl ÃËŸÊ¥ Œfl •ÁŒÁà Œfl ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. fl ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ŒËÉʸ ¡ËflŸ •ÊÒ⁄U ∑§èÊË ˇÊËáÊ Ÿ „UÊŸ flÊ‹Ë ÖÿÊÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (33) ∑§ŒÊ øŸ SÃ⁄UË⁄UÁ‚ Ÿãº˝ ‚‡øÁ‚ ŒÊ‡ÊÈ·. ©U¬Ê¬ãŸÈ ◊ÉÊflŸÔ˜ ÷Íÿ ˘ ßãŸÈ à ŒÊŸ¢ ŒflSÿ ¬ÎëÿÃ.. (34) „U ߢº!˝ •Ê¬ •Á„¢U‚∑§ „ÒU¥ . ÿ¡◊ÊŸ „UÁflŒÊÃÊ „Ò.¥ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë œŸŒÊŸ ‚ ‚flÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ ∞‡flÿ¸ ‚ ÿÈÄà „ÒU¥ . •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê •ÁäÊ∑§ œŸ ŒÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . (34) Ãà‚ÁflÃÈfl¸⁄‘Uáÿ¢ ÷ªÊ¸ ŒflSÿ œË◊Á„U. ÁœÿÊ ÿÊ Ÿ— ¬˝øÊŒÿÊÃÔ˜.. (35) ‚ÁflÃÊ fl⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ fl ‚ÊÒ÷ÊÇÿflÊŸ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (35) ¬Á⁄U à ŒÍ«U÷Ê ⁄UÕÊS◊Ê° 2 •‡ŸÊÃÈ Áfl‡fl×. ÿŸ ⁄UˇÊÁ‚ ŒÊ‡ÊÈ·—.. (36) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U ŒflªáÊ! •Ê¬ ∑§Ê ⁄UÕU „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U . „U ŒflªáÊ! •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U, ÃÊÁ∑§ „U◊Ê⁄U œŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ „UÊ ‚∑§. (36) ÷Í÷ȸfl— Sfl— ‚Ȭ˝¡Ê— ¬˝¡ÊÁ÷— SÿÊ ¦ ‚ÈflË⁄UÊ flË⁄UÒ— ‚Ȭʷ— ¬Ê·Ò—. Ÿÿ¸ ¬˝¡Ê¢ ◊ ¬ÊÁ„U ‡Ê ¦ Sÿ ¬‡ÊÍã◊ ¬ÊsÔÕÿ¸ Á¬ÃÈ¢ ◊ ¬ÊÁ„U.. (37) „U •ÁÇŸ! „U◊ •ë¿Ë ‚¢ÃÊŸ •ÊÒ⁄U •ë¿ flË⁄UÊ¥ flÊ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ‚ÈflË⁄UÊ¥ ∑§Ê •ë¿U •ããÊ ‚ ¬Ê·áÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸ, „U◊Ê⁄U ¬‡ÊÈ•Ê¥ fl ¬Ê‹∑§ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (37) •Ê ªã◊ Áfl‡flflŒ‚◊S◊èÿ¢ fl‚ÈÁflûÊ◊◊ÔÔ˜. •ÇŸ ‚◊˝Ê«UÁ÷ lÈêŸ◊Á÷ ‚„U ˘ •Ê ÿë¿USfl.. ( 38) ÿ¡Èfl¸Œ - 51
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’È‹ÊŸ ÿÊÇÿ fl ‚fl¸ÁflŒ˜ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ üÊcΔU œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ fl „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚◊˝Ê≈U˜ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÊ÷Ê ‚Á„Uà ¬œÊÁ⁄U∞ •ÊÒ⁄U „U◊¥ ÷Ë ‡ÊÊ÷Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (38) •ÿ◊ÁÇŸªÎ¸„U¬Áêʸ„¸U¬àÿ— ¬˝¡ÊÿÊ fl‚ÈÁflûÊ◊—. •ÇŸ ªÎ„U¬ÃÁ÷ lÈêŸ◊Á÷ ‚„U •Ê ÿë¿USfl.. (39) ÿ •ÁÇŸ ªÎ„U¬Áà „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸ ∑§ Á‹∞ œŸ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ªÎ„U¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÊ÷Ê ‚Á„Uà ¬œÊÁ⁄U∞ •ÊÒ⁄U „U◊¥ ÷Ë ‡ÊÊ÷Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (39) •ÿ◊ÁÇŸ— ¬È⁄UËcÿÊ ⁄UÁÿ◊ÊŸÔ˜ ¬ÈÁc≈UÔUflœ¸Ÿ—. •ÇŸ ¬È⁄UËcÿÊÁ÷ lÈêŸ◊Á÷ ‚„U ˘ •Ê ÿë¿USfl... (40) ÿ„U •ÁÇUŸ ŒÁˇÊáÊ, äÊŸflÊŸ fl ¬ÈÁc≈Uflœ¸∑§ „ÒU. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ flÒ÷flflœ¸∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÊ÷Ê ‚Á„Uà ¬œÊÁ⁄U∞ •ÊÒ⁄U „U◊¥ ÷Ë ‡ÊÊ÷Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞$ (40) ªÎ„UÊ ◊Ê Á’÷Ëà ◊Ê fl¬äfl◊Í¡Z Á’÷˝Ã ˘ ∞◊Á‚. ™§¡Z Á’÷˝m— ‚È◊ŸÊ— ‚È◊œÊ ªÎ„UÊŸÒÁ◊ ◊Ÿ‚Ê ◊ÊŒ◊ÊŸ—.. (41) „U ÉÊ⁄U! ÷ÿ÷Ëà •ÊÒ⁄U ∑§Ê¢Á¬∞ ◊Ã. „U◊ ™§¡¸SflË (áflÊŸ) „UÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§ ¬Ê‚ •Êà „Ò¥U. „U◊ •Ê¡ ‚¢¬U㟠„UÊ ∑§⁄U •Ê¬ ◊¥ ¬˝Áflc≈U „UÊà „Ò¥U. „U◊ üÊcΔU ’ÈÁh◊ÊŸ ŒÈ—π„UËŸ „UÊ ∑§⁄U •Ê¬ ◊¥ ¬˝Áflc≈U „UÊà „Ò¥U. (41) ÿ·Ê◊äÿÁà ¬˝fl‚ãÿ·È ‚ÊÒ◊Ÿ‚Ê ’„ÈU—. ªÎ„UʟȬuÿÊ◊„U à ŸÊ ¡ÊŸãÃÈ ¡ÊŸÃ—.. (42) ¬˝flÊ‚ ∑§ ‚◊ÿ Á¡‚ ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ‚Êøà „Ò¥U, •ë¿U ◊Ÿ ‚ ©U‚ ÉÊ⁄U ◊¥ ¬˝‚ãŸÃÊ ‚ ⁄U„U ⁄U„U „Ò¥U. ÉÊ⁄U ∑§ ¬Ê‚ ⁄U„UŸ flÊ‹ ŒflÃÊ ôÊÊŸË „Ò¥U. fl ŒflÃÊ „U◊Ê⁄U ß‚ ÷Êfl ∑§Ê ¡ÊŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (42) ©U¬„ÍÃÊ ˘ ß„U ªÊfl ˘ ©U¬„ÍUÃÊ ˘ •¡Êflÿ—. •ÕÊ •ãŸSÿ ∑§Ë‹Ê‹ ˘ ©U¬„ÍUÃÊ ªÎ„U·È Ÿ—. ˇÊ◊Êÿ fl— ‡ÊÊãàÿÒ ¬˝¬l Á‡Êfl ¦ ‡ÊÇ◊ ¦ ‡Ê¢ÿÊ— ‡Ê¢ÿÊ—.. (43) „U◊Ê⁄U ÉÊ⁄U ◊¥ ‚Èπ ‚ ⁄U„UŸ ∑§ Á‹∞ ªÊÿÊ¥, ÷«∏UÊ¥ fl ’∑§Á⁄ÿÊ¥ ∑§Ê ‚ê◊ÊŸ ‚ ’È‹ÊÿÊ ªÿÊ „ÒU. •ããÊ ∑§Ë ‚◊ÎÁh „UÃÈ „U◊ ߟ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∑§ÀÿÊáÊ fl •ÁŸc≈U ÁŸflÊ⁄UáÊ „ÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‹ÊÒÁ∑§∑§ •ÊÒ⁄U ¬Ê⁄U‹ÊÒÁ∑§∑§ ‚Èπ ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (43) ¬˝ÉÊÊÁ‚ŸÊ „UflÊ◊„U ◊L§Ã‡ø Á⁄U‡ÊÊŒ‚—. ∑§⁄Uê÷áÊ ‚¡Ê·‚—.. (44) „U ◊L§Œ˜ªáÊÊ! •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ë Á„¢U‚Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ fl „UÁfl ∑§Ê ÷ˇÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U ◊L§Œ˜ªáÊÊ! •Ê¬ Œ„UË Á◊ÁüÊà ‚ûÊÍ ∑§Ê ÷ˇÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (44) 52 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
ÿŒÔ˜ª˝Ê◊ ÿŒ⁄Uáÿ ÿà‚÷ÊÿÊ¢ ÿÁŒÁãº˝ÿ. ÿŒŸ‡ø∑Χ◊Ê flÿÁ◊Œ¢ ÃŒflÿ¡Ê◊„U SflÊ„UÊ.. (45) ¡Ê ¬Ê¬ „U◊ Ÿ ªÊ¢fl, ¡¢ª‹ •ÊÒ⁄U ‚÷Ê ◊¥ Á∑§∞ „Ò¥U „U◊ ©UŸ ‚ ◊ÈÄà „UÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡Ê ¬Ê¬ „U◊ Ÿ ߢÁº˝ÿÊ¥ ‚ Á∑§∞ „Ò¥U „U◊ ©UŸ ‚ ◊ÈÄà „UÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (45) ◊Ê ·Í áÊ ˘ ßãº˝ÊòÊ ¬Îà‚È ŒflÒ⁄UÁSà Á„U c◊Ê Ã ‡ÊÈÁc◊ãŸflÿÊ—. ◊„UÁ‡ølSÿ ◊Ë…ÈU·Ê ÿ√ÿÊ „UÁflc◊ÃÊ ◊L§ÃÊ flãŒÃ ªË—.. (46) „U ߢº˝! •Ê¬ ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ •ÊÒ⁄U ŒflÊ¥ ∑§Ê ¬ˇÊ ‹Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ŸÊ‡Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ◊„UÊŸ •ÊÒ⁄U „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ flÊ‹Ë „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ◊L§ŒÔ˜ªáÊ ∑§Ë ÷Ë flÊáÊË ‚ fl¢ŒŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (46) •∑˝§ãʘ ∑§◊¸ ∑§◊¸∑Χ× ‚„U flÊøÊ ◊ÿÊ÷ÈflÊ. Œflèÿ— ∑§◊¸ ∑ΧàflÊSâ ¬˝Ã ‚øÊ÷Èfl—.. (47) ∑§◊¸∑§Ãʸ flÊáÊË ∑§ ‚ÊÕ ◊¢òʬÊΔU ∑§Ê ∑§◊¸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¬⁄US¬⁄U ¬˝ËÁìÍfl∑¸ § ⁄U„UŸ flÊ‹ ÿ¡◊ÊŸªáÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ •ŸÈcΔUÊŸ ∑§⁄ U∑§ ¬˝SÕÊŸ ∑§⁄Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (47) •fl÷ÎÕ ÁŸøÈê¬ÈáÊ ÁŸøL§⁄UÁ‚ ÁŸøÈê¬ÈáÊ—. •fl ŒflÒŒ¸fl∑ΧÃ◊ŸÊÿÊÁ‚·◊fl ◊àÿÒ¸◊¸àÿ¸∑Χâ ¬ÈL§⁄UÊ√áÊÊ Œfl Á⁄U·S¬ÊÁ„U.. (48) „U ¡‹¬˝flÊ„U! •Ê¬ ŸËø ∑§Ë •Ê⁄U ’„UŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ’„ÈUà ÃËfl˝ flª flÊ‹ „Ò¥U. Á»§⁄U ÷Ë œË◊Ë ªÁà ‚ ’„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬˝Áà Á∑§∞ ª∞ ¬Ê¬ äÊÊŸ ∑§ Á‹∞ ¬œÊ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ ŒÈ—πŒÊÿË ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄ˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (48) ¬ÍáÊʸ ŒÁfl¸ ¬⁄Uʬà ‚ȬÍáÊʸ ¬ÈŸ⁄UʬÃ. flSŸfl Áfl∑˝§ËáÊÊfl„UÊ ß·◊Í¡¸ ¦ ‡ÊÃ∑˝§ÃÊ.. (49) „U ŒÁfl¸ ŒflË! •Ê¬ ¬Ê‚ ÁSÕà •ãŸ ‚ ¬Á⁄U¬Íáʸ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ߢº˝ ∑§Ë •Ê⁄U ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. fl ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ „UÁfl M§¬ •ãŸ ⁄U‚ ∑§Ê •Ê¬‚ ◊¥ ’ø¥ (•ÊŒÊŸ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U). (49) ŒÁ„U ◊ ŒŒÊÁ◊ à ÁŸ ◊ œÁ„U ÁŸ à Œœ. ÁŸ„UÊ⁄¢U ø „U⁄UÊÁ‚ ◊ ÁŸ„UÊ⁄¢ ÁŸ„U⁄ÊÁáÊ Ã SflÊ„UÊ.. (50) (ߢº˝ ∑§„Uà „Ò¥U) „U ÿ¡◊ÊŸ! •Ê¬ „U◊¥ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê (‚È»§‹) ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥Uª. •Ê¬ ÁŸÁ‡øà (M§¬ ‚) „UÁfl œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •÷Ëc≈U »§‹ Œ¥ª. (ÿ¡◊ÊŸ ∑§„Uà „Ò¥U) „U ߢº˝! „U◊ ÁŸ‡øÿ „UË •Ê¬ ∑§Ê „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÷Ë „U◊Ê⁄ Á‹∞ •ããÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (50) ÿ¡Èfl¸Œ - 53
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
•ˇÊãŸ◊Ë◊Œãà sfl Á¬˝ÿÊ ˘ •œÍ·Ã. •SÃÊ·Ã Sfl÷ÊŸflÊ Áfl¬˝Ê ŸÁflcΔUÿÊ ◊ÃË ÿÊ¡Ê Áãflãº˝ à „U⁄UË.. (51) „U◊ Ÿ ÿôÊ ◊¥ ¡Ê „UÁfl Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¬˝ŒÊŸ ∑§Ë „Ò, ©U‚ Á¬Ã⁄UÊ¥ Ÿ SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄U Á‹ÿÊ „Ò. SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄U ∑§ ©U‚ „UÁfl ∑§Ê ‚flŸ ÷Ë ∑§⁄U Á‹ÿÊ „ÒU. Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ’˝ÊrÊáÊÊ¥ Ÿ Ÿß¸ ´§øÊ•Ê¥ ‚ SÃÈÁà ‡ÊÈM§ ∑§⁄U ŒË$ „U ߢº˝! •’ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§ Á‹∞ “„U⁄UË” ŸÊ◊∑§ ÉÊÊ«U∏Ê¥ ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡Êß ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (51) ‚È‚ãŒÎ‡Ê¢ àflÊ flÿ¢ ◊ÉÊflã√ÊÁ㌷Ë◊Á„U. ¬˝ ŸÍŸ¢ ¬Íáʸ’ãœÈ⁄U SÃÈÃÊ ÿÊÁ‚ fl‡ÊÊ° 2 •ŸÈ ÿÊ¡Ê Áãflãº˝ à „U⁄UË.. (52 ) „U ߢº˝! •Ê¬ œŸflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ∑§Ê •ë¿UË •ÊÒ⁄U ‚◊ÊŸ ŒÎÁc≈U ‚ Œπà „Ò¥U. „U◊ ‚’ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÁŸ‡øÿ „UË „U◊ ‚÷Ë ∑§ ¬Íáʸ ’¢œÈ „Ò¥U. •Ê¬ SÃÈÁà ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ fl‡Ê ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¥U$ •Ê¬ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ⁄UÕ ◊¥ “„U⁄UË” ŸÊ◊∑§ ÉÊÊ«∏Ê¥ ∑§Ê ¡Êß ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (52) ◊ŸÊ ãflÊuÊ◊„U ŸÊ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚Ÿ SÃÊ◊Ÿ. Á¬ÃÎÎáÊÊ¢ ø ◊ã◊Á÷—.. (53 ) „U◊ flË⁄U ¬ÈL§·Ê¥ ∑§Ë ªÊÕÊ•Ê¥ ∑§Ê ªÊŸ flÊ‹ ◊¢òÊÊ¥ ‚ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ◊Ÿ ‚ ’Ê⁄U-’Ê⁄U •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (53) •Ê Ÿ ˘ ∞ÃÈ ◊Ÿ— ¬ÈŸ— ∑˝§àfl ŒˇÊÊÿ ¡Ëfl‚. ÖÿÊ∑Ô˜§ ø ‚ÍÿZ ŒÎ‡Ê.. (54) „U◊Ê⁄UÊ ÿ„U ◊Ÿ (Á¬Ã΋Ê∑§ ‚) ¬ÈŸ— •Ê∞. ÿôÊ ∑§Êÿ¸ ∑§ Á‹∞ ¡Ëfl‹Ê∑§ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U . „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U ‚Íÿ¸ ∑§Ê ¬˝∑§Ê‡Ê Œπ ‚∑¥§. (54) ¬ÈŸŸ¸— Á¬Ã⁄UÊ ◊ŸÊ ŒŒÊÃÈ ŒÒ√ÿÊ ¡Ÿ—. ¡Ëfl¢ fl˝Êà ¦ ‚ø◊Á„U.. (55) Á¬ÃÎUªáÊ! ¬ÈŸ— „U◊Ê⁄U ◊Ÿ ∑§Ê üÊcΔU ∑§ÊÿÊZ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÃÊÁ∑§ „U◊ ¡ËflÊ¥ •ÊÒ⁄U ÉÊ⁄U flÊ‹Ê¥ ∑§Ë ‚flÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. (55) flÿ ¦ ‚Ê◊ fl˝Ã Ãfl ◊ŸSÃŸÍ·È Á’÷˝Ã—. ¬˝¡Êflã× ‚ø◊Á„U.. (56) „U Á¬Ã⁄UÊ! •Ê¬ ‚Ê◊ fl˝Ã flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬˝Áà Á¬ÃÎ∑§ÊÿÊZ ◊¥ ◊Ÿ •ÊÒ⁄U ß ‹ªÊ∞ „ÈU∞ „Ò¥U. ©U‚ œÊ⁄UáÊ Á∑§∞ „ÈU∞ „Ò¥U. „U◊ ‚¢ÃÊŸflÊŸ ‚ÁøûÊ •Ê¬ ∑§Ë ‚flÊ ◊¥ ‹ª ⁄U„¥U. (56) ∞· à L§º˝ ÷ʪ— ‚„U SfldÊÁê’∑§ÿÊ Ã¢ ¡È·Sfl SflÊ„ÒU· à L§º˝ ÷ʪ ˘ •ÊπÈSà ¬‡ÊÈ—.. (57) „U L§º˝! ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ÷ʪ „ÒU. •Ê¬ •¬ŸË ¬àŸË •¢Á’∑§Ê ∑§ ‚ÊÕ ß‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U L§º˝! ÿ„U ÷ʪ •Ê¬ ∑§ ¬‡ÊÈ øÍ„U ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã „ÒU. (57) 54 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÃË‚⁄UÊ •äÿÊÿ
•fl L§º˝◊ŒË◊sÔfl Œfl¢ òÿê’∑§◊Ô˜. ÿÕÊ ŸÊ flSÿ‚S∑§⁄UlÕÊ Ÿ— üÊÿ‚S∑§⁄UlÕÊ ŸÊ √ÿfl‚ÊÿÿÊÃÔ˜.. (58) L§º˝ Œfl fl òÿ¢’∑§ ∑§Ê „U◊ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸË øÊÁ„U∞. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ •ÊÿÈ∑§Ê⁄UË (’…∏UÊà ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹), üÊÿ∑§Ê⁄UË fl √ÿfl‚ÊÿÊ¥ ∑§Ë ’…∏UÊà ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „UÊ.¥ (58) ÷·¡◊Á‚ ÷·¡¢ ªfl‡flÊÿ ¬ÈL§·Êÿ ÷·¡◊Ô˜. ‚Èπ¢ ◊·Êÿ ◊cÿÒ.. (59) „U L§º˝! •Ê¬ ⁄Uʪ ÁŸflÊ⁄U∑§ •Ê·Áœ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ∑§c≈U ÁŸflÊ⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÉÊÊ«U∏Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê·Áœ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U √ÿÁÄÃÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê·Áœ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •¬Ÿ ÷«∏U •ÊÒ⁄U •ãÿ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ë •Ê¬ ‚ ∑ȧ‡Ê‹ÃÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (59) òÿê’∑¢§ ÿ¡Ê◊„U ‚ȪÁ㜢 ¬ÈÁCÔUflœ¸Ÿ◊Ô˜. ©UflʸL§∑§Á◊fl ’㜟Êã◊ÎàÿÊ◊ȸˇÊËÿ ◊Ê◊ÎÃÊÃÔÔ˜ òÿê’∑¢§ ÿ¡Ê◊„U ‚ȪÁ㜢 ¬ÁÃflŒŸ◊Ô˜. ©UflʸL§∑§Á◊fl ’㜟ÊÁŒÃÊ ◊ÈˇÊËÿ ◊Ê◊È×.. (60) „U L§º˝! •Ê¬ ÃËŸ ŒÎÁc≈UÿÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U$ •Ê¬ ¡ËflŸ ◊¥ ‚Ȫ¢œ »Ò§‹ÊŸ fl ¬ÊÒÁc≈U∑§ÃÊ ’…∏UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊¥ ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚Ê¢‚ÊÁ⁄U∑§ ’¢œŸÊ¥ ‚, flÎˇÊ ‚ •‹ª „ÈU∞ »§‹ ∑§Ë ÷Ê¢Áà •‹ª „UÊ ¡Ê∞¢; ¬⁄U •◊⁄UÃÊ ‚ Ÿ„UË¥. (60) ∞ÃûÊ L§º˝Êfl‚¢ ß ¬⁄UÊ ◊Í¡flÃÊÃËÁ„U. •flÃÃœãflÊ Á¬ŸÊ∑§Êfl‚— ∑ΧÁûÊflÊ‚Ê ˘ •Á„ ¦ ‚㟗 Á‡ÊflÊÃËÁ„U.. (61) „U L§º˝! •Ê¬ •¬Ÿ ’ø „ÈU∞ „UÁfl-÷ʪ ∑§Ê ‚ÊÕ ‹ ∑§⁄U ◊Í¢¡flà ¬fl¸Ã ¬Ê⁄U ∑§⁄U ¡Êß∞. •Ê¬ •¬ŸÊ œŸÈ· ∑§¬«U∏Ê¥ ‚ …∑§ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¬fl¸Ã ∑§Ê ¬Ê⁄U ∑§⁄U ∑§ ¬œÊ⁄U ¡Êß∞. (61) òÿÊÿÈ·¢ ¡◊ŒÇŸ— ∑§‡ÿ¬Sÿ òÿÊÿÈ·◊Ô˜. ÿgfl·È òÿÊÿÈ·¢ ÃãŸÊ •SÃÈ òÿÊÿÈ·◊Ô˜.. (62) ¡◊ŒÁÇŸ ∑§Ë ÃËŸ •flSÕÊ∞¢ „Ò¥U. ∑§‡ÿ¬ ∑§Ë ÃËŸ •flSÕÊ∞¢ „Ò¥U . ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ÃËŸ •flSÕÊ∞¢ „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË ÷Ë (flÒ‚Ë „UË) ÃËŸ •flSÕÊ∞¢ „UÊ¥. (62) Á‡ÊflÊ ŸÊ◊ÊÁ‚ SflÁœÁÃSà Á¬ÃÊ Ÿ◊Sà •SÃÈ ◊Ê ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë—. ÁŸ flûʸÿÊêÿÊÿÈ·ãŸÊlÊÿ ¬˝¡ŸŸÊÿ ⁄UÊÿS¬Ê·Êÿ ‚Ȭ˝¡ÊSàflÊÿ ‚ÈflËÿʸÿ.. (63) •Ê¬ ∑§Ê ŸÊ◊ „UË Á‡Êfl (∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË) „ÒU. œÊ⁄ŒÊ⁄U ‡ÊSòÊ •Ê¬ ∑§ Á¬ÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê „U◊Ê⁄UÊ Ÿ◊Ÿ. •Ê¬ „U◊¥ ∑§÷Ë ∑§c≈U Ÿ Œ¥. „U◊ •ÊÿÈ, •ããÊ, ¬˝¡ŸŸ, œŸ fl ¬Ê·áÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ‚ ÁŸflŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ë¿UË ‚¢ÃÊŸ ∞fl¢ •ë¿U flËÿ¸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ‚ ÁŸflŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (63) ÿ¡Èfl¸Œ - 55
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ ∞Œ◊ªã◊ Œflÿ¡Ÿ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ÿòÊ ŒflÊ‚Ê •¡È·ãÃÁfl‡fl. ´§Ä‚Ê◊ÊèÿÊ ¦ ‚ãÃ⁄UãÃÊ ÿ¡È÷˸ ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ‚Á◊·Ê ◊Œ◊. ß◊Ê ˘ •Ê¬— ‡Ê◊È ◊ ‚ãÃÈ ŒflË⁄UÊ·œ òÊÊÿSfl SflÁœÃ ◊ÒŸ ¦ Á„U ¦ ‚Ë—.. (1) Á¡‚ ÿôÊ SÕÊŸ ¬⁄U ‚Ê⁄U ŒflÃÊ ¬˝‚㟠„UÊà „Ò¥, „U◊ ‚÷Ë ÿ¡◊ÊŸ ©U‚Ë SÕ‹ ¬⁄U ß∑§≈UÔ˜ΔU „ÈU∞ „Ò¥U. ´§ÇflŒ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊flŒ ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ‚ „U◊ ÿôÊ ∑§ ¬Ê⁄U ¡Êà „Ò¥U. ÿ¡Èfl¸Œ ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ „U◊ œŸ •ÊÒ⁄U ¬Ê·áÊ ¬˝Êåà ∑§⁄à „Ò¥U. ÿ ¡‹ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊ¥. ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊¥ ⁄Uʪʥ ‚ ’øÊ∞¢. ÿ •SòʇÊSòÊ (•ŸÊfl‡ÿ∑§) Á„¢U‚Ê∑§Ê⁄UË Ÿ „UÊ¥. (1) •Ê¬Ê •S◊Êã◊ÊÃ⁄U— ‡ÊÈãœÿãÃÈ ÉÊÎß ŸÊ ÉÊÎÃåfl— ¬ÈŸãÃÈ. Áfl‡fl ¦ Á„U Á⁄U¬˝¢ ¬˝fl„UÁãà ŒflËL§ÁŒŒÊèÿ— ‡ÊÈÁø⁄UÊ ¬Íà ∞Á◊. ŒËˇÊÊì‚ÊSßÍ⁄UÁ‚ ÃÊ¢ àflÊ Á‡ÊflÊ ¦ ‡ÊÇ◊Ê¢ ¬Á⁄U Œœ ÷º˝¢ fláÊZ ¬ÈcÿŸ˜.. (2) ¡‹ „U◊Ê⁄UË ◊Ê¢ „ÒU. ¡‹ „U◊¥ ‡ÊÊÁœÃ (‡ÊÈh) ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ÉÊË ‚ ¡Ê ¡‹ ¤Ê⁄UÃÊ „Ò, fl„U „U◊¥ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U . ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÈU•Ê ¡‹ ‚÷Ë ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê œÊ Œ. ¡‹ ‚ „U◊ ‡ÊÈh •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊ „UÊà „Ò¥U. „U ⁄U‡Ê◊Ë flSòÊ! •Ê¬ ŒËˇÊÊì‚ Œfl ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U „UÊ. •Ê¬ ∑§Ê◊‹, ‚ÈπŒ, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl üÊcΔU (‚È¢Œ⁄U) ⁄¢Uª flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê (ÿôÊ ◊¥) œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (2) ◊„UËŸÊ¢ ¬ÿÊÁ‚ fløʸŒÊ ˘ •Á‚ fløʸ ◊ ŒÁ„U. flÔÎòÊSÿÊÁ‚ ∑§ŸËŸ∑§‡øˇÊȌʸ ˘ •Á‚ øˇÊÈ◊¸ ŒÁ„U.. (3) •Ê¬ ªÊÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍœ „Ò¥U. •Ê¬ flø¸Sfl (ø◊∑§) ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ flø¸Sfl ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ flÎòÊ ∑§Ë •Ê¢π ∑§Ë ¬ÈÃ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ •Ê¢π ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •Ê¢π ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (3) Áøà¬ÁÃ◊ʸ ¬ÈŸÊÃÈ flÊĬÁÃ◊ʸ ¬ÈŸÊÃÈ ŒflÊ ◊Ê ‚ÁflÃÊ ¬ÈŸÊàflÁë¿Uº˝áÊ ¬ÁflòÊáÊ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡êÊÁ÷—. ÃSÿ à ¬Áflòʬà ¬ÁflòʬÍÃSÿ ÿà∑§Ê◊— ¬ÈŸ Ãë¿U∑§ÿ◊˜.. (4)
56 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ
•Ê¬ ÁøûÊ (◊Ÿ) ∑§ ¬Áà (SflÊ◊Ë) „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ flÊáÊË ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊß∞. ŒÊ· (Á¿UUº˝Ê¥) ‚ ⁄UÁ„Uà ‚ÁflÃÊ Œfl „U◊¥ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Íÿ¸ •¬ŸË Á∑§⁄áÊÊ¥ ‚ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊ∞¢. „U ¬ÁflòʬÁÃ! „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. „U◊ ¬ÁflòÊ „UÊ ∑§⁄U •¬ŸË ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ ¬Íáʸ ∑§⁄¥,U ÃÊÁ∑§ „U◊ •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ „UÊ ‚∑¥§. (4) •Ê flÊ ŒflÊ‚ ˘ ߸◊„U flÊ◊¢ ¬˝ÿàÿäfl⁄U. •Ê flÊ ŒflÊ‚ ˘ •ÊÁ‡Ê·Ê ÿÁôÊÿÊ‚Ê „UflÊ◊„U.. (5) „U ŒflÃÊ•Ê! „U◊ ß‚ ÿôÊ ∑§ •Ê⁄¢U÷ ◊¥ •¬ŸË ßë¿UʬÍÁø ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ŒflÃÊ•Ê! „U◊ ÿÊÁôÊ∑§ (ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹) •Ê‡ÊËflʸŒ •ÊÒ⁄U ÿôÊ »§‹ ∑§Ë ¬˝ÊÁåàÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (5) SflÊ„UÊ ÿôÊ¢ ◊Ÿ‚— SflÊ„UÊ⁄UÊ⁄UãÃÁ⁄UˇÊÊàSflÊ„UÊ lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ ¦ SflÊ„UÊ flÊÃÊŒÊ⁄U÷ SflÊ„UÊ.. (6) „U ÿôÊ Œfl! „U◊ ◊Ÿ ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§, Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U◊ flÊÿÈ ∑§Ê ÿôÊ ∑§ •Ê⁄U÷ ¢ ◊¥ „UË •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „ÒU¥ . (6) •Ê∑ͧàÿÒ ¬˝ÿÈ¡ÇŸÿ SflÊ„UÊ ◊œÊÿÒ ◊Ÿ‚ÇŸÿ SflÊ„UÊ ŒËˇÊÊÿÒ Ã¬‚ÇŸÿ SflÊ„UÊ ‚⁄USflàÿÒ ¬ÍcáÊÇŸÿ SflÊ„UÊ. •Ê¬Ê Œfl˒θ„UÃËÁfl¸‡fl‡Êê÷ÈflÊ lÊflʬÎÁÕflË ©U⁄UÊ •ãÃÁ⁄UˇÊ. ’΄US¬Ãÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊ SflÊ„UÊ.. (7) •ÁÇŸ ÿôÊ ∑§ ‚¢∑§À¬ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸ ÿôÊ ∑§Ë ’ÈÁh ŒÃ „Ò¥U. ÿôÊ ∑§⁄UŸ ◊¥ ◊Ÿ ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒËˇÊÊ •ÊÒ⁄U ì ∑§Ë Á‚Áh „UÃÈ •ÁÇŸ ∑§Ê ÿ„U •Ê„ÈUÁà ŒË ¡ÊÃË „ÒU. ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹ Œfl! •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ¬Ê‹∑§ ‡Ê¢÷È Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Áfl‡ÊÊ‹ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U◊ ’΄US¬Áà ∑§ Á‹∞ „UÁfl ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (7) Áfl‡flÊ ŒflSÿ ŸÃÈ◊¸Ãʸ flÈ⁄UËà ‚Åÿ◊˜Ô. Áfl‡flÊ ⁄UÊÿ ˘ ß·ÈäÿÁà lÈêãÊ¢ flÎáÊËà ¬Ècÿ‚ SflÊ„UÊ.. (8) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥. fl fl⁄Uáÿ (üÊcΔU) ªÈáÊÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë Á◊òÊÃÊ ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ‚ ‚÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ flÒ÷fl øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ‚’ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ‚ œŸ ¬˝ÊÁåàÊ ∑§Ë øÊ„U ⁄Uπà „Ò¥U. „U◊ Sflª¸ŒÊÿË flÒ÷fl (ÿ‡ÊSflË) øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ¬˝¡Ê ∑§Ê ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ œŸ øÊ„Uà „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (8) ÿ¡Èfl¸Œ - 57
¬Íflʸœ¸
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ
´§Ä‚Ê◊ÿÊ— Á‡ÊÀ¬ SÕSà flÊ◊Ê⁄U÷ à ◊Ê ¬ÊÃ◊ÊSÿ ÿôÊSÿÊŒÎø—. ‡Ê◊ʸÁ‚ ‡Ê◊¸ ◊ ÿë¿U Ÿ◊Sà •SÃÈ ◊Ê ◊Ê Á„U ¦ ‚Ë—.. (9) „U ´§ÇflŒ ∑§ Œfl! „U ‚Ê◊flŒ ∑§ Œfl! „U Á‡Êcÿ ÁSÕà Œfl! „U◊ ÿôÊ ◊¥ ªÊ߸ ªß¸ ´§øÊ•Ê¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê S¬‡Ê¸ ∑§⁄Uà (•Ê¬ Ã∑§ ¬„È¢UøÃ) „Ò¥U. •Ê¬ ´§øÊ•Ê¥ ∑§Ê ªÊŸ ∑§⁄Uà ‚◊ÿ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ÊüÊÿ (‚Èπ) ŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •ÊüÊÿ (‚Èπ) ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U „Ò. •Ê¬ „U◊¥ ∑§c≈U ◊à ŒËÁ¡∞. (9) ™§ª¸SÿÊÁX⁄USÿÍáʸ◊˝ŒÊ ™§¡Z ◊Áÿ œÁ„U. ‚Ê◊Sÿ ŸËÁfl⁄UÁ‚ ÁflcáÊÊ— ‡Ê◊ʸÁ‚ ‡Ê◊¸ ÿ¡◊ÊŸSÿãº˝Sÿ ÿÊÁŸ⁄UÁ‚ ‚È‚SÿÊ— ∑Χ·ËS∑ΧÁœ. ©Uë¿U˛ÿSfl flŸS¬Ã ˘ ™§äflʸ ◊Ê ¬Ês ¦ „U‚ ˘ •ÊSÿ ÿôÊSÿÊŒÎø—.. (10) „U ÿôÊ◊π‹Ê! •Ê¬ •¢ªÊ¥ ∑§Ê ™§¡Ê¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •Ê¬ ◊È¤Ê ™§¡Ê¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÊß∞. •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§Ë ŸËflË „UÊ. •Ê¬ ÁflcáÊÈ ∑§Ê ÷Ë ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ÷Ë ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ߢº˝ ∑§Ë ÿÊÁŸ „Ò¥U. •Ê¬ πÃË ∑§Ê ‚◊ÎÁh ŒËÁ¡∞. •Ê¬ flŸS¬Áà ∑§Ê ©UãŸÁÃflÊŸ ’ŸÊß∞. „U◊¥ ÿôÊ ∑§Ë ´§øÊ∞¢ ªÊà ‚◊ÿ ¬Ê¬ ‚ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (10) fl˝Ã¢ ∑ΧáÊÈÃÊÁÇŸ’˝¸rÊÊÁÇŸÿ¸ôÊÊ flŸS¬ÁÃÿ¸ÁôÊÿ—. ŒÒflË¥ Áœÿ¢ ◊ŸÊ◊„U ‚È◊ΫUË∑§Ê◊Á÷CÔUÿ fløʸœÊ¢ ÿôÊflÊ„U‚ ¦ ‚ÈÃËÕʸ ŸÊ ˘ •‚m‡Ê. ÿ ŒflÊ ◊ŸÊ¡ÊÃÊ ◊ŸÊÿÈ¡Ê ŒˇÊ∑˝§ÃflSà ŸÊflãÃÈ Ã Ÿ— ¬ÊãÃÈ Ãèÿ— SflÊ„UÊ.. (11) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •ÁÇŸ ’˝rÊ fl ÿôÊ „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ∑§ ¬˝Áà fl˝Ã ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§ËÁ¡∞. flŸS¬ÁÃÿÊ¢ ÿôÊ ∑§ ÿÊÇÿ „Ò¥U. „U◊ ’ÈÁh ∑§Ë ŒflË ∑§Ê ◊ÊŸÃ „Ò¥U. „U◊ ‚Èπ fl ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§ Á‹∞ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ ÿôÊflÊ„UË flÊáÊË œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. üÊcΔU ’ÈÁh „U◊Ê⁄U fl‡Ê ◊¥ ⁄U„U. ¡Ê Œfl ◊Ÿ ◊¥ (‚¢∑§Êÿ •ÊÁŒ) ©U¬¡Êà „Ò¥U, (‚¢∑§À¬ÊÁŒ ◊¥) ◊Ÿ ∑§Ê ‹ªÊà „Ò¥U, ¡Ê Œfl ŒˇÊ ‚¢∑§À¬ flÊ‹ „Ò¥U, fl Œfl ÿôÊ ◊¥ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl Œfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UŸ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (11) ‡flÊòÊÊ— ¬ËÃÊ ÷flà ÿÍÿ◊Ê¬Ê •S◊Ê∑§◊ãÃL§Œ⁄U ‚ȇÊflÊ—. ÃÊ ˘ •S◊èÿ◊ÿˇ◊Ê ˘ •Ÿ◊ËflÊ ˘ •ŸÊª‚— SflŒãÃÈ ŒflË⁄U◊ÎÃÊ ˘ ´§ÃÊflÎœ—.. (12) „U Œfl! •Ê¬ ¡‹ M§¬ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄Uà „Ò¥. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬≈U ∑§ ÷ËÃ⁄U (¬ÈÁc≈U∑§Ê⁄U∑§ „UÊ ∑§⁄U) ‚Èπ ŒËÁ¡∞. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¡‹ ˇÊÿ⁄Uʪ∑§Ê⁄UË Ÿ „UÊ¥. ¡‹ „U◊Ê⁄UË ‚Ê◊Êãÿ (⁄UÊ¡◊⁄ʸ ∑§Ë) ÁŒÄ∑§ÃÊ¥ (’ʜʕʥ) ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹, ÁŒ√ÿ, •◊Îà SflM§¬ ∞fl¢ SflÊÁŒc≈U „UÊ$ ÿôÊ ◊¥ ´§Ã (‚àÿ) ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „UÊ¢. (12) 58 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ
ßÿ¢ à ÿÁôÊÿÊ ÃŸÍ⁄U¬Ê ◊ÈÜøÊÁ◊ Ÿ ¬˝¡Ê◊Ô˜. • ¦ „UÊ◊Èø— SflÊ„UÊ∑ΧÃÊ— ¬ÎÁÕflË◊ÊÁfl‡Êà ¬ÎÁÕ√ÿÊ ‚ê÷fl.. (13) „U ÿôÊ Œfl! ¬ÎâflË ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U ÿôÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ „ÒU . „U◊ ß‚ ◊¥ ¡‹ ¿UÊ«∏Uà „Ò¥U. ¬˝¡Ê (¡ŸÃÊ) ∑§ Á‹∞ ‹Ê÷ŒÊÿË ¡‹ Ÿ„UË¥ ¿UÊ«∏Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ß‚ ¬Ê¬ ‚ ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. SflÊ„UÊ ∑§ M§¬ ◊¥ ¿UÊ«∏UÊ ªÿÊ ¡‹ ¬ÎâflË ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄U ∑§ ¬ÎâflË ∑§Ë Á◊≈˜≈UË ◊¥ Á◊‹ ∑§⁄U ∞∑§◊∑§ „UÊ ¡Ê∞, •Ê¬ ∞‚Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (13) •ÇŸ àfl ¦ ‚È ¡ÊªÎÁ„U flÿ ¦ ‚È ◊Á㌷Ë◊Á„U. ⁄UˇÊÊ áÊÊ ˘ •¬˝ÿÈë¿UŸÔ˜ ¬˝’Èœ Ÿ— ¬ÈŸ⁄U∑ΧÁœ.. (14) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ë¿UË Ã⁄U„U (÷‹Ë÷Ê¢ÁÃ) ¡ÊÁª∞ (¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊß∞). „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ÷‹Ë÷Ê¢Áà ŸË¥Œ ∑§Ê •ÊŸ¢Œ ‹Ã „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ fl „U◊¥ ¬˝’Èh ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ÁflÁfläÊ ∑§Ê◊Ê¥ ◊¥ ‹ªÊß∞. (14) ¬ÈŸ◊¸Ÿ— ¬ÈŸ⁄UÊÿÈ◊¸ ˘ •ÊªŸÔ˜ ¬ÈŸ— ¬˝ÊáÊ— ¬ÈŸ⁄UÊà◊Ê ◊ ˘ •ÊªŸÔÔ˜ ¬ÈŸ‡øˇÊÈ— ¬ÈŸ— üÊÊòÊ¢ ◊ ˘ •ÊªŸÔ˜. flÒ‡flÊŸ⁄UÊ •ŒéœSÃŸÍ¬Ê ˘ •ÁÇŸŸ¸— ¬ÊÃÈ ŒÈÁ⁄UÃÊŒfllÊØ.. (15) ◊Ÿ Á»§⁄U ‚ •Ê ªÿÊ. •ÊÿÈ ¬ÈŸ— •Ê ªß¸. ¬ÈŸ— ¬˝ÊáÊ ¬˝Êåà „UÊ ª∞. ¬ÈŸ— •Êà◊Ê ¬˝Êåà „UÊ ªß¸. ¬ÈŸ— ŸòÊ Á◊‹ ª∞. ¬ÈŸ— ∑§ÊŸ Á◊‹ ª∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚’ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ øÊ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ ⁄ˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê Œ◊Ÿ Ÿ„UË¥ Á∑§ÿÊ ¡Ê ‚∑§ÃÊ. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ¬Ê¬Ê¥ fl ’È⁄U ∑§Ê◊Ê¥ ‚ ’øÊ∞¢. (15) àfl◊ÇŸ fl˝Ã¬Ê ˘ •Á‚ Œfl ˘ •Ê ◊àÿ¸cflÊ àfl¢ ÿôÊcflË«U˜ÿ—. ⁄UÊSflÿà‚Ê◊Ê ÷ÍÿÊ ÷⁄U ŒflÊ Ÿ— fl‚ʌʸÃÊ flSflŒÊÃÔ˜.. (16) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ fl˝Ã¬Ê‹∑§ ŒflÃÊ•Ê¥, ◊ŸÈcÿÊ¥ ◊¥ ¬Í¡ŸËÿ ∞fl¢ ÿôÊ ◊¥ •Ê⁄UÊœŸËÿ (•Ê⁄UÊäÊŸÊ ÿÊÇÿ) „Ò¥. „U ‚Ê◊! •Ê¬ „U◊¥ ÷⁄U¬Í⁄U œŸ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ßÃŸÊ œŸ ŒËÁ¡∞ Á∑§ •¬Ÿ ‚ÊÕ‚ÊÕ „U◊ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê ÷Ë ÷‹Ê ∑§⁄U ‚∑¥§. ‚ÁflÃÊ Œfl œŸŒÊÃÊ „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ ÷Ë „U◊¥ ’„ÈUà œŸ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§Ë „Ò. (16) ∞·Ê à ‡ÊÈ∑˝§ ßÍ⁄UÃmø¸SÃÿÊ ‚ê÷fl ÷˝Ê¡¢ ªë¿U. ¡Í⁄UÁ‚ œÎÃÊ ◊Ÿ‚Ê ¡ÈCÔUÊ ÁflcáÊfl.. (17) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ø◊∑§Ë‹ „ÒU¥. ÿ„U ÉÊË •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ’…∏UÊ ⁄U„UÊ „ÒU. ø◊∑§ÃË •ÊÒ⁄U ™§¬⁄U ©UΔUÃË „ÈU߸ •Ê¬ ∑§Ë ‹¬≈U¥ •ÊÒ⁄U ™§¬⁄U •Ê∑§Ê‡Ê Ã∑§ ¡Ê∞¢. „U◊ Ÿ ◊Ÿ ‚ flÊáÊË œÊ⁄UáÊ ∑§Ë „Ò. ÿ„U flÊáÊË •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ flªflÊŸ fl ÁflcáÊÈ ∑§Ê ‚¢ÃcÈ ≈U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „UÊ. (17) ÃSÿÊSà ‚àÿ‚fl‚— ¬˝‚fl ÃãflÊ ÿãòÊ◊‡ÊËÿ SflÊ„UÊ. ‡ÊÈ∑˝§◊Á‚ øãº˝◊Sÿ◊ÎÃ◊Á‚ flÒ‡flŒfl◊Á‚.. (18) ÿ¡Èfl¸Œ - 59
¬Íflʸœ¸
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚àÿ SflM§¬ „Ò¥U. „U◊ ÷Ë •Ê¬ ∑§ ©U‚ ‚àÿ SflM§¬ ∑§Ê ¬Ê∞¢. •ÕʸØ •Ê¬ ß‚ „U◊Ê⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ÷Ë ©U¬¡Êß∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„U •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ (ÿ¢òÊ) ¬Ê ‚∑¥§. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ø◊∑§Ë‹, ø¢º˝, •◊Îà fl ‚’ ∑§ Œfl „Ò¥U. (18) ÁøŒÁ‚ ◊ŸÊÁ‚ œË⁄UÁ‚ ŒÁˇÊáÊÊÁ‚ ˇÊÁòÊÿÊÁ‚ ÿÁôÊÿÊSÿÁŒÁÃ⁄SÿÈ÷ÿ× ‡ÊËcáÊ˸. ‚Ê Ÿ— ‚Ȭ˝ÊøË ‚Ȭ˝ÃËëÿÁœ Á◊òÊSàflÊ ¬ÁŒ ’äŸËÃÊ¢ ¬Í·ÊäflŸS¬ÊÁàflãŒ˝ÊÿÊäÿˇÊÊÿ.. (19) „U ◊¢òÊflÊáÊË! •Ê¬ ÁøûÊ, ◊Ÿ, œË⁄U, ŒÁˇÊáÊ, ˇÊÁòÊÿ fl ÿôÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •Ê¬ •ÁŒÁÃ, ŒÊŸÊ¥ •Ê⁄U ‚ Á‚⁄U flÊ‹Ë ¬Ífl¸ fl ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ flÊ‹Ë ∞fl¢ Á◊òÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ (¬˝◊ ÷Êfl ∑§Ê) ’¢œŸ (’«∏UË) «UÊ‹ŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ߢº˝ ÿôÊ ∑§ •äÿˇÊ „Ò¥U. „U◊ ©Uã„¥U ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ¬Í·Ê Œfl ‚ •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U Á∑§ flU ÿôÊ ∑§ ◊ʪ¸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) •ŸÈ àflÊ ◊ÊÃÊ ◊ãÿÃÊ◊ŸÈ Á¬ÃÊŸÈ ÷˝ÊÃÊ ‚ªèÿʸŸÈ ‚πÊ ‚ÿÍâÿ—. ‚Ê ŒÁfl Œfl◊ë¿U„UËãŒ˝Êÿ ‚Ê◊ ¦ L§º˝SàflÊ flûʸÿÃÈ SflÁSà ‚Ê◊‚πÊ ¬ÈŸ⁄UÁ„U.. (20) „U flʪ˜ ŒflË! •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊ ‹Ÿ ¡ÊŸÊ „Ò. ß‚ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ◊ÊÃÊ, Á¬ÃÊ, ÷Ê߸, ’„UŸ, Á◊òʪáÊ •ÊÒ⁄ ¬«∏UÊ‚Ë •ŸÈ◊Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Ê◊ ‹Ÿ ∑§ ’ÊŒ L§º˝ Œfl •Ê¬ ∑§Ê „U◊Ê⁄UË •Ê⁄U ‹ÊŸ fl „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚Ê◊‚πÊ ∑§Ê ‹ ∑§⁄U ¬ÈŸ— ÿ„UÊ¢ •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (20) flS√ÿSÿÁŒÁÃ⁄SÿÊÁŒàÿÊÁ‚ L§º˝ÊÁ‚ øãº˝ÊÁ‚. ’΄US¬ÁÃc≈UUÔ˜flÊ ‚ÈêŸ ⁄UêáÊÊÃÈ L§º˝Ê fl‚ÈÁ÷⁄UÊ ø∑§.. (21) „U flʪ˜ ŒflË! •Ê¬ fl‚È, •ÁŒÁÃ, L§º˝ ÃÕÊ ø¢º˝ „Ò¥U. ’΄US¬Áà L§º˝ •ÊÒ⁄U fl‚ȪáÊ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. ’΄US¬Áà •Ê¬ ∑§ üÊcΔU ◊Ÿ ◊¥ ⁄U◊áÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (21) •ÁŒàÿÊSàflÊ ◊Íh¸ãŸÊÁ¡ÉÊÁ◊¸ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ ß«UÊÿÊS¬Œ◊Á‚ ÉÊÎÃflÃÔ˜ SflÊ„UÊ. •S◊ ⁄U◊SflÊS◊ à ’ãœÈSàfl ⁄UÊÿÊ ◊ ⁄UÊÿÊ ◊Ê flÿ ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ÁflÿÊÒc◊ ÃÊÃÊ ⁄UÊÿ—.. (22) „U flʪ˜ ŒflË! •Ê¬ ◊Íœ¸ãÿ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ÿôÊ ◊¥ ÉÊË ‚ ÷⁄UË „ÈU߸ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë üÊcΔU ŒÁflÿÊ¥ ◊¥ SÕÊŸ ⁄UπÃË „Ò¥. •Ê¬ ÿ„U ÉÊË flÊ‹Ë •Ê„ÈUÁà SflË∑§Ê⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ äÊŸflÊŸ „Ò¥. •Ê¬ •¬Ÿ œŸ ‚ „U◊¥ ¬ÊÁ‚∞. •Ê¬ •¬Ÿ œŸ ‚ „U◊¥ fl¢ÁøUà ◊à ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ ’¢œÈ „Ò¥U. (22) ‚◊Åÿ Œ√ÿÊ ÁœÿÊ ‚¢ ŒÁˇÊáÊÿÊL§øˇÊ‚Ê. ◊Ê ◊ ˘ •ÊÿÈ— ¬˝◊Ê·Ë◊ʸ ˘ •„¢U Ãfl flË⁄¢U ÁflŒÿ Ãfl ŒÁfl ‚ãŒÎÁ‡Ê.. (23) 60 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ
„U flʪ˜ ŒflË! •Ê¬ ŒÁˇÊáÊÊ ∑§ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ „U◊¥ ŒπÊ „Ò. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË (‚¬Á⁄UflÊ⁄U) •ÊÿÈ ˇÊËáʧ◊à ∑§ËÁ¡∞ ÿÊŸË „U◊¥ ŒËÉÊʸÿÈ ’ŸÊß∞. „U ŒflË! „U◊ ÷Ë •Ê¬ ∑§Ë •ÊÿÈ ˇÊËáÊ Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§Ë ŒÿÊ ŒÎÁc≈U ‚ „U◊ flË⁄U ¬ÈòÊ ¬Ê∞¢. (23) ∞· à ªÊÿòÊÊ ÷ʪ ˘ ßÁà ◊ ‚Ê◊Êÿ ’˝ÍÃÊŒ· à òÊÒc≈ÈU÷Ê ÷ʪ ˘ ßÁà ◊ ‚Ê◊Êÿ ’˝ÍÃÊŒ· à ¡ÊªÃÊ ÷ʪ ˘ ßÁà ◊ ‚Ê◊Êÿ ’Í˝ÃÊë¿UãŒÊŸÊ◊ÊŸÊ ¦ ‚Ê◊˝ÊÖÿ¢ ªë¿UÁà ◊ ‚Ê◊Êÿ ’Í˝ÃÊUŒÊS◊Ê∑§ÊÁ‚ ‡ÊÈ∑˝§Sà ª˝sÊ ÁflÁøÃSàflÊ Áfl ÁøãflãÃÈ.. (24) „U ‚Ê◊! ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ªÊÿòÊË (¿¢UŒ) ∑§Ê ÷ʪ „ÒU . ÿ„U ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ÁòÊc≈ÈU¬˜Ô (¿¢UŒ) ∑§Ê ÷ʪ „ÒU. ÿ„U „U◊Ê⁄UÊ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ¡ªÃË (¿¢UŒ) ∑§Ê ÷ʪ „Ò. •Ê¬ (¬È⁄UÊÁ„UÃ) „U◊Ê⁄UË •Ê⁄U ‚ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ÿ„U ÁŸflŒŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚Ê◊ ‚ ÿ„U ÷Ë ÁŸflŒŸ ∑§⁄¥U Á∑§ fl„U „U◊Ê⁄U „Ò¥U. ‡ÊÈ∑˝ •ÊÁŒ ª˝„U ©UŸ ∑§§ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ „Ò¥U. ‚ÊøÁfløÊ⁄U (Áø¢ÃŸ) ∑§⁄U ∑§ „UË •Ê¬ ∑§Ê øÿŸ (ª˝„UáÊ) Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (24) •Á÷ àÿ¢ Œfl ¦ ‚ÁflÃÊ⁄U◊ÊáÿÊ— ∑§Áfl∑˝§ÃÈ◊øʸÁ◊ ‚àÿ‚fl ¦ ⁄UàŸœÊ◊Á÷ Á¬˝ÿ¢ ◊Áâ ∑§Áfl◊˜. ™§äflʸ ÿSÿÊ◊ÁÃ÷ʸ ˘ •ÁŒlÈÃà‚flË◊ÁŸ Á„U⁄Uáÿ¬ÊÁáÊ⁄UÁ◊◊Ëà ‚È∑˝§ÃÈ— ∑Χ¬Ê Sfl—. ¬˝¡ÊèÿSàflÊ ¬˝¡ÊSàflʟȬ˝ÊáÊãÃÈ ¬˝¡ÊSàfl◊ŸÈ¬˝ÊÁáÊÁ„U.. (25) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ’Ëø ◊¥ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „ÒU¢. •Ê¬ ÁflmÊŸ, ‚àÿflÊŸ fl ⁄UàŸÊ¥ ∑§ œÊ◊ „Ò¥U. •Ê¬ ÁflmÊŸÊ¥ mÊ⁄UÊ øÊ„U ª∞ „Ò¥U. •Ê¬ ™¢§øÊ߸ ∑§Ë •Ê⁄U ¡ÊŸ flÊ‹, ø◊∑§ŒÊ⁄U, ‚ÈŸ„U⁄U „UÊÕÊ¥ fl üÊcΔU ∑§ÊÿÊZ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ¬⁄U •¬ŸË ∑Χ¬Ê ’ŸÊ∞ ⁄Uπ¥. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë •ø¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬˝¡Ê ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝¡Ê ‚Ê¢‚ ‹Ÿ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „Ò. •Ê¬ ÷Ë ¬˝¡Ê ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ‚Ê¢‚ ‹Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (25) ‡ÊÈ∑˝¢§ àflÊ ‡ÊÈ∑˝§áÊ ∑˝§ËáÊÊÁ◊ øãº˝¢ øãº˝áÊÊ◊ÎÃ◊◊Îß. ‚Ç◊ à ªÊÒ⁄US◊ à øãº˝ÊÁáÊ Ã¬SÊSßÍ⁄UÁ‚ ¬˝¡Ê¬Ãfl¸áʸ— ¬⁄U◊áÊ ¬‡ÊÈŸÊ ∑˝§Ëÿ‚ ‚„Ud¬Ê·¢ ¬È·ÿ◊Ô˜.. (26) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ø◊∑§Ë‹ „Ò¥. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ø◊∑§Ã „ÈU∞ ‚ÊŸ ‚ π⁄Uˌà „Ò¥U (•¬ŸÊ ’ŸÊà „Ò¥U). •Ê¬ ø¢º˝◊Ê ∑§ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ ¬˝‚㟠∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •◊Îà ¡Ò‚ „Ò¥U. ªÊ⁄UÊ¥ •ÊÒ⁄U ø◊∑§Ã „ÈU∞ ìÁSflÿÊ¥ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ ⁄¢Uª ¡Ò‚ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ¬⁄U◊ ¬‡ÊÈœŸ ‚ •Ê¬ ∑§Ê π⁄Uˌà „Ò¥U. •Ê¬ „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „UÒ¥. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ÷Ë ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ ∑§ËÁ¡∞. (26) Á◊òÊÊ Ÿ ˘ ∞Á„U ‚ÈÁ◊òÊœ ˘ ßãº˝SÿÊL§◊Ê Áfl‡Ê ŒÁˇÊáÊ◊ȇÊãŸÈ‡Êãà ¦ SÿÊŸ— SÿÊŸêʘ. SflÊŸ ÷˝Ê¡ÊYÊ⁄U ’ê÷Ê⁄U „USà ‚È„USà ∑Χ‡ÊÊŸflà fl— ‚Ê◊∑˝§ÿáÊÊSÃÊŸ˝ˇÊäfl¢ ◊Ê flÊ Œ÷ŸÔ˜.. ( 27) „U ‚Ê◊! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á◊òÊ „Ò¥U. •Ê¬ Á◊òÊÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡Èfl¸Œ - 61
¬Íflʸœ¸
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ
„U◊Ê⁄UË •Ê⁄U ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ŒÊßZ ¡¢ÉÊÊ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚ÈπŒÊÿË, ¬Ê¬ ∑§ ‡ÊòÊÈ, ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ¬Ê‹∑§, ‚È¢Œ⁄U „UÊÕÊ¥ flÊ‹ ÃÕÊ ∑Χ‡Ê (ŒÈ’¸‹) ‹ÊªÊ¥ ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. Á¡ŸÁ¡Ÿ ‚ ‚Ê◊ ∑§Ê π⁄UËŒÊ ¡Ê ‚∑§ÃÊ „Ò, •Ê¬ ©UŸ©UŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (27) ¬Á⁄U ◊ÊÇŸ ŒÈ‡øÁ⁄UÃÊiÊœSflÊ ◊Ê ‚ÈøÁ⁄Uà ÷¡. ©UŒÊÿÈ·Ê SflÊÿÈ·ÊŒSÕÊ◊◊ÎÃÊ° 2 ˘ •ŸÈ.. (28) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ¬Ê¬ ‚ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ’È⁄U øÁ⁄UòÊ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê flœ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚ëëÊÁ⁄UòÊflÊŸ ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ©Uà∑Χc≈U •ÊÿÈ ‚ •¬ŸË üÊcΔU •ÊÿÈ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë •◊⁄UÃÊ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (28) ¬˝Áà ¬ãÕÊ◊¬kÁ„U SflÁSêÊ◊Ÿ„U‚◊ÔÔ˜. ÿŸ Áfl‡flÊ— ¬Á⁄U Ám·Ê flÎáÊÁÄà ÁflãŒÃ fl‚È.. (29) „U •ÁÇŸ! „U◊ ©U‚ ◊ʪ¸ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄¥U ¡Ê ◊¢ª‹◊ÿ fl ‚Ȫ◊ „UÊ, Á¡‚ ¬Õ ¬⁄U ¡ÊŸ ‚ mÁ·ÿÊ¥ ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ŸÊ‡Ê „UÊ •ÊÒ⁄U „U◊¥ œŸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊ. (29) •ÁŒàÿÊSàflªSÿÁŒàÿÒ ‚Œ •Ê‚ËŒ. •SÃèŸÊŒÔ˜lÊ¢ flη÷Ê •ãÃÁ⁄UˇÊ◊Á◊◊Ëà flÁ⁄U◊ÊáÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. •Ê‚ËŒÁm‡flÊ ÷ÈflŸÊÁŸ ‚◊˝Ê«˜UÁfl‡flûÊÊÁŸ flL§áÊSÿ fl˝ÃÊÁŸ.. (30) „U •Ê‚Ÿ! •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë àfløÊ ¡Ò‚ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊflŒË ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ’‹flÊŸ flL§áÊ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ◊ʬ ‹Ã „Ò¥U. •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ◊ʬ ‹Ã „Ò¥U. ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ◊ʬ ‹Ã „Ò¥U. fl ‚÷Ë ‹Ê∑§Ê¥ ◊¥ √ÿÊåç„Ò¥U. ©UŸ ∑§ fl˝Ã ÷‹Ë÷Ê¢Áà ‡ÊÊ÷à „Ò¥U. (30) flŸ·È √ÿãÃÁ⁄UˇÊ¢ ÃÃÊŸ flÊ¡◊fl¸à‚È ¬ÿ ˘ ©UÁdÿÊ‚È. Nà‚È ∑˝§Ã¢È flL§áÊÊ ÁflˇflÁÇŸ¢ ÁŒÁfl ‚Íÿ¸◊ŒœÊÃÔ˜ ‚Ê◊◊º˝ÊÒ.. (31) flL§áÊ Ÿ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ÃÊŸÊ. ’‹ fl ªÊÿÊ¥ ◊¥ ŒÍœ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. NUŒÿ ◊¥ ÿôÊ ‡ÊÁÄà SÕÊÁ¬Ã ∑§Ë. •ÁÇŸ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ‚Íÿ¸ ∑§Ê ∞fl¢ ¬fl¸Ã ¬⁄U ‚Ê◊ ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ. (31) ‚Íÿ¸Sÿ øˇÊÈ⁄UÊ⁄UÊ„UÊÇŸ⁄UˇáÊ— ∑§ŸËŸ∑§◊Ô˜. ÿòÊÒÇÊÁ÷⁄UËÿ‚ ÷˝Ê¡◊ÊŸÊ Áfl¬Á‡øÃÊ.. (32) „U flL§áÊ Œfl! •Ê¬ ‚Íÿ¸ ∑§ øˇÊÈ „Ò¥U. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ë •Ê¢π „Ò¥U. •Ê¬ •Ê¢π ∑§Ë ¬ÈÃ‹Ë ¬⁄U •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ‡ÊÊÁ÷à „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (32) 62 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
øÊÒÕÊ •äÿÊÿ
©UdÊfl⠜ͷʸ„UÊÒ ÿÈÖÿÕÊ◊ŸüÊÍ •flË⁄U„UáÊÊÒ ’˝rÊÔøÊŒŸÊÒ. SflÁSà ÿ¡◊ÊŸSÿ ªÎ„UÊŸÔ˜ ªë¿UÃ◊ÔÔ˜.. (33) „U ŒflÃÊ•Ê! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ÉÊ⁄UÊ¥ ∑§Ë •Ê⁄U ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÷Ê⁄U fl„UŸ ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. •Ê¬ flË⁄UÊ¥ ∑§Ê ‚Èπ ŒÃ „Ò¥U. ’˝rÊôÊÊŸ „ÃÈ ¬˝⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÕ ◊¥ ¡È«∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (33) ÷º˝Ê ◊Á‚ ¬˝ëÿflSfl ÷ÈflS¬Ã Áfl‡flÊãÿÁ÷ œÊ◊ÊÁŸ. ◊Ê àflÊ ¬Á⁄U¬Á⁄UáÊÊ ÁflŒŸÔÔ˜ ◊Ê àflÊ ¬Á⁄U¬ÁãÕŸÊ ÁflŒŸÔ˜ ◊Ê àflÊ flÎ∑§Ê •ÉÊÊÿflÊ ÁflŒŸÔ˜. ‡ÿŸÊ ÷ÍàflÊ ¬⁄Uʬà ÿ¡◊ÊŸSÿ ªÎ„UÊŸÔ˜ ªë¿U ÃãŸÊÒ ‚ ¦ S∑ΧÃ◊ÔÔ˜.. (34) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ◊⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÷ÈflŸ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡fl ∑§ ‚÷Ë œÊ◊Ê¥ ∑§Ë •Ê⁄U Ã¡Ë ‚ ¬˝ÿÊáÊ (ÿÊòÊÊ) ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ ∑§ ôÊÊŸ ∑§Ê Áfl·ÿ ◊à „UÊß∞. ÿôÊ ∑§ Áfl⁄UÊœË ‹Êª •Ê¬ ∑§Ê Ÿ ¡ÊŸ ¬Ê∞¢. ‚’ •Ê⁄U ÷˝◊áÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ ¡ÊŸ ¬Ê∞¢. ¬Ê¬Ë ÷Á«∏U∞ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ ¡ÊŸ ‚∑¥§. •Ê¬ ’Ê¡ ∑§ ‚◊ÊŸ ¡ÀŒË ¡Êß∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ÉÊ⁄UÊ¥ ∑§Ë •Ê⁄U ¬˝SÕÊŸ ∑§ËÁ¡∞. fl„UÊ¢ ÷‹Ë÷Ê¢Áà ‚ÁÖ¡Ã ÿôʇÊÊ‹Ê•Ê¥ ∑§Ê ¬˝’¢œ „ÒU . (34) Ÿ◊Ê Á◊òÊSÿ flL§áÊSÿ øˇÊ‚ ◊„UÊ ŒflÊÿ ÃŒÎà ¦ ‚¬ÿ¸Ã. ŒÍ⁄UŒÎ‡Ê Œfl¡ÊÃÊÿ ∑§Ãfl ÁŒflS¬ÈòÊÊÿ ‚Íÿʸÿ ‡Ê ¦ ‚Ã.. (35) Á◊òÊ ŒflÃÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ ŒflÃÊ ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ‚ ŒπŸ flÊ‹ ‚Íÿ¸ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U „ÒU. ‚Íÿ¸ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ, ŒÍ⁄U ŒÎÁc≈U flÊ‹, ŒflÃÊ ‚ ©Uà¬ããÊ fl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ! ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SÃÊòÊ ∑§Ê ¬ÊΔU ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (35) flL§áÊSÿÊûÊê÷Ÿ◊Á‚ flL§áÊSÿ S∑§ê÷‚¡¸ŸË SÕÊ flL§áÊSÿ´§ÃSÊŒãÿÁ‚ flL§áÊSÿ´§Ã‚ŒŸ◊Á‚ flL§áÊSÿ´§Ã‚ŒŸ◊Ê‚ËŒ.. (36) „U ‡Ê◊Ë Œfl (ÿôÊ ◊¥ ∑§Ê◊ •ÊŸ flÊ‹Ë ‹∑§«∏UË)! •Ê¬ flL§áÊ ∑§Ê ©UàÕÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¢. •Ê¬ flL§áÊ ∑§Ë ªÁà ∑§ ‚¡¸∑§ (⁄UøŸÊ∑§Ê⁄U) „Ò¥U. •Ê¬ ©Uã„¥U ÁSÕ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ ∑§ ÿôÊ ∑§Ê ‚ŒŸ, ÿôÊ ∑§Ê ’ÒΔUŸ ∑§Ê SÕÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ ∑§ ÿôÊ ∑§ ‚ŒŸ ◊¥ ‚Èπ ‚ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (36) ÿÊ Ã œÊ◊ÊÁŸ „UÁfl·Ê ÿ¡Áãà ÃÊ Ã Áfl‡flÊ ¬Á⁄U÷Í⁄USÃÈ ÿôÊ◊ÔÔ˜. ªÿS» ÊŸ— ¬˝Ã⁄UáÊ— ‚ÈflË⁄UÊ ˘ flË⁄U„UÊ ¬˝ ø⁄UÊ ‚Ê◊ ŒÈÿʸŸÔ˜.. (37) „U ‚Ê◊! ¡Ê ÿ¡◊ÊŸ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§ œÊ◊ ∑§Ê ÷¡Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ‚÷Ë ÿôÊ SÕÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊ¥. •Ê¬ ÉÊ⁄UÊ¥ ∑§Ê S»§ÊÁ⁄Uà (ÁflSÃÎÃ) ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬Ê⁄U ‹ªÊŸ flÊ‹ üÊcΔU flË⁄U fl ∑§Êÿ⁄UÊ¥ ∑§ ÁflŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊÊ¥ ◊¥ ¬„¢ÈUøŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (37) ÿ¡Èfl¸Œ - 63
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ •ÇŸSßÍ⁄UÁ‚ ÁflcáÊfl àflÊ ‚Ê◊Sÿ ßÍ⁄UÁ‚ ÁflcáÊfl àflÊÁÃÕ⁄UÊÁÃâÿ◊Á‚ ÁflcáÊfl àflÊ ‡ÿŸÊÿ àflÊ ‚Ê◊÷Îà ÁflcáÊfl àflÊÇŸÿ àflÊ ⁄UÊÿS¬Ê·Œ ÁflcáÊfl àflÊ.. (1) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ œŸŒÊÃÊ, ‚◊ÎÁh ŒŸ flÊ‹ fl ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥. „U◊ ÁflcáÊÈ fl ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ‚Ê◊! •Ê¬ •ÁÇŸ ¡Ò‚ •ÊÒ⁄U ©Uã„UË¥ ∑§Ë Ã⁄U„U ™§¡¸SflË „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ •Ê∞ ◊„U◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê SflʪÂà∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê Sflª¸ ‚ ¬ÎâflË ¬⁄U ‹ÊŸ flÊ‹ ‡ÿŸ ¬ˇÊË ∑§ ‚◊ÊŸ „Ò¥U. (1) •ÇŸ¡¸ÁŸòÊ◊Á‚ flηáÊÊÒ SÕ ˘ ©Ufl¸‡ÿSÿÊÿÈ⁄UÁ‚ ¬ÈM§⁄UflÊ ˘ •Á‚. ªÊÿòÊáÊ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ◊ãÕÊÁ◊ òÊÒc≈È÷Ÿ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ◊ãÕÊÁ◊ ¡ÊªÃŸ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ◊ãÕÊÁ◊.. (2) „U ‡Ê∑§‹! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ ¡ÁŸÃÊ (¡ŸŸ flÊ‹) „Ò¥U. •Ê¬ flηáÊ (flËÿ¸flÊŸ) ◊¥ ÁSÕà „Ò¥U. •Ê¬ ©Ufl¸‡ÊË (∑§ ‚◊ÊŸ) „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÿÈ (∑§ ‚◊ÊŸ) „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÈM§⁄UflÊ (∑§ ‚◊ÊŸ) „Ò¥U. ◊Ò¥ ªÊÿòÊË ¿U¢Œ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ê ◊¢ÕŸ ∑§⁄UÃÊ „Í¢U. ◊Ò¥ ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ê ◊¢ÕŸ ∑§⁄UÃÊ „Í¢U. ◊Ò¥ ¡ªÃË ¿U¢Œ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ê ◊¢ÕŸ ∑§⁄UÃÊ „Í¢U. (2) ÷flâ ãÊ— ‚◊Ÿ‚ÊÒ ‚øÂÊfl⁄U¬‚ÊÒ. ◊Ê ÿôÊ ¦ Á„ ¦ Á‚CÔ¢U ◊Ê ÿôʬÁâ ¡ÊÃflŒ‚ÊÒ Á‡ÊflÊÒ ÷flÃ◊l Ÿ—.. (3) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •Ê‹Sÿ⁄UÁ„UÃ, ‚◊ÊŸ fl ‚ÊflœÊŸ ÁøûÊ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊÊ¥ ◊¥ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ÷Ë Á„¢U‚Ê ◊à „UÊŸ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôÊ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ •Ê¡ ‚ „UË „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (3) •ÇŸÊflÁÇŸ‡ø⁄UÁà ¬˝ÁflCÔU ˘ ´§·ËáÊÊ¢ ¬ÈÈòÊÊ •Á÷‡ÊÁSìÊflÊ. ‚ Ÿ— SÿÊŸ— ‚Èÿ¡Ê ÿ¡„U ŒflèÿÊ „U√ÿ ¦ ‚Œ◊¬˝ÿÈë¿UãàSflÊ„UÊ.. (4) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ´§Á·ÿÊ¥ ∑§ ¬ÈòÊ ¡Ò‚ „Ò¥U. •ÁÇŸ ‡Êʬ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ •ÊuÊŸ ∑§ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •ÁÇŸ ÿôÊ∑ȧ¢«U ◊¥ ¬˝Áflc≈U „UÊ øÈ∑§ „Ò¥U. fl •ÁÇŸ „U◊ ¬⁄U ∑Χ¬Ê‹È „UÊ¥. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ©U‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄U ∑§ ©UŸ ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„È¢U øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (4) 64 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@4
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê¬Ãÿ àflÊ ¬Á⁄U¬Ãÿ ªÎ±áÊÊÁ◊ ß͟åòÊ ‡ÊÊÄfl⁄UÊÿ ‡ÊÄflŸ ˘ •ÊÁ¡cΔUÊÿ. •ŸÊœÎc≈◊SÿŸÊœÎcÿ¢ ŒflÊŸÊ◊Ê¡Ê ˘ ŸÁ÷‡ÊSàÿÁ÷‡ÊÁSÃ¬Ê ˘ •ŸÁèʇÊSÃãÿ◊T‚Ê ‚àÿ◊Ȭª· ¦ ÁSflà ◊Ê äÊÊ—.. (5) „U •ÁÇŸ! „U◊ ÿôÊ ∑§Êÿ¸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚fl¸√ÿʬ∑§ „Ò¥U •ÊÒ⁄ •Ê¡SflË, ‚fl¸‚◊Õ¸, ¬˝‡Ê¢‚ŸËÿ ÉÊÎÁáÊà (’È⁄U) ∑§Ê◊Ê¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Á∑§‚Ë ∑§Ê ‡Êʬ Ÿ„UË¥ ŒÃ. •Ê¬ Sflÿ¢ ÷Ë •Á÷‡Êåà Ÿ„UË¥ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚àÿ◊ʪ¸ ¬⁄U ‹ øÁ‹∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê üÊcΔU ∑§Ê◊Ê¥ ◊¥ ‹ªÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •ÊœÊ⁄U fl ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. (5) •ÇŸ fl˝Ã¬ÊSàfl fl˝Ã¬Ê ÿÊ Ãfl ßÍÁ⁄Uÿ ¦ ‚Ê ◊Áÿ ÿÊ ◊◊ ßÍ⁄U·Ê ‚Ê àflÁÿ. ‚„U ŸÊÒ fl˝Ã¬Ã fl˝ÃÊãÿŸÈ ◊ ŒËˇÊÊ¢ ŒËˇÊʬÁÃ◊¸ãÿÃÊ◊ŸÈ ìSìS¬Á×.. (6) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ fl˝Ã ∑§ ¬Ê‹Ÿ∑§Ãʸ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê fl„U fl˝Ã ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê ‡Ê⁄UË⁄U „U◊Ê⁄U ‚ÊÕ ∞∑§Ê∑§Ê⁄U „UÊ ¡Ê∞. „U fl˝Ã¬Áà •ÁÇŸ! fl˝ÃÊ¥ ∑§Ê ÿ¡◊ÊŸ •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ÷Ë •Ê¬ ∑§ ‚ÊÕ (•Ê¬ ¡Ò‚) fl˝Ã¬Áà „UÊ ¡Ê∞¢. ‚Ê◊ ŒËˇÊʬÁà „Ò¥U. ‚Ê◊ ŒËˇÊÊ ∑§ ¬Ê‹Ÿ„UÊ⁄U „Ò¥U. ©UŸ ‚ „U◊ ∞∑§Ê∑§Ê⁄U „UÊ ¡Ê∞¢. •Ê¬ ì ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. „U◊ ì ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (•Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚) „U◊ •Ê¬ ‚ ∞∑§Ê∑§Ê⁄U „UÊ ¡Ê∞¢. (6) • ¦ ‡ÊÈ⁄ ¦ ‡ÊÈCÔU Œfl ‚Ê◊ÊåÿÊÿÃÊÁ◊ãº˝ÊÿÒ∑§œŸÁflŒ. •Ê ÃÈèÿÁ◊ãº˝— åÿÊÿÃÊ◊Ê àflÁ◊ãº˝Êÿ åÿÊÿSfl. •ÊåÿÊÿÿÊS◊Êãà‚πËãà‚ãÿÊ ◊œÿÊ SflÁSà à Œfl ‚Ê◊ ‚ÈàÿÊ◊‡ÊËÿ. ∞CÔUÊ ⁄UÊÿ— ¬˝· ÷ªÊÿ ´§Ã◊ÎÃflÊÁŒèÿÊ Ÿ◊Ê lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ◊˜Ô.. (7) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ë ‚Ê◊’‹ ߢº˝ ∑§ Á‹∞ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ߢº˝ œŸ flûÊÊ (¡ÊŸŸ flÊ‹) „Ò¥U. fl •Ê¬ ∑§Ê ¬Ë ∑§⁄U ÃÎåà „UÊ¥. •Ê¬ ©UŸ ∑§ ¬ËŸ (‚flŸ) ∑§ Á‹∞ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ‚πÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ÃÎåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Ê◊ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ „UÊ. „U◊ •¬ŸË ◊œÊ (’ÈÁh) ‚ ‚Ê◊ „UÃÈ Á∑§∞ ¡Ê ⁄U„U ÿôÊ •ÊÒ⁄U ߟ SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ‡ÊËÉÊ˝ ¬Í⁄UÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ßc≈U (Á¬˝ÿ) œŸ ÷¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •ÁÇŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚àÿflÊŒË „UÊ¥. ߢº˝ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •◊⁄UÃÊ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (7) ÿÊ Ã •ÇŸ ˘ ÿ—‡ÊÿÊ ÃŸÍfl¸Á·¸cΔUÊ ªuÔU⁄UcΔUÊ. ©Uª˝¢ fløÊ •¬ÊflœËûfl·¢ fløÊ •¬ÊflœËàSflÊ„UÊ. ÿÊ Ã •ÇŸ ⁄U¡—‡ÊÿÊ ÃŸÍfl¸Á·¸cΔUÊ ªuÔU⁄UcΔUÊ. ©Uª˝¢ fløÊ •¬ÊflœËûfl·¢ fløÊ •¬ÊflœËàSflÊ„UÊ. ÿÊ Ã •ÇŸ „UÁ⁄U‡ÊÿÊ ÃŸÍfl¸Á·¸cΔUÊ ªuÔU⁄UcΔUÊ. ©Uª˝¢ fløÊ •¬ÊflœËûfl·¢ fløÊ •¬ÊflœËàSflÊ„UÊ.. (8) ÿ¡Èfl¸Œ - 65
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U ‹Ê„ fl øÊ¢ŒË ¡Ò‚Ê ø◊∑§Ë‹Ê „Ò. •Ê¬ ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U ‚ÊŸ ¡Ò‚Ê ‚ÈŸ„U⁄UÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§ fløŸ ©Uª˝ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹, ªÈ»§Ê fl ŒÈª¸◊ SÕÊŸ ∑§ flÊ‚Ë „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ë ∑§ΔUÊ⁄U •ÊflÊ¡Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∞fl¢ ◊Á„U◊ÊflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ªÈ»§Ê „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (8) ÃåÃÊÿŸË ◊Á‚ ÁflûÊÊÿŸË ◊ ˘ SÿflÃÊã◊Ê ŸÊÁÕÃÊŒflÃÊã◊Ê √ÿÁÕÃÊØ.Ô ÁflŒŒÁÇŸŸ¸÷Ê ŸÊ◊ÊÇŸ •ÁXÔU⁄U ˘ •ÊÿÈŸÊ ŸÊêŸÁ„U ÿÊ ˘ SÿÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊Á‚ ÿûÊ ˘ ŸÊœÎC¢UÔ ŸÊ◊ ÿÁôÊÿ¢ ß àflÊ Œœ ÁflŒŒÁÇŸŸ¸÷Ê ŸÊ◊ÊÇŸ •ÁXÔU⁄U ˘ •ÊÿÈŸÊ ŸÊêŸÁ„U ÿÊ ÁmÃËÿSÿÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊Á‚ ÿûÊŸÊœÎC¢UÔ ŸÊ◊ ÿÁôÊÿ¢ ß àflÊ Œœ ÁflŒŒÁÇŸŸ¸÷Ê ŸÊ◊ÊÇŸ •ÁXÔU⁄U ˘ •ÊÿÈŸÊ ŸÊêŸÁ„U ÿSÃÎÃËÿSÿÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊Á‚ ÿûÊŸÊœÎC¢UÔ ŸÊ◊ ÿÁôÊÿ¢ ß àflÊ Œœ. •ŸÈ àflÊ ŒflflËÃÿ.. (9) „U ¬ÎâflË! •Ê¬ ™§¡Ê¸ fl œŸ ŒŸ flÊ‹Ë „Ò¥U . „U ¬ÎâflË! •Ê¬ „U◊¥ œÎc≈UÃÊ ‚ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U ¬ÎâflË! •Ê¬ ÿôÊ ∑§ ÿÊÇÿ „Ò¥U. “Ÿ÷” ŸÊ◊∑§ •ÁÇŸ •Ê¬ ∑§Ë •Ê⁄U ©Uã◊Èπ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •¢Áª⁄U‚ •ÁÇŸ •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬ÎâflË ÁmÃËÿ fl ÃÎÃËÿ SÕÊŸ ◊¥ •flÁSÕà „ÒU. „U◊ ¬ÎâflË ¬⁄U ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (9) Á‚ ¦ sÔÁ‚ ‚¬àŸ‚Ê„UË Œflèÿ— ∑§À¬Sfl Á‚ ¦ sÔÁ‚ ‚¬àŸ‚Ê„UË Œflèÿ— ‡ÊÈãœSfl Á‚ ¦ sÔÁ‚ ‚¬àŸ‚Ê„UË Œflèÿ— ‡ÊÈê÷Sfl.. (10) „U ©UûÊ⁄UflÁŒ∑§Ê! •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË ∑§Ë Ã⁄U„U ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÷Ë ∑§ÁÀ¬Ã „UÊŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ‡ÊÈh „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË ∑§Ë Ã⁄U„U ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ‡ÊÈh „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (10) ßãº˝ÉÊÊ·SàflÊ fl‚ÈÁ÷— ¬È⁄USÃÊà¬ÊÃÈ ¬˝øÃÊSàflÊ L§º˝Ò— ¬‡øÊà¬ÊÃÈ ◊ŸÊ¡flÊSàflÊ Á¬ÃÎÁ÷Œ¸ÁˇÊáÊ× ¬ÊÃÈ Áfl‡fl∑§◊ʸ àflÊÁŒàÿÒL§ûÊ⁄U× ¬ÊÁàflŒ◊„¢U Ãåâ flÊ’¸Á„UœÊ¸ ÿôÊÊÁ㟗 ‚ΡÊÁ◊.. (11) ߢº˝ fl‚È•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ‚’ •Ê⁄U ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flL§áÊ L§º˝Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬Á‡ø◊ ‚ (•Ê¬ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ÿ◊ ŒÁˇÊáÊ ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Áfl‡fl∑§◊ʸ •ÊÁŒàÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ©UûÊ⁄U ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ÿôÊ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ÃÎåà ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê ¡‹ Á‚⁄U¡Ã „Ò¥U. (11) Á‚ ¦ sÔÁ‚ SflÊ„UÊ Á‚ ¦ sÔSÿÊÁŒàÿflÁŸ— SflÊ„UÊ Á‚ ¦ sÔÁ‚ ’˝rÊflÁŸ— ˇÊòÊflÁŸ— SflÊ„UÊ Á‚ ¦ sÔÁ‚ ‚Ȭ˝¡ÊflŸË ⁄UÊÿS¬Ê·flÁŸ— SflÊ„UÊ Á‚ ¦ sÔSÿÊ fl„U ŒflÊŸ˜ ÿ¡◊ÊŸÊÿ SflÊ„UÊ ÷ÍÃèÿSàflÊ.. (12) „U ©UûÊ⁄UflÁŒ∑§! •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË „Ò¥U. Á‚¢Á„UŸË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË „Ò¥U. •Ê¬ 66 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
•ÊÁŒàÿ ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË „Ò¥U. U•Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË „Ò¥U , •Ê¬ ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË M§¬ „Ò¥U. •Ê¬ •ë¿UË ‚¢ÃÊŸ ŒŸ fl œŸ ŒŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ Á‚¢Á„UŸË „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (12) œ˝ÈflÊÁ‚ ¬ÎÁÕflË¥ ŒÎ ¦ „U œ˝ÈflÁˇÊŒSÿãÃÁ⁄UˇÊ¢ ŒÎ ¦ „UÊëÿÈÃÁˇÊŒÁ‚ ÁŒfl¢ ŒÎ ¦ „UÊÇŸ— ¬È⁄UË·◊Á‚.. (13) „U ◊äÿ◊ ¬Á⁄UÁœ! •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê ÁSÕ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ÁSÕ⁄U fl •¢ÃÁ⁄ˇÊflÊ‚Ë „Ò¥U. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ÁSÕ⁄U ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ©UûÊflÁŒ∑§Ê Sflª¸ SflM§¬ „Ò. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÁSÕ⁄U ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚Ȫ¢ÁœÃ flSÃÈ•Ê¥ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ‚Ȫ¢ÁœÃ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (13) ÿÈTà ◊Ÿ ˘ ©Uà ÿÈTà ÁœÿÊ Áfl¬˝Ê Áfl¬˝Sÿ ’΄UÃÊ Áfl¬Á‡ø×. Áfl „UÊòÊÊ Œœ flÿÈŸÊÁflŒ∑§ ˘ ßã◊„UË ŒflSÿ ‚ÁflÃÈ— ¬Á⁄Uc≈ÈUÁ× SflÊ„UÊ.. (14) ’˝ÊrÊáÊ ÿ¡◊ÊŸ •¬ŸÊ ◊Ÿ •¬ŸË ’ÈÁh ÃÕÊ ‚’ ∑§Ê◊Ê¥ ‚ •¬Ÿ ∑§Ê „U≈UÊ ∑§⁄U ÿôÊ ◊¥ ‹ªÊà „Ò¥U. „UÊÃÊ ÿôÊ ∑§Ê Áfl‡Ê· M§¬ ‚ œÊ⁄Uà „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ¡Êª˝Ã „Ò¥U. ¬˝‡Ê¢‚Ê ¬˝Êåà „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ê ‚fl¸Áflœ •ŸÈ∑ͧ‹ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (14) ߌ¢ ÁflcáÊÈÁfl¸ø∑˝§◊ òÊœÊ ÁŸ Œœ ¬Œ◊Ô˜. ‚◊Í…U◊Sÿ ¬Ê ¦ ‚È⁄U SflÊ„UÊ.. (15) ÿ„U ÁflcáÊÈ Áfl‡Ê· M§¬ ‚ ‚fl¸òÊ ÷˝◊áÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U (•ÕʸØ ‚fl¸√ÿʬ∑§ „Ò¥U). ÁflcáÊÈ ÃËŸ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ÃËŸ ¬Ò⁄U œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U ÿÊŸË ‚’ ‹Ê∑§ ߟ ∑§ ÃËŸ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ ‚◊Ê∞ „ÈU∞ „Ò¥U. ߟ ∑§Ë ø⁄UáÊ⁄U¡ ◊¥ ‹Ê∑ ‚◊Ê∞ „Ò¥U. ÁflcáÊÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (15) ß⁄UÊflÃË œŸÈ◊ÃË Á„U ÷Íà ¦ ‚ÍÿflÁ‚ŸË ◊Ÿfl Œ‡ÊSÿÊ. √ÿS∑§èŸÊ ⁄UÊŒ‚Ë ÁflcáÊflà ŒÊœàÕ¸ ¬ÎÁÕflË◊Á÷ÃÊ ◊ÿÍπÒ— SflÊ„UÊ.. (16) ¬ÎâflË œŸflÃË fl ªÊflÃË „Ò. ¬ÎâflË ÿôÊ ‚ÊœŸ ŒŸ flÊ‹Ë „Ò. ÁflcáÊÈ Ÿ ¬ÎâflË ∑§Ê Sflª¸‹Ê∑§ ‚ •‹ª ∑§⁄U ∑§ ÁSÕ⁄U ’ŸÊÿÊ „Ò. ©Uã„UÊ¥Ÿ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ¬ÎâflË ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U √ÿÊåà Á∑§ÿÊ „Ò. ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (16) ŒflüÊÈÃÊÒ ŒflcflÊ ÉÊʷâ ¬˝ÊøË ¬˝Ã◊äfl⁄¢U ∑§À¬ÿãÃË ™§äflZ ÿôÊ¢ Ÿÿâ ◊Ê Á¡u⁄UÃ◊Ô˜. Sfl¢ ªÊcΔU◊Ê flŒÃ¢ ŒflÊ ŒÈÿ¸ •ÊÿÈ◊ʸ ÁŸflʸÁŒCÔ¢U ¬˝¡Ê¢ ◊Ê ÁŸflʸÁŒCÔU◊òÊ ⁄U◊ÕÊ¢ flc◊¸ŸÔ˜ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—.. (17) „U ŒflÊ! •Ê¬ ÁŒ√ÿ ÁflœÊ•Ê¥ ◊¥ ŒˇÊ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ‚÷Ê ◊¥ ÿ„U ÉÊÊ·áÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U Á∑§ ŒflªáÊ ÿôÊ ∑§Ê ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U. fl ÿôÊ ∑§Ê ßc≈U ÿ¡Èfl¸Œ - 67
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U. ŒflªáÊ ÿôÊ ∑§Ê »§‹Ë÷Íà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒflªáÊ ÿôÊ ∑§Ê ™¢§øÊ߸ ¬⁄U ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U. •Êª ªÊÿÊ¥ ∑§ ’Ê«∏U ◊¥ (ªÊ‡ÊÊ‹Ê ◊¥) ÉÊÊcÊáÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄UU¢ Á∑§ ŒflÃÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflÃÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ÁŸ¢ÁŒÃ Ÿ „UÊŸ Œ¥. ŒflÃÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ‚Èπ¬Ífl¸∑§ ⁄U„UŸ ∑§Ê •Ê‡ÊËflʸŒ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒflªáÊ ¬ÎâflË ∑§ ߟ SÕÊŸÊ¥ ¬⁄U ‚Èπ ‚ flÊ‚ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (17) ÁflcáÊʟȸ∑¢§ flËÿʸÁáÊ ¬˝flÊø¢ ÿ— ¬ÊÁÕ¸flÊÁŸ Áfl◊◊ ⁄U¡Ê ¦ Á‚. ÿÊ •S∑§÷ÊÿŒÈûÊ⁄ ¦ ‚œSÕ¢ Áflø∑˝§◊ÊáÊSòÊœÊL§ªÊÿÊ ÁflcáÊfl àflÊ.. (18) „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ÁflcáÊÈ ∑§ •ŸÈ∑§⁄UáÊËÿ ∑§ÊÿÊZ ¬⁄UÊ∑˝§◊¬Íáʸ ∑§ÊÿÊZ ∑§Ê fláʸŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U$ ©UŸ ∑§Ë ø⁄UáÊ⁄U¡ ◊¥ ¬Îâfl˧•ÊÁŒ ‹Ê∑§ flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊¥ ÷ÿ◊ÈÄà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ‚ÊœŸ flÊ‹ fl ‚fl¸√ÿʬ∑§ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ∑§ÊcΔUU Œfl •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (18) ÁŒflÊ flÊ ÁflcáÊ ˘ ©Uà flÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ◊„UÊ flÊ ÁflcáÊ ˘ ©U⁄Ê⁄UãÃÁ⁄UˇÊÊÃÔ˜. ©U÷Ê Á„U „USÃÊ fl‚ÈŸÊ ¬ÎáÊSflÊ ¬˝ÿë¿U ŒÁˇÊáÊÊŒÊà ‚√ÿÊÁmcáÊfl àflÊ.. (19) „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ „U◊¥ œŸ Œ¥ ÿÊ „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ‚ „U◊¥ œŸ ‚ ¬Íáʸ ∑§⁄¥U ÿÊ „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹‹Ê∑§ ‚ „U◊¥ œŸ Œ¥ ÿÊ „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ œŸ ‚ ¬Íáʸ ∑§⁄¥U ÿÊ „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ •¬Ÿ ŒÊŸÊ¥ „UÊÕÊ¥ ‚ „U◊¥ œŸ ‚ ¬Íáʸ ∑§⁄¥U ÿÊ „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ ŒÊ∞¢ ÿÊ ’Ê∞¢ „UÊÕ ‚ „U◊¥ œŸ Œ ∑§⁄U ¬Íáʸ ∑§⁄¥U. ÁflcáÊÈ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ „U◊ ∑§ÊcΔ UŒfl ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄à „Ò¥U. (19) ¬˝ ÃÁmcáÊÈ— SÃflà flËÿ¸áÊ ◊ÎªÊ Ÿ ÷Ë◊— ∑ȧø⁄UÊ ÁªÁ⁄UcΔUÊ—. ÿSÿÊL§·È ÁòÊ·È Áfl∑˝§◊áÊcflÁœÁˇÊÿÁãà ÷ÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ.. (20) ÁflcáÊÈ •¬ŸË ‚È¢Œ⁄UÃÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á‚h „Ò¥U. fl •¬ŸË flË⁄UÃÊ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ SÃÈàÿ „Ò¥U. fl Á‚¢„U fl ‚¢flª ∑§Ë Ã⁄U„U Áflø⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U fl ¬fl¸Ã ◊¥ flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߟ ∑§ ÃËŸÊ¥ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ ‚’ •ÊüÊÿ ¬Ê∞ „ÈU∞ „Ò¥U. ߟ ÁflcáÊÈ ∑§ ÃËŸÊ¥ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ ‚’ ‹Ê∑§ •ÊüÊÿ ¬Ê∞ „ÈU∞ „Ò¥U. (20) ÁflcáÊÊ ⁄U⁄UÊ≈U◊Á‚ ÁflcáÊÊ— ‡ŸåòÊ SÕÊ ÁflcáÊÊ— SÿÍ⁄UÁ‚ ÁflcáÊÊœ˝¸ÈflÊÁ‚. flÒcáÊfl◊Á‚ ÁflcáÊfl àflÊ.. (21) „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ ‹‹Ê≈U „Ò¥U. •Ê¬ ‹‹Ê≈U ∑§ ŒÊŸÊ¥ ÷ʪ „Ò¥U. ÁflcáÊÈ ‚÷Ë ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê √ÿʬ∑§ ’ŸÊà „Ò¥U. •Ê¬ ÁSÕ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ œ˝Èfl „Ò¥U. „U◊ ÁflcáÊÈ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ ∑§ÊcΔU Œfl ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (21) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚fl ˘ Á‡flŸÊ’ʸ„ÈèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊Ô˜. •Ê ŒŒ ŸÊÿ¸‚Ë Œ◊„ ¦ ⁄UˇÊ‚Ê¢ ª˝ËflÊ •Á¬∑ΧãÃÊÁ◊. ’΄UãŸÁ‚ ’΄Uº˝flÊ ’΄UÃËÁ◊ãº˝Êÿ flÊø¢ flŒ.. (22) 68 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
‚’ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚ÁflÃÊ Ÿ ¬ÒŒÊ Á∑§ÿÊ „Ò. •Á‡flŸË ∑§ ’Ê„ÈU•Ê¥ ‚ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄Uà „Ò¥U. ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄Uà „Ò¥U. •Êß∞, •Ê¬ „U◊¥ ‚„UÊÿÃÊ ŒËÁ¡∞. „U◊ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ë ª⁄UŒŸ¥ ¿UŒUà „Ò¥U, ∑§Ê≈UÃU „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹ fl ’„ÈUà •Áœ∑§ •ÊflÊ¡ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ ∑§ Á‹∞ flÊáÊË (◊¢òÊ) ŒËÁ¡∞ •ÕʸØ ◊¢òʬÊUΔU ∑§ËÁ¡∞. (22) ⁄UˇÊÊ„UáÊ¢ fl‹ª„UŸ¢ flÒcáÊflËÁ◊Œ◊„¢U â fl‹ª◊ÈÁà∑§⁄UÊÁ◊ ÿ¢ ◊ ÁŸCÔUÔ˜ÿÊ ÿ◊◊ÊàÿÊ ÁŸøπÊŸŒ◊„¢U â fl‹ª◊ÈÁà∑§⁄UÊÁ◊ ÿ¢ ◊ ‚◊ÊŸÊ ÿ◊‚◊ÊŸÊ ÁŸøπÊŸŒ◊„¢U â fl‹ª◊ÈÁà∑§⁄UÊÁ◊ ÿ¢ ◊ ‚’ãœÈÿ¸◊‚’ãœÈÁŸ¸øπÊŸŒ◊„¢U â fl‹ª◊ÈÁà∑§⁄UÊÁ◊ ÿ¢ ◊ ‚¡ÊÃÊ ÿ◊‚¡ÊÃÊ ÁŸøπÊŸÊà∑ΧàÿÊ¢ Á∑§⁄UÊÁ◊.. (23) ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê „UŸŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ◊¢òʬÊΔU ∑§ËÁ¡∞. •ÁÃøÊ⁄U ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ ◊¢òʬÊΔU ∑§ËÁ¡∞. ¬Ê·áÊÃÊ ŒŸ flÊ‹ ◊¢òʬÊΔU ∑§ËÁ¡∞. •Á÷øÊ⁄U ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ ◊¢òʬÊΔU ∑§ËÁ¡∞. •ÁŸc≈U ÁŸflÊ⁄UáÊ „ÃÈ ◊¢òʬÊΔU ∑§ËÁ¡∞. Á¿U¬Ê ∑§⁄U ⁄Uπ „ÈU∞ •ÁŸc≈U∑§⁄UU ‚ÊœŸÊ¥ ∑§ ŸÊ‡Ê „UÃÈ ◊¢òʬÊΔU ∑§ËÁ¡∞. Á¿U¬Ê ∑§⁄U ⁄Uπ „ÈU∞ •Á÷øÊ⁄U ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê „U◊ πÊŒ ∑§⁄U ©UπÊ«∏U »¥§∑§Ã „Ò¥U. „U◊Ê⁄U ‚¡ÊÁÃÿÊ¥ Ÿ ¡Ê •ÁŸc≈U∑§Ê⁄UË ¬˝ÿʪ Á∑§∞ „Ò¥U, „U◊ ©Uã„¥U πÊŒ ∑§⁄U ©UπÊ«∏U »¥§∑§Ã „Ò¥U. (23) Sfl⁄UÊ«UÁ‚ ‚¬àŸ„UÊ ‚òÊ⁄UÊ«UUSÿÁ÷◊ÊÁÄUÊ ¡Ÿ⁄UÊ«UÁ‚ ⁄UˇÊÊ„UÊ ‚fl¸⁄UÊ«USÿÁ◊òÊ„UÊ.. (24) „U ªÃ¸! Sflÿ¢ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ, ‡ÊòÊȟʇÊË, ÿôÊ ‚òÊ Ã∑§ ⁄U„UŸ flÊ‹, •Á÷◊ÊŸ ŸÊ‡Ê∑§, ¡ŸÊ¥ ∑§ ⁄ˇÊ∑§ fl ⁄UÊˇÊ‚ „U¢ÃÊ (◊Ê⁄UŸ flÊ‹) „Ò¥U. ‚÷Ë ∑§ ¬˝∑§Ê‡Ê∑§ •ÊÒ⁄U •Á◊òÊÊ¥ ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. (24) ⁄UˇÊÊ„UáÊÊ flÊ fl‹ª„UŸ— ¬˝ÊˇÊÊÁ◊ flÒcáÊflÊãʘ ⁄UˇÊÊ„UáÊÊ flÊ fl‹ª„UŸÊflŸÿÊÁ◊ flÒcáÊflÊŸÔÔ˜ ⁄UˇÊÊ„UáÊÊ flÊ fl‹ª„UŸÊflSÃÎáÊÊÁ◊ flÒcáÊflÊŸÔÔ˜ ⁄UˇÊÊ„UáÊÊÒ flÊ¢ fl‹ª„UŸÊ ˘ ©U¬ ŒœÊÁ◊ flÒcáÊflË ⁄UˇÊÊ„UáÊÊÒ flÊ¢ fl‹ª„UŸÊÒ ¬ÿ¸Í„UÊÁ◊ flÒcáÊflË flÒcáÊfl◊Á‚ flÒcáÊflÊ SÕ.. (25) ⁄UÊˇÊ‚ ŸÊ‡Ê§ „ÃÈ „U◊ ª«U˜…UÊ πʌà „Ò¥U. •Á÷øÊ⁄U ŸÊ‡Ê§ „ÃÈ „U◊ ª«U˜…UÊ πʌà „Ò¥U. ÁflcáÊÈ ∑§Ê ߟ ª«˜U…UÊ¥ ◊¥ •ÁœÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ „UÃÈ „U◊ ª«˜U…UÊ¥ ◊¥ ¡‹ Á¿U«∏U∑§Ã „Ò¥U. ©UŸ ∑§ „UÃÈ „U◊ ª«˜U…UÊ¥ ◊¥ ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ Á’¿UÊà „Ò¥U. fl ⁄UÊˇÊ‚ fl •Á÷øÊ⁄U ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. ©UŸ ∑§ „UÃÈ „U◊ ª«U˜U…UÊ¥ ◊¥ »§‹∑§ (¬≈⁄UUÊ) ⁄Uπà „Ò¥U. fl ⁄UÊˇÊ‚ fl •Á÷øÊ⁄U ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. ©UŸ ∑§ „UÃÈ „U◊ ª«˜U…UÊ¥ ◊¥ Á◊≈˜U≈UË fl ¬àÕ⁄U Á’¿UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. „U ÁflcáÊÈ! ÁSÕ⁄U „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (25) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚fl ˘ Á‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊ÔÔ˜. •ÊŒŒ ŸÊÿ¸‚ËŒ◊„ ¦ ⁄UˇÊ‚Ê¢ ª˝ËflÊ ˘ •Á¬∑ΧãÃÊÁ◊. ÿflÊÁ‚ ÿflÿÊS◊ŒÔ˜m·Ê ÿflÿÊ⁄UÊÃËÁŒ¸fl àflÊãÃÁ⁄UˇÊÊÿ àflÊ ¬ÎÁÕ√ÿÒ àflÊ ‡ÊÈãœãÃÊ°À‹Ê∑§Ê— Á¬ÃηŒŸÊ— Á¬ÃηŒŸ◊Á‚.. (26) ÿ¡Èfl¸Œ - 69
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ÁflÃÊ Œfl ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ©Uà¬ãŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê •Á‡flŸË ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ’Ê„ÈU ‚ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê ¬Í·Ê ŒflÃÊ ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U ◊Ÿ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ë ª⁄UŒŸ ∑§Ê≈ U∑§⁄U •‹ª ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÿfl „Ò¥U. „U◊¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ •‹ª ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§, •¢ÃÁ⁄UˇÊ fl ¬ÎâÔ flË „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ˇÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ SÕÊŸ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ‚ŒŸ „ÒU. ÿ„U Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ÁŸflÊ‚ SÕÊŸ „Ò. (26) ©UÁgfl ¦ SÃ÷ÊŸÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ¬ÎáÊ ŒÎ ¦ „USfl ¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ lÈÃÊŸSàflÊ ◊ÊL§ÃÊ Á◊ŸÊÃÈ Á◊òÊÊflL§áÊÊÒ œÈ˝fláÊ œ◊¸áÊÊ. ’˝rÊÔflÁŸ àflÊ ˇÊòÊflÁŸ ⁄UÊÿS¬Ê·flÁŸ ¬ÿ¸Í„UÊÁ◊ ’˝rÊÔ ŒÎ ¦ „U ˇÊòÊ¢ ŒÎ ¦ „UÊÿȌθ ¦ „U ¬˝¡Ê¢ ŒÎ ¦ „U.. (27) „U ©UŒÈ¢’⁄U ‡ÊÊπ (ªÍ‹⁄U ∑§Ë ‹∑§«∏UË)! Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ™¢§øÊ ©UΔUÊŸ, •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Íáʸ ∑§⁄UŸ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ŒÎ…∏U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ◊L§Œ˜ªÔ áÊ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (27) œÈ˝flÊÁ‚ œ˝ÈflÊÿ¢ ÿ¡◊ÊŸÊÁS◊ãŸÊÿß ¬˝¡ÿÊ ¬‡ÊÈÁ÷÷͸ÿÊØ. ÉÊÎß lÊflʬÎÁÕflË ¬Íÿ¸ÕÊÁ◊ãº˝Sÿ ¿UÁŒ⁄UÁ‚ Áfl‡fl¡ãÊSÿ ¿UÊÿÊ.. (28) „U ‡ÊÊπÊ! •Ê¬ ™¢§ø •Ê∑§Ê‡Ê Ã∑§ ¡Êß∞. •Ê¬ œ˝Èfl (ÁSÕ⁄U) „UÊß∞. ÿ¡◊ÊŸ ßU‚ ÉÊ⁄U ◊¥ ¬˝¡ÊflÊŸ •ÊÒ⁄U ¬‡ÊÈ flÊ‹Ê „UÊ. „U◊ ÉÊË ‚ Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË ∑§Ê ¬ÍÁ⁄Uà ∑§⁄U Œ¥. ¿Uå¬⁄U ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl „U◊¥ ÷Ë ¿UòÊë¿UUÊÿÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (28) ¬Á⁄U àflÊ Áªfl¸áÊÊ Áª⁄U ˘ ß◊Ê ÷flãÃÈ Áfl‡fl×. flÎhÊÿÈ◊ŸÈ flÎhÿÊ ¡ÈCÔUÊ ÷flãÃÈ ¡ÈCÔUÿ—.. (29) „U ߢº˝! flÊáÊË◊ÿ SÃÈÁÃÿÊ¢ •Ê¬ ∑§Ê ‚’ •Ê⁄U ‚ ¬˝Êåà „UÊ¥. flÊáÊË◊ÿ SÃÈÁÃÿÊ¢ ‚’ •Ê⁄U ‚ ‚’ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ◊ÿË „UÊ¥. „U◊ •ÊÿÈ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Ê∞¢. •Ê¬ ∑§Ë •ÊÿÈ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ‚ ‚¢ÃÈc≈U ∞fl¢ ¬˝‚㟠„UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (29) ßãº˝Sÿ SÿÍ⁄U‚Ëãº˝Sÿ œ˝ÈflÊÁ‚. ∞ãº˝◊Á‚ flÒ‡flŒfl◊Á‚.. (30) „U ⁄UÖ¡È! •Ê¬ ߢº˝ ∑§ Á‹∞ „UÊ. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÁSÕ⁄U „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©UŸ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ‚ ‚¢’h „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (30) Áfl÷Í⁄UÁ‚ ¬˝flÊ„UáÊÊ flÁq⁄UÁ‚ „U√ÿflÊ„UŸ—. ‡flÊòÊÊÁ‚ ¬˝øÃÊSÃÈÕÊÁ‚ Áfl‡flflŒÊ—.. (31) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ √ÿʬ∑§, ¬˝flÊ„U∑§, ÁflÁflœ SflM§¬, „UÁfl flÊ„U∑§ fl ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U$ •àÿ¢Ã øÃŸÊ ‚¢¬ãŸ „ÒU¢$ •Ê¬ SÃÈàÿ •ÊÒ⁄U ‚fl¸ôÊÊÃÊ „Ò¥U. (31)
70 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
©UÁ‡ÊªÁ‚ ∑§Áfl⁄UYÊÁ⁄U⁄UÁ‚ ’ê÷ÊÁ⁄U⁄UflSÿÍ⁄UÁ‚ ŒÈflSflÊÜ¿ÈUãäÿÍ⁄UÁ‚ ◊ʡʸ‹Ëÿ— ‚◊˝Ê«UÁ‚ ∑Χ‡ÊÊŸÈ— ¬Á⁄U·lÊÁ‚ ¬fl◊ÊŸÊ Ÿ÷ÊÁ‚ ¬˝ÃÄflÊ ◊ÎCÔUÊÁ‚ „U√ÿ‚ÍŒŸ ˘ ´§ÃœÊ◊Á‚ S√ÊÖÿʸÁ×.. (32) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ©UÁ‡Ê∑§, ∑§Áfl, ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§Ãʸ fl •ããÊ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÈh fl ¬Êfl∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‚◊˝Ê≈˜U „Ò¥U, ∑Χ‡ÊÊŸÈ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ •Ê⁄U ‚ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ‚ ÁÉÊ⁄UU „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ÷ fl ¬˝ŒÁˇÊáÊÊ SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ „UÁfl ∑§Ê ¬∑§ÊŸ flÊ‹, ‚àÿ ∑§ œÊ◊ ∞fl¢ Sflÿ¢ ¬˝∑§Ê‡Ê∑§ „Ò¥U. (32) ‚◊Ⱥ˝ÊÁ‚ Áfl‡fl√ÿøÊ ˘ •¡ÊSÿ∑§¬ÊŒÁ„U⁄UÁ‚ ’ÈäãÿÊ flʪSÿÒãº˝◊Á‚ ‚ŒÊSÿÎÃSÿ mÊ⁄UÊÒ ◊Ê ◊Ê ‚ãÃÊåÃ◊äflŸÊ◊äfl¬Ã ¬˝ ◊Ê ÁÃ⁄U S√ÊÁSà ◊ÁS◊ã¬ÁÕ ŒflÿÊŸ ÷ÍÿÊÃÔÔ˜.. (33) •Ê¬ ‚◊Ⱥ˝, ‚fl¸ôÊÊÃÊ fl •¡ã◊Ê „Ò¥U. •Ê¬ ∞∑§ ¬Ò⁄U flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¡ÊªM§∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. •Ê¬ flÊáÊË SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÉÊ⁄U ◊¥ ©U¬ÁSÕà ⁄U„à „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ flŒË ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ mÊ⁄U ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã „Ò¥U. •Ê¬ ◊ʪ¸ ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ¬Õ ¬˝‡ÊSà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ◊ʪ¸ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (33) Á◊òÊSÿ ◊Ê øˇÊÈ·ˇÊäfl◊ÇŸÿ— ‚ª⁄UÊ— ‚ª⁄UÊSÕ ‚ª⁄UáÊ ŸÊêŸÊ ⁄UÊÒº˝áÊÊŸË∑§Ÿ ¬Êà ◊ÊÇŸÿ— Á¬¬Îà ◊ÊÇŸÿÊ ªÊ¬Êÿà ◊Ê Ÿ◊Ê flÊSÃÈ ◊Ê ◊Ê Á„U ¦ Á‚CÔU.. (34) „U ÿôÊ! •Ê¬ „U◊¥ Á◊òÊÃÊ ∑§Ë ŒÎÁc≈U ‚ ŒπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ¬Õ ¬˝Œ‡Ê¸Ÿ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ÷ÿ¢∑§⁄U ‚ ÷ÿ¢∑§⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ fl ÷ÿ¢∑§⁄U ‚ŸÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚ „U◊Ê⁄UÊ ∑ȧ¿U ÷Ë Á¿U¬Ê „ÈU•Ê Ÿ„UË¥ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê „U◊Ê⁄UÊ Ÿ◊S∑§Ê⁄U „ÒU. •Ê¬ Á∑§‚Ë ÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë Á„¢U‚Ê Ÿ ∑§⁄¥U. (34) ÖÿÊÁÃ⁄UÁ‚ Áfl‡flM§¬¢ Áfl‡fl·Ê¢ ŒflÊŸÊ ¦ ‚Á◊ÃÔÔ˜. àfl ¦ ‚Ê◊ ßÍ∑ΧŒ˜èÿÊ m·ÊèÿÊãÿ∑ΧÃèÿ ˘ ©UL§ ÿãÃÊÁ‚ flM§Õ ¦ SflÊ„UÊ ¡È·ÊáÊÊ •åÃÈ⁄U ÊÖÿSÿ flÃÈ SflÊ„UÊ.. (35) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÖÿÊÁà fl Áfl‡fl SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ‚Á◊œÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •‚Ø ∑§ÊÿÊZ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚È⁄UÁˇÊà SÕÊŸ ¬⁄U ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ’‹ ‚¢¬ãŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ •Ÿ∑§ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ ‚¢¬ããÊ „Ò¥U. •Ê¬ ôÊÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (35) •ÇŸ Ÿÿ ‚ȬÕÊ ⁄UÊÿ •S◊ÊÁãfl‡flÊÁŸ Œfl flÿÈŸÊÁŸ ÁflmÊŸÔÔ˜. ÿÈÿÊäÿS◊îÊÈ„ÈU⁄UÊáÊ◊ŸÊ ÷ÍÁÿcΔUÊ¢ à Ÿ◊ ©UÁÄâ Áflœ◊.. (36) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ‚È¬Õ fl œŸ◊ʪ¸ ¬⁄U ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁflmÊŸ˜ ÿ¡Èfl¸Œ - 71
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
„Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ ÿÈh ∑§⁄U¥U. •Ê¬ ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. ’Ê⁄¢’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „ÒU¥. ’Ê⁄’Ê⁄U •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SÃÊòÊ ©UøÊ⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ê ÁŸflŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (36) •ÿ¢ ŸÊ •ÁÇŸfl¸Á⁄Ufl∑ΧáÊÊàflÿ¢ ◊Îœ— ¬È⁄U ˘ ∞ÃÈ ¬˝Á÷㌟ÔÔ˜. •ÿ¢ flÊ¡ÊTÿÃÈ flÊ¡‚ÊÃÊflÿ ¦ ‡ÊòÊÍÜ¡ÿÃÈ ¡N¸U·ÊáÊ— SflÊ„UÊ.. (37) ÿ„U •ÁÇŸ „U◊¥ fl⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÿ„U ‡ÊòÊÈ ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „ÈU∞ „U◊Ê⁄U ‚ê◊Èπ ¬œÊ⁄¥U. ÿ„U „U◊Ê⁄U Á‹∞ •ããÊ ¡ËÃ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ¡ËÃ¥. ÿ„U „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ ¡ËÃ¥. ÿ„U „U◊Ê⁄Ë •Ê„ÈUÁà SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (37) ©UL§ ÁflcáÊÊ Áfl∑˝§◊SflÊL§ ˇÊÿÊÿ ŸS∑ΧÁœ. ÉÊÎâ ÉÊÎÎÃÿÊŸ Á¬’ ¬˝¬˝ ÿôʬÁâ ÁÃ⁄U SflÊ„UÊ.. (38) •ÁÇŸ √ÿʬ∑§, ’‹‡ÊÊ‹Ë fl ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. fl ◊ŸÈcÿ ∑§Ê ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë ’ŸÊ∞¢. fl ÉÊÎà ÿÊÁŸ „Ò¥U. fl ÉÊÎà ¬ËŸ fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (38) Œfl ‚ÁflÃ⁄U· à ‚Ê◊Sà ¦ ⁄UˇÊSfl ◊Ê àflÊ Œ÷ŸÔ˜. ∞Ãûfl¢ Œfl ‚Ê◊ ŒflÊ ŒflÊ° 2 ©U¬ÊªÊ ˘ ߌ◊„¢U ◊ŸÈcÿÊãà‚„U ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ SflÊ„UÊ ÁŸfl¸L§áÊSÿ ¬Ê‡ÊÊã◊Èëÿ.. (39) ÿ ‚ÁflÃÊ „Ò¥U. ÿ„U ‚Ê◊ •Ê¬ ∑§Ê ÷¥≈U Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „Ò. •Ê¬ ß‚ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê ⁄UÊˇÊ‚ ∑§c≈U Ÿ ¬„¢ÈUøÊ ¬Ê∞¢. ÿ„U ‚Ê◊ ÁŒ√ÿÃÊ ∑§Ê ¬Ê ∑§⁄U ŒflÃÊ ‚ •ÁœÁcΔUà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÷Ë ÁŒ√ÿÃÊ, œŸ fl ¬‡ÊÈ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§Ë ªß¸ •Ê„ÈUÁà ‚ „U◊ flL§áÊ ∑§ ¬Ê‡Ê ‚ ◊ÈÄà „UÊ øÈ∑§ „Ò¥U. (39) •ÇŸ fl˝Ã¬ÊSàfl fl˝Ã¬Ê ÿÊ Ãfl ßÍ◊¸ƒÿ÷ÍŒ·Ê ‚Ê àflÁÿ ÿÊ ◊◊ ßÍSàflƒÿ÷ÍÁŒÿ ¦ ‚Ê ◊Áÿ. ÿÕÊÿÕ¢ ŸÊÒ fl˝Ã¬Ã fl˝ÃÊãÿŸÈ ◊ ŒËˇÊÊ¢ ŒËˇÊʬÁÃ⁄U◊ ¦ SÃÊŸÈ Ã¬SìS¬Á×.. (40) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ fl˝Ã¬Ê‹∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U fl˝Ã ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl˝Ã ∑§⁄UŸ ‚ „U◊Ê⁄UÊ ‡Ê⁄UË⁄U •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ¡Ò‚Ê „UÊ ¡Ê∞. •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ‚ ∞∑§Ê∑§Ê⁄U „UÊ ¡Ê∞. •Ê¬ Á¡‚ Ã⁄U„U ÿÕÊÿÊÇÿ üÊcΔUU ∑§ÊÿÊZ ∑§Ê ‚¢¬ÊŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚Ë Ã⁄U„U „U◊Ê⁄U üÊcΔU ∑§ÊÿÊZ ∑§Ê ‚¢¬ÊŒŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ŒËˇÊʬÁà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ŒËÁˇÊà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ì¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ì ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (40) ©UL§ ÁflcáÊÊ Áfl∑˝§◊SflÊL§ ˇÊÿÊÿ ŸS∑ΧÁœ. ÉÊÎâ ÉÊÎÃÿÊŸ Á¬’ ¬˝¬˝ ÿôʬÁâ ÁÃ⁄U SflÊ„UÊ.. (41) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’„UÈà √ÿʬ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •ÃËfl ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈŸÊ‡Ê „UÃÈ 72 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬Ê¢øflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊¥ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ’ŸÊß∞. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë ’ŸÊß∞. •ÁÇŸ •ÃËfl √ÿʬ∑§, ’‹‡ÊÊ‹Ë fl ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. fl ◊ŸÈcÿ ∑§Ê ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë ’ŸÊ∞¢. •ÁÇŸ ÉÊÎÃÿÊÁŸ „Ò¥U. •ÁÇŸ ÉÊÎà ∑§Ê ¬ËŸ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (41) •àÿãÿÊ° 2 •ªÊ¢ ŸÊãÿÊ° 2 ©U¬ÊªÊ◊flʸ∑Ô˜§ àflÊ ¬⁄UèÿÊÁflŒ¢ ¬⁄UÊfl⁄Uèÿ—. â àflÊ ¡È·Ê◊„U Œfl flŸS¬Ã ŒflÿÖÿÊÿÒ ŒflÊSàflÊŒflÿÖÿÊÿÒ¡È·ãÃÊ¢ ÁflcáÊfl àflÊ. •Ê·œ òÊÊÿSfl SflÁœÃ ◊ÒŸ ¦ Á„ ¦ ‚Ë—.. (42) „U ÿͬflΡÊ! •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ©UŸ flΡÊÊ¥ ∑§Ê ¬Ê∞¢ Á¡Ÿ ‚ „U◊ ÿôÊ ∑§ π¢÷ ’ŸÊ ‚∑¥§. ¡Ê flÎˇÊ ÿôÊ (•ÕflÊ ÿôÊSâ÷) „UÃÈ ©U¬ÿÊªË Ÿ„UË¥ „Ò¥U, „U◊ ©Uã„¥U Ÿ ¬Ê∞¢. ŒÍ⁄U •ÊÒ⁄U ¬Ê‚ ∑§ flΡÊÊ¥ ◊¥ „U◊ Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ¬Ê‚ ‚ ¬ÊÿÊ „Ò. •Ê¬ flŸ ¬Ê‹∑§ fl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „ÒU¢. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ‚flÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÃÊÁ∑§ „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Á∑§∞ ¡ÊŸ flÊ‹ ß‚ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ©U¬ÿʪ ∑§⁄U ‚∑¥§. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÉÊË ‚ ‚Ë¥øà „Ò¥U. „U◊ •ÊcÊÁœ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ê ÁŸflŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ∑ȧÀ„UÊ«∏UÊ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄. ∑§Ê߸ ÷Ë ß‚ ÿôÊSâ÷ ∑§Ë Á„¢U‚Ê Ÿ ∑§⁄. (42) lÊ¢ ◊Ê ‹πË⁄UãÃÁ⁄UˇÊ¢ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë— ¬ÎÁÕ√ÿÊ ‚ê÷fl. •ÿ ¦ Á„U àflÊ SflÁœÁÃSÃÁáʟ— ¬˝ÁáÊŸÊÿ ◊„Uà ‚ÊÒ÷ªÊÿ. •ÃSàfl¢ Œfl flŸS¬Ã ‡ÊÃflÀ‡ÊÊ Áfl ⁄UÊ„U ‚„UdflÀ‡ÊÊ Áfl flÿ ¦ L§„U◊.. (43) „U ÿͬflΡÊ! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ŸÈ∑§‚ÊŸ Ÿ ¬„È¢UøÊ∞¢. „U ÿͬflΡÊ! •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ŸÈ∑§‚ÊŸ Ÿ ¬„È¢UøÊ∞¢. „U ÿͬflΡÊ! •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ©U¬Á¡∞. ÃˡáÊ ∑ȧÀ„Ê«U∏Ê •Ê¬ ∑§ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ „UÃÈ „ÒU. ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ ◊„UÊŸ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ©U¬ÿʪ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ë ‚Ò∑§«U∏Ê¥ ‡ÊÊπÊ•Ê¥ ∑§Ë Ã⁄U„U „U◊Ê⁄U fl¢‡Ê flÎˇÊ ∑§Ë ‡ÊÊπÊ∞¢ ÷Ë ’…U∏ ¡Ê∞¢. (43)
ÿ¡Èfl¸Œ - 73
¿UΔUÊ •äÿÊÿ ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊Ô˜. •Ê ŒŒ ŸÊÿ¸‚Ë Œ◊„U ¦ ⁄UˇÊ‚Ê¢ ª˝ËflÊ ˘ •Á¬ ∑ΧãÃÊÁ◊. ÿflÊÁ‚ ÿflÿÊS◊ŒÔ˜ m·Ê ÿflÿÊ⁄UÊÃËÁŒ¸fl àflÊãÃÁ⁄UˇÊÊÿ àflÊ ¬ÎÁÕ√ÿÒ àflÊ ‡ÊÈãœãÃÊ°À‹Ê∑§Ê— Á¬ÃηŒŸÊ— Á¬ÃηŒŸ◊Á‚.. (1) „U ÿôÊ ‚ÊœŸÊ! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŸÊÿ∑§ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚ÁflÃÊ mÊ⁄UÊ ¬˝Á⁄Uà •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ë ’Ê¢„UÊ¥ ‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ¡Ê •Êÿ¸ Ÿ„UË¥ „Ò¥U. (•Ê¬ •Êß∞) •Ê¬ ©UŸ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ë ª⁄UŒŸÊ¥ ¬⁄U ¬˝„UÊ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á◊òÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U mÁ·ÿÊ¥ ∑§Ê „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§, •¢ÃÁ⁄UˇÊ fl ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ Á¬ÃÊ ∑§Ë Ã⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ÉÊ⁄U „U◊Ê⁄U Á‹∞ Á¬ÃÊ ∑§ ÉÊ⁄U ∑§Ë Ã⁄U„U „ÒU . (1) •ª˝áÊË⁄UÁ‚ SflÊfl‡Ê ˘ ©ãŸÃÎáÊÊ◊ÃSÿ ÁflûÊÊŒÁœ àflÊ SÕÊSÿÁà ŒflSàflÊ ‚ÁflÃÊ ◊äflÊŸÄÃÈ ‚ÈÁ¬å¬‹ÊèÿSàflÊÒ·œËèÿ—. lÊ◊ª˝áÊÊS¬ÎˇÊ ˘ •ÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ◊äÿŸÊ¬˝Ê— ¬ÎÁÕflË◊Ȭ⁄UáÊʌΠ¦ „UË—.. (2) „U ÿôÊ ‚ÊœŸÊ! •Ê¬ •ª˝áÊË „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË Á¡ê◊ŒÊ⁄UË ◊ÊŸ ∑§⁄U ‚’ ∑§Ê ©UãŸÁà ∑§Ë •Ê⁄U •ª˝‚⁄U ∑§ËÁ¡∞. ‚ÁflÃÊ Œfl ¡ªÃÔ˜ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. fl •Ê¬ ∑§Ê ‚È»§‹ •Ê·ÁœÿÊ¥ ‚ ÷ÍÁ·Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë ™§¢øÊßÿÊ¥ ∑§Ê ¿ÈU∞¢. üÊcΔU ÁfløÊ⁄UÊ¥ ‚ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Íáʸ ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. •Ê¬ üÊcΔU ∑§◊ÊZ ‚ ¬ÎâflË ∑§Ê •Êì˝Êà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (2) ÿÊ Ã œÊ◊Êãÿȇ◊Á‚ ª◊äÿÒ ÿòÊ ªÊflÊ ÷ÍÁ⁄UoÎXÊ ˘ •ÿÊ‚—. •òÊÊ„U ÃŒÈL§ªÊÿSÿ ÁflcáÊÊ— ¬⁄U◊¢ ¬Œ◊fl ÷ÊÁ⁄U ÷ÍÁ⁄U. ’˝rÊflÁŸ àflÊ ˇÊòÊflÁŸ ⁄UÊÿS¬Ê·flÁŸ ¬ÿ¸Í„UÊÁ◊. ’˝rÊ ŒÎ ¦ „U ˇÊòÊ¢ ŒÎ ¦ „UÊÿÈŒ¸Î ¦ „U ¬˝¡Ê¢ ŒÎ ¦ „U.. (3) ÁflcáÊÈ ∑§Ê ¡Ê œÊ◊ „Ò, fl„U ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÒU . fl„U œÊ◊ ‚fl¸√ÿʬ∑§ „ÒU.U „U◊ ÁflcáÊÈ ∑§ ©U‚ üÊcΔU œÊ◊ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ⁄Uπà „Ò¥U. •Ê¬ 74 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ •ÊÁŒ ∑§Ê ÿÕÊÿÊÇÿ œŸ •ÊÒ⁄U ¬Ê·áÊ ŒÃ „Ò¥U. •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥, ˇÊÁòÊÿÊ¥ •ÊÒ⁄U flÒ‡ÿÊ¥ ∑§Ê œŸ fl ‚¢ÃÊŸ ŒËÁ¡∞. (3) ÁflcáÊÊ— ∑§◊ʸÁáÊ ¬‡ÿà ÿÃÊ fl˝ÃÊÁŸ ¬S¬‡Ê. ßãº˝Sÿ ÿÈÖÿ— ‚πÊ.. (4) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! „U◊ ÁflcáÊÈ ‚ ¡È«U∏¥. „U◊ ©UŸ ∑§ Á◊òÊ „UÊ ¡Ê∞¢. ©UŸ ∑§ ∑§Ê◊Ê¥ ∑§Ê Œπ¥. „U◊ ©UŸ ∑ fl˝ÃÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄¥U. (4) ÃÁmcáÊÊ— ¬⁄U◊¢ ¬Œ ¦ ‚ŒÊ ¬‡ÿÁãà ‚Í⁄Uÿ—. ÁŒflËfl øˇÊÈ⁄UÊÃÃ◊Ô˜.. (5) ‡ÊÍ⁄UflË⁄U ‚ŒÒfl ÁflcáÊÈ ∑§Ê ¬⁄U◊ ¬Œ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ¿UÊ∞ „ÈU∞ ¬˝∑§Ê‡Ê ∑§ ‚◊ÊŸ Œπà „Ò¥U. (5) ¬Á⁄UflË⁄UÁ‚ ¬Á⁄U àflÊ ŒÒflËÁfl¸‡ÊÊ √ÿÿãÃÊ¢ ¬⁄UË◊¢ ÿ¡◊ÊŸ ¦ ⁄UÊÿÊ ◊ŸÈcÿÊáÊÊ◊Ô˜. ÁŒfl— ‚ÍŸÈ⁄USÿ· à ¬ÎÁÕ√ÿÊ°À‹Ê∑§ ˘ •Ê⁄UáÿSà ¬‡ÊÈ—.. (6) „U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ‚fl¸√ÿʬ∑§ „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ∑§áÊ∑§áÊ ◊¥ Œπà „Ò¥U. •Ê¬ ÁŒŸ ∑§ ¬ÈòÊ ∑§Ë Ã⁄U„U √ÿÊåà „Ò¥U. ¬ÎâflË‹Ê∑§, flŸ ¬˝Œ‡Ê, fl ¬‡ÊÈ ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê „UË ÁflSÃÊ⁄U „ÒU. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (6) ©U¬ÊflË⁄USÿȬ ŒflÊãŒÒflËÁfl¸‡Ê— ¬˝ÊªÈL§Á‡Ê¡Ê flÁqÃ◊ÊŸÔ˜. Œfl àflCÔUfl¸‚È ⁄U◊ „U√ÿÊ Ã SflŒãÃÊ◊Ô˜.. (7) „U àflc≈UÊ Œfl! •Ê¬ ‚¡¸∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‚◊ˬ •Ê∞ „ÈU∞ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ¬˝¡Ê üÊcΔU ªÈáÊÊ¥ ‚ ‚¢¬ãŸ „UÊ ¡Ê∞. •Ê¬ ÁŒ√ÿ ªÈáÊ ‚¢¬ãŸ, áSflË fl ‚◊Õ¸ „Ò¥U. ÿ ‚÷Ë ªÈáÊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÁflmÊŸÊ¥ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊ¥. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ⁄U◊áÊËÿ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ ©U‚ ∑§Ê •ÊSflÊŒŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (7) ⁄UflÃË ⁄U◊äfl¢ ’΄US¬Ã œÊ⁄UÿÊ fl‚ÍÁŸ. ´§ÃSÿ àflÊ Œfl„UÁfl— ¬Ê‡ÊŸ ¬˝ÁÃ◊ÈÜøÊÁ◊ œ·Ê¸ ◊ÊŸÈ·—.. (8) ÿôÊ ∑§ •ÊøÊÿÊZ Ÿ ©UûÊ◊ ∑§ÊÁ≈U ∑§Ë „UÁfl ∑§ Á‹∞ Áfl‡ÊÊ‹ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§ M§¬ ◊¥ œŸ ŒŸ flÊ‹ Á¡Ÿ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ’Ê¢œÊ, ©UŸ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê •’ „U◊ ◊ÈÄà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ¬‡ÊÈ „U◊¥ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ŒÍœ •ÊÁŒ ∑§ M§¬ ◊¥ œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà ⁄U„¥U. „U◊ ‚◊âʸ ’Ÿ¥. (8) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊Ô˜. •ÇŸË·Ê◊ÊèÿÊ¢ ¡ÈCÔ¢U ÁŸÿÈŸÁÖ◊. •jKSàflÊÒ·œËèÿÊŸÈ àflÊ ◊ÊÃÊ ◊ãÿÃÊ◊ŸÈ Á¬ÃÊŸÈ ÷˝ÊÃÊ ‚ªèÿʸŸÈ ‚πÊ ‚ÿÍâÿ—. •ÇŸË·Ê◊ÊèÿÊ¢ àflÊ ¡ÈCÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊.. (9) ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ fl ¬Í·Ê Œfl ∑§Ê ŒÊŸÊ¥ ’Ê„ÈU•Ê¥ ‚ ÿ¡Èfl¸Œ - 75
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U$ •ÁÇŸ fl ‚Ê◊ Œfl ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ •ÊÒ⁄U ¡‹ ‡ÊÈhÃÊ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (ÿôÊ ∑§Êÿ¸ „UÃÈ) ◊ÊÃÊ •ŸÈ◊Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (ÿôÊ ∑§Êÿ¸ „UÃÈ) Á¬ÃÊ •ŸÈ◊Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U¢. (ÿôÊ ∑§Êÿ¸ „UÃÈ) ÷Ê߸ •ŸÈ◊Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U¢. (ÿôÊ ∑§Êÿ¸ „UÃÈ) Á◊òÊ •ŸÈ◊Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U¢. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚Ê◊ ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (9) •¬Ê¢ ¬L§⁄USÿÊ¬Ê ŒflË— SflŒãÃÈ SflÊûÊ¢ Áøà‚gfl„UÁfl—. ‚ãà ¬˝ÊáÊÊ flÊß ªë¿UÃÊ ¦ ‚◊XÊÁŸ ÿ¡òÊÒ— ‚¢ ÿôʬÁÃ⁄UÊÁ‡Ê·Ê.. (10) „U ÿôÊ ‚ ¡È«∏U ¬‡ÊÈ Œfl! •Ê¬ ¡‹ ∑§ ⁄UˇÊ∑§ fl ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ŒÒfl „UÁfl◊ÿ ⁄U„Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Œfl ∑Χ¬Ê ‚ ÿôʬÁà ∑§Ê •Ê‡ÊËflʸŒ Á◊‹. „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊ flÊÿÈ ‚ ÷⁄U ⁄U„¥U. „U◊ ÿôÊËÿ •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄¥U. (10) ÉÊÎßÊÄÃÊÒ ¬‡ÊÍ°dÊÿÕÊ ¦ ⁄UflÁà ÿ¡◊ÊŸ Á¬˝ÿ¢ œÊ ˘ •Ê Áfl‡Ê. ©U⁄UÊ⁄UãÃÁ⁄UˇÊÊà‚¡ÍŒ¸flŸ flÊßÊSÿ „UÁfl·Sà◊ŸÊ ÿ¡ ‚◊Sÿ ÃãflÊ ÷fl. fl·Ê¸ fl·Ë¸ÿÁ‚ ÿôÊ ÿôʬÁ⠜ʗ SflÊ„UÊ ŒflèÿÊ Œflèÿ— SflÊ„UÊ.. (11) „U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ÉÊË •ÊÁŒ („UÁfl „UÃÈ ©U¬ÿʪË) ŒŸ flÊ‹ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿ ¬‡ÊÈ Á¬˝ÿ „UÊ¥. ©UŸ ∑§ Á¬˝ÿ œÊ◊ ◊¥ flÊ‚ ∑§⁄¥U. ÿ ¬‡ÊÈ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊ¥. ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ß‚ ÿôÊ ◊¥ „UÁfl ‚ ©U‚ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôʬÁà ’⁄U‚Ê¥ Ã∑§ ¡Ë∞¢. fl ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄¥U . ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (11) ◊ÊÁ„U÷¸Í◊ʸ ¬ÎŒÊ∑ȧŸ¸◊Sà ˘ •ÊÃÊŸÊŸflʸ ¬˝Á„U. ÉÊÎÃSÿ ∑ȧÀÿÊ ˘ ©U¬ ´§ÃSÿ ¬âÿÊ ˘ •ŸÈ.. (12) „U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚∑§ ◊à „UÊŸÊ. •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ¬˝Áà ÁŸŒ¸ÿ ◊à „UÊŸÊ. •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ¬˝Áà ∑˝§ÊÁœÃ ◊à „UÊŸÊ. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÉÊË ¡‹ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ’„U. „U◊ ‚àÿ ∑§ ¬Õ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (12) ŒflË⁄Uʬ— ‡ÊÈhÊ flÊ…˜Ufl ¦ ‚ȬÁ⁄UÁflc≈UÊ Œfl·È ‚ȬÁ⁄UÁflc≈UÊ flÿ¢ ¬Á⁄Uflc≈UÊ⁄UÊ ÷ÍÿÊS◊.. (13) „U ŒÁflÿÊ! •Ê¬ ‡ÊÈh „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝Ê∑ΧÁÃ∑§ M§¬ ‚ ‡ÊÈh „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÁfl ©UûÊ◊ ¬ÊòÊ ◊¥ „ÒU. •Ê¬ ©U‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ߟ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÷Ë ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „UÊ¥. (13) flÊø¢ à ‡ÊÈãœÊÁ◊ ¬˝ÊáÊ¢ à ‡ÊÈãœÊÁ◊ øˇÊÈSà ‡ÊÈãœÊÁ◊ üÊÊòÊ¢ à ‡ÊÈãœÊÁ◊ ŸÊÁ÷¢ à ‡ÊÈãœÊÁ◊ ◊…˛¢ à ‡ÊÈãœÊÁ◊ ¬ÊÿÈ¢ à ‡ÊÈãœÊÁ◊ øÁ⁄UòÊÊ°Sà ‡ÊÈãœÊÁ◊.. (14) „U ÿÊ¡∑§! „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ë flÊáÊË ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§ 76 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
¬˝ÊáÊ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§ ŸòÊÊ¥ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§ ∑§ÊŸÊ¥ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ë ŸÊÁ÷ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ë ¡ŸŸ¥Áº˝ÿ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ë ªÈŒÊ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§ øÁ⁄UòÊ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄à „Ò¥U. (14) ◊ŸSà ˘ •ÊåÿÊÿÃÊ¢ flÊÄà ˘ •ÊåÿÊÿÃÊ¢ ¬˝ÊáÊSà ˘ •ÊåÿÊÿÃÊ¢ øˇÊÈSà ˘ •ÊåÿÊÿÃÊ ¦ üÊÊòÊ¢ à ˘ •ÊåÿÊÿÃÊêʘ. ÿûÊ ∑˝Í§⁄¢U ÿŒÊÁSÕâ ÃûÊ ˘ •ÊåÿÊÿÃÊ¢ ÁŸCÔ˜UÿÊÿÃÊ¢ ÃûÊ ‡ÊÈäÿÃÈ ‡Ê◊„UÊèÿ—. •Ê·œ òÊÊÿSfl SflÁäÊà ◊ÒŸ ¦ Á„U ¦ ‚Ë—.. (15) „U ÿÊ¡∑§! •Ê¬ ∑§Ê ◊Ÿ ¬˝‚㟠„UÊ. •Ê¬ ∑§Ë flÊáÊË ¬˝‚㟠„UÊ. •Ê¬ ∑§ ¬˝ÊáÊ ¬˝‚㟠„UÊ¥. •Ê¬ ∑§ ŸòÊ ¬˝‚㟠„UÊ¥. •Ê¬ ∑§ ∑§ÊŸ ¬˝‚㟠„UÊ¥. „U ÿ¡◊ÊŸ! •Ê¬ ∑§Ë ∑˝Í§⁄UÃÊ ‚◊Êåà „UÊ. •Ê¬ ∑§Ê Sfl÷Êfl ÁSÕ⁄U „UÊ. „U ÿÊ¡∑§! •Ê¬ ∑§Ê Sfl÷Êfl ŒÎ…∏U „UÊ. •Ê¬ ∑§Ê •Êø⁄UáÊ ‡ÊÈh „UÊ, „U◊¥ ÷Ë ‡ÊÈh ∑§⁄U. •Ê·ÁœÿÊ¢ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ßã„¥U Ÿc≈ „UÊŸ ‚ ’øÊß∞. (15) ⁄UˇÊ‚Ê¢ ÷ʪÊÁ‚ ÁŸ⁄USà ¦ ⁄UˇÊ ˘ ߌ◊„ ¦ ⁄UˇÊÊÁ÷ ÁÃcΔUÊ◊ËŒ◊„ ¦ ⁄UˇÊÊfl ’Êœ ߌ◊„U ¦ ⁄UˇÊÊœ◊¢ Ã◊Ê ŸÿÊÁ◊. ÉÊÎß lÊflʬÎÁÕflË ¬˝ÊáÊȸflÊÕÊ¢ flÊÿÊ fl SÃÊ∑§ÊŸÊ◊ÁÇŸ⁄UÊÖÿSÿ flÃÈ SflÊ„UÊ SflÊ„UÊ∑Χà ™§äfl¸Ÿ÷‚¢ ◊ÊL§Ã¢ ªë¿UÃêʘ.. (16) ÿôÊ ◊¥ àÿÊªÊ „ÈU•Ê Áß∑§Ê ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ÷ʪ „ÒU. ß‚Á‹∞ „U ¬Á⁄àÿÄà ÃÎáÊ! U„U◊ •Ê¬ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄à „ÒU¥ . •Ê¬ ⁄UÊˇÊ‚Ë flÎÁûÊ (Sfl÷Êfl) flÊ‹ „ÒU¥ . •Ê¬ ¬ÃŸ ∑§ ª«UU˜ …U ◊¥ „UË ’ÒΔU ⁄UÁ„U∞. •Ê¬ ’Êœ∑§ fl •œ◊ „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •¢œ∑§Ê⁄U ◊¥ ‹ ¡Êà „ÒU¥ . ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ‚ Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ¬Á⁄U¬áÍ Ê¸ „UÊ .¢ ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl •ÁÇŸª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U.¢ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Ÿ÷ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl„U „UÁfl ™¢§ø Ÿ÷‹Ê∑§ Ã∑§ ¬„ÈU¢ ø. „UflÊ ∑§ M§¬ ◊¥ ¬Í⁄U •Ê∑§Ê‡Ê‹Ê∑§ ◊¥ ø‹Ë ¡Ê∞. (16) ߌ◊ʬ— ¬˝ fl„UÃÊfll¢ ø ◊‹¢ ø ÿàʘ. ÿìÊÊÁ÷ŒÈº˝Ê„UÊŸÎâ ÿìÊ ‡Ê¬ •÷ËL§áÊêʘ. •Ê¬Ê ◊Ê ÃS◊ÊŒŸ‚— ¬fl◊ÊŸ‡ø ◊ÈÔÜøÃÈ.. (17) „U ¡‹ Œfl! •Ê¬ Á¡‚ Ã⁄U„U „U◊Ê⁄U ◊‹ •ÊÁŒ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚Ë Ã⁄U„U ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ߸cÿʸ, ¤ÊÍΔU, ŒÊ· •ÊÁŒ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. ¡‹ ÃÕÊ flÊÿÈ „U◊ ∑§Ê ߟ ¬Ê¬Ê¥ ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄U¢. ¡‹ „U◊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (17) ‚ãà ◊ŸÊ ◊Ÿ‚Ê ‚¢ ¬˝ÊáÊ— ¬˝ÊáÊŸ ªë¿UÃÊêʘ. ⁄U«USÿÁÇŸc≈˜UflÊ üÊËáÊÊàflʬSàflÊ ‚◊Á⁄UáÊãflÊÃSÿ àflÊ œ˝ÊÖÿÒ ¬ÍcáÊÊ ⁄ ¦ sÊ ™§c◊áÊÊ √ÿÁÕcÊØ ¬˝ÿÈâ m·—.. (18) ÿ¡Èfl¸Œ - 77
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
ÿÊ¡∑§ ©UŸ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ◊Ÿ ‚ ÿÈÄà „UÊ. fl„U ©UŸ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ◊Ÿ ¬˝ÊáÊ ‚ ÿÈÄà „UÊ. fl„U ©UŸ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ÁŒ√ÿ ¬˝ÊáÊ ‚ ÿÈÄà „UÊ. •ÁÇŸ fl ¡‹ Œfl •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊÊ÷Ê ÿÈÄà ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U.¢ flÊÿÈ Œfl ∑§Ë ªÁà ∞fl¢ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ™§¡Ê¸ ¬Á⁄U¬Äfl „UÊ. ‚’ ∑§ Áfl∑§Ê⁄U fl m· Ÿc≈U „UÊ .¢ (18) ÉÊÎâ ÉÊÎìÊflÊŸ— Á¬’à fl‚Ê¢ fl‚ʬÊflÊŸ— Á¬’ÃÊãÃÁ⁄UˇÊSÿ „UÁfl⁄UÁ‚ SflÊ„UÊ. ÁŒ‡Ê— ¬˝ÁŒ‡Ê ˘ •ÊÁŒ‡ÊÊ ÁflÁŒ‡Ê ˘ ©UÁg‡ÊÊ ÁŒÇèÿ— SflÊ„UÊ—.. (19) ÉÊË ¬ËŸ flÊ‹ ÉÊË ¬Ë∞¢. fl‚Ê ¬ËŸ flÊ‹ fl‚Ê ¬Ë∞¢. ÉÊË •ÊÒ⁄U fl‚Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ Á‹∞ „UÁfl „UÊ¥. ÉÊË •ÊÒ⁄U fl‚Ê ŒÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡ÊòÊÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •◊⁄U ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚’ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (19) ∞ãº˝— ¬˝ÊáÊÊ •X •X ÁŸŒËäÿŒÒãº˝ ˘ ©UŒÊŸÊ •X •X ÁŸœË×. Œfl àflCÔU÷͸Á⁄U à ‚ ¦ ‚◊ÃÈ ‚‹ˇ◊Ê ÿÁm·ÈM§¬¢ ÷flÊÁÃ. ŒflòÊÊ ÿãÃ◊fl‚ ‚πÊÿÊŸÈ àflÊ ◊ÊÃÊ Á¬Ã⁄UÊ ◊ŒãÃÈ.. (20) •¢ª•¢ª, ¬˝Êáʬ˝ÊáÊ fl ©UŒÊŸ ◊¥ ߢ¢º˝ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. àflc≈UÊ ßŸ ‚’ ∑§Ë ‚È⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߢº˝ ∑§Ë ‡ÊÁÄà ߟ ‚’ ∑§Ë ‚È⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U . Œfl ∑§Ë ‡ÊÁÄà ߟ ‚’ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Œfl „U◊Ê⁄U ‚πÊ•Ê¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Œfl „U◊Ê⁄U ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (20) ‚◊Ⱥ˝¢ ªë¿U SflÊ„UÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ªë¿U SflÊ„UÊ Œfl ¦ ‚ÁflÃÊ⁄¢U ªë¿U SflÊ„UÊ Á◊òÊÊflL§áÊÊÒ ªë¿U SflÊ„UÊ„UÊ⁄UÊòÊ ªë¿U SflÊ„UÊ ¿UãŒÊ ¦ Á‚ ªë¿U SflÊ„UÊ lÊflʬÎÁÕflË ªë¿U SflÊ„UÊ ÿôÊ¢ ªë¿U SflÊ„UÊ ‚Ê◊¢ ªë¿U SflÊ„UÊ ÁŒ√ÿ¢ Ÿ÷Ê ªë¿U SflÊ„UÊÁÇŸ¢ flÒ‡flÊŸ⁄¢U ªë¿U SflÊ„UÊ ◊ŸÊ ◊ „UÊÁŒ¸ ÿë¿U ÁŒfl¢ à œÍ◊Ê ªë¿UÃÈ SflÖÿʸÁ× ¬ÎÁÕflË¥ ÷S◊ŸÊ¬ÎáÊ SflÊ„UÊ.. (21) ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ‚◊Ⱥ˝ Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl •¢ÃÁ⁄UˇÊ Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ‚ÁflÃÊ Œfl Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl Á◊òÊ Œfl Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl flL§áÊ Œfl Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ÁŒŸ Œfl Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ⁄UÊÁòÊ Œfl Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ¿¢UŒ Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ¬ÎâflË ‹Ê∑§ Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ÿôÊ Œfl Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl ‚Ê◊ Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl Ÿ÷ Œfl Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl •ÁÇŸ Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ŒË ªß¸ „UÁfl flÒ‡flÊŸ⁄U Ã∑§ ¡Ê∞, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ŒflªáÊ „U◊Ê⁄U ◊Ÿ ∑§Ê „UÊÁŒ¸∑§ ÁŒ√ÿÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ∑§Ê œÈ•Ê¢ ‚fl¸òÊ ¡Ê∞. •ÁÇŸ ∑§Ë ÖÿÊÁà •ÊÒ⁄U ÷S◊ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê 78 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
¬Íáʸ ∑§⁄U¢. •ÁÇŸ ∑§Ë ÖÿÊÁà •ÊÒ⁄U ÷S◊ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Á⁄U¬Íáʸ ∑§⁄¥U. ߟ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (21) ◊Ê ˘ ¬Ê ◊ÊÒ·œËÁ„¸U ¦ ‚˜ʸêŸÊ œÊêŸÊ ⁄UÊ¡°SÃÃÊ flL§áÊ ŸÊ ◊ÈÜø. ÿŒÊ„ÈU⁄UÉãÿÊ ˘ ßÁà flL§áÊÁà ‡Ê¬Ê◊„U ÃÃÊ flL§áÊ ŸÊ ◊ÈÜø. ‚ÈÁ◊ÁòÊÿÊ Ÿ ˘ •Ê¬ ˘ •Ê·œÿ— ‚ãÃÈ ŒÈÁ◊¸ÁòÊÿÊSÃS◊Ò SÊãÃÈ ÿÊ ˘ S◊ÊŸ˜ mÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊—.. (22) ÿôÊ ◊¥ ÁSÕà ¡‹ fl •Ê·Áœ ∑§Ê •¬ŸË ¡ª„U ‚ ◊à „U≈UÊß∞. ÿôÊ ◊¥ ÁSÕà •Ê¬ •Ê·Áœ ∑§Ê •¬Ÿ SÕÊŸ ¬⁄U ⁄U„Ÿ ŒËÁ¡∞. ߟ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê fl„UË¥ ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊŸ ŒËÁ¡∞. flL§áÊ Œfl „U◊¥ Ÿ ¿UÊ«∏¥U. ¡Ê Ÿ ◊Ê⁄UŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U, „U◊ ©UŸ ∑§Ê flœ Ÿ ∑§⁄¥U. „U◊ flL§áÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ‡Êʬ •ÊÒ⁄U ¬Ê¬ ‚ ◊ÈÄà ⁄U„¥U. fl „U◊¥ Ÿ ¿UÊ«∏¥U. ¡‹ •ÊÒ⁄U •ÊcÊÁœÿÊ¢ „U◊Ê⁄UË •ë¿UË Á◊òÊ „UÊ¥. Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ⁄Uπà „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê „UÊ$ ¡Ê „U◊ ‚ m· ⁄Uπà „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê „UÊ. (22) „UÁflc◊ÃËÁ⁄U◊Ê ˘ •Ê¬Ê„UÁflc◊Ê° 2 •Ê ÁflflÊ‚ÁÃ. „UÁflc◊Êãʘ ŒflÊ •äfl⁄UÊ „UÁflc◊Ê° 2 •SÃÈ ‚Íÿ¸—.. (23) ¡‹ flÊ‹Ë ŸÁŒÿÊ¢ „UÁflc◊ÃË „UÊ¥. ¡‹ „UÁflc◊ÊŸ „UÊ. Œfl „UÁflc◊ÊŸ „UÊ¥. ÿôÊ „UÁflc◊ÊŸ „UÊ. ‚Íÿ¸ „UÁflc◊ÊŸ „UÊ. (23) •ÇŸflʸ¬ãŸÇÊ΄USÿ ‚ŒÁ‚ ‚ÊŒÿÊ◊Ëãº˝ÊÇãÿÊ÷ʸªœÿË SÕ Á◊òÊÊflL§áÊÿÊ÷ʸªœÿË SÕ Áfl‡fl·Ê¢ ŒflÊŸÊ¢ ÷ÊÇÊœÿË SÕ. •◊Íÿʸ ˘ ©U¬ ‚Íÿ¸ ÿÊÁ÷flʸ ‚Íÿ¸— ‚„U. àÊÊ ŸÊ Á„Uãflãàfläfl⁄U◊Ô˜.. (24) •ÁÇŸ ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ „UÁfl ÷ʪ ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U. fl ߢº˝ Œfl Ã∑§ „UÁfl ÷ʪ ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U. fl Á◊òÊ Œfl Ã∑§ „UÁfl ÷ʪ ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U. fl flL§áÊ Œfl Ã∑§ „UÁfl ÷ʪ ¬„È¢UøÊà „Ò¥U$ fl ‚÷Ë ŒflÊ¥ Ã∑§ „UÁfl ÷ʪ ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U. ÷ʬ ’ŸÊ ∑§⁄U ¡Ê ¡‹ ‚Íÿ¸ ™§¬⁄U ’„ÈUà ‚◊ÿ Ã∑§ ‚ÊÕ ⁄Uπà „Ò¥U, ©U‚ ¡‹ ‚ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ‚»§‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (24) NUŒ àflÊ ◊Ÿ‚ àflÊ ÁŒfl àflÊ ‚Íÿʸÿ àflÊ. ™§äfl¸Á◊◊◊äfl⁄¢U ÁŒÁfl Œfl·È „UÊòÊÊ ÿë¿U.. (25) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ NŒÿ, ◊Ÿ, Sflª¸ •ÊÒ⁄U ‚Íÿ¸ ◊¥ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ê ™¢§øÊ ©UΔUÊ∞¢$ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ÁŒ√ÿÃÊ Œ¥. ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê Sflª¸ Œ¥$ (25) ‚Ê◊ ⁄UÊ¡ŸÔ˜ Áfl‡flÊSàfl¢ ¬˝¡Ê ˘ ©U¬Êfl⁄UÊ„U Áfl‡flÊSàflÊ¢ ¬˝¡Ê ˘ ©U¬Êfl⁄UÊ„UãÃÈ. oÎáÊÊàflÁÇŸ— ‚Á◊œÊ „Ufl¢ ◊ oÎáflãàflÊ¬Ê Áœ·áÊʇø ŒflË—. üÊÊÃÊ ª˝ÊflÊáÊÊ ÁflŒÈ·Ê Ÿ ÿôÊ ¦ oÎáÊÊÃÈ Œfl— ‚ÁflÃÊ „Ufl¢ ◊ SflÊ„UÊ.. (26) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ‚’ ∑§ ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝¡Ê ¬⁄U •ŸÈª˝„U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ÿ¡Èfl¸Œ - 79
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
‚Á◊œÊ ‚ ¬˝ÖUflÁ‹Ã „Ò¥U. •ÁÇŸ „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¢ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡‹ Œfl „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¢ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ’ÈÁh ∑§Ë ŒflË „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¢ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÁflmÊŸ˜ ÿôÊ ◊¥ SÃÈÁÃÿÊ¢ ¬…U∏à „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ©Uã„¥U ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „Ò¥U. (26) ŒflË⁄UÊ¬Ê •¬Ê¢ Ÿ¬ÊlÊ fl ˘ ™§Á◊¸„¸UÁflcÿ ˘ ßÁãº˝ÿÊflÊŸÔ˜ ◊ÁŒãÃ◊—. â ŒflèÿÊ ŒflòÊÊ ŒûÊ ‡ÊÈ∑˝§¬èÿÊ ÿ·Ê¢ ÷ʪ SÕ SflÊ„UÊ.. (27) ÁŒ√ÿ ¡‹! •Ê¬ ∑§ ‹„U⁄UŒÊ⁄U ¬˝flÊ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ∑§Ë ‡ÊÁÄà ’…∏UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ‹„U⁄UŒÊ⁄U ¬˝flÊ„U •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „Ò¥U. ©U‚ ¡‹ ∑§Ê ŒflÊ¥ fl ⁄UˇÊ∑§ ∑§ Á‹∞ ‚◊Á¬¸Ã ∑§ËÁ¡∞. ©U‚ flËÿ¸ ’…∏UÊŸ ∑§ Á‹∞ ‚◊Á¬¸Ã ∑§ËÁ¡∞. ß‚ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ÷Ë ∞∑§ ÷ʪ „ÒU . ߟ ‚’ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (27) ∑§ÊÁ·¸⁄UÁ‚ ‚◊Ⱥ˝Sÿ àflÊ ÁˇÊàÿÊ ˘ ©UãŸÿÊÁ◊. ‚◊Ê¬Ê •Áj⁄UÇ◊à ‚◊Ê·œËÁ÷⁄UÊ·œË—.. (28) ‚◊Ⱥ˝ Ã∑§ ¬ÎâflË ∑§Ë ©Ufl¸⁄UÃÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ™§U¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ©UΔUÊà „Ò¥. ß‚ ¡‹ ∑§ ‚ÊÕ ¡‹Ê¥ ∑§Ê Á◊‹Ê ∑§⁄UU •ÊcÊÁœÿÊ¢ ©Uà¬ããÊ „UÊÃË „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ÷Ë •Ê·Áœ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. (28) ÿ◊ÇŸ ¬Îà‚È ◊àÿ¸◊flÊ flÊ¡·È ÿ¢ ¡ÈŸÊ—. ‚ ÿãÃÊ ‡Ê‡flÃËÁ⁄U·— SflÊ„UÊ.. (29) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Á¡Ÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ¬Ê‚ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ „UÁfl ¬„È¢UøÊà „Ò¥U, fl ‹Êª •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ÿ¡◊ÊŸ ‡Êʇflà (SÕÊÿË) •ÊÒ⁄U ßc≈U œŸ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (29) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊Ô˜. •Ê ŒŒ ⁄UÊflÊÁ‚ ª÷Ë⁄UÁ◊◊◊äfl⁄¢U ∑ΧœËãº˝Êÿ ‚È·ÍÃ◊◊Ô˜. ©UûÊ◊Ÿ ¬ÁflŸÊ¡¸Sflãâ ◊œÈ◊ãâ ¬ÿSflãâ ÁŸª˝ÊèÿÊ SÕ ŒflüÊÈÃSì¸ÿà ◊Ê ◊ŸÊ ◊.. (30) „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ‚ÍÿʸŒÿ ∑§ ‚◊ÿ ÿôÊ ∑§ ‚ÊœŸ ∑§Ê •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ „UÊÕÊ¥ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄UÊà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ ßë¿UʬÍ⁄U∑§ „Ò¥U. „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê ™§¡¸SflË ¬ŒÊÕÊZ ‚ ¬ÁflòÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê ⁄U‚Ë‹ •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊ ¬ŒÊÕÊZ ‚ ¬ÁflòÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „UÁfl ∑§Ê ÷‹Ë÷Ê¢Áà ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÃÎÁåà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (30) ◊ŸÊ ◊ ì¸ÿà flÊø¢ ◊ ì¸ÿà ¬˝ÊáÊ¢ ◊ ì¸ÿà øˇÊÈ◊¸ ì¸ÿà üÊÊòÊ¢ ◊ ì¸ÿÃÊà◊ÊŸ¢ ◊ ì¸ÿà ¬˝¡Ê¢ ◊ ì¸ÿà ¬‡ÊÍã◊ ì¸ÿà ªáÊÊã◊ ì¸ÿà ªáÊÊ ◊ ◊Ê ÁflÃηŸÔ˜.. (31) 80 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@5
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
„U ¡‹ ‚◊Í„U! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ◊Ÿ, fløŸ, ¬˝ÊáÊ ∑§Ê ÃÎåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ŸòÊÊ¥ fl ∑§ÊŸÊ¥ ∑§Ê ÃÎåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •Êà◊Ê, ¬˝¡Ê ∑§Ê ÃÎåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬‡ÊÈ•Ê¥ fl „U◊Ê⁄U ‚fl∑§Ê¥ ∑§Ê ÃÎåà ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á’ŸÊ ∑§÷Ë ÷Ë åÿÊ‚ Ÿ „UÊ.¥ (31) ßãº˝Êÿ àflÊ fl‚È◊à L§º˝flà ˘ ßãº˝Êÿ àflÊÁŒàÿflà ˘ ßãº˝Êÿ àflÊÁ÷◊ÊÁÃÉŸ. ‡ÿŸÊÿ àflÊ ‚Ê◊÷ÎÃÇŸÿ àflÊ ⁄UÊÿS¬Ê·Œ.. (32) „U ‚Ê◊! „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ fl‚È◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ L§º˝ ‚◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ÊÁŒàÿ ∑§ ‚◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U$ „U ‚Ê◊! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ’ÊU¡ ∑§Ë Ã⁄U„U ¤Ê¬≈UŸ flÊ‹ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U$ „U◊ ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§Ãʸ ∑§ Á‹∞ ’ÊU¡ ∑§Ë Ã⁄U„U ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ äÊŸŒÊÃÊ, ¬Ê·áÊŒÊÃÊ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (32) ÿûÊ ‚Ê◊ ÁŒÁfl ÖÿÊÁÃÿ¸à¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ ÿŒÈ⁄UÊflãÃÁ⁄UˇÊ. ßÊS◊Ò ÿ¡◊ÊŸÊÿÊL§ ⁄UÊÿ ∑ΧäÿÁœ ŒÊòÊ flÊø—.. (33) „U ‚Ê◊! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ Ã∑§ »Ò§‹ „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ÁŒ√ÿ fl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞, œŸ ŒËÁ¡∞, •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ‚„UÊÿÃÊ ∑§ËÁ¡∞. (33) ‡flÊòÊÊ SÕ flÎòÊÃÈ⁄Ê ⁄UʜʪÍÃʸ ˘ •◊ÎÃSÿ ¬àŸË—. ÃÊ ŒflËŒ¸flòÊ◊¢ ÿôÊ¢ ŸÿÃʬ„ÍUÃÊ— ‚Ê◊Sÿ Á¬’Ã.. (34) ŒÁflÿÊ¢ (‚Ê◊ M§¬Ë) •◊Îà ∑§Ë ¬àŸË „Ò¥U fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË flÎòÊ ŸÊ‡Ê∑§ fl œŸŒÊÿ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ◊ʪ¸ ÁŸŒ¸‡ÊŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (34) ◊Ê ÷◊ʸ ‚¢ ÁflÄÕÊ ˘ ™§¡Z œàSfl Áœ·áÊ flË«˜UflË ‚ÃË flË«UÿÕÊ◊Í¡Z ŒœÊÕÊ◊Ô˜. ¬Êå◊Ê „UÃÊ Ÿ ‚Ê◊—.. (35) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ⁄U‚ ÁŸ∑§Ê‹Ã ‚◊ÿ •Ê¬ ∑§Ê ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU . •Ê¬ ©U‚ ‚ ÷ÿ÷Ëà ◊à „UÊß∞. •Ê¬ ø¢º˝◊Ê ¡Ò‚ ‡ÊËË •ÊÒ⁄U ‚◊Õ¸ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§ ¬Ê¬ •ÊÒ⁄U ∑§¬≈U ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (35) ¬˝Êª¬ÊªÈŒªœ⁄UÊÄ‚fl¸àÊSàflÊ ÁŒ‡Ê ˘ •ÊœÊflãÃÈ. •ê’ ÁŸc¬⁄U ‚◊⁄UËÁfl¸ŒÊ◊ÔÔ˜.. (36) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ¬Ífl¸, ¬Á‡ø◊, ©UûÊ⁄U ∞fl¢ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •¬Ÿ ÷ʪ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄U ∑§ ŒÊÒ«∏Uà „È∞ ÿôÊ ◊¥ •Êß∞. •Ê¬ ß‚ Ã⁄U„U ÿôÊ ∑§Ê ÷‹Ë÷Ê¢Áà ¡ÊŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (36) ÿ¡Èfl¸Œ - 81
¬Íflʸœ¸
¿UΔUÊ •äÿÊÿ
àfl◊X ¬˝‡Ê ¦ Á‚·Ê Œfl— ‡ÊÁflcΔU ◊àÿ¸◊Ô˜. Ÿ àflŒãÿÊ ◊ÉÊflãŸÁSà ◊Á«¸UÃãº˝ ’˝flËÁ◊ à flø—.. (37) „U ߢº˝! •Ê¬ ¬˝‡Ê¢Á‚Ã, ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ, ÁŒ√ÿ „Ò¥U fl ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ¡Ò‚Ê œŸŒÊÿË ∑§Ê߸ •ÊÒ⁄U Œfl Ÿ„UË¥ „ÒU . „U◊ •Ê¬ ∑§ ∑Χ¬Ê fløŸÊ¥ ∑§ •ÊœÊ⁄U ¬⁄U „UË ∞‚Ê ∑§„Uà „Ò¥U. (37)
82 - ÿ¡Èfl¸Œ
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ flÊøS¬Ãÿ ¬flSfl flÎcáÊÊ ˘ • ¦ ‡ÊÈèÿÊ¢ ª÷ÁSìÍ×. ŒflÊ Œflèÿ— ¬flSfl ÿ·Ê¢ ÷ʪÊÁ‚.. (1) „U ‚Ê◊! •Ê¬ flÊøS¬Áà ∑§ Á‹∞ ¬ÁflòÊ „UÊß∞. •Ê¬ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë, ‡ÊÈ÷ ∞fl¢ ª÷¸ ‚ „UË ¬ÁflòÊ „Ò¥U. •Ê¬ Á¡Ÿ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÷ʪ „Ò¥U, ©UŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊß∞. (1) ◊œÈ◊ÃËŸ¸ ˘ ßcÊS∑ΧÁœ ÿûÊ ‚Ê◊ÊŒÊèÿ¢ ŸÊ◊ ¡ÊªÎÁfl ÃS◊Ò Ã ‚Ê◊ ‚Ê◊Êÿ SflÊ„UÊ SflÊ„UÊfl¸ãÃÁ⁄UˇÊ◊ãflÁ◊.. (2) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ◊œÈ⁄U œÊ⁄UÊ•Ê¥ flÊ‹ „Ò¥. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ßc≈U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ¡Êª˝Ã ∑§ËÁ¡∞. ¡Êª˝Ã ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Ê◊ ‚ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿ„U •Ê„ÈUÁà •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ÁflSÃÊ⁄U ¬ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (2) SflÊæ˜U ∑ΧÃÊÁ‚ Áfl‡flèÿ ˘ ßÁãº˝ÿèÿÊ ÁŒ√ÿèÿ— ¬ÊÁÕ¸flèÿÊ ◊ŸSàflÊc≈ÈU SflÊ„UÊ àflÊ ‚È÷fl ‚Íÿʸÿ ŒflèÿSàflÊ ◊⁄UËUÁø¬èÿÊ ŒflÊ ¦ ‡ÊÊ ÿS◊Ò àfl«U Ãà‚àÿ◊ȬÁ⁄Uå‹ÈÃÊ ÷XŸ „UÃÊ ˘ ‚ÊÒ »§≈˜U ¬˝ÊáÊÊÿ àflÊ √ÿÊŸÊÿ àflÊ.. (3) •Ê¬ Sflÿ¢÷Í „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ߢÁº˝ÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÈU∞ „Ò¥U. ¬ÁflòÊ ◊Ÿ flÊ‹ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ë¿UË Ã⁄U„U ©Uà¬ããÊ „UÊŸ flÊ‹ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊⁄UËÁø ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊ÿʸŒÊ ÷¢ª ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚àÿ ‚ •Êì˝Êà „Ò¥U. „U◊ ¬˝ÊáÊ •ÊÒ⁄U √ÿUÊŸ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (3) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿãÃÿ¸ë¿U◊ÉÊflŸÔ˜ ¬ÊÁ„U ‚Ê◊◊Ô˜. ©UL§cÿ ⁄UÊÿ ˘ ∞·Ê ÿ¡Sfl.. (4) „U ߢº˝! ‚Ê◊ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄U Á‹ÿÊ „Ò. •Ê¬ ß‚ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ÷⁄U¬Í⁄U flÒ÷fl ŒËÁ¡∞ ∞fl¢ ©UŸ ∑§Ë ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (4) •ãÃSà lÊflʬÎÁÕflË ŒœÊêÿãÃŒ¸œÊêÿÈfl¸ãÃÁ⁄UˇÊÔ◊Ô˜. ‚¡ÍŒ¸flÁ÷⁄Ufl⁄ÒU— ¬⁄ÒU‡øÊãÃÿʸ◊ ◊ÉÊflŸÔ˜ ◊ÊŒÿSfl.. (5) „U ߢº˝ Œfl! Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥, ¬ÎâflË‹Ê∑§ ¬⁄UU ∞fl¢ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê „UË ÿ¡Èfl¸Œ - 83
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
ÁflSÃÊ⁄U „Ò. •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ◊¥ •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ‚Á„Uà •ãÿÊ¥ ∑§Ê (◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê) ◊Œ◊Sà ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (5) SflÊæUÔ˜∑ΧÃÊÁ‚ Áfl‡flèÿ ˘ ßÁãº˝ÿèÿÊ ÁŒ√ÿèÿ— ¬ÊÁÕ¸flèÿÊ ◊ŸSàflÊc≈ÈU SflÊ„UÊ àflÊ ‚È÷fl ‚Íÿʸÿ ŒflèÿSàflÊ ◊⁄UËUÁø¬èÿ ˘ ©UŒÊŸÊÿ àflÊ.. (6) „U üÊcΔU ¡ã◊ flÊ‹! •Ê¬ ‚÷Ë ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ߢÁº˝ÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ •ÊÒ⁄U ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ◊Ÿ ∑§ ‚¢ÃÊ· ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ (∑§‹‡Ê ◊¥) ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ◊⁄UËÁø ∑§ Á‹∞ (∑§‹‡Ê ◊¥) ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê ©UŒÊŸ (ŒflÃÊ) ∑§ Á‹∞ (©U¬ÿÊ◊ ◊¥) ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (6) •Ê flÊÿÊ ÷Í· ‡ÊÈÁø¬Ê ˘ ©U¬ Ÿ— ‚„Ud¢ à ÁŸÿÈÃÊ Áfl‡flflÊ⁄U. ©U¬Ê à •ãœÊ ◊l◊ÿÊÁ◊ ÿSÿ Œfl ŒÁœ· ¬Ífl¸¬ÿ¢ flÊÿfl àflÊ.. (7) „U flÊÿÈ! •Ê¬ ¬ÁflòÊÃÊ ∑§ ⁄ˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U¡Ê⁄UÊ¥ ªÈáÊÊ¥ ∑§ •ÊœÊ⁄U „Ò¥U. „U◊ ‚Ê◊⁄U‚ ‚ •Ê¬ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ’ŸÊà „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ¬ÿ ∑§Ê ¬„U‹ ÷Ë ¬Ë øÈ∑§ „Ò¥U. „U◊ flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ ß‚ ¬ÿ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (7) ßãº˝flÊÿÍ ß◊ ‚ÈÃÊ ©U¬ ¬˝ÿÊÁ÷⁄UʪÃ◊Ô˜. ßãŒflÊ flÊ◊ȇÊÁãà Á„U. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ flÊÿfl ˘ ßãº˝flÊÿÈèÿÊ¢ àflÒ· à ÿÊÁŸ— ‚¡Ê·ÊèÿÊ¢ àflÊ.. (8) „U ߢº˝ Œfl! „U flÊÿÈ! •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§ ¬˝ÿʪ ◊¥ ‹ÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U ‚Ê◊⁄U‚ •ÊÿÊ „Ò (‹ÊÿÊ ªÿÊ „ÒU). •Ê¬ ß‚ ∑§Ê ‚flŸ ∑§ËÁ¡∞. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. „U◊ ©Uã„UË¥ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (8) •ÿ¢ flÊ¢ Á◊òÊÊflL§áÊÊ ‚È× ‚Ê◊ ˘ ´§ÃÊflÎœÊ. ◊◊ÁŒ„U üÊÈà ¦ „Ufl◊Ô˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ ˘ Á‚ Á◊òÊÊflL§áÊÊèÿÊ¢ àflÊ.. (9) „U Á◊òÊ Œfl! „U flL§áÊ Œfl! •Ê¬ ‚àÿ ∑§Ë flÎÁh ∑§⁄Uà „Ò¥. „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬ÈòÊ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ß‚ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. U(9) ⁄UÊÿÊ flÿ ¦ ‚‚flÊ ¦ ‚Ê ◊Œ◊ „U√ÿŸ ŒflÊ ÿfl‚Ÿ ªÊfl—. ÃÊ¢ œŸÈ¢ Á◊òÊÊflL§áÊÊ ÿÈfl¢ ŸÊ Áfl‡flÊ„UÊ œûÊ◊Ÿ¬S»È§⁄UãÃË◊· à ÿÊÁŸ´¸§ÃÊÿÈèÿÊ¢ àflÊ.. (10) 84 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
„U Á◊òÊ Œfl! „U flL§áÊ Œfl! •Ê¬ „U◊¥ ∞‚Ê œŸ ŒËÁ¡∞ ¡Ê flʬ‚ „U◊ ‚ Ÿ ¡Ê∞. ©U‚ œŸ ∑§Ê ¬Ê ∑§⁄U „U◊ •ÊŸ¢ÁŒÃ „UÊ¥. „U◊¥ ∞‚Ë ªÊ∞¢ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞, ¡Ê „U◊¥ ¿UÊ«∏U ∑§⁄U ∑§„UË¥ Ÿ„UË¥ ¡Ê∞¢. •Ê¬ ∑§Ë ß‚ ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ flÒ‚ „UË ¬˝‚ããÊ „UÊ¥ª, ¡Ò‚ ŒflªáÊ „UÁfl ¬Ê ∑§⁄U ¬˝‚ããÊ „UÊà „Ò¥U, ªÊÿ •Ê„UÊ⁄U ¬Ê ∑§⁄U ¬˝‚㟠„UÊÃË „ÒU. ´§Ã (‚àÿ) fl ÿôÊ ∑§Ë •ÊÿÈ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ÿôʇÊÊ‹Ê ◊¥ •¬Ÿ Á‹∞ ÁŸÁ‡øà •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. (10) ÿÊ flÊ¢ ∑§‡ÊÊ ◊œÈ◊àÿÁ‡flŸÊ ‚ÍŸÎÃÊflÃË. ÃÿÊ ÿôÊ¢ Á◊Á◊ˇÊÃ◊Ô˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÁ‡flèÿÊ¢ àflÒ· à ÿÊÁŸ◊ʸäflËèÿÊ¢ àflÊ.. (11) „U •Á‡flŸË ŒflÊ! •Ê¬ ◊œÈ⁄U flÊáÊË ‚ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ‚Ë¥øŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ◊œÈ⁄U flÊáÊË ‚ „U◊ Ÿ ÷Ë ÿôÊ ∑§Ê ‚Ë¥øÊ „ÒU. „U◊ Ÿ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ •¬Ÿ ÁŸœÊ¸Á⁄Uà •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (11) â ¬˝àŸÕÊ ¬Ífl¸ÕÊ Áfl‡flÕ◊ÕÊ ÖÿcΔUÃʮà ’Á„¸U·Œ ¦ SflÁfl¸Œ◊˜. ¬˝ÃËøËŸ¢ flΡŸ¢ ŒÊ„U‚ œÈÁŸ◊ʇÊÈ¢ ¡ÿãÃ◊ŸÈ ÿÊ‚È flœ¸‚. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‡Êá«UÊÿ àflÒ· à ÿÊÁŸfl˸⁄UÃÊ¢ ¬ÊsÔ¬◊ÎCÔU— ‡Êá«UÊ ŒflÊSàflÊ ‡ÊÈ∑˝§¬Ê— ¬˝áÊÿãàflŸÊœÎc≈UÊÁ‚.. (12) ߢº˝ Œfl ’Ê⁄U’Ê⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬Ëà „Ò¥U. ‚Ê◊⁄U‚ ¬Ê·∑§ fl •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „ÒU. ߢº˝ Œfl •Êà◊ôÊÊÃÊ, ÖÿcΔU, ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥U. fl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ œŸ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ∑§⁄Uà „ÒU¢ •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ œŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥. fl flËÿ¸⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. fl„UË ©U‚ ∑§Ë ◊Í‹ ÿÊÁŸ „Ò. fl „U◊¥ ŒÈc≈UÊ¥ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U ÃÕÊ •¬Ÿ Á‹∞ ÁŸœÊ¸Á⁄Uà •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (12) ‚ÈflË⁄UÊ flË⁄UÊŸ˜Ô ¬˝¡ŸÿŸ˜Ô ¬⁄UËsÔÁ÷ ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ÿ¡◊ÊŸ◊ÔÔ˜. ‚Ü¡Ç◊ÊŸÊ ÁŒflÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ‡ÊÈ∑˝§— ‡ÊÈ∑˝§‡ÊÊÁø·Ê ÁŸ⁄US× ‡Êá«U— ‡ÊÈ∑˝§SÿÊÁœcΔUÊŸ◊Á‚.. (13) •Ê¬ ‚ÈflË⁄U „Ò¥U. •Ê¬ flË⁄UÊ¥ ∑§Ê ¬ÒŒÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê œŸ ‚ ¬ÊÁ·Ã ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ø◊∑§ÊŸ flÊ‹ „ÒU¢. •Ê¬ ‚fl¸òÊ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ø◊∑§Êß∞. •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡Ê ∑§ ÁŸflÊ‚ SÕÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ©U¡«U˜«U¬Ÿ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (13) •Áë¿UãŸSÿ à Œfl ‚Ê◊ ‚ÈflËÿ¸Sÿ ⁄UÊÿS¬Ê·Sÿ ŒÁŒÃÊ⁄U— SÿÊ◊. ‚Ê ¬˝Õ◊Ê ‚¢S∑ΧÁÃÁfl¸‡flflÊ⁄UÊ ‚ ¬˝Õ◊Ê flL§áÊÊ Á◊òÊÊ •ÁÇŸ—.. (14) „U ‚Ê◊! •Ê¬ •Ÿ¢Ã ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ, üÊcΔU flËÿ¸flÊŸ fl œŸ ∑§ ¬Ê·∑§ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ÿ¡Èfl¸Œ - 85
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ Á‹∞ ‚ŒÊ „UÁfl ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. Áfl‡fl ¬⁄U flÊ⁄UŸ ÿÊÇÿ ÿ„U „U◊Ê⁄UË •Êl (¬„U‹Ë) ‚¢S∑ΧÁà „Ò¥U. flL§áÊ, Á◊òÊ fl •ÁÇŸ ¬˝Õ◊ Œfl „ÒU¢. (14) ‚ ¬˝Õ◊Ê ’΄US¬ÁÃÁ‡øÁ∑§àflÊ°SÃS◊Ê ˘ ßãº˝Êÿ ‚ÈÃ◊Ê ¡È„UÊà SflÊ„UÊ. ÃÈê¬ãÃÈ „UÊòÊÊ ◊äflÊ ÿÊ— ÁSflc≈UÊ ÿÊ— ‚Ȭ˝ËÃÊ— ‚È„ÈUÃÊ ÿàSflÊ„UÊÿÊ«UÇŸËØÔ.. (15) ’΄US¬Áà Œfl ¬˝Õ◊ ŒflÃÊ „Ò¥U. ôÊÊÃÊ ‹Êª ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. SflÊ„UʬÍfl¸∑§ ©UŸ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ „UÊÃÊ ◊œÈ⁄U •Ê„ÈUÁà ‚ ©Uã„¥U ÃÎåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ‚Ȭ˝ËÁÃ∑§⁄U •Ê„ÈUÁà ‚ ©Uã„¥U ÃÎåà ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •ë¿UË Ã⁄U„U •Ê„ÈUÁà •ÁÇŸ ∑§ ¬Ê‚ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (15) •ÿ¢ flŸ‡øÊŒÿà¬ÎÁ‡Ÿª÷ʸ ÖÿÊÁá¸⁄UÊÿÍ ⁄U¡‚Ê Áfl◊ÊŸ. ß◊◊¬Ê ¦ ‚XÔU◊ ‚Íÿ¸Sÿ Á‡Ê‡ÊÈ¢ Ÿ Áfl¬˝Ê ◊ÁÃ÷Ë Á⁄U„UÁãÃ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ◊∑§Ê¸ÿ àflÊ.. (16) ÿU flŸ Œfl ’ÊŒ‹Ê¥ ∑§ ª÷¸ ◊¥ ÁSÕà ¡‹ ∑§Ê ’⁄U‚Ÿ ∑ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. Áø⁄UÊÿÈ ÖÿÊÁà flÊ‹ ‚Íÿ¸ ∑§Ê fl¢ŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡‹ ∑§Ê ¬Ê ∑§⁄U ÿ¡◊ÊŸ ∞‚ ¬˝‚ããÊ „UÊà „Ò¥U, ¡Ò‚ ‹Êª ¬ÈòÊ ∑§Ê ¬Ê ∑§⁄U ¬˝‚ããÊ „UÊà „Ò¥U. ÁflmÊŸ˜ ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ◊∑¸§ (⁄UÊˇÊ‚-ÁflŸÊ‡Ê) ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (16) ◊ŸÊ Ÿ ÿ·È „UflŸ·È ÁÃÇ◊¢ Áfl¬— ‡ÊëÿÊ flŸÈÕÊ º˝flãÃÊ. •Ê ÿ— ‡ÊÿʸÁ÷SÃÈÁflŸÎêáÊÊ ˘ •SÿÊüÊËáÊËÃÊÁŒ‡Ê¢ ª÷SÃÊfl· à ÿÊÁŸ— ¬˝¡Ê— ¬ÊsÔ¬◊ÎCÔUÊ ◊∑§Ê¸ ŒflÊSàflÊ ◊Áãլʗ ¬˝áÊÿãàflŸÊœÎc≈ÔUÊÁ‚.. (17) ÿ¡◊ÊŸ „UflŸÊ¥ ◊¥ ◊Ÿ ‚ ÷ʪ ‹Ã „Ò¥U. º˝Áflà „UÊŸ flÊ‹ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ◊Ÿ ‚ ¬ÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚Ê◊ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U Á∑§ „U◊ ‚¢ÃÊŸ‚Á„Uà ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ÁflŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „UÊ ‚∑¥§. „U◊ ◊ÕÊŸË ∑§Ë Ã⁄U„U ©Uã„¥U ◊Õ Œ¥. „U◊ ÁŸ÷¸ÿ „UÊ ∑§⁄U Œflàfl ¬˝Ê# ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ „U◊¥ ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (17) ‚Ȭ˝¡Ê— ¬˝¡Ê— ¬˝¡ŸÿŸ˜Ô ¬⁄UËsÔÁ÷ ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ÿ¡◊ÊŸ◊˜Ô. ‚TÇ◊ÊŸÊ ÁŒflÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ◊ãÕË ◊ÁãÕ‡ÊÊÁø·Ê ÁŸ⁄USÃÊ ◊∑§Ê¸ ◊ÁãÕŸÊÁœcΔUÊŸ◊Á‚.. (18) „U ŒflªáÊ! ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ‚¢ÃÊŸ üÊcΔU „UÊ. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê üÊcΔU œŸ ‚ ¬Ê‚Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ¡Ò‚ ‚Íÿ¸ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ¬ÎâflË ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÒ‚ „UË ŒflªáÊ „U◊Ê⁄U ¡ËflŸ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߟ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ◊ÕÊŸË ‚ ◊ÕŸ ∑§Ë Ã⁄U„U ◊Õ Œ¥. ◊∑¸§ ŸÊ◊∑§ •‚È⁄U ŒÈ—π ∑§Ê ÉÊ⁄U „Ò. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ (á ‚) fl„U ÷Ë ¬‹ÊÿŸ ∑§⁄U ¡Ê∞. (18) ÿ ŒflÊ‚Ê ÁŒ√ÿ∑§ÊŒ‡Ê SÕ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊äÿ∑§ÊŒ‡Ê SÕ. •å‚ÈÁˇÊÃÊ ◊Á„UŸÒ∑§ÊŒ‡Ê SÕ Ã ŒflÊ‚Ê ÿôÊÁ◊◊¢ ¡È·äfl◊˜Ô.. (19) 86 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
¬ÎâflË •ÊÒ⁄U •Ê∑§Ê‡Ê ∑§ ’Ëø ¡Ê ÇÿÊ⁄U„U ÁŒ√ÿ Œfl ÁSÕà „Ò¥U, fl ‚÷Ë Œfl ◊Á„UU◊ÊflÊŸ „Ò¥U. fl ÇÿÊ⁄U„U „UË Œfl ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ‚»§‹ÃʬÍfl¸∑§ ‚¢¬ãŸ ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿʪ˝ÿáÊÊÁ‚ Sflʪ˝ÿáÊ—. ¬ÊÁ„UÿôÊ¢ ¬ÊÁ„U ÿôʬÁâ ÁflcáÊÈSàflÊÁ◊Áãº˝ÿáÊ ¬ÊÃÈ ÁflcáÊÈ¢ àfl¢ ¬ÊsÔÁ÷ ‚flŸÊÁŸ ¬ÊÁ„U.. (20) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU . •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ‚fl¸¬˝Õ◊ ª˝„UáÊ Á∑§∞ ¡ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ‚fl¸¬˝Õ◊ ’È‹Ê∞ ¡ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôʬÁà ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ÁflcáÊÈ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. ©UŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ÃËŸÊ¥ ‚¢äÿÊ•Ê¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (20) ‚Ê◊— ¬flà ‚Ê◊— ¬flÃS◊Ò ’˝rÊÔáÊS◊Ò ˇÊòÊÊÿÊS◊Ò ‚Èãflà ÿ¡◊ÊŸÊÿ ¬flà ˘ ß· ˘ ™§¡¸ ¬flÃjK ˘ •Ê·œËèÿ— ¬flà lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ¢ ¬flà ‚È÷ÍÃÊÿ ¬flà Áfl‡flèÿSàflÊ Œflèÿ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁfl¸‡flèÿSàflÊ Œflèÿ—.. (21) ‚Ê◊⁄U‚ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU. ¬ÁflòÊ ‚Ê◊ ß‚ ◊¥ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU . ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿ„U ‚Ê◊ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „Ò. ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿ„U ‚Ê◊ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU. ™§¡Ê¸ŒÊÿË ∑§ Á‹∞ ÿ„U ‚Ê◊ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU . •Ê·œ ∑§ Á‹∞ ÿ„U ‚Ê◊ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU . Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ ÿ„U ‚Ê◊ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU . •ë¿U ÷⁄UáʬʷáÊ∑§Ãʸ „UÃÈ ÿ„U ‚Ê◊ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU . Áfl‡fl ∑§ Á‹∞ ÿ„U ‚Ê◊ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃÊ „ÒU . ÿ„U Áfl‡fl ∑§ Á‹∞ ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. ‚÷Ë Œfl ÿôʇÊÊ‹Ê ◊¥ •¬Ÿ Á‹∞ ÁŸœÊ¸Á⁄Uà SÕÊŸ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡¥. (21) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ’΄Umà flÿSflà ˘ ©UÄÕÊ√ÿ¢ ªÎ±áÊÊÁ◊. ÿûÊ ˘ ßãº˝ ’΄UmÿSÃS◊Ò àflÊ ÁflcáÊfl àflÒ· à ÿÊÁŸL§ÄÕèÿSàflÊ ŒflèÿSàflÊ ŒflÊ√ÿ¢ ÿôÊSÿÊÿÈ· ªÎ±áÊÊÁ◊.. (22) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ’΄Œ˜ Œfl ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò. •Ê¬ ©U¬ÿÊ◊ (∑§‹‡Ê) „Ò¥U. „U◊ ©UÄà ◊¢òÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U ©U¬ÿÊ◊ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. ÿ„U ©U¬ÿÊ◊ ’˝rÊ Œfl fl ÁflcáÊÈ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. „U◊ ÿôÊ ◊¥ ©UÄà ◊¢òÊ ‚ •Ê¬ ‚’ ŒflÊ¥ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ◊¥ üÊcΔU ŒËÉʸ ¡ËflŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (22) Á◊òÊÊflL§áÊÊèÿÊ¢ àflÊ ŒflÊ√ÿ¢ ÿôÊSÿÊÿÈ· ªÎ±áÊÊ◊Ëãº˝Êÿ àflÊ ŒflÊ√ÿ¢ ÿôÊSÿÊÿÈ· ªÎ±áÊÊ◊Ëãº˝ÊÁÇŸèÿÊ¢ àflÊ ŒflÊ√ÿ¢ ÿôÊSÿÊÿÈ· ªÎ±áÊÊ◊Ëãº˝ÊflL§áÊÊèÿÊ¢ àflÊ ŒflÊ√ÿ¢ ÿôÊSÿÊÿÈ· ªÎ±áÊÊ◊Ëãº˝Ê’Î„US¬ÁÃèÿÊ¢ àflÊ ŒflÊ√ÿ¢ ÿôÊSÿÊÿÈ· ªÎ±áÊÊ◊Ëãº˝ÊÁflcáÊÈèÿÊ¢ àflÊ ŒflÊ√ÿ¢ ÿôÊSÿÊÿÈ· ªÎ±áÊÊÁ◊.. (23) ÿ¡Èfl¸Œ - 87
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
„U ‚Ê◊! Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU . ŒËÉʸ •ÊÿÈ „UÃÈ Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U ‚Ê◊! ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. „U◊ Ÿ ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU . flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U ‚Ê◊! ’΄US¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU . „U ‚Ê◊! ÁflcáÊÈ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU . (23) ◊͜ʸŸ¢ ÁŒflÊ ˘ •⁄UÁâ ¬ÎÁÕ√ÿÊ flÒ‡flÊŸ⁄U◊Îà ˘ •Ê ¡ÊÃ◊ÁÇŸ◊˜. ∑§Áfl ¦ ‚◊˝Ê¡◊ÁÃÁÕ¢ ¡ŸÊŸÊ◊Ê‚ãŸÊ¬ÊòÊ¢ ¡Ÿÿãà ŒflÊ—.. (24) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ‚flʸëëÊ SÕÊŸ ¬⁄U ø◊∑§Ã „Ò¥. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ‚Íÿ¸ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ø◊∑§Ã „Ò¥U. •Ê¬ flÒ‡flÊŸ⁄U (•Êª) fl ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‹ÊªÊ¥ Ÿ •ÁÇŸ ∑§Ê •⁄UÁáÊ◊¢ÕŸ (‹∑§Á«∏UÿÊ¥ ∑§Ë ⁄Uª«∏U ) ‚ ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ „ÒU . •ÁÇŸ Œfl „U◊Ê⁄U •ÁÃÁÕ ‚◊˝Ê≈˜U „Ò¥U. (24) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ œÈ˝flÊÁ‚ œÈ˝flÁˇÊÁÃœ˝È¸flÊáÊÊ¢ œÈ˝flÃ◊ÊëÿÈÃÊŸÊ◊ëÿÈà ÁˇÊûÊ◊ ˘ ∞· à ÿÊÁŸflÒ¸‡flÊŸ⁄UÊÿ àflÊ. œÈ˝fl¢ œ˝ÈfláÊ ◊Ÿ‚Ê flÊøÊ ‚Ê◊◊flŸÿÊÁ◊. •ÕÊ Ÿ ˘ ßãº˝ ßÁm‡ÊÊ‚¬àŸÊ— ‚◊Ÿ‚S∑§⁄UØÔ.. (25) „U ‚Ê◊! •Ê¬ œ˝Èfl (ÁSÕ⁄U) •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ¬⁄U œ˝Èfl ⁄U„UŸ flÊ‹Ê¥ ◊¥ •ª˝ªáÿ „Ò¥U. •Ê¬ œ˝ÈflÃ◊ ∑§ ŸÊ◊ ‚ ¬˝Á‚h „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ fl •ÊüÊÿ SÕÊŸ „Ò¥U. œ˝Èfl ◊Ÿ flÊ‹ ÿ¡◊ÊŸ „U◊ œ˝Èfl ◊Ÿ ‚ flÊáÊˬÍfl¸∑§ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊ ¬àŸË •ÊÒ⁄U ‚¢ÃÊŸ ‚Á„Uà •ë¿U ◊Ÿ ‚ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (25) ÿSà º˝å‚— S∑§ãŒÁà ÿSà ˘ • ¦ ‡ÊȪ˝Ê¸flëÿÈÃÊ Áœ·áÊÿÊL§¬SÕÊØÔ. •äflÿʸflʸ ¬Á⁄U flÊ ÿ— ¬ÁflòÊÊûÊ¢ à ¡È„UÊÁ◊ ◊Ÿ‚Ê fl·≈˜Ô∑Χà ¦ SflÊ„UÊ ŒflÊŸÊ◊Èà∑˝§◊áÊ◊Á‚.. (26) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ¡Ê •¢‡Ê ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ≈ÍU≈Uà ‚◊ÿ, ÁŸøÊ«∏Uà •ÊÒ⁄U ¿UÊŸÃ ‚◊ÿ ßœ⁄©Uœ⁄U Áª⁄UU ¡ÊÃÊ „ÒU, ¡Ê ÿôÊ ◊¥ •Ê„ÈUÁà «UÊ‹Ÿ ∑§ ’ÊŒ •äflÿȸ ∑§ ¬Ê‚ ’ø ¡ÊÃÊ „ÒU , „U◊ ©U‚ ¬ÁflòÊ ÷ʪ ∑§Ê ◊Ÿ ‚ ß∑§≈˜UΔUÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ∞∑§ÁòÊà Á∑§∞ „ÈU∞ ß‚ •¢‡Ê ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê◊ ∑§Ê ‚¢∑§À¬U¬Ífl¸∑§ SflÊ„UÊ. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ™§äfl¸ªÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (26) ¬˝ÊáÊÊÿ ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSfl √ÿÊŸÊÿ ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSflʌʟÊÿ ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSfl flÊø ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSfl ∑˝§ÃÍŒˇÊÊèÿÊ¢ ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSfl üÊÊòÊÊÿ ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSfl øˇÊÈèÿÊZ ◊ fløʸŒ‚ÊÒ flø¸‚ ¬flÕÊ◊˜Ô.. (27) •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ flø¸Sfl (á) ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U √ÿÊŸ ∑§ 88 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
Á‹∞ flø¸Sfl ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ flø¸Sfl ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ©UŒÊŸ ∑§ Á‹∞ flø¸Sfl ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ◊Ÿ ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË flÊáÊË ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ∑§◊¸ ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ŸòÊ ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ∑§ÊŸÊ¥ ∑§Ê flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. (27) •Êà◊Ÿ ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSflÊÒ¡‚ ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSflÊÿÈ· ◊ fløʸŒÊ flø¸‚ ¬flSfl Áfl‡flÊèÿÊ ◊ ¬˝¡ÊèÿÊ fløʸŒ‚ÊÒ flø¸‚ ¬flÕÊ◊˜Ô.. (28) •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •Êà◊Ê ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •Ê¡ ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ‚Ê⁄UË ¬˝¡Ê ◊¥ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬ÎâflË ∑§ ‚÷Ë ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. (28) ∑§ÊÁ‚ ∑§Ã◊ÊÁ‚ ∑§SÿÊÁ‚ ∑§Ê ŸÊ◊ÊÁ‚. ÿSÿ à ŸÊ◊Ê◊ã◊Á„U ÿ¢ àflÊ ‚Ê◊ŸÊÃËÃάÊ◊. ÷Í÷¸Èfl— Sfl— ‚Ȭ˝¡Ê— ¬˝¡ÊÁ÷— SÿÊ ¦ ‚ÈflË⁄UÊ flË⁄ÒU— ‚Ȭʷ— ¬Ê·Ò—.. (29) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§ÊÒŸ „Ò¥U? •Ê¬ ∑§„UÊ¢ ‚ „Ò¥U? •Ê¬ Á∑§‚ ∑§ „Ò¥U? •Ê¬ ∑§Ê ÄÿÊ ŸÊ◊ „ÒU, Á¡‚ ¡ÊŸ ∑§⁄U „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚Ê◊⁄U‚ ‚ ÃÎåà ∑§⁄U ‚∑¥Ô . •Ê¬ ‚fl¸òÊ √ÿÊåà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •ë¿UË ‚¢ÃÊŸ flÊ‹, flË⁄UÊ¥ flÊ‹¥ „UÊ¥ ∞fl¢ •ë¿U ¬Ê·áÊU ‚ ¬Èc≈U „UÊ¥. (29) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ◊œfl àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ◊ÊœflÊÿ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‡ÊÈ∑˝§Êÿ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‡ÊÈøÿ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ Ÿ÷‚ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ Ÿ÷SÿÊÿ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ë· àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÍ¡¸ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‚„U‚ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‚„USÿÊÿ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ì‚ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ìSÿÊÿ àflʬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿ ¦ „U‚S¬Ãÿ àflÊ.. (30) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ◊œÈ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ‚ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ◊Êœfl „UÃÈ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊÈ∑§˝ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ¬ÁflòÊÃÊ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê Ÿ÷ „UÃÈ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ™§¡Ê¸ „UÃÈ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ‚Ê„U‚ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ‚Ê„U‚ ‚ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ì ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ◊ÿʸŒÊ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (30) ßãº˝ÊÇŸË ˘ •Ê ªÃ ¦ ‚Èâ ªËÁ÷¸Ÿ¸÷Ê fl⁄Uáÿ◊˜Ô. •Sÿ ¬Êâ ÁœÿÁ·ÃÊ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝ÊÁÇŸèÿÊ¢ àflÒ· à ÿÊÁŸÁ⁄UUãº˝ÊÁÇŸèÿÊ¢ àflÊ.. (31) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl „UÃÈ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê •ÁÇŸ „UÃÈ ÿ¡Èfl¸Œ - 89
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§Ë ÃÎÁåà „UÃÈ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§Ë ÃÎÁåà „UÃÈ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò, ∑§‹‡Ê •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. •Ê¬ ÿôʇÊÊ‹Ê ◊¥ ÁŸœÊ¸Á⁄Uà SÕÊŸ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ üÊcΔU flÊÁáÊÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ •¬ŸÊ ÷ʪ SflË∑§Ê⁄U ∑§ËÁ¡∞. (31) •Ê ÉÊÊ ÿ ˘ •ÁÇŸÁ◊ãœÃ SÃÎáÊÁãà ’Á„¸U⁄UÊŸÈ·∑˜§Ô. ÿ·ÊÁ◊ãº˝Ê ÿÈflÊ ‚πÊ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„ËÃÊSÿÇŸËãº˝ÊèÿÊ¢ àflÒ· à ÿÊÁŸ⁄UÇŸËãº˝ÊèÿÊ¢ àflÊ.. (32) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl fl •ÁÇŸ ∑§Ë ÃÎÁåà „UÃÈ ÁflÁœflà ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿôÊSÕ‹ ◊¥ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§Ê ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ ÁŸœÊ¸Á⁄Uà „ÒU. ߢº˝ •Ê¬ ∑§ Á◊òÊ „Ò¥U. fl ÿÈflÊ „Ò¥U. ‚Ê◊ ∑§Ê ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ŒÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ „UË ß¢º˝ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò¥U. (32) •Ê◊Ê‚‡ø·¸áÊËœÎÃÊ Áfl‡fl ŒflÊ‚ ˘ •ÊªÃ. ŒÊ‡flÊ ¦ ‚Ê ŒÊ‡ÊÈ·— ‚ÈÃ◊˜Ô. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ Áfl‡flèÿSàflÊ Œflèÿ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁfl¸‡flèÿSàflÊ Œflèÿ—.. (33) Áfl‡fl Œfl ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ‚¢⁄UˇÊ∑§ fl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. fl „U◊ ‚’ ∑§ •ŸÈ⁄UÊœ ¬⁄U ÿôʇÊÊ‹Ê ◊¥ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê Áfl‡fl Œfl ∑§Ë flÎÁûÊ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Ê¬ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÿ„UÊ¢ ÁSÕ⁄ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (33) Áfl‡fl ŒflÊ‚ ˘ •ÊªÃ oÎáÊÈÃÊ ◊ ß◊ ¦ „Ufl◊˜Ô. ∞Œ¢ ’Á„¸UÁŸ¸·ËŒÃ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ Áfl‡flèÿSàflÊ Œflèÿ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁfl¸‡flèÿSàflÊ Œflèÿ—.. (34) „U Áfl‡fl Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ∞¢ ‚ÈÁŸ∞. •Ê¬ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ‚ ÿ„UÊ¢ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U ’ÒΔUŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©U‚ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ„UË •Ê¬ ∑§Ê •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. (34) ßãº˝ ◊L§àfl ˘ ß„U ¬ÊÁ„U ‚Ê◊¢ ÿÕÊ ‡ÊÊÿʸà ˘ •Á¬’— ‚ÈÃSÿ. Ãfl ¬˝áÊËÃË Ãfl ‡ÊÍ⁄U ‡Ê◊¸ãŸÊ ÁflflÊ‚Áãà ∑§flÿ— ‚ÈÿôÊÊ—. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflà ˘ U∞· à ÿÊÁŸÁ⁄ãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflÃ.. (35) „U ߢº˝ Œfl! „U ◊L§Œ˜ Œfl! •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. ¡Ò‚ •Ê¬ Ÿ ‡ÊÿʸÁà ∑§ ÿôÊ ◊¥ ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§Ë, flÒ‚ „UË •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊÁ⁄U∞ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ 90 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‡ÊÍ⁄UflË⁄U, ‚ÈπŒÊÃÊ, üÊcΔU ÿôÊ flÊ‹ ∞fl¢ •ë¿U ∑§Áfl „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê ◊L§ŒÔ˜ªáÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. •Ê¬ ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ ‚ÊÕ ÿ„UÊ¢ ÁSÕ⁄U „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (35) ◊L§àflãâ flη÷¢ flÊflΜʟ◊∑§flÊÁ⁄¢U ÁŒ√ÿ ¦ ‡ÊÊ‚Á◊ãº˝◊˜Ô. Áfl‡flÊ‚Ê„U◊fl‚ ŸÍßÊÿʪ˝ ¦ ‚„UÊŒÊÁ◊„U à ¦ „ÈUfl◊. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflà ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflÃ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ◊L§ÃÊ¢ àflÊÒ¡‚.. (36) „U ߢº˝! •Ê¬ „U◊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ÁflŸÃË ¬⁄U ◊L§Œ˜flÊŸ „UÊ ∑§⁄U ¬œÊÁ⁄U∞. ◊L§Œ˜ªáÊ ¡‹ ∑§Ë fl·Ê¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∞fl¢ ÁŒ√ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê Áfl‡flÊ‚¬Ífl¸∑§ •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŸÍß •ÊÒ⁄U ©Uª˝ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ÊÕ‚ÊÕ ⁄U„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl fl ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò. fl„UË ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. •Ê¡ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò. (36) ‚¡Ê·Ê ˘ ßãº˝ ‚ªáÊÊ ◊L§Áj— ‚Ê◊¢ Á¬’ flÎòÊ„UÊ ‡ÊÍ⁄U ÁflmÊŸÔ˜. ¡Á„U ‡ÊòÊÍ° 2 ˘ ⁄U¬ ◊ÎœÊ ŸÈŒSflÊÕÊ÷ÿ¢ ∑ΧáÊÈÁ„U Áfl‡flÃÊ Ÿ—. ©U¬ÿÊ◊ ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflà ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflÃ.. (37) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ flÎòÊÊ‚È⁄U ŸÊ‡Ê∑§, ‡ÊÍ⁄UflË⁄U, ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∞fl¢ ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ‚’ •Ê⁄U ‚ ‚È⁄UˇÊÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl fl ◊L§ŒÔ˜U Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. fl„UË ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. (37) ◊L§à√ÊÊ° 2 ˘ ßãº˝ flη÷Ê ⁄UáÊÊÿ Á¬’Ê ‚Ê◊◊ŸÈcflœ¢ ◊ŒÊÿ. •ÊÁ‚ÜøSfl ¡Δ⁄U ◊äfl ˘ ™§Á◊Z àfl ¦ ⁄UÊ¡ÊÁ‚ ¬˝Áìà‚ÈÃÊŸÊ◊ÔÔ˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflà ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ◊L§àflÃ.. (38) „U ◊L§Œ˜ªáÊ! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¡‹, œŸ fl •ããÊ ’⁄U‚Êà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ¬Ë ∑§⁄U •ÊŸ¢ÁŒUà „UÊß∞. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ ÿÈh ∑§ËÁ¡∞. ‚Ê◊⁄U‚ ‹„U⁄UŒÊ⁄U fl ◊ËΔUÊ „ÒU. •Ê¬ ¿U∑§ ∑§⁄U ß‚ ∑§Ê ¬ËÁ¡∞. •Ê¬ ÃÊ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§ ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl fl ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. fl„UË ß¢º˝ Œfl fl ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. (38) ◊„UÊ° 2 ˘ ßãº˝Ê ŸÎflŒÊ ø·¸Ááʬ˝Ê ˘ ©Uà Ám’„Uʸ ˘ •Á◊Ÿ— ‚„UÊÁ÷—. •S◊º˝Ô˜ÿÇflÊflÎœ flËÿʸÿÊL§— ¬ÎÕÈ— ‚È∑Χ× ∑§ÃθÁ÷÷͸ÃÔ˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ◊„Uãº˝Êÿ àflÒ· à ÿÊÁŸ◊¸„Uãº˝Êÿ àflÊ.. (39) ÿ¡Èfl¸Œ - 91
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
„U ߢº˝! •Ê¬ ◊„UÊŸ˜, √ÿʬ∑§, ‚fl¸ôÊ, ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ ¬Í⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ‚„UÿÊªË ŒflÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ fl „U◊Ê⁄UÊ º˝√ÿ fl ¬⁄UÊ∑˝§◊ ’…∏UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ∑§◊¸ Áfl‡ÊÊ‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§◊ÊZ ∑§ ¬Ê·∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ◊„UÊŸ˜ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU . fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. (39) ◊„UÊ° 2 ˘ ßãº˝Ê ÿ ˘ •Ê¡‚Ê ¬¡¸ãÿÊ flÎÁCÔU◊Ê¢ 2 ˘ ßfl. SÃÊ◊Òfl¸à‚Sÿ flÊflÎœ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ◊„Uãº˝Êÿ à√ÊÒ· à ÿÊÁŸ◊¸„Uãº˝Êÿ àflÊ.. (40) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ •ÊÒ⁄U ¡‹ fl·¸∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ¬⁄U •Ê¡ ’⁄U‚Êß∞. •Ê¬ ©U¬Ê‚∑§ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ◊„UÊŸ˜ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò . (40) ©UŒÈ àÿ¢ ¡ÊÃflŒ‚¢ Œfl¢ fl„UÁãà ∑§Ãfl—. ŒÎ‡Ê Áfl‡flÊÿ ‚Íÿ¸ ¦ SflÊ„UÊ.. (41) ‚Íÿ¸ ‚fl¸ôÊ •ÊÒ⁄U ÁŒ√ÿ Á∑§⁄UáÊ¥ fl„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥. fl •¬ŸË Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ë ¬ÃÊ∑§Ê »§„U⁄UÊà „Ò¥U. fl ¬˝ÊÁáÊ◊ÊòÊ ∑§Ê ŒÈÁŸÿÊ ÁŒπÊà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (41) ÁøòÊ¢ ŒflÊŸÊ◊ÈŒªÊŒŸË∑¢§ øˇÊÈÁ◊¸òÊSÿ flL§áÊSÿÊÇŸ—. •Ê¬˝Ê lÊflʬÎÁÕflË •ãÃÁ⁄UˇÊ ¦ ‚Íÿ¸ ˘ •Êà◊Ê ¡ªÃSÃSÕÈ·‡ø SflÊ„UÊ.. (42) Á◊òÊ Œfl flL§áÊ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ŒflÃÊ ∑§ ŸòÊ „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§, ¬ÎâflË‹Ê∑§ ÃÕÊ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ◊¥ ‚Íÿ¸ ¬˝∑§Ê‡Ê »Ò§‹Êà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ¡ªÃ˜ ∑§Ë •Êà◊Ê „Ò¥U . ߟ ‚’ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Íÿ¸ Á◊òÊ Œfl ∑§ ŸòÊ „Ò¥U. fl flL§áÊ Œfl ∑§ ŸòÊ „Ò¥U. fl •ÁÇŸ ∑§ ŸòÊ „Ò¥U. fl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŸòÊ „Ò¥U. fl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê •¬Ÿ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ¬ÍáʸÃÿÊ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê •¬Ÿ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ¬ÍáʸÃÿÊ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê •¬Ÿ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ¬ÍáʸÃÿÊ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ¡ªÃ˜ ∑§Ë •Êà◊Ê „Ò¥U. ©UŸ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (42) •ÇŸ Ÿÿ ‚ȬÕÊ ⁄UÊÿ ˘ •S◊ÊÁãfl‡flÊÁŸ Œfl flÿÈŸÊÁŸ ÁflmÊŸÔ˜. ÿÈÿÊäÿS◊îÊÈ„ÈU⁄UÊáÊ◊ŸÊ ÷ÍÁÿcΔUÊ¢ à Ÿ◊ ©UÁÄâ Áflœ◊ SflÊ„UÊ.. (43) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ •ë¿U ¬Õ ∑§Ë •Ê⁄U ‹ ¡Êß∞ •ÊÒ⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ •ë¿Ê ÁflmÊŸ˜ ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊ ‚ ’È⁄UÊßÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ „U◊¥ ‚È¬Õ ¬⁄ ‹ øÁ‹∞. •Ê¬ „U◊¥ œŸ ŒËÁ¡∞. (43) •ÿ¢ ŸÊ ˘ •ÁÇŸfl¸Á⁄UflS∑ΧáÊÊàflÿ¢ ◊Îœ— ¬È⁄U ˘ ∞ÃÈ ¬˝Á÷㌟Ԙ. •ÿ¢ flÊ¡ÊÜ¡ÿÃÈ flÊ¡‚ÊÃÊflÿ ¦ ‡ÊòÊÍÜ¡ÿÃÈ ¡N¸·ÊáÊ— SflÊ„UÊ.. (44) „U •ÁÇŸ! „U◊Ê⁄U ŒÈ‡◊ŸÊ¥ ∑§Ê ÷Œ ŒËÁ¡∞ fl ©UŸ ∑§Ê „U⁄UÊ ŒËÁ¡∞. „U◊Ê⁄U ŒÈ‡◊ŸÊ¥ ∑§ 92 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚ÊÃflÊ¢ •äÿÊÿ
Ÿª⁄U ÷Œ ŒËÁ¡∞. „U◊Ê⁄U ŒÈ‡◊ŸÊ¥ ∑§Ë ¡◊Ê ¬Í¢¡Ë „U◊¥ Œ ŒËÁ¡∞. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬⁄UÊÁ¡Ã ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (44) M§¬áÊ flÊ M§¬◊èÿʪʢ ÃÈÕÊ flÊ Áfl‡flflŒÊ Áfl÷¡ÃÈ. ´§ÃSÿ ¬ÕÊ ¬˝Ã øãº˝ŒÁˇÊáÊÊ Áfl Sfl— ¬‡ÿ √ÿãÃÁ⁄UˇÊ¢ ÿÃSfl ‚ŒSÿÒ—.. (45) „U◊ •¬Ÿ M§¬ ‚ •Ê¬ ∑§ M§¬ ∑§Ë •Ê⁄U ª◊Ÿ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ŒflªáÊ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. fl ŒflªáÊ ‚÷Ë ∑§ Á‹∞ ‚Èπ ’Ê¢≈UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚àÿ ∑§ ¬Õ ∑§ ¬ÁÕ∑§ ’Ÿ¥. ¡Ò‚ ø¢º˝ Œfl •¢ÃÁ⁄UˇÊ ‚ Œπà „Ò¥U, flÒ‚ „UË „U◊ ÷Ë ŒÍ⁄U ŒÎÁc≈UflÊŸ „UÊ¥. (45) ’˝ÊrÊÔáÊ◊l ÁflŒÿ¢ Á¬ÃÎ◊ãâ ¬ÒÃÎêÊàÿ◊ÎÁ·◊Ê·¸ÿ ¦ ‚ÈœÊÃÈŒÁˇÊáÊ◊ÔÔ˜. •S◊º˝ÊÃÊ ŒflòÊÊ ªë¿Uà ¬˝ŒÊÃÊ⁄U◊ÊÁfl‡ÊÃ.. (46) ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •Ê¡ ’˝ÊrÊáÊÊ,¥ Á¬ÃÊ, Á¬ÃÊ◊„U, ´§Á· fl •Ê·¸ªáÊ ‚ ÿÈÄà „UÊ.¥ •Ê¬ ŒÁˇÊáÊÊ •ë¿UË Ã⁄U„U œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U¥ . ŒflªáÊ „U◊Ê⁄U òÊÊÃÊ „ÒU¥ . üÊcΔUU ŒÊŸŒÊÃÊ ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§Ê üÊcΔU »§‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (46) •ÇŸÿ àflÊ ◊s¢ flL§áÊÊ ŒŒÊÃÈ ‚Ê◊ÎÃûfl◊‡ÊËÿÊÿȌʸòÊ ˘ ∞Áœ ◊ÿÊ ◊s¢ ¬˝Áê˝„UËòÊ L§º˝Êÿ àflÊ ◊s¢ flL§áÊÊ ŒŒÊÃÈ ‚Ê◊ÎÃûfl◊‡ÊËÿ ¬˝ÊáÊÊ ŒÊòÊ ˘ ∞Áœ flÿÊ ◊s¢ ¬˝Áê˝„UËòÊ ’΄US¬Ãÿ àflÊ ◊s¢ flL§áÊÊ ŒŒÊÃÈ ‚Ê◊ÎÃûfl◊‡ÊËÿ àflÇŒÊòÊ ˘ ∞Áœ ◊ÿÊ ◊s¢ ¬˝Áê˝„UËòÊ ÿ◊Êÿ àflÊ ◊s¢ flL§áÊÊ ŒŒÊÃÈ ‚Ê◊ÎÃûfl◊‡ÊËÿ „UÿÊ ŒÊòÊ ˘ ∞Áœ flÿÊ ◊s¢ ¬˝Áê˝„UËòÊ.. (47) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ flL§áÊ Œfl ∑§Ê ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •◊Îà ¬ÊŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ •ÊÿÈŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ŒËÉÊʸÿÈ ¬Ê∞¢. •Ê¬ „U◊¥ L§º˝ Œfl ∑§Ê ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ’΄US¬Áà Œfl ∑§Ê ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ÿ◊ Œfl ∑§Ê ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (47) ∑§ÊŒÊà∑§S◊Ê ˘ •ŒÊà∑§Ê◊ÊŒÊà∑§Ê◊ÊÿÊŒÊÃÔ˜. ∑§Ê◊Ê ŒÊÃÊ ∑§Ê◊— ¬˝Áê˝„UËÃÊ ∑§Ê◊ÒÃûÊ.. (48) ∑§ÊÒŸ ŒÃÊ „ÒU? Á∑§‚ ∑§Ê ŒÃÊ „ÒU? ∑§Ê◊ŸÊ ‚ „UË ∑§Ê߸ Á∑§‚Ë ∑§Ê ŒÃÊ „ÒU . ∑§Ê◊ŸÊ ‚ „UË ŒÊŸ ÁŒÿÊ •ÊÒ⁄U Á‹ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (‚¢‚Ê⁄U ◊¥) ∑§Ê◊ŸÊ∞¢ „UË ‚’ ∑ȧ¿U „Ò¥U. (48)
ÿ¡Èfl¸Œ - 93
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÊÁŒàÿèÿSàflÊ. ÁflcáÊ ˘ ©UL§ªÊÿÒ· à ‚Ê◊Sà ¦ ⁄UˇÊSfl ◊Ê àflÊ Œ÷ŸÔ˜.. (1) „U ‚Ê◊ Œfl! •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ÁflcáÊÈ! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SÃÊòÊ ªÊà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. ∑§Ê߸ ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê Œ◊Ÿ Ÿ ∑§⁄U ‚∑§. (1) ∑§ŒÊ øŸ SÃ⁄UË⁄UÁ‚ Ÿãº˝ ‚‡øÁ‚ ŒÊ‡ÊÈ·. ©U¬Ê¬ãŸÈ ◊ÉÊflŸÔ˜ ÷Íÿ ˘ ßãŸÈ à ŒÊŸãŒflSÿ ¬Îëÿà ˘ •ÊÁŒàÿèÿSàflÊ.. (2) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ •Á„¢U‚∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ œŸflÊŸ „Ò¥. •Ê¬ •¬Ÿ ŒÊŸ ‚ „U◊¥ ÷Ë œŸflÊŸ ’ŸÊß∞. „U◊ •ÊÁŒUàÿÊ¥ ¡Ò‚Ê SŸ„U ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (2) ∑§ŒÊ øŸ ¬˝ ÿÈë¿USÿÈ÷ ÁŸ ¬ÊÁ‚ ¡ã◊ŸË. ÃÈ⁄UËÿÊÁŒàÿ ‚flŸ¢ à ˘ ßÁãº˝ÿ◊ÊÃSÕÊfl◊ÎÃÁãŒ√ÿÊÁŒàÿèÿSàflÊ.. (3) „U ¬ÊòÊ! „U◊ •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •ÊÁŒàÿ Œfl ‡ÊÊ¢ÃÁøûÊ, •ÊŸ¢ŒŒÊÃÊ ÃÕÊ ŒflÊ¥ •ÊÒ⁄U ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . (3) ÿôÊÊ ŒflÊŸÊ¢ ¬˝àÿÁà ‚ÈêãÊ◊ÊÁŒàÿÊ‚Ê ÷flÃÊ ◊ΫUÿã×. •Ê flÊflʸøË ‚È◊ÁÃfl¸flÎàÿÊŒ ¦ „UÊÁ‡ølÊ flÁ⁄UflÊÁflûÊ⁄UÊ‚ŒÊÁŒàÿèÿSàflÊ.. (4) ÿôÊ ŒflÊ¥ ∑§ ¬˝Áà (Á‹∞) „Ò¥U. „U •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ •ÊÁŒàÿªáÊ! •Ê¬ „U◊ ‚’ ∑§ Á‹∞ ‚Èπ∑§Ê⁄UË „UÊ¥. •Ê¬ ∑§Ë ¬˝ÊøËŸ •ÊÒ⁄U üÊcΔU ◊Áà „U◊¥ ¬˝Êåà „UÊ. ß‚ ‚ Áfl¬⁄UËà ’ÈÁh flÊ‹ ÷Ë ÿôÊ ÷Êfl ◊¥ L§Áø ‹¥. •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (4) ÁflflSflãŸÊÁŒàÿÒ· à ‚Ê◊¬ËÕSÃÁS◊ŸÔ˜ ◊àSfl. üÊŒS◊Ò Ÿ⁄UÊ flø‚ ŒœÊß ÿŒÊ‡Êˌʸ Œê¬ÃË flÊ◊◊‡ŸÈ×. ¬È◊ÊŸÔ˜ ¬ÈòÊÊ ¡Êÿà ÁflãŒÃ flSflœÊ Áfl‡flÊ„UÊ⁄U¬ ˘ ∞œÃ ªÎ„U.. (5) „U •ÊÁŒàÿ! •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ¬Ë ∑§⁄U ¬˝‚ããÊ „UÊß∞. ¡Ê ÿ¡◊ÊŸ Œ¢¬ÃË üÊcΔU fløŸÊ¥ 94 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ ߟ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, üÊhÊ ⁄Uπà „Ò¥ ©UŸ ∑§ ¬ÈL§·ÊÕ˸ ¬ÈòÊ ¬ÒŒÊ „UÊà „Ò¥U. œŸœÊãÿ èÊ⁄U¬Í⁄U ⁄U„Uà „Ò¥U. ÉÊ⁄U ◊¥ ‚Èπ‡ÊÊ¢Áà ⁄U„UÃË „Ò. (5) flÊ◊◊l ‚ÁflÃflʸ◊◊È ‡flÊ ÁŒfl ÁŒfl flÊ◊◊S◊èÿ ¦ ‚ÊflË—. flÊ◊Sÿ Á„U ˇÊÿSÿ Œfl ÷Í⁄U⁄UÿÊ ÁœÿÊ flÊ◊÷Ê¡— SÿÊ◊.. (6) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! „U◊Ê⁄UÊ •Ê¡ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ. „U◊Ê⁄UÊ ∑§‹ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ. „U◊Ê⁄UÊ ¬˝ÁÃÁŒŸ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ. „U◊ ‚ÈπŒÊÿË ÉÊ⁄U ◊¥ ⁄U„¥U. „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ‚ÈπŒÊÿË „UÊ. „U◊ ‚ŒÊ ‚Èπ ÷ʪŸ ÿÊÇÿ ⁄U„¥. (6) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‚ÊÁflòÊÊÁ‚ øŸÊœÊ‡øŸÊœÊ ˘ •Á‚ øŸÊ ◊Áÿ œÁ„U. Á¡ãfl ÿôÊ¢ Á¡ãfl ÿôʬÁâ ÷ªÊÿ ŒflÊÿ àflÊ ‚ÁflòÊ.. (7) „U◊ Ÿ ∑§‹‡Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄U Á‹ÿÊ „ÒU. ‚ÁflÃÊ Œfl •ãŸŒÊÃÊ „Ò¥U. fl„U „U◊¥ •ããÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ •ããÊ œÊÁ⁄U∞ fl ÿôʬÁà ∑§Ê ÿôÊ ¬Í⁄UÊ ∑§⁄UÊß∞. „U◊ •¬Ÿ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ∑§ Á‹∞ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (7) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‚ȇÊ◊ʸÁ‚ ‚Ȭ˝ÁÃcΔUÊŸÊ ’΄UŒÈˇÊÊÿ Ÿ◊—. Áfl‡flèÿSàflÊ Œflèÿ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁfl¸‡flèÿSàflÊ Œflèÿ—.. (8) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄U Á‹ÿÊ „ÒU . •Ê¬ ‚ÈπŒÊÃÊ, ‚Ȭ˝ÁÃÁcΔUÃ, Áfl‡ÊÊ‹ fl ∑§Ã¸√ÿ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë ¡ÊÃË „Ò. •Ê¬ ŒflÊ¥ ∑§ ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò¥U. (8) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ’΄US¬ÁÂÈÃSÿ Œfl ‚Ê◊ à ˘ ßãŒÊÁ⁄UÁãº˝ÿÊfl× ¬àŸËflÃÊ ª˝„UÊ° 2 ´§äÿÊ‚◊Ô˜. •„¢ ¬⁄USÃÊŒ„U◊flSÃÊlŒãÃÁ⁄UˇÊ¢ ÃŒÈ ◊ Á¬ÃÊ÷ÍÃÔ˜. •„U ¦ ‚Íÿ¸◊È÷ÿÃÊ ŒŒ‡Êʸ„¢U ŒflÊŸÊ¢ ¬⁄U◊Ô¢ ªÈ„UÊ ÿÃÔ˜.. (9) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ’΄US¬Áà ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥. „U◊ Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄U Á‹ÿÊ „Ò. „U◊ ‚Ê◊ ∑§Ê ¬àŸË ∑§ ‚ÊÕ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ’…∏ÊUÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •¢ÃÁ⁄UˇÊ Á¬ÃÊ ÃÈÀÿ „Ò¥U. „U◊ ‚’ •Ê⁄U ‚ ©UŸ ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬Ê∞ „ÈU∞ „Ò¥U. „U◊ ŒÊŸÊ¥ •Ê⁄U ‚ ‚Íÿ¸ ∑§ Œ‡Ê¸Ÿ ∑§⁄¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ¬⁄U◊ ªÈ„UÊ ∑§ Œ‡Ê¸Ÿ ∑§⁄¥U. (9) •ÇŸÊ 3 ß ¬àŸËflãà‚¡ÍŒ¸flŸ àflc≈˛UÊ ‚Ê◊¢ Á¬’ SflÊ„UÊ. ¬˝¡Ê¬ÁÃfl¸Î·ÊÁ‚ ⁄UÃÊœÊ ⁄UÃÊ ◊Áÿ œÁ„U ¬˝¡Ê¬ÃSà flÎcáÊÊ ⁄ÃÊœ‚Ê ⁄UÃÊœÊ◊‡ÊËÿ.. (10) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬àŸË ‚Á„Uà àflc≈UÊ Œfl ∑§Ë ÷Ê¢Áà ‚Ê◊¬ÊŸ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! •Ê¬ flËÿ¸ œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ flËÿ¸flÊŸ ’ŸÊß∞. •Ê¬ ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬⁄UÊ∑˝§◊ œÊÁ⁄U∞. „U◊ flËÿ¸flÊŸ fl ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë „UÊ¥. (10) ÿ¡Èfl¸Œ - 95
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ „UÁ⁄U⁄UÁ‚ „UÊÁ⁄UÿÊ¡ŸÊ „UÁ⁄UèÿÊ¢ àflÊ. „UÿʸœÊ¸ŸÊ SÕ ‚„U‚Ê◊Ê ˘ ßãº˝Êÿ.. (11) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ „U⁄U ⁄¢Uª ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ‚ •¬Ÿ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ë ‚„UÊÿÃÊ ‚ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ ‚ÊÕ „U⁄U ⁄¢Uª ∑§ ÉÊÊ«∏UÊ¥ flÊ‹ ⁄UÕ ¬⁄U ¬œÊÁ⁄U∞. (11) ÿSà •‡fl‚ÁŸ÷¸ˇÊÊ ÿÊ ªÊ‚ÁŸSÃSÿ à ˘ ßc≈UÔUÿ¡È· SÃÈÃSÃÊ◊Sÿ ‡ÊSÃÊÄÕSÿʬ„ÍUÃSÿʬ„ÍUÃÊ ÷ˇÊÿÊÁ◊.. (12) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ©U¬Ê‚ŸÊ ÿÊÇÿ „Ò¥U. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UÄà ◊¢òÊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÉÊUÊ«U∏Ê¥ fl ªÊÿÊ¥ ∑§ ¬˝⁄U∑§ „Ò¥U. „U◊ ÿ¡Èfl¸Œ ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬Ÿ •÷Ëc≈U ∑§Ë ¬ÍÁø øÊ„Uà „Ò¥U. (12) Œfl∑ΧÃSÿÒŸ‚Êflÿ¡Ÿ◊Á‚ ◊ŸÈcÿ∑ΧÃSÿÒŸ‚Êflÿ¡Ÿ◊Á‚ Á¬ÃÎ∑ΧÃSÿÒŸ‚Êflÿ¡Ÿ◊SÿÊà◊∑ΧÃSÿÒŸ‚Êflÿ¡Ÿ◊SÿŸ‚ ˘ ∞Ÿ‚Êflÿ¡Ÿ◊Á‚. ÿìÊÊ„U◊ŸÊ ÁflmÊ°‡ø∑§Ê⁄U ÿìÊÊÁflmÊ°SÃSÿ ‚fl¸SÿÒŸ‚Êflÿ¡Ÿ◊Á‚.. (13) •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬˝Áà ÿôÊ •ÊÁŒ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ •ÊÁŒ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ◊ŸÈcÿ ∑§ ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ¬˝Áà Á∑§∞ ª∞ ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ•Ê¬ ∑§ ¬˝Áà Á∑§∞ ª∞ ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¡ÊŸ•Ÿ¡ÊŸ ◊¥ Á∑§∞ ª∞ ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚÷Ë ¬Ê¬Ê¥ ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (13) ‚¢ flø¸‚Ê ¬ÿ‚Ê ‚¢ ßÍÁ÷⁄Uªã◊Á„U ◊Ÿ‚Ê ‚ ¦ Á‡ÊflŸ. àflc≈UÔUÊ ‚ÈŒòÊÊ ÁflŒœÊÃÈ ⁄UÊÿÊŸÈ◊Êc≈ȸU ÃãflÊ ÿÁmÁ‹CÔU◊Ô˜.. (14) „U◊ flø¸SflË, ŒÍœ¬Íáʸ, üÊcΔU ‡Ê⁄UË⁄U flÊ‹ •ÊÒ⁄U ◊Ÿ ‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ⁄U„¥U. àflc≈UÊ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊¥ œŸ ŒŸ fl ∑§c≈U Áfl„UËŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (14) ‚Á◊ãº˝ áÊÊ ◊Ÿ‚Ê ŸÁ· ªÊÁ÷— ‚ ¦ ‚ÍÁ⁄UÁ÷◊¸ÉÊflãà‚ ¦ SflSàÿÊ. ‚¢ ’˝rÊáÊÊ Œfl∑Χâ ÿŒÁSà ‚¢ ŒflÊŸÊ ¦ ‚È◊ÃÊÒ ÿÁôÊÿÊŸÊ ¦ SflÊ„UÊ.. (15) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ „U◊¥ •ë¿UÊ ◊Ÿ, ßc≈U ªÊ∞¢ fl flË⁄UÃÊ flÊ‹Ë ÷ÊflŸÊ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÷ÊflŸÊ•Ê¥ ‚ ÷Á⁄U∞. •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ mÊ⁄UÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Á∑§∞ ª∞ ∑§ÊÿÊZ ∑§ ¬˝Áà üÊcΔU ’ÈÁh ‚ ¡ÊÁ«U∏∞. ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë •Ê⁄U ‚ ÷¥≈U ∑§Ë ªß¸ •Ê„ÈUÁà SflË∑§Ê⁄U ∑§ËÁ¡∞. (15) ‚¢ flø¸‚Ê ¬ÿ‚Ê ‚¢ ßÍÁ÷⁄Uªã◊Á„U ◊Ÿ‚Ê ‚ ¦ Á‡ÊflŸ. àflCÔUÊ ‚ÈŒòÊÊ ÁflŒœÊÃÈ ⁄UÊÿÊŸÈ◊Êc≈ȸU ÃãflÊ ÿÁmÁ‹c≈UU◊Ô˜.. (16) 96 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@6
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ flø¸SflË, ŒÍœ¬Íáʸ, üÊcΔU ‡Ê⁄UË⁄U flÊ‹ ◊Ÿ ‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ⁄U„¥U. àflc≈UÊ Œfl! „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊¥ œŸ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ∑§c≈U Áfl„UËŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (16) œÊÃÊ ⁄UÊÁ× ‚ÁflÃŒ¢ ¡È·ãÃÊ¢ ¬˝¡Ê¬ÁÃÁŸ¸Áœ¬Ê ŒflÊ •ÁÇŸ—. àflCÔUÊ ÁflcáÊÈ— ¬˝¡ÿÊ ‚ ¦ ⁄U⁄UÊáÊÊ ÿ¡◊ÊŸÊÿ º˝ÁfláÊ¢ ŒœÊà SflÊ„UÊ.. (17) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ œŸ œÊ⁄UáÊ∑§Ãʸ „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ¬˝¡Ê¬Áà ÁŸÁœflÊŸ fl ¬Ê‹∑§ „ÒU¥ . •ÁÇŸ, àflc≈UÊ Œfl ÁflcáÊÈ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ üÊcΔU ‚¢ÃÊŸ fl œŸ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U◊ ߟ ‚’ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ÷≈¥ U ∑§⁄Uà „ÒU¥ . (17) ‚ÈªÊ flÊ ŒflÊ— ‚ŒŸÊ ˘ •∑§◊¸ ÿ ˘ •Ê¡Ç◊Œ ¦ ‚flŸ¢ ¡È·ÊáÊÊ—. ÷⁄U◊ÊáÊÊ fl„U◊ÊŸÊ „UflË ¦ cÿS◊ œûÊ fl‚flÊ fl‚ÍÁŸ SflÊ„UÊ.. (18) „U ŒflÊ! ÿôÊ ‚ŒŸ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚Ȫ◊ ’ŸÊ ÁŒ∞ „Ò¥U. •Ê¬ •Ê‚ÊŸË ‚ ÿôÊ‚flŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ê ∑§Ê◊ ∑§⁄U ‚∑§Ã „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ¬ÊòÊ „UÁfl ‚ ÷⁄U „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞. ÿ ‚÷Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ œŸ ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã „Ò¥U. (18) ÿÊ° 2 •Êfl„U ˘ ©U‡ÊÃÊ Œfl ŒflÊ°SÃÊŸ˜Ô ¬˝⁄Uÿ Sfl •ÇŸ ‚œSÕ. ¡ÁˇÊflÊ ¦ ‚— ¬Á¬flÊ ¦ ‚‡ø Áfl‡fl‚È¢ ÉÊ◊¸ ¦ Sfl⁄UÊÁÃcΔUÃUÊŸÈ SflÊ„UÊ.. (19) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Ÿ Á¡Ÿ ∑§Ê •ÊuÊŸ Á∑§ÿÊ „ÒU, ©UŸ ŒflÊ¥ ∑§Ê •¬Ÿ•¬Ÿ SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ŒË ªß¸ „UÁfl ‚Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ë •Ê„UÈÁÃÿÊ¢ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (19) flÿ ¦ Á„U àflÊ ¬˝ÿÁà ÿôÊ •ÁS◊ãŸÇŸ „UÊÃÊ⁄U◊flÎáÊË◊„UË„U. ´§œªÿÊ ˘ ´§œªÈÃʇÊÁ◊cΔUÊ— ¬˝¡ÊŸŸ˜ ÿôÊ◊ȬÿÊÁ„U ÁflmÊãàSflÊ„UÊ.. (20) „U •ÁÇŸ! Á¡‚ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ •Ê◊¢ÁòÊà Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU, ©U‚ •Ê¬ Ÿ •ë¿UË Ã⁄U„U ¬Í⁄UÊ Á∑§ÿÊ. ß‚Á‹∞ •’ ôÊÊŸ ‚¢¬ãŸ •Ê¬ •¬Ÿ SÕÊŸ ∑§Ë •Ê⁄U ¬˝SÕÊŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄¥U. (20) ŒflÊ ªÊÃÈÁflŒÊ ªÊÃÈ¢ ÁflûflÊ ªÊÃÈÁ◊Ã. ◊Ÿ‚S¬Ã ˘ ß◊¢ Œfl ÿôÊ ¦ SflÊ„UÊ flÊà œÊ—.. (21) „U ŒflÃʪáÊ! •Ê¬ ÿôÊ ∑§ ôÊÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ôÊÊà SÕÊŸ ∑§Ë •Ê⁄U ª◊Ÿ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ◊Ÿ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. ß‚ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÈh flÊÿÈ œÊÁ⁄U∞. (21) ÿôÊ ÿôÊ¢ ªë¿U ÿôʬÁâ ªë¿U SflÊ¢ ÿÊÁŸ¢ ªë¿U SflÊ„UÊ. ∞· à ÿôÊÊ ÿôʬà ‚„U‚ÍÄÃflÊ∑§— ‚fl¸flË⁄USâ ¡È·Sfl SflÊ„UÊ.. (22) ÿ¡Èfl¸Œ - 97
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
„U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ë •Ê⁄U ¡Êß∞. •Ê¬ ÿôʬÁà ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊß∞. •Ê¬ •¬Ÿ ◊Í‹ SÕÊŸ ∑§Ê ¡Êß∞. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ÿôÊ „Ò. •Ê¬ ÿôʬÁà ∑§ ¬Ê‚ ¡Êß∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ „U¡Ê⁄UÊ¥ flÊÁáÊÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚flʸÁœ∑§ flË⁄U „Ò¥U. „U◊ ß‚ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄à „Ò¥U. (22) ◊ÊÁ„U÷͸◊ʸ ¬ÎŒÊ∑ȧ—. ©UL§ ¦ Á„U ⁄UÊ¡Ê flL§áʇø∑§Ê⁄U ‚Íÿʸÿ ¬ãÕÊ◊ãflÃflÊ ©U. •¬Œ ¬ÊŒÊ ¬˝ÁÃœÊÃfl∑§L§ÃʬflÄÃÊ NUŒÿÊÁflœÁ‡øØ. Ÿ◊Ê flL§áÊÊÿÊÁœÁcΔUÃÊ flL§áÊSÿ ¬Ê‡Ê—.. (23) •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U •¡ª⁄U ∑§ ‚◊ÊŸ πÃ⁄UŸÊ∑§ ◊à ’ÁŸ∞. ‚Íÿ¸ ∑§ ¬˝SÕÊŸ ∑§ Á‹∞ flL§áÊ Œfl ◊ʪ¸ ∑§Ê ‚Ȫ◊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flL§áÊ Œfl ¡„UÊ¢ ¬Ò⁄U Ÿ ⁄Uπ ¡Ê ‚∑§Ã „Ò¥, fl„UÊ¢ ÷Ë ◊ʪ¸ ’ŸÊ ŒÃ „Ò¥U, ¬˝ÁÃÉÊÊà ∑§⁄U ŒÃ „Ò¥U. NUŒÿ ∑§ ∑§c≈U ŒÍ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ ¬Ê‡Ê ŒÈc≈UŸÊ‡ÊË „Ò¥U. fl ¬˝ÁÃÁcΔUà Œfl „Ò¥U. „U◊Ê⁄UÊ ©Uã„¥U Ÿ◊Ÿ. (23) •ÇŸ⁄UŸË∑§◊¬ ˘ •Ê Áflfl‡Êʬʢ Ÿ¬ÊØ ¬˝ÁÃ⁄UˇÊ㟂Èÿ¸◊˜. Œ◊Œ◊ ‚Á◊œ¢ ÿˇÿÇŸ ¬˝Áà à Á¡uÔUÊ ÉÊÎÃ◊Èëø⁄UáÿØ SflÊ„UÊ.. (24) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¡‹ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§ËÁ¡∞. ÃÊÁ∑§ ¡‹œÊ⁄U ŸËø Ÿ Áª⁄U ¬Ê∞. •Ê¬ •‚È⁄UÊ¥ ‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚Á◊œÊ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë Á¡uÔUÊ ÿôÊ ∑§Ê ÉÊË œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà „UÊ. „U◊ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄à „Ò¥. (24) ‚◊Ⱥ˝ à NUŒÿ◊åSflã× ‚¢ àflÊ Áfl‡ÊãàflÊ·œËL§Ãʬ—. ÿôÊSÿ àflÊ ÿôʬà ‚ÍÄÃÊÄÃÊÒ Ÿ◊ÊflÊ∑§ Áflœ◊ ÿØ SflÊ„UÊ.. (25) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê NUŒÿ ‚◊Ⱥ˝ fl ¡‹◊ÿ „Ò ¥U. •Ê¬ ∑§Ê „U◊ fl„UÊ¢ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë •ÊcÊÁœÿÊ¢ •ÊÒ⁄U ¡‹ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬˝flÊÁ„à „UÊà ⁄U„¥U. „U ÿôʬÁÃ! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚ÍÄà ©UøÊ⁄Uà „Ò¥U. ÁflÁœÁflœÊŸ¬Ífl¸∑§ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (25) ŒflË⁄Uʬ ˘ ∞· flÊ ª÷¸Sà ¦ ‚Ȭ˝Ëà ¦ ‚È÷Îâ Á’÷ÎÃ. Œfl ‚Ê◊Ò· à ‹Ê∑§SÃÁS◊Ü¿¢U ø flˇfl ¬Á⁄U ø flˇfl.. (26) „U ÁŒ√ÿ ¡‹! ÿ„U ‚Ê◊¬ÊòÊ •Ê¬ ∑§Ê ª÷¸ „ÒU . •Ê¬ ¬˝◊ ‚ fl ß‚ ∑§Ê ¬Ê·áÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ª˝„UáÊ ∑§⁄¥U. „U ‚Ê◊! ¡‹ •Ê¬ ∑§Ê ‹Ê∑§ „ÒU. •Ê¬ ©U‚ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§Á⁄U∞. •Ê¬ ÷Ë ‚ÈπË ⁄UÁ„U∞. „U◊¥ ÷Ë ‚ÈπË ⁄UÁπ∞. ‚¢⁄UˇÊáÊ ŒËÁ¡∞. (26) •fl÷ÎÕ ÁŸøÈê¬ÈáÊ ÁŸøL§⁄UÁ‚ ÁŸøÈê¬ÈáÊ—. •fl ŒflÒŒ¸fl∑ΧÃ◊ŸÊÿÊÁ‚·◊fl ◊àÿÒ¸◊¸àÿ¸∑Χâ ¬ÈL§⁄UÊ√áÊÊ Œfl Á⁄U·S¬ÊÁ„U. ŒflÊŸÊ ¦ ‚Á◊ŒÁ‚.. (27) 98 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •fl÷ÎâÊ (SŸÊŸ ÿôÊ)! •Ê¬ ÁŸøÈ«∏UŸ fl ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ’„UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ŒÒfl∑Χ¬Ê ‚ ŒflÊ¥ ∑§ ¬˝Áà „U◊Ê⁄U ¬Ê¬ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ¬˝Áà Á∑§∞ ª∞ „U◊Ê⁄U ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬⁄U‡ÊÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ŒUflàfl ’…∏UÃÊ „ÒU. (27) ∞¡ÃÈ Œ‡Ê◊ÊSÿÊ ª÷ʸ ¡⁄UÊÿÈáÊÊ ‚„U. ÿÕÊÿ¢ flÊÿÈ⁄U¡Áà ÿÕÊ ‚◊Ⱥ˝ ˘ ∞¡ÁÃ. ∞flÊÿ¢ Œ‡Ê◊ÊSÿÊ •dÖ¡⁄UÊÿÈáÊÊ ‚„U.. (28) Œ‚ ◊Ê„U ∑§ ª÷¸ ∑§ ¡⁄UÊÿÈ ∑§ ‚ÊÕ ¡Êß∞. ¡Ò‚ ÿ„U flÊÿÈ ¡ÊÃË „ÒU, ¡Ò‚ ÿ„U ‚◊Ⱥ˝ ¡ÊÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË •Ê¬ Œ‚ ◊Ê‚ ∑§ ¡⁄UÊÿÈ ∑§ ‚ÊÕ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. (28) ÿSÿÒ Ã ÿÁôÊÿÊ ª÷ʸ ÿSÿÒ ÿÊÁŸÌ„U⁄UáÿÿË. •XÊãÿOÔ‰UÃÊ ÿSÿ â ◊ÊòÊÊ ‚◊¡Ëª◊ ¦ SflÊ„UÊ.. (29) „U ŒflË! ß‚Ë ‚ •Ê¬ ∑§Ê ª÷¸ ÿôÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ÷ÊflŸÊ∞¢ ⁄UπŸ flÊ‹Ê „Ò. •Ê¬ ∑§Ë ÿÊÁŸ ß‚Ë ‚ Sflª¸◊ÿË „ÒU. •¢ª •ÁÇŸ ∑§Ë Ã⁄U„U ¬ÁflòÊ „Ò¥U. ◊¢òÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ‚◊ʪ◊ „UÊÃÊ „Ò. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (29) ¬ÈL§ŒS◊Ê Áfl·ÈM§¬ ˘ ßÃŒÈ⁄UãÃ◊¸Á„U◊ÊŸ◊ÊŸT œË⁄U—. ∞∑§¬ŒË¥ Ám¬ŒË¥ ÁòʬŒË¥ øÃÈc¬ŒË◊c≈UʬŒË¥ ÷ÈflŸÊŸÈ ¬˝ÕãÃÊ ¦ SflÊ„UÊ.. (30) ª÷¸ ŒÊŸË M§¬flÊŸ, ’ÈÁh◊ÊŸ, ◊Á„U◊ÊflÊŸ •ÊÒ⁄U œË⁄U „ÒU. ∞∑§ ¬Œ flÊ‹Ë, ŒÊ ¬Œ flÊ‹Ë, ÃËŸ ¬Œ flÊ‹Ë, øÊ⁄U ¬Œ flÊ‹Ë, •ÊΔU ¬Œ flÊ‹Ë, ¬˝ÊÕ¸ŸÊ∞¢ ÷ÈflŸÊ¥ ◊¥ ¬˝‚ÊÁ⁄Uà „UÊ¥. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (30) ◊L§ÃÊ ÿSÿ Á„U ˇÊÿ ¬ÊÕÊ ÁŒflÊ Áfl◊„U‚—. ‚ ‚ȪʬÊÃ◊Ê ¡Ÿ—.. (31) „U ◊L§Œ˜ªáÊ! •Ê¬ ÁŒ√ÿ fl ÁflÁ‡Êc≈U „Ò¥U. •Ê¬ ‹ÊªÊ¥ ∑§ ∑§c≈U ŒÍ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ë ªÊÿÊ¥ ∑§ •ë¿U ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. (31) ◊„UË lÊÒ— ¬ÎÁÕflË ø Ÿ ˘ ß◊¢ ÿôÊ¢ Á◊Á◊ˇÊÃÊ◊˜. Á¬¬ÎÃÊ¢ ŸÊ ÷⁄UË◊Á÷—.. (32) ◊„UÊŸ˜ ¬ÎâflË, Sflª¸‹Ê∑§ ß‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. œŸ Á¬¬Ê‚È•Ê¥ (åÿÊ‚Ê¥) ∑§Ê ÷⁄U¬Í⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (32) •Ê ÁÃcΔU flÎòÊ„UŸ˝Õ¢ ÿÈÄÃÊ Ã ’˝rÊÔáÊÊ „U⁄UË. •flʸøËŸ ¦ ‚È Ã ◊ŸÊ ª˝ÊflÊ ∑ΧáÊÊÃÈ flÇŸÈŸÊ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ·Ê«UÁ‡ÊŸ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ·Ê«UÁ‡ÊŸ.. (33) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ flÎòʟʇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ÉÊÊ«∏U ‚¢∑§Ã ◊ÊòÊ ‚ ø‹Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ’˝rÊôÊÊŸË ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡ÊÁÃ∞. ¬˝ÊøËŸ ‚Ê◊ ∑§Ê ¬àÕ⁄U ‚ ∑ͧ≈UŸ ¬⁄U ÿ¡Èfl¸Œ - 99
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊŸ flÊ‹Ë äflÁŸÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ◊Ÿ ÿôÊ ∑§Ë •Ê⁄U •Ê∑§Á·¸Ã „UÊ. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU . •Ê¬ ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ß‚ ¬ÊòÊ ◊¥ Á‹ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ß‚ ¬ÊòÊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (33) ÿÈˇflÊ Á„U ∑§Á‡ÊŸÊ „U⁄UË flηáÊÊ ∑§ˇÿ¬˝Ê. •ÕÊ Ÿ ˘ ßãº˝ ‚Ê◊¬Ê Áª⁄UÊ◊ȬüÊȮà ø⁄U. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ·Ê«UÁ‡ÊŸ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ·Ê«UÁ‡ÊŸ.. (34) „U ߢº˝! •Ê¬ „UÁ⁄U ŸÊ◊∑§ ÉÊÊ«∏U „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. á ªÁà flÊ‹ ÉÊÊ«∏U •Ê¬ ∑§Ê ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ÿôÊ ◊¥ ‹Ÿ •Êà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ´§Á·ÿÊ¥ ∑§Ë üÊcΔU ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ„U ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. fl ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ ߢº˝ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¢. (34) ßãº˝Á◊h⁄UË fl„UÃʬ˝ÁÃœÎCÔU‡Êfl‚◊˜. ´§·ËáÊÊ¢ ø SÃÈÃËL§¬ ÿôÊ¢ ø ◊ÊŸÈ·ÊáÊÊ◊˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ·Ê«UÁ‡ÊŸ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ·Ê«UÁ‡ÊŸ.. (35) „U ߢº˝! •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ¬ËŸ flÊ‹ „Ò¥U. á ªÁà flÊ‹ ŒÊ ÉÊÊ«∏U •Ê¬ ∑§Ê ÿôÊ SÕ‹ Ã∑§ ‹ ¡Êà „Ò¥U. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê •ÊüÊÿ SÕ‹ „ÒU. ß‚Á‹∞ „U◊ ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ ߢº˝ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (35) ÿS◊Ê㟠¡Ê× ¬⁄UÊ •ãÿÊ •ÁSà ÿ ˘ •ÊÁflfl‡Ê ÷ÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ. ¬˝¡Ê¬Á× ¬˝¡ÿÊ ‚ ¦ ⁄U⁄UÊáÊdËÁáÊ ÖÿÊÁà ¦ Á· ‚øà ‚ ·Ê«U‡ÊË.. (36) ߢº˝ Œfl ‚ ¬⁄U◊ üÊcΔU •ÊÒ⁄U ∑§Ê߸ Œfl Ÿ„UË¥ „ÒU . fl ‚÷Ë ‹Ê∑§Ê¥ ◊¥ √ÿʬ∑§ „Ò¥U. ¬˝¡Ê¬Áà ¬˝¡Ê ∑§ ‚ÊÕ ⁄U◊áÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. ÃËŸÊ¥ ÖÿÊÁÃÿÊ¥ ∑§Ê •¬Ÿ ◊¥ äÊÊ⁄U „ÈU∞ „Ò¥U. (36) ßãº˝‡ø ‚◊˝Ê«U˜ flL§áʇø ⁄UÊ¡Ê ÃÊÒ Ã ÷ˇÊ¢ ø∑˝§ÃÈ⁄Uª˝ ˘ ∞Ã◊˜. ÃÿÊ⁄U„U◊ŸÈ ÷ˇÊ¢ ÷ˇÊÿÊÁ◊ flÊÇŒflË ¡È·ÊáÊÊ ‚Ê◊Sÿ ÃÎåÿÃÈ ‚„U ¬˝ÊáÊŸ SflÊ„UÊ.. (37) ߢº˝ ‚◊˝Ê≈U˜ „Ò¥U. flL§áÊ Œfl ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. fl ŒÊŸÊ¥ Œfl ¬„U‹ ÷ʪ ‹ªÊà „Ò¥U. ©U‚ ∑§ ’ÊŒ „U◊ ©U‚ ‚Ê◊ª˝Ë ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÊÇʘ ŒflË ¬˝ÊáÊ ∑§ ‚ÊÕ ¡È«U∏ ∑§⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ÃÎÁåàÊ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄à „Ò¥U. (37) •ÇŸ ¬flSfl Sfl¬Ê ˘ •S◊ flø¸— ‚ÈflËÿ¸◊˜. Œœº˝®ÿ ◊Áÿ ¬Ê·◊˜. 100 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÇŸÿ àflÊ flø¸‚ ˘ ∞· à ÿÊÁŸ⁄UÇŸÿ àflÊ flø¸‚. •ÇŸ flø¸ÁSflãflø¸SflÊ°Sàfl¢ ŒflcflÁ‚ flø¸SflÊŸ„¢U ◊ŸÈcÿ·È ÷ÍÿÊ‚◊˜.. (38) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •¬ŸÊ ∑§Ê◊ ∑§⁄UŸ ◊¥ ∑ȧ‡Ê‹ fl ¬ÁflòÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬Í⁄UÊ flø¸Sfl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ üÊcΔU flËÿ¸flÊŸ ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊¥ ¬Ê·áÊ ŒËÁ¡∞. „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ flø¸Sfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Ê¬ flø¸ÁSflÿÊ¥ ◊¥ flø¸SflflÊŸ Œfl „Ò¥U. „U◊¥ ÷Ë ß‚Ë Ã⁄U„U ◊ŸÈcÿÊ¥ ◊¥ ’Ê⁄’Ê⁄U flø¸SflË ’ŸÊß∞. (38) ©UÁûÊcΔUãŸÊ¡‚Ê ‚„U ¬ËàflË Á‡Ê¬˝ •fl¬ÿ—. ‚Ê◊Á◊ãº˝ ø◊Í ‚ÈÃ◊˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊÒ¡‚ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊÒ¡‚. ßãº˝ÊÒÁ¡cΔUÊÒÁ¡cΔUSàfl¢ ŒflcflSÿÊÁ¡cΔUÊ„¢U ◊ŸÈcÿ·È ÷ÍÿÊ‚◊˜.. (39) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ •Ê¡ ∑§ ‚ÊÕ ©UÁΔU∞. •Ê¬ ‚È¢Œ⁄U ΔUÊ«∏UË flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ¬ÿ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§ËÁ¡∞. „U ‚Ê◊! ߢº˝ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê øÈ•Ê ⁄U„U „Ò¥U. ‚Ê◊ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ„U ߢº˝ Œfl ∑§Ê ◊Í‹ ÁŸflÊ‚ „ÒU. „U◊ •Ê¡ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl •Ê¡flÊŸ „Ò¥U. fl ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ •Ê¡flÊŸ „Ò¥U, flÒ‚ „UË „U◊ ◊ŸÈcÿÊ¥ ◊¥ •Ê¡flÊŸU „UÊ ¡Ê∞¢. (39) •ŒÎüÊ◊Sÿ ∑§ÃflÊ Áfl ⁄U‡◊ÿÊ ¡ŸÊ° 2 •ŸÈ. ÷˝Ê¡ãÃÊ •ÇŸÿÊ ÿÕÊ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‚Íÿʸÿ àflÊ ÷˝Ê¡ÊÿÒ· à ÿÊÁŸ— ‚Íÿʸÿ àflÊ ÷˝Ê¡Êÿ. ‚Íÿ¸ ÷˝ÊÁ¡cΔU ÷˝ÊÁ¡cΔUSàfl¢ ŒflcflÁ‚ ÷˝ÊÁ¡cΔUÊ„¢U ◊ŸÈcÿ·È ÷ÍÿÊ‚◊˜.. (40) •ŒÎ‡ÿ ⁄UÁ‡◊ÿÊ¥ (Á∑§⁄UáÊÊ¥) ∑§Ë •ÁÇŸ¬ÃÊ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. fl„U ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê Ÿ„UË¥ ÁŒπÊ߸ ŒÃË „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ø◊∑§Ã ⁄UÁ„U∞. ∑§‹‡Ê •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. ‚Íÿ¸ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „ÒU. fl„U ŒflÊ¥ ◊¥ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „ÒU, flÒ‚ „UË „U◊ ◊ŸÈcÿÊ¥ ◊¥ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „UÊ ¡Ê∞¢. (40) ©UŒÈ àÿ¢ ¡ÊÃflŒ‚¢ Œfl¢ fl„UÁãà ∑§Ãfl—. ŒÎ‡Ê Áfl‡flÊÿ ‚Íÿ¸◊˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ‚Íÿʸÿ àflÊ ÷˝Ê¡ÊÿÒ· à ÿÊÁŸ— ‚Íÿʸÿ àflÊ ÷˝Ê¡Êÿ.. (41) ÿ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ Áfl‡flÁflÅÿÊà „Ò¥U. ÿ ÁŒ√ÿÃÊ fl„UŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ ‚Ê⁄U ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ŒÎÁc≈U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U . „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. ÿ„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Ê¬ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊß∞. (41) ÿ¡Èfl¸Œ - 101
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
•ÊÁ¡ÉÊ˝ ∑§‹‡Ê¢ ◊sÔÊ àflÊ Áfl‡ÊÁãàflãŒfl—. ¬ÈŸM§¡Ê¸ ÁŸflûʸSfl ‚Ê Ÿ— ‚„Ud¢ œÈˇflÊL§œÊ⁄UÊ ¬ÿSflÃË ¬ÈŸ◊ʸ Áfl‡ÊÃʺ˝Áÿ—.. (42) „U ◊Á„U◊ʇÊÊÁ‹ŸË! •Ê¬ ß‚ ∑§‹‡Ê ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ‚Í¢ÁÉÊ∞. ß‚ ∑§ ‚Ê◊ •ÊÁŒ •Ê¬ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬ÈŸ— ©U‚ ™§¡Ê¸ ∑§Ê ‹ÊÒ≈UÊß∞. fl„U ™§¡Ê¸ „U◊¥ „U¡Ê⁄UÊ¥ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§ M§¬ ◊¥ Á◊‹. „U◊¥ ŒÈœÊ⁄UË ªÊ∞¢ fl œŸ Á◊‹¢. (42) ß«U ⁄Uãà „U√ÿ ∑§Êêÿ øãº˝ ÖÿÊà ˘ ÁŒÃ ‚⁄USflÁà ◊Á„U ÁflüÊÈÁÃ. ∞ÃÊ Ã •Éãÿ ŸÊ◊ÊÁŸ ŒflèÿÊ ◊Ê ‚È∑Χâ ’Í˝ÃÊØ.. (43) „U ªÊ◊ÊÃÊ! •Ê¬ „UflŸ ◊¥ ∑§Êêÿ „ÒU¢. •Ê¬ ø¢º˝◊Ê •ÊÒ⁄U ‚Íÿ¸ ∑§Ë ÖÿÊÁà ∑§Ë Ã⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ ‚⁄U‚, ¬ÎâflË ¬⁄U ÁflÅÿÊà fl flœ ÿÊÇÿ Ÿ„UË¥ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ŸÊ◊ ‚ •ë¿UË flÊáÊË ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ’È‹ÊŸ ∑§ Á‹∞ ’ÊÁ‹∞. (43) Áfl Ÿ ˘ ßãº˝ ◊ÎœÊ ¡Á„U ŸËøÊ ÿë¿U ¬ÎÃãÿ×. ÿÊ •S◊Ê° 2 •Á÷ŒÊ‚àÿœ⁄¢U ª◊ÿÊ Ã◊—. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ Áfl◊Îœ ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ Áfl◊Îœ.. (44) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ fl ŸËøÊ¥ ∑§Ê ◊ÊÁ⁄U∞. ¡Ê „U◊¥ ŒÊ‚ÃÊ •ÊÒ⁄U •¢œ∑§Ê⁄U ŒŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©Uã„¥U •¢œ∑§Ê⁄U ◊¥ ‹ ¡Êß∞. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ÁSÕà ⁄UÁ„U∞. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò, •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ÁSÕà ⁄UÁ„U∞. (44) flÊøS¬Áâ Áfl‡fl∑§◊ʸáÊ◊ÍÃÿ ◊ŸÊ¡Èfl¢ flÊ¡ •lÊ „ÈUfl◊. ‚ ŸÊ Áfl‡flÊÁŸ „UflŸÊÁŸ ¡Ê·Ám‡fl‡Êê÷Í⁄Ufl‚ ‚ÊœÈ∑§◊ʸ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ Áfl‡fl∑§◊¸áÊ˘∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ Áfl‡fl∑§◊¸áÊ.. (45) „U flÊøS¬ÁÃ! •Ê¬ Áfl‡fl ∑§ ∑§◊ÊZ ∑§ ‚¡¸∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ◊Ÿ ¡Ò‚ „Ò¥U. •Ê¡ „U◊ ¡Ê •ããÊ „UflŸ ∑§⁄U ⁄U„ „Ò¥U. ©U‚ SflË∑§ÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ‚Ö¡ŸÃÊ ÷⁄U ∑§Ê◊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡fl ∑§Ê ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê Áfl‡fl∑§◊ʸ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê Áfl‡fl∑§◊ʸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (45) Áfl‡fl∑§◊¸Ÿ˜ „UÁfl·Ê flœ¸ŸŸ òÊÊÃÊ⁄UÁ◊ãº˝◊∑ΧáÊÊ⁄Ufläÿ◊˜. ÃS◊Ò Áfl‡Ê— ‚◊Ÿ◊ãà ¬Ífl˸⁄Uÿ◊Ȫ˝Ê Áfl„U√ÿÊ ÿÕʂØ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ Áfl‡fl∑§◊¸áÊ˘∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ Áfl‡fl∑§◊¸áÊ.. (46) „U Áfl‡fl∑§◊ʸ! „U◊ „UÁfl ‚ •Ê¬ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒÈ—π ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§ ∑§ÃʸœÃʸ, •¬Ífl¸, ©Uª˝ fl Áfl‡Ê· •ÊŒ⁄UáÊËÿ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê Áfl‡Ê· 102 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
•ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl fl Áfl‡fl∑§◊ʸ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê Áfl‡fl∑§◊ʸ ∑§ Á‹∞ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (46) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÇŸÿ àflÊ ªÊÿòÊë¿U㌂¢ ªÎ±áÊÊ◊Ëãº˝Êÿ àflÊ ÁòÊc≈ÈUå¿U㌂¢ ªÎ±áÊÊÁ◊ Áfl‡flèÿSàflÊ ŒflèÿÊ ¡ªë¿U㌂¢ ªÎ±áÊÊêÿŸÈc≈ÈU åÃÁ÷ª⁄U—.. (47) •Ê¬ ∑§Ê ß‚ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ∑§‹‡Ê ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¡ªÃË ¿¢UŒ ‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬˝Áà •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ◊¥ flÊáÊË◊ÿ SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (47) fl˝‡ÊËŸÊ¢ àflÊ ¬à◊ãŸÊ œÍŸÊÁ◊ ∑ȧ∑ͧŸŸÊŸÊ¢ àflÊ ¬à◊ãŸÊ œÍŸÊÁ◊ ÷㌟ʟʢ àflÊ ¬à◊ãŸÊ œÍŸÊÁ◊ ◊ÁŒãÃ◊ÊŸÊ¢ àflÊ ¬à◊ãŸÊ œÍŸÊÁ◊ ◊œÈãÃ◊ÊŸÊ¢ àflÊ ¬à◊ãŸÊ œÍŸÊÁ◊ ‡ÊÈ∑˝¢§ àflÊ ‡ÊÈ∑˝§ ˘ •Ê œÍŸÊêÿqÔUÊ M§¬ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡◊·È.. (48) „U ‚Ê◊! „U◊ ¡‹ ’⁄U‚ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ∑¢§¬Êà „Ò¥U. „U◊ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ∑¢§¬Êà „Ò¥U. „U◊ ◊ÉÊÊ¥ ∑§ ¡‹ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ∑¢§¬Êà „Ò¥U. •Ê¬ •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ’⁄U‚ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ∑¢§¬Êà „Ò¥U. •Ê¬ ◊œÈ◊ÊŸ (◊œÈ⁄UÃÊ ‚ ‹’Ê‹’ ÷⁄U „ÈU∞ „Ò¥U). „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ◊œÈ (◊œÈ⁄UÃÊ) ’⁄U‚ÊŸ ∑§ Á‹∞ ∑¢§¬Êà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ ¬˝∑§Ê‡Ê ∑§Ë fl·Ê¸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ∑¢§¬Êà „Ò¥U. „U◊ ÁŒŸ SflM§¬ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ∑¢§¬Êà „Ò¥U. (48) ∑§∑ȧ÷ ¦ M§¬¢ flη÷Sÿ ⁄UÊøà ’΄Uë¿ÈU∑˝§— ‡ÊÈ∑˝§Sÿ ¬È⁄Uʪʗ ‚Ê◊— ‚Ê◊Sÿ ¬È⁄Uʪʗ. ÿûÊ ‚Ê◊ÊŒÊèÿ¢ ŸÊ◊ ¡ÊªÎÁfl ÃS◊Ò àflÊ ªÎ±áÊÊÁ◊ ÃS◊Ò Ã ‚Ê◊ ‚Ê◊Êÿ SflÊ„UÊ.. (49) ‚Ê◊ ’‹flÊŸ, ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ, Áfl‡ÊÊ‹ fl ¬˝∑§Ê‡Ê ∑§ •Êª ª◊Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‚Ê◊ ‚Ê◊ ∑§ •Êª ª◊Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ •÷ÿŒÊÃÊ fl ¡Êª˝Ã „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ß‚ËÁ‹∞ „U ‚Ê◊! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (49) ©UÁ‡Ê∑§˜ àfl¢ Œfl ‚Ê◊ÊÇŸ— Á¬˝ÿ¢ ¬ÊÕʬËÁ„U fl‡ÊË àfl¢ Œfl ‚Ê◊ãº˝Sÿ Á¬˝ÿ¢ ¬ÊÕʬËsÔS◊à‚πÊ àfl¢ Œfl ‚Ê◊ Áfl‡fl·Ê¢ ŒflÊŸÊ¢ Á¬˝ÿ¢ ¬ÊÕʬËÁ„U.. (50) „U ‚Ê◊! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ê (◊Ÿ ÷ÊÃÊ) •Ê„UÊ⁄U ’ÁŸ∞. •Ê¬ ¬Õ ∑§ ÷Ê¡Ÿ ∑§ M§¬ ◊¥ ¬˝Êåà „UÊß∞. •Ê¬ fl¢‡ÊflÃ˸ fl ‚Ê◊ ∑§ Á¬˝ÿ „Ò¥U. „U ‚Ê◊! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á◊òÊ, •Ê¬ ‚÷Ë ∑§Ê Á¬˝ÿ fl ‚’ ∑§ Á‹∞ ÃÎÁåÃŒÊÿË „Ò¥U. (50) ß„U ⁄UÁÃÁ⁄U„U ⁄U◊äflÁ◊„U œÎÁÃÁ⁄U„U SflœÎÁ× SflÊ„UÊ. ©U¬‚ΡŸ˜ œL§áÊ¢ ◊ÊòÊ œL§áÊÊ ◊ÊÃ⁄¢U œÿŸ˜. ⁄UÊÿS¬Ê·◊S◊Ê‚È ŒËœ⁄UØ SflÊ„UÊ.. (51) ÿ¡Èfl¸Œ - 103
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
„U ªÊÒ•Ê! ߟ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ ¬˝Áà •Ê¬ ∑§Ë ¬˝ËÁà ’ŸË ⁄U„. ÉÊË ‚ ÷⁄UË „ÈU߸ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã „Ò. •Ê¬ ß‚ •¬Ÿ Á‹∞ œÒÿ¸ ‚ ª˝„UáÊ ∑§ËÁ¡∞. ¡ªÃ˜ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§ Á‹∞ ¡‹ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U •ÊÒ⁄U ©UŸ ∑§ Á‹∞ ©U‚ ¡‹ ∑§Ê ’⁄U‚Ê∞¢. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÊÒÁc≈U∑§ œŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (51) ‚òÊSÿ ´§Áh⁄USÿªã◊ ÖÿÊÁÃ⁄U◊ÎÃÊ ˘ •÷Í◊. ÁŒfl¢ ¬ÎÁâÊ√ÿÊ ˘ •äÿÊL§„UÊ◊ÊÁflŒÊ◊ ŒflÊãàSflÖÿʸÁ×.. (52) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ë ‚◊ÎÁh ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊ¥. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •◊⁄UÃÊ ¬Ê∞¢. ¬ÎâflË ‚ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ÖÿÊÁÃ◊¸ÿ ‹Ê∑§ ∑§Ê ŒπŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „UÊ¥. (52) ÿÈfl¢ ÃÁ◊ãº˝Ê¬fl¸ÃÊ ¬È⁄UÊÿÈœÊ ÿÊ Ÿ— ¬ÎÃãÿÊŒ¬ â ÃÁ◊hâ flÖÊ˝áÊ Ã¢ ÃÁ◊hÃ◊˜. ŒÍ⁄U øûÊÊÿ ¿Uãà‚Œ˜ª„UŸ¢ ÿÁŒŸˇÊØ. •S◊Ê∑§ ¦ ‡ÊòÊÍã¬Á⁄U ‡ÊÍ⁄U Áfl‡flÃÊ Œ◊ʸ Œ·Ë¸CÔU Áfl‡fl×. ÷Í÷ȸfl— Sfl— ‚Ȭ˝¡Ê— ¬˝¡ÊÁ÷— SÿÊ◊ ‚ÈflË⁄UÊ flË⁄ÒU— ‚Ȭʷʗ ¬Ê·Ò—.. (53) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ÿÈflÊ, ¬fl¸ÃflÊ‚Ë fl üÊcΔU ÿÊhÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ìÊß∞ •ÊÒ⁄U ©UŸ ¬⁄U flÖÊ˝ ‚ ¬˝„UÊ⁄U ∑§Á⁄U∞. •Ê¬ „U◊¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ mÊ⁄UÊ ÉÊ⁄U ¡ÊŸ fl Á¿U¬Ê∞ ¡ÊŸ ‚ ŒÍ⁄U „UË ⁄UÁπ∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U ‚’ •Ê⁄U ‚ •Ê∑˝§◊áÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬ÎâflË, Sflª¸ •ÊÁŒ ‚’ ¡ª„U √ÿÊåà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •ë¿UË fl üÊcΔU ¬⁄UÊU∑˝§◊Ë ‚¢ÃÊŸ ŒËÁ¡∞. „U◊¥ flË⁄U ’ŸÊß∞ •ÊÒ⁄U •ë¿UË Ã⁄U„U ¬Èc≈U ∑§ËÁ¡∞. (53) ¬⁄U◊cΔUKÁ÷œË× ¬˝¡Ê¬ÁÃflʸÁø √ÿÊNUÃÊÿÊ◊ãœÊ •ë¿U×. ‚ÁflÃÊ ‚ãÿÊ¢ Áfl‡fl∑§◊ʸ ŒËˇÊÊÿÊ¢ ¬Í·Ê ‚Ê◊∑˝§ÿáÿÊÁ◊ãº˝‡ø.. (54) ¬⁄U◊cΔË ŸÊ◊∑§ ÿôÊ ◊¥ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ ◊¢òÊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒË ¡Ê ⁄U„UË „ÒU. ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ •¢œ‚Ê ŸÊ◊∑§ ◊¢òÊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. Áfl‡fl∑§◊ʸ Œfl ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. (54) ßãº˝‡ø ◊L§Ã‡ø ∑˝§ÿÊÿʬÊÁàÕÃÊ‚È⁄U— ¬áÿ◊ÊŸÊ Á◊òÊ— ∑˝§ËÃÊ ÁflcáÊÈ— Á‡ÊÁ¬ÁflCÔU ˘ ™§⁄UÊflÊ‚ãŸÊ ÁflcáÊÈŸ¸⁄UÁ㜷—.. (55) π⁄UËŒ ∑§ Á‹∞ ߢº˝ •ÊÒ⁄U ◊L§Ã˜ ∑§Ê ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. π⁄UËŒ ∑§ Á‹∞ •‚È⁄U ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. π⁄UËŒ „ÈU ∞ Á◊òÊ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ªÊŒ ◊¥ ’ÒΔU ÁflcáÊÈ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. •L§ ¬⁄U ’ÒΔU ÁflcáÊÈ ∑§ Á‹∞ Ÿ⁄U¢Áœ· ◊¢òÊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. (55) ¬˝ÊsÔ◊ÊáÊ— ‚Ê◊ ˘ •ÊªÃÊ flL§áÊ ˘ •Ê‚ãlÊ◊Ê‚ãŸÊÁÇŸ⁄UÊÇŸËœ˝ ˘ ßãº˝Ê „UÁflœÊ¸Ÿ Õflʸ¬ÊflÁOÔUÿ◊ÊáÊ—.. (56) 104 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
ªÊ«U∏Ë ‚ ‹Ê∞ ¡ÊŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U •Ê‚Ÿ ¬⁄U ’ÒΔU „ÈU∞ ‚Ê◊ „UÃÈ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. •Áª¢œ˝ ◊¥ ÁSÕà ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞ •ÕflÊ ŸÊ◊ ‚ ‹ ¡Ê∞ ¡Ê ⁄U„U ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. (56) Áfl‡fl ŒflÊ ˘ • ¦ ‡ÊÈ·È ãÿÈåÃÊ ÁflcáÊÈ⁄Uʬ˝ËÃ¬Ê ˘ •Êåÿʃÿ◊ÊŸÊ ÿ◊— ‚Íÿ◊ÊŸÊ ÁflcáÊÈ— ‚Áê÷˝ÿ◊ÊáÊÊ flÊÿÈ— ¬Íÿ◊ÊŸ— ‡ÊÈ∑˝§— ¬Í× ‡ÊÈ∑˝§— ˇÊË⁄UüÊË◊¸ãÕË ‚ÄÃÈüÊË—.. (57) Áfl‡fl Œfl ∑§Ê ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ¬˝◊ ⁄UπŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ¬Ê‹Ÿ„UÊ⁄U ÁflcáÊÈ ∑§Ê ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ‚Ê◊ ‚ ‚Ë¥ø ¡Ê ⁄U„U ÿ◊ ∑§Ê ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ‚Ê◊ ‚ •Á÷Á·Äà Á∑§∞ ¡Ê ⁄U„U ÁflcáÊÈ ∑§Ê ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ¬ÁflòÊ Á∑§∞ ¡Ê ⁄U„U flÊÿÈ ∑§Ê ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ¬ÁflòÊ ‡ÊÈ∑˝§ ∑§ Á‹∞ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ŒÍœ ◊¥ ªÍ¢œ „ÈU∞ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ‚ûÊÍ Á◊‹Ê ∑§⁄UU ÃÒÿÊ⁄U Á∑§∞ „ÈU∞ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà Œ ∑§⁄U ‡ÊÊ÷Ê ’…U∏Êß∞. (57) Áfl‡fl Œflʇø◊‚·ÍãŸËÃÊ‚È„Uʸ◊ÊÿÊlÃÊ L§º˝Ê „ÍUÿ◊ÊŸÊ flÊÃÊèÿÊflÎûÊÊ ŸÎøˇÊÊ— ¬˝ÁÃÅÿÊÃÊ ÷ˇÊÊ ÷ˇÿ◊ÊáÊ— Á¬Ã⁄UÊ ŸÊ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚Ê—.. (58) Áfl‡fl Œfl ∑§§Á‹∞ ø◊‚ ◊¥ ⁄Uπ ∑§⁄U •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ◊ÊÿÊflË •‚È⁄U ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. L§º˝ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ÁÉÊ⁄U ¡ÊŸ ¬⁄U flÊà Œfl ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ŸÎøˇÊ ∑§ Á‹∞ ©U‚ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. πÊŸ ‚ ’ø „ÈU∞ ‚Ê◊ „UÃÈ ©U‚ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. (58) ‚㟗 Á‚ãœÈ⁄Ufl÷ÎÕÊÿÊl× ‚◊Ⱥ˝ÊèÿflÁOÔUÿ◊ÊáÊ— ‚Á‹‹— ¬˝å‹ÈÃÊ ÿÿÊ⁄UÊ¡‚Ê S∑§Á÷ÃÊ ⁄U¡Ê ¦ Á‚ flËÿ¸Á÷fl˸⁄UÃ◊Ê ‡ÊÁflcΔUÊ. ÿÊ ¬àÿà •¬˝ÃËÃÊ ‚„UÊÁ÷Áfl¸cáÊÍ •ªãflL§áÊÊ ¬Ífl¸„ÍUÃÊÒ.. (59) SŸÊŸ ∑§ Á‹∞ ÃÒÿÊ⁄U (©UlÃ) ‚Ê◊ Á‚¢œÈ „ÒU. ©Uã„¥U ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ‚◊Ⱥ˝ (ÉÊ«∏U) ◊¥ ⁄Uπ „ÈU∞ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. ¡‹ ◊¥ √ÿÊåà ‚Ê◊ ∑§Ê ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. Á¡Ÿ ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ (flL§áÊ-ÁflcáÊÈ) ∑§ •Ê¡ ‚ •Ê¡flÊŸ „Ò¥U, ©Uã„¥U ©UŸ ∑§ ŸÊ◊ ‚ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. Á¡Ÿ ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ‚ ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë „Ò¥U. Á¡Ÿ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ‚ ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ „Ò¥U, ÿôÊ ◊¥ ¬˝Õ◊ •Ê„ÈUÁà ¬ÊŸ flÊ‹ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§Ë ¡Ê ⁄U„UË „ÒU. (59) ŒflÊÁãŒfl◊ªãÿôÊSÃÃÊ ◊Ê º˝ÁfláÊ◊c≈ÈU ◊ŸÈcÿÊŸãÃÁ⁄UˇÊ◊ªãÿôÊSÃÃÊ ◊Ê º˝ÁfláÊ◊c≈ÈU Á¬ÃÎÎã¬ÎÁÕflË◊ªãÿôÊSÃÃÊ ◊Ê º˝ÁfláÊ◊c≈ÈU ÿ¢ ∑¢§ ø ‹Ê∑§◊ªãÿôÊSÃÃÊ ◊ ÷º˝◊÷ÍØ.. (60) ¡Ê ÿôÊ Sflª¸ ◊¥ ŒflÊ¥ ∑§ ¬Ê‚ ¡ÊÃÊ „Ò, fl„U ÿôÊ (»§‹) „U◊¥ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. „U◊¥ ßc≈U º˝√ÿ (œŸ) ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê Á◊‹Ÿ flÊ‹Ê ÿôÊ »§‹ ◊ŸÈcÿÊ¥ ÿ¡Èfl¸Œ - 105
¬Íflʸœ¸
•ÊΔUflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. Á¬Ã⁄UÊ¥ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË flÊ‹Ê ÿôÊ »§‹ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. ßc≈U œŸ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. ¡Ê¡Ê ÿôÊ »§‹ Á¡‚Á¡‚ ‹Ê∑§ ◊¥ ªÿÊ „ÒU, ©U‚ ‚ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ „UÊ. (60) øÃÈÁSòÊ ¦ ‡ÊûÊãÃflÊ ÿ ÁflÃÁàŸ⁄U ÿ ˘ ß◊¢ ÿôÊ ¦ SflœÿÊ ŒŒãÃ. ÷ʢ Á¿U㟠¦ ‚êflÃgœÊÁ◊ SflÊ„UÊ ÉÊ◊ʸ •åÿÃÈ ŒflÊŸ˜.. (61) øÊÒ¥ÃË‚ Œfl ¡Ê ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U, ¡Ê ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ¬ÊÒÁc≈U∑§ ¬ŒÊÕ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÿ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •Á¬¸Ã „Ò¥U. ÿôÊ ¡Ò‚ ∑§ÊÿÊZ ‚ „U◊ ¡Ê œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥, fl„U „U◊ ∞‚ „UË ‡ÊÈ÷ ∑§ÊÿÊZ ◊¥ πø¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ŒflÊ¥ ∑§Ê ÃÎåà ¬˝‚㟠∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (61) ÿôÊSÿ ŒÊ„UÊ ÁflÃ× ¬ÈL§òÊÊ ‚Ê •c≈UUœÊ ÁŒfl◊ãflÊÃÃÊŸ. ‚ ÿôÊ œÈˇfl ◊Á„U ◊ ¬˝¡ÊÿÊ ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ Áfl‡fl◊ÊÿÈ⁄U‡ÊËÿ SflÊ„UÊ.. (62) „U◊ ÿôÊ ∑§Ê ŒÊ„UŸ fl ©U‚ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄¥U. fl„U ‚÷Ë ∑§Ê ŒÈ—π ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. ÿ„U ÿôÊ •ÊΔU ¬˝∑§Ê⁄U ‚ (‚¢¬Íáʸ ’˝rÊÊ¢«U ◊¥)U ÁflSÃÊ⁄U ¬Ê∞. ÿ„U ÿôÊ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ÁflSÃÎà „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ üÊcΔU ‚¢ÃÊŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U. ÿ„U ÿôÊ „U◊¢ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄. ÿ„U ÿôÊ „U◊ ¢ ¬Ê·∑§ÃÊ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ ¬ÍáÊʸÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U. ß‚ ÿôÊ „UÃÈ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „Ò. (62) •Ê ¬flSfl Á„U⁄UáÿflŒ‡flflà‚Ê◊ flË⁄UflØ. flÊ¡¢ ªÊ◊ãÃ◊Ê ÷⁄U SflÊ„UÊ.. (63) „U ‚Ê◊! •Ê¬ •Êß∞. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ‚ÊŸÊ, ÉÊÊ«∏U, ªÊÒ, œŸ •ÊÁŒ ÷⁄U¬Í⁄U flÒ÷fl ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „U◊ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (63)
106 - ÿ¡Èfl¸Œ
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ Œfl ‚Áfl× ¬˝‚Èfl ÿôÊ¢ ¬˝‚Èfl ÿôʬ®Ã ÷ªÊÿ. ÁŒ√ÿÊ ªãœfl¸— ∑§Ã¬Í— ∑§Ã¢ Ÿ— ¬ÈŸÊÃÈ flÊøS¬ÁÃflʸ¡¢ Ÿ— SflŒÃÈ SflÊ„UÊ.. (1) „U ‚ÁflÃÊ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ÁflÁœflà ¬Í⁄UÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ÿôʬÁà ∑§Ê ‚ÊÒ÷ÊÇÿflÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ ÁŒ√ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄U •ããÊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊Ê⁄UÊ fl„U •ããÊ flÊøS¬Áà Œfl ∑§Ê ÷Ë ’‹flÊŸ ’ŸÊŸ flÊ‹Ê „UÊ. flÊøS¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl„U •ããÊ „U◊¥ ÷Ë SflÊÁŒc≈U ‹ª. (1) œÈ˝fl‚Œ¢ àflÊ ŸÎ·Œ¢ ◊Ÿ—‚Œ◊ȬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ¡ÈCÔ¢U ªÎ±áÊÊêÿ· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ¡Èc≈UÔUÃ◊◊˜. •å‚È·Œ¢ àflÊ ÉÊÎÂŒ¢ √ÿÊ◊‚Œ◊ȬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ¡Èc≈¢U ªÎ±áÊÊêÿ· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ¡Èc≈UÃ◊◊˜. ¬ÎÁÕÁfl‚Œ¢ àflÊãÃÁ⁄UˇÊ‚Œ¢ ÁŒÁfl‚Œ¢ Œfl‚Œ¢ ŸÊ∑§‚Œ◊ȬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ¡Èc≈¢U ªÎ±áÊÊêÿ· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ¡ÈCÔUÃ◊◊˜.. (2) „U ‚Ê◊! •Ê¬ œ˝Èfl (ÁSÕ⁄U) M§¬ ‚ ¬˝ÁÃcΔUÊ ¬˝Êåà „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ◊Ÿ ◊¥ ⁄U◊à „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ÿÊÁŸ „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©U¬ÿÊ◊ (¬ÊòÊ) ◊¥ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ‚flʸÁœ∑§ øÊ„U ª∞ Œfl „Ò¥U. •Ê¬ ¡‹, ÉÊË fl √ÿÊ◊ (•Ê∑§Ê‡Ê) ◊¥ flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ÿÊÁŸ fl ßc≈UÃ◊ „Ò¥U. •Ê¬ ’⁄Uß ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬ÎâflË, •¢ÃÁ⁄UˇÊ fl Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÁŸflÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÊ¥ ∑§ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ÿÊÁŸ •ÊÒ⁄U •Ê¬ ßc≈UÃ◊ „Ò¥U. (2) •¬Ê ¦ ⁄U‚◊Èmÿ‚ ¦ ‚Íÿ¸ ‚ãà ¦ ‚◊ÊÁ„UÃ◊˜. •¬Ê ¦ ⁄U‚Sÿ ÿÊ ⁄U‚Sâ flÊ ªÎ±áÊÊêÿÈûÊ◊◊ȬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ¡Èc≈¢U ªÎ±áÊÊêÿ· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ¡Èc≈UÔUÃ◊◊˜.. (3) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ¡‹ •ÊÒ⁄U ⁄U‚Ê¥ ∑§ ‚Ê⁄U, ‚Íÿ¸ ◊¥ ‚◊Ê∞ fl ¡‹ ∑§ ‚Ê⁄U ∑§ ÷Ë ‚Ê⁄U „ÒU¥ . ©U‚ ⁄U‚ ∑§Ê „U◊ ¬ÊòÊ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ’⁄Uß ◊¥ ª˝„UáÊ ÿ¡Èfl¸Œ - 107
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§⁄Uà „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ ∑§Ê flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ ’⁄Uß ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ ßc≈UÃ◊ •ÊÒ⁄U ߢº˝ ∑§Ë ÿÊÁŸ „ÒU¥ . „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . (3) ª˝„UÊ ˘ ™§¡Ê¸„ÈUÃÿÊ √ÿãÃÊ Áfl¬˝Êÿ ◊ÁÃ◊˜. ÷ʢ ÁflÁ‡ÊÁ¬˝ÿÊáÊÊ¢ flÊ„UÁ◊·◊Í¡¸ ¦ ‚◊ª˝÷◊ȬÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ¡ÈCÔ¢U ªÎ±áÊÊêÿ· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ¡ÈCÔUÃ◊◊˜. ‚ê¬ÎøÊÒ SÕ— ‚¢ ◊Ê ÷º˝áÊ ¬Îæ˜ Äâ Áfl¬ÎøÊÒ SÕÊ Áfl ◊Ê ¬Êå◊ŸÊ ¬Îæ˜ Äâ.. (4) „U ‚Ê◊ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§ ¬ÊòÊÊ! „U◊ ™§¡Ê¸ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§Ë ’ÈÁh ÁflSÃÎà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ™§¡¸SflË ⁄U‚ ∑§Ê ÷‹Ë÷Ê¢Áà SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ¬ÊòÊ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ÿÊÁŸ „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ߢº˝ Œfl ∑§ •÷Ëc≈U „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ‚¢¬ÎÄç (‚ÊÕ‚ÊÕ) ⁄U„ U∑§⁄U „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ fl „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ¬ÎÕ∑˜§ (•‹ª) ⁄U„U ∑§⁄U „U◊¥ ¬Ê¬Ê¥ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (4) ßãº˝Sÿ flÖÊ˝ÊÁ‚ flÊ¡‚ÊSàflÿÊÿ¢ flÊ¡ ¦ ‚Ø. flÊ¡Sÿ ŸÈ ¬˝‚fl ◊ÊÃ⁄¢U ◊„UË◊ÁŒÁâ ŸÊ◊ flø‚Ê ∑§⁄UÊ◊„U. ÿSÿÊÁ◊Œ¢ Áfl‡fl¢ ÷ÈflŸ◊ÊÁflfl‡Ê ÃSÿÊ¢ ŸÊ Œfl— ‚ÁflÃÊ œ◊¸ ¦ ‚ÊÁfl·Ã˜.. (5) •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ flÖÊ˝ •ÊÒ⁄U •ãŸ◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ÷Ë •ããÊ ¬˝Êåà „UÊ. „U◊ •¬ŸË (◊¢òÊ◊ÿ) flÊáÊË ‚ œ⁄UÃË ∑§Ê •ããÊ ©U¬¡ÊŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬ÎâflË ∑§Ê ŒflÊ¥ ∑§Ë ◊ÊÃÊ •ÁŒÁà ∑§ ‚◊ÊŸ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê⁄UÊ ‚¢‚Ê⁄U (‹Ê∑§) ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ fl‡Ê ◊¥ „Ò. ‚ÁflÃÊ „U◊¥ œÊÁ◊¸∑§ ’ŸÊ∞¢. fl „U◊¥ ªÁÇÊË‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (5) •åSflãÃ⁄U◊ÎÃ◊å‚È ÷·¡◊¬Ê◊Èà ¬˝‡ÊÁSÃcfl‡flÊ ÷flà flÊÁ¡Ÿ—. ŒflË⁄UÊ¬Ê ÿÊ fl ˘ ™§Á◊¸— ¬˝ÃÍÁø— ∑§∑ȧã◊ÊŸ˜ flÊ¡‚ÊSßÊÿ¢ flÊ¡ ¦ ‚Ø.. (6) ¡‹ ∑§ ÷ËÃ⁄U •◊Îà fl •Ê·ÁœÿÊ¢ „Ò¥U . „U◊ ©UŸ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄U ∑§ ÉÊÊ«∏U ∑§Ë Ã⁄U„U ’‹flÊŸ „UÊ ¡Ê∞¢. „U ¡‹ ‚◊Í„U! •Ê¬ ∑§Ë Ã⁄¢Uª¥ ™¢§øË „Ò¥U •ÊÒ⁄U ‹„U⁄¥U flª‡ÊÊ‹Ë „ÒU¢. •Ê¬ ∑§Ë ™§¢øË™¢§øË Ã⁄¢Uª¥ „U◊¥ •ããÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (6) flÊÃÊ flÊ ◊ŸÊ flÊ ªãœflʸ— ‚åÃÁfl ¦ ‡ÊÁ×. à •ª˝‡fl◊ÿÈT°Sà •ÁS◊Tfl◊ÊŒœÈ—.. (7) flÊÿÈ, ◊Ÿ, ª¥œfl¸ •ÊÁŒ Ÿ ¬„U‹ „UË ‚Êà ‚ Áêȟ ÿÊŸË ‚ûÊÊ߸‚ ÉÊÊ«∏U •¬Ÿ ‚ÊÕ ¡Êà Á‹∞ „Ò¥U. fl •Êª•Êª (¡ÀŒË¡ÀŒË) •Ê ∑§⁄U „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (7) flÊÃ⁄U ¦ „UÊ ÷fl flÊÁ¡ãÿÈÖÿ◊ÊŸ ˘ ßãº˝Sÿfl ŒÁˇÊáÊ— ÁüÊÿÒÁœ. ÿÈTãÃÈ àflÊ ◊L§ÃÊ Áfl‡flflŒ‚ ˘ •Ê à àflCÔUÊ ¬à‚È ¡fl¢ ŒœÊÃÈ.. (8) 108 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’‹flÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÕ ◊¥ ¡Èà ∑§⁄U flÊÿÈ ∑§Ë Ã⁄U„U flªflÊŸ ’Ÿ ¡Êß∞. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ ŒÁˇÊáÊË ÷ʪ ∑§Ë ‡ÊÊ÷Ê ’…∏UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê ◊L§Œ˜ªáÊ ⁄UÕ ◊¥ ¡Êß ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. àflc≈UÊ Œfl! •Ê¬ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ ’‹ œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. (8) ¡flÊ ÿSà flÊÁ¡ÁãŸÁ„UÃÊ ªÈ„UÊ ÿ— ‡ÿŸ ¬⁄UËûÊÊ •ø⁄Uëø flÊÃ. ß ŸÊ flÊÁ¡Ÿ˜ ’‹flÊŸ˜ ’‹Ÿ flÊ¡Á¡ëø ÷fl ‚◊Ÿ ø ¬Ê⁄UÁÿcáÊÈ—. flÊÁ¡ŸÊ flÊ¡Á¡ÃÊ flÊ¡ ¦ ‚Á⁄UcÿãÃÊ ’΄US¬Ã÷ʸª◊flÁ¡ÉÊ˝Ã.. (9) „U ’‹‡ÊÊ‹Ë! •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë •¬Ÿ ’‹ ‚ ’‹flÊŸ ’ŸÊß∞U. „U◊¥ •¬ŸÊ fl„U flª Œ ŒËÁ¡∞ ¡Ê •Ê¬ ∑§ NUŒÿ ◊¥ „ÒU , ‡ÿŸ ¬ˇÊË ∑§ ©U«∏UŸ ◊¥ „ÒU •ÊÒ⁄U flÊÿÈ ∑§Ë ªÁà ◊¥ „ÒU. •Ê¬ „U◊¥ ’‹flÊŸ ’ŸÊß∞ ÃÊÁ∑§ „U◊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ¬Ê⁄U ¡Ê ‚∑¥§. „U •ããÊ ¡Ëß flÊ‹! •Ê¬ „U◊¥ ’‹ŒÊÿË •ããÊ ŒËÁ¡∞. „U◊ •ããÊ ∑§Ë øÊ„U ‚ ’΄US¬Áà ∑§ ÷ʪ ∑§Ê ‚Í¢ÉÊ ‚∑¥§. (9) ŒflSÿÊ„ ¦ ‚ÁflÃÈ— ‚fl ‚àÿ‚fl‚Ê ’΄US¬ÃL§ûÊ◊¢ ŸÊ∑§ ¦ L§„Uÿ◊˜. ŒflSÿÊ„ ¦ ‚ÁflÃÈ— ‚fl ‚àÿ‚fl‚ ˘ ßãº˝SÿÊûÊ◊¢ ŸÊ∑§ ¦ L§„Uÿ◊˜. ŒflSÿÊ„ ¦ ‚ÁflÃÈ— ‚fl ‚àÿ¬˝‚fl‚Ê ’΄US¬ÃL§ûÊ◊¢ ŸÊ∑§◊L§„U◊˜. ŒflSÿÊ„ ¦ ‚ÁflÃÈ— ‚fl ‚àÿ¬˝‚fl‚ ˘ ßãº˝SÿÊûÊ◊¢ ŸÊ∑§◊L§„U◊˜.. (10) ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚àÿ ◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹ ‚∑¥§. ’΄US¬Áà ∑§ ©UûÊ◊ Sflª¸ ∑§Ê •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚àÿ ◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹ ‚∑¥§. ߢº˝ Œfl ∑§ ©UûÊ◊ Sflª¸ ∑§Ê •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. ‚àÿ ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ’΄US¬Áà ∑§ üÊcΔU Sflª¸ ◊¥ ø…∏U ª∞. ‚àÿ ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ߢº˝ Œfl ∑§ üÊcΔU Sflª¸ ◊¥ ø…U∏ ª∞. (10) ’΄US¬Ã flÊ¡¢ ¡ÿ ’΄US¬Ãÿ flÊø¢ flŒÃ ’΄US¬Áâ flÊ¡¢ ¡Ê¬ÿÃ. ßãº˝ flÊ¡¢ ¡ÿãº˝Êÿ flÊø¢ flŒÃãº˝¢ flÊ¡¢ ¡Ê¬ÿÃ.. (11) „U ’΄US¬ÁÃ! •Ê¬ Áfl¡ÿ ¬Êß∞. „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ’΄US¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ ◊¢òÊ ªÊß∞. •Ê¬ fl ’΄US¬Áà Œfl ∑§Ê •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ’‹ Á◊‹ ‚∑§, ß‚ ∑§ Á‹∞ ¡¬ ∑§ËÁ¡∞. „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ Áfl¡ÿ ¬Êß∞. „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ◊¢òÊ ªÊß∞. ߢº˝ Œfl ∑§Ê •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ’‹ Á◊‹ ‚∑§, ß‚ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ¡¬ ∑§ËÁ¡∞. (11) ∞·Ê fl— ‚Ê ‚àÿÊ ‚¢flʪ÷ÍlÿÊ ’΄US¬®Ã flÊ¡◊¡Ë¡¬ÃÊ¡Ë¡¬Ã ’΄US¬®Ã flÊ¡¢ flŸS¬ÃÿÊ Áfl◊Èëÿäfl◊˜. ∞·Ê fl— ‚Ê ‚àÿÊ ‚¢flʪ÷Ílÿãº˝¢ flÊ¡◊¡Ë¡¬ÃÊ¡Ë¡¬Ããº˝¢ flÊ¡¢ flŸS¬ÃÿÊ Áfl◊Èëÿäfl◊˜.. (12) „U flÊŒ∑§Ê, flÊl ÿ¢òÊ ’¡ÊŸ flÊ‹Ê! •Ê¬ ∞∑§ ‚ÊÕ ∞‚Ê Sfl⁄U ÁŸ∑§ÊÁ‹∞, Á¡‚ ÿ¡Èfl¸Œ - 109
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ ’΄US¬Áà Œfl ∑§Ë Áfl¡ÿ „UÊ. „U flŸS¬ÁÃÿÊ! „U flŸ ∑§ SflÊ◊Ë! •Ê¬ •¬Ÿ ÉÊÊ«U∏ •ÊÁŒ ¿UÊ« U∏ ŒËÁ¡∞. Á¡‚ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ë Áfl¡ÿ „UÊ ‚∑§. ß‚ Áfl¡ÿ ∑§ ’ÊŒ „U ‚ŸÊ¬ÁÃÿÊ! •Ê¬ ÉÊÊ«,∏ U „UÊÕË •ÊÁŒ ∑§Ê •Ê⁄UÊ◊ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (12) ŒflSÿÊ„ ¦ ‚ÁflÃÈ— ‚fl ‚àÿ¬˝‚fl‚Ê ’΄US¬Ãflʸ¡Á¡ÃÊ flÊ¡¢ ¡·◊˜. flÊÁ¡ŸÊ flÊ¡Á¡ÃÊäflŸ S∑§èŸÈflãÃÊ ÿÊ¡ŸÊ Á◊◊ÊŸÊ— ∑§ÊcΔUÊ¢ ªë¿UÃ.. (13) ‚ÁflÃÊ Œfl! ‚àÿ ◊ʪ¸ ∑§ ¬˝⁄U∑§ fl ‚÷Ë ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿÈh ◊¥ Áfl¡ÿË „UÊŸ flÊ‹ ’΄US¬Áà Œfl ∑§Ê ’‹ ¬Ê ∑§⁄U „U◊ ÷Ë ÿÈh ◊¥ Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. „U◊Ê⁄U ’‹‡ÊÊ‹Ë ÉÊÊ«∏U ’„ÈUà flªflÊŸ „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÿÈh ◊¥ Áfl¡ÿ ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ◊ʪ¸ ⁄UÊ∑§ ∑§⁄U ßã„UË¥ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ ∑§Ê‚Ê¥ ∑§Ë ŒÍ⁄UË ŸÊ¬Ã „Ò¥U. ‚Ë◊Ê ∑§ ¬Ê⁄U ¬„¢ÈUø ‚∑§Ã „Ò¥U. (13) ∞· Sÿ flÊ¡Ë ÁˇÊ¬®áÊ ÃÈ⁄UáÿÁà ª˝ËflÊÿÊ¢ ’hÊ •Á¬∑§ˇÊ ˘ •Ê‚ÁŸ. ∑˝§ÃÈ¢ ŒÁœ∑˝§Ê ˘ •ŸÈ ‚ ¦ ‚ÁŸcÿŒà¬ÕÊ◊VÊ ¦ SÿãflʬŸË»§áÊØ SflÊ„UÊ.. (14) ª⁄UŒŸ ‚ ‹ªÊ◊, ¡ËŸ •ÊÁŒ ‚ ’¢œÊ „ÈU•Ê ÿ„U ÉÊÊ«∏UÊ flª ‚ ø‹ÃÊ „Ò . ÿ„U ⁄UÊSà ∑§Ë ‚÷Ë ’ʜʕʥ ∑§Ê ¬Ê⁄U ∑§⁄U ‹ÃÊ „ÒU . ÿ„U ÿôÊ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ •ÊÒ⁄U ÉÊÊ«∏U ¬⁄U ’ÒΔUÊ flË⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U (‚»§‹ÃÊ ‚) ¬˝„UÊ⁄U ∑§⁄UÃÊ „Ò. ß‚ (•‡fl) ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (14) ©Uà S◊ÊSÿ º˝flÃSÃÈ⁄Uáÿ× ¬áÊZ Ÿ fl⁄UŸÈflÊÁà ¬˝ªÌœŸ—. ‡ÿŸSÿfl œ˝¡ÃÊ •V‚¢ ¬Á⁄U ŒÁœ∑˝§Ê√áÊ— ‚„Uʡʸ ÃÁ⁄UòÊ× SflÊ„UÊ.. (15) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! ¡Ê ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë „Ò, ¡Ê ÃË⁄U ∑§Ë Ã⁄U„U flªflÊŸ „ÒU, ¡Ê ÉÊÊ«∏U ∑§Ë Ã⁄U„U flª‡ÊÊ‹Ë „ÒU, ¡Ê ‚àÿflÊŒË „ÒU, ¡Ê ’Ê¡ ¬ˇÊË ∑§Ë Ã⁄U„U flªflÊŸ „ÒU, Á¡‚ ÉÊÊ«∏U ¬⁄U ’ÒΔU ∑§⁄U flË⁄U ÿÈhÊ¥ ◊¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬ÊÃÊ „Ò, ÿ„U •Ê„ÈUÁà ©U‚Ë ∑§ Á‹∞ ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (15) ‡Ê¢ ŸÊ ÷flãÃÈ flÊÁ¡ŸÊ „Ufl·È ŒflÃÊÃÊ Á◊ú˝fl— Sfl∑§Ê¸—. ¡ê÷ÿãÃÊÁ„¢U flÎ∑ ¦ ⁄UˇÊÊ ¦ Á‚ ‚ŸêÿS◊lÈÿflãŸ◊ËflÊ—.. (16) ’‹flÊŸ ÉÊÊ«∏U „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ¥. fl ŒÒflË •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ◊¥ •ÊÒ⁄U ÷Ë ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊ¥. ÿ ÉÊÊ«U∏ ÷Á«∏UÿÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê∑˝§◊áÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Ê¢¬ ¡Ò‚ Áfl‡flÊ‚ÉÊÊÁÃÿÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ÁflÉŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) à ŸÊ •fl¸ãÃÊ „UflŸüÊÈÃÊ „Ufl¢ Áfl‡fl oÎáflãÃÈ flÊÁ¡ŸÊ Á◊ú˝fl—. ‚„Ud‚Ê ◊œ‚ÊÃÊ ‚ÁŸcÿflÊ ◊„UÊ ÿ œŸ ¦ ‚Á◊Õ·È ¡Á÷˝⁄U.. (17) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! flË⁄U ÉÊÊ«∏U ¬⁄U ‚flÊ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U . fl ’„ÈUà •Áœ∑§ flªflÊŸ „Ò¥U . fl flË⁄U „U◊Ê⁄UË flÊáÊË ∑§Ê ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . ¡Ê flË⁄U „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê •ÊŸ¢Œ ŒÃ „Ò¥U, ¡Ê 110 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
flË⁄U ‹ÊªÊ¥ ∑§Ë •Êfl‡ÿ∑§ÃÊ ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§⁄Uà „Ò¥U, ¡Ê flË⁄U ÿôÊ ∑§ •ÁœcΔUÊÃÊ „Ò¥U , fl flË⁄U œŸflÊŸ fl ◊Á„U◊ÊflÊŸ „UÊà „Ò¥U. (17) flÊ¡-flÊ¡ ˘ flà flÊÁ¡ŸÊ ŸÊ œŸ·È Áfl¬˝Ê ˘ •◊ÎÃÊ ˘ ´§ÃôÊÊ—. •Sÿ ◊äfl— Á¬’à ◊ÊŒÿäfl¢ ÃÎåÃÊ ÿÊà ¬ÁÕÁ÷Œ¸flÿÊŸÒ—.. (18) „U •‡flÊ! •Ê¬ ’‹flÊŸ „Ò¥U. ’˝ÊrÊáÊ, ‚àÿ ∑§ ôÊÊÃÊ „U◊¥ œŸœÊãÿ◊ÿ ’ŸÊ∞¢. „U◊Ê⁄UÊ ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ’‹flÊŸ ÉÊÊ«∏U ◊œÈ⁄U ⁄U‚ ¬Ë ∑§⁄U ◊Œ◊SàÊ „UÊ ∑§⁄U ÃÎåà „UÊUà „ÈU∞ ŒflÿÊŸ ¬Õ ‚ •Êª ’…∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (18) •Ê ◊Ê flÊ¡Sÿ ¬˝‚flÊ ¡ªêÿÊŒ◊ lÊflʬÎÁÕflË Áfl‡flM§¬. •Ê ◊Ê ªãÃÊ¢ Á¬Ã⁄UÊ ◊ÊÃ⁄UÊ øÊ ◊Ê ‚Ê◊Ê •◊ÎÃûflŸ ªêÿÊØ. flÊÁ¡ŸÊ flÊ¡Á¡ÃÊ flÊ¡ ¦ ‚‚ÎflÊ ¦ ‚Ê ’΄US¬Ã÷ʸª◊flÁ¡ÉÊ˝Ã ÁŸ◊Ρʟʗ.. (19) Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ¬œÊ⁄¥U . ‚÷Ë ŒflÃÊ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •Ê∞¢. ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •Ê∞¢. „U◊¥ ‚Ê◊ ⁄U‚ ∑§ M§¬ ◊¥ •◊Îà ¬˝Êåà „UÊ. ÿÈh ◊¥ ¡Ëß flÊ‹ flË⁄U •ÊÒ⁄U ’‹‡ÊÊ‹Ë „UÊ¥. ’΄US¬Áà Œfl ∑§ •ããÊ ÷ʪ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ◊Ÿ ‚ ¬˝Êåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (19) •Ê¬ÿ SflÊ„UÊ Sflʬÿ SflÊ„UÊÁ¬¡Êÿ SflÊ„UÊ ∑˝§Ãfl SflÊ„UÊ fl‚fl SflÊ„UÊ„U¬¸Ãÿ SflÊ„UÊqÔU ◊ÈÇœÊÿ SflÊ„UÊ ◊ÈÇœÊÿ flÒŸ ¦ Á‡ÊŸÊÿ SflÊ„UÊ ÁflŸ ¦ Á‡ÊŸ ˘ •ÊãàÿÊÿŸÊÿ SflÊ„UÊãàÿÊÿ ÷ÊÒflŸÊÿ SflÊ„UÊ ÷ÈflŸSÿ ¬Ãÿ SflÊ„UÊÁœ¬Ãÿ SflÊ„UÊ.. (20) ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¬Ÿ ‚Èπ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’Ê⁄U’Ê⁄U ¡ã◊ ‹Ÿ flÊ‹ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿôÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl‚È Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁŒŸ¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊ÊÁ„Uà ∑§⁄UŸ flÊ‹ ÁŒŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¢ÃªÁà Ã∑§ ¬„È¢UøÊŸ flÊ‹ •ÁflŸÊ‡ÊË „UÃÈ SflÊ„UÊ. ‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÷ÈflŸ¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Áœ¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (20) •ÊÿÈÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ¬˝ÊáÊÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ øˇÊÈÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ üÊÊòÊ¢ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ¬ÎcΔ¢U ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ÿôÊÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ◊˜. ¬˝¡Ê¬Ã— ¬˝¡Ê ˘ •÷Í◊ SflŒ¸flÊ ˘ •ªã◊Ê◊ÎÃÊ ˘ •÷Í◊.. (21) ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ’…∏U. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§Ë ’…U∏ÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ŸòÊÖÿÊÁà ’…U∏. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË üÊfláʇÊÁÄà ’…∏U. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ¬ËΔU ’…∏U. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U „UÊ. „U◊ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë ¬˝¡Ê „UÊ¥. „U◊ •¬Ÿ ◊¥ Œflàfl ¬Ê∞¢. „U◊ •◊⁄UÃÊ ¬Ê∞¢. (21) •S◊ flÊ ˘ •ÁSàflÁãº˝ÿ◊S◊ ŸÎêáÊ◊Èà ∑˝§ÃÈ⁄US◊ fløʸ ¦ Á‚ ‚ãÃÈ fl—. Ÿ◊Ê ◊ÊòÊ ¬ÎÁÕ√ÿÒ Ÿ◊Ê ◊ÊòÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ ßÿ¢ à ⁄UÊ«UKãÃÊÁ‚ ÿ◊ŸÊ œÈ˝flÊÁ‚ œL§áÊ—. ∑ΧcÿÒ àflÊ ˇÊ◊Êÿ àflÊ ⁄UƒÿÒ àflÊ ¬Ê·Êÿ àflÊ.. (22) ÿ¡Èfl¸Œ - 111
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
¬ÎâflË ◊ÊÃÊ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. •Ê¬ ∑§ œŸ „U◊¥ ¬˝Êåà „UÊ¥. •Ê¬ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ, áÁSflÃÊ fl •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ „U◊¥ ¬˝Êåà „UÊ. •Ê¬ ÁSÕ⁄U •ÊÒ⁄U œÊ⁄UáʇÊË‹ „Ò¥U. „U◊ ∑ΧÁ· •ÊÒ⁄U •¬ŸË ∑ȧ‡Ê‹ ˇÊ◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë ‡Ê⁄UáÊ ◊¥ •Êà „Ò¥U. „U◊ œŸ ¬˝ÊÁåà fl •¬Ÿ ¬Ê·áÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë ‡Ê⁄UáÊ ◊¥ •Êà „Ò¥U. (22) flÊ¡Sÿ◊¢ ¬˝‚fl— ‚È·Èfl ˘ ª˝ ‚Ê◊ ¦ ⁄UÊ¡ÊŸ◊Ê·œËcflå‚È. ÃÊ ˘ •S◊èÿ¢ ◊œÈ◊ÃË÷¸flãÃÈ flÿ ¦ ⁄UÊCÔ˛U ¡ÊªÎÿÊ◊ ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ— S√ÊÊ„UÊ.. (23) ‚Ê◊ •Ê·ÁœÿÊ¥, ¡‹ ‚◊Í„U ∑§ ⁄UÊ¡Ê •ÊÒ⁄U ’‹flÊŸ „Ò¥U. ¬⁄U◊Á¬ÃÊ Ÿ ‚’ ‚ ¬„U‹ ‚Ê◊ ∑§Ê ¬˝∑§≈UÊÿÊ. fl ‚Ê◊⁄U‚ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊¥ ◊œÈ◊ÊŸ ’ŸÊ∞¢. „U◊ ⁄UÊc≈U˛U ∑§Ê ¡ÊªÎà ∑§⁄U ‚∑¥§. ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (23) flÊ¡Sÿ◊Ê¢ ¬˝‚fl— Á‡ÊÁüÊÿ ÁŒflÁ◊◊Ê ø Áfl‡flÊ ÷ÈflŸÊÁŸ ‚◊˝Ê≈U˜. •ÁŒà‚ã⠌ʬÿÁà ¬˝¡ÊŸãà‚ ŸÊ ⁄UÁÿ ¦ ‚fl¸flË⁄¢U ÁŸÿë¿UÃÈ SflÊ„UÊ.. (24) ¬⁄U◊Êà◊Ê Ÿ •ããÊ ©U¬¡ÊÿÊ „ÒU. ©Uã„UÊ¥Ÿ ‚Ê⁄U ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ‡Ê⁄UáÊ ŒË „ÒU. ©Uã„UÊ¥Ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ‡Ê⁄UáÊ ŒË „ÒU. ¬⁄U◊Á¬ÃÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬⁄U◊Á¬ÃÊ „U◊¥ ‚flʸÁœ∑§ flË⁄U ‚¢ÃÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ¬⁄U◊Á¬ÃÊ (‡ÊÈ÷ ∑§ÊÿÊZ) ∑§ Á‹∞ „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (24) flÊ¡Sÿ ŸÈ ¬˝‚fl ˘ •Ê’÷Ífl◊Ê ø Áfl‡flÊ ÷ÈflŸÊÁŸ ‚fl¸Ã—. ‚ŸÁ◊ ⁄UÊ¡Ê ¬Á⁄UÿÊÁà ÁflmÊŸ˜ ¬˝¡Ê¢ ¬ÈÁc≈¢U flœ¸ÿ◊ÊŸÊ •S◊ SflÊ„UÊ.. (25) ¬⁄U◊Á¬ÃÊ Ÿ •ããÊ ©U¬¡ÊÿÊ. ‚Ê⁄U ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. ‚’ •Ê⁄U ‚ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. ¬⁄U◊Á¬ÃÊ ‚fl¸ôÊÊÃÊ, ÁflmÊŸ˜, ¬˝¡Ê ¬Ê‹∑§ •ÊÒ⁄U ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ©UŸ ¬⁄U◊Á¬ÃÊ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„UÈÁà •Á¬¸Ã „ÒU. (25) ‚Ê◊ ¦ ⁄UÊ¡ÊŸ◊fl‚ÁÇŸ◊ãflÊ⁄U÷Ê◊„U. •ÊÁŒàÿÊÁãflcáÊÈ ¦ ‚ÍÿZ ’˝rÊÔÊáÊ¢ ø ’΄US¬Áà ¦ SflÊ„UÊ.. (26) ¬⁄U◊Á¬ÃÊ Ÿ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ⁄UÊ¡Ê, •ÁÇŸ •ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. „U◊ ÿôÊ ∑§ •Ê⁄¢÷ ◊¥ ©UŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÊÁŒàÿ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁflcáÊÈ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Íÿ¸ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’˝rÊÔ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ ’΄US¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (26) •ÿ¸◊áÊ¢ ’΄US¬ÁÃÁ◊ãº˝¢ ŒÊŸÊÿ øÊŒÿ. flÊø¢ ÁflcáÊÈ ¦ ‚⁄USflÃË ¦ ‚ÁflÃÊ⁄¢U ø flÊÁ¡Ÿ ¦ SflÊ„UÊ.. (27) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ •ÿ¸◊Ê ’΄US¬Áà •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ê ŒÊŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÁflcáÊÈ Œfl, ‚⁄USflÃË ŒflË, ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ flÊáÊË ‚Á„Uà SflÊ„UÊ. (27) 112 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@7
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
•ÇŸ •ë¿UÊ flŒ„U Ÿ— ¬˝Áà Ÿ— ‚È◊ŸÊ ÷fl. ¬˝ ŸÊ ÿë¿U ‚„UdÁ¡ûfl ¦ Á„U œŸŒÊ ˘ •Á‚ SflÊ„UÊ.. (28) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà •ë¿UÊ ◊Ÿ ⁄UÁπ∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ •ë¿UË Ã⁄U„U ◊ʪ¸ ÁŸŒ¸‡Ê •ÊÒ⁄U ©U¬Œ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •∑§‹ „UË „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê ¡Ëà ‚∑§Ã „Ò¥U. •Ê¬ œŸŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (28) ¬˝ ŸÊ ÿë¿Uàflÿ¸◊Ê ¬˝ ¬Í·Ê ¬˝ ’΄US¬Á×. ¬˝ flÊÇŒflË ŒŒÊÃÈ Ÿ— SflÊ„UÊ.. (29) •ÿ¸◊Ê Œfl, ¬Í·Ê Œfl, ’΄US¬Áà Œfl fl flÊÇʘ ŒflË „U◊Ê⁄UË •Á÷‹Ê·Ê ¬Í⁄UË ∑§⁄¥U. „U◊ •Ê¬ ‚’ ∑§Ê •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (29) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. ‚⁄USflàÿÒ flÊøÊ ÿãÃÈÿ¸ÁãòÊÿ ŒœÊÁ◊ ’΄US¬Ãc≈˜UflÊ ‚Ê◊˝ÊÖÿŸÊÁ÷Á·ÜøÊêÿ‚ÊÒ.. (30) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚’ ∑§Ê ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§Ë ’Ê„ÈU •ÊÒ⁄U ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ ÿôÊ Œfl ∑§Ë ™§¡Ê¸ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË flÊáÊË ‚ ÁŸÿ¢ÁòÊà ∑§⁄UÃË „Ò¥. ’΄US¬Áà Œfl üÊcΔU ‚Ê◊˝ÊÖÿ ∑§ ÁŸÿ¢òÊ∑§ „Ò¥U, ‚¢øÊ‹∑§ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚Ë¥øà „Ò¥U. (30) •ÁÇŸ⁄U∑§ÊˇÊ⁄UáÊ ¬˝ÊáÊ◊ÈŒ¡ÿûÊ◊ÈÖ¡·◊Á‡flŸÊÒ mKˇÊ⁄UáÊ Ám¬ŒÊ ◊ŸÈcÿÊŸÈŒ¡ÿÃÊ¢ ÃÊŸÈÖ¡·¢ ÁflcáÊÈSòÿˇÊ⁄UáÊ òÊË¥À‹Ê∑§ÊŸÈŒ¡ÿûÊÊŸÈÖ¡· ¦ ‚Ê◊‡øÃÈ⁄UˇÊ⁄UáÊ øÃÈc¬Œ— ¬‡ÊÍŸÈŒ¡ÿûÊÊŸÈÖ¡·◊˜.. (31) •ÁÇŸ Ÿ ∞∑§ •ˇÊ⁄U ‚ ™§äfl¸ªÊ◊Ë ¬˝ÊáÊ ¬⁄U Áfl¡ÿ „UÊÁ‚‹ ∑§Ë flÒ‚ „UË „U◊ ÷Ë Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. ŒÊ •ˇÊ⁄U ‚ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ŒÊ ¬Ò⁄UÊ¥ flÊ‹ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ¡ËÃÊ. „U◊ ÷Ë ©U‚ ¡Ëà ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. ÁflcáÊÈ Œfl Ÿ ÃËŸ •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸. „U◊ ÷Ë ©U‚ ¡Ëà ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄¥U. ‚Ê◊ Ÿ øÊ⁄U •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§Ê ¡ËÃÊ, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U „U◊ ÷Ë ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ©U‚ ¡Ëà ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (31) ¬Í·Ê ¬ÜøÊˇÊ⁄UáÊ ¬Üø ÁŒ‡Ê ˘ ©UŒ¡ÿûÊÊ ˘ ©UÖ¡· ¦ ‚ÁflÃÊ ·«UˇÊ⁄UáÊ ·«ÎUÃÍŸÈŒ¡ÿûÊÊŸÈÖ¡·¢ ◊L§Ã— ‚åÃÊˇÊ⁄UáÊ ‚åà ª˝ÊêÿÊŸ˜ ¬‡ÊÍŸÈŒ¡ÿ°SÃÊŸÈÖ¡·¢ ’΄US¬ÁÃ⁄Uc≈UÊˇÊ⁄UáÊ ªÊÿòÊË◊ÈŒ¡ÿûÊÊ◊ÈÖ¡·◊˜.. (32) ¬Í·Ê ŒflÃÊ Ÿ ¬Ê¢ø •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ ¬Ê¢øÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, flÒ‚ „UË „U◊ ÷Ë Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. ‚ÁflÃÊ Œfl Ÿ ¿U„U •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ ¿U„U ´§ÃÈ•Ê¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, flÒ‚ „UË „U◊ ÷Ë Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ Ÿ ‚Êà •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ ‚Êà ªÊ¢flÊ¥ •ÊÒ⁄U ¬‡ÊÈ•Ê¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸. ’΄US¬Áà Œfl Ÿ •ÊΔU •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ ªÊÿòÊË ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U „U◊ ÷Ë Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. (32)
ÿ¡Èfl¸Œ - 113
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
Á◊òÊÊ ŸflÊˇÊ⁄UáÊ ÁòÊflÎà ¦ SÃÊ◊◊ÈŒ¡ÿûÊ◊ÈÖ¡·¢ flL§áÊÊ Œ‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ Áfl⁄UÊ¡◊ÈŒ¡ÿûÊÊ◊ÈÖ¡·Á◊ãº˝ ˘ ∞∑§ÊŒ‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ ÁòÊc≈ÈU÷◊ÈŒ¡ÿûÊÊ◊ÈÖ¡·¢ Áfl‡flŒflÊ mÊŒ‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ ¡ªÃË◊ÈŒ¡ÿ°SÃÊ◊ÈÖ¡·◊˜.. (33) Á◊òÊ Œfl Ÿ Ÿfl •ˇÊ⁄U ‚ ôÊÊŸ, ∑§◊¸ •ÊÒ⁄U ÷ÁÄà ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U „U◊ ÷Ë ©U‚ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. flL§áÊ Œfl Ÿ Œ‚ •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ Áfl⁄UÊ≈˜U ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, „U◊ ÷Ë ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. ߢº˝ Œfl Ÿ ÇÿÊ⁄U„U •ˇÊ⁄U ‚ ÁòÊc≈ÈU÷˜ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, flÒ‚ „UË „U◊ ÷Ë Áfl¡ÿ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. Áfl‡fl Ÿ ’Ê⁄U„U •ˇÊ⁄U ‚ ¡ªÃË ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, „U◊ ÷Ë flÒ‚ „UË Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. (33) fl‚flSòÊÿÊŒ‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ òÊÿÊŒ‡Ê ¦ SÃÊ◊◊ÈŒ¡ÿ°SÃ◊ÈÖ¡· ¦ L§º˝Ê‡øÃÈŒ¸‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ øÃÈŒ¸‡Ê ¦ SÃÊ◊◊ÈŒ¡ÿ°SÃ◊ÈÖ¡·◊ÊÁŒàÿÊ— ¬ÜøŒ‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ ¬ÜøŒ‡Ê ¦ SÃÊ◊◊ÈŒ¡ÿ°SÃ◊ÈÖ¡·◊ÁŒÁ× ·Ê«U‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ ·Ê«U‡Ê ¦ SÃÊ◊◊ÈŒ¡ÿûÊ◊ÈÖ¡·¢ ¬˝¡Ê¬Á× ‚åÃŒ‡ÊÊˇÊ⁄UáÊ ‚åÃŒ‡Ê ¦ SÃÊ◊◊ÈŒ¡ÿûÊ◊ÈÖ¡·◊˜.. (34) Ã⁄U„U •ˇÊ⁄UÊ¥ ‚ fl‚ÈŒfl Ÿ òÊÿÊŒ‡Ê SÃÊ◊ ∑§Ê ¡ËÃÊ, flÒ‚ „UË „U◊ ÷Ë Áfl¡ÿ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. L§º˝ Œfl Ÿ øÊÒŒ„U •ˇÊ⁄UÊ¥ ∑§ ¬˝÷Êfl ‚ øÊÒŒ„U SÃÊ◊ (ªÈáʪʟ) ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, „U◊ ÷Ë ©U‚ ∑§ ¬˝÷Êfl ‚ Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. •ÊÁŒàÿ Œfl Ÿ ¬¢º˝„U •ˇÊ⁄UÊ¥ ∑§ ¬˝÷Êfl ‚ ¬¢º˝„U SÃÊòÊÊ¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, „U◊ ÷Ë flÒ‚ „UË Áfl¡ÿ ¬Ê∞¢. •ÁŒÁà ŒflÃÊ Ÿ ‚Ê‹„U SÃÊ◊ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, „U◊ ÷Ë ©UŸ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. ‚òÊ„U •ˇÊ⁄U ‚ ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ‚òÊ„U SÃÊ◊ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬Ê߸, „U◊ ÷Ë ©U‚ Áfl¡ÿ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (34) ∞· à ÁŸ´¸§Ã ÷ʪSâ ¡È·Sfl SflÊ„UÊÁÇŸŸòÊèÿÊ Œflèÿ— ¬È⁄U— ‚jK— SflÊ„UÊ ÿ◊ŸòÊèÿÊ ŒflèÿÊ ŒÁˇÊáÊÊ‚jK— SflÊ„UÊ Áfl‡flŒflŸòÊèÿÊ Œflèÿ— ¬‡øÊà‚jK— SflÊ„UÊ Á◊òÊÊflL§áÊŸòÊèÿÊ flÊ ◊L§ãŸòÊèÿÊ flÊ Œflèÿ ˘ ©UûÊ⁄UÊ‚jK— SflÊ„UÊ ‚Ê◊ŸòÊèÿÊ Œflèÿ ˘ ©U¬Á⁄U‚jKÊ ŒÈflSfljK— SflÊ„UÊ.. (35) „U ¬ÎâflË! ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê Á„US‚Ê „ÒU. •Ê¬ ß‚ SflË∑§ÊÁ⁄U∞. ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒÁˇÊáÊË ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ ÿ◊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Áfl‡fl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ÿÊ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§¬⁄U •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚÷Ë ŒflªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (35) ÿ ŒflÊ ˘ •ÁÇŸŸòÊÊ— ¬È⁄U—‚ŒSÃèÿ— SflÊ„UÊ ÿ ŒflÊ ÿ◊ŸòÊÊ ŒÁˇÊáÊÊ‚ŒSÃèÿ— SflÊ„UÊ ÿ ŒflÊ Áfl‡flŒflŸòÊÊ— ¬‡øÊà‚ŒSÃèÿ— SflÊ„UÊ ÿ ŒflÊ Á◊òÊÊflL§áÊŸòÊÊ flÊ ◊L§ãŸòÊÊ flÊûÊ⁄UÊ‚ŒSÃèÿ— SflÊ„UÊ ÿ ŒflÊ— ‚Ê◊ŸòÊÊ˘©U¬Á⁄U‚ŒÊ ŒÈflSflãÃSÃèÿ— SflÊ„UÊ.. (36) •ÁÇŸ ∑§ ‚ÊÕ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ ÿ◊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ 114 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ŸÊÒflÊ¢ •äÿÊÿ
flÊ‹ Áfl‡fl Œfl ‚Á„Uà ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ Á◊òÊÊflL§áÊ Œfl •ÊÒ⁄U ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§¬⁄U •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‚Ê◊ ‚Á„Uà •ãÿ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (36) •ÇŸ ‚„USfl ¬ÎÃŸÊ ˘ •Á÷◊ÊÃË⁄U¬ÊSÿ. ŒÈCÔU⁄USÃ⁄UãŸ⁄UÊÃËfl¸øʸœÊ ÿôÊflÊ„UÁ‚.. (37) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê „U⁄UÊß∞. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê ¡ËÃŸÊ ŒÈ‹¸÷ „Ò. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ◊¢òʬÍfl¸∑§ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê •ããÊ ŒËÁ¡∞. áSflË ’ŸÊß∞. (37) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. ©U¬Ê ¦ ‡ÊÊfl˸ÿ¸áÊ ¡È„UÊÁ◊ „Uà ¦ ⁄UˇÊ— SflÊ„UÊ ⁄UˇÊ‚Ê¢ àflÊ flœÊÿÊflÁœc◊ ⁄UˇÊÊflÁœc◊Ê◊È◊‚ÊÒ „U×.. (38) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ë ÷È¡Ê•Ê¥ •ÊÒ⁄U ¬Í·Ê ŒflÃÊ ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê „UÁfl ø…∏UÊà „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ ‡ÊÍ⁄UflË⁄UÃÊ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê πŒ«∏Ê,U ◊Ê⁄Ê.U ¡Ò‚ ÿ„U ⁄UÊˇÊ‚ ◊Ê⁄UÊ ªÿÊ flÒ‚ „UË ‡ÊòÊÈ ÷Ë ◊Ê⁄U ¡Ê∞¢. (38) ‚ÁflÃÊ àflÊ ‚flÊŸÊ ¦ ‚ÈflÃÊ◊ÁÇŸª¸Î„U¬ÃËŸÊ ¦ ‚Ê◊Ê flŸS¬ÃËŸÊ◊˜. ’΄US¬ÁÃflʸø ˘ ßãº˝Ê ÖÿÒcΔUKÊÿ L§º˝— ¬‡ÊÈèÿÊ Á◊òÊ— ‚àÿÊ flL§áÊÊ œ◊¸¬ÃËŸÊ◊˜.. (39) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ªÎ„U¬ÁÃÿÊ¥ ∑§Ê (ÿôÊ ∑§ Á‹∞) ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚Ê◊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê flŸS¬Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ’΄US¬Áà Œfl „U◊¥ flÊáÊË ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl „U◊¥ ÖÿcΔUÃÊ (’«U∏Ê߸) ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. L§º˝ Œfl „U◊¥ ¬‡ÊÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Á◊òÊ Œfl „U◊¥ ‚àÿflÊŒË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flL§áÊ Œfl „U◊¥ œ◊¸ ¬Ê‹∑§ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (39) ß◊¢ ŒflÊ ˘ •‚¬àŸ ¦ ‚Èfläfl¢ ◊„Uà ˇÊòÊÊÿ ◊„Uà ÖÿÒcΔUKÊÿ ◊„Uà ¡ÊŸ⁄UÊÖÿÊÿãº˝SÿÁãº˝ÿÊÿ. ß◊◊◊Ècÿ ¬ÈòÊ◊◊ÈcÿÒ ¬ÈòÊ◊SÿÒ Áfl‡Ê ˘ ∞· flÊ◊Ë ⁄UÊ¡Ê ‚Ê◊ÊS◊Ê∑¢§ ’˝ÊrÊÔáÊÊŸÊ ¦ ⁄UÊ¡Ê.. (40) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! ‚Ê◊ ⁄UÊ¡Ê „Ò¥. ‚Ê◊ „U◊ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§ ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. ‚Ê◊ •◊È∑§ ¬ÈòÊ •◊È∑§ ∑§ ¬ÈòÊ ¬⁄U •¬ŸË ∑Χ¬Ê ’ŸÊ∞ ⁄Uπ¥. ÿ ŒflªáÊ ◊„UÊŸ˜ ˇÊÁòÊÿ ¡Ò‚Ê ’‹ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄¥U. ◊„UÊŸ˜ ⁄UÊÖÿ fl ◊„UÊŸ ¡Ÿ ⁄UÊÖÿ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊¥ ߢº˝ Œfl ¡Ò‚Ê ‚◊ÎÁh‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (40)
ÿ¡Èfl¸Œ - 115
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ •¬Ê ŒflÊ ◊œÈ◊ÃË⁄UªÎèáÊãŸÍ¡¸SflÃË ⁄UÊ¡SflÁ‡øÃÊŸÊ—. ÿÊÁ÷Ì◊òÊÊflL§áÊÊflèÿÁ·ÜøãÿÊÁ÷Á⁄Uãº˝◊ŸÿãŸàÿ⁄UÊÃË—.. (1) ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ◊œÈ⁄U, ™§¡¸SflË, ⁄UÊ¡ÊÁøà fl øÃŸÊ ¡ªÊŸ flÊ‹Ê ¡‹ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ. Á¡Ÿ ¡‹Ê¥ ‚ Á◊òÊ, flL§áÊ •ÊÁŒ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Á÷·∑§ Á∑§ÿÊ ÃÕÊ •ãÿ ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ Á¡Ÿ ¡‹Ê¥ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •Á÷·∑§ Á∑§ÿÊ, „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ¡‹Ê¥ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ ¡‹ ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ „Ò¥U. (1) flÎcáÊ ˘ ™§Á◊¸⁄UÁ‚ ⁄UÊc≈U˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒÁ„U SflÊ„UÊ flÎcáÊ ˘ ™§Á◊¸⁄UÁ‚ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈U˛U◊◊Èc◊Ò ŒÁ„U flÎcÊ‚ŸÊÁ‚ ⁄UÊc≈UÔ˛UŒÊ ⁄UÊc≈¢˛U ◊ ŒÁ„U SflÊ„UÊ flη‚ŸÊÁ‚ ⁄UÊc≈˛U ŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒÁ„U.. (2) ¡‹œÊ⁄UÊ∞¢ ‹„U⁄UŒÊ⁄U, ’‹flÃË, ⁄UÊc≈U˛ŒÊÁÿŸË „Ò¥. fl ◊È¤Ê ⁄UÊc≈U˛ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl Áfl‡ÊÊ‹ ‚ŸÊ flÊ‹Ë „Ò¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl ⁄UÊc≈˛UŒÊÁÿŸË „Ò¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl ◊È¤Ê ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl Áfl‡ÊÊ‹ ‚ŸÊ flÊ‹Ë „Ò¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl Áfl‡ÊÊ‹ ⁄UÊc≈˛UŒÊÁÿŸË „Ò¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U◊¥ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (2) •Õ¸Ã SÕ ⁄UÊc≈U˛UŒÊ ⁄UÊCÔ˛¢U ◊ ŒûÊ SflÊ„UÊոà SÕ ⁄UÊc≈˛U ŒÊ ⁄UÊc≈˛U ◊◊Èc◊Ò ŒûÊÊÒ¡SflÃË SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ SflÊ„UÊÒ¡SflÃË SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒûÊʬ— ¬Á⁄UflÊÁ„UáÊË SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ SflÊ„Uʬ— ¬Á⁄UflÊÁ„UáÊË SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛◊◊Èc◊Ò ŒûÊʬʢ ¬ÁÃ⁄UÁ‚ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒÁ„U SflÊ„Uʬʢ ¬ÁÃ⁄UÁ‚ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒsԬʢ ª÷ʸÁ‚ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒÁ„U SflÊ„Uʬʢ ª÷ʸÁ‚ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒÁ„U.. (3) ÿ ¡‹ •Õ¸ŒÊÿË „Ò¥U. „U◊¥ •Õ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. ÿ ¡‹ ⁄UÊc≈˛UŒÊÿË „Ò¥U. „U◊¥ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿ ¡‹ ™§¡Ê¸UŒÊÿË „Ò¥U. „U◊¥ ™§¡Ê¸U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. ÿ ¡‹ ⁄UÊc≈˛UŒÊÿË „Ò¥U. „U◊¥ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. ÿ ¡‹ ¬⁄UÊ∑˝§◊ŒÊÿË „Ò¥U. „U◊¥ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥. ÿ ¡‹ ⁄UÊc≈˛U ŒÊÿË „Ò¥U. „U◊¥ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U . ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿ ¡‹ ¬⁄UÊ∑˝§◊UŒÊÿË „Ò¥U. „U◊¥ ¬⁄UÊ∑˝§◊U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U . ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿ ¡‹ ‚’ ¡‹Ê¥ ∑§ ¬Ê‹∑§¬Ê·∑§ „Ò¥U ÃÕÊ ©Uã„¥U •¬Ÿ •œËŸ ⁄UπŸ ◊¥ ‚ˇÊ◊ „Ò¥U. „U◊¥ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U . ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿ ¡‹ ‚’ ¡‹Ê¥ 116 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê ª÷¸ ◊¥ ⁄Uπà „Ò¥U. •¬Ÿ ‡ÊÊ‚Ÿ ◊¥ ⁄UπŸ ◊¥ ‚ˇÊ◊ „Ò¥U . „U◊¥ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U . ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (3) ‚Íÿ¸àflø‚ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ SflÊ„UÊ ‚Íÿ¸àflø‚ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒûÊ ‚Íÿ¸flø¸‚ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ ‚Íÿ¸flø¸‚ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛◊◊Èc◊Ò ŒûÊ ◊ÊãŒÊ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ ◊ÊãŒÊ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒûÊ fl˝¡ÁˇÊà SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ fl˝¡ÁˇÊà SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒûÊ flʇÊÊ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ flʇÊÊ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒûÊ ‡ÊÁflcΔUÊ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ ‡ÊÁflcΔUÊ SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛◊◊Èc◊Ò ŒûÊ ‡ÊÄfl⁄UË SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ ‡ÊÄfl⁄UË SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒûÊ ¡Ÿ÷Îà SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ ¡Ÿ÷Îà SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛◊◊Èc◊Ò ŒûÊ Áfl‡fl÷Îà SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛¢U ◊ ŒûÊ S√ÊÊ„UÊ Áfl‡fl÷Îà SÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛◊◊Èc◊Ò ŒûÊʬ— Sfl⁄UÊ¡ SUÕ ⁄UÊc≈˛UŒÊ ⁄UÊc≈˛U◊◊Èc◊Ò ŒûÊ. ◊œÈ◊ÃË◊¸œÈ◊ÃËÁ÷— ¬ÎëÿãÃÊ¢ ◊Á„U ˇÊòÊ¢ ˇÊÁòÊÿÊÿ flãflÊŸÊ ˘ •ŸÊœÎCÔUÊ— ‚ˌà ‚„UÊÒ¡‚Ê ◊Á„U ˇÊòÊ¢ ˇÊÁòÊÿÊÿ ŒœÃË—.. (4) „U ¡‹! •Ê¬ ‚Íÿ¸ ∑§Ë àfløÊ ◊¥ ÁSÕà „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊc≈˛UŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹! •Ê¬ •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •ÊŸ¢Œ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹! •Ê¬ ⁄UÊc≈˛UŒÊÿË „ÒU¢. •Ê¬ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹! •Ê¬ ¬‡ÊȬʋ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ¬‡ÊÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹! •Ê¬ ’‹ŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ’‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹! •Ê¬ ⁄UÊc≈˛UŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹! •Ê¬ ˇÊ◊ÃÊŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ˇÊ◊ÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¡‹! •Ê¬ ⁄UÊc≈˛UŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¡ŸÃÊ ∑§Ê ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ Áfl‡fl ∑§Ê ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊc≈˛U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ „U◊¥ ◊œÈ⁄U◊œÈ⁄U ¡‹œÊ⁄UÊ•Ê¥ ◊¥ ‚Ë¥øŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ ˇÊÁòÊÿÊÁøà ’‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚Ê„U‚ fl ’‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ˇÊÁòÊÿÊÁøà ‚Ê◊âÿ¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ„UÊ¢ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (4) ‚Ê◊Sÿ ÁàflÁ·⁄UÁ‚ Ãflfl ◊ ÁàflÁ·÷͸ÿÊØ. •ÇŸÿ SflÊ„UÊ ‚Ê◊Êÿ SflÊ„UÊ ‚ÁflòÊ SflÊ„UÊ ‚⁄USflàÿÒ SflÊ„UÊ ¬ÍcáÊ SflÊ„UÊ ’΄US¬Ãÿ SflÊ„Uãº˝Êÿ SflÊ„UÊ ÉÊÊ·Êÿ SflÊ„UÊ ‡‹Ê∑§Êÿ SflÊ„UÊ ¦ ‡ÊÊÿ SflÊ„UÊ ÷ªÊÿ SflÊ„UÊÿ¸êáÊ SflÊ„UÊ.. (5) Á¡‚ ¬˝∑§Ê⁄U ‚Ê◊ •ÊÁŒ ŒflÃÊ ∞‡flÿ¸flÊŸ „Ò¥U, „U◊ ÷Ë flÒ‚ „UË ∞‡flÿ¸flÊŸ „UÊ ¡Ê∞¢. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Ê◊ Œfl ∑§ Á‹∞ S√ÊÊ„UÊ. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿ¡Èfl¸Œ - 117
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’΄US¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÉÊÊcÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÉÊÊcÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∞‡flÿ¸ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ŒflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÿ¸◊Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊÒ÷ÊÇÿ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (5) ¬ÁflòÊ SÕÊ flÒcáÊ√ÿÊÒ ‚ÁflÃÈfl¸— ¬˝‚fl ˘ ©Uà¬ÈŸÊêÿÁë¿Uº˝áÊ ¬ÁflòÊáÊ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡◊Á÷—. •ÁŸ÷Îc≈U◊Á‚ flÊøÊ ’ãœÈSìʡʗ ‚Ê◊Sÿ ŒÊòÊ◊Á‚ SflÊ„UÊ ⁄UÊ¡Sfl—.. (6) •Ê¬ ¬ÁflòÊÃÊ ◊¥ ÁSÕà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ÁflcáÊÈ ∑§ Á‹∞ ¬ÁflòÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ©Uà¬ãŸ „UÊà „Ò¥U. ¬ÁflòÊ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ⁄UÁ‡◊ÿÊ¥ ‚ ¿UŸ ∑§⁄U ¡‹ •Ê∑§Ê‡Ê ◊¥ ¡ÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ‚Íÿ¸ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flÊáÊË ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ì‡ÊÁÄà ¬˝ŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§Ê ⁄UÊ¡ÊÁøà ¬ÊòÊÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U ‚∑§Ã „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (6) ‚œ◊ÊŒÊ lÈÁ꟟Ë⁄Uʬ ˘ ∞ÃÊ ˘ •ŸÊœÎCÔUÊ ˘ •¬SÿÊ fl‚ÊŸÊ—. ¬SàÿÊ‚È ø∑˝§ flL§áÊ— ‚œSÕ◊¬Ê ¦ Á‡Ê‡ÊÈ◊ʸÃÎÃ◊ÊSflã×.. (7) ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¡‹ „Ò¥U. ÿ ¡‹ •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „Ò¥U. ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¡‹ „Ò¥U. ÿ áÁSflÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿU Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¡‹ „Ò¥U. ÿ ©UûÊ◊ flÊ‚ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¡‹ „Ò¥U. ÿ œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¡‹ „Ò¥U. ÿ ◊ÊÃÊ ∑§Ë Ã⁄U„U ¬Ê·∑§ „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ‚ÊŒ⁄U ߟ ¡‹Ê¥ ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄à „Ò¥U. (7) ˇÊòÊSÿÊÀ’◊Á‚ ˇÊòÊSÿ ¡⁄UʃflÁ‚ ˇÊòÊSÿ ÿÊÁŸ⁄UÁ‚ ˇÊòÊSÿ ŸÊÁ÷⁄U‚Ëãº˝Sÿ flÊòʸɟ◊Á‚ Á◊òÊSÿÊÁ‚ flL§áÊSÿÊÁ‚ àflÿÊÿ¢ flÎòÊ¢ flœÃ˜. ŒÎflÊÁ‚ L§¡ÊÁ‚ ˇÊÈ◊ÊÁ‚ ¬ÊÃÒŸ¢ ¬˝ÊÜø¢ ¬ÊÃÒŸ¢ ¬˝àÿÜø¢ ¬ÊÃÒŸ¢ ÁÃÿ¸Üø¢ ÁŒÇèÿ— ¬ÊÃ.. (8) „U ¡‹! •Ê¬ ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§ ª÷¸¬Ê·∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ª÷¸ ⁄UˇÊ∑§ Á¤ÊÀ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ŸÊÁ÷ „Ò¥U. •Ê¬ flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ Á◊òÊ Œfl ∑§Ë Ã⁄U„U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê flœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ Œfl ∑§Ë Ã⁄U„U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê flœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ÁflŒËáʸ ŒÃ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬Ë«∏UÊ ŒÃ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê «U⁄UÊ ŒÃ „Ò¥U. •Ê¬ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ‚ (ß‚ ÿôÊ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ‚ (ß‚ ÿôÊ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ‚ (ß‚ ÿôÊ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (8) •ÊÁfl◊¸ÿʸ •ÊÁflûÊÊ •ÁÇŸªÎ¸„U¬ÁÃ⁄UÊÁflûÊ ˘ ßãº˝Ê flÎhüÊflÊ ˘ •ÊÁflûÊÊÒ Á◊òÊÊflL§áÊÊÒ œÎÃfl˝ÃÊflÊÁflûÊ— ¬Í·Ê Áfl‡flflŒÊ ˘ •ÊÁflûÊ lÊflʬÎÁÕflË Áfl‡fl‡Êê÷ÈflÊflÊÁflûÊÊÁŒÁÃL§L§‡Ê◊ʸ.. (9) ‚÷Ë •Êÿ¸ ‹Êª (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ªÎ„U¬Áà •ÁÇŸ (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ‡ÊSflË ß¢º˝ Œfl (ß‚ ÿôÊ 118 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ∞‡flÿ¸flÊŸ Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl˝ÃœÊ⁄UË ¬Í·Ê Œfl (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚◊Sà Œfl (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Sflª¸‹Ê∑§ (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬ÎâflË ŒflË Áfl‡fl ∑§Ê ‡ÊÈ÷ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „ÒU. (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚ÈπŒÊÿË •ÁŒÁà ◊ÊÃÊ ‡ÊÈ÷ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „ÒU. (ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ∑§Ë) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) •flCÔUÊ ŒãŒ‡ÊÍ∑§Ê— ¬˝ÊøË◊Ê⁄UÊ„U ªÊÿòÊË àflÊflÃÈ ⁄UÕãÃ⁄ ¦ ‚Ê◊ ÁòÊflÎàSÃÊ◊Ê fl‚ãà ˘ ´§ÃÈ’¸˝rÊÔ º˝ÁfláÊ◊˜.. (10) ÿôÊ ∑§Ê „UÊÁŸ ¬„È¢UøÊŸ flÊ‹ ¡Ëfl¡¢ÃÈ Ÿc≈U „UÊ ª∞. •Ê¬ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ªÊÿòÊË, ⁄UÕ¢Ã⁄U ‚Ê◊ fl fl‚¢Ã ´§ÃÈ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ’˝rÊÔ œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (10) ŒÁˇÊáÊÊ◊Ê⁄UÊ„U ÁòÊc≈ÈU¬˜ àflÊflÃÈ ’΄Uà‚Ê◊ ¬ÜøŒ‡Ê SÃÊ◊Ê ª˝Ëc◊ ˘ ´§ÃÈ— ˇÊòÊ¢ º˝ÁfláÊ◊˜.. (11) •Ê¬ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÁòÊc≈ÈU¬˜ M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ’΄Uà‚Ê◊ M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬¢øŒ‡Ê SÃÊ◊ œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ M§¬Ë fl ¬ÊÒL§· M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (11) ¬˝ÃËøË◊Ê⁄UÊ„U ¡ªÃË àflÊflÃÈ flÒM§¬ ¦ ‚Ê◊ ‚åÃŒ‡Ê SÃÊ◊Ê fl·Ê¸ ´§ÃÈÌfl«U˜ º˝ÁfláÊ◊˜.. (12) •Ê¬ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ë •Ê⁄U ’…U∏Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡ªÃË M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. flÒM§¬ ‚Ê◊M§¬Ë, Œ‡Ê SÃÊ◊ M§¬Ë fl fl·Ê¸ ´§ÃÈ M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. (12) ©UŒËøË◊Ê⁄UÊ„UÊŸÈc≈Ȭ˜ àflÊflÃÈ flÒ⁄UÊ¡ ¦ ‚Ê◊Ò∑§Áfl ¦ ‡Ê SÃÊ◊— ‡Ê⁄UŒÎÃÈ— »§‹¢ ŒÁfláÊ◊˜.. (13) •Ê¬ ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ë •Ê⁄U ’…U∏Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ŸÈc≈ÈU¬˜ M§¬Ë »§‹ŒÊÿË œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flÒ⁄UÊ¡ ‚Ê◊ M§¬Ë »§‹ŒÊÿË œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ∞∑§Áfl¢‡Ê SÃÊ◊ »§‹ŒÊÿË œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‡Ê⁄UŒ ´§ÃÈ M§¬Ë »§‹ŒÊÿË œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (13) ™§äflʸ◊Ê⁄UÊ„U ¬æ˜UÁÄÃSàflÊflÃÈ ‡ÊÊÄfl⁄U⁄ÒUflà ‚Ê◊ŸË ÁòÊáÊflòÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÊÒ SÃÊ◊ÊÒ „U◊ãÃÁ‡ÊÁ‡Ê⁄UÊflÎÃÍ fløʸ º˝ÁfláÊ¢ ¬˝àÿSâ Ÿ◊Èø— Á‡Ê⁄U—.. (14) •Ê¬ ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ’…U∏Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬¢ÁÄà M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ‡ÊÊÄfl⁄U M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ⁄ÒUflà ‚Ê◊ M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ÿ¡Èfl¸Œ - 119
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÁòÊáÊfl, òÊÿÁSòÊ¢‡Ê, SÃÊ◊ M§¬Ë, „U◊¢Ã fl Á‡ÊÁ‡Ê⁄U ´§ÃÈ M§¬Ë œŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •ŸÊøÊÁ⁄UÿÊ¥ ∑§Ê ‚◊Í‹ Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (14) ‚Ê◊Sÿ ÁàflÁ·⁄UÁ‚ Ãflfl ◊ ÁàflÁ·÷͸ÿÊØ. ◊ÎàÿÊ— ¬ÊsÔÊ¡ÊÁ‚ ‚„UÊSÿ◊ÎÃ◊Á‚.. (15) •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§ ¬˝∑§Ê‡Ê∑§ fl ’‹‡ÊÊ‹Ë „Ò¥U. „U◊Ê⁄UÊ ∞‡flÿ¸ ÷Ë •Ê¬ ∑§ ∞‡flÿ¸ ¡Ò‚Ê „UÊ ¡Ê∞. •Ê¬ ◊ÎàÿÈ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ „UË ‚◊ÊŸ •◊⁄U „UÊ ¡Ê∞¢. (15) Á„U⁄UáÿM§¬Ê ˘ ©U·‚Ê Áfl⁄UÊ∑§ ˘ ©U÷ÊÁflãº˝Ê ˘ ©UÁŒÕ— ‚Íÿ¸‡ø. •Ê⁄UÊ„Uâ flL§áÊ Á◊òÊ ªÃZ ÃÇøˇÊÊÕÊ◊ÁŒ®Ã ÁŒ®Ã ø Á◊òÊÊÁ‚ flL§áÊÊÁ‚.. (16) „U Á◊òÊ Œfl! •Ê¬ ‚ÊŸ ¡Ò‚ M§¬ flÊ‹ „Ò¥U. „U flL§áÊ! •Ê¬ ‚ÊŸ ¡Ò‚ M§¬ flÊ‹ „Ò¥U. „U Á◊òÊ Œfl! •Ê¬ ©U·Ê•Ê¥ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U flL§áÊ! •Ê¬ ©U·Ê•Ê¥ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ‚Íÿ¸ fl ø¢º˝ Œfl ∑§Ë Ã⁄U„U ©UÁŒÃ „UÊà „Ò¥U. „U Á◊òÊ Œfl!, „U flL§áÊ Œfl! •Ê¬ ⁄UÕ ¬⁄U ø…∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ •ÁŒÁÃ, ÁŒÁÃ, Á◊òÊ fl flL§áÊ SflM§¬ „Ò¥U. (16) ‚Ê◊Sÿ àflÊ lÈ꟟ÊÁ÷Á·ÜøÊêÿÇŸ÷˝Ê¸¡‚Ê ‚Íÿ¸Sÿ flø¸‚ãº˝SÿÁãº˝ÿáÊ. ˇÊòÊÊáÊÊ¢ ˇÊòʬÁÃ⁄UäÿÁà ÁŒlÍŸ˜ ¬ÊÁ„U.. (17) „U ÿ¡◊ÊŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚Ê◊ ‚ •Á÷·∑§ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ÿ¡◊ÊŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§ á ‚ •Á÷·∑§ ∑§⁄à „Ò¥U. „U ÿ¡◊ÊŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚Íÿ¸ ∑§ flø¸Sfl ‚ •Á÷·∑§ ∑§⁄à „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ ’‹ ‚ •Á÷·∑§ ∑§⁄à „Ò¥U. •Ê¬ ˇÊÁòÊÿÊ¥ ◊¥ ˇÊòʬÁà ’Ÿ¥. •Ê¬ ¬˝¡Ê ∑§ ⁄UˇÊ∑§ ’Ÿ¥. (17) ß◊¢ ŒflÊ ˘ •‚¬àŸ ¦ ‚Èfläfl¢ ◊„Uà ˇÊòÊÊÿ ◊„Uà ÖÿÒcΔUKÊÿ ◊„Uà ¡ÊŸ⁄UÊÖÿÊÿãº˝SÿÁãº˝ÿÊÿ. ß◊◊◊Ècÿ ¬ÈòÊ◊◊ÈcÿÒ ¬ÈòÊ◊SÿÒ Áfl‡Ê ˘ ∞· flÊ◊Ë ⁄UÊ¡Ê ‚Ê◊ÊS◊Ê∑¢§ ’˝ÊrÊÔáÊÊŸÊ ¦ ⁄UÊ¡Ê.. (18) „U ŒflªáÊ! ‡ÊòÊȟʇÊ, üÊcΔU ∑§Êÿ¸, ◊„UÊŸ˜ ˇÊÁòÊÿ ’‹, ◊„UÊŸ˜ ’«∏UåU¬Ÿ fl ◊„UÊŸ˜ ¡Ÿ⁄UÊÖÿ „UÃÈ „U◊¥ ‡ÊÁÄà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U ŒflªáÊ! ◊„UÊŸ˜ ߢº˝ Œfl ¡Ò‚Ë ˇÊ◊ÃÊ „UÃÈ „U◊¥ ‡ÊÁÄà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U ŒflªáÊ! •◊È∑§ Á¬ÃÊ ∑§ ¬ÈòÊ fl •◊È∑§ ◊ÊÃÊ ∑§ ¬ÈòÊ ∑§Ê ‡ÊÁÄà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¬˝¡Ê ¬Ê‹Ÿ „UÃÈ „U◊¥ ‡ÊÁÄà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ÿ ‚Ê◊ „U◊ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§ ⁄UÊ¡Ê „ÒU¥ . (18) ¬˝ ¬fl¸ÃSÿ flη÷Sÿ ¬ÎcΔUÊãŸÊfl‡ø⁄UÁãà SflÁ‚ø ˘ ßÿÊŸÊ—. ÃÊ ˘ •ÊflflÎòÊ㟜⁄UʪȌÄÃÊ ˘ •®„U ’Èäãÿ◊ŸÈ ⁄UËÿ◊ÊáÊÊ—. ÁflcáÊÊÌfl∑˝§◊áÊ◊Á‚ ÁflcáÊÊÌfl∑˝§ÊãÃ◊Á‚ ÁflcáÊÊ— ∑˝§ÊãÃ◊Á‚.. (19) 120 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•Á÷·∑§ ∑§ ‚◊ÿ ’‹flÊŸ ‚Ê◊ ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ¬fl¸Ã ∑§Ë ¬ËΔU ‚ ’„UŸ flÊ‹Ë ¡‹œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§Ë Ã⁄U„U ’„UÃË „Ò¥U. ¡Ò‚ ¡‹œÊ⁄UÊ ¬fl¸Ã ∑§Ê …U∑§ ∑§⁄U ∑§ ’„UÃË „ÒU, flÒ‚ „UË ‚Ê◊ ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ œŸ flÒ÷fl ∑§ ¬fl¸Ã ∑§Ê …U∑§ ∑§⁄U ∑§ ’„UÃË „Ò¥U. flÒ‚ „UË ¬ÎâflË ÁflcáÊÈ ∑§ ¬˝Õ◊ ø⁄UáÊ ◊¥ ¡ËÃË ªß¸. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ÁflcáÊÈ ∑§ ÁmÃËÿ ø⁄UáÊ ◊¥ ¡ËÃÊ ªÿÊ. Sflª¸‹Ê∑§ ÁflcáÊÈ ∑§ ÃÎÃËÿ ø⁄UáÊ ◊¥ ¡ËÃÊ ªÿÊ. (19) ¬˝¡Ê¬Ã Ÿ àflŒÃÊãÿãÿÊ Áfl‡flÊ M§¬ÊÁáÊ ¬Á⁄U ÃÊ ’÷Ífl. ÿà∑§Ê◊ÊSà ¡È„ÈU◊SÃããÊÊ •Sàflÿ◊◊Ècÿ Á¬ÃÊ‚ÊflSÿ Á¬ÃÊ flÿ ¦ SÿÊ◊ ¬ÃÿÊ ⁄UÿËáÊÊ ¦ SflÊ„UÊ. L§º˝ ÿûÊ Á∑˝§Áfl ¬⁄¢U ŸÊ◊ ÃÁS◊ã„ÈUÃ◊Sÿ◊CÔU◊Á‚ SflÊ„UÊ.. (20) „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! ß‚ Áfl‡fl ◊¥ •Ê¬ ∑§ •‹ÊflÊ „U◊Ê⁄UÊ •ãÿ ∑§Ê߸ Ÿ„UË¥ „Ò¥U. •Ê¬ „UË Áfl‡flM§¬ „Ò¥U. „U◊ Á¡‚ ∑§Ê◊ŸÊ ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ©UŸ ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬Á⁄U¬Íáʸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÿ„U •◊È∑§ ∑§Ê Á¬ÃÊ „ÒU, „U◊ •◊È∑§ ∑§ Á¬ÃÊ „Ò¥U. „U◊ œŸÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „UÊ ¡Ê∞¢. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. L§º˝ Œfl ∑§ ÷Ë·áÊ fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË M§¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (20) ßãº˝Sÿ flÖÊ˝ÊÁ‚ Á◊òÊÊflL§áÊÿÊSàflÊ ¬˝‡ÊÊSòÊÊ— ¬˝Á‡Ê·Ê ÿÈŸÁÖ◊. •√ÿÕÊÿÒ àflÊ SflœÊÿÒ àflÊÁ⁄UCÔUÊ •¡È¸ŸÊ ◊L§ÃÊ¢ ¬˝‚flŸ ¡ÿʬÊ◊ ◊Ÿ‚Ê ‚Á◊Áãº˝ÿáÊ.. (21) •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ flÖÊ˝ „Ò¥U. Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl •Ê¬ ∑§ •SòʇÊSòÊ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê (‡ÊòÊÈŸÊ‡Ê „UÃÈ) ÁŸÿÈÄà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ „UÃÈ SflÊ„UÊ. •¡È¸Ÿ „UÃÈ SflÊ„UÊ. ◊L§ÃÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U◊ ◊Ÿ fl ߢÁº˝ÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§ ‚ÊÕ „Ò¥U. (21) ◊Ê Ã ˘ ßãº˝ à flÿ¢ ÃÈ⁄UÊ·Ê«UÿÈÄÃÊ‚Ê •’˝rÊÔÃÊ ÁflŒ‚Ê◊. ÁÃcΔUÊ ⁄UÕ◊Áœ ÿ¢ flÖÊ˝„USÃÊ ⁄U‡◊ËŸ˜ Œfl ÿ◊‚ Sfl‡flÊŸ˜.. (22) „U ߢº˝ Œfl! „U◊ ‚’ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ôÊÊŸË „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ‚’ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ’˝rÊôÊÊŸË „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ‚’ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ôÊÊÃÊ „UÊ ¡Ê∞¢. ¡Ò‚ ⁄UÕ ◊¥ ’ÒΔU ∑§⁄U ¬˝Á‡ÊÁˇÊà ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ë ‹ªÊ◊ ÕÊ◊ ‹Ë ¡ÊÃË „ÒU, flÒ‚ „UË flÖÊ˝ „UÊÕ flÊ‹ •Ê¬ ÿ◊⁄UÊ¡ ‚ „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊ ∑§ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ë ‹ªÊ◊ ÕÊÁ◊∞. (22) •ÇŸÿ ªÎ„U¬Ãÿ SflÊ„UÊ ‚Ê◊Êÿ flŸS¬Ãÿ SflÊ„UÊ ◊L§ÃÊ◊Ê¡‚ SflÊ„Uãº˝SÿÁãº˝ÿÊÿ SflÊ„UÊ. ¬ÎÁÕÁfl ◊ÊÃ◊ʸ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë◊ʸ •„¢U àflÊ◊˜.. (23) ªÎ„U¬Áà •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flŸS¬Áà ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¡SflË ◊L§Œ˜ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ߢÁº˝ÿ ‚Ê◊âÿ¸ŒÊÃÊ ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ! „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚Ê Ÿ ∑§⁄¥U. „U ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà Á„¢U‚Ê Ÿ ∑§⁄¥U. (23) ÿ¡Èfl¸Œ - 121
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„ ¦ ‚— ‡ÊÈÁø·m‚È⁄UãÃÁ⁄UˇÊ‚hÊÃÊ flÁŒ·ŒÁÃÁՌȸ⁄UÊáʂØ. ŸÎ·m⁄U‚ŒÎÂmKÊ◊ ‚Œé¡Ê ªÊ¡Ê ˘ ´§Ã¡Ê ˘ •Áº˝¡Ê ˘ ´§Ã¢ ’΄UØ.. (24) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ¬ÁflòÊ „Ò¥, •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ „UÊÃÊ fl ÿôÊ flŒË ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà „Ò¥. •Ê¬ •ÁÃÁÕ ¡Ò‚ •ÊŒ⁄UáÊËÿ fl ŸÃÎàfl ◊¥ •ª˝áÊË, ´§Ã ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUÃ, ¡‹Êà¬ÊŒ∑§ „Ò¥. •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹ ‚àÿ ’‹ ‚¢¬ãŸ „Ò¥. (24) ßÿŒSÿÊÿÈ⁄USÿÊÿÈ◊¸Áÿ œÁ„U ÿÈUæU˜ æUÁ‚ fløʸÁ‚ fløʸ ◊Áÿ œsÔª¸SÿÍ¡Z ◊Áÿ œÁ„U. ßãº˝Sÿ flÊ¢ flËÿ¸∑ΧÃÊ ’Ê„ÍU •èÿȬÊfl„U⁄UÊÁ◊.. (25) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ∑§Ë Á¡ÃŸË •ÊÿÈ „ÒU, •Ê¬ ßÃŸË „UË •ÊÿÈ „U◊¥ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ Á¡ÃŸ flø¸SflË „Ò¥U, •Ê¬ ©ÃŸÊ „UË flø¸Sfl „U◊¥ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ Á¡ÃŸ ™§¡¸SflË „Ò¥U, •Ê¬ ©UÃŸË „UË ™§¡Ê¸ „U◊¥ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë ’Ê„È ¡Ò‚ „Ò¥U. „U◊ ÿôÊËÿ ¬ŒÊÕ¸ ‹ ∑§⁄U •Ê¬ ∑§ ¬Ê‚ •Êà „Ò¥U. (25) SÿÊŸÊÁ‚ ‚È·ŒÊÁ‚ ˇÊòÊSÿ ÿÊÁŸ⁄UÁ‚. SÿÊŸÊ◊Ê‚ËŒ ‚È·ŒÊ◊Ê‚ËŒ ˇÊòÊSÿ ÿÊÁŸ◊Ê‚ËŒ.. (26) „U •Ê‚Ÿ Œfl! •Ê¬ ‚ÈπŒ fl ‚Èπ ‚ ’ÒΔUŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •Ê¬ ’‹ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ fl ‚ÈπŒ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Èπ ‚ ’ÒΔUŸ ÿÊÇÿ fl ’‹ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò¥U. (26) ÁŸ ·‚ÊŒ œÎÃfl˝ÃÊ flL§áÊ— ¬SàÿÊSflÊ. ‚Ê◊˝ÊÖÿÊÿ ‚È∑˝§ÃÈ—.. (27) ÿ¡◊ÊŸ fl˝ÃœÊ⁄UË „Ò¥U •ÊÒ⁄U fl„U •ÁŸc≈U ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚¢‹ÇŸ „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ üÊcΔU ⁄UÊÖÿ ¬˝ÊÁåà „UÃÈ ß‚ ‚ÈÿôÊ ∑§Ê ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. fl ¬˝¡Ê¬Ê‹∑§ ’Ÿ¥. (27) •Á÷÷Í⁄USÿÃÊSà ¬Üø ÁŒ‡Ê— ∑§À¬ãÃÊ¢ ’˝rÊÔ°Sàfl¢ ’˝rÊÔÊÁ‚ ‚ÁflÃÊÁ‚ ‚àÿ¬˝‚flÊ flL§áÊÊÁ‚ ‚àÿÊÒ¡Ê ˘ ßãº˝ÊÁ‚ Áfl‡ÊÊÒ¡Ê L§º˝ÊÁ‚ ‚ȇÊfl—. ’„ÈU∑§Ê⁄U üÊÿS∑§⁄U ÷ÍÿS∑§⁄Uãº˝Sÿ flÖÊ˝ÊÁ‚ ß ◊ ⁄Uäÿ.. (28) ÿ¡◊ÊŸ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬⁄UÊ÷Íà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ¬Ê¢øÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ∞¢ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. •Ê¬ ’˝rÊôÊÊÃÊ, ’˝rÊÊ, ‚ÁflÃÊ fl ‚àÿ ∑§ ©Uà¬ÊŒ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ, ‚àÿflÊŸ fl •Ê¡SflË „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ fl Áfl‡ÊÊ‹, •Ê¡SflË •ÊÒ⁄U L§º˝ „Ò¥U. •Ê¬ •ë¿U ∑§◊¸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ’„ÈUà üÊÿS∑§⁄U „Ò¥U. •Ê¬ fl¡˝ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (28) •ÁÇŸ— ¬ÎÕÈœ¸◊¸áÊS¬Ááȸ·ÊáÊÊ •ÁÇŸ— ¬ÎÕÈœ¸◊¸áÊS¬ÁÃ⁄UÊÖÿSÿ flÃÈ SflÊ„UÊ. SflÊ„UÊ∑ΧÃÊ— ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡◊Á÷ÿ¸Ãäfl ¦ ‚¡ÊÃÊŸÊ¢ ◊äÿ◊cΔUKÊÿ.. (29) •ÁÇŸ Áfl‡ÊÊ‹ „Ò¥U. •ÁÇŸ œ◊¸ ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. •ÁÇŸ ÿôÊ ◊¥ •ª˝áÊË „Ò¥U. •ÁÇŸ ‚ ÁŸflŒŸ „ÒU Á∑§ fl „U◊Ê⁄UÊ ◊Ÿ ¡ÊŸ¥. „U◊Ê⁄UË •Ê„ÈUÁà ∑§Ê SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ Sflÿ¢ ÷Ë ’‹flÊŸ „UÊ¥ ÃÕÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê 122 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
÷Ë ⁄UÊ¡Ê•Ê¥ ∑§ ◊äÿ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (29) ‚ÁflòÊÊ ¬˝‚ÁflòÊÊ ‚⁄USflàÿÊ flÊøÊ àflc≈˛UÊ M§¬Ò— ¬ÍcáÊÊ ¬‡ÊÈÁ÷Á⁄Uãº˝áÊÊS◊ ’΄US¬ÁÃŸÊ ’˝rÊÔáÊÊ flL§áÊŸÊÒ¡‚ÊÁÇŸŸÊ á‚Ê ‚Ê◊Ÿ ⁄UÊôÊÊ ÁflcáÊÈŸÊ Œ‡ÊêÿÊ ŒflÃÿÊ ¬˝‚Í× ¬˝ ‚¬Ê¸Á◊.. (30) ‚ÁflÃÊ Œfl ©Uà¬ÊŒ∑§ „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË ‚, ©UŸ ∑§Ë flÊáÊË ‚ „U◊ ¬˝Á⁄Uà „UÊà „Ò¥U. „U◊ àflc≈UÊ Œfl ∑§ M§¬ ‚ fl ¬‡ÊÈflÊŸ ¬Í·Ê Œfl ‚ ¬˝Á⁄Uà „UÊà „Ò¥U. „U◊ ‚Ê◊âÿ¸‡ÊÊ‹Ë ’΄US¬Áà fl •ÁÇŸ ∑§ á ‚ ¬˝Á⁄Uà „UÊà „Ò¥U. „U◊ ⁄UÊ¡Ê ‚Ê◊ ‚ ¬˝Á⁄Uà „UÊà „Ò¥U. „U◊ ¬Ê‹∑§ ÁflcáÊÈ ‚ ¬˝Á⁄Uà „UÊà „Ò¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ÁŒ√ÿ (∑§◊¸) ¬Õ ¬⁄U (¡ÊŸ „UÃÈ) ¬˝Á⁄Uà „UÊà „Ò¥U. (30) •Á‡flèÿÊ¢ ¬ëÿSfl ‚⁄USflàÿÒ ¬ëÿSflãº˝Êÿ ‚ÈòÊÊêáÊ ¬ëÿSfl. flÊÿÈ— ¬Í× ¬ÁflòÊáÊ ¬˝àÿæ˜U ∑˜§‚Ê◊Ê •ÁÃdÈ×. ßãº˝Sÿ ÿÈÖÿ— ‚πÊ.. (31) •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¬Á⁄U¬Äfl „UÊß∞. •Ê¬ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ¬Á⁄U¬Äfl „UÊß∞. ߢº˝ Œfl •ãÿ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÿÊÁ¡Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ¬Á⁄U¬Äfl „UÊß∞. flÊÿÈ ‚ ¬ÁflòÊ ‚Ê◊ ∑§Ê ÿôÊ ◊¥ üÊfláÊ „UÊ ⁄U„UÊ „Ò. ‚Ê◊ ߢº˝ Œfl ‚ ¡È«∏U „ÈU∞ „Ò¥U. ‚Ê◊ ߢº˝ Œfl ∑§ Á◊òÊ (‚πÊ) „Ò¥U. (31) ∑ȧÁflŒX ÿfl◊ãÃÊ ÿfl¢ ÁølÕÊ ŒÊãàÿŸÈ¬ÍflZ ÁflÿÍÿ. ß„U„ÒU·Ê¢ ∑ΧáÊÈÁ„U ÷Ê¡ŸÊÁŸ ÿ ’Ì„U·Ê Ÿ◊ ˘ ©ÁÄâ ÿ¡ÁãÃ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÁ‡flèÿÊ¢ àflÊ ‚⁄USflàÿÒ àflãº˝Êÿ àflÊ ‚ÈòÊÊêáÊ.. (32) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ∑§Ê ¬˝¡Ê ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ’⁄Uß ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ •Êß∞ •ÊÒ⁄U ÷Ê¡Ÿ ∑§ËÁ¡∞. ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ’ÒΔUŸ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‡ÊÊ‚Ÿ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ©UÁÄà (◊¢òÊÊ¥ ‚) ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ’⁄Uß ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ’⁄Uß ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ’⁄Uß ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊòÊÈ ŸÊ‡Ê „UÃÈ ’⁄Uß ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. (32) ÿÈfl ¦ ‚È⁄UÊ◊◊Á‡flŸÊ Ÿ◊ÈøÊflÊ‚È⁄U ‚øÊ. ÁflÁ¬¬ÊŸÊ ‡ÊÈ÷S¬ÃË ßãº˝¢ ∑§◊¸SflÊflÃ◊˜.. (33) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ Ÿ◊ÈÁø ⁄UÊˇÊ‚ ∑§ ¬Ê‚ ÁSÕà ‚Ê◊ ⁄U‚ ∑§Ê ÷Ë ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄U◊áÊËÿ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ÷Ë ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥.U ߢº˝ Œfl ‡ÊÈ÷ ∑§◊ʸ (‡ÊÈ÷ ∑§Ê◊ ∑§⁄UŸ flÊ‹) „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ߢº˝ Œfl ∑§ ⁄UˇÊ∑§ ’ŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (33)
ÿ¡Èfl¸Œ - 123
¬Íflʸœ¸
Œ‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬ÈòÊÁ◊fl Á¬Ã⁄UÊflÁ‡flŸÊ÷ãº˝ÊflÕÈ— ∑§Ê√ÿÒŒ¸ ¦ ‚ŸÊÁ÷—. ÿà‚È⁄UÊ◊¢ √ÿÁ¬’— ‡ÊøËÁ÷— ‚⁄USflÃË àflÊ ◊ÉÊflãŸÁ÷cáÊ∑§˜.. (34) „U ߢº˝ Œfl! Á¡‚ ¬˝∑§Ê⁄U Á¬ÃÊ ¬ÈòÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃÊ „Ò, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§ ‚¢¬∑¸§ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ ª‹Ã ◊¢òÊÊ¥ ‚ •‡ÊÈh „ÈU∞ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬Ë ∑§⁄U ÷Ë •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë. ¡’ ¬ÁflòÊ ◊ŒŒÊÿË ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê •Ê¬ Ÿ ¬ÊŸ Á∑§ÿÊ Ã’ flÊáÊË ∑§Ë ŒflË ‚⁄USflÃË •Ê¬ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ „ÈUßZ (•ÕʸØ •‡ÊÈhÃÊ ¡ãÿ ŒÊ· ‚ ŸÊ⁄UÊ¡ „ÈUßZ ÃଇøÊà ©UŸ ∑§Ë fl„U ŸÊ⁄UÊ¡ªË ŒÍ⁄U „ÈU߸). (34)
124 - ÿ¡Èfl¸Œ
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ÿÈÜ¡ÊŸ— ¬˝Õ◊¢ ◊ŸSÃûflÊÿ ‚ÁflÃÊ Áœÿ—. •ÇŸÖÿʸÁÃÌŸøʃÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •äÿÊ÷⁄UÃ.. (1) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚fl¸¬˝Õ◊ ◊Ÿ •ÊÒ⁄U ’ÈÁh ∑§Ê ¡Ê«∏Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ◊¥ ¬˝∑§Ê‡Ê ¡ªÊà „Ò¥U. ©U‚ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ¬ÎâflË ◊¢«U‹ ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ÷⁄U ŒÃ „Ò¥U. (1) ÿÈÄß ◊Ÿ‚Ê flÿ¢ ŒflSÿ ‚ÁflÃÈ— ‚fl. SflÇÿʸÿ ‡ÊÄàÿÊ.. (2) „U◊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ ‚ÊÕ ◊Ÿ ‚ ¡È«U∏ ‚∑¥§. „U◊ ©UŸ ‚ Sflª¸ ∑§ ÿÊÇÿ ‡ÊÁÄà ¬˝Êåà ∑§⁄U ‚∑¥§. (2) ÿÈÄàflÊÿ ‚ÁflÃÊ ŒflÊãàSflÿ¸ÃÊ ÁœÿÊ ÁŒfl◊˜. ’΄UÖÖÿÊÁ× ∑§Á⁄Ucÿ× ‚ÁflÃÊ ¬˝ ‚ÈflÊÁà ÃÊŸ˜.. (3) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚÷Ë ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ’ÈÁh •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl •¬ŸË Áfl‡ÊÊ‹ ÖÿÊÁà ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ÁflSÃÊ⁄U ŒÃ „Ò¥U. (3) ÿÈÜ¡Ã ◊Ÿ ˘ ©Uà ÿÈTà ÁœÿÊ Áfl¬˝Ê Áfl¬˝Sÿ ’΄UÃÊ Áfl¬Á‡ø×. Áfl „UÊòÊÊ Œœ flÿÈŸÊÁflŒ∑§ ˘ ßã◊„UË ŒflSÿ ‚ÁflÃÈ— ¬Á⁄Uc≈UÈÁ×.. (4) Áfl‡Ê· M§¬ ‚ ôÊÊŸË ´ Áàfl¡˜ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Áfl‡ÊÊ‹ ÿôÊ ∑§Ê ‚»§‹ ’ŸÊŸ ∑§ Á‹∞ ◊Ÿ •ÊÒ⁄U ’ÈÁh ∑§Ê ¡Ê«∏Uà „Ò¥U. fl„U „UÊÃÊ ‚÷Ë ÁflôÊÊŸÊ¥ ∑§Ê ¡ÊŸŸ flÊ‹Ê „Ò. fl„UË ©Uã„¥U œÊ⁄UáÊ ÷Ë ∑§⁄UÃÊ „Ò. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ◊Á„U◊Ê◊ÿË fl ‚¢ÃÊ·ŒÊÿË „Ò. (4) ÿÈ¡ flÊ¢ ’˝rÊÔ ¬Í√ÿZ Ÿ◊ÊÁ÷Ìfl ‡‹Ê∑§ ˘ ∞ÃÈ ¬âÿfl ‚Í⁄U—. oÎáflãÃÈ Áfl‡fl •◊ÎÃSÿ ¬ÈòÊÊ ˘ •Ê ÿ œÊ◊ÊÁŸ ÁŒ√ÿÊÁŸ ÃSÕÈ—.. (5) „U ÿ¡◊ÊŸ Œ¢¬ÃË! „U◊ ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „ÈU∞ ÿôÊ ‡ÊÈM§ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÁflÁ‡Êc≈U ‡‹Ê∑§Ê¥ ‚ ÿ„U ÿôÊ ‚¢¬ãŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË ÿ„U ©U¬Ê‚ŸÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ ¬Õ ◊¥ ¬„¢ÈUøŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄. •◊⁄UÃÊ ∑§ ¬ÈòÊ ÁŒ√ÿ œÊ◊ ◊¥ ’ÒΔU „ÈU∞ ŒflªáÊ „U◊Ê⁄UË ßŸ SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (5) ÿ¡Èfl¸Œ - 125
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿSÿ ¬˝ÿÊáÊ◊ãflãÿ ˘ ßlÿÈŒ¸flÊ ŒflSÿ ◊Á„U◊ÊŸ◊Ê¡‚Ê. ÿ— ¬ÊÌÕflÊÁŸ Áfl◊◊ ‚ ˘ ∞ÇÊÊ ⁄U¡Ê ¦ Á‚ Œfl— ‚ÁflÃÊ ◊Á„UàflŸÊ.. (6) Á¡‚ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ ¬˝ÿÊáÊ (ª◊Ÿ) ◊Á„U◊Ê •ÊÒ⁄U •Ê¡ ∑§Ê •ãÿ ŒflÃÊ ªáÊ •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl„U ‚ÁflÃÊ Œfl •¬ŸË ◊Á„U◊Ê ‚ ‚fl¸òÊ √ÿʬ∑§ „Ò¥U. (6) Œfl ‚Áfl× ¬˝ ‚Èfl ÿôÊ¢ ¬˝ ‚Èfl ÿôʬÁâ ÷ªÊÿ. ÁŒ√ÿÊ ªãœfl¸— ∑§Ã¬Í— ∑§Ã¢ Ÿ— ¬ÈŸÊÃÈ flÊøS¬ÁÃflʸø¢ Ÿ— SflŒÃÈ.. (7) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ‚÷Ë ∑§Ê ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôʬÁà ∑§Ê ‚ÊÒ÷ÊÇÿ‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁŒ√ÿ •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. flÊáÊË ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË flÊáÊË ∑§Ê ◊œÈ⁄UÃÊ ‚ ‚¢øÊÁ⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (7) ß◊¢ ŸÊ Œfl ‚ÁflÃÿ¸ôÊ¢ ¬˝áÊÿ ŒflÊ√ÿ ¦ ‚ÁπÁflŒ ¦ ‚òÊÊÁ¡Ã¢ œŸÁ¡Ã ¦ SflÌ¡Ã◊˜. ´§øÊ SÃÊ◊ ¦ ‚◊œ¸ÿ ªÊÿòÊáÊ ⁄UÕãÃ⁄¢U ’΄Uº˜ªÊÿòÊflûʸÁŸ SflÊ„UÊ.. (8) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ê •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ™§¡Ê¸◊ÿ ’ŸÊà „Ò¥U. •Ê¬ Á◊òÊÃÊ ∑§Ê ¡ÊŸŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U œŸ ¡Ëß flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ’…∏UÊß∞. „U◊ flÒÁŒ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ªÊÿòÊ ‚Ê◊ ‚ ⁄UÕ¢Ã⁄U •ÊÒ⁄U ’΄Uà‚Ê◊ ∑§Ê ¬Á⁄U¬Èc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (8) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. •ÊŒŒ ªÊÿòÊáÊ ¿U㌂ÊÁX⁄USflà¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕÊŒÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊ÁX⁄USflŒÊ÷⁄U òÊÒc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflØ.. (9) ‚ÁflÃÊ Œfl Á‚⁄U¡Ÿ„UÊ⁄U „Ò¥U. „U◊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§Ë ’Ê„ÈU •ÊÒ⁄U ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ ªÊÿòÊË ¿U¢Œ ∑§ ¬˝÷Êfl ‚ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ê •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë ÷Ê¢Áà ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ‚ •Ê¬ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë ÷Ê¢Áà ¬ÎâflË ∑§Ê ™§¡Ê¸◊ÿ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) •Á÷˝⁄UÁ‚ ŸÊÿ¸Á‚ àflÿÊ flÿ◊ÁÇŸ ¦ ‡Ê∑§◊ πÁŸÃÈ ¦ ‚œSÕ ˘ •Ê. ¡ÊªÃŸ ¿U㌂ÊÁX⁄USflØ.. (10) •Ê¬ •Á÷˝ (Á◊≈˜U≈UË πÊŒŸ ∑§Ê ‚ÊäÊŸ) „Ò¥U. •Ê¬ ŸÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ¡ªÃË ¿¢UŒ ∑§ ¬˝÷Êfl ‚ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë ÷Ê¢Áà ¬ÎâflË ¬⁄U •ÁÇŸ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ¬Ê ‚∑¥§. (10) „USà ˘ •ÊœÊÿ ‚ÁflÃÊ Á’÷˝ŒÁ÷˝ ¦ Á„U⁄UáÿÿË◊˜. •ÇŸÖÿʸÁÃÁŸ¸øʃÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •äÿÊ÷⁄UŒÊŸÈc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflØ.. (11) ‚ÁflÃÊ Œfl „UÊÕ ◊¥ Sfláʸ◊ÿË •Á÷˝ (Á◊≈˜U≈UË πÊŒŸ ∑§Ê ‚ÊäÊŸ) œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà 126 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„Ò¥U. •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§ ‚◊ÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ê ÿôÊ flŒË ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ◊¥ ¬…∏U ª∞ ◊¢òÊ ‚ ©U‚ ÷‹Ë÷Ê¢Áà ¬ÊÁ·Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (11) ¬˝ÃÍûÊZ flÊÁ¡ãŸÊ º˝fl flÁ⁄UcΔUÊ◊ŸÈ ‚¢flÃ◊˜. ÁŒÁfl à ¡ã◊ ¬⁄U◊◊ãÃÁ⁄UˇÊ Ãfl ŸÊÁ÷— ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊Áœ ÿÊÁŸÁ⁄UØ.. (12) „U •ÁÇŸ Œfl! •Ê¬ •àÿ¢Ã àfl⁄UáʇÊË‹ (‡ÊËÉÊ˝ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹) „Ò¥U. •Ê¬ œŸflÊŸ flÁ⁄UcΔU „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ¡ã◊ „ÈU•Ê „ÒU. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ŸÊÁ÷ SÕ‹ „ÒU. ¬ÎâflË‹Ê∑§ •Ê¬ ∑§Ë ÿÊÁŸ „ÒU. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ¬⁄U •ÁœÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (12) ÿÈÜ¡ÊÕÊ ¦ ⁄UÊ‚÷¢ ÿÈfl◊ÁS◊Ÿ˜ ÿÊ◊ flηáfl‚Í. •ÁÇŸ¢ ÷⁄UãÃ◊S◊ÿÈ◊˜.. (13) •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ (¬È⁄UÊÁ„Uà •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸ) ¬⁄U ‹Ê÷∑§Ê⁄UË œŸ ’⁄U‚. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊ‚÷ (¬˝ÖflÁ‹Ã •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ◊¢òÊ) ∑§Ê ÿôÊ ∑§Êÿ¸ ◊¢ ¡Ê«∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (13) ÿʪ ÿʪ ÃflSÃ⁄¢U flÊ¡ flÊ¡ „UflÊ◊„U. ‚πÊÿ ˘ ßãº˝◊ÍÃÿ.. (14) ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U ‚πÊ „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ’Ê⁄U’Ê⁄U ©UŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (14) ¬˝ÃÍfl¸ãŸsÔfl∑˝§Ê◊㟇ÊSÃË L§º˝Sÿ ªÊáʬàÿ¢ ◊ÿÊ÷Í⁄UÁ„U. ©Ufl¸ãÃÁ⁄UˇÊ¢ flËÁ„U SflÁSê√ÿÍÁÃ⁄U÷ÿÊÁŸ ∑ΧáflŸ˜ ¬ÍcáÊÊ ‚ÿÈ¡Ê ‚„U.. (15) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊ ¬⁄U ŒÿÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÃËfl˝ ªÁÇÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê L§‹ÊŸ flÊ‹ Œfl ∑§ ªáʬÁà ∑§Ê ¬Œ ¬Ê∞¢ª. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿ„UÊ¢ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ⁄UÊ„U ∑§Ê ‚Ȫ◊ ’ŸÊß∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ‚ •¢ÃÁ⁄UˇÊ Ã∑§ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UÊ„U ÁŸ÷¸ÿ ’ŸÊß∞. •Ê¬ •ããÊ ¡‹ flÊ‹ ◊ʪ¸ Ã∑§ √ÿÊåà „UÊß∞. (15) ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕÊŒÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊ÁX⁄USflŒÊ÷⁄UÊÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊ÁX⁄USflŒë¿U◊ÊÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊ÁX⁄USfljÁ⁄UcÿÊ◊—.. (16) „U •Á÷˝ (ÿôÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ‚Ê◊ª˝Ë)! •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§ ¬Ê‹Ÿ„UÊ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ áÊ◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ •ª˝ªáÿ „Ò¥U. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ ‹ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •ÁÇŸ ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ •ÊÒ⁄U ŸÊÿ∑§ „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ SÕ‹ ¬⁄U •ÁÇŸ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ (SÕʬŸÊ) ∑§⁄Uà „Ò¥U. (16) •ãflÁÇŸL§·‚Ê◊ª˝◊ÅÿŒãfl„UÊÁŸ ¬˝Õ◊Ê ¡ÊÃflŒÊ—. •ŸÈ ‚Íÿ¸Sÿ ¬ÈL§òÊÊ ø ⁄U‡◊ËŸŸÈ lÊflʬÎÁÕflË •ÊÃÃãÕ.. (17) •ÁÇŸ ¬„U‹ ‚ „UË ◊ÊÒ¡ÍŒ „Ò¥U. fl ©U·Ê∑§Ê‹ ‚ ¬Ífl¸ „UË ÁŒŸ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄U ŒÃ ÿ¡Èfl¸Œ - 127
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„Ò¥. fl ‚Íÿ¸ ∑§Ë ’„ÈUà ‚Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ‹Ê∑§ ∑§Ë ‚ÎÁc≈U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ê Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ◊¥ ÉÊÍ◊ÃÊ „ÈU•Ê Œπà „Ò¥U. (17) •Êªàÿ flÊÖÿäflÊŸ ¦ ‚flʸ ◊ÎœÊ ÁflœÍŸÈÃ. •ÁÇŸ ¦ ‚œSÕ ◊„UÁà øˇÊÈ·Ê ÁŸ Áø∑§Ë·Ã.. (18) •ÁÇŸ ÿôÊ ∑§Ê •ãŸ◊ÿ ’ŸÊà „Ò¥U. fl ‚÷Ë ◊ʪ¸ ∑§Ê ∑¢§¬Êà „ÈU∞ ¡Êà „Ò¥U. fl ‚œ „ÈU∞ „Ò¥U. fl •¬Ÿ Áfl‡ÊÊ‹ øˇÊÈ ‚ ÿôÊ ∑§Ê ÁŸ⁄UˡÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (18) •Ê∑˝§êÿ flÊÁ¡Ÿ˜ ¬ÎÁÕflË◊ÁÇŸÁ◊ë¿U L§øÊ àfl◊˜. ÷ÍêÿÊ flÎàflÊÿ ŸÊ ’˝ÍÁ„U ÿ× πŸ◊ â flÿ◊˜.. (19) „U flÊÁ¡Ÿ (øßÊÿÈÄà ™§¡Ê¸)! •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U Ã¡Ë ‚ Áflø⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ë øÊ„U Ÿ ∑§ËÁ¡∞ (ßë¿UÊ Ÿ ∑§Á⁄U∞). •Ê¬ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊŸ •ÊÒ⁄U ÷ÍÁ◊ ∑§Ê πÊŒ ∑§⁄U „U◊¥ ’ÃÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÃÊÁ∑§ „U◊ ÷Ë ©U‚ πÊŒ ∑§⁄U (™§¡¸SflË ¬ŒÊÕÊZ ∑§Ê) ¬˝Êåà ∑§⁄U ‚∑¥§. (19) lÊÒSà ¬ÎcΔ¢U ¬ÎÁÕflË ‚œSÕ◊Êà◊ÊãÃÁ⁄UˇÊ ¦ ‚◊Ⱥ˝Ê ÿÊÁŸ—. ÁflÅÿÊÿ øˇÊÈ·Ê àfl◊Á÷ ÁÃcΔU ¬ÎÃãÿ×.. (20) „U flÊÁ¡Ÿ! Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê •ÊœÊ⁄U (¬ÎcΔU) ÷ʪ „Ò. ¬ÎâflË ¬⁄U •Ê¬ ‚œ „ÈU∞ „Ò¥U. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë •Êà◊Ê „ÒU ÃÕÊ ‚◊Ⱥ˝ ÿÊÁŸ „Ò. •Ê¬ •Ê¢πÊ¥ ‚ √ÿÊÅÿÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ¬⁄U •Ê∑˝§◊áÊ ∑§⁄U ∑§ ©UŸ ∑§Ê ÁflŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. (20) ©Uà∑˝§Ê◊ ◊„Uà ‚ÊÒ÷ªÊÿÊS◊ÊŒÊSÕÊŸÊŒ˜ º˝ÁfláÊÊŒÊ flÊÁ¡Ÿ˜. flÿ ¦ SÿÊ◊ ‚È◊ÃÊÒ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •ÁÇŸ¢ πŸãà ˘ ©U¬SÕ •SÿÊ—.. (21) „U flÊÁ¡Ÿ! •Ê¬ œŸŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ™§¬⁄U ©UΔUŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ •ë¿UË ◊Áà flÊ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ¬ÎâflË ∑§Ê πÊŒ¥. •ÁÇŸ ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (21) ©UŒ∑˝§◊ËŒ˜ º˝ÁfláÊÊŒÊ flÊÖÿflʸ∑§— ‚È‹Ê∑§ ¦ ‚È∑Χâ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊˜. Ã× πŸ◊ ‚Ȭ˝ÃË∑§◊ÁÇŸ ¦ SflÊ L§„UÊáÊÊ •Áœ ŸÊ∑§◊ÈûÊ◊◊˜.. (22) ÿ„U ÉÊÊ«∏UÊ ø¢ø‹ •ÊÒ⁄U œŸŒÊÃÊ „ÒU. ¬ÎâflË ∑§Ê ©Uà∑˝§◊áÊ ∑§⁄U ∑§ •ÊÿÊ „ÒU. ¬ÎâflË ¬⁄U •ë¿U ‹Ê∑§ ⁄Uø „Ò¥U. ©Uã„¥U •ë¿UË ∑ΧÁà ∑§Ê M§¬ ÁŒÿÊ „ÒU. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ê ©UûÊ◊ ‚Èπ ∑§ Á‹∞ πʌà „Ò¥U (¡ªÊà „Ò¥U). „U◊ •ë¿U ‚ÈπÊ¥ ∑§ Á‹∞ ©UûÊ◊ ‹Ê∑§ ∑§Ê •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (22) •Ê àflÊ Á¡ÉÊÌ◊ ◊Ÿ‚Ê ÉÊÎß ¬˝ÁÃÁˇÊÿãâ ÷ÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ. ¬ÎÕÈ¢ ÁÃ⁄U‡øÊ flÿ‚Ê ’΄Uãâ √ÿÁøcΔU◊ãŸÒ ⁄U÷‚¢ ŒÎ‡ÊÊŸ◊˜.. (23) 128 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@8
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ •Êß∞, ¬äÊÊÁ⁄U∞. •Ê¬ •Áπ‹ Áfl‡fl ◊¥ √ÿÊÁ¬∞. „U◊ ◊Ÿ ‚, ÉÊË ‚ •Ê¬ ∑§ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊŸ ∑§Ë ¬˝ÃˡÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÁÃ⁄U¿UË flÿ ‚ ‚’ •Ê⁄U √ÿʬà „Ò¥U. •Ê¬ Œ‡Ê¸ŸËÿ fl ‚œ „ÈU∞ ◊Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. (23) •Ê Áfl‡fl× ¬˝àÿÜø¢ Á¡ÉÊêÿ¸⁄UˇÊ‚Ê ◊Ÿ‚Ê ÃÖ¡È·Ã. ◊ÿ¸üÊË— S¬Î„UÿmáÊʸ •ÁÇŸŸÊ¸Á÷◊Î‡Ê ÃãflÊ ¡÷ȸ⁄UÊáÊ—.. (24) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •Êß∞, •Ê¬ ‚fl¸òÊ √ÿʬ∑§ „Ò¥U. „U◊ ◊Ÿ ‚, ÉÊË ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ S¬Î„UáÊËÿ (åÿÊ⁄U) fláʸ flÊ‹ fl ‚ÈŸ„U⁄UË ‡ÊÊ÷Ê flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ’Ê⁄U’Ê⁄U øÊ„U ¡Êà „Ò¥U. •Ê¬ Á„UÃ∑§Ê⁄UË •ÊÒ⁄U ‚fl¸ÕÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ Œfl „Ò¥U. (24) ¬Á⁄U flÊ¡¬Á× ∑§Áfl⁄UÁÇŸ„¸U√ÿÊãÿ∑˝§◊ËØ. Œœº˝àŸÊÁŸ ŒÊ‡ÊÈ·.. (25) •ÁÇŸ •ãŸŒÊÃÊ, ∑§Áfl •ÊÒ⁄U „UÁflŒÊÃÊ ∑§Ê œŸ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ŒŸ ∑§ Á‹∞ ⁄UàŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (25) ¬Á⁄U àflÊÇŸ ¬È⁄¢U flÿ¢ Áfl¬˝ ¦ ‚„USÿ œË◊Á„U. œÎ·máÊZ ÁŒfl ÁŒfl „UãÃÊ⁄¢U ÷X‰⁄UÊflÃÊ◊˜.. (26) „U •ÁÇŸ! „U◊ ’˝ÊrÊáÊ •Ê¬ ∑§ ‚ê◊Èπ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ‚ ’ÈÁh ¬ÊŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ªÈáÊäÊÊ⁄U∑§ „Ò¥. •Ê¬ ¬˝ÁÃÁŒŸ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê fl¢ŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (26) àfl◊ÇŸ lÈÁ÷Sàfl◊ʇÊȇÊÈˇÊÁáÊSàfl◊jKSàfl◊‡◊ŸS¬Á⁄U. àfl¢ flŸèÿSàfl◊Ê·œËèÿSàfl¢ ŸÎáÊÊ¢ ŸÎ¬Ã ¡Êÿ‚ ‡ÊÈÁø—.. (27) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚÷Ë ∑§ ⁄UˇÊ∑§, SflÁª¸∑§ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹, •¢œ∑§Ê⁄U ∑§Ê ‡ÊËÉÊ˝ „UË ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ¬˝ÁÃÁŒŸ „UË ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ flŸ fl •Ê·ÁœÿÊ¥ ◊¥ ©Uà¬ãŸ „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ÿ„UÊ¢ ©Uà¬ãŸ „UÊà „Ò¥. •Ê¬ ¬ÁflòÊ „Ò¥U. (27) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕÊŒÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊ÁX⁄USflàπŸÊÁ◊. ÖÿÊÁÃc◊ãâ àflÊÇŸ ‚Ȭ˝ÃË∑§◊¡dáÊ ÷ÊŸÈŸÊ ŒËlÃ◊˜. Á‡Êfl¢ ¬˝¡ÊèÿÊ ˘ Á„U ¦ ‚ãâ ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕÊŒÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊ÁX⁄USflàπŸÊ◊—.. (28) •ÁÇŸ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ©Uà¬ãŸ „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§Ê •Á‡flŸË Œfl ’Ê„ÈU•Ê¥ ‚ ¬È∑§Ê⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§Ê ¬Í·Ê Œfl „UÊÕÊ¥ ‚ ¬È∑§Ê⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U ‚ÊœÊ ¡ÊÃÊ „Ò. •ÁÇŸ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ∑§Ê πÊŒ ∑§⁄U (¡Êª˝Ã ∑§⁄U ∑§) ¬È∑§Ê⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÖÿÊÁÃ◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÊ÷ÊflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ‹ªÊÃÊ⁄U ‚Íÿ¸ ‚ ¬˝ŒËåà „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝¡Ê¡ŸÊ¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ øÊ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ‚œ „ÈU∞ „Ò¥U. •¢Áª⁄U‚ ¬ÎâflË ∑§Ê πÊŒ ∑§⁄U (¡ªÊ ∑§⁄U) •Ê¬ ∑§Ê ¬È∑§Ê⁄Uà „Ò¥U. (28) ÿ¡Èfl¸Œ - 129
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•¬Ê¢ ¬ÎcΔU◊Á‚ ÿÊÁŸ⁄UÇŸ— ‚◊Ⱥ˝◊Á÷× Á¬ãfl◊ÊŸ◊˜. flœ¸◊ÊŸÊ ◊„UÊ° 2 •Ê ø ¬Èc∑§⁄U ÁŒflÊ ◊ÊòÊÿÊ flÁ⁄UêáÊÊ ¬˝ÕSfl.. (29) •Ê¬ ¡‹ ∑§ •ÊœÊ⁄U •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§Ë ÿÊÁŸ „Ò¥U. •Ê¬ ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ fl ∑§◊‹ ∑§Ë ÷Ê¢Áà SflÁª¸∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§ ¬Á⁄UáÊÊ◊ Á¡ÃŸ ÁflSÃÎà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (29) ‡Ê◊¸ ø SÕÊ fl◊¸ ø SÕÊ ˘ Áë¿Uº˝ ’„ÈU‹ ©U÷. √ÿøSflÃË ‚¢ fl‚ÊÕÊ¢ ÷ÎÃ◊ÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊˜.. (30) •Ê¬ ‚ÈπŒÊÿË fl SÕÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ∑§flø ∑§ ‚◊ÊŸ ‚È⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ Á„UÃë¿ÈU „Ò¥U. •Ê¬ ø◊∑§Ë‹, ÷⁄Uáʬʷáʧ ∑§⁄UŸ flÊ‹ fl •ÁÇŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (30) ‚¢ fl‚ÊÕÊ ¦ SflÁfl¸ŒÊ ‚◊ËøË ©U⁄U‚Ê à◊ŸÊ. •ÁÇŸ◊ãÃ÷¸Á⁄UcÿãÃË ÖÿÊÁÃc◊ãÃ◊¡dÁ◊Ø.. (31) •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ê •¬Ÿ ◊¥ ’‚Êß∞. •ÁÇŸ Sflÿ¢ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ©U‚U (NUŒÿ) ◊¥ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ÖÿÊÁÃ◊ÊŸ fl •¡‚˝ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊà „Ò¥U. (31) ¬È⁄UËcÿÊÁ‚ Áfl‡fl÷⁄UÊ ˘ •Õflʸ àflÊ ¬˝Õ◊Ê ÁŸ⁄U◊ãՌǟ. àflÊ◊ÇŸ ¬Èc∑§⁄UÊŒäÿÕflʸ ÁŸ⁄U◊ãÕÃ. ◊ÍäŸÊ¸ Áfl‡flSÿ flÊÉÊ×.. (32) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸√ÿʬ∑§ fl Áfl‡fl ∑§Ê ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‚fl¸¬˝Õ◊ •Õflʸ ´§Á· Ÿ •⁄UÁáÊ ◊¢ÕŸ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ‚ê◊ÊŸ¬Ífl¸∑§ Áfl‡fl ∑§ ©Uëø ÷ʪ ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ. (32) Ã◊È àflÊ ŒäÿæU˜æÎUÁ·— ¬ÈòÊ ˘ ߸œ •Õfl¸áÊ—. flÎòÊ„UáÊ¢ ¬È⁄UãŒ⁄U◊˜.. (33) „U •ÁÇŸ! Œäÿæ˜ ´§Á· •Õflʸ ´§Á· ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. •Õfl¸áÊ Ÿ flÎòÊ„¢ÃÊ fl Ÿª⁄U èÊŒ∑§ ∑§Ê ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ. (33) Ã◊È àflÊ ¬ÊâÿÊ flÎ·Ê ‚◊Ëœ ŒSÿÈ„UãÃ◊◊˜. œŸÜ¡ÿ¢ ¦ ⁄UáÊ⁄UáÊ.. (34) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚à¬ÕªÊ◊Ë, ’‹flÊŸ fl «UÊ∑ȧ•Ê¥ ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Á◊œÊ•Ê¥ ‚ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊà „Ò¥U •ÊÒ⁄U •Ê¬ „U⁄U ÿÈh ◊¥ œŸ ¡Ëß flÊ‹ „Ò¥U. (34) ‚ËŒ „UÊ× Sfl ˘ ©U ‹Ê∑§ ÁøÁ∑§àflÊãà‚ÊŒÿÊ ÿôÊ ¦ ‚È∑ΧÃSÿ ÿÊŸÊÒ. ŒflÊflËŒ¸flÊã„UÁfl·Ê ÿ¡ÊSÿÇŸ ’΄Ul¡◊ÊŸ flÿÊ œÊ—.. (35) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „UÊÃ Ê M§¬ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà „ÒU¥ . •Ê¬ •¬Ÿ ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ ÿôÊ ‚¢¬ãŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ üÊcΔU (•ë¿U) ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . •Ê¬ üÊcΔU ∑§◊¸ 130 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU¥ . •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë Ã⁄U„U „UÁfl ‚ ÃÎåà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . •Ê¬ ÿôÊ ‚¢¬ãŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ „UÃÈ œŸ œÊ⁄UáÊ fl •ÊÿÈ œÊ⁄U¥ . (35) ÁŸ „UÊÃÊ „UÊÃηŒŸ ÁflŒÊŸSàfl·Ê ŒËÁŒflÊ° 2 •‚Œà‚ÈŒˇÊ—. •Œéœfl˝Ã¬˝◊ÁÃfl¸Á‚cΔU— ‚„Udê÷⁄U— ‡ÊÈÁøÁ¡uÔUÊ •ÁÇŸ—.. (36) „U◊Ê⁄U „UÊÃÊ •ÁÇŸ „UÊÃÊ ‚ŒŸ ◊¥ ‡ÊÊ÷à „Ò¥U. •ÁÇŸ ÁflmÊŸ˜, áSflË, ÁŒ√ÿ fl ÁŒ√ÿ SÕÊŸ flÊ‚Ë „Ò¥U. fl „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹, fl˝Ã‡ÊË‹, •àÿ¢Ã ¬ÊflŸ fl ¬ÁflòÊ Á¡„˜UflÊ flÊ‹ „Ò¥U. (36) ‚ ¦ ‚ËŒSfl ◊„UÊ° 2 •Á‚ ‡ÊÊøSfl ŒflflËÃ◊—. Áfl œÍ◊◊ÇŸ •L§·¢ Á◊ÿäÿ ‚Ρ ¬˝‡ÊSà Œ‡Ê¸Ã◊˜.. (37) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝‡Ê¢Á‚Ã, ◊„UÊŸ˜, ¬ÁflòÊ fl ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ ‚ ‚¢¬ãŸ „Ò¥U. •Ê¬ ’„ÈUà ‚Ê ‹Ê‹ œÈ•Ê¢ »Ò§‹Ê ∑§⁄U ◊ʪ¸ ¬˝‡ÊSà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (37) •¬Ê ŒflËL§¬‚Ρ ◊œÈ◊ÃË⁄Uÿˇ◊Êÿ ¬˝¡Êèÿ—. ÃÊ‚Ê◊ÊSÕÊŸÊŒÈÁÖ¡„UÃÊ◊Ê·œÿ— ‚ÈÁ¬å¬‹Ê—.. (38) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÁŒ√ÿ ¡‹ fl ¬˝¡Ê ∑§ Á‹∞ ◊ËΔUË ¡‹œÊ⁄UÊ ©Uà¬ãŸ ∑§ËÁ¡∞. ©UŸ ¡‹œÊ⁄UÊ•Ê¥ ‚ ⁄Uʪ ŸÊ‡Ê∑§ üÊcΔU •Ê·ÁœÿÊ¢ ©U¬¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (38) ‚ãà flÊÿÈ◊ʸÃÁ⁄U‡flÊ ŒœÊÃÍûÊÊŸÊÿÊ NUŒÿ¢ ÿÁm∑§SÃ◊˜. ÿÊ ŒflÊŸÊ¢ ø⁄UÁ‚ ¬˝ÊáÊÕŸ ∑§S◊Ò Œfl fl·«USÃÈ ÃÈèÿ◊˜.. (39) „U ¬ÎâflË! •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹ NUŒÿ „Ò¥U. •Ê¬ ¡‹ fl flŸS¬Áà œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ŒflÊ¥ ◊¥ ¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§Ê ‚¢øÊ⁄U ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •Ê¬ Á∑§‚ Œfl ∑§ ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË Ÿ„UË¥ „Ò¥U. (39) ‚È¡ÊÃÊ ÖÿÊÁÃ·Ê ‚„U ‡Ê◊¸ flM§Õ◊Ê‚ŒàSfl—. flÊ‚Ê •ÇŸ Áfl‡flM§¬ ¦ ‚¢ √ÿÿSfl Áfl÷Êfl‚Ê.. (40) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ë¿UË Ã⁄U„U ©Uà¬ãŸ „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÖflÊ‹Ê•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ flŒË ∑§Ê ‡ÊÊÁ÷à ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚ÈπŒ fl Áfl÷ÊflÊŸ (∑§Ê¢ÁÃ◊ÊŸ) „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡fl M§¬ flÊ‹Ë ¬ÎâflË ¬⁄U flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (40) ©UŒÈ ÁÃcΔU Sfläfl⁄UÊflÊ ŸÊ Œ√ÿÊ ÁœÿÊ. ŒÎ‡Ê ø ÷Ê‚Ê ’΄UÃÊ ‚ȇÊÈÄflÁŸ⁄UÊÇŸ ÿÊÁ„U ‚ȇÊÁSÃÁ÷—.. (41) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ©UÁΔU∞, (flŒË ¬⁄U) Áfl⁄UÊÁ¡∞ •ÊÒ⁄U ÿôÊ ∑§Ê ‚¢¬ÊÁŒÃ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¬ŸË ÁŒ√ÿ ’ÈÁh ‚ „U◊Ê⁄UÊ ‚¢⁄UˇÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¬ŸË Áfl‡ÊÊ‹ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ¬œÊÁ⁄U∞ fl Œ‡Ê¸Ÿ ŒËÁ¡∞. „U◊ •ë¿UË ¬˝‡Ê¢‚Êà◊∑§ SÃÈÁÃÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (41) ÿ¡Èfl¸Œ - 131
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
™§äfl¸ ˘ ™§ ·È áÊ ˘ ™§Ãÿ ÁÃcΔUÊ ŒflÊ Ÿ ‚ÁflÃÊ. ™§äflʸ flÊ¡Sÿ ‚ÁŸÃÊ ÿŒÁÜ¡Á÷flʸÉÊÁjÁfl¸uÔUÿÊ◊„U.. (42) „U •ÁÇŸ! ¡Ò‚ ‚ÁflÃÊ Œfl (ßß) ™§¬⁄U ’ÒΔ U∑§⁄U (ßß) ™§¬⁄U ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ™§U¬⁄U ‚ •ããÊ •ÊÒ⁄U ¬Ê·∑§ ¬ŒÊÕÊZ ∑§ ‚ÊÕ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (42) ‚ ¡ÊÃÊ ª÷ʸ •Á‚ ⁄UÊŒSÿÊ⁄UÇŸ øÊL§Áfl¸÷Îà ˘ •Ê·œË·È. ÁøòÊ— Á‡Ê‡ÊÈ— ¬Á⁄U Ã◊Ê ¦ SÿÄÃÍã¬˝ ◊ÊÃÎèÿÊ •Áœ ∑§ÁŸ∑˝§ŒŒ˜ªÊ—.. (43) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚È¢Œ⁄U •ÊÒ⁄U Áfl‡Ê· ÷⁄UáÊ (¬Ê·áÊ) ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¥ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U Sflª¸ ∑§ ’Ëø ©Uà¬ãŸ „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ª÷¸ SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ •Œ˜÷Èà ‹¬≈UÊ¥ flÊ‹ •ÊÒ⁄U Á‡Ê‡ÊÈ M§¬ „Ò¥U. •Ê¬ •¢œ⁄UÊ ŒÍ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ◊ÊÃÎ SflM§¬ ∑§ ¬Ê‚ ‚ •ÊflÊ¡ ∑§⁄Uà „ÈU∞ á ªÁà ‚ Áflø⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (43) ÁSÕ⁄UÊ ÷fl flË«U˜flX ˘ •Ê‡ÊÈ÷¸fl flÊÖÿfl¸Ÿ˜. ¬ÎÕÈ÷¸fl ‚È·ŒSàfl◊ÇŸ— ¬È⁄UË·flÊ„UáÊ—.. (44) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ø¢ø‹ fl flªflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ÁSÕ⁄U, flªflÊŸ fl ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë „UÊß∞. •Ê¬ ‚’ ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§Ê ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (44) Á‡ÊflÊ ÷fl ¬˝¡ÊèÿÊ ◊ÊŸÈcÊËèÿSàfl◊ÁX⁄U—. ◊Ê lÊflʬÎÁÕflË •Á÷ ‡ÊÊøË◊ʸãÃÁ⁄UˇÊ¢ ◊Ê flŸS¬ÃËŸ˜.. (45) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ‚÷Ë •¢ªÊ¥ ◊¥ √ÿÊåà „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ÃÕÊ •ãÿ ‚÷Ë ¡ËflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ‚¢Ãåà Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ fl flŸS¬Áà ∑§Ê ‚¢Ãåà Ÿ ∑§⁄¥U. (45) ¬Ò˝ÃÈ flÊ¡Ë ∑§ÁŸ∑˝§ŒãŸÊŸŒº˝Ê‚÷— ¬àflÊ. ÷⁄UãŸÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ¢ ◊Ê ¬ÊlÊÿÈ·— ¬È⁄UÊ. flηÊÁÇŸ¢ flηáÊ¢ ÷⁄U㟬ʢ ª÷¸ ¦ ‚◊ÈÁº˝ÿ◊˜. •ÇŸ ˘ •Ê ÿÊÁ„U flËÃÿ.. (46) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ flªflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ‚ •Êª ¬˝SÕÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ á •ÊflÊ¡ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ’…∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë •ÁÇŸ •Êª ’…∏U, ∑§„UË¥ L§∑§ Ÿ„UË¥. ‚◊Ⱥ˝ ’‹flÊŸ •ÊÒ⁄U ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë •ÁÇŸ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •Êß∞. (46) 132 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
´§Ã ¦ ‚àÿ◊Îà ¦ ‚àÿ◊ÁÇŸ¢ ¬È⁄UËcÿ◊ÁX⁄USflj⁄UÊ◊—. •Ê·œÿ— ¬˝Áà ◊ÊŒäfl◊ÁÇŸ◊à ¦ Á‡Êfl◊ÊÿãÃ◊èÿòÊ ÿÈc◊Ê—. √ÿSÿŸ˜ Áfl‡flÊ ˘ •ÁŸ⁄UÊ ˘ •◊ËflÊ ÁŸ·ËŒãŸÊ •¬ ŒÈ◊¸Áâ ¡Á„U.. (47) •ÁÇŸ ‚àÿSflM§¬ •ÊÒ⁄U •◊⁄U „Ò¥U. ‚àÿSflM§¬ •ÁÇŸ ∑§Ê „U◊ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§ ‚◊ÊŸ ¬Á⁄U¬Èc≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚÷Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ •ÊŸ¢Œflh¸∑§ „UÊ ∑§⁄U •ÁÇŸ Œfl ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊ ‚÷Ë ∑§ ¬˝Áà Á‡Êfl◊ÿ (∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË) „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚÷Ë ∑§c≈U „UÁ⁄U∞. •Ê¬ ÁŸ⁄UÊªË ’ŸÊß∞. •Ê¬ Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ŒÈ’ȸÁh „U◊¥ ¿UÊ«∏U ∑§⁄U ø‹Ë ¡Ê∞. (47) •Ê·œÿ— ¬˝Áà ªÎèáÊËà ¬Èc¬flÃË— ‚ÈÁ¬å¬‹Ê—. •ÿ¢ flÊ ª÷¸ ˘ ´§Áàflÿ— ¬˝àŸ ¦ ‚œSÕ◊Ê‚ŒÃ˜.. (48) „U •Ê·ÁœÿÊ! •Ê¬ ¬Èc¬flÃË fl ‚È»§‹flÃË „Ò¥U. ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈM§¬ •ÁÇŸ ∑§ ª÷¸ ◊¥ ©Uà¬ãŸ „UÊÃË „Ò¥U. •ÁÇŸ ¬˝ÊøËŸ ‚◊ÿ ‚ ‚äÊ fl Áfl⁄UÊ¡ „ÈU∞ „Ò¥U. (48) Áfl ¬Ê¡‚UÊ ¬ÎÕÈŸÊ ‡ÊʇÊÈøÊŸÊ ’ÊœSfl Ám·Ê ⁄UˇÊ‚Ê •◊ËflÊ—. ‚ȇÊ◊¸áÊÊ ’΄U× ‡Ê◊¸ÁáÊ SÿÊ◊ÇŸ⁄U„U ¦ ‚È„UflSÿ ¬˝áÊËÃÊÒ.. (49) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹, ’‹flÊŸ fl ŒËÁåÃ◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ mÁ·ÿÊ¥, ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ fl ⁄Uʪʥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊¥ ‚ÈπŒÊÿË Áfl‡ÊÊ‹ ◊„UÊÿôÊ ◊¥ ‹ªÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •ë¿UË „UÁfl flÊ‹ „UÊ¥. „U◊¥ •Ê¢ÃÁ⁄U∑§ ¬˝‚ãŸÃÊ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. (49) •Ê¬Ê Á„U cΔUÊ ◊ÿÊ÷ÈflSÃÊ Ÿ ˘ ™§¡¸ ŒœÊß. ◊„U ⁄UáÊÊÿ øˇÊ‚.. (50) „U ¡‹ ŒflÊ! •Ê¬ ÷ÈflŸ ◊¥ ‚Èπ ∑§ ‚˝Êà fl ™§¡Ê¸œÊ⁄UË „Ò¥U. •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ ŒπŸ ÿÊÇÿ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (50) ÿÊ fl— Á‡ÊflÃ◊Ê ⁄U‚SÃSÿ ÷Ê¡ÿÄU Ÿ—. ©U‡ÊÃËÁ⁄Ufl ◊ÊÃ⁄U—.. (51) „U ¡‹ ŒflÊ! •Ê¬ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. ⁄U‚Ë‹ fl •¬ŸÊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ⁄U‚ „U◊¥ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. •Ê¬ Á¡‚ ⁄U‚ ‚ (⁄Uʪʥ ∑§Ê) ˇÊÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚ ⁄‚ ∑§Ê „U◊¥ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. •Ê¬ ¡ŸÊ¬ÿÊªË ⁄U‚ „U◊¥ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (51) ÃS◊Ê ˘ •⁄¢U ª◊Ê◊ flÊ ÿSÿ ˇÊÿÊÿ Á¡ãflÕ. •Ê¬Ê ¡ŸÿÕÊ ø Ÿ—.. (52) „U ¡‹ ŒflÊ! •Ê¬ •àÿ¢Ã ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . „U ¡‹ ŒflÊ! •Ê¬ ©U‚ ⁄U‚ ∑§Ê ‚flŸ ‚ flÒ‚ „UË ¬Èc≈U ∑§Á⁄U∞ ¡Ò‚ ◊ÊÃÊ∞¢ ‚¢ÃÊŸ ∑§Ê ŒÈÇœ ⁄U‚ ‚ ¬Èc≈U ∑§⁄UÃË „ÒU.¢ (52) Á◊òÊ— ‚ ¦ ‚ÎÖÿ ¬ÎÁÕflË¥ ÷ÍÁ◊¢ ø ÖÿÊÁÃ·Ê ‚„U. ‚È¡Êâ ¡ÊÃflŒ‚◊ÿˇ◊Êÿ àflÊ ‚ ¦ ‚ΡÊÁ◊ ¬˝¡Êèÿ—.. (53) ¡Ò‚ „U◊Ê⁄U Á◊òÊ ‚Íÿ¸ •¬ŸË ÖÿÊÁà ∑§ ‚ÊÕ ¬ÎâflË ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „ÒU¥, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U ÿ¡Èfl¸Œ - 133
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ ¬˝¡Ê ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „ÒU¥. •Ê¬ ‚êÿ∑˜§ M§¬ ‚ ©Uà¬ãŸ „ÒU¥. •Ê¬ ‚fl¸ÁflŒÔ˜ „ÒU¥. „U◊ ÿˇ◊Ê (⁄Uʪ ) ŸÊ‡Ê ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ã „ÒU¥. (53) L§º˝Ê— ‚ ¦ ‚ÎÖÿ ¬ÎÁÕflË¥ ’΄UÖÖÿÊÁ× ‚◊ËÁœ⁄U. ÷ʢ ÷ÊŸÈ⁄U¡d ˘ ßë¿ÈU∑˝§Ê Œfl·È ⁄UÊøÃ.. (54) L§º˝ªáÊÊ¥ Ÿ ¬ÎâflË ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê •ÊÒ⁄U Áfl‡ÊÊ‹ ÖÿÊÁà ‚ ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝ŒËåà Á∑§ÿÊ (ø◊∑§ÊÿÊ). ‚Íÿ¸ ∑§Ë •¡‚˝ (‹ªÊÃÊ⁄U) ÖÿÊÁà ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ø◊∑§ÊÃË „ÒU. (54) ‚ ¦ ‚ÎCÔUÊ¢ fl‚È÷Ë L§º˝ÒœË⁄ÒU— ∑§◊¸áÿÊ¢ ◊ÎŒ◊˜. „USÃÊèÿÊ¢ ◊ÎmË¥ ∑ΧàflÊ Á‚ŸËflÊ‹Ë ∑ΧáÊÊÃÈ ÃÊ◊˜.. (55) œÒÿ¸‡ÊÊ‹Ë fl‚È•Ê¥ •ÊÒ⁄U L§º˝ªáÊÊ¥ mÊ⁄UÊ ∑§◊¸¬Ífl¸∑§ Á◊≈˜U≈UË Á‚⁄U¡Ë ªß¸ „ÒU (ÃÒÿÊ⁄U ∑§Ë ªß¸ „ÒU). Á‚ŸËflÊ‹Ë ŒflË „UÊÕÊ¥ ‚ ©U‚ Á◊≈˜U≈UË ∑§Ê ¬ÊòÊ ’ŸÊŸ ‹Êÿ∑§ ÃÒÿÊ⁄U ∑§⁄U¢ àÊÕÊ ¬ÊòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (55) Á‚ŸËflÊ‹Ë ‚È∑§¬ŒÊ¸ ‚È∑ȧ⁄UË⁄UÊ SflÊÒ¬‡ÊÊ. ‚Ê ÃÈèÿ◊ÁŒÃ ◊sÔÊπÊ¢ ŒœÊÃÈ „USÃÿÊ—.. (56) Á‚ŸËflÊ‹Ë ŒflË ‚È¢Œ⁄U ∑§‡ÊÊ¥, ‚È¢Œ⁄U •¢ªÊ¥ fl ‚È¢Œ⁄U •Ê÷Í·áÊÊ¥ flÊ‹Ë „Ò¥U. fl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ◊ÊÃÊ „Ò¥U. fl „U◊ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê Á‹∞ „UÊÕÊ¥ ◊¥ ©UπÊ (¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§ÊŸ ∑§Ê ¬ÊòÊ) œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (56) ©UπÊ¢ ∑ΧáÊÊÃÈ ‡ÊÄàÿÊ ’Ê„ÈUèÿÊ◊ÁŒÁÃÁœ¸ÿÊ. ◊ÊÃÊ ¬ÈòÊ¢ ÿÕʬSÕ ‚ÊÁÇŸ¢ Á’÷ûÊȸ ª÷¸ ˘ •Ê. ◊πSÿ Á‡Ê⁄UÊ ˘ Á‚.. (57) Œfl◊ÊÃÊ ©UπÊ ¬ÊòÊ ∑§Ê ‡ÊÁÄà fl ‚È◊ÁìÍfl¸∑§ ’Ê„ÈU ‚ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ◊ÊÃÊ ¡Ò‚ ¬ÈòÊ ∑§Ê ªÊŒ ◊¥ ’ÒΔUÊÃË „ÒU, flÒ‚ „UË •Ê¬ •¬Ÿ ª÷¸ (’Ëø) ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ê œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§ Á‚⁄U (◊ÈÅÿ) „Ò¥U. (57) fl‚flSàflÊ ∑ΧáflãÃÈ ªÊÿòÊáÊ ¿U㌂ÊÁX⁄USflŒ˜œÈ˝flÊÁ‚ ¬ÎÁÕ√ÿÁ‚ œÊ⁄UÿÊ ◊Áÿ ¬˝¡Ê ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ ªÊÒ¬àÿ ¦ ‚ÈflËÿ¸ ¦ ‚¡ÊÃÊãÿ¡◊ÊŸÊÿ L§º˝ÊSàflÊ ∑ΧáflãÃÈ òÊÒc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflŒ˜œÈ˝flÊSÿãÃÁ⁄UˇÊ◊Á‚ œÊ⁄UÿÊ ◊Áÿ ¬˝¡Ê ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ ªÊÒ¬àÿ ¦ ‚ÈflËÿ¸ ¦ ‚¡ÊÃÊãÿ¡◊ÊŸÊÿÊÁŒàÿÊSàflÊ ∑ΧáflãÃÈ ¡ÊªÃŸ ¿U㌂ÊÁX⁄USflŒ˜œÈ˝flÊÁ‚ lÊÒ⁄UÁ‚ œÊ⁄UÿÊ ◊Áÿ ¬˝¡Ê ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ ªÊÒ¬àÿ ¦ ‚ÈflËÿ¸ ¦ ‚¡ÊÃÊãÿ¡◊ÊŸÊÿ Áfl‡fl àflÊ ŒflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊ— ∑ΧáflãàflÊŸÈc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflŒ˜œÈ˝flÊÁ‚ ÁŒ‡ÊÊÁ‚ œÊ⁄UÿÊ ◊Áÿ ¬˝¡Ê ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ ªÊÒ¬àÿ ¦ ‚ÈflËÿ¸ ¦ ‚¡ÊÃÊãÿ¡◊ÊŸÊÿ.. (58) „U ©UπÊ Œfl! fl‚ȪáÊ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÁ◊¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ œ˝Èfl fl ¬ÎâflË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝¡Ê, ÿ¡◊ÊŸ fl „U◊Ê⁄U ‚¡ÊÁÃÿÊ¥ 134 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝¡Ê ∑§Ê ¬Ê·áÊ fl ©U‚ ªÊ¬Áà ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝¡Ê ∑§Ê üÊcΔU ’‹‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. L§º˝ªáÊ ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÁ◊¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ äÊ˝Èfl fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ ‚◊ÊŸU „Ò¥U. •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÁ◊¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÊÁŒàÿªáÊ ¡ªÃË ¿¢UŒ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÁ◊¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ œ˝Èfl fl Sflª¸‹Ê∑§ „Ò¥U. •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÁ◊¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ Áfl‡fl ŒflÊ •ŸÈc≈ÈU¬˜ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ÁŸÁ◊¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ œ˝Èfl fl ÁŒ‡ÊÊ M§¬ „Ò¥U. ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§ Á‹∞ ‚¢ÃÊŸ, äÊŸ, ¬⁄UÊ∑˝§◊ ‚¡ÊÃËÿ ’Ê¢äÊflÊ¥ ∑§Ê ÿÕÊÁøà ‚ÊÒ„Uʺ¸ ŒËÁ¡∞. (58) •ÁŒàÿÒ ⁄UÊSŸÊSÿÁŒÁÃCÔU Á’‹¢ ªÎèáÊÊÃÈ. ∑ΧàflÊÿ ‚Ê ◊„UË◊ÈπÊ¢ ◊Îá◊ÿË¥ ÿÊÁŸ◊ÇŸÿ. ¬ÈòÊèÿ— ¬˝Êÿë¿UŒÁŒÁ× üʬÿÊÁŸÁÃ.. (59) •Ê¬ ©UπÊ ∑§Ë ◊π‹Ê ◊¥ „Ò¥U. •Ê¬ ’Ëø ∑§ SÕÊŸ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§∞ ¡Ê∞¢. Œfl◊ÊÃÊ ¬ÎâflË ∑§Ë Á◊≈U˜≈UË ‚ •ÁÇŸ ∑§Ë •ÊœÊ⁄U÷Íà ©UπÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Á◊≈˜U≈UË ‚ ÁŸÁ◊¸Ã ß‚ ¬∑§ÊŸ ∑§ Á‹∞ ¬ÈòÊÊ¥ ∑§Ê ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (59) fl‚flSàflÊ œÍ¬ÿãÃÈ ªÊÿòÊáÊ ¿U㌂ÊÁX⁄USflº˝Èº˝ÊSàflÊ œÍ¬ÿãÃÈ òÊÒc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflŒÊÁŒàÿÊSàflÊ œÍ¬ÿãÃÈ ¡ÊªÃŸ ¿U㌂ÊÁX⁄USflÁm‡fl àflÊ ŒflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊ œÍ¬ÿãàflÊŸÈc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflÁŒãº˝SàflÊ œÍ¬ÿÃÈ flL§áÊSàflÊ œÍ¬ÿÃÈ ÁflcáÊÈSàflÊ œÍ¬ÿÃÈ.. (60) „U ©UπÊ Œfl! fl‚ȪáÊ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. fl‚ȪáÊ •¢Áª⁄UÊ ¡Ò‚ •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. L§º˝ªáÊ ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •ÊÁŒàÿªáÊ ¡ªÃË ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. flÒ‡flÊŸ⁄U •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. flL§áÊ Œfl •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÁflcáÊÈ •Ê¬ ∑§Ê œÍ¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (60) •ÁŒÁÃCÔ˜UflÊ ŒflË Áfl‡flŒ√ÿÊflÃË ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕ •ÁX⁄USflØ πŸàflfl≈U ŒflÊŸÊ¢ àflÊ ¬àŸËŒ¸flËÁfl¸‡flŒ√ÿÊflÃË— ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕ •ÁX⁄USflgœÃÍπ Áœ·áÊÊSàflÊ ŒflËÁfl¸‡flŒ√ÿÊflÃË— ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕ •ÁX⁄USflŒèÊËãœÃÊ◊Èπ flM§òÊËCÔU˜flÊ ŒflËÁfl¸‡flŒ√ÿÊflÃË— ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕ •ÁX⁄USflë¿˛U¬ÿãÃÍπ ÇŸÊSàflÊ ŒflËÌfl‡flŒ√ÿÊflÃË— ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕ •ÁX⁄USflà¬øãÃÍπ ¡ŸÿSàflÊÁë¿U㟬òÊÊ ŒflËÌfl‡flŒ√ÿÊflÃË— ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚œSÕ •ÁX⁄USflà¬øãÃÍπ.. (61) „U Á◊≈˜U≈UË Œfl! Œfl◊ÊÃÊ ‚’ ∑§Ë ßc≈U fl ‚÷Ë ŒÒflË ªÈáÊÊ¥ ∑§Ë πÊŸ „Ò¥U . •Ê¬ ÷ÍÁ◊ ¬⁄U ‚œŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. Œfl◊ÊÃÊ •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ ∑§Ê πÊŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Œfl¬àŸË ‚÷Ë ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã (‚ÊœŸ) ÿ¡Èfl¸Œ - 135
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UŸ fl πÊŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Áfl‡fl ŒflË ‚÷Ë ÁŒ√ÿªÈáÊÊ¥ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ fl πÊŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Áfl‡fl ŒflË ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ ‚Á„Uà œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U Á◊≈˜U≈UË Œfl! •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ ∑§Ê ¬∑§ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. Áfl‡fl ŒflË ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ªÁÇÊË‹ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (61) Á◊òÊSÿ ø·¸áÊËœÎÃÊ ˘ flÊ ŒflSÿ ‚ÊŸÁ‚. lÈ꟢ ÁøòÊüÊflSÃ◊◊˜.. (62) „U◊ ¬Ê·∑§ ‡ÊÁÄà ‚ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ, Á◊òÊ ŒflÃÊ ∑§ ‡Êʇflà ÃÕÊ •Ê‡øÿ¸¡Ÿ∑§ ¬ŒÊÕÊZ ‚ ÿÈÄà ∞‡flÿ¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (62) ŒflSàflÊ ‚ÁflÃÊm¬ÃÈ ‚ȬÊÁáÊ— SflæU˜ªÈÁ⁄U— ‚È’Ê„ÈUL§Ã ‡ÊÄàÿÊ. •√ÿÕ◊ÊŸÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊ʇÊÊ ÁŒ‡Ê ˘ •Ê¬ÎáÊ.. (63) „U ©Uπ! ‚’ ∑§Ê ¬ÒŒÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‚ÁflÃÊ •¬ŸË ©UûÊ◊ ÷È¡Ê•Ê¥ •ÊÒ⁄U •¢ªÁÈ ‹ÿÊ¥ ÿÊŸË ÁŒ√ÿ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚, •¬ŸË ‚Ê◊âÿ¸ ∞fl¢ ’ÈÁh ∑§Ê҇ʋ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄U¥. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ŒÈ—π⁄UÁ„Uà „UÊ ∑§⁄U •¬ŸË •ë¿UË ßë¿UÊ•Ê¥ •ÊÒ⁄U ™¢§ø ©UŒŒ˜ ‡ ÿ ¬˝Êåà ∑§⁄U¥ (63) ©UàÕÊÿ ’΄UÃË ÷flÊŒÈ ÁÃcΔU œÈ˝flÊ àfl◊˜. Á◊òÊÒÃÊ¢ à ˘ ©UπÊ¢ ¬Á⁄UŒŒÊêÿÁ÷àÿÊ ˘ ∞·Ê ◊Ê ÷ÁŒ.. (64) „U ©Uπ! •Ê¬ ªÃ¸ ‚ ÁŸ∑§‹ ∑§⁄U ’«∏U „UÊ¥. •Ê¬ SÕÊÿË „UÊ ∑§⁄U ∑§Ê◊ ∑§⁄¥U. „U Á◊òÊ Œfl! „U◊ ß‚ ¬ÁflòÊ ’⁄Uß ∑§Ê Ÿc≈U „UÊŸ ∑§ «U⁄U ‚ •Ê¬ ∑§Ê ‚ÊÒ¥¬Ã „Ò¥U. ÿ„U ≈ÍU≈U Ÿ„UË¥. ÿ„U •ë¿UË Ã⁄U„U ‚ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄U. (64) fl‚flSàflÊë¿ÎUãŒãÃÈ ªÊÿòÊáÊ ¿U㌂ÊÁX⁄USflº˝Èº˝ÊSàflÊë¿ÎUãŒÃÈ òÊÒc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflŒÊÁŒàÿÊSàflÊë¿ÎUãŒãÃÈ ¡ÊªÃŸ ¿U㌂ÊÁX⁄USflÁm‡fl àflÊ ŒflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊ ˘ •Êë¿ÎUãŒãàflÊŸÈc≈ÈU÷Ÿ ¿U㌂ÊÁX⁄USflØ.. (65) „U ©Uπ! ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ∑§ SÃÊòÊÊ¥ ‚ fl‚ȪáÊ •Ê¬ ∑§Ê •Á÷Á·Äà (‚ê◊ÊÁŸÃ) ∑§⁄¥U. ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢Uº ‚ L§º˝ªáÊ •Ê¬ ∑§Ê ‚ê◊ÊŸ ∑§⁄¥. ¡ªÃË ¿¢UŒ ∑§ ¬˝÷Êfl ‚ •ÊÁŒàÿªáÊ •Ê¬ ∑§Ê ‚ê◊ÊŸ ∑§⁄¥U. •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ‚ Áfl‡fl ŒflÊ •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ‚ê◊ÊŸ ∑§⁄¥U. (65) •Ê∑ͧÁÃ◊ÁÇŸ¢ ¬˝ÿÈ¡ ¦ SflÊ„UÊ ◊ŸÊ ◊œÊ◊ÁÇŸ¢ ¬˝ÿÈ¡ ¦ SflÊ„UÊ ÁøûÊ¢ ÁflôÊÊÃ◊ÁÇŸ¢ ¬˝ÿÈ¡ ¦ SflÊ„UÊ flÊøÊ ÁflœÎÁÃ◊ÁÇŸ¢ ¬˝ÿÈ¡ ¦ SflÊ„UÊ ¬˝¡Ê¬Ãÿ ◊Ÿfl SflÊ„UÊÇŸÿ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿ SflÊ„UÊ.. (66) •ÁÇŸ •ë¿U ∑§Ê◊Ê¥ ◊¥ ‹ªÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸ •ë¿U ∑§Ê◊Ê¥ ◊¥ ◊Ÿ •ÊÒ⁄U ’ÈÁh ∑§Ê ‹ªÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸ ÁøûÊ ∑§Ê Áfl‡Ê· ôÊÊŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸflÊáÊË ∑§Ê Áfl‡Ê· M§¬ ‚ 136 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝¡Ê¬Áà ◊ŸÈ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝¡Ê¬Áà •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝¡Ê¬Áà flÒ‡flÊŸ⁄U ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (66) Áfl‡flÊ ŒflSÿ ŸÃÈ◊¸Ãʸ flÈ⁄UËà ‚Åÿ◊˜. Áfl‡flÊ ⁄UÊÿ ˘ ß·ÈäÿÁà lÈ꟢ flÎáÊËà ¬Ècÿ‚ SflÊ„UÊ.. (67) ‚÷Ë ¡Ÿ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŸÃÊ ¬⁄U◊‡fl⁄U ∑§Ê ‚Áπ ÷Êfl (©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚) ¬Ê ¡Ê∞¢. (©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚) ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ‚’ flÒ÷fl ¬Ê ¡Ê∞¢. (©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚) ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ë ‚Ê⁄UË ‡ÊÊŸ ‡ÊÊÒ∑§Ã ¬Ê ¡Ê∞¢. (©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚) ‚¢‚Ê⁄U ∑§ áʥ ∑§Ê ¬Ê ¡Ê∞¢. ¬⁄U◊‡fl⁄U ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (67) ◊Ê ‚È Á÷àÕÊ ◊Ê ‚È Á⁄U·Ê ˘ ê’ œÎcáÊÈ flË⁄UÿSfl ‚È. •ÁÇŸ‡øŒ¢ ∑§Á⁄UcÿÕ—.. (68) „U ©UπÊ Œfl! •Ê¬ ∑§Ê ∑§÷Ë ÷Ë ÷ŒŸ Ÿ „UÊ. •Ê¬ ∑§÷Ë ÷Ë Ÿc≈U Ÿ „UÊ¥. •Ê¬ œÒÿ¸‡ÊÊ‹Ë flË⁄U, ∑§Ã¸√ÿ¬⁄UÊÿáÊ „Ò¥U. „U ©UπÊ Œfl! •Ê¬ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ß‚ ÿôÊ ∑§Êÿ¸ ∑§Ê ‚¢¬ÊÁŒÃ ∑§⁄ÊUŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (68) ŒÎ ¦ „USfl ŒÁfl ¬ÎÁÕÁfl SflSÃÿ ˘ •Ê‚È⁄UË ◊ÊÿÊ SflœÿÊ ∑ΧÃÊÁ‚. ¡Èc≈¢U Œflèÿ ˘ ߌ◊SÃÈ „U√ÿ◊Á⁄Uc≈UÊ àfl◊ÈÁŒÁ„U ÿôÊ •ÁS◊Ÿ˜.. (69) „U ¬ÎâflË ŒflË! •Ê¬ •‚È⁄UÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U ◊ÊÿÊflË M§¬ ’Œ‹Ÿ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ©UπÊ ∑§Ê M§¬ œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ‚Ȍ΅U∏ „UÊß∞ fl ßc≈U „UÁfl ∑§Ê ÷ʪ ‹ªÊß∞. •Ê¬ •ÊŸ¢Œ ŒŸ fl ÿôÊ ∑§ ‚◊Êåà „UÊŸ Ã∑§ ÿôÊ ◊¥ ©U¬ÁSâÊà ⁄U„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (69) º˝Ô˜fl㟗 ‚̬⁄UÊ‚ÈÁ× ¬˝àŸÊ „UÊÃÊ fl⁄Uáÿ—. ‚„U‚S¬ÈòÊÊ •jÈ×.. (70) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ œŸflÊŸ, ÉÊË ¬ËŸ flÊ‹, „UÊÃÊ, üÊcΔU, •Œ˜÷Èà fl ‚Ê„U‚ ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ‚»§‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (70) ¬⁄USÿÊ ˘ •Áœ ‚¢flÃÊ ˘ fl⁄UÊ° 2 •èÿÊÃ⁄U. ÿòÊÊ„U◊ÁS◊ ÃÊ° 2 •fl.. (71) „U •ÁÇŸ! ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ‚¢ÉÊ·¸‡ÊË‹ „U◊Ê⁄U ‚◊ˬ ∑§ ‚ÒÁŸ∑§Ê¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ¡„UÊ¢ „U◊ „Ò¥U, •Ê¬ ©U‚ SÕÊŸ ∑§Ë ÷Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (71) ¬⁄U◊SÿÊ— ¬⁄UÊflÃÊ ⁄UÊÁ„UŒ‡fl ˘ ß„UÊ ªÁ„U. ¬È⁄UËcÿ— ¬ÈL§Á¬˝ÿÊÇŸ àfl¢ Ã⁄UÊ ◊Îœ—.. (72) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ⁄UÊÁ„Uà ŸÊ◊∑§ ÉÊÊ«∏ ∑§Ë ∑§Ê¢Áà ‚ ÁÉÊ⁄U „UÈ∞ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ œŸflÊŸ fl ¬⁄U◊ Á¬˝ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ‚»§‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (72) ÿ¡Èfl¸Œ - 137
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿŒÇŸ ∑§ÊÁŸ ∑§ÊÁŸ ÁøŒÊ à ŒÊM§ÁáÊ Œä◊Á‚. ‚flZ ÃŒSÃÈ Ã ÉÊÎâ ÃÖ¡È·Sfl ÿÁflcΔUK.. (73) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê ∑§ÊÒŸ∑§ÊÒŸ ‚Ë ‹∑§Á«∏UÿÊ¢ (‚Á◊œÊ) ‚◊Á¬¸Ã ∑§Ë ¡Ê∞¢. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ©UŸ ‚÷Ë ∑§Ê ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁà ∑§Ë Ã⁄U„U •àÿ¢Ã Á¬˝ÿ ÷Êfl ‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (73) ÿŒûÿȬÁ¡ÁuÔU∑§Ê ÿm◊˝Ê •Á¬¸ÁÃ. ‚flZ ÃŒSÃÈ Ã ÉÊÎâ ÃÖ¡È·Sfl ÿÁflcΔUK.. (74) „U •ÁÇŸ! ¡Ò‚ ŒË◊∑§ ‹∑§«∏UË ∑§Ê πÊ ¡ÊÃË „Ò, flÒ‚ •Ê¬ ©U‚ πÊ ¡Ê∞¢. ¡Ò‚ ÉÊÈŸ ‹∑§«∏UË ∑§Ê πÊ ¡ÊÃÊ „Ò, flÒ‚ „UË •Ê¬ ©U‚ πÊ ¡Ê∞¢. „U •ÁÇŸ! ‚Á◊œÊ∞¢ •Ê¬ ∑§Ê ÉÊË ∑§Ë Ã⁄U„U Á¬˝ÿ „UÊ¥. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ©UŸ ‚’ ∑§Ê •àÿ¢Ã Á¬˝ÿ ÷Êfl ‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (74) •„U⁄U„U⁄U¬˝ÿÊfl¢ ÷⁄UãÃʇflÊÿfl ÁÃcΔUà ÉÊÊ‚◊S◊Ò. ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ‚Á◊·Ê ◊ŒãÃÊÇŸ ◊Ê Ã ¬˝ÁÃfl‡ÊÊ Á⁄U·Ê◊.. (75) „U •ÁÇŸ! ¡Ò‚ ÉÊÈ«∏U‚Ê‹ ◊¥ „U⁄U ÁŒŸ ÉÊÊ«∏U ∑§Ê ÉÊÊ‚ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U ÃÕÊ (ÉÊÊ‚ ‚) ©U‚ ∑§Ê ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§ ‚¢⁄UˇÊáÊ ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¥U. •Ê¬ flÒ‚ „UË œŸ ‚ „U◊Ê⁄UÊ ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „U⁄U ÁŒŸ ‚Á◊œÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê„UÊ⁄U ÷¥≈U ∑§⁄¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ∑§÷Ë ÷Ë ŒÈ—πË Ÿ „UÊ¥. ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ ‚Èπ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. (75) ŸÊ÷Ê ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚Á◊œÊŸ •ÇŸÊÒ ⁄UÊÿS¬Ê·Êÿ ’΄Uà „UflÊ◊„U. ß⁄Uê◊Œ¢ ’΄UŒÈÄÕ¢ ÿ¡òÊ¢ ¡ÃÊ⁄U◊ÁÇŸ¢ ¬ÎÃŸÊ‚È ‚Ê‚Á„U◊˜.. (76) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë ŸÊÁ÷ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Á◊œÊ M§¬Ë œŸ ‚ ¬Ê·áÊ ¬Êà „Ò¥U. „U◊ Áfl‡ÊÊ‹ •ÁÇŸ ∑§Ê ’Ê⁄’Ê⁄U •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’«U∏Ë (‹¢’Ë) SÃÈÁÃÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿ„UÊ¢ Áfl¡ÃÊ •ÁÇŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚Ê„U‚Ë Áfl¡ÃÊ •ÁÇŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿ„UÊ¢ ∞‡flÿ¸ ¬˝ÊÁåà „UÃÈ •ÁÇŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (76) ÿÊ— ‚ŸÊ ˘ •÷Ëàfl⁄UË⁄UÊ√ÿÊÁœŸËL§ªáÊÊ ˘ ©UÃ. ÿ SÃŸÊ ÿ ø ÃS∑§⁄UÊSÃÊ°Sà •ÇŸÁ¬ ŒœÊêÿÊSÿ.. (77) „U •ÁÇŸ! ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ¡Ê ‚ŸÊ ÿÈh „UÃÈ ÃÒÿÊ⁄U „UÊÃË „ÒU, ©U‚ •Ê¬ ⁄Uʪʥ ∑§ ◊Èπ ◊¥ ¤ÊÊ¥∑§ ŒÃ „Ò¥U. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ¡Ê ‚ŸÊ ÿÈh „UÃÈ ÃÒÿÊ⁄U „UÊÃË, ©U‚ øÊ⁄U «UÊ∑ȧ•Ê¥ ∑§ ◊Èπ ◊¥ ¤ÊÊ¥∑§ ŒÃ „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ß‚Ë ©Œ˜Œ‡ÿ ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (77) 138 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
ÇÿÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Œ ¦ CÔ˛UÊèÿÊ¢ ◊Á‹ê‹ÍÜ¡êèÿÒSÃS∑§⁄UÊ° 2 ©UÃ. „UŸÈèÿÊ ¦ Sßʟ˜ ÷ªflSÃÊ°Sàfl¢ πÊŒ ‚ÈπÊÁŒÃÊŸ˜.. (78) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê •¬ŸË ŒÊ…U∏Ê¥ ‚ ‚◊Í‹ Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ «UÊ∑ȧ•Ê¥ ∑§Ê •¬Ÿ ŒÊ¢ÃÊ¥ ‚ ‚◊Í‹ Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ ∑§Ê •¬ŸË ŒÊ…∏UË ‚ ‚◊Í‹ Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ª«˜U…UÊ πÊŒ ∑§⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ªÊ«∏U ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ‚à∑§◊¸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (78) ÿ ¡Ÿ·È ◊Á‹ê‹fl— SßʂSÃS∑§⁄UÊ flŸ. ÿ ∑§ˇÊcflÉÊÊÿflSÃÊ°Sà ŒœÊÁ◊ ¡êèÊÿÊ—.. (79) „U •ÁÇŸ! ¡Ê ◊ŸÈcÿ ◊¥ ◊Á‹Ÿ, øÊ⁄U, ¡Ê ◊ŸÈcÿ ◊¥ «UÊ∑ͧ, flŸø⁄U «UÊ∑ͧ, ¡Ê ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ë ∑§Ê¢π ◊¥ ÉÊÊà ∑§⁄U ∑§ ◊Ê⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U, ©Uã„¥U •Ê¬ •¬ŸË ŒÊ…U∏Ê¥ ◊¥ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄ ∑§ ◊Ê⁄U «UÊÁ‹∞. (79) ÿÊ •S◊èÿ◊⁄UÊÃËÿÊl‡ø ŸÊ m·Ã ¡Ÿ—. ÁŸãŒÊlÊ •S◊ÊÁãœå‚Êëø ‚flZ â ◊S◊‚Ê ∑ȧL§.. (80) „U •ÁÇŸ! ¡Ê ‹Êª „U◊ ‚ m· ∑§⁄¥U, •Ê¬ ©UŸ ‚’ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©UŸ ‚÷Ë ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞, ¡Ê „U◊Ê⁄UË ÁŸ«U⁄UÃÊ ◊¥ ’Êœ∑§ ’Ÿ¥ •ÊÒ⁄U ¡Ê „U◊Ê⁄UË ÁŸ¢ŒÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (80) ‚ ¦ Á‡Êâ ◊ ’˝rÊÔ ‚ ¦ Á‡Êâ flËÿZ ’‹◊˜. ‚ ¦ Á‡Êâ ˇÊòÊ¢ Á¡cáÊÈ ÿSÿÊ„U◊ÁS◊ ¬È⁄UÊÁ„U×.. (81) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ Á¡‚ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ÿôÊ ∑§ „U◊ ¬È⁄UÊÁ„Uà „Ò¥U, ©U‚ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ flËÿ¸, ’‹, ôÊÊŸ fl ¡Ëß ÿÊÇÿ ˇÊÊòÊ’‹ ∑§Ë ’…∏ÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©U‚ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê Áfl¡ÿ‡ÊË‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (81) ©UŒ·Ê¢ ’Ê„ÍU •ÁÃ⁄U◊Èmøʸ •ÕÊ ’‹◊˜. ÁˇÊáÊÊÁ◊ ’˝rÊÔáÊÊ ˘ Á◊òÊÊŸÈãŸÿÊÁ◊ SflÊ° 2 •„U◊˜.. (82) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ©UŸ ŒÈc≈U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ’Ê„È’‹ ∑§Ë ’¡Êÿ „U◊Ê⁄U ¬⁄UÊ∑˝§◊ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄U •Õ¸ fl ’‹ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. •¬Ÿ ’˝rÊÔôÊÊŸ ‚ •Á◊òÊÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄¥U. „U◊ •¬Ÿ Sfl¡ŸÊ¥ ∑§Ê ™¢§øÊ ©UΔUÊ ‚∑¥§. (82) •ãŸ¬ÃãŸSÿ ŸÊ ŒsÔŸ◊ËflSÿ ‡ÊÈÁc◊áÊ—. ¬˝¬˝ ŒÊÃÊ⁄¢U ÃÊÁ⁄U· ˘ ™§¡Z ŸÊ œÁ„U Ám¬Œ øÃÈc¬Œ.. (83) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ãŸ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ⁄Uʪ ⁄UÁ„Uà ’ŸÊŸ fl ¬Ê·∑§ÃÊ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒÊÃÊ ∑§Ê ¬Ê·áÊ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒÊ¬ÊÿÊ¥ fl øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ™§¡Ê¸ œÊ⁄UáÊ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (83) ÿ¡Èfl¸Œ - 139
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ŒÎ‡ÊÊŸÊ L§Ä◊ ˘ ©U√ÿʸ √ÿlÊÒŒ˜ ŒÈ◊¸·¸◊ÊÿÈ— ÁüÊÿ L§øÊŸ—. •ÁÇŸ⁄U◊ÎÃÊ •÷flmÿÊÁ÷ÿ¸ŒŸ¢ lÊÒ⁄U¡Ÿÿà‚È⁄UÃÊ—.. (1) ‚Íÿ¸ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ŒÎÁc≈UªÊø⁄U „UÊ ⁄U„U „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë •Ê¡ ∑§Ë ÁŒŸ÷⁄U ∑§Ë •ÊÿÈ ‚¢ÉÊ·¸¬Íáʸ „ÒU . fl ‡ÊÊ÷Ê ∑§ Á‹∞ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊ ⁄U„U „Ò¥. ÿ¡◊ÊŸÊ¥ Ÿ ¡’ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ‚Íÿ¸ ∑§Ê ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ Ã’ „Áfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ fl •ÁÇŸM§¬ ◊¥ •Ê ª∞. (1) ŸÄÃÊ·Ê‚Ê ‚◊Ÿ‚Ê ÁflM§¬ œÊ¬ÿà Á‡Ê‡ÊÈ◊∑§ ¦ ‚◊ËøË. lÊflÊˇÊÊ◊Ê L§Ä◊Ê •ãÃÌfl÷ÊÁà ŒflÊ ˘ •ÁÇŸ¢ œÊ⁄Uÿãº˝ÁfláÊʌʗ.. (2) ‚Íÿ¸ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ ‚ ‚È’„U •ÊÒ⁄U ÁŒŸ ∑§Ë ÿÊòÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ∞∑§ ŒÍ‚⁄U ‚ Á’‹∑ȧ‹ •‹ª M§¬ flÊ‹ ∞∑§ Á‡Ê‡ÊÈ ∑§Ê ÿ Œfl ©U¬ÿÈÄà ⁄UËÁà ‚ ¬ÊÁ·Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ’Ëø ø◊∑§Ã „Ò¥U. flÒ‚ „UË œŸŒÊÃÊ ŒflªáÊ •ÁÇŸ ∑§Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. (2) Áfl‡flÊ M§¬ÊÁáÊ ¬˝Áà ◊ÈÜøà ∑§Áfl— ¬˝Ê‚ÊflËjº˝¢ Ám¬Œ øÃÈc¬Œ. Áfl ŸÊ∑§◊Åÿà‚ÁflÃÊ fl⁄UáÿÊŸÈ ¬˝ÿÊáÊ◊È·‚Ê Áfl ⁄UÊ¡ÁÃ.. (3) ‚Íÿ¸ Áfl‡fl M§¬ fl ∑§Áfl „Ò¥U. fl ŒÊ¬ÊÿÊ¥ •ÊÒ⁄U øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl fl⁄Uáÿ „Ò¥U. fl ‚÷Ë ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ©U·Ê ŒflË ∑§ ¡ÊŸ ∑§ ’ÊŒ •Ê∑§Ê‡Ê ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. (3) ‚ȬáÊʸÁ‚ ªL§à◊Ê°ÁSòÊflÎûÊ Á‡Ê⁄UÊ ªÊÿòÊ¢ øˇÊÈ’¸Î„Uº˝ÕãÃ⁄U ¬ˇÊÊÒ. SÃÊ◊ ˘ •Êà◊Ê ¿UãŒÊ ¦ SÿXÊÁŸ ÿ¡Í ¦ Á· ŸÊ◊. ‚Ê◊ à ßÍflʸ◊Œ√ÿ¢ ÿôÊÊÿÁôÊÿ¢ ¬Èë¿¢U ÁœcáÿÊ— ‡Ê»§Ê—. ‚ȬáÊʸÁ‚ ªL§à◊ÊÁãŒfl¢ ªë¿U Sfl— ¬Ã.. (4) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ªL§«U∏ SflM§¬ „Ò¥U. ÁòÊflÎØ SÃÊ◊ •Ê¬ ∑§Ê Á‚⁄U „ÒU. ªÊÿòÊË ¿¢UŒ •Ê¬ ∑§ ŸòÊ „Ò¥U. ’΄Uà‚Ê◊ •ÊÒ⁄U ⁄UÕ¢Ã⁄U ‚Ê◊ •Ê¬ ∑§ ŒÊŸÊ¥ ¬¢π „Ò¥U. ¬¢øŒ‡Ê SÃÊ◊ •Ê¬ ∑§Ë •Êà◊Ê „Ò¥U. ¿¢UŒ •Ê¬ ∑§ •¢ª „Ò¥U. ‚’ ÿ¡È •Ê¬ ∑§ ŸÊ◊ „Ò¥U. ‚Ê◊ •Ê¬ ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U „ÒU. ÿôÊÊÿÁôÊÿ ‚Ê◊ •Ê¬ ∑§Ë ¬Í¢¿U „Ò¥U. ÁœÁcáÊÿÊ¥ ◊¥ ÁŸÁ„Uà •ÁÇŸ 140 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê¬ ∑§ ¬¢π „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÈ÷ ªÁÃflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ©UÁ«∏U∞. •Ê¬ Sflë¿UÊ ‚ ©U«∏UÊŸ ÷Á⁄U∞. (4) ÁflcáÊÊ— ∑˝§◊ÊÁ‚ ‚¬àŸ„UÊ ªÊÿòÊ¢ ¿U㌠˘ •Ê⁄UÊ„U ¬ÎÁÕflË◊ŸÈ Áfl∑˝§◊Sfl ÁflcáÊÊ— ∑˝§◊ÊSÿÁ÷◊ÊÁÄUÊ òÊÒc≈ÈU÷¢ ¿UãŒ˘•Ê⁄UÊ„UÊãÃÁ⁄UˇÊ◊ŸÈ Áfl∑˝§◊Sfl ÁflcáÊÊ— ∑˝§◊ÊSÿ⁄UÊÃËÿÃÊ „UãÃÊ ¡ÊªÃ¢ ¿U㌠˘ •Ê⁄UÊ„U ÁŒfl◊ŸÈ Áfl∑˝§◊Sfl ÁflcáÊÊ— ∑˝§◊ÊÁ‚ ‡ÊòÊÍÿÃÊ „UãÃÊŸÈc≈ÈU÷¢ ¿U㌠˘ •Ê⁄UÊ„U ÁŒ‡ÊÊŸÈ Áfl∑˝§◊Sfl.. (5) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÁflcáÊÈ ∑§ ¬ŒãÿÊ‚ fl ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. •Ê¬ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ¬⁄U •ÊM§…U∏ „UÊŸ fl ¬ÎâflË ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁflcáÊÈ Œfl ∑§Ê ∑˝§◊ ãÿÊ‚ fl ‡ÊòÊÈ ∑§Ê •Á÷◊ÊŸ Ÿc≈U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ¬⁄U •ÊM§…∏U „UÊŸ ÃÕÊ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁflcáÊÈ ∑§Ê ¬ŒãÿÊ‚ •ÊÒ⁄U Ÿ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ •Êø⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ¡ªÃË ¿¢UŒ ¬⁄U •ÊM§…∏U „UÊŸ •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁflcáÊÈ ∑§Ê ¬ŒãÿÊ‚ ÃÕÊ ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ¬⁄U •ÊM§…∏U „UÊŸ •ÊÒ⁄U ‚Ê⁄UË ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (5) •∑˝§ãŒŒÁÇŸ— SßÿÁãŸfl lÊÒ— ˇÊÊ◊Ê ⁄UÁ⁄U„UmËL§œ— ‚◊Ü¡Ÿ˜. ‚lÊ ¡ôÊÊŸÊ Áfl „UËÁ◊hÊ •ÅÿŒÊ ⁄UÊŒ‚Ë ÷ÊŸÈŸÊ ÷Êàÿã×.. (6) •ÁÇŸ ’ÊŒ‹ ∑§ ‚◊ÊŸ ª⁄U¡Ã „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ‚ fl„U ¬ÎâflË ¬⁄U √ÿÊåà „UÊà „Ò¥U. fl ‹ÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÉÊ⁄U ‹Ã „Ò¥U fl ‡ÊËÉÊ˝ ¡‹Ã „Ò¥U. fl ‚Á◊œÊflÊŸ •ÊÒ⁄U ‚’ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl •¬Ÿ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ‚’ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (6) •ÇŸèÿÊflÌûÊãŸÁ÷ ◊Ê ÁŸflûʸSflÊÿÈ·Ê flø¸‚Ê ¬˝¡ÿÊ œŸŸ. ‚ãÿÊ ◊œÿÊ ⁄UƒÿÊ ¬Ê·áÊ.. (7) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚ê◊Èπ ¬œÊ⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÿÈ, flø¸Sfl, ‚¢ÃÊŸ fl œŸ ∑§ ‚ÊÕ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ’ÈÁh, ∞‡flÿ¸ fl ¬Ê·áÊ ∑§ ‚ÊÕ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊÁ⁄U∞. (7) •ÇŸ •ÁX⁄U— ‡Êâ à ‚ãàflÊflÎ× ‚„Ud¢ à ˘ ©U¬ÊflÎ×. •œÊ ¬Ê·Sÿ ¬Ê·áÊ ¬ÈŸŸÊ¸ Ÿc≈U◊Ê∑ΧÁœ ¬ÈŸŸÊ¸ ⁄UÁÿ◊Ê∑ΧÁœ.. (8) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ üÊcΔU •¢ª flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ‚Ò∑§«∏UÊ¥, „U¡Ê⁄UÊ¥ ¬Á⁄U∑˝§◊Ê∞¢ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬Ê·∑§ÃÊ ŒŸ flÊ‹Ê ¬Ê·áÊ fl Ÿc≈U „ÈU•Ê ¬‡ÊÈœŸ •ÊÒ⁄U œŸ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (8) ¬ÈŸM§¡Ê¸ ÁŸflûʸSfl ¬ÈŸ⁄UÇŸ ˘ ß·ÊÿÈ·Ê ¬ÈŸŸ¸— ¬ÊsÔ ¦ „U‚—.. (9) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ™§¡¸SflË ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ’Ê⁄U’Ê⁄U ‚¢¬ãŸ fl •ÊÿÈ ‚¢¬ãŸ ÿ¡Èfl¸Œ - 141
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ’Ê⁄U’Ê⁄U ¬Ê¬ ‚ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (9) ‚„U ⁄UƒÿÊ ÁŸflûʸSflÊÇŸ Á¬ãflSfl œÊ⁄UÿÊ. Áfl‡flåSãÿÊ Áfl‡flÃS¬Á⁄U.. (10)U „U •ÁÇŸ! •Ê¬ œŸ ∑§ ‚ÊÕ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê ¡‹œÊ⁄U ‚ ‚Ë¥Áø∞. ÿ„U ¡‹œÊ⁄U åÿÊ‚ ’ȤÊÊŸ flÊ‹Ë „ÒU. •Ê¬ ¬Í⁄U ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ß‚ ‚ ‚Ë¥Áø∞. (10) •Ê àflÊ„UÊ·¸◊ãÃ⁄U÷Íœ˝È¸flÁSÃcΔUÊÁfløÊøÁ‹—. Áfl‡ÊSàflÊ ‚flʸ flÊÜ¿UãÃÈ ◊Ê àflº˝ÊCÔ˛U◊Áœ÷˝‡ÊØ.. (11) „U •ÁÇŸ! „U◊ Ÿ •Ê¬ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ ©UπÊ ∑§ ÷ËÃ⁄U ÁSÕà fl œ˝Èfl (ÁSÕ⁄U) „UÊß∞. •Ê¬ •Áflø‹ „UÊ ∑§⁄U ⁄UÁ„U∞. SÊ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê øÊ„U¢. ÿôÊ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ¬Í⁄UÊ ⁄UÊc≈U˛ ÷˝c≈U (•ÊÒ⁄U ∑§‹¢Á∑§Ã) „UÊŸ ‚ ’ø. (11) ©UŒÈûÊ◊¢ flL§áÊ ¬Ê‡Ê◊S◊ŒflÊœ◊¢ Áfl ◊äÿ◊ ¦ üÊÕÊÿ. •ÕÊ flÿ◊ÊÁŒàÿ fl˝Ã Ãflʟʪ‚Ê •ÁŒÃÿ SÿÊ◊.. (12) „U flL§áÊ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ™§¬⁄U, ’Ëø fl ŸËø ∑§ ’¢œŸ ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ÁŒÁà ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. „U◊ •ÁŒÁà ∑§ ¬˝Áà •ŸÊª‚ „UÊ ¡Ê∞¢. (12) •ª˝ ’΄UãŸÈ·‚Ê◊Íäflʸ •SÕÊÁ㟡¸ªãflÊŸ˜ Ã◊‚Ê ÖÿÊÁ÷ʪÊØ. •ÁÇŸ÷ʸŸÈŸÊ L§‡ÊÃÊ SflX ˘ •Ê ¡ÊÃÊ Áfl‡flÊ ‚kÊãÿ¬˝Ê—.. (13) •ÁÇŸ Áfl‡ÊÊ‹, ¬˝ÖflÁ‹Ã, ™§·Ê ∑§ •Êª ÁSÕà •ÊÒ⁄U •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ÖÿÊÁà ∑§Ë •Ê⁄U ¡Êà „Ò¥U. fl ‚Íÿ¸ ∑§ ‚ÊÕ ‚Ê◊Ÿ ¬˝∑§≈U. fl •¢œ∑§Ê⁄U ŸÊ‡Ê∑§ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝∑§≈U. ©Uã„UÊ¥Ÿ ©Uà¬ãŸ „UÊà „UË ‚÷Ë ‹Ê∑§‹Ê∑§Ê¢Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê √ÿÊåà ∑§⁄U Á‹ÿÊ. (13) „ ¦ ‚— ‡ÊÈÁø·m‚È⁄UãÃÁ⁄UˇÊ‚hÊÃÊ flÁŒ·ŒÁÃÁՌȸ⁄UÊáʂØ. ŸÎ·m⁄U‚ŒÎÂŒ˜ √ÿÊ◊‚Œé¡Ê ªÊ¡Ê ˘ ´§Ã¡Ê ˘ •Áº˝¡Ê ˘ ´§Ã¢ ’΄UØ.. (14) •ÁÇŸ ª◊Ÿ‡ÊË‹, ¬ÁflòÊ SÕÊŸ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹, œŸfl·¸∑§. fl ‚’ ∑§Ê ’‚ÊŸ flÊ‹ fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ŒflÊ¥ ∑§ •ÊuÔUÊ„U∑§ „Ò¥U. fl flŒË ◊¥ ÁSÕà ⁄U„UŸ flÊ‹, •ÁÃÁÕ, ‚fl¸òÊ ¬ÍÖÿ „Ò¥U. fl ÿôʪ΄U ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ◊ŸÈcÿÊ¥ ◊¥ ¬˝ÊáÊ ∑§ M§¬ ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¥U. fl √ÿÊ◊flÊ‚Ë „Ò¥U •ÊÒ⁄U ÁøŸªÊ⁄UË ‚ ©Uà¬ãŸ „Ò¥U. fl ´§Ã •ÊÒ⁄U ¬àÕ⁄U ‚ ©Uà¬ãŸ „Ò¥U. fl Áfl‡ÊÊ‹ „Ò¥U. (14) ‚ËŒ àfl¢ ◊ÊÃÈ⁄USÿÊ ˘ ©U¬SÕ Áfl‡flÊãÿÇŸ flÿÈŸÊÁŸ ÁflmÊŸ˜. ◊ÒŸÊ¢ ì‚Ê ◊ÊÁø¸·ÊÁ÷ ‡ÊÊøË⁄UãÃ⁄USÿÊ ¦ ‡ÊÈ∑˝§ÖÿÊÁÃÁfl¸÷ÊÁ„U.. (15) „U •ÁÇŸ! ◊ÊÃÊ ∑§Ë ªÊŒ ◊¥ ’ÒΔUŸ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ ß‚ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ ‚fl¸ôÊ •ÊÒ⁄U ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ Ãʬ ‚ ß‚ ◊ÁøÿÊ ∑§Ê ◊à ìÊß∞. •Ê¬ •¬ŸË ÷ËÃ⁄UË ÖÿÊÁà ‚ „U◊‡ÊÊ ø◊Á∑§∞. (15) 142 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•ãÃ⁄UÇŸ L§øÊ àfl◊ÈπÊÿÊ— ‚ŒŸ Sfl. ÃSÿÊSàfl ¦ „U⁄U‚Ê Ã¬Ü¡ÊÃflŒ— Á‡ÊflÊ ÷fl.. (16) „U •ÁÇŸ! ÿ„U ©UπÊ •Ê¬ ∑§Ê ÉÊ⁄U „Ò, ß‚ ◊¥ ø◊Á∑§∞. •Ê¬ •¬Ÿ Ãʬ ‚ ß‚ ìÊß∞. •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊß∞. (16) Á‡ÊflÊ ÷ÍàflÊ ◊sÔ◊ÇŸ •ÕÊ ‚ËŒ Á‡ÊflSàfl◊˜. Á‡ÊflÊ— ∑ΧàflÊ ÁŒ‡Ê— ‚flʸ— Sfl¢ ÿÊÁŸÁ◊„UÊ‚Œ—.. (17) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ◊⁄U ¬˝Áà ÷Ë ∑§ÀÿÊáÊ◊ÿ „UÊ ∑§⁄U ß‚ ©Uπ ∑§ ÉÊ⁄U ◊¥ Áfl⁄UÊÁ¡∞. ÿ„UÊ¢ ÷Ë ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UËU „UÊ ∑§⁄U „UË ⁄UÁ„U∞. •Ê¬ ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ’ŸÊß∞. •ÁÇŸ! ÿ„U ©UπÊ •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU . •Ê¬ ß‚ ◊¥ ÁSÕà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (17) ÁŒflS¬Á⁄U ¬˝Õ◊¢ ¡ôÊ •ÁÇŸ⁄US◊Œ˜ ÁmÃËÿ¢ ¬Á⁄U ¡ÊÃflŒÊ—. ÃÎÃËÿ◊å‚È ŸÎ◊áÊÊ ˘ •¡dÁ◊ãœÊŸ ˘ ∞Ÿ¢ ¡⁄Uà Sflʜ˗.. (18) ‚fl¸¬˝Õ◊ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ê ¡ã◊ „ÈU•Ê! ŒÊ’Ê⁄UÊ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ◊ŸÈcÿ‹Ê∑§ ◊¥ ©UŸ ∑§Ê ¡ã◊ „ÈU•Ê. ◊ÉÊ ∑§ M§¬ ◊¥ ©UŸ ∑§Ê ¡ã◊ „ÈU•Ê! ÃË‚⁄UË ’Ê⁄U ÁŸ⁄U¢Ã⁄U ¬˝flÊÁ„Uà „UÊŸ flÊ‹ ¡‹Ê¥ ◊¥ ©UŸ ∑§Ê ¡ã◊ „ÈU•Ê. fl ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ¬˝fl„U◊ÊŸ „Ò¥U. (18) ÁflkÊ Ã •ÇŸ òÊœÊ òÊÿÊÁáÊ ÁflkÊ Ã œÊ◊ Áfl÷ÎÃÊ ¬ÈL§òÊÊ. ÁflkÊ Ã ŸÊ◊ ¬⁄U◊¢ ªÈ„UÊ ÿÁmkÊ Ã◊Èà‚¢ ÿà ˘ •Ê¡ªãÕ.. (19) „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÃËŸ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ÃËŸ M§¬Ê¥ ◊¥ ¡ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UˇÊ∑§ fl ‚fl¸òÊ √ÿÊåà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬⁄U◊ ªÈåà M§¬ ∑§Ê ÷Ë ¡ÊŸÃ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ◊Í‹ ©Uà‚ (‚˝ÊÃ) ∑§Ê ÷Ë ¡ÊŸÃ „Ò¥U, ¡„UÊ¢ •Ê¬ ߟ M§¬Ê¥ ◊¥ ¬˝∑§≈U „ÈU∞ „Ò¥U. (19) ‚◊Ⱥ˝ àflÊ ŸÎ◊áÊÊ ˘ •åSflãßθøˇÊÊ ˘ ߸œ ÁŒflÊ •ÇŸ ˘ ™§œŸ˜. ÃÎÃËÿ àflÊ ⁄U¡Á‚ ÃÁSÕflÊ ¦ ‚◊¬Ê◊ȬSÕ ◊Á„U·Ê •flœ¸Ÿ˜.. (20) „U •ÁÇŸ! ¬˝¡Ê¬Áà Œfl ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄U∑§ „Ò¥U. fl •Ê¬ ∑§Ê ßZœŸ◊ÿ ’ŸÊà „Ò¥U. ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚fl¸º˝c≈UÊ „Ò¥U. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ Sß ¡Ò‚ „Ò¥U. •Ê¬ „UË ‚’ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U.Ô (20) •∑˝§ãŒŒÁÇŸ— SßÿÁãŸfl lÊÒ— ˇÊÊ◊Ê ⁄UÁ⁄U„UmËL§œ— ‚◊Ü¡Ÿ˜. ‚lÊ ¡ôÊÊŸÊ Áfl „UËÁ◊hÊ •ÅÿŒÊ ⁄UÊŒ‚Ë ÷ÊŸÈŸÊ ÷Êàÿã×.. (21) •ÁÇŸ ∑§ ª⁄U¡Ÿ ∑§Ë •ÊflÊ¡ ◊ÉÊ ∑§ ª⁄U¡Ÿ ∑§Ë •ÊflÊ¡ ∑§ ‚◊ÊŸ „ÒU. ¬ÎâflË ∑§Ê ◊ÉÊ ∑§ ‚◊ÊŸ „UË Á÷ªÊà „Ò¥U. U‚Á◊œÊflÊŸ •ÁÇŸ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà fl ©UŸ ∑§ ◊äÿ ø◊∑§Ã „Ò¥U. (21) ÿ¡Èfl¸Œ - 143
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
üÊËáÊÊ◊ÈŒÊ⁄UÊ œL§áÊÊ ⁄UÿËáÊÊ¢ ◊ŸË·ÊáÊÊ¢ ¬˝Ê¬¸áÊ— ‚Ê◊ªÊ¬Ê—. fl‚È— ‚ÍŸÈ— ‚„U‚Ê •å‚È ⁄UÊ¡Ê Áfl ÷Êàÿª˝ ˘ ©U·‚ÊÁ◊œÊŸ—.. (22) •ÁÇŸ ©UŒÊ⁄UÃÊ ‚ œŸ ŒŸ flÊ‹, œŸœÊ⁄UË, ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê Sflª¸ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. fl ’‹ ∑§ ¬ÈòÊ, ¡‹Ê¥ ∑§ ⁄UÊ¡Ê •ÊÒ⁄U ¬˝ŒËåà „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ‚’ ‚ •Êª ‡ÊÊÁ÷à „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. (22) Áfl‡flSÿ ∑§ÃÈ÷ȸflŸSÿ ª÷¸ ˘ •Ê ⁄UÊŒ‚Ë •¬ÎáÊÊÖ¡Êÿ◊ÊŸ—. flË«È¢U ÁøŒÁº˝◊Á÷ŸÃ˜ ¬⁄UÊÿÜ¡ŸÊ ÿŒÁÇŸ◊ÿ¡ãà ¬Üø.. (23) •ÁÇŸ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ë ¬ÃÊ∑§Ê •ÊÒ⁄U ©U‚ ∑§Ê ª÷¸ „Ò¥U. ©Uà¬ãŸ „UÊ ∑§⁄U fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê √ÿÊåà ∑§⁄U ‹Ã „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ¡Ò‚ Œfl⁄UÊ¡ M§¬ ◊¥ fl ’«∏U ‚ ’«∏U ¬fl¸Ã ∑§Ê ÷Ë ÷Œ ŒÃ „Ò¥. ¬Ê¢ø √ÿÁÄà •ÁÇŸ ∑§Ë ¬Í¡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. (23) ©UÁ‡ÊĬÊfl∑§Ê •⁄UÁ× ‚È◊œÊ ◊àÿ¸cflÁÇŸ⁄U◊ÎÃÊ ÁŸ œÊÁÿ. ßÿÁûʸ œÍ◊◊L§·¢ ÷Á⁄U÷˝ŒÈë¿ÈU∑˝§áÊ ‡ÊÊÁø·Ê lÊÁ◊ŸˇÊŸ˜.. (24) •ÁÇŸ ßë¿UÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ, ¬ÁflòÊ, ŒÈc≈UÊ¥ ∑§ ¬˝Áà ¬˝◊„UËŸ •ÊÒ⁄U üÊcΔU ’ÈÁh flÊ‹ „Ò¥U. fl •◊⁄U fl ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ßë¿UʬÍ⁄U∑§ „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê œÈ•Ê¢ ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ¡ÊÃÊ „ÒU . fl ø◊∑§Ë‹ „Ò¥U. •ÁÇŸ •¬ŸË ‡ÊÊ÷Ê Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ »Ò§‹Êà „Ò¥U. (24) ŒÎ‡ÊÊŸÊ L§Ä◊ ˘ ©U√ÿʸ √ÿlÊÒgÈ◊¸·¸◊ÊÿÈ— ÁüÊÿ L§øÊŸ—. •ÁÇŸ⁄U◊ÎÃÊ •÷flmÿÊÁ÷ÿ¸ŒŸ¢ lÊÒ⁄U¡Ÿÿà‚È⁄UÃÊ—.. (25) •ÁÇŸ Œ‡Ê¸ŸËÿ „Ò¥U fl L§Ä◊ ¡Ò‚Ë •Ê÷ÊflÊ‹ „Ò¥U. •ÁÇŸ •¬ŸË •Ê÷Ê ‚ ¬ÎâflË ¬⁄U ‡ÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. ø◊∑§Ã „Ò¥U. •◊⁄U „Ò¥U. üÊcΔU flËÿ¸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U Sflª¸ ŒÊŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ ’Ëø ‡ÊÊ÷Êÿ◊ÊŸ „Ò¥U. (25) ÿSà •l ∑ΧáÊfljº˝‡ÊÊø¬Í¬¢ Œfl ÉÊÎÃflãÃ◊ÇŸ. ¬˝ â Ÿÿ ¬˝Ã⁄¢U flSÿÊ •ë¿UÊÁ÷ ‚È꟢ Œfl÷Äâ ÿÁflcΔU.. (26) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‡ÊÊ÷ÊŒÊÿ∑§ „Ò¥U. •Ê¡ ÿ¡◊ÊŸ Ÿ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÁflÁœÁflœÊŸ •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊÃʬÍfl¸∑§ ÷ʪ ∑§Ë ‚Ê◊ª˝Ë ’ŸÊ߸ „ÒU. •Ê¬ ÉÊË ‚ ÿÈÄà ©U‚ ‚Ê◊ª˝Ë ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ •ÊÒ⁄U •¬Ÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê Sflª¸ ∑§ ‚Èπ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (26) •Ê â ÷¡ ‚ÊÒüÊfl‚cflÇŸ ˘ ©UÄÕ ˘ ©UÄÕ ˘ •Ê ÷¡ ‡ÊSÿ◊ÊŸ. Á¬˝ÿ— ‚Íÿ¸ Á¬˝ÿÊ •ÇŸÊ ÷flÊàÿÈÖ¡Êß Á÷ŸŒŒÈÖ¡ÁŸàflÒ—.. (27) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê üÊcΔU ÿ‡ÊŒÊÿË ∑§Ê◊Ê¥ fl ‡ÊÊSòÊ ∑§ ¬ΔUŸ¬ÊΔUŸ ◊¥ ‹ªÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚Íÿ¸ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ Á¬˝ÿ „Ò¥U. ߟ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ©UãŸÁÇÊË‹ ¬ÈòÊ •ÊÒ⁄U ¬ÊÒòÊ ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߟ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •ÃËfl •èÿÈŒÿ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (27) 144 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@9
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
àflÊ◊ÇŸ ÿ¡◊ÊŸÊ ˘ •ŸÈ lÍŸ˜ Áfl‡flÊ fl‚È ŒÁœ⁄U flÊÿʸÁáÊ. àflÿÊ ‚„U º˝ÁfláÊÁ◊ë¿U◊ÊŸÊ fl˝¡¢ ªÊ◊ãÃ◊ÈÁ‡Ê¡Ê Áflflfl˝È—.. (28) „U •ÁÇŸ! „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ¬˝ÁÃÁŒŸ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ‚÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ œŸ ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ‚ÊÕ „U◊ ‚÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ œŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ©UÁ‡Ê¡Ê¥ ∑§Ë Ã⁄U„U ªÊÿÊ¥ ∑§ ’Ê«∏U ◊¥ ø‹ ¡Ê∞¢. (28) •SÃÊ√ÿÁÇŸŸ¸⁄UÊ ¦ ‚ȇÊflÊ flÒ‡flÊŸ⁄U ˘ ´§Á·Á÷— ‚Ê◊ªÊ¬Ê—. •m· lÊflʬÎÁÕflË „ÈUfl◊ ŒflÊ œûÊ ⁄UÁÿ◊S◊ ‚ÈflË⁄U◊˜.. (29) •ÁÇŸ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ mÊ⁄UÊ ‚flŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •ÁÇãÊ ÁflmÊŸÊ¥ ∑§ mÊ⁄UÊ SÃÈÁà Á∑§∞ ¡ÊŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •ÁÇŸ ŸÊÿ∑§ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. „U◊ m· ⁄UÁ„Uà Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U Œfl! •Ê¬ „U◊¥ ‚ÈflË⁄U ’ŸÊß∞ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞. (29) ‚Á◊œÊÁÇŸ¢ ŒÈflSÿà ÉÊÎÃҒʸœÿÃÊÁÃÁÕ◊˜. •ÊÁS◊Ÿ˜ „U√ÿÊ ¡È„UÊß.. (30) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚Á◊œÊflÊŸ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ¬Á⁄U∑˝§◊Ê ∑§⁄Uà „Ò¥. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •ÁÃÁÕ „Ò¥U. „U◊ ÉÊË ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¡ªÊà „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ◊¥ „UÁfl „UÊ◊Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (30) ©UŒÈ àflÊ Áfl‡fl ŒflÊ ˘ •ÇŸ ÷⁄UãÃÈ ÁøÁûÊÁ÷—. ‚ ŸÊ ÷fl Á‡ÊflSàfl ¦ ‚Ȭ˝ÃË∑§Ê Áfl÷Êfl‚È—.. (31) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝ÊáÊSflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê •¬ŸË ’ÈÁh ‚ ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚È◊Èπ •ÊÒ⁄U ÖÿÊÁà M§¬ œŸ flÊ‹ „Ò¥U. (31) ¬˝ŒÇŸ ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ˜ ÿÊÁ„U Á‡ÊflÁ÷⁄UÁø¸Á÷c≈˜Ufl◊˜. ’΄UÁj÷ʸŸÈÁ÷÷ʸ‚ã◊Ê Á„ ¦ ‚ËSÃãflÊ ¬˝¡Ê—.. (32) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ß‚Ë M§¬ ◊¥ ÿ„UÊ¢ ‚ ¬˝SÕÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë •ø¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ÿ ’«∏UË’«∏UË ‹¬≈¥U ‚Íÿ¸ ∑§Ë Ã⁄U„U ø◊∑§ÃË „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ߟ ‹¬≈UÊ¥ ‚ •¬ŸË ‚¢ÃÊŸ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. (32) •∑˝§ãŒŒÁÇŸ— SßÿÁãŸfl lÊÒ— ˇÊÊ◊Ê ⁄UÁ⁄U„UmËL§œ— ‚◊Ü¡Ÿ˜. ‚lÊ ¡ôÊÊŸÊ Áfl „UËÁ◊hÊ •ÅÿŒÊ ⁄UÊŒ‚Ë ÷ÊŸÈŸÊ ÷Êàÿã×.. (33) •ÁÇŸ ∑§ ª⁄U¡Ÿ ∑§Ë •ÊflÊ¡ ◊ÉÊ ∑§ ª⁄U¡Ÿ ∑§Ë •ÊflÊ¡ ∑§ ‚◊ÊŸ „ÒU. ¬ÎâflË ∑§Ê ◊ÉÊ ∑§ ‚◊ÊŸ „UË Á÷ªÊà „Ò¥U. U‚Á◊œÊflÊŸ •ÁÇŸ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ÿ¡Èfl¸Œ - 145
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¬˝∑§ÊÁ‡ÊàÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ◊äÿ ø◊∑§Ã „Ò¥U. (33) ¬˝ ¬˝Êÿ◊ÁÇŸ÷¸⁄UÃSÿ oÎáfl Áfl ÿà‚Íÿʸ Ÿ ⁄UÊøà ’΄UjÊ—. •Á÷ ÿ— ¬ÍL¢§ ¬ÎÃŸÊ‚È ÃSÕÊÒ ŒËŒÊÿ ŒÒ√ÿÊ •ÁÃÁÕ— Á‡ÊflÊ Ÿ—.. (34) •ÁÇŸ mÊ⁄UÊ ’È‹ÊŸ ∑§ Á‹∞ ’Ê‹ ª∞ ◊¢òÊ ∑§Ê ‚ÈŸÃ „Ò¥U. •ÁÇŸ ‚Íÿ¸ ∑§ ‚◊ÊŸ ÷ÊÁ‚à „UÊà „Ò¥U. fl ÿÈh ◊¥ ¬ÈL§ ∑§ ‚„UÊÿ∑§ ⁄U„U. fl ⁄UÊ¡Ê, ÁŒ√ÿ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U •ÁÃÁÕ „Ò¥U. „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (34) •Ê¬Ê ŒflË— ¬˝ÁêÎèáÊËà ÷S◊ÒÃàSÿÊŸ ∑ΧáÊÈäfl ¦ ‚È⁄U÷Ê ˘ ©U ‹Ê∑§. ÃS◊Ò Ÿ◊ãÃÊ¢ ¡Ÿÿ— ‚ȬàŸË◊ʸÃfl ¬ÈòÊ¢ Á’÷ÎÃÊåSflŸÃ˜.. (35) „U ¡‹ŒflË! •Ê¬ ß‚ ÷S◊ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄UŸ •ÊÒ⁄U ß‚ ‚ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ‚Ȫ¢ÁœÃ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. flL§áÊ Œfl ¬ÁàŸÿÊ¥ ‚Á„Uà ߂ ∑§ ¬˝Áà Ÿ◊¥ ÃÕÊ ß‚ ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U œÊ⁄¥U, ¡Ò‚ ◊ÊÃÊ ¬ÈòÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. (35) •åSflÇŸ ‚Áœc≈Ufl ‚ÊÒ·œË⁄UŸÈ L§äÿ‚. ª÷¸ ‚Ü¡Êÿ‚ ¬ÈŸ—.. (36) „U •ÁÇŸ! ¡‹ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë ‚„UÁSÕÁà „ÒU. •Ê¬ ¡‹ ∑§ ‚ÊÕ •Ê·œ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flŸUS¬ÁÃÿÊ¥ ∑§ ª÷¸ ‚ ’Ê⁄U’Ê⁄U ¬˝∑§≈U „UÊà „Ò¥U. (36) ª÷ʸ •SÿÊ·œËŸÊ¢ ª÷ʸ flŸS¬ÃËŸÊ◊˜. ª÷ʸ Áfl‡flSÿ ÷ÍÃSÿÊÇŸ ª÷ʸ •¬Ê◊Á‚.. (37) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ª÷¸ „ÒU¥ . •Ê¬ flŸSU¬ÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ª÷¸ „ÒU¥ . •Ê¬ ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ê ª÷¸ „ÒU¥ . •Ê¬ ‚÷Ë ¡‹Ê¥ ∑§Ê ª÷¸ „ÒU¥ . (37) ¬˝‚l ÷S◊ŸÊ ÿÊÁŸ◊¬‡ø ¬ÎÁÕflË◊ÇŸ. ‚ ¦ ‚ÎÖÿ ◊ÊÃÎÁ÷CÔU˜fl¢ ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ˜ ¬ÈŸ⁄UÊ ‚Œ—.. (38) „U •ÁÇŸ! ÷S◊ ‚ •Ê¬ •¬Ÿ ◊Í‹ SâÊÊŸ ¬ÎâflË ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊß∞. •Ê¬ ¡‹ ∑§ ‚ÊÕ Á◊Á‹∞ •ÊÒ⁄U ¬ÈŸ— ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ „UÊß∞. •Ê¬ ¬ÈŸ— •¬Ÿ ‚ŒŸ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§ËÁ¡∞. (38) ¬ÈŸ⁄UÊ‚l ‚ŒŸ◊¬‡ø ¬ÎÁÕflË◊ÇŸ. ‡Ê· ◊ÊÃÈÿ¸ÕʬSÕãÃ⁄USÿÊ ¦ Á‡ÊflÃ◊—.. (39) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÈŸ— •¬Ÿ ‚ŒŸ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ∞‚ ‡ÊÿŸ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U, ¡Ò‚ ‚¢ÃÊŸ ◊Ê¢ ∑§Ë ªÊŒ ◊¥ ‚Ê ⁄U„UË „UÊ. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (39) ¬ÈŸM§¡Ê¸ ÁŸflûʸSfl ¬ÈŸ⁄UÇŸ ˘ ß·ÊÿÈ·Ê. ¬ÈŸŸ¸— ¬ÊsÔ ¦ „U‚—.. (40)
146 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ¬ÈŸ— ™§¡¸SflË •ÊÒ⁄U •ÊÿÈc◊ÊŸ ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ¬ÈŸ— ¬Ê¬ ‚ ’øÊß∞. (40) ‚„U ⁄UƒÿÊ ÁŸflûʸSflÊÇŸ Á¬ãflSfl œÊ⁄UÿÊ. Áfl‡flåSãÿÊ Áfl‡flÃS¬Á⁄U.. (41) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ¬ÈŸ— œŸ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝Êåà „UÊß∞. •Ê¬ fl·Ê¸ ∑§Ë œÊ⁄UÊ ‚ ¬ÎâflË ¬⁄U ‚Ê⁄UË flŸS¬Áà ∑§Ê ’…∏UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (41) ’ÊœÊ ◊ •Sÿ flø‚Ê ÿÁflcΔU ◊ ¦ Á„UcΔUSÿ ¬˝÷ÎÃSÿ SflœÊfl—. ¬ËÿÁà àflÊ •ŸÈ àflÊ ªÎáÊÊÁà flãŒÊL§CÔU Ããfl¢ fl㌠•ÇŸ.. (42) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ߟ fløŸÊ¥ ∑§Ê ‚ÈÁŸ∞. ¬˝‚㟠√ÿÁÄà •Ê¬ ∑§Ë •ÊÒ⁄U L§c≈U √ÿÁÄà •Ê¬ ∑§Ê ∑§Ê‚à „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ß ∑§Ê fl¢ŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (42) ‚ ’ÊÁœ ‚ÍÁ⁄U◊¸ÉÊflÊ fl‚Ȭà fl‚ÈŒÊflŸ˜. ÿÈÿÊäÿS◊Œ˜ m·Ê ¦ Á‚ Áfl‡fl∑§◊¸áÊ SflÊ„UÊ.. (43) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ œŸ ∑§ SflÊ◊Ë •ÊÒ⁄U œŸŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U mÁ·ÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚fl¸∑§◊ʸ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (43) ¬ÈŸSàflÊÁŒàÿÊ L§º˝Ê fl‚fl— ‚Á◊ãœÃÊ¢ ¬ÈŸ’˝¸rÊÔÊáÊÊ fl‚ÈŸËâÊ ÿôÊÒ—. ÉÊÎß àfl¢ Ããfl¢ flœ¸ÿSfl ‚àÿÊ— ‚ãÃÈ ÿ¡◊ÊŸSÿ ∑§Ê◊Ê—.. (44) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê •ÊÁŒàÿ, L§º˝, fl‚È ¬ÈŸ— ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ œŸ ∑§ ŸÃÊ „Ò¥U. fl ÿôÊ ‚ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ê ’Ê⁄UU’Ê⁄U ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl ÉÊË ‚ •Ê¬ •¬Ÿ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ •ÊÒ⁄U •¬Ÿ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ∞¢ ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (44) •¬Ã flËà Áfl ø ‚¬¸ÃÊÃÊ ÿòÊ SÕ ¬È⁄UÊáÊÊ ÿ ø ŸÍßʗ. •ŒÊl◊Êfl‚ÊŸ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •∑˝§ÁãŸ◊¢ Á¬Ã⁄UÊ ‹Ê∑§◊S◊Ò.. (45) Ÿ∞ ¬È⁄UÊŸ ¡Ê ÷Ë ÿ◊ŒÍà ÿ„UÊ¢ „UÊ¥ fl ŒÍ⁄U, ’„ÈUà ŒÍ⁄U ø‹ ¡Ê∞¢. ’„ÈUà ŒÍ⁄U „U≈U ¡Ê∞¢. ¬ÎâflË ∑§Ê ÿ„U SÕÊŸ ÿ◊⁄UÊ¡ Ÿ Sflÿ¢ ÿôÊ „UÃÈ „U◊Ê⁄U ¬Ífl¸¡Ê¥ ∑§Ê ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§Ë „ÒU. (45) ‚¢ôÊÊŸ◊Á‚ ∑§Ê◊œ⁄UáÊ¢ ◊Áÿ à ∑§Ê◊œ⁄UáÊ¢ ÷ÍÿÊØ. •ÇŸ÷¸S◊ÊSÿÇŸ— ¬È⁄UË·◊Á‚ Áøà SÕ ¬Á⁄UÁøà ˘ ™§äfl¸Áø× üÊÿäfl◊˜.. (46) „U ©U·Ê! •Ê¬ ‚êÿ∑˜§ ôÊÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê◊ŸÊ∞¢ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U . •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÷Ë ∑§Ê◊ŸÊ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „UÊ¥. •Ê¬ ÷S◊ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§Ë ¬Í⁄U∑§ „Ò¥U. œ⁄UÃË ¬⁄U ’Ê‹Í ∑§Ë ¬Ã‹Ë ⁄UπÊ∞¢ Á’¿UÊ߸ ªß¸ „Ò¥U. •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ÃÕÊ ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U SÕÊÁ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ê üÊÿS∑§⁄U ’ŸÊß∞. (46) ÿ¡Èfl¸Œ - 147
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•ÿ ¦ ‚Ê •ÁÇŸÿ¸ÁS◊ãà‚Ê◊Á◊ãº˝— ‚Èâ Œœ ¡ΔU⁄U flÊfl‡ÊÊŸ—. ‚„UÁdÿ¢ flÊ¡◊àÿ¢ Ÿ ‚Áåà ¦ ‚‚flÊãà‚ãàSÃÍÿ‚ ¡ÊÃflŒ—.. (47) ÿ„U fl„UË •ÁÇŸ „ÒU, Á¡‚ ‚Ê◊ ∑§ M§¬ ◊¥ ߢº˝ Œfl •¬ŸË ¡ΔU⁄UÊÁÇŸ ◊¥ ÷⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U „U¡Ê⁄U ªÈŸÊ „ÒU. ÿ„U •ããÊ◊ÿ, ’‹ŒÊÿË •ÊÒ⁄U ‚fl¸ôÊ „ÒU. „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§ mÊ⁄UÊ ßŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. (47) •ÇŸ ÿûÊ ÁŒÁfl flø¸— ¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ ÿŒÊ·œËcflåSflÊ ÿ¡òÊ. ÿŸÊãÃÁ⁄UˇÊ◊ÈflʸÃÃãÕ àfl·— ‚ ÷ÊŸÈ⁄UáʸflÊ ŸÎøˇÊÊ—.. (48) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê ¡Ê flø¸Sfl Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ „ÒU, fl„UË flø¸Sfl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ◊¥ „Ò . fl„UË flø¸Sfl •Ê·ÁœÿÊ¥ fl ¡‹Ê¥ ◊¥ „Ò. Á¡‚ ‚ •Ê¬ Ÿ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ fl„UË ÿ„U ‚Íÿ¸ „ÒU. fl„U ‚÷Ë ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ŒπŸ flÊ‹Ê „ÒU. (48) •ÇŸ ÁŒflÊ •áʸ◊ë¿UÊ Á¡ªÊSÿë¿UÊ ŒflÊ° 2 ™§Áø· ÁœcáÿÊ ÿ. ÿÊ ⁄UÊøŸ ¬⁄USÃÊØ ‚Íÿ¸Sÿ ÿʇøÊflSÃʌȬÁÃcΔUãà ˘ •Ê¬—.. (49) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ‚Ëœ ¡‹ ¬Êà „Ò¥U. ŒflªáÊ „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê ™¢§øÊ߸ ∑§Ë •Ê⁄U ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡Ê ‚Ê◊Ÿ ‚Íÿ¸ ∑§ M§¬ ∑§Ê ÷ÊÁ‚à „Ò •ÊÒ⁄U ¡Ê ŸËø ¡‹ ∑§ M§¬ ◊¥ ÁSÕà „ÒU, •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ ¡‹Ê¥ ∑§Ë ’⁄U‚Êà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. (49) ¬È⁄UËcÿÊ‚Ê •ÇŸÿ— ¬˝ÊfláÊÁ÷— ‚¡Ê·‚—. ¡È·ãÃÊ¢ ÿôÊ◊º˝È„UÊŸ◊ËflÊ ˘ ß·Ê ◊„UË—.. (50) „U •ÁÇŸ! ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Á„Uà ‚ÊœŸ flÊ‹Ë, ‹Ê∑§ ◊¥ √ÿʬ∑§ ◊Ÿ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊ ⁄UπŸ flÊ‹Ë, ’Ë◊ÊÁ⁄UÿÊ¢ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, •ããÊ ŒŸ flÊ‹Ë, fl·Ê¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, ßc≈U Á‚Áh ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë •ÁÇŸÿÊ¢ ¬˝◊¬Ífl¸∑§ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (50) - ß«UÊ◊ÇŸ ¬ÈL§Œ ¦ ‚ ¦ ‚®Ÿ ªÊ— ‡Ê‡flûÊ◊ ¦ „Ufl◊ÊŸÊÿ ‚Êœ. SÿÊ㟗 ‚ÍŸÈSßÿÊ Áfl¡ÊflÊÇŸ ‚Ê Ã ‚È◊ÁÃ÷͸àflS◊.. (51) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’„ÈU∑§◊ʸ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ ªÊÿ ∑§ (ŒÍœ, Œ„UË) ÉÊË •ÊÁŒ ∑§Ê ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. „U◊¥ ¬ÈòÊ ‚¢ÃÊŸ ŒËÁ¡∞. „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸ „U◊Ê⁄UÊ •ÊÒ⁄U •Êª fl¢‡Ê ’…∏UÊ∞. •¬ŸË fl„U ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ’ÈÁh „U◊¥ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. (51) •ÿ¢ à ÿÊÁŸ´¸§ÁàflÿÊ ÿÃÊ ¡ÊÃÊ •⁄UÊøÕÊ—. â ¡ÊŸãŸÇŸ ˘ •Ê ⁄UÊ„UÊÕÊ ŸÊ flœ¸ÿÊ ⁄UÁÿ◊˜.. (52) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ÿ„U flŒË ´§ÃÈ ∑§Ê ¡ã◊ ŒŸ flÊ‹Ë „ÒU. ß‚Ë ‚ ©Uà¬ãŸ „UÊ ∑§⁄U •Ê¬ ø◊∑§Ã „Ò¥U. •Ê¬ ÿ„U ¡ÊŸÃ „ÈU∞ ß‚ ¬⁄U ø…∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U œŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (52) 148 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÁøŒÁ‚ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝flÊ ‚ËŒ. ¬Á⁄UÁøŒÁ‚ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œ˝ÈflÊ ‚ËŒ.. (53) „U •ÁÇŸ! •’ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄U ŒË ªß¸ „ÒU. •’ •Ê¬ •¢ª•¢ª ◊¥ ⁄U◊Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁøûÊ „Ò¥U. •’ •Ê¬ Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄ ÁŒÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ÁøûÊ ‚ SÕÊÁ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (53) ‹Ê∑¢§ ¬ÎáÊ Á¿Uº˝¢ ¬ÎáÊÊÕÊ ‚ËŒ œÈ˝flÊ àfl◊˜. ßãº˝ÊÇŸË àflÊ ’΄US¬ÁÃ⁄UÁS◊Ÿ˜ ÿÊŸÊfl‚Ë·ŒŸ˜.. (54) „U •ÁÇŸ! ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Í⁄UŸ ‚ ¡Ê ¡ª„U ⁄U„U ªß¸ •Ê¬ ©UŸ ¿UŒÊ¥ ∑§Ê ÷⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ fl„UÊ¢ ÁSÕ⁄U „UÊ ∑§⁄U SÕÊÁ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ’΄US¬Áà Œfl Ÿ ÿ„UÊ¢ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ „Ò. (54) ÃÊ ˘ •Sÿ ‚ÍŒŒÊ„U‚— ‚Ê◊ ¦ üÊËáÊÁãà ¬Î‡Ÿÿ—. ¡ã◊ãŒflÊŸÊ¢ Áfl‡ÊÁSòÊcflÊ ⁄UÊøŸ ÁŒfl—.. (55) Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ¡Ê ¡‹ Á◊‹ÃÊ „ÒU, ©U‚ ‚ ‚Ê◊ ‡ÊÊ÷Ê ¬Êà „Ò¥U. ŒflÊ¥ ∑§ ¡ã◊¡ã◊ •ÊÒ⁄U ¬˝àÿ∑§ ÿôÊ ◊¥ ÿ„U ‚Ê◊ ß‚ SflÁª¸∑§ ¡‹ ‚ ¬Á⁄U¬Äfl „UÊÃÊ „ÒU. (55) ßãº˝¢ Áfl‡flÊ ˘ •flËflÎœãà‚◊Ⱥ˝√ÿø‚¢ Áª⁄U—. ⁄UÕËÃ◊ ¦ ⁄UÕËŸÊ¢ flÊ¡ÊŸÊ ¦ ‚ମà ¬ÁÃ◊˜.. (56) ‚÷Ë flÊÁáÊÿÊ¢ ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ‚◊ÊŸ ÁflSÃÎà „Ò¥U . fl flÊÁáÊÿÊ¢ ⁄UÁÕÿÊ¥ ◊¥ ◊„UÊ⁄UÕË ß¢º˝ Œfl ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ªÈáʪʟ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ’‹flÊŸÊ¥ ◊¥ ‚flʸÁœ∑§ ’‹‡ÊÊ‹Ë „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ¬Ê‹∑§Ê¥ ◊¥ üÊcΔU ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. (56) ‚Á◊à ¦ ‚VÀ¬ÕÊ ¦ ‚¢Á¬˝ÿÊÒ ⁄UÊÁøcáÊÍ ‚È◊ŸSÿ◊ÊŸÊÒ. ß·◊Í¡¸◊Á÷ ‚¢fl‚ÊŸÊÒ.. (57) „U ߢº˝ Œfl! „U◊ ‚◊ÊŸ ◊Áà flÊ‹ „UÊ¥. „U◊ ‚’ •Ê¬‚ ◊¥ Á¬˝ÿ „UÊ¥. „U◊ ‚’ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „UÊ¥. „U◊ ‚’ ∞∑§ ‚ÊÕ ¬˝Á⁄Uà „UÊ¥. „U◊ ‚’ ‚◊ÊŸ ™§¡¸SflË „UÊ¥. „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ‚»§‹ÃʬÍfl¸∑§ ‚◊ʬŸ „UÊ. (57) ‚¢ flÊ¢ ◊ŸÊ ¦ Á‚ ‚¢ fl˝ÃÊ ‚◊È ÁøûÊÊãÿÊ∑§⁄U◊˜. •ÇŸ ¬È⁄UËcÿÊÁœ¬Ê ÷fl àfl¢ Ÿ ˘ ß·◊Í¡Z ÿ¡◊ÊŸÊÿ œÁ„U.. (58) „U •ÁÇŸ! „U◊Ê⁄U ◊Ÿ ‚◊ÊŸ „UÊ¥. „U◊Ê⁄U ‚¢∑§À¬ ‚◊ÊŸ „UÊ¥. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÈÁ⁄UÿÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ™§¡¸SflË ’ŸÊß∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ ™§¡Ê¸ œÊÁ⁄U∞. (58) •ÇŸ àfl¢ ¬È⁄UËcÿÊ ⁄UÁÿ◊ÊŸ˜ ¬ÈÁCÔU◊Ê° 2 •Á‚. Á‡ÊflÊ— ∑ΧàflÊ ÁŒ‡Ê— ‚flʸ— Sfl¢ ÿÊÁŸÁ◊„UÊ‚Œ—.. (59) ÿ¡Èfl¸Œ - 149
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ Ÿª⁄UÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ œŸflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÈÁc≈U◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ’ŸÊß∞. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ •¬Ÿ ◊Í‹ SÕÊŸ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (59) ÷flÃ㟗 ‚◊Ÿ‚ÊÒ ‚øÂÊfl⁄U¬‚ÊÒ. ◊Ê ÿôÊ ¦ Á„U ¦ Á‚CÔ¢U ◊Ê ÿôʬ®Ã ¡ÊÃflŒ‚ÊÒ Á‡ÊflÊÒ ÷flÃ◊l Ÿ—.. (60) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „ÒU¥ . •Ê¬ „U◊¥ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ê ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ‚◊ÊŸ ÁøûÊ flÊ‹Ê ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ‚◊ÊŸ üÊhÊ flÊ‹Ê ’ŸÊß∞. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôʬÁà „ÒU¥ . •Ê¬ •Ê¡ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (60) ◊ÊÃfl ¬ÈòÊ¢ ¬ÎÁÕflË ¬È⁄UËcÿ◊ÁÇŸ ¦ Sfl ÿÊŸÊfl÷ÊL§πÊ. ÃÊ¢ Áfl‡flÒŒ¸flÒ´¸§ÃÈÁ÷— ‚¢ÁflŒÊŸ— ¬˝¡Ê¬ÁÃÁfl¸‡fl∑§◊ʸ Áfl ◊ÈÜøÃÈ.. (61) ¡Ò‚ ◊ÊÃÊ ¬ÈòÊ ∑§Ê œÊ⁄UÃË „ÒU, flÒ‚ „UË ©UπÊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË •ÁÇŸ ∑§Ê œÊ⁄UÃË „ÒU. ‚◊Sà ŒflªáÊÊ¥ •ÊÒ⁄U ´§ÃÈ mÊ⁄UÊ ∞Äÿ ÷Êfl ‚ ¬˝Á⁄Uà ©UπÊ ∑§Ê ¬˝¡Ê¬Áà Áfl‡fl∑§◊ʸ ¬Ê‡Ê ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (61) •‚ÈãflãÃ◊ÿ¡◊ÊŸÁ◊ë¿U SßSÿàÿÊ◊ÁãflÁ„U ÃS∑§⁄USÿ. •ãÿ◊S◊ÁŒë¿U ‚Ê Ã ˘ ßàÿÊ Ÿ◊Ê ŒÁfl ÁŸ´¸§Ã ÃÈèÿ◊SÃÈ.. (62) „U ŒÈc≈U Œ‹Ÿ ◊¥ ‚◊Õ¸! •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ •ÊÒ⁄U ÃS∑§⁄UÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „ÒU¥ . •Ê¬ ÁflÁ‡Êc≈U ‡ÊÁÄÃflÊŸ „ÒU¥ . •Ê¬ øÊ⁄U«UÊ∑ͧ ¿UÊ« U∏ ∑§⁄U •ãÿ ‹Êª „U◊¥ ŒËÁ¡∞. „U ŒflË! •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „U◊Ê⁄UÊ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. (62) Ÿ◊— ‚È Ã ÁŸ´¸§Ã ÁÃÇ◊Ã¡Ê ˘ ÿS◊ÿ¢ ÁfløÎÃÊ ’ãœ◊Ã◊˜. ÿ◊Ÿ àfl¢ ÿêÿÊ ‚¢ÁflŒÊŸÊûÊ◊ ŸÊ∑§ •Áœ ⁄UÊ„UÿÒŸ◊˜.. (63) „U ÁŸ´¸§Ã! •Ê¬ áSflË „ÒU¥ . •Ê¬ ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „ÒU¥ . •Ê¬ ‹Ê„U ¡Ò‚Ë ŒÎ…U∏ „ÒU¥ . •Ê¬ „U◊¥ ‚Ê¢‚ÊÁ⁄U∑§ ‚àfl ’¢œŸ ‚ ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ÿ◊‹Ê∑§ ‚ ©UûÊ◊ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ¬„UøÊŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (63) ÿSÿÊSà ÉÊÊ⁄U ˘ •Ê‚Ü¡È„UÊêÿ·Ê¢ ’ãœÊŸÊ◊fl‚¡¸ŸÊÿ. ÿÊ¢ àflÊ ¡ŸÊ ÷ÍÁ◊Á⁄UÁà ¬˝◊ãŒÃ ÁŸ´¸§Áâ àflÊ„¢U ¬Á⁄UflŒ Áfl‡fl×.. (64) „U ÁŸ´¸§Ã! •Ê¬ ∑˝Í§⁄U Sfl÷Êfl flÊ‹Ë „Ò¥U. „U◊ ¡ã◊◊⁄UáÊ ∑§ ’¢œŸ ‚ ◊ÈÄà „UÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÷‹ „UË ‹Êª •Ê¬ ∑§Ê ÷ÍÁ◊ ∑§„Uà „Ò¥U, ¬⁄U fl •Ê¬ ∑§Ê ‚’ •Ê⁄U ‚ ‚fl¸ôÊ ◊ÊŸÃ „Ò¥U. (64) ÿ¢ à ŒflË ÁŸ´¸§ÁÃ⁄UÊ’’㜠¬Ê‡Ê¢ ª˝ËflÊSflÁfløÎàÿ◊˜. â à ÁflcÿÊêÿÊÿÈ·Ê Ÿ ◊äÿÊŒÕÒâ Á¬ÃÈ◊Áh ¬˝‚Í×. Ÿ◊Ê ÷ÍàÿÒ ÿŒ¢ ø∑§Ê⁄U.. (65) 150 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÁŸ´¸§Ã ŒflË ©UŸ ’¢œŸÊ¥ ∑§Ê „U≈U ÊÃË „Ò¥U Á¡Ÿ ¬Ê‡ÊÊ¥ Ÿ •Ê¬ ∑§Ë ª⁄UŒŸ ∑§Ê ¡∑§«∏U ⁄UπÊ ÕÊ, •Ê¬ ©UŸ ’¢œŸÊ¥ ‚ ¿ÍUÁ≈U∞. •Ê¬ ¬Ê·∑§ •ããÊ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ œŸ ŒËÁ¡∞. ŒflË ∑§Ê „U◊Ê⁄UÊ Ÿ◊Ÿ. (65) ÁŸfl‡ÊŸ— ‚X◊ŸÊ fl‚ÍŸÊ¢ Áfl‡flÊ M§¬ÊÁ÷øCÔU ‡ÊøËÁ÷—. Œfl ˘ ßfl ‚ÁflÃÊ ‚àÿœ◊¸ãº˝Ê Ÿ ÃSÕÊÒ ‚◊⁄U ¬ÕËŸÊ◊˜.. (66) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ flÊ‚ŒÊÃÊ, œŸŒÊÃÊ, M§¬flÊŸ •ÊÒ⁄U •÷Ëc≈U »§‹ŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ÁflÃÊ Œfl ¡Ò‚ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „Ò¥U. ‚àÿ M§¬Ë œ◊¸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿÈh ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ÷Ê¢Áà ÁSÕ⁄U ⁄U„UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (66) ‚Ë⁄UÊ ÿÈTÁãà ∑§flÿÊ ÿÈªÊ ÁflÃãflà ¬ÎÕ∑˜§. œË⁄UÊ Œfl·È ‚ÈêŸÿÊ.. (67) •Ê¬ ∑§Áfl fl œË⁄U „Ò¥U. ŒflÊ¥ ∑§ •ë¿U ◊Ÿ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ „U‹ ∑§Ê ’Ò‹ ∑§ ¡Ê«U∏ ∑§ ‚ÊÕ ¡ÊÃà „Ò¥U. (67) ÿÈŸÄà ‚Ë⁄UÊ Áfl ÿÈªÊ ÃŸÈäfl¢ ∑Χà ÿÊŸÊÒ fl¬Ã„U ’Ë¡◊˜. Áª⁄UÊ ø üÊÈÁCÔU— ‚÷⁄UÊ •‚ãŸÊ ŸŒËÿ ˘ ßà‚Îáÿ— ¬Äfl◊ÿÊØ.. (68) „U Á∑§‚ÊŸÊ! •Ê¬ „U‹ ∑§Ê ¡ÊÁ«∏∞. ’Ò‹ ∑§ ∑¢§œÊ¥ ¬⁄U ¡È•Ê ⁄UÁπ∞. •Ê¬ πà ∑§Ê ¡ÊÁÃ∞. •Ê¬ ’Ë¡ ’Êß∞. ‚ÎÁc≈U ◊¥ •ë¿ËU »§‚‹ ∑§ Á‹∞ SÃÈÁà ∑§ËÁ¡∞. •ããÊ ÷⁄U÷⁄U ∑§⁄U ÃÒÿÊ⁄U „UÊ. •ããÊ •ë¿UË Ã⁄U„U ¬∑§. (68) ‡ÊÈŸ ¦ ‚È »§Ê‹Ê Áfl ∑Χ·ãÃÈ ÷ÍÁ◊ ¦ ‡ÊÈŸ¢ ∑§ËŸÊ‡ÊÊ ˘ •Á÷ ÿãÃÈ flÊ„ÒU—. ‡ÊÈŸÊ‚Ë⁄UÊ „UÁfl·Ê ÃʇÊ◊ÊŸÊ ‚ÈÁ¬å¬‹Ê ˘ •Ê·œË— ∑§Ã¸ŸÊS◊.. (69) ÷ÍÁ◊ ∑§Ê „U‹ ∑§ »§Ê‹ ‚ •ë¿UË Ã⁄U„U ¡ÊÁÃ∞. Á∑§‚ÊŸ ’Ò‹Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ •Ê⁄UÊ◊ ‚ ¡Ê∞¢. „U flÊÿÈ! „U ‚Íÿ¸! •Ê¬ „UÁfl ‚ ¬˝‚㟠„UÊß∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê ¡‹ ‚ ‚Ë¥Áø∞. •Ê¬ •Ê·œ ©U¬¡Êß∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê üÊcΔU »§‹Ê¥ ‚ ¬ÍÁ⁄U∞. (69) ÉÊÎß ‚ËÃÊ ◊œÈŸÊ ‚◊¢ÖÿÃÊ¢ Áfl‡flÒŒ¸flÒ⁄UŸÈ◊ÃÊ ◊L§Áj—. ™§¡¸SflÃË ¬ÿ‚Ê Á¬ãfl◊ÊŸÊS◊Êãà‚Ëà ¬ÿ‚ÊèÿÊflflÎàSfl.. (70) Áfl‡fl •ÊÒ⁄U ◊L§Œ˜ªáÊ „U‹ ∑§ »§Ê‹ ∑§Ê •ŸÈ◊Áà ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©U‚ ‡Ê„UŒ ‚ ‚Ë¥øŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ™§¡¸SflË „UÊß∞. •Ê¬ ŒÍœ ‚ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊÒ⁄U „U◊¥ ÉÊË fl ŒÍœ ‚ ‚Ë¥Áø∞. (70) ‹ÊX‹¢ ¬flË⁄Uflà‚ȇÊfl ¦ ‚Ê◊Á¬à‚L§. ÃŒÈm¬Áà ªÊ◊Áfl¢ ¬˝»§√ÿZ ø ¬Ëfl⁄UË¥ ¬˝SÕÊflº˝ÕflÊ„UáÊ◊˜.. (71) „U‹ »§Ê‹ ÿÈÄà „Ò¥U . ¬ÎâflË ∑§Ê πʌà „Ò¥U. ‚Ê◊ ∑§ ⁄UˇÊ∑§ •ÊÒ⁄U ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. ∑ΧÁ· ©Uà¬ÊŒŸ ∑§ ‚ÊÕ „UË ÷«∏, ’∑§⁄UË ¬Èc≈U, ªÊÒ∞¢ ⁄UÕ fl„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ©UûÊ◊ ÉÊÊ«∏U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (71) ÿ¡Èfl¸Œ - 151
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê◊¢ ∑§Ê◊ŒÈÉÊ œÈˇfl Á◊òÊÊÿ flL§áÊÊÿ ø. ßãº˝ÊÿÊÁ‡flèÿÊ¢ ¬ÍcáÊ ¬˝¡Êèÿ ˘ •Ê·œËèÿ—.. (72) „U‹ ‚÷Ë ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ߢº˝ Œfl ÃÕÊ •Á‡flŸË Œfl ∑§ Á‹∞ ¬Í·Ê Œfl ∞fl¢ ¬˝¡ÊªáÊ ∑§ Á‹∞ •Ê·ÁœÿÊ¢ ©U¬‹éœ ∑§⁄UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. (72) Áfl◊Èëÿäfl◊ÉãÿÊ ŒflÿÊŸÊ ˘ •ªã◊ Ã◊‚S¬Ê⁄U◊Sÿ. ÖÿÊÁÃ⁄UʬÊ◊.. (73) ◊ŸÈcÿ •fläÿ •ÊÒ⁄U ÿôÊ ∑§ mÊ⁄UÊ Œfl ◊ʪ¸ ¬⁄U ‹ ¡Êà „Ò¥U. •Ê¬ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ¬Ê⁄U ‹ ¡ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ߸‡fl⁄U ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÖÿÊÁà ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. (73) ‚¡Í⁄UéŒÊ •ÿflÊÁ÷— ‚¡ÍL§·Ê ˘ •L§áÊËÁ÷—. ‚¡Ê·‚ÊflÁ‡flŸÊ Œ ¦ ‚ÊÁ÷— ‚¡Í— ‚Í⁄U ˘ ∞Çʟ ‚¡ÍflÒ¸‡flÊŸ⁄U ˘ ß«UÿÊ ÉÊÎß SflÊ„UÊ.. (74) ◊„UËŸ, ÁŒŸ •ÊÒ⁄U fl·¸ ‚ ¬˝◊ ⁄UπŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‹Ê‹ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ¬˝◊ ⁄UπŸ flÊ‹Ë ©U·Ê ŒflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁøÁ∑§à‚∑§Ëÿ ∑§ÊÿÊZ ‚ ¬˝◊ ⁄UπŸ flÊ‹ •Á‡flŸË ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÉÊÊ«∏UÊ¥ ‚ ¬˝◊ ⁄UπŸ flÊ‹ ‚Íÿ¸ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÉÊË ‚ ¬˝◊ ⁄UπŸ flÊ‹ •ÁÇŸ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (74) ÿÊ ˘ •Ê·œË— ¬Íflʸ ¡ÊÃÊ ŒflèÿÁSòÊÿȪ¢ ¬È⁄UÊ. ◊ŸÒ ŸÈ ’÷˝ÍáÊÊ◊„ ¦ ‡Êâ œÊ◊ÊÁŸ ‚åà ø.. (75) ¬„U‹ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÃËŸ ÿȪ ◊¥ •Ê·ÁœÿÊ¢ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸ „Ò¥U. „U◊¥ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ œÊ◊ •ÊÒ⁄U ‚Êà œÊãÿÊ¥ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ∑§Ê ôÊÊŸ „Ò. •Ê·ÁœÿÊ¢ ¬∑§ ∑§⁄U ÷Í⁄U¬Ë‹ ⁄¢Uª ∑§Ë „UÊ ¡ÊÃË „Ò¥U . (75) ‡Êâ flÊ •ê’ œÊ◊ÊÁŸ ‚„Ud◊Èà flÊ L§„U—. •œÊ ‡ÊÃ∑˝§àflÊ ÿÍÿÁ◊◊¢ ◊ •ªŒ¢ ∑ΧÃ.. (76) •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ ‚Ò∑§«U∏Ê¥ ŸÊ◊ „Ò¥. ◊Ê¢ ∑§ ‚◊ÊŸ ªÈáÊ ÿÈÄà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ œÊ◊ „Ò¥U. fl ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄ÊŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •¢ªÊ¥ ∑§Ê ¬Èc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (76) •Ê·œË— ¬˝Áà ◊ÊŒäfl¢ ¬Èc¬flÃË— ¬˝‚Ífl⁄UË—. •‡flÊ ˘ ßfl ‚Á¡àfl⁄UËfl˸L§œ— ¬Ê⁄UÁÿcáfl—.. (77) •Ê·ÁœÿÊ¢ ¬Èc¬flÃË „Ò¥U. »§‹ ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ ªÈáÊÊ¥ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊¥ •ÊŸ¢Œ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë •ÊÒ⁄U ÉÊÊ«∏ ∑§Ë Ã⁄U„U flªflÃË „Ò¥U. L§∑§Êfl≈UÊ¥ (’Ë◊ÊÁ⁄UÿÊ¥) ∑§Ê Ã¡Ë ‚ ŒÍ⁄U (Ÿc≈U) ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (77) 152 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê·œËÁ⁄UÁà ◊ÊÃ⁄USÃmÊ ŒflËL§¬ ’˝Èfl. ‚Ÿÿ◊‡fl¢ ªÊ¢ flÊ‚ ˘ •Êà◊ÊŸ¢ Ãfl ¬ÍL§·.. (78) •ÊcÊÁœÿÊ¢ ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ∑§ ‚◊ÊŸ •ÊÒ⁄U ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ ‚ ‚¢¬ãŸ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ ªÈáÊÊ¥ ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ∑§„Uà ⁄U„Uà „Ò¥U. „U ÿôÊ ¬ÈL§·! •Ê¬ ‚ ¬˝Êåà ÉÊÊ«∏U, ªÊÿ •ÊÒ⁄U •ÊÁà◊∑§ ‚ÈπÊ¥ ∑§Ê ©U¬÷ʪ ∑§⁄¥U. (78) •‡flàÕ flÊ ÁŸ·ŒŸ¢ ¬áʸ flÊ fl‚ÁÃc∑ΧÃÊ. ªÊ÷Ê¡ ˘ ßÁà∑§‹Ê‚Õ ÿà‚ŸflÕ ¬ÍL§·◊˜.. (79) •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ÁŸflÊ‚ ¬Ë¬‹ •ÊÒ⁄U ¬ûÊÊ¥ ◊¥ „ÒU. •Ê¬ ªÊ ÷Ê¡Ÿ ’ÁŸ∞. •Ê¬ •Ê∑§Ê‡Ê ∑§Ê ‚flŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ fl·Ê¸ ∑§Á⁄U∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê •ããÊœŸ ‚¢¬ãŸ ’ŸÊß∞. (79) ÿòÊÊÒ·œË— ‚◊Ç◊à ⁄UÊ¡ÊŸ— ‚Á◊ÃÊÁflfl. Áfl¬˝— ‚ ˘ ©Uëÿà Á÷·ª˝ˇÊÊ„UÊ◊ËfløÊß—.. (80) ¡Ò‚ ⁄UÊ¡Ê ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿÈh ◊¥ ¡Êà „Ò¥U, flÒ‚ „UË •Ê·ÁœÿÊ¢ ⁄UÊªË •ÊÒ⁄U ⁄Uʪ ∑§ ¬Ê‚ ¡ÊÃË „Ò¥U. ⁄UʪŸÊ‡Ê∑§ „UÊŸ ∑§ „UË ∑§Ê⁄UáÊ ©Uã„¥U flÒl •ÊÒ⁄U Áfl¬˝ ∑§„UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (80) •‡flÊflÃË ¦ ‚Ê◊ÊflÃË◊Í¡¸ÿãÃË◊Ȍʡ‚◊˜. •ÊÁflÁà‚ ‚flʸ ˘ •Ê·œË⁄US◊Ê ˘ •Á⁄UCÔUÃÊÃÿ.. (81) •ÁŸc≈U ∑§Ê ÁŸflÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •‡flflÃË •ÊÒ⁄U ‚Ê◊flÃË ™§¡Ê¸ ‚ „U◊ ¬Á⁄UÁøà „Ò¥U. ÿ„U ™§¡Ê¸ •Ê¡ÁSflÃÊ ∑§Ë ¬Ê·∑§ „ÒU. (81) ©Uë¿ÈUc◊Ê ˘ •Ê·œËŸÊ¢ ªÊflÊ ªÊcΔUÊÁŒfl⁄UÃ. œŸ ¦ ‚ÁŸcÿãÃËŸÊ◊Êà◊ÊŸ¢ Ãfl ¬ÍL§·.. (82) ¡Ò‚ ªÊ‡ÊÊ‹Ê ‚ ªÊ∞¢ ¡¢ª‹ ◊¥ ¡ÊÃË „Ò¥U, flÒ‚ „UË ÿôÊ ∑§Ê œÈ•Ê¢ flÊÿÈ◊¢«U‹ ◊¥ ¡ÊÃÊ „ÒU. •ÁÇŸ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ‚ ÁŸ∑§‹ÃË „ÈU߸ ‹¬≈U ‚ ©UŸ ∑§Ë ‡ÊÁÄà •ÊÒ⁄U ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝∑§≈U „UÊÃË „Ò. (82) ßc∑ΧÁßʸ◊ flÊ ◊ÊÃÊÕÊ ÿÍÿ ¦ SÕ ÁŸc∑ΧÃË—. ‚Ë⁄UÊ— ¬ÃÁòÊáÊË SÕŸ ÿŒÊ◊ÿÁà ÁŸc∑ΧÕ.. (83) •Ê¬ ⁄Uʪ ÁŸflÊ⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ÊÃÊ ¡Ò‚Ë „Ò¥U. •Ê¬ Áfl∑§Ê⁄UŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •ããÊ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ◊ŸÈcÿ ∑§Ê ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (83) •Áà Áfl‡flÊ— ¬Á⁄UcΔUÊ Sß ˘ ßfl fl˝¡◊∑˝§◊È—. •Ê·œË— ¬˝ÊøÈëÿflÈÿ¸Áà∑¢§ ø ÃãflÊ ⁄U¬—.. (84) ÿ¡Èfl¸Œ - 153
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê·ÁœÿÊ¢ ⁄Uʪ ¬⁄U flÒ‚ „UË •Ê∑˝§◊áÊ ∑§⁄UÃË „ÒU¥, ¡Ò‚ øÊ⁄U ªÊÿÊ¥ ∑§ ’Ê«∏U ¬⁄U •Ê∑˝§◊áÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥. •Ê·ÁœÿÊ¢ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ ‚◊Sà ⁄Uʪ Ê¥ •ÊÒ⁄U Áfl∑§Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄UÃË „ÒU¥. (84) ÿÁŒ◊Ê flÊ¡ÿ㟄U◊Ê·œË„¸USà ˘ •ÊŒœ. •Êà◊Ê ÿˇ◊Sÿ Ÿ‡ÿÁà ¬È⁄UÊ ¡ËflªÎ÷Ê ÿÕÊ.. (85) ¡Ò‚ flœªÎ„U ◊¥ ‹ ¡ÊÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ ¬˝ÊáÊË fl„UÊ¢ ¬„¢ÈUøŸ ‚ ¬„U‹ „UË •¬Ÿ ∑§Ê ◊⁄UÊ „ÈU•Ê ◊ÊŸ ‹ÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË ßŸ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ‹Ÿ ‚ ¬„U‹ „U◊ ¡’ „UÊÕ ◊¥ ⁄Uπà „Ò¥U, ÃÊ ⁄UÊ¡ÿˇ◊Ê ¡Ò‚ ÷Ë·áÊ ⁄Uʪ ÷Ë ÷ʪ ¡Êà „Ò¥U. (85) ÿSÿÊÒ·œË— ¬˝‚¬¸ÕÊX◊X¢ ¬L§c¬L§—. ÃÃÊ ÿˇ◊¢ Áfl ’Êœäfl ˘ ©Uª˝Ê ◊äÿ◊‡ÊËÁ⁄Ufl.. (86) ¡’ •Ê·Áœ ∑§ΔUÊ⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ •¢ª¬˝àÿ¢ª ◊¥ ¬‚⁄UÃË (»Ò§‹ÃË) „ÒU ÃÊ ÿˇ◊Ê •ÊÁŒ ÷ÿ¢∑§⁄U ⁄Uʪʥ ∑§Ê ÷Ë ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ‚◊Êåà ∑§⁄U ŒÃË „ÒU. (86) ‚Ê∑¢§ ÿˇ◊ ¬˝ ¬Ã øÊ·áÊ Á∑§Á∑§ŒËÁflŸÊ. ‚Ê∑¢§ flÊÃSÿ œ˝ÊÖÿÊ ‚Ê∑¢§ Ÿ‡ÿ ÁŸ„UÊ∑§ÿÊ.. (87) •Ê·Áœ ‹Ÿ ∑§ ‚ÊÕ „UË ÿˇ◊Ê ⁄Uʪ ŒÍ⁄U „UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ¬˝ÊáÊflÊÿÈ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê·Áœ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ √ÿÊåà „UÊŸ ∑§ ‚ÊÕ „UË ‡Ê· ⁄Uʪ ÷Ë Ÿc≈U „UÊ ¡ÊÃÊ „Ò. (87) •ãÿÊ flÊ •ãÿÊ◊flàflãÿÊãÿSÿÊ ˘ ©U¬ÊflÃ. ÃÊ— ‚flʸ— ‚¢ÁflŒÊŸÊ ˘ ߌ¢ ◊ ¬˝ÊflÃÊ flø—.. (88) „U •ÊcÊÁœÿÊ! •Ê¬ ∞∑§ ŒÍ‚⁄U ∑§ ¬˝÷Êfl ∑§Ê ’…∏UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚÷Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ ¬⁄US¬⁄U ‚„Uÿʪ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U ߟ fløŸÊ¥ ∑§Ê ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (88) ÿÊ— »§Á‹ŸËÿʸ ˘ •»§‹Ê ˘ •¬Èc¬Ê ÿʇø ¬ÈÁc¬áÊË—. ’΄US¬Áì˝‚ÍÃÊSÃÊ ŸÊ ◊ÈÜøãàfl ¦ „U‚—.. (89) »§‹ flÊ‹Ë, »§‹„UËŸ, ¬Èc¬„UËŸ, ¬Èc¬flÃË, ’„ÈUà ©Uà¬ãŸ „UÊŸ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊¥ ⁄Uʪʥ ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (89) ◊ÈÜøãÃÈ ◊Ê ‡Ê¬âÿÊŒÕÊ flL§áÿÊŒÈÃ. •ÕÊ ÿ◊Sÿ ¬«U˜flˇÊÊà‚fl¸S◊ÊgflÁ∑§ÁÀ’·ÊØ.. (90) „U •Ê·ÁœÿÊ! •Ê¬ „U◊¥ ∑ȧ¬âÿ •ÊÒ⁄U ŒÍÁ·Ã ¡‹ ‚ „UÊŸ flÊ‹ Áfl∑§Ê⁄UÊ¥ ‚ ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ¿U„UÊ¥ •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ Ÿ ¬Ê‹Ÿ ‚ ©Uà¬ãŸ Áfl∑§Ê⁄UÊ¥ ‚ ÷Ë ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (90) •fl¬ÃãÃË⁄UflŒÁãŒfl ˘ •Ê·äÊÿS¬Á⁄U. ÿ¢ ¡Ëfl◊‡ŸflÊ◊„ÒU Ÿ ‚ Á⁄UcÿÊÁà ¬ÍL§·—.. (91) 154 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Sflª¸‹Ê∑§ ‚ •Ê·ÁœÿÊ¢ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊÃË „Ò¥U. ¡Ê ¡Ëfl ߟ ∑§Ê ΔUË∑§ ‚ ‚flŸ ∑§⁄UÃÊ „ÒU, fl„U ∑§÷Ë ‚◊ÿ ‚ ¬„U‹ ◊⁄UÃÊ Ÿ„UË¥ „ÒU. (91) ÿÊ ˘ •Ê·œË— ‚Ê◊⁄UÊôÊË’¸uÔUË— ‡ÊÃÁfløˇÊáÊÊ—. ÃÊ‚Ê◊Á‚ àfl◊ÈûÊ◊Ê⁄¢U ∑§Ê◊Êÿ ‡Ê ¦ NUŒ.. (92) •Ê·Áœ ‚Ê◊ ∑§Ë ⁄UÊŸË fl ’„ÈUªÈáÊÊ „ÒU. fl„U ‚Ò∑§«∏UÊ¥ Áfl‹ˇÊáÊ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹Ë „ÒU. fl •Ê·ÁœÿÊ¢ •÷Ëc≈U ‚Èπ ŒŸ flÊ‹Ë fl NUŒÿ ∑§Ê ‡ÊÁÄà ŒŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. (92) ÿÊ ˘ •Ê·œË— ‚Ê◊⁄UÊôÊËÌflÁcΔUÃÊ— ¬ÎÁÕflË◊ŸÈ. ’΄US¬Áì˝‚ÍÃÊ ˘ •SÿÒ ‚¢ŒûÊ flËÿ¸◊˜.. (93) ¡Ê •Ê·Áœ ‚Ê◊ ∑§Ë ⁄UÊŸË „ÒU, fl„U ’„ÈUªÈáÊÊ „ÒU. ‚Ò∑§«∏UÊ¥ Áfl‹ˇÊáÊ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹Ë „ÒU. •Ê·ÁœÿÊ¢ •÷Ëc≈U ‚Èπ ŒŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. NUŒÿ ∑§Ê ‡ÊÁÄà ŒŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ ¬ÈL§· ∑§Ê flËÿ¸flÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (93) ÿʇøŒ◊ȬoÎáflÁãà ÿʇø ŒÍ⁄¢U ¬⁄UʪÃÊ—. ‚flʸ— ‚¢ªàÿ flËL§œÊSÿÒ ‚¢ŒûÊ flËÿ¸◊˜.. (94) ¡Ê •Ê·ÁœÿÊ¢ ¬Ê‚ „Ò¥U , ¡Ê ŒÍ⁄U „Ò¥U, ¡Ê ÁflÁ÷ããÊ M§¬Ê¥ ◊¥ ©UªË „ÈU߸ „Ò¥U, fl ‚÷Ë „U◊Ê⁄UË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ∞¢ ‚ÈŸÃË „Ò¥U. ‚÷Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ ‚ÊÕ Á◊‹ ∑§⁄U „U◊¥ flËÿ¸ (‡ÊÁÄÃ) ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (94) ◊Ê flÊ Á⁄U·Ã˜ πÁŸÃÊ ÿS◊Ò øÊ„¢U πŸÊÁ◊ fl—. Ám¬ÊëøÃÈc¬ÊŒS◊Ê∑§ ¦ ‚fl¸◊SàflŸÊÃÈ⁄U◊˜.. (95) „U •Ê·ÁäÊÿÊ! ¡’ „U◊ ⁄Uʪ ∑§ ©U¬øÊ⁄U ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê πʌà „Ò¥U ÃÊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ πŸŸ ŒÊ· ‚ ◊ÈÄà „UÊ¥. ŒÊ¬Ê∞, øÊÒ¬Ê∞ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U ‚÷Ë ‹Êª •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ⁄Uʪ ◊ÈÄà „UÊ ¡Ê∞¢. (95) •Ê·œÿ— ‚◊flŒãà ‚Ê◊Ÿ ‚„U ⁄UÊôÊÊ. ÿS◊Ò ∑ΧáÊÊÁà ’˝ÊrÊÔáÊSà ¦ ⁄UÊ¡Ÿ˜ ¬Ê⁄UÿÊ◊Á‚.. (96) •Ê·ÁœÿÊ¢ •¬Ÿ SflÊ◊Ë ‚Ê◊ ⁄UÊ¡Ê ∑§ ‚◊ÊŸ „UË ∑§„UÃË „Ò¥Uó⁄UÊ¡Ÿ˜! „U◊ Á¡‚ ’˝ÊrÊáÊ ’ŸÊ ŒÃË „Ò¥U, fl„U ¬Ê⁄U „UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (96) ŸÊ‡ÊÁÿòÊË ’‹Ê‚Sÿʇʸ‚ ˘ ©U¬ÁøÃÊ◊Á‚. •ÕÊ ‡ÊÃSÿ ÿˇ◊ÊáÊÊ¢ ¬Ê∑§Ê⁄UÊ⁄UÁ‚ ŸÊ‡ÊŸË.. (97) •Ê·ÁœÿÊ¢ ’‹ŸÊ‡Ê∑§ fl ⁄Uʪʥ ∑§Ê ÷Ë ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ ◊S‚ ¡Ò‚ ⁄Uʪʥ ∑§Ê ÷Ë ©U¬øÊ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ ÿˇ◊Ê ¡Ò‚ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ⁄Uʪʥ fl ¬∑§ „ÈU∞ »§Ê«∏U ∑§Ê ÷Ë ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. (97) ÿ¡Èfl¸Œ - 155
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
àflÊ¢ ªãœflʸ ˘ •πŸ°SàflÊÁ◊ãº˝SàflÊ¢ ’΄US¬Á×. àflÊ◊Ê·œ ‚Ê◊Ê ⁄UÊ¡Ê ÁflmÊŸ˜ ÿˇ◊ÊŒ◊ÈëÿÃ.. (98) ª¢œflÊZ, ߢº˝ Œfl fl ’΄US¬Áà Œfl Ÿ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê πŸŸ Á∑§ÿÊ. ⁄UÊ¡Ê ‚Ê◊ Ÿ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê πŸŸ Á∑§ÿÊ. fl ⁄UÊ¡Ê •ÊÒ⁄U ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ ÿˇ◊Ê ⁄Uʪ ‚ ◊ÈÄà Á∑§ÿÊ. (98) ‚„USfl ◊ •⁄UÊÃË— ‚„USfl ¬ÎßÊÿ×. ‚„USfl ‚flZ ¬Êå◊ÊŸ ¦ ‚„U◊ÊŸÊSÿÊ·œ.. (99) „U •Ê·ÁœÿÊ! •Ê¬ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ ‚÷Ë ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. ©Uã„¥U ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U •Ê·ÁœÿÊ! •Ê¬ •¬ŸË ‚Ê◊âÿ¸ ‚ „U◊¥ ‚÷Ë ∑§c≈UÊ¥ ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (99) ŒËÉÊʸÿÈSà ˘ •Ê·œ πÁŸÃÊ ÿS◊Ò ø àflÊ πŸÊêÿ„U◊˜. •ÕÊ àfl¢ ŒËÉÊʸÿÈ÷͸àflÊ ‡ÊÃflÀ‡ÊÊ Áfl⁄UÊ„UÃÊØ.. (100) „U •Ê·Áœ! •Ê¬ ∑§Ê πŸŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ŒËÉÊʸÿÈ „UÊ¥. ◊Ò¥ ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê πŸŸ ∑§⁄UÃÊ „Í¢U. ◊Ò¥ ÷Ë ŒËÉÊʸÿÈ „UÊ™¢§. •Ê¬ ÷Ë ŒËÉÊʸÿÈ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Ò∑§«U∏Ê¥ •¢∑ȧ⁄UÊ¥ ‚ ◊ÈÄà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (100) àfl◊ÈûÊ◊ÊSÿÊ·œ Ãfl flΡÊÊ ˘ ©U¬SÃÿ—. ©U¬ÁSÃ⁄USÃÈ ‚ÊS◊Ê∑¢§ ÿÊ •S◊Ê° 2 •Á÷ŒÊ‚ÁÃ.. (101) „U •Ê·Áœ! •Ê¬ ©UûÊ◊ „ÒU¥ . •Ê¬ ∑§ ‚◊ˬ flÊ‹ flÎˇÊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ,¥ ¡Ê „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ŒÈ÷ʸflŸÊ◊ÿ „UÊ,¥ fl ÷Ë •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑§Í ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. (101) ◊Ê ◊Ê Á„U ¦ ‚ËÖ¡ÁŸÃÊ ÿ— ¬ÎÁÕ√ÿÊ ÿÊ flÊ ÁŒfl ¦ ‚àÿœ◊ʸ √ÿÊŸ≈U˜. ÿ‡øʬ‡øãº˝Ê— ¬˝Õ◊Ê ¡¡ÊŸ ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (102) ¡Ê ¬ÎâflË ∑§ ¡ã◊ŒÊÃÊ „Ò¥, ¡Ê Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ⁄UøÁÿÃÊ „Ò¥U, ¡Ê •ÊÁŒ¬ÈL§· „Ò¥U, ¡Ê ‚àÿœ◊ʸ „Ò¥U, „U◊ ©UŸ ∑§ ¬˝Áà ∑§÷Ë ÷Ë Áfl¬⁄UËà Ÿ „UÊ¥. „U◊ ∑§÷Ë ÷Ë ©UŸ ∑§ ¬˝ÁÃ∑ͧ‹ Ÿ ⁄U„¥U. ¡Ê ¬˝Õ◊ ¡ã◊Ê „Ò, ©U‚ ∑§ •‹ÊflÊ „U◊ •ãÿ Á∑§‚ Œfl ∑§Ê •¬ŸË •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄¥U. (102) •èÿÊflûʸSfl ¬ÎÁÕÁfl ÿôÊŸ ¬ÿ‚Ê ‚„U. fl¬Ê¢ à •ÁÇŸÁ⁄UÁ·ÃÊ •⁄UÊ„UØ.. (103) „U ¬ÎâflË! ÿôÊ ‚ „UÊŸ flÊ‹Ë ’⁄U‚Êà ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ÁÇŸ ¬⁄U •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. U(103) •ÇŸ ÿûÊ ‡ÊÈ∑˝¢§ ÿëøãº˝¢ ÿà¬Íâ ÿëø ÿÁôÊÿ◊˜. ÃgflèÿÊ ÷⁄UÊ◊Á‚.. (104) 156 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ¡Ê ÖflÊ‹Ê ø◊∑§Ë‹Ë •ÊÒ⁄U ø¢º˝◊Ê ¡Ò‚Ë „ÒU, •Ê¬ ∑§Ë ¡Ê ÖflÊ‹Ê ¬ÁflòÊ „ÒU •ÊÒ⁄U ÿôÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU, „U◊ ©Uã„¥U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (104) ß·◊Í¡¸◊„UÁ◊à •ÊŒ◊ÎÃSÿ ÿÊ®Ÿ ◊Á„U·Sÿ œÊ⁄UÊ◊˜. •Ê ◊Ê ªÊ·È Áfl‡ÊàflÊ ÃŸÍ·È ¡„UÊÁ◊ ‚ÁŒ◊ÁŸ⁄UÊ◊◊ËflÊ◊˜.. (105) •ÁÇŸ ™§¡¸SflË, •◊⁄UÃÊ ∑§ ◊Í‹ fl ◊„UÊŸ˜ ßë¿UÊ∞¢ ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ªÊÿÊ¥ ◊¥ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÁŸ⁄UÊªË „UÊ ¡Ê∞¢. (105) •ÇŸ Ãfl üÊflÊ flÿÊ ◊Á„U ÷˝Ê¡ãà •ø¸ÿÊ Áfl÷Êfl‚Ê. ’΄UjÊŸÊ ‡Êfl‚Ê flÊ¡◊ÈÄâÿ¢ ŒœÊÁ‚ ŒÊ‡ÊÈ· ∑§fl.. (106) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝Á‚h œŸflÊŸ fl ÁòÊ∑§Ê‹ôÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê œÈ•Ê¢ ÿôÊ „UÊŸ ∑§Ë ‚ÍøŸÊ ŒÃÊ „UÈ•Ê Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ¡ÊÃÊ „Ò. •Ê¬ ÿ◊¡ÊŸ ∑§Ê •ããÊœŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (106) ¬Êfl∑§fløʸ— ‡ÊÈ∑˝§fløʸ ˘ •ŸÍŸfløʸ ˘ ©UÁŒÿÁ·¸ ÷ÊŸÈŸÊ. ¬ÈòÊÊ ◊ÊÃ⁄UÊ Áflø⁄UãŸÈ¬ÊflÁ‚ ¬ÎáÊÁˇÊ ⁄UÊŒ‚Ë ©U÷.. (107) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÁflòÊ •ÊÒ⁄U •àÿÁœ∑§ flø¸Sfl flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Íÿ¸ M§¬ ◊¥ ©UŒÿ „UÊà „Ò¥U. ¡Ò‚ ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ’≈U ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ŒÊŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (107) ™§¡Ê¸ Ÿ¬ÊÖ¡ÊÃflŒ— ‚ȇÊÁSÃÁ÷◊¸ãŒSfl œËÁÃÁ÷Ì„U×. àfl ß·— ‚㌜È÷͸Á⁄Ufl¬¸‚Á‡øòÊÊÃÿÊ flÊ◊¡ÊÃÊ—.. (108) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ™§¡¸SflË, ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. „U◊ •ë¿UË ¬˝‡Ê¢‚Ê ‚ •Ê¬ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§Ê Á„Uà œÊÁ⁄U∞. ÿ¡◊ÊŸ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ ‚È⁄UÁˇÊà •ÊÒ⁄U üÊcΔU ∑ȧ‹ ◊¥ ¡ã◊ ‹Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. fl •Ê¬ ∑§Ê •ããÊ◊ÿË •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (108) ß⁄UÖÿãŸÇŸ ¬˝ÕÿSfl ¡ãÃÈÁ÷⁄US◊ ⁄UÊÿÊ •◊àÿ¸. ‚ Œ‡Ê¸ÃSÿ fl¬È·Ê Áfl ⁄UÊ¡Á‚ ¬ÎáÊÁˇÊ ‚ÊŸ®‚ ∑˝§ÃÈ◊˜.. (109) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ÁflŸÊ‡ÊË „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‚fl¸¬˝Õ◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¬Ÿ ‚È¢Œ⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ‚ ‡ÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ‚Ê⁄UË •Ê∑§Ê¢ˇÊÊ∞¢ ¬Íáʸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (109) ßc∑§ûÊʸ⁄U◊äfl⁄USÿ ¬˝ø¢ ˇÊÿãà ¦ ⁄UÊœ‚Ê ◊„U—. ⁄Uʮà flÊ◊Sÿ ‚È÷ªÊ¢ ◊„UËÁ◊·¢ ŒœÊÁ‚ ‚ÊŸÁ‚ ¦ ⁄UÁÿ◊˜.. (110) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿôÊ ∑§ ∑§ÃʸœÃʸ, üÊcΔUU Áø¢ÃŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ◊„UÊŸ˜ ÿ¡Èfl¸Œ - 157
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©U‚ ∑§Ê ‚ÊÒ÷ÊÇÿ‡ÊÊ‹Ë •ÊÒ⁄U ◊„UÊŸÔ˜ ◊Á„◊ÊflÊŸ ’ŸÊà „ÒU¢. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÷ÊÒÁÃ∑§ •ÊÒ⁄U •ÊäÿÊÁà◊∑§ flÒ÷fl œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (110) ´§ÃÊflÊŸ¢ ◊Á„U·¢ Áfl‡flŒ‡Ê¸Ã◊ÁÇŸ ¦ ‚È◊AÊÿ ŒÁœ⁄U ¬È⁄UÊ ¡ŸÊ—. üÊÈà∑§áʸ ¦ ‚¬˝ÕSÃ◊¢ àflÊ Áª⁄UÊ ŒÒ√ÿ¢ ◊ÊŸÈ·Ê ÿȪÊ.. (111) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚àÿflÊŸ, ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë fl ‚◊Sà Áfl‡fl ∑§ Á‹∞ Œ‡Ê¸ŸËÿ „Ò¥U. „U◊ Ÿª⁄UflÊ‚Ë •ë¿U ◊Ÿ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝Á‚h •ÊÒ⁄U ¬˝Õ◊ fl¢ŒŸËÿ „Ò¥U. ◊ŸÈcÿ ÿȪÿȪ ‚ ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹ •Ê¬ ∑§Ê ªÈáʪʟ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (111) •Ê åÿÊÿSfl ‚◊ÃÈ Ã Áfl‡fl× ‚Ê◊ flÎcáÿ◊˜. ÷flÊ flÊ¡Sÿ ‚XÕ.. (112) „U ‚Ê◊! Áfl‡fl ∑§Ë áÁSflÃÊ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄U . •Ê¬ flÎÁh ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ •ããÊ ∑§Ë ‚¢ªÁà ∑§ Á‹∞ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (112) ‚ãà ¬ÿÊ ¦ Á‚ ‚◊È ÿãÃÈ flÊ¡Ê— ‚¢ flÎcáÿÊãÿÁ÷◊ÊÁ÷ʄU—. •ÊåÿÊÿ◊ÊŸÊ •◊ÎÃÊÿ ‚Ê◊ ÁŒÁfl üÊflÊ ¦ SÿÈûÊ◊ÊÁŸ Áœcfl.. (113) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ¬Ê·∑§ ⁄U‚ •ÊÒ⁄U •ããÊ ’⁄U‚ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ •◊Îà ‚ ÃÎåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÁflÅÿÊà „Ò¥U. •Ê¬ Áø⁄U∑§Ê‹ Ã∑§ ÁSÕ⁄U „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (113) •ÊåÿÊÿSfl ◊ÁŒãÃ◊ ‚Ê◊ Áfl‡flÁ÷⁄U ¦ ‡ÊÈÁ÷—. ÷flÊ Ÿ— ‚¬˝ÕSÃ◊— ‚πÊ flÎœ.. (114) „U ‚Ê◊! •Ê¬ •ÊŸ¢ŒŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚fl¸òÊ ¬˝‚㟠„UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‡ÊÈ÷ „UÊß∞. •Ê¬ ÁflÅÿÊà •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄U Á◊òÊ „Ò¥U. •Ê¬ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Êß∞. (114) •Ê à flà‚Ê ◊ŸÊ ÿ◊à¬⁄U◊ÊÁëøà‚œSÕÊØ. •ÇŸ àflÊVÊ◊ÿÊ Áª⁄UÊ.. (115) „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U◊ SÕÊŸ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥U. „U◊ üÊcΔU SÃÊòÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë flÊáÊË◊ÿ fl¢ŒŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (115) ÃÈèÿãÃÊ ˘ •ÁX⁄USÃ◊ Áfl‡flÊ— ‚ÈÁˇÊÃÿ— ¬ÎÕ∑˜§. •ÇŸ ∑§Ê◊Êÿ ÿÁ◊⁄U.. (116) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ üÊcΔU •¢ªÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ¬˝Áà ¬ÎâflË ∑§Ë üÊcΔU ¬˝ÊÕ¸ŸÊ∞¢ •‹ª ‚ ‚◊Á¬¸Ã ∑§Ë ¡ÊÃË „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (116) •ÁÇŸ— Á¬˝ÿ·È œÊ◊‚È ∑§Ê◊Ê ÷ÍÃSÿ ÷√ÿSÿ. ‚◊˝Ê«U∑§Ê Áfl ⁄UÊ¡ÁÃ.. (117)
158 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ê⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ •¬Ÿ Á¬˝ÿ œÊ◊Ê¥ ¬⁄U Sflë¿UÊ ‚ ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊ ⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ flø◊ÊŸ •ÊÒ⁄U ÷Áflcÿ ∑§Ë ‚’ ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ∑§ ¬Í⁄U∑§ •ÊÒ⁄U ‚◊˝Ê≈U˜ „Ò¥U. •Ê¬ ŒËÁåÃU◊ÊŸ „UÊ ∑§⁄U ‡ÊÊÁ÷à „UÊ ⁄U„U „Ò¥U. (117)
ÿ¡Èfl¸Œ - 159
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ ◊Áÿ ªÎ±áÊÊêÿª˝ •ÁÇŸ ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·Êÿ ‚Ȭ˝¡ÊSàflÊÿ ‚ÈflËÿʸÿ. ◊Ê◊È ŒflÃÊ— ‚øãÃÊ◊˜.. (1) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ äÊŸ ∑§ ©Uà¬ÊŒ∑§, üÊcΔU ‚¢ÃÁà flÊ‹ •ÊÒ⁄U üÊcΔU flËÿ¸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ÿ„U ‚’ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ ‚Ë¥øà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë (SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë) ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (1) •¬Ê¢ ¬ÎcΔU◊Á‚ ÿÊÁŸ⁄UÇŸ— ‚◊Ⱥ˝◊Á÷× Á¬ãfl◊ÊŸ◊˜. flœ¸◊ÊŸÊ ◊„UÊ° 2 •Ê ø ¬Èc∑§⁄U ÁŒflÊ ◊ÊòÊÿÊ flÁ⁄UêáÊÊ ¬˝ÕSfl.. (2) •Ê¬ ¡‹œÊ⁄UË, •ÁÇŸ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ •ÊÒ⁄U ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ‚ÊÕ flÎÁh ¬Êà „Ò¥U. •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë Ã⁄U„U ÁflSÃÎà „UÊ¥. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë ÁŒ√ÿÃÊ ¬˝Êåà ∑§ËÁ¡∞. (2) ’˝rÊÔ ¡ôÊÊŸ¢ ¬˝Õ◊¢ ¬È⁄USÃÊÁm ‚Ë◊× ‚ÈL§øÊ flŸ ˘ •Êfl—. ‚ ’ÈäãÿÊ ˘ ©U¬◊Ê ˘ •Sÿ ÁflcΔUÊ— ‚Çø ÿÊÁŸ◊‚Çø Áfl fl—.. (3) ‚fl¸¬˝Õ◊ ’˝rÊÊ ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê. ©U‚ ∑§ ’ÊŒ ‡ÊÁÄà √ÿʬ∑§ „ÈU߸. ©U‚ ‡ÊÁÄà Ÿ √ÿÄà ¡ªÃ˜ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà Á∑§ÿÊ. ©U‚ ‡ÊÁÄà Ÿ •√ÿÄà ¡ªÃ˜ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà Á∑§ÿÊ. ‚Ø ß‚ ∑§Ë ÁflcΔUÊ, ◊‹ •ÊÒ⁄U •‚Ø ß‚ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÈU•Ê. (3) Á„U⁄Uáÿª÷¸— ‚◊flûʸÃʪ˝ ÷ÍÃSÿ ¡Ê× ¬ÁÃ⁄U∑§ •Ê‚ËØ. ‚ ŒÊœÊ⁄U ¬ÎÁÕflË¥ lÊ◊ÈÃ◊Ê¢ ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (4) ‚fl¸¬˝Õ◊ Á„U⁄Uáÿª÷¸ ◊¥ ¬⁄U◊ Ãûfl ⁄U„UÊ. ©U‚Ë ‚ ‚ÎÁc≈U ©U¬¡Ë. fl „UË ∞∑§◊ÊòÊ ¬Ê‹∑§ Õ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ¬ÎâflË ∑§Ê œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. fl„UË Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ •‹ÊflÊ „U◊ •ãÿ Á∑§‚ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄U¢. (4) º˝å‚‡øS∑§ãŒ ¬ÎÁÕflË◊ŸÈ lÊÁ◊◊¢ ø ÿÊÁŸ◊ŸÈ ÿ‡ø— ¬Ífl¸—. ‚◊ÊŸ¢ ÿÊÁŸ◊ŸÈ ‚Üø⁄Uãâ º˝å‚¢ ¡È„UÊêÿŸÈ ‚åà „UÊòÊÊ—.. (5) ¬˝Ê⁄¢U÷ ‚ „UË “º˝å‚” ⁄U‚ (∞∑§ ÁŒ√ÿ ⁄U‚) ŒflÃÊ ∑§Ê ÃÎÁåà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ∑§Ê ’…∏UÊà „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. ◊Í‹ SÕÊŸ ∑§Ê ‚Ë¥øà „Ò¥U. º˝Uå‚ 160 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@10
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚◊ÊŸ ◊Í‹ SÕÊŸ ◊¥ ‚¢ø⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Êà „UÊÃÊ º˝å‚ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (5) Ÿ◊ÊSÃÈ ‚¬¸èÿÊ ÿ ∑§ ø ¬ÎÁÕflË◊ŸÈ. ÿ •ãÃÁ⁄UˇÊ ÿ ÁŒÁfl Ãèÿ— ‚¬¸èÿÊ Ÿ◊—.. (6) ¡Ê ‚¬¸ ¬ÎâflË ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©Uã„¥U Ÿ◊Ÿ. ¡Ê ‚¬¸ •¢ÃÁ⁄UˇÊ •ÊÒ⁄U Sflª¸ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©Uã„¥U ÷Ë Ÿ◊Ÿ. (6) ÿÊ ˘ ß·flÊ ÿÊÃȜʟʟʢ ÿ flÊ flŸS¬ÃË ¦ 1 ⁄UŸÈ. ÿ flÊfl≈U·È ‡Ê⁄Uà Ãèÿ— ‚¬¸èÿÊ Ÿ◊—.. (7) ¡Ê ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§ ’ÊáÊ M§¬ ‚¬¸ „Ò¥U , ¡Ê flŸS¬ÁÃÿÊ¥ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‚¬¸ „Ò¥U, ©Uã„¥U Ÿ◊Ÿ. ¡Ê ª«˜U…UÊ¥ •ÊÒ⁄U ÁŸø‹ ÷ʪʥ ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¥U, ©UŸ ‚¬ÊZ ∑§Ê ÷Ë Ÿ◊Ÿ. (7) ÿ flÊ◊Ë ⁄UÊøŸ ÁŒflÊ ÿ flÊ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄UÁ‡◊·È. ÿ·Ê◊å‚È ‚ŒS∑Χâ Ãèÿ— ‚¬¸èÿÊ Ÿ◊—.. (8) ¡Ê ø◊∑§Ã „ÈU∞ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ¡Ê ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ◊¥ flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U, Á¡Ÿ ∑§Ê ¡‹ ∑§ ÷ËÃ⁄U ÉÊ⁄U „ÒU, ©UŸ ‚¬ÊZ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (8) ∑ΧáÊÈcfl ¬Ê¡— ¬˝Á‚®Ã Ÿ ¬ÎâflË¥ ÿÊÁ„U ⁄UÊ¡flÊ◊flÊ° 2 ß÷Ÿ. ÃÎcflË◊ŸÈ ¬˝Á‚®Ã º˝ÍáÊÊŸÊ ˘ SÃÊÁ‚ Áfläÿ ⁄UˇÊ‚SÃÁ¬cΔÒU—.. (9) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê ∑§c≈U ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ⁄UÊ¡Ê ∑§Ë Ã⁄U„U „UÊÕË ¬⁄U ‚flÊ⁄U „UÊ ∑§⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U •Ê∑˝§◊áÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ìÊß∞. ÁflSÃÎà ¡Ê‹ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ •¬ŸË ‚Ê◊âÿ¸ ∑§Ê ¡Ê‹ •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ¬‚ÊÁ⁄U∞. (9) Ãfl ÷˝◊Ê‚ ˘ •Ê‡ÊÈÿÊ ¬ÃãàÿŸÈS¬Î‡Ê œÎ·ÃÊ ‡ÊʇÊÈøÊŸ—. Ã¬Í ¦ cÿÇŸ ¡ÈuÔUÊ ¬ÃXÊŸ‚ÁãŒÃÊ Áfl ‚Ρ ÁflcflªÈÀ∑§Ê—.. (10) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÷˝◊áʇÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊËÉÊ˝ •¬ŸË ø◊∑§ÃË „ÈU߸ ‹¬≈UÊ¥ ‚ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ÷S◊ ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. „U◊Ê⁄UË •Ê„ÈUÁà ‚ •Ê¬ ∑§Ë ‹¬≈U¥ (™¢§UøË™¢§øË) ’…∏U ªß¸ „Ò¥U . •Ê¬ •¬ŸË ©UŸ ‹¬≈UÊ¥ ‚ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. (10) ¬˝Áà S¬‡ÊÊ Áfl ‚Ρ ÃÍÌáÊÃ◊Ê ÷flÊ ¬ÊÿÈÌfl‡ÊÊ •SÿÊ ˘ •Œéœ—. ÿÊ ŸÊ ŒÍ⁄U •ÉÊ‡Ê ¦ ‚Ê ÿÊ •ãàÿÇŸ ◊Ê Á∑§CÔU √ÿÁÕ⁄UÊŒœ·Ë¸Ã˜.. (11) „U •ÁÇŸ! ∑§Ê߸ ÷Ë „U◊¥ Ã∑§‹Ë»§ Ÿ ¬„¢ÈUøÊ ‚∑§. ∑§Ê߸ ÷Ë „U◊¥ √ÿÕÊ Ÿ ¬„¢ÈUøÊ ‚∑§. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ŒÍ⁄U ÿÊ ¬Ê‚ ¡„UÊ¢ ∑§„UË¥ ÷Ë ∑§Ê߸ ÷Ë ŒÈ‡◊Ÿ „UÊ, ©Uã„¥U •¬Ÿ ¬Ê‡Ê ◊¥ ’Ê¢œŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (11) ©UŒÇŸ ÁÃcΔU ¬˝àÿÊ ÃŸÈcfl ãÿÁ◊òÊÊ° 2 •Ê·ÃÊÁûÊ◊„UÃ. ÿÊ ŸÊ •⁄UÊÁà ¦ ‚Á◊œÊŸ ø∑˝§ ŸËøÊ Ã¢ œˇÿ¢ Ÿ ‡ÊÈc∑§◊˜.. (12) ÿ¡Èfl¸Œ - 161
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! ™§U¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ÁSÕà ⁄UÁ„U∞. •Ê¬ •¬Ÿ ß ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •Á◊òÊÊ¥ ∑§Ê ÷S◊Ë÷Íà ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. ¡Ê „U◊Ê⁄U ŸËø ‡ÊòÊÈ „Ò¥U, ©Uã„¥U •Ê¬ ‚ÍπË ‚Á◊œÊ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ¡‹Ê ∑§⁄U ⁄UÊπ ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. (12) ™§äflʸ ÷fl ¬˝Áà ÁfläÿÊäÿS◊ŒÊÁflc∑ΧáÊÈcfl ŒÒ√ÿÊãÿÇŸ. •fl ÁSÕ⁄UÊ ÃŸÈÁ„U ÿÊÃÈ¡ÍŸÊ¢ ¡ÊÁ◊◊¡ÊÁ◊¢ ¬˝ ◊ÎáÊËÁ„U ‡ÊòÊÍŸ˜. •ÇŸCÔ˜UflÊ Ã¡‚Ê ‚ÊŒÿÊÁ◊.. (13) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ™§äUflª¸ Ê◊Ë „UÊß ∞. •Ê¬ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁŒ√ÿ ∑§ÊÿÊZ ∑§Ê πÊÁ¡∞. (13) •ÁÇŸ◊͸œÊ¸ ÁŒfl— ∑§∑ȧà¬Á× ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •ÿ◊˜. •¬Ê ¦ ⁄UÃÊ ¦ Á‚ Á¡ãflÁÃ. ßãº˝Sÿ àflÊÒ¡‚Ê ‚ÊŒÿÊÁ◊.. (14) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ◊Íœ¸ãÿ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ‚’ ‚ ™§U¬⁄UË ÷ʪ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà „Ò¥U. •Ê¬ ¬Îâflˬʋ∑§ •ÊÒ⁄U ¡‹ ∑§Ë ¬ÊÒÁc≈U∑§ÃÊ ’…∏UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ •Ê¡ ‚ „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (14) ÷ÈflÊ ÿôÊSÿ ⁄U¡‚‡ø ŸÃÊ ÿòÊÊ ÁŸÿÈÁj— ‚ø‚ Á‡ÊflÊÁ÷—. ÁŒÁfl ◊͜ʸŸ¢ ŒÁœ· Sfl·ÊZ Á¡uÔUÊ◊ÇŸ ø∑Χ· „U√ÿflÊ„U◊˜.. (15) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U ÿôÊ ∑§ ⁄UÊ¡Ê, ŸÃÊ fl ‹Ê∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ©UëëÊ SÕÊŸ ∑§Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U√ÿ flÊ„U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË Á¡„˜UflÊ ‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (15) œÈ˝flÊÁ‚ œL§áÊÊSÃÎÃÊ Áfl‡fl∑§◊¸áÊÊ. ◊Ê àflÊ ‚◊Ⱥ˝ ˘ ©UmœËã◊Ê ‚ȬáÊʸ ˘ √ÿÕ◊ÊŸÊ ¬ÎÁÕflË¥ ŒÎ ¦ „U.. (16) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ œ˝Èfl, œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡fl∑§◊ʸ ‚ ÁflSÃÊ⁄U ¬Êà „Ò¥U. ‚◊Ⱥ˝ •Ê¬ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄U . flÊÿÈ •fl⁄UÊœ∑§ (L§∑§Êfl≈U) Ÿ ’Ÿ. •Ê¬ √ÿÁÕà ◊à „UÊß∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê ŒÎ…∏UÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (16) ¬˝¡Ê¬ÁÃc≈U˜flÊ ‚ÊŒÿàfl¬Ê¢ ¬ÎcΔU ‚◊Ⱥ˝Sÿ◊Ÿ˜. √ÿøSflÃË¥ ¬˝ÕSflÃË¥ ¬˝ÕSfl ¬ÎÁÕ√ÿÁ‚.. (17) ¬˝¡Ê¬Áà •Ê¬ ∑§Ê ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ë ¬ËΔU ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¡‹ ◊¥ ÁflSÃÎà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë „UË Ã⁄U„U ÁflSÃÎà „UÊß∞. (17) ÷Í⁄UÁ‚ ÷ÍÁ◊⁄USÿÁŒÁÃ⁄UÁ‚ Áfl‡flœÊÿÊ Áfl‡flSÿ ÷ÈflŸSÿ œòÊ˸. ¬ÎÁÕflË¥ ÿë¿U ¬ÎÁÕflË¥ ŒÎ ¦ „U ¬ÎÁÕflË¥ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë—.. (18) 162 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê¬ ÷ÍÁ◊ ¡Ò‚Ë ‚ÈπŒÊÿË •ÊÒ⁄U Áfl‡fl ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë •ÁŒÁà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§Ë œÊÁ⁄U∑§Ê „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U •¬ŸË ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©U‚ ŒÎ…U∏ ’ŸÊß∞. •Ê¬ ©U‚ ¬⁄U Á„¢U‚Ê ◊à „UÊŸ ŒËÁ¡∞. (18) Áfl‡flS◊Ò ¬˝ÊáÊÊÿʬʟÊÿ √ÿÊŸÊÿʌʟÊÿ ¬˝ÁÃcΔUÊÿÒ øÁ⁄UòÊÊÿ. •ÁÇŸc≈U˜flÊÁ÷ ¬ÊÃÈ ◊sÔÊ SflSàÿÊ ¿UÌŒ·Ê ‡ÊãÃ◊Ÿ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝flÊ ‚ËŒ.. (19) „U ŒflË! ‚◊Sà ¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ, √ÿÊŸ fl ©UŒÊŸ ‡Ê⁄UË⁄USÕ (flÊÿÈ ∑§ ÷Œ) ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. •ÁÇŸ •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ‡ÊËË ‡ÊÊ¢ÁÃ◊ÿ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ „UÊ. ÁŒ√ÿÃÊ ‚ •Ê¬ •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ œ˝Èfl „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (19) ∑§Êá«UÊà∑§Êá«UÊà¬˝⁄UÊ„UãÃË ¬L§·— ¬L§·S¬Á⁄U. ∞flÊ ŸÊ ŒÍfl¸ ¬˝ ÃŸÈ ‚„UdáÊ ‡Êß ø.. (20) „U ŒÍflʸ! •Ê¬ ‚÷Ë ¡ª„U ÷‹Ë÷Ê¢Áà ©Uª ¡ÊÃË „Ò¥U. •¬ŸË Ã⁄U„U „U◊Ê⁄UË ÷Ë ‚¢ÃÊŸ •ÊÒ⁄U œŸflÎÁh ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (20) ÿÊ ‡Êß ¬˝ÃŸÊÁ· ‚„UdáÊ Áfl⁄UÊ„UÁ‚. ÃSÿÊSà ŒflËc≈U∑§ Áflœ◊ „UÁfl·Ê flÿ◊˜.. (21) „U ŒÍflʸ! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ flÒ‚Ë „UË „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, Á¡‚ ‚ •Ê¬ ‚Ò∑§«U∏Ê¥ „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§Ë ‚¢ÅÿÊ ◊¥ ©Uª ∑§⁄U ’…∏¥U. (21) ÿÊSà •ÇŸ ‚Íÿ¸ L§øÊ ÁŒfl◊ÊÃãflÁãà ⁄UÁ‡◊Á÷—. ÃÊÁèʟʸ •l ‚flʸ÷Ë L§ø ¡ŸÊÿ ŸS∑ΧÁœ.. (22) „U •ÁÇŸ! ‚Íÿ¸ Œfl ∑§Ë ¡Ê ø◊∑§Ë‹Ë Á∑§⁄UáÊ¥ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÁflSàÊÊ⁄U ∑§⁄UÃË „Ò¥U, •Ê¡ ©UŸ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U „UÊ. (22) ÿÊ flÊ ŒflÊ— ‚Íÿ¸ L§øÊ ªÊcfl‡fl·È ÿÊ L§ø—. ßãº˝ÊÇŸË ÃÊÁ÷— ‚flʸ÷Ë L§ø¢ ŸÊ œûÊ ’΄US¬Ã.. (23) „U ߢº!˝ „U •ÁÇŸ! „U ’΄US¬ÁÃ! •Ê¬ ∑§Ë ¡Ê ∑§Ê¢Áà ‚ÍÿM¸ §¬ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „ÒU, ¡Ê ªÊÿÊ,¥ ÉÊÊ«U∏Ê¥ ◊¥ ÁSÕà „ÒU, •Ê¬ fl„U ‚Ê⁄UË ∑§Ê¢Áà „U◊Ê⁄U Á‹∞ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (23) Áfl⁄UÊ«˜UÖÿÊÁÃ⁄UœÊ⁄UÿàSfl⁄UÊ«U˜ÖÿÊÁÃ⁄UœÊ⁄UÿØ. ¬˝¡Ê¬ÁÃc≈U˜flÊ ‚ÊŒÿÃÈ ¬ÎcΔU ¬ÎÁÕ√ÿÊ ÖÿÊÁÃc◊ÃË◊˜. Áfl‡flS◊Ò ¬˝ÊáÊÊÿʬʟÊÿ √ÿÊŸÊÿ Áfl‡fl¢ ÖÿÊÁÃÿ¸ë¿U. •ÁÇŸCÔUÁœ¬ÁÃSÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝flÊ ‚ËŒ.. (24) Áfl⁄UÊ≈U˜ ‡ÊÁÄà Ÿ ÖÿÊÁà ∑§Ê œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. Sflÿ¢ ÖÿÊÁÃ◊¸ÿ Ÿ ÖÿÊÁà ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ÿ¡Èfl¸Œ - 163
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Á∑§ÿÊ. ¬˝¡Ê¬Áà ÖÿÊÁÃ◊¸ÿË ¬ÎâflË ∑§ ¬ÎcΔU ÷ʪ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ, √ÿÊŸ, œÊŸ ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§Ê ¬˝÷Íà ÖÿÊÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ •Ê¬ ∑§ •Áœ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ÁSÕ⁄U „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¢Áª⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ œ˝Èfl „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. (24) ◊œÈ‡ø ◊Êœfl‡ø flÊ‚ÁãÃ∑§ÊflÎÃÍ •ÇŸ⁄Uãׇ‹·ÊÁ‚ ∑§À¬ÃÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË ∑§À¬ãÃÊ◊ʬ ˘ •Ê·œÿ— ∑§À¬ãÃÊ◊ÇŸÿ— ¬ÎÕæ˜U ◊◊ ÖÿÒcΔUKÊÿ ‚fl˝ÃÊ—. ÿ •ÇŸÿ— ‚◊Ÿ‚ÊãÃ⁄UÊ lÊflʬÎÁÕflË ß◊. flÊ‚ÁãÃ∑§ÊflÎÃÍ •Á÷∑§À¬◊ÊŸÊ ˘ ßãº˝Á◊fl ŒflÊ ˘ •Á÷‚¢Áfl‡ÊãÃÈ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝fl ‚ËŒÃ◊˜.. (25) øÒà •ÊÒ⁄U flÒ‡ÊÊπ ◊„UËŸ fl‚¢Ã ´§ÃÈ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ ´§ÃÈ∞¢ •ÁÇŸ ∑§Ê •¢Œ⁄U ‚ ¡Ê«∏U ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ •Ê¬‚ ◊¥ ‚„Uÿʪ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊Ê⁄U Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚◊ÊŸ fl˝Ã flÊ‹Ë •ÁÇŸ ’«U∏’«∏U ∑§Ê◊Ê¥ ◊¥ ‚„UÊÿÃÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ’Ëø ¡Ê ÿ •ÁÇŸÿÊ¢ „Ò¥U, fl ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ë „UÊ¥. •ÁÇŸÿÊ¢ fl‚¢Ã ´§ÃÈ ‚ •ÊflÎà „UÊ¥. fl »§‹Ë÷Íà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚÷Ë Œfl ߢº˝ ∑§Ê •ÊüÊÿ ª˝„UáÊ ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ŒflÃÊ ∑§ ‚ÊÕ •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë Ã⁄U„U œ˝Èfl „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. (25) •·Ê…UÊÁ‚ ‚„U◊ÊŸÊ ‚„USflÊ⁄UÊÃË— ‚„USfl ¬ÎßÊÿ×. ‚„UdflËÿʸÁ‚ ‚Ê ◊Ê Á¡ãfl.. (26) •Ê¬ •·Ê…∏U fl ‚„UŸ‡ÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬⁄UÊÁ¡Ã ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚„Ud flËÿ¸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ Á¡ÃÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (26) ◊œÈ flÊÃÊ ˘ ´§ÃÊÿà ◊œÈ ˇÊ⁄UÁãà Á‚ãœfl—. ◊ÊäflËŸ¸— ‚ãàflÊ·œË—.. (27) flÊÿÈ ◊œÈ⁄UÃÊ ‚ ’„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U . ŸÁŒÿÊ¢ ◊œÈ⁄UÃʬÍfl¸∑§ ⁄U„¥U. ‚Ê⁄UË •Ê·ÁœÿÊ¢ ◊œÈ⁄UÃÊ◊ÿ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (27) ◊œÈ ŸÄÃ◊ÈÃÊ·‚Ê ◊œÈ◊à¬ÊÌÕfl ¦ ⁄U¡—. ◊œÈ lÊÒ⁄USÃÈ Ÿ— Á¬ÃÊ.. (28) ⁄UÊÁòÊ ◊œÈ⁄U „UÊ. ©U·Ê ◊œÈ⁄U „UÊ. ¬ÎâflË ◊œÈ◊ÃË „UÊ. ⁄U¡ ◊œÈ⁄U „UÊ. „U◊Ê⁄U Á¬ÃÊ Sflª¸‹Ê∑§ ◊œÈ◊ÿ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (28) ◊œÈ◊ÊãŸÊ flŸS¬ÁÃ◊¸œÈ◊Ê° 2 •SÃÈ ‚Íÿ¸—. ◊Êäfl˪ʸflÊ ÷flãÃÈ Ÿ—.. (29) flŸS¬ÁÃÿÊ¢ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ◊œÈ◊ÊŸ „UÊ¥. ‚Íÿ¸ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ◊œÈ◊ÊŸ (∑Χ¬Ê‹È) „UÊ¥. ªÊ∞¢ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ◊ÊœflË (◊œÈ⁄UÃÊ◊ÿ) „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (29) •¬Ê¢ ªê÷ãà‚ËŒ ◊Ê àflÊ ‚ÍÿʸÁ÷ÃÊå‚Ëã◊ÊÁÇŸflÒ¸‡flÊŸ⁄U—. •Áë¿U㟬òÊÊ— ¬˝¡Ê ˘ •ŸÈ√ÊˡÊSflÊŸÈ àflÊ ÁŒ√ÿÊ flÎÁCÔU— ‚øÃÊ◊˜.. (30) 164 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
(„U ∑ͧ◊¸!) •Ê¬ ¡‹ ∑§ ª÷¸ ◊¥ Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ ‚Íÿ¸ ∑§ ◊¢«U‹ ◊¥ Áfl⁄UÊÁ¡∞. ‚Íÿ¸ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ ìÊ∞. flÒ‡flÊŸ⁄U ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê ‚¢Ãåà Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬˝¡Ê ∑§Ê ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ÁŸ⁄UˡÊáÊ ∑§ËÁ¡∞. ÁŒ√ÿ ŒÎÁc≈U ‚ŒÒfl •Ê¬ ∑§Ê ‚øà ∑§⁄UÃË ⁄U„U. (30) òÊËãà‚◊Ⱥ˝Êãà‚◊‚άØ SflªÊ¸Ÿ¬Ê¢ ¬ÁÃflθ·÷ ˘ ßc≈U∑§ÊŸÊ◊˜. ¬È⁄UË·¢ fl‚ÊŸ— ‚È∑ΧÃSÿ ‹Ê∑§ ÃòÊ ªë¿U ÿòÊ ¬Ífl¸ ¬⁄UÃÊ—.. (31) •Ê¬ Ÿ ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ê √ÿÊåà Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ Sflª¸ ∑§ ◊ÊÁ‹∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „ÒU¢. •Ê¬ ßc≈U∑§Ê¥ (Áfl‡fl ÁŸ◊ʸáÊ ◊¥ ¬˝ÿÈÄà ß∑§ÊßÿÊ¥) ◊¥ ‡ÊÁÄà ÷⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ’‚Êà „ÈU∞ ©U‚Ë ‹Ê∑§ ◊¥ ¡Êß∞, ¡„UÊ¢ •ë¿U ∑§Ê◊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ¬„U‹ „UË ¬„È¢Uø øÈ∑§ „Ò¥U. (31) ◊„UË lÊÒ— ¬ÎÁÕflË ø Ÿ ˘ ß◊¢ ÿôÊ¢ Á◊Á◊ˇÊÃÊ◊˜. Á¬¬ÎÃÊ¢ ŸÊ ÷⁄UË◊Á÷—.. (32) ◊„UÊŸ˜ ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ∑§Ê •¬Ÿ•¬Ÿ •¢‡ÊÊ¥ ‚ ¬Í⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ‚Ê◊Áª˝ÿÊ¢ „U◊Ê⁄UË Á¬¬Ê‚Ê ‡Êʢà ∑§⁄¥U.Ô (32) ÁflcáÊÊ— ∑§◊ʸÁáÊ ¬‡ÿà ÿÃÊ fl˝ÃÊÁŸ ¬S¬‡Ê. ßãº˝Sÿ ÿÈÖÿ— ‚πÊ.. (33) ÁflcáÊÈ ß¢º˝ Œfl ‚ ¡È«∏U „ÈU∞ „Ò¥U. fl ߢº˝ Œfl ∑§ ‚πÊ „Ò¥U. ÁflcáÊÈ ‚÷Ë ∑§◊ÊZ ∑§Ê Œπà „Ò¥U •ÊÒ⁄U fl˝ÃÊ¥ ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (33) œÈ˝flÊÁ‚ œL§áÊÃÊ ¡ôÊ ¬˝Õ◊◊èÿÊ ÿÊÁŸèÿÊ •Áœ ¡ÊÃflŒÊ—. ‚ ªÊÿòÿÊ ÁòÊc≈ÈU÷ÊŸÈc≈ÈU÷Ê ø ŒflèÿÊ „U√ÿ¢ fl„UÃÈ ¬˝¡ÊŸŸ˜.. (34) „U ©UπÊ! •Ê¬ œ˝Èfl fl œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. ‚fl¸ôÊ •ÁÇŸ ÿôÊ ◊¥ ‚fl¸¬˝Õ◊ •Ê¬ ∑§ ÿ„UÊ¢ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. •ÁÇŸ, ªÊÿòÊË, ÁòÊc≈ÈU¬˜, •ŸÈc≈ÈU¬˜ •ÊÁŒ ¿¢UŒÊ¥ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (34) ß· ⁄UÊÿ ⁄U◊Sfl ‚„U‚ lÈêŸ ˘ ™§¡¸ •¬àÿÊÿ. ‚◊˝Ê«UÁ‚ Sfl⁄UÊ«UÁ‚ ‚Ê⁄USflÃÊÒ àflÊà‚ÊÒ ¬˝ÊflÃÊ◊˜.. (35) „U ©UπÊ! •Ê¬ ‚◊˝Ê≈U˜, Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡ÊÃ, ‚⁄USflÃË◊ÿ fl ¬Ê‹Ÿ ¬Ê·áÊ∑§Ãʸ „Ò¥U. •Ê¬ •ããÊ, ÿ‡Ê, ‚Ê„U‚ •ÊÒ⁄U ™§¡Ê¸ ◊¥ ⁄U◊áÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬ÈòÊ ¬ÊÒòÊÊ¥ ∑§Ê ÷Ë ©U‚ ◊¥ ⁄U◊áÊ ∑§⁄UÊß∞. (35) •ÇŸ ÿÈˇflÊ Á„U ÿ ÃflʇflÊ‚Ê Œfl ‚Êœfl—. •⁄¢U fl„UÁãà ◊ãÿfl.. (36) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ÉÊÊ«∏U ⁄UÕ ◊¥ ¡ÊÁÃ∞. fl •Ê¬ ∑§ ⁄UÕ ∑§ •⁄UÊ¥ ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄U ∑§ ‡ÊËÉÊ˝ •Ê¬ ∑§Ê ª¢Ã√ÿ Ã∑§ ‹ ¡Ê∞¢. (36) ÿÈˇflÊ Á„U Œfl„ÍUÃ◊Ê° 2 •‡flÊ° 2 •ÇŸ ⁄UÕËÁ⁄Ufl. ÁŸ „UÊÃÊ ¬Í√ÿ¸— ‚Œ—.. (37) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ÿ¡Èfl¸Œ - 165
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
⁄UÕ ◊¥ ÉÊÊ«∏U ¡ÊÁÃ∞. •Ê¬ Áø⁄U∑§Ê‹ ‚ „U◊Ê⁄U „UÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ SÕÊŸ ◊¥ Áfl⁄UÊÁ¡∞. (37) ‚êÿ∑˜§ ‚˝flÁãà ‚Á⁄UÃÊ Ÿ œŸÊ ˘ •ãÃN¸UŒÊ ◊Ÿ‚Ê ¬Íÿ◊ÊŸÊ—. ÉÊÎÃSÿ œÊ⁄UÊ ˘ •Á÷ øÊ∑§‡ÊËÁ◊ Á„U⁄UáÿÿÊ flÃ‚Ê ◊äÿ •ÇŸ—.. (38) ‚êÿ∑˜§ M§¬ ‚ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊŸ flÊ‹Ë ‚Á⁄UÃÊ ∑§ ‚◊ÊŸ „U◊Ê⁄U NUŒÿ •ÊÒ⁄U ◊Ÿ ‚ ¬ÁflòÊ flÊÁáÊÿÊ¢ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃË „Ò¥U . ÿôÊ ∑§Ë •ÁÇŸ SflÌáÊ◊ ¬˝∑§Ê‡Ê flÊ‹Ë „ÒU. ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ •ÁÇŸ ∑§ ’Ëø ’„UÊ ∑§⁄U ©U‚ SflÁáʸ◊ ’ŸÊ ŒÃË „ÒU¢. (38) ´§ø àflÊ L§ø àflÊ ÷Ê‚ àflÊ ÖÿÊÁ÷ àflÊ. •÷ÍÁŒŒ¢ Áfl‡flSÿ ÷ÈflŸSÿ flÊÁ¡Ÿ◊ÇŸflÒ¸‡flÊŸ⁄USÿ ø.. (39) •Ê¬ ªÊ∞ ¡Êà „Ò¥U, ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „Ò¥U, ÷ÊÁ‚à fl ÖÿÊÁ÷ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ‚Ê⁄U ‹Ê∑§Ê¥, flÒ‡flÊŸ⁄U •ÊÒ⁄U ’‹ ∑§Ê „U◊ ‚◊¤Ê ‚∑§ „Ò¥U. (39) •ÁÇŸÖÿʸÁÃ·Ê ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ˜ L§Ä◊Ê flø¸‚Ê flø¸SflÊŸ˜. ‚„UdŒÊ ˘ •Á‚ ‚„UdÊÿ àflÊ.. (40) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÖÿÊÁà ‚ ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ flø¸Sfl ‚ flø¸SflË „Ò¥U. •Ê¬ „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ „U¡Ê⁄U flÒ÷fl ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. (40) •ÊÁŒàÿ¢ ª÷Z ¬ÿ‚Ê ‚◊æ˜UÁÇœ ‚„UdSÿ ¬˝ÁÃ◊Ê¢ Áfl‡flM§¬◊˜. ¬Á⁄U flÎæ˜UÁÇœ „U⁄U‚Ê ◊ÊÁ÷ ◊ ¦ SÕÊ— ‡ÊÃÊÿÈ·¢ ∑ΧáÊÈÁ„U øËÿ◊ÊŸ—.. (41) •Ê¬ •ÊÁŒàÿ ∑§ ª÷¸ ∑§Ê ŒÍœU ‚ ‚Ë¥Áø∞. •Ê¬ „U¡Ê⁄UÊ¥ M§¬Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ á ‚ ⁄Uʪʥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ‡ÊÃÊÿÈ •ÊÒ⁄U ©U‚ •„¢U∑§Ê⁄U ‚ ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. (41) flÊÃSÿ ¡Í®Ã flL§áÊSÿ ŸÊÁ÷◊‡fl¢ ¡ôÊÊŸ ¦ ‚Á⁄U⁄USÿ ◊äÿ. Á‡Ê‡ÊÈ¢ ŸŒËŸÊ ¦ „UÁ⁄U◊Áº˝’ÈäŸ◊ÇŸ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë— ¬⁄U◊ √ÿÊ◊Ÿ˜.. (42) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ flÊÿÈ ∑§ Á¬˝ÿ, flL§áÊ Œfl ∑§Ë ŸÊÁ÷, ôÊÊŸ ∑§ •‡fl •ÊÒ⁄U ¡‹ ∑§ ’Ëø ⁄U„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŸÁŒÿÊ¥ ∑§ Á‡Ê‡ÊÈ, „U⁄U, ¡‹◊ÿ fl ¬fl¸Ã ¬⁄U Áøq •¢Á∑§Ã ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U◊ √ÿÊ◊flÊ‚Ë „Ò¥U. •Ê¬ Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. (42) •¡dÁ◊ãŒÈ◊L§·¢ ÷È⁄UáÿÈ◊ÁÇŸ◊Ë«U ¬Ífl¸ÁøÁûÊ¢ Ÿ◊ÊÁ÷—. ‚ ¬fl¸Á÷´¸§Ãȇʗ ∑§À¬◊ÊŸÊ ªÊ¢ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë⁄UÁŒ®Ã Áfl⁄UÊ¡◊˜.. (43) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •¡‚˝, ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË, ™§¡Ê¸flÊŸ •ÊÒ⁄U ´§Á·ÿÊ¥ mÊ⁄UÊ ‚Áflà „Ò¥U. •Ê¬ •ãŸ§ ‚ ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ¬Ífl¸ ‚ „UË ◊Ÿ ‚ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬flÊZ •ÊÒ⁄U ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U »§‹Ã „Ò¥U. •Ê¬ ªÊÒ ∑§ ‚◊ÊŸ ¬Ê·áÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (43) 166 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
flM§òÊË¥ àflc≈ÈUfl¸L§áÊSÿ ŸÊÁ÷◊®fl ¡ôÊÊŸÊ ¦ ⁄U¡‚— ¬⁄US◊ÊØ. ◊„UË ¦ ‚Ê„UdË◊‚È⁄USÿ ◊ÊÿÊ◊ÇŸ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë— ¬⁄U◊ √ÿÊ◊Ÿ˜.. (44) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÁflÁ÷ããÊ M§¬Ê¥ ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ Œfl ∑§Ë ŸÊÁ÷ „Ò¥U. •Ê¬ ©UëëÊ‹Ê∑§ ◊¥ ©Uà¬ãŸ, ◊Á„U◊ÊflÊŸ •ÊÒ⁄U ¬⁄U◊ √ÿÊ◊flÊ‚Ë „Ò¥U. •Ê¬ „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. •Ê¬ Á∑§‚Ë ÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë Á„¢U‚Ê Ÿ ∑§ËÁ¡∞. (44) ÿÊ •ÁÇŸ⁄UÇŸ⁄Uäÿ¡Êÿà ‡ÊÊ∑§Êà¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ ©Uà flÊ ÁŒflS¬Á⁄U. ÿŸ ¬˝¡Ê Áfl‡fl∑§◊ʸ ¡¡ÊŸ Ã◊ÇŸ „U«U— ¬Á⁄U à flÎáÊÄÃÈ.. (45) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§ ‡ÊÊ∑§ ‚ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚˝c≈UÊ Ÿ •Ê¬ ‚ „UË ‚ÎÁc≈U ∑§Ë ⁄UøŸÊ ∑§Ë. •Ê¬ ∑§÷Ë „U◊ ¬⁄U ∑˝§Êœ ◊à ∑§Á⁄U∞. (45) ÁøòÊ¢ ŒflÊŸÊ◊ÈŒªÊŒŸË∑¢§ øˇÊÈÌ◊òÊSÿ flL§áÊSÿÊÇŸ—. •Ê¬˝Ê lÊflʬÎÁÕflË •ãÃÁ⁄UˇÊ ¦ ‚Íÿ¸ ˘ •Êà◊Ê ¡ªÃSÃSÕÈ·‡ø.. (46) „U •ÁÇŸ! Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl •Ê¬ ∑§ ŸòÊM§¬ „Ò¥. •Ê¬ •Œ˜÷Èà ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§, ¬ÎâflË‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§ËÁ¡∞. ‚Íÿ¸ ¡«∏U •ÊÒ⁄U øß ∑§Ë •Êà◊Ê „Ò¥U. fl ß‚Ë M§¬ ◊¥ ©UÁŒÃ „ÈU∞ „Ò¥U. (46) ß◊¢ ◊Ê Á„ ¦ ‚ËÌm¬ÊŒ¢ ¬‡ÊÈ ¦ ‚„UdÊˇÊÊ ◊œÊÿ øËÿ◊ÊŸ—. ◊ÿÈ¢ ¬‡ÊÈ¢ ◊œ◊ÇŸ ¡È·Sfl ß ÁøãflÊŸSÃãflÊ ÁŸ·ËŒ. ◊ÿÈ¢ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ ÿ¢ Ámc◊Sâ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ.. (47) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒÊ¬ÊÿÊ¥ •ÊÒ⁄U ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚Ê Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U¡Ê⁄UÊ¥ ŸòÊÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ „Ò. •Ê¬ •ããÊ fl ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ flÒ÷fl ŒËÁ¡∞. „U◊ ‚ÈπË ¡ËflŸ ÿʬŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ∑§Ê ∑˝§Êœ, ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©Uã„¥U ¬ËÁ«∏Uà ∑§⁄¥U . (47) ß◊¢ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë⁄U∑§‡Ê»¢§ ¬‡ÊÈ¢ ∑§ÁŸ∑˝§Œ¢ flÊÁ¡Ÿ¢ flÊÁ¡Ÿ·È. ªÊÒ⁄U◊Ê⁄Uáÿ◊ŸÈ à ÁŒ‡ÊÊÁ◊ ß ÁøãflÊŸSÃãflÊ ÁŸ·ËŒ. ªÊÒ⁄¢U à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ ÿ¢ Ámc◊Sâ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ.. (48) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§ ÉÊÊ«U∏ •àÿ¢Ã ªÁÇÊË‹ „ÒU¥ . fl Á„UŸÁ„UŸÊ ∑§⁄U •¬ŸË S»Í§Áø ÁŒπÊà „ÒU¥ .Ô •Ê¬ ߟ ÉÊÊ«UÊ∏ ¥ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚∑§ ◊à „UÊß ∞. •Ê¬ ¡¢ª‹Ë ¡ÊŸfl⁄UÊ¥ ∑§Ê ¬⁄U‡ÊÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¬Ÿ ÖflÊ‹Ê◊ÿ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ’…∏UÊß∞. ¡Ê „U◊ ‚ ¬˝◊ Ÿ„UË¥ ⁄UπÃ, ¡Ê „U◊ ‚ m· ⁄Uπà „ÒU¥ , •Ê¬ ∑§Ê ∑˝§Êœ ©Uã„U¥ ¬ËÁ«∏Uà ∑§⁄U. (48) ß◊ ¦ ‚„Ud ¦ ‡ÊÃœÊ⁄U◊Èà‚¢ √ÿëÿ◊ÊŸ ¦ ‚Á⁄U⁄USÿ ◊äÿ. ÉÊÎ⠌ȄUÊŸÊ◊ÁŒ®Ã ¡ŸÊÿÊÇŸ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë— ¬⁄U◊ √ÿÊ◊Ÿ˜. ÿ¡Èfl¸Œ - 167
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ªflÿ◊Ê⁄Uáÿ◊ŸÈ à ÁŒ‡ÊÊÁ◊ ß ÁøãflÊŸSÃãflÊ ÁŸ·ËŒ. ªflÿ¢ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ ÿ¢ Ámc◊Sâ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ.. (49) „U •ÁÇŸ! ÿ„U •ÁŒÁà „U¡Ê⁄UÊ¥ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§Ê ◊Í‹ ‚˝Êà „ÒU . ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ ’Ëø ◊¥ ÉÊË ¿UÊ«∏UŸ flÊ‹Ë „ÒU. ÉÊÎà ∑§Ê ŒÊ„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „ÒU. ¬⁄U◊ √ÿÊ◊ ◊¥ ÁSÕà „ÒU. •Ê¬ •ÁŒÁà ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚Ê Ÿ ∑§ËÁ¡∞. ¡¢ª‹Ë ¡ÊŸfl⁄UÊ¥ ∑§Ë •Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê ÁŸº¸‡Ê ÁŒÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ •¬Ÿ ß ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „ÈU∞ ©UŸ ∑§ ‚ÊÕ Áfl⁄UÊÁ¡∞. Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, ∞‚Ê¥ ∑§ ¬˝Áà •Ê¬ •¬ŸÊ ∑˝§Êœ ¬˝∑§≈U ∑§ËÁ¡∞. (49) ß◊◊ÍáÊʸÿÈ¢ flL§áÊSÿ ŸÊÁ÷¢ àflø¢ ¬‡ÊÍŸÊ¢ Ám¬ŒÊ¢ øÃÈc¬ŒÊ◊˜. àflc≈È—U ¬˝¡ÊŸÊ¢ ¬˝Õ◊¢ ¡ÁŸòÊ◊ÇŸ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë— ¬⁄U◊ √ÿÊ◊Ÿ˜. ©UCÔ˛U◊Ê⁄Uáÿ◊ŸÈ à ÁŒ‡ÊÊÁ◊ ß ÁøãflÊŸSÃãflÊ ÁŸ·ËŒ. ©UCÔ˛¢U à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ ÿ¢ Ámc◊Sâ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ.. (50) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸¬˝Õ◊ ©Uà¬ãŸ „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ Œfl ∑§Ë ŸÊÁ÷, ¬‡ÊÈ•Ê¥, ŒÊ¬ÊÿÊ¥ fl øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§Ë àfløÊ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U◊ √ÿÊ◊ ◊¥ ÁSÕà „ÒU¢. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà Á„¢U‚∑§ ◊à „UÊß∞. „U◊ ¡¢ª‹Ë ™¢§≈UÊ¥ ∑§Ë •Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê ÁŸŒ¸‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ∑§ ‚ÊÕ •¬Ÿ ß ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©UŸ ™¢§≈UÊ¥ ∑§ ¬˝Áà •ÊÒ⁄U ¡Ê „U◊Ê⁄U ¬˝Áà m· ⁄Uπà „Ò¥, ©UŸ ∑§ ¬˝Áà ∑˝§Êœ ∑§ËÁ¡∞. (50) •¡Ê sÔÇŸ⁄U¡ÁŸCÔU ‡ÊÊ∑§Êà‚Ê •¬‡ÿÖ¡ÁŸÃÊ⁄U◊ª˝. ß ŒflÊ ŒflÃÊ◊ª˝◊Êÿ°Sß ⁄UÊ„U◊ÊÿãŸÈ¬ ◊äÿÊ‚—. ‡Ê⁄U÷◊Ê⁄Uáÿ◊ŸÈ à ÁŒ‡ÊÊÁ◊ ß ÁøãflÊŸSÃãflÊ ÁŸ·ËŒ. ‡Ê⁄U÷¢ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ ÿ¢ Ámc◊Sâ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ.. (51) •ÁÇŸ Ÿ •¡ (’∑§⁄UÊ) ∑§Ê ’ŸÊÿÊ „ÒU. ©U‚Ë ‚ fl„U •Êª Œπ ‚∑§Ê „ÒU. ©U‚Ë ‚ ŒflÃÊ Œflàfl •ÊÒ⁄U ©U‚Ë ◊ÉÊ ‚ ÿ¡◊ÊŸ Sflª¸ ∑§Ê ¬Êà „Ò¥U. •Ê¬ ¡¢ª‹Ë ‡Ê⁄U÷ (¡ÊŸfl⁄U) ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©U‚ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ’Á…∏U∞. •Ê¬ ‡Ê⁄U÷ •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ⁄Uπà „Ò¥U, ©UŸ ¬⁄U ∑˝§Êœ ∑§ËÁ¡∞. (51) àfl¢ ÿÁflcΔU ŒÊ‡ÊÈ·Ê ŸÎ΢— ¬ÊÁ„U oÎáÊÈœË Áª⁄U—. ⁄UˇÊÊ ÃÊ∑§◊ÈÃà◊ŸÊ.. (52) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿÈflÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË flÊáÊË◊ÿ ©U¬Ê‚ŸÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚ÈÁŸ∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË, ÿ¡◊ÊŸÊ¥ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË ¬ËÁ…∏UÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (52) •¬Ê¢ àfl◊ãà‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊkãà‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ÷S◊ãà‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ÖÿÊÁÃÁ· ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊÿŸ ‚ÊŒÿÊêÿáʸfl àflÊ ‚ŒŸ ‚ÊŒÿÊÁ◊ ‚◊Ⱥ˝ àflÊ ‚ŒŸ ‚ÊŒÿÊÁ◊ ‚Á⁄U⁄U àflÊ ‚ŒŸ ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ˇÊÿ ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ‚ÁœÁ· ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ‚ŒŸ ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ‚œSÕ ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ÿÊŸÊÒ ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ¬È⁄UË· ‚ÊŒÿÊêÿ¬Ê¢ àflÊ ¬ÊÕÁ‚ ‚ÊŒÿÊÁ◊. ªÊÿòÊáÊ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ‚ÊŒÿÊÁ◊ òÊÒc≈ÈU÷Ÿ àflÊ 168 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¿UãŒ‚Ê ‚ÊŒÿÊÁ◊ ¡ÊªÃŸ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ‚ÊŒÿÊêÿÊŸÈc≈ÈU÷Ÿ àflÊ ¿UãŒ‚Ê ‚ÊŒÿÊÁ◊ ¬Êæ˜UÄß àflÊ ¿UãŒ‚Ê ‚ÊŒÿÊÁ◊.. (53) „U (•¬SÿÊ ŸÊ◊∑§) ßc≈U∑§! ¡‹ ∑§Ê „U◊ •‹ª SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡‹ ∑§Ê •Ê·ÁœÿÊ¥ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ÷S◊ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ¬˝∑§Ê‡Ê ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ©U‚ ∑§ ÉÊ⁄U ‚◊Ⱥ˝ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ˇÊÿ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê •Ê¬ ∑§ ÉÊ⁄U ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê •Ê¬ ∑§ ◊Í‹ SÕÊŸ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê Ÿª⁄U ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ¬Õ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ªÊÿòÊË ¿U¢Œ ‚ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê òÊÒc≈ÈU÷˜ ¿¢UŒ ‚ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ¡ªÃË ¿¢UŒ ‚ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¡‹ ∑§Ê ¬¢ÁÄà ¿¢UŒ ‚ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (53) •ÿ¢ ¬È⁄UÊ ÷ÈflSÃSÿ ¬˝ÊáÊÊ ÷ÊÒflÊÿŸÊ fl‚ã× ¬˝ÊáÊÊÿŸÊ ªÊÿòÊË flÊ‚ãÃË ªÊÿòÿÒ ªÊÿòÊ¢ ªÊÿòÊÊŒÈ¬Ê ¦ ‡ÊÈL§¬Ê ¦ ‡ÊÊÁSòÊflÎØ ÁòÊflÎÃÊ ⁄UÕãÃ⁄¢U flÁ‚cΔU ˘ ´§Á·— ¬˝¡Ê¬Áê΄UËÃÿÊ àflÿÊ ¬˝ÊáÊ¢ ªÎ±áÊÊÁ◊ ¬˝¡Êèÿ—.. (54) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝Õ◊Êà¬ãŸ „Ò¥U. •Ã— ¬˝ÊáÊÊ¥ ◊¥ ÁSÕà „Ò¥U. ¬˝ÊáÊ ÷ÈflŸ •ÁÇŸ ‚ ©Uà¬ãŸ „Ò¥U. •Ã— ¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§ M§¬ ◊¥ ÁSÕà „Ò¥U. ¬˝ÊáÊ ÷ÈflŸ ‚ ©Uà¬ãŸ „UÊŸ ‚ ÷ÊÒflÊÿŸ ∑§„U ¡Êà „Ò¥U. fl‚¢Ã ´§ÃÈ ¬˝ÊáÊ ‚ ©Uà¬ãŸ „UÊÃË „Ò. fl‚¢Ã ´§ÃÈ ‚ ªÊÿòÊË ©Uà¬ãŸ „UÊÃË „Ò. ªÊÿòÊË ‚ ªÊÿòÊ ‚Ê◊ ©Uà¬ãŸ „UÊÃÊ „Ò. ªÊÿòÊË ‚ ©U¬Ê¢‡ÊÈ ©Uà¬ãŸ „UÊÃÊ „Ò. ©U¬Ê¢‡ÊÈ ‚ ÁòÊflÎûÊ, ÁòÊflÎûÊ ‚ ⁄UÕ¢Ã⁄U. ߟ ‚’ ∑§ ¬˝◊Èπ flÁ‚cΔU ´§Á· „Ò¥U. ¬˝¡Ê¬Áà ‚ Á‹∞ ª∞ ‚„Uÿʪ ‚ „U◊ ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊáÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (54) •ÿ¢ ŒÁˇÊáÊÊ Áfl‡fl∑§◊ʸ ÃSÿ ◊ŸÊ flÒ‡fl∑§◊¸áÊ¢ ª˝Ëc◊Ê ◊ÊŸ‚ÁSòÊc≈ÈUéª˝Òc◊Ë ÁòÊc≈ÈU÷— SflÊ⁄ ¦ SflÊ⁄UÊŒãÃÿʸ◊ÊãÃÿʸ◊Êà¬ÜøŒ‡Ê— ¬ÜøŒ‡ÊÊŒ˜ ’΄UŒ˜ ÷⁄UmÊ¡ ˘ ´§Á·— ¬˝¡Ê¬Áê΄UËÃÿÊ àflÿÊ ◊ŸÊ ªÎ±áÊÊÁ◊ ¬˝¡Êèÿ—.. (55) „U◊ Áfl‡fl∑§◊ʸ ∑§Ê ß‚ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ◊Ÿ Áfl‡fl∑§◊ʸ ‚ ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê „ÒU. ◊Ÿ ‚ ª˝Ëc◊ ÁŒ‡ÊÊ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸. ª˝Ëc◊ ‚ ÁòÊc≈Ȭ˜, ÁòÊc≈Ȭ˜ ‚ SflÊ⁄UU ‚Ê◊ ÃÕÊ SflÊ⁄U ‚Ê◊ ‚ •¢Ãÿʸ◊ ª˝„U ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. •¢Ãÿʸ◊ ‚ ¬¢øŒ‡Ê ‚Ê◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ¬¢øŒ‡Ê ‚Ê◊ ‚ ’΄Uà‚Ê◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ߟ ‚’ ∑§ ¬˝◊Èπ ÷⁄UmÊ¡ ´§Á· „Ò¥U . ¬˝¡Ê¬Áà ‚ Á‹∞ ª∞ ‚„Uÿʪ ‚ „U◊ ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ◊Ÿ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (55) •ÿ¢ ¬‡øÊÁm‡fl√ÿøÊSÃSÿ øˇÊÈflÒ¸‡fl√ÿø‚¢ fl·Ê¸‡øÊˇÊÈcÿÊ ¡ªÃË flʷ˸ ¡ªàÿÊ ˘ ´§Ä‚◊◊ÎÄ‚◊Êë¿ÈU∑˝§— ‡ÊÈ∑˝§Êà‚åÃŒ‡Ê— ‚åÃŒ‡ÊÊmÒM§¬¢ ¡◊ŒÁÇŸ´¸§Á·— ¬˝¡Ê¬Áê΄UËÃÿÊ àflÿÊ øˇÊȪθ±áÊÊÁ◊ ¬˝¡Êèÿ—.. (56) ÿ¡Èfl¸Œ - 169
¬Íflʸœ¸
Ã⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ Áfl‡fl√ÿøÊ (‚Íÿ¸) ∑§Ê ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©U‚ ‚ ŸòÊ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. Áfl‡fl√ÿøÊ ‚ fl·Ê¸ ´§ÃÈ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸. fl·Ê¸ ´§ÃÈ ‚ ¡ªÃË ¿¢UŒ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ©U‚ ‚ ´§∑˜§ fl ‚Ê◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ´ ∑˜§ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ‚ ‡ÊÈ∑˝§ ª˝„U ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ‡ÊÈ∑˝§ ª˝„U ‚ ‚åÃŒ‡Ê SÃÊ◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ‚åÃŒU‡Ê SÃÊ◊ ‚ flÒM§¬ ‚Ê◊ ∑§Ê ¬˝ÊŒÈ÷ʸfl „ÈU•Ê. ߟ ‚’ ∑§ ¬˝◊Èπ ¡◊ŒÁÇŸ ´§Á· „Ò¥U. ¬˝¡Ê¬Áà ‚ Á‹∞ ª∞ ‚„Uÿʪ ‚ „U◊ ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ŸòÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (56) ߌ◊ÈûÊ⁄UÊØ SflSÃSÿ üÊÊòÊ ¦ ‚ÊÒfl ¦ ‡Ê⁄Uë¿˛UÊÒòÿŸÈc≈ÈU¬˜ ‡ÊÊ⁄UlŸÈc≈ÈU ÷ ˘ ∞«U ◊Ò«UÊã◊ãÕË ◊ÁãÕŸ ˘ ∞∑§Áfl ¦ ‡Ê ˘ ∞∑§Áfl ¦ ‡ÊÊmÒ⁄UÊ¡¢ Áfl‡flÊÁ◊òÊ ˘ ´§Á·— ¬˝¡Ê¬Áê΄UËÃÿÊ àflÿÊ üÊÊòÊ¢ ªÎ±áÊÊÁ◊ ¬˝¡Êèÿ—.. (57) ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ üÊÊòÊ ¬˝◊Èπ ‚ÊœŸ „Ò¥U . üÊÊòÊ ‚ ‡Ê⁄UŒ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ „UÊÃË „ÒU. ‡Ê⁄UŒ ‚ •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿U¢Œ ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê. •ŸÈc≈ÈU¬˜ ‚ ∞«U‚Ê◊ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ „ÈU߸. ∞«‚Ê◊ ‚ ◊¢ÕË ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê. ◊¢ÕË ‚ ∞∑§Áfl¢‡Ê SÃÊ◊ ∑§Ë ©à¬ÁûÊ „ÈU߸. ∞∑§Áfl¢‡Ê ‚ flÒ⁄UÊ¡ ‚Ê◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê. ߟ ‚’ ∑§ ¬˝◊Èπ Áfl‡flÊÁ◊òÊ ´§Á· „Ò¥U. ¬˝¡Ê¬Áà ‚ Á‹∞ ª∞ ‚„Uÿʪ ‚ „U◊ ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ Á‹∞ üÊÊòÊ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (57) ßÿ◊ȬÁ⁄U ◊ÁÃSÃSÿÒ flÊæ˜U◊ÊàÿÊ „U◊ãÃÊ flÊëÿ— ¬Áæ˜UÄÄҸ◊ãÃË ¬æU˜ÄàÿÒ ÁŸœŸflÁ㟜Ÿflà ˘ •Êª˝ÿáÊ ˘ •Êª˝ÿáÊÊØ ÁòÊáÊflòÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÊÒ ÁòÊáÊflòÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÊèÿÊ ¦ ‡ÊÊÄfl⁄U⁄ÒUflà Áfl‡fl∑§◊¸ ˘ ´§Á·— ¬˝¡Ê¬Áê΄UËÃÿÊ àflÿÊ flÊø¢ ªÎ±áÊÊÁ◊ ¬˝¡ÊèÿÊ ‹Ê∑¢§ ÃÊ ˘ ßãº˝◊˜.. (58) ‚’ ‚ ™§¬⁄U ◊Áà ¬˝ÁÃÁcΔUà „ÒU. ©U‚Ë ∑§Ê ◊Áà ‚ ◊ŸŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ß‚ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÊáÊË ‚ „U◊¢Ã ´§ÃÈ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸. „U◊¢Ã ‚ ¬¢ÁÄà ¿¢UŒ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ „ÈU߸. ¬¢ÁÄà ‚ ÁŸœŸflà ‚Ê◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê. ÁŸœŸflà ‚Ê◊ ‚ •Êª˝ÿáÊ ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê •Êª˝ÿáÊ ‚ ÁòÊáÊfl ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ „ÈU߸. •Êª˝ÿáÊ ‚ òÊÿÁSòÊ¢‡Ê ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ „ÈU߸. ÁòÊáÊfl •ÊÒ⁄U òÊÿÁSòÊ¢‡Ê ‚ ‡ÊÊÄfl⁄U •ÊÒ⁄U ⁄ÒUflà ‚Ê◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ߟ ‚’ ∑§ ¬˝◊Èπ Áfl‡fl∑§◊ʸ ´§Á· „Ò¥U. ¬˝¡Ê¬Áà ‚ Á‹∞ ª∞ ‚„Uÿʪ ‚ „U◊ ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ Á‹∞ flÊáÊË ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝¡Ê ∑§ Á‹∞ SÃÊòÊ ªÊŸ ∑§⁄Uà „UÈ∞ „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥. (58)
170 - ÿ¡Èfl¸Œ
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ œÈ˝flÁˇÊÁÃœÈ˝¸flÿÊÁŸœÈ¸˝flÊÁ‚ œÈ˝fl¢ ÿÊÁŸ◊Ê‚ËŒ ‚ÊœÈÿÊ. ©UÅÿSÿ ∑§ÃÈ¢ ¬˝Õ◊¢ ¡È·ÊáÊÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ.. (1) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ œ˝Èfl, ÁSÕ⁄U Sfl÷Êfl flÊ‹Ë, ÁSÕ⁄U ◊Í‹ SÕÊŸ flÊ‹Ë •ÊÒ⁄U œ˝Èfl Sfl÷Êfl flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ©UπÊ ∑§Ë ¬ÃÊ∑§Ê ∑§Ê ‚flŸ •ÊÒ⁄U ©U‚ ÁSÕ⁄U ∑§ËÁ¡∞.Ô •Ê¬ ÁSÕ⁄U üÊcΔU SÕÊŸ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊß∞. •Á‡flŸË Œfl •ÊÒ⁄U ŒflÊ¥ ∑§ •äUflÿȸ •Ê¬ ∑§Ê ß‚ ©UûÊ◊ SâÊ‹ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄¥U. (1) ∑ȧ‹ÊÁÿŸË ÉÊÎÃflÃË ¬È⁄UÁ㜗 SÿÊŸ ‚ËŒ ‚ŒŸ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. •Á÷ àflÊ L§º˝Ê fl‚flÊ ªÎáÊÁãàfl◊Ê ’˝rÊÔ ¬ËÁ¬Á„U ‚ÊÒ÷ªÊÿÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ.. (2) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ∑ȧ‹flÊŸ fl ÉÊË ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. •Ê¬ ÁŸflÊ‚ ÿÊÇÿ ¬ÎâflË ∑§ ÉÊ⁄U ◊¥ ÁŸflÊ‚ ∑§ËÁ¡∞.Ô L§º˝ªáÊ •ÊÒ⁄U fl‚ȪáÊ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ªáÊŸËÿ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÃÈ ‚È⁄UÁˇÊà ∑§⁄¥U. ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •äUflÿȸ ∑§ M§¬ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ß‚ ÿôÊ SÕ‹ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ ∑§⁄UÊ∞¢. (2) SflÒŒ¸ˇÊÒŒ¸ˇÊÁ¬Ã„U ‚ËŒ ŒflÊŸÊ ¦ ‚ÈêŸ ’΄Uà ⁄UáÊÊÿ. Á¬ÃflÒÁœ ‚ÍŸfl ˘ •Ê ‚ȇÊflÊ SflÊfl‡ÊÊ ÃãflÊ ‚¢ Áfl‡ÊSflÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ.. (3) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ‡ÊÁÄà ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ •ë¿U ◊Ÿ ∑§ Á‹∞ ⁄UáÊ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà „UÊß∞. •Ê¬ ¡Ò‚ Á¬ÃÊ ¬ÈòÊ ∑§ ‚ÈπË ¡ËflŸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ¬˝ÿÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ËÁ¡∞. ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ŒflÊ¥ ∑§ ŒÊŸÊ¥ •äUflÿȸ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (3) ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ¬È⁄UË·◊Sÿå‚Ê ŸÊ◊ ÃÊ¢ àflÊ Áfl‡fl •Á÷ªÎáÊãÃÈ ŒflÊ—. SÃÊ◊¬ÎcΔUÊ ÉÊÎÃflÃË„U ‚ËŒ ¬˝¡ÊflŒS◊ º˝ÁfláÊÊÿ¡SflÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ.. (4) •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë ŸÊÕ •ÊÒ⁄U ¡‹ ‚ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸ „Ò¥U. ‚’ Œfl ‚’ •Ê⁄U ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄¥U. ÉÊË ∑§Ë „UÁfl ‚ •ÊŸ¢ÁŒÃ „Ê U∑§⁄U ÿ„UÊ¢ Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ¬ËÁ…∏UÿÊ¥ ‚Á„Uà ÿ¡Èfl¸Œ - 171
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
œŸ ŒËÁ¡∞. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŒÊŸÊ¥ •äUflÿȸ ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (4) •ÁŒàÿÊSàflÊ ¬ÎcΔU ‚ÊŒÿÊêÿãÃÁ⁄UˇÊSÿ œòÊËZ ÁflCÔUê÷ŸË¥ ÁŒ‡ÊÊ◊Áœ¬àŸË¥ ÷ÈflŸÊŸÊ◊˜. ™§Á◊¸º˝¸å‚Ê •¬Ê◊Á‚ Áfl‡fl∑§◊ʸ à ˘ ´§Á·⁄UÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ.. (5) „U◊ ß‚ ßc≈U∑§Ê ∑§Ê •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ë ¬ËΔU ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ßc≈U∑§Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. •Ê¬ ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ÁSÕ⁄UÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •Ê¬ ÷ÈflŸÊ¥ ∑§Ë ¬àŸË •ÊÒ⁄U ¡‹ ∑§Ë Ã⁄¢UªÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ º˝c≈UÊ ´§Á· Áfl‡fl∑§◊ʸ „Ò¥U. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬È⁄UÊÁ„Uà (•äUflÿȸ) „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê ß‚ SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (5) ‡ÊÈ∑˝§‡ø ‡ÊÈÁø‡ø ª˝Òc◊ÊflÎÃÍ •ÇŸ⁄Uãׇ‹·ÊÁ‚ ∑§À¬ÃÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË ∑§À¬ãÃÊ◊ʬ ˘ •Ê·œÿ— ∑§À¬ãÃÊ◊ÇŸÿ— ¬ÎÕæ˜U ◊◊ ÖÿÒcΔUKÊÿ ‚fl˝ÃÊ—. ÿ •ÇŸÿ— ‚◊Ÿ‚ÊãÃ⁄UÊ lÊflʬÎÁÕflË ß◊. ª˝Òc◊ÊflÎÃÍ •Á÷∑§À¬◊ÊŸÊ ˘ ßãº˝Á◊fl ŒflÊ ˘ •Á÷‚¢Áfl‡ÊãÃÈ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝fl ‚ËŒÃ◊˜.. (6) „U ßc≈U∑§Ê•Ê! •Ê¬ ø◊∑§Ë‹Ë, ¬ÁflòÊ, ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ¡Ò‚Ë •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄U ¡È«∏UË „ÈU߸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ÁflSÃÊ⁄U ¬Ê∞¢. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ Ã∑§ ∑§ÁÀ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡‹ •ÊÒ⁄U •Ê·ÁœÿÊ¢ »§‹ flÊ‹Ë „UÊ¥. fl˝Ã ‚Á„Uà •ÁÇŸÿÊ¢ ÖÿcΔUÃÊ (’«∏嬟) ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡Ê •ÁÇŸÿÊ¢ „U◊ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ê¥ ∑§ ÷ËÃ⁄U „Ò¥U, fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ‡ÊÊÁ÷à ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ∑§Ê ŒÊŸÊ¥ •Ê⁄U ‚ »§‹Ë÷Íà ∑§⁄UÃË „UÈ߸ ߢº˝ Œfl ∑§ ‚◊ÊŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊ¥. •¬ŸË ÁŒ√ÿÃÊ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ÁSÕ⁄UÃʬÍfl¸∑§ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (6) ‚¡Í´¸§ÃÈÁ÷— ‚¡ÍÌflœÊÁ÷— ‚¡ÍŒ¸flÒ— ‚¡ÍŒ¸flÒfl¸ÿÊŸÊœÒ⁄UÇŸÿ àflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ ‚¡Í´¸§ÃÈÁ÷— ‚¡ÍÌflœÊÁ÷— ‚¡Ífl¸‚ÈÁ÷— ‚¡ÍŒ¸flÒfl¸ÿÊŸÊœÒ⁄UÇŸÿ àflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ ‚¡Í´¸§ÃÈÁ÷— ‚¡ÍÌflœÊÁ÷— ‚¡Í L§º˝Ò— ‚¡ÍŒ¸flÒfl¸ÿÊŸÊœÒ⁄UÇŸÿ àflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ ‚¡Í´¸§ÃÈÁ÷— ‚¡ÍÌflœÊÁ÷— ‚¡Í⁄UÊÁŒàÿÒ— ‚¡ÍŒ¸flÒfl¸ÿÊŸÊœÒ⁄UÇŸÿ àflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ ‚¡Í´¸§ÃÈÁ÷— ‚¡ÍÌflœÊÁèÊ— ‚¡ÍÌfl‡flŒ¸flÒ— ‚¡ÍŒ¸flÒfl¸ÿÊŸÊœÒ⁄UÇŸÿ àflÊ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿÊÁ‡flŸÊäflÿ͸ ‚ÊŒÿÃÊÁ◊„U àflÊ.. (7) „U ßc≈U∑§Ê•Ê! •Ê¬ ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ¡‹Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •ÊÿÈ ŒŸ flÊ‹ ŒflÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ÊÁŒ ŒflÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÒ‡flÊŸ⁄U ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ •äUflÿȸ •Á‡flŸË∑§È◊Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ´§ÃÈ•Ê¥ ‚Á„Uà fl‚ȪáÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÁÃÁcΔUà 172 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. ¡‹ ‚Á„Uà •Ê¬ ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ‚Á„Uà •Ê¬ ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ •äflÿ¸È •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§ Á¬˝ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ¡‹Ê¥ ∑§ Á¬˝ÿ „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÁŒàÿÊ¥ ∑§ Á¬˝ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝ÊáÊÊ¥ ‚ Á¬˝ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ¡‹Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ L§º˝Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝◊◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •äUflÿȸ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (7) ¬˝ÊáÊ¢ ◊ ¬ÊsԬʟ¢ ◊ ¬ÊÁ„U √ÿÊŸ¢ ◊ ¬ÊÁ„U øˇÊÈ◊¸ ˘ ©U√ÿʸ Áfl÷ÊÁ„U üÊÊòÊ¢ ◊ ‡‹Ê∑§ÿ. •¬— Á¬ãflÊÒ·œËÌ¡ãfl Ám¬ÊŒfl øÃÈc¬ÊØ ¬ÊÁ„U ÁŒflÊ flÎÁc≈U◊⁄Uÿ.. (8) •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •¬ÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U √ÿÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ŸòÊÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ √ÿʬ∑§ ŒÎÁc≈U ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ∑§ÊŸÊ¥ ∑§Ê ¬Íáʸ M§¬ ‚ ‚Ê◊âÿ¸‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊß∞. •Ê¬ ©Ufl˸ (¬ÎâflË) ¬⁄U ∑Χ¬Ê‹È „UÊß∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê ¡‹ ‚ ‚Ë¥Áø∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê •ÊcÊÁœÿÊ¥ ‚ ‚Ë¥Áø∞. •Ê¬ ŒÊ¬ÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ „U◊ ¬⁄U ∑Χ¬Ê ∑§Ë ’⁄U‚Êà ∑§ËÁ¡∞. (8) ◊͜ʸ flÿ— ¬˝¡Ê¬ÁÇ¿U㌗ ˇÊòÊ¢ flÿÊ ◊ÿ㌢ ¿UãŒÊ ÁflCÔUê÷Ê flÿÊÁœ¬ÁÇ¿UãŒÊ Áfl‡fl∑§◊ʸ flÿ— ¬⁄U◊cΔUË ¿UãŒÊ flSÃÊ flÿÊ Áflfl‹¢ ¿UãŒÊ flÎÁcáÊfl¸ÿÊ Áfl‡ÊÊ‹¢ ¿U㌗ ¬ÈL§·Ê flÿSÃãº˝¢ ¿UãŒÊ √ÿÊÉÊ˝Ê flÿÊŸÊœÎC¢ÔU ¿U㌗ Á‚ ¦ „UÊ flÿ‡¿UÁŒ‡¿U㌗ ¬cΔUflÊ«˜UflÿÊ ’΄UÃË ¿U㌠˘ ©UˇÊÊ flÿ— ∑§∑ȧ¬˜ ¿U㌠˘ ´§·÷Ê flÿ— ‚Ãʒ΄UÃË ¿U㌗.. (9) ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ªÊÿòÊË ¿U¢Œ ‚ ◊Íœ¸ãÿ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§Ê ©Uà¬ãŸ Á∑§ÿÊ. ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ flÿ ¿U¢Œ ‚ ‚¢⁄UˇÊáʇÊË‹ ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. •ÊÿÈ •Áœ¬Áà Ÿ Áflc≈¢÷ ¿¢Œ ‚ flÒ‡ÿ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. Áfl‡fl∑§◊ʸ Ÿ ¬⁄U◊cΔU ¿U¢Œ ‚ ‡Êͺ˝ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ∞∑§ ¬Œ ¿¢Œ ‚ ÷«U∏ ∑§Ê ©Uà¬ãŸ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ∞∑§ ¬¢ÁÄà ¬Œ ¿U¢Œ ‚ ◊ŸÈcÿ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ Áfl⁄UÊ≈U˜ ¿U¢Œ ‚ √ÿÊÉÊ˝ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ •ÁáªÃË ¿¢Œ ‚ Á‚¢„U ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ’΄UÃË ¿¢Œ ‚ ÷Ê⁄UflÊ„UË ¬‡ÊÈ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ∑§∑ȧ¬˜ ¿¢Œ ‚ ©UˇÊÊ ¡ÊÁà ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ‚Ãʒ΄UÃË ¿¢Œ ‚ ´§·èÊ (÷Ê‹Í) ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. (9) •Ÿ«˜UflÊãflÿ— ¬ÁæU˜ÄÇ¿UãŒÊ œŸÈfl¸ÿÊ ¡ªÃË ¿UãŒSòÿÁflfl¸ÿÁSòÊc≈ÈU¬˜ ¿UãŒÊ ÁŒàÿflÊ«U˜flÿÊ Áfl⁄UÊ≈U˜ ¿U㌗ ¬ÜøÊÁflfl¸ÿÊ ªÊÿòÊË ¿UãŒÁSòÊflà‚Ê flÿ ˘ ©UÁcáÊ∑§˜ ¿UãŒSÃÈÿ¸flÊ«U˜flÿÊŸÈc≈ÈU¬˜ ¿UãŒÊ ‹Ê∑¢§ ÃÊ ßãº˝◊˜.. (10) ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ¬¢ÁÄà ¿¢UŒ ‚ ‚Ê¢«∏U ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ¡ªÃË ¿¢Œ ‚ ªÊÿ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ òÿÁfl ¡ÊÁà ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ Áfl⁄UÊ≈˜U ‚ ÷Ê⁄UflÊ„U∑§ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ©UÁcáÊ∑˜§ ‚ ÃËŸ flà‚ flÊ‹ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ÿ¡Èfl¸Œ - 173
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ •ŸÈc≈ÈU¬˜ ‚ ÃÈÿ¸flÊ≈U ¡ÊÁà ∑§Ê ©Uà¬ããÊ Á∑§ÿÊ. ßc≈U∑§Ê ß‚ ‹Ê∑§ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. „U◊ ߢº˝ Œfl ‚ ß‚ ‹Ê∑§ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (10) ßãº˝ÊÇŸË •√ÿÕ◊ÊŸÊÁ◊c≈U∑§Ê¢ ŒÎ ¦ „Uâ ÿÈfl◊˜. ¬ÎcΔUŸ lÊflʬÎÁÕflË •ãÃÁ⁄UˇÊ¢ ø Áfl ’Êœ‚.. (11) „U ߢº˝ Œfl! „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬Ë«∏UÊ„UËŸ „UÊ ∑§⁄U ßc≈U∑§Ê ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ßc≈U∑§Ê •¬Ÿ ¬ÎcΔU ÷ʪ ‚ Sflª¸‹Ê∑§, ¬ÎâflË‹Ê∑§ fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê √ÿÊåà ∑§⁄UÃË „ÒU . (11) Áfl‡fl∑§◊ʸ àflÊ ‚ÊŒÿàflãÃÁ⁄UˇÊSÿ ¬ÎcΔU √ÿøSflÃË¥ ¬˝ÕSflÃË◊ãÃÁ⁄UˇÊ¢ ÿë¿UÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ŒÎ ¦ „UÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ◊Ê Á„U ¦ ‚Ë—. Áfl‡flS◊Ò ¬˝ÊáÊÊÿʬʟÊÿ √ÿÊŸÊÿʌʟÊÿ ¬˝ÁÃcΔUÊÿÒ øÁ⁄UòÊÊÿ. flÊÿÈCUÔ˜flÊÁ÷ ¬ÊÃÈ ◊sÔÊ SflSàÿÊ ¿UÁŒ¸·Ê ‡Êãà◊Ÿ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝flÊ ‚ËŒ.. (12) „U ßc≈U∑§Ê! Áfl‡fl∑§◊ʸ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ∑§ ¬ÎcΔUU ÷ʪ ¬⁄U •ÁœÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬˝Õ◊ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚’ ∑§ ¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ, √ÿÊŸ, ©UŒÊŸ ∑§UË ⁄UˇÊÊ fl øÁ⁄UòÊ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. (12) ⁄UÊôÿÁ‚ ¬˝ÊøË ÁŒÁÇfl⁄UÊ«UÁ‚ ŒÁˇÊáÊÊ ÁŒ∑§˜ ‚◊˝Ê«UÁ‚ ¬˝ÃËøË ÁŒ∑§˜ Sfl⁄UÊ«USÿÈŒËøË ÁŒªÁœ¬àãÿÁ‚ ’΄UÃË ÁŒ∑§˜.. (13) „U ßc≈U∑§Ê! •Ê¬ ⁄UÊŸË „Ò¥U. •Ê¬ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊÃË „Ò¥U. •Ê¬ Áfl⁄UÊ≈U˜ „Ò¥U. •Ê¬ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ ‚◊˝Ê≈U˜ „Ò¥U. •Ê¬ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „Ò¥U. •Ê¬ ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë Áfl‡ÊÊ‹ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ë •ÁœcΔUÊÃÊ fl ¬àŸË „Ò¥U. (13) Áfl‡fl∑§◊ʸ àflÊ ‚ÊŒÿàflãÃÁ⁄UˇÊSÿ ¬ÎcΔU ÖÿÊÁÃc◊ÃË◊˜. Áfl‡flS◊Ò ¬˝ÊáÊÊÿʬʟÊÿ √ÿÊŸÊÿ Áfl‡fl¢ ÖÿÊÁÃÿ¸ë¿U. flÊÿÈCÔUÁœ¬ÁÃSÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝flÊ ‚ËŒ.. (14) „U ßc≈U∑§Ê! Áfl‡fl∑§◊ʸ •Ê¬ ∑§Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ ¬ÎcΔU÷ʪ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ ∑§⁄UÊ∞¢. •Ê¬ ÖÿÊÁÃc◊ÃË „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§ ¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ fl √ÿÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ÖÿÊÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊ∞¢. flÊÿÈ •Ê¬ ∑§ ßc≈U •Áœ¬Áà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë ÁŒ√ÿÃÊ ‚ •Ê¬ •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ÁSÕ⁄U „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (14) Ÿ÷‡ø Ÿ÷Sÿ‡ø flÊÌ·∑§ÊflÎÃÍ •ÇŸ⁄Uãׇ‹·ÊÁ‚ ∑§À¬ÃÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË ∑§À¬ãÃÊ◊ʬ ˘•Ê·œÿ— ∑§À¬ãÃÊ◊ÇŸÿ— ¬ÎÕæ˜U◊◊ ÖÿÒcΔUKÊÿ ‚fl˝ÃÊ—. 174 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿ •ÇŸÿ— ‚◊Ÿ‚ÊãÃ⁄UÊ lÊflʬÎÁÕflË ß◊. flÊÌ·∑§ÊflÎÃÍ •Á÷∑§À¬◊ÊŸÊ ˘ ßãº˝Á◊fl ŒflÊ ˘•Á÷‚¢Áfl‡ÊãÃÈ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝fl ‚ËŒÃ◊˜.. (15) ‚ÊflŸ •ÊÒ⁄U ÷ʌʥ ŒÊŸÊ¥ ◊„UËŸ fl·Ê¸ ´§ÃÈ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄U ¡È«∏U „ÈU∞ „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ Sflª¸‹Ê∑§ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÎâflË‹Ê∑§ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¡‹ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ •Ê·ÁœÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U ßc≈U∑§Ê•Ê! •Ê¬ ø◊∑§Ë‹Ë, ¬ÁflòÊ, ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ¡Ò‚Ë fl •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄U ¡È«∏UË „ÈU߸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ÁflSÃÊ⁄U ¬Ê∞¢. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ Ã∑§ ∑§ÁÀ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. ¡‹ •ÁÇŸÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. fl˝Ã ‚Á„Uà •ÁÇŸÿÊ¢ ÖÿcΔUÃÊ (’«∏嬟) ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡Ê •ÁÇŸÿÊ¢ „U◊ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ê¥ ∑§ ÷ËÃ⁄U „Ò¥U, fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ‡ÊÊÁ÷à ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ∑§Ê ŒÊŸÊ¥ •Ê⁄U ‚ »§‹Ë÷Íà ∑§⁄UÃË „UÈ߸ ߢº˝ Œfl ∑§ ‚◊ÊŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊ¥. •¬ŸË ÁŒ√ÿÃÊ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ÁSÕ⁄UÃʬÍfl¸∑§ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (15) ß·‡øÊ¡¸‡ø ‡ÊÊ⁄UŒÊflÎÃÍ •ÇŸ⁄Uãׇ‹·ÊÁ‚ ∑§À¬ÃÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË ∑§À¬ãÃÊ◊ʬ ˘ •Ê·œÿ— ∑§À¬ãÃÊ◊ÇŸÿ— ¬ÎÕæ˜U◊◊ ÖÿÒcΔUKÊÿ ‚fl˝ÃÊ—. ÿ •ÇŸÿ— ‚◊Ÿ‚ÊãÃ⁄UÊ lÊflʬÎÁÕflË ß◊. ‡ÊÊ⁄UŒÊflÎÃÍ •Á÷∑§À¬◊ÊŸÊ ˘ ßãº˝Á◊fl ŒflÊ ˘ •Á÷‚¢Áfl‡ÊãÃÈ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝fl ‚ËŒÃ◊˜.. (16) ‡Ê⁄UŒ ´§ÃÈ ∑§ •ÊÁ‡flŸ •ÊÒ⁄U ∑§ÊÁø∑§ ÿ ŒÊ ◊„UËŸ „Ò¥U. ‚ÊflŸ •ÊÒ⁄U ÷ʌʥ ÿ ŒÊŸÊ¥ ◊Ê‚ fl·Ê¸ ´§ÃÈ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. „U ´§ÃÈM§¬ ßc≈U∑§Ê•Ê! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄U ¡È«∏U „ÈU∞ „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ Sflª¸‹Ê∑§ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÎâflË‹Ê∑§ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¡‹ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ •Ê·ÁœÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „Ê¥. „U ßc≈U∑§Ê•Ê! •Ê¬ ø◊∑§Ë‹Ë, ¬ÁflòÊ, ªËc◊ ´§ÃÈ ¡Ò‚Ë fl •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄ ¡È«U∏Ë „ÈU߸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ÁflSÃÊ⁄U ¬Ê∞¢. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ Ã∑§ ∑§ÁÀ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê·ÁœÿÊ¥ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. ¡‹ fl •ÁÇŸÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. fl˝Ã ‚Á„Uà •ÁÇŸÿÊ¢ ÖÿcΔUÃÊ (’«∏嬟) ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡Ê •ÁÇŸÿÊ¢ „U◊ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ê¥ ∑§ ÷ËÃ⁄U „Ò¥U, fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ‡ÊÊÁ÷à ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ∑§Ê ŒÊŸÊ¥ •Ê⁄U ‚ »§‹Ë÷Íà ∑§⁄UÃË „UÈ߸ ߢº˝ Œfl ∑§ ‚◊ÊŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊ¥. •¬ŸË ÁŒ√ÿÃÊ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ÁSÕ⁄UÃʬÍfl¸∑§ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) •ÊÿÈ◊¸ ¬ÊÁ„U ¬˝ÊáÊ¢ ◊ ¬ÊsԬʟ¢ ◊ ¬ÊÁ„U √ÿÊŸ¢ ◊ ¬ÊÁ„U øˇÊÈ◊¸ ¬ÊÁ„U üÊÊòÊ¢ ◊ ¬ÊÁ„U flÊø¢ ◊ Á¬ãfl ◊ŸÊ ◊ Á¡ãflÊà◊ÊŸ¢ ◊ ¬ÊÁ„U ÖÿÊÁÃ◊¸ ÿë¿U.. (17) •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U •¬ÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U √ÿÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ŸòÊÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ∑§ÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UËU flÊáÊË ∑§Ê ◊œÈ⁄U ’ŸÊß∞. •Ê¬ ÿ¡Èfl¸Œ - 175
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊Ê⁄U ◊Ÿ ∑§Ê Á¡ÃÊß∞. •Êà◊Ê ∑§Ê ÿʪ ∑§ËÁ¡∞. ÖÿÊÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (17) ◊Ê ¿U㌗ ¬˝◊Ê ¿U㌗ ¬˝ÁÃ◊Ê ¿UãŒÊ •dËflÿ‡¿U㌗ ¬Áæ˜U ÄÇ¿U㌠˘ ©UÁcáÊ∑˜§ ¿UãŒÊ ’΄UÃË ¿UãŒÊŸÈc≈ÈU¬˜ ¿UãŒÊ Áfl⁄UÊ≈U˜ ¿UãŒÊ ªÊÿòÊË ¿UãŒÁSòÊc≈ÈU¬˜ ¿UãŒÊ ¡ªÃË ¿U㌗.. (18) „U◊ ◊Ÿ, ¿U¢ŒU, ¬˝◊Ê ¿U¢ŒU, ¬˝ÁÃ◊Ê, •dËflÿ, ¬¢ÁÄÃ, ©UÁcáÊ∑˜§, ’΄UÃË, •ŸÈc≈ÈU¬˜, Áfl⁄UÊ≈U˜, ªÊÿòÊË, ÁòÊc≈ÈU¬˜ •ÊÒ⁄U ¡ªÃË ‚ ßc≈U∑§Ê ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (18) ¬ÎÁÕflË ¿UãŒÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ¿UãŒÊ lÊÒ‡¿U㌗ ‚◊ʇ¿UãŒÊ ŸˇÊòÊÊÁáÊ ¿UãŒÊ flÊ∑˜§ ¿UãŒÊ ◊Ÿ‡¿U㌗ ∑ΧÁ·‡¿UãŒÊ Á„U⁄Uáÿ¢ ¿UãŒÊ ªÊÒ‡¿UãŒÊ¡Ê¿UãŒÊ‡fl‡¿U㌗.. (19) „U ßc≈U∑§Ê! „U◊ ¬ÎâflË, •¢ÃÁ⁄UˇÊ, ŸˇÊòÊ, flÊ∑˜§◊Ÿ, ∑ΧÁ·, Á„U⁄Uáÿ, ªÊÒ, •¡Ê, •‡fl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ¿¢UŒ ∑§Ê ◊ŸŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (19) •ÁÇŸŒ¸flÃÊ flÊÃÊ ŒflÃÊ ‚Íÿʸ ŒflÃÊ øãº˝◊Ê ŒflÃÊ fl‚flÊ ŒflÃÊ L§º˝Ê ŒflÃÊÁŒàÿÊ ŒflÃÊ ◊L§ÃÊ ŒflÃÊ Áfl‡flŒflÊ ŒflÃÊ ’΄US¬ÁÃŒ¸flÃãº˝Ê ŒflÃÊ flL§áÊÊ ŒflÃÊ.. (20) „U◊ •ÁÇŸ, flÊÿÈ, ‚Íÿ¸, ø¢º˝, fl‚È, L§º˝, •ÊÁŒàÿ, ◊L§Ã˜, Áfl‡fl ŒflÊ, ’΄US¬ÁÃ, ߢº˝ Œfl fl „U◊ flL§áÊ Œfl ∑§Ê S◊⁄UáÊ ∑§⁄U ∑§ ßc≈U∑§Ê ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (20) ◊͜ʸÁ‚ ⁄UÊ«U˜ œÈ˝flÊÁ‚ œL§áÊÊ œòÿ¸Á‚ œ⁄UáÊË. •ÊÿÈ· àflÊ flø¸‚ àflÊ ∑ΧcÿÒ àflÊ ˇÊ◊Êÿ àflÊ.. (21) „U ßc≈U∑§Ê! •Ê¬ ◊Íäʸãÿ ÁSÕ⁄U fl œÊÁ⁄UU∑§Ê „ÒU¥ . „U◊ •ÊÿÈ, flø¸Sfl, ∑ΧÁ· fl ∑ȧ‡Ê‹ˇÊ◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „ÒU.¢ (21) ÿãòÊË ⁄UÊ«U˜ ÿãòÿÁ‚ ÿ◊ŸË œÈ˝flÊÁ‚ œÁ⁄UòÊË. ß· àflÊ¡¸ àflÊ ⁄UƒÿÒ àflÊ ¬Ê·Êÿ àflÊ ‹Ê∑¢§ ÃÊ ßãº˝◊˜.. (22) ßc≈U∑§Ê äÊ⁄UÊ ∑§ ‚◊ÊŸ ÁSÕ⁄U fl ÿÊ¢ÁòÊ∑§ M§¬ ‚ ªÁÇÊË‹ „ÒU. •Ê¬ ÁŸÿ◊ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U . „U◊ ™§¡Ê¸, œŸ, ¬Ê·áÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ß‚ ‹Ê∑§ ∑§Ê ⁄ˇÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (22) •Ê‡ÊÈÁSòÊflÎjÊã× ¬ÜøŒ‡ÊÊ √ÿÊ◊Ê ‚åÃŒ‡ÊÊ œL§áÊ ˘ ∞∑§Áfl ¦ ‡Ê— ¬˝ÃÍÌûÊ⁄Uc≈UÊŒ‡ÊSÃ¬Ê ŸflŒ‡ÊÊ÷Ëflûʸ— ‚Áfl ¦ ‡ÊÊ fløʸ mÊÁfl ¦ ‡Ê— ‚ê÷⁄UáÊSòÊÿÊÁfl ¦ ‡ÊÊ ÿÊÁŸ‡øÃÈÌfl ¦ ‡ÊÊ ª÷ʸ— ¬ÜøÁfl ¦ ‡Ê ˘ •Ê¡ÁSòÊáÊfl— ∑˝§ÃÈ⁄U∑§ÁòÊ ¦ ‡Ê— ¬˝ÁÃcΔUÊ òÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÊ ’˝äŸSÿ Áflc≈U¬¢ øÃÈÁSòÊ ¦ ‡ÊÊ ŸÊ∑§— ·≈U˜ÁòÊ ¦ ‡ÊÊ ÁflflûÊʸCUÔÊøàflÊÁ⁄ ¦ ‡ÊÊ œòÊZ øÃÈCUÔÊ◊—.. (23) „U ßc≈U∑§Ê! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÁòÊflÎà SÃÊ◊ ‚ √ÿÊåà SÕÊŸ ¬⁄U •ÁœÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬¢º˝„U ÁŒŸ flÊ‹Ë ø¢º˝◊Ê ∑§Ë ÖÿÊÁà ∑§Ê ◊ŸŸ ∑§⁄U ∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚åÃŒ‡Ê SÃÊ◊ SflM§¬ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄U ∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ßÄ∑§Ë‚ SÃÊ◊ SflM§¬ ∑§Ê ◊ŸŸ ∑§⁄U ∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ΔUÊ⁄U„U SÃÊ◊ 176 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@11
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿÊŸË ’Ê⁄U„U ◊„UËŸ, ¬Ê¢ø ´§ÃÈ, ∞∑§ fl·¸ M§¬ •¢ªÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ì SflM§¬ ©UããÊË‚ SÃÊ◊ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ’Ê⁄U„U ◊„UËŸ, ‚Êà ´§ÃÈ, ‚¢flà‚⁄U M§¬ ’Ë‚ ‚¢ÅÿÊ flÊ‹ ŒflÃÊ ∑§Ê ◊ŸŸ ∑§⁄U ∑§ ‚¢flà‚⁄U M§¬ ’Ë‚ ‚¢ÅÿÊ flÊ‹ „U◊ mÊÁfl¢‡Ê SÃÊ◊ flÊ‹ flø¸ ŒflÃÊ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄U ∑§ ©U‚ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. Ã߸‚ SÃÊ◊ flÊ‹ ‚¢÷⁄UáÊ ŒflÃÊ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄ ∑§ ©U‚ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝¡Ê ∑§Ê øÊÒ’Ë‚ SÃÊ◊ ©U¬¡Êà „Ò¥U. „U◊ ÿÊÁŸ Œfl ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄U ∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÁòÊáÊfl •Ê¡SflË Œfl ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄ U∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ „UÃÈ ©U¬ÿÊªË ß∑§ÃË‚ SÃÊ◊ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄ U∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ ŒflÃÊ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄ U∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÃÒ¥ÃË‚ ¬˝ÁÃcΔUÊ SflM§¬ Œfl ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ flÊ‚ flÊ‹ øÊÒ¥ÃË‚ Œfl ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄U ∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ’˝rÊ Áflc≈U¬ ¬Ò¥ÃË‚ Œfl ∑§Ê S◊⁄UáÊ ∑§⁄U ∑§ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (23) •ÇŸ÷ʸªÊÁ‚ ŒËˇÊÊÿÊ ˘ •ÊÁœ¬àÿ¢ ’˝rÊÔ S¬Îâ ÁòÊflÎàSÃÊ◊ ˘ ßãº˝Sÿ ÷ʪÊÁ‚ ÁflcáÊÊ⁄UÊÁœ¬àÿ¢ ˇÊòÊ ¦ S¬Îâ ¬ÜøŒ‡Ê SÃÊ◊Ê ŸÎøˇÊ‚Ê¢ ÷ʪÊÁ‚ œÊÃÈ⁄UÊÁœ¬àÿ¢ ¡ÁŸòÊ ¦ S¬Îà ¦ ‚åÃŒ‡Ê SÃÊ◊Ê Á◊òÊSÿ ÷ʪÊÁ‚ flL§áÊSÿÊÁœ¬àÿ¢ ÁŒflÊ flÎÁc≈Uflʸà S¬Îà ˘ ∞∑§Áfl ¦ ‡Ê SÃÊ◊—.. (24) ßc≈U∑§Ê •ÁÇŸ Œfl ∑§Ê ÷ʪ „Ò. •Ê¬ ŒËˇÊÊ ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ „Ò¥U. ’˝ÊrÊáÊ ÁòÊflÎà SÃÊ◊ ‚ ◊ÎàÿÈ ‚ ’ø ÁòÊflÎà SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. ÁflcáÊÈ ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ „Ò¥U. ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ◊ÎàÿÈ ‚ ⁄UˇÊÊ ¬¢øŒ‡Ê SÃÊ◊ ‚ „ÈU߸. „U◊ ¬¢øŒ‡Ê SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ÁŸ⁄UˡÊ∑§ Œfl ∑§Ê ÷ʪ „Ò¥U. •Ê¬ œÊÃÊ ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ „Ò¥U. flÒ‡ÿ ‚åÃŒ‡Ê SÃÊ◊ mÊ⁄UÊ ◊ÎàÿÈ ‚ ’ø¥. „U◊ ‚åÃŒ‡Ê SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Á◊òÊ Œfl ∑§Ê ÷ʪ „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ Œfl ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ „Ò¥U. ∞∑§Áfl¢‡Ê SÃÊ◊ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ fl·Ê¸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ „ÈU߸ ∞∑§Áfl¢‡Ê SÃÊ◊ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ flÊÿÈ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ „ÈU߸. ∞∑§Áfl¢‡Ê SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (24) fl‚ÍŸÊ¢ ÷ʪÊÁ‚ L§º˝ÊáÊÊ◊ÊÁœ¬àÿ¢ øÃÈc¬ÊØ S¬Îâ øÃÈÁfl¸ ¦ ‡Ê SÃÊ◊ ˘ •ÊÁŒàÿÊŸÊ¢ ÷ʪÊÁ‚ ◊L§ÃÊ◊ÊÁœ¬àÿ¢ ª÷ʸ S¬ÎÃÊ— ¬ÜøÁfl ¦ ‡Ê SÃÊ◊ÊÁŒàÿÒ ÷ʪÊÁ‚ ¬ÍcáÊ ˘ •ÊÁœ¬àÿ◊Ê¡ S¬Îâ ÁòÊáÊfl SÃÊ◊Ê ŒflSÿ ‚ÁflÃÈ÷ʸªÊÁ‚ ’΄US¬Ã⁄UÊÁœ¬àÿ ¦ ‚◊ËøËÌŒ‡Ê S¬ÎÃʇøÃÈc≈UÊ◊ SÃÊ◊—.. (25) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ fl‚ȪáÊÊ¥ ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. ß‚Á‹∞ •Ê¬ ¬⁄U L§º˝Ê¥ ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU. •Ê¬ Ÿ øÊÒ’Ë‚fl¥ SÃÊ◊ mÊ⁄UÊ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÁŒàÿªáÊ ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. ß‚Á‹∞ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§Ê •Ê¬ ¬⁄U •ÁäÊ∑§Ê⁄U „ÒU. ¬ìÊË‚fl¥ SÃÊ◊ mÊ⁄UÊ ª÷¸SÕ ÷˝ÍáÊÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ „ÈU߸. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ßc≈U∑§! •Ê¬ •ÁŒÁà ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. •Ã— ¬Í·Ê Œfl ∑§Ê •Ê¬ ¬⁄U •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU. •Ê¬ Ÿ ÁòÊáÊfl SÃÊ◊ ‚ ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ •Ê¡ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë „ÒU. „U◊ ©UŸ SÃÊ◊ ÿ¡Èfl¸Œ - 177
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ‚÷Ë ∑§ ¬˝⁄U∑§ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U éÊ΄US¬Áà Œfl ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU. •Ê¬ Ÿ øÃÈc≈UÊ◊ SÃÊ◊ ‚ ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë „ÒU „U◊ ©U‚ SÃÊ◊ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (25) ÿflÊŸÊ¢ ÷ʪÊSÿÿflÊŸÊ◊ÊÁœ¬àÿ¢ ¬˝¡Ê S¬ÎÃʇøÃȇøàflÊÁ⁄ ¦ ‡Ê SÃÊ◊ ˘ ´§÷ÍáÊÊ¢ ÷ʪÊÁ‚ Áfl‡fl·Ê¢ ŒflÊŸÊ◊ÊÁœ¬àÿ¢ ÷Íà ¦ S¬Îâ òÊÿÁSòÊ ¦ ‡Ê SÃÊ◊—.. (26) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ‡ÊÈÄ‹¬ˇÊ ∑§Ë ÁÃÁÕÿÊ¥ ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U ∑ΧcáʬˇÊ ∑§Ë ÁÃÁÕÿÊ¥ ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU. •Ê¬ Ÿ øàflÊ®⁄U‡Êà SÃÊ◊ ‚ ¬˝¡Ê ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë. •Ã— ©U‚ ∑§Ê äÿÊŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U ŒflÊ¥ ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU. òÊÿÁSòÊ¢‡Êà SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ Ÿ ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë. •Ã— „U◊ ©U‚ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ •Ê¬ ∑§Ë ÿ„UÊ¢ SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (26) ‚„U‡ø ‚„USÿ‡ø „ÒU◊ÁãÃ∑§ÊflÎÃÍ •ÇŸ⁄Uãׇ‹·ÊÁ‚ ∑§À¬ÃÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË ∑§À¬ãÃÊ◊ʬ ˘ •Ê·œÿ— ∑§À¬ãÃÊ◊ÇŸÿ— ¬ÎÕæU˜◊◊ ÖÿÒcΔUKÊÿ ‚fl˝ÃÊ—. ÿ •ÇŸÿ— ‚◊Ÿ‚ÊãÃ⁄UÊ lÊflʬÎÁÕflË ß◊. „ÒU◊ÁãÃ∑§ÊflÎÃÍ •Á÷∑§À¬◊ÊŸÊ ˘ ßãº˝Á◊fl ŒflÊ ˘ •Á÷‚¢Áfl‡ÊãÃÈ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œ˝Èfl ‚ËŒÃ◊˜.. (27) ◊ʪ¸‡ÊË·¸ •ÊÒ⁄U ¬ÊÒ· „U◊¢Ã ´§ÃÈ ∑§ ÷ʪ „Ò¥U. ‚ÊflŸ •ÊÒ⁄U ÷ʌʥ ÿ ŒÊŸÊ¥ ◊Ê‚ fl·Ê¸ ´§ÃÈ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄U ¡È«∏U „ÈU∞ „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ Sflª¸‹Ê∑§ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÎâflË‹Ê∑§ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¡‹ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U Á‹∞ •Ê·ÁœÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. „U ßc≈U∑§Ê•Ê! •Ê¬ ø◊∑§Ë‹Ë, ¬ÁflòÊ, ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ¡Ò‚Ë •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄U ¡È«∏UË „ÈU߸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ÁflSÃÊ⁄U ¬Ê∞¢. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ Ã∑§ ∑§ÁÀ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. ¡‹ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸÿÊ¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. fl˝Ã‚Á„Uà •ÁÇŸÿÊ¢ ÖÿcΔUÃÊ (’«U∏嬟) ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡Ê •ÁÇŸÿÊ¢ „U◊ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ê¥ ∑§ ÷ËÃ⁄U „Ò¥U, fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ‡ÊÊÁ÷à ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ∑§Ê ŒÊŸÊ¥ •Ê⁄U ‚ »§‹Ë÷Íà ∑§⁄UÃË „UÈ߸ ߢº˝ Œfl ∑§ ‚◊ÊŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊ¥. •¬ŸË ÁŒ√ÿÃÊ ‚ •¢Áª⁄UÊ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ÁSÕ⁄UÃʬÍfl¸∑§ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (27) ∞∑§ÿÊSÃÈflà ¬˝¡Ê •œËÿãà ¬˝¡Ê¬ÁÃ⁄UÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ ÁÂÎÁ÷⁄USÃÈflà ’˝rÊÔÊ‚ÎÖÿà ’˝rÊÔáÊS¬ÁÃ⁄UÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ ¬ÜøÁ÷⁄USÃÈflà ÷ÍÃÊãÿ‚ÎÖÿãà ÷ÍÃÊŸÊ¢ ¬ÁÃ⁄UÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ‚åÃÁ÷⁄USÃÈflà ‚åà ´§cÊÿÊ‚ÎÖÿãà œÊÃÊÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ.. (28) ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ flÊáÊË ‚ ∞∑§ SÃÈÁà ∑§Ë. ©U‚ ‚ ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ¬˝¡Ê ©Uà¬ãŸ ∑§Ë. fl ‚’ ∑§ •Áœ¬Áà „ÈU∞. ©Uã„UÊ¥Ÿ ÃËŸÊ¥ (¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ, √ÿÊŸ) ‚ ∞∑§ SÃÈÁà ∑§Ë. ©Uã„UÊ¥Ÿ ’˝rÊUÊ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. ’˝rÊÔáÊS¬Áà ∑§Ê ©U‚ ∑§Ê •Áœ¬Áà ’ŸÊÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ¬Ê¢øÊ¥ ¬˝ÊáÊÊ¥ 178 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ SÃÈÁà ∑§Ë. ©Uã„UÊ¥Ÿ ¬¢ø÷ÍÃÊ¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. ¬¢ø÷ÍÃÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë ©U‚ ∑§ •Áœ¬Áà „ÈU∞. ©Uã„UÊ¥Ÿ ‚ÊÃÊ¥ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë. ©Uã„UÊ¥Ÿ ‚åà ´§Á·ÿÊ¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. ¡ªÃ˜œÊ⁄U∑§ ¬⁄U◊Êà◊Ê ©U‚ ∑§ •Áœ¬Áà „ÈU∞. (28) ŸflÁ÷⁄USÃÈflà Á¬Ã⁄UÊ‚ÎÖÿãÃÊÁŒÁÃ⁄UÁœ¬àãÿÊ‚ËŒ∑§ÊŒ‡ÊÁ÷⁄USÃÈflà ´§ÃflÊ ‚ÎÖÿãÃÊûʸflÊ •Áœ¬Ãÿ ˘ •Ê‚°ùÿÊŒ‡ÊÁèÊ⁄USÃÈflà ◊Ê‚Ê ˘ •‚ÎÖÿãà ‚¢flà‚⁄UÊÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ ¬ÜøŒ‡ÊÁ÷⁄USÃÈflà ˇÊòÊ◊‚ÎÖÿÃãº˝ÊÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ ‚åÃŒ‡ÊÁ÷⁄USÃÈflà ª˝ÊêÿÊ— ¬‡ÊflÊ‚ÎÖÿãà ’΄US¬ÁÃ⁄UÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ.. (29) ¬⁄U◊Á¬ÃÊ ¬⁄U◊‡fl⁄U Ÿ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ◊ÊÃÊ •ÁŒÁà ©UŸ ∑§Ë SflÊÁ◊ŸË „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ◊ÊÃÊ •ÁŒÁà ∑§Ë ŸÊÒ ¬˝ÊáÊÊ¥ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. ŸÊÒ ¬˝ÊáÊÊ¥ ‚ ´§ÃÈ∞¢ Á‚⁄U¡Ë¥. ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§ ªÈáÊ •¬Ÿ•¬Ÿ Áfl·ÿ ∑§ •Áœ¬Áà „Ò¥U. ©UŸ •Áœ¬ÁÃÿÊ¥ ∑§Ë Œ‚ ¬˝ÊáÊÊ¥ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ¬⁄U◊Á¬ÃÊ Ÿ ◊„UËŸÊ¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. fl·¸ ∑§Ê ©UŸ ∑§Ê •Áœ¬Áà ’ŸÊÿÊ. ©UŸ ∑§Ë ¬¢º˝„U ¬˝ÊáÊÊ¥ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ÿ flÊ‹ ∑§Ë ÷Ë ¬˝ÊáÊÊ¥ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ߢº˝ Œfl ©UŸ ∑§ •Áœ¬Áà „ÈU∞. Á¡‚ Ÿ ªÊ¢flÊ¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê, Á¡‚ Ÿ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê, ©UŸ ∑§Ë ‚òÊ„U ¬˝ÊáÊÊ¥ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ’΄US¬Áà Œfl ∑§Ê ©UŸ ∑§Ê •Áœ¬Áà ’ŸÊÿÊ. (29) ŸflŒ‡ÊÁ÷⁄USÃÈflà ‡Êͺ˝Êÿʸfl‚ÎÖÿÃÊ◊◊„UÊ⁄UÊòÊ •Áœ¬àŸË •ÊSÃÊ◊∑§Áfl ¦ ‡ÊàÿÊSÃÈflÃÒ∑§‡Ê»§Ê— ¬‡ÊflÊ‚ÎÖÿãà flL§áÊÊÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ òÊÿÊÁfl ¦ ‡ÊàÿÊSÃÈflà ˇÊȺ˝Ê— ¬‡ÊflÊ‚ÎÖÿãà ¬Í·ÊÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ ¬ÜøÁfl ¦ ‡ÊàÿÊSÃÈflÃÊ⁄UáÿÊ— ¬‡ÊflÊ‚ÎÖÿãà flÊÿÈ⁄UÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËØ ‚åÃÁfl ¦ ‡ÊàÿÊSÃÈflà lÊflʬÎÁÕflË √ÿÒÃÊ¢ fl‚flÊ L§º˝Ê ˘ •ÊÁŒàÿÊ ˘ •ŸÈ√ÿÊÿÊ°Sà ˘ ∞flÊÁœ¬Ãÿ ˘ •Ê‚Ÿ˜.. (30) Œ‚ •ÊÒ⁄U ŸÊÒ •ÕʸØ ©UããÊË‚ •Ê¢ÃÁ⁄U∑§ •ÊÒ⁄U ’Ê„U⁄UË •¢ªÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U „UË ‡Êͺ˝Ê¥ •ÊÒ⁄U •ÊÿÊZ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. ÁŒŸ •ÊÒ⁄U ⁄UÊà ©UŸ ∑§ SflÊ◊Ë „ÈU∞. ßÄ∑§Ë‚ •¢ªÊ¥ ‚ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. •¢ªÊ¥ ‚ „UË ¿UÊ≈U¿Ê≈U ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. flL§áÊ Œfl ©UŸ ∑§ SflÊ◊Ë „ÈU∞. Ã߸‚ •¢ªÊ¥ ‚ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ©UŸ •¢ªÊ¥ ‚ •ÊÒ⁄U ¿UÊ≈¿UÊ≈U ¡Ëfl¡¢ÃÈ (¬‡ÊÈ) Á‚⁄U¡. ¬Í·Ê Œfl ©UŸ ∑§ •Áœ¬Áà „ÈU∞. ¬ìÊË‚ •¢ªÊ¥ ‚ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ©UŸ •¢ªÊ¥ ‚ ¡¢ª‹Ë ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. flÊÿÈ ©UŸ ∑§ SflÊ◊Ë „ÈU∞. ‚ûÊÊ߸‚ •¢ªÊ¥ ‚ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ߟ ‚ „UË Sflª¸‹Ê∑§ √ÿÊåà „ÒU. ߟ ‚ „UË ¬ÎâflË‹Ê∑§ √ÿÊåà „Ò¥U. ©UŸ ◊¥ „UË •ÊΔU fl‚È, ÇÿÊ⁄U„U L§º˝ fl ’Ê⁄U„U ◊Ê‚ flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÊÁŒàÿ Œfl ©UŸ ∑§ SflÊ◊Ë „ÈU∞. (30) ŸflÁfl ¦ ‡ÊàÿÊSÃÈflà flŸS¬ÃÿÊ‚ÎÖÿãà ‚Ê◊ÊÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËŒ∑§ÁòÊ ¦ ‡ÊÃÊSÃÈflà ¬˝¡Ê ˘ •‚ÎÖÿãà ÿflʇøÊÿflʇøÊÁœ¬Ãÿ ˘ •Ê‚°SòÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÃÊSÃÈflà ÷ÍÃÊãÿ‡ÊÊêÿŸ˜ ¬˝¡Ê¬Á× ¬⁄U◊cΔUKÁœ¬ÁÃ⁄UÊ‚ËÀ‹Ê∑¢§ ÃÊ ˘ ßãº˝◊˜.. (31) ©ŸÃË‚ •¢ªÊ¥ ‚ ¬⁄U◊Á¬ÃÊ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ©UŸ •¢ªÊ¥ ‚ flŸS¬Áà ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. ÿ¡Èfl¸Œ - 179
¬Íflʸœ¸
øÊÒŒ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚Ê◊ ©U‚ ∑§ SflÊ◊Ë „ÈU∞. ß∑§ûÊË‚ •¢ªÊ¥ ‚ ¬⁄U◊Á¬ÃÊ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸. ©UŸ •¢ªÊ¥ ‚ ¬˝¡Ê ∑§Ê Á‚⁄U¡Ê. SòÊË •ÊÒ⁄U ¬ÈL§· ∑§Ê ©UŸ ∑§Ê SflÊ◊Ë ’ŸÊÿÊ. ©U‚ ‚ ¬˝ÊáÊË ‚ÈπË „ÈU∞. ¬˝¡Ê¬Áà ¬⁄U◊ üÊcΔU „Ò¥U. fl „UË ‚’ ∑§ •ÊÒ⁄U ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. ‚÷Ë ß¢º˝ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (31)
180 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ •ÇŸ ¡ÊÃÊŸ˜ ¬˝ áÊÈŒÊ Ÿ— ‚¬àŸÊŸ˜ ¬˝àÿ¡ÊÃÊŸ˜ ŸÈŒ ¡ÊÃflŒ—. •Áœ ŸÊ ’˝ÍÁ„U ‚È◊ŸÊ ˘ •„«°USÃfl SÿÊ◊ ‡Ê◊Z ÁSòÊflM§Õ ˘ ©UjÊÒ.. (1) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¡Ê ÷Ë Áflº˝Ê„UË ©Uà¬ããÊ „UÊ øÈ∑§ „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ë¿U ◊Ÿ ‚ „U◊ ‚ ’ÊÁ‹∞. •Ê¬ •ë¿U ◊Ÿ ‚ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚ÈπË „UÊ¥. •Ê¬ ÿôÊflŒË ◊¥ ’Ÿ ⁄UÁ„U∞. „U◊ •Ê¬ „UË ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÿôÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. (1) ‚„U‚Ê ¡ÊÃÊŸ˜ ¬˝áÊÈŒÊ Ÿ— ‚¬àŸÊŸ˜ ¬˝àÿ¡ÊÃÊÜ¡ÊÃflŒÊ ŸÈŒSfl. •Áœ ŸÊ ’˝ÍÁ„U ‚È◊ŸSÿ◊ÊŸÊ flÿ ¦ SÿÊ◊ ¬˝ áÊÈŒÊ Ÿ— ‚¬àŸÊŸ˜.. (2) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¡Ê ÷Ë ‡ÊòÊÈ ©Uà¬ããÊ „UÊ øÈ∑§ „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ë¿U ◊Ÿ ‚ „U◊ ‚ ’ÊÁ‹∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄U ∑§ ‚Ê◊âÿ¸‡ÊË‹ ’Ÿ ¡Ê∞¢. (2) ·Ê«U‡ÊË SÃÊ◊ ˘ •Ê¡Ê º˝ÁfláÊ¢ øÃȇøàflÊÁ⁄U ¦ ‡Ê SÃÊ◊Ê fløʸ º˝ÁfláÊ◊˜. •ÇŸ— ¬È⁄UË·◊Sÿå‚Ê ŸÊ◊ ÃÊ¢ àflÊ Áfl‡fl •ÁèÊ ªÎáÊãÃÈ ŒflÊ—. SÃÊ◊¬ÎcΔUÊ ÉÊÎÃflÃË„U ‚ËŒ ¬˝¡ÊflŒS◊ º˝ÁfláÊÊ ÿ¡Sfl.. (3) „U◊ ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ SÃÊ◊ •Ê¡ ¬Íáʸ fl œŸ¬Íáʸ „Ò¥U. „U◊ øflÊ‹Ë‚ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ flÊ‹ SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ¬ÍáʸÃÊŒÊÿË „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë ß‚ ¬ÍáʸÃÊ ∑§Ë ‚÷Ë ŒflÃÊ ¬˝‡Ê¢‚Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê œË◊Ë •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Áfl⁄UÊÁ¡∞ •ÊÒ⁄U •¬ŸË ¬˝¡Ê ∑§Ê œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (3) ∞fl‡¿UãŒÊ flÁ⁄Ufl‡¿U㌗ ‡Êê÷͇¿U㌗ ¬Á⁄U÷͇¿U㌠˘ •Êë¿Uë¿UãŒÊ ◊Ÿ‡¿UãŒÊ √ÿø‡¿U㌗ Á‚ãœÈ‡¿U㌗ ‚◊Ⱥ˝‡¿U㌗ ‚Á⁄U⁄¢U ¿U㌗ ∑§∑ȧå¿UãŒÁù∑§∑ȧå¿U㌗ ∑§Ê√ÿ¢ ¿UãŒÊ •æ˜U ∑ȧ¬¢ ¿UãŒÊˇÊ⁄U¬Áæ˜U ÄÇ¿U㌗ ¬Œ¬Áæ˜U ÄÇ¿UãŒÊ Áflc≈UÊ⁄U¬Áæ˜U ÄÇ¿U㌗ ˇÊÈ⁄UÊ÷˝¡‡¿UãŒ.. (4) „U◊ ∞fl ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ flÁ⁄Ufl ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ÿ¡Èfl¸Œ - 181
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‡Ê¢÷Í ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬Á⁄U÷Í ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Êë¿U ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ◊Ÿ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ √ÿø ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Á‚¢œÈ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚◊Ⱥ˝ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚Á⁄U⁄U ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∑§∑ȧ¬˜ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÁòÊ∑˜§ ∑§∑ȧ¬˜ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∑§Ê√ÿ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¢∑ȧ¬˜ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ˇÊ⁄U ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬¢ÁÄà ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬Œ¬¢ÁÄà ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áflc≈UÊ⁄U¬¢ÁÄà ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ˇÊÈ⁄UÊ÷˝¡ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (4) •Êë¿Uë¿U㌗ ¬˝ë¿Uë¿U㌗ ‚¢ÿë¿UãŒÊ Áflÿë¿UãŒÊ ’΄Uë¿UãŒÊ ⁄UÕãÃ⁄UÜ¿UãŒÊ ÁŸ∑§Êÿ‡¿UãŒÊ Áflflœ‡¿UãŒÊ Áª⁄U‡¿UãŒÊ ÷˝¡‡¿U㌗ ‚ ¦ SÃÈå¿UãŒÊŸÈc≈ÈUå¿U㌠˘ ∞fl‡¿UãŒÊ flÁ⁄Ufl‡¿UãŒÊ flÿ‡¿UãŒÊ flÿS∑Χë¿UãŒÊ Áflc¬œÊ¸‡¿UãŒÊ Áfl‡ÊÊ‹¢ ¿U㌇¿UÁŒ‡¿UãŒÊ ŒÍ⁄UÊ„UáÊ¢ ¿UãŒSÃãº˝¢ ¿UãŒÊ •VÊV¢ ¿U㌗.. (5) „U◊ •Êë¿U ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬˝ë¿U ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚¢ÿë¿U ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áflÿë¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’΄Uë¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ⁄UÕ¢Ã⁄U ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÁŸ∑§Êÿ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áflflœ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áª⁄U ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÷˝¡ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ SÃȬ˜ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∞fl ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ flÁ⁄Ufl ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ flÿ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ flÿS∑Χà ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áflc¬h¸ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áfl‡ÊÊ‹ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¿UÁŒ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŒÍ⁄UÊ„UáÊ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ âº˝ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¢∑§Ê¢∑§ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (5) ⁄UÁ‡◊ŸÊ ‚àÿÊÿ ‚àÿ¢ Á¡ãfl ¬˝ÁÃŸÊ œ◊¸áÊÊ œ◊Z Á¡ãflÊÁãflàÿÊ ÁŒflÊ ÁŒfl¢ Á¡ãfl ‚Á㜟ÊãÃÁ⁄UˇÊáÊÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ Á¡ãfl ¬˝ÁÃÁœŸÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¬ÎÁÕflË¥ Á¡ãfl Áflc≈Uê÷Ÿ flÎCÔUKÊ flÎÁCÔ¢U Á¡ãfl ¬˝flÿÊqÔUÊ„UÁ¡¸ãflÊŸÈÿÊ ⁄UÊòÿÊ ⁄UÊòÊË¥ Á¡ãflÊÁ‡Ê¡Ê fl‚ÈèÿÊ fl‚ÍÁÜ¡ãfl ¬˝∑§ÃŸÊÁŒàÿèÿ ˘ •ÊÁŒàÿÊÁÜ¡ãfl.. (6) ‚àÿ ∑§ Á‹∞ ⁄UÁ‡◊ÿÊ¥ ∑§Ê ¬˝øÊ⁄U¬˝‚Ê⁄U „UÊ. ‚àÿ ∑§Ë ¡Ëà „UÊ. •Êø⁄UáÊ •ÊÒ⁄U œ◊¸ ‚ œ◊¸ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ „UÊ. ÁŒ√ÿÃÊ ‚ ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Ê∞¢. ‚¢Áœ ‚ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ Á‹∞ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ¡ËÃ¥. ¬˝ÁÜʟ ∑§ ◊Êäÿ◊ ‚ ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ ¬ÎâflË ∑§Ê ¡ËÃ¥. flÎÁc≈U ∑§ 182 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Á‹∞ fl·Ê¸ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄¥U. fl‚È•Ê¥ ∑§ Á‹∞ fl‚È•Ê¥ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄¥U. ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ •ÊÁŒàÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ •ÊÁŒàÿÊ¥ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄¥U. (6) ÃãÃÈŸÊ ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ Á¡ãfl ‚ ¦ ‚¬¸áÊ üÊÈÃÊÿ üÊÈâ Á¡ãflÒ «UŸÊÒ·œËÁ÷⁄UÊ·œËÌ¡ãflÊûÊ◊Ÿ ßÍÁ÷SßÍÌ¡ãfl flÿÊœ‚ÊœËßʜËâ Á¡ãflÊÁ÷Á¡ÃÊ Ã¡‚Ê Ã¡Ê Á¡ãfl.. (7) „U ßc≈U∑§! âÃÈ•Ê¥ ‚ œŸ ∑§Ê ¬Ê‚¥. œŸ ∑§ Á‹∞ œŸ ∑§Ê ¬Ê‚¥. üÊÈÁÃÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ üÊÈÁÃÿÊ¥ ‚ SŸ„U ⁄Uπ¥. •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ¬Èc≈U ∑§⁄¥U. ©UûÊ◊ ‡Ê⁄UË⁄U ‚ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ¬Èc≈U ∑§⁄¥U. áÁSflÃÊ ∑§ Á‹∞ áSflË ’Ÿ¥. (7) ¬˝ÁìŒÁ‚ ¬˝ÁìŒ àflʟȬŒSÿŸÈ¬Œ àflÊ ‚ꬌÁ‚ ‚ꬌ àflÊ Ã¡ÊÁ‚ á‚ àflÊ.. (8) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ¡ËflŸ ∑§ ◊Í‹ •ÊœÊ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ •ŸÈ¬Œ ∑§ •ŸÈ¬Œ „Ò¥U. •Ê¬ ‚¢¬ÁûÊ ∑§Ë ‚¢¬ÁûÊ „Ò¥U. •Ê¬ áÊ◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ áʥ ◊¥ á „Ò¥U. (8) ÁòÊflÎŒÁ‚ ÁòÊflÎà àflÊ ¬˝flÎŒÁ‚ ¬˝flÎà àflÊ ÁflflÎŒÁ‚ ÁflflÎà àflÊ ‚flÎŒÁ‚ ‚flÎà àflÊ ∑˝§◊ÊSÿÊ∑˝§◊Êÿ àflÊ ‚¢∑˝§◊ÊÁ‚ ‚¢∑˝§◊Êÿ àflÊà∑˝§◊ÊSÿÈà∑˝§◊Êÿ àflÊà∑˝§ÊÁãÃ⁄USÿÈà∑˝§ÊãàÿÒ àflÊÁœ¬Áßʡʸ¡Z Á¡ãfl.. (9) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ÁòÊflÎà „Ò¥U. „U◊ ÁòÊflÎà ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝flÎûÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÁflflÎà „Ò¥U. „U◊ ÁflflÎà ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝flÎûÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚¢flÎà „Ò¥U. „U◊ ‚¢flÎà ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝flÎûÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •∑˝§◊ „Ò¥U. „U◊ •∑˝§◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝flÎûÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚¢∑˝§◊ „Ò¥U. „U◊ ‚¢∑˝§◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝flÎûÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©Uà∑˝§◊ „Ò¥U. „U◊ ©Uà∑˝§◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝flÎûÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©Uà∑˝§Ê¢Ã „Ò¥U. „U◊ ©Uà∑˝§Ê¢Ã ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝flÎûÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (9) ⁄UÊôÿÁ‚ ¬˝ÊøË ÁŒÇfl‚flSà ŒflÊ ˘ •Áœ¬ÃÿÊÁÇŸ„¸UÃËŸÊ¢ ¬˝ÁÃœûÊʸ ÁòÊflÎØ àflÊ SÃÊ◊— ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ üÊÿàflÊÖÿ◊ÈÄÕ◊√ÿÕÊÿÒ SÃèŸÊÃÈ ⁄UÕãÃ⁄ ¦ ‚Ê◊ ¬˝ÁÃÁcΔUàÿÊ ˘ •ãÃÁ⁄UˇÊ ˘ ´§·ÿSàflÊ ¬˝Õ◊¡Ê Œfl·È ÁŒflÊ ◊ÊòÊÿÊ flÁ⁄UêáÊÊ ¬˝ÕãÃÈ ÁflœûÊʸ øÊÿ◊Áœ¬ÁÇø à àflÊ ‚fl¸ ‚¢ÁflŒÊŸÊ ŸÊ∑§Sÿ ¬ÎcΔU Sflª¸ ‹Ê∑§ ÿ¡◊ÊŸ¢ ø ‚ÊŒÿãÃÈ.. (10) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ë ⁄UÊŸË „Ò¥U. ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§ SflÊ◊Ë •Ê¬ ‚’ ∑§ ¬Ê‹Ÿ„UÊ⁄U „Ò¥U. •ÁÇŸ ‚’ ∑§ •Áœ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ ÁòÊflÎà ∑§ ¬˝ÁÃœÊ⁄UáÊ∑§Ãʸ „Ò¥U. •Ê¬ ÁòÊflÎà SÃÊ◊ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÊÖÿ •ÊÒ⁄U ©UÄÕ •Ê¬ ∑§Ê ŒÎ…U∏Ë÷Íà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ⁄UÕ¢Ã⁄U ‚Ê◊ •Ê¬ ∑§Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ´§Á·ªáÊ ¬˝Õ◊ ©Uà¬ããÊ Œfl ∑§Ê ŒflÊ¥ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ÁflÁ‡Êc≈U œÊ⁄UáÊ∑§Ãʸ fl •Áœ¬Áà „Ò¥U. •Áœ¬Áà •Ê¬ ∑§Ê ÁflSÃÎà ∑§⁄¥U . ‚÷Ë Œfl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê SflÁª¸∑§ ‚Èπ ©U¬‹éœ ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . (10)
ÿ¡Èfl¸Œ - 183
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Áfl⁄UÊ«UÁ‚ ŒÁˇÊáÊÊ ÁŒª˝ÈŒÊSà ŒflÊ ˘ •Áœ¬Ãÿ ˘ ßãº˝Ê „UÃËŸÊ¢ ¬˝ÁÃœûÊʸ ¬ÜøŒ‡ÊSàflÊ SÃÊ◊— ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ üÊÿÃÈ ¬˝ ©Uª◊ÈÄÕ◊√ÿÕÊÿÒ SÃèŸÊÃÈ ’΄Uà‚Ê◊ ¬˝ÁÃÁcΔUàÿÊ ˘ •ãÃÁ⁄UˇÊ ˘ ´§·ÿSàflÊ ¬˝Õ◊¡Ê Œfl·È ÁŒflÊ ◊ÊòÊÿÊ flÁ⁄UêáÊÊ ¬ÕãÃÈ ÁflœûÊʸ øÊÿ◊Áœ¬ÁÇø à àflÊ ‚fl¸ ‚¢ÁflŒÊŸÊ ŸÊ∑§Sÿ ¬ÎcΔU Sflª¸ ‹Ê∑§ ÿ¡◊ÊŸ¢ ø ‚ÊŒÿãÃÈ.. (11) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ Áfl⁄UÊ≈U˜ „Ò¥U •ÊÒ⁄U ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ SflM§¬ „Ò¥U. L§º˝ •Ê¬ ∑§ Œfl fl ߢº˝ Œfl •Áœ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝ÁÃœÊ⁄UáÊ∑§Ãʸ „Ò¥U. ¬¢øŒ‡Ê SàÊÊ◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬˝©Uª ©UÄÕ •Ê¬ ∑§Ê ÁSÕ⁄U fl ‚Ȍ΅∏U ∑§⁄¥U . ’΄Uà‚Ê◊ •Ê¬ ∑§Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄¥U . ´§Á·ªáÊ ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄¥U . fl ¬˝Õ◊ ©Uà¬ããÊ Œfl ∑§Ê ‚’ ŒflÊ¥ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄¥U . fl ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄¥U . fl ¬˝Õ◊ ©Uà¬ããÊ Œfl ∑§Ê ‚’ ŒflÊ¥ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄¥U . (11) ‚◊˝Ê«UÁ‚ ¬˝ÃËøË ÁŒªÊÁŒàÿÊSà ŒflÊ ˘ •Áœ¬ÃÿÊ flL§áÊÊ „UÃËŸÊ¢ ¬˝ÁÃœûÊʸ ‚åÃŒ‡ÊSàflÊ SÃÊ◊— ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ üÊÿÃÈ ◊L§àflÃËÿ◊ÈÄÕ◊√ÿÕÊÿÒ SÃèŸÊÃÈ flÒM§¬ ¦ ‚Ê◊ ¬˝ÁÃÁcΔUàÿÊ ˘ •ãÃÁ⁄UˇÊ ˘ ´§·ÿSàflÊ ¬˝Õ◊¡Ê Œfl·È ÁŒflÊ ◊ÊòÊÿÊ flÁ⁄UêáÊÊ ¬˝ÕãÃÈ ÁflœûÊʸ øÊÿ◊Áœ¬ÁÇø à àflÊ ‚fl¸ ‚¢ÁflŒÊŸÊ ŸÊ∑§Sÿ ¬ÎcΔU Sflª¸ ‹Ê∑§ ÿ¡◊ÊŸ¢ ø ‚ÊŒÿãÃÈ.. (12) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ ‚◊˝Ê≈˜U „Ò¥U. •ÊÁŒàÿ •Ê¬ ∑§ ŒflÃÊ „Ò¥U. flL§áÊ •Ê¬ ∑§ •Áœ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝ÁÃœÊ⁄UáÊ∑§Ãʸ „Ò¥U. ‚åÃŒ‡Ê SÃÊ◊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ ‚◊˝Ê≈˜U „Ò¥U. ◊L§àʘ ©UÄÕ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ ‚◊˝Ê≈˜U „Ò¥U. flÒM§¬ ‚Ê◊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ ‚◊˝Ê≈˜U „Ò¥U. fl„U •¢ÃÁ⁄ˇÊ ◊¥ ŒÎ…U∏ÃÊ „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔà ∑§⁄¥U. ‚ÎÁc≈U ∑˝§◊ ◊¥ ¬˝Õ◊ ¡ã◊ ´§Á· •Ê¬ ∑§Ê Œfl‹Ê∑§ ◊¥ ÁSÕà ∑§⁄¥U. ß‚ Ã⁄U„U ‚◊Sà fl‚È •ÊÁŒ ŒflÃÊ ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§Ê ‚Èπ‚¢¬ãŸ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ‹ ¡Ê∞¢.U (12) Sfl⁄UÊ«USÿÈŒËøË ÁŒæ˜U◊L§ÃSà ŒflÊ ˘ •Áœ¬Ãÿ— ‚Ê◊Ê „UÃËŸÊ¢ ¬˝ÁÃœûÊÒ¸∑§Áfl ¦ ‡ÊSàflÊ SÃÊ◊— ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ üÊÿÃÈ ÁŸc∑§flÀÿ◊ÈÄÕ◊√ÿÕÊÿÒ SÃ÷AÊÃÈ flÒ⁄UÊ¡ ¦ ‚Ê◊ ¬˝ÁÃÁcΔUàÿÊ ˘ •ãÃÁ⁄UˇÊ ˘ ´§·ÿSàflÊ ¬˝Õ◊¡Ê Œfl·È ÁŒflÊ ◊ÊòÊÿÊ flÁ⁄UêáÊÊ ¬˝ÕãÃÈ ÁflœûÊʸ øÊÿ◊Áœ¬ÁÇø à àflÊ ‚fl¸ ‚¢ÁflŒÊŸÊ ŸÊ∑§Sÿ ¬ÎcΔ Sflª¸ ‹Ê∑§ ÿ¡◊ÊŸ¢ ø ‚ÊŒÿãÃÈ.. (13) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ Sflÿ¢ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ SflM§¬ „Ò¥U. ◊L§Œ˜ªáÊ ÁŒ∑˜§¬Ê‹∑§ „Ò¥U. ‚Ê◊ •Áœ¬Áà „Ò¥U. ‚Ê◊ ¬˝ÁÃœÊ⁄U∑§ „Ò¥U. ∞∑§Áfl¢‡Ê SÃÊ◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄¥U. ÁŸc∑§flÀÿ SÃÊ◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄¥U. flÒ⁄UÊ¡ ‚Ê◊ SÃÊ◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬ÎâflË ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄¥U. ¬„U‹ ¬˝ÊŒÈ÷͸à ´§Á·ªáÊ ‚◊Sà ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ ◊¥ üÊcΔU ŒÒflË ªÈáÊÊ¥ ∑§Ê ¬˝‚ÊÁ⁄Uà ∑§⁄¥U. flÊ¢Á¿Uà ÁŸc¬ÊŒ∑§ •ÊÒ⁄U ÿ ¬˝◊Èπ ©UìÊ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ÁŸS‚¢Œ„U ÁSÕà ∑§⁄¥U. •Áœ¬Áà ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Œ¥. ß‚ Ã⁄U„U fl ‚◊Sà 184 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
fl‚È •ÊÁŒ Œfl ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§Ê ∞∑§ ÁfløÊ⁄U „UÊ∑§⁄U Sflª¸ ◊¥ ‹ ¡Ê∞¢. (13) •Áœ¬àãÿÁ‚ ’΄UÃË ÁŒÁÇfl‡fl à ŒflÊ ˘ •Áœ¬ÃÿÊ ’΄US¬ÁĸUÃËŸÊ¢ ¬˝ÁÃœûÊʸ ÁòÊáÊflòÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÊÒ àflÊ SÃÊ◊ÊÒ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ üÊÿÃÊ¢ flÒ‡flŒflÊÁÇŸ◊ÊL§Ã ©UÄÕ •√ÿÕÊÿÒ SÃèŸËÃÊ ¦ ‡ÊÊÄfl⁄U⁄ÒUflà ‚Ê◊ŸË ¬˝ÁÃÁcΔUàÿÊ ˘ •ãÃÁ⁄UˇÊ ˘ ´§·ÿSàflÊ ¬˝Õ◊¡Ê Œfl·È ÁŒflÊ ◊ÊòÊÿÊ flÁ⁄UêáÊÊ ¬˝ÕãÃÈ ÁflœûÊʸ øÊÿ◊Áœ¬ÁÇø à àflÊ ‚fl¸ ‚¢ÁflŒÊŸÊ ŸÊ∑§Sÿ ¬ÎcΔU Sflª¸ ‹Ê∑§ ÿ¡◊ÊŸ¢ ø ‚ÊŒÿãÃÈ.. (14) „U ßc≈U∑§! •Ê¬ •Áœ¬àŸË, Áfl‡ÊÊ‹, ÁŒ‡ÊÊ M§¬ fl ‚’ ŒflÊ¥ ∑§ •Áœ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ ’΄US¬Áà Œfl ∑§ „UÃÈ fl ¬˝ÁÃœÊ⁄U∑§ „Ò¥U. „U◊ ÁòÊáÊÿflÿÁS¢òʇÊà SÃÊ◊ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬ÎâflË ¬⁄U •Ê¬ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÒ‡flŒfl •ÁÇŸ◊L§Ã˜Œfl ©UÄâÊ SÃÊòÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‡ÊÊÄfl⁄U ‚Ê◊ •Ê¬ ∑§Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ⁄ÒUflà ‚Ê◊ •Ê¬ ∑§Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬Ífl¸ ¡ã◊ ´§Á· ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ ◊¥ üÊDÔU ŒÒflË ªÈáÊÊ¥ ∑§Ê √ÿÊåà ∑§⁄¥U. flÊ¢Á¿Uà ∑§ÊÿÊZ ∑§ ∑§Ãʸ ◊ÈÅÿ Œfl ÷Ë •Ê¬ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄¥U. ß‚ Ã⁄U„U ‚◊Sà fl‚È •ÊÁŒ Œfl ∞∑§ ÁfløÊ⁄U ‚ ‚Èπ ‚¢¬ãŸ „UÊ¢. (14) •ÿ¢ ¬È⁄UÊ „UÁ⁄U∑§‡Ê— ‚Íÿ¸⁄UÁ‡◊SÃSÿ ⁄UÕªÎà‚‡ø ⁄UÕÊҡʇø ‚ŸÊŸËª˝Ê◊áÿÊÒ. ¬ÈÁÜ¡∑§SÕ‹Ê ø ∑˝§ÃÈSÕ‹Ê øÊå‚⁄U‚ÊÒ ŒæU˜ˇáÊfl— ¬‡ÊflÊ „UÁ× ¬ÊÒL§·ÿÊ flœ— ¬˝„UÁÃSÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊflãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁCÔU Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (15) ÿ„U Œfl „U⁄U ∑§‡ÊÊ¥ flÊ‹ „ÒU¥ . ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ë ÷Ê¢Áà „ÒU¥ . •Ê¬ ⁄UÕôÊÊŸ ◊¥ ÁŸ¬ÈáÊ „ÒU¥ , •ª˝áÊË, ‚ŸÊŸÊÿ∑§, ª˝Ê◊SÕ‹Ê¥ ∑§ ŸÊÿ∑§, ÿôÊSÕ‹ ∑§ ŸÊÿ∑§ „ÒU¥ . •Ê¬ •å‚⁄UÊ•Ê¥ ∑§ ŸÊÿ∑§ „ÒU¥ . ¬‡ÊÈ •Ê¬ ∑§ „UÁÕÿÊ⁄U „ÒU¥ . •Ê¬ ÃÊ∑§Ãfl⁄ ∑§Ê ÷Ë flœ ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „ÒU¥ . „U◊ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ •ÁÇŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄U¥ . fl „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U¥ . ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄à „ÒU¥ •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „ÒU¥ , ©UŸ ‚’ ∑§Ê •ÁÇŸ •¬Ÿ ¡’«∏U ◊¥ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (15) •ÿ¢ ŒÁˇÊáÊÊ Áfl‡fl∑§◊ʸ ÃSÿ ⁄UÕSflŸ‡ø ⁄UÕÁøòʇø ‚ŸÊŸËª˝Ê◊áÿÊÒ. ◊Ÿ∑§Ê ø ‚„U¡ãÿÊ øÊå‚⁄U‚ÊÒ ÿÊÃÈœÊŸÊ „UÃË ⁄UˇÊÊ ¦ Á‚¬˝„UÁÃSÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊflãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁc≈U Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (16) ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Áfl‡fl∑§◊ʸ Œfl ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. Áfl‡fl∑§◊ʸ Œfl ⁄UÕflÊŸ, ‚ŸÊŸË, ª˝Ê◊ ⁄UˇÊ∑§, •ª˝áÊË fl ◊Ÿ∑§Ê ÃÕÊ ‚„U¡ãÿ ߟ ∑§Ë •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U. ⁄UÊˇÊ‚ ߟ ∑§ •SòʇÊSòÊ „Ò¥U. Áfl‡fl∑§◊ʸ Œfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄à „Ò¥U •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ‚’ ∑§Ê •ÁÇŸ •¬Ÿ ¡’«∏U ◊¥ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16)
ÿ¡Èfl¸Œ - 185
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•ÿ¢ ¬‡øÊÁm‡fl√ÿøÊSÃSÿ ⁄UÕ¬˝ÊÇøÊ‚◊⁄UÕ‡ø ‚ŸÊŸËª˝Ê◊áÿÊÒ. ¬˝ê‹ÊøãÃË øÊŸÈê‹ÊøãÃË øÊå‚⁄U‚ÊÒ √ÿÊÉÊ˝Ê „UÁ× ‚¬Ê¸— ¬˝„UÁÃSÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊflãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁCÔU Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (17) •ÊÁŒàÿ Œfl ‚’ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ê ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¢ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÊÁŒàÿ Œfl ⁄UÕflÊŸ, ‚ŸÊŸË, ª˝Ê◊ ⁄UˇÊ∑§ fl •ª˝áÊË „Ò¥U. ¬˝ê‹ÊøŸ ÃÕÊ •ŸÈ‹ÊøŸË ߟ ∑§Ë ŒÊ •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U. √ÿÊÉÊ˝ ¬‡ÊÈ ßŸ ∑§ •ÊÿÈœ „Ò¥U. ‚Ê¢¬ •ÊÁŒ ÃËπ ‡ÊSòÊ „Ò¥U. •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄à „Ò¥U •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ‚’ ∑§Ê •ÁÇŸ •¬Ÿ ¡’«∏U ◊¥ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (17) •ÿ◊ÈûÊ⁄UÊà‚¢ÿm‚ÈSÃSÿ ÃÊˇÿ¸‡øÊÁ⁄UCÔUŸÁ◊‡ø ‚ŸÊŸËª˝Ê◊áÿÊÒ. Áfl‡flÊøË ø ÉÊÎÃÊøË øÊå‚⁄U‚ÊflÊ¬Ê „UÁÃflʸ× ¬˝„UÁÃSÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊflãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁCÔU Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (18) ÿ„U ßc≈U∑§Ê Œfl ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUÃ, œŸ SflM§¬ fl ÿôÊ SflM§¬ „Ò¥U. ߟ ∑§ „UÁÕÿÊ⁄U ÃˡáÊ fl ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ fl •SòʇÊSòÊ ÁflSÃÊ⁄U∑§ „Ò¥U. fl •¬⁄UÊÁ¡Ã „Ò¥U. fl Áfl‡fl¬Ê‹∑§ fl ª˝Ê◊ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U . •ª˝áÊË ßŸ ∑§Ë Áfl‡flÊøË ÃÕÊ ÉÊÎÃÊøË ŸÊ◊∑§ ŒÊ •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U. ¡‹ ߟ ∑§ •ÊÿÈœ „Ò¥U. flÊÿÈ ßŸ ∑§ ÃˡáÊ „UÁÕÿÊ⁄U „Ò¥U. •ÁÇŸ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄à „Ò¥U •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ‚’ ∑§Ê •ÁÇŸ •¬Ÿ ¡’«∏U ◊¥ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (18) •ÿ◊Ȭÿ¸flʸÇfl‚ÈSÃSÿ ‚ŸÁ¡ëø ‚È·áʇø ‚ŸÊŸËª˝Ê◊áÿÊÒ. ©Ufl¸‡ÊË ø ¬Ífl¸ÁøÁûʇøÊå‚⁄U‚ÊflflS»Í§¡¸Ÿ˜ „UÁÃÌfllÈà¬˝„UÁÃSÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊflãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁCÔU Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (19) ÿ„U ™§¬⁄U ◊äÿ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ’ÊŒ‹ Œfl „Ò¥U. ÿ„U Œfl Áfl¡ÃÊ, •ë¿UË ‚ŸÊ flÊ‹, ‚ŸÊŸË, ª˝Ê◊ ¬˝◊Èπ fl •ª˝áÊË „Ò¥U. ©Ufl¸‡ÊË ÃÕÊ ¬Ífl¸ÁøÁà ߟ ∑§Ë ŒÊ •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U. ª¡¸ŸÊ ߟ ∑§ ‡ÊSòÊ „Ò¥U. Á’¡‹Ë ߟ ∑§Ê ÃˡáÊ •ÊÿÈœ „ÒU. •ÁÇŸ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄à „Ò¥U •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ‚’ ∑§Ê •ÁÇŸ •¬Ÿ ¡’«∏U ◊¥ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) •ÁÇŸ◊͸œÊ¸ ÁŒfl— ∑§∑ȧà¬Á× ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •ÿ◊˜. •¬Ê ¦ ⁄UÃÊ ¦ Á‚ Á¡ãflÁÃ.. (20) •ÁÇŸ ◊Íœ¸ãÿ •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. ¬ÎâflË ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •ÁÇŸ ¡‹ ∑§ ⁄U‚ ∑§Ê ¬ÊÁ·Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (20) •ÿ◊ÁÇŸ— ‚„UÁdáÊÊ flÊ¡Sÿ ‡ÊÁßS¬Á×. ◊͜ʸ ∑§flË ⁄UáÊËÿÊ◊˜.. (21)
186 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•ÁÇŸ „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U fl ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ‚¢¬ŒÊ•Ê¥ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. fl •ãŸÊÁœ¬ÁÃ, ◊Íœ¸ãÿ, ∑§Áfl fl œŸ¬Áà „Ò¥U. (21) àflÊ◊ÇŸ ¬Èc∑§⁄UÊŒäÿÕflʸ ÁŸ⁄U◊ãÕÃ. ◊ÍäŸÊ¸ Áfl‡flSÿ flÊÉÊ×.. (22) „U •ÁÇŸ! •Õflʸ ´§Á· Ÿ •⁄UÁáÊ ◊¢ÕŸ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝∑§≈ Á∑§ÿÊ. •Ê¬ ◊Íœ¸ãÿ •ÊÒ⁄U Áfl‡flflÊ„U∑§ „Ò¥U. (22) ÷ÈflÊ ÿôÊSÿ ⁄U¡‚‡ø ŸÃÊ ÿòÊÊ ÁŸÿÈÁj— ‚ø‚ Á‡ÊflÊÁ÷—. ÁŒÁfl ◊͜ʸŸ¢ ŒÁœ· Sfl·ÊZ Á¡uÔUÊ◊ÇŸ ø∑Χ· „U√ÿflÊ„U◊˜.. (23) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÷ÈflŸ‹Ê∑§ ◊¥ ÿôÊ ∑§ ⁄UÊ¡Ê fl ŸÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ •¬Ÿ ÉÊÊ«∏U ¡ÊÃà „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ◊Íœ¸ãÿ SÕÊŸ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ •ÊÁŒàÿ ∑§Ë ‡ÊÊ÷Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „UÁfl flÊ„U∑§ fl ‹¬≈Ë‹ËU Á¡„UÔ˜flÊ flÊ‹ „Ò¥U. (23) •’ÊäÿÁÇŸ— ‚Á◊œÊ ¡ŸÊŸÊ¢ ¬˝Áà œŸÈÁ◊flÊÿÃË◊È·Ê‚◊˜. ÿuÔUÊ ˘ ßfl ¬˝ flÿÊ◊ÈÁÖ¡„UÊŸÊ— ¬˝ ÷ÊŸfl— Á‚dà ŸÊ∑§◊ë¿U.. (24) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚Á◊œÊ ‚ ¬˝’ÊÁœÃ „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ë •Ê⁄U ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U ©Uã◊Èπ „UÊà „Ò¥U, ¡Ò‚ ŒÍœ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ’¿U«∏UÊ ªÊÿ ∑§Ë •Ê⁄U ©Uã◊Èπ „UÊÃÊ „ÒU. ©U·Ê ∑§Ê‹ ◊¥ ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ øÒÃãÿ „UÊŸ ∑§ËU ÷Ê¢Áà •Ê¬ øÒÃãÿ „UÊà „Ò¥U.Ô ¡Ò‚ ¬ˇÊË •Ê∑§Ê‡Ê ◊¥ ¡Êà „Ò¥U, flÒ‚ „UË •Ê¬ Sflª¸ ∑§Ë •Ê⁄U ¡Êà „Ò¥U. (24) •flÊøÊ◊ ∑§flÿ ◊äÿÊÿ fløÊ flãŒÊL§ flη÷Êÿ flÎcáÊ. ª◊ÁflÁcΔU⁄UÊ Ÿ◊‚Ê SÃÊ◊◊ÇŸÊÒ ÁŒflËfl L§Ä◊◊ÈL§√ÿÜø◊üÊØ.. (25) •ÁÇŸ ∑§Áfl, ◊œÊflË, ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ fl œŸflÊŸ „Ò¥U. „U◊ fløŸÊ¥ ‚ ©UŸ ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ë flÒ‚ „UË ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ◊Á„U◊ÊÿÈÄà ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Sflª¸ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (25) •ÿÁ◊„U ¬˝Õ◊Ê œÊÁÿ œÊÃÎÁ÷„UʸÃÊ ÿÁ¡cΔUÊ •äfl⁄UcflË«UK—. ÿ◊åŸflÊŸÊ ÷ΪflÊ ÁflL§L§øÈfl¸Ÿ·È ÁøòÊ¢ Áflèfl¢ Áfl‡Ê Áfl‡Ê.. (26) •ÁÇŸ ¬˝Õ◊ fl¢ŒŸËÿ, œÊ⁄U∑§, „UÊÃÊ fl ÿÁ¡cΔU (ÿôÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ) „Ò¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ßã„¥U ÿôÊ flŒUË ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÷ÎªÈ •ÊÁŒ ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ’Ê⁄U’Ê⁄U Áfl‹ˇÊáÊ •ÁÇŸ ∑§Ê flŸÊ¥ ◊¥ ¬˝ÖflÁ‹Ã Á∑§ÿÊ. (26) ¡ŸSÿ ªÊ¬Ê ˘ •¡ÁŸc≈U ¡ÊªÎÁfl⁄UÁÇŸ— ‚ÈŒˇÊ— ‚ÈÁflÃÊÿ Ÿ√ÿ‚. ÉÊÎì˝ÃË∑§Ê ’΄UÃÊ ÁŒÁflS¬Î‡ÊÊ lÈ◊Ám÷ÊÁà ÷⁄UÃèÿ— ‡ÊÈÁø—.. (27) •ÁÇŸ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ‚¢⁄UˇÊ∑§, øßÊ◊ÿ, ¡Êª˝Ã fl ‚ÈŒUˇÊ „Ò¥U. fl •¬ŸË ÖflÊ‹Ê•Ê¥ ÿ¡Èfl¸Œ - 187
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê S¬‡Ê¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl lÈ◊ÊŸ fl ø◊∑§Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§Ãʸ fl ¬ÁflòÊ „Ò¥U •ÊÒ⁄U ÉÊÎà ‚ Áfl‡ÊÊ‹ „UÊà „Ò¥U. (27) àflÊ◊ÇŸ •ÁX⁄U‚Ê ªÈ„UÊ Á„UÃ◊ãflÁflãŒÁÜ¿UÁüÊÿÊáÊ¢ flŸ flŸ. ‚ ¡Êÿ‚ ◊âÿ◊ÊŸ— ‚„UÊ ◊„UûflÊ◊Ê„ÈU— ‚„U‚S¬ÈòÊ◊ÁX⁄U—.. (28) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê •¢Áª⁄UÊ ´§Á· Ÿ ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ. Á¿U¬ „UÈ∞ •Ê¬ ∑§Ê flŸflŸ ◊¥ πÊ¡Ê •ÊÒ⁄U ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ. •⁄UÁáÊ ◊¢ÕŸ ‚ •Ê¬ ©Uà¬ããÊ „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ‚÷Ë U◊„UûÊÊ flÊ‹Ê ’ÃÊà „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ fl •¢Áª⁄UÊ ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. (28) ‚πÊÿ— ‚¢ fl˝— ‚êÿÜøÁ◊· ¦ SÃÊ◊¢ øÊÇŸÿ. flÌ·cΔUÊÿ ÁˇÊÃËŸÊ◊͡ʸ ŸåòÊ ‚„USflÃ.. (29) •ÁÇŸ „U◊Ê⁄U ‚πÊ „Ò¥U. fl „U◊¥ ¡‹ ‚ ‚Ë¥øà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ SàÊÊòÊ ªÊà „Ò¥U. fl ÖÿcΔU „Ò¥U •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ∑§Ê ™§U¡¸SflË ’ŸÊà „Ò¥U. (29) ‚ ¦ ‚Á◊lÈfl‚ flηãŸÇŸ Áfl‡flÊãÿÿ¸ ˘ •Ê. ß«US¬Œ ‚Á◊äÿ‚ ‚ ŸÊ fl‚ÍãÿÊ÷⁄U.. (30) •ÁÇŸ ‚Á◊œÊ ‚ ¬˝ÖflÁ‹Ã Á∑§∞ ¡Êà „Ò¥U. fl ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ, ‚’ ∑§ SflÊ◊Ë fl ‚Èπ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊflŒË ◊¥ ÷‹Ë÷Ê¢Áà ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ÷⁄U¬Í⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (30) àflÊ¢ ÁøòÊüÊflSÃ◊ „Uflãà ÁflˇÊÈ ¡ãÃfl—. ‡ÊÊÁøc∑§‡Ê¢ ¬ÈL§Á¬˝ÿÊÇŸ „U√ÿÊÿ flÊ…Ufl.. (31) •ÁÇŸ •Œ˜÷Èà fl „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‚÷Ë ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ø◊∑§Ë‹ ∑§‡ÊÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •àÿ¢Ã Á¬˝ÿ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (31) ∞ŸÊ flÊ •ÁÇŸ¢ Ÿ◊‚ʡʸ Ÿ¬ÊÃ◊Ê „ÈUfl. Á¬˝ÿ¢ øÁÃcΔU◊⁄UÁà ¦ Sfläfl⁄¢U Áfl‡flSÿ ŒÍÃ◊◊ÎÃ◊˜.. (32) •ÁÇŸ Á¬˝ÿ, ßc≈U, „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§ ¬˝⁄U∑§, ‚’ ∑§ ŒÍà fl •◊⁄U „Ò¥U. „U◊ øÒÃãÿ „UÊŸ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (32) Áfl‡flSÿ ŒÍÃ◊◊Îâ Áfl‡flSÿ ŒÍÃ◊◊ÎÃ◊˜. ‚ ÿÊ¡Ã •L§·Ê Áfl‡fl÷Ê¡‚Ê ‚ ŒÈº˝flàSflÊ„ÈU×.. (33) •Ê¬ Áfl‡fl ∑§ ŒÍà fl •◊Îà SflM§¬ „Ò¥U. •ÁÇŸ ÿôÊ ‚ ÷Ê¡Ÿ ¬ÊŸ flÊ‹ •¬Ÿ üÊcΔU ÉÊÊ«∏Ê¥ ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡ÊÃà „Ò¥U. •ÁÇŸ •Ê¡ ‚Á„Uà º˝Èà ªÁà ‚ ÿôÊ ◊¥ ¬„È¢Uøà „Ò¥U. (33)§ 188 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ ŒÈº˝flàSflÊ„ÈU× ‚ ŒÈº˝flàSflÊ„ÈU×. ‚È’˝rÊÔÊ ÿôÊ— ‚ȇÊ◊Ë fl‚ÍŸÊ¢ Œfl ¦ ⁄UÊœÊ ¡ŸÊŸÊ◊˜.. (34) •ÁÇŸ º˝Èà ªÁÃ◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ê •Ê±flÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ º˝Èà ªÁÃ◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ê •Ê±flÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ÿôÊ ∑§ •ë¿U ’˝rÊÊ fl ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. fl flÒ÷fl ∑§ Œfl „Ò¥U •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê œŸ ŒÃ „Ò¥U. (34) •ÇŸ flÊ¡Sÿ ªÊ◊à ˘ ߸‡ÊÊŸ— ‚„U‚Ê ÿ„UÊ. •S◊ œÁ„U ¡ÊÃflŒÊ ◊Á„U üÊfl—.. (35) •ÁÇŸ •ããÊ, ªÊÒ ∑§ SflÊ◊Ë, ߸‡fl⁄U, ‚fl¸ôÊ fl ‡ÊËÉÊ˝ ¬˝ŒËåà „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÎâflË ¬⁄U œŸ ’⁄U‚ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (35) ‚ ˘ ßœÊŸÊ fl‚Èc∑§Áfl⁄UÁÇŸ⁄UË«UãÿÊ Áª⁄UÊ. ⁄UflŒS◊èÿ¢ ¬Èfl¸áÊË∑§ ŒËÁŒÁ„U.. (36) •ÁÇŸ ßZœŸ◊ÊŸ, œŸflÊŸ fl ∑§Áfl „Ò¥U. „U◊ flÊáÊË ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬ÁflòÊ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (36) ˇÊ¬Ê ⁄UÊ¡ãŸÈà à◊ŸÊÇŸ flSÃÊL§ÃÊ·‚—. ‚ ÁÃÇ◊¡ê÷ ⁄UˇÊ‚Ê Œ„U ¬˝ÁÃ.. (37) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ‹¬≈¥U Áfl‡ÊÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ø◊∑§Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ÃˡáÊ M§¬ ‚ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§ ŒÊ„U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝Ê× „U◊Ê⁄U ÿôÊÊ¥ ◊¥ ’Êœ∑§ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. (37) ÷º˝Ê ŸÊ •ÁÇŸ⁄UÊ„ÈUÃÊ ÷º˝Ê ⁄UÊÁ× ‚È÷ª ÷º˝Ê •äfl⁄U—. ÷º˝Ê ˘ ©Uà ¬˝‡ÊSÃÿ—.. (38) •ÁÇŸ „U◊Ê⁄U ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝∑§≈U „UÊà „Ò¥U. „U◊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „UU◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl ‚ÊÒ÷ÊÇÿflh¸∑§ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊÊ¥ ◊¥ ©UŸ ∑§ Á‹∞ SÃÊòÊ ªÊà „Ò¥U. (38) ÷º˝Ê ©Uà ¬˝‡ÊSÃÿÊ ÷º˝¢ ◊Ÿ— ∑ΧáÊÈcfl flÎòÊÃÍÿ¸. ÿŸÊ ‚◊à‚È ‚Ê‚„U—.. (39) •ÁÇŸ Á¡‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ◊Ÿ ‚ flÎòÊÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ◊Ÿ ‚ „U◊ ©UŸ ∑§Ë ¬˝‡ÊÁSÃÿÊ¢ ªÊà „Ò¥, ÃÊÁ∑§ fl ©Uà‚Ê„U¬ÍUfl¸∑§ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄¥U. (39) ÿŸÊ ‚◊à‚È ‚Ê‚„UÊfl ÁSÕ⁄UÊ ÃŸÈÁ„U ÷ÍÁ⁄U ‡Êœ¸ÃÊ◊˜. flŸ◊Ê Ã •Á÷Ác≈UÁ÷—.. (40) •ÁÇŸ Á¡‚ ©Uà‚Ê„U ‚ •Ê¬ ‡ÊòÊÈŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚Ë ©Uà‚Ê„U ‚ „U◊Ê⁄U ß ∑§Ê ÁSÕ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë •÷Ëc≈U ∑Χ¬Ê ‚ ‚ÈπË ⁄U„¥U. (40) •ÁÇŸ¢ â ◊ãÿ ÿÊ fl‚È⁄USâ ÿ¢ ÿÁãà œŸfl—. •SÃ◊fl¸ãà ˘ •Ê‡ÊflÊSâÁŸàÿÊ‚Ê flÊÁ¡Ÿ ˘ ß· ¦ SÃÊÃÎèÿ ˘ •Ê ÷⁄U.. (41) •ÁÇŸ ∑§Ê „U◊ ◊ÊŸÃ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ œŸ Ã∑§ flÒ‚ „UË ¬„¢ÈUøà „Ò¥U, ¡Ò‚ ªÊÒ∞¢ ÉÊ⁄U ÿ¡Èfl¸Œ - 189
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Ã∑§ ¬„È¢UøÃË „Ò¥U. ÉÊÊ«∏U ÷Ë ⁄UÊ¡ •ÁÇŸ ∑§Ê Œπ ∑§⁄U ÉÊÈ«∏U‚Ê‹ ◊¥ •Êà „Ò¥U. •ÁÇŸ •¬Ÿ ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§Ê ÷⁄U¬Í⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥ (41) ‚Ê •ÁÇŸÿʸ fl‚Ȫ¸ÎáÊ ‚¢ ÿ◊ÊÿÁãà œŸfl—. ‚◊fl¸ãÃÊ ⁄UÉÊȺ˝Èfl— ‚ ¦ ‚È¡ÊÃÊ‚— ‚Í⁄Uÿ ˘ ß· ¦ SÃÊÃÎèÿ ˘ •Ê ÷⁄U.. (42) •ÁÇŸ •¬Ÿ œŸ ∑§ ‚ÊÕ ∞‚ •Êà „Ò¥U, ¡Ò‚ ªÊ∞¢ ’Ê«∏U ◊¥ •ÊÃË „Ò¥U. áªÁà flÊ‹ ÉÊÊ«U∏ ÉÊÈ«∏U‚Ê‹ ◊¥ •Êà „Ò¥U. ‚¥S∑§ÊÁ⁄Uà ÿ¡◊ÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ •¬Ÿ ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§Ê ÷⁄U¬Í⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (42) ©U÷ ‚ȇøãº˝ ‚̬·Ê Œfl˸ üÊËáÊË· ˘ •Ê‚ÁŸ. ©UÃÊ Ÿ ˘ ©Uà¬È¬Íÿʸ ©UÄÕ·È ‡Êfl‚S¬Ã ˘ ß· ¦ SÃÊÃÎèÿ ˘ •Ê ÷⁄U.. (43) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ø¢º˝◊Ê ¡Ò‚ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ÉÊË ∑§Ë „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ŒÊŸÊ¥ „UÊÕÊ¥ ∑§Ê ©U¬ÿʪ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ ◊¢òÊÊ¥ (©UÄÕ) mÊ⁄UÊ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§Ê ÷⁄U¬Í⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (43) •ÇŸ Ã◊lʇfl¢ Ÿ SÃÊ◊Ò— ∑˝§ÃÈ¢ Ÿ ÷º˝ ¦ NUÁŒS¬Î‡Ê◊˜. ´§äÿÊ◊Ê Ã ˘ •Ê„ÒU—.. (44) „U •ÁÇŸ! Á¡‚ ¬˝∑§Ê⁄U ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ „U◊ •‡fl◊œ ∑§ •‡fl ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË ÿôÊ ◊¥ „U◊ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ NUŒÿ ∑§Ê S¬‡Ê¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÿôÊ ‚¢’¢œË ‚¢∑§À¬ ◊¡’Íà „UÊà „Ò¥U. (44) •œÊ sÔÇŸ ∑˝§ÃÊ÷¸º˝Sÿ ŒˇÊSÿ ‚ʜʗ. ⁄UÕË´¸§ÃSÿ ’΄UÃÊ ’÷ÍÕ.. (45) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl »§‹ŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ŒˇÊ fl ∑§Êÿ¸ ‚Êœ∑§ „Ò¥U. ‚Ê⁄UÕË ∑§Ë ÷Ê¢Áà •Ê¬ ´§Ã ∑§ Áfl‡ÊÊ‹ ⁄UÕ ∑§ ‚¢øÊ‹∑§ „Ò¥U. (45) ∞Á÷ŸÊ¸ •∑Ò¸§÷¸flÊ ŸÊ •flʸæ˜U ∑˜§ Sfláʸ ÖÿÊÁ×. •ÇŸ Áfl‡flÁ÷— ‚È◊ŸÊ ˘ •ŸË∑Ò§—.. (46) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ SflÁáʸ◊ ÖÿÊÁà fl •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ „ÒU¥ . •Ê¬ SflÁáʸ◊ ÖÿÊÁà ‚Á„Uà „U◊Ê⁄U ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄UŸ fl „U◊Ê⁄U ¡ËflŸ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (46) •ÁÇŸ ¦ „UÊÃÊ⁄¢U ◊ãÿ ŒÊSflãâ fl‚È ¦ ‚ÍŸÈ ¦ ‚„U‚Ê ¡ÊÃflŒ‚¢ Áfl¬˝¢ Ÿ ¡ÊÃflŒ‚◊˜. ÿ ˘ ™§äfl¸ÿÊ Sfläfl⁄UÊ ŒflÊ ŒflÊëÿÊ ∑Χ¬Ê. ÉÊÎÃSÿ Áfl÷˝ÊÁCÔU◊ŸÈ flÁCÔU ‡ÊÊÁø·Ê¡ÈuÔUÊŸSÿ ‚̬·—.. (47) „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê „UÊÃÊ ◊ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§◊¸‡ÊË‹ fl ŒUÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ œŸflÊŸ, ‚Ê„U‚ ∑§ ¬ÈòÊ, ‚fl¸ôÊ fl ’˝ÊrÊáÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ‚’ ∑ȧ¿U ¡ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ª◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§Ê ‚„UÊ⁄UÊ „Ò¥U. •Ê¬ ÉÊÎìʟ ∑§⁄Uà „Ò¥U. 190 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÉÊÎìʟ •Ê¬ ∑§Ê ßc≈U „ÒU. •Ê¬ ÖÿÊÁÃflœ¸∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ’˝rÊôÊÊŸË ∑§Ê „U◊ ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (47) •ÇŸ àfl¢ ŸÊ •ãÃ◊ ˘ ©Uà òÊÊÃÊ Á‡ÊflÊ ÷flÊ flM§âÿ—. fl‚È⁄UÁÇŸfl¸‚ÈüÊflÊ ˘ •ë¿UÊ ŸÁˇÊ lÈ◊ûÊ◊ ¦ ⁄U®ÿ ŒÊ—. â àflÊ ‡ÊÊÁøcΔU ŒËÁŒfl— ‚ÈêŸÊÿ ŸÍŸ◊Ë◊„U ‚Áπèÿ—.. (48) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ãÿÃ◊, ôÊÊÃÊ, Á‡Êfl „U◊Ê⁄U ‚¢⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ œŸflÊŸ fl ¬˝ÅÿÊà „Ò¥U. •Ê¬ •ª˝ªÊ◊Ë, üÊcΔU‹Ê∑§ flÊ‚Ë, œŸŒÊÃÊ, ÖÿÊÁÃ◊ÊŸ fl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¬˝∑§Ê‡Ê∑§ „Ò¥U. „U◊ •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ •ÊÒ⁄U •¬Ÿ ‚πÊ•Ê¥ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ‚ ÁŸflŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (48) ÿŸ ´§·ÿSì‚Ê ‚òÊ◊ÊÿÁãŸãœÊŸÊ ˘ •ÁÇŸ ¦ Sfl⁄UÊ÷⁄Uã×. ÃÁS◊㟄¢U ÁŸ Œœ ŸÊ∑§ •ÁÇŸ¢ ÿ◊Ê„ÈU◊¸ŸflSÃËáʸ’Ì„U·◊˜.. (49) ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ ìSÿÊ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã Á∑§ÿÊ. •¬Ÿ Sfl⁄U ‚ ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã Á∑§ÿÊ. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ÁÇŸ ‚ ÁflSÃÎà ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (49) â ¬àŸËÁ÷⁄UŸÈ ªë¿U◊ ŒflÊ— ¬ÈòÊÒ÷˝Ê¸ÃÎÁ÷L§Ã flÊ Á„U⁄UáÿÒ—. ŸÊ∑¢§ ªÎèáÊÊŸÊ— ‚È∑ΧÃSÿ ‹Ê∑§ ÃÎÃËÿ ¬ÎcΔU •Áœ ⁄UÊøŸ ÁŒfl—.. (50) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÁŒ√ÿ ªÈáÊÊ¥ ‚ ‚¢¬ãŸ „Ò¥U. „U◊ ¬àŸË, ¬ÈòÊ, ÷Ê߸ •ÊÁŒ ‚Á„Uà •Ê¬ ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬Ê∞¢. „U◊ ߟ ‚’ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. „U◊ Sflª¸ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ üÊcΔU∑§◊ʸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ üÊcΔU ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. (50) •Ê flÊøÊ ◊äÿ◊L§„UjÈ⁄UáÿÈ⁄Uÿ◊ÁÇŸ— ‚à¬ÁÇøÁ∑§ÃÊŸ—. ¬ÎcΔU ¬ÎÁÕ√ÿÊ ÁŸÁ„UÃÊ ŒÁfllÈÃŒœS¬Œ¢ ∑ΧáÊÈÃÊ¢ ÿ ¬ÎÃãÿfl—.. (51) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚à¬Áà fl øÒÃãÿ „Ò¥U •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ∑§ ¬ÎcΔU ÷ʪ ¬⁄U ÁSÕà „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÷Ë lÈÁÃ◊ÊŸ ’ŸÊà „Ò¥U. „U◊ ¬ÁflòÊ ◊¢òÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡Ê ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë „U◊¥ Ÿc≈U ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U, •Ê¬ ©Uã„¥U Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (51) •ÿ◊ÁÇŸfl˸⁄UÃ◊Ê flÿʜʗ ‚„UÁdÿÊ lÊÃÃÊ◊¬˝ÿÈë¿UŸ˜. Áfl÷˝Ê¡◊ÊŸ— ‚Á⁄U⁄USÿ ◊äÿ ˘ ©U¬ ¬˝ ÿÊÁ„U ÁŒ√ÿÊÁŸ œÊ◊.. (52) ÿ„U •ÁÇŸ flË⁄UÃ◊ •ÊÒ⁄U flÿ (•ÊÿÈ) œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. fl „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§ÊÿÊZ ∑§ ‚Êœ∑§ „Ò¥U. fl •Ê‹Sÿ ⁄UÁ„Uà „UÊ ∑§⁄U ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ∑§Êÿ¸ ‚¢¬ÊÁŒÃ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ ’Ëø ∑§ ÁŒ√ÿ œÊ◊ ◊¥ „U◊¥ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (52) ÿ¡Èfl¸Œ - 191
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ê¬˝ëÿfläfl◊Ȭ ‚ê¬˝ÿÊÃÊÇŸ ¬ÕÊ ŒflÿÊŸÊŸ˜ ∑ΧáÊÈäfl◊˜. ¬ÈŸ— ∑ΧáflÊŸÊ— Á¬Ã⁄UÊ ÿÈflÊŸÊãflÊÃÊ ¦ ‚ËØ àflÁÿ ÃãÃÈ◊Ã◊˜.. (53) „U ´§Á·ªáÊÊ! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ ‚◊ˬ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ßã„¥U ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ fl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬Õ ¬˝ŒÁ‡Ê¸Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊Ê⁄U Á¬Ã⁄UÊ¥ Ÿ ¬ÈŸ— •Ê¬ ∑§Ê ÿÈflÊ ’ŸÊÿÊ. Á¬Ã⁄UÊ¥ Ÿ ¬ÈŸ— ÿôÊÊ¥ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ. (53) ©UŒ˜’ÈäÿSflÊÇŸ ¬˝Áà ¡ÊªÎÁ„U àflÁ◊CÔUʬÍø ‚ ¦ ‚ΡÕÊ◊ÿ¢ ø. •ÁS◊ãà‚œSÕ •äÿÈûÊ⁄UÁS◊Ÿ˜ Áfl‡fl ŒflÊ ÿ¡◊ÊŸ‡ø ‚ËŒÃ.. (54) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ©UŒ˜’Èh „UÊß∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ÷Ë ¡Êª˝Ã ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¬Ÿ ßc≈U¡ŸÊ¥ ∑§Ë ßë¿UʬÍÁø ∑§ËÁ¡∞. ‚÷Ë ŒflªáÊ •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸªáÊ ß‚ ∑§Ë ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •ÁœÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (54) ÿŸ fl„UÁ‚ ‚„Ud¢ ÿŸÊÇŸ ‚fl¸flŒ‚◊˜. ß◊¢ ÿôÊ¢ ŸÊ Ÿÿ SflŒ¸fl·È ªãÃfl.. (55) „U •ÁÇŸ! Á¡‚ ‚ •Ê¬ „U¡Ê⁄U ªÈŸ „Ê ¡Êà „Ò¥U, Á¡‚ ‚ •Ê¬ ‚’ ∑ȧ¿U ∑§ ôÊÊÃÊ „UÊ ¡Êà „Ò¥U, •Ê¬ ©U‚Ë ‚ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊÁ⁄U∞ •ÊÒ⁄U ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§Ê ‹ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (55) •ÿ¢ à ÿÊÁŸ´¸§ÁàflÿÊ ÿÃÊ ¡ÊÃÊ •⁄UÊøÕÊ—. â ¡ÊŸãŸÇŸ ˘ •Ê⁄UÊ„UÊÕÊ ŸÊ flœ¸ÿÊ ⁄UÁÿ◊˜.. (56) „U •ÁÇŸ! ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. ß‚ ‚ ÿ¡◊ÊŸ ´§ÃÈ∑§Ê‹ ∑§ ∑§◊ÊZ ∑§ Á‹∞ ¡ÊªÃ „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ∑§Ê ¡ÊŸ ∑§⁄U •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄UŸ fl „U◊Ê⁄U œŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (56) ì‡ø ìSÿ‡ø ‡ÊÒÁ‡Ê⁄UÊflÎÃÍ •ÇŸ⁄Uãׇ‹·ÊÁ‚ ∑§À¬ÃÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË ∑§À¬ãÃÊ◊ʬ ˘ •Ê·œÿ— ∑§À¬ãÃÊ◊ÇŸÿ— ¬ÎÕæ˜U◊◊ ÖÿÒcΔUKÊÿ ‚fl˝ÃÊ—. ÿ •ÇŸÿ— ‚◊Ÿ‚ÊãÃ⁄UÊ lÊflʬÎÁÕflË ß◊. ‡ÊÒÁ‡Ê⁄UÊflÎÃÍ •Á÷∑§À¬◊ÊŸÊ ˘ ßãº˝Á◊fl ŒflÊ ˘ •Á÷‚¢Áfl‡ÊãÃÈ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜œ˝Èfl ‚ËŒÃ◊˜.. (57) ì ÃÕÊ Ã¬SÿÊ ∑§ Á‹∞ Á‡ÊÁ‡Ê⁄UU ´§ÃÈ ‚ •ÊflÎà „UÊß∞. ÿ ◊„UËŸ •ÁÇŸ ∑§ ÷ËÃ⁄U ‚ ¡È«∏U „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥. •Ê·ÁœÿÊ¥ •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „UÊ¥. •ÁÇŸÿÊ¢ ‚¢∑§À¬‡ÊË‹ „UÊ¥. ¡Ê •ÁÇŸÿÊ¢ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ë „Ò¥U, fl •ÁÇŸÿÊ¢ Sflª¸‹Ê∑§ ÃÕÊ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ’Ëø SÕÊÁ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡Ò‚ ߢº˝ Œfl •ÊüÊÿ „Ò¥U, flÒ‚ „UË Á‡ÊÁ‡Ê⁄U ´§ÃÈ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ Œfl •ÊüÊÿ ’Ÿ¥. ŒflªáÊ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë Ã⁄U„U œ˝Èfl „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (57)
192 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@12
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¬⁄U◊cΔUË àflÊ ‚ÊŒÿÃÈ ÁŒflS¬ÎcΔU ÖÿÊÁÃc◊ÃË◊˜. Áfl‡flS◊Ò ¬˝ÊáÊÊÿʬʟÊÿ √ÿÊŸÊÿ Áfl‡fl¢ ÖÿÊÁÃÿ¸ë¿U. ‚Íÿ¸SÃÁœ¬ÁÃSÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝flÊ ‚ËŒ.. (58) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬⁄U◊ ßc≈U •ÊÒ⁄U ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¬ÎcΔU ◊¥ Áfl⁄UÊ¡¥. ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§ ¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ fl √ÿÊŸ ∑§ Á‹∞ Áfl‡fl ÖÿÊÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ‚Íÿ¸ •Ê¬ ∑§ •Áœ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë Ã⁄U„U œ˝Èfl „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. (58) ‹Ê∑¢§ ¬ÎáÊ Á¿Uº˝¢ ¬ÎáÊÊÕÊ ‚ËŒ œÈ˝flÊ àfl◊˜. ßãº˝ÊÇŸË àflÊ ’΄US¬Áà ⁄UÁS◊ãÿÊŸÊfl‚ËcÊŒŸ˜.. (59) ߢº˝ Œfl, •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ’΄US¬Áà Œfl Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ •ÁœÁcΔUà Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ‹Ê∑§ ∑§ Á¿Uº˝ ¬ÍÁ⁄U∞. •Ê¬ œ˝Èfl „UÊß∞ •ÊÒ⁄U ÿ„UÊ¢ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (59) ÃÊ •Sÿ ‚ÍŒŒÊ„U‚— ‚Ê◊ ¦ üÊËáÊÁãà ¬Î‡Ÿÿ—. ¡ã◊ãŒflÊŸÊ¢ Áfl‡ÊÁSòÊcflÊ⁄UÊøŸ ÁŒfl—.. (60) fl ߟ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ „Ò¥U. fl ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬∑§ÊÃË „Ò¥U. ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ‡ÊÊ÷Ê •ÊÒ⁄U üÊcΔU ⁄¢Uª ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃË „ÒU¥ . ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¡ã◊ ◊¥ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UÃË „ÒU¥ . (60) ßãº˝¢ Áfl‡flÊ •flËflÎœãà‚◊Ⱥ˝√ÿø‚¢ Áª⁄U—. ⁄UÕËÃ◊ ¦ ⁄UÕËŸÊ¢ flÊ¡ÊŸÊ ¦ ‚ମà ¬ÁÃ◊˜.. (61) ‚÷Ë ß¢º˝ Œfl ∑§Ë ’…∏ÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚÷Ë •¬ŸË flÊáÊË ‚ ߢº˝ Œfl ∑§ ªÈáÊ ªÊà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. üÊcΔU ⁄UÕË, •ããÊSflÊ◊Ë ‚à¬Áà •ÊÁŒ ‚÷Ë ß¢º˝ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (61) ¬˝ÊÕŒ‡flÊ Ÿ ÿfl‚ÁflcÿãÿŒÊ ◊„U— ‚¢fl⁄UáÊÊmKSÕÊØ. •ÊŒSÿ flÊÃÊ •ŸÈflÊÁà ‡ÊÊÁø⁄Uœ S◊ à fl˝¡Ÿ¢ ∑ΧcáÊ◊ÁSÃ.. (62) •ÁÇŸ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊ ∑§⁄U ÷Íπ ÉÊÊ«∏U mÊ⁄UÊ ÉÊÊ‚ ∑§ Á‹∞ ∑§Ë ¡ÊŸ flÊ‹Ë •ÊflÊ¡ ∑§Ë Ã⁄U„U •ÊflÊ¡ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÊÿÈ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, Á¡‚ ‚ •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊ ¡Êà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê ∑§Ê‹Ê œÈ•Ê¥ ‚fl¸òÊ √ÿÊåà „UÊ ¡ÊÃÊ „Ò. (62) •ÊÿÊCÔU˜flÊ ‚ŒŸ ‚ÊŒÿÊêÿflÇ¿UÊÿÊÿÊ ¦ ‚◊Ⱥ˝Sÿ NUŒÿ. ⁄U‡◊ËflÃË¥ ÷ÊSflÃË◊Ê ÿÊ lÊ¢ ÷ÊSÿÊ ¬ÎÁÕflË◊Êfl¸ãÃÁ⁄UˇÊ◊˜.. (63) ‚◊Ⱥ˝ ∑§ NUŒÿ ◊¥ fl ÿôÊ ‚ŒŸ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ Á∑§⁄UáÊ◊ÿË fl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÿË „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê •¬Ÿ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ¬Á⁄U¬Íáʸ ∑§⁄U ŒÃ „Ò¥U. (63)
ÿ¡Èfl¸Œ - 193
¬Íflʸœ¸
¬¢º˝„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¬⁄U◊cΔUË àflÊ ‚ÊŒÿÃÈ ÁŒflS¬ÎcΔU √ÿøSflÃË¥ ¬˝ÕSflÃË¥ ÁŒfl¢ ÿë¿U ÁŒfl¢ ŒÎ ¦ „U ÁŒfl¢ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë—. Áfl‡flS◊Ò ¬˝ÊáÊÊÿʬʟÊÿ √ÿÊŸÊÿʌʟÊÿ ¬˝ÁÃcΔUÊÿÒ øÁ⁄UòÊÊÿ. ‚Íÿ¸SàflÊÁ÷ ¬ÊÃÈ ◊sÔÊ SflSàÿÊ ¿UÌŒ·Ê ‡ÊãÃ◊Ÿ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝fl ‚ËŒÃ◊˜.. (64) •Ê¬ ¬⁄U◊ ßc≈U „Ò¥U. •Ê¬ Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã „UÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë Sflª¸‹Ê∑§ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ, √ÿÊŸ, ©UŒÊŸ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ∑§ Á‹∞ ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚Íÿ¸ „U◊Ê⁄U øÁ⁄UòÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ªÈáÊÊ¥ ∑§Ê ’ŸÊ∞ ⁄UÁπ∞. •Ê¬ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë Ã⁄U„U œ˝Èfl ⁄UÁ„U∞. •Ê¬ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë Ã⁄U„U ¬˝ÁÃÁcΔUà ⁄UÁ„U∞. (64) ‚„UdSÿ ¬˝◊ÊÁ‚ ‚„UdSÿ ¬˝ÁÃ◊ÊÁ‚ ‚„UdSÿÊã◊ÊÁ‚ ‚Ê„UdÊÁ‚ ‚„UdÊÿ àflÊ.. (65) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U¡Ê⁄U ∑§Ê ◊ʬŒ¢«U „Ò¥U. •Ê¬ „U¡Ê⁄U ∑§Ë ¬˝ÁÃ◊Ê •ÊÒ⁄U „U¡Ê⁄U SÕÊŸÊ¥ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡ŸËÿ „Ò¥U. „U◊ „U¡Ê⁄UÊ¥ ©UìʪÁà ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (65)
194 - ÿ¡Èfl¸Œ
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ Ÿ◊Sà L§º˝ ◊ãÿfl ˘ ©UÃÊ Ã ˘ ß·fl Ÿ◊—. ’Ê„ÈUèÿÊ◊Èà à Ÿ◊—.. (1) L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. •Ê¬ ∑§ ∑˝§Êœ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •Ê¬ ∑§ ’ÊáÊÊ¥ ∑ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. •Ê¬ ∑§ ŒÊŸÊ¥ ’Ê„ÈU•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. (1) ÿÊ Ã L§º˝ Á‡ÊflÊ ÃŸÍ⁄UÉÊÊ⁄UÊ ˘ ¬Ê¬∑§ÊÁ‡ÊŸË. ÃÿÊ ŸSÃãflÊ ‡ÊãÃ◊ÿÊ ÁªÁ⁄U‡ÊãÃÊÁ÷ øÊ∑§‡ÊËÁ„U.. (2) L§º˝ Œfl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË, ÉÊÊ⁄U ¬Ê¬Ê¥ ∑§ ÷Ë ŸÊ‡Ê∑§, ‡Êʢà fl ’‹flÊŸ „ÒU¢. L§º˝Œfl „U◊ ¬⁄U ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ∑Χ¬Ê ŒÎÁc≈U ⁄Uπ¥U. (2) ÿÊÁ◊·È¢ ÁªÁ⁄U‡Êãà „USà Á’÷cÿ¸SÃfl. Á‡ÊflÊ¢ ÁªÁ⁄UòÊ ÃÊ¢ ∑ȧL§ ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë— ¬ÈL§·¢ ¡ªÃ˜.. (3) •Ê¬ ÁªÁ⁄UflÊ‚Ë „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ „UÊÕ ◊¥ „U◊Ê⁄UÊ ÷Áflcÿ „ÒU. •Ê¬ •¬ŸË ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‡ÊÁÄà ‚ „U◊Ê⁄UÊ òÊÊáÊ (∑§ÀÿÊáÊ) ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Á„U¢‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¡ªÃ˜ •ÊÒ⁄U ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. (3) Á‡ÊflŸ flø‚Ê àflÊ ÁªÁ⁄U‡ÊÊë¿UÊflŒÊ◊Á‚. ÿÕÊ Ÿ— ‚fl¸Á◊Ö¡ªŒÿˇ◊ ¦ ‚È◊ŸÊ ˘ •‚Ø.. (4) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ¬fl¸ÃflÊ‚Ë „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fløŸ ’Ê‹Ã „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ‚Ê⁄U ¡ª ∑§Ê ÿˇ◊Ê (⁄Uʪ) ‚ ŒÍ⁄U ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. (4) •äÿflÊøŒÁœflÄÃÊ ¬˝Õ◊Ê ŒÒ√ÿÊ Á÷·∑§˜. •„UË°‡ø ‚flʸܡê÷ÿãà‚flʸ‡ø ÿÊÃÈœÊãÿÊ ˘ œ⁄UÊøË— ¬⁄UÊ ‚Èfl.. (5) L§º˝ Œfl •ÁœflÄÃÊ, ¬˝Õ◊ Œfl fl flÒl •Ê¬ ‚÷Ë Á„¢U‚∑§ ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ fl ŸËø ¬˝flÎÁûÊ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (5) •‚ÊÒ ÿSÃÊ◊˝Ê •L§áÊ ˘ ©Uà ’÷È˝— ‚È◊X‹—. ÿ øÒŸ ¦ L§º˝Ê ˘ •Á÷ÃÊ ÁŒˇÊÈ ÁüÊÃÊ— ‚„Ud‡ÊÊ ˘ flÒ·Ê ¦ „U« ˘ ߸◊„U.. (6) ÿ¡Èfl¸Œ - 195
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿ„U ‚fl¸¬˝Õ◊ ÃÊ¢’ ¡Ò‚ ⁄¢Uª ∑§Ê „UÊÃÊ „ÒU. Á»§⁄U •L§áÊ (‹Ê‹) ⁄¢Uª ∑§Ê •ÊÒ⁄U ©U‚ ∑§ ’ÊŒ ÷Í⁄U ⁄¢Uª ∑§Ê „UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ÿ ¡Ê L§º˝ Œfl „Ò¥ ߟ ∑§Ë ‡ÊÁÄÃÿÊ¢ ÁflÁ÷ããÊ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ »Ò§‹Ë „ÈU߸ „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ∑§Ë „U¡Ê⁄UÊ¥ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U ߟ ∑§Ë „U¡Ê⁄UÊ¥ ‡ÊÁÄÃÿÊ¢ „Ò¥U. „U◊ ߟ L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U •ÊÒ⁄U •¬Ÿ ¬˝Áà ©UŸ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê øÊ„Ã „Ò¥U. (6) •‚ÊÒ ÿÊ ˘ fl‚¬¸Áà ŸË‹ª˝ËflÊ Áfl‹ÊÁ„U×. ©UÃÒŸ¢ ªÊ¬Ê ˘ •ŒÎüÊ㟌ÎüÊãŸÈŒ„UÊÿ¸— ‚ ŒÎCÔUÊ ◊ΫUÿÊÁà Ÿ—.. (7) L§º˝ Œfl ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ªÁÇÊË‹ ⁄U„Uà „Ò¥U fl ŸË‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ „Ò¥U •ÊÒ⁄U πÊ‚ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ ‹Ê‹ ⁄¢Uª flÊ‹ „Ò¥U. ‚È’„U „UË ‚È’„U ÇflÊ‹ •ÊÒ⁄U ¬ÁŸ„ÊUÁ⁄UŸ¥ ߟ ∑§ Œ‡Ê¸Ÿ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Œ‡Ê¸Ÿ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÷Ë ‚Èπ∑§Ê⁄UË „UÊ¥. (7) Ÿ◊Ê ˘ SÃÈ ŸË‹ª˝ËflÊÿ ‚„UdÊˇÊÊÿ ◊Ë…ÈU·. •ÕÊ ÿ •Sÿ ‚àflÊŸÊ ˘ „¢U ÃèÿÊ ˘ ∑§⁄¢U Ÿ◊—.. (8) ŸË‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. „U¡Ê⁄UÊ¥ •Ê¢πÊ¥ flÊ‹ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. fl·Ê¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚àÿflÊŸ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (8) ¬˝◊ÈÜø œãflŸSàfl◊È÷ÿÊ⁄UÊàãÿʸÖÿʸ◊˜. ÿʇø à „USà ˘ ß·fl— ¬⁄UÊ ÃÊ ÷ªflÊ fl¬.. (9) L§º˝ Œfl œŸÈ· ∑§Ë ¬˝àÿ¢øÊ ∑§Ê ©UÃÊ⁄U ‹.¥ fl œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ „ÈU•Ê •¬ŸÊ œŸÈ· ©UÃÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „UÊÕ ◊¥ ¡Ê ’ÊáÊ „ÒU¥ fl •¬ŸË ÃˡáÊÃÊ ¿UÊ« U∏ Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (9) ÁflÖÿ¢ œŸÈ— ∑§¬ÌŒŸÊ Áfl‡ÊÀÿÊ ’ÊáÊflÊ° 2 ©UÃ. •Ÿ‡ÊãŸSÿ ÿÊ ˘ ß·fl ˘ •Ê÷È⁄USÿ ÁŸ·æU˜ªÁœ—.. (10) L§º˝ Œfl ∑§Ê œŸÈ· Áfl¡ÿË „UÊ. ©UŸ ∑§Ê œŸÈ· ¬˝àÿ¢øÊ „UËŸ „UÊ ¡Ê∞. ©UŸ ∑§Ê œŸÈ· ’ÊáÊ •ÊÒ⁄U Ã⁄U∑§‚„UËŸ „UÊ ¡Ê∞. ߟ ∑§Ê ËflÊ⁄U ⁄UπŸ ∑§Ê SÕÊŸ Á⁄UÄà „UÊ ¡Ê∞. ∑§„UË¥ ÷Ë ©UŸ ∑§ ’ÊáÊ Ÿ ÁŒπÊ߸ ¬«∏U¥. (10) ÿÊ Ã „UÁÃ◊˸…ÈUc≈U◊ „USà ’÷Ífl à œŸÈ—. ÃÿÊS◊ÊÁãfl‡flÃSàfl◊ÿˇ◊ÿÊ ¬Á⁄U ÷È¡.. (11) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ∑§ „UÊÕ ◊¥ œŸÈ· „ÒU . •Ê¬ „U◊¥ ⁄Uʪ fl Á„¢U‚Ê ‚ ’øÊß∞. •Ê¬ ‚ÈπŒÊÃÊ „Ò¥U. (11) ¬Á⁄U à œãflŸÊ „UÁÃ⁄US◊ÊãflÎáÊÄÃÈ Áfl‡fl×. •ÕÊ ÿ ˘ ß·ÈÁœSÃflÊ⁄U •S◊Á㟜Á„U Ã◊˜.. (12) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ •¬Ÿ œŸÈ· ‚ ‚’ •Ê⁄U ‚, ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •¬Ÿ ’ÊáÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ◊à œÊÁ⁄U∞. (12) 196 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•flÃàÿ œŸÈCÔU˜fl ¦ ‚„UdÊˇÊ ‡Ê÷Ȝ. ÁŸ‡ÊËÿ¸ ‡ÊÀÿÊŸÊ¢ ◊ÈπÊ Á‡ÊflÊ Ÿ— ‚È◊ŸÊ ÷fl.. (13) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ „U¡Ê⁄UÊ¥ •Ê¢πÊ¥ flÊ‹ fl ‚Ò∑§«∏UÊ¥ Ã⁄U∑§‚ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ’ÊáÊÊ¥ ∑§ ◊È¢„U ÁŸ∑§Ê‹ ŒËÁ¡∞. ’ÊáÊÊ¥ ∑§ ◊È¢„U „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ¥. „U◊ •ë¿ ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ¥. (13) Ÿ◊Sà ˘ •ÊÿÈœÊÿÊŸÊÃÃÊÿ œÎcáÊfl. ©U÷ÊèÿÊ◊Èà à Ÿ◊Ê ’Ê„ÈUèÿÊ¢ Ãfl œãflŸ.. (14) •ÊÃÃÊÁÿÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ •ÊÿÈœ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. •Ê¬ ∑§Ë ŒÊŸÊ¥ ’Ê„ÈU•Ê¥ fl •Ê¬ ∑§ œŸÈ· •ÊÒ⁄U Ã⁄U∑§‚ ŒÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (14) ◊Ê ŸÊ ◊„UÊãÃ◊Èà ◊Ê ŸÊ •÷¸∑¢§ ◊Ê Ÿ ˘ ©UˇÊãÃ◊Èà ◊Ê Ÿ ˘ ©UÁˇÊÃ◊˜. ◊Ê ŸÊ flœË— Á¬Ã⁄¢U ◊Êà ◊ÊÃ⁄¢U ◊Ê Ÿ— Á¬˝ÿÊSÃãflÊ L§º˝ ⁄UËÁ⁄U·—.. (15) „U L§º˝ Œfl! ¡Ê „U◊Ê⁄U Á¬˝ÿ „Ò¥U fl ¡Ê „U◊Ê⁄U ßc≈U „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ◊„UÊŸ˜ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê flœ ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¿UÊ≈U ’ëëÊÊ¥ ∑§Ê flœ ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ •ÊÁŒ ∑§Ê flœ ◊à ∑§ËÁ¡∞. (15) ◊Ê ŸSÃÊ∑§ ßÿ ◊Ê Ÿ ˘ •ÊÿÈÁ· ◊Ê ŸÊ ªÊ·È ◊Ê ŸÊ •‡fl·È ⁄UËÁ⁄U·—. ◊Ê ŸÊ flË⁄UÊŸ˜ L§º˝ ÷ÊÁ◊ŸÊ flœË„¸UÁflc◊ã× ‚ŒÁ◊Ø àflÊ „UflÊ◊„U.. (16) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬ÈòÊÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬ÊÒòÊÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ªÊÿÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U flË⁄UÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄Ë ÁSòÊÿÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U Ÿ ∑§⁄¥U. „U◊ ‚’ „UÁfl◊ÊŸ „UÊ ∑§⁄U •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. (16) Ÿ◊Ê Á„U⁄Uáÿ’Ê„Ufl ‚ŸÊãÿ ÁŒ‡ÊÊ¢ ø ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê flΡÊèÿÊ „UÁ⁄U∑§‡Êèÿ— ¬‡ÊÍŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ‡ÊÁc¬Ü¡⁄UÊÿ Áàfl·Ë◊à ¬ÕËŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê „UÁ⁄U∑§‡ÊÊÿʬflËÁß ¬ÈCÔUÊŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊—.. (17) ‚ÊŸ ‚ ‚ÁÖ¡Ã ’Ê„ÈU flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÁŒ‡ÊʬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‚ŸÊŸË ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. flΡÊÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. „U⁄U ’Ê‹Ê¥ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¬‡ÊȬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ∑§Ê¥¬‹ ¡Ò‚ ⁄¢Uª flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¬Õ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. „U⁄U ∑§‡Ê flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÿôÊʬflËÃœÊ⁄UËU ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¬Èc≈UÃÊ ∑§ SflÊ◊Ë ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (17) Ÿ◊Ê ’è‹È‡ÊÊÿ √ÿÊÁœŸ ˘ ãŸÊŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÷flSÿ „UàÿÒ ¡ªÃÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê L§º˝ÊÿÊÃÃÊÁÿŸ ˇÊòÊÊáÊÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ‚ÍÃÊÿÊ„UãàÿÒ flŸÊŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊—.. (18) ÷Í⁄U ⁄¢Uª flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ⁄Uʪ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •ããʬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¡ªÁ„Uà „UÃÈ •ÊÿÈœœÊ⁄UË ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‚¢‚Ê⁄U¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •ÊÃÃÊÁÿÿÊ¥ ‚ ’øÊŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÿ¡Èfl¸Œ - 197
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ˇÊòʬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •fl±Uÿ ‚Ê⁄UÕË ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. flŸÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (18) Ÿ◊Ê ⁄UÊÁ„UÃÊÿ SÕ¬Ãÿ flΡÊÊáÊÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÷ÈflãÃÿ flÊÁ⁄UflS∑ΧÃÊÿÊÒ·œËŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ◊ÁãòÊáÊ flÊÁáÊ¡Êÿ ∑§ˇÊÊáÊÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊ ˘ ©UëøÒÉÊʸ·ÊÿÊ∑˝§ãŒÿà ¬ûÊËŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊—.. (19) ‹Ê‹ ⁄¢Uª flÊ‹ SÕʬ∑§ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. flÎˇÊ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÷ÈflŸ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. œŸ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •Ê·Áœ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ◊¢òÊáÊÊŒÊÃÊ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. √ÿʬÊ⁄U¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ∑§ˇÊʬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ©UìÊÉÊÊ· ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÷ÿ¢∑§⁄U ∑˝¢§ŒŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (19) Ÿ◊— ∑ΧàSŸÊÿÃÿÊ œÊflà ‚àflŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ‚„U◊ÊŸÊÿ ÁŸ√ÿÊÁœŸ ˘ •Ê√ÿÊÁœŸËŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÁŸ·ÁXáÊ ∑§∑ȧ÷Êÿ Sßʟʢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÁŸø⁄Ufl ¬Á⁄Uø⁄UÊÿÊ⁄UáÿÊŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊—.. (20) ‚àÿ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. UøÊ⁄U ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ⁄Uʪ ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ©U¬º˝fl ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •¬„U⁄UáÊ ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. flŸ¬Ê‹∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (20) Ÿ◊Ê flÜøà ¬Á⁄UflÜøà SÃÊÿÍŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÁŸ·ÁXáÊ ˘ ß·ÈÁœ◊à ÃS∑§⁄UÊáÊÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ‚Î∑§ÊÁÿèÿÊ Á¡ÉÊÊ‚jKÊ ◊ÈcáÊÃÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊ÊÁ‚◊jKÊ ŸÄÃÜø⁄UjKÊ Áfl∑ΧãÃÊŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊—.. (21) ΔUªŸ •ÊÒ⁄U ‹Í≈UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ªÈåÃø⁄UÊ¥ ∑§ ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ©U¬º˝fl ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. øÊ⁄U¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‡ÊSòÊÿÈÄà ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ◊ÍΔU ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ⁄UÊÁòʬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¬⁄UœŸ „UÊ⁄U∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (21) Ÿ◊ ˘ ©UcáÊËÁ·áÊ ÁªÁ⁄Uø⁄UÊÿ ∑ȧ‹ÈÜøÊŸÊ¢ ¬Ãÿ Ÿ◊Ê Ÿ◊ ˘ ß·È◊jKÊ œãflÊÁÿèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊ ˘ •ÊÃãflÊŸèÿ— ¬˝ÁÃŒœÊŸèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊ ˘ •Êÿë¿UjÿÊ ˘ SÿjK‡ø flÊ Ÿ◊—.. (22) ¬ª«∏UËœÊ⁄UË ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¬fl¸Ã ¬⁄U Áflø⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. œŸ „U⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑ ÁŸÿ¢òÊ∑§ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê «U⁄UÊŸ flÊ‹ L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. œŸÈ· ’ÊUáÊœÊ⁄UË ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ’ÊáÊ ¬˝„U⁄UË L§º˝ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. œŸÈ· ¬⁄U ¬˝àÿ¢øÊ ø…∏UÊŸ flÊ‹ L§º˝ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (22) Ÿ◊Ê Áfl‚ΡjKÊ ÁfläÿjK‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊— Sfl¬jKÊ ¡Êª˝jK‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ‡ÊÿÊŸèÿ ˘ •Ê‚ËŸèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊ÁSÃcΔUjKÊ œÊfljK‡ø flÊ Ÿ◊—.. (23) ’ÊáÊ ¿UÊ«∏UŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‡ÊòÊÈflœ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‚ÊŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. 198 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¡ÊªŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ’ÒΔUŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ΔU„U⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ŒÊÒ«∏UŸ flÊ‹ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÁøûÊ ◊¥ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (23) Ÿ◊— ‚÷Êèÿ— ‚÷ʬÁÃèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ˘ ‡flèÿÊ ˘ ‡fl¬ÁÃèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊ ˘•Ê√ÿÊÁœŸËèÿÊ ÁflÁfläÿãÃËèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊ ˘ ©UªáÊÊèÿSÃÎ ¦ „UÃËèÿ‡ø flÊ Ÿ◊—.. (24) ‚èÊÊ SflM§¬ L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‚÷ʬÁà L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •U‡fl¬Áà L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÁŸ⁄Uʪ¬Áà L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÿÈh ◊¥ ‚„UÊÿ∑§ L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‡ÊòÊÈ ¬˝„U⁄UË L§º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (24) Ÿ◊Ê ªáÊèÿÊ ªáʬÁÃèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê fl˝ÊÃèÿÊ fl˝ÊìÁÃèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ªÎà‚èÿÊ ªÎà‚¬ÁÃèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÁflM§¬èÿÊ Áfl‡flM§¬èÿ‡ø flÊ Ÿ◊—.. (25) ªáÊÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ªáʬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. fl˝Ã¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. fl˝Ã ∑§ •Áœ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ’ÈÁh◊ÊŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ’ÈÁh◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ, ÁflÁflœ M§¬flÊŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ’„ÈUà M§¬flÊŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (25) Ÿ◊— ‚ŸÊèÿ— ‚ŸÊÁŸèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ⁄UÁÕèÿÊ •⁄UÕèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ˇÊûÊÎèÿ— ‚¢ª˝„UËÃÎèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ◊„UjKÊ •÷¸∑§èÿ‡ø flÊ Ÿ◊—.. (26) ‚ŸÊ SflM§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‚ŸÊ¬Áà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ⁄UÕflÊŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ⁄UÕ„UËŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ˇÊÁòÊÿ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ‚¢ª˝„U∑§Ãʸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ◊„UÊŸ˜ SflM§¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ∑§ÁŸcΔU ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (26) Ÿ◊SÃˇÊèÿÊ ⁄UÕ∑§Ê⁄Uèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ∑ȧ‹Ê‹èÿ— ∑§◊ʸ⁄‘Uèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÁŸ·ÊŒèÿ— ¬ÈÁÜ¡cΔUèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊— ‡flÁŸèÿÊ ◊ΪÿÈèÿ‡ø flÊ Ÿ◊—.. (27) Ã⁄U∑§‚∑§Ê⁄U •ÊÒ⁄U ⁄UÕ∑§Ê⁄U ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ∑ȧê„UÊ⁄U •ÊÒ⁄U ‹Ê„UÊ⁄U ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ÷Ë‹ •ÊÒ⁄U ¡¢ª‹flÊ‚Ë ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ∑ȧûÊÊ ¬Ê‹∑§ •ÊÒ⁄U Á‡Ê∑§ÊÁ⁄UÿÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (27) Ÿ◊— ‡flèÿ— ‡fl¬ÁÃèÿ‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê ÷flÊÿ ø L§º˝Êÿ ø Ÿ◊— ‡Êflʸÿ ø ¬‡ÊȬÃÿ ø Ÿ◊Ê ŸË‹ª˝ËflÊÿ ø Á‡ÊÁÃ∑§áΔUÊÿ ø.. (28) ∑ȧûÊÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ∑ȧûÊÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚¢‚Ê⁄U ∑§ SflÊ◊Ë ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Áfl‡fl SflÊ◊Ë ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¬‡ÊȬÁà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬‡ÊȬÁà ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ŸË‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ fl ŸË‹ ∑¢§ΔU flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (28) Ÿ◊— ∑§¬ÌŒŸ ø √ÿÈåÃ∑§‡ÊÊÿ ø Ÿ◊— ‚„U‚˝ÊˇÊÊÿ ø ‡ÊÃœãflŸ ø Ÿ◊Ê ÁªÁ⁄U‡ÊÿÊÿ ø Á‡ÊÁ¬ÁflCÔUÊÿ ø Ÿ◊Ê ◊Ë…ÈUCÔU◊Êÿ ø·È◊à ø.. (29) ¡≈UÊ◊ÿ L§º˝ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ◊È¢Á«Uà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. „U¡Ê⁄UÊ¥ •Ê¢πÊ¥ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ ÿ¡Èfl¸Œ - 199
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Ÿ◊Ÿ. ‚Ò∑§«∏UÊ¥ œŸÈ· flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÁªÁ⁄U ◊¥ ‚ÊŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚÷Ë ◊¥ √ÿÊåà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚ÈπŒÊÃÊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ß·È◊ÊŸ (’ÊáÊœÊ⁄UË) ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (29) Ÿ◊Ê OÔUSflÊÿ ø flÊ◊ŸÊÿ ø Ÿ◊Ê ’΄Uà ø fl·Ë¸ÿ‚ ø Ÿ◊Ê flÎhÊÿ ø ‚flÎœ ø Ÿ◊Ê ˘ ª˝KÊÿ ø ¬˝Õ◊Êÿ ø.. (30) OÔUSfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. flÊ◊Ÿ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Áfl‡ÊÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. fl·¸ flÊ‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. flÎh ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. •Ê∑§·¸∑§ ÿÈflÊM§¬ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. •ª˝áÊË ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝Õ◊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (30) Ÿ◊ ˘ •Ê‡Êfl øÊÁ¡⁄UÊÿ ø Ÿ◊— ‡ÊËÉÿ˛Êÿ ø ‡ÊËèÿÊÿ ø Ÿ◊ ˘ ™§êÿʸÿ øÊ flSflãÿÊÿ ø Ÿ◊Ê ŸÊŒÿÊÿ ø mËåÿÊÿ ø.. (31) ÃËfl˝ ªÁà flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡ÊËÉÊ˝ ∑§◊¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. flªflÊŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‹„U⁄U flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¡‹ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ŸŒË ◊¥ fl mˬ ¬⁄U ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (31) Ÿ◊Ê ÖÿcΔUÊÿ ø ∑§ÁŸcΔUÊÿ ø Ÿ◊— ¬Ífl¸¡Êÿ øʬ⁄U¡Êÿ ø Ÿ◊Ê ◊äÿ◊Êÿ øʬªÀ÷Êÿ ø Ÿ◊Ê ¡ÉÊãÿÊÿ ø ’ÈäãÿÊÿ ø.. (32) ÖÿcΔU ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§ÁŸcΔU ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬Ífl¸¡ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. flø◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ◊äÿ◊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. •¬˝ÊÒ…∏U ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¡ÉÊãÿ •ÊÒ⁄U ¡Êª˝Ã ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (32) Ÿ◊— ‚ÊèÿÊÿ ø ¬˝ÁÂÿʸÿ ø Ÿ◊Ê ÿÊêÿÊÿ ø ˇÊêÿÊÿ ø Ÿ◊— ‡‹ÊÄÿÊÿ øÊfl‚ÊãÿÊÿ ø Ÿ◊ ˘ ©Ufl¸ÿʸÿ ø πÀÿÊÿ ø.. (33) ‚ÊÒêÿU ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝àÿÊ∑˝§◊áÊ ∑§⁄Ÿ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ãÿÊÿ∑§Ãʸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑ȧ‡Ê‹ˇÊ◊ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡‹Ê∑§ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚◊ʬŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‹„U⁄UÊ¥ flÊ‹ fl ‚¢ª˝„U ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (33) Ÿ◊Ê flãÿÊÿ ø ∑§ˇÿÊÿ ø Ÿ◊— üÊflÊÿ ø ¬˝ÁÃüÊflÊÿ ø Ÿ◊ ˘ •Ê‡ÊÈ·áÊÊÿ øʇÊÈ⁄UÕÊÿ ø Ÿ◊— ‡ÊÍ⁄UÊÿ øÊfl÷ÁŒŸ ø.. (34) flŸ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§ˇÊ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§Ê◊ ◊¥ ÁSÕà Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝ÁÃüÊfláÊ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡ÊËÉÊ˝ªÊ◊Ë ⁄UÕ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡ÊÍ⁄UflË⁄U fl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ NUŒÿ ÷Œ∑§ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (34) Ÿ◊Ê Á’ÁÀ◊Ÿ ø ∑§flÁøŸ ø Ÿ◊Ê flÌ◊áÊ ø flM§ÁÕŸ ø Ÿ◊— üÊÈÃÊÿ ø üÊÈŸÊÿ ø Ÿ◊Ê ŒÈãŒÈèÿÊÿ øÊ„UŸãÿÊÿ ø.. (35) 200 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Á‚⁄U ∑§Ë ⁄UˇÊÊ „ÃÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ (©U¬∑§⁄UáÊ) ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§fløœÊ⁄UË ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ⁄UÕ ∑§ ÷ËÃ⁄U ÿÊ „UÊÕË ∑§ „UÊÒŒ ◊¥ ’ÒΔUŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝ÅÿÊà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝ÅÿÊà ‚ŸÊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ŒÈ¢ŒÈÁ÷ fl flÊl flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (35) Ÿ◊Ê œÎcáÊfl ø ¬˝◊·ÊÊÿ ø Ÿ◊Ê ÁŸ·ÁXáÊ ø·ÈÁœ◊à ø Ÿ◊SÃˡáÊ·fl øÊÿÈÁœŸ ø Ÿ◊— SflÊÿÈœÊÿ ø ‚ÈœãflŸ ø.. (36) œÒÿ¸œÊ⁄UË ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬⁄UÊ◊‡Ê¸ (∑§⁄UŸ ◊¥ ŒˇÊ) ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ’ÊáÊœÊ⁄UË ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Ã⁄U∑§‚ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÃˡáÊ ’ÊáÊÊ¥ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. •ÊÿÈœœÊ⁄UË ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Sflÿ¢ ∑§ •ÊÿÈœ flÊ‹ fl ‚È¢Œ⁄U œŸÈ· flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (36) Ÿ◊— dÈàÿÊÿ ø ¬âÿÊÿ ø Ÿ◊— ∑§Ê≈UKÊÿ ø ŸËåÿÊÿ ø Ÿ◊— ∑ȧÀÿÊÿ ø ‚⁄USÿÊÿ ø Ÿ◊Ê ŸÊŒÿÊÿ ø flÒ‡ÊãÃÊÿ ø.. (37) ¿UÊ≈U ◊ʪ¸ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„UŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ’«∏U ◊ʪ¸ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„UŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§ΔUÊ⁄U ◊ʪ¸ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„UŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬„UÊ«∏U ∑§ ÁŸø‹ ÷ʪ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„UŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬Ã‹Ë ŸŒË flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚⁄UÊfl⁄U flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ŸŒË ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ fl ¿UÊ≈U ÃÊ‹Ê’ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (37) Ÿ◊— ∑ͧåÿÊÿ øÊfl≈UKÊÿ ø Ÿ◊Ê flËäÿ˛Êÿ øÊÃåÿÊÿ ø Ÿ◊Ê ◊ÉÿÊÿ ø ÁfllÈàÿÊÿ ø Ÿ◊Ê flcÿʸÿ øÊflcÿʸÿ ø.. (38) ∑ȧ∞¢ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ª«˜U…U ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝∑§Ê‡Ê •ÊÒ⁄U œÍ¬ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ’ÊŒ‹Ê¥ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÁfllÈà ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. fl·Ê¸ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ fl •fl·Ê¸ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (38) Ÿ◊Ê flÊàÿÊÿ ø ⁄UcêÿÊÿ ø Ÿ◊Ê flÊSÃ√ÿÊÿ ø flÊSÃȬÊÿ ø Ÿ◊— ‚Ê◊Êÿ ø L§º˝Êÿ ø Ÿ◊SÃÊ◊˝Êÿ øÊL§áÊÊÿ ø.. (39) „UflÊ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝‹ÿ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. flÊSÃÈ∑§‹Ê ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. flÊSÃÈ∑§‹Ê ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚Ê◊ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÃÊ¢’ ¡Ò‚ ⁄¢Uª flÊ‹ fl ªÈ‹Ê’Ë ⁄¢Uª flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (39) Ÿ◊— ‡ÊXfl ø ¬‡ÊȬÃÿ ø Ÿ◊ ˘ ©Uª˝Êÿ ø ÷Ë◊Êÿ ø Ÿ◊Ê ˘ ª˝flœÊÿ ø ŒÍ⁄UflœÊÿ ø Ÿ◊Ê „UãòÊ ø „UŸËÿ‚ ø Ÿ◊Ê flΡÊèÿÊ „UÁ⁄U∑§‡ÊèÿÊ Ÿ◊SÃÊ⁄UÊÿ.. (40) ‚Ë¥ª flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬‡ÊȬÁà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ©Uª˝ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÷Ë◊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ.Ô •ª˝ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÁfløÊ⁄UflÊŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ŒÍ⁄U ∑§Ê ÁfløÊ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ ÿ¡Èfl¸Œ - 201
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡ÊòÊÈ„¢ÃÊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ „UŸŸ ◊¥ ‹ª „ÈU∞ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. flÎˇÊ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. „U⁄U ∑§‡Ê flÊ‹ fl ÃÊ⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (40) Ÿ◊— ‡Êê÷flÊÿ ø ◊ÿÊ÷flÊÿ ø Ÿ◊— ‡ÊV⁄UÊÿ ø ◊ÿS∑§⁄UÊÿ ø Ÿ◊— Á‡ÊflÊÿ ø Á‡ÊflÃ⁄UÊÿ ø.. (41) ‡Ê¢÷È ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡Ê¢∑§⁄U ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ◊ÿ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Á‡Êfl fl ©UŸ ‚ ßÃ⁄U Œfl ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (41) Ÿ◊— ¬Êÿʸÿ øÊflÊÿʸÿ ø Ÿ◊— ¬˝Ã⁄UáÊÊÿ øÊûÊ⁄UáÊÊÿ ø Ÿ◊SÃËâÿʸÿ ø ∑ͧÀÿÊÿ ø Ÿ◊— ‡ÊcåÿÊÿ ø »§ãÿÊÿ ø.. (42) ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ß‚ ¬Ê⁄U flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ©U‚ ¬Ê⁄U flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬Ê⁄U ‹ªÊŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÃËÕ¸flÊ‚Ë ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Ã≈U ¬⁄U ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÉÊÊ‚ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚◊Ⱥ˝ ◊¥ »§Ÿ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (42) Ÿ◊— Á‚∑§àÿÊÿ ø ¬˝flÊsÔÊÿ ø Ÿ◊— Á∑§ ¦ Á‡Ê‹Êÿ ø ˇÊÿáÊÊÿ ø Ÿ◊— ∑§¬ÌŒŸ ø ¬È‹SÃÿ ø Ÿ◊ ˘ ßÁ⁄UáÿÊÿ ø ¬˝¬âÿÊÿ ø.. (43) ⁄U à ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬˝flÊ„U ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬àÕ⁄U ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¡‹ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§ÊÒ«∏UË, ‚ˬ •ÊÁŒ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬È‹ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Áß∑§Ê¥ •ÊÒ⁄U üÊcΔU ¬Õ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (43) Ÿ◊Ê fl˝ÖÿÊÿ ø ªÊcΔU˜ÿÊÿ ø Ÿ◊SÃÀåÿÊÿ ø ªsÔÊÿ ø Ÿ◊Ê NUŒƒÿÊÿ ø ÁŸflcåÿÊÿ ø Ÿ◊— ∑§Ê≈UKÊÿ ø ªuÔU⁄UcΔUÊÿ ø.. (44) ø⁄UʪʄU ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ’Ê«∏U ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‡ÊƒÿÊ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ÉÊ⁄U ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. NUŒÿ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§ÁΔUŸ ⁄UÊ„U ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ∑§Ê≈U ∑§⁄U ’ŸÊ߸ ªß¸ ªÈ»§Ê fl ª±Ufl⁄U (ª„U⁄UÊ) ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (44) Ÿ◊— ‡ÊÈcÄÿÊÿ ø „UÁ⁄UàÿÊÿ ø Ÿ◊— ¬Ê ¦ ‚√ÿÊÿ ø ⁄U¡SÿÊÿ ø Ÿ◊Ê ‹ÊåÿÊÿ øÊ‹åÿÊÿ ø Ÿ◊ ˘ ™§√ÿʸÿ ø ‚Í√ÿʸÿ ø.. (45) ‚ÍπË ‹∑§«∏UË ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. „UÁ⁄UÿÊ‹Ë ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬Èc¬ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. œÍ‹ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. •ŒÎ‡ÿ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ŒÎ‡ÿ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ©Ufl¸⁄U fl •Áœ∑§ÊÁœ∑§ ◊¥ ÁSÕà ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (45) Ÿ◊— ¬áÊʸÿ ø ¬áʸ‡ÊŒÊÿ ø Ÿ◊ ˘ ©UŒÈ⁄U◊ÊáÊÊÿ øÊÁ÷ÉŸÃ ø Ÿ◊ ˘ •ÊÁπŒÃ ø ¬˝ÁπŒÃ ø Ÿ◊ ˘ ß·È∑ΧjKÊ œŸÈc∑ΧjK‡ø flÊ Ÿ◊Ê Ÿ◊Ê fl— Á∑§Á⁄U∑§èÿÊ ŒflÊŸÊ ¦ NUŒÿèÿÊ Ÿ◊Ê ÁflÁøãflà∑§èÿÊ Ÿ◊Ê ÁflÁˇÊáÊà∑§èÿÊ Ÿ◊ ˘ •ÊÁŸ„¸UÃèÿ—.. (46) 202 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¬ûÊÊ¥ ◊¥ Áfl⁄UÊ¡Ÿ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. ŸËø Áª⁄U „ÈU∞ ¬ûÊÊ¥ ◊¥ Áfl⁄UÊ¡Ÿ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. ©Uà¬ããÊ „UÊŸ ∑§ Á‹∞ ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ¬˝ÿÊ‚ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ‚¢„UÊ⁄U∑§ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. ∑§◊¸„UËŸ ∑§Ê ŒÈ—π ŒŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ’ÊáÊ ¬ÒŒÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. œŸÈ· ¬ÒŒÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ NUŒÿ ◊¥ flÊ‚ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ‚ÎÁc≈U ∑§Ê Áø¢ÃŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. ¬Ê¬¬Èáÿ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê Áfl÷Äà ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. (46) º˝Ê¬ •ãœ‚S¬Ã ŒÁ⁄Uº˝ ŸË‹‹ÊÁ„UÃ. •Ê‚Ê¢ ¬˝¡ÊŸÊ◊·Ê¢ ¬‡ÊÍŸÊ¢ ◊Ê ÷◊ʸ ⁄UÊæ˜U◊Ê ø Ÿ— Á∑¢§øŸÊ◊◊Ø.. (47) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ¬ÊÁ¬ÿÊ¥ ∑§Ê •UœÊªÁà ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •ããÊ ’‹ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ ŸË‹ •ÊÒ⁄U ‹Ê‹ ⁄¢Uª ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝¡Ê ∑§Ê ∑§c≈U Ÿ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ÷ÿ÷Ëà Ÿ„UË¥ „UÊŸ ŒÃ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÕÊ«U∏Ê ‚Ê ÷Ë ⁄Uʪ ª˝Sà ◊à „UÊŸ ŒËÁ¡∞. (47) ß◊Ê L§º˝Êÿ Ãfl‚ ∑§¬ÌŒŸ ˇÊÿmË⁄UÊÿ ¬˝ ÷⁄UÊ◊„U ◊ÃË—. ÿÕÊ ‡Ê◊‚Œ˜ Ám¬Œ øÃÈc¬Œ Áfl‡fl¢ ¬ÈCÔ¢U ª˝Ê◊ ˘ •ÁS◊㟟ÊÃÈ⁄U◊˜.. (48) „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •¬ŸË ’ÈÁh L§º˝ Œfl ∑§Ê •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl flË⁄UÊ¥ ∑§ ¬˝⁄U∑§ fl •Áà ’‹flÊŸ „Ò¥U. ¡Ò‚ ŒÊ¬ÊÿÊ¥ •ÊÒ⁄U øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§ ‡Êʢà ⁄U„UŸ ‚ ªÊ¢fl ‡Êʢà ⁄U„Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË „U◊ ‚’ ∑§ ‡Êʢà •ÊÒ⁄U Áø¢ÃÊ ◊ÈÄà ⁄U„UŸ ‚ „U◊Ê⁄U ªÊ¢fl ÷Ë ‡ÊÊ¢ÁÃ◊ÿ ⁄U„¥U. (48) ÿÊ Ã L§º˝ Á‡ÊflÊ ÃŸÍ— Á‡ÊflÊ Áfl‡flÊ„UÊ ÷·¡Ë. Á‡ÊflÊ L§ÃSÿ ÷·¡Ë ÃÿÊ ŸÊ ◊ΫU ¡Ëfl‚.. (49) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ∑§ÀÿÊáÊ SflM§¬ „ÒU¢. •Ê·Áœ ∑§Ë Ã⁄U„U ’Ë◊Ê⁄UË ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ÃÊ¡ªË ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê fl„U SflM§¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ. (49) ¬Á⁄U ŸÊ L§º˝Sÿ „UÁÃfl¸ÎáÊÄÃÈ ¬Á⁄U àfl·Sÿ ŒÈ◊¸ÁÃ⁄UÉÊÊÿÊ—. •fl ÁSÕ⁄UÊ ◊ÉÊfljKSßÈcfl ◊Ë…U˜flSÃÊ∑§Êÿ ßÿÊÿ ◊ΫU.. (50) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ „U◊¥ •SòʇÊSòÊÊ¥ ‚ ŒÍ⁄U ⁄UÁπ∞. „U◊ ŒÈ◊¸Áà „UÊŸ ‚ ’ø¥. „U◊ ∑˝§ÊÁœÃ „UÊŸ ‚ ’ø¥. „U ◊ÉÊflŸ˜! •Ê¬ •¬ŸÊ œŸÈ· •ÊÒ⁄U ¬˝àÿ¢ëÊÊ ©ÃÊ⁄U ŒËÁ¡∞. ÃÊÁ∑§ ÿ¡◊ÊŸ ÁŸ÷¸ÿ „UÊ ‚∑¥§. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬ËÁ…∏UÿÊ¥ ∑§Ê ‚ÈπË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (50) ◊Ë…ÈUCÔU◊ Á‡ÊflÃ◊ Á‡ÊflÊ Ÿ— ‚È◊ŸÊ ÷fl. ¬⁄U◊ flÎˇÊ ˘ •ÊÿÈœ¢ ÁŸœÊÿ ∑ΧÁûÊ¢ fl‚ÊŸ ˘ •Ê ø⁄U Á¬ŸÊ∑¢§ Á’÷˝ŒÊ ªÁ„U.. (51) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ •÷Ëc≈U »§‹ŒÊÃÊ fl •ÃËfl ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡Èfl¸Œ - 203
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ „UÊß∞. •Ê¬ flÎˇÊ ∑§Ë ΔUΔU ™¢§øÊ߸ ¬⁄U •¬Ÿ •ÊÿÈœ ⁄Uπ ŒËÁ¡∞.U ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ë πÊ‹ ∑§ flSòÊ œÊ⁄áÊ U∑§⁄U ∑§ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ∑§fl‹ •¬ŸÊ œŸÈ· œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U ∑§ •Êß∞. (51) ÁflÁ∑§Á⁄Uº˝ Áfl‹ÊÁ„Uà Ÿ◊Sà •SÃÈ ÷ªfl—. ÿÊSà ‚„Ud ¦ „UÃÿÊ ˘ ãÿ◊S◊Á㟠fl¬ãÃÈ ÃÊ—.. (52) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ©U¬º˝flŸÊ‡ÊË „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊÈh SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷ÊÇÿflÊŸ ’ŸÊß∞. •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. •Ê¬ ∑§ „U¡Ê⁄UÊ¥ •SòÊ „U◊Ê⁄U Á„Uà ‚Êœ∑§ „UÊ¥. fl •SòÊ •ãÿÊ¥ (ŒÈ‡◊ŸÊ¥) ¬⁄U ¬«∏¥U. (52) ‚„UdÊÁáÊ ‚„Ud‡ÊÊ ’ÊuÔUÊSÃfl „UÃÿ—. ÃÊ‚Ê◊ˇÊÊŸÊ ÷ªfl— ¬⁄UÊøËŸÊ ◊ÈπÊ ∑ΧÁœ.. (53) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ∑§Ë ’Ê„ÈU•Ê¥ ◊¥ „U¡Ê⁄UÊ¥ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ „U¡Ê⁄UÊ¥ •SòʇÊSòÊ „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ •ÊÿȜʥ ∑§Ê ◊È¢„U „U◊Ê⁄UË •Ê⁄U ‚ »§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (53) •‚¢ÅÿÊÃÊ ‚„UdÊÁáÊ ÿ L§º˝Ê ˘ •Áœ ÷ÍêÿÊ◊˜. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (54) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ •‚¢Åÿ ‹ÊªÊ¥ ∑§ ÁŸÿ¢òÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ „U¡Ê⁄UÊ¥ ªáÊ ÷ÍÁ◊ ¬⁄U •ÁœÁcΔUà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ (ŒÍ⁄UË ‚Íø∑§ ∞∑§ ß∑§Ê߸) ŒÍ⁄U ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (54) •ÁS◊Ÿ˜ ◊„Uàÿáʸfl ˘ ãÃÁ⁄UˇÊ ÷flÊ ˘ •Áœ. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (55) •Ÿ∑§ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê •¬Ÿ fl‡Ê ◊¥ ∑§⁄UŸ flÊ‹ L§º˝ Œfl ∑§ „U¡Ê⁄UÊ¥ ªáÊ ß‚ ¬ÎâflË ¬⁄U „ÒU¢. fl •¬Ÿ ªáÊÊ¥ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ⁄Uπ¥. (55) ŸË‹ª˝ËflÊ— Á‡ÊÁÃ∑§áΔUÊ ÁŒfl ¦ L§º˝Ê ˘ ©U¬ÁüÊÃÊ—. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (56) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ŸË‹Ë ª⁄UŒŸ fl ‚»§Œ ∑¢§ΔU flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÁŸflÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ⁄UÁπ∞. (56) ŸË‹ª˝ËflÊ— Á‡ÊÁÃ∑§áΔUÊ— ‡Êflʸ ˘ •œ— ˇÊ◊Êø⁄UÊ—. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (57) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ŸË‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ‚»§Œ ∑¢§ΔU UflÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ŸËø ÷Í◊¢«U‹ ◊¥ Áflø⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (57) 204 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿ flÎˇÊ·È ‡ÊÁc¬Ü¡⁄UÊ ŸË‹ª˝ËflÊ Áfl‹ÊÁ„UÃÊ—. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (58) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ŸË‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ⁄¢Uª „U⁄UÊ „ÒU. •Ê¬ •àÿ¢Ã áSflË „Ò¥U. •Ê¬ flΡÊÊÁŒ ◊¥ •ÁœÁcΔUà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ œŸÈ· ∑§Ê ¬˝àÿ¢øÊ „UËŸ ’ŸÊ ∑§⁄U „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ⁄UÁπ∞. (58)U ÿ ÷ÍÃÊŸÊ◊Áœ¬ÃÿÊ ÁflÁ‡ÊπÊ‚— ∑§¬ÌŒŸ—. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (59) L§º˝ Œfl! •Ê¬ ÷ÍÃÊ¥ ∑§ •Áœ¬Áà fl Áfl‡Ê· Á‡ÊπÊ (øÊ≈UË) ‚Á„Uà „Ò¥U. ¡Ê ¡≈UÊœÊ⁄UË „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê ¬˝àÿ¢øÊ ⁄UÁ„Uà ’ŸÊß∞. •Ê¬ ©Uã„¥U „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. (59) ÿ ¬ÕÊ¢ ¬ÁÕ⁄UˇÊÿ ˘ ∞‹’ÎŒÊ ˘ •ÊÿÈÿȸœ—. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (60) „U L§º˝ Œfl! •Ê¬ ∑§ß¸ ⁄UÊ„Ê¥ ∑§ ⁄UÊ„UªË⁄UÊ¥ ∑§ ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •ããÊ ‚ ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ê ¬Ê·áÊ ŒŸ flÊ‹ fl •ÊÿÈœœÊ⁄UË „Ò¥U. ¡Ê ¡ËflŸ ∑§ ÿÈh ◊¥ ¡Í¤Ê ⁄U„U „Ò¥, •Ê¬ ©UŸ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©UŸ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê ¬˝àÿ¢øÊ ⁄UÁ„Uà ’ŸÊß∞. (60) ÿ ÃËÕʸÁŸ ¬˝ø⁄UÁãà ‚Î∑§Ê„USÃÊ ÁŸ·ÁXáÊ—. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (61) „U L§º˝ Œfl! ¡Ê ÃËÕÊZ ◊¥ „UÊÕ ◊¥ ÷Ê‹, ’ÊáÊ •ÊÁŒ ‹ ∑§⁄U Áflø⁄Uà „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê ¬˝àÿ¢øÊ ⁄UÁ„Uà ’ŸÊ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ©Uã„¥U „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. (61) ÿ ˘ ãŸ·È ÁflÁfläÿÁãà ¬ÊòÊ·È Á¬’ÃÊ ¡ŸÊŸ˜. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (62) „U L§º˝ Œfl! ¡Ê ¬ÊòÊÊ¥ ◊¥ •ããÊ ¬ËŸ flÊ‹ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê ¬⁄U‡ÊÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê ¬˝àÿ¢øÊ ⁄UÁ„Uà ’ŸÊ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ©UŸ ∑§§œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. (62) ÿ ∞ÃÊflãÇø ÷ÍÿÊ ¦ ‚‡ø ÁŒ‡ÊÊ L§º˝Ê ÁflÃÁSÕ⁄U. Ã·Ê ¦ ‚„UdÿÊ¡Ÿ ˘ fl œãflÊÁŸ Ãã◊Á‚.. (63) „U L§º˝ Œfl! ¡Ê ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ •ÊÒ⁄U ’„ÈUà ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„Uà „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê ¬˝àÿ¢øÊ ⁄UÁ„Uà ’ŸÊß∞. •Ê¬ ©UŸ ∑§ œŸÈ·Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿÊ¡Ÿ ŒÍ⁄U ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (63) ÿ¡Èfl¸Œ - 205
¬Íflʸœ¸
‚Ê‹„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Ÿ◊Ê ˘ SÃÈ L§º˝èÿÊ ÿ ÁŒÁfl ÿ·Ê¢ fl·¸Á◊·fl—. ÃèÿÊ Œ‡Ê ¬˝ÊøËŒ¸‡Ê ŒÁˇÊáÊÊ Œ‡Ê ¬˝ÃËøËŒ¸‡ÊÊŒËøËŒ¸‡ÊÊäflʸ—. ÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊ ˘ flãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁCÔU Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (64) „U L§º˝ Œfl! ¡Ê Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¥U, ¡Ê ’⁄U‚Êà ∑§Ë Ã⁄U„U ’ÊáÊ ’⁄U‚Êà „Ò¥U, „U◊ ©Uã„¥U ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©Uã„¥U ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©Uã„¥U ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©Uã„¥U ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ L§º˝ªáÊ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U „UÊ. L§º˝ªáÊ mÊ⁄UÊ „U◊¥ ‚Èπ •ÊÒ⁄U ⁄UˇÊÊ ¬˝Êåà „UÊ. ¡Ê „U◊ ‚ m· ÷Êfl ⁄Uπà „Ò¥U, Á¡Ÿ ‚ „U◊ m·÷Êfl ⁄Uπà „Ò¥U. L§º˝ªáÊ •¬ŸË ŒÊ…U∏ ◊¥ ∞‚ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê ⁄Uπ ‹¥ (Œ’Ê ‹¥). (64) Ÿ◊Ê ˘ SÃÈ L§º˝èÿÊ ÿ ˘ ãÃÁ⁄UˇÊ ÿ·Ê¢ flÊà ˘ ß·fl—. ÃèÿÊ Œ‡Ê ¬˝ÊøËŒ¸‡Ê ŒÁˇÊáÊÊ Œ‡Ê ¬˝ÃËøËŒ¸‡ÊÊŒËøËŒ¸‡ÊÊäflʸ—. ÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊ ˘ flãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁCÔU Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (65) „U L§º˝ªáÊ! •¢ÃÁ⁄ˇÊ ◊¥ ÁSÕà •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •Ê¬ ∑§ ’ÊáÊ „UflÊ ∑§Ë Ã⁄U„U „Ò¥U. „U◊ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ©Uã„¥U ¬˝áÊÊ◊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ©Uã„¥U ¬˝áÊÊ◊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ©Uã„¥U ¬˝áÊÊ◊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©Uã„¥U Ÿ◊S∑§Ê⁄U. fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U •ÊÒ⁄U „U◊¥ ‚ÈÈπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, L§º˝ªáÊ ©Uã„¥U •¬ŸË ŒÊ…U∏ ◊¥ ⁄Uπ ‹¥ (Œ’Ê ‹¥). (65) Ÿ◊Ê ˘ SÃÈ L§º˝èÿÊ ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ ÿ·Ê◊ãŸÁ◊·fl—. ÃèÿÊ Œ‡Ê ¬˝ÊøËŒ¸‡Ê ŒÁˇÊáÊÊ Œ‡Ê ¬˝ÃËøËŒ¸‡ÊÊŒËøËŒ¸‡ÊÊäflʸ—. ÃèÿÊ Ÿ◊Ê •SÃÈ Ã ŸÊ ˘ flãÃÈ Ã ŸÊ ◊ΫUÿãÃÈ Ã ÿ¢ Ámc◊Ê ÿ‡ø ŸÊ mÁCÔU Ã◊·Ê¢ ¡ê÷ Œä◊—.. (66) „U L§º˝ªáÊ! ¬ÎâflË ¬⁄U ÁSÕà •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. •Ê¬ ∑§ ’ÊáÊ •ããÊ ’⁄U‚Êà „Ò¥U. „U◊ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚Èπ Œ¥. •Ê¬ ©Uã„¥U ŒÊ…U∏ ◊¥ ⁄Uπ ‹¥ (Œ’Ê ‹¥), ¡Ê „U◊ ‚ m· ⁄Uπà „Ò¥U Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ⁄Uπà „Ò¥U. (66)
206 - ÿ¡Èfl¸Œ
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ •‡◊ãŸÍ¡Z ¬fl¸Ã Á‡ÊÁüÊÿÊáÊÊ◊jK ˘ •Ê·œËèÿÊ flŸS¬ÁÃèÿÊ •Áœ ‚ê÷Îâ ¬ÿ—. ÃÊ¢ Ÿ ˘ ß·◊Í¡Z œûÊ ◊L§Ã— ‚ ¦ ⁄U⁄UÊáÊÊ •‡◊°Sà ˇÊÈã◊Áÿ à ˘ ™§ÇÿZ Ámc◊Sâ à ‡ÊȪÎë¿UÃÈ.. (1) „U ◊L§Œ˜ªáÊ! •Ê¬ „U◊¥ •ããÊ ‚ ™§¡¸SflË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬àÕ⁄UÊ¥, •Ê·ÁœÿÊ¥, ¡‹Ê¥ fl flŸS¬ÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ’‹ œÊÁ⁄U∞. ©Uã„¥U •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ⁄U‚¬Íáʸ ’ŸÊß∞. •Ê¬ •ããÊ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ∑§Ë ˇÊÈœÊ ‡Êʢà „UÊ. •Ê¬ ∑§Ê ∑˝§Êœ ©UŸ ‹ÊªÊ¥ ¬⁄U „UÊ, ¡Ê „U◊ ‚ m· ⁄Uπà „Ò¥U. (1) ß◊Ê ◊ •ÇŸ ˘ ßc≈U∑§Ê œŸfl— ‚ãàfl∑§Ê ø Œ‡Ê ø Œ‡Ê ø ‡Êâ ø ‡Êâ ø ‚„Ud¢ ø ‚„Ud¢ øÊÿÈâ øÊÿÈâ ø ÁŸÿÈâ ø ÁŸÿÈâ ø ¬˝ÿÈâ øʒȸŒ¢ ø ãÿ’ȸŒ¢ ø ‚◊Ⱥ˝‡ø ◊äÿ¢ øÊãÇø ¬⁄UÊœ¸‡øÒÃÊ ◊ •ÇŸ ˘ ßc≈U∑§Ê œŸfl— ‚ãàfl◊ÈòÊÊ◊ÈÁc◊°À‹Ê∑§.. (2) „U •ÁÇŸ! ÿ ßc≈U∑§Ê∞¢ („UÁfl ∑§Ê ‚͡◊ ÷ʪ) „U◊Ê⁄U Á‹∞ ◊ŸÊ⁄UÕ¬Í⁄U∑§ ∑§Ê◊œŸÈ ∑§Ë Ã⁄U„U „UÊ ¡Ê∞¢. ÿ ßc≈U∑§Ê∞¢ Œ‚ ªÈŸË „UÊ ¡Ê∞¢. Œ‚ ‚ Œ‚ ªÈŸË „UÊ ¡Ê∞¢. ‚ÊÒ ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË „U¡Ê⁄ „UÊ ¡Ê∞¢. „U¡Ê⁄U ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË „UÊ ∑§⁄U Œ‚ „U¡Ê⁄U „UÊ ¡Ê∞¢. •ÿÈà (Œ‚ „U¡Ê⁄)U ∑§Ë ªÈŸË „UÊ ∑§⁄U ÁŸÿÈà (‹Êπ) „UÊ ¡Ê∞¢. ÁŸÿÈà ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË „UÊ ∑§⁄U ¬˝ÿÈà (Œ‚ ‹Êπ) „UÊ ¡Ê∞¢. ¬˝ÿÈà ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË „UÊ ∑§⁄U ∑§⁄UÊ«∏U „UÊ ¡Ê∞¢. ∑§⁄UÊ«∏ ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË „UÊ ∑§⁄U Œ‚ ∑§⁄UÊ«∏U „UÊ ¡Ê∞¢. Œ‚ ∑§⁄UÊ«∏U ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË „UÊ ∑§⁄U •⁄U’ „UÊ ¡Ê∞¢. ‚◊Ⱥ˝‚◊Ⱥ˝ ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË ◊äÿ (‡Ê¢π ¬Œ˜◊Ô), ◊äÿ ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË •¢Ã. •¢Ã ∑§Ë Œ‚ ªÈŸË „UÊ ∑§⁄U ¬⁄UÊh¸ ‚¢ÅÿÊ Ã∑§ ’…∏UÃË ¡Ê∞¢. „U •ÁÇŸ! ßc≈U∑§Ê∞¢ ß‚ ‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬⁄U‹Ê∑§ ◊¥ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄¥U. ÿ ßc≈U∑§Ê∞¢ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§Ê◊œŸÈ ∑§Ë Ã⁄U„U „UÊ ¡Ê∞¢. (2) ´§Ãfl— SÕ ˘ ´§ÃÊflÎœ ˘ ´§ÃÈcΔUÊ— SÕ ˘ ´§ÃÊflÎœ—. ÉÊÎÇëÿÈÃÊ ◊œÈ‡ëÿÈÃÊ Áfl⁄UÊ¡Ê ŸÊ◊ ∑§Ê◊ŒÈÉÊÊ ˘ •ˇÊËÿ◊ÊáÊÊ—.. (3) ßc≈U∑§Ê∞¢ ‚àÿ ∑§Ê ÁSÕ⁄U ⁄UπÃË „Ò¥U, ‚àÿ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UÃË „Ò¥U, ßUc≈U∑§Ê ‚àÿ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„UÃË „Ò¥U. ßc≈U∑§Ê∞¢ ‚àÿ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UÃË „Ò¥. ÿ ÉÊË fl ◊œÈ øÈ•Ê∞¢. ÿ ‡ÊÊÁ÷à •ÊÒ⁄U ∑§Ê◊ŸÊ¬Í⁄U∑§ „UÊ¥. ∑§÷Ë ˇÊËáÊ Ÿ „UÊ¥. (3) ÿ¡Èfl¸Œ - 207
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚◊Ⱥ˝Sÿ àflÊfl∑§ÿÊÇŸ ¬Á⁄U √ÿÿÊ◊Á‚. ¬Êfl∑§Ê •S◊èÿ ¦ Á‡ÊflÊ ÷fl.. (4) „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ∑§fl∑§ ‚ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ ÉÊ⁄U ∑§⁄U ⁄Uπà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊß∞. (4) Á„U◊Sÿ àflÊ ¡⁄UÊÿÈáÊÊÇŸ ¬Á⁄U √ÿÿÊ◊Á‚. ¬Êfl∑§Ê •S◊èÿ ¦ Á‡ÊflÊ ÷fl.. (5) „U •ÁÇŸ! „U◊ ÷˝ÍáÊ ∑§Ê ‹¬≈UŸ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ ∑§Ê Á„U◊ ∑§ •Êfl⁄UáÊ ‚ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ ÉÊ⁄U ‹Ã „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊß∞. (5) ©U¬ Ö◊ãŸÈ¬ fl ˘ flÃ⁄U ŸŒËcflÊ. •ÇŸ Á¬ûÊ◊¬Ê◊Á‚ ◊á«ÍUÁ∑§ ÃÊÁèÊ⁄UʪÁ„U ‚◊¢ ŸÊ ÿôÊ¢ ¬Êfl∑§fláʸ ¦ Á‡Êfl¢ ∑ΧÁœ.. (6) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚◊ˬ ¬œÊÁ⁄U∞. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’«∏UflÊÁÇŸ ∑§ ‚ÊÕ ŸŒË ◊¥ ’„Uà „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¡‹ ∑§ Á¬ûÊ „Ò¥U. ◊¢«ÍUÁ∑§ ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ‚ ’Ê„U⁄U ÁŸ∑§Á‹∞. ¡‹ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ’ŸÊß∞. (6) •¬ÊÁ◊Œ¢ ãÿÿŸ ¦ ‚◊Ⱥ˝Sÿ ÁŸfl‡ÊŸ◊˜. •ãÿÊ°Sà •S◊ûʬãÃÈ „UÃÿ— ¬Êfl∑§Ê •S◊èÿ ¦ Á‡ÊflÊ ÷fl.. (7) ÿ„U •ÁÇŸ ¡‹ ∑§ •ÊüÊÿ ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ÉÊ⁄U ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ìÊß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ’ŸÊß∞. (7) •ÇŸ ¬Êfl∑§ ⁄UÊÁø·Ê ◊ãº˝ÿÊ Œfl Á¡uÔUÿÊ. •Ê ŒflÊŸ˜ flÁˇÊ ÿÁˇÊ ø.. (8) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ø◊∑§Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÊ¥ ∑§Ê Á¡±flÊ ‚ ’È‹Êß∞. •Ê¬ ÿôÊ ∑§⁄UÊß∞. (8) ‚ Ÿ— ¬Êfl∑§ ŒËÁŒflÊ ˘ ÇŸ ŒflÊ° 2 ß„UÊ fl„U. ©U¬ ÿôÊ ¦ „UÁfl‡ø Ÿ—.. (9) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ŒËÁåÃ◊ÿ ’ŸÊà „Ò¥U. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ŒflÊ¥ ∑§Ê •Ê±flÊŸ ∑§ËÁ¡∞. ÿôÊ ∑§ ‚◊ˬ Áfl⁄UÊ¡Ÿ fl ©UŸ ∑§ ¬Ê‚ ß‚ „UÁfl ∑§Ê ¬„È¢UøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (9) ¬Êfl∑§ÿÊ ÿÁ‡øÃÿãàÿÊ ∑Χ¬Ê ˇÊÊ◊Ÿ˜ L§L§ø ˘ ©U·‚Ê Ÿ ÷ÊŸÈŸÊ. ÃÍfl¸Ÿ˜ Ÿ ÿÊ◊ãŸÃ‡ÊSÿ ŸÍ ⁄UáÊ ˘ •Ê ÿÊ ÉÊÎáÊ Ÿ ÃÃηÊáÊÊ •¡⁄U—.. (10) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ÖflÊ‹Ê•Ê¥ ‚ ¬˝ŒËåà „UÊà „Ò¥U. ¡Ò‚ ©U·Ê ∑§Ê‹ ◊¥ Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ÁÉÊ⁄UÊ „ÈU•Ê ‚Íÿ¸ ‡ÊÊ÷ÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË •Ê¬ ÖflÊ‹Ê•Ê¥ ‚ ‡ÊÊ÷à „Ò¥U. ¡Ò‚ flªflÊŸ ÉÊÊ«∏U ¬⁄U ’ÒΔUÊ „UÈ•Ê ‚ÒÁŸ∑§ ‡ÊÊ÷Ê ŒÃÊ „Ò, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U •Ê¬ •¬Ÿ flª (á) ‚ ‡ÊÊ÷Ê ¬Êà „Ò¥U. (10) 208 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@13
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Ÿ◊Sà „U⁄U‚ ‡ÊÊÁø· Ÿ◊Sà •SàflÁø¸·. •ãÿÊ°Sà •S◊ûʬãÃÈ „UÃÿ— ¬Êfl∑§Ê •S◊èÿ ¦ Á‡ÊflÊ ÷fl.. (11) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. •Ê¬ ∑§Ë ÖflÊ‹Ê∞¢ ø◊∑§Ë‹Ë „ÒU¥ . •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U.U „U◊ •Ê¬ ∑§Ë •ø¸ŸÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . ¡Ê „U◊Ê⁄U m·Ë „ÒU¥ , •Ê¬ ©Uã„U¥ ‚¢Ãåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊß ∞. (11)U ŸÎ·Œ fl«Uå‚È·Œ fl«U˜ ’Á„¸U·Œ fl«˜ flŸ‚Œ fl≈U˜ SflÌflŒ fl≈U˜.. (12) ◊ŸÈcÿÊ¥ ◊¥ ÁSÕà •ÁÇŸ (¡ΔU⁄UÊÁÇŸ) „UÃÈ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „Ò. ¡‹Ê¥ ◊¥ ÁSÕà •ÁÇŸ (’«∏UflÊÁÇŸ) „UÃÈ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. ∑ȧ‡Ê ◊¥ ÁSÕà •ÁÇŸ „UÃÈ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. (12) ÿ ŒflÊ ŒflÊŸÊ¢ ÿÁôÊÿÊ ÿÁôÊÿÊŸÊ ¦ ‚¢flà‚⁄UËáÊ◊Ȭ ÷ʪ◊Ê‚Ã. •„ÈUÃÊŒÊ „UÁfl·Ê ÿôÊ •ÁS◊ãàSflÿ¢ Á¬’ãÃÈ ◊œÈŸÊ ÉÊÎÃSÿ.. (13) ¡Ê Œfl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ÿôÊ ◊¥ ÿôÊËÿ •Ê„ÈUÁà ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl ß‚ ÿôÊ ◊¥ ÿôÊ ∑§ ÷ʪ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ ÿôÊ ◊¥ Á’ŸÊ ’È‹Ê∞ „UË ◊œÈ •ÊÒ⁄U ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁà ∑§Ê Sflÿ¢ „UË ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (13) ÿ ŒflÊ ŒflcflÁœ Œflàfl◊ÊÿŸ˜ ÿ ’˝rÊÔáÊ— ¬È⁄ ˘ ∞ÃÊ⁄UÊ •Sÿ. ÿèÿÊ Ÿ ˘ ´§Ã ¬flà œÊ◊ Á∑§ÜøŸ Ÿ à ÁŒflÊ Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •Áœ SŸÈ·È.. (14) Á¡Ÿ ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ŒflÊÁœŒfl ∑§Ë Ã⁄U„U Œflàfl ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄ ¬ÊÿÊ, ¡Ê ’˝ÊrÊáÊ ∑§ ‚Ê◊Ÿ Áflø⁄Uà „Ò¥U, Á¡Ÿ ∑§ Á’ŸÊ ‡Ê⁄UË⁄U ®∑§ÁøØ (¡⁄UÊ) ÷Ë ¬ÁflòÊ Ÿ„UË¥ „UÊÃÊ fl Ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ „Ò¥U, Ÿ ¬ÎâflË ◊¥ „Ò¥U, ’ÁÀ∑§ „U⁄U ∞∑§ ◊¥ Áfll◊ÊŸ „Ò¥U. (14) ¬˝ÊáÊŒÊ ˘ •¬ÊŸŒÊ √ÿÊŸŒÊ fløʸŒÊ flÁ⁄Uflʌʗ. •ãÿÊ¢Sà •S◊ûʬãÃÈ „UÃÿ— ¬Êfl∑§Ê •S◊èÿ ¦ Á‡ÊflÊ ÷fl.. (15) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝ÊáÊŒÊÃÊ, •¬ÊŸŒÊÃÊ, √ÿÊŸŒÊÃÊ fl flø¸SflŒÊÃÊ „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ flÊÿÈŒÊÃÊ fl ‡ÊÁÄÃŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ •ÊÿÈœ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U ¬«∏¥U. •Ê¬ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊß∞. (15) •ÁÇŸÁSÃÇ◊Ÿ ‡ÊÊÁø·Ê ÿÊ‚Ám‡fl¢ ãÿØÁòÊáÊ◊˜. •ÁÇŸŸÊ¸ flŸÃ ⁄UÁÿ◊˜.. (16) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ÖflÊ‹Ê∞¢ ‡ÊÈÁø¬Íáʸ (¬ÁflòÊ) „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ÖflÊ‹Ê∞¢ ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •ÁÇŸ „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) ÿ ß◊Ê Áfl‡flÊ ÷ÈflŸÊÁŸ ¡ÈuÔUŒÎÁ·„UʸÃÊ ãÿ‚ˌØ Á¬ÃÊ Ÿ—. ‚ ˘ •ÊÁ‡Ê·Ê º˝ÁfláÊÁ◊ë¿U◊ÊŸ— ¬˝Õ◊ë¿UŒfl⁄UÊ° 2 •Ê Áflfl‡Ê.. (17) ÿ¡Èfl¸Œ - 209
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¡Ê ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ߂ ¬Í⁄U Áfl‡fl ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ •ÊÒ⁄U ‚¢„UÊ⁄U ∑§⁄UÃË „ÒU, „U◊ ©UŸ ‚ œŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ¬„U‹ „UË ©Uã„¥U ÷Ë •¬Ÿ fl‡Ê ◊¥ ⁄Uπà „Ò¥U •ÊÒ⁄U „U◊ ÷Ë ©UŸ ∑§ fl‡Ê ◊¢ ⁄U„Uà „Ò¥U. (17) Á∑§ ¦ ÁSflŒÊ‚ËŒÁœcΔUÊŸ◊Ê⁄Uê÷áÊ¢ ∑§Ã◊ÁàSflà∑§ÕÊ‚ËØ. ÿÃÊ ÷ÍÁ◊¢ ¡ŸÿŸ˜ Áfl‡fl∑§◊ʸ Áfl lÊ◊ÊÒáÊʸã◊Á„UŸÊ Áfl‡fløˇÊÊ—.. (18) ¬⁄U◊Êà◊Ê Á∑§‚ •ÁœcΔUÊŸ ¬⁄U •Ê⁄U¢÷ ◊¥ •ÁœÁcΔUà Õ? ߟ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ∑§Ë ÄÿÊ ∑§ÕÊ „Ò? fl„U ©Uà¬ÊŒ∑§ º˝√ÿ ∑Ò§‚Ê ÕÊ? fl„U ÷ÍÁ◊ ¬⁄U ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê. Áfl‡fl∑§◊ʸ ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§Ê º˝c≈UÊ „ÒU. Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ √ÿÊåà „Ò. (18) Áfl‡flÇøˇÊÈL§Ã Áfl‡flÃÊ◊ÈπÊ Áfl‡flÃÊ’Ê„ÈUL§Ã Áfl‡flÃS¬ÊØ. ‚¢ ’Ê„ÈUèÿÊ¢ œ◊Áà ‚¢ ¬ÃòÊÒlʸflÊ÷Í◊Ë ¡ŸÿŸ˜ Œfl ˘ ∞∑§—.. (19) fl„U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ‚¢¬Íáʸ Áfl‡fl ¬⁄U •Ê¢π ⁄UπŸ flÊ‹Ë „ÒU. fl„U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ‚’ •Ê⁄U ◊È¢„U flÊ‹Ë „ÒU. fl„U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ‚’ •Ê⁄U ’Ê„È flÊ‹Ë „ÒU. fl„U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ‚’ •Ê⁄U ‚Ê◊âÿ¸ flÊ‹Ë „ÒU. ©U‚ ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà Ÿ •¬Ÿ ’Ê„ÈU’‹ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ‚ Sflª¸ ∑§Ê Á’ŸÊ •ÊœÊ⁄U ∑§ ©Uà¬ãŸ Á∑§ÿÊ. ¬⁄U◊Êà◊Ê ∞∑§ „Ò. (19) Á∑§ ¦ ÁSflmŸ¢ ∑§ ˘ ©U ‚ flÎˇÊ ˘ •Ê‚ ÿÃÊ lÊflʬÎÁÕflË ÁŸCÔUÃˇÊÈ—. ◊ŸËÁ·áÊÊ ◊Ÿ‚Ê ¬Îë¿UÃŒÈ ÃlŒäÿÁÃcΔUjÈflŸÊÁŸ œÊ⁄UÿŸ˜.. (20) fl„U flŸ ∑§ÊÒŸ ‚Ê „ÒU, fl„U flÎˇÊ ∑§ÊÒŸ ‚Ê „Ò, Á¡‚ ‚ ߸‡fl⁄U Ÿ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ⁄UøÊ. •Ê¬ ◊ŸËÁ·ÿÊ¥ ∑§ ◊Ÿ ‚ ¬ÍÁ¿U∞ Á∑§ ‚÷Ë ÷ÈflŸÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄Uà „ÈU∞ fl Sflÿ¢ Á∑§‚ SÕÊŸ ¬⁄U •ÁœÁcΔUà „Ò¥U. (20) ÿÊ Ã œÊ◊ÊÁŸ ¬⁄U◊ÊÁáÊ ÿÊfl◊Ê ÿÊ ◊äÿ◊Ê Áfl‡fl∑§◊¸ãŸÈÃ◊Ê. Á‡ÊˇÊÊ ‚ÁπèÿÊ „UÁflÁ· SflœÊfl— Sflÿ¢ ÿ¡Sfl Ããfl¢ flΜʟ—.. (21) Á¡‚ Ÿ ÿ ¬⁄U◊œÊ◊ ⁄Uø; ¡Ê ©UããÊÃ, ÁŸêŸ •ÊÒ⁄U ◊äÿ œÊ◊ ∑§Ê ⁄UøÁÿÃÊ „Ò; ©U‚ ‚¡¸∑§ ∑§ ¬˝Áà „U◊ •¬ŸÊ ‚πÊ ÷Êfl ¬˝∑§≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „UÁfl œÊ⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ Sflÿ¢ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U •ÊÒ⁄U •Ê¬ ∑§ ß ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. (21) Áfl‡fl∑§◊¸Ÿ˜ „UÁfl·Ê flÊflΜʟ— Sflÿ¢ ÿ¡Sfl ¬ÎÁÕflË◊Èà lÊ◊˜. ◊ÈsÔãàflãÿ •Á÷× ‚¬àŸÊ ˘ ß„UÊS◊Ê∑¢§ ◊ÉÊflÊ ‚ÍÁ⁄U⁄USÃÈ.. (22) „U Áfl‡fl∑§◊ʸ! „U◊ „UÁfl ‚ •Ê¬ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Sflÿ¢ ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§ Á„Uà ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ◊ÊÁ„Uà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ôÊÊŸflÊŸ ‚Íÿ¸ SflM§¬ „Ò¥U. (22) flÊøS¬Áâ Áfl‡fl∑§◊ʸáÊ◊ÍÃÿ ◊ŸÊ¡Èfl¢ flÊ¡ •lÊ „ÈUfl◊. ‚ ŸÊ Áfl‡flÊÁŸ „UflŸÊÁŸ ¡Ê·Ám‡fl‡Êê÷Í⁄Ufl‚ ‚ÊœÈ∑§◊ʸ.. (23) 210 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ •Ê¡ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ flÊøS¬Áà fl Áfl‡fl∑§◊ʸ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¡ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ◊Ÿ ¡Ò‚ flªflÊŸ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄à „Ò¥U. •Ê¬ ‚à∑§◊¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ „U◊Ê⁄U mÊ⁄UÊ ÷¥≈U ∑§Ë ªß¸ „UÁfl ∑§Ê ¬˝◊ ‚ ÷ʪ ‹ªÊß∞. (23) Áfl‡fl∑§◊¸Ÿ˜ „UÁfl·Ê flœ¸ŸŸ òÊÊÃÊ⁄UÁ◊ãº˝◊∑ΧáÊÊ⁄Ufläÿ◊˜. ÃS◊Ò Áfl‡Ê— ‚◊Ÿ◊ãà ¬Ífl˸⁄Uÿ◊Ȫ˝Ê Áfl„U√ÿÊ ÿÕʂØ.. (24) •Ê¬ Áfl‡fl ∑§ ⁄UøÁÿÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ „UÁflÿÊ¥ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. •Ê¬ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ⁄UˇÊ∑§ ’ŸÊÿÊ. •Ê¬ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •fläÿ ’ŸÊÿÊ. ߢº˝ Œfl ∑§Ê ◊Ÿ ‚ Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©Uã„¥U Ÿ◊ ∑§⁄U (¤ÊÈ∑§ ∑§⁄U) Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl •¬Ífl¸, ©Uª˝ •ÊÒ⁄U ‚fl¸‚◊Õ¸ „Ò¥U. (24) øˇÊÈ·— Á¬ÃÊ ◊Ÿ‚Ê Á„U œË⁄UÊ ÉÊÎÃ◊Ÿ •¡ŸãŸêŸ◊ÊŸ. ÿŒŒãÃÊ ˘ •ŒŒÎ„Uãà ¬Ífl¸ ˘ •ÊÁŒŒ˜ lÊflʬÎÁÕflË •¬˝ÕÃÊ◊˜.. (25) „U◊Ê⁄U Á¬ÃÊ (¬Ífl¡ ¸ Ê)¥ Ÿ ‚ÎÁc≈U ∑§ •Ê⁄U÷ ¢ ◊¥ Sflª¸‹Ê∑§ ÃÕÊ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ‚ÈŒ…Î U∏ ’ŸÊÿÊ. ‚ÎÁc≈UU ∑§ •Ê⁄U÷ ¢ ◊¥ ©UŸ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ. Á¬ÃÊ Ÿ øˇÊÈ (•Ê¢π) •ÊÁŒ ‚÷Ë ß¢Áº˝ÿÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ Á∑§ÿÊ. Á¬ÃÊ Ÿ œË⁄U „UÊ ∑§⁄U ¬ÎâflË ∑§Ê ÉÊË ‚ ‚Ë¥øÊ. (25) Áfl‡fl∑§◊ʸ Áfl◊ŸÊ ˘ •ÊÁm„UÊÿÊ œÊÃÊ ÁflœÊÃÊ ¬⁄U◊Êà ‚ãŒÎ∑§˜. ÷ÊÁ◊c≈UÊÁŸ ‚Á◊·Ê ◊ŒÁãà ÿòÊÊ ‚åô§·ËŸ˜ ¬⁄U ˘ ∞∑§◊Ê„ÈU—.. (26) ¡ª ∑§Ë ⁄UøŸÊ ◊¥ ‚ÎÁc≈UU ⁄UøÁÿÃÊ ∑§ ‚ÊÕ ‚Êà ´§ÁcÊÿÊ¥ Ÿ •ÁmÃËÿ ‚„Uÿʪ Á∑§ÿÊ. fl„U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∞∑§ „Ò. œÊÃÊ „Ò. ÁflœÊÃÊ „ÒU. ¬Ê·∑§ „ÒU. ‚fl¸üÊcΔU „ÒU. ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ‚÷Ë ßc≈U ∑§Êÿ¸ ¬Íáʸ „UÊà „Ò¥U. fl „UÁfl ‚ ¬˝‚ããÊ „UÊà „Ò¥U. U(26) ÿÊ Ÿ— Á¬ÃÊ ¡ÁŸÃÊ ÿÊ ÁflœÊÃÊ œÊ◊ÊÁŸ flŒ ÷ÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ. ÿÊ ŒflÊŸÊ¢ ŸÊ◊œÊ ˘ ∞∑§ ˘ ∞fl à ¦ ‚ê¬˝‡Ÿ¢ ÷ÈflŸÊ ÿãàÿãÿÊ.. (27) ¡Ê ¬⁄U◊‡fl⁄U „U◊Ê⁄U Á¬ÃÊ „Ò¥U, ¡Ê ‚’ ∑§ ¡Ÿ∑§ „Ò¥U, ¡Ê ÁflœÊÃÊ „Ò¥U, ‚’ flŒÊ¥ ∑§ œÊ◊ „Ò¥U, ‚’ Áfl‡fl ∑§ ÷ÈflŸÊ¥ ∑§ ôÊÊÃÊ „Ò¥U, ¡Ê ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŸÊ◊ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ÷‹ „UË fl ∞∑§ „UË „Ò¥U, ‚◊Sà ÷ÈflŸ (‹Ê∑§Ê¥) ∑§ ¬˝ÊáÊË •¢Ã× ©Uã„UË¥ ∑§ ‹Ê∑§ ◊¥ ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. (27) à ˘ •Êÿ¡ãà º˝ÁfláÊ ¦ ‚◊S◊Ê ˘ ´§·ÿ— ¬Ífl¸ ¡Á⁄UÃÊ⁄UÊ Ÿ ÷ÍŸÊ. •‚Íûʸ ‚Íûʸ ⁄U¡Á‚ ÁŸ·ûÊ ÿ ÷ÍÃÊÁŸ ‚◊∑ΧáflÁãŸ◊ÊÁŸ.. (28) ©U‚ ¬⁄U◊‡fl⁄U Ÿ ‚’ ∑§Ê ¡ŸÊ, ‚÷Ë œŸÊ¥ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. ‚◊Sà ´§Á·ªáÊ Á¡‚ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ ◊¥ ‚¢¬Íáʸ flÒ÷fl Á¡‚ ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl„U ¬⁄U◊‡fl⁄U •¬˝àÿˇÊ M§¬ ‚ ‚’ ◊¥ ÁŸflÊ‚ ∑§⁄UÃÊ „Ò. (28) ÿ¡Èfl¸Œ - 211
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¬⁄UÊ ÁŒflÊ ¬⁄U ˘ ∞ŸÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¬⁄UÊ ŒflÁ÷⁄U‚È⁄ÒUÿ¸ŒÁSÃ. ∑§ ¦ ÁSflŒ˜ ª÷Z ¬˝Õ◊¢ Œœ˝ ˘ •Ê¬Ê ÿòÊ ŒflÊ— ‚◊¬‡ÿãà ¬Ífl¸.. (29) fl„U ¬⁄U◊ Ãûfl Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ¬⁄U „ÒU. fl„U ¬⁄U◊ Ãûfl ¬ÎâflË‹Ê∑§ fl ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ¬⁄U „Ò. fl„U ¬⁄U◊ Ãûfl •‚È⁄UÊ¥ ‚ ¬⁄U „ÒU. ¡‹Ê¥ Ÿ ¬„U‹ ª÷¸ ◊¥ Á∑§‚ œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ? ¡„UÊ¢ ŒflªáÊ ¬„U‹ ©Uã„¥U Œπà „Ò¥U.Ô (29) ÃÁ◊Œ˜ª÷Z ¬˝Õ◊¢ Œœ˝ ˘ •Ê¬Ê ÿòÊ ŒflÊ— ‚◊ªë¿Uãà Áfl‡fl. •¡Sÿ ŸÊ÷Êfläÿ∑§◊̬â ÿÁS◊Ÿ˜ Áfl‡flÊÁŸ ÷ÈflŸÊÁŸ ÃSÕÈ—.. (30) fl„U ¬⁄U◊ Ãûfl ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊüÊÿ „Ò. ‚÷Ë ©U‚ ¬⁄U◊ Ãûfl ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. ©U‚ ¬⁄U◊ Ãûfl Ÿ ‚fl¸¬˝Õ◊ ¡‹ ∑§Ê •¬Ÿ ª÷¸ ◊¥ œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ¬⁄U◊Ãûfl ∑§ ŸÊÁ÷ ◊¥ ∞∑§ „UË ¬⁄U◊ Ãûfl •ÁœÁcΔUà „ÒU, Á¡‚ ◊¥ ‚Ê⁄U ÷ÈflŸ ÁSÕ⁄U „UÊà „Ò¥U. (30) Ÿ â ÁflŒÊÕ ÿ ˘ ß◊Ê ¡¡ÊŸÊãÿlÈc◊Ê∑§◊ãÃ⁄¢U ’÷Ífl. ŸË„UÊ⁄UáÊ ¬˝ÊflÎÃÊ ¡ÀåÿÊ øÊ‚ÈÃά ˘ ©UÄÕ‡ÊÊ‚‡ø⁄UÁãÃ.. (31) ©U‚ ¬⁄U◊ Ãûfl Ÿ ‚fl¸¬˝Õ◊ ’˝rÊÊ¢«U ∑§Ê ⁄UøÊ. ©U‚ •Ê¬ •ÊÒ⁄U „U◊ ‹Êª Ÿ„UË¥ ¡ÊŸÃ. fl„U ‚’ ◊¥ „ÒU ÷Ë ÃÕÊ ‚’ ‚ •‹ª ÷Ë „Ò. ∑§Ê„U⁄U ‚ …U∑§ ’ÊŒ‹ ∑§Ë Ã⁄U„U ‹Êª ©U‚ ¬⁄U◊ Ãûfl ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ÁflÁflœ √ÿÕ¸ œÊ⁄UáÊÊ•Ê¥ (èÊ˝Ê¢ÁÃÿÊ¥) ‚ ª˝Á‚à ⁄U„Uà „Ò¥U. ©U‚ ∑§Ë SÃÈÁà Ÿ„UË¥ ∑§⁄ U¬ÊÃ. (31) Áfl‡fl∑§◊ʸ sÔ¡ÁŸc≈U Œfl ˘ •ÊÁŒŒÔ˜ªãœflʸ •÷flŒ˜ ÁmÃËÿ—. ÃÎÃËÿ— Á¬ÃÊ ¡ÁŸÃÊÒ·œËŸÊ◊¬Ê¢ ª÷Z √ÿŒœÊØ ¬ÈL§òÊÊ.. (32) ‚fl¸¬˝Õ◊ Áfl‡fl ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ŒflÃÊ ¬ÎâflË ¬⁄U •Ê∞. ÃଇøÊÃÔ ¬ÎâflË ¬⁄U •ÊÁŒ ª¢œfl¸ „ÈU∞. ¬ÎâflË ¬Ê‹∑§ •Ê·ÁœÿÊ¥ ◊¥ ¡‹ ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ ÃË‚⁄U ∑˝§◊ ◊¥ „ÈU∞. ¬˝Õ◊ ⁄UˇÊ∑§ ‚÷Ë ¡‹Ê¥ ∑§ ª÷¸ ∑§Ê ÁflÁflœ M§¬Ê¥ ◊¥ œÊ⁄UÃÊ „Ò. (32) •Ê‡ÊÈ— Á‡Ê‡ÊÊŸÊ flη÷Ê Ÿ ÷Ë◊Ê ÉÊŸÊÉÊŸ— ˇÊÊ÷áʇø·¸áÊËŸÊ◊˜. ‚¢∑˝§ãŒŸÊ ˘ ÁŸÁ◊·∞∑§flË⁄U— ‡Êà ¦ ‚ŸÊ ˘ •¡ÿØ ‚Ê∑§Á◊ãº˝—.. (33) ߢº˝ Œfl ‡ÊËÉÊ˝ÃÊ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U „U◊‹Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ’Ò‹ ¡Ò‚ ’‹flÊŸ „Ò¥U. ÉÊŸÉÊÊ⁄U ª¡¸ŸÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ˇÊÊ÷∑§Ê⁄UË „Ò¥U. ¬‹ ÷⁄U ◊¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê „U⁄UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. ߢº˝ Œfl •∑§‹ „UË ∞‚ flË⁄U „Ò¥U, ¡Ê ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ‚ŸÊ ∑§Ê ∞∑§ ‚ÊÕ ¡Ëà ‹Ã „Ò¥U. (33) ‚¢∑˝§ãŒŸŸÊÁŸÁ◊·áÊ Á¡cáÊÈŸÊ ÿÈà∑§Ê⁄UáÊ ŒÈ‡ëÿflŸŸ œÎcáÊÈŸÊ. ÃÁŒãº˝áÊ ¡ÿà Ãà‚„Uäfl¢ ÿÈœÊ Ÿ⁄U ˘ ß·È„USß flÎcáÊÊ.. (34) ª¡¸ŸÊ ‚ ¬‹ ÷⁄U ◊¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¡Ëß flÊ‹ „Ò¥U. •Ê∑˝§◊áÊ ∑§ ÁflÁflœ Ã⁄UË∑§Ê¥ ‚ ‡ÊËÉÊ˝ „UË ÿÈh ◊¥ ÃÒÿÊ⁄U „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‚¢ªÁΔUà ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ÷Ë ¡Ëß flÊ‹ „Ò¥U. ߢº˝ 212 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Œfl ‚ ¡È«∏U ∑§⁄U „U◊ ©UŸ ∑§ ‚ÊÕ ‚Ê„U‚¬Ífl¸∑§, ’‹¬Ífl¸∑§ „UÊÕ ◊¥ ’ÊáÊ ‹ ∑§⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¡Ëà ¡Ê∞¢. ‚ÈÅʬÍfl¸∑§ ¡ËflŸ ªÈ¡Ê⁄¥U. (34) ‚ ˘ ß·È„USÃÒ— ‚ ÁŸ·ÁXÁ÷fl¸‡ÊË ‚ ¦ dc≈UÊ ‚ ÿÈœ ˘ ßãº˝Ê ªáÊŸ. ‚ ¦ ‚ÎCÔUÁ¡à‚Ê◊¬Ê ’Ê„ÈU‡Êäÿȸª˝œãflÊ ¬˝ÁÃÁ„UÃÊÁ÷⁄USÃÊ.. (35) ߢº˝ Œfl „UÊÕ ◊¥ ’ÊáÊœÊ⁄UË „Ò¥U. fl flË⁄UÊ¥ ∑§Ê ‚¢ªÁΔUà ∑§⁄UŸ flÊ‹, ‚¢ªÁΔUà ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ÷Ë ¡Ëß flÊ‹ fl ‚Ê◊¬ÊÿË „Ò¥U. ‡ÊòÊÈ ¬⁄U ’ÊáÊ ¬˝„U⁄UË, ©Uª˝ fl œŸÈ·œÊ⁄UË „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (35) ’΄US¬Ã ¬Á⁄U ŒËÿÊ ⁄UÕŸ ⁄UˇÊÊ„UÊÁ◊òÊÊ° 2 •¬’Êœ◊ÊŸ—. ¬˝÷Ü¡ãà‚ŸÊ— ¬˝◊ÎáÊÊ ÿÈœÊ ¡ÿãŸS◊Ê∑§◊äÿÁflÃÊ ⁄UÕÊŸÊ◊˜.. (36) „U ’΄US¬Áà Œfl! •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ⁄UÕ ‚ ÷˝◊áÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ÁflŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U Á◊òÊÊ¥ ∑§Ë ’ʜʕʥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿÈhÊ¥ ◊¥ ÁflŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ÿÈh ◊¥ ¡ËÃà „ÈU∞ „U◊Ê⁄U ⁄UÕÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (36) ’‹ÁflôÊÊÿ SÕÁfl⁄U— ¬˝flË⁄U— ‚„USflÊŸ˜ flÊ¡Ë ‚„U◊ÊŸ ˘ ©Uª˝—. •Á÷flË⁄UÊ •Á÷‚ûflÊ ‚„UÊ¡Ê ¡ÒòÊÁ◊ãº˝ ⁄UÕ◊Ê ÁÃcΔU ªÊÁflØ.. (37) ߢº˝ Œfl ’‹ ∑§ ôÊÊÃÊ, ÿÈh ◊¥ ÁSÕ⁄U, ¬˝∑Χc≈U (•àÿ¢Ã) flË⁄U „Ò¥U. fl ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ, ’‹‡ÊÊ‹Ë, ‚Ê„U‚Ë fl flË⁄U „Ò¥U. fl ¬˝Á‚h ’‹‡ÊÊ‹Ë •ÊÒ⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ÷ÍÁ◊ ¡Ëß flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ŒÒfl ¡Ëß flÊ‹ ⁄UÕ ¬⁄U ‚flÊ⁄U ⁄U„Uà „Ò¥U. (37) ªÊòÊÁ÷Œ¢ ªÊÁflŒ¢ flÖÊ˝’Ê„È¢U ¡ÿãÃ◊Ö◊ ¬˝◊ÎáÊãÃ◊Ê¡‚Ê. ß◊ ¦ ‚¡ÊÃÊ ˘ •ŸÈ flË⁄UÿäflÁ◊ãº˝ ¦ ‚πÊÿÊ •ŸÈ ‚ ¦ ⁄U÷äfl◊˜.. (38) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ ªÊ ŸÊ‡Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ÷ŒŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹, ªÊÒ•Ê¥ ∑§Ê ¡ÊŸŸ flÊ‹, fl¡˝ ¡Ò‚Ë ÷È¡Ê•Ê¥ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ¡Ëß flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¡ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ ∑§Ê flË⁄UÊ¥ ∑§ ÿÊÇÿ ∑§ÊÿÊZ ∑§ Á‹∞ ©Uà‚Ê„U ÁŒ‹Ê∞¢. •Ê¬ Sflÿ¢ ÷Ë ©UŸ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§ ‚πÊ „Ò¥U. (38) •Á÷ ªÊòÊÊÁáÊ ‚„U‚Ê ªÊ„U◊ÊŸÊŒÿÊ flË⁄U— ‡ÊÃ◊ãÿÈÁ⁄Uãº˝—. ŒÈ‡ëÿflŸ— ¬ÎßʷʫUÿÈäÿÊS◊Ê∑§ ¦ ‚ŸÊ •flÃÈ ¬˝ ÿÈà‚È.. (39) ߢº˝ Œfl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U Ÿc≈U ∑§⁄UŸ flÊ‹, ∑˝§ÊœË fl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¬Í⁄UË Ã⁄U„U „U⁄UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U.Ô fl „U◊Ê⁄UË ‚ŸÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. fl „U◊Ê⁄UË ‚ŸÊ ∑§Ê ¬Í⁄UÊ ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (39) ßãº˝ ˘ •Ê‚Ê¢ ŸÃÊ ’΄US¬ÁÃŒ¸ÁˇÊáÊÊ ÿôÊ— ¬È⁄U ˘ ∞ÃÈ ‚Ê◊—. Œfl‚ŸÊŸÊ◊Á÷÷Ü¡ÃËŸÊ¢ ¡ÿãÃËŸÊ¢ ◊L§ÃÊ ÿãàflª˝◊˜.. (40) ÿ¡Èfl¸Œ - 213
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ߢº˝ Œfl ߟ ‚’ ∑§ ŸÃÊ „Ò¥U. ’΄US¬Áà •ÊÒ⁄U ߢº˝ ŒÊŸÊ¥ Œfl ‚ŸÊ ∑§Ê ÁŸÿ¢òÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥. ‚Ê◊ ÿôÊ ∑§ ‚ê◊Èπ ⁄U„Uà „Ò¥U. ◊L§Œ˜ªáÊ ‚ŸÊ ∑§ •Êª•Êª ⁄U„Uà „Ò¥U. ÁflcáÊÈ ŒÊÁ„UŸË •Ê⁄U ⁄U„Uà „Ò¥U. (40) ßãº˝Sÿ flÎcáÊÊ flL§áÊSÿ ⁄UÊôÊ ˘ •ÊÁŒàÿÊŸÊ¢ ◊L§ÃÊ ¦ ‡Êœ¸ ˘ ©Uª˝◊˜. ◊„UÊ◊Ÿ‚Ê¢ ÷ÈflŸëÿflÊŸÊ¢ ÉÊÊ·Ê ŒflÊŸÊ¢ ¡ÿÃÊ◊ÈŒSÕÊØ.. (41) ߢº˝ flL§áÊ fl ⁄UÊ¡Ê •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U fl·Ê¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U fl·Ê¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ◊„UÊŸ˜ ◊Ÿ flÊ‹ ‹Ê∑§Ê¥ ◊¥ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¡ÿÉÊÊ· ªÍ¢¡ÃÊ „Ò. (41) ©Uh·¸ÿ ◊ÉÊflãŸÊÿÈœÊãÿÈà‚àflŸÊ¢ ◊Ê◊∑§ÊŸÊ¢ ◊ŸÊ ¦ Á‚. ©UŒ˜flÎòÊ„UŸ˜ flÊÁ¡ŸÊ¢ flÊÁ¡ŸÊãÿȺ˝ÕÊŸÊ¢ ¡ÿÃÊ¢ ÿãÃÈ ÉÊÊ·Ê—.. (42) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ œŸflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ •ÊÿȜʥ ∑§Ê ÃËπÊ ∑§ËÁ¡∞. flË⁄UÊ¥ ∑§Ê fl ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ‡ÊËÉÊ˝ ¡ÊŸ ∑§ Á‹∞ ©Uà‚ÊÁ„Uà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ fl ’‹‡ÊÊ‹Ë „Ò¥U. ⁄UÕÊ¥ ∑§ ¡ÿÉÊÊ· ‚’ •Ê⁄U ªÍ¢¡¥. (42) •S◊Ê∑§Á◊ãº˝— ‚◊ÎÃ·È äfl¡cflS◊Ê∑¢§ ÿÊ ˘ ß·flSÃÊ ¡ÿãÃÈ. •S◊Ê∑¢§ flË⁄UÊ ˘ ©UûÊ⁄U ÷flãàflS◊Ê° 2 © UŒflÊ ˘ •flÃÊ „Ufl·È.. (43) „U◊Ê⁄U ߢº˝ Œfl äUfl¡Ê¥ ∑§Ê •ë¿UË Ã⁄U„U »§„U⁄UÊà „Ò¥U. „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¡ËÃ¥. „U◊Ê⁄U ’ÊáÊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ¡ËÃ¥. „U◊Ê⁄U flË⁄U ©UûÊ⁄UÊûÊ⁄U Áfl¡ÿË „UÊ¥. ŒflªáÊ ÿôÊÊ¥ ◊¥ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. (43) •◊Ë·Ê¢ ÁøûÊ¢ ¬˝ÁËÊ÷ÿãÃË ªÎ„UÊáÊÊXÊãÿåfl ¬⁄UÁ„U. •Á÷ ¬˝Á„U ÁŸŒ¸„U NUà‚È ‡ÊÊ∑Ò§⁄U㜟ÊÁ◊òÊÊSÃ◊‚Ê ‚øãÃÊ◊˜.. (44) √ÿÊÁœÿÊ¥ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ÁøûÊ ∑§Ê ‹È÷Ê∞¢. ©UŸ ∑§ •¢ªÊ¥ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄¥. ÁŸŒ¸ÿÃÊ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ÁøòÊ ∑§Ê ø’Ê∞¢. ©UŸ ∑§ NUŒÿ ◊¥ ‡ÊÊ∑§ √ÿʬ. ‡ÊÊ∑§ ‚ ‡ÊòÊÈ ª„UŸ •¢œ∑§Ê⁄U ◊¥ «ÍU’ ¡Ê∞¢. (44) •fl‚ÎCÔUÊ ¬⁄UÊ ¬Ã ‡Ê⁄U√ÿ ’˝rÊÔ‚ ¦ Á‡ÊÃ. ªë¿UÊÁ◊òÊÊŸ˜ ¬˝ ¬lSfl ◊Ê◊Ë·Ê¢ ∑¢§ øŸÊÁë¿U·—.. (45) ’˝rÊôÊÊŸ◊ÿ fløŸÊ¥ ‚ ’ÊáÊ ÃËπ „UÊ ∑§⁄U •Á◊òÊÊ¥ ¬⁄U Áª⁄¥U . ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U ¬˝„UÊ⁄U ∑§⁄¥U . ©UŸ ∑§Ê ©Uë¿UŒŸ (ÁflŸÊ‡Ê) ∑§⁄¥U. (45) ¬˝ÃÊ ¡ÿÃÊ Ÿ⁄U ˘ ßãº˝Ê fl— ‡Ê◊¸ ÿë¿UÃÈ. ©Uª˝Ê fl— ‚ãÃÈ ’Ê„UflÊ ˘ ŸÊœÎcÿÊ ÿÕÊ‚Õ.. (46) „U Ÿ⁄UÊ! ߢº˝ Œfl Áfl¡ÿË „UÊ¥ •ÊÒ⁄U „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§Ë ’Ê„ÈU ∞¢ ©Uª˝ „UÊ¥, Á¡‚ ‚ fl„U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U •Ê∑˝§◊áÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. (46) 214 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•‚ÊÒ ÿÊ ‚ŸÊ ◊L§Ã— ¬⁄U·Ê◊èÿÒÁà Ÿ ˘ •Ê¡‚Ê S¬œ¸◊ÊŸÊ. ÃÊ¢ ªÍ„Uà Ã◊‚ʬfl˝ÃŸ ÿÕÊ◊Ë •ãÿÊ •ãÿ¢ Ÿ ¡ÊŸŸ˜.. (47) ◊L§ÃÊ¥ ∑§Ë ‚ŸÊ „U◊Ê⁄U flª ∑§ ‚ÊÕ S¬hʸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUø, ÃÊÁ∑§ ÷˝◊ „UÊ ¡ÊŸ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ ∞∑§ ŒÍ‚⁄U ∑§Ê ¡ÊŸŸ ◊¥ „UË •‚◊Õ¸ „UÊ ¡Ê∞¢ ÃÕÊ •¬Ÿ „UË ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄U Œ¥. (47) ÿòÊ ’ÊáÊÊ— ‚ê¬ÃÁãà ∑ȧ◊Ê⁄UÊ ÁflÁ‡ÊπÊ ˘ ßfl. Ã㟠˘ ßãº˝Ê ’΄US¬ÁÃ⁄UÁŒÁ× ‡Ê◊¸ ÿë¿UÃÈ Áfl‡flÊ„UÊ ‡Ê◊¸ ÿë¿UÃÈ.. (48) ¡„UÊ¢ ’ÊáÊ ∞‚ Áª⁄U ¡Ò‚ Á’ŸÊ øÊ≈U Ë flÊ‹ ’Ê‹∑§ Áª⁄Uà „Ò¥U, fl„UÊ¢ ߢº˝ Œfl „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ’΄US¬Áà Œfl „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •ÁŒÁà Œfl „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. SflÊ◊Ë Œfl „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (48) ◊◊ʸÁáÊ Ã fl◊¸áÊÊ ¿UÊŒÿÊÁ◊ ‚Ê◊SàflÊ ⁄UÊ¡Ê◊ÎßʟÈflSÃÊ◊˜. ©U⁄UÊfl¸⁄UËÿÊ flL§áÊSà ∑ΧáÊÊÃÈ ¡ÿãâ àflÊŸÈ ŒflÊ ◊ŒãÃÈ.. (49) „U◊ flË⁄U •¬Ÿ •¢ªÊ¥ ∑§Ê ∑§flø ‚ …U∑§Ã „Ò¥U. flL§áÊ Œfl ß‚ ŒÎ…∏U ’ŸÊ∞ ⁄Uπ¥. ‚Ê◊ ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. fl„U ‚’ ∑§Ê •◊Îà ‚ •◊⁄U ’ŸÊ∞¢. flL§áÊ Œfl fl⁄UËÿ „Ò¥U. fl„U „U◊¥ Áfl¡ÿË ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ ©Uã„¥U •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄¥U. (49) ©UŒŸ◊ÈûÊ⁄UÊ¢ ŸÿÊÇŸ ÉÊÎßʄÈUÃ. ⁄UÊÿS¬Ê·áÊ ‚ ¦ ‚Ρ ¬˝¡ÿÊ ø ’„È¢U ∑ΧÁœ.. (50) „U •ÁÇŸ! „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÉÊË ‚ •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©U‚ ‚ ÃÎåà „UÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ œŸ ‚ ¬Èc≈U ∑§ËÁ¡∞. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ’„ÈUà ¬˝¡Ê (¬ÈòʬÊÒòÊ) ‚ ‚◊Îh ∑§ËÁ¡∞. (50) ßãº˝◊¢ ¬˝Ã⁄UÊ¢ Ÿÿ ‚¡ÊÃÊŸÊ◊‚m‡ÊË. ‚◊Ÿ¢ flø¸‚Ê ‚Ρ ŒflÊŸÊ¢ ÷ʪŒÊ ˘ •‚Ø.. (51) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ „U◊¥ ©Uà∑Χc≈UÃÊ ∑§Ë •Ê⁄U ‹ ¡Êß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚¡ÊÁÃÿÊ¥ ∑§Ê „U◊Ê⁄U fl‡Ê ◊¥ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ‚◊ÊŸ flø¸SflË •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ©UŸ ∑§Ê ÷ʪ ŒŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ ’ŸÊß∞. (51) ÿSÿ ∑ȧ◊ʸ ªÎ„U „UÁflSÃ◊ÇŸ flœ¸ÿÊ àfl◊˜. ÃS◊Ò ŒflÊ ˘ •Áœ ’È˝flãŸÿ¢ ø ’˝rÊÔáÊS¬Á×.. (52) „U •ÁÇŸ! „U◊ Á¡‚ ∑§ ÉÊ⁄U ¬⁄U ÿôÊ ∑§◊¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ê „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, •Ê¬ ©U‚ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚÷Ë ŒflÃÊ ©U‚ ∑§Ê flø¸Sfl SflË∑§Ê⁄¥U. ‚÷Ë ’˝rÊôÊÊŸ ∑§ SflÊ◊Ë „UÊ ¡Ê∞¢. (52) ©UŒÈ àflÊ Áfl‡fl ŒflÊ ˘ •ÇŸ ÷⁄UãÃÈ ÁøÁûÊÁ÷—. ‚ ŸÊ ÷fl Á‡ÊflSàfl ¦ ‚Ȭ˝ÃË∑§Ê Áfl÷Êfl‚È—.. (53) ÿ¡Èfl¸Œ - 215
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! ‚÷Ë ŒflªáÊ ◊Ÿ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ÷⁄U¬Í⁄U ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ flÒ÷flflÊŸ ’ŸÊß∞. (53) ¬Üø ÁŒ‡ÊÊ ŒÒflËÿ¸ôÊ◊flãÃÈ ŒflË⁄U¬Ê◊®Ã ŒÈ◊¸®Ã ’Êœ◊ÊŸÊ—. ⁄UÊÿS¬Ê· ÿôʬÁÃ◊Ê÷¡ãÃË ⁄UÊÿS¬Ê· •Áœ ÿôÊÊ •SÕÊØ.. (54) ¬Ê¢øÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ∞¢ ß‚ ŒÒflËÿ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ◊¢Œ’ÈÁh ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. ¬Ê¢øÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ∞¢ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ŒÈ◊¸Áà ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. ÿôʬÁà ∑§Ê œŸ ‚ ¬Ê‚¥. ÿôʬÁà ∑§Ê ÿ‡ÊSflË œŸ ‚ ¬Ê‚¥. ÿôÊ ◊¥ •ÁœÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (54) ‚Á◊h •ÇŸÊflÁœ ◊Ê◊„UÊŸ ˘ ©UÄÕ¬òÊ ˘ ߸«UKÊ ªÎ÷Ë×. Ãåâ ÉÊ◊Z ¬Á⁄UªÎsÔÊÿ¡ãÃʡʸ ÿlôÊ◊ÿ¡ãà ŒflÊ—.. (55) ÿ¡◊ÊŸ ‚Á◊œÊ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ŒËåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÉÊË ‚ ÷⁄UË •Ê„ÈUÁà •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ◊„UÊŸ ©UÄÕÊ¥ (SÃÊòÊÊ¥) ‚ ÿôÊ ∑§Ê Á‚h Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (55) ŒÒ√ÿÊÿ œòʸ ¡ÊCÔ˛U ŒflüÊË— üÊË◊ŸÊ— ‡ÊìÿÊ—. ¬Á⁄UªÎsÔ ŒflÊ ÿôÊ◊ÊÿŸ˜ ŒflÊ ŒflèÿÊ •äflÿ¸ãÃÊ •SÕÈ—.. (56) ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ‹Êª ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ÁŒ√ÿÃÊ ÃÕÊ ‡ÊÊ÷Ê ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒflÊ¥ ∑§Ê ÿôÊ ◊¥ ’È‹Ê ∑§⁄U •äflÿȸ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ œÊ◊ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. (56) flËà ¦ „UÁfl— ‡ÊÁ◊à ¦ ‡ÊÁ◊ÃÊ ÿ¡äÿÒ ÃÈ⁄UËÿÊ ÿôÊÊ ÿòÊ „U√ÿ◊ÁÃ. ÃÃÊ flÊ∑§Ê ˘ •ÊÁ‡Ê·Ê ŸÊ ¡È·ãÃÊ◊˜.. (57) ÿ¡◊ÊŸ ‡Êʢà ◊Ÿ ‚ ‡Êʢà „UÁflÿÊ¥ flÊ‹Ê ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U ÿôÊ ÃÈ⁄UËÿ (øÊÒÕÊ ∞fl¢ ©UûÊ◊) ∑§„UÊ ¡ÊÃÊ „Ò. ÿôÊ ∑§ flÊáÊË◊ÿ •Ê‡ÊË· ß „U◊Ê⁄UË ßë¿UÊ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ »§‹Ë÷Íà „UÊà „Ò¥U. (57) ‚Íÿ¸⁄UÁ‡◊„¸UÁ⁄U∑§‡Ê— ¬È⁄USÃÊà‚ÁflÃÊ ÖÿÊÁÃL§ŒÿÊ° 2 •¡d◊˜. ÃSÿ ¬Í·Ê ¬˝‚fl ÿÊÁà ÁflmÊãà‚꬇ÿÁãfl‡flÊ ÷ÈflŸÊÁŸ ªÊ¬Ê—.. (58) „U⁄U ∑§‡ÊÊ¥ flÊ‹Ë •ÊÒ⁄U ‚ê◊Èπ ÁSÕà ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ⁄UÁ‡◊ÿÊ¢ ©UŸ ∑§ ©UŒÿ „UÊŸ ‚ ¬Ífl¸ „UË ¬˝∑§≈U „UÊ ¡ÊÃË „Ò¥U. •¡‚˝ (‹ªÊÃÊ⁄U) ÖÿÊÁà ¬˝flÊÁ„Uà „UÊŸ ‹ªÃË „ÒU. ‚Íÿ¸ ∑§Ê ¬˝‚fl (©UŒÿ) „UÊà „UË ÁflmÊŸ˜ ‚◊Sà ÷ÈflŸÊ¥ ∑§Ê ŒπŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „UÊ ¡Êà „Ò¥U. (58) Áfl◊ÊŸ ˘ ∞· ÁŒflÊ ◊äÿ ˘ •ÊSà ˘ •Ê¬Á¬˝flÊŸ˜ ⁄UÊŒ‚Ë •ãÃÁ⁄UˇÊ◊˜. ‚ Áfl‡flÊøË⁄UÁ÷ øCÔU ÉÊÎÃÊøË⁄UãÃ⁄UÊ ¬Ífl¸◊¬⁄¢U ø ∑§ÃÈ◊˜.. (59) ‚Íÿ¸ ¡ªÃ˜ ∑§Ê ⁄UøŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. ÿ„U ‚Íÿ¸ ◊äÿ‹Ê∑§, ¬ÎâflË‹Ê∑§ ÃÕÊ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§óÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê •¬ŸË ŒËÁåUà ‚ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ÷⁄U ŒÃ „Ò¥U (¬˝∑§ÊÁ‡Êà 216 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
∑§⁄U ŒÃ „Ò¥U). ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§Ê •¬Ÿ •ÊüÊÿ ◊¥ ⁄Uπà „Ò¥U. ‚÷Ë ¡‹Ê¥ ∑§Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. ‚fl¸º˝c≈UÊ „Ò¥U. ¬Ífl¸ •ÊÒ⁄U ¬‡øÊà ∑§ ‚÷Ë ◊ŸÊ÷ÊflÊ¥ ∑§Ê ¡ÊŸÃ „Ò¥U. (59) ©UˇÊÊ ‚◊Ⱥ˝Ê •L§áÊ— ‚Ȭáʸ— ¬Ífl¸Sÿ ÿÊ®Ÿ Á¬ÃÈ⁄UÊÁflfl‡Ê. ◊äÿ ÁŒflÊ ÁŸÁ„U× ¬ÎÁ‡Ÿ⁄U‡◊Ê Áflø∑˝§◊ ⁄U¡‚S¬ÊàÿãÃÊÒ.. (60) ‚Íÿ¸ fl·Ê¸ mÊ⁄UÊ ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ê ‚Ë¥øà „Ò¥U. fl ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ „Ò. fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ÷˝◊áʇÊË‹ fl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ’Ëø ÁŸÁ„Uà ⁄U„Uà „Ò¥U. flU ⁄U¡ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl •Œ˜÷Èà ⁄UÁ‡◊ÿÊ¥ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ‚fl¸òÊ ÷˝◊áʇÊË‹ „Ò¥U. (60) ßãº˝¢ Áfl‡flÊ ˘ •flËflÎœãà‚◊Ⱥ˝√ÿø‚¢ Áª⁄U—. ⁄UÕËÃ◊ ¦ ⁄UÕËŸÊ¢ flÊ¡ÊŸÊ ¦ ‚ମà ¬ÁÃ◊˜.. (61) ‚÷Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ∞¢ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ’…∏UÊÃ⁄UË ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •Ê¬ ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ë Ã⁄U„U ÁflSÃÎÃ, ©UûÊ◊ ⁄UÕË, •ããÊ ∑§ SflÊ◊Ë fl ¬Ê‹∑§Ê¥ ◊¥ üÊcΔU ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. (61) Œfl„ÍUÿ¸ôÊ ˘ •Ê ø flˇÊà‚ÈꟄÍUÿ¸ôÊ ˘ •Ê ø flˇÊØ. ÿˇÊŒÁÇŸŒ¸flÊ ŒflÊ° 2 •Ê ø flˇÊØ.. (62) ÿ„U ÿôÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê±flÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê „Ò. ÿ„U ÿôÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •ë¿U ◊Ÿ ‚ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄¥U , ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚÷Ë ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÁœÁcΔUà ∑§⁄U . (62) flÊ¡Sÿ ◊Ê ¬˝‚fl ˘ ©UŒ˜ª˝Ê÷áÊÊŒª˝÷ËØ. •œÊ ‚¬àŸÊÁŸãº˝Ê ◊ ÁŸª˝Ê÷áÊÊœ⁄UÊ° 2 •∑§—.. (63) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ •ããÊ ©Uà¬ÊŒ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ©Uëø ◊ʪ¸ ¬˝‡ÊSà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸËø ◊ʪ¸ ¬⁄U ¬„¢ÈUøÊß∞. ©Uã„¥U •œÊªÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (63) ©UŒ˜ª˝Ê÷¢ ø ÁŸª˝Ê÷¢ ø ’˝rÊÔ ŒflÊ ˘ •flËflÎœŸ˜. •œÊ ‚¬àŸÊÁŸãº˝ÊÇŸË ◊ Áfl·ÍøËŸÊã√ÿSÿÃÊ◊˜.. (64) „U ߢº˝ Œfl! „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ’˝rÊôÊÊŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ üÊcΔU ∑§◊¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ©Uëø ◊ʪ¸ ¬˝‡ÊSà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚fl¸ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. (64) ∑˝§◊äfl◊ÁÇŸŸÊ ŸÊ∑§◊ÈÅÿ ¦ „USÃ·È Á’÷˝Ã—. ÁŒflS¬ÎcΔ ¦ Sflª¸àflÊ Á◊üÊÊ ŒflÁ÷⁄UÊäfl◊˜.. (65) ÿ¡◊ÊŸ •ÁÇŸ ‚ üÊcΔU fl SflÁª¸∑§ ‚Èπ ¬Ê∞¢. „UÊÕ ◊¥ ©UπÊ ‡ÊÊÁ÷à „UÊ¥. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ ◊¥ ¡Ê∑§⁄U SflÁª¸∑§ ‚Èπ •ŸÈ÷fl ∑§⁄¥U. (65) ÿ¡Èfl¸Œ - 217
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¬˝ÊøË◊ŸÈ ¬˝ÁŒ‡Ê¢ ¬˝Á„U ÁflmÊŸÇŸ⁄UÇŸ ¬È⁄UÊ •ÁÇŸ÷¸fl„U. Áfl‡flÊ ˘ •Ê‡ÊÊ ŒËlÊŸÊ Áfl ÷ÊsÔÍ¡Z ŸÊ œÁ„U Ám¬Œ øÃÈc¬Œ.. (66) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ª˝ªÊ◊Ë „UÊß∞. •Ê¬ ‚’ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁflmÊŸ˜ •ÊÒ⁄U ‚’ ∑§Ë •Ê‚ „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ø◊∑§Ë‹Ë ‹¬≈UÊ¥ ‚ ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ø◊∑§Êß∞. •Ê¬ ŒÊ¬ÊÿÊ¥ ÃÕÊ øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ‚÷Ë ∑§ Á‹∞ ’‹ œÊÁ⁄U∞. (66) ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •„◊ÈŒãÃÁ⁄UˇÊ◊ÊL§„U◊ãÃÁ⁄UˇÊÊÁgfl◊ÊL§„U◊˜. ÁŒflÊ ŸÊ∑§Sÿ ¬ÎcΔUÊØ SflÖÿʸÁÃ⁄UªÊ◊„U◊˜.. (67) „U◊ ¬ÎâflË ‚ ©Uëø •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ◊¥ ø…U∏à „Ò¥U. „U◊ ©Uëø •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ø…∏Uà „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ‚Íÿ¸‹Ê∑§ ∑§Ë ÖÿÊÁà ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. (67) Sflÿ¸ãÃÊ ŸÊ¬ˇÊãà ˘ •Ê lÊ ¦ ⁄UÊ„UÁãà ⁄UÊŒ‚Ë. ÿôÊ¢ ÿ Áfl‡flÃÊœÊ⁄ U¦ ‚ÈÁflmÊ ¦ ‚Ê ÁflÃÁŸ⁄U.. (68) ¡Ê ‚ÈπŒÊÿË Sflª¸ ∑§ ‚Èπ ÷ʪà „Ò¥U, fl ‚Ê¢‚ÊÁ⁄U∑§ ÷ʪʥ ∑§Ë •¬ˇÊÊ Ÿ„UË¥ ∑§⁄UÃ. fl ÿôÊ ∑§ œÊ⁄U∑§ fl üÊcΔU ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. fl •¬ŸÊ ©UÖÖfl‹ ÿ‡Ê »Ò§‹Êà „Ò¥U. fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ‚ ™§¬⁄U •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (68) •ÇŸ ¬˝Á„U ¬˝Õ◊Ê ŒflÿÃÊ¢ øˇÊÈŒ¸flÊŸÊ◊Èà ◊àÿʸŸÊ◊˜. ßÿˇÊ◊ÊáÊÊ ÷ΪÈÁ÷— ‚¡Ê·Ê— Sflÿ¸ãÃÈ ÿ¡◊ÊŸÊ— SflÁSÃ.. (69) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝Õ◊ ¬˝ÊÁոà „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ øˇÊÈ SflM§¬ •ÊÒ⁄U ‚’ ∑§ ¬Õ ¬˝Œ‡Ê¸∑§ „Ò¥U. ÿôÊ ∑§ ßë¿ÈU∑§Ê¥ ∑§ ¬Ê¬ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ∞‚ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê •¬ŸË ÖÿÊÁà ‚ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (69) ŸÄÃÊ·ÊSÊÊ ‚◊Ÿ‚Ê ÁflM§¬ œÊ¬ÿà Á‡Ê‡ÊÈ◊∑§ ¦ ‚◊ËøË. lÊflÊˇÊÊ◊Ê L§Ä◊Ê •ãÃÁfl¸÷ÊÁà ŒflÊ ˘ •ÁÇŸ¢ œÊ⁄UÿŸ˜ º˝ÁfláÊʌʗ.. (70) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ⁄UÊÁòÊ∑§Ê‹ ÃÕÊ ©U·‚Ô ∑§Ê‹ ◊¥ ‚◊ÊŸ M§¬ ‚ ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ÁflÁ÷ããÊ M§¬ œÊ⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©U¬ÿÈÄà Á‡Ê‡ÊÈ ∑§ M§¬ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊ ¬˝Êåà „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ’Ëø ◊¥ ‡ÊÊ÷à „Ò¥U. •Ê¬ œŸŒÊÃÊ fl flÒ÷flœÊ⁄UË „Ò¥U. (70) •ÇŸ ‚„UdÊˇÊ ‡ÊÃ◊Íœ¸Ü¿Uâ à ¬˝ÊáÊÊ— ‚„Ud¢ √ÿÊŸÊ—. àfl ¦ ‚Ê„UdSÿ ⁄UÊÿ ˘ ߸Á‡Ê· ÃS◊Ò Ã Áflœ◊ flÊ¡Êÿ SflÊ„UÊ.. (71) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U¡Ê⁄U •Ê¢πÊ¥, ‚ÊÒ ◊͜ʸ, ‚ÊÒ ¬˝ÊáÊ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U¡Ê⁄U ¬˝ÊáÊ flÊ‹ fl „U¡Ê⁄U œŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U SflÊ◊Ë „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •ãŸ◊ÿ •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (71) 218 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ȬáÊʸ ˘ Á‚ ªL§à◊ÊŸ˜ ¬ÎDÔU ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚ËŒ. ÷Ê‚Ê ˘ ãÃÁ⁄UˇÊ◊ʬÎáÊ ÖÿÊÁÃ·Ê ÁŒfl◊ÈûÊ÷ÊŸ á‚Ê ÁŒ‡Ê ˘ ©UŒ˜ŒÎ ¦ „U.. (72) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚È¢Œ⁄U ¬¢π flÊ‹ ªL§«U∏ SflM§¬ „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË Ã‹ ¬⁄U •ÁœÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê •¬ŸË ∑§Ê¢Áà ‚ ¬Íáʸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ÖÿÊÁà ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ©Uà∑Χc≈UÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ •¬Ÿ á ‚ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚Ȍ΅∏UÃÊ fl ©Uà∑Χc≈UÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (72) •Ê¡ÈuÔUÊŸ— ‚Ȭ˝ÃË∑§— ¬È⁄USÃʌǟ Sfl¢ ÿÊÁŸ◊Ê ‚ËŒ ‚ÊœÈÿÊ. •ÁS◊ãà‚œSÕ •äÿÈûÊ⁄UÁS◊Áãfl‡fl ŒflÊ ÿ¡◊ÊŸ‡ø ‚ËŒÃ.. (73) „U •ÁÇŸ! „U◊ ’„ÈUà Ÿ◊˝ÃʬÍfl¸∑§ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚ê◊Èπ ¬œÊ⁄UŸ fl ◊Í‹ SÕÊŸ ¬⁄U ‚Ö¡ŸÃÊ ‚ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ◊¥ •ÁäÊÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚÷Ë ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ß‚ ÿôÊ ◊¥ „UÊŸ fl Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (73) ÃÊ ¦ ‚ÁflÃÈfl¸⁄‘UáÿSÿ ÁøòÊÊ◊Ê„¢U flÎáÊ ‚È◊Áâ Áfl‡fl¡ãÿÊ◊˜. ÿÊ◊Sÿ ∑§áflÊ •ŒÈ„Uà¬˝¬ËŸÊ ¦ ‚„UdœÊ⁄UÊ¢ ¬ÿ‚Ê ◊„UË¥ ªÊ◊˜.. (74) ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ fl⁄Uáÿ fl •Œ˜÷Èà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê fl⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Áfl‡fl ∑§ ¡ã◊ŒÊÃÊ „Ò¥U. ∑§áfl ´§Á· Ÿ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „U¡Ê⁄UÊ¥ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ‚ ªÊÿ ∑§Ê ŒÈ„UÊ. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ‚È◊Áà ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (74) Áflœ◊ à ¬⁄U◊ ¡ã◊ãŸÇŸ Áflœ◊ SÃÊ◊Ò⁄Ufl⁄U ‚œSÕ. ÿS◊ÊlÊŸL§ŒÊÁ⁄UÕÊ ÿ¡ â ¬˝ àfl „UflË ¦ Á· ¡È„ÈU⁄U ‚Á◊h.. (75) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Ÿ ¬⁄U◊ SÕÊŸ ¬⁄U ¡ã◊ Á‹ÿÊ „Ò. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ üÊcΔU SÕÊŸ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ Á¡‚ ◊Í‹ SÕÊŸ ‚ ¬˝∑§≈U „UÊà „Ò¥U. ©U‚ ÿôʧ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ ’ŸÊà „Ò¥U. „U◊ ‚Á◊œÊ•Ê¥ ‚ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (75) ¬˝hÊ •ÇŸ ŒËÁŒÁ„U ¬È⁄UÊ ŸÊ ˘ ¡dÿÊ ‚Íêÿʸ ÿÁflcΔU. àflÊ ¦ ‡Ê‡flãà ©U¬ÿÁãà flÊ¡Ê—.. (76) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝ŒËåà fl „U◊Ê⁄U ‚ê◊Èπ ŒËÁåÃ◊ÊŸ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ •ÁœÁcΔUà fl ‹ªÊÃÊ⁄U ÿôÊ ◊¥ •ÁœÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ‹ªÊÃÊ⁄U •¬ŸÊ ¬˝∑§Ê‡Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‡Êʇflà •ãŸ◊ÿ •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥. (76) •ÇŸ Ã◊lʇfl¢ Ÿ SÃÊ◊Ò— ∑˝§ÃÈ¢ Ÿ ÷º˝ ¦ NUÁŒS¬Î‡Ê◊˜. ´§äÿÊ◊Êà ˘ •Ê„ÒU—.. (77) „U •ÁÇŸ! „U◊ NUŒÿS¬‡Ê˸ SÃÊòÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ‚¢flÁœ¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (77) ÿ¡Èfl¸Œ - 219
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÁøÁûÊ¢ ¡È„UÊÁ◊ ◊Ÿ‚Ê ÉÊÎß ÿÕÊ ŒflÊ ˘ ß„Uʪ◊ãflËÁÄUÊòÊÊ ˘ ´§ÃÊflÎœ—. ¬àÿ Áfl‡flSÿ ÷Í◊ŸÊ ¡È„UÊÁ◊ Áfl‡fl∑§◊¸áÊ Áfl‡flÊ„UÊŒÊèÿ ¦ „UÁfl—.. (78) „U◊ ÁøûÊ ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ◊Ÿ ‚ ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒflªáÊ ß‚ ÿôÊ ◊¥ •ÊŸ fl ‚àÿ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ Áfl‡fl¬ÁÃ, Áfl‡fl ∑§ ⁄UøÁÿÃÊ, Áfl‡fl∑§◊ʸ fl Áfl‡fl ∑§ ‚¢Ãʬ„UÃʸ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (78) ‚åà à •ÇŸ ‚Á◊œ— ‚åà Á¡uÔUÊ— ‚åà ´§·ÿ— ‚åà œÊ◊ Á¬˝ÿÊÁáÊ. ‚åà „UÊòÊÊ— ‚åÃœÊ àflÊ ÿ¡Áãà ‚åà ÿÊŸË⁄UʬÎáÊSfl ÉÊÎß SflÊ„UÊ.. (79) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ‚Êà ‚Á◊œÊ∞¢, ‚Êà Á¡uÔUÊ∞¢ fl •Ê¬ ∑§ ‚Êà ´§Á· „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ‚Êà Á¬˝ÿ œÊ◊ fl ‚Êà „UÊÃÊ „Ò¥U. fl •Ê¬ ∑§Ê ‚Êà ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ÿ¡Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ‚Êà ◊Í‹ ©Uà¬ÁûÊ SÕÊŸ „Ò¥U. „U◊ ÉÊË ‚ •Ê¬ ∑§ ¬˝Áà •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄à „Ò¥U. (79) ‡ÊÈ∑˝§ÖÿÊÁÇø ÁøòÊÖÿÊÁÇø ‚àÿÖÿÊÁÇø ÖÿÊÁÃc◊Ê°‡ø. ‡ÊÈ∑˝§‡ø ´§Ã¬Ê‡øÊàÿ ¦ „UÊ—.. (80) •Ê¬ ø◊∑§Ë‹, •ŒÔ˜÷Èà ÖÿÊÁà flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚àÿ M§¬ ÖÿÊÁà flÊ‹ •ÊÒ⁄U ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ „Ò¥U. ø◊∑§Ë‹ ‚àÿ SflM§¬ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ flÊ‹ ◊L§Ã˜ Œfl „UÃÈ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. (80) ߸ŒÎæ˜U øÊãÿÊŒÎæ˜U ø ‚ŒÎæ˜U ø ¬˝ÁÂŒÎæ˜U ø. Á◊Çø ‚Áê◊Çø ‚÷⁄UÊ—.. (81) ÿôÊ ◊¥ •Á¬¸Ã „UÁfl ∑§Ê ß‚ Ã⁄U„U ŒπŸ flÊ‹, •ãÿ ŒÎÁc≈U ‚ ŒπŸ flÊ‹, ‚◊ÊŸ ŒÎÁc≈U ‚ ŒπŸ flÊ‹ fl ‚Áê◊Á‹Ã ŒÎÁc≈U ‚ ŒπŸ flÊ‹ ◊L§Œ˜ªáÊ „UÃÈ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. (81) ´§Ã‡ø ‚àÿ‡ø œÈ˝fl‡ø œL§áʇø. œûÊʸ ø ÁflœûÊʸ ø ÁflœÊ⁄Uÿ—.. (82) ◊L§Œ˜ªáÊ ‚àÿ, ‚àÿflÊŸ, œ˝Èfl, œÊ⁄U∑§, œÃʸ fl ÁflœÃʸ „ÒU¢. fl Œfl „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê Áfl‡Ê· M§¬ ‚ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (82) ´§ÃÁ¡ëø ‚àÿÁ¡ëø ‚ŸÁ¡ìÊ ‚È·áʇø. •ÁãÃÁ◊òʇø ŒÍ⁄U •Á◊òʇø ªáÊ—.. (83) ‡ÊÈhSflM§¬, ‚àÿM§¬, ‡ÊòÊÈ ‚ŸÊ•Ê¥ ∑§ Áfl¡ÃÊ, üÊcΔU ‚ŸÊ•Ê¥ flÊ‹, Á◊òÊÊ¥ ∑§ ‚◊ˬ ⁄U„UŸ flÊ‹, ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U „≈UÊUŸ flÊ‹ ÃÕÊ ‚¢ÉÊ’h ⁄U„UŸ flÊ‹ ÿ ◊L§Œ˜ªáÊ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. (83) ߸ºÎˇÊÊ‚ ˘ ∞ÃÊŒÎˇÊÊ‚ ˘ ™§ ·È áÊ— ‚ŒÎˇÊÊ‚— ¬˝ÁÂŒÎˇÊÊ‚ ˘ ∞ß. Á◊ÃÊ‚‡ø ‚Áê◊ÃÊ‚Ê ŸÊ •l ‚÷⁄U‚Ê ◊L§ÃÊ ÿôÊ •ÁS◊Ÿ˜.. (84) „U ◊L§Œ˜ªáÊ! •Ê¬ ÁflÁflœ ∑§ÊáÊÊ¥ ‚ ŒπŸ flÊ‹, ‚◊ÊŸ ∑§ÊáÊ ‚ ŒπŸ flÊ‹, 220 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
¬˝àÿ∑§ ‚◊ÊŸ ∑§ÊáÊ ‚ ŒπŸ flÊ‹ Á◊ÁüÊà ∑§ÊáÊ ‚ ŒπŸ flÊ‹, ‚◊ÊŸ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ Á◊ÁüÊà ∑§ÊáÊ ‚ ŒπŸ flÊ‹ ÃÕÊ ‚◊ÊŸ •‹¢∑§Ê⁄UÊ¥ ∑§ œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •Ê¡ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄¥U. •Ê¬ ∑§ ÁŸÁ◊¸Ã ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. (84) SflÃflÊ°‡ø ¬˝ÉÊÊ‚Ë ø ‚Êã쟇ø ªÎ„U◊œË ø. ∑˝§Ë«UË ø ‡ÊÊ∑§Ë øÊÖ¡·Ë.. (85) •Ê¬ Sflÿ¢ •Á¡¸Ã ì ’‹ ¬Íáʸ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚¢Ãʬ ŒŸ flÊ‹, ªÎ„USÕ œ◊¸ ∑§ ¬Ê‹∑§, ∑˝§Ë«U∏ʇÊÊ‹Ë, ’‹flÊŸ fl Áfl¡ÿ‡ÊË‹ „Ò¥U. (85) ßãº˝¢ ŒÒflËÌfl‡ÊÊ ◊L§ÃÊŸÈflà◊ʸŸÊ ˘ ÷flãÿÕãº˝¢ ŒÒflËÁfl¸‡ÊÊ ◊L§ÃÊŸÈflà◊ʸŸÊ ˘ ÷flŸ˜. ∞flÁ◊◊¢ ÿ¡◊ÊŸ¢ ŒÒflˇø Áfl‡ÊÊ ◊ʟȷˇøÊŸÈflà◊ʸŸÊ ÷flãÃÈ.. (86) ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ë ‚ŸÊ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. fl„U ߢº˝ Œfl ∑§Ë ¬˝¡Ê ¡Ò‚Ë „ÒU fl ߢº˝ Œfl ∑§ ¬Õ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. flÒ‚ „UË ‚÷Ë ŒÒflËÿ ªÈáÊ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. flÒ‚ „UË ‚÷Ë ¬˝¡Ê ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (86) ß◊ ¦ Sß◊Í¡¸Sflãâ œÿʬʢ ¬˝¬ËŸ◊ÇŸ ‚Á⁄U⁄USÿ ◊äÿ. ©Uà‚¢ ¡È·Sfl ◊œÈ◊ãÃ◊fl¸ãà‚◊ÈÁº˝ÿ ¦ ‚ŒŸ◊Ê Áfl‡ÊSfl.. (87) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ™§¡¸SflË Sß fl ÉÊË ‚ ÷⁄U ‚˝È∑§ ∑§Ê ¬˝◊ ‚ ¬ÊŸ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ©U‚ ‚ ÃÎåà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl„U ◊œÈ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ‚◊Ⱥ˝ ‚ŒŸ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (87) ÉÊÎâ Á◊Á◊ˇÊ ÉÊÎÃ◊Sÿ ÿÊÁŸÉÊθà ÁüÊÃÊ ÉÊÎÃêflSÿ œÊ◊. •ŸÈcflœ◊Êfl„U ◊ÊŒÿSfl SflÊ„UÊ∑Χâ flη÷ flÁˇÊ „U√ÿ◊˜.. (88) „U◊ ÉÊË ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§ ◊Èπ ◊¥ ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ÿ„U •ÁÇŸ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. •ÁÇŸ ÉÊÎà ¬⁄U •ÁüÊà „Ò¥U. fl„U •ÁÇŸ ∑§Ê œÊ◊ „Ò¥U. „U •äflÿȸ! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. ©Uã„¥U „UÁfl ‚ ◊Œ◊Sà ’ŸÊß∞. ©Uã„¥U „UÁfl ‚ ’‹flÊŸ ’ŸÊß∞. •ÁÇŸ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „Ò Á∑§ fl„U „UÁfl ∑§Ê ÁŸœÊ¸Á⁄Uà Œfl Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (88) ‚◊Ⱥ˝ÊŒÍÁ◊¸◊¸œÈ◊Ê° 2 ©UŒÊ⁄UŒÈ¬Ê ¦ ‡ÊÈŸÊ ‚◊◊ÎÃàfl◊ÊŸ≈U˜. ÉÊÎÃSÿ ŸÊ◊ ªÈsÔ¢ ÿŒÁSà Á¡uÔUÊ ŒflÊŸÊ◊◊ÎÃSÿ ŸÊÁ÷—.. (89) ÉÊË ¡Ò‚Ê ‚◊Ⱥ˝ „ÒU . ©U‚ ◊¥ ◊œÈ⁄U ‹„U⁄¥U ©U◊«∏U ⁄U„UË „Ò¥U. ÿ ‹„U⁄¥U •ÁÇŸ ‚ ∞∑§◊∑§ „UÊ ¡ÊÃË „Ò¥U. ÉÊË ∑§Ê ¡Ê ªÈåà ŸÊ◊ „Ò, fl„U ŒflÊ¥ ∑§Ë Á¡uÔUÊ „ÒU. ªÈåà ŸÊ◊ •◊Îà ∑§Ë ŸÊÁ÷ „ÒU. (89) flÿ¢ ŸÊ◊ ¬˝ ’˝flÊ◊Ê ÉÊÎÃSÿÊÁS◊Ÿ˜ ÿôÊ œÊ⁄UÿÊ◊Ê Ÿ◊ÊÁ÷—. ©U¬ ’˝rÊÔÊ oÎáÊflë¿USÿ◊ÊŸ¢ øÃÈ—oÎXÊ ˘ fl◊ˌԘªÊÒ⁄U ˘ ∞ÃØ.. (90) ÿ¡Èfl¸Œ - 221
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ÉÊË ∑§ ŸÊ◊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ’Ê⁄U’Ê⁄U ’Ê‹Ã „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ◊¥ ÉÊË ∑§ ŸÊ◊ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U¬Ífl¸∑§ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ’Ê⁄U’Ê⁄U ’Ê‹Ã „Ò¥U. ’˝rÊÊ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ß‚ ŸÊ◊ ∑§Ê ¬Ê‚ ‚ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. øÊ⁄U ‚Ë¥ªÊ¥ („UÊÃÊ M§¬Ë) flÊ‹Ê ÉÊË ß‚ ÿôÊ ∑§ »§‹ ∑§Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U . (90) øàflÊÁ⁄U oÎXÊ òÊÿÊ •Sÿ ¬ÊŒÊ m ‡ÊË·¸ ‚åà „USÃÊ‚Ê •Sÿ. ÁòÊœÊ ’hÊ flη÷Ê ⁄UÊ⁄UflËÁà ◊„UÊ ŒflÊ ◊àÿʸ °2 •ÊÁflfl‡Ê.. (91) ß‚ ÿôÊ ∑§ øÊ⁄U ‚Ë¥ª (¬È⁄UÊÁ„Uà M§¬Ë), ÃËŸ ¬Ò⁄U (ÃËŸ flŒ M§¬Ë), ŒÊ Á‚⁄U („UÁfl ¬˝flÇÿ¸) fl ‚Êà „UÊÕ (‚Êà ¿¢UŒ M§¬Ë) „Ò¥U. ÿ„U ÿôÊ ÃËŸ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë ‚¢äÿÊ•Ê¥ ◊¥ ’¢œÊ „ÈU•Ê, ◊„UÊŸ˜ ‡ÊéŒ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê fl ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ◊„UÊŸ˜ Œfl „ÒU. ß‚ ÿôÊ ∑§ ◊ŸÈcÿ‹Ê∑§ ◊¥ •ÁäÊÁcΔUà „Ò¥U. (91) ÁòÊœÊ Á„Uâ ¬ÁáÊÁ÷ª¸ÈsÔ◊ÊŸ¢ ªÁfl ŒflÊ‚Ê ÉÊÎÃ◊ãflÁfl㌟˜. ßãº˝ ˘ ∞∑ ¦ ‚Íÿ¸ ˘ ∞∑¢§ ¡¡ÊŸ flŸÊŒ∑§ ¦ SflœÿÊ ÁŸCÔUÃˇÊÈ—.. (92) •‚È⁄UÊ¥ ‚ Á¿U¬Ê ∑§⁄U ⁄Uπ „ÈU∞ ÉÊË ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ÃËŸ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ªÊÿÊ¥ ‚ ¬˝Êåà ∑§⁄U Á‹ÿÊ. ∞∑§ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ (∞∑§ ÷ʪ) ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ¡ŸÊ. ŒÍ‚⁄U ¬˝∑§Ê⁄U ‚ (ŒÍ‚⁄UÊ ÷ʪ) ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ¡ŸÊ. ÃË‚⁄U ¬˝∑§Ê⁄U ‚ (ÃË‚⁄UÊ ÷ʪ) ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¡ŸÊ. (92) ∞ÃÊ ˘ •·¸Áãà NUlÊà‚◊Ⱥ˝Êë¿UÃfl˝¡Ê Á⁄U¬ÈáÊÊ ŸÊfløˇÊ. ÉÊÎÃSÿ œÊ⁄UÊ ˘ •Á÷ øÊ∑§‡ÊËÁ◊ Á„U⁄UáÿÿÊ flÃ‚Ê ◊äÿ ˘ •Ê‚Ê◊˜.. (93) ¡Ò‚ NUŒÿ M§¬Ë ‚◊Ⱥ˝ ‚ ÷ÊflÊ¥ ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ »Í§≈UÃË „ÒU¢, ŒÈ‡◊Ÿ ߟ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§Ê Œπ Ÿ„UË¥ ‚∑§ÃÊ, flÒ‚ „UË ß‚ ÿôÊ ◊¥ ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ »Í§≈UÃË „Ò¥U. ߟ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§ ’Ëø Áfll◊ÊŸ •ÁÇŸ ∑§Ê „U◊ ‚’ •Ê⁄U ‚ Œπà „Ò¥U. (93) ‚êÿ∑˜§ dflÁãà ‚Á⁄UÃÊ Ÿ œŸÊ ˘ •ãÃN¸UŒÊ ◊Ÿ‚Ê ¬Íÿ◊ÊŸÊ—. ∞à •·¸ãàÿÍ◊¸ÿÊ ÉÊÎÃSÿ ◊ÎªÊ ˘ ßfl ÁˇÊ¬áÊÊ⁄UË·◊ÊáÊÊ—.. (94) ¡Ò‚ ‚êÿ∑˜§Ô M§¬ ‚ ŸŒË ’„UÃË „Ò, flÒ‚ „UË „U◊Ê⁄U •¢Ã—NUŒÿ ‚ ¬ÁflòÊ ∑§Ë ¡ÊÃË „ÈU߸ flÊáÊË ‚˝Áflà „UÊÃË „ÒU. ÿ flÊÁáÊÿÊ¢ ÉÊË ∑§Ë Ã⁄¢UªÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U „Ò¥U. ÿôÊ ∑§Ë •Ê⁄U Á‡Ê∑§Ê⁄UË ‚ «U⁄U „ÈU∞ Á„U⁄UáÊ ∑§Ë Ã⁄U„U ÷ʪÃË „ÒU¢. (94) Á‚ãœÊÁ⁄Ufl ¬˝ÊäflŸ ‡ÊÍÉÊŸÊ‚Ê flÊì˝Á◊ÿ— ¬ÃÿÁãà ÿuÔUÊ—. ÉÊÎÃSÿ œÊ⁄UÊ ˘ •L§·Ê Ÿ flÊ¡Ë ∑§ÊcΔUÊ Á÷ãŒãŸÍÁ◊¸Á÷— Á¬ãfl◊ÊŸ—.. (95) ¡Ò‚ ‚◊Ⱥ˝ ◊¥ flÊÿÈ ∑§ flª ‚ ŸÁŒÿÊ¥ ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ Á◊‹ÃË „Ò¥U, flÒ‚ „UË ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ÃËfl˝ flª ‚ ÿôÊ ∑§Ë •ÁÇŸ ◊¥ Áª⁄UÃË „Ò¥U. ¡Ò‚ ’‹flÊŸ ÉÊÊ«∏UÊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ‚ŸÊ ∑§Ê ’œ ŒÃÊ „Ò •ÊÒ⁄U ¬‚ËŸ ‚ ¬ÎâflË ∑§Ê ‚Ë¥øÃÊ „ÈU•Ê ¬˝SÕÊŸ ∑§⁄UÃÊ „Ò, flÒ‚ „UË ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ¬ÎâflË ∑§Ê ‚Ë¥øÃË „Ò¥U. (95) 222 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
‚òÊ„UflÊ¢ •äÿÊÿ
•Á÷ ¬˝flãà ‚◊Ÿfl ÿÊ·Ê— ∑§ÀÿÊáÿ— S◊ÿ◊ÊŸÊ‚Ê •ÁÇŸ◊˜. ÉÊÎÃSÿ œÊ⁄UÊ— ‚Á◊œÊ Ÿ‚ãà ÃÊ ¡È·ÊáÊÊ „Uÿ¸Áà ¡ÊÃflŒÊ—.. (96) ¡Ò‚ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ë ‚È¢Œ⁄U ÁSòÊÿÊ¢ πÈ‡Ê „UÊÃË „ÈU߸ •¬Ÿ ¬Áà ∑§ ¬Ê‚ ¡ÊÃË „Ò¥U, flÒ‚ „UË ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ¬˝ŒËåà ∑§⁄UÃË „ÈU߸ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝Êåà „ÊÃË „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§Ê √ÿʬ∑§ ’ŸÊÃË „Ò¥U. ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ‚fl¸ôÊ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊÃË „Ò¥U. •ÁÇŸ ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ©UŸ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (96) ∑§ãÿÊ ˘ ßfl fl„UÃÈ◊ÃflÊ ˘ ©U •ÜÖÿÜ¡ÊŸÊ ˘ •Á÷ øÊ∑§‡ÊËÁ◊. ÿòÊ ‚Ê◊— ‚Íÿà ÿòÊ ÿôÊÊ ÉÊÎÃSÿ œÊ⁄UÊ ˘ •Á÷ Ãà¬flãÃ.. (97) ¡Ò‚ ‚¢ÈŒ⁄U ∑§ãÿÊ M§¬ fl„UŸ ∑§⁄UÃË „ÈU߸ Sflÿ¢fl⁄U ◊¥ fl⁄U ∑§ ¬Ê‚ ¬„È¢UøÃË „ÒU, flÒ‚ „UË ¡„UÊ¢ ‚Ê◊⁄U‚ ÁŸøÊ«∏UÊ ¡ÊÃÊ „Ò, ÿôÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò, fl„UÊ¢ ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ¡ÊÃË „Ò¥U. (97) •èÿ·¸Ã ‚Èc≈ÈU®Ã ª√ÿ◊ÊÁ¡◊S◊Ê‚È ÷º˝Ê º˝ÁfláÊÊÁŸ œûÊ. ß◊¢ ÿôÊ¢ Ÿÿà ŒflÃÊ ŸÊ ÉÊÎÃSÿ œÊ⁄UÊ ◊œÈ◊à¬flãÃ.. (98) „U ŒflÃÊ•Ê! ÿ„U ÿôÊ ÉÊË ‚ ®‚Áøà „ÒU. üÊcΔU SÃÈÁÃÿÈÄà „ÒU. Á¡‚ ÿôÊ ◊¥ ◊œÈ⁄U SflÊŒU flÊ‹Ë ÉÊË ∑§Ë ∑§ÀÿÊáÊ◊ÿË œÊ⁄UÊ∞¢ Áª⁄UÃË „Ò¥U, •Ê¬ ∞‚Ë ÉÊÎÃ◊ÿË ◊œÈ⁄U •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ÿôÊ ‚ Œfl‹Ê∑§ Ã∑§ ¬„È¢UøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (98) œÊ◊¢ à Áfl‡fl¢ ÷ÈflŸ◊Áœ ÁüÊÃ◊ã× ‚◊Ⱥ˝ NUlãÃ⁄UÊÿÈÁ·. •¬Ê◊ŸË∑§ ‚Á◊Õ ÿ ˘ •Ê÷ÎÃSÃ◊‡ÿÊ◊ ◊œÈ◊ãâ à ˘ ™§Á◊¸◊˜.. (99) „U •ÁÇŸ! ‚÷Ë ‹Ê∑§ •Ê¬ ∑§ œÊ◊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ •ÊüÊÿ „Ò¥U. ‚◊Ⱥ˝ ∑§ NUŒÿ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê üÊcΔU M§¬ ©U¬ÁSÕà „Ò. „U◊ •Ê¬ ∑§ ◊œÈ⁄U ‹„U⁄UŒÊ⁄U M§¬ ∑§Ê ¬Ê ‚∑¥§. (99)
ÿ¡Èfl¸Œ - 223
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ flÊ¡‡ø ◊ ¬˝‚fl‡ø ◊ ¬˝ÿÁÇø ◊ ¬˝Á‚ÁÇø ◊ œËÁÇø ◊ ∑˝§Ãȇø ◊ Sfl⁄U‡ø ◊ ‡‹Ê∑§‡ø ◊ üÊfl‡ø ◊ üÊÈÁÇø ◊ ÖÿÊÁÇø ◊ Sfl‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (1) ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ •ããÊŒÊÃÊ „UÊU. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∞‡flÿ¸ŒÊÃÊU „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÊÒL§· „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬˝’¢œ∑§Ê҇ʋ „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’ÈÁh „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÁŸáʸÿ ˇÊ◊ÃÊ „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‡ÊÁÄà „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡‹Ê∑§ „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ üÊfláÊˇÊ◊ÃÊ „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ áŒÊÃÊ „UÊ. ‚fl¸ÁflÁœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (1) ¬˝Êáʇø ◊¬ÊŸ‡ø ◊ √ÿÊŸ‡ø ◊‚ȇø ◊ ÁøûÊ¢ ø ◊ ˘ •ÊœËâ ø ◊ flÊ∑˜§ ø ◊ ◊Ÿ‡ø ◊ øˇÊȇø ◊ üÊÊòÊ¢ ø ◊ ŒˇÊ‡ø ◊ ’‹¢ ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (2) ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ ¬˝ÊáÊ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ •¬ÊŸ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ √ÿÊŸ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ ◊ÈÅÿ ¬˝ÊáÊ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ Áø¢ÃŸ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ flÊáÊË Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ ŸòÊ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ ∑§ÊŸ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ ŒˇÊÃÊ Œ. ÿ„U ÿôÊ „U◊¥ ’‹ Œ. ÿ„U ÿôÊ ‚fl¸ÁflÁœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (2) •Ê¡‡ø ◊ ‚„U‡ø ◊ ˘ •Êà◊Ê ø ◊ ß͇ø ◊ ‡Ê◊¸ ø ◊ fl◊¸ ø ◊XÊÁŸ ø ◊SÕËÁŸ ø ◊ ¬M§ ¦ Á· ø ◊ ‡Ê⁄UË⁄UÊÁáÊ ø ◊ ˘ •Êÿȇø ◊ ¡⁄UÊ ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (3) ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UÊ •Ê¡ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ‚Á„UcáÊÈÃÊ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UÊ •Êà◊’‹ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UÊ ŒÒÁ„U∑§’‹ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UÊ ‚È𠻧‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UÊ ∑§flø »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË •ÁSÕÿÊ¥ ∑§Ë ŒÎ…U∏ÃÊ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ‚¢ÁœÿÊ¥ ∑§Ë ŒÎ…U∏ÃÊ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ÁŸ⁄UʪÃÊ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ¬Á⁄U¬ÄflÃÊ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (3) ÖÿÒcΔUK¢ ø ◊ ˘ •ÊÁœ¬àÿ¢ ø ◊ ◊ãÿȇø ◊ ÷Ê◊‡ø ◊◊‡ø ◊ê÷‡ø ◊ ¡◊Ê ø ◊ ◊Á„U◊Ê ø ◊ flÁ⁄U◊Ê ø ◊ ¬˝ÁÕ◊Ê ø ◊ flÁ·¸◊Ê ø ◊ º˝ÊÁÉÊ◊Ê ø ◊ flÎh¢ ø ◊ flÎÁh‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (4)
224 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@14
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿôÊ „U◊¥ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ÖÿcΔUÃÊ „U◊Ê⁄U •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ ⁄U„U . •ŸËÁà „U◊Ê⁄U ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ ⁄U„U. ∑˝§Êœ „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ⁄U„. ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê „U◊ ¬˝ÁÃ∑§Ê⁄U ∑§⁄U ‚∑¥§. „U◊Ê⁄UË ¬Á⁄U¬ÄflÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊Ê⁄UË ªÁ⁄U◊Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊Ê⁄UË flÁ⁄UcΔUÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊ ‚fl¸òÊ ¬˝Õ◊ (üÊcΔU) ‚ÊÁ’à „UÊ¥. „U◊Ê⁄UË √ÿʬ∑§ÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊Ê⁄U ’«∏U嬟 ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊Ê⁄U fl¢‡Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊Ê⁄UË ©Uà∑Χc≈UÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊¥ (‚fl¸Áflœ) »§‹Ë÷Íà „UÊ. (4) ‚àÿ¢ ø ◊ üÊhÊ ø ◊ ¡ªëø ◊ œŸ¢ ø ◊ Áfl‡fl¢ ø ◊ ◊„U‡ø ◊ ∑˝§Ë«UÊ ø ◊ ◊ÊŒ‡ø ◊ ¡Êâ ø ◊ ¡ÁŸcÿ◊ÊáÊ¢ ø ◊ ‚ÍÄâ ø ◊ ‚È∑Χâ ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (5) ÿôÊ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ‚àÿ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. üÊhÊ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. œŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. Áfl‡fl ◊¥ SÃ⁄U ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ◊ŸÊÁflŸÊŒ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U·¸ SÃ⁄U ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ‚¢ÃÊŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ‚ÍÄÃÊ¥ ◊¥ SÃ⁄U ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (5) ´§Ã¢ ø ◊◊Îâ ø ◊ÿˇ◊¢ ø ◊ŸÊ◊ÿëø ◊ ¡ËflÊÃȇø ◊ ŒËÉÊʸÿÈàfl¢ ø ◊ŸÁ◊òÊ¢ ø ◊÷ÿ¢ ø ◊ ‚Èπ¢ ø ◊ ‡ÊÿŸ¢ ø ◊ ‚ͷʇø ◊ ‚ÈÁŒŸ¢ ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (6) ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ´§Ã ∑§Ê ’…∏UÊÃ⁄UË Á◊‹. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U •◊Îà ∑§Ê ’…∏UÊÃ⁄UË Á◊‹. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ÿˇ◊Ê ◊¥ ∑§◊Ë „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U •Ê⁄UÊÇÿ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „Ê. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ¡ËŸ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄ËU •ÊÿÈ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê •÷Êfl „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U •÷ÿ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ‚Èπ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ‡ÊÿŸ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ‚¢äÿÊ∑§◊¸ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ‚ÈÁŒŸ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊¥ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (6) ÿãÃÊ ø ◊ œÃʸ ø ◊ ˇÊ◊‡ø ◊ œÎÁÇø ◊ Áfl‡fl¢ ø ◊ ◊„U‡ø ◊ ‚¢Áflëø ◊ ôÊÊòÊ¢ ø ◊ ‚͇ø ◊ ¬˝‚͇ø ◊ ‚Ë⁄¢U ø ◊ ‹ÿ‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (7) ÿôÊ ‚ „U◊ œÊ⁄U∑§ „UÊ ¡Ê∞¢. œÒÿ¸ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ’…∏. ÿôÊ ‚ „U◊¥ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ë ‚Ê⁄UË ◊„UÊŸÃÊ ¬˝Êåà „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊¥ ‚¢¬Íáʸ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝Êåà „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊¥ ôÊÊŸ ¬˝Êåà „UÊ. ÿôÊ ‚ ©Uà¬ÊŒŸ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ πÃË ∑§ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ∑§c≈UÊ¥ ◊¥ ∑§◊Ë „UÊ. ÿôÊ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (7) ‡Ê¢ ø ◊ ◊ÿ‡ø ◊ Á¬˝ÿ¢ ø ◊ŸÈ∑§Ê◊‡ø ◊ ∑§Ê◊‡ø ◊ ‚ÊÒ◊Ÿ‚‡ø ◊ ÷ª‡ø ◊ º˝ÁfláÊ¢ ø ◊ ÷º˝¢ ø ◊ üÊÿ‡ø ◊ fl‚Ëÿ‡ø ◊ ÿ‡Ê‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (8) ÿôÊ ‚ ‚’ ‚ÈπÊ¥ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ •ÊŸ¢Œ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ •Ê◊ÊŒ¬˝◊ÊŒ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ •ŸÈ∑ͧ‹ ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ ‚ÊÒ◊ŸSÿ ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË ÿ¡Èfl¸Œ - 225
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ flÒ÷fl ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ ÷º˝ÃÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ üÊÿ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ flÊ‚ ‚Èπ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚’ ÿ‡Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊¥ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (8) ™§∑¸˜§ ø ◊ ‚ÍŸÎÃÊ ø ◊ ¬ÿ‡ø ◊ ⁄U‚‡ø ◊ ÉÊÎâ ø ◊ ◊œÈ ø ◊ ‚ÁÇœ‡ø ◊ ‚¬ËÁÇø ◊ ∑ΧÁ·‡ø ◊ flÎÁCÔU‡ø ◊ ¡ÒòÊ¢ ø ◊ ˘ •ÊÒÁjl¢ ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (9) ÿôÊ „U◊¥ »§‹Ë÷Íà „UÊ. ÿôÊ ‚ •ããÊ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊ. ÿôÊ ‚ •ë¿UË flÊáÊË ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊ. ÿôÊ ‚ ¬ÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊ. ÿôÊ ‚ ⁄U‚ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊ. ÿôÊ ‚ ÉÊË ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊ. ÿôÊ ‚ ◊œÈ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊ. „U◊ ‚¢’¢ÁœÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ÷Ê¡Ÿ ∑§⁄¥U. „U◊ ‚¢’¢ÁœÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬Ë∞¢. fl·Ê¸ „U◊Ê⁄UË ∑ΧÁ· ∑§Ê »§‹Ë÷Íà fl ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄. „U◊ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ÷ŒŸ ∑§⁄¥U. ÿôÊ „U◊¥ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (9) ⁄UÁÿ‡ø ◊ ⁄UÊÿ‡ø ◊ ¬ÈCÔ¢U ø ◊ ¬ÈÁCÔU‡ø ◊ Áfl÷È ø ◊ ¬˝÷È ø ◊ ¬ÍáÊZ ø ◊ ¬ÍáʸÃ⁄¢U ø ◊ ∑ȧÿfl¢ ø ◊ÁˇÊâ ø ◊㟢 ø ◊ˇÊÈëø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (10) ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U œŸ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄Ë ‚¢¬ÁûÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊ œŸ ‚ ¬Èc≈U „UÊ¥. „U◊ flÒ÷fl ‚ ¬Èc≈U „UÊ¥. „U◊ ¬˝÷È ‚ ¬Èc≈U „UÊ¥. „U◊ ¬Íáʸ ‚ ¬Èc≈U „UÊ¥. „U◊ ¬ÍáʸÃ⁄U ‚ ¬Èc≈U „UÊ¥. „U◊Ê⁄U ÿ„UÊ¢ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§ πÊl ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊Ê⁄U ÿ„UÊ¢ •ˇÊÿ •ããÊ ◊¥ fl „U◊Ê⁄Ë ÷Íπ ◊¥ ÷Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (10) ÁflûÊ¢ ø ◊ fll¢ ø ◊ ÷Íâ ø ◊ ÷Áflcÿëø ◊ ‚Ȫ¢ ø ◊ ‚Ȭâÿ¢ ø ◊ ˘ ´§h¢ ø ◊ ˘ ´§Áh‡ø ◊ Ä‹Îåâ ø ◊ Ä‹ÎÁåÇø ◊ ◊ÁÇø ◊ ‚È◊ÁÇø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜ .. (11) ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ÁflûÊ, ôÊÊŸ, •ÃËÃ, ÷Áflcÿ fl •ë¿U œŸ ∑§Ê ’…∏UÊÃ⁄UË Á◊‹. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U§¬Õ ‚Ȫ◊ „UÊ¥. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U§¬Õ ∑§ ⁄UÊ«∏U ‚◊Êåà „UÊ¥. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U§•ë¿U ∑§◊¸,§‚Ê◊âÿ¸, ‚àÿ,§’ÈÁh fl§‚Œ˜’ÈÁh ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (11) fl˝Ë„Uÿ‡ø ◊ ÿflʇø ◊ ◊ʷʇø ◊ ÁËʇø ◊ ◊ȌԘªÊ‡ø ◊ πÀflʇø ◊ Á¬˝ÿXfl‡ø ◊áÊfl‡ø ◊ ‡ÿÊ◊Ê∑§Ê‡ø ◊ ŸËflÊ⁄Uʇø ◊ ªÊœÍ◊ʇø ◊ ◊‚Í⁄Uʇø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (12) ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U œÊŸ, ¡ÊÒ, ©U«∏UŒ, ÁË, ◊Í¢ª, øŸÊ, Á¬˝ÿ¢ª (⁄UÊ߸), ¿UÊ≈U øÊfl‹Ê¥ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U ‚ÊflÊ¢ øÊfl‹, ŸËflÊ⁄U, ª„Í¢U, ◊‚Í⁄U ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊¥ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (12) •‡◊Ê ø ◊ ◊ÎÁûÊ∑§Ê ø ◊ Áª⁄Uÿ‡ø ◊ ¬fl¸Ãʇø ◊ Á‚∑§Ãʇø ◊ flŸS¬Ãÿ‡ø ◊ Á„U⁄Uáÿ¢ ø ◊ÿ‡ø ◊ ‡ÿÊ◊¢ ø ◊ ‹Ê„¢U ø ◊ ‚Ë‚¢ ø ◊ òÊ¬È ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (13) 226 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿôÊ ∑§◊¸ ‚ πÁŸ¡, Á◊≈˜U≈UË, ¬„UÊ«∏UÊ¥, ¬fl¸ÃÊ¥, ⁄UÃ, flŸS¬ÁÃÿÊ¥ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ∑§◊¸ ‚ ‚ÊŸ, ‹Ê„U, ∑§Ê¢‚, ‚Ë‚ fl Á≈UŸ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (13) •ÁÇŸ‡ø ◊ ˘ •Ê¬‡ø ◊ flËL§œ‡ø ◊ ˘ •Ê·œÿ‡ø ◊ ∑ΧCÔU¬ëÿʇø ◊∑Χc≈U¬ëÿʇø ◊ ª˝Êêÿʇø ◊ ¬‡Êfl ˘ •Ê⁄Uáÿʇø ◊ ÁflûÊ¢ ø ◊ ÁflÁûʇø ◊ ÷Íâ ø ◊ ÷ÍÁÇø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (14) ß‚ ÿôÊ ‚ •ÁÇŸ, ¡‹, ¬ÊÒœ, •Ê·ÁœÿÊ¢, ∑§c≈U ‚ ¬øŸ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ß‚ ÿôÊ ‚ •Ê‚ÊŸË ‚ ¬øŸ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¢, ªÊ¢fl ∑§ ¬‡ÊÈ, ¡¢ª‹ ∑§ ¬‡ÊÈ, ÁflûÊ, ‚¢¬ÁûÊ, •ÃËà fl ÷Áflcÿ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊¥ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. (14) fl‚È ø ◊ fl‚ÁÇø ◊ ∑§◊¸ ø ◊ ‡ÊÁÄÇø ◊Õ¸‡ø ◊ ˘ ∞◊‡ø ◊ ˘ ßàÿÊ ø ◊ ªÁÇø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (15) ÿôÊ ‚ ŒflªáÊ „U◊¥ œŸ, ‚¢¬ÁûÊ, ∑§◊¸ ‚Ê◊âÿ¸, •Õ¸, ßc≈ ‚ÊœŸ fl ªÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÿ„U ÿôÊ ‚fl¸Áflœ „U◊Ê⁄U Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (15) •ÁÇŸ‡ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ‚Ê◊‡ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ‚ÁflÃÊ ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ‚⁄USflÃË ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ¬Í·Ê ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ’΄US¬ÁÇø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (16) ÿôÊ ‚ •ÁÇŸ, ߢº˝ Œfl, ‚Ê◊ •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl, ‚ÁflÃÊ Œfl •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl, ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl fl ¬Í·Ê Œfl •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ë •ŸÈ∑¢§¬Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ ’΄US¬Áà Œfl •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ë •ŸÈ∑¢§¬Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (16) Á◊òʇø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ flL§áʇø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ œÊÃÊ ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ àflc≈UÊ ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ◊L§Ã‡ø ◊˘ßãº˝‡ø ◊ Áfl‡fl ø ◊ ŒflÊ˘ßãº˝‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (17) ÿôÊ ‚ Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl, flL§áÊ Œfl •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl, œÊÃÊ Œfl •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl, àflc≈UÊ •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl fl ◊L§Ã˜ •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ë •ŸÈ∑¢§¬Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿôÊ ‚ Áfl‡fl Œfl •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ë •ŸÈ∑¢§¬Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (17) ¬ÎÁÕflË ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ãÃÁ⁄UˇÊ¢ ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ lÊÒ‡ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ‚◊ʇø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ŸˇÊòÊÊÁáÊ ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ÁŒ‡Ê‡ø ◊ ˘ ßãº˝‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (18) ß‚ ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÎâflË Œfl ߢº˝, •¢ÃÁ⁄UˇÊ Œfl ߢº˝, Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ Œfl, ÿ¡Èfl¸Œ - 227
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
flÎÁc≈U Œfl ߢº˝, ŸˇÊòÊ Œfl ߢº˝ fl ÁŒ‡ÊÊ Œfl ߢº˝ ∑§Ë •ŸÈ∑¢§¬Ê ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿ„U ÿôÊ ‚fl¸Áflœ „U◊Ê⁄U Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (18) • ¦ ‡Êȇø ◊ ⁄UÁ‡◊‡ø ◊ŒÊèÿ‡ø ◊Áœ¬ÁÇø ◊ ˘ ©U¬Ê ¦ ‡Êȇø ◊ãÃÿʸ◊‡ø ◊ ˘ ∞ãº˝flÊÿfl‡ø ◊ ◊ÒòÊÊflL§áʇø ◊ ˘ •ÊÁ‡flŸ‡ø ◊ ¬˝Áì˝SÕÊŸ‡ø ◊ ‡ÊÈ∑˝§‡ø ◊ ◊ãÕË ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (19) ß‚ ÿôÊ ‚ •¢‡ÊȪ˝„U, ⁄UÁ‡◊ª˝„U, •ŒÊèÿª˝„U, ©U¬Ê¢‡ÊȪ˝„U, •¢Ãÿʸ◊, ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U flÊÿÈ, Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl, •ÊÁ‡flŸª˝„U fl ¬˝ÁÃSÕÊŸª˝„U •Áœ¬Áà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ß‚ ÿôÊ ‚ ‡ÊÈ∑˝§ª˝„U •Áœ¬Áà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ß‚ ÿôÊ ‚ ◊¢Õ˪˝„U •Áœ¬Áà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ„U ÿôÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (19) •Êª˝ÿáʇø ◊ flÒ‡flŒfl‡ø ◊ œÈ˝fl‡ø ◊ flÒ‡flÊŸ⁄U‡ø ◊ ˘ ∞ãº˝ÊÇŸ‡ø ◊ ◊„UÊflÒ‡flŒfl‡ø ◊ ◊L§àflÃËÿʇø ◊ ÁŸc∑§flÀÿ‡ø ◊ ‚ÊÁflòʇø ◊ ‚Ê⁄USflÇø ◊ ¬ÊàŸËflÇø ◊ „UÊÁ⁄UÿÊ¡Ÿ‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (20) ß‚ ÿôÊ ‚ •Êª˝ÿáÊ, Áfl‡fl, œ˝Èfl Œfl, flÒ‡flÊŸ⁄U, ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ, ◊„UÊflÒ‡fl Œfl, ◊L§àflÃËÿ Œfl, ÁŸc∑§flÀÿ Œfl, ‚ÊÁflòÊ Œfl, ‚Ê⁄USflà Œfl „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ß‚ ÿôÊ ‚ ¬ÊàŸËflà fl „ÊUÁ⁄UÿÊ¡Ÿ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ‚fl¸Áflœ „U◊Ê⁄U Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (20) ‚È˝ø‡ø ◊ ø◊‚ʇø ◊ flÊÿ√ÿÊÁŸ ø ◊ º˝ÊáÊ∑§‹‡Ê‡ø ◊ ª˝ÊflÊáʇø ◊Áœ·fláÊ ø ◊ ¬ÍÃ÷Îëø ◊ ˘ •ÊœflŸËÿ‡ø ◊ flÁŒ‡ø ◊ ’Ì„U‡ø ◊fl÷ÎÕ‡ø ◊ SflªÊ∑§Ê⁄U‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (21) ÿôÊ ‚ ‚˝È∑§ (ÉÊË «UÊ‹Ÿ ∑§Ê ¬ÊòÊ), ø◊‚, flÊÿ√ÿ, º˝ÊáÊ∑§‹‡Ê, ¬àÕ⁄U, •Áœ·fláÊ (‚Ê◊ ∑ͧ≈UŸ flÊ‹Ê ¬àÕ⁄U) „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊ. ÿôÊ ‚ ¬ÍÃ÷Îà (‚Ê◊ ⁄UπŸ ∑§Ê ¬ÊòÊ) •ÊuÔUŸËÿ ¬ÊòÊ, flÁŒ∑§Ê, ∑ȧ‡ÊÊ, •fl÷ÎÕ SŸÊŸ fl ‡ÊêÿÈflÊ∑§ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊ. ÿôÊ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (21) •ÁÇŸ‡ø ◊ ÉÊ◊¸‡ø ◊∑¸§‡ø ◊ ‚Íÿ¸‡ø ◊ ¬˝Êáʇø ◊‡fl◊œ‡ø ◊ ¬ÎÁÕflË ø ◊ÁŒÁÇø ◊ ÁŒÁÇø ◊ lÊÒ‡ø ◊X‰‹ÿ— ‡ÊÄfl⁄UÿÊ ÁŒ‡Ê‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (22) ÿôÊ ‚ •ÁÇŸ, ª⁄U◊Ë, •∑¸§, ‚Íÿ¸, ¬˝ÊáÊ, •‡fl◊œ, ¬ÎâflË, •ÁŒÁà fl ÁŒÁà „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ÿôÊ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ Áfl⁄UÊ≈˜U ¬ÈL§· ∑§Ë •¢ªÈÁ‹ÿÊ¢, ‡ÊÁÄà fl ÁŒ‡ÊÊ∞¢ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ„U ÿôÊ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (22) fl˝Ã¢ ø ◊ ˘ ´§Ãfl‡ø ◊ ì‡ø ◊ ‚¢flà‚⁄U‡ø ◊„UÊ⁄UÊòÊ ™§fl¸cΔUËfl ’΄Uº˝ÕãÃ⁄U ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (23) 228 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿôÊ ‚ fl˝Ã, ì, fl·Ê¸, ÁŒŸ⁄UÊà fl ÿôÊ ‚ ™§fl¸ÁcΔU „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ÿôÊ ‚ ’΄Uº˝Õ¢Ã⁄U „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ„U ÿôÊ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄. (23) ∞∑§Ê ø ◊ ÁÃd‡ø ◊ ÁÃd‡ø ◊ ¬Üø ø ◊ ¬Üø ø ◊ ‚åà ø ◊ ‚åà ø ◊ Ÿfl ø ◊ Ÿfl ø ◊ ˘ ∞∑§ÊŒ‡Ê ø ◊ ˘ ∞∑§ÊŒ‡Ê ø ◊ òÊÿÊŒ‡Ê ø ◊ òÊÿÊŒ‡Ê ø ◊ ¬ÜøŒ‡Ê ø ◊ ¬ÜøŒ‡Ê ø ◊ ‚åÃŒ‡Ê ø ◊ ‚åÃŒ‡Ê ø ◊ ŸflŒ‡Ê ø ◊ ŸflŒ‡Ê ø ◊ ˘ ∞∑§Áfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ˘ ∞∑§Áfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ òÊÿÊÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ òÊÿÊÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ¬ÜøÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ¬ÜøÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ‚åÃÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ‚åÃÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ŸflÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ŸflÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ ˘ ∞∑§ÁòÊ ¦ ‡Êëø ◊ ˘ ∞∑§ÁòÊ ¦ ‡Êëø ◊ òÊÿÁSòÊ ¦ ‡Êëø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (24) ÿôÊ ‚ „U◊ ∞∑§, ÃËŸ, ¬Ê¢ø, ¬Ê¢ø •ÊÒ⁄U ‚ÊÃ, ‚Êà •ÊÒ⁄U ŸÊÒ, ŸÊÒ •ÊÒ⁄U ÇÿÊ⁄U„,U ÇÿÊ⁄U„U •ÊÒ⁄U Ã⁄U„U, Ã⁄U„U •ÊÒ⁄U ¬¢º˝„U, ¬¢º˝„U •ÊÒ⁄U ‚òÊ„U, ©UããÊË‚ •ÊÒ⁄U ßÄ∑§Ë‚, Ã߸‚ •ÊÒ⁄U ¬ëøË‚ SÃÊ◊ ßë¿UÊ ∑§Ê »§‹Ë÷Íà ∑§⁄¥U. ÿôÊ ‚ „U◊ ¬ëøË‚ •ÊÒ⁄U ‚ûÊÊ߸‚, ‚ûÊÊ߸‚ •ÊÒ⁄U ©UŸÃË‚, ©UŸUÃË‚ •ÊÒ⁄U ß∑§ÃË‚, ß∑§ÃË‚ •ÊÒ⁄U ÃÒ¥ÃË‚ SÃÊ◊ ßë¿UÊ ∑§Ê »§‹Ë÷Íà ∑§⁄¥U. ÿôÊ ‚fl¸Áflœ »§‹Ë÷Íà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U . (24) øÃd‡ø ◊c≈UÔUÊÒ ø ◊c≈UÔUÊÒ ø ◊ mÊŒ‡Ê ø ◊ mÊŒ‡Ê ø ◊ ·Ê«U‡Ê ø ◊ ·Ê«U‡Ê ø ◊ Áfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ Áfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ øÃÈÁfl¸ ¦ ‡ÊÁÇø ◊ øÃÈÁfl¸ ¦ ‡ÊÁÇø ◊c≈UUÊÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊c≈UUÊÁfl ¦ ‡ÊÁÇø ◊ mÊÁòÊ ¦ ‡Êëø ◊ mÊÁòÊ ¦ ‡Êëø ◊ ·≈˜UÁòÊ ¦ ‡Êëø ◊ ·≈˜UÁòÊ ¦ ‡Êëø ◊ øàflÊÁ⁄ ¦ ‡Êëø ◊ øàflÊÁ⁄ ¦ ‡Êëø ◊ øÃȇøàflÊÁ⁄ ¦ ‡Êëø ◊ øÃȇøàflÊÁ⁄ ¦ ‡Êëø ◊c≈UUÊøàflÊÁ⁄ ¦ ‡Êëø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (25) ÿôÊ ‚ øÊ⁄U •ÊÒ⁄U •ÊΔU, •ÊΔU •ÊÒ⁄U ’Ê⁄U„U, ’Ê⁄U„U •ÊÒ⁄U ‚Ê‹„U, ‚Ê‹„U •ÊÒ⁄U ’Ë‚, ’Ë‚ •ÊÒ⁄U øÊÒ’Ë‚, øÊÒ’Ë‚ •ÊÒ⁄U •≈˜UΔUÊ߸‚ SÃÊ◊ •÷Ëc≈U ¬˝ÊÁåà ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ‚ •≈˜UΔUÊ߸‚ •ÊÒ⁄U ’ûÊË‚ SÃÊ◊, ’ûÊË‚ •ÊÒ⁄U ¿UûÊË‚, ¿UûÊË‚ •ÊÒ⁄U øÊ‹Ë‚, øÊ‹Ë‚ •ÊÒ⁄U øflÊ‹Ë‚ fl øflÊ‹Ë‚ •ÊÒ⁄U •«∏UÃÊ‹Ë‚ SÃÊ◊ •÷Ëc≈U ¬˝ÊÁåà ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ‚fl¸Áflœ „U◊Ê⁄U Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (25) òÿÁfl‡ø ◊ òÿflË ø ◊ ÁŒàÿflÊ≈˜U ø ◊ ÁŒàÿÊÒ„UË ø ◊ ¬ÜøÊÁfl‡ø ◊ ¬ÜøÊflË ø ◊ ÁòÊflà‚‡ø ◊ ÁòÊflà‚Ê ø ◊ ÃÈÿ¸flÊ≈U˜ ø ◊ ÃÈÿÊÒ¸„UË ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (26) ÿôÊ ‚ ÃËŸ ‚ •Êœ fl·¸ ∑§Ê ’¿U«∏UÊ, ÃËŸ fl·¸ ∑§Ë ’Á¿UÿÊ, ŒÊ fl·¸ ∑§Ê ’¿U«∏UÊ, ’Á¿UÿÊ, …UÊ߸ fl·¸ ∑§Ê ’¿U«∏UÊ fl ’Á¿UÿÊ. ÿôÊ ‚ ÃËŸ fl·¸ ∑§Ê ’Ò‹ fl ªÊÿ ‚„UÊÿ∑§ „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚Ê…∏U ÃËŸ fl·¸ ∑§Ê ’Ò‹ fl ªÊÿ ‚„UÊÿ∑§ „UÊ. ÿôÊ ‚fl¸Áflœ „U◊Ê⁄U Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (26) ¬cΔUflÊ≈U˜ ø ◊ ¬cΔUÊÒ„UË ø ◊ ˘ ©UˇÊÊ ø ◊ fl‡ÊÊ ø ◊ ˘ ´§·÷‡ø ◊ fl„Uëø ◊Ÿ«˜UflÊ°‡ø ◊ œŸÈ‡ø ◊ ÿôÊŸ ∑§À¬ãÃÊ◊˜.. (27) ÿ¡Èfl¸Œ - 229
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÿôÊ ‚ øÊ⁄U fl·¸ ∑§Ê ’Ò‹ •ÊÒ⁄U ªÊÿ ‚„UÊÿ∑§ „UÊ. ÿôÊ ‚ ‚øŸ ‚◊Õ¸ ’Ò‹ •ÊÒ⁄U fl¢äÿÊ ªÊÿ ‚„UÊÿ∑§ „UÊ, ÿôÊ ‚ âŒÈL§Sà ’Ò‹ ª÷¸ ÉÊÊÁÃŸË ªÊÿ ‚„UÊÿ∑§ „UÊ. ªÊ«∏UË πË¥øŸ flÊ‹ ’Ò‹ •ÊÒ⁄U „UÊ‹ „UË ◊¥ éÿÊ߸ ªÊÿ „U◊¥ ¬˝Êåà „UÊ. •Á÷¬˝Êÿ ÿ„U „ÒU Á∑§ „U◊¥ ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ê ¬‡ÊÈ œŸ Á◊‹. (27) flÊ¡Êÿ SflÊ„UÊ ¬˝‚flÊÿ SflÊ„UÊÁ¬¡Êÿ SflÊ„UÊ ∑˝§Ãfl SflÊ„UÊ fl‚fl SflÊ„UÊ„U¬¸Ãÿ SflÊ„UÊqÔU ◊ÈÇœÊÿ SflÊ„UÊ ◊ÈÇœÊÿ flÒŸ ¦ Á‡ÊŸÊÿ SflÊ„UÊ ÁflŸ ¦ Á‡ÊŸ ˘ •ÊãàÿÊÿŸÊÿ SflÊ„UÊãàÿÊÿ ÷ÊÒflŸÊÿ SflÊ„UÊ ÷ÈflŸSÿ ¬Ãÿ SflÊ„UÊÁœ¬Ãÿ SflÊ„UÊ ¬˝¡Ê¬Ãÿ SflÊ„UÊ. ßÿ¢ à ⁄UÊÁá◊òÊÊÿ ÿãÃÊÁ‚ ÿ◊Ÿ ˘ ™§¡¸ àflÊ flÎCÔUKÒ àflÊ ¬˝¡ÊŸÊ¢ àflÊÁœ¬àÿÊÿ.. (28) ÿ„U •Ê„ÈUÁà •ãŸ M§¬ øÒòÊ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ¬˝‚fl M§¬ flÒ‡ÊÊπ, ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ¡‹∑˝§Ë«∏UÊ •ÊÁŒ ◊¥ •ÊŸ¢ŒŒÊÿ∑§ ÖÿcΔU ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ∑˝§ÃÈ M§¬ •Ê·Ê…∏U ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà øÊÃÈ◊ʸ‚ ◊¥ ÿÊòÊÊ ÁŸ·äÊ∑§ fl‚È M§¬ üÊÊfláÊ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ÷ʺ˝ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ◊Ÿ◊Ê„U∑§ •ÊÁ‡flŸ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ∑§ÊÁø∑§ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ÁflcáÊÈ M§¬ ◊ʪ¸‡ÊËcʸ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ¬ÊÒ· ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ◊ÊÉÊ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U •Ê„ÈUÁà ´§ÃÈ⁄UÊ¡ M§¬ »§ÊÀªÈŸ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ „ÒU. „U ¬˝¡ÊU¬ÁÃ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á◊òÊ ∑§ ‚◊ÊŸ Á„UÃÒ·Ë „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ •ÊÁŒ ∑§ ’ŸÊŸ flÊ‹ „ÒU¢. ™§¡Ê¸ •ÊÒ⁄U ¬˝¡Ê ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝◊¬Ífl¸∑§ ¬˝áÊÊ◊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (28) •ÊÿÈÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ¬˝ÊáÊÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ øˇÊÈÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ üÊÊòÊ¢ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ flÊÇÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ◊ŸÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ◊Êà◊Ê ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ’˝rÊÔÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ÖÿÊÁÃÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ Sflÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ¬ÎcΔ¢U ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ¢ ÿôÊÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ◊˜. SÃÊ◊‡ø ÿ¡È‡ø ´§∑˜§ ø ‚Ê◊ ø ’΄Uëø ⁄UÕãÃ⁄¢U ø. SflŒ¸flÊ ˘ •ªã◊Ê◊ÎÃÊ ˘ •÷Í◊ ¬˝¡Ê¬Ã— ¬˝¡Ê ˘ •÷Í◊ fl≈˜ SflÊ„UÊ.. (29) ÿôÊ ‚ „U◊Ê⁄UË ©U◊⁄U ’…∏U. ¬˝ÊáÊÊ¥ ◊¥ á •ÊÒ⁄U ’‹ ’…∏U. ŸòÊ •ÊÒ⁄U ∑§ÊŸ üÊcΔU „UÊ¥. flÊáÊË ©Uà∑Χc≈U „UÊ. •Êà◊Ê •ÊŸ¢Œ◊ÿ „UÊ. flŒÊ¥ ∑§ ôÊÊÃÊ ’˝rÊÔÊ ‚¢ÃÊ·Ë „UÊ¥. ÿôÊ ‚ ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ ¬⁄U◊ Ãûfl Á◊‹, ÿôÊ ‚ Sflª¸ •ÕʸØ ‚Èπ Á◊‹. ÿôÊ •ÊÒ⁄U SÃÈÁà ∑§ ◊¢òÊ „U◊¥ •÷Ëc≈U »§‹ Œ¥. ‚÷Ë Œfl „U◊¥ Œflàfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. •ÕʸØ ‚Èπ Œ¥. „U◊ ÷Ë ¬˝¡Ê¬Áà ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§ M§¬ ◊¥ ‚Èπ ÷ʪ¥. ß‚Ë Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (29) flÊ¡Sÿ ŸÈ ¬˝‚fl ◊ÊÃ⁄¢U ◊„UË◊ÁŒ®Ã ŸÊ◊ flø‚Ê ∑§⁄UÊ◊„U. ÿSÿÊÁ◊Œ¢ Áfl‡fl¢ ÷ÈflŸ◊ÊÁflfl‡Ê ÃSÿÊ¢ ŸÊ Œfl— ‚ÁflÃÊ œ◊¸ ‚ÊÁfl·Ã˜.. (30) ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ •ããÊ ¬ÒŒÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. „U◊ ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê flÊáÊË ‚ ªÊªÊ ∑§⁄U √ÿÄà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©U‚ ◊¥ ‚Ê⁄UÊ Áfl‡fl •ÊÒ⁄U ‹Ê∑§ ‚◊Ê∞ „ÈU∞ „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ß‚ ¬ÎâflË ¬⁄U „U◊Ê⁄UË ÁSÕÁà ∑§Ê ŒÎ…∏UÃ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (30) 230 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
Áfl‡fl •l ◊L§ÃÊ Áfl‡fl ˘ ™§ÃË Áfl‡fl ÷flãàflÇŸÿ— ‚Á◊hÊ—. Áfl‡fl ŸÊ ŒflÊ ˘ •fl‚ʪ◊ãÃÈ Áfl‡fl◊SÃÈ º˝ÁfláÊ¢ flÊ¡Ê •S◊.. (31) •Ê¡ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ (‚÷Ë) ◊L§Œ˜ªáÊ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚÷Ë ŒflªáÊ •¬Ÿ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚Á„Uà ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚÷Ë •ÁÇŸÿÊ¢ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ •ããÊ, œŸ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄Ê∞¥. (31) flÊ¡Ê Ÿ— ‚åà ¬˝ÁŒ‡Ê‡øÃdÊ flÊ ¬⁄UÊfl×. flÊ¡Ê ŸÊ Áfl‡flÒŒ¸flÒœ¸Ÿ‚ÊÃÊÁfl„UÊflÃÈ.. (32) „U◊Ê⁄U •ããÊ, äÊŸ ∑§Ë ‚ÊÃÊ¥ ©U¬ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ •ÊÒ⁄U øÊ⁄UÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ‚◊Sà ŒflªáÊ (Áfl‡fl) „U◊Ê⁄U œŸœÊãÿ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (32) flÊ¡Ê ŸÊ •l ¬˝ ‚ÈflÊÁà ŒÊŸ¢ flÊ¡Ê ŒflÊ° 2 ´§ÃÈÁ÷— ∑§À¬ÿÊÁÃ. flÊ¡Ê Á„U ◊Ê ‚fl¸flË⁄¢U ¡¡ÊŸ Áfl‡flÊ ˘ •Ê‡ÊÊ flÊ¡¬Áá¸ÿÿ◊˜.. (33) ŒflªáÊ •Ê¬ •ããÊ ∑§ •ÁœcΔUÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •ãŸŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U •ããÊ »§‹Ë÷Íà „UÊÃÊ ⁄U„. (33) flÊ¡— ¬È⁄USÃÊŒÈà ◊äÿÃÊ ŸÊ flÊ¡Ê ŒflÊŸ˜ „UÁfl·Ê flœ¸ÿÊÁÃ. flÊ¡Ê Á„U ◊Ê ‚fl¸flË⁄¢U ø∑§Ê⁄U ‚flʸ ˘ •Ê‡ÊÊ flÊ¡¬ÁÃ÷¸flÿ◊˜.. (34) •ããÊ „U◊Ê⁄U ‚Ê◊Ÿ ©U¬¡ÃÊ „Ò. fl„U „U◊Ê⁄U ÉÊ⁄U ∑§ ’Ëø ©U¬¡ÃÊ „Ò. •ããÊ „UÁfl ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UÃÊ „ÒU. fl„U „UË „U◊ ‚’ ∑§Ê flË⁄U ’ŸÊÃÊ „ÒU. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ •ããʬÁà fl •Ê‡ÊÊflÊŒË ’Ÿ¥. (34) ‚ê◊Ê ‚ΡÊÁ◊ ¬ÿ‚Ê ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚ê◊Ê ‚ΡÊêÿÁj⁄UÊ·œËÁ÷—. ‚Ê„¢U flÊ¡ ¦ ‚Ÿÿ◊ÇŸ.. (35) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ⁄U‚ ‚ ‚ΡŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ⁄U‚, ¡‹ •ÊÒ⁄U •Ê·œ ‚ ‚ΡŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ •Ê·œ •ÊÒ⁄U ¡‹ ¬Êà „Ò¥U. (35) ¬ÿ— ¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ ¬ÿ ˘ •Ê·œË·È ¬ÿÊ ÁŒ√ÿãÃÁ⁄UˇÊ ¬ÿÊ œÊ—. ¬ÿSflÃË— ¬˝ÁŒ‡Ê— ‚ãÃÈ ◊sÔ◊˜.. (36) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ŒÍœ œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U •Ê·ÁœÿÊ¥ ◊¥ ¡ËflŸ œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÁŒ√ÿ ⁄U‚ œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ÁŒ√ÿ ⁄U‚ œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ∞¢, ¬˝ÁŒ‡ÊÊ∞¢ ¬ÿÁSflŸË (ŒÍäÊ ŒŸ flÊ‹Ë) „UÊ ¡Ê∞¢. (36) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. ‚⁄USflàÿÒ flÊøÊ ÿãÃÈÿ¸ãòÊáÊÊÇŸ— ‚Ê◊˝ÊÖÿŸÊÁ÷Á·ÜøÊÁ◊.. (37) ÿ¡Èfl¸Œ - 231
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ ¡ã◊Ÿ (©UŒÿ „UÊŸ) ¬⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄Ê¥ ∑§ ’Ê„ÈU•Ê¥ ‚ •Á÷Á·¢øŸ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. ¬ÍcÊÊ Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ •Á÷Á·¢¢øŸ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ë flÊáÊË ‚ •Á÷Á·¢øŸ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. ÁŸÿÊ◊∑§ ‚ûÊÊ ∑§ ÁŸÿ◊Ÿ ‚ •Á÷Á·¢øŸ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. •ÁÇŸ ∑§ ‚Ê◊˝ÊÖÿ ‚ •Á÷Á·¢øŸ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. (37) ´§ÃÊ·Ê«ÎUÃœÊ◊ÊÁÇŸª¸ãœfl¸SÃSÿÊÒ·œÿÊå‚⁄U‚Ê ◊ÈŒÊ ŸÊ◊. ‚ Ÿ ˘ ߌ¢ ’˝rÊÔ ˇÊòÊ¢ ¬ÊÃÈ ÃS◊Ò SflÊ„UÊ flÊ≈˜U ÃÊèÿ— SflÊ„UÊ.. (38) •ÁÇŸ ‚àÿ ‚ Áfl¡ÿ ¬Êà „Ò¥U. fl üÊcΔU œÊ◊ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê·ÁœÿÊ¢ ª¢œfl¸ ∑§Ë •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U. ÿ ‚÷Ë ◊¥ ◊ÊŒ (¬˝‚ãŸÃÊ) ∑§Ê ‚¢øÊ⁄U ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •ÁÇŸ ߟ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§ ⁄UˇÊ∑§ „UÊ¥. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „Ò¥U . ©UŸ ∑§ Á‹∞ SŸ„U¬Ífl¸∑§ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (38) ‚ ¦ Á„UÃÊ Áfl‡fl‚Ê◊Ê ‚Íÿʸ ªãœfl¸SÃSÿ ◊⁄UËøÿÊå‚⁄U‚ ˘ •ÊÿÈflÊ ŸÊ◊. ‚ Ÿ ˘ ߌ¢ ’˝rÊÔ ˇÊòÊ¢ ¬ÊÃÈ ÃS◊Ò SflÊ„UÊ flÊ≈˜U ÃÊèÿ— SflÊ„UÊ.. (39) ‚Ê◊flŒ ∑§Ë ‚È¢Œ⁄U ´§øÊ•Ê¥ ‚ Á¡Ÿ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU, ¡Ê ÁŒŸ •ÊÒ⁄U ⁄UÊà ∑§Ê Á◊‹Êà „Ò¥U, Á¡Ÿ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ ª¢œfl¸ ∑§Ë •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U, fl „U◊Ê⁄UËU ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. fl„U ‚Íÿ¸ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U . ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà „ÒU. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SŸ„U¬Ífl¸∑§ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. (39) ‚È·ÈêáÊ— ‚Íÿ¸⁄UÁ‡◊‡øãº˝◊Ê ªãœfl¸SÃSÿ ŸˇÊòÊÊáÿå‚⁄U‚Ê ÷∑ȧ⁄UÿÊ ŸÊ◊. ‚ Ÿ ˘ ߌ¢ ’˝rÊÔ ˇÊòÊ¢ ¬ÊÃÈ ÃS◊Ò SflÊ„UÊ flÊ≈U˜ ÃÊèÿ— SflÊ„UÊ.. (40) ‚Íÿ¸ ‚È·◊Ê ŒÊÿ∑§ „Ò¥U. ø¢º˝ Œfl ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ¬˝∑§Ê‡Ê ¬Êà „Ò¥U. ŸˇÊòÊÊ¥ ∑§Ë ⁄UÁ‡◊ÿÊ¢ ª¢œfl¸ •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U. ÿ ø◊∑§Ë‹Ë „Ò¥U. ÿ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. ߟ ∑§ Á‹∞ SŸ„U¬Ífl¸∑§ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (40) ßÁ·⁄UÊ Áfl‡fl√ÿøÊ flÊÃÊ ªãœfl¸SÃSÿÊ¬Ê •å‚⁄U‚ ˘ ™§¡Ê¸ ŸÊ◊. ‚ Ÿ ˘ ߌ¢ ’˝rÊÔ ˇÊòÊ¢ ¬ÊÃÈ ÃS◊Ò SflÊ„UÊ flÊ≈U˜ ÃÊèÿ— SflÊ„UÊ.. (41) ª¢œfl¸ flÊÿÈ SflM§¬ „Ò¥U. fl ÷ÍÁ◊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿ„U ÷ÍÁ◊ ‚fl¸√ÿʬ∑§ „ÒU. fl ª¢œfl¸ ‡ÊËÉÊ˝ ª◊Ÿ‡ÊË‹ ™§¡¸SflË „Ò¥U. ©UŸ ‚ ÁŸflŒŸ „ÒU Á∑§ fl ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡‹ ©UŸ ∑§Ë •å‚⁄UÊ∞¢ „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (41) ÷ÈÖÿÈ— ‚ȬáÊʸ ÿôÊÊ ªãœfl¸SÃSÿ ŒÁˇÊáÊÊ ˘ •å‚⁄U‚ SÃÊflÊ ŸÊ◊. ‚ Ÿ ˘ ߌ¢ ’˝rÊÔ ˇÊòÊ¢ ¬ÊÃÈ ÃS◊Ò SflÊ„UÊ flÊ≈U˜ ÃÊèÿ— SflÊ„UÊ.. (42) 232 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ª¢œfl¸ ‚Ȭáʸ M§¬ fl ÿôÊ SflM§¬ „Ò¥U. ÷ÊÖÿ ¬ŒÊÕÊZ ∑§ ŒÊÃÊ „Ò¥U. ª¢œfl¸ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. SÃÈÁà ŸÊ◊∑§ ŒÁˇÊáÊÊ ÿôÊ ∑§Ë •å‚⁄UÊ „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU . ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (42)U ¬˝¡Ê¬ÁÃÌfl‡fl∑§◊ʸ ◊ŸÊ ªãœfl¸SÃSÿ ´§Ä‚Ê◊Êãÿå‚⁄U‚ ˘ ∞CÔUÿÊ ŸÊ◊. ‚ Ÿ ˘ ߌ¢ ’˝rÊÔ ˇÊòÊ¢ ¬ÊÃÈ ÃS◊Ò SflÊ„UÊ flÊ≈˜U ÃÊèÿ— SflÊ„UÊ.. (43) ª¢œfl¸ ¬˝¡Ê¬ÁÃ, Áfl‡fl∑§◊ʸ fl ◊Ÿ SflM§¬ „Ò¥U. ª¢œfl¸ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ´§∑˜§ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ∑§Ë ∞Ác≈U ŸÊ◊∑§ •å‚⁄UÊ „ÒU. fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU. ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (43) ‚ ŸÊ ÷ÈflŸSÿ ¬Ã ¬˝¡Ê¬Ã ÿSÿ à ˘ ©U¬Á⁄U ªÎ„UÊ ÿSÿ fl„U. •S◊Ò ’˝rÊÔáÊS◊Ò ˇÊòÊÊÿ ◊Á„U ‡Ê◊¸ ÿë¿U SflÊ„UÊ.. (44) „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! •Ê¬ ÷ÈflŸ¬Áà „Ò¥U. ™§¬⁄U ∑§ ‚Ê⁄U ÉÊ⁄U •Ê¬ ∑§Ë „UË ∑Χ¬Ê ‚ ÁSÕÃU „Ò¥U. •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ê ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (44) ‚◊Ⱥ˝ÊÁ‚ Ÿ÷Sflʟʺ˝¸ŒÊŸÈ— ‡Êê÷Í◊¸ÿÊ÷Í⁄UÁ÷ ◊Ê flÊÁ„U SflÊ„UÊ. ◊ÊL§ÃÊÁ‚ ◊L§ÃÊ¢ ªáÊ— ‡Êê÷Í◊¸ÿÊ÷Í⁄UÁ÷ ◊Ê flÊÁ„U SflÊ„UÊflSÿÍ⁄UÁ‚ ŒÈflSflÊÜ¿Uê÷Í◊¸ÿÊ÷Í⁄UÁ÷ ◊Ê flÊÁ„U SflÊ„UÊ.. (45) •Ê¬ ‚◊Ⱥ˝, Ÿ÷flÊŸ, ¡‹ ŒÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ fl ÷ÍÁ◊ ∑§Ê ‚Èπ ŒÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊L§Ã˜ „Ò¥U. ◊L§ÃÊ¥ ∑§ ªáÊ „Ò¥U. ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥. ‚’ ∑§ •ÊüÊÿŒÊÃÊ „Ò¥U. ŒÈ—π ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ’„ÈUà ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã „ÒU . •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (45) ÿÊSà •ÇŸ ‚Íÿ¸ L§øÊ ÁŒfl◊ÊÃãflÁãà ⁄UÁ‡◊Á÷—. ÃÊÁ÷ŸÊ¸ •l ‚flʸ÷Ë L§ø ¡ŸÊÿ ŸS∑ΧÁœ.. (46) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚ ‚Íÿ¸ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ø◊∑§Êà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ø◊∑§ÊÃË „Ò¥U. ©UŸ Œfl ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ •Ê¡ ‚÷Ë ∑§Ê ø◊∑§Ê∞¢ fl ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄¥U. ‚÷Ë ∑§Ê áSflË ’ŸÊŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊ¥. (46) ÿÊ flÊ ŒflÊ— ‚Íÿ¸ L§øÊ ªÊcfl‡fl·È ÿÊ L§ø—. ßãº˝ÊÇŸË ÃÊÁèÊ— ‚flʸ÷Ë L§øãŸÊ œûÊ ’΄US¬Ã.. (47) ¡Ê ŒflªáÊ ‚Íÿ¸ ∑§ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ÖÿÊÁÃ◊ÊŸ „ÒU¥, ¡Ê ¬˝∑§Ê‡Ê ªÊÿÊ¥ ◊¥ Áfll◊ÊŸ „ÒU, ¡Ê ¬˝∑§Ê‡Ê ÉÊÊ«U∏Ê¥ ◊¥ Áfll◊ÊŸ „ÒU, ߢº˝ Œfl ©UŸ ‚ „U◊ ‚÷Ë ∑§Ê ø◊∑§Ê∞¢. ߢº˝ Œfl ©U‚ „U◊ ‚÷Ë ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U¥. •ÁÇŸ fl ’΄US¬Áà fl ©U‚ „U◊ ‚÷Ë ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U¥. (47) L§øãŸÊ œÁ„U ’˝ÊrÊÔáÊ·È L§ø ¦ ⁄UÊ¡‚È ŸS∑ΧÁœ. L§ø¢ Áfl‡ÿ·È ‡Êͺ˝·È ◊Áÿ œÁ„U L§øÊ L§ø◊˜.. (48) ÿ¡Èfl¸Œ - 233
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊Ê⁄U Á‹∞ ÖÿÊÁà œÊÁ⁄U∞. ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ◊¥ ÖÿÊÁà SÕÊÁ¬Ã ∑§ËÁ¡∞. flÒ‡ÿÊ¥, ‡Êͺ˝Ê¥ ◊¥ ÖÿÊÁà SÕÊÁ¬Ã ∑§ËÁ¡∞. ◊⁄U Á‹∞ ÖÿÊÁà œÊÁ⁄U∞. ◊È¤Ê ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (48) ÃûflÊ ÿÊÁ◊ ’˝rÊÔáÊÊ flãŒ◊ÊŸSÃŒÊ ‡ÊÊSà ÿ¡◊ÊŸÊ „UÁflÌ÷—. •„U«U◊ÊŸÊ flL§áÊ„U ’ÊäÿÈL§‡Ê ¦ ‚ ◊Ê Ÿ ˘ •ÊÿÈ— ¬˝ ◊Ê·Ë—.. (49) „U flL§áÊ Œfl! ’˝ÊrÊáʪáÊ ◊¢òÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê fl¢ŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‚ŒÒfl „UÁflÿÊ¥ mÊ⁄UÊ •Ê¬ ∑§Ë •Á÷‡Ê¢‚Ê (¬˝‡Ê¢‚Ê •ÊÒ⁄U ©U¬Ê‚ŸÊ) ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿ„UÊ¢ ‚Èπ øÊ„Uà „ÈU∞ flL§áÊ Œfl ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê •ÊÒ⁄U ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©Uã„¥U ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚ÈŸŸ ∑§ Á‹∞ ¡Êª˝Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊ ¬⁄U ∑˝§Êœ Ÿ ∑§⁄¥U. „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ∑§Ê ∑§◊ Ÿ ∑§⁄¥U. (49) Sfláʸ ÉÊ◊¸— SflÊ„UÊ SfláÊʸ∑¸§— SflÊ„UÊ Sfláʸ ‡ÊÈ∑˝§— SflÊ„UÊ Sfláʸ ÖÿÊÁ× SflÊ„UÊ Sfláʸ ‚Íÿ¸— SflÊ„UÊ.. (50) ‚ÊŸ ¡Ò‚Ê ¬˝∑§Ê‡Ê ©U∑§⁄UŸ flÊ‹ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊŸ ¡Ò‚ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊŸ ¡Ò‚ ø◊∑§Ÿ flÊ‹ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊŸ ¡Ò‚Ë ÖÿÊÁà flÊ‹ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊŸ ¡Ò‚ ‚Íÿ¸ flÊ‹ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (50) •ÁÇŸ¢ ÿÈŸÁÖ◊ ‡Êfl‚Ê ÉÊÎß ÁŒ√ÿ ¦ ‚ȬáÊZ flÿ‚Ê ’΄UãÃ◊˜. ß flÿ¢ ª◊◊ ’˝äŸSÿ ÁflCÔU¬ ¦ SflÊ L§„UÊáÊÊ •Áœ ŸÊ∑§◊ÈûÊ◊◊˜.. (51) „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ê ÉÊË ‚ ÿÈÄà ∑§⁄Uà „ÒU¥ . „U◊ ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ë ’…∏UÊà ⁄UË ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •ÁÇŸÁŒ√ÿ ªÈáÊ flÊ‹ „ÒU¥ . •ÁÇŸflÿ fl„UŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ©U‚ ‚ „U◊ ™§¬⁄U ’ÊœÊ ⁄UÁ„Uà Sflª¸‹Ê∑§ ¡Êà „ÒU¥ . ©UûÊ◊ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊà „ÒU¥ . fl„UË¥ •ÁœÁcΔUà „UÊà „ÒU¥ . (51) ß◊ÊÒ Ã ¬ˇÊÊfl¡⁄UÊÒ ¬ÃÁòÊáÊÊÒ ÿÊèÿÊ ¦ ⁄UˇÊÊ ¦ Sÿ¬„U ¦ SÿÇŸ. ÃÊèÿÊ¢ ¬Ã◊ ‚È∑ΧÃÊ◊È ‹Ê∑¢§ ÿòÊ ´§·ÿÊ ¡Ç◊È— ¬˝Õ◊¡Ê— ¬È⁄UÊáÊÊ—.. (52) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§ ŒÊŸÊ¥ ¬¢π •¡⁄U „Ò¥U. ‚ŒÒfl ©U«∏UŸ ∑§ Á‹∞ Ãà¬⁄U „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ ¬¥π ‚ •Ê¬ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ŒÊŸÊ¥ ¬¢πÊ¥ ‚ üÊcΔU ∑§◊¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ ©U‚ ‹Ê∑§ ◊¥ ¬˝SÕÊŸ ∑§ËÁ¡∞, ¡„UÊ¢ ¬„U‹ „UË ©Uà¬ããÊ ¬È⁄UÊß ´§Á·ªáÊ ¡Ê øÈ∑§ „Ò¥U. (52) ßãŒÈŒ¸ˇÊ— ‡ÿŸ ˘ ´§ÃÊflÊ Á„U⁄Uáÿ¬ˇÊ— ‡Ê∑ȧŸÊ ÷È⁄UáÿÈ—. ◊„UÊãà‚œSÕ œÈ˝fl ˘ •Ê ÁŸ·ûÊÊ Ÿ◊Sà •SÃÈ ◊Ê ◊Ê Á„U ¦ ‚Ë—.. (53) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ø¢º˝◊Ê ¡Ò‚ ŒˇÊ, ’Ê¡ ¡Ò‚ flª‡ÊÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ‚àÿflÊŸ, ‚ÊŸ ¡Ò‚ ¬¢π flÊ‹, ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ, ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§Ãʸ „Ò¥U fl ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. œ˝Èfl (ÁSÕ⁄U), ÿôÊ ◊¥ ‚œ ∑§⁄U ⁄U„Uà „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊ¥. •Ê¬ „◊Ê⁄U ¬˝Áà Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. (53) 234 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
ÁŒflÊ ◊͜ʸÁ‚ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ŸÊÁèÊM§ª¸¬Ê◊Ê·œËŸÊ◊˜. Áfl‡flÊÿÈ— ‡Ê◊¸ ‚¬˝ÕÊ Ÿ◊S¬Õ.. (54) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë ◊͜ʸ, ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ë ŸÊÁ÷, •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ‚Ê⁄UÃûfl fl Áfl‡fl ∑§Ê ¡ËflŸ (•ÊÿÈ) „Ò¥U. •Ê¬ ‚ÈπŒÊÃÊ fl ‚◊Sà ¬Õ ◊¥ √ÿÊåà „ÒU¥ . •Ê¬ ¬Õ¬˝Œ‡Ê¸∑§ „ÒU¥ . „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. (54) Áfl‡flSÿ ◊Íœ¸ãŸÁœÁÃcΔUÁ‚ ÁüÊ× ‚◊Ⱥ˝ à NUŒÿ◊åSflÊÿÈ⁄U¬Ê ŒûÊÊŒÁœ¢ Á÷ãÃ. ÁŒflS¬¡¸ãÿÊŒãÃÁ⁄UˇÊÊà¬ÎÁÕ√ÿÊSÃÃÊ ŸÊ flÎCÔUKÊfl.. (55) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Áfl‡fl ∑§Ë ◊͜ʸ ¬⁄ •ÁœÁcΔUà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê NUŒÿ ‚◊Ⱥ˝ ◊¥ •ÊÁüÊà „ÒU. •Ê¬ ¡‹ ◊¥ √ÿÊåà „Ò¥U. •Ê¬ ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ê èÊŒŸ ∑§⁄U ∑§ ¡‹ ÁŸ∑§ÊÁ‹∞. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ fl ’ÊŒ‹Ê¥ ‚ „U◊Ê⁄U Á‹∞ fl·Ê¸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ fl ¬Îâfl˧ ‚ „U◊Ê⁄U Á‹∞ fl·Ê¸ ∑§ËÁ¡∞. (55) ßCÔUÊ ÿôÊÊ ÷ΪÈÁ÷⁄UʇÊˌʸ fl‚ÈÁ÷—. ÃSÿ Ÿ ˘ ßCÔUSÿ ¬˝ËÃSÿ º˝ÁfláÊ„Uʪ◊—.. (56) œŸ ßc≈U „ÒU. ÿôÊ ◊¥ „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷⁄U¬Í⁄U œŸÊ¥ ‚ •Ê‡ÊËflʸŒ ŒËÁ¡∞. „U◊ œŸ ‚ ¬˝ËÁà ⁄Uπà „Ò¥U. „U◊ œŸ ∑§ Á‹∞ ©UûÊ◊ ⁄UËÁà ‚ ÿôÊ ‚¢¬ÊÁŒÃ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (56) ßCÔUÊ •ÁÇŸ⁄UÊ„ÈU× Á¬¬ûÊȸ Ÿ ˘ ßc≈U ¦ „UÁfl—. SflªŒ¢ ŒflèÿÊ Ÿ◊—.. (57) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ßc≈U „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ „UÁfl ‚ ÃÎåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Sflÿ¢ ¬˝∑§Ê‡Ê fl ª◊Ÿ‡ÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË „UÁfl ŒflÊ¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (57) ÿŒÊ∑ͧÃÊà‚◊‚ÈdÊŒ˜œÎŒÊ flÊ ◊Ÿ‚Ê flÊ ‚ê÷Îâ øˇÊÈ·Ê flÊ. ÃŒŸÈ ¬˝Ã ‚È∑ΧÃÊ◊È ‹Ê∑¢§ ÿòÊ ´§·ÿÊ ¡Ç◊È— ¬˝Õ◊¡Ê— ¬È⁄UÊáÊÊ—.. (58) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! ôÊÊŸ üÊcΔU ’ÈÁh ∑§ ‚˝Êà ‚ ©Uà¬ãŸ „UÊÃÊ „Ò. ◊ÊŸ‚ ‚ ÁŸ∑§‹ÃÊ „ÒU. øˇÊÈ•Ê¥ ‚ ‚˝Áflà „UÊÃÊ „ÒU. „U◊ ©U‚ ∑§Ê •ÊÒ⁄U üÊcΔU ∑§◊ÊZ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄¥U. „U◊ ©U‚ ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄¥U, ¡„UÊ¢ ¬Ífl¸ ◊¥ ©Uà¬ããÊ ¬È⁄UÊß ´§Á· ¬„¢ÈUø øÈ∑§ „Ò¥U. (58) ∞à ¦ ‚œSÕ ¬Á⁄U à ŒŒÊÁ◊ ÿ◊Êfl„UÊë¿UflÁœ¢ ¡ÊÃflŒÊ—. •ãflʪãÃÊ ÿôʬÁÃflʸ •òÊ Ã ¦ S◊ ¡ÊŸËà ¬⁄U◊ √ÿÊ◊Ÿ˜.. (59) „U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄÃ! øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ ÿôÊ»§‹ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ¡Ê »§‹ ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl„U „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U, •¢ÃÃʪàflÊ ÿ¡◊ÊŸ ¬⁄U◊ √ÿÊ◊ ◊¥ •ÊÃÊ „ÒU. ©U‚ ∑§Ë ªÁà ∑§Ê •Ê¬ ¡ÊÁŸ∞. (59) ∞â ¡ÊŸËÕ ¬⁄U◊ √ÿÊ◊Ÿ˜ ŒflÊ— ‚œSÕÊ ÁflŒ M§¬◊Sÿ. ÿŒÊªë¿UÊà¬ÁÕÁ÷Œ¸flÿÊŸÒÁ⁄UCÔUʬÍûʸ ∑ΧáÊflÊÕÊÁfl⁄US◊Ò.. (60) ÿ¡Èfl¸Œ - 235
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U ¬⁄U◊ √ÿÊ◊ ◊¥ ÁSÕà ÁŒ√ÿ ‡ÊÁÄÃÿÊ! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ‚œ „ÈU∞ M§¬ ∑§Ê ¡ÊŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ¡’ ÿ¡◊ÊŸ ŒflÿÊŸ (ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¡ÊŸ ÿÊÇÿ) ¬Õ ‚ ª◊Ÿ ∑§⁄¥U, ©U‚ ‚◊ÿ •Ê¬ ß‚ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë •÷Ëc≈U¬ÍÁø ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (60) ©UŒ˜’ÈäÿSflÊÇŸ ¬˝Áà ¡ÊªÎÁ„U àflÁ◊CÔUʬÍø ‚ ¦ ‚ΡÕÊ◊ÿ¢ ø. •ÁS◊ãà‚œSÕ •äÿÈûÊ⁄UÁS◊Áãfl‡fl ŒflÊ ÿ¡◊ÊŸ‡ø ‚ËŒÃ.. (61) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¡Êª˝Ã „UÊŸ fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§ •÷Ëc≈U ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ ‚’ ‚Èπ Á‚⁄UÁ¡∞. „U Áfl‡flÊ! ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê •Ê¬ Áø⁄U∑§Ê‹ Ã∑§ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ •ÁœÁcΔUà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (61) ÿŸ fl„UÁ‚ ‚„Ud¢ ÿŸÊÇŸ ‚fl¸flŒ‚◊˜. ß◊¢ ÿôÊ¢ ŸÊ Ÿÿ SflŒ¸fl·È ªãÃfl.. (62) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Á¡‚ ‚ „U¡Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, •Ê¬ Á¡‚ ‚ ‚’ ∑§Ê ¡ÊŸÃ „Ò¥U, •Ê¬ ©U‚Ë ‚Ê◊âÿ¸ ‚ ÿôÊ ∑§Ê ‹ ¡ÊŸ (¬„¢ÈUøÊŸ) ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ª¢Ã√ÿ ¬⁄U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (62) ¬˝SÃ⁄UáÊ ¬Á⁄UÁœŸÊ ‚È˝øÊ fllÊ ø ’Á„¸U·Ê. ´§ø◊¢ ÿôÊ¢ ŸÊ Ÿÿ SflŒ¸fl·È ªãÃfl.. (63) „U •ÁÇŸ! ¬àÕ⁄U, ¬Á⁄UÁœ, dÈ∑§ (øê◊ø), flŒË, ∑ȧ‡ÊÊ fl ´§øÊ ‚ •Ê¬ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ª¢Ã√ÿ ∑§Ë •Ê⁄U ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (63) ÿgûÊ¢ ÿà¬⁄Uʌʟ¢ ÿà¬ÍÃZ ÿʇø ŒÁˇÊáÊÊ—. ÃŒÁÇŸflÒ¸‡fl∑§◊¸áÊ— SflŒ¸fl·È ŸÊ ŒœÃ˜.. (64) „U◊ Ÿ ¡Ê ∑ȧ¿U ŒÍ‚⁄UÊ¥ ∑§Ê ŒÊŸ Á∑§ÿÊ „Ò, „U◊ Ÿ ¡Ê ∑ȧ¿U ¬˝ÁìÍÁø ∑§Ë „Ò, „U◊ Ÿ ¡Ê ∑ȧ¿U ŒÁˇÊáÊÊ ŒË „Ò, ©U‚ Áfl‡fl∑§◊ʸ •ÁÇŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥. (64) ÿòÊ œÊ⁄UÊ ˘ •Ÿ¬ÃÊ ◊œÊÉÊθÃSÿ ø ÿÊ—. ÃŒÁÇŸflÒ¸‡fl∑§◊¸áÊ— SflŒ¸fl·È ŸÊ ŒœÃ˜.. (65) ¡„UÊ¢ ◊œÈ fl ÉÊË ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ‹ªÊÃÊ⁄U ¬˝flÊÁ„Uà „UÊÃË ⁄U„UÃË „Ò¥U, ©UŸ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ∑§Ê Áfl‡fl∑§◊ʸ •ÁÇŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (65) •ÁÇŸ⁄UÁS◊ ¡ã◊ŸÊ ¡ÊÃflŒÊ ÉÊÎâ ◊ øˇÊÈ⁄U◊Îâ ◊ ˘ •Ê‚Ÿ˜. •∑¸§ÁSòÊœÊÃÍ ⁄U¡‚Ê Áfl◊ÊŸÊ¡dÊ ÉÊ◊ʸ „UÁfl⁄UÁS◊ ŸÊ◊.. (66) •ÁÇŸ ¡ã◊ ‚ „UË ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. ÉÊË ©UŸ ∑§Ë •Ê¢π¥ „Ò¥U. „UÁfl •◊Îà „ÒU. ÃËŸÊ¥ œÊÃÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚Ê⁄U ⁄U¡ „Ò. fl„U •¡‚˝U ¡‹ ∑§Ê ÁŸ◊ʸÃÊ „ÒU. ª˝Ëc◊ ∑§Ê ÁŸ◊ʸÃÊ •ÊÒ⁄U „UÁfl fl„UË „ÒU. (66) ´§øÊ ŸÊ◊ÊÁS◊ ÿ¡Í ¦ Á· ŸÊ◊ÊÁS◊ ‚Ê◊ÊÁŸ ŸÊ◊ÊÁS◊. ÿ •ÇŸÿ— ¬ÊÜø¡ãÿÊ ˘ •SÿÊ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊Áœ. ÷Ê◊Á‚ àfl◊ÈûÊ◊— ¬˝ ŸÊ ¡ËflÊÃfl ‚Èfl.. (67) 236 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
´§øÊ ŸÊ◊∑§ •ÁÇŸ „ÒU. ÿ¡È ŸÊ◊∑§ •ÁÇŸ „ÒU. ‚Ê◊ ŸÊ◊∑§ •ÁÇŸ „ÒU. ß‚ ¬ÎâflË ¬⁄U ¡Ê ¬¢ø •ÁÇŸÿÊ¢ „Ò¥U, ©UŸ ◊¥ •Ê¬ üÊcΔU „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ‚’ ∑§Ê ŒËÉʸ ∑§Ê‹ Ã∑§ Á¡‹ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (67) flÊòʸ„UàÿÊÿ ‡Êfl‚ ¬ÎßʷÊsÔÊÿ ø. ßãº˝ àflÊ fløÿÊ◊Á‚.. (68) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U •Ê∑˝§◊áÊ ∑§⁄U ∑§ ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄U ŒÃ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ „Ò¥U. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (68) ‚„UŒÊŸÈ¢ ¬ÈL§„ÍUà ÁˇÊÿãÃ◊„USÃÁ◊ãº˝ ‚¢ Á¬áÊ∑˜ ∑ȧáÊÊL§◊˜. •Á÷ flÎòÊ¢ flœ¸◊ÊŸ¢ Á¬ÿÊL§◊¬ÊŒÁ◊ãº˝ Ãfl‚Ê ¡ÉÊãÕ.. (69) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ∑§Ê „U¡Ê⁄UÊ¥ ÿ¡◊ÊŸ „UÁfl ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ÷¥≈U ∑§Ë ªß¸ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Ÿ¡ŒË∑§ ∑§ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ∑ȧø‹ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ªÊ‹Ëª‹ÊÒ¡ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚ÊœŸ„UËŸ ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ∞‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ‚’ •Ê⁄U •Êâ∑§ »Ò§‹Ê ‚∑§Ã „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ •Ê⁄U ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ •Ê¬ flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§Ê ¬Ò⁄U ⁄UÁ„Uà ’ŸÊ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. (69) Áfl Ÿ ˘ ßãº˝ ◊ÎœÊ ¡Á„U ŸËøÊ ÿë¿U ¬ÎÃãÿ×. ÿÊ •S◊Ê° 2 •Á÷ŒÊ‚àÿœ⁄¢U ª◊ÿÊ Ã◊—.. (70) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ •Ê¬ ÿÈhÊ¥ ◊¥ „U◊Ê⁄U ŒÈ‡◊ŸÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. ¡Ê ‡ÊòÊÈ „U◊Ê⁄U ‚ÊÕ ÿÈh ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÃÒÿÊ⁄U π«∏ „UÊ¥, ©ã„¥U •Ê¬ ¬ÃŸ ∑§ ªÃ¸ ◊¥ ¬„¢ÈUøÊ ŒËÁ¡∞. ¡Ê ‡ÊòÊÈ „U◊¥ ŒÊ‚ ’ŸÊŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ⁄Uπà „Ò¥U, •Ê¬ ©Uã„¥U •¢œ⁄U ªÃ¸ ◊¥ ¬„¢ÈUøÊ ŒËÁ¡∞. (70) ◊ÎªÊ Ÿ ÷Ë◊— ∑ȧø⁄UÊ ÁªÁ⁄UcΔUÊ— ¬⁄UÊflà ˘ •Ê ¡ªãÕÊ ¬⁄USÿÊ—. - ‚Î∑§ ¦ ‚ ¦ ‡ÊÊÿ ¬ÁflÁ◊ãº˝ ÁÃÇ◊¢ Áfl ‡ÊòÊÍŸ˜ ÃÊÁ…U Áfl ◊ÎœÊ ŸÈŒSfl.. (71) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U (∑ȧøÊ‹ flÊ‹) øÊ‹Ê∑§, ¬fl¸Ã fl ªÈ»§Ê•Ê¥ ◊¥ Á¿U¬, ‡Ê⁄U ¡Ò‚ πÃ⁄UŸÊ∑§ fl „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ŒÍ⁄U ∑§ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚’ •Ê⁄U ‚ ÉÊ⁄U ‹ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÃËπ „UÁÕÿÊ⁄UÊ¥ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ÷ÁŒ∞ fl ¬Ë¿U πŒ«∏U ŒËÁ¡∞. (71) flÒ‡flÊŸ⁄UÊ Ÿ ˘ ™§Ãÿ ˘ •Ê ¬˝ ÿÊÃÈ ¬⁄UÊfl×. •ÁÇŸŸ¸— ‚Èc≈ÈUÃËL§¬.. (72) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Áfl‡fl ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •Êß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¢ ‚ÈÁŸ∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (72) ¬ÎCÔUÊ ÁŒÁfl ¬ÎCÔUÊ •ÁÇŸ— ¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ ¬ÎCÔUÊ Áfl‡flÊ •Ê·œË⁄UÊ Áflfl‡Ê. flÒ‡flÊŸ⁄U— ‚„U‚Ê ¬ÎCÔUÊ •ÁÇŸ— ‚ ŸÊ ÁŒflÊ ‚ Á⁄U·S¬ÊÃÈ ŸÄÃ◊˜.. (73) ÿ¡Èfl¸Œ - 237
¬Íflʸœ¸
•ΔUÊ⁄U„UflÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê •ÊœÊ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ’Ê⁄U ◊¢ ¬Í¿UÊ ªÿÊ. •Ê¬ ‚ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ¬Í¿UÊ ªÿÊ. •Ê¬ ‚ Áfl‡fl ∑§Ë •Ê·ÁœÿÊ¥ ◊¥ ¬˝fl‡ÊU ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ¬Í¿UÊ ªÿÊ. •Ê¬ ‚’ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ‚Ê„U‚ ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ‚ ¬Í¿Uà „Ò¥U Á∑§ •Ê¬ ∑§ÊÒŸ „Ò¥U. •Ê¬ ÁŒŸ ◊¥ fl ⁄UÊÁòÊ ◊¥ Á„¢U‚Ê ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (73) •‡ÿÊ◊ â ∑§Ê◊◊ÇŸ ÃflÊÃË •‡ÿÊ◊ ⁄UÁÿ ¦ ⁄UÁÿfl— ‚ÈflË⁄U◊˜. •‡ÿÊ◊ flÊ¡◊Á÷ flÊ¡ÿãÃʇÿÊ◊ lÈêŸ◊¡⁄UÊ¡⁄¢U Ã.. (74) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ‚÷Ë ∑§Ê◊ŸÊ∞¢ »§‹Ë÷Íà ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ œŸflÊŸ, üÊcΔU flË⁄U ¬ÈòÊÊ¥ flÊ‹Ê, ’‹flÊŸ fl œŸflÊŸ ’ŸÊ∞¢. „U◊ •Ê¬ ‚ ‚ŒÊ •¡⁄U fl •◊⁄U ⁄U„UŸ flÊ‹Ë lÈÁà (∑§Ê¢Áà ø◊∑§) ¬Ê∞¢. (74) flÿ¢ à •l ⁄UÁ⁄U◊Ê Á„U ∑§Ê◊◊ÈûÊÊŸ„USÃÊ Ÿ◊‚ʬ‚l. ÿÁ¡cΔUŸ ◊Ÿ‚Ê ÿÁˇÊ ŒflÊŸdœÃÊ ◊ã◊ŸÊ Áfl¬˝Ê •ÇŸ.. (75) „U •ÁÇŸ! „U◊ ‚’ Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄U ∑§ •Ê¡ •Ê¬ ∑§ ¬Ê‚ ¬„¢ÈUøà „Ò¥U. „U◊ „UÊÕ ™¢§ø ∑§⁄U ∑§ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ◊¥ ŒûÊÁøûÊ „Ò¥U. „U◊ ◊Ÿ ‚ •Ê¬ ∑§Ê „UÁfl ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ „UÁfl ∑§Ê ’˝ÊrÊáʪáÊÊ¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (75) œÊ◊ë¿UŒÁÇŸÁ⁄Uãº˝Ê ’˝rÊÔÊ ŒflÊ ’΄US¬Á×. ‚øÃ‚Ê Áfl‡fl ŒflÊ ÿôÊ¢ ¬˝ÊflãÃÈ Ÿ— ‡ÊÈ÷.. (76) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚’ ∑§ œÊ◊ „Ò¥U. „U ’˝rÊÊ! „U ’΄US¬ÁÃ! •Ê¬ ‚’ ∑§ œÊ◊ „Ò¥U. ‚÷Ë ŒflªáÊÊ¥ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „Ò Á∑§ fl •ë¿U ◊Ÿ ‚ Á∑§∞ ¡Ê ⁄U„U ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ‡ÊÈèÊ ¬Á⁄UáÊÁà (¬Á⁄UáÊÊ◊) ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (76) àfl¢ ÿÁflcΔU ŒÊ‡ÊÈ·Ê ŸÎ¢Î— ¬ÊÁ„U oÎáÊÈœË Áª⁄U—. ⁄UˇÊÊ ÃÊ∑§◊Èà à◊ŸÊ.. (77) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¡ÊÒ◊ÿ fl ŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË flÊÁáÊÿÊ¢ ‚ÈŸŸ, „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (77)
238 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UããÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ SflÊmË¥ àflÊ SflÊŒÈŸÊ ÃËfl˝Ê¢ ÃËfl˝áÊÊ◊ÎÃÊ◊◊Îß. ◊œÈ◊ÃË¥ ◊œÈ◊ÃÊ ‚ΡÊÁ◊ ‚ ¦ ‚Ê◊Ÿ. ‚Ê◊ÊSÿÁ‡flèÿÊ¢ ¬ëÿSfl ‚⁄USflàÿÒ ¬ëÿSflãº˝Êÿ ‚ÈòÊÊêáÊ ¬ëÿSfl.. (1) „U •Ê·œ Œfl! •Ê¬ SflÊÁŒc≈U, SflÊŒÈ, ÃËfl˝ fl •◊ÎÃ◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ◊œÈ Á◊ÁüÊà ◊œÈ⁄U ‚Ê◊ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹Ê ∑§⁄U ‚ÎÁ¡Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¬∑§Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ¬∑§Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚¢⁄UˇÊ∑§ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ¬∑§Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (1) ¬⁄UËÃÊ Á·ÜøÃÊ ‚Èà ¦ ‚Ê◊Ê ÿ ©UûÊ◊ ¦ „UÁfl—. ŒœãflÊ ÿÊ Ÿÿʸ •åSflãÃ⁄UÊ ‚È·Êfl ‚Ê◊◊Áº˝Á÷—.. (2) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§Ê øÊ⁄Ê¥ •Ê⁄U ‚ ©UûÊ◊ „UÁfl ‚ ‚Ë¥Áø∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ŸËÁà œÊ⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. ‚Ê◊ ¡‹ ∑§ ’Ëø ◊¥ „Ò¥U. ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ©U‚ ∑§Ê ∑ͧ≈U ∑§⁄U ‚Ë¥øÊ ¡ÊÃÊ „Ò. (2) flÊÿÊ— ¬Í× ¬ÁflòÊáÊ ¬˝àÿæ˜UÄ‚Ê◊Ê •Áú˝È×. ßãº˝Sÿ ÿÈÖÿ— ‚πÊ. flÊÿÊ— ¬Í× ¬ÁflòÊáÊ ¬˝Êæ˜UÄ‚Ê◊Ê •Áú˝È×. ßãº˝Sÿ ÿÈÖÿ— ‚πÊ.. (3) flÊÿÈ Œfl ‡ÊÈh, ¬ÁflòÊ fl •Áà ÃËfl˝ ªÁà flÊ‹ „Ò¥U •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§ ‚ÊÕ ¡È«∏Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∑§ ‚πÊ „Ò¥U. flÊÿÈ ‡ÊÈh, ¬ÁflòÊ fl ’„ÈUà º˝Èà ªÁà flÊ‹ „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∑§ ‚πÊ „Ò¥U. (3) ¬ÈŸÊÁà à ¬Á⁄UdÈà ¦ ‚Ê◊ ¦ ‚Íÿ¸Sÿ ŒÈÁ„UÃÊ. flÊ⁄UáÊ ‡Ê‡flÃÊ ÃŸÊ.. (4) ‚Ê◊ ¬ÁflòÊ „Ò¥U. øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ ‚˝Áflà (¤Ê⁄UÃ) „UÊà „Ò¥U. ‚Ê◊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ∑§Ë ŒÈÁ„UÃÊ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. üÊhÊ ÃÈê„¥U ¬ÁflòÊ ’ŸÊÃË „ÒU¢. (4) ’˝rÊÔ ˇÊòÊ¢ ¬flà á ˘ ßÁãº˝ÿó‚È⁄UÿÊ ‚Ê◊— ‚Èà ˘ •Ê‚ÈÃÊ ◊ŒÊÿ. ‡ÊÈ∑˝§áÊ Œfl ŒflÃÊ— Á¬¬ÎÁÇœ ⁄U‚ŸÊ㟢 ÿ¡◊ÊŸÊÿ œÁ„U.. (5) ÿ¡Èfl¸Œ - 239
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ‚Ê◊! •Ê¬ ¬ÁflòÊ Ã¡ ¤Ê⁄UÊß∞. •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ fl ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§ËÁ¡∞. ‚Ê◊ ߢÁº˝ÿ ‚Ê◊âÿ¸ ∑§Ê ¬˝∑§≈ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. ‚⁄U‚ „UÊ ∑§⁄U ‚Ê◊ •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ÿ„U ŒflÊ¥ ∑§Ê Œfl fl ø◊∑§Ë‹Ê „ÒU. ÿ„U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ⁄U‚◊ÿ •ããÊ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. (5) ∑ȧÁflŒX ÿfl◊ãÃÊ ÿfl¢ ÁølÕÊ ŒÊãàÿŸÈ¬ÍflZ ÁflÿÍÿ. ß„U„ÒU·Ê¢ ∑ΧáÊÈÁ„U ÷Ê¡ŸÊÁŸ ÿ ’Á„¸U·Ê Ÿ◊ ˘ ©UÁÄâ ÿ¡ÁãÃ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÁ‡flèÿÊ¢ àflÊ ‚⁄USflàÿÒ àflãº˝Êÿ àflÊ ‚ÈòÊÊêáÊ ˘ ∞· à ÿÊÁŸSá‚ àflÊ flËÿʸÿ àflÊ ’‹Êÿ àflÊ.. (6) •ããÊflÊŸ Á∑§‚ÊŸ ¬„U‹ „UË •ããÊ ∑§Ê ∑§Ê≈U ∑§⁄U ⁄Uπ ‹ÃÊ „ÒU, ÃÊÁ∑§ ©U‚ ◊¥ ‚ ¬ÿʸåà ¡ÊÒ ÁŸ∑§‹ ‚∑§. ÿ ÿ¡◊ÊŸ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ Ÿ◊S∑§Ê⁄U¬Ífl¸∑§ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Á‡flŸË ŒflÊ¥, ‚⁄USflÃË ŒflË, ‚¢⁄UˇÊ∑§ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „Ò. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ ÁŸflÊ‚ „ÒU. „U◊ á, flËÿ¸ fl ’‹ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ÿ„UÊ¢ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (6) ŸÊŸÊ Á„U flÊ¢ ŒflÁ„Uà ¦ ‚ŒS∑Χâ ◊Ê ‚ ¦ ‚ΡÊÊÕÊ¢ ¬⁄U◊ √ÿÊ◊Ÿ˜. ‚È⁄UÊ àfl◊Á‚ ‡ÊÈÁc◊áÊË ‚Ê◊ ˘ ∞· ◊Ê ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë— SflÊ¢ ÿÊÁŸ◊ÊÁfl‡ÊãÃË.. (7) •Ê¬ ŸÊŸÊ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê Á„Uà fl üÊcΔU ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U◊ √ÿÊ◊ ◊¥ ÁSÕà ⁄U„Uà „Ò¥U. ‚È⁄UÊ ÃÈ◊ ’‹flÃË „UÊ. ÿ„U ‚Ê◊ •‹ª Sfl÷Êfl ∑§Ê „ÒU. •Ê¬ ©U‚ ∑§ ◊Í‹ SÕÊŸ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄Uà „ÈU∞ ©U‚ ∑§ ¬˝Áà Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. (7) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÊÁ‡flŸ¢ á— ‚Ê⁄USflâ flËÿ¸◊Òãº˝¢ ’‹◊˜. ∞· à ÿÊÁŸ◊ʸŒÊÿ àflÊ ŸãŒÊÿ àflÊ ◊„U‚ àflÊ.. (8) ‚Ê◊ Œfl! •Ê¬ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§∞ ª∞ „Ò¥U. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§ á ∑§ Á‹∞ fl ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ flËÿ¸ œÊÁ⁄U∞. (8) áÊÁ‚ Ã¡Ê ◊Áÿ œÁ„U flËÿ¸◊Á‚ flËÿZ ◊Áÿ œÁ„U ’‹◊Á‚ ’‹¢ ◊Áÿ œsÔÊ¡ÊSÿÊ¡Ê ◊Áÿ œÁ„U ◊ãÿÈ⁄UÁ‚ ◊ãÿÈ¢ ◊Áÿ œÁ„U ‚„UÊÁ‚ ‚„UÊ ◊Áÿ œÁ„U.. (9) •Ê¬ ’‹flÊŸ „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ •Ê¡flÊŸ „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ •Ê¡ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ◊ãÿÈ (©Uà‚Ê„U) „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ©Uà‚Ê„U œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ‚„UŸ‡ÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚„UŸ‡ÊË‹ÃÊ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ‚¢ÉÊ·¸‡ÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚¢ÉÊ·¸‡ÊË‹ÃÊ œÊÁ⁄U∞. (9) ÿÊ √ÿÊÉÊ˝¢ Áfl·ÍÁø∑§Ê÷ÊÒ flÎ∑¢§ ø ⁄UˇÊÁÃ. - ‡ÿŸ¢ ¬ÃÁòÊáÊ ¦ Á‚ ¦ „ ¦ ‚◊¢ ¬Êàfl ¦ „U‚—.. (10) 240 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@15
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¡Ê √ÿÊÉÊ˝ •ÊÒ⁄U Áfl·ÍÁø∑§Ê ŒÊŸÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃË „Ò, ¡Ê ÷Á«∏U∞ ∑§Ë ÷Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃË „Ò, ¡Ê ¬ÃŸ‡ÊË‹ ’Ê¡ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃË „Ò, ¡Ê Á‚¢„U ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃË „Ò, fl„UË (‡ÊÁÄÃ) ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ÷Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (10) ÿŒÊÁ¬¬· ◊ÊÃ⁄¢U ¬ÈòÊ— ¬˝◊ÈÁŒÃÊ œÿŸ˜. ∞Ãûʌǟ •ŸÎáÊÊ ÷flÊêÿ„UÃÊÒ Á¬Ã⁄UÊÒ ◊ÿÊ. ‚ê¬Îø SÕ ‚¢ ◊Ê ÷º˝áÊ ¬Îæ˜UÄà Áfl¬Îø SÕ Áfl ◊Ê ¬Êå◊ŸÊ ¬Îæ˜UÄÃ.. (11) ŒÍœ ¬ËÃÊ „ÈU•Ê ’Ê‹∑§ ¬˝◊ÈÁŒÃ „UÊÃÊ „ÈU •Ê ◊Ê¢ ∑§Ê ¬˝ÃÊÁ«∏Uà ∑§⁄UÃÊ „ÒU, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U „U◊ ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ∑§ ´§áÊ ‚ ©U´§áÊ „UÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬Ê¬Ê¥ ‚ ŒÍ⁄U ÿÊ •‹ª ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (11) ŒflÊ ÿôÊ◊Ããflà ÷·¡¢ Á÷·¡ÊÁ‡flŸÊ. flÊøÊ ‚⁄USflÃË Á÷·Áªãº˝ÊÿÁãº˝ÿÊÁáÊ ŒœÃ—.. (12) ŒflÃÊ•Ê¥ fl flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U Ÿ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ. ‚⁄USflÃË Ÿ flÊáÊË ‚ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ˇÊ◊ÃÊ œÊ⁄Uà „ÈU∞ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ. (12) ŒËˇÊÊÿÒ M§¬ ¦ ‡Êc¬ÊÁáÊ ¬˝ÊÿáÊËÿSÿ ÃÊÄ◊ÊÁŸ. ∑˝§ÿSÿ M§¬ ¦ ‚Ê◊Sÿ ‹Ê¡Ê— ‚Ê◊Ê ¦ ‡ÊflÊ ◊œÈ.. (13) ŒËˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÿáÊËÿ (•Ê⁄¢UÁ÷∑§) ¡ÊÒ ÿôÊ M§¬ „Ò¥U. π⁄UËŒ ª∞ ‹Ê¡Ê ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl ◊œÈ◊ÿ „Ò¥U. (13) •ÊÁÃâÿM§¬¢ ◊Ê‚⁄¢U ◊„UÊflË⁄USÿ ŸÇŸ„ÈU—. M§¬◊Ȭ‚ŒÊ◊ÃÁûÊdÊ ⁄UÊòÊË— ‚È⁄UÊ‚ÈÃÊ.. (14) œŸ •ÊÒ⁄U •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê øÍáʸ •ÊÁÃâÿ M§¬ „ÒU. ◊„UÊŸ˜ flË⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊªË „ÒU. ÃËŸ ⁄UÊÃÊ¥ Ã∑§ ©U¬‚Œ (ÁŸ∑§≈U ¡ÊŸ flÊ‹) ∑§ M§¬ ◊¥ ≈U¬∑§ÃÊ •ÊÒ⁄U ‚È⁄UÊ ’Ÿ ¡ÊÃÊ „ÒU. (14) ‚Ê◊Sÿ M§¬¢ ∑˝§ËÃSÿ ¬Á⁄UdÈà¬Á⁄UÁ·ëÿÃ. •Á‡flèÿÊ¢ ŒÈÇœ¢ ÷·¡Á◊ãº˝ÊÿÒãº˝ ¦ ‚⁄USflàÿÊ.. (15) π⁄UËŒ ª∞ ‚Ê◊ ∑§Ê M§¬ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ ≈U¬∑§ÃÊ „ÒU. flÒl •Á‡flŸË fl ‚⁄USflÃË ŒflË ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ŒÍœ ŒÈ„UÃË „Ò¥U. (15) •Ê‚ãŒË M§¬ ¦ ⁄UÊ¡Ê‚ãlÒ fllÒ ∑ȧê÷Ë ‚È⁄UʜʟË. •ãÃ⁄ ˘ ©UûÊ⁄UfllÊ M§¬¢ ∑§Ê⁄UÊÃ⁄UÊ Á÷·∑˜§.. (16) ‚Ê◊ ⁄UÊ¡Ê SflM§¬ „Ò¥U •ÊÒ⁄U ⁄UÊ¡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. flŒË ¬⁄U ‚È⁄UÊ ∑§Ê ∑ȧ¢÷ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ŒÊŸÊ¥ ∑§ ’Ëø ©UûÊ⁄UflŒË „Ò¥U. Á÷·∑˜§ ∑§ M§¬ ◊¥ ¿U‹Ÿ (¿UÊŸŸ ∑§Ê ÿ¢òÊ) ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (16) ÿ¡Èfl¸Œ - 241
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
fllÊ flÁŒ— ‚◊Êåÿà ’Ì„U·Ê ’Ì„UÁ⁄UÁãº˝ÿ◊˜. ÿͬŸ ÿͬ ˘ •ÊåÿÃU ¬˝áÊËÃÊ •ÁÇŸ⁄UÁÇŸŸÊ.. (17) ß‚ ÿôÊ ◊¥ flŒË ‚ flŒË ∑§Ê ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ß‚ ÿôÊ ◊¥ ∑ȧ‡ÊÊ ‚ ∑ȧ‡ÊÊ ∑§Ê ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ß‚ ÿôÊ ◊¥ ߢÁº˝ÿÊ¥ ‚ ߢÁº˝ÿ ôÊÊŸ ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ß‚ ÿôÊ ◊¥ Sâ÷ ‚ Sâ÷ ∑§Ê ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ß‚ ÿôÊ ◊¥ •ÁÇŸ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (17) „UÁflœÊ¸Ÿ¢ ÿŒÁ‡flŸÊÇŸËœ˝¢ ÿà‚⁄USflÃË. ßãº˝ÊÿÒãº˝ ¦ ‚ŒS∑Χâ ¬àŸË‡ÊÊ‹¢ ªÊ„¸U¬àÿ—.. (18) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ‚ „UÁfl ∑§Ê œÊŸ ¬˝Êåà „UÊÃÊ „ÒU. ‚⁄USflÃË ŒflË ‚ •ÊÇŸËœ˝ ¬˝Êåà „UÊÃÊ „ÒU. ÿôÊ ‚ŒŸ ◊¥, ¬àŸË‡ÊÊ‹Ê ◊¥ ÃÕÊ ªÊ„¸U¬àÿ •ÁÇŸ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§ ∞‡flÿ¸ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ „UÁfl ŒflªáÊÊ¥ mÊ⁄UÊ ¬˝SÃÈà ∑§Ë ¡ÊÃË „Ò. (18) ¬˝Ò·Á÷— ¬˝Ò·ÊŸÊåŸÊàÿʬ˝ËÁ÷⁄Uʬ˝Ëÿ¸ôÊSÿ. ¬˝ÿÊ¡Á÷⁄UŸÈÿÊ¡ÊŸ˜ fl·≈U˜∑§Ê⁄UÁ÷⁄UÊ„ÈUÃË—.. (19) ¬˝Ò· (∑§c≈U ÿÊ ¬˝⁄UáÊÊ) •ÊÁŒ ‚ ¬˝Ò· ¬˝Êåà „UÊÃÊ „ÒU. Á¬˝ÿ ‚ Á¬˝ÿŒÊÿË ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ÿôÊ ‚ ÿôÊ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ÿ¡Ÿ ‚ ÿôÊ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „Ò. fl·Ô≈˜U ∑§Ê⁄UÊ¥ ‚ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. (19) ¬‡ÊÈÁ÷— ¬‡ÊÍŸÊåŸÊÁà ¬È⁄UÊ«UʇÊÒ„¸UflË ¦ cÿÊ. ¿UãŒÊÁ÷— ‚ÊÁ◊œŸËÿʸÖÿÊÁ÷fl¸·≈U˜∑§Ê⁄UÊŸ˜.. (20) ¬‡ÊÈ•Ê¥ ‚ ¬‡ÊÈ ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ‚ „UÁfl ¬˝Êåà „UÊÃË „ÒU. ¿U¢ŒÊ¥ ‚ ‚Ê◊œŸË (Áfl‡Ê· ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ ◊¢òÊ) ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ÿôÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ Á∑˝§ÿÊ•Ê¥ ‚ flcÊ≈˜U∑§Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (20) œÊŸÊ— ∑§⁄Uê÷— ‚ÄÃfl— ¬⁄UËflʬ— ¬ÿÊ ŒÁœ. ‚Ê◊Sÿ M§¬ ¦ „UÁfl· ˘ •ÊÁ◊ˇÊÊ flÊÁ¡Ÿ¢ ◊œÈ.. (21) œÊŸ, œÊŸ ∑§Ë ‹¬‚Ë, ‚ûÊÍ •ÊÁŒ, ¡‹◊ÿ ŒÍœ fl Œ„UË •ÊÁŒ ‚Ê◊ ∑§Ê M§¬ „Ò. „UÁfl, ߸ˇÊÈ (ªããÊÊ) •ÊÁŒ, •ããÊ „UÁfl fl ‡Ê„UŒ •ÊÁŒ ‚Ê◊ ∑§Ê M§¬ „Ò¥U. (21) œÊŸÊŸÊ ¦ M§¬¢ ∑ȧfl‹¢ ¬⁄UËflʬSÿ ªÊœÍ◊Ê—. ‚ÄÃÍŸÊ ¦ M§¬¢ ’Œ⁄U◊ȬflÊ∑§Ê— ∑§⁄Uê÷Sÿ.. (22) œÊŸ ∑§Ê M§¬ „UË ÿôÊ ◊¥ •ããÊ ∑§ M§¬ ◊¥ ¬˝ÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ©U‚ ‚ „UË ªÊœÍ◊ »Ò§‹ÃÊ „ÒU. ’⁄U ‚ûÊÍ ∑§ M§¬ ◊¥ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ¡ÊÒ ∑§Ê ‹¬‚Ë ∑§ M§¬ ◊¥ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ßã„¥U „UÁfl ∑§ M§¬ ◊¥ ¬˝ÿʪ ◊¥ ‹ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (22) 242 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬ÿ‚Ê M§¬¢ ÿlflÊ ŒäŸÊ M§¬¢ ∑§∑¸§ãœÍÁŸ. ‚Ê◊Sÿ M§¬¢ flÊÁ¡Ÿ ¦ ‚ÊÒêÿSÿ M§¬◊ÊÁ◊ˇÊÊ.. (23) ¡ÊÒ ŒÍœ •ÊÒ⁄U Œ„UË Œ„UË M§¬ ◊¥ „ÒU. •ããÊ ‚Ê◊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ߟ M§¬Ê¥ ∑§Ê „U◊ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ŒπŸÊ øÊ„Uà fl ø…∏UÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (23) •ÊüÊÊflÿÁà SÃÊÁòÊÿÊ— ¬˝àÿÊüÊÊflÊ •ŸÈM§¬—. ÿ¡Áà œÊƒÿÊM§¬¢ ¬˝ªÊÕÊ ÿ ÿ¡Ê◊„UÊ—.. (24) SÃÊòÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ´§øÊ∞¢ •ÊüÊÊflÿ fl ¬˝àÿÊüÊÊfl ∑§ •ŸÈM§¬ „Ò¥U. ÿ¡ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ´§øÊ∞¢ œÊƒÿÊ M§¬ „Ò¥U. “ÿ¡Ê◊„U” ¬Œ ‚ •Ê⁄U¢÷ „UÊŸ flÊ‹Ë ´§øÊ∞¢ ¬˝ªÊÕÊ M§¬ „Ò¥U. (24) •œ¸´§øÒL§ÄÕÊŸÊ ¦ M§¬¢ ¬ŒÒ⁄UÊåŸÊÁà ÁŸÁflŒ—. ¬˝áÊflÒ— ‡ÊSòÊÊáÊÊ ¦ M§¬¢ ¬ÿ‚Ê ‚Ê◊ ˘ •ÊåÿÃ.. (25) •ÊœË ´§øÊ•Ê¥ ‚ ©UÄÕÊ¥ ∑§Ê ’Êœ „UÊÃÊ „ÒU. ¬ŒÊ¥ ‚ ÁŸÁflŒ ∑§Ê ’Êœ „UÊÃÊ „ÒU. ¬˝áÊflÊ¥ ‚ ‡ÊSòÊÊ¥ ∑§ M§¬ ∑§Ê ’Êœ „UÊÃÊ „ÒU. ŒÍœ ‚ ‚Ê◊ ∑§Ê M§¬ ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (25) •Á‡flèÿÊ¢ ¬˝ÊׂflŸÁ◊ãº˝áÊÒãº˝¢ ◊ÊäÿÁ㌟◊˜. flÒ‡flŒfl ¦ ‚⁄USflàÿÊ ÃÎÃËÿ◊Êåà ¦ ‚flŸ◊˜.. (26) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ ¬˝Ê× ‚flŸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U ©UŸ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ◊¢òÊÊ¥ ‚ ◊Êäÿ¢ÁŒŸ ‚flŸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ‚⁄USflÃË ŒflË Áfl‡flÊ¥ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. ©UŸ ∑§ ◊Êäÿ◊ ‚ ÃÎÃËÿ ‚flŸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. (26) flÊÿ√ÿÒflʸÿ√ÿÊãÿÊåŸÊÁà ‚ß º˝ÊáÊ∑§‹‡Ê◊˜. ∑ȧê÷ËèÿÊ◊ê÷ÎáÊÊÒ ‚Èà SÕÊ‹ËÁ÷— SÕÊ‹Ë⁄UÊåŸÊÁÃ.. (27) flÊÿ√ÿÊ¥ ‚ flÊÿ√ÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ‚ÃÔ˜ ‚ º˝ÊáÊ∑§‹‡Ê ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ∑È¢§Á÷ÿÊ¥ ‚ •¢÷ÎáÊ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. SÕÊÁ‹ÿÊ¥ ‚ SÕÊ‹Ë ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. (27) ÿ¡ÈÁ÷¸⁄UÊåÿãà ª˝„UÊ ª˝„ÒU— SÃÊ◊ʇø Áflc≈ÈUÃË—. ¿UãŒÊÁ÷L§ÄÕʇÊSòÊÊÁáÊ ‚ÊêŸÊfl÷ÎÕ ˘ •ÊåÿÃ.. (28) ÿ¡È◊¢òÊÊ¥ ‚ ÿ¡È •ÊÒ⁄U ª˝„UÊ¥ ‚ ª˝„U ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. SÃÊòÊÊ¥ ‚ ßc≈U SÃÈÁÃÿÊ¥, ¿¢UŒÊ¥ ‚ ©UÄÕ fl ‡ÊSòÊ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ‚Ê◊ ◊¢òÊÊ¥ ‚ ‡ÊSòÊ ‚Ê◊ fl •fl÷ÎÕ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. (28) ß«UÊÁ÷÷¸ˇÊÊŸÊåŸÊÁà ‚ÍÄÃflÊ∑§ŸÊÁ‡Ê·—. ‡Ê¢ÿÈŸÊ ¬àŸË‚¢ÿÊ¡Êãà‚Á◊CÔUÿ¡È·Ê ‚ ¦ SÕÊ◊˜.. (29) ÿ¡Èfl¸Œ - 243
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÿôÊ ◊¥ ¬˝ÿÈÄà „UÊŸ flÊ‹ •ããÊ ∑§ ÷ˇÊáÊ ‚ fl·Ê¸ „UÊÃË „ÒU. flÊÇ‚ÍÄà ‚ •Ê‡ÊË· ¬˝Êåà „UÊÃÊ „ÒU. ‚¢ÿ◊ ‚ ¬ÁìàŸË ‚¢’¢œ ◊¥ ¬˝◊ ¬˝Êåà „UÊÃÊ „ÒU. ßc≈U ÿôÊ ‚ ‚¢ÁSÕÁà (©UûÊ◊ ÁSÕÁÃ) ¬˝Êåà „UÊÃË „Ò. (29) fl˝ÃŸ ŒËˇÊÊ◊ÊåŸÊÁà ŒËˇÊÿÊåŸÊÁà ŒÁˇÊáÊÊ◊˜. ŒÁˇÊáÊÊ üÊhÊ◊ÊåŸÊÁà üÊhÿÊ ‚àÿ◊ÊåÿÃ.. (30) fl˝Ã ‚ ŒËˇÊÊ ¬˝Êåà „UÊÃË „ÒU. ŒËˇÊÊ ‚ ŒÁˇÊáÊÊ ¬˝Êåà „UÊÃË „ÒU. ŒÁˇÊáÊÊ ‚ üÊhÊ ¬˝Êåà „UÊÃË „ÒU. üÊhÊ ‚ ‚àÿ ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (30) ∞ÃÊflº˝Í¬¢ ÿôÊSÿ ÿgflÒ’˝¸rÊÔáÊÊ ∑ΧÃ◊˜. ÃŒÃà‚fl¸◊ÊåŸÊÁà ÿôÊ ‚ÊÒòÊÊ◊áÊË ‚ÈÃ.. (31) ’˝ÊrÊáÊÊ¥ Ÿ ÿôÊ ∑§ ßß „UË M§¬ ∑§Ê fláʸŸ Á∑§ÿÊ „ÒU. ÿôÊ ◊¥ fl„U ‚’ ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. ‚ÊÒòÊÊ◊ÁáÊ ÿôÊ ◊¥ ‚Ê◊ ∑§Ë •Ê„ÈUÁà ‚ ÿ„U ‚’ ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (31) ‚È⁄UÊflãâ ’Á„¸U·Œ ¦ ‚ÈflË⁄¢U ÿôÊ ¦ Á„UãflÁãà ◊Á„U·Ê Ÿ◊ÊÁ÷—. ŒœÊŸÊ— ‚Ê◊¢ ÁŒÁfl ŒflÃÊ‚È ◊Œ◊ãº˝¢ ÿ¡◊ÊŸÊ— Sfl∑§Ê¸—.. (32) „U◊ ‚È⁄UÊflÊŸ, ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U ÁSÕà fl üÊcΔUflË⁄U ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄UÊ¥ ‚ ◊ŸÊà „Ò¥U. „U◊ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ÿôÊ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄UÊ¥ ‚ ÁflSÃÎà ∑§⁄Uà „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ Áfll◊ÊŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ÿ¡◊ÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄Uà •ÊÒ⁄U •àÿ¢Ã ¬˝‚ããÊ „UÊà „Ò¥U. (32) ÿSà ⁄U‚— ‚ê÷Îà ˘ •Ê·œË·È ‚Ê◊Sÿ ‡ÊÈc◊— ‚È⁄UÿÊ ‚ÈÃSÿ. ß Á¡ãfl ÿ¡◊ÊŸ¢ ◊ŒŸ ‚⁄USflÃË◊Á‡flŸÊÁflãº˝◊ÁÇŸ◊˜.. (33) •Ê·ÁœÿÊ¥ ◊¥ ¡Ê ß∑§≈˜UΔUÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ ‚Ê◊ ∑§Ê ⁄U‚ „ÒU, fl„U ÃˡáÊ •ÊÒ⁄U ‚Ê⁄UflÊŸ „ÒU. ©U‚ ‚Ê◊ ⁄U‚ ‚ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ‚⁄USflÃË ŒflË, •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ fl •ÁÇŸ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (33) ÿ◊Á‡flŸÊ Ÿ◊Èø⁄UÊ‚È⁄UÊŒÁœ ‚⁄USflàÿ‚ÈŸÊÁŒÁãº˝ÿÊÿ. ß◊¢ à ¦ ‡ÊÈ∑˝¢§ ◊œÈ◊ãÃÁ◊ãŒÈ ¦ ‚Ê◊ ¦ ⁄UÊ¡ÊŸÁ◊„U ÷ˇÊÿÊÁ◊.. (34) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ •‚È⁄U Ÿ◊ÈÁø ‚ ‚Ê◊ ∑§Ê ¬ÊÿÊ. ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊ ∑§Ê ÁŸøÊ«∏UÊ. ‚Ê◊ ⁄UÊ¡Ê, ø◊∑§Ë‹Ê fl ◊œÈ⁄U „ÒU. „U◊ ©U‚ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (34) ÿŒòÊ Á⁄Uåà ¦ ⁄UÁ‚Ÿ— ‚ÈÃSÿ ÿÁŒãº˝Ê •Á¬’ë¿UøËÁ÷—. •„¢U ÃŒSÿ ◊Ÿ‚Ê Á‡ÊflŸ ‚Ê◊ ¦ ⁄UÊ¡ÊŸÁ◊„U ÷ˇÊÿÊÁ◊.. (35) 244 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¡Ê ⁄U‚Ë‹Ê ‚Ê◊ ÿ„UÊ¢ ◊ÊÒ¡ÍŒ „ÒU, Á¡‚ ‚Ê◊ ∑§Ê ߢº˝ Œfl Ÿ ¬ËÿÊ, „U◊ ©U‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚Ê◊ ∑§Ê ◊Ÿ ‚ ÷ˇÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê◊ ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. (35) Á¬ÃÎèÿ— SflœÊÁÿèÿ— SflœÊ Ÿ◊— Á¬ÃÊ◊„Uèÿ— SflœÊÁÿèÿ— SflœÊ Ÿ◊— ¬˝Á¬ÃÊ◊„Uèÿ— SflÊœÊÁÿèÿ— SflœÊ Ÿ◊—. •ˇÊŸ˜ Á¬Ã⁄UÊ◊Ë◊Œãà Á¬Ã⁄UÊÃËÃάãà Á¬Ã⁄U— Á¬Ã⁄U— ‡ÊÈãœäfl◊˜.. (36) Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflœÊ, SflœÊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Á¬ÃÊ◊„UÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflœÊ, SflœÊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Á¬ÃÊ◊„UÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflœÊ, SflœÊ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊Ÿ. Á¬Ã⁄UÊ¥ Ÿ „UÁfl ∑§ M§¬ ◊¥ ‚◊Á¬¸Ã •Ê„UÊ⁄U ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ. ©U‚ •Ê„UÊ⁄U ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄U ∑§ ÃÎÁåà ¬Ê߸. Á¬ÃΪáÊ „U◊¥ ÷Ë ÃÎåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. Á¬ÃΪáÊ „U◊Ê⁄U ¡ËflŸ ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (36) ¬ÈŸãÃÈ ◊Ê Á¬Ã⁄U— ‚ÊêÿÊ‚— ¬ÈŸãÃÈ ◊Ê Á¬ÃÊ◊„UÊ— ¬ÈŸãÃÈ ¬˝Á¬ÃÊ◊„UÊ— ¬ÁflòÊáÊ ‡ÊÃÊÿÈ·Ê. ¬ÈŸãÃÈ ◊Ê Á¬ÃÊ◊„UÊ— ¬ÈŸãÃÈ ¬˝Á¬ÃÊ◊„UÊ— ¬ÁflòÊáÊ ‡ÊÃÊÿÈ·Ê Áfl‡fl◊ÊÿÈ√ÿ¸‡ŸflÒ.. (37) Á¬ÃΪáÊ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Á¬ÃΪáÊ ‚ÊÒêÿ „Ò¥U. Á¬ÃÊ◊„U „U◊¥ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬˝Á¬ÃÊ◊„U „U◊¥ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ¬ÁflòÊÃʬÍfl¸∑§ ‚ÊÒ fl·¸ Ã∑§ ¡Ë∞¢. •Á‡flŸË ŒflÊ¥ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ¬ÍáÊʸÿÈ ¬Ê∞¢. (37) •ÇŸ ˘ •ÊÿÍ ¦ Á· ¬fl‚ ˘ •Ê ‚ÈflÊ¡¸Á◊·¢ ø Ÿ—. •Ê⁄U ’ÊœSfl ŒÈë¿ÈUŸÊ◊˜.. (38) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ÊÿÈŒÊÿ∑§ fl ¬ÁflòÊÃÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •ë¿UÊ •ããÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ’ʜʕʥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (38) ¬ÈŸãÃÈ ◊Ê Œfl¡ŸÊ— ¬ÈŸãÃÈ ◊Ÿ‚Ê Áœÿ—. ¬ÈŸãÃÈ Áfl‡flÊ ÷ÍÃÊÁŸ ¡ÊÃflŒ— ¬ÈŸËÁ„U ◊Ê.. (39) Œfl¡Ÿ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl ◊Ÿ ‚ „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚fl¸ôÊ Œfl „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (39) ¬ÁflòÊáÊ ¬ÈŸËÁ„U ◊Ê ‡ÊÈ∑˝§áÊ Œfl ŒËlØ. •ÇŸ ∑˝§àflÊ ∑˝§ÃÍ° 1 ⁄UŸÈ.. (40) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •¬ŸË ¬ÁflòÊÃÊ ‚ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ •¬ŸË áÁSflÃÊ ‚ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ŒËÁåÃ◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ¬ÁflòÊ ∑§◊ÊZ ‚ ÿôÊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (40) ÿûÊ ¬ÁflòÊ◊Áø¸cÿÇŸ ÁflÃÃ◊ãÃ⁄UÊ. ’˝rÊÔ ÃŸ ¬ÈŸÊÃÈ ◊Ê.. (41) „U •ÁÇŸ! ¡Ê •Ê¬ ∑§Ê ¬ÁflòÊ SflM§¬ „ÒU, •Ê¬ ’Ëø ◊¥ •¬Ÿ Á¡‚ SflM§¬ ∑§Ê ÿ¡Èfl¸Œ - 245
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U, •Ê¬ ©U‚ ’˝rÊ SflM§¬ ‚ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (41) ¬fl◊ÊŸ— ‚Ê •l Ÿ— ¬ÁflòÊáÊ Áflø·¸ÁáÊ—. ÿ— ¬ÊÃÊ ‚ ¬ÈŸÊÃÈ ◊Ê.. (42) •Ê¬ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •Ê¡ •¬ŸË ¬ÁflòÊÃÊ ‚ „U◊¥ ‚fl¸ôÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. Sflÿ¢ ¬ÁflòÊ „Ò¥U. „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (42) ©U÷ÊèÿÊ¢ Œfl ‚Áfl× ¬ÁflòÊáÊ ‚flŸ ø. ◊Ê¢ ¬ÈŸËÁ„U Áfl‡fl×.. (43) ‚ÁflÃÊ Œfl •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ fl ŒÊŸÊ¥ ‚flŸÊ¥ ‚ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚’ •Ê⁄U ‚ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (43) flÒ‡flŒflË ¬ÈŸÃË Œ√ÿʪÊlSÿÊÁ◊◊Ê ’uÔUKSÃãflÊ flËìÎcΔUÊ—. ÃÿÊ ◊Œã× ‚œ◊ÊŒ·È flÿ ¦ SÿÊ◊ ¬ÃÿÊ ⁄UÿËáÊÊ◊˜.. (44) ÿ„U Áfl‡fl ŒflË „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ„U Áfl‡fl ŒflË „U◊¥ ÁŒ√ÿÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (44) ÿ ‚◊ÊŸÊ— ‚◊Ÿ‚— Á¬Ã⁄UÊ ÿ◊⁄UÊÖÿ. ÷ʰÀ‹Ê∑§— SflœÊ Ÿ◊Ê ÿôÊÊ Œfl·È ∑§À¬ÃÊ◊˜.. (45) ÿ◊ ∑§ ⁄UÊÖÿ ◊¥ ¡Ê „U◊Ê⁄U ‚◊ÊŸ ◊ÊŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹ Á¬Ã⁄U „Ò¥U, ©UŸ ∑§ ‹Ê∑§ ◊¥ „U◊Ê⁄UË SflœÊ fl Ÿ◊S∑§Ê⁄U ¬„¢ÈUø ¢. „U◊Ê⁄UÊ ÿôÊ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (45) ÿ ‚◊ÊŸÊ— ‚◊Ÿ‚Ê ¡ËflÊ ¡Ëfl·È ◊Ê◊∑§Ê—. Ã·Ê ¦ üÊË◊¸Áÿ ∑§À¬ÃÊ◊ÁS◊°À‹Ê∑§ ‡Êà ¦ ‚◊Ê—.. (46) ¡ËflÊ¥ ◊¥ ¡Ê ‚◊ÊŸ ◊ÊŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹ ¡Ëfl „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ë ‡ÊÊ÷Ê ◊È¤Ê »§‹Ë÷Íà ∑§⁄U. „U◊ ß‚ ‹Ê∑§ ◊¥ ‚ÊÒ fl·ÊZ Ã∑§ ¡Ë∞¢. „U◊Ê⁄U ‚ÊÕ ÿ ¡È«∏ U∑§⁄U ⁄U„¥U. (46) m ‚ÎÃË •oÎáÊfl¢ Á¬ÃÎÎáÊÊ◊„¢U ŒflÊŸÊ◊Èà ◊àÿʸŸÊ◊˜. ÃÊèÿÊÁ◊Œ¢ Áfl‡fl◊¡à‚◊Áà ÿŒãÃ⁄UÊ Á¬Ã⁄¢U ◊ÊÃ⁄¢U ø.. (47)§ „U◊ Ÿ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ¡ÊŸ ÿÊÇÿ ŒÊ ◊ʪ¸ ‚ÈŸ „Ò¥U. ¬„U‹Ê Á¬ÃÎ ◊ʪ¸ •ÊÒ⁄U ŒÍ‚⁄UÊ Œfl ◊ʪ¸. ߟ ŒÊŸÊ¥ ◊ʪÊZ ‚ „UË Áfl‡fl ∑§Ê ‚ΡŸ „ÈU•Ê „ÒU. ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ∑§ ‚¢ÿʪ ‚ ¡ËflÊ¥ ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ „È•Ê „ÒU. (47) ߌ ¦ „UÁfl— ¬˝¡ŸŸ¢ ◊ •SÃÈ Œ‡ÊflË⁄ ¦ ‚fl¸ªáÊ ¦ SflSÃÿ. •Êà◊‚ÁŸ ¬˝¡Ê‚ÁŸ ¬‡ÊÈ‚ÁŸ ‹Ê∑§‚ãÿ÷ÿ‚ÁŸ. •ÁÇŸ— ¬˝¡Ê¢ ’„ÈU‹Ê¢ ◊ ∑§⁄UÊàfl㟢 ¬ÿÊ ⁄UÃÊ •S◊Ê‚È œûÊ.. (48) ÿ„U „UÁfl „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. Œ‚Ê¥ •¢ªÊ¥ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË 246 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§⁄U. ‚÷Ë ªáÊÊ¥ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ „UÊ. •Êà◊‚Èπ ŒŸ flÊ‹Ë „UÊ. ‚¢ÃÊŸ flÎÁh∑§Ê⁄UË „UÊ. ¬‡ÊÈœŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄U. •÷ÿŒÊÿË „UÊ. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝¡Ê ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ŒÍœ fl flËÿ¸ œÊÁ⁄U∞. (48) ©UŒË⁄UÃÊ◊fl⁄U ˘ ©Uà¬⁄UÊ‚ ˘ ©Uã◊äÿ◊Ê— Á¬Ã⁄U— ‚ÊêÿÊ‚—. •‚È¢ ÿ ˘ ߸ÿÈ⁄UflÎ∑§Ê ˘ ´§ÃôÊÊSà ŸÊflãÃÈ Á¬Ã⁄UÊ „Ufl·È.. (49) ¡Ê ™¢§ø Á¬Ã⁄U, üÊcΔU Á¬Ã⁄U, ◊äÿ◊ Á¬Ã⁄U fl ‚ÊÒêÿ Á¬Ã⁄U „Ò¥U, fl „U◊¥ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‡ÊòÊÈ„UËŸ Á¬Ã⁄U „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚àÿ ∑§Ê ¡ÊŸŸ flÊ‹ Á¬Ã⁄U fl Á¬ÃΪáÊ „UÁflÿÊ¥ ◊¥ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (49) •ÁX⁄U‚Ê Ÿ— Á¬Ã⁄UÊ ŸflÇflÊ ˘ •ÕflʸáÊÊ ÷Ϊfl— ‚ÊêÿÊ‚—. ÷ʢ flÿ ¦ ‚È◊ÃÊÒ ÿÁôÊÿÊŸÊ◊Á¬ ÷º˝ ‚ÊÒ◊Ÿ‚ SÿÊ◊.. (50) „U◊Ê⁄U Á¬Ã⁄U •¢Áª⁄U‚ „Ò¥U. Ÿß¸ flÊáÊË ∑§ ¬˝⁄U∑§, •Õflʸ, ÷ÎªÈ fl ‚ÊÒêÿ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ ¬˝Áà ‚È◊Áà flÊ‹ „Ò¥U. ÿÊ¡∑§Ê¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ¥. (50) ÿ Ÿ— ¬Ífl¸ Á¬Ã⁄U— ‚ÊêÿÊ‚ÊŸÍÁ„U⁄U ‚Ê◊¬ËÕ¢ flÁ‚cΔUÊ—. ÃÁ÷ÿ¸◊— ‚ ¦ ⁄U⁄UÊáÊÊ „UflË ¦ cÿȇÊãŸÈ‡ÊÁj— ¬˝ÁÃ∑§Ê◊◊ûÊÈ.. (51) ¡Ê „U◊Ê⁄U ¬Ífl¸ Á¬Ã⁄U „Ò¥U, fl ‚ÊÒêÿ, ‚ÈπË, ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ÿÊÇÿ, flÁ‚cΔU „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ „U◊Ê⁄U Á¬Ã⁄U ÿ◊ ∑§ ‚ÊÕ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ fl ‡ÊòÊÈ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ∑§Ê◊ŸÊ ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§⁄UŸ flÊ‹ „UÊ¥. (51) àfl ¦ ‚Ê◊ ¬˝ÁøÁ∑§ÃÊ ◊ŸË·Ê àfl ¦ ⁄UÁ¡cΔU◊ŸÈ ŸÁ· ¬ãÕÊ◊˜. Ãfl ¬˝áÊËÃË Á¬Ã⁄UÊ Ÿ ˘ ßãŒÊ Œfl·È ⁄UàŸ◊÷¡ãà œË⁄UÊ—.. (52) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ¬˝∑Χc≈U (•àÿ¢Ã) ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸËcÊÊ ‚ üÊcΔU ◊ʪ¸ ∑§Ë •Ê⁄U ‹ ¡ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ¬˝ËÁà ‚ œÒÿ¸flÊŸ Á¬Ã⁄UªáÊ Ÿ ÿôÊ •ÊÁŒ üÊcΔ ∑§Êÿ¸ Á∑§∞ ÃÕÊ ŒflÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§ ¬˝Áà ¬˝ËÁà ©Uà¬ãŸ ∑§Ë. (52) àflÿÊ Á„U Ÿ— Á¬Ã⁄U— ‚Ê◊ ¬Ífl¸ ∑§◊ʸÁáÊ ø∑˝È§— ¬fl◊ÊŸ œË⁄UÊ—. flãflãŸflÊ× ¬Á⁄UœÊ° 2 ⁄U¬ÊáÊȸ flË⁄UÁ÷⁄U‡flÒ◊¸ÉÊflÊ ÷flÊ Ÿ—.. (53) ‚Ê◊! •Ê¬ ¬ÁflòÊ „Ò¥U. ¬Ífl¸ ◊¥ „U◊Ê⁄U œË⁄U ÃÕÊ ¬ÁflòÊ Á¬Ã⁄UÊ¥ Ÿ „UË ÿôÊ ∑§◊¸ ‚¢¬ÊÁŒÃ Á∑§∞. •Ê¬ ÁflÉŸ∑§ÊÁ⁄UÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ÷ªÊ∞¢. ߢº˝ Œfl flË⁄U, •‡flÊ⁄UÊ„UË fl œŸflÊŸ „Ò¥U. fl „U◊¥ ∞‡flÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (53) àfl ¦ ‚Ê◊ Á¬ÃÎÁ÷— ‚¢ÁflŒÊŸÊŸÈ lÊflʬÎÁÕflË •Ê ÃÃãÕ. ÃS◊Ò Ã ˘ ßãŒÊ „UÁfl·Ê Áflœ◊ flÿ ¦ SÿÊ◊ ¬ÃÿÊ ⁄UÿËáÊÊ◊˜.. (54) ÿ¡Èfl¸Œ - 247
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ‚Ê◊! •Ê¬ ¬Ífl¸¡Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ „UÊ ∑§⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ‚Èπ ÁflSÃÎà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬Ífl¸¡Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ „UÊ ∑§⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ‚Èπ ÁflSÃÎà ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÒ⁄U „U◊ ÷Ë œŸ¬Áà „UÊ¥. (54) ’Á„¸U·Œ— Á¬Ã⁄U ˘ ™§àÿflʸÁª◊Ê flÊ „U√ÿÊ ø∑Χ◊Ê ¡È·äfl◊˜. à ˘ •Ê ªÃÊfl‚Ê ‡ÊãÃ◊ŸÊÕÊ Ÿ— ‡Ê¢ ÿÊ⁄U⁄U¬Ê ŒœÊÃ.. (55) „U Á¬Ã⁄UªáÊ! •Ê¬ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ™¢§ø™¢§ø Sfl⁄U ◊¥ SÃÈÁà ªÊà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝‚ããÊÃÊ ‚ ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ fl ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚Èπ œÊÁ⁄U∞. (55) •Ê„¢U Á¬ÃÎÎãà‚ÈÁflŒòÊÊ° 2 •ÁflÁà‚ Ÿ¬Êâ ø Áfl∑˝§◊áÊ¢ ø ÁflcáÊÊ—. ’Á„¸U·ŒÊ ÿ SflœÿÊ ‚ÈÃSÿ ÷¡ãà Á¬àflSà ˘ ß„UʪÁ◊cΔUÊ—.. (56) •Ê¬ üÊcΔU ôÊÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê •ë¿UË Ã⁄U„U ¡ÊÁŸ∞. •Ê¬ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ªÁÃ◊ÊŸ ø∑˝§ ∑§Ê ‚◊¤Ê¥. ¡Ê Á¬Ã⁄U ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡Ã „Ò¥U, ¡Ê Á¬Ã⁄U SflœÊ◊ÿ ‚Ê◊⁄U‚ ¬Ëà „Ò¥U, fl Á¬Ã⁄UªáÊ ÿ„UÊ¢ •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (56) ©U¬„ÍUÃÊ— Á¬Ã⁄U— ‚ÊêÿÊ‚Ê ’Á„¸Ucÿ·È ÁŸÁœ·È Á¬˝ÿ·È. à ˘ •Ê ª◊ãÃÈ Ã ˘ ß„U üÊÈflãàflÁœ ’˝ÈflãÃÈ ÃflãàflS◊ÊŸ˜.. (57) „U◊ Á¬Ã⁄UÊ¥ fl ‚Ê◊⁄U‚ ∑§ ßë¿ÈU∑§ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡Ã Á¬Ã⁄Ê¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. Á¬Ã⁄UªáÊ „U◊Ê⁄U Á¬˝ÿ fløŸÊ¥ fl „U◊Ê⁄UË ’Ê‹Ë „ÈU߸ SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ‚ÈŸŸ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (57) •Ê ÿãÃÈ Ÿ— Á¬Ã⁄U— ‚ÊêÿÊ‚ÊÁÇŸcflÊûÊÊ— ¬ÁÕÁ÷Œ¸flÿÊŸÒ—. •ÁS◊Ÿ˜ ÿôÊ SflœÿÊ ◊ŒãÃÊÁœ ’˝ÈflãÃÈ ÃflãàflS◊ÊŸ˜.. (58) „U◊Ê⁄U Á¬Ã⁄U ‚Ê◊ ∑§ ‚◊ÊŸ ‚ÊÒêÿ „ÒU¥ . •ÁÇŸ ¡Ò‚ áSflË „ÒU¥ . Á¬Ã⁄UªáÊ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÈÄà ◊ʪÊZ ‚ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ß‚ ÿôÊ ◊¥ SflœÊ ‚ •ÊŸ¢ÁŒÃ „UÊ.¥ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ©U¬Œ‡Ê ŒŸ fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (58) •ÁÇŸcflÊûÊÊ— Á¬Ã⁄U ˘ ∞„U ªë¿Uà ‚Œ—‚Œ— ‚ŒÃ ‚Ȭ˝áÊËÃÿ—. •ûÊÊ „UflË ¦ Á· ¬˝ÿÃÊÁŸ ’Ì„UcÿÕÊ ⁄UÁÿ ¦ ‚fl¸flË⁄¢U ŒœÊß.. (59) Á¬Ã⁄UªáÊ •ÁÇŸ ∑§ ‚◊ÊŸ áSflË „Ò¥U. fl ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄U¢. ÿôÊ ‚ŒŸ ◊¥ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. Á¬Ã⁄U „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ œŸ fl üÊcΔU flË⁄U œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (59) ÿ ˘ •ÁÇŸcflÊûÊÊ ÿ ˘ •ŸÁÇŸcflÊûÊÊ ◊äÿ ÁŒfl— SflœÿÊ ◊ÊŒÿãÃ. Ãèÿ— Sfl⁄UÊ«U‚ÈŸËÁÃ◊ÃÊ¢ ÿÕÊfl‡Ê¢ Ããfl¢ ∑§À¬ÿÊÁÃ.. (60) 248 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¡Ê Á¬Ã⁄U •ÁÇŸ ∑§ ‚◊ÊŸ áSflË „Ò¥U, ¡Ê Á¬Ã⁄U Sflª¸‹Ê∑ ∑§ ’Ëø ◊¥ „Ò¥U, fl Á¬Ã⁄U SflœÊ ‚ •ÊŸ¢ÁŒÃ „UÊà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ê Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ¬⁄U◊Êà◊Ê •ë¿UË ŸËÿà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê •Êfl‡ÿ∑§ÃÊ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U ∑§◊¸ ∑§Ê »§‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (60) •ÁÇŸcflÊûÊÊŸÎÃÈ◊ÃÊ „UflÊ◊„U ŸÊ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚ ‚Ê◊¬ËÕ¢ ÿ ˘ •Ê‡ÊÈ—. à ŸÊ Áfl¬˝Ê‚— ‚È„UflÊ ÷flãÃÈ flÿ ¦ SÿÊ◊ ¬ÃÿÊ ⁄UÿËáÊÊ◊˜.. (61) ¡Ê Á¬Ã⁄U •ÁÇŸ ∑§ ‚◊ÊŸ áSflË „Ò¥U, ¡Ê ŸËÁÃflÊŸ „Ò¥U, „U◊ ©UŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬˝‡Ê¢Á‚à fl ‚Ê◊¬ÊŸ ◊¥ ÃËfl˝ ªÁÇÊË‹ Á¬Ã⁄U ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U ’˝ÊrÊáÊ Á¬Ã⁄U •ë¿UË Ã⁄U„U •ÊuÔUÊŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. „U◊ œŸÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „UÊ ¡Ê∞¢. (61) •ÊëÿÊ ¡ÊŸÈ ŒÁˇÊáÊÃÊ ÁŸ·l◊¢ ÿôÊ◊Á÷ ªÎáÊËà Áfl‡fl. ◊Ê Á„U ¦ Á‚CÔU Á¬Ã⁄U— ∑§Ÿ ÁøãŸÊ ÿm ˘ •Êª— ¬ÈL§·ÃÊ ∑§⁄UÊ◊.. (62) „U Á¬Ã⁄UªáÊÊ! „U◊ ŒÊÁ„UŸ ÉÊÈ≈UŸ ¬⁄U Á≈∑§§∑§⁄U •Ê¬ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ¬Í⁄U ÿôÊ ◊¥ •¬ŸÊ •Á÷◊à ¬˝∑§≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊ ∑§Ê ®„UUÁ‚à Ÿ ∑§⁄¥U. Á¬Ã⁄UªáÊ ÿ„UÊ¢ •ÊŸ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (62) •Ê‚ËŸÊ‚Ê ˘ •L§áÊËŸÊ◊ȬSÕ ⁄UÁÿ¢ œûÊ ŒÊ‡ÊÈ· ◊àÿʸÿ. ¬ÈòÊèÿ— Á¬Ã⁄USÃSÿ flSfl— ¬˝ ÿë¿Uà à ˘ ß„UÊ¡Z ŒœÊÃ.. (63) Á¬Ã⁄UªáÊ ‹Ê‹ ‚Íÿ¸‹Ê∑§ ◊¥ Áfl⁄UÊ¡ „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊÁ⁄U∞. ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∞‡flÿ¸ ŒËÁ¡∞. Á¬Ã⁄U ¬ÈòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ flÒ÷fl Œ¥. ™§¡Ê¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (63) ÿ◊ÇŸ ∑§√ÿflÊ„UŸ àfl¢ Áøã◊ãÿ‚ ⁄UÁÿ◊˜. ÃãŸÊ ªËÁ÷¸— üÊflʃÿ¢ ŒflòÊÊ ¬ŸÿÊ ÿÈ¡◊˜.. (64) „U •ÁÇŸ! ∑§ÁflªáÊ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Áøã◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ œŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ©UŸ flÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ê ‚ÈÁŸ∞. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ß‚ „UÁfl ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „UÁfl ∑§Ê ©UŸ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊß∞. (64) ÿÊ •ÁÇŸ— ∑§√ÿflÊ„UŸ— Á¬ÃÎΟ˜ ÿˇÊŒÎÃÊflÎœ—. ¬˝ŒÈ „U√ÿÊÁŸ flÊøÁà Œflèÿ‡ø Á¬ÃÎèÿ ˘ •Ê.. (65) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „UÁfl flÊ„U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‚àÿ◊ÿ ÿôÊ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ fl Á¬Ã⁄UÊ¥ Ã∑§ „UÁfl ¬˝Á·Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (65) àfl◊ÇŸ ˘ ߸Á«U× ∑§√ÿflÊ„UŸÊflÊbÔU√ÿÊÁŸ ‚È⁄U÷ËÁáÊ ∑ΧàflË. ¬˝ÊŒÊ— Á¬ÃÎèÿ— SflœÿÊ Ã •ˇÊãŸÁh àfl¢ Œfl ¬˝ÿÃÊ „UflË ¦ Á·.. (66) ÿ¡Èfl¸Œ - 249
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ •Ê∑§Ê¢ÁˇÊÃ, ∑§ÁflªáÊÊ¥ ‚ SÃÈà fl „UÁfl flÊ„U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ȫ¢ÁœÃ „UÁfl ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ ¬˝ËÁìÍfl¸∑§ ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Á¬Ã⁄UªáÊ ∑§Ê SflœÊ◊ÿ „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U.Ô (66) ÿ ø„U Á¬Ã⁄UÊ ÿ ø Ÿ„U ÿÊ°‡ø Áflk ÿÊ° 2 ©U ø Ÿ ¬˝Áflk. àfl¢ flàÕ ÿÁà à ¡ÊÃflŒ— SflœÊÁ÷ÿ¸ôÊ ¦ ‚È∑Χâ ¡È·Sfl.. (67) ¡Ê „U◊Ê⁄U Á¬Ã⁄U ÿ„UÊ¢ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U •ÊÒ⁄U ¡Ê ÿ„UÊ¢ Ÿ„UË¥ „Ò¥U, Á¡Ÿ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê „U◊ ¡ÊŸÃ „Ò¥U •ÊÒ⁄U Á¡Ÿ ∑§Ê Ÿ„UË¥ ¡ÊŸÃ „Ò¥U, „U ‚fl¸ôÊ •ÁÇŸ! •Ê¬ ©Uã„¥U ¡ÊÁŸ∞. •Ê¬ SflœÊ¬Ífl¸∑§ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê •ë¿UË Ã⁄U„U ‚¢¬ÊÁŒÃ ∑§ËÁ¡∞. (67) ߌ¢ Á¬ÃÎèÿÊ Ÿ◊Ê •Sàfll ÿ ¬Íflʸ‚Ê ÿ ˘ ©U¬⁄UÊ‚ ˘ ߸ÿÈ—. ÿ ¬ÊÁÕ¸fl ⁄U¡SÿÊ ÁŸ·ûÊÊ ÿ flÊ ŸÍŸ ¦ ‚ÈflΡŸÊ‚È ÁflˇÊÈ.. (68) Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ. ¡Ê Á¬Ã⁄U ¬Ífl¸ ◊¥ „ÈU∞, ¡Ê Á¬Ã⁄U ’ÊŒ ◊¥ „ÈU∞, ¡Ê ¬ÊÁÕ¸fl „Ò¥U, ¡Ê œ◊¸ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U, ©UŸ ‚÷Ë Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ‚ÊŒ⁄U ÿ„U „UÁfl ¬˝Êåà „UÊ. (68) •œÊ ÿÕÊ Ÿ— Á¬Ã⁄U— ¬⁄UÊ‚— ¬˝àŸÊ‚Ê •ÇŸ ˘ ´§Ã◊ʇÊÈ·ÊáÊÊ—. ‡ÊÈøËŒÿŸ˜ ŒËÁœÁÃ◊ÈÄÕ‡ÊÊ‚— ˇÊÊ◊Ê Á÷ãŒãÃÊ •L§áÊË⁄U¬fl˝Ÿ˜.. (69) „U •ÁÇŸ! ¡Ò‚ „U◊Ê⁄U Á¬Ã⁄UÊ¥ Ÿ Œ„U ‚ ◊ÈÄà „UÊ ∑§⁄U ´§Ã‹Ê∑§ ∑§Ê ¬ÊÿÊ, ¬ÁflòÊ Á∑§ÿÊ, ôÊÊŸ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ, •ôÊÊŸ ∑§Ê ÷ŒŸ Á∑§ÿÊ, „U◊ ÷Ë ©UŸ ∑§Ë „UË Ã⁄U„U ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Ê∞¢. (69) ©U‡ÊãÃSàflÊ ÁŸœË◊sÔ‰‡Êã× ‚Á◊œË◊Á„U. ©U‡ÊãŸÈ‡Êà ˘ •Ê fl„U Á¬ÃÎΟ˜ „UÁfl· •ûÊfl.. (70) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿ„UÊ¢ Áfl⁄UÊÁ¡∞. „U◊ ÿôÊ •ÊÒ⁄U •Õ¸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ ‚Á◊œÊ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ª˝ªÊ◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ Á¬Ã⁄Ê¥ ∑§Ê „UÁflª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ’È‹ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (70) •¬Ê¢ »§ŸŸ Ÿ◊Èø— Á‡Ê⁄U ˘ ßãº˝ÊŒfløÿ—. Áfl‡flÊ ÿŒ¡ÿ— S¬Îœ—.. (71) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ Ÿ ¡‹Ê¥ ∑§ »§Ÿ ‚ „UË Ÿ◊ÈÁø ∑§ Á‚⁄U ∑§Ê ∑§Ê≈U ÁŒÿÊ. •Ê¬ ‚÷Ë •¡ÿ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ S¬hʸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (71) ‚Ê◊Ê ⁄UÊ¡Ê◊Îà ¦ ‚Èà ˘ ´§¡Ë·áÊÊ¡„UÊã◊ÎàÿÈ◊˜. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (72) ‚Ê◊ ⁄UÊ¡Ê fl •◊Îà „Ò¥U. fl „U◊¥ ◊ÎàÿÈ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ÿôÊ ‚ ‚àÿ, ’‹ fl ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ߢº˝ ∑§Ê ‚Ê◊âÿ¸ ©U¬‹éœ ∑§⁄UÊà „Ò¥U. fl ÿôÊ ‚ ŒÍœ, •◊Îà fl ◊œÈ ©U¬‹éœ ∑§⁄UÊà „Ò¥U. (72) 250 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•jK— ˇÊË⁄¢U √ÿÁ¬’Ø ∑È˝§æ˜U«UÊ¢ÁX⁄U‚Ê ÁœÿÊ. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (73) ¬˝ÊáÊ M§¬Ë „¢U‚ ’ÈÁh ‚ ¡‹ Á◊ÁüÊà ŒÍœ ◊¥ ‚ ŒÍœ ¬ËÃÊ „ÒU. ´§Ã ‚ ‚àÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U „U◊¥ ŒÍœ fl ◊œÈ⁄U ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „Ò. (73) ‚Ê◊◊jKÊ √ÿÁ¬’ë¿UãŒ‚Ê „ ¦ ‚— ‡ÊÈÁø·Ã˜. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (74) •ÊÁŒàÿ Œfl ‚Ê◊ ∑§Ê ¡‹Ê¥ ‚ ¬ÎÕ∑˜§ ∑§⁄U ∑§ ¬Ëà „Ò¥U. ´§Ã ‚ ‚àÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊà „Ò¥U. ÿ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊUà „Ò¥U. ÿ„U „U◊¥ ŒÍœ fl ◊œÈ⁄U ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊUà „Ò¥U. (74) •ãŸÊà¬Á⁄UdÈÃÊ ⁄U‚¢ ’˝rÊÔáÊÊ √ÿÁ¬’Ø ˇÊòÊ¢ ¬ÿ— ‚Ê◊¢ ¬˝¡Ê¬Á×. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (75) ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝¡Ê¬Áà ÁŸS‚Îà •ããÊ ∑§ ⁄U‚ ‚ ‚Ê◊ M§¬Ë ŒÍœ ∑§Ê •‹ª ∑§⁄U ∑§ ¬Ëà „Ò¥U. ´§Ã ‚ ‚àÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊUà „Ò¥U. ÿ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊUà „Ò¥U. ÿ„U „U◊¥ ŒÍœ, •◊Îà fl ◊œÈ⁄U ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊUà „Ò¥U. (75) ⁄UÃÊ ◊ÍòÊ¢ Áfl¡„UÊÁà ÿÊ®Ÿ ¬˝Áfl‡ÊÁŒÁãº˝ÿ◊˜. ª÷ʸ ¡⁄UÊÿÈáÊÊflÎà ˘ ©UÀ’¢ ¡„UÊÁà ¡ã◊ŸÊ. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (76) ∞∑§ „UË ◊ʪ¸ ◊ÍòÊ ¿UÊ«U∏ÃÊ „ÒU •ÊÒ⁄U fl„UË ÿÊÁŸ ߢÁº˝ÿ ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄U ∑§ flËÿ¸ ¿UÊ«∏UÃÊ „ÒU. ª÷¸ ¡⁄UÊÿÈ ‚ •ÊflÎà „UÊ ∑§⁄U ¡ã◊ ∑§ ‚ÊÕ „UË ©U‚ ∑§Ê ÷Œ ∑§⁄U ¿UÊ«∏U ŒÃÊ „ÒU. ´§Ã ‚ ‚àÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U „U◊¥ ŒÍœ, •◊Îà ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U „U◊¥ ◊œÈ⁄U ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „Ò. (76) ŒÎCÔU˜flÊ M§¬ √ÿÊ∑§⁄UÊØ‚àÿÊŸÎà ¬˝¡Ê¬Á×. •üÊhÊ◊ŸÎÃŒœÊë¿˛UhÊ ¦ ‚àÿ ¬˝¡Ê¬Á×. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (77) ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ‚àÿ •ÊÒ⁄U •‚àÿ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê •‹ª•‹ª M§¬Ê¥ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ •‚àÿ ∑§Ê •üÊhÊ fl ‚àÿ ∑§Ê üÊhÊ ∑§ M§¬ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ. ´§Ã ‚ ‚àÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄ÊUÃÊ „ÒU. ÿ„U „U◊¥ ŒÍœ, •◊Îà fl ◊œÈ⁄U ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „Ò. (77) flŒŸ M§¬ √ÿÁ¬’Ø ‚ÈÃÊ‚ÈÃÊÒ ¬˝¡Ê¬Á×. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (78) ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ flŒÊ¥ ‚ ª˝Ê„UÔ˜ÿ •ÊÒ⁄U •ª˝Ê„UÔ˜ÿ M§¬ ∑§Ê ¬ËÿÊ. ´§Ã ‚àÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ÿ¡Èfl¸Œ - 251
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U „U◊¥ ŒÍœ, •◊Îà fl ◊œÈ⁄U ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „Ò. (78) ŒÎCÔ˜UflÊ ¬Á⁄UdÈÃÊ ⁄U‚ ¦ ‡ÊÈ∑˝§áÊ ‡ÊÈ∑˝¢§ √ÿÁ¬’Ø ¬ÿ— ‚Ê◊¢ ¬˝¡Ê¬Á×. ´§ÃŸ ‚àÿÁ◊Áãº˝ÿ¢ Áfl¬ÊŸ ¦ ‡ÊÈ∑˝§◊㜂 ˘ ßãº˝SÿÁãº˝ÿÁ◊Œ¢ ¬ÿÊ◊Îâ ◊œÈ.. (79) ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ÁŸS‚Îà ‚Ê◊ ⁄U‚ ∑§Ê ŒÍœ ∑§ ‚ÊÕ ¬ËÿÊ. ¬˝¡Ê¬Áà Ÿ ø◊∑§Ë‹Ê ‚Ê◊ ⁄U‚ ∑§Ê ŒÍœ ∑§ ‚ÊÕ ¬ËÿÊ. ÿ„U ´§Ã ‚ ‚àÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊÃÊ „ÒU. ÿ„U „U◊¥ ŒÍœ, •◊Îà fl ◊œÈ⁄U ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§⁄UÊÃÊ „Ò. (79) ‚Ë‚Ÿ ÃãòÊ¢ ◊Ÿ‚Ê ◊ŸËÁ·áÊ ˘ ™§áÊʸ‚ÍòÊáÊ ∑§flÿÊ flÿÁãÃ. •Á‡flŸÊ ÿôÊ ¦ ‚ÁflÃÊ ‚⁄USflÃËãº˝Sÿ M§¬¢ flL§áÊÊ Á÷·ÖÿŸ˜.. (80) ¡Ò‚ ‚Ë‚ ∑§ ÿ¢òÊ ‚ Ãʢà •ÊÒ⁄U ™§Ÿ •ÊÁŒ ∑§Ê ’ÈŸÊ ¡ÊÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË ◊Ÿ ‚ ◊ŸË·Ë •ÊÒ⁄U ∑§Áfl ß‚ ÿôÊ ∑§Ë flÿ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „ÒU¢. •Á‡flŸË Œfl ÿôÊ ∑§Ê ‚¢¬ãŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl, ‚⁄USflÃË ŒflË, flL§áÊ, ߢº˝ Œfl ∑§ M§¬ ∑§Ê •Ê·ÁœÿÊ¥ ‚ ¬Èc≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (80) ÃŒSÿ M§¬◊◊Îà ¦ ‡ÊøËÁ÷ÁSÃdÊ ŒœÈŒ¸flÃÊ— ‚ ¦ ⁄U⁄UÊáÊÊ—. ‹Ê◊ÊÁŸ ‡Êc¬Ò’¸„ÈUœÊ Ÿ ÃÊÄ◊Á÷SàflªSÿ ◊Ê ¦ ‚◊÷fl㟠‹Ê¡Ê—.. (81) ß‚ ÿôÊ ∑§ •◊ÎÃ◊ÿ M§¬ ∑§Ê ‡ÊøË •ÊÁŒ ÃËŸÊ¥ ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ œÊ⁄UÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ „UË ß‚ ∑§Ë πÊ¡ ∑§Ë. ’„ÈUà ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë ÉÊÊ‚ ∑§ ‹Ê◊ ©UŸ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ ⁄UÊ◊ „ÈU∞. ÿôÊ ◊¥ àfl∑˜ ∑§Ê ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ. ‹Ê¡Ê ©UŸ ∑§Ê ◊Ê¢‚ „ÈU•Ê. (81) ÃŒÁ‡flŸÊ Á÷·¡Ê L§º˝fløŸË ‚⁄USflÃË flÿÁà ¬‡ÊÊ •ãÃ⁄U◊˜. •ÁSÕ ◊Ö¡ÊŸ¢ ◊Ê‚⁄ÒU— ∑§Ê⁄UÊÃ⁄UáÊ ŒœÃÊ ªflÊ¢ àflÁø.. (82) flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄ L§º˝ ¡Ò‚ Sfl÷Êfl ∑§ „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ •ÊÒ⁄U ŒflË ‚⁄USflÃË Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ ‡Ê⁄Ë⁄UU ∑§Ê ¬Í⁄UÊ ’ŸÊÿÊ. •ÁSÕ, ◊Ö¡Ê, ◊Ê¢‚ •ÊÁŒ •ÊÒ⁄U ªÊÿÊ¥ ∑§Ë àfløÊ ∑§Ê œÊ⁄UÊ. (82) ‚⁄USflÃË ◊Ÿ‚Ê ¬‡Ê‹¢ fl‚È ŸÊ‚àÿÊèÿÊ¢ flÿÁà Œ‡Ê¸Ã¢ fl¬È—. ⁄U‚¢ ¬Á⁄UdÈÃÊ Ÿ ⁄UÊÁ„Uâ ŸÇŸ„ÈUœË¸⁄USÂ⁄¢U Ÿ fl◊.. (83) ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹ ∑§⁄U ◊Ÿ ‚ Áfl‡Ê· ‚È¢Œ⁄U àÊÕÊ Œ‡Ê¸ŸËÿ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ë ⁄UøŸÊ ∑§Ë, ⁄U‚ (‹„ÍU) øÈ•ÊÿÊ, œÒÿ¸ ‚ Áfl∑§Ê⁄U ŸÊ‡Ê∑§ ß‚ ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ©U¬¡ÊÿÊ. (83) ¬ÿ‚Ê ‡ÊÈ∑˝§◊◊Îâ ¡ÁŸòÊ ¦ ‚È⁄UÿÊ ◊ÍòÊÊÖ¡Ÿÿãà ⁄U×. •¬Ê◊Áâ ŒÈ◊¸Áâ ’Êœ◊ÊŸÊ ˘ ™§fläÿ¢ flÊà ¦ ‚éfl¢ ÃŒÊ⁄UÊØ.. (84) 252 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ŒÍœ ‚ ø◊∑§Ë‹Ê •◊Îà ©U¬¡ÊÿÊ. ◊ÍòÊ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. flËÿ¸ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. •ôÊÊŸflÊ‹Ë ’ÈÁh ŒÈ◊¸Áà ¡ãÿ ’ʜʕʥ ∑§Ê ŒÍ⁄U Á∑§ÿÊ. ™§Ufläÿ •ÊÒ⁄U flÊà ∑§Ê ’Ê„U⁄U ÁŸ∑§Ê‹Ÿ ∑§Ê ¬˝’¢œ Á∑§ÿÊ. (84) ßãº˝ ‚ÈòÊÊ◊Ê NUŒÿŸ ‚àÿ¢ ¬È⁄UÊ«Uʇʟ ‚ÁflÃÊ ¡¡ÊŸ. ÿ∑ΧØ Ä‹Ê◊ÊŸ¢ flL§áÊÊ Á÷·ÖÿŸ˜ ◊ÃSŸ flÊÿ√ÿÒŸ¸ Á◊ŸÊÁà Á¬ûÊ◊˜.. (85) ߢº˝ Œfl ‚È⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ NUŒÿ ‚ ‚àÿ ∑§Ê ¡ŸÊ. ‚ÁflÃÊ Œfl Ÿ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ‚ ‚àÿ ∑§Ê ¡ŸÊ. flL§áÊ Œfl Ÿ •Ê·œ ‚ ÿ∑Χà ∑§Ê ΔUË∑§ Á∑§ÿÊ. ª‹ ∑§Ë ŸÊ«∏UË ∑§Ê ΔUË∑§ Á∑§ÿÊ. flÊÿÈ Ÿ •ÁSÕ •ÊÒ⁄U Á¬ûÊ ∑§Ê ÿÕÊflÁSÕà Á∑§ÿÊ. (85) •ÊãòÊÊÁáÊ SÕÊ‹Ë◊¸œÈ Á¬ãfl◊ÊŸÊ ªÈŒÊ— ¬ÊòÊÊÁáÊ ‚ÈŒÈÉÊÊ Ÿ œŸÈ—. ‡ÿŸSÿ ¬òÊ¢ Ÿ å‹Ë„UÊ ‡ÊøËÁ÷⁄UÊ‚ãŒË ŸÊÁ÷L§Œ⁄¢U Ÿ ◊ÊÃÊ.. (86) ¬ÊòÊ ÕÊ‹Ë •ÊÒ⁄U •Ê¢Ã¥ ¬Ë∞ „ÈU∞ ⁄U‚Ê¥ ∑§Ê ªÈŒÊ •ÊÒ⁄U •ãÿ ÷ʪʥ Ã∑§ ‚¢øÁ⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÿ •ë¿UË ŒÈœÊM§ ªÊÿÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U „Ò¥U. ‡ÿŸ ∑§ ¬¢π ∑§Ë Ã⁄U„U „U◊Ê⁄UÊ å‹Ë„UÊ „ÒU. ŸÊÁ÷ •Ê‚¢ŒË ‚¢øÊ‹∑§ „ÒU. ©UŒ⁄U ◊ÊÃÊ ∑§Ë Ã⁄U„U „ÒU. (86) ∑ȧê÷Ê flÁŸcΔÈU¡¸ÁŸÃÊ ‡ÊøËÁèÊÿ¸ÁS◊㟪˝ ÿÊãÿÊ¢ ª÷ʸ •ã×. å‹ÊÁ‡Ê√ÿ¸Ä× ‡ÊÃœÊ⁄ ˘ ©Uà‚Ê ŒÈ„U Ÿ ∑ȧê÷Ë SflœÊ¢ Á¬ÃÎèÿ—.. (87) ∑È¢§÷ Ÿ ’«∏UË •Ê¢Ã ∑§Ê ¡ŸÊ. ∑È¢§÷ ◊¥ SÕÊÁ¬Ã ‚Ê◊ ‚ ¡ŸŸ¥Áº˝ÿÊ¥ ∑§Ê ©UŒ˜÷fl „ÈU•Ê. ‡ÊÃœÊ⁄UË ‚Ê◊ Ÿ ◊Í‹ ‚˝Êà ∑§Ê ŒÈ„UÊ. ∑È¢§÷Ë Ÿ SflœÊ ∑§Ê Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÷¥≈U Á∑§ÿÊ. (87) ◊Èπ ¦ ‚ŒSÿ Á‡Ê⁄ ˘ ßØ ‚ß Á¡uÔUÊ ¬ÁflòÊ◊Á‡flŸÊ‚ãà‚⁄USflÃË. øåÿ¢ Ÿ ¬ÊÿÈÁ÷¸·ªSÿ flÊ‹Ê flÁS߸ ‡Ê¬Ê „U⁄U‚Ê Ã⁄USflË.. (88) ߢº˝ Œfl ∑§ ß‚ ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ◊Èπ •ÊÒ⁄U ◊SÃ∑§ ‚àÿ ‚ ¬ÁflòÊ „Ò¥U. ‚ÃÔÔ˜ ‚ Á¡uÔUÊU •ÊÒ⁄U flÊáÊË ¬ÁflòÊ „ÒU. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ß‚ ¬ÁflòÊ ’ŸÊÿÊ „ÒU. ªÈŒÊ ◊‹Áfl‚¡¸Ÿ ‚ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊÃÊ „ÒU. flÁSà •ÊÒ⁄U ‡Ê· ¡ŸŸ¥Áº˝ÿ „Ò¥U. (88) •Á‡flèÿÊ¢ øˇÊÈ⁄U◊Îâ ª˝„UÊèÿÊ¢ ¿UʪŸ Ã¡Ê „UÁfl·Ê oÎß. ¬ˇ◊ÊÁáÊ ªÊœÍ◊Ò— ∑ȧfl‹ÒL§ÃÊÁŸ ¬‡ÊÊ Ÿ ‡ÊÈ∑˝§◊Á‚â fl‚ÊÃ.. (89) ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ª˝„UÊ¥ ∑§ M§¬ ◊¥ ŒÊ •◊⁄U ŸòÊ Á‚⁄U¡. ¿Uʪ ‚ á Á‚⁄U¡Ê. „UÁfl ‚ ŸòÊÊ¥ ◊¥ ÖÿÊÁà Á‚⁄U¡Ë. ª„Í¢U ∑§Ë ’Ê‹ •ÊÒ⁄U ¬Ò⁄UÊ¥ ‚ ‹Ê◊ Á‚⁄U¡. ŸòÊ ŒÊŸÊ¥ ¬ˇÊÊ¥ (‡ÊÈÄ‹ •ÊÒ⁄U ∑ΧcáÊ) ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (89) •ÁflŸ¸ ◊·Ê ŸÁ‚ flËÿʸÿ ¬˝ÊáÊSÿ ¬ãÕÊ ˘ •◊ÎÃÊ ª˝„UÊèÿÊ◊˜. ‚⁄USflàÿȬflÊ∑Ò§√ÿʸŸ¢ ŸSÿÊÁŸ ’Á„¸U’¸Œ⁄ÒU¡¸¡ÊŸ.. (90) ÿ¡Èfl¸Œ - 253
¬Íflʸœ¸
©UãŸË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ë ŸÊÁ‚∑§Ê ◊¥ ÷«UÔ∏ Ÿ ’‹ ‚Ë¥øÊ. ª˝„UÊ¥ ‚ •◊ÎÃ◊ÿ ¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§Ê ‚Ê¢‚ ∑§Ë ⁄UÊ„U Á◊‹Ë. ‚⁄USflÃË Ÿ ©U¬flÊ∑§ ‚ √ÿÊŸ ∑§Ê ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ. ¬Ò⁄U ‚ ’Ê„U⁄U ∑§ ‹Ê◊ ©U¬¡Ê∞. (90) ßãº˝Sÿ M§¬◊η÷Ê ’‹Êÿ ∑§áÊʸèÿÊ ¦ üÊÊòÊ◊◊Îâ ª˝„UÊèÿÊ◊˜. ÿflÊ Ÿ ’Á„¸U÷˝È¸Áfl ∑§‚⁄UÊÁáÊ ∑§∑¸§ãœÈ ¡ôÊ ◊œÈ ‚Ê⁄UÉÊ¢ ◊ÈπÊØ.. (91) ´§·èÊ Ÿ ߢÁº˝ÿÊ¥ ∑§Ê M§¬ ⁄UøÊ. ∑§ÊŸÊ¥ ◊¥ ’‹ ’…∏UÊÿÊ. üÊfláÊ ‡ÊÁÄà flÊ‹ ∑§ÊŸÊ¥ ∑§Ë ⁄UøŸÊ ∑§Ë. ¡ÊÒ ÃÕÊ ∑ȧ‡ÊÊ ‚ ÷ÊÒ¥„UÊ¥ ∑§ ’Ê‹Ê¥ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ∑§Ë. ’⁄U ‚ ◊È¢„U ◊¥ ◊ËΔUË ‹Ê⁄U ©U¬¡Ê߸. (91) •Êà◊ãŸÈ¬SÕ Ÿ flÎ∑§Sÿ ‹Ê◊ ◊Èπ ‡◊üÊÍÁáÊ Ÿ √ÿÊÉÊ˝‹Ê◊. ∑§‡ÊÊ Ÿ ‡ÊË·¸ãÿ‡Ê‚ ÁüÊÿÒ Á‡ÊπÊ Á‚ ¦ „USÿ ‹Ê◊ ÁàflÁ·Á⁄UÁãº˝ÿÊÁáÊ.. (92) Áfl⁄UÊ≈˜U ߢº˝ Œfl ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ ©U¬SÕ ÷ʪ ∑§ ÃÕÊ ŸËø ∑§ ÷ʪ ∑§ ‹Ê◊ flÎ∑˜§ ∑§ ‹Ê◊ M§¬ „ÈU∞. Áfl⁄UÊ≈˜U ߢº˝ Œfl ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ √ÿÊÉÊ˝U ∑§ ‹Ê◊ ŒÊ…∏Ë◊Í¢¿U „ÈU∞. Á‚⁄U ¬⁄U ÿ‡Ê ∑§ Á‹∞ ∑§‡Ê ©U¬¡. ‡ÊÊ÷Ê ∑§ Á‹∞ øÊ≈UË ’ŸÊ߸. •ãÿ ߢÁº˝ÿÊ¥ ∑§Ë àfløÊ ¬⁄U ’Ê‹ Á‚¢„U ∑§ ‹Ê◊ ∑§ M§¬ ◊¥ „ÈU∞. (92) •XÊãÿÊà◊Ÿ˜ Á÷·¡Ê ÃŒÁ‡flŸÊà◊ÊŸ◊XÒ— ‚◊œÊØ ‚⁄USflÃË. ßãº˝Sÿ M§¬ ¦ ‡ÊÃ◊ÊŸ◊Êÿȇøãº˝áÊ ÖÿÊÁÃ⁄U◊Îâ ŒœÊŸÊ—.. (93) ߢº˝ Œfl ∑§ •¢ªÊ¥ ∑§Ê flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ •Êà◊Ê ‚ ¡Ê«∏UÊ •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË Ÿ •Êà◊Ê ∑§Ê •¢ªÊ¥ ‚ ¡Ê«∏UÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ߢº˝ ∑§ M§¬ ∑§Ê ‚ÊÒ fl·¸ ∑§Ë •ÊÿÈ Ã∑§ •Ÿ‡fl⁄U ’ŸÊÿÊ. ø¢º˝◊Ê ∑§ ‚ÊÕ ÖÿÊÁà ∑§Ê •Ÿ‡Ufl⁄UÃÊ ŒË. (93) ‚⁄USflÃË ÿÊãÿÊ¢ ª÷¸◊ãÃ⁄UÁ‡flèÿÊ¢ ¬àŸË ‚È∑Χâ Á’÷Áø. •¬Ê ¦ ⁄U‚Ÿ flL§áÊÊ Ÿ ‚ÊêŸãº˝ ¦ ÁüÊÿÒ ¡ŸÿãŸå‚È ⁄UÊ¡Ê.. (94) ‚⁄USflÃË ŒflË •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ ÿÊÁŸ ∑§ ’Ëø ◊¥ ª÷¸ œÊ⁄UÃË „Ò¥U . fl •Á‡flŸË ∑§Ë ¬àŸË „Ò¥U. fl ߢº˝ Œfl ∑§Ê œÊ⁄UÃË „ÒU¢. ¡‹Ê¥ ∑§ ⁄U‚ ∑§ ‚ÊÕ flL§áÊ Œfl ‚Ê◊ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ¬Èc≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡‹Ê¥ ◊¥ ‚⁄USflÃË üÊË◊ÊŸ˜ ⁄UÊ¡Ê ∑§Ê ¡ŸÃË „Ò¥U. (94) á— ¬‡ÊÍŸÊ ¦ „UÁflÁ⁄UÁãº˝ÿÊflØ ¬Á⁄UdÈÃÊ ¬ÿ‚Ê ‚Ê⁄UÉÊ¢ ◊œÈ. •Á‡flèÿÊ¢ ŒÈÇœ¢ Á÷·¡Ê ‚⁄USflàÿÊ ‚ÈÃÊ‚ÈÃÊèÿÊ◊◊Î× ‚Ê◊ ˘ ßãŒÈ—.. (95) flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •ÊÒ⁄U ŒflË ‚⁄USflÃË Ÿ ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§ á ‚ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ÁŸÁ◊¸Ã ∑§Ë. ŒÍœ •ÊÒ⁄U ÉÊË ∑§Ê ◊œÈ◊ÁÄπÿÊ¥ ∑§ ◊äÊÈ ∑§ ‚ÊâÊ Á◊‹Ê ∑§⁄UU ◊œÈ⁄U ¬ÿ ÁŸÁ◊¸Ã Á∑§ÿÊ. •◊Îà ¡Ò‚Ê ‡ÊÁÄÃflh¸∑§ ‚Ê◊⁄U‚ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ. (95)
254 - ÿ¡Èfl¸Œ
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ˇÊòÊSÿ ÿÊÁŸ⁄UÁ‚ ˇÊòÊSÿ ŸÊÁ÷⁄UÁ‚. ◊Ê àflÊ Á„U ¦ ‚Ëã◊Ê ◊Ê Á„U ¦ ‚Ë—.. (1) „U flÁŒ∑§! •Ê¬ ˇÊÁòÊÿ ∑§Ê ©Uà¬ÁûÊ SÕÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ˇÊÁòÊÿ ∑§Ë ŸÊÁ÷ „Ò¥U. ÿ„U •Ê‚Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ∑§c≈U Ÿ Œ. •Ê¬ ÷Ë „U◊¥ ∑§c≈ ◊à ŒËÁ¡∞. (1) ÁŸ ·‚ÊŒ œÎÃfl˝ÃÊ flL§áÊ— ¬SàÿÊSflÊ. ‚Ê◊˝ÊÖÿÊÿ ‚È∑˝§ÃÈ—. ◊ÎàÿÊ— ¬ÊÁ„U ÁfllÊà¬ÊÁ„U.. (2) •Ê¬ fl˝ÃœÊ⁄UË, flL§áÊ, ¬Ê‹∑§ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊˝ÊÖÿ ∑§ Á‹∞ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÁfllÈØ ∑§ ©Uà¬Êà ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ◊ÎàÿÈ ‚ ’øÊß∞. (2) ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. •Á‡flŸÊ÷Ò¸·ÖÿŸ á‚ ’˝rÊÔflø¸‚ÊÿÊÁ÷Á·ÜøÊÁ◊ ‚⁄USflàÿÒ ÷Ò·ÖÿŸ flËÿʸÿÊãŸÊlÊÿÊÁ÷Á·ÜøÊ◊Ëãº˝SÿÁãº˝ÿáÊ ’‹Êÿ ÁüÊÿÒ ÿ‡Ê‚Á÷Á·ÜøÊÁ◊.. (3) „U◊ ŒflÃÊ ‚ÁflÃÊ Œfl fl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ë ’Ê„ÈU „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ë ÁøÁ∑§à‚Ê ∑§ á ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’˝rÊôÊÊŸ ∑§ flø¸Sfl „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ •Ê·Áœ ©U¬øÊ⁄U ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ããÊ fl ¬⁄UÊ∑˝§◊ ¬˝ÊÁåà „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§ ߢÁº˝ÿ ’‹ fl ÿ‡Ê „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •Á÷·∑§ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (3) ∑§ÊÁ‚ ∑§Ã◊ÊÁ‚ ∑§S◊Ò àflÊ ∑§Êÿ àflÊ. ‚ȇ‹Ê∑§ ‚È◊X‹ ‚àÿ⁄UÊ¡Ÿ˜.. (4) •Ê¬ ∑§ÊÒŸ „Ò¥U? •Ê¬ ∑§ÊÒŸ ‚ ¬˝¡Ê¬Áà „Ò¥U? •Ê¬ Á∑§‚ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U? Á∑§‚ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò? •Ê¬ ∑§Ë •ë¿U ‡‹Ê∑§ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. •Ê¬ •ë¿U ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË, ‚àÿflÊŸ fl ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. (4) Á‡Ê⁄UÊ ◊ üÊËÿ¸‡ÊÊ ◊Èπ¢ ÁàflÁ·— ∑§‡Êʇø ‡◊üÊÍÁáÊ. ⁄UÊ¡Ê ◊ ¬˝ÊáÊÊ •◊Îà ¦ ‚◊˝Ê≈˜U øˇÊÈÁfl¸⁄UÊ≈U˜ üÊÊòÊ◊˜.. (5) ÿ¡Èfl¸Œ - 255
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊Ê⁄UÊ Á‚⁄U, ◊Èπ, ∑§‡Ê fl ◊Í¢¿¥ ‡ÊÊ÷ÊÿÈÄà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊ ⁄UÊ¡Ê,•◊Îà fl ‚◊˝Ê≈˜U „UÊ¥. „U◊Ê⁄U ŸòÊ ‚’ ∑ȧ¿U ŒπŸ flÊ‹ „UÊ¥. „U◊Ê⁄U ∑§ÊŸ Áfl⁄UÊ≈˜U „UÊ¥. (5) Á¡uÔUÊ ◊ ÷º˝¢ flÊæ˜U◊„UÊ ◊ŸÊ ◊ãÿÈ— Sfl⁄UÊ«U˜ ÷Ê◊—. ◊ʌʗ ¬˝◊ÊŒÊ ˘ •X‰‹Ë⁄UXÊÁŸ Á◊òÊ¢ ◊ ‚„U—.. (6) „U◊Ê⁄UË ¡Ë÷ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fløŸ ’Ê‹. flÊáÊË ◊Á„U◊Ê ÿÈÄà „UÊ. ◊Ÿ •ãÿÊÿ ¬⁄U ∑˝§Êœ ∑§⁄U. „U◊Ê⁄UË •¢ªÈÁ‹ÿÊ¢ •Ê◊ÊŒ¬˝◊ÊŒ Œ¥. „U◊Ê⁄U Á◊òÊ „U◊Ê⁄U ‚ÊÕ ⁄U„¥U. (6) ’Ê„Í ◊ ’‹Á◊Áãº˝ÿ ¦ „USÃÊÒ ◊ ∑§◊¸ flËÿ¸◊˜. •Êà◊Ê ˇÊòÊ◊È⁄UÊ ◊◊.. (7) „U◊Ê⁄U ’Ê„ÈU •ÊÒ⁄U ߢÁº˝ÿÊ¢ ’‹ ÿÈÄà „UÊ¥. „U◊Ê⁄U ŒÊŸÊ¥ „UÊÕ ¬ÈL§·ÊÕ˸ „UÊ¥. „U◊Ê⁄UË •Êà◊Ê •ÊÒ⁄U NUŒÿ ˇÊÁòÊÿ œ◊¸ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊ¥. (7) ¬ÎCÔUË◊¸ ⁄UÊCÔ˛U◊ÈŒ⁄U◊ ¦ ‚ÊÒ ª˝Ëflʇø üÊÊáÊË. ™§UM§ •⁄UàŸË ¡ÊŸÈŸË Áfl‡ÊÊ ◊XÊÁŸ ‚fl¸Ã—.. (8) „U◊Ê⁄UË ¬ËΔU ⁄UÊc≈˛ ¡Ò‚Ë „UÊ. ¬≈U, ŒÊŸÊ¥ ∑¢§œ, ª⁄UŒŸ, ŒÊŸÊ¥ ∑ͧÀ„U, ŒÊŸÊ¥ ¡¢ÉÊÊ∞¢, ∑§◊⁄,U ÉÊÈ≈UŸ •ÊÁŒ „U◊Ê⁄U •¢ª ‚’ •Ê⁄U ‚ ¬˝¡Ê ∑§Ê ¬Ê·áÊ ∑§⁄¥U. (8) ŸÊÁèÊ◊¸ ÁøûÊ¢ ÁflôÊÊŸ¢ ¬ÊÿÈ◊¸¬ÁøÁÃ÷¸‚Ø. •ÊŸãŒŸãŒÊflÊá«UÊÒ ◊ ÷ª— ‚ÊÒ÷ÊÇÿ¢ ¬‚—. ¡YÊèÿÊ¢ ¬jKÊ¢ œ◊ʸÁS◊ ÁflÁ‡Ê ⁄UÊ¡Ê ¬˝ÁÃÁcΔU×.. (9) „U◊Ê⁄UË ŸÊÁ÷ •ÊÒ⁄U ÁøûÊ ÁflÁ‡Êc≈U ôÊÊŸ ÿÈÄà „UÊ¥. „U◊Ê⁄UË ªÈŒÊ ‚¢ÃÈÁ‹Ã „UÊ. „U◊Ê⁄U flηáÊ •ÊŸ¢Œ ÿÈÄà „UÊ¥. „U◊Ê⁄UË ÁSòÊÿÊ¥ ∑§ •¢ª ‚ÊÒ÷ÊÇÿ‡ÊÊ‹Ë „UÊ¥. ¡Ê¢ÉÊÊ¥, ¬Ò⁄UÊ¥ ‚ „U◊ œ◊ʸø⁄UáÊ ∑§⁄¥U. „U◊ ‚◊Ê¡ ◊¥ ⁄UÊ¡Ê ∑§Ë ÷Ê¢Áà ¬˝ÁÃÁcΔUà „UÊ¥. (9) ¬˝Áà ˇÊòÊ ¬˝Áà ÁÃcΔUÊÁ◊ ⁄UÊCÔ˛U ¬˝àÿ‡fl·È ¬˝Áà ÁÃcΔUÊÁ◊ ªÊ·È. ¬˝àÿX·È ¬˝Áà ÁÃcΔUÊêÿÊà◊Ÿ˜ ¬˝Áà ¬˝ÊáÊ·È ¬˝Áà ÁÃcΔUÊÁ◊ ¬ÈCÔU ¬˝Áà lÊflʬÎÁÕ√ÿÊ— ¬˝Áà ÁÃcΔUÊÁ◊ ÿôÊ.. (10) „U◊ ˇÊÁòÊÿÊ¥ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ⁄UÊc≈˛U ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ªÊÿÊ¥ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ¬˝àÿ¢ªÊ¥ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ •Êà◊Ê ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ¬˝ÊáÊÊ¥ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ¬ÈÁc≈U ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ¬ÎâflË ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ◊¥ ¬˝ÁÃcΔUÊU ¬Êà „Ò¥U. (10) òÊÿÊ ŒflÊ ˘ ∞∑§ÊŒ‡Ê òÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÊ— ‚È⁄UÊœ‚—. ’΄US¬ÁìÈ⁄UÊÁ„UÃÊ ŒflSÿ ‚ÁflÃÈ— ‚fl. ŒflÊ ŒflÒ⁄UflãÃÈ ◊Ê.. (11) 256 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@16
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÇÿÊ⁄U„U ‚ Áêȟ ÿÊŸË ÃÒ¥ÃË‚ Œfl ÃËŸ ‚◊Í„U ◊¥ ∞‡flÿ¸ ‚ ÿÈÄà ’΄US¬Áà ∑§Ê ¬È⁄UÊÁ„Uà ’ŸÊ ∑§⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ ◊¥ ⁄U„¥U. ŒflÃÊ •¬ŸË ÁŒ√ÿ ‚Ê◊âÿ¸ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (11) ¬˝Õ◊Ê ÁmÃËÿÒÁm¸ÃËÿÊSÃÎÃËÿÒSÃÎÃËÿÊ— ‚àÿŸ ‚àÿ¢ ÿôÊŸ ÿôÊÊ ÿ¡ÈÁ÷¸ÿ¸¡Í ¦ Á· ‚Ê◊Á÷— ‚Ê◊ÊãÿÎÁÇ÷´¸§ø— ¬È⁄UÊŸÈflÊÄÿÊÁ÷— ¬È⁄UÊŸÈflÊÄÿÊ ÿÊÖÿÊÁ÷ÿʸÖÿÊ fl·≈U˜∑§Ê⁄ÒUfl¸·≈U˜∑§Ê⁄UÊ ˘ •Ê„ÈUÁÃÁ÷⁄UÊ„ÈUÃÿÊ ◊ ∑§Ê◊Êãà‚◊œ¸ÿãÃÈ ÷Í— SflÊ„UÊ.. (12) ¬˝Õ◊ ŒflÃÊ ŒÍ‚⁄U ∑§ ‚ÊÕ, ŒÍ‚⁄U ÃË‚⁄U Œfl ∑§ ‚ÊÕ ÿÈÄà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚àÿ ∑§Ê ‚àÿ ∑§ ‚ÊÕ ¡Ê«∏¥U. ÿôÊ ∑§Ê ÿôÊ ‚ ¡Ê«∏¥U. ÿ¡Èfl¸Œ ∑§Ê ‚Ê◊flŒ ∑§ ‚ÊÕ ¡Ê«∏¥. ‚Ê◊flŒ ∑§Ê ´§øÊ•Ê¥ ‚ ¡Ê«∏¥U. ´§øÊ∞¢ ¬È⁄UÊŸÈflÊÄÿÊ ‚ ÿÈÄà „UÊ¥. ¬È⁄UÊŸÈflÊÄÿÊ ÿôÊ ◊¢òÊÊ¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ¥. •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ „U◊Ê⁄UË ∑§Ê◊ŸÊ∞¢ Á‚h ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (12) ‹Ê◊ÊÁŸ ¬˝ÿÁÃ◊¸◊ àflæU˜◊ ˘ •ÊŸÁÃ⁄UʪÁ×. ◊Ê ¦ ‚¢◊ ˘ ©U¬ŸÁÃfl¸SflÁSÕ ◊Ö¡Ê ◊ ˘ •ÊŸÁ×.. (13) „U◊Ê⁄U „U⁄U •¢ª ∑§ ⁄UÊ◊ ¡Êª¥. „U◊Ê⁄UË àfløÊ Ÿ⁄U◊ fl ‹È÷ÊflŸË „UÊ. „U◊Ê⁄UÊ ◊Ê¢‚ ‹øË‹Ê „UÊ. •ÁSÕÿÊ¢ ¬Í⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê •ÊœÊ⁄U ’Ÿ¥. „U◊Ê⁄UË ◊Ö¡Ê ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê Ÿ⁄U◊Ê߸ ŒŸ flÊ‹Ë „UÊ. (13) ÿgflÊ Œfl„U«Ÿ¢ ŒflÊ‚‡ø∑Χ◊Ê flÿ◊˜. •ÁÇŸ◊ʸ ÃS◊ÊŒŸ‚Ê Áfl‡flÊã◊ÈÜøàfl ¦ „U‚—.. (14) „U ŒflÊ! •Ê¬ ÁŒ√ÿªÈáÊÊ¥ ‚ •Êì˝Êà „UÊ¥. •ÁÇŸ „U◊¥ „U◊Ê⁄U mÊ⁄UÊ Á∑§∞ ª∞ ‚÷Ë ¬Ê¬Ê¥ ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ∞‚ ‚÷Ë ∑§ÊÿÊZ ‚ „U◊¥ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (14) ÿÁŒ ÁŒflÊ ÿÁŒ ŸÄÃ◊ŸÊ ¦ Á‚ ø∑Χ◊Ê flÿ◊˜. flÊÿÈ◊ʸ ÃS◊ÊŒŸ‚Ê Áfl‡flÊã◊ÈÜøàfl ¦ „U‚—.. (15) „U◊ Ÿ ÿÁŒ ÁŒŸ ◊¥ ∑§Ê߸ ¬Ê¬ Á∑§ÿÊ „UÊ, „U◊ Ÿ ÿÁŒ ⁄UÊà ◊¥ ∑§Ê߸ ¬Ê¬ Á∑§ÿÊ „UÊ ÃÊ flÊÿÈ „U◊Ê⁄U mÊ⁄UÊ Á∑§∞ ª∞ ‚÷Ë ¬Ê¬Ê¥ ‚ „U◊¥ ◊ÈÄà ∑§⁄¥U. flÊÿÈ „U◊¥ ∞‚ ‚÷Ë ¬Ê¬Ê¥ ‚ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (15) ÿÁŒ ¡Êª˝lÁŒ SflåŸ ˘ ∞ŸÊ ¦ Á‚ ø∑Χ◊Ê flÿ◊˜. ‚Íÿʸ ◊Ê ÃS◊ÊŒŸ‚Ê Áfl‡flÊã◊ÈÜøàfl ¦ „U‚—.. (16) ¡Êª˝Ã •flSÕÊ ÿÊ ‚ÊÃË „ÈU߸ •flSÕÊ ◊¥ ¡Ê ∑§Ê߸ ÷Ë ¬Ê¬ „U◊ Ÿ Á∑§ÿÊ „UÊ ÃÊ ‚Íÿ¸ „U◊¥ ©U‚ ¬Ê¬ ‚ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) ÿŒ˜ª˝Ê◊ ÿŒ⁄Uáÿ ÿà‚÷ÊÿÊ¢ ÿÁŒÁãº˝ÿ. ÿë¿ÍUº˝ ÿŒÿ¸ ÿŒŸ‡ø∑Χ◊Ê flÿ¢ ÿŒ∑§SÿÊÁœ œ◊¸ÁáÊ ÃSÿÊflÿ¡Ÿ◊Á‚.. (17) ÿ¡Èfl¸Œ - 257
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¡Ê ª˝Ê◊ ◊¥, ¡Ê ¡¢ª‹ ◊¥, ¡Ê ‚÷Ê•Ê¥ ◊¥, ¡Ê ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ „U◊ Ÿ ¬Ê¬ Á∑§∞ „Ò¥U, ¡Ê ¬Ê¬ ‡Êͺ˝Ê¥ •ÊÒ⁄U flÒ‡ÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ Á∑§∞ „Ò¥U, •Áœ∑§Ê⁄U ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ÿÊ ©U‚ ∑§Ê ÁŸflʸ„U ∑§⁄UŸ ◊¥ ¡Ê ¬Ê¬ „U◊ Ÿ Á∑§∞ „Ò¥U, ©UŸ ‚ „U◊¥ ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (17) ÿŒÊ¬Ê •ÉãÿÊ ˘ ßÁà flL§áÊÁà ‡Ê¬Ê◊„U ÃÃÊ flL§áÊ ŸÊ ◊ÈÜø. •fl÷ÎÕ ÁŸøÈê¬ÈáÊ ÁŸøL§⁄UÁ‚ ÁŸøÈê¬ÈáÊ—. •fl ŒflÒŒ¸fl∑ΧÃ◊ŸÊÿˇÿfl ◊àÿÒ¸◊¸àÿ¸∑Χâ ¬ÈL§⁄UÊ√áÊÊ Œfl Á⁄U·S¬ÊÁ„U.. (18) ¡‹ ◊¥ ¡Ê •ŸÈÁøà „Ò¥U, ©UŸ ∑§ ¬˝Áà flL§áÊ Œfl „U◊¥ ‡Êʬ ◊ÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. „U flL§áÊ! •Ê¬ ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ªÁÇÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ªÁà ◊¢Œ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬˝Áà Œfl ∑§ÊÿÊZ ◊¥ ¡Ê ¬Ê¬ Á∑§∞ „ÒU¥, •Ê¬ ©UŸ ∑§Ê ¬˝ÊÿÁ‡ûÊ ∑§⁄UÊß∞. ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ¬˝Áà ◊ÊŸflËÿ √ÿfl„UÊ⁄U ◊¥ ¡Ê ¬Ê¬ Á∑§∞ „Ò¥U. ©UŸ ‚ ’øÊß∞. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (18) ‚◊Ⱥ˝ à NUŒÿ◊åSflã× ‚¢ àflÊ Áfl‡ÊãàflÊ·œËL§Ãʬ—. ‚ÈÁ◊ÁòÊÿÊ Ÿ ˘ •Ê¬ ˘ •Ê·œÿ— ‚ãÃÈ ŒÈÁ◊¸ÁòÊÿÊSÃS◊Ò ‚ãÃÈ ÿÊS◊ÊãmÁc≈U ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊—.. (19) ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ¡‹Ê¥ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê NŒÿ ÁSÕà „ÒU. •Ê¬ •¢Ã—∑§⁄áÊ ‚ fl„UË¥ Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥U. fl„UÊ¢ ¡‹ ∑§ ◊‹ ‚ •Ê¬ ◊¥ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ ªÈáÊ ‚◊ÊÁ„Uà „UÊ ¡Êà „Ò¥U. ¡‹◊ÿ fl •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ◊ÒòÊˬÍáʸ „UÊ¥. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U ÃÕÊ Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U ©UŸ ∑§ ŒÈÁ◊¸òÊ „UÊß∞. (19) ŒÈ˝¬ŒÊÁŒfl ◊È◊ÈøÊŸ— ÁSfl㟗 SŸÊÃÊ ◊‹ÊÁŒfl. ¬Íâ ¬ÁflòÊáÊflÊÖÿ◊ʬ— ‡ÊÈãœãÃÈ ◊ÒŸ‚—.. (20) ¬ÁflòÊ Á∑§∞ „ÈU∞ ¡‹ ‚ „U◊ flÒ‚ „UË ¬Ê¬ ◊ÈÄà „UÊ ¡Ê∞¢, ¡Ò‚ Ÿ„UÊà „UË ¬‚ËŸ •ÊÒ⁄U ◊Ò‹ ‚ ◊ÈÄà „UÊ ¡Êà „Ò¥U. ¡Ò‚ ¿U‹ŸË ‚ ÉÊË ¿UÊŸŸ ¬⁄U ◊Ò‹ ⁄UÁ„Uà „UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê¬ ¿UÊŸ ‹ËÁ¡∞. (20) ©Umÿ¢ Ã◊‚S¬Á⁄U Sfl— ¬‡ÿãà ˘ ©UûÊ⁄◊˜. Œfl¢ ŒflòÊÊ ‚Íÿ¸◊ªã◊ ÖÿÊÁÃL§ûÊ◊◊˜.. (21) „U◊ •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ™§¬⁄U, Sflª¸‹Ê∑§ fl ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Œπ¥. „U◊ ÁŒ√ÿŒfl ‚Íÿ¸ ∑§Ë •Ê⁄U ¡Ê∞¢. „U◊ ©UûÊ◊ ÖÿÊÁà ¬˝Ê# ∑§⁄¥U. (21) •¬Ê •lÊãfløÊÁ⁄U· ¦ ⁄U‚Ÿ ‚◊‚Ρ◊Á„U. ¬ÿSflÊŸÇŸ ˘ •Êª◊¢ â ◊Ê ‚ ¦ ‚Ρ flø¸‚Ê ¬˝¡ÿÊ ø œŸŸ ø.. (22) „U◊ Ÿ •Ê¡ ¡‹ ◊¥ ‚¢ø⁄UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. ¡‹ ∑§ ‚¢‚ª¸ ‚ „◊ Ÿ •Ê¡ •¬Ÿ•Ê¬ ∑§Ê ¬˝ˇÊÊÁ‹Ã Á∑§ÿÊ (œÊÿÊ) „ÒU. „U •ÁÇŸ Œfl! „U◊ ¡‹ ‚ ¬ÁflòÊ „UÊ ∑§⁄U •Ê¬ ∑§ ¬Ê‚ •Ê∞ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ flø¸Sfl, ‚¢ÃÊŸ •ÊÒ⁄U œŸ ∑§Ê ‚ΡŸ ∑§ËÁ¡∞. (22) 258 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∞œÊSÿÁœ·Ë◊Á„U ‚Á◊ŒÁ‚ áÊÁ‚ Ã¡Ê ◊Áÿ œÁ„U. ‚◊ÊflflÁø ¬ÎÁÕflË ‚◊È·Ê— ‚◊È ‚Íÿ¸—. ‚◊È Áfl‡flÁ◊Œ¢ ¡ªÃ˜. flÒ‡flÊŸ⁄UÖÿÊÁÃ÷͸ÿÊ‚¢ Áfl÷ÍŸ˜ ∑§Ê◊ÊŸ˜ √ÿ‡ŸflÒ ÷Í— SflÊ„UÊ.. (23) „U •ÁÇŸ! ÿ„U ‚Á◊œÊ •Ê¬ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UÃË „ÒU. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ áÊ◊ÿ „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ á œÊÁ⁄U∞. ¬ÎâflË „U◊¥ ©UûÊ◊ ‚Èπ Œ. ‚Íÿ¸ ‚Èπ Œ¥. ‚Ê⁄U ¡ªÃ˜ ∑§Ê ‚Èπ Œ¥. „U◊ flÒ‡flÊŸ⁄U ∑§Ë ÖÿÊÁà „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÁflÁflœ ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ∑§Ë ¬ÍÌà ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (23) •èÿÊ ŒœÊÁ◊ ‚Á◊œ◊ÇŸ fl˝Ã¬Ã àflÁÿ. fl˝Ã¢ ø üÊhÊ¢ øʬÒ◊Ë㜠àflÊ ŒËÁˇÊÃÊ •„U◊˜.. (24) „ •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚Á◊œÊ œÊ⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ fl˝Ã ¬Áà „Ò¥U. „U◊ ŒËÁˇÊà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ ¬˝Áà fl˝Ã •ÊÒ⁄U üÊhÊ ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (24) ÿòÊ ’˝rÊÔ ø ˇÊòÊ¢ ø ‚êÿÜøÊÒ ø⁄U× ‚„U. ðÀ‹Ê∑¢§ ¬Èáÿ¢ ¬˝ôÊ·¢ ÿòÊ ŒflÊ— ‚„UÊÁÇŸŸÊ.. (25) ¡„UÊ¢ ’˝ÊrÊáÊ •ÊÒ⁄U ˇÊÁòÊÿ¡Ÿ ‚ÊÕ‚ÊÕ Áflø⁄UáÊ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ÁŸflʸ„U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡„UÊ¢ ŒflªáÊ •ÁÇŸ Œfl ∑§ ‚ÊÕ ⁄U„Uà „Ò¥U, „U◊ ©U‚ ¬Èáÿ ôÊÊŸ◊ÿ ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Ê∞¢. (25) ÿòÊãº˝‡ø flÊÿȇø ‚êÿÜøÊÒ ø⁄U× ‚„U. ðÀ‹Ê∑¢§ ¬Èáÿ¢ ¬˝ôÊ·¢ ÿòÊ ‚ÁŒŸ¸ ÁfllÃ.. (26) ¡„UÊ¢ ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U flÊÿÈ ‚ÊÕ‚ÊÕ Áflø⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, „U◊ ©U‚ ¬ÁflòÊ •ÊÒ⁄U ôÊÊŸ◊ÿ ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝Ê# ∑§⁄¥U. (26) • ¦ ‡ÊÈŸÊ Ã • ¦ ‡ÊÈ— ¬ÎëÿÃÊ¢ ¬L§·Ê ¬L§—. ªãœSà ‚Ê◊◊flÃÈ ◊ŒÊÿ ⁄U‚Ê •ëÿÈ×.. (27) •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ⁄U‚ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹. •Ê¬ ∑§ ∑§ΔUÊ⁄ U •¢ª ‚Ê◊ ∑§ •¢ªÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹.¥ •Ê¬ ∑§Ë ª¢œ ‚Ê◊ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹. ¤Ê⁄UÃÊ „U• È Ê ⁄U‚ „U◊¥ •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄U. (27) Á‚ÜøÁãà ¬Á⁄U Á·ÜøãàÿÈÁà‚ÜøÁãà ¬ÈŸÁãà ø. ‚È⁄UÊÿÒ ’÷˝˜flÒ ◊Œ Á∑§ãàflÊ flŒÁà Á∑§ãàfl—.. (28) •Ê·Áœ ∑§Ê ⁄U‚ ߢº˝ ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UÃÊ fl ¬ÁflòÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. ß‚ ⁄U‚ ∑§ Á‹∞ “•ÊÒ⁄U ÄÿÊ •ÊÒ⁄U ÄÿÊ” ’Ê‹Ê ¡ÊÃÊ „ÒU. (28) œÊŸÊflãâ ∑§⁄UÁê÷áÊ◊¬Í¬flãÃ◊ÈÁÄÕŸ◊˜. ßãº˝ ¬˝Êáȸ·Sfl Ÿ—.. (29) „U ߢº˝ Œfl! „U◊ SÃÈÁà ∑§ ‚ÊÕ •Ê¬ ∑§Ê œÊŸ, œÊŸ◊ÿ flSÃÈ∞¢, Œ„UË, ◊Ê‹¬Í∞ ÿ¡Èfl¸Œ - 259
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•ÊÁŒ ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ ߟ ‚’ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (29) ’΄UÁŒãº˝Êÿ ªÊÿà ◊L§ÃÊ flÎòÊ„UãÃ◊◊˜. ÿŸ ÖÿÊÁÃ⁄U¡ŸÿãŸÎÃÊflÎœÊ Œfl¢ ŒflÊÿ ¡ÊªÎÁfl.. (30) „U ◊L§Œ˜ªáÊ! ߢº˝ Œfl flÎòÊ„¢UÃÊ „ÒU. •Ê¬ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ’΄Uà‚Ê◊ ªÊß∞, Á¡ã„UÊ¥Ÿ ÖÿÊÁà ©Uà¬ããÊ ∑§Ë, •ããÊ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë, ŒflÊ¥ ∑§Ê ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¡Êª˝Ã Á∑§ÿÊ. (30) •äÿflʸ •Áº˝Á÷— ‚Èà ¦ ‚Ê◊¢ ¬ÁflòÊ ˘ •ÊŸÿ. ¬ÈŸË„UËãº˝Êÿ ¬ÊÃfl.. (31) „U •äflÿȸ! •Ê¬ ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈U ∑§⁄U ÁŸøÊ«∏U ª∞ ¬ÁflòÊ ‚Ê◊ ∑§Ê •¬Ÿ ¬ÈòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ‹Êß∞. ߢº˝ Œfl ∑§ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ß‚ ¬ÁflòÊ ∑§ËÁ¡∞. (31) ÿÊ ÷ÍÃÊŸÊ◊Áœ¬ÁÃÿ¸ÁS◊°À‹Ê∑§Ê ˘ •Áœ ÁüÊÃÊ—. ÿ ˘ ߸‡Ê ◊„UÃÊ ◊„UÊ°Sß ªÎ±áÊÊÁ◊ àflÊ◊„¢U ◊Áÿ ªÎ±áÊÊÁ◊ àflÊ◊„U◊˜.. (32) ¡Ê ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ •Áœ¬Áà „Ò¥U, ‚’ ‹Ê∑§ Á¡‚ ∑§ •ÊÁüÊà „ÒU¢, ¡Ê ߸‡fl⁄U „Ò¥U, ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U, „U◊ ©U‚ ◊„UÊŸ˜ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (32) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÁ‡flèÿÊ¢ àflÊ ‚⁄USflàÿÒ àflãº˝Êÿ àflÊ ‚ÈòÊÊêáÊ ˘ ∞· à ÿÊÁŸ⁄UÁ‡flèÿÊ¢ àflÊ ‚⁄USflàÿÒ àflãº˝Êÿ àflÊ ‚ÈòÊÊêáÊ.. (33) „U •Ê·Áœ M§¬ ⁄U‚! •Ê¬ ∑§Ê ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ‚⁄USflÃË ∑§ ©UûÊ◊ ‚¢⁄UˇÊáÊ „UÃÈ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ߢº˝ ∑§ ©UûÊ◊ ‚¢⁄UˇÊáÊ „UÃÈ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ„U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄,U ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U, ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄UÊ ‚¢⁄UˇÊáÊ „UÊ. (33) ¬˝ÊáÊ¬Ê ◊ •¬ÊŸ¬Ê‡øˇÊÈc¬Ê— üÊÊòʬʇø ◊. flÊøÊ ◊ Áfl‡fl÷·¡Ê ◊Ÿ‚ÊÁ‚ Áfl‹Êÿ∑§—.. (34) „U •Ê·œ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝ÊáÊ, •¬ÊŸ, ŸòÊ, ∑§áʸ •ÊÒ⁄U flÊáÊË ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U, •Ê¬ ‚’ ∑§ flÒl „Ò¥U. •Ê¬ ◊Ÿ ∑§Ê Áfl‹ÿ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (34) •Á‡flŸ∑ΧÃSÿ à ‚⁄USflÁÃ∑ΧÃSÿãº˝áÊ ‚ÈòÊÊêáÊÊ ∑ΧÃSÿ. ©U¬„ÍUà ˘ ©U¬„ÍUÃSÿ ÷ˇÊÿÊÁ◊.. (35) „U •Ê·œ! •Á‡flŸË ŒflÊ¥ mÊ⁄UÊ ‚¢S∑§Ê⁄U Á∑§∞ ª∞, ‚⁄USflÃË ŒflË mÊ⁄UÊ ¬Èc≈ Á∑§∞ ª∞, ߢº˝ Œfl mÊ⁄UÊ ©Uà¬ãŸ Á∑§∞ ª∞, •Ê¬ ∑§Ê „U◊ •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê „U◊ ‚flŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (35) 260 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚Á◊h ˘ ßãº˝ ˘ ©U·‚Ê◊ŸË∑§ ¬È⁄UÊL§øÊ ¬Ífl¸∑ΧmÊflΜʟ—. ÁòÊÁ÷Œ¸flÒÁSòÊ ¦ ‡ÊÃÊ flÖÊ˝’Ê„ÈU¡¸ÉÊÊŸ flÎòÊ¢ Áfl ŒÈ⁄UÊ flflÊ⁄U.. (36) ߢº˝ Œfl ‚Á◊œÊflÊŸ „Ò¥U. ‚’ ‚ ¬„U‹ ©U·Ê ∑§Ê‹ ◊¥ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬„U‹ Á∑§∞ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÃËŸ ∑§ Áêȟ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ •Êª ’…∏Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl Ÿ flÎòÊ ∑§Ê ◊Ê⁄ÊU •ÊÒ⁄U mÊ⁄U πÊ‹. (36) Ÿ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚— ¬˝Áà ‡ÊÍ⁄UÊ Á◊◊ÊŸSß͟¬Êà¬˝Áà ÿôÊSÿ œÊ◊. ªÊÁ÷fl¸¬ÊflÊŸ˜ ◊œÈŸÊ ‚◊Ü¡Ÿ˜ Á„U⁄UáÿÒ‡øãº˝Ë ÿ¡Áà ¬˝øÃÊ—.. (37) •Ê¬ ‚’ ‚ ¬˝‡Ê¢Á‚Ã, ‚ÈπflË⁄U, ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ ⁄UˇÊ∑§ fl ÿôÊ ∑§ œÊ◊ „Ò¥U. ªÊÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍœ ¬ËŸ flÊ‹ fl ◊ËΔU ÉÊË ‚ ¬Èc≈U „Ò¥U. ‚ÈŸ„U⁄UË ∑§Ê¢Áà flÊ‹ ∑§Ê ©UûÊ◊ ÁøûÊ flÊ‹ ÿ¡◊ÊŸ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (37) ߸Á«UÃÊ ŒflÒ„¸UÁ⁄UflÊ° 2 •Á÷Ác≈U⁄UÊ¡ÈuÔUÊŸÊ „UÁfl·Ê ‡Êœ¸◊ÊŸ—. ¬È⁄UãŒ⁄UÊ ªÊòÊÁ÷mÖÊ˝’Ê„ÈU⁄UÊ ÿÊÃÈ ÿôÊ◊Ȭ ŸÊ ¡È·ÊáÊ—.. (38) ߢº˝ ŒflÊ¥ ‚ ©U¬ÊÁ‚Ã, ªÁÃflÊŸ, •÷Ëc≈UU, ÿôÊ ◊¥ ¬Í¡ŸËÿ, „UÁfl „UÃÈ •Ê◊¢ÁòÊÃ, ‡ÊòÊÈŸª⁄UË ÷Œ∑§, ªÊŸÊ‡Ê∑§ ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ fl flÖÊ˝’Ê„ÈU „ÒU. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄UU ÿôÊ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (38) ¡È·ÊáÊÊ ’Á„¸U„¸UÁ⁄UflÊŸ˜ Ÿ ˘ ßãº˝— ¬˝ÊøËŸ ¦ ‚ˌØ ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ©UL§¬˝ÕÊ— ¬˝Õ◊ÊŸ ¦ SÿÊŸ◊ÊÁŒàÿÒ⁄UÄâ fl‚ÈÁ÷— ‚¡Ê·Ê—.. (39) ߢº˝ Œfl áÊ◊ÿ, flÒ÷flflÊŸ, ‚’ ∑§ •÷ËCÔU fl ¬˝ÊøËŸ „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎÔâflË ∑§Ë ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ •ÊÁŒàÿÊ¥ •ÊÒ⁄U fl‚È•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. Áfl‡ÊÊ‹ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. (39) ßãº˝¢ ŒÈ⁄U— ∑§flcÿÊ œÊfl◊ÊŸÊ flηÊáÊ¢ ÿãÃÈ ¡Ÿÿ— ‚ȬàŸË—. mÊ⁄UÊ ŒflË⁄UÁ÷ÃÊ Áfl üÊÿãÃÊ ¦ ‚ÈflË⁄UÊ flË⁄¢U ¬˝Õ◊ÊŸÊ ◊„UÊÁ÷—.. (40) ¡Ò‚ ÁflŒÈ·Ë •ÊÒ⁄U üÊcΔUU ¬àŸË ¬Áà ∑§ ‚ÊÕ ‡ÊÊ÷Ê ¬ÊÃË „ÒU, flÒ‚ „UË ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ‡ÊÊÁèÊà flË⁄UÊ¥ ‚ ÿÈÄà Áfl‡ÊÊ‹ mÊ⁄UÊ¥ flÊ‹ ¬˝ÅÿÊà ߢº˝ Œfl ÁflÁœÁflœÊŸ ‚ ¬Íáʸ ÿôÊ ‡ÊÊ‹Ê ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . (40) ©U·Ê‚ÊŸÄÃÊ ’΄UÃË ’΄Uãâ ¬ÿSflÃË ‚ÈŒÈÉÊ ‡ÊÍ⁄UÁ◊ãº˝◊˜. ÃãÃÈ¢ Ãâ ¬‡Ê‚Ê ‚¢flÿãÃË ŒflÊŸÊ¢ Œfl¢ ÿ¡Ã— ‚ÈL§Ä◊.. (41) ©U·Ê ŒflË Áfl‡ÊÊ‹ ÁŒŸ •ÊÒ⁄U ⁄UÊà ∑§Ê ø◊∑§ÊÃË „Ò¥U. fl ◊„UÊŸ˜U fl ⁄U‚Ë‹Ë „Ò¥U. ŒflÊ¥ ∑§ Œfl ߢº˝ Œfl ∑§Ê ÷Ë ŒËÁ#◊ÊŸ ’ŸÊÃË „Ò¥U. (41) ŒÒ√ÿÊ Á◊◊ÊŸÊ ◊ŸÈ·— ¬ÈL§òÊÊ „UÊÃÊ⁄UÊÁflãº˝¢ ¬˝Õ◊Ê ‚ÈflÊøÊ. ◊Íœ¸Ÿ˜ ÿôÊSÿ ◊œÈŸÊ ŒœÊŸÊ ¬˝ÊøËŸ¢ ÖÿÊÁĸUÁfl·Ê flÎœÊ×.. (42) ÿ¡Èfl¸Œ - 261
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÁŒ√ÿ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ÿ¡◊ÊŸ üÊDÔU ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ ÿôÊ ∑§ ◊Íœ¸ãÿ Œfl ߢº˝ Œfl ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „UÊÃÊ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ÁSÕà „Ò¥U. fl „UÁfl ‚ •ÁÇŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ÖÿÊÁÃ◊ÊŸ „Ò¥U. (42) ÁÃdÊ ŒflË„¸UÁfl·Ê flœ¸◊ÊŸÊ ˘ ßãº˝¢ ¡È·ÊáÊÊ ¡ŸÿÊ Ÿ ¬àŸË—. •Áë¿U㟢 ÃãÃÈ¢ ¬ÿ‚Ê ‚⁄USflÃË«UÊ ŒflË ÷Ê⁄UÃË Áfl‡flÃÍÁûʸ—.. (43) ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢ „UÁfl ‚ ’…∏UÊà ⁄UË ¬ÊÃË „ÒU¥ . fl ¬àŸË ∑§ ‚◊ÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ¬Ê‚ÃË „ÒU¥ . fl „U◊Ê⁄U âÃÈ ∑§Ê Ÿ ÃÊ«U¥∏ . ‚⁄USflÃË ŒflË, ÷Ê⁄UÃË ŒflË •ÊÒ⁄U ß«∏UÊ ŒflË ŒÍœ •ÊÒ⁄U „UÁfl ‚ „U◊Ê⁄UÊ ÿôÊ ¬Íáʸ ∑§⁄U¥ . ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§Ê ÁflÉUŸÊ¥ ‚ ’øÊ∞¢. (43) àflCÔUÊ Œœë¿ÈUc◊Á◊ãº˝Êÿ flÎcáʬÊ∑§ÊÁøc≈ÈUÿ¸‡Ê‚ ¬ÈM§ÁáÊ. flÎ·Ê ÿ¡ãflηáÊ¢ ÷ÍÁ⁄U⁄UÃÊ ◊Íœ¸Ÿ˜ ÿôÊSÿ ‚◊ŸÄÃÈ ŒflÊŸ˜.. (44) àflc≈UÊ Œfl ߢº˝ Œfl ∑§Ê ’‹ •ÊÒ⁄U ¬Á⁄U¬Äfl œŸ ∑§Ê œÊ⁄¥U. ÿ‡Ê ‚ ¬Í¡ ¡Ê∞¢. ÿôÊ ◊¥ fl·Ê¸ ∑§⁄¥U •ÊÒ⁄U ‡ÊÁÄà Œ¢. Œfl ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ¥. ÿôÊ ∑§ ◊Íœ¸ãÿ ŒflÊ¥ ∑§Ê ÃÎåà ∑§⁄¥U. (44) flŸS¬ÁÃ⁄Ufl‚ÎCÔUÊ Ÿ ¬Ê‡ÊÒSà◊ãÿÊ ‚◊Ü¡Ü¿UÁ◊ÃÊ Ÿ Œfl—. ßãº˝Sÿ „U√ÿÒ¡¸ΔU⁄¢U ¬ÎáÊÊŸ— SflŒÊÁà ÿôÊ¢ ◊œÈŸÊ ÉÊÎß.. (45) ߢº˝ Œfl „UÁfl ‚ ¡ΔU⁄UÊÁÇŸ ∑§Ê ¬Íáʸ ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§Ê ◊ËΔU ÉÊË ‚ SflÊÁŒc≈U ’ŸÊ∞¢. ŒflªáÊ ’¢œŸ„UËŸ „Ò¥U. •¬ŸË ‚Ê◊âÿ¸ ‚ ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. flŸS¬Áà ∑§ ŒflÃÊ „Ò¥U. (45) SÃÊ∑§ÊŸÊÁ◊ãŒÈ¢ ¬˝Áà ‡ÊÍ⁄U ˘ ßãº˝Ê flηÊÿ◊ÊáÊÊ flη÷SÃÈ⁄UÊ·Ê≈U˜. ÉÊÎì˝È·Ê ◊Ÿ‚Ê ◊ÊŒ◊ÊŸÊ— SflÊ„UÊ ŒflÊ ˘ •◊ÎÃÊ ◊ÊŒÿãÃÊ◊˜.. (46) ߢº˝ Œfl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ¬˝Áà ª¡¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ‡ÊÍ⁄UflË⁄U, ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ •ÊÒ⁄U ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁà ‚ ◊Ÿ ‚ ¬˝‚㟠„UÊà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „UÃÈ SflÊ„UÊ. ߢº˝ Œfl •◊Îà ‚ ‚÷Ë ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄¥U. (46) •Ê ÿÊÁàflãº˝Êfl‚ ˘ ©U¬ Ÿ ˘ ß„U SÃÈ× ‚œ◊ÊŒSÃÈ ‡ÊÍ⁄U—. flÊflΜʟSÃÁfl·Ëÿ¸Sÿ ¬Ífl˸lÊÒ¸Ÿ¸ ˇÊòÊ◊Á÷÷ÍÁà ¬ÈcÿÊØ.. (47) ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ •Ê∞¢. fl„U ÿ„UÊ¢ ’ÒΔ¥U. ©UŸ ∑§Ë ÿ„UÊ¢ SÃÈÁà ∑§Ë ¡Ê∞. ©UŸ ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ‚ ’«∏U’«∏U ∑§ÊÿÊZ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „ÈU߸. fl „U◊Ê⁄U ’‹ ∑§Ê Sflª¸‹Ê∑§ ¡Ò‚Ê ÁflSÃÎà fl ¬Èc≈U ∑§⁄¥U. (47) •Ê Ÿ ˘ ßãº˝Ê ŒÍ⁄UÊŒÊ Ÿ ˘ •Ê‚ÊŒÁ÷ÁCÔU∑ΧŒfl‚ ÿÊ‚ŒÈª˝—. •ÊÁ¡DÔUÁ÷ŸÎ¸¬ÁÃfl¸ÖÊ˝’Ê„ÈU— ‚X ‚◊à‚È ÃÈfl¸ÁáÊ— ¬ÎÃãÿÍŸ˜.. (48) 262 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ߢº˝ Œfl ŒÍ⁄U ÿÊ ¬Ê‚ ¡„UÊ¢ ∑§„UË¥ ÷Ë „UÊ¥ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl ©Uª˝, ’‹flÊŸ, •÷Ëc≈U¬Í⁄U∑§, •ÊÁ¡cΔU fl ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. fl flÖÊ˝ ¡Ò‚Ë ◊¡’Íà ÷È¡Ê flÊ‹ „Ò¥U. ÿÈhÊ¥ ◊¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ◊Œ¸Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (48) •Ê Ÿ ˘ ßãº˝Ê „UÁ⁄UÁ÷ÿʸàflë¿UÊflʸøËŸÊfl‚ ⁄UÊœ‚ ø. ÁÃcΔUÊÁà flÖÊ˝Ë ◊ÉÊflÊ Áfl⁄Uå‡ÊË◊¢ ÿôÊ◊ŸÈ ŸÊ flÊ¡‚ÊÃÊÒ.. (49) ߢº˝ Œfl •¬Ÿ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊÕ¸ „U◊¥ ‚¢¬ÁûÊ ŒŸ ∑§ Á‹∞ ¬œÊ⁄¥U. fl flÖÊ˝ flÊ‹ •ÊÒ⁄U œŸflÊŸ „Ò¥U. fl ÿôʇÊÊ‹Ê ◊¥ ¬œÊ⁄¥U •ÊÒ⁄U •¬ŸË •ããÊ◊ÿË „UÁfl SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. (49) òÊÊÃÊ⁄UÁ◊ãº˝◊ÁflÃÊ⁄UÁ◊ãº˝ ¦ „Ufl „Ufl ‚È„Ufl ¦ ‡ÊÍ⁄UÁ◊ãº˝◊˜. uÔUÿÊÁ◊ ‡Ê∑˝¢§ ¬ÈL§„ÍUÃÁ◊ãº˝ ¦ SflÁSà ŸÊ ◊ÉÊflÊ œÊÁàflãº˝—.. (50) ߢº˝ Œfl òÊÊÃÊ „Ò¥U. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U ©UŸ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝àÿ∑§ „UflŸ ◊¥ ©UŸ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‡ÊÍ⁄UflË⁄U ∑§Ê •ë¿UË Ã⁄U„U •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË, œŸflÊŸ •ÊÒ⁄U œÊ⁄UáʇÊË‹ „Ò¥U. (50) ßãº˝— ‚ÈòÊÊ◊Ê SflflÊ° 2 •flÊÁ÷— ‚È◊ΫUË∑§Ê ÷flÃÈ Áfl‡flflŒÊ—. ’ÊœÃÊ¢ m·Ê •÷ÿ¢ ∑ΧáÊÊÃÈ ‚ÈflËÿ¸Sÿ ¬Ãÿ— SÿÊ◊.. (51) ߢº˝ Œfl •ë¿U ⁄UˇÊ∑§, ’„ÈUà ‚„UÊÿ∑§Ê¥ flÊ‹, ‚fl¸ flÒ÷fl ‚¢¬ãŸ fl ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. fl „U◊ ‚ m· ⁄UπŸ flÊ‹ ∑§Ê ’ÊÁœÃ ∑§⁄¥U •ÊÒ⁄U „U◊¥ ÁŸ÷¸ÿ ’ŸÊ∞¢. ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •ë¿U ¬⁄UÊ∑˝§◊ ∑§ ¬Ê‹∑§ „UÊ ¡Ê∞¢. (51) ÃSÿ flÿ ¦ ‚È◊ÃÊÒ ÿÁôÊÿSÿÊÁ¬ ÷º˝ ‚ÊÒ◊Ÿ‚ SÿÊ◊. ‚ ‚ÈòÊÊ◊Ê SflflÊ° 2 ßãº˝Ê •S◊ •Ê⁄UÊÁëøŒ˜ m·— ‚ŸÈÃÿȸÿÊÃÈ.. (52) ߢº˝ Œfl ∑§ ¬˝Áà „U◊ ‚È◊ÁìÍfl¸∑§ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹, ÷º˝ fl •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. fl •ë¿U ⁄UˇÊ∑§ fl ‚„UÊÿ∑§Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. fl ŒÍ⁄U „UÊà „ÈU∞ ÷Ë „U◊Ê⁄UÊ ŒÈ÷ʸÇÿ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ‡ÊËÉÊ˝ „UË „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ •Ê∞¢. (52) •Ê ◊ãº˝ÒÁ⁄Uãº˝ „UÁ⁄UÁ÷ÿʸÁ„U ◊ÿÍ⁄U⁄UÊ◊Á÷—. ◊Ê àflÊ ∑§ ÁøÁ㟠ÿ◊Ÿ˜ Áfl¢ Ÿ ¬ÊÁ‡ÊŸÊÁà œãflfl ÃÊ° 2 ßÁ„U.. (53) ߢº˝ Œfl ◊Ê⁄U ∑§ ¬¢π ¡Ò‚ ⁄UÊ◊Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. •¬Ÿ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ‚ ÿ„UÊ¢ •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ∑§Ê߸ ÷Ë ¡Ê‹ »Ò§‹Ê ∑§⁄U •Ê¬ ∑§Ê ¬Ê‡Ê ◊¥ ’Ê¢œ Ÿ ‚∑§. •Ê¬ ’«∏U œŸÈœÊ¸⁄UË ∑§Ë Ã⁄U„U ÿ„UÊ¢ ¬œÊÁ⁄U∞. (53) ∞flÁŒãº˝¢ flηáÊ¢ flÖÊ˝’Ê„È¢U flÁ‚cΔUÊ‚Ê •èÿø¸ãàÿ∑Ò¸§—. ‚ Ÿ SÃÈÃÊ flË⁄UflhÊÃÈ ªÊ◊lÍÿ¢ ¬Êà SflÁSÃÁ÷— ‚ŒÊ Ÿ—.. (54) ÿ¡Èfl¸Œ - 263
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ’‹flÊŸ fl flÖÊ˝ ¡Ò‚Ë ÷È¡Ê•Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. flÁ‚cΔU ´§Á· ∑§ fl¢‡Ê¡ ◊¢òÊÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë •èÿÕ¸ŸÊ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. fl ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U flË⁄UÊ¥ fl ªÊœŸ ∑§Ê •¬Ÿ ‚¢⁄UˇÊáÊ ◊¥ ‹¥. fl ‚ŒÊ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄¥U. (54) ‚Á◊hÊ •ÁÇŸ⁄UÁ‡flŸÊ ÃåÃÊ ÉÊ◊ʸ Áfl⁄UÊ≈˜U ‚È×. ŒÈ„U œŸÈ— ‚⁄USflÃË ‚Ê◊ ¦ ‡ÊÈ∑˝§Á◊„UÁãº˝ÿ◊˜.. (55) •ÁÇŸ ∑§Ê ‚Á◊œÊ ‚ ¬˝ÖflÁ‹Ã Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Á‡flŸË Œfl ∑§Ê ŒËåÿ◊ÊŸ ’ŸÊÿÊ ªÿÊ „ÒU. ‚⁄USflÃË ŒflË ªÊÿ ŒÈ„UŸ ∑§Ë Ã⁄U„U ©UŸ ∑§ Á‹∞ ø◊∑§Ë‹ ◊„UÊŸ˜ ‚Ê◊ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. (55) ÃŸÍ¬Ê Á÷·¡Ê ‚ÈÃÁ‡flŸÊ÷Ê ‚⁄USflÃË. ◊äflÊ ⁄U¡Ê ¦ ‚ËÁãº˝ÿÁ◊ãº˝Êÿ ¬ÁÕÁ÷fl¸„UÊŸ˜.. (56) ŒÊŸÊ¥ flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U „U◊Ê⁄U ß ∑§ ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. ŒflË ‚⁄USflÃË ◊œÈ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê •Ÿ∑§ ◊ʪÊZ ‚ fl„UŸ ∑§⁄UÃË „ÈU߸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ‹ ¡ÊÃË „Ò¥U. (56) ßãº˝ÊÿãŒÈ ¦ ‚⁄USflÃË Ÿ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚Ÿ ŸÇŸ„ÈU◊˜. •œÊÃÊ◊Á‡flŸÊ ◊œÈ ÷·¡¢ Á÷·¡Ê ‚ÈÃ.. (57) ÿ¡◊ÊŸ Ÿ ‚Ê◊⁄U‚ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ. ŒflË ‚⁄USflÃË Ÿ ©U‚ ∑§Ê ◊„UÊŸ˜ •Ê·Áœ ‚ ÿÈÄà ’ŸÊÿÊ. flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ •Ê·œ SflM§¬ ©U‚ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. (57) •Ê¡ÈuÔUÊŸÊ ‚⁄USflÃËãº˝ÊÿÁãº˝ÿÊÁáÊ flËÿ¸◊˜. - ß«UÊÁ÷⁄UÁ‡flŸÊÁfl· ¦ ‚◊Í¡¸ ¦ ‚ ¦ ⁄UÁÿ¢ ŒœÈ—.. (58) ‚⁄USflÃË ŒflË ß¢º˝ Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ¬⁄UÊ∑˝§◊ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ. ß«∏UÊ ŒflË •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ™§¡Ê¸ •ÊÒ⁄U œŸ œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. (58) •Á‡flŸÊ Ÿ◊Èø— ‚Èà ¦ ‚Ê◊ ¦ ‡ÊÈ∑˝¢§ ¬Á⁄U‚È˝ÃÊ. ‚⁄USflÃË Ã◊Ê ÷⁄UŒ˜’Á„¸U·ãº˝Êÿ ¬ÊÃfl.. (59) •Á‡flŸË ŒflÊ¥ Ÿ ÁŸøÊ«∏U ª∞ ø◊∑§Ë‹ ‚Ê◊ ∑§Ê •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹ÊÿÊ. ‚⁄USflÃË Ÿ Ÿ◊ÈøË ⁄UÊˇÊ‚ ‚ ‚Ê◊ ∑§Ê „U⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ߢº˝ Œfl ∑§ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ. (59) ∑§flcÿÊ Ÿ √ÿøSflÃË⁄UÁ‡flèÿÊ¢ Ÿ ŒÈ⁄UÊ ÁŒ‡Ê—. ßãº˝Ê Ÿ ⁄UÊŒ‚Ë ©U÷ ŒÈ„U ∑§Ê◊Êãà‚⁄USflÃË.. (60) •Á‡flŸË, ‚⁄USflÃË •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl Ÿ Áfl⁄UÊ≈˜U ÿôÊ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ ÃÕÊ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê ŒÊ„UŸ Á∑§ÿÊ. ‚Ê⁄UË ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ‚ •¬ŸË ∑§Ê◊ŸÊ•Ê¥ ∑§Ê ŒÊ„UŸ Á∑§ÿÊ. (60) 264 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©U·Ê‚ÊŸÄÃ◊Á‡flŸÊ ÁŒflãº˝ ¦ ‚ÊÿÁ◊Áãº˝ÿÒ—. ‚Ü¡ÊŸÊŸ ‚Ȭ‡Ê‚Ê ‚◊Ü¡Êà ‚⁄USflàÿÊ.. (61) ©U·Ê, ⁄UÊÁòÊ, ÁŒŸ •ÊÒ⁄U ‚Êÿ¢∑§Ê‹ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ŒflË ‚⁄USflÃË ∑§ ‚ÊÕ Áfl‡Ê· ’‹ ‚ ÿÈÄà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (61) ¬Êâ ŸÊ •Á‡flŸÊ ÁŒflÊ ¬ÊÁ„U ŸÄà ¦ ‚⁄USflÁÃ. ŒÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ Á÷·¡Ê ¬ÊÃÁ◊ãº˝ ¦ ‚øÊ ‚ÈÃ.. (62) „U •Á‡flŸË Œfl! •Ê¬ ÁŒŸ ◊¥ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. „U ‚⁄USflÃË ŒflË! •Ê¬ ⁄UÊÁòÊ ◊¥ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ÁŒ√ÿ „UÊÃÊ „Ò¥U. fl ‚øà ‚Ê◊ ∑§ mÊ⁄UÊ ß¢º˝ Œfl ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. (62) ÁÃdSòÊœÊ ‚⁄USflàÿÁ‡flŸÊ ÷Ê⁄UÃË«UÊ. ÃËfl˝¢ ¬Á⁄U‚È˝ÃÊ ‚Ê◊Á◊ãº˝Êÿ ‚È·ÈflÈ◊¸Œ◊˜.. (63) ÃËŸ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ •Á‡flŸË ‚⁄USflÃË, ÷Ê⁄UÃË •ÊÒ⁄U ß«U∏Ê ŒflË Ÿ ÃËfl˝ÃÊ ‚ ‚Ê◊ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ øÈ•ÊÿÊ „ÒU. ÿ„U ‚Ê◊ •Ê·Áœ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. (63) •Á‡flŸÊ ÷·¡¢ ◊œÈ ÷·¡¢ Ÿ— ‚⁄USflÃË. ßãº˝ àflCÔUÊ ÿ‡Ê— ÁüÊÿ ¦ M§¬ ¦ M§¬◊œÈ— ‚ÈÃ.. (64) •Á‡flŸË Œfl fl ‚⁄USflÃË ŒflË ◊ËΔUË •Ê·Áœ „U◊¥ Œ¥. àflc≈UÊ Œfl Ÿ ߢº˝ Œfl „UÃÈ ÿ‡Ê, ‡ÊÊ÷Ê, M§¬, ◊œÈ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ „Ò. (64) ´§ÃÈÕãº˝Ê flŸS¬Á× ‡Ê‡Ê◊ÊŸ— ¬Á⁄U‚È˝ÃÊ. ∑§Ë‹Ê‹◊Á‡flèÿÊ¢ ◊œÈ ŒÈ„U œŸÈ— ‚⁄USflÃË.. (65) ߢº˝ Œfl ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U flŸS¬Áà •ÊÒ⁄U ÁŸøÊ«∏UË „ÈU߸ ‚Ê◊Áª˝ÿÊ¥ ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ê ¬˝Êåà „ÈU∞. •Á‡flŸË Œfl •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ªÊÿ ∑§Ê ŒÍœ ÁŸ∑§Ê‹Ÿ ∑§ ‚◊ÊŸ ߟ ∑§ Á‹∞ ◊œÈ⁄U ⁄U‚ ŒÈ„. (65) ªÊÁ÷Ÿ¸ ‚Ê◊◊Á‡flŸÊ ◊Ê‚⁄UáÊ ¬Á⁄UdÈÃÊ. ‚◊œÊà ¦ ‚⁄USflàÿÊ SflÊ„Uãº˝ ‚Èâ ◊œÈ.. (66) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ŒflË ‚⁄USflÃË, ªÊÿ ∑§ ŒÍœ ∑§ ‚ÊÕ fl ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ Á◊‹Êß∞. fl„U ⁄U‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •Á¬¸Ã ∑§ËÁ¡∞. fl ß‚ •Ê„ÈUÁà ∑§Ê ÷‹Ë÷Ê¢Áà ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (66) •Á‡flŸÊ „UÁflÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ Ÿ◊ÈøÁœ¸ÿÊ ‚⁄USflÃË. •Ê ‡ÊÈ∑˝§◊Ê‚È⁄UÊm‚È ◊ÉÊÁ◊ãº˝Êÿ ¡Á÷˝⁄U.. (67) ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§ ‚ÊÕ ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ Ÿ◊ÈÁø ⁄UÊˇÊ‚ ‚ „UÁfl •ÊÒ⁄U ÿ¡Èfl¸Œ - 265
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
œŸ ¬ÊÿÊ. ©U‚ „UÁfl •ÊÒ⁄U üÊcΔU œŸ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã Á∑§ÿÊ. (67) ÿ◊Á‡flŸÊ ‚⁄USflÃË „UÁfl·ãº˝◊flœ¸ÿŸ˜. ‚ Á’÷Œ ’‹¢ ◊ÉÊ¢ Ÿ◊ÈøÊflÊ‚È⁄U ‚øÊ.. (68) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ©U‚ „UÁfl ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. ‚øà ߢº˝ Œfl Ÿ ©U‚ ‚ Ÿ◊ÈÁø •‚È⁄U ∑§ ’‹ ∑§Ê ÷ŒÊ. (68) ÃÁ◊ãº˝¢ ¬‡Êfl— ‚øÊÁ‡flŸÊ÷Ê ‚⁄USflÃË. ŒœÊŸÊ ˘ •èÿŸÍ·Ã „UÁfl·Ê ÿôÊ ˘ ßÁãº˝ÿÒ—.. (69) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§ ŒÍœ, Œ„UË •ÊÒ⁄U ÉÊË ‚ ’ŸË „UÁfl •Á¬¸Ã ∑§Ë. ©U‚ „UÁfl ‚ ©UŸ ∑§Ê ’‹ •ÊÒ⁄U ÿôÊ ’…∏UÊÿÊ. ©UŸ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ë ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ¬˝‡Ê¢‚Ê „ÈU߸. (69) ÿ ˘ ßãº˝ ßÁãº˝ÿ¢ ŒœÈ— ‚ÁflÃÊ flL§áÊÊ ÷ª—. ‚ ‚ÈòÊÊ◊Ê „UÁflc¬ÁÃÿ¸¡◊ÊŸÊÿ ‚‡øÃ.. (70) ‚ÁflÃÊ Œfl, flL§áÊ Œfl •ÊÒ⁄U ÷ª Œfl Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ’‹ œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ߢº˝ Œfl Ÿ „UÁfl¬Áà ∑§Ë •ë¿UË Ã⁄U„U ⁄UˇÊÊ ∑§Ë. ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ∞¢ ¬Í⁄UË ∑§Ë¥. (70) ‚ÁflÃÊ flL§áÊÊ Œœl¡◊ÊŸÊÿ ŒÊ‡ÊÈ·. •ÊŒûÊ Ÿ◊Èøfl¸‚È ‚ÈòÊÊ◊Ê ’‹Á◊Áãº˝ÿ◊˜.. (71) ‚ÁflÃÊ Œfl ∞fl¢ flL§áÊ Œfl Ÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ¬˝‚ããÊÃÊ „UÃÈ œŸ •ÊÒ⁄U ’‹ œÊ⁄UÊ. ߢº˝ Œfl Ÿ Ÿ◊ÈÁø ⁄UÊˇÊ‚ ‚ ⁄UˇÊÊ •ÊÒ⁄U ’‹ ÃÕÊ œŸ ‹ ∑§⁄U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ‚◊Îh ’ŸÊÿÊ. (71) flL§áÊ— ˇÊòÊÁ◊Áãº˝ÿ¢ ÷ªŸ ‚ÁflÃÊ ÁüÊÿ◊˜. ‚ÈòÊÊ◊Ê ÿ‡Ê‚Ê ’‹¢ ŒœÊŸÊ ÿôÊ◊ʇÊÃ.. (72) ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ˇÊÁòÊÿÊÁøà ’‹ •ÊÒ⁄U ߢÁº˝ÿÊ¥ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ŒŸ flÊ‹ flL§áÊ Œfl „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚ÊÒ÷ÊÇÿ •ÊÒ⁄U ∞‡flÿ¸ŒÊÃÊ ‚ÁflÃÊ Œfl ÃÕÊ ÿ‡Ê •ÊÒ⁄U ’‹œÊ⁄UË ß¢º˝ Œfl „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U ¢. (72) •Á‡flŸÊ ªÊÁ÷Á⁄UÁãº˝ÿ◊‡flÁ÷fl˸ÿZ ’‹◊˜. „UÁfl·ãº˝ ¦ ‚⁄US√ÊÃË ÿ¡◊ÊŸ◊flœ¸ÿŸ˜.. (73) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ •ÊÒ⁄U ŒflË ‚⁄USflÃË Ÿ ªÊÿÊ¥, ÉÊÊ«∏UÊ¥ •ÊÒ⁄U „UÁflÿÊ¥ ‚ ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ‡ÊÁÄà •ÊÒ⁄U flÒ÷fl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. (73) ÃÊ ŸÊ‚àÿÊ ‚Ȭ‡Ê‚Ê Á„U⁄UáÿfløŸË Ÿ⁄UÊ. ‚⁄USflÃË „UÁflc◊ÃËãº˝ ∑§◊¸‚È ŸÊflÃ.. (74) 266 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚ÈŸ„U⁄U ¬Õ ¬⁄U ÉÊÍ◊Ÿ flÊ‹ ÁflÁ‡Êc≈U üÊcΔU ◊ŸÈcÿ ¡Ò‚ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ŒflË ‚⁄USflÃË •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl „U◊ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄¥U. „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄¥U. ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. (74) ÃÊ Á÷·¡Ê ‚È∑§◊¸áÊÊ ‚Ê ‚ÈŒÈÉÊÊ ‚⁄USflÃË. ‚ flÎòÊ„UÊ ‡ÊÃ∑˝§ÃÈÁ⁄Uãº˝Êÿ ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ◊˜.. (75) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U flÒl fl ‚È∑§◊ʸ „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË •ë¿UÊ ŒÊ„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. flÎòÊÊ‚È⁄U ŸÊ‡Ê∑§ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ߢº˝ ŒflU ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§Ë ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊¥ ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (75) ÿÈfl ¦ ‚È⁄UÊ◊◊Á‡flŸÊ Ÿ◊ÈøÊflÊ‚È⁄U ‚øÊ. ÁflÁ¬¬ÊŸÊ— ‚⁄USflÃËãº˝¢ ∑§◊¸SflÊflÃ.. (76) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! ŒflË ‚⁄USflÃË! •Ê¬ ÿÈflÊ „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ◊ÈÁø ⁄UÊˇÊ‚ ‚ •Ê·Áœ ⁄U‚ ‹ ∑§⁄U ÁflÁ÷ããÊ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄UÊß∞. ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ©UŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (76) ¬ÈòÊÁ◊fl Á¬Ã⁄UÊflÁ‡flŸÊ÷ãº˝ÊflÕÈ— ∑§Ê√ÿÒŒ¸ ¦ ‚ŸÊÁ÷—. ÿà‚È⁄UÊ◊¢ √ÿÁ¬’— ‡ÊøËÁ÷— ‚⁄USflÃË àflÊ ◊ÉÊflãŸÁ÷cáÊ∑˜§.. (77) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄ÊU! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ mÊ⁄UÊ ¬ÈòÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§ ‚◊ÊŸ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚ÈŸÃ „Ò¥U. ‚¢ª˝Ê◊ ◊¥ Áfl¬Áûʪ˝Sà „UÊŸ ¬⁄U •Á‡flŸË Œfl ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl •¬ŸË ‚Ê◊âÿ¸ ‚ •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ÃÊ ‚⁄USflÃË ŒflË •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄UÃË „ÒU¢. (77) ÿÁS◊㟇flÊ‚ ˘ ´§·÷Ê‚ ˘ ©UˇÊáÊÊ fl‡ÊÊ ◊·Ê ˘ •fl‚ÎCÔUÊ‚ ˘ •Ê„ÈUÃÊ—. ∑§Ë‹Ê‹¬ ‚Ê◊¬ÎcΔUÊÿ flœ‚ NUŒÊ ◊Áâ ¡Ÿÿ øÊL§◊ÇŸÿ.. (78) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •ÁÇŸ •ããÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‚Ê◊ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. üÊcΔU ’ÈÁh flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •¬ŸÊ ◊Ÿ ‡ÊÈh ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •¬ŸË ’ÈÁh ‡ÊÈh ∑§ËÁ¡∞. ß‚ ‚ ÉÊÊ«∏U Á‚¢øÊ߸ ÿÊÇÿ ’Ò‹ •ÊÒ⁄U ‚È¢Œ⁄U flSÃÈ•Ê¥ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. (78) •„UÊ√ÿÇŸ „UÁfl⁄UÊSÿ à dÈøËfl ÉÊÎâ øêflËfl ‚Ê◊—. flÊ¡‚ÁŸ ¦ ⁄UÁÿ◊S◊ ‚ÈflË⁄¢U ¬˝‡ÊSâ œÁ„U ÿ‡Ê‚¢ ’΄UãÃ◊˜.. (79) „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ◊Èπ ◊¥ „UÁfl ÷¥≈U ∑§⁄à „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚È˝flÊ ◊¥ ÉÊË •ÊÒ⁄U ¬ÊòÊ ◊¥ ‚Ê◊ ⁄U„UÃÊ „ÒU. •Ê¬ „U◊¥ •ããÊ, œŸ, üÊcΔUflË⁄U, ¬˝‡Ê¢‚ŸËÿ œŸ, ÿ‡Ê fl ¬˝øÈ⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (79) ÿ¡Èfl¸Œ - 267
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•Á‡flŸÊ á‚Ê øˇÊÈ— ¬˝ÊáÊŸ ‚⁄USflÃË flËÿ¸◊˜. flÊøãº˝Ê ’‹Ÿãº˝Êÿ ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ◊˜.. (80) ÿ¡◊ÊŸ „UÃÈ •Á‡flŸË Œfl Ÿ á ‚ ŸòÊ ÖÿÊÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§Ë. ÿ¡◊ÊŸ „UÃÈ ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ¬˝ÊáÊ ∑§ ‚ÊÕ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ¬˝ŒÊŸ Á∑§ÿÊ. ÿ¡◊ÊŸ „UÃÈ ß¢º˝ Œfl Ÿ flÊáÊË ∑§ ‚ÊÕ ß¢Áº˝ÿ ‚Ê◊âÿ¸ œÊ⁄UáÊ ∑§Ë. (80) ªÊ◊ŒÍ ·È áÊÊ‚àÿʇflÊfllÊÃ◊Á‡flŸÊ. flûÊ˸ L§º˝Ê ŸÎ¬Êƒÿ◊˜.. (81) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! ªÊ◊ÿ, •U‡fl◊ÿ •ÊÒ⁄U üÊcΔU ⁄UÊ„U flÊ‹ ß‚ ‚Ê◊ÿʪ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚àÿ ◊¥ ÁŸ⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ãÿÊÁÿÿÊ¥ ∑§Ê ¬ËÁ«∏Uà ∑§ËÁ¡∞. (81) Ÿ ÿà¬⁄UÊ ŸÊãÃ⁄ ˘ •ÊŒœ·¸Œ˜flηáfl‚Í. ŒÈ—‡Ê ¦ ‚Ê ◊àÿʸ Á⁄U¬È—.. (82) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ •Ê·œ⁄U‚ ∑§Ë fl·Ê¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡Ê ŒÈc≈U „UÊ, ¡Ê „U◊Ê⁄UÊ ‡ÊòÊÈ „UÊ, fl„U „U◊¥ ¬ËÁ«∏Uà Ÿ ∑§⁄U. (82) ÃÊ Ÿ ˘ •Ê flÊ…U◊Á‡flŸÊ ⁄UÁÿ¢ Á¬‡ÊX‚ãŒÎ‡Ê◊˜. ÁœcáÿÊ flÁ⁄UflÊÁflŒ◊˜.. (83) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ‚’ ∑§Ê œÊ⁄UŸ flÊ‹ „UÊ. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬Ë‹Ë ‚ÊŸ ¡Ò‚Ë ’…∏UŸ flÊ‹Ë ‚¢¬ŒÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (83) ¬Êfl∑§Ê Ÿ— ‚⁄USflÃË flÊ¡Á÷flʸÁ¡ŸËflÃË. ÿôÊ¢ flc≈ÈU ÁœÿÊfl‚È—.. (84) ‚⁄USflÃË ŒflË ¬ÁflòÊ „Ò¥U. •ããÊ mÊ⁄UÊ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. ÿôÊ ∑§Ê œÊ⁄¥. œŸ •ÊÒ⁄U ’ÈÁh ’⁄U‚Ê∞¢. (84) øÊŒÁÿòÊË ‚ÍŸÎÃÊŸÊ¢ øÃãÃË ‚È◊ÃËŸÊ◊˜. ÿôÊ¢ Œœ ‚⁄USflÃË.. (85)] ‚⁄USflÃË ŒflË ‚àÿ fløŸ •ÊÒ⁄U ‚àÿ ◊ʪ¸ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊŒÊÁÿŸË „Ò¥U. ‚È◊ÁÃÿÊ¥ ∑§Ê øÃÊŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË ÿôÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (85) ◊„UÊ •áʸ— ‚⁄USflÃË ¬˝ øÃÿÁà ∑§ÃÈŸÊ. ÁœÿÊ Áfl‡flÊ Áfl ⁄UÊ¡ÁÃ.. (86) ‚⁄USflÃË ŒflË ‚’ ∑§Ë ’ÈÁhÿÊ¥ ∑§Ê Áfl‡Ê· M§¬ ‚ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UÃË „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË ◊„UÊŸ˜ •ÊÒ⁄U ôÊÊŸ ∑§Ê ‚◊Ⱥ˝ „Ò¥U. fl ôÊÊŸ ∑§Ë ¬ÃÊ∑§Ê »§„U⁄UÊÃË „ÒU¢. (86) ßãº˝Ê ÿÊÁ„U ÁøòÊ÷ÊŸÊ ‚ÈÃÊ ˘ ß◊ àflÊÿfl—. •áflËÁ÷SÃŸÊ ¬ÍÃÊ‚—.. (87) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ •Œ˜÷Èà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ¬ÈòÊÊ¥ ∑§ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ Ÿ •¢ªÈÁ‹ÿÊ¥ ‚ ÁŸøÊ«∏U ∑§⁄U •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊÿÊ „ÒU. (87) ßãº˝Ê ÿÊÁ„U ÁœÿÁ·ÃÊ Áfl¬˝¡Í× ‚ÈÃÊfl×. ©U¬ ’˝rÊÔÊÁáÊ flÊÉÊ×.. (88) 268 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Íflʸœ¸
’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ◊ŸÊÿʪ ‚ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ ¬œÊÁ⁄U∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊⁄U‚ ‚¢S∑§ÊÁ⁄Uà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •Ê ∑§⁄U ߟ „UÁflÿÊ¥ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞U. (88) ßãº˝Ê ÿÊÁ„U ÃÍÃÈ¡ÊŸ ©U¬ ’˝rÊÔÊÁáÊ „UÁ⁄Ufl—. ‚Èà ŒÁœcfl Ÿ‡øŸ—.. (89) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ •¬Ÿ „UÁ⁄U ŸÊ◊ ∑§ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ‚ •ÊflÊ¡Ê„UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ¬ÈòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§ËÁ¡∞. (89) •Á‡flŸÊ Á¬’ÃÊ¢ ◊œÈ ‚⁄USflàÿÊ ‚¡Ê·‚Ê. ßãº˝— ‚ÈòÊÊ◊Ê flÎòÊ„UÊ ¡È·ãÃÊ ¦ ‚Êêÿ¢ ◊œÈ.. (90) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ŒflË ‚⁄USflÃË ∑§ ‚ÊÕ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ¥. fl ŒflË ‚⁄USflÃË ∑§ ‚ÊÕ ◊œÈ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl ‚È⁄UˇÊ∑§ fl flÎòÊ „¢UÃÊ „Ò¥U. fl ÷Ë ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄¥U. (90)
ÿ¡Èfl¸Œ - 269
©UûÊ⁄UÊœ¸ ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ß◊¢ ◊ flL§áÊ üÊÈœË „Ufl◊lÊ ø ◊ΫUÿ. àflÊ◊flSÿÈ⁄UÊ ø∑§.. (1) „U flL§áÊ Œfl! „U◊Ê⁄UË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¡ ¡Ê „U◊ „UflŸ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U, ©U‚ ‚ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. „U◊ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (1) ÃûflÊ ÿÊÁ◊ ’˝rÊÔáÊÊ flãŒ◊ÊŸSÃŒÊ ‡ÊÊSà ÿ¡◊ÊŸÊ „UÁflÁ÷¸—. •U„«U◊ÊŸÊ flL§áÊ„U ’ÊäÿÈL§‡Ê ¦ ‚ ◊Ê Ÿ ˘ •ÊÿÈ— ¬˝ ◊Ê·Ë—.. (2) ÿ ÿ¡◊ÊŸ ’˝rÊôÊÊŸ◊ÿ ´§øÊ•Ê¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë fl¢ŒŸÊ ∑§⁄U ⁄U„ „Ò¥U. •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •Á¬¸Ã ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. ©UŸ ‚ •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ¬⁄U ¬˝‚㟠„UÊß∞. flL§áÊ Œfl ’„ÈU¬˝‡Ê¢Á‚à fl Œfl ¬ÍÁ¡Ã „Ò¥U. •Ê¬ ¡Êª˝Ã „UÊß∞ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ˇÊËáÊ ◊à ∑§ËÁ¡∞. (2) àfl¢ ŸÊ •ÇŸ flL§áÊSÿ ÁflmÊŸ˜ ŒflSÿ „U«UÊ •fl ÿÊÁ‚‚ËcΔUÊ—. ÿÁ¡cΔUÊ flÁqÔUÃ◊— ‡ÊʇÊÈøÊŸÊ Áfl‡flÊ m·Ê ¦ Á‚ ¬˝ ◊È◊ÈÇäÿS◊Ø.. (3) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. •Ê¬ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ¬ÍÁ¡Ã, ’„ÈUà ŒËÁåÃ◊ÊŸ fl ¬ÁflòÊ „Ò¥U. •Ê¬ flL§áÊ Œfl ∑§Ê „U◊ ¬⁄U ¬˝‚ããÊ ∑§⁄UÊß∞. „U◊Ê⁄U ‚÷Ë mÁ·ÿÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞.U (3) ‚ àfl¢ ŸÊ •ÇŸfl◊Ê ÷flÊÃË ŸÁŒcΔUÊ •SÿÊ ˘ ©U·‚Ê √ÿÈCÔUÊÒ. •fl ÿˇfl ŸÊ flL§áÊ ¦ ⁄U⁄UÊáÊÊ flËÁ„U ◊ΫUË∑§ ¦ ‚È„UflÊ Ÿ ˘ ∞Áœ.. (4) „U •ÁÇŸ! ¬˝Ê× •¬Ÿ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚Á„Uà „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊÁ⁄U∞. „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ fl •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©Uã„¥U ÃÎÁåà ŒËÁ¡∞. •Ê¬ •ë¿UË Ã⁄U„U ’È‹ÊŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ‚ÈπŒÊÿ∑§ •Ê„ÈUÁà ∑§Ê SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (4) ◊„UË◊Í ·È ◊ÊÃ⁄ ¦ ‚Èfl˝ÃÊŸÊ◊ÎÃSÿ ¬àŸË◊fl‚ „ÈUfl◊. ÃÈÁflˇÊòÊÊ◊¡⁄UãÃË◊ÈM§øË ¦ ‚ȇÊ◊ʸáÊ◊ÁŒÁà ¦ ‚Ȭ˝áÊËÁÃ◊˜.. (5) 270 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•ÁŒÁà ŒflË ◊„UÊ◊Á„U◊ʇÊÊÁ‹ŸË, ◊ÊÃÊ, ‚Èfl˝ÃÊ¥ flÊ‹Ë, •◊⁄U, ∑§÷Ë flÎh Ÿ„UË¥ „UÊŸ flÊ‹Ë „Ò¥U, ‚ÈπŒÊÁÿŸË fl ŸËÁÃôÊÊ „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ „UÃÈ ©UŸ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (5) ‚ÈòÊÊ◊ÊáÊ¢ ¬ÎÁÕflË¥ lÊ◊Ÿ„U‚ ¦ ‚ȇÊ◊ʸáÊ◊ÁŒÁà ¦ ‚Ȭ˝áÊËÁÃ◊˜. ŒÒflË¥ ŸÊfl ¦ SflÁ⁄UòÊÊ◊ŸÊª‚◊dflãÃË◊Ê L§„U◊Ê SflSÃÿ.. (6) •ÁŒÁÃ◊ÊÃÊ ÷‹Ë÷Ê¢Áà ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, ¬ÎâflË‹Ê∑§ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ÁflSÃÊ⁄U flÊ‹Ë, •àÿ¢Ã ‚ÈπŒÊÁÿŸË, •ë¿UÊ •Ê‚⁄UÊ (•ÊüÊÿ) ŒŸ flÊ‹Ë, ŒÊ·⁄UÁ„UÃ, ◊ÎàÿÈ ∑§Ê ÷ÿ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •¬Ÿ•Ê¬ ø‹Ÿ flÊ‹Ë, Á’ŸÊ ¿UŒÊ¥ flÊ‹Ë ß‚ ŸÊÒ∑§Ê ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •Ê⁄UÊ„UáÊ ∑§⁄¥U. „U◊ •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ©U‚ ¬⁄U ø…∏Uà „Ò¥U. (6) ‚ÈŸÊfl◊Ê L§„Uÿ◊dflãÃË◊ŸÊª‚◊˜. ‡ÊÃÊÁ⁄UòÊÊ ¦ SflSÃÿ.. (7) ÿ„U ŸÊfl ŒÊ· ⁄UÁ„UÃ, Á’ŸÊ ¿UŒÊ¥ flÊ‹Ë, •¬Ÿ•Ê¬ ø‹Ÿ flÊ‹Ë fl ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ òÊÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „ÒU. „U◊ •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ¬⁄U •ÊM§…∏U (ø…∏UŸ) „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (7) •Ê ŸÊ Á◊òÊÊflL§áÊÊ ÉÊÎÃÒª¸√ÿÍÁÃ◊ÈˇÊÃ◊˜. ◊äflÊ ⁄U¡Ê ¦ Á‚ ‚È∑˝§ÃÍ.. (8) „§ Á◊òÊ fl flL§áÊ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿ„UÊ¢ ªÊÿ ∑§ ÉÊË ‚ ‚Ë¥Áø∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U πÃÊ¥ ∑§Ê ◊œÈ⁄U •◊Îà ‚ ‚Ë¥Áø∞. (8) ¬˝ ’Ê„UflÊ Á‚‚Îâ ¡Ëfl‚ Ÿ ˘ •Ê ŸÊ ª√ÿÍÁÃ◊ÈˇÊâ ÉÊÎß. •Ê ◊Ê ¡Ÿ üÊflÿâ ÿÈflÊŸÊ üÊÈâ ◊ Á◊òÊÊflL§áÊÊ „Ufl◊Ê.. (9) „U Á◊òÊ fl flL§áÊ Œfl!U •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ Œfl „U◊Ê⁄UË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚ÈÁŸ∞. •Ê¬ •¬ŸË ÷È¡Ê∞¢ »Ò§‹Ê ∑§⁄U „U◊¥ •Ê‡ÊËflʸŒ fl ß‚ ¡ËflŸ ◊¥ ÿ‡Ê ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ªÊÿ ∑§ ÉÊË ‚ fl πà ∑§Ê ◊œÈ •◊Îà ‚ ‚Ë¢Áø∞. (9) ‡ÊãŸÊ ÷flãÃÈ flÊÁ¡ŸÊ „Ufl·È ŒflÃÊÃÊ Á◊ú˝fl— Sfl∑§Ê¸—. ¡ê÷ÿãÃÊ ˘ Á„¢U flÎ∑§ ¦ ⁄UˇÊÊ ¦ Á‚ ‚ŸêÿS◊lÈÿflãŸ◊ËflÊ—.. (10) „U Á◊òÊ fl flL§áÊ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „UÊß∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •ããÊ◊ÿ „UÁfl ŒÃ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ⁄Uʪ ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ fl ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ÁflŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÷Á«∏U∞ •ÊÒ⁄U ∞‚ „UË Á„¢U‚∑§ ¡ËflÊ¥ ∑§Ê „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ÷ªÊß∞. (10) flÊ¡ flÊ¡flà flÊÁ¡ŸÊ ŸÊ œŸ·È Áfl¬˝Ê ˘ •◊ÎÃÊ ˘ ´§ÃôÊÊ—. •Sÿ ◊äfl— Á¬’à ◊ÊŒÿäfl¢ ÃÎåÃÊ ÿÊà ¬ÁÕÁ÷Œ¸flÿÊŸÒ—.. (11) „U Á◊òÊ fl flL§áÊ Œfl! •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊ, •◊⁄U fl ‚àÿôÊ „Ò¥U. ÿÈh ◊¥ •ããÊ, ’‹ ÃÕÊ ÿ¡Èfl¸Œ - 271
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
œŸ ¬˝Êåà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ◊œÈ⁄ ⁄U‚ ¬ËÁ¡∞. ◊Œ◊Sà fl ÃÎåà „UÊß∞. Œfl¬ÕÊ¥ ‚ ª◊Ÿ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (11) ‚Á◊hÊ •ÁÇŸ— ‚Á◊œÊ ‚È‚Á◊hÊ fl⁄Uáÿ—. ªÊÿòÊË ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ òÿÁflªÊÒ¸fl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (12) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚Á◊œÊflÊŸ „Ò¥U. ‚Á◊œÊ ‚ •Ê¬ ∑§Ê •ë¿UË Ã⁄U„U ¬˝ŒËåà Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ fl⁄Uáÿ „Ò¥U. ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ÃËŸÊ¥ •flSÕÊ∞¢, •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ªÊÿòÊË ¿¢UŒ •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (12) ß͟¬Êë¿ÈUÁøfl˝ÃSßͬʇø ‚⁄USflÃË. ©UÁcáÊ„UÊ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ ÁŒàÿflÊXÊÒfl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (13) •ÁÇŸ ß ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊ ‚¢∑§À¬ flÊ‹ „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË ©UÁcáÊ∑˜§ ¿¢UŒ •ÊÒ⁄U ÁŒ√ÿ „UÁfl ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ •¢ª „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (13) ß«UÊÁ÷⁄UÁÇŸ⁄UË«UK— ‚Ê◊Ê ŒflÊ •◊àÿ¸—. •ŸÈc≈ÈUå¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ ¬ÜøÊÁflªÊÒ¸fl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (14) •ÁÇŸ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ ¬˝‚ããÊ „UÊŸ ÿÊÇÿ „ÒU¥ . ‚Ê◊ •◊⁄U „ÒU¥ . •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ •ÊÒ⁄U ¬Ê¢øÊ¥ ߢÁº˝ÿ M§¬Ë ªÊÿÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ÃÕÊ •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (14) ‚È’Á„¸U⁄UÁÇŸ— ¬Í·áflÊãàSÃËáʸ’Á„¸U⁄U◊àÿ¸—. ’΄UÃË ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ ÁòÊflà‚Ê ªÊÒfl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (15) •ÁÇŸ ∑ȧ‡Ê ∑§ •ë¿U •Ê‚Ÿ flÊ‹, ¬ÈÁc≈UŒÊÿË, ÁflSÃÎà •Ê∑§Ê‡Ê ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄UŸ flÊ‹ fl •◊⁄U „Ò¥U. ’΄UÃË ¿U¢Œ ÃËŸ ’¿U«∏UÊ¥ flÊ‹Ë ªÊÿÊ¥ ‚ ÃÕÊ ß¢Áº˝ÿÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (15) ŒÈ⁄UÊ ŒflËÁŒ¸‡ÊÊ ◊„UË’˝¸rÊÔÊ ŒflÊ ’΄US¬Á×. ¬æ˜UÁÄÇ¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ ÃÈÿ¸flÊ«UÔ˜ªÊÒfl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (16) ’΄US¬Áà Œfl, ŒÍ⁄U ∑§Ë ŒÁflÿÊ¥, ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ’˝rÊÊ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬¢ÁÄÃ, ¿U¢Œ, ߢÁº˝˝ÿÊ¢, ¬˝ÊÁáÊ◊ÊòÊ ∑§Ê ¬Ê·áÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ªÊÿÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ÃÕÊ •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) ©U· ÿuÔUË ‚Ȭ‡Ê‚Ê Áfl‡fl ŒflÊ ˘ •◊àÿʸ—. ÁòÊc≈ÈUå¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ ¬cΔUflÊ«˜UªÊÒfl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (17) ◊„UÊŸ˜ ÃÕÊ üÊcΔU SflM§¬ flÊ‹Ë ©U·Ê ŒflË, ‚÷Ë ŒflÃÊ ∞fl¢ •◊⁄U ŒflªáÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ∞fl¢ •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ߢÁº˝ÿÊ¢ ¬Ê·áÊ 272 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@17
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê ÷Ê⁄U fl„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ªÊÿ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ∞fl¢ •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (17) ŒÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ Á÷·¡ãº˝áÊ ‚ÿÈ¡Ê ÿÈ¡Ê. ¡ªÃË ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ◊Ÿ«˜UflÊãªÊÒfl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (18) ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ „UÊà Ê, flÒl ߢº˝ Œfl ∑§ ‚ÊÕ ¡È«∏ U∑§⁄U ⁄U„UŸ flÊ‹ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¡ªÃË ¿UŒ¢ , ߢÁº˝ÿÊ¢, ◊Ÿ ∑§Ë ªÊ«∏UË ∑§Ê πË¥øŸ flÊ‹Ë ªÊÿ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒU⁄U •ÊÿÈ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (18) ÁÃd ˘ ß«UÊ ‚⁄USflÃË ÷Ê⁄UÃË ◊L§ÃÊ Áfl‡Ê—. Áfl⁄UÊ≈˜U ¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ œŸÈªÊÒ¸Ÿ¸ flÿÊ ŒœÈ—.. (19) ß«∏UÊ ŒflË, ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U ÷Ê⁄UÃË ŒflË ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢, ◊L§Œ˜ªáÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Áfl⁄UÊ≈U˜ ¿U¢Œ, ߢÁº˝ÿÊ¢ ÃÕÊ ŒÍœ ŒŸ flÊ‹Ë ªÊÿ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ∞fl¢ •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) àflCÔUÊ ÃÈ⁄UË¬Ê •jÈà ˘ ßãº˝ÊÇŸË ¬ÈÁCÔUflœ¸ŸÊ. Ám¬ŒÊ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ◊ÈˇÊÊ ªÊÒŸ¸ flÿÊ ŒœÈ—.. (20) àflc≈UÊ Œfl á ªÁà flÊ‹, Áfl‹ˇÊáÊ fl ◊ÊˇÊŒÊÃÊ „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∞fl¢ •ÁÇŸ ¬ÈÁc≈Uflh¸∑§ „Ò¥. Ám¬Œ ¿U¢Œ, ߢÁº˝ÿÊ¥ ◊ÊˇÊŒÊÿË ªÊÿ¥ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (20) ‡ÊÁ◊ÃÊ ŸÊ flŸS¬Á× ‚ÁflÃÊ ¬˝‚ÈflŸ˜ ÷ª◊˜. ∑§∑ȧå¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ fl‡ÊÊ fl„UmÿÊ ŒœÈ—.. (21) flŸS¬Áà „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¥ÁÃŒÊÿË „UÊ. ‚ÁflÃÊ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ „UÊ¥. ∑§∑ȧ¬˜ ¿¢UŒ, ߢÁº˝ÿÊ¢ ∞fl¢ •ŸÈ‡ÊÊÁ‚à ªÊÒ „U◊Ê⁄U Á‹∞ •ÊÿÈ ÃÕÊ ’‹ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (21) SflÊ„UÊ ÿôÊ¢ flL§áÊ— ‚ÈˇÊòÊÊ ÷·¡¢ ∑§⁄UØ. •ÁÃë¿UãŒÊ ˘ ßÁãº˝ÿ¢ ’΄UŒÎ·÷Ê ªÊÒfl¸ÿÊ ŒœÈ—.. (22) ÿôÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. üÊcΔU ˇÊÁòÊÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÃë¿¢UŒÊ ¿¢UŒ, ߢÁº˝ÿÊ¢ Áfl‡ÊÊ‹ ’Ò‹ flÊ‹Ë ªÊÿ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ∞fl¢ •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . (22) fl‚ãß ´§ÃÈŸÊ ŒflÊ fl‚flÁSòÊflÎÃÊ SÃÈÃÊ—. ⁄UÕãÃ⁄UáÊ Ã¡‚Ê „UÁflÁ⁄Uãº˝ flÿÊ ŒœÈ—.. (23) fl‚ÈŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë fl‚¢Ã ´§ÃÈ ÃÕÊ ÁòÊflÎà ¿U¢Œ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸ „ÒU. fl‚ÈŒflªáÊ ∑§Ë ÿ¡Èfl¸Œ - 273
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
⁄UÕ¢Ã⁄U ¿¢UŒ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸ „ÒU. „U◊ á •ÊÒ⁄U „UÁfl ∑§Ê ߢº˝ Œfl „UÃÈ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „ÒU¢. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (23) ª˝Ëc◊áÊ ´§ÃÈŸÊ ŒflÊ L§º˝Ê— ¬ÜøŒ‡Ê SÃÈÃÊ—. ’΄UÃÊ ÿ‡Ê‚Ê ’‹ ¦ „UÁflÁ⁄Uãº˝ flÿÊ ŒœÈ—.. (24) L§º˝ Œfl ªáÊÊ¥ ∑§Ë ¬¢º˝„U ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ∞fl¢ ª˝Ëc◊´§ÃÈ ‚ SÃÈÁà ∑§Ë ªß¸ „ÒU. Áfl‡ÊÊ‹ ÿ‡Ê fl ’‹ ‚ „UÁfl ∑§Ê ߢº˝ Œfl „UÃÈ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ∞fl¢ •ÊÿÈ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (24) fl·Ê¸Á÷´¸§ÃÈŸÊÁŒàÿÊ— SÃÊ◊ ‚åÃŒ‡Ê SÃÈÃÊ—. flÒM§¬áÊ Áfl‡ÊÊÒ¡‚Ê „UÁflÁ⁄Uãº˝ flÿÊ ŒœÈ—.. (25) •ÊÁŒàÿ ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë ‚òÊ„U SÃÊòÊÊ¥ ∞fl¢ fl·Ê¸ ´§ÃÈ ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§Ë ªß¸ „ÒU. flÒM§¬ ¿¢UŒ •ÊÒ⁄U •Ê¡ ‚ „U◊ ߢº˝ Œfl „UÃÈ „UÁfl SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ∞fl¢ •ÊÿÈ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (25) ‡ÊÊ⁄UŒŸ ´§ÃÈŸÊ ŒflÊ ˘ ∞∑§Áfl ¦ ‡Ê ´§÷fl SÃÈÃÊ—. flÒ⁄UÊ¡Ÿ ÁüÊÿÊ ÁüÊÿ ¦ „UÁflÁ⁄Uãº˝ flÿÊ ŒœÈ—.. (26) ´§÷È ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë ßÄ∑§Ë‚ SÃÊòÊÊ¥ ÃÕÊ ‡Ê⁄UŒ ´§ÃÈ ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§Ë ªß¸ „ÒU. flÒ⁄UÊ¡ ¿¢UŒ ÁüÊÿÊ (‹ˇ◊Ë) ∑§Ë üÊË ’…U∏Êà „Ò¥U. „U◊ ©U‚ ‚ ߢº˝ Œfl „UÃÈ „UÁfl SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ ÃÕÊ •ÊÿÈ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . (26) „U◊ãß ´§ÃÈŸÊ ŒflÊÁSòÊáÊfl ◊L§Ã SÃÈÃÊ—. ’‹Ÿ ‡ÊÄfl⁄UË— ‚„UÊ „UÁflÁ⁄Uãº˝ flÿÊ ŒœÈ—.. (27) ◊L§Œ˜ ªáÊ ∑§Ë ŸÊÒ ‚ Áêȟ SÃÊòÊÊ¥ •ÊÒ⁄U „U◊¢Ã ´§ÃÈ ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§Ë ªß¸ „ÒU. ‡ÊÄfl⁄UË ¿U¢Œ •ÊÒ⁄U ’‹ ‚ „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (27) ‡ÊÒÁ‡Ê⁄UáÊ ´§ÃÈŸÊ ŒflÊSòÊÿÁSòÊ ¦ ‡Ê◊ÎÃÊ— SÃÈÃÊ—. ‚àÿŸ ⁄UflÃË— ˇÊòÊ ¦ „UÁflÁ⁄Uãº˝ flÿÊ ŒœÈ—.. (28) „U◊ ÃË‚ •ÊÒ⁄U ÃËŸ ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë ⁄UflÃË ¿U¢Œ ‚ •ÊÒ⁄U Á‡ÊÁ‡Ê⁄U ´§ÃÈ ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚àÿ •ÊÒ⁄U ’‹ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (28) „UÊÃÊ ÿˇÊà‚Á◊œÊÁÇŸÁ◊«US¬ŒÁ‡flŸãº˝ ¦ ‚⁄USflÃË◊¡Ê œÍ◊˝Ê Ÿ ªÊœÍ◊Ò— ∑ȧfl‹Ò÷¸·¡¢ ◊œÈ‡Êc¬ÒŸ¸ á ˘ ßÁãº˝ÿ¢ ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (29) „UÊÃ Ê Ÿ •ÁÇŸ ◊¥ ‚Á◊œÊ∞¢ ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§Ë „ÒU¥ . ÿ„U ÿôÊ •Á‡flŸË Œfl, ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U 274 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. ß‚ ÿôÊ ‚ ªÊœ◊Í •Ê·ÁœÿÊ¢, ◊œÈ, ŒÍœ, ‚Ê◊ fl ÉÊË ¬˝Êåà „UÊà „ÒU¥ . „UÊÃ Ê ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (29) „UÊÃÊ ÿˇÊûÊŸÍŸ¬Êà‚⁄USflÃË◊Áfl◊¸·Ê Ÿ ÷·¡¢ ¬ÕÊ ◊œÈ◊ÃÊ ÷⁄UãŸÁ‡flŸãº˝Êÿ flËÿZ ’Œ⁄ÒUL§¬flÊ∑§ÊÁ÷÷¸·¡¢ ÃÊÄ◊Á÷— ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (30) „ÊÃÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U ÿôÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥, ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •ŸÊ¡, •Ê·œ, ◊œÈ, ¬ÿ, ÉÊË, ŒÍœ, ‚Ê◊ fl ÉÊË •ÊÁŒ ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. ŒflªáÊ ßŸ ‚’ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (30) „UÊÃÊ ÿˇÊãŸ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚㟠ŸÇŸ„È¢U ¬Áà ¦ ‚È⁄UÿÊ ÷·¡¢ ◊·— ‚⁄USflÃË Á÷·ª˝ÕÊ Ÿ øãº˝KÁ‡flŸÊfl¸¬Ê ˘ ßãº˝Sÿ flËÿZ ’Œ⁄ÒUL§¬flÊ∑§ÊÁ÷÷¸·¡¢ ÃÊÄ◊Á÷— ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (31) „UÊÃÊ Ÿ •ããÊ •ÊÒ⁄U ¬ÈÁc≈U∑§Ê⁄UË ¬ŒÊÕÊZ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ÿôÊ ◊¥ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê·ÁœÿÊ¢, ’⁄U, •¢∑ȧÁ⁄Uà œÊŸ •ÊÁŒ ø…U∏UÊ∞ ª∞. ߟ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ◊œÈ, ÉÊË, ŒÍœ fl ‚Ê◊ ¬˝Êåà „Êà „ÒU. „UÊÃÊ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (31) „UÊÃÊ ÿˇÊÁŒ«UÁ«Uà ˘ •Ê¡ÈuÔUÊŸ— ‚⁄USflÃËÁ◊ãº˝¢ ’‹Ÿ flœ¸ÿãŸÎ·÷áÊ ªflÁãº˝ÿ◊Á‡flŸãº˝Êÿ ÷·¡¢ ÿflÒ— ∑§∑¸§ãœÈÁ÷◊¸œÈ ‹Ê¡ÒŸ¸ ◊Ê‚⁄¢U ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (32) „UÊÃÊ Ÿ ß«∏UÊ ŒflË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ ß«∏UÊ ŒflË ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ ß«∏UÊ, ‚⁄USflÃË ŒflË, ߢº˝ •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ¡ÊÒ, ’⁄U,U •ŸÊ¡ •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ’‹ŒÊÿË •Ê·ÁœÿÊ¢ ø…∏UÊßZ. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ◊œÈ, ÉÊË, ŒÍœ fl Œ„UË ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. „UÊÃÊ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (32) „UÊÃÊ ÿˇÊiÁ„¸UM§áʸê◊˝ŒÊ Á÷·æ˜U ŸÊ‚àÿÊ Á÷·¡ÊÁ‡flŸÊ‡flÊ Á‡Ê‡ÊÈ◊ÃË Á÷·ÇœŸÈ— ‚⁄USflÃË Á÷·ÇŒÈ„ ˘ ßãº˝Êÿ ÷·¡¢ ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (33) „UÊÃÊ Ÿ Œfl flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ Á’¿UÊÿÊ. ߢº˝ Œfl ’¿UU«∏U flÊ‹Ë ªÊÿ •ÊÒ⁄U ’ëøU flÊ‹Ë ÉÊÊ«∏UË ∑§ ÁøÁ∑§à‚∑§ „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ◊œÈ, ÉÊË fl ŒÍœ •ÊÁŒ ¬˝Êåà „Êà „Ò¥U. fl ß‚ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (33)
ÿ¡Èfl¸Œ - 275
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊÃÊ ÿˇÊgÈ⁄UÊ ÁŒ‡Ê— ∑§flcÿÊ Ÿ √ÿøSflÃË⁄UÁ‡flèÿÊ¢ Ÿ ŒÈ⁄UÊ ÁŒ‡Ê ˘ ßãº˝Ê Ÿ ⁄UÊŒ‚Ë ŒÈÉÊ ŒÈ„U œŸÈ— ‚⁄USflàÿÁ‡flŸãº˝Êÿ ÷·¡ ¦ ‡ÊÈ∑˝¢§ Ÿ ÖÿÊÁÃÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄U‚È˝ÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (34) „UÊÃ Ê Ÿ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§ mÊ⁄U ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ÁflmÊŸ˜ ÿ¡◊ÊŸ Ÿ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ,¥ ߢº˝ Œfl ÃÕÊ ŒflË ‚⁄USflÃË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê·Áœ „ÈU∞. flÊáÊË ªÊÒ „ÈUß.¸ ßã„UÊŸ¥ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÁŒ√ÿ á •ÊÒ⁄U ÁŒ√ÿ ’‹ ¬˝ŒÊŸ Á∑§ÿÊ. ÿôÊ ◊¥ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§§Á‹∞ ◊œÈ,U ÉÊË fl ŒÍœ •ÊÁŒ ≈U¬∑§Ã „ÒU¥ . ŒflªáÊ ©Uã„U¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ fl ÿ¡◊ÊŸ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U.¢ (34) „UÊÃÊ ÿˇÊà‚Ȭ‡Ê‚Ê· ŸÄâ ÁŒflÊÁ‡flŸÊ ‚◊Ü¡Êà ‚⁄USflàÿÊ ÁàflÁ·Á◊ãº˝ Ÿ ÷·¡ ¦ ‡ÿŸÊ Ÿ ⁄U¡‚Ê NUŒÊ ÁüÊÿÊ Ÿ ◊Ê‚⁄¢U ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (35) „UÊÃÊ Ÿ ÁŒŸ⁄UÊà ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ©U‚ ÿôÊ ‚ ÁŒŸ⁄UÊà ◊¥ ÁSÕà ¬˝∑§Ê‡Ê Ÿ ◊Ÿ ∞fl¢ ÁüÊÿÊ ∑§ ‚ÊÕ ◊Ê¢«U, •Ê·Áœ ÃÕÊ ‡ÿŸ ¬òÊ Ÿ ø◊∑§ ∑§Ê ߢº˝ Œfl ◊¥ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ◊äÊÈ, ÉÊË fl ŒÍœ ¬˝Êåà „UÊÃÊ „ÒU. ŒflªáÊ ©Uã„¥U ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. ÿ¡◊ÊŸ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (35) „UÊÃÊ ÿˇÊgÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ Á÷·¡ÊÁ‡flŸãº˝¢ Ÿ ¡ÊªÎÁfl ÁŒflÊ ŸÄâ Ÿ ÷·¡Ò— ‡ÊÍ· ¦ ‚⁄USflÃË Á÷·∑˜§ ‚Ë‚Ÿ ŒÈ„U˘ßÁãº˝ÿ¢ ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄U‚˝ÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (36) ÁŒ√ÿ „UÊÃÊ Ÿ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ flÒl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ÃÕÊ ß¢º˝ Œfl ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ‚⁄USflÃË ŒflË ÿÊÇÿ flÒlÊ •ÊÒ⁄U ÁŒŸ⁄UÊà ∑§Ê◊ ◊¥ ‹ªË ⁄U„UÃË „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ ‚Ë‚Ê ‚ (œÊÃÈ) ‡ÊÁÄà •ÊÒ⁄U ’‹ ∑§Ê ŒÈ„UÊ. ©U‚ ÿôÊ ◊¥ Œfl ∑§ Á‹∞ ◊œÈ, ÉÊË •ÊÒ⁄U ŒÍœ ¬˝Êåà „UÊÃÊ „Ò. ŒflªáÊ ©Uã„¥U ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (36) „UÊÃÊ ÿˇÊÁûÊdÊ ŒflËŸ¸ ÷·¡¢ òÊÿÁSòÊœÊÃflʬ‚Ê M§¬Á◊ãº˝ Á„U⁄Uáÿÿ◊Á‡flŸ«UÊ Ÿ ÷Ê⁄UÃË flÊøÊ ‚⁄USflÃË ◊„U ˘ ßãº˝Êÿ ŒÈ„U ˘ ßÁãº˝ÿ¢ ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (37) „UÊÃÊ Ÿ ÷Ê⁄UÃË ŒflË, flÊáÊË ŒflË •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ©U‚ Ÿ ߢº˝ Œfl ÃÕÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ©U‚ Ÿ ÃËŸÊ¥ ªÈáÊÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ◊¢òÊÊ¥ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ‚⁄USflÃË ŒflË ÖÿÊÁÃ◊¸ÿ SflM§¬ flÊ‹Ë „Ò¥. ©Uã„UÊ¥Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ’‹ ∑§Ê ŒÈ„UÊ. ÿôÊ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ◊œÈ, ÉÊË fl ŒÍœ ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. fl ©Uã„¥U ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (37)
276 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊÃÊ ÿˇÊØ ‚È⁄UÂ◊η÷¢ Ÿÿʸ¬‚¢ àflCÔUÊ⁄UÁ◊ãº˝◊Á‡flŸÊ Á÷·¡¢ Ÿ ‚⁄USflÃË◊Ê¡Ê Ÿ ¡ÍÁÃÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ flÎ∑§Ê Ÿ ⁄U÷‚Ê Á÷·ª˜ ÿ‡Ê— ‚È⁄UÿÊ ÷·¡ ¦ ÁüÊÿÊ Ÿ ◊Ê‚⁄¢U ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (38) „UÊÃÊ Ÿ àflc≈UÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. àflc≈UÊ Œfl •ë¿U flËÿ¸flÊ‹, ’‹flÊŸ fl ¬⁄Uʬ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. „UÊÃÊ Ÿ Œfl flÒl •Á‡flŸË ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ ÁøÁ∑§à‚Ê •ÊÒ⁄U ߟ ‚’ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ flÎ∑§, ‚È⁄UÊ •ÊÒ⁄U ◊Ê¢«U ∑§Ë •Ê·Áœ ∑§ ⁄U‚ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ÿ„U ÿôÊ flÒ÷fl¬Íáʸ „ÒU. •Ê¡, ªÁÃ, ’‹ ÃÕÊ ÿ‡Ê ߢº˝ Œfl ◊¥ SÕÊÁ¬Ã Á∑§ÿÊ. ß‚ ÿôÊ ◊¥ ÉÊË fl ŒÍœ ŒflªáÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (38) „UÊÃÊ ÿˇÊmŸS¬Áà ¦ ‡ÊÁ◊ÃÊ⁄U ¦ ‡ÊÃ∑˝§ÃÈ¢ ÷Ë◊¢ Ÿ ◊ãÿÈ ¦ ⁄UÊ¡ÊŸ¢ √ÿÊÉÊ˝¢ Ÿ◊‚ÊÁ‡flŸÊ ÷Ê◊ ¦ ‚⁄USflÃË Á÷·Áªãº˝Êÿ ŒÈ„U ˘ ßÁãº˝ÿ¢ ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (39) „UÊÃÊ Ÿ ߢº˝ Œfl, •Á‡flŸË Œfl •ÊÒ⁄U ŒflË ‚⁄USflÃË ∑§§Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ÿ Œfl flŸS¬Áà ∑§Ê ‡ÊÈh ∑§⁄UŸ flÊ‹, ‚Ò∑§«∏Ê¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹, ÷Ë◊, ⁄UÊ¡Ê, ‡Ê⁄U ∑§ ‚◊ÊŸ ª¡¸ŸÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ©U¬ÿÈÄà ∑˝§Êœ flÊ‹ „Ò¥U. „UÊÃÊ Ÿ ‚¢S∑§Ê⁄UÿÈÄà •ããÊ ‚ ߟ ŒflÊ¥ ∑§Ë ¬˝‚ããÊÃÊ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ‚⁄USflÃË Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ ∑˝§Êœ •ÊÒ⁄U ’‹ ∑§Ê ŒÈ„UÊ. ß‚ ÿôÊ ◊¥ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ◊œÈ, ÉÊË fl ŒÍœ ¬˝Êåà „Êà „Ò¥U. ŒflªáÊ ©Uã„¥U ª˝„UáÊ ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ‚’ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (39) „UÊÃÊ ÿˇÊŒÁÇŸ ¦ SflÊ„UÊÖÿSÿ SÃÊ∑§ÊŸÊ ¦ SflÊ„UÊ ◊Œ‚Ê¢ ¬ÎÕ∑˜§ SflÊ„UÊ ¿Uʪ◊Á‡flèÿÊ ¦ SflÊ„UÊ ◊· ¦ ‚⁄USflàÿÒ SflÊ„UÊ ´§·÷Á◊ãº˝Êÿ Á‚ ¦ „UÊÿ ‚„U‚ ˘ ßÁãº˝ÿ ¦ SflÊ„UÊÁÇŸ¢ Ÿ ÷·¡ ¦ SflÊ„UÊ ‚Ê◊Á◊Áãº˝ÿ ¦ SflÊ„Uãº˝ ¦ ‚ÈòÊÊ◊ÊáÊ ¦ ‚ÁflÃÊ⁄¢U flL§áÊ¢ Á÷·¡Ê¢ ¬Áà ¦ SflÊ„UÊ flŸS¬Áâ Á¬˝ÿ¢ ¬ÊÕÊ Ÿ ÷·¡ ¦ SflÊ„UÊ ŒflÊ ˘ •ÊÖÿ¬Ê ¡È·ÊáÊÊ •ÁÇŸ÷¸·¡¢ ¬ÿ— ‚Ê◊— ¬Á⁄UdÈÃÊ ÉÊÎâ ◊œÈ √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (40) „UÊÃÊ Ÿ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. SÃÊòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊Œ ∑§ Á‹∞ •‹ª ‚ SflÊ„UÊ. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¿Uʪ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒflË ‚⁄USflÃË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊· ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ߢº˝ Œfl Á‚¢„U ∑§ ‚◊ÊŸ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ´§·÷ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÁflÃÊ Œfl ‚È⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U, ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flÒl flL§áÊ ’‹ŒÊÿË „ÒU, ©UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flŸS¬Áà ∑§Ê Á¬˝ÿ •ããÊ ‚ SflÊ„UÊ. Œfl flÒl ∑§Ê Á¬˝ÿ •ããÊ ‚ SflÊ„UÊ. ŒflªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ◊œÈ, ÉÊË fl ŒÍœ ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. ŒflªáÊ ©Uã„U¥ SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸªáÊ ‚’ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (40) ÿ¡Èfl¸Œ - 277
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊÃÊ ÿˇÊŒÁ‡flŸÊÒ ¿UʪSÿ fl¬ÊÿÊ ◊Œ‚Ê ¡È·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡. „UÊÃÊ ÿˇÊà‚⁄USflÃË ◊·Sÿ fl¬ÊÿÊ ◊Œ‚Ê ¡È·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡. „UÊÃÊ ÿˇÊÁŒãº˝◊η÷Sÿ fl¬ÊÿÊ ◊Œ‚Ê ¡È·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡.. (41) „UÊÃÊ Ÿ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¿Uʪ ∑§ ◊Œ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ë „UË „UÁfl ‚ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „UÊÃÊ Ÿ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ◊· ∑§ ◊ŒU ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ë „UË „UÁfl ‚ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ß¢º˝ ∑§Ë ¬˝‚ããÊÃÊ „UÃÈ ´§·÷ ∑§Ë fl‚Ê ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „UÊÃÊ ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ∞‚Ê ÿôÊ ∑§⁄¥U. (41) „UÊÃÊ ÿˇÊŒÁ‡flŸÊÒ ‚⁄USflÃËÁ◊ãº˝ ¦ ‚ÈòÊÊ◊ÊáÊÁ◊◊ ‚Ê◊Ê— ‚È⁄UÊ◊Êáʇ¿Uʪҟ¸ ◊·Ò´¸§·÷Ò— ‚ÈÃÊ— ‡Êc¬ÒŸ¸ ÃÊÄ◊Á÷‹Ê¸¡Ò◊¸„USflãÃÊ ◊ŒÊ ◊Ê‚⁄UáÊ ¬Á⁄Uc∑ΧÃÊ— ‡ÊÈ∑˝§Ê— ¬ÿSflãÃÊ◊ÎÃÊ— ¬˝ÁSÕÃÊ flÊ ◊œÈ‡øÈÃSÃÊŸÁ‡flŸÊ ‚⁄USflÃËãº˝— ‚ÈòÊÊ◊Ê flÎòÊ„UÊ ¡È·ãÃÊ ¦ ‚Êêÿ¢ ◊œÈ Á¬’ãÃÈ ◊ŒãÃÈ √ÿãÃÈ „UÊÃÿ¸¡.. (42) „UÊÃÊ Ÿ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ‚È¢Œ⁄U ¿Uʪʥ (•Ê·Áœ) ‚ ÿ¡Ÿ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ flÒ÷fl‡ÊÊ‹Ë ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ´§·÷Ê¥ ‚ ÿ¡Ÿ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ߟ •Ê·ÁœÿÊ¥ ‚ ÿ¡Ÿ Á∑§ÿÊ. ÿ¡◊ÊŸ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ œÊŸ, πË‹, ¬Á⁄Uc∑Χà ⁄U‚Ë‹Ê ◊œÈ øÈ•ÊŸ flÊ‹Ê ‚Ê◊ •ÊÁŒ ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U, flÒ÷flflÊŸ flÎòÊ ŸÊ‡Ê∑§ ߢº˝ Œfl, ‚⁄USflÃË ŒflË ß‚ ◊œÈ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬Ë∞¢. ◊Œ◊Sà „UÊ¥. „U „UÊÃÊ! •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ê „UË ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. (42) „UÊÃÊ ÿˇÊŒÁ‡flŸÊÒ ¿UʪSÿ „UÁfl· ˘ •ÊûÊÊ◊l ◊äÿÃÊ ◊Œ ˘ ©UŒ˜÷Îâ ¬È⁄UÊ m·Êèÿ— ¬È⁄UÊ ¬ÊÒL§·ƒÿÊ ªÎ÷Ê ÉÊSÃÊ¢ ŸÍŸ¢ ÉÊÊ‚ •ÖÊ˝ÊáÊÊ¢ ÿfl‚¬˝Õ◊ÊŸÊ ¦ ‚È◊àˇÊ⁄UÊáÊÊ ¦ ‡ÊÃL§Áº˝ÿÊáÊÊ◊ÁÇŸcflÊûÊÊŸÊ¢ ¬Ëflʬfl‚ŸÊŸÊ¢ ¬Ê‡fl¸Ã— üÊÊÁáÊ× Á‡ÊÃÊ◊à ˘ ©Uà‚ÊŒÃÊXÊŒXÊŒflûÊÊŸÊ¢ ∑§⁄Uà ˘ ∞flÊÁ‡flŸÊ ¡È·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡.. (43) „UÊÃÊ Ÿ •Á‡flŸË ∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¿Uʪ (•ÊcÊÁœ) ∑§ ’Ëø ∑§ ÷ʪ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. mÁ·ÿÊ¥ ‚ ¬„U‹ Á¡ã„¥U ¬ÊÒL§· ‚ •ããÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU, fl ŒflªáÊ •¬Ÿ ¬ÊÒL§· ‚ •ããÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ©U‚ •ããÊ ∑§Ê ¬øÊ ∑§⁄U flÊÿÈ M§¬ ◊¥ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ªÈŸÊ »Ò§‹Ê ŒÃ „Ò¥U. ∑§Ê¢π, ∑§◊⁄, ªÈåÃÊ¢ª ÃÕÊ •ãÿ •¢ªÊ¥ ∑§Ê „UÊÁŸ Ÿ „UÊ. fl •¢ª ¬Èc≈U „UÊ¥. „U „UÊÃÊ! ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (43) „UÊÃÊ ÿˇÊØ ‚⁄USflÃË¥ ◊·Sÿ „UÁfl· ˘ •ÊflÿŒl ◊äÿÃÊ ◊Œ ˘ ©UjÎâ ¬È⁄UÊ m·Êèÿ— ¬È⁄UÊ ¬ÊÒL§·ƒÿÊ ªÎ÷Ê ÉÊ‚ãŸÍŸ¢ ÉÊÊ‚ •ÖÊ˝ÊáÊÊ¢ ÿfl‚¬˝Õ◊ÊŸÊ ¦ ‚È◊àˇÊ⁄UÊáÊÊ ¦ ‡ÊÃL§Áº˝ÿÊáÊÊ◊ÁÇŸcflÊûÊÊŸÊ¢ ¬Ëflʬfl‚ŸÊŸÊ¢ ¬Ê‡fl¸Ã— üÊÊÁáÊ× Á‡ÊÃÊ◊à ˘ ©Uà‚ÊŒÃÊ ˘ XÊŒXÊŒflûÊÊŸÊ¢ ∑§⁄UŒfl ¦ ‚⁄USflÃË ¡È·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡.. (44) •Ê¡ „UÊÃÊ Ÿ ŒflË ‚⁄USflÃË ∑§ Á‹∞ ◊· ∑§ ’Ëø ∑§ ÷ʪ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. mÁ·ÿÊ¥ 278 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚ ¬„U‹ Á¡ã„¥U ¬ÊÒL§· ‚ •ããÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU, fl ŒflªáÊ •¬Ÿ ¬ÊÒL§· ‚ •ããÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ©U‚ •ããÊ ∑§Ê ¬øÊ ∑§⁄U flÊÿÈ M§¬ ◊¥ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ªÈŸÊ »Ò§‹Ê ŒÃ „Ò¥U. ∑§Ê¢π, ∑§◊⁄, ªÈåÃÊ¢ª ÃÕÊ •ãÿ •¢ªÊ¥ ∑§Ê „UÊÁŸ Ÿ „UÊ. fl •¢ª ¬Èc≈UU „UÊ¥. „U „UÊÃÊ! ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (44) „UÊÃÊ ÿˇÊÁŒãº˝◊η÷Sÿ „UÁfl· ˘ •ÊflÿŒl ◊äÿÃÊ ◊Œ ˘ ©UjÎâ ¬È⁄UÊ m·Êèÿ— ¬È⁄UÊ ¬ÊÒL§·ƒÿÊ ªÎ÷Ê ÉÊ‚ãŸÍŸ¢ ÉÊÊ‚ •ÖÊ˝ÊáÊÊ¢ ÿfl‚¬˝Õ◊ÊŸÊ ¦ ‚È◊àˇÊ⁄UÊáÊÊ ¦ ‡ÊÃUL§Áº˝ÿÊáÊÊ◊ÁÇŸcflÊûÊÊŸÊ¢ ¬Ëflʬfl‚ŸÊŸÊ¢ ¬Ê‡fl¸Ã— üÊÊÁáÊ× Á‡ÊÃÊ◊à ˘ ©Uà‚ÊŒÃÊ ˘ XÊŒXÊŒflûÊÊŸÊ¢ ∑§⁄UŒflÁ◊ãº˝Ê ¡È·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡.. (45) •Ê¡ „UÊÃÊ Ÿ ߢº˝ Œfl „UÃÈ ´§·÷ ∑§ ’Ëø ∑§ ÷ʪ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. mÁ·ÿÊ¥ ‚ ¬„U‹ Á¡ã„¥U ¬ÊÒL§· ‚ •ããÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ê •Áœ∑§Ê⁄U „ÒU, fl ŒflªáÊ •¬Ÿ ¬ÊÒL§· ‚ •ããÊ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ©U‚ •ããÊ ∑§Ê ¬øÊ ∑§⁄U flÊÿÈ M§¬ ◊¥ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ªÈŸÊ »Ò§‹Ê ŒÃ „Ò¥U. ∑§Ê¢π, ∑§◊⁄, ªÈåÃÊ¢ª ÃÕÊ •ãÿ •¢ªÊ¥ ∑§Ê „UÊÁŸ Ÿ „UÊ. fl •¢ª ¬Èc≈UU „UÊ¥. „U „UÊÃÊ! ‚’ ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (45) „UÊÃÊ ÿˇÊmŸS¬ÁÃ◊Á÷ Á„U Á¬CÔUÃ◊ÿÊ ⁄UÁ÷cΔUÿÊ ⁄U‡ÊŸÿÊÁœÃ. ÿòÊÊÁ‡flŸÊ‡¿UʪSÿ „UÁfl·— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊ ‚⁄USflàÿÊ ◊·Sÿ „UÁfl·— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊãº˝Sÿ ´§·÷Sÿ „UÁfl·— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊÊÇŸ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊ ‚Ê◊Sÿ Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊãº˝Sÿ ‚ÈòÊÊêáÊ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊ ‚ÁflÃÈ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊ flL§áÊSÿ Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊ flŸS¬Ã— Á¬˝ÿÊ ¬ÊÕÊ ¦ Á‚ ÿòÊ ŒflÊŸÊ◊ÊÖÿ¬ÊŸÊ¢ Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿòÊÊÇŸ„UʸÃÈ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÃòÊÒÃÊã¬˝SÃÈàÿflʬSÃÈàÿflʬÊfldˇÊº˝÷Ëÿ‚ ˘ ßfl ∑ΧàflË ∑§⁄UŒfl¢ ŒflÊ flŸS¬Ááȸ·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡.. (46) „UÊÃÊ Ÿ flŸS¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ’¢œ „ÈU∞ ¬‡ÊÈ ∑§Ë ÷Ê¢Áà flŸS¬Áà •¬Ÿ SÕÊŸ ¬⁄U ⁄U„UŸ (ÁSÕ⁄U) ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¡„UÊ¢ ¿Uʪ ∑§Ë „Áfl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „Ò, ¡„UÊ¢ ◊· ∑§Ë „Áfl ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „Ò, ¡„UÊ¢ ´§·÷ ∑§Ë „Áfl ߢº˝ Œfl ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „Ò, ¡„UÊ¢ •ÁÇŸ ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ ‚Ê◊ ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ ‚È⁄UˇÊ∑§ ߢº˝ Œfl ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ flL§áÊ Œfl ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ flŸS¬Áà Œfl ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ ÉÊË ∑§Ë „UÁfl ¬ËŸ flÊ‹ ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ •ÁÇŸ „UÊÃÊ „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ê Á¬˝ÿ œÊ◊ „ÒU, fl„UÊ¢ ¬˝SÃÈà •ÊÒ⁄U •U¬˝SÃÈà „UÊ ∑§⁄U ŒflªáÊ ©UûÊ◊ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ê „UË ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. (46) „UÊÃÊ ÿˇÊŒÁÇŸ ¦ ÁSflCÔU∑ΧÃ◊ÿÊ«UÁÇŸ⁄UÁ‡flŸÊ‡¿UʪSÿ „UÁfl·— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊ≈U˜ ‚⁄USflàÿÊ ◊·Sÿ „UÁfl·— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊÁ«Uãº˝Sÿ ´§·÷Sÿ „UÁfl·— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊ«UÇŸ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊ≈˜U ‚Ê◊Sÿ Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊÁ«Uãº˝Sÿ ‚ÈòÊÊêáÊ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊ≈˜U ‚ÁflÃÈ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊ«˜U flL§áÊSÿ Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊãÿÿÊ«˜U flŸS¬Ã— Á¬˝ÿÊ ¬ÊÕÊ ¦ SÿÿÊ«˜U ŒflÊŸÊ◊ÊÖÿ¬ÊŸÊ¢ ÿ¡Èfl¸Œ - 279
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿˇÊŒÇŸ„UʸÃÈ— Á¬˝ÿÊ œÊ◊ÊÁŸ ÿˇÊØ Sfl¢ ◊Á„U◊ÊŸ◊Êÿ¡ÃÊ◊ÖÿÊ ˘ ß·— ∑ΧáÊÊÃÈ ‚Ê •äfl⁄UÊ ¡ÊÃflŒÊ ¡È·ÃÊ ¦ „UÁfl„UʸÃÿ¸¡.. (47) „UÊÃÊ Ÿ •ÁÇŸ „UÃÈ ÷‹Ë÷Ê¢Áà ÿôÊ Á∑§ÿÊ. •ÁÇŸ Ÿ ∑Χ¬Ê ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¢ ∑§Ê ¿Uʪ ∑§ œÊ◊ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§∞. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê ´§·÷ œÊ◊ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§∞. ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ê ◊· ∑§ œÊ◊ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§∞. flL§áÊ Œfl ∑§ Á¬˝ÿ œÊ◊ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§∞. flŸS¬Áà ∑§ Á¬˝ÿœÊ◊ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§∞. ÉÊË ∑§Ë „UÁfl ¬ËŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ Á¬˝ÿ œÊ◊ ‚◊Á¬¸Ã Á∑§∞. •ÁÇŸ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë „Ò¥U. fl Á¬˝ÿ „UÁfl ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄¥U. „U „UÊÃÊ ªáÊ! •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ê „UË ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. (47) Œfl¢ ’Á„¸U— ‚⁄USflÃË ‚ÈŒflÁ◊ãº˝ •Á‡flŸÊ. Ã¡Ê Ÿ øˇÊÈ⁄UˇÿÊ’¸Á„¸U·Ê ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (48) ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ Œfl ‚ÈŒfl ߢº˝ •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ ÁŒÿÊ. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ á ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈U ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U. œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (48) ŒflËmʸ⁄UÊ •Á‡flŸÊ Á÷·¡ãº˝ ‚⁄USflÃË. ¬˝ÊáÊ¢ Ÿ flËÿZ ŸÁ‚ mÊ⁄UÊ ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (49) ‚⁄USflÃË ŒflË ÁŒ√ÿ mÊ⁄U flÊ‹Ë „ÒU¢, •Á‡flŸËŒfl Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ ¬˝ÊáÊ •ÊÒ⁄U flËÿ¸ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈U ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U . œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (49) ŒflË ©U·Ê‚ÊflÁ‡flŸÊ ‚ÈòÊÊ◊ãº˝ ‚⁄USflÃË. ’‹¢ Ÿ flÊø◊ÊSÿ ˘ ©U·ÊèÿÊ¢ ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (50) ⁄UÊÁòÊ Œfl ©U·Ê ŒflË „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ ’‹ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ◊È¢„U ◊¥ flÊáÊË ‡ÊÁÄà ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈U ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U . œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (50) ŒflË ¡ÊCÔ˛UË ‚⁄USflàÿÁ‡flŸãº˝◊flœ¸ÿŸ˜. üÊÊòÊ㟠∑§áʸÿÊÿ¸‡ÊÊ ¡ÊCÔ˛UËèÿÊ¢ ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (51) ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ ¡Ê‡Ê ’…∏UÊÿÊ. ߢº˝ Œfl ∑§Ê ÿ‡Ê ’…∏UÊÿÊ. ŒÊŸÊ¥ ∑§ÊŸÊ¥ ◊¥ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ‡ÊÁÄà SÕÊÁ¬Ã ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈UU ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U . œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (51) 280 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ŒflË ™§¡Ê¸„ÈUÃË ŒÈÉÊ ‚ÈŒÈÉÊãº˝ ‚⁄USflàÿÁ‡flŸÊ Á÷·¡Êfl×. ‡ÊÈ∑˝¢§ Ÿ ÖÿÊÁà SßÿÊ⁄UÊ„ÈUÃË œûÊ ˘ ßÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (52) ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ™§¡Ê¸ flÊ‹, ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ ¬Í⁄U∑§ fl ⁄U‚Ë‹ „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ ‡ÊÈ∑˝§ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ’Ëø ∑§ ¬˝Œ‡Ê ◊¥ ÖÿÊÁà SÕÊÁ¬Ã ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈UU ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U . œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (52) ŒflÊ ŒflÊŸÊ¢ Á÷·¡Ê „UÊÃÊ⁄UÊÁflãº˝◊Á‡flŸÊ. fl·≈˜U∑§Ê⁄ÒU— ‚⁄USflÃË ÁàflÁ·¢ Ÿ NUŒÿ ◊Áà ¦ „UÊÃÎèÿÊ¢ ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (53) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ŒflÊ¥ ∑§ Œfl „Ò¥U. fl ŒflÊ¥ ∑§ ÁøÁ∑§à‚∑§ „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ fl·≈U˜Ô∑§Ê⁄U (á) fl NUŒÿ ◊¥ ’ÈÁh ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈U ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄U¢. œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (53) ŒflËÁSÃdÁSÂ˝Ê ŒflË⁄UÁ‡flŸ«UÊ ‚⁄USflÃË. ‡ÊÍ·¢ Ÿ ◊äÿ ŸÊèÿÊÁ◊ãº˝Êÿ ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (54) ‚⁄USflÃË •ÊÁŒ ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¥ ‚Á„Uà •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ ◊äÿ ÷ʪ ◊¥ ŸÊÁ÷ ◊¥ ’‹ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÊÿÊ. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈U ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U . œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (54) Œfl ˘ ßãº˝Ê Ÿ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚ÁSòÊflM§Õ— ‚⁄USflàÿÊÁ‡flèÿÊ◊Ëÿà ⁄UÕ—. ⁄UÃÊ Ÿ M§¬◊◊Îâ ¡ÁŸòÊÁ◊ãº˝Êÿ àflCÔUÊ ŒœÁŒÁãº˝ÿÊÁáÊ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (55) ‚⁄USflÃË ŒflË, àflCÔUÊ Œfl ÃÕÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ¬˝‡Ê¢‚Ê ÿÊÇÿ ⁄UÕ ¬˝SÃÈà Á∑§ÿÊ. ߟ ŒflÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ flËÿ¸ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. M§¬ ©U¬¡ÊÿÊ. ¡ŸŸ¥Áº˝ÿ ◊¥ ©U¬¡ÊŸ ∑§Ë ‡ÊÁÄà ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈UU ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U . œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (55) ŒflÊ ŒflÒfl¸ŸS¬ÁÃÁ„¸U⁄Uáÿ¬áÊʸ •Á‡flèÿÊ ¦ ‚⁄USflàÿÊ ‚ÈÁ¬å¬‹ ˘ ßãº˝Êÿ ¬ëÿà ◊œÈ. •Ê¡Ê Ÿ ¡ÍÁô¸§·÷Ê Ÿ ÷Ê◊¢ flŸS¬Áßʸ ŒœÁŒÁãº˝ÿÊÁáÊ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (56) ÿ¡Èfl¸Œ - 281
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
flŸS¬Áà Œfl ŒflÊ¥ ∑§ Œfl •ÊÒ⁄U ‚ÈŸ„U⁄U ¬ûÊÊ¥ flÊ‹ »§‹Ê¥ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. flŸS¬Áà Œfl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ÃÕÊ ‚⁄USflÃË ŒflË Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •ë¿U ◊ËΔU »§‹ ‚ ¬ÊÿÊ. ߢº˝ Œfl ◊¥ •Ê¡ ÃÕÊ ’‹ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÊÿÊ. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •Ê¢πÊ¥ ◊¥ ŒÎÁc≈UU ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. ߢº˝ Œfl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄¥U . œŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (56) Œfl¢ ’Á„¸UflʸÁ⁄UÃËŸÊ◊äfl⁄U SÃËáʸ◊Á‡flèÿÊ◊Íáʸê◊˝ŒÊ— ‚⁄USflàÿÊ SÿÊŸÁ◊ãº˝ à ‚Œ—. ߸‡ÊÊÿÒ ◊ãÿÈ ¦ ⁄UÊ¡ÊŸ¢ ’Á„¸U·Ê ŒœÈÁ⁄UÁãº˝ÿ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (57) ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U Ÿ ÿôÊ‚ŒŸ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ Á’¿UÊÿÊ. ßã„UÊ¥Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ ◊ãÿÈ (∑˝§Êœ) ÃÕÊ flÒ÷fl œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÊÿÊ. (57) ŒflÊ •ÁÇŸ— ÁSflCÔU∑ΧgflÊãÿˇÊlÕÊÿÕ ¦ „UÊÃÊ⁄UÊÁflãº˝◊Á‡flŸÊ flÊøÊ flÊø ¦ ‚⁄USflÃË◊ÁÇŸ ¦ ‚Ê◊ ¦ ÁSflCÔU∑ΧØ ÁSflCÔU ˘ ßãº˝— ‚ÈòÊÊ◊Ê ‚ÁflÃÊ flL§áÊÊ Á÷·Áªc≈UÊ ŒflÊ flŸS¬Á× ÁSflc≈UÊ ŒflÊ ˘ •ÊÖÿ¬Ê— ÁSflc≈UÊ •ÁÇŸ⁄UÁÇŸŸÊ „UÊÃÊ „UÊòÊ ÁSflc≈U∑Χl‡ÊÊ Ÿ ŒœÁŒÁãº˝ÿ◊Í¡¸◊¬ÁøÁà ¦ SflœÊ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (58) ÷‹Ë÷Ê¢Áà ‹ˇÿ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÃÈ •ÁÇŸ, Á◊òÊ Œfl, flL§áÊ Œfl, ߢº˝ Œfl, ‚ÁflÃÊ Œfl, flŸS¬Áà Œfl ÃÕÊ ÉÊË ¬ËŸ flÊ‹ •ãÿ ŒflÊ¥ Ÿ •ÁÇŸ mÊ⁄UÊ ª˝„UáÊ ∑§Ë „ÈU߸ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ. ŒflªáÊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ mÊ⁄UÊ Á∑§∞ ª∞ ÿôÊ ‚ ¬˝‚ããÊ „ÈU∞. ŒflªáÊ Ÿ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿ‡Ê, ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄÃ, ’‹ ÃÕÊ ¬⁄UÊ∑˝§◊ œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. (58) •ÁÇŸ◊l „UÊÃÊ⁄U◊flÎáÊËÃÊÿ¢ ÿ¡◊ÊŸ— ¬øŸ˜ ¬ÄÃË— ¬øŸ˜ ¬È⁄UÊ«UʇÊÊŸ˜ ’äŸãŸÁ‡flèÿÊ¢ ¿Uʪ ¦ ‚⁄USflàÿÒ ◊·Á◊ãº˝Êÿ ´§·÷ ¦ ‚ÈãflãŸÁ‡flèÿÊ ¦ ‚⁄USflàÿÊ ˘ ßãº˝Êÿ ‚ÈòÊÊêáÊ ‚È⁄UÊ‚Ê◊ÊŸ˜.. (59) ß‚ ÿ¡◊ÊŸ Ÿ •Ê¡ „UÊÃÊ •ÁÇŸ ∑§Ê fl⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ◊· ‚ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§ÊÿÊ. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¿Uʪ ‚ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§ÊÿÊ. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ´§·÷ ‚ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§ÊÿÊ. ‚⁄USflÃË ŒflË ÃÕÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl „UÃÈ ‚È⁄UÊ (•Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ÃËπÊ ⁄U‚) •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ÷¥≈U Á∑§ÿÊ. (59) ‚ͬSÕÊ ˘ •l ŒflÊ flŸS¬ÁÃ⁄U÷flŒÁ‡flèÿÊ¢ ¿UʪŸ ‚⁄USflàÿÒ ◊·áÊãº˝Êÿ ´§·÷áÊÊˇÊ°SÃÊŸ˜ ◊ŒS× ¬˝Áà ¬øÃʪÎ÷Ë·ÃÊflËflÎœãà ¬È⁄UÊ«UʇÊÒ⁄U¬È⁄UÁ‡flŸÊ ‚⁄USflÃËãº˝— ‚ÈòÊÊ◊Ê ‚È⁄UÊ‚Ê◊ÊŸ˜.. (60) •Ê¡ flŸS¬Áà Œfl ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄¥U . ©Uã„UÊ¥Ÿ ¿Uʪ ‚ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê ¬˝‚ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ◊· ‚ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ê ¬˝‚ããÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ´§·÷ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠Á∑§ÿÊ. ÃËŸÊ¥ Œfl ß‚ ‚ •ÊŸ¢ÁŒÃ „ÈU∞. ߟ •Ê·ÁœÿÊ¥ ‚ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§ÊÿÊ. ‚⁄USflÃË ŒflË ÃÕÊ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl „UÃÈ ‚È⁄UÊ (•Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ÃËπÊ ⁄U‚) •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ÷¥≈U Á∑§ÿÊ. (60) 282 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ßÄ∑§Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
àflÊ◊l ´§· ˘ •Ê·¸ÿ ´§·ËáÊÊ¢ Ÿ¬ÊŒflÎáÊËÃÊÿ¢ ÿ¡◊ÊŸÊ ’„ÈUèÿ ˘ •Ê ‚XÃèÿ ˘ ∞· ◊ Œfl·È fl‚È flÊÿʸÿˇÿà ˘ ßÁà ÃÊ ÿÊ ŒflÊ Œfl ŒÊŸÊãÿŒÈSÃÊãÿS◊Ê ˘ •Ê ø ‡ÊÊSSflÊ ø ªÈ⁄USflÁ·Ã‡ø „UÊÃ⁄UÁ‚ ÷º˝flÊëÿÊÿ ¬˝Á·ÃÊ ◊ÊŸÈ·— ‚ÍÄÃflÊ∑§Êÿ ‚ÍÄÃÊ ’˝ÍÁ„U.. (61) •Ê·¸ ´§Á·ÿÊ¥ ∑§ ◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹Ã „UÈ∞ ÿ¡◊ÊŸ Ÿ ÿôÊ ◊¥ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§Ê fl⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ÿ¡◊ÊŸ Ÿ ∞‡flÿ¸ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ߟ ŒflªáÊÊ¥ Ÿ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ ÁŒ√ÿ ŒÊŸ Á∑§∞. „U „UÊÃÊ•Ê! •Ê¬ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÷º˝ flÊáÊË ‚ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ë¿U flÊáÊË◊ÿ ‚ÍòÊÊ¥ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (61)
ÿ¡Èfl¸Œ - 283
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ áÊÁ‚ ‡ÊÈ∑˝§◊◊ÎÃ◊ÊÿÈc¬Ê ˘ •ÊÿÈ◊¸ ¬ÊÁ„U. ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊ÊŒŒ.. (1) „U Œfl! •Ê¬ áÊ◊ÿ, ø◊∑§Ë‹, •◊⁄U fl •ÊÿÈ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. ‚ÁflÃÊ Œfl •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ∑§Ë ’Ê„È ÃÕÊ ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ •Ê¬ „U◊ ¬⁄U ∑Χ¬Ê ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (1) ß◊Ê◊ªÎèáÊŸ˜ ⁄U‡ÊŸÊ◊ÎÃSÿ ¬Ífl¸ ˘ •ÊÿÈÁ· ÁflŒÕ·È ∑§√ÿÊ. ‚Ê ŸÊ •ÁS◊ãà‚Èà ˘ •Ê ’÷Ífl ´§ÃSÿ ‚Ê◊ãà‚⁄U◊Ê⁄U¬ãÃË.. (2) ∑§ÁflÿÊ¥ Ÿ ÿôÊ ‚ ôÊÊŸ ¬ÊÿÊ. ôÊÊŸ ‚ ‚ÎÁCÔU fl •ÊÿÈ ∑§Ê ¡ÊŸÊ. fl „U◊Ê⁄U ¬ÈòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ´§Ã ∑§Ê ¡ÊŸ¥. ¬˝∑ΧÁà ∑§§⁄U„USÿÊ¥ ∑§Ê ¡ÊŸ ¡Ê∞¢. (2) •Á÷œÊ •Á‚ ÷ÈflŸ◊Á‚ ÿãÃÊÁ‚ œûÊʸ. ‚ àfl◊ÁÇŸ¢ flÒ‡flÊŸ⁄ ¦ ‚¬˝Õ‚¢ ªë¿U SflÊ„UÊ∑Χ×.. (3) „U •‡fl! •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ œÊ⁄U∑§, ÷ÈflŸ, ÁŸÿ¢òÊ∑§ fl œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ flÒ‡flÊŸ⁄U •ÁÇŸ ◊¥ •Ê„ÈUÁà ŒËÁ¡∞. •Ê¬ •Ê„ÈUÁìÍfl¸∑§ •¬Ÿ ÁŸœÊ¸Á⁄Uà SÕÊŸ Ã∑§ ¬„¢ÈUøŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (3) SflªÊ àflÊ Œflèÿ— ¬˝¡Ê¬Ãÿ ’˝rÊÔ㟇fl¢ ÷ãàSÿÊÁ◊ Œflèÿ— ¬˝¡Ê¬Ãÿ ß ⁄UÊäÿÊ‚◊˜. â ’œÊŸ Œflèÿ— ¬˝¡Ê¬Ãÿ ß ⁄UÊäŸÈÁ„U.. (4) •Ê¬ ‚fl¸òÊ ª◊Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . •Ê¬ ŒflÊ¥ Ã∑§ Sflÿ¢ ¡ÊŸ flÊ‹ „ÒU¥ . •Ê¬ ¬˝¡Ê¬Áà Ã∑§ ¬„¢UÈ øŸ flÊ‹ „ÒU¥ . •ÁÇŸ ’˝rÊôÊÊŸË „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢UÈ øŸ ∑§Ë ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ŒflÃÊ •ÊÒ⁄U ¬˝¡Ê¬Áà „U◊¥ ‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (4) ¬˝¡Ê¬Ãÿ àflÊ ¡ÈCÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊ◊Ëãº˝ÊÁÇŸèÿÊ¢ àflÊ ¡ÈCÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊ flÊÿfl àflÊ ¡ÈCÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊ Áfl‡flèÿSàflÊ ŒflèÿÊ ¡ÈCÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊ ‚fl¸èÿSàflÊ ŒflèÿÊ ¡ÈCÔ¢U ¬˝ÊˇÊÊÁ◊. ÿÊ •fl¸ãâ Á¡ÉÊÊ ¦ ‚Áà Ã◊èÿ◊ËÁà flL§áÊ—. ¬⁄UÊ ◊ûʸ— ¬⁄U— ‡flÊ.. (5) ¬˝¡Ê¬Áà ‚’ ∑§ Á¬˝ÿ „Ò¥U. „U◊ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •Á÷·∑§ ∑§⁄Uà 284 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„Ò¥U. ߢº˝ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •Á÷·∑§ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ flÊÿÈ ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •Á÷·∑§ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áfl‡fl Œfl ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •Á÷·∑§ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§Ë ‚¢ÃÈÁc≈U „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •Á÷·∑§ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ ∑§Ë ¡Ê ø¢ø‹ ™¢§øË ©UΔUÃË „ÈU߸ ‹¬≈¥U „Ò¥U ©Uã„¥U ¡Ê ÷Ë „UÊÁŸ ¬„¢ÈUøÊŸ flÊ‹ „UÊ¥, ©Uã„¥U flL§áÊ Œfl Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§U⁄¥U. ÿôÊ ∑§Ê ŸÈ∑§‚ÊŸ ¬„¢ÈUøÊŸ flÊ‹ ∑ȧûÊÊ¥ •ÊÒ⁄U ∞‚ √ÿÁÄÃÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (5) •ÇŸÿ SflÊ„UÊ ‚Ê◊Êÿ SflÊ„Uʬʢ ◊ÊŒÊÿ SflÊ„UÊ ‚ÁflòÊ SflÊ„UÊ flÊÿfl SflÊ„UÊ ÁflcáÊfl SflÊ„Uãº˝Êÿ SflÊ„UÊ ’΄US¬Ãÿ SflÊ„Ê Á◊òÊÊÿ SflÊ„UÊ flL§áÊÊÿ SflÊ„UÊ.. (6) •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÁflÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁflcáÊÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ߢº˝ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’΄US¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Á◊òÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flL§áÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (6) Á„UVÊ⁄UÊÿ SflÊ„UÊ Á„Uæ˜U ∑ΧÃÊÿ S√ÊÊ„UÊ ∑˝§ãŒÃ SflÊ„UÊfl∑˝§ãŒÊÿ SflÊ„UÊ ¬˝ÊÕà SflÊ„Ê ¬˝¬˝ÊÕÊÿ SflÊ„UÊ ªãœÊÿ SflÊ„UÊ ÉÊ˝ÊÃÊÿ SflÊ„UÊ ÁŸÁflCÔUÊÿ SflÊ„UʬÁflCÔUÊÿ S√ÊÊ„UÊ ‚ÁãŒÃÊÿ SflÊ„UÊ flÀªÃ SflÊ„UÊ‚ËŸÊÿ S√ÊÊ„UÊ ‡ÊÿÊŸÊÿ SflÊ„UÊ Sfl¬Ã SflÊ„UÊ ¡Êª˝Ã SflÊ„UÊ ∑ͧ¡Ã SflÊ„UÊ ¬˝’ÈhÊÿ S√ÊÊ„UÊ Áfl¡Îê÷◊ÊáÊÊÿ SflÊ„UÊ ÁfløÎûÊÊÿ SflÊ„UÊ ‚ ¦ „UÊŸÊÿ S√ÊÊ„UʬÁSÕÃÊÿ S√ÊÊ„UÊÿŸÊÿ S√ÊÊ„UÊ ¬˝ÊÿáÊÊÿ SflÊ„UÊ.. (7) Á„¢U∑§Ê⁄UU ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Á„¢U∑Χà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑˝¢§ŒŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •fl∑˝¢§ŒŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§Êÿ¸ ‡ÊÈM§ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§Êÿ¸ ‚◊Êåà ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ª¢œ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Í¢ÉÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁSÕà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’ÒΔUŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁSÕ⁄U ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ªÁÃ◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê‚Ÿ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡Êª˝Ã ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑ͧ¡Ÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝’Èh ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡ê„UÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. øÒÃãÿ „UÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©U¬ÁSÕà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Êª◊Ÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ª◊Ÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (7) ÿà SflÊ„UÊ œÊflà SflÊ„UÊŒ˜º˝ÊflÊÿ SflÊ„UÊŒ˜º˝ÈÃÊÿ SflÊ„UÊ ‡ÊÍ∑§Ê⁄UÊÿ SflÊ„UÊ ‡ÊÍ∑ΧÃÊÿ SflÊ„UÊ ÁŸ·ááÊÊÿ SflÊ„UÊÁàÕÃÊÿ SflÊ„UÊ ¡flÊÿ SflÊ„UÊ ’‹Êÿ SflÊ„UÊ Áflflûʸ◊ÊŸÊÿ SflÊ„UÊ ÁflflÎûÊÊÿ SflÊ„UÊ ÁflœÍãflÊŸÊÿ SflÊ„UÊ ÁflœÍÃÊÿ SflÊ„UÊ ‡ÊÈüÊÍ·◊ÊáÊÊÿ SflÊ„UÊ oÎáflà SflÊ„UˇÊ◊ÊáÊÊÿ SflÊ„UÁˇÊÃÊÿ SflÊ„UÊ flËÁˇÊÃÊÿ SflÊ„UÊ ÁŸ◊·Êÿ SflÊ„UÊ ÿŒÁûÊ ÃS◊Ò SflÊ„UÊ ÿØ Á¬’Áà ÃS◊Ò SflÊ„UÊ ÿã◊ÍòÊ¢ ∑§⁄UÊÁà ÃS◊Ò SflÊ„UÊ ∑ȧfl¸Ã SflÊ„UÊ ∑ΧÃÊÿ SflÊ„UÊ.. (8) ¡Êà „ÈU∞ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒÊÒ«∏Uà „ÈU∞ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©Uà∑§·¸‡ÊË‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©Uà∑§·¸ „UÃÈ ªÁÃ◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’ÒΔU „ÈU∞ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UΔU „ÈU∞ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flªflÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’Ê⁄U’Ê⁄U Á∑§∞ ¡ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’Ê⁄U’Ê⁄U Á∑§∞ ª∞ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§Ê¢¬Ÿ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§Ê¢¬Ÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÈŸŸ ∑§Ë ßë¿UÊ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÈŸŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒπŸ ∑§ ÿ¡Èfl¸Œ - 285
©UûÊ⁄UÊœ¸
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Á‹∞ SflÊ„UÊ. Œπ øÈ∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒπŸ¬⁄UπŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬‹∑§ ¤Ê¬∑§ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡Ê πÊÃÊ „Ò, ©U‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡Ê ¬ËÃÊ „ÒU, ©U‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡Ê ◊ÍòÊ Áfl‚Ì¡Ã ∑§⁄UÃÊ „ÒU, ©U‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§⁄U øÈ∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (8) Ãà‚ÁflÃÈfl¸⁄‘Uáÿ¢ ÷ªÊ¸ ŒflSÿ œË◊Á„U. ÁœÿÊ ÿÊ Ÿ— ¬˝øÊŒÿÊØ.. (9) ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U „ÒU. ‚ÁflÃÊ Œfl fl⁄áÿ, ‚ÊÒ÷ÊÇÿŒÊÿË fl ŒflÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ’ÈÁh ∑§Ê üÊcΔU ◊ʪ¸ ¬⁄U ©Uã◊Èπ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) Á„U⁄Uáÿ¬ÊÁáÊ◊ÍÃÿ ‚ÁflÃÊ⁄U◊Ȭ uÔUÿ. ‚ øûÊÊ ŒflÃÊ ¬Œ◊˜.. (10) ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ‚ÊŸ ∑§ „UÊÕÊ¥ flÊ‹ fl •Ê¬ ‚fl¸ôÊ fl ÁøûÊ ◊¥ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (10) ŒflSÿ øÃÃÊ ◊„UË¥ ¬˝ ‚ÁflÃÈ„¸UflÊ◊„U. ‚È◊Áà ¦ ‚àÿ⁄UÊœ‚◊˜.. (11) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ øÒÃãÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚àÿ M§¬Ë œŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ‚È◊Áà (•ë¿UË ’ÈÁh) „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (11) ‚Èc≈ÈUÁà ¦ ‚È◊ÃËflÎœÊ ⁄UÊÁà ¦ ‚ÁflÃÈ⁄UË◊„U. ¬˝ ŒflÊÿ ◊ÃËÁflŒ.. (12) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ‚È◊Áà ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ∑§Ê ‚ÈcΔÈU (üÊcΔU) ªÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (12) ⁄UÊÁà ¦ ‚à¬Áâ ◊„U ‚ÁflÃÊ⁄U◊Ȭ uÔÿ. •Ê‚fl¢ ŒflflËÃÿ.. (13) „U◊ ‚à¬ÁÃ, œŸ‡ÊË‹, flÒ÷flflÊŸ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÃÎåà ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (13) ŒflSÿ ‚ÁflÃÈ◊¸ÁÃ◊Ê‚fl¢ Áfl‡flŒ√ÿ◊˜. ÁœÿÊ ÷ª¢ ◊ŸÊ◊„U.. (14) ‚ÁflÃÊ Œfl flÒ÷flflÊŸ „Ò¥U. ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á„UÃÒ·Ë „Ò¥U. ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ’…∏UÊŸ flÊ‹Ë ’ÈÁh ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ „U◊ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (14) •ÁÇŸ ¦ SÃÊ◊Ÿ ’Êœÿ ‚Á◊œÊŸÊ •◊àÿ¸◊˜. „U√ÿÊ Œfl·È ŸÊ ŒœÃ˜.. (15) „U ¬È⁄UÊÁ„UÃ! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ê SÃÊòÊÊ¥ ‚ ¡Êª˝Ã ∑§ËÁ¡∞. ‚Á◊œÊ•Ê¥ ‚ ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§ËÁ¡∞. •ÁÇŸ •◊⁄U „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ „U◊Ê⁄UË „UÁfl ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (15) ‚ „U√ÿflÊ«U◊àÿ¸ ˘ ©UÁ‡ÊÇŒÍÇøŸÊÁ„U×. •ÁÇŸÁœ¸ÿÊ ‚◊ÎáflÁÃ.. (16) 286 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •◊⁄U „Ò¥U. •Ê¬ Sflÿ¢ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŒÍà „Ò¥U. •Ê¬ Á„UÃÒ·Ë „Ò¥U. •Ê¬ „UÁfl œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U ∑§ ©U‚ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) •ÁÇŸ¢ ŒÍâ ¬È⁄UÊ Œœ „U√ÿflÊ„U◊Ȭ ’˝Èfl. ŒflÊ° 2 •Ê ‚ÊŒÿÊÁŒ„U.. (17) •ÁÇŸ ŒÍà fl „U√ÿ flÊ„U∑§ „Ò¥U. „U◊ ‚ê◊Èπ „UË ©UŸ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U Á∑§ fl„UU ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄¥ fl Áfl⁄UÊ¡¥ •ÊÒ⁄U „UÁfl ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊ∞¢. (17) •¡Ë¡ŸÊ Á„U ¬fl◊ÊŸ ‚ÍÿZ ÁflœÊ⁄U ‡ÊÄ◊ŸÊ ¬ÿ—. ªÊ¡Ë⁄UÿÊ ⁄ ¦ „U◊ÊáÊ— ¬È⁄UãäÿÊ.. (18) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ ‚Íÿ¸ ∑§Ê ¬˝∑§≈UÊÿÊ. •Ê¬ ¡‹ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ⁄Uπà „Ò¥U. •Ê¬ ªÊÒ •ÊÁŒ ∑§ Á‹∞ ¡ËflŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ªÊÒ •ÊÁŒ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ¡‹ (ŒÍœ) œÊ⁄UÃË „Ò¥U. (18) Áfl÷Í◊ʸòÊÊ ¬˝÷Í— Á¬òÊʇflÊ ˘ Á‚ „UÿÊ ˘ SÿàÿÊ ˘ Á‚ ◊ÿÊ ˘ Sÿflʸ ˘ Á‚ ‚ÁåÃ⁄UÁ‚ flÊÖÿÁ‚ flηÊÁ‚ ŸÎ◊áÊÊ ˘ •Á‚. ÿÿȟʸ◊ÊÁ‚ Á‡Ê‡Êȟʸ◊ÊSÿÊÁŒàÿÊŸÊ¢ ¬àflÊÁãflÁ„U ŒflÊ ˘ •Ê‡ÊÊ¬Ê‹Ê ˘ ∞â ŒflèÿÊ ˘ ‡fl¢ ◊œÊÿ ¬˝ÊÁˇÊà ¦ ⁄UˇÊÄU ⁄UÁãÃÁ⁄U„U ⁄U◊ÃÊÁ◊„U œÎÁÃÁ⁄U„U SflœÎÁ× SflÊ„UÊ.. (19) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ flÒ÷fl ‚¢¬ããÊ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ Á¬ÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ •‡fl „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ „Ò¥U. •Ê¬ ªÁÇÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë „Ò¥U. •Ê¬ ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ◊˝ „Ò¥U. •Ê¬ Á‡Ê‡ÊÈ „Ò¥U. •Ê¬ ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÁŒàÿÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U •¬ŸË ⁄UÊ„U ¬⁄U ø‹Ã „Ò¥U. •Ê¬ ÁŒ‡ÊʬÁà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ß‚ ‚¢S∑§Ê⁄U ‚¢¬ããÊ ÉÊÊ«∏U ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÿ„U ÿ„UÊ¢ ¬˝‚ãŸÃÊ ‚ ⁄U◊áÊ ∑§⁄¥U, ⁄U◊¥. ÿ„U ÿôÊ ∑§Ê œÊ⁄¥U. ÿ„U Sflÿ¢ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‡ÊÁÄà flÊ‹ „Ò¥U. ߟ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (19) ∑§Êÿ SflÊ„UÊ ∑§S◊Ò SflÊ„UÊ ∑§Ã◊S◊Ò SflÊ„UÊ SflÊ„UÊÁœ◊ÊœËÃÊÿ SflÊ„UÊ ◊Ÿ— ¬˝¡Ê¬Ãÿ SflÊ„UÊ ÁøûÊ¢ ÁflôÊÊÃÊÿÊÁŒàÿÒ SflÊ„UÊÁŒàÿÒ ◊sÔÒ SflÊ„UÊÁŒàÿÒ ‚È◊ΫUË∑§ÊÿÒ SflÊ„UÊ ‚⁄USflàÿÒ SflÊ„UÊ ‚⁄USflàÿÒ ¬Êfl∑§ÊÿÒ SflÊ„UÊ ‚⁄USflàÿÒ ’΄UàÿÒ SflÊ„UÊ ¬ÍcáÊ SflÊ„ÊU ¬ÍcáÊ ¬˝¬âÿÊÿ SflÊ„UÊ ¬ÍcáÊ Ÿ⁄UÁ㜷Êÿ SflÊ„UÊ àflCÔ˛U SflÊ„UÊ àflCÔ˛U ÃÈ⁄UˬÊÿ SflÊ„UÊ àflCÔ˛U ¬ÈL§M§¬Êÿ SflÊ„UÊ ÁflcáÊfl SflÊ„UÊ ÁflcáÊfl ÁŸ÷Íÿ¬Êÿ SflÊ„UÊ ÁflcáÊfl Á‡ÊÁ¬ÁflCÔUÊÿ SflÊ„UÊ.. (20) ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Èπ „UÃÈ SflÊ„UÊ. ‚fl¸üÊcΔU ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁfllÊ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ „UÃÈ SflÊ„UÊ. ◊Ÿ SflM§¬ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁøûÊ SflM§¬ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁflÁ‡Êc≈U ôÊÊà •ÊÁŒàÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊äÿÊÁŒàÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÈπŒÊÿË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬ÁflòÊ ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Áfl‡ÊÊ‹flÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. üÊcΔU ¬ÕflÊ‹ ¬Í·Ê ÿ¡Èfl¸Œ - 287
©UûÊ⁄UÊœ¸
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊ÊŸflœÊ⁄UË ¬Í¡Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. àflc≈UÊ ¬Í¡Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÃËfl˝ ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁflÁflœ M§¬ ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁflcáÊÈ „UÃÈ SflÊ„UÊ. ÷ͬÁà Œfl „UÃÈ SflÊ„UÊ. ‚’ ∑§ ÁøûÊ ◊¥ ÁSÕà ÁflcáÊÈ Œfl „UÃÈ SflÊ„UÊ. (20) Áfl‡flÊ ŒflSÿ ŸÃÈ◊¸Ãʸ flÈ⁄UËà ‚Åÿ◊˜. Áfl‡flÊ ⁄UÊÿ ˘ ß·ÈäÿÁà lÈ꟢ flÎáÊËà ¬Ècÿ‚ SflÊ„UÊ.. (21) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ŸÊÿ∑§ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë Á◊òÊÃÊ fl ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ‚Ê⁄U flÒ÷fl ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „ÒU¥. „U◊ ¬Èc≈UÃÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ øÊ„Ã „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl „UÃÈ SflÊ„UÊ. (21) •Ê ’˝rÊÔŸ˜ ’˝ÊrÊÔáÊÊ ’˝rÊÔflø¸‚Ë ¡ÊÿÃÊ◊Ê ⁄UÊCÔ˛U ⁄UÊ¡ãÿ— ‡ÊÍ⁄U ˘ ß·√ÿÊÁÃ√ÿÊœË ◊„UÊ⁄UÕÊ ¡ÊÿÃÊ¢ ŒÊÇœ˝Ë œŸÈflʸ…UÊŸ«U˜flʟʇÊÈ— ‚Áå× ¬È⁄UÁãœÿʸ·Ê Á¡cáÊÍ ⁄UÕcΔUÊ— ‚÷ÿÊ ÿÈflÊSÿ ÿ¡◊ÊŸSÿ flË⁄UÊ ¡ÊÿÃÊ¢ ÁŸ∑§Ê◊ÁŸ∑§Ê◊ Ÿ— ¬¡¸ãÿÊ fl·¸ÃÈ »§‹flàÿÊ Ÿ ˘ •Ê·œÿ— ¬ëÿãÃÊ¢ ÿʪˇÊ◊Ê Ÿ— ∑§À¬ÃÊ◊˜.. (22) „U ’˝ÊrÊáÊ! •Ê¬ ’˝rÊflø¸SflË „Ò¥U. ⁄UÊc≈˛U ◊¥ ‡ÊÍ⁄UflË⁄U ’ÊáÊÁfllÊ ◊¥ ÁŸ¬ÈáÊ ◊„UÊ⁄UÕË ˇÊÁòÊÿ ©Uà¬ããÊ „UÊ¥. ÃËfl˝ flª flÊ‹ ÉÊÊ«∏U, ÷Ê⁄U …UÊŸ flÊ‹ ’Ò‹, ŒÈœÊM§ ªÊ∞¢ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê Á◊‹¥. ÁSòÊÿÊ¢ øÁ⁄UòÊflÃË •ÊÒ⁄U ªÈáÊflÃË „UÊ¥. flË⁄U Áfl¡ÿË „UÊ¥. ‚÷Ë ÿÈflÊ „UÊ¥. •ë¿U flÄÃÊ „UÊ¥. ’ÊŒ‹ •ë¿U ’⁄U‚¥. •Ê·ÁœÿÊ¢ »§‹flÃË „UÊ¥. ÿʪˇÊ◊ ∑§Ê ÷Ë ÁŸflʸ„U „UÊ. (22) ¬˝ÊáÊÊÿ SflÊ„UʬʟÊÿ SflÊ„UÊ √ÿÊŸÊÿ SflÊ„UÊ øˇÊÈ· SflÊ„UÊ üÊÊòÊÊÿ SflÊ„UÊ flÊø SflÊ„UÊ ◊Ÿ‚ SflÊ„UÊ.. (23) ¬˝ÊáÊ ∑§Ê SflÊ„UÊ. •¬ÊŸ ∑§Ê SflÊ„UÊ. √ÿÊŸ ∑§Ê SflÊ„UÊ. øˇÊÈ ∑§Ê SflÊ„UÊ. flÊáÊË ∑§Ê SflÊ„UÊ. ◊Ÿ ∑§Ê SflÊ„UÊ. (23) ¬˝ÊëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflʸëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊ ŒÁˇÊáÊÊÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflʸëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊ ¬˝ÃËëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflʸëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊŒËëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflʸëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊäflʸÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflʸëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflÊëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflʸëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊ.. (24) ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ߸‡ÊÊŸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§äfl¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝ÃUËëÿ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UŒËëÿ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •flʸëÿ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •äflÊÿ¸ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •flʸëÿ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UflÊëÿ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§flʸëÿ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UflÊëÿ ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (24) •Œ˜èÿ— SflÊ„UÊ flÊèÿ¸— SflÊ„UÊŒ∑§Êÿ SflÊ„UÊ ÁÃcΔUãÃËèÿ— SflÊ„UÊ dflãÃËèÿ— SflÊ„UÊ SÿãŒ◊ÊŸÊèÿ— SflÊ„UÊ ∑ͧåÿÊèÿ— SflÊ„UÊ ‚ÍlÊèÿ— SflÊ„UÊ œÊÿʸèÿ— SflÊ„UÊáʸflÊÿ SflÊ„UÊ 288 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@18
©UûÊ⁄UÊœ¸
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚◊Ⱥ˝Êÿ SflÊ„UÊ ‚Á⁄U⁄UÊÿ SflÊ„UÊ.. (25) ¡‹Ê¥ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. flÊÁ⁄U ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UŒ∑§ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁSÕ⁄U ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝flÊÁ„UÃÊ¥ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’„Uà ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑ͧ¬ ¡‹ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ʪ⁄U ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. œÊ⁄UáÊ ÿÊÇÿ ¡‹ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚◊Ⱥ˝ ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚⁄UÊfl⁄U ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. (25) flÊÃÊÿ SflÊ„UÊ œÍ◊Êÿ S√ÊÊ„UUÊ÷˝Êÿ S√ÊÊ„UÊ ◊ÉÊÊÿ SflÊ„UÊ ÁfllÊÃ◊ÊŸÊÿ SflÊ„UÊ Sßÿà SflÊ„UÊflS»Í§¡¸Ã SflÊ„UÊ fl·¸Ã SflÊ„UÊflfl·¸Ã SflÊ„Uʪ˝¢ fl·¸Ã SflÊ„UÊ ‡ÊËÉÊ˝¢ fl·¸Ã SflÊ„UÊŒ˜ªÎ±áÊUà SflÊ„UÊŒ˜ªÎ„UËÃÊÿ SflÊ„UÊ ¬˝ÈcáÊà SflÊ„UÊ ‡ÊË∑§Êÿà SflÊ„UÊ ¬˝ÈcflÊèÿ— SflÊ„UÊ OÔUʌȟËèÿ— SflÊ„UÊ ŸË„UÊ⁄UÊÿ SflÊ„UÊ.. (26) flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. œÈ∞¢ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁfllÈØ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ª¡¸Ÿ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. fl·¸∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ∑§◊fl·¸∑§ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Áà fl·¸∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡ÊËÉÊ˝ fl·¸∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§U¬⁄U ©UΔUŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§U¬⁄U ‚ ¡‹ª˝Ê„UË ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ’Í¢ŒÊ’Ê¢ŒË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÉÊŸÉÊÊ⁄U fl·¸∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊU„UÊ. ª«∏Uª«U∏Ê„U≈U flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§Ê„U⁄U flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚÷Ë ◊ÉÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. (26) •ÇŸÿ SflÊ„UÊ ‚Ê◊Êÿ SflÊ„Uãº˝Êÿ SflÊ„UÊ ¬ÎÁÕ√ÿÒ SflÊ„UÊãÃÁ⁄UˇÊÊÿ S√ÊÊ„UÊ ÁŒflSflÊ„UÊ ÁŒÇèÿ— SflÊ„UʇÊÊèÿ— SflÊ„UÊ√ÿÒ¸ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊflʸëÿÒ ÁŒ‡Ê SflÊ„UÊ.. (27) •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ߢº˝ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¢ÃÁU⁄UˇÊ ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. Sflª¸ ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÁUŒU‡ÊÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ©U¬ÁŒ‡ÊÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •¬⁄U ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ŸËø ÁŒ‡ÊÊ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. (27) ŸˇÊòÊèÿ— SflÊ„UÊ ŸˇÊÁòÊÿèÿ— SflÊ„UÊ„UÊ⁄UÊòÊèÿ— SflÊ„UÊœ¸◊Ê‚èÿ— SflÊ„Ê ◊Ê‚èÿ— S√ÊÊ„UÊ ´§ÃÈèÿ— SflÊ„UÊøflèÿ— SflÊ„UÊ ‚¢flà‚⁄UÊÿ SflÊ„UÊ lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ ¦ SflÊ„UÊ øãº˝Êÿ SflÊ„UÊ ‚Íÿʸÿ SflÊ„UÊ ⁄UÁ‡◊èÿ— SflÊ„UÊ fl‚Èèÿ— SflÊ„UÊ L§º˝èÿ— SflÊ„UÊÁŒàÿèÿ— SflÊ„UÊ ◊L§Œ˜èÿ— SflÊ„UÊ Áfl‡flèÿÊ Œflèÿ— SflÊ„UÊ ◊Í‹èÿ— S√ÊÊ„UÊ ‡ÊÊπÊèÿ— SflÊ„UÊ flŸS¬ÁÃèÿ— SflÊ„UÊ ¬Èc¬èÿ— S√ÊÊ„UÊ »§‹èÿ— SflÊ„UÊÒ·œËèÿ— SflÊ„UÊ.. (28) ŸˇÊòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸˇÊòÊÊ¥ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁŒŸ⁄Êà ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •h¸◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ´§ÃÈ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ´§ÃÈ ‚ ©Uà¬ãŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. fl·¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. Sflª¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ø¢º˝ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. fl‚È•Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. L§º˝Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •ÊÁŒàÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ◊L§ÃÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ‡ÊÊπÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿ¡Èfl¸Œ - 289
©UûÊ⁄UÊœ¸
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
flŸS¬ÁÃÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ¬Èc¬Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. »§‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. (28) ¬ÎÁÕ√ÿÒ SflÊ„UÊãÃÁ⁄UˇÊÊÿ SflÊ„UÊ ÁŒfl SflÊ„UÊ ‚Íÿʸÿ SflÊ„UÊ øãº˝Êÿ SflÊ„UÊ ŸˇÊòÊèÿ— SflÊ„UÊŒ˜èÿ— SflÊ„UÊÒ·œËèÿ— SflÊ„UÊ flŸS¬ÁÃèÿ— SflÊ„UÊ ¬Á⁄Uå‹flèÿ— SflÊ„ÊU ø⁄UÊø⁄Uèÿ— SflÊ„UÊ ‚⁄U˂άèÿ— SflÊ„UÊ.. (29) ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Sflª¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ø¢º˝ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸˇÊòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flŸS¬ÁÃÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ø⁄UÊø⁄U ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ⁄¥UªŸ •ÊÒ⁄U ⁄U¬≈UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (29) •‚fl SflÊ„UÊ fl‚fl SflÊ„UÊ Áfl÷Èfl SflÊ„UÊ ÁflflSflà SflÊ„UÊ ªáÊÁüÊÿ SflÊ„UÊ ªáʬÃÿ SflÊ„UÊÁ÷÷Èfl SflÊ„UÊÁœ¬Ãÿ SflÊ„UÊ ‡ÊÍ·Êÿ SflÊ„UÊ ‚ ¦ ‚¬Ê¸ÿ SflÊ„UÊ øãº˝Êÿ SflÊ„UÊ ÖÿÊÁ÷ SflÊ„UÊ ◊Á‹ê‹ÈøÊÿ SflÊ„UÊ ÁŒfl ¬Ãÿà SflÊ„UÊ.. (30) •‚fl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. fl‚fl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. Áfl÷È ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁflflSflà (‚Íÿ¸) ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ªáÊüÊË ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ªáʬÁà ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Á÷÷È ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •Áœ¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ‚¬¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ø¢º˝ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ÖÿÊÁÃflÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Áœ◊Ê‚ ∑§ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¬Ê‹∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (30) ◊œfl SflÊ„UÊ ◊ÊœflÊÿ S√ÊÊ„UÊ ‡ÊÈ∑˝§Êÿ SflÊ„UÊ ‡ÊÈøÿ SflÊ„UÊ Ÿ÷‚ SflÊ„UÊ Ÿ÷SÿÊÿ SflÊ„U·Êÿ SflÊ„Uʡʸÿ SflÊ„UÊ ‚„U‚ SflÊ„UÊ ‚„USÿÊÿ SflÊ„UÊ Ã¬‚ SflÊ„UÊ Ã¬SÿÊÿ SflÊ„UÊ ¦ „U‚S¬Ãÿ SflÊ„UÊ.. (31) øÒà ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. flÒ‡ÊÊπ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ÖÿcΔU ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •Ê·Ê…∏U ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ‚ÊflŸ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ÷ʌʥ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •ÊÁ‡flŸ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ∑§ÊÁø∑§ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •ª„UŸ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ¬ÊÒ· ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. »§ÊÀªÈŸ ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •Áœ◊Ê‚ ∑§ Á‹∞ ‚¢ÃÈ‹Ÿ „UÃÈ SflÊ„UÊ. (31) flÊ¡Êÿ SflÊ„UÊ ¬˝‚flÊÿ SflÊ„UÊÁ¬¡Êÿ SflÊ„UÊ ∑˝§Ãfl SflÊ„UÊ Sfl— SflÊ„UÊ ◊Í䟸 SflÊ„UÊ √ÿ‡ŸÈÁflŸ SflÊ„UÊãàÿÊÿ SflÊ„UÊãàÿÊÿ ÷ÊÒflŸÊÿ SflÊ„UÊ ÷ÈflŸSÿ ¬Ãÿ SflÊ„UÊÁœ¬Ãÿ SflÊ„UÊ ¬˝¡Ê¬Ãÿ SflÊ„UÊ.. (32) •ããÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ©Uà¬ÊŒ∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡‹ ◊¢ ©Uà¬ããÊ •ããÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊͜ʸ ◊¢ ©Uà¬ããÊ •ããÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. √ÿʬ∑§ •ããÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¢ÁÃ◊ ©Uà¬ããÊ •ããÊ ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÷ÈflŸ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÷ÈflŸ¬Áà ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. •Áœ¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝¡Ê¬Áà ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. (32) 290 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
’Ê߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•ÊÿÈÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ ¬˝ÊáÊÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ¬ÊŸÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ √ÿÊŸÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊŒÊŸÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ ‚◊ÊŸÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ øˇÊÈÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ üÊÊòÊ¢ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ flÊÇÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ ◊ŸÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊà◊Ê ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ ’˝rÊÔÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ ÖÿÊÁÃÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ Sflÿ¸ôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ ¬ÎcΔ¢U ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ ÿôÊÊ ÿôÊŸ ∑§À¬ÃÊ ¦ SflÊ„UÊ.. (33) ÿôÊ ‚ •ÊÿÈ flÎÁh ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ ¬˝ÊáÊ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ •¬ÊŸ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ √ÿÊŸ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ ©UŒÊŸ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ ‚◊ÊŸ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ øˇÊÈ ’‹ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ ∑§áʸ ’‹ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ flÊáÊË ’‹ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ ◊Ÿ ’‹ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ •Êà◊ ’‹ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÿôÊ ‚ ’˝rÊ ’‹ flÎÁh ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. ÖÿÊÁÃ◊¸ÿ ÿôÊ ∑§§Á‹∞ SflÊ„Ê. Sflÿ¢ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ÿôÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿôÊ ‚ ÿôÊ flÎÁh ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ.Ô ÿôÊ ‚ •ª˝flÎÁh ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿôÊ ‚ ÃÎáÊ flÎÁh ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (33) ∞∑§S◊Ò SflÊ„UÊ mÊèÿÊ ¦ SflÊ„UÊ ‡ÊÃÊÿ SflÊ„ÒU∑§‡ÊÃÊÿ SflÊ„ÊU √ÿÈc≈UUKÒ SflÊ„UÊ SflªÊ¸ÿ SflÊ„UÊ.. (34) ∞∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ŒÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊÒ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∞∑§ ‚ÊÒ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. √ÿÁc≈U ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. Sflª¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (34)
ÿ¡Èfl¸Œ - 291
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ Á„U⁄Uáÿª÷¸— ‚◊flûʸÃʪ˝ ÷ÍÃSÿ ¡Ê× ¬ÁÃ⁄U∑§ ˘ •Ê‚ËØ. ‚ ŒÊœÊ⁄U ¬ÎÁÕflË¥ lÊ◊ÈÃ◊Ê¢ ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (1) ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚ÊŸ (Á„U⁄Uáÿ) ∑§§ª÷¸ ◊¥ ⁄U„U . fl ‚’ ‚ ¬„U‹ ©Uà¬ããÊ „ÈU∞. fl ‚’ ∑§Ê ©Uà¬ããÊ ∑§U⁄UŸ flÊ‹ fl ‚’ ∑§ ∞∑§◊ÊòÊ ¬Ê‹∑§ „ÒU¥ . ©Uã„UÊŸ¥ ¬ÎâflË fl ©UûÊ◊ Sflª¸ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§ •‹ÊflÊ •ãÿ Á∑§‚ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄U¥ . (1) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ¬˝¡Ê¬Ãÿ àflÊ ¡ÈCÔ¢U ªÎ±áÊÊêÿ· à ÿÊÁŸ— ‚Íÿ¸Sà ◊Á„U◊Ê. ÿSà ˘ „Uãà‚¢flà‚⁄U ◊Á„U◊Ê ‚ê’÷Ífl ÿSà flÊÿÊflãÃÁ⁄UˇÊ ◊Á„U◊Ê ‚ê’÷Ífl ÿSà ÁŒÁfl ‚Íÿ¸ ◊Á„U◊Ê ‚ê’÷Ífl ÃS◊Ò Ã ◊Á„UêŸ ¬˝¡Ê¬Ãÿ SflÊ„UÊ Œflèÿ—.. (2) „UÁfl ∑§Ê ¬˝¡Ê¬Áà Œfl „ÃÈ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ßc≈U SÕÊŸ „ÒU. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ß‚ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ„U •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. ‚Íÿ¸ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê „ÒU. ÁŒŸ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ‚Íø∑§ „ÒU. ‚¢flàU‚⁄U •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ‚Íø∑§ „ÒU. flÊÿÈ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§ ‚Íø∑§ „Ò¥U. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ‹Ê∑§ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ‚Íø∑§ „ÒU. Sflª¸‹Ê∑§ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ‚Íø∑§ „ÒU. ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚’ ŒflªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (2) ÿ— ¬˝ÊáÊÃÊ ÁŸÁ◊·ÃÊ ◊Á„UàflÒ∑§ ˘ ߺ˝Ê¡Ê ¡ªÃÊ ’÷Ífl. ÿ ˘ ߸‡Ê •Sÿ Ám¬Œ‡øÃÈc¬Œ— ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (3) ¡Ê ¬⁄U◊Êà◊Ê ¬˝ÊáÊ ‚ ¡ªÃ˜ ∑§ •ÁœcΔUÊÃÊ „Ò¥U, ¡Ê ¬⁄U◊Êà◊Ê ¡‹ ‚ ¡ªÃ˜ ∑§ •ÁœcΔUÊÃÊ „Ò¥U, ¡Ê ¬⁄U◊Êà◊Ê ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë „Ò¥U, Á¡Ÿ ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ¡ª ©Uà¬ããÊ „ÈU•Ê, ¡Ê ¬⁄U◊Êà◊Ê ŒÊ¬ÊÿÊ¥ fl øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U ©UŸ ∑§§•‹ÊflÊ „U◊ Á∑§‚ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U. (3) ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ¬˝¡Ê¬Ãÿ àflÊ ¡ÈCÔ¢U ªÎ±áÊÊêÿ· à ÿÊÁŸ‡øãº˝◊ÊSà ◊Á„U◊Ê. ÿSà ⁄UÊòÊÊÒ ‚¢flà‚⁄U ◊Á„U◊Ê ‚ê’÷Ífl ÿSà ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊ÇŸÊÒ ◊Á„U◊Ê ‚ê’÷Ífl ÿSà ŸˇÊòÊ·È øãº˝◊Á‚ ◊Á„U◊Ê ‚ê’÷Ífl ÃS◊Ò Ã ◊Á„UêŸ ¬˝¡Ê¬Ãÿ Œflèÿ— SflÊ„UÊ.. (4) „UÁfl ∑§Ê ¬˝¡Ê¬Áà ∑§§Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë 292 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ßc≈U „ÒU. ß‚ËÁ‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. ø¢º˝◊Ê •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê „ÒU. ⁄UÊÁòÊ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê „ÒU. ‚¢flà‚⁄U •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê „ÒU. ¬ÎâflË •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê „ÒU. •ÁÇŸ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê „ÒU. ŸˇÊòÊÊ¥ ◊¥ ¡Ê ◊Á„U◊Ê „ÒU, fl„U •Ê¬ ∑§Ë „ÒU. ø¢º˝◊Ê ◊¥ ¡Ê ◊Á„U◊Ê „ÒU, fl„U •Ê¬ ∑§Ë „ÒU. •Ê¬ ∑§Ë ©U‚ ◊Á„U◊Ê ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝¡Ê¬Áà ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒflªáÊÊ¥ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. (4) ÿÈÜ¡Áãà ’˝äŸ◊L§·¢ ø⁄Uãâ ¬Á⁄U ÃSÕÈ·—. ⁄UÊøãà ⁄UÊøŸÊ ÁŒÁfl.. (5) ‚Íÿ¸ ¡Ò‚ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U •ÊÒ⁄U ¡Ò‚ •¬Ÿ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ∑§§ª˝„ ∑§Ê ¡Ê«∏Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË ÿ¡◊ÊŸ ÿôÊ ∑§ ‚Ê⁄ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê ¡Ê«∏Uà „Ò¥U. (5) ÿÈÜ¡ãàÿSÿ ∑§ÊêÿÊ „U⁄UË Áfl¬ˇÊ‚Ê ⁄UÕ. ‡ÊÊáÊÊ œÎcáÊÍ ŸÎflÊ„U‚Ê.. (6) ◊ŸÈcÿ ∑§ flÊ„UŸ ◊¥ ÉÊÊ«∏U ¡Êß ∑§Ë Ã⁄U„U „UÁfl ‹ ¡ÊŸ „UÃÈ Œfl⁄UÕ ◊¥ ∑§Ê◊ŸÊ ¬Í⁄U∑§ „UÁ⁄U ŸÊ◊∑§ ÉÊÊ«∏U ∑§Ê ¡ÊÁÃ∞ ÃÕÊ œÎcáÊÈ ŸÊ◊∑§ ÉÊÊ«∏U ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡Êß ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (6) ÿmÊÃÊ •¬Ê •ªŸËªÁã¬˝ÿÊÁ◊ãº˝Sÿ Ããfl◊˜. ∞à ¦ SÃÊÃ⁄UŸŸ ¬ÕÊ ¬ÈŸ⁄U‡fl◊ÊflûʸÿÊÁ‚ Ÿ—.. (7) ¡’ ÿ„U •‡fl, ¡Ê flÊÿÈ ∑§§‚◊ÊŸ flªflÊŸ „ÒU, ߢº˝ Œfl ∑§ Á¬˝ÿ ¡‹ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊÃÊ „ÒU, Ã’ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê øÊÁ„U∞ Á∑§ fl •¬Ÿ Á‹∞ ©U‚Ë ◊ʪ¸ ‚ ©U‚ •‡fl ∑§Ê ‹ÊÒ≈UÊ Œ¥. (7) fl‚flSàflÊÜ¡ãÃÈ ªÊÿòÊáÊ ¿UãŒ‚Ê L§º˝ÊSàflÊÜ¡ãÃÈ òÊÒc≈ÈU÷Ÿ ¿UãŒ‚Ê ÁŒàÿÊSàflÊÜ¡ãÃÈ ¡ÊªÃŸ ¿U㌂Ê. ÷Í÷ȸfl—Sfl‹Ê¸¡Ë 3 Ü¿UÊøË 3 ãÿ√ÿ ª√ÿ ˘ ∞ÃŒãŸ◊ûÊ ŒflÊ ˘ ∞ÃŒãŸ◊Áh ¬˝¡Ê¬Ã.. (8) „U ÿôÊ M§¬Ë •‡fl! fl‚ȪáÊ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê •Ê¢¡Ã „Ò¥U. „U ÿôÊ M§¬Ë •‡fl! L§º˝ªáÊ ÁòÊc≈È÷˜ ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê •Ê¢¡Ã „Ò¥U. „U ÿôÊ M§¬Ë •‡fl! •ÊÁŒàÿªáÊ ¡ªÃË ¿¢UŒ ‚ •Ê¬ ∑§Ê •Ê¢¡Ã „Ò¥U. ÷Í‹Ê∑§ ◊¥ ÁSÕà Œfl ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ÁSÕà Œfl ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÁSÕà Œfl ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬˝¡Ê¬Áà ◊¥ ÁSÕà Œfl ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ ◊¥ ÁSÕà Œfl ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl ß‚ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (8) ∑§— ÁSflŒ∑§Ê∑§Ë ø⁄UÁà ∑§ ˘ ©U ÁSflÖ¡Êÿà ¬ÈŸ—. Á∑§ ¦ ÁSflÁh◊Sÿ ÷·¡¢ Á∑§êflÊfl¬Ÿ¢ ◊„UØ.. (9) ÿ¡Èfl¸Œ - 293
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑Χ¬ÿÊ ’ÃÊß∞ Á∑§ ∑§ÊÒŸ •∑§‹Ê Áflø⁄UÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ ’Ê⁄U’Ê⁄U ©Uà¬ããÊ „UÊÃÊ „ÒU? ‡ÊËà ∑§Ë •Ê·Áœ ÄÿÊ „ÒU? ’Ë¡ ’ÊŸ ∑§ Á‹∞ ∑§ÊÒŸ ‚Ê ˇÊòÊ ‚’ ‚ ’«U∏Ê „ÒU? (9) ‚Íÿ¸ ˘ ∞∑§Ê∑§Ë ø⁄UÁà øãº˝◊Ê ¡Êÿà ¬ÈŸ—. •ÁÇŸÁ„¸U◊Sÿ ÷·¡¢ ÷ÍÁ◊⁄UÊfl¬Ÿ¢ ◊„UØ.. (10) ‚Íÿ¸ •∑§‹ Áflø⁄Uà „Ò¥U. ø¢º˝◊Ê ’Ê⁄U’Ê⁄U ©Uà¬ããÊ „UÊÃÊ „ÒU. •ÁÇŸ ‡ÊËà ∑§Ë •Ê·Áœ „ÒU. ÷ÍÁ◊ ’Ë¡ ’ÊŸ ∑§Ê ‚’ ‚ Áfl‡ÊÊ‹ ˇÊòÊ „ÒU. (10) ∑§Ê ÁSflŒÊ‚Ëà¬Ífl¸ÁøÁûÊ— Á∑§ ¦ ÁSflŒÊ‚ËŒ˜ ’΄Umÿ—. ∑§Ê ÁSflŒÊ‚ËÁà¬Á‹Áå¬‹Ê ∑§Ê ÁSflŒÊ‚ËÁଇÊÁX‹Ê.. (11) ÿ¡◊ÊŸ ¬Í¿Uà „Ò¥U Á∑§ ‚’ ‚ ¬„U‹ Á∑§‚ ∑§Ê Áø¢ÃŸ ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞? ‚’ ‚ ’«∏UÊ ∑§ÊÒŸ „ÒU? ‚’ ‚ ’«∏UÊ ⁄UˇÊ∑§ ∞fl¢ ‡ÊÊ÷ÊœÊ⁄U∑§ ∑§ÊÒŸ „ÒU? ‚’ ∑§ M§¬Ê¥ ∑§Ê ÁŸª‹ ¡ÊŸ flÊ‹Ê ∑§ÊÒŸ „ÒU? (11) lÊÒ⁄UÊ‚Ëà¬Ífl¸ÁøÁûÊ⁄U‡fl ˘ •Ê‚ËŒ˜ ’΄Umÿ—. •Áfl⁄UÊ‚ËÁà¬Á‹Áå¬‹Ê ⁄UÊÁòÊ⁄UÊ‚ËÁଇÊÁX‹Ê.. (12) Sflª¸‹Ê∑§ ∑§§’Ê⁄UU ◊¥ ‚’ ‚ ¬„U‹ Áø¢ÃŸ ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. •‡fl ‚’ ‚ Áfl‡ÊÊ‹ „ÒU. ¬ÎâflË ‚’ ‚ ’«∏UË ⁄UÁˇÊ∑§Ê „ÒU. ¬ÎâflË ‚’ ‚ ÖÿÊŒÊ ‡ÊÊ÷Ê œÊ⁄UŸ flÊ‹Ë „ÒU. ⁄UÊÁòÊ •¬Ÿ •¢œ⁄U ◊¥ ‚’ ∑§Ê Á¿U¬Ê ∑§⁄U ⁄UπŸ flÊ‹Ë „ÒU. (12) flÊÿÈCÔ˜UflÊ ¬øÃÒ⁄UflàflÁ‚ê˝Ëfl‡¿UʪÒãÿ¸ª˝Êœ‡ø◊‚Ò— ‡ÊÀ◊Á‹flθhKÊ. ∞· Sÿ ⁄UÊâÿÊ flÎ·Ê ¬«U˜Á÷‡øÃÈÁ÷¸⁄‘UŒªã’˝rÊÔÊ ˘ ∑Χcáʇø ŸÊflÃÈ Ÿ◊ÊÇŸÿ.. (13) flÊÿÈ „U◊¥ ¬Á⁄U¬ÄflÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U. flÊÿÈ ∑§Ê‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹Ë •ÁÇŸ Œ. fl≈UflÎˇÊ ø◊‚ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U. ‡ÊÊÀ◊‹Ë flÎˇÊ (‚◊‹) ’…∏UÊÃ⁄UË ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U. ÿ„U ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ, ‚fl¸√ÿʬ∑§, •ÊŸ¢ŒŒÊÿ∑§ „ÒU. •ÁÇŸ øÊ⁄UÊ¥ ø⁄UáÊÊ¥ ◊¥ ¡ËflÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‚¥ fl •ÁÇŸ •Êª◊Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Á’ŸÊ ∑§Ê‹ ÿÊŸË ‚»§Œ •‡fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ Ÿ◊S∑§Ê⁄U. (13) ‚ ¦ Á‡ÊÃÊ ⁄UÁ‡◊ŸÊ ⁄UÕ— ‚ ¦ Á‡ÊÃÊ ⁄UÁ‡◊ŸÊ „Uÿ—. ‚ ¦ Á‡ÊÃÊ •åSflå‚È¡Ê ’˝rÊÔÊ ‚Ê◊¬È⁄Uʪfl—.. (14) ⁄UÁ‡◊ÿÊ¥ ‚ ÿôÊ M§¬Ë ⁄UÕ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê „UÊÃË „ÒU. Á∑§⁄UáÊ M§¬Ë ÉÊÊ«∏UÊ¥ ‚ ÿôÊ M§¬Ë ⁄UÕ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê „UÊÃË „ÒU. ¡‹ ◊¥ ©Uà¬ãŸ ¡‹ ◊¥ ‡ÊÊ÷Ê ¬Êà „Ò¥U. ’˝rÊÊ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ‚Ê◊ ∑§Ê •Êª ∑§⁄UŸ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ „UÊÃË „ÒU. (14) Sflÿ¢ flÊÁ¡°SÃãfl¢ ∑§À¬ÿSfl Sflÿ¢ ÿ¡Sfl Sflÿ¢ ¡È·Sfl. ◊Á„U◊Ê ÃãÿŸ Ÿ ‚㟇Ê.. (15) 294 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ÿôÊ ™§¡Ê¸! •Ê¬ Sflÿ¢ ’‹flÊŸ „ÒU¢. •Ê¬ •¬Ÿ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê »§‹Ë÷Íà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Sflÿ¢ ÿôÊ ‚ ÁflSÃÎà „UÊß∞. •Ê¬ ¬ŒÊÕÊZ ‚ ¡ÈÁ«U∏∞. ©Uã„¥U ¬˝ÊáÊflÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§÷Ë ÷Ë Ÿc≈U Ÿ „UÊ. (15) Ÿ flÊ ©U ∞ÃÁã◊˝ÿ‚ Ÿ Á⁄UcÿÁ‚ ŒflÊ° 2 ߌÁ· ¬ÁÕÁ÷— ‚ȪÁ÷—. ÿòÊÊ‚Ã ‚È∑ΧÃÊ ÿòÊ Ã ÿÿÈSÃòÊ àflÊ Œfl— ‚ÁflÃÊ ŒœÊÃÈ.. (16) ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà Ÿ ◊⁄UÃË „ÒU, Ÿ ˇÊËáÊ „UÊÃË „ÒU. fl„U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ◊ʪ¸ ‚ ¡ÊÃË „ÒU. fl„U ‚Ȫ◊ ¬Õ ‚ fl„UÊ¢ ¬„È¢UøÃË „ÒU, ¡„UÊ¢ •ë¿ ∑§◊¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‹Êª ⁄U„Uà „ÒU. fl„UÊ¢ ‚ÁflÃÊ Œfl Sflÿ¢ ßU‚ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¢. (16) •ÁÇŸ— ¬‡ÊÈ⁄UÊ‚ËûÊŸÊÿ¡ãà ‚ ∞ðÀ‹Ê∑§◊¡ÿlÁS◊ãŸÁÇŸ— ‚ à ‹Ê∑§Ê ÷ÁflcÿÁà â ¡cÿÁ‚ Á¬’ÒÃÊ ˘ •¬—. flÊÿÈ— ¬‡ÊÈ⁄UÊ‚ËûÊŸÊÿ¡ãà ‚ ∞ðÀ‹Ê∑§◊¡ÿlÁS◊ãflÊÿÈ— ‚ à ‹Ê∑§Ê ÷ÁflcÿÁà â ¡cÿÁ‚ Á¬’ÒÃÊ ˘ •¬—. ‚Íÿ¸— ¬‡ÊÈ⁄UÊ‚ËûÊŸÊÿ¡ãà ‚ ∞ðÀ‹Ê∑§◊¡ÿlÁS◊ãà‚Íÿ¸— ‚ à ‹Ê∑§Ê ÷ÁflcÿÁà â ¡cÿÁ‚ Á¬’ÒÃÊ ˘ •¬—.. (17) •ÁÇŸ M§¬Ë ¬‡ÊÈ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ÿ¡Ÿ (ÿôÊ) Á∑§ÿÊ. Á¡‚ ◊¥ •ÁÇŸ „ÒU, fl„UË ß‚ ‹Ê∑§ ◊¥ ¡ËÃÃÊ „ÒU •ÊÒ⁄U ¡ËêÊ. ÿ¡◊ÊŸ ß‚ ôÊÊŸ ∑§Ê •¬ŸÊ∞¢. flÊÿÈ M§¬Ë ¬‡ÊÈ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. Á¡‚ ◊¥ flÊÿÈ ¬˝’‹ „ÒU, fl„U ¡ËÃÃÊ „ÒU •ÊÒ⁄U ¡ËêÊ. ÿ¡◊ÊŸ ß‚ ôÊÊŸ ∑§Ê •¬ŸÊ∞¢. ‚Íÿ¸ M§¬Ë ¬‡ÊÈ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. Á¡‚ ◊¥ ‚Íÿ¸ Ãûfl ∑§Ë ¬˝œÊŸÃÊ „UÊÃË „ÒU, fl„U ¡ËÃÃÊ „ÒU •ÊÒ⁄U ¡ËêÊ. ÿ¡◊ÊŸ ß‚ ôÊÊŸ ∑§Ê •¬ŸÊ∞¢. (17) ¬˝ÊáÊÊÿ SflÊ„UʬʟÊÿ S√ÊÊ„UÊ √ÿÊŸÊÿ SflÊ„UÊ. •ê’ •Áê’∑§ê’ÊÁ‹∑§ Ÿ ◊Ê ŸÿÁà ∑§‡øŸ. ‚‚Sàÿ‡fl∑§— ‚È÷Áº˝∑§Ê¢ ∑§Êê¬Ë‹flÊÁ‚ŸË◊˜.. (18) ¬˝ÊáÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¬ÊŸ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝ÊáÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „U •¢’! „U •¢Á’∑§! •Ê¬ „U◊¥ Á∑§‚Ë •Á¬˝ÿ ÁSÕÁà ◊¥ Ÿ ‹ ¡Ê∞¢. „UU •¢’ÊÁ‹∑§! •Ê¬ „U◊¥ Á∑§‚Ë •Á¬˝ÿ ÁSÕÁà ◊¥ Ÿ ‹ ¡Ê∞¢. Δ¢U«UË •ÁÇŸ ∑§Ê¢¬Ë‹ ¬«∏U ∑§Ë ‚Á◊œÊ•Ê¥ ¬⁄U ¬«∏UË „ÒU. ΔU¥«UË •ÁÇŸ üÊcΔU „UÁflÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ Δ¢U«UË ¬«∏UË „ÈU߸ „ÒU. (18) ªáÊÊŸÊ¢ àflÊ ªáʬÁà ¦ „UflÊ◊„U Á¬˝ÿÊáÊÊ¢ àflÊ Á¬˝ÿ¬Áà ¦ „UflÊ◊„U ÁŸœËŸÊ¢ àflÊ ÁŸÁœ¬Áà ¦ „UflÊ◊„U fl‚Ê ◊◊. •Ê„U◊¡ÊÁŸ ª÷¸œ◊Ê àfl◊¡ÊÁ‚ ª÷¸œ◊˜.. (19) •Ê¬ ªáÊÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ ªáʬÁà ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ Á¬˝ÿÊ¥ ∑§ ’Ëø Á¬˝ÿ „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ Á¬˝ÿ¬Áà ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ ÁŸÁœÿÊ¥ ∑§ ’Ëø Á¬˝ÿ „ÒU¥ . ÿ¡Èfl¸Œ - 295
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ ÁŸÁœ¬Áà ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ¡ªÃ˜ ∑§Ê •Ê¬ Ÿ ’‚ÊÿÊ „ÒU. •Ê¬ „U◊Ê⁄U „UÊß ∞. •Ê¬ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ª÷¸œÊ⁄UË „ÒU¥ . „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ß‚ ª÷¸œÊ⁄UáÊ ˇÊ◊ÃÊ ∑§Ê ¡ÊŸ.¥ (19) ÃÊ ˘ ©U÷ÊÒ øÃÈ⁄U— ¬Œ— ‚¢¬˝‚Ê⁄UÿÊfl Sflª¸ ‹Ê∑§ ¬˝ÊáÊȸflÊÕÊ¢ flÎ·Ê flÊ¡Ë ⁄UÃÊœÊ ⁄UÃÊ ŒœÊÃÈ.. (20) ÿôÊ ‡ÊÁÄà •ÊÒ⁄U Œfl ‡ÊÁÄà ŒÊŸÊ¥ ‚ ©Uê◊ËŒ „ÒU Á∑§ fl •¬Ÿ øÊ⁄UÊ¥ ¬Ò⁄UÊ¥ ∑§Ê ¬˝‚Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒÊŸÊ¥ ‡ÊÁÄÃÿÊ¢ Sflª¸‹Ê∑§ ∞fl¢ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ◊¥ √ÿÊåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒÊŸÊ¥ ‡ÊÁÄÃÿÊ¢ ’‹flÊŸ „Ò¥U. fl „U◊¥ ’‹‡ÊÊ‹Ë fl flËÿ¸flÊŸ ’ŸÊ∞¢. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÁÄà •ÊÒ⁄U ‡ÊÊÒÿ¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (20) ©Uà‚ÄâÿÊ •fl ªÈŒ¢ œÁ„U ‚◊ÁÜ¡¢ øÊ⁄UÿÊ flηŸ˜. ÿ SòÊËáÊÊ¢ ¡Ëfl÷Ê¡Ÿ—.. (21) „UU ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄÃ! •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê Œ◊Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ fl ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „Ò¥U. ¡Ê √ÿÁÄà ÁSòÊÿÊ¥ ‚ •¬ŸË •Ê¡ËÁfl∑§Ê ∑§◊Êà „Ò¥U, •¬ŸÊ ÷Ê¡Ÿ ¬Êà „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ∑§Ê ¬˝ÃÊ«∏UŸÊ ŒËÁ¡∞. (21) ÿ∑§Ê‚∑§ÊÒ ‡Ê∑ȧÁãÃ∑§Ê„U‹ÁªÁà flÜøÁÃ. •Ê„UÁãà ª÷ ¬‚Ê ÁŸªÀª‹ËÁà œÊ⁄U∑§Ê.. (22) ÿ„U ¡‹ ¬ˇÊË ∑§Ë ÷Ê¢Áà ¬˝‚ããÊÃÊŒÊÿË ÁŸŸÊŒ (•ÊflÊ¡) ∑§⁄UÃÊ „ÒU. ÿ„U ¡‹ áÊ◊ÿ „ÒU. ÿ„U áSflË ¡‹ ∑§‹∑§‹ ÁŸŸÊŒ ∑§⁄UÃÊ „ÒU •ÊÒ⁄U ‡ÊÁÄÃœÊ⁄UË „ÒU. (22) ÿ∑§Ê‚∑§ÊÒ ‡Ê∑ȧãÃ∑§ ˘ •Ê„U‹ÁªÁà flÜøÁÃ. ÁflflˇÊà ˘ ßfl à ◊Èπ◊äflÿʸ ◊Ê ŸSàfl◊Á÷ ÷Ê·ÕÊ—.. (23) ©U¬ÿȸÄà á ∑§ ¬˝÷Êfl ‚ ’Ê‹Ÿ ∑§ ßë¿ÈU∑§ ◊È¢„U ¬ˇÊË ∑§Ë Ã⁄U„U ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ‡ÊéŒ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ‚ ÁŸflŒŸ „ÒU Á∑§ fl ÿôÊ ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ÁŸ⁄UÕ¸∑§ ’Êà Ÿ ∑§⁄¥U. (23) ◊ÊÃÊ ø à Á¬ÃÊ ø à ˘ ª˝¢ flΡÊSÿ ⁄UÊ„U×. ¬˝ÁËÊ◊ËÁà à Á¬ÃÊ ª÷ ◊ÈÁCÔU◊à ¦ ‚ÿØ.. (24) „U ÿ¡◊ÊŸ! •Ê¬ ∑§ ◊ÊÃÊ •ÊÒ⁄U Á¬ÃÊ flÎˇÊ ∑§ •Êª ∑§ ÷ʪ ‚ ™§äfl¸ ªÁà ¬Êà „Ò¥U. ™§äfl¸‹Ê∑§ ‚ •Ê¬ ∑§ ¬Ífl¸¡ ’ÊŒ‹ ‚ fl·Ê¸ ∑§⁄U ∑§ ‡ÊÊ÷Ê ’…∏UÊà „ÈU∞ ∞‚ ¬˝ÃËà „UÊà „Ò¥U, ◊ÊŸÊ fl ∑§„Uà „Ò¥,U „U◊ •Ê¬ ‚ ¬˝‚ããÊ „Ò¥U. (24) ◊ÊÃÊ ø à Á¬ÃÊ ø ê˝ flΡÊSÿ ∑˝§Ë«U×. ÁflflˇÊà ˘ ßfl à ◊Èπ¢ ’˝rÊÔã◊Ê àfl¢ flŒÊ ’„ÈU.. (25) •Ê¬ ∑§ ◊ÊÃÊ •ÊÒ⁄U Á¬ÃÊ flÎˇÊ ∑§ •Êª ∑§ ÷ʪ ¬⁄U π‹Ã „Ò¥U. •Ê¬ ’Ê‹Ÿ ∑§ •ÁäÊ∑§ ßë¿ÈU∑§ ¬˝ÃËà „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ •Áœ∑§ ◊à ’Ê‹¥. (25) 296 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
™§äflʸ◊ŸÊ◊Èë¿˛Uʬÿ Áª⁄UÊÒ ÷Ê⁄ ¦ „U⁄UÁãŸfl. •ÕÊSÿÒ ◊äÿ◊œÃÊ ¦ ‡ÊËà flÊà ¬ÈŸÁãŸfl.. (26) „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! •Ê¬ ß‚ ⁄UÊc≈˛U ∑§Ê ™¢§øÊßÿÊ¥ Ã∑§ ¬„¢UÈøÊß∞. „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! ¡Ò‚ Á∑§‚Ë ÷Ê⁄U ∑§Ê ¬fl¸Ã ¬⁄U ¬„È¢UøÊ ∑§⁄U (‹Êª) ¬˝‚㟠„UÊà „Ò¥U, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U „U◊ ⁄UÊc≈˛U ∑§Ê ™¢§øÊ߸ ¬⁄U ¬„¢ÈUøÊ ∑§⁄U ¬˝‚㟠„UÊà „Ò¥U. ¡Ò‚ ΔU¢«UË „UflÊ•Ê¥ ∑§ ’Ëø ‚ Á∑§‚ÊŸ •ããÊ ∑§Ê ‚Ê»§ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ⁄UÊc≈˛U ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄¥U. (26) ™§äfl¸◊Ÿ◊Èë¿˛ÿÃÊÁŒÔ˜Áª⁄UÊÒ ÷Ê⁄ ¦ „U⁄UÁãŸfl. •ÕÊSÿ ◊äÿ◊¡ÃÈ ‡ÊËà flÊà ¬ÈŸÁãŸfl.. (27) „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! •Ê¬ ß‚ ⁄UÊc≈˛U ∑§Ê ™¢§øÊßÿÊ¥ Ã∑§ ¬„¢UÈøÊß∞. „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! ¡Ò‚ ÷Ê⁄U ∑§Ê ¬fl¸Ã ¬⁄U ¬„È¢UøÊ ∑§⁄U ¬˝‚㟠„UÊà „Ò¥U (‹Êª), ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U „U◊ ⁄UÊc≈˛U ∑§Ê ™¢§øÊ߸ ¬⁄U ¬„¢ÈUøÊ ∑§⁄U ¬˝‚㟠„UÊà „Ò¥U. ¡Ò‚ Δ¢«UË „UflÊ•Ê¥ ∑§ ’Ëø ‚ Á∑§‚ÊŸ •ããÊ ∑§Ê ‚Ê»§ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ⁄UÊc≈˛U ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄¥U. (27) ÿŒSÿÊ ˘ • ¦ „ÈU◊lÊ— ∑ΧœÈ SÕÍ‹◊ȬÊÂØ. ◊Èc∑§ÊÁflŒSÿÊ ˘ ∞¡ÃÊ ªÊ‡Ê»§ ‡Ê∑ȧ‹ÊÁflfl.. (28) ÿ„U ÿôÊÊÁÇŸ ¬Ê¬ ÷Œ∑§ fl ŒÈc≈U ŸÊ‡Ê∑§ „Ò. ß‚ ÿôÊÊÁÇŸ ∑§Ë SÕÍ‹ ¬ÎâflË ¬⁄U SÕʬŸÊ „UÊ ¡ÊÃË „ÒU Ã’ ’˝ÊrÊáÊ, ˇÊÁòÊÿ •ÊÁŒ œ◊¸ M§¬Ë ªÊÿ ∑§ ø⁄UáÊÊ¥ ◊¥ πÈ⁄UÊ¥ ∑§Ë Ã⁄U„U ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. (28) ÿgflÊ‚Ê ‹‹Ê◊ªÈ¢ ¬˝ÁflCÔUËÁ◊Ÿ◊ÊÁfl·È—. ‚ÄâŸÊ ŒÁŒ‡ÿà ŸÊ⁄UË ‚àÿSÿÊÁˇÊ÷ÈflÊ ÿâÊÊ.. (29) ¡’ ∞‚Ë „UË (ÿôÊ ¡Ò‚Ë) ¬⁄U◊ÊŸ¢ŒŒÊÿË ªÁÃÁflÁœ ‚¢¬ãŸ „UÊÃË „ÒU ÃÊ ©Uã„¥U ©U‚ ¬⁄U◊ ‚àÿ ∑§Ë flÒ‚ „UË •ŸÈ÷ÍÁà „UÊ ¡ÊÃË „ÒU, ¡Ò‚ SòÊË ∑§ •¢ªÊ¥ ∑§Ê Œπ ∑§⁄U SòÊË ∑§Ë ¬„UøÊŸ „UÊ ¡ÊÃË „ÒU. (29) ÿhÁ⁄UáÊÊ ÿfl◊ÁûÊ Ÿ ¬Èc≈¢U ¬‡ÊÈ ◊ãÿÃ. ‡Êͺ˝Ê ÿŒÿ¸¡Ê⁄UÊ Ÿ ¬Ê·Êÿ œŸÊÿÁÃ.. (30) ¡’ Á„U⁄UáÊ πà ◊¥ ÉÊÈ‚ ∑§⁄U ¡ÊÒ (•ŸÊ¡) πÊ ¡ÊÃÊ „ÒU ÃÊ Á∑§‚ÊŸ Á„U⁄UáÊ ∑§Ë ¬Èc≈UÃÊ ‚ πÈ‡Ê Ÿ„UË¥ „UÊà ’ÁÀ∑§ •¬ŸË „UÊÁŸ ‚ ŒÈ—πË „UË „UÊà „Ò¥U. flÒ‚ „UË ∑§Ê߸ ‡Êͺ˝Ê ¡Ê⁄U ‚ ôÊÊŸœŸ ¬ÊÃË „ÒU ÃÊ ©‚ ∑§Ê ¬Áà ©U‚ ∑§ ß‚ Ã⁄U„U ôÊÊŸ ‚¢¬ããÊ „UÊŸ ‚ ¬˝‚㟠Ÿ„UË¥ „UÊÃÊ „ÒU. (30) ÿhÁ⁄UáÊÊ ÿfl◊ÁûÊ Ÿ ¬Èc≈¢U ’„ÈU ◊ãÿÃ. ‡Êͺ˝Ê ÿŒÿʸÿÒ ¡Ê⁄UÊ Ÿ ¬Ê·◊ŸÈ ◊ãÿÃ.. (31) ¡’ Á„U⁄UáÊ πà ◊¥ ÉÊÈ‚ ∑§⁄U ¡ÊÒ (•ŸÊ¡) πÊ ¡ÊÃÊ „ÒU ÃÊ Á∑§‚ÊŸ Á„U⁄UáÊ ∑§Ë ÿ¡Èfl¸Œ - 297
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬Èc≈UÃÊ ‚ πÈ‡Ê Ÿ„UË¥ „UÊà ’ÁÀ∑§ •¬ŸË „UÊÁŸ ‚ ŒÈ—πË „UË „UÊà „Ò¥U. flÒ‚ „UË ∑§Ê߸ ‡Êͺ˝Ê •Êÿ¸¡Ÿ ‚ ôÊÊŸ ¬ÊÃË „ÒU ÃÊ ©U‚ ∑§Ê ¬Áà ©U‚ ∑§Ë ß‚ ôÊÊŸ ¬˝ÊÁåà ‚ ôÊÊŸ ¬Ê·áÊ ∑§Ê Ÿ„UË¥ ◊ÊŸÃÊ. (31) ŒÁœ∑˝§Ê√áÊÊ •∑§ÊÁ⁄U·¢ Á¡cáÊÊ⁄U‡flSÿ flÊÁ¡Ÿ—. ‚È⁄UÁ÷ ŸÊ ◊ÈπÊ ∑§⁄Uà¬˝ áÊ ˘ •ÊÿÍ ¦ Á· ÃÊÁ⁄U·Ã˜.. (32) „U◊ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ÿôÊ ∑§Ë •ÁÇŸ ∑§Ê ÁflÁœÁflœÊŸ¬Ífl¸∑§ ‚¢S∑§Ê⁄U ÿÈÄà ’ŸÊà „Ò¥U. ÿôÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê „U◊Ê⁄U ◊ÈπÊ¥ ∑§Ê ‚Ȫ¢œ◊ÿ fl „U◊¥ •ÊÿÈc◊ÊŸ ’ŸÊ∞. ÿôÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê „U◊Ê⁄UÊ ÃÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (32) ªÊÿòÊË ÁòÊc≈ÈU顪àÿŸÈc≈ÈUå¬æ˜UÄàÿÊ ‚„U. ’΄àÿÈÁcáÊ„UÊ ∑§∑ȧå‚ÍøËÁ÷— ‡ÊêÿãÃÈ àflÊ.. (33) „U ÿôÊÊÁÇŸ! „U◊ ªÊÿòÊË, ÁòÊc≈ÈU¬˜, ¡ªÃË, •ŸÈc≈ÈU¬˜, ¬¢ÁÄÃ, ’΄UÃË, ©UÁcáÊ∑˜§, ∑§∑ȧ¬˜ ¿¢UŒ fl ‚ÍÁøÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ‡Êʢà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‡Êʢà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (33) Ám¬ŒÊ ÿʇøÃÈc¬ŒÊÁSòʬŒÊ ÿʇø ·≈U˜¬ŒÊ—. Áflë¿UãŒÊ ÿʇø ‚ë¿UãŒÊ— ‚ÍøËÁ÷— ‡ÊêÿãÃÈ àflÊ.. (34) „U ÿôÊÊÁÇŸ! ¡Ê ŒÊ, ÃËŸ, øÊ⁄U, ¿U„U ¬Œ flÊ‹, ¿¢UŒ ¿¢UŒ„UËŸ fl ¿¢UŒ ¿¢UŒÿÈÄà „ÒU¢, fl ‚ÍÁøÿÊ¥ mÊ⁄UÊ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊÊ¢Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U . (34) ◊„UÊŸÊêãÿÊ ⁄UflàÿÊ Áfl‡flÊ •Ê‡ÊÊ— ¬˝÷Ífl⁄UË—. ◊ÒÉÊËÁfl¸lÈÃÊ flÊø— ‚ÍøËÁ÷— ‡ÊêÿãÃÈ àflÊ.. (35) „U ÿôÊÊÁÇŸ! ‚’ ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ´§øÊ∞¢, ‚◊Sà ÁŒ‡ÊÊ∞¢, “◊„UÊŸÊêŸË” ŒflflÊÁáÊÿÊ¢, ⁄UflÃË Ÿ◊∑§ ´§øÊ∞¢, ’ÊŒ‹Ê¥ ∑§Ë Á’¡‹Ë •ÊÒ⁄U üÊcΔU flÊÁáÊÿÊ¢ ‚ÍÁøÿÊ¥ mÊ⁄UÊ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊÊ¢Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. (35) ŸÊÿ¸Sà ¬àãÿÊ ‹Ê◊ ÁflÁøãflãÃÈ ◊ŸË·ÿÊ. ŒflÊŸÊ¢ ¬àãÿÊ ÁŒ‡Ê— ‚ÍøËÁ÷— ‡ÊêÿãÃÈ àflÊ.. (36) „U ÿôÊÊÁÇŸ! ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ë ¬ÁàŸÿÊ¢ ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. „U ÿ¡◊ÊŸ! fl ŸÊÁ⁄UÿÊ¢ •Ê¬ ∑§ ‹Ê◊Ê¥ ∑§Ê ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ øÈŸ ∑§⁄U •‹ª ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë ¬ÁàŸÿÊ¢ fl ÁŒ‡ÊÊ∞¢ ‚ÍøË ‚ •Ê¬ ∑§Ê ‡Êʢà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (36) ⁄U¡ÃÊ „UÁ⁄UáÊË— ‚Ë‚Ê ÿÈ¡Ê ÿÈÖÿãà ∑§◊¸Á÷—. •‡flSÿ flÊÁ¡ŸSàflÁø Á‚◊Ê— ‡ÊêÿãÃÈ ‡ÊêÿãÃË—.. (37) øÊ¢ŒË, ‚Ë‚Ê •ÊÒ⁄U ‚ÊŸÊ ÁflÁœÁflœÊŸ¬Ífl¸∑§ ÿôÊ ◊¥ ¡Ê«∏UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. fl ß‚ ÿôÊ 298 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ë ‚êÿ∑˜§ M§¬ ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. fl ß‚ ÿôÊ ∑§Ë •ÁÇŸ ∑§Ê ‚êÿ∑˜§ M§¬ ‚ ‡Êʢà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (37) ∑ȧÁflŒXÿfl◊ãÃÊ ÿflÁÜølÕÊ ŒÊãàÿŸÈ¬ÍflZ ÁflÿÍÿ. ß„U„ÒU·Ê¢ ∑ΧáÊÈÁ„U ÷Ê¡ŸÊÁŸ ÿ ’Ì„U·Ê Ÿ◊ ˘ ©UÁÄâ ÿ¡ÁãÃ.. (38) „U ‚Ê◊! ÿfl◊ÊŸ ÿÊŸË ¡ÊÒ ‚ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ÷⁄UË „ÈU߸ »§‚‹ ∑§Ê „U◊ ‚’ ’„ÈUà ‚ÊøÁfløÊ⁄ U∑§⁄U ‚ÊflœÊŸË¬Ífl¸∑§ ∑§Ê≈Uà „Ò¥U. „U◊ ŒÿÊ ‚ ¬Á⁄U¬Íáʸ •Ê¬ ∑§Ê ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÿ„UÊ¢ •ÊŸ fl ÷Ê¡Ÿ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÿ ÿ¡◊ÊŸ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U ’ÒΔU ∑§⁄U Ÿ◊S∑§Ê⁄U¬Ífl¸∑§ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. (38) ∑§SàflÊ ¿UKÁà ∑§SàflÊ Áfl‡ÊÊÁSà ∑§Sà ªÊòÊÊÁáÊ ‡ÊêÿÁÃ. ∑ ˘ ©U à ‡ÊÁ◊ÃÊ ∑§Áfl—.. (39) ∑§ÊÒŸ •Ê¬ ∑§Ê •Ê¡ÊŒ ∑§⁄UÃÊ „Ò? ∑§ÊÒŸ •Ê¬ ∑§Ê •ÊŒ‡Ê (©U¬Œ‡Ê) ŒÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ •Ê¬ ∑§Ê ‡Êʢà ∑§⁄UÃÊ „Ò? ∑§ÊÒŸ •Ê¬ ∑§Ê ‚Èπ ŒÃÊ „ÒU? ÁflmÊŸ˜ (∑§Áfl) ¬⁄U◊Êà◊Ê „UË ÿ„U ‚’ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (39) ´§ÃflSà ˘ ´§ÃÈÕÊ ¬fl¸ ‡ÊÁ◊ÃÊ⁄UÊ Áfl ‡ÊÊ‚ÃÈ. ‚¢flà‚⁄USÿ á‚Ê ‡Ê◊ËÁ÷— ‡ÊêÿãÃÈ àflÊ.. (40) ´ ÃÈ∞¢ ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U ‚ÈπŒÊÿË „Ê¥. ¬fl¸ ‚ÈπŒ fl •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ ◊¥ ⁄U„¥U. ‚¢flà‚⁄U ∑§ á ‚ ‚Èπ Á◊‹. ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË ∑§◊¸ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚ÈπŒ „UÊ¥. (40) •œ¸◊Ê‚Ê— ¬M§ ¦ Á· à ◊Ê‚Ê ˘ •Ê ë¿UKãÃÈ ‡Êêÿã×. •„UÊ⁄UÊòÊÊÁáÊ ◊L§ÃÊ ÁflÁ‹C ¦ ‚ÍŒÿãÃÈ Ã.. (41) „U ¬⁄U◊ ¬ÈL§·! •Êœ ◊Ê„U ¬ˇÊ •ÊÒ⁄U ◊Ê‚ ‚ •ÊÿÈ ˇÊËáÊ „UÊÃË „ÒU. ◊L§Œ˜ªáÊ ÁŒŸ⁄UÊà •Ê¬ ∑§ ŒÈ—π ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (41) ŒÒ√ÿÊ •äflÿ¸flSàflÊ ë¿UKÃÃÈ Áfl ø ‡ÊÊ‚ÃÈ. ªÊòÊÊÁáÊ ¬fl¸‡ÊSà Á‚◊Ê— ∑ΧáflãÃÈ ‡ÊêÿãÃË—.. (42) ß‚ ÿôÊ ∑§ •äflÿȸ (¬È⁄UÊÁ„UÃ) •Ê¬ ∑§ ŒÊ·Ê¥ ∑§Ê ˇÊÿ ∑§⁄¥U fl •Ê¬ ∑§ •ŸÈ‡ÊÊ‚Ÿ „UÃÈ ◊ʪ¸Œ‡Ê¸Ÿ ∑§⁄¥U. ß‚ ÿôÊ ∑§ •äflÿȸ •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ©U‚ ∑§ ¡Ê«∏UÊ¥ ∑§Ê ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (42) lÊÒSà ¬ÎÁÕ√ÿãÃÁ⁄UˇÊ¢ flÊÿÈÁ‡¿Uº˝¢ ¬ÎáÊÊÃÈ Ã. ‚Íÿ¸Sà ŸˇÊòÊÒ— ‚„U ‹Ê∑¢§ ∑ΧáÊÊÃÈ ‚ÊœÈÿÊ.. (43) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ¬ÎâflË‹Ê∑§ (ÿ¡◊ÊŸ) ∑§Ê ¬Á⁄U¬Íáʸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§ ŒÊ· ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. •Ê¬ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Á⁄U¬Íáʸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ÿ¡Èfl¸Œ - 299
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§⁄¥U. •Ê¬ flÊÿÈ‹Ê∑§ ∑§ ŒÊ· ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ flÊÿÈ‹Ê∑§ ∑§Ê ¬Á⁄U¬Íáʸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Íÿ¸ ŸˇÊòÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ß‚ ‹Ê∑§ ∑§Ê ‚Ö¡ŸÃÊ ‚ ¬ÍÁ⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (43) ‡Ê¢ à ¬⁄UèÿÊ ªÊòÊèÿ— ‡Ê◊Sàflfl⁄Uèÿ—. ‡Ê◊SÕèÿÊ ◊Ö¡èÿ— ‡ÊêflSÃÈ ÃãflÒ Ãfl.. (44) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ •¢ª Áfl∑§Ê⁄U„UËŸ „UÊ ¡Ê∞¢. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ë „UÁ«˜U«UÿÊ¢ fl ◊îÊÊ Áfl∑§Ê⁄U„UËŸ „UÊ ¡Ê∞¢. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄U ‚ÈπÊ¥ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U „UÊ ¡Ê∞. (44) ∑§— ÁSflŒ∑§Ê∑§Ë ø⁄UÁà ∑§ ˘ ©U ÁSflÖ¡Êÿà ¬ÈŸ—. Á∑§ ¦ ÁSflÁh◊Sÿ ÷·¡¢ Á∑§êflÊfl¬Ÿ¢ ◊„UØ.. (45) ∑§ÊÒŸ •∑§‹Ê Áflø⁄UÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ ’Ê⁄U’Ê⁄U ©Uà¬ããÊ „UÊÃÊ „Ò? Á„U◊ ∑§Ë •Ê·Áœ ∑§ÊÒŸ ‚Ë „ÒU? •ë¿UË Ã⁄U„U ’Ë¡ ’ÊŸ ∑§Ê Áfl‡ÊÊ‹ SÕÊŸ ∑§ÊÒŸ ‚Ê „ÒU? (45) ‚Íÿ¸ ˘ ∞∑§Ê∑§Ë ø⁄UÁà øãº˝◊Ê ¡Êÿà ¬ÈŸ—. •ÁÇŸÁ„¸U◊Sÿ ÷·¡¢ ÷ÍÁ◊⁄UÊfl¬Ÿ¢ ◊„UØ.. (46) ‚Íÿ¸ •∑§‹ Áflø⁄Uà „Ò¥U. ø¢º˝ Œfl ’Ê⁄U’Ê⁄U ©Uà¬ããÊ „UÊà „Ò¥U. Á„U◊ ∑§Ë •Ê·Áœ •ÁÇŸ „ÒU. ¬ÎâflË ’Ë¡ ’ÊŸ ∑§Ê Áfl‡ÊÊ‹ SÕÊŸ „ÒU. (46) Á∑§ ¦ ÁSflà‚Íÿ¸‚◊¢ ÖÿÊÁ× Á∑§ ¦ ‚◊Ⱥ˝‚◊ ¦ ‚⁄U—. Á∑§ ¦ ÁSflà¬ÎÁÕ√ÿÒ fl·Ë¸ÿ— ∑§Sÿ ◊ÊòÊÊ Ÿ ÁfllÃ.. (47) ‚Íÿ¸ ∑§ ‚◊ÊŸ ÖÿÊÁà ∑§ÊÒŸ ‚Ë „ÒU? ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ‚◊ÊŸ ÃÊ‹Ê’ ∑§ÊÒŸ ‚Ê „ÒU? ¬ÎâflË ŒflË ‚ ÷Ë •Áœ∑§ fl·ÊZ flÊ‹Ê (¬È⁄UÊŸÊ) ∑§ÊÒŸ „ÒU? Á∑§‚ ∑§Ë ∑§Ê߸ ◊ÊòÊÊ (¬Á⁄U◊ÊáÊ) Ÿ„UË¥ „ÒU ? (47) ’˝rÊÔ ‚Íÿ¸‚◊¢ ÖÿÊÁÃlÊÒ¸— ‚◊Ⱥ˝‚◊ ¦ ‚⁄U—. ßãº˝— ¬ÎÁÕ√ÿÒ fl·Ë¸ÿÊŸ˜ ªÊSÃÈ ◊ÊòÊÊ Ÿ ÁfllÃ.. (48) ’˝rÊ Œfl ∑§Ë ÖÿÊÁà ‚Íÿ¸ ∑§Ë ÖÿÊÁà ∑§ ‚◊ÊŸ „ÒU. Sflª¸‹Ê∑§ ‚◊Ⱥ˝ ∑§ ‚◊ÊŸ ÃÊ‹Ê’ „ÒU. ߢº˝ Œfl ¬ÎâflË ŒflË ‚ ÷Ë ¬È⁄UÊŸ „Ò¥U. ªÊÒ ◊ÊÃÊ ∑§Ê ∑§Ê߸ ¬Á⁄U◊ÊáÊ Ÿ„UË¥ „ÒU. (48) ¬Îë¿UÊÁ◊ àflÊ ÁøÃÿ Œfl‚π ÿÁŒ àfl◊òÊ ◊Ÿ‚Ê ¡ªãÕ. ÿ·È ÁflcáÊÈÁSòÊ·È ¬ŒcflCÔUSÃ·È Áfl‡fl¢ ÷ÈflŸ◊Ê Áflfl‡ÊÊ° 3.. (49) „U Œfl‚πÊ•Ê! „U◊ Á¡ôÊÊ‚È „Ò¥U. „U◊ ◊Ÿ ‚ •Ê¬ ‚ ¬Í¿Uà „Ò¥U Á∑§ ÄÿÊ ÁflcáÊÈ Ÿ •¬Ÿ ÃËŸ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ Áfl‡fl ∑§ ‚÷Ë ÷ÈflŸÊ¥ ∑§Ê ‚◊Ê Á‹ÿÊ? ÄÿÊ ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§ ÁflcáÊÈ 300 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ (∑§Ë ¬Á⁄UÁœ ◊¥) ‚◊Ê ª∞. ÿÁŒ •Ê¬ ß‚ ’Êà ∑§Ê ¡ÊŸÃ „Ò¥U ÃÊ „U◊¥ ’ÃÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (49) •Á¬ Ã·È ÁòÊ·È ¬ŒcflÁS◊ ÿ·È Áfl‡fl¢ ÷ÈflŸ◊Ê Áflfl‡Ê. ‚l— ¬ÿ¸Á◊ ¬ÎÁÕflË◊Èà lÊ◊∑§ŸÊXŸ ÁŒflÊ •Sÿ ¬ÎcΔU◊˜.. (50) Á¡Ÿ ◊¥ ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§ ÷ÈflŸ ‚◊Ê ª∞, ©UŸ ÃËŸÊ¥ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ ÷Ë ◊Ò¥ „UË „Í¢U. ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ™§¬⁄U ¡Ê ‹Ê∑§ „ÒU, ©U‚ ◊Ò¥ ß‚ ∞∑§ ◊Ÿ M§¬Ë •¢ª ‚ ¡ÊŸ ¡ÊÃÊ „Í¢U. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ •ÊœÊ⁄U ¬⁄U ‹Ê∑§ „Ò. ©U‚ ◊Ò¥ ß‚ ∞∑§ ◊Ÿ M§¬Ë •¢ª ‚ ¡ÊŸ ¡ÊÃÊ „¢ÍU. (50) ∑§cflã× ¬ÈL§· ˘ •Ê Áflfl‡Ê ∑§Êãÿã× ¬ÈL§· •Á¬¸ÃÊÁŸ. ∞ÃŒ˜’˝rÊÔãŸÈ¬ flÀ„UÊ◊Á‚ àflÊ Á∑§ ¦ ÁSfl㟗 ¬˝Áà flÊøÊSÿòÊ.. (51) Á∑§‚ ∑§ •¢ÃSË ◊¥ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· •Ê ∑§⁄U ⁄U◊áÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU? ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ •¢ÃSË ◊¥ Á∑§Ÿ flSÃÈ•Ê¥ ∑§Ê •Á¬¸Ã Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU? „U ’˝ÊrÊáÊ! „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ÿ„U ¡ÊŸŸ ∑§ ßë¿ÈU∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ∑Χ¬ÿÊ „U◊Ê⁄UË ßŸ Á¡ôÊÊ‚Ê•Ê¥ ∑§Ê flÊáÊË ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (51) ¬ÜøSflã× ¬ÈL§· ˘ •Ê Áflfl‡Ê ÃÊãÿã× ¬ÈL§· •Á¬¸ÃÊÁŸ. ∞ÃûflÊòÊ ¬˝ÁÃ◊ãflÊŸÊ •ÁS◊ Ÿ ◊ÊÿÿÊ ÷flSÿÈûÊ⁄UÊ ◊Ø.. (52) •Ê¬ ÿ„U ◊ÊŸÃ „Ò¥U Á∑§ •Ê¬ ÿ„U Ÿ„UË¥ ¡ÊŸÃ. •Ã— ◊Ò¥ ◊ÊÿÊ ‚ •ÕʸØ •Ê¬ ∑§Ê ◊ÊÿʬÍfl¸∑§ ¬˝àÿÈûÊ⁄U ŒÃÊ „Í¢U Á∑§ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ¬Ê¢ø ◊„UÊ÷ÍÃÊ¥ fl ¬Ê¢ø Ãã◊ÊòÊÊ•Ê¥ ◊¥ ⁄U◊áÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê ¬Ê¢ø ◊„UÊ÷Íà fl Ãã◊ÊòÊÊ∞¢ •Áåʸà „Ò¥U. (52) ∑§Ê ÁSflŒÊ‚Ëà¬Ífl¸ÁøÁûÊ— Á∑§ ¦ ÁSflŒÊ‚ËŒ˜ ’΄Umÿ—. ∑§Ê ÁSflŒÊ‚ËÁà¬Á‹Áå¬‹Ê ∑§Ê ÁSflŒÊ‚ËÁଇÊÁX‹Ê.. (53) „U •äUflÿȸªáÊ! ‚’ ‚ ¬„U‹ ÄÿÊ ¡ÊŸŸÊ øÊÁ„U∞? ‚’ ‚ ’«∏UÊ ¬ˇÊË ∑§ÊÒŸ ‚Ê „ÒU? ‚’ ‚ •Œ˜÷Èà M§¬ flÊ‹Ê ∑§ÊÒŸ „ÒU? fl„U ∑§ÊÒŸ „ÒU, ¡Ê ‚’ M§¬Ê¥ ∑§Ê ÁŸª‹ ¡ÊÃÊ „ÒU. (53) lÊÒ⁄UÊ‚Ëà¬Ífl¸ÁøÁûÊ⁄U‡fl ˘ •Ê‚ËŒ˜ ’΄Umÿ—. •Áfl⁄UÊ‚ËÁà¬Á‹Áå¬‹Ê ⁄UÊÁòÊ⁄UÊ‚ËÁଇÊÁX‹Ê.. (54) ‚’ ‚ ¬„U‹ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¡ÊŸŸÊ øÊÁ„U∞. ‚’ ‚ ’«U∏Ê ¬ˇÊË •ÁÇŸ M§¬Ë •‡fl „ÒU. ¬ÎâflË ‚’ ‚ •Áœ∑§ M§¬Ê¥ ∑§Ê ÁŸª‹Ÿ flÊ‹Ë „ÒU. ⁄UÊÁòÊ ‚÷Ë M§¬Ê¥ ∑§Ê ÁŸª‹ ¡ÊŸ flÊ‹Ë „UÊÃË „ÒU. (54) ∑§Ê ߸◊⁄U Á¬‡ÊÁX‹Ê ∑§Ê ßZ ∑ȧL§Á¬‡ÊÁX‹Ê. ∑§ ˘ ߸◊ÊS∑§ãŒ◊·¸Áà ∑ ˘ ßZ ¬ãÕÊ¢ Áfl ‚¬¸ÁÃ.. (55) ÿ¡Èfl¸Œ - 301
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ÊÒŸ M§¬Ê¥ ∑§Ê ÁŸª‹ ¡ÊÃË „Ò? ∑§ÊÒŸ ‡ÊéŒ ‚Á„Uà ‚Ê⁄U M§¬Ê¥ ∑§Ê ÁŸª‹ ¡ÊÃË „ÒU? ∑§ÊÒŸ ©U¿U‹©U¿U‹ ∑§⁄U ø‹ÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ ‚⁄U∑§‚⁄U∑§ ∑§⁄U ø‹ÃÊ „ÒU? (55) •¡Ê⁄U Á¬‡ÊÁX‹Ê ‡flÊÁflà∑ȧL§Á¬‡ÊÁX‹Ê. ‡Ê‡Ê ˘ •ÊS∑§ãŒ◊·¸àÿÁ„U— ¬ãÕÊ¢ Áfl ‚¬¸ÁÃ.. (56) „U •äflÿȸ•Ê! ◊ÊÿÊ ‚’ ∑§Ê ÁŸª‹ÃË „ÒU. fl„UË ÁflÁøòÊ M§¬Ê¥ ◊¥ ‡ÊéŒ ∑§Ê ÁŸª‹ ¡ÊÃË „ÒU. π⁄UªÊ‡Ê ©U¿U‹ÃÊ „ÒU. Áfl‡Ê·ÃÿÊ ‚Ê¢¬ ◊ʪ¸ ¬⁄U ‚⁄U∑§‚⁄U∑§ ∑§⁄U ø‹ÃÊ „ÒU. (56) ∑§àÿSÿ ÁflcΔUÊ— ∑§àÿˇÊ⁄UÊÁáÊ ∑§Áà „UÊ◊Ê‚— ∑§ÁÃœÊ ‚Á◊h—. ÿôÊSÿ àflÊ ÁflŒÕÊ ¬Îë¿U◊òÊ ∑§Áà „UÊÃÊ⁄U ˘ ´§ÃȇÊÊ ÿ¡ÁãÃ.. (57) ß‚ ÿôÊ ◊¥ Á∑§ÃŸ •ããÊ „Ò¥U? ß‚ ÿôÊ ◊¥ Á∑§ÃŸ •ˇÊ⁄U „Ò¥U? „UÊ◊ Á∑§ÃŸ (¬˝∑§Ê⁄U ∑§) „UÊà „Ò¥U? ‚Á◊œÊ∞¢ Á∑§ÃŸ (¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë) „UÊÃË „Ò¥U? •Ê¬ ÿôÊ (ÁfllÊ) ∑§Ê Áfl‡Ê· ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ¡ÊŸÃ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ‚ ÿ„U ¡ÊŸŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U Á∑§ ¬˝àÿ∑§ ´§ÃÈ ◊¥ Á∑§ÃŸ „UÊÃÊ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (57) ·«USÿ ÁflcΔUÊ— ‡ÊÃ◊ˇÊ⁄UÊáÿ‡ÊËÁÄUʸ◊Ê— ‚Á◊œÊ „U ÁÃd—. ÿôÊSÿ à ÁflŒÕÊ ¬˝ ’˝flËÁ◊ ‚åà „UÊÃÊ⁄U ˘ ´§ÃȇÊÊ ÿ¡ÁãÃ.. (58) ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¿U„U ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ •ããÊ „Ò¥U. ß‚ ÿôÊ ◊¥ ‚ÊÒ •ˇÊ⁄U „Ò¥U. •S‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ „UÊ◊ „UÊà „Ò¥U. ‚Á◊œÊ∞¢ ÃËŸ ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë „UÊÃË „Ò¥U. ¬˝àÿ∑§ ´§ÃÈ ◊¥ ‚Êà „UÊÃÊ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (58) ∑§Ê •Sÿ flŒ ÷ÈflŸSÿ ŸÊÁ÷¢ ∑§Ê lÊflʬÎÁÕflË •ãÃÁ⁄UˇÊ◊˜. ∑§— ‚Íÿ¸Sÿ flŒ ’΄UÃÊ ¡ÁŸòÊ¢ ∑§Ê flŒ øãº˝◊‚¢ ÿÃÊ¡Ê—.. (59) ∑§ÊÒŸ „ÒU, ¡Ê ß‚ ‹Ê∑§ ∑§Ë ŸÊÁ÷ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ „ÒU, ¡Ê Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ „ÒU ¡Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ „ÒU, ¡Ê ‚Íÿ¸ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „ÒU? ∑§ÊÒŸ „ÒU, ¡Ê ø¢º˝◊Ê ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „ÒU? (59) flŒÊ„U◊Sÿ ÷ÈflŸSÿ ŸÊÁ÷¢ flŒ lÊflʬÎÁÕflË •ãÃÁ⁄UˇÊ◊˜. flŒ ‚Íÿ¸Sÿ ’΄UÃÊ ¡ÁŸòÊ◊ÕÊ flŒ øãº˝◊‚¢ ÿÃÊ¡Ê—.. (60) ◊Ò¥ (¬⁄U◊Êà◊Ê) ß‚ ‹Ê∑§ ∑§Ë ŸÊÁ÷ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „Í¢U.Ô ◊Ò¥ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „Í¢U.Ô ◊Ò¥ •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „Í¢U.Ô ◊Ò¥ ‚Íÿ¸ fl ø¢º˝ Œfl ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ ∑§Ê ¡ÊŸÃÊ „Í¢U. (60) ¬Îë¿UÊÁ◊ àflÊ ¬⁄U◊ãâ ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ¬Îë¿UÊÁ◊ ÿòÊ ÷ÈflŸSÿ ŸÊÁ÷—. ¬Îë¿UÊÁ◊ àflÊ flÎcáÊÊ •‡flSÿ ⁄U× ¬Îë¿UÊÁ◊ flÊø— ¬⁄U◊¢ √ÿÊ◊.. (61) „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ¬ÎâflË ∑§ ¬⁄U◊ •¢Ã ‚ ¬Í¿Uà „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ‹Ê∑§ ∑§Ë ŸÊÁ÷ ‚ 302 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
Ã߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬Í¿Uà „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ‚ ¬Í¿Uà „Ò¥U Á∑§ ÉÊÊ«∏Ê¥ ∑§ flËÿ¸ ∑§Ê ’‹ ∑§ÊÒŸ „ÒU . „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ¬Í¿Uà „Ò¥U Á∑§ flÊáÊË ∑§Ê ¬⁄U◊ √ÿÊ◊ ÄÿÊ „ÒU? (61) ßÿ¢ flÁŒ— ¬⁄UÊ •ã× ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •ÿ¢ ÿôÊÊ ÷ÈflŸSÿ ŸÊÁ÷—. •ÿ ¦ ‚Ê◊Ê flÎcáÊÊ •‡flSÿ ⁄UÃÊ ’˝rÊÔÊÿ¢ flÊø— ¬⁄U◊¢ √ÿÊ◊.. (62) ÿ„U flŒË ¬ÎâflË ∑§Ê ¬⁄U◊ •¢Ã „ÒU. ÿ„U ÿôÊ ∑§Ë ŸÊÁ÷ „Ò. ÿ„U ‚Ê◊ •‡fl ∑§ flËÿ¸ ∑§Ê ’‹ „ÒU. ’˝rÊÊ flÊáÊË ∑§Ê ¬⁄U◊ √ÿÊ◊ „ÒU. (62) ‚È÷Í— Sflÿê÷Í— ¬˝Õ◊ÊãÃ◊¸„Uàÿáʸfl. Œœ „U ª÷¸◊ÎÁàflÿ¢ ÿÃÊ ¡Ê× ¬˝¡Ê¬Á×.. (63) ¬⁄U◊Êà◊Ê Sflÿ¢ ©Uà¬ããÊ „UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ ‚Ê⁄U ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ „ÒU. ‚fl¸¬˝Õ◊ ©Uã„UÊ¥Ÿ ◊„UÊŸ˜ •áʸfl (‚◊Ⱥ˝) ◊¥ ª÷¸ œÊ⁄UÊ. ©U‚ ª÷¸ ‚ ¬˝¡Ê¬Áà ’˝rÊÊ ©Uà¬ããÊ „ÈU∞. (63) „UÊÃÊ ÿˇÊà¬˝¡Ê¬Áà ¦ ‚Ê◊Sÿ ◊Á„Uꟗ. ¡È·ÃÊ¢ Á¬’ÃÈ ‚Ê◊ ¦ „UÊÃÿ¸¡.. (64) „UÊÃÊ Ÿ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ‚Ê◊ ‚ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§Ê ÿ¡Ÿ Á∑§ÿÊ. ¬˝¡Ê¬Áà ‚ ÁŸflŒŸ „ÒU Á∑§ ¬˝¡Ê¬Áà ©U‚ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „UÊÃÊ•Ê¥ ‚ ÷Ë ÁŸflŒŸ „ÒU Á∑§ •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ê „UË ÿ¡Ÿ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (64) ¬˝¡Ê¬Ã Ÿ àflŒÃÊãÿãÿÊ Áfl‡flÊ M§¬ÊÁáÊ ¬Á⁄U ÃÊ ’÷Ífl. ÿà∑§Ê◊ÊSà ¡È„ÈU◊SÃãŸÊ •SÃÈ flÿ ¦ SÿÊ◊ ¬ÃÿÊ ⁄UÿËáÊÊ◊˜.. (65) „U ¬˝¡Ê¬ÁÃ! •Ê¬ ∑§ •‹ÊflÊ ∑§Ê߸ ŒÍ‚⁄UÊ ©Uß Áfl‡fl M§¬Ê¥ flÊ‹Ê Ÿ„UË¥ „UÊ ‚∑§ÃÊ. „U◊ Á¡‚ ∑§Ê◊ŸÊ ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, „U◊Ê⁄UË fl„U ∑§Ê◊ŸÊ ¬Íáʸ „UÊ. „U◊ œŸÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „UÊ ¡Ê∞¢. (65)
ÿ¡Èfl¸Œ - 303
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ •‡flSÃͬ⁄UÊ ªÊ◊ΪSà ¬˝Ê¡Ê¬àÿÊ— ∑Χcáʪ˝Ëfl ˘ •ÊÇŸÿÊ ⁄U⁄UÊ≈U ¬È⁄USÃÊà‚Ê⁄USflÃË ◊cÿœSÃÊŒ˜œãflÊ⁄UÊÁ‡flŸÊflœÊ⁄UÊ◊ÊÒ ’ÊuÔUÊ— ‚ÊÒ◊ʬÊÒcáÊ— ‡ÿÊ◊Ê ŸÊèÿÊ ¦ ‚ÊÒÿ¸ÿÊ◊ÊÒ ‡flÇø ∑Χcáʇø ¬Ê‡fl¸ÿÊSàflÊCÔ˛UÊÒ ‹Ê◊‡Ê‚ÄÕÊÒ ‚ÄâÿÊflʸÿ√ÿ— ‡fl× ¬Èë¿U ˘ ßãº˝Êÿ Sfl¬SÿÊÿ fl„UmÒcáÊflÊ flÊ◊Ÿ—.. (1) ÉÊÊ«∏UÊ, ŸË‹ªÊÿ ÃÕÊ flη÷ ¬˝¡Ê¬Áà Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ∑§Ê‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹Ê •¡ •ÁÇŸ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ‚ê◊Èπ ÁSÕà ◊· ‚⁄USflÃË ŒflË ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ŸËø ÁSÕà œŸ •Á‡flŸË Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ∑§Ê‹Ë ŸÊÁ÷ flÊ‹Ê •‡fl ‚Ê◊ •ÊÒ⁄U ¬Í·Ê Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ∑§Ê‹ •ÊÒ⁄U ‚»§Œ ¬Ê‡fl¸ ÷ʪ flÊ‹ ‚Íÿ¸ •ÊÒ⁄U ÿ◊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. •Áœ∑§ ‹Ê◊ flÊ‹ àflc≈UÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ‚»§Œ ¬Í¢¿U flÊ‹ flÊÿÈ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ª÷¸ ‚ m· ∑§⁄UŸ flÊ‹ ߢº˝ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. flÊ◊Ÿ (ÁΔUªŸÊ) ¬‡ÊÈ ÁflcáÊÈ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (1) ⁄UÊÁ„UÃÊ œÍ◊˝⁄UÊÁ„U× ∑§∑¸§ãœÈ⁄UÊÁ„UÃSà ‚ÊÒêÿÊ ’÷˝È⁄UL§áÊ’÷˝È— ‡ÊÈ∑§’÷˝ÈSà flÊL§áÊÊ— Á‡ÊÁÃ⁄Uãœ˝Êãÿ× Á‡ÊÁÃ⁄Uãœ˝— ‚◊ãÃÁ‡ÊÁÃ⁄Uãœ˝Sà ‚ÊÁflòÊÊ— Á‡ÊÁÃ’Ê„ÈU⁄Uãÿ× Á‡ÊÁÃ’Ê„ÈU— ‚◊ãÃÁ‡ÊÁÃ’Ê„ÈUSà ’Ê„¸US¬àÿÊ— ¬Î·ÃË ˇÊȺ˝¬Î·ÃË SÕÍ‹¬Î·ÃË ÃÊ ◊ÒòÊÊflL§áÿ—.. (2) ‹Ê‹, œÈ∞¢ ¡Ò‚ ‹Ê‹, ¬∑§ »§‹ ¡Ò‚ ‹Ê‹ ¬‡ÊÈ ‚Ê◊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ÷Í⁄UÊ ‹Ê‹, ÷Í⁄UÊ ‡ÊÈ∑˝§ ¡Ò‚Ê „U⁄UÊ ⁄¢Uª flL§áÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ∑§„UË¥∑§„UË¥ ‚»§Œ ¿UŒ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ∞∑§ •Ê⁄U ‚»§Œ ¿UŒ flÊ‹ ¬‡ÊÈ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ∑§„UË¥∑§„UË¥ ‚»§Œ ’Ê„È flÊ‹ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ‚»§Œ ’Ê„ÈU flÊ‹ ¬‡ÊÈ ’΄US¬Áà Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ¿Ê≈U ø∑§ûÊ flÊ‹ fl ’«∏U ø∑§ûÊ flÊ‹ Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (2) ‡ÊÈhflÊ‹— ‚fl¸‡ÊÈhflÊ‹Ê ◊ÁáÊflÊ‹Sà ˘ •ÊÁ‡flŸÊ— ‡ÿ× ‡ÿÃÊˇÊÊL§áÊSà L§º˝Êÿ ¬‡ÊȬÃÿ ∑§áÊʸ ÿÊ◊Ê ˘ •flÁ‹åÃÊ ⁄UÊÒº˝Ê Ÿ÷ÊM§¬Ê— ¬Ê¡¸ãÿÊ—.. (3) ∞∑§Œ◊ ‡ÊÈh ’Ê‹Ê¥ flÊ‹, ‚¢¬Íáʸ ‡ÊÈh ’Ê‹Ê¥ flÊ‹, ◊ÁáÊ ∑§ ‚◊ÊŸ ’Ê‹Ê¥ flÊ‹, ‡ÊÈh ’Ê‹Ê¥ flÊ‹ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ‚»§Œ ⁄¢Uª, ‚»§Œ •Ê¢π, ‹Ê‹ ⁄U¢ª flÊ‹ ¬‡ÊÈ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •ÊÒ⁄U ¬‡ÊȬÁà ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ‚»§Œ ∑§ÊŸ flÊ‹ ÿ◊ ∑§ Á‹∞ 304 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@19
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
⁄UÊÒº˝ Sfl÷Êfl flÊ‹ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. Ÿ÷ M§¬ flÊ‹ ¬¡¸ãÿ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (3) ¬ÎÁ‡ŸÁSÃ⁄U‡øËŸ¬ÎÁ‡ŸM§äfl¸¬ÎÁ‡ŸSà ◊ÊL§ÃÊ— »§ÀªÍ‹Ê¸Á„UÃÊáÊ˸ ¬‹ˇÊË ÃÊ— ‚Ê⁄USflàÿ— å‹Ë„UÊ∑§áʸ— ‡ÊÈáΔUÊ∑§áÊʸäÿÊ‹Ê„U∑§áʸSà àflÊCÔ˛UÊ— ∑Χcáʪ˝Ëfl— Á‡ÊÁÃ∑§ˇÊÊÁÜ¡‚ÄÕSà ˘ ∞ãº˝ÊÇŸÊ— ∑ΧcáÊÊÁÜ¡⁄UÀ¬ÊÁÜ¡◊¸„UÊÁÜ¡Sà ˘ ©U·SÿÊ—.. (4) ÁflÁøòÊ ⁄¢Uª flÊ‹ ÁÃ⁄U¿UË ⁄UπÊ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ÁflÁøòÊ Á’¢ŒÈ flÊ‹ ◊L§Œ˜ªáÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. „U‹∑§Ë»È§‹∑§Ë ‹Ê‹ ‚»§Œ ™§UŸ flÊ‹Ë (÷«∏¥U) ‚⁄USflÃË ŒflË ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. å‹Ë„UÊ (∑§ ⁄UʪË) ∑§ÊŸ flÊ‹ ¿UÊ≈U ÃÕÊ ‹Ê‹ ⁄¢Uª ∑§ ∑§ÊŸ flÊ‹ àflc≈UÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ∑§Ê‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹, ‚»§Œ ∑§Ê¢π flÊ‹, ‹Ê‹ ¡Ê¢ÉÊÊ¥ flÊ‹ ߢº˝ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. •ÁÇŸ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ∑§Ê‹, ¿UÊ≈U ∞fl¢ ’«∏U œé’ flÊ‹ ¬‡ÊÈ ©U·Ê ŒflË ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (4) Á‡ÊÀ¬Ê flÒ‡flŒ√ÿÊ ⁄UÊÁ„UáÿSòÿflÿÊ flÊøÁflôÊÊÃÊ •ÁŒàÿÒ ‚M§¬Ê œÊòÊ flà‚Ãÿʸ ŒflÊŸÊ¢ ¬àŸËèÿ—.. (5) Áfl‡fl ŒflË ∑§ ¬‡ÊÈ ÁøÃ∑§’⁄U (ÁflÁøòÊ) ⁄¢Uª ∑§ „ÒU¢. •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§ •SòÊ •flÿfl flÊáÊË •ôÊÊà fl ‚ÈM§¬ „Ò¥U. œÊ⁄U∑§ Œfl „UÃÈ „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ¬ÁàUŸÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿ ’Á¿UUÿÊ¢ „Ò¥U. (5) ∑Χcáʪ˝ËflÊ ˘ •ÊÇŸÿÊ— Á‡ÊÁÃ÷˝flÊ fl‚ÍŸÊ ¦ ⁄UÊÁ„UÃÊ L§º˝ÊáÊÊ ¦ ‡flÃÊ ˘ •fl⁄UÊÁ∑§áÊ ˘ •ÊÁŒàÿÊŸÊ¢ Ÿ÷ÊM§¬Ê— ¬Ê¡¸ãÿÊ—.. (6) ∑§Ê‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ ¬‡ÊÈ •ÁÇŸ, ‚»§Œ ÷ÊÒ¥„UÊ¥ flÊ‹ ¬‡ÊÈ fl‚ÈŒfl fl ‹Ê‹ ⁄¢Uª flÊ‹ ¬‡ÊÈ L§º˝Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ‚»§Œ ⁄¢Uª flÊ‹ ¬‡ÊÈ •ÊÁŒàÿ Œfl fl Ÿ÷ ¡Ò‚ M§¬ flÊ‹ ¬‡ÊÈ ¬¡¸ãÿ (’ÊŒ‹) ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (6) ©UãŸÃ ˘ ´§·÷Ê flÊ◊ŸSà ˘ ∞ãº˝ÊflÒcáÊflÊ ©UãŸÃ— Á‡ÊÁÃ’Ê„ÈU—Á‡ÊÁìÎcΔUSà ˘ ∞ãº˝Ê ’Ê„¸US¬àÿÊ— ‡ÊÈ∑§M§¬Ê flÊÁ¡ŸÊ— ∑§À◊Ê·Ê ˘ •ÊÁÇŸ◊ÊL§ÃÊ— ‡ÿÊ◊Ê— ¬ÊÒcáÊÊ—.. (7) ™¢§ø, ŸÊ≈U, ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ ¬‡ÊÈ ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U ÁflcáÊÈ, ©UããÊÃ, ‚»§Œ ’Ê„ÈU fl ‚»§Œ ¬ËΔU flÊ‹ ¬‡ÊÈ ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U ’΄US¬Áà Œfl ÃÕÊ ‡ÊÈ∑§ ¡Ò‚ M§¬ flÊ‹ ¬‡ÊÈ flÊ¡Ë Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ÁøÃ∑§’⁄U ¬‡ÊÈ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ◊L§Œ˜ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ‡ÿÊ◊ ⁄¢Uª flÊ‹ ¬ÍcÊÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (7) ∞ÃÊ ˘ ∞ãº˝ÊÇŸÊ ÁmM§¬Ê ˘ •ÇŸË·Ê◊ËÿÊ flÊ◊ŸÊ ˘ •Ÿ«˜UflÊ„U ˘ •ÊÇŸÊflÒcáÊflÊ fl‡ÊÊ ◊ÒòÊÊflL§áÿÊãÿà ˘ ∞ãÿÊ ◊Òòÿ—.. (8) ŒÊ M§¬ flÊ‹ ¬‡ÊÈ ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ŒÊ M§¬ flÊ‹ ¬‡ÊÈ ‚Ê◊ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ fl ¿Ê≈U M§¬ flÊ‹ ¬‡ÊÈ ÁflcáÊÈ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ’Ê¢¤Ê ¬‡ÊÈ Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ‚ fl •ãÿ ¬‡ÊÈ Á◊òÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (8) ÿ¡Èfl¸Œ - 305
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑Χcáʪ˝ËflÊ ˘ •ÊÇŸÿÊ ’÷˝fl— ‚ÊÒêÿÊ— ‡flÃÊ flÊÿ√ÿÊ ˘ •ÁflôÊÊÃÊ ˘ •ÁŒàÿÒ ‚M§¬Ê œÊòÊ flà‚Ãÿʸ ŒflÊŸÊ¢ ¬àŸËèÿ—.. (9) ∑§Ê‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ •ÁÇŸ, ÷Í⁄U ⁄¢Uª flÊ‹ ‚Ê◊, ‚»§Œ ⁄¢Uª flÊ‹ flÊÿÈ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. •ôÊÊà ⁄¢Uª flÊ‹ •ÊÁŒàÿ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ‚È¢Œ⁄U ⁄¢Uª flÊ‹ œÊÃÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ’Á¿UÿÊ¢ Œfl ¬ÁàUŸÿÊ¥ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (9) ∑ΧcáÊÊ ÷ÊÒ◊Ê œÍ◊˝Ê ˘ •ÊãÃÁ⁄UˇÊÊ ’΄UãÃÊ ÁŒ√ÿÊ— ‡Ê’‹Ê flÒlÈÃÊ— Á‚ä◊ÊSÃÊ⁄U∑§Ê—.. (10) ∑§Ê‹ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ ÷ÍÁ◊ ∑§ Á‹∞, œÈ∞¢ ¡Ò‚ •¢ÃÁ⁄UˇÊ „UÃÈ Áfl‡ÊÊ‹ ¬‡ÊÈ Sflª¸ ∑§ Á‹∞, ’„ÈU⁄¢UªË ÁfllÈØ „UÃÈ •ÊÒ⁄U ∑ȧcΔUË ¬‡ÊÈ ÃÊ⁄U∑§Ê¥ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. (10) œÍ◊˝Êãfl‚ãÃÊÿÊ‹÷à ‡flÃÊãª˝Ëc◊Êÿ ∑ΧcáÊÊãfl·Ê¸èÿÊL§áÊÊÜ¿U⁄UŒ ¬Î·ÃÊ „U◊ãÃÊÿ Á¬‡ÊXÊÁÜ¿UÁ‡Ê⁄UÊÿ.. (11) œÈ∞¢ ¡Ò‚ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ fl‚¢Ã, ‚»§Œ ¡Ò‚ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ fl ∑§Ê‹ ¡Ò‚ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ fl·Ê¸ ´§ÃÈ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ªÈ‹Ê’ ¡Ò‚ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ ‡Ê⁄UŒ ´§ÃÈ ∑§ Á‹∞, ÁøÃ∑§’⁄U ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ „U◊¢Ã ´§ÃÈ fl ∑§Ê‹, ¬Ë‹ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ Á‡ÊÁ‡Ê⁄U ´§ÃÈ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. (11) òÿflÿÊ ªÊÿòÿÒ ¬ÜøÊflÿÁSòÊc≈ÈU÷ ÁŒàÿflÊ„UÊ ¡ªàÿÒ ÁòÊflà‚Ê ˘ •Ÿc≈ÈU÷ ÃÈÿ¸flÊ„U ˘ ©UÁcáÊ„U.. (12) «U…∏U fl·¸ ∑§ ªÊÿòÊË „UÃÈ, …UÊ߸ fl·¸ ∑§ ÁòÊc≈Ȭ˜ ∑§ Á‹∞, ÃËŸ fl·¸ ∑§ •ŸÈc≈ÈU¬˜ „UÃÈ, ‚Ê…∏U ÃËŸ fl·¸ ∑§ ©UÁcáÊ∑˜§ ¿¢UŒ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. (12) ¬cΔUflÊ„UÊ Áfl⁄UÊ¡ ˘ ©UˇÊÊáÊÊ ’΄UàÿÊ ˘ ´§·÷Ê— ∑§∑ȧ÷Ÿ«˜UflÊ„U— ¬æ˜UÄàÿÒ œŸflÊÁÃë¿U㌂.. (13) ¬Ë¿U ‚ ÷Ê⁄U …UÊŸ flÊ‹ Áfl⁄UÊ¡ ¿¢UŒ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. flËÿ¸ Á‚¢ø∑§ ’΄UÃË ¿¢UŒ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ’‹flÊŸ ∑§∑ȧ¬˜ ¿¢UŒ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ªÊ«∏UË πË¥øŸ flÊ‹ ¬¢ÁÄà ¿U¢Œ ∑§ Á‹∞ ŒÍœ ŒŸ flÊ‹ •ÁÃë¿¢UŒ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. (13) ∑Χcáʪ˝ËflÊ ˘ •ÊÇŸÿÊ ’÷˝fl— ‚ÊÒêÿÊ ˘ ©U¬äflSÃÊ— ‚ÊÁflòÊÊ flà‚Ãÿ¸— ‚Ê⁄USflàÿ— ‡ÿÊ◊Ê— ¬ÊÒcáÊÊ— ¬Î‡ŸÿÊ ◊ÊL§ÃÊ ’„ÈUM§¬Ê flÒ‡flŒflÊ fl‡ÊÊ lÊflʬÎÁÕflËÿÊ—.. (14) ∑§Ê‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹ •ÁÇŸ fl ÷Í⁄U ‚Ê◊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. Á◊ÁüÊà ⁄¢Uª flÊ‹ ‚ÁflÃÊ Œfl fl ¿UÊ≈UË ’Á¿ÿÊ¢ ‚⁄USflÃË ŒflË ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ∑§Ê‹ ⁄¢Uª ∑§ ¬Í·Ê Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ÁøÃ∑§’⁄U ◊L§Œ˜ªáÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ’„ÈUM§¬ flÊ‹ Áfl‡fl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. fl¢äÿÊ ªÊ∞¢ Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (14) ©UÄÃÊ— ‚Üø⁄UÊ ˘ ∞ÃÊ ˘ ∞ãº˝ÊÇŸÊ— ∑ΧcáÊÊ flÊL§áÊÊ— ¬Î‡ŸÿÊ ◊ÊL§ÃÊ— ∑§ÊÿÊSÃͬ⁄UÊ—.. (15) ∑§„U ª∞ ‚¢ø⁄UáʇÊË‹ ¬‡ÊÈ ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ∑§Ê‹ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ 306 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ÁøÃ∑§’⁄U ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ Á‹∞ fl ‚Ë¥ª⁄UÁ„Uà ¬‡ÊÈ ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. (15) •ÇŸÿŸË∑§flà ¬˝Õ◊¡ÊŸÊ‹÷à ◊L§jK— ‚ÊãìŸèÿ— ‚flÊàÿÊã◊L§jKÊ ªÎ„U◊ÁœèÿÊ ’Ác∑§„UÊã◊L§jK— ∑˝§ËÁ«Uèÿ— ‚ ¦ ‚ÎCÔUÊã◊L§jK— SflÃfljKÊŸÈ‚ÎCÔUÊŸ˜.. (16) ¬„U‹ ¡ã◊ ¬‡ÊÈ ‚ŸÊ¬Áà ¡Ò‚ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ©UûÊ◊ ì ∑§⁄UŸ flÊ‹ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ flÊÿÈ ¡Ò‚ ªÁÃ◊ÊŸ ¬‡ÊÈ „Ò¥U. ªÎ„U◊œ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ Áø⁄U¬˝‚Íà ¬‡ÊÈ „Ò¥U. ∑˝§Ë«U∏Ê∑§Ê⁄UË ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ •ë¿U ªÈáÊË ¬‡ÊÈ „Ò¥U. Sfl¬˝Á⁄Uà ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ‚ÊÕ ⁄U„Ÿ flÊ‹ ¬‡ÊÈ „Ò¥U. (16) ©UÄÃÊ— ‚Üø⁄UÊ ˘ ∞ÃÊ ˘ ∞ãº˝ÊÇŸÊ— ¬˝Êo΢ªÊ ◊Ê„Uãº˝Ê ’„ÈUM§¬Ê flÒ‡fl∑§◊¸áÊÊ—.. (17) ™§¬⁄U ∑§„U ª∞ ‚¢ø⁄UáʇÊË‹ ¬‡ÊÈ ß¢º˝ Œfl ∞fl¢ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ¬˝∑Χc≈U (üÊcΔU) ‚Ë¥ª flÊ‹ ¬‡ÊÈ ◊„¥Uº˝ Œfl •ÊÁŒ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ’„ÈUà ‚ ⁄¢UªÊ¥ flÊ‹ Áfl‡fl∑§◊ʸ Œfl ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. (17) œÍ◊˝Ê ’÷˝ÈŸË∑§Ê‡ÊÊ— Á¬ÃÎÎáÊÊ ¦ ‚Ê◊flÃÊ¢ ’÷˝flÊ œÍ◊˝ŸË∑§Ê‡ÊÊ— Á¬ÃÎÎáÊÊ¢ ’Á„¸U·ŒÊ¢ ∑ΧcáÊÊ ’÷È˝ŸË∑§Ê‡ÊÊ— Á¬ÃÎÎáÊÊ◊ÁÇŸcflÊûÊÊŸÊ¢ ∑ΧcáÊÊ— ¬Î·ãÃdÒÿê’∑§Ê—.. (18) œÈ∞¢ ¡Ò‚ ÷Í⁄U ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. œÈ∞¢ •ÊÒ⁄U Ÿfl‹ ¡Ò‚ ÷Í⁄U ⁄¢Uª ∑§ ‚Ê◊ ªÈáÊÊ¥ flÊ‹ ¬‡ÊÈ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ∑§Ê‹ •ÊÒ⁄U ÷Í⁄U ⁄¢Uª ∑§ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U ’ÒΔU ¬‡ÊÈ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. •ÁÇŸ ÁfllÊ ◊¥ ÁŸ¬ÈáÊ ¬‡ÊÈ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ∑§Ê‹ ⁄¢Uª ∑§ ø∑§ûÊŒÊ⁄U ¬‡ÊÈ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. (18) ©UÄÃÊ— ‚Üø⁄UÊ ˘ ∞ÃÊ— ‡ÊÈŸÊ‚Ë⁄UËÿÊ— ‡flÃÊ flÊÿ√ÿÊ— ‡flÃÊ— ‚ÊÒÿʸ—.. (19) ©U¬ÿȸÄà ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ „UË ‚¢ø⁄UáʇÊË‹ ¬‡ÊÈ ‡ÊÈŸÊ‚Ë⁄U ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ‚»§Œ ⁄¢Uª ∑§ ¬‡ÊÈ flÊÿÈ Œfl ∑§ Á‹∞ „Ò¥U. ‚»§Œ •Ê÷Ê flÊ‹ ¬‡ÊÈ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ „Ò¥. (19) fl‚ãÃÊÿ ∑§Á¬Ü¡‹ÊŸÊ‹÷à ª˝Ëc◊Êÿ ∑§‹ÁflVÊãfl·Ê¸èÿÁSÃÁûÊ⁄UËÜ¿U⁄UŒ flÁûʸ∑§Ê „U◊ãÃÊÿ ∑§∑§⁄UÊÁÜ¿UÁ‡Ê⁄UÊÿ Áfl∑§∑§⁄UÊŸ˜.. (20) fl‚¢Ã ´§ÃÈ ∑§ Á‹∞ øÊÃ∑§, ª⁄U◊Ë ∑§ Á‹∞ ø≈U∑§ fl fl·Ê¸ ∑§ Á‹∞ ÃËÃ⁄U ∑§Ê ÁŸœÊ¸⁄UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ‹flÊ ‡Ê⁄UŒ ´§ÃÈ, ∑§∑§⁄U fl Á‡ÊÁ‡Ê⁄U ´§ÃÈ „UÃÈ Áfl∑§∑§⁄U ¬ÁˇÊÿÊ¥ ∑§Ê ÁŸœÊ¸⁄UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (20) ‚◊Ⱥ˝Êÿ Á‡Ê‡ÊÈ◊Ê⁄UÊŸÊ‹÷à ¬¡¸ãÿÊÿ ◊á«ÍU∑§ÊŸjKÊ ◊àSÿÊÁã◊òÊÊÿ ∑ȧ‹Ë¬ÿÊãflL§áÊÊÿ ŸÊ∑˝§ÊŸ˜.. (21) ‚◊Ⱥ˝ „UÃÈ •¬Ÿ „UË ’ìÊÊ¥ ∑§Ê ◊Ê⁄UŸ flÊ‹ ¬ˇÊË ∑§Ê ÁŸœÊ¸⁄UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ÿ¡Èfl¸Œ - 307
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
’ÊŒ‹ „UÃÈ ◊¢«ÍU∑§ ∑§Ê ÁŸœÊ¸⁄UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ ◊àSÿ, Á◊òÊ Œfl „UÃÈ ∑ȧ‹Ë¬ÿ ÃÕÊ flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ŸÊ∑˝§ ŸÊ◊∑§ ¬‡ÊÈ ∑§Ê ÁŸœÊ¸⁄UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (21) ‚Ê◊Êÿ „U ¦ ‚ÊŸÊ‹÷à flÊÿfl ’‹Ê∑§Ê ˘ ßãº˝ÊÁÇŸèÿÊ¢ ∑˝È§ÜøÊÁã◊òÊÊÿ ◊Œ˜ªÍãflL§áÊÊÿ ø∑˝§flÊ∑§ÊŸ˜.. (22) ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ „¢U‚ ¬ˇÊË, flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ ’ªÈ‹Ë. ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ‚Ê⁄U‚, Á◊òÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑˝§ÊÒ¥ø ÃÕÊ flL§áÊ Œfl „UÃÈ ø∑§fl ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (22) •ÇŸÿ ∑ȧ≈UM§ŸÊ‹÷à flŸS¬ÁÃèÿ ˘ ©U‹Í∑§ÊŸÇŸË·Ê◊ÊèÿÊ¢ øÊ·ÊŸÁ‡flèÿÊ¢ ◊ÿÍ⁄UÊÁã◊òÊÊflL§áÊÊèÿÊ¢ ∑§¬ÊÃÊŸ˜.. (23) •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ◊È⁄Uª fl flŸS¬ÁÃŒfl ∑§ Á‹∞ ©UÀ‹Í fl •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ „UÃÈ ŸË‹∑¢§ΔUU ¬ˇÊË ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. •Á‡flŸË ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ◊Ê⁄U fl flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§’ÍÃ⁄U ¬ˇÊË ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. (23) ‚Ê◊Êÿ ‹’ÊŸÊ‹÷à àflCÔ˛U ∑§ÊÒ‹Ë∑§ÊãªÊ·ÊŒËŒ¸flÊŸÊ¢ ¬àŸËèÿ— ∑ȧ‹Ë∑§Ê Œfl¡ÊÁ◊èÿÊÇŸÿ ªÎ„U¬Ãÿ ¬ÊL§cáÊÊŸ˜.. (24) ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ‹’Ê, àflc≈UÊ ∑§ Á‹∞ ’ÿÊ fl Œfl ¬ÁàŸÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ªÊ· •ÊÁŒ ªÈ±ÿË ¬ˇÊË ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ’„UŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‹Ë∑§ fl ªÎ„U¬Áà „UÃÈ ¬ÊL§cáÊ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. (24) •qÔU ¬Ê⁄UÊflÃÊŸÊ‹÷à ⁄UÊòÿÒ ‚ËøʬÍ⁄U„UÊ⁄UÊòÊÿÊ— ‚ÁãœèÿÊ ¡ÃÍ◊ʸ‚èÿÊ ŒÊàÿÊÒ„UÊãà‚¢flà‚⁄UÊÿ ◊„U× ‚ȬáÊʸŸ˜.. (25) ÁŒŸ ∑§ Á‹∞ ∑§’ÍÃ⁄U •ÊÒ⁄U ⁄UÊÁòÊ ∑§ Á‹∞ ‚ËøÊ¬Í ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. ÁŒŸ ÃÕÊ ⁄UÊà ∑§Ë ‚¢Áœ „UÃÈ ø◊ªÊŒ«∏U, ◊Ê‚ „UÃÈ ∑§ÊÒ∞ fl fl·¸ „UÃÈ •ë¿U ¬¢π flÊ‹ (ªL§«∏U) ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. (25) ÷ÍêÿÊ ˘ •ÊπÍŸÊ‹÷ÃãÃÁ⁄UˇÊÊÿ ¬Êæ˜UÄòÊÊÁãŒfl ∑§‡ÊÊÁãŒÇèÿÊ Ÿ∑ȧ‹Êã’÷˝È∑§ÊŸflÊãÃ⁄UÁŒ‡ÊÊèÿ—.. (26) ÷ÍÁ◊ ∑§ Á‹∞ øÍ„UÊ¥ fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ Á‹∞ ¬Ê¢Ã ◊¥ ©U«U∏ Ÿ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. Sflª¸ ∑§ Á‹∞ ∑§‡Ê fl ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÷Í⁄U ⁄¢Uª ∑§ ¡¢ÃÈ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. (26) fl‚Èèÿ ˘ ´§‡ÿÊŸÊ‹÷à L§º˝èÿÊ L§M§ŸÊÁŒàÿèÿÊ ãÿæ˜U∑ͧÁãfl‡flèÿÊ Œflèÿ— ¬Î·ÃÊãà‚Êäÿèÿ— ∑ȧ‹ÈXÊŸ˜.. (27) fl‚È•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ´§cÿ ŸÊ◊∑§ Á„U⁄UáÊ fl L§º˝ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ L§L§ ŸÊ◊∑§ Á„U⁄UáÊ ∑§Ê 308 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. •ÊÁŒàÿ ∑§ Á‹∞ ãÿ¢∑§È ŸÊ◊∑§ Á„U⁄UáÊ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. Áfl‡flÊ¥ ∑§ Á‹∞ ø∑§ûÊŒÊ⁄U Á„U⁄UáÊ fl ‚ÊäUÿ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‹Èª¢ Á„U⁄UáÊ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á◊‹ÃÊ „Ò. (27) ߸‡ÊÊŸÊÿ ¬⁄USflà ˘ •Ê‹÷à Á◊òÊÊÿ ªÊÒ⁄UÊãflL§áÊÊÿ ◊Á„U·Êã’΄US¬Ãÿ ªflÿÊ¢SàflCÔ˛U ˘ ©Uc≈˛UÊŸ˜.. (28) ߸‡ÊÊŸ Œfl „UÃÈ ¬⁄USflà ◊Ϊ, Á◊òÊ Œfl „UÃÈ ªÊÒ⁄U ◊Ϊ fl flL§áÊ Œfl „UÃÈ ÷Ò¥‚Ê¥ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ’΄US¬Áà Œfl „UÃÈ ªÊÿÊ¥ ∑§Ê •ÊÒ⁄U àflc≈UÊ Œfl „UÃÈ ™¢§≈UÊ¥ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (28) ¬˝¡Ê¬Ãÿ ¬ÈL§·Êã„UÁSß ˘ •Ê‹÷à flÊø å‹È·Ë°‡øˇÊÈ· ◊‡Ê∑§ÊÜ¿U˛ÊòÊÊÿ ÷ÎXÊ—.. (29) ¬˝¡Ê¬Áà „UÃÈ „UÊÁÕÿÊ¥ flÊ∑˜§Ô§Œfl „UÃÈ å‹È·Ë, øˇÊÈ Œfl „UÃÈ ◊ë¿U⁄U fl ∑§ÊŸÊ¥ „UÃÈ ÷¢fl⁄UÊ¥ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (29) ¬˝¡Ê¬Ãÿ ø flÊÿfl ø ªÊ◊ÎªÊ flL§áÊÊÿÊ⁄UáÿÊ ◊·Ê ÿ◊Êÿ ∑ΧcáÊÊ ◊ŸÈcÿ⁄UÊ¡Êÿ ◊∑¸§≈U— ‡Êʌ͸‹Êÿ ⁄UÊÁ„UŒÎ·÷Êÿ ªflÿË ÁˇÊ¬˝‡ÿŸÊÿ flÁø∑§Ê ŸË‹XÊ— ∑ΧÁ◊— ‚◊Ⱥ˝Êÿ Á‡Ê‡ÊÈ◊Ê⁄UÊ Á„U◊flà „USÃË.. (30) ¬˝¡Ê¬Áà ÃÕÊ flÊÿÈ Œfl „UÃÈ ªÊ◊Ϊ, flL§áÊ Œfl „UÃÈ ¡¢ª‹Ë ◊·, ÿ◊ „UÃÈ ∑ΧcáÊ ◊·, ◊ŸÈcÿ⁄UÊ¡ „UÃÈ ◊∑¸§≈U, Á‚¢„U⁄UÊ¡ „UÃÈ ‹Ê‹ ◊Ϊ, ´§·÷§„UÃÈ ªÊÿ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ’Ê¡ „UÃÈ ’≈U⁄U, ŸË‹Ê¢ª „UÃÈ ∑ΧÁ◊, ‚◊Ⱥ˝ „UÃÈ Á‡Ê‡ÊÈ◊Ê⁄U fl Á„◊flÊŸ „UÃÈ „UÊÕË ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (30) ◊ÿÈ— ¬˝Ê¡Ê¬àÿ ©U‹Ê „UÁ‹ˇáÊÊ flηŒ ¦ ‡ÊSà œÊòÊ ÁŒ‡ÊÊ¢ ∑§VÊ œÈæ˜UˇÊÊÇŸÿË ∑§‹ÁflVÊ ‹ÊÁ„UÃÊÁ„U— ¬Èc∑§⁄U‚ÊŒSà àflÊCÔ˛UÊ flÊø ∑˝È§Üø—.. (31) ¬˝¡Ê¬Áà ∑§ Á‹∞ Á∑§ãŸ⁄UU (ªÊÿŸflÊŒŸ ◊¥ ∑ȧ‡Ê‹) ©U‹ ∑§Ê ÁŸÿÊÁ¡Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. πÊ‚ ÃÊÒ⁄U ∑§Ê ‡Ê⁄U •ÊÒ⁄U Á’‹Êfl äÊÊÃÊ Œfl „UÃÈ ÁŸÿÊÁ¡Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÁŒ‡ÊÊ „UÃÈ ∑¢§∑§ ∑§Ê ÁŸÿÊÁ¡Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÊÇŸÿ ÁŒ‡ÊÊ „UÃÈ œÈ¢ˇÊÊ ÁŸÿÊÁ¡Ã ∑§⁄¥U. Áø«U∏Ê, ‹Ê‹ ‚Ê¢¬ •ÊÒ⁄U ∑§◊‹÷ˇÊË ¬ˇÊË àflc≈UÊ Œfl „UÃÈ ÁŸÿÊÁ¡Ã ∑§⁄¥U. flÊ∑˜§ „UÃÈ ∑˝§ÊÒ¥ø ¬ˇÊË ∑§Ê ÁŸÿÊÁ¡Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (31) ‚Ê◊Êÿ ∑ȧ‹ÈX ˘ •Ê⁄UáÿÊ¡Ê Ÿ∑ȧ‹— ‡Ê∑§Ê à ¬ÊÒcáÊÊ— ∑˝§ÊCÔUÊ ◊ÊÿÊÁ⁄Uãº˝Sÿ ªÊÒ⁄U◊Ϊ— Á¬mÊ ãÿæ˜U∑ȧ— ∑§Ä∑§≈USà ˘ ŸÈ◊àÿÒ ¬˝ÁÃüÊÈà∑§ÊÿÒ ø∑˝§flÊ∑§—.. (32) ‚Ê◊ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ⁄¢Uª ¬‡ÊÈ, ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ ¡¢ª‹Ë ◊·, Ÿfl‹Ê ÃÕÊ ◊œÈ◊ÄπË „Ò¥U. flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ oΪʋ, ߢº˝ ∑§ Á‹∞ ªÊÒ⁄U◊Ϊ, •ŸÈ◊Áà ∑§ Á‹∞ ãÿ¢∑ȧ fl ¬˝ÁÃüÊÈà∑§ Œfl ∑§ Á‹∞ ø∑§flÊ ¬ˇÊË „ÒU. (32) ‚ÊÒ⁄UË ’‹Ê∑§Ê ‡Êʪ¸— ‚Ρÿ— ‡ÊÿÊá«U∑§Sà ◊ÒòÊÊ— ‚⁄USflàÿÒ ‡ÊÊÁ⁄U— ¬ÈL§·flÊ∑˜§ ‡flÊÁfljÊÒ◊Ë ‡Êʌ͸‹Ê flÎ∑§— ¬ÎŒÊ∑ȧSà ◊ãÿfl ‚⁄USflà ‡ÊÈ∑§— ¬ÈL§·flÊ∑˜§.. (33) ÿ¡Èfl¸Œ - 309
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ ’ªÈ‹Ê ¬ˇÊË „Ò. Á◊òÊ Œfl ∑§ Á‹∞ øÊÃ∑§, ‚Ρÿ fl ‡ÊÿÊ¢«U∑§ „Ò¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ Á‹∞ ◊ÒŸÊ, ¬ÎâflË ŒflË ∑§ Á‹∞ ‚„UË ¬ˇÊË fl ◊ãÿÈ Œfl ∑§ Á‹∞ Á‚¢„U, ÷Á«∏UÿÊ, ‚Ê¢¬ „Ò¥U. ‚◊Ⱥ˝ ∑§ Á‹∞ ◊ŸÈcÿflÊøË ÃÊÃÊ ¬ˇÊË „Ò. (33) ‚Ȭáʸ— ¬Ê¡¸ãÿ ˘ •ÊÁÃflʸ„U‚Ê ŒÁfl¸ŒÊ à flÊÿfl ’΄US¬Ãÿ flÊøS¬Ãÿ ¬ÒX⁄UÊ¡Ê‹¡ ˘ •ÊãÃÁ⁄UˇÊ— å‹flÊ ◊Œ˜ªÈ◊¸àSÿSà ŸŒË¬Ãÿ lÊflʬÎÁÕflËÿ— ∑ͧ◊¸—.. (34) ¬¡¸ãÿ Œfl (’ÊŒ‹) ∑§ Á‹∞ ªL§«∏U ¬ˇÊË, flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ •ÊÃË, flÊ„U‚ ÃÕÊ ∑§ÊcΔU ∑ȧ≈˜U≈U „ÒU¢. flÊáÊˬÁà ’΄US¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ ¬Ò¥ª⁄UÊ¡ ÃÕÊ ∑§ÊcΔU ∑ȧ≈˜U≈U „ÒU¢. •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§ Á‹∞ •‹¡ „ÒU. ŸŒË Œfl ∑§ Á‹∞ ◊àSÿ flÊ„U‚ ÃÕÊ ∑§ÊcΔU ∑ȧ≈˜U≈U „ÒU¢. Sflª¸‹Ê∑§ ∞fl¢ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ ∑§ë¿U¬ (∑§¿ÈU•Ê) „ÒU. (34) ¬ÈL§·◊Ϊ‡øãº˝◊‚Ê ªÊœÊ ∑§Ê‹∑§Ê ŒÊflʸÉÊÊ≈USà flŸS¬ÃËŸÊ¢ ∑Χ∑§flÊ∑ȧ— ‚ÊÁflòÊÊ „U ¦ ‚Ê flÊÃSÿ ŸÊ∑˝§Ê ◊∑§⁄U— ∑ȧ‹Ë¬ÿSÃ∑ͧ¬Ê⁄USÿ ÁOÔUÿÒ ‡ÊÀÿ∑§—.. (35) ø¢º˝ Œfl „UÃÈ Ÿ⁄U Á„U⁄UáÊ, flŸS¬Áà Œfl „UÃÈ ªÊ„U ∑§Ê‹∑§Ê ÃÕÊ ∑§ΔU»§Ê«∏UÊ, ‚ÁflÃÊ Œfl „UÃÈ ÃÊ◊˝øÍ⁄U, flÊÿÈ „UÃÈ fl ‚◊Ⱥ˝ Œfl „UÃÈ Ÿ∑˝§, ◊ª⁄U◊ë¿U ∞fl¢ ∑ȧ‹Ë¬ÿ ¡‹ø⁄U ÁŸœÊ¸Á⁄Uà Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. OÔUË Œfl „UÃÈ ‚„UË ∑§Ê ÁŸœÊ¸Á⁄Uà Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (35) ∞áÿqÔUÊ ◊á«ÍU∑§Ê ◊ÍÁ·∑§Ê ÁÃÁûÊÁ⁄USà ‚¬Ê¸áÊÊ¢ ‹Ê¬Ê‡Ê ˘ •ÊÁ‡flŸ— ∑ΧcáÊÊ ⁄UÊòÿÊ ˘ ´§ˇÊÊ ¡ÃÍ— ‚ÈÁ·‹Ë∑§Ê à ˘ ßÃ⁄U¡ŸÊŸÊ¢ ¡„U∑§Ê flÒcáÊflË.. (36) •±Ÿ „UÃÈ „UÁ⁄UáÊË, ‚¬¸ „UÃÈ ◊…U∑§, øÈÁ„UÿÊ ÃÕÊ ÃËÃ⁄U ∑§Ê ÁflœÊŸ „ÒU. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U „UÃÈ ‹Ê¬Ê‡Ê, ⁄UÊÁòÊ ŒflË „UÃÈ ∑ΧcáÊ ◊Ϊ fl •ãÿ ŒflªáÊÊ¥ „UÃÈ ⁄UË¿U, ¡ÃÍ •ÊÒ⁄U ‚ÈÁ·‹Ë∑§Ê ∑§Ê ÁflœÊŸ „ÒU. ÁflcáÊÈ „UÃÈ ¡„U∑§Ê ÁŸœÊ¸Á⁄Uà „ÒU. (36) •ãÿflʬʜ¸◊Ê‚ÊŸÊ◊·ÿÊ ◊ÿÍ⁄U— ‚ȬáʸSà ªãœflʸáÊÊ◊¬Ê◊Ⱥ˝Ê ◊Ê‚Ê¢ ∑§‡ÿ¬Ê ⁄UÊÁ„Uà∑ȧá«ÎUáÊÊøË ªÊ‹ÁûÊ∑§Ê Ãå‚⁄U‚Ê¢ ◊ÎàÿflÁ‚×.. (37) •h¸◊Ê‚ „UÃÈ •ãÿflÊÿ (∑§Êÿ‹), ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ ´§cÿ◊Ϊ •ÊÒ⁄U ◊Ê⁄U, ª¢œflÊZ ∑§ Á‹∞ ‚Ȭáʸ, ¡‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ ∑§∑§«∏U, ◊„UËŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑§¿ÈU∞ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •å‚⁄UÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ⁄UÊÁ„UÃ, ∑Χ¢«ÎUáÊUÊøË fl ªÊ‹ÁûÊ∑§Ê ∑§Ê ÁflœÊŸ „ÒU. ◊ÎàÿÈ ∑§ Á‹∞ ∑§Ê‹ Á„U⁄UáÊ ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (37) fl·Ê¸„ÍU´¸§ÃÍŸÊ◊ÊπÈ— ∑§‡ÊÊ ◊ÊãÕÊ‹Sà Á¬ÃÎÎáÊÊ¢ ’‹ÊÿÊ¡ª⁄UÊ fl‚ÍŸÊ¢ ∑§Á¬Ü¡‹— ∑§¬Êà ˘ ©U‹Í∑§— ‡Ê‡ÊSà ÁŸ´¸§àÿÒ flL§áÊÊÿÊ⁄UáÿÊ ◊·—.. (38) fl·Ê¸ ∑§Ê ’È‹ÊŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ ´§ÃÈ, Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ øÍ„U, ¿U¿Í¢UŒ⁄U ÃÕÊ Á¿U¬∑§‹Ë, ’‹Œfl ∑§ Á‹∞ •¡ª⁄U, fl‚È•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ∑§®¬¡‹ fl ÁŸ´¸§Áà Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§’ÍÃ⁄U, ©UÀ‹Í •ÊÒ⁄U π⁄UªÊ‡Ê ∑§Ê ÁflœÊŸ „ÒU. flL§áÊ ∑§ Á‹∞ ¡¢ª‹Ë ◊· ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (38) 310 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Á‡flòÊ •ÊÁŒàÿÊŸÊ◊ÈCÔ˛UÊ ÉÊÎáÊËflÊãflÊœ˝Ë¸Ÿ‚Sà ◊àÿÊ ˘ •⁄UáÿÊÿ ‚Î◊⁄UÊ L§M§ ⁄UÊÒº˝— ÄflÁÿ— ∑ȧ≈UL§ŒÊ¸àÿÊÒ„USà flÊÁ¡ŸÊ¢ ∑§Ê◊Êÿ Á¬∑§—.. (39) •ÊÁŒàÿªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÁflÁøòÊ ¬‡ÊÈ, ◊Áà ŒflË ∑§ Á‹∞ ™¢§≈, UøË‹ •ÊÒ⁄U ’∑§⁄U, •⁄Uáÿ Œfl ∑§ Á‹∞ ªÊÿ, L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ L§L§ ◊Ϊ fl flÊÁ¡ Œfl ∑§ Á‹∞ ÄflÁÿ, ∑§ÊÒ∞ •ÊÒ⁄U ◊È⁄Uª ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ∑§Ê◊ Œfl ∑§ Á‹∞ ∑§Êÿ‹ ∑§Ê ÁflœÊŸ „ÒU. (39) π«˜UªÊ flÒ‡flŒfl— ‡flÊ ∑ΧcáÊ— ∑§áÊʸ ªŒ¸÷SÃ⁄UˇÊÈSà ⁄UˇÊ‚ÊÁ◊ãº˝Êÿ ‚Í∑§⁄U— Á‚ ¦ „UÊ ◊ÊL§Ã— ∑Χ∑§‹Ê‚— Á¬å¬∑§Ê ‡Ê∑ȧÁŸSà ‡Ê⁄U√ÿÊÿÒ Áfl‡fl·Ê¢ ŒflÊŸÊ¢ ¬Î·Ã—.. (40) flÒ‡fl Œfl ∑§ Á‹∞ ªÒ¥«U, ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§ Á‹∞ ∑ȧûÊ, ªœ •ÊÒ⁄U ‡Ê⁄U, ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ‚È•⁄U fl ◊L§ Œfl ∑§ Á‹∞ Á‚¢„U ∑§Ê ÁflœÊŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ‡Ê⁄√ÿ ŒflË „UÃÈ Áª⁄UÁª≈U, ¬¬Ë„UÊ •ÊÒ⁄U ‡Ê∑ȧÁŸ ÃÕÊ ‚÷Ë ŒflÊ¥ „UÃÈ ¬Î·Ã ◊Ϊ ∑§Ê ÁflœÊŸ „ÒU. (40)
ÿ¡Èfl¸Œ - 311
¬ëøË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‡ÊÊŒ¢ ŒÁj⁄Ufl∑§Ê¢ ŒãÃ◊Í‹Ò◊¸ÎŒ¢ flSflÒ¸SêÊ㌠¦ CÔ˛UÊèÿÊ ¦ ‚⁄USflàÿÊ ˘ •ª˝Á¡uÔ¢U Á¡uÔUÊÿÊ ˘ ©Uà‚ÊŒ◊fl∑˝§ãŒŸ ÃÊ‹È flÊ¡ ¦ „UŸÈèÿÊ◊¬ ˘ •ÊSÿŸ flηáÊ◊Êá«UÊèÿÊ◊ÊÁŒàÿÊ° ‡◊üÊÈÁ÷— ¬ãÕÊŸ¢ ÷Í˝èÿÊ¢ lÊflʬÎÁÕflË flÃʸèÿÊ¢ ÁfllÈâ ∑§ŸËŸ∑§ÊèÿÊ ¦ ‡ÊÈÄ‹Êÿ S√ÊÊ„UÊ ∑ΧcáÊÊÿ SflÊ„UÊ ¬ÊÿʸÁáÊ ¬ˇ◊ÊáÿflÊÿʸ ˘ ߡÊflÊflÊÿʸÁáÊ ¬ˇ◊ÊÁáÊ ¬Êÿʸ ˘ ߡÊfl—.. (1) ŒÊ¢ÃÊ¥ ‚ ‡ÊÊŒ ŒflÃÊ (∑§Ê◊‹ ÉÊÊ‚), Œ¢Ã◊Í‹ (ŒÊ¢Ã ∑§Ë ¡«∏U) ‚ ¡‹ ◊¥ ©U¬¡Ÿ flÊ‹ ‡ÊÒflÊ‹ Œfl (¡‹ ◊¥ ©U¬¡Ÿ flÊ‹Ë ÉÊÊ‚) fl ŒÊ…∏UÊ¥ ‚ Á◊≈˜U≈UË fl ŒÊ…∏UÊ¥ ‚ ê Œfl ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. Á¡±flÊ ∑§ •Êª ∑§ ÷ʪ ‚ ‚⁄USflÃË ŒflË fl ©Uà‚ÊŒ Œfl ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÃÊ‹È ‚ •fl∑˝¢§Œ Œfl, ΔUÊ«∏UË ‚ •ããÊ Œfl, ◊Èπ ‚ ¡‹ Œfl, •¢«U∑§Ê·Ê¥ ‚ flηáÊ Œfl fl ŒÊ…∏UË◊Í¢¿U ‚ •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÷ÊÒ¥„UÊ¥ ‚ ¬¢Õ Œfl, ’⁄UÊÒÁŸÿÊ¥ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§, •Ê¢π ∑§Ë ¬ÈÃÁ‹ÿÊ¥ ‚ ÁfllÈØ Œfl ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‡ÊÈÄ‹ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ∑ΧcáÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ¬Ê⁄ UŒfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. •flÊ⁄U Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ™§¬⁄U ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ŸËø ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. (1) flÊâ ¬˝ÊáʟʬʟŸ ŸÊÁ‚∑§ ©U¬ÿÊ◊◊œ⁄UáÊÊÒcΔUŸ ‚ŒÈûÊ⁄UáÊ ¬˝∑§Ê‡ÊŸÊãÃ⁄U◊ŸÍ∑§Ê‡ÊŸ ’ÊsÔ¢ ÁŸflcÿ¢ ◊ÍäŸÊ¸ SßÁÿàŸÈ¢ ÁŸ’ʸœŸÊ‡ÊÁŸ¢ ◊ÁSÃc∑§áÊ ÁfllÈâ ∑§ŸËŸ∑§ÊèÿÊ¢ ∑§áÊʸèÿÊ ¦ üÊÊòÊ ¦ üÊÊòÊÊèÿÊ¢ ∑§áÊÊÒ¸ ÃŒŸË◊œ⁄U∑§áΔUŸÊ¬— ‡ÊÈc∑§∑§áΔUŸ ÁøûÊ¢ ◊ãÿÊÁ÷⁄UÁŒÁà ¦ ‡ÊËcáÊʸ ÁŸ´¸§Áâ ÁŸ¡¸¡¸À¬Ÿ ‡ÊËcáÊʸ ‚¢∑˝§Ê‡ÊÒ— ¬˝ÊáÊÊŸ˜ ⁄Uc◊ÊáÊ ¦ SÃȬŸ.. (2) ¬˝ÊáÊ ‚ flÊà Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¬ÊŸ ‚ ŸÊÁ‚∑§Ê Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§¬⁄U ∑§ „UÊ¥ΔU ‚ ‚Ø Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÊcΔU ‚ ©U¬ÿÊ◊ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UûÊ⁄U ∑§ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ •¢Ã⁄U Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÷ËÃ⁄U ∑§ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ’ʱÿ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊͜ʸ ‚ ÁŸfl‡Ê Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. Á‚⁄U ◊¥ ÁSÕà •ÁSÕ ‚ SßÁÿàŸÈ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊ÁSÃc∑§ ‚ •‡ÊÁŸ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¢π ∑§Ë ¬ÈÃÁ‹ÿÊ¥ ‚ ÁfllÈØ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑§ÊŸÊ¥ ‚ üÊÊòÊ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒÊŸÊ¥ ∑§ÊŸÊ¥ ‚ Œfl‡ÊÁÄà Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸËø ∑§ ∑¢§ΔU ‚ ÃŒŸË Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ™§¬⁄U ∑§ ‚Íπ ∑¢§ΔU ‚ ¡‹ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸÊÁ«∏UÿÊ¥ ‚ ÁøûÊ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. Á‚⁄U ‚ •ÁŒÁà Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡¡¸⁄U Á‚⁄U ‚ ÁŸ´¸§Áà Œfl 312 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’Ê‹Ÿ flÊ‹ •¢ªÊ¥ ‚ ¬˝ÊáÊ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. øÊ≈UË ‚ ⁄c◊ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. (2) ◊‡Ê∑§ÊŸ˜ ∑§‡ÊÒÁ⁄Uãº˝ ¦ Sfl¬‚Ê fl„UŸ ’΄US¬Áà ¦ ‡Ê∑ȧÁŸ‚ÊŒŸ ∑ͧ◊ʸܿU»Ò§⁄UÊ∑˝§◊áÊ ¦ SÕÍ⁄UÊèÿÊ◊ÎˇÊ‹ÊÁèÊ— ∑§Á¬Ü¡‹ÊÜ¡fl¢ ¡YÊèÿÊ◊äflÊŸ¢ ’Ê„ÈUèÿÊ¢ ¡Êê’Ë‹ŸÊ⁄Uáÿ◊ÁÇŸ◊ÁÃL§ÇèÿÊ¢ ¬Í·áÊ¢ ŒÊèÿʸ◊Á‡flŸÊfl ¦ ‚ÊèÿÊ ¦ L§º˝ ¦ ⁄UÊ⁄UÊèÿÊ◊˜.. (3) ∑§‡ÊÊ¥ ‚ ◊‡Ê∑§ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ∑¢§œÊ¥ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬ˇÊË ¡Ò‚ flª ‚ ’΄US¬Áà Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. πÈ⁄UÊ¥ ‚ ∑§◊¸ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ªÈÀ»§Ê¥ ‚ •Ê∑˝§◊áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ªÈÀ»§Ê¥ ∑§ ŸËø ŸÊÁ«∏UÿÊ¥ ‚ ∑§®¬¡‹ ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡¢ÉÊÊ•Ê¥ ‚ flª ∑§Ë ŒflË ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’Ê„ÈU•Ê¥ ‚ ⁄UÊ„U Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÉÊÈ≈UŸÊ¥ ‚ ¡¢ª‹ Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÉÊÈ≈UŸÊ¥ ‚ ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸËø ∑§ ÉÊÈ≈UŸÊ¥ ‚ ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒÊŸÊ¥ ∑¢§œÊ¥ ‚ •Á‡flŸË Œfl ∑§§Á‹∞ SflÊ„UÊ. Œ„U ∑§Ë •ãÿ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ ‚ L§º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ (3) •ÇŸ— ¬ˇÊÁÃflʸÿÊÁŸ¸¬ˇÊÁÃÁ⁄Uãº˝Sÿ ÃÎÃËÿÊ ‚Ê◊Sÿ øÃÈâÿ¸ÁŒàÿÒ ¬Üø◊Ëãº˝ÊáÿÒ ·cΔUË ◊L§ÃÊ ¦ ‚åÃ◊Ë ’΄US¬Ã⁄UCÔUêÿÿ¸êáÊÊ Ÿfl◊Ë œÊÃÈŒ¸‡Ê◊Ëãº˝SÿÒ∑§ÊŒ‡ÊË flL§áÊSÿ mÊŒ‡ÊË ÿ◊Sÿ òÊÿÊŒ‡ÊË.. (4) ŒÊßZ •Ê⁄U ∑§Ë ¬„U‹Ë •ÁSÕ •ÁÇŸ, ŒÍ‚⁄UË •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ flÊÿÈ, ÃË‚⁄UË •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ ß¢º˝ Œfl, øÊÒÕË •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ, ¬Ê¢øflË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ •ÁŒÁà ŒflË fl ¿UΔUË •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ ß¢º˝ÊáÊË ŒflË ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ‚ÊÃflË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ ◊L§Œ˜ Œfl, •ÊΔUflË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ ’΄US¬Áà Œfl ŸÊÒflË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ •ÿ¸◊Ê Œfl fl Œ‚flË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ œÊÃÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. ÇÿÊ⁄U„UflË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ ß¢º˝ Œfl ‚ ’Ê⁄U„UflË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ flL§áÊ Œfl fl Ã⁄U„UflË¥ •Ê⁄U ∑§Ë •ÁSÕ ÿ◊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. (4) ßãº˝ÊÇãÿÊ— ¬ˇÊÁ× ‚⁄USflàÿÒ ÁŸ¬ˇÊÁÃÁ◊¸òÊSÿ ÃÎÃËÿʬʢ øÃÈÕ˸ ÁŸ´¸§àÿÒ ¬ÜøêÿÇŸË·Ê◊ÿÊ— ·cΔUË ‚¬Ê¸áÊÊ ¦ ‚åÃ◊Ë ÁflcáÊÊ⁄UCÔU◊Ë ¬ÍcáÊÊ Ÿfl◊Ë àflc≈ÈUŒ¸‡Ê◊Ëãº˝SÿÒ∑§ÊŒ‡ÊË flL§áÊSÿ mÊŒ‡ÊË ÿêÿÒ òÊÿÊŒ‡ÊË lÊflʬÎÁÕ√ÿÊŒ¸ÁˇÊáÊ¢ ¬Ê‡flZ Áfl‡fl·Ê¢ ŒflÊŸÊ◊ÈûÊ⁄U◊˜.. (5) ’ÊßZ •Ê⁄U ∑§Ë ¬„U‹Ë •ÁSÕ ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ, ŒÍ‚⁄UË •ÁSÕ ‚⁄USflÃË ŒflË, ÃË‚⁄UË •ÁSÕ Á◊òÊ Œfl, øÊÒÕË •ÁSÕ ¡‹ Œfl, ¬Ê¢øflË¥ •ÁSÕ ÁŸ´¸§Áà Œfl fl ¿UΔUË •ÁSÕ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. ‚ÊÃflË¥ •ÁSÕ ‚¬¸ Œfl, •ÊΔUflË¥ •ÁSÕ ÁflcáÊÈ, ŸÊÒflË¥ •ÁSÕ ¬Í·Ê Œfl, Œ‚flË¥ •ÁSÕ àflc≈UÊ Œfl fl ÇÿÊ⁄U„UflË¥ •ÁSÕ ß¢º˝ Œfl fl ’Ê⁄U„UflË¥ •ÁSÕ flL§áÊ Œfl, Ã⁄U„UflË¥ •ÁSÕ ÿ◊ Œfl, ŒÊÁ„UŸÊ ÷ʪ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ’ÊÿÊ¢ ÷ʪ ‚÷Ë ŒflÊ¥ fl ©UûÊ⁄U ÷ʪ •ãÿ ŒflÊ¥ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. (5) ÿ¡Èfl¸Œ - 313
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
◊L§ÃÊ ¦ S∑§ãœÊ Áfl‡fl·Ê¢ ŒflÊŸÊ¢ ¬˝Õ◊Ê ∑§Ë∑§‚Ê L§º˝ÊáÊÊ¢ ÁmÃËÿÊÁŒàÿÊŸÊ¢ ÃÎÃËÿÊ flÊÿÊ— ¬Èë¿U◊ÇŸË·Ê◊ÿÊ÷ʸ‚ŒÊÒ ∑˝È§ÜøÊÒ üÊÊÁáÊèÿÊÁ◊ãº˝Ê’Î„US¬ÃË ™§L§èÿÊ¢ Á◊òÊÊflL§áÊÊflÀªÊèÿÊ◊Ê∑˝§◊áÊ ¦ SÕÍ⁄UÊèÿÊ¢ ’‹¢ ∑ȧcΔUÊèÿÊ◊˜.. (6) ∑§¢œ ∑§Ë •ÁSÕ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥, ¬˝Õ◊ •ÁSÕ Áfl‡fl ŒflÊ¥, ŒÍ‚⁄UË •ÁSÕ L§º˝ªáÊÊ¥, ÃË‚⁄UË •ÁSÕ •ÊÁŒàÿªáÊÊ¥, ¬Í¢¿U flÊÿÈ, ÁŸÃ¢’ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ‚Ê◊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ¡¢ÉÊÊ∞¢ ∑˝§ÊÒ¥ø Œfl fl ŒÊŸÊ¥ ¡¢ÉÊÊ∞¢ ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U ’΄US¬Áà Œfl, ŒÊŸÊ¥ ¡¢ÉÊÊ∞¢ Á◊òÊ Œfl flL§áÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ŸËø ∑§Ê ÷ʪ •Ê∑˝§◊áÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ™§¬⁄U ∑§Ê ÷ʪ ’‹ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. (6) ¬Í·áÊ¢ flÁŸcΔÈUŸÊãœÊ„UËãàSÕÍ‹ªÈŒÿÊ ‚¬Ê¸ãªÈŒÊÁ÷Áfl¸OÔ‰Uà ˘ •ÊãòÊÒ⁄U¬Ê flÁSÃŸÊ flηáÊ◊Êá«UÊèÿÊ¢ flÊÁ¡Ÿ ¦ ‡Ê¬Ÿ ¬˝¡Ê ¦ ⁄UÃ‚Ê øÊ·ÊŸ˜ Á¬ûÊŸ ¬˝Œ⁄UÊŸ˜ ¬ÊÿÈŸÊ ∑ͧ‡◊ÊÜ¿U∑§Á¬á«ÒU—.. (7) ’«∏UË •Ê¢Ã ¬Í·Ê Œfl, SÕÍ‹ ªÈŒÊ •¢œ ‚¬¸ Œfl, ‚Ê◊Êãÿ ªÈŒÊ •Uãÿ ‚¬¸ ŒflÊ¥, ’øË „ÈU߸ •Ê¢Ã¥ ÁfllÈØ Œfl, flÁSà ÷ʪ ¡‹ Œfl, •¢«U∑§Ê· flηáÊ Œfl fl ©U¬SÕ ’‹ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. flËÿ¸ ¬˝¡Ê¬Áà Œfl, Á¬ûÊ øÊ· Œfl, ¬ÊÿÈ (ªÈŒÊ) ¬˝Œ⁄U Œfl fl ‡Ê∑§ ®¬«U ∑ͧ‡◊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (7) ßãº˝Sÿ ∑˝§Ê«UÊÁŒàÿÒ ¬Ê¡Sÿ¢ ÁŒ‡ÊÊ¢ ¡òÊflÊÁŒàÿÒ ÷‚Ö¡Ë◊ÍÃÊŸ˜ NUŒÿÊÒ¬‡ÊŸÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ¬È⁄UËÃÃÊ Ÿ÷ ˘ ©UŒÿ¸áÊ ø∑˝§flÊ∑§ÊÒ ◊ÃSŸÊèÿÊ¢ ÁŒfl¢ flÎÄ∑§ÊèÿÊ¢ Áª⁄UËŸ˜ å‹ÊÁ‡ÊÁ÷L§¬‹ÊŸ˜ å‹ËqÔUÊ flÀ◊Ë∑§ÊŸ˜ Ä‹Ê◊Á÷Ç‹ÊÒ¸Á÷ªÈ¸À◊ÊŸ˜ Á„U⁄UÊÁ÷— dflãÃË„˛¸UŒÊŸ˜ ∑ȧÁˇÊèÿÊ ¦ ‚◊Ⱥ˝◊ÈŒ⁄UáÊ flÒ‡flÊŸ⁄¢U ÷S◊ŸÊ.. (8) ∑˝§Ê«U ߢº˝ Œfl, ¬Ò⁄U •ÁŒÁà Œfl, „¢U‚‹Ë •ÁŒÁà Œfl, ◊…˛Uʪ˝ •ÁŒÁà Œfl, NUŒÿ ¬˝Œ‡Ê •ÊÒ⁄U ŸÊ«∏Uˬ˝Œ‡Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ Œfl, ¬≈U •Ê∑§Ê‡Ê Œfl fl »§»§«∏U ø∑˝§flÊ∑§ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ flÎÄ∑§ (ªÈ⁄UŒ) ¬fl¸Ã Œfl, Ä‹Ê◊ flÊÀ◊ËÁ∑§ Œfl, Ä‹Ê◊ÊÁŒ ªÈÀ◊, ⁄UÄà Á‡Ê⁄UÊ∞¢ ŸŒË, ∑§Ê¢π NUŒÿ, ¬≈U ‚◊Ⱥ˝ fl ÷S◊ flÒ‡flÊŸ⁄U ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU ¢. (8) ÁfläÊÎÁâ ŸÊèÿÊ ÉÊÎà ¦ ⁄U‚ŸÊ¬Ê ÿÍcáÊÊ ◊⁄UËøËÁfl¸¬˝È«U˜Á÷ŸË¸„UÊ⁄U◊Íc◊áÊÊ ‡ÊËŸ¢ fl‚ÿÊ ¬˝ÈcflÊ •üÊÈÁ÷OÔUʸŒÈŸËŒÍ¸·Ë∑§ÊÁ÷⁄USŸÊ ⁄UˇÊÊ ¦ Á‚ ÁøòÊÊáÿXÒŸ¸ˇÊòÊÊÁáÊ M§¬áÊ ¬ÎÁÕflË¥ àfløÊ ¡Èê’∑§Êÿ SflÊ„UÊ.. (9) ŸÊÁ÷ ÁfläÊÎÁÃ, flËÿ¸ ÉÊÎÃ, ¬∑§flÊŸ ¡‹ Œfl, fl‚Ê ◊⁄UËÁø Œfl, ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ë ª⁄U◊Ê߸ •Ê‚ Œfl, fl‚Ê ‡ÊÁŸ Œfl, •Ê¢‚Í »È§„UÊ⁄U Œfl ªË«∏U (•Ê¢π ∑§Ë ∑§Ëø) OÔUÊŒÈŸË •Ê∑§Ê‡ÊËÿ ÁfllÈØ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. πÍŸ ∑§ ∑§áÊ ⁄UˇÊÊ Œfl, ‡ÊÊ⁄UËÁ⁄U∑§ ÁflÁ÷㟠•¢ª ÁflÁ÷㟠ŒflÊ¥, ‡ÊÊ⁄UËÁ⁄U∑§ ‚ÊÒ¥Œÿ¸, ŸˇÊòÊ ŒflÊ¥ fl àfløÊ ¬ÎâflË ŒflË •ÊÒ⁄U àfløÊ ¡È¢’∑§ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (9)
314 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Á„U⁄Uáÿª÷¸— ‚◊flûʸÃʪ˝ ÷ÍÃSÿ ¡Ê× ¬ÁÃ⁄U∑§ ˘ •Ê‚ËØ. ‚ ŒÊœÊ⁄U ¬ÎÁÕflË¥ lÊ◊ÈÃ◊Ê¢ ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (10) ¡Ê ¬˝Õ◊ ¡ã◊Ê „ÒU, Á„U⁄Uáÿª÷¸ ◊¥ ⁄U„UÊ, ¡Ê ©Uà¬ããÊ „ÈU߸ ¬ËÁ…∏UÿÊ¥ ∑§Ê ∞∑§◊ÊòÊ ¬Ê‹∑§ „Ò, ¡Ê ¬ÎâflË‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê œÊ⁄UÃÊ „ÒU, ©U‚ Œfl ∑§ •‹ÊflÊ Á∑§‚ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U. (10) ÿ— ¬˝ÊáÊÃÊ ÁŸÁ◊·ÃÊ ◊Á„UàflÒ∑§ ˘ ߺ˝Ê¡Ê ¡ªÃÊ ’÷Ífl. ÿ ˘ ߸‡Ê •Sÿ Ám¬Œ‡øÃÈc¬Œ— ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (11) ¡Ê •¬Ÿ ¬˝ÊáʬáÊ ‚ ¬‹ ÷⁄U ◊¥ ß‚ ¡ªÃ˜ ∑§Ê ◊Á„U◊ÊflÊŸ ‡ÊÊ‚∑§ „ÈU•Ê, ¡Ê ŒÊ¬ÊÿÊ¥ •ÊÒ⁄U øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§Ê ߸‡fl⁄U „ÒU, ◊Á„U◊ÊflÊŸ „U◊ ©U‚ ŒflÃÊ ∑§ •‹ÊflÊ •ÊÒ⁄U Á∑§‚ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U? (11) ÿSÿ◊ Á„U◊flãÃÊ ◊Á„UàflÊ ÿSÿ ‚◊Ⱥ˝ ¦ ⁄U‚ÿÊ ‚„UÊ„ÈU—. ÿSÿ◊Ê— ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ÿSÿ ’Ê„ÍU ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (12) Á¡Ÿ ∑§Ë ß‚ ◊Á„U◊Ê ‚ Á„U◊flÊŸ ¬fl¸ÃÊ¥ ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ „ÈU•Ê, Á¡‚ Ÿ ÿ„U ⁄U‚Ë‹ ‚◊Ⱥ˝ ÁŸÁ◊¸Ã Á∑§∞, Á¡Ÿ ∑§Ë ÷È¡Ê∞¢ Œ‚Ê¥ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ »Ò§‹Ë „ÈU߸ „Ò¥U, „U◊ ©U‚ ŒflÃÊ ∑§ •‹ÊflÊ •ÊÒ⁄U Á∑§‚ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U? (12) ÿ ˘ •Êà◊ŒÊ ’‹ŒÊ ÿSÿ Áfl‡fl ˘ ©U¬Ê‚à ¬˝Á‡Ê·¢ ÿSÿ ŒflÊ—. ÿSÿ ë¿UÊÿÊ◊Îâ ÿSÿ ◊ÎàÿÈ— ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (13) ¡Ê •Êà◊‡ÊÁÄà ŒÊÃÊ •ÊÒ⁄U ’‹‡ÊÁÄà ŒÊÃÊ „Ò¥U, ‚Ê⁄UÊ Áfl‡fl Á¡‚ ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ∑§⁄UÃÊ „ÒU, ‚Ê⁄UÊ Áfl‡fl Á¡‚ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU, Á¡‚ ∑§Ë ¿UòÊë¿UÊÿÊ •◊Îà ‚⁄UËπË ‚ÈπŒÊÿË „ÒU, Á¡‚ ∑§ Á’ŸÊ ◊ÎàÿÈ ¡Ò‚Ê ∑§c≈U „UÊÃÊ „ÒU, ©U‚ ∑§§•‹ÊflÊ „U◊ •ÊÒ⁄U Á∑§‚ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U . (13) •Ê ŸÊ ÷º˝Ê— ∑˝§ÃflÊ ÿãÃÈ Áfl‡flÃÊŒéœÊ‚Ê •¬⁄UËÃÊ‚ ˘ ©UÁjŒ—. ŒflÊ ŸÊ ÿÕÊ ‚ŒÁ◊Œ˜ flÎœ •‚㟬˝ÊÿÈflÊ ⁄UÁˇÊÃÊ⁄UÊ ÁŒflÁŒfl.. (14) „U◊ ÿôÊ ◊¥ ‚’ •Ê⁄U ‚ •’Êœ M§¬ ‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl ŒÈ‹¸÷ ¬Á⁄UáÊÊ◊ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. ‚÷Ë ŒflªáÊ ¬˝ÁÃÁŒŸ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ fl ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄¥U. (14) ŒflÊŸÊ¢ ÷º˝Ê ‚È◊Áô¸§¡ÍÿÃÊ¢ ŒflÊŸÊ ¦ ⁄UÊÁÃ⁄UÁ÷ ŸÊ ÁŸflûʸÃÊ◊˜. ŒflÊŸÊ ¦ ‚Åÿ◊Ȭ‚ÁŒ◊Ê flÿ¢ ŒflÊ Ÿ ˘ •ÊÿÈ— ¬˝ÁÃ⁄UãÃÈ ¡Ëfl‚.. (15) ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë ©UûÊ◊ ’ÈÁh „◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§ÊÁ⁄UáÊË „UÊ. ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë ‚⁄U‹ÃÊ „◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§ÊÁ⁄UáÊË „UÊ. ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ê ŒÊŸ „◊Ê⁄U Á‹∞ •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊ. ŒflªáÊÊ¥ ∑§Ë Á◊òÊÃÊ „U◊ ∑§Ê Á◊‹. „U◊ ©U‚ Á◊òÊÃÊ ‚ ‹Ê÷ ¬Ê∞¢. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ŒËÉʸ •ÊÿÈ ¬˝Êåà ∑§⁄U ¡Ë∞¢. (15) ÿ¡Èfl¸Œ - 315
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÃÊã¬Ífl¸ÿÊ ÁŸÁflŒÊ „ÍU◊„U flÿ¢ ÷ª¢ Á◊òÊ◊ÁŒ®Ã ŒˇÊ◊Ádœ◊˜. •ÿ¸◊áÊ¢ flL§áÊ ¦ ‚Ê◊◊Á‡flŸÊ ‚⁄USflÃË Ÿ— ‚È÷ªÊ ◊ÿS∑§⁄UØ.. (16) „U◊ Á◊òÊ Œfl, ÷ª Œfl, •ÁŒÁà Œfl, ŒˇÊ Œfl, •ÿ¸◊Ê Œfl, flL§áÊ Œfl, •Á‡flŸË ŒflÊ¥ fl ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§Ê ÁŸ◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ‚ÊÒ÷ÊÇÿŒÊÁÿŸË „ÒU¢. fl „U◊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) ÃãŸÊ flÊÃÊ ◊ÿÊ÷È flÊÃÈ ÷·¡¢ Ãã◊ÊÃÊ ¬ÎÁÕflË ÃÁà¬ÃÊ lÊÒ—. ÃŒ˜ ª˝ÊflÊáÊ— ‚Ê◊‚ÈÃÊ ◊ÿÊ÷ÈflSÃŒÁ‡flŸÊ oÎáÊÈâ ÁœcáÿÊ ÿÈfl◊˜.. (17) flÊÿÈ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ •Ê·œËÿ ªÈáÊÊ¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ¥. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË flÊÿÈ ¬˝flÊÁ„Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ◊ÊÃÊ ¬ÎâflË, Sflª¸‹Ê∑§ „U◊Ê⁄UU fl ‚Ê◊ øÈ•ÊŸ flÊ‹ ¬àÕ⁄U „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ „U◊¥ ‚ÈπË ’ŸÊ∞¢. (17) Ã◊ˇÊÊŸ¢ ¡ªÃSÃSÕÈ·S¬Áâ ÁœÿÁÜ¡ãfl◊fl‚ „ÍU◊„U flÿ◊˜. ¬Í·Ê ŸÊ ÿÕÊ flŒ‚Ê◊‚Œ˜ flÎœ ⁄UÁˇÊÃÊ ¬ÊÿÈ⁄UŒéœ— SflSÃÿ.. (18) „U◊ ©U‚ ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ê •¬ŸË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ , Á¡‚ Ÿ ß‚ ¡ªÃ˜ ∑§Ê ÁSÕ⁄U ’ŸÊÿÊ, ¡Ê ‡ÊÁÄà ‚÷Ë ∑§Ê fl‡ÊË÷Íà ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „ÒU. ¬Í·Ê Œfl „U◊Ê⁄U ôÊÊŸ fl ’ÈÁh ∑§Ê ’…∏UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∞fl¢ ¬Í·Ê Œfl ∑§Ê „U◊ •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . (18) SflÁSà Ÿ ˘ ßãº˝Ê flÎhüÊflÊ— SflÁSà Ÿ— ¬Í·Ê Áfl‡flflŒÊ—. SflÁSà ŸSÃÊˇÿʸ •Á⁄UCÔUŸÁ◊— SflÁSà ŸÊ ’΄US¬ÁÃŒ¸œÊÃÈ.. (19) ∞‡flÿ¸flÊŸ ߢº˝ Œfl, ‚fl¸ôÊÊÃÊ ¬Í·Ê fl •ÁŸc≈U ŸÊ‡Ê∑§ ¬¢πflÊŸ ªL§«∏ ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ’΄US¬Áà Œfl fl ©U¬ÿȸÄà ‚÷Ë Œfl „U◊Ê⁄UÊU ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „UÊ¥. (19) ¬Î·Œ‡flÊ ◊L§Ã— ¬ÎÁ‡Ÿ◊ÊÃ⁄U— ‡ÊÈ÷¢ÿÊflÊŸÊ ÁflŒÕ·È ¡Ç◊ÿ—. •ÁÇŸÁ¡uÔUÊ ◊Ÿfl— ‚Í⁄UøˇÊ‚Ê Áfl‡fl ŸÊ ŒflÊ ˘ •fl‚ʪ◊Á㟄U.. (20) ◊L§Œ˜ªáÊ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë fl flªflÊŸ ÉÊÊ«U∏Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. •ÁŒÁà ŒflË ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ë ◊ÊÃÊ „ÒU¢. ◊L§Œ˜ªáÊ ‚’ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •ÁÇŸ M§¬Ë ¡Ë÷ fl ‚Íÿ¸ M§¬Ë •Ê¢π flÊ‹ „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚ÊÕ ‹ ∑§⁄U ÿ„UÊ¢ ÿôÊ ◊¥ •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (20) ÷º˝¢ ∑§áʸÁ÷— oÎáÊÈÿÊ◊ ŒflÊ ÷º˝¢ ¬‡ÿ◊ÊˇÊÁ÷ÿ¸¡òÊÊ—. ÁSÕ⁄ÒU⁄UXÒSÃÈc≈ÈUflÊ ¦ ‚SßÍÁ÷√ÿ¸‡Ê◊Á„U ŒflÁ„Uâ ÿŒÊÿÈ—.. (21) „U ÿôÊ ⁄UˇÊ∑§ ŒflÃÊ•Ê! „U◊ ∑§ÊŸÊ¥ ‚ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fløŸ ‚ÈŸ¥. „U◊ •Ê¢πÊ¥ ‚ 316 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ŒÎ‡ÿ Œπ¥. „U◊ SflSÕ •¢ªÊ¥ ∞fl¢ SflSÕ ‡Ê⁄UË⁄U ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ •ÊÒ⁄U fl¢ŒŸÊ ∑§⁄Uà ⁄U„¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ¬Íáʸ •ÊÿÈ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ „U◊Ê⁄UÊ Á„Uà ‚ÊœŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (21) ‡ÊÃÁ◊ãŸÈ ‡Ê⁄UŒÊ •Áãà ŒflÊ ÿòÊÊ Ÿ‡ø∑˝§Ê ¡⁄U‚¢ ß͟Ê◊˜. ¬ÈòÊÊ‚Ê ÿòÊ Á¬Ã⁄UÊ ÷flÁãà ◊Ê ŸÊ ◊äÿÊ ⁄UËÁ⁄U·ÃÊÿȪ¸ãÃÊ—.. (22) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚ÊÒ ‡Ê⁄UŒ Ã∑§ ¡Ë∞¢. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚ÊÒ ‡Ê⁄UŒ Ã∑§ SflSÕ ¡Ë∞¢. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚ÊÒ ‡Ê⁄UŒ ÿÊŸË flÎhÊflSÕÊ Ã∑§ ¡Ë∞¢. ¡Ò‚ ¬ÈòÊ ∑§ Á‹∞ Á¬ÃÊ „UÊÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË „U◊¥ •Ê¬ ∑§Ê ‚¢U⁄UˇÊáÊ Á◊‹. ¡ËflŸ ∑§ ’Ëø ◊¥ „U◊ ∑§÷Ë ◊ÎàÿÈ Ÿ ¬Ê∞¢. (22) •ÁŒÁÃlÊÒ¸⁄UÁŒÁÃ⁄UãÃÁ⁄UˇÊ◊ÁŒÁÃ◊ʸÃÊ ‚ Á¬ÃÊ ‚ ¬ÈòÊ—. Áfl‡fl ŒflÊ ˘ •ÁŒÁ× ¬Üø ¡ŸÊ ˘ •ÁŒÁáʸÃ◊ÁŒÁá¸ÁŸàfl◊˜.. (23) Sflª¸‹Ê∑§, •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§, ¡ªÃ˜ ◊ÊÃÊ, ¡ªÃ˜ Á¬ÃÊ fl ‚÷Ë ŒflªáÊ •ÁflŸÊ‡ÊË „Ò¥U. ¬Ê¢øÊ¥ ¡Ÿ •ÊÒ⁄U ¡Ê ∑ȧ¿U ©Uà¬ãŸ „ÒU, fl„U •ÁflŸÊ‡ÊË „ÒU. ¡Ê ∑ȧ¿U ©Uà¬ãŸ „UÊŸ flÊ‹Ê „ÒU, fl„U •ÁflŸÊ‡ÊË „ÒU. (23) ◊Ê ŸÊ Á◊òÊÊ flL§áÊÊ •ÿ¸◊ÊÿÈÁ⁄Uãº˝ ˘ ´§÷ÈˇÊÊ ◊L§Ã— ¬Á⁄U ÅÿŸ˜. ÿmÊÁ¡ŸÊ Œfl¡ÊÃSÿ ‚å× ¬˝flˇÿÊ◊Ê ÁflŒÕ flËÿʸÁáÊ.. (24) Á◊òÊ, flL§áÊ, •ÿ¸◊Ê, •ÊÿÈ, ´§÷ÈˇÊ Œfl, ◊L§Œ˜ªáÊ ß¢º˝ Œfl ∑§÷Ë ÷Ë „U◊ ‚ Áfl◊Èπ Ÿ „UÊ¥. ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ¡Ê ’‹ ©U¬¡Ê „ÒU, „U◊ ©U‚Ë ’‹ •ÊÒ⁄U ©UŸ ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ∑§Ë ªÊÕÊ ’Ê⁄U’Ê⁄UU ∑§„Uà „Ò¥U. (24) ÿÁãŸÁáʸ¡Ê ⁄UÄáÊ‚Ê ¬˝ÊflÎÃSÿ ⁄UÊÁâ ªÎ÷ËÃÊ¢ ◊ÈπÃÊ ŸÿÁãÃ. ‚Ȭ˝ÊæU¡Ê ◊êÿÁm‡flM§¬ ˘ ßãº˝Ê¬ÍcáÊÊ— Á¬˝ÿ◊åÿÁà ¬ÊÕ—.. (25) ¡’ ‚¢S∑§Ê⁄U ÿÈÄà ∞‡flÿ¸◊ÿ ‚’ ∑§Ê •ÊflÎûÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ◊Èπ ∑§ ¬Ê‚ „UÁfl ∑§Ê •ããÊ ‹ ¡ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU, Ã’ •¡ M§¬ ÷Ë “◊Ò¥◊Ò¥” ∑§⁄UÃÊ „ÈU•Ê ¬Ê‚ •ÊÃÊ „ÒU. fl„U ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U ¬Í·Ê Œfl ∑§ ß‚ Á¬˝ÿ ¬ŒÊÕ¸ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄UÃÊ „ÒU. (25) ∞· ¿Uʪ— ¬È⁄UÊ •‡flŸ flÊÁ¡ŸÊ ¬ÍcáÊÊ ÷ÊªÊ ŸËÿà Áfl‡flŒ√ÿ—. •Á÷Á¬˝ÿ¢ ÿà¬È⁄UÊ«UʇÊ◊fl¸ÃÊ àflCÔUŒŸ ¦ ‚ÊÒüÊfl‚Êÿ Á¡ãflÁÃ.. (26) ÿ„U ’∑§⁄UÊ ¡’ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ÉÊÊ«∏U ∑§ ‚Ê◊Ÿ ‹ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU Ã’ ÿ¡◊ÊŸ ø¢ø‹ ÉÊÊ«∏U ∑§ ‚ÊÕ ’∑§⁄U ∑§Ê ÷Ë ◊ËΔUÊ •ããÊ (¬È⁄UÊ«UʇÊ) ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÃÊ „Ò. ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ‚÷Ë ∑§Ê Á¬˝ÿ ‹ªÃÊ „ÒU •ÊÒ⁄U ©U‚ ∑§Ê ©UûÊ◊ ÷ʪ Œ ∑§⁄U ÿ‡Ê ¬ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (26) ÿhÁflcÿ◊ÎÃȇÊÊ ŒflÿÊŸ¢ ÁòÊ◊ʸŸÈ·Ê— ¬ÿ¸‡fl¢ ŸÿÁãÃ. •òÊÊ ¬ÍcáÊ— ¬˝Õ◊Ê ÷ʪ ˘ ∞Áà ÿôÊ¢ Œflèÿ— ¬˝ÁÃflŒÿ㟡—.. (27) ÿ¡Èfl¸Œ - 317
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¡’ ÿ¡◊ÊŸ „UÁfl ∑§Ê ÃËŸ Œfl◊ʪÊZ ‚ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ÉÊÊ«∏U ∑§Ë Ã⁄U„U ‹ ¡Êà „Ò¥U, Ã’ ÿ„UÊ¢ ÿ„U •¡ ¬Ê·áÊ ∑§Ê ¬˝Õ◊ ÷ʪ ¬Ê ∑§⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§Ê ¬˝ÁÃflŒŸ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. (27) „UÊÃÊäflÿȸ⁄UÊflÿÊ •ÁÇŸÁ◊ãœÊ ª˝Êflª˝Ê÷ ˘ ©Uà ‡Ê ¦ SÃÊ ‚ÈÁfl¬˝—. ß ÿôÊŸ Sfl⁄¢U∑Χß ÁSflCÔUŸ flˇÊáÊÊ ˘ •Ê ¬ÎáÊäfl◊˜.. (28) „UÊÃÊ, •äUflÿȸ, ¬˝ÁÃSÕÊÃÊ, •ÊÇŸËäÊ˝, ª˝ÊflSÃÊÃÊ, ¬˝‡ÊÊSÃÊ, ÁflmÊŸ˜ ’˝rÊÊ •ÊÁŒ „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ©U‚ ÿôÊ ‚ ßÁë¿Uà ©UŒ˜Œ‡ÿÊ¥ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§ Á‹∞ ¬˝flÊ„UÊ¥ ∑§Ê ¬Íáʸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (28) ÿͬfl˝S∑§Ê ©Uà ÿ ÿͬflÊ„Uʇø·Ê‹¢ ÿ •‡flÿͬÊÿ ÃˇÊÁÃ. ÿ øÊfl¸Ã ¬øŸ ¦ ‚ê÷⁄UãàÿÈÃÊ Ã·Ê◊Á÷ªÍÁûʸŸ¸ ˘ ßãflÃÈ.. (29) π¢÷ ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹, ©U‚ ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‹Ê„U •ÊÒ⁄U ‹∑§«∏UË ∑§Ë Á»§⁄U∑§Ë ∑§ ÁŸ◊ʸÃÊ ÉÊÊ«∏U ∑§ Á‹∞ π¢÷ ’ŸÊŸ flÊ‹óߟ ‚÷Ë ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê ∑§Êÿ¸ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê Á„Uà ‚ÊœŸ flÊ‹Ê „UÊ. (29) ©U¬ ¬˝ÊªÊà‚È◊ã◊œÊÁÿ ◊ã◊ ŒflÊŸÊ◊ʇÊÊ ˘ ©U¬ flËìÎcΔU—. •ãflŸ¢ Áfl¬˝Ê ˘ ´§·ÿÊ ◊ŒÁãà ŒflÊŸÊ¢ ¬ÈCÔU ø∑Χ◊Ê ‚È’ãœÈ◊˜.. (30) „U◊ •ë¿U ◊Ÿ ‚ ÿôÊ ∑§Ê »§‹ ¬Ê∞¢. ÿ„U ÉÊÊ«∏UÊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ÷Ë ßë¿UÊ ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ê ‚Ê◊âÿ¸ ⁄UπÃÊ „ÒU. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÷Ë •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. ŒflªáÊ ÷Ë ß‚ •¬ŸÊ Á◊òÊ ◊ÊŸÃ „Ò¥U. ’˝ÊrÊáÊ ÃÕÊ ´§Á·ªáÊ ß‚ ∑§Ê •ŸÈ◊ÊŒŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (30) ÿmÊÁ¡ŸÊ ŒÊ◊ ‚ãŒÊŸ◊fl¸ÃÊ ÿÊ ‡ÊË·¸áÿÊ ⁄U‡ÊŸÊ ⁄UÖ¡È⁄USÿ. ÿmÊ ÉÊÊSÿ ¬˝÷ÎÃ◊ÊSÿ ÃÎáÊ ¦ ‚flʸ ÃÊ Ã •Á¬ ŒflcflSÃÈ.. (31) ß‚ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë •ÊÒ⁄U ø¢ø‹ ∑§Ê ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ ⁄UπŸ ∑§ Á‹∞ ª⁄UŒŸ ∑§Ê ’¢œŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã „UÊ. ß‚ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ∑§Ê ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ ⁄UπŸ ∑§ Á‹∞ ∑§◊⁄U ÃÕÊ Á‚⁄U ∑§ ’¢œŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã „UÊ¥. ß‚ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë fl ÉÊÊ‚, ÃÎáÊ •ÊÁŒ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ ⁄UπŸ ∑§ Á‹∞ ª⁄UŒŸ ∑§Ê ’¢œŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã „UÊ. (31) ÿŒ‡flSÿ ∑˝§Áfl·Ê ◊ÁˇÊ∑§Ê‡Ê ÿmÊ Sfl⁄UÊÒ SflÁœÃÊÒ Á⁄UåÃ◊ÁSÃ. ÿhSÃÿÊ— ‡ÊÁ◊ÃÈÿ¸ãŸπ·È ‚flʸ ÃÊ Ã •Á¬ ŒflcflSÃÈ.. (32) Á¡‚ •‡fl ∑§Ê ’øÊπÈøÊ ÷ʪ ◊ÁÄπÿÊ¢ πÊÃË „Ò¥U, ¡Ê ÷ʪ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ „UÊÕÊ¥ •ÊÒ⁄U •¢ªÈÁ‹ÿÊ¥ ◊¥ ‹ªÊ ⁄U„UÃÊ „ÒU, fl„U ‚’ ÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬˝Áà ‚◊Á¬¸Ã „UÊ. (32) ÿŒÍfläÿ◊ÈŒ⁄USÿʬflÊÁà ÿ ˘ •Ê◊Sÿ ∑˝§Áfl·Ê ªãœÊ •ÁSÃ. ‚È∑ΧÃÊ Ãë¿UÁ◊ÃÊ⁄U— ∑ΧáflãÃÍà ◊œ ¦ oÎìÊ∑¢§ ¬øãÃÈ.. (33) 318 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÿôÊ ∑§ ©UŒ⁄U (¬≈U) ◊¥ ¡Ê •œ¬ø •ããÊ, ª¢œ •ÊÁŒ ÁŸ∑§‹ ⁄U„U „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ë ‡ÊÊ¢Áà ÷‹Ë÷Ê¢Áà Á∑§∞ ª∞ ÿôÊ ∑§ ©U¬øÊ⁄U ‚ „UÊ. fl ¬ø¥ ÿ„U ¬ÊøŸ ŒflªáÊÊ¥ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U „UÊ. (33) ÿûÊ ªÊòÊÊŒÁÇŸŸÊ ¬ëÿ◊ÊŸÊŒÁ÷ ‡ÊÍ‹¢ ÁŸ„UÃSÿÊflœÊflÁÃ. ◊Ê ÃjÍêÿÊ◊ÊÁüÊ·ã◊Ê ÃÎáÊ·È ŒflèÿSÌȇÊjKÊ ⁄UÊÃ◊SÃÈ.. (34) ¡Ê •Ê¬ ∑§ •ÁÇŸ ‚ ¬øÊ∞ ¡Êà „ÈU∞ •¢ª, (ŒŒ¸) ‚ ‡ÊÍ‹ ßœ⁄U©Uœ⁄U ŒÊÒ«∏Uà „ÈU∞ Áª⁄U ª∞ „Ò¥U, ©Uã„¥U ÷ÍÁ◊ ¬⁄U „UË ◊à ¬«∏UÊ ⁄U„Ÿ ŒËÁ¡∞. ∑§„UË¥ fl Áß∑§Ê¥ ◊¥ „UË Ÿ Á◊‹ ¡Ê∞¢. flU ÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÷Ê¡Ÿ ’Ÿ¥. (34) ÿ flÊÁ¡Ÿ¢ ¬Á⁄U¬‡ÿÁãà ¬Äfl¢ ÿ ˘ ߸◊Ê„ÈU— ‚È⁄UÁ÷ÁŸ¸„U¸ ⁄UÁÃ. ÿ øÊfl¸ÃÊ ◊Ê ¦ ‚Á÷ˇÊÊ◊Ȭʂà ˘ ©UÃÊ Ã·Ê◊Á÷ªÍÁøŸ¸ ˘ ßãflÃÈ.. (35) ¡Ê ß‚ •ããÊ fl ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ¬∑§ÃÊ „ÈU•Ê Œπà „Ò¥U, ¡Ê ß‚ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ‚Ȫ¢œ ÿÈÄà ’ŸÊà „Ò¥U, ¡Ê ß‚ •ããÊ ‚ ’Ÿ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ◊Ê¢ªÃ „Ò¥U, ©UŸ ∑§Ê ¬ÈL§·ÊÕ¸ ÷Ë „U◊Ê⁄U Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ. (35) ÿãŸËˇÊáÊ¢ ◊Ê°S¬øãÿÊ ˘ ©UπÊÿÊ ÿÊ ¬ÊòÊÊÁáÊ ÿÍcáÊ ˘ •Ê‚øŸÊÁŸ. ™§c◊áÿÊÁ¬œÊŸÊ øM§áÊÊ◊VÊ— ‚ÍŸÊ— ¬Á⁄U ÷Í·ãàÿ‡fl◊˜.. (36) ¡Ê ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ¬ÊòÊ ◊¥ ’ŸÃÊ (¬∑§ÃÊ) „ÈU•Ê Œπà „Ò¥U, ¡Ê ¬ÊòÊ ∑§Ê ◊Ê¢¡ ∑§⁄U ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ‚Ê»§ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ™§c◊Ê ∑§Ê ⁄UÊ∑§Ÿ flÊ‹ øL§ •ÊÁŒ ∑§Ê ªÊŒ ◊¥ ⁄Uπà „Ò¥U, fl ‚÷Ë ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ÷ÍÁ·Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (36) ◊Ê àflÊÁÇŸäfl¸ŸÿËŒ˜œÍ◊ªÁãœ◊ʸπÊ ÷˝Ê¡ãàÿÁ÷ ÁflÄà ¡ÁÉÊ˝—. ßCÔ¢U flËÃ◊Á÷ªÍûÊZ fl·≈U˜∑Χà â ŒflÊ‚— ¬˝Áà ªÎèáÊãàÿ‡fl◊˜.. (37) „U ¬È⁄UÊ«UʇÊ! œÈ∞¢ flÊ‹Ë •Êª •ÊÒ⁄U ª¢œ •Ê¬ ∑§Ê ¬Ë«∏UÊ Ÿ Œ¥. ø◊∑§Ë‹Ê ©UπÊ •Ê¬ ∑§Ê ¬Ë«∏UÊ Ÿ Œ. ß‚ ¬˝∑§Ê⁄U ¬∑§ „ÈU∞ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ŒflªáÊ ÷‹Ë÷Ê¢Áà SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (37) ÁŸ∑˝§◊áÊ¢ ÁŸ·ŒŸ¢ ÁflflûʸŸ¢ ÿëø ¬«˜UflˇÊ◊fl¸Ã—. ÿëø ¬¬ÊÒ ÿëø ÉÊÊÁ‚¢ ¡ÉÊÊ‚ ‚flʸ ÃÊ Ã •Á¬ ŒflcflSÃÈ.. (38) „U ÿôÊ •‡fl! •Ê¬ ∑§Ê ÁŸ∑§‹ŸÊ, ’ÒΔUŸÊ, Á„U‹ŸÊ, ¬‹≈UŸÊ, πÊŸÊ¬ËŸÊ •ÊÁŒ ‚÷Ë Á∑˝§ÿÊ∞¢ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ „UË ’Ëø ◊¥ „UÊ¥. (38) ÿŒ‡flÊÿ flÊ‚ ˘ ©U¬SÃÎáÊãàÿœËflÊ‚¢ ÿÊ Á„U⁄UáÿÊãÿS◊Ò. ‚ãŒÊŸ◊fl¸ãâ ¬«U˜flˇʢ Á¬˝ÿÊ ŒflcflÊ ÿÊ◊ÿÁãÃ.. (39) •‡fl ∑§Ê flSòÊ, ™§¬⁄U ∑§Ê •Êfl⁄UáÊ flSòÊ, •ÁœflÊ‚ (ŸËø ∑§Ê flSòÊ) ‚ÊŸ ∑§ ÿ¡Èfl¸Œ - 319
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê÷Í·áÊ, Á‚⁄U ∞fl¢ ¬Ò⁄U ∑§Ê ’Ê¢œŸ ∑§Ë ◊π‹Ê∞¢ •ÊÁŒ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬˝‚ããÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (39) ÿûÊ ‚ÊŒ ◊„U‚Ê ‡ÊÍ∑ΧÃSÿ ¬Êcáÿʸ flÊ ∑§‡ÊÿÊ flÊ ÃÈÃÊŒ. ‚È˝øfl ÃÊ „UÁfl·Ê •äfl⁄U·È ‚flʸ ÃÊ Ã ’˝rÊÔáÊÊ ‚ÍŒÿÊÁ◊.. (40) „U •U‡fl! ¡Ê •Ê¬ ∑§ ¬Ë«∏U∑§ „Ò¥U, ¡Ê ¬Ë¿U •ÊÒ⁄U ŸËø ∑§ ÷ʪ ∑§ ¬Ë«∏U∑§ „Ò¥U, fl òÊÈÁ≈UÿÊ¢ •ÊÒ⁄U ÿôÊÊ¥ ◊¥ „UÁfl ‚¢’¢œË •ãÿ òÊÈÁ≈UÿÊ¢ ’˝ÊrÊáÊ ‚˝ÈflÊ ∑§Ë ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ ‚ÈœÊ⁄Uà „Ò¥U. (40) øÃÈÁSòÊ ¦ ‡ÊmÊÁ¡ŸÊ Œfl’ãœÊfl¸æ ˜∑˝§Ë⁄U‡flSÿ SflÁœÁ× ‚◊ÁÃ. •Áë¿Uº˝Ê ªÊòÊÊ flÿÈŸÊ ∑ΧáÊÊà ¬L§c¬L§⁄UŸÈÉÊÈcÿÊ Áfl‡ÊSÃ.. (41) „UU ÿ¡◊ÊŸÊ! ÿ„U •‡fl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ’¢œÈ „ÒU. ÿ„U œÊ⁄UáÊ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ⁄UπÃÊ „ÒU. ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ „ÒU. øÊÒ¥ÃË‚ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ. ‡Ê⁄UË⁄U Á¿Uº˝ ⁄UÁ„Uà (ŒÊ· ⁄UÁ„UÃ) „UÊ. ŒflªáÊ ß‚ ∑§Ë ‚÷Ë ∑§Á◊ÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (41) ∞∑§Sàflc≈ÈU⁄U‡flSÿÊ Áfl‡ÊSÃÊ mÊ ÿãÃÊ⁄UÊ ÷flÃSÃÕ ´§ÃÈ—. ÿÊ Ã ªÊòÊÊáÊÊ◊ÎÃÈÕÊ ∑ΧáÊÊÁ◊ ÃÊ ÃÊ Á¬á«UÊŸÊ¢ ¬˝ ¡È„UÊêÿÇŸÊÒ.. (42) fl·¸ àflc≈UÊ (‚Íÿ¸) M§¬ •‡fl ∑§Ê ’Ê¢≈UÃÊ „ÒU. fl„U ©U‚ ŒÊ ÷ʪʥ (©UûÊ⁄UÊUÿáÊ fl ŒÁˇÊáÊÊÿŸ) ◊¥ ’Ê¢≈UÃÊ „Ò. ŒÊŸÊ¥ ÷ʪʥ ∑§Ê ´§ÃÈ•Ê¥ (¿U„U) ◊¥ ’Ê¢≈UÃÊ „ÒU. ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ •¢ªÊ¥ ∑§ SflÊSâÿ ∑§ Á‹∞ ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U ¬ŒÊÕÊZ ∑§Ë •Ê„ÈUÁà •ÁÇŸ ◊¥ ÷¥≈U ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. (42) ◊Ê àflÊ Ã¬Áà¬˝ÿ ˘ •Êà◊ÊÁ¬ÿãâ ◊Ê SflÁœÁÃSÃãfl ˘ •Ê ÁÃÁcΔU¬ûÊ. ◊Ê Ã ªÎäŸÈ⁄UÁfl‡ÊSÃÊÁÄUÊÿ Á¿Uº˝Ê ªÊòÊÊáÿÁ‚ŸÊ Á◊ÕÍ ∑§—.. (43) „U •‡fl! •¬ŸÊ åÿÊ⁄UÊ •Êà◊Ãûfl ‚ŒÊ •Ê¬ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà ⁄U„¥U. fl„U åÿÊ⁄UÊ •Êà◊Ãûfl ∑§÷Ë •Ê¬ ∑§Ê ¿UÊ«∏U ∑§⁄U Ÿ ¡Ê∞¢. ’Ê¢≈UŸ flÊ‹Ë ‡ÊÁÄÃÿÊ¢ ∑§÷Ë •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U •ÊÒ⁄U •¢ªÊ¥ ¬⁄U •Áœ∑§Ê⁄U Ÿ ∑§⁄U ‚∑¥§. •ÁŸ¬ÈáÊ √ÿÁÄà ÷Ë •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ÃÕÊ Á∑§‚Ë •¢ª ¬⁄U ËflÊ⁄U Ÿ ø‹Ê ‚∑§. ©U‚ ∑§Ë ËflÊ⁄U •Ê¬ ∑ ŒÊ·Ê¥ ¬⁄U ø‹. (43) Ÿ flÊ ©U ∞ÃÁã◊˝ÿ‚ Ÿ Á⁄UcÿÁ‚ ŒflÊ° 2 ߌÁ· ¬ÁÕÁ÷— ‚ȪÁ÷—. „U⁄UË Ã ÿÈÜ¡Ê ¬Î·ÃË •÷ÍÃÊ◊ȬÊSÕÊmÊ¡Ë œÈÁ⁄U ⁄UÊ‚÷Sÿ.. (44) „U •‡fl! Ÿ •Ê¬ ◊Ê⁄Uà „Ò¥U, Ÿ ◊⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ȫ◊ ¬Õ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬Ê‚ ¡Êà „Ò¥U. ÉÊÊ«∏U •Ê¬ ∑§ ⁄UÕ ◊¥ ¡È«∏U ∑§⁄U ¬Èc≈U „UÊà „Ò¥U. fl ‡ÊéŒ ◊ÊòÊ ‚ „UË ⁄UÕ ◊¥ ¡È«∏U ¡Êà „Ò¥U. ÉÊÊ«∏U ’„ÈUà flªflÊŸ „Ò¥U. (44) ‚Ȫ√ÿ¢ ŸÊ flÊ¡Ë Sfl‡√ÿ¢ ¬È ¦ ‚— ¬ÈòÊÊ° 2 ©Uà Áfl‡flʬȷ ¦ ⁄UÁÿ◊˜. •ŸÊªÊSàfl¢ ŸÊ •ÁŒÁ× ∑ΧáÊÊÃÈ ˇÊòÊ¢ ŸÊ •‡flÊ flŸÃÊ ¦ „UÁflc◊ÊŸ˜.. (45) 320 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@20
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬ìÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÿ„U •ë¿UË Ã⁄U„U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄UÊŸ flÊ‹Ê „ÒU. ÿ„U „U◊¥ •¬Ÿ fl‡Ê ◊¥ ⁄Uπ, ¬ÈòÊ fl ¬ÊÒòÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U. „U◊ ‚’ ∑§Ê œŸ ‚ ¬Èc≈U ∑§⁄U fl ª⁄UË’Ë fl ¬Ê¬ ‚ ŒÍ⁄U ⁄Uπ. „U◊¥ ’‹flÊŸ ’ŸÊ∞. „U◊ ß‚ ∑§ Á‹∞ „UÁfl◊ÊŸ „Ò¥U. (45) ß◊Ê ŸÈ ∑¢§ ÷ÈflŸÊ ‚Ë·œÊ◊ãº˝‡ø Áfl‡fl ø ŒflÊ—. •ÊÁŒàÿÒÁ⁄Uãº˝— ‚ªáÊÊ ◊L§Áj⁄US◊èÿ¢ ÷·¡Ê ∑§⁄UØ. ÿôÊ¢ ø ŸSÃãfl¢ ø ¬˝¡Ê¢ øÊÁŒàÿÒÁ⁄Uãº˝— ‚„U ‚Ë·œÊÁÃ.. (46) ߢº˝ Œfl ÃÕÊ ‚÷Ë Œfl ‚÷Ë ÷ÈflŸÊ¥ ∑§Ê •¬Ÿ fl‡Ê ◊¥ ⁄Uπ¥. •ÊÁŒàÿªáÊ ◊L§Œ˜ªáÊ ÃÕÊ ß¢º˝ Œfl •¬Ÿ ªáÊ ‚Á„Uà „U◊¥ ÁŸ⁄Uʪ ⁄Uπ¥. ÿ„U ÿôÊ ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÊÁŒàÿªáÊ ‚Á„Uà „U◊Ê⁄U ‡Ê⁄UË⁄U •ÊÒ⁄U ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§Ê •¬Ÿ fl‡Ê ◊¥ ⁄Uπ¥. (46) •ÇŸ àfl¢ ŸÊ •ãÃ◊ ˘ ©Uà òÊÊÃÊ Á‡ÊflÊ ÷flÊ flM§âÿ—. fl‚È⁄UÁÇŸfl¸‚ÈüÊflÊ ˘ •ë¿UÊ ŸÁˇÊ lÈ◊ûÊ◊ ¦ ⁄UÁÿ¢ ŒÊ—. â àflÊ ‡ÊÊÁøcΔU ŒËÁŒfl— ‚ÈêŸÊÿ ŸÍŸ◊Ë◊„U ‚Áπèÿ—.. (47) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ãÿÃ◊, òÊÊÃÊ fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Á„UÃÒ·Ë „Ò¥U. •Ê¬ Á„¢U‚∑§Ê¥ fl •ÊÃÃÊÁÿÿÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬˝ÅÿÊà „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ œŸflÊŸ „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÷Ë ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ Á◊òÊÊ¥ ‚Á„Uà œŸ •ÊÒ⁄U flÒ÷fl ŒËÁ¡∞. „U◊ •ë¿U ◊Ÿ ‚ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (47)
ÿ¡Èfl¸Œ - 321
¿Ué’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ •ÁÇŸ‡ø ¬ÎÁÕflË ø ‚ãŸÃ à ◊ ‚¢ Ÿ◊ÃÊ◊ŒÊ flÊÿȇøÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ø ‚ãŸÃ à ◊ ‚¢ Ÿ◊ÃÊ◊Œ ˘ •ÊÁŒàÿ‡ø lÊÒ‡ø ‚ãŸÃ à ◊ ‚¢ Ÿ◊ÃÊ◊Œ ˘ •Ê¬‡ø flL§áʇø ‚ãŸÃ à ◊ ‚¢ Ÿ◊ÃÊ◊Œ—. ‚åà ‚ ¦ ‚ŒÊ •c≈U◊Ë ÷ÍÂʜŸË. ‚∑§Ê◊Ê° 2 •äflŸS∑ȧL§ ‚¢ôÊÊŸ◊SÃÈ ◊◊ÈŸÊ.. (1) •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË Œfl „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑§Í ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U◊¥ •ÊŸ¢Œ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . flÊÿÈ •ÊÒ⁄U •¢ÃÁ⁄UˇÊ Œfl „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑§Í ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U◊¥ •ÊŸ¢Œ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . •ÊÁŒàÿ •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑§Í ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U◊¥ •ÊŸ¢Œ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë §∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¡‹ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑§Í ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U◊¥ •ÊŸ¢Œ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ‚Êà ‚¢‚Œ (•ÁÇŸ, flÊÿÈ, •¢ÃÁ⁄UˇÊ, ‚Íÿ,¸ •Ê∑§Ê‡Ê, ¡‹ •ÊÒ⁄U flL§áÊ) •ÊÒ⁄U •ÊΔflË¥U ¬ÎâflË ∑§Ê „U◊Ê⁄UU •ŸÈ∑§Í ‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ‚∑§Ê◊ (∑§Ê◊ŸÊ ∑§Ê »§‹Ë÷Íà ∑§⁄UŸ flÊ‹) „UÊ.¥ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊¥ ‚¢ôÊÊŸ (üÊcΔU ¬Íáʸ ôÊÊŸ) „UÊ. (1) ÿÕ◊Ê¢ flÊø¢ ∑§ÀÿÊáÊË ◊ÊflŒÊÁŸ ¡Ÿèÿ—. ’˝rÊÔ⁄UÊ¡ãÿÊèÿÊ ¦ ‡Êͺ˝Êÿ øÊÿʸÿ ø SflÊÿ øÊ⁄UáÊÊÿ ø. Á¬˝ÿÊ ŒflÊŸÊ¢ ŒÁˇÊáÊÊÿÒ ŒÊÃÈÁ⁄U„U ÷ÍÿÊ‚◊ÿ¢ ◊ ∑§Ê◊— ‚◊ÎäÿÃÊ◊Ȭ ◊ÊŒÊ Ÿ◊ÃÈ.. (2) ¡Ò‚ ÿ„U flÊáÊË ‹ÊªÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊÃ Ë „ÒU, flÒ‚ „UË „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ’˝ÊrÊáÊ, ˇÊÁòÊÿ, flÒ‡ÿ, ‡Êͺ˝ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ë flÊáÊË ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ŒÁˇÊáÊÊ ŒŸ flÊ‹ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á¬˝ÿ „UÊ.¥ „U◊Ê⁄UË ßë¿UÊ∞¢ »§‹Ë÷Íà „UÊ.¥ „U◊¥ •ÊŸ¢Œ ¬˝Êåà „UÊ. (2) ’΄US¬Ã •Áà ÿŒÿʸ •„UʸŒ˜ lÈ◊Ám÷ÊÁà ∑˝§ÃÈ◊Ö¡Ÿ·È. ÿgËŒÿë¿Ufl‚ ˘ ´§Ã¬˝¡Êà ÌS◊Ê‚È º˝ÁfláÊ¢ œÁ„U ÁøòÊ◊˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ’΄US¬Ãÿ àflÒ· à ÿÊÁŸ’θ„US¬Ãÿ àflÊ.. (3) „U ’΄US¬Áà Œfl! •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ‹ÊªÊ¥ mÊ⁄UÊ ¬Í¡ŸËÿ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§ SflÊ◊Ë „UÊŸ ÿÊÇÿ „Ò¥U. •Ê¬ ´§Ã •ÊÒ⁄U ßë¿UÊ ‡ÊÁÄà ‚ ‚Ê⁄UË ¬˝¡Ê ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ üÊcΔU œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ 322 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
¿Ué’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•Œ˜÷Èà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ©U¬ÿÊ◊ ¬ÊòÊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. ß‚ËÁ‹∞ •Ê¬ ’΄US¬Áà „Ò¥U. ©U¬ÿÊ◊ •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. (3) ßãº˝ ªÊ◊Á㟄UÊ ÿÊÁ„U Á¬’Ê ‚Ê◊ ¦ ‡ÊÃ∑˝§ÃÊ. ÁfllÁjª˝Ê¸flÁ÷— ‚ÈÃ◊˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ªÊ◊à ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ªÊ◊Ã.. (4) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ªÊ◊ÊŸ •ÊÒ⁄U ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ (ÿôÊ ◊¥) ¬œÊÁ⁄U∞. ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ Ÿ ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈U ∑§⁄U, ÁŸøÊ«∏U ∑§⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ªÊ◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ªÊ◊ÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©U¬ÿÊ◊ •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò. (4) ßãº˝Ê ÿÊÁ„U flÎòÊ„UÁã¬’Ê ‚Ê◊ ¦ ‡ÊÃ∑˝§ÃÊ. ªÊ◊Ájª˝Ê¸flÁ÷— ‚ÈÃ◊˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊ‚Ëãº˝Êÿ àflÊ ªÊ◊à ˘ ∞· à ÿÊÁŸÁ⁄Uãº˝Êÿ àflÊ ªÊ◊Ã.. (5) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ flÎòÊ ŸÊ‡Ê∑§ •ÊÒ⁄U ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ ¬ÈòÊÊ¥ Ÿ ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈U ∑§⁄U ‚Ê◊⁄U‚ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ „ÒU. „U◊ Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ªÊ◊ÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ „ÒU. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SâÊÊŸ „ÒU. (5) ´§ÃÊflÊŸ¢ flÒ‡flÊŸ⁄U◊ÎÃSÿ ÖÿÊÁ÷S¬ÁÃ◊˜. •¡d¢ ÉÊ◊¸◊Ë◊„U. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿ àflÒ· à ÿÊÁŸflÒ¸‡flÊŸ⁄UÊÿ àflÊ.. (6) „U flÒ‡flÊŸ⁄U (•ÁÇŸ)! •Ê¬ ´§ÃflÊŸ (‚àÿflÊŸ) fl •◊⁄U „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝∑§Ê‡Ê ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ‚ •¡‚˝ ’‹ øÊ„Ã „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê ©¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. (6) flÒ‡flÊŸ⁄USÿ ‚È◊ÃÊÒ SÿÊ◊ ⁄UÊ¡Ê Á„U ∑¢§ ÷ÈflŸÊŸÊ◊Á÷üÊË—Ô. ßÃÊ ¡ÊÃÊ Áfl‡flÁ◊Œ¢ Áfl øCÔU flÒ‡flÊŸ⁄UÊ ÿÃà ‚Íÿ¸áÊ. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿ àflÒ· à ÿÊÁŸflÒ¸‡flÊŸ⁄UÊÿ àflÊ.. (7) „U◊ flÒ‡flÊŸ⁄U Œfl ∑§Ë ‚È◊Áà ¡Ò‚Ë ‚È◊Áà ¬Ê∞¢. flÒ‡flÊŸ⁄U Œfl ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ⁄UÊ¡Ê, ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ë ‡ÊÊ÷Ê „Ò¥U. fl Œfl ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ÁŸ⁄UˡÊáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ •ÊÒ⁄U ÿ„UË¥ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞ „ÒU¥. fl ‚Íÿ¸ ∑§ ‚◊ÊŸ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „ÒU¥. „U◊ ©UŸ ∑§Ê ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥. fl„UË ©UŸ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. (7) flÒ‡flÊŸ⁄UÊ Ÿ ˘ ™§Ãÿ ˘ •Ê ¬˝ ÿÊÃÈ ¬⁄UÊfl×. •ÁÇŸL§ÄÕŸ flÊ„U‚Ê. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿ àflÒ· à ÿÊÁŸflÒ¸‡flÊŸ⁄UÊÿ àflÊ.. (8) ÿ¡Èfl¸Œ - 323
©UûÊ⁄UÊœ¸
¿Ué’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
flÒ‡flÊŸ⁄U ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄¥U, flÒ‡flÊŸ⁄U ‚’ •Ê⁄U ‚ •¬Ÿ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UÄÕ M§¬Ë flÊ„UŸ mÊ⁄UÊ •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑ ⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. (8) •ÁÇŸ´§¸Á·— ¬fl◊ÊŸ— ¬ÊÜø¡ãÿ— ¬È⁄UÊÁ„U×. Ã◊Ë◊„U ◊„Uʪÿ◊˜. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊSÿÇŸÿ àflÊ flø¸‚ ˘ ∞· à ÿÊÁŸ⁄UÇŸÿ àflÊ flø¸‚.. (9) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ´§Á·, ¬ÁflòÊ •ÊÒ⁄U ¬Ê¢øÊ¥ fláÊÊZ ∑§ ¬È⁄UÊÁ„Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SÃÊòÊ ªÊà „Ò¥U •ÊÒ⁄U ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. •Ê¬ flø¸SflË „Ò¥U. „U◊ ÷Ë •ÁÇŸ ‚ flø¸Sfl ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (9) ◊„UÊ° 2 ßãº˝Ê flÖÊ˝„US× ·Ê«U‡ÊË ‡Ê◊¸ ÿë¿UÃÈ. „UãÃÈ ¬Êå◊ÊŸ¢ ÿÊS◊ÊãmÁCÔU. ©U¬ÿÊ◊ªÎ„UËÃÊÁ‚ ◊„Uãº˝Êÿ àflÒ· à ÿÊÁŸ◊¸„Uãº˝Êÿ àflÊ.. (10) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ◊„UÊŸ˜ •ÊÒ⁄U „UÊÕ ◊¥ flÖÊ˝ ⁄Uπà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚Èπ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ¬ÊÁ¬ÿÊ¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ∑§Ê ©U¬ÿÊ◊ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. fl„UË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „ÒU. „U◊ fl„UË¥ •Ê¬ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (10) â flÊ ŒS◊◊ÎÃË·„¢U fl‚Ê◊¸ãŒÊŸ◊㜂—. •Á÷ flà‚¢ Ÿ Sfl‚⁄U·È œŸfl ˘ ßãº˝¢ ªËÁ÷¸Ÿ¸flÊ◊„U.. (11) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! ߢº˝ Œfl œŸflÊŸ, •ÊŸ¢ŒŒÊÃÊ, •ÊflÊ‚ ŒÊÃÊ •ÊÒ⁄U •ããÊŒÊÃÊ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬ÈòÊ ©U‚Ë Ã⁄U„U flÊáÊË ‚ •Ê¬ ∑§Ê ¬È∑§Ê⁄Uà „Ò¥U, ¡Ò‚ ªÊ∞¢ ’¿U«∏UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ⁄¢U÷ÊÃË „Ò¥U. (11) ÿmÊÁ„UcΔ¢U Ìǟÿ ’΄UŒø¸ Áfl÷Êfl‚Ê. ◊Á„U·Ëfl àflº˝ÁÿSàflmÊ¡Ê ˘ ©UŒË⁄UÃ.. (12) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SÃÈÁà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Áfl‡ÊÊ‹, flø¸SflË, ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ fl ◊„UÊ⁄UÊŸË ∑§Ë Ã⁄U„U ©UŒÊ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ •ããÊ •ÊÒ⁄U ’‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (12) ∞±ÿÍ ·È ’˝flÊÁáÊ ÃÇŸ ˘ ßàÕÃ⁄UÊ Áª⁄U—. ∞Á÷fl¸œÊ¸‚ ˘ ßãŒÈÁ÷—.. (13) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •Êß∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ß‚ ¬˝∑§Ê⁄UU flÊáÊË ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Êà „ÒU¢. (13) ´§ÃflSà ÿôÊ¢ Áfl ÃãflãÃÈ ◊Ê‚Ê ⁄UˇÊãÃÈ Ã „UÁfl—. ‚¢flà‚⁄USà ÿôÊ¢ ŒœÊÃÈ Ÿ— ¬˝¡Ê¢ ø ¬Á⁄U¬ÊÃÈ Ÿ—.. (14) 324 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
¿Ué’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚÷Ë ´§ÃÈ∞¢ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ◊Ê‚ „U◊Ê⁄UË „UÁfl ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚¢flà‚⁄U ÿôÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ‚÷Ë ¬˝¡Ê¡ŸÊ¥ ∑§Ê ¬Á⁄U¬Ê‹Ÿ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (14) ©U¬uÔU⁄U Áª⁄UËáÊÊ ¦ ‚X◊ ø ŸŒËŸÊ◊˜. ÁœÿÊ Áfl¬˝Ê •¡ÊÿÃ.. (15) ¬fl¸Ã ∑§Ë ∑¢§Œ⁄UÊ•Ê¥, ¬fl¸ÃÊ¥ •ÊÒ⁄U ŸÁŒÿÊ¥ ∑§ ‚¢ª◊ ¬⁄U ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ◊¥ ’ÈÁh ¬ÒŒÊ „UÊÃË „ÒU. (15) ©UëøÊ Ã ¡ÊÃ◊ãœ‚Ê ÁŒÁfl ‚jÍêÿÊ ŒŒ. ©Uª˝ ¦ ‡Ê◊¸ ◊Á„U üÊfl—.. (16) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ©Uëø‹Ê∑§ ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ üÊcΔU ÷ÍÁ◊ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ©Uª˝ „Ò¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ¬⁄U ‚˝Áflà „UÊß∞ (’Á„U∞). •Ê¬ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (16) ‚ Ÿ ˘ ßãº˝Êÿ ÿÖÿfl flL§áÊÊÿ ◊L§Œ˜èÿ—. flÁ⁄UflÊÁflà¬Á⁄U dfl.. (17) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ¡‹◊ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ߢº˝ Œfl, flL§áÊ Œfl fl ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ Á‹∞ ‚˝Áflà „UÊß∞. (17) ∞ŸÊ Áfl‡flÊãÿÿ¸ ˘ •Ê lÈêŸÊÁŸ ◊ÊŸÈ·ÊáÊÊ◊˜. Á‚·Ê‚ãÃÊ flŸÊ◊„U.. (18) •Ê¬ •Êß∞. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ Sflª¸ ∑§ ‚Ê⁄U ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ‚Èπ¬Ífl¸∑§ ¡ËflŸ ÁŸflʸ„U ∑§⁄U ‚∑¥§. (18) •ŸÈ flË⁄ÒU⁄UŸÈ ¬ÈcÿÊS◊ ªÊÁ÷⁄Uãfl‡flÒ⁄UŸÈ ‚fl¸áÊ ¬ÈCÔÒ—. •ŸÈ Ám¬ŒÊŸÈ øÃÈc¬ŒÊ flÿ¢ ŒflÊ ŸÊ ÿôÊ◊ÎÃÈÕÊ ŸÿãÃÈ.. (19) „U◊¥ flË⁄U ¬ÈòÊ ŒËÁ¡∞. „U◊¥ ªÊÿÊ¥ ‚ ¬Èc≈U ’ŸÊß∞. „U◊¥ •‡fl ŒËÁ¡∞. „U◊¥ ‚fl∑§ ŒËÁ¡∞. ŒÊ¬Ê∞ •ÊÒ⁄U øÊÒ¬Ê∞ „U◊Ê⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) •ÇŸ ¬àŸËÁ⁄U„UÊ fl„U ŒflÊŸÊ◊ȇÊÃËL§¬. àflCÔUÊ⁄ ¦ ‚Ê◊¬ËÃÿ.. (20) „U •ÁÇŸ! Œfl ¬ÁàŸÿÊ¢ ÷Ë •Ê„ÈUÁà øÊ„UÃË „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÷Ë •Ê„ÈUÁà ŒÃ „Ò¥U. àflc≈UÊ Œfl ∑§Ê •Ê¬ ‚Ê◊¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ‹ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (20) •Á÷ ÿôÊ¢ ªÎáÊËÁ„U ŸÊ ÇŸÊflÊ ŸCÔU— Á¬’ ´§ÃÈŸÊ. àfl ¦ Á„U ⁄UàŸœÊ ˘ •Á‚.. (21) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ üÊcΔUU œŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ªáÊ◊Êãÿ ÿôÊ ∑§Ê ‚¢¬ãŸ ∑§⁄UÊß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ⁄UàŸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËÁ¡∞. (21) º˝ÁfláÊʌʗ Á¬¬Ë·Áà ¡È„UÊà ¬˝ ø ÁÃcΔUÃ. ŸCÔ˛UÊŒÎÃÈÁ÷Á⁄UcÿÃ.. (22) ÿ¡Èfl¸Œ - 325
©UûÊ⁄UÊœ¸
¿Ué’Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ´§ÃÈ ∑§ •ŸÈ‚Ê⁄U ßë¿UÊŸÈ‚Ê⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ œŸŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ÷Ë ÿôÊ ◊¥ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ËŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§ËÁ¡∞. ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÁÃÁcΔUà „UÊß∞. (22) ÃflÊÿ ¦ ‚Ê◊Sàfl◊sÔflʸæ˜U ‡Ê‡flûÊ◊ ¦ ‚È◊ŸÊ ˘ •Sÿ ¬ÊÁ„U. •ÁS◊Ÿ˜ ÿôÊ ’Á„¸UcÿÊ ÁŸ·lÊ ŒÁœcfl◊¢ ¡ΔU⁄U ˘ ßãŒÈÁ◊ãº˝.. (23) „U ߢº˝! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ ¬œÊÁ⁄U∞ •ÊÒ⁄U ∑ȧ‡Ê ∑§§•Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. ÿ„U •Ê¬ ∑§ ¬ËŸ ÿÊÇÿ ‚Ê◊⁄U‚ „ÒU . •Ê¬ •ÊŸ¢Œ¬Ífl¸∑§ ©U‚ ¬ËÁ¡∞. •Ê¬ •ë¿U ◊Ÿ ‚ ©U‚ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (23) •◊fl Ÿ— ‚È„UflÊ ˘ •Ê Á„U ªãß ÁŸ ’Á„¸UÁ· ‚ŒÃŸÊ ⁄UÁáÊCÔUŸ. •ÕÊ ◊ŒSfl ¡È¡È·ÊáÊÊ •ãœ‚SàflCÔUŒ¸flÁ÷¡¸ÁŸÁ÷— ‚È◊Œ˜ªáÊ—.. (24) „U Œfl ¬ÁàŸÿÊ! •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ◊¢«U¬ ∑§Ê •¬Ÿ ÉÊ⁄U ∑§Ë Ã⁄U„U ‚◊Á¤Ê∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬œÊ⁄U ∑§⁄U ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ •ÊŸ¢ÁŒÃ „UÊß∞. •Ê¬ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (24) SflÊÁŒcΔUÿÊ ◊ÁŒcΔUÿÊ ¬flSfl ‚Ê◊ œÊ⁄UÿÊ. ßãº˝Êÿ ¬ÊÃfl ‚È×.. (25) „U ‚Ê◊! •Ê¬ SflÊÁŒc≈UU •ÊÒ⁄U ◊ŒŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ¬ÁflòÊ œÊ⁄UÊ•Ê¥ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ’„¥U. (25) ⁄UˇÊÊ„UÊ Áfl‡flø·¸ÁáÊ⁄UÁ÷ ÿÊÁŸ◊ÿÊ„UÃ. º˝ÊáÊ ‚œSÕ◊Ê‚ŒÃ˜.. (26) „U ‚Ê◊! •Ê¬ Áfl‹ˇÊáÊ, ‚fl¸º˝c≈UÊ fl ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ◊Í‹ ÁŸflÊ‚ SÕÊŸ º˝ÊáÊ ∑§‹‡Ê ◊¥ SÕÊÁ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (26)
326 - ÿ¡Èfl¸Œ
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚◊ÊSàflÊÇŸ ˘ ´§ÃflÊ flœ¸ÿãÃÈ ‚¢flà‚⁄UÊ ˘ ´§·ÿÊ ÿÊÁŸ ‚àÿÊ. ‚¢ ÁŒ√ÿŸ ŒËÁŒÁ„U ⁄UÊøŸŸ Áfl‡flÊ ˘ •Ê ÷ÊÁ„U ¬˝ÁŒ‡Ê‡øÃd—.. (1) „U •ÁÇŸ! ‚àÿflÊŒË ´§Á·ªáÊ „U⁄U ◊Ê„U, ´§ÃÈ fl fl·¸ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ÁŒ√ÿÃÊ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê •Ê‹ÊÁ∑§Ã fl øÊ⁄UÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ •ÊÒ⁄U ©U¬ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê÷ÊÁ‚à ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (1) ‚¢ øäÿSflÊÇŸ ¬˝ ø ’ÊœÿÒŸ◊Èëø ÁÃcΔ ◊„Uà ‚ÊÒ÷ªÊÿ. ◊Ê ø Á⁄U·ŒÈ¬‚ûÊÊ Ã •ÇŸ ’˝rÊÔÊáÊSà ÿ‡Ê‚— ‚ãÃÈ ◊Êãÿ.. (2) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê øÃÊß∞ fl ¡ªÊß∞! •Ê¬ ™¢§ø •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ •¬ŸË ©U¬‚ûÊÊ •ÊÒ⁄U „U◊ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§Ê •¬ŸÊ fl„U ÿ‡Ê ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ◊ÊãÿÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (2) àflÊ◊ÇŸ flÎáÊà ’˝ÊrÊÔáÊÊ ˘ ß◊ Á‡ÊflÊ •ÇŸ ‚¢fl⁄UáÊ ÷flÊ Ÿ—. ‚¬àŸ„UÊ ŸÊ •Á÷◊ÊÁÃÁ¡ëø Sfl ªÿ ¡ÊªÎsÔ¬˝ÿÈë¿UŸ˜.. (3) „U •ÁÇŸ! ’˝ÊrÊáÊ •Ê¬ ∑§Ê fl⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚¢fl⁄UáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U „U◊¥ Á¡ÃÊß∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •¬Ÿ ÉÊ⁄U ◊¥ •Ê‹Sÿ ⁄UÁ„Uà „UÊ ∑§⁄U ¡ÊªÃ ⁄U„¥U. (3) ß„ÒUflÊÇŸ •Áœ œÊ⁄UÿÊ ⁄UÁÿ¢ ◊Ê àflÊ ÁŸ ∑˝§ã¬Ífl¸ÁøÃÊ ÁŸ∑§ÊÁ⁄UáÊ—. ˇÊòÊ◊ÇŸ ‚Èÿ◊◊SÃÈ ÃÈèÿ◊Ȭ‚ûÊÊ flœ¸ÃÊ¢ à •ÁŸc≈ÎU×.. (4) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ßœ⁄U ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§Á⁄U∞. ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ∑§Ë •ÊôÊÊ ∑§Ê ©UÀ‹¢ÉÊŸ Ÿ ∑§⁄¥U. ˇÊÁòÊÿ ÷Ë •Ê¬ ∑§ fl‡Ê ◊¥ „UÊ ¡Ê∞¢. •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. •Ê¬ ∑§ ÷Äà •ÁflŸÊ‡ÊË „UÊ¥. •Ê¬ ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (4) ˇÊòÊáÊÊÇŸ SflÊÿÈ— ‚ ¦ ⁄U÷Sfl Á◊òÊáÊÊÇŸ Á◊òÊœÿ ÿÃSfl. ‚¡ÊÃÊŸÊ¢ ◊äÿ◊SÕÊ ˘ ∞Áœ ⁄UÊôÊÊ◊ÇŸ Áfl„√ÿÊ ŒËÁŒ„UË„U.. (5)
ÿ¡Èfl¸Œ - 327
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ê •Ê¬ •¬ŸË •ÊÿÈ fl ©Uã„¥U •¬ŸÊ flÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. Á◊òÊ Œfl ∑§ ‚ÊÕ ⁄U„U ∑§⁄U ⁄UøŸÊà◊∑§ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ ∑§Ê ÿàŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚¡ÊÁÃÿÊ¥ ∑§ ’Ëø ⁄U„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ⁄UÊ¡Ê „Ò¥U. •Ê¬ •Êß∞. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (5) •Áà ÁŸ„UÊ •Áà ÁdœÊàÿÁøÁûÊ◊àÿ⁄UÊÁÃ◊ÇŸ. Áfl‡flÊ sÔÇŸ ŒÈÁ⁄UÃÊ ‚„USflÊÕÊS◊èÿ ¦ ‚„UflË⁄UÊ ¦ ⁄UÁÿ¢ ŒÊ—.. (6) „U •ÁÇŸ! „UàÿÊ⁄UÊ¥, •àÿÊøÊÁ⁄UÿÊ¥, Sflë¿UÊøÊÁ⁄UÿÊ¥, ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚Ê„U‚ ∑§ ‚ÊÕ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ flË⁄U ¬ÈòÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ‚ÊÕ œŸ ÷Ë ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (6) •ŸÊœÎcÿÊ ¡ÊÃflŒÊ ˘ •ÁŸc≈ÎUÃÊ Áfl⁄UÊ«UÇŸ ˇÊòÊ÷ÎgËÁŒ„UË„U. Áfl‡flÊ ˘ •Ê‡ÊÊ— ¬˝◊ÈÜøã◊ÊŸÈ·ËÁ÷¸ÿ— Á‡ÊflÁ÷⁄Ul ¬Á⁄U ¬ÊÁ„U ŸÊ flÎœ.. (7) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê ∑§Ê߸ Ÿ„UË¥ „U⁄UÊ ‚∑§ÃÊ. •Ê¬ ‚’ ∑ȧ¿U ¡ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ •Ÿ‡fl⁄U, Áfl⁄UÊ≈˜U, ˇÊÊòÊ œ◊¸ ∑§ ¬Ê·∑§ fl ‚’ ∑§Ë •Ê‡ÊÊ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ∑§c≈U ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ •Ê¡ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚’ •Ê⁄U ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ fl U„U◊Ê⁄UË ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (7) - - ’΄US¬Ã ‚ÁflÒʸœÿÒŸ ¦ ‚ ¦ Á‡Êâ Áøà‚ãÃ⁄UÊ ¦ ‚ ¦ Á‡Ê‡ÊÊÁœ. flœ¸ÿÒŸ¢ ◊„Uà ‚ÊÒ÷ªÊÿ Áfl‡fl ˘ ∞Ÿ◊ŸÈ ◊ŒãÃÈ ŒflÊ—.. (8) „U ’΄US¬Áà fl ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ߟ ÿ¡◊ÊŸÊ¢ ∑§Ê ’ÊÁœÃ fl øÃŸÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ËÁ¡∞. ‚÷Ë ŒflÃÊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ fl ©UŸ ∑§Ê •ÊŸ¢Œ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (8) •◊ÈòÊ÷ÍÿÊŒœ ÿl◊Sÿ ’΄US¬Ã •Á÷‡ÊSÃ⁄U◊ÈÜø—. ¬˝àÿÊÒ„UÃÊ◊Á‡flŸÊ ◊ÎàÿÈ◊S◊ÊgflÊŸÊ◊ÇŸ Á÷·¡Ê ‡ÊøËÁ÷—.. (9) „U ’΄US¬Áà Œfl! •Ê¬ „U◊¥ ÿ◊⁄UÊ¡ ∑§ ÉÊ⁄U ¡ÊŸ ∑§ «U⁄U ‚ ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. •Á‡flŸË Œfl „U◊Ê⁄U ◊ÎàÿÈ ∑§ ÷ÿ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Á‡flŸË Œfl •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§ ôÊÊÃÊ „Ò¥U. fl •ÁÇŸ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) ©Umÿ¢ Ã◊‚S¬Á⁄U Sfl— ¬‡ÿãà ˘ ©UûÊ⁄U◊˜. Œfl¢ ŒflòÊÊ ‚Íÿ¸◊ªã◊ ÖÿÊÁÃL§ûÊ◊◊˜.. (10) „U ‚Íÿ¸! •Ê¬ ŒflÊ¥ ∑§ Œfl „Ò¥U. „U◊ •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ™§¬⁄U ©UΔ¥U •ÊÒ⁄U •Êà◊Êfl‹Ê∑§Ÿ ∑§⁄¥U (•¬Ÿ•Ê¬ ∑§Ê Œπ¥). „U◊¥ ©UûÊ⁄UÊûÊ⁄U ‚Èπ Á◊‹. „U◊ ‚ÁflÃÊ Œfl fl ‚’ ‚ ©UûÊ◊ ÖÿÊÁà ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. (10)
328 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
™§äflʸ ˘ •Sÿ ‚Á◊œÊ ÷flãàÿÍäflʸ ‡ÊÈ∑˝§Ê ‡ÊÊøË ¦ cÿÇŸ—. lÈ◊ûÊ◊Ê ‚Ȭ˝ÃË∑§Sÿ ‚ÍŸÊ—.. (11) •ÁÇŸ ∑§Ë ‹¬≈¥U ¬ÁflòÊ, ø◊∑§Ë‹Ë, ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ¡ÊÃË „Ò¥U. fl ‹¬≈¥U ‚Á◊œÊ ‚ ™§äUfl¸ª◊Ÿ ∑§⁄UÃË „Ò¥U •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ¡ÊÃË „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§Ë ‹¬≈¥U ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ üÊcΔU ¬˝ÃË∑§ „Ò¥U. (11) ß͟¬ÊŒ‚È⁄UÊ Áfl‡flflŒÊ ŒflÊ Œfl·È Œfl—. ¬ÕÊ •ŸÄÃÈ ◊äflÊ ÉÊÎß.. (12) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Œfl, ‚fl¸ôÊÊÃÊ, ‡Ê⁄UË⁄U ⁄UˇÊ∑§ fl •‚È⁄UŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ◊œÈ⁄U ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ •¬Ÿ ¬Õ ¬⁄U ’…∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë üÊcΔU ◊ʪ¸ ¬⁄U ’…∏UŸ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ŒËÁ¡∞. (12) ◊äflÊ ÿôÊ¢ ŸˇÊ‚ ¬˝ËáÊÊŸÊ Ÿ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚Ê •ÇŸ. ‚È∑Χgfl— ‚ÁflÃÊ Áfl‡flflÊ⁄U—.. (13) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÊáÊË ÿôÊ ◊¥ ◊œÈ (•ÊÁŒ ‚Ê◊Áª˝ÿÊ¥ ‚) ¬Í¡Ã „Ò¥U. •Ê¬ ‚fl¸Á¬˝ÿ „Ò¥U. •Ê¬ üÊcΔU ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ∑§Ê Á¬˝ÿ ‹ªÃ „Ò¥U. (13) •ë¿UÊÿ◊Áà ‡Êfl‚Ê ÉÊÎß«UÊŸÊ flÁqÔUŸ¸◊‚Ê. •ÁÇŸ ¦ dÈøÊ •äfl⁄U·È ¬˝ÿà‚È.. (14) •ÁÇŸ! ÿôÊ ◊¥ •äUflÿȸ ¬˝ÿàŸ¬Ífl¸∑§ ÉÊË ‚ •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. ÁflÁ÷ããÊ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ •ÁÇŸ ∑§ ‚◊ˬ ¡Êà „Ò¥U. (14) ‚ ÿˇÊŒSÿ ◊Á„U◊ÊŸ◊ÇŸ— ‚ ßZ ◊ãº˝Ê ‚Ȭ˝ÿ‚—. fl‚ȇøÁÃcΔUÊ fl‚ÈœÊÃ◊‡ø.. (15) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ◊Á„U◊ÊflÊŸ, ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ, üÊcΔU ‚¢¬ÁûÊŒÊÃÊ fl œŸflÊŸ „Ò¥U. „U◊ •ÊŸ¢Œ¬Ífl¸∑§ œŸœÊ⁄UË •ÁÇŸ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (15) mÊ⁄UÊ ŒflË⁄UãflSÿ Áfl‡fl fl˝ÃÊ ŒŒãà •ÇŸ—. ©UL§√ÿø‚Ê œÊêŸÊ ¬àÿ◊ÊŸÊ—.. (16) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒflÊ¥ ∑§Ê mÊ⁄U, fl˝Ã‡ÊË‹ fl flø¸SflË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ‚÷Ë ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (16) à •Sÿ ÿÊ·áÊ ÁŒ√ÿ Ÿ ÿÊŸÊ ©U·Ê‚ÊŸÄÃÊ. ß◊¢ ÿôÊ◊flÃÊ◊äfl⁄¢U Ÿ—.. (17) •ÁÇŸ ∑§Ë ŒÊ ÁŒ√ÿ ŒÁflÿÊ¢ „Ò¥ó©U·Ê fl ⁄UÊÁòÊ. ÿ ŒÊŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¥ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§ ‚ÊÕ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (17) ŒÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ ˘ ™§äfl¸◊äfl⁄¢U ŸÊÇŸÁ¡¸uÔUÊ◊Á÷ ªÎáÊËÃ◊˜. ∑ΧáÊÈâ Ÿ— ÁSflÁCÔU◊˜.. (18) ÁŒ√ÿ •äUflÿȸ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U flÊÿÈ! ÁflÁœflà ߂ ÿôÊ ∑§Ê ‚¢¬ãŸ ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ ∑§Ë Á¡uÊ ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ’…∏UÃË „ÒU. fl „U◊¥ ÷Ë ™§¬⁄U ’…∏UŸ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (18)
ÿ¡Èfl¸Œ - 329
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÁÃdÊ ŒflË’¸Á„¸U⁄UŒ ¦ ‚ŒÁãàfl«UÊ ‚⁄USflÃË ÷Ê⁄UÃË. ◊„UË ªÎáÊÊŸÊ.. (19) ß«∏UÊ ŒflË, ‚⁄USflÃË ŒflË •ÊÒ⁄U ÷Ê⁄UÃË ŒflË ◊Á„U◊Ê◊ÿË „Ò¥U. fl ªáÊ◊Êãÿ „Ò¥U. fl (ÿôÊ) ‚ŒŸ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ •ÊÒ⁄U ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) ÃãŸSÃÈ⁄Uˬ◊jÈâ ¬ÈL§ˇÊÈ àflCÔUÊ ‚ÈflËÿ¸◊˜. ⁄UÊÿS¬Ê·¢ Áfl cÿÃÈ ŸÊÁ÷◊S◊.. (20) àflc≈UÊ Œfl! •Œ˜÷ÈÃ, ‚fl¸º˝c≈Ê, üÊcΔUU flËÿ¸ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ªÁÃ◊ÊŸ „Ò¥U. fl Œfl „U◊¥ ¬Ê·∑§ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (20) flŸS¬Ãfl ‚Î¡Ê ⁄U⁄UÊáÊSà◊ŸÊ Œfl·È. •ÁÇŸ„¸U√ÿ ¦ ‡ÊÁ◊ÃÊ ‚ÍŒÿÊÁÃ.. (21) „U flŸS¬ÁÃ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ê·Áœ ©U¬‹éœ ∑§⁄UÊ∞¢. •ÁÇŸ ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË •Ê„ÈUÁà ∑§Ê ‡ÊÊÁœÃ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (21) •ÇŸ SflÊ„UÊ ∑ΧáÊÈÁ„U ¡ÊÃflŒ ˘ ßãº˝Êÿ „U√ÿ◊˜. Áfl‡fl ŒflÊ „UÁflÁ⁄UŒ¢ ¡È·ãÃÊ◊˜.. (22) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ „◊Ê⁄UË •Ê⁄U ‚ ŒË ªß¸ •Ê„ÈUÁà fl ÿôÊ ◊¥ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ „U◊Ê⁄UË „UÁfl ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (22) ¬ËflÊ •ãŸÊ ⁄UÁÿflÎœ— ‚È◊œÊ— ‡fl× Á‚·ÁÄà ÁŸÿÈÃÊ◊Á÷üÊË—. à flÊÿfl ‚◊Ÿ‚Ê Áfl ÃSÕÈÁfl¸‡flãŸ⁄U— Sfl¬àÿÊÁŸ ø∑˝È§—.. (23) flÊÿÈ •ããÊ fl œŸ ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U. fl üÊcΔU ’ÈÁh ‚¢¬ãŸ, ‡flà fl ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. üÊcΔU ◊ŸÈcÿ •ë¿UË ‚¢ÃÊŸ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ flÊÿÈ ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (23) ⁄UÊÿ ŸÈ ÿ¢ ¡ôÊÃÍ ⁄UÊŒ‚Ë◊ ⁄UÊÿ ŒflË Áœ·áÊÊ œÊÁà Œfl◊˜. •œ flÊÿÈ¢ ÁŸÿÈ× ‚‡ø× SflÊ ©Uà ‡flâ fl‚ÈÁœÁâ ÁŸ⁄U∑§.. (24) ŒflË Œfl ∑§Ê œŸ ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ‹Ê∑§ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U¥ . flÊÿÈ œŸœÊ⁄UË „ÒU¥ . ‚÷Ë ©UŸ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . (24) •Ê¬Ê „U ÿŒ˜’΄UÃËÁfl¸‡fl◊ÊÿŸ˜ ª÷Z ŒœÊŸÊ ¡ŸÿãÃË⁄UÁÇŸ◊˜. ÃÃÊ ŒflÊŸÊ ¦ ‚◊fløÃÊ‚È⁄U∑§— ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (25) ¡‹ •¬Ê⁄U „ÒU. Áfl‡fl ∑§Ê •¬Ÿ ◊¥ ‚◊Ê∞ „ÈU∞ „ÒU. •ÁÇŸ ∑§Ê ª÷¸ ◊¥ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. ©U‚ ‚ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ©Uà¬ÁûÊ „ÈU߸. ©UŸ ∑§ •‹ÊflÊ „U◊ •’ Á∑§‚ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U? (25) ÿÁ‡øŒÊ¬Ê ◊Á„UŸÊ ¬ÿ¸¬‡ÿgˇÊ¢ ŒœÊŸÊ ¡ŸÿãÃËÿ¸ôÊ◊˜. ÿÊ ŒflcflÁœ Œfl ˘ ∞∑§ ˘ •Ê‚ËØ ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (26) Á¡ã„UÊ¥Ÿ ¬ÎâflË ∑§ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ¡‹ ŒπÊ, Á¡‚ Ÿ ÿôÊ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê 330 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¡ŸÊ, ¡Ê ŒflÊ¥ ∑§ ∞∑§◊ÊòÊ •ÁœŒfl „Ò¥U, ©UŸ ∑§ •‹ÊflÊ •’ „U◊ Á∑§‚ ŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U? (26) ¬˝ ÿÊÁ÷ÿʸÁ‚ ŒÊ‡flÊ ¦ ‚◊ë¿UÊ ÁŸÿÈÁjflʸÿÁflCÔÿ ŒÈ⁄UÊáÊ. ÁŸ ŸÊ ⁄UÁÿ ¦ ‚È÷Ê¡‚¢ ÿÈflSfl ÁŸ flË⁄¢U ª√ÿ◊‡√ÿ¢ ø ⁄UÊœ—.. (27) „U flÊÿÈ! •Ê¬ Á¡Ÿ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ¬Ê‚ ÉÊÊ«∏U ∑§Ë ªÁà ‚ ¡Êà „Ò¥U, ©U‚Ë ÿÈflÊ ªÁà ‚ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ •Êß∞. •Ê¬ „U◊¥ flË⁄U ‚¢ÃÊŸ, ªÊœŸ fl •‡flœŸ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (27) •Ê ŸÊ ÁŸÿÈÁj— ‡ÊÁßËÁ÷⁄Uäfl⁄ ¦ ‚„UÁdáÊËÁèÊL§¬ ÿÊÁ„U ÿôÊ◊˜. flÊÿÊ •ÁS◊ãà‚flŸ ◊ÊŒÿSfl ÿÍÿ¢ ¬Êà SflÁSÃÁ÷— ‚ŒÊ Ÿ—.. (28) „U flÊÿÈ! •Ê¬ •¬Ÿ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ •ÊÒ⁄U „U¡Ê⁄UÊ¥ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡Êà ∑§⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¡ÀŒË ‚ ¬œÊÁ⁄U∞. „U flÊÿÈ! ß‚ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ÷Ë •ÊŸ¢ÁŒÃ „UÊß∞ •ÊÒ⁄U •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚ÊœŸÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ÷Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (28) ÁŸÿÈàflÊãflÊÿflÊ ªsÔÿ ¦ ‡ÊÈ∑˝§Ê •ÿÊÁ◊ Ã. ªãÃÊÁ‚ ‚ÈãflÃÊ ªÎ„U◊˜.. (29) „U flÊÿÈ! ‡ÊÈ∑˝§ ª˝„U •Ê¬ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ÉÊÊ«∏U ⁄UÕ ◊¥ ¡ÊÁÃ∞. •Ê¬ U„U◊Ê⁄UË ‚ÈÁŸ∞. ‡ÊËÉÊ˝ ª¢Ã√ÿ (ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ÉÊ⁄U) ∑§Ë •Ê⁄U ¬œÊÁ⁄U∞. (29) flÊÿÊ ‡ÊÈ∑˝§Ê •ÿÊÁ◊ à ◊äflÊ •ª˝¢ ÁŒÁflÁCÔU·È. •Ê ÿÊÁ„U ‚Ê◊¬ËÃÿ S¬Ê„Uʸ Œfl ÁŸÿÈàflÃÊ.. (30) „U flÊÿÈ! •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊÈ∑˝§ ª˝„U œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U Œfl! •Ê¬ •ª˝ªáÿ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ◊œÈ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ Ã¡Ë ‚ ¬œÊÁ⁄U∞. (30) flÊÿÈ⁄Uª˝ªÊ ÿôʬ˝Ë— ‚Ê∑¢§ ªã◊Ÿ‚Ê ÿôÊ◊˜. Á‡ÊflÊ ÁŸÿÈÁj— Á‡ÊflÊÁ÷—.. (31) „U flÊÿÈ! •Ê¬ •ª˝ªÊ◊Ë, ÿôÊ ‚ ¬˝ËÁà ⁄UπŸ flÊ‹ fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡ÊÁÃ∞. •Ê¬ •¬Ÿ ◊Ÿ ∑§ ‚ÊÕ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (31) flÊÿÊ ÿ à ‚„UÁdáÊÊ ⁄UÕÊ‚SÃÁ÷⁄UÊ ªÁ„U. ÁŸÿÈàflÊãà‚Ê◊¬ËÃÿ.. (32) „U flÊÿÈ! •Ê¬ ∑§ ¡Ê „U¡Ê⁄UÊ¥ ⁄UÕ „Ò¥U, •Ê¬ ©UŸ ◊¥ ÉÊÊ«∏U ¡ÊÁÃ∞. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ¬œÊÁ⁄U∞. (32) ∞∑§ÿÊ ø Œ‡ÊÁ÷‡ø Sfl÷Íà mÊèÿÊÁ◊CÔUÿ Áfl ¦ ‡ÊÃË ø. ÁÂÎÁ÷‡ø fl„U‚ ÁòÊ ¦ ‡ÊÃÊø ÁŸÿÈÁjflʸÿÁfl„U ÃÊ Áfl◊ÈÜø.. (33) ÿ¡Èfl¸Œ - 331
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U flÊÿÈ! •Ê¬ ∞∑§, ŒÊ, ÃËŸ, Œ‚, ’Ë‚, ÃË‚, ÃËŸ ‚ÊÒ •ÊÒ⁄U Á¡ÃŸ øÊ„U, ©Uß ÉÊÊ«∏U ¡Êà ∑§⁄U •¬Ÿ ⁄UÕ •÷Ëc≈U ∑§Êÿ¸ ∑§ Á‹∞ ¿UÊÁ«∏U∞. (33) Ãfl flÊÿflÎÃS¬Ã àflc≈ÈU¡Ê¸◊ÊÃ⁄UjÈÃ. •flÊ ¦ SÿÊ flÎáÊË◊„U.. (34) „U flÊÿÈ! •Ê¬ ‚¢∑§À¬‡ÊË‹, •Œ˜÷Èà fl àflc≈UÊ Œfl ∑§ ¡◊Ê߸ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ∑§Ê fl⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (34) •Á÷ àflÊ ‡ÊÍ⁄U ŸÊŸÈ◊ÊŒÈÇœÊ ˘ ßfl œŸfl—. ߸‡ÊÊŸ◊Sÿ ¡ªÃ— SflŒÎ¸‡Ê◊ˇÊÊŸÁ◊ãº˝ ÃSÕÈ·—.. (35) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‡ÊÍ⁄UflË⁄U, ‚¢‚Ê⁄U ∑§ SflÊ◊Ë, ‚fl¸º˝c≈UÊ fl ߸‡fl⁄U „Ò¥U. Á’ŸÊ ŒÈ„UË „ÈU߸ ªÊÿ ∑§Ë Ã⁄U„U „U◊ •Ê¬ ‚ œŸ ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (35) Ÿ àflÊflÊ° 2 •ãÿÊ ÁŒ√ÿÊ Ÿ ¬ÊÁÕ¸flÊ Ÿ ¡ÊÃÊ Ÿ ¡ÁŸcÿÃ. •‡flÊÿãÃÊ ◊ÉÊflÁãŸãº˝ flÊÁ¡ŸÊ ª√ÿãÃSàflÊ „UflÊ◊„U.. (36) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ¡Ò‚Ê ÁŒ√ÿ ∑§Ê߸ Œfl Ÿ ∑§÷Ë ¬ÎâflË ¬⁄U ¬ÒŒÊ „ÈU•Ê „ÒU •ÊÒ⁄U Ÿ „UË „UʪÊ. •Ê¬ œŸflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •‡flÊÁÿà (ÉÊÊ«∏Ê¥ ‚ ÿÈÄÃ) ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ’‹‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊß∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (36) àflÊÁ◊Áh „UflÊ◊„U ‚ÊÃÊÒ flÊ¡Sÿ ∑§Ê⁄Ufl—. àflÊ¢ flÎòÊÁcflãº˝ ‚à¬Áâ Ÿ⁄USàflÊ¢ ∑§ÊcΔUÊSflfl¸Ã—.. (37) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‚à¬Áà fl flÎòʟʇÊ∑§ „Ò¥U. ÿÊ¡∑§ ‚fl¸òÊ Áfl¡ÿ •ÊÒ⁄U •ããÊ ’‹ ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (37) ‚ àfl¢ ŸÁ‡øòÊ flÖÊ˝„USà œÎcáÊÈÿÊ ◊„U SÃflÊŸÊ •Áº˝fl—. ªÊ◊‡fl ¦ ⁄UâÿÁ◊ãº˝ ‚¢ Á∑§⁄U ‚òÊÊ flÊ¡¢ Ÿ Á¡ÇÿÈ·.. (38) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ •Œ˜÷ÈÃ, flÖÊ˝œÊ⁄UË fl ¬ÎâflË ¬⁄U SÃÈàÿ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ªÊœŸ •ÊÒ⁄U •‡fl◊ÿ ⁄UÕ ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ’‹flÊŸ ’ŸÊß∞, ÃÊÁ∑§ „U◊ ÿÈhÊ¥ ◊¥ Áfl¡ÿ ¬Ê ‚∑¥§. (38) ∑§ÿÊ ŸÁ‡øòÊ ˘ •Ê ÷ÈflŒÍÃË ‚ŒÊflÎœ— ‚πÊ. ∑§ÿÊ ‡ÊÁøcΔUÿÊ flÎÃÊ.. (39) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚πÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ŒÒfl ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË Á∑§‚ ¬ÁflòÊ flÎÁûÊ ‚ ¬˝‚㟠„UÊ ∑§⁄U „U◊ ¬⁄U ∑Χ¬Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. (39) ∑§SàflÊ ‚àÿÊ ◊ŒÊŸÊ¢ ◊ ¦ Á„UcΔUÊ ◊à‚Œãœ‚—. ŒÎ…UÊ ÁøŒÊL§¡ fl‚È.. (40) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ œŸflÊŸ fl ‚àÿflÊŸ „Ò¥U. ∑§ÊÒŸ ‚Ë flSÃÈ •Ê¬ ∑§Ê Á¬˝ÿ „Ò. •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „ÒU, Á¡‚ ‚ •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ¬⁄U œŸ ’⁄U‚Êà „Ò¥U? (40) 332 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚ûÊÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•÷Ë ·È áÊ— ‚πËŸÊ◊ÁflÃÊ ¡Á⁄UÃÎáÊÊ◊˜. ‡Êâ ÷flÊSÿÍÃÿ.. (41) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á◊òÊ ¡Ò‚ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ‹ÊªÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿàŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (41) ÿôÊÊ ÿôÊÊ flÊ •ÇŸÿ Áª⁄UÊ Áª⁄UÊ ø ŒˇÊ‚. ¬˝ ¬˝ flÿ◊◊Îâ ¡ÊÃflŒ‚¢ Á¬˝ÿ¢ Á◊òÊ¢ Ÿ ‡Ê ¦ Á‚·◊˜.. (42) „U⁄U ÿôÊ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ë SÃÊòÊÊ¥ ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. •Ê¬ •◊⁄U, ‚fl¸ôÊ, „U◊Ê⁄U Á¬˝ÿ fl Á◊òÊ „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝‡Ê¢Á‚à „Ò¥U. (42) ¬ÊÁ„U ŸÊ •ÇŸ ˘ ∞∑§ÿÊ ¬Êsԉà ÁmÃËÿÿÊ. ¬ÊÁ„U ªËÁ÷¸ÁSÂÎÁ÷M§¡ÊZ ¬Ã ¬ÊÁ„U øÂÎÁ÷fl¸‚Ê.. (43) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ∞∑§ SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ŒÊ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ÃËŸ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ øÊ⁄U ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (43) ™§¡Ê¸ Ÿ¬Êà ¦ ‚ Á„UŸÊÿ◊S◊ÿȌʸ‡Ê◊ „U√ÿŒÊÃÿ. ÷ÈflmÊ¡cflÁflÃÊ ÷ÈflŒ˜flÎœ ˘ ©Uà òÊÊÃÊ ÃŸÍŸÊ◊˜.. (44) •ÁÇŸ ™§¡¸SflË „Ò¥U. „UÁfl ŒŸ ∑§ Á‹∞ ©UŸ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U ß ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ ¬Í⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. (44) ‚¢flà‚⁄UÊÁ‚ ¬Á⁄Uflà‚⁄UÊ‚ËŒÊflà‚⁄UÊ‚Ëmà‚⁄UÊ ˘ Á‚ flà‚⁄UÊÁ‚. ©U·‚Sà ∑§À¬ãÃÊ◊„UÊ⁄UÊòÊÊSà ∑§À¬ãÃÊ◊œ¸◊Ê‚ÊSà ∑§À¬ãÃÊ¢ ◊Ê‚ÊSà ∑§À¬ãÃÊ◊ÎÃflSà ∑§À¬ãÃÊ ¦ ‚¢flà‚⁄USà ∑§À¬ÃÊ◊˜. ¬˝àÿÊ ˘ ∞àÿÒ ‚¢ øÊÜø ¬˝ ø ‚Ê⁄Uÿ. ‚ȬáʸÁøŒÁ‚ ÃÿÊ ŒflÃÿÊÁX⁄USflŒ˜ œÈ˝fl— ‚ËŒ.. (45) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚¢flàU‚⁄U, ¬Á⁄Uflà‚⁄U, ߌ˜flà‚⁄UU fl flà‚⁄U „Ò¥U. ©U·Ê •Ê¬ ∑§Ë „ÒU. ÁŒŸ⁄UÊà •Ê¬ ∑§ „Ò¥U. •ÊœÊ ◊Ê‚ (¬ˇÊ) •Ê¬ ∑§Ê „ÒU. ◊Ê„U •Ê¬ ∑§ „Ò¥U. fl·¸ •Ê¬ ∑§ „Ò¥U. ∑§ÀU¬Ê¢Ã ‚¢flàU‚⁄U •ÊÁŒ ∑§Ê •Ê¬ ‚◊ÈÁøà ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •Êß∞. •Ê¬ ߟ ‚’ ∑§Ê ‚¢flÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ÁøûÊ ∑§Ë ¬˝ÊáÊflÊÿÈ ¡Ò‚ „Ò¥U. •Ê¬ œ˝Èfl (ÁSÕ⁄U) „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •Ê„ÈUÁà •¢ªË∑§Ê⁄U ∑§ËÁ¡∞ •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ •¢ªË∑§Ê⁄U ∑§⁄UÊß∞. (45)
ÿ¡Èfl¸Œ - 333
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ „UÊÃÊ ÿˇÊà‚Á◊œãº˝Á◊«US¬Œ ŸÊ÷Ê ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •Áœ. ÁŒflÊ flc◊¸ãà‚Á◊äÿà ˘ •ÊÁ¡cΔU‡ø·¸áÊË‚„UÊ¢ flàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (1) „UÊÃÊ (¬È⁄UÊÁ„UÃ) ‚Á◊œÊ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊU ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ë ŸÊÁ÷ „ÒU. Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ‚Á◊œÊ ø◊∑§ ⁄U„UË „ÒU. ߢº˝ Œfl •Ê¡SflË •ÊÒ⁄U Áfl¡ÃÊ „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl„U ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©UŸ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ fl „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (1) „UÊÃÊ ÿˇÊûÊŸÍŸ¬ÊÃ◊ÍÁÃÁ÷¡¸ÃÊ⁄U◊¬⁄UÊÁ¡Ã◊˜. ßãº˝¢ Œfl ¦ SflÁfl¸Œ¢ ¬ÁÕÁ÷◊¸œÈ◊ûÊ◊ÒŸ¸⁄UÊ‡Ê ¦ ‚Ÿ á‚Ê flàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (2) ߢº˝ Œfl áSflË, ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ ⁄UˇÊ∑§, •¬Ÿ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ ¡Ëß flÊ‹ •ÊÒ⁄U ∑§÷Ë Ÿ„UË¥ „UÊ⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ ¬˝Áà ¬˝‚ãŸÃÊŒÊÿË •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl •Êà◊ôÊÊÃÊ „Ò¥U. fl ◊œÈU⁄U „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (2) „UÊÃÊ ÿˇÊÁŒ«UÊÁ÷Á⁄Uãº˝◊ËÁ«UÃ◊Ê¡ÈuÔUÊŸ◊◊àÿ¸◊˜. ŒflÊ ŒflÒ— ‚flËÿʸ flÖÊ˝„US× ¬È⁄UãŒ⁄UÊ flàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (3) ߢº˝ Œfl •◊⁄U, ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§ ÿÊÇÿ „ÒU. fl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ‚fl¸‚flʸ •ÊÒ⁄U ©UŸ ∑§ „UÊÕ ◊¥ flÖÊ˝ „Ò¥U. fl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ Ÿª⁄U Ÿc≈U ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ◊œÈ⁄U ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ‚ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl „UÁfl mÊ⁄UÊ •ÊŸ¢ÁŒÃ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (3) „UÊÃÊ ÿˇÊiÁ„¸U·Ëãº˝¢ ÁŸ·m⁄¢U flη÷¢ Ÿÿʸ¬‚◊˜. fl‚È÷Ë L§º˝Ò⁄UÊÁŒàÿÒ— ‚ÿÈÁÇ÷’¸Á„¸U⁄UÊ‚ŒmàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (4) ߢº˝ Œfl œŸfl·¸∑§, ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê Á„Uà øÊ„UŸ flÊ‹ fl ’‹flÊŸ „Ò¥U. „UÊÃÊ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡ ∑§⁄U ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl fl‚È, L§º˝, •ÊÁŒàÿ •ÊÒ⁄U •¬Ÿ ‚ÊÕ ∑§ •ãÿ ŒflÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U ’ÒΔU ∑§⁄U „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (4)
334 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊÃÊ ÿˇÊŒÊ¡Ê Ÿ flËÿ¸ ¦ ‚„UÊ mÊ⁄U ˘ ßãº˝◊flœ¸ÿŸ˜. ‚Ȭ˝ÊÿáÊÊ ˘ •ÁS◊ãÿôÊ Áfl üÊÿãÃÊ◊ÎÃÊflÎœÊ mÊ⁄U ˘ ßãº˝Êÿ ◊Ë…ÈU· √ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (5) „UÊÃÊ Ÿ ߢº˝ Œfl „UÃÈ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë ∞fl¢ ©UŸ ∑§ •Ê¡ •ÊÒ⁄U flËÿ¸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. ß‚ ÿôÊ ◊¥ ÿôÊ ∑§Ê ’…∏UÊŸ flÊ‹ mÊ⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ŒflÃÊ •ë¿UË Ã⁄U„U ¬˝ÿÊáÊ ∑§⁄¥U. fl ßë¿UʬÍÌà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄¥U . •◊Îà SflM§¬ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. (5) „UÊÃÊ ÿˇÊŒÈ· ßãº˝Sÿ œŸÍ ‚ÈŒÈÉÊ ◊ÊÃ⁄UÊ ◊„UË. ‚flÊÃ⁄UÊÒ Ÿ á‚Ê flà‚Á◊ãº˝◊flœ¸ÃÊ¢ flËÃÊ◊ÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (6) ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ¬ÎâflË ◊Ê¢ ¡Ò‚Ë „ÒU, •ë¿U ŒÍœflÊ‹Ë ªÊÿÊ¥ ¡Ò‚Ë „ÒU. „UÊÃÊ Ÿ ◊„UÊŸ˜ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ¬ÁflòÊ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „UÊÃÊ Ÿ •¬Ÿ á ‚ ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. ¡Ò‚ ◊Ê¢ ∑§ åÿÊ⁄U ‚ ’ëøÊ ŒÎ…∏U ’ŸÃÊ „Ò, flÒ‚ „UË fl „UÁfl ‚ ŒÎ…∏U „UÊ¥. „UÊÃÊ! •Ê¬ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. (6) „UÊÃÊ ÿˇÊgÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ Á÷·¡Ê ‚πÊÿÊ „UÁfl·ãº˝¢ Á÷·Öÿ×. ∑§flË ŒflÊÒ ¬˝øÂÊÁflãº˝Êÿ œûÊ ˘ ßÁãº˝ÿ¢ flËÃÊ◊ÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (7) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ÁŒ√ÿ, Á÷cʪÊøÊÿ¸ (ÁøÁ∑§à‚∑§) „U◊Ê⁄U ‚πÊ, ߢº˝ Œfl ∑§ flÒl •ÊÒ⁄U ∑§Áfl „Ò¥U. fl üÊcΔU ÁøûÊ flÊ‹ „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊSâÿ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „UÊÃÊ ŒflÊ¥ Ÿ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (7) „UÊÃÊ ÿˇÊÁûÊdÊ ŒflËŸ¸ ÷·¡¢ òÊÿÁSòÊœÊÃflÊ ˘ ¬‚ ˘ ß«UÊ ‚⁄USflÃË ÷Ê⁄UÃË ◊„UË—. ßãº˝¬àŸË„¸UÁflc◊ÃË√ÿ¸ãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (8) „UÊÃÊ Ÿ ß«∏UÊ, ‚⁄USflÃË fl ÷Ê⁄UÃË ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ „UÊÃÊ Ÿ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ÿ ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¥ ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ◊¥ ÃËŸÊ¥ ´§ÃÈ•Ê¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ߢº˝ Œfl ∑§Ë •ÊôÊÊ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. ÿ ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢ •Ê·Áœ ÿÈÄà „Ò¥U. ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢ „UÁflc◊ÃË „UÊ¥. ÿ¡◊ÊŸ ߟ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (8) „UÊÃÊ ÿˇÊûflc≈UÊ⁄UÁ◊ãº˝¢ Œfl¢ Á÷·¡ ¦ ‚Èÿ¡¢ ÉÊÎÃÁüÊÿ◊˜. ¬ÈL§M§¬ ¦ ‚È⁄U¢ ◊ÉÊÊŸÁ◊ãº˝Êÿ àflCÔUÊ ŒœÁŒÁãº˝ÿÊÁáÊ flàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (9) àflc≈UÊ Œfl flÒ÷flflÊŸ, ŒÊŸË, ⁄UʪŸÊ‡Ê∑§, üÊcΔU ÿôÊ∑§ûÊʸ, ‡ÊÊ÷ÊœÊ⁄UË fl •Ÿ∑§ M§¬ flÊ‹ „Ò¥U. ©UûÊ◊ flËÿ¸ flÊ‹ œŸflÊŸ àflc≈UÊ Ÿ ߢº˝ ∑§ Á‹∞ ‡ÊÁÄÃÿÊ¢ œÊ⁄UË¥. àflc≈UÊ Œfl „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) ÿ¡Èfl¸Œ - 335
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊÃÊ ÿˇÊmŸS¬Áà ¦ ‡ÊÁ◊ÃÊ⁄ ¦ ‡ÊÃ∑˝§ÃÈ¢ ÁœÿÊ ¡ÊCÔUÊ⁄UÁ◊Áãº˝ÿ◊˜. ◊äflÊ ‚◊Ü¡ã¬ÁÕÁ÷— ‚ȪÁ÷— SflŒÊÁà ÿôÊ¢ ◊œÈŸÊ ÉÊÎß flàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (10) flŸS¬Áà Œfl ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÃÊ, ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹, ’ÈÁh ÿÊ¡∑§ (¡Ê«∏UŸ flÊ‹) •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. fl ¬Õ ∑§Ê ‚Ȫ◊ ’ŸÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿôÊ ∑§Ê ◊œÈ⁄U „UÁflÿÊ¥ ‚ ¬Í⁄Uà „Ò¥U. fl flŸS¬Áà ◊œÈ⁄U „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ©UŸ flŸS¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (10) „UÊÃÊ ÿˇÊÁŒãº˝ ¦ SflÊ„UÊÖÿSÿ SflÊ„UÊ ◊Œ‚— SflÊ„UÊ SÃÊ∑§ÊŸÊ ¦ SflÊ„UÊ SflÊ„UÊ∑ΧÃËŸÊ ¦ SflÊ„UÊ „U√ÿ‚ÍÄÃËŸÊ◊˜. SflÊ„UÊ ŒflÊ ˘ •ÊÖÿ¬Ê ¡È·ÊáÊÊ ˘ ßãº˝ ˘ •ÊÖÿSÿ √ÿãÃÈ „UÊÃÿ¸¡.. (11) ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÊÖÿ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊Œ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. SÃÊòÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. SflÊ„UÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „UÁfl ∑§ Á‹∞ ‚ÍÄà ªÊŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „UÁfl ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ߢº˝ Œfl „UÁfl ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (11) Œfl¢ ’Á„¸UÁ⁄Uãº˝ ¦ ‚ÈŒfl¢ ŒflÒfl˸⁄UflàSÃËáÊZ fllÊ◊flœ¸ÿØ. flSÃÊflθâ ¬˝ÊÄÃÊ÷θà ¦ ⁄UÊÿÊ ’Á„¸Uc◊ÃÊàÿªÊm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (12) „U ߢº˝ Œfl! ŒflÃÊ •ë¿UË flŒË ¬⁄U ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ÷Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒflªáÊ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ fl „UÁfl ∑§Ê ÷ʪ ‹ªÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ∞‡flÿ¸ ¬ÊŸ fl œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (12) ŒflËmʸ⁄U ˘ ßãº˝ ¦ ‚YÊà flË«U˜flËÿʸ◊ãŸflœ¸ÿŸ˜. •Ê flà‚Ÿ ÃL§áÊŸ ∑ȧ◊Ê⁄UáÊ ø ◊ËflÃʬÊflʸáÊ ¦ ⁄UáÊÈ∑§∑§Ê≈¢U ŸÈŒãÃÊ¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (13) ߢº˝ Œfl ŒflÊ¥ ∑§ mÊ⁄U „Ò¥U . ‚’ Ÿ Á◊‹ ∑§⁄U ©UŸ ∑§ ¬⁄ÊU∑˝§◊ fl ’‹ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. ߢº˝ Œfl ’ÊÀÿ, ÿÈflÊ •ÊÒ⁄U ∑ȧ◊Ê⁄UÊflSÕÊ ◊¥ „UÊŸ flÊ‹ „UÊÁŸ∑§Ê⁄UË ÃûflÊ¥ fl œÍ‹ ÷⁄U ’ÊŒ‹Ê¥ ∑§Ê ÷Ë ⁄UÊ∑§Ã „Ò¥U. fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê flÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ fl flÒ÷fl œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ÉÊ⁄U ◊¥ ‚Èπ‡ÊÊ¢Áà ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¢. „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞. (13) ŒflË ©U·Ê‚ÊŸÄÃãº˝¢ ÿôÊ ¬˝ÿàÿuÔUÃÊ◊˜. ŒÒflËÁfl¸‡Ê— ¬˝ÊÿÊÁ‚c≈UÊ ¦ ‚Ȭ˝Ëà ‚ÈÁœÃ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (14) ©U·Ê ŒflË •ÊÒ⁄U ⁄UÊÁòÊ ŒflË ¬˝Á◊‹ „Ò¥U. ÿôÊ ◊¥ ©UŸ ∑§Ê •ÊUuÊŸ ∑§ËÁ¡∞. fl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê •ë¿UË ¬˝ËÁà •ÊÒ⁄U •ë¿UË ’ÈÁh ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UÃË „Ò¥U. „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ 336 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@21
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÿôÊ ∑§ËÁ¡∞ ÃÊÁ∑§ fl •Ê¬ ∑§ Á‹∞ œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. •Ê¬ ∑§Ê œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U ‚∑¥§. (14) ŒflË ¡ÊCÔ˛UË fl‚ÈÁœÃË ŒflÁ◊ãº˝◊flœ¸ÃÊ◊˜. •ÿÊ√ÿãÿÊÉÊÊ m·Ê ¦ SÿÊãÿÊ flˇÊm‚È flÊÿʸÁáÊ ÿ¡◊ÊŸÊÿ Á‡ÊÁˇÊà fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (15) ŒflË ¡Ê‡ÊË‹Ë, œŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, m·Ê¥ fl ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ œŸ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê œŸ ¬˝ÊÁåàÊ ∑§Ë Á‡ÊˇÊÊ ŒËÁ¡∞. ÿ¡◊ÊŸ ß‚ ‚’ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (15) ŒflË ™§¡Ê¸„ÈUÃË ŒÈÉÊ ‚ÈŒÈÉÊ ¬ÿ‚ãº˝ ◊flœ¸ÃÊ◊˜. ß·◊Í¡¸◊ãÿÊ flˇÊà‚ÁÇœ ¦ ‚¬ËÁÃ◊ãÿÊ ŸflŸ ¬ÍflZ Œÿ◊ÊŸ ¬È⁄UÊáÊŸ Ÿfl◊œÊÃÊ◊Í¡¸◊͡ʸ„ÈUÃË ™§¡¸ÿ◊ÊŸ fl‚È flÊÿʸÁáÊ ÿ¡◊ÊŸÊÿ Á‡ÊÁˇÊà fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (16) ŒflË Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ê ™§¡¸SflË ’ŸÊÿÊ.Ô ¬ÿ‚ ‚ ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. Œfl •ããÊ ‡ÊÁÄà ‚ ÿÈÄà „Ò¥U . ŒflË ¡‹ ‡ÊÁÄà ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. ŒflË ŒÿÊ◊ÿË, ¬È⁄ÊUß ÃûflÊ¥ ∑§Ê ¡ÊŸŸ flÊ‹Ë „Ò¥U fl Ÿ∞ •ÊÒ⁄U ¬È⁄UÊŸ •ããÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ ◊„UÊŸ˜ ∞‡flÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ©U‚ ∑§Ê SÕÊÁÿàfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflªáÊ „√ÿ¬ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ªáÊ ßŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (16) ŒflÊ ŒÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ ŒflÁ◊ãº˝◊flœ¸ÃÊ◊˜. „UÃÊÉÊ‡Ê ¦ ‚ÊflÊ÷ÊCÔUÊZ fl‚È flÊÿʸÁáÊ ÿ¡◊ÊŸÊÿ Á‡ÊÁˇÊÃÊÒ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (17) „UÊÃÊ ÁŒ√ÿ „ÒU. fl„U (ÿôÊ ‚) ŒflË ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. „UÊÃÊ ß¢º˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Œfl •ÊÒ⁄U ŒflË „U◊Ê⁄UÊ flÒ÷fl ’…U∏ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒflË •ÊÒ⁄U Œfl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê flÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UÊŸ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. Œfl •ÊÒ⁄U ŒflË ©U‚ flÒ÷fl ∑§Ê SÕÊÿË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U ÿ¡◊ÊŸ! •Ê¬ ÷Ë ß‚ËÁ‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. (17) ŒflËÁSÃdÁSÃdÊ ŒflË— ¬ÁÃÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿŸ˜. •S¬ÎˇÊjÊ⁄UÃË ÁŒfl ¦ L§º˝Òÿ¸ôÊ ¦ ‚⁄USflÃË«UÊ fl‚È◊ÃË ªÎ„UÊŸ˜ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (18) ߢº˝ Œfl ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. ÃËŸ ŒÁflÿÊ¥ Ÿ ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. ÷Ê⁄UÃË ŒflË Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê fl L§º˝ ÿôÊ ∑§Ê S¬‡Ê¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚⁄USflÃË, ß«∏UÊ •ÊÒ⁄U fl‚È◊ÃË ÉÊ⁄U ∑§Ê S¬‡Ê¸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U . ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ œŸ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ß‚ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. (18) ÿ¡Èfl¸Œ - 337
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Œfl ˘ ßãº˝Ê Ÿ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚ÁSòÊflM§ÕÁSòÊ’ãœÈ⁄UÊ ŒflÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿØ. ‡Êß Á‡ÊÁìÎcΔUÊŸÊ◊ÊÁ„U× ‚„UdáÊ ¬˝flûʸà Á◊òÊÊflL§áÊŒSÿ „UÊòÊ◊„¸UÃÊ ’΄US¬Á× SÃÊòÊ◊Á‡flŸÊäflÿ¸fl¢ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (19) ߢº˝ ’„ÈU¬˝‡Ê¢Á‚à „Ò¥U. ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ ’¢œÈ „Ò¥U. ÿôÊ Œfl ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ∑§Ê‹Ë ¬ËΔU flÊ‹Ë ªÊÿÊ¢ ‚ ‡ÊÊ÷à „Ò¥U. ∑§◊¸ÁŸcΔ flL§áÊ, SÃÊÃÊ ’΄US¬Áà ∞fl¢ •äflÿȸ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄Umÿ ß‚ ÿôÊ ∑§ „UÊÃÊ „Ò¥U.U ŒflªáÊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê flÒ÷fl Œ ¢. ŒflªáÊ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ œŸ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. „UÊÃÊ ß‚ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) ŒflÊ ŒflÒfl¸ŸS¬ÁÃÌ„U⁄Uáÿ¬áÊʸ ◊œÈ‡ÊÊπ— ‚ÈÁ¬å¬‹Ê ŒflÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿØ. ÁŒfl◊ª˝áÊÊS¬ÎˇÊŒÊãÃÁ⁄UˇÊ¢ ¬ÎÁÕflË◊ŒÎ ¦ „UËm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (20) flŸS¬Áà Œfl ‚ÊŸ ∑§ ¬ûÊÊ¥ ‚ ÿÈÄÃ, ◊œÈU⁄U ‡ÊÊπÊ•Ê¥ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ©UûÊ◊ »§‹Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. flŸS¬Áà ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flŸS¬Áà Œfl •¬Ÿ ©Uª˝ àÿʪ ‚ Sflª¸‹Ê∑§ fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê S¬‡Ê¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flŸS¬Áà Œfl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ◊¥ √ÿÊåà „Ò¥. flŸS¬Áà Œfl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê œŸ ŒŸ fl œŸ œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „UÊÃÊ ß‚ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (20) Œfl¢ ’Á„¸UflʸÁ⁄UÃËŸÊ¢ ŒflÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿØ. SflÊ‚SÕÁ◊ãº˝áÊÊ‚ãŸ◊ãÿÊ ’„U˸ ¦ cÿèÿ÷Ím‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (21) „U ŒflªáÊ! ߢº˝ Œfl ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥U. „U ŒflªáÊ! ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl •Ê∑§Ê‡Ê ◊¥ ÁSÕà flSÃÈ•Ê¥ ∑§Ê •Á÷÷Íà ∑§⁄UŸ fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ∞‡flÿ¸ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ©U‚ flÒ÷fl ∑§Ê ÁSÕ⁄U ∑§⁄Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©U‚ flÒ÷fl ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (21) ŒflÊ •ÁÇŸ— ÁSflCÔU∑ΧgflÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿØ. ÁSflCÔ¢U ∑ȧfl¸ÁãàSflCÔU∑ΧÁàSflCÔU◊l ∑§⁄UÊÃÈ ŸÊ fl‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (22) •ÁÇŸ ßc≈U ∑§Êÿ¸ ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊà ⁄UË ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ߢº˝ Œfl •Ê¡ „U◊Ê⁄U ßc≈U ∑§Êÿ¸ ∑§Ë ¬ÍÌà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (‚ŒÒfl) ßc≈U ∑§Êÿ¸ ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄.¥ fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê flÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ flÒ÷fl œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (22) •ÁÇŸ◊l „UÊÃÊ⁄U◊flÎáÊËÃÊÿ¢ ÿ¡◊ÊŸ— ¬øã¬ÄÃË— ¬øã¬È⁄UÊ«Uʇʢ ’äŸÁãŸãº˝Êÿ ¿Uʪ◊˜. ‚ͬSÕÊ ˘ •l ŒflÊ flŸS¬ÁÃ⁄U÷flÁŒãº˝Êÿ ¿UʪŸ. •ÉÊûÊ¢ ◊ŒS× ¬˝Áà ¬øÃʪ˝÷ËŒflË flÎœà¬È⁄UÊ«Uʇʟ. àflÊ◊l ´§·.. (23)
338 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•ÁÇŸ Ÿ •Ê¡ „UÊÃÊ ∑§Ê fl⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ¬øŸ ÿÊÇÿ flSÃÈ fl ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ¬∑§ÊÿÊ. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ’∑§⁄UË ∑§Ê ’Ê¢œÊ. •Ê¡ flŸS¬Áà Œfl Ÿ ’∑§⁄UË ∑§ ŒÍœ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. •Ê¡ ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§Ê ∑§⁄U ©U‚ ‚ ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. „U ´§Á· ªáÊÊ! •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (23) „UÊÃÊ ÿˇÊà‚Á◊œÊŸ¢ ◊„Ul‡Ê— ‚È‚Á◊h¢ fl⁄Uáÿ◊ÁÇŸÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. ªÊÿòÊË¥ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ òÿÁfl¢ ªÊ¢ flÿÊ ŒœmàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (24) „UÊÃÊ Ÿ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ŒÊŸÊ¥ Œfl ◊„UÊŸ˜ ÿ‡ÊSflË, üÊcΔU ‚Á◊œÊ ‚ ÿÈÄÃ, fl⁄Uáÿ fl •ÊÿÈœÊ⁄UË „Ò¥U. „UÊÃÊ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ •ÊÒ⁄U ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ∑§ mÊ⁄UÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „UÊÃÊ ™§¡Ê¸ ¬˝∑§Ê‡Ê •ÊÒ⁄U ©UŸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (24) „UÊÃÊ ÿˇÊûÊŸÍŸ¬ÊÃ◊ÈÁjŒ¢ ÿ¢ ª÷¸◊ÁŒÁÃŒ¸œ ‡ÊÈÁøÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. ©UÁcáÊ„¢U ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ ÁŒàÿflÊ„¢U ªÊ¢ flÿÊ ŒœmàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (25) „UÊÃÊ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ©UŸ ∑§Ê •ÁŒÁà ŒflË Ÿ ª÷¸ ◊¥ œÊ⁄UÊ. fl •ÊÿÈœÊ⁄UË „Ò¥U. „UÊÃÊ ©UÁcáÊ∑˜§ ¿¢UŒ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „UÊÃÊ ß¢Áº˝ÿ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ê „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ÁŒàÿflÊ≈˜U ªÊÒ (ÿôÊËÿ ¬˝Á∑˝§ÿÊ ‚¢øÊÁ‹Ã ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë Á∑§⁄UáÊ¥) œÊ⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝ÿÊ¡ Œfl ∑§ ‚ÊÕ fl „U◊Ê⁄UË „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄¥U. (25) „UÊÃÊ ÿˇÊŒË«Uãÿ◊ËÁ«Uâ flÎòÊ„UãÃ◊Á◊«UÊÁ÷⁄UË«UK ¦ ‚„U— ‚Ê◊Á◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. •ŸÈc≈ÈU÷¢ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ ¬ÜøÊÁfl¢ ªÊ¢ flÿÊ ŒœmàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (26) „UÊÃÊ ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl flÎòÊÊ‚È⁄UŸÊ‡Ê∑§ fl ‚ÈπŒÊÃÊ „Ò¥U. ‚Ê◊ ∑§ ‚ÊÕ •ÊŸ¢ŒŒÊÃÊ fl •ÊÿÈœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ•Ê¥ ∑§ mÊ⁄UÊ ’Ê⁄¢’Ê⁄U ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ◊¥ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ∑§ mÊ⁄UÊ „U◊ ¬¢øÊÁfl ªÊÿÊ¥ (¬¢ø÷ÍÃÊ¥ ◊¥ √ÿÊåà Á∑§⁄UáÊ¥) ‚ ©UŸ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝ÿÊ¡ Œfl ߢº˝ÊÁŒ ŒflÃÊ ∑§ ‚ÊÕ •Ê„ÈUÁà ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (26) „UÊÃÊ ÿˇÊà‚È’Á„¸U·¢ ¬Í·áflãÃ◊◊àÿ¸ ¦ ‚ËŒãâ ’Á„¸UÁ· Á¬˝ÿ◊ÎÃãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. ’΄UÃË¥ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ ÁòÊflà‚¢ ªÊ¢ flÿÊ ŒœmàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (27) „UÊÃÊ ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥. fl ¬Ê·∑§ÃÊ ‚ ÿÈÄÃ, •◊⁄U „Ò¥U, Á¬˝ÿ „Ò¥U, •◊ÎÃ⁄UÊ¡ fl •ÊÿÈœÊ⁄UË „Ò¥U. „U◊ ’΄UÃË ¿¢UŒ ◊¥ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÃËŸ ’¿U«U∏Ê¥ flÊ‹Ë ªÊÿ ‚ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝ÿÊ¡ Œfl ߢº˝ •ÊÁŒ Œfl ‚Á„Uà „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ •Ê„UÈÁà ÷¥≈U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (27) ÿ¡Èfl¸Œ - 339
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊÃÊ ÿˇÊŒ˜√ÿøSflÃË— ‚Ȭ˝ÊÿáÊÊ ˘ ´§ÃÊflÎœÊ mÊ⁄UÊ ŒflËÁ„¸U⁄UáÿÿË’˝¸rÊÔÊáÊÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. ¬æ˜UÁÄâ ¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ ÃÈÿ¸flÊ„¢U ªÊ¢ flÿÊ ŒœŒ˜√ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (28) „UÊÃÊ ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ÃÈÿ¸flÊ≈˜U, flÊ„U∑§ (SflŒ¡, •¢«U¡, ©UÁŒ˜èÊ¡ ∞fl¢ ¡⁄UÊÿÈ¡ øÊ⁄UÊ¥ ÿÊÁŸÿÊ¥), •ÊÿÈœÊ⁄UË, ’˝rÊôÊÊŸË, ‚ÈŸ„U⁄U mÊ⁄U ¡Ò‚ ÿôÊ ∑§Ë flŒË flÊ‹ fl ‚Ȫ◊ „Ò¥U. „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ¬¢ÁÄà ¿¢UŒ ‚ SÃÈÁà fl ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬˝ÿÊ¡ ∞fl¢ ߢº˝ Œfl •Ê„ÈUÁà SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ªáÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (28) „UÊÃÊ ÿˇÊà‚Ȭ‡Ê‚Ê ‚ÈÁ‡ÊÀ¬ ’΄UÃË ©U÷ ŸÄÃÊ·Ê‚Ê Ÿ Œ‡Ê¸Ã Áfl‡flÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. ÁòÊc≈ÈU÷¢ ¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ ¬cΔUflÊ„¢U ªÊ¢ flÿÊ ŒœmËÃÊ◊ÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (29) „UÊÃ Ê Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. fl •ÊÿÈœÊ⁄UË „ÒU¥ . ©U·Ê •ÊÒ⁄U ⁄UÊÁòÊ Áfl‡ÊÊ‹ „ÒU¥ . fl •ë¿U Á‡ÊÀ¬ flÊ‹Ë •ÊÒ⁄U ‚fl¸√ÿʬ∑§ „ÒU¥ . ŒÊŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢ „UÁfl SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . „U◊ ÁòÊc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ‚ ߟ ∑§Ë fl ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . „U◊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÷Ê⁄U ‚„UŸ flÊ‹Ë ¬Îc≈UflÊ„UË ªÊÒ∞¢ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò.¥ ¬˝ÿÊ¡ ∞fl¢ ߢº˝ Œfl „UÁfl SflË∑§Ê⁄U¥ ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (29) „UÊÃÊ ÿˇÊà¬˝øÃ‚Ê ŒflÊŸÊ◊ÈûÊ◊¢ ÿ‡ÊÊ „UÊÃÊ⁄UÊ ŒÒ√ÿÊ ∑§flË ‚ÿÈ¡ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. ¡ªÃË¥ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ◊Ÿ«˜UflÊ„¢U ªÊ¢ flÿÊ ŒœmËÃÊ◊ÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (30) „UÊÃÊ ß¢º˝ Œfl •ÊÒ⁄U ‚„UÿÊªË ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ÁŒ√ÿ, ÿ‡ÊSflË, ∑§Áfl fl •ÊÿÈœÊ⁄UË „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ¡ªÃË ¿¢UŒ ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥. ¬˝ÿÊ¡ ‚Á„Uà ߢº˝ Œfl „UÁfl SflË∑§Ê⁄¥U . ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (30) „UÊÃÊ ÿˇÊଇÊSflÃËÁSÃdÊ ŒflËÁ„¸U⁄UáÿÿË÷ʸ⁄UÃ˒θ„UÃË◊¸„UË— ¬ÁÃÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. Áfl⁄UÊ¡¢ ¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ œŸÈ¢ ªÊ¢ Ÿ flÿÊ ŒœŒ˜√ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (31) „UÊÃÊ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ¬Ê‹∑§ ߢº˝ Œfl ß«∏UÊ, ‚⁄USflÃË fl ÷Ê⁄UÃË ŒflË ∑§ ‚ÊÕ „Ò¥U. ÿ ŒÁflÿÊ¥ •ÊÿÈœÊ⁄UË, Sfláʸ◊ÿË, Áfl‡ÊÊ‹ •ÊÒ⁄U ◊Á„U◊Ê◊ÿË „Ò¥U. „U◊ Áfl⁄UÊ¡ ¿¢UŒ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà U„Ò¥U. „U◊ ŒÈœÊM§§ªÊ∞¢ ©UŸ ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄¥U . ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (31) „UÊÃÊ ÿˇÊà‚È⁄U¢ àflCÔUÊ⁄¢U ¬ÈÁCÔUflœ¸Ÿ ¦ M§¬ÊÁáÊ Á’÷˝Ã¢ ¬ÎÕ∑§˜ ¬ÈÁCÔUÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. Ám¬Œ¢ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ◊ÈˇÊÊáÊ¢ ªÊ¢ Ÿ flÿÊ ŒœmàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (32) „UÊÃÊ Ÿ àflc≈UÊ •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ŒÊŸÊ¥ Œfl ¬Ê·∑§ÃÊ ’…∏UÊŸ flÊ‹ „Ò¥U, fl M§¬œÊ⁄UË fl ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ ¬Ê‹Ÿ„UÊ⁄U „Ò¥U. „U◊ Ám¬ŒÊ ¿U¢Œ ◊¥ ⁄UøË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ 340 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ߟ ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§Ê „UÁfl ÷¥≈U ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ߟ ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (32) „UÊÃÊ ÿˇÊmŸS¬Áà ¦ ‡ÊÁ◊ÃÊ⁄ ¦ ‡ÊÃ∑˝§ÃÈ ¦ Á„U⁄Uáÿ¬áʸ◊ÈÁÄÕŸ ¦ ⁄U‡ÊŸÊ¢ Á’÷˝Ã¢ flÁ‡Ê¢ ÷ªÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. ∑§∑ȧ÷¢ ¿U㌠˘ ß„UÁãº˝ÿ¢ fl‡ÊÊ¢ fl„U⠪ʢ flÿÊ ŒœmàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (33) „UÊÃÊ Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. flŸS¬Áà Œfl ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË, ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹, ‚ÊŸ ∑§ ¬ûÊÊ¥ flÊ‹, øÊ’È∑§œÊ⁄UË, •ÊÿÈflœ¸∑§ fl ‚ÊÒ÷ÊÇÿŒÊÿË „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ Ÿ flŸS¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ∑§∑ȧ÷ ¿¢UŒ ‚ ߟ ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl¢äÿÊ ªÊÿÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. flŸS¬Áà •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl •Ê„ÈUÁà SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ߟ ∑§ Á‹∞ „UflŸ ∑§⁄¥U. (33) „UÊÃÊ ÿˇÊàSflÊ„UÊ∑ΧÃË⁄UÁÇŸ¢ ªÎ„U¬Áâ ¬ÎÕÇflL§áÊ¢ ÷·¡¢ ∑§Áfl¢ ˇÊòÊÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚◊˜. •ÁÃë¿U㌂¢ ¿U㌠˘ ßÁãº˝ÿ¢ ’΄UŒÎ·÷¢ ªÊ¢ flÿÊ ŒœŒ˜√ÿãàflÊÖÿSÿ „UÊÃÿ¸¡.. (34) „UÊÃÊ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „UÒ¥U. •ÁÇŸ ’‹flÊŸ, •ÊÿÈœÊ⁄UË, ªÎ„U¬ÁÃ, flÒl, ∑§Áfl fl SflÊ„UÊÿÈÄà „Ò¥U. „U◊ ¿¢UŒ‚ ¿¢UŒ ‚ •ÁÇŸ •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ Œfl „UÁfl SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (34) Œfl¢ ’Á„¸Ufl¸ÿÊœ‚¢ ŒflÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿØ. ªÊÿòÿÊ ¿U㌂Áãº˝ÿ¢ øˇÊÈÁ⁄Uãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (35) ߢº˝ Œfl ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥U. fl •ÊÿÈflh¸∑§ „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. „U◊ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ •ÊÒ⁄U •¬ŸË ŸòÊ ‡ÊÁÄà ‚ ©UŸ ∑§Ê äÿÊŸ œ⁄Uà „Ò¥U. fl ∞‡flÿ¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (35) ŒflËmʸ⁄UÊ flÿÊœ‚ ¦ ‡ÊÈÁøÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿŸ˜. ©UÁcáÊ„UÊ ¿U㌂Áãº˝ÿ¢ ¬˝ÊáÊÁ◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (36) „U „UÊÃÊ! •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒÁflÿÊ¥ Ÿ ©UŸ ∑§Ë •ÊÿÈ fl ¬ÁflòÊÃÊ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. „U◊ ©UÁcáÊ∑˜§ ¿¢UŒ ◊¥ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ê ¬˝ÊáÊ ŒÃ „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . „UÊÃÊ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (36) ŒflË ©U·Ê‚ÊŸÄÃÊ ŒflÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ ŒflË Œfl◊flœ¸ÃÊ◊˜. •ŸÈc≈ÈU÷Ê ¿U㌂Áãº˝ÿ¢ ’‹Á◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (37) ÿ¡Èfl¸Œ - 341
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©U·Ê ŒflË •ÊÒ⁄U ⁄UÊÁòÊ ŒflË ß¢º˝ Œfl ∑§Ë •ÊÿÈflÎÁh fl ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ ◊¥ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒÁflÿÊ¥ Ÿ ߢº˝ Œfl ◊¥ ’‹ fl •ÊÿÈ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§Ë. Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄Uà „Ò¥U. Œfl „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. „U „UÊÃÊ! •Ê¬ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (37) ŒflË ¡ÊCÔ˛UË fl‚ÈÁœÃË ŒflÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ ŒflË Œfl◊flœ¸ÃÊ◊˜. ’΄UàÿÊ ¿U㌂Áãº˝ÿ ¦ üÊÊòÊÁ◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (38) ŒflË ¡Ê‡ÊË‹Ë, œŸœÊÁ⁄UáÊË •ÊÒ⁄U ߢº˝ Œfl ∑§Ë •ÊÿÈ ’…∏UÊÃË „Ò¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË ∑§áʸ‡ÊÁÄà fl •¬ŸË •ÊÿȇÊÁÄà ߢº˝ Œfl ◊¥ ‹ªÊà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄Uà „Ò¥. fl „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ¡◊ÊŸ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (38) ŒflË ™§¡Ê¸„ÈUÃË ŒÈÉÊ ‚ÈŒÈÉÊ ¬ÿ‚ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ ŒflË Œfl◊flœ¸ÃÊ◊˜. ¬æ˜UÄàÿÊ ¿U㌂Áãº˝ÿ ¦ ‡ÊÈ∑˝§Á◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (39) ŒflË ™§¡Ê¸flÃË „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •ë¿UË Ã⁄U„U ŒÍœ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. ŒflË ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •ÊÿÈ œÊ⁄UÃË •ÊÒ⁄U ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UÃË „Ò¥U. „U◊ ¬¢ÁÄà ¿¢UŒ ◊¥ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸÊ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ©UŸ ∑§Ê ŒÃ „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË •ÊÿÈ ©UŸ ∑§ Á‹∞ œÊ⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ „UflŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (39) ŒflÊ ŒÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ ŒflÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ ŒflÊÒ Œfl◊flœ¸ÃÊ◊˜. ÁòÊc≈ÈU÷Ê ¿U㌂Áãº˝ÿ¢ ÁàflÁ·Á◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flËÃÊ¢ ÿ¡.. (40) ÁŒ√ÿ „UÊÃÊ ß¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ©UŸ ∑§ Á‹∞ •ÊÿÈ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ©UŸ ∑§Ë ’…U∏ÊÃ⁄UË ∑§Ë. „U◊ ÁòÊc≈Ȭ˜ ¿¢UŒ ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸ œÊ⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (40) ŒflËÁSÃdÁSÃdÊ ŒflËfl¸ÿÊœ‚¢ ¬ÁÃÁ◊ãº˝◊flœ¸ÿŸ˜. ¡ªàÿÊ ¿U㌂Áãº˝ÿ ¦ ‡ÊÍ·Á◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ √ÿãÃÈ ÿ¡.. (41) ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •ÊÿÈ œÊ⁄UÃË „Ò¥U. fl ¬Ê‹∑§ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UÃË „Ò¥U. „U◊ ¡ªÃË ¿¢UŒ ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË •ÊÿÈ fl •¬ŸË ߢÁº˝ÿ ‡ÊÁÄà ©UŸ ∑§Ê •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©Ÿ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (41) ŒflÊ Ÿ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚Ê ŒflÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ ŒflÊ Œfl◊flœ¸ÿØ. Áfl⁄UÊ¡Ê ¿U㌂Áãº˝ÿ ¦ M§¬Á◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (42) ÿôÊ Œfl Ÿ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ’„ÈUÁflœ ¬˝‡Ê¢‚Ê ∑§Ë. fl ©Ÿ ∑§ Á‹∞ •ÊÿÈ œÊ⁄Uà „Ò¥U. fl„U 342 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
•≈˜UΔUÊ߸‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Áfl⁄UÊ¡ ¿¢UŒ ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸÊ M§¬ fl •ÊÿÈ ©UŸ ∑§Ê •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl œŸ œÊ⁄UË „Ò¥U. fl „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (42) ŒflÊ flŸS¬ÁÃŒ¸flÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ ŒflÊ Œfl◊flœ¸ÿØ. Ám¬ŒÊ ¿U㌂Áãº˝ÿ¢ ÷ªÁ◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (43) flŸS¬Áà Œfl ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ •ÊÿÈ œÊ⁄Uà „Ò¥U. flŸS¬Áà Œfl ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Ám¬Œ ¿¢UŒ ‚ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸÊ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ fl •¬ŸË •Êÿ ©UŸ ∑§Ê ‚ÊÒ¥¬Ã „Ò¥U. fl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. fl „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (43) Œfl¢ ’Á„¸UflʸÁ⁄UÃËŸÊ¢ ŒflÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ Œfl¢ Œfl◊flœ¸ÿØ. ∑§∑ȧ÷Ê ¿U㌂Áãº˝ÿ¢ ÿ‡Ê ˘ ßãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (44) ߢº˝ Œfl ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ã „Ò¥U. ’Á„¸UŒfl ©UŸ ∑§ Á‹∞ •ÊÿÈ œÊ⁄Uà fl ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∑§∑ȧåʘ ¿¢UŒ ‚ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸÊ ÿ‡Ê ©UŸ ∑§Ê ‚ÊÒ¥¬Ã „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË •ÊÿÈ ©UŸ ∑§Ê ‚ÊÒ¥¬Ã „Ò¥U. fl œŸœÊ⁄UË „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (44) ŒflÊ •ÁÇŸ— ÁSflCÔU∑ΧgflÁ◊ãº˝¢ flÿÊœ‚¢ ŒflÊ Œfl◊flœ¸ÿØ. •ÁÃë¿UãŒ‚Ê ¿U㌂Áãº˝ÿ¢ ˇÊòÊÁ◊ãº˝ flÿÊ Œœm‚ÈflŸ fl‚ÈœÿSÿ flÃÈ ÿ¡.. (45) •ÁÇŸ ߢº˝ Œfl ∑§Ë flË⁄UÃÊ •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •ÁÃë¿¢UŒ ‚ ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË flË⁄UÃÊ fl •¬ŸË •ÊÿÈ ©UŸ ∑§Ê ‚ÊÒ¥¬Ã „Ò¥U. fl œŸœÊ⁄UË „Ò¥U. fl „U◊¥ ¡ËflŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ÿ¡◊ÊŸ ©UŸ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄¥U. (45) •ÁÇŸ◊l „UÊÃÊ⁄U◊flÎáÊËÃÊÿ¢ ÿ¡◊ÊŸ— ¬øã¬ÄÃË— ¬øã¬È⁄UÊ«Uʇʢ ’äŸÁãŸãº˝Êÿ flÿÊœ‚ ¿Uʪ◊˜. ‚ͬSÕÊ ˘ •l ŒflÊ flŸS¬ÁÃ⁄U÷flÁŒãº˝Êÿ flÿÊœ‚ ¿UʪŸ. •ÉÊûÊ¢ ◊ŒS× ¬˝ÁìøÃʪ˝÷ËŒflËflÎœà¬È⁄UÊ«Uʇʟ. àflÊ◊l ´§·.. (46) •ÁÇŸ Ÿ •Ê¡ „UÊÃÊ ∑§Ê fl⁄UáÊ Á∑§ÿÊ! ¬øŸ ÿÊÇÿ flSÃÈ •ÊÒ⁄U ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ∑§Ê ¬∑§ÊÿÊ. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ ’∑§⁄UË ∑§Ê ’Ê¢œÊ. flŸS¬Áà Œfl Ÿ ’∑§⁄UË ∑§ ŒÍœ ‚ fl ¬È⁄UÊ«UÊ‡Ê ¬∑§Ê ∑§⁄U ©UŸ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë. „U ´§Á· ªáÊÊ! •Ê¬ ÷Ë ∞‚Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (46)
ÿ¡Èfl¸Œ - 343
©ŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚Á◊hÊ •Ü¡Ÿ˜ ∑ΧŒ⁄¢U ◊ÃËŸÊ¢ ÉÊÎÃ◊ÇŸ ◊œÈ◊Áà¬ãfl◊ÊŸ—. flÊ¡Ë fl„UŸ˜ flÊÁ¡Ÿ¢ ¡ÊÃflŒÊ ŒflÊŸÊ¢ flÁˇÊ Á¬˝ÿ◊Ê ‚œSÕ◊˜.. (1) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚Á◊œÊ ∑§Ê ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄¥U. •Ê¬ ◊ÁÃ◊ÊŸ ∑§ NUŒÿ ∑§ Á¬˝ÿ ÷ÊflÊ¥ ∑§Ê ÷Ë ŒflÊ¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊß∞. •Ê¬ ◊œÈ⁄U ÉÊË ∑§Ê ‚flŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. •Ê¬ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄U ∑§ ’‹‡ÊÊ‹Ë ŒflÃÊ ∑§Ê ©U‚ ÷¥≈U ∑§ËÁ¡∞. (1) ÉÊÎßÊÜ¡ãà‚¢ ¬ÕÊ ŒflÿÊŸÊŸ˜ ¬˝¡ÊŸŸ˜ flÊÖÿåÿÃÈ ŒflÊŸ˜. •ŸÈ àflÊ ‚åà ¬˝ÁŒ‡Ê— ‚øãÃÊ ¦ SflœÊ◊S◊Ò ÿ¡◊ÊŸÊÿ œÁ„U.. (2) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬Õ ÉÊË ‚ •Á÷Á·¢Áøà fl ©Uã„¥U „UÁfl ‚ •ÊåÿÊÁÿà (¬˝‚ãŸ) ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ‚ÊÃÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ∞¢ ‚Ë¥ø ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflœÊ œÊÁ⁄U∞. (2) ߸«UK‡øÊÁ‚ flãl‡ø flÊÁ¡ãŸÊ‡ÊȇøÊÁ‚ ◊äÿ‡ø ‚åÃ. •ÁÇŸCÔU˜flÊ ŒflÒfl¸‚ÈÁ÷— ‚¡Ê·Ê— ¬˝Ëâ flÁqÔ¢U fl„UÃÈ ¡ÊÃflŒÊ—.. (3) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „Ò¥. •Ê¬ fl‚È•Ê¥ ‚ ¬˝◊ ⁄Uπà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝ËÁìÍfl¸∑§ •ÁÇŸ ∑§Ê ‹ ¡ÊŸ fl •ããÊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ fl¢ŒŸËÿ „Ò¥U. (3) SÃËáÊZ ’Á„¸U— ‚ÈCÔU⁄UË◊Ê ¡È·ÊáÊÊL§ ¬ÎÕÈ ¬˝Õ◊ÊŸ¢ ¬ÎÁÕ√ÿÊ◊˜. ŒflÁ÷ÿȸÄÃ◊ÁŒÁ× ‚¡Ê·Ê— SÿÊŸ¢ ∑ΧáflÊŸÊ ‚ÈÁflà ŒœÊÃÈ.. (4) ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ÿÈÄà •ÁŒÁà ŒflË ¬˝‚ããÊÃÊ ‚Á„Uà ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. •ÁŒÁà ŒflË ∑§Ê ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ ÁflSÃÎà „ÒU . •ÁŒÁà ŒflË ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. •ÁŒÁà ŒflË ¬ÎâflË ¬⁄U •¬ŸË Áfl‡ÊÊ‹ÃÊ ‚ »Ò§‹Ë „ÈU߸ „Ò¥U. (4) ∞ÃÊ ˘ ©U fl— ‚È÷ªÊ Áfl‡flM§¬Ê Áfl ¬ˇÊÊÁ÷— üÊÿ◊ÊáÊÊ ˘ ©UŒÊÃÒ—. ´§cflÊ— ‚ÃË— ∑§fl·— ‡ÊÈê÷◊ÊŸÊ mÊ⁄UÊ ŒflË— ‚Ȭ˝ÊÿáÊÊ ÷flãÃÈ.. (5) ŒflË ∑§ mÊ⁄U ‚ÊÒ÷ÊÇÿŒÊÃÊ, ’„ÈUà SflM§¬ fl ¬¢π ∑§ •Ê∑§Ê⁄U flÊ‹ „Ò¥U. πÊ‹Ã •ÊÒ⁄U ’¢Œ ∑§⁄Uà ‚◊ÿ fl ©UŒÊûÊ äflÁŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ´§Á·, ‚ÃË •ÊÒ⁄U ∑§ÁflÿÊ¥ mÊ⁄UÊ πÊ‹ ¡ÊŸ ¬⁄U ¡ÊŸ ◊¥ ‚È∑§⁄U „UÊ¥. (5) 344 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•ãÃ⁄UÊ Á◊òÊÊflL§áÊÊ ø⁄UãÃË ◊Èπ¢ ÿôÊÊŸÊ◊Á÷ ‚¢ÁflŒÊŸ. ©U·Ê‚Ê flÊ ¦ ‚ÈÁ„U⁄Uáÿ ‚ÈÁ‡ÊÀ¬ ´§ÃSÿ ÿÊŸÊÁfl„U ‚ÊŒÿÊÁ◊.. (6) „U ⁄UÊÁòÊ •ÊÒ⁄U ©U·Ê ŒflË! •Ê¬ Sfláʸ◊ÿË, üÊcΔU Á‡ÊÀ¬Ë fl ´§Ã ∑§Ë ÿÊÁŸ „Ò¥U. „U◊ ÿ„UÊ¢ •Ê¬ ∑§Ê SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§ ’Ëø ÷˝◊áÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ê ◊Èπ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ê ÖÿÊÁÃà (¬˝∑§ÊÁ‡ÊÃ) ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. (6) ¬˝Õ◊Ê flÊ ¦ ‚⁄UÁÕŸÊ ‚ÈfláÊʸ ŒflÊÒ ¬‡ÿãÃÊÒ ÷ÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ. •Á¬¬˝ÿ¢ øÊŒŸÊ flÊ¢ Á◊◊ÊŸÊ „UÊÃÊ⁄UÊ ÖÿÊÁ× ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ÁŒ‡ÊãÃÊ.. (7) ŒÊŸÊ¥ Œfl ¬˝Õ◊ fl¢ŒŸËÿ, ‚Ê⁄UÕË ÿÈÄà ⁄UÕ flÊ‹ •ÊÒ⁄U üÊcΔU fláʸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ÷ÈflŸÊ¥ ∑§Ê Œπà „ÈU∞ ¡Êà „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ©UŸ ∑§ Á¬˝ÿ ∑§Ê◊Ê¥ ∑§ Á‹∞ ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ •ÊÒ⁄U ¬˝ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (7) •ÊÁŒàÿҟʸ ÷Ê⁄UÃË flc≈ÈU ÿôÊ ¦ ‚⁄USflÃË ‚„U L§º˝ÒŸ¸ ˘ •ÊflËØ. ß«Uʬ„ÍUÃÊ fl‚ÈÁ÷— ‚¡Ê·Ê ÿôÊ¢ ŸÊ ŒflË⁄U◊ÎÃ·È œûÊ.. (8) •ÊÁŒàÿ ªáÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ÷Ê⁄UÃË ŒflË fl L§º˝ªáÊÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ‚⁄USflÃË ŒflË „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl‚È•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ •Ê◊¢ÁòÊà ߫∏Ê ŒflË ÿôÊ ∑§Ë ⁄ˇÊÊ ∑§⁄UŸ fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ •◊Îà œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (8) àflCÔUÊ flË⁄¢U Œfl∑§Ê◊¢ ¡¡ÊŸ àflc≈ÈU⁄Uflʸ ¡Êÿà •Ê‡ÊÈ⁄U‡fl—. àflCÔUŒ¢ Áfl‡fl¢ ÷ÈflŸ¢ ¡¡ÊŸ ’„UÊ— ∑§Ãʸ⁄UÁ◊„U ÿÁˇÊ „UÊ×.. (9) àflc≈UÊ Œfl Ÿ ŒflÊ¥ ∑§Ê øÊ„UŸ flÊ‹Ë flË⁄U ‚¢ÃÊŸ ¬ÒŒÊ ∑§Ë. àflc≈UÊ Œfl Ÿ ‡ÊËÉÊ˝ ¡ÊŸ flÊ‹ •‡fl ¬ÒŒÊ Á∑§∞. àflc≈UÊ Œfl Ÿ ‚Ê⁄UÊ Áfl‡fl ¬ÒŒÊ Á∑§ÿÊ. àflc≈UÊ Œfl ’„ÈUM§¬Ë ¡ªÃ˜ ∑§ ∑§Ãʸ „Ò¥U. „UÊÃÊ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) •‡flÊ ÉÊÎß à◊ãÿÊ ‚◊Äà ©U¬ ŒflÊ° 2 ´§Ãȇʗ ¬ÊÕ ˘ ∞ÃÈ. flŸS¬ÁÃŒ¸fl‹Ê∑¢§ ¬˝¡ÊŸãŸÁÇŸŸÊ „U√ÿÊ SflÁŒÃÊÁŸ flˇÊØ.. (10) „U flŸS¬Áà Œfl! •Ê¬ •ÁÇŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ÉÊË ‚ ÉÊÊ«∏U ∑§Ê ÷‹Ë÷Ê¢Áà ‚Ë¥Áø∞. •ããÊ◊ÿ „UÁfl ∑§Ê ŒflÊ¥ •ÊÒ⁄U ©U¬ŒflÊ¥ ∑§ ¬Ê‚ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „UÁfl ∑§Ê •ãÿ ŒflÊ¥ ∑§ ¬Ê‚ ¬„È¢UøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (10) ¬˝¡Ê¬ÃSì‚Ê flÊflΜʟ— ‚lÊ ¡ÊÃÊ ŒÁœ· ÿôÊ◊ÇŸ. SflÊ„UÊ∑Χß „UÁfl·Ê ¬È⁄UÊªÊ ÿÊÁ„U ‚ÊäÿÊ „UÁfl⁄UŒãÃÈ ŒflÊ—.. (11) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÃÈ⁄¢Uà ©Uà¬ãŸ „UÊà „UË ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊ ¡Êà „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U ‹Ã „Ò¥U. •Ê¬ •ª˝ªÊ◊Ë „Ò¥U. SflÊ„UÊ ∑§⁄U ∑§ „UÁfl ‚◊Á¬¸Ã Á∑§∞ ¡ÊŸ ¬⁄U •Ê¬ ©U‚ SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •Êª øÁ‹∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ∑§Êÿ¸ ‚ÊÁœ∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ŒflªáÊ ‡ÊËÉÊ˝ „U◊Ê⁄UË „UÁfl ∑§Ê SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (11) ÿ¡Èfl¸Œ - 345
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÿŒ∑˝§ãŒ— ¬˝Õ◊¢ ¡Êÿ◊ÊŸ ˘ ©Ulãà‚◊Ⱥ˝ÊŒÈà flÊ ¬È⁄UË·ÊØ. ‡ÿŸSÿ ¬ˇÊÊ „UÁ⁄UáÊSÿ ’Ê„ÍU ©U¬SÃÈàÿ¢ ◊Á„U ¡Êâ à •fl¸Ÿ˜.. (12) „U ◊ÉÊ Œfl! •Ê¬ ∑§Ë ªÁà ’Ê¡ ¬ˇÊË ∑§Ë ªÁà ¡Ò‚Ë „ÒU . •Ê¬ Á„U⁄UáÊ ’Ê„ÈU ∑§Ë Ã⁄U„U ø¢ø‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚fl¸¬˝Õ◊ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ©Uà¬ãŸ „UÊà „UË •Ê¬ Ÿ ∑˝¢§ŒŸ Á∑§ÿÊ. •Ê¬ ‚◊Ⱥ˝ ‚ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ©Uà¬ãŸ „UÊà „UË •Ê¬ SÃÈàÿ „UÊ ª∞. •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ‚fl¸òÊ √ÿÊåà „UÊ ªß¸. (12) ÿ◊Ÿ ŒûÊ¢ ÁòÊà ∞Ÿ◊ÊÿÈŸÁªãº˝ ˘ ∞áÊ¢ ¬˝Õ◊Ê •äÿÁÃcΔUØ. ªãœflʸ •Sÿ ⁄U‡ÊŸÊ◊ªÎèáÊÊØ ‚Í⁄UÊŒ‡fl¢ fl‚flÊ ÁŸ⁄UÃc≈U.. (13) flÊÿÈ Œfl Ÿ ÿ◊ ∑§ mÊ⁄UÊ ÁŒ∞ ª∞ ÉÊÊ«∏U ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡ÊÃÊ. ߢº˝ Œfl ‚’ ‚ ¬„U‹ ß‚ ÉÊÊ«∏U ¬⁄U ’ÒÒΔU. ª¢œfl¸ Ÿ ß‚ ∑§Ë ‹ªÊ◊ ª˝„UáÊ ∑§Ë. fl‚ȪáÊÊ¥ Ÿ ß‚ ‚Íÿ¸◊¢«U‹ ‚ ÁŸ∑§Ê‹Ê. (13) •Á‚ ÿ◊Ê •SÿÊÁŒàÿÊ •fl¸ãŸÁ‚ ÁòÊÃÊ ªÈsÔŸ fl˝ÃŸ. •Á‚ ‚Ê◊Ÿ ‚◊ÿÊ Áfl¬ÎÄà ˘ •Ê„ÈUSà òÊËÁáÊ ÁŒÁfl ’㜟ÊÁŸ.. (14) „U ◊ÉÊ Œfl! ªÈåà fl˝Ã ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ •Ê¬ ÿ◊ „ÒU¥ . ªÈåà fl˝Ã ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ •Ê¬ •ÊÁŒàÿ „ÒU¥ . ªÈåà fl˝Ã ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ •Ê¬ ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ◊¥ √ÿÊåà „ÒU¥ . •Ê¬ ‚Ê◊ ∑§ ‚ÊÕ ∞∑§◊∑§ „ÒU¥ . Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ •Ê¬ ∑§ ÃËŸ ’¢œŸ ’ÃÊ∞ ª∞ „ÒU¥ . (14) òÊËÁáÊ Ã ˘ •Ê„ÈUÁŒ¸Áfl ’㜟ÊÁŸ òÊËáÿå‚È òÊËáÿã× ‚◊Ⱥ˝. ©UÃfl ◊ flL§áʇ¿UãàSÿfl¸Ÿ˜ ÿòÊÊ Ã ˘ •Ê„ÈU— ¬⁄U◊¢ ¡ÁŸòÊ◊˜.. (15) „U ◊ÉÊ Œfl! Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÃËŸ ’¢œŸ ’ÃÊ∞ ª∞ „Ò¥U. ÃËŸ „UË ’¢œŸ ¡‹ ◊¥ ’ÃÊ∞ ª∞ „Ò¥U. ÃËŸ „UË ’¢œŸ ‚◊Ⱥ˝ ◊¥ ’ÃÊ∞ ª∞ „Ò¥U. ©Uß „UË ’¢œŸ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ’ÃÊ∞ ª∞ „Ò¥U. •Ê¬ ¬⁄U◊ ¡Ÿ∑§ „Ò¥U. „U◊ flL§áÊ M§¬ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (15) ß◊Ê Ã flÊÁ¡ãŸfl◊Ê¡¸ŸÊŸË◊Ê ‡Ê»§ÊŸÊ ¦ ‚ÁŸÃÈÁŸ¸œÊŸÊ. •òÊÊ Ã ÷º˝Ê ⁄U‡ÊŸÊ ˘ •¬‡ÿ◊ÎÃSÿ ÿÊ ˘ •Á÷⁄UˇÊÁãà ªÊ¬Ê—.. (16) „U ’‹flÊŸ ◊ÉÊ Œfl! •Ê¬ Á¡ŸÁ¡Ÿ ∑§Ê ‚Ë¥øà „Ò¥U, „U◊ ©UŸ©UŸ ∑§Ê Œπà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ πÈ⁄UÊ¥ ∑§§ÁŸ‡ÊÊŸ „U◊ Ÿ Œπ „Ò¥U. ÿ„UÊ¢ •Ê¬ ∑§Ë ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ⁄US‚Ë „ÒU, ¡Ê ÇflÊ‹Ê¥ fl •◊⁄UÃÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. (16) •Êà◊ÊŸ¢ à ◊Ÿ‚Ê⁄UÊŒ¡ÊŸÊ◊flÊ ÁŒflÊ ¬Ãÿãâ ¬ÃX◊˜. Á‡Ê⁄UÊ •¬‡ÿ¢ ¬ÁÕÁ÷— ‚ȪÁ÷⁄U⁄UáÊÈÁ÷¡¸„U◊ÊŸ¢ ¬ÃÁòÊ.. (17) „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ◊Ÿ ‚ ¡ÊŸÃ „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ‚ ŸËø ∑§Ë •Ê⁄U Áª⁄Uà „ÈU∞ ‚Íÿ¸ ∑§Ê ¡ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ ¡’ ¬Õ ‚ ¡Êà „Ò¥U, Ã’ •Ê¬ ∑§ Á‚⁄U ŸËø ∑§Ë •Ê⁄U •Êà „Ò¥U. „U◊ ©UŸ Á‚⁄UÊ¥ ∑§Ê ÷Ë Œπà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ȫ◊ „Ò¥U. (17) 346 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•òÊÊ Ã M§¬◊ÈûÊ◊◊¬‡ÿ¢ Á¡ªË·◊ÊáÊÁ◊· ˘ •Ê ¬Œ ªÊ—. ÿŒÊ à ◊ûÊʸ •ŸÈ ÷ʪ◊ÊŸ«UÊÁŒŒ˜ ª˝Á‚cΔU ˘ •Ê·œË⁄U¡Ëª—.. (18) „U „UÁfl M§¬Ë flÊÿÈ! „U◊ ÿ„UÊ¢ •Ê¬ ∑§ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ßë¿UÊ flÊ‹ ©UûÊ◊ M§¬ ∑§Ê Œπà „Ò¥U. •Ê¬ ªÊ ◊¢«U‹ ◊¥ ¡Êà „Ò¥U. ¡’ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÷ʪ ‹ªÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU Ã’ •Ê¬ ©U‚ •ÊÒ⁄U •Ê·œ M§¬ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (18) •ŸÈ àflÊ ⁄UÕÊ •ŸÈ ◊ÿʸ •fl¸ãŸŸÈ ªÊflÊŸÈ ÷ª— ∑§ŸËŸÊ◊˜. •ŸÈ fl˝ÊÃÊ‚SÃfl ‚Åÿ◊ËÿÈ⁄UŸÈ ŒflÊ ◊Á◊⁄U flËÿZ Ã.. (19) „U •fl¸Ÿ Œfl! „U◊Ê⁄U ⁄UÕ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊Ê⁄UË ªÊ∞¢ fl „U◊Ê⁄UË ∑§ãÿÊ•Ê¥ ∑§ ÷ÊÇÿ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊Ê⁄U fl˝Ã •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Ÿ •Ê¬ ∑§Ë Á◊òÊÃÊ ¬Ê߸. ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ •Ê¬ ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ∑§Ê fláʸŸ Á∑§ÿÊ „ÒU. (19) Á„U⁄UáÿoÎXÊÿÊ •Sÿ ¬ÊŒÊ ◊ŸÊ¡flÊ ˘ •fl⁄U ˘ ßãº˝ ˘ •Ê‚ËØ. ŒflÊ ˘ ߌSÿ „UÁfl⁄Ul◊ÊÿŸ˜ ÿÊ •fl¸ãâ ¬˝Õ◊Ê •äÿÁÃcΔUØ.. (20) „U •fl¸Ÿ! ÿ„U ÉÊÊ«∏Ê ‚ÊŸ ∑§ ‚Ë¥ªÊ¥ flÊ‹Ê „ÒU. ß‚ ∑§§¬Ò⁄U ‹Ê„U ∑§ „Ò¥U. ß‚ ∑§Ë ªÁà ◊Ÿ ¡Ò‚Ë ÃËfl˝ „ÒU. ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ß‚ „UÁfl ∑§ M§¬ ◊¥ ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ. ߢº˝ Œfl ‚’ ‚ ¬„U‹ ß‚ ÉÊÊ«∏U ¬⁄U ’ÒΔU „ÈU∞. (20) ߸◊ʸãÃÊ‚— Á‚Á‹∑§◊äÿ◊Ê‚— ‚ ¦ ‡ÊÍ⁄UáÊÊ‚Ê ÁŒ√ÿÊ‚Ê •àÿÊ—. „ U¦ ‚Ê ˘ ßfl üÊÁáʇÊÊ ÿÃãà ÿŒÊÁˇÊ·ÈÁŒ¸√ÿ◊Ö◊◊‡flÊ—.. (21) •‡fl ¬Ã‹ ◊äÿ÷ʪ (∑§◊⁄U) flÊ‹, ’‹flÊŸ, ¬Èc≈U ¡Ê¢ÉÊÊ¥ fl flˇÊSÕ‹ flÊ‹ „Ò¥U. fl ÁŒ√ÿ •ÊÒ⁄U „¢U‚Ê¥ ∑§Ë Ã⁄U„U ∞∑§ ¬Ê¢Ã ◊¥ ø‹Ã „Ò¥U. ÿ ÉÊÊ«∏U Sflª¸ ◊¥ SflÁª¸∑§ •ÊŸ¢Œ (ÁŒ√ÿÃÊ) ¬Êà „Ò¥U. (21) Ãfl ‡Ê⁄UË⁄¢U ¬ÃÁÿcáflfl¸ãÃfl ÁøûÊ¢ flÊà ˘ ßfl œ˝¡Ë◊ÊŸ˜. Ãfl oÎXÊÁáÊ ÁflÁcΔUÃÊ ¬ÈL§òÊÊ⁄Uáÿ·È ¡÷ȸ⁄UÊáÊÊ ø⁄UÁãÃ.. (22) „U •fl¸Ÿ! •Ê¬ ∑§Ê ‡Ê⁄UË⁄U ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ¡ÊŸ flÊ‹Ê „Ò. ÁøûÊ flÊÿÈ ¡Ò‚Ê ªÁÇÊË‹ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ë ¬ÃÊ∑§Ê∞¢ ¡¢ª‹Ê¥ ◊¥ ŒÊflÊŸ‹ ∑§ M§¬ ◊¥ Áflø⁄U ⁄U„UË „Ò¥U. (22) ©U¬ ¬˝ÊªÊë¿U‚Ÿ¢ flÊÖÿflʸ Œflº˝ËøÊ ◊Ÿ‚Ê ŒËäÿÊŸ—. •¡— ¬È⁄UÊ ŸËÿà ŸÊÁ÷⁄USÿÊŸÈ ¬‡øÊà∑§flÿÊ ÿÁãà ⁄U÷Ê—.. (23) „U •fl¸Ÿ! „UÁfl ªÁÇÊË‹ „ÒU. ◊Ÿ ∑§Ë Ã⁄U„U Ã¡Ë ‚ ™§¬⁄U ∑§Ë •Ê⁄U ¡ÊÃË „ÒU. ß‚ ∑§Ê œÈ•Ê¢ •Êª ∑§Ë •Ê⁄U ‹ ¡ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ŸÊÁ÷ ß‚ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. ¬Ë¿U¬Ë¿U ¬ÊΔU ∑§⁄Uà „ÈU∞ ∑§ÁflªáÊ ø‹Ã „Ò¥U. (23) ÿ¡Èfl¸Œ - 347
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©U¬ ¬˝ÊªÊà¬⁄U◊¢ ÿà‚œSÕ◊flʸ ° 2 •ë¿UÊ Á¬Ã⁄¢U ◊ÊÃ⁄¢U ø. •lÊ ŒflÊÜ¡ÈCÔUÃ◊Ê Á„U ªêÿÊ ˘ •ÕÊ ‡ÊÊSà ŒÊ‡ÊÈ· flÊÿʸÁáÊ.. (24) „U •fl¸Ÿ! •Ê¬ ™§¬⁄U ¬⁄U◊ SÕÊŸ ∑§Ë •Ê⁄U ª◊Ÿ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ ‚ Á◊Á‹∞. ÿ¡◊ÊŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ‚ ¡È«∏U ŒflªáÊ „U◊¥ •¬Ê⁄U flÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (24) ‚Á◊hÊ •l ◊ŸÈ·Ê ŒÈ⁄UÊáÊ ŒflÊ ŒflÊŸ˜ ÿ¡Á‚ ¡ÊÃflŒ—. •Ê ø fl„U Á◊òÊ◊„UÁ‡øÁ∑§àflÊãàfl¢ ŒÍ× ∑§Áfl⁄UÁ‚ ¬˝øÃÊ—.. (25) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚Á◊œÊ ÿÈÄà •ÊÒ⁄U ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. •Ê¬ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ÿôÊ ◊¥ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á◊òÊ, øßʂ¢¬ãŸ, ∑§Áfl fl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ŒÍà „Ò¥U. (25) ß͟¬Êà¬Õ ˘ ´§ÃSÿ ÿÊŸÊã◊äflÊ ‚◊Ü¡ãàSflŒÿÊ ‚ÈÁ¡uÔU. ◊ã◊ÊÁŸ œËÁ÷L§Ã ÿôÊ◊Î㜟˜ ŒflòÊÊ ø ∑ΧáÊÈsÔäfl⁄¢U Ÿ—.. (26) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ß ∑§ ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ´§Ã ∑§Ê •ë¿UË Á¡uÊ ‚ ‚Ë¥øà „Ò¥U. •Ê¬ ’ÈÁh •ÊÒ⁄U ◊ŸŸ ‚ ÿôÊ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (26) Ÿ⁄UÊ‡Ê ¦ ‚Sÿ ◊Á„U◊ÊŸ◊·Ê◊Ȭ SÃÊ·Ê◊ ÿ¡ÃSÿ ÿôÊÒ—. ÿ ‚È∑˝§Ãfl— ‡ÊÈøÿÊ ÁœÿãœÊ— SflŒÁãà ŒflÊ ˘ ©U÷ÿÊÁŸ „U√ÿÊ.. (27) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝‡Ê¢Á‚à „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ªÊà „Ò¥U. •Ê¬ üÊcΔU ÿôÊ ∑§◊¸ flÊ‹, ¬ÁflòÊ, ’ÈÁh◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ ŒÊŸÊ¥ „UÁflÿÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ªÈáʪʟ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (27) •Ê¡ÈuÔUÊŸ ˘ ߸«U˜ÿÊ flãl‡øÊ ÿÊsÔÇŸ fl‚ÈÁ÷— ‚¡Ê·Ê—. àfl¢ ŒflÊŸÊ◊Á‚ ÿuÔU „UÊÃÊ ‚ ∞ŸÊãÿˇÊËÁ·ÃÊ ÿ¡ËÿÊŸ˜.. (28) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ’È‹ÊŸ flÊ‹, ¬˝ÊÕ¸ŸËÿ, fl¢ŒŸËÿ fl fl‚È•Ê¥ ¡Ò‚ SŸ„U‡ÊË‹ „Ò¥U. •Ê¬ •Êß∞. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ „UÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (28) ¬˝ÊøËŸ¢ ’Á„¸U— ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ¬ÎÁÕ√ÿÊ flSÃÊ⁄USÿÊ flÎÖÿà •ª˝ •qÔUÊ◊˜. √ÿÈ ¬˝Õà ÁflÃ⁄¢U fl⁄UËÿÊ ŒflèÿÊ •ÁŒÃÿ SÿÊŸ◊˜.. (29) ÿ ∑ȧ‡ÊÊ∞¢ ¬˝ÊøËŸ „Ò¥U. ¬ÎâflË ∑§Ë ¬˝ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ »Ò§‹Ë „ÈU߸ „Ò¥U. •ÁŒÁà ŒflÃÊ ∑§ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „UÊŸ ∑§ Á‹∞ ߟ ∑ȧ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê »Ò§‹ÊÿÊ (Á’¿UÊÿÊ) ¡ÊÃÊ „ÒU. ∑ȧ‡ÊÊ∞¢ Á’¿UÊ ∑§⁄U ‚Èπ ‚ ’ÒΔUÊ ¡Ê ‚∑§ÃÊ „Ò. (29) 348 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
√ÿøSflÃËL§Áfl¸ÿÊ Áfl üÊÿãÃÊ¢ ¬ÁÃèÿÊ Ÿ ¡Ÿÿ— ‡ÊÈê÷◊ÊŸÊ—. ŒflËmʸ⁄UÊ ’΄UÃËÁfl¸‡flÁ◊ãflÊ ŒflèÿÊ ÷flà ‚Ȭ˝ÊÿáÊÊ—.. (30) ¡Ò‚ ÁSòÊÿÊ¢ o΢ªÊ⁄U ∑§⁄U ∑§ ¬Áà ∑§Ê Õ∑§ÊŸ ⁄UÁ„Uà ∑§⁄UÃË „Ò¥U, flÒ‚ „UË ÁŒ√ÿ mÊ⁄U flÊ‹Ë Áfl‡ÊÊ‹ ŒÁflÿÊ¢ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ‚Ȫ◊ÃÊ ‚ ¬˝ÿÊ‚ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „UÊ¥. (30) •Ê ‚ÈcflÿãÃË ÿ¡Ã ©U¬Ê ∑§ ©U·Ê‚ÊŸÄÃÊ ‚ŒÃÊ¢ ÁŸ ÿÊŸÊÒ. ÁŒ√ÿ ÿÊ·áÊ ’΄UÃË ‚ÈL§Ä◊ •Áœ ÁüÊÿ ¦ ‡ÊÈ∑˝§Á¬‡Ê¢ ŒœÊŸ.. (31) ÿôÊ ◊¥ ©U·Ê •ÊÒ⁄U ⁄UÊÁòÊ ŒflË ÷‹Ë÷Ê¢Áà ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ŒÊŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¥ ÁŒ√ÿ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, Áfl‡ÊÊ‹, •Ê÷Í·áÊÊ¥ ‚ ÿÈÄà fl ∑§Á¬‡Ê ⁄¢Uª ∑§Ë „Ò¥U, fl ÷‹Ë÷Ê¢Áà •ÁœÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (31) ŒÒ√ÿÊ „UÊÃÊ⁄UÊ ¬˝Õ◊Ê ‚ÈflÊøÊ Á◊◊ÊŸÊ ÿôÊ¢ ◊ŸÈ·Ê ÿ¡äÿÒ. ¬˝øÊŒÿãÃÊ ÁflŒÕ·È ∑§ÊM§ ¬˝ÊøËŸ¢ ÖÿÊÁ× ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ÁŒ‡ÊãÃÊ.. (32) Áfl⁄UÊ≈˜U ÿôÊ ∑§ ŒÊ ÁŒ√ÿ „UÊÃÊ „Ò¥U. fl üÊcΔU flÊáÊË ’Ê‹Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. fl ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ‚ ÁŸ∑§‹Ÿ flÊ‹ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ÿôÊ •ÊÁŒ üÊcΔU ∑§◊¸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ ŒÃ „Ò¥U. (32) •Ê ŸÊ ÿôÊ¢ ÷Ê⁄UÃË ÃÍÿ◊Áàfl«UÊ ◊ŸÈcflÁŒ„U øÃÿãÃË. ÁÃdÊ ŒflË’¸Ì„U⁄UŒ ¦ SÿÊŸ ¦ ‚⁄USflÃË Sfl¬‚— ‚ŒãÃÈ.. (33) „U◊Ê⁄U ÿôÊ ◊¥ ÷Ê⁄UÃË ŒflË, ß«∏Ê ŒflË •ÊÒ⁄U ‚⁄USflÃË ŒflË ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÃËŸÊ¥ ŒÁflÿÊ¢ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê øÃÊŸ •ÊÒ⁄U ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚UŸ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (33) ÿ ˘ ß◊ lÊflʬÎÁÕflË ¡ÁŸòÊË M§¬Ò⁄UÁ¬ ¦ ‡ÊjÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ. Ã◊l „UÊÃÁ⁄ÁU·ÃÊ ÿ¡ËÿÊŸ˜ Œfl¢ àflCÔUÊ⁄UÁ◊„U ÿÁˇÊ ÁflmÊŸ˜.. (34) „U ÿôÊ∑§Ãʸ ÁflmÊŸ˜! •Ê¡ •Ê¬ àflc≈UÊ Œfl ∑§Ë ¬Í¡Ê ∑§⁄¥U, ¡Ê Sflª¸‹Ê∑§, ¬ÎâflË‹Ê∑§ •ÊÁŒ ‚÷Ë ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ë ⁄UøŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (34) ©U¬Êfl‚Ρ à◊ãÿÊ ‚◊Ü¡Ÿ˜ ŒflÊŸÊ¢ ¬ÊÕ ˘ ´§ÃÈÕÊ „Ufl˦Á·. flŸS¬Á× ‡ÊÁ◊ÃÊ ŒflÊ •ÁÇŸ— SflŒãÃÈ „U√ÿ¢ ◊œÈŸÊ ÉÊÎß.. (35) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬ÊÕÿ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ◊œÈ⁄U ÉÊË ‚ ‚Ë¥Áø∞. flŸS¬Áà Œfl, ‡ÊÁ◊ÃÊ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ߟ „UÁflÿÊ¥ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (35) ‚lÊ ¡ÊÃÊ √ÿÁ◊◊Ëà ÿôÊ◊ÁÇŸŒ¸flÊŸÊ◊÷flØ ¬È⁄Uʪʗ. •Sÿ „UÊÃÈ— ¬˝ÁŒ‡ÿÎÃSÿ flÊÁø SflÊ„UÊ∑Χà ¦ „UÁfl⁄UŒãÃÈ ŒflÊ—.. (36) ÿ¡Èfl¸Œ - 349
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ©Uà¬ãŸ „UÊà „UË ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ŸÃÎàfl ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ÖÿÊÁà SflM§¬ ÁSÕà „Ò¥U. ŒflªáÊ •Ê¬ ∑§ ◊Èπ ◊¥ SflÊ„UÊ∑§Ê⁄U M§¬ ‚ ‚◊̬à •Ê„ÈUÁà ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (36) ∑§ÃÈ¢ ∑ΧáflãŸ∑§Ãfl ¬‡ÊÊ ◊ÿʸ ˘ •¬‡Ê‚. ‚◊È·Áj⁄U¡ÊÿÕÊ—.. (37) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ôÊÊŸË ∑§Ê ôÊÊŸË ’ŸÊà „Ò¥U. •Ê¬ •¬M§¬ ∑§Ê ‚È¢Œ⁄U M§¬ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©U·Ê ŒflË ∑§ ‚ÊÕ ©Uà¬ãŸ „UÊà „Ò¥U. (37) ¡Ë◊ÍÃSÿfl ÷flÁà ¬˝ÃË∑¢§ ÿm◊˸ ÿÊÁà ‚◊ŒÊ◊ȬSÕ. •ŸÊÁflhÿÊ ÃãflÊ ¡ÿ àfl ¦ ‚ àflÊ fl◊¸áÊÊ ◊Á„U◊Ê Á¬¬Ãȸ.. (38) ÿÈh ∑§ Á‹∞ ¡Êà „ÈU∞ ∑§fløœÊ⁄UË ’ÊŒ‹ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ‡ÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. flË⁄U ÉÊÊÿ‹ „ÈU∞ Á’ŸÊ ¡ËÃ¥. fl„U •Ê¬ ∑§Ë ∑§flø ∑§Ë ◊Á„U◊Ê •Ê¬ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (38) œãflŸÊ ªÊ œãflŸÊÁ¡¢ ¡ÿ◊ œãflŸÊ ÃËfl˝Ê— ‚◊ŒÊ ¡ÿ◊. œŸÈ— ‡ÊòÊÊ⁄U¬∑§Ê◊¢ ∑ΧáÊÊÁà œãflŸÊ ‚flʸ— ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ¡ÿ◊.. (39) œŸÈ· ‚ „U◊ ªÊÿÊ¥ ∑§Ê ¡ËÃ¥. œŸÈ· ‚ „U◊ ‚ŒÊ ÿÈh fl ◊ʪ¸ ¡ËÃ¥. œŸÈ· ‡ÊòÊÈ ∑§Ê ’È⁄UÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê „UÊ. œŸÈ· ‚ „U◊ ‚Ê⁄UË ¬˝ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ¡ËÃ¥. (39) flˇÿãÃËflŒÊ ªŸËªÁãà ∑§áÊZ Á¬˝ÿ ¦ ‚πÊÿ¢ ¬Á⁄U·Sfl¡ÊŸÊ. ÿÊ·fl Á‡Êæ˜UÄà ÁflÃÃÊÁœ œãflÜÖÿÊ ßÿ ¦ ‚◊Ÿ ¬Ê⁄UÿãÃË.. (40) œŸÈ· ∑§Ë ¬˝àÿ¢øÊ ∑§Ê ÿÊhÊ ∑§ÊŸ Ã∑§ πË¥øÃÊ „Ò. ©U‚ ‚◊ÿ ∞‚Ê ‹ªÃÊ „ÒU, ¡Ò‚ ÿÊhÊ ©U‚ ∑§Ê Á◊òÊ „ÒU. fl„U ©U‚ ∑§ ∑§ÊŸ ◊¥ ∑ȧ¿U ∑§„UŸÊ øÊ„UÃË „ÒU. fl„U ¬˝àÿ¢øÊ ÿÈh ◊¥ Áfl¡ÿ ÁŒ‹ÊŸ flÊ‹Ë „ÒU. fl„U ¬˝àÿ¢øÊ œŸÈ· ¬⁄U ø…∏U ∑§⁄U •àÿ¢Ã •ÊflÊ¡ ∑§⁄UÃË „ÒU. ’ÊáÊ ©U‚ ∑§Ê Á◊òÊ „ÒU. fl„U ©U‚ ‚ Á◊‹ÃË „ÒU. (40) à •Êø⁄UãÃË ‚◊Ÿfl ÿÊ·Ê ◊ÊÃfl ¬ÈòÊ¢ Á’÷ÎÃÊ◊ȬSÕ. •¬ ‡ÊòÊÍŸ˜ ÁfläÿÃÊ ¦ ‚¢ÁflŒÊŸ •ÊàŸË¸ ß◊ Áflc»È§⁄UãÃË •Á◊òÊÊŸ˜.. (41) ¡Ò‚ ◊Ê¢ ’≈U ∑§Ê ªÊŒ ◊¥ ‹ÃË „ÒU, flÒ‚ „UË ¬˝àÿ¢øÊ ’ÊáÊ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. ÿ„U ¬˝àÿ¢øÊ ‚◊ÊŸ ◊Ÿ flÊ‹Ë SòÊË ¡Ò‚Ê •Êø⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU. ÿ„U «UÊ⁄ UË ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚¢„UÊ⁄U ∑§⁄U. ÿ„U «UÊ⁄ UË ¤ÊŸ¤ÊŸÊÃË „ÈU߸ •Á◊òÊÊ¥ ∑§Ê ÁflŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. (41) ’uÔUËŸÊ¢ Á¬ÃÊ ’„ÈU⁄USÿ ¬ÈòÊÁ‡ø‡øÊ ∑ΧáÊÊÁà ‚◊ŸÊflªàÿ. ß·ÈÁœ— ‚VÊ— ¬Îßʇø ‚flʸ— ¬ÎcΔU ÁŸŸhÊ ¡ÿÁà ¬˝‚Í×.. (42) ÿ„U Ã⁄U∑§‚ ’„ÈUÃÊ¥ ∑§Ê Á¬ÃÊ „ÒU. ’„ÈUà ‚ ß‚ ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. ß‚ ∑§ ‚¢⁄UˇÊáÊ ◊¥ ⁄U„Uà „Ò¢U. Ã⁄U∑§‚ ¬ËΔU ¬⁄U ’¢œÃÊ „ÒU. ÿ„U ‚ŸÊ ∑§ ‚÷Ë ÿÊhÊ•Ê¥ ¬⁄U Áfl¡ÿ ¬ÊÃÊ „ÒU. (42) 350 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
⁄UÕ ÁÃcΔUŸ˜ ŸÿÁà flÊÁ¡Ÿ— ¬È⁄UÊ ÿòÊ ÿòÊ ∑§Ê◊ÿà ‚È·Ê⁄UÁÕ—. •÷ˇÊÍŸÊ¢ ◊Á„U◊ÊŸ¢ ¬ŸÊÿà ◊Ÿ— ¬‡øÊŒŸÈ ÿë¿UÁãà ⁄U‡◊ÿ—.. (43) ⁄UÕ ¬⁄U ’ÒΔUÊ „ÈU•Ê •ë¿UÊ ‚Ê⁄UÕË ¡„UÊ¢¡„UÊ¢ øÊ„UÃÊ „ÒU, fl„UÊ¢fl„UÊ¢ •‡flÊ¥ ∑§Ê ‹ ¡ÊÃÊ „Ò. ‹ªÊ◊ ∑§Ë ÷Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. fl ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§ ◊Ÿ ∑§Ê •¬Ÿ ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ ⁄UπÃË „Ò¥U, ¡„UÊ¢ øÊ„UÃË „Ò¥U, fl„UË ©Uã„¥U ‹ ∑§⁄U ¡ÊÃË „Ò¥. (43) ÃËfl˝ÊŸ˜ ÉÊÊ·ÊŸ˜ ∑Χáflà flη¬ÊáÊÿʇflÊ ⁄UÕÁ÷— ‚„U flÊ¡ÿã×. •fl∑˝§Ê◊ã× ¬˝¬ŒÒ⁄UÁ◊òÊÊŸ˜ ÁˇÊáÊÁãà ‡ÊòÊÍ° 1 ⁄UŸ¬√ÿÿã×.. (44) ÉÊÊ«U∏ Ê¥ ∑§Ë ‹ªÊ◊ Á¡Ÿ ∑§ „UÊÕ ◊¥ „Ò, fl ‹Êª ÃËfl˝ ÉÊÊ· ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ÉÊÊ«U∏ ⁄UÕ ∑§ ‚ÊÕ ¡Êà „ÒU¥ . fl •¬Ÿ ¬Ò⁄UÊ¥ ‚ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ⁄UÊŒ¥Ò .¥ •‡fl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „ÒU¥ . (44) ⁄UÕflÊ„UáÊ ¦ „UÁfl⁄USÿ ŸÊ◊ ÿòÊÊÿÈœ¢ ÁŸÁ„UÃ◊Sÿ fl◊¸. ÃòÊÊ ⁄UÕ◊Ȭ ‡ÊÇ◊ ¦ ‚Œ◊ Áfl‡flÊ„UÊ flÿ ¦ ‚È◊ŸSÿ◊ÊŸÊ—.. (45) ⁄UÕ flÊ„UŸ ß‚ ∑§Ê ŸÊ◊ „ÒU, ¡„UÊ¢ •ÊÿÈœ ⁄Uπ „Ò¥U, ¡„UÊ¢ ∑§flø ⁄Uπ „Ò¥U, •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ „UÊà „ÈU∞ „◊ ‚÷Ë ß‚ ⁄UÕ ◊¥ ’ÒΔ¥U. (45) Sflʌȷ ¦ ‚Œ— Á¬Ã⁄UÊ flÿʜʗ ∑Î§ë¿˛UÁüÊ× ‡ÊÄÃËflãÃÊ ª÷Ë⁄UÊ—. ÁøòÊ‚ŸÊ ˘ ß·È’‹Ê ˘ •◊Îœ˝Ê— ‚ÃÊflË⁄UÊ ˘ ©U⁄UflÊ fl˝ÊÂʄUÊ—.. (46) „U◊Ê⁄U ⁄UÕ ‚ŒŸ ◊¥ ⁄U„UŸ flÊ‹, ¬Ê‹∑§, •ÊÿÈœÊ⁄UË, ‚¢U⁄UˇÊË, ‚„UŸ‡ÊË‹, ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ, ª¢÷Ë⁄U, •ë¿UË ‚ŸÊ ‚ ‚¢¬ãŸ fl •ÃËfl ’‹‡ÊÊ‹Ë „ÒU¥ . fl ‚¢∑§À¬‡ÊË‹ •ÊÒ⁄U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ◊È∑§Ê’‹Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹ „ÒU¥ . (46) ’˝ÊrÊÔáÊÊ‚— Á¬Ã⁄U— ‚ÊêÿÊ‚— Á‡Êfl ŸÊ lÊflʬÎÁÕflË •Ÿ„U‚Ê. ¬Í·Ê Ÿ— ¬ÊÃÈ ŒÈÁ⁄UÃÊŒÎÃÊflÎœÊ ⁄UˇÊÊ ◊ÊÁ∑§ŸÊ¸ •ÉÊ‡Ê ¦ ‚ ߸‡ÊÃ.. (47) ’˝ÊrÊáʪáÊ, Á¬Ã⁄UªáÊ, fl ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ flÊ‹ „U◊Ê⁄UËU ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË Œfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎÔâflË‹Ê∑§ „U◊¥ ¬Ê¬Ê¥ ‚ ⁄UÊ∑¥§. ¬Í·Ê Œfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U, •fl⁄Uʜʥ fl ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. ∑§Ê߸ ¬Ê¬Ë „U◊ ¬⁄U ‡ÊÊ‚Ÿ Ÿ ∑§⁄U ¬Ê∞. (47) ‚ȬáÊZ flSà ◊ÎªÊ •SÿÊ ŒãÃÊ ªÊÁ÷— ‚ãŸhÊ ¬ÃÁà ¬˝‚ÍÃÊ. ÿòÊÊ Ÿ⁄U— ‚¢ ø Áfl ø º˝flÁãà ÃòÊÊS◊èÿÁ◊·fl— ‡Ê◊¸ ÿ ¦ ‚Ÿ˜.. (48) ’ÊáÊ •ë¿UÊ ¬¢π œÊ⁄UÃÊ „ÒU. ß‚ ∑§ ŒÊ¢Ã ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê …Í¢…U∏ ‹Ã „Ò¥U. ÿ„U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U Áª⁄UÃÊ „ÒU. ¡„UÊ¢ ∑§„UË¥ ‡ÊòÊÈ ¡Êà „Ò¥U, fl„UÊ¢ ÿ„U ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U Áª⁄UÃÊ „ÒU. ’ÊáÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ •„UÊÁŸ∑§⁄U fl ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ¥. (48) ´§¡Ëà ¬Á⁄U flÎæ˜UÁÇœ ŸÊ‡◊Ê èÊflÃÈ ŸSß͗. ‚Ê◊Ê •Áœ ’˝flËÃÈ ŸÊÁŒÁ× ‡Ê◊¸ ÿë¿UÃÈ.. (49) ÿ¡Èfl¸Œ - 351
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ’ÊáÊ! •Ê¬ ‚⁄U‹ ⁄UÁ„U∞. •Ê¬ „U◊ ¬⁄U ◊à ÁªÁ⁄U∞. „U◊Ê⁄U ß ¬àÕ⁄U ∑§Ë Ã⁄U„U ‚Åà „UÊ ¡Ê∞¢. ‚Ê◊ Œfl „U◊Ê⁄UË •Ê⁄U ’Ê‹¥. •ÁŒÁà Œfl „U◊¥ ‚Èπ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . (49) •Ê ¡YÁãà ‚Êãfl·Ê¢ ¡ÉÊŸÊ° 2 ©U¬ Á¡ÉŸÃ. •‡flÊ¡ÁŸ ¬˝øÂʇflÊãà‚◊à‚È øÊŒÿ.. (50) „U •‡fl ¬˝⁄U∑§! øÊ’È∑§ •Ê¬ ÉÊÊ«∏UÊ¥§∑§Ê •Êª ’…∏UŸ ∑§Ë ¬˝⁄UáÊÊ Œ¥. øà „ÈU∞ ◊Ÿ flÊ‹ ÉÊÈ«∏U‚flÊ⁄U ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§ ©U÷⁄U •¢ª ¬⁄U øÊ≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§ ¬È≈˜UΔUÊ¥ ¬⁄U øÊ’È∑§ ø‹Êà „Ò¥U. øÊ’È∑§ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „UÊ¥. (50) •Á„UÁ⁄Ufl ÷ʪҗ ¬ÿ¸Áà ’Ê„È¢U ÖÿÊÿÊ „UÁâ ¬Á⁄U’Êœ◊ÊŸ—. „USÃÉŸÊ Áfl‡flÊ flÿÈŸÊÁŸ ÁflmÊŸ˜ ¬È◊ÊŸ˜ ¬È◊Ê ¦ ‚¢ ¬Á⁄U ¬ÊÃÈ Áfl‡fl×.. (51) ‚Ê¢¬ ∑§Ë Ã⁄U„U ’Ê„ÈU ‚ Á‹¬≈UÃÊ „ÒU . ¬˝àÿ¢øÊ ∑§ ¬˝„UÊ⁄U ∑§Ê „U≈UÊÃÊ „ÒU. ÁflmÊŸ˜ flË⁄U ¬ÈL§· ‚’ ∑§Ë ‚’ •Ê⁄U ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. flË⁄U ‚÷Ë ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ◊Ê⁄U ∑§⁄U ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. (51) flŸS¬Ã flË«˜UflXÊ Á„U ÷ÍÿÊ ˘ •S◊à‚πÊ ¬˝Ã⁄UáÊ— ‚ÈflË⁄U—. ªÊÁ÷— ‚ãŸhÊ •Á‚ flË«UÿSflÊSÕÊÃÊ Ã ¡ÿÃÈ ¡àflÊÁŸ.. (52) ⁄UÕ flŸS¬Áà (‹∑§«∏UË) ‚ ’ŸÊ „ÈU•Ê „ÒU. ⁄UÕ „U◊Ê⁄UÊ Á◊òÊ „UÊ. ‚ÈflË⁄U ß‚ ∑§ mÊ⁄UÊ ÿÈh ◊¥ ¬Ê⁄U ¬Ê∞. „U◊ ªÊÿÊ¥ ‚ ¡È«∏U ⁄U„¥U. „U◊ flË⁄UÃʬÍfl¸∑§ ÁSÕà ⁄U„¥U. flË⁄U ‚÷Ë ∑§Ê ¡Ëà ‚∑¥§. (52) ÁŒfl— ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ¬ÿʸ¡ ©UjÎâ flŸS¬ÁÃèÿ— ¬ÿʸ÷Îà ¦ ‚„U—. •¬Ê◊ÊÖ◊ÊŸ¢ ¬Á⁄U ªÊÁ÷⁄UÊflÎÃÁ◊ãº˝Sÿ flÖÊ˝ ¦ „UÁfl·Ê ⁄UÕ¢ ÿ¡.. (53) „U ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ! •Ê¬ Sflª¸ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË ∑§ á ∑§Ê ‚fl¸òÊ »Ò§‹Êß∞. flŸS¬Áà ‚ ©Uª ¬˝Êåà „ÈU∞ á ∑§Ê ‚fl¸òÊ »Ò§‹Êß∞. ¡‹ ∑§ ‚ÊÕ ¬˝Êåà „ÈU∞ á ∑§Ê ‚fl¸òÊ »Ò§‹Êß∞. ߢº˝ ∑§ flÖÊ˝ ∑§Ë Ã⁄U„U „U◊ ⁄UÕ ∑§Ê ÿôÊËÿ ∑§Êÿ¸ ◊¥ ‹ªÊ∞¢. ⁄UÕ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§ ‚◊ÊŸ ø◊∑§ÃÊ „ÒU. (53) ßãº˝Sÿ flÖÊ˝Ê ◊L§ÃÊ◊ŸË∑¢§ Á◊òÊSÿ ª÷ʸ flL§áÊSÿ ŸÊÁèÊ—. ‚◊Ê¢ ŸÊ „U√ÿŒÊÁâ ¡È·ÊáÊÊ Œfl ⁄UÕ ¬˝Áà „U√ÿÊ ªÎ÷Êÿ.. (54) „U ⁄UÕ! •Ê¬ ÁŒ√ÿ, ߢº˝ ∑§ flÖÊ˝ ¡Ò‚ fl ◊L§ÃÊ¥ ∑§Ë ‚Òãÿ‡ÊÁÄà ∑§Ë ÷Ê¢Áà ŒÎ…∏U „Ò¥U. •Ê¬ Á◊òÊ Œfl ∑§ ª÷¸ fl flL§áÊ Œfl ∑§Ë ŸÊÁ÷ „Ò¥U. ⁄UÕ ◊¥ ’ÒΔU ŒflÃÊ „U◊Ê⁄U mÊ⁄UÊ ÷¥≈U Á∑§∞ ª∞ „UÁfl ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄U ∑§ ÃÎåà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (54) ©U¬ ‡flÊ‚ÿ ¬ÎÁÕflË◊Èà lÊ¢ ¬ÈL§òÊÊ Ã ◊ŸÈÃÊ¢ ÁflÁcΔUâ ¡ªÃ˜. ‚ ŒÈãŒÈ÷ ‚¡ÍÁ⁄Uãº˝áÊ ŒflҌ͸⁄UÊgflËÿÊ •¬ ‚œ ‡ÊòÊÍŸ˜.. (55) 352 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@22
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ŒÈ¢ŒÈÁ÷! •Ê¬ ¬ÎâflË fl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ª¢È¡Êß∞. •Ê¬ ∑§Ê ¬Í⁄UÊ ¡ªÃ˜ ¡ÊŸ fl ◊ÊŸ ‚∑§. •Ê¬ ŒflÊ¥ fl ߢº˝ Œfl ‚ ¬˝◊ ⁄Uπà „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ⁄UπŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (55) •Ê ∑˝§ãŒÿ ’‹◊Ê¡Ê Ÿ ˘ •ÊœÊ ÁŸCÔUÁŸÁ„U ŒÈÁ⁄UÃÊ ’Êœ◊ÊŸ—. •¬ ¬˝ÊÕ ŒÈãŒÈ÷ ŒÈë¿ÈUŸÊ ˘ ßà ˘ ßãº˝Sÿ ◊ÈÁCÔU⁄UÁ‚ flË«UÿSfl.. (56) „U ŒÈ¢ŒÈÁ÷! •Ê¬ ∑§Ë •ÊflÊ¡ ‚ÈŸ ∑§⁄U „UË ‡ÊòÊÈ ∑˝¢§ŒŸ ∑§⁄UŸ ‹ª. •Ê¬ „U◊¥ áSflË ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ¬Ê¬Ê¥ ‚ ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ◊È≈˜UΔUË ¡Ò‚ ◊¡’Íà „UÊß∞. „U◊Ê⁄UË ‚ŸÊ ∑§ ¬Ê‚ ¡Ê ‡ÊòÊÈ •Ê∞. •Ê¬ ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ©UŸ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. (56) •Ê◊Í⁄U¡ ¬˝àÿÊfløÿ◊Ê— ∑§ÃÈ◊gÈãŒÈÁ÷flʸflŒËÁÃ. ‚◊‡fl¬áÊʸ‡ø⁄UÁãà ŸÊ Ÿ⁄UÊS◊Ê∑§Á◊ãº˝ ⁄UÁÕŸÊ ¡ÿãÃÈ.. (57) „U ߢº˝ Œfl! „U◊Ê⁄U ⁄UÕÊ¥ ∑§Ë Áfl¡ÿ ¬ÃÊ∑§Ê »§„U⁄UÊß∞. „U◊ ŒÈ¢ŒÈÁ÷ ’¡Êà „ÈU∞ ‹ÊÒ≈¥U. „U◊Ê⁄U ‚◊Á¬¸Ã ÿÊhÊ ÉÊÊ«∏U ÉÊÍ◊à „Ò¥U. „U◊Ê⁄U ⁄UÕË ¡ËÃ¥, „U◊Ê⁄U ‹Êª ¡ËÃ¥. (57) •ÊÇŸÿ— ∑Χcáʪ˝Ëfl— ‚Ê⁄USflÃË ◊·Ë ’÷˝È— ‚ÊÒêÿ— ¬ÊÒcáÊ— ‡ÿÊ◊— Á‡ÊÁìÎcΔUÊ ’Ê„¸US¬àÿ— Á‡ÊÀ¬Ê flÒ‡flŒfl ˘ ∞ãº˝ÊL§áÊÊ ◊ÊL§Ã— ∑§À◊Ê· ˘ ∞ãº˝ÊÇŸ— ‚ ¦ Á„UÃÊœÊ⁄UÊ◊— ‚ÊÁflòÊÊ flÊL§áÊ— ∑ΧcáÊ ˘ ∞∑§Á‡ÊÁìÊà¬àfl—.. (58) ∑§Ê‹Ë ª⁄UŒŸ flÊ‹Ê ¬‡ÊÈ •ÁÇŸ, ◊·Ë ‚⁄USflÃË ŒflË, ÷Í⁄U ⁄¢Uª ∑§Ê ¬‡ÊÈ ‚Ê◊ ‚, ‡ÿÊ◊ ⁄¢ª ∑§Ê ¬Í·Ê Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ∑§Ê‹Ë ¬ËΔU flÊ‹Ê ¬‡ÊÈ ’΄US¬Áà Œfl fl Á‡ÊÀ¬ ’„ÈUà ‚ ŒflÊ¥ ‚ ‹Ê‹ ⁄¢Uª ∑§Ê ¬‡ÊÈ ß¢º˝ Œfl fl ÁøÃ∑§’⁄U ¬‡ÊÈ ◊L§Œ˜ Œfl, ’‹flÊŸ ¬‡ÊÈ ß¢º˝ •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ, ŸËø ‚»§Œ ⁄¢Uª flÊ‹ ‚Íÿ¸ Œfl fl ∞∑§ ¬Ò⁄U ‚»§Œ •ÊÒ⁄U ‡Ê· ∑§Ê‹ •¢ªÊ¥ flÊ‹ flª‡ÊË‹ ¬‡ÊÈ flL§áÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (58) •ÇŸÿŸË∑§flà ⁄UÊÁ„UÃÊÁÜ¡⁄UŸ«˜UflÊŸœÊ⁄UÊ◊ÊÒ ‚ÊÁflòÊÊÒ ¬ÊÒcáÊÊÒ ⁄U¡ÃŸÊ÷Ë flÒ‡flŒflÊÒ Á¬‡ÊXÊÒ Ãͬ⁄UÊÒ ◊ÊL§Ã— ∑§À◊Ê· ˘ •ÊÇŸÿ— ∑ΧcáÊÊ¡— ‚Ê⁄USflÃË ◊·Ë flÊL§áÊ— ¬àfl—.. (59) ‹Ê‹ Áø±Ÿ flÊ‹Ê flη÷ ÖflÊ‹Ê flÊ‹ •ÁÇŸ, ŸËø SÕÊŸ ‚ ‚»§Œ ⁄¢Uª flÊ‹ ŒÊ ¬‡ÊÈ ‚ÁflÃÊ Œfl, øÊ¢ŒË ¡Ò‚ ⁄¢Uª ∑§Ë ŸÊÁ÷ flÊ‹ ŒÊ ¬‡ÊÈ ¬Í·Ê Œfl, ™§¬⁄U ¬Ë‹ ⁄¢Uª ∑§ ‚Ë¥ª flÊ‹ ŒÊ ¬‡ÊÈ Áfl‡fl ‚ fl ÁøÃ∑§’⁄UÊ ¬‡ÊÈ ◊L§Ã˜ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ∑§Ê‹Ê •¡ •ÁÇŸ, ◊·Ë ‚⁄USflÃË fl ¬ÃŸ‡ÊË‹ ¬‡ÊÈ flL§áÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „Ò¥U. (59) •ÇŸÿ ªÊÿòÊÊÿ ÁòÊflÎà ⁄UÊÕãÃ⁄UÊÿÊCÔU∑§¬Ê‹ ˘ ßãº˝Êÿ òÊÒc≈ÈU÷Êÿ ¬ÜøŒ‡ÊÊÿ ’Ê„¸UÃÊÿÒ∑§ÊŒ‡Ê∑§¬Ê‹Ê Áfl‡flèÿÊ ŒflèÿÊ ¡ÊªÃèÿ— ‚åÃŒ‡ÊèÿÊ flÒM§¬èÿÊ mÊŒ‡Ê∑§¬Ê‹Ê Á◊òÊÊflL§áÊÊèÿÊ◊ÊŸÈc≈ÈU÷ÊèÿÊ◊∑§Áfl ¦ ‡ÊÊèÿÊ¢ flÒ⁄UÊ¡ÊèÿÊ¢¬ÿSÿÊ ’΄US¬Ãÿ ¬Êæ˜UÄÃÊÿ ÁòÊáÊflÊÿ ‡ÊÊÄfl⁄UÊÿ øL§— ‚ÁflòÊ ˘ •ÊÒÁcáÊ„UÊÿ òÊÿÁSòÊ ¦ ‡ÊÊÿ ⁄ÒUflÃÊÿ mÊŒ‡Ê∑§¬Ê‹— ¬˝Ê¡Ê¬àÿ‡øL§⁄UÁŒàÿÒ ÁflcáÊȬàŸÿÒ øL§⁄UÇŸÿ flÒ‡flÊŸ⁄UÊÿ ÿ¡Èfl¸Œ - 353
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
mÊŒ‡Ê∑§¬Ê‹ÊŸÈ◊àÿÊ ˘ •CÔUÊ∑§¬Ê‹—.. (60) ªÊÿòÊË ¿¢UŒ •ÁÇŸ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ÁòÊflÎà •ÊÒ⁄U ⁄UÕÊ¢Ã⁄U ‚Ê◊ ‚ SÃÈà „ÒU. •c≈UÊ∑§¬Ê‹, ¬¢øŒ‡Ê, ’΄Uà‚Ê◊ flÊ‹Ë SÃÈÁà fl ÇÿÊ⁄U„U ∑§¬Ê‹Ê¥ flÊ‹Ë „UÁfl ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ „ÒU. ¡ªÃË ¿¢UŒ •ÊÒ⁄U ‚òÊ„U SÃÊòÊ Áfl‡flÊ¥ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU¢. flÒM§¬ ‚Ê◊ flÊ‹Ë SÃÈÁÃ, ’Ê⁄U„U ∑§¬Ê‹Ê¥ ◊¥ ‚È‚¢S∑Χà ∑§⁄U ∑§ ⁄UπË „ÈU߸ „UÁfl, •ŸÈc≈ÈU¬˜ ¿¢UŒ flÊ‹Ë SÃÈÁà Á◊òÊÊflL§áÊ fl ßÄ∑§Ë‚ SÃÊòÊ flÊ‹Ë SÃÈÁà Á◊òÊÊflL§áÊ ∑§ Á‹∞ „ÒU. flÒM§¬ ‚Ê◊ ‚ Á◊òÊÊflL§áÊ Œfl SÃÈà „ÒU. ¬¥ÁÄÿ¢UŒ ’΄US¬Áà Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ’΄US¬Áà Œfl ÁòÊáÊfl ‚ SÃÈà „Ò¥U. ’΄US¬Áà ‡ÊÊÄfl⁄U ‚Ê◊ ‚ SÃÈà „ÒU. øL§ ’΄US¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ „ÒU. ©ÁcáÊ∑˜§ ¿¢UŒ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ‚ÁflÃÊ Œfl ¬˝ÊÿÁ‡øûÊ fl ⁄ÒUflà ‚Ê◊ ‚ SÃÈà „ÒU. ’Ê⁄U„U ∑§¬Ê‹Ê¥ ‚ ¬Á⁄Uc∑Χà „UÁfl ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ ⁄UπË „ÒU. øL§ ¬˝¡Ê¬Áà ‚ ‚¢’¢ÁœÃ „ÒU. ÁflcáÊÈ ∑§Ë ¬àŸË •ÊÒ⁄U •ÁŒÁà Œfl ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ‚ ‚¢’¢ÁœÃ ¬ŒÊÕ¸ ‚êÊÁ¬¸Ã „ÒU. flÒ‡flÊŸ⁄U Œfl ∑§ Á‹∞ ’Ê⁄U„U ∑§¬Ê‹Ê¥ ◊¥ ¬Á⁄Uc∑Χà „UÁfl „ÒU. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ ’Ê⁄U„U ∑§¬Ê‹Ê¥ ◊¥ ¬Á⁄Uc∑Χà •ÊÒ⁄U •ŸÈ◊Áà Œfl ∑§ Á‹∞ •ÊΔU ∑§¬Ê‹Ê¥ ◊¥ ¬Á⁄Uc∑Χà „UÁfl „ÒU. (60)
354 - ÿ¡Èfl¸Œ
ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ Œfl ‚Áfl× ¬˝ ‚Èfl ÿôÊ¢ ¬˝ ‚Èfl ÿôʬÁâ ÷ªÊÿ. ÁŒ√ÿÊ ªãœfl¸— ∑§Ã¬Í— ∑§Ã¢ Ÿ— ¬ÈŸÊÃÈ flÊøS¬ÁÃflʸø¢ Ÿ— SflŒÃÈ.. (1) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ¬˝◊Èπ ©Uà¬ÊŒ∑§ fl ÿôÊ ∑§ ¡Ÿ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôʬÁà ∑§Ê ÷ÊÇÿ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁŒ√ÿ ª¢œfl¸ •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊ ÁfløÊ⁄UÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ÁfløÊ⁄ flÊUáÊË ∑§Ê ÷Ë ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ flÊáÊË ¬Áà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë ◊œÈ⁄U fløŸ ŒËÁ¡∞. (1) Ãà‚ÁflÃÈfl¸⁄‘Uáÿ¢ ÷ªÊ¸ ŒflSÿ œË◊Á„U. ÁœÿÊ ÿÊ Ÿ— ¬˝øÊŒÿÊØ.. (2) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ fl⁄Uáÿ •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ œÊ⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê ÷Ë ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (2) Áfl‡flÊÁŸ Œfl ‚ÁflÌȸÁ⁄UÃÊÁŸ ¬⁄UÊ ‚Èfl. ÿjº˝¢ Ã㟠˘ •Ê ‚Èfl.. (3) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ‚’ ŒflÊ¥ ∑§ Œfl „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ∑§Á◊ÿÊ¥ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¡Ê ÷Ë „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÷º˝ „ÒU , ©U‚ ‹ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (3) Áfl÷ÄÃÊ⁄ ¦ „UflÊ◊„U fl‚ÊÁ‡øòÊSÿ ⁄UÊœ‚—. ‚ÁflÃÊ⁄¢U ŸÎøˇÊ‚◊˜.. (4) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚¢⁄UˇÊ∑§, œŸflÊŸ, ¬˝⁄U∑§ fl ‚÷Ë ∑§Ê ‚¢¬ÁûÊ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. (4) ’˝rÊÔáÊ ’˝ÊrÊÔáÊ¢ ˇÊòÊÊÿ ⁄UÊ¡ãÿ¢ ◊L§jKÊ flÒ‡ÿ¢ ì‚ ‡Êͺ˝¢ Ã◊‚ ÃS∑§⁄¢U ŸÊ⁄U∑§Êÿ flË⁄U„UáÊ¢ ¬Êå◊Ÿ Ä‹Ë’ ◊Ê∑˝§ÿÊÿÊ ˘ •ÿʪ͢ ∑§Ê◊Êÿ ¬È°‡ø‹Í◊ÁÃ∑˝È§CÔUÊÿ ◊ʪœ◊˜.. (5) ’˝ÊrÊáÊ ∑§ Á‹∞ ’˝rÊôÊÊŸ, ˇÊÁòÊÿ ∑§ Á‹∞ ⁄UˇÊáÊ, flÒ‡ÿ ∑§ Á‹∞ ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ, ‡Êͺ˝ ∑§ Á‹∞ ‚flÊ ∑§Ã¸√ÿ fl ©U¬ÿÈÄà „Ò¥U. øÊ⁄U ∑§ Á‹∞ •¢œ∑§Ê⁄U, Ÿ⁄U∑§ ∑§ Á‹∞ flË⁄UÉÊÊÃ∑§, Ÿ¬È¢‚∑§ ∑§ Á‹∞ ¬Ê¬, π⁄UËŒ ∑§ Á‹∞ ¬ÈL§·ÊÕ˸, ∑§Ê◊ ∑§ Á‹∞ √ÿÁ÷øÊ⁄UË •ë¿UË ’Ê‹Ÿ ∑§Ë ‡ÊÁÄà ∑§ Á‹∞ ¬˝◊ÊáÊ ŒŸ flÊ‹Ê ©U¬ÿÈÄà „UÊÃÊ „Ò. (5) ŸÎûÊÊÿ ‚Íâ ªËÃÊÿ ‡ÊÒ‹Í·¢ œ◊ʸÿ ‚÷Êø⁄¢U ŸÁ⁄UcΔUÊÿÒ ÷Ë◊‹¢ Ÿ◊ʸÿ ⁄U÷ ¦ „U‚Êÿ ∑§ÊÁ⁄U◊ÊŸãŒÊÿ SòÊË·π¢ ¬˝◊Œ ∑ȧ◊Ê⁄UˬÈòÊ¢ ◊œÊÿÒ ⁄UÕ∑§Ê⁄¢U œÒÿʸÿ ÃˇÊÊáÊ◊˜.. (6) ÿ¡Èfl¸Œ - 355
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•¢ª øÊ‹Ÿ „UÃÈ ‚ÍÃ, ªËà ∑§ Á‹∞ Ÿ≈U, œ◊¸ ∑§ Á‹∞ ‚÷Ê‚Œ, ŸÃÎàfl „UÃÈ ˇÊ◊ÃÊflÊŸ, Ÿ⁄U◊Ê߸ „UÃÈ ◊œÈ⁄U÷Ê·Ë, ◊ŸÊÁflŸÊŒ „UÃÈ SflÊ¢ª ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê ©U¬ÿÈÄà ⁄U„UÃÊ „ÒU. •ÊŸ¢Œ ¬˝ÊÁåà ∑§ Á‹∞ ÁSòÊÿÊ¥ ∑§ ¬˝Áà ‚Åÿ ÷Êfl, ¬˝’‹ ◊Œ (‚ ©Uã◊ûÊ) ∑§ Á‹∞ ∑ȧ◊Ê⁄UË (flË⁄UÊ¢ªŸÊ) ¬ÈòÊ, ◊œÊflË ∑§ Á‹∞ ⁄UÕ∑§Ê⁄U •ÊÒ⁄U œÒÿ¸ ∑§ Á‹∞ ªÁ…∏UÿÊ (ª…U∏Ê߸ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê) ©U¬ÿÈÄà „ÒU. (6) ì‚ ∑§ÊÒ‹Ê‹¢ ◊ÊÿÊÿÒ ∑§◊ʸ⁄ ¦ M§¬Êÿ ◊ÁáÊ∑§Ê⁄ ¦ ‡ÊÈ÷ fl¬ ¦ ‡Ê⁄U√ÿÊÿÊ ˘ ß·È∑§Ê⁄ ¦ „UàÿÒ œŸÈc∑§Ê⁄¢U ∑§◊¸áÊ ÖÿÊ∑§Ê⁄¢U ÁŒCÔUÊÿ ⁄UÖ¡È‚¡Z ◊Îàÿfl ◊ΪÿÈ ◊ãÃ∑§Êÿ ‡flÁŸŸ◊˜.. (7) ìʟ ∑§ Á‹∞ ∑ȧê„UÊ⁄U, ◊ÊÿÊ ∑§ Á‹∞ ∑§Ê⁄U˪⁄U, M§¬ ∑§ Á‹∞ ◊ÁáÊ∑§Ê⁄U, ‡ÊÈ÷ ∑§Êÿ¸ ∑§ Á‹∞ ∑§Ê≈¿UÊ¢≈U ◊¥ ¬˝flËáÊ, ‹ˇÿ÷ŒË ’ÊáÊ ∑§ Á‹∞ ß·È∑§Ê⁄U, •ÊÿÈœ ∑§ Á‹∞ œŸÈcÊ∑§Ê⁄U, ∑§◊¸ ∑§ Á‹∞ ÖÿÊ∑§Ê⁄U («UÊ⁄UË ’ŸÊŸ flÊ‹), •ÊôÊÊ ŒŸ „UÃÈ ⁄Ö¡È‚¡¸∑§ (⁄US‚Ë ’ŸÊŸ flÊ‹), ◊ÎàÿÈ ∑§§Á‹∞ ∑§‚Ê߸, ÿ◊ ∑§ Á‹∞ ∑ȧûÊ ¬Ê‹∑§ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. (7) ŸŒËèÿ— ¬ÊÒÁÜ¡cΔU ◊ΡÊË∑§ÊèÿÊ ŸÒ·ÊŒ¢ ¬ÈL§·√ÿÊÉÊ˝Êÿ ŒÈ◊¸Œ¢ ªãœflʸå‚⁄UÊèÿÊ fl˝Êàÿ¢ ¬˝ÿÈÇèÿ ˘ ©Uã◊ûÊ ¦ ‚¬¸Œfl¡Ÿèÿʬ˝ÁìŒ◊ÿèÿ— Á∑§Ãfl ◊Ëÿ¸ÃÊÿÊ ˘ •Á∑§Ãfl¢ Á¬‡ÊÊøèÿÊ ÁflŒ‹∑§Ê⁄UË¥ ÿÊÃȜʟèÿ— ∑§á≈U∑§Ë∑§Ê⁄UË◊˜.. (8) ŸÁŒÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ŸÊÁfl∑§, ⁄UË¿U •ÊÁŒ ∑§ Á‹∞ flŸø⁄UÊ¥ (ÁŸ·ÊŒ), ‡Ê⁄U ∑§Ë Ã⁄U„U ŒÈŒ¸êÿ ¬ÈL§· ∑§ Á‹∞ ¬˝’‹ ¬˝ÃÊ¬Ë ∑§Ê, ª¢œfl¸ •ÊÒ⁄U •å‚⁄UÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •‚¢S∑§ÊÁ⁄UÃ, ‡ÊÊœÊÕ˸ „UÃÈ ©Uã◊ûÊ ∑§Ê, ‚Ê¢¬, ◊ŸÈcÿ •ÊÒ⁄U ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ôÊÊŸË ∑§Ê, ¡È∞ ∑§ Á‹∞ ¡È∞ ◊¥ ∑ȧ‡Ê‹ √ÿÁÄà ∑§Ê, ©UãŸÁà ∑§ Á‹∞ ¿U‹∑§¬≈U ◊ÈÄà ∑§Ê Á¬‡ÊÊøÊ¢ ∑§ Á‹∞ NUŒÿ ÁflŒËáʸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ⁄UÊˇÊ‚ ¡Ò‚ ‹È≈U⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ⁄UÊSà ◊¥ ∑§Ê¢≈U (⁄UÊ«U∏) •≈U∑§ÊŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. (8) ‚ãœÿ ¡Ê⁄¢U ª„UÊÿʬ¬Áà ◊ÊàÿÒ¸ ¬Á⁄UÁflûÊ¢ ÁŸ´¸§àÿÒ ¬Á⁄UÁflÁflŒÊŸ ◊⁄UÊäÿÊ ˘ ∞ÁŒÁœ·È— ¬Áâ ÁŸc∑ΧàÿÒ ¬‡ÊS∑§Ê⁄UË ¦ ‚¢ôÊÊŸÊÿ S◊⁄U∑§Ê⁄UË¥ ¬˝∑§Ê◊ÊlÊÿʬ‚Œ¢ fláÊʸÿÊŸÈL§œ¢ ’‹ÊÿʬŒÊ◊˜.. (9) ‚¢Áœ ∑§ Á‹∞ Á◊òÊ ∑§Ê, ÉÊ⁄U ∑§ Á‹∞ ©U¬◊ÈÁπÿÊ ∑§Ê, ª⁄UË’Ë ∑§ Á‹∞ œŸË ∑§Ê, •Ê¬ÊÃ∑§Ê‹ ◊¥ ‚ÊœŸ ¡È≈UÊŸ ◊¥ ŒUˇÊ ∑§Ê, Á‚Áh ∑§ Á‹∞ Á„Uà ∑§Ê ‚flʸ¬Á⁄U ◊ÊŸŸ flÊ‹, ‚¢S∑§Ê⁄U „UÃÈ ‡ÊÈÁh∑§⁄UáÊ ◊¥ ∑ȧ‡Ê‹ ∑§Ê, ôÊÊŸ¬˝ÊÁåà „UÃÈ ∑§Êÿ¸ ∑ȧ‡Ê‹ ∑§Ê, •øÊŸ∑§ ∑§Ê◊ •Ê ¬«∏UŸ ¬⁄U ¬Ê‚ flÊ‹ √ÿÁÄà ∑§Ê, SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UÊŸ ∑§ Á‹∞ •Êª˝„U ◊¥ ŒˇÊ ∑§Ê ÃÕÊ ’‹ „UÃÈ ‚„UÊ⁄UÊ ŒŸ flÊ‹ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (9) ©Uà‚ÊŒèÿ— ∑ȧ顢 ¬˝◊ÈŒ flÊ◊Ÿ¢ mÊèÿ¸— dÊ◊ ¦ SflåŸÊÿÊãœ◊œ◊ʸÿ ’Áœ⁄¢U ¬ÁflòÊÊÿ Á÷·¡¢ ¬˝ôÊÊŸÊÿ ŸˇÊòÊŒ‡Ê¸ ◊ÊÁ‡ÊˇÊÊÿÒ ¬˝Á‡ŸŸ ◊ȬÁ‡ÊˇÊÊÿÊ ˘ •Á÷¬˝Á‡ŸŸ¢ ◊ÿʸŒÊÿÒ ¬˝‡ŸÁflflÊ∑§◊˜.. (10) 356 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ŸÊ‡Ê „UÃÈ Ã‹flÊ⁄U flÊ‹ ∑§Ê, ◊ŸÊ⁄¢U¡Ÿ „UÃÈ ’ÊÒŸ ∑§Ê, mÊ⁄U „UÃÈ ◊„UŸÃË ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. ‚¬Ÿ ∑§ Á‹∞ øˇÊÈ„UËŸ ∑§Ê, •œ◊¸ ∑§ Á‹∞ ’„U⁄U ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ¬ÁflòÊÃÊ ∑§ Á‹∞ flÒl, •ë¿§ ôÊÊŸ ∑§ Á‹∞ ŸˇÊòÊ ÁflôÊÊŸË, •Á‡ÊˇÊÊ „UÃÈ ¬˝‡Ÿ∑§Ãʸ, ©U¬Á‡ÊˇÊÊ „UÃÈ •Á÷¬˝‡Ÿ ∑§Ãʸ •ÊÒ⁄U ◊ÿʸŒÊ ∑§ Á‹∞ ¬˝‡Ÿ ∑§ûÊʸ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (10) •◊¸èÿÊ „UÁSì¢ ¡flÊÿʇfl¬¢ ¬Èc≈UKÒ ªÊ¬Ê‹¢ flËÿʸÿÊÁfl¬Ê‹¢ á‚¡¬Ê‹Á◊⁄UÊÿÒ ∑§ËŸÊ‡Ê¢ ∑§Ë‹Ê‹Êÿ ‚È⁄UÊ∑§Ê⁄¢U ÷º˝Êÿ ªÎ„U¬ ¦ üÊÿ‚ ÁflûÊœ◊ÊäÿˇÿÊÿÊŸÈˇÊûÊÊ⁄U◊˜.. (11) ÷Ê⁄UË flÊ„UŸ „UÃÈ „UÊÕË ¬Ê‹∑§ ∑§Ê, á ªÁà „UÃÈ •‡fl ¬Ê‹∑§ ∑§Ê, ¬ÈÁc≈U „UÃÈ ÇflÊ‹ ∑§Ê, flËÿ¸ „UÃÈ ÷«∏U ¬Ê‹∑§ ∑§Ê, á „UÃÈ ’∑§⁄UË ¬Ê‹∑§ ∑§Ê, •ããÊflÎÁh „UÃÈ Á∑§‚ÊŸ ∑§Ê, •◊Îà ¡Ò‚ ¬ÿ „UÃÈ •◊Îà Áfl‡Ê·ôÊ ∑§Ê, ‚Èπ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ªÎ„U¬ÁÃ, üÊÿ „UÃÈ œŸflÊŸ ∑§Ê, •äÿˇÊÃÊ „UÃÈ ÁŸ⁄UˡÊ∑§ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. (11) ÷ÊÿÒ ŒÊflʸ„UÊ⁄¢U ¬˝÷ÊÿÊ ˘ •Çãÿœ¢ ’˝äŸSÿ ÁflCÔU¬ÊÿÊÁ÷·ÄÃÊ⁄¢U flÁ·¸cΔUÊÿ ŸÊ∑§Êÿ ¬Á⁄UflCUÔÊ⁄¢U Œfl‹Ê∑§Êÿ ¬Á‡ÊÃÊ⁄¢U ◊ŸÈcÿ‹Ê∑§Êÿ ¬˝∑§Á⁄UÃÊ⁄ ¦ ‚fl¸èÿÊ ‹Ê∑§èÿ ˘ ©U¬‚ÄÃÊ⁄U◊fl ´§àÿÒ flœÊÿʬ◊ÁãÕÃÊ⁄¢U ◊œÊÿ flÊ‚— ¬À¬Í‹Ë¥ ¬˝∑§Ê◊Êÿ ⁄U¡ÁÿòÊË◊˜.. (12) •ÁÇŸ „UÃÈ ‹∑§«U∏„UÊ⁄U, ¬˝∑§Ê‡Ê „UÃÈ •ÁÇŸ ¡‹ÊŸ flÊ‹, ª⁄U◊Ë ∑§ Á‹∞ ¡‹ ’⁄U‚ÊŸ flÊ‹ ∑§Ê, Sflª¸ ¡Ò‚ ‚Èπ „UÃÈ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ ÉÊ⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê, Œfl‹Ê∑§ „UÃÈ ‚È¢Œ⁄U •Ê∑§Ê⁄U ’ŸÊŸ flÊ‹ ∑§Ê, ◊ŸÈcÿ‹Ê∑§ „UÃÈ ¬˝‚Ê⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê, ‚÷Ë ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ Á‹∞ ‚¢ÃÊ· ŒŸ flÊ‹ ∑§Ê, flœ ∑§ Á‹∞ „UÀ‹Ê ◊øÊŸ flÊ‹ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. ’ÈÁh ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ flSòÊ ˇÊÊ‹Ÿ, ‡ÊÊ÷Ê „UÃÈ ÁøòÊ∑§Ê⁄UË ∑§ ôÊÊÃÊ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (12) ´§Ãÿ SßNUŒÿ¢ flÒ⁄U„UàÿÊÿ Á¬‡ÊÈŸ¢ ÁflÁflÄàÿÒ ˇÊûÊÊ⁄U ◊ÊÒ¬º˝CÔ˛UKÊÿÊŸÈˇÊûÊÊ⁄¢U ’‹ÊÿÊŸÈø⁄¢U ÷ÍêŸ ¬Á⁄Uc∑§ãŒ¢ Á¬˝ÿÊÿ Á¬˝ÿflÊÁŒŸ ◊Á⁄Uc≈UKÊ ˘ •‡fl‚ÊŒ ¦ SflªÊ¸ÿ ‹Ê∑§Êÿ ÷ʪŒÈÉÊ¢ flÁ·¸cΔUÊÿ ŸÊ∑§Êÿ ¬Á⁄UflCÔUÊ⁄U◊˜.. (13) ‡ÊòÊÈ ∑§ Á‹∞ ªÈåà NUŒÿ flÊ‹Ê, flÒ⁄UË ∑§Ë „UàÿÊ „UÃÈ øȪ‹πÊ⁄U, ÷Œ ∑§ Á‹∞ ÷Œ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê, ÁŸ⁄UˡÊáÊ ∑§ Á‹∞ ÁŸ⁄UˡÊ∑§ ∑§Ê, ’‹ „UÃÈ •ÊôÊÊ ¬Ê‹∑§ ∑§Ê, ˇÊòÊ Áfl‡Ê· „UÃÈ ÷˝◊áʇÊË‹ ∑§Ê, Á¬˝ÿ ∑§ Á‹∞ Á¬˝ÿ ’Ê‹Ÿ flÊ‹ ∑§Ê, •Á⁄Uc≈U ÁŸflÊ⁄UáÊ „UÃÈ ÉÊÈ«∏U‚flÊ⁄U ∑§Ê, Sflª¸ ∑§ Á‹∞ ÷ÊÇÿŒÊ„U∑§ ∑§Ê •ë¿U ‚Èπ ∑§ Á‹∞ ‚’ •Ê⁄U ‚ flÁc≈Uà (ÉÊ⁄UŸ) flÊ‹ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (13) ◊ãÿflÿSÃʬ¢ ∑˝§ÊœÊÿ ÁŸ‚⁄¢U ÿʪÊÿ ÿÊÄÃÊ⁄ ¦ ‡ÊÊ∑§ÊÿÊÁ÷‚ûÊʸ⁄U¢ ˇÊ◊Êÿ Áfl◊ÊÄÃÊ⁄U ◊Èà∑ͧ‹ÁŸ∑ͧ‹èÿÁSòÊÁcΔUŸ¢ fl¬È· ◊ÊŸS∑Χà ¦ ‡ÊË‹ÊÿÊÜ¡ŸË∑§Ê⁄UË¥ ÁŸ´¸§àÿÒ ∑§Ê‡Ê∑§Ê⁄UË¥ ÿ◊ÊÿÊ‚Í◊˜.. (14) ∑˝§Êœ ‹Ê„U ∑§Ê ÷Ë Ãʬ ŒŸ flÊ‹Ê „UÊÃ Ê „ÒU. ∑˝§Êœ ∑§Ë ‡ÊÊ¢Áà „UÃÈ ¡ª ∑§Ê ÁŸS‚Ê⁄U ÿ¡Èfl¸Œ - 357
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚◊¤ÊŸ flÊ‹ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§⁄UŸË øÊÁ„U∞. ÿʪ ∑§ Á‹∞ ÿÊªË ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ‡ÊÊ∑§ ∑§ Á‹∞ ‚Ê¢àflŸÊ ŒŸ flÊ‹ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ‚¢⁄UˇÊáÊ ∑§ Á‹∞ ◊ÈÁÄà ŒÊÃÊ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ©UÃÊ⁄ø…UÊ∏ fl „UÃÈ ™¢§øŸËø ◊¥ ŒˇÊ ∑§Ê, ‡Ê⁄UË⁄U „UÃÈ ◊ŸÊŸ∑È §Í ‹ •Êø⁄UáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê, ‡ÊÊ‹ËŸÃÊ „UÃÈ •Ê¢π ‡ÊÈh ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê, ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. Áfl¬ÁûÊ „UÃÈ ‚¢øÿ ŸËÁà ∑§Ê ÿ◊ÁŸÿ◊ •ÊÁŒ „UÃÈ •‚ÍÿÊ (߸cÿʸ ⁄UÁ„UÃ) ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. (14) ÿ◊Êÿ ÿ◊‚Í◊Õfl¸èÿÊflÃÊ∑§Ê ¦ ‚¢flà‚⁄UÊÿ ¬ÿʸÁÿáÊË¥ ¬Á⁄Uflà‚⁄UÊÿÊÁfl¡ÊÃÊÁ◊ŒÊflà‚⁄UÊÿÊÃËàfl⁄UËÁ◊mà‚⁄UÊÿÊÁÃc∑§m⁄UË¥ flà‚⁄UÊÿ Áfl¡¡¸⁄UÊ ¦ ‚¢flà‚⁄UÊÿ ¬Á‹ÄŸË◊Î÷ÈèÿÊÁ¡Ÿ‚㜠¦ ‚Êäÿèÿ‡ø◊¸êŸ◊˜.. (15) „U ¬⁄U◊Êà◊ÊÔ! ÿ◊ ∑§ Á‹∞ ÁŸÿ◊ ◊¥ ‚◊Õ¸ SòÊË ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. •Á„¢U‚∑§Ê¥ ∑§ Á‹∞ •flÃÊ∑§Ê ŸÊ◊∑§ SòÊË ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ‚¢flà‚⁄U „UÃÈ ‚◊ÿ ∑§Ë √ÿflSÕÊ ¡ÊŸŸ flÊ‹Ë ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. ¬Á⁄Uflà‚⁄U ∑§ Á‹∞ ∑È¢§•Ê⁄UË ∑§Ê, ߌÊflà‚⁄U „UÃÈ ªÁÇÊË‹ ∑§Ê, •ŸÈflàU‚⁄U „UÃÈ ôÊÊŸflÃË ∑§Ê, flà‚⁄U ÿÊ •ŸÈflàU‚⁄U „UÃÈ flÎhÊ ∑§Ê, ‚¢flàU‚⁄U „UÃÈ ‡flà ’Ê‹Ê¥ flÊ‹Ë flÎhÊ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ´§÷È „UÃÈ ¬⁄UÊÁ¡Ã Ÿ „UÊŸ flÊ‹ ‚ Á◊òÊÃÊ ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. ‚ÊäUÿ „UÃÈ Áfl‡Ê· œ◊¸ ôÊÊŸË ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁU„U∞. (15) ‚⁄UÊèÿÊ œÒfl⁄U◊ȬSÕÊfl⁄UÊèÿÊ ŒÊ‡Ê¢ flÒ‡ÊãÃÊèÿÊ flÒ㌢ Ÿ«˜Ufl‹Êèÿ— ‡ÊÊÒc∑§‹¢ ¬Ê⁄UÊÿ ◊ʪʸ⁄U◊flÊ⁄UÊÿ ∑Ò§flÃZ ÃËÕ¸èÿ ˘ •Ê㌢ Áfl·◊èÿÊ ◊ÒŸÊ‹ ¦ SflŸèÿ— ¬áʸ∑¢§ ªÈ„UÊèÿ— Á∑§⁄UÊà ¦ ‚ÊŸÈèÿÊ ¡ê÷∑¢§ ¬fl¸Ãèÿ— Á∑§ê¬ÍL§·◊˜.. (16) ÃÊ‹Ê’ „UÃÈ ◊¿ÈU•Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê, ©U¬flŸ „UÃÈ ‚fl∑§Ê¥ ∑§Ê, ¿UÊ≈U ÃÊ‹Ê’ „UÃÈ ÁŸ·ÊŒÊ¥ ∑§Ê, Ÿ«Ufl‹ „UÃÈ ◊¿U‹Ë ‚ ¡ËÁfl∑§Ê ÁŸflʸ„U∑§ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. ¬Ê⁄U ¡ÊŸ ∑§ Á‹∞ ⁄UÊSÃÊ ¡ÊŸŸ flÊ‹ ∑§Ê, ©U‚ ¬Ê⁄U ‚ ß‚ ¬Ê⁄U •ÊŸ flÊ‹ ∑§ Á‹∞ ∑§fl≈U ∑§Ê, ÃËÕ¸ ∑§ Á‹∞ ’Ê«∏U ’Ê¢œŸ flÊ‹ ∑§Ê, •‚◊ÊŸ SÕÊŸ ∑§ Á‹∞ Á∑§ŸÊ⁄UÊ ‹ªÊŸ flÊ‹ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ◊œÈ⁄U äUflÁŸ ∑§ Á‹∞ ÃÈ⁄U„UË flÊŒ∑§ ∑§Ë, ªÈ» Ê•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÷Ë‹Á∑§⁄UÊà ∑§Ë, Á‡ÊÅÊ⁄U ∑§ Á‹∞ ¬˝ø¢«U √ÿÁÄà ∑§Ë •ÊÒ⁄U ¬fl¸Ã ∑§ Á‹∞ ¿UÊ≈U ¬ÈL§·Ê¥ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. (16) ’Ë÷à‚ÊÿÒ ¬ÊÒÀ∑§‚¢ fláÊʸÿ Á„U⁄Uáÿ∑§Ê⁄¢U ÃÈ‹ÊÿÒ flÊÁáÊ¡¢ ¬‡øʌʷÊÿ Ç‹ÊÁflŸ¢ Áfl‡flèÿÊ ÷ÍÃèÿ— Á‚ä◊‹¢ ÷ÍàÿÒ ¡Êª⁄UáÊ◊÷ÍàÿÒ Sfl¬Ÿ◊ÊàÿÒ¸ ¡ŸflÊÁŒŸ¢ √ÿÎhKÊ ˘ •¬ªÀ÷ ¦ ‚ ¦ ‡Ê⁄UÊÿ ¬˝Áë¿UŒ◊˜.. (17) ’Ë÷à‚ (÷ÿ¢∑§⁄U/ÉÊÎÁáÊÃ) ∑§Ê◊Ê¥ ∑§ Á‹∞ •Ÿª…∏U (ÁŸŒ¸ÿ) ‹ÊªÊ¥ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. •ë¿U fláʸ ∑§ Á‹∞ ‚ÈŸÊ⁄U, ÃÊÒ‹Ÿ ∑§ Á‹∞ ’ÁŸ∞ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§⁄UŸË øÊÁ„U∞. ’ÊŒ ◊¥ ŒÊ· ŒŸ ∑§ Á‹∞ ŸÊ⁄UÊ¡ √ÿÁÄà ∑§Ê, ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ Á‚ÁhŒÊÿ∑§ √ÿÁÄà ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. ‚◊ÎÁh „UÃÈ ¡Êª⁄UáʇÊË‹ 358 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê, •‚◊ÎÁh „UÃÈ Sfl埡ËflË ∑§Ê, ¬Ë«∏UÊ ‚ ◊ÈÁÄà ∑§ Á‹∞ ‚ÊflœÊŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê, ©UããÊÁà (’…∏UÊÃ⁄UË) „UÃÈ •Á÷◊ÊŸ ⁄UÁ„Uà ∑§Ê, ’ÊáÊ ÁŸ‡ÊÊŸ ¬⁄U ‚ÊœŸ ∑§ Á‹∞ ‹ˇÿ ‚Êœ∑§ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (17) •ˇÊ⁄UÊ¡Êÿ Á∑§Ãfl¢ ∑ΧÃÊÿÊÁŒŸflŒ‡ÊZ òÊÃÊÿÒ ∑§ÁÀ¬Ÿ¢ mʬ⁄UÊÿÊÁœ∑§ÁÀ¬Ÿ ◊ÊS∑§ãŒÊÿ ‚÷ÊSÕÊáÊÈ¢ ◊Îàÿfl ªÊ√ÿë¿U◊ãÃ∑§Êÿ ªÊÉÊÊâ ˇÊÈœ ÿÊ ªÊ¢ Áfl∑ΧãÃãâ Á÷ˇÊ◊ÊáÊ ˘ ©U¬ÁÃcΔUÁà ŒÈc∑ΧÃÊÿ ø⁄U∑§ÊøÊÿZ ¬Êå◊Ÿ ‚Ò‹ª◊˜.. (18) ¡È•Ê π‹Ÿ ∑§ Á‹∞ lÍÃ∑§Ê⁄U, Á∑˝§ÿʇÊË‹ „UÃÈ ‚◊ˡÊÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹, òÊÃÊ ∑§ Á‹∞ ∑§À¬ŸÊ∑§Ê⁄U, mʬ⁄U „UÃÈ •∑§À¬ŸÊ∑§Ê⁄U ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. •Ê∑˝§◊áÊ ¡Ò‚Ë ÁSÕÁà ◊¥ ÁSÕ⁄U ◊Áà flÊ‹Ê ΔUË∑§ ⁄U„UÃÊ „ÒU. ◊ÎàÿÈ ∑§Ë ÁSÕÁà ◊¥ ߢÁº˝ÿÊ¥ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§Ãʸ ΔUË∑§ ⁄U„UÃÊ „ÒU. ÿ◊⁄UÊ¡ „UÃÈ ªÊÒ ÉÊÊÃË, ÷Íπ „UÃÈ ÷Ëπ ◊Ê¢ªŸ flÊ‹, ¬Ê¬ ∑§ ÁŸflÊ⁄UáÊ ∑§ Á‹∞ ø⁄U∑§ÊøÊÿ¸ •ÊÒ⁄U ŒÈc≈UÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑§ΔUÊ⁄U Œ¢«U Œ ‚∑§Ÿ flÊ‹ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. (18) ¬˝ÁÃüÊÈà∑§ÊÿÊ ˘ •ûʸŸ¢ ÉÊÊ·Êÿ ÷·◊ãÃÊÿ ’„ÈUflÊÁŒŸ◊ŸãÃÊÿ ◊Í∑§ ¦ ‡ÊéŒÊÿÊ«Uê’⁄UÊÉÊÊâ ◊„U‚ flËáÊÊflÊŒ¢ ∑˝§Ê‡ÊÊÿ ÃÍáÊflä◊ ◊fl⁄US¬⁄UÊÿ ‡Êæ˜Uπä◊¢ flŸÊÿ flŸ¬◊ãÿÃÊ⁄UáÿÊÿ ŒÊfl¬◊˜.. (19) ¬˝ÁÃôÊÊ ∑§ Á‹∞ ©U‚ ∑§Ê ÁŸ’Ê„U ‚∑§Ÿ flÊ‹ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. ÿÊ¡ŸÊ ∑§ Á‹∞ ©UŒ˜ÉÊÊ·∑§ ∑§Ê, ÁflflÊŒ ÁŸáʸÿ „UÃÈ øȬ ⁄U„UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê, ’„ÈUflÊŒË „UÃÈ •Ê«U¢’⁄U ∑§Ê •ÊÉÊÊà ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê, ◊Á„U◊Ê „UÃÈ flËáÊÊflÊŒ∑§ ∑§Ê, ÷Ë·áÊ Sfl⁄UU ∑§ Á‹∞ …UÊ‹ ’¡ÊŸ flÊ‹ ∑§Ê, ΔUË∑§ΔUË∑§ •ÊflÊ¡ „UÃÈ ‡Ê¢π flÊŒ∑§ ∑§Ê, flŸ ⁄UˇÊÊÕ¸ flŸ ⁄UˇÊ∑§ ∑§Ê, •ãÿ flŸÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ŒÊflÊŸ‹ ⁄UˇÊ∑§ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. (19) Ÿ◊ʸÿ ¬È°‡ø‹Í ¦ „U‚Êÿ ∑§ÊÁ⁄¢U ÿÊŒ‚ ‡ÊÊ’ÀÿÊ¢ ª˝Ê◊áÿ¢ ªáÊ∑§◊Á÷∑˝§Ê‡Ê∑¢§ ÃÊã◊„U‚ flËáÊÊflÊŒ¢ ¬ÊÁáÊÉŸ¢ ÃÍáÊflä◊¢ ÃÊãŸÎûÊÊÿÊŸãŒÊÿ Ëfl◊˜.. (20) ◊ŸÊ⁄¢U¡Ÿ „UÃÈ ¬ÈL§·Ê¥ ∑§ ¬Ë¿U ø‹Ÿ flÊ‹Ë, „¢U‚ÊŸ ◊¥ ŸÄ∑§Ê‹, ¡‹ ¡¢ÃÈ•Ê¥ ∑§Ê ◊Ê⁄UŸ ◊¥ ŸËø ¡ÊÁà flÊ‹Ê¥ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. SflʪÂà∑§Ê⁄U ∑§ Á‹∞ ª˝Ê◊ËáÊ ÖÿÊÁÃ·Ë •ÊÒ⁄U √ÿfl„UÊ⁄U ∑ȧ‡Ê‹ √ÿÁÄà ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. ŸÎàÿ „UÃÈ flËáÊÊflÊŒ∑§, ÃÊ‹flÊŒ∑§ •ÊÒ⁄U Sfl⁄flÊŒ∑§ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. •ÊŸ¢Œ „UÃÈ ÃÊ‹ËflÊŒ∑§ ∑§Ë ÁŸÿÈÁÄà ∑§Ë ¡ÊŸË øÊÁ„U∞. (20) •ÇŸÿ ¬ËflÊŸ¢ ¬ÎÁâÊ√ÿÒ ¬ËΔU‚Á¬¸áÊ¢ flÊÿfl øÊá«UÊ‹◊ãÃÁ⁄UˇÊÊÿ fl ¦ ‡ÊŸÌߢ ÁŒfl π‹Áà ¦ ‚Íÿʸÿ „Uÿ¸ˇÊ¢ ŸˇÊòÊèÿ— Á∑§Á◊¸⁄¢U øãº˝◊‚ Á∑§‹Ê‚◊qÔU ‡ÊÈÄ‹¢ Á¬XÊˇÊ ¦ ⁄UÊòÿÒ ∑ΧcáÊ¢ Á¬XÊˇÊ◊˜.. (21) •Êª ‚ ¡È«∏ ∑§Êÿ¸ „UÃÈ ¬Èc≈U ∑§Ê, ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ •Ê‚Ÿ ¬⁄U ’ÒΔUŸ flÊ‹ ∑§Ê, ÿ¡Èfl¸Œ - 359
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
flÊÿÈ ∑§Ê ‚„UŸ ∑§ Á‹∞ øÊ¢«UÊ‹ ∑§Ê, •œ⁄U ◊¥ ‹≈U∑§Ÿ ¡Ò‚ ∑§Ê◊ ∑§ Á‹∞ ’Ê¢‚ ¬⁄U ŸÎàÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà ∑§⁄UŸÊ øÊÁ„U∞. Sflª¸‹Ê∑§ „UÃÈ πªÊ‹ ÁflôÊÊŸË ∑§Ê, ‚Íÿ¸ „UÃÈ „U⁄U ⁄¢Uª flÊ‹ ∑§Ê, ŸˇÊòÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ŸÊ⁄¢UªË ⁄¢Uª ¡ÊŸŸ flÊ‹ ∑§Ê, ø¢º˝◊Ê „UÃÈ Á∑§‹Ê‚ (ø◊¸ ⁄Uʪ Áfl‡Ê·) flÊ‹ ∑§Ê, ‚»§Œ ⁄¢Uª „UÃÈ ¬Ë‹Ë •Ê¢π flÊ‹ ∑§Ê, ⁄UÊÁòÊ ∑§ Á‹∞ ∑§Ê‹Ë¬Ë‹Ë •Ê¢πÊ¥ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ÁŸÿÈÄà Á∑§ÿÊ ¡ÊŸÊ øÊÁ„U∞. (21) •ÕÒÃÊŸCÔUÊÒ ÁflM§¬ÊŸÊ ‹÷ÃÁÃŒËÉÊZ øÊÁÃOÔUSfl¢ øÊÁÃSÕÍ‹¢ øÊÁÃ∑Χ‡Ê¢ øÊÁÇÊÈÄ‹¢ øÊÁÃ∑ΧcáÊ¢ øÊÁÃ∑ȧÀfl¢ øÊÁËÊ◊‡Ê¢ ø. •‡Êͺ˝Ê ˘ •’˝ÊrÊÔáÊÊSà ¬˝Ê¡Ê¬àÿÊ— ◊ʪœ— ¬È°‡ø‹Ë Á∑§Ãfl— ċ˒ʇÊͺ˝Ê ˘ •’˝ÊrÊÔáÊÊSà ¬˝Ê¡Ê¬àÿÊ—.. (22) ß‚ ¬˝∑§Ê⁄U ߟ •ÊΔUÊ¥ •Áà ŒËÉʸ, •ÁÃOSfl, •ÁÃSÕÍ‹, •ÁÃ∑Χ‡Ê, •ÁÇÊÈÄ‹, •ÁÃ∑ΧcáÊ, ⁄UÊ◊ ⁄UÁ„Uà fl ⁄UÊ◊ ‚Á„Uà ∑§Ê ÃÕÊ ßŸ øÊ⁄U ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ øÊ≈ÈU∑§Ê⁄U, øÁ⁄UòÊ„UËŸ, ¡È•Ê⁄UË, Ÿ¬È¢‚∑§ ∞‚ ’˝ÊrÊáÊàfl„UËŸ •‡Êͺ˝ ¬˝¡Ê¬Ê‹∑§ ∑§Ê ‚ÊÒ¥¬ ŒŸÊ øÊÁ„U∞. (22)
360 - ÿ¡Èfl¸Œ
ß∑§ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ‚„Ud‡Ê˷ʸ ¬ÈL§·— ‚„UdÊˇÊ— ‚„Ud¬ÊØ. ‚ ÷ÍÁ◊ ¦ ‚fl¸Ã S¬ÎàflÊàÿÁÃcΔUg‡ÊÊæ˜UªÈ‹◊˜.. (1) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· „U¡Ê⁄UÊ¥ Á‚⁄U flÊ‹Ê, „U¡Ê⁄UÊ¥ ŸòÊÊ¥ flÊ‹Ê fl „U¡Ê⁄UÊ¥ ¬Ò⁄U flÊ‹Ê „ÒU. fl„U ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ‚Ê⁄U ’˝rÊÊ¢«U ∑§Ê ÉÊ⁄U ∑§⁄U ÷Ë Œ‚ •¢ªÈ‹Ë ™§¬⁄U •ÁœÁcΔUà „ÒU. (1) ¬ÈL§· ˘ ∞flŒ ¦ ‚flZ ÿjÍâ ÿëø ÷Ê√ÿ◊˜. ©UÃÊ◊ÎÃàflSÿ‡ÊÊŸÊ ÿŒãŸŸÊÁÃ⁄UÊ„UÁÃ.. (2) ¡Ê „UÊ øÈ∑§Ê „ÒU •ÊÒ⁄U ¡Ê „UÊŸ flÊ‹Ê „ÒU fl„U ¬⁄U◊ ¬ÈL§· „UË „ÒU. fl„U •◊⁄UÃÊ ∑§Ê SflÊ◊Ë „ÒU. ¡Ê •ããÊ ‚ ’…U∏ÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U, ©UŸ ∑§ ÷Ë fl„UË SflÊ◊Ë „Ò¥U. (2) ∞ÃÊflÊŸSÿ ◊Á„U◊ÊÃÊ ÖÿÊÿÊ°‡ø ¬ÍL§·—. ¬ÊŒÊSÿ Áfl‡flÊ ÷ÍÃÊÁŸ ÁòʬʌSÿÊ◊Îâ ÁŒÁfl.. (3) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· •àÿ¢Ã ◊Á„U◊ÊflÊŸ „ÒU. ß‚ ∑§ ø⁄UáÊÊ¥ ◊¥ ‚÷Ë ¬˝ÊáÊË „Ò¥U. ß‚ ∑§Ê ∞∑§ ÷ʪ ¬ÎâflË ¬⁄U „ÒU, Á¡‚ ◊¥ ‚’ ¬˝ÊáÊË „Ò¥U •ÊÒ⁄U ÃËŸ ÷ʪ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÁSÕà „Ò¥U. (3) ÁòʬʌÍäfl¸ ˘ ©UŒÒà¬ÈL§·— ¬ÊŒÊSÿ„UÊ÷flØ ¬ÈŸ—. ÃÃÊ Áflcflæ˜U √ÿ∑˝§Ê◊à‚ʇʟʟ‡ÊŸ •Á÷.. (4) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ ÃËŸ ¬Ò⁄U ™§äUfl¸‹Ê∑§ ◊¥ ‚◊Ê∞ „ÈU∞ „Ò¥U. ∞∑§ ÷ʪ ◊¥ ß„U‹Ê∑§ ‚◊ÊÁ„Uà „Ò. ¡«∏U, øß ‚÷Ë ß‚ ∑§ ß‚ ¬Ò⁄U ◊¥ ‚◊ÊÁ„Uà „Ò¥U. (4) ÃÃÊ Áfl⁄UÊ«U¡Êÿà Áfl⁄UÊ¡Ê •Áœ ¬ÍL§·—. ‚ ¡ÊÃÊ •àÿÁ⁄Uëÿà ¬‡øÊjÍÁ◊◊ÕÊ ¬È⁄U—.. (5) ©U‚ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ‚ Áfl⁄UÊ≈˜U ©U¬¡Ê. Áfl⁄UÊ≈U˜ ‚ ‚ÎÁc≈U ©U¬¡Ë. ©U‚ ‚ ÷ÍÁ◊ ¬ÒŒÊ „ÈU߸ Á»§⁄U ¡Ëfl ¬ÒŒÊ „ÈU∞. (5) ÃS◊ÊlôÊÊà‚fl¸„ÈU× ‚ê÷Î⠬ηŒÊÖÿ◊˜. ¬‡ÊÍ°SÃÊ°‡ø∑˝§ flÊÿ√ÿÊŸÊ⁄UáÿÊ ª˝Êêÿʇø ÿ.. (6) ÿ¡Èfl¸Œ - 361
©UûÊ⁄UÊœ¸
ß∑§ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©U‚ Áfl⁄UÊ≈U˜ ∑§ ÿôÊ ‚ ÉÊË ¬˝Êåà „ÈU•Ê, Á¡‚ ‚ ‚’ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ŒË ¡ÊÃË „ÒU. ©U‚Ë Áfl⁄UÊ≈˜U ‚ ¬ˇÊË, ¬‡ÊÈ, ªÊ¢fl ∑§ ¡Ëfl, ¡ÊŸfl⁄U ©U¬¡. (6) ÃS◊ÊlôÊÊØ ‚fl¸„ÈUà ˘ ´§ø— ‚Ê◊ÊÁŸ ¡ÁôÊ⁄U. ¿UãŒÊ ¦ Á‚ ¡ÁôÊ⁄U ÃS◊Êl¡ÈSÃS◊ÊŒ¡ÊÿÃ.. (7) ©U‚ Áfl⁄UÊ≈˜U ÿôÊ M§¬Ë ¬ÈL§· ‚ ´§ÇflŒ ¬˝∑§≈UÊ. ©U‚Ë ‚ ‚Ê◊flŒ ¬˝∑§≈UÊ. ©U‚Ë ‚ ÿ¡Èfl¸Œ ¬˝∑§≈U „ÈU•Ê. ©U‚Ë ‚ •Õfl¸flŒ ∑§Ê ¬˝ÊŒÈ÷ʸfl „UÈ•Ê. (7) ÃS◊ÊŒ‡flÊ ˘ •¡Êÿãà ÿ ∑§ øÊ÷ÿʌ×. ªÊflÊ „U ¡ÁôÊ⁄U ÃS◊ÊûÊS◊ÊÖ¡ÊÃÊ ˘ •¡Êflÿ—.. (8) ©U‚Ë Áfl⁄UÊ≈˜U ÿôÊ M§¬Ë ¬ÈL§· ‚ ŒÊŸÊ¥ •Ê⁄U ŒÊ¥ÃÊ¥ flÊ‹ ¡Ëfl ©U¬¡. ©U‚Ë ‚ ÉÊÊ«∏U ©U¬¡. ©U‚Ë ‚ ’∑§Á⁄UÿÊ¢ ©U¬¡Ë¥. ©U‚Ë ‚ ÷«∏U •ÊÁŒ ©U¬¡. (8) â ÿôÊ¢ ’Á„¸UÁ· ¬˝ÊÒˇÊŸ˜ ¬ÈL§·¢ ¡ÊÃ◊ª˝Ã—. ß ŒflÊ ˘ •ÿ¡ãà ‚ÊäÿÊ ˘ ´§·ÿ‡ø ÿ.. (9) ‚’ ‚ ¬„U‹ ÿôÊ ‚ ’Ê„U⁄U •Ê∞ ©U‚ ¬ÈL§· ∑§Ê ¬Í¡Ê. ©U‚Ë ‚ ŒflÃÊ•Ê¥, ´§Á·ÿÊ¥ •ÊÒ⁄U ‚Êœ∑§Ê¥ Ÿ ÿôÊ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. (9) ÿà¬ÈL§·¢ √ÿŒœÈ— ∑§ÁÃœÊ √ÿ∑§À¬ÿŸ˜. ◊Èπ¢ Á∑§◊SÿÊ‚ËØ Á∑¢§ ’Ê„ÍU Á∑§◊ÍM§ ¬ÊŒÊ ˘ ©UëÿÃ.. (10) ‚¢∑§À¬ ‚ ¬˝∑§≈U Áfl⁄UÊ≈˜U ¬ÈL§· ∑§Ê ôÊÊŸË¡Ÿ ÷Ê¢ÁÃ÷Ê¢Áà ‚ fláʸŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©U‚ ∑§Ê ◊Èπ ÄÿÊ „ÒU? ’Ê„ÈU ÄÿÊ „ÒU? ¡Ê¢ÉÊ ∑§ÊÒŸ ‚Ë „ÒU? ¬Ê¢fl ÄÿÊ ∑§„U ¡Êà „Ò¥U. (10) ’˝ÊrÊÔáÊÊSÿ ◊Èπ◊Ê‚ËiÊ„ÍU ⁄UÊ¡ãÿ— ∑Χ×. ™§UM§ ÃŒSÿ ÿmÒ‡ÿ— ¬jKÊ ¦ ‡Êͺ˝Ê •¡ÊÿÃ.. (11) ’˝ÊrÊáÊ Áfl⁄UÊ≈˜U ¬ÈL§· ∑§Ê ◊¢ÈU„U „ÈU∞. ˇÊÁòÊÿ ©U‚ ∑§Ë ÷È¡Ê∞¢ „ÈU∞. flÒ‡ÿ ©U‚ ∑§Ë ¡¢ÉÊÊ∞¢ „ÈUßZ. ‡Êͺ˝ ©U‚ ∑§ ¬Ò⁄U „ÈU∞. (11) øãº˝◊Ê ◊Ÿ‚Ê ¡ÊÇøˇÊÊ— ‚Íÿʸ •¡Êÿ×. üÊÊòÊÊmÊÿȇø ¬˝Êáʇø ◊ÈπÊŒÁÇŸ⁄U¡ÊÿÃ.. (12) Áfl⁄UÊ≈˜U ¬ÈL§· ∑§ ◊Ÿ ‚ ø¢º˝◊Ê, •Ê¢πÊ¥ ‚ ‚Íÿ¸, ∑§ÊŸ ‚ flÊÿÈ •ÊÒ⁄U ◊Èπ ‚ •ÁÇŸ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸. (12) ŸÊèÿÊ ˘ •Ê‚ËŒãÃÁ⁄UˇÊ ¦ ‡ÊËcáÊʸ lÊÒ— ‚◊flûʸÃ. ¬jKÊ¢ ÷ÍÁ◊ÁŒ¸‡Ê— üÊÊòÊÊûÊÕÊ ‹Ê∑§Ê° 2 •∑§À¬ÿŸ˜.. (13) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ë ŸÊÁ÷ ‚ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ¬˝∑§≈U „UÈ•Ê. ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ Á‚⁄U ‚ Sflª¸‹Ê∑§ 362 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ß∑§ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬˝∑§≈U „UÈ•Ê. ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ ¬Ò⁄U ‚ ÷ÍÁ◊ ¬˝∑§≈U „ÈU߸. ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ ∑§ÊŸÊ¥ ‚ ÁŒ‡ÊÊ∞¢ ¬˝∑§≈U „ÈUßZ. ¬⁄U◊ ¬ÈL§· Ÿ •Ÿ∑§ ‹Ê∑§ ⁄Uø „Ò¥U. (13) ÿà¬ÈL§·áÊ „UÁfl·Ê ŒflÊ ÿôÊ◊ÃãflÃ. fl‚ãÃÊSÿÊ‚ËŒÊÖÿ¢ ª˝Ëc◊ ˘ ßä◊— ‡Ê⁄UhÁfl—.. (14) ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê „UÁfl ◊ÊŸÊ. ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê „UÁfl ◊ÊŸ ∑§⁄U ÿôÊ ∑§Ë ‡ÊÈL§•Êà ∑§Ë. ©U‚ ÿôÊ ◊¥ ÉÊË fl‚¢Ã ´§ÃÈ, ßZœŸ ª˝Ëc◊ ´§ÃÈ ∞fl¢ „UÁfl ‡Ê⁄UŒ ´§ÃÈ „UÊ ªß¸. (14) ‚åÃÊSÿÊ‚Ÿ˜ ¬Á⁄UœÿÁSòÊ— ‚åà ‚Á◊œ— ∑ΧÃÊ—. ŒflÊ ÿlôÊ¢ ÃãflÊŸÊ ˘ •’䟟˜ ¬ÈL§·¢ ¬‡ÊÈ◊˜.. (15) ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ Á¡‚ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ, ©U‚ ÿôÊ ◊¥ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê „UË „UÁfl ∑§ ¬‡ÊÈ ∑§ M§¬ ◊¥ ’Ê¢œÊ. ©U‚ ÿôÊ ◊¥ ‚Êà ¬Á⁄UÁœÿÊ¢ •ÊÒ⁄U ßÄ∑§Ë‚ ‚Á◊œÊ∞¢ „ÈUß.Z (15) ÿôÊŸ ÿôÊ◊ÿ¡ãà ŒflÊSÃÊÁŸ œ◊ʸÁáÊ ¬˝Õ◊ÊãÿÊ‚Ÿ˜. à „U ŸÊ∑¢§ ◊Á„U◊ÊŸ— ‚øãà ÿòÊ ¬Ífl¸ ‚ÊäÿÊ— ‚Áãà ŒflÊ—.. (16) ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ ÿôÊ ‚ ÿôÊ Á∑§ÿÊ. ©U‚ ◊¥ œ◊¸ ∑§Ê ¬˝Õ◊ •Ê‚Ÿ ¬˝Êåà „ÈU•Ê. ¡Ê ‹Êª ÿôÊ •ÊÁŒ ÁflÁœÁflœÊŸ ‚ ¡ËflŸ ¡Ëà „Ò¥U, ∞‚ ¡ËflŸ ‚Êœ∑§ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë „UÊà „Ò¥U. ∞‚ √ÿÁÄà Sflª¸ ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (16) •Œ˜èÿ— ‚ê÷Î× ¬ÎÁÕ√ÿÒ ⁄U‚Êëø Áfl‡fl∑§◊¸áÊ— ‚◊flûʸÃʪ˝. ÃSÿ àflc≈UÊ ÁflŒœº˝Í¬◊Áà Ãã◊àÿ¸Sÿ Œflàfl◊Ê¡ÊŸ◊ª˝.. (17) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· Ÿ ‚’ ‚ ¬„U‹ ¡‹ ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ Á∑§ÿÊ. ÃଇøÊà ¬ÎâflË ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ Á∑§ÿÊ. ß‚ ¬ÎâflË ∑§Ê ÁŸ◊ʸáÊ ¡‹ ∑§ ⁄U‚ ‚ „ÈU•Ê. àflc≈UÊ Œfl ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê M§¬ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÊUà „Ò¥U. àflc≈UÊ Œfl ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê Œflàfl •ÊÒ⁄U •◊⁄UÃÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (17) flŒÊ„U◊â ¬ÈL§·¢ ◊„UÊãÃ◊ÊÁŒàÿfláÊZ Ã◊‚— ¬⁄USÃÊØ. Ã◊fl ÁflÁŒàflÊÁà ◊ÎàÿÈ◊Áà ŸÊãÿ— ¬ãÕÊ ÁfllÃÿŸÊÿ.. (18) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê ¡ÊŸŸ ‚ ¬⁄U◊ Ãûfl ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU . fl„U •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ¬⁄U „ÒU. fl„U •ÊÁŒàÿ ¡Ò‚ fláʸ (⁄¢Uª) ∑§Ê „Ò. ©U‚ ∑§Ê ¡ÊŸ ∑§⁄U ¡Ê ◊ÎàÿÈ ∑§ ¬Õ ¬⁄U ¡Êà „Ò¥U, ©Uã„¥U ©U‚ ¬Õ ‚ ◊ÊˇÊ ∑§Ë ¬˝ÊÁåà „UÊÃË „ÒU. ß‚ ∑§ •‹ÊflÊ ◊ÊˇÊ ∑§Ê ∑§Ê߸ •ÊÒ⁄U ◊ʪ¸ Ÿ„UË¥ „ÒU. (18) ¬˝¡Ê¬ÁÇø⁄UÁà ª÷¸ •ãÃ⁄U¡Êÿ◊ÊŸÊ ’„ÈUœÊ Áfl ¡ÊÿÃ. ÃSÿ ÿÊÁŸ¢ ¬Á⁄U ¬‡ÿÁãà œË⁄UÊSÃÁS◊Ÿ˜ „U ÃSÕÈ÷ȸflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ.. (19) ¬˝¡Ê¬Áà ª÷¸ ◊¥ ‚¢ø⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl •¡ã◊Ê „Ò¥U. Á»§⁄U ÷Ë ’„ÈUà M§¬Ê¥ ◊¥ ¬˝∑§≈U ÿ¡Èfl¸Œ - 363
©UûÊ⁄UÊœ¸
ß∑§ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„UÊà „Ò¥U . ©ã„UË¥ ◊¥ ‚Ê⁄U ‹Ê∑§ ÁSÕà „Ò¥U. œË⁄U ¬ÈL§· ©U‚ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U Œπà „Ò¥U. (19) ÿÊ Œflèÿ ˘ •ÊìÁà ÿÊ ŒflÊŸÊ¢ ¬È⁄UÊÁ„U×. ¬Íflʸ ÿÊ ŒflèÿÊ ¡ÊÃÊ Ÿ◊Ê L§øÊÿ ’˝ÊrÊÔÿ.. (20) ¡Ê ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ‚’ ‚ ¬„U‹ ¬˝∑§≈U, ¡Ê á ‚¢¬ãŸ „Ò¥U, ©UŸ ’˝rÊ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U „ÒU. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬È⁄UÊÁ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (20) L§ø¢ ’˝ÊrÊÔ¢ ¡ŸÿãÃÊ ŒflÊ ˘ •ª˝ ÃŒ’˝ÈflŸ˜. ÿSàflÒfl¢ ’˝ÊrÊÔáÊÊ ÁfllÊûÊSÿ ŒflÊ ˘ •‚Ÿ˜ fl‡Ê.. (21) ¡Ê ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ •ª˝áÊË „Ò¥U, Á¡Ÿ ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ÿ„U ∑§„UÊ ªÿÊ „ÒU Á∑§ fl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÿ ’˝rÊ ∑§Ê ¬˝∑§≈UÊà „Ò¥U, ©U‚ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê ’˝rÊôÊÊŸË ¡ÊŸÃ „Ò¥U. ©U‚ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ fl‡Ê ◊¥ ‚Ê⁄U ŒflÃÊ ⁄U„Uà „Ò¥U. (21) üÊˇø à ‹ˇ◊ˇø ¬àãÿÊfl„UÊ⁄UÊòÊ ¬Ê‡fl¸ ŸˇÊòÊÊÁáÊ M§¬◊Á‡flŸÊÒ √ÿÊûÊ◊˜. ßcáÊÁ㟷ÊáÊÊ◊È¢ ◊ ˘ ß·ÊáÊ ‚fl¸‹Ê∑¢§ ◊ ˘ ß·ÊáÊ.. (22) „U ¬⁄U◊ ¬ÈL§·! üÊË •ÊÒ⁄U ‹ˇ◊Ë •Ê¬ ∑§Ë ¬àŸË „Ò¥U. ŒÊŸÊ¥ ÷È¡Ê∞¢ ÁŒŸ •ÊÒ⁄U ⁄UÊà „Ò¥U. ŸˇÊòÊ •Ê¬ ∑§ M§¬ „Ò¥U. •Ê¬ ‚’ ∑§Ë ßë¿UÊ ¬ÍÁø ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ⁄Uπà „Ò¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ë ßë¿UÊ ¬ÍÁø ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (22)
364 - ÿ¡Èfl¸Œ
’ûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÃŒflÊÁÇŸSÃŒÊÁŒàÿSÃmÊÿÈSÃŒÈ øãº˝◊Ê—. ÃŒfl ‡ÊÈ∑˝¢§ ÃŒ˜ ’˝rÊÔ ÃÊ •Ê¬— ‚ ¬˝¡Ê¬Á×.. (1) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· „UË •ÁÇŸ „ÒU. fl„UË •ÊÁŒàÿ „ÒU. fl„UË flÊÿÈ „ÒU. fl„UË ø¢º˝◊Ê, ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ fl ’˝rÊôÊÊŸË „ÒU. fl„UË ¡‹ •ÊÒ⁄U fl„UË ¬˝¡Ê¬Áà „ÒU. (1) ‚fl¸ ÁŸ◊·Ê ¡ÁôÊ⁄U ÁfllÈ× ¬ÈL§·ÊŒÁœ. ŸÒŸ◊ÍäflZ Ÿ ÁÃÿ¸Üø¢ Ÿ ◊äÿ ¬Á⁄U ¡ª˝÷Ø.. (2) ‚Ê⁄U ∑§Ê‹ ©U‚ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ‚ „UË ÿôÊ ◊¥ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞. ©U‚ ‚ ™§¬⁄U ∑§Ê߸ Ÿ„UË¥ „ÒU. ©U‚ ∑§Ê ™§¬⁄U, ’Ëø •ÊÁŒ ‚ ∑§Ê߸ ÷Ë ¬Ê⁄U Ÿ„UË¥ ¬Ê ‚∑§Ã. (2) Ÿ ÃSÿ ¬˝ÁÃ◊Ê •ÁSà ÿSÿ ŸÊ◊ ◊„Ul‡Ê—. Á„U⁄Uáÿª÷¸ ˘ ßàÿ· ◊Ê ◊Ê Á„ ¦ ‚ËÁŒàÿ·Ê ÿS◊Ê㟠¡Êà ˘ ßàÿ·—.. (3) ©U‚ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ë ∑§Ê߸ ¬˝ÁÃ◊Ê (‚ÊŸË) Ÿ„UË¥ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ÿ‡Ê ◊„UÊŸ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ŸÊ◊ •àÿ¢Ã ◊„UÊŸ˜ „ÒU. “Á„U⁄Uáÿª÷¸”, “◊Ê Á„¢U‚ËØ”, “ÿS◊ÊŸ˜ ¡ÊÔ ßàÿÊÁŒ ◊¢òÊÊ¥ ◊¥ ©U‚ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ë ¬˝‡Ê¢‚Ê •ÊÒ⁄U ŸÊ◊ ∑§Ê ’Ê⁄U’ ¢ Ê⁄U fláʸŸ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (3) ∞·Ê „U Œfl— ¬˝ÁŒ‡ÊÊŸÈ ‚flʸ— ¬Íflʸ „U ¡Ê× ‚ ©U ª÷¸ •ã×. ‚ ∞fl ¡Ê× ‚ ¡ÁŸcÿ◊ÊáÊ— ¬˝àÿæ˜U ¡ŸÊÁSÃcΔUÁà ‚fl¸ÃÊ◊Èπ—.. (4) fl„U ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ‚÷Ë ¬˝Œ‡ÊÊ¥ ◊¥ √ÿÊåà „ÒU. fl„U ¬Ífl¸ •ÊÒ⁄U •¢Ã ◊¥ ÷Ë √ÿÊåà „ÒU. fl„UË ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê¥ ◊¥ Áfll◊ÊŸ „ÒU. fl„UË ©Uà¬ãŸ „UÊ ⁄U„U ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ◊¥ ÷Ë Áfll◊ÊŸ „ÒU. fl„UË ¡ã◊ ‹Ÿ flÊ‹Ê¥ ◊¥ ÷Ë √ÿÊåà „UʪÊ. fl„U ‚÷Ë ◊¥ ‚fl¸ÁflÁœ √ÿÊåà „ÒU. (4) ÿS◊ÊÖ¡Êâ Ÿ ¬È⁄UÊ Á∑¢§ øŸÒfl ÿ ˘ •Ê’÷Ífl ÷ÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ. ¬˝¡Ê¬Á× ¬˝¡ÿÊ ‚ ¦ ⁄U⁄UÊáÊSòÊËÁáÊ ÖÿÊÃË ¦ Á· ‚øà ‚ ·Ê«U‡ÊË.. (5) Á¡‚ ‚ ¬„U‹ ∑§Ê߸ ©Uà¬ãŸ Ÿ„UË¥ „ÈU•Ê, ©U‚ ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚ ‚÷Ë ‹Ê∑§ ©Uà¬ãŸ „ÈU∞ „Ò¥U. fl„U ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ¬˝¡Ê ∑§ ‚ÊÕ ⁄U„Uà „Ò¥U. fl„U ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ÃËŸ ÖÿÊÁÃÿÊ¥ ∑§Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. ¬˝¡Ê ∑§ ‚ÊÕ ⁄U„UŸ flÊ‹ ¬˝¡Ê¬Áà ‚Ê‹„U ∑§‹Ê•Ê¥ flÊ‹ „Ò¥U. (5) ÿŸ lÊÒL§ª˝Ê ¬ÎÁÕflË ø ŒÎ…UÊ ÿŸ Sfl— SÃÁ÷â ÿŸ ŸÊ∑§—. ÿÊ •ãÃÁ⁄UˇÊ ⁄U¡‚Ê Áfl◊ÊŸ— ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊.. (6) ÿ¡Èfl¸Œ - 365
©UûÊ⁄UÊœ¸
’ûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©U‚ ¬⁄U◊ ¬ÈL§· Ÿ Sflª¸ ∑§Ê ©Uª˝ ’ŸÊÿÊ. ©U‚ Ÿ ¬ÎâflË ∑§Ê ŒÎ…U∏ ’ŸÊÿÊ. ©U‚ Ÿ Sflª¸ ∑§Ê ÁSÕ⁄U ’ŸÊÿÊ. ©U‚ Ÿ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥ ‡ÊÊ÷Ê ⁄UøË. „U◊ (©UŸ ∑§ •‹ÊflÊ) •’ Á∑§‚ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄U¥ ? (6) ÿ¢ ∑˝§ãŒ‚Ë •fl‚Ê ÃSÃ÷ÊŸ •èÿÒˇÊÃÊ¢ ◊Ÿ‚Ê ⁄U¡◊ÊŸ. ÿòÊÊÁœ ‚Í⁄U ˘ ©UÁŒÃÊ Áfl÷ÊÁà ∑§S◊Ò ŒflÊÿ „UÁfl·Ê Áflœ◊. •Ê¬Ê „U ÿŒ˜’΄UÃËÿ¸Á‡øŒÊ¬—.. (7) Á¡‚ ∑§Ê ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ë ‡ÊÁÄà ‚ ôÊÊŸË ¡Ÿ ◊Ÿ ∑§ mÊ⁄UUÊ ‚’ •Ê⁄U Œπà „Ò¥U, ¡„UÊ¢ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ ‚Íÿ¸ ©UŒÿ „UÊ ∑§⁄U ø◊∑§ÃÊ „ÒU, (•’ „U◊ ©UŸ ∑§ •‹ÊflÊ) Á∑§‚ Œfl ∑§ Á‹∞ „UÁfl ∑§Ê ÁflœÊŸ ∑§⁄¥U. “•Ê¬Ê „U ÿŒ˜ ’΄UÃË—”Ô •ÊÒ⁄U “ÿÁ‡øŒÊ¬—” ◊¥ ©U‚Ë ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ∑§Ê ªÈáʪʟ Á∑§ÿÊ ªÿÊ „ÒU. (7) flŸSÃଇÿÁãŸÁ„U⠪ȄUÊ ‚lòÊ Áfl‡fl¢ ÷flàÿ∑§ŸË«U◊˜. ÃÁS◊Á㟌 ¦ ‚¢ ø Áfl øÒÁà ‚fl¸ ¦ ‚ •Ê× ¬˝ÊÇø Áfl÷Í— ¬˝¡Ê‚È.. (8) fl„U ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ‚÷Ë ◊¥ ªÈåà M§¬ ‚ ◊ÊÒ¡ÍŒ „ÒU, ¡Ê ‚’ ∑§Ê •ÊüÊÿŒÊÃÊ „ÒU, ¡Ê ‚’ ¬⁄U ŒÎÁc≈U ⁄UπÃÊ „ÒU. ‚÷Ë ¬˝ÊáÊË ¬˝‹ÿ ◊¥ ©U‚ ◊¥ ‹ËŸ „UÊ ¡Êà „Ò¥U. ‚÷Ë ◊¥ fl„UË •Êì˝Êà „ÒU. ¬˝¡Ê•Ê¥ ◊¥ fl„Ë ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „ÒU. (8) ¬˝ ÃmÊøŒ◊Îâ ŸÈ ÁflmÊŸ˜ ªãœflʸ œÊ◊ Áfl÷Î⠪ȄUÊ ‚Ø. òÊËÁáÊ ¬ŒÊÁŸ ÁŸÁ„UÃÊ ªÈ„UÊSÿ ÿSÃÊÁŸ flŒ ‚ Á¬ÃÈ— Á¬ÃʂØ.. (9) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· •◊⁄U „ÒU. ÁflmÊŸ˜ ¬ÈL§· ©U‚ ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ ∑ȧ¿U ∑§„U ‚∑§Ã „Ò¥U. ©U‚ ∑§Ê œÊ◊ ÁŒ√ÿ „ÒU ¡Ê ªÈåà M§¬ ‚ ‚’ ◊¥ Áfll◊ÊŸ „ÒU, Á¡‚ ◊¥ ÃËŸ ¬Œ ªÈåà M§¬ ‚ ÁŸÁ„Uà „ÒU¢, ¡Ê ôÊÊÃÊ •ÊÒ⁄U ¡Ê Á¬ÃÊ ∑§Ê ÷Ë Á¬ÃÊ „ÒU. (9) ‚ ŸÊ ’ãœÈ¡¸ÁŸÃÊ ‚ ÁflœÊÃÊ œÊ◊ÊÁŸ flŒ ÷ÈflŸÊÁŸ Áfl‡flÊ. ÿòÊ ŒflÊ ˘ •◊ÎÃ◊ÊŸ‡ÊÊŸÊSÃÎÃËÿ œÊ◊ãŸäÿÒ⁄UÿãÃ.. (10) fl„U ¬⁄U◊U ¬ÈL§· ‚’ ∑§Ê ’¢œÈ „ÒU. fl„U ‚’ ∑§Ê ©U¬¡ÊŸ flÊ‹Ê, ÁflœÊÃÊ, •ÊüÊÿ ŒÊÃÊ •ÊÒ⁄U ‚Ê⁄U ‹Ê∑§Ê¥ •ÊÒ⁄U ‹ÊªÊ¥ ∑§Ê ôÊÊÃÊ „ÒU. ©U‚ ∑§ fl„UÊ¢ ÃË‚⁄U œÊ◊ ◊¥ •◊⁄U ŒflÃÊ •ÊŸ¢Œ¬Ífl¸∑§ Áflø⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (10) ¬⁄UËàÿ ÷ÍÃÊÁŸ ¬⁄UËàÿ ‹Ê∑§ÊŸ˜ ¬⁄UËàÿ ‚flʸ— ¬˝ÁŒ‡ÊÊ ÁŒ‡Ê‡ø. ©U¬SÕÊÿ ¬˝Õ◊¡Ê◊ÎÃSÿÊà◊ŸÊà◊ÊŸ◊Á÷ ‚¢ Áflfl‡Ê.. (11) fl„U ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ fl ‚◊Sà ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ÉÊ⁄U „ÈU∞ „ÒU. fl„U ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ √ÿÊåà „ÒU. fl„U ‚÷Ë ©U¬ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§Ê ÉÊ⁄U „ÈU∞ „ÒU. fl„U •¡ã◊Ê fl •◊⁄U „ÒU. ‚÷Ë ôÊÊŸË •Êà◊M§¬ ∑§Ê ¡ÊŸ ∑§⁄U •¬Ÿ •Êà◊M§¬ ∑§Ê ß‚ ◊¥ ‚◊Êfl‡Ê ∑§⁄U ŒÃ „Ò¥U. (11)
366 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
’ûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬Á⁄U lÊflʬÎÁÕflË ‚l ˘ ßàflÊ ¬Á⁄U ‹Ê∑§ÊŸ˜ ¬Á⁄U ÁŒ‡Ê— ¬Á⁄U Sfl—. ´§ÃSÿ ÃãÃÈ¢ ÁflÃâ ÁfløÎàÿ ÃŒ¬‡ÿûÊŒ÷flûʌʂËØ.. (12) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ◊¥ ¬Á⁄U√ÿÊåà „ÒU. fl„U ‹Ê∑§Ê¥ fl ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ √ÿÊåà „ÒU. fl„U •¬Ÿ•Ê¬ ◊¥ ¬Á⁄U√ÿÊåà „ÒU. »Ò§‹ „ÈU∞ ‚àÿ ∑§ âÃÈ ∑§Ê ¡ÊŸ ∑§⁄UU ôÊÊŸË flÒ‚ „UË „UÊ ¡Êà „Ò¥U •ÊÒ⁄U Œπà „Ò¥U, ¡Ò‚ ¬„U‹ Õ. (12) ‚Œ‚S¬ÁÃ◊jÈâ Á¬˝ÿÁ◊ãº˝Sÿ ∑§Êêÿ◊˜. ‚ÁŸ¢ ◊œÊ◊ÿÊÁ‚· ¦ SflÊ„UÊ.. (13) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§Ê ‚÷Ë ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. fl„U •Œ˜÷ÈÃ, ߢº˝ Œfl ∑§Ê Á¬˝ÿ fl ∑§Êêÿ „ÒU. „U◊ ©U‚ ‚ (üÊcΔU) ’ÈÁh fl (üÊcΔU) œŸ øÊ„Uà „Ò¥U. ¬⁄U◊ ¬ÈL§· ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (13) ÿÊ¢ ◊œÊ¢ ŒflªáÊÊ— Á¬Ã⁄U‡øʬʂÃ. ÃÿÊ ◊Ê◊l ◊œÿÊÇŸ ◊œÊÁflŸ¢ ∑ȧL§ SflÊ„UÊ.. (14) „U •ÁÇŸ! Á¡‚ üÊcΔU ’ÈÁh ∑§Ë ŒflÃʪáÊ •ÊÒ⁄U Á¬Ã⁄UªáÊ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©U‚ ’ÈÁh ‚ •Ê¬ „U◊¥ ’ÈÁh◊ÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (14) ◊œÊ¢ ◊ flL§áÊÊ ŒŒÊÃÈ ◊œÊ◊ÁÇŸ— ¬˝¡Ê¬Á×. ◊œÊÁ◊ãº˝‡ø flÊÿȇø ◊œÊ¢ œÊÃÊ ŒŒÊÃÈ ◊ SflÊ„UÊ.. (15) flL§áÊ, •ÁÇŸ fl ¬˝¡Ê¬Áà „U◊¥ ’ÈÁh ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl ’ÈÁh œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊¥ ’ÈÁh ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ߟ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (15) ߌ¢ ◊ ’˝rÊÔ ø ˇÊòÊ¢ øÊ÷ ÁüÊÿ◊‡ŸÈÃÊ◊˜. ◊Áÿ ŒflÊ ŒœÃÈ ÁüÊÿ◊ÈûÊ◊Ê¢ ÃSÿÒ Ã SflÊ„UÊ.. (16) ¬⁄U◊ ¬ÈL§· „U◊¥ ÿ„U ’˝rÊôÊÊŸ •ÊÒ⁄U ˇÊÊòÊ Ã¡ ߟ ŒÊŸÊ¥ ‚ ÿÈÄà ∑§⁄¥U (‡ÊÊÁ÷à ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U). „U◊¥ ŒflÃÊ üÊcΔU ‡ÊÊ÷Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ß‚Ë ∑§ Á‹∞ ©Uã„¥U ÿ„U •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà U„Ò¥U. (16)
ÿ¡Èfl¸Œ - 367
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ •SÿÊ¡⁄UÊ‚Ê Œ◊Ê◊Á⁄UòÊÊ ˘ •ø¸hÍ◊Ê‚Ê •ÇŸÿ— ¬Êfl∑§Ê—. Á‡flÃËøÿ— ‡flÊòÊÊ‚Ê ÷È⁄UáÿflÊ flŸ·¸ŒÊ flÊÿflÊ Ÿ ‚Ê◊Ê—.. (1) ÿ¡◊ÊŸ Ÿ ¡Ê •ÁÇŸÿÊ¥ ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§Ë „Ò¥U, fl •¡⁄U „Ò¥U. fl ŒÈ‡◊ŸÊ¥ ‚ òÊÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë, ¬Í¡ŸËÿ, œÍ◊˝◊ÿ, ¬ÁflòÊ, ‡ÊËÉÊ˝ »§‹ ŒŸ flÊ‹Ë fl ÷ÈflŸ ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ flÊ‹Ë „Ò¥U. fl flŸ ∑§ ‚◊ÊŸ √ÿʬ∑§ fl flÊÿÈ ∑§ ‚◊ÊŸ ¬˝ÊáÊŒÊÿË „Ò¥U. fl •ÁÇŸÿÊ¢ ‚Ê◊ ∑§Ë Ã⁄U„U „U◊Ê⁄UË ßë¿UÊ ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (1) „U⁄UÿÊ œÍ◊∑§ÃflÊ flÊáÍÃÊ ˘ ©U¬ lÁfl. ÿÃãà flÎժǟÿ—.. (2) •ÁÇŸÿÊ¥ „U⁄UË „Ò¥U. œÈ∞¢ ∑§Ë ¬ÃÊ∑§Ê flÊ‹Ë •ÊÒ⁄U flÊÿÈ ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬ÊŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ¡ÊŸ ∑§ Á‹∞ ’Ê⁄U’Ê⁄U ¬˝ÿàŸ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. (2) ÿ¡Ê ŸÊ Á◊òÊÊflL§áÊÊ ÿ¡Ê ŒflÊ° 2 ´§Ã¢ ’΄UØ. •ÇŸ ÿÁˇÊ Sfl¢ Œ◊◊˜.. (3) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ Á◊òÊ, flL§áÊ fl •ãÿ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÿ¡Ÿ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚àÿflÊŸ fl Áfl‡ÊÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ÉÊ⁄U ∑§Ê ÿôÊ ∑§ ‡ÊÈ÷ ∑§ÊÿÊZ ‚ ÿÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (3) ÿÈˇflÊ Á„U Œfl„ÍUÃ◊Ê° 2 •‡flÊ¢ 2 •ÇŸ ⁄UÕËÁ⁄Ufl. ÁŸ „UÊÃÊ ¬Í√ÿ¸— ‚Œ—.. (4) „U •ÁÇŸ! ¡Ò‚ ‚Ê⁄UÕË ⁄UÕ ◊¥ ÉÊÊ«∏U ¡ÊÃÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË ŒflÊ¥ ∑§Ê (ÿôÊ ◊¥) •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ⁄UÕ ◊¥ ¡ÊÁÃ∞. •Ê¬ Áø⁄U∑§Ê‹ ‚ „UË ÿôÊ ◊¥ ’È‹Ê∞ ¡Êà „Ò¥U. (4) m ÁflM§¬ ø⁄U× SflÕ¸ •ãÿÊãÿÊ flà‚◊Ȭ œÊ¬ÿÃ. „UÁ⁄U⁄UãÿSÿÊ¢ ÷flÁà SflœÊflÊÜ¿ÈU∑˝§Ê •ãÿSÿÊ¢ ŒŒÎ‡Ê ‚Èfløʸ—.. (5) ⁄UÊÁòÊ •ÊÒ⁄U ÁŒfl‚ •¬Ÿ üÊcΔU ∑§Ê◊ ∑§ Á‹∞ flÒ‚ „UË Áflø⁄Uà „Ò¥U, ¡Ò‚ •‹ª•‹ª M§¬⁄¢Uª flÊ‹Ë ÁSòÊÿÊ¢ Áflø⁄UÃË „Ò¥U. ⁄UÊÁòÊ „U⁄UË (∑§Ê‹Ë) „ÒU. ⁄UÊÁòÊ ∑§ SflœÊflÊŸ ø◊∑§Ë‹ ¬ÈòÊ ø¢º˝◊Ê „ÈU∞. ŒÍ‚⁄UË ∑§ üÊcΔU flø¸SflË ¬ÈòÊ ‚Íÿ¸ „ÈU∞. ∞‚Ê ŒπÊ (∑§„UÊ) ¡ÊÃÊ „ÒU. (5) 368 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@23
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•ÿÁ◊„U ¬˝Õ◊Ê œÊÁÿ œÊÃÎÁ÷„UʸÃÊ ÿÁ¡cΔUÊ •äfl⁄UcflË«˜ÿ—. ÿ◊åŸflÊŸÊ ÷ΪflÊ ÁflL§L§øÈfl¸Ÿ·È ÁøòÊ¢ Áflèfl¢ Áfl‡Ê Áfl‡Ê.. (6) ÿ„U •ÁÇŸ •ª˝ªáÿ „Ò¥U. ÿôÊ ◊¥ ‚fl¸¬˝Õ◊ ßã„UË¥ ∑§Ê äÿÊŸ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. ÿ„U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ „UÊÃÊ fl ÿôÊ ◊¥ ©U¬Ê‚ŸËÿ „Ò¥U. ÿôÊÊ¥ ◊¥ Áfl‡Ê· M§¬ ‚ ßã„¥U ¬˝ÁÃÁcΔUà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „Ò. ߟ •ÁÇŸ ∑§Ê •åŸflÊŸ, ÷ΪÈ, ÁflL§L§øÈ •ÊÁŒ ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ flŸÊ¥ ◊¥ ’Ê⁄U’Ê⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà Á∑§ÿÊ „ÒU. (6) òÊËÁáÊ ‡ÊÃÊ òÊË ‚„UdÊáÿÁÇŸ¢ ÁòÊ ¦ ‡Êëø ŒflÊ Ÿfl øÊ‚¬ÿ¸Ÿ˜. •ÊÒˇÊŸ˜ ÉÊÎÃÒ⁄USÃÎáÊŸ˜ ’Á„¸U⁄US◊Ê •ÊÁŒhÊÃÊ⁄¢U ãÿ‚ÊŒÿãÃ.. (7) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! ÃËŸ „U¡Ê⁄U, ÃËŸ ‚ÊÒ ÃË‚ •ÊÒ⁄U ŸÊÒ •ÕʸØ ÃÒ¥ÃË‚ ‚ÊÒ ©UŸÃÊ‹Ë‚ ŒflÃÊ •ÁÇŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà U„Ò¥U. ŒflªáÊ ÉÊË ∑§Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ‚Ë¥øà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‡Ê ∑§Ê •Ê‚Ÿ Á’¿UÊà „Ò¥U. ©Uã„¥U „UÊÃÊ ∑§ M§¬ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄U ∑§ ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (7) ◊͜ʸŸ¢ ÁŒflÊ •⁄UÁâ ¬ÎÁÕ√ÿÊ flÒ‡flÊŸ⁄U◊Îà ˘ •Ê ¡ÊÃ◊ÁÇŸ◊˜. ∑§Áfl ¦ ‚◊˝Ê¡◊ÁÃÁÕ¢ ¡ŸÊŸÊ◊Ê‚ãŸÊ ¬ÊòÊ¢ ¡Ÿÿãà ŒflÊ—.. (8) •ÁÇŸ ◊͜㸠ÿ, Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ ÷Ë üÊcΔU, ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ‚Íÿ¸ ∑§ M§¬ ◊¥ ¡ª◊ªÊŸ flÊ‹ fl flÒ‡flÊŸ⁄U „ÒU¥ . fl ÿôÊ ◊¥ ©Uà¬ãŸ „UÊŸ flÊ‹, ∑§Áfl, ‚◊˝Ê≈˜U, ÿ¡◊ÊŸ ∑§ •ÁÃÁÕ „ÒU¥ . ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ •ÊuÊ„U∑§ „ÒU¥ . ÿ¡◊ÊŸÊ¥ Ÿ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ „UÃÈ ¬ÊòÊ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. (8) •ÁÇŸflθòÊÊÁáÊ ¡YŸŒ˜º˝ÁfláÊSÿÈÁfl¸¬ãÿÿÊ. ‚Á◊h— ‡ÊÈ∑˝§ ˘ •Ê„ÈU×.. (9) •ÁÇŸ flÎòÊ ∑§Ê ◊Ê⁄Uà „Ò¥U (Ÿc≈U ∑§⁄Uà „ÒU¥ ). •ÁÇŸ œŸflÊŸ fl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. ‚Á◊œÊ ‚ ©Uã„¥U ¬˝ŒËåà Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ©UŸ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (9) Áfl‡flÁ÷— ‚Êêÿ¢ ◊äflÇŸ ˘ ßãº˝áÊ flÊÿÈŸÊ. Á¬’Ê Á◊òÊSÿ œÊ◊Á÷—.. (10) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ߢº˝ Œfl, flÊÿÈ, Á◊òÊ Œfl fl ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ •Êß∞. •Ê¬ ߟ ‚’ ∑§ ‚ÊÕ ◊œÈ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (10) •Ê ÿÁŒ· ŸÎ¬Áâ á ˘ •ÊŸ≈U˜ ‡ÊÈÁø ⁄UÃÊ ÁŸÁ·Äâ lÊÒ⁄U÷Ë∑§. •ÁÇŸ— ‡Êœ¸◊Ÿfll¢ ÿÈflÊŸ ¦ SflÊäÿ¢ ¡ŸÿØ ‚ÍŒÿëø.. (11) ¡’ •ÁÇŸ ◊¥ •ããÊ •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊ ¡‹ ‚ ‡ÊÈh „UÁfl ‚ ÿ¡Ÿ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU, Ã’ •ÁÇŸ ¡‹ ‚ ‚Ë¥øà „Ò¥U. ÿ„U ¡‹ ’‹‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊÃÊ „ÒU. ÿ„U ‚Èπflh¸∑§, ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ¬˝flÊÁ„Uà „UÊŸ flÊ‹Ê, ÿÈflÊ ’ŸÊŸ flÊ‹Ê fl ¡ª ∑§ Á‹∞ ©U¬¡Ê™§U „ÒU. (11) •ÇŸ ‡Êœ¸ ◊„Uà ‚ÊÒ÷ªÊÿ Ãfl lÈêŸÊãÿÈûÊ◊ÊÁŸ ‚ãÃÈ. ‚¢ ¡ÊS¬àÿ ¦ ‚Èÿ◊◊Ê ∑ΧáÊÈcfl ‡ÊòÊÍÿÃÊ◊Á÷ ÁÃcΔUÊ ◊„UÊ ¦ Á‚.. (12) ÿ¡Èfl¸Œ - 369
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ •¬ŸË U◊„UûÊÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ◊¥ ’…∏UÊà ⁄UË ∑§ËÁ¡∞. Sflª¸‹Ê∑§ ‚ •Ê¬ •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ÿ‡ÊSflË „UÊ.¥ •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ¡Ê« U∏ ∑§Ê ¬˝◊ ÷Êfl ‚ ¡ÊÁ«∏U∞. ÿ¡◊ÊŸ ‚ ‡ÊòÊÈ÷Êfl ⁄UπŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ë ‚Êπ (¬˝ÁÃcΔUÊ) Áª⁄UÊß∞. (12) àflÊ Á„U ◊ãº˝Ã◊◊∑¸§‡ÊÊ∑Ò§fl¸flÎ◊„U ◊Á„U Ÿ— üÊÊcÿÇŸ. ßãº˝¢ Ÿ àflÊ ‡Êfl‚Ê ŒflÃÊ flÊÿÈ¢ ¬ÎáÊÁãà ⁄UÊœ‚Ê ŸÎÃ◊Ê—.. (13) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ◊Á„U◊Ê◊ÿ SÃÊòÊ ªÊ ⁄U„U „Ò¥U. •Ê¬ ©Uã„¥U ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÁfløÊ⁄U∑§ „Ò¥U. „U◊ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Ã⁄U„U •Ê¬ ∑§Ê fl⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ Œfl ∑§Ë Ã⁄U„U ’‹flÊŸ •ÊÒ⁄U flÊÿÈ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ’‹‡ÊÊ‹Ë „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê œŸœÊãÿ ÷⁄UË •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ ¬Á⁄U¬Íáʸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (13) àfl •ÇŸ SflÊ„ÈUà Á¬˝ÿÊ‚— ‚ãÃÈ ‚Í⁄Uÿ—. ÿãÃÊ⁄UÊ ÿ ◊ÉÊflÊŸÊ ¡ŸÊŸÊ◊ÍflʸŸ˜ Œÿãà ªÊŸÊ◊˜.. (14) „U •ÁÇŸ! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ üÊcΔU •Ê„ÈUÁà ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‡ÊÍ⁄UflË⁄U •Ê¬ ∑§ Á¬˝ÿ „UÊ ¡Êà „Ò¥U. ¡Ê œŸflÊŸ •ÊÒ⁄U ™§¡Ê¸flÊŸ „Ò¥U, ©UŸ ∑§ ¬˝Áà •Ê¬ ŒÿÊflÊŸ „Ò¥U. ©UŸ ¬⁄U ªÊœŸ •ÊÁŒ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. (14) üÊÈÁœ üÊÈà∑§áʸ flÁqÔUÁ÷Œ¸flÒ⁄UÇŸ ‚ÿÊflÁ÷—. •Ê ‚ËŒãÃÈ ’Á„¸UÁ· Á◊òÊÊ •ÿ¸◊Ê ¬˝ÊÃÿʸflÊáÊÊ •äfl⁄U◊˜.. (15) „UU •ÁÇŸ! •Ê¬ üÊcΔU ∑§ÊŸÊ¥ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U mÊ⁄UÊ ∑§Ë ªß¸ SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ‚ÈŸÃ „Ò¥U. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ •ÁÇŸ ◊¥ ¡Ê •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà U„Ò¥U. •Ê¬ ©U‚ „UÁfl ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬˝Ê×∑§Ê‹ËŸ ÿôÊÊ¥ ◊¥ Á◊òÊ Œfl fl •ÿ¸◊Ê Œfl ∑§ ‚ÊÕ •Êß∞. •Ê¬ ©Ÿ ∑§ ‚ÊÕ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (15) Áfl‡fl·Ê◊ÁŒÁÃÿ¸ÁôÊÿÊŸÊ¢ Áfl‡fl·Ê◊ÁÃÁÕ◊ʸŸÈ·ÊáÊÊ◊˜. •ÁÇŸŒ¸flÊŸÊ◊fl •ÊflÎáÊÊŸ— ‚È◊ΫUË∑§Ê ÷flÃÈ ¡ÊÃflŒÊ—.. (16) •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊÊÃÊ, ŒflÊ¥ ◊¥ •ÁŒÁà Œfl ¡Ò‚ (flø¸SflË), ÿôÊ ∑§⁄UŸ ÿÊÇÿ, ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ •ÁÃÁÕ ¡Ò‚ •ÊŒ⁄UáÊËÿ fl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ „U◊Ê⁄UË „UÁfl ¬„¢ÈUøÊŸ fl „U◊¥ ÷⁄U¬Í⁄U ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑§ËÁ¡∞. (16) ◊„UÊ •ÇŸ— ‚Á◊œÊŸSÿ ‡Ê◊¸áÿŸÊªÊ Á◊òÊ flL§áÊ SflSÃÿ. üÊcΔU SÿÊ◊ ‚ÁflÃÈ— ‚flË◊ÁŸ ÃgflÊŸÊ◊flÊ •lÊ flÎáÊË◊„U.. (17) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë fl ‚Á◊œÊflÊŸ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ Á◊òÊ •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ üÊcΔUÃÊ ¬˝Êåà ∑§⁄¥U. •ÕʸØ üÊcΔU „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê „UÁfl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê fl⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (17) 370 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê¬Á‡øÁà¬åÿÈ SÃÿʸ Ÿ ªÊflÊ ŸˇÊãŸÎâ ¡Á⁄ÃÊ⁄USà ˘ ßãº˝. ÿÊÁ„U flÊÿÈŸ¸ ÁŸÿÈÃÊ ŸÊ •ë¿UÊ àfl ¦ Á„U œËÁ÷Œ¸ÿ‚ Áfl flÊ¡ÊŸ˜.. (18) „U ߢº˝ Œfl! ÿ¡◊ÊŸ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ◊¢òÊ ªÊà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ¡‹ fl ‡ÊÁÄà ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà U„Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UU ¬Ê‚ •Êß∞. •Ê¬ •ÊŸ ∑§ Á‹∞ flÊÿÈ ¡Ò‚ flª‡ÊÊ‹Ë ÉÊÊ«∏U ¡ÊÁÃ∞. •Ê¬ „U◊¥ •ããÊ fl ’‹ ŒËÁ¡∞. (18) ªÊfl ˘ ©U¬ÊflÃÊflâ ◊„UË ÿôÊSÿ ⁄Uå‚ÈŒÊ. ©U÷Ê ∑§áÊʸ Á„U⁄UáÿÿÊ.. (19) ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ ÿôÊ fl ¬ÎâflË ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃË „ÒU¢. Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§ ŒÊŸÊ¥ ∑§ÊŸ Sfláʸ◊ÿ „Ò¥U. (19) ÿŒl ‚Í⁄U ˘ ©UÁŒÃŸÊªÊ Á◊òÊÊ •ÿ¸◊Ê. ‚ÈflÊÁà ‚ÁflÃÊ ÷ª—.. (20) •Ê¡ ‚Íÿ¸ ∑§ ©UÁŒÃ „UÊŸ ¬⁄U ÁŸ‡¿U‹ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê Á◊òÊ •ÊÒ⁄U •ÿ¸◊Ê Œfl üÊcΔU ∑§Ê◊Ê¥ ◊¥ ‹ªÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ÊÒ÷ÊÇÿ‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊ∞¢. fl üÊcΔU ∑§Ê◊Ê¥ ◊¥ ‹ªÊ∞¢. (20) •Ê ‚Èà Á‚Üøà ÁüÊÿ ¦ ⁄UÊŒSÿÊ⁄UÁ÷ÁüÊÿ◊˜. ⁄U‚Ê ŒœËà flη÷◊˜. â ¬˝àŸÕÊÿ¢ flŸ—.. (21) ÿ¡◊ÊŸªáÊ ¬˝fl„U◊ÊŸ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê Á‚¢Áøà ∑§⁄Uà „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ‚¢⁄UˇÊáÊ ◊¥ ‚Ê◊ ∑§Ê ¬˝flÊ„U ’„ÈUà á „UÊÃÊ „ÒU. fl„U ‡ÊÊ÷Êÿ◊ÊŸ „UÊÃÊ „ÒU. (21) •ÊÁÃcΔUãâ¬Á⁄U Áfl‡fl •÷Í·ÁÜ¿˛UÿÊ fl‚ÊŸ‡ø⁄UÁà Sfl⁄UÊÁø—. ◊„UûÊŒ˜flÎcáÊÊ •‚È⁄USÿ ŸÊ◊Ê Áfl‡flM§¬Ê •◊ÎÃÊÁŸ ÃSÕÊÒ.. (22) ߢº˝ Œfl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ •ÊÒ⁄U flÒ÷flflÊŸ „Ò¥U. ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ Ÿ Á◊‹ ∑§⁄U ©UŸ ∑§Ë ¬˝ÁÃcΔUÊ ∑§Ë „ÒU. ‚÷Ë Œfl øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ ÉÊ⁄U ∑§⁄U ©UŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ◊„UÊŸ˜ fl Áfl‡flM§¬ „Ò¥U. ∑§ß¸§•‚È⁄UÊ¥ ∑§Ê ◊Ê⁄ U∑§⁄ ©Uã„UÊ¥Ÿ ÅÿÊÁà ¬Ê߸ „ÒU. fl •◊⁄U „Ò¥U. (22) ¬˝ flÊ ◊„U ◊ãŒ◊ÊŸÊÿÊ㜂Êøʸ Áfl‡flÊŸ⁄UÊÿ Áfl‡flÊ÷Èfl. ßãº˝Sÿ ÿSÿ ‚È◊π ¦ ‚„UÊ ◊Á„U üÊflÊ ŸÎêáÊ¢ ø ⁄UÊŒ‚Ë ‚¬ÿ¸Ã—.. (23) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! ߢº˝ Œfl ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë, ‚’ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ ¬Ê‹∑§, ‚¢¬Íáʸ ¡ª ∑§Ê ©U¬¡ÊŸ flÊ‹ fl ◊Œ◊Sà ’ŸÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ë •ëʸŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ üÊcΔU ÿôÊ Á∑§∞ ¡Êà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ‚ÈŸË ¡ÊÃË „ÒU, ¡Ê ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U Sflª¸ ŒÊŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ◊„UÊŸ˜ flÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (23) ’΄UÁãŸÁŒä◊ ˘ ∞·Ê¢ ÷ÍÁ⁄U ‡ÊSâ ¬ÎÕÈ— SflL§—. ÿ·ÊÁ◊ãº˝Ê ÿÈflÊ ‚πÊ.. (24) ÿ¡Èfl¸Œ - 371
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ߢº˝ Œfl ÿÈflÊ, „U◊Ê⁄UU ‚πÊ, Áfl‡ÊÊ‹ fl ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. fl ’„ÈU ¬˝‡Ê¢Á‚à •ÊÒ⁄U ‚Ê◊âÿ¸‡ÊÊ‹Ë „Ò¥U. (24) ßãº˝Á„U ◊àSÿãœ‚Ê Áfl‡flÁ÷— ‚Ê◊¬fl¸Á÷—. ◊„UÊ° 2 •Á÷ÁCÔU⁄UÊ¡‚Ê.. (25) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ◊„UÊŸ˜, •ÊŒ⁄UáÊËÿ fl ‚’ ∑§Ê •ÊŸ¢Œ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊ ©Uà‚fl ◊¥ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê„ÈUÁà ª˝„UáÊ ∑§⁄U ∑§ ¬˝‚㟠„UÊß∞. „U◊¥ •Ê¡SflË ’ŸÊß∞. „U◊Ê⁄U •÷Ëc≈U ¬ÍÁ⁄U∞. (25) ßãº˝Ê flÎòÊ◊flÎáÊÊë¿Uœ¸ŸËÁ× ¬˝ ◊ÊÁÿŸÊ◊Á◊ŸÊm¬¸áÊËÁ×. •„UŸ˜ √ÿ ¦ ‚◊ȇʜÇflŸcflÊÁflœ¸ŸÊ ˘ •∑ΧáÊʺ˝ÊêÿÊáÊÊ◊˜.. (26) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ flÎòÊÊ‚È⁄U, ◊ÊÿÊflË ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ fl ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê Œ‹Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ •ÊtÊŒ∑§ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ¬˝∑§≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (26) ∑ȧÃSàflÁ◊ãº˝ ◊ÊÁ„UŸ— ‚ãŸ∑§Ê ÿÊÁ‚ ‚à¬Ã Á∑¢§ à ˘ ßàÕÊ. ‚¢ ¬Îë¿U‚ ‚◊⁄UÊáÊ— ‡ÊÈ÷ÊŸÒflʸøSÃãŸÊ „UÁ⁄UflÊ ÿûÊ •S◊. ◊„UÊ° 2 ßãº˝Ê ÿ ˘ •Ê¡‚Ê ∑§ŒÊ øŸ SÃ⁄UË⁄UÁ‚ ∑§ŒÊ øŸ ¬˝ ÿÈë¿UÁ‚.. (27) „UU ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ‚Ö¡ŸÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „ÒU¥ . •Ê¬ •∑§‹ ∑§„UÊ¢ ¡Êà „ÒU¥ ? •Ê¬ ß‚ ¬˝∑§Ê⁄U ÄÿÊ¥ ¡Êà „ÒU¥ . •ë¿UË Ã⁄U„U ¡Êà „ÈU∞ •Ê¬ ‚ ÿ„U ¬˝‡Ÿ ¬Í¿UÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§ ÉÊÊ«U∏ „U⁄U ⁄¢Uª ∑§ „ÒU¥ . •Ê¬ •Ê¡SflË „ÒU¥ . •Ê¬ ∑§÷Ë ÷Ë Á„¢U‚Ê •ÊÁŒ Ÿ„UË¥ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‡ÊÈ÷Áø¢Ã∑§ •ÊÒ⁄U •¬Ÿ „ÒU¥ . ß‚ËÁ‹∞ „U◊ •Ê¬ ‚ ÿ„U ‚’ ¬Í¿U ⁄U„ „ÒU¥ . (27) •Ê ÃûÊ ˘ ßãº˝Êÿfl— ¬ŸãÃÊÁ÷ ÿ ˘ ™§flZ ªÊ◊ãâ ÁÃÃÎà‚ÊŸ˜. ‚∑ΧàSfl¢ ÿ ¬ÈL§¬ÈòÊÊ¢ ◊„UË ¦ ‚„UdœÊ⁄UÊ¢ ’΄UÃË¥ ŒÈŒÈˇÊŸ˜.. (28) „UU ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ªÊSflÊÁ◊ÿÊ¥ ∑§ ÉÊÊÃ∑§Ê¥ fl ÷ͬÁÃÿÊ¢ (÷ÍÁ◊SflÊ◊Ë) ∑§ „UàÿÊ⁄UÊ¥ ∑§Ê ◊Ê⁄Uà „Ò¥U. ¬ÎâflË ¬⁄U ‚„dÊ¥ œÊ⁄UÊ•Ê¥ flÊ‹ ‚Ê◊ ∑§Ê ÁŸøÊ«∏Uà „Ò¥U. ©U‚ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. üÊcΔU ∑§◊ÊZ flÊ‹ •Ê¬ ∑ ¬ÈòÊ •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ªÊŸ ∑§⁄Uà U„Ò¥U. (28) ß◊Ê¢ à Áœÿ¢ ¬˝ ÷⁄U ◊„UÊ ◊„UË◊Sÿ SÃÊòÊ Áœ·áÊÊ ÿûÊ ˘ •ÊŸ¡. Ã◊Èà‚fl ø ¬˝‚fl ø ‚Ê‚Á„UÁ◊ãº˝¢ ŒflÊ‚— ‡Êfl‚Ê◊ŒãŸŸÈ.. (29) „UU ߢº˝! „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ’ÈÁh ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà U„Ò¥. •Ê¬ ◊„UÊŸ fl ¬ÎâflË ∑§Ê ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©Uà‚fl •ÊÒ⁄U ¬˝‚fl ∑§ ‚◊ÿ „U◊¥ ∑§c≈U ¬„¢ÈUøÊŸ flÊ‹ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ‚Ê„U‚Ë ß¢º˝ Œfl Œ◊Ÿ ∑§⁄UUà „Ò¥U. ŒflªáÊ ÷Ë •ÊŸ¢ÁŒÃ „UÊ ∑§⁄U ߢº˝ Œfl ∑§ ªÈáÊ ªÊà „Ò¥U. (29) Áfl÷˝Ê«˜U ’΄UÁ଒ÃÈ ‚Êêÿ¢ ◊äflÊÿÈŒ¸œlôʬÃÊflÁflOÔ‰U Ã◊˜. flÊáÍÃÊ ÿÊ •Á÷⁄UˇÊÁà à◊ŸÊ ¬˝¡Ê— ¬È¬Ê· ¬ÈL§œÊ Áfl ⁄UÊ¡ÁÃ.. (30) „UU ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ø◊∑§Ë‹ fl Áfl‡ÊÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê 372 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ËÁ¡∞. ‚Ê◊⁄U‚ ◊œÈU⁄U „ÒU. „U◊ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •¬ŸË ¬˝¡Ê ∑§Ë ‚fl¸ÁflÁœ (‚’ ¬˝∑§Ê⁄U ‚) ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ¬˝¡Ê ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ¬Ê·áÊ •ÊÒ⁄U ©Uã„¥U ’„ÈUÁflÁœ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (30) ©UŒÈ àÿ¢ ¡ÊÃflŒ‚¢ Œfl¢ fl„UÁãà ∑§Ãfl—. ŒÎ‡Ê Áfl‡flÊÿ ‚Íÿ¸◊˜.. (31) ‚Íÿ¸ ‚’ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹, ‚’ ∑ȧ¿U ¡ÊŸŸ flÊ‹ fl ‚Ê⁄U Áfl‡fl ∑§Ê ŒπŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. fl ™§äfl¸ªÊ◊Ë ¬ÃÊ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (31) ÿŸÊ ¬Êfl∑§ øˇÊ‚Ê ÷È⁄Uáÿãâ ¡ŸÊ° 2 •ŸÈ. àfl¢ flL§áÊ ¬‡ÿÁ‚.. (32) „UU flL§áÊ Œfl! •Ê¬ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ flÊ‹ fl ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ Á¡‚ ŒÎÁc≈ ‚ Œπà „Ò¥U. „U◊ ÷Ë ©U‚Ë ŒÎÁc≈U ‚ (‹ÊªÊ¥ ∑§Ê) ŒπŸ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄U¥. (32) ŒÒ√ÿÊfläflÿ͸ •Ê ªÃ ¦ ⁄UÕŸ ‚Íÿ¸àfløÊ. ◊äflÊ ÿôÊ ¦ ‚◊Ü¡ÊÕ. â ¬˝àŸÕÊÿ¢ flŸÁ‡øòÊ¢ ŒflÊŸÊ◊˜.. (33) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ÁŒ√ÿ fl (ÿôÊ ∑§) •äflÿȸ (¬È⁄UÊÁ„UÃ) „Ò¥U. •Ê¬ ‚Íÿ¸ ∑§ ‚◊ÊŸ ø◊∑§Ÿ flÊ‹ ⁄UÕ ‚ ÿ„UÊ¢ •Ê ¡Êß∞. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ß‚ ÿôÊ ∑§Ê ¬˝ÿàŸ¬Ífl¸∑§ (•ë¿UË Ã⁄U„U ‚) ¬Íáʸ ∑§⁄UÊß∞. (33) •Ê Ÿ ˘ ß«UÊÁ÷Áfl¸ŒÕ ‚ȇÊÁSà Áfl‡flÊŸ⁄U— ‚ÁflÃÊ Œfl ˘ ∞ÃÈ. •Á¬ ÿÕÊ ÿÈflÊŸÊ ◊à‚ÕÊ ŸÊ Áfl‡fl¢ ¡ªŒÁ÷Á¬àfl ◊ŸË·Ê.. (34) „UU ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ’„ÈU¬˝‡Ê¢Á‚Ã, ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË fl •ãŸŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿ„Ê¢ ÿôÊ SÕÊŸ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿÈflÊ fl ¡ªÃ˜ ∑§ ¬Ê‹Ÿ„UÊ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ „U◊ ‚÷Ë ∑§Ê •¬ŸË ’ÈÁh ‚ UÃÎåà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (34) ÿŒl ∑§ëø flÎòÊ„UãŸÈŒªÊ ˘ •Á÷ ‚Íÿ¸. ‚flZ ÃÁŒãº˝ à fl‡Ê.. (35) „UU ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‡ÊòÊȟʇÊË „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ¡Ò‚ •¢œ⁄U ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË •Ê¬ flÎòÊ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ߢº˝ Œfl! ‚’ ∑ȧ¿U •Ê¬ ∑§ „UË fl‡Ê ◊¥ „Ò. (35) Ã⁄UÁáÊÁfl¸‡flŒ‡Ê¸ÃÊ ÖÿÊÁÃc∑ΧŒÁ‚ ‚Íÿ¸. Áfl‡fl◊Ê ÷ÊÁ‚ ⁄UÊøŸ◊˜.. (36) „U ‚Íÿ¸! •Ê¬ ÃÊ⁄U∑§, ‚¢‚Ê⁄U ∑§ Á‹∞ Œ‡Ê¸ŸËÿ fl ÖÿÊÁà ∑§ •ÊÁflc∑§Ê⁄U∑§ „Ò¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ¬˝∑§Ê‡Ê ‚ ‚’ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. (36) Ãà‚Íÿ¸Sÿ Œflàfl¢ Ãã◊Á„Uàfl¢ ◊äÿÊ ∑§ÃʸÁfl¸Ãà ¦ ‚¢ ¡÷Ê⁄U. ÿŒŒÿÈÄà „UÁ⁄U× ‚œSÕʌʺ˝ÊòÊË flÊ‚SßÈà Á‚◊S◊Ò.. (37)
ÿ¡Èfl¸Œ - 373
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚Íÿ¸ ∑§Ë ÁŒ√ÿÃÊ fl ◊Á„U◊Ê √ÿʬ∑§ „ÒU. ‚Íÿ¸ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ◊äÿ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ (ÁSÕÃ) fl Áfl‡ÊÊ‹ ÁŸ◊ʸáÊ •ÊÒ⁄U ‚¢„UÊ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹ U„Ò¥U. ¡’ fl •‹ª ∑§⁄U ∑§ •¬ŸË „U⁄UË Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ê ‚ʜà „Ò¥U, Ã’ ⁄UÊÁòÊ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê •¢äÊ∑§Ê⁄U ‚ ÉÊ⁄U ‹ÃË „ÒU. (37) ÃÁã◊òÊSÿ flL§áÊSÿÊÁ÷øˇÊ ‚Íÿʸ M§¬¢ ∑ΧáÊÈà lÊL§¬SÕ. •ŸãÃ◊ãÿº˝È‡ÊŒSÿ ¬Ê¡— ∑ΧcáÊ◊ãÿhÁ⁄U× ‚¢ ÷⁄UÁãÃ.. (38) ‚Íÿ¸ Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§ ‚ÊÕ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ‚’ •Ê⁄U ‚ Œπà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ M§¬flÊŸ „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ ©UŸ ∑§ ©U‚ M§¬ ∑§Ê œÊ⁄áÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. ŒÍ‚⁄UÊ ∑ΧcáÊ •ÊÒ⁄U „UÁ⁄Uà M§¬ „ÒU. ©U‚ •Ê∑§Ê‡Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. (38) ’á◊„UÊ° 2 •Á‚ ‚Íÿ¸ ’«UÊÁŒàÿ ◊„UÊ° 2 •Á‚. ◊„USà ‚ÃÊ ◊Á„U◊Ê ¬ŸSÿÃhÊ Œfl ◊„UÊ° 2 •Á‚.. (39) „U ‚Íÿ¸! •Ê¬ ’«∏U „UË ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. „U •ÊÁŒàÿ Œfl! •Ê¬ ’«∏U ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. ◊„UÊŸ˜ „UÊŸ ∑§ ∑§Ê⁄UáÊ „UË ‚÷Ë •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ªÊà „Ò¥U. flÊSÃfl ◊¥ •Ê¬ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ◊¥ ◊„UÊŸ˜ „Ò¥U. (39) ’≈U˜ ‚Íÿ¸ üÊfl‚Ê ◊„UÊ° 2 •Á‚ ‚òÊÊ Œfl ◊„UÊ° 2 •Á‚. ◊qÔUÊ ŒflÊŸÊ◊‚Èÿ¸— ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ Áfl÷È ÖÿÊÁÃ⁄UŒÊèÿ◊˜.. (40) „UU ‚Íÿ!¸ •Ê¬ ¬˝ÅÿÊÃ, ◊„UÊŸ˜, ‚÷Ë ŒflÊ¥ ◊¥ ◊„UÊŸ˜ fl •‚È⁄UŸÊ‡Ê∑§ „ÒU¥ . •Ê¬ ¬È⁄UÊÁ „UÃ, ¬˝∑§Ê‡Ê∑§ fl ÖÿÊÁà ∑§ ÷¢«UÊ⁄U „ÒU¥ . (40) üÊÊÿãà ˘ ßfl ‚ÍÿZ Áfl‡flÁŒãº˝Sÿ ÷ˇÊÃ. fl‚ÍÁŸ ¡Êà ¡Ÿ◊ÊŸ ˘ •Ê¡‚Ê ¬˝Áà ÷ʪ¢ Ÿ ŒËÁœ◊.. (41) ‚Íÿ¸ ‚ ©Uà¬ãŸ „UÊ ∑§⁄U ©UŸ ∑§ ‚¢⁄UˇÊáÊ ◊¥ ©UŸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ flÒ÷fl ∑§Ê ÷ʪÃË „Ò¥, flÒ‚ „UË „U◊ •¬ŸË ÷ÊflË ¬Ë…∏UË ∑§ Á‹∞ •Ê¡ •ÊÒ⁄U œŸ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. (41) •lÊ ŒflÊ ˘ ©UÁŒÃÊ ‚Íÿ¸Sÿ ÁŸ⁄ ¦ „U‚— Á¬¬ÎÃÊ ÁŸ⁄UfllÊØ. ÃãŸÊ Á◊òÊÊ flL§áÊÊ ◊Ê◊„UãÃÊ◊ÁŒÁ× Á‚ãœÈ— ¬ÎÁÕflË ©Uà lÊÒ—.. (42) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¡ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊ¥ ©UÁŒÃ „UÊ ∑§⁄ „U◊¥ ¬Ê¬Ê¥ fl Á„¢U‚Ê ‚ ’øÊ∞¢. fl Á◊òÊ Œfl, flL§áÊ Œfl, •ÁŒÁà Œfl, ‚◊Ⱥ˝, ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§ „U◊ •Á„¢U‚∑§ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ßë¿UÊ ¬Í⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (42) •Ê ∑ΧcáÊŸ ⁄U¡‚Ê flûʸ◊ÊŸÊ ÁŸfl‡ÊÿãŸ◊Îâ ◊àÿZ ø. Á„U⁄UáÿÿŸ ‚ÁflÃÊ ⁄UÕŸÊ ŒflÊ ÿÊÁà ÷ÈflŸÊÁŸ ¬‡ÿŸ˜.. (43) ∑§Ê‹ •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ÷⁄U ¬Õ ¬⁄U ÉÊÍ◊à „ÈU∞ ‚ÁflÃÊ Œfl •¬Ÿ ‚ÊŸ ∑§ ⁄UÕ ¬⁄U 374 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚flÊ⁄U „UÊ ∑§⁄U ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê Œπà „ÈU∞ ¡Êà „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ÁŸfl‡Ê (∑§Ê◊ ◊¥ ‹ªÊÃ) ∑§⁄Uà „ÈU∞ ¡Êà „Ò¥U. (43) ¬˝ flÊflΡ ‚Ȭ˝ÿÊ ’Á„¸U ⁄U·Ê◊Ê Áfl‡¬ÃËfl ’ËÁ⁄U≈U ˘ ßÿÊÃ. Áfl‡ÊÊ◊ÄÃÊL§·‚— ¬Ífl¸„ÍUÃÊÒ flÊÿÈ— ¬Í·Ê SflSÃÿ ÁŸÿÈàflÊŸ˜.. (44) ÿ¡◊ÊŸ •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ Á‹∞ ©U·Ê∑§Ê‹ ◊¥ flÊÿÈ fl ¬Í·Ê Œfl ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ ߟ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ Œfl ΔUÊ≈’Ê≈UU ‚ ⁄UÊ¡Ê ∑§Ë Ã⁄U„U ¬œÊ⁄Uà „Ò¥U. (44) ßãº˝flÊÿÍ ’΄US¬Áâ Á◊òÊÊÁÇŸ¢ ¬Í·áÊ¢ ÷ª◊˜. •ÊÁŒàÿÊŸ˜ ◊ÊL§Ã¢ ªáÊ◊˜.. (45) „U◊ ߢº˝ Œfl, flÊÿÈ Œfl, ’΄US¬Áà Œfl, Á◊òÊ Œfl, •ÁÇŸ¬Í·Ê Œfl ÷ª Œfl, •ÊÁŒàÿªáÊ •ÊÒ⁄U ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (45) flL§áÊ— ¬˝ÊÁflÃÊ ÷ÈflÁã◊òÊÊ Áfl‡flÊÁ÷M§ÁÃÁ÷—. ∑§⁄UÃÊ¢ Ÿ— ‚È⁄UÊœ‚—.. (46) flL§áÊ Œfl •ÊÒ⁄U Á◊òÊ Œfl ‚¢‚Ê⁄U ∑§ Á◊òÊ „Ò¥. fl •¬ŸË ¬Í⁄UË ˇÊ◊ÃÊ ‚ •¬Ÿ ‚÷Ë ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ Œfl „U◊¥ üÊcΔU œŸÊ¥ ‚ ‚¢¬ãŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (46) •Áœ Ÿ ˘ ßãº˝·Ò Ê¢ ÁflcáÊÊ ‚¡ÊàÿÊŸÊ◊˜. ßÃÊ ◊L§ÃÊ •Á‡flŸÊ. â ¬˝àŸÕÊÿ¢ flŸÊ ÿ ŒflÊ‚˘•Ê Ÿ˘ß«UÊÁ÷Áfl¸‡flÁ÷— ‚Êêÿ¢ ◊äflÊ◊Ê‚‡ø·¸áÊËœÎ×.. (47) „U ߢº˝ Œfl! „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ‚¡ÊÃËÿ ’¢œÈ•Ê¥ ∑§ ’Ëø •ÁœÁcΔUà „UÊß∞. ◊L§Œ˜ªáÊ •ÊÒ⁄U •Á‡flŸË Œfl ÷Ë •ÁœÁcΔUà „UÊŸ ∑§Ë §∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚÷Ë Œfl ‚fl¸º˝c≈UÊ „Ò¥U. ‚÷Ë Œfl ◊œÈ⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ËŸ fl „U◊¥ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (47) •ÇŸ ˘ ßãº˝ flL§áÊ Á◊òÊ ŒflÊ— ‡Êœ¸— ¬˝ ÿãà ◊ÊL§ÃÊà ÁflcáÊÊ. ©U÷Ê ŸÊ‚àÿÊ L§º˝Ê •œ ÇŸÊ— ¬Í·Ê ÷ª— ‚⁄USflÃË ¡È·ãÃ.. (48) „U •ÁÇŸ! „U ߢº˝ Œfl! „U flL§áÊ Œfl, „U Á◊òÊ Œfl! „U ◊L§Œ˜ªáÊ! „U ÁflcáÊÈ! •Ê¬ „U◊¥ ‚Èπ fl ‚Ê◊âÿ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U, L§º˝ªáÊ, ¬Í·Ê, ÷ª, ‚⁄USflÃË •ÊÁŒ ŒflÃÊ ÷Ë „U◊Ê⁄UU ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (48) ßãº˝ÊÇŸË Á◊òÊÊflL§áÊÊÁŒÁà ¦ Sfl— ¬ÎÁÕflË¥ lÊ¢ ◊L§Ã— ¬fl¸ÃÊ° 2 •¬—. - „ÈUfl ÁflcáÊÈ¢ ¬Í·áÊ¢ ’˝rÊÔáÊS¬Áâ ÷ª¢ ŸÈ ‡Ê ¦ ‚ ¦ ‚ÁflÃÊ⁄U◊ÍÃÿ.. (49) „U◊ ߢº˝ Œfl, •ÁÇŸ, Á◊òÊ Œfl, flL§áÊ Œfl, •ÁŒÁà Œfl, ¬ÎâflË‹Ê∑§, Sflª¸‹Ê∑§, ◊L§Œ˜ªáÊ, ¬fl¸Ã, ¡‹, ÁflcáÊÈ, ¬Í·Ê Œfl, ’΄US¬Áà Œfl, ÷ª Œfl fl ‚ÁflÃÊ Œfl ÿ¡Èfl¸Œ - 375
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ‚ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚Á„Uà ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (49) •S◊ L§º˝Ê ◊„UŸÊ ¬fl¸ÃÊ‚Ê flÎòÊ„Uàÿ ÷⁄U„ÍUÃÊÒ ‚¡Ê·Ê—. ÿ— ‡Ê ¦ ‚à SÃÈflà œÊÁÿ ¬ÖÊ˝ ˘ ßãº˝ÖÿcΔUÊ •S◊Ê° 2 •flãÃÈ ŒflÊ—.. (50) ÿ¡◊ÊŸ „UÃÈ ◊„U (fl·Ê¸) ’⁄U‚ÊŸ flÊ‹, flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄UŸ flÊ‹, ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê L§‹ÊŸ flÊ‹, ¬fl¸ÃflÊ‚Ë ß¢º˝ Œfl „U◊Ê⁄UÊ èÊ⁄UáʬʷáÊ fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl flÁ⁄UcΔU „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë „U◊ SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë „U◊ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (50) •flʸÜøÊ •lÊ ÷flÃÊ ÿ¡òÊÊ •Ê flÊ „UÊÁŒ¸ ÷ÿ◊ÊŸÊ √ÿÿÿ◊˜. òÊÊäfl¢ ŸÊ ŒflÊ ÁŸ¡È⁄UÊ flÎ∑§Sÿ òÊÊäfl¢ ∑§ÃʸŒfl¬ŒÊ ÿ¡òÊÊ—.. (51) „UU ŒflªáÊ! •Ê¬ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ fl „U◊Ê⁄UU ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¡ •Ê¬ „U◊Ê⁄ ÁŸ∑§≈U ¬œÊÁ⁄U∞. „U◊ «U⁄U „ÈU∞ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ NUŒÿ ◊¥ ¬˝◊ ÷Êfl ÷Á⁄U∞. •Ê¬ ’È⁄U ∑§Ê◊Ê¥ fl ’È⁄U ‹ÊªÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. (51) Áfl‡fl •l ◊L§ÃÊ Áfl‡fl ˘ ™§ÃË Áfl‡fl ÷flãàflÇŸÿ— ‚Á◊hÊ—. Áfl‡fl ŸÊ ŒflÊ ˘ •fl‚Ê ª◊ãÃÈ Áfl‡fl◊SÃÈ º˝ÁfláÊ¢ flÊ¡Ê •S◊.. (52) •Ê¡ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ ◊L§Œ˜ªáÊ ‚’ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ fl Áfl‡fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ Á‹∞ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Á◊œÊ•Ê¥ ‚ ߢº˝ Œfl ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Ê∞¢. ‚÷Ë Œfl „U◊¥ ’‹ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. ‚÷Ë Œfl „U◊¥ •ããÊ fl œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (52) Áfl‡fl ŒflÊ— oÎáÊÈÃ◊ ¦ „Ufl¢ ◊ ÿ •ãÃÁ⁄UˇÊ ÿ ˘ ©U¬ lÁfl cΔU. ÿ •ÁÇŸÁ¡uÔUÊ ˘ ©Uà flÊ ÿ¡òÊÊ ˘ •Ê‚lÊÁS◊ã’Á„¸UÁ· ◊ÊŒÿäfl◊˜.. (53) ‚÷Ë Œfl „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¢ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. ¡Ê Œfl •¢ÃÁ⁄UˇÊ ‹Ê∑§ ◊¥ „Ò¥U, ¡Ê Œfl Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ „Ò¥U, fl Œfl ÷Ë „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¥ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ◊Èπ flÊ‹ Œfl „U◊Ê⁄UË ŒË „ÈU߸ „UÁfl ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ◊¥ „U◊ Ÿ ∑ȧ‡Ê ∑§ •Ê‚Ÿ ©UŸ ∑§ Á‹∞ Á’¿UÊ∞ „Ò¥U. fl ∑Χ¬ÿÊ ©U‚ ¬⁄U Áfl⁄UÊ¡¥. (53) ŒflèÿÊ Á„U ¬˝Õ◊¢ ÿÁôÊÿèÿÊ◊ÎÃàfl ¦ ‚ÈflÁ‚ ÷ʪ◊ÈûÊ◊◊˜. •ÊÁŒgÊ◊ÊŸ ¦ ‚ÁflÃ√ÿ͸áÊȸ·ŸÍøËŸÊ ¡ËÁflÃÊ ◊ÊŸÈ·èÿ—.. (54) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ¬˝Õ◊ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê •◊Îà •ÊÒ⁄U ©UûÊ◊ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl Á»§⁄U (•¢ÃÁ⁄UˇÊ ◊¥) •¬ŸË Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ¡ËflŸ ∑§ Á‹∞ fl ÿàŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (54) ¬˝ flÊÿÈ◊ë¿UÊ ’΄UÃË ◊ŸË·Ê ’΄Uº˝Áÿ¢ Áfl‡flflÊ⁄ ¦ ⁄UÕ¬˝Ê◊˜. 376 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
lÈÃlÊ◊Ê ÁŸÿÈ× ¬àÿ◊ÊŸ— ∑§Áfl— ∑§ÁflÁ◊ÿˇÊÁ‚ ¬˝ÿÖÿÊ.. (55) „U ¬È⁄UÊÁ„UÃ! •Ê¬ flÒ÷fl‡ÊÊ‹Ë, ∑§Áfl fl ⁄UÕflÊŸ „Ò¥U. „U◊ üÊcΔU ’ÈÁh ‚ •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ üÊcΔU ’ÈÁh ‚ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ◊¥ •¬Ÿ ∑§Ê ‹ªÊß∞. •Ê¬ flÊÿÈ ∑§Ë üÊcΔU ’ÈÁh ‚ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§ËÁ¡∞. (55) ßãº˝flÊÿÍ ß◊ ‚ÈÃÊ ©U¬ ¬˝ÿÊÁ÷⁄UÊ ªÃ◊˜. ßãŒflÊ flÊ◊ȇÊÁãà Á„U.. (56) „UU ߢº˝ Œfl! „U flÊÿÈ! •Ê¬ ∑§ ߟ ¬ÈòÊÊ¥ Ÿ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊⁄U‚ ÁŸøÊ«∏U ∑§⁄U ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ¬œÊÁ⁄U∞. ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U flÊÿÈ Œfl „U◊¥ ‡ÊÊ¢Áà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (56) Á◊òÊ ¦ „ÈUfl ¬ÍÃŒˇÊ¢ flL§áÊ¢ ø Á⁄U‡ÊÊŒ‚◊˜. Áœÿ¢ ÉÊÎÃÊøË ¦ ‚ÊœãÃÊ.. (57) Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ¬ÁflòÊÃÊŒÊÿË, ŒˇÊ •ÊÒ⁄U ¬Ê¬ œÊUŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ ÉÊË ‚ ‚Ë¥øË „ÈU߸, ‚ÊœË „ÈU߸ ’ÈÁh ‚ ©UŸ ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (57) ŒdÊ ÿÈflÊ∑§fl— ‚ÈÃÊ ŸÊ‚àÿÊ flÎÄÃ’Á„¸U·—. •Ê ÿÊà ¦ L§º˝flûʸŸË. â ¬˝àŸÕÊÿ¢ flŸ—.. (58) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ÿÈflÊ fl ‚È¢Œ⁄U „Ò¥U. •Ê¬ •Êß∞ •ÊÒ⁄U ∑ȧ‡Ê flÊ‹ •Ê‚Ÿ ¬⁄U Áfl⁄UÊÁ¡∞. •Ê¬ L§º˝ ¡Ò‚Ë flÎÁûÊ flÊ‹ „Ò¥U, •Ê¬ •Êß∞. „U◊ Ÿ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ¬˝ÿàŸ¬Ífl¸∑§ ‚Ê◊⁄U‚ ÃÒÿÊ⁄U Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ©U‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (58) ÁflŒlŒË ‚⁄U◊Ê L§ÇáÊ◊º˝◊¸Á„U ¬ÊÕ— ¬Í√ÿ¸ ¦ ‚œ˝KÄ∑§—. •ª˝¢ Ÿÿà‚ȬlˇÊ⁄UÊáÊÊ◊ë¿UÊ ⁄Ufl¢ ¬˝Õ◊Ê ¡ÊŸÃË ªÊØ.. (59) •ª˝ªáÿ üÊcΔU •ˇÊ⁄U flÊ‹ ◊¢òÊÊ¥ ‚ ÿ¡◊ÊŸ ŒflÊ¥ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈U∑§Í ≈U ∑§⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ÁŸøÊ«U∏ Ê ªÿÊ „ÒU. ÁflmÊŸ˜ ß‚ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ‚flŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . (59) ŸÁ„U S¬‡Ê◊ÁflŒãŸãÿ◊S◊ÊmÒ‡flÊŸ⁄UÊà¬È⁄U ˘ ∞ÃÊ⁄U◊ÇŸ—. ∞◊Ÿ◊flÎœãŸ◊ÎÃÊ ˘ •◊àÿZ flÒ‡flÊŸ⁄¢ ˇÊÒòÊÁ¡àÿÊÿ ŒflÊ—.. (60) „U •ÁÇŸ! ÿ¡◊ÊŸÊ¥ Ÿ flÒ‡flÊŸ⁄U ∑§ Á’ŸÊ •ÊÒ⁄U Á∑§‚Ë ∑§Ê •ª˝áÊË Ÿ„UË¥ ¡ÊŸÊ. ÿ¡◊ÊŸÊ¥ Ÿ •Ê¬ ∑§Ê •◊⁄U ¡ÊŸÊ. ◊ŸÈcÿÊ¥ Ÿ ÁflÁ÷ããÊ ˇÊòÊÊ¥ ◊¥ ¡Ëà ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ flÒ‡flÊŸ⁄U ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§Ë (60) ©Uª˝Ê ÁflÉÊÁŸŸÊ ◊Îœ ˘ ßãº˝ÊÇŸË „UflÊ◊„U. ÃÊ ŸÊ ◊ΫUÊà ˘ ߸ŒÎ‡Ê.. (61) „U ߢº˝ Œfl! „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ©Uª˝ fl ÁflÉŸ ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ŒflÊ¥ ∑§Ê •ÊUuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ Ã⁄U„U ∑§Ë ÁSÕÁÃÿÊ¥ ◊¥ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (61) ÿ¡Èfl¸Œ - 377
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©U¬ÊS◊Ò ªÊÿÃÊ Ÿ⁄U— ¬fl◊ÊŸÊÿãŒfl. •Á÷ ŒflÊ° 2 ßÿˇÊÃ.. (62) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! ŒflÃÊ•Ê¥ mÊ⁄UÊ øÊ„U ª∞ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ÃÒÿÊ⁄U ∑§ËÁ¡∞. ‚Ê◊⁄U‚ ¬ÁflòÊ „ÒU. •Ê¬ ©U‚ ∑§ Á‹∞ •ÊÒ⁄U SÃÈÁÃÿÊ¢ ªÊß∞. (62) ÿ àflÊÁ„U„Uàÿ ◊ÉÊflãŸflœ¸ãÿ ‡ÊÊê’⁄U „UÁ⁄UflÊ ÿ ªÁflc≈UÊÒ. ÿ àflÊ ŸÍŸ◊ŸÈ◊ŒÁãà Áfl¬˝Ê— Á¬’ãº˝ ‚Ê◊ ¦ ‚ªáÊÊ ◊L§Áj—.. (63) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ œŸflÊŸ fl „U⁄U ⁄¢Uª ∑§ ÉÊÊ«∏U flÊ‹ „Ò¥U. ◊L§Œ˜ªáÊ ◊œÊflË „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ •Á„U, ‡Ê¢’⁄U •ÊÁŒ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ŸÊ‡Ê ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà Á∑§ÿÊ. ªÊÿÊ¥ ∑§Ê ¿ÈU«∏UÊŸ ¬⁄U ©Uã„UÊ¥Ÿ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁÃÿÊ¥ ªÊßZ. fl ‚ŒÒfl •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ◊ÊŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ Áfl¬˝ „Ò¥U. •Ê¬ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ ‚ÊÕ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (63) ¡ÁŸcΔUÊ ©Uª˝— ‚„U‚ ÃÈ⁄UÊÿ ◊ãº˝ ˘ •ÊÁ¡cΔUÊ ’„ÈU‹ÊÁ÷◊ÊŸ—. •flœ¸ÁãŸãº˝¢ ◊L§ÃÁ‡øŒòÊ ◊ÊÃÊ ÿmË⁄¢U ŒœŸhÁŸcΔUÊ.. (64) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‹ÊªÊ¥ mÊ⁄UÊ øÊ„U ª∞ „ÒU¥ . •Ê¬ ©Uª,˝ ‚Ê„U‚Ë, ’ÈÁh◊ÊŸ, flªflÊŸ, •Ê¡flÊŸ fl ’„ÈUà •Á÷◊ÊŸË „ÒU¥ . „U ߢº˝ Œfl! (‡ÊòÊÈŸÊ‡Ê „UÃ)È Œfl ◊ÊÃÊ •ÁŒÁà Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ª÷¸ ◊¥ œÊ⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ Ÿ ÁŸcΔUʬÍfl∑¸ § •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§Ë „Ò. (64) •Ê ÃÍ Ÿ ˘ ßãº˝ flÎòÊ„UãŸS◊Ê∑§◊œ¸◊Ê ªÁ„U. ◊„UÊã◊„UËÁ÷M§ÁÃÁ÷—.. (65) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ flÎòÊÊ‚È⁄U ŸÊ‡Ê∑§ fl ‚¢⁄UˇÊáÊœ◊ʸ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê‚ ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ •¬ŸË ◊„UÊŸ˜ ◊Á„U◊Ê •ÊÒ⁄U ⁄UˇÊÊ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (65) àflÁ◊ãº˝ ¬˝ÃÍÁûʸcflÁ÷ Áfl‡flÊ ˘ •Á‚ S¬Îœ—. •‡ÊÁSÄUÊ ¡ÁŸÃÊ Áfl‡flÃÍ⁄UÁ‚ àfl¢ ÃÍÿ¸ ÃL§cÿ×.. (66) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‚÷Ë ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§ ‚ÊÕ S¬œÊ¸ ∑§⁄Uà „Ò¥. •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê Œ‹Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Èπ ©U¬¡Êà „Ò¥U. (66) •ŸÈ à ‡ÊÈc◊¢ ÃÈ⁄UÿãÃ◊ËÿÃÈ— ˇÊÊáÊË Á‡Ê‡ÊÈ¢ Ÿ ◊ÊÃ⁄UÊ. Áfl‡flÊSà S¬Îœ— üÊÕÿãà ◊ãÿfl flÎòÊ¢ ÿÁŒãº˝ ÃÍfl¸Á‚.. (67) „U ߢº˝ Œfl! ¡Ò‚ ◊ÊÃÊÁ¬ÃÊ •¬Ÿ Á‡Ê‡ÊÈ ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ŒÃ „Ò¥ flÒ‚ „UË •Ê¬ „U◊¥ ‚¢⁄UˇÊáÊ ŒËÁ¡∞. ¡’ •Ê¬ ‡ÊòÊÈ ‚ S¬hʸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. Ã’ ‚Ê⁄UË ‡ÊòÊÈ ‚ŸÊ ÷ÿ÷Ëà „UÊ ¡ÊÃË „ÒU. (67) ÿôÊÊ ŒflÊŸÊ¢ ¬˝àÿÁà ‚ÈêŸ◊ÊÁŒàÿÊ‚Ê ÷flÃÊ ◊ΫUÿã×. •Ê flÊflʸøË ‚È◊ÁÃfl¸flÎàÿÊŒ ¦ „UÊÁ‡ølÊ flÁ⁄UflÊÁflûÊ⁄UʂØ.. (68) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! „U◊ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬˝Áà ÿôÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „UU •ÊÁŒàÿ Œfl! •Ê¬ •ë¿U 378 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
◊Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚ÈπŒÊÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚È◊Áà ŒËÁ¡∞. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ë ’ÈÁh ∑§Ê „U◊Ê⁄U ¬˝Áà •ŸÈ∑ͧ‹ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (68) •ŒéœÁ÷— ‚Áfl× ¬ÊÿÈÁ÷CÔ˜Ufl ¦ Á‡ÊflÁ÷⁄Ul ¬Á⁄U ¬ÊÁ„U ŸÊ ªÿ◊˜. Á„U⁄UáÿÁ¡uÔU— ‚ÈÁflÃÊÿ Ÿ√ÿ‚ ⁄UˇÊÊ ◊ÊÁ∑§ŸÊ¸ •ÉÊ‡Ê ¦ ‚ ˘ ߸‡ÊÃ.. (69) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÉÊ⁄UÊ¥ fl •¬Ÿ ⁄UˇÊÊ‚ÊœŸÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ fl „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚ÊŸ ∑§Ë ¡Ë÷ flÊ‹ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊË‡Ê ŸflÊà „Ò¥U. (69) ¬˝ flË⁄UÿÊ ‡ÊÈøÿÊ ŒÁº˝⁄U flÊ◊äflÿȸÁ÷◊¸œÈ◊ã× ‚ÈÃÊ‚—. fl„U flÊÿÊ ÁŸÿÈÃÊ ÿÊsÔë¿UÊ Á¬’Ê ‚ÈÃSÿÊãœ‚Ê ◊ŒÊÿ.. (70) „U ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ! •Ê¬ ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈U ∑§⁄U,U ÁŸøÊ«U∏ ∑§⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ÃÒÿÊ⁄U ∑§ËÁ¡∞. „U flÊÿÈ! •Ê¬ ÉÊÊ«∏U ¡ÊÁÃ∞, ⁄UÕ ‹Êß∞. •Ê¬ •ÊŸ¢Œ ∑§ Á‹∞ ‚Ê◊⁄U‚ ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (70) ªÊfl ˘ ©U¬ÊflÃÊflâ ◊„UË ÿôÊSÿ ⁄Uå‚ÈŒÊ. ©U÷Ê ∑§áÊʸ Á„U⁄UáÿÿÊ.. (71) „U ÿôÊ ◊¥ ’„U ⁄U„ËU ¡‹œÊ⁄UÊ•Ê! •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „U ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ! •Ê¬ ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈U ∑§⁄U, ÁŸøÊ«∏U ∑§⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ÃÒÿÊ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ∑§ ŒÊŸÊ¥ ∑§ÊŸ ‚ÊŸ ∑§ ’Ÿ „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ‚ „U◊Ê⁄UË SÃÈÁà ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (71) ∑§Ê√ÿÿÊ⁄UÊ¡ÊŸ·È ∑˝§àflÊ ŒˇÊSÿ ŒÈ⁄UÊáÊ. Á⁄U‡ÊÊŒ‚Ê ‚œSÕ ˘ •ÊU.. (72) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ ⁄UÊ¡Ê fl ŒˇÊ „Ò¥U. •Ê¬ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ fl ÿôÊ ¬Í⁄UÊ ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (72) ŒÒ√ÿÊfläflÿ͸ •Ê ªÃ ¦ ⁄UÕŸ ‚Íÿ¸àfløÊ. ◊äflÊ ÿôÊ ¦ ‚◊Ü¡ÊÕ. â ¬˝àŸÕÊÿ¢ flŸ—.. (73) „U ¬È⁄UÊÁ„UÃÊ! •Ê¬ ÁŒ√ÿ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Ã⁄U„U ø◊∑§Ÿ flÊ‹ ⁄UÕ ‚ ß‚ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ Ÿ ¬˝ÿàŸ¬Ífl¸∑§ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ „Áfl ÃÒÿÊ⁄U ∑§Ë „ÒU. (73) ÁÃ⁄U‡øËŸÊ ÁflÃÃÊ ⁄UÁ‡◊⁄U·Ê◊œ— ÁSflŒÊ‚Ë 3 ŒÈ¬Á⁄U ÁSflŒÊ‚Ë 3 Ø. ⁄UÃÊœÊ ˘ •Ê‚ã◊Á„U◊ÊŸ ˘ •Ê‚ãàSflœÊ •flSÃÊà¬˝ÿÁ× ¬⁄USÃÊØ.. (74) ‚Ê◊ ¬ÁflòÊ „Ò¥U. ©UŸ ∑§Ë ÁÃ⁄U¿UË Á∑§⁄UáÊÊ¥ ∑§Ê ¬˝∑§Ê‡Ê ’„ÈUà ŒÍ⁄U Ã∑§ »Ò§‹ÃÊ „Ò. fl ŸËø ™§¬⁄U ‚’ •Ê⁄U √ÿÊåç „Ò¥U. ÿ Á∑§⁄UáÊ¥ flËÿ¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. ÿ Á∑§⁄UáÊ¥ ◊Á„U◊Ê◊ÿË „Ò¥U. ÿ ™§¬⁄U ŸËø ‚’ •Ê⁄U ‚ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃË „ÒU¢. (74) •Ê ⁄UÊŒ‚Ë •¬ÎáÊŒÊ Sfl◊¸„UÖ¡Êâ ÿŒŸ◊¬‚Ê •œÊ⁄UÿŸ˜. ‚Ê •äfl⁄UÊÿ ¬Á⁄U áÊËÿà ∑§Áfl⁄UàÿÊ Ÿ flÊ¡‚ÊÃÿ øŸÊÁ„U×.. (75) ÿ¡Èfl¸Œ - 379
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ê ÿ¡◊ÊŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÁÇŸ ‚’ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ „U◊ •ÁÇŸ ∑§Ê fl⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡Ò‚ ÉÊÊ«∏UÊ ‚’ •Ê⁄U Áflø⁄UÃÊ „ÒU, flÒ‚ „UË •ÁÇŸ ‚’ •Ê⁄U Áflø⁄Uà „Ò¥U. (75) ©UÄÕÁ÷flθòÊ„UãÃ◊Ê ÿÊ ◊ãŒÊŸÊ ÁøŒÊ Áª⁄UÊ. •Êæ˜UªÍ·Ò⁄UÊÁflflʂ×.. (76) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ flÎòÊÊ‚È⁄U ŸÊ‡Ê∑§ fl •ÊŸ¢ŒŒÊÃÊ „Ò¥U. „U◊ üÊcΔU ©UÄÕÊ¥ (◊¢òÊÊ¥) ‚ •Ê¬ ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (76) ©U¬ Ÿ— ‚ÍŸflÊ Áª⁄U— oÎáflãàfl◊ÎÃSÿ ÿ. ‚È◊ΫUË∑§Ê ÷flãÃÈ Ÿ—.. (77) „U◊ •Ê¬ ∑§ ¬ÈòÊ „Ò¥U. •◊⁄U ŒflÃÊ „U◊Ê⁄UË flÊÁáÊÿÊ¢ ‚ÈŸŸ fl „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (77) ’˝rÊÔÊÁáÊ ◊ ◊Ãÿ— ‡Ê ¦ ‚ÈÃÊ‚— ‡ÊÈc◊ ˘ ßÿÁø ¬˝÷ÎÃÊ ◊ •Áº˝—. •Ê ‡ÊÊ‚Ã ¬˝Áà „Uÿ¸ãàÿÈÄÕ◊Ê „U⁄UË fl„UÃSÃÊ ŸÊ •ë¿U.. (78) •Ê¬ ∑§ ¬ÈòÊÊ¥ ∑§Ë ’ÈÁh ‚ÈπŒÊÿË „Ò. „U◊ Ÿ ¬àÕ⁄UÊ¥ ‚ ∑ͧ≈U ∑§⁄U ‚Ê◊⁄U‚ ÁŸøÊ«∏UÊ „ÒU. •Ê¬ •¬Ÿ „⁄U ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ‚ÊÁœ∞, ¡ÊÁÃ∞ •ÊÒ⁄U ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ©UÄÕ ◊¢òÊ ªÊà „Ò¥U. (78) •ŸÈûÊ◊Ê Ã ◊ÉÊflãŸÁ∑§ŸÈ¸ Ÿ àflÊflÊ° 2 •ÁSà ŒflÃÊ ÁflŒÊŸ—. Ÿ ¡Êÿ◊ÊŸÊ Ÿ‡Êà Ÿ ¡ÊÃÊ ÿÊÁŸ ∑§Á⁄UcÿÊ ∑ΧáÊÈÁ„U ¬˝flÎh.. (79) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‚ •Áœ∑§ ©UûÊ◊ ∑§Ê߸ Ÿ„UË¥ „ÒU. •Ê¬ ‚ ÖÿÊŒÊ œŸflÊŸ, •Ê¬ ‚ ÖÿÊŒÊ ∑§Ê߸ ŒflÃÊ ÁflmÊŸ˜ Ÿ„UË¥ „ÒU. •Ê¬ ¡Ò‚Ê ∑§Ê߸ Ÿ ©Uà¬ãŸ „ÈU•Ê „ÒU, Ÿ „UË ©Uà¬ãŸ „UʪÊ. •Ê¬ ¡Ò‚ ∑§Êÿ¸ ÷Ë Ÿ Á∑§‚Ë Ÿ Á∑§∞ „Ò¥U, Ÿ ∑§⁄¥Uª. (79) ÃÁŒŒÊ‚ ÷ÈflŸ·È ÖÿcΔ¢U ÿÃÊ ¡ôÊ ˘ ©Uª˝Sàfl·ŸÎêáÊ—. ‚lÊ ¡ôÊÊŸÊ ÁŸ Á⁄UáÊÊÁà ‡ÊòÊÍŸŸÈ ÿ¢ Áfl‡fl ◊ŒãàÿÍ◊Ê—.. (80) ߢº˝ Œfl ÷ÈflŸÊ¥ ◊¥ ÖÿcΔU, ©Uª˝ fl ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ „Ò¥U. ÿôÊ ◊¥ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‚÷Ë ŒflªáÊ ©UŸ ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚¢‚Ê⁄U ◊¥ ߢº˝ Œfl ‚’ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (80) ß◊Ê ˘ ©U àflÊ ¬ÈM§fl‚Ê Áª⁄UÊ flœ¸ãÃÈ ÿÊ ◊◊. ¬Êfl∑§fláÊʸ— ‡ÊÈøÿÊ Áfl¬Á‡øÃÊÁ÷ SÃÊ◊Ò⁄UŸÍ·Ã.. (81) „U ŒflªáÊ! •Ê¬ ’„ÈUà œŸflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË flÊáÊË ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •ÁÇŸ ¡Ò‚ fláʸ (⁄¢Uª) flÊ‹ •ÊÒ⁄U ¬ÁflòÊ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ‚fl¸Áflœ ¡ÊŸŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ‚fl¸Áflœ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄U ⁄U„ „Ò¥U. (81) ÿSÿÊÿ¢ Áfl‡fl ˘ •Êÿʸ ŒÊ‚— ‡ÊflÁœ¬Ê •Á⁄U—. ÁÃ⁄UÁ‡øŒÿ¸ L§‡Ê◊ ¬flË⁄UÁfl ÃÈèÿà‚Ê •Öÿà ⁄UÁÿ—.. (82) 380 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Á¡‚ ∑§Ê (ߢº˝ Œfl ∑§Ê) ‚Ê⁄UÊ ‚¢‚Ê⁄U ŒÊ‚ „ÒU, ‚Ê⁄U •Êÿ¸ Á¡‚ ∑§ ŒÊ‚ „Ò¥U, ©UŒÊ⁄UÃÊ„UËŸ ‹Êª ©U‚ ∑§ Á‹∞ ŒÈ‡◊Ÿ „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊¥ •ÊÿÈc◊ÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl „U◊¥ œŸflÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U, ÃÊÁ∑§ „U◊ ©U‚ œŸ ∑§Ê ©U¬÷ʪ ∑§⁄U ‚∑¥§. (82) •ÿ ¦ ‚„Ud◊ÎÁ·Á÷— ‚„US∑Χ× ‚◊Ⱥ˝ ˘ ßfl ¬˝¬Õ. ‚àÿ— ‚Ê •Sÿ ◊Á„U◊Ê ªÎáÊ ‡ÊflÊ ÿôÊ·È Áfl¬˝⁄UÊÖÿ.. (83) ߢº˝ Œfl ∑§Ê „U¡Ê⁄UÊ¥ ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ •¬Ÿ SÃÊòÊÊ¥ ‚ ’‹flÊŸ ’ŸÊÿÊ „ÒU. fl „U¡Ê⁄Ê¥ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ ◊¥ ‚◊Õ¸ „Ò¥U. fl ‚◊Ⱥ˝ ∑§Ë ÷Ê¢Áà ÁflSÃÎà „Ò¥U. fl •ÃËfl ◊Á„U◊ÊflÊŸ fl ªáÊ◊Êãÿ „Ò¥U. ÿôÊÊ¥ ◊¥ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ∑§ ∑§„U •ŸÈ‚Ê⁄U ©UŸ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê ∑§Ê ªÈáʪʟ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (83) •ŒéœÁ÷— ‚Áfl× ¬ÊÿÈÁ÷CÔ˜Ufl ¦ Á‡ÊflÁ÷⁄Ul ¬Á⁄U ¬ÊÁ„U ŸÊ ªÿ◊˜. Á„U⁄UáÿÁ¡uÔU— ‚ÈÁflÃÊÿ Ÿ√ÿ‚ ⁄UˇÊÊ ◊ÊÁ∑§ŸÊ¸ •ÉÊ‡Ê ¦ ‚ ˘ ߸‡ÊÃ.. (84) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •Ê¬ ‚ÊŸ ∑§Ë ¡Ë÷ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÉÊ⁄UÊ¥ ∑§Ë ‚’ •Ê⁄U ‚ ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. ¬Ê¬Ë „U◊ ¬⁄U ∑§é¡Ê Ÿ ¡◊Ê ‚∑¥§. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê ’Ê⁄U’Ê⁄U Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (84) •Ê ŸÊ ÿôÊ¢ ÁŒÁflS¬Î‡Ê¢ flÊÿÊ ÿÊÁ„U ‚È◊ã◊Á÷—. •ã× ¬ÁflòÊ ˘ ©U¬Á⁄U üÊËáÊÊŸÊÿ ¦ ‡ÊÈ∑˝§Ê •ÿÊÁ◊ Ã.. (85) „U flÊÿÈ! Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ¿ÍUŸ (¬„¢ÈUøŸ) flÊ‹ „U◊Ê⁄U ß‚ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ ÿ¡◊ÊŸ •Ê¬ ‚ •ÊŸ ∑§Ê •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê◊ ¬ÁflòÊ, ø◊∑§Ë‹ fl •àÿ¢Ã ‡ÊÊ÷ÊŒÊÿ∑§ „Ò¥U. „U◊ ™§¬⁄U ‚ œ⁄UÃË ¬⁄U •Ê∞ ß‚ ‚Ê◊⁄U‚ ∑§Ê •Ê¬ ∑§ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ÷¥≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (85) ßãº˝flÊÿÍ ‚È‚ãŒÎ‡ÊÊ ‚È„Ufl„U „UflÊ◊„U. ÿÕÊ Ÿ— ‚fl¸ ˘ ßÖ¡ŸÊŸ◊Ëfl— ‚X◊ ‚È◊ŸÊ ˘ •‚Ø.. (86) „U ߢº˝ Œfl! „UU flÊÿÈ! •Ê¬ •ë¿UË Ã⁄U„U ‚ •ÊuÊŸ ∑§ ÿÊÇÿ „Ò¥U. „U◊ •ë¿UË Ã⁄U„U •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, Á¡‚ ‚ „U◊Ê⁄U ‚÷Ë (•Êà◊Ëÿ) ¡Ÿ ⁄Uʪ ⁄UÁ„Uà fl üÊcΔU ◊Ÿ flÊ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. (86) ´§œÁªàÕÊ ‚ ◊àÿ¸— ‡Ê‡Ê◊ ŒflÃÊÃÿ. ÿÊ ŸÍŸ¢ Á◊òÊÊflL§áÊÊflÁ÷c≈Uÿ ˘ •Êø∑˝§ „U√ÿŒÊÃÿ.. (87) ¡Ê ◊ŸÈcÿ •¬Ÿ ‚Èπ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ÁŸ‡øÿ „UË ¡Ê ◊ŸÈcÿ •¬Ÿ •÷Ëc≈U ∑§Ë ¬ÍÁø ∑§ Á‹∞ Á◊òÊ Œfl •ÊÒ⁄U flL§áÊ Œfl ∑§Ê •ÊUuÊŸ ∑§⁄à „Ò¥U, „UÁfl ŒŸ ∑§ Á‹∞ ◊ŸÈcÿ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ∑§Ê •÷Ëc≈U ¬Í⁄UÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (87) ÿ¡Èfl¸Œ - 381
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•Ê ÿÊÃ◊Ȭ ÷ͷâ ◊äfl— Á¬’Ã◊Á‡flŸÊ. ŒÈÇœ¢ ¬ÿÊ flηáÊÊ ¡ãÿÊfl‚Í ◊Ê ŸÊ ◊Áœ¸CÔU◊Ê ªÃ◊˜.. (88) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ë ‡ÊÊ÷Ê ’…∏UÊß∞. •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ŒÍäÊ •ÊÒ⁄U ⁄U‚Ê¥ ∑§Ê ¬ËŸ fl œŸ ’⁄U‚ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (88) ¬˝ÒÃÈ ’˝rÊÔáÊS¬Á× ¬˝ Œ√ÿÃÈ ‚ÍŸÎÃÊ. •ë¿UÊ flË⁄¢U ŸÿZ ¬æ˜UÁÄÃ⁄UÊœ‚¢ ŒflÊ ÿôÊ¢ ŸÿãÃÈ Ÿ—.. (89) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ, ÁŒ√ÿ ÃÕÊ ‚àÿflÊáÊË ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ŒflªáÊ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ Á„UÃÒ·Ë „Ò¥U. fl ÿôÊ ◊¥ ¬¢ÁÄà ◊¥ ¬œÊ⁄¥U •ÊÒ⁄U ‡ÊòÊÈŸÊ‡Ê ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (89) øãº˝◊Ê ˘ •åSflãÃ⁄UÊ ‚ȬáÊʸ œÊflà ÁŒÁfl. ⁄UÁÿ¢ Á¬‡ÊX¢ ’„ÈU‹¢ ¬ÈL§S¬Î„ ¦ „UÁ⁄U⁄UÁà ∑§ÁŸ∑˝§ŒÃ˜.. (90) ‚Ê◊ Œfl ø¢º˝◊Ê ∑§ ÷ËÃ⁄U ‚ ÁŸ∑§‹ „Ò¥U. ‚Ê◊ Œfl ŒËÁåÃ◊ÊŸ (ø◊∑§ŒÊ⁄U) fl ⁄¢UªÁ’⁄¢Uª „ÒU¢. fl ÉÊŸ ª¡¸ŸÊ ∑§ ‚ÊÕ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë •Ê⁄U ŒÊÒ«∏Uà „Ò¥U. fl „U◊ ¬⁄U äÊŸ ∑§Ë fl·Ê¸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (90) Œfl¢ Œfl¢ flÊfl‚ Œfl¢ Œfl◊Á÷CÔUÿ. Œfl¢ Œfl ¦ „ÈUfl◊ flÊ¡‚ÊÃÿ ªÎáÊãÃÊ Œ√ÿÊ ÁœÿÊ.. (91) „U◊ •¬ŸË •÷Ëc≈U Á‚Áh ∑§ Á‹∞ Œfl ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬ŸË •÷Ëc≈UU Á‚Áh ∑§ Á‹∞ Œfl ∑§Ê „UÁfl ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ ŒflÃÊ ∑§Ê •ÊuÔUÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (91) ÁŒÁfl ¬ÎCÔUÊ •⁄UÊøÃÊÁÇŸflÒ¸‡flÊŸ⁄UÊ ’΄UŸ˜. ˇ◊ÿÊ flΜʟ ˘ •Ê¡‚Ê øŸÊÁ„UÃÊ ÖÿÊÁÃ·Ê ’ʜà Ã◊—.. (92) flÒ‡flÊŸ⁄U Œfl Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ ¬ÎcΔU Œ‡Ê ◊¥ ŒËåà „Ò¥U. flÒ‡flÊŸ⁄U Œfl „UÁfl ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Êà „Ò¥U. flÒ‡flÊŸ⁄U Œfl ŒËÁåà ‚ •¢œ∑§Ê⁄U Ÿc≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. (92) ßãº˝ÊÇŸË •¬ÊÁŒÿ¢ ¬ÍflʸªÊØ ¬mÃËèÿ—. Á„UàflË Á‡Ê⁄UÊ Á¡uÔUÿÊ flÊflŒëø⁄UÁàòÊ ¦ ‡Êà¬ŒÊ ãÿ∑˝§◊ËØ.. (93) „U ߢº˝ Œfl! ©U·Ê ŒflË ¬Ò⁄U ⁄UÁ„Uà „UÊ ∑§⁄U ÷Ë ¬Ò⁄U flÊ‹Ê¥ ‚ ¬Ífl¸ •ÊÃË „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! Á‚⁄U ⁄UÁ„Uà „UÊŸ ¬⁄U ÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ Á‚⁄U ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UÃË „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ë Á¡uÔUÊ ‚ ’Ê‹ÃË „ÈU߸ •Êª ’…∏UÃË „Ò¥U. ÁŒŸ ◊¥ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ¬Ò⁄UÊ¥ ‚ ’…∏UÃË „ÒU¢. (93) ŒflÊ‚Ê Á„U c◊Ê ◊Ÿfl ‚◊ãÿflÊ Áfl‡fl ‚Ê∑§ ¦ ‚⁄UÊÃÿ—. à ŸÊ •l à •¬⁄¢U ÃÈø ÃÈ ŸÊ ÷flãÃÈ flÁ⁄UflÊÁflŒ—.. (94) 382 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
ÃÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚÷Ë Œfl ◊ŸŸ ÃÕÊ ‚◊ãflÿ‡ÊË‹ „Ò¥U. ‚÷Ë Œfl „U◊¥ ‚÷Ë flÒ÷fl ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚÷Ë Œfl •Ê¡ „U◊¥ •ÊÒ⁄U ÷Áflcÿ ◊¥ „U◊Ê⁄UË ¬ËÁ…∏UÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ flÒ÷fl ¬˝ŒÊÃÊ „UÊ¥. (94) •¬Êœ◊ŒÁ÷‡ÊSÃË⁄U‡ÊÁSÄUÊÕãº˝Ê lÈêãÿÊ÷flØ. ŒflÊSà ˘ ßãº˝ ‚ÅÿÊÿ ÿÁ◊⁄U ’΄UŒ˜÷ÊŸÊ ◊L§Œ˜ªáÊ.. (95) ߢº˝ Œfl ©UŒÔ˜Œ¢«UÊ¥ ∑§Ê Œ¢Á«Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl Á„¢U‚Ê ∑§Ê ŒÍ⁄U ÷ªÊà „Ò¥U. ©UŸ ‚ ‚÷Ë ŒflªáÊ Á◊òÊÃÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U ◊L§Œ˜ªáÊ! •Ê¬ ∑§Ë ‚÷Ë ŒflÃÊ Á◊òÊÃÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U •ÁÇŸ Œfl! •Ê¬ ∑§Ë ‚÷Ë ŒflªáÊ Á◊òÊÃÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (95) ¬˝ fl ˘ ßãº˝Êÿ ’΄Uà ◊L§ÃÊ ’˝rÊÔÊø¸Ã. flÎòÊ ¦ „UŸÁà flÎòÊ„UÊ ‡ÊÃ∑˝§ÃÈfl¸ÖÊ˝áÊ ‡Êìfl¸áÊÊ.. (96) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ßc≈UŒfl fl ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§ Á‹∞ ÁflSÃÎà ◊¢òÊ ©UøÊÁ⁄U∞. ߢº˝ Œfl flÎòÊÊ‚È⁄UŸÊ‡ÊË „Ò¥U. fl ‚ÊÒ ÃËπ ’ÊáÊÊ¥ flÊ‹ flÖÊ˝ ‚ flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ÿôÊ ∑§Ãʸ „Ò¥U. (96) •SÿÁŒãº˝Ê flÊflÎœ flÎcáÿ ¦ ‡ÊflÊ ◊Œ ‚ÈÃSÿ ÁflcáÊÁfl. •lÊ Ã◊Sÿ ◊Á„U◊ÊŸ◊ÊÿflÊŸÈc≈ÈUflÁãà ¬Ífl¸ÕÊ. ß◊Ê ˘ ©U àflÊ ÿSÿÊÿ◊ÿ ¦ ‚„Ud◊Íäfl¸ ˘ ™§ ·È áÊ—.. (97) ߢº˝ Œfl ‚Ê◊⁄U‚ ‚ ◊Œ◊Sà „UÊ ∑§⁄U ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ’‹ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ∞fl¢ ÁflcáÊÈ Œfl ÿ¡◊ÊŸ ¬Ífl¸ ´§Á·ÿÊ¥ ∑§Ë ÷Ê¢Áà „UË •Ê¬ ∑§Ë ◊Á„U◊Ê SÃÊòÊÊ¥ ‚ •Á÷√ÿÄà „ÒU¢. (97)
ÿ¡Èfl¸Œ - 383
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ÿ֡ʪ˝ÃÊ ŒÍ⁄U◊ÈŒÒÁà ŒÒfl¢ ÃŒÈ ‚ÈåÃSÿ ÃÕÒflÒÁÃ. ŒÍ⁄UX◊¢ ÖÿÊÁ÷ʢ ÖÿÊÁÃ⁄U∑¢§ Ãã◊ ◊Ÿ— Á‡Êfl‚¢∑§À¬◊SÃÈ.. (1) ◊Ÿ ¡Ò‚Ê ŒÍ⁄U Áflø⁄UÃÊ „ÒU flÒ‚ ¡Êª˝Ã •flSÕÊ ◊¥ „UË ‚Êà ◊¥ ÷Ë ŒÍ⁄U Áflø⁄UÃÊ „ÒU. ◊Ÿ ŒÍ⁄UªÊ◊Ë, ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ, ¬˝∑§Ê‡Ê ∑§Ê ¬˝flø∑§ fl •∑§‹Ê ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „ÒU. „U◊Ê⁄UÊ ◊Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚¢∑§À¬Ê¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ. (1) ÿŸ ∑§◊ʸáÿ¬‚Ê ◊ŸËÁ·áÊÊ ÿôÊ ∑ΧáflÁãà ÁflŒÕ·È œË⁄UÊ—. ÿŒ¬ÍflZ ÿˇÊ◊ã× ¬˝¡ÊŸÊ¢ Ãã◊ ◊Ÿ— Á‡Êfl‚¢∑§À¬◊SÃÈ.. (2) ◊ŸË·ËªáÊ ß‚Ë ◊Ÿ ‚ ÿôÊ •ÊÁŒ ∑§Êÿ¸ ‚¢¬ãŸ ∑§U⁄Uà „Ò¥U. ß‚Ë ◊Ÿ ‚ œË⁄U ‹Êª üÊcΔU ∑§Êÿ¸ ◊¥ ‹ªÃ „Ò¥U. ◊Ÿ •¬Ífl¸ fl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ◊¥ •ÊŒ⁄UáÊËÿ „ÒU. „U◊Ê⁄UÊ fl„U ◊Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚¢∑§À¬Ê¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ ¡Ê∞. (2) ÿà¬˝ôÊÊŸ◊Èà øÃÊ œÎÁÇø ÿÖÖÿÊÁÃ⁄UãÃ⁄U◊Îâ ¬˝¡Ê‚È. ÿS◊Ê㟠˘ ´§Ã Á∑¢§ øŸ ∑§◊¸ Á∑˝§ÿà Ãã◊ ◊Ÿ— Á‡Êfl‚¢∑§À¬◊SÃÈ.. (3) ¡Ê ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ◊¥ ôÊÊŸ◊ÿ, øÒÃãÿ, œÒÿ¸◊ÿ fl •◊ÎÃSflM§¬ „ÒU, Á¡‚ ∑§§Á’ŸÊ ∑§Ê߸ ∑§Êÿ¸ Ÿ„UË¥ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU, „U◊Ê⁄Ê fl„U ◊Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚¢∑§À¬Ê¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ ¡Ê∞. (3) ÿŸŒ¢ ÷Íâ ÷ÈflŸ¢ ÷ÁflcÿØ ¬Á⁄UªÎ„UËÃ◊◊Îß ‚fl¸◊˜. ÿŸ ÿôÊSÃÊÿà ‚åÄUÊÃÊ Ãã◊ ◊Ÿ— Á‡Êfl‚¢∑§À¬◊SÃÈ.. (4) Á¡‚ •◊⁄U ◊Ÿ ‚ ‚’ ∑ȧ¿U ¡ÊŸÊ ¡ÊÃÊ „ÒU, Á¡‚ ‚ ÷ÍÃ∑§Ê‹, flø◊ÊŸ∑§Ê‹ •ÊÒ⁄U ÷Áflcÿ∑§Ê‹ ∑§Ê ª˝„UáÊ Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU, Á¡‚ ‚ ‚Êà ¬È⁄UÊÁ„Uà („UÊÃÊ) ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U, „U◊Ê⁄UÊ fl„U ◊Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚¢∑§À¬Ê¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ ¡Ê∞. (4) ÿÁS◊ãŸÎø— ‚Ê◊ ÿ¡Í ¦ Á· ÿÁS◊Ÿ˜ ¬˝ÁÃÁcΔUÃÊ ⁄UÕŸÊ÷ÊÁflflÊ⁄UÊ—. ÿÁS◊¢Á‡øûÊ ¦ ‚fl¸◊Êâ ¬˝¡ÊŸÊ¢ Ãã◊ ◊Ÿ— Á‡Êfl‚¢∑§À¬◊SÃÈ.. (5) ¡Ò‚ ⁄UÕ ∑ ¬Á„U∞ ◊¥ •⁄U „UÊà „Ò¥U, flÒ‚ „UË Á¡‚ ◊Ÿ ◊¥ ´§ÇflŒ, ‚Ê◊flŒ •ÊÒ⁄U 384 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@24
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÿ¡Èfl¸Œ ∑§ ◊¢òÊ ¬˝ÁÃÁcΔUà „Ò¥U, Á¡‚ ◊Ÿ ◊¥ ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ ÁøûÊ ∑§Ê ôÊÊŸ •Êì˝Êà „ÒU, „U◊Ê⁄UÊ fl„U ◊Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚¢∑§À¬Ê¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ ¡Ê∞. (5) ‚È·Ê⁄UÁÕ⁄U‡flÊÁŸfl ÿã◊ŸÈcÿÊ㟟ËÿÃ÷ˇÊÈÁ÷flʸÁ¡Ÿ ˘ ßfl. NUà¬˝ÁÃcΔ¢U ÿŒÁ¡⁄¢U ¡ÁflcΔ¢U Ãã◊ ◊Ÿ— Á‡Êfl‚¢∑§À¬◊SÃÈ.. (6) •ë¿UÊ ‚Ê⁄UÕË ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ ⁄UπÃÊ „ÒU. ÁŸœÊ¸Á⁄Uà SÕÊŸ ¬⁄U ‹ ¡ÊÃÊ „ÒU. flÒ‚ „UË ¡Ê ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ÁŸÿ¢òÊáÊ ◊¥ ⁄UπÃÊ „ÒU, ©Uã„¥U ÁŸœÊ¸UÁ⁄Uà SÕÊŸ ¬⁄U ‹ ¡ÊÃÊ „ÒU. ¡Ê NUŒÿ ◊¥ ¬˝ÁÃÁcΔUà „ÒU, ¡Ê •¡⁄U „Ò, ¡Ê ªÁÃ◊ÊŸ „ÒU, „U◊Ê⁄Ê fl„U ◊Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË ‚¢∑§À¬Ê¥ ‚ ÿÈÄà „UÊ ¡Ê∞. (6) Á¬ÃÈ¢ ŸÈ SÃÊ·¢ ◊„UÊ œ◊ʸáÊ¢ ÃÁfl·Ë◊˜. ÿSÿ ÁòÊÃÊ √ÿÊ¡‚Ê flÎòÊ¢ Áfl¬fl¸◊Œ¸ÿØ.. (7) „U◊ •¬Ÿ Á¬ÃÊ ß¢º˝ Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ◊„UÊŸ˜ •ÊÒ⁄U ’‹flÊŸ „Ò¥U. ©Uã„UÊ¥Ÿ flÎòÊÊ‚È⁄U ∑§Ê ◊ÁŒ¸Ã ∑§⁄U ÁŒÿÊ. ©Uã„UÊ¥Ÿ ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ◊¥ •¬ŸË ‡ÊÁÄà ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà Á∑§ÿÊ. (7) •ÁãflŒŸÈ◊à àfl¢ ◊ãÿÊ‚Ò ‡Ê¢ ø ŸS∑ΧÁœ. ∑˝§àfl ŒˇÊÊÿ ŸÊ Á„UŸÈ ¬˝ áÊ ˘ •ÊÿÍ ¦ Á· ÃÊÁ⁄U·—.. (8) „U •ŸÈ◊Ã! •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ßë¿UÊ•Ê¥ ∑§Ê •ŸÈ◊ÊŒŸ fl „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞.Ô •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ fl „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ∑§Ë ’…∏UÊà ⁄UË ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ÃÊÁ⁄U∞. (8) •ŸÈ ŸÊlÊŸÈ◊ÁÃÿ¸ôÊ¢ Œfl·È ◊ãÿÃÊ◊˜. •ÁÇŸ‡ø „U√ÿflÊ„UŸÊ ÷fl⠌ʇÊÈ· ◊ÿ—.. (9) „U •ŸÈ◊Ã! •Ê¡ •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ◊ÊãÿÃÊ ¬˝Êåà ∑§⁄UÊß∞. „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ •ÁÇŸ „U◊Ê⁄U ¬˝Áà ŒÊŸ‡ÊË‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) Á‚ŸËflÊÁ‹ ¬ÎÕÈc≈ÈU∑§ ÿÊ ŒflÊŸÊ◊Á‚ Sfl‚Ê. ¡È·Sfl „U√ÿ◊Ê„ÈUâ ¬˝¡Ê¢ ŒÁfl ÁŒÁŒÁbÔU Ÿ—.. (10) „U Á‚ŸËflÊ‹Ë ŒflË! •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ’„UŸ, ’„ÈUà ∑§‡ÊÊ¥ flÊ‹Ë fl ¬˝¡Ê ∑§Ê ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. „U◊ Ÿ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà Á∑§ÿÊ „UÒ. •Ê¬ „UÁfl ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ fl „U◊¥ ‚¢ÃÊŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (10)U ¬Üø Ÿl— ‚⁄USflÃË◊Á¬ ÿÁãà ‚dÊ—. ‚⁄USflÃË ÃÈ ¬ÜøœÊ ‚Ê Œ‡Ê÷flà‚Á⁄UØ.. (11) ¬Ê¢ø ŸÁŒÿÊ¢ ∞∑§ ¡Ò‚Ë dÊà flÊ‹Ë ‚Á„Uà ‚⁄USflÃË ŸŒË ◊¥ Á◊‹ ¡ÊÃË „Ò¥U. fl„UË ‚⁄USflÃË Œ‡Ê ◊¥ ¬Ê¢ø ¬˝∑§Ê⁄U ‚ ¬˝Á‚h „ÈUßZ. (11) àfl◊ÇŸ ¬˝Õ◊Ê •ÁX⁄UÊ ˘ ´§Á·Œ¸flÊ ŒflÊŸÊ◊÷fl— Á‡Êfl— ‚πÊ. Ãfl fl˝Ã ∑§flÿÊ ÁflkŸÊ¬‚Ê¡Êÿãà ◊L§ÃÊ ÷˝Ê¡ŒÎCÔUÿ—.. (12) ÿ¡Èfl¸Œ - 385
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬˝Õ◊ ¬Í¡ŸËÿ „Ò¥U. •¢Áª⁄UÊ ´§Á· Ÿ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝∑§≈U Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ ŒflÊ¥ ∑§ Œfl „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UU Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ¥. •Ê¬ ∑§ fl˝Ã ‚ ◊L§Œ˜ªáÊ ∑§Áfl •ÊÒ⁄U ÁflmÊŸ˜ „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ Á◊òÊ „UÊ¥. •Ê¬ ∑§ fl˝Ã ‚ ◊L§Œ˜ªáÊ ôÊÊÃÊ „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ fl˝Ã ‚ ◊L§Œ˜ªáÊ ‚fl¸º˝c≈UÊ „ÈU∞ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ fl˝Ã ‚ ◊L§Œ˜ªáÊ ©UûÊ◊ •ÊÿȜʥ ‚ ÿÈÄà „ÈU∞ „Ò¥U. (12) àfl¢ ŸÊ •ÇŸ Ãfl Œfl ¬ÊÿÈÁ÷◊¸ÉÊÊŸÊ ⁄UˇÊ Ããfl‡ø flãl. òÊÊÃÊ ÃÊ∑§Sÿ ßÿ ªflÊ◊SÿÁŸ◊· ¦ ⁄UˇÊ◊ÊáÊSÃfl fl˝Ã.. (13) „UU •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊Ê⁄U „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ fl „U◊¥ œŸflÊŸ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UU ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ¬Èc≈U ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ fl¢ŒŸËÿ fl ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊Ê⁄UË ªÊÿÊ¢ ∑§Ë fl ‹ªÊÃÊ⁄U „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (13) ©UûÊÊŸÊÿÊ◊fl ÷⁄UÊ ÁøÁ∑§àflÊãà‚l— ¬˝flËÃÊ flηáÊ¢ ¡¡ÊŸ. •L§·SÃÍ¬Ê L§‡ÊŒSÿ ¬Ê¡ ˘ ß«UÊÿÊS¬ÈòÊÊ flÿÈŸ¡ÁŸCÔU.. (14) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÎâflË ‚ ©Uà¬ãŸ „Ò¥U. ôÊÊŸ ¬Íáʸ ∑§◊¸ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝ÊŒÈ÷ʸfl „ÈU•Ê „ÒU. fl ‡ÊËÉÊ˝ „UË •⁄UÁáÊ ◊¢ÕŸ ‚ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊà „Ò¥U. fl áÊ◊ÿ fl •Œ˜÷Èà „Ò¥U. fl flÊÿÈ ‚ •ÊÒ⁄U •Áœ∑§ ¬˝‚Ê⁄U ¬Êà „Ò¥U. (14) ß«UÊÿÊSàflÊ ¬Œ flÿ¢ ŸÊ÷Ê ¬ÎÁÕ√ÿÊ ˘ •Áœ. ¡ÊÃflŒÊ ÁŸœË◊sÔÇŸ „U√ÿÊÿ flÊ…Ufl.. (15) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „Ò¥U. „U◊ ¬ÎâflË ∑§ ◊äÿ ŸÊÁ÷ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë SÕʬŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ „UÁfl M§¬ ÁŸÁœ •Ê¬ ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©U‚ fl„UŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (15) ¬˝ ◊ã◊„U ‡Êfl‚ÊŸÊÿ ‡ÊÍ·◊Êæ˜UªÍ·¢ Áªfl¸áÊ‚ •ÁX⁄USflØ. ‚ÈflÎÁÄÃÁ÷— SÃÈflà ˘ ´§ÁÇ◊ÿÊÿÊøʸ◊Ê∑Z§ Ÿ⁄U ÁflüÊÈÃÊÿ.. (16) ߢº˝ Œfl ‡ÊÁÄà ∑§Ë øÊ„U ⁄Uπà „Ò¥U. fl üÊcΔU flÊáÊË flÊ‹ „Ò¥U. fl ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. „U◊ •¢Áª⁄UÊ ´§Á· ∑§Ë „UË Ã⁄U„U ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ë¿UË SÃÈÁÃÿÊ¥ ‚ „U◊ ©UŸ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§ ŸÃÎàfl ∑§ Á‹∞ ¬˝ÅÿÊà ©UŸ ∑§Ë ´§ÇflŒ ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ‚ •ø¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (16) ¬˝ flÊ ◊„U ◊Á„U Ÿ◊Ê ÷⁄Uäfl◊ÊæU˜ªÍcÿ ¦ ‡Êfl‚ÊŸÊÿ ‚Ê◊. ÿŸÊ Ÿ— ¬Ífl¸ Á¬Ã⁄U— ¬ŒôÊÊ ˘ •ø¸ãÃÊ •ÁX⁄U‚Ê ªÊ ˘ •Áfl㌟˜.. (17) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ◊„UÊ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ß¢º˝ Œfl ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U ∑§ËÁ¡∞. ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ◊„UÊ ◊Á„U◊ʇÊÊ‹Ë ß¢º˝ Œfl ∑§Ë ¬˝‚ãŸÃÊ ∑§ Á‹∞ „UÁfl ÷¥≈U ∑§ËÁ¡∞, Á¡‚ ‚ 386 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊Ê⁄U ¬Ífl¸¡Ê¥ •ÊÒ⁄U Á¬Ã⁄UÊ¥ Ÿ •ø¸ŸÊ ∑§Ë. ¬Œ ¡ÊŸ ∑§⁄U •¢Áª⁄U‚ ´§Á· ∑§Ë Ã⁄U„U ◊¢òÊ ªÊ∞ •ÊÒ⁄U ◊ʪ¸ Œ‡Ê¸Ÿ ¬˝Êåà Á∑§ÿÊ. (17) ßë¿UÁãà àflÊ ‚ÊêÿÊ‚— ‚πÊÿ— ‚ÈãflÁãà ‚Ê◊¢ ŒœÁà ¬˝ÿÊ ¦ Á‚. ÁÃÁÃˇÊãà •Á÷‡ÊÁSâ ¡ŸÊŸÊÁ◊ãº˝ àflŒÊ ∑§‡øŸ Á„U ¬˝∑§Ã—.. (18) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‚Ê◊ ¡Ò‚Ê ‚πÊ÷Êfl øÊ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ ÁŸøÊ«∏Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ê◊⁄U‚ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê◊ ◊ŸÈcÿÊ¥ ∑§Ê ∑§ΔUÊ⁄U √ÿfl„UÊ⁄U ‚„Uà „ÈU∞ ÷Ë ‚Ê◊⁄U‚ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ããÊ ’‹ ∑§Ê œÊ⁄Uà „Ò¥U. (18) Ÿ à ŒÍ⁄U ¬⁄U◊Ê Áøº˝¡Ê ¦ SÿÊ ÃÈ ¬˝ ÿÊÁ„U „UÁ⁄UflÊ „UÁ⁄UèÿÊ◊˜. ÁSÕ⁄UÊÿ flÎcáÊ ‚flŸÊ ∑ΧÃ◊Ê ÿÈÄÃÊ ª˝ÊflÊáÊ— ‚Á◊œÊŸ •ÇŸÊÒ.. (19) „UU ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ¬⁄U◊ (•ÃËfl) ŒÍ⁄U SÕÊŸ ÷Ë ŒÍ⁄U Ÿ„UË¥ „ÒU. •Ê¬ „UÁ⁄U ŸÊ◊∑§ ÉÊÊ«∏Ê¥ ∑§Ê ¡ÊÁÃ∞ •ÊÒ⁄U „UÁ⁄U ∑§Ë (ÉÊÊ«∏U ∑§Ë) Ã⁄U„U •ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ‚ •¬ŸË ÁSÕ⁄UÃÊ fl ’‹ ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ∑§⁄à „Ò¥U. ¬˝Ê× ‚¢äÿÊ ‚flŸ ◊¥ ÿôÊ Á∑§ÿÊ ¡Ê ⁄U„UÊ „ÒU. ÿ„U ¬àÕ⁄U ‚Ê◊ ÁŸøÊ«∏UŸ ∑§ Á‹∞ „ÒU. ÿ„U ‚Á◊œÊ •ÁÇŸ ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ „Ò. (19) •·Ê…¢U ÿÈà‚È ¬ÎÃŸÊ‚È ¬Á¬˝ ¦ Sfl·Ê¸◊å‚Ê¢ flΡŸSÿ ªÊ¬Ê◊˜. ÷⁄U·È¡Ê ¦ ‚ÈÁˇÊÁà ¦ ‚ÈüÊfl‚¢ ¡ÿãâ àflÊ◊ŸÈ ◊Œ◊ ‚Ê◊.. (20) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ÿÈhÊ¥ ◊¥ ’„ÈUà •Áœ∑§ ¬⁄UÊ∑˝§◊ ¬˝ŒÁ‡Ê¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ‡ÊòÊÈ¡ÿË, ‚ŸÊ, ªÊ¬Ê‹∑§, ’‹ ⁄UˇÊ∑§ fl ©UûÊ◊ flÊ‚ SÕÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ Áfl¡ÃÊ, ÿ‡ÊSflË „Ò¥U. „U ‚Ê◊! •Ê¬ „U◊¥ •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (20) ‚Ê◊Ê œŸ ¦ ‚Ê◊Ê •fl¸ãÃ◊ʇÊÈ ¦ ‚Ê◊Ê flË⁄¢U ∑§◊¸áÿ¢ ŒŒÊÁÃ. ‚ÊŒãÿ¢ ÁflŒâÿ ¦ ‚÷ÿ¢ Á¬ÃÎüÊfláÊ¢ ÿÊ ŒŒÊ‡ÊŒS◊Ò.. (21) ‚Ê◊ ©UŸ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ŒÈœÊM§ ªÊ∞¢ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ¡Ê ©Uã„¥U •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ∞‚ ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê flªflÊŸ ÉÊÊ«∏U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê flË⁄U ¬ÈòÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê◊ ÉÊ⁄U‹Í ¬ÈòÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ∑§◊¸‡ÊË‹ ¬ÈòÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl Á¬ÃÎ∑§◊¸ ◊¥ ŒˇÊ fl •ÊôÊʬʋ∑§ ¬ÈòÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (21) àflÁ◊◊Ê •Ê·œË— ‚Ê◊ Áfl‡flÊSàfl◊¬Ê •¡ŸÿSàfl¢ ªÊ—. àfl◊Ê ÃÃãÕÊfl¸ãÃÁ⁄UˇÊ¢ àfl¢ ÖÿÊÁÃ·Ê Áfl Ã◊Ê flflÕ¸.. (22) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ߟ ‚÷Ë •Ê·ÁœÿÊ¥ ∑§Ê ©U¬¡Êà „Ò¥U. •Ê¬ Ÿ ¡‹ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. •Ê¬ Ÿ ªÊÿÊ¥ ∑§Ê ©U¬¡ÊÿÊ. •Ê¬ Ÿ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U Á∑§ÿÊ. •Ê¬ Ÿ ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ ’ŸÊÿÊ. •Ê¬ Ÿ •¢œ∑§Ê⁄U ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§Ë. (22)
ÿ¡Èfl¸Œ - 387
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ŒflŸ ŸÊ ◊Ÿ‚Ê Œfl ‚Ê◊ ⁄UÊÿÊ ÷ʪ ¦ ‚„U‚ÊflãŸÁ÷ ÿÈäÿ. ◊Ê àflÊ ÃŸŒËÁ‡Ê· flËÿ¸SÿÊ÷ÿèÿ— ¬˝ÁøÁ∑§à‚Ê ªÁflCÔUÊÒ.. (23) „U ‚Ê◊! •Ê¬ ÁŒ√ÿ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ◊Ÿ ‚ œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞ fl ‚ÊÒ÷ÊÇÿflÊŸ ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ÿÈh ◊¥ Á¡ÃÊß∞. •Ê¬ ∑§Ê ŒÊŸ ŒŸ ‚ ∑§Ê߸ Ÿ„UË¥ ⁄UÊ∑§ ‚∑§ÃÊ. •Ê¬ •ÃËfl ’‹‡ÊÊ‹Ë fl •ÃËfl •÷ÿÿÈÄà „Ò¥U. „U ‚Ê◊! •Ê¬ „U◊¥ ŒÊŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ (¬ÎâflË‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U Sflª¸‹Ê∑§) ∑§Ê ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (23) •CÔUÊÒ √ÿÅÿØ ∑§∑ȧ÷— ¬ÎÁÕ√ÿÊSòÊË œãfl ÿÊ¡ŸÊ ‚åà Á‚ãœÍŸ˜. Á„U⁄UáÿÊˇÊ— ‚ÁflÃÊ Œfl ˘ •ÊªÊgœº˝àŸÊ ŒÊ‡ÊÈ· flÊÿʸÁáÊ.. (24) ‚ÁflÃÊ Œfl •ÊΔUÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê √ÿÊÅÿÊÁÿà fl ¬ÎâflË ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ‚ÊÃÊ¥ ‚◊Ⱥ˝Ê¥ ∑§Ê fl ÃËŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ÁflÁ÷ããÊ ÿÊ¡ŸÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl Sfláʸ◊ÿË •Ê¢πÊ¥ flÊ‹ •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§ Á‹∞ •ªÊœ ⁄UàŸ œÊ⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ê ’„ÈUà œŸ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. (24) Á„U⁄Uáÿ¬ÊÁáÊ— ‚ÁflÃÊ Áflø·¸ÁáÊL§÷ lÊflʬÎÁÕflË •ãÃ⁄UËÿÃ. •¬Ê◊ËflÊ¢ ’ʜà flÁà ‚Íÿ¸◊Á÷ ∑ΧcáÊŸ ⁄U¡‚Ê lÊ◊ÎáÊÊÁÃ.. (25) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ÊŸ ∑§ „UÊÕÊ¥ flÊ‹ fl Áfl‹ˇÊáÊ „Ò¥U. fl Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ŒÊŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ ’Ëø ‚Íÿ¸ ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ⁄Uʪʥ fl •¢œ∑§Ê⁄U ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ •¬ŸË ‡ÊÊ÷Ê ‚ ŒÊŸÊ¥ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê •Ê‹ÊÁ∑§Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (25) Á„U⁄Uáÿ„USÃÊ •‚È⁄U— ‚ÈŸËÕ— ‚È◊ΫUË∑§— SflflÊ¢ ÿÊàflflʸæ˜U.. •¬‚œŸ˜ ⁄UˇÊ‚Ê ÿÊÃȜʟʟSÕÊgfl— ¬˝ÁÌʷ¢ ªÎáÊÊŸ—.. (26) ‚Íÿ¸ ‚ÊŸ ∑§ „UÊÕÊ¥ (‚ÈŸ„U⁄U) flÊ‹ „Ò¥U. fl ¬˝ÊáÊŒÊÃÊ, ∑§ÀÿÊáÊŒÊÃÊ, ©UûÊ◊ ‚ÈπŒÊÃÊ fl ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „Ò¥U. fl ŒÊ·„UÊ⁄U∑§ ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ fl ŒÈc≈UÊ¥ ∑§ ŸÊ‡Ê∑§ „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U •ŸÈ∑ͧ‹ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (26) ÿ à ¬ãÕÊ— ‚Áfl× ¬Í√ÿʸ‚Ê⁄UáÊfl— ‚È∑ΧÃÊ ˘ •ãÃÁ⁄UˇÊ. ÃÁ÷ŸÊ¸ •l ¬ÁÕÁ÷— ‚Ȫ÷Ë ⁄UˇÊÊ ø ŸÊ •Áœ ø ’˝ÍÁ„U Œfl.. (27) „U ‚ÁflÃÊ Œfl! •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ◊¥ ¡Ê •Ê¬ ∑§ œÍ‹ ⁄UÁ„Uà ©UûÊ◊ ¬Õ „Ò¥U, •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ©UŸ ¬ÕÊ¥ ¬⁄U ø‹¥. „U◊ •Ê¬ ∑§ ©UŸ ¬ÕÊ¥ ¬⁄U ø‹Ã „ÈU∞ ‚ÊÒ÷ÊÇÿ‡ÊÊ‹Ë „UÊ¥. „U◊ •Ê¬ ∑§ ©UŸ ¬ÕÊ¥ ¬⁄U ‚È⁄UˇÊʬÍfl¸∑§ ø‹ ‚∑¥§. •Ê¬ ©UŸ ¬ÕÊ¥ ¬⁄U „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚¢Œ‡Ê ∑§„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (27) ©U÷Ê Á¬’Ã◊Á‡flŸÊ÷Ê Ÿ— ‡Ê◊¸ ÿë¿UÃ◊˜. •ÁflÁº˝ÿÊÁ÷M§ÁÃÁ÷—.. (28) „U ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ ÿôÊ SÕ‹ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ fl ‚Ê◊¬ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Ÿ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ •¬Ÿ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ 388 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑§ËÁ¡∞ fl ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (28) •åŸSflÃË◊Á‡flŸÊ flÊø◊S◊ ∑Χâ ŸÊ ŒdÊ flηáÊÊ ◊ŸË·Ê◊˜. •lÍàÿfl‚ ÁŸ uÔUÿ flÊ¢ flÎœ ø ŸÊ ÷flâ flÊ¡‚ÊÃÊÒ.. (29) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄Ê! •Ê¬ Œ‡Ê¸ŸËÿ fl ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË flÊáÊË ∑§Ê •ë¿U ∑§Êÿ¸ ◊¥ ‹ªÊß∞. „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄Ê! •Ê¬ „U◊Ê⁄Ë ◊ŸË·Ê (’ÈÁh) ∑§Ê •ë¿U ∑§Êÿ¸ ◊¥ ‹ªÊß∞. (29) lÈÁ÷⁄UÄÃÈÁ÷— ¬Á⁄U ¬ÊÃ◊S◊ÊŸÁ⁄UCÔUÁ÷⁄UÁ‡flŸÊ ‚ÊÒ÷ªÁ÷—. ÃãŸÊ Á◊òÊÊ flL§áÊÊ ◊Ê◊„UãÃÊ◊ÁŒÁ× Á‚ãœÈ— ¬ÎÁÕflË ©Uà lÊÒ—.. (30) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄Ê! •Ê¬ •Ê¡ „UË •¬Ÿ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚Á„Uà ߂ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ fl ©U‚ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ mÊ⁄UÊ ¬˝ŒÊŸ Á∑§∞ ª∞ œŸ ∑§Ë ⁄ˇÊÊ ◊¥ Á◊òÊ Œfl, flL§áÊ Œfl, •ÁŒÁà Œfl, Á‚¢œÈ Œfl, ¬ÎâflË‹Ê∑§ „U◊Ê⁄UË ‚„UÊÿÃÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ mÊ⁄UÊ ¬˝ŒÊŸ Á∑§∞ ª∞ œŸ ∑§Ë ⁄ˇÊÊ ◊¥ Sflª¸‹Ê∑§ „U◊Ê⁄UË ‚„UÊÿÃÊ ∑§⁄¥U. (30) •Ê ∑ΧcáÊŸ ⁄U¡‚Ê flûʸ◊ÊŸÊ ÁŸfl‡ÊÿãŸ◊Îâ ◊àÿZ ø. Á„U⁄UáÿÿŸ ‚ÁflÃÊ ⁄UÕŸÊ ŒflÊ ÿÊÁà ÷ÈflŸÊÁŸ ¬‡ÿŸ˜.. (31) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ÈŸ„U⁄U ⁄UÕ ¬⁄U ‚flÊ⁄U „UÊ ∑§⁄U ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê Œπà „UÈ∞ ¬˝ÿÊáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ¬ÎâflË ∑§Ê •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ◊ÈÄà ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ◊ŸÈcÿ fl Œfl •ÊÁŒ ‚÷Ë ∑§Ê ∑§◊¸ ◊¥ fl ◊ŸÈcÿ •ÊÁŒ ‚÷Ë ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (31) •Ê ⁄UÊÁòÊ ¬ÊÁÕ¸fl ¦ ⁄U¡— Á¬ÃÈ⁄U¬˝ÊÁÿ œÊ◊Á÷—. ÁŒfl— ‚ŒÊ ¦ Á‚ ’΄UÃË Áfl ÁÃcΔU‚ ˘ •Ê àfl·¢ flûʸà Ã◊—.. (32) ⁄UÊÁòÊ ŒflË ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ¬Í⁄UÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U. fl •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ∑§Ê •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ¬Í⁄UÊ ∑§⁄UÃË „Ò¥U •ÊÒ⁄U Sflª¸ ∑§Ê √ÿÊåà ∑§⁄UÃË „ÒU. ß‚ ¬˝∑§Ê⁄U ⁄UÊÁòÊ ŒflË ‚’ ∑§Ê •¢œ∑§Ê⁄U ‚ √ÿÊåà „Ò¥U. (32) ©U·SÃÁëøòÊ◊Ê ÷⁄UÊS◊èÿ¢ flÊÁ¡ŸËflÁÃ. ÿŸ ÃÊ∑¢§ ø ßÿ¢ ø œÊ◊„U.. (33) ©U·Ê ŒflË •Œ˜÷Èà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ œŸflÃË „UÊ¥. fl •Œ˜÷Èà œŸ „U◊Ê⁄U Á‹∞ œÊ⁄¥U . ©U‚ œŸ ‚ „U◊ •¬ŸË ‚¢ÃÊŸ ∑§Ê ©U¬ÿÈÄà ⁄UËÁà ‚ ÷⁄UáʬʷáÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. (33) ¬˝ÊÃ⁄UÁÇŸ¢ ¬˝ÊÃÁ⁄Uãº˝ ¦ „UflÊ◊„U ¬˝ÊÃÌ◊òÊÊflL§áÊÊ ¬˝ÊÃ⁄UÁ‡flŸÊ. ¬˝ÊÃ÷¸ª¢ ¬Í·áÊ¢ ’˝rÊÔáÊS¬Áâ ¬˝Ê× ‚Ê◊◊Èà L§º˝ ¦ „ÈUfl◊.. (34) „U◊ ¬˝Ê×∑§Ê‹ •ÁÇŸ, ߢº˝ Œfl, Á◊òÊ Œfl, flL§áÊ Œfl fl •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê •ÊUuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬˝Ê×∑§Ê‹ flŸS¬Áà Œfl, ÷ª Œfl, ¬Í·áÊ •ÊÒ⁄U L§º˝ Œfl ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥. (34) ÿ¡Èfl¸Œ - 389
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬˝ÊÃÁ¡¸Ã¢ ÷ª◊Ȫ˝ ¦ „ÈUfl◊ flÿ¢ ¬ÈòÊ◊ÁŒÃÿʸ ÁflœûÊʸ. •Êœ˝Á‡øl¢ ◊ãÿ◊ÊŸSÃÈ⁄UÁ‡øº˝Ê¡Ê Áøl¢ ÷ª¢ ÷ˇÊËàÿÊ„U.. (35) „U◊ ¬˝Ê×∑§Ê‹ ◊¥ •ÁŒÁà Œfl ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl Áfl¡ÃÊ, ‚ÊÒ÷ÊÇÿflÊŸ, ©Uª˝ fl ‚¢‚Ê⁄U ∑§ œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. ÿ„U ∑§„UÊ ªÿÊ „ÒU Á∑§ œŸflÊŸ, ª⁄UË’, ⁄UʪË, ⁄UÊ¡Ê ∑§Ê߸ ÷Ë „UÊ fl •÷Ëc≈U ◊ŸÊ∑§Ê◊ŸÊ Á‚Áh „UÃÈ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ (•Ê⁄UÊœŸÊ) ∑§⁄Uà „Ò¥U. (35) ÷ª ¬˝áÊÃ÷¸ª ‚àÿ⁄UÊœÊ ÷ª◊Ê¢ Áœÿ◊ÈŒflÊ ŒŒãŸ—. ÷ª ¬˝ ŸÊ ¡Ÿÿ ªÊÁ÷⁄U‡flÒ÷¸ª ¬˝ ŸÎÁ÷ŸÎ¸flã× SÿÊ◊.. (36) „U ÷ª Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Õ ∑§ ¬˝áÊÃÊ „Ò¥U. „U ÷ª Œfl! •Ê¬ ‚àÿ M§¬Ë œŸ ∑§ ¬˝ŒÊÃÊ „Ò¥U. „U ÷ª Œfl! •Ê¬ ©UããÊÁÃŒÊÿË ’ÈÁh ∑§ ¬˝ŒÊÃÊ „Ò¥U. „U ÷ª Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ªÊ∞¢ ©Uà¬ãŸ ∑§⁄¥U. „U ÷ª Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÉÊÊ«∏U ©Uà¬ãŸ ∑§⁄¥U. „U ÷ª Œfl! •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ŸÃÎàfl ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë ‚¢ÃÊŸ flÊ‹ „UÊ ¡Ê∞¢. (36) ©UÌʟ˥ ÷ªflã× SÿÊ◊Êà ¬˝Á¬àfl ˘ ©Uà ◊äÿ •qÔUÊ◊˜. ©UÃÊÁŒÃÊ ◊ÉÊflãà‚Íÿ¸Sÿ flÿ¢ ŒflÊŸÊ ¦ ‚È◊ÃÊÒ SÿÊ◊.. (37) „U◊ ‚Íÿ¸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ‚Œ˜’ÁÈ h flÊ‹ fl œŸflÊŸ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ‚ÍÿÊŒ¸ ÿ ◊¥ œŸ ¬˝Êåà ∑§⁄U¥. „U◊ ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ◊äÿʱŸU •ÊÒ⁄U ‚ÍÿʸSà ◊¥ œŸ ‚¢¬ãŸ „UÊ.¥ (37) ÷ª ˘ ∞fl ÷ªflÊ° 2 •SÃÈ ŒflÊSß flÿ¢ ÷ªflã× SÿÊ◊. â àflÊ ÷ª ‚fl¸ ˘ ßÖ¡Ê„UflËÁà ‚ ŸÊ ÷ª ¬È⁄U ˘ ∞ÃÊ ÷fl„U.. (38) „U ÷ª Œfl! •Ê¬ œŸflÊŸ fl ÷ÊÇÿflÊŸ „ÒU¥. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÿ¡◊ÊŸ ÷Ë œŸflÊŸ •ÊÒ⁄U ÷ÊÇÿflÊŸ „UÊ ¡Ê∞¢. ÿ¡◊ÊŸ ÷ª Œfl ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄U ∑§⁄U „U◊Ê⁄U ÿôÊ •ÊÒ⁄U ‚÷Ë ßc≈U ∑§ÊÿÊZ ∑§Ê ‚»§‹ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (38) ‚◊äfl⁄UÊÿÊ·‚Ê Ÿ◊ãà ŒÁœ∑˝§Êflfl ‡ÊÈøÿ ¬ŒÊÿ. •flʸøËŸ¢ fl‚ÈÁflŒ¢ ÷ª¢ ŸÊ ⁄UÕÁ◊flʇflÊ flÊÁ¡Ÿ ˘ •Ê fl„UãÃÈ.. (39) „U◊ ©U·Ê∑§Ê‹ ◊¥ ÿôÊ fl Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©U·Ê∑§Ê‹ ◊¥ ¬ÁflòÊ ªÁÃÁflÁœÿÊ¢ ‚¢¬ãŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡Ò‚ •‡flflÊŸ ⁄UÕ ªÁÇÊË‹ ⁄U„Uà „Ò¥U, flÒ‚ „UË ÷ª Œfl „U◊¥ ¬˝ÊøËŸ •ÊÒ⁄U üÊcΔU œŸ flÊ‹Ê ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (39) •‡flÊflÃ˪ʸ◊ÃËŸ¸ ˘ ©U·Ê‚Ê flË⁄UflÃË— ‚Œ◊Èë¿UãÃÈ ÷º˝Ê—. ÉÊÎ⠌ȄUÊŸÊ Áfl‡fl× ¬˝¬ËÃÊ ÿÍÿ¢ ¬Êà SflÁSÃÁ÷— ‚ŒÊ Ÿ—.. (40) ¡Ò‚ •‡fl◊ÿË flË⁄UflÃË fl ∑§ÀÿÊáÊË ©U·Ê ŒflË ÉÊË fl ŒÍœ ŒÃË „Ò¥, flÒ‚ „UË ¬˝÷Êà fl‹Ê „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊Ê⁄U Á‹∞ ÉÊË fl ŒÍœ ŒÈ„¥U. •ôÊÊŸ •¢œ∑§Ê⁄◊ÿ ’ÊœÊ∞¢ ‚’ •ÊU⁄U ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. •Ê¬ ‚÷Ë ŒflªáÊ ‚ŒÒfl „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (40) 390 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬Í·Ÿ˜ Ãfl fl˝Ã flÿ¢ Ÿ Á⁄Ucÿ◊ ∑§ŒÊ øŸ. SÃÊÃÊ⁄USà ˘ ß„U S◊Á‚.. (41) „U ¬Í·Ê Œfl! „U◊ SÃÊÃÊ •Ê¬ ∑§ fl˝Ã ◊¥ ‹ª¥. „U◊ ∑§÷Ë Ÿc≈U Ÿ „UÊ¥. „U◊ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U ÃÕÊ •Ê¬ ∑§Ë øÊ„U ⁄Uπà „Ò¥U. (41) ¬ÕS¬Õ— ¬Á⁄U¬Áâ fløSÿÊ ∑§Ê◊Ÿ ∑ΧÃÊ •èÿÊŸ«U∑¸§◊˜. ‚ ŸÊ ⁄UÊ‚ë¿ÈUL§œ‡øãº˝Êª˝Ê Áœÿ¢Áœÿ ¦ ‚Ë·œÊÁà ¬˝ ¬Í·Ê.. (42) ¬Í·Ê Œfl „U◊Ê⁄U ¬Õ ¬˝Œ‡Ê¸∑§ „Ò¥U. ◊¢òÊ ‚ ∑§Ê◊ŸÊ Á∑§∞ ¡ÊŸ ¬⁄U fl ⁄UÊˇÊ‚Ê¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U •ÊÒ⁄U ‡ÊòÊȟʇÊ∑§ ‚ÊœŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË ’ÈÁh ∑§Ê üÊcΔU ∑§ÊÿÊZ ◊¥ ‚ÊœŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (42) òÊËÁáÊ ¬ŒÊ Áfl ø∑˝§◊ ÁflcáÊȪʸ¬Ê ˘ •ŒÊèÿ—. •ÃÊ œ◊ʸÁáÊ œÊ⁄UÿŸ˜.. (43) ÁflcáÊÈ Ÿ •¬Ÿ ÃËŸ ¬Ò⁄UÊ¥ ◊¥ „UË ‚¢¬Íáʸ Áfl‡fl ∑§Ê œÊ⁄áÊU ∑§⁄U Á‹ÿÊ. fl ©U‚ ‚Ê◊âÿ¸ ‚ ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê œÊ⁄Uà „ÈU∞ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U. (43) ÃÁm¬˝Ê‚Ê Áfl¬ãÿflÊ ¡ÊªÎflÊ ¦ ‚— ‚Á◊ãœÃ. ÁflcáÊÊÿ¸à¬⁄U◊¢ ¬Œ◊˜.. (44) ¡Ê ’˝ÊrÊáÊ ¡Êª˝Ã „UÊ ∑§⁄U ÿôÊ ÁflœÊŸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ¡ËflŸ ÿʬŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl ’˝ÊrÊáÊ ÁflcáÊÈ Œfl ∑§ ¬⁄U◊ œÊ◊ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (44) ÉÊÎÃflÃË ÷ÈflŸÊŸÊ◊Á÷ÁüÊÿÊfl˸ ¬ÎâflË ◊œÈŒÈÉÊ ‚Ȭ‡Ê‚Ê. lÊflʬÎÁÕflË flL§áÊSÿ œ◊¸áÊÊ Áflc∑§Á÷à •¡⁄U ÷ÍÁ⁄U⁄UÂÊ.. (45) Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ flL§áÊ Œfl ∑§Ë ‡ÊÁÄà ‚ ‚Ȍ΅∏U „ÈU∞ „Ò¥U. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ üÊcΔU M§¬ flÊ‹ „Ò¥U •ÊÒ⁄U flÎhÊflSÕÊ ⁄UÁ„Uà „Ò¥U. ¬˝÷Íà (•àÿ¢Ã) ‚Ê◊âÿ¸ ∑§Ê ◊Í‹ ‚˝Êà „Ò¥U. ¬ÎâflË ÉÊË◊ÿË, ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê •ÊüÊÿ SÕ‹Ë, √ÿʬ∑§ fl Áfl‡Ê· ◊œÈ⁄U ⁄U‚Ê¥ ∑§ ŒÊ„UŸ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ⁄UπÃË „ÒU. (45) ÿ Ÿ— ‚¬àŸÊ ˘ •¬ à ÷flÁãàflãº˝ÊÁÇŸèÿÊ◊fl ’ÊœÊ◊„U ÃÊŸ˜. fl‚flÊ L§º˝Ê ˘ •ÊÁŒàÿÊ ˘ ©U¬Á⁄US¬Î‡Ê¢ ◊ʪ˝¢ øûÊÊ⁄U◊Áœ⁄UÊ¡◊∑˝§Ÿ˜.. (46) ¡Ê „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ „Ò¥U, fl „UÊ⁄U ¡Ê∞¢. „U◊ ©UŸ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U •ÁÇŸ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ ‚ ’ÊÁœÃ ∑§⁄¥U. fl‚ȪáÊ „U◊Ê⁄U ÁøûÊ ∑§Ê ©Uª˝, ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë fl •Áœ¬Áà ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. L§º˝ªáÊ •ÊÒ⁄U •ÊÁŒàÿªáÊ „U◊Ê⁄U ÁøûÊ ∑§Ê ©Uª˝ fl ¬⁄UÊ∑˝§◊Ë •ÊÒ⁄U •ÁäʬÁà ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (46) •Ê ŸÊ‚àÿÊ ÁòÊÁ÷⁄U∑§ÊŒ‡ÊÒÁ⁄U„U ŒflÁ÷ÿʸâ ◊œÈ¬ÿ◊Á‡flŸÊ. ¬˝ÊÿÈSÃÊÁ⁄UCÔ¢U ŸË ⁄U¬Ê ¦ Á‚ ◊ΡÊà ¦ ‚œÃ¢ m·Ê ÷flà ¦ ‚øÊ÷ÈflÊ.. (47) •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄U ŸÊ‡Ê⁄UÁ„Uà (•ÁflŸÊ‡ÊË) „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ÇÿÊ⁄U„U ‚ Áêȟ (11 & 3 = 33) ŒflÃÊ•Ê¥ ‚Á„Uà ¬œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ÇÿÊ⁄U„U ‚ Áêȟ ŒflÃÊ•Ê¥ ÿ¡Èfl¸Œ - 391
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‚Á„Uà ◊œÈ⁄U ¬ÿ ¬ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË •ÊÿÈ ’…∏UÊß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê¬Ê¥ fl mÁ·ÿÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UU ‚„UÊÿ∑§ „UË ⁄UÁ„U∞. (47) ∞· fl SÃÊ◊Ê ◊L§Ã ˘ ßÿ¢ ªË◊ʸãŒÊÿ¸Sÿ ◊ÊãÿSÿ ∑§Ê⁄UÊ—. ∞·Ê ÿÊ‚ËCÔU Ããfl flÿÊ¢ ÁfllÊ◊·¢ flΡŸ¢ ¡Ë⁄UŒÊŸÈ◊˜.. (48) „U ◊L§Œ˜ªáÊÊ! ÿ SÃÊòÊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ‚◊Á¬¸Ã „Ò¥U. ÿ flÊáÊË◊ÿË SÃÈÁÃÿÊ¥ •Ê¬ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ SÃÈÁÃÿÊ¢ ◊ÊŸŸËÿ fl üÊcΔU »§‹ŒÊÿË „ÒU. •Ê¬ ¬œÊÁ⁄U∞. „U◊¥ ßc≈U ‚Èπ, ÁfllÊ, •ããÊ fl •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. (48) ‚„USÃÊ◊Ê— ‚„Uë¿U㌂ ˘ •ÊflÎ× ‚„U¬˝◊Ê ˘ ´§·ÿ— ‚åà ŒÒ√ÿÊ—. ¬Ífl¸·Ê¢ ¬ãÕÊ◊ŸÈŒÎ‡ÿ œË⁄UÊ ˘ •ãflÊ‹Á÷⁄U ⁄UâÿÊ Ÿ ⁄U‡◊ËŸ˜.. (49) ‚Êà ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ SÃÈÁÃÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ, ¿U¢ŒÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ, ¬˝◊ÊáÊ ∑§ ‚ÊÕ ÁŒ√ÿ ‚ÎÁc≈U ∑§Ê ¬˝ÊŒÈ÷ʸfl Á∑§ÿÊ. ߟ ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ ¬Ífl¸ ´§Á·ÿÊ¥ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ Á∑§ÿÊ. ߟ œË⁄U ´§Á·ÿÊ¥ Ÿ flÒ‚ „UË ßc≈U ª¢Ã√ÿ Ã∑§ ¬„È¢UøÊÿÊ ¡Ò‚ ‹ªÊ◊ ÉÊÊ«∏UÊ¥ ∑§Ê •¬Ÿ ßc≈U ª¢Ã√ÿ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊÃË „Ò¥U. (49) •ÊÿÈcÿ¢ flø¸Sÿ ¦ ⁄UÊÿS¬Ê·◊ÊÒÁjŒ◊˜. ߌ ¦ Á„U⁄Uáÿ¢ flø¸SflÖ¡ÒòÊÊÿÊÁfl‡ÊÃÊŒÈ ◊Ê◊˜.. (50) ÿ„U Sfláʸ◊ÿ œŸ •ÊÿÈ, flø¸Sfl, œŸ fl ¬ÈÁc≈Uflh¸∑§ „ÒU. ÿ„U Sfláʸ◊ÿ œŸ ÷ÍÁ◊ ‚ ©Uà¬ãŸ „ÒU. ÿ„U Sfláʸ◊ÿ œŸ flø¸SflŒÊÿË „ÒU. ÿ„U Sfláʸ◊ÿ œŸ á◊ÿ „ÒU. ÿ„U Sfláʸ◊ÿ œŸ „U◊¥ Áfl¡ÿüÊË ÁŒ‹ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (50) Ÿ ú˝ˇÊÊ ¦ Á‚ Ÿ Á¬‡ÊÊøÊSÃ⁄UÁãà ŒflÊŸÊ◊Ê¡— ¬˝Õ◊¡ ¦ sÔÃØ. ÿÊ Á’÷Áø ŒÊˇÊÊÿáÊ ¦ Á„U⁄Uáÿ ¦ ‚ Œfl·È ∑ΧáÊÈà ŒËÉʸ◊ÊÿÈ— ‚ ◊ŸÈcÿ·È ∑ΧáÊÈà ŒËÉʸ◊ÊÿÈ—.. (51) ß‚ Sfláʸ◊ÿ œŸ ∑§Ê ⁄UÊˇÊ‚ Á„¢UÁ‚à Ÿ„UË¥ ∑§⁄UÃ. ß‚ Sfláʸ◊ÿ œŸ ∑§Ê Á¬‡ÊÊø ÷Ë Á„¢UÁ‚à Ÿ„UË¥ ∑§⁄UÃ. ÿ„U Sfláʸ◊ÿ ¬˝Õ◊ ©Uà¬ãŸ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê¡ „ÒU, ¡Ê ŒˇÊfl¢‡ÊËÿ ’˝ÊrÊáÊ ß‚ SfláʸœŸ •Ê÷Í·áÊ ∑§ M§¬ ◊¥ œÊ⁄Uà „Ò¥U, ©Uã„¥U ÷Ë ŒflÃÊ ◊ŸÈcÿÊ¥ ◊¥ ŒËÉÊʸÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (51) ÿŒÊ’䟟˜ ŒÊˇÊÊÿáÊÊ Á„U⁄Uáÿ ¦ ‡ÊÃÊŸË∑§Êÿ ‚È◊ŸSÿ◊ÊŸÊ—. Ãã◊ ˘ •Ê ’äŸÊÁ◊ ‡ÊÇÊÊ⁄UŒÊÿÊÿÈc◊ÊÜ¡⁄UŒÁCÔUÿ¸ÕÊ‚◊˜.. (52) ŒˇÊfl¢‡ÊËÿ (ŒˇÊfl¥‡Ê ∑§ ’˝ÊrÊáÊÊ¥) Ÿ •ë¿U ◊Ÿ ‚ Á¡‚ ‚ÊŸ ∑§ œÊª ∑§Ê ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ‚ŸÊ flÊ‹ ⁄UÊ¡Ê ∑§Ê ’Ê¢œÊ ©U‚ „UË „U◊ ‚ÊÒ fl·¸ ∑§Ë •ÊÿÈ ¬˝Êåà ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ •¬Ÿ ‡Ê⁄UË⁄U ¬⁄U ’Ê¢œÃ „Ò¥U. „U◊ flÎh fl Áø⁄ÊUÿÈ „UÊ¥. (52)
392 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
©Uà ŸÊÁ„U’ȸäãÿ— oÎáÊÊàfl¡ ˘ ∞∑§¬Êà¬ÎÁÕflË ‚◊Ⱥ˝—. Áfl‡fl ŒflÊ ˘ ´§ÃÊflÎœÊ „ÈUflÊŸÊ— SÃÈÃÊ ◊ãòÊÊ— ∑§Áfl‡ÊSÃÊ ˘ •flãÃÈ.. (53) •Á„U’¸Èäãÿ, •¡, ∞∑§¬ÊÃ, ¬ÎâflË, ‚◊Ⱥ˝ fl ‚÷Ë ŒflÃÊ „U◊Ê⁄UË SÃÈÁÃÿÊ¢ ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿ ‚÷Ë Œfl ‚ø ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. „U◊ ‚÷Ë Œfl ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚÷Ë Œfl ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ∑§Áfl ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ÿ ‚÷Ë ŒflªáÊ ⁄UˇÊ∑§ „UÊ¥. (53) ß◊Ê Áª⁄ ˘ •ÊÁŒàÿèÿÊ ÉÊÎÃSŸÍ— ‚ŸÊº˝Ê¡èÿÊ ¡ÈuÔUÊ ¡È„UÊÁ◊. oÎáÊÊÃÈ Á◊òÊÊ •ÿ¸◊Ê ÷ªÊ ŸSÃÈÁfl¡ÊÃÊ flL§áÊÊ ŒˇÊÊ • ¦ ‡Ê—.. (54) „U◊ ÿ„U flÊáÊË◊ÿ fl ÉÊË◊ÿ •Ê„ÈUÁà •ÊÁŒàÿ ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’ÈÁh ∑§ ¡È„ÍU (¬‹Ê‡Ê ∑§Ë ‹∑§«∏UË ‚ ’ŸÊ „ÈU•Ê ∞∑§ ÿôʬÊòÊ) ‚ •Ê„ÈUÁà •ÊÁŒàÿ ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •ÊÁŒàÿ Œfl Áø⁄U ¬˝∑§Ê‡Ê∑§ „Ò¥U. Á◊òÊ Œfl, •ÿ¸◊Ê Œfl, ÷ª Œfl, flL§áÊ Œfl, ŒˇÊ Œfl „U◊Ê⁄UË ÁflÁ‡Êc≈U SÃÈÁà ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (54) ‚åà ´§·ÿ— ¬˝ÁÃÁ„UÃÊ— ‡Ê⁄UË⁄U ‚åà ⁄UˇÊÁãà ‚Œ◊¬˝◊ÊŒ◊˜. ‚åÃʬ— Sfl¬ÃÊ ‹Ê∑§◊ËÿÈSÃòÊ ¡ÊªÎÃÊ •Sfl埡ÊÒ ‚òÊ‚ŒÊÒ ø ŒflÊÒ.. (55) ‡Ê⁄UË⁄U ◊¥ Áfll◊ÊŸ ‚Êà ¬˝ÊáÊ ‚Êà ´§Á· „Ò¥U. ÿ ‚ÊÃÊ¥ ´§Á· •Ê‹Sÿ⁄UÁ„Uà „UÊ ∑§⁄U ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Êà „ÈU∞ ÷Ë ÿ ‚ÊÃÊ¥ ‹Ê∑§ ◊¥ ¡Êª˝Ã •Êà◊Ê ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. ß‚ ÁSÕÁà ◊¥ ÷Ë ÿ ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ◊¥ ‹ª ⁄U„Uà „Ò¥U. (55) ©UÁûÊcΔU ’˝rÊÔáÊS¬Ã ŒflÿãÃSàfl◊„U. ©U¬ ¬˝ ÿãÃÈ ◊L§Ã— ‚Ȍʟfl ˘ ßãº˝ ¬˝Ê‡ÊÍ÷¸flÊ ‚øÊ.. (56) „U ’˝rÊáÊS¬ÁÃ! •Ê¬ ©UÁΔU∞. „U◊ Œflàfl œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸÊ fl •Ê¬ ∑§Ê •Êª◊Ÿ øÊ„Uà „Ò¥U. „U ◊L§Œ˜ªáÊ! •Ê¬ •ë¿U ŒÊŸ∑§Ãʸ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚◊ˬ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ÷Ë ‡ÊËÉÊ˝ „UË ßŸ ∑§ ‚ÊÕ ¬œÊ⁄UŸ fl „U◊Ê⁄U ‚ÊÕ ÁŸflÊ‚ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (56) ¬˝ ŸÍŸ¢ ’˝rÊÔáÊS¬ÁÃ◊¸ãòÊ¢ flŒàÿÈÄâÿ◊˜. ÿÁS◊ÁãŸãº˝Ê flL§áÊÊ Á◊òÊÊ •ÿ¸◊Ê ŒflÊ ˘ •Ê∑§Ê ¦ Á‚ øÁ∑˝§⁄U.. (57) ÁŸÁ‡øà M§¬ ‚ ’˝rÊáÊS¬Áà ÁflÁœÁflœÊŸ ∑§ ‚ÊÕ ©UÄÕÊ¥ ∑§Ê (flÒÁŒ∑§ ◊¢òÊÊ¥ ∑§Ê) ©UøÊ⁄Uà „Ò¥U. ߟ ◊¢òÊÊ¥ ◊¥ ߢº˝ Œfl, flL§áÊ Œfl, Á◊òÊ Œfl, •ÿ¸◊Ê Œfl fl •ãÿ Œfl flÊ‚ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (57) ’˝rÊÔáÊS¬Ã àfl◊Sÿ ÿãÃÊ ‚ÍÄÃSÿ ’ÊÁœ ßÿ¢ ø Á¡ãfl. Áfl‡fl¢ ÃŒ˜÷º˝¢ ÿŒflÁãà ŒflÊ ’΄UmŒ◊ ÁflŒÕ ‚ÈflË⁄UÊ—. ÿ ˘ ß◊Ê Áfl‡flÊ Áfl‡fl∑§◊ʸ ÿÊ Ÿ— Á¬ÃÊ㟬ÃãŸSÿ ŸÊ ŒÁ„U.. (58) ÿ¡Èfl¸Œ - 393
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊÒ¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ŒflªáÊ! •Ê¬ ‚¢‚Ê⁄U ∑§ ÁŸÿ¢òÊ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ÷‹Ë÷Ê¢Áà „U◊Ê⁄UË •Ê∑§Ê¢ˇÊÊ ∑§Ê ¡ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ ÷‹Ë÷Ê¢Áà „U◊Ê⁄UË ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§Ê ¡ÊŸÃ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ •ÊÒ⁄U „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‚à „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§ ∑§ÀÿÊáÊ ©U¬‹éœ ∑§⁄UÊß∞. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊Ê⁄UË ‚¢ÃÊŸ flË⁄U fl ◊Á„U◊ÊflÊŸ „UÊ. •Ê¬ ‚’ ∑§ÊÿÊZ ∑§ ∑§Ãʸ, ¬Ê‹∑§ fl •ããʬÁà „Ò¥U. (58)
394 - ÿ¡Èfl¸Œ
¬Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ •¬ÃÊ ÿãÃÈ ¬áÊÿÊ‚ÈêŸÊ Œfl¬Ëÿfl—. •Sÿ ‹Ê∑§— ‚ÈÃÊfl×. lÈÁ÷⁄U„UÊÁ÷⁄UÄÃÈÁ÷√ÿ¸Äâ ÿ◊Ê ŒŒÊàflfl‚ÊŸ◊S◊Ò.. (1) øÊ⁄U fl ¡Ê •ë¿U ◊Ÿ flÊ‹ Ÿ„UË¥ „Ò¥U, fl ß‚ SÕÊŸ ‚ ŒÍ⁄U ø‹ ¡Ê∞¢. ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬Ë«∏U∑§ ß‚ SÕÊŸ ‚ ŒÍ⁄U ø‹ ¡Ê∞¢. ÿ„U ‹Ê∑§ „U◊ Œfl¬ÈòÊÊ¥ ∑§Ê „ÒU. ÿ◊ Œfl ÁŒŸ •ÊÒ⁄U ⁄UÊà ◊¥ •Á÷√ÿÄà ߂ ©UûÊ◊ SÕÊŸ ∑§Ê „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥. (1) ‚ÁflÃÊ Ã ‡Ê⁄UË⁄Uèÿ— ¬ÎÁÕ√ÿÊ°À‹Ê∑§Á◊ë¿UÃÈ. ÃS◊Ò ÿÈÖÿãÃÊ◊ÈÁdÿÊ—.. (2) ‚ÁflÃÊ Œfl •Ê¬ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§ Á‹∞ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ¬‡ÊÈ•Ê¥ ‚ ¡Ê«∏UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (2) flÊÿÈ— ¬ÈŸÊÃÈ ‚ÁflÃÊ ¬ÈŸÊàflÇŸ÷˝Ê¸¡‚Ê ‚Íÿ¸Sÿ flø¸‚Ê. Áfl ◊ÈëÿãÃÊ◊ÈÁdÿÊ—.. (3) flÊÿÈ Œfl fl ‚ÁflÃÊ Œfl ß‚ SÕÊŸ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚Íÿ¸ Œfl ß‚ SÕÊŸ ∑§Ê flø¸SflË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ’¢œ „ÈU∞ ªÊÿÊ¥ •ÊÒ⁄U ’Ò‹Ê¥ ∑§Ê πÊ‹ ÁŒÿÊ ¡Ê∞. (3) •‡flàÕ flÊ ÁŸ·ŒŸ¢ ¬áʸ flÊ fl‚ÁÃc∑ΧÃÊ. ªÊ÷Ê¡ ˘ ßÁà∑§‹Ê‚Õ ÿà‚ŸflÕ ¬ÍL§·◊˜.. (4) ¬Ë¬‹ •ÊÒ⁄U ¬‹Ê‡Ê flΡÊÊ¥ ¬⁄U flÊ‚ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë •Ê·ÁœÿÊ¥ ‚ ÁŸflŒŸ „ÒU Á∑§ fl ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ªÊÿÊ¥ ∑§Ê ∑§Ê¢Áà ‚ ÿÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ¬ÊÒL§· ÿÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (4) ‚ÁflÃÊ Ã ‡Ê⁄UË⁄UÊÁáÊ ◊ÊÃÈL§¬SÕ ˘ •Ê fl¬ÃÈ. ÃS◊Ò ¬ÎÁÕÁfl ‡Ê¢ ÷fl.. (5) ‚ÁflÃÊ Œfl ÿ¡◊ÊŸ ∑§ ‡Ê⁄UË⁄U ∑§Ê ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§Ë ªÊŒ ◊¥ ’ÒΔUÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬ÎâflË ◊ÊÃÊ ∑§Ê „U◊ •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ©UŸ ‚’ ∑§ Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË ÃÕÊ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. (5) ¬˝¡Ê¬ÃÊÒ àflÊ ŒflÃÊÿÊ◊Ȭʌ∑§ ‹Ê∑§ ÁŸ ŒœÊêÿ‚ÊÒ. •¬ Ÿ— ‡ÊʇÊÈøŒÉÊ◊˜.. (6) ÿ¡Èfl¸Œ - 395
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¬˝¡Ê¬Áà Œfl ∑§Ê „U◊ ¡‹ ∑§ ¬Ê‚ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl ß‚ ¡‹ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Ÿ •ÊÒ⁄U „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (6) ¬⁄¢U ◊ÎàÿÊ •ŸÈ ¬⁄UÁ„U ¬ãÕÊ¢ ÿSà •ãÿ ˘ ßÃ⁄UÊ ŒflÿÊŸÊØ. øˇÊÈc◊à oÎáflà à ’˝flËÁ◊ ◊Ê Ÿ— ¬˝¡Ê ¦ ⁄UËÁ⁄U·Ê ◊Êà flË⁄UÊŸ˜.. (7) ◊ÎàÿÈ ∑§Ê ¬Õ ŒÍ‚⁄UÊ „ÒU. ©UŸ ∑§Ê ¬Õ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬Õ ‚ Á÷ããÊ „ÒU. •Ê¬ ŒÍ‚⁄U ¬Õ ‚ ‹ÊÒ≈U ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ŸòÊflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ üÊfláÊ ˇÊ◊ÃÊ ÿÈÄà „Ò¥U. •Ê¬ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ „ÒU Á∑§ •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝¡Ê fl flË⁄UÊ¥ ∑§Ê ŸÊ‡Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. (7) ‡Ê¢ flÊ× ‡Ê ¦ Á„U à ÉÊÎÁáÊ— ‡Ê¢ à ÷flÁãàflCÔU∑§Ê—. ‡Ê¢ à ÷flãàflÇŸÿ— ¬ÊÁÕ¸flÊ‚Ê ◊Ê àflÊÁ÷ ‡Ê͇ÊÈøŸ˜.. (8) flÊÿÈ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ. ‚Íÿ¸ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ. ßÁc≈U∑§Ê Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ. •ÁÇŸ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ. ÿ ‚÷Ë ¬ÎâflË ¬⁄U Á∑§‚Ë ∑§Ê ÷Ë ‚Êø ∞fl¢ ‚¢Ãʬ Ÿ Œ¥. (8) ∑§À¬ãÃÊ¢ à ÁŒ‡ÊSÃÈèÿ◊ʬ— Á‡ÊflÃ◊ÊSÃÈèÿ¢ ÷flãÃÈ Á‚ãœfl—. •ãÃÁ⁄UˇÊ ¦ Á‡Êfl¢ ÃÈèÿ¢ ∑§À¬ãÃÊ¢ à ÁŒ‡Ê— ‚flʸ—.. (9) ÁŒ‡ÊÊ∞¢ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. ¡‹ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ¥. ‚◊Ⱥ˝ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. •¢ÃÁ⁄UˇÊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ. ÁŒ‡ÊÊ∞¢ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ »§‹Ë÷Íà „UÊ¥. (9) •‡◊ãflÃË ⁄UËÿà ‚ ¦ ⁄U÷äfl◊ÈÁûÊcΔUà ¬˝ Ã⁄UÃÊ ‚πÊÿ—. •òÊÊ ¡„UË◊ÊÁ‡ÊflÊ ÿ •‚ÁÜ¿UflÊãflÿ◊ÈûÊ⁄U◊ÊÁ÷ flÊ¡ÊŸ˜.. (10) ¬àÕ⁄U flÊ‹Ë ŸŒË ’„U ⁄U„UË „ÒU. •Ê¬ Á◊òÊ ©U‚ ŸŒË ∑§Ê ‹Ê¢ÉÊŸ ∑§Ë ∑§ÊÁ‡Ê‡Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ©UΔU ∑§⁄U ©U‚ ∑§ ¬Ê⁄U ¬„¢UÈ Áø∞. ß‚ ◊¥ ¡Ê •∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË Ãûfl „ÒU¥ , ©Uã„U¥ ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ‚Èπ •ÊÒ⁄Ò U ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿUË ¬ŒÊÕ¸ ß‚ ŸŒË ‚ ¬Ê∞¢. (10) •¬ÊÉÊ◊¬ Á∑§ÁÀ’·◊¬ ∑ΧàÿÊ◊¬Ê ⁄U¬—. •¬Ê◊ʪ¸ àfl◊S◊Œ¬ ŒÈ—cflåãÿ ¦ ‚Èfl.. (11) „U≈UÊß∞, ¬Ê¬ ∑§Ê ŒÍ⁄U „U≈UÊß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê¬ ∑§◊ÊZ ∑§Ê ŒÍ⁄U „U≈UÊß∞. •¬ÿ‡ÊŒÊÿË ∑§◊ÊZ ∑§Ê •Ê¬ „U◊ ‚ ŒÍ⁄U „U≈UÊß∞. •Ê¬ ŒÈ—SflåŸÊ¥ ∑§Ê „U◊ ‚ („U◊Ê⁄U ¡ËflŸ ‚) ŒÍ⁄U „U≈UÊß∞. (11) ‚ÈÁ◊ÁòÊÿÊ Ÿ ˘ •Ê¬ ˘ •Ê·œÿ— ‚ãÃÈ ŒÈÁ◊¸ÁòÊÿÊSÃS◊Ò ‚ãÃÈÿÊS◊ÊãmÁc≈U ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊—.. (12) ¡‹ „U◊Ê⁄U •ë¿U Á◊òÊ „UÊ ¡Ê∞¢. •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊Ê⁄UË •ë¿UË Á◊òÊ „UÊ ¡Ê∞¢. ¡Ê 396 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „Ò¥U, ©UŸ ŒÈc≈U •Á◊òÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ ¬Ë«U∏ÊŒÊÿË „UÊß∞. (12) •Ÿ«˜UflÊ„U◊ãflÊ⁄U÷Ê◊„U ‚ÊÒ⁄U÷ÿ ¦ SflSÃÿ. ‚ Ÿ ˘ ßãº˝ ˘ ßfl ŒflèÿÊ flÁqÔU— ‚ãÃÊ⁄UáÊÊ ÷fl.. (13) „U◊ •¬Ÿ ∑§ÀÿÊáÊ „UÃÈ ‚È⁄UÁèÊ ¬ÈòÊ (ªÊÿ ∑§ ¬ÈòÊ ’¿U«∏U) ∑§Ê ’Ê⁄U’Ê⁄U •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl„U ߢº˝ Œfl ∑§ ‚◊ÊŸ ©UhÊ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê „UÊ. fl„ •ÁÇŸ Œfl ∑§ ‚◊ÊŸ ©UhÊ⁄U ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê „UÊ. (13) ©Umÿ¢ Ã◊‚S¬Á⁄U Sfl— ¬‡ÿãà ˘ ©UûÊ⁄U◊˜. Œfl¢ ŒflòÊÊ ‚Íÿ¸◊ªã◊ ÖÿÊÁÃL§ûÊ◊◊˜.. (14) „U◊ •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ™§¬⁄U ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÿ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê Œπà „Ò¥U. ŒflÃÊ ÷Ë ©UûÊ◊ ÖÿÊÁÃc◊ÊŸ ‚Íÿ¸ ∑§Ê Œπà „ÈU∞ ¬⁄U◊Êà◊Ê ∑§Ê ¬Êà „Ò¥U. (14) ß◊¢ ¡Ëflèÿ— ¬Á⁄UÁœ¢ ŒœÊÁ◊ ◊Ò·Ê¢ ŸÈ ªÊŒ¬⁄UÊ •Õ¸◊Ã◊˜. ‡Êâ ¡ËflãÃÈ ‡Ê⁄UŒ— ¬ÈM§øË⁄ãÃ◊θàÿÈ¢ ŒœÃÊ¢ ¬fl¸ÃŸ.. (15) „U◊ ÿ„U ◊ÿʸŒÊ M§¬Ë ¬Á⁄UÁœ ¡ËflÊ¥ ∑§ Á‹∞ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ß‚ ◊ÿʸŒÊ M§¬Ë ¬Á⁄UÁœ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄¥U. „U◊ ‚ÊÒ fl·¸ Ã∑§ ©Œ˜UŒ‡ÿ¬Íáʸ ‚ÊÕ¸∑§ ¡ËflŸ ¡Ë∞¢. ÿÁŒ ß‚ ’Ëø ◊¥ ◊ÊÒà •Ê∞ ÃÊ ◊ÎàÿÈ ŒflªáÊ ∑§ ¬Õ ◊¥ ¬fl¸Ã ¡Ò‚Ë ’ÊœÊ∞¢ π«∏UË ∑§⁄U Œ¥. (15) •ÇŸ ˘ •ÊÿÍ ¦ Á· ¬fl‚ ˘ •Ê ‚ÈflÊ¡¸Á◊·¢ ø Ÿ—. •Ê⁄U ’ÊœSfl ŒÈë¿ÈUŸÊ◊˜.. (16) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ •ÊÿÈ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ¬ÁflòÊ ∑§Êÿ¸ ‚¢¬ãŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ ™§¡Ê¸ŒÊÿË ßc≈U ¬ŒÊÕ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ŒÈc≈UÊ¥ ∑§Ê ’ÊÁœÃ ∑§ËÁ¡∞. (16) •ÊÿÈc◊ÊŸÇŸ „UÁfl·Ê flÎœÊŸÊ ÉÊÎì˝ÃË∑§Ê ÉÊÎÃÿÊÁŸ⁄UÁœ. ÉÊÎâ ¬ËàflÊ ◊œÈ øÊL§ ª√ÿ¢ Á¬Ãfl ¬ÈòÊ◊Á÷ ⁄UˇÊÃÊÁŒ◊ÊãàSflÊ„UÊ.. (17) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ „UÁfl ‚ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. ÉÊË •Ê¬ ∑§Ê ◊Í‹ SÕÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ÉÊË M§¬Ë ¬˝ÃË∑§ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ‚È¢Œ⁄U ªÊÿÊ¥ ∑§Ê ◊œÈ⁄U ÉÊË ¬Ë ∑§⁄U ©U‚Ë ¬˝∑§Ê⁄U „U◊ ÿ¡◊ÊŸ M§¬Ë ¬ÈòÊÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞, ¡Ò‚ Á¬ÃÊ ¬ÈòÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (17) ¬⁄UË◊ ªÊ◊Ÿ·Ã ¬ÿ¸ÁÇŸ◊NU·Ã. Œflcfl∑˝§Ã üÊfl— ∑§ ˘ ß◊Ê° 2 •Ê Œœ·¸ÁÃ.. (18) ¡Ê •ÁÇŸ ∑§Ê ߟ ¬Á⁄U¬Íáʸ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ‚ „UÁ·¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U, ߟ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ∑§Ê ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊà „Ò¥U, ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ∞‚ ÿôÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ∑§Ê߸ Ÿ„UË¥ „U⁄Ê ‚∑§ÃÊ. (18) ÿ¡Èfl¸Œ - 397
©UûÊ⁄UÊœ¸
¬Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
∑˝§√ÿÊŒ◊ÁÇŸ¢ ¬˝ Á„UáÊÊÁ◊ ŒÍ⁄¢U ÿ◊⁄UÊÖÿ¢ ªë¿UÃÈ Á⁄U¬˝flÊ„U—. ß„ÒUflÊÿÁ◊Ã⁄UÊ ¡ÊÃflŒÊ ŒflèÿÊ „U√ÿ¢ fl„UÃÈ ¬˝¡ÊŸŸ˜.. (19) „U◊ ∑˝§√ÿÊŒ •ÁÇŸ ∑§Ê ŒÍ⁄U ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ©U‚ ‚ ŒÍ⁄U ÿ◊⁄UÊÖÿ ◊¥ ¡ÊŸ ∑§Ê ÁŸflŒŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚fl¸ôÊ •ÁÇŸ „U◊Ê⁄U ÉÊ⁄UÊ¥ ◊¥ „UÊŸ flÊ‹ ÿôÊ ◊¥ ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Ê∞¢. •ÁÇŸ „U◊Ê⁄UË „UÁfl ∑§Ê fl„UŸ ∑§⁄UŸ fl ©U‚ ŒflÃÊ•Ê¥ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (19) fl„U fl¬Ê¢ ¡ÊÃflŒ— Á¬ÃÎèÿÊ ÿòÊÒŸÊãflàÕ ÁŸÁ„UÃÊŸ˜ ¬⁄UÊ∑§. ◊Œ‚— ∑ȧÀÿÊ ˘ ©U¬ ÃÊãàdflãÃÈ ‚àÿÊ ˘ ∞·Ê◊ÊÁ‡Ê·— ‚¢ Ÿ◊ãÃÊ ¦ SflÊ„UÊ.. (20) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ‚fl¸ôÊ „ÒU¥. •Ê¬ ¡„UÊ¢ Á¬Ã⁄U ÁŸflÊ‚ ∑§⁄Uà „ÒU¥, •Ê¬ ©U‚ SÕÊŸ ∑§Ê ¡ÊŸÃ „ÒU¥. •Ã— •Ê¬ „U◊ ‚ ŒÍ⁄U Á¬Ã⁄U‹Ê∑§flÊ‚Ë Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ „UÁfl fl„UŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ ¬Ê‚ ¡‹ ∑§Ë œÊ⁄UÊ∞¢ ‚˝Áflà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§ •Ê‡ÊËflʸŒ „U◊Ê⁄UU ¬˝Áà ‚œ „UÊ.¥ „U◊ Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „ÒU¥. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (20) SÿÊŸÊ ¬ÎÁÕÁfl ŸÊ ÷flÊŸÎˇÊ⁄UÊ ÁŸfl‡ÊŸË. ÿë¿UÊ Ÿ— ‡Ê◊¸ ‚¬˝ÕÊ—. •¬ Ÿ— ‡ÊʇÊÈøŒÉÊ◊˜.. (21) „U ¬ÎâflË ŒflË! •Ê¬ „U◊Ê⁄U flÊ‚ ÿÊÇÿ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „◊¥ ∑§c≈U ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ¬Ê¬Ê¥ ∑§Ê „U◊ ‚ ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ fl „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (21) •S◊Êûfl◊Áœ ¡ÊÃÊÁ‚ àflŒÿ¢ ¡ÊÿÃÊ¢ ¬ÈŸ—. •‚ÊÒ SflªÊ¸ÿ ‹Ê∑§Êÿ SflÊ„UÊ.. (22) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ©U¬¡Ê∞ ¡Êà „ÒU¥ . Á»§⁄U ’Ê⁄U’Ê⁄U ÿ¡◊ÊŸ mÊ⁄UÊ ©U¬¡Ê∞ ¡Êà „ÒU¥ . ÿ„U ÿ¡◊ÊŸ Sflª¸ ∑§ fl ‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ ÿôÊ ‚¢¬ÊÁŒÃ ∑§⁄Uà „ÒU¥ . „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (22)
398 - ÿ¡Èfl¸Œ
¿UûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ´§ø¢ flÊø¢ ¬˝ ¬l ◊ŸÊ ÿ¡È— ¬˝ ¬l ‚Ê◊ ¬˝ÊáÊ¢ ¬˝ ¬l øˇÊÈ— üÊÊòÊ¢ ¬˝ ¬l. flʪʡ— ‚„UÊÒ¡Ê ◊Áÿ ¬˝ÊáÊʬʟÊÒ.. (1) ´§ÇflŒ flÊáÊË SflM§¬ „ÒU. „U◊ ©U‚ ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡Èfl¸Œ ◊Ÿ SflM§¬ „ÒU. „U◊ ©U‚ ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Ê◊flŒ ¬˝ÊáÊ SflM§¬ „ÒU. „U◊ ©U‚ ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ŸòÊÊ¥ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ∑§ÊŸÊ¥ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ∑§Ê ¬˝Êåà ∑§⁄Uà „Ò¥U. flÊáÊË, ¬˝ÊáÊ fl •¬ÊŸ •¬ŸË ™§¡Ê¸ ‚Á„Uà „U◊ ‚ SÕÊÁ¬Ã „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (1) ÿã◊ Á¿Uº˝¢ øˇÊÈ·Ê NUŒÿSÿ ◊Ÿ‚Ê flÊÁÃÃÎááÊ¢ ’΄US¬ÁÃ◊¸ ÃgœÊÃÈ. ‡Ê¢ ŸÊ ÷flÃÈ ÷ÈflŸSÿ ÿS¬Á×.. (2) „U ’΄US¬Áà Œfl! •Ê¬ „U◊Ê⁄U øˇÊÈ•Ê¥ ∑§ ŒÊ· ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U NUŒÿ fl ◊Ÿ ∑§ ŒÊ· ŒÍ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπÊ¥ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ÷ÈflŸ ∑§ SflÊ◊Ë „ÒU¥. •Ê¬ „U◊Ê⁄UU Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (2) ÷Í÷ȸfl— Sfl—. Ãà‚ÁflÃÈfl¸⁄‘Uáÿ¢ ÷ªÊ¸ ŒflSÿ œË◊Á„U. ÁœÿÊ ÿÊ Ÿ— ¬˝øÊŒÿÊØ.. (3) ¬⁄U◊Êà◊Ê Sflÿ¢÷Í, ¬˝ÊáÊŒÊÿË fl Sflÿ¢ ¬˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „Ò¥U. fl ‚ÁflÃÊ Œfl fl⁄Uáÿ •ÊÒ⁄U ‚ÊÒ÷ÊÇÿŒÊÿË „Ò¥U. „U◊ ©UŸ ∑§Ê äÿÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄UË ’ÈÁhÿÊ¥ ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (3) ∑§ÿÊ ŸÁ‡øòÊ ˘ •Ê ÷ÈflŒÍÃË ‚ŒÊflÎœ— ‚πÊ. ∑§ÿÊ ‡ÊÁøcΔUÿÊ flÎÃÊ.. (4) ¬⁄U◊Êà◊Ê ©UûÊ◊ fl ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „Ò¥U. fl ‚ŒÊ „U◊Ê⁄UË ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§⁄UŸ fl „U◊Ê⁄U ‚πÊ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl „◊¥ ‚ÈπÊ¥ ‚ •ÊflÎà ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (4) ∑§SàflÊ ‚àÿÊ ◊ŒÊŸÊ¢ ◊ ¦ Á„UcΔUÊ ◊à‚Œãœ‚—. ŒÎ…UÊ ÁøŒL§¡ fl‚È.. (5) „U ߢº˝ Œfl! ‚ø◊Èø ∑§ÊÒŸ •Ê¬ ∑§Ê ◊ŒÿÈÄà ’ŸÊÃÊ „ÒU. ‚ø◊Èø •Ê¬ ÄÿÊ ¬Ë∑§⁄U „UÁ·¸Ã „UÊà „Ò¥U. •Ê¬ ÿ¡◊ÊŸ ∑§Ê ŒÎ…∏U ’ŸÊß∞. •Ê¬ „U◊¥ ‡Êʇflà œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (5) ÿ¡Èfl¸Œ - 399
©UûÊ⁄UÊœ¸
¿UûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•÷Ë ·È áÊ— ‚πËŸÊ◊ÁflÃÊ ¡Á⁄UÃÎáÊÊ◊˜. ‡Êâ ÷flÊSÿÍÁÃÁ÷—.. (6) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ ‚πÊ ∑§Ë Ã⁄U„U „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ œŸ ŒŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ •Ê¬ ∑§ ‚Ò∑§«∏UÊ¥ ⁄UˇÊÊ ‚ÊœŸÊ¥ ‚ ⁄UÁˇÊà „UÊ¥. (6) ∑§ÿÊ àfl¢ Ÿ ˘ ™§àÿÊÁ÷ ¬˝ ◊ãº˝ ‚ flηŸ˜. ∑§ÿÊ SÃÊÃÎèÿ ˘ •Ê ÷⁄U.. (7) „UU ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ •¬ŸË ⁄UˇÊÊ•Ê¥ ‚ Á∑§‚ ∑§ Á‹∞ •ÊŸ¢Œ ∑§Ë fl·Ê¸ Ÿ„UË¥ ∑§⁄Uà „Ò¥U? •Ê¬ •¬Ÿ SÃÊÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¡Ê ÷⁄U¬Í⁄U œŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. fl„U Á∑§‚ ∑§Ê •ÊŸ¢ÁŒÃ Ÿ„UË¥ ∑§⁄UÃÊ?Ô (7) ßãº˝Ê Áfl‡flSÿ ⁄UÊ¡ÁÃ. ‡Ê¢ ŸÊ •SÃÈ Ám¬Œ ‡Ê¢ øÃÈc¬Œ.. (8) ߢº˝ Œfl Áfl‡fl ∑§Ë ‡ÊÊ÷Ê „Ò¥U. fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. fl ŒÊ¬ÊÿÊ¥ fl øÊÒ¬ÊÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „Ò¥U. (8) ‡Ê¢ ŸÊ Á◊òÊ— ‡Ê¢ flL§áÊ— ‡Ê¢ ŸÊ ÷flàflÿ¸◊Ê. ‡Ê¢ Ÿ ˘ ßãº˝Ê ’΄US¬Á× ‡Ê¢ ŸÊ ÁflcáÊÈL§L§∑˝§◊—.. (9) Á◊òÊ Œfl, flL§áÊ Œfl, •ÿ¸◊Ê Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥. ߢº˝ Œfl fl ’΄US¬Áà Œfl fl ¡ªÃ˜¬Ê‹∑§ ÁflcáÊÈ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊ∑§Ê⁄UË „UÊ¥. (9) ‡Ê¢ ŸÊ flÊ× ¬flÃÊ ¦ ‡Ê¢ ŸSìÃÈ ‚Íÿ¸—. ‡Ê¢ Ÿ— ∑§ÁŸ∑˝§Œgfl— ¬¡¸ãÿÊ •Á÷ fl·¸ÃÈ.. (10) flÊÿÈ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥. fl „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚Íÿ¸ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ ∑§⁄U ìŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ª«∏Uª«∏Ê„U≈U ∑§⁄UŸ flÊ‹ ¬¡¸ãÿ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ ∑§⁄U ’⁄U‚Êà ∑§⁄¥U. (10) •„UÊÁŸ ‡Ê¢ ÷flãÃÈ Ÿ— ‡Ê ¦ ⁄UÊòÊË— ¬˝Áà œËÿÃÊ◊˜. ‡Ê¢ Ÿ ˘ ßãº˝ÊÇŸË ÷flÃÊ◊flÊÁ÷— ‡Ê¢ Ÿ ˘ ßãº˝ÊflL§áÊÊ ⁄UÊÄU√ÿÊ. ‡Ê¢ Ÿ ˘ ßãº˝Ê¬Í·áÊÊ flÊ¡‚ÊÃÊÒ ‡ÊÁ◊ãº˝Ê‚Ê◊Ê ‚ÈÁflÃÊÿ ‡Ê¢ ÿÊ—.. (11) ÁŒŸ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ. „U◊ ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ⁄UÊÁòÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ. „U◊ ’ÈÁh¬Ífl¸∑§ ¬˝ÊÕ¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •ÁÇŸ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥. fl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥. fl „U◊Ê⁄UË „UÁfl SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. flL§áÊ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥ fl „U◊Ê⁄UË „UÁfl SflË∑§Ê⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ߢº˝ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥ •ÊÒ⁄U ⁄Uʪ ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. ¬Í·Ê Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ¥ •ÊÒ⁄U ⁄Uʪ ŒÍ⁄U ∑§⁄¥U. (11) ‡Ê¢ ŸÊ ŒflË⁄UÁ÷CÔUÿ ˘ •Ê¬Ê ÷flãÃÈ ¬ËÃÿ. ‡Ê¢ ÿÊ⁄UÁ÷ dflãÃÈ Ÿ—.. (12) 400 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@25
©UûÊ⁄UÊœ¸
¿UûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÁŒ√ÿ ¡‹ „U◊Ê⁄UÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄. fl„U „U◊Ê⁄U •÷Ëc≈U¬⁄Í U∑§ „UÊ. ¡‹ „U◊Ê⁄U ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ „UÊ. fl„U „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿË „UÊ fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬˝flÊÁ„Uà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄. (12) SÿÊŸÊ ¬ÎÁÕÁfl ŸÊ ÷flÊŸÎˇÊ⁄UÊ ÁŸfl‡ÊŸË. ÿë¿UÊ Ÿ— ‡Ê◊¸ ‚¬˝ÕÊ—.. (13) „U ¬ÎâflË ŒflË! •Ê¬ flÊ‚ÿÊÇÿ „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ©UûÊ◊ flÊ‚ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ ßÁë¿Uà ‚Èπ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ’„ÈUà •Áœ∑§ ÁflSÃÎà „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (13) •Ê¬Ê Á„U cΔUÊ ◊ÿÊ÷ÈflSÃÊ Ÿ ˘ ™§¡¸ ŒœÊß. ◊„U ⁄UáÊÊÿ øˇÊ‚.. (14) ¡‹ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊ. fl„U „U◊Ê⁄U Á‹∞ ™§¡Ê¸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl„U „U◊¥ ™§¡¸SflË ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ¬⁄U◊Êà◊Ê „U◊¥ ŒπŸ „UÃÈ ◊„UÃË ŒÎÁc≈U ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (14) ÿÊ fl— Á‡ÊflÃ◊Ê ⁄U‚SÃSÿ ÷Ê¡ÿÄU Ÿ—. ©U‡ÊÃËÁ⁄Ufl ◊ÊÃ⁄U—.. (15) ¡Ò‚ ◊ÊÃÊ∞¢ ‚flʸÁœ∑§ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË ⁄U‚ ‚ ’ëøÊ¥ ∑§Ê ¬Ê‚ÃË „Ò¥U, flÒ‚ „UË •Ê¬ „U◊ ‚’ ∑§Ê ‚flʸÁœ∑§ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË ⁄U‚ (¬Ê·áÊ „UÃÈ) ‚flŸ ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (15) ÃS◊Ê ˘ •⁄¢U ª◊Ê◊ flÊ ÿSÿ ˇÊÿÊÿ Á¡ãflÕ. •Ê¬Ê ¡ŸÿÕÊ ø Ÿ—.. (16) „U ¡‹ Œfl! „U◊ Ÿ ˇÊÿ ∑§Ê ¡Ëß ∑§ Á‹∞ •Ê¬ Ã∑§ ª◊Ÿ Á∑§ÿÊ „ÒU. •Ê¬ „U◊ ‚’ ¡ŸÊ¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) lÊÒ— ‡ÊÊÁãÃ⁄UãÃÁ⁄UˇÊ ¦ ‡ÊÊÁã× ¬ÎÁÕflË ‡ÊÊÁãÃ⁄Uʬ— ‡ÊÊÁãÃ⁄UÊ·œÿ— ‡ÊÊÁã×. flŸS¬Ãÿ— ‡ÊÊÁãÃÁfl¸‡flŒflÊ— ‡ÊÊÁãÃ’˝¸rÊÔ ‡ÊÊÁã× ‚fl¸ ¦ ‡ÊÊÁã× ‡ÊÊÁãÃ⁄Ufl ‡ÊÊÁã× ‚Ê ◊Ê ‡ÊÊÁãÃ⁄UÁœ.. (17) Sflª¸‹Ê∑§ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¬ÎâflË‹Ê∑§ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¡‹ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . •Ê·Áœ Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . flŸS¬Áà Œfl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ‚’ ŒflªáÊ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ¬⁄U’r˝ ÊÔ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . ‡ÊÊ¢Áà ÷Ë „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U¥ . (17) ŒÎà ŒÎ ¦ „U ◊Ê Á◊òÊSÿ ◊Ê øˇÊÈ·Ê ‚flʸÁáÊ ÷ÍÃÊÁŸ ‚◊ˡÊãÃÊ◊˜. Á◊òÊSÿÊ„¢U øˇÊÈ·Ê ‚flʸÁáÊ ÷ÍÃÊÁŸ ‚◊ˡÊ. Á◊òÊSÿ øˇÊÈ·Ê ‚◊ˡÊÊ◊„U.. (18) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ŒÎ…U∏ „ÒU¥. •Ê¬ „U◊¥ ŒÎ…U∏ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊ Á◊òÊ÷Êfl ∑§Ë ÿ¡Èfl¸Œ - 401
©UûÊ⁄UÊœ¸
¿UûÊË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ŒÎÁc≈U ‚ ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ∑§Ê Œπ ‚∑§¥ §. ‚÷Ë ¬˝ÊáÊË „U◊¥ Á◊òÊ ÷Êfl ‚ Œπ ‚∑§¥ . (18) ŒÎà ŒÎ ¦ „U ◊Ê. ÖÿÊÄà ‚ãŒÎÁ‡Ê ¡Ë√ÿÊ‚¢ ÖÿÊÄà ‚ãŒÎÁ‡Ê ¡Ë√ÿÊ‚◊˜.. (19) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ‚Ê◊âÿ¸flÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ÷Ë ‚Ê◊âÿ¸‡ÊÊ‹Ë ’ŸÊß∞. •Ê¬ ∑§Ë ÖÿÊÁà ‚ „U◊ Áø⁄UÊÿÈ „UÊ¥. •Ê¬ ∑§Ë ÖÿÊÁà ‚ „U◊ Áø⁄U∑§Ê‹ Ã∑§ Œπ¥. (19) Ÿ◊Sà „U⁄U‚ ‡ÊÊÁø· Ÿ◊Sà •SàflÁø¸·. •ãÿÊ°Sà •S◊ûʬãÃÈ „UÃÿ— ¬Êfl∑§Ê •S◊èÿ ¦ Á‡ÊflÊ ÷fl.. (20) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë •Uø¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U „ÒU. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë •Uø¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ÖflÊ‹Ê∞¢ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊ∞¢. „U◊Ê⁄U ŒÈ—π „⁄¥U . •Ê¬ „U◊¥ ¬ÁflòÊ ’ŸÊ∞¢ fl „U◊Ê⁄U Á‹∞ ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË „UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (20) Ÿ◊Sà •SÃÈ ÁfllÈà Ÿ◊Sà SßÁÿàŸfl. Ÿ◊Sà ÷ªflãŸSÃÈ ÿ× Sfl— ‚◊Ë„U‚.. (21) „UU ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. Á’¡‹Ë ∑§Ë Ã⁄U„U ø◊∑§Ÿ flÊ‹ fl ª«∏Uª«U∏ÊŸ flÊ‹ ¬⁄U◊Êà◊Ê •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. „UU ÷ªflŸ! •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. „UU ÷ªflŸ! •Ê¬ ∑§Ê ’Ê⁄U’Ê⁄U Ÿ◊S∑§Ê⁄U. (21) ÿÃÊ ÿ× ‚◊Ë„U‚ ÃÃÊ ŸÊ •÷ÿ¢ ∑ȧL§. ‡Ê¢ Ÿ— ∑ȧL§ ¬˝¡ÊèÿÊ÷ÿ¢ Ÿ— ¬‡ÊÈèÿ—.. (22) „UU ÷ªflŸ! Á¡‚Á¡‚ ‚ •Ê¬ øÊ„Uà „Ò¥U, ©U‚©U‚ ‚ „U◊¥ ÁŸ÷¸ÿ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ¬˝¡Ê fl ¬‡ÊÈ•Ê¥ ∑§Ê ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (22) ‚ÈÁ◊ÁòÊÿÊ Ÿ ˘ •Ê¬ ˘ •Ê·œÿ— ‚ãÃÈ ŒÈÁ◊¸ÁòÊÿÊSÃS◊Ò ‚ãÃÈ. ÿÊS◊ÊŸ˜ mÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊—.. (23) ¡‹ „U◊Ê⁄U •ë¿U Á◊òÊ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ ∑§ Á‹∞ ‡ÊòÊÈ „UÊ ¡Ê∞¢. •Ê·ÁœÿÊ¢ „U◊Ê⁄UË •ë¿UË Á◊òÊ „UÊ ¡Ê∞¢. „U◊Ê⁄U ‡ÊòÊÈ ∑§ Á‹∞ ‡ÊòÊÈ „UÊ ¡Ê∞. ¡Ê „U◊ ‚ m· ∑§⁄Uà „ÒU¥ , ©UŸ ∑§ Á‹∞ ‡ÊòÊÈ „UÊ ¡Ê∞. Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ∑§⁄Uà „ÒU¥ , ©UŸ ∑§ Á‹∞ ‡ÊòÊÈ „UÊ ¡Ê∞. (23) ÃëøˇÊÈŒ¸flÁ„Uâ ¬È⁄USÃÊë¿ÈU∑˝§◊Èëø⁄UØ. ¬‡ÿ◊ ‡Ê⁄UŒ— ‡Êâ ¡Ëfl◊ ‡Ê⁄UŒ— ‡Êà ¦ oÎáÊÈÿÊ◊ ‡Ê⁄UŒ— ‡Êâ ¬˝ ’˝flÊ◊ ‡Ê⁄UŒ— ‡ÊÃ◊ŒËŸÊ— SÿÊ◊ ‡Ê⁄UŒ— ‡Êâ ÷Íÿ‡ø ‡Ê⁄UŒ— ‡ÊÃÊØ.. (24) ‚Íÿ¸ ¡ªÃ˜ ∑§ ŸòÊ „ÒU¥ . fl Á„UÃ∑§Ê⁄U∑§ „ÒU¥ . fl ¡ªÃ˜ ◊¥ ‚fl¸òÊ Áflø⁄à „ÒU¥ . fl „U◊Ê⁄U ‚Ê◊Ÿ ¬˝∑§≈U „UÊà „ÒU¥ . „U◊ ‚ÊÒ ‡Ê⁄UŒÊ¥ Ã∑§ ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ Œπ.¥ „U◊ ‚ÊÒ ‡Ê⁄UŒÊ¥ Ã∑§ ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ‚ÈŸ.¥ „U◊ ‚ÊÒ ‡Ê⁄UŒÊ¥ Ã∑§ ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ’Ê‹.¥ „U◊ ‚ÊÒ ‡Ê⁄UŒÊ¥ Ã∑§ ©UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ •ŒËŸ (ŒËŸÃÊ ⁄UÁ„UÃ) „UÊ.¥ „U◊ ‚ÊÒ ‚ ÷Ë •Áœ∑§ ‚◊ÿ Ã∑§ ‚ÈπË „UÊ.¥ (24)
402 - ÿ¡Èfl¸Œ
‚Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. •Ê ŒŒ ŸÊÁ⁄U⁄UÁ‚.. (1) ‚ÁflÃÊ Œfl ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ¬ÒŒÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥. „U◊ •Á‡flŸË Œfl fl ¬Í·Ê Œfl ∑§Ê ©UŸ ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (1) ÿÈÜ¡Ã ◊Ÿ ˘ ©Uà ÿÈÜ¡Ã ÁœÿÊ Áfl¬˝Ê Áfl¬˝Sÿ ’΄UÃÊ Áfl¬Á‡ø×. Áfl „UÊòÊÊ Œœ flÿÈŸÊÁflŒ∑§ ˘ ßã◊„UË ŒflSÿ ‚ÁflÃÈ— ¬Á⁄Uc≈ÈUÁ×.. (2) „U◊ ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚ ◊Ÿ •ÊÒ⁄U ’ÈÁh ¡Ê«∏Uà „Ò¥U. ’˝ÊrÊáÊ Áfl‡ÊÊ‹ ‚fl¸√ÿʬ∑§ ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚ •¬ŸÊ ◊Ÿ ¡Ê«∏Uà „Ò¥U. ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚fl¸ÁflŒ „Ò¥U. „UÊÃÊ ©Uã„¥U œÊ⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚ÁflÃÊ Œfl •Á÷Ÿ¢ŒŸËÿ „Ò¥. ©UŸ ∑§Ë •Ê⁄UÊœŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (2) ŒflË lÊflʬÎÁÕflË ◊πSÿ flÊ◊l Á‡Ê⁄UÊ ⁄UÊäÿÊ‚¢ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (3) „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ë ÁŒ√ÿ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ ∑§Ê ÿôÊ ◊¥ •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄U ∑§ flŒË ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬ÎâflË ∑§Ë ÁŒ√ÿ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ ∑§Ê ÿôÊ ◊¥ •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄U ∑§ flŒË ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ë ÁŒ√ÿ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ ∑§Ê ¬ÎâflË ∑§ ß‚ ŒflÿôÊ ◊¥ •Ê⁄UÊœŸÊ¬Ífl¸∑§ ÿôÊflŒË ¬⁄U SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ Á◊≈˜U≈UË ŒflË ∑§Ê ÿôÊ ∑§ ‡ÊË·¸SÕ (©Uëø) SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (3) Œ√ÿÊ fl◊˝KÊ ÷ÍÃSÿ ¬˝Õ◊¡Ê ◊πSÿ flÊl Á‡Ê⁄UÊ ⁄UÊäÿÊ‚¢ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (4) •ÁÇŸ ∑§Ë ‹¬≈¥U ‚’ ‚ ¬„U‹ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸ „UÒ¥. fl ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ ‚ ÷Ë ¬„U‹ ©Uà¬ãŸ „ÈU߸ „UÒ¥. ¬ÎâflË ∑§ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê Á‡Ê⁄UÊœÊÿ¸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ÿôÊ ∑§ ‡ÊË·¸SÕ SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (4) ßÿàÿª˝ ˘ •Ê‚Ëã◊πSÿ Ãl Á‡Ê⁄UÊ ⁄UÊäÿÊ‚¢ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (5)
ÿ¡Èfl¸Œ - 403
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ ¬ÎâflË ∑§ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê •Uª˝ SÕÊŸ ¬⁄U ’ÒΔUÊà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ÿôÊ ∑§ ‡ÊË·¸SÕ SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (5) ßãº˝SÿÊÒ¡ SÕ ◊πSÿ flÊl Á‡Ê⁄UÊ ⁄UÊäÿÊ‚¢ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (6) „U◊ ¬ÎâflË ∑§ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§Ê •Ê¡ ∑§Ë Ã⁄U„U ÿôÊ ∑§ ‡ÊË·¸SÕ SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊË·¸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊË·¸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊË·¸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ‡ÊË·¸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (6) ¬˝ÒÃÈ ’˝rÊÔáÊS¬Á× ¬˝ Œ√ÿÃÈ ‚ÍŸÎÃÊ. •ë¿UÊ flË⁄¢U ŸÿZ ¬æ˜UÁÄÃ⁄UÊœ‚¢ ŒflÊ ÿôÊ¢ ŸÿãÃÈ Ÿ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (7) ’˝rÊáÊS¬Áà Œfl ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ‚⁄USflÃË ŒflË ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. üÊcΔU flË⁄U ∑§Ê ¬˝¡ÊŸÈ¬Ê‹∑§ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (7) ◊πSÿ Á‡Ê⁄UÊÁ‚. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πSÿ Á‡Ê⁄UÊÁ‚. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πSÿ Á‡Ê⁄UÊÁ‚. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (8) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ÿôÊ ∑§ Á‚⁄U „Ò¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (8) 404 - ÿ¡Èfl¸Œ
632@26
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•‡flSÿ àflÊ flÎcáÊ— ‡ÊÄŸÊ œÍ¬ÿÊÁ◊ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. •‡flSÿ àflÊ flÎcáÊ— ‡ÊÄŸÊ œÍ¬ÿÊÁ◊ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. •‡flSÿ àflÊ flÎcáÊ— ‡ÊÄŸÊ œÍ¬ÿÊÁ◊ Œflÿ¡Ÿ ¬ÎÁÕ√ÿÊ—. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (9) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ¬ÎâflË ¬⁄U Á∑§∞ ¡Ê ⁄U„U ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ „U◊ ‡ÊÁÄÇÊÊ‹Ë ÉÊÊ«∏U ∑§Ê œÍ¬ÊÁÿà (‚¢S∑§Ê⁄U◊ÿ) ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ÿôÊ ∑§ ‡ÊË·¸SÕ SÕÊŸ ¬⁄U ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹U ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹U ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (9) ´§¡fl àflÊ ‚Êœfl àflÊ ‚ÈÁˇÊàÿÒ àflÊ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ. ◊πÊÿ àflÊ ◊πSÿ àflÊ ‡ÊËcáʸ.. (10) „U ‚Ê◊âÿ¸‡ÊÊ‹Ë Œfl! „U◊ ‚àÿ •ÊÒ⁄U ‚È⁄ˇÊÊ „UÃÈ •Ê¬ ∑§Ê ‚ʜà „Ò¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. ÿôÊ ∑§ Á‹∞ ß‚ ÁŒ√ÿ ÿôÊ ◊¥ ‹ ¡ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (10) ÿ◊Êÿ àflÊ ◊πÊÿ àflÊ ‚Íÿ¸Sÿ àflÊ Ã¬‚. ŒflSàflÊ ‚ÁflÃÊ ◊äflÊŸÄÃÈ ¬ÎÁÕ√ÿÊ— ‚ ¦ S¬Î‡ÊS¬ÊÁ„U. •Áø¸⁄UÁ‚ ‡ÊÊÁø⁄UÁ‚ ìÊÁ‚.. (11) „U ‚Ê◊âÿ¸‡ÊÊ‹Ë Œfl! „U◊ ÿ◊ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ Œfl fl ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ¬˝ÁÃÁcΔUà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê ◊œÈ⁄U ’ŸÊ∞¢. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ê S¬‡Ê¸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬ÎâflË ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ ¬ÁflòÊ fl ìÊ◊ÿ „Ò¥. „U◊ •Ê¬ ∑§Ë •ø¸ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (11) •ŸÊœÎCÔUÊ ¬È⁄USÃʌǟ⁄UÊÁœ¬àÿ ˘ •ÊÿÈ◊¸ ŒÊ—. ¬ÈòÊflÃË ŒÁˇÊáÊà ˘ ßãº˝SÿÊÁœ¬àÿ ¬˝¡Ê¢ ◊ ŒÊ—. ‚È·ŒÊ ¬‡øÊgflSÿ ‚ÁflÃÈ⁄UÊÁœ¬àÿ øˇÊÈ◊¸ ŒÊ—. •ÊüÊÈÁÃL§ûÊ⁄UÃÊ œÊÃÈ⁄UÊÁœ¬àÿ ⁄UÊÿS¬Ê·¢ ◊ ŒÊ—. ÿ¡Èfl¸Œ - 405
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÁflœÎÁÃL§¬Á⁄UCÔUÊŒ˜’΄US¬Ã⁄UÊÁœ¬àÿ ˘ •Ê¡Ê ◊ ŒÊ Áfl‡flÊèÿÊ ◊Ê ŸÊCÔ˛ÊèÿS¬ÊÁ„U ◊ŸÊ⁄U‡flÊÁ‚.. (12) „UU ¬ÎâflË! ‡ÊòÊÈ •Ê¬ ∑§Ê Á„¢U‚Ê Ÿ ¬„È¢UøÊ∞. •Ê¬ ¬Ífl¸ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ •ÁÇŸ ∑§Ê •ÊÁœ¬àÿ SÕÊÁ¬Ã ∑§⁄UÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬ÈòÊflÃË „UÊ ∑§⁄U ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ ⁄U„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U◊¥ ÷Ë ‚¢ÃÊŸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚ÈπŒÊÁÿŸË „Ò¥U. „U ¬ÎâflË! •Ê¬ ¬Á‡ø◊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ ⁄U„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊¥ ‚êÿ∑˜§ øˇÊÈ (ŒÎÁc≈U) ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ÁflŸÃË ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ‚ÈŸŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U ¬ÎâflË! •Ê¬ ©UûÊ⁄U ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ œÊÃÈ Œfl ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ ⁄U„UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U ¬ÎâflË! •Ê¬ „U◊¥ œŸ ‚ ¬ÊÁ·Ã ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. „U ¬ÎâflË ŒflË! •Ê¬ ™§¬⁄U ∑§Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ ’„ÈUà ¬ŒÊÕ¸ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ ’΄US¬Áà Œfl ∑§ •ÊÁœ¬àÿ ◊¥ ⁄U„U ∑§⁄U „U◊Ê⁄U Á‹∞ ’‹ŒÊÁÿŸË „UÊß∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ‚÷Ë ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Ÿc≈U ∑§⁄U ŒËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ◊Ÿ ∑§Ê •‡fl „Ò¥. (12) SflÊ„UÊ ◊L§Áj— ¬Á⁄U üÊËÿSfl ÁŒfl— ‚ ¦ S¬Î‡ÊS¬ÊÁ„U. ◊œÈ ◊œÈ ◊œÈ.. (13) ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÿ„U „UÁfl øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U ‚ S¬‡Ê¸ ∑§⁄U. ÿ„U „UÁfl „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. ◊œÈ⁄UÃÊ ∑§Ë SÕʬŸÊ „UÊ. (13) ª÷ʸ ŒflÊŸÊ¢ Á¬ÃÊ ◊ÃËŸÊ¢ ¬Á× ¬˝¡ÊŸÊ◊˜. ‚¢ ŒflÊ ŒflŸ ‚ÁflòÊÊ ªÃ ‚ ¦ ‚Íÿ¸áÊ ⁄UÊøÃ.. (14) ¬⁄U◊Êà◊Ê ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ª÷¸, ’ÈÁhÿÊ¥ ∑§ Á¬ÃÊ •ÊÒ⁄U ¬˝¡Ê•Ê¥ ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥U. ¬⁄U◊Êà◊Ê ŒflÊ¥ ∑§ Œfl ‚ÁflÃÊ Œfl ‚¢‚Ê⁄U ∑§Ê ¬˝Á⁄Uà ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ ‚fl¸òÊ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà ∑§⁄Uà „Ò¥U. (14) ‚◊ÁÇŸ⁄UÁÇŸŸÊ ªÃ ‚¢ ŒÒflŸ ‚ÁflòÊÊ ‚ ¦ ‚Íÿ¸áÊÊ⁄UÊÁøc≈U. SflÊ„UÊ ‚◊ÁÇŸSì‚Ê ªÃ ‚¢ ŒÒ√ÿŸ ‚ÁflòÊÊ ‚ ¦ ‚Íÿ¸áÊÊM§L§øÃ.. (15) ¬⁄U◊Êà◊Ê •ÁÇŸ ∑§ ‚ÊÕ ‚ÁflÃÊ Œfl ‚ ∞∑§◊∑§ „UÊ ∑§⁄U ‚Íÿ¸M§¬ ◊¥ ¬˝∑§ÊÁ‡Êà „UÊà „Ò¥U. •ÁÇŸ ∑§ ‚ÊÕ ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÁflÃÊ Œfl ‚Íÿ¸M§¬ ◊¥ ‡ÊÊÁ÷à „UÊà „Ò¥U. (15) œÃʸ ÁŒflÊ Áfl ÷ÊÁà ì‚S¬ÎÁÕ√ÿÊ¢ œÃʸ ŒflÊ ŒflÊŸÊ◊◊àÿ¸Sìʡʗ. flÊø◊S◊ ÁŸ ÿë¿U ŒflÊÿÈfl◊˜.. (16) ¬⁄U◊Êà◊Ê Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ œÊ⁄U∑§ „Ò¥U. fl •¬Ÿ á ‚ ¬ÎâflË ¬⁄U Áfl÷ÍÁ·Ã „UÊà „Ò¥U. fl ¬ÎâflË ¬⁄U ŒflÊ¥ ∑§ œÊ⁄U∑§ fl •¬Ÿ ÁŒ√ÿ ì •ÊÒ⁄U •Ê¡ ‚ ‚¢¬ãŸ „Ò¥U. fl „U◊¥ ÁŒ√ÿ flÊáÊË •ÊÒ⁄U •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) 406 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
‚Ò¥ÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
•¬‡ÿ¢ ªÊ¬Ê◊ÁŸ¬l◊ÊŸ◊Ê ø ¬⁄UÊ ø ¬ÁÕÁ÷‡ø⁄UãÃ◊˜. ‚ ‚œ˝ËøË— ‚ Áfl·ÍøËfl¸‚ÊŸ ˘ •Ê fl⁄UËflÁø ÷ÈflŸcflã×.. (17) „U◊ ‚Íÿ¸ Œfl ∑§Ê ªÊ¬Õ ¬⁄U •ÊáÊà „ÈU∞ Œπà „Ò¥U. ‚Íÿ¸ Œfl ‚fl¸⁄UˇÊ∑§, ‚fl¸üÊcΔU fl •ÁflŸÊ‡ÊË „Ò¥U. ‚Íÿ¸ Œfl ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ ¬Õ ‚ •ÊŸ¡ÊŸ flÊ‹ „Ò¥U. fl„U ‚Íÿ¸ Œfl ‚÷Ë ‹Ê∑§Ê¥ ∑§ º˝c≈UÊ „Ò¥U. (17) Áfl‡flÊ‚Ê¢ ÷ÈflÊ¢ ¬Ã Áfl‡flSÿ ◊Ÿ‚S¬Ã Áfl‡flSÿ flø‚S¬Ã ‚fl¸Sÿ flø‚S¬Ã. ŒflüÊÈàfl¢ Œfl ÉÊ◊¸ ŒflÊ ŒflÊŸ˜ ¬ÊsÔòÊ ¬˝ÊflË⁄UŸÈ flÊ¢ ŒflflËÃÿ. ◊œÈ ◊ÊäflËèÿÊ¢ ◊œÈ ◊ÊœÍøËèÿÊ◊˜.. (18) ¬⁄U◊Êà◊Ê ‚÷Ë ÷ÈflŸÊ¥ ∑§ ¬Áà „Ò¥U. Áfl‡fl ∑§ ◊Ÿ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. fl Áfl‡fl ∑§Ë flÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ SflÊ◊Ë „Ò¥U. fl ‚÷Ë ∑§Ë flÊÁáÊÿÊ¥ ∑§ ¬Ê‹∑§ „Ò¥ •ÊÒ⁄U ŒflÃÊ•Ê¥ ◊¥ ÁflüÊÈà (¬˝Á‚h) „Ò¥U. ŒflÊ¥ ∑§ Œfl „Ò¥U. œ◊¸ ◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹Ÿ flÊ‹Ê¥ ∑§ ⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. Œflàfl øÊ„UŸ flÊ‹Ê¥ ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (18) NUŒ àflÊ ◊Ÿ‚ àflÊ ÁŒfl àflÊ ‚Íÿʸÿ àflÊ. ™§äflʸ •äfl⁄¢U ÁŒÁfl Œfl·È œÁ„U.. (19) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ „U◊Ê⁄U NUŒÿ fl ◊Ÿ ◊¥ „Ò¥U. •Ê¬ Sflª¸‹Ê∑§ ◊¥ „Ò¥U. „U ‚Íÿ¸! „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ê ™¢§øÊßÿÊ¥ Ã∑§ ‹ ¡Êß∞. •Ê¬ ß‚ ŒflÃÊ•Ê¥ „UÃÈ ÁŒ√ÿ‹Ê∑§ Ã∑§ ¬„È¢UøÊß∞. (19) Á¬ÃÊ ŸÊÁ‚ Á¬ÃÊ ŸÊ ’ÊÁœ Ÿ◊Sà •SÃÈ ◊Ê ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë—. àflc≈Î◊ãÃSàflÊ ‚¬◊ ¬ÈòÊÊ㬇ÊÍã◊Áÿ œÁ„U ¬˝¡Ê◊S◊Ê‚È œsÔÊÁ⁄UCÔUÊ„U ¦ ‚„U ¬àÿÊ ÷ÍÿÊ‚◊˜.. (20) „U ¬⁄U◊Êà◊Ê! •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á¬ÃÊ „Ò¥U. •Ê¬ Á¬ÃÊ ∑§Ë Ã⁄U„U „U◊¥ ’ÊÁœÃ (¡Êª˝Ã) ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊Ê⁄UÊ •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊S∑§Ê⁄U. •Ê¬ Á∑§‚Ë ÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ Á∑§‚Ë ÷Ë ¬˝∑§Ê⁄U ∑§Ë Á„¢U‚Ê ◊à ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ¬ÈòÊ œÊÁ⁄U∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚¢ÃÊŸ œÊ⁄UáÊ ∑§⁄¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. „U◊ ßc≈U fløŸÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ¬Ê‹∑§ ‚Á„Uà ’Ê⁄U’Ê⁄UU •Ê¬ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (20) •„U— ∑§ÃÈŸÊ ¡È·ÃÊ ¦ ‚ÈÖÿÊÁÃÖÿʸÁÃ·Ê SflÊ„UÊ. ⁄UÊÁòÊ— ∑§ÃÈŸÊ ¡È·ÃÊ ¦ ‚ÈÖÿÊÁÃÖÿʸÁÃ·Ê SflÊ„UÊ.. (21) •Ê¬ ∑§◊¸ÿÈÄÃ, ßc≈U ‚Êœ∑§ fl ‚Ȭ˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ÖÿÊÁà ‚Á„Uà •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •Ê¬ ⁄UÊà ◊¥ ÷Ë ∑§◊¸ÿÈÄà „Ò¥U. •Ê¬ ßc≈U ‚Êœ∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Ȭ˝∑§Ê‡ÊflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ÖÿÊÁà ‚Á„Uà •Ê¬ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (21)
ÿ¡Èfl¸Œ - 407
•«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ ŒflSÿ àflÊ ‚ÁflÃÈ— ¬˝‚flÁ‡flŸÊ’ʸ„ÈUèÿÊ¢ ¬ÍcáÊÊ „USÃÊèÿÊ◊˜. •Ê ŒŒÁŒàÿÒ ⁄UÊSŸÊÁ‚.. (1) „U ÿôÊ ™§¡Ê¸! „U◊ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§Ë ¡ËflŸŒÊÿË ¬˝⁄UáÊÊ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Á‡flŸË ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ÷È¡Ê•Ê¥ ‚ ¬Í·Ê Œfl ∑§ „UÊÕÊ¥ ‚ •Ê¬ ∑§Ê ª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ë ◊ÊÃÊ •ÁŒÁà ∑§Ê •ÊflÎà ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. (1) ß« ˘ ∞sÔ ÁŒÃ ˘ ∞Á„U ‚⁄USflàÿÁ„U. •‚ÊflsÔ‚ÊflsÔ‚ÊflÁ„U.. (2) „U ß«UÊ∏ ŒflË! •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ¬œÊÁ⁄U∞. „U •ÁŒÁà ŒflË! •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ¬œÊÁ⁄U∞. „U ‚⁄USflÃË ŒflË! •Ê¬ ÿ„UÊ¢ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (2) •ÁŒàÿÒ ⁄UÊSŸÊ‚Ëãº˝ÊáÿÊ ˘ ©UcáÊË·—. ¬Í·ÊÁ‚ ÉÊ◊ʸÿ ŒËcfl.. (3) „U ÿôÊ ™§¡Ê¸! •Ê¬ •ÁŒÁà Œfl ∑§Ë (◊π‹Ê) •ÊflÎûÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ë „Ò¥U. •Ê¬ ߢº˝ÊáÊË ∑§ Á‚⁄U ∑§Ê flSòÊ (¬˝ÁÃcΔUÊ ‚Íø∑§) „Ò¥U. •Ê¬ ¬Ê·∑§ „Ò¥U. •Ê¬ ÿôÊ ¡Ò‚ Á„UÃ∑§Ê⁄UË ∑§ÊÿÊZ ◊¥ •¬ŸË ‡ÊÁÄà ∑§Ê ‹ªÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (3) •Á‡flèÿÊ¢ Á¬ãflSfl ‚⁄USflàÿÒ Á¬ãflSflãº˝Êÿ Á¬ãflSfl. SflÊ„Uãº˝flØ SflÊ„Uãº˝flØ SflÊ„Uãº˝flØ.. (4) •Á‡flŸË Œfl ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ¬˝flÊÁ„Uà „UÊ ⁄U„UË „Ò. •Ê¬ ß‚ ¬ËÁ¡∞. ‚⁄USflÃË ŒflË ∑§ ¬ËŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ¤Ê⁄U ⁄U„UË „Ò. ߢº˝ Œfl ∑§ ¬ÊŸ (¬ËŸ) ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ’„U ⁄U„UË „ÒU. ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. SflÊ„UÊ. SflÊ„UÊ. (4) ÿSà Sß— ‡Ê‡ÊÿÊ ÿÊ ◊ÿÊ÷Íÿʸ ⁄UàŸœÊ fl‚ÈÁfll— ‚ÈŒòÊ—. ÿŸ Áfl‡flÊ ¬ÈcÿÁ‚ flÊÿʸÁáÊ ‚⁄USflÁà ÃÁ◊„U œÊÃfl∑§—. ©Ufl¸ãÃÁ⁄UˇÊ◊ãflÁ◊.. (5) „U ‚⁄USflÃË ŒflË! •Ê¬ ∑§Ê ÁŒ√ÿ ôÊÊŸ ‚ÈπŒÊÿË, ∑§ÀÿÊáÊŒÊÿË fl ‚◊ÎÁhŒÊÿË „ÒU. •Ê¬ ∑§Ê ÁŒ√ÿ ôÊÊŸ flÒ‚Ê „UË ‚ÈπŒ •ÊÒ⁄U •ÊŸ¢ŒŒÊÿË „ÒU, ¡Ò‚ ◊Ê¢ ∑§Ê Sß ’ëø ∑§ Á‹∞ ‚Èπ∑§Ê⁄UË ŸË¥Œ ‹ÊŸ flÊ‹Ê fl •ÊŸ¢Œ ŒŸ flÊ‹Ê „UÊÃÊ „ÒU. ’ëø ◊¥ ©UûÊ◊ ’‹ ‚¢øÁ⁄Uà ∑§⁄UÃÊ „ÒU •ÊÒ⁄U ©UŸ ◊¥ ©UûÊ◊ ªÈáÊ ¬ÒŒÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê „UÊÃÊ „ÒU. (5) 408 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
•«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ªÊÿòÊ¢ ¿UãŒÊÁ‚ òÊÒc≈ÈU÷¢ ¿UãŒÊÁ‚ lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ¢ àflÊ ¬Á⁄U ªÎ±áÊÊêÿãÃÁ⁄UˇÊáÊʬ ÿë¿UÊÁ◊. ßãº˝ÊÁ‡flŸÊ ◊œÈŸ— ‚Ê⁄UÉÊSÿ ÉÊ◊Z ¬Êà fl‚flÊ ÿ¡Ã flÊ≈U˜. SflÊ„UÊ ‚Íÿ¸Sÿ ⁄U‡◊ÿ flÎÁCÔUflŸÿ.. (6) „U ߢº˝ Œfl! ¡Ê ÿ¡◊ÊŸ ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ë SÃÈÁà ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ ©UŸ ∑§ ‚¢⁄UˇÊ∑§ „Ò¥U. ¡Ê ÁòÊc≈ÈU÷˜ ¿¢UŒ ◊¥ ߢº˝ Œfl ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ߢº˝ Œfl ©Uã„¥U ÷Ë ‚¢⁄UˇÊáÊ ŒŸ flÊ‹ „Ò¥U. „U •Á‡flŸË Œfl! „U◊ Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ „UÃÈ •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê ¬Á⁄Uª˝„UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ‚ •Ê⁄UÊÇÿ (SflÊSâÿ) ∑§Ë ∑§Ê◊ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥. „U◊ ߢº˝ Œfl •ÊÒ⁄U ŒÊŸÊ¥ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§Ê •¢ÃÁ⁄UˇÊ‹Ê∑§ ‚ •¬Ÿ ¬Ê‚ ‹ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. •Ê¬ ŒÊŸÊ¥ •◊Îà fl ™§¡Ê¸ ’⁄U‚ÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. fl‚ȪáÊ ©U¬ÿÈÄà ⁄UËÁà ‚ ÿôÊ ∑§Êÿ¸ ∑§Ê ÁŸflʸ„U ∑§⁄¥U. fl ‚Íÿ¸ ∑§Ë Á∑§⁄UáÊÊ¥ ‚ •ë¿UË ’⁄U‚Êà ¬ÊŸ ∑§ Á‹∞ ©U¬ÿÈÄà ⁄UËÁà ‚ ÿôÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (6) ‚◊Ⱥ˝Êÿ àflÊ flÊÃÊÿ SflÊ„UÊ ‚Á⁄U⁄UÊÿ àflÊ flÊÃÊÿ SflÊ„UÊ. •ŸÊœÎcÿÊÿ àflÊ flÊÃÊÿ S√ÊÊ„Uʬ˝ÁÃœÎcÿÊÿ àflÊ flÊÃÊÿ SflÊ„UÊ. •flSÿfl àflÊ flÊÃÊÿ SflÊ„UÊÁ‡ÊÁ◊ŒÊÿ àflÊ flÊÃÊÿ SflÊ„UÊ.. (7) „U flÊÿÈ! ‚◊Ⱥ˝ ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚÷Ë ∑§Ê ‚¢⁄UˇÊáÊ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ •¬Ê⁄U ‡ÊÁÄà ∑§ Á‹∞ •Ê¬ ∑§Ê •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‚÷Ë ∑§ flÊ‚ (‚¢⁄UˇÊáÊ) ¬˝ŒÊÃÊ ∑§ Á‹∞ „U◊ •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ‡ÊÊ¢ÁÃŒÊÿË flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊Ê⁄UË ÿ ‚÷Ë •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (7) ßãº˝Êÿ àflÊ fl‚È◊à L§º˝flà SflÊ„Uãº˝Êÿ àflÊÁŒàÿflà SflÊ„Uãº˝Êÿ àflÊÁ÷◊ÊÁÃÉŸ SflÊ„UÊ. ‚ÁflòÊ àfl ˘ ´§÷È◊à Áfl÷È◊à flÊ¡flà SflÊ„UÊ ’΄US¬Ãÿ àflÊ Áfl‡flŒ√ÿÊflà SflÊ„UÊ.. (8) „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ œŸflÊŸ fl ‡ÊÁÄÃ◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ •ÊÁŒàÿflÊŸ (áÊ◊ÿ) „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. „U ߢº˝ Œfl! •Ê¬ •Á÷◊ÊŸ ∑§Ê ‚◊Êåà ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. ‚ÁflÃÊ Œfl ‚àÿflÊŸ „Ò¥U. fl œŸflÊŸ fl ’‹flÊŸ „Ò¥U. ©UŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ Á„UÃ∑§Ê⁄UË ’΄US¬Áà ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (8) ÿ◊Êÿ àflÊÁX⁄USflà Á¬ÃÎ◊à SflÊ„UÊ. S√ÊÊ„UÊ ÉÊ◊ʸÿ SflÊ„UÊ— ÉÊ◊¸— Á¬òÊ.. (9) ÿ◊ Œfl Á¬Ã⁄UªáÊÊ¥ ∞fl¢ •¢Áª⁄UÊ ‚ ÿÈÄà „Ò¥U. ÿ◊ Œfl ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ •Á¬¸Ã „ÒU¢. ÿôÊ ∑§ ÁflSÃÊ⁄U ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. Á¬Ã⁄UÊ¥ ∑§Ê ÃÎÁåà ŒŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (9)
ÿ¡Èfl¸Œ - 409
©UûÊ⁄UÊœ¸
•«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Áfl‡flÊ ˘ •Ê‡ÊÊ ŒÁˇÊáÊ‚Ám‡flÊŸ˜ ŒflÊŸÿÊÁ«U„U. SflÊ„UÊ∑ΧÃSÿ ÉÊ◊¸Sÿ ◊œÊ— Á¬’Ã◊Á‡flŸÊ.. (10) ÿôÊ ◊¥ „UÊÃÊ ŒÁˇÊáÊ ÁŒ‡ÊÊ ◊¥ Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „Ò¥U . ©UŸ „UÊÃÊ•Ê¥ Ÿ ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ ÁŸflÊ‚ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê •Ê◊¢ÁòÊà Á∑§ÿÊ „ÒU. „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! ÿôÊ ∑§ ÁflSÃÊ⁄U ∑§ Á‹∞ ¡Ê ⁄U‚◊ÿË •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ‚◊Á¬¸Ã ∑§Ë ¡Ê ⁄U„UË „ÒU¢, •Ê¬ ©Uã„¥U ¬ËŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (10) ÁŒÁfl œÊ ˘ ß◊¢ ÿôÊÁ◊◊¢ ÿôÊ¢ ÁŒÁfl œÊ—. SflÊ„UÊÇŸÿ ÿÁôÊÿÊÿ ‡Ê¢ ÿ¡Èèÿ¸—.. (11) „U ÿ¡◊ÊŸÊ! •Ê¬ ß‚ ÿôÊ fl •Ê„ÈUÁà ∑§Ê Sflª¸‹Ê∑§ Ã∑§ ¬„¢ÈUøÊß∞. ÿ¡◊ÊŸ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿ¡◊ÊŸ •¬ŸË ‚Èπ‡ÊÊ¢Áà ∑§ Á‹∞ ◊¢òÊ ¬…∏Uà „ÈU∞ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄U ⁄U„U „Ò¥U. (11) •Á‡flŸÊ ÉÊ◊Z ¬Êà ¦ „UÊmʸŸ◊„UÁŒ¸flÊÁ÷M§ÁÃÁ÷—. ÃãòÊÊÁÿáÊ Ÿ◊Ê lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ◊˜.. (12) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ •¬ŸË ‡ÊÁÄà ‚ ß‚ ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ •¬ŸË ⁄UˇÊáÊ ‡ÊÁÄÃÿÊ¥ ∑§ ‚ÊÕ ß‚ NUŒÿ ∑§Ê Á¬˝ÿ ‹ªŸ flÊ‹ ÿôÊ ◊¥ ¬œÊ⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. ‚Íÿ¸, Sflª¸‹Ê∑§ fl ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ‚÷Ë ŒflÊ¥ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ „ÒU. (12) •¬ÊÃÊ◊Á‡flŸÊ ÉÊ◊¸◊ŸÈ lÊflÊU¬ÎÁÕflË •◊ ¦ ‚ÊÃÊ◊˜. ß„ÒUfl ⁄UÊÃÿ— ‚ãÃÈ.. (13) „U •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ! •Ê¬ •Ê¬ÊÃ× (¬Íáʸ •ÊÒ⁄U „U⁄U M§¬ ‚) „U◊Ê⁄U ÿôÊ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ ŒflÃÊ ÷Ë •Ê¬ ∑§ ‚ÊÕ ÿôÊ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U . •Ê¬ •¬Ÿ ÁŸflÊ‚ SÕ‹ ‚ „UË „U◊¥ œŸ ¬˝ŒÊŸ (÷Ê¢ÁÃ÷Ê¢Áà ∑§) ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§ËÁ¡∞. (13) ß· Á¬ãflSflÊ¡¸ Á¬ãflSfl ’˝rÊÔáÊ Á¬ãflSfl ˇÊòÊÊÿ Á¬ãflSfl lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ¢ Á¬ãflSfl. œ◊ʸÁ‚ ‚Èœ◊ʸ◊ãÿS◊ ŸÎêáÊÊÁŸ œÊ⁄Uÿ ’˝rÊÔ œÊ⁄Uÿ ˇÊòÊ¢ œÊ⁄Uÿ Áfl‡Ê¢ œÊ⁄Uÿ.. (14) „U ¬⁄U’˝rÊ! „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, ÃÊÁ∑§ •Ê¬ „U◊Ê⁄UË •ÊÒ⁄U ÿ¡◊ÊŸÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥. •Ê¬ ’˝ÊrÊáÊÊ¥ ÃÕÊ ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ¬˝¡Ê ∑§Ê œ◊¸ ‚ ‚¢øÊÁ‹Ã ∑§ËÁ¡∞. ©U‚ œ◊¸ ◊ʪ¸ ∑§Ê „U◊ ‚’ ÷Ë •ŸÈ∑§⁄UáÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. ©U‚ œ◊¸ ◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹ ∑§⁄U „U◊ ∑§Ã¸√ÿ ¬Ê‹Ÿ ∑§⁄Uà „ÈU∞ •¬ŸÊ ‹ˇÿ ¬˝Êåà ∑§⁄U ‚∑¥§. (14) SflÊ„UÊ ¬ÍcáÊ ‡Ê⁄U‚ SflÊ„UÊ ª˝Êflèÿ— SflÊ„UÊ ¬˝ÁÃ⁄Uflèÿ—. SflÊ„UÊ Á¬ÃÎèÿ˘™§äfl¸’Á„¸Uèÿʸ ÉÊ◊¸¬Êflèÿ— SflÊ„UÊ lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ ¦ SflÊ„UÊ Áfl‡flèÿÊ Œflèÿ—.. (15) ¬˝◊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ¬Í·Ê, ‡ÊéŒ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥, ‚Ê◊ ⁄U‚ ¬ËŸ flÊ‹ ŒflÃÊ•Ê¥, 410 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
•«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
Áfl‡Ê· ÿôÊ ∑§Ê ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ Á¬Ã⁄UÊ¥, ¬ÎâflË‹Ê∑§, Sflª¸‹Ê∑§ •ÊÒ⁄U ŒÍ‚⁄U ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ ÿ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ ‚◊Á¬¸Ã „Ò¥U. (15) SflÊ„UÊ L§º˝Êÿ L§º˝„ÍUÃÿ SflÊ„UÊ ‚¢ ÖÿÊÁÃ·Ê ÖÿÊÁ×. •„U— ∑§ÃÈŸÊ ¡È·ÃÊ ¦ ‚ÈÖÿÊÁÃÖÿʸÁÃ·Ê SflÊ„UÊ. ⁄UÊÁòÊ— ∑§ÃÈŸÊ ¡È·ÃÊ ¦ ‚ÈÖÿÊÁÃÖÿʸÁÃ·Ê SflÊ„UÊ. ◊œÈ „ÈUÃÁ◊ãº˝Ã◊ •ÇŸÊfl‡ÿÊ◊ à Œfl ÉÊ◊¸ Ÿ◊Sà •SÃÈ ◊Ê ◊Ê Á„ ¦ ‚Ë—.. (16) „U ÁŒ√ÿ ªÈáÊ flÊ‹Ë ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄÃ! ÿ„U •Ê„ÈUÁà L§º˝ Œfl ∑§Ê ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. ÖÿÊÁà ‚ ÖÿÊÁà ¬˝ÖflÁ‹Ã ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. ÁŒŸ ◊¥ á ‚ á ∑§Ê ‚¢ÿÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà „Ò¥U. ⁄UÊà ◊¥ á ‚ á ∑§Ê ‚¢ÿÈÄà ∑§⁄UŸ ∑§ Á‹∞ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. •Ê¬ ߟ •Ê„ÈUÁÃÿÊ¥ ∑§Ê SflË∑§Ê⁄U ∑§⁄Uà „ÈU∞ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. (16) •÷Ë◊¢ ◊Á„U◊Ê ÁŒfl¢ Áfl¬˝Ê ’÷Ífl ‚¬˝ÕÊ—. ©Uà üÊfl‚Ê ¬ÎÁÕflË ¦ ‚ ¦ ‚ËŒSfl ◊„UÊ° 2 •Á‚ ⁄UÊøSfl ŒflflËÃ◊—. Áfl œÍ◊◊ÇŸ •L§·¢ Á◊ÿäÿ ‚Ρ ¬˝‡ÊSà Œ‡Ê¸Ã◊˜.. (17) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ê ÿ‡Ê ¬ÎâflË •ÊÒ⁄U Sflª¸ ◊¥ »Ò§‹Ê „ÒU. •Ê¬ ¬˝ÖflÁ‹Ã „UÊ ∑§⁄U ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§Ê ÃÎåà ∑§⁄Uà „ÈU∞ ‹Ê‹ ⁄¢Uª flÊ‹Ê •Ê∑§·¸∑§ œÈ•Ê¢ øÊ⁄UÊ¥ •Ê⁄U »Ò§‹Ê∞¢. (17) ÿÊ Ã ÉÊ◊¸ ÁŒ√ÿÊ ‡ÊÈÇÿÊ ªÊÿòÿÊ ¦ „UÁflœÊ¸Ÿ. ‚Ê Ã ˘ •ÊåÿÊÿÃÊ¢ ÁŸc≈UKÊÿÃÊ¢ ÃSÿÒ Ã SflÊ„UÊ. ÿÊ Ã ÉÊ◊ʸãÃÁ⁄UˇÊ ‡ÊÈÇÿÊ ÁòÊc≈ÈUéèÿÊÇŸËœ˝. ‚Ê Ã ˘ •Ê åÿÊÿÃÊ¢ ÁŸc≈UKÊÿÃÊ¢ ÃSÿÒ Ã SflÊ„UÊ. ÿÊ Ã ÉÊ◊¸ ¬ÎÁÕ√ÿÊ ¦ ‡ÊÈÇÿÊ ¡ªàÿÊ ¦ ‚ŒSÿÊ. ‚Ê Ã ˘ •Ê åÿÊÿÃÊ¢ ÁŸc≈UKÊÿÃÊ¢ ÃSÿÒ Ã SflÊ„UÊ.. (18) „U •ÁÇŸ! •Ê¬ ∑§Ë ø◊∑§ Sflª¸‹Ê∑§, Áfl‡Ê· ÿôÊ •ÊÒ⁄U ªÊÿòÊË ¿¢UŒ ◊¥ »Ò§‹Ë „ÒU. fl„U ø◊∑§ •¢ÃÁ⁄UˇÊ ÃÕÊ ÁòÊc≈ÈU¬Ô˜ ¿¢UŒ ◊¥ ÷Ë Áfll◊ÊŸ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ë fl„UË ø◊∑§ ¬ÎâflË, ‚÷ÊSÕ‹ •ÊÒ⁄U ¡ªÃË ¿¢UŒ ◊¥ ÷Ë „ÒU. •Ê¬ ∑§Ë ø◊∑§ ÿÊ ÿ‡Ê •ÊÒ⁄U ÷Ë •ÁäÊ∑§ »Ò§‹ ß‚Ë ©UŒÔ˜Œ‡ÿ ‚ ÿ„U •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã „ÒU. (18) ˇÊòÊSÿ àflÊ ¬⁄US¬Êÿ ’˝rÊÔáÊSÃãfl¢ ¬ÊÁ„U. Áfl‡ÊSàflÊ œ◊¸áÊÊ flÿ◊ŸÈ ∑˝§Ê◊Ê◊ ‚ÈÁflÃÊÿ Ÿ√ÿ‚.. (19) „U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄÃ! •Ê¬ ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ‚ „U◊Ê⁄UË ⁄UˇÊUÊ ∑§⁄¥U. ˇÊÁòÊÿÊ¥ ∑§ ’‹ ÃÕÊ ’˝ÊrÊÔáÊÊ¥ ∑§ ôÊÊŸ ∑§Ë ⁄UˇÊÊ ∑§⁄¥U. ¬˝¡Ê ∑§Ê œ◊¸ ◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹Ê∞¢. ©UûÊ◊ ¬ŒÊÕ¸ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄¥U. üÊcΔU ◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹Ÿ ÃÕÊ ∑§Ã¸√ÿ ¬Ê‹Ÿ ∑§ Á‹∞ „U◊ •Ê¬ ∑§Ê •ŸÈ‚⁄UáÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U. (19) ÿ¡Èfl¸Œ - 411
©UûÊ⁄UÊœ¸
•«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
øÃÈ—dÁÄßʸÁ÷´¸§ÃSÿ ‚¬˝ÕÊ— ‚ ŸÊ Áfl‡flÊÿÈ— ‚¬˝ÕÊ— ‚ Ÿ— ‚flʸÿÈ— ‚¬˝ÕÊ—. •¬ m·Ê •¬ uÔU⁄UÊãÿfl˝ÃSÿ ‚Á‡ø◊.. (20) „U ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄÃ! •Ê¬ øÊ⁄UÊ¥ ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ◊¥ √ÿÊåà „ÒU¥ . •Ê¬ ´§Ã (‚àÿ) ∑§Ë ŸÊÁ÷ (∑§¥ º˝) „ÒU¥ . •Ê¬ ÿôÊ ∑§Ë ¬˝ÕÊ ∑§ ‚¢øÊ‹∑§ fl ÁflÅÿÊà „ÒU¥ . •Ê¬ „U◊¥ ¬ÍáÊʸÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê§∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ÿ‡ÊSflË ’ŸÊß∞ fl ÿ‡Ê ‚Á„Uà ‚Ê⁄UË •ÊÿÈ ¬˝ŒÊŸ ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ mÁ·ÿÊ¥ (m· ∑§⁄UŸ flÊ‹Ê)¥ ‚ ŒÍ⁄U ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ „U◊¥ ¡ã◊◊⁄UáÊ ∑§ ø∑˝§ ‚ ◊ÈÄà ∑§ËÁ¡∞. •Ê¬ ‚¢∑§À¬‡ÊË‹ fl ∑Χ¬Ê‹È „ÒU¥ . (20) ÉÊ◊Ò¸ÃûÊ ¬È⁄UË·¢ ß flœ¸Sfl øÊ ø åÿÊÿSfl. flÁœ¸·Ë◊Á„U ø flÿ◊Ê ø åÿÊÁ‚·Ë◊Á„U.. (21) „U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ˇÊ◊ÃÊflÊŸ fl ‚◊ÎÁhflÊŸ „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ •ÊÒ⁄U ‚◊ÎÁh ◊¥ •ÊÒ⁄U ÷Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. „U◊ ÷Ë •Ê¬ ∑§Ë ˇÊ◊ÃÊ •ÊÒ⁄U ‚◊ÎÁh ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ¬Ê∞¢ •ÊÒ⁄U ©U‚ ‚ •ÊåÿÊÁÿà (ÃÎåÃ) „UÊ ¡Ê∞¢. (21) •Áø∑˝§ŒŒ˜flÎ·Ê „UÁ⁄U◊¸„UÊÁã◊òÊÊ Ÿ Œ‡Ê¸Ã—. ‚ ¦ ‚Íÿ¸áÊ ÁŒlÈÌȌÁœÁŸ¸Áœ—.. (22) „U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ÁŸ⁄¢UÃ⁄U ‚Èπ ’⁄U‚ÊŸ flÊ‹, ŒÈ—π„UÊ⁄UË, ◊„UÊŸ˜ Á◊òÊ fl ‚fl¸º˝c≈UÊ „Ò¥U. •Ê¬ ‚Íÿ¸ ∑§Ë Ã⁄U„U lÈÁÃ◊ÊŸ (¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ) •ÊÒ⁄U ©UŒÁœ (‚◊Ⱥ˝) ∑§Ë Ã⁄U„U ª„U⁄U (ª¢÷Ë⁄U) „Ò¥U. •Ê¬ ‚ÈπÊ¥ ∑§Ê π¡ÊŸÊ „Ò¥U. (22) ‚ÈÁ◊ÁòÊÿÊ Ÿ ˘ •Ê¬ ˘ •Ê·œÿ— ‚ãÃÈ ŒÈÁ◊¸ÁòÊÿÊSÃS◊Ò ‚ãÃÈ ÿÊS◊ÊãmÁCÔU ÿ¢ ø flÿ¢ Ámc◊—.. (23) „U ÿôÊ Œfl! ¡‹ fl •Ê·ÁœÿÊ¥ „U◊Ê⁄U Á‹∞ Á◊òÊ ∑§ ‚◊ÊŸ „UÊ¥. ¡Ê „U◊ ‚ m· ⁄Uπà „Ò¥U ÿÊ Á¡Ÿ ‚ „U◊ m· ⁄Uπà „Ò¥U, ©UŸ ∑§ Á‹∞ ¡‹ •ÊÒ⁄U •Ê·ÁœÿÊ¢ ŒÈÁ◊¸òÊ (’È⁄U Á◊òÊ) ∑§Ë Ã⁄U„U „UÊÁŸ∑§⁄U „UÊ ¡Ê∞¢. (23) ©Umÿ¢ Ã◊‚S¬Á⁄U Sfl— ¬‡ÿãà ˘ ©UûÊ⁄U◊˜. Œfl¢ ŒflòÊÊ ‚Íÿ¸◊ªã◊ ÖÿÊÁÃL§ûÊ◊◊˜.. (24) „U ÿôÊ Œfl! „U◊ Ã◊‚‹Ê∑§ ‚ ÷Ë •Áœ∑§ ™§¬⁄U ©UΔ¥U. „U◊ ™§äfl¸‹Ê∑§ ◊¥ ‚Íÿ¸ ¡Ò‚ ŒflÊ¥ ∑§Ê ÷Ë ∑§ÀÿÊáÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ŒflÊ¥ ∑§Ê Œπ¥. „U◊ üÊcΔU ÖÿÊÁÃ◊ÊŸ ∑§ Œ‡Ê¸Ÿ ∑§⁄¥U. (24) ∞œÊSÿÁœ·Ë◊Á„U ‚Á◊ŒÁ‚ áÊÁ‚ Ã¡Ê ◊Áÿ œÁ„U.. (25) „U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ÖÿÊÁÃ◊¸ÿ (¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ) „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ÖÿÊÁà •ÊÒ⁄U ÷Ë »Ò§‹. •Ê¬ ‚Á◊œÊ ¡Ò‚ áSflË „Ò¥U. •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ ÷Ë ©U‚ á ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U ‚∑¥§. (25) 412 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
•«∏UÃË‚flÊ¢ •äÿÊÿ
ÿÊflÃË lÊflʬÎÁÕflË ÿÊflëø ‚åà Á‚ãœflÊ ÁflÃÁSÕ⁄U. ÃÊflãÃÁ◊ãº˝ à ª˝„U◊͡ʸ ªÎ±áÊÊêÿÁˇÊâ ◊Áÿ ªÎ±áÊÊêÿÁˇÊÃ◊˜.. (26) „U ÿôÊ Œfl! ¡„UÊ¢ Ã∑§ Sflª¸‹Ê∑§ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U „ÒU, ¡„UÊ¢ Ã∑§ ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§Ê ÁflSÃÊ⁄U „UÒ, ¡„UÊ¢ Ã∑§ ‚åà Á‚¢œÈ (‚◊Ⱥ˝) ÁflSÃÎà „ÒU, fl„UÊ¢ Ã∑§ „U◊ •Ê¬ ‚ ™§¡Ê¸ ª˝„UáÊ ∑§⁄U ‚∑¥ . „U◊ •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ß‚ ª˝„UáÊ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‚Ê◊âÿ¸ ¬Ê ‚∑¥§. (26) ◊Áÿ àÿÁŒÁãº˝ÿ¢ ’΄Uã◊Áÿ ŒˇÊÊ ◊Áÿ ∑˝§ÃÈ—. ÉÊ◊¸ÁSòʇÊÈÁÇfl ⁄UÊ¡Áà Áfl⁄UÊ¡Ê ÖÿÊÁÃ·Ê ‚„U ’˝rÊÔáÊÊ Ã¡‚Ê ‚„U.. (27) ¡Ê ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà •ÊÒ⁄U ¬⁄U◊ á ‚ ‚ȇÊÊÁ÷à „UÊ ∑§⁄U Áfl⁄UÊ¡◊ÊŸ „ÒU, ¡Ê ¬˝∑§Ê‡Ê ∑§ ‚ÊÕ ‡ÊÊ÷ÃË „ÒU, ¡Ê ÁflÁflœ á ‚ áÊ◊ÿË „ÒU, fl„U Áfl‡ÊÊ‹ ¬⁄U◊ ‡ÊÁÄà ◊È¤Ê ’‹flÊŸ •ÊÒ⁄U ÁŸ¬ÈáÊ ’ŸÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄U. „U◊¥ ∑§Êÿ¸ ∑§⁄UŸ ∑§Ë ‡ÊÁÄà ¬˝ŒÊŸ ∑§⁄U. (27) ¬ÿ‚Ê ⁄Uà ˘ •Ê÷Îâ ÃSÿ ŒÊ„U◊‡ÊË◊±ÿÈûÊ⁄UÊ◊ÈûÊ⁄UÊ ¦ ‚◊Ê◊˜. Áàfl·— ‚¢flÎ∑˜§ ∑˝§àfl ŒˇÊSÿ à ‚È·ÈêáÊSÿ à ‚È·ÈêáÊÊÁÇŸ„ÈU×. ßãº˝¬ËÃSÿ ¬˝¡Ê¬Áà ÷ÁˇÊÃSÿ ◊œÈ◊à ˘ ©U¬„ÍUà ˘ ©U¬„ÍUÃSÿ ÷ˇÊÿÊÁ◊.. (28) „U ÿôÊ Œfl! •Ê¬ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ ’⁄U‚Êà ‚ ’⁄U‚ „ÈU∞ •◊Îá‹ ‚ ¬˝∑ΧÁà ¬Í⁄UË Ã⁄U„U ÷⁄U ªß¸ „ÒU. •Ê¬ ∑§Ë „UË ∑Χ¬Ê ‚ „U◊ •Êª ÷Ë ÁŸ⁄¢UÃ⁄U •¬Ÿ ‹Ê÷ ∑§ Á‹∞ ©U‚ ∑§Ê ŒÊ„UŸ ∑§⁄U ‚∑§Ÿ ◊¥ ‚◊âʸ „UÊ ‚∑¥§. •Ê¬ ‚¢∑§À¬ Á‚h ∑§⁄UŸ ◊¥ ŒˇÊ (∑ȧ‡Ê‹) fl ¬˝∑§Ê‡Ê◊ÊŸ „Ò¥U. „U◊ ÿôÊ ◊¥ •Ê¬ ∑§Ê •ÊuÊŸ ∑§⁄Uà „Ò¥U. ÿôÊ ◊¥ ŒË ªß¸ ‚ÈπŒÊÿË •Ê„ÈUÁÃÿÊ¢ „U◊Ê⁄U Á‹∞ ‚ÈπŒÊÿ∑§ „Ò¥U. ߢº˝ Œfl mÊ⁄UÊ ¬Ë ªß¸ ◊œÈ⁄U „UÁfl •ÊÒ⁄U ¬˝¡Ê¬Áà mÊ⁄UÊ πÊ߸ ªß¸ (‚flŸ ∑§Ë ªß¸) ◊œÈ⁄U „UÁfl ∑§Ê, „◊ ©UŸ ∑§Ê •¬Ÿ ¬Ê‚ •Ê◊¢ÁòÊà ∑§⁄U ∑§, ‚flŸ ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (28)
ÿ¡Èfl¸Œ - 413
©UŸÃÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ SflÊ„UÊ ¬˝ÊáÊèÿ— ‚ÊÁœ¬ÁÃ∑§èÿ—. ¬ÎÁÕ√ÿÒ SflÊ„UÊÇŸÿ SflÊ„UÊãÃÁ⁄UˇÊÊÿ SflÊ„UÊ flÊÿfl SflÊ„UÊ ÁŒfl SflÊ„UÊ ‚Íÿʸÿ SflÊ„UÊ.. (1) ¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§ •Áœ¬Áà ‚Á„Uà (¬˝ÊáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞) SflÊ„UÊ. ¬ÎâflË ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¢ÃÁ⁄UˇÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚Íÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (1) ÁŒÇèÿ— SflÊ„UÊ øãº˝Êÿ SflÊ„UÊ ŸˇÊòÊèÿ— SflÊ„UÊjK— SflÊ„UÊ flL§áÊÊÿ SflÊ„UÊ. ŸÊèÿÒ SflÊ„UÊ ¬ÍÃÊÿ SflÊ„UÊ.. (2) ‚÷Ë ÁŒ‡ÊÊ•Ê¥ ∑§ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ø¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸˇÊòÊ ŒflÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡‹ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÿôÊ Œfl ∑§Ë ŸÊÁ÷ (∑§¢º˝) ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬ÁflòÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ ‚÷Ë ŒflÃÊ•Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (2) flÊø SflÊ„UÊ ¬˝ÊáÊÊÿ S√ÊÊ„UÊ ¬˝ÊáÊÊÿ SflÊ„UÊ. øˇÊÈ· SflÊ„UÊ øˇÊÈ· SflÊ„UÊ üÊÊòÊÊÿ SflÊ„UÊ üÊÊòÊÊÿ SflÊ„UÊ.. (3) flÊáÊË Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (’ÊßZ) ¬˝ÊáÊ flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (ŒÊßZ) ¬˝ÊáÊ flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (’Ê∞¢) øˇÊÈ (•Ê¢π) ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (ŒÊ∞¢) øˇÊÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (’Ê∞¢) ∑§ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (ŒÊ∞¢) ∑§ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (3) ◊Ÿ‚— ∑§Ê◊◊Ê∑ͧÁâ flÊø— ‚àÿ◊‡ÊËÿ. ¬‡ÊÍŸÊ ¦ M§¬◊ãŸSÿ ⁄U‚Ê ÿ‡Ê— üÊË—üÊÿÃÊ¢ ◊Áÿ SflÊ„UÊ.. (4) ◊Ÿ ∑§Ë ßë¿UÊ ¬Í⁄UË „UÊ. flÊáÊË ‚àÿ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄U. ¬‡ÊÈ•Ê¥, M§¬ fl •ããÊ ∑§ ⁄U‚ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË „UÊ. ÿ‡Ê, ‡ÊÊ÷Ê fl üÊÿ ’…∏U. „U◊ ߟ ‚’ ∑§Ë ’…∏UÊÃ⁄UË ∑§ Á‹∞ •Ê„ÈUÁà •Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (4) ¬˝¡Ê¬Á× ‚Áê÷˝ÿ◊ÊáÊ— ‚◊˝Ê≈U˜ ‚ê÷ÎÃÊ flÒ‡flŒfl— ‚ ¦ ‚ãŸÊ ÉÊ◊¸— ¬˝flÎÄà Sá ˘ ©Ulà ˘ •ÊÁ‡flŸ— ¬ÿSÿÊŸËÿ◊ÊŸ ¬ÊÒcáÊÊ ÁflcÿãŒ◊ÊŸ ◊ÊL§Ã— Ä‹ÕŸ˜. ◊ÒòÊ— ‡Ê⁄UÁ‚ ‚ãÃʃÿ◊ÊŸ flÊÿ√ÿÊ ÁOÔUÿ◊ÊáÊ ˘ •ÊÇŸÿÊ „ÍUÿ◊ÊŸÊ flÊÇÉÊÈ×.. (5)
414 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U ÿôÊ ŒflÃÊ! ÿôÊ ‚ ¬Á⁄U¬Èc≈U „UÊŸ flÊ‹ ¬˝¡Ê¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. SÊ¢÷˝Ê¢Ã ⁄UÊ¡Ê ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚÷Ë ŒflÊ¥ (Áfl‡fl Œfl) ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ã◊ʪ¸ ¬⁄U ø‹Ÿ flÊ‹Ê¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. œ◊¸¬⁄UÊÿáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. áÁSflÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¡‹ ‚ •Á÷ÁcÊÄà Á∑§∞ ¡Êà „ÈU∞ •Á‡flŸË∑ȧ◊Ê⁄UÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Á„UÃ∑§Ê⁄UË ¬Í·Ê Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡ÊòÊȟʇÊË ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. πÃË’Ê«∏UË ∑§Ë ‚◊ÎÁh ∑§⁄UŸ flÊ‹ Á◊òÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ø‹Êÿ◊ÊŸ flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flÊÇŒflÃÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (5) ‚ÁflÃÊ ¬˝Õ◊„UãŸÁÇŸÁm¸ÃËÿ flÊÿÈSÃÎÃËÿ˘•ÊÁŒàÿ‡øÃÈÕ¸ øãº˝◊Ê— ¬Üø◊˘´§ÃÈ— ·cΔU ◊L§Ã— ‚åÃ◊ ’΄US¬ÁÃ⁄Uc≈U◊. Á◊òÊÊ Ÿfl◊ flL§áÊÊ Œ‡Ê◊ ˘ ßãº˝ ˘ ∞∑§ÊŒ‡Ê Áfl‡flŒflÊ mÊŒ‡Ê.. (6) ¬„U‹ ÁŒŸ ‚ÁflÃÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŒÍ‚⁄U ÁŒŸ •ÁÇŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÃË‚⁄U ÁŒŸ flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. øÊÒÕ ÁŒŸ •ÊÁŒàÿ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬Ê¢øfl¥ ÁŒŸ ø¢º˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ¿UΔU ÁŒŸ ´§Ã Œfl (‚àÿ) ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‚ÊÃfl¥ ÁŒŸ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •ÊΔUfl¥ ÁŒŸ ’΄US¬Áà Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸÊÒfl¥ ÁŒŸ Á◊òÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Œ‚fl¥ ÁŒŸ flL§áÊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÇÿÊ⁄U„Ufl¥ ÁŒŸ ߢº˝ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’Ê⁄U„Ufl¥ ÁŒŸ Áfl‡flÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. (6) ©Uª˝‡ø ÷Ë◊‡ø äflÊãÇø œÈÁŸ‡ø. ‚Ê‚uÔUÊ¢‡øÊÁ÷ÿÈÇflÊ ø ÁflÁˇÊ¬— SflÊ„UÊ.. (7) flÊÿÈ ©Uª˝, ÷Ë◊, ÉÊŸÉÊÊ⁄U ‡ÊéŒ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U, ∑¢§¬∑¢§¬Ê ŒŸ flÊ‹ ‚÷Ë ∑§Ê „U⁄UÊ ŒŸ flÊ‹ fl ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ¬⁄U •Ê∑˝§◊áÊ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U. ‡ÊòÊÈ•Ê¥ ∑§Ê Á¿UããÊÁ÷ããÊ ∑§⁄U ‚∑§Ÿ flÊ‹ „Ò¥U. ©UŸ flÊÿÈ ∑§ Á‹∞ „U◊ •Ê„ÈUÁà ‚◊Á¬¸Ã ∑§⁄Uà „Ò¥U. (7) •ÁÇŸ ¦ NUŒÿŸÊ‡ÊÁŸ ¦ NUŒÿʪ˝áÊ ¬‡ÊȬÁâ ∑ΧàSŸNUŒÿŸ ÷fl¢ ÿÄŸÊ. ‡ÊflZ ◊ÃSŸÊèÿÊ◊ˇÊÊŸ¢ ◊ãÿÈŸÊ ◊„UÊŒfl◊ã× ¬‡Ê¸√ÿŸÊª˝¢ Œfl¢ flÁŸcΔÈUŸÊ flÁ‚cΔU„UŸÈ— Á‡ÊXËÁŸ ∑§Ê‡ÿÊèÿÊ◊˜.. (8) „U◊ ÿ¡◊ÊŸ NUŒÿ ‚ •ÁÇŸ ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄Uà „Ò¥U. NUŒÿ ∑§ •Êª ∑§ ÷ʪ ‚ ¬˝∑§Ê‡Ê Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄Uà „Ò¥U. ¬Í⁄U NUŒÿ ‚ ¬‡ÊȬÁà Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ÿ∑Χà ‚ •Ê∑§Ê‡Ê Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ªÈ⁄UŒÊ¥ ‚ ¡‹ Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ◊Ÿ ‚ ߸‡ÊÊŸ Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ •¢Ã—∑§⁄UáÊ ‚ ◊„UÊŒfl, •¢ÃÁ«∏UÿÊ¥ ‚ ©Uª˝ Œfl fl „UŸÈ ‚ flÁ‚cΔU ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. NUŒÿ ∑§ ∑§Ê·Ê¥ ‚ Á‚Áh ¬ÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (8) ©Uª˝°À‹ÊÁ„Uß Á◊òÊ ¦ ‚ÊÒfl˝àÿŸ L§º˝¢ ŒÊÒfl¸˝àÿŸãº˝¢ ¬˝∑˝§Ë«UŸ ◊L§ÃÊ ’‹Ÿ ‚ÊäÿÊŸ˜ ¬˝◊ÈŒÊ. ÷flSÿ ∑§áΔUK ¦ L§º˝SÿÊã× ¬Ê‡√ÿZ ◊„UÊŒflSÿ ÿ∑Χë¿Ufl¸Sÿ flÁŸcΔÈU— ¬‡ÊȬ× ¬È⁄UËÃØ.. (9) ÿ¡Èfl¸Œ - 415
©UûÊ⁄UÊœ¸
©UŸÃÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
‹„ÍU ‚ ©ª˝ Œfl ∑§Ê ‚¢ÃÈc≈U ∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. üÊcΔU fl˝ÃÊ¥ ‚ Á◊òÊ Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ŒÈ⁄UÊøÊ⁄U ŒÍ⁄U ∑§⁄U ∑§ ©U‚ ‚¢∑§À¬ ‚ L§º˝ Œfl ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. „U◊ ‚ŒÊøÊ⁄U ‚ ߢº˝ Œfl ∑§Ê Á⁄U¤ÊÊŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ’‹ ‚ ◊L§Œ˜ªáÊÊ¥ ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. üÊcΔU ∑§◊ÊZ ‚ ‚Êäÿ ŒflÊ¥ ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ∑§¢ΔU ‚ ÷fl Œfl ∑§Ê πÈ‡Ê ⁄UπŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. ¬Ê‡fl¸ (¬Ë¿U) ‚ L§º˝ Œfl, ©UûÊ◊ •Êø⁄UáÊ ‚ ◊„UÊ Œfl, ÿ∑Χà ‚ ‡Êfl¸ Œfl fl „U◊ ŸÊ«∏UË ‚ ¬‡ÊȬÁà ∑§Ê ¬˝‚㟠∑§⁄UŸÊ øÊ„Uà „Ò¥U. (9) ‹Ê◊èÿ— SflÊ„UÊ ‹Ê◊èÿ— SflÊ„UÊ àflø SflÊ„UÊ àflø SflÊ„UÊ ‹ÊÁ„UÃÊÿ SflÊ„UÊ ‹ÊÁ„UÃÊÿ SflÊ„UÊ ◊ŒÊèÿ— SflÊ„UÊ ◊ŒÊèÿ— SflÊ„UÊ. ◊Ê ¦ ‚èÿ— S√ÊÊ„UÊ ◊Ê ¦ ‚èÿ— SflÊ„UÊ SŸÊflèÿ— SflÊ„UÊ SŸÊflèÿ— SflÊ„ÊUSÕèÿ— SflÊ„UÊSÕèÿ— SflÊ„UÊ ◊Ö¡èÿ— SflÊ„UÊ ◊Ö¡èÿ— S√ÊÊ„UÊ ⁄U SflÊ„UÊ. ¬Êÿfl S√ÊÊ„UÊ.. (10) ⁄UÊ◊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. àfløÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‹„ÍU ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ø⁄U’Ë ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊Ê¢‚ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ŸÊÁ«∏UÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. „UÁ«˜U«UÿÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊Ö¡Ê ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. flËÿ¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ªÈŒÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (10) •ÊÿÊ‚Êÿ SflÊ„UÊ ¬˝ÊÿÊ‚Êÿ SflÊ„UÊ ‚¢ÿÊ‚Êÿ SflÊ„UÊ ÁflÿÊ‚Êÿ SflÊ„UÊlÊ‚Êÿ SflÊ„UÊ. ‡ÊÈø SflÊ„UÊ ‡ÊÊøà SflÊ„UÊ ‡ÊÊø◊ÊŸÊÿ SflÊ„UÊ ‡ÊÊ∑§Êÿ SflÊ„UÊ.. (11) •ÊÿÊ‚ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬˝ÿÊ‚ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ‚¢ãÿÊ‚ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁflÿÊ‚ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ©UlÊ‚ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡ÊÈø Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡ÊÊø Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ‡ÊÊø◊ÊŸ •ÊÒ⁄U ‡ÊÊ∑§ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (11) ì‚ SflÊ„UÊ Ãåÿà SflÊ„UÊ Ãåÿ◊ÊŸÊÿ SflÊ„UÊ ÃåÃÊÿ SflÊ„UÊ ÉÊ◊ʸÿ SflÊ„UÊ. ÁŸc∑ΧàÿÒ SflÊ„UÊ ¬˝ÊÿÁ‡øàÿÒ SflÊ„UÊ ÷·¡Êÿ SflÊ„UÊ.. (12) ì ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Ãåÿ◊ÊŸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÃÎåà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. œ◊¸ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÁŸc∑ΧÁà •ÊÒ⁄U ¬˝ÊÿÁ‡øûÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ÷·¡ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (12) ÿ◊Êÿ SflÊ„UÊãÃ∑§Êÿ SflÊ„UÊ ◊Îàÿfl SflÊ„UÊ. ’˝rÊÔáÊ SflÊ„UÊ ’˝rÊÔ„UàÿÊÿÒ SflÊ„UÊ Áfl‡flèÿÊ Œflèÿ— SflÊ„UÊ lÊflʬÎÁÕflËèÿÊ ¦ SflÊ„UÊ.. (13) ÿ◊ Œfl ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. •¢Ã∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ◊ÎàÿÈ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ’˝ÊrÊáÊ ∑§ Á‹∞ SflÊ„Ê. ’˝rÊ„UàÿÊ ∑§Ë ‡ÊÊ¢Áà ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Áfl‡flÊ¥ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. Sflª¸‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. ¬ÎâflË‹Ê∑§ ∑§ Á‹∞ SflÊ„UÊ. (13)
416 - ÿ¡Èfl¸Œ
øÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ ߸‡ÊÊ flÊSÿÁ◊Œ ¦ ‚flZ ÿÁà∑¢§ ø ¡ªàÿÊ¢ ¡ªÃ˜. ß àÿÄß ÷ÈÜ¡ËÕÊ ◊Ê ªÎœ— ∑§Sÿ ÁSflhŸ◊˜.. (1) ß‚ ¡«∏Uøß ¡ªÃ˜ ◊¥ ¡Ê ∑ȧ¿U ÷Ë „ÒU, fl„U ߸‡fl⁄U ∑§Ë ∑Χ¬Ê ‚ „ÒU. ©U‚ ߸‡fl⁄U ∑§ mÊ⁄UÊ àÿʪ ª∞ ∑§Ê ÷ʪ ∑§ËÁ¡∞. ’„ÈUà ÖÿÊŒÊ ‹Ê‹ø ◊à ∑§⁄UÊ. ÿ„U œŸÊÁŒ ‚’ Á∑§‚ ∑§Ê „ÒU? (•ÕʸØ ߸‡fl⁄U ∑§ •‹ÊflÊ Á∑§‚Ë ∑§Ê Ÿ„UË¥). (1) ∑ȧfl¸ãŸfl„U ∑§◊ʸÁáÊ Á¡¡ËÁfl·ë¿Uà ¦ ‚◊Ê—. ∞fl¢ àflÁÿ ŸÊãÿÕÃÊÁSà Ÿ ∑§◊¸ Á‹åÿà Ÿ⁄U.. (2) „U ߸‡fl⁄U!U „U◊ ∑§◊¸ ∑§⁄Uà „ÈU∞ ‚ÊÒ fl·¸ Ã∑§ ¡ËŸ ∑§Ë ßë¿UÊ ∑§⁄U¥. ß‚ ∑§ •‹ÊflÊ ∑§ÀÿÊáÊ ∑§Ê ∑§Ê߸ •ãÿ ◊ʪ¸ Ÿ„UË¥ „ÒU. ∑§◊¸ ◊ŸÈcÿ ∑§Ê Á‹åà Ÿ„UË¥ ∑§⁄UÃ. (2) •‚Èÿʸ ŸÊ◊ à ‹Ê∑§Ê ˘ •ãœŸ Ã◊‚ÊflÎÃÊ—. ÃÊ°Sà ¬˝àÿÊÁ¬ ªë¿UÁãà ÿ ∑§ øÊà◊„UŸÊ ¡ŸÊ—.. (3) ¡Ê ª„UŸ •¢œ∑§Ê⁄U ‚ ÁÉÊ⁄U ⁄U„Uà „ÒU¢, fl ‹Êª •‚Èÿ¸ ∑§„U‹Êà „Ò¥U. ¡Ê •Êà◊Ê ∑§Ê „UŸŸ ∑§⁄UŸ flÊ‹ „Ò¥U, fl ‹Êª ¬˝Ã M§¬ ◊¥ flÒ‚ „UË ‹Ê∑§Ê¥ ∑§Ê ¬˝Êåà „UÊà „Ò¥U. (3) •Ÿ¡Œ∑¢§ ◊Ÿ‚Ê ¡flËÿÊ ŸÒŸgflÊ ˘ •ÊåŸÈflŸ˜ ¬Ífl¸◊‡Ê¸Ã˜. ÃhÊflÃÊãÿÊŸàÿÁà ÁÃcΔUûÊÁS◊ãŸ¬Ê ◊ÊÃÁ⁄U‡flÊ ŒœÊÁÃ.. (4) •¡ã◊Ê ß¸‡fl⁄U ∞∑§ „ÒU. fl„U ◊Ÿ ‚ ÷Ë ÖÿÊŒÊ ªÁÃflÊŸ •ÊÒ⁄U »È§⁄UÃË‹Ê „ÒU. ŒflªáÊ ÷Ë ß‚ ¬˝Êåà Ÿ„UË¥ ∑§⁄U ¬Êà „Ò¥U. ÁSÕ⁄U ⁄U„U ∑§⁄U ÷Ë fl„U ŒÊÒ«∏UÃÊ „ÈU•Ê ªÁÇÊË‹Ê¥ ∑§Ê ¬¿UÊ«∏U ŒÃÊ „ÒU. fl„U ¡‹ ◊¥ ⁄U„UÃÊ „ÒU. flÊÿÈ ∑§Ê œÊ⁄UáÊ ∑§⁄UÃÊ „ÒU. (4) ÃŒ¡Áà ÃãŸÒ¡Áà ÃgÍ⁄U ÃmÁãÃ∑§. ÃŒãÃ⁄USÿ ‚fl¸Sÿ ÃŒÈ ‚fl¸SÿÊSÿ ’ÊsÔ×.. (5) fl„U (¬⁄U◊ Ãûfl) ªÁÇÊË‹ „ÒU •ÊÒ⁄U ÁSÕ⁄U ÷Ë „ÒU. fl„U ŒÍ⁄U ÷Ë „ÒU •ÊÒ⁄U ÁŸ∑§≈U ÷Ë „ÒU fl„U ¡«∏U •ÊÒ⁄U øß ŒÊŸÊ¥ ∑§ ÷ËÃ⁄U ÷Ë „ÒU •ÊÒ⁄U ’Ê„U⁄U ÷Ë „ÒU. (5) ÿSÃÈ ‚flʸÁáÊ ÷ÍÃÊãÿÊà◊ãŸflʟȬ‡ÿÁÃ. ‚fl¸÷ÍÃ·È øÊà◊ÊŸ¢ ÃÃÊ Ÿ Áfl ÁøÁ∑§à‚ÁÃ.. (6) ÿ¡Èfl¸Œ - 417
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
¡Ê ‚÷Ë ¬˝ÊÁáÊÿÊ¥ (¡«U∏øß) ◊¥ •¬Ÿ ∑§Ê (•Êà◊Ãûfl ∑§Ê) ŒπÃÊ „ÒU ÃÕÊ ©U‚ ∑§Ê •ŸÈ÷fl ∑§⁄UÃÊ „ÒU, ©U‚ ∑§÷Ë ÷Ë ∑§Ê߸ ÷˝◊ Ÿ„UË¥ „UÊÃÊ. (6) ÿÁS◊ãà‚flʸÁáÊ ÷ÍÃÊãÿÊà◊ÒflÊ÷ÍÁm¡ÊŸÃ—. ÃòÊ ∑§Ê ◊Ê„U— ∑§— ‡ÊÊ∑§ ˘ ∞∑§àfl◊ŸÈ¬‡ÿ×.. (7) Á¡‚ (ÁSÕÁÃ) ◊¥ ◊ŸÈcÿ ÿ„U ¡ÊŸ ‹ÃÊ „ÒU Á∑§ ‚÷Ë ÷ÍÃÊ¥ ◊¥ ∞∑§ „UË •Êà◊Ãûfl „ÒU, Ã’ ÄÿÊ ◊Ê„U? ÄÿÊ ‡ÊÊ∑§? ©U‚ ‚fl¸òÊ ∞∑§ ¡Ò‚Ë ÁSÕÁà ÁŒπÊ߸ ŒÃË „ÒU. (7) ‚ ¬ÿ¸ªÊë¿ÈU∑˝§◊∑§Êÿ◊fl˝áÊ◊SŸÊÁfl⁄ ¦ ‡ÊÈh◊¬Ê¬Áflh◊˜. ∑§Áfl◊¸ŸË·Ë ¬Á⁄U÷Í— Sflÿê÷ÍÿʸÕÊÃâÿÃÊÕʸŸ˜ √ÿŒœÊë¿UʇflÃËèÿ— ‚◊Êèÿ—.. (8) fl„U ¬⁄U◊Á¬ÃÊ ‚fl¸√ÿʬ∑§, ø◊∑§Ë‹Ê, (ŒËÁåÃ◊ÊŸ), ∑§ÊÿÊ ⁄UÁ„UÃ, ŸÊÁ«∏UÿÊ¥ ‚ ⁄UÁ„Uà „ÒU. fl„U ÉÊÊflÊ¥ ‚ ⁄UÁ„UÃ, ¬ÁflòÊ, ¬Ê¬ ⁄UÁ„UÃ, ÁflmÊŸ˜, ◊ŸŸ‡ÊË‹, ‚fl¸√ÿʬ∑§ fl Sflÿ¢÷Í (Sflÿ¢ ©Uà¬ãŸ „UÊŸ flÊ‹Ê) „ÒU. ©U‚ Ÿ ‚ÎÁc≈U ∑§ •Ê⁄U¢÷ ‚ „UË ‚’ ∑§ Á‹∞ ÿÕÊÿÊÇÿ ‚ÊœŸ ‚ÈÁflœÊ•Ê¥ ∑§Ë √ÿflSÕÊ ∑§Ë „Ò. (8) •ãœ¢ Ã◊— ¬˝ Áfl‡ÊÁãà ÿ ‚¢÷ÍÁÃ◊ȬʂÃ. ÃÃÊ ÷Íÿ ˘ ßfl à Ã◊Ê ÿ ˘ ©U ‚ê÷ÍàÿÊ ¦ ⁄UÃÊ—.. (9) ¡Ê √ÿÁÄà ÁflŸÊ‡Ê ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl ÉÊÊ⁄U •¢œ∑§Ê⁄U ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡Ê ‚¢÷ÍÁà (‚ΡŸ) ∑§ ©U¬Ê‚∑§ „Ò¥U, fl ÷Ë flÒ‚ „UË •¢œ∑§Ê⁄U ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. (9) •ãÿ ŒflÊ„ÈU— ‚ê÷flÊŒãÿŒÊ„ÈU⁄U‚ê÷flÊØ. ßÁà ‡ÊÈüÊÈ◊ œË⁄UÊáÊÊ¢ ÿ ŸSÃÁmøøÁˇÊ⁄U.. (10) •ãÿ ŒflÊ¥ Ÿ ‚¢÷fl ‚ •‚¢÷fl ∑§ ’Ê⁄U ◊¥ Áfl‡Ê· M§¬ ‚ ∑§„UÊ „ÒU. „U◊ Ÿ ©UŸ œË⁄U ¬ÈL§·Ê¥ ‚ ¡ÊŸÊ „ÒU Á∑§ ‚¢÷fl ‚ •‚¢÷fl ∑§Ê ¬˝÷Êfl ©U‚ ‚ •‹ª „ÒU. (10) ‚ê÷ÍÁâ ø ÁflŸÊ‡Ê¢ ø ÿSÃmŒÊèÊÿ ¦ ‚„U. ÁflŸÊ‡ÊŸ ◊ÎàÿÈ¢ ÃËàflʸ ‚ê÷ÍàÿÊ◊ÎÃ◊‡ŸÈÃ.. (11) ‚ΡŸ •ÊÒ⁄U ÁflŸÊ‡Ê ߟ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê ‚ÊÕ‚ÊÕ „UË ‚◊Á¤Ê∞. ÁflŸÊ‡Ê ‚ ◊ÎàÿÈ ∑§Ê ÃÒ⁄U∑§⁄U •ÊÒ⁄U ‚ΡŸ ‚ •◊Îà ∑§Ë ¬˝ÊÁåà ∑§Ë ¡ÊÃË „ÒU. (11) •ãœ¢ Ã◊— ¬˝ Áfl‡ÊÁãà ÿÁfllÊ◊ȬʂÃ. ÃÃÊ ÷Íÿ ˘ ßfl à Ã◊Ê ÿ ˘ ©U ÁfllÊÿÊ ¦ ⁄UÃÊ—.. (12) ¡Ê •ôÊÊŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl ª„U⁄U •¢œ∑§Ê⁄U ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. ¡Ê ôÊÊŸ ∑§Ë ©U¬Ê‚ŸÊ ∑§⁄Uà „Ò¥U, fl ÷Ë Á»§⁄U flÒ‚ „UË ª„U⁄U •¢œ∑§Ê⁄U ◊¥ ¬˝fl‡Ê ∑§⁄Uà „Ò¥U. (12) •ãÿ ŒflÊ„ÈUÁfl¸lÊÿÊ ˘ •ãÿŒÊ„ÈU⁄UÁfllÊÿÊ—. ßÁà ‡ÊÈüÊÈ◊ œË⁄UÊáÊÊ¢ ÿ ŸSÃÁmøøÁˇÊ⁄U.. (13) 418 - ÿ¡Èfl¸Œ
©UûÊ⁄UÊœ¸
øÊ‹Ë‚flÊ¢ •äÿÊÿ
„U◊ Ÿ œË⁄U ¬ÈL§·Ê¥ ‚ Áfl‡Ê· M§¬ ‚ ¡ÊŸÊ „ÒU Á∑§ ÁfllÊ ∑§Ê ¬˝÷Êfl ∑ȧ¿U •ÊÒ⁄U „UÊÃÊ „Ò. •ÁfllÊ ∑§Ê ¬˝÷Êfl ∑ȧ¿U •ÊÒ⁄U „UÊÃÊ „ÒU. (13) ÁfllÊ¢ øÊÁfllÊ¢ ø ÿSÃmŒÊ÷ÿ ¦ ‚„U. •ÁfllÿÊ ◊ÎàÿÈ¢ ÃËàflʸ ÁfllÿÊ◊ÎÃ◊‡ŸÈÃ.. (14) ÁfllÊ •ÊÒ⁄U •ÁfllÊ ŒÊŸÊ¥ ∑§Ê „UË ‚ÊÕ‚ÊÕ ‚◊Á¤Ê∞. •ÁfllÊ ‚ ◊ÎàÿÈ ∑§Ê ¬Ê⁄U Á∑§ÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. ÁfllÊ ‚ •◊Îà Ãûfl ∑§Ê ¬ÊÿÊ ¡ÊÃÊ „ÒU. (14) flÊÿÈ⁄UÁŸ‹◊◊ÎÃ◊ÕŒ¢ ÷S◊Êãà ¦ ‡Ê⁄UË⁄U◊˜. •Ê3◊˜ ∑˝§ÃÊ S◊⁄U. ÁÄ‹’ S◊⁄U. ∑Χà ¦ S◊⁄U.. (15) ÿ„U ‡Ê⁄UË⁄U flÊÿÈ, •◊Îà •ÊÁŒ ‚ ’ŸÊ „ÈU•Ê „ÒU. ‡Ê⁄UË⁄U ŸÊ‡ÊflÊŸ „ÒU. „U ÿ¡◊ÊŸ! •Ê¬ •Ê◊˜ ÃÕÊ •¬ŸË ˇÊ◊ÃÊ •ÊÒ⁄U Á∑§∞ ª∞ ∑§êÊÊZ ∑§Ê S◊⁄UáÊ ∑§⁄UÊ. (15) •ÇŸ Ÿÿ ‚ȬÕÊ ⁄UÊÿ •S◊ÊÁãfl‡flÊÁŸ Œfl flÿÈŸÊÁŸ ÁflmÊŸ˜. ÿÈÿÊäÿS◊Ö¡È„ÈU⁄UÊáÊ◊ŸÊ ÷ÍÁÿcΔUÊ¢ à Ÿ◊ ˘ ©UÁÄâ Áflœ◊.. (16) „UU •ÁÇŸ! •Ê¬ „U◊¥ üÊcΔU ◊ʪ¸ ¬⁄U ‹ ¡Êß∞. •Ê¬ „U◊¥ ∞‚ „UË ◊ʪ¸ ‚ œŸ ÁŒ‹Êß∞. „U Áfl‡fl! •Ê¬ ÁflmÊŸ˜ „Ò¥U. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ∑§Ê Ÿ◊Ÿ ∑§⁄Uà „Ò¥U. „U◊ ’Ê⁄U’Ê⁄U •Ê¬ ‚ •ŸÈ⁄UÊœ ∑§⁄Uà „Ò¥U. •Ê¬ „U◊¥ ¬Ê¬Ê¥ ‚ ’øÊŸ ∑§Ë ∑Χ¬Ê ∑§⁄¥U. (16) Á„U⁄Uá◊ÿŸ ¬ÊòÊáÊ ‚àÿSÿÊÁ¬Á„Uâ ◊Èπ◊˜. ÿÊ‚ÊflÊÁŒàÿ ¬ÈL§·— ‚Ê‚Êfl„U◊˜. ™§° π¢ ’rÊÔ.. (17) ‚àÿ ∑§Ê ◊È¢„U Sfláʸ◊ÿ ¬ÊòÊ ‚ …U∑§Ê „ÈU•Ê „ÒU. fl„U ¡Ê •ÊÁŒàÿ ¬ÈL§· „ÒU, fl„U ◊Ò¥ „Í¢U. •Ê∑§Ê‡Ê ◊¥ •Ê◊˜ M§¬ ◊¥ ’˝rÊU „UË √ÿÊåà „ÒU. (17) (ÿ¡Èfl¸Œ ‚¢¬Íáʸ)
ÿ¡Èfl¸Œ - 419
fo’o cqDl }kjk izdkf’kr vU; osn Hkkjrh; lkfgR; ,oa laLo`Qfr esa osnksa dh ekU;rk fpjdky ls pyh vk jgh gSA ½Xosn tgka fo'o dh lc ls izkphu iqLrd gS] ogha ;tqosZn] lkeosn o vFkoZosn dks bl dk iwjd ekuk tkrk gSA ½Xosn vk;ks± ,oa Hkkjrh;ksa dh gh ugha] fo'o dh lc ls izkphu iqLrd gSA bl dk vuqokn lk;.k Hkk"; ij vk/kfjr gSA lkeosn dks osn=k;h (½o~Q] ;tq vkSj lkeosn) esa fxuk tkrk gSA xhrk esa mins'kd o`Q".k us ^osnkuka lkeosnks¿fLe* dg dj lkeosn dh fof'k"Vrk dh vksj laosQr fd;k gSA vFkoZosn esa ykSfdd thou ls lacaf/r vkS"kf/;ksa] tknw] VksuksaVksVdksa vkfn dk foLr`r o.kZu fd;k x;k gSA vr% lHkh oxks± osQ ikBdksa osQ fy, ea=kksa lfgr pkjksa osnksa dk lk;.k Hkk"; ij vk/kfjr ljy] ljl ,oa lqcks/ fganh vuqokn ikBdksa osQ le{k izLrqr gSA
www.vishvbook.com
632@27
डा. रेखा ास एम. ए., पी-एच. डी.
सं कृत सा ह य काशन नई द ली
******ebook converter DEMO Watermarks*******
© सं कृत सा ह य काशन सं करण : २०१५
ISBN 81-87164-97-2 व. .– 535.5H15* सं कृत सा ह य काशन के लए व बु स ा. ल. एम-१२, कनाट सरकस, नई द ली-११०००१ ारा वत रत
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपनी बात आमतौर पर सामवेद को ऋ वेद के मं का सं ह माना जाता है. छांदो य उप नषद् म कहा भी गया है—‘या ऋक् तत् साम’ अथात् जो ऋक् है, वह साम है. इस का यह अथ कदा प नह है क सामवेद म सम त छं द ऋ वेद से ही लए गए ह. सामवेद क अनेक ऋचाएं ऋ वेद से भ ह. कुछ थल पर सामवेद क ऋचा म ऋ वेद क ऋचा से आं शक सा य दखाई दे ता है. इसे पाठभेद के प म भी वीकार नह कया जा सकता है. य द यह पाठभेद होता तो ऋचाएं उसी प और म म ली गई होत , जस प और म म वे ऋ वेद म ली गई ह. सरी बात यह है क य द ऋ वेद से केवल गायन के लए ऋचा का सामवेद के प म सं ह कया गया होता तो केवल गेय मं का ही सं ह होना चा हए था, जब क उपल ध सामवेद म लगभग ४५० मं पूरी तरह गेय नह ह. तीसरी बात यह है क अगर सामवेद के मं ऋ वेद से उद्धृत माने जाएं, तो उन के प और वर नदश ऋ वेद से भ ह. ऋ वेद य मं म उदा , अनुदा और व रत वर पाए जाते ह, जब क सामवेद य मं म स त वर वधान है. इन कोण से दे खने पर प तीत होता है क सामवेद के मं ऋ वेद से ऋण व प नह लए गए ह. उन क अपनी वतं स ा है. वे उतने ही वतं ह, जतने ऋ वेद के मं . हां, एक बात अव य है क ऋ वेद और सामवेद के मं म व य वषयगत अंतःसंबंध है. ऋ वेद के समान सामवेद म भी अ न, इं , सोम, अ नीकुमार आ द क तु त क गई है. इसी मा यम से उन का व प नधा रत करने का यास कया गया है. ऋ वेद के समान सामवेद से भी त कालीन उ त समाज का पता चलता है. चूं क सामवेद ऋ वेद के बाद क रचना है, इस लए उ संदभ म सामवेद का अ ययन रोचक ही नह , ानव क भी हो सकता है. इतना ही नह , सामवेद का अ ययन ऋ वेद काल के प ात वक सत लोककला और सं कृ त को भी रेखां कत करता है. इस कार सामवेद को ऋ वेद का पूरक कहा जा सकता है. इस क मह ा ऋ वेद से कसी भी प म कम नह मानी जा सकती है. इसी लए यह वेद यी (ऋक्, यजु और सामवेद) म गना जाता है. गीता म उपदे शक कृ ण ने ‘वेदानां सामवेदो ऽ म’ कह कर सामवेद क व श ता क ओर ही संकेत कया है. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यहां एक बात और यान दे ने यो य है क आज ‘वेद’ श द भले ही चार वेद —ऋक्, यजु, अथव और साम के साथ जुड़ कर ंथवाची हो गया हो, कतु मूल प म यह ान का ही बोधक रहा है. आरंभ म इन चार को मला कर एक ही ‘वेद ंथ’ माना जाता था, जैसा क महाभारत म कहा भी गया है— एक एव पुरा वेदः णवः सववाङ् मयः. बाद म आकारगत वशालता को दे खते ए इस के चार भाग कए गए—ऋ वेद, अथववेद, यजुवद और सामवेद. इ ह ‘चतुवद’ कहा जाता है. ु त परंपरा से पीढ़ दर पीढ़ नरंतर वक सत होते रहने वाले इस ान के भंडार का संभवतया थम वभाजन ास ने कया था. यह वभाजन मुखतया सा ह यक वधा पर आधा रत है—प , ग और गान. सामा यतया कसी भी भाषा का सा ह य इ ह तीन प म पाया जाता है. इस से ऋ वेद और अथववेद प धान, यजुवद ग धान और सामवेद गान धान ह.
सामवेद क आचाय परंपरा सामवेद के आ द आचाय जै म न माने जाते ह. वायु, भागवत, व णु आ द पुराण से भी इस कथन क पु होती है. पुराण के अनुसार, वेद ास ने अपने श य जै म न को सामवेद क श ा द थी. जै म न के बाद सुमंत,ु सु वान, वक य सूनु सुकमा तक पीढ़ दर पीढ़ यह अ ययन परंपरा जारी रही. सुकमा ने सामवेद सं हता का ापक व तार कया. पौरा णक उ लेख के अनुसार सामवेद क एक हजार शाखाएं थ . आचाय पतंज ल ने भी इस क पु क है—‘सह व मा सामवेदः.’ आज इन म से केवल तीन ही शाखाएं मलती ह—कौथुमीय, राणायणी और जै मनीय. तीन शाखा म उपल ध सामवेद क ऋचा क सं या तो अलगअलग है ही, उन म पाठभेद भी मलता है. ा ण तथा पुराण ंथ के अनुसार, साम मं (ऋचा ) के पद क सं या एक लाख से भी अ धक है ले कन सामवेद क कुल उपल ध ऋचा क सं या अ धक नह है. सामवेद के मु यतया दो भाग ह—आ चक और गान. आ चक का अथ है ऋचा समूह. इस के दो भाग ह—पूवा चक और उ रा चक.
का
पूवा चक म छह अ याय ह. हर अ याय म कईकई खंड ह. इ ह ‘दश त’ भी कहा गया है. ‘दश त’ से दस (सं या) का बोध होता है. कतु हर खंड म ऋचा क सं या १० नह है. कसी म यह सं या १० से कम है तो कसी म यादा भी. इसी लए इसे ‘दश त’ न कह कर खंड कहना अ धक उ चत तीत होता है. सामवेद के पहले अ याय म अ न से संबं धत ऋचाएं ह. इस लए इसे ‘आ नेय पव’ कहा गया है. सरे से चौथे अ याय तक इं क तु त क गई है. इस लए यह ‘ पव’ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कहलाया. पांचवां अ याय पवमान पव कहलाता है. इस म सोम वषयक ऋचाएं ह, जो ऋ वेद के नवम मंडल से ली गई ह. पहले से पांचव अ याय तक क ऋचाएं ‘ ाम गान’ कहलाती ह. छठे अ याय का शीषक है ‘आर यक पव’. इस म य प दे वता और छं द क भ ता है तथा प इस म गायन संबंधी एकता दखाई दे ती है. इस अ याय क ऋचाएं ‘अर य गान’ कही गई ह, पूवा चक के छह अ याय म कुल ६४० ऋचाएं ह. उ रा चक म २१ अ याय ह. ऋचा १८६५ ऋचाएं ह.
क सं या १२२५ है. इस कार सामवेद म कुल
यह अनुवाद सामवेद क इन ऋचा का यह अनुवाद सायण भा य पर आधा रत है, य क सायणाचाय ने वै दक ऋचा (मं ) को समझने के लए या काचाय ारा न द तीन साधन —परंपरागत ान, तक एवं मनन का पूरा सहारा लया था. इस से भी बड़ी बात यह थी क उ ह ने अ य आचाय के समान वै दक ऋचा को कसी वशेष वाद का च मा पहन कर नह दे खा है. सायणाचाय ने वै दक ऋचा के संग के अनुसार मानव जीवन, य और अ या म संबंधी अथ दए ह. वैसे अ धकतर अथ मानव जीवन से संबं धत ही ह. य और अ या म से जुड़े अथ ायः कम थान पर ही दए गए ह. इ ह कारण से अनुवाद करते समय सायण भा य को आधार बनाया गया है. अनुवाद के दौरान इस बात का वशेष यान रखा गया है क सायणाचाय का आशय पूरी तरह प हो जाए. अनुवाद क भाषा यथासंभव सरल एवं सुबोध रखी गई है, ता क आम हद पाठक भी आसानी से समझ सक क वा तव म वेद म या है! — काशक
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वषय सूची
आ नेय पव पहला अ याय पव सरा अ याय तीसरा अ याय चौथा अ याय पवमान पव पांचवां अ याय आर यक पव छठा अ याय
पहला अ याय सरा अ याय तीसरा अ याय चौथा अ याय पांचवां अ याय छठा अ याय सातवां अ याय आठवां अ याय नौवां अ याय
पूवा चक
उ रा चक
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दसवां अ याय यारहवां अ याय बारहवां अ याय तेरहवां अ याय चौदहवां अ याय पं हवां अ याय सोलहवां अ याय स हवां अ याय अठारहवां अ याय उ ीसवां अ याय बीसवां अ याय इ क सवां अ याय
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूवा चक
आ नेय पव अ याय
खंड
१.
१.
वषय
मं
अ न क तु त १-१० य पुरो हत २ धन के वामी ३ धनदाता अ न ४ सव े अ न ९ २. अ न क तु त १-१० अ न क े ता १ ान के वामी अ न २ य र कअ न ७ ३. अ न क तु त १-१४ सूय के प म अ न ११ श ुनाशक अ न १२ क याणकारी जल १३ ४. अ न क तु त १-१० ५. अ न के लए आमं ण १-१० अ न क तु त २-६ वग के नवासी ७ ६. धनदाता अ न १-८ क याणकारी यश २ अ न क तु त ३-८ ७. उपासक के लए संबोधन १-१० बाल एवं त ण अ न २ मृ युधमा मनु य ३ अ न क तु त ४-१० ८. अ न क तु त १-८ क याणकारी पूषा दे व ३ ९. अ न क तु त १-१० १०. सोम, व ण, अ न आ द का आ १-६ ान अं गरस २ अ न क तु त ३-६ ११. अ न क तु त १-१० अ द त दे व ६ १२. अ न क तु त १-८ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सुखशां त दाता दे व े
४ ६
पव २.
१.
उपासक के लए उद्बोधन इं क तु त गौ क तु त उपासक को सलाह इं क तु त शूरवीर इं अंतयामी इं २. े वीर इं इं क तु त चर युवा इं इं क तु त ३. म द्गण का चाबुक इं क तु त दे वता क तु त ण प त क तु त वृ ासुर हंता इं सूय क तु त समथ इं बु मान इं इं क तु त ४. इं क तु त सूय का द तेज इं के सहायक पूषा धन संप पृ वी इं क तु त सोम और पूषा ५. उपासक का आ ान इं क तु त उपासक का आ ान ६. इं क तु त गाय के वामी इं श ुनाशक इं ७. इं क माता वेदानुसार आचरण अथववेद ा ण अपूव उषा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-१० २ ३ ४ ५-८ ९ १० १-१० २-८ ९ १० १-१० २-३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० १-१० ३ ४ ५ ६-९ १० १-१० ३-९ १० १-१० ४ ५ १-१० २ ३ ४
८.
९.
१०. ११.
१२. ३.
१.
२. ३.
इं क तु त वायु से नवेदन व ण, म और अयमा इं क तु त व ा क दे वी सर वती मनु य म मता इं का आ ान इं , अयमा और व ण धनवान इं इं क तु त महान इं बृह साम ऋभु दे व सव ा इं इं क तु त इं और पूषा वृ ासुर संहारक इं भयनाशक इं इं क तु त इं और सोमरस इं क तु त इं का लोक क र ा म और व ण उषा म वव ण म त् वामन अवतार इं क तु त
५-९ १० १-९ २-४ ५ ६ ७ ८ ९ १-१० ३-४ ५ ६ ७ ८ ९ १० १-१० २-१० १-९ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १-१०
इं क तु त धनवान व ःखनाशक इं श ुनाशक इं तारनहार इं इं क तु त म द्गण क तु त बलवान इं उ तशील इं इं क तु त इं क तु त म , व ण और अयमा इं क तु त
१-१० ३-४ ५ ६ ७-८ ९ १० १-१० २-१० १-१० ३ ४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
४.
५. ६.
७.
८.
९.
१०.
११.
यजमान को संबोधन ५ बृह साम तो ६ इं क तु त ७-१० इं क तु त १-१० यश वी इं ३ सुखदायी मकान ४ आ यदाता इं ५ इं क तु त ६-१० इं क तु त १-१० इं क तु त १-१० व धारी इं ३ स जन पालक इं ४ अ नीकुमार क तु त ५ पाप नवारक व ण ६ इं क तु त ७-१० इं क तु त १-१० व भ दे वीदे वता क तु त७ काशमान इं ८ बलवान इं ९ व धारी इं १० सूय पु ी उषा १-१० अ नीकुमार क तु त २-४ पोषक इं ५ पुरो हत को संबोधन ६ इं क तु त ७-१० गाय के ध से सोमरस १-१० इं क तु त २-७ सूय क तु त ८ तेज ९ महावीर इं १० सव य इं १-९ म द्गण क म ता २ अ मट म हमाशाली इं ३ अजातश ु इं ४ वजयदाता इं ५ क याणकारी इं ६ अ दाता इं ७ व स क तु त ८ जलवषक इं ९ दे व त ग ड़ १-१० र क इं २ वेगशील इं ३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१२. ४.
१.
२.
३.
४.
५.
श मान इं इं क तु त इं क तु त
४ ६-१० १-१०
य संचालक इं १-८ पवतवासी इं २ श ु जत् इं ३ दे वपालक इं ४ आनंददायी म द्गण ५ हतकारी इं ६ द ध ाव ऋ ष ७ व पालक इं ८ वीर इं १-१० सव इं २ श ु जत् इं ३ मतावान इं ४ इं के लए आमं ण ५ इं क तु त ६-७ उषा क तु त ८ दे वता से ९ य सदन १० सेनानायक इं १-११ जन क याण के लए जलवषा२ वग के वामी ३ इं क तु त ४-६ धन के भंडार ७ आ म ाता ८ वगलोक और पृ वीलोक ९ स ाट् १० इं का आ ान ११ इं क तु त १-१० उपासक के लए उद्बोधन २ इं के ओज क शंसा ३ इं ारा सोमपान ४ वीर इं ५ रसीला सोमरस ६ सखा का आ ान ७ ा ण के लए उद्बोधन ८ सब ा णय के वामी ९ सब के क याण के लए १० इं क तु त १-८ आ द य क तु त ५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
६.
७.
८.
९.
१०.
११. १२.
व न नवारक इं ६ आ द य क तु त ७ अ वान ८ ातृ कलह से मु १-१० धनदाता इं २ म द्गण क तु त ३ गाय के वामी ४ बैल के समान बलवान इं ५ सम भाव वाले म द्गण ६ इं क तु त ७-१० सूय पी इं क करण १-१० वरा य क थापना २ स ता और उ साह क कामना ३ इं क तु त ४-८ सूय और चं ९ अ नीकुमार क तु त १० अ न क तु त १-८ उषा क तु त ३ सोम क तु त ४ इं क तु त ५-६ अ न क उपासना ७ अयमा, म और व ण ८ सोम क तु त १-१० म द्गण से का संबंध ७ ऊह तो ८ तेजोमय स वता ९ काशमान सोम १० इं क तु त १-१० दे व कृपा से धन ा त ५ प व गाएं ६ धनधा य ७ इं /म द्गण क उपासना ९ ा ण और गाथाएं १० अ न क तु त १-१० उषा क बहन रात ५ इं क तु त ६-१० द गुण वाला सोमरस १-१० काशमान सूय २ इं क तु त ३-४ अ न क उपासना ५ एवयाम त् ऋ ष ६ ह रत सोम ७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स वता क उपासना अ न क उपासना े इं
८ ९ १०
पवमान पव ५.
१.
सोम क तु त य के समय सोम क तु त २. सोम क तु त ३. श ुनाशक सोम बु वधक सोम शु सोमरस वेगमान सोम मदम तकता सोम सोम क तु त ४. सूय के समान काशमान बलदाता सोम नचोड़ा गया सोम सोम क उ प सोम क तु त ५. सोम क तु त आनंददायी सोमरस श ुनाशक सोम धनदाता सोम आनंददायी सोमरस प व और े सोम आनंददायी सोमरस अ दाता सोम इं य सोम ६. सोम का आ ान काशमान सोमरस सोम तु त आनंदमय सोमरस सवदाता सोम र क सोम प व सोमरस इं य सोमरस सोम तु त ७. सोम क तु त बलशाली सोम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-१० ५ ६-१० १-१० १-१० २ ३ ४-५ ६ ७-१० १-१४ २ ३-४ ६ ७-१४ १-१२ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १-१० २ ३-४ ५ ६ ७ ८ ९ १० १-१२ ६
८.
९.
१०.
११.
सूय ारा स जत सोम ७ बलवधक सोमरस ८ सोम क तु त ९ दे वता के पालक सोम १० धन दाता सोम ११ तु तयां १२ यजमान को संबोधन १-९ पालनहार सोमरस २ सोम का आनंददायी व प ३ आ म ाता सोम ४ सोम क तु त ५ इं य सोमरस ६ श ुहंता सोम ७ गुणागार सोमरस ८ यजमान को संबोधन ९ द सोम १-१२ सोम क तु त २-३ म वत सोमरस ४ वेगवान सोमरस ५ श दाता सोम ६ क याणकारी सोम ७ तु त सोम ८ काशमान सोमरस ९ मधुर सोमरस १० आनंदमय सोमरस ११ साम यवान सोम १२ सोम क तु त १-१२ जल पु सोम ५ सोम क तु त ६ प व सोमरस ७ सोम क तु त ८-१२ सोम क तु त १-८ श वधक सोमरस ४ संतानदाता सोम ५ पूजनीय सोम ६ आनंददायी सोम ७ श ुनाशक सोम ८
आर यक पव ६. १. इं क तु त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-९
२.
३.
४.
५.
धन दे ने वाले इं २ दानी इं ३ व ण क तु त ४ सोम क तु त ५-८ अ दे व ारा आ म शंसा ९ इं क तु त १-७ सूय क तु त २ व धारी इं ३ इं क तु त ४ थ और स थ ५ वायु क तु त ६ इं क तु त ७ जाप त क तु त १-१३ सोम क तु त २-३ अ न क तु त ४ तु तय क उ प ५ आनंदकारी सोमरस ६ आरामदायी रा ७ काशमान अ न ८ दे वगण क तु त ९ यजमान क यशकामना १० इं क तु त ११ सव व प आ मा १२ र कअ न १३ अ न क तु त १-१२ ऋतुएं २ पूण पु ष ३-७ वगलोक और पृ वीलोक क ८तु त इं क तु त ९ तेज वता १० इं क तु त ११-१२ अ न क तु त १-१४ अ दे ने व आयु बढ़ाने क ाथना १ सूय क तु त २-१४
उ रा चक १.
१.
यजमान को संबोधन द सोमरस सोम क तु त उ वल सोमरस ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-९ २ ३ ४
२.
३. ४.
५.
६.
२.
१.
२. ३. ४.
५.
सोम क तु त अ न क तु त म और व ण क तु त इं क तु त अ न क तु त सोम क तु त उशना ऋ ष इं क तु त आदरणीय सोम इं क तु त सहायक इं इं क तु त इं हेतु सोमरस रा सनाशक सोम सोम क तु त चमक ला सोमरस से सोमरस सोम क तु त यजमान सहायक सोमरस नाशक सोम क याणकारी सोम मधुर सोमरस ापक सोमरस यजमान को संबोधन क याणकारी अ न अ न क तु त इं क तु त
५-९ १-१२ ४-६ ७-९ १०-१२ १-८ ८ १-९ ४ ५-७ ८ ९ १-१४ २ ३-५ ६ ७-८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १-१० २ ३-५ ६-१०
यजमान को संबोधन इं क तु त सोमय सोम क तु त सोमय इं क तु त इं क तु त यजमान को संबोधन अ न क तु त उषा सूय अ नीकुमार का आ ान ानवधक सोमरस वहमान सोम
१-१२ ६-८ ९ १० ११-१२ १-१२ १-१२ ४, ५, ७, ९, ११ १-६ ३ ४ ५-६ १-९ २
******ebook converter DEMO Watermarks*******
त त सोम द सोमरस सव प र सोम प र कृत सोमरस सोम क तु त सोम का आ ान यजमान को संबोधन घुलनशील सोमरस श मान सोमरस सभी दे व को ा त सोम सोम क तु त वेगवान सोम यशदाता सोमरस सोमरस सोम क तु त प व सोम हरा सोमरस भृगु
३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १-११ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११
६.
सोम क तु त फू तदायी सोमरस सोम क तु त य संचालक अ न अ न क तु त म और व ण का आ ान सामगान से इं क तु त आभूषणधारी इं इं क तु त इं और अ न क उपासना सोम क तु त इं क तु त यजमान को संबोधन र क इं इं क तु त श धारी इं सोम क तु त अपूव सोम हतकारी सोम इं क तु त
१-१५ ४ ५-१५ १-१३ २-३ ४-६ ७ ८ ९-१० ११-१३ १-६ १-६ ३ ४ ५ ६ १-९ ८ ९ १-६
१. २.
सोम क तु त अ न क तु त
१-१४ १-१२
६.
३.
१. २.
३. ४.
५.
४.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
३. ४. ५.
६.
५.
१. २. ३.
४. ५. ६.
७.
६.
१.
म क तु त ४-६ म द्गण क तु त ७-८ इं क तु त ९-१२ सोम क तु त १-६ इं क तु त १-७ यजमान क वाणी १-९ सोम क उपासना २ सोम क तु त ३-४ इं क तु त ५ इं के सखा ६ प व सोम ान के वामी८ सूय क तु त ९ यजमान को संबोधन १-८ अ न क तु त २ इं क तु त ३-८ सोम क तु त सोम क तु त अ न क तु त म और व ण क तु त यजमान को संबोधन वैभववान इं पवतप त इं यजमान को संबोधन अ न क तु त सोम क तु त अ ण आभा वाला सोमरस इं क तु त राजा इं यजमान को संबोधन सोम क तु त सूय क तु त सोमरस का प र करण सवलोक जनक सोम सव ा त सोम यजमान को संबोधन अ न क तु त इं क तु त यजमान को संबोधन इं क तु त
१-१२ १-९ १-१२ ४-५ ६ ७ ८ ९ १०-१२ १-८ ७ १-८ ७ ८ १-११ ५ ७ ९ १० १-९ ३ ४-५ ६ ७-९
सोम क तु त
१-१३
******ebook converter DEMO Watermarks*******
२. ३.
४. ५. ६. ७. ७.
१. २. ३. ४. ५. ६. ७.
८.
१.
२.
इं क तु त सोम क तु त अ न क तु त सूय क तु त म और व ण क तु त इं क तु त सोम क तु त इं और सोम क तु त इं क तु त सोम क तु त अ न क तु त ा ण को संबोधन
८, १० १-१४ १-१२ ४-५ ६ ७-१२ १-८ ८ १-६ १-१४ १-९ ४
सोम क तु त शो धत सोमरस श दायी सोमरस सोम क तु त यजमान को संबोधन मददायी सोमरस अ न क तु त म और व ण क तु त इं क तु त सोम क तु त इं क तु त सोम क तु त यजमान को संबोधन अ न क तु त इं क तु त च क सा उपासक को संबोधन
१-१६ ९ १२ १-१७ ४ १५ १-१२ ४-६ ७-१२ १-८ १-९ १-१४ ६ १-९ ४-५ ६ ७
पोषक सोम श ुहंता सोम सोम क तु त सोमरस का प र करण मादक सोमरस सोमरस का प र करण सोम क तु त व ान् सोम सव य सोमरस सोम क तु त हरी आभायु सोमरस
१-१२ २ ३-५ ६ ७ ८ ९-१० ११ १२ १-१२ ६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
३.
४.
५.
६. ९.
१. २. ३.
४. ५. ६.
७.
यजमान को आ ासन अ न क तु त यजमान को संबोधन म और व ण को संबोधन इं क तु त बलशाली अ न इं क तु त प र कृत सोमरस सोम क तु त इं क तु त इं क अ यथना यजमान को संबोधन सोम क तु त इं के न म सोमरस सोम का प र करण सोमरस क उ प पोषक सोमरस अ न क तु त इं क तु त
७ १-१२ ४-५ ६ ७-९ १० ११-१२ १-५ २-३ ४ ५ १-९ ४-५ ६ ७ ८ ९ ९ ४-९
सोम क तु त १-१२ वायु और इं के न म सोम १-९ ा ण को संबोधन २ सोम क तु त ३-९ सोम क तु त १-९ यजमान को संबोधन २ प व सोमरस ५ मधुमय सोमरस ६ सोम क तु त १-५ सोम क तु त १-९ वकार र हत सोमरस ४ इं सहायक सोम ९ दे वगण को संबोधन १-६ अ न २ अ न क तु त ३ समथ इं ४ ब ल इं ५ इं क तु त ६ पुरो हत को संबोधन १-१० सोम क तु त २ यजमान को संबोधन ३ शंसनीय सोमरस ४
******ebook converter DEMO Watermarks*******
८. ९.
१०.
१.
२.
३.
४.
श धारी सोम सोम क तु त इं क तु त सोम क तु त तेज वी सोमरस अ न क तु त त तअ न इं क तु त
५ ६ ७-१० १-९ ६ १-९ २ ३-९
र क सोम उ ेरक सोमरस गभ व प सोम अमर सोम द सोम ऐ यशाली सोम प व सोम व छ सोम श ुहंता सोम श ु जत् सोम साम यवान सोम हरी आभायु सोम पोषक सोम शूरवीर सोम य अ उ पादक सोमरस य ह व सोमरस रसराज सोम श शाली सोम मतावान सोम मदकारी सोम ग तमान सोम इं के न म सोमरस तगामी सोमरस सव ा सोम सवधारक सोम इं हेतु सोम सवजनीन सोम अमर सोम दे व य सोम श शाली सोम आनंदमय सोम बंधनमु सोम
१-१३ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १-८ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ १-६ २ ३ ४ ५ ६ १-६ २ ३ ४ ५ ६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
५.
६.
७.
८.
९.
१०. ११.
१२.
फू तदायी सोम सुखदाता सोम सव ाता सोम फू तदायी सोम बलवान सोम दे व र क सोम व नहता सोम वल ण सोम हंता सोम काशमान सोम धनदाता सोम दे व समथक सोम भा यवान यजमान सर वती क याणकारी मं हतकारी मं प व मं यजमान अ न क तु त महान इं दे व इं क तु त इं सहायक अ न सोम तु त े ह व सोमरस वल ण सोमरस दशनीय सोमरस सोम क काया यजमान को संबोधन दाता इं इं क तु त सोम क तु त आनंदकारी सोमरस सव य सोमरस इं य सोमरस युवा इं यजमान म इं श ुहंता इं संसार के ई र इं इं क तु त य म त पर इं य म आने का आ ह
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-६ २ ३ ४ ५ ६ १-६ २ ३ ४ ५ ६ १-६ २ ३ ४ ५ ६ १-६ ४ ५ ६ १-९ ४ ६ ७ ८ १-४ २ ३-४ १-१५ ७ ८ १४ १-९ २ ३ ४ ५-७ ८ ९
११.
१.
२.
३.
१२.
१.
२. ३.
४. ५.
अ न क तु त धन क इ छा दे वता क तु त दे वतागण इं क तु त जा त सोम प व सोम अभी साधक सोम यजमान को संबोधन श ुनाशक इं इं क अचना व ा त इं सोम क तु त सा रत सोम ेरक सोम द प सोम नर को संबोधन अ न क तु त सूय क तु त तेज वी सूय
१-१० ५ ६ ७ ८-१० १-१३ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८-१३ १-९ २ ३ ४ ५-७ ८ ९
अ न उपासना काशमान अ न क याणकारी अ न श ु जत् अ न अ न तु त से सोमरस ाता समान सोम पोषक सोम इं क तु त यजमान को संबोधन सुखकारी सोमरस अ न क तु त काशमान सोम सोम क तु त इं क तु त अ न क तु त सोम क तु त इं क तु त अ न क तु त द सोमरस सव े सोमरस
१-१० २ ३ ४ ५-७ ८ ९ १० १-७ ६ ७ १-९ ४ ५-६ ७-९ १-१० ४-६ ७-८ १-११ ४ ५
******ebook converter DEMO Watermarks*******
६. १३.
१.
२.
३.
४.
५.
६.
बु मान सोम इं क तु त सोम उपासना अमृत ाही सोमरस अमर सोम सोम क तु त इं क तु त
६ ७-८ ९ १० ११ १-९ ४-९
सोम क तु त प व सोम यजमान को संबोधन पुरो हत को संबोधन यजमान को संबोधन सोम क तु त मन के वामी इं धन याचना इं क तु त जापालक सूय नाशक सूय मतावान सूय इं क तु त सर वती क तु त स वता क उपासना ण प त क तु त अ न क तु त व ण क तु त स यपालक व ण म क तु त अ न व प सूय इं क तु त सूय क अ यथना इं क तु त सोम क तु त अ न क तु त बलवान अ न सव ापक दे वता को संबोधन सरल सोम इं और अ न
१-९ ५ ६-८ ९ १-९ ४ ५ ६ ७-९ १-७ २ ३ ४-७ १-११ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १-९ ३ ४-७ ८ ९ १-९ २ ३ ४ ५-६ ७
इं क तु त इं हेतु सोम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं क तु त
८-९
४.
यजमान को संबोधन इं के अ इं का सोमरस पान इं क तु त अमृत तु य सोमरस ाता तु य सोम सोम क तु त अ न क तु त क वऋष इं क तु त अ न क तु त सोम क तु त यजमान को संबोधन इं क तु त यजमान को संबोधन होता अ न पथ दशक अ न य कराने वाले अ न अ न क तु त अ न क तु त
१-१४ २ ३ ४-५ ६ ७ ८ ९-१२ १३ १४ १-१० ४-६ ७ ८-९ १-११ २ ३ ५ ६-११ १-११
१५.
१. २. ३. ४.
अ अ अ अ
१-११ १-१० १-८ १-९
१६.
१.
इं क तु त अ न क तु त व ण क तु त इं क तु त सोम क तु त पूषा दे व म द्गण क तु त वगलोक दे वी इं क तु त गौएं सोमरस का वसजन यजमान क याचना इं क तु त
१४.
१.
२.
३.
२. ३.
४.
नक नक नक नक
तु त तु त तु त तु त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-१२ ११-१२ १-८ २-५ ६-८ १-१२ २-३ ४ ५-६ ७-९ १० ११ १२ १-१२
१७.
१.
२.
३.
४.
१८.
१. २.
३.
सोम क तु त सुख याचना सव ा इं यजमान को संबोधन
७-८ ९ १० ११-१२
अ न क तु त यजमान को संबोधन इं क तु त व णु क तु त वायु क तु त इं क तु त सोम क तु त मददायी सोमरस सोम क उपासना अ न क तु त व नहारी व र क इं य इं शंसा सूय शंसा इं क तु त अ न का आ ान वृ ासुरहंता इं ओजवान इं इं तु त यजमान को संबोधन
१-११ ४ ५-६ ९-११ १-११ २-३ ४ ५ ६ ७-९ १०-११ १-९ २ ३ ४-९ १-९ ५ ६ ७-८ ९
यजमान को संबोधन इं क तु त अ न क तु त व णु शंसा यजमान को संबोधन व णु यजमान त ा था पत करना इं क तु त यजमान को संबोधन परा मी सोमरस मनोहर सोमरस यजमान को संबोधन इं क तु त ा ण सोम क तु त
१-१२ २-७, ११-१२ ८-९ १-१५ ३ ४ ५ ६ ७-८, १०-११, १४-१५ ९ १२ १३ १-१५ २-३, १०-१५ ५, ७ ६
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१९.
४.
सोम क तु त इं क तु त अ न क तु त
१-१२ ४-६ ७-१२
१.
अ न क तु त सोम क तु त इं क तु त सूय पु ी उषा उषा तु त अ नीकुमार क तु त अ न तु त उषा तु त अ नीकुमार क तु त अ न क तु त उषा क तु त उषा और रा अ न और उषा अ नीकुमार क तु त उषा क तु त यजमान को लोभन अ न, सूय, उषा अ नीकुमार अ नीकुमार को संबोधन सोम क तु त
१-१४ ४-७ ८-१४ १-१२ ४, ७-९ ५-६, १०-१२ १-९ ४-६ ७-९ १-९ ४-५ ६ ७ ८-९ १-१० ३ ४ ५ ६ ७-१०
सोम क तु त इं क तु त अ न क तु त अ न क तु त यजमान को संबोधन इं क तु त सोम क तु त सूय क तु त इं क तु त यजमान को संबोधन इं क तु त सोम क तु त अ न क तु त अ न क तु त जा त के म सोम जा त अ न दे वता को नम कार
१-१५ ४-९ १०-१५ १-१० ३ ४-५ ६-७ ९, १० १-११ १-१२ २-८ ९-१२ १-९ १-१२ ५ ६ ७
२. ३. ४.
५.
२०.
१. २.
३. ४. ५. ६.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
७.
२१.
गेय ऋचाएं अ न क तु त इं क तु त जल क तु त वायु क तु त अ न क तु त यजमान को संबोधन वेन क तु त
८ ९-१२ १-१५ ४-६ ७-९ १०-११ १२ १३-१५
इं क तु त पाप को संबोधन मनु य को संबोधन अ भमं त बाण दे वगण को संबोधन सवदे व उपासना
१-२७ १३ १४ १५ २६ २७
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूवा चक आ नेय पव पहला अ याय पहला खंड अ न आ या ह वीतये गृणानो ह दातये. न होता स स ब ह ष.. (१) हे अ न! हम सब आप क तु त (पूजा) करते ह. य म आप को आमं त करते ह. आप आ कर कुश (घास) के आसन पर बै ठए. आप ह व (अ न म डाली जाने वाली प व चीज) दे वता तक प ंचाइए. (यह माना जाता है क हम अ न म जो पदाथ डालते ह, वे अ न के ारा मं से संबं धत दे वता तक प ंचते ह). (१) वम ने य ाना
होता व ेषा
हतः. दे वे भमानुषे जने.. (२)
हे अ न! आप य के पुरो हत ह. आप सब का क याण करने वाले ह. दे वता आप को मनु य (जन ) के बीच म था पत कया है. (२) अ नं त वृणीमहे होतारं व वेदसम्. अ य य
ने ही
य सु तुम्.. (३)
हे अ न! आप सब कुछ जानने वाले ह. आप धन के वामी ह. इस य को अ छ तरह करने के लए हम आप को त मान कर भेज रहे ह. (ह व अ न के मा यम से संबं धत दे वता तक प ंचती है, इस लए अ न को दे वता का त माना जाता है). (३) अ नवृ ा ण जङ् घनद् वण यु वप यया. स म ः शु
आ तः.. (४)
हे अ न! आप अपने पूजक को धन दे ने वाले ह. स मधा ( जस से य क अ न व लत क जाती है) से आप को अ छ तरह का शत कया गया है. आप हमारी तु त से स होइए. य म व न डालने वाल (रा स एवं वृ य ) को न क जए. (४) े ं वो अ त थ
तुषे म मव
यम्. अ ने रथं न वे म्.. (५)
हे अ न! आप पूजक को धन दे ने वाले ह. उ ह म क तरह ब त क तरह पूजा करने यो य ह. आप हमारी पूजा से स होइए. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ह. मेहमान
वं नो अ ने महो भः पा ह व
या अरातेः. उत
षो म य य.. (६)
हे अ न! आप ई या े ष करने वाले लोग और ब त सुखसंप ता दान क जए. (६) ए
मन से हम बचाइए. हे अ न! हम
षु वा ण ते ऽ न इ थेतरा गरः. ए भवधास इ
हे अ न! आप पधा रए. हम आप के लए शु सु नए. सोमरस से आप समृ ब नए. (७)
भः.. (७) वाणी से मं पढ़ रहे ह. आप उ ह
आ ते व सो मनो यम परमा च सध थात्. अ ने वां कामये गरा.. (८) हे अ न! हम आप के पु ह. मन से आप को आमं त करना चाहते ह. आप जगह से भी हमारे लए आइए. हम वाणी (मं पाठ) से आप को भजते ह. (८) वाम ने पु कराद यथवा नरम थत. मू न व
े
य वाघतः.. (९)
हे अ न! आप सव े और सारे संसार के धारक ह. अथवा (ऋ ष) ने कमल के प पर अर ण (लकड़ी) मथ कर आप को उ प ( का शत) कया. (९) अ ने वव वदा भरा म यमूतये महे. दे वो
स नो शे.. (१०)
हे अ न! आप हमारी र ा क जए. वग दे ने वाले इस काम को स आप ही हम राह दखाने वाले ह. (१०)
क रए (सा धए).
सरा खंड नम ते अ न ओजसे गृण त दे व कृ यः. अमैर म मदय.. (१) हे अ न! बल चाहने वाले मनु य आप को नम कार करते ह. म भी आप को नम कार करता ं. आप अपने बल से मन का नाश क जए. (१) तं वो व वेदस
ह वाहमम यम्. य ज मृ
से गरा.. (२)
हे अ न! आप ान के वामी ह. आप ह व को दे वता तक ले जाने वाले ह. आप दे वता के त ह. म आप क कृपा पाने के लए ाथना करता ं. (२) उप वा जामयो गरो दे दशतीह व कृतः. वायोरनीके अ थरन्.. (३) हे अ न! यजमान क वाणी से कट होने वाली रही ह. हम आप को वायु के पास था पत करते ह. (३)
े
तु तयां आप का गुणगान कर
उप वा ने दवे दवे दोषाव त धया वयम्. नमो भर त एम स.. (४) हे अ न! हम आप के स चे भ
ह. दनरात आप क पूजा करते ह. दनरात आप का
******ebook converter DEMO Watermarks*******
गुणगान करते ह. आप हम पर कृपा क रए. (४) जराबोध त
व
वशे वशे य याय. तोम
ाय शीकम्.. (५)
हे अ न! हम ाथना कर के आप को आमं त करते ह. आप हम सब पर कृपा करने के लए य मंडप म आइए. का नाश करने वाले आप को हम सुंदर ाथना से बारबार आमं त कर रहे ह. (५) त यं चा म वरं गोपीथाय
यसे. म
हे अ न! आप इस उ म य (दे वता ) के साथ आइए. (६)
र न आ ग ह.. (६)
म सोमपान के लए बुलाए जाते ह. आप म त
अ ं न वा वारव तं व द या अ नं नमो भः. स ाज तम वराणाम्.. (७) हे अ न! आप स (य के) पूंछ वाले घोड़े के समान ह. आप य के र क ह. हम ाथना से आप क पूजा व नम कार कर रहे ह. अथात् जैसे घोड़ा अपनी पूंछ से क दे ने वाले म छर आ द हटा दे ता है, वैसे ही आप अपनी लपट ( वाला ) से हमारे क र क जए. (७) औवभृगुव छु चम वानवदा वे. अ न
समु वाससम्.. (८)
हे अ न! आप समु म रहने वाले ह. भृगु और अ वान जैसे ऋ षय ने जस तरह स चे मन से आप क ाथना क , उसी तरह हम भी स चे मन से आप क ाथना करते ह. (८) अ न म धानो मनसा धय
सचेत म यः. अ न म धे वव व भः.. (९)
हे अ न! मनु य मन लगा कर आप को तथा अपनी करण के साथ आप को का शत करता है. (९) आद
ा को जगाता है. सूय क
न य रेतसो यो तः प य त वासरम्. परो य द यते द व.. (१०)
हे अ न! वगलोक से ऊपर सूय प म अ न का शत होती है. तभी सब ाणी उस काश वाले तेज का दशन करते ह. (१०)
तीसरा खंड अ नं वो वृध तम वराणां पु तमम्. अ छा न े सह वते.. (१) हे ऋ वजो (उपासको)! अ न तु हारे अ हसक य म सहायक, े (उ म), सब के हतकारी व बलशाली ह. तुम वाला (लपट ) से बढ़ते ए अ न क सेवा म जाओ. (१) अ न त मेन शो चषा य
स
ं य३
णम्. अ नन व
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सते र यम्.. (२)
अ न अपनी तेज लपट से रा स और अ य व न को न कर. अ न हम सब कार का धन (सुख) दान कर. (२) अ ने मृड महाँ अ यय आ दे वयुं जनम्. इयेथ ब हरासदम्.. (३) हे अ न! आप हम सुख द जए. आप महान व ग तशील यानी साम यवान ह. आप दे वता के दशन के इ छु क यजमान के पास कुश (घास) के आसन पर वराजने के लए यहां पधा रए. (३) अ ने र ा णो अ
हसः
त म दे व रीषतः. त प ैरजरो दह.. (४)
हे अ न! आप पाप से हमारी र ा क जए. आप द तेज वाले ह. आप अजर (बुढ़ापे से र हत) ह. आप हमारा नुकसान करने क इ छा रखने वाले श ु को अपने तेजताप से भ म कर द जए. (४) अ ने युङ् वा ह ये तवा ासो दे व साधवः. अरं वह याशवः.. (५) हे अ न! अपने तेज ग त वाले े और कुशल घोड़ को (यहां पधारने के लए) रथ म जो तए. (५) न वा न य व पते ुम तं धीमहे वयम्. सुवीरम न आ त.. (६) हे अ न! हम आप क शरण म ह. यजमान आप को आमं त करते ह. आप क पूजा करते ह. आप क पूजा से सब कार के सुख ा त होते ह. हम ने दय से आप को यहां था पत कया है. (६) अ नमूधा दवः ककु प तः पृ थ ा अयम्. अपा
रेता
स ज व त.. (७)
हे अ न! आप सव च (सब से ऊंचे) ह. आप वगलोक और पृ वीलोक का पालन करने वाले ह. आप इन के वामी ह. आप जल के सारे जीव को जीवन दे ते ह और काम म लगाते ह. (७) इममू षु वम माक
स न गाय ं न
सम्. अ ने दे वेषु
वोचः.. (८)
हे अ न! आप हमारी इस ह व को दे वता तक प च ं ाइए. हम गाय ी छं द म आप क ाथना कर रहे ह. आप हमारी इन दोन चीज को दे वता तक प ंचा द जए. (८) तं वा गोपवनो गरा ज न द ने अ रः. स पावक ुधी हवम्.. (९) के
हे अ न! गोपवन ऋ ष ने आप को अपनी तु त से उ प कया है. आप अंग म रस प म नवास करते ह. आप प व करने वाले ह. आप हमारी ाथना सु नए. (९) प र वाजप तः क वर नह ा य मीत्. दध ना न दाशुषे.. (१०) हे अ न! आप सव व अ
के वामी ह. आप ह व के
******ebook converter DEMO Watermarks*******
प म दए गए पदाथ को
वीकार करते ह. उन ह वय को ा त करते ह यानी दे वता दानशील लोग को धनधा य दान करते ह. (१०) उ
तक प ंचाते ह. आप
यं जातवेदसं दे वं वह त केतवः. शे व ाय सूयम्.. (११)
सारे भुवन को दे खने के लए सूय क करण जस से उ प वे अ न को भलीभां त धारण कए रहती ह. (११)
ई ह, ऐसे सूय के
पम
क वम नमुप तु ह स यधमाणम वरे. दे वममीवचातनम्.. (१२) हे ऋ वजो (य करने वालो)! इस य म आप सब ान वाले अ न क क जए. वे स य धम से यु ह. वे श ु का (रोग का) नाश करने वाले ह. (१२)
तु त
शं नो दे वीर भ ये शं नो भव तु पीतये. शं योर भ व तु नः.. (१३) हमारा क याण हो. द जल हमारे पीने के लए क याणकारी हो. जल रोग शांत करने वाला हो. जल सुखशां त दे ते ए अमृत प म वा हत हो. (१३) क य नूनं परीण स धयो ज व स स पते. गोषाता य य ते गरः.. (१४) हे अ न! आप स य (स जन) के पालनहार ह. आप इस समय कस तरह के मानव के कम को स य माग ( ज) तक प ंचा रहे ह. कस कम से आप क कृपा गौ को ा त कराने वाली होगी. (१४)
चौथा खंड य ाय ा वो अ नये गरा गरा व द से. वयममृतं जातवेदसं यं म ं न श
सषम्.. (१)
हे अ न! आप सब कुछ जानने वाले व अमर ह. आप म क तरह सहयोग करने वाले ह. हम आप क तु त करते ह. हे ोताओ! आप भी ऐसे अ न क तु त क जए. (१) पा ह नो अ न एकया पा ३ त तीयया. पा ह गी भ तसृ भ जा पते पा ह चतसृ भवसो.. (२) हे अ न! आप पहली तु त से हमारी र ा क जए. सरी तु त से हम संर ण दान क जए. तीसरी तु त से हमारी र ा (पालनपोषण प) क जए. चौथी तु त से आप हमारी सब कार से र ा क जए. हे अ न! आप सब को संर ण दे ने वाले ह. (२) बृह र ने अ च भः शु े ण दे व शो चषा. भर ाजे स मधानो य व रेव पावक द द ह.. (३) हे अ न! आप बड़ी वाला
वाले व युवा ह. आप संप ता व प व ता दे ने वाले ह.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आप अपने खर तेज से भर ाज (ऋ ष) के लए अ यंत तेज वी (३)
पम
व लत होइए.
वे अ ने वा त यासः स तु सूरयः. य तारो ये मघवानो जनानामूव दय त गोनाम्.. (४) हे अ न! यजमान भलीभां त हवन करते ह. वे आप को जा क दे खभाल करने वाले ह, वे भी आप को य ह . गौ को य ह . (४)
य ह . जो धन दे ने वाले और का पालन करने वाले आप
अ ने ज रत व प त तपानो दे व र सः. अ ो षवान् गृहपते महाँ अ स दव पायु रोणयुः.. (५) हे अ न! आप ानी, जा का पालनपोषण करने वाले, रा स (क दे ने वाल ) का नाश करने वाले, घर के वामी, उपासक के घर को नह छोड़ने वाले व वगलोक के र क ह. आप हमारे घर म सदा नवास क रए. (५) अ ने वव व षस राधो अम य. आ दाशुषे जातवेदो वहा वम ा दे वाँ उषबुधः.. (६) हे अ न! आप अमर, ा णमा को जानने वाले और उषा (उषाकाल) से ा त होने वाला वशेष धन दानदाता यजमान को द जए. आप सब कुछ जानने वाले ह. आप उषाकाल म जागे ए दे वता को भी यहां आमं त क जए. (६) वं न ऊ या वसो राधा स चोदय. अ य राय वम ने रथीर स वदा गाधं तुचे तु नः.. (७) हे अ न! आप सव ापक, अद्भुत श वाले, दशनीय, अपार व ब त मतावान ह. आप समृ (वैभव) लाने म समथ ह. आप हम समृ द जए. आप हमारी संतान को भी समृ एवं त ा द जए. (७) व म स था अ य ने ातऋतः क वः. वां व ासः स मधान द दव आ ववास त वेधसः.. (८) हे अ न! आप र क ह. आप (अपने गुण तथा धम के लए) ब त स ह. आप स यवान और ानी ह. हे तेज वी अ न! व लत ( का शत) हो जाने पर ानी जन आप क उपासना व सेवा करते ह. (८) आ नो अ ने वयोवृध र य पावक श यम्. रा वा च न उपमाते पु पृह सुनीती सुयश तरम्.. (९) हे अ न! आप प व करने वाले व धनधा य क समृ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करने वाले ह. आप हम यश
बढ़ाने वाला धन द जए. आप हम सही रा ते से आने वाला धन दान कर. आप हम ऐसा धन दान कर जसे अनेक लोग चाहते ह . (९) यो व ा दयते वसु होता म ो जनानाम्. मधोन पा ा थमा य मै तोमा य व नये.. (१०) यजमान को सब कार क समृ दे कर आनं दत करने वाले अ न क हम पहले तु त करते ह, जैसे उ ह सब से पहले सोमरस का पा सम पत कया जाता है. (१०)
पांचवां खंड एना वो अ नं नमसोज नपातमा वे. यं चे त मर त व वरं व य तममृतम्.. (१) हे उपासको! अ से श दे ने वाले (बल के पु ), पूण ानी, नेह दे ने वाले, सुंदर य वाले दे वता के त अ न को म नम कारपूवक ाथना से आमं त करता ं. (१) शेषे वनेषु मातृषु सं वा मतास इ धते. अत ो ह ं वह स ह व कृत आ द े वेषु राज स.. (२) हे अ न! आप वन म ा त ह. आप माता म गभ के प म ा त ह. आप शेष पदाथ म भी फैले ह. हम मनु य स मधा ारा आप को व लत करते ह. आप आल य र हत ह. आप यजमान क ह व दे वता तक प ंचाते ह. आप दे वता के म य (बीच म) सुशो भत होते ह. (२) अद श गातु व मो य म ता यादधुः. उपो षु जातमाय य वधनम नं न तु नो गरः.. (३) धम के माग को पूरी तरह जानने वाले अ न कट हो रहे ह. इन के मा यम से य के नयम पूरे कए जाते ह. अ न आय को ग त दे ने वाले ह. वे वाणी प म क जा रही हमारी ाथना को वीकार करने क कृपा कर. (३) अ न थे पुरो हतो ावाणो ब हर वरे. ऋचा या म म तो ण पते दे वा अवो वरे यम्.. (४) तो वाले हसा र हत य म सब से पहले अ न दे वता क थापना क जाती है. सोमलता से रस नकालने वाले प थर एवं आसन भी था पत कए जाते ह. हे म तो! हे ण प त! हे दे व! हम वेदमं ारा अपनी र ा का अनुरोध करते ह. (४) अ नमी ड वावसे गाथा भः शीरशो चषम्. अ न राये पु मीढ ुतं नरो ऽ नः सुद तये छ दः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे उपासको! अपनी र ा के लए व तृत तथा वकराल व प वाले अ न क तु त करो. धन ा त के लए अ न क तु त करो. (५) ु ध ु कण व भदवैर ने सयाव भः. आ सीदतु ब ह ष म ो अयमा ातयाव भर वरे.. (६) हे अ न! आप समथ कान वाले ह. आप हमारी ाथना वीकार क जए. अ न के साथ म और अयमा आ द दे वता भी य के कुशासन पर वराजमान ह . (६) दै वोदासो अ नदव इ ो न म मना. अनु मातरं पृ थव व वावृते त थौ नाक य शम ण.. (७) अ न इं के समान श शाली ह. अ न द (अ छे ) काय करने वाल के लए पृ वी पर कट ए. ह व प ंचाने के अपने े काम से वे वग म रहने लगे. (७) अध मो अध वा दवो बृहतो रोचनाद ध. अया वध व त वा गरा ममा जाता सु तो पृण.. (८) हे अ न! आप उ म य के आधार ह. आप वगलोक एवं पृ वीलोक म अपनी आभा फैलाएं. आप हमारी तथा हमारे संबं धय क मनोकामनाएं पूरी क जए. (८) कायमानो वना वं य मातृरजग पः. न त े अ ने मृषे नवतनं यद् रे स हाभुवः.. (९) हे अ न! आप वन क इ छा करने वाले हो कर भी माता के समान जल के पास गए. आप का जाना हम से नह सहा गया. आप अ य हो कर भी हमारे आसपास कट हो जाते ह. (९) न वाम ने मनुदधे यो तजनाय श ते. द दे थ क व ऋतजात उ तो यं नम य त कृ यः.. (१०) हे अ न! मननशील मनु य आप को धारण करते ह. अनंत काल से मानव जा त के लए आप का काश का शत है. आप ानी ऋ षय के आ म म का शत होते ह. जाप त ने यजमान के लए आप को दे व य थान म था पत कया. हम सब आप को नम कार करते ह. (१०)
छठा खंड दे वो वो वणोदाः पूणा वव ् वा सचम्. उ ा स वमुप वा पृण वमा द ो दे व ओहते.. (१) अ न धन दे ने वाले ह. इस लए हे होताओ! य
म अ छ तरह भरे ए
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ुक (एक
पा ) से बारबार आ त दो. सोमरस से पा को स चो. इस तरह अ न आ त प ंचा कर यजमान क मनोकामनाएं पूरी करते ह. (१) ै ु त ण प तः दे ेतु सूनृता. अ छा वीरं नय पङ् राधसं दे वा य ं नय तु नः.. (२) हम ण प त दे वता ा त ह (यानी हमारे पास प ंच). स य और य दे वी एवं वाग् दे वता (वाणी के दे वता) हम ा त ह . सभी दे वगण हमारे श ु का नाश कर. क याणकारी यश दे ने वाले वीर को सब दे वता े माग से ले जाएं. (२) ऊ व ऊ षु ण ऊतये त ा दे वो न स वता. ऊ व वाज य स नता यद भवाघ व यामहे.. (३) हे अ न! हमारे संर ण के लए आप ऊंचे आसन पर वरा जए. सूय के समान उ त हो कर हम अ आ द दान क जए. हम इसी लए अ छे तो से तु त करते ए आप को आमं त करते ह. (३) यो राये ननीष त मत य ते वसो दाशत्. स वीरं ध े अ न उ थश सनं मना सह पो षणम् .. (४) हे अ न! आप ापक ह. हम आप के भ धन के लए आप को स करना चाहते ह. जो मनु य आप को ह व दान करता है, वह तु त करने वाले हजार मनु य का पालनपोषण करने वाले वीर पु को ा त करता है. (४) वो य ं पु णां वशां दे वयतीनाम्. अ न सू े भवचो भवृणीमहे य
स मद य इ धते.. (५)
हे अ न! आप मनु य म दे व व का वकास करने वाले ह. हम अपनी तु तय से आप क महानता का वणन करते ह. हे अ न! आप को अ य ऋ षय ने भी अ छ तरह द त ( स ) कया है. (५) अयम नः सुवीय येशे ह सौभाग य. राय ईशे वप य य गोमत ईशे वृ हथानाम्.. (६) अ न संप और सौभा य के ईश ह. वे गौ आ द पशु के वामी ह. संतान और धन के वामी ह. श ु का नाश करने वाल के भी वामी ह. (६) वम ने गृहप त व होता नो अ वरे. वं पोता व वार चेता य या स च वायम्.. (७) हे अ न! आप घर के वामी ह. हमारे हसा र हत य के होता (पुरो हत) ह. आप क आराधना सभी कर सकते ह. आप प व करने वाले ह. आप े ह व का य क जए. हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
धना द (सुख) दान क जए. (७) सखाय वा ववृमहे दे वं मतास ऊतये. अपां नपात सुभग सुद सम
सु तू तमनेहसम्.. (८)
हे अ न! आप हमारे सखा ह. आप े कम करने वाले ह. मनु य क शी इ छा पू त करते ह. आप धन के वामी व जल को धारण करने वाले ह. हम समान बु वाले सभी साधक आप से अपने संर ण क ाथना करते ह. (८)
सातवां खंड आ जुहोता ह वषा मजय वं न होतारं गृहप त द ध वम्. इड पदे नमसा रातह सपयता यजतं प यानाम्.. (१) हे ऋ वजो (यजमानो)! आप अ न दे व को आमं त क जए. आप सब ओर शु ता फैलाने वाली ह व अ न दे व को दान क जए. गृहप त गृह क र ा करने वाली अ न क थापना कर. हवन क चीज के साथसाथ आप तु त कर के उन का वागतस कार कर. (१) च इ छशो त ण य व थो न यो मातराव वे त धातवे. अनूधा यदजीजनदधा चदा वव स ो म ह यां ३ चरन्.. (२) हे अ न! बाल एवं त ण (युवा) प आप का ह व प ंचाना ब त आ य वाला है. आप पैदा होने के बाद ध पीने के लए अपनी दोन ही माता (पृ वी और अर णय ) के पास नह जाते, ब क अ छे त क भू मका नभाते ए दे वता के पास ह व प ंचाने जाते ह. (२) इदं त एकं पर ऊ त एकं तृतीयेन यो तषा सं वश व. संवेशन त वे ३ चा रे ध यो दे वानां परमे ज न े.. (३) हे मृ यु धम वाले मनु य! अ न तु हारा एक भाग है. वायु तु हारा सरा भाग (शरीर) है. सूय प तीसरे भाग (तेज) से तुम मलते हो. उन से मु हो कर मुन य तेज वी प ा त करता है. अथात् मनु य को पावन थान म ज म ले कर दे व श य के लए य तथा े बनना चा हए. ( पछले मं म मृ यु के बाद पुनः कृ त म मलने क या बताई है). (३) इम तोममहते जातवेदसे रथ मव सं महेमा मनीषया. भ ा ह नः म तर य स स ने स ये मा रषामा वयं तव.. (४) हे अ न! आप सब कुछ जानने वाले ह. हम तो प को रथ के समान उ म बु तैयार करते ह. हे अ न! हम आप के म ह. हम कसी कार का कोई क न हो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से
मूधानं दवो अर त पृ थ ा वै ानरमृत आ जातम नम्. कव स ाजम त थ जनानामास ः पा ं जनय त दे वाः.. (५) हे अ न! आप सब से ऊपर (सव प र) ह. आप वगलोक के वासी ह. आप भूलोक के वामी ह. आप य म उ प ह. आप ानी मनु य म मेहमान क तरह पूजनीय ह. मुख क तरह मु य ह. आप को दे वता ने उ प कया है. (५) व वदापो न पवत य पृ ा थे भर ने जनय त दे वाः. तं वा गरः सु ु तयो वाजय या ज न गववाहो ज युर ाः.. (६) हे अ न! जैसे पवत के ऊपरी भाग से जल उ प होता है, वैसे ही व ान् यजमान आप को अपनी तु तय से कट करते ह. जैसे घोड़े यु म वजय पाते ह, वैसे ही आप हमारी तु तय से संचा लत होते ह. इस से हम वजय (कामना स ) मलती है. (६) आ वो राजानम वर य अ नं पुरा तन य नोर च ा
होतार स ययज रोद योः. र य पमवसे कृणु वम्.. (७)
हे अ न! आप य के वामी ह. आप दे वता को बुलाने वाले ह. आप श ु को लाने वाले ह. आप वगलोक तथा पृ वीलोक के अ दाता ह. आप आनंद एवं स य प को ा त कराने वाले ह. आप वण के समान चमक वाले ह. ऐसे व प वाले अ न को वाभा वक प से व ुत् से पहले संर ण के लए उ प कया है. (७) इ धे राजा समय नमो भय य तीकमा तं घृतेन. नरो ह े भरीडते सबाध आ नर मुषसामशो च.. (८) हे अ न! आप े ह. आप राजा ह. आप को अ से व लत कया जाता है. आप को घी से बढ़ाया जाता है. सभी मल कर हवन से आप क पूजा करते ह. इस कार अ न उषा काल के पूव (यानी माता के गभ से ही) उ प ए ह. (८) केतुना बृहता या य नरा रोदसी वृषभो रोरवी त. दव द ता पमामुदानडपामुप थे म हषो ववध.. (९) हे अ न! आप महान काश के साथ कट होते ह. वगलोक और पृ वीलोक म बलवान हो कर गजना करते ह. बजली के गजन और जल मेघ के बीच बढ़ते ह. (९) अ नं नरो द ध त भरर योह त युतं जनयत श तम्. रे शं गृहप तमथ ुम्.. (१०) हे अ न! आप शंसा के यो य ह. आप र से दखाई दे ते ह. आप घर के र क ह. यजमान ने अ न को अर ण मथ कर कट कया. (यानी अंगु लय म अर णय को पकड़ कर, घस कर कट कया है). (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आठवां खंड अबो य नः स मधा जनानां त धेनु मवायतीमुषासम्. य ा इव वयामु जहानाः भानवः स ते नाकम छ.. (१) हे अ न! आप यजमान क ा से व लत ह. जैसे अ नहो (सुबह य करने वाले) के लए पाली ई गाय ातःकाल उठ जाती है, वैसे ही ातःकाल आप व लत होते ह ( कए जाते ह). पेड़ क फैली ई शाखा के समान आप क करण भी र र तक फैलती ह. (१) भूजय तं महां वपोधां मूरैरमूरं पुरां दमाणम्. नय तं गी भवना धयं धा ह र म ुं न वमणा धन चम्.. (२) हे अ न! आप रा स को जीतने वाले ह. आप व ान को धारण करने वाले ह. मूख के आ य ( थान) का नाश करने वाले ह. आप तु त करने वाले को ऐ य दे ने वाले ह. आप कवच के समान र ा करने वाले ह. आप सुनहरी वाला वाले ह. हे मनु य! तुम ऐसे अ न क आराधना करो. (२) शु ं ते अ य जतं ते अ य षु पे अहनी ौ रवा स. व ा ह माया अव स वधाव भ ा ते पूष ह रा तर तु.. (३) हे पूषा! आप का तेज वी रंग वाला दन अलग है. उसी तरह काले रंग वाली रा अलग है. आप क म हमा से ये अलगअलग रंग वाले भाग एक ही दनरात के ह. आप पोषण करने वाले ह. आप सारे जग क र ा करने वाले ह. आप क याण करने वाले ह. आप हमारा क याण कर. (३) इडाम ने पु द स स न गोः श म हवमानाय साध. या ः सूनु तनयो वजावा ने सा ते सुम तभू व मे.. (४) हे अ न! आप अनेक काम म उपयोगी सुम त हम द जए. आप गाय को दे ने वाली तु त हम द जए. आप हम पु पौ दान क जए. आप उ म बु वाले ह. कृपया भली कार आराधना करने वाले यजमान को ये सब दान क जए. (४) होता जातो महा भो व ष ृ ा सीददपां ववत. दध ो धायी सुते वया स य ता वसू न वधते तनूपाः.. (५) हे अ न! आप सभी घर म मौजूद रहते ह. आप बादल के बीच बजली के प म रहते ह. इस समय आप य म मौजूद ह. आप महान ह. आप अंत र को जानने वाले ह. ह व को धारण करने वाले ह. आप हम अ , धन व संर ण दान क जए. (५) स ाजमसुर य श तं पु
सः कृ ीनामनुमा
य.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ
येव
तवस कृता न व द ारा व दमाना वव ु .. (६)
हे अ न! आप बलवान और वीर मनु य के तु त यो य ह. आप बल म इं के समान ह. आप के इस शंसनीय व प क तु त करते ह. हे यजमान! तु त और आराधना से अ न क उपासना करो. (६) अर यो न हतो जातवेदा गभ इवे सुभृतो ग भणी भः. दवे दव ई ो जागृव ह व म मनु ये भर नः.. (७) हे अ न! आप सब कार के ान वाले ह. आप अ छ तरह गभ धारण करने वाली ी के समान अर णय ारा धारण कए जाते ह. य के लए जाग क रहने वाले यजमान ारा त दन आप वंदनीय ह. (७) सनाद ने मृण स यातुधाना वा र ा स पृतनासु ज युः. अनु दह सहमूरा कयादो मा ते हे या मु त दै ायाः.. (८) हे अ न! आप हमेशा श ु को बाधा दे ने वाले ह. आप को यु म रा स नह जीत सकते. आप मांस खाने वाले रा स को अपने तेज से भ म कर द जए. आप के इस ह थयार से कोई श ु न बचे. (८)
नौवां खंड अ न ओ ज मा भर ु नम म यम गो. नो राये पनीयसे र स वाजाय प थाम्.. (१) हे अ न! आप हम खूब बल तथा धन द जए. आप बेरोकटोक ग त वाले ह. धन का माग हम दखाइए. आप अ और बल वाला माग हम दखाइए. (१) य द वीरो अनु याद न म धीत म यः. आजु मानुषक् शम भ ीत दै म्.. (२) हे अ न! मनु य वीर पु को पाने के लए आप को व लत करे. हवन के पदाथ से सदा हवन करे. आप क कृपा से सदा परम सुख ा त करे. (२) वेष ते धूम ऋ व त द व स छु आततः. सूरो न ह ुता वं कृपा पावक रोचसे.. (३) हे अ न! व लत होने के बाद आप का धुआं आकाश म फैलता है. बादल प म बदल जाता है. आप प व करने वाले ह. तु त के भाव से आप सूय के समान का शत होते ह. (३) व
ह ैतव शो ऽ ने म ो न प यसे.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वं वचषणे वो वसो पु
न पु य स.. (४)
हे अ न! न य ही आप सूखी स मधा प म अ को हण करते ह. आप उसे (अ को) ब त यादा मा ा म बढ़ाते ह (पु करते ह). आप सूय के समान तेज वी ह. आप सभी को शरण (आ य) दे ने वाले व सब कुछ दे खने वाले ह. (४) ातर नः पु यो वश तवेता त थः. व े य म म य ह ं मतास इ धते.. (५) हे अ न! आप अनेक लोग को य लगने वाले ह. आप यजमान के घर धन था पत करने वाले ह. आप यजमान के घर मेहमान के समान आने वाले ह. आप ातःकाल तु त कए जाने वाले ह. आप अमर ह. सभी मनु य आप को प व हवन साम ी दान कर. (५) य ा ह ं तद नये बृहदच वभावसो. म हषीव व य व ाजा उद रते.. (६) हे अ न! शी प ंचने वाले तो से हम आप क आराधना करते ह. आप तेज वी ह. हम ब त सा अ और धन दान क जए य क आप ही से ब त सा धन और अ ा त होता है. (६) वशो वशो वो अ त थ वाजय तः पु यम्. अ नं वो य वचः तुषे शूष य म म भः.. (७) हे यजमानो! आप अ और बल क इ छा करते ए अ न क तु त करो. वे सब के य व पूजनीय ह. हे अ न! हम गृहप त आप क सुखदायी तो से आराधना करते ह. (७) बृह यो ह भानवे ऽ चा दे वाया नये. यं म ं न श तये मतासो द धरे पुरः.. (८) हे अ न! आप तेज वी ह. आप के लए ब त सा ह व का अ दया जाता है. हम काश वाले आप क पूजा करते ह. हम आप को म के समान मानते ह. हम उ म तु त करने के लए आप को आगे कर के था पत करते ह. (८) अग म वृ ह तमं ये म नमानवम्. यः म ुतव ा बृहदनीक इ यते.. (९) हे अ न! आप पाप का नाश करने वाले व शंसनीय मनु य के हतकारी ह. ऋ पु ुतवा के लए हम बड़ीबड़ी वाला के साथ आप को कट करते ह. (९) जातः परेण धमणा य सवृ ः सहाभुवः. पता य क यप या नः ा माता मनुः क वः.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शु
हे अ न! क यप आप के पता और कए गए य म कट होते ह. (१०)
ा माता ह. मनु क व ह. आप
े कम
ारा
दसवां खंड सोम राजानं व णम नम वारभामहे. आ द यं व णु सूय ाणं च बृह प तम्.. (१) हम सोम, राजा, व ण, अ न, अ द त के पु , व णु, सूय एवं ा को बारबार याद करते ए आमं त करते ह. अथात् इन सभी दे वता को तु तय से आमं त करते ह. (१) इत एत उदा ह दवः पृ ा या हन्. भूजयो यथा पथोद् ाम रसो ययुः.. (२) य करने वाले आं गरस ऋ ष वगलोक को प ंचे. उसी के भाव से और भी ऊपर गए. (२) राये अ ने महे वा दानाय स मधीम ह. ई ड वा ह महे वृषं ावा हो ाय पृ थवी.. (३) हे अ न! हम ब त धन दान के लए आप को द त करते ह. आप वरदान क वषा करने वाले ह. महान य के लए वगलोक और पृ वीलोक क तु त करते ह. (३) दध वे वा यद मनु वोचद् प र व ा न का ा ने म
े त वे तत्. मवाभुवत्.. (४)
हे अ न! आप को संबो धत कर के अ वयु आ द पुरो हत तो उचारते ह. आप सब कुछ जानते ह. आप सब कम को वैसे ही वश म रखते ह, जैसे प हए गाड़ी को. (४) य ने हरसा हरः शृणा ह व त प र. यातुधान य र सो बलं यु जवीयम्.. (५) हे अ न! आप अपने तेज से यातना दे ने वाले रा स को सब ओर ( कार) से न कर द जए. (५) वम ने वसू रह ाँ आ द याँ उत. यजा व वरं जनं मनुजातं घृत ुषम्.. (६) हे अ न! आप यहां वसु, एवं आ द य दे वता के लए य क जए. आप उ म य करने वाले, घी से स चने वाले, मनु से उ प ए मनु य का स कार (मनोकामना स ारा) क जए. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यारहवां खंड पु वा दा शवाँ वोचे ऽ रर ने तव वदा. तोद येव शरण आ मह य.. (१) हे अ न! आप को ब त सी ह व दान करते ए म उसी तरह आप क शरण म आया ं, जैसे ब त धनवान क शरण म सेवक आते ह. (१) हो े पू वचो ऽ नये भरता बृहत्. वपां योती ष ब ते न वेधसे.. (२) हे तु त करने वालो! अ न ा नय के तेज को धारण करने वाले ह. वधाता आ द दे व को बुलाने वाले ह. आप इन के लए महान और ाचीन तो का पाठ क जए. (२) अ ने वाज य गोमत ईशानः सहसो यहो. अ मे दे ह जातवेदो म ह वः.. (३) हे अ न! आप बल से उ प सा अ धन द जए. (३)
ए ह. आप अ के वामी व अंतयामी ह. आप हम ब त
अ ने य ज ो अ वरे दे वां दे वयते यज. होता म ो व राज य त धः.. (४) हे अ न! आप य म पूजनीय ह. यजमान के लए दे वता को बुलाने वाले आप श ु को हरा कर शोभायमान होते ह. (४) ज ानः स त मातृ भमधामाशासत अयं ुवो रयीणां चकेतदा.. (५)
का यजन क जए. दे व
ये.
हे अ न! आप सात माता क सहायता से उ प होने वाले ह. आप सोम को सेवा काय म शो भत करते ह ( े रत करते ह). सोम कम का वधान करने वाले ह. आप धनसंपदा को अ छ तरह जानने वाले ह. (५) उत या नो दवा म तर द त
यागमत्. सा श ताता मय करदप
धः.. (६)
हे अ द त! आप तु त के यो य ह. आप अपने पूरे र ा साधन के साथ हमारे पास पधार. हम सुखशां त दान कर. हमारे श ु को र कर. (६) ई ड वा ह ती ां ३ यज व जातवेदसम्. च र णुधूममगृभीतशो चषम्.. (७) हे तु त करने वालो! श ु को भ म करने (हराने) वाले अ न क तु त करो. इन का धुआं सब ओर घूम सकता है. इन के काश को कोई नह रोक सकता. ये सब कुछ जानने वाले ह. आप ह व से इन क आराधना क जए. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न त य मायया च न रपुरीशीत म यः. यो अ नये ददाश ह दातये.. (८) हे अ न! जो आप के लए ह व पदाथ दे ता है, उस पर कभी भी कसी छलकपट का असर नह होता है. (८) अप यं वृ जन
रपु
(श ु) के
तेनम ने रा यम्. द व म य स पते कृधी सुगम्.. (९)
हे अ न! आप छलीकपट श ु को ब त र फक द जए. आप स य के पालनहार ह. हमारे लए सुखशां त का माग सुगम बनाइए. (९) ु
ने नव य मे तोम य वीर व पते. न मा यन तपसा र सो दह.. (१०)
हे अ न! आप वीर ह. हमारी इन नई ाथना को सुन कर छली, अपने ताप से भ म क जए. रा स हमारे कम म व न डालते ह. (१०)
रा स को
बारहवां खंड म
ह ाय गायत ऋता ने बृहते शु शो चषे. उप तुतासो अ नये.. (१)
हे तु त करने वालो! अ न य व स य के पालनहार ह. वे महान तेज वाले ह. आप ऐसे महान र क अ न क तु त क जए. (१) सो अ ने तवो त भः सुवीरा भ तर त वाजकम भः. यय व स यमा वथ.. (२) हे अ न! आप जन यजमान के म हो जाते ह, वे अ बल क र ा करने वाली े संतान ा त करते ह. (२) तं गूधया वणरं दे वासो दे वमर त दध वरे. दे व ा ह मू हषे.. (३) हे तु त करने वालो! वग म दे वता तक ह व प ंचाने वाले अ न क तु त करो. आप जस दे वता को इ मान कर पूजते ह, आप क ह व अ न उस दे वता तक प ंचा दे ते ह. (३) मा नो णीथा अ त थ वसुर नः पु
श त एषः. यः सुहोता व वरः.. (४)
अ न य म मेहमान क तरह ह. उ ह य से र मत ले जाओ. वे दे वता को बुलाने वाले ह. वे सुखशां त दे ने वाले ह. वे अनेक लोग ारा पू जत व सब को बसाने वाले ह. (४) भ ो नो अ नरा तो भ ा रा तः सुभग भ ो अ वरः. भ ा उत श तयः.. (५) हे अ न! आप को ह वय से तृ त कया है. आप हमारा क याण क जए. आप ऐ यशाली ह. हम शुभ धन दान क जए. हम क याणकारी य ा त कराइए. हमारी ाथनाएं हमारे लए मंगलमयी ह . (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ज ं वा ववृमहे दे वं दे व ा होतारमम यम्. अ य य
य सु तुम्.. (६)
हे अ न! आप दे व म े ह. आप े य कराने वाले ह. आप अमर ह. इस य को अ छ तरह पूरा करने वाले ह. हम आप क तु त करते ह. (६) तद ने ु नमा भर य सासाह सदने कं चद णम्. म युं जन य
म्.. (७)
हे अ न! आप हम तेज वी बनाइए. आप हम यश दान क जए. य म व न प ंचाने वाले को हम वश म कर सक. उन का तर कार कर सक. आप बु वाले लोग क बु ठ क क जए. आप उन के ोध को र क जए. (७) य ा उ व प तः शतः सु ीतो मनुषो वशे. व द े नः त र ा स सेध त.. (८) हे अ न! आप यजमान के पालनहार ह. ह वय से तृ त और स होने पर आप जब तक मनु य के घर रहते ह तब तक उन के सभी क र करते ह. यह बात जग स है. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पव सरा अ याय पहला खंड त ो गाय सुते सचा पु
ताय स वने. शं यद्गवे न शा कने.. (१)
हे तु त करने वालो! सोम तैयार करने के बाद ब त से यजमान जन क तु त करते ह जो धन दाता ह, तुम उन इं के लए ाथना करो. वे ाथनाएं उ ह उसी कार सुख दे ती ह, जस कार गाय को घास. (१) य ते नून
शत त व
ु नतमो मदः. तेन नूनं मदे मदे ः.. (२)
हे इं ! आप सैकड़ कम करने वाले ह अथवा आप सैकड़ कार का ान रखने वाले ह. वह सोमरस हम ने आप ही के लए नकाला था. आप उस रस को पी कर आनं दत होइए और हम भी आनंद दान क जए. (२) गाव उप वदावटे मही य
य र सुदा. उभा कणा हर यया.. (३)
हे गौओ! आप य थान क ओर जाइए. आप धा मक य दान क जए. आप के दोन कान वण से सुशो भत ह. (३) अरम ाय गायत ुतक ारं गवे. अर म
वधा
के लए ध आ द
य धा ने.. (४)
हे तु त करने वालो! इं के घोड़े, गाय व इं धाम के लए पूरी तरह वै दक तु तयां गाइए. (४) त म ं वाजयाम स महे वृ ाय ह तवे. स वृषा वृषभो भुवत्.. (५) हे इं ! आप उस बड़े रा स (वृ ासुर) को मारने वाले ह. आप व के समान बलवान ह. हम अपनी सहायता के लए आप को आमं त करते ह. आप धन दाता ह. हम धन दान क जए. (५) वम
बलाद ध सहसो जात ओजसः. व
स वृष वृषेद स.. (६)
हे इं ! आप श ु को हराने वाले ह. आप बल और दय के धैय के कारण आप वरदान तथा मनोवां छत फल को दे ने वाले ह. (६) य इ मवधय म वतयत्. च ाण ओपशं द व.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स
ह.
हे इं ! अंत र म मेघ को फैला कर आप ने बरसात आ द से पृ वी को बढ़ाया (समृ कया). हम यजमान के य ने आप का यश बढ़ाया है. (७) य द ाहं यथा वमीशीय व व एक इत्. तोता मे गोसखा यात्.. (८) हे इं ! जैसे आप अकेले सम त वैभव के वामी ह, य द वैसे ही म भी सारे वैभव का वामी हो जाऊं तो मेरी तु त करने वाले गौ आ द धनधा य वाले हो जाएं. (८) प यंप य म सोतार आ धावत म ाय. सोमं वीराय शूराय.. (९) सोमरस नकालने वाले पुरो हतो! आप शूरवीर इं के लए सोमरस अ पत क जए. यह सोमरस सव शंसा के यो य है. (९) इदं वसो सुतम धः पबा सुपूणमुदरम्. अनाभ य रमा ते.. (१०) हे इं ! आप अंतयामी ह. यह सोमरस ली जए. अपनी स ता के लए इसे पी जए, जस से आप का पेट पूरी तरह भर जाए. आप सब ओर से नभय ह. (१०)
सरा खंड उद्घेद भ ुतामघं वृषभं नयापसम्. अ तारमे ष सूय.. (१) उद यमान इं (सूय प म) े वीर, धन दे ने वाले व मनु य के हतकारी ह. वे उदार वभाव के ह और (श ु पर) श हार करने वाले ह. (१) यद क च वृ ह ुदगा अ भ सूय. सव त द
ते वशे.. (२)
हे इं ! आप जल रोकने वाले मेघ को न करते ह. अभी उ दत ए आप से सब कुछ का शत हो रहा है. सब कुछ आप के अधीन है. (२) य आनय परावतः सुनीती तुवशं य म्. इ ः स नो युवा सखा.. (३) हे इं ! तुवश और य को श ु ने र फक दया था, आप अपनी फर पास लौटा लाए. आप युवा ह. आप हमारे म हो जाइए. (३)
े नी त से उ ह
मा न इ ा या ३ दशः सूरो अ ु वा यमत्. वा युजा वनेम तत्.. (४) हे इं ! रा स चार ओर से श बरसाने वाले व सब ओर वचरण करने वाले ह. आप कृपा क जए जस से ऐसे रा स हमारी ओर न आ सक. आप क सहायता से हम ऐसे रा स को न कर सक. (४) ए
सान स
रय
स ज वान
सदासहम्. व ष मूतये भर.. (५)
हे इं ! आप हमारे संर ण के लए, भोग के लए तथा श ु हम ब त सा धन द जए. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पर वजय पाने के लए
इ ं वयं महाधन इ मभ हवामहे. युजं वृ ेषु व
णम्.. (६)
हे इं ! हम थोड़ा धन होने पर भी ब त धन वाले आप को बुलाते ह. हम छोट बड़ी सभी वप य से र ा करने वाले तथा श ु का नाश करने म सहायक आप को आमं त करते ह. (६) अ पब क वः सुत म ः सह बा े . त ाद द पौ
यम्.. (७)
हे इं ! आप ने क से नकाले ए सोमरस को पीया. आप ने हजार भुजा को मारा. आप क वीरता उसी समय का शत ई. (७) वय म
वायवो ऽ भ
नोनुमो वृषन्. व
वाले श ु
वा ३ य नो वसो.. (८)
हे इं ! आप कामना क वषा करने वाले ह. हम आप क कामना करते ह. आप क ओर मुंह कर के बारबार णाम करते ह. आप सव ापक ह. आप हमारे तो (क भावना) को समझ ली जए. (८) आ घा ये अ न म धते तृण त ब हरानुषक्. येषा म ो युवा सखा.. (९) चर युवा इं े अ न को व लत करने वाले यजमान के म ह. य करने वाले उन के लए कुश का आसन बछाते ह. (९) भ ध व ा अप
षः प र बाधो जही मृधः. वसु पाह तदा भर.. (१०)
हे इं ! आप े ष करने वाले सारे श ु का नाश क जए. व न डालने वाले श ु को हराइए. हम यश दे ने वाला भरपूर धन दान क जए. (१०)
तीसरा खंड इहेव शृ व एषां कशा ह तेषु य दान्. न यामं च मृ
ते.. (१)
म द्गण के हाथ म चाबुक है. उन चाबुक से जो आवाज होती है, वह हम सुनाई दे ती है. ये आवाज ( व नयां) यु म अनेक कार क वीरता द शत करती ह. (१) इम उ वा व च ते सखाय इ
सो मनः. पु ाव तो यथा पशुम्.. (२)
हे इं ! यजमान हाथ म सोमरस ले कर आप क ओर उसी तरह एका च हो कर दे ख रहे ह, जैसे पशु पालक घास हाथ म ले कर ेम भाव से पशु क ओर दे खता है. (२) सम य म यवे वशो व ा नम त कृ यः. समु ायेव स धवः.. (३) हे इं ! सारी जा (जनता) न तापूवक वैसे ही आक षत हो रही है, जैसे समु क ओर जाने वाली न दयां. (३) दे वाना मदवो मह दा वृणीमहे वयम्. वृ णाम म यमूतये.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे दे वताओ! आप का संर ण पूजनीय व महान है. आप सारी इ छा को पूरा करते ह. यह संर ण हमारे लए धन प है. हम अपने संर ण के लए आप से चार ओर से (सब ओर से) ाथना करते ह. (४) सोमाना
वरणं कृणु ह
ण पते. क ीव तं य औ शजः.. (५)
हे ण प त! आप सोम य करने वाले उ शज के पु क ीवान को का शत करने क कृपा क जए. (५) बोध मना इद तु नो वृ हा भूयासु तः. शृणोतु श
आ शषम्.. (६)
हे इं ! आप वृ नामक रा स को मारने वाले ह. आप के लए ब त से लोग सोमरस तैयार करते ह. आप हमेशा हमारे मनोरथ को जानने वाले ह. आप यु म श ु का नाश करने वाले ह. आप साम यवान ह. कृपया आप हमारी तु त सु नए. (६) अ ा नो दे व स वतः जाव सावीः सौभगम्. परा ः व य हे सूय! आप हम पु पौ स हत धन ःखदायी है. आप उसे र क जए. (७) व ३ य वृषभो युवा तु व ीवो अनानतः.
सुव.. (७)
दान क जए. गरीबी बुरे सपने क तरह ाक त
सपय त.. (८)
हे इं ! आप समथ व युवा ह. आप इ छाएं पूरी करने वाले ह. आप बलवान ह. आप कसी के सामने झुकने वाले नह ह. आप कहां ह? इस समय कौन ानी आप क पूजा कर रहा है? (८) उप रे गरीणा इं
स मे च नद नाम्. धया व ो अजायत.. (९)
पवत पर और न दय के संगम पर बु कट होते ह. (९) सं ाजं चषणीना म
से क
ई ाथना को सुनने के लए बु
तोता न ं गी भः. नरं नृषाहं म
मान
ह म्.. (१०)
मनु य म इं भली कार का शत ह. वे तु त करने यो य ह. श ु ह. हम उन महान इं क तु त करते ह. (१०)
को जीतने वाले
चौथा खंड अपा
श य धसः सुद
य हो षणः. इ दो र ो यवा शरः.. (१)
हे इं ! आप सुंदर ठोड़ी वाले और सुंदर मुकुट धारण करने वाले ह. यजमान ह व दे ने म वशेष कुशल ह. आप ने ध और जौ से बनाए ए सोमरस को हण कया. (१) इमा उ वा पु वसो ऽ भ
नोनुवु गरः. गावो व सं न धेनवः.. (२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप अनेक कार के वैभव वाले ह. हमारी तु तयां बारबार आप के पास उसी तरह आना चाहती ह, जैसे ध वाली गाएं बारबार बछड़ क ओर आती ह. (२) अ ाह गोरम वत नाम व ु रपी यम्. इ था च मसो गृहे.. (३) ग तमान चं मंडल म सूय का द तेज है, ऐसा व ान् मानते ह अथात् सूय के छप जाने पर उ ह के काश से चं मा का शत होता है. (३) य द ो अनय तो महीरपो वृष तमः. त पूषाभुव सचा.. (४) हे इं ! आप ब त बरसात के प म जल वा हत करते ह, इस लोक तक प ंचाते ह तब पूषा दे वता आप के सहायक होते ह. वे पोषण करने म समथ दे वता ह. (४) गौधय त म ता
व युमाता मघोनाम्. यु ा व
रथानाम्.. (५)
पृ वी माता धनसंप ह. वे म त के रथ म जुड़ी ई ह. वे सब ओर पू जत ह. वे अ आ द उ प कर के अपने पु का पालनपोषण करती ह. (५) उप नो ह र भः सुतं या ह मदानां पते. उप नो ह र भः सुतम्.. (६) हे इं ! आप सोम के वामी ह. हम ने आप के लए सोमरस नचोड़ कर रखा है. आप अपने हजार घोड़ से (स हत या मा यम से) हमारे इस य म पधा रए. आप ज द और बारबार पधा रए. (६) इ ा हो ा असृ ते ं वृध तो अ वरे. अ छावभृथमोजसा.. (७) हे इं ! हम यजमान बारबार आप क तु त करते ह. हम अपने तेज से य ख म होने पर होने वाले नान तक बारबार आप के लए आ त दान करते ह. (७) अह म
पतु प र मेधामृत य ज ह. अह
सूय इवाज न.. (८)
हे इं ! आप पालनकता ह. हम ने आप क बु को अपनी ओर आक षत कर लया है. यानी हम ने आप क कृपा ा त कर ली है. अब हम सूय दे व के समान का शत हो गए ह. (८) रेवतीनः सधमाद इ े स तु तु ववाजाः. ुम तो या भमदे म.. (९) हे इं ! आप क कृपा से हम धनधा य संप हो कर स हो जाते ह. हमारी गाय पर भी आप क कृपा हो. वे भी अ धक अ और ध दे ने वाली हो जाएं. (९) सोमः पूषा च चेततु व ासा
सु तीनाम्. दे व ा र यो हता.. (१०)
सोम और पूषा दे वता के रथ म वराजमान ह. वे इसी रथ म बैठने यो य ह. वे सभी मनु य का उ साह बढ़ाने वाले ह. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पांचवां खंड पा तमा वो अ धस इ म भ गायत. व ासाह शत तुं म ह ं चषणीनाम्.. (१) हे याजको (य करने वालो)! आप इं क वशेष तु त कर. वे श ु का नाश करने वाले ह. सैकड़ कम करने वाले ह. वे धन दाता ह. वे सोमरस का पान करने वाले ह. (१) व इ ाय मादन
हय ाय गायत. सखायः सोमपा ने.. (२)
हे साधको! इं ह र नामक घोड़े वाले ह. वे सोमरस पीने वाले ह. आप इन इं को स करने वाली ाथनाएं गाइए. (२) वयमु वा त ददथा इ
वाय तः सखायः. क वा उ थे भजर ते.. (३)
हे इं ! हम आप को अपना म बनाना चाहते ह. हम आप के म होना चाहते ह. हम क ववंशी ह. हम आप क तु त करना अपना कत मानते ह. हम आप क तु त कर रहे ह. (३) इ ाय म ने सुतं प र ोभ तु नो गरः. अकमच तु कारवः.. (४) हे इं ! आप स वभाव वाले ह. हम आप के लए नचोड़े गए सोमरस क तु त करते ह. य करने वाल से नवेदन है क सोमरस क तु त कर. सोमरस पूजा यो य है. (४) अयं त इ
सोमो नपूतो अ ध ब ह ष. एहीम य वा पब.. (५)
हे इं ! वेद के आसन पर आप के लए शु कर के सोमरस रखा आ है. आप इस थान पर शी पधा रए. आप इस सोमरस को हण क जए. (५) सु पकृ नुमूतये सु घा मव गो हे. जु म स
व व.. (६)
हे इं ! आप सुंदर काय करने वाले ह. हम आप को अपने संर ण के लए उसी कार बुलाते ह, जस कार अ छा ध दे ने वाली गाय को पुकारा जाता है. (६) अ भ वा वृषभा सुते सुत
सृजा म पीतये. तृ पा
ुही मदम्.. (७)
हे इं ! आप इ छा पूरी करने वाले ह. हम सोम य म पीने के लए आप को सोमरस अ पत कर रहे ह. आप आनंददायी सोमरस हण क जए. (७) यइ
चमसे वा सोम मूषु ते सुतः. पबेद य वमी शषे.. (८)
हे इं ! आप के लए सोमरस ‘चमस’ और ‘ ह’ नामक बरतन म रखा आ है. आप इसे अव य हण क जए. आप ब त साम य वाले ह. (८) योगेयोगे तव तरं वाजेवाजे हवामहे. सखाय इ मूतये.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हम हर शुभ काम के शु म आप को आमं त करते ह. हर तरह के सं ाम (यु , क ) म आप को आमं त करते ह. हम अपने संर ण के लए म क तरह आप को आमं त करते ह. (९) आ वेता न षीदते म भ
गायत. सखायः तोमवाहसः.. (१०)
हे य करने वाले म ो! आप ज द ज द आओ. आ कर बैठ जाओ. आप हर कार से इं क तु त करो. (१०)
छठा खंड इद
वोजसा सुत
राधानां पते. पबा वा ३ य गवणः.. (१)
हे इं ! आप धन के वामी ह. आप ाथना करने यो य ह. हम ने ब त मेहनत से आप के लए सोमरस नचोड़ा है. आप चपूवक इसे हण क जए. (१) महाँ इ ः पुर नो म ह वम तु व
णे. ौन
थना शवः.. (२)
हे इं ! आप महान ह. आप के गुण े ह. आप व धारी ह. आप क क त वगलोक क तरह फैले. आप के बल क चार ओर शंसा हो. (२) आ तू न इ
ुम तं च ं ाभ
सं गृभाय. महाह ती द णेन.. (३)
हे इं ! आप बड़ेबड़े हाथ वाले ह. आप हमारे लए यशदायी धन दाएं हाथ म ली जए. वह धन ब त शंसनीय हो. कई लोग ारा लेने यो य हो. (३) अभ
गोप त गरे मच यथा वदे . सूनु
स य य स प तम्.. (४)
हे याजको! य वाले इं गौ के वामी ह. वे यजमान के पालनहार ह. वे य के पु व स य के र क ह. आप मन से उन क तु त क जए. (४) कया न
आ भुव ती सदावृधः सखा. कया श च या वृता.. (५)
हे इं ! आप सदा बढ़ने वाले ह. आप वल ण ह. आप कस कम, पूजा व ध और भट से हम पर कृपा करगे? आप कन द तेज से भर कर हमारे पास पधारगे? (५) यमु वः स ासाहं व ासु गी वायतम्. आ यावय यूतये.. (६) हे याजको! इं ब त से श ु का नाश करने वाले ह. सभी तु तय म इं का वणन है. आप अपने संर ण के लए उन का आ ान क जए. (६) सदस प त तं
यम
य का यम्. स न मेधामया सषम्.. (७)
हे इं ! आप अपूव, इ छत धन दे ने वाले और े ह. अपनी बु हम ने आप को ा त कया. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को बढ़ाने के लए
ये ते प था अधो दवो ये भ
मैरयः. उत ोष तु नो भुवः.. (८)
हे इं ! वगलोक म नीचे जो रा ता है, जस रा ते से आप पृ वी का संचालन करते ह, वह रा ता हमारे य थान तक प ंचता है. आप उस रा ते से हमारे य म पधार. (८) भ ं भ ं न आ भरेषमूज
शत तो. य द
मृडया स नः.. (९)
हे इं ! आप सैकड़ काम करने वाले ह. आप हम खूब सुखदायी धन व बलशाली बनाने वाला अ द जए. आप हम सुखी बनाने वाले ह. हे इं ! हम सुख द जए. (९) अ त सोमो अय सुतः पब य य म तः. उत वराजो अ ना.. (१०) हे इं ! हम ने साफ, छान कर यह सोमरस तैयार कया है. तेज वी म द्गण और अ नी दे वता इस सोमरस का पान करते ह. (१०)
सातवां खंड ईङ् खय तीरप युव इ ं जातमुपासते. व वानासः सुवीयम्.. (१) इं क माता उ म बल चाहने वाली ह. वे े काय करने क इ छु क ह. वे इं से वीरतापूण धन चाहती ह. वे कट ए इं क सेवा करती ह. (१) न क दे वा इनीम स न या योपयाम स. म
ु यं चराम स.. (२)
हे इं ! हम वेद मं के अनुसार आचरण करते ह. हम कसी को नुकसान नह प ंचाते ह. हम धम ( नयम) के व कोई काम नह करते ह. (२) दोषो आगाद् बृहद्गाय ुमद्गाम ाथवण. तु ह दे व
स वतारम्.. (३)
हे बृह साम का गायन करने वाले, काश वाले माग से जाने वाले अथववेद ा ण! आप य काय से जाने अनजाने होने वाले दोष को र करने के लए स वता दे वता क तु त क जए. (३) एषो उषा अपू ा
ु छत
या दवः. तुषे वाम ना बृहत्.. (४)
यह उषा अपूव और ब त स ता दे ने वाली है. यह वगलोक से आ कर अंधकार का नाश करती है. हे उषा के काय सहयोगी अ नीकुमारो! हम आप क वशेष तु त करते ह. (४) इ ो दधीचो अ थ भवृ ा य त कुतः. जघान नवतीनव.. (५) हे इं ! आप को कोई नह जीत सकता. आप ने दधी च क ह ड् डय से बने व न यानवे असुर का नाश कया. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से
इ े ह म य धसो व े भः सोमपव भः महाँ अ भ रोजसा.. (६) हे इं ! आप सोमरस के प म अ हण क जए व स होइए. हमारे यहां पधा रए. अपनी श से हम श मान बनाइए. श ु को जीतने क श द जए. (६) आ तू न इ
वृ ह
माकमधमा ग ह. महा मही भ
त भः.. (७)
हे इं ! आप श ुनाशक व ब त महान ह. आप हमारे पास ज द आइए. आप अपने र ा साधन के साथ शी हमारे यहां पधा रए. (७) ओज तद य त वष उभे य समवतयत्. इ
मव रोदसी.. (८)
हे इं ! आप का बल कट होने लगा है. आप वगलोक और पृ वी को चमड़े के समान फैला रहे ह. (८) अयमु ते समत स कपोत इव गभ धम्. वच त च ओहसे.. (९) हे इं ! सोमरस के पास आप उसी तरह बराबर बने रहते ह, जस तरह गभवती कबूतरी के साथ कबूतर बना रहता है. आप से नवेदन है क आप भी हमारी तु तय के साथ बने रह. (९) वात आ वातु भेषज
श भु मयोभु नो दे .
न आयू
ष ता रषत्.. (१०)
वायु हमारे पास शां त और सुखदायी ओष धयां प ंचाएं. ये ओष धयां हमारी आयु बढ़ाएं. (१०)
आठवां खंड य
र
त चेतसो व णो म ो अयमा. न कः स द यते जनः.. (१)
जस यजमान क र ा े ान वाले व ण, म तथा अयमा दे वता करते ह, उस यजमान का कोई बाल भी बांका नह कर सकता. (१) ग ो षु णो यथा पुरा योत रथया. व रव या महोनाम्.. (२) हे इं ! आप हमेशा क तरह गौ दे ने के लए पधा रए. (२) इमा त इ
का समूह, घोड़ का समूह और यशदायी धन वैभव
पृ यो घृतं हत आ शरम्. एनामृत य प युषीः.. (३)
हे इं ! आप क गौएं ब त सुंदर रंग वाली ह. ये स य और य को बढ़ाने वाली ह. ये हमारे लए घी दे ने वाले ध को टपकाती ह (दे ती ह). (३) अया धया च ग या पु णाम पु
ु त. य सोमेसोम आभुवः.. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप अनेक नाम वाले ह. अनेक लोग आप क तु त करते ह. आप जहां पधारते ह, वहां हम गौ क इ छा से आप क ाथना करते ह. (४) पावकाः नः सर वती वाजे भवा जनीवती. य ं व ु धयावसुः.. (५) सर वती प व करने वाली, पोषण दे ने वाली व बु दे वी हमारे य को सफल बनाएं. (५) क इमं ना षी वा इ
से धन दे ने वाली ह. व ा क वे
सोम य तपयात्. स नो वसू या भरात्.. (६)
मनु य म ऐसी मता कहां, जो इं को तृ त कर सक? वे हमारे य म तृ त ह तथा हम धन दान कर. (६) आ या ह सुषुमा ह त इ
सोमं पबा इमम्. एदं ब हः सदो मम.. (७)
हे इं ! आप आइए. हम ने आप के लए सोमरस नकाला है. आप उसे पी जए. हम ने आप के लए कुश का आसन बछाया है. आप उस पर वराजमान होइए. (७) म ह ीणामवर तु ु ं म याय णः. राधष व ण य.. (८) इं , अयमा और व ण—इन तीन दे वता श ु को हरा सक. (८) वावतः पु वसो वय म
का तेज वी संर ण हम मले ता क हम
णेतः. म स थातहरीणाम्.. (९)
हे इं ! आप ब त धनवान, े कम करने वाले व ह र नामक घोड़े वाले ह. हमारी र ा क रए. हम आप के अपने ह. (९)
नौवां खंड उ वा म द तु सोमाः कृणु व राधो अ वः. अव
षो ज ह.. (१)
हे इं ! सोमरस आप को आनंद दे . हे व धारी इं ! आप हम पर धन बरसाइए. आप ा ण के े षय का नाश क जए. (१) गवणः पा ह नः सुतं मधोधारा भर यसे. इ
वादात म शः.. (२)
हे इं ! आप तु त करने यो य ह. आप हमारे छाने ए इस सोमरस को पी जए. आप को सोम क धारा से स चा जाता है. हम आप क कृपा से शु कया आ अ (धन) ा त होता है. (२) सदा व इ
कृषदा उपो नु स सपयन्. न दे वो वृतः शूर इ ः.. (३)
हे यजमानो! इं हमेशा आप के पास ह. वे पूजा कए जाने पर आप के य क ओर आते ह. हम ने महान इं का वरण कया है. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ वा वश व दवः समु मव स धवः. न वा म ा त र यते.. (४) हे इं ! जैसे न दयां समु म मलती ह, वैसे ही सोमरस आप म मलता है. आप से बढ़ कर कोई महान नह है. (४) इ
मद्गा थनो बृह द मक भर कणः. इ ं वाणीरनूषत.. (५)
सामगान गाते ए उद्गाता (साम गाने वाले पुरो हत) बृह साम गा कर इं को स करते ह. पूजा करने वाले मनु य तो से और हम यजमान मं के ारा उ ह स करते ह. (५) इ
इषे ददातु न ऋभु णमृभु
र यम्. वाजी ददातु वा जनम्.. (६)
हम जस इं क तु त कर रहे ह, वे हम े धन दान कर. इं हम उन ऋभु दे वता को दान कर, जो सोमरस पीने से अमर हो गए. बलवान इं ! हम बलवान छोटे भाई द ता क हम अ ा त कर सक. (६) इ ो अ मह यमभी षदप चु यवत्. स ह थरो वचष णः.. (७) हे इं ! आप थर ह. आप सारे संसार को दे खने वाले व ानी ह. आप शी ही भय को र करने वाले तो ह ही, साथ ही भय को हमेशा के लए हटा दे ते ह. (७) इमा उ वा सुतेसुते न
ते गवणो गरः. गावो व सं न धेनवः.. (८)
हे इं ! आप ऋचा (मं ) से तु त करने यो य ह. येक य म हमारी ाथनाएं आप के पास वैसे ही ज द प च ं ती ह, जैसे धा गाएं अपने बछड़ के पास प ंचती ह. (८) इ ा नु पूषणा वय
स याय व तये. वेम वाजसातये.. (९)
इं और पूषा दे वता को अपने क याण के लए बुलाते ह. हम म ता के लए उ ह बुलाते ह. हम अ व जल क ा त के लए इन दोन दे वता को बुलाते ह. (९) न कइ
व
रं न यायो अ त वृ हन्. न येवं यथा वम्.. (१०)
हे इं ! आप वृ नामक असुर को मारने वाले ह. इं लोक म भी आप से े कोई नह है. आप जैसा महान कोई सरा नह है. (१०)
दसवां खंड तर ण वो जनानां दं वाज य गोमतः. समानमु
श
सषम्.. (१)
हे यजमानो! इं हमारा बेड़ा पार लगाने वाले ह. वे हमारे श ु को भय दखाने वाले ह. वे पशु धन दे ने वाले ह. वे अ धन दे ने वाले ह. म उन क सदा तु त करता ं. (१) असृ म द ते गरः त वामुदहासत. सजोषा वृषभं प तम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप के लए हम ने तु तयां रची ह. आप बलशाली ह. सब का पालनपोषण करने वाले ह. वे तु तयां आप तक प ंच . सोम पीने वाले इं ने उन का भी सेवन कया. (२) सुनीथो घा स म य यं म तो यमयमा. म ा पा य हः.. (३) हे इं ! ोह ( े ष) न करने वाले म त्, अयमा और म दे वता जस क र ा करते ह, वह यजमान न य ही अ छ राह पर चलने वाला होता है. (३) य डा व
य
थरे य पशाने पराभृतम्. वसु पाह तदा भर.. (४)
हे इं ! आप के पास जो अचंचल और दान क जए. (४) ुतं वो वृ ह तमं
थर धन है, ऐसा ही पु षाथ वाला धन हम
शध चषणीनाम्. आ शषे राधसे महे.. (५)
वृ ासुर को मारने वाले बल क म हमा सब ने सुनी है. मनु य को अ छा धन ा त कराने क इ छा से वह बल आप को दे ता ं. (५) अरं त इ
वसे गमेम शूर वावतः. अरं
हे इं ! आप वीर ह. आप क स दे वता क स भी हम ा त हो. (६)
श
परेम ण.. (६)
हम ने कई बार सुनी है. आप जैसे
धानाव तं कर भणमपूपव तमु थनम्. इ
े
सरे
ातजुष व नः.. (७)
हे इं ! दही और भुजे ए स ु वाले य के पुरोडाश ( साद) क ह व हम मं के साथ सम पत कर रहे ह. आप इस सोम को ातःकाल हण क जए. (७) अपां फेनेन नमुचेः शर इ ोदवतयः. व ा यदजय पृधः.. (८) जब डाह करने वाली रा स क सारी सेना को इं ने हरा दया तब आप ने जल के झाग से नमु च रा स का सर तोड़ (काट) दया. (८) इमे त इ
सोमाः सुतासो ये च सो वाः. तेषां म व भूवसो.. (९)
हे इं ! आप के लए यह सोमरस नचोड़ व छान कर तैयार कया है. आप ब त धनवान ह. आप सोमरस से स होने क कृपा कर. (९) तु य
सुतासः सोमाः तीण ब ह वभावसो. तोतृ य इ
मृडय.. (१०)
हे इं ! आप तेज वी व धनवान ह. आसन पर शु सोमरस रखा आ है. आप कुशासन पर बै ठए. सोमरस पी जए. तु त करने वाल को सुख (अपनी कृपा) द जए. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यारहवां खंड आ व इ ं कृ व यथा वाजय तः शत तुम्. म
ह
स चइ
भः.. (१)
हे यजमानो! जैसे अ चाहने वाले खेत को जल से स चते ह, वैसे ही बल (परा म) चाहने वाले हम पूजनीय इं को सोमरस से स चते ह. (१) अत
द
न उपा या ह शतवाजया. इषा सह वाजया.. (२)
हे इं ! आप सैकड़ कार के बल से पूण हो कर हमारे य म पधा रए. आप हजार कार के अ से यु हो कर हमारे य म पधा रए. आप अनेक रस ले कर हमारे य म पधा रए. (२) आ बु दं वृ हा ददे जातः पृ छा मातरम्. क उ ाः के ह शृ वरे.. (३) हे यजमानो! ज म लेते ही हाथ म बाण ले कर वृ ासुर को मारने वाले इं ने अपनी मां से पूछा क अ य स वीर कौनकौन से ह. (३) बृब
थ
हवामहे सृ कर नमूतये. साधः कृ व तमवसे.. (४)
लोक क र ा और पालन के लए हम साधन स हत इं को आमं त करते ह. इं क ब त तु त क जाती है. (४) ऋजुनीती नो व णो म ो नय त व ान्. अयमा दे वैः सजोषाः.. (५) म और व ण दे वता हम सरल ग त से याय के उ म पथ पर ले जाते ह. अ य दे वता के साथ अयमा दे वता भी सरल ग त से हम उस थान पर प ंचाएं. (५) रा दहेव य सतो ऽ ण सुर श तत्. व भानुं व थातनत्.. (६) र आकाश से पास आती उषा काश फैलाने वाली है, जस से सारा जग का शत हो जाता है. (६) आ नो म ाव णा घृतैग ू तमु तम्. म वा रजा
स सु तू.. (७)
म और व ण दे वता अ छे काम करने वाले ह. ये दे वता हमारी गाय के समूह को घी, ध से स च. ये दे वता परलोक को भी मधुर रस (अमृत) से स च. (७) उ
ये सूनवो गरः का ा य े व नत. वा ा अ भ ु यातवे.. (८)
स गजना करते ए म त् दे वता य म जल के समान फैलते ह. जल का व तार करते ह. उस जल को पीने के लए रंभाती ई गाय के समूह को घुटन तक के पानी से जाना पड़ता है. (८) इदं व णु व च मे ेधा न दधे पदम्. समूढम य पा
सुले.. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व णु के वामन अवतार ने तीन पैर से व के नापे गए थान म सारा जग समाया. (९)
को नाप लया. उन के धूल से भरे चरण
बारहवां खंड अती ह म युषा वण
सुषुवा
समुपेरय. अ य रातौ सुतं पब.. (१)
हे इं ! जो यजमान ो धत हो कर सोमरस नचोड़े, आप उसे वीकार मत क जए. जो अ छे व ध वधान से सोमरस नचोड़े, आप उसी के य म सोमरस हण क जए. (१) क
चेतसे महे वचो दे वाय श यते. त दद् य य वधनम्.. (२)
हे इं ! आप महान ह. आप क कृपा से हमारी मामूली ाथना भी शंसा पाती है. हमारी ये ाथनाएं भी आप का गुणगान करती ह. अतः यजमान पर आप क कृपा होती है. (२) उ थं च न श यमानं नागो र यरा चकेत. न गाय ं गीयमानम्.. (३) तु त न करने वाले इं के श ु ह. इं यजमान ारा पढ़े गए तो को अ छ तरह जानते ह. इं पुरो हत के गाए गए साम को भी जानते व समझते ह. हम इं क तु त करते ह. (३) इ
उ थे भम द ो वाजानां च वाजप तः. ह रवां सुताना
सखा.. (४)
हे इं ! आप श शा लय म सब से यादा श शाली ह. आप ह र नामक घोड़े वाले ह. आप ाथना से ब त स होते ह. आप सोमरस से म के समान नेह रखने क कृपा कर. (४) आ या प नः सुतं वाजे भमा णीयथाः. महाँ इव युवजा नः.. (५) हे इं ! जस कार युवा ी (प नी) वाला पु ष कसी सरी ी पर नजर नह डालता, उसी कार आप भी और क ह व पर नजर मत डा लए (मत ललचाइए). आप हमारे ही सोम य म पधार कर ह व हण करने क कृपा कर. (५) कदा वसो तो
हयत आ अव मशा ध ाः. द घ
सुतं वाता याय.. (६)
हे इं ! आप सब ओर ापक ह. बनाई गई नहर म जल रोकने क तरह हम सोमरस तैयार कर के आप को भट करने के लए कब रोक. (६) ा णा द
राधसः पबा सोममृतू
रनु. तवेद
स यम तृतम्.. (७)
हे इं ! ा ण यजमान से सोमरस पी जए. आप मौसम के अनुसार सोमरस पी जए. आप का और हमारा अटू ट नाता है. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वयं घा ते अ प म स तोतार इ
गवणः. वं नो ज व सोमपाः.. (८)
हे इं ! हम आप के शंसक व पूजक ह. आप सोम पान करने वाले ह. आप हम संतु (तृ त) दान क जए. (८) ए
पृ ु कासु च ृ णं तनूषु धे ह नः. स ा ज
पौ
यम्.. (९)
हे इं ! आप ब त श मान ह. आप हमारे अंग म श द जए, हम ऐसी श द जए जस से हम अपने सारे श ु को एक साथ जीत सक. (९) एवा
स वीरयुरेवा शूर उत थरः. एवा ते रा यं मनः.. (१०)
हे इं ! आप वीर व अ डग ह. आप वीर श ु का भी नाश कर सकते ह. आप धैयवान ह. आप का मन तु तय से आराधना करने यो य है. (१०)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तीसरा अ याय पहला खंड अ भ वा शूर नोनुमो ऽ धा इव धेनवः. ईशानम य जगतः व शमीशान म त थुषः.. (१) हे इं ! आप इस जग के व जड़चेतन के वामी ह. आप सब कुछ दे ख सकते ह. जैसे थन म ध लए गाएं बछड़ के पास जाने के लए उतावली रहती ह, वैसे ही हम उतावले हो कर आप को णाम करते ह. (१) वा म हवामहे सातौ वाज य कारवः. वां वृ े व स प त नर वां का ा ववतः.. (२) हे इं ! तु त करने वाले यजमान ह व दान के लए आप को आमं त करते ह. आप स य (या स जन ) के पालनहार ह. हम तथा सरे सभी श ु या घोड़ से संबं धत यु म मदद के लए आप को ही पुकारते ह. (२) अ भ वः सुराधस म मच यथा वदे . यो ज रतृ यो मघवा पु वसुः सह ेणेव श त.. (३) हे यजमानो! इं पशु आ द ब त कार के धन वाले ह. वे अपनी तु त करने वाले को ब वध धन दे ते ह. आप े धन दे ने वाले इं क हर कार से पूजाअचना कर. (३) तं वो द ममृतीषहं वसोम दानम धसः. अ भ व सं न वसरेषु धेनव इ ं गी भनवामहे.. (४) हे यजमानो! जैसे गाएं बछड़ को दे ख कर खुशी से रंभाती ह, वैसे ही आप भी सोमरस पीने से स इं के लए तु त गाइए. वे श ु ( ःख ) का नाश करने वाले ह. (४) तरो भव वद सु म सबाध ऊतये. बृहद्गाय तः सुतसोमे अ वरे वे भरं न का रणम्.. (५) हे यजमानो! इं के ब त तेज ग त वाले घोड़े ह. वे इं ब त धनदाता ह. वे बाधा से हमारी र ा करते ह. हम बृह साम गाते ए उन को उसी कार र ा के लए बुलाते ह, जैसे ब चे अपनी र ा के लए अपने माता पता को बुलाते ह. (५) तर ण र सषास त वाजं पुर या युजा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ व इ ं पु
तं नमे गरा ने म त ेव सु वम्.. (६)
इं तारनहार ह. हम बु से अ ा त करना चाहते ह. जैसे बढ़ई अपनी कारीगरी से लकड़ी को न कर के प हए को गाड़ी के अनुकूल कर लेता है, वैसे ही हम इं दे व को अपनी तु तय से अपने अनुकूल करना चाहते ह. (६) पबा सुत य र सनो म वा न इ गोमतः. आ पन बो ध सधमा े वृधे ३ ऽ मां अव तु ते धयः.. (७) हे इं ! आप गाय का ध मला कर तैयार कए ए रसीले सोमरस को पी जए. उसे पी कर आप स होइए. आप हम धन दे ने वाले बंधु ब नए. आप हम ग त क राह दखाइए. आप क बु हम यजमान क र ा करे. (७) व े ह चेरवे वदा भगं वसु ये. उ ावृष व मघवन् ग व य उ द ा म ये.. (८) हे इं ! आप मुझे धन दे ने के लए आइए. अ छे आचार वचार वाले हम लोग को राह दखाइए व धन द जए. हम गाय के इ छु क ह. हम गोधन द जए. हम घोड़ के इ छु क ह. हम अ धन द जए. (८) न ह व रमं च न व स ः प रम सते. अ माकम म तः सुते सचा व े पब तु का मनः.. (९) हे म द्गणो! व स ऋ ष आप म से छोट को भी छोड़ कर तु त नह करते ह अथात् छोट क भी तु त करते ह. आज हमारे इस सोम य म आप सभी इकट् ठे हो कर सोमरस पी जए. (९) मा चद य श सत सखायो मा रष यत. इ म तोता वृषण सचा सुते मु था च श
सत.. (१०)
हे यजमानो! आप इं के अलावा कसी अ य दे व क तु त मत करो. बेकार मेहनत मत करो. एक साथ सोम य म बलवान इं क ही तु त करो. उ ह के बारे म ाथना को बारबार उचारो. (१०)
सरा खंड न क ं कमणा नश कार सदावृधम्. इ ं न य ै व गूतमृ वसमधृ ं धृ णुमोजसा.. (१) हे यजमानो! इं सदा उ तशील व समृ ह. वे सब से पू जत और महान बलशाली ह. कसी से नह दबने वाले व श ुनाशक ह. जो य से इं को अपने अनुकूल बना लेता है, उसे कोई भी नह दबा सकता है. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ऋते चद भ षः पुरा ज ु य आतृदः. स धाता स धं मघवा पु वसु न कता व त पुनः.. (२) हे इं ! आप गले क ना ड़य को खून नकलने पर भी बना जोड़ने क साम ी के ही जोड़ सकते ह. इं ब त वैभव वाले ह. वे कटे ए भाग को फर से जोड़ सकते ह. (२) आ वा सह मा शतं यु ा रथे हर यये. युजो हरय इ के शनो वह तु सोमपीतये.. (३) हे इं ! आप के घोड़े मं के भाव से रथ म जुत जाते ह. आप के घोड़ क गरदन पर लंबेलंबे बाल ह. वे सैकड़ घोड़े आप के सुनहरे रथ म जुत जाएं और सोमपान के लए आप को य म ले आएं, यह अनुरोध है. (३) आ म ै र ह र भया ह मयूररोम भः. मा वा के च येमु र पा शनो ऽ त ध वेव तां इ ह.. (४) हे इं ! जैसे राहगीर शी ही रे ग तान को पार कर लेता है, वैसे ही आप भी मोर जैसे रोम वाले घोड़ से यहां आइए. जाल फैलाने वाले शकारी आप क राह म रोड़ा न अटका सक. (४) वम श सषो दे वः श व म यम्. न वद यो मघव त म डते वी म ते वचः.. (५) हे इं ! आप बलवान व काश वाले ह. आप अपने पूजक क शंसा करते ह. आप धनवान ह. आप के अलावा कोई सुख दे ने वाला नह है. इसी कारण म आप क तु त करता ं. (५) व म यशा अ यृजीषी शवस प तः. वं वृ ा ण ह य ती येक इ पुवनु
षणीधृ तः.. (६)
हे इं ! आप श शाली ह. आप सोमरस पीने वाले और यशवान ह. आप यजमान के हत के लए बड़े से बड़े श ु को भी अकेले ही न कर सकते ह. (६) इ इ
म े वतातय इ ं य य वरे. समीके व ननो हवामह इ ं धन य सातये.. (७)
दे व के लए कए जाने वाले य म हम इं को ही आमं त करते ह. य के शु और समापन दोन ही समय हम इं को आमं त करते ह. धन लाभ के लए हम इं को ही आमं त करते ह. आप शी पधा रए. (७) इमा उ वा पु वसो गरो वध तु या मम. पावकवणाः शुचयो वप तो ऽ भ तोमैरनूषत.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप धनवान ह. हमारी ाथनाएं आप का यश बढ़ाएं. यजमान अ न के समान प व , तेज वी व व ान् ह. वे ाथना से बारबार आप क तु त करते ह. (८) उ ये मधुम मा गर तोमास ईरते. स ा जतो धनसा अ तोतयो वाजय तो रथा इव.. (९) हे इं ! आप हमेशा श ु को जीतने वाले व धन दे ने वाले ह. आप का दया संर ण कभी ख म नह होता. बलशाली रथ के समान ये ाथनाएं आप क ओर बढ़ रही ह. ये ाथनाएं मधुर और े वचन से भरी ई ह. (९) यथा गौरो अपा कृतं तृ य े यवे रणम्. आ प वे नः प वे तूयमा ग ह क वेषु सु सचा पब.. (१०) हे इं ! जैसे यासे गौर हरण पानी से भरे ए तालाब के पास जाते ह, उसी कार आप हमारी ाथना से भरेपूरे य म पधा रए. क व के य म ज द से ज द आइए. सोमरस पी कर स होइए. (१०)
तीसरा खंड श यू ३ षु शचीपत इ व ा भ त भः. भगं न ह वा यशसं वसु वदमनु शूर चराम स.. (१) हे इं ! आप शची के प त ह. आप परा मी ह. आप हम संर ण के साथसाथ चाहे गए वरदान द जए तथा सौभा य जैसा यश वी धन द जए. हम आप क आराधना करते ह. (१) या इ भुज आभरः ववा असुरे यः. तोतार म मघव य वधय ये च वे वृ ब हषः.. (२) हे इं ! आप आ म श वाले ह. आप ने बलवान रा स से भोग के साधन जीते ह. इस धन से आप अपने पूजक को संर ण द जए. जो आप को बारबार आमं त या याद करते ह, आप उ ह धनवान बनाइए. (२) म ाय ाय णे सच यमृतावसो. व ये ३ व णे छ ं वचः तो
राजसु गायत.. (३)
हे य करने वालो! आप का धन आप के य ह. आप म , व ण और अयमा दे वता के लए छं दब ाथनाएं उन के य शाला म वराजमान हो जाने पर गाइए. (३) अ भ वा पूवपीतय इ तोमे भरायवः. समीचीनास ऋभवः सम वर ुदा गृण त पू म्.. (४) हे इं ! ाथना करने वाले यजमान सब से पहले आप सभी दे वता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से तो के
मा यम से सोमरस पीने का नवेदन करते ह. सब ने इकट् ठे हो कर आप क आराधना क . के पु म त् ने भी आ द पु ष (पहले पु ष) के प म आप क तु त क . (४) व इ ाय बृहते म तो ाचत. वृ हन त वृ हा शत तुव ेण शतपवणा.. (५) हे यजमानो! आप अपने इं के लए तु त करो. इं वृ ासुर के नाशक ह. वे सौ धार वाले व से रा स (क ) का नाश कर. (५) बृह द ाय गायत म तो वृ ह तमम्. येन यो तरजनय ृतावृधो दे वं दे वाय जागृ व.. (६) हे याजको! इं के लए बृह साम तो का पाठ क जए. य को बढ़ाने वाले ऋ षय ने उस के सहयोग से इं के लए द यो त पैदा क है. (६) इ तुं न आ भर पता पु े यो यथा. श ा णो अ म पु त याम न जीवा यो तरशीम ह.. (७) हे इं ! हम य काय करने क श ा द जए, जैसे पता अपने पु को श ा दे ता है. यानी हम श ा पी धन द जए. हम त दन सुबह सूय के दशन कर. (७) मा न इ परा वृण भवा नः सधमा े. वं न ऊती व म आ यं मा न इ परावृणक्.. (८) हे इं ! आप हम य करने वाल को कभी मत छो ड़ए. आप हमारे संर क ह. आप हमारे बंधु ह. आप हम अपनी शरण म र खए. आप कभी अपनेआप से हम र मत क रए. (८) वयं घ वा सुताव त आपो न वृ ब हषः. पव य वणेषु वृ ह प र तोतार आसते.. (९) हे इं ! आप वृ ासुर के नाशक ह. जैसे जल नीचे क ओर बहता है, वैसे ही सोमरस के साथ हम आप को नीचे झुक कर नम कार करते ह. प व य म सभी यजमान कुश के आसन पर बैठ कर आप क आराधना करते ह. (९) य द ना षी वा ओजो नृ णं च कृ षु. य ा प च तीनां ु नमा भर स ा व ा न पौ
या.. (१०)
हे इं ! मनु य म जो धन व पांच भू मय का चमकता आ अ द जए. हम आप सब कार के बल (श ) भी द जए. (१०)
चौथा खंड ******ebook converter DEMO Watermarks*******
है, वह सब हम
स य म था वृषेद स वृषजू तन ऽ वता. वृषा शृ वषे पराव त वृषो अवाव त ुतः.. (१) हे इं ! न य ही आप वीर व मनोकामना पूरी करने वाले ह. सोम य करने वाले यजमान ने अपनी र ा के लए आप को बुलाया है. आप हमारी र ा क जए. आप क स पास भी है और ब त र र तक भी फैली ई है. (१) य छ ा स पराव त यदवाव त वृ हन्. अत वा गी भ ुग द के श भः सुतावाँ आ ववास त.. (२) हे इं ! आप वृ ासुर नाशक ह. आप हमारे पास ह चाहे र, पर हम सोम य करने वाले यजमान आप को आमं त करते ह. हम गरदन पर सुंदर बाल वाले घोड़ के समान अपनी े तु तय से आप को बुलाते ह. (२) अ भ वो वीरम धसो मदे षु गाय गरा महा वचेतसम्. इ ं नाम ु य शा कनं वचो यथा.. (३) हे यजमानो! आप अपने हत के लए इं क तु त करो. वे रा स को जीतने वाले ह. वे सोमरस से खुश होने वाले ह. वे यश वी, वीर व बु मान ह. आप ऐसे इं क जैसे भी हो वशेष तु त करो. (३) इ धातु शरणं व थ व तये. छ दय छ मघव य म ं च यावया द ुमे यः.. (४) हे इं ! आप धनवान यजमान को और मुझे तीन ऋतु म सुखदायी क याणकारी तीन मं जला घर द जए. इ ह पाने के लए हम श का योग न करना पड़े. (४) ाय त इव सूय व े द य भ तः. वसू न जातो ज नमा योजसा त भागं न द धमः.. (५) हे यजमानो! जैसे सारी करण सूय के सहारे रहती ह, वैसे ही सारा संसार इं के सहारे है. हम भी उ ह के सहारे ह. जैसे पता के धन म संतान क भागीदारी होती है, वैसे ही इं के धन म हमारी भागीदारी हो. इं उ प ए और उ प होने वाल को बल से भाग दान करते ह. (५) न सीमदे व आप त दषं द घायो म यः. एत वा च एतशो युयोजत इ ो हरी युयोजते.. (६) हे इं ! आप चरायु ह. आप के त ा के बना मनु य उस े अ को नह पा सकता है. जो इं को पाने के लए अपनी तु तय के घोड़े नह जोड़ता है, इं भी उस के य म जाने के लए ह र तथा अ य घोड़ को नह जोड़ते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ नो व ासु ह म सम सु भूषत. उप ा ण सवना न वृ ह परम या ऋचीषम.. (७) हे इं ! यु म सहायता के लए आप को बुलाया जाता है. आप हमारी शंसा, ाथना से सुशो भत होते ह. आप वृ ासुर नाशक ह. आप के धनुष क यंचा अ वनाशी है. आप तीन समय क सं या क ाथना को शो भत क जए. (७) तवे द ावमं वसु वं पु य स म यमम्. स ा व य परम य राज स न क ् वा गोषु वृ वते.. (८) हे इं ! आप न न, म यम और उ म सभी तरह के धन के अकेले वामी ह. आप जब गाय आ द अपने यजमान को दान करना चाहते ह तो आप को कोई भी नह रोक सकता है. (८) वेयथ वेद स पु ा च ते मनः. अल ष यु म खजकृ पुरंदर गाय ा अगा सषुः.. (९) हे इं ! आप पहले कहां चले गए थे? आप इस समय कहां ह? आप ब त जगह रमते (घूमते) रहते ह. आप रा स का नाश करने वाले ह. हमारे यजमान ाथना गाने म कुशल ह. वे आप क तु त करते ह. (९) वयमेन मदा ो ऽ पीपेमेह व णम्. त मा उ अ सवने सुतं भरा नूनं भूषत ुते.. (१०) हे इं ! हम ने कल भी आप को सोमरस भट कया था. हम आज भी य म आप को सोमरस भट करते ह. हे यजमानो! आप तो गा कर इं क शोभा बढ़ाइए. (१०)
पांचवां खंड यो राजा चषणीनां याता रथे भर गुः. व ासां त ता पृतनानां ये ं यो वृ हा गृणे.. (१) हे इं ! आप मनु य के राजा ह. आप के रथ क ग त क कोई भी बराबरी नह कर सकता है. आप श ु क सेना और वृ ासुर को मारने वाले ह. हम सव े इं क तु त करते ह. (१) यत इ भयामहे ततो नो अभयं कृ ध. मघव छ ध तव त ऊतये व षो व मृधो ज ह.. (२) हे इं ! जस से हम डर आप उसी से हम नडर बनाइए. हम अभय दान द जए. हमारे श ु को और हम मारने वाल को आप न क जए. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वा तो पते ुवा थूणा स सो यानाम्. सः पुरां भे ा श तीना म ो मुनीना सखा.. (३) हे इं ! आप घर के वामी ह. हमारे घर के खंभे व सोम य करने वाल का शरीर मजबूत हो. सोम पीने वाले रा स क ब त सी नग रयां उजाड़ने वाले इं हम ऋ षय के म ह . (३) व महाँ अ स सूय बडा द य महाँ अ स. मह ते सतो म हमा प न म म ा दे व महाँ अ स.. (४) हे इं ! आप ेरणा दे ने वाले, ब त तेज वी, अ द त के पु व ब त बलशाली ह. हम सच कहते ह क आप ब त महान ह. (४) अ ी रथी सु प इद्गोमान् य द ते सखा. ा भाजा वयसा सचते सदा च ै या त सभामुप.. (५) हे इं ! जो आप को अपना म बना लेता है, वह ब त सुंदर प वाला हो जाता है. वह ब त घोड़ वाला हो जाता है. वह ब त रथ वाला हो जाता है. वह ब त गाय वाला हो जाता है. वह ब त अ , धन वाला हो जाता है. वह सदा अ छे व और आभूषण से तैयार हो कर सभा म जाता है. (५) यद् ाव इ न वा व
ते शत सह
शतं भूमी त युः. सूया अनु न जातम रोदसी.. (६)
हे इं ! वगलोक सौ गुना हो जाए तो भी आप क बराबरी नह कर सकता. भू मलोक (पृ वीलोक) सौ गुना हो जाए तो भी आप के समान नह हो सकता. हे व धारी इं ! सौ सूय भी आप को का शत नह कर सकते. बाद म होने वाले भी आप क बराबरी नह कर सकते यानी आप के सामने कोई कुछ नह है. आप ही सब से बड़े ह. (६) यद ागपागुदङ् य वा यसे नृ भः. समा पु नृषूतो अ यानवे ऽ स शध तुवशे.. (७) हे इं ! पूव, प म, उ र और द ण सभी दशा लए बुलाते ह. आप श ु आप को बुलाया जाता है. (७)
से मनु य आप को सहायता के
का नाश करने वाले ह. अनु और तुवश के लए तु तय से
क त म वा वसवा म य दधष त. ा ह ते मघव पाय द व वाजी वाज
सषास त.. (८)
हे इं ! आप सब को बसाने वाले ह. आप को कौन डरा सकता है. आप के त जो यजमान ालु होता है, वह ःख से पार होने पर भी ह व दे ने क इ छा रखता है. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ा नी अपा दयं पूवागा प ती यः. ह वा शरो ज या रारप चरत्
श पदा य मीत्.. (९)
हे इं ! हे अ न! बना पैर वाली उषा पैर वाली जनता से पहले आ जाती ह. सर न होने पर भी जीभ से सब को ेरणा दे ती ई एक दन म तीस मु त को पार कर जाती ह. (९) इ नेद य ए द ह मतमेधा भ त भः. आ शंतम शंतमा भर भ भरा वापे वा प भः.. (१०) हे इं ! हमारी य शाला ब त नजद क (पास) है. आप बु मान और र ा क इ छा रखने वाल के साथ पधा रए. आप ब त सुखदायी ह. आप ब त शां तदायी व बंधु ह. आप अव य पधा रए. (१०)
छठा खंड इत ऊती वो अजरं हेतारम हतम्. आशुं जेतार होतार रथीतममतूत तु यावृधम्.. (१) हे इं ! आप बूढ़े नह होते. आप श ु को मारने वाले ह. आप ज द वजय पाने वाले ह. आप ब त तेज ग त वाले ह. आप ज द य म जाने वाले ह. आप अ छे रथ चलाने वाले ह. आप जल को बढ़ाने वाले ह. हे यजमानो! ऐसे इं को आप अपनी र ा के लए बुलाइए. (१) मो षु वा वाघत नारे अ म रीरमन्. आरा ा ा सधमादं न आ गहीह वा स ुप ु ध.. (२) हे इं ! य करने वाले भी आप को हम से र न कर सक. आप र रह कर भी हमारे पास ज द आइए. आप यह रह कर हमारी तु तयां सु नए. (२) सुनोता सोमपा ने सोम म ाय व णे. पचता प रवसे कृणु व म पृण पृणते मयः.. (३) हे य करने वालो! व धारी इं के लए सोमरस नचोड़ो. इं को स करने के लए पुरोडाश (भोग) पकाइए (बनाइए). यजमान क स ता के लए इं वयं ह व हण करते ह. (३) यः स ाहा वचष ण र ं त महे वयम्. सह म यो तु वनृ ण स पते भवा सम सु नो वृधे.. (४) हे इं ! आप श ु का वध करने वाले ह. आप सब को दे खने वाले ह. हम तु तय से आप को बुलाते ह. आप ोध वाले, ब त धन वाले व स जन के पालक ह. आप यु म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारा यश बढ़ाइए. (४) शची भनः शचीवसू दवा न ं दश यतम्. मा वा रा त पदस कदाचना म ा तः कदाचन.. (५) हे अ नीकुमारो! आप अपने कम को ही धन मानने वाले ह. आप अपनी श से दनरात हमारी इ छाएं पूरी क जए. आप का दान कभी कम नह होता. आप के ही दान क तरह हमारे दान भी कभी कम न ह . (५) यदा कदा च मीढु षे तोता जरेत म यः. आ द दे त व णं वपा गरा ध ारं व तानाम्.. (६) जब कभी ह व दाता यजमान के लए मनु य ाथना करे तब वशेष र ा करने वाली ाथना से व ण दे वता क तु त करे. वे व ण पाप को र करने वाले व अनेक कार के कम को धारण करने वाले ह. (६) पा ह गा अ धसो मद इ ाय मे या तथे. यः सं म ो हय य हर यय इ ो व ी हर ययः.. (७) हे इं ! आप य म मेहमान बनने वाले ह. आप सोमरस पी कर, स हो कर हमारी गाय क र ा क जए. आप ह र नामक घोड़े को रथ म जोतते ह. आप व धारण करने वाले, सुंदर, हत साधने वाले और सुनहरे रथ वाले ह. (७) उभय शृणव च न इ ो अवा गदं वचः. स ा या मघवा सोमपीतये धया श व आ गमत्.. (८) हे इं ! आप हमारे दोन ही कार के वचन पास आ कर सु नए. सब क ाथना सुन कर यहां पधा रए और स होइए. हे इं ! आप बलवान व धनवान ह. सोमपान के लए आप यहां पधा रए. (८) महे च न वा वः परा शु काय द यसे. न सह ाय नायुताय व वो न शताय शतामघ.. (९) हे इं ! आप व धारण करने वाले ह. ब त से धन के बदले भी म आप को नह छोड़ सकता ं. हजार के बदले भी आप को नह बेचा जा सकता. अपार धन के बदले भी आप को नह बेचा जा सकता. (९) व याँ इ ा स मे पतु त ातुरभु तः. माता च मे छदयथः समा वसो वसु वनाय राधसे.. (१०) हे इं ! आप हमारे पता से भी यादा धन वाले ह. पालन न करने वाले हमारे भाई से भी यादा धनवान ह. आप हमारी मां के समान ह. मुझे धनवान, अ वान और यशवान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बनाइए. (१०)
सातवां खंड इम इ ाय सु वरे सोमासो द या शरः. ताँ आ मदाय व ह त पीतये ह र यां या ोक आ.. (१) हे इं ! आप व धारण करने वाले ह. आप दही मला कर तैयार कए गए इस सोमरस को पीने के लए अपने घोड़ से य मंडप म पधा रए. (१) इम इ मदाय ते सोमा क उ थनः. मधोः पपान उप नो गरः शृणु रा व तो ाय गवणः.. (२) हे इं ! आप क स ता के लए खास तौर से साफ कर के मधुर सोमरस को तैयार कया है. आप हमारी ाथना क वाणी को सु नए. आप हम मनचाहे फल द जए. (२) आ वा ३ इ ं धेनु
सब घा वे गाय वेपसम्. सु घाम या मषमु धारामरङ् कृतम्.. (३)
हे इं ! आप उस गाय के समान शोभा पा रहे ह जो ब त ध दे ने वाली है, जस क चाल शंसा करने यो य है, जो आसानी से हने यो य है, जो वशेष ल ण वाली है, जस के तन से ध क कई धाराएं बहती ह. आप शी पधा रए. (३) न वा बृह तो अ यो वर त इ वीडवः. य छ स तुवते मावते वसु न क दा मना त ते.. (४) हे इं ! बड़ेबड़े पवत भी आप को नह डगा सकते. आप हम पूजक को जो धन दे ते ह, उस धन को कोई नह रोक सकता है. (४) क वेद सुते सचा पब तं क यो दधे. अयं यः पुरो व भन योजसा म दानः श य धसः.. (५) हे इं ! सोम य म एक ही जगह सोमरस पीने वाले आप को कौन (नह ) जानता है. आप कतना अ धारण करने वाले ह, यह भी कौन जानता है? सोमरस पी कर स होने वाले इं अपने बल से श ु के नगर को न कर दे ते ह. (५) य द शासो अ तं यावया सदस प र. अ माकम शुं मघव पु पृहं वस े अ ध बहय.. (६) हे इं ! आप य म व न डालने वाल को दं ड दे ते ह. आप धनवान ह. आप हमारे घर म सोमरस बढ़ाइए. (६) व ा नो दै ं वचः पज यो
ण प तः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को दं ड द जए. आप
पु ै ातृ भर द तनु पातु नो
रं ामणं वचः.. (७)
व ा दे वता के श पी (कारीगर) ह. पज य दे व बरसात के वामी ह. ण पत दे वता अपने बेट और भाइय के साथ हमारी र ा कर. दे वता क माता अ द त हमारी र ा कर. अ द त ःख र करने वाली और र ा करने वाली हमारी तु तय से हम पर कृपा कर. (७) कदा चन तरीर स ने स स दाशुषे. उपोपे ु मघव भूय इ ु ते दानं दे व य पृ यते.. (८) हे इं ! आप अ हसक ह. आप ह व दे ने वाले यजमान पर कृपा रखते ह. आप काशमान ह. आप क कृपा हम ा त होती है. (८) युङ् वा ह वृ ह तम हरी इ परावतः. अवाचीनो मघव सोमपीतय उ ऋ वे भरा ग ह.. (९) हे इं ! आप वृ ासुर का नाश करने वाले ह. आप अपने ह र नामक घोड़े को रथ म जो तए. आप धनवान व बलवान ह. आप सुंदर म द्गण के साथ वगलोक से यहां पधा रए. (९) वा मदा ो नरो ऽ पी य व भूणयः. स इ तोमवाहस इह ु युप वसरमा ग ह.. (१०) हे इं ! आप व धारण करने वाले ह. य करने वाले यजमान ने आप को आज भी और पहले भी सोमरस भट कया है. आप य मंडप म पधा रए. तो पढ़ने वाले यजमान के तो सु नए. (१०)
आठवां खंड यु अद याय यू ३ छ ती हता दवः. अपो मही वृणुते च ुषा तमो यो त कृणो त सूनरी.. (१) अंधेरे को र कर के आती ई सूय क पु ी उषा सब को दखाई दे रही है. वह अपने काश से घनघोर अंधेरे को र कर दे ती है. (१) इमा उ वां द व य उ ा हव ते अ ना. अयं वाम े ऽ वसे शचीवसू वश वश
ह ग छथः.. (२)
हे अ नीकुमारो! काश चाहने वाले यजमान आप को बुलाते ह. म भी कम को धन मानने वाले आप को बुलाता ं. हम अपनी र ा के लए आप दोन को बुलाते ह. हम आप दोन को तृ त ( स ) करने के लए बुलाते ह. आप तु त करने वाले हर एक यजमान के पास पधारते हो. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कु ः को वाम ना तपानो दे वा म यः. नता वाम मया पमाणो शुने थमु आ यथा.. (३) हे अ नीकुमारो! आप काश वाले ह. इस पृ वी पर रहने वाला कौन आप को का शत कर सकता है. जो यजमान आप के लए प थर से सोम कूटकूट कर थक जाता है, वह राजा के समान इ छानुसार भोग करने वाला होता है. (३) अयं वां मधुम मः सुतः सोमो द व षु. तम ना पबतं तरोअ यं ध र ना न दाशुषे.. (४) हे अ नीकुमारो! आप के लए होने वाले य म यह मीठा सोमरस तैयार कया गया है. यह सोमरस हम ने एक दन पहले तैयार कया है. आप इस का सेवन क जए. आप ह व दे ने वाले यजमान को े धन दान क जए. (४) आ वा सोम य ग दया सदा याच हं या. भू ण मृगं न सवनेषु चु ु धं क ईशानं न या चषत्.. (५) हे इं ! आप शेर के समान श शाली ह. आप भरणपोषण करने म समथ ह. हम आप को य म सोमरस दान करते ह. हम वजय दलाने वाली ाथना से आप से याचना करते ह. आप हम पर गु सा मत क जए. ऐसा कौन है, जो अपने वामी से याचना नह करता है. (५) अ वय ावया व सोम म ः पपास त. उपो नूनं युयुजे वृषणा हरी आ च जगाम वृ हा.. (६) हे पुरो हत! आप सोमरस को ज द तैयार क जए. इं ज द सोमरस पीना चाहते ह. उ ह ने अपने घोड़े रथ म जोत लए ह. वृ ासुर का नाश करने वाले इं प ंच भी गए. (६) अभीषत तदा भरे यायः कनीयसः. पु वसु ह मघव बभू वथ भरेभरे च ह ः.. (७) हे इं ! आप सब से बड़े ह. आप सब ओर से ला कर े धन मुझ तु छ मनु य को दान क जए. आप धनवान ह और यु म सहायता के लए बुलाने यो य ह. (७) य द यावत वमेतावदहमीशीय. तोतार म धषे रदावसो न पाप वाय र
सषम्.. (८)
हे इं ! आप जतने धन के वामी ह, हम भी उतने धन के वामी हो जाएं. आप धन दे ने वाले ह. तु त करने वाल को धन दे ने क इ छा है. पा पय को धन दे ने क इ छा नह है. (८) वम
तू त व भ व ा अ स पृधः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अश तहा ज नता वृ तूर स वं तूय त यतः.. (९) हे इं ! आप यु म श ु का नाश करते ह. आप श ु को बाधा प ंचाने वाले ह. आप ाकृ तक वप य का नाश करने वाले ह. आप हमारे श ु के लए आप यां पैदा करने वाले ह. आप के नाशक ह. (९) यो र र ओजसा दवः सदो य प र. न वा व ाच रज इ पा थवम त व ं वव थ.. (१०) हे इं ! वगलोक म आप क त ा है. पूरी पृ वी का कणकण भी आप को घेर नह सकता, ा त नह कर सकता. आप पूरे संसार को ा त करने म समथ ह. (१०)
नौवां खंड असा व दे वं गोऋजीकम धो य म ो जनुषेमुवोच. बोधाम स वा हय य ैब धा न तोमम धसो मदे षु.. (१) हम ने तेज वी गाय के ध से सोमरस तैयार कया है. ऐसा सोमरस इं को वभाव से ही ब त पसंद आता है. आप इस सोमरस को पी कर म त हो जाइए, स हो जाइए. हमारी ाथना पर खासतौर से यान दे ने क कृपा क जए. (१) यो न इ सदने अका र तमा नृ भः पु त या ह. असो यथा नो ऽ वता वृध दो वसू न ममद सोमैः.. (२) हे इं ! आप को बैठाने के लए हम ने खास य वे दका तैयार क है. आप म त के साथ पधा रए. आप सब उस थान पर वरा जए. आप हमारे र क व हमारे पालक ह. आप हम कई तरह के धन द जए. आप सोमरस पी कर स होइए. (२) अदद समसृजो व खा न वमणवा ब धानाँ अर णाः. महा त म पवतं व य ः सृज ारा अव य ानवा हन्.. (३) हे इं ! आप ने बादल का जल नकालने के लए खासतौर पर दरवाज को (रा त को) बनाया है, जस से बादल को भेद कर पानी पाया जा सके. आप पानी के रा ते क सब बाधा को र करते ह. आप क कृपा से ब त जल धाराएं बही ह. आप ने रा स का नाश कया है. (३) सु वाणास इ तुम स वा स न य त ु वनृ ण वाजम्. आ नो भर सु वतं य य कोना तना मना स ाम वोताः.. (४) हे इं ! आप ब त धन दे ने वाले ह. सोमरस नचोड़ने वाले यमराज आप क तु त करते ह. पुरोडाश पकाने वाले यजमान आप क तु त करते ह. आप हम हमारा चाहा गया धन द जए. हम आप से श पा कर ब त धन पाते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जगृ ा ते द ण म ह तं वसूयवो वसुपते वसूनाम्. व ा ह वा गोप त शूर गोनाम म यं च ं वृषण
र य दाः.. (५)
हे इं ! आप ब त धनवान ह. हम धन बल क कामना करते ह. अतः आप का दा हना हाथ हण करते ह. हम जानते ह क आप गौ के वामी ह. आप हम हमारी इ छा पूरी करने वाले अनेक धन द जए. (५) इ ं नरो नेम धता हव ते य पाया युनजते धय ताः. शूरो नृषाता वस काम आ गोम त जे भजा वं नः.. (६) हे इं ! यु और संकट के समय म यु करने वाले मनु य यु म (और य म) आप को सहायता के लए बुलाते ह. आप शूरवीर व धनदाता ह. आप गाय और पशू के बाड़े म हम प ंचा द जए, ता क हम अ , धन व बल तीन का लाभ पा सक. (६) वयः सुपणा उप से र ं यमेधा ऋषयो नाधमानाः. अप वा तमूणु ह पू ध च ुमुमु या ३ मा धयेव ब ान्.. (७) अ छे पंख वाली च ड़या के समान य से ेम रखने वाली सूय क करण इं तक प ंचती ह. हे इं ! आप अब अंधेरे को र क जए. आप आंख को काश से भर द जए. आप र सी से बंधे ए के समान हम को उन बंधन से छु ड़ाइए. (७) नाके सुपणमुप य पत त दा वेन तो अ यच त वा. हर यप ं व ण य तं यम य योनौ शकुनं भुर युम्.. (८) हे सूय! आप प ी क तरह आकाश म उड़ने वाले ह. आप वेग वाले ह. आप सब का पालनपोषण करने वाले ह. व ण के त ह. आप को लोग मन से नेह करते ह (चाहते ह). आप को लोग अ न के उ प थान अंत र म प ी क तरह उड़ते ए दे खते ह. (८) ज ानं थमं पुर ता सीमतः सु चो वेन आवः. स बु या उपमा अ य व ाः सत यो नमसत ववः.. (९) वेन गंधव पैदा ए. उ ह ने सब से पहले उ प होने वाले तेज का उपदे श कया. उस तेज से सब को का शत कया. उ ह ने खासतौर पर उस तेज को अंत र म था पत कया. जो पैदा हो चुके और जो पैदा ह गे, उन सब का कारण भी वही तेज है. (९) अपू ा पु तमा य मै महे वीराय तवसे तुराय. वर शने व णे श तमा न वचा य मै थ वराय त ुः.. (१०) हे इं ! आप महान वीर व बलवान ह. आप ज द काम करने वाले ह. आप पूजनीय व व धारी ह. आप के लए यजमान ब त सी सुखदायी तु तयां गा रहे ह. (१०)
दसवां खंड ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अव सो अ शुमतीम त दयानः कृ णो दश भः सह ैः. आव म ः श या धम तमप नी ह त नृमणा अध ाः.. (१) इं सभी को य ह. उ ह ने श ु ारा आ मण कए जाने पर उन पर फर से आ मण कर के उन क सेना को हरा दया. उ ह ने कृ णासुर को भी हराया. कृ णासुर ब त ती ग त वाला था. उस ने दस हजार सै नक को साथ ले कर उन पर हमला कया था. कृ णासुर सभी के लए ःखदायक था. अंशुमती (नद ) के तट पर उस ने सभी को (आकृ कर के) अपने चंगुल म फंसा लया था. उ ह ने इतने श मान कृ णासुर को भी हरा दया. (१) वृ य वा सथाद षमाणा व े दे वा अज य सखायः. म र स यं ते अ वथेमा व ा: पृतना जया स.. (२) हे इं ! सभी सहायक दे वतागण वृ ासुर से डर कर आप का साथ छोड़ कर भाग गए (चले गए). उन सब के चले जाने पर आप ने म द्गण क म ता के कारण उन के सहयोग से मन क सेना को हराया. (२) वधुं द ाण समने ब नां युवान स तं प लतो जगार. दे व य प य का ं म ह वा ा ममार स ः समान.. (३) हे यजमानो! इं यु म वीरता दशाते ह. वे श ु क सेना को हराने वाले ह. उन क कृपा ( भाव) से बूढ़ा भी जवान हो जाता है. आप उन क का म हमा दे खए, जो आज मरी ई सी लगने पर भी कल फर जी जाती है अथात् उन क म हमा अ मट है. (३) व ह य स त यो जायमानो ऽ श ु यो अभवः श ु र . गूढे ावापृ थवी अ व व दो वभुम यो भुवने यो रणं धाः.. (४) हे इं ! आप का कोई श ु उ प नह आ है अथात् आप अजातश ु ह. आप उ प होते ही वृ ासुर आ द छह रा स के मन हो गए. अपने अंधकार से वगलोक और पृ वीलोक को बचाया. आप ने दोन लोक को काश यु बनाया. आप ने ही दोन लोक को थरता द . आप ने ही दोन लोक को सुंदर बनाया. (४) मे ड न वा व णं भृ म तं पु ध मानं वृषभ थर नुम्. करो यय त षी व यु र ु ं वृ हणं गृणीषे.. (५) हे यजमानो! अ छे कम के कारण सभी जगह इं क सराहना होती है. वे वृ ासुर व श ु वनाशक ह. उन क वगलोक म त ा है. वे बलवान ह. वे यु म थर रहते ह. वे व धारी और नाशक ह. वे वजयदाता ह. हम भी उन क म हमा क सराहना करते ह. (५) वो महे महे वृधे भर वं चेतसे
सुम त कृणु वम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वशः पूव ः
चर चष ण ाः.. (६)
हे यजमानो! इं महान काय करने वाले और स ह. आप उन को सोमरस चढ़ाते समय उ म तो से उन क उपासना क जए. वे उपासक क इ छा पूरी करते ह. वे उपासक का क याण करते ह. (६) शुन वेम मघवान म म म भरे नृतमं वाजसातौ. शृ व तमु मूतये सम सु न तं वृ ा ण स तं धना न.. (७) हे यजमानो! इं अ दाता, उ साही, वैभववान व उ म वीर ह. वे हमारी ाथना को ब त गौर से सुनते ह. वे श ु के सं चत धन को जीत लेते ह. वे श ुनाशक ह. हम उन क सहायता चाहते ह. हम इस लए उन का आ ान करते ह. (७) उ ा यैरत व ये समय महया व स . आ यो व ा न वसा ततानोप ोता म ईवतो वचा
स.. (८)
हे व स (ऋ ष)! आप इं य को जीतने वाले ह. वे यशव क ह. वे उपासक क ाथना यान से सुनते ह. हम उन से अ चाहते ह. आप य म उन क म हमा व णत करने वाली ाथनाएं पढ़ने क कृपा क जए. (८) च ं यद या वा नष मुतो तद मै म व च छ ात्. पृ थ ाम त षतं य धः पयो गो वदधा ओषधीषु.. (९) हे यजमानो! इं अंत र म दे द यमान ह. वे अपने व से यजमान के लए मीठा जल भेजते ह (बरसाते ह). वही जल पृ वी पर गाय म ध और ओष धय म गुणकारी रस के प म हम सभी को ा त होता है. (९)
यारहवां खंड यमू षु वा जनं दे वजूत अ र ने म पृतनाजमाशु
सहोवानं त तार रथानाम्. व तये ता य महा वेम.. (१)
हे यजमानो! हम अपने क याण के लए ता य (ग ड़) का आ ान करते ह. वे दे व त और बलवान ह. वे यु म हमारा भला कर सकते ह. वे श ु जत् व अबाध ग त वाले ह. वे ब त तेज ग त से उड़ने म समथ ह. (१) ातार म म वतार म हवेहवे सुहव शूर म म्. वे नु श ं पु त म मद ह वमघवा वे व ः.. (२) हे यजमानो! हम अपने क याण के लए इं का आ ान करते ह. वे हमारे ाता (र क), सहायक, श शाली व स म ह. वे ब त से उपासक ारा तु य (उपासना यो य) और धनवान ह. वे ह व के अ को हण करने क कृपा कर. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजामह इ ं व द ण हरीणा र यां ३ व तानाम्. म ु भद धुव वधा भुव सेना भभयमानो व राधसा.. (३) हे यजमानो! इं हाथ म व धारण करते ह. वे वेगशील ह. वे रथ पर वराजमान ह. वे अपनी दाढ़ मूंछ से श ु को डराने वाले व उपासक को धनवैभव दान करने वाले ह. (३) स ाहणं दाधृ ष तु म ं महामपारं वृषभ सुव म्. ह ता यो वृ स नतोत वाजं दाता मघा न मघवा सुराधाः.. (४) श
हे यजमानो! इं श ु के ज थ के नाशक ह. उ ह भयभीत करने वाले ह. इं ब त मान ह. वे व धारी, वृ नाशक, अ दाता व यजमान को धन दे ने वाले ह. (४) यो नो वनु य भदा त मत उगणा वा म यमान तुरो वा. धी युधा शवसा वा त म ाभी याम वृषमण वोताः.. (५)
हे इं ! आप हमारी र ा क जए. आप क कृपा से हम श ु को हरा सक. हम श ु को मारने के इ छु क ह. हम मारक अ श के साथ आ मण करने के लए तैयार ह. हम ढ़ न य वाले ह. (५) यं वृ ष े ु तयः पधमाना यं यु े षु तुरय तो हव ते. य शूरसातौ यमपामुप म यं व ासो वाजय ते स इ ः.. (६) हे इं ! यजमान यु म सहायता के लए आप को पुकारते ह. आप उन क पुकार सुनते ह. आप अ श वाले यो ा के बुलाने पर उन क सहायता करते ह. जल वषा के लए आप से ही नवेदन कया जाता है. ा णगण आप को ही ह व सम पत करते ह. (६) इ ापवता बृहता रथेन वामी रष आ वहत सुवीराः. वीत ह ा य वरेषु दे वा वधथां गी भ रडया मद ता.. (७) हे इं ! आप पवतवासी, वशाल रथ वाले एवं उपासना यो य ह. अ छ संतान वाले यजमान आप को ह व भट करते ह. आप उस ह व का भोग लगाते ह. आप उस ह व से स होते ह. आप हमारी ाथना से और यश वी ब नए. आप हम अ दान करने क कृपा क जए. (७) इ ाय गरो अ न शतसगा अपः ैरय सगर य बु नात्. यो अ ेणेव च यौ शची भ व व त भ पृ थवीमुत ाम्.. (८) हे इं ! आप ने अपने साम य से वगलोक और पृ वीलोक को उसी तरह घेर रखा है, जैसे लोहे क पट् ट चार ओर से प हए को घेरे रखती ह. हमारी ाथनाएं अंत र से जल बरसाने क साम य रखती ह. (८) आ वा सखायः स या ववृ यु तरः पु
चदणवां जग याः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पतुनपातमा दधीत वेधा अ म
ये तरां द ानः.. (९)
हे इं ! आप अंत र लोक म मौजूद ह. हम आप के म ह. हम उ म ाथना से आप का आ ान करते ह. आप के भाव और कृपा से हम पु और पौ क ा त हो. (९) को अ युङ् े धु र गा ऋत य शमीवतो भा मनो णायून्. आस ेषाम सुवाहो मयोभू य एषां भृ यामृणध स जीवात्.. (१०) हे इं ! आप के अलावा आप के रथ म इन घोड़ को जोत सकने क कस क साम य है? आप के घोड़े रथ क धुरी क सहायता से ग त पाते ह, मतावान ह. आप श ु पर ोध करने वाले व सुखदायी ह. आप के घोड़ का भृ य (भरणपोषण करने वाला) ही जीवन धारण करता है. (१०)
बारहवां खंड गाय त वा गाय णो ऽ च यकम कणः. ाण वा शत त उ श मव ये मरे.. (१) हे इं ! आप सैकड़ कम करने वाले ह. गाने वाले आप के गुण गाते ह. मं से आप का आ ान करते ह. ा नामक ऋ वक् वैसे ही वर साध कर आप क उपासना करते ह, जैसे बांस के ऊपर नट अपनेआप को साधते ह. (१) इ ं व ा अवीवृध समु चसं गरः. रथीतम रथीनां वाजाना स प त प तम्.. (२) हे इं ! आप े रथ पर वराजमान ह. आप े यो ा, अ व बल के वामी ह. आप स जन के र क ह. हमारी सारी ाथनाएं आप का गुणगान करती ह. (२) इम म सुतं पब ये मम य मदम्. शु य वा य र धारा ऋत य सादने.. (३) हे इं ! आप अमर व स तादायी ह. सदन म प र कृत सोमरस आप क ओर बढ़ रहा है. आप उसे वीकारने क कृपा क जए. (३) य द च म इह ना त वादातम वः. राध त ो वद स उभयाह या भर.. (४) हे इं ! आप धनवान व वल ण ह. हमारे पास ऐसा कोई धन नह है, जो हम आप को भट कर सक. आप खुले हाथ से हम भरपूर धन दान करने क कृपा क जए. (४) ु ी हवं तर या इ य वा सपय त. ध सुवीय य गोमतो राय पू ध महाँ अ स.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! तर (ऋ ष) आप क उपासना कर रहे ह. आप उन क ाथना सुनने क कृपा क जए. आप महान ह. आप हम धनवान, गोवान व े वीयवान बनाने क कृपा क जए. (५) असा व सोम इ ते श व धृ णवा ग ह. आ वा पृण व य रजः सूय न र म भः.. (६) हे इं ! आप बलवान, श ु जत एवं अंत र को सूय क तरह का शत करने वाले ह. सोमरस आप को भी अपार श से भर दे . (६) ए या ह ह र भ प क व य सु ु तम्. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (७) हे इं ! आप तेजोमय ह. आप घोड़ क सहायता से क व ऋ ष क ाथनाएं सुनने के लए वगलोक से पृ वीलोक पर पधा रए. आप को हमारे लोक म भी सुख मलेगा. आप कुछ समय यह वास करने के लए पधा रए. (७) आ वा गरो रथी रवा थुः सुतेषु गवणः. अ भ वा समनूषत गावो व सं न धेनवः.. (८) हे इं ! आप उपासना के यो य ह. सोमय म हमारी ाथनाएं वैसे ही आप के पास प ंचती ह, जैसे गाएं झटपट अपने बछड़ के पास प ंचती ह और यो ा रथ पर चढ़ कर सुर त थान पर प ंचता है. (८) एतो व तवाम शु शु ै थैवावृ वा स
शु े न सा ना. शु ै राशीवा मम ु.. (९)
हे इं ! आप ज द आइए. हम शु ता से साम और यजु मं पढ़ कर आप क उपासना कर रहे ह. हम बल बढ़ाने वाला मं से शु कया और गाय के ध म मला आ सोमरस आप को भट कर रहे ह. वह सोमरस आप क स ता बढ़ाए. (९) यो र य वो र य तमो यो ु नै ु नव मः. सोमः सुतः स इ ते ऽ त वधापते मदः.. (१०) हे इं ! आप श दे ने वाली हो. (१०)
मान, सुंदर एवं काशमान ह. उपासक क आ त आप को आनंद
******ebook converter DEMO Watermarks*******
चौथा अ याय पहला खंड य मै पपीषते व ा न व षे भर. अर माय ज मये ऽ प ाद वने नरः.. (१) हे यजमानो! इं य के संचालक ह. वे सोमरस पीने के इ छु क रहते ह. वे सभी जगह नधा रत समय पर प ंचते ह. वे उपयु थान के भागीदार ह. सब से पहले उन को ही य क वेद पर त त कया जाता है. मनु य के य म वे जाने क इ छा रखते ह. आप सभी उ ह इं को सोमरस से तृ त करने क कृपा क जए. (१) आ नो वयो वयःशयं महा तं ग रे ाम्. महा तं पू वणे ामु ं वचो अपावधीः.. (२) हे इं ! आप पवतवासी ह. हम सोमरस द जए. वह सब जगह उपल ध है. आप घोर नदा पद बात को हम से र करने क कृपा क जए. हे इं ! आप श ु को हराने वाले ह. (२) आ वा रथं यथोतये सु नाय वतयाम स. तु वकू ममृतीषह म श व स प तम्.. (३) हे इं ! आप श ु को हराते व यजमान का पोषण करते ह. हम आप से संर ण व सुख चाहते ह. जैसे ग तशील रथ सब जगह घुमा कर ले आता है, उसी कार यजमान आप को य थान पर ले आते ह. (३) स पू महोनां वेनः तु भरानजे. य य ारा मनुः पता दे वेषु धय आनजे.. (४) यजमान ारा भट कए गए ह व के अ का भोग लगाने के लए इं य उप थत होते ह. वे सभी दे वता के पालक व बु शील ह. (४)
थल पर
यद वह याशवो ाजमाना रथे वा. पब तो म दरं मधु त वा स कृ वते.. (५) म द् आनंददायी ह. वे मीठा सोमरस पीते और अ उपजाते ह. वे तेज वी एवं ती ग तमान ह. वे इं को य वेद तक प ंचाते ह. (५) यमु वो अ हणं गृणीषे शवस प तम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ं व ासाहं नर श
श च ं व वेदसम्.. (६)
हे इं ! आप यजमान के हतकारी, अ व बल के वामी, श ु जत्, य नायक एवं सव ह. हम आप क उपासना करते ह. (६)
के वामी,
द ध ा णो अका रषं ज णोर य वा जनः. सुर भ नो मुखा कर ण आयू ष ता रषत्.. (७) हे यजमानो! हम द ध ाव (ऋ ष) क उपासना करते ह. द ध ाव (ऋ ष) वजेता, घोड़े के समान ग तशील व शरीर को पोषण दे ने वाले एवं हमारी आयु म बढ़ोतरी करने वाले ह. (७) पुरां भ युवा क वर मतौजा अजायत. इ ो व य कमणो धता व ी पु ु तः.. (८) इं श ु क नग रय को व त करने वाले एवं जवान ह. वे क व, श व पालक, व धारी एवं अ ग य ह. (८)
मान,
सरा खंड व ु भ मषं व द राये दवे. धया वो मेधसातये पुर या ववास त.. (१) हे यजमानो! आप वीर इं को ह व दान करो. वे य को पूरा करने म बु से कए गए े काय क शंसा व मनोकामनाएं पूरी करते ह. वे यजमान का स मान करते ह. (१) क यप य व वदो यावा ः सयुजा व त. ययो व म प तं य ं धीरा नचा य.. (२) इं के घोड़े अपनेआप को जानने वाले व सव ह. ये घोड़े इं को य म ले जाने म लगे रहते ह. व ान् कहते ह क य म जाने का न य होते ही ये घोड़े अपनेआप रथ म जुत जाते ह. (२) अचत ाचत नरः यमेधासो अचत. अच तु पु का उत पुर मद् धृ णवचत.. (३) हे यजमानो! इं आप को अपनी कृपा से ऐसी संतान दान करते ह, जो य म च रखती ह . वे यजमान क आकां ा पूरी करते ह. वे श ु जत् ह. आप सभी इं क अचना क जए. (३) उ थ म ाय श यं वधनं पु न षधे. श ो यथा सुतेषु नो रारण स येषु च.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे यजमानो! आप मतावान इं के लए ाथना गाइए. आप उन श ुनाशक के लए े ाथना गाइए. ऐसा करने से हम पर, हमारी संतान पर और हमारे म पर उन क कृपा होगी. (४) व ानर य व प तमनानत य शवसः. एवै चषणीनामूती वे रथानाम्.. (५) हे म द्गणो! आप के सै नक पर आ मण होता है तो इं र ा करते ह. वे श ु के सै नक पर आ मण करने वाले ह. उन को कोई नह जीत सकता. हम रथ क र ा हेतु उन श मान को आमं त करते ह. (५) स घा य ते दवो नरो धया मत य शमतः. ऊती स बृहतो दवो षो अ हो न तर त.. (६) हे इं ! वह र त रहता है, जो
आप के द संर ण म रहता है. वह पाप एवं मन से यजमान क भावी ाथना से आप का सखा बन जाता है. (६)
वभो इ राधसो व वी रा तः शत तो. अथा नो व चषणे ु नं सुद म हय.. (७) हे इं ! आप धनवान, सव ाता, सैकड़ य करने वाले, वल ण म हमाशाली ह. आप हम धन द जए और संप बनाइए. (७) वय े पत णो पा चतु पादजु न. उषः ार ृतू रनु दवो अ ते य प र.. (८) हे उषा! आप काशवाली ह. आप जब उदय हो जाती ह तो अंत र तक उड़ते ह. पशु भी वचरण करते ह. मनु य भी ग तशील हो जाते ह. (८)
मप ी र र
अमी ये दे वा थन म य आ रोचने दवः. क ऋतं कदमृतं का ना व आ तः.. (९) हे दे वगणो! कृपया आप हम यह बताइए क जब सूय दय होता है और आकाश का शत हो जाता है तब हमारी ाथना आप तक प ंचती है या नह ? हमारी वशेष आ त को आप पाते ह या नह ? (९) ऋच साम यजामहे या यां कमा ण कृ वते. व ते सद स राजतो य ं दे वेषु व तः.. (१०) हम यजमान ऋ वेद और सामवेद के मं से य करते ह. इन मं करते ह, वही इस य सदन से दे वता तक प ंच पाता है. (१०)
तीसरा खंड ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से हम जो काय
व ाः पृतना अ भभूतरं नरः सजू तत ु र ं जजनु राजसे. वे वरे थेम यामुरीमुतो मो ज ं तरसं तर वनम्.. (१) इं य म सव े थान पर वराजते ह. वे सेनानायक व ओज वी ह. उन क सेना संग ठत है. वे अ श धारण करते ह. वे श ुनाशक, उ व म हमावान ह. यजमान तेजी से काय करते ह. वे इं क उपासना करते ह. (१) े दधा म थमाय म यवे ऽ ह य युं नय ववेरपः. उभे य वा रोदसी धावतामनु यसाते शु मा पृ थवी चद वः.. (२) हे इं ! आप ( मन ) का नाश करने वाले ह. आप ा णय के हत के लए जल बरसाते ह. वगलोक और पृ वीलोक आप क इ छा से याशील होते ह. हम इं के उस ोध क शंसा करते ह, जो अ याय को र करता है. हम यजमान आप पर ब त ा रखते ह. (२) समेत व ा ओजसा प त दवो य एक इ र त थजनानाम्. स पू नूतनमा जगीषन् तं वतनीरनु वावृत एक इत्.. (३) हे यजमानो! इं अपने पु षाथ से वगलोक के वामी बने ह. वे मनु य म पूजनीय, अपूव व जीतने के इ छु क को वजय दलाते ह. आप सब मल कर उन क उपासना क जए. (३) इमे त इ ते वयं पु ु त ये वार य चराम स भूवसो. न ह वद यो गवणो गरः सघ ोणी रव त त य नो वचः.. (४) हे इं ! आप ब त धनवान ह. सभी जगह आप क शंसा होती है. हम आप क शरण म ह. आप जैसा उपासना यो य और कोई दे वता नह ह. हम आप क उपासना करते ह. आप हमारे उपासना वचन को (सब कुछ वीकारने वाली) पृ वी माता के समान वीका रए. (४) चषणीधृतं मघवानमु या ३ म ं गरो बृहतीर यनूषत. वावृधानं पु त सुवृ भरम य जरमाणं दवे दवे.. (५) हे इं ! आप सभी मनु य का पालनपोषण करते ह. आप धनवान, स एवं आप यजमान क बढ़ोतरी करते ह. आप अमर ह. हम त दन आप के लए कई शंसापरक तु तयां करते ह. हम कई द उपासना से बारबार आप क उपासना करते ह. (५) अ छा व इ ं मतयः वयुवः स ीची व ा उशतीरनूषत. प र वज त जनयो यथा प त मय न शु युं मघवानमूतये.. (६) हे इं ! हम अपने संर ण, धनसंपदा व बु पाने के लए आप को चाहते ह. हम आप से अपनी उ त क इ छा रखते ह. म हलाएं जैसे प त को चाहती ह, वैसे ही हमारी ाथनाएं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आप को चाहती ह. (६) अ भ यं मेषं पु तमृ मय म ं गी भमदता व वो अणवम्. य य ावो न वचर त मानुषं भुजे म ह म भ व मचत.. (७) हे यजमानो! आप इं क उपासना क जए. इं श ु को जीतने वाले ह. वे ब शं सत ह. वे धन के भंडार और वगलोक क भां त व तृत ह. उन क म हमा चार ओर ा त ह. ऐसे ानवान इं को आप सब भ जए. (७) य सु मेषं महया व वद अ यं न वाज हवन यद
शतं य य सुभुवः साकमीरते. रथ म ं ववृ यामवसे सुवृ भः.. (८)
हे यजमानो! इं आ म ाता व म हमाशाली ह. वे सौसौ काय एक साथ करने वाले व श ु से होड़ करने वाले ह. यजमान को धनदान करने के लए वे हवन म पधारते ह. घोड़े क तरह तेजी से प ंचते ह. आप अपने संर ण के लए सौसौ ाथना से उन क उपासना क जए. (८) घृतवती भुवनानाम भ योव पृ वी मधु घे सुपेशसा. ावापृ थवी व ण य धमणा व क भते अजरे भू ररेतसा.. (९) वगलोक और पृ वीलोक काश संप ह. सभी ा णय को आधार दे ते ह. वे वशाल व व तृत ह. वे मीठे जल वाले ह व परम श पर टके ए ह. वे अ वनाशी ह. उन क उ पादन मता े है. (९) उभे य द रोदसी आप ाथोषा इव. महा तं वा महीना स ाजं चषणीनाम्. दे वी ज न यजीजन ा ज न यजीजनत्.. (१०) हे इं ! आप वगलोक और पृ वीलोक को उषा ारा का शत करते ह. आप ब त महान व स ाट् ह. दे वता को जनने वाली अ द त ने आप को ज म दया है. (१०) म दने पतुमदचता वचो यः कृ णगभा नरह ृ ज ना. अव यवो वृषणं व द णं म व त स याय वेम ह.. (११) हे यजमानो! आप इं को ह व दान क जए. आप उन क अचना क जए. उ ह ने ऋ ज क मदद से कृ णासुर क गभवती य के साथ उस का वध कया. वे दाएं हाथ म व धारण करने वाले ह. वे म द्गण क सेना के साथ मौजूद रहते ह. वे श मान ह. यजमान उन से अपना संर ण चाहते ह. हम यजमान म ता के लए उन का आ ान करते ह. (११)
चौथा खंड ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ
सुतेषु सोमेषु
तुं पुनीष उ यम्. वदे वृध य द
य महा
ह षः.. (१)
हे इं ! आप के पु (यजमान ) ने आप के लए सोमरस प र कृत कया है. आप यजमान और उपासक दोन क बढ़ोतरी व उ ह प व क जए. आप द व महान ह. (१) तमु अ भ
गायत पु
तं पु
ु तम्. इ ं गी भ त वषमा ववासत.. (२)
हे उपासको! आप इं का आ ान क जए. आप उन क गुण गाइए एवं उन का चतन क जए. (२)
शंसा क जए. आप उन के
तं ते मदं गृणीम स वृषणं पृ ु सास हम्. उ लोककृ नुम वो ह र यम्.. (३) हे इं ! आप के हाथ म व है. आप बलवान व श ु जत् ह. आप के घोड़े मनु य का हत साधते ह. सोमपान से आप म ऊजा आती है. हम उस ओज क शंसा करते ह. (३) य सोम म
वणवय ाघ
त आ ये. य ा म सु म दसे स म
भः.. (४)
हे इं ! य म व णु पधारे. आप ने उस के बाद सोमरस पया. आप आ य त (ऋ ष) और म द्गण के साथ सोमरस पी कर स ए. आप कई अ य य म सोमरस पी कर स ए (उसी कार) आप हमारे इस य म भी सोमरस पी कर स होइए. (४) ए मधोम द तर
स चा वय अ धसः. एवा ह वीर तवते सदावृधः.. (५)
हे यजमानो! मधुर सोमरस से स होने वाले इं को सोमरस द जए. वे वीर, तु त के यो य ह. वे सदा बढ़ोतरी पाते ह. (५) ए
म ाय स चत पब त सो यं मधु.
राधा
स चोदयते म ह वना.. (६)
हे यजमानो! सोमरस इं को अ पत क जए. मीठा रसीला सोमरस पीने के बाद अपनी म हमा से वे यजमान को भरपूर धन दे ते ह. (६) एतो व तवाम सखायः तो यं नरम्. कृ ीय व ा अ य येक इत्.. (७) हे सखाओ! ज द आइए. हम इं क तु त कर. वे सव े ह और अकेले ही श ु को हरा सकते ह. (७) इ ाय साम गायत व ाय बृहते बृहत्.
कृते वप ते पन यवे.. (८)
हे ा णो! आप इं के लए बृह साम के मं उचा रए. वे एवं उपासना के यो य ह. (८)
ानी, ववेक , महान
य एक इ दयते वसु मताय दाशुषे. ईशानो अ त कुत इ ो अ .. (९) हे यजमानो! इं ई र, दानशील व धनदाता ह. वे
तकार नह करते ह. अकेले होने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पर भी वे सब ा णय के वामी ह. (९) सखाय आ शषामहे
े ाय व
णे. तुष ऊ षु वो नृतमाय धृ णवे.. (१०)
हे सखाओ! इं व वाले ह. हम ाथना से उन क उपासना करते ह. हम ानी इं से आशीष चाहते ह. वे सव म परा मी व श ु को मात दे ने वाले ह. हम सब के हत हेतु उन क उपासना करते ह. (१०)
पांचवां खंड गृणे त द
ते शव उपमां दे वतातये. य
स वृ मोजसा शचीपते.. (१)
हे इं (शचीप त)! हम पास ही हो रहे इस य म आप क म हमा क उपासना करते ह. आप अपने ओज से वृ ासुर का नाश कर सके. (१) य य य छ बरं मदे दवोदासाय र धयन्. अय
स सोम इ
ते सुतः पब.. (२)
हे इं ! आप सोमरस पी जए. सोमरस से मदम त हो कर ही आप ने दवोदास के लए शंबर का नाश कया. (२) ए
नो ग ध
य स ा जदगो . ग रन व तः पृथुः प त दवः.. (३)
हे इं ! आप सभी को य व श ु जत् ह. आप को कोई नह हरा सकता. आप ग र जैसे वशाल व वगलोक के वामी ह. आप व के सभी वैभव हम दान कराने के लए हमारे पास पृ वी पर पधारने क कृपा क जए. (३) यइ
सोमपातमो मदः श व चेत त. येना ह
स या ३
णं तमीमहे.. (४)
हे इं ! आप अ धक सोमरस का पान करते ह. आप अतीव बलशाली व ब त अ धक ऊज वी ह. इसी ऊजा (उ साह) से आप मन का नाश कर पाते ह. हम इस लए आप क उपासना करते ह. (४) तुचे तुनाय त सु नो ाघीय आयुज वसे. आ द यासः सुमहसः कृणोतन.. (५) हे आ द यो! आप महान ह. आप हमारी संतान को लंबी आयु द जए. आप हमारी संतान क संतान को द घ आयु दान करने क कृपा क जए. (५) वे था ह नऋतीनां व ह त प रवृजम्. अहरहः शु युः प रपदा मव.. (६) हे इं ! आप व न को र करना जानते ह. आप प व तापूवक आप य का नराकरण करते ह. आप रोग नवारक ( च क सक) मनु य के समान सभी आप य को र कर सकते ह. (६) अपामीवामप
धमप सेधत म तम्. आ द यासो युयोतना नो अ
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हसः.. (७)
हे आ द यो! आप हम हम बु से बचाइए. (७) पबा सोम म सोतुबा या
णता व श ुता के भाव से र रखने क कृपा क जए. आप
म दतु वा यं ते सुषाव हय ा ः. सुयतो नावा.. (८)
हे इं ! आप अ वान (घोड़े वाले) ह. आप स ता दे ने वाले सोमरस को पीने क कृपा क जए. जन प थर से कूटकूट कर सोमरस नकाला जाता है, वे प थर य शाला म वैसे ही थर ह, जैसे घुड़साल म र सय से बंधे घोड़े थर रहते ह. (८)
छठा खंड अ ातृ ो अना वमना प र
जनुषा सनाद स. युधेदा प व म छसे.. (१)
हे इं ! आप शु से ही भाइय के लड़ाईझगड़ से मु ह. आप के ऐसे भाईबंधु भी नह ह, जो आप क मदद कर या आप पर राज कर. आप यु म संर ण दे कर अपने भ के साथ भाईबंधुता था पत करते ह. (१) यो न इद मदं पुरा
व य आ ननाय तमु व तुषे. सखाय इ मूतये.. (२)
हे यजमानो! इं आरंभ से ही धनदाता ह. हम अपने क याण के लए उन क उपासना करते ह. (२) आ ग ता मा रष यत
थावानो माप थात सम यवः. ढा च म य णवः.. (३)
हे म द्गणो! आप हमारे पास पधा रए. आप हम कोई नुकसान न प ंचाते ए हमारे पास आइए. जो बलशाली ह, जो मन को ःखी करने वाले ह, वे भी हमारे पास रह. वे हम से र न रह. (३) आ या य म दवे ऽ पते गोपत उवरापते. सोम
सोमपते पब.. (४)
हे इं दे व! आप घोड़ के मा लक, गाय व उवर भू म के वामी और सोमरस को पीने वाले ह. हम आप को सोमरस पीने के लए आमं त करते ह. आप आइए और सोमरस पी जए. (४) वया ह व ुजा वयं त स तं वृषभ ुवीम ह. स थे जन य गोमतः.. (५) हे इं ! आप बैल के समान बलवान ह. जो गोपालक के त ोध करते ह हम उन के त अपने को जोड़. आप क सहायता से उ चत उ र दे ते ए उन का वरोध कर. उ ह र करने म आप हमारा साथ द जए. (५) गाव
ा सम यवः सजा येन म तः सब धवः. रहते ककुभो मथः.. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे म द्गणो! आप सभी एक जैसे भाव वाले ह. गाएं समान जा त के भाव वाली ह. वे हर दशा म वचरती ह और पर पर चाट कर ेम भाव को अ भ करती ह. (६) वं न इ ा भर ओजो नृ ण
शत तो वचषणे. आ वीरं पृतनासहम्.. (७)
हे इं ! आप सैकड़ कम करने वाले व वल ण ह. आप हम बलवान बनाइए. आप हम वैभव व वीर पु दान करने क कृपा क जए. (७) अधा ही
गवण उप वा काम ईमहे ससृ महे. उदे व म त उद भः.. (८)
हे इं ! आप शंसा के यो य ह. जल के साथ जाने वाले लोग भी उस के समान हो जाते ह. हम आप से अपनी इ छा पूण करने क कामना करते ह. हम आप के पास आ कर आप क उपासना करते ह. (८) सीद त ते वयो यथा गो ीते मधौ म दरे वव णे. अ भ वा म
नोनुमः.. (९)
हे इं ! सोमरस प र कृत होने के बाद गाय के ध के साथ एकमेक हो जाता है. सोमरस ऊजादायी व वाणी को ओज दे ता है. उस के पास जैसे प ी इकट् ठे हो कर चहचहाते ह, वैसे ही हम इकट् ठे हो कर आप को नमन करते ह. (९) वयमु वामपू
थूरं न क चद्भर तो ऽ व यवः. व
च
हवामहे.. (१०)
हे इं ! आप व वाले व वल ण ह. जैसे गुणी को लोग (आदर पूवक) बुलाते ह, उसी कार हम आप को बुलाते ह. हम सोमरस से आप को पूरी तरह तृ त करते ह. हम आप क उपासना करते ह. (१०)
सातवां खंड वादो र था वषूवतो मधोः पब त गौयः. या इ े ण सयावरीवृ णा मद त शोभथा व वीरनु वरा यम्.. (१) हे इं ! सूय प म आप क करण आप के साथ शो भत होती ह. वे करण वा द मीठे सोमरस को पीती ह. वे करण वरा य म शो भत होती ह. (१) इ था ह सोम इ मदो चकार वधनम्. शव व ोजसा पृ थ ा नः शशा अ हमच नु वरा यम्.. (२) हे इं ! आप व धारी व बलवान ह. सोमरस गुणी है. इन ाथना म हम ने सोमरस के गुण का वणन कया है. पृ वी पर हमारे श ु का नाश हो. पूरी तरह वरा य क थापना हो. (२) इ ो मदाय वावृधे शवसे वृ हा नृ भः. त म मह वा जषू तमभ हवामहे स वाजेषु
नो ऽ वषत्.. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे यजमानो! हम यजमान स ता और उ साह क कामना से इं क क त क बढ़ोतरी करते ह. छोटे बड़े हर कार के यु म वे हमारी र ा करते ह. र ा के लए उन का आ ान करते ह. वे यु म हमारी र ा कर. (३) इ तु य मद वो ऽ नु ं व वीयम्. य यं मा यनं मृगं तव य माययावधीरच नु वरा यम्.. (४) हे इं ! आप व धारण करते ह. आप ग र (पवत) पर नवास करते ह. आप वराज क इ छा से अचना करने वाल क सहायता करते ह. यु म आप मायावी हरण क तरह छलीकपट के नाश के लए कूटनी त का सहारा लेते ह. (४) े भी ह धृ णु ह न ते व ो न य सते. इ नृ ण ह ते शवो हनो वृ ं जया अपो ऽ च नु वरा यम्.. (५) हे इं ! आप सब ओर से मन पर हमला क जए. आप मन का नाश क जए. आप का व श शाली व आप क श अतुलनीय है. आप ने अपने रा य क इ छा से वृ ासुर का वध कया, वजय ा त क व जल ा त कया. (५) य द रत आजयो धृ णवे धीयते धनम्. युङ् वा मद युता हरी क हनः कं वसौ दधो ऽ मां इ
वसौ दधः.. (६)
हे इं ! आप मद चुआने वाले अपने घोड़ को रथ म जो तए. आप कस का नाश करगे यह आप पर नभर है. आप कस को धन दान करगे यह भी आप पर नभर करता है. आप हम धन दान क जए. यु म श ु को जीतने वाले ही धन ा त करते ह. (६) अ मीमद त व या अधूषत. अ तोषत वभानवो व ा न व या मती योजा व
ते हरी.. (७)
हे इं ! यजमान आप के दए ए अ से तृ त ए. यजमान सर हला कर स ता कट करते ह. तेज वी ा ण नई ाथना पढ़ते ह. आप य म पधारने के लए घोड़ को रथ म जोतने क कृपा क जए. (७) उपो षु शृणुही गरो मघव मातथा इव. कदा नः सूनृतावतः कर इदथयास इ ोजा व
ते हरी.. (८)
हे इं ! आप धनवान ह. आप हमारी ाथना को सुनने क कृपा क जए. आप हम कब अ छ वाणी वाला बनाएंगे? आप हमारी तु तय को अ छ तरह सुनने के लए पधा रए. आप पधारने के लए अपने घोड़ को रथ म जोतने क कृपा क जए. (८) च मा अ वा ऽ ३ तरा सुपण धावते द व. न वो हर यनेमयः पदं व द त व ुतो व ं मे अ य रोदसी.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
चं अंत र म अपनी करण के साथ ग तशील ह. सूय क करण सुनहरी और चमक ली ह. हमारी इं यां उ ह नह पकड़ सकत . हे वगलोक! व पृ वीलोक! आप हमारी ाथना वीकार क जए. (९) त यतम रथं वृषणं वसुवाहनम्. तोता वाम नावृ ष तोमे भभूष त त मा वी सम ुत
हवम्.. (१०)
हे अ नीकुमारो! आप का रथ अ यंत य व बलवान है. वह धन ढोता है. उपासक ऋ ष अपनी ाथना से उसे सुशो भत करते ह. आप दोन मधुर व ा के ाता ह. आप हमारी ाथनाएं सु नए. (१०)
आठवां खंड आ ते अ न इधीम ह ुम तं दे वाजरम्. य या ते पनीयसी स म दय त वीष
तोतृ य आ भर.. (१)
हे अ न! आप अजर (बुढ़ापे से मु ) ह. आप काशमान ह. हम आप को व लत करते ह. आप वगलोक को का शत करते ह. आप उपासक को भरपूर धन द जए. (१) आ नं न ववृ भह तारं वा वृणीमहे. शीरं पावकशो चषं व वो मदे य ेषु तीणब हषं वव से.. (२) हे अ न! अ छ ाथना से आप को ह व द जाती है. य म आप के लए कुश का आसन बछाया जाता है. आप सव मौजूद ह. आप काशमान व महान ह. हम वशेष स ता के साथ आप क उपासना करते ह. (२) महे नो अ बोधयोषो राये द व मती. यथा च ो अबोधयः स य व स वा ये सुजाते अ सूनृते.. (३) हे उषा! आप पहले भी हम जा त करती रही ह. आप हम अब भी जा त क जए. आप धन ा त के लए हम जा त क जए. आप काशयु और े व ध (अ छ तरह) से उ प ह. आप वय के पु स य वा पर कृपा र खए. (३) भ ं नो अ प वातय मनो द मुत तुम्. अथा ते स ये अ धसो व वो मदे रणा गावो न यवसे वव से.. (४) हे सोम! सोमरस से हमारा मन स हो जाता है. आप हमारे स मन को बल द जए. याशील बनाने क कृपा क जए. आप हम हतकारी श द जए. े बनाइए. आप हम म ता के लए े रत क जए. हमारा आप से वैसा ही सखा भाव हो जाए, जैसा गाय का घास से हो जाता है. (४) वा महाँ अनु वधं भीम आ वावृते शवः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ऋ व उपाकयो न श ी ह रवां दधे ह तयोव मायसम्.. (५) हे इं ! आप भीम (भीषण बलवान) ह. फर भी आप सोमरस का पान कर के अपने बल क बढ़ोतरी करते ह. आप सुंदर ह. आप सर पर अ छ पगड़ी धारते ह. आप रथ म घोड़ को जोतते ह. आप दाएं हाथ म व को कड़े क भां त धारण करते ह. (५) स घा तं वृषण रथम ध त ा त गो वदम्. यः पा हा रयोजनं पूण म चकेत त योजा व
ते हरी.. (६)
हे इं ! आप गाय को जानने वाले (गो वद) ह. आप रथ म वराजते ह. आप का रथ श शाली है. आप अपने घोड़ को रथ म जो तए. आप हमारी मनोकामनाएं पूरी करने क कृपा क जए. (६) अ नं तं म ये यो वसुर तं यं य त धेनवः. अ तमव त आशवो ऽ तं न यासो वा जन इष
तोतृ य आ भर.. (७)
हे अ न! आप बादल म घर क तरह रहते ह. आप क ओर य थान म गाएं आती ह. आप क ओर ती ग त से घोड़े आते ह. आप क ओर ह व वाले यजमान आते ह. हम आप क उपासना करते ह. आप यजमान को भरपूर अ दान करने क कृपा क जए. (७) न तम हो न रतं दे वासो अ म यम्. सजोषसो यमयमा म ो नय त व णो अ त
षः.. (८)
हे दे वताओ! आप मनु य को ग त क राह पर बढ़ाते ह. अयमा, म और व ण राचा रय को र करते ह. आप क कृपा से मनु य पाप से र रहता है. आप क कृपा से मनु य क ग त नह हो पाती है. (८)
नौवां खंड पर
ध वे ाय सोम वा म ाय पू णे भगाय.. (१)
हे सोम! आप का रस सु वा ( वा द ) होता है. आप इं , पूषा व भग दे व के लए वा हत होइए. (१) पयू षु ध व वाजसातये प र वृ ा ण स णः. ष तर या ऋणया न ईरसे.. (२) हे सोम! आप सोमरस से कलश को भर द जए. आप उस भरेपूरे ोणकलश म भरे र हए. आप श मान होइए. आप मन पर आ मण क जए. हम आप कज से मु कराइए. आप हमारे श ु को हराइए. आप उन पर हमला करने के लए जाइए. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पव व सोम महा समु ः पता दे वानां व ा भ धाम.. (३) हे सोम! आप फैले ए ह. आप महान व समु जैसे ह. आप पता (पालक) ह. आप सभी दे वता के धाम ह. (३) पव व सोम महे द ाया ो न न ो वाजी धनाय.. (४) हे सोम! घोड़े क तरह आप को प र कृत कया है. आप श आप बल व वैभव द जए. आप ोणकलश म भरे र हए. (४)
क बढ़ोतरी करते ह.
इ ः प व चा मदायापामुप थे क वभगाय.. (५) हे सोम! आप क व व सुंदर ह. आप को भग दे वता को स करने के लए जल म मलाया जाता है. (५) अनु ह वा सुत सोम मदाम स महे समयरा ये. वाजाँ अ भ पवमान गाहसे.. (६) हे सोम! रस नकालने के बाद हम आप का पूजापाठ करते ह. आप को प र कृत करते ह. आप रा य क र ा क जए. आप मन क सेना पर हमला करने के लए थान करते ह. (६) क
ा नरः सनीडा
य मया अथा व ाः.. (७)
हे करने वाले मनु यो! हम जानकारी दे ने क कृपा क जए क एक ही आवास म रहने वाले अपने घोड़ वाले म द्गण के साथ का या संबंध है. (७) अ ने तम ा ं न तोमैः
तुं न भ
द पृशम् ऋ यामा त ओहैः.. (८)
हे अ न! आप घोड़ के समान ग तमान ह. हम ऊह तो गा रहे ह. यह ऊह तो दय को पश करने वाला है. आप क यशगाथा क बढ़ोतरी करने वाला है. (८) आ वमया आ वाजं वा जनो अ मं दे व य स वतुः सवम्. वगा अव तो जयत.. (९) स वता ने प र कृत सोमरस को हण कर लया है. वे तेज वी व मनु य के लए हतकारी ह. यजमान को उन से जीतने के लए घोड़े और वग क इ छा करनी चा हए. (९) पव य सोम ु नी सुधारो महाँ अवीनामनुपू ः.. (१०) हे सोम! आप काशमान ह. आप अ छ धारा से ोणकलश म झ रए. आप अपूव व महान ह. (१०)
दसवां खंड व तोदाव व तो न आ भर यं वा श व मीमहे.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप श ु का सवनाश करने वाले ह. आप हम भरपूर धन द जए. हम उसी के लए आप क उपासना करते ह. (१) एष
ा य ऋ वय इ ो नाम ुतो गृणे.. (२)
हे इं ! आप ाता ह. आप ऋतु के अनुकूल काय करते ह. आप का हम आप क उपासना करते ह. (२)
स
नाम इं है.
ाण इ ं महय तो अकरवधय हये ह तवा उ.. (३) बु
हे इं ! हम आप के य क बढ़ोतरी करते ह. हम अ ह रा स के नाश के लए पूवक रचे गए मं से आप क तु त करते ह. (३) अनव ते रथम ाय त ु व ा व ं पु
त ुम तम्.. (४)
हे इं ! कई ऋ ष मु न आप क उपासना करते ह. दे वता रथ बनाया है. व ा (दे वता के श पकार) ने आप के लए नमाण कया है. (४) शं पदं मघ
ने आप के घोड़ के लए ुमान (चमचमाते) व का
रयी षणो न कामम तो हनो त न पृश यम्.. (५)
यजमान दे वता क कृपा से धन व सुख क ा त करते ह. वे अ छे भवन क करते ह. जो य याग नह करते, उ ह इन सब क ा त नह होती है. (५)
ा त
सदा गावः शुचयो व धायसः सदा दे वा अरेपसः.. (६) हे यजमानो! गाएं प व व पाप र हत होती ह. वे सभी ा णय ( व ) का भरणपोषण करने वाली होती ह. (६) आ या ह वनसा सह गावः सच त वत न य ध भः.. (७) (७)
हे उषा! आप आइए. आप ध से भरे थन वाली गाय को वन से साथ ले कर पधा रए. उप
े मधुम त
य तः पु येम र य धीमहे त इ .. (८)
हे इं ! हम मधुयु च मच से झरता आ धनधा य पाएं. हम आप के पास रहने के लए इ छु क ह. हम आप से धन पाना चाहते ह. हम आप का यान धरते ह. (८) अच यक म तः वका आ तोभ त ुतो युवा स इ ः.. (९) हे म द्गण! आप उ म व काशमान ह. इं उपासना के यो य ह. हम उन क उपासना करते ह. इं जवान, स व श ुनाशक ह. (९) व इ ाय वृ ह तमाय व ाय गाथं गायत यं जुजोषते.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे यजमानो! आप वृ का नाश करने वाले इं के लए गाथाएं गाइए. आप ा ण के लए जन गाथा को गाएंग,े उ ह वे स हो कर सुनते ह. (१०)
यारहवां खंड अचे य न
क तह वाट् न सुम थः.. (१)
हे अ न! आप ह ववाहक, काशमान, ानवान ह. जैसे रथ नधा रत जगह ले जाता है, वैसे ही आप जन जन दे वता के लए जोजो व तु सम पत क जाती है, उसे उनउन दे वता तक प ंचाते ह. आप सव ाता ह. (१) अ ने वं नो अ तम उत ाता शवो भुवो व
यः.. (२)
हे अ न! आप हमारे समीप ह. आप र क, क याणकारी, संर क व उपासना के यो य ह. (२) भगो न च ो अ नमहोनां दधा त र नम्.. (३) हे अ न! आप महान व र न धारण करते ह. आप सूय जैसे ह और यजमान को सौभा यवान बनाते ह. (३) व
य
तोभ पुरो वा स य दवेह नूनम्.. (४)
हे अ न! आप सभी श ु रहते ह. (४)
के नाशक ह. आप य वेद पर न त
उषा अप वसु मः सं वतय त वत न
प से उप थत
सुजातता.. (५)
उषा अ छ तरह कट हो कर अपनी करण से अपनी बहन रात के अंधेरे को र करती है. वह अपना माग का शत करती है. (५) इमा नु कं भुवना सीषधेमे
व े च दे वाः.. (६)
इं और अ य सभी दे व क मदद से ऋ षगण इस भुवन को अपने अनुशासन (वश) म रखते ह. इस से संसार म सुख बना रहता है. (६) व ुतयो यथा पथा इ
व तु रातयः.. (७)
हे इं ! जैसे छोटे पथ राजपथ से मल जाते ह, वैसे ही आप क कृपा से सभी को धन क राह मलती है. (७) अया वाजं दे व हत
सनेम मदे म शत हमाः सुवीराः.. (८)
हम दे व हत ा त ह . हम अ व बल ा त हो. हम शतायु ह . हम स सुवीर ( े वीर) संतान मले. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रह. हम
ऊजा म ो व णः प वतेडाः पीवरी मषं कृणुही न इ .. (९) हे इं ! म और व ण हम ऊज वी धन दान करते ह. आप हमारे अ अ धक पौ क बनाने क कृपा क जए. (९) इ ो व इं
को और
य राज त.. (१०)
व क शोभा ह. (१०)
बारहवां खंड क केषु म हषो यवा शरं तु वशु म तृ प सोमम पब स ममाद म ह कम कतवे महामु सैन स य म म्.. (१)
णुना सुतं यथावशम्. स े वो दे व सय इ ः
उ म द गुण वाला सोमरस इं को ा त आ. श शाली इं ने व णु के साथ सोमरस को पीया. उस सोमरस म जौ का आटा मलाया. वह तृ तकारी और लोक म ा त था. उस ने इं को महान काय करने क भी ेरणा दान क . (१) अय सह मानवो शः कवीनां म त य त वधम. नः समीची षसः समैरयदरेपसः सचेतसः वसरे म युम त ता गोः.. (२) सूय हजार मनु य का हत करने वाले क व, दे खने यो य, काशमान व अंधकारभेदक ह. वे उषा को भेजते ह. उन के काश के सामने चं मा और सरे न क चमक फ क लगती है. (२) ए या प नः परावतो नायम छा वदथानीव स प तर ता राजेव स प तः. हवामहे वा य व तः सुते वा पु ासो न पतरं वाजसातये म ह ं वाजसातये.. (३) हे इं ! आप स जन के पालनहार ह. जैसे अ न य शाला म पधारते ह, वैसे ही आप हमारे पास पधारते ह. आप स प त ह. जैसे मन को हरा कर राजा घर आता है, वैसे ही आप अंत र लोक से हमारे पास पधारते ह. हम यु म मदद के लए उसी तरह आप का आ ान करते ह, जैसे अ ा द के लए पु पता को बुलाते ह. हम अ आ द भोग के साथ अ ा द क ा त के लए आप का आ ान करते ह. (३) त म ं जोहवी म मघवानमु स ा दधानम त कुत वा स भू र. म ह ो गी भरा च य यो ववत राये नो व ा सुपथा कृणोतु व ी.. (४) हे इं ! आप धनवान, उ व बलवान ह. आप को कोई नह हरा सकता है. सभी य म आप क पूजा क जाती है. हम भी आप क पूजा करते ह. हम वाणी से आप क उपासना करते ह. व धारी इं हमारे सभी पथ सुपथ बनाने क कृपा कर. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ तु ौषट् पुरो अ नं धया दध आ नु य छध द ं वृणीमह इ वायू वृणीमहे. य ाणा वव वते नाभा स दाय न से. अध नूनमुप य त धीतयो दे वाँ अ छा न धीतयः.. (५) हम यजमान ने बु पूवक अ न क य वेद म थापना क है. हम द अ न क उपासना करते ह. हम इं और वायु से भी अपनी तु त सुनने का अनुरोध करते ह. दोन दे व हम यश और धन दान करने क कृपा कर. हमारी ाथनाएं संबं धत दे व के पास ज र प ंचगी. हमारे सभी य संबंधी काय दे व के पास प ंचाने के लए ही कए जा रहे ह. (५) वो महे मतयो य तु व णवे म वते ग रजा एवयाम त्. शधाय य यवे सुखादये तवसे भ द द ये धु न ताय शवसे.. (६) हे इं ! आप महान ह. एवयाम त् (ऋ ष) आप क उपासना करते ह. एवयाम त् ऋ ष क तु तयां म द्गण तक प ंच. एवयाम त् ऋ ष क तु तयां व णु तक प ंच. यजमान का क याण हो. यजमान को सुखा द ा त हो. यजमान को म द्गण का बल ा त हो. (६) अया चा ह र या पुनानो व ा े षा स तर त सयु व भः सूरो न सयु व भः. धारा पृ य रोचते पुनानो अ षो ह रः. व ाय प ू ा प रया यृ व भः स ता ये भऋ व भः.. (७) हे सोम! आप का रस हरे रंग का है. प र कृत सोमरस श ुनाशक है. उस क धारा चमक ली और तमहारी (अंधकार र करने वाली) है. प र कृत हरी व लाल आभा वाला सोमरस चमकता आ शो भत होता है. उस क सात रंग वाली करण अनेक प धारण करती ह. (७) अ भ यं दे व स वतारमो योः क व तुमचा म स यवस र नधाम भ म तम्. ऊ वा य याम तभा अ द ुत सवीम न हर यपा णर ममीत सु तुः कृपा वः.. (८)
यं
हे स वता! हम आप क उपासना करते ह. आप क व, स यवान व अ यंत य ह. आप का काश पृ वीलोक से अंत र लोक तक फैलता है. आप सुनहरे काश वाले ह. आप हम य करने वाल पर अपनी कृपा बनाए रखते ह. (८) अ न होतारं म ये दा व तं वसोः सूनु सहसो जातवेदसं व ं न जातवेदसम्. य ऊ वया व वरो दे वो दे वा या कृपा. घृत य व ा मनु शु शो चष आजु ान य स पषः.. (९) हे अ न! आप को हम होता मानते ह. हम आप के दास ह. आप धनदाता, ानदाता व सव ाता ह. आप जैसे सव ाता और ा ण को हम आ त दान करते ह. हम अपने य म ऊ व (ऊंचे) लोक म रहने वाले दे व क कृपा चाहते ह. प व और काशमान आप को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम घी क आ त भट करते ह. आप स होइए. (९) तव य य नृतो ऽ प इ थमं पू द व वा यं कृतम्. यो दे व य शवसा ा रणा असु रण पः. भुवो व म यदे वमोजसा वदे ज शत तु वदे दषम्.. (१०) हे इं ! आप सव े , अपूव, द व मनु य के लए क याणकारी ह. वग म आप क शंसा होती है. आप ने श ुनाश कया. श ु को हराया. आप ने जल वा हत कया. आप सैकड़ कम करने वाले ह. आप सव ाता ह. आप अपने बल के साथ पधा रए. आप हमारी ह व वीकारने क कृपा क जए. (१०)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पवमान पव पांचवां अ याय पहला खंड उ चा ते जातम धसो द व सद्भू या ददे . उ
शम म ह वः.. (१)
हे सोम! वगलोक म आप के पोषक रस का ज म आ है. उसी वगलोक से आप मह वपूण सुख और चुर अ पृ वी पर प ंचाते ह. (१) वा द या म द या पव व सोम धारया. इ ाय पातवे सुतः.. (२) इं के लए सोमरस नचोड़ा गया है. हे सोम! आप रसीले ह. आप स ता दे ने वाले और वा द ह. आप क धाराएं नरंतर झर. (२) वृषा पव व धारया म वते च म सरः. व ा दधान ओजसा.. (३) हे सोम! आप गाढ़ गाढ़ धारा से यजमान के मटक म पधा रए. आप उन इं को स क जए, जन क म द्गण भी सेवा करते ह. आप इं क साम य और बढ़ाइए और यजमान क मनोकामनाएं पूरी क जए. (३) य ते मदो वरे य तेना पव वा धसा. दे वावीरघश
सहा.. (४)
हे सोम! आप का रस दे वता को ब त य, रा स का नाशक है. आप का रस ब त स तादायी है. आप इस रस के साथ कलश (मटक ) म पधा रए. (४) त ो वाच उद रते गावो मम त धेनवः. ह ररेत क न दत्.. (५) य के समय तीन वेद के मं गाए जाते ह. धा गाएं अपने दोहन के लए रंभाती ह. हरा सोमरस आवाज करता आ मटक म जाता है. (५) इ ाये दो म वते पव व मधुम मः. अक य यो नमासदम्.. (६) हे सोम! आप ब त मीठे ह. आप य शाला म पधा रए. आप इं के लए कलश म पधा रए (जाइए). (६) असा
शुमदाया सु द ो ग र ाः. यनो न यो नमासदत्.. (७)
हे सोम! आप पवत पर पैदा ए ह. आप को स ता के लए नचोड़ा जाता है. जल से ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आप क मा ा बढ़ाई जाती है. जैसे येन (बाज) प ी अपने थान पर थत रहता है, वैसे ही आप य म अपने नधा रत थान पर वरा जए. (७) पव व द साधनो दे वे यः पीतये हरे. म द् यो वायवे मदः.. (८) हे सोम! आप हरीहरी आभा वाले व श कलश म पधा रए. (८)
मान ह. दे व और म द्गण के पीने के लए
प र वानो ग र ाः प व े सोमो अ रत्. मदे षु सवधा अ स.. (९) यह सोमरस प व पा म छाना जा रहा है. यह पवत पर उ प होता है. आप सब से यादा आनंददायी ह. (९) पर
या दवः क ववया
स न यो हतः. वानैया त क व तुः.. (१०)
हे सोम! आप बु को बढ़ाने वाले और ानी ह. आप का रस नकालने के लए दो फलक ( वगलोक और पृ वी) के बीच म रखा जाता है. आप का रस नकाल कर य करने वाले अपना य साधते ह. (१०)
सरा खंड सोमासो मद युतः वसे नो मघोनाम्. सुता वदथे अ मुः.. (१) हे सोम! आप स ता बढ़ाने वाले ह. आप को ह व दे ने के लए नचोड़ा गया है. आप को अ और यश ा त के उद्दे य से इन कलश म भरा गया है. (१) सोमासो वप तो ऽ पो नय त ऊमयः. वना न म हषा इव.. (२) हे सोम! आप बु बढ़ाने वाले ह. आप पानी क लहर क तरह कलश म जाते ह. आप वन के पशु क तरह प व पा म पधारते ह. (२) पव वे दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने. व ा अप
षो ज ह.. (३)
हे सोम! आप बल और इ छा पू त के लए नचोड़े गए ह. आप हम यश वी बनाइए. आप हमारे सभी श ु को न क जए. (३) वृषा
स भानुना ुम तं वा हवामहे. पवमान व शम्.. (४)
हे सोम! आप इ छा पू त, प व करने वाले व काशमान ह. आप सब को एक नजर (समान ) से दे खते ह. हम इस य म आप को आमं त करते ह. (४) इ ः प व चेतनः
यः कवीनां म तः. सृजद
रथी रव.. (५)
हे सोम! आप चेतना दे ने वाले ह. आप सभी को य ह. व ान क तु त के साथ आप को पा म छाना जाता है. जैसे सारथी घोड़े को वश म रखता है, वैसे ही आप को धार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से वश म कर के कलश म भरा जाता है. (५) असृ त
वा जनो ग ा सोमासो अ या. शु ासो वीरयाशवः.. (६)
हे सोम! आप बलवान, बल दे ने वाले एवं वेगवान ह. यजमान ने गाय , घोड़ और पु को पाने क इ छा से आप को नचोड़ा है. (६) पव व दे व आयुष ग ं ग छतु ते मदः. वायुमा रोह धमणा.. (७) हे सोम! आप काशमान ह. आप छनने के लए पा म पधा रए. आप का आनंददायी रस इं को प ंचे. आप धारा के प म वायु को ा त क जए. (७) पवमानो अजीजन व
ं न त यतुम्. यो तव ानरं बृहत्.. (८)
सोम प व ए. उस के बाद उ ह ने वगलोक से सब को का शत कर सकने वाली यो त (वै ानर) को बजली क तरह चमकाया. (८) प र वानास इ दवो मदाय बहणा गरा. मधो अष त धारया.. (९) सोमरस नचोड़ने के बाद प व उसे छानते ह. (९)
ाथना
प र ा स यद क वः स धो माव ध
से यजमान तु त करते ए धारा म बांध कर तः. का ं ब
पु पृहम्.. (१०)
सोमरस बु बढ़ाने वाला है. अनेक लोग ारा चाहा गया है. लहर क तरह जल म मलता है. यह यजमान क इ छा से पा म छनछन कर चू रहा है. (१०)
तीसरा खंड उपो षु जातम तुरं गो भभ ं प र कृतम्. इ ं दे वा अया सषुः.. (१) सोमरस को पानी, गाय का ध और घी मला कर अ छ तरह तैयार कया गया है. यह श ुनाशक है. यह उ म सोमरस दे वता तक प ंचे. (१) पुनानो अ मीद भ व ा मृधो वचष णः. शु भ त व ं धी त भः.. (२) सोमरस बु बढ़ाने वाला, प व व सभी श ु सोम क तो से शोभा बढ़ाते ह. (२) आ वश कलश
सुतो व ा अष भ
यः. इ
पर आ मण करता है.
ानी उस
र ाय धीयते.. (३)
शु सोमरस नकाल लया गया है. यह कलश म भरा जा रहा है. यह इ छा पू त करने वाला सोमरस इं के लए भट कया जाता है. (३) अस ज र यो यथा प व े च वोः सुतः. का म वाजी य मीत्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जैसे रथ का घोड़ा छोड़ा जाता है, वैसे ही सोम को दो फलक से नचोड़ कर छानने वाले बरतन म छोड़ा जाता है. घोड़े क तरह वेगवान सोमरस य पी यु म जाता है. (४) यद्गावो न भूणय वेषा अयासो अ मुः. न तः कृ णामप वचम्.. (५) सोमरस वेगवान और काशवान है. वह अपनी काली छाल र कर के उसी तरह य म जाता है, जस तरह गाएं वेग से अपने बाड़े म जाती ह. (५) अप न पवसे मृधः
तु व सोम म सरः. नुद वादे वयुं जनम्.. (६)
सोमरस मदम त करने वाला, य के व ध वधान (कमकांड ) को जानने वाला और श ु का नाशक है. सोम दे वता को न चाहने वाले रा स को र करने वाला है. (६) अया पव व धारया यया सूयमरोचयः. ह वानो मानुषीरपः.. (७) हे सोम! आप मनु य का हत करने वाले व जल को बरसात के लए रे णा दे ने वाले ह. जस धारा से आप सूय को का शत करते ह, उसी धारा से आप इस पा म वेश क जए. (७) स पव व य आ वथे ं वृ ाय ह तवे. व वा
सं महीरपः.. (८)
हे सोम! आप जल रोकने वाले वृ ासुर को मारने के लए इं का उ साह बढ़ाइए. आप अपनी धारा से कलश को पूण कर द जए. (८) अया वीती प र व य त इ दो मदे वा. अवाह वतीनव.. (९) हे सोम! इं के भोग के लए आप कलश म छ नए. सोमरस शंबर रा स क न यानवे नग रय को तोड़ने का इं को साम य दान करता है. (९) पर ु
सन य भर ाजं नो अ धसा. वानो अष प व आ.. (१०)
हे सोम! आप का शत और दे ने यो य धन हम द जए. आप हम बल और अ दान क जए. आप का प व रस छनने के बाद मटक म बना रहे ( थरता से भरा रहे). (१०)
चौथा खंड अ च दद्वृषा ह रमहा म ो न दशतः. स
सूयण द ुते.. (१)
सोम कामना पूरी करते ह. वे हरे और हमारे महान म ह. वे सूय के समान का शत होते ह. नचोड़ते समय वे श द करते ह. (१) आ ते द ं मयोभुवं व म ा वृणीमहे. पा तमा पु पृहम्.. (२) हे सोम! आप बलदाता, सुखदाता, धनदाता, श ुनाशक व अनेक लोग ह. आज य म हम आप के उस बल को याद करते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा चाहे जाते
अ वय अ
भः सुत
सोमं प व आ नय. पुनाही ाय पातवे.. (३)
हे पुरो हतो! प थर से कूटकूट कर नचोड़े गए सोमरस को आप छान कर मटक म प ंचाइए. इं के पीने के लए आप सोमरस को शु बनाइए. (३) तर स म द धाव त धारा सुत या धसः. तर स म द धाव त.. (४) नचोड़ी गई सोमरस क धाराएं इं को स ता दे ने वाली ह. यह सोमरस जो इं को दे ता है, वह ऊ व (ऊंची) ग त पाता है. वह सभी पाप से पार हो जाता है. (४) आ पव व सह ण हे सोम! आप हजार अनु
रय
सोम सुवीयम्. अ मे वा
स धारय.. (५)
कार के े धन व अ हम दान क जए. (५)
नास आयवः पदं नवीयो अ मुः. चे जन त सूयम्.. (६)
पुराने समय म लोग ने े कया. (६)
थान पाने के लए सूय के समान तेज वी सोम को उ प
अषा सोम ुम मो ऽ भ ोणा न रो वत्. सीद योनौ वने वा.. (७) हे सोम! आप ब त काशमान एवं श द करते ए य पा म छनते ह. आप वन और य शाला म वरा जए. (७) वृषा सोम ुमाँ अ स वृषा दे व वृष तः. वृषा धमा ण द षे.. (८) हे सोम! आप बलवान, तेज वी व इ छा पू त के संक प वाले ह. आप बल बढ़ाने वाले इन गुण को धारण करने वाले ह. (८) इषे पव व धारया मृ यमानो मनी ष भः. इ दो चा भ गा इ ह.. (९) हे सोम! व ान् यजमान आप को नचोड़ते व छानते ह. हम अ रस ा त कराने के लए आप धारा के प म छनते ए कलश म पधा रए. आप गौ आ द पशु को ा त होइए. (९) म या सोम धारया वृषा पव य दे वयुः. अ ा वारे भर मयुः.. (१०) हे सोम! आप इ छा पूरी करने वाले व दे वता ारा चाहे गए ह. हम भी आप को चाहते ह. बाल से बनी छलनी से छ नए. आप आनंददायी धारा का प ध रए व संर ण द जए. (१०) अया सोम सुकृ यया महा स
यवधथाः. म दान इद् वृषायसे.. (११)
हे सोम! आप महान, अपने अ छे काय के कारण स माननीय व आनंददाता ह. आप बैल क तरह श दे ते ह. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अयं वचष ण हतः पवमानः स चेत त. ह वान आ यं बृहत्.. (१२) हे सोम! आप वशेष बु दे ने वाले ह. छान कर साफ बरतन म भरा जल मला आ सोमरस ब त आनंद व अ दे ता है. ब त लोग इस के गुण गाते ह. (१२) न इ दो महे तु न ऊ म न ब दष स. अ भ दे वाँ अया यः.. (१३) हे सोम! ब त धन पाने के लए हम मटक म आप को छानते ह. अया य ऋ ष दे व पूजन के लए आप क लहर को धारण करते ए गाते ह. (१३) अप न पवते मृधो ऽ प सोमो अरा णः. ग छ
य न कृतम्.. (१४)
हे सोम! आप श ु व धन न दे ने वाल के भी नाशक ह. सोम इं के पास जाने के लए छनछन कर टपक रहे ह. (१४)
पांचवां खंड पुनानः सोम धारयापो वसानो अष स. आ र नधा यो नमृत य सीद यु सो दे वो हर ययः.. (१) हे सोम! आप प व करने वाले व पानी के साथ मल कर जलधार के प म आप मटक म वेश करते ह. आप र न आ द क मती धन दे ने वाले और य मंडप म वराजमान होते ह. आप काशमान, दे वता का हत साधने वाले, सुंदर, चमक ले व बहने वाले ह. (१) परीतो ष चता सुत सोमो य उ म ह वः. दध वाँ यो नय अ वा ३ तरा सुषाव सोमम भः.. (२) हे सोम! आप दे वता के लए सव े ह व ह. आप मनु य का हत साधने वाले ह. आप को पुरो हत प थर के ारा नचोड़ते ह. हे यजमानो! आप इस सोमरस म जल मलाइए. (२) आ सोम वानो अ भ तरो वारा य या. जनो न पु र च वो वश रः सदो वनेषु द षे.. (३) हे सोम! प थर से कूट कर आप का रस नकाल लया जाता है. उस के बाद भेड़ के बाल से बनी छलनी से छाना जाता है. हरे रंग वाला सोमरस ोणकलश म ऐसे वेश करता है, जैसे नगर म पु ष. सोमरस लकड़ी के बरतन म वराजमान रहता है. (३) सोम दे ववीतये स धुन प ये अणसा. अ शोः पयसा म दरो न जागृ वर छा कोशं मधु तम्.. (४) हे सोम! दे वता
के पीने के लए आप को सधु के समान जल के साथ मलाया जाता
******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. आप आनंददायी होने के साथसाथ चेतना जगाने वाले भी ह. आप जल से मल कर मीठा रस बरसाने वाले बरतन म वरा जए. (४) सोम उ वाणः सोतृ भर ध णु भरवीनाम्. अ येव ह रता या त धारया म या या त धारया.. (५) यजमान सोमरस नचोड़ते ह. सोमरस भेड़ के बाल से बनी छलनी से छन कर नीचे कलश म गरता है. यह हरा और आनंददायी है. यह धारा से मटक म जाता है. (५) तवाह सोम रारण स य इ दो दवे दवे. पु ण ब ो न चर त मामव प रधी र त तां इ ह.. (६) हे सोम! हम आप क म ता म हर दन रमे रह. कई उन सब का नाश क जए. (६)
रा स हम क दे ते ह. आप
मृ यमानः सुह या समु े वाच म व स. र य पश ं ब लं पु पृहं पवमाना यष स.. (७) हे सोम! आप को अ छे हाथ क अ छ अंगु लय से नकाला गया है. आप प व करने वाले ह. आप कलश म जाते समय आवाज करते ह. आप आराधक को चाहा गया एवं पीला धन ( वण) दे ते ह. (७) अ भ सोमास आयवः पव ते म ं मदम्. समु या ध व पे मनी षणो म सरासो मद युतः.. (८) सोमरस वेगवान है. वह मन को भाने वाला है. सोमरस आनंददायी है. पानी से भरे मटक म साफ कर के सोमरस डाला जाता है. (८) पुनानः सोम जागृ वर ा वारैः प र यः. वं व ो अभवो ऽ र तम म वा य ं म म णः.. (९) हे सोम! आप जा त दे ने वाले, य व प व ह. आप भेड़ के बाल से बनी छलनी म छन कर नीचे गरते ह. आप अं गरस ऋ षय क परंपरा म सब से े ह. आप बु व क ह. आप हमारे इस य को प व क जए. (९) इ ाय पवते मदः सोमो म वते सुतः. सह धारो अ य मष त तमी मृज यायवः.. (१०) सोमरस आनंददायी है. वह साफ छाना आ है. वह म त से यु इं के लए तैयार कया जाता है. सोमरस अनेक धारा वाला है. यह छलनी म छन कर शु होता है. फर यजमान मं से इसे और शु करते ह. (१०) पव व वाजसातमो ऽ भ व ा न वाया. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व
समु ः थमे वधमन् दे वे यः सोम म सरः.. (११)
हे सोम! आप को सब तो से प व कया गया है. आप खासतौर पर अ , धन ा त कराने वाले व दे वता को आनंद दे ने वाले ह. आप को उ ह के लए खासतौर पर तैयार कया जाता है. (११) पवमाना असृ त प व म त धारया. म व तो म सरा इ या हया मेधाम भ या शु
स च.. (१२)
सोम म द्गण से यु , आनंददायी, इं के य व अ मय ह. य म काम आने वाला सोमरस प व हो कर पा म गरता है. (१२)
छठा खंड तु व प र कोशं न षीद नृ भः पुनानो अ भ वाजमष. अ ं न वा वा जनं मजय तो ऽ छा बह रशना भनय त.. (१) हे सोम! आप शी आइए. आप कलश म वरा जए. यजमान आप को प व करते ह. आप यजमान को अ व धन द जए. जैसे बलवान घोड़े क र सी अंगुली से पकड़ कर उस को शु कया जाता है, वैसे ही यजमान प व कर के आप को य शाला तक प ंचाते ह. (१) का मुशनेव व ु ाणो दे वो दे वानां ज नमा वव . म ह तः शु चब धुः पावकः पदा वराहो अ ये त रेभन्.. (२) यजमान उशना ऋ ष क तरह तो का पाठ करते ह. वे दे वता से संबं धत वृ ांत बताते ह. वे ती ह. सोमरस काशमान व प व कारी है. उ म सोमरस आवाज करते ए कलश म छनता है. (२) त ो वाच ईरय त व ऋत य धी त णो मनीषाम्. गावो य त गोप त पृ छमानाः सोमं य त मतयो वावशानाः.. (३) यजमान ऋ वेद, यजुवद और सामवेद के मं से सोम क तु त करते ह. उन क तु त ानमय है. वह तु त य को धारण करने वाली है. जैसे गाय के पास बैल जाते ह, वैसे ही आराधक उ म सुख क इ छा से सोम के पास तु त करने के लए जाते ह. (३) अ य ेषा हेमना पूयमानो दे वो दे वे भः समपृ रसम्. सुतः प व ं पय त रेभन् मतेव स पशुम त होता.. (४) सोमरस सोने से शु कया गया है. यह द और प व है. इसे दे वता को चढ़ाया जाता है. नचोड़ा गया सोमरस वैसे ही पा म जाता है, जैसे वाला गाय के बाड़े म जाता है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमः पवते ज नता मतीनां ज नता दवो ज नता पृ थ ाः. ज नता नेज नता सूय य ज नते य ज नतोत व णोः.. (५) सोमरस बु दायी, वगलोक को का शत करने वाला, पृ वी को पु करने वाला व आनंददायी है. वह अ न, इं और व णु को आनंद दे ने वाला है. इसे पा म तैयार कया जाता है. (५) अ भ पृ ं वृषणं वयोधाम ो षणमवावश त वाणीः. वना वसानो व णो न स धु व र नधा दयते वाया ण.. (६) सोम तीन थान — अंत र , वन प त और शरीर म वास करने वाले ह. वे श मान और अ दाता ह. उपासक ऊंची वाणी से उन क तु त करते ह. जल के दे वता व ण क तरह जल म मलने वाले सोम उपासक को धन दे ते ह. (६) अ ां समु ः थमे वधम जनयन् जा भुवन य गोपाः. वृषा प व े अ ध सानो अ े बृह सोमो वावृधे वानो अ ः.. (७) सोम जलमय ह. वे य के र क, इ छा पूरक और श से यादा उ साह और उ त दे ने वाले ह. (७)
वधक ह. वे यजमान को सब
क न त ह ररा सृ यमानः सीद वन य जठरे पुनानः. नृ भयतः कृणुते न णजं गामतो म त जनयत वधा भः.. (८) यजमान सब ओर से दबा व कूट कर सोमरस नकालते ह. वह हरा व प व है. वह लकड़ी के बरतन म गरता आ बारबार आवाज करता है. उसे गाय के ध म मलाया जाता है. इस से ह व बनाई जाती है. यजमान इस क तु त करते ह. (८) एष य ते मधुमाँ इ सोमो वृषा वृ णः प र प व े अ ाः. सह दाः शतदा भू रदावा श मं ब हरा वा य थात्.. (९) हे इं ! आप का य सोमरस इ छा पूरी करता है. आप के लए यह मधुर श दायी सोमरस छन रहा है. यह सैकड़ , हजार कार का धन दे ने वाला है. सोम ाचीन काल से ही य म जा कर वराजते ह. (९) पव व सोम मधुमाँ ऋतावापो वसानो अ ध सानो अ े. अव ोणा न घृतव त रोह म द तमो म सर इ पानः.. (१०) हे सोम! आप मधुर, जल म मलने वाले व ऊंचे थान पर वराजते ह. आप छन कर प व होते ह. आप आनंददायी व इं के लए जल म मल कर तैयार होते ह. (१०)
सातवां खंड ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सेनानीः शूरो अ ने रथानां ग े त हषते अ य सेना. भ ान् कृ व हवां स ख य आ सोमो व ा रभसा न द े.. (१) हे सोम! आप सेनानायक व वीर ह. आप यजमान के लए गौ आ द धन को दे ने क इ छा रखते ह. आप रथ के आगेआगे चलते ह. आप को दे ख कर सेना का हौसला बढ़ता है. आप म और यजमान के लए इं क ाथना को क याणकारी बनाते ह. आप तेज वी ह. (१) ते धारा मधुमतीरसृ वारं य पूतो अ ये य म्. पवमान पवसे धाम गोनां जनयं सूयम प वो अकः.. (२) हे सोम! जब आप भेड़ क ऊन को पार कर के छनते ए कलश म जाते ह तब आप क धाराएं आनंद बरसाती ह. प व हो कर आप तेज वी सूय दे व क तरह चमकने लगते ह. (२) गायता यचाम दे वा सोम हनोत महते धनाय. वा ः पवताम त वारम मा सीदतु कलशं दे व इ ः.. (३) हे यजमानो! हम सोम व अ य दे वता क तु त कर. हम ब त धन पाने क इ छा से अपनी तु तय से सोम को े रत कर. भेड़ के बाल से बनी छलनी से इस सोमरस को छान. वह घड़ म भरा रहे. (३) ह वानो ज नता रोद यो रथो न वाज स नष यासीत्. इ ं ग छ ायुधा स शशानो व ा वसु ह तयोरादधानः.. (४) सोम वगलोक और पृ वीलोक को उ प करने वाले ह. वे दोन लोक को ग त दे ने वाले ह. वे तेजी से इं के पास जाते ह. वे यजमान को ब त वैभव दे ने के लए आते ह. (४) त द मनसो वेनतो वाग् ये य धम ु ोरनीके. आद माय वरमा वावशाना जु ं प त कलशे गाव इ म्.. (५) तु त उ त क भावना लए व वचार से े रत होती है. उपासक क तु तयां य म दे वता का गुणगान करती ह. इस कार तैयार कर के सोमरस म गाय का ध मलाया जाता है. यह सोमरस सब के लए ब त पौ क होता है. (५) साकमु ो मजय त वसारो दश धीर य धीतयो धनु ीः. ह रः पय व जाः सूय य ोणं नन े अ यो न वाजी.. (६) कमठ (काम करने वाली) अंगु लयां सोमरस को तैयार व उस को शु करती ह. दस अंगु लयां बलशाली सोम को धारण करती ह. हरा सोमरस उसी तरह सभी दशा म जाता है, जैसे ग तशील घोड़ा. वह घड़े म भरा रहता है. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ध यद म वा जनीव शुभः पध ते धयः सूरे न वशः. अपो वृणानः पवते कवीया जं न पशुवधनाय म म.. (७) सोम को अपने करण पी आभूषण से सूय उसी तरह सजाते ह, जस तरह आभूषण से घोड़े को सजाया जाता है. उसे नकालने म अंगु लयां एक सरे से होड़ करती ह. जैसे वाला गाय को पोसने के लए गोशाला म ले जाता है, वैसे ही सोमरस को यजमान मटक म ले जाते ह. (७) इ वाजी पवते गो योघा इ े सोमः सह इ व मदाय. ह त र ो बाधते पयरा त व रव कृ व वृजन य राजा.. (८) सोमरस इं का बल बढ़ाने वाला, यजमान को धन दे ने वाला व श म राजा है. यादा आनंद के लए इसे छाना जाता है. यह का दलन करता है. यह रा स और श ु का नाश करने वाला है. (८) अया पवा पव वैना वसू न माँ व इ दो सर स ध व. न य वातो न जू त पु मेधा कवे नरं धात्.. (९) हे सोम! आप क धाराएं प व ह. आप हम धन दान करने क कृपा कर. जस कार सूय सृ के मूलाधार ह, वे वायु को बहाते ह वैसे ही आप वसतीवरी नामक घड़े म ब हए. बु शाली इं आप को ा त कर और हम अ छ संतान ा त कर. (९) मह सोमो म हष कारापां यद्गभ ऽ वृणीत दे वान्. अदधा द े पवमान ओजो ऽ जनय सूय यो त र ः.. (१०) सोम महान ह. वे महान काय करने वाले ह. वे गभ म जल धारण करते ह. वे दे वता को पालते ह. वे इं को बलशाली और सूय को तेज वी बनाते ह. (१०) अस ज व वा र ये यथाजौ धया मनोता थमा मनीषा. दश वसारो अ ध सानो अ े मृज त व सदने व छ.. (११) जस कार यु म घोड़े भेजे जाते ह, वैसे ही सोमरस म जल भेजा ( मलाया) जाता है. दस अंगु लयां सोम को भेड़ के बाल से बनी छलनी म छानती ह. यह सोम सभी को े धन दान कराता है. (११) अपा मवे म य ततुराणाः मनीषा ईरते सोमम छ. नम य ती प च य त सं चाच वश युशती श तम्.. (१२) तेजी से उठने वाली लहर क तरह यजमान क तु तयां उठती ह. यजमान ज द से ज द अपनी तु त दे वता के पास प ंचाना चाहते ह. तु तयां दे वता क शंसा करती ह, उन के पास प ंचती ह और उ ह म एकमेक हो जाती ह. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आठवां खंड पुरो जती वो अ धसः सुताय माद य नवे. अप ान थ न स नखायो द घ ज यम्.. (१) हे यजमानो! आप के आगे आनंददायी सोमरस रखा आ है. लंबीलंबी जीभ वाले कु े इस के पास जाना चाहते ह. आप उन कु को र भगाओ. (१) अयं पूषा र यभगः सोमः पुनानो अष त. प त व य भूमनो य ोदसी उभे.. (२) सोमरस पोषक, पीने यो य व शोभादायी है. वह छन कर बरतन म गरता है. वह सभी ा णय का पालनहार है. वह वगलोक तथा पृ वीलोक दोन को अपने काश से का शत करता है. (२) सुतासो मधुम माः सोमा इ ाय म दनः. प व व तो अ रन् दे वान् ग छ तु वो मदाः.. (३) इं के लए मीठा और मादक सोमरस तैयार कया जाता है. हे सोम! आप का यह आनंददायी रस दे वता तक अव य प ंचे. (३) सोमाः पव त इ दवो ऽ म यं गातु व माः. म ाः वाना अरेपसः वा यः व वदः.. (४) सोम सभी रा त को भलीभां त जानने वाले ह. वे म के समान ह. सोम आ म ाता, मन को पाप र हत करने वाले व उस को एका करने वाले ह. उस को हमारे लए छाना जाता है. (४) अभी नो वाजसातम र यमष शत पृहम्. इ दो सह भणसं तु व ु नं वभासहम्.. (५) हे सोम! सैकड़ लोग आप क शंसा करते ह. आप हजार जीव के पालनहार व ब त अ , धन और काश वाले ह. आप हम बु शाली और बलशाली पु दान क जए. (५) अभी नव ते अ हः य म व सं न पूव आयु न जात
य का यम्. रह त मातरः.. (६)
गाएं जैसे बछड़ को चाटती ह, वैसे ही जल सोमरस म मलते ह. वे कसी कार का व ोह नह करते. वे इं को चाहने वाले सोमरस म मल जाते ह. (६) आ हयताय धृ णवे धनु व त पौ
यम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
शु ा व य यसुराय न णजे वपाम े महीयुवः.. (७) यो ा जैसे धनुष पर डोरी चढ़ाते ह, वैसे ही यजमान सोमरस को छानते ह. सोम श ु को हराने वाले और पूजनीय ह. गाय का ध मला कर सोमरस को और े बनाया जाता है. (७) पर य हयत ह र ब ुं पुन त वारेण. यो दे वा व ाँ इ प र मदे न सह ग छ त.. (८) सोमरस हराभरा और सुंदर है. उसे भेड़ के बाल से बनी छलनी से छाना जाता है. यह आनंददायी गुण वाला है. यह अपने इ ह गुण के साथ इं और अ य दे व के पास जाता है. (८) सु वानाया धसो मत न व त चः. अप ानमराधस हता मखं न भृगवः.. (९) छाने जाने के समय सोम के वचन ( व न को) व न पैदा कर के संतोष पाने वाले लोग न सुन. भृगु नामक ऋ ष ने जैसे मख नामक रा स को य थल से र हटा दया था, वैसे ही यजमान य थल के पास आने के इ छु क कु को हटा द. (९)
नौवां खंड अ भ या ण पवते चनो हतो नामा न य ो अ ध येषु वधते. आ सूय य बृहतो बृह ध रथं व व चम ह च णः.. (१) हे सोम! आप द वाले ह. सूय का रथ सब जगह जा सकता है. आप उस रथ पर वराजमान होते ह और सारे संसार को दे खते ह. आप य जल म मलते ह एवं अ को बढ़ाते ह. आप ापक होते ए बहते ह. (१) अचोदसो नो ध व व दवः वानासो बृहद्दे वेषु हरयः. व चद ाना इषयो अरातयो ऽ य नः स तु स नष तु नो धयः.. (२) हे सोम! आप सर से े रत नह होते. आप का रस हरा है. आप को व धवत नचोड़ा जाता है. आप हमारे य म पधा रए. आप य और यजमान के मन तथा दान न दे ने वाले लोग को अ क इ छा होने पर भी अ , धन मत द जए. हमारी ाथनाएं जन जन दे वता के लए ह, वे उनउन दे वता तक प ंच. (२) एष कोशे मधुमाँ अ च द द य व ो वपुषो वपु मः. अ यृ ३ त य सु घा घृत तो वा ा अष त पयसा च धेनवः.. (३) हे सोम! आप का रस इं के व क भां त ब त ही बलवान और मीठा है. यह रस व न करता आ ोणकलश म वेश करे. सोमरस क धाराएं फल को मधुर बनाने वाली, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जल बरसाने वाली व धा
गाय के समान आवाज करने वाली ह. (३)
ो अयासी द र य न कृत सखा स युन मना त स रम्. मय इव युव त भः समष त सोमः कलशे शतयामना पथा.. (४) यह सोमरस इं के पेट म प ंचता है. म क तरह सोम इं को कसी भी कार का कोई क नह दे ते. युवक जैसे युव तय के साथ घुल मल कर रहता है, वैसे ही सोमरस जल के साथ घुल मल कर रहता है. वह छलनी के अनेक छे द से छनछन कर मटके म जाता है. (४) धता दवः पवते कृ ो रसो द ो दे वानामनुमा ो नृ भः. ह रः सृजानो अ यो न स व भवृथा पाजा स कृणुषे नद वा.. (५) सोमरस सब को धारण कर सकता है. यह कम करने वाला और दे वता क श बढ़ाने वाला है. यह छनछन कर घड़े म वेश करता है. श शाली यजमान इस को नचोड़ते ह. यह श शाली घोड़े क तरह वेग से न दय के जल म वयं को मला लेता है. (५) वृषा मतीनां पवते वच णः सोमो अ ां तरीतोषसां दवः. ाणा स धूनाँ कलशाँ अ च द द य हा ा वश मनी ष भः.. (६) सोम सब क इ छा पूरी करने वाले, वशेष कृपा रखने वाले, उषा और सूय क श बढ़ाने वाले ह. व ान् यजमान इसे छानते ह. न दय का जल मला कर इसे तैयार कया गया है. इं के पेट म प ंचने के लए यह श द करता आ घड़े म वेश करता है. (६) र मै स त धेनवो रे स यामा शरं परमे ोम न. च वाय या भुवना न न णजे चा ण च े य तैरवधत.. (७) सोम े य म नवास करने वाले ह. इन के लए इ क स गाएं नय मत प से शु ध दे ती ह. चार लोक के जल, शु ध होने के लए क याणकारी प से बहते ह. (७) इ ाय सोम सुषुतः प र वापामीवा भवतु र सा सह. मा ते रस य म सत या वनो वण व त इह स व दवः.. (८) हे सोम! भलीभां त आप का रस नकाला जाता है. आप को इं के लए तैयार कया गया है. रोग और रा स आप के पास न फटक. जो पापी लोग झूठा और स चा दोन तरह का वहार करते ह, उन पर आप क कृपा न हो. आप हम इस य म धन दान क जए. (८) असा व सोमो अ षो वृषा हरी राजेव द मो अ भ गा अ च दत्. पुनानो वारम ये य य येनो न यो न घृतव तमासदत्.. (९) सोमरस काशमान, श
व क और हरा है. वह राजा के समान सुंदर और दे खने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो य है. गाय का ध मलाने और छानने के समय यह आवाज करता है. भेड़ के बाल से बनी छलनी से छान कर इसे साफ कया जाता है. यह जलमय है. येन प ी के समान यह घड़े म थत रहता है. (९) दे वम छा मधुम त इ दवो ऽ स यद त गाव आ न धेनवः. ब हषदो वचनाव त ऊध भः प र ुतमु या न णजं धरे.. (१०) सोमरस मीठा है. इसे दे वता के लए तैयार कया जाता है. धा गाएं जैसे अपने बछड़ के पास जाती ह, वैसे ही सोमरस कलश म जाता है. य मंडप म गाएं इं के लए अपने तन से टपकने वाले ध म सोमरस धारण करती ह. (१०) अ ते ते सम ते तु स धो छ् वासे पतय तमु ण
रह त म वा य ते. हर यपावाः पशुम सु गृ णते.. (११)
यजमान सोमरस म गाय के ध को एकमेक कर के मलाते ह. दे वतागण सोमरस का आनंद लेते ह. यजमान इस सोमरस म गाय का घी और शहद मलाते ह. नद के जल म रहने वाले सोम को सोने से शु कर के चमकाया जाता है. (११) प व ं ते वततं ण पते भुगा ा ण पय ष व तः. अत ततनून तदामो अ ुते शृतास इ ह तः सं तदाशत.. (१२) हे सोम! आप ान के वामी ह. आप अपने प व अंग से सव ापक व साम यवान ह. आप पीने वाले को बल ( फू त) दे ते ह. जस ने तप, त आ द से अपने को नह तपाया, उस पर आप कृपा नह करते. तपाने या प रप व होने के बाद ही उपासक यजमान पर आप क कृपा होती है. (१२)
दसवां खंड इ म छ सुता इमे वृषणं य तु हरयः. ु े जातास इ दवः व वदः.. (१) सोमरस ब त ज द तैयार कया गया है. यह ान क बढ़ोतरी करने वाला और हरा है. यह शी ही इ छा पूण करने वाले श मान इं के पास प ंचे. (१) ध वा सोम जागृ व र ाये दो प र व. ुम त
शु ममा भर व वदम्.. (२)
हे सोम! आप उ साह और फुत दे ने वाले ह. आप इं के पीने के लए इस कलश म वेश क जए. आप हम काशवान और ानवान बनाइए. (२) सखाय आ न षीदत पुनानाय
गायत. शशुं न य ैः प र भूषत
ये.. (३)
हे यजमानो! आप हमारे म ह. आप आइए व बै ठए. आप सोम को छानते समय क जाने वाली तु त गाइए. जैसे ब चे को आभूषण से सजाया जाता है, वैसे ही आप ह व और ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य के अ य साधन से सोम को सजाइए. (३) तं वः सखायो मदाय पुनानम भ गायत. शशुं न ह ैः वदय त गू त भः.. (४) हे म यजमानो! आप स ता बढ़ाने के लए सोम क तु त क जए. आप छानते ए सोम क तु त क जए. आप बालक को सजाने क तरह ह वय से इ ह सजाइए. (४) ाणा शशुमहीना
ह व ृत य द ध तम्. व ा प र
या भुवदध
ता.. (५)
सोम आदरणीय जल के पु ह. ये य को का शत और प रपूण करने वाले ह. इन का रस सभी ह वय म रहता है. ये वगलोक और पृ वीलोक दोन म रहते ह. (५) पव व दे ववीतय इ दो धारा भरोजसा. आ कलशं मधुमा सोम नः सदः.. (६) हे सोम! दे वता के पीने के लए आप ज द से धाराधार हो कर छ नए. आप मदकारी ह. आप हमारे कलश म वरा जए. (६) सोमः पुनान ऊ मणा ं वारं व धाव त. अ े वाचः पवमानः क न दत्.. (७) सोमरस प व और छना आ है. छनने म आवाज करता आ वह भेड़ के बाल से बनी छलनी से छनता जाता है. (७) पुनानाय वेधसे सोमाय वच उ यते. भृ त न भरा म त भजुजोषते.. (८) प व तथा कम करने वाले सोम के लए ाथनाएं क जाती ह. सेवक क सेवा से जैसे हम स हो जाते ह, वैसे ही वशेष ाथना से हम उन को स कर. (८) गोम इ दो अ व सुतः सुद ध नव. शु च च वणम ध गोषु धारय.. (९) हे सोम! आप श मान ह. रस नचोड़ने के बाद आप हम गोधन और अ धन द जए, फर गाय के ध म मल कर आप सफेद रंग वाले हो जाइए. हम सब तरह से आप क तु त करते ह. (९) अ म यं वा वसु वदम भ वाणीरनूषत. गो भ े वणम भ वासयाम स.. (१०) हे सोम! आप धनदाता ह. हम धन द जए. हम आप क तु त करते ह. हम आप के रस को गोरस म मलाते ह. (१०) पवते हयतो ह रर त
रा
सर
ा. अ यष तोतृ यो वीरव शः.. (११)
हे सोम! आप मनोहर व हरे रंग के ह. आप छनते जाइए. न छनने वाले भाग को छलनी म रहने द जए. आप हम उपासक को यश वी पु द जए. (११) प र कोशं मधु त अ भ वाणीऋषीणा
सोमः पुनानो अष त. स ता नूषत.. (१२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
प व सोमरस छनछन कर घड़े म टपकता और अपना मीठा रस ोणकलश म प ंचाता है. सात छं द (पद ) वाली ऋ षय क वाणी सोम क तु त करती है. (१२)
यारहवां खंड पव व मधुम म इ ाय सोम
तु व मो मदः. म ह ु तमो मदः.. (१)
हे सोम! आप अ यंत मधुर ह. आप य के बारे म सब कुछ जानने वाले ह. आप सव म, काशमान व तेज वी ह. आप इं को आनंद दे ने के लए प व होइए. (१) अ भ ु नं बृह श इष पते दद ह दे व दे वयुम्. व कोशं म यमं युव.. (२) हे सोम! आप अ के वामी, काशमान, तु त व दे वता के पीने (पाने) यो य ह. आप हम यश और बल द जए. आप ोणकलश को लबालब भर द जए. (२) आ सोता प र ष चता ं न तोमम तुर
रज तुरम्. वन
मुद ुतम्.. (३)
हे यजमानो! सोम घोड़े जैसे वेगवान व तु त करने यो य ह. वे पानी क तरह वहमान (बहने वाले) ह तथा काश क करण क तरह कह भी शी प ंचने वाले ह. आप सोमरस को नचो ड़ए और उसी म जल मलाइए. उस के बाद उसे गो ध से स चए. (३) एतमु यं मद युत
सह धारं वृषभं दवो हम्. व ा वसू न ब तम्.. (४)
सोमरस स तादायी है, कई धारा से ोणकलश म झरता है, श तथा सभी धन का वामी है. व ान् यजमान सोमरस नचोड़ते ह. (४)
बढ़ाने वाला है
स सु वे यो वसूनां यो रायामानेता य इडानाम्. सोमो यः सु तीनाम्.. (५) सोम धन, ध आ द रस व श सोमरस नचोड़ते ह. (५) वं
ा३
के वामी ह. ये े संतान दे ने वाले ह. यजमान े
दै ं पवमान ज नमा न ुम मः अमृत वाय घोषयन्.. (६)
हे सोम! आप प व , पूजनीय व काशवान ह. आप दे वता के बारे म सब कुछ जानते ह. आप उन क अमरता क घोषणा करते ह. आप यजमान से उन क तु त कराते ह. (६) एष य धारया सुतो ऽ
ा वारे भः पवते म द तमः.
ळ ू मरपा मव.. (७)
सोम अ यंत आनंददायी ह. ये जल क लहर क तरह खेलतेकूदते ह. सोमरस को भेड़ के बाल से बनी छलनी से कलश म धार बना कर छाना जाता है. (७) य उ या अ प या अ तर म न नगा अकृ तदोजसा. अ भ जं त नषे ग म ं वम व धृ पवा ज.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम बादल म जल को छ भ करते ह. वे बादल फैलाने वाले और जल को धारण करने वाले ह. वे रा स ारा हरे गए गाय और घोड़ को घेर लेते ह. वे श ुनाशक ह. कवचधारी वीर के समान सोम श ु को मार दे ते ह. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आर यक पव छठा अ याय पहला खंड इ ये ं न आ भर ओ ज ं पुपु र वः. य धृ ेम व ह त रोदसी उभे सु श प ाः.. (१) हे इं ! आप व पा ण (हाथ म व धारण करने वाले) ह. आप सुंदर ठु ड्डी वाले ह. आप हम यश और बलदायी अ दान क जए. आप हम वगलोक और पृ वीलोक दोन को पु बनाने वाला धन दान क जए. (१) इ ो राजा जगत षणीनाम ध मा व पं यद य. ततो ददा त दाशुषे वसू न चोद ाध उप तुतं चदवाक्.. (२) इं चराचर व पृ वी क सभी व तु और धन के वामी ह. वे दानदाता को सब कार का धन दे ते ह. अ छ तरह तु त कए जाने पर वे पया त धन दे ते ह. (२) य येदमा रजोयुज तुजे जने वन
वः. इ
य र यं बृहत्.. (३)
तेज वी इं का दान दा नय और वग दोन म शंसनीय है. इं का दान संतोष दे ने वाला है. (३)
े और
उ मं व ण पाशम मदवाधमं व म यम थाय. अथा द य ते वयं तवानागसो अ दतये याम.. (४) हे व ण! आप ऊपर और नीचे क ओर के बंधन को हम से र क जए. आप हमारे सारे बंधन को श थल क जए. जस से हम आप के व ध वधान के अनुसार चल कर पाप और क र हत जीवन जी सक. (४) वया वयं पवमानेन सोम भरे कृतं व चनुयाम श त्. त ो म ो व णो मामह ताम द तः स धुः पृ थवी उत ौः.. (५) हे सोम! आप जग को प व करने वाले ह. आप क मदद से हम यु म अपना कत भलीभां त नबाह सक. अ द त, म , व ण, पृ वी, सधु दे वता तथा वगलोक हम यश वी बनाने क कृपा कर. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमं वृषणं कृणुतैक म माम्.. (६) हे दे वताओ! आप इस सोम को बलवान बनाइए, ता क वे हमारी मनोकामनाएं पूरी कर सक. हम बलवान बना सक. (६) स न इ ाय य यवे म
यः व रवो व प र व.. (७)
हे सोम! आप धनदाता व पूजनीय ह. आप इं , म द्गण और व ण के लए धारा के प म टप कए. (७) एना व ा यय आ ु ना न मानुषाणाम्. सषास तो वनामहे.. (८) सोम क कृपा से मनु य के लए चाहे गए सभी कार के धन हम ा त ह . हम उन धन के े उपयोग क इ छा रखते ह. (८) अहम म थमजा ऋत य पूव दे वे यो अमृत य नाम. यो मा ददा त स इदे वमावदहम म मद तम .. (९) म (अ ) सभी दे वता से पहले उ प आ ं. म वनाशर हत ं. जो अ छे पा को मेरा दान करता है, वह सब का क याण करता है. जो कसी को दान नह करता है, अकेला ही अ खाता है, उसे म समा त कर दे ता ं. (९)
सरा खंड वमेतदधारयः कृ णासु रो हणीषु च. प णीषु श पयः.. (१) हे इं ! काली, लाल और अनेक रंग वाली गाय म (सब म) आप ने एक जैसा चमचमाता सफेद ध था पत कया है. हम आप के इस आ यजनक साम य क शंसा करते ह. (१) अ च षसः पृ र य उ ा ममे त भुवनेषु वाजयुः. माया वनो म मरे अ य मायया नृच सः पतरो गभमादधुः.. (२) उषा के संबंधी सूय खास ह. वे वयं काशमान और सब को का शत करने वाले ह. वे ही जल बरसाने वाले मेघ का प भी ह. वे ही आकाश म गजना करते ह. बु मान दे वता ने बु से इस जग को रचा. मनु य को दे खने वाले पतर ने माता के पेट (गभ) म इसे था पत कया. (२) इ
इ य ः सचा स म
आ वचोयुजा. इ ो व ी हर ययः.. (३)
इं के संकेत (इशारे) मा से घोड़े एक साथ रथ म जुत जाते ह. इं व धारी व आभूषणधारी ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ
वाजेषु नो ऽ व सह
धनेषु च. उ उ ा भ
त भः.. (४)
हे इं ! आप अ यंत बलवान ह. आप को कोई नह हरा सकता. आप छोटे और बड़े सभी कार के यु म हमारी र ा क जए. (४) थ य य स थ नामानु ु भ य ह वषो ह वयत्. धातु ुताना स वतु व णो रथ तरमा जभारा व स ः.. (५) व स के पु थ एवं भर ाज के पु स थ के लए अनु ु प् छं द म तु त करते ह. उन के लए े ह व सम पत करते ह. व स ऋ ष ने रथंतर नामक सोम को धाता और सब को उ प करने वाले व णु से ा त कया. (५) नयु वा वायवा ग य
शु ो अया मते. ग ता स सु वतो गृहम्.. (६)
हे वायु! आप अपने वाहन से पधा रए. आप के लए चमकता आ सोमरस तैयार कया गया है. आप व ध वधान से सोमरस तैयार करने वाले यजमान के घर पधारते ह. आप हमारे यहां पधा रए. (६) य जायथा अपू
मघव वृ हयाय. त पृ थवीम थय तद त ना उतो दवम्.. (७)
हे इं ! आप अ यंत वैभवशाली व अपूव ह. वृ ासुर के नाश के समय आप ने पृ वी को ढ़ और व तृत कया. वगलोक को भी भलीभां त थर कया. आप क साम य अद्भुत है. (७)
तीसरा खंड म य वच अथो यशो ऽ थो य य य पयः. परमे ी जाप त द व ा मव हतु.. (१) जा का पालन करने वाले जाप त वगलोक म नवास करते ह. वे हम आ म ान व यश दे ने क कृपा कर. वे हम य से संबध ं रखने वाली उ म ह व और अ साम ी दान करने क कृपा कर. (१) सं ते पया स समु य तु वाजाः सं वृ या य भमा तषाहः. आ यायमानो अमृताय सोम द व वा यु मा न ध व.. (२) हे सोम! आप श ुनाशक ह. आप ह व के लए नधा रत ध साम ी ा त क जए. अमरता पाने के लए आप वगलोक म े अ और े बल को ा त क जए. (२) व ममा ओषधीः सोम व ा वमपो अजनय वं गाः. वमातनो वा ३ त र ं वं यो तषा व तमो ववथ.. (३) हे सोम! आप ने पृ वीलोक म मौजूद सारी ओष धय को उ प ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया है. आप ने जल
को उ प कया है. आप ने गाय को उ प ने अंधकार को र कया है. (३) अ नमीळे पुरो हतं य
कया है. आप ने आकाश को फैलाया है. आप
य दे वमृ वजम्. होतार
र नधातमम्.. (४)
हम यजमान संसार का क याण करने क इ छा रखते ह. हम अ न क तु त करते ह. वे य म दे वता के त ह. हम य म अ न व लत करते ह. वे हम सुख और ऐ य दान करते ह. (४) ते म वत थमं नाम गोनां ः स त परमं नाम जानन्. ता जानतीर यनूषत ा आ वभुव णीयशसा गावः.. (५) ऋ षय ने सब से पहले यह जाना क वाणी के श द पूजनीय ह. उस के बाद उ ह ने सात के तगुने यानी इ क स छ द म तो होते ह, यह ान ा त कया. उस के बाद वाणी से उषा क तु त क . उस के बाद सूय के तेज के साथ ही काशमान अ य तु तयां (वा णयां) उ प . (५) सम या य युपय य याः समानमूव न पृण त. तमू शु च शुचयो द दवा समपा पातमुप य यापः.. (६) बरसात का पानी जमीन पर गर कर जमीन के पानी के साथ मल जाता है. ये दोन पानी नद का प धारण कर लेते ह और समु म मल जाते ह. वहां ये पानी समु अ न को आनंद दे ते ह. इसी कार सोमरस पानी म मल कर आनं दत करता है. (६) आ ागा ा युव तर ः केतू समी स त. अभूदभ ् ा नवेशनी व य जगतो रा ी.. (७) सूय क करण को समेटने वाली रा पी ी आ गई है. यह सारे संसार को आराम दे ने वाली है. यह सारे संसार का क याण चाहने वाली है. (७) य वृ णो अ ष य नू महः नो वचो वदथा जातवेदसे. वै ानराय म तन से शु चः सोम इव पवते चा र नये.. (८) अ न सव ा त व काशमान ह. हम उन क तु त करते ह. हम य म उन के लए तो गाते ह. वे सभी मनु य का हत करने वाले ह. उन के पास तो वैसे ही जाते ह, जैसे य म सोम जाते ह. (८) व े दे वा मम शृ व तु य मुभे रोदसी अपां नपा च म म. मा वो वचा स प रच या ण वोच सु ने व ो अ तमा मदे म.. (९) सभी दे वगण हमारे पूजनीय तो को सुनने क कृपा कर. वगलोक और पृ वीलोक दोन हमारे तो को सुनने क कृपा कर. अ न हमारे तो सुन. हम कभी भी अ य और ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या य वाणी न बोल. हम दे वता (९)
क कृपा म रह. उन के ारा दए गए सुख से सुखी रह.
यशो मा ावापृ थवी यशो मे बृह पती. यशो भग य व दतु यशो मा तमु यताम्. यशसा ३ याः स सदो ऽ हं व हता याम्.. (१०) हम यजमान को वगलोक और पृ वीलोक का यश ा त हो. हम इं और बृह प त का यश भी ा त हो. सूय का यश मुझे मले. यह यश कभी हम से मुंह न मोड़े. इस सभा म मुझे यश मले. इस म म वचार करने क अ छ मता (दे वता क कृपा से) पा जाऊं. (१०) इ य नु वीया ण वोचं या न चकार थमा न व ी. अह हम वप ततद व णा अ भन पवतानाम्.. (११) इं व धारी और श शाली ह. वे बादल को भेद कर बरसात करने वाले ह. उ ह ने न दय के तट बना कर पवत से जल बहाया. म उन के इन अ छे काम का बारबार वणन करता ं. (११) अ नर म ज मना जातवेदा घृतं मे च ुरमृतं म आसन्. धातुरक रजसो वमानो ऽ ज ं यो तह वर म सवम्.. (१२) म (आ मा) ज म से ही अ न व प ं. सब कुछ जानने वाला ं, काशमान ं. मुंह म अमरता दे ने वाली वाणी है. म ाण, अपान, ान इन तीन कार का ाण ,ं आकाश को नापने वाला वायु ं, काशमान सूय ं, सभी क ह व ं. (१२) पा य न वपो अ ं पदं वेः पा त य रण सूय य. पा त नाभा स तशीषाणम नः पा त दे वानामुपमादमृ वः.. (१३) अ न दे व सव ापक ह. वे पृ वी के मु य थान क र ा करते ह. वे महान ह. वे सूय के माग व अंत र क र ा करते ह. वे अंत र लोक म म द्गण व दे वता को य लगने वाले य क र ा करते ह. वे सुंदर तथा दशनीय ह. (१३)
चौथा खंड ाज य ने स मधान द दवो ज ा चर य तरास न. स वं नो अ ने पयसा वसु व य वच शे ऽ दाः.. (१) हे अ न! आप चमचमाते ह. आप का मुख का शत है. उस मुख म जीभ अ न क वाला म डाली गई ह व खाती है. आप धन दे ने वाले ह. आप अ व रमणीय धन द जए. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वस त इ ु र यो ी म इ ु र यः. वषा यनु शरदो हेम तः श शर इ ु र यः.. (२) वसंत ऋतु लुभावनी है. ी म ऋतु लुभावनी है. वषा, शरद, हेमंत और श शर ऋतुएं भी लुभावनी ह. (२) सह शीषाः पु षः सह ा ः सह पात्. स भू म सवतो वृ वा य त शाङ् गुलम्.. (३) पूण पु ष हजार सर वाला है. वह हजार आंख वाला है, हजार पैर वाला है. वह सारे ांड को घेर सकने म समथ है. फर भी वह बाक रहता है. (३) पा व उदै पु षः पादो ऽ येहाभव पुनः. तथा व वङ् ामदशनानशने अ भ.. (४) पूण पु ष तीन पैर वाला है. वह ऊंचे थान पर वास करता है. इस पूण पु ष से ही सारा संसार पैदा होता है. चेतन और अचेतन सभी म इसी पूण पु ष का व तार है. यह व वध व प वाला है. यह सव ा त है. (४) पु ष एवेद सव यद्भूतं य च भा म्. पादो ऽ य सवा भूता न पाद यामृतं द व.. (५) भूत, वतमान और भ व य तीन का कता पूण पु ष ही है. इस के तीन पैर अमर वगलोक म ह. इस के शेष चौथे चरण म सारे ाणी ह. (५) तावान य म हमा ततो यायाँ
पू षः. उतामृत व येशानो यद ेना तरोह त.. (६)
पूण पु ष जड़चेतन और सम त पृ वी से भी व तृत (बड़ा) है. वह अमरता का वामी है. अ से बढ़ने वाले ा णय का भी वामी है. (६) ततो वराडजायत वराजो अ ध पू षः. स जातो अ य र यत प ाद्भू ममथो पुरः.. (७) उस पु ष से वराट् ( ांड) पु ष उ प आ. उस से अ य पु ष उ प बाद उस ने पशुप य और अ य जीव को उ प कया. (७)
ए. उस के
म ये वां ावापृ थवी सुभोजसौ ये अ थेथाम मतम भ योजनम्. ावापृ थवी भवत योने ते नो मु चतम हसः.. (८) हे वगलोक और पृ वीलोक! आप हमारे पालनहार ह. हम आप को इसी प म जानते ह. आप हमारा अपार वैभव बढ़ाइए. हे वगलोक और पृ वीलोक के दे वता! आप हम सुख द जए. आप हम पाप से र क जए. (८) हरी त इ म ू युतो ते ह रतौ हरी. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं वा तुव त कवयः प षासो वनगवः.. (९) हे इं ! आप क दाढ़ मूंछ हरी ह. आप के घोड़े भी हरे ह. आप व ान् क वजन आप क तु त करते ह. (९)
े
गोपालक ह.
य च हर य य य ा वच गवामुत. सयय णो वच तेन मा स सृजाम स.. (१०) वण, गाय और स य ान म जो तेज वता है, हम उस तेज वता को अपने म धारण करना (पाना) चाहते ह. (१०) सह त इ द योज ईशे य महतो वर शन्. तुं न नृ ण थ वरं च वाजं वृ ेषु श ू सहना कृधी नः.. (११) हे इं ! आप श ु का नाश करने वाले ह. आप हम बल दान क जए य क आप महान बल के वामी ह. आप हमारे य क थ त जैसा धन और साम य हम द जए. आप हम ऐसी श द जए, जस से हम सं ाम म अपने मन को हरा सक. (११) सहषभाः सहव सा उदे त व ा पा ण ब ती यू नीः. उ ः पृथुरयं वो अ तु लोक इमा आपः सु पाणा इह त.. (१२) कई रंग वाली, बड़ेबड़े थन ( तन ) वाली गौएं, बछड़ और बैल के साथ हम ा त ह . यह पृ वीलोक महान व वशाल है. यह आप के नवास यो य है. आप को यहां सुख से पीने यो य जल ा त हो. (१२)
पांचवां खंड अ न आयू
ष पवस आ सुवोज मषं च नः. आरे बाध व
छु नाम्.. (१)
हे अ न! आप हमारे अ क आयु बढ़ाने क कृपा क जए. आप हमारी आयु बढ़ाइए. हमारे बल क आयु बढ़ाइए. आप को हम से र क जए. (१) व ाड् बृह पबतु सो यं म वायुदध पताव व तम्. वातजूतो यो अ भर त मना जाः पप त ब धा व राज त.. (२) सूय ब त काशमान ह. वे खूब सोमरस पीएं. वे यजमान को न कंटक रख. उ ह द घायु कर. वायु सूय क करण को र र तक प ंचाते ह. उन से वे जा का पालन करते ह. अनेक कार से का शत होने म समथ होते ह. (२) च ं दे वानामुदगादनीकं च ु म य व ण या नेः. आ ा ावापृ थवी अ त र सूय आ मा जगत त थुष .. (३) सूय दे वता
के द
तेज का समूह ह. वे म , व ण तथा अ न के ने ह. सूय के
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उगते ही वगलोक, पृ वीलोक और अंत र लोक आ द सभी उन के काश से जगमगा जाते ह. (३) आयं गौः पृ र मीदसद मातरं पुरः. पतरं च य
वः.. (४)
सूय ग तशील व तेज वी ह. वे उ दत हो कर ऊपर थत हो जाते ह. सब से पहले वे पृ वीलोक (माता), फर वगलोक ( पता) फर अंत र लोक को ा त होते ह. (४) अ त र त रोचना य ाणादपानती.
य म हषो दवम्.. (५)
सूय का काश अपनी करण से आकाश म घूमता है. सूय के उगने पर ये करण दखती ह और अ त होने पर गायब हो जाती ह. सूय अंत र लोक को वशेष प से का शत करते ह. (५) श ाम व राज त वा पत ाय धीयते.
त व तोरह ु भः.. (६)
दन क तीस घ ड़य तक सूय अपनी करण से का शत होते ह. इन सूय के लए हर एक मुख वेदवाणी उचारता है ( तु त करता है). (६) अप ये तायवो यथा न
ा य य ु भः. सूराय व च से.. (७)
दन म जैसे चोर छप जाते ह, वैसे ही सूय के उगने पर ह, न जाते ह. (७) अ
, तारागण आ द छप
य केतवो व र मयो जनाँ अनु. ाज तो अ नयो यथा.. (८)
जैसे हम जलती ई अ न क वाला दे ख सकते ह, वैसे ही सूय क को हम दे ख सकते ह. वे सब को दे ख सकती ह. (८)
का शत करण
तर ण व दशतो यो त कृद स सूय. व माभा स रोचनम्.. (९) हे सूय! आप सब को पार लगाने वाले ह. आप सारे संसार को दे ख सकते ह. आप सब को का शत कर सकते ह. चं मा, ह, न आ द को आप ही चमकाते ह. (९) यङ् दे वानां वशः
यङ् ङु दे ष मानुषान्.
यङ् व
व शे.. (१०)
हे सूय! आप म द्गण के दे खते ए उन के सामने उ दत होते ह. आप मनु य के दे खते ए उ दत होते ह. आप सभी के दे खते ए यानी सब के सामने कट होते ह. (१०) येना पावक च सा भुर य तं जनाँ अनु. वं व ण प य स.. (११) हे सूय! आप सभी को प व व का शत करने वाले ह. आप जस काश से सब को का शत करते ह हम उस क उपासना करते ह. (११) उ यामे ष रजः पृ वहा ममानो अ ु भः. प य
मा न सूय.. (१२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सूय! आप दे हधा रय को का शत करते ह. आप दन को रा से नापते ह. आप वगलोक और अंत र लोक को भी अपने काश से का शत कर दे ते ह. (१२) अयु
स त शु युवः सूरो रथ य न ्यः. ता भया त वयु
भः.. (१३)
सूय ने रथ म घोड़े जोत रखे ह. वे सात घोड़े शु कारी ह. करण सव जाते ह. (१३)
पी घोड़ से सूय
स त वा ह रतो रथे वह त दे व सूय. शो च केशं वच ण.. (१४) हे सूय! आप का शत करने वाले ह. सात करण ह. ये करण शु करने वाली ह. (१४)
पी घोड़े आप के रथ को ले जाते
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ रा चक पहला अ याय पहला खंड उपा मै गायता नरः पवमानाये दवे. अ भ दे वाँ इय ते.. (१) हे यजमानो! आप दे वता के लए य करना चाहते ह. आप छान कर साफ कए गए सोमरस क तु त क जए. (१) अ भ ते मधुना पयो ऽ थवाणो अ श युः. दे वं दे वाय दे वयु.. (२) सोमरस द है. यह दे वता को य है. इसे दे वता ने दे वता के लए खोजा है. अथवा ऋ षय ने गाय का ध मला कर इसे यजमान के लए तैयार कया है. (२) स नः पव व शं गवे शं जनाय शमवते. श
राज ोषधी यः.. (३)
हे सोम! आप हतकारी ह. आप हमारी गौ को सुख द जए. आप हमारे पु पौ (आने वाली पी ढ़य ) व घोड़ को सुख द जए. आप ओष धय को हमारे लए क याणकारी बनाइए. (३) द व ुत या चा प र ोभ या कृपा. सोमाः शु ा गवा शरः.. (४) सोमरस ब त चमक ला है. इस क धारा सब ओर टपकती ई आवाज करती है. साफ नथारे ए सोमरस को गाय के ध म मलाया जाता है. (४) ह वानो हेतृ भ हत आ वाजं वा य मीत्. सीद तो वनुषो यथा.. (५) जैसे यु म शूरवीर क शंसा होती है व उसे त ा मलती है, वैसे ही य सोमरस क यजमान शंसा करते ह व य भू म म सोम को त ा मलती है. (५) ऋध सोम व तये संज मानो दवा कवे. पव व सूय
म
शे.. (६)
हे सोम! आप बु मान व परमवीर ह. आप सूय क भां त ऊपर चढ़ द हो कर सब का क याण क जए. (६)
काशमय
पवमान य ते कवे वा ज सगा असृ त. अव तो न व यवः.. (७) हे सोम! आप श
वधक ह. छानते समय आप क धार ऐसी ग तशील होती है, जैसे
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ तबल से नकलते समय घोड़े ग तशील होते ह. (७) अ छा कोशं मधु तमसृ ं वारे अ ये. अवावश त धीतयः.. (८) मधुर रस से भरे ोणकलश म भेड़ के बाल से बनी छलनी से यजमान सोमरस को छानछान कर तैयार करते ह. यजमान क अंगु लयां बारबार उस सोमरस को शु करना चाहती ह. (८) अ छा समु म दवो ऽ तं गावो न धेनवः. अ म ृत य यो नमा.. (९) मनु य को अपने ध से तृ त करने वाली धा गाएं जैसे अपने बाड़े म जाती ह, वैसे ही छान कर घड़े म भरे ए सोम य थल म जाते ह. (९)
सरा खंड अ न आ या ह वीतये गृणानो ह दातये. न होता स स ब ह ष.. (१) हे अ न! हम आप क तु त करते ह. दे वता को ह व प ंचाने के लए हम आप का आ ान करते ह. आप य म कुश के आसन पर वरा जए. (१) तं वा स म
र रो घृतेन वधयाम स. बृह छोचा य व
.. (२)
हे अ न! आप सुंदर व त ण (युवा) ह. हम स मधा और घी से आप को करते ह. आप व लत होइए. (२)
व लत
स नः पृथु वा यम छा दे व ववास स. बृहद ने सुवीयम्.. (३) हे अ न! आप हम यश और यशदायी मता दोन ही दान क जए. लोग उस यश के बारे म सुनने (जानने) के लए इ छु क रह. (३) आ नो म ाव णा घृतैग ू तमु तम्. म वा रजा
स सु तू.. (४)
हे म और व ण! आप े कम करने वाले ह. आप हमारे गौ थान को घी, ध से स चने क कृपा क जए. आप हमारे लए परलोक के नवास थान को भी े , मधुर रस से स चने क कृपा क जए. (४) उ श
सा नमोवृधा म ा द
य राजथः. ा घ ा भः शु च ता.. (५)
हे म ाव ण! आप प व काय करने वाले ह. आप अनेक लोग से शं सत ह. ह व के अ से आप बढ़ते ह. आप अपनी श से सुशो भत होते ह. (५) गृणाना जमद नना योनावृत य सीदतम्. पात
सोममृतावृधा.. (६)
हे म ाव ण! जमद न ऋ ष आप क तु त करते ह. आप य थान म पधा रए, वरा जए. आप हमारे ारा तैयार कए गए सोमरस को हण क जए. आप हमारे य के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कमफल को बढ़ाने क कृपा क जए. (६) आ या ह सुषुमा ह त इ
सोमं पबा इमम्. इदं ब हः सदो मम.. (७)
हे इं ! आप हमारे य म पधा रए. हम ने आप के लए व छ सोमरस तैयार कया है. आप इस सोमरस को पी जए. आप इस कुश के आसन पर वराजमान होइए. (७) आ वा
युजा हरी वहता म
के शना. उप
ा ण नः शृणु.. (८)
हे इं ! आप के केश वाले मनोहर घोड़े मं सुनते ही वाहन म जुत जाते ह. आप के घोड़े आप को य म लाने का क कर. आप हमारे पास य म पधार कर भलीभां त हमारी ाथना को सुनने क कृपा क जए. (८) ाण वा युजा वय
सोमपा म
सो मनः. सुताव तो हवामहे.. (९)
हे इं ! यजमान सोमय (कता) करने वाले ह. सोमरस तैयार करने वाले यजमान ा ण ह. हम आप के यो य ाथना से सोमरस पीने वाले आप को आमं त करते ह. (९) इ ा नी आ गत
सुतं गी भनभो वरे यम्. अ य पातं धये षता.. (१०)
हे अ न! हे इं ! सोमरस को हम ने अपनी तु तय से प व बनाया है. सोम वग से आए ह. इ ह ने हमारे भ भाव को वीकार कया है. आप इस सोमरस को वीकार करने क कृपा क जए. (१०) इ ा नी ज रतुः सचा य ो जगा त चेतनः. अया पात मम
सुतम्.. (११)
हे अ न! हे इं ! आप यजमान पर कृपा क जए. आप उन क मदद क जए. सोमरस चेतनादायी है. उस से हम य करते ह. आप उस सोमरस को हण करने क कृपा क जए. (११) इ म नं क व छदा य
य जू या वृणे. ता सोम येह तृ पताम्.. (१२)
हे अ न! हे इं ! सोम य के मुख साधन ह. हम उन क ेरणा से े रत होते ह. आप दोन दे वता यजमान के लए उपयु फलदाता ह. आप सोमरस पी कर तृ त होइए और हम य फल दान करने क कृपा क जए. (१२)
तीसरा खंड उ चा ते जातम धसो द व स
या ददे . उ
शम म ह वः.. (१)
हे सोम! वगलोक म आप ने ज म पाया है. आप श व क, सुखदायी व यशदायी ह. यजमान भू मलोक पर अ के प म आप को ा त करते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स न इ ाय य यवे व णाय म द् यः. व रवो व प र व.. (२) हे सोम! आप धनदाता ह. आप इं , व ण और म द्गण के लए वा हत होने क कृपा क जए. (२) एना व ा यय आ ु ना न मानुषाणाम्. सषास तो वनामहे.. (३) हे सोम! आप क कृपा से हम ने मनु य को ा त होने यो य सब सुख (वैभव) पाया है. फर भी हम सेवा भावना से आप क तु त करते ह. (३) पुनानः सोम धारयापो वसानो अष स. आ र नधा यो नमृत य सीद यु सो दे वो हर ययः.. (४) हे सोम! आप सोने क तरह चमकते ह. आप य थान म वरा जए. पानी मला कर छाने जाने पर धारा प म आप कलश म पधारते ह. आप धन दे ने वाले ह. (४) हान ऊध द ं मधु यं न सध थमासदत्. आपृ ं ध णं वा यष स नृ भध तो वच णः.. (५) यजमान ने सोमरस छाना है. यह मधुर और आनंददायी है. यह अपने ाचीन थान पर प ंचता है. हे सोम! आप खास नरी ण करने वाले ह. जो यजमान अ छा य करने क भावना रखते ह, आप उस यजमान पर अपनी कृपा रखते ह. (५) तु व प र कोशं न षीद नृ भः पुनानो अ भ वाजमष. अ ं न वा वा जनं मजय ता ऽ छा बह रशना भनय त.. (६) हे सोम! आप ज द हमारे य म पधा रए. आप ज द कलश म था पत हो जाइए. यजमान आप को छानते ह. छन कर आप ह व के प म ह व अ को ा त क जए. श मान घोड़ को शु करने क तरह यजमान आप को शु करते ह. लगाम पकड़ कर घोड़े को जैसे ले जाया जाता है, वैसे ही अंगु लय से यजमान आप को य थान तक ले जाते ह. (६) वायुधः पवते दे व इ श तहा वृजना र माणः. पता दे वानां ज नता सुद ो व भो दवो ध णः पृ थ ाः.. (७) हे सोम! आप उ म को ट के अ श वाले श ुनाशक, संर क, उप व र करने वाले, पालक, संर क, दे वता को उ प करने वाले ह तथा पृ वीलोक को धारण करते ह. आप वगलोक को वशेष आधार दे ते ह. ऐसा द सोमरस यजमान छानते ह. (७) ऋ ष व ः पुर एता जनानामृभुध र उशना का ेन. स च वेद न हतं यदासामपी यां ३ गु ं नाम गोनाम्.. (८) उशना ऋ ष व ान्, परम ानी, वै दक कमकांड म द , धीर, काशमान और नेतृ व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करने वाले ह. उ ह उशना ऋ ष ने तो रस को मेहनत से ा त कया. (८)
के मा यम से गाय म गु त
प से रहने वाले सोम
चौथा खंड अ भ वा शूर नोनुमो ऽ धा इव धेनवः. ईशानम य जगतः व शमीशान म त थुषः.. (१) हे इं ! आप श मान, सव ाता व जगत् के वामी ह. जैसे बना ही ई गाएं रंभाती ई अपने बछड़ क ओर भागती ह, वैसे ही हम आप के दशन और कृपा के लए लाला यत ह. (१) न वावाँ अ यो द ो न पा थवो न जातो न ज न यते. अ ाय तो मघव वा जनो ग त वा हवामहे.. (२) हे इं ! आप धनवान ह. आप जैसा न कोई वगलोक और न इस पृ वीलोक म आ है और न होगा. हम गोधन व धनधा य के लए आप क तु त करते ह. (२) कया न
आ भुव ती सदावृधः सखा. कया श च या वृता.. (३)
इं सदै व बढ़ने वाले ह. वे वल ण, अ यंत श मान व हमारे सखा ह. हम कस बु और कन संतु दायी पदाथ से आप क उपासना कर? कन कन श य से आप हमारे सहयोगी ह गे? (३) क वा स यो मदानां म
ह ो म सद धसः. ढा चदा जे वसु.. (४)
सोम आदरणीय व स य न के लए आनंददायी ह. उ ह आनंद दे ने म वे सब से आगे ह. सोम बलवान श ु के धन को न करने के लए इं को उ साह और साम य दान करते ह. (४) अभी षु णः सखीनाम वता ज रतृणाम्. शतं भवा यूतये.. (५) हे इं ! आप हमारे म व यजमान के संर क ह. आप हमारी सैकड़ करने के लए अ छ तैयारी कर ली जए. (५)
कार से र ा
तं वो द ममृतीषहं वसोम दानम धसः. अ भ व सं न वसरेषु धेनव इ ं गी भनवामहे.. (६) गोशाला म गाएं जैसे बछड़ के लए लाला यत हो कर रंभाती ह, वैसे ही हम इं क तु त के लए लाला यत हो कर ाथना करते ह. वे श ु से र ा करते ह. वे काशमान व सोमरस से संतु होने वाले ह. (६) ु
सुदानुं त वषी भरावृतं ग र न पु भोजसम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ुम तं वाज
श तन
सह णं म ू गोमनतमीमहे.. (७)
हे इं ! आप वगलोकवासी ह. आप उ म दान के दाता, ब त मतावान व पालनहार ह. हम सैकड़ हजार क सं या म गोधन आप से चाहते ह. हम चुर अ , धन आप से चाहते ह. (७) तरो भव वद सु म सबाध ऊतये. बृहद्गाय तः सुतसोमे अ वरे वे भरं न का रणम्.. (८) ब चे अपनी सहायता के लए जैसे अपने भरणपोषण करने वाल को पुकारते ह, वैसे ही हम यजमान अपनी सहायता के लए इं को पुकारते ह. इं वेगवान घोड़ वाले व वैभवशाली ह. हे याजको! आप सोमय म अपनी र ा के लए बृह साम का गायन करते ए उन क उपासना क जए. (८) न यं ा वर ते न थरा मुरो मदे षु श म धसः. आ या शशमानाय सु वते दाता ज र उ यम्.. (९) इं सुंदर ठु ड्डी वाले ह. श शाली रा स व मरणधमा मनु य ( कतने ही श शाली ह ) भी उ ह नह हरा सकते. वे सोमरस के आनंद म सोम य करने वाल को चुर यशदायी धन दे ते ह. हम मन से उन क तु त करते ह. (९)
पांचवां खंड वा द या म द या पव व सोम धारया. इ ाय पातवे सुतः.. (१) इं के पीने के लए वा द और मीठा सोमरस तैयार कया गया है. वह सोमरस अपनी पूण मददायी धारा से इं के लए झरे. (१) र ोहा व चष णर भ यो नमयोहते. ोणे सध थमासदत्.. (२) म
सोम रा सनाशक ह. जग त त हो गए. (२) व रवोधातमो भुवो म
ा ह. वे सोने के ोणकलश म वराजमान हो कर य
थल
ह ो वृ ह तमः. प ष राधो मघोनाम्.. (३)
हे सोम! आप धनदाता ह. आप श ु के बल नाशक ह. आप धनवान श ु पास मौजूद रहने वाले धन हम दान क जए. (३) पव व मधुम म इ ाय सोम
के
तु व मो मदः. म ह ु तमो मदः.. (४)
हे सोम! आप अ यंत मधुर ह. आप यजमान को कम का फल दे ते ह. आप काशमान व तृ तदायी ह. आप इं के लए पा म छन कर तैयार हो जाइए. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य य ते पी वा वृषभो वृषायते ऽ य पी वा व वदः. स सु केतो अ य मी दषो ऽ छा वाजं नैतशः.. (५) हे सोम! आप ब त श मान ह. आप को पी कर इं और श मान हो जाते ह. आप को पी कर बु मान भी स होते ह. आप के भाव से इं यु म घोड़े क तरह श ु के धन को शी ही अपने अधीन कर लेते ह. (५) इ म छ सुता इमे वृषणं य तु हरयः. ु े जातास इ दवः व वदः.. (६) सोमरस चमक ला और हरा है. वह ब त ज द छन कर पा म प ंच गया है. वह ज द से ज द इं को ा त हो. (६) अयं भराय सान स र ाय पवते सुतः. सोमो जै य चेत त यथा वदे .. (७) सभी लोग को यह पता है क सोमरस सेवन करने यो य है. इसे छान कर तैयार कया गया है. इसे इं के लए मटक म भरा गया है. सोमरस जीतने क इ छा रखने वाले इं को यु म ब त जोश दे ता है. (७) अ ये द ो मदे वा ाभं गृ णा त सान सम्. व ं च वृषणं भर सम सु जत्.. (८) सेवन करने यो य सोम को पी कर और स हो कर इं धनुष धारण करते ह. जल वाह को जीतने वाले इं व को धारण करते ह. (८) पुरो जती वो अ धसः सुताय माद य नवे. अप ान थ न सखायो द घ ज यम्.. (९) हे यजमानो! न संदेह यह सोमरस जीत दलाने वाला है. यह आप पूरी तरह मान ली जए. यह स तादायी है. आप इस क ओर लपकने वाले लंबीलंबी जीभ वाले कु (रा स ) को इस से र भगाइए. (९) यो धारया पावकया प र य दते सुतः. इ र ो न कृ वयः.. (१०) य म सोमरस यजमान का सहायक है. यह पारदश धारा हो कर कलश म जाता है. (१०)
से घोड़े क तरह वेगवान
तं रोषमभी नरः सोमं व ा या धया. य ाय स व यः.. (११) हे यजमानो! सोम का वनाश करने वाले ह. आप उन को आमं त क जए. आप य का आदर करते ए सब के क याण क भावना क जए. (११) अ भ या ण पवते चनो हतो नामा न य ो अ ध येषु वधते. आ सूय य बृहतो बृह ध रथं व व चम ह च णः.. (१२) हे सोम! आप क याणकारी, अ
व प व संसार को तृ त दे ने वाले ह. आप जल को
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सब तरह से प व करने वाले ह. अंत र लोक के जल म सोम यादा बढ़ते ह. सोम सव ह. ये सूय के सब ओर जा सकने म समथ रथ पर चढ़ते ह. (१२)
ा
ऋत य ज ा पवते मधु यं व ा प त धयो अ या अदा यः. दधा त पु ः प ोरपी यां ३ नाम तृतीयम ध रोचनं दवः.. (१३) सोम तो जैसे य क जीभ ही ह. सोमरस छनते समय आवाज करता है. यह मीठा और य रस वाला है. सोम य संबंधी याकलाप को जानने वाले व नभय ह. वे अपने माता पता का नाम नह जानते. ये यजमान ारा तैयार कए जाते ह. ये वगलोक को चमचमाने वाले ह. ये छन कर तैयार हो जाने पर सोमजयी नामक तीसरे नाम को हण करते ह. (१३) अव ुतानः कलशाँ अ च द ृ भयमाणः कोश आ हर यये. अभी ऋत य दोहना अनूषता ध पृ उषसो व राज स.. (१४) यजमान सोने के कलश म सोमरस को छानते ह. कलश म जाते समय सोमरस आवाज करता है. इस सोमरस क यजमान उपासना करते ह. सोमरस सुबह, दोपहर और शाम—इन तीन सवन (सं या ) म का शत होता है. (१४)
छठा खंड य ाय ा वो अ नये गरा गरा च द से. वयममृतं जातवेदसं यं म ं न श
सषम्.. (१)
हे यजमानो! आप उपासना करने वाले ह. आप को हर य म व लत हो कर बढ़ने वाले अ न क वाणी से तु त करनी चा हए. अ न अमर, ानी व हमारे म ह. हम उन क उपासना करते ह. (१) ऊज नपात स हनायम मयुदाशेम ह दातये. भुव ाजे व वता भुवद्वृध उत ाता तनूनाम्.. (२) अ न लगातार अ और श दाता ह. वे हमारा क याण चाहते ह. हम दे वता तक ह व प ंचाने के लए अ न दे वता को ह व दान करते ह. वे यु म हमारे र क और हमारे लए ग तकारी ह. वे हमारे पु के भी र क होने क कृपा कर. हम उन क उपासना करते ह. (२) ए
षु वा ण ते ऽ न इ थेतरा गरः. ए भवधास इ
भः.. (३)
हे अ न! आप आइए. हम आप के लए व ध वधान से तो उचारते ह. आप हमारी और सर क तु तय को सु नए. सोमरस आप को बढ़ोतरी दान कर. (३) य
व च ते मनो द ं दधस उ रम्. त यो न कृणवसे.. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! आप का मन जहां कह भी, जस पर भी है, आप उसे आवास दान करने क कृपा कर. (४)
े बल और
े
न ह ते पूतम पद्व ेमानां पते. अथा वो वनवसे.. (५) हे अ न! आप नयम आ द क र ा करने वाले, उन का पालन करने वाले यजमान क र ा करते हो. उन का पालन करते हो. आप हमारी सेवा को वीकार क जए. आप का तेज हमारी आंख को कसी भी कार क हा न न प ंचाए. (५) वयमु वामपू
थूरं न क चद्भर तो ऽ व यवः. व
च
हवामहे.. (६)
हे इं ! आप अपूव, व धारण करने वाले, वल ण व सव म ह. हम आप को सोमरस चढ़ाना चाहते ह. हम आप से र ा का अनुरोध करते ह. हम आप को उसी तरह पुकारते ह, जैसे नबल अपनी सहायता के लए सबल को पुकारता है. (६) उप वा कम ूतये स नो युवो ाम यो धृषत्. वा म य वतारं ववृमहे सखाय इ सान सम्.. (७) हे इं ! हम य म अपनी र ा के लए आप क शरण लेते ह. आप श ुनाशक व युवा ह. आप हमारे पास आइए. हमारी म ता वीका रए. आप के बारे म स है क आप सेवा करने यो य ह. सब क र ा करते ह. (७) अधा ही
गवण उप वा काम ईमहे ससृ महे. उदे व म त उद भः.. (८)
हे इं ! आप उपासना करने यो य ह. हम आप से उसी कार अपनी इ छा पू त क ाथना करते ह, जैसे पानी ले जाने वाले मनु य उस से अपनी इ छानुसार खेलते ह. (८) वाण वा य ा भवध त शूर
ा ण. वावृ वा
सं चद वो दवे दवे.. (९)
हे इं ! आप व धारी व वीर ह. न दयां जैसे समु तक प ंच कर उसे बढ़ाती ह, उसी कार हमारी तु तयां आप तक प ंच कर आप के यश को और बढ़ाती ह. (९) यु
त हरी इ षर य गाथयोरौ रथ उ युगे वचोयुजा. इ वाहा व वदा.. (१०)
इं ग तशील ह. उन के घोड़े उन के बड़े जुए वाले बड़े रथ म कहने मा से ही जुत जाते ह. ये घोड़े गंत थान को भी वयं ही जानने वाले ह. ये यजमान क तु त सुनते ही नधा रत जगह के लए चल पड़ते ह. (१०)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सरा अ याय पहला खंड पा तमा वो अ धस इ म भ गायत. व ासाह शत तुं म ह ं चषणीनाम्.. (१) हे यजमानो! आप इं क तु त क जए. वे आप के ारा चढ़ाए गए सोम पी अ को पीने वाले तथा श ु का नाश करने वाले ह. वे सैकड़ कार के कम करने वाले व मनु य को धन दे ने वाले ह. (१) पु
तं पु
ु तं गाथा या ३
सन ुतम्. इ
इ त वीतन.. (२)
हे यजमानो! आप इं क उपासना क जए. वे ब त स ह. वे य म अनेक लोग ारा बुलाए जाते ह. अनेक लोग ारा उन क उपासना क जाती है. (२) इ
इ ो महोनां दाता वाजानां नृतुः. महाँ अ भ वा यमत्.. (३)
हे यजमानो! इं अ और धन दे ने वाले ह. वे महान दे व ह. वे हमारे सामने कट हो कर हम अ धन आ द दे ने क कृपा कर. (३) व इ ाय मादन
हय ाय गायत. सखायः सोमपा ने.. (४)
हे यजमानो! इं ह र नाम के घोड़े वाले ह. वे सोमरस पीने वाले ह. आप उन इं के लए मादक तो गाइए. (४) श
से
थ
सुदानव उत ु ं यथा नरः. यकृमा स यराधसे.. (५)
हे यजमानो! इं े धनदाता और स य पी धन वाले ह. हम व ध वधान स हत इं क तु त करते ह. आप भी उन क तु त क जए. (५) वं इन इ (६)
वाजयु वं ग ुः शत तो. व
हे इं ! आप सैकड़ वयमु वा त ददथा इ
हर ययुवसो.. (६)
कार के कम करने वाले ह. आप हम अ , गाएं व सोना द जए. वाय तः सखायः. क वा उ थे भजर ते.. (७)
हे इं ! हम आप को अपना बनाना चाहते ह. हम म भाव से आप क उपासना करते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. हम क वगो के ह. हमारी संतान भी आप क तु त करती है. (७) न घेम यदा पपन व
पसो न व ौ. तवे
तोमै केत.. (८)
हे इं ! आप व धारण करने वाले ह. य अनु ान म आप के तो के अलावा हम और कोई तो नह पढ़गे. हम आप के ही तो से तु त करना जानते ह. (८) इ छ त दे वाः सु व तं न व ाय पृहय त. य त मादमत ाः.. (९) सोमय करने वाल पर दे वगण क कृपा रहती है. केवल सपने दे खने वाल से वे ेम नह करते ह. प र म करने वाले ही आनंददायी सोम को ा त कर सकते ह. (९) इ ाय म ने सुतं प र ोभ तु नो गरः. अकमच तु कारवः.. (१०) हे यजमानो! आप सराहनीय सोमरस क उपासना क जए. वे उपासना के यो य ह. इं सोमरस को चाहते ह. हमारी वाणी को छाने ए सोमरस क तु त करनी चा हए. (१०) य म व ाअध
यो रण त स त स
सदः. इ
सुते हवामहे.. (११)
इं सारी शोभा से शो भत ह. य म सात पुरो हत इं को ह व दे ने के लए अनेक मं पढ़ते ह. हम सोमय म उन इं को आमं त करते ह. (११) क केषु चेतनं दे वासो य म नत. त म ध तु नो गरः.. (१२) य उ साहव क है. सभी दे व य के तीन दन म य क बढ़ोतरी करते ह. हमारी तु त और वा णयां भी उस य क बढ़ोतरी कर. (१२)
सरा खंड अयं त इ
सोमो नपूतो अ ध ब ह ष. एहीम य वा पब.. (१)
हे इं ! हम ने आप के लए छान कर सोमरस तैयार कया है. य क वेद पर बछे ए कुश के आसन पर उसे त त कया है. आप ज द ही उस के नकट पधा रए. उस सोमरस को पीने क कृपा क जए. (१) शा चगो श चपूजनाय
रणाय ते सुतः. आख डल
यसे.. (२)
हे इं ! आप साम यवान व काशमान करण वाले ह. आप श मान, पूजनीय और श ु का मानमदन करने वाले ह. हम ने आप क तृ त के लए यह सोमरस तैयार कया है. आप पधा रए. इस सोमरस को हण क जए. (२) य ते शृ वृषो णपा णपा कु डपा यः. य मन् द आ मनः.. (३) हे इं ! शृंगवृष ऋ ष के पु सूय को आप ने धुरी पर था पत कया है. कुंडपायी य , जस म कुं डय से सोमरस पया जाता है, म मन लगाने क कृपा क जए. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ तू न इ
म तं च ं ाभ
सं गृभाय. महाह ती द णेन.. (४)
हे इं ! आप बड़ेबड़े हाथ वाले ह. आप दाएं हाथ म हमारे लए यश वी, वल ण और उपयु धन धारण क जए. आप हम उस धन को दान करने क कृपा क जए. (४) व ा ह वा तु वकू म तु वदे णं तुवीमघम्. तु वमा मवो भः.. (५) हे इं ! आप ब त श मान व ब त दे ने यो य संप वाले ह. आप ब त धनवान व वशाल आकृ त वाले ह. हम जानते ह क आप के पास संर ण के ब त सारे साधन ह. (५) न ह वा शूर दे वा न मतासो द स तम्. भीमं न गां वारय ते.. (६) हे इं ! आप परा मी ह. आप दाता ह. जैसे भारी भरकम भयंकर बैल को कोई नह हटा सकता है, वैसे ही या दे व, या मनु य कोई भी आप को नह डगा सकता. (६) अ भ वा वृषभा सुते सुत
सृजा म पीतये. तृ पा
ुही मदम्.. (७)
हे इं ! आप बलशाली ह. हम आप के पीने के लए अ छ तरह छान कर सोमरस तैयार करते ह. आप उस मदम त बना दे ने वाले सोमरस को पी कर तृ त होइए. (७) मा वा मूरा अ व यवो मोपह वान आ दभन्. मा क
षं वनः.. (८)
हे इं ! आप ा ण से े ष रखने वाल क सेवा वीकार मत क जए. मूख मनु य व सर क हंसी उड़ाने वाल पर अपनी कृपा मत क जए. ये लोग आप पर कसी तरह अपना भाव न जमा पाएं. (८) इह वा गोपरीणसं महे म द तु राधसे. सरो गौरो यथा पब.. (९) हे इं ! यजमान आप से ब त धन पाना चाहते ह. वे गाय के ध म मले सोमरस से आप को तृ त करना चाहते ह. हरण जैसे तालाब म जल पीता है, वैसे ही आप इस य म (पधार कर) सोमरस पी जए. (९) इदं वसो सुतम धः पबा सुपूणमुदरम्. अनाभ य रमा ते.. (१०) हे इं ! आप सव ापक ह. आप पेट भर कर इस सोमरस को पी जए. हम आप जैसे नभय को सोमरस सम पत करते ह. (१०) नृ भध तः सुतो अ ैर ा वारैः प रपूतः. अ ो न न ो नद षु.. (११) हे इं ! नद के पानी म धो कर जैसे घोड़े को साफ करते ह, वैसे ही पानी म प थर से कूट कर इस सोमरस को साफ कया है. प थर से कूट कर इस का रस नचोड़ा है. भेड़ के बाल क छलनी से छानछान कर इसे साफ कया है. (११) तं ते यवं यथा गो भः वा मकम ीण तः. इ
वा म सधमादे .. (१२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! जौ से जस कार पुरोडाश (भोग) बनाया जाता है, उसी कार सोम रस म गाय का ध मला कर उसे हम ने तैयार कया है. वह सोमरस वा द है. हम उसी सोमरस को पीने के लए य म आप को आमं त करते ह. (१२)
तीसरा खंड इद
वोजसा सुत
राधानां पते. पबा वा ३ य गवणः.. (१)
हे इं ! आप धनप त, उपासना के यो य व बलशाली ह. आप नयमपूवक सं कार कए गए इस सोमरस को शी हण क जए. (१) य ते अनु वधामस सुते न य छ त वम्. स वा मम ु सो य.. (२) अ
हे इं ! आप सोम के यो य ह. यह सोमरस आप के लए तृ तदायी हो. यह सोमरस व प है. आप इस सोमरस म सशरीर पधा रए. (२) ते अ ोतु कु योः े
णा शरः.
बा शूर राधसा.. (३)
हे इं ! आप श मान ह. वशु सोम ाथना कांख तक प ंचे. हम आप से धन चाहते ह. (३) आ वेता न षीदते म भ
से आप के सर, दोन भुजा
व
गायत. सखाय तोमवाहसः.. (४)
हे यजमानो! आप इं को स करने के लए शी आइए, बै ठए. उन के लए ाथना व उपासना क जए. (४) पु तमं पु णामीशानं वायाणाम्. इ
सोमे सचा सुते.. (५)
हे यजमानो! आप इकट् ठे होइए. इं श ु को हराने क साम य रखते ह. वे ऐ य के वामी ह. आप सभी उन क उपासना क जए. (५) स घा नो योग आ भुव स राये स पु
या. गम ाजे भरा स नः.. (६)
हे इं ! आप हम वीर बनाइए और नखा रए. आप हम समृ दान क जए. आप हम ान व पोषकता दान क जए. आप हमारे समीप पधारने क कृपा क जए. (६) योगेयोगे तव तरं वाजेवाजे हवामहे. सखाय इ मूतये.. (७) हे यजमानो! हम पर बारबार काम म अपनी र ा के लए अपने म इं का आ ान करते ह. (७) अनु
न यौकसो वे तु व त नरम्. यं ते पूव पता वे.. (८)
इं वगवासी ह. वे ब त लोग क मदद करते ह. हमारे पता (पूवज ) ने उन का आ ान कया था. हम भी उन का आ ान करते ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ घा गम द व सह णी भ
त भः. वाजे भ प नो हवम्.. (९)
हे यजमानो! हम आशा है क इं हमारी ाथना से स ह गे. वे अपनी र ा और वैभव के साथ हमारे पास अव य पधारगे. (९) इ
सुतेषु सोमेषु
तुं पुनीष उ यम्. वदे वृध य र
य महाँ ह षः.. (१०)
हे इं ! आप के पु आप के लए सोमरस प र कृत करते ह. आप महान ह. आप उन के य तथा उन के तो क बढ़ोतरी करते ह. (१०) स थमे
ोम न दे वाना
सदने वृधः. सुपारः सु व तमः सम सु जत्.. (११)
हे यजमानो! इं थम दे वता ह. वे आकाश म दे वता के आवास म नवास करते ह. वे भलीभां त हमारी र ा करते ह. वे हम यश दान करते ह. वे असुर वजेता ह. हम उन का आ ान करते ह. (११) तमु वे वाजसातय इ ं भराय शु मणम्. भवा नः सु ने अ तम् सखा वृधे.. (१२) हे इं ! हम अ ा त के लए आप का आ ान करते ह. हम अपने भरणपोषण के लए आप का आ ान करते ह. हम सुमन (अ छे मन वाले) व आप के सखा बन. आप हमारी बढ़ोतरी म हमारा सहयोग करने क कृपा क जए. (१२)
चौथा खंड एना वो अ नं नमसोज नपातमा वे. यं चे त मर त व वरं व य तममृतम्.. (१) हे अ न! आप व के त ह. आप अमर, आ ान करते ह. (१) स योजते अ षा व मोजसा स सु ा य ः सुशमी वसूनां दे व
य व अ य ह. हम अपने य म आप का
व वा तः. राधो जनानाम्.. (२)
अ न लोग के लए धन व प, व ान्, संयमशील व सब को जोड़ते ह. आप सम त व को ओज से पूण करते ह. हम आप का आ ान करते ह. (२) यु अद याय यू ३ छ ती हता दवः. अपो मही वृणुते च ुषा तमो यो त कृणो त सूनरी.. (३) उषा वगलोक क पु ी व अंधकार को र करती ह. वे अपनी करण से सभी को का शत करती ह. वे आंख क यो त ह. वे अंधकार म यो त ह. वे उ म नारी ह. (३) उ
याः सृजते सूयः सचा उ
म चवत्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तवे षो
ु ष सूय य च सं भ े न गमेम ह.. (४)
सूय, न और ह ये तीन आकाश को काशमान करते ह. सूय अपनी करण का सार करते ह और काश से हम भ तक प ंचते ह. (४) इमा उ वां द व य उ ा हव ते अ ना. अयं वाम े ऽ वसे शचीवसू वशं वश ह ग छथः.. (५) हे अ नीकुमारो! आप वगलोक के वासी ह. वग ा त करने के इ छु क लोग अपनी इ छापू त के लए आप का आ ान करते ह. आप तु त करने वाल के पास प ंचते ह. हम आप का आ ान करते ह. (५) युवं च ं ददथुभ जनं नरा चोदथा सूनृतावते. अवा थ समनसा न य छतं पबत सो यं मधु.. (६) हे अ नीकुमारो! आप युवा नेता ह और े आहार दे ने वाले व तु त करने वाल को े रत करते ह. कृपया आप अपना रथ रो कए. आप अपना मन लगा कर मधुर सोमरस का पान क जए. (६)
पांचवां खंड अय
नामनु ुत
शु ं
े अ यः. पयः सह सामृ षम्.. (१)
सोमरस चमक ला, ान बढ़ाने वाला व मनोकामना पूरी करने वाला है. ऋ षय ने इस के सह व प का मरण कर के इसे तैयार कया है. (१) अय
सूय इवोप गय
सरा
स धाव त. स त वत आ दवम्.. (२)
सोम सात धारा से उसी कार दौड़ते ह ( वा हत होते ह), जस तरह सूय वगलोक से सात करण से धरती पर आने के लए दौड़ते ह. (२) अयं व ा न त त पुनानो भुवनोप र. सोमो दे वो न सूयः.. (३) सोम सभी भुवन के ऊपर ह. (३) एष
त त ह व सम त संसार पर राज करते ह. वे हमारे सूय
नेन ज मना दे वो दे वे यः सुतः. ह रः प व े अष त.. (४)
सोमरस द है. दे वता सं कारपूवक उसे प र कृत करते ह. वह हरा है और उसे प व छलनी म प र कृत कया जाता है. (४) एष
नेन म मना दे वो दे वे य प र. क व व ेण वावृधे.. (५)
सोम क व और व ान से शंसा ा त करते ह. वे सभी दे वता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से ऊपर ह. उन को
सं कारपूवक अनेक व धय से प र कृत कया जाता है. (५) हानः
न म पयः प व े प र ष यसे.
दं दे वाँ अजीजनः.. (६)
सोमरस को छलनी से प र कृत कया जाता है और उसे बरतन (पा ) म नचोड़ा जाता है. सोम आवाज करते ए पा म जाते ह तो लगता है मानो वे दे वता का आ ान कर रहे ह . (६) उप श ापत थुषो भयसमा धे ह श वे. पवमान वदा र यम्.. (७) हे सोम! आप अक याणका रय को भयभीत क जए. आप हमारा मागदशन क जए. आप हम धनधा य से प रपूण करने क कृपा क जए. (७) उपो षु जातम तुरं गो भभ प र कृतम्. इ ं दे वा अया सषुः.. (८) सोमरस को नचोड़ा जाता है. त प ात उस को प र कृत कया जाता है. फर जल म मलाया जाता है. आप को गाय के ध म मलाया जाता है. दे वता भी सोम को बुलाते ह. (८) उपा मै गायता नरः पवमानाये दवे. अ भ दे वाँ इय ते... (९) हे यजमानो! आप दे वता
के गुण गाने क अपे ा सोम के गुण गाइए. (९)
छठा खंड सोमासो वप तो ऽ पो नय त ऊमयः. वना न म हषा इव.. (१) सागर क लहर सागर म जैसे मल जाती ह, वैसे सोमरस जल म मल जाता है. वन म मले भस क तरह सोमरस जल म एकमेक हो जाता है. (१) अ भ ोणा न ब वः शु ा ऋत य धारया. वाजं गोम तम रन्.. (२) सोमरस चमक ला है. वह अपनी ऋत क धारा से भूरा सोम गाय के ध म झरता है. वह श मान है. (२) सुता इ ाय वायवे व णाय म द् यः. सोमा अष तु व णवे.. (३) सोम इं , वायु, म द्गण व व णु को ा त ह . (३) सोम दे ववीतये स धुन प ये अणसा. अ शोः पयसा म दरो न जागृ वर छा कोशं मधु तम्.. (४) हे सोम! आप को पानी से भरीपूरी न दय क तरह पानी म मलाया जाता है. आप म दर (आनंददायी) व जा त ह. मधुरता चुआते ए सोमरस (पा म) इकट् ठा होता है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ हयतो अजुनो अ के अ त यः सूनुन म यः. तमी ह व यपसो यथा रथं नद वा गभ योः.. (५) सोमरस को ब चे क तरह साफसुथरा बना लया है. य सोमरस को तेज ग त से जल म मलाया जाता है. वह वैसे ही वेग से पानी म मलता है, जैसे यु म तेज ग त से कोई रथ जाता है. (५) सोमासो मद युतः वसे नो मघोनाम्. सुता वदथे अ मुः.. (६) सोमरस आनंद बरसाने वाला व यशदाता है. वह य म नरंतर प ंच कर इ छा पू त करता है. (६) आद ह सो यथा गणं व अ यो न गो भर यते.. (७)
यावीवश म तम्.
सोमरस हंस क ग त से जाता है. वह संसार के बु है. (७) आद
त य योषणे ह र
क
हव य
भः. इ
मान क बु
तक प ंच रखता
म ाय पीतये.. (८)
सोमरस हरा है. इसे प थर से कूट कर नचोड़ा जाता है. उस को तीन ऋ षय क अंगु लय से इं के पीने के लए नचोड़ा जाता है. (८) अया पव व दे वयू रेभ प व ं पय ष व तः. मधोधारा असृ त.. (९) हे सोम! आप दे वता से मलने के इ छु क ह. आप प व और अ वरल मीठ धारा से झरते ह व आवाज करते ए वा हत होते ह. (९) पवते हयतो ह रर त
रा
सर
ा. अ यष तोतृ यो वीरव शः.. (१०)
सोमरस प व और हरा है. वह परा मी संतान और यश ा त के इ छु क यजमान के लए वा हत होता है. (१०) सु वानाया धसो मत न व त चः. अप ानमराधसं हता मखं न भृगवः.. (११) प र कृत कए जाते समय सोमरस आवाज करता है. लोग इस आवाज को न सुन. भृगु ने जैसे मख को र कया, उसी तरह पापी और कु को य से र कया जाए. (११)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तीसरा अ याय पहला खंड पव व वाचो अ यः सोम च ा भ
त भः. अ भ व ा न का ा.. (१)
हे सोम! आप मुख ह, आगे क पं म रहने वाले ह. आप हमारी तु तय पर यान द जए. हमारी सभी तु तय और ाथना को सु नए. आप पूजनीय व संर णशील ह. (१) व
समु या अपो ऽ
यो वाच ईरयन्. पव व व चषणे.. (२)
हे सोम! आप सभी के कम को यान से दे खने वाले ह. आप अ ग य तु तय के ेरक ह. अंत र के जल आप को ा त होते ह. (२) तु येमा भुवना कवे म ह ने सोम त थरे. तु यं धाव त धेनवः.. (३) हे सोम! आप के ही लए ये लोक थर ह. आप क महानता के कारण ये लोक थर ह. गाएं आप को ध दे ने के लए दौड़दौड़ कर आप के पास आ रही ह. (३) पव वे दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने. व ा अप
षो ज ह.. (४)
छाना आ आप का रस फू तदायी है. आप छनते ए अपनी धारा हम लोग को यश वी बनाइए. हमारे सभी श ु का नाश क जए. (४) य य ते स ये वय
से प व होइए.
सास ाम पृत यतः. तवे दो ु न उ मे.. (५)
हे सोम! हम आप के म ह. हम ने आप से तेज वता पाई है. हम सभी श ु न करने क मता वाले हो गए ह. (५)
को
या ते भीमा यायुधा त मा न स त धूवणे. र ा सम य नो नदः.. (६) हे सोम! आप के अ श भयंकर ह. वे श ु को डरा दे ने वाले ह. उन क सहायता से श ु ारा क गई नदा क पीड़ा से हमारी र ा क जए. (६) वृषा सोम ुमाँ अ स वृषा दे व वृष तः. वृषा धमा ण द षे.. (७) हे सोम! आप श मान, काशमान, इ छापूरक एवं बल बढ़ाने के लए संक पशील ह. हे इ छापूरक! आप दे वता और मनु य सब के लए क याणकारी कम धारण करने वाले ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. (७) वृ ण ते वृ णय
शवो वृषा वनं वृषा सुतः. स वं वृष वृषेद स.. (८)
हे सोम! आप श शाली, ब त साम यवान ह. आप क सेवा भी श का रस एवं आप वयं भी बलव क ह. (८) अ ोन
व क है. आप
दो वृषा सं गा इ दो समवतः. व नो राये रो वृ ध.. (९)
हे सोम! आप श मान ह. आप घोड़े क तरह आवाज करते ह. आप हम गोधन और अ धन दे ते ह. आप हमारे लए धन के ार खोलते ह. (९) वृषा
स भानुना ुम तं वा हवामहे. पवमान व शम्.. (१०)
हे सोम! आप अव य ही श को बुलाते ह. (१०)
व क ह. आप प व व काशमान ह. हम य म आप
यद द्भः प र ष यसे ममृ यमान आयु भः. ोणे सध थम ुषे.. (११) हे सोम! यजमान आप को शु बनाते ह. जल से आप को स चा जाता है. जल मलाने के बाद आप को ोणकलश म था पत कया जाता है. (११) आ पव व सुवीय म दमानः वायुध. इहो व दवा ग ह.. (१२) हे सोम! हमारे य म पधार कर आप उस क शोभा बढ़ाइए. आप आनंददायी ह. आप हम वीर बनाइए. हम े वीय (संतान) दान क जए. (१२) पवमान य ते वयं प व म यु दतः. स ख वमा वृणीमहे.. (१३) (१३)
हे सोम! छलनी म छन कर प व होने वाले आप से हम म ता क इ छा रखते ह. ये ते प व मूमयो ऽ भ र त धारया. ते भनः सोम मृडय.. (१४) हे सोम! अपनी लहर जैसी झरती ई प व धारा
से हम सुख दान क जए. (१४)
स नः पुनान आ भर र य वीरवती मषम्. ईशानः सोम व तः.. (१५) हे सोम! आप संसार के ई र व प व ह. आप हम धनवान, अ वान और वीर पु वान बनाने क कृपा क जए. (१५)
सरा खंड अ नं तं वृणीमहे होतारं व वेदसम्. अ य य अ न सभी धन पास रखने वाले, दे वता
य सु तुम्.. (१)
को य म बुलाने वाले, य को ठ क तरह
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कराने वाले व दे व को ह व प ंचाने वाले ह. हम आप क उपासना करते ह. (१) अ नम न
हवीम भः सदा हव त व प तम्. ह वाहं पु
यम्.. (२)
हे अ न! आप जापालक, ह ववाहक, सव य, बुलाने यो य व अनेक नाम वाले ह. आप हम सब के नेता ह. हम मं से आप का आ ान करते ह. (२) अ ने दे वाँ इहा वह ज ानो वृ ब हषे. अ स होता न ई
ः.. (३)
हे अ न! आप अर णय से उ प होने वाले व दे वता के त ह. आप आसन फैलाने वाले यजमान के लए दे वता को बुला लाइए. आप मददगार और उपासना के यो य ह. (३) म ं वय
हवामहे व ण
सोमपीतये. या जाता पूतद सा.. (४)
हम शु , बलवान और य थल म कट होने वाले म और व ण दे वता का सोमरस पीने के लए य म आ ान करते ह. (४) ऋतेन यावृतावृधावृत य यो तष पती. ता म ाव णा वे.. (५) म और व ण दे वता यजमान पर दयालु ह. वे स यमा गय पर कृपालु ह. उन काशमान म और व ण दे वता का हम आ ान करते ह. (५) व णः ा वता भुव म ो व ा भ
त भः. करतां नः सुराधसः.. (६)
म और व ण दे वता अपने सभी र ा साधन से हमारी र ा कर. वे हमारे शरणदाता ह. वे हम यश वी धन दान करने क कृपा कर. (६) इ
मद्गा थनो बृह द मक भर कणः. इ ं वाणीरनूषत.. (७)
साम गाने वाले पुरो हत ने बृह साम गा कर इं क तु त क . यजमान ने भी मं गा कर इं क तु त क . शेष बचे ए लोग ने भी वाणी से इं क तु त क . (७) इ
इ य ः सचा स म
आ वचोयुजा. इ ो व ी हर ययः.. (८)
इं व धारी ह. वे सोने के आभूषणधारी ह. उन क वाणी सुनते ही ह र नामक घोड़े रथ म जुत जाते ह. अब वे अपने उ ह घोड़ को एक साथ रथ म जोतने वाले ह. (८) इ
वाजेषु नो ऽ व सह
धनेषु च. उ उ ा भ
त भः.. (९)
हे इं ! आप कसी से नह हार सकते. आप हम अपना बल संर ण दान क जए. जन यु म हजार हाथीघोड़ का लाभ होता है, उन यु म भी आप हमारी सहायता क जए. (९) इ ो द घाय च स आ सूय
रोहय
व. व गो भर मैरयत्.. (१०)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! संसार को काश दे ने के लए आप ने वगलोक म सूय क थापना क . उसी कार अपनी र मय ( करण ) से बरसात के लए बादल को े रत कया. (९०) इ े अ ना नमो बृह सुवृ
मेरयामहे. धया धेना अव यवः.. (११)
अपने संर ण क कामना से हम अ न और इं के पास ह व और तु त प ंचाते ह. हम बु और मनोयोग से दोन दे वता क उपासना करते ह. (११) ता ह श
त ईडत इ था व ाय ऊतये. सबाधो वाजसातये.. (१२)
अनेक बु मान लोग अ न और इं क र ा के लए उपासना करते ह. वे लोग वैसे ही उन क उपासना करते ह, जैसे अ के लए लड़तेझगड़ते ह. (१२) ता वां गी भ वप यवः य व तो हवामहे. मेधसाता स न यवः.. (१३) हम तु तय से अ न और इं क उपासना करते ह. उन को आमं त करते ह. हम धन के इ छु क ह व के साथ आप दोन को य म आमं त करते ह. (१३)
तीसरा खंड वृषा पव व धारया म वते च म सरः. व ा दधान ओजसा.. (१) हे सोम! आप श व क ह. आप धारा प म छ नए. आप ोणकलश म पधा रए. आप अपने बल से व को धारण करने वाले म त के म इं को आनंद दान क जए. (१) तं वा धतारमो यो ३: पवमान व शम्. ह वे वाजेषु वा जनम्.. (२) हे सोम! आप प व , वगलोक, पृ वीलोक को धारण करने वाले व सव को हम यु म जाने के लए े रत करते ह. हम आप अ आ द द जए. (२)
ा ह. आप
अया च ो वपानया ह रः पव य धारया. युजं वाजेषु चोदय.. (३) हे सोम! आप हरे ह. आप को अंगु लय से नचोड़ा गया है. आप ोणकलश म धारा प म झरते जाइए. आप अपने म इं को यु म जाने के लए े रत क जए. (३) वृषा शोणो अ भक न दद्गा नदय े ष पृ थवीमुत ाम्. इ येव व नुरा शृ व आजौ चोदय ष स वाचमेमाम्.. (४) हे सोम! हमारी ाथना को सुन कर आप उसी तरह आवाज करते ह, जैसे गाय को दे ख कर लाल बैल आवाज करता है. आप वगलोक और पृ वीलोक पर पधारते ह. इं के श द के समान हम आप क आवाज सुनते ह. आप अपना व प सब को बोध कराते ह. यजमान क ाथना को सुनने क कृपा करते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रसा यः पयसा प वमान ईरय े ष मधुम तम शुम्. पवमान स त नमे ष कृ व ाय सोम प र ष यमानः.. (५) वा द और मीठा सोमरस गाय का ध मलाने से और वा द और मीठा हो जाता है. पानी मला कर छानने पर धारा प धारण कर के सोम इं को ा त हो जाते ह. (५) एवा पव व म दरो मदायोद ाभ य नमय वध नुम्. प र वण भरमाणो श तं ग ुन अष प र सोम स ः.. (६) हे सोम! आप फू तदायी ह. आप वृ ासुर का वध हो जाने के बाद पानी बहाने वाले मेघ को झुकाइए. उन के जल म मल कर छनते जाइए. आनंददायी होइए. आप पानी म मल कर और चमक ले हो जाइए. आप गाय के ध के प म हमारे चार ओर वा हत होइए. (६)
चौथा खंड वा म हवामहे सातौ वाज य कारवः. वां वृ े व स प त नर वां का ा ववतः.. (१) हे इं ! हम यजमान अपने अ क बढ़ोतरी क आकां ा से आप को आमं त करते ह. आप पवतवासी, स प त व वृ हंता ह. े जन वप के समय आप को मरण करते ह. (१) स वं न गाम क
व ह त धृ णुया मह तवानो अ वः. र य म सं कर स ा वाजं न ज युषे.. (२)
हे इं ! आप हाथ म व धारण करते ह. आप बलधारी व श धारी ह. आप यजमान ाथना से स होइए. उ ह अ धन दान करने क कृपा क जए. (२) अ भ वः सुराधस म मच यथा वदे . यो ज रतृ यो मघवा पु वसुः सह ेणेव श त.. (३)
हे यजमानो! इं नाना कार के वैभव दे ने वाले ह. आप हजार व धय से उ ह स करने क को शश करो. (३) शतानीकेव जगा त धृ णुया ह त वृ ा ण दाशुषे. गरे रव रसा अ य प वरे द ा ण पु भोजसः.. (४) मन का संहार करते समय इं यजमान क वैसे ही र ा करते ह, जैसे सेनानी श ु पर चढ़ाई के समय सेना क . उन का यह संर ण यजमान को झरने के जल क तरह शां त और तृ त दान करता है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वा मदा ो नरो ऽ पी य व न् भूणयः. स इ तोमवाहस इह ु युप वसरमा ग ह.. (५) हे व धारी इं ! यजमान आप को ह व दान करते ह. वे ही यजमान आप को सोमरस भट करते ह. तोता (उपासक) आप के लए साम गा रहे ह. आप सु नए और य म पधा रए. (५) म वा सु श ह रव तमीमहे वया भूष त वेधसः. तव वा युपमा यु य सुते व गवणः.. (६) हे सुंदर ठु ड्डी वाले इं ! आप अ श धारी ह. आप उपासना के यो य ह. हम यजमान अनेक कार क साम ी से आप क पूजा करते ह. हम आप को सजाते व सोमरस से छकाते ह. हम और भी य पदाथ आप को भट करते ह. आप अ पालक ह. (६)
पांचवां खंड य ते मदो वरे य तेना पव वा धसा. दे वावीरघश हे सोम! आप का रस वरे य, मददायी व द ज नवृ म म य
ह. आप प र कृत होइए. (१)
स नवाजं दवे दवे. गोषा तर सा अ स.. (२)
हे सोम! आप वृ ासुर अ म व अ धन दान करते ह. (२) स म
सहा.. (१)
(श ु
) के नाशक, द
ो अ षो भुवः सूप था भन धेनु भः. सीदं
व संघषशील ह. आप गोधन
ेनो न यो नमा.. (३)
हे सोम! बाज जैसे घ सले म सुशो भत होता है, उसी कार आप अपने सदन म सुशो भत होते ह. आप गाय के ध म मलने पर चमचमाते ह. (३) अयं पूषा र यभगः सोमः पुनानो अष त. प त व य भूमनो य ोदसी उभे.. (४) हे सोम! आप व प त व प व ह. आप पूषा और भग के लए वा हत होइए. आप पृ वीलोक और वगलोक दोन को का शत करते ह. (४) समु या अनूषत गावो मदाय घृ वयः. सोमासः कृ वते पथः पवमानास इ दवः.. (५) हे सोम! आप मददायी व य ह. आप के लए क गई तु तयां एक सरे से होड़ करती ह. आप सभी का पथ दशन करते ह. (५) य ओ ज तमा भर पवनाम वा यम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यः प च चषणीर भ र य येन वनामहे.. (६) सोम ओजवान, अंधकार र करने वाले और प व ह. आप पंच से शंसा ा त करने यो य रस हम दान करने क कृपा क जए. (६) वृषा मतीनां पवते वच णः सोमो अ ां तरीतोषसां दवः. ाणा स धूनां कलशाँ अ च द द य हा ा वश मनी ष भः.. (७) हे सोम! आप बु बढ़ाने वाले, वल ण, वगलोक व उषा को जानते ह. आप दनरात को का शत व जा त करते ह. आप मनी षय ारा इं के लए प र कृत कए जाते ह. आप आवाज करते ए पा म वा हत होते ह. (७) मनी ष भः पवते पू ः क वनृ भयतः प र कोशा अ स यदत्. त य नाम जनय मधु र य वायु स याय वधयन्.. (८) सोम प व , अपूव व क व ह. मनीषी और मनु य आप को प र कृत करते ह. आप तीन सवन म इं क स फैलाते ह. सोम इं को तृ त दे ते ह. सोम वायु क म ता क बढ़ोतरी के लए वा हत होते ह. (८) अयं पुनान उषसो अरोचयदय अयं ः स त हान आ शर
स धु यो अभव लोककृत्. सोमो दे पवते चा म सरः.. (९)
सोम प व व चमकने वाले ह. वे हतकारी और उषा को का शत करते ह. सोमरस न दय म जल क बढ़ोतरी करता है. यह तीन गुणे सात को पोसता आ वा हत होता है. यह सब के दय म नवास करता है. (९)
छठा खंड एवा
स वीरयुरेवा शूर उत थरः. एवा ते रा यं मनः.. (१)
हे इं ! आप शूरवीर ह. आप सं ाम म शूरवीर को अपनी वीरता दखाने का अवसर दान करते ह. आप उन यु म थर रहते ह. इसी लए आप का मन आराधना के यो य है. (१) एवा रा त तु वमघ व े भधा य धातृ भः. अधा च द
नः सचा.. (२)
हे इं ! आप सभी ऐ य धारण करते ह. आप क कृपा कभी भी समा त नह होती है. आप हम पर कृपा क जए. (२) मो षु
ेव त युभुवो वाजानां पते. म वा सुत य गोमतः.. (३)
हे इं ! आप बलवान, श क कृपा क जए. (३)
के वामी एवं
ा के समान ह. आप हम बु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मान बनाने
इ ं व ा अवीवृध समु चसं गरः रथीतम रथीनां वाजाना स प त प तम्.. (४) हे इं ! आप समु जैसे भरेपूरे ह और व को धारण करते ह. आप स प त, श और दै वी श य के वामी ह. हम वाणी से आप क उपासना करते ह. (४)
पत
स ये त इ वा जनो मा भेम शवस पते. वाम भ नोनुमो जेतारमपरा जतम्.. (५) हे इं ! हम आप के सखा ह. आप श मान ह. आप क छ छाया म हम कभी कसी से भयभीत न ह . आप अपराजेय व वजेता ह. हम आप को नमन करते ह. (५) पूव र य रातयो न व द य यूतयः. यदा वाज य गोमत तोतृ यो म हते मघम्.. (६) हे इं ! आप का दान अपूव है. आप हम (पूण) संर ण दे ते ह. आप जब उपासक को अ धन दान दे ते ह तो वह कभी ीण नह होता. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
चौथा अ याय पहला खंड एते असृ म दव तरः प व माशवः. व ा य भ सौभगा.. (१) हे सोम! आप तेजी से छलनी क ओर भाग रहे ह. यजमान अपने सौभा य के लए आप को प र कृत कर रहे ह. (१) व न तो
रता पु सुगा तोकाय वा जनः. मना कृ व तो अवतः.. (२)
हे सोम! आप श दाता, पापनाशी व हमारी पी ढ़य को पशु धन दे ते ह. आप अपना माग वयं न मत करते ह. (२) कृ व तो व रवो गवे ऽ यष त सु ु तम्. इडाम म य
संयतम्.. (३)
हे सोम! आप हम धन दान करते ह. आप हमारी गाय के लए भी े धन दान करते ह. आप पालने वाले ह. आप हमारी ाथना को वीकार क जए. (३) राजा मेधा भरीयते पवमानो मनाव ध. अ त र ेण यातवे.. (४) हे सोम! आप राजा ह. हम बु से आप क उपासना करते ह. आप अंत र म मण करते ह. आप ोणकलश म थत रहते ह. (४) आ नः सोम सहो जुवो
पं न वचसे भर. सु वाणो दे ववीतये.. (५)
हे सोम! आप को दे वीदे वता के उपयोग के लए प र कृत कया जाता है. आप हम भरपूर प, वच व ( भाव) व तेज दान क जए. (५) आ न इ ो शात वनं गवां पोष
व यम्. वहा भग मूतये.. (६)
हे सोम! आप हम सैकड़ गाएं व घोड़े दान क जए. आप उन सब का पालनपोषण करने म स म ह. आप हम भा यशाली बनाने क कृपा क जए. (६) तं वा नृ णा न ब त
सध थेषु महो दवः. चा
सुकृ ययेमहे.. (७)
हे सोम! आप वगलोक के महान वैभव से संप ह. आप चा (सुंदर) ह. आप को हम अपने सुकम से पाना चाहते ह. हम आप क उपासना करते ह. (७) संवृ
धृ णुमु यं महाम ह तं मदम्. शतं पुरो
णम्.. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप महान, म हमाशाली व ती ह. आप श ु करने वाले ह. हम आप से धन चाहते ह. (८) अत वा र यर यय ाजान
के सैकड़ नगर का नाश
सु तो दवः. सुपण अ थी भरत्.. (९)
हे सोम! आप सुकम करने वाले, धन व श दाता ह. आप कभी ग ड़ आप को वगलोक से पृ वीलोक पर लाने क कृपा कर. (९) अधा ह वान इ
यं यायो म ह वमानशे. अ भ कृ चष णः.. (१०)
हे सोम! वगलोक से पृ वीलोक पर आने के बाद आप और म हमाशाली, आकषक व मतावान हो जाते ह. (१०) व
थत नह होते ह.
मा इत् व शे साधारण
ानदायी (संप ),
रज तुरम्. गोपामृत य वभरत्.. (११)
हे सोम! आप वयं काशमान ह. आप य के र क व जल के ेरक ह. आप अमृत और द ह. (११) इषे पव व धारया मृ यमानो मनी ष भः. इ दो चा भ गा इ ह.. (१२) हे सोम! आप ानवान ह. मनीषी यजमान आप को प र कृत करते ह. आप पौ क अ दे ने वाले है. आप अपनी धारा म वा हत होइए. (१२) पुनानो व रव कृ यूज जनाय गवणः. हरे सृजान आ शरम्.. (१३) हे सोम! आप हरे व उपासना के यो य ह. आप जलवान होइए. आप यजमान को अ दान करने क कृपा क जए. (१३) पुनानो दे ववीतय इ
य या ह न कृतम्. ुतानो वा ज भ हतः.. (१४)
हे सोम! आप प व व द ह. आप को इं और दे वता के लए प र कृत कया जाता है. आप हत साधक, ु तमान व श शाली ह. आप इं तक प ंचने क कृपा क जए. (१४)
सरा खंड अ नना नः स म यते क वगृहप तयुवा. ह वाड् जु ा य.. (१) हे अ न! आप क व, व ान्, युवा, ह ववाहक व य के र क ह. आप को स मधा से व लत कया जाता है. (१) य वाम ने ह व प त तं दे व सपय त. त य म ा वता भव.. (२) हे अ न! आप ह वप त तथा दे व त ह. आप क जो व धवत र ा करते ह, आप उन क र ा करने क कृपा क जए. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो अ नं दे ववीतये ह व माँ आ ववास त. त मै पावक मृडय.. (३) हे अ न! आप ह वमान ह. हम दे वता को ह व प ंचाने के लए आप से अनुरोध करते ह. आप प व ह. आप हम सुखी बनाने क कृपा क जए. (३) म
वे पूतद ं व णं च रशादसम्. धयं धृताची
साध ता.. (४)
हे म ! आप प व और द ह. हे व ण! आप जल उपजाते ह. आप दोन दे व हम बु दान क जए. आप हम सा धए एवं हमारे श ु का नाश क जए. हम आप दोन दे व का आ ान करते ह. (४) ऋतेन म ाव णावृतावृधावृत पृशा.
तुं बृह तमाशाथे.. (५)
हे म ! हे व ण! आप स य के र क ह. आप य को सफल बनाते ह. आप हम भी पु यशाली व स य का र क बनाइए. (५) कवी नो म ाव णा तु वजाता उ
या. द ं दधाते अपसम्.. (६)
हे म ! हे व ण! आप द , जलधारी, क व व अनेक थान पर वास करते ह. आप हम मतावान बनाते ह. (६) इ ेण स
ह
से संज मानो अ ब युषा. म
हे म द्गण! आप समान वच व वाले सदै व भयमु ह. आप इं के साथ सुशो भत होते ह. (७)
समानवचसा.. (७) स
रहते ह. आप तेजोमय, वीर व
आदह वधामनु पुनगभ वमे ररे. दधाना नाम य यम्.. (८) हे म द्गण! आप पूजनीय व नामधारी ह. आप अपने धाम (न होने के बाद फर से उ प होने वाले अ और जल) म गभ धारण कर के आकार ा त करते ह. आप य को धारण करते ह. (८) वीडु चदा ज नु भगुहा च द
व
भः. अ व द उ या अनु.. (९)
हे इं ! आप मजबूत से मजबूत कले को भी ढहा सकते ह. आप गूढ़ से गूढ़ गुफा म भी वेश कर सकते ह. आग जैसे तेज वी म द्गण क ई करण को काश म लाते ह. (९) ता वे ययो रदं प े व ं पुरा कृतम्. इ ा नी न मधतः.. (१०) हे इं ! हे अ न! आप परा मी उपासक के सारे क हरने वाले व सनातन ह. हम आप दोन दे व का आ ान करते ह. (१०) उ ा वघ नना मृध इ ा नी हवामहे. ता नो मृडात ई शे.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हे अ न! आप उ व व ननाशी ह. हम य म आप दोन दे व का आ ान करते ह. आप दोन दे व हम सुखी बनाने क कृपा क जए. (११) हथो वृ ा याया हथो दासा न स पती. हथो व ा अप
षः.. (१२)
हे इं ! हे अ न! आप े दे व, आय के पालनहार सभी े ष को र करने वाले व स प त ह. आप मन को र करने वाले ह. (१२)
तीसरा खंड अ भ सोमास आयवः पव ते म ं मदम्. समु या ध व पे मनी षणो म सरासो मद युतः.. (१) हे सोम! आप आनंददायी एवं फू तदायी ह. यजमान आनंद तथा फू त पाने के लए ोणकलश के ऊपर रखी ई छलनी से आप को छानते ह. (१) तर समु ं पवमान ऊ मणा राजा दे व ऋतं बृहत्. अषा म य व ण य धमणा ह वान ऋतं बृहत्.. (२) हे सोम! आप प व , लहरदार, वशाल व राजा ह. आप को म और व ण दे व के पीने के लए य म था पत कया जाता है. (२) नृ भयमाणो हयतो वच णो राजा दे वः समु य ् ः.. (३) हे सोम! आप द , राजा, मनोहर व वल ण ह. आप समु जैसे ह. (३) त ो वाच ईरय त व ऋत य धी त णो मनीषाम्. गावो य त गोप त पृ छमानाः सोमं य त मतयो वावशानाः.. (४) हे सोम! यजमान ऋक्, यजु और साम प तीन वा णय से आप का गुणगान करते ह. ा ण और मनीषी उसी कार आप को खोजते (पूछते ए) आते ह, जस कार गाएं बैल के पास जाती ह. (४) सोमं गावो धेनवो वावशानाः सोमं व ा म त भः पृ छमानाः. सोमः सुत ऋ यते पूयमानः सोमे अका ु भः सं नव ते.. (५) हे सोम! धा गाएं आप को चाहती ह. ा ण पूछते ए सोम को चाहते ह. सुत (यजमान) प व सोम को चाहते ह. यजमान ु प् छं द म रची गई ाथना से सोम क उपासना करते ह. (५) एवा नः सोम प र ष यमान आ पव व पूयमानः व त. इ मा वश बृहता मदे न वधया वाचं जनया पुरं धम्.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप हमारे हत हेतु प र कृत होने क कृपा क जए. आप प व होइए. आप हमारा क याण क जए. आप हम े बु द जए. आप हमारी ाथना वीका रए. आप इं को तृ त क जए. (६)
चौथा खंड य ाव इ न वा व
ते शत सह
शतं भूमी त युः. सूया अनु न जातम रोदसी.. (१)
हे इं ! सैकड़ भू म, सैकड़ सूय और सैकड़ लोक भी आप क म हमा के बराबर नह हो सकते. आप जैसा अब तक कोई उ प नह आ. भूमंडल और अंत र मंडल तक म आप क समानता कोई नह कर सकता. (१) आ प ाथ म हना वृ या वृष व ा श व शवसा. अ माँ अव मघवन् गोम त जे व च ा भ त भः.. (२) हे इं ! आप बलवान, साम यवान व मनोकामनाएं पूरी करने वाले ह. आप धनवान, व धारी व े म तवान ह. आप अपने र ा साधन के साथ पधा रए. आप गाय से भरे ए बाड़े दान क जए. (२) वयं घ वा सुताव त आपो न वृ ब हषः. पव य वणेषु वृ ह प र तोतार आसते.. (३) हे इं ! आप श ुनाशी ह. हम सोमरस को जल वाह क भां त आप के पास वा हत कर के लाते ह. हम आप को प र कृत सोमरस चढ़ाते तथा वराजने के लए आप को कुश का आसन भट करते ह. (३) वर त वा सुते नरो वसो नरेक उ थनः. कदा सुतं तृषाण ओक आ गम द व द व व
सगः.. (४)
हे इं ! आप सव वास करते ह. आप सब को वास दे ते ह. यजमान सोमरस चढ़ा कर आप क उपासना करते ह. आप बैल क तरह आवाज करते ए अपने बेट के यहां कब पधारने क कृपा करगे? (४) क वे भधृ णवा धृष ाजं द ष सह णम्. पश पं मघव वचषणे म ू गोम तमीमहे.. (५) हे इं ! आप धनी, ानी, श ुनाशी व ब रंगी ह. आप हजार तरह के वैभव व हजार गुनी श दे सकते ह. हम क ववंशी यजमान आप क उपासना करते ह. (५) तर ण र सषास त वाजं पुरं या युजा. आ व इ ं पु तं नमे गरा ने म त ेव सु वम्.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हम आप के उपासक ह. हम भव सागर पार करना चाहते ह. हम बु का बल (शारी रक बल के साथसाथ) भी पाना चाहते ह. चलता आ प हया जैसे एकदम नीचे आ जाता है, वैसे ही हम ाथना पी प हए से इं के लए झुक जाते ह. (६) न ु त वणोदे षु श यते न ेध त र यनशत्. सुश र मघवन् तु यं मावते दे णं य पाय द व.. (७) हे इं ! सोमयाग म सश (उ म) उपासक को आप उ चत (उपयु ) धन दान करते ह. जो लोग दानदाता क नदा करते ह, जो लोग अ छा काम करने वाल क नदा करते ह, ऐसे लोग पर आप अपनी कृपा मत क जए. (७)
पांचवां खंड त ो वाच उद रते गावो मम त धेनवः. ह ररे त क न दत्.. (१) यजमान तीन वा णयां उचारते ह. उन वा णय को सुन कर हरे रंग का सोमरस धा गाय के रंभाने जैसी आवाज करता आ वा हत होता है. (१) अभ
ीरनूषत य
ऋत य मातरः. मजय ती दवः शशुम्.. (२)
हम यजमान वगलोक के शशु सोम को प र कृत करने के लए मं उचारते ह. स य क माता से सोम उ प ए ह. ानी सोम क उपासना करते ह. (२) रायः समु ा
तुरो म य
सोम व तः. आ पव व सह णः.. (३)
हे सोम! आप हम सभी कार के सुख द जए. आप हम सभी कार के धन द जए. आप हमारी हजार इ छा को पूरा करने के लए वा हत होने क कृपा क जए. (३) सुतासो मधुम माः सोमा इ ाय म दनः. प व व तो अ रं दे वान् ग छ तु वो मदाः.. (४) हे सोम! आप मधुमान ह. हम आप के पु ह. आप इं को स करने के लए वा हत होइए. आप प व ह और कभी रत (न ) नह होते. आप दे वता को आनंद दान करने के लए उन के पास जाने क कृपा क जए. (४) इ र ाय पवत इ त दे वासो अ ुवन्. वाच प तमख यते व येशान ओजसः.. (५) हे इं ! उपासक आप के लए सोमरस व छ करते ह. आप सब के ई र, ओज वी और वाच प त ह. य म सोमरस का उपयोग कया जाता है. (५) सह धारः पवते समु ो वाचमीङ् खयः. सोम पती रयीणा सखे य दवे दवे.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप हजार घर वाले ह. आप प व व इं के सखा ह. आप जलवान व धनवान ह. आप त दन ोणकलश म वा हत होते ह. (६) प व ं ते वततं ण पते भुगा ा ण पय ष व तः. अत ततनून तदामो अ ुते शृतास इ ह तः सं तदाशत.. (७) हे सोम! आप प व ह. आप ान के वामी व दे ह के मा लक ह. आप समथ पर कृपा करते ह. य करने वाले ही आप तक प ंच पाते ह. जस ने तन नह तपाया, वह आप से कुछ (सुखकृपा) नह पा सकता. (७) तपो प व ं वततं दव पदे ऽ च तो अ य त तवो थरन्. अव य य प वतारमाशवो दवः पृ म ध रोह त तेजसा.. (८) हे सोम! आप प व ह. आप मन को तपाने के लए वगलोक म फैले ए ह. आप क करण चमक ली ह. ये चमक ली करण वगलोक के पीछे थत ह और यजमान क र ा करती ह. (८) अ च षसः पृ र य उ ा ममे त भुवनेषु वाजयुः. माया वनो म मरे अ य मायया नृच सः पतरो गभमा दधुः.. (९) हे सूय! आप सभी ह म सब से मुख ह. आप का शत होते ह. आप सभी लोक म अपनी करण फैलाते ह तथा सभी भुवन म अ उपजाते ह. आप क करण सब को का शत करती ह. ये करण अपने गभ म जल धारण करती ह. (९)
छठा खंड म
ह ाय गायत ऋता ने बृहते शु शो चषे. उप तुतासो अ नये.. (१)
हे यजमानो! आप महान य करने वाले ह. आप अ न क उपासना क जए. अ न महान व तेज वी ह. (१) आव सते मघवा वीरव शः स म ो ु या तः. कु व ो अ य सुम तभवीय य छा वाजे भरागमत्.. (२) हे अ न! आप वीर, यशवान व उ म बु वाले ह. आप पीढ़ दर पीढ़ धन और यश दान करते ह. आप हम पर कृपा क जए. हम अ बल दान क जए. (२) तं ते मदं गृणीम स वृषणं पृ ु सास हम्. उ लोककृ नुम वो ह र यम्.. (३) हे इं ! आप साहसी, बलशाली एवं इ छापूरक ह. आप लोक का भला चाहने वाले व अ से सुशो भत होते ह. सोमरस पीते ही आप स हो जाते ह. हम आप के व प क शंसा करते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
येन यो त
यायवे मनवे च ववे दथ. म दानो अ य ब हषो व राज स.. (४)
हे इं ! आप मनु य को द घायु बनाते ह व मानव के हतकारी ह. आप ने मनु य के लए ही कई व तुएं का शत क ह. आप आइए स होइए. आप कुश के आसन पर वराजने क कृपा क जए. (४) तद ा च उ थनो ऽ नु ु व त पूवथा. वृषप नीरपो जया दवे दवे.. (५) हे इं ! पूव से ही आप के यजमान आप क गाथा (यश) गाते ह. अब भी आप के यश को गाते ह. आप असुर पर वजय पाने म हमारी सहायता क जए. हम त दन आप क तु त करते ह. (५) ु ी हवं तर या इ य वा सपय त. ध सुवीय य गोमतो राय पू ध महाँ अ स.. (६) हे इं ! आप महान व तर ऋ ष ाथना करने म लगे ए ह. आप उन क सुनने क कृपा क जए. आप हम े वीयवान व धनवान बनाइए. (६)
ाथना
य त इ नवीयस गरं म ामजीजनत्. च क वमनसं धयं नामृत य प युषीम्.. (७) हे इं ! जो यजमान नईनई ाथना से आप क उपासना करते ह, उ ह े बु मलती है. आप उन पर अमृत बरसाते ह व मन को प व बनाने वाली सोच दान करते ह. (७) तमु वाम यं गर इ मु था न वावृधुः. पु य य पौ या सषास तो वनामहे.. (८) हे इं ! ब त सी ाथना से हम ने आप क उपासना क है और कर रहे ह. हम तो और मं से आप का यशगान करते ह. आप परा मी ह. हम पूरी न ा के साथ आप क उपासना करते ह. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पांचवां अ याय पहला खंड त आ नीः पवमान धेनवो द ा असृ पयसा धरीम ण. ा त र ा था वरी ते असृ त ये वा मृज यृ षषाण वेधसः.. (१) हे सोम! आप प व ह और आप क वेगपूवक ोणकलश म प ंचती ह. ऋ ष शु क धारा को बरतन म प ंचाते ह. (१)
धा गाएं द ह. उन के ध क धाराएं सोमरस का सेवन करते ह. अंत र से उस
उभयतः पवमान य र मयो ुव य सतः प र य त केतवः. यद प व े अ ध मृ यते ह रः स ा न योनौ कलशेषु सीद त.. (२) हे सोम! थर वभाव वाले आप को जब छाना जाता है तो आप क करण चार ओर फैलती ह. हरा सोमरस छलनी म छाना जाता है तो वह ोणकलश म रहता है. सोम थर रहने के इ छु क ह. (२) व ा धामा न व च ऋ वसः भो े सतः प र य त केतवः. ानशी पवसे सोम धमणा प त व य भुवन य राज स.. (३) हे सोम! आप सव ा व श शाली ह. आप क बड़ीबड़ी करण सब ओर ापने वाली व काश फैलाने वाली ह. आप प व व व प त ह. आप भुवन म सुशो भत होते ह. (३) पवमानो अजीजन व
ं न त यतुम्. यो तव ानरं बृहत्.. (४)
हे सोम! आप प व ह. सोम वगलोक म बजली जैसा वशाल वै ानर नामक तेज उपजाते ह. (४) पवमान रस तव मदो राज
छु नः. व वारम मष त.. (५)
हे सोम! आप प व व मदकारी ह. आप का रस रा स के लए व जत है. आप का रस भेड़ के बाल से बनी छलनी म छन कर ोणकलश तक प ंचता है. (५) पवमान य ते रसो द ो व राज त ुमान्. यो त व ं व शे.. (६) हे सोम! आप प व ह. आप का रस बलवान व चमक ला है. आप सव ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा त एवं
आप का काश ( यो त) सव
दखाई दे ता है. (६)
यद्गावो न भूणय वेषा अयासो अ मुः. न तः कृ णामप वचम्.. (७) हे सोम! आप गाय के समान ग तशील, काशमान व काली चमड़ी को हटा कर ोणकलश म वेश करते ह. आप क तु त क जाती है. (७) सु वत य वनामहे ऽ त सेतुं रा यम्. सा ाम द युम तम्.. (८) हे सोम! आप सुखद ह. हम क ठनाई से बंधक बनने वाले रा स के बंधन क करते ह. अ ती (अ छे काम न करने वाले) के नाश क कामना करते ह. (८)
ाथना
शृ वे वृ े रव वनः पवमान य शु मणः. चर त व ुतो द व.. (९) हे सोम! वषा क आवाज के समान शु कए जाते समय बरतन म गरती ई धार से उ प आप क आवाज सुनाई दे ती है. आप क श मान करण आकाश म मण करती ह. (९) आ पव व मही मषं गोम द दो हर यवत्. अ व सोम वीरवत्.. (१०) हे सोम! आप प व व रसीले ह. आप हम गोवान, वणवान, अ वान एवं पु वान बनाइए. आप हम पौ वान बनाइए. (१०) पव व व चषण आ मही रोदसी पृण. उषाः सूय न र म भः.. (११) हे सोम! आप व ा व रसीले ह. अपने रस से वगलोक और पृ वीलोक को वैसे ही भर द जए, जैसे सूय अपनी करण से सारे संसार को भर दे ते ह. (११) प रणः शमय या धारया सोम व तः. सरा रसेव व पम्.. (१२) हे सोम! आप उसी तरह अपनी धाराएं हमारे चार ओर फैला द जए, जस तरह भूलोक के चार ओर सुखद जल क धाराएं फैली ई ह. (१२)
सरा खंड आशुरष बृह मते प र
येण धा ना. य ा दे वा इ त ुवन्.. (१)
हे सोम! आप म तमान ( व ान्) और दे व के य ह. आप अपनी रसधार के साथ शी आइए. इस य म इं आ द दे वता ह. अतः आप इस य म अव य आइए. (१) प र कृ व न कृतं जनाय यातय षः. वृ
दवः प र व.. (२)
हे सोम! आप अशु थान को शु करने क कृपा क जए. आप यजमान के भरणपोषण हेतु अ आ द के लए वषा करने क कृपा क जए. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अय
स यो दव प र रघुयामा प व आ. स धो मा
रत्.. (३)
हे सोम! आप वगलोक से ऊपर मंथर ग त वाले होते ह. आप को जब छलनी से छाना जाता है तो आप ब त वेगवान हो कर ोणकलश म आ जाते ह. (३) सुत ए त प व आ व ष दधान ओजसा. वच ाणो वरोचयन्.. (४) हे सोम! प र कृत कए जाते, काश फैलाते, सब को दे खते व ओज धारण करते ए, आप वेग से छलनी म छन जाते ह. (४) आ ववास परावतो अथो अवावतः सुतः. इ ाय स यते मधु.. (५) हे सोम! छानने के बाद आप का रस र और पास के दे वता इं के लए मधुर सोमरस का सचन कया जाता है. (५) समीचीना अनूषत ह र
हव य
भः. इ
को भट कया जाता है.
म ाय पीतये.. (६)
उपयु री त से इकट् ठे ए उपासक सोम क उपासना करते ह. इं के पीने के लए हरे सोम को प थर से कूटा जाता है. (६) ह व त सूरमु यः वसारो जामय प तम्. महा म ं महीयुवः.. (७) हे सोम! ये अंगु लयां काम के लए सब ओर जाने वाली ह. आपस म बहन क तरह ेम भाव से रहने वाली ये अंगु लयां सोमरस को शु करती ह. ये े वीर, चेतन व सब के वामी सोमरस को नचोड़ती ह. (७) पवमान चा चा दे व दे वे यः सुतः. व ा वसू या वश.. (८) हे सोम! आप चमक ले व शु ह. दे वता को भट करने के लए आप को छान कर तैयार कया गया है. आप हम संसार के सारे वैभव दे द जए. (८) आ पवमान सु ु त वृ
दे वे यो वः. इषे पव व संयतम्.. (९)
हे सोम! आप शु व शंसा के यो य ह. आप अपने रस क वषा वैसे ही हम पर क रए, जैसे दे वता हमारे लए अ और आशीवाद क वषा करते ह. (९)
तीसरा खंड जन य गोपा अज न जागृ वर नः सुद ः सु वताय न से. घृत तीको बृहता द व पृशा ुम भा त भरते यः शु चः.. (१) हे अ न! आप जा के र क, जा त करने वाले व कुशलता दान करने वाले ह. आप यजमान को उ त के पथ पर अ सर करने के लए कट होते ह. आप घी क आ त से व लत होते ह. आप वराट् (असीम) आकाश तक अपनी प ंच रखते ह. आप प व व ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मतावान ह. आप वगलोक को पश करते ह तथा यजमान के क याण के लए का शत होते ह. (१) वाम ने अ रसो गुहा हतम व व द छ याणं वनेवने. स जायसे म यमानः सहो मह वामा ः सहस पु म रः.. (२) हे अ न! अं गरस ऋ ष ने आप को खोजा. उस से पहले आप छपे ए थे. आप वृ और वन प त म छप कर (गु त प म) रहते ह. आप को इसी लए अं गर ( मतावान) कहा जाता है. आप को साम य का पु माना जाता है. आप को अर ण मंथन से कट कया जाता है. (२) य य केतुं थमं पुरो हतम नं नर षध थे स म धते. इ े ण दे वैः सरथ स ब ह ष सीद होता यजथाय सु तुः.. (३) हे अ न! आप दे वता के साथ रथ पर वराजते ह. आप के रथ पर य क पताका फहराती है. यजमान घर, मन और य इन तीन थान पर ( वशेष प से) आप को कट करते ह. आप े काम म लगे रहते ह. य करने वाले यजमान के लए आप य थान म त त होते ह. (३) अयं वां म ाव णा सुतः सोम ऋतावृधा. ममे दह ुत हे म ! हे व ण! आप य आप दोन दे व के सेवन के लए क जए. (४)
हवम्.. (४)
क बढ़ोतरी करते ह. व धवत प र कृत कया सोमरस तुत है. आप दोन हमारे इस नवेदन को सुनने क कृपा
राजानावन भ हा ुवे सद यु मे. सह
थूण आशाते.. (५)
हे म ! हे व ण! आप कभी भी पर पर (आपस म) ोह नह करते. य मंडप हजार खंभ के सहारे बनाया गया है. वह य मंडप थर और सश है. आप दोन उस य मंडप म वराजने क कृपा क जए. (५) ता स ाजा घृतासुती आ द या दानुन पती. सचेते अनव रम्.. (६) हे यजमानो! म और व ण आ त के प म भट कए गए घी का ही आहार लेते ह. दोन दे व स ाट् ह, ऐ य के वामी ह, समान व वाले ह. वे यजमान क अनवरत (लगातार) सहायता करते ह. (६) इ ो दधीचो अ थ भवृ ा य त कुतः. जघान नवतीनव.. (७) इं वैभववान ह. सभी दे वता उन का आदर करते ह. उ ह ने दधी च ऋ ष ारा दान क गई ह ड् डय से बने श से न यानवे श ु को मारा. (७) इछ
य य छरः पवते वप तम्. त द छयणाव त.. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं पवतप त ह. बादल म छपी अ श करने वाली श य को छ व छ कया. (८)
को उ ह ने कटाया. आय का वरोध
अ ाह गोरम वत नाम व ु रपी यम्. इ था च मसो गृहे.. (९) हे यजमानो! सूय नरंतर ग तमान ह. वे चं मंडल म भले ही दखाई न द परंतु मौजूद रहते ह. इस कार वे चं मा के घर म रहते ह. ता पय यह है क न केवल दन म ब क रा म भी सूय क करण का शत रहती ह. (९) इयं वाम य म मन इ ा नी पू
तु तः. अ ाद्वृ
रवाज न.. (१०)
हे अ न! हे इं ! उ म को ट के व ान् आप दोन दे व क उपासना करते ह. आप के लए क गई ाथना वैसे ही सह प से (बु म) उपजती है, जैसे बादल के भीतर से बरसात उपजती है. (१०) शृणुतं ज रतुहव म ा नी वनतं गरः. ईशाना प यतं धयः.. (११) हे अ न! हे इं ! यजमान आप दोन दे वता क उपासना व ह व सम पत करते ह. आप उसे वीकारने क कृपा क जए. आप उन क वाणी (पुकार) सु नए. आप बु के ई र ह. आप उ ह उन क मेहनत का फल दान क जए. (११) मा पाप वाय नो नरे ा नी मा भश तये. मा नो रीरधतं नदे .. (१२) हे अ न! हे इं ! आप नेता व उ तकारक ह. आप हम पाप व मारधाड़ ( हसा) से बचाइए. आप हम नदनीय काय से र रख. (१२)
चौथा खंड पव व द साधनो दे वे यः पीतये हरे. म द् यो वायवे मदः.. (१) हे सोम! आप द , साधन संप , उ लास बढ़ाने वाले व बलव क ह. आप दे वता के पीने के लए बढ़ोतरी पाते ह. आप म द्गण के लए वा हत होइए. आप वायु के लए वा हत होइए. (१) सं दे वैः शोभते वृषा क वय नाव ध
यः. पवमानो अदा यः.. (२)
हे सोम! आप क व, य, बलवान व दे वता प र कृत हो कर वा हत होइए. (२)
के बीच शोभायमान होते ह. आप
पवमान धया हतो ३ ऽ भ यो न क न दत्. धमणा वायुमा हः.. (३) हे सोम! बु पूवक आप क त ा क जाती है. आप हतकारी ह और आवाज करते ए ोणकलश म वेश करते ह. आप वायु के साथ कलश म था पत होइए. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तवाह सोम रारण स य इ दो दवे दवे. पु ण ब ो न चर त मामव प रधी र त ताँ इ ह.. (४) हे सोम! आप काशमान ह. हम त दन आप से म ता करने के लए इ छु क रहते ह. आप उन सभी का नाश क जए, जो हम सताते ह. (४) तवाहं न मुत सोम ते दवा हानो ब ऊध न. घृणा तप तम त सूय परः शकुना इव प तम.. (५) हे सोम! आप चमकते ह. आप उजले ह. हम दनरात आप का साहचय ा त हो. र से ही चमचमाते सूय क तरह आप को भी र से दे खा जा सकता है. आप प य क भां त ग तशील ह. (५) पुनानो अ मीद भ व ा मृधो वचष णः. शु भ त व ं धी त भः.. (६) हे सोम! ा ण बु पूवक क गई ाथना प व , वल ण व सव ा ह. (६)
से आप क उपासना करते ह. आप
आ यो नम णो हद्गम द ो वृषा सुतम्. ुवे सद स सीदतु.. (७) सोमरस अ ण (गुलाबी) आभा वाला है. वह इं के लए ोणकलश म था पत कया जा रहा है. वह इं को बलवान बनाता है. इं उस सोमरस को पीने के लए सदन म े थान पर त त ह . (७) नू नो र य महा म दो ऽ म य
सोम व तः. आ पव व सह णम्.. (८)
हे सोम! आप तृ तकारक ह. आप हजार धारा से झ रए. आप सभी ओर से सब कार का वैभव हम दान करने क कृपा क जए. (८)
पांचवां खंड पबा सोम म सोतुबा या
म दतु वा यं ते सुषाव हय ा ः. सुयतो नावा.. (१)
हे इं ! यजमान अपने दोन हाथ से प थर से कूटकूट कर सोमरस नकालते ह. आप उस सोमरस को पी कर आनं दत ह . आप इसे पी जए. आप अ के वामी ह. आप हम भी अ जैसा बल दान क जए. (१) य ते मदो यु य ा र त येन वृ ा ण हय ह स वा म भूवसो मम ु.. (२)
स.
हे इं ! आप अ के वामी व ऐ यशाली ह. आप सोमरस पी कर स होइए. आप अपने सुंदर घोड़ को रथ म जो तए. आप स हो कर हमारे श ु का नाश क जए. हे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इं ! आप हम भी मदम त व भावशाली बनाइए. (२) बोधा सु मे मघव वाचमेमां यां ते व स ो अच त श तम्. इमा सधमादे जुष व.. (३) हे इं ! आप धन के वामी ह. आप यजमान क इस वाणी को सु नए. व स ऋ ष श त गान कर के आप क अचना कर रहे ह. आप उन क ाथना, वाणी और ह व को वीका रए. (३) व ाः पृतना अ भभूतरं नरः सजू तत ु र ं जजनु राजसे. वे वरे थेम यामुरीमुतो मो ज ं तरसं तर वनम्.. (४) हे इं ! सभी आप का मह व वीकारते ह. सब आप क उपासना करते ह. आप ने अपने बल से मन का नाश कया. आप ने अपने े कम से उ चा पदवी पाई. आप क म हमा गाने वाले क साम य श बढ़ती है. आप ब त ज द काय करते ह. आप ज द हमारी इ छा पूरी क रए. (४) ने म नम त च सा मेषं व ा अ भ वरे. सुद तयो वो अ हो ऽ प कण तर वनः समृ व भः.. (५) हे इं ! आप परा मी ह. ा ण वन वर म आप क ाथना कर रहे ह. आप के उपासक वन ह. हम आंख बंद कर व झुक कर आप को नमन करते ह. हे उपासको! आप कसी से ई या ोह मत क जए. आप कान को सुहावनी लगने वाली ाथनाएं इं के लए गाइए. (५) समु रेभासो अ वर वः प तयद वृधे धृत तो
सोम य पीतये. ोजसा समू त भः.. (६)
हे इं ! आप संक पशील, सोमरस पीने वाले, बलवान, ऐ यशाली ह. आप यजमान को भी म हमावान बनाने के इ छु क ह. यजमान इं क व धवत उपासना करते ह. (६) यो राजा चषणीनां याता रथे भर गुः. व ासां त ता पृतनानां ये ं यो वृ हा गृणे.. (७) इं राजा ह. वे अपने रथ से तेज ग त से थान करते ह. वे वृ हंता ह. वे यजमान के व ास क र ा करते ह, वे ये ह. हम उन का गुणगान करते ह. (७) इ ंत स शु भ पु ह म वसे य य ता वध र. ह तेन व ः त धा य दशतो महाँ दे वो न सूयः.. (८) श
हे यजमानो! इं व धारी, दे खने म सुंदर व सूय जैसे तेज वी ह. उन म धा (दोहरी) है. वे दे व क र ा, रा स का नाश व हम संर ण दान करते ह. हम सभी को उन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
क उपासना करनी चा हए. (८)
छठा खंड पर
या दवः क ववया
स न यो हतः. वानैया त क व तुः.. (१)
हे सोम! आप य, क व, हतकारी ह और लकड़ी क वेद पर त त ह. आप द घायु दाता ह. य म आप का द रस अ वयु (पुरो हत) क कृपा से ा त होता है. (१) स सूनुमातरा शु चजातो जाते अरोचयत्. महा मही ऋतावृधा.. (२) हे सोम! आप सुपु ह. पृ वी आप क माता व अंत र आप के पता ह. आप अपने माता पता को सुशो भत करते ह और ऋत् (स य) से बढ़ोतरी पाते ह. (२) याय प यसे जनाय जु ो अ हः. वी यष प न ये.. (३) हे सोम! आप उपासना के यो य ह. यजमान आप क थरता का यास करते ह. जो मनु य े ष र हत ह और जो आप का गुणगान करते ह, उन को आप पोषक आहार के प म ा त होते ह. (३) व
ा३
दै
पवमान ज नमा न ुम मः. अमृत वाय घोषयन्.. (४)
हे सोम! आप द , प व और उ म ह. आप क अमरता क घोषणा करते ए यजमान उपासना करते ह. (४) येना नव वा द यङ् ङपोणुते येन व ास आ परे. दे वाना सु ने अमृत य चा णो येन वा याशत.. (५) हे सूय! आप क करण नई ह. सोमरस भी नए काम म लगाते ह, जस से (सोम से) ा णगण चुर धन पाते ह, जस से यजमान को अ मलता है. सोम अ छे मन वाले ह. सुंदर सोम से दे व को भी अमृत ा त होता है. (५) सोमः पुनान ऊ मणा ं वारं व धाव त. अ े वाचः पवमानः क न दत्.. (६) हे सोम! आप प व , लहरदार व अ गामी ह. यजमान वाणी से आप को और प व बनाते ह. आप दौड़ते और आवाज करते ए ोणकलश म जाते ह. (६) धी भमृज त वा जनं वने
ड तम य वम्. अ भ
पृ ं मतयः सम वरन्.. (७)
यजमान बलवान सोमरस को बु पूवक प र कृत करते ह. सोम वन म ड़ा करते ह. समान वर म (एक साथ) बु पूवक ाथना गा कर यजमान तीन बरतन म रखे सोमरस क उपासना करते ह. (७) अस ज कलशाँ अ भ मीढ् वां स तन वाजयुः. पुनानो वाचं जनय स यदत्.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप पोषक ह और जल म मल कर रहते ह. यु म जाते ए घोड़े जैसे आवाज करते ह, वैसे ही सोम आवाज करते ए तेजी से ोणकलश म जाते ह. (८) सोमः पवते ज नता मतीनां ज नता दवो ज नता पृ थ ाः. ज नता नेज नता सूय य ज नते य ज नतोत व णोः.. (९) सोम वगलोक, पृ वीलोक, अ न, सूय, इं व व णु के जनक ह. सोम को प र कृत कया जा रहा है. (१) ा दे वानां पदवीः कवीनामृ ष व ाणां म हषो मृगाणाम्. येनो गृ ाणा व ध तवनाना सोमः प व म ये त रेभन्.. (१०) सोम ानी, दे वता , क वय , ऋ षय , पशु , मृग , बाज, गृ ा त ह. सोम आवाज करता आ ोणकलश म जाता है. (१०)
व वन प तय म
ावी वप ाच ऊ म न स धु गर तोमा पवमानो मनीषाः. अ तः प य वृजनेमावरा या त त वृषभो गोषु जानन्.. (११) हे सोम! आप क आवाज समु क लहर क भां त कण य है. आप अंतयामी व अंत वाले ह. आप क मता असीम है तथा वह कभी समा त नह होती है. बैल जैसे गाय के पास जाता है, वैसे ही आप ोणकलश म जाते ह. (११)
सातवां खंड अ नं वो वृध तम वराणां पु तमम्. अ छा न े सह वते.. (१) हे यजमानो! अ न अकूत श के भंडार ह. वह बढ़ोतरी करने वाले व आप सभी अ न के नकट प ं चए. (१) अयं यथा न आभुव व ा
पेव त या. अ य
े तम ह.
वा यश वतः.. (२)
हे यजमानो! व ा (बढ़ई) जैसे लकड़ी को प (आकार) दान करते ह, तदवत (उसी कार) अ न हम यश और व प दान करते ह. (२) अयं व ा अ भ यो ऽ नदवेषु प यते. आ वाजै प नो गमत्.. (३) हे अ न! आप सभी सुख व दे वता को भी संर ण दान करते ह. आप अ बल के साथ हमारे समीप पधारने क कृपा क जए. (३) इम म
सुतं पब ये मम य मदम्. शु
य वा य र धारा ऋत य सादने.. (४)
हे इं ! य म सोमरस क मददायी बड़ीबड़ी चमक ली धाराएं झर रही ह. आप य सदन म पधा रए और सोमरस को पी जए. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न क ् व थीतरो हरी य द य छसे. न क ् वानु म मना न कः व आनशे.. (५) हे इं ! आप जैसा कोई अ य वीर है ही नह , न ही आप जैसा कोई घोड़ का पालनहार, न ही घोड़ का वामी, न ही आप जैसा कोई बलवान है. आप घोड़ से चलने वाले रथ म वराजते ह. (५) इ ाय नूनमचतो था न च वीतन. सुता अम सु र दवो ये ं नम यता सहः.. (६) हे यजमानो! आप न त प से इं क ही पूजा क जए. आप उन के लए ाथना गाइए. इं दे व म ये (बड़े) ह. आप अपने पु स हत उ ह नमन क जए. (६) इ जुष व वहा या ह शूर ह रह. पबा सुत य म तन मधो कान ा मदाय.. (७) हे इं ! आप शूरवीर व घोड़ के वामी ह. आप आइए. आप के पु (यजमान) आप को स करने के लए सोमरस भट कर रहे ह. आप उस मधुर सोमरस को पीने क कृपा क जए. (७) इ जठरं न ं न पृण व मधो दवो न. अ य सुत य वा ३ न प वा मदाः सुवाचो अ थुः.. (८) हे इं ! आप जैसे अपने द लोक म अपने पु क ाथना को सुन कर स होते ह, वैसे ही आप मधुर द सोमरस को पी कर स होने क कृपा क जए. (८) इ तुराषा म ो न जघान वृ ं य तन. बभेद वलं भृगुन ससाहे श ू मदे सोम य.. (९) हे इं ! आप मन के नाशक व श ु जत् ह. भृगु ऋ ष ने जस कार वल रा स को मार गराया, उसी कार सोमरस पान से ऊज वी हो कर आप भी हमारे श ु को मार गराएं. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
छठा अ याय पहला खंड गो व पव व वसु व र य व े तोधा इ दो भुवने व पतः. व सुवीरो अ स सोम व व ं वा नर उप गरेम आसते.. (१) म
हे सोम! आप गौ ध म त, प व , सव ाता, े पथ पर जाने वाले व सभी लोक ा त ह. सभी उपासक आप क उपासना करते ह. (१) वं नृच ा अ स सोम व तः पवमान वृषभ ता व धाव स. स नः पव व वसुम र यव य याम भुवनेषु जीवसे.. (२)
हे सोम! आप प व , फू तदायी, सव ापक व सव ाता ह. आप दौड़ते ए हमारे पास पधा रए. आप हम धनवान बनाइए. आप क कृपा से हम सभी लोक म े जीवन जीएं. (२) ईशान इमा भुवना न ईयसे युजान इ दो ह रतः सुप यः. ता ते र तु मधुमद्घृतं पय तव ते सोम त तु कृ यः.. (३) हे सोम! आप सभी लोक के ई र, हरे, सव ा त एवं मधुरता यु ह. आप के रस क धार नरंतर झरे. आप क कृपा से यजमान अपने त (संक प ) को पूरा करने म लगे रह. (३) पवमान य व व
ते सगा असृ त. सूय येव न र मयः.. (४)
हे सोम! आप प व व सव ाता ह. सूय क तरह आप क करण (र मयां) वग से फैल रही ह. (४) केतुं कृ व दव प र व ा
पा यष स. समु ः सोम प वसे.. (५)
हे सोम! आप सव ापक और वगलोक के ऊपर करण के बरसात के प म पानी बरसा कर हम संप ता दे ते ह. (५) ज ानो वाच म य स पवमान वधम ण.
पम
ा त ह. आप
द दे वो न सूयः.. (६)
हे सोम! आप सूय जैसे द तमान ह. आप वाणी से प व ता को ा त होते ह. आप आवाज करते ए ोणकलश म जाते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोमासो अध वषुः पवमानास इ दवः. ीणाना अ सु वृ
ते.. (७)
हे सोम! आप प व व शीतल ह. आप जल के साथ ोणकलश म पर पर म त हो रहे ह. (७) अ भ गावो अध वषुरापो न वता यतीः. पुनाना इ माशत.. (८) (८)
हे इं ! आप के भ ण (पीने) के लए सोमरस नीचे बरतन म शु
हो कर प ंच रहा है.
पवमान ध व स सोमे ाय मादनः. नृ भयतो व नीयसे.. (९) हे सोम! आप प व व इं के लए आनंददायी ह. यजमान ारा आप नधा रत थान तक ले जाए जा रहे ह. (९) इ दो यद
भः सुतः प व ं प रद यसे. अर म
य धा ने.. (१०)
हे इं ! सोमरस आप के पीने यो य हो गया है. इसे प थर से कूट कर नचोड़ा गया एवं छलनी (भेड़ के बाल से बनी) से छाना गया है. (१०) तव
सोम नृमादनः पव व चषणीधृ तः. स नय अनुमा ः.. (११)
हे सोम! आप प व व मनु य के लए मददायी ह. आप प र कृ त (शु ता) के बाद यजमान ारा (दे व को चढ़ाने के लए) धारण कए जाते ह. (११) पव व वृ हतम उ थे भरनुमा ः. शु चः पावको अद्भुतः.. (१२) हे सोम! आप प व व वल ण ह. आप वृ हंता के लए तु तय से शु ता और प व ता को ा त होते ह. (१२) शु चः पावक उ यते सोमः सुतः स मधुमान्. दे वावीरघश हे सोम! आप प व , शु व मधुरता से यु आप को दे व का पु कहा गया है. (१३)
सहा.. (१३)
ह. आप दे व को आनं दत करने वाले ह.
सरा खंड क वदववीतये ऽ
ा वारे भर त. सा ा व ा अ भ पृधः.. (१)
हे सोम! आप क व ह. आप को दे वता श ु से पधा करने वाले ह. (१)
के लए प र कृत कया जाता है. आप सभी
स ह मा ज रतृ य आ वाजं गोम त म व त. पवमानः सह णम्.. (२) हे सोम! आप सह
पव
धारा
से झरते ह. आप उपासक को गोवान और
******ebook converter DEMO Watermarks*******
धनवान बनाते ह. (२) प र व ा न चेतसा मृ यसे पवसे मती. स नः सोम वो वदः.. (३) हे सोम! आप सव ाता ह. आप व को चेतनामय बनाते ह. आप को बु प र कृत कया जाता है. आप हमारी तु तय को सुनने क कृपा क जए. (३) अ यष बृह शो मघवद् यो ुव
र यम्. इष
हे सोम! आप वशाल व यश वी ह. आप तोता क कृपा क जए. (४) व
पूवक
तोतृ य आ भर.. (४) को अ वान और धनवान बनाने
राजेव सु तो गरः सोमा ववे शथ. पुनानो व े अद्भुत.. (५)
हे सोम! आप राजा के समान, अ छे त संक प वाले, वल ण व प व मन वाले ह. यजमान क वाणी को आप सुनने और वीकारने क कृपा क जए. (५) स व र सु
रो मृ यमानो गभ योः. सोम मूषु सीद त.. (६)
हे सोम! आप जलमय व तेज वी ह. आप प र कृत कए जाते ए ोणकलश म जा कर बैठ जाते ह. (६) डु मखो न म
हयुः प व ं
सोम ग छ स. दध तो े सुवीयम्.. (७)
हे सोम! आप प व व महान ह. आप य क तरह सर का हत करने वाले ह. आप यजमान के लए े वीय धारण करते ह. आप उपासक क उपासना तक प ंचते ह. (७) यवंयवं नो अ धसा पु ंपु ं प र व. व ा च सोम सौभगा.. (८) हे सोम! आप हम बारबार पु ा तपु (अ धक पु ) बनाने के लए झ रए. आप हम सारे वैभव से सौभा यवान बनाने क कृपा क जए. (८) इ दो यथा तव तवो यथा ते जातम धसः. न ब ह ष
ये सदः.. (९)
हे सोम! यजमान जस भावना से आप क तु त करते ह, आप भी उसी से य म कुश के आसन पर वराजने क कृपा क जए. (९)
य भावना
उत नो गो वद व पव व सोमा धसा. म ूतमे भरह भः.. (१०) (१०)
हे सोम! आप हम गोवान व अ वान बनाइए. आप हम अकूत वैभव दान क जए. यो जना त न जीयते ह त श ुमभी य. स पव व सह जत्.. (११)
हे सोम! आप से डर कर श ु न हो जाते ह. आप हजार श ु हम प व सोम क तु त करते ह. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को जीतने वाले ह.
या ते धारा मधु तो ऽ सृ म द ऊतये. ता भः प व मासदः.. (१२) हे सोम! आप क वे प व धाराएं हम संर ण दान करने वाली ह. आप उन के साथ यहां पधा रए. (१२) सो अष ाय पीतये तरो वारा य या. सीद ृत य यो नमा.. (१३) हे सोम! आप को इं क तृ त के लए छलनी से छान कर तैयार कया जाता है. आप य म अपने थान पर वराजने क कृपा क जए. (१३) व
सोम प र व वा द ो अ रो यः. व रवो वद्धृतं पयः.. (१४)
हे सोम! आप वा द ह. आप अं गरा आ द ऋ षय के लए पौ क पदाथ दान करने क कृपा क जए. (१४)
तीसरा खंड तव यो व य येव व ुतो ऽ ने क उषसा मवेतयः. यदोषधीर भसृ ो वना न च प र वयं चनुषे अ मास न.. (१) हे अ न! जब हम अ और वन प तय को आप के मुंह म डालते ह, उस समय आप क लपट वषा के समय चमकने वाली बजली और उषा के काश क तरह गोचर होती ह. (१) वातोपजूत इ षतो वशाँ अनु तृषु यद ा वे वष त से. आ ते यत ते र यो ३ यथा पृथक् शधा य ने अजर य ध तः.. (२) हे अ न! हवा से हलने पर आप वन प तय के पीछे जा कर उसे चार ओर से आवृ कर (घेर) लेते ह, उस समय आप को बढ़ते ए दे ख कर ऐसा लगता है—मानो रथ पर चढ़ कर कोई शूरवीर सब कुछ न (श ु का) करने के लए आगे बढ़ रहा हो. (२) मेधाकारं वदथ य साधनम न होतारं प रभूतरं म तम्. वामभ य ह वषः समान म वां महो वृणते ना यं वत्.. (३) हे अ न! आप बु को बढ़ाते ह. आप य के साधन (शृंगार) ह. आप वशाल आकार के ह. हम होता ह व वीकार करने के लए एक वर से आप के अलावा कसी और का आ ान नह कर रहे ह. (३) पु
णा च
यवो नूनं वां व ण. म व
स वा
सुम तम्.. (४)
हे सूय! हे व ण! आप पया त साधन वाले ह. आप अपनी सुम त हम ा त कराने क कृपा क जए. हम आप के म हो जाएं. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता वा
स यग
ाणेषम याम धाम च. वयं वां म ा याम.. (५)
हे सूय! हे व ण! आप दोन दे व अ े षी ह. हम आप क स यक् ह. हम आप दोन के म हो जाएं. (५) पातं नो म ा पायु भ त ायेथा
प से उपासना करते
सु ा ा. सा ाम द यून् तनू भः.. (६)
हे म ! हे व ण! आप अपने र ासाधन से हमारी र ा क जए. आप क कृपा से हम अपने शरीर ारा श ु को न कर सक. (६) उ
ोजसा सह पी वा श े अवेपयः. सोम म
चमू सुतम्.. (७)
हे इं ! आप ओज के साथ उ ठए. आप अपनी ठोड़ी को ऊपर उठाइए. आप यु फू त दखाने के लए इस सोमरस को पी जए. (७) अनु वा रोदसी उभे पधमान मदे ताम्. इ
य युहाभवः.. (८)
हे इं ! आप वगलोक और पृ वीलोक दोन के लए आनंददायी ह. आप द यु त त पधा रखते ह. आप द यु का नाश करते ह. (८) वाचम ापद महं नव
के
मृतावृधम्. इ ा प रत वं ममे.. (९)
हे इं ! अमृत क बढ़ोतरी करने वाली नई क पना वीकार करने क कृपा क जए. (९) इ ा नी युवा ममे ३ ऽ भ तोमा अनूषत. पबत हे इं ! हे अ न! हम यजमान आप दोन दे वता सोमरस पी जए. (१०) या वा
म
से प रपूण, आठ पद वाली तु त श भुवा सुतम्.. (१०) क उपासना करते ह. आप दोन
स त पु पृहो नयुतो दाशुषेः नरा. इ ा नी ता भरा गतम्.. (११)
हे इं ! हे अ न! यजमान क आप के त पृहा (चाहना) है. आप शी ही ह व पाने के लए अपने ग तशील साधन से हमारे पास पधारने क कृपा क जए और दान दे ने वाल क सहायता क जए. (११) ता भरा ग छतं नरोपेद
सवन
सुतम्. इ ा नी सोमपीतये.. (१२)
हे इं ! हे अ न! आप अपने उन ग तशील साधन से मनु य के पास पधारने क कृपा क जए. आप दोन सोमरस पीने के लए पधा रए. (१२)
चौथा खंड अषा सोम ुम मो ऽ भ ोणा न रो वत्. सीद योनौ वने वा.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप वन म वराजमान रहते ह. आप ोणकलश म जाते ह. (१) अ सा इ ाय वायसे व णाय व
ु तमान ह. आप आवाज करते ए
यः. सोमा अष तु व णवे.. (२)
हे सोम! आप इं , वायु, व ण, म द्गण , व णु के लए जल म म त होने क कृपा क जए. (२) इषं तोकाय नो दधद म य
सोम व तः. आ पव व सह णम्.. (३)
हे सोम! आप हमारे लए सभी कार के वैभव सभी ओर से दान क जए. आप हजार धारा से झरने क कृपा क जए. (३) सोम उ वाणः सोतृ भर ध णु भरवीनाम्. अ येव ह रता या त धारया म या या त धारया.. (४) हे सोम! यजमान आप को नचोड़ कर प र कृत करते ह. आप घोड़े क तरह ग तशील धारा से ोणकलश म जाते ह. आप मंद ग त से ोणकलश म जाते ह. (४) अनूपे गोमान् गो भर ाः सोमो धा भर ाः. समु ं न संवरणा य म म द मदाय तोशते.. (५) हे सोम! न दयां जैसे समु का वरण कर के थर होती ह, उसी कार सोमरस ोणकलश म प ंच कर थर हो रहा है. सोमरस अनुपम, गो से यु , आनंददायी व पोषक है. (५) य सोम च मु यं द ं पा थवं वसु. त ः पुनान आ भर.. (६) हे सोम! आप द व अद्भुत ह. पृ वी पर जो भी ऐ य है, वह सब आप हम ा त कराने क कृपा क जए. (६) वृषा पुनान आयु
ष तनय ध ब ह ष. ह रः स यो नमासदः.. (७)
हे सोम! आप हरे व प व ह. आप आवाज करते ए आसन पर वराजमान होइए. (७) युव
ह थः वःपती इ
े यो न ( थान) म कुश के
सोम गोपती. ईशाना प यतं धयः.. (८)
हे इं ! हे सोम! आप दे व वैभव के वामी ह. आप गोप त ( वामी) व बु आप हमारी बु को े कम म (राह म) लगाने क कृपा क जए. (८)
पांचवां खंड इ ो मदाय वावृधे शवसे वृ हा नृ भः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के र क ह.
त म मह वा जषू तमभ हवामहे स वाजेषु
नो ऽ वषत्.. (१)
हे इं ! आप मददाता व वृ नाशक ह. आप अपने र ा साधन से हम बलवान बना सकते ह. हम आप से उन र ा साधन स हत यु म अपनी र ा करने का अनुरोध करते ह. आप हमारी र ा करने क कृपा क जए. (१) अ स ह वीर से यो ऽ स भू र पराद दः. अ स द य चद्वृधो यजमानाय श स सु वते भू र ते वसु.. (२) हे इं ! आप वीर सै नक ह. आप श ु क समृ (वैभव) का नाश क जए. आप धनदाता ह. आप यजमान को वैभव दान करने क कृपा क जए. (२) य द रत आजयो धृ णवे धीयते धनम्. युङ् वा मद युता हरी क हनः कं वसौ दधो ऽ माँ इ
वसौ दधः.. (३)
हे इं ! आप क कृपा से अपार समृ मलती है. आप अपने रथ म घोड़े जोत कर, कस को मारना है और कस को नह , यह सोचते ए हम धन दान करने क कृपा क जए. (३) वादो र था वषूवतो मधोः पब त गौयः. या इ े ण सयावरीवृ णा मद त शोभथा व वीरनु वरा यम्.. (४) हे इं ! सूय क करण सु वा और मीठे सोमरस को पीती ह. सूय क ये करण आप के पास सुशो भत होती ह अथात् अपने ही रा य म नवास करती ह. (४) ता अ य पृशनायुवः सोम या इ य धेनवो व
ीण त पृ यः. ह व त सायकं व वीरनु वरा यम्.. (५)
हे इं ! सूय क ब रंगी करण आप को छू ती ह. ये करण आप को य ह और ये आप के व को े रत करती ह. ये इं क गाय को भी य ह. ये वरा य म ही थत रहती ह. (५) ता अ य नमसा सहः सपय त चेतसः. ता य य स रे पु ण पूव च ये व वीरनु वरा यम्.. (६) हे इं ! सूय क करण ानमय ह. ये आप को नमन करती ह. ये जा त करने वाली ह. ये इं को उन के पहले ( कए गए) के काय को याद दलाती ह. ये करण वरा य म ही थत रहती ह. (६)
छठा खंड असा
शुमदाया सु द ो ग र ाः. येनो न यो नमासदत्.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप द , पवतवासी व चुर (अ धक) वैभवदाता ह. आप जल म म त हो जाते ह. आप बाज प ी क भां त वेग से बरतन म वेश करते ह. (१) शु म धो दे ववातम सु धौतं नृ भः सुतम्. वद त गावः पयो भः.. (२) हे सोम! आप शु ह और यजमान ारा नचोड़े जाते ह. आप को े जल म मलाया जाता है. गाएं अपने ध को सोमरस म मलाती ह. अपने ध से वे गाएं इस को और अ धक वादमय बना दे ती ह. (२) आद म ं न हेतारमशूशुभ मृताय. मधो रस
सधमादे .. (३)
हे सोम! घोड़े जैसे फुत ले आप को यजमान (होता) य यजमान आप से अमरता क चाह रखते ह. (३) अ भ ु नं बृ
थल पर
त ा पत करते ह.
श इष पते दद ह दे व दे वयुम्. व कोशं म यमं युव.. (४)
हे सोम! आप वन क उपज (वन प त) के वामी ह. आप हम ऐसा वैभव दान करने क कृपा क जए, जसे पाने के लए दे वगण भी इ छु क ह . आप य शाला के बीचोबीच े थान पर त त होने क कृपा क जए. (४) आ व य व सुद च वोः सुतो वशां व न व प तः. वृ दवः पव व री तमपो ज वन् ग व ये धयः.. (५) हे सोम! आप बु मान ह. आप यजमान को भी ऐसी बु दे ते ह, जस से वे उपयु माग पर जा सक. आप राजा क भां त सब का भरणपोषण करते ह. आप वगलोक से होने वाली वषा क तरह बर सए ( वा हत होइए). आप ोणकलश म था पत होने क कृपा क जए. (५) ाणा शशुमहीना
ह व ृत य द ध तम्. व ा प र
या भुवदध
ता.. (६)
हे सोम! आप द जल से पैदा होते ह. आप य को का शत करते ह. आप अपने रस को े रत करने क कृपा क जए. सब आप को चाहते ह. आप ह व को हण करने क कृपा क जए. आप पृ वीलोक व वगलोक (अंत र लोक) को का शत क जए. (६) उप
त य पा यो ३ रभ
यद्गु पदम्. य
य स त धाम भरध
यम्.. (७)
हे सोम! आप त (महान ऋ ष) क गुफा के समीप ा त होते ह. आप चट् टान क भां त कठोर दो फलक के बीच से ा त होते ह. यजमान गाय ी छं द म मं रच कर आप क उपासना करते ह. (७) ीण
त य धारया पृ े वैरय यम्. ममीते अ य योजना व सु तुः.. (८)
हे सोम! आप तीन भुवन व तीन सवन म ा त ह. आप अपनी धारा से इं को े रत क जए. े कमा (कम वाले) यजमान े तो से आप क उपासना और गुणगान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह. (८) पव य वाजसातये प व े धारया सुतः. इ ाय सोम व णवे दे वे यो मधुम रः.. (९) हे सोम! आप रसीले ह. आप अपनी मधुर धारा से इं , व णु व सभी दे व को तृ त क जए. आप ोणकलश म वा हत होने क कृपा क जए. (९) वा रह त धीतयो ह र प व े अ हः. व सं जातं न मातरः पवमान वधम ण.. (१०) हे सोम! आप हरी कां त वाले ह. यजमान क अंगु लयां आपस म े ष नह रखती ह. वे आपस म सहयोग कर के आप का रस नचोड़ती ह. आप को उसी तरह साफ करती ह, जैसे गाय नवजात (तुरंत उ प ए) बछड़े को चाट कर साफ करती है. (१०) वं ां च म ह त पृ थव चा त ज षे. त ा पममु चथाः पवमान म ह वना.. (११) हे सोम! आप प व व महान त वाले ह. आप अंत र लोक व पृ वीलोक को धारण करते ह. आप अपनी प व म हमा के अनुकूल कवचधारी ह. (११) इ वाजी पवते गो योघा इ े सोमः सह इ व मदाय. ह त र ो बाधते पयरा त व रव कृ व वृजन य राजा.. (१२) हे सोम! आप प व व श शाली ह. आप अपनी प व और श शाली धारा से झरते ह. आप परा मी, आनंददायी व श के राजा ह. आप यजमान क र ा करते ह, आप यजमान को धन दान करते ह. (१२) अध धारया म वा पृचान तरो रोम पवते अ धः. इ र य स यं जुषाणो दे वो दे व य म सरो मदाय.. (१३) हे सोम! प थर से कूट कर आप का रस नकाला जाता है. आप क धारा तेज से यु सुख दे ने वाली, मधुर और इं क म ता चाहने वाली है. वह दे व के लए आनंददायी, फू तदायी व तृ तदायी है. (१३) अ भ ता न पवते पुनानो दे वो दे वा वेन रसेन पृ चन्. इ धमा यृतुथा वसानो दश पो अ त सानो अ े.. (१४) हे सोम! आप संक पशील व काशमान ह. आप क धाराएं दे व को स करती ह. इस समय आप को अंगु लय से नचोड़ा जा रहा है. आप प व हो कर झर रहे ह. आप ोणकलश म त त होने क कृपा क जए. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सातवां खंड आ ते अ न इधीम ह ुम तं दे वाजरम्. य या ते पनीयसी स म दय त वीष
तोतृ य आ भर.. (१)
हे अ न! आप अजर ह. हम स मधा से आप को द त करते ह. आप के काश से वगलोक ु तमान होता है. आप यजमान को भरपूर धन दान करने क कृपा क जए. (१) आ ते अ न ऋचा ह वः शु य यो तष पते. सु द म व पते ह वाट् तु य यत इष
तोतृ य आ भर.. (२)
हे अ न! आप व पालक, श ुनाशक, काशक, ह ववाहक व आनंदव क ह. यजमान तु तयां पढ़ते ए आप को आ त दान करते ह. आप यजमान को भरपूर धन दान करने क कृपा क जए. (२) ओभे सु व पते दव ीणीष आस न. उतो न उ पुपूया उ थेषु शवस पत इष तोतृ य आ भर.. (३) हे अ न! आप जापालक, श मान और का शत ह. आ त दे ते समय मु य पा आप के मुख तक प ंच जाते ह. उपासक ह व भट कर के आप को स करना चाहते ह. आप यजमान को भरपूर वैभव दान करने क कृपा क जए. (३) इ ाय साम गायत व ाय बृहते बृहत्.
कृते वप ते पन यवे.. (४)
हे साम गायक ा णो! इं शंसा के यो य ह. आप उन के लए व तृत साममं गाइए. इं ानसाधक व उस के व तारक ह. (४) व म ा भभूर स व
सूयमरोचयः. व कमा व दे वो महाँ अ स.. (५)
हे इं ! आप व (संपूण संसार के दे व) और व कमा ( व के संपूण काय करने वाले) ह. आप सूय को चमकाते ह. आप क भू रभू र शंसा क जाती है. (५) व ाजं यो तषा व ३ र छो रोचनं दवः. दे वा त इ
स याय ये मरे.. (६)
हे इं ! आप काश से चमकते ए सुशो भत होते ह. आप वगलोक को भी का शत करते ह. सभी दे वगण आप के सखा होना चाहते ह. कृपया आप पधा रए. (६) असा व सोम इ ते श व धृ णवा ग ह. आ वा पृण व य रजः सूय न र म भः.. (७) हे इं ! आप श ु को हराते ह. आप साम यवान ह. आप पधारने क कृपा क जए. आप के लए सोमरस भट कया गया है. आप हमारे य को पधार कर उसी कार का शत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क जए, जस कार सूय अपनी करण से अंत र लोक को का शत करते ह. (७) आ त वृ ह थं यु ा ते णा हरी. अवाचीन सु ते मनो ावा कृणोतु व नुना.. (८) हे इं ! आप वृ हंता ह. आप के रथ म घोड़े (मं ारा) जोड़ दए गए ह. आप उस रथ म वरा जए, आइए और बै ठए. सोम को कूटते ए प थर क आवाज आप के मन को आक षत करने म समथ हो सक. (८) इ म री वहतो ऽ तधृ शवसम्. ऋषीणा सु ु ती प य ं च मानुषाणाम्.. (९) हे इं ! आप अपरा जत ह और सदै व श ु को हराते ह. आप के घोड़े आप को य थान तक प ंचाने क कृपा कर. मनु य के इस य म ऋ ष लोग तु तयां गा रहे ह. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सातवां अ याय पहला खंड यो तय य पवते मधु यं पता दे वानां ज नता वभूवसुः. दधा त र न वधय रपी यं म द तमो म सर इ यो रसः.. (१) हे सोम! आप प व , मधुर, दे वता को य, पालक एवं धन दान करने वाले ह. आप फू तदायी ह. आप इं को मदम त बना दे ते ह. आप यह क यो त ह. आप यजमान के लए र न धारण करते ह. (१) अ भ द कलशं वा यष त प त दवः शतधारो वच णः. ह र म य सदनेषु सीद त ममृजानो ऽ व भः स धु भवृषा.. (२) हे सोम! आप वगलोक के वामी, सैकड़ धारा वाले, वल ण, फू तदायी, ऊजा व क व हरी आभा वाले ह. आप आवाज करते ए ोणकलश म जाते ह. आप जल म मल कर तैयार होते ह. आप म के घर म रहने क तरह कलश म रहते ह. (२) अ े स धूनां पवमानो अष य े वाचो अ यो गोषु ग छ स. अ े वाज य भजसे मह न वायुधः सोतृ भः सोम सूयसे.. (३) हे सोम! आप को हम तु तय से आमं त करते ह. हम आप को शो धत और जलमय करने के समय भी तु त गाते ह. आप अ श मय हो कर आते ह, गौ क र ा करते ए आते ह. आप चुर धन दे ने के लए भजे जाते ह. (३) असृ त
वा जनो ग ा सोमासो अ या. शु ासो वीरयाशवः.. (४)
हे सोम! आप काशमान, वेगवान व वीर ह. यजमान गाएं, घोड़े और संतान पाने के लए आप को प र कृत करते ह. (४) शु भमाना ऋतायु भमृ यमाना गभ योः. पव ते वारे अ ये.. (५) हे सोम! यजमान के हाथ से तैयार, प र कृत व जल मला कर तैयार कया गया सोमरस सुशो भत हो रहा है. (५) ते व ादाशुषे वसु सोमा द ा न पा थवा. पव तामा त र या.. (६) हे सोम! आप यजमान को पृ वीलोक, अंत र लोक और वगलोक के सभी वैभव ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दान करने क कृपा क जए. (६) पव व दे ववीर त प व
सोम र
ा. इ
म दो वृषा वश.. (७)
हे सोम! आप प व ह. आप दे वश य के नकट ह. आप वेग से शो धत होने क कृपा क जए. आप इं के लए त था पत होने क कृपा क जए. (७) आ व य व म ह सरो वृषे दो ु नव मः.. आ यो न धण सः सदः.. (८) हे सोम! आप वीर व काशमान ह. आप हम उ म गुण दान करने एवं य म अपने नधा रत थान पर पधारने क कृपा क जए. (८) अधु त
यं मधु धारा सुत य वेधसः. अपो व स सु तुः.. (९)
शो धत सोमरस धारा मलाते ह. (९)
से पा म इकट् ठा होता है. व स ऋ ष सोमरस को जल म
महा तं वा महीर वापो अष त स धवः. यद्गो भवास य यसे.. (१०) हे सोम! आप महान ह. आप को महान न दय के जल व गाय के ध म मलाया जाता है. (१०) समु ो अ सु मामृजे व भो ध ण दवः. सोमः प व े अ मयुः.. (११) हे सोम! आप दे वलोक को धारण करते ह. आप जलमय व आकां ी ह. आप को बारबार भेड़ के बाल से बनी छलनी म छाना जाता है. (११) अ च दद्वृषा ह रमहा म ो न दशतः. स
सूयण द ुते.. (१२)
सोमरस श दायी, हरी कां त वाला, महान, म क तरह दशनीय और सूय क तरह ु तमान ( का शत) है. (१२) गर त इ द ओजसा ममृ य ते अप युवः. या भमदाय शु भसे.. (१३) हे सोम! आप के ओज से यजमान तु त गाते ह तथा स ता के लए आप सुशो भत होते ह. (१३) तं वा मदाय घृ वय उ लोककृ नुमीमहे. तवे श तये महे.. (१४) हे सोम! आप लोक क याण के लए श ुनाशक ह. हम महान तो शंसा करते ह. (१४) गोषा इ दो नृषा अ य सा वाजसा उत. आ मा य हे सोम! आप य के मु याधार व य संतानधन के दाता ह. (१५)
से आप क
य पू ः.. (१५)
क आ मा ह. आप गोधन, अ धन और
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ म यमदव
यं मधोः पव व धारया. पज यो वृ माँ इव.. (१६)
हे सोम! बादल से होने वाली बरसात के समान आप अपनी प व मधुर धारा हमारे लए अमृत बरसाने क कृपा क जए. (१६)
से
सरा खंड सना च सोम जे ष च पवमान म ह वः. अथा नो व यस कृ ध.. (१) हे सोम! आप प व ह. आप ब त उपासना के यो य ह. आप दे वता आप श ु को जीतने के बाद हम यश वी बनाने क कृपा क जए. (१)
के पास जाइए.
सना यो तः सना व ३ व ा च सोम सौभगा. अथा नो व यस कृ ध.. (२) हे सोम! आप हम यो तमय बनाइए. आप हम व गक सुख द जए. आप हम सौभा यवान एवं श ु वजय के बाद यश वी बनाइए. (२) सना द मुत
तुमप सोम मृधो ज ह अथा नो व यस कृ ध.. (३)
हे सोम! आप हम बलवान व कत परायण बनाइए. श ुनाश कर के आप हम सुखी बनाइए. (३) पवीतारः पुनीतन सोम म ाय पातवे. अथा नो व यस कृ ध.. (४) हे यजमानो! आप सोम को प व करने वाले ह. आप इं के पीने के लए सोमरस प व क जए और हमारा क याण करने क कृपा क जए. (४) व
सूय न आ भज तव
वा तवो त भः. अथा नो व यस कृ ध.. (५)
हे सोम! आप अपने र ा साधन से हम सूय को भजने के लए े रत क जए. आप हमारा हत साधने क कृपा क जए. (५) तव
वा तवो त भ य प येम सूयम्. अथा नो व यस कृ ध.. (६)
हे सोम! आप के र ा साधन और ान से हम द घ काल तक सूय के दशन करने म समथ हो सक. आप हम द घायु दान करने क कृपा क जए. (६) अ यष वायुध सोम
बहस
र यम्. अथा नो व यस कृ ध.. (७)
हे सोम! आप आयुधधारी ह. आप हम इहलौ कक और पारलौ कक धन व सुख दे ने क कृपा क जए. (७) अ य ३ षानप युतो वा ज सम सु सास हः. अथा नो व यस कृ ध.. (८) हे सोम! आप यु
े
म वजयी होते ह. आप श ु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को हराने वाले ह. आप
ोणकलश म चूने (टपकने) और हमारा क याण करने क कृपा क जए. (८) वां य ैरवीवृध पवमान वधम ण. अथा नो व यस कृ ध.. (९) हे सोम! आप प व ह. आप य म फलदाता ह. यजमान तु तय से आप क बढ़ोतरी करते ह. आप हमारी बढ़ोतरी करने क कृपा क जए. (९) रयन
म न म दो व ायुमा भर. अथा नो व यस कृ ध.. (१०)
हे सोम! आप हम अद्भुत घोड़े दे ने व सब के लए क याणकारी धन दे ने क कृपा क जए. हम सुख द जए. (१०) तर स म द धाव त धारा सुत या धसः. तर स म द धाव त.. (११) हे सोम! आप मददायी व पोषक ह. आप क धारा छलनी म छनती है. आप क धाराएं वेग से बहती ह. (११) उ ा वेद वसूनां मत य दे वसः. तर स म द धाव त.. (१२) हे सोम! आप सभी वैभव के वामी व द आप के रस क धाराएं वेग से बहती ह. (१२)
ह. आप मनु य (यजमान ) के संर क ह.
व योः पु ष योरा सह ा ण द हे. तर स म द धाव त.. (१३) हे सोम! आप व और पु षं त नाम के क जए. आप क धाराएं वेग से बहती ह. (१३) आ ययो
राजा
का वैभव हम दे ने क कृपा
शतं तना सह ा ण च द हे. तर स म द धाव त.. (१४)
हे सोम! आप व और पु षं त के तीन सौ और तीन हजार व क जए. आप क धाराएं वेग से बहती ह. (१४)
हम दे ने क कृपा
एते सोमा असृ त गृणानाः शवसे महे. म द तम य धारया.. (१५) सोमरस क मददायी धारा क याणकारी ह. (१५)
के साथ ये सोम ोणकलश म छन रहे ह. ये महान और
अ भ ग ा न वीतये नृ णा पुनानो अष स. सन ाजः प र व.. (१६) हे सोम! आप मनु य को सुख दे ते ह. दे वता आप का सेवन करते ह. इसी लए आप को गौ ध म मलाया जाता है. आप अ दान करते ए कलश म वत होते (झरते) ह. (१६) उत नो गोमती रषो व ाअष प र ु भः. गृणानो जमद नना.. (१७) हे सोम! आप क जमद न (ऋ ष) ने तु त क . आप गौ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के साथ ही हम े बु
और े अ
दान करने क कृपा क जए. (१७)
तीसरा खंड इम तोममहते जातवेदसे रथ मव सं महेमा मनीषया. भ ा ह नः म तर य स स ने स ये मा रषामा वयं तव.. (१) हे अ न! आप तु त के यो य, सव ाता व सव ा ह. हम अपनी ा आप तक प ंचाने के लए अपनी ाथना को रथ क तरह योग म लाते ह. आप क उपासना से हमारी बु ती होती है. आप क म ता हम क से मु दलाने म समथ है. (१) भरामे मं कृणवामा हवी ष ते चतय तः पवणापवणा वयम्. जीवातवे तरा साधया धयो ऽ ने स ये मा रषामा वयं तव.. (२) हे अ न! हम प व पव पर आप को स मधा से द त करते ह. ह व दान करते ह. आप का चतन करते ह. आप हमारी बु ती क रए. हम आप क कृपा से अपना य सफल बनाएं और क से मु रह. (२) शकेम वा स मध सा या धय वे दे वा ह वरद या तम्. वमा द याँ आ वह ता ३ म य ने स ये मा रषामा वयं तव.. (३) हे अ न! हम स मधा से आप को व लत करते ह. हम दे वता को ह व दान करते ह. आप उस ह व को हण करने के लए दे वता को बुलाने क कृपा क जए. हम उ ह आमं त करने के इ छु क ह. आप अपनी म ता से हमारे सारे क को र करने क कृपा क जए. (३) त वा
सूर उ दते म ं गृणीषे व णम्. अयमण
रशादसम्.. (४)
हे म ! हे व ण! हम सूय दय के अवसर पर आप दोन दे व और सरे सभी दे वता क उपासना करते ह. आप श ुनाशक ह. (४) राया हर यया म त रयमवृकाय शवसे. इयं व ा मेधसातये.. (५) हे म ! हे व ण! ये ा ण यजमान े बु के लए आप क उपासना करते ह. हम आप से वण चाहते ह. हम क याण क कामना से आप क उपासना करते ह. (५) ते याम दे व व ण ते म सू र भः सह. इष
व धीम ह.. (६)
हे म ! हे व ण! हम व ान (ऋ वज ) के साथ संप वान ह . आप क कृपा से हम अ और वण पा कर ऐ य यु ह . (६) भ ध व ा अप
षः प र बाधो जही मृधः. वसु पाह तदा भर.. (७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप सभी का नाश क रए. आप हमारे उ म काय म बाधक श ु नाश क जए. आप हम मनोवां छत धन दान करने क कृपा क जए. (७) य य ते व मानुष भूरेद
का
य वेद त. वसु पा तदा भर.. (८)
हे इं ! आप चुर धन दे ते ह. यह हम जानते ह. आप हम भरपूर धन दे ने क कृपा क जए. (८) य डा व
य
थरे य पशाने पराभृतम्. वसु पाह तदा भर.. (९)
हे इं ! आप हम वह सारा धन दे ने क कृपा क जए, जसे आप ने श ु से जीता है तथा जसे आप सब से छपा कर ( सर को दए बना ही) सुर त और अभे जगह पर रखे ए ह. (९) य
य ह थ ऋ वजा स नी वाजेषु कमसु. इ ा नी त य बोधतम्.. (१०)
हे इं ! हे अ न! आप य के ऋ वज् ह. य के काम म आप क प व ता बनी रहती है. आप हमारी ाथना पर यान दे ने क कृपा क जए. (१०) तोशासा रथयावाना वृ हणापरा जता. इ ा नी त य बोधतम्.. (११) हे इं ! हे अ न! आप मन से अपरा जत, रथ से या ा करने वाले व ह. आप हमारी तु तय पर यान दे ने क कृपा क जए. (११) इदं वां म दरं म वधु
के नाशक
भनर. इ ा नी त य बोधतम्.. (१२)
हे इं ! हे अ न! यजमान ने आप के लए मददायी मधुर सोमरस तैयार कया है. आप हमारी तु तय पर यान दे ने क कृपा क जए. (१२)
चौथा खंड इ ाये दो म वते पव व मधुम मः. अक य यो नमासदम्.. (१) हे सोम! आप मददायी, मधुरतम और प व ह. आप म द्गण के साथ आने वाले इं के लए झरने क कृपा क जए. (१) तं वा व ा वचो वदः प र कृ व त धण सम्. सं वा मृज यायवः.. (२) हे सोम! आप संसार के धारक व वाणी के प र कृत कर रहे ह. (२)
ाता ह. याजक आप को भलीभां त
रसं ते म ो अयमा पब तु व णः कवे. पवमान य म तः.. (३) हे सोम! आप व ान् ह. म , व ण, अयमा और म द्गण आप के रस को पीने क कृपा कर. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मृ यमानः सुह या समु े वाच म व स. र य पश ं ब लं पु पृहं पवमाना यष स.. (४) हे सोम! अ छे हाथ से प र कृत कया जाता आ सोमरस आवाज करते ए ोणकलश म जाता है. आप का रंग सुनहरा है. आप अनेक लोग ारा चाहे जाते ह. आप हम इ छत धन दान करने क कृपा क जए. (४) पुनानो वारे पवमानो अ ये वृषो अ च द ने. दे वाना सोम पवमान न कृतं गो भर ानो अष स.. (५) हे सोम! आप प व व फू तदायी ह. यजमान ारा प र कृत कया गया सोमरस जल म ब त ज द घुल जाता है. आप को दे वता के लए प व कया जाता है. दे व के ही लए सोमरस म गाय का ध मलाया जाता है. आप को (उ ह के लए) प व कलश म त त कया जाता है. (५) एतमु यं दश
पो मृज त स धुमातरम्. समा द ये भर यत.. (६)
हे सोम! समु आप क माता है. दस अंगु लय से प र कृत कया आ सोमरस दे वता को चढ़ाया जाता है. (६) स म े णोत वायुना सुत ए त प व आ. स
सूय य र म भः.. (७)
हे सोम! आप सूय क करण ारा चमकाए जाते ह. आप प व एवं सुपा म रखे जाते ह. आप इं और वायु को भट कए जाते ह. (७) स नो भगाय वायवे पू णे पव व मधुमान्. चा म े व णे च.. (८) हे सोम! आप प व , मधुर व सुंदर ह. आप को भग, वायु, पूषा, म और व ण के लए प र कृत कया जाता है. (८)
पांचवां खंड रेवतीनः सधमाद इ े स तु तु ववाजाः. ुम तो या भमदे म.. (१) हे इं ! गौ को अपने साथ रखने से हम सुख पाते ह. आप क कृपा से हमारी गाएं व थ और पु ह , पया त घी व ध द. (१) आ घ वावान् मना यु ः तोतृ यो धृ णवीयानः. ऋणोर ं न च योः.. (२) हे इं ! आप धीर ह. आप बु पूवक तु तकता को मनोवां छत पदाथ दान करने क कृपा क जए. आप इस के लए वैसे ही सहायक ह, जैसे रथ के लए उस के प हए सहायक होते ह. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ यद् वः शत तवा कामं ज रतॄणाम्. ऋणोर ं न शची भः.. (३) हे इं ! आप सैकड़ य वाले ह. आप उपासक क मनोकामना पूरी करने क कृपा क जए. रथ को जैसे उस के प हय से ग त मलती है, वैसे ही आप क कृपा से उपासक को धन मलता है. (३) सु पकृ नुमूतये सु घा मव गो हे. जु म स
व व.. (४)
हे इं ! आप का व प सुंदर है. गाय हने के समय जैसे वाले गाय को पुकारते ह, उसी कार हम अपनी र ा के लए आप को पुकारते ह, आमं त करते ह. (४) उप नः सवना ग ह सोम य सोमपाः पब. गोदा इ े वतो मदः.. (५) हे इं ! आप सोमपान करने वाले ह. आप सोमरस पीने के लए हमारे सवन (य सं या) म पधारने क कृपा क जए. आप सोमरस पी कर स होइए. आप यजमान को गोधन, वैभव, ऐ य और आनंद दान करने क कृपा क जए. (५) अथा ते अ तमानां व ाम सुमतीनाम्. मा नो अ त य आ ग ह.. (६) हे इं ! सोमरस पीने के बाद हम अपनी सुम तय का दशन कराइए. आप हम से वमुख मत होइए. आप को यह ान दे ने क कृपा मत क जए. आप से यही हमारा अनुरोध है. (६) उभे य द रोदसी आप ाथोषा इव. महा तं वा महीना स ाजं चषणीनाम्. दे वी ज न यजीजन ा ज न यजीजनत्.. (७) हे इं ! आप भी उषा क भां त वगलोक और पृ वीलोक को अपने काश से भरने क कृपा क जए. आप महान, म हमाशाली, पृ वी के राजा व अ द त आप क जननी है. (७) दघ ङ् कुशं यथा श बभ ष म तुमः. पूवण मघव पदा वयामजो यथा यमः. दे वी ज न यजीजन ा ज न यजीजनत्.. (८) हे इं ! आप ान के भंडार, श व साम य धारक ह. आप को दे वता क माता ने जना है. आप को क याणका रणी जननी ने जना है. बकरा जैसे आगे के पैर से अपने भो य पदाथ को नयं त करता है, उसी तरह आप को वश म करते ह. (८) अव म णायतो म य तनु ह थरम्. अध पदं तम कृ ध यो अ माँ अ भदास त. दे वी ज न यजीजन ा ज न यजीजनत्.. (९) हे इं ! आप को दे वता
क माता ने जना है. आप को क याणका रणी माता ने जना
******ebook converter DEMO Watermarks*******
है. आप हम अधीन (पराधीन) बनाने वाले
श ु
का नाश करने क कृपा क जए. (९)
छठा खंड प र वानो ग र ाः प व े सोमो अ रत् मदे षु सवधा अ स.. (१) हे सोम! आप पवतवासी, प व , स तादायी और स तादायक म सव े ह. आप का रस धारा प म झर रहा है. (१) व व
वं क वमधु
जातम धसः मदे षु सवधा अ स.. (२)
हे सोम! आप ा ण, क व ( व ान्) व आप अ से पैदा होने वाले पोषक त व को दे ते ह. आप स ता दे ने वाल म सव े ह. (२) वे व े सजोषसो दे वासः: पी तमाशत. मदे षु सवधा अ स.. (३) हे सोम! सभी दे वता आप को पीने के इ छु क रहते ह. स ता दे ने वाल म आप सव े ह. (३) स सु वे यो वसूनां यो रायामानेता य इडानाम्. सोमो यः सु तीनाम्.. (४) हे सोम! आप हम अ छ संतान, गाएं और ऐ य दे ते ह. आप सुंदर पृ वी पर सुशो भत ह. (४) य य त इ ः पबा य म तो य य वायमणा भगः. आ येन म ाव णा करामह ए मवसे महे.. (५) हे सोम! आप के द रस को म त्, इं अयमा, भग आ द पीते ह. आप सुर ा हेतु जैसे म और व ण को बुलाते ह, उसी कार हम इं को बुलाते ह. (५) तं वः सखायो मदाय पुनानम भ गायत. शशुं न ह ैः वदय त गू त भः.. (६) हे यजमानो! आप मद के लए पए जाने वाले सोमरस के गुण गाइए. वे हमारे सखा ह. मां जैसे ब चे क शोभा बढ़ाती है, वैसे ही आप ह व और तो से सोम क शोभा बढ़ाइए. (६) सं व स इव मातृ भ र
ह वानो अ यते. दे वावीमदो म त भः प र कृतः.. (७)
हे सोम! आप द व मददायी ह. आप को बु ारा प र कृत कया गया है. माता जैसे पु को जल से प र कृत करती है, उसी तरह जल से आप को प र कृत कया गया है. (७) अयं द ाय साधनो ऽ य
शधाय वीतये. अयं दे वे यो मधुम रः सुतः.. (८)
हे सोम! आप मधुर ह. आप को दे वता के लए व धवत प र कृत कया गया है. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
श
दायी साधन के
प म आप को पया जाता है. (८)
सोमाः पव त इ दवो ऽ म यं गातु व माः. म ा वाना अरेपसः वा यः व वदः.. (९) हे सोम! आप प व व म क तरह ह. आप हम े उद्दे य क ओर े रत करते ह. आप आ म ाता और काशमान ह. आप उपासना के यो य ह. (९) ते पूतासो वप तः सोमासो द या शरः. सूरासो न दशतासो जग नवो ुवा घृते.. (१०) हे सोम! आप प व ह, सूय जैसे काशमान ह. आप वल ण व दही म त ह. आप ुव ( थर) ह. आप जल धारा से म त हो कर शु होते ह. (१०) सु वाणासो भ ताना गोर ध व च. इषम म यम भतः सम वर वसु वदः.. (११) हे सोम! आप धनदाता ह. आप हम े धन दान करने क कृपा क जए. आप पृ वी के ऊपर नवास करते ह. अनेक प थर से कूट कर आप का रस नचोड़ा जाता है. (११) अया पवा पव वैना वसू न मा न य वातो न जू त पु मेधा
व इ दो सर स ध व. कवे नरं धात्.. (१२)
हे सोम! आप हम प व धारा से सराबोर क रए. आप हम धन से प रपूण क जए. आप के रस के सेवन से सूय भी वायु क तरह हलके और ग तशील हो जाते ह. इं सोमरस पी कर हम नेतृ व श दान करते ह, अ छ संतान दान करते ह. (१२) उत न एना पवया पव वा ध ुते वा य य तीथ. ष सह ा नैगुतो वसू न वृ ं न प वं धूनव णाय.. (१३) हे सोम! आप उपासना के यो य ह. आप हमारे य तीथ म प व धारा से झ रए. पेड़ से जैसे पके फल मलते ह, वैसे ही श ुनाश हेतु आप हम सह गुना धन दान करने क कृपा क जए. (१३) महीमे अ य वृष नाम शूषे मा वे वा पृशने वा वध े. अ वापय गुतः ेहय चाषा म ाँ अपा चतो अचेतः.. (१४) हे सोम! आप म हमाशाली ह और सुख बरसाते ह. आप को हराते व श ु को हम से र करते ह. आप उन सभी श ु को बलहीन बनाते ह, न करते ह, जो यु म हम हा न प ंचाने वाले ह. (१४)
सातवां खंड ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ने वं नो अ तम उत ाता शवो भवा व
यः.. (१)
हे अ न! आप हमारे समीप र हए. आप हमारा ाण (र ा) क जए. आप हमारे लए क याणकारी होने क कृपा क जए. (१) वसुर नवसु वा अ छा न
ुम मो र य दाः.. (२)
हे अ न! आप सब से धनी और सब के शरणदाता ह. आप आसानी से हमारे पास पधा रए. आप ुमान (तेज वी) होइए व हम धन द जए. (२) तं वा शो च द दवः सु नाय नूनमीमहे स ख यः.. (३) हे अ न! आप द और काशमान ह. हम म न त प से आप क उपासना करते ह. (३) इमा नु कं भुवना सीषधेमे
के क याण के लए अ छे मन से
व े च दे वाः.. (४)
हे इं ! सभी दे व तथा सभी भुवन (लोक) हमारे लए सुखदायी (क याणदायी) ह . (४) य ं च न त वं च जां चा द यै र ः सह सीषधातु.. (५) हे इं ! आप आ द य समेत हम पर कृपा क जए. आप हमारा य सफल बनाइए. आप हमारे शरीर को व थ बनाइए. आप हमारी संत त को सफल बनाइए. (५) आ द यै र ः सगणो म
र म यं भेषजा करत्.. (६)
आ द य , म द्गण एवं अ य सहयो गय के साथ इं च क सा) तैयार करने क कृपा कर. (६)
हमारे वा ते भेषज (रोग
व इ ाय वृ ह तमाय व ाय गाथं गायत यं जुजोषते.. (७) हे उपासको! इं वृ हंता, व ान् और ा ण ह. आप उन के लए तु तयां गाइए. वे उन तु तय को सुन कर स होते ह. (७) अच यक म तः वका आ तोभ त ुतो युवा स इ ः.. (८) साधक स माननीय व शंसा के यो य इं को भजते ह. ब ल एवं अपना संर ण दान करते ह. (८) उप
े मधुम त
स
इं उन को
य तः पु येम र य धीमहे त इ .. (९)
हे इं ! आप के संर ण म रहने वाले हम याजक ब ल ह और धा य से यु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह . (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आठवां अ याय पहला खंड का मुशनेव व ु ाणो दे वो दे वानां ज नमा वव . म ह तः शु चब धुः पावकः पदा वराहो अ ये त रेभन्.. (१) उपासक उशना के समान े वाणी वाले ह. वे दे वता क जीवनी को अ छ तरह तुत करते ह. सोम प व , का शत व पोषक ह. आप प र कृत होते समय श द करते ए ोणकलश म जाते ह. (१) ह
सास तृपला व नुम छामाद तं वृषगणा अयासुः. अ ो षणं पवमानं सखायो मष वाणं वद त साकम्.. (२) श ु क श से बु मान यजमान भी घबरा जाते ह. वे शी वहां प ंचे, जहां सोम तैयार कया जा रहा था. वे वहां प व सोम के लए वा यं बजाने लगे, जस से मधुर व न होने लगी. सोम क कृपा से असहनीय श ु को भी दबाया जा सकता है. (२) स योजत उ गाय य जू त वृथा ड तं ममते न गावः. परीणसं कृणुते त मशृ ो दवा ह रद शे न मृ ः.. (३) हे सोम! सहज प से खेलते ए आप शं सत ग त पाते ह, उस ग त को कसी के ारा नापा नह जा सकता. आप दन म हरी और रा म सफेद (उ वल) आभा वाले होते ह. (३) वानासो रथा इवाव तो न व यवः. सोमासो राये अ मुः.. (४) हे सोम! घोड़े और रथ क तरह (वेग से) आवाज करता आ सोमरस प व हो रहा है. यह हम अपार वैभव दान करने क कृपा करे. (४) ह वानासो रथा इव दध वरे गभ योः. भरासः का रणा मव.. (५) हे सोम! आप का रस यजमान वैसे ही धारण करते ह, जैसे भारवाही दोन हाथ से बोझा उठाता है. रथ जैसे यु म जाते ह, वैसे ही सोमरस य म ले जाया जा रहा है. (५) राजानो न श त भः सोमासो गो भर राजा
क
ते. य ो न स त धातृ भः.. (६)
शंसा और सात यजमान से य
था पत कया जाता है. गाय के घी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ द से सोमरस को प र कृत कया जाता है. (६) प र वानास इ दवो मदाय बहणा गरा. मधो अष त धारया.. (७) े
ाथना सोमरस मधुर धारा
से सोमरस क तु त क जाती है. इं को मदम त बनाने के लए से पा म गरता है. (७)
आपानासो वव वतो ज व त उषसो भगम्. सूरा अ वं व त वते.. (८) सोमरस उषा को तेज वनी बनाता है. इं के पीने के लए सोमरस को प र कृत कया जा रहा है. (८) अप ारा मतीनां
ना ऋ व त कारवः वृ णो हरस आयवः.. (९)
हे सोम! आप पुरातन ह. यजमान आप का आ ान करते ह. यजमान आप के लए तु त कर रहे ह. वे आप के लए य ार को उद्घा टत कर रहे ह (खोलते ह). (९) समीचीनास आशत होतारः स तजानयः पदमेक य प तः.. (१०) हे सोम! सोमय को पूणता दे ने के लए उपयु को पूरा करने के लए उप थत होते ह. (१०)
जा त के सात या क य अनु ान
नाभा ना भ न आ ददे च ुषा सूय शे. कवेरप यमा हे.. (११) सोम व ान् ह. उ ह हम अपने और अपनी संतान के क याण के लए अपनी ना भ के पास था पत करते ह. सोम य क ना भ जैसे ह. ने से जैसे हम सूय के दशन करते ह, वैसे ही हम इन के (सोम के) दशन कर. (११) अभ
यं दव पदम वयु भगुहा हतम्. सूरः प य त च सा.. (१२)
शूरवीर इं अपने ने से सोम को दे खते ह. सोम वगलोक म (सब के) दय म था पत करते ह. (१२)
य ह. अ वयु उ ह
सरा खंड असृ म दवः पथा धम ृत य सु यः. वदाना अ य योजना.. (१) हे सोम! आप ऋत् (स य) व भलीभां त जानते ह. (१)
े
माग पर चलते ह. आप य
धारा मधो अ यो महीरपो व गाहते. ह वह वःषु व
व यजमान को
.. (२)
सोम ह वय म े ह व व वंदनीय ह. आप क धारा उ कृ , मधुर एवं अ णी है. आप क धारा जल म अवगाहन करती है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
युजा वाचो अ यो वृषो अ च द ने. स ा भ स यो अ वरः.. (३) हे सोम! आप का माग स यता का है. आप श मान, अ णी व वाणी को जोड़ने वाले ह. सोम जल के साथ य शाला के भीतर वेश करते ह. (३) प र य का ा क वनृ णा पुनानो अष त. ववाजी सषास त.. (४) सोम क व ह. क व सोम जैसे ही मनु य क तु त वीकारते ह, वैसे ही इं य पर अपनी श स हत आने के लए तैयार हो जाते ह. (४)
थान
पवमानो अ भ पृधो वशो राजेव सीद त. यद मृ व त वेधसः.. (५) सोम प व ह. वे राजा के समान सुशो भत होते ह. वे जा के संर ण हेतु श ु नाश करने के लए तैयार रहते ह. (५) अ ा वारे प र
का
यो ह रवनेषु सीद त. रेभो वनु यते मती.. (६)
सोमरस जल से ओत ोत और हरी आभा वाला है. सोम यजमान क वीकार रहे ह. वे आवाज करते ए ोणकलश म थान हण कर रहे ह. (६)
ाथना
को
स वायु म म ना साकं मदे न ग छ त. रणा यो अ य धमणा.. (७) जो यजमान धमपूवक सोमरस को नचोड़ते ह, वे वायु, इं और अ नीकुमार के साथ आनंद ा त करते ह. (७) आ म े व णे भगे मधोः पव त ऊमयः. वदाना अ य श म भः.. (८) हे सोम! यजमान आप को (आप क साम य को) जान सक. म , व ण व भग के लए आप क मधुर एवं प व लहर उमड़ती ह. (८) अम य
रोदसी र य म वो वाज य सातये. वो वसू न स
तम्.. (९)
हे सोम! आप वगलोक तथा पृ वीलोक के वामी ह. हम आप श और अपार वैभव दान करने क कृपा क जए. हम आप से सं चत वैभव पाना चाहते ह. (९) आ ते द ं मयोभुवं व म ा वृणीमहे. पा तमा पु पृहम्.. (१०) हे सोम! आप द व व मान ( काशमान) ह. आप को ब त लोग चाहते ह. हम आप के बल और श को ा त करना चाहते ह. (१०) आ म मा वरे यमा व मा मनी षणम्. पा तमा पु पृहम्.. (११) हे सोम! आप को ब त लोग चाहते ह. आप वरे य, ा ण, मनीषी व संर णशील ह. हम आप क उपासना करते ह. (११) आ र यमा सुचेतुनमा सु तो तनू वा. पा तमा पु पृहम्.. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप को ब त लोग चाहते ह. आप े य वाले और उ म काय करने वाले ह. आप हम धन, बल और संतान दान करने क कृपा क जए. (१२)
तीसरा खंड मूधानं दवो अर त पृ थ ा वै ानरमृत आ जातम नम्. कव स ाजम त थ जनानामास ः पा ं जनय त दे वाः.. (१) हे अ न! आप वगलोक म मूध य ह. आप य म कट होते ह. आप पृ वी पर मणशील ह. आप क व, स ाट् व अ त थ ह. आप लोग के नकटवत ह. आप दे वता को कट करते ह. (१) वां व े अमृतं जायमान शशुं न दे वा अ भ सं नव ते. तव तु भरमृत वमायन् वै ानर य प ोरद दे ः.. (२) य
हे अ न! आप व प व अमृत व प ह. आप संसार के वामी (नायक) ह. आप ारा अमरता पाते ह. आप क कृपा से यजमान द ता ा त करते ह. (२) ना भ य ाना सदन रयीणां महामाहावम भ सं नव त. वै ानर र यम वराणां य य केतुं जनय त दे वाः.. (३)
हे अ न! आप य क ना भ धन के भंडार, म हमावान, य के संचालक व य क पताका ह. आप को अर ण मंथन से उ प कया जाता है. हम आप का आ ान करते ह. (३) वो म ाय गायत व णाय वपा गरा. म ह
ावृतं बृहत्.. (४)
हे यजमानो! म और व ण महान, ा वान व वशाल ह. आप इन दे व के लए ऊंचे वर से तो गाइए. दोन दे व उन तो को सुनने के लए य थान पर पधारने क कृपा कर. (४) स ाजा या घृतयोनी म
ोभा व ण . दे वा दे वेषु श ता.. (५)
हे यजमानो! म और व ण ये दोन दे व दे वता दोन दे व काश उ प करते ह. (५) ता नः श ं पा थव य महो रायो द
य. म ह वां
म शं सत ह. दोन दे व स ाट् ह. ं दे वेषु.. (६)
हे म ! हे व ण! आप महान एवं दे वता के बीच सराहनीय ह. आप पृ वीलोक और वगलोक का वैभव हम ा त कराने क कृपा क जए. (६) इ ा या ह च भानो सुता इमे वायवः. अ वी भ तना पूतासः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप अद्भुत व च भानु ह. आप के लए अंगु लय से सोमरस नचोड़ा जाता है. आप को प व सोमरस चढ़ाया जाता है. आप य म पधा रए और सोमरस पीने क कृपा क जए. (७) इ ा या ह धये षतो व जूतः सुतावतः. उप
ा ण वाघतः.. (८)
हे इं ! बु से आप तक प ंचा जा सकता है. आप को वचन को सुनने के लए य म पधारने क कृपा क जए. (८) इ ा या ह तूतुजान उप
ा ण बुलाते ह. आप
ा ण ह रवः. सूते द ध व न नः.. (९)
हे इं ! आप अ के पालनहार ह. आप हमारी तु तय को सुनने के लए य म पधारने क कृपा क जए. आप हमारी भट क ई ह व धारण क जए. (९) तमी ड व यो अ चषा वना व ा प र वजत्. कृ णा कृणो त ज या.. (१०) हे अ न! आप अपनी ज ा से सारे वन को काला कर दे ते ह. हम उन बलशाली अ न क अचना करनी चा हए. (१०) यइ
आ ववास त सु न म
य म यः. ु नाय सुतरा अपः.. (११)
हे इं ! जो मनु य अ छे मन से आप क उपासना करते ह. आप उन के लए वगलोक से जल बरसाने क कृपा क जए. (११) ता नो वाजवती रष आशून् पपृतमवतः ए म नं च वोढवे.. (१२) हे इं ! हे अ न! आप हम बलदायी अ और वेगवान घोड़े दान क जए ता क हम उ तशील हो जाएं. (१२)
चौथा खंड ो अयासी द र य न कृत सखा स युन मना त स रम्. मय इव युव त भः समष त सोमः कलशे शतयामना पथा.. (१) कई व धय से प र कृत शु सोमरस इं के पेट म प ंच रहा है. यह सोमरस इं के पेट म अ छ तरह पच जाता है. जैसे युवा य के साथ रमण करता है, वैसे ही सोमरस सैकड़ माग से कलश म त त होता है. (१) वो धयो म युवो वप युवः पन युवः संवरणे व मुः. ह र ड तम यनूषत तुभो ऽ भ धेनवः पयसेद श युः.. (२) हे सोम! जो यजमान बु पूवक आप को प र कृत करते ह, वे आनंदपूवक अपनी इ छापू त का लाभ पाते ह. गौएं अपने ध से सोमरस को स चती ह. वह खेलता (लहराता) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ घड़े म प ंचता है. (२) आ नः सोम संयतं प युषी मष म दो पव व पवमान ऊ मणा. या नो दोहते रह स षी ुम ाजव मधुम सुवीयम्.. (३) हे सोम! आप प व ह और लहर से लहराते ए वा हत होइए. सोमरस का तीन सं या (सवन ) म योग म कया जाता है. वह अ मय व े वीय वाला है. (३) न क ं कमणा नश कार सदावृधम्. इ ं न य ै व गूतमृ वसमधृ ं धृ णुमोजसा.. (४) हे इं ! आप सदै व बढ़ोतरी करने वाले, श ु को हराने वाले व अपरा जत ह. जो यजमान आप क उपासना करते ह, उन के कम को कोई न नह कर सकता. (४) अषाढमु ं पृतनासु सास ह य म मही यः. सं धेनवो जायमाने अनोनवु ावः ामीरनोनवुः.. (५) जब इं कट होते ह तो वेगवती गौएं उ ह नम कार करती ह. वगलोक और पृ वीलोक झुक कर उन का अ भवादन करते ह. हम भी उन क अ यथना करते ह. (५)
पांचवां खंड सखाय आ न षीदत पुनानाय गायत. शशुं न य ैः प र भूषत
ये.. (१)
हे यजमान म ो! आप आइए, बै ठए और सोम के लए ाथनाएं गाइए. आप शशु को सजाने क भां त य सजाइए. (१) समी व सं न मातृ भः सृजता गयसाधनम्. दे वा ं ३ मदम भ
शवसम्.. (२)
हे यजमानो! सोमरस य का मुख साधन व मददायी है. दोन ही तरह अथात् द ता और भौ तकता दोन कोण से वह श दायी है. आप सोमरस को वैसे ही जल म मलाइए, जैसे माता के साथ ब चे घुल मल जाते ह. (२) पुनाता द साधनं यथा शधाय वीतये. यथा म ाय व णाय श तमम्.. (३) हे यजमानो! आप म व व ण के न म सोम को प र कृत कर. आप बल व कुशलता क ा त और दे वता को भट करने के लए सोमरस को प र कृत क जए. (३) वा य ाः सह धार तरः प व ं व वारम म्.. (४) हे सोम! आप अ यंत बलशाली ह, हजार धार वाले और प व ह. आप का रस भेड़ के बाल से बनी छलनी म छनता है. (४) स वा य ाः सह रेता अ
मृजानो गो भः ीणानः.. (५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सोम! आप अ यंत बलशाली ह. आप हजार गुना बलशाली ह. आप जल से ओत ोत ह. भेड़ के बाल से बनी छलनी से छनते ए आप ोणकलश म जाते ह. (५) सोम याही
य कु ा नृ भयमानो अ
भः सुतः.. (६)
प थर से कूट कर नकाले ए सोमरस को यजमान ने तु तय से प र कृत कर दया है. वह सोमरस इं के पेट म प ंचने क कृपा करे. (६) ये सोमासः पराव त ये अवाव त सु वरे. ये वादः शयणाव त.. (७) हे सोम! आप शयणावत् (सायण के अनुसार ‘शयणावत्’ कु े के शयणा नामक मंडल (क म री) क एक झील का नाम है.) तालाब के नकट उ प होते ह. बाद म आप को प र कृत कया जाता है. (७) य आज केषु कृ वसु ये म ये प यानाम्. ये वा जनेषु पंचसु.. (८) सोमरस आज क, ( हले ांट के अनुसार क मीर म एक थान) कमेर (काम करने वाल ) के दे श नद के कनारे व पंचजन के बीच म पैदा होता है. पैदा होने के बाद उसे प र कृत कया जाता है. (८) ते नो वृ
दव प र पव तामा सुवीयम्. वाना दे वास इ दवः.. (९)
सोमरस को नचोड़ा और प र कृत कया जाता है. वह वगलोक से े वीय क वषा करता है. सोमरस पोषण दान करता है. (९)
छठा खंड आ ते व सो मनो यम परमा च सध थात्. अ ने वां कामये गरा.. (१) हे अ न! हम वाणी से और व स ऋ ष मन से आप क उपासना करते ह. आप उस परम थान से भी हमारे पास पधारने क कृपा क जए. (१) पु
ा ह स ङ् ङ स दशो व ा अनु भुः. सम सु वा हवामहे.. (२)
हे अ न! आप सव करते ह. (२)
ा, दशाप त और हमारे भु ह. हम यु
म आप का आ ान
सम व नमवसे वाजय तो हवामहे. वाजेषु च राधसम्.. (३) हे अ न! आप आ ान करते ह. (३)
मतावान व अद्भुत ह. हम यु
वं न इ ा भर ओजो नृ ण
हेतु बल ा त के लए आप का
शत तो वचषणे. आ वीरं पृतनासहम्.. (४)
हे इं ! आप ओज वी, वल ण और सैकड़ कम करने वाले ह. आप पधा रए और हम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वीरपु
दान करने क कृपा क जए. (४) व
ह नः पता वसो वं माता शत तो बभू वथ. अथा ते सु नमीमहे.. (५)
हे इं ! आप ही हमारे पता और माता ह. हम आप के पु अ छे मन से आप से अ छे सुख चाहते ह. आप शतकमा ह. (५) वा शु म पु
त वाजय तमुप ुवे सह कृत. स नो रा व सुवीयम्.. (६)
हे इं ! आप सह कमा (हजार काम करने वाले) ह. आप श के यो य ह. आप हम े वीयवान बनाने क कृपा क जए. (६) यद
मान ह. आप आ ान
च म इह ना त वादाम वः. राध त ो वद स उभयाह या भर.. (७)
हे इं ! आप अद्भुत ह. आप जैसी आ थक साम य हमारी नह है. आप दोन हाथ से हम भरपूर धन दान (हाथ भरभर कर) क जए. (७) य म यसे वरे य म
ु ं तदा भर. व ाम त य ते वयमकूपार य दावनः.. (८)
हे इं ! आप वरे य व तेज वी ह. आप हम भरपूर समृ (ऐ य) दान क जए. उस धन को पा कर हम भी दानदाता क साम य वाले हो जाएं. (८) य े द ु रा यं मनो अ त ुतं बृहत्. तेन ढा चद व आ वाजं द ष सातये.. (९) हे इं ! आप आराधना के यो य, यशशाली और ब त वशाल ह. आप हम ऐसा धन द जए, जस से हम ढ़ च वाले हो जाएं. आप हम साम यशाली बनाएं. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नौवां अ याय पहला खंड शशुं ज ान हयतं मृज त शु भ त व ं म तो गणेन. क वग भः का ेन क वः स सोमः प व म ये त रेभन्.. (१) हे सोम! आप ा ण ह. आप ब चे क तरह सब के मन को खला दे ते ह. म द्गण आप को प रमा जत करते ह. क व का से आप क तु त करते ह. आप आवाज करते ए प व हो जाते ह. (१) ऋ षमना य ऋ षकृ वषाः सह नीथः पदवीः कवीनाम्. तृतीयं धाम म हषः सषा स सोमो वराजमनु राज त ु प्.. (२) हे सोम! आप ऋ षय जैसे मन वाले और उन जैसा गुण दान करने वाले ह. आप तीसरे धाम के राजा इं को और तेज वी बनाने वाले ह. आप क वय क पदवी और सह कमा ह. (२) चमूष ेनः शकुनो वभृ वा गो व स आयुधा न ब त्. अपामू म सचमानः समु ं तुरीयं धाम म हषो वव .. (३) हे सोम! आप अ श धारी ह व गाय के ध म मलाए जाते ह. आप क लहर समु क लहर के समान और राजा ह. आप तुरीय धाम (मो धाम) म वराजते व सुशो भत होते ह. (३) एते सोमा अ भ ये सोम इं को बढ़ाने वाले ह. (४)
यम
य कामम रन्. वध तो अ य वीयम्.. (४)
य ह. सोम कामना
क वषा करते ह. ये उन के (इं के) वीय को
पुनानास मूषदो ग छ तो वायुम ना. ते नो ध सुवीयम्.. (५) हे सोम! आप प व ह. आप वायु और अ नीकुमार के साथ जाइए, जस से हम े वीय धारण कर सक. (५) इ
य सोम राधसे पुनानो हा द चोदय. दे वानां यो नमासदम्.. (६)
हे सोम! आप प व ह. आप इं क आराधना हेतु हम हा दक ेरणा दे ने क कृपा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क जए. हम दे व यो न के अनुकूल काय (य ) कर सक. (६) मृज त वा दश
पो ह व त स त धीतयः. अनु व ा अमा दषुः.. (७)
हे सोम! यजमान क दस अंगु लयां आप को प रमा जत करती ह. सात पुरो हत आप को तृ त दान करते ह. हम ा ण आप का अनुगमन करते ह. (७) दे वे य वा मदाय क
सृजानम त मे यः. सं गो भवासयाम स.. (८)
हे सोम! आप मददायी, सुखदायी व सुख सरजने (पैदा करने) वाले ह. दे वता भट करने के लए हम आप को गाय के ध म मलाते ह. (८)
को
पुनानः कलशे वा व ा य षो ह रः. प र ग ा य त.. (९) हे सोम! आप हरी कां त वाले ह. आप प व ह. आप कलश म रहते ह. आप को चार ओर से गाय का ध घेर लेता है. (९) मघोन आ पव व नो ज ह व ा अप
षः. इ दो सखायमा वश.. (१०)
हे सोम! आप प व ह. आप हम धनवान बनाइए. आप े षय का नाश क जए. इं आप के सखा ह. आप उन के साथ एकाकार हो जाइए. (१०) नृच सं वा वय म पीत
व वदम्. भ ीम ह जा मषम्.. (११)
हे सोम! आप आ म ाता व मनु य के च ु ह. इं आप को पीते ह. आप हम संतान और ान दान करने क कृपा क जए. (११) वृ
दवः प र व ु नं पृ थ ा अ ध. सहो नः सोम पृ सु धाः.. (१२)
हे सोम! आप वगलोक और पृ वीलोक पर द ता क वषा करने क कृपा क जए. आप अ धन द जए. हम श ु को सह न सक, ऐसी मता द जए. (१२)
सरा खंड सोमः पुनानो अष त सह धारो अ य वः. वायो र
य न कृतम्.. (१)
वायु और इं के लए सोमरस नचोड़ा गया है. सोमरस प व व सह भेड़ के बाल क छलनी से छान कर उसे तैयार कया गया है. (१) पवमानमव यवो व म भ
धारा वाला है.
गायत. सु वाणं दे ववीतये.. (२)
हे ा णो! सोम आप को प व करने वाले ह. आप दे वता कामना क जए. आप इन के लए तु तयां गाइए. (२) पव ते वाजसातये सोमाः सह पाजसः. गृणाना दे ववीतये.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से अपने संर ण क
हे सोम! आप अ दान करने के लए अपनी सह भट करने के लए आप को प र कृत कया जाता है. (३)
धारा
से झ रए. दे वता
को
उत नो वाजसातये पव व बृहती रषः. ुम द दो सुवीयम्.. (४) हे सोम! आप प व व वशाल ह. आप हम े वीयवान बनाने क कृपा क जए. (४) अ या हयाना न हेतृ भरसृ ं वाजसातये. व वारम माशवः.. (५) हे सोम! आप अ ग य ह. यजमान आप को अ करते ह. (५) ते नः सह ण
ा त के लए ग तपूवक प र कृत
र य पव तामा सुवीयम्. वाना दे वास इ दवः.. (६)
हे सोम! आप सह धार वाले, प व और धनवान ह. हम दे व व दान कर. (६) वा ा अष ती दवो ऽ भ व सं न मातरः. दध वरे गभ योः.. (७) हे सोम! आप वैसे ही आवाज करते ए कलश म जाते ह, हाथ म लए जाते ह जैसे मां म े वचन बोलती ई अपने ब च क ओर जाती है और ब च को हाथ म ले लेती है. (७) जु इ ाय म सरः पवमानः क न दत्. व ा अप
षो ज ह.. (८)
हे सोम! आप इं को तृ त दे ते ह. आप प व ह. आप ं दन (आवाज) करते ए सभी श ु का वनाश करने क कृपा क जए. (८) अप न तो अरा णः पवमानाः व शः. योनावृत य सीदत.. (९) हे सोम! आप प व ह. आप वा थय का वनाश क जए. आप य वराजने क कृपा क जए. (९)
थल पर
तीसरा खंड सोमा असृ म दवः सुता ऋत य धारया. इ ाय मधुम माः.. (१) हे सोम! आप अ गामी व मधुरतम ह. आप को ऋत् क धारा के साथ इं के लए तुत कया जाता है. (१) अ भ व ा अनूषत गावो व सं न धेनवः. इ
सोम य पीतये.. (२)
हे यजमानो! आप सोमरस पीने के लए इं से तु तय के साथ अनुरोध क जए. उ ह सोम पलाने के लए आप उतने ही ाकुल हो जाइए, जतनी ाकुल गाएं अपने बछड़ को ध पलाने के लए हो जाती ह. (२) मद यु
े त सादने स धो मा वप त्. सोमो गौरी अ ध
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तः.. (३)
हे सोम! आप मद चुआते ह. आप य गृह म था पत कए गए ह. आप सधु व प ह. आप सधु क लहर क तरह वाणी को लहरा दे ते ह. (३) दवो नाभा वच णो ऽ
ा वारे महीयते. सोमो यः सु तुः क वः.. (४)
हे सोम! आप े कम वाले, क व, वगलोक क ना भ, वल ण और महान ह. आप जल म मल कर म हमाशाली होते ह. (४) यः सोमः कलशे वा अ तः प व आ हतः. त म ः प र ष वजे.. (५) सोमरस प व है. जो सोमरस कलश म रखा आ है, उस म चं मा के वास है. (५) वाच म
े गुण का
र य त समु या ध व प. ज व कोशं मधु तम्.. (६)
सोमरस मधु चुआता है. यह आवाज करता आ कलश को समु क तरह लबालब भर दे ता है. (६) न य तो ो वन प तधनाम तः सब घाम्. ह वानो मानुषा युजा.. (७) हे सोम! आप के लए त दन तो गाए जाते ह. आप मनु य को आपस म जोड़ने क कृपा क जए. आप वन के वामी ह. आप हमारी अंतरतम से गाई गई तु तय को वीकार करने क कृपा क जए. (७) आ पवमान धारया र य
सह वचसम्. अ मे इ दो वाभुवम्.. (८)
हे सोम! आप प व व सह गुण से संप ह. आप हमारे लए धन धारण क जए. आप हम अपने भवन का अ धकारी बनाने क कृपा क जए. (८) अभ
या दवः क व व ः स धारया सुतः. सोमो ह वे पराव त.. (९)
हे सोम! आप वगलोक वासी, क व और ा ण ह. आप हमारे थान) क ओर अपनी य ेरणा का संचार करते ह. (९)
य थान (य
चौथा खंड उ े शु मास ईरते स धो म रव वनः. वाण य चोदया प वम्.. (१) हे सोम! आप क आवाज समु क तरंग जैसी है. आप समु क तरह ही ग त से बहते ह. आप प व वाणी को े रत करने क कृपा क जए. (१) सवे त उद रते त ो वाचो मख युवः. यद
ए ष सान व.. (२)
हे सोम! आप के सव (उ प ) होने के बाद यजमान के मुख से तीन वा णयां (ऋग्वेद, यजुवद और सामवेद के मं क ) उ च रत होती ह. त प ात आप को ऊंचे थान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पर बैठा कर प र कृत कया जाता है. (२) अ ा वारैः प र य
हर
हव य
भः. पवमानं मधु तम्.. (३)
हे सोम! आप प व ह व मधु चुआते ह. यजमान आप को प थर से कूट कर रस नकालते ह. आप को जल से नम न कर दे ते ह. आप को भेड़ के बाल से बनी छलनी से छान कर प र कृत कया जाता है. (३) आ पव व म द तम प व ं धारया कवे. अक य यो नमासदम्.. (४) हे सोम! आप आइए और आप इं को आनंद दे ने हेतु धारा छनने क कृपा क जए. (४) स पव व म द तम गो भर
ानो अ ु भः. ए
से (प व ) छलनी म
य जठरं वश.. (५)
हे सोम! आप मददायी व गाय के ध के साथ मले ए ह. आप प व धारा से छ नए. आप इं के पेट म व होने क कृपा क जए. (५)
पांचवां खंड अया वीती प र व य त इ दो मदे वा. अवाह वतीनव.. (१) हे सोम! आप इं के लए प र कृत होइए. आप इं को आनंद दान क जए. आप नएनए क को र करने क कृपा क जए. (१) पुरः स इ था धये दवोदासाय शंबरम्. अध यं तुवशं य म्.. (२) हे सोम! आप का रस पीने के बाद ही इं ने शंबरासुर, तुवश और य को मारा. इन तीन का नाश इं ने य करने वाले दवोदास के लए कया. (२) प र णो अ म वद्गम द दो हर यवत्. रा सह णी रषः.. (३) हे सोम! आप हम अ का ाता बनाइए. आप हम अ वान, गोवान व वणवान बनाइए. आप सह धारा से झरने क कृपा क जए. (३) अप न पवते मृधो ऽ प सोमो अरा णः. ग छ
य न कृतम्.. (४)
सोमरस इं के प व थान तक (प व हो कर) प ंचता है. वह मधुर और जल म त है. उस के वकार को र कर के उसे व छ कर दया गया है. (४) महो नो राय आ भर पवमान जही मृधः. रा वे दो वीरव शः.. (५) हे सोम! आप प व ह. आप हम धनवान तथा वीर क भां त यश वी बनाने क कृपा क जए. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
न वा शतं च न तो राधो द स तमा मनन्. य पुनानो मख यसे.. (६) हे सोम! आप प व ह. आप को अपने य कता सकता, यहां तक क सैकड़ श ु भी. (६)
को धन दे ने से कोई नह रोक
अया पव य धारया यया सूयमरोचयः. ह वानो मानुषीरपः.. (७) हे सोम! आप अपनी (चमकने वाली) प व धारा के लए जल बरसाने वाले ह. (७) अयु
से सूय को चमकाइए. सूय मनु य
सूर एतशं पवमानो मनाव ध. अ त र ेण यातवे.. (८)
हे सोम! आप प व ह. आप यजमान क मनोकामना पूरी करने के लए अंत र जैसा व तार दान करने क कृपा क जए. (८) उत या ह रतो रथे सूरो अयु (९)
यातवे. इ
र
इ त ुवन्.. (९)
इं सोम का नाम बोलते ए अपने रथ म अपने घोड़ को जुतने का संकेत करते ह.
छठा खंड अ नं वो दे वम न भः सजोषा य ज ं तम वरे कृणु वम्. यो म यषु न ु वऋतावा तपुमूधा घृता ः पावकः.. (१) हे दे वगण! अ न सव पू य ह. आप य म उन को त बना कर भेजने क कृपा क जए. वे मनु य के म और प व ह. घृत (घी) उन का अ है. वे तेज वी ह. (१) ोथद ो न यवसे ऽ व य यदा महः संवरणाद् थात्. आद य वातो अनु वा त शो चरध म ते जनं कृ णम त.. (२) घोड़े जैसे घास चर जाते ह, उसी तरह अ न (दावा न) वृ को चट कर जाते ह. वे हवा के माग का अनुकरण करते ह. उन का माग प व और काले धुएं वाला है. (२) उ य ते नवजात य वृ णो ऽ ने चर यजरा इधानाः. अ छा ाम षो धूम ए ष सं तो अ न ईयसे ह दे वान्.. (३) हे अ न! आप क शी उ प वालाएं वषा करने के लए तैयार ह. आप अजर, स मधा यु व दे वता के त ह. आप क लपट का धुआं वगलोक म दे वता तक (ह व स हत) प ंच जाता है. (३) त म ं वाजयाम स महे वृ ाय ह तवे. स वृषा वृषभो भुवत्.. (४) इं श
मान ह. वे और अ धक श
शाली होने क कृपा कर. हम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मन के नाश के
लए इं को और यादा बलवान बनाना चाहते ह. (४) इ ः स दामने कृत ओ ज ः स बले हतः. ु नी
ोक स सो यः.. (५)
इं ब ल , हतकारी व दान (दे न)े का काय करते ह. वे वगलोक के वासी ह. वे ोक (मं ) से तु य व सोमरस पीने यो य ह. (५) गरा व ो न स भृतः सबलो अनप युतः. वव उ ो अ तृतः.. (६) हे इं ! आप के हाथ म व सुशो भत है. वाणी से आप क सबल, उ व व तृत ह. आप को कोई नह हरा सकता. (६)
शंसा क जाती है. आप
सातवां खंड अ वय अ
भः सुत
सोमं प व आ नय. पुनाही ाय पातवे.. (१)
हे पुरो हतो! सोमरस प व है. पाषाण से कूट कर इस का रस नकाला गया है. उस को छ े म छान कर प र कृत कया गया है ता क इं उसे पी सक. (१) तव य इ दो अ धसो दे वा मधो ाशत. पवमान य म तः.. (२) (२)
हे सोम! आप प व व मधुमय ह. इं और म द्गण आप के इस सोमरस को पीते ह. दवः पीयूषमु म
सोम म ाय व
णे. सुनोता मधुम मम्.. (३)
हे यजमानो! सोमरस वगलोक का अमृत और सव े है. व धारी इं उस का पान करते ह. अतः उन के लए उस को प र कृत क जए. (३) धता दवः पवते कृ ो रसो द ो दे वानामनुमा ो नृ भः. ह रः सृजानो अ यो न स व भवृथा पाजा स कृणुषे नद वा.. (४) सोमरस मधुर और दे वता का बल बढ़ाने वाला है, यजमान इस क शंसा करते ह. अंत र म शु होता आ यह हरा सोमरस वेगवान घोड़ क तरह धारा के प म अपनी साम य कट करता है. (४) शूरो न ध आयुधा गभ योः व ३: सषास थरो ग व षु. इ य शु ममीरय प यु भ र ह वानो अ यते मनी ष भः.. (५) सोम हाथ म श धारण करते ह और वीर क भां त रथा ढ़ ह. वे गोर क, वीर व इं के बलव क, यजमान के ेरक और द ह. सोमरस को गो ध म मलाया जाता है. (५) इ
य सोम पवमान ऊ मणा त व यमाणो जठरे वा वश.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नः प व व ुद ेव रोदसी धया नो वाजां उप मा ह श तः.. (६) हे सोम! आप प व व लहरदार ह. आप और अ धक मताशाली बन कर इं के पेट म वेश करने क कृपा क जए. बजली जैसे बादल को बरसात के लए े रत करती है, उसी तरह आप पृ वीलोक पर धन बरसाइए. आप हम बु मान, धनवान व अ वान बनाइए. (६) यद ागपागुदङ् य वा यसे नृ भः. समा पु नृषूतो अ यानवे ऽ स शध तुवशे.. (७) हे इं ! मनु य ारा आप को सब ओर आमं त कया जाता है. हम पु और तुवश के नाश के लए आप क उपासना करते रहे ह. आप (हमारे सभी) श ु को न करने क कृपा क जए. (७) य ा मे शमे यावके कृप इ मादयसे सचा. क वास वा तोमे भ वाहस इ ा य छ या ग ह.. (८) हे इं ! आप म (इं का वशेष कृपा पा ), शम (इं का सहयोगी), यावक (एक ऋ ष) और कृप (इं का वशेष कृपा पा ) पर कृपालु ह. क व (एक या क) आप क व भ तो से तु त करते ह. आप (यजमान के अनुरोध पर) य म पधारने क कृपा क जए. (८) उभय शृणव च न इ ो अवा गदं वचः. स ा यः मघवा सोमपीतये धया श व आ गमत्.. (९) हे इं ! आप हमारे य म पधार कर हमारी दोन कार क वा णय को सुनने क कृपा क जए. आप ब ल व संप ह. आप हमारी उपासना से स होइए. आप सोमपान करने के लए हमारे य म पधा रए. (९) त ह वराजं वृषभं तमोजसा धषणे न त तुः. उतोपमानां थमो नषीद स सोमकाम ह ते मनः.. (१०) आकाश और पृ वी समथ व तेजोमय इं को अपनी साम य से कट करते ह. इं अनुपम ह. (सभी उपमान म सव म ह). हे इं ! आप सोम (पान क ) क कामना से य वेद पर अ ध त होने क कृपा क जए. (१०)
आठवां खंड पव व दे व आयुष ग ं ग छतु ते मदः. वायुमा रोह धमणा.. (१) हे सोम! आप का रस मददायी हो कर इं तक जाए. आप का रस श मान हो कर वायु तक प ंचने क कृपा करे. आप प व ह. आप यजमान को आयु मान बनाने क कृपा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क जए. (१) पवमान न तोशसे र य
सोम वा यम्. इ दो समु मा वश.. (२)
हे सोम! आप प व व संतु दायक ह. आप आप का आ ान करते ह. (२) अप न पवसे मृधः
को दं ड दे ने क कृपा क जए. हम
तु व सोम म सरः. नुद वादे वयुं जनम्.. (३)
हे सोम! आप प व ह. आप य क या व ध जानने वाले ह. आप ई यालु और ना तक को र करने क कृपा क जए. आप का भाव दे वता जैसा ( द ) है. (३) अभी नो वाजसातमं र यमष शत पृहम्. इ दो सह भणसं तु व नं वभासहम्.. (४) हे सोम! आप तेज वी ह. आप हम सैकड़ लोग ारा चाहा गया धन दान करने क कृपा क जए. आप ारा दए गए धन से हम हजार लोग का भरणपोषण करने म समथ हो सक. आप हम तेज वी और यश वी बनाने क कृपा क जए. (४) वयं ते अ य राधसो वसोवसो पु पृहः. न ने द तमा इषः याम सु ने ते अ गो.. (५) हे सोम! हम आप का आ य चाहते ह. आप सभी के ारा चाहे जाते ह. आप हम जो अ धन दान करते ह, उस से हम सुखी बन. आप सूय के साथ वास करने वाले ह. (५) प र य वानो अ र द र े मद युतः. धारा य ऊ व अ वरे ाजा न या त ग युः.. (६) सोमरस े व तेज वी है. य म उस क धारा का योग कया जाता है. चमकने वाले सोमरस क ऊ व धारा ग तमान के प म य म काम आती है. सोमरस को वाभा वक प से प रशु कया जाता है. (६) पव व सोम महा समु ः पता दे वानां व ा भ धाम.. (७) हे सोम! आप प व , रसीले व पालक ह. दे वता से प रपूण करने क कृपा क जए. (७)
के सभी धाम को अपने द
रस
शु ः पव व दे वे यः सोम दवे पृ थ ै शं च जा यः.. (८) हे सोम! आप चमक ले ह. आप दे वता के लए ब हए. सोमरस वगलोक, पृ वीलोक और सम त जा के लए सुखकारी होने क कृपा कर. (८) दवो धता स शु ः पीयूषः स ये वधम वाजी पव व.. (९) हे सोम! आप बलवान, चमक ले, अमृत के समान व वगलोक के धता (धारण कता) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. आप स य
पी य म वा हत होने क कृपा क जए. (९)
नौवां खंड े ं वो अ तथ
तुषे म मव
यम्. अ ने रथं न वे म्.. (१)
हे अ न! आप ब त अ धक य व हमारे मेहमान ह. आप हम म जैसे सव ाता ह. आप ह ववाहक ह. हम आप क तु त करते ह. (१) क व मव श
वं यं दे वास इ त
दे वता ने क व क भां त दो त त कया. (२)
य और
ता. न म य वादधुः.. (२)
प (गाहप य और आहवनीय) म मनु य म अ न को
वं य व दाशुषो नॄँ: पा ह शृणुही गरः. र ा तोकमुत मना.. (३) हे इं ! आप हमारी वाणी सु नए. आप हम अपनी शरण म ली जए. आप अपने यजमान क तु त पर यान द जए. आप उन क र ा के लए सचे रहने क कृपा क जए. (३) ए
नो ग ध
य स ा जदगो . ग रन व तः पृथुः प त दवः.. (४)
हे इं ! आप व पालक, पवत क भां त वशाल एवं वगलोक के वामी ह. आप कृपया हमारे य (पास) म पधा रए. (४) अ भ ह स य सोमपा उभे बभूथ रोदसी. इ ा स सु वतो वृधः प त दवः.. (५) हे इं ! आप सोमरस पीने वाले व सच का पालन करने वाले ह. आप आकाश और पृ वी दोन ही लोक म अपनी साम य रखते ह. आप वगलोक के प त ह. आप सोमय करने वाल क बढ़ोतरी करने वाले ह. (५) व
ह श तीना म
धता पुराम स. ह ता द योमनोवृधः प त दवः.. (६)
हे इं ! आप वगलोक के प त एवं शा त ह. आप नगर को धारण करने वाले, द यु का नाश करने वाले व मनोबल क बढ़ोतरी करने वाले ह. (६) पुरां भ युवा क वर मतौजा अजायत. इ ो व य कमणो धता व ी पु ु तः.. (७) हे इं ! आप (श ु के) नगर के भेदक, क व, युवा, व वाले, व के कम के धारक व परा मी ह. आप क कई जगह शंसा होती है. आप अपने इसी व प के साथ कट ए ह. (७) वं वल य गोमतो ऽ पावर वो बलम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वां दे वा अ ब युष तु यमानास आ वषुः.. (८) हे इं ! आप ने अपने बल से गाय को चुराने वाले रा स के ज थे को न कया. रा स के नाश के बाद सारे दे वता इकट् ठे ए. फर वे सभी दे वता तब आप के साथ संग ठत ए. (८) इ मीशानमोजसा भ तोमैरनूषत. सह ं य य रातय उत वा स त भूयसीः.. (९) इं हजार दान दे ने वाले, ब त ओज वी व ब त मतावान ह. उन क सव भू रभू र शंसा होती है. हम सभी को इं क तु त करनी चा हए. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दसवां अ याय पहला खंड अ ा समु ः थमे वधमन् जनय जा भुवन य गोपाः. वृषा प व अ ध सानो अ े बृह सोमो वावृधे वानो अ ः.. (१) सोम पानी बरसाने वाले, सब क र ा करने वाले व द ह. सब से पहले आकाश म उ ह ने जा को उ प कर के त ा ा त क , फर पृ वी के ऊपर ाकृ तक छलनी से छन कर के बढ़ोतरी ा त क . (१) म स वायु म ये राधसे नो म स म ाव णा पूयमानः. म स शध मा तं म स दे वा म स ावापृ थवी दे व सोम.. (२) छाना गया सोमरस म , व ण तथा म द्गण क साम य बढ़ा दे ने वाला हो. वह इं के भी बल को बढ़ाए. वह हम अ , धन दलाने के लए वायु को स करे. सोमरस अनुपम ( द ) है. वह वगलोक और पृ वीलोक दोन ही लोक के लए स ता बढ़ाने वाला हो. (२) मह सोमो म हष कारापां यद्गभ ऽ वृणीत दे वान्. अदधा द े पवमान ओजो ऽ जनय सूय यो त र ः.. (३) सोम ने सूय म काश उ प कया. इं म ओज था पत कया. ये जल के गभ व प और महानतम ह. सोम ने ब त से काय कए ह. (३) एष दे वो अम यः पणवी रव द यते. अ भ ोणा यासदम्.. (४) सोम अमर ह. ये प ी के उड़ने क तरह वेग से ोणकलश म वेश करते ह. (४) एष व ैर भ ु तो ऽ पो दे वो व गाहते. दध ना न दाशुषे.. (५) सोम द और ा ण धन धारण करते ह. (५)
ारा शं सत ह. ये जल म मलते ह. सोम यजमान के लए
एष व ा न वाया शूरो य व स व भः. पवमानः सषास त.. (६) शूरवीर जैसे बल योग करता है, वैसे ही सोम अपना धन दे ते ह. ये बलशाली, साम यवान और ऐ यशाली ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एष दे वो रथय त पवमानो दश य त. आ व कृणो त व वनुम्.. (७) सोम प व ह. ये यजमान क इ छा पू त के लए य थान तक जाना चाहते ह. ये आवाज करते ए य थान म जाने के लए रथ चाहते ह. (७) एष दे वो वप यु भः पवमान ऋतायु भः. ह रवाजाय मृ यते.. (८) यु
सोम प व ह. पुरो हत सोम को साफ कर के ाथना म ले जाने के लए घोड़ को सजाया जाता है. (८) एष दे वो वपा कृतो ऽ त
रा
से उसी तरह सजाते ह, जैसे
स धाव त. पवमानो अदा यः.. (९)
सोम प व ह और वयं कसी से नह दबते, पर ये वयं श ु एष दवं व धाव त तरो रजा
को दबा दे ते ह. (९)
स धारया. पवमानः क न दत्.. (१०)
सोम प व ह. वे छन कर धारा का प धर कर आवाज करते ए श ुलोक को जीतते ह. वे य के भाव से वगलोक क ओर दौड़ते ह. (१०) एष दवं
ासर रो रजा
य तृतः. पवमानः व वरः.. (११)
सोम प व ह. वे अपने य थान से वगलोक के लए थान करते ह. वे य के े साधन ह और श ु को हरा सकने क साम य रखते ह. (११) एष
नेन ज मना दे वो दे वे यः सुतः. ह रः प व े अष त.. (१२)
सोम प व और ह रत कां त वाले ह. दे वता प व तापूवक उपयोग म लाए जाते ह. (१२) एष उ य पु
और उन क पी ढ़य
ारा ज म से ही
तो ज ानो जनय षः. धारया पवते सुतः.. (१३)
सोम पु तादायी आहार को पैदा करते ह. वे फू तदायी काय मता उ प करने वाले ह. वे अपनी धारा से झरते ए वतः ही व छ (प व ) हो जाते ह. (१३)
सरा खंड एष धया या य बु
ा शूरो रथे भराशु भः. ग छ
य न कृतम्.. (१)
सोम शूरवीर ह. अंगु लय से इ ह नचोड़ा जाता है. ये ज द चलने वाले रथ से पूवक इं के पास जाते ह. (१) एष पु
धयायते बृहते दे वतातये. य ामृतास आशत.. (२)
य थान म ब त से दे वता करने क इ छा रखते ह. (२)
त त ह. ये उस य
थल म बु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूवक अग णत काय
एतं मृज त म यमुप ोणे वायवः. च ाणं मही रषः.. (३) यजमान सोमरस को प र कृत कर के ोणकलश म भरते ह. यह रसीला व अ उ प करने वाला है. (३) एष हतो व नीयते ऽ तः शु यावता पथा. यद तु
को
त भूणयः.. (४)
सोम को य थान पर ले जाया जाता है. वहां पर पुरो हत उसे शु करते ह, प व बनाते ह, तब दे वता के ह व के प म इस का योग कया जाता है. (४) एष
म भरीयते वाजी शु े भर
शु भः. प तः स धूनां भवन्.. (५)
सोम रस के राजा और प व सफेद करण वाले ह. वे घोड़े क तरह ज द से याजक के पास जाते ह. (५) एष शृ ा ण दोधुव छशीते यू यो ३ वृषा. नृ णा दधान ओजसा.. (६) श
श
शाली बैल जैसे पशु के झुंड म अपना बल दखाता है, वैसे ही सोम अपनी कट करते ह. सोम वैभव व बलशाली ह. (६)
एष वसू न प दनः प षा य यवाँ अ त. अव शादे षु ग छ त.. (७) सोम हसक का नाश कर दे ते ह. वे पीड़ा प ंचाने के लए भी सताते ह. वे उ ह सीमा म रखते ह. वे ब त श शाली और मतावान ह. (७) एतमु यं दश
पो ह र
ह व त यातवे. यायुधं म द तमम्.. (८)
सोम मदकारी, आयुध वाले, ह रत कां त वाले व भीतर क श ह. दस अंगु लय से मसल कर इ ह नचोड़ा जाता है. इ ह दे वता (८)
(अंतःकरण क ) धरते को चढ़ाया जाता है.
तीसरा खंड एष उ य वृषा रथो ऽ
ा वारे भर त. ग छ वाज
सह णम्.. (१)
सोम हजार घोड़ क तरह ग तपूवक जाते ह. ये रथ क तरह ग तमान ह. इ ह ोणकलश म छलनी से छाना जाता है. ये अ दाता ह. (१) एतं
त य योषणो ह र
हव य
भः. इ
म ाय पीतये.. (२)
इं के पीने के लए ह रत कां त वाला सोमरस प थर से के साथ प व कया जाता आ) कूटा जा रहा है. (२)
त (तीन कार से तु तय
एष य मानुषी वा येनो न व ु सीद त. ग छं जारो न यो षतम्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह सोमरस मनु य म उसी कार ज द प ंच रहा है, जैसे बाज प ी अपने शकार के पास प ंचता है व ेमी अपनी े मका के पास जाता है. (३) एष य म ो रसो ऽ व च े दवः शशुः. य इ वारमा वशत्.. (४) (४)
सोम वगलोक के शशु (ब चे), मददायी और सव एष य पीतये सुतो ह ररष त धण सः.
द यो नम भ
ा ह. ये छलनी से शु
होते ह.
यम्.. (५)
सोम आवाज करते ए अपने अभी ( य) थान ( ोणकलश) म जाते ह. इ ह दे वता के पीने के लए तैयार कया जाता है. ये ह रत कां त वाले ह. ये सब को धारण करते ह. (५) एतं य
ह रतो दश ममृ य ते अप युवः. या भमदाय शु भते.. (६)
इं को स करने के लए सोमयाग कया जाता है. दस अंगु लयां मसलमसल कर सोमरस को शु करती ह. (६)
चौथा खंड एष वाजी हतो नृ भ व व मनस प तः. अ ं वारं व धाव त.. (१) सोम मन के राजा, संसार को जानने वाले और घोड़े के समान तेजी से दौड़ कर ोणकलश म जाते ह. (१) एष प व े अ र सोमो दे वे यः सुतः. व ा धामा या वशन्.. (२) सोमरस अमर व प व है. वह दे वता और उन क पी ढ़य के लए झरता है. यह छन कर उन म (दे वता म) ा त हो जाता है. (२) एष दे वः शुभायते ऽ ध योनावम यः. वृ हा दे ववीतमः.. (३) सोम दे वता को ब त अ धक भाते ह. वे दे वता क द ता (दै वीभाव) को और अ धक बढ़ा दे ते ह. वे अमर और श ुनाशी ह. य के कलश म सोमरस ब त अ धक शो भत होता है. (३) एष वृषा क न द श भजा म भयतः. अ भ ोणा न धाव त.. (४) दस अंगु लयां मसलमसल कर सोमरस को नचोड़ती ह. यह श आवाज करता व दौड़ता आ ोणकलश म प ंचता है. (४) एष सूयमरोचय पवमानो अ ध
शाली है. यह
व. प व े म सरो मदः.. (५)
वगलोक प व कारी है. सोमरस वगलोक म आनंद दे ने वाला है. प व और छाना ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ सोमरस सूय को का शत करने क साम य रखता है. (५) एष सूयण हासते संवसानो वव वता. प तवाचो अदा यः.. (६) सोम बंधनमु , उपासना यो य व तेज वी ह. सूय दे व जल, वायु आ द पांच त व म मलने के लए इसे छोड़ते ह. (६)
पांचवां खंड एष क वर भ ु तः प व े अ ध तोशते. पुनानो न प
षः.. (१)
क व और ानी सोमरस क उपासना करते ह. यह पाप (रोग) नाशक, फू तदायी और तृ तदायी है. इस का रस कूट कर नकाला जाता है. (१) एष इ ाय वायवे व ज प र ष यते. प व े द साधनः.. (२) सोम इं और वायु के लए छन कर नीचे भूलोक पर पधारते ह. वे प व और व गक सुखदाता ह. (२) एष नृ भ व नीयते दवो मूधा वृषा सुतः. सोमो वनेषु व वत्.. (३) सोम सव ाता, श शाली और सव े ह. मनु य (यजमान) इ ह वन म वन क उपयोगी व तु और ओषध के प म पाते ह. (३) एष ग ुर च द पवमानो हर ययुः. इ ः स ा जद तृतः.. (४) सोम का व प रसीला व फू तदायी ह. वे सव ाता ह. मनु य लकड़ी के बने बरतन से इ ह य म ले जाते ह. (४) एष शु य स यदद त र े वृषा ह रः. पुनान इ
र मा.. (५)
सोम अंत र म शो भत होते ह. ये घोड़े क तरह बलवान और हरे ह. ये छलनी म छनते ह. ये सादर इं के पास जाते ह. (५) एष शु यदा यः सोमः पुनानो अष त. दे वावीरघश सोम दे वता वराजते ह. (६)
सहा.. (६)
के र क, पा पय के संहारक, अ वनाशी और द
और वे कलश म
छठा खंड स सुतः पीतये वृषा सोमः प व े अष त. व न सोम व न को न करने वाले व द
ा
स दे वयुः.. (१)
गुण से भरपूर ह. इ ह इं आ द दे व के लए
******ebook converter DEMO Watermarks*******
छलनी से छान कर तैयार कया गया है. (१) स प व े वच णो ह ररष त धण सः. अ भ यो न क न दत्.. (२) सोमरस प व , वल ण, हरा व सब को धारण करने वाला है. वह छलनी से छनते समय आवाज करता है. (२) स वाजी रोचनं दवः पवमानो व धाव त. र ोहा वारम यम्.. (३) सोमरस श मान है. वगलोक को चमकाता है और है और छनता आ लगातार वा हत होता रहता है. (३) स
त या ध सान व पवमानो अरोचयत्. जा म भः सूय
का नाश करता है. वह द सह.. (४)
सोम अपने तेज से सूय के साथ का शत होते ह. तय ( कृ त, ाणी और आकाश के बीच आदान दान पूण य ) म व ध वधान से सुशो भत होते ह. (४) स वृ हा वृषा सुतो व रवो वददा यः. सोमो वाज मवासरत्.. (५) सोम श ुनाशक, श व क व धनदाता ह. नचोड़ कर नकाले जाते समय ये घोड़े के समान वेगवान हो कर घड़े म वेश करते ह. (५) स दे वः क वने षतो ३ ऽ भ ोणा न धाव त. इ
र ाय म
हयन्.. (६)
सोम इं और अ य दे व का मह व बढ़ाते ह. सोमय करने वाले यजमान उ ह वेग से कलश म वा हत करते ह और वगलोक म का शत होते ह. (६)
सातवां खंड यः पावमानीर ये यृ ष भः संभृत रसम्. सव स पूतम ा त व दतं मात र ना.. (१) जो यजमान ऋ षय ारा संक लत जीवन क उपयोगी बात म यान लगाता है, प व कारी सू (मं , तु तय ) का पाठ करता है वह यजमान प व और पोषक अ ा द रस का आनंद लेता है. (१) पावमानीय अ ये यृ ष भः संभृत रसम्. त मै सर वती हे ीर स पमधूदकम्.. (२) ऋ षय ने वेद मं क रचना क है. जो यजमान उन का अ ययनमनन करता है, उस का ान बढ़ाने के लए सर वती सहायता करती ह. उस यजमान के लए शहद, ध, घी आ द पोषक वयं दान करती ह. (२) पावमानीः व ययनीः सु घा ह घृत तः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ ष भः संभृतो रसो ा णे वमृत ऋ षय ने जो मं रचे ह, वे मं व घी से चुए ए ह. वे नेह क धारा
हतम्.. (३)
ा ण के लए अमृत सरीखे क याणकारी, हतकारी से सने ए और े फलदायी ह. (३)
पावमानीदध तु न इमं लोकमथो अमुम्. कामा समधय तु नो दे वीदवैः समा ताः.. (४) दे वी और दे वता ने मं संक लत कए ह. वे मं न केवल इस लोक म ब क परलोक म भी हमारे लए क याणकारक ह . वे हमारी सारी इ छाएं पूरी करने वाले ह . (४) येन दे वाः प व ेणा मानं पुनते सदा. तेन सह धारेण पावमानीः पुन तु नः.. (५) दे वतागण जन से सदा अपने को नमल (प व ) बनाते ह, वैसी ही हजार धारा वेद के मं हम प व बनाने क कृपा कर. (५)
से
पावमानीः व ययनी ता भग छ त ना दनम्. पु याँ भ ा भ य यमृत वं च ग छ त.. (६) जो यजमान प व तादायी मं से रे णा लेता है, जो यजमान हतकारी मं म झान रखता है, वह परमानंद का भागी होता है. वह पु य अ जत कराने वाले अ को खाता है और अमरता का भागीदार होता है. (६)
आठवां खंड अग म महा नमसा य व ं यो द दाय स म ः वे रोणे. च भानु रोदसी अ त व वा तं व तः य चम्.. (१) हे अ न! कौन सी ऐसी जगह है, जहां आप नह जा सकते? आप वगलोक और पृ वीलोक म भलीभां त व लत ( का शत) होते ह. आप खूब काशवान, अ छ आ तय वाले व युवा ह. हम आप को नम कार करते ह और आप क शरण म ह. (१) स म ा व ा रता न सा ान न वे दम आ जातवेदाः. स नो र ष रतादव ाद मा गृणत उत नो मघोनः.. (२) हे अ न! आप का काश ान वाला है. आप उस काश को फैलाते रहते ह. आप तेज वी ह और संसार के सभी पाप का नाश करने म समथ ह. आप कम करने से हम रोकते ह और हमारी र ा करते ह. आप हमारी आ तय को हण करते ह. आप हमारे त क याण क भावना धारण करते ह. (२) वं व ण उत म ो अ ने वां वध त म त भव स ाः. वे वसु सुषणना न स तु यूयं पात व त भः सदा नः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! व स ऋ ष वशेष बु पूवक आप क तु त करते ह. आप व ण व म व प ह. आप के धन क याणकारी ह . आप अपनी मंगलकारी भावना से हमारी र ा क जए. (३) महाँ इ ो य ओजसा पज यो वृ माँ इव. तोमैव स य वावृधे.. (४) इं महान व काशमान ह. वे अपने य भ क तु तय से बढ़ोतरी पाते ह. वे बरसने वाले बादल क भां त ह. उपासक उन के पु क तरह ह. (४) क वा इ ं यद त तोमैय
य साधनम्. जा म ुवत आयुधा.. (५)
हे इं ! ऐसा कहा जाता है क उस समय य क नगरानी या र ा के लए कसी भी साधन क ज रत नह रह जाती, जब क व जैसे ऋ ष अपनी तु तय से आप को य का र क बना लेते ह. (५) जामृत य प तः
यद्भर त व यः. व ा ऋत य वाहसा.. (६)
द अ नयां आकाश म भर जाती ह. वे ती ग त से इं को य दे ती ह. तब ा णगण उन क तु त करते ह. (६)
थान पर प ंचा
नौवां खंड पवमान य ज नतो हरे
ा असृ त. जीरा अ जरशो चषः.. (१)
हे सोम! आप हरे ह. आप के रस क धारा स तादायक है. वह छन कर और साफ हो कर झरती है. आप श ुनाशक ह और सब जगह जा सकते ह. (१) पवमानो रथीतमः शु े भः शु श तमः. ह र
ो म द्गणः.. (२)
हे सोम! आप प व , उ चतम थान पर शो भत, उ वलतर से उ वलतम, ह रत शोभा वाले व सब को स ता दे ने वाले ह. आप को पु बनाने म म द्गण भी आप क सहायता करते ह. (२) पवमान
ु ह र म भवाजसातमः. दध तो े सुवीयम्.. (३)
हे सोम! आप प व ह. आप घोड़े क तरह अपनी करण से सव प ंच जाते ह. आप यजमान को अ छा वीय ( े संतान) दान करते ह. (३) परीतो ष चता सुत सोमो य उ म ह वः. दध वाँ यो नय अ व ३ ऽ तरा सुषाव सोमम भः.. (४) यजमान जल म सोम को मलाते ह. वे प थर से कूट कर सोमरस नकालते ह. वह दे वता के लए े है. यजमान उस से सब ओर स च. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नूनं पुनानो ऽ व भः प र वाद धः सुर भतरः. सुते च वा सु मदामो अंधसा ीण तो गो भ रम्.. (५) हे सोम! छान कर, शु बना कर आप को गाय के ध के साथ मला लया जाता है. इतना हो जाने पर आप को जल म मलाया जाता है. तब आप अ छ तरह सेवन यो य हो जाते ह. आप अमर और ब त सुगंध वाले ह. (५) प र वान
से दे वमादनः
तु र
वच णः.. (६)
सोमरस वल ण है और दे वता के लए आनंददायी है, य का मुख साधन है. सब को दे खने के लए सोम कलश म थत रहने क कृपा कर. (६) असा व सोमो अ षो वृषा हरी राजेव द मो अ भ गा अ च दत्. पुनानो वारम ये य य येनो न यो न घृतव तमासदत्.. (७) सोम हरे रंग के, श व क, का शत व राजा के समान दशनीय ह. इन के रस को भेड़ के बाल से बनी छलनी म छाना जाता है. गाय के ध म मल कर सोमरस और अ धक प व हो जाता है. वह जल से भरे ए कलश म वैसे ही वेश करता है, जैसे वेग से उड़ता आ प ी उतरता है. (७) पज यः पता म हष य प णनो नाभा पृ थ ा ग रषु यं दधे. वसार आपो अ भ गा उदासर सं ाव भवसते वीते अ वरे.. (८) सोम पवत पर नवास करते ह. वे पवत पृ वी क ना भ पर थत ह और उन के प े खूब बड़ेबड़े होते ह. बरसने वाले बादल उन के पता ह. वे गाय के ध, पानी और तु तय से य थल पर पधार वहां त त होते ह. (८) क ववध या पय ष मा हनम यो न मृ ो अ भ वाजमष स. अपसेधन् रता सोम नो मृड घृता वसानः प र या स न णजम्.. (९) हे सोम! आप व ान ारा जाने जाते ह और जलमय ह. आप छलनी म छन कर वैसे ही ोणकलश म वेग से जा कर थत रहते ह, जैसे सं ाम थल पर जाने वाले घोड़े वेग से वहां जा कर थत रहते ह. आप हम बुरी बात और आदत से र र खए. हम सब सुख दान क जए. (९)
दसवां खंड ाय त इव सूय व े द य भ त. वसू न जातो ज नमा योजसा त भागं न द धमः.. (१) हे यजमानो! इं उसी तरह चुर वैभव को बांटते ह, जैसे सूय करण को (अपने म) बांटते ह. हम उन क कृपा से वैसे ही धन पाते ह, जैसे पता क कृपा से हम उन से संप ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का ह सा पाते ह. (१) अल षरा त वसुदामुप तु ह भ ा इ य रातयः. यो अ य कामं वधतो न रोष त मनो दानाय चोदयन्.. (२) इं स जन (भ ) को धन दान करते ह. उन के दान ब त क याणकारी ह. यजमान जब उन से कुछ चाहते ह तो उन का मन उ ह उस दान के लए े रत करता है. अतः हे यजमानो! आप सब उन क तु त करो. (२) यत इ भयामहे ततो नो अभयं कृ ध. मघव छ ध तव त ऊतये व षो व मृधो ज ह.. (३) हे इं ! आप हम उन सब से अभय दान क जए, जन से हम भय लगता है. आप हम से व े ष रखने वाल को न क जए. आप हसक का नाश क जए. आप हमारी र ा क जए. आप साम यवान ह. (३) व ह राधस पते राधसो महः य या स वधता. तं वा वयं मघव गवणः सुताव तो हवामहे.. (४) हे इं ! आप धनप त, ब त धनधारी एवं उपा य ह. हम यजमान शु सोमरस का आनंद लेने के लए आप को आमं त करते ह. (४)
और प व
यारहवां खंड व
सोमा स धारयुम
ओ ज ो अ वरे. पव य म
हय यः.. (१)
हे सोम! आप ब ल व प व ह. आप य म धारा से वैभवयु धनदाता व श दाता ह. आप शु हो कर कलश म वरा जए. (१) व
माग बनाते ह. आप
सुतो म द तमो दध वा म स र तमः. इ ः स ा जद तृतः.. (२)
हे सोम! आप मददायी, बलधारी, य के मूलाधार, का शत, फू तदायी और श ु को जीतने वाले ह. आप को जीता नह जा सकता. (२) व
सु वाणो अ
भर यष क न दत्. ुम त
शु ममा भर.. (३)
हे सोम! प थर से कूटकूट कर आप का रस नकाला व नचोड़ा जाता है. आप हम ओज और साम य दान करने क कृपा कर. आप आवाज करते ए कलश म वेश करने क कृपा क जए. (३) पव व दे ववीतय इ दो धारा भरोजसा. आ कलशं मधुमा सोम नः सदः.. (४) हे सोम! आप मधुरतायु
ह. आप दे वता
क तृ त के लए अपनी ओजयु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
धारा
से सदै व हमारे कलश म आइए. (४) तव
सा उद ुत इ ं मदाय वावृधुः. वां दे वासो अमृताय कं पपुः.. (५)
हे सोम! आप का रस जल से ओत ोत है. आप को इं का यश और आनंद बढ़ाने के लए उ ह पलाया जाता है. दे वगण अमरता के लए आप को पीते ह. (५) आ नः सुतास इ दवः पुनाना धावता र यम्. वृ
ावो री यापः व वदः.. (६)
हे सोम! आप आ म ाता, रसीले और यजमान के लए बादल से पानी बरसाने क भां त धन बरसाने वाले ह. आप हमारे लए वैभव दान करने क कृपा क जए. (६) पर य हयत ह र ब ुं पुन त वारेण. यो दे वा व ाँ इ प र मदे न सह ग छ त.. (७) सोमरस आनंद के साथ सभी दे वता तक प ंचता है. हरे सोमरस को छलनी से छान कर साफ कया जाता है. सोम पाप से रोकते ह और मन को हरने वाले (मनोहर) ह. (७) य प च वयशस सखायो अ स हतम्. य म य का यं नापय त ऊमयः.. (८) सोमरस प थर से कूट कर नकाला जाता है. इ ह दोन हाथ क दस अंगु लयां साफ करती ह और जलमय बनाती ह. ये तरंग क तरह लहराते ह. ये सभी को य, सभी के म और इं के का य (चाहे गए) ह. (८) इ ाय सोम पातवे वृ ने प र ष यसे. नरे च द णावते वीराय सदनासदे .. (९) हे सोम! आप वृ नाशक इं के लए ोणकलश म थत र हए. आप य म द णा दे ने वाले और य कता यजमान के लए मटके म बने र हए व थर र हए. (९) पव व सोम महे द ाया ो न न ो वाजी धनाय.. (१०) हे सोम! आप प व ह. आप श ुनाशक ह. आप धन और बल के लए पा पधा रए. आप घोड़े जैसे वेगवान और बलवान ह. (१०)
म
ते सोतारो रसं मदाय पुन त सोमं महे ु नाय.. (११) (११)
हे सोम! पृ वी पर यजमान आनंद पाने के लए आप के रस को साफ कर के छानते ह. शशुं ज ान
ह र मृज त प व े सोमं दे वे य इ म्.. (१२)
हे सोम! तुरंत पैदा ए ब चे को नहला कर जैसे साफ कया जाता है, वैसे ही यजमान आप को साफ करते ह. आप को दे व के लए छलनी म छाना जाता है. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उपो षु जातम तुरं गो भभ ं प र कृतम्. इ ं दे वा अया सषुः.. (१३) हे सोम! दे वगण आप का रस पीते ह. उसे गाय के ध और जल म मला कर प र कृत कया गया है. वह चमक ला है. (१३) त मद्वध तु नो गरो व स
स
श री रव. य इ
य द
स नः.. (१४)
माता जैसे शशु के शरीर को अपने ध से बढ़ाती है, वैसे ही हमारी तु तयां सोम क बढ़ोतरी कर. वे इं के दय म नवास करते ह. (१४) अषा नः सोम शं गवे धु
व प युषी मषम्. वधा समु मु य.. (१५)
हे सोम! आप उपा य ह और समु क तरह उमड़ कर े पा म वरा जए. हमारे घर धनधा य से भरे रह. आप क कृपा से हमारा गोधन भी सुखी रहे. (१५)
बारहवां खंड आ घा ये अ न म धते तृण त ब हरानुषक्. येषा म ो युवा सखा.. (१) इं जवान व यजमान के म ह. यजमान अ न को दे वता के लए कुश के आसन बछाते ह. (१) बृह
व लत करते ह. यजमान
द म एषां भू र श ं पृथुः व ः. येषा म ो युवा सखा.. (२)
यजमान के पास दे वता के लए भरपूर स मधाएं, चुर श , अग णत ाथनाएं ह. इं इन यजमान के म ह और वे सदा जवान ह. (२) अयु
इ ुधा वृत
शूर आज त स व भः. येषा म ो युवा सखा.. (३)
युवा इं जन यजमान के म ह वे यु सै य बल वाले श ु को हरा सकते ह. (३)
म
च नह रखते ह, फर भी श
शाली
य एक इ दयते वसु मताय दाशुषे. ईशानो अ त कुत इ ो अ .. (४) इं संसार के ई र और यजमान को भरपूर वैभव दे ने वाले ह. वे अकेले ही श ु हराने के लए पया त ह. (४) य
को
वा ब य आ सुतावाँ आ ववास त. उ ं त प यते शव इ ो अ .. (५)
हे इं ! लाख म से जो कोई यजमान सोमय से आप को भजता है, आप उसे ज द ही ओज वी बना दे ते ह. (५) कदा मतमराधसं पदा ु प मव फुरत्. कदा नः शु वद् गर इ ो अ .. (६) हे इं ! आप तु त न करने वाल को मामूली पौध क तरह कब हटाएंगे? कब आप ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आराधना करने वाले हम लोग क तु त सुनगे? (६) गाय त वा गाय णो ऽ च यकम कणः. ाण वा शत त उ श मव ये मरे.. (७) हे इं ! आप सैकड़ काय करने वाले ह. हम यजमान मं से आप के लए य करते ह. हम आप क म हमा का गुणगान करते ह. आप वद ह. बांस क तरह आप को ऊंची पदवी दान करते ह. (७) य सानोः सा वा हो भूय प क वम्. त द ो अथ चेत त यूथेन वृ णरेज त.. (८) यजमान सोमव ली आ द स मधा लाने के लए पवत के शखर पर जाते ह. वे अनेक कम वाले य करते ह. इं यजन करने वाले यजमान के मन के उद्दे य को जान जाते ह. तब वे यजमान क इ छा पूरी करने के लए अ य दे वता के साथ य म जाने के लए तैयार होते ह. (८) युं वा ह के शना हरी वृषणा क य ा. अथा न इ
सोमपा गरामुप ु त चर.. (९)
हे इं ! आप सोमरस पीने वाले ह. आप के घोड़े गरदन पर अ छे बाल वाले व मजबूत अंग वाले ह. आप उन घोड़ को रथ म जो तए और हमारी तु त सुनने के लए य म पधा रए. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यारहवां अ याय पहला खंड सुष म ो न आ वह दे वाँ अ ने ह व मते. होतः पावक य
च.. (१)
हे अ न! आप प व करने वाले ह. आप यजमान के क याण हेतु दे वता आ ान क रए. दे वता को ह व प ंचाने के लए ह व वीकार क जए. आप य सफल बनाने क कृपा क जए. (१) मधुम तं तनूनपा
का को
ं दे वेषु नः कवे. अ ा कृणु तये.. (२)
हे अ न! आप व ान् व ऊपर क ओर जाने वाले ह. आप हमारे क याण के लए तनमन के न म पोषक मधुरता से भरी ह वय को दे वता के लए वीकार क जए. उन ह वय को वीकारने के बाद दे वता तक प ंचाने क कृपा भी क जए. (२) नराश
स मह
यम म य उप
ये. मधु ज
ह व कृतम्.. (३)
हे अ न! आप दे वता को य, उन के लए स तादायी, मीठ ज ा वाले व पूजनीय ह. हम इस य म अपनी ह वय को दे व तक प ंचाने का अनुरोध करते ह. (३) अ ने सुखतमे रथे दे वाँ ई डत आ वह. अ स होता मनु हतः.. (४) हे अ न! आप दे वता को साथ ले कर अपने सुखदायी रथ म य पधा रए. आप दे वता को बुलाने वाले व मनु य का हत साधने वाले ह. (४)
थान तक
यद सूर उ दते ऽ नागा म ो अयमा. सुवा त स वता भगः.. (५) सूय के उ दत होने पर प व क कृपा कर. (५) सु ावीर तु स यः
म , अयमा, स वता व भग हम मनचाहा धन ा त कराने
नु याम सुदानवः. ये नो अ
हो ऽ त प त.. (६)
हे दे वताओ! आप उ कृ क याण करने वाले, हमारे े र क व य थान के वासी ह. आप अहम्, दं भ आ द रा स (बुरी वृ य ) से हमारी र ा करने क कृपा कर. (६) उत वराजो अ द तरद ध य त य ये. महो राजान ईशते.. (७) दे वता
क माता अ द त समेत सभी दे वतागण हमारे त स
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कर. वे इ ह स
करने क साम य रखते ह. वे महान, राजा व ई र ह. (७) उ वा मद तु सोमाः कृणु व राधो अ वः. अव
षो ज ह.. (८)
हे इं ! आप साम यवान ह. सोमरस आप को मदम त बना दे . आप हम वैभव दान कर. आप ान के े षय का नाश कर. (८) पदा पणीनराधसो न बाध व महाँ अ स. न ह वा क न
त.. (९)
हे इं ! आप महान व ब त मतावान ह. आप कसी के भी रखते ह. आप दान न दे ने वाल को बाधा प ंचाइए. (९) वमी शषे सुताना म
वमसुतानाम्. व
हे इं ! आप सब लोग के राजा ह. आप पु
त कृपा म कमी नह
राजा जनानाम्.. (१०) के और अपु
के भी वामी ह. (१०)
सरा खंड आ जागृ व व ऋतं मतीना सोमः पुनानो असद चमूषु. सप त यं मथुनासो नकामा अ वयवो र थरासः सुह ताः.. (१) सोम जा त ह, तु तय को जानने वाले ह. वे छनछन कर ोणकलश म झरते ह. धनवान अ छे हाथ वाले संप पाने के इ छु क पुरो हत इसे इकट् ठा कर के संभाल कर रखते ह. (१) स पुनान उप सूरे दधान ओभे अ ा रोदसी वी ष आवः. या च य यसास ऊती सतो धनं का रणे न य
सत्.. (२)
सोम प व ह, वगलोक और पृ वीलोक को अपनी आभा से पूण करते ह. इन क रसधार ब त य लगने वाली है. वह हमारी र ा और हम वैभव दान करती है. यह सोमरस इं के पास प ंचता है. (२) स व धता वधनः पूयमानः सोमो मीढ् वां अ भ नो यो तषा वत्. य नः पूव पतरः पद ाः व वदो अ भ गा अ म णन्.. (३) सोम बढ़ोतरी पाने वाले, दे वता क बढ़ोतरी करने वाले और अभी साधने वाले ह. छना आ सोमरस सब कार से हमारी र ा करे. आ म त व ाता हमारे पूव पतर अपनी य ीय गाय को सोम से भरे ए पहाड़ के पास ले जाया करते थे. (३) मा चद य श सत सखायो मा रष यत. इ म तोता वृषण सचा सुते मु था च श
सत.. (४)
हे म यजमानो! इं बलवान ह. आप सोमरस प र कृत कर के इं क ही तु त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क जए, कसी सरे दे वता क नह . आप बारबार और दे वता क तु त म समय और मता न मत क जए. आप सामू हक प से इं क उपासना क जए. (४) अव णं वृषभं यथा जुवं गां न चषणीसहम्. व े षण संवननमुभयङ् करं म ह मुभया वनम्.. (५) इं महान ह. वे भौ तक और पारलौ कक दोन वैभव दे ने वाले, यजमान के आरा य दे व, श ु से े ष रखने वाले, श ु के नाशक, शी जाने वाले और बैल क तरह बलपूवक संघष करने वाले ह. आप उ ह इं क तु त क जए. (५) उ ये मधुम मा गरः तोमास ईरते. स ा जतो धनसा अ तोतयो वाजय तो रथा इव.. (६) हे इं ! आप वैभवदाता व नरंतर र क ह. मधुर वाणी वाली तु तयां घोड़े वाले रथ के समान ह, यु म य लगने वाले अ श (उपकरण ) के समान ह. (६) क वा इव भृगवः सूया इव व म तमाशत. इ तोमे भमहय त आयवः यमेधासो अ वरन्.. (७) क व ऋ ष क तरह भृगु ने भी इं का सा ा कार कया. वे सूय क तरह अ खल व म ा त ह. भृगु इं क म हमा वैसे ही बखान करने लगे, जैसे यजमान (इं क ) म हमा का बखान करते ह. (७) पयू षु
ध व वाजसातये प र वृ ा ण स णः.
ष तर या ऋणया न ईरसे.. (८)
हे सोम! आप क कृपा से कजा ख म हो जाता है. आप मन के नाश के लए उसी कार े रत होने क कृपा क जए, जस कार परा मी इं वृ ासुर का नाश करने के लए े रत ए थे. आप हम अ छे पोषक अ दान कर. (८) अजीजनो ह पवमान सूय वधारे श मना पयः. गोजीरया र हमाणः पुर या.. (९) हे सोम! आप प व ह. आप सूय को उ प करने क और सूय जल धारण करने क साम य रखते ह. सूय पृ वीलोक म जीवन को ग तशील बनाने म समथ ह. (९) अनु ह वा सुत सोम मदाम स महे समयरा ये. वाजाँ अ भ पवमान गाहसे.. (१०) हे सोम! हम आप के अनुगामी, आप के पु और आप क कृपा से सुखपूवक नवास करते ह. हम आप क कृपा और मता से ही कोई काय कर पाते ह. (१०) पर
ध वे ाय सोम वा म ाय पू णे भगाय.. (११)
हे सोम! आप वा द ह. आप म , पूषा, भग और ध व (गो वामी इं ) के लए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वा हत होइए. (११) एवामृताय महे याय स शु ो अष द ः पीयूषः.. (१२) हे सोम! आप चमक ले, द , अमृतमय और अमरता के लए पृ वी पर ( वा हत) होने क कृपा क जए. (१२) इ
ते सोम सुत य पेया
रत
वे द ाय व े च दे वाः.. (१३)
हे सोम! आप अपने पु क रस को पीने क कृपा कर. (१३)
ाथना सुन ली जए. य म इं व सभी दे वता आप के
तीसरा खंड सूय येव र मयो ाव य नवो म सरासः सुतः साकमीरते. त तुं ततं प र सगास आशवो ने ा ते पवते धाम कचन.. (१) सोम क धाराएं वत होती ई पा म सूय क करण क तरह फैल रही ह. इं के अलावा वे कसी अ य को नह मलत . (१) उपो म तः पृ यते स यते मधु म ाजनी चोदते अ तरा स न. पवमानः स त नः सु वता मव मधुमान् सः प र वारमष त.. (२) सोम मधुर व बु व क ह. सोमरस इं को े रत करने वाला है. यजमान सोमरस नचोड़ते व उसे जल म मलाते ह, उस को और प र कृत करते ह. (२) उ ा ममे त त य त धेनवो दे व य दे वी प य त न कृतम्. अ य मीदजुनं वारम यम कं न न ं प र सोमो अ त.. (३) नचोड़ा जाता आ सोमरस आवाज करता है व द प को ा त करता है. गाय के ध से उस को शु बनाया जाता है. वह द , काशमान व अ य है. (३) अ नं नरो द ध त भरर योह त युतं जनयत श तम्. रे शं गृहप तमथ ुम्.. (४) हे नरो! अ न पूजनीय ह. वे हमारा भरणपोषण करते ह. वे गृहप त, अ युत और र से ही दशनीय ह. आप सभी अर ण मंथन से अ न को कट करने क कृपा क जए. (४) तम नम ते वसवो यृ व सु तच मवसे कुत त्. द ा यो यो दम आस न यः.. (५) हे अ न! आप वलनशील काशमान ह. आप को हम घर म व लत करते ह. आप सुंदर (दशनीय) व प वाले ह. यजमान अपनी र ा के लए आप को य म त त करते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. (५) े ो अ ने द द ह पुरो नो ऽ ज या सू या य व . वा श त उप य त वाजाः.. (६) हे अ न! आप शा त, श शाली और अज ह. आप भलीभां त व लत होइए. आप वाला से व लत होने क कृपा क जए. हम आप को जौ म त ह व भट करते ह. (६) आयंगौः पृ र मीदसद मातरं पुरः. पतरं च य
वः.. (७)
हे अ न! आप ब रंगी, ग तशील व (सूय प म) पूव दशा म उ दत होते ह. आप पतृलोक (अंत र लोक) म त त होते ह. (७) अ त र त रोचना य ाणादपानती.
य म हषो दवम्.. (८)
हे सूय! आप वगलोक को काश और तेज से भर दे ते ह. आप का तेज आकाश और पृ वी के बीच चमकता रहता है. (८) श ाम व राज त वा यपत ाय धीयते.
त व तोरह ु भः.. (९)
तीस घ ड़य (१२ घंटे) तक अ न (सूय प म) अपनी तेजोमयता से काशमान रहते ह. उस समय वगलोक ारा आप को यजमान क बु पूवक क गई तु तयां ा त होती ह. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बारहवां अ याय पहला खंड उप य तो अ वरं म ं वोचेमा नये. आरे अ मे च शृ वते.. (१) अ न उ म य करने वाले यजमान क उपासना करते ह. (१)
ाथना सुनने के लए तैयार ह. हम उन क
यः नी हतीषु पू ः संज मानासु कृ षु. अर
ाशुषे गयम्.. (२)
अ न हमेशा का शत रहते ह. यजमान जब ेम भाव से मल कर रहते ह तो वे उन के वैभव क र ा करते ह. (२) स नो वेदो अमा यम नी र तु श तमः. उता मा पा व
हसः.. (३)
अ न ब त क याणकारी ह. वे हम पाप (बुरी वृ य ) से र करने व हमारे वैभव क र ा करने म हमारी सहायता करने क कृपा कर. (३) उत ुव तु ज तव उद नवृ हाज न. धन
यो रणेरणे.. (४)
अ न यु म मन को हराते ह व उन का धन जीतते ह. वे कट हो गए ह. मं गायक पुरो हत को उन क तु त करनी चा हए. (४) अ ने युं वा ह ये तवा ासो दे व साधवः. अरं वह याशवः.. (५) हे अ न! आप के घोड़े शी जाने वाले ह. आप के घोड़े भी साम यवान ह. आप उन को रथ म जो तए. (५) अ छा नो या ा वहा भ या (६)
हे अ न! आप सोमपान व दे वता
स वीतये. आ दे वा सोमपीतये.. (६) को हमारी ओर उ मुख करने क कृपा क जए.
उद ने भारत ुमदज ेण द व ुतत्. शोचा व भा जर.. (७) हे अ न! आप जग के पालक व अ ु ण (कभी ीण न हो सकने वाले) ह. आप भी का शत होइए और जग को भी का शत क जए. आप व लत हो कर उ रो र बढ़ोतरी ा त क जए. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सु वानाया धसो मत न व त चः. अप ानमराधस हता मखं न भृगवः.. (८) सोमरस रसीला व सेवन के यो य है. सोम के लए क गई ाथना को लालची कु े न सुन सक. भृगु ऋ ष ने जैसे मख नामक रा स को मारा था, वैसे ही आप उन कु को अपराधी क तरह ही दं डत क जए. (८) आ जा मर के अ त भुजे न पु ओ योः. सर जारो न योषणां वरो न यो नमासदम्.. (९) सोम भाई जैसे य ह, माता पता क भुजा म संर त बेटे जैसे ह व कामी आदमी जैसे ी क ओर और वर क या क ओर आक षत होता है, वैसे ही सोम ोणकलश क ओर जा रहे ह. (९) स वीरो द साधनो व य त त भ रोदसी. ह रः प व े अ त वेधा न यो नमासदम्.. (१०) सोम प व , हरे, पोषक, वीर व उ म रसायन से भरे ह. वे वगलोक और पृ वीलोक को अपने काश से भर दे ते ह. ोणकलश म यजमान के घर जाने क तरह वेश करते ह. (१०)
सरा खंड अ ातृ ो अना वमना प र
जनुषा सनाद स. युधेदा प व म छसे.. (१)
हे इं ! आप का कोई श ु नह ज मा और सम त उपासक को ही अपना बंधु वीकारते ह. आप मन के त बंधु भाव से र हत और श ु के नाश क इ छा रखते ह. आप सब के नयं क ह. (१) न क रेव त स याय व दसे पीय त ते सुरा ः. यदा कृणो ष नदनु समूह या द पतेव यसे.. (२) हे इं ! आप श शाली ह. धन का गव करने वाले के आप सखा नह होते. जो सुरा पी कर आप को पी ड़त करते ह, उन के भी आप सखा नह होते. जो ान, गुण संप के साथ मल कर चलते ह, उन को आप पता के समान ेम करते ह. (२) आ वा सह मा शतं यु ा रथे हर यये. युजो हरय इ के शनो वह तु सोमपीतये.. (३) हे इं ! आप का रथ सुनहरा है. आप के घोड़े संकेत मा से रथ म जुत जाते ह. आप के वे घोड़े आप को सोमरस पलाने के लए रथ म बैठा कर य थान म लाने क कृपा कर. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ वा रथे हर यये हरी मयूरशे या. श तपृ ा वहतां म वो अ धसो वव ण य पीतये.. (४) हे इं ! आप के घोड़े मोर जैसे रंग और सफेद पीठ वाले ह. वे आप को य लाने क कृपा कर, ता क आप मीठा अमृत जैसा सोमरस पी सक. (४)
थान पर
पबा व ३ य गवणः सुत य पूवपा इव. प र कृत य र सन इयमासु त ा मदाय प यते.. (५) हे इं ! आप पूजनीय ह. सोमरस मददायी, आनंदव क व गुणमय है. आप सब से पहले इस साफ छने ए सोमरस को पीने क कृपा कर. (५) आ सोता प र ष चता ं न तोमम तुर
रज तुरम्. वन
मुद ुतम्.. (६)
हे यजमानो! सोमरस घोड़े क तरह वेगवान, जलमय व काश का व तारक है. आप सोमरस छान कर, जल म मला कर तैयार क जए. (६) सह धारं वृषभं पयो हं यं दे वाय ज मने. ऋतेन य ऋतजातो ववावृधे राजा दे व ऋतं बृहत्.. (७) सोमरस द गुण वाला, सुख बढ़ाने वाला, य और जल म मल कर बढ़ोतरी पाता है. हे यजमानो! आप ध मला आ सोमरस दे वता के लए तैयार क जए. आप प र कृत सोमरस दे वता के लए तैयार क जए. (७)
तीसरा खंड अ नवृ ा ण जङ् घनद् वण यु वप यया. स म ः शु
आ तः.. (१)
हे अ न! आप भलीभां त द त, आप काशमान, धनदाता ह. आप ह व से पोषण पाते ह. आप श ु का नाश करने क कृपा क जए. (१) गभ मातुः पतुः पता व द ुतानो अ रे. सीद ृत य यो नमा.. (२) हे अ न! आप पृ वी माता के गभ म वशेष प से का शत ह व अंत र म पता क भू मका म वराजमान ह. अ न य म वेद पर त त ह. (२) जावदा भर जातवेदो वचषणे. अ ने य दय
व.. (३)
हे अ न! जोजो सुख वगलोक म उपल ध ह, आप उन सुख को हम ा त कराने क कृपा क जए. आप सव ा व वल ण ह. आप हम ान व संतान दान क जए. (३) अ य ेषा हेमना पूयमानो दे वो दे वे भः समपृ रसम्. सुतः प व ं पय त रेभ मतेव स पशुम त होता.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यजमान के पशु आ द वाले घर म वेश करने के समान कूट व छान कर तैयार कया आ सोमरस ोणकलश म वेश करता है. काशमान सोमरस वण के समान कां तमान है और काशमान वह दे वता से मलता है. (४) भ ा व ा सम या ३ वसानो महा क व नवचना न श सन्. आ व य व च वोः पूयमानो वच णो जागृ वदववीतौ.. (५) हे सोम! आप जा त, वल ण, महान, क व, अ नवचनीय, शं सत एवं क याणकारी ह. आप वीरता से सम वत (यु ) ह. आप प व बरतन म वेश क जए. (५) समु यो मृ यते सानो अ े यश तरो यशमां ैतो अ मे. अ भ वर ध वा पूयमानो यूयं पात व त भः सदा नः.. (६) हे सोम! त (पृ वी) पर कट ह आप यश वय म यशवान, छका दे ने वाले और प व ह. हे यजमानो! आप सब व त वचन से सदै व उ च वर से ाथनाएं करते ए सोम क तु त क जए. (६) एतो व तवाम शु शु ै थैवावृ वा स
शु े न सा ना. शु ै राशीवा मम ु.. (७)
हे इं ! हम शु सामगायन से आप क तु त व शु मदम त बनाने वाला सोमरस आप को भट करते ह. हम शु वचन वाली तु तय से आप क बढ़ोतरी क कामना करते ह. (७) इ शु ो न आ ग ह शु ः शु ा भ त भः. शु ो र य न धारय शु ो मम सो य.. (८) हे इं ! आप शु ह. हम शु वाणी से आप क तु त करते ह. आप हम भी शु बनाइए. आप मेरे ारा भट कए गए इस शु सोमरस को वीका रए. आप हमारे लए शु धन धारण क रए. (८) इ शु ो ह नो र य शु ो र ना न दाशुषे. शु ो वृ ा ण ज नसे शु ो वाज सषास स.. (९) हे इं ! आप शु ह. आप हम शु बल द जए. आप शु होइए और व न बाधा को र क जए. हमारे मन को मा रए. आप हम शु धन और र न व ऐ य आ द द जए. (९)
चौथा खंड अ ने तोमं मनामहे स म
द व पृशः. दे व य
वण यवः.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! आप वगलोक का पश करते ह. हम आप से वैभव चाहते ह. हम क याणदायी तो से आप क तु त करते ह, आप को मनाते ह. (१) अ नजुषत नो गरो होता यो मानुषे वा. स य
ै ं जनम्.. (२)
हे अ न! आप मनु य को द ता दान क जए. आप य के मुख और मनु य के लए होता (पुरो हत क तरह) ह. आप हमारी वाणी सुनने क कृपा क जए. (२) वम ने स था अ स जु ो होता वरे यः. वया य ं व त वते.. (३) हे अ न! आप वरे य (सव े वरण करने यो य), होता व य म मुख ह. हम आप के ारा य का व तार करते ह. (३) अ भ पृ ं वृषणं वयोधाम ो षणमवावशंत वाणीः. वना वसानो व णो न स धु व र नधा दयते वाया ण.. (४) हे सोम! आप अ दाता, धनदाता और र नदाता ह. आप क ओर हमारी वा णयां दौड़ती ह. आप वयं भी वाणीमय (आवाज करने वाले), वनवासी, जलमय एवं तीन काल म बरसने वाले ह. (४) शूर ामः सववीरः सहावान् जेता पव व स नता धना न. त मायुधः ध वा सम वषाढः सा ा पृतनासु श ून्.. (५) हे सोम! आप सब से शूरवीर, सहनशील, वजेता, धनदाता, प व , शी ग त वाले, ती ण अ श वाले व श ु को हराने वाले ह. आप ोणकलश म बर सए. (५) उ ग ू तरभया न कृ व समीचीने आ पव वा पुर धी. अपः सषास ुषसः व ऽ ३ गाः सं च दो महो अ म यं वाजान्.. (६) हे सोम! आप व तृत पथवान, नभय, वग और पृ वी के योजक (जोड़ने वाले, मलाने वाले) ह. आप उषा और सूय क करण से पोषण पाते ह. आप आवाज करते ए छन कर प व होइए. आप हमारे लए धन द जए. (६) व म यशा अ यृजीषी शवस प तः. वं वृ ा ण ह य ती येक इ पुवनु
षणीधृ तः.. (७)
हे इं ! आप यश वी, धैयवान, मन को मारने वाले व श दे वता के बारे म हम ने पहले नह सुना. (७) तमु वा नूनमसुर चेतस महीव कृ ः शरणा त इ
के वामी ह. आप जैसे
राधो भाग मवेमहे. ते सु ना नो अ वन्.. (८)
हे इं ! बेटा जैसे पता से धनभाग चाहता है, वैसे ही हम पता तु य आप से धन चाहते ह. आप धनवान, ानवान व शरणदाता ह. हम े सुख दान करने क कृपा क जए. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य ज ं वा ववृमहे दे वं दे व ा होतारमम यम्. अ य य
य सु तुम्.. (९)
हे अ न! आप इस य म े काय करने वाले ह. आप भजनीय (भजन करने यो य) ह. दे वता म हम आप का वरण करते ह. आप अमर व दे वता म सवा धक द दे व ह. (९) अपां नपात सुभग सुद द तम नमु े शो चषम्. स नो म य व ण य सो अपामा सु नं य ते द व.. (१०) हे अ न! आप सुभग ( े धन वाले), सुद त (अ छ तरह का शत), े वाला वाले व आकाश के जल को धारते ह. आप हम म और व ण दे वता से ा त होने वाला सुख तथा द लोक का जल ा त कराइए. (१०)
पांचवां खंड यम ने पृ सु म यमवा वाजेषु यं जुनाः. स य ता श ती रषः.. (१) हे अ न! आप यु म जन लोग को लगाते ह, उ ह अ व बल दान करते ह और मृ यु से उन क र ा करते ह. (१) न कर य सह य पयता कय य चत्. वाजो अ त वा यः.. (२) हे अ न! आप ने जस को बल दया है, उस बलवान वीर को कोई भी नह हरा सकता है. (२) स वाजं व चष णरव द्भर तु त ता. व े भर तु स नता.. (३) हे अ न! ा ण ारा आप क शंसा क जाती है. आप संसार के घोड़ के ारा हम यु जताएं. आप क याणकारी ह. (३)
ा ह. आप
साकमु ो मजय त वसारो दश धीर य धीतयो धनु ीः. ह रः पय व जाः सूय य ोणं नन े अ यो न वाजी.. (४) सोमरस द , प व और ह रत आभा वाला है. सूय क करण से शु हो कर वह ोणकलश म जाता है. वह घोड़े क तरह वेगवान हो कर कलश म जाता है. दस अंगु लयां उस को मसलमसल कर शु बनाती ह. (४) सं मातृ भन शशुवावशानो वृषा दध वे पु वारो अ द्भः. मय न योषाम भ न कृतं य सं ग छते कलश उ या भः.. (५) सोमरस सव े , दे वता को य व बलवान है. वह ध व जल म ऐसे एकमेक हो जाता है, जैसे पु ष और ी तथा मां और ब चा एक सरे म एकमेक हो जाते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उत प य ऊधर याया इ धारा भः सचते सुमेधाः. मूधानं गावः पयसा चमू व भ ीण त वसु भन न ै ः.. (६) सोम बु शाली ह. वे गाय को ध से भरपूर करते ह. गाय के ध को सोमरस म मलाया जाता है. लोग जैसे व से अपने को ढकते ह, वैसे ही गाएं सोमपा को ( ध दे ने के लए) ढक लेती ह. (६) पबा सुत य र सनो म वा न इ गोमतः. आ पन बो ध सधमा े वृधे ३ ऽ मां अव तु ते धयः.. (७) हे इं ! आप के पु ने रसीला सोमरस तैयार कया है. आप उस को पी कर म त होइए. आप उस से अपनी और हमारी बढ़ोतरी क जए. आप हम गोम त (सुबु वान) बनाइए. आप अपनी बु य से हमारी बु क र ा क जए. (७) भूयाम ते सुमतौ वा जनो वयं मा न तर भमातये. अ मा च ा भरवताद भ भरा नः सु नेषु यामय.. (८) हे इं ! हम आप क सुम त से म तवान व आप के बल से बलवान ह . आप अपने अभी साधन से हमारी र ा कर. आप हम सुखी व समृ बनाएं. हम आप क कृपा ा त हो. (८) र मै स त धेनवो रे स यामा शरं परमे ोम न. च वाय या भुवना न न णजे चा ण च े य तैरवधत.. (९) हे सोम! परम ोम म सात से तीन गुनी अथात् इ क स गाएं े ध दे ती ह. चार अ य लोक के सुंदर जल से सोम क बढ़ोतरी होती है. सोमरस क याणकारी च से ( म से) वा हत होता है. (९) स भ माणो अमृत य चा ण उभे ावा का ेना व श थे. ते ज ा अपो म हना प र त यद दे व य वसा सदो व ः.. (१०) सोमरस अमृत भ ण करता है. वह वग और पृ वी दोन लोक को अमृत जैसे जल से भर दे ता है. जब यजमान दे व थान को ह वमय बनाते ह तो सोम जल को अपने मह व से तेजोमय बना दे ते ह. (१०) ते अ य स तु केतवो ऽ मृ यवो ऽ दा यासो जनुषी उभे अनु. ये भनृ णा च दे ा च पुनत आ द ाजानं मनना अगृ णत.. (११) सोम मनु य म अमर, अद य व दोपाय और चौपाय के संर क ह. वे मनु य और दे व म राजा ह. हम उन सोम क उपासना करते ह. (११)
छठा खंड ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ भ वायुं वी यषा गृणानो ३ ऽ भ म ाव णां पूयमानः. अभी नरं धीजवन रथे ामभी ं वृषणं व बा म्.. (१) हे सोम! आप तु त के बाद वायु, म और व ण को ा त होने क कृपा क जए. आप नेतृ ववान, बु दाता और रथ पर सवार अ नीकुमार क ओर प ंच. आप व बा इं को ा त होइए. (१) अ भ व ा सुवसना यषा भ धेनूः सु घाः पूयमानः. अ भ च ा भतवे नो हर या य ा थनो दे व सोम.. (२) हे सोम! आप हम उ म व , अ छे ध वाली गाएं, सुनहरा सोना व धन द जए. आप हम रथ के लए उ म घोड़े द जए. (२) अभी नो अष द ा वसू य भः व ा पा थवा पूयमानः. अ भ येन वणम वामा याषयं जमद नव ः.. (३) हे सोम! आप हम द धन पृ वीलोक के सारे वैभव द जए. हम े धन को े काय म लगाने क मता ा त हो. हम जमद न आ द ऋ षय जैसी मता दान करने क कृपा क जए. (३) य जायथा अपू मघव वृ ह याय. त पृ थवीम थय तद त ना उतो दवम्.. (४) हे इं ! श ु नाश हेतु आप पृ वीलोक को ढ़ता मली. (४)
कट ह . आप के कारण वगलोक को
थरता व
त े य ो अजायत तदक उत ह कृ तः. त म भभूर स य जातं य च ज वम्.. (५) हे इं ! आप के कट होने पर सूय था पत ए व उ प ए. उस के बाद ाणी उ प होने शु ए. आप सभी ा णय म ा त हो गए. आप ने े य कम को उपजाया. (५) आमासु प वमैरय आ सूय रोहयो द व. घम न साम तपता सुवृ भजु ं गवणसे बृहत्.. (६) हे इं ! आप ने वगलोक म सूय को था पत कया. यजमान जैसे अ न कट करते ह, वैसे ही हे यजमानो! आप बृह साम गा कर इं म स ता कट कराइए. इं ने शशु क उ प से पहले ही पु कारी त व ( ध) उ प कर दए. (६) म यपा य ते महः पा येव ह रवो म सरो मदः. वृषा ते वृ ण इ वाजी सह सातमः.. (७) हे इं ! आप हरे घोड़ वाले, वशाल पा क भां त, श ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मान, हषदायी व बलदायी ह.
सोमरस अन गनत दानदाता है. आप उसे पी जए और अपना आनंद बढ़ाइए. (७) आ न ते ग तु म सरो वृषा मदो वरे यः सहावाँ इ सान सः पृतनाषाडम यः.. (८) हे इं ! सोमरस बलदायी, हषदायी, उ म, अमर, श ु वजेता और मददायी ह. आप इस सोमरस को पीने क कृपा क जए. (८) व ह शूरः स नता चोदयो मनुषो रथम्. सहावा द युम तमोषः पा ं न शो चषा.. (९) क
हे इं ! आप शूरवीर व दानशील ह और मनु य को स माग पर े रत करते ह. अ न वाला जैसे तपाती है, वैसे ही आप श ु को तपाते ह. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेरहवां अ याय पहला खंड पव व वृ मा सुनो ऽ पामू म दव प र. अय मा बृहती रषः.. (१) हे सोम! आप प व व द , जल को लहराएं. आप अ य वा य दान करने क कृपा क जए. (१) तया पव व धारया यया गाव इहागमन्. ज यास उप नो गृहम्.. (२) हे सोम! आप उन द जलधारा से प व होइए, जन से धा आ सक, धनधा य हमारे घर प ंच सक. (२)
गाएं हमारे यहां
घृतं पव व धारया य ेषु दे ववीतमः. अ म यं वृ मा पव.. (३) हे सोम! आप दे वता ारा चाहे गए घृत क प व धाराएं चुआइए. आप हमारे लए मूसलाधार बरसात क जए. (३) स न ऊज
३
यं प व ं धाव धारया. दे वासः शृणवन् ह कम्.. (४)
हे सोम! आप हम ऊजा दान क जए. आप अ य व प व धारावान ह. आप धारा से दौड़ कर कलश म वेश क जए. आप क आवाज सुन कर दे वतागण आनं दत ह . (४) पवमानो अ स यद
ा
यपजङ् घनत्.
नव ोचय ुचः.. (५)
प व , श ुनाशक, काशमान और छना आ सोमरस ोणकलश म झरता है. (५) य मै पपीषते व ा न व षे भर. अर माय ज मये ऽ प ाद वने नरः.. (६) हे यजमानो! इं य के संचालक, व के ाता, अ णी, ग तशील व सोमरस पान के इ छु क ह. आप इं के लए सोमरस को ोणकलश म भर द जए. (६) एमेनं येतन सोमे भः सोमपातमम्. अम े भऋजी षण म सुते भ र
भः.. (७)
हे यजमानो! सोमरस रसीला है. आप उसे प र कृत क जए. इं ब त अ धक सोमरस पीने वाले ह. वे ब च से सोमरस पीते ह. आप इं के पास जा कर ाथना क जए. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यद सुते भ र
भः सोमे भः
तभूषथ. वेदा व
य मे धरो धृष त मदे षते.. (८)
हे यजमानो! आप चमक ला, रसीला सोमरस ले कर इं के पास जाइए. वे शरणागत क मनोकामना जान लेते ह. वे उन क इ छा पूरी करते ह. वे व न, लेश र करते ह. (८) अ माअ मा इद धसो ऽ वय भरा सुतम्. कु व सम य जे य य शधतो ऽ भश तेरव वरत्.. (९) हे पुरो हतो! सोमरस इं के लए ाणभूत है. आप उ ह खूब सोमरस भट क जए. वे जीतने यो य श ु को न करगे. वे आप क र ा करगे. (९)
सरा खंड ब वे नु वतवसे ऽ णाय द व पृशे. सोमाय गाथमचत.. (१) हे यजमानो! सोम ललाई वाले भूरे और श आप उन द सोम क उपासना क जए. (१) ह त युते भर
भःसुत
मान ह. वे वगलोक को पश करते ह.
सोमं पुनीतन. मधावा धावता मधु.. (२)
हे यजमानो! प थर से कूट कर सोमरस नकाला गया है. व छ कर के छाना गया है. आप उस सोमरस म गाय का ध मलाइए. (२) नमसे प सीदत द नेद भ ीणीतन. इ
म े दधातन.. (३)
हे यजमान! आप सोमरस म दही मलाइए. इस सोमरस को नम कारपूवक प व बनाइए. उस के बाद आप यह सोमरस इं को पीने के लए भट क जए. (३) अ म हा वचष णः पव व सोम शं गवे. दे वे यो अनुकामकृत्.. (४) हे सोम! आप प व ह. आप सब कुछ दे खने वाले ह. आप दे वता के लए उन क इ छानुसार काम करने वाले ह. आप श ुहंता ह. आप हमारी गाय के लए सुखशां त दान क जए. (४) इ ाय सोम पातवे मदाय प र ष यसे. म
मनस प तः.. (५)
इं मन के मा लक ह. वे मन म रमते ह. ऐसे इं के पीने के लए, मद दे ने के लए सोमरस प र कृत होता है. (५) पवमान सुवीय
रय
सोम ररी ह णः. इ द व े ण नो युजा.. (६)
हे सोम! आप प व व अ छे वीयवान ह. आप हम इं से जो ड़ए. आप हम उन से चाहा गया धन ा त कराने क कृपा क जए. (६) उद्घेद भ ुतामघं वृषभं नयापसम्. अ तारमे ष सूय.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप सूय के समान काशमान ह. आप धनवान, श ह. आप दानशील मनु य के पास प ंचते ह. (७)
मान, यश वी व हतैषी
नव यो नव त पुरो बभेद बा ोजसा. अ ह च वृ हावधीत्.. (८) हे इं ! आप अपनी भुजा के ओज से मन के न यानवे ठकाने न करने वाले ह. आप वृ ासुर के नाशक ह. आप हम मनपसंद वैभव दान करने क कृपा क जए. (८) स न इ ः शवः सखा ावद्गोम वमत्. उ धारेव दोहते.. (९) हे इं ! आप हमारा क याण क जए. गाएं हमारी म ह. वे हमारे लए जैसे अग णत धारा से ध बरसाती ह, वैसे ही आप भी हमारे लए धन बरसाइए. (९)
तीसरा खंड व ाड् बृह पबतु सो यं म वायुदध पताव व तम्. वातजूतो यो अ भर त मना जाः पप त ब धा व राज त.. (१) सूय काशमान ह. वे जा का पालन करते ह, यजमान को नरोग बनाते ह, लंबी आयु दे ते ह, हवा बहाते ह व सब के र क ह. इं कई प म सुशो भत हो रहे ह. वे भरपूर सोमपान कर. (१) व ाड् बृह सुभृतं वाजसातमं धम दवो ध णे स यम पतम्. अ म हा वृ हा द युह तमं यो तज े असुरहा सप नहा.. (२) सूय ब त काशमान व अ और बलदाता ह. वे धम से वगलोक को धारण करते ह, अ म के नाशक ह, वृ हंता ह. वे श ु , रा स व के नाशक ह. वे सव अपना काश फैलाते ह. (२) इद व
े ं यो तषां यो त मं व ज न ज यते बृहत्. ाड् ाजो म ह सूय श उ प थे सह ओजो अ युतम्.. (३)
सूय यो तमान और मतावान ह. वे पूरी पृ वी को का शत करते ह. वे अ युत ह. वे बल के साथ रहते ह. वे धन जीतने वाले ह. उन क यो त वशाल, यो तय म सव े एवं व को जीतने वाली है. (३) इ तुं न आ भर पता पु े यो यथा. श ा णो अ म पु त याम न जीवा यो तरशीम ह.. (४) हे इं ! पता जैसे पु का लालनपालन करता है, वैसे ही आप हमारा पोषण क जए. आप हम य के े फल दान क जए. हम जीव को आप द यो त द जए. हम और अनेक लोग सहायता के लए आप को पुकारते रहते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मा नो अ ाता वृजना रा यो ३ मा शवासो ऽ व मुः. वया वयं वतः श तीरपो ऽ त शूर तराम स.. (५) हे इं ! जन का आनाजाना अ ात हो, जो पापाचारी ह , जो बु ह वे हमारा कुछ न बगाड़ सक. आप हमारी र ा क जए. अपने संर ण म हम अनेक व न पी वाह से पार प ंचाइए. (५) अ ा ा ः इ ा व परे च नः. व ा च नो ज रतॄ स पते अहा दवा न ं च र षः.. (६) हम आज भी व कल भी इं संर त कर. वे दनरात हमारी र ा कर. वे व प त और स जन के पालनहार ह. (६) भ शूरो मघवा तुवीमघः स म ो वीयाय कम्. उभा ते बा वृषणा शत तो न या व ं म म तुः.. (७) हे इं ! आप मतावान ह. आप सैकड़ काम करते ह. आप क भुजाएं व करती ह. आप श ुनाशक, सव ापक व ऐ यशाली ह. (७)
धारण
चौथा खंड जनीय तो व वः पु ीय तः सुदानवः. सर व त
हवामहे.. (१)
हे सर वती! आप े काय म अ ग या ह. हम अ छ संतान व दान के आकां ी ह. हम आप को आमं त करते ह. (१) उत नः
या
यासु स त वसा सुजु ा. सर वती तो या भूत्.. (२)
हे सर वती! आप हम आप क तु त करते ह. (२)
य ह. आप क सात बहन ह. आप हम उन से जो ड़ए. हम
त स वतुवरे यं भग दे व य धीम ह. धयो यो नः चोदयात्.. (३) हम उन स वता दे वता का वरे य तेज धारण करना चाहते ह, जो हमारी बु पथ क ओर उ मुख एवं े रत करते ह. (३) सोमानां वरणं कृणु ह
को
े
ण पते. क ीव तं य औ शजः.. (४)
हे ण प त! आप ने जैसे उ शज से उ प पु क ीवान को ानी, यश वी बनाया, उसी तरह हम सोमया गय को भी बनाने क कृपा क जए. (४) अ न आयू हे अ न! आप
ष पवस आ सुवोज मषं च नः. आरे बाध व
छु नाम्.. (५)
को हम से र भगाइए. आप हम द घायु बनाएं. हम बल व
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पु व क अ द जए. (५) ता नः श ं पा थव य महो रायो द
य. म ह वां
ं दे वेषु.. (६)
हे व ण! आप हम अपनी श द जए. आप हम धरती और आकाश म फैला आ सम त धन और ा तेज दान करने क कृपा क जए. (६) ऋतमृतेन सप ते षरं द माशाते. अ हा दे वौ वधते.. (७) व ण ोह न करने वाल क बढ़ोतरी करते ह. वे स य से स य के पालक ह. वे अभी बलदायी ह. (७) वृ
ावा री यापेष पती दानुम याः. बृह तं गतमाशाते.. (८)
हे म ! आप उ म थान पर वरा जत ह. हम वषा के लए उन क उपासना करते ह. वे पृ वी पर सब कुछ नयम से उपल ध कराते ह, दानशील व अ के वामी ह. (८) यु
त
नम षं चर तं प र त थुषः. रोच ते रोचना द व.. (९)
सूय ग तशील दखाई दे ते ह, पर थर ह. वे अ न व प ह. हम उन क उपासना करते ह. उन क करण सम त वगलोक को का शत कर सुशो भत होती ह. (९) यु
य य का या हरी वप सा रथे. शोणा धृ णू नृवाहसा.. (१०)
हे इं ! आप मनु य के र और बु को स माग पर ले जाने के लए अपने मनचाहे लाल और ौढ़ घोड़ को रथ म जोतने क कृपा क जए. (१०) केतुं कृ व केतवे पेशो मया अपेशसे. समुष
रजायथाः.. (११)
हे सूय! आप असुंदर को सुंदर बना दे ने क साम य रखते ह. आप उषाकाल म उ दत होते ह. (११)
पांचवां खंड अय व
सोम इ तु य सु वे तु यं पवते वम य पा ह. ह यं चकृषे वं ववृष इ ं मदाय यु याय सोमम्.. (१)
हे इं ! आप के लए सोमरस तैयार कया जाता है. आप इस को पी जए. आप ही उस को बरसाते ह, उपजाते ह. आप आनंद हेतु इसे हण क जए. आप हम इस से मलाइए. हम आप क शरण म ह. (१) सई रथो न भु रषाडयो ज महः पु ण सातये वसू न. आद व ा न या ण जाता वषाता वन ऊ वा नव त.. (२) हे इं ! आप यु म हमारे श ु को न कर दे ते ह. रथ म जैसे यादा वजन हो ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाता है, वैसे ही आप हम धन द जए. आप हम धन दे ते ह. (२) शु मी शध न मा तं पव वान भश ता द ा यथा वट् . आपो न म ू सुम तभवा नः सह ा साः पृतनाषा न य ः.. (३) हे सोम! आप प व ह. आप हम म द्गण जैसा बल ा त कराइए. आप य वत प व और अनेक कार से सुशो भत होते ह. आप श ु को जीतने वाले और जल जैसे प व ह. हम वैसी ही प व बु द जए. जैसे प व जा ई या, े ष से र रहती है, वैसे ही हम भी वृ य से र रह. (३) वम ने य ाना
होता व ेष
हे अ न! आप को दे वता होता (पुरो हत) ह. (४)
हतः. दे वे भमानुषे जने.. (४)
ने मनु य के क याण हेतु नयु
स नो म ा भर वरे ज ा भयजा महः. आ दे वा व
य
कया है. आप य
के
च.. (५)
हे अ न! आप हमारे य म अपनी ज ा (लपट ) से दे वता का यजन क जए. आप दे वता को आमं त क जए और दे वता तक तृ तकारी ह व प ंचाने क कृपा क जए. (५) वे था ह वेधो अ वनः पथ दे वा हे अ न! आप य सव ाता ह. (६)
सा. अ ने य ेषु सु तो.. (६)
म पथ दशक ह. आप र या पास सभी पथ को जानते ह. आप
होता दे वो अम यः पुर तादे त मायया. वदथा न चोदयन्.. (७) (७)
हे अ न! आप अमर व होता ह. आप माया से स मुख कट होते ह. आप ेरक ह. वाजी वाजेषु धीयते ऽ वरेषु
णीयते. व ो य
य साधनः.. (८)
अ न बलवान ह. यु म श ुनाश हेतु उ ह था पत कया जाता है. ा ण य के मुख साधन ह. उन से य फलीभूत होते ह. (८) धया च े वरे यो भूतानां गभमा दधे. द
य पतरं तना.. (९)
अ न वरे य (सव े ), सव ापक व व पालक ह. य के लए अ न को द पु ी (वेद ) ने धारण कया. (९)
छठा खंड आ सुते स चत
य
रोद योर भ यम्. रसा दधीत वृषभम्.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
क
हे दे वताओ! सोमरस चमक ला और धया है. आप आकाश और पृ वी पर उस सोमरस को मलाइए. वह धयापन सोमरस को अपने म मला लेता है. (१) ते जानत वमो यं ३ सं व सासो न मातृ भः मथो नस त जा म भः.. (२) भीड़ म भी जैसे बछड़े अपनी मां गाय के पास चले जाते ह, वैसे ही सोम आ यदाता के पास चले जाते ह. गाएं जैसे अपने बाड़ को जानती ह, वैसे ही ये अपने जाने यो य थान को जानते ह. (२) उप
वेषु ब सतः कृ वते ध णं द व. इ े अ ना नमः वः.. (३)
इं और अ न अपनी वाला से ह व को वगलोक तक प ंचा दे ते ह. उस के बाद सभी इं और अ न को पोषक बनाते ह. (३) त ददास भुवनेषु ये ं यतो ज उ वेषनृ णः. स ो ज ानो न रणा त श ूननु यं व े मद यूमाः.. (४) सभी भुवन म वे सब से बड़े कहलाए, सव उन क द त ा त ई. उन के बल से सूय कट ए, जन के कट होने से श ु समा त हो जाते ह. सभी ाणी उ ह दे खते ही खुश हो जाते ह. (४) वावृधानः शवसा भूय जाः श ुदासाय भयसं दधा त. अ न च न च स न सं ते नव त भृता मदे षु.. (५) हे इं ! आप ने अपनी मता से बढ़ोतरी पाई. आप श मान, के मन ह और उ ह य दे ते ह. आप चराचर के संचालक ह. हम उ ह (इं ) एक साथ नमन एवं उन क उपासना करते ह. हम उ ह स ता दे ते ह और वयं भी स होते ह. (५) वे तुम प वृ त व े यदे ते भव यूमाः. वादोः वाद यः वा ना सृजा समदः सु मधु मधुना भ योधीः.. (६) यजमान इं के लए य करते ह. हम जब दो और दो से तीन होते ह तो हमारी य संतान को आप य ऐ य दान करने व उन के बाद आने वाली पीढ़ को भी मधुरता से यु करने क कृपा क जए. (६) क केषु म हषो यवा शरं तु वशु म तृ पत् सोमम पब णुना सुतं यथावशम्. स ममाद म ह कम कतवे महामु सैन स े वो दे व सय इ ः स य म म्.. (७) सोम सव ापक काशमान इं को आनंद दे ते ह, जस से वे और भी अ धक महान काम कर सक. वे स यवान और दे व व प ह. तीन ुक (पा ) म नकाले गए जौ के साथ मले ए सोमरस को इं व णु के साथ पीते ह. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
साकं जातः तुना साकमोजसा वव थ साकं वृ ो वीयः सास हमृधो वचष णः. दाता राध तुवते का यं वसु चेतन सैन स े वो दे व स य इ ः स य म म्.. (८) हे इं ! आप अपने तेज से संसार को उठा सकते ह. आप य के साथ कट ए ह. आप वृ को वीयवान बना सकते ह. आप वशेष ानी, उपासक के लए धनदाता और चेतन ह. स य व प का शत सोमरस आप तक प ंचता है. (८) अध वषीमाँ अ योजसा कृ व युधाभवदा रोदसी अपृणद य म मना वावृधे. अध ा यं जठरे ेम र यत चेतय सैन स े वो दे व स य इ ः स य म म्.. (९) हे इं ! अपनी श से आप ने कृ व रा स को हराया. आप ने वगलोक और पृ वीलोक के तेज म बढ़ोतरी क . आप ने सोमरस का एक भाग पेट म प ंचाया, सरा शेष भाग दे वता के लए बचाया. आप अ य दे वता को सोमपान हेतु ेरणा द जए. स य व प का शत सोमरस इं तक प ंचता है. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
चौदहवां अ याय पहला खंड अभ
गोप त गरे मच यथा वदे . सूनु
स य य स प तम्.. (१)
हे यजमानो! इं स यप त, स य के वामी, गोप त व पवतप त ह. वे यथाश आराधक का संर ण करते ह. आप इं क अचना क जए. (१) आ हरयः ससृ
रे ऽ षीर ध ब ह ष. य ा भ संनवामहे.. (२)
इं के घोड़े उन को घास के उन आसन पर था पत कर के उन क उपासना करते ह. (२) इ ाय गाव आ शरं
ेव
त ा पत कर, जन पर हम य म उ ह
णे मधु. य सीमुप रे वदत्.. (३)
पास ही य म जब इं मधुर सोमरस का पान करते ह, उस समय व पा ण इं के लए गाएं मीठा ध दे ती ह. (३) आ नो व ासु ह म सम सु भूषत. उप ा ण सवना न वृ हन् परम या ऋचीषम.. (४) हे इं ! हमारे य आप क शोभा बढ़ाते ह. आप के लए गाई गई हमारी ाथनाएं आप क शोभा बढ़ाती ह. हम यु म अपनी सहायता के लए आप को याद करते ह. आप वृ नाशक ह. आप हम मनपसंद धन दान करने क कृपा क जए. (४) वं दाता थमो राधसाम य स स य ईशानकृत्. तु व ु न य यु या वृणीमहे पु य शवसो महः.. (५) हे इं ! आप पहले दाता ह. आप धनदाता और स य के वामी ह. हम आप क काशशीलता से जुड़ने एवं आप से बलवान और उ म संतान क कामना करते ह. (५) नं पीयूषं पू य इ म भ जायमान
यं महो गाहा व आ नरधु त. सम वरन्.. (६)
अमृत तु य सोमरस अपूव और सव े है. यह वगलोक से कट आ. इं के सामने यजमान मं गागा कर सोम क तु त करते ह. (६) आद के च प यमानास आ यं वसु चो द ा अ यनूषत. दवो न वार स वता ूणुते.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त प ात वसु च दे वगण सोम का दशन करते ह. अंधेरे को र करने वाले सूय के उगने से पहले पूजनीय सोम क तु त क जाती है. यह तु त ऐसे क जाती है, जैसे आदरणीय भाई क क जाती है. (७) अध य दमे पवमान रोदसी इमा च व ा भुवना भ म मना. यूथे न न ा वृषभो व राज स.. (८) हे सोम! आप प र कृत व प व ह. गाय के झुंड म बैल के समान आप वगलोक और पृ वीलोक के बीच सुशो भत होते ह. (८) इममू षु वम माक
स न गाय ं न ा
सम्. अ ने दे वेषु
वोचः.. (९)
हे अ न! हमारे साम मं गायक (पुरो हत) भलीभां त और भाव भरे साम मं गाते ह. आप हमारी उन ाथना को नधा रत दे वता के पास प ंचाने क कृपा क जए. (९) वभ ा स च भानो स धो मा उपाक आ. स ो दाशुषे र स.. (१०) हे अ न! आप समु क लहर क तरह ह व दे ने वाले को उ म फल दे ते ह. आप धनदाता और लपट से सुशो भत ह. (१०) आ नो भज परमे वा वाजेषु म यमेषु. श ा व वो अ तम य.. (११) आप हम ये , म यम, क न आ द सभी कार क धनसंप हम आप को आमं त करते ए भजते ह. (११) अह म
पतु प र मेधामृत य ज ह. अह
हे इं ! हम जब पता जैसे आप क सूय जैसे हो गए ह . (१२) अहं
े बु
व श ा धन द जए.
सूय इवाज न.. (१२) पाते ह, तो हम ऐसा लगता है मानो हम
नेन ज मना गरः शु भा म क ववत्. येने ः शु म म धे.. (१३)
हम क व ऋ ष क भां त य नपूवक रचे गए पुरातन वेदवाणी से मं पाठ कर के इं क छ व बढ़ाते ह. उ ह के भाव से वे हम पर कृपालु होते ह. (१३) ये वा म
न तु ु वुऋषयो ये च तु ु वुः. ममे ध व सु ु तः.. (१४)
हे इं ! आप को स करने वाले और संतु ऋ षय म हमारी ाथना होती है. उन के भाव से आप संतु होइए, बढ़ोतरी पाइए. (१४)
सरा खंड अ ने व े भर न भज ष सह कृत. ये दे व ा य आयुषु ते भन महया गरः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क
शंसा
हे अ न! आप सभी अ नय के साथ हमारी ाथना को सु नए व ाथना क म हमा बढ़ाइए. जो अ न व प ह, जो मनु य म ह उन सब से हमारा अनुरोध है. (१) स व े भर न भर नः स य य वा जनः. तनये तोके अ मदा स यङ् वाजैः परीवृतः.. (२) य क अ न श शाली है. उस म सभी ह व भट करते ह. वे अ न अ य सभी अ नय स हत श से घर कर हमारे क याण हेतु पधारने व हमारे स जन (पु ) का भी क याण करने क कृपा कर. (२) वं नो अ ने अ न भ य ं च वधय. वं नो दे वतातये रायो दानाय चोदय.. (३) हे अ न! आप अ य दे वता को हम धनदान करने के लए े रत करने क कृपा क जए. आप अ य अ नय स हत हमारे आ म ान व य क भी बढ़ोतरी करने क कृपा क जए. (३) वे सोम थमा वृ ब हषो महे वाजाय वसे धयं दधुः. स वं नो वीर वीयाय चोदय.. (४) हे सोम! मुख यजमान अ बल के बारे म आप के लए े बु धारण करते ह. आप हम वीर को (और अ धक) वीरता के लए ो सा हत करने क कृपा क जए. (४) अ य भ ह वसा तत दथो सं न कं च जनपानम तम्. शया भन भरमाणो गभ योः.. (५) हे सोम! आप का रस छनछन कर छलनी से टपकता आ ोणकलश को उसी तरह लबालब भर दे ता है, पीने वाले जल को चु लू से डालडाल कर जैसे पानी के हौज को पूरा भर दे ते ह. (५) अजीजनो अमृत म याय कमृत य धम मृत य चा णः. सदासरो वाजम छा स न यदत्.. (६) हे सोम! आप अमृतमय ह. आप मनु य के लए स य और मंगलकारी त व धारण करते ह. आप ने सूय को कट कया, दे वगण क सेवा क और सदै व यजमान को अ , धन दे ने हेतु लाला यत रहते ह. (६) ए
म ाय स चत पबा त सो यं मधु.
राधा
स चोदयते म ह वना.. (७)
हे यजमानो! आप इं को सोमरस से स चए. वे मधुर सोम रस को पीते ह. वे अपने मह व से धन को आप लोग (के पास आने) के लए े रत करते ह. (७) उपो हरीणां प त राधः पृ च तम वम्. नून
ु ध तुवतो अ
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य.. (८)
हे इं ! आप अ प त व धनप त ह. हम आप के लए ाथनाएं बोलते ह. आप तु त करते ए अ ऋ ष क तु त अव य ही सुनने क कृपा क जए. (८) न
ं ३ ग पुरा च न ज े वीरतर वत्. न क राया नैवथा न भ दना.. (९)
हे इं ! आप से वीरतर कोई दे व व धनदाता पहले नह कोई आप जैसा उपासना यो य दे व आ है. (९)
आ है. आप से पहले न ही
नदं व ओदतीनां नदं योयुवतीनाम्. प त वो अ यानां धेनूना मषु य स.. (१०) हे यजमानो! इं युवती उषा को उपजाने वाले ह, चं करण को उ प करने वाले और गोपालक ह. वे गाय के ध को पोषक अ के प म ा त करने क इ छा रखते ह. इं सब कुछ करने म समथ ह. (१०)
तीसरा खंड दे वो वो वणोदाः. पूणा वव ् वा सचम्. उ ा स च वमुप वा पृण वमा द ो दे व ओहते.. (१) हे यजमानो! धनदाता अ न को घी और सोमरस से स चए. उ ह पूरी ह व द जए. वे आप का पालनपोषण करने वाले ह. (१) त होतारम वर य चेतसं व दे वा अकृ वत. दधा त र नं वधते सुवीयम नजनाय दाशुषे.. (२) दे वता ने े बु मान अ न को अपना होता बनाया है. वे ह व से हवन करते ह, यजमान के लए र न धारते ह, अ छ संतान दे ते ह, दानदाता यजमान को श दान करते ह. (२) अद श गातु व मो य म ता यादधुः. उपो षु जातमाय य वधनम नं न तु नो गरः.. (३) अ न म यजमान त धारण करते ह. अ न े पथ दशक ह. वे े पथ दखाते ह. अ न आय क बढ़ोतरी चाहते ह. अ न को हमारी वाणी ा त हो. (३) य मा े ज त कृ य कृ या न कृ वतः. सह सां मेधसाता वव मना नं धी भनम यत.. (४) हे यजमानो! आप बु पूवक अ न को नमन क जए. आप हजार बु पूवक काय से उन क उपासना क जए, जस से अ न कत परायण यजमान के लए श ुप को ब त पी ड़त कर सक. (४) दै वोदासो अ नदव इ ो न म मना. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अनु मातरं पृ थव व वावृते त थौ नाक य शम ण.. (५) अ न उ कृ वगलोक म नवास करते ह. वे इं जैसी साम य वाले ह. वे पृ वी माता पर े य काय पूण कराते ह. वे व गक सुख दान करते ह. (५) अ न आयू
ष पवस आ सुवोज मषं च नः. आरे बाध व
हे अ न! आप हम द घायु बनाइए. आप हम बा धत क जए. (६)
छु नाम्.. (६)
े अ , बल द जए. आप
को
अ नऋ ष पवमानः पा चज यः पुरो हतः. तमीमहे महागयम्.. (७) अ न ऋ ष ह. वे प व , पुरो हत, पंच व सव
ा ह. हम उन के गुण गाते ह. (७)
अ ने पव व वपा अ मे वचः सुवीयम्. दध य म य पोषम्.. (८) हे अ न! आप पोषक अ व धन धारण क रए. आप हम श और प व बनाइए. (८) अ ने पावक रो चषा म या दे व ज या. आ दे वा व
य
व
े संतान द जए
च.. (९)
हे अ न! आप प व एवं दे वता को खुश रखने वाले ह. आप अपनी ज ा (लपट ) से दे वता को बुलाइए और दे वता के लए य कराइए. (९) तं वा घृत नवीमहे च भानो व शम्. दे वाँ आ वीतये वह.. (१०) हे अ न! आप सव ा ह. हम आप को घी से स चते ह. आप अद्भुत ह. हम आप से दे वता का आ ान करने के लए नवेदन करते ह. (१०) वी तहो ं वा कवे ुम त
स मधीम ह. अ ने बृह तम वरे.. (११)
हे अ न! आप बु मान, य ेमी ह और स मधा से व लत करते ह. (११)
ु तमान ह. हम वशाल य
म आप को
चौथा खंड अवा नो अ न ऊ त भगाय य भम ण. व ासु धीषु व
.. (१)
हे अ न! आप क सभी य म बु पूवक वंदना क जाती है. आप गाय ी छं द म तु त गाने पर स होते ह. आप अपने र ा साधन से हमारी र ा करने क कृपा क जए. (१) आ नो अ ने र य भर स ासाहं वरे यम्. व ासु पृ सु
रम्.. (२)
हे अ न! आप भरपूर धन द जए. आप श ुनाशक
े साम य द जए. आप सभी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को र क जए. आप सभी वैभव हम दान क जए. (२) आ नो अ ने सुचेतुना र य व ायुपोषसम्. माड कं धे ह जीवसे.. (३) हे अ न! आप सुचेतना संप , संपूण पोषण (आयु पयत) दाता व सुखदाता ह. आप हम पूरे जीवन के लए धन द जए. (३) अ न
ह व तु नो धयः स तमाशु मवा जषु. तेन जे म धनंधनम्.. (४)
हे अ न! हमारी बु यां आप को े रत कर. यु म घोड़े को े रत करने क भां त हम आप को े रत करते ह, जस से हम जीवन सं ाम म सारे वैभव जीत सक. (४) यया गा आकरामहै सेनया ने तवो या. तां नो ह व मघ ये.. (५) हे अ न! संर ण श से हम र त क जए. द करते ह. आप हम उ म को ट का धन दान क जए. (५) आ ने यूर
ान हेतु हम आप को आमं त
र य भर पृथुं गोम तम नम्. अ ङ् ध खं वतया प वम्.. (६)
हे अ न! आप हम गोवान व अ वान बनाइए. आप हम चुर धन द जए. आकाश आप के तेज से प व ह. आप गुण को र भगाइए. (६) अ ने न
मजरमा सूय
रोहयो द व. दध
यो तजने यः.. (७)
हे अ न! आप लोग के लए यो त धारण क जए. आप वगलोक म सूय को था पत क जए. जजर न होने वाले सूय सव काशदाता ह. (७) अ ने केतु वशाम स े ः े उप थसत्. बोधा तो े वया दधत्.. (८) हे अ न! आप य, सव म व ानदाता ह. आप हमारे तो जगाइए. आप हमारे लए आयु धारण क रए. (८) अ नमूधा दवः ककु प तः पृ थ ा अयम्. अपा
रेता
स ज व त.. (९)
हे अ न! आप मूध य, वगलोकवासी व पृ वी के पालनहार ह. आप जल को अपने म समा हत कए रहते ह. (९) ई शषे वाय य ह दा या ने वः प तः. तोता यां तव शम ण.. (१०) हे अ न! आप वरणीय ह. आप वग के ई र ह. आप दाता व अ ध ाता ह. हम आप के सुख भोग, सदै व आप के पूजक बने रह. (१०) उद ने शुचय तव शु ा ाज त ईरते. तव योती
यचयः.. (११)
हे अ न! हम यो तपूवक आप क अचना करते ह. हम आप को प व , चमकदार का शत यो त से भजते ह. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पं हवां अ याय पहला खंड क ते जा मजनानाम ने को दा
वरः. को ह क म स
तः.. (१)
हे अ न! मनु य म कौन आप का सगा, पथ दशक, य क ा व आप के व प का ाता है? आप का आ य कहां है? (१) वं जा मजनानाम ने म ो अ स
यः. सखा स ख य ई
हे अ न! मनु य म कौन आप का म है, सवा धक य है? (२)
ः.. (२)
य है? सखा स खय म कौन आप को
यजा नो म ाव णा यजा दे वाँ ऋतं बृहत्. अ ने य
वं दमम्.. (३)
हे अ न! आप हमारे लए म और व ण क पूजा करने क कृपा क जए. आप ब त से दे वता क पूजा करने क कृपा क जए. आप य क पूजा क जए. (३) ईडे यो नम य तर तमा
स दशतः. सम न र यते वृषा.. (४)
हे अ न! आप पूजनीय, नमन के यो य, तमहारी व दशनीय ह. आप को स मधा भलीभां त व लत कया जाता है. (४) वृषो अ नः स म यते ऽ ो न दे ववाहनः. त
से
ह व म त ईडते.. (५)
हे अ न! आप श शाली ह. घोड़े जैसे वाहन को ले जाते ह, वैसे ही आप दे वता वाहन को ले जाते ह. हे ह वमान! आप हमारी ाथनाएं वीका रए. (५)
के
वृषणं वा वयं वृष वृषणः स मधीम ह. अ ने द तं बृहत्.. (६) हे अ न! आप श स मधा से आप को
मान ह. हम श मान आप को ा त करने क इ छा रखते ह. हम व लत करते ह. आप द तमान व वशाल ह. (६)
उ े बृह तो अचयः स मधान य द दवः. अ ने शु ास ईरते.. (७) हे अ न! हम स मधा से आप को वाला से बढ़ोतरी ा त करते ह. (७)
व लत करते ह. हमारी अ धक अचना से आप
उप वा जु ो ३ मम घृताचीय तु हयत. अ ने ह ा जुष व नः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! हमारी घी से भरी ई ह व आप का मन हरे. वह आप तक प ंचे. हे अ न! आप हमारी उपासना को वीकार करने क कृपा क जए. (८) म
होतारमृ वजं च भानुं वभावसुम्. अ नमीळे स उ वत्.. (९)
हे अ न! आप दे वता के होता, आनंददाता, अद्भुत, वैभववान व काशमान ह. आप हमारी तु तयां सुनने क कृपा क जए. (९) पा ह नो अ न एकया पा ३ त तीयया. पा ह गी भ तसृ भ जा पते पा ह चतसृ भवसो.. (१०) हे अ न! आप एक तु त सुन कर हमारी र ा क जए. आप सरी तु त सुन कर हमारी र ा क जए. आप तीसरी तु त सुन कर हमारी र ा क जए. आप चौथी तु त सुन कर हमारी र ा क जए. (१०) पा ह व मा सो अरा णः म वाजेषु नो ऽ व. तवा म ने द ं दे वतातय आ प न ामहे वृधे.. (११) हे अ न! आप सारी रा सी व वाथ वृ य से हमारी र ा क जए. आप हमारे हतैषी ह. आप हमारे अभी दे व ह. हम आप क शरण म ह. (११)
सरा खंड इनो राज र तः स म ो रौ ो द ाय सुषुमाँ अद श. च क भा त भासा बृहता स नीमे त शतीमपाजन्.. (१) हे अ न! आप राजा और श ु के लए भयानक ह. आप यजमान क मनोकामना पूरी करते ह. आप च कत करने वाले आप भा कर ( काशमान) व वशाल ह. आप रा म हवन के लए चमकते ह. (१) कृ णां यदे नीम भ वपसाभू जनय योषां बृहतः पतुजाम्. ऊ व भानु सूय य तभायन् दवो वसु भरर त व भा त.. (२) हे अ न! आप पता (सूय) के जाए ह. आप ी प को कट करते ह. अंधेरी रात को अपनी वाला से हटाते ह (परा त करते ह). आप अपने द तेज से सूय का तेज ऊपर वगलोक म ही रोक लेते ह. आप अपने ही तेज से तेज वी होते ह. (२) भ ो भ या सचमान आगा वसारं जारो अ ये त प ात्. सु केतै ु भर न व त ुश द्भवणर भ रामम थात्.. (३) क याणकारी अ न क क याणका रणी उषा सेवा करती ह. अ न श ुनाशक ह. वे अपनी य बहन उषा के पास प ंचते ह. वे अंधेरे का नाश करते ह. वे सव गमनशील ह. वे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपनी लपट से सव
का शत हो रहे ह. (३)
कया ते अ ने अ र ऊज नपा प तु तम्. वराय दे व म यवे.. (४) हे अ न! आप अंग को का शत करते ह. आप ऊजा बढ़ाते ह. सब आप को अंगीकार करते ह. हम आप के अलावा और कस को े दे व मान? (४) दाशेम क य मनसा य
य सहसो यहो. क वोच इदं नमः.. (५)
हे अ न! हम कस मन से आप का भजन कर? हम कब आप को नमन कर? कब हमारी वा णयां आप को ा त कर? (५) अधा व
ह न करो व ा अ म य
सु तीः. वाज वणसो गरः.. (६)
हे अ न! आप हम पर सब कृपा क जए. हम अपनी ाथना कृपालु बनाएं. आप हम धनधा यमय बनाइए. (६) अ न आ या आ वामन ु
से आप को अपने
त
न भह तारं वा वृणीमहे. यता ह व मती य ज ं ब हरासदे .. (७)
हे अ न! आप दे व को आमं त करने वाले ह. आप हमारी तु तयां सु नए. आप अ य अ नय के साथ हमारे य थान पर पधा रए, कुश का आसन हण क जए. हमारी ह व से यु आ तयां वीकार करने क कृपा क जए. (७) अ छा ह वा सहसः सूनो अ रः च ु र य वरे. ऊज नपातं घृतकेशमीमहे ऽ नं य ष े ु पू म्.. (८) हे अ न! आप सव मणशील और बलव क ह. आप के यजमान पु आप के पास ह व प ंचाने के लए आतुर ह. आप उन क आ तयां अंगीकार क जए. आप ऊजा का नाश रोकते ह. हम आप क य म सव थम आराधना करते ह. आप घी से बढ़ते ह. (८) अ छा नः शीरशो चषं गरो य तु दशतम्. अ छा य ासो नमसा पु वसुं पु श तमूतये.. (९) हे अ न! आप दशनीय व लपट वाले ह. हमारी वा णयां शी आप तक प च ं . आप य म हमारा माग श त क जए. हम य म आप को नमन करते ह. आप ब त शंसनीय ह. आप भलीभां त व लत ह. (९) अ न सूनु सहसो जातवेदसं दानाय वायाणाम्. ता यो भूदमृतो म य वा होता म तमो व श.. (१०) हे अ न! आप अमर ह. आप पृ वी पर अमृत व प ह. आप य को सफल बना कर आनंददायक ह. आप को दान दे ने के लए हम बारबार बुलाते ह. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तीसरा खंड अदा यः पु रएता वशाम नमानुषीणाम्. तूण रथः सदा नवः.. (१) हे अ न! आप मनु य के पथ दशक, आगे चलने वाले, रथ के समान वेगवान व युवा ह. आप को कोई नह दबा सकता है. (१) अ भ या
स वाहसा दा ाँ अ ो त म यः. यं पावकशो चषः.. (२)
हे अ न! आप प व , काशमान व ह ववाहक ह. हम ह वदाता मनु य आप से अ छा घर मांगते ह. (२) सा ा व ा अ भयुजः
तुदवानाममृ ः. अ न तु व व तमः.. (३)
हे अ न! आप श ु क सेना को हराने वाले, द गुणदाता व भरपूर अ दाता ह. हम आप को सभी अ नय स हत आमं त करते ह. (३) भ ो नो अ नरा तो भ ा रा तः सुभग भ ो अ वरः. भ ा उत श तयः.. (४) हे अ न! हम आप को आ त दे ते ह. आप हमारा क याण क जए. आप सौभा यशाली ह. आप क कृपा हम ा त हो. हम क याणकारी तु तयां गा रहे ह. आप हमारा क याण क जए. (४) भ ं मनः कृणु व वृ तूय येना सम सु सास हः. अव थरा तनु ह भू र शधतां वनेमा ते अ भ ये.. (५) हे अ न! आप हमारा मन क याणकारी बनाइए, पापमय वचार व बुरी वृ य को र क जए. हम क याण के लए आप क तु त करते ह. आप हम थर बनाइए और हम ब त सा धन द जए. (५) अ ने वाज य गोमत ईशानः सहसो यहो. अ मे दे ह जातवेदो म ह वः.. (६) हे अ न! आप बलवान, ई र व गाय के वामी ह. आप सब कुछ जानते ह. आप हम भरपूर वैभव दान करने क कृपा क जए. (६) स इधानो वसु क वर नरीडे यो गरा. रेवद म यं पुवणीक द द ह.. (७) हे अ न! आप सब के लए आवासदाता ह. ान से भरी तु त से आप क उपासना क जाती है. आप काशमान ह. आप हम काशमान संपदा द जए. (७) पो राज ुत मना ने व तो तोषसः. स त मज भ र सो दह हे अ न! आप काशमान ह. आप दनरात (हर समय) तेज वी ह. आप रा स को जला कर भ म कर द जए. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त.. (८)
को पीड़ा प ंचाइए. आप
चौथा खंड वशो वशो वो अ त थ वाजय तः पु यम्. अ नं वो य वच तुषे शूष य म म भः.. (१) हे अ न! आप मेहमान क तरह स कार के यो य एवं सभी को य ह. आप को सभी ह व दान करते ह. हम मन से और य वेद म आप को था पत कर के आप क बारबार तु त करते ह. (१) यं जनासो ह व म तो म ं न स परासु तम्. श
स त श त भः.. (२)
हे अ न! हम ह वदाता आप के म ह. आप ब त पूजनीय ह. हम वै दक श तय से आप क शंसा करते ह. (२) प या
सं जातवेदसं यो दे वता यु ता. ह ा यैरय
व.. (३)
हे अ न! आप सारे ान से प रपूण ह. आप ह व को वगलोक म प ंचाते ह. हम आप क तु त करते ह. (३) स म म नं स मधा गरा गृणे शु च पावकं पुरो अ वरे ुवम्. व होतारं पु वारम हं क व सु नैरीमहे जातवेदसम्.. (४) हे अ न! आप प व ह. आप स मधा से कट होते ह. आप थर व य म अ थानी ह. ा ण, होता, सव ाता, व ान् आ द सभी को आप धन दे ते ह. हम ब त अ छे मन से आप क उपासना करते ह. (४) वां तम ने अमृतं युगेयुगे ह वाहं द धरे पायुमी म्. दे वास मतास जागृ व वभुं व प त नमसा न षे दरे.. (५) हे अ न! आप अमर ह. हम युग से आप को अपना त मानते ह. आप ह ववाहक ह. आप दे वता और मनु य दोन को जा त करते ह. आप संसार व धन के वामी ह. हम आप को नमन एवं आप क तु त करते ह. (५) वभूष न उभयाँ अनु ता तो दे वाना रजसी समीयसे. य े धी त सुम त मावृणीमहे ऽ ध म न व थः शवो भव.. (६) हे अ न! आप दे व और मनु य दोन क शोभा बढ़ाते ह. आप त य, दे व के त, ह ववाहक व तीन लोक म मणशील ह. हम आप क तु त करते ह. हम आप से सुख चाहते ह. आप क याणकारी होइए. (६) उप वा जामयो गरो दे दशतीह व कृतः. वायोरनीके अ थरन्.. (७) हे अ न! हमारी तु तयां बहन के समान आप का गुण गाती ह. हम वायु क सहायता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से आप को यय
व लत करते ह. हम य
थान म आप क थापना करते ह. (७)
धा ववृतं ब ह त थावस दनम्. आप
दधा पदम्.. (८)
हे अ न! आप म जल भी व मान ह. आप के चार ओर य कुंड के पास कुश के आसन बछे ह. हम आप क उपासना करते ह. (८) पदं दे व य मीढु षो ऽ नाधृ ा भ
त भः. भ ा सूय इवोष क्.. (९)
हे अ न! आप काशवान, सराहनीय, श ुहीन और धैयशाली ह. आप का दशन करना सूय के दशन के समान क याणकारी है. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोलहवां अ याय पहला खंड अ भ वा पूवपीतये इ तोमे भरायवः. समीचीनास ऋभवः सम वर ुदा गृण त पू म्.. (१) हे इं ! यजमान चाहते ह क आप सब से पहले सोमरस पी जए. यजमान वै दक मं से आप क तु त कर रहे ह. आप उ चत वाले ह. और ऋभुगण आप क गणना सव थम करते ह. वे भी आप ही क तु त करते ह. (१) अ ये द ो वावृधे वृ य शवो मदे सुत य व ण व. अ ा तम य म हमानमायवो ऽ नु ु व त पूवथा.. (२) हे इं ! आप सोमरस पी कर स होते ह. आप यजमान का वीय और श बढ़ाते ह. आप म हमावान ह. यजमान आप क उसी म हमा का बखान करते ह. (२)
दोन
वामच यु थनो नीथा वदो ज रतारः. इ ा नी इष आ वृणे.. (३) हे इं ! हे अ न! यजमान आप क अचना करते ह. सामगायक आप के गुण गा रहे ह. अ धन हेतु हम भी आप को आमं त करते ह. (३) इ ा नी नव त पुरो दासप नीरधूनुतम्. साकमेकेन कमणा.. (४) हे इं ! हे अ न! आप ने एक ही बार एक साथ न बे नगर को कंपकंपा दया. (४) इ ा नी अपस पयुप हे इं ! हे अ न! य उप थत होते ह. (५) इ ा नी त वषा ण वा
य त धीतयः. ऋत य प या ३ अनु.. (५) के होता आ द पुरो हत स य के माग से हमारे य सध था न या
स च. युवोर तूय
के पास
हतम्.. (६)
हे इं ! हे अ न! आप हत साधने वाले ह. आप के यास सदै व शुभ काय क ओर लगे रहते ह. (६) श यू ३ षु शचीपत इ व ा भ त भः. भगं न ह वा यशसं वसु वदमनु शूर चराम स.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप शचीप त, श अनुगमन करते ह. (७)
मान, धनवान, सौभा यवान और यश वी ह. हम आप का
पौरो अ य पु कृद्गवाम यु सो दे व हर ययः. न क ह दानं प र म धष वे य ा म तदा भर.. (८) हे इं ! आप अ , गौ आ द पशु का पालन करते ह. वणमयी मु ा से जैसे स ता होती है, वैसे ही आप को दे ख कर स ता होती है. कोई भी आप के दान को भूल नह सकता. आप हम भरपूर धन द जए. (८) व े ह चेरवे वदा भगं वसु ये. उ ावृष व मघवन्ग व य उ द ा म ये.. (९) हे इं ! आप हम धन दे ने के लए पधा रए. आप स माग पर चलने वाले को सौभा यवान बनाइए. आप हमारी गौ संबंधी इ छा को पूरा क जए. (९) वं पु सह ा ण शता न च यूथा दानाय म हसे. आ पुरंदरं चकृम व वचस इ ं गाय तो ऽ वसे.. (१०) हे इं ! आप सैकड़ हजार गाय के झुंड दे ने व श ु नग रय को न करने क साम य रखते ह. यजमान अपनी र ा के लए साम मं गा रहे ह. इं ा ण के वचन से यु ह. हम उन को आमं त करते ह. (१०) यो व ा दयते वसु होता म ो जनानाम्. मधोन पा ा थमा य मै तोमा य व नये.. (११) हे अ न! आप धनदाता, होता व आनंददाता ह. सोमरस से भरे पा आप तक प ंच. सव थम हम आप क तु त करते ह. वे तु तयां भी आप तक प ंच. (११) अ ं न गीभ र य सुदानवो ममृ य ते दे वयवः. उभे तोके तनये द म व पते प ष राधो मघोनाम्.. (१२) हे अ न! सारथी जैसे रथ म जोते गए घोड़ को जोश दलाने के लए बोलता रहता है, वैसे ही यजमान आप के लए तु तयां बोलते ह. आप रा स से धन छ न कर अपने उपासक को दे ने क कृपा क जए. आप उ म को ट के दानदाता ह. (१२)
सरा खंड इमं मे व ण ुधी हवम ा च मृडय. वामव युरा चके.. (१) हे व ण! आप हमारी इन तु तय पर कान ( यान) द जए. आप हम सुख द जए. हम आप से अपनी र ा क ाथना करते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया वं न ऊ या भ
म दसे वृषन्. कया तोतृ य आ भर.. (२)
हे इं ! आप कन साधन से हमारी र ा करते ह? आप हम कस कार ब त स ता दे ते ह? आप कैसे यजमान ( तोता ) क इ छापू त करते ह? (२) इ इ
म े वतातय इ ं य य वरे. समीके व ननो हवामह इ ं धन य सातये.. (३)
हे इं ! हम य म व वीर भ गण सं ाम म आप को आमं त करते ह. हम धन हेतु आप का आ ान करते ह. (३) इ ो म ा रोदसी प थ छव इ ः सूयमरोचयत्. इ े ह व ा भुवना न ये मरे इ े वानास इ दवः.. (४) हे इं ! आप महान ह. आप ने वगलोक और पृ वीलोक का फैलाव कया. आप ने सूय को काश से चमकाया. आप ने सकल भुवन को शरण द . हम आप के लए सोमरस भट करते ह. (४) व कम ह वषा वावृधानः वयं यज व त व ३ वा ह ते. मु व ये अ भतो जनास इहा माकं मघवा सू रर तु.. (५) हे इं ! आप ह व से बढ़ोतरी पाते ह. आप सभी कम साधते ह. हम संसार के क याण के लए अपने को योछावर करते ह. य से वरोध रखने वाले लोग का मनोबल टू टे. इं हमारे हो जाएं. बु जीवी लोग हमारे हो जाएं. (५) अया चा ह र या पुनानो व ा े षा स तर त सयु व भः सूरो न सयु व भः धारा पृ य रोचते पुनानो अ षो ह रः. व ाय प ू ा प रया यृ व भः स ता ये भऋ व भः.. (६) हे सोम! आप का रस चपूण है व ह रत आभा वाला है. आप उस से े षय का वैसे ही संहार करते ह, जैसे सूय अपनी करण से अंधेरे का संहार करते ह. आप का रस काशमान है. छलनी पर आप क धारा काशमान है. आगेपीछे सब ओर आप क धारा शो भत होती है. आप अपने सात मुख से नकलने वाली सात करण से कह यादा काशमान व उ म ह. (६) ाचीमनु दशं या त चे कत स र म भयतते दशतो रथो दै ो दशतो रथः. अ म ु था न पौ ये ं जै ाय हषयन्. व य वथो अनप युता सम वनप युता.. (७) हे सोम! आप पूव दशा म थान करते ह. तब आप का रथ ब त चमकता है. आप का रथ द व दशनीय है. यजमान मं गागा कर अपनी तु तयां आप और इं तक प ंचाते ह. यजमान वजय पाने क इ छा से आप को स करते ह. वे आप से व ात ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करते ह. आप दोन मल कर कसी भी यु
म यजमान को हारने नह दे ते ह. (७)
व ह य पणीनां वदो वसु सं मातृ भमजय स व आ दम ऋत य धी त भदमे. परावतो न साम त ा रण त धीतयः. धातु भर षी भवयो दधे रोचमानो वयो दधे.. (८) हे सोम! आप ने ापा रय से धन पाया. आप मातृ जल से प व कए जाते ह. आप के लए गाए जाने वाले सामगान य थान से ब त र र तक गूंजते ह. आप वगलोक, अंत र लोक एवं पृ वीलोक तीन ही जगह सुशो भत होते ह. आप हम द घायु क जए. (८)
तीसरा खंड उत नो गोष ण धयम सां वाजसामुत. नृव कृणु तये.. (१) हे पूषा! आप हमारी बु ा त कराती है. (१)
क र ा क जए. हमारी बु
हम गोधन, अ धन व धन
शशमान य वा नरः वेद य स यशवसः. वदाकाम य वेनतः.. (२) हे म द्गण! स य हमारा बल है. हम य करते ए पसीने से तर हो गए ह. आप ऐसे उपासक क मनोकामनाएं पूरी करने क कृपा क जए. (२) उप नः सूनवो गरः शृ व वमृत य ये. सुमृडीका भव तु नः.. (३) हे म द्गण! आप जाप त के पु ह. आप अमर ह. आप हम सुखी बनाने क कृपा क जए. आप तु तयां सुनने क कृपा क जए. (३) वां म ह वी अ युप तु त भरामहे. शुची उप श तये.. (४) हे वगलोक! हे पृ वीलोक! हम तु तय से आप के समीप प ंचते ह. हम आप दोन लोक के लए भरपूर तु तयां उचारते ह. (४) पुनाने त वा मथः वेन द ेण राजथः. ऊ ाथे सना तम्.. (५) हे दे वी! आप वगलोक व पृ वीलोक को प व करती ह. आप काशवती ह. आप य क प रपा टय का नवाह करती ह. (५) मही म य साधथ तर ती प ती ऋतम्. प र य ं नषेदथुः.. (६) हे दे वयो! हे अंत र लोक! यजमान आप के सखा ह. आप यजमान क मनोकामनाएं पूरी करते ह. आप य को पूण कराते ह. आप य को पूरा सहयोग दे ते ह. (६) अयमु ते समत स कपोत इव गभ धम्. वच त च ओहसे.. (७) हे इं ! हमारी तु तयां नेह से आप के पास उसी तरह प ंचती ह, जैसे कबूतर ेम से ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कबूतरी के पास प ंचता है. (७) तो
राधानां पते गवाहो वीर य य ते. वभू तर तु सूनृता.. (८)
हे इं ! आप धन के वामी व वीर ह. आप वाणी से तु त यो य, अ छे ऋत (स य) वाले और वैभववान ह. (८) ऊ व त ा न ऊतये ऽ मन् वाजे शत तो. सम येषु वावहै.. (९) हे इं ! आप सैकड़ काय करने वाले ह. आप हमारे संर ण के लए यास क जए. आप उ च थान पर त त ह. हम आप से कुछ अ य बात के बारे म भी परामश ( नवेदन) करते रह. (९) गाव उप वदावटे मही य
य र सुदा. उभा कणा हर यया.. (१०)
हे गौओ! य थान के पास आप को बुलाया जा रहा है. आप रंभा कर आवाज क जए. आप य फल दे ने वाली ह. आप के दोन ही कान सोने के ह. (१०) अ यार मद यो न ष ं पु करे मधु. अवट य वसजने.. (११) हम प थर से कूट कर नकाला गया, बचा आ सोमरस परम वीर इं के वसजन पर भट करने के लए ोणकलश म था पत करते ह. (११) स च त नमसावटमु चाच ं प र मानम्. नीचीनबारम तम्.. (१२) हम यजमान उस परम श को नम कार करते ह, नमनपूवक य वधान करते ह. उस परम श का च ऊपर (लोक) थत है, नीचे का ार चार ओर झुका आ है. वह ार अ त है. (१२)
चौथा खंड मा भेम मा म मो य स ये तव. मह े वृ णो अ भच यं कृतं प येम तुवशं य म्.. (१) हे इं ! हम आप के म ह, इस कारण हम कभी भी म से थके नह , कभी भी कसी से डरे नह . आप महान ह. आप क कृपा सराहनीय है. तुवश और य दोन ही स दखाई दे ते ह. (१) स ामनु फ यं वावसे वृषा न दानो अ य रोष त. म वा संपृ ाः सारघेण धेनव तूयमे ह वा पब.. (२) हे इं ! आप मतावान ह. आप बाएं हाथ से ही (आसानी से) सब को शरण दे दे ते ह. अ यंत ू र भी आप का कुछ बगाड़ नह सकते. मीठे ध वाली गाय के समान सुखदायी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आप क हमारे य
तु त हम करते ह. आप उ ह के समान सुखद ह. आप जतनी ज द हो सके थान पर पधा रए व सोमपान क रए. (२)
इमा उ वा पु वसो गरो वध तु या मम. पावकवणाः शुचयो वप तो ऽ भ तोमैरनूषत.. (३) हे इं ! हमारी तु तयां आप का यशवधन कर. हमारी तु तयां और तेज वी यजमान आप क तु त करते ह. (३)
े
ानमय ह. ानी
अय सह मृ ष भः सह कृतः समु इव प थे. स यः सो अ य म हमा गृणे शवो य ेषु व रा ये.. (४) हे इं ! आप समु क भां त व तृत ह. आप हजार ऋ षय जैसे बलवान ह. आप स यवान व श मान ह. ानी लोग के नदशन म आप क तु तयां गाई जाती ह. (४) य यायं व आय दासः शेवा धपा अ रः. तर दय शमे पवीर व तु ये यो अ यते र यः.. (५) हे इं ! यह सारा व आप का है. आय दास क भां त आप क सेवा करते ह. आप श ु के अधीश ह. म और प व श मान हो कर भी आप क पूजा करते ह. (५) तुर यवो मधुम तं घृत तं व ासो अकमानृचुः. अ मे र यः प थे वृ य शवो ऽ मे वानास इ दवः.. (६) हे इं ! हम आप क अचना करते ह. यजमान ा ण य करते ह. वे य म शहद और घी से भरी ई आ तयां व हम ह व पी धन दे ते ह. सोम स ा त कर. (६) गोम इ दो अ व सुतः सुद ध नव. शु च च वणम ध गोषु धारय.. (७) हे सोम! आप हम गोवान व अ वान बनाइए. आप गाय के ध म मल कर प व सफेद रंग ा त करते ह. (७) स नो हरीणां पत इ दो दे व सर तमः. सखेव स ये नय
चे भव.. (८)
हे सोम! आप हरे ह. आप दे वता ारा ई सततम (सब से यादा चाहे गए) ह. आप उसी तरह हम म च लेते ह, जैसे एक म सरे म का सहयोग करने के लए च लेता है. (८) सने म वम मदा अदे वं कं चद णम्. सा ाँ इ दो प र बाधो अप युम्.. (९) हे इं ! आप ाचीन काल से चले आ रहे सुख हम द जए. आप सुख म बाधा पैदा करने वाले श ु , दोगले वहार वाल व वा थय का भी नाश क जए. (९) अ
ते
ते सम
ते
तु
रह त म वा य
ते.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स धो छ् वासे पतय तमु ण
हर यपावाः पशुम सु गृ णते.. (१०)
हे सोम! सोमरस म यजमान गाय का ध मलाते ह. उसे पी कर स होते ह, अनेक कार से उसे अनेक प म तैयार करते ह. उसे मीठे ध व सोने जैसे चमकते ए जल म मलाते ह. सोम ऊंचे थान से, जल के ऊंचे भाग से गरते ह. वे सव ा ह. (१०) वप ते पवमानाय गायत मही न धारा य धो अष त. अ हन जूणाम त सप त वचम यो न ड सरद्वृषा ह रः.. (११) हे यजमानो! आप सोम के गुण गाइए. सोम ानी व हरे ह. वे वशाल धाराएं धारण करते ह. सांप के कचुली बदलने क तरह वे अपनी पुरानी छाल बदल दे ते ह. वे घोड़े जैसे खेलते ए ोणकलश म जाते ह. (११) अ ेगो राजा य त व यते वमानो अ ां भुवने व पतः. ह रघृत नुः सु शीको अणवो योतीरथः पवते राय ओ यः.. (१२) सोम अ गामी ह, राजा ह, जल म मलते ह और शंसा ा त करते ह. वे लोक म दन के (समय के) मापक, सुंदर व हरे ह. वे जलवासी, यो तमय रथ वाले व धन का भंडार ह. (१२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
स हवां अ याय पहला खंड व े भर ने अ न भ रमं य मदं वचः. चनो धाः सहसो यहो.. (१) हे अ न! आप सम त अ नय के साथ य म पधा रए. आप इस य म हमारे वचन सु नए. आप हम अ दान करने क कृपा क जए. (१) य च
श ता तना दे वं दे वं यजामहे. वे इ यते ह वः.. (२)
हे अ न! हम इं , व ण और अ य दे वता आप तक प ंचता है. (२) यो नो अ तु व प तह ता म ो वरे यः. अ न हम
को ह व दे कर भजन करते ह. वह सब याः व नयो वयम्.. (३)
य ह. वे व प त, होता और वरे य ह. उ ह हम सब
य ह . (३)
इ ं वो व त प र हवामहे जने यः. अ माकम तु केवलः.. (४) हे यजमानो! इं सभी लोक से ऊपर ह. लोग के क याण के लए हम उन का आ ान करते ह. आप क कृपा से हम सब का क याण हो. (४) स नो वृष मुं च
स ादाव पा वृ ध. अ म यम त कुतः.. (५)
हे इं ! हमारे ारा सम पत ह व हण क जए. हमारी इ छा आप ज द से ज द फल दे ने वाले ह. (५) वृषा यूथेव व
को खाली न लौटाएं.
सगः कृ ी रय य जसा. ईशानो अ त कुतः.. (६)
हे इं ! आप बलवान ह. आप उसी तरह उपासक क इ छा पूरी करने जाते ह, जैसे गाय के झुंड म बैल जाता है. आप ई र ह. आप हमारे वरोधी नह हो सकते. (६) वं न ऊ या वसो राधा स चोदय. अ य राय वम ने रथीर स वदा गाधं तुचे तु नः.. (७) हे अ न! आप हम संर ण द जए. आप जो धन अपने रथ से ले जाते ह, वह हम द जए. आप वल ण ह. हमारी पी ढ़यां भी यश वी ह . (७) प ष तोकं तनयं पतृ भ ् वमद धैर यु व भः ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ने हेडा
स दै ा युयो ध नो ऽ दे वा न
रा
स च.. (८)
हे अ न! आप सहयोगी व वतं ह. आप अपने र ा साधन से हमारी व पी ढ़य क र ा क जए. आप ाकृ तक कोप और वृ य से हम बचाइए. (८) क म े व णो प रच नाम य व े श प व ो अ म. मा वप अ मदप गूह एत द य पः स मथे बभूथ.. (९) हे व णु! आप सव ा त ह. आप अपना यह वराट् और ापक व प हम से छपा कर (गु त) न र खए. आप कतने ही प य न धारण कर ल फर भी आप हमारी र ा अव य करते ह. (९) त े अ श प व ह मयः श सा म वयुना न व ान्. तं वा गृणा म तवसमत ा य त म य रजसः पराके.. (१०) हे व णु! आप र मवान व आदरणीय ह. म व व ान् भी आप क शंसा करते ह. हम आप के व णुलोक से र ह, फर भी हम अपने लोक से आप क वैसे ही शंसा करते ह, जैसे कोई छोटा भाई करता है. (१०) वषट् ते व णवास आ कृणो म त मे जुष व श प व ह म्. वध तु वा सु ु तयो गरो मे यूयं पात व त भः सदा नः.. (११) हे व णु! वषट् कार से हम आप को आमं त करते ह. आप र मवान ह. आप हमारी ह व को वीका रए. हमारी अ छ तु तयां आप क बढ़ोतरी कर. आप मंगलकारी आशीवाद से हमारा क याण करने क कृपा क जए. (११)
सरा खंड वायो शु ो अया म ते म वो अ ं द व षु. आ या ह सोमपीतये पाह दे व नयु वता.. (१) हे वायु! हम य म सब से पहले आप को सोमरस चढ़ाते ह. आप आदरणीय ह. हे दे व! आप नयुत नामक घोड़े के साथ सोमपान के लए आ जाइए. (१) इ वायवेषा सोमानां पी तमहथः. युवा ह य ती दवो न नमापो न स यक्.. (२) हे इं ! हे वायु! आप सोमपान के यो य ह. जलधार जैसे नीचे क ओर जाती है, वैसे ही आप दोन के लए सोमरस क धारा प ंचती है. (२) वाय व शु मणा सरथ नयु व ता न ऊतय आ यात
शवस पती. सोमपीतये.. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! हे वायु! आप बलवान व सोमपान हेतु आइए. (३)
मतावान ह. आप नयुत घोड़े को रथ म जोत कर
अध पा प र कृतो वाजाँ अ भ गाहसे. यद वव वतो धयो ह र ह व त यातवे.. (४) हे सोम! आप पौ क अ दे ते ह. आधी रात के बीत जाने पर छने ए सोम म जल मलाया जाता है. यजमान क बु ह रत सोमरस को कलश क ओर उ मुख करती है. (४) तम य मजयाम स मदो य इ पातमः. यं गाव आस भदधुः पुरा नूनं च सूरयः.. (५) सोमरस मददायी है. यह इं के पीने यो य है. इसे आज भी पीया जाता है. यह पहले भी पीया जाता था. सोम को गाएं भी खुशीखुशी खाती ह. (५) तं गाथया पुरा या पुनानम यनूषत. उतो कृप त धीतयो दे वानां नाम ब तीः.. (६) यजमान पुरानी गाथा से सोमरस क उपासना करते ह. य कम हेतु चमकता आ सोम दे वता को आ त के प म भी दया जाता है. (६) अ ं न वा वारव तं व द या अ नं नमो भः. स ाज तम वराणाम्.. (७) हे अ न! आप य के स ाट् ह. घुड़सवार जैसे घोड़े से ेम करता है, उसी तरह हम आप से ेम व आप को नम कार करते ह. (७) स घा नः सूनुः शवसा पृथु गामा सुशेवः. मीढ् वाँ अ माकं बभूयात्.. (८) हे अ न! हम आप के पु ह. हम व ध वधान से आप क उपासना करते ह. आप ब त शी गामी ह. आप हमारे लए सुखदायी ह . (८) स नो रा चासा च न म यादघायोः. पा ह सद म
ायुः.. (९)
हे अ न! आप मनु य का भला चाहते ह. आप र और पास दोन हमारी र ा करने क कृपा क जए. (९)
य से श ु
से
वम तू त व भ व ा अ स पृधः. अश तहा ज नता वृ तूर स वं तूय त यतः.. (१०) (१०)
हे इं ! आप यु
म पधा करने वाले सभी श ु
को र करते ह. आप व नहारी ह.
अनु ते शु मं तुरय तमीयतुः ोणी शशुं न मातरा. व ा ते पृधः थय त म यवे वृ ं य द तूव स.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! अंत र लोक और पृ वीलोक आप के बल का वैसे ही अनुसरण करते ह, जैसे माता पता ब चे के पीछे चलचल कर उस क र ा करते ह. जब आप वृ ासुर से यु करते ह तो आप के सामने यु के लए तैयार श ु के भी हौसले प त हो जाते ह. (११)
तीसरा खंड य इ मवधय द्भू म
वतयत्. च ाण ओपशं द व.. (१)
य इं क बढ़ोतरी व भू म को व तृत करते ह. वे वगलोक से मेघ को वषा के लए े रत करते ह. (१) ३ त र म तर मदे सोम य रोचना. इ ो यद भन लम्.. (२) (२)
इं मेघ को भेदते व अंत र
म वशेष शोभा बढ़ाते ह. वे सोमरस से स होते ह.
उद्गा आजद रो य आ व कृ व गुहा सतीः. अवा चं नुनुदे वलम्.. (३) सूय ने गुफा क करण को बाहर नकाल कर उसे अं गरा प ंचाया. उन करण को छपा कर रखने वाला रा स भाग गया. (३)
(अंगधा रय ) तक
यमु वः स ासाहं व ासु गी वायतम्. आ यावय यूतये.. (४) हे इं ! आप श ु को एक साथ मारते ह. हम अपनी र ा के लए तु तय से आप को आमं त करते ह. (४) यु म
स तमनवाण
सोमपामनप युतम्. नरमवाय तुम्.. (५)
हे इं ! आप यु करते ए कभी नह हारते. सोमपान के लए आप का मन ढ़ न य वाला है. हम य म आप का सहयोग चाहते ह. (५) श ाणइ
राय आ पु
व ां ऋचीषम. अवा नः पाय धने.. (६)
हे इं ! आप सव ाता व दशनीय ह. आप हमारे लए धन द जए. श ु को जो धन मले, वह हम द जए. (६) तव य द
यं बृह व द मुत
तुम्. व
शशा त धषणा वरे यम्.. (७)
हे इं ! आप अपनी वशालता, द ता और े बु ह. (७) तव ौ र
पौ
से भी आप
से य और व
यं पृ थवी वध त वः. वामापः पवतास
को ती ण बनाते
ह वरे.. (८)
हे इं ! वगलोक और पृ वीलोक से आप के व प का व तार होता है. जल और पवत आप को अपना वामी मानते ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वां व णुबृह
यो म ो गृणा त व णः. वा
श
मद यनु मा तम्.. (९)
हे इं ! आप वशाल व आ यदाता ह. व णु, म और व ण आप क तु त गाते ह. म द्गण आप को स करते ह. (९)
चौथा खंड नम ते अ न ओजसे गृण त दे व कृ यः. अमैर म मदय.. (१) हे अ न! हम बल ा त के लए आप को आमं त करते ह. आप अ म करने क कृपा क जए. (१) कु व सु नो ग व ये ऽ ने संवे षषो र यम्. उ कृ
का मदन
ण कृ ध.. (२)
हे अ न! आप महान ह. आप से हम महानता चाहते ह. आप हम गौ इ छु क को चुर गोधन दान करने क कृपा क जए. (२) मा नो अ ने महाधने परा व भारभृ था. संवग
स
र य जय.. (३)
हे अ न! आप हम से वमुख मत होइए. भारवाही जैसे बोझा ढोता है, वैसे ही आप श ु समूह से जीते ए धन को हमारे लए ढोइए. (३) सम य म यवे वशो व ा नम त कृ यः. समु ायेव स धवः.. (४) न दयां जैसे समु क ओर जाती ह, वैसे ही सारे लोग आप के जाते ह. (४) व चद्वृ य दोधतः शरो बभेद वृ णना. इं ने अपनी श से सैकड़ धार वाले व संसार को भयभीत कर रखा था. (५) ओज तद य त वष उभे य समवतयत्. इ (६)
ोध के सामने नत हो
ेण शतपवणा.. (५) से वृ ासुर का सर काट डाला. वृ ासुर ने ेमव रोदसी.. (६)
इं ने अपने ओज से वगलोक और भूलोक को चमड़ी क तरह धारण कर रखा है. सुम मा व वी र ती सूनरी.. (७) हे इं ! आप अ छे मन वाले, वैभवशाली व रमणीय ह. (७) स प वृष ा गहीमौ भ ौ धुयाव भ. ता वमा उप सपतः.. (८)
(८)
हे इं ! क याणकारी सुंदर घोड़ वाले रथ को धुरी पर चढ़ा कर हमारे पास प ं चए.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
नीव शीषा ण मृढ्वं म य आप य त त. शृ े भदश भ दशन्.. (९) हे यजमानो! अभी फलदायी इं हमारे य के म य उप थत ह. हम सर झुका कर उन दशनीय इं का दशन कर. (९)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अठारहवां अ याय पहला खंड प यंप य म सोतार आ धावत म ाय. सोमं वीराय शूराय.. (१) हे यजमानो! आप सोमरस तैयार करने म लगे ए हो. आप शूरवीर इं को सोमरस भट क जए. सोमरस मददायी है. आप ज द ज द दौड़ कर वह सोमरस इं को भट क जए. (१) एह हरी
युजा श मा व तः सखायम्. इ ं गी भ गवणसम्.. (२)
इं के घोड़े वाणी के संकेत से ही रथ म जुत जाते ह. इं हमारे सखा व वाणी से उपा य ह. इं के घोड़े उ ह ले कर य म आने क कृपा कर. (२) पाता वृ हा सुतमा घा गम ारे अ मत्. न यमते शतमू तः.. (३) हे इं ! आप वृ ासुर हंता व सोमपायी ह. आप अव य पधारने क कृपा क जए. (३)
मन को र भगाने व हमारे य म
आ वा वश व दवः समु मव स धवः. न वा म ा त र यते.. (४) हे इं ! आप के अ त र और कोई दे व े नह ह. आप को सोमरस वैसे ही ा त हो, जैसे समु को न दयां ा त होती ह. (४) व
थ म हना वृष भ
सोम य जागृवे. य इ
जठरेषु ते.. (५)
हे इं ! आप जा त व श मान ह. सोम के कारण आप क या त ब त आप के जठर (पेट) म प ंचा आ सोम भी शंसा ा त करता है. (५) अरं त इ
ापक है.
कु ये सोमो भवतु वृ हन्. अरं धाम य इ दवः.. (६)
हे इं ! आप ने वृ ासुर का हनन कया. हम ने आप को जो सोमरस भट कया, वह आप के लए भरपूर हो. वह सोमरस अ य दे वता के लए भी भरपूर हो. (६) जराबोध त
व
वशे वशे य याय. तोम
ाय शीकम्.. (७)
हे अ न! आप को ाथना से व लत कया जाता है. आप बारबार यजमान के क याण के लए य मंडप म कट होने क कृपा क जए. यजमान के लए अ छे तो ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बोले. (७) स नो महाँ अ नमानो धूमकेतुः पु
ः. धये वाजाय ह वतु.. (८)
हे अ न! आप क वजा ब त ही धू मय (धुएं वाली) है. आप महान व आनंददायी ह. आप हम बौ क वैभव दान करने क कृपा क जए. (८) स रेवाँ इव व प तद ः केतुः शृणोतु नः. उ थैर नबृहद्भानुः.. (९) हे अ न! आप व पालक, द , रदश व राजा जैसे ह. आप वाणी से क गई हमारी तु त को सुनने क कृपा क जए. (९) त ो गाय सुते सचा पु
ताय स वने. शं यद्गवे न शा कने.. (१०)
हे यजमानो! आप इं के लए एक त हो कर ाथनाएं गाइए. इं को तो ऐसे लगते ह, जैसे गाय को घास. (१०)
य
न घा वसु न यमते दानं वाज य गोमतः. य सीमुप वद् गरः. (११) हे इं ! तु त से भरी ई हमारी वा णयां जब आप के समीप प ंचती ह तो आप यजमान को धनवान और गोवान बनाने म नह चूकते ह. (११) कु व स य
ह जं गोम तं द युहा गमत्. शची भरप नो वरत्.. (१२)
हे इं ! चोर व डाकू जो गाएं चुराते ह, आप उन गाय को अपने अधीन कर लेते ह. आप उन गाय से हम गोवान बना दे ते ह. (१२)
सरा खंड इदं व णु व च मे ेधा न दधे पदम्. समूढम य पा
सुले.. (१)
व णु ने अपने पैर को तीन कार से रखा. उन पैर क पदधू ल म ही सारा संसार समा गया. (१) ी ण पदा व च मे व णुग पा अदा यः. अतो धमा ण धारयन्.. (२) व णु अपने तीन पैर म धम को धारण करते ए संसार को संचा लत करते ह. वे सव ा त ह. (२) व णोः कमा ण प यत यतो ता न प पशे. इ
य यु यः सखा.. (३)
हे यजमानो! आप व णु के कम को दे खने क कृपा क जए. उन कम के वे ेरक और इं के यो य म ह. (३) त
णोः परमं पद
सदा प य त सूरयः. दवीव च ुराततम्.. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बु
वगलोक म थत सूय को जैसे साधारण आंख से आसानी से दे ख सकते ह, वैसे ही मान यजमान व णु के परमपद को दे ख लेते ह. (४) त
ासो वप युवो जागृवा
सः स म धते. व णोय परमं पदम्.. (५)
जा त यजमान अपने े य कम से व णु के े पद को ा त करते ह. (५) अतो दे वा अव तु नो यतो व णु वच मे. पृ थ ा अ ध सान व.. (६) व णु ई र ह. उ ह ने पृ वी के सब से ऊंचे थान से अपनी े लोक से दे वता हमारी र ा करने क कृपा कर. (६)
त ा था पत क है. उस
मो षु वा वाघत नारे अ म रीरमन्. आरा ा ा सधमादं न आ गहीह वा स ुप ु ध.. (७) हे इं ! आप हम से ब त र ह. फर भी हमारे य म पधारने क कृपा क जए. हमारे मन क भावना से ई ाथना पर यान दे ने क कृपा क जए. व ान का ान भी आप को हम से र न कर सके. हमारा आप से यही अनुरोध है. (७) इमे ह ते कृतः सु ते सचा मधौ न म आसते. इ े कामं ज रतारो वसूयवो रथे न पादमा दधुः.. (८) हे इं ! हम आप के लए सोमरस तैयार कर के उसी तरह बैठे ए ह, जस तरह शहद पर मधुम खयां बैठती ह. वीर जैसे धन क इ छा से रथ पर पैर रखता है, वैसे ही हम भी धन क इ छा से आप पर अपनी आशाएं क त कर रहे ह. (८) अ ता व म म पू े ाय वोचत. पूव ऋत य बृहतीरनूषत तोतुमधा असृ त.. (९) हे यजमानो! आप इं के लए ाथनाएं याद क जए, उन ाथना को गाइए. पहले य म हम ने बृहती छं द म साम गाए. इस से यजमान म बु उपजती है और वह बु मंजती है. (९) स म ो रायो बृहतीरधूनुत सं ोणी समु सूयम्. स शु ासः शुचयः सं गवा शरः सोमा इ मम दषुः.. (१०) हे इं ! गाय के ध म मला आ सोमरस आप के लए सम पत है. यह मददायी है. आप इस से तृ त होइए. आप हम सूय जैसी काश वाली गाएं और धन दान क जए. (१०) इ ाय सोम पातवे वृ ने प र ष यसे. नरे च द णावते वीराय सदनासदे .. (११) हे इं ! आप ने वृ ासुर का नाश कया. आप द णा दाता ह. आप को मद दे ने के लए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ोणकलश म थर कया जाता है. यजमान क मनोकामना को स पा म रखा जाता है. (११)
क पू त के लए सोमरस
त सखायः पु चं वयं यूयं च सूरयः. अ याम वाजग य सनेम वाजप यम्.. (१२) हे यजमानो! तुम सब और हम सब सोमरस को ा त कर. वह सोमरस (सफेद), परा मी, फू तदायी, सुगंधमय और मताशाली है. (१२)
धया
पर य हयत ह र ब ुं पुन त वारेण. यो दे वान् व ाँ इत् प र मदे न सह ग छ त.. (१३) सोमरस हरा, भूरा व मनोहर है. वह सभी दे वता जाता है. (१३)
क
स ता के साथ ोणकलश म
क त म वा वसवा म य दधष त. ा इत् ते मघवन पाय द व वाजी वाजं सषास त.. (१४) हे इं ! कस म इतनी साम य है जो आप का तर कार कर दे . आप ऐ यशाली ह. आप के भ आप के त ा के कारण ही दन म आप से श और साम य ा त करते ह. (१४) मघोनः म वृ ह येषु चोदय ये दद त या वसु. तव णीती हय सू र भ व ा तरेम रता.. (१५) हे इं ! आप ऐ यशाली और अ वान ह. आप वृ ासुर जैसे अ याचा रय को न करने क श द जए. यजमान को दे ने के लए आप य धन को े रत क जए. शूरवीर और ानी आप क कृपा से पाप से छु टकारा पाएं. (१५)
तीसरा खंड ए मधोम द तर
स चा वय अ धसः. एवा ह वीर तवते सदावृधः.. (१)
हे यजमानो! सोमरस मधुर, सुखदायी व इं के लए आनंददायी है. आप इं क तु त क जए. वे ही तु त के यो य ह. आप सोमरस भी उ ह क सेवा म सम पत क जए. (१) इ
थातहरीणां न क े पू
तु तम्. उदान
श शवसा न भ दना.. (२)
हे इं ! आप अ प त ह. ऋ षय ने आप के लए ाथनाएं रची ह. उन ाथना को (आप ारा द गई) साम य के अलावा और कसी तरह नह ा त कया जा सकता है. (२) तं वो वाजानां प तम म ह व यवः. अ ायु भय े भवावृधे यम्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप वैभवशाली, धनप त व फुत ले ह. यजमान जो य करते ह, उन य आप बढ़ोतरी ा त करते ह. हम आप का आ ान करते ह. (३)
से
तं गूधया वणरं दे वासो दे वमर त दध वरे. दे व ाह मू हषे.. (४) हे यजमानो! य दे वलोक का त न ध व करते ह. आप इन य क पूजा क जए. इन य के मा यम से यजमान द वभू तयां पाते ह और धारण करते ह. अ न हमारी ह वय को दे वता तक प ंचाने के लए म य थ क भू मका नभाते ह. (४) वभूतरा त व च शो चषम नमी ड व य तुरम्. अ य मेध य सो य य सोभरे ेम वराय पू म्.. (५) हे ा णो! आप अ न क उपासना क जए. य क सफलता के लए आप को यह उपासना करनी है. वे अ तशय वैभवदाता, काशमान, े और य के मुख ह. (५) आ सोम वानो अ भ तरो वारा य या. जनो न पु र च वो वश रः सदो वनेषु द षे.. (६) हे सोम! प थर से कूट कर आप का रस नकाला गया है, छान कर उस रस को प व कया गया है. हरा सोमरस वन क लकड़ी के बने पा म उसी तरह वेश कर रहा है, जैसे शूरवीर अपनी वीरता से नगर म वेश करने जाता है. (६) स मामृजे तरो अ वा न मे यो मीढ् वां स तन वाजयुः. अनुमा ः पवमानो मनी ष भः सोमो व े भऋ व भः.. (७) ा ण ऋ वज् सोमरस को प व कर रहे ह. तो से वे इस क शंसा कर रहे ह. वे भेड़ के बाल से बनी छलनी से इसे छान रहे ह. इसे छानने वाले ऋ वज् श मान, पु और घोड़े जैसे बलवान ह. (७) वयमेन मदा ो ऽ पीपेमेह व णम्. त मा उ अ सवने सुतं भरा नूनं भूषत ुते.. (८) हे यजमानो! हम व धारी इं को पहले से ही सोमरस पलाते रहे ह. आज भी हम उ ह यह सोमरस पलाना चा हए. वे सोमपान और तो वण (सुनने) हेतु हमारे य म पधारने क कृपा कर. (८) वृक द य वारण उराम थरा वयुनेषु भूष त. सेमं न तोमं जुजुषाण आ गही च या धया.. (९) हे यजमानो! भे ड़ए जैसे भयंकर श ु भी इं के सामने झुक जाते ह. वे इं हमारी ाथना वीकार करने क कृपा कर. इं हम ववेक व अद्भुत बु दान करने क कृपा कर. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ ा नी रोचना दवः प र वाजेषु भूषथः. त ां चे त
वीयम्.. (१०)
हे इं ! हे अ न! यह द गुण आप दोन के लए वीरता का प रचायक है. आप गुण पी धन से वगलोक म शोभायमान और भू षत होते ह. (१०) इ ा नी अपस पयुप
य त धीतयः. ऋत य प या ३ अनु.. (११)
हे इं ! हे अ न! होता ऋत् (स य) के पथ का अनुगमन कर के स जाते ह. (११)
क ओर समीप
इ ा नी त वषा ण वां सध था न यां स च. युवोर तूय हतम्.. (१२) हे इं ! हे अ न! आप दोन क श और व ा हतकारी भाव से काय करती है. आप शी काय करने क साम य रखते ह. (१२) क वेद सुते सचा पब तं कद् वयो दधे. अयं यः पुरो व भन योजसा म दानः श य धसः.. (१३) इं और उन क आयु को कौन जान सकता है? वे श ु के नगर को अपने ओज से न करने वाले ह. वे मदम त रहते ह और सुर ा कवचधारी ह. (१३) दाना मृगो न वारणः पु ा च रथं दधे. न क ् वा न यमदा सुते गमो महा र योजसा.. (१४) हे इं ! आप महान, वचरण कता और आदरणीय ह. आप अपने बल स हत य म पधारने क कृपा क जए. आप को रथ ले कर य म आने से भला कौन रोक सकता है? आप श ु को वैसे ही खोजते ह, जैसे मतवाला हाथी अपने श ु को खोजता है. (१४) य उ ः स न ् टतः थरो रणाय स कृतः. य द तोतुमघवा शृणव वं ने ो योष या गमत्.. (१५) हे इं ! हमारी सं कृत म रची ई तु तय को सुन कर आप अव य ही कह और नह जाएंगे. आप हमारे ही य म आने क कृपा करगे. वे रण (यु ) म थर, अ श से स जत व उ रहते ह. (१५)
चौथा खंड पवमाना असृ त सोमाः शु ास इ दवः. अ भ व ा न का ा.. (१) हे सोम! आप का रस प व व चमक ला है. उसे सभी का सं का रत कया जाता है. (१) पवमाना दव पय त र ादसृ त. पृ थ ा अ ध सान व.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(वेद मं ) के साथ
हे सोम! आप का रस प व और वह वगलोक से धरती के उ च शखर को पश करता आ बहता है. (२) पवमानास आशवः शु ा असृ म दवः. न तो व ा अप
षः.. (३)
हे सोम! आप का रस प व और चमक ला है. वह ( वा य संबंधी) सभी गड़ब ड़य का नाश करता है. आप ज द ोणकलश म पधारते ह. (३) तोशा वृ हणा वे स ज वानापरा जता. इ ा नी वाजसातमा.. (४) हे इं ! हे अ न! आप वृ नाश से संतोष करते ह. आप को कोई परा जत नह कर सकता. आप उपासक को चुर धन दे ते ह. हम आप क उपासना करते ह. (४) वामच यु थनो नीथा वदो ज रतारः. इ ा नी इष आ वृणे.. (५) हे इं ! हे अ न! हम मनोकामना पू त के लए आप का वरण करते ह. हम वै दक मं से व साम गागा कर आप क उपासना करते ह. (५) इ ा नी नव त पुरो दासप नीरधूनुतम्. साकमेकेन कमणा.. (६) हे इं ! हे अ न! दास और उन क प नय के नगर आप ने एक साथ एक काय (यु ) से ही कंपकंपा कर न कर दए. हम आप दोन क तु त करते ह. (६) उप वा र वसं शं य व तः सह कृत. अ ने ससृ महे गरः.. (७) हे अ न! आप (अर णय म) रगड़ से पैदा होते ह. आप दशनीय ह. हम वाणी से आप क तु त करते ह. हम आप क समीपता चाहते ह. हम आप क उपासना करते ह. (७) उप छाया मव घृणेरग म शम ते वयम्. अ ने हर यसं शः.. (८) हे अ न! आप सोने क तरह चमक ले ह. हम आप से उसी कार सुख पाते ह, जस कार लोग गरमी म छाया से पाते ह. (८) य उ इव शयहा त मशृ ो न व
सगः. अ ने पुरो रो जथ.. (९)
हे अ न! आप उ , वीर व धनुधर ह. आप क वालाएं (बैल के) तीखे स ग क भां त ह. आप ने मन के ठकान को न कया है. (९) ऋतावानं वै ानरमृत य यो तष प तम्. अज ं घममीमहे.. (१०) हे अ न! आप स यवान ह. सभी मनु य के लए अमृत जैसे क याणकारी ह. आप यो त के वामी व अज ह. हम आप से य क र ा करने का अनुरोध करते ह. (१०) य इदं
तप थे य
य व
रन्. ऋतूनु सृजे वशी.. (११)
हे अ न! आप स य के माग म आने वाली
कावट को र हटाते ह. संसार को
******ebook converter DEMO Watermarks*******
वशीभूत रखते ह. आप क कृपा से संसार व तृत होता है. आप ऋतु (११) अ नः
येषु धामसु कामो भूत य भ
का सृजन करते ह.
य. स ाडेको वराज त.. (१२)
हे अ न! आप एकमा स ाट् ह. आप अपने य धाम म सुशो भत होते ह. आप अतीत और भ व य म चाहने वाल क इ छा पूरी करते ह. (१२)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
उ ीसवां अ याय पहला खंड अ नः
नेन ज मना शु भान त व ३
वाम्. क व व ेण वावृधे.. (१)
हे अ न! आप काशमान व मेधावी ह. पुराने तो कर के आप का व तार करते ह. (१)
से यजमान आप को
व लत
ऊज नपातमा वे ऽ नं पावकशो चषम्. अ म य े व वरे.. (२) हे अ न! हम अपने इस य म अ न को आमं त करते ह. आप प व व काशमान ह. आप ऊजा को नीचे नह गरने दे ते ह. (२) स नो म मह वम ने शु े ण शो चषा. दे वैरा स स ब ह ष.. (३) हे अ न! आप अपनी चमक ली लपट से अ य दे वता वरा जए. आप हमारे म ह. (३)
के साथ कुश के आसन पर
उ े शु मासो अ थू र ो भ द तो अ वः. नुद व याः प र पृधः.. (४) हे सोम! प थर से कूट कर आप का रस नकाला जाता है. आप क उमड़ती ई लहर से रा स का नाश होता है. जो हम से त पधा करते ह, आप उन श ु का नाश करने क कृपा क जए. (४) अया नज नरोजसा रथस े धने हते. तवा अ ब युषा दा.. (५) हे सोम! आप साम यवान व श न ु ाशक ह, रथ को साथ ले कर श ु क जए. हम दय से आप से धन दे ने के लए अनुरोध करते ह. (५)
को न
अ य ता न नाधृषे पवमान य ढ् या. ज य वा पृत य त.. (६) यु
हे सोम! आप प व ह. आप के ढ़ त से रा स ग त नह कर सकते. जो श ु करना चाहते ह, आप उन श ु का नाश क जए. (६) त
ह व त मद युत
ह र नद षु वा जनम्. इ
म ाय म सरम्.. (७)
सोमरस मद बरसाने वाला, फू तदायक व हरी कां त वाला है. इं हेतु सोम को नद के जल से े रत कया जाता है. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ म ै र द ह र भया ह मयूररोम भः. मा वा के च येमु र पा शनो ऽ त ध वेव ताँ इ ह.. (८) हे इं ! आप के घोड़े मनोहर ह. उन के बाल मोरपंख जैसे ह. आप उन घोड़ स हत य म पधारने क कृपा क जए. शकारी आप क राह म जाल न फैला सक, अतः आप उ ह रे ग तान म प ंचा द जए. (८) वृ खादो वलं जः पुरां दम अपामजः. थाता रथ य हय र भ वर इ ो ढा चदा जः.. (९) हे इं ! आप घोड़ से सजे ए रथ म बैठ कर बलवान श ु को भी हरा दे ते ह. आप उन क नग रय का भी नाश कर दे ते ह. आप रा स के बलनाशक ह. आप क वृ य का भी नाश करते ह. (९) ग भीराँ उदधी रव तुं पु य स गा इव. सुगोपा यवसं धेनवो यथा दं कु या इवाशत.. (१०) हे इं ! गंभीर समु को जैसे छोटे तालाब अ धक जल दे कर पोसते ह, वैसे ही आप यजमान क मनोकामना पूरी कर के उ ह पोसते ह. वाले जैसे गाय को घास चारा डाल कर पोसते ह, वैसे ही यजमान इं को सोमरस भट कर के पोसते ह. (१०) यथा गौरो अपा कृतं तृ य े यवे रणम्. आ प वे नः प वे तूयमा ग ह क वेषु सु सचा पब.. (११) हे इं ! आप हमारे दो त क तरह आइए. आप उसी ललक से आइए, जैसे यास से ाकुल हरण तालाब के पास जाता है. आप क व के नकट सोमपान करने क कृपा क जए. (११) म द तु वा मघव े दवो राधोदे याय सु वते. आमु या सोमम पब मू सुतं ये ं त धषे सहः.. (१२) हे इं ! आप धनवान ह. सोमरस आप को मदम त बना दे . आप इस सोमरस को पी जए. आप हम और हमारे बेट को खूब धन द जए. (१२) वम श सषो दे वः श व म यम्. न वद यो मघव त म डते वी म ते वचः.. (१३) हे इं ! आप हमारी शंसा करते ह. आप सब से ब ढ़या सुख दे ते ह. हम आप ही से ाथना करते ह, य क आप के अ त र कोई सरा उतना धनवान और सुखदायक नह है. (१३) मा ते राधा
स मा त ऊतयो वसो ऽ मा कदा चना दभन्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ा च न उप ममी ह मानुष वसू न चष ण य आ.. (१४) हे इं ! आप के धन कभी भी हमारे लए हा नकारक न ह . आप के र ा साधन भी कभी हम हा न न प ंचाएं. आप संसार के शरणदाता ह. आप मनु य को सभी धन दे ने क कृपा क जए. (१४)
सरा खंड त या सूनरी जनी
ु छ ती प र वसुः. दवो अद श
हता.. (१)
उषा सूय क बेट ह. वे े नारी ह. वे अपना काश चार ओर फैलाती ई जाती ह. दन के न दखाई दे ने पर वे अपना काश फैलाती ह. (१) अ ेव च ा षी माता गवामृतावरी. सखा भूद नो षाः.. (२) उषा र मय क मां ह. वे र मयां अद्भुत और चमक ली ह. वे अ नीकुमार क म ह. (२) उत सखा य नो त माता गवाम स. उतोषो व व ई शषे.. (३) उषा उपासना के यो य ह. वे र मय क मां ह और अ नीकुमार क म ह. (३) एषो उषा अपू ा
ु छत
हे अ नी! उषा अपूव, करते ह. (४)
या दवः. तुषे वाम ना बृहत्.. (४) य व दन लाती ह. हम वशाल तो
से उन क उपासना
या द ा स धुमातरा मनोतरा रयीणाम्. धया दे वा वसु वदा.. (५) हे अ नीकुमारो! आप बु मनोहर व धनवान ह. (५)
मान के धनदाता ह. आप न दय को पैदा करने वाले,
व य ते वां ककुहासो जूणायाम ध व प. य ा
रथो व भ पतात्.. (६)
जब आप दोन अ नीकुमार का रथ प ी क भां त उड़ कर ऊपर जाता है तब आप दोन के लए वग म भी तो पढ़े जाते ह. (६) उष त च मा भरा म यं वा जनीव त. येन तोकं च तनयं च धामहे.. (७) हे उषा! आप धनवती और य काय भी आरंभ करने वाली ह. आप अद्भुत वैभव द जए, जस से हम संतान और अपने म का भरणपोषण करने म समथ हो सक. (७) उषो अ ेह गोम य ाव त वभाव र. रेवद मे
ु छ सूनृताव त.. (८)
हे उषा! आप गोवती व अ वती ह. आप रा
के बाद दन लाने वाली ह. आप हम पु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
और धन द जए. (८) युं वा ह वा जनीव य ाँ अ ा णाँ उषः. अथा नो व ा सौभगा या वह.. (९) हे उषा! आप य काय आरंभ कराने वाली व धनवती ह. आप अपने रथ म लाल घोड़ को जो तए. हम संसार म सौभा यवान बनाने क कृपा क जए. (९) अ ना व तर मदा गोम
ा हर यवत्. अवा थ
समनसा न य छतम्.. (१०)
हे अ नीकुमारो! आप श ु का नाश करने वाले ह. आप हम गोवान बनाइए. आप अपने सुनहरे रथ को मन से हमारे य म लाने क कृपा क जए. (१०) एह दे वा मयोभुवा द ा हर यवतनी. उषबुधो वह तु सोमपीतये.. (११) उषा के साथ उद्बु (जा त) सुनहरी करण, इन सुखमय अ नीकुमार को सोमपान करने के लए हमारे य म लाने क कृपा कर. (११) या व था ोकमा दवो यो तजनाय च थुः. आ न ऊज वहतम ना युवम्.. (१२) हे अ नीकुमारो! आप वगलोक से य के लए यो त ला कर लोग का हत करने क कृपा क जए. आप दोन हम अ वान व ऊजावान बनाने क कृपा क जए. (१२)
तीसरा खंड अ नं तं म ये यो वसुर तं यं य त धेनवः. अ तमव त आशवो ऽ तं न यासो वा जन इष
तोतृ य आ भर.. (१)
हे अ न! आप सव ापक ह. हम आप क उपासना करते ह. घोड़े व गाएं जन क शरण म ह, हम यजमान को भी आप अपनी शरण म ली जए. हम न य नयम नभाने वाले और ह व दे ने वाले ह. आप हम अ दान क जए. हम आप क उपासना करते ह. (१) अ न ह वा जनं वशे ददा त व चष णः. अ नी राये वाभुव स ीतो या त वाय मष
तोतृ य आ भर.. (२)
हे अ न! आप यजमान को अ वान बनाने वाले, ापक वाले और पूजनीय ह. आप स हो कर आसानी से यजमान को धन दे ते ह. आप उपासक को भरपूर धन दे ने क कृपा क जए. (२) सो अ नय वसुगृणे सं यमाय त धेनवः. समव तो रघु वः स सुजातासः सूरय इष
तोतृ य आ भर.. (३)
हे अ न! सारी गौएं तेज ग त वाले घोड़े व व ान् आप क शरण म ह. आप पूजनीय ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. आप यजमान को भरपूर अ
दान करने क कृपा क जए. (३)
महे नो अ बोधयोषो राये द व मती. यथा च ो अबोधयः स य व स वा ये सुजाते अ सूनृते.. (४) हे उषा! आप काशवती ह. आप हम सभी को पहले क तरह आज भी बो धत (जा त) करने क कृपा क जए. आप हम पर भी वैसी ही कृपा क जए, जैसी आप ने व य के पु स य वा पर क . जैसा आप ने उ ह (स य वा को) जा त कया, वैसे ही हम भी जा त करने क कृपा क जए. (४) या सुनीथे शौच थे ौ छो हत दवः. या ु छ सहीय स स य व स वा ये सुजाते अ सूनृते.. (५) हे उषा! आप वगलोक क हता (पु ी) ह. आप शुच थ के पु सुनीथ हेतु अंधेरे को भगा कर कट . आपने सुनीथ पर जैसी कृपा क , वैसी ही आप व य के पु स य वा पर भी क जए. (५) सा नो अ ाभर सु ु छा हत दवः. यो ौ छः सहीय स स य व स वा ये सुजाते अ सूनृते.. (६) हे उषा! आप वगलोक क हता (बेट ) ह. आप हम भरपूर धन दे ने व आज हमारे अंधेरे ( ाकृ तक और अ ान प दोन ) को न करने क कृपा क जए. आप स य व पा ह. आप व य के पु स य वा पर अपनी कृपा क जए. (६) त यतम रथं वृषणं वसुवाहनम्. तोता वाम नावृ ष तोमे भभूष त त मा वी मम ुत
हवम्.. (७)
हे अ नीकुमारो! आप का रथ वैभव व परा म धारण करता है. आप का रथ उपासक क ाथना से सुशो भत होता है. आप हमारी ाथना को सुनने क कृपा क जए. (७) अ यायातम ना तरो व ा अह सना. द ा हर यवतनी सुषु णा स धुवाहसा मा वी मम ुत
हवम्.. (८)
हे अ नीकुमारो! आप सर का अ त मण कर के (लांघ कर) हमारे पास पधारने क कृपा क जए. आप श ुनाशक ह. आप क कृपा से हम अपने श ु पर वजय पा सक. आप सोने के रथ वाले ह. आप धनवान ह. आप नद के समान बहते ह. आप हमारी ाथना को सुनने क कृपा क जए. (८) आ नो र ना न ब ताव ना ग छतं युवम्. ा हर यवतनी जुषाणा वा जनीवसू मा वी मम ुत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हवम्.. (९)
हे अ नीकुमारो! आप सोने के रथ वाले, श ुनाशी, धनधारी, धनधा य वाले व य ेमी ह. आप हमारे य म पधा रए और त त होइए. आप हमारी ाथना को सुनने क कृपा क जए. (९)
चौथा खंड अबो य नः स मधा जनानां त धेनु मवायतीमुषासम्. य ा इव वयामु जहानाः भानवः स ते नाकम छ.. (१) हे अ न! आप लोग (यजमान ) क स मधा से द त होते ह. न द से उठ कर गौएं जैसे जा त होती ह, वैसे ही आप जा त ह. पेड़ क शाखाएं जैसे आकाश क ओर फैलती ह, वैसे ही आप क लपट वग क ओर फैलती ह. (१) अबो ध होता यजथाय दे वानू व अ नः सुमनाः ातर थात्. स म य शदद श पाजो महान् दे व तमसो नरमो च.. (२) हे अ न! आप य के बल आधार ह. दे व के लए (ह व प ंचाने हेतु) आप को व लत कया जाता है. आप ऊ वगामी ह व सुबह अ छे मन से ऊपर क ओर जाते ह. आप महान ह. आप को हम य दे ख सकते ह. आप दे वता व संसार को अंधकार से र करते ह. (२) यद गण य रशनामजीगः शु चरङ् े शु च भग भर नः. आ णा यु यते वाजयं यु ानामू व अधय जु भः.. (३) हे अ न! आप बाधाएं व अंधेरे को र करते ह. आप संसार को काशमान व यजमान घी क आ तय से बलवान बनाते ह. आप ऊ वगामी हो कर उस घी वाली आ तय को वीकारते ह. (३) इद े ं यो तषां यो तरागा च ः केतो अज न व वा. यथा सूता स वतुः सवायैवा रा युषसे यो नमारैक्.. (४) हे उषा! आप सभी यो तय से े यो त वाली ह. आप क यो त सव फैलती है. सभी व तु को यो तमय बना दे ती ह. स वता के अ त होने के बाद रा उषा को उ प होने के लए जगह दे ती ह. (४) श सा शती े यागादारैगु कृ णा सदना य याः. समानब धू अमृते अनूची ावा वण चरत आ मनाने.. (५) हे उषा! आप सूय का चमक ला व प ले कर पैदा और रा काले रंग का. सूय दोन के समान प से बंधु ह, दोन अमर ह. वगलोक म एक के बाद एक आतीजाती ह. दोन एक सरे का भाव समा त करती ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समानो अ वा व ोरनंत तम या या चरतो दे व श .े न मेथेते न त थतुः सुमेके न ोषासा समनसा व पे.. (६) दोन बहन (उषा और रा ) क एक ही राह है. वह राह अनंत है. उसी राह पर ये दोन एक सरे के पीछे चलती ह, भले ही इन के व प एक सरे से अलग ह पर इन के मन समान ह. ये दोन अपनेअपने काय म लगी रहती ह. (६) आ भा य न षसामनीकमु ाणां दे वया वाचो अ थुः. अवा चा नून र येह यातं पी पवा सम ना घमम छ.. (७) अ न व लत हो गए ह. उषा के कट होते ही अ न व लत हो जाते ह. द ाथनाएं शु हो गई ह. अ नीकुमार रथ म वराज गए ह. हम उन से सोमरस पीने के लए य म पधारने का अनुरोध करते ह. (७) नस कृतं ममीतो गम ा त नूनम नोप तुतेह. दवा भ प वे ऽ वसाग म ा यव त दाशुषे श भ व ा.. (८) हे अ नीकुमारो! आप प र कृत पदाथ को हण करने क कृपा क जए. य थान के समीप आने वाले आप के लए उपासना क जाती है. दन के आते ही आप त त हो जाते ह. आप यजमान को त ा ा त कराने क कृपा क जए. (८) उता यात संगवे ातर ो म य दन उ दता सूय य. दवा न मवसा श तमेन नेदान पी तर ना ततान.. (९) हे अ नीकुमारो! सूय उगने के समय, दन के म य म, शाम और दन रात म आप पधा रए. आप अपने र ा साधन स हत पधारने क कृपा क जए. आप के ये साधन दनरात सुखदायी ह. अभी तक आप के बना सोमरस पीने का काय शु नह कया गया है. (९)
पांचवां खंड एता उ या उषसः केतुम त पूव अध रजसो भानुम ते. न कृ वाना आयुधानीव धृ णवः त गावो ऽ षीय त मातरः.. (१) हे उषा! आप उजाला फैलाती ह. आप के आने से पूव दशा म काश हो जाता है. वीर अपने आयुध को जैसे चमकाते ह, वैसे ही आप संसार को चमचमा दे ती ह. माता उषा त दन आती और जाती ह. (१) उदप त णा भानवो वृथा वायुजो अ षीगा अयु त. अ ुषासो वयुना न पूवथा श तं भानुम षीर श युः.. (२) उषा के आते ही लाल करण आकाश म छा गई ह. अपनेआप जुते ए रथ से वे चेतना ******ebook converter DEMO Watermarks*******
फैलाती ह तथा सूय क सेवा करती ह. (२) अच त नारीरपसो न व भः समानेन योजनेना परावतः. इषं वह तीः सुकृते सुदानवे व ेदह यजमानाय सु वते.. (३) जो यजमान अचना करते ह, सोमरस को प र कृत करते ह, अ छे काय करते ह, दान करते ह, उन यजमान को उषा अ व बल दे ती ह और काशमान बना दे ती ह. यु म स जत वीर क भां त वे आकाश क शोभा बढ़ा दे ती ह. (३) अबो य न म उदे त सूय ू ३ षा ा म ावो अ चषा. आयु ाताम ना यातवे रथं ासावी े वः स वता जग पृथक्.. (४) अ न वेद म व लत हो गए ह. सूय आकाश म उ दत हो गए ह. उषा महान ह. वे अपनी तेज वता से सब को स कर दे ती ह. हे अ नीकुमारो! आप अपने घोड़े रथ म जो तए, यहां थान क रए. सूय सभी को अलगअलग काय करने क ेरणा दे रहे ह. (४) यु ु ाथे वृषणम ना रथं घृतेन नो मधुना मु तम्. अ माकं पृतनासु ज वतं वयं धना शूरसाता भजेम ह.. (५) हे अ नीकुमारो! आप अपने रथ म घोड़े जोत कर हमारे य म प ं चए. हम घृत से पु क रए, हम आ म ान द जए, हम श ु को जीतने क मता द जए. हम धन पा सक. हम आप को भजते ह. (५) अवाङ् च ो मधुवाहनो रथो जीरा ो अ नोयातु सु ु तः. ब धुरो मघवा व सौभगः शं न आ व पदे चतु पदे .. (६) हे अ नीकुमारो! आप रथ पर वराज कर य म पधा रए. आप का रथ तीन प हय वाला, मधुर अमृतधारी, तगामी, अ जुत, सराहनीय व तीन लोग के बैठने क जगह वाला है. वह चुर ऐ यवान और सौभा यवान है. आप सब के त क याणकारी भावना रख कर हमारे य थान म पधारने क कृपा क जए. (६) ते धारा अस तो दवो न य त वृ यः. अ छा वाज
सह णम्.. (७)
हे सोम! आप क झरने वाली धाराएं वैसे ही बरसती ह, जैसे वगलोक से बरसात होती है. आप क धाराएं अ बरसाती ह. (७) अभ
या ण का ा व ा च ाणो अष त. हर तु
हे सोम! आप सव य, सव ह. (८)
ान आयुधा.. (८)
ा व ह रताभ ह. आप श ु
स ममृजान आयु भ रभो राजेव सु तः. येनो न व
पर आयुध से हार करते
सु षीद त.. (९)
हे सोम! आप े कमा (अ छे काय करने वाले) ह. यजमान आप को प र कृत करते ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ह. आप राजा के समान व अ छे संक प वाले ह. बाज प ी जैसे वेगवान होता है, वैसे ही आप वेगवान ह. आप ब त वेग से जल म मल जाते ह. (९) स नो व ा दवो वसूतो पृ थ ा अ ध. पुनान इ दवा भर.. (१०) हे सोम! आप वगलोक, पृ वीलोक और सव क याण दान करने क कृपा क जए. (१०)
ा त ह. आप हम सब कार का
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बीसवां अ याय पहला खंड ा य धारा अ र वृ णः सुत यौजसः. दे वाँ अनु भूषतः.. (१) हे सोम! आप का रस बलव क है. दे वता पर अनुकूल भाव डालने वाला है. सोमरस क धाराएं वेगवती व ोणकलश म सुशो भत हो रही ह. (१) स तं मृज त वेधसो गृण तः कारवो गरा. यो तज ानमु यम्.. (२) हे सोम! आप काशमान, उपासना के यो य, अ के समान वेगशाली और व ान् ह. अ वयुगण (पुरो हत) वाणीमय ाथना से सोमरस को प र कृत करते ह. (२) सुषहा सोम ता न ते पुनानाय भूवसो. वधा समु मु य.. (३) हे सोम! आप धनवान, उपासना के यो य, प व , ब त श आप समु के समान इस पा को भर दे ने क कृपा क जए. (३) एष
शाली ह और र क ह.
ा य ऋ वय इ ो नाम ुतो गृणे.. (४)
हे इं ! आप मौसम के अनुसार बढ़ोतरी पाते ह. आप य जैसे काम से बढ़ोतरी पाते ह. आप बु मान और ानी ह. हम आप क उपासना करते ह. (४) वा म छवस पते य त गरो न संयतः.. (५) हे इं ! आप महान व बलवान ह. सदाचारी पु ष के पास जैसे क याण हेतु जाया जाता है, वैसे ही हमारी वाणीमय ाथनाएं आप के पास प ंचती ह. (५) व ुतयो यथा पथा इ
व तु रातयः.. (६)
हे इं ! राजपथ से जैसे सरे पथ मलते ह, वैसे ही आप से भां तभां त के दान अनुदान ा त होते ह. (६) आ वा रथं यथोतये सु नाय वतयाम स. तु वकू ममृतीषह म ं श व ं स प तम्.. (७) हे इं ! आप अ छे मन वाले ह. आप स प त ह. आप े मागगामी ह. हम सुख और क याण के लए उसी कार आप क उपासना करते ह, जस कार रथ क प र मा क जाती है. (७) तु वशु म तु व तो शचीवो व या मते. आ प ाथ म ह वना.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म
हे इं ! आप म हमाशाली व श ा त ह. (८)
शाली ह. आप े कम करने वाले और सम त व
य य ते म हना महः प र माय तमीयतुः. ह ता व हे इं ! आप अपने हाथ म वणमय व
हर ययम्.. (९)
धारण करते ह. आप क म हमा अनंत है. (९)
आ यः पुरं ना मणीमद दे द यः क वनभ यो ३ नावा. सूरो न वां छता मा.. (१०) हे अ न! आप सूय के समान काशमान ह. यजमान य वेद बनाते ह. आप उन य वे दय को व लत करते ह. आप वेगवान घोड़े क तरह ह. वायु क भां त ग तशील ह. आप रदश और अनेक प म सुशो भत होते ह. (१०) अ भ ज मा ी रोचना न व ा रजा होता य ज ो अपा सध थे.. (११)
स शुशुचानो अ थात्.
हे अ न! आप पृ वीलोक, अंत र लोक और वगलोक तीन को का शत करते ह. आप दे वता को बुलाने वाले ह. आप जल म बड़वानल के प म वराजमान रहते ह. आप य थान म य ा न के प म सुशो भत होते ह. (११) अय स होता यो ज मा व ा दधे वाया ण व या. मत यो अ मै सुतुको ददाश.. (१२) हे अ न! जो ज मा है ( ा ण), जो वीर ह, जो जग के धारक ह, वे यजमान अ न का आ ान करने वाले ह. अ न यजमान को े संतान दान करते ह. (१२) अ ने तम ा ं न तोमैः
तुं न भ ं
द पृशम्. ऋ यामा त ओहैः.. (१३)
हे अ न! आप इं को उसी तरह ह व प ंचाते ह जैसे उन के घोड़े उ ह नधा रत थान पर प ंचाते ह. आप वैसे ही हमारा क याण करते ह, जैसे य हमारा क याण करते ह. आप दय ाही ह. हम उपासना और ाथना से आप को भजते ह. (१३) अधा
ने
तोभ य द
य साधोः. रथीऋत य बृहतो बभूथ.. (१४)
हे अ न! आप बल क बढ़ोतरी करने वाले, क याणकारी, मनोकामना पूरक ह और ऋत् (स य) व प ह. आप य के मु य कताधता ह. (१४) ए भन अकभवा नो अवाङ् व ३ ण यो तः. अ ने व े भः सुमना अनीकैः.. (१५) हे अ न! आप सुमन (अ छे मन वाले) और सूय क तरह यो तमान ह. आप सभी पूजनीय दे व के साथ हमारे य म पधारने क कृपा क जए. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सरा खंड अ ने वव व षस राधो अम य. आ दाशुषे जातवेदो वहा वम ा दे वाँ उषबुधः.. (१) हे अ न! आप अमर, सव ाता और सव ा ह. आप उषा से अनेक कार का धन ा त क जए. उस धन को आप यजमान को दान करने व वशेष प से जा त दे व को य म लाने क कृपा क जए. (१) जु ो ह तो अ स ह वाहनो ऽ ने रथीर वराणाम्. सजूर यामुषसा सुवीयम मे धे ह वो बृहत्.. (२) हे अ न! आप दे व त, ह वाहक व माग के रथी ह. आप उषा और अ नीकुमार स हत हम श शाली और यश वी बनाने क कृपा क जए. (२) वधुं द ाण समने ब नां युवान स तं प लतो जगार. दे व य प य का ं म ह वा ा ममार स ः समान.. (३) हे यजमानो! भले ही कोई कई काय करने क मता रखता हो, भले ही कोई कतना ही अ धक श ुनाशक हो, कतु ऐसे युवा को भी वृ ाव था सत कर लेती है. वृ ाव था के बाद मृ यु पाने वाला पुनः ज म पा लेता है. यह सब इं क कृपा से ही संभव है. हम उन के इस महान काय को बारबार मरण करना चा हए. (३) शा मना शाको अ णः सुपण आ यो महः शूरः सनादनीडः. य चकेत स य म मोघं वसु पाहमुत् जेतोत दाता.. (४) हे इं ! आप ढ़मन, सवश मान व सुपण प ी के समान ह. आप जो ठान लेते ह, वही करते ह. आप श पूवक जो वैभव ा त करते ह, उसे अपने उपासक को दे दे ते ह. (४) ऐ भददे वृ या पौ या न ये भरौ द्वृ ह याय व ी. ये कमणः यमाण य म ऋते कममुदजाय त दे वाः.. (५) हे इं ! आप म द्गण के सहयोग से पु षाथपूण काम करते ह. आप व धारी व वृ नाशक ह. आप श ुनाश हेतु जलवृ करते ह. महान काय करने वाले अ य दे वता भी उन का सहयोग करते ह. (५) अ त सोमो अय
सुतः पब य य म तः. उत वराजो अ ना.. (६)
हे सोम! सोमरस को म द्गण के लए नचोड़ा गया है. इसे म द्गण और अ नीकुमार सु च से पीते ह. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पब त म ो अयमा तना पूत य व णः.
षध थ य जावतः.. (७)
हे सोम! प र कृत कया आ सोमरस तीन बरतन म रखा आ है. म , अयमा और व ण उस को पीने क कृपा कर. (७) उतो व य जोषमा इ ः सुत य गोमतः. ातह तेव म स त.. (८) हे इं ! ातः जैसे होता य म उपासना करने क इ छा रखते ह, वैसे ही आप ातः सोमरस को पीने क इ छा रखते ह. वह प र कृत और गाय के ध म मला आ रहता है. (८) ब महाँ अ स सूय बडा द य महाँ अ स. मह ते सतो म हमा प न म म ा दे व महाँ अ स.. (९) हे सूय! आप महान ह. हे काशकता! आप महान ह. हे तु य! आप महान ह. हम आप क महानता क उपासना करते ह. आप क म हमा महान है. (९) बट् सूय वसा महाँ अ स स ा दे व महाँ अ स. म ा दे वानामसुयः पुरो हतो वभु यो तरदा यम्.. (१०) हे सूय! आप का यश महान है. दे व म आप वशेष महान ह. आप तम नाशक, दे वता के नेता ह. आप क यो त अमर व सव ापक है. (१०)
तीसरा खंड उप नो ह र भः सुतं या ह मदानां पते. उप नो ह र भः सुतम्.. (१) हे इं ! आप सोम के वामी ह. आप के घोड़े मनोहर ह. आप उन घोड़ के ारा इस य म अव य ही पधारने क कृपा क जए. (१) ता यो वृ ह तमो वद इ ः शत तुः. उप नो ह र भः सुतम्.. (२) हे इं ! आप सैकड़ कम करने वाले ह. आप वृ हंता ह. आप अपने घोड़ से इस य म अव य ही पधारने क कृपा कर. (२) व
ह वृ ह ेषां पाता सोमानाम स. उप नो ह र भः सुतम्.. (३)
हे इं ! आप वृ हंता एवं सोमरस पीने के इ छु क ह. आप अपने घोड़ से हमारे य म पधारने क कृपा क जए. (३) वो महे महेवृधे भर वं चेतसे सुम त कृणु वम्. वशः पूव ः चर चष ण ाः.. (४) हे इं ! मनु य अपने धन क बढ़ोतरी के लए आप को सोमरस सम पत करते ह. कतु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऐसी े ाथना से आप क उपासना करते ह. आप जापालक ह. आप ह व दे ने वाले यजमान के पास पधारने क कृपा क जए. (४) उ चसे म हने सुवृ म ाय जनय त व ाः. त य ता न न मन त धीराः.. (५) हे इं ! आप वशाल और महान ह. यजमान आप क धीर पु ष इं के त को डगमगाने नह दे ते ह. (५)
तु त व ह व अ पत करते ह.
इ ं वाणीरनु म युमेव स ा राजानं द धरे सह यै. हय ाय बहया समापीन्.. (६) हे इं ! आप सब के राजा ह. आप के गु से के आगे कोई नह टक सकता. आप क उपासना करने से श ु हारते ह. हम अपने बंधुबांधव को भी उन क उपासना के लए े रत करते ह. (६) य द यावत वमेतावदहमीशीय. तोतारम धषे रदावसो न पाप वाय र
सषम्.. (७)
हे इं ! हम भी आप के समान धनप त होने क इ छा रखते ह. आप हम यजमान को पोषक धन द जए. आप पा पय को धन मत द जए. हम उपासक आप से यही ाथना करते ह. (७) श ेय म महयते दवे दवे राय आ कुह च दे . न ह वद यमघव आ यं व यो अ त पता च न.. (८) हे इं ! हम कह भी रह पर आप के लए य करने के लए समय व धन नकालते ह. आप के अलावा हमारा कोई घ न नह है, कोई पता के समान सहायक भी (पालक) नह है. (८) ु ी हवं व पपान या े ब धा व याचतो मनीषाम्. ध कृ वा वा य तमा सचेमा.. (९) हे इं ! आप हमारे आमं ण को यान से सुनने क कृपा क जए. आप ा ण व मनी षय क ाथना पर यान द जए. आप हम समान च वाला मान कर हमारे अनुरोध पर यान दे ने क कृपा क जए. (९) न ते गरो अ प मृ ये तुर य न सु ु तमसुय य व ान्. सदा ते नाम वयशो वव म.. (१०) हे इं ! हम आप का नाम (यश) बढ़ाने वाली ाथनाएं करते ह ( तो गाते ह). आप व ान् ह. आप क शूरवीरता को हम जानते ह. हम आप क उपासना करना नह छोड़ सकते. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भू र ह ते सवना मानुषेषु भू र मनीषी हवते वा मत्. मारे अ म मघवं यो कः.. (११) हे इं ! मनु य आप के लए सोमय करते रहे ह. मनीषी आप के लए हवन भी करते रहे ह. य करने वाल को आप अपनेआप से कभी र मत क जए. (११)
चौथा खंड ो व मै पुरोरथ म ाय शूषमचत. अभीके च लोककृ स े सम सु वृ हा. अ माकं बो ध चो दता नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (१) हे यजमानो! आप इं के रथ के सामने उपासना क रए. आप श क उपासना क जए. इं संसार के पालक, वृ हंता व ेरक ह. हमारी हा दक इ छा है क हमारे श ु के धनुष क यंचा टू ट जाए. (१) व सधू रवासृजो ऽ धराचो अह हम्. अश ु र ज षे व ं पु य स वायम्. तं वा प र वजामहे नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (२) हे इं ! आप मेघ को भेदते ह. आप न दय के बहाव म आने वाली कावट को र करते ह. हम आप को ह व भट करते ए स होते ह. हमारी इ छा है क हमारे श ु के धनुष क यंचा टू ट जाए. (२) व षु व ा अरातयो ऽ य नश त नो धयः. अ ता स श वे वधं यो न इ जघा स त. या ते रा तद दवसु नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (३) हे इं ! हम पर आ मण करने वाले को आप वयं अपने श से मार डालते ह. हमारी बु को आप ेरणा द जए. आप हम धना द दान क जए. हमारी हा दक इ छा है क हमारे श ु के धनुष क यंचा टू ट जाए. (३) रेवाँ इ े वत तोता या वावतो मघोनः े ह रवः सुत य.. (४) हे इं ! आप धनवान ह. आप के उपासक भी धनवान हो जाते ह. आप के उपासक को सब कार का धन ा त होता है. (४) उ थं च न श यमानं नागो र यरा चकेत. न गाय ं गीयमानम्.. (५) हे इं ! आप वाणी से तु त न करने वाले अ ानी के भी मन क भावना जानते ह. तु त करने वाल के मन क भावना को भी जानते ह. आप गाया जाता आ साम गायन भी जानते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मा न इ
पीय नवे मा शधते परा दाः. श ा शचीवः शची भः.. (६)
हे इं ! आप हम और अपमान करने वाल के भरोसे मत छो ड़ए. आप प व श ा के ारा शची क तरह प व धन दान क जए. (६) ए या ह ह र भ प क व य सु ु तम्. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (७) हे इं ! आप घोड़ के ारा पधा रए. आप क व क तु त सु नए. हे वगलोकवासी! हम आप के राज म सुखी ह. (७) अ ा व ने मरेषामुरां न धूनुते वृकः. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (८) हे इं ! सोम को कूटने वाले प थर भी मानो बोलते ए आप को बुला रहे ह. हे वगलोकवासी! हम आप के राज म सुखी ह. (८) आ वा ावा वद ह सोमी घोषेण व तु. दवो अमु य शासतो दवं यय दवावसो.. (९) हे सोम! कूटने वाला प थर आवाज करता आ सोमरस नकाल रहा है. उस से नकलने वाली सोम क धारा वैसे ही कांप रही है, जैसे भे ड़ए के डर से भेड़ कांपती है. हम वगलोकवासी इं के राज म सुखी ह. आप पधा रए. (९) पव व सोम म दय (१०)
ाय मधुम मः.. (१०)
हे सोम! आप प व ह. आप मदमाते ए इं के लए े रस झरने क कृपा क जए. ते सुतासो वप तः शु ा वायुमसृ त.. (११)
हे सोम! आप काशमान व बु जाता है. (११)
व क ह. आप को वायु दे व के लए प र कृत कया
असृ ं दे ववीतये वाजय तो रथा इव.. (१२) हे सोम! आप को अ धन के इ छु क यजमान ऐसे तैयार करते ह, जैसे रथ को तैयार कया जाता है. (१२)
पांचवां खंड अ न होतारं म ये दा व तं वसोः सूनु य ऊ वया व वरो दे वो दे वा या कृपा.
सहसो जातवेदसं व ं न जातवेदसम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
घृत य व ा मनु शु शो चष आजु ान य स पषः.. (१) हे अ न! आप को हम होता, धनवान, सव ाता और ा ण (य वे ा) मानते ह. आप ऊंचाई क ओर वयं अपना माग बनाते ह. आप घी क आ तय से चमक ले हो जाते ह. हम आप क उपासना करते ह. (१) य ज ं वा यजमाना वेम ये म रसां व म म भ व े भः शु प र मान मव ा होतारं चषणीनाम्. शो च केशं वृषणं य ममा वशः ाव तु जूतये वशः.. (२)
म म भः.
हे अ न! आप मनीषी ह. ा ण ारा रचे गए मं से हम य म आप का आ ान करते ह. आप होता, सव ा व ऊंची लपट वाले ह. हम अपनी र ा के लए आप क र ा करते ह. (२) स ह पु चदोजसा व मता द ानो भव त ह तरः परशुन ह तरः. वीडु च य समृतौ ुव नेव य थरम्. न षहमाणो यमते नायते ध वासहा नायते.. (३) हे अ न! परशु (फरसे) से जैसे श ु का नाश कया जाता है, वैसे ही आप क साम य से श ु म भय फैल जाता है, उन का नाश हो जाता है. आप क कृपा से कतना ही बलशाली श ु य न हो, वह आप के वशीभूत हो जाता है. आप धनुषधारी वीर जैसे ह. आप प थर जैसे कठोर श ु का भी नाश कर दे ते ह. (३) अ ने तव वो वयो म ह ाज ते अचयो वभावसो. बृहद्भानो शवसा वाजमु यां ३ दधा स दाशुषे कवे.. (४) हे अ न! आप क ह व सराहनीय है. आप क व ( व ान्) और काशमान ह. आप क वशाल लपट सुशो भत होती ह. आप यजमान को धन दे ते ह. (४) पावकवचाः शु वचा अनूनवचा उ दय ष भानुना. पु ो मातरा वचर ुपाव स पृण रोदसी उभे.. (५) हे अ न! आप क करण प व , चमक ली व खर ह. आप सूय जैसे उदय होते ह, फर आकाश म पूण काशमय हो जाते ह. माता के साथ घूमते ए पु क तरह आप यजमान के साथ रहते ह. (५) ऊज नपा जातवेदः सुश त भम द व धी त भ हतः. वे इषः सं दधुभू रवपस ोतयो वामजाताः.. (६) हे अ न! आप श मान व सव ाता ह. आप हमारी श तय को सु नए, हमारी सेवा से संतु होइए. आप वल ण व असं य पधारी ह. आप यजमान ारा द गई ह व को हण करने क कृपा क जए. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इर य ने थय व ज तु भर मे रायो अम य. स दशत य वपुषो व राज स पृण दशतं तुम्.. (७) हे अ न! आप अमर ह. आप व लत होइए. आप हमारे धन क बढ़ोतरी क जए. आप य म तेज वी व प धारण करते ह. आप हमारे य पर पूण रखते ए सुशो भत होते ह. (७) इ कतारम वर य चेतसं य त राधसो महः. रा त वाम य सुभगां मही मषं दधा स सान स र यम्.. (८) हे अ न! आप य के कताधता ह. आप व श चेतना से संप ह. आप अपार धन के वामी ह. हम आप क उपासना करते ह. आप हम म हमा, सौभा य, अ व धन दान करने क कृपा क जए. (८) ऋतावानं म हषं व दशतम न सु नाय द धरे पुरो जनाः. ु कण स थ तमं वा गरा दै ं मानुषा युगा.. (९) हे अ न! आप स यवान व व आप द ह. हम वाणी से आप क त त करते ह. (९)
ा ह. आप हमारी तु त सुनने वाले ह. सु यात व ाथना करते ह. यजमान सुखवृ के लए आप को
छठा खंड सो अ ने तवो त भः सुवीरा भ तर त वाजकम भः. यय व स यमा वथ.. (१) हे अ न! जो आप को मै ी भाव से पा लेता है, वह यजमान े वीर और कमवान हो जाता है. आप क र ा (आशीवाद) से उस का बेड़ा पार हो जाता है. (१)
े
तव सो नीलवा वाश ऋ वय इ धानः स णवा ददे . वं महीनामुषसाम स यः पो व तुषु राज स.. (२) हे अ न! आप को सोमरस से स चा जाता है. वह वहमान, इ छत व काशमान है. उस को आप के लए तैयार कया जाता है. आप म हमा वाली उषा दे वय के य ह. आप रात को व तु म शो भत होते ह. (२) तमोषधीद धरे गभमृ वयं तमापो अ नं जनय त मातरः. त म समानं व नन वी धो ऽ तवती सुवते च व हा.. (३) हे अ न! जलधाराएं मां क तरह आप को मानती ह. आप को ओष धयां गभ म धारण करती ह. वन प तयां आप को गभ म धारण करती ह और संसार के स मुख कट करती ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ न र ाय पवते द व शु ो व राज त। म हषीव व जायते.. (४) अ न इं के लए व लत होती है. वह वगलोक म वशेष शो भत होती है. वह महारानी के समान दखाई दे ती है. (४)
प से चमकती ई
यो जागार तमृचः कामय ते यो जागार तमु सामा न य त. यो जागार तमय सोम आह तवाहम म स ये योकाः.. (५) जो जा त ह, ऋचाएं उन क कामना करती ह. जो जा त ह, उ ह ही सोम ा त होते ह. जो जा त ह, उ ह से सोम कहते ह क म तु हारा म ं. (५) अ नजागार तमृचः कामय ते ऽ नजागार तमु सामा न य त. अ नजागार तमय सोम आह तवाहम म स ये योकाः.. (६) अ न जा त ह, अतः ऋचाएं उन क कामना करती ह, सोम उ ह ा त होते ह. अ न जा त ह, अतः उ ह से सोम कहते ह क म तु हारा म .ं (६) नमः स ख यः पूवसद् यो नमः साकं नषे यः. यु
े वाच
शतपद म्.. (७)
य म शु से त त दे वता को हमारा नम कार. म दे वता सैकड़ पद वाली ऋचाएं दे वता तक प ंचने क कृपा कर. (७) यु
े वाच
गाय ी, ऋचाएं दे वता
को नम कार.
शतपद गाये सह वत न. गाय ं ै ु भं जगत्.. (८) ु प् एवं जगती छं द म साम को हजार के लए गाई जाती ह. (८)
गाय ं ै ु भं जग
ा
पा ण स भृता. दे वा ओका
हे अ न! गाय ी, ु प् और जगती छं द म नब कार से) आप के लए गाया जाता है. (९) अ न य त य तर न र ो यो त य त र ः. सूय हे अ न! अ न यो त है, यो त अ न है. इं यो त ही सूय है. (१०)
सच
रे.. (९)
साम को अनेक
प म (अनेक
यो त य तः सूयः.. (१०)
यो त है, यो त इं है. सूय यो त है,
पुन जा न वत व पुनर न इषायुषा. पुननः पा
हंसः.. (११)
हे अ न! आप ऊजा प म पधा रए. आप हम अ द जए. आप बारबार पाप से हम बचाइए. (११) सह र या न वत वा ने प व य धारया. व
कार से गाते ह. सैकड़ पद वाली
दान क जए. आप हम द घायु
या व त प र.. (१२)
हे अ न! आप सभी धन को साथ ले कर पधारने क कृपा क जए. संसार म आनंद ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क धारा से हम स चने क कृपा क जए. (१२)
सातवां खंड य द ाहं यथा वमीशीय व व एक इत्. तोता मे गोसखा यात्.. (१) हे इं ! आप धन के एकमा ई र ह. हम भी आप जैसे हो जाएं तो हमारे उपासक गाय के साथ हमारी शंसा करगे. (१) श ेयम मै द सेय
शचीपते मनी षणे. यदहं गोप तः याम्.. (२)
हे शचीप त (इं )! य द हम गोप त हो जाएं तो अपने इन मनीषी उपासक को धन दे ने क इ छा कर और उ ह धन भी द. (२) धेनु इ
सूनृता यजमानाय सु वते. गाम ं प युषी हे.. (३)
हे इं ! आप अपने पु यजमान को इ पदाथ गाय, घोड़े आ द दान करने क कृपा क जए. (३) आपो ह ा मयोभुव ता न ऊज दधातन. महे रणाय च से.. (४) हे जल! आप ऊजा धारक व सुखदायी ह. आप हम सं ाम के लए बल दान करने क कृपा क जए. (४) यो वः शवतमो रस त य भाजयतेह नः. उशती रव मातरः.. (५) हे जल! मां जैसे बालक को ध (रस) से पोसती है, उसी तरह आप अपने क याणकारी रस से हम पोसने क कृपा क जए. (५) त मा अरं गमाम वो य य याय ज वथ. आपो जनयथा च नः.. (६) हे जल! आप हम पु पौ स हत यकारी रोग को जीतने क श क जए. (६) वात आ वातु भेषज
श भु मयोभु नो दे .
न आयू
उपजाने क कृपा
ष ता रषत्.. (७)
हे वायु! आप पधा रए. आप हमारे दय को खलाइए (खुश र खए). आप हमारे लए क याणकारी ओष धयां ले कर आइए. आप हम द घायु दान क जए. (७) उत वात पता स न उत ातोत नः सखा. स नो जीवातवे कृ ध.. (८) हे वायु! आप के सवाय कोई हमारा पता, भाई व म नह है. आप हमारे जीवन को साम यवान बनाने क कृपा क जए. (८) यददो वात ते गृहे ३ ऽ मृतं न हतं गुहा. त य नो धे ह जीवसे.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वायु! आप के पास गु त प से अमृत है. आप हम जीने के लए छपा कर रखा आ वह गु त अमृत दान करने क कृपा क जए. (९) अ भ वाजी व पो ज न हर ययं ब द क सुपणः. सूय य भानुमृतुथा वसानः प र वयं मेधमृ ो जजान.. (१०) हे अ न! आप व प व सुपण (ग ड़) जैसे वेगवान ह. आप उ प थान (य वेद ) को सोने सा चमका दे ते ह. आप ऋतु के अनुकूल सूय व मेघ को धारण करते ह. (१०) अ सु रेतः श ये व पं तेजः पृ थ ाम ध य संबभूव. अ त र े वं म हमानं ममानः क न त वृ णो अ य रेतः.. (११) हे अ न! आप का वीय घोड़े के वीय क तरह है, व प है, तेजोमय है, जल म (बादल प म) आ य पाता है, पृ वी पर जीवन श के प म है. अंत र म अपनी ापक म हमा को फैलाए ए है. वह सव अपनी ापकता लए ए है. (११) अय सह ा प र यु ा वसानः सूय य भानुं य ो दाधार. सह दाः शतदा भू रदावा धता दवो भुवन य व प तः.. (१२) हे यजमानो! अ न हजार करण वाले सूय के तेज को धारण करते ह. वे य का मूल आधार है. वे वगलोक व पृ वीलोक को धारण करते ह. वे सैकड़ हजार कार के ऐ यदाता व व प त ह. (१२) नाके सुपणमुप य पत त दा वेन तो अ यच त वा. हर यप ं व ण य तं यम य योनौ शकुनं भुर युम्.. (१३) हे वेन! उपासक आप को दय से पाने क इ छा करते ह. इस इ छा से वे ऊपर दे खते ह. तब वे आप को अंत र लोक म अ न ( व ुत् पधारी) के पास पाते ह. आप व ण के त ह, सोने के पंख वाले ह, यम क यो न म ह व व का भरणपोषण करने वाले ह. (१३) ऊ व ग धव अ ध नाके अ था वसानो अ क सुर भ शे क
यङ् च ा ब द यायुधा न. वा ३ ण नाम जनत या ण.. (१४)
हे वेन! आप ऊंचे वगलोक के पास रहते ह. आप अद्भुत आयुध धारण कर के सुशो भत होते ह. आप सूय क तरह ा णय के लए जल धारण कर के उसे बरसाते ह. (१४) सः समु म भ य जगा त प यन् गृ य च सा वधमन्. भानुः शु े ण शो चषा चकान तृतीये च े रज स या ण.. (१५) हे वेन! जब आप समु के जल को ले कर ग
जैसी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
से दे खते ए मेघ के पास
प ंचते ह तब सूय क तरह चमकते ए तीसरे लोक से ाण जल बरसाते ह. (१५)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ क सवां अ याय आशुः शशानो वृषभो न भीमो घनाघनः ोभण षणीनाम्. सङ् दनो ऽ न मष एकवीरः शत सेना अजय साक म ः.. (१) हे इं ! आप बैल क तरह भीमकाय, नाशक, वै रय के लए ोभदायी, फू तवान व आल यर हत ह. अकेले आप ही ऐसे वीर ह, जो सारी श ु क सेना को परा जत कर दे ते ह. (१) सङ् दनेना न मषेण ज णुना यु कारेण यवनेन धृ णुना. त द े ण जयत त सह वं युधो नर इषुह तेन वृ णा.. (२) हे इं ! आप श ु को ं दन करा ( ला) दे ने वाले ह. आप आल यर हत ह. आप वजेता व नपुण ह. यो ा इं क सहायता से यु जीत कर श ु को भगाते ह. (२) स इषुह तैः स नष भवशी स ा स युध इ ो गणेन. स सृ ज सोमपा बा श यू ३ ध वा त हता भर ता.. (३) इं यु ( व ा) म द ह. वे सृ के वजेता, सोमरस पीने वाले, बा बली, धनुधारी व श ु के नाशक ह. वे तलवार और बाण धारण करने वाले यो ा के सहयोग से श ु को वशीभूत कर लेते ह. (३) बृह पते प र द या रथेन र ोहा म ाँ अपबाधमानः. भ सेनाः मृणो युधा जय माकमे य वता रथानाम्.. (४) हे इं ! आप सब के पालनहार, रा स के नाशक, श ु व हमारे रथ के र क ह. यु म हम वजयी ह . (४)
के बाधक, सेना के व वंसक
बल व ायः थ वरः वीरः सह वा वाजी सहमान उ ः. अ भवीरो अ भस वा सहोजा जै म रथमा त गो वत्.. (५) हे इं ! आप सब के बल को जानते ह. आप अ यंत वीर, थ वर और उ ता सहन करने वाले ह. आप बल स हत ही पैदा ए ह. आप महावीर व गोपालक ह. आप वजयी रथ म बैठने क कृपा क जए. (५) गो भदं गो वदं व बा ं जय तम म मृण तमोजसा. इम सजाता अनु वीरय व म सखायो अनु स ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रभ वम्.. (६)
हे इं ! आप मन के गढ़ भेद दे ते ह. आप व बा , श ुनाशक, वजेता, गोपालक, नेता और परा मशील ह. श ु पर ोध करने म आप इं का अनुगमन क जए. (६) अ भ गो ा ण सहसा गाहमानो ऽ दयो वीरः शतम यु र ः. यवनः पृतनाषाडयु यो ३ माक सेना अवतु यु सु.. (७) हे इं ! आप हमारी व सेना क र ा क जए. आप अद्भुत यु वीर, श ु जत्, थर, वीर, अनी त के त ोधी व श ु पर दया न करने वाले ह. आप श ु के गढ़ भेदने वाले ह. (७) इ आसां नेता बृह प तद णा य ः पुर एतु सोमः. दे वसेनानाम भभ तीनां जय तीनां म तो य व म्.. (८) हे इं ! आप हमारे नेता होइए. बृह प त सब से आगे होने क कृपा कर. सोम द ण य के संचालक ह. वे भी अ गामी ह . म द्गण श ुनाशक ह. वे दे वता क सेना म सब से आगे होने क कृपा कर. (८) इ य वृ णो व ण य रा आ द यानां म ता शध उ म्. महामनसां भुवन यवानां घोषो दे वानां जयतामुद थात्.. (९) हे इं ! आप श मान ह. व ण राजा ह. म द्गण ती बल वाले ह. आप श ु के डेर के नाशक, महान मन वाले व वजयशील ह. दे वता का जयघोष सव ा त हो, सव गूंजे. सभी दे वता का हम सहयोग ा त हो. (९) उद्वृषय मघव ायुधा यु स वनां मामकानां मना स. उद्वृ ह वा जनां वा जना यु थानां जयतां य तु घोषाः.. (१०) हे इं ! आप मतावान ह. आप अ श धारी यु वीर के मन म उ साह भर. आप हमारे मन म भी जोश भर. आप हमारे यु रथ के घोड़ को वेगवान बनाइए. वजयी हो कर आते ए हमारे रथ के जयघोष गूंज. (१०) अ माक म ः समृतेषु वजे व माकं या इषव ता जय तु. अ माकं वीरा उ रे भव व माँ उ दे वा अवता हवेषु.. (११) यु (११)
हे इं ! आप यु म हमारी सेना के र क होइए. हमारे बाण श ु वजय कर. हमारे वीर म वजय ा त कर. य म दे वता हमारी र ा कर. हमारे वज पर वजय अं कत हो. असौ या सेना म तः परेषाम ये त न ओजसा पधमाना. तां गूहत तमसाप तेन यथैतेषाम यो अ यं न जानात्.. (१२) हे म द्गणो! बल से पधा करती ई श ुसेना हम पर आ मण करे तो आप उस सेना
******ebook converter DEMO Watermarks*******
को घने अंधकार से घेर ली जए, जस से वे एक सरे को पहचान तक न सक और अपनी ही सेना का संहार कर द. (१२) अमीषां च ं तलोभय ती गृहाणा ा य वे परे ह. अ भ े ह नदह सु शोकैर धेना म ा तमसा सच ताम्.. (१३) हे पाप के दे वता! आप श ु के च त लोभी बनाइए. आप श ु के अंग को भी कस ली जए. आप शोक क वाला से श ु का दय दहलाइए. आप घनघोर अंधेरा कर के श ु को अचेत (बेहोश) बना द जए. (१३) ेता जयता नर इ ो वः शम य छतु. उ ा वः स तु बाहवो ऽ नाधृ या यथासथ.. (१४) हे वीर मनु यो! इं आप को सुखशां तमय बनाने क कृपा कर. आप के बा उ ह . आप को श ु अधीन न बना सके. आप उन पर आ मण कर के वजय ा त क जए. (१४) अवसृ ा परा पत शर े स शते. ग छा म ा प व मामीषां कं च नो छषः.. (१५) हमारे बाण वेदमं और तु तय से े रत कए गए ह. वे बाण जब हम छोड़ तो श ु कतना ही र य न हो, उस पर जा कर गर. उन श ु म से कोई भी बच न पाए. (१५) कङ् काः सुपणा अनु य वेनान् गृ ाणाम मसाव तु सेना. मैषां मो यघहार ने वया येनाननुसंय तु सवान्.. (१६) हे इं ! बाण मांसाहारी बाज क तरह श ु का अनुगमन (पीछा) कर. श ु क सेना गद्ध का भोजन हो जाए. उन का कोई अवशेष न रह पाए. पाप म लगे पापी भी बच न पाएं. मांसाहारी प ी उन का भी अनुगमन (पीछा) कर. (१६) अ म सेनां मघव
मां छ ुयतीम भ. उभौ ता म
वृ ह
न दहतं
त.. (१७)
हे इं ! आप अ म क सेना का नाश क जए. आप वृ हंता व धनवान ह. आप और अ न मल कर श ु क सेना को भ म करने क कृपा कर. (१७) य बाणाः संपत त कुमा व शखा इव. त नो ण प तर द तः शम य छतु व ाहा शम य छतु.. (१८) जहां बाण इस तरह गरते ह, जैसे बना चोट वाले चंचल बालक गर रहे ह , वहां अ द त और ण प त हम सुख दे ने क कृपा कर. वे सदै व हमारा क याण करने क कृपा कर. (१८) व र ो व मृधो ज ह व वृ य हनू ज. व म यु म वृ ह म या भदासतः.. (१९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप रा स व हसक का वनाश करने क कृपा क जए. आप वृ ासुर जैसे रा स क ठोड़ी तोड़ द जए. आप अ म का ोध और घमंड र करने क कृपा क जए. (१९) व न इ मृधो ज ह नीचा य छ पृत यतः. यो अ माँ अ भदास यधरं गमया तमः.. (२०) हे इं ! हमारी सेना यु म श ु को परा जत कर दे . हमारे श ु मुंह नीचा कर के हमारे सामने आएं. आप उन श ु को पतन के गत म डाल द जए, जो हम अपने अधीन (वश म) करना चाहते ह. (२०) इ य बा थ वरौ युवानावनाधृ यौ सु तीकावस ौ. तौ यु ीत थमौ योग आगते या यां जतमसुराणा सहो महत्.. (२१) इं के बा हाथी क सूंड़ क तरह ह. आप सव थम उन भुजा को यु म े रत करने क कृपा क जए. आप बल जत्, थर व जवान ह. आप पर कसी का वश नह चल सकता. (२१) ममा ण ते वमणा छादया म सोम वा राजामृतेनानु व ताम्. उरोवरीयो व ण ते कृणोतु जय तं वानु दे वा मद तु.. (२२) हे इं ! हम आप के मम थान को कवच से ढकते ह. राजा सोम आप को अमृतमय बनाने क कृपा कर. व ण आप को सुख दान करने क कृपा कर. दे वता आप को स ता दान कर. (२२) अ धा अ म ा भवताशीषाणो ऽ हय इव. तेषां वो अ ननु ाना म ो ह तु वरंवरम्.. (२३) हे इं ! सर र हत सांप जैसे अंधा होता है, वैसे ही हमारे अ म हो जाएं. उन म से जो अ न क वाला से बच जाएं, उन बचे ए श ु को आप वयं न करने क कृपा क जए. (२३) यो नः वो ऽ रणो य न दे वा त सव धूव तु
ो जघा स त. वम ममा तरं शम वम ममा तरम्.. (२४)
जो हमारे अपने हो कर व ासपूवक छल से हम मारना चाहते ह, दे वगण उन सभी धूत को न करने क कृपा कर. वेद के मं हमारे मम थान के कवच ह. वे हम सुख दान करने क कृपा कर. (२४) मृगो न भीमः कुचरो ग र ाः परावत आ जग था पर याः. सृक स शाय प व म त मं व श ूं ता ढ वमृधो नुद व.. (२५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे इं ! आप पवत म रहने वाले शेर के समान भयंकर ह. र से यहां आ कर र तक मारक तीखे व से श ु का नाश करने क कृपा क जए. आप लड़ाकू श ु को र करने क कृपा क जए. (२५) भ ं कण भः शृणुयाम दे वा भ ं प येमा भयज ाः. थरैरंगै तु ु वा स तनू भ शेम ह दे व हतं यदायुः.. (२६) हे दे वगणो! आप क कृपा से कान से क याणकारी वचन सुन, आंख से मंगलमय य दे खने को मल. हम व थ हाथपैर और अंग से आप क तु त कर सक. आप दे वता क कृपा से हम जो भी आयु ा त ई है, उस का हम तु तपूवक स पयोग कर सक. (२६) व त न इ ो वृ वाः व त नः पूषा व वेदाः. व त न ता य अ र ने मः व त नो बृह प तदधातु.. (२७) इं हमारा क याण करने क कृपा कर. सव ाता पूषा हमारा क याण करने क कृपा कर. अ हसक अ श वाले ग ड़ व ान धारण करने वाले बृह प त हमारा क याण करने क कृपा कर. (२७) (सामवेद पूण)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
डा. गंगा सहाय शमा
एम. ए., ( हद -सं कृत), पी-एच. डी.,
ाकरणाचाय
सं कृत सा ह य काशन नई द ली
******ebook converter DEMO Watermarks*******
© सं कृत सा ह य काशन सं करण : २०१५
ISBN 81-87164-97-2 व. .- 535.5H15* सं कृत सा ह य काशन के लए व बु स ा. ल. एम-१२, कनाट सरकस, नई द ली-११०००१ ारा वत रत
******ebook converter DEMO Watermarks*******
भू मका है—
महाभा य के रच यता मह ष पतंज ल ने अथववेद क नौ सं हता
का उ लेख कया
नवधाऽथवाणोवेदः. इस का ता पय यह है क पतंज ल के समय अथववेद क नौ सं हताएं उपल ध थ . पतंज ल का समय २०० ईसा पूव से १५० ईसा पूव तक माना जाता है. इन सं हता के नाम इस कार ह— (१) प लाद, (२) तोद अथवा तोद, (३) मोद, (४) शौनक य, (५) जावल, (६) जलद, (७) दे व (८) दे वदश (९) चारणवै . आजकल तीन सं हताएं उपल ध ह— प लाद, मोद और शौनक. इन म शौनक सं हता का आजकल ब त चार है. म ने जो अनुवाद तुत कया है, उस का आधार शौनक सं हता ही है. शौनक सं हता म २० कांड, ७३१ सू तथा ५९८७ मं ह. अथववेद क शौनक सं हता के कांड क थ त इस कार है— आरंभ के सात कांड म छोटे छोटे सू ह. थम कांड के येक सू म ४ मं , तीय कांड के येक सू म ५ मं , तृतीय कांड के येक सू म ६ मं , चतुथ कांड के येक सू म ७ मं तथा पंचम कांड के येक सू म ८ मं ह. ष कांड म १४२ सू ह और येक सू म कम से कम तीन मं ह. स तम कांड म ११८ सू ह. इन म अ धकांश सू एक अथवा दो मं वाले ह. आठव से ले कर बारहव कांड तक अ धक मं वाले बड़े सू ह. तेरहव से अठारहव कांड तक भी अ धक मं वाले सू ह. स हव कांड म ३० मं का केवल एक सू है. उ ीसव कांड म ७२ सू ह और बीसव कांड म १४३ सू ह. अथववेद म ऋ वेद से लए गए मं क सं या १२०० है. ऋ वेद क वषय व तु डा. उमाशंकर शमा ऋ ष ने अपने ‘सं कृत सा ह य का इ तहास’ म अथववेद क वषय व तु का वणन करते ए लखा है— “ थम कांड म व वध रोग क नवृ , बंधन से मु , रा स का वनाश, सुख ा त आ द का न पण है. तीय कांड म रोग, श ु एवं कृ मनाश तथा द घायु य क ाथना है. तृतीय कांड म श ुसेना का स मोहन, राजा का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नवाचन, शाला नमाण, कृ ष तथा पशु पालन का ववरण है. चतुथ कांड म व ा, वषनाशन, रा या भषेक, वृ , पापमोचन तथा ोदन का वणन है. पंचम कांड म मु यत व ा और कृ या रा सी के प रहार से संब मं ह. ष कांड म ः व नाशन और अ समृ के मं ह. स तम कांड आ मा का वणन करता है. अ म कांड म मु यतया वराट् का वणन है. नवम कांड म मधु व ा, पंचोदन, अज, अ त थ स कार, गो म हमा एवं य मा का नाश—ये वषय ह. दशम कांड म कृ या नवारण, व ा, श ु नाश के लए वरणम ण, सप वषनाशन एवं ये वषनाशन का वणन है. एकादश कांड म ोदन, तथा चय का वणन है. ादश कांड म स पृ वी सू है, जस म भू म का मह व व णत है. योदश कांड म पूणतयाः अ या म का करण है. चतुदश कांड म ववाह सं कार से संब काय का वणन है. पंचदश कांड म ा य का ग म वणन है. षोडश कांड म ःखमोचन के लए ग ा मक मं ह. स तदश कांड म अ युदय के लए ाथना है. अ ादश कांड पतृमेध से संब है . एकोन वश कांड म व वध वषय ह—य , न , व वध म णयां, छं द के नाम, रा का वणन, काल का मह व. वश कांड म सोमयाग का वणन तथा इं क तु त है. इस के अंत म 10 सू ‘कुंताय सू ’ के नाम से स ह. अथववेद का मह व अथववेद क वषयव तु शेष तीन वेद —ऋ वेद, यजुवद और सामवेद से भ है. इन तीन वेद म य , दे व तु तय , वग ा त आ द को मह व दया गया है. इस के वपरीत अथववेद म व णत ओष धयां, जा , टोनाटोटका आ द लौ कक जीवन से संबं धत ह. ब त समय तक तीन वेद क मा यता रही थी. इस वषय म एक सू तुत है— योऽ य ययो वेदा योदे वा योगुणाः यो दं ड बंध षुलोकेषु व ुताः.. अथात तीन अ नयां, तीन वेद, तीन गुण और दं डी क व के तीन बंध-तीन लोक म स ह. अथववेद क भाषा भी शेष तीन वेद क भाषा से सरल है. इन य से प होता है क अथववेद क रचना बाद म ई है. वैसे य म अथववेद को वशेष मह व ा त है. य म चार वेद से संबं धत चार ऋ वज होते ह. उन म धान ऋ वज् ा कहलाता है. वह अपनी दे खरेख म य काय कराता है और शेष ऋ वज को नदश दे ता है. ा एक कार से य का अ य अथवा धान होता है. यह ा अथववेद का ही ाता होता है. आचाय बलदे व साद उपा याय के अनुसार— अथववेद का वषय ववेचन अ य वेद क अपे ा नतांत वल ण है. इस म व णत वषय का तीन कार से वभाजन कया जा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सकता है— (१) अ या म (२) अ धभूत और (३) अ धदै वत. उन के अनुसार अथववेद के सू
का वषयगत वभाजन न न ल खत है—
(१) भैष य सू —इन सू
म रोग क च क सा और ओष धय का वणन है.
(२) आयु य सू —इन सू
म द घ आयु के लए ाथना क गई है.
(३) पौ क सू —इन सू म घर बनाने, हल जोतने, बीज बोने, अनाज उ प करने आ द का वणन है. (४) ाय त सू —इन सू ाय त का वणन है. (५)
ीकम सू —ये सू
म अनेक कार के पाप और न ष
कम के
ववाह तथा ेम से संबं धत ह.
(६) राजकम सू —इन सू का संबंध राजा और उन के काय से है. अथववेद का वशेष सू अथववेद का वशेष सू ‘पृ वी सू ’ है. इस सू म पृ वी को ‘माता’ कहा गया है. इस के एक मं का अंश है— माता पृ थवी पु ो ऽ
ह पृ थ ाः.
अथात पृ वी मेरी माता है और म इस पृ वी का पु ं. यह भावना शेष तीन वेद म से कसी म नह है. जहां तक संभव आ है, म ने सरल भाषा म अथववेद के मं भा य के आधार पर अनुवाद कया है.
का आचाय सायण के —गंगा सहाय शमा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अनु म पहला कांड सरा कांड तीसरा कांड चौथा कांड पांचवां कांड छठा कांड सातवां कांड आठवां कांड नौवां कांड दसवां कांड यारहवां कांड बारहवां कांड तेरहवां कांड चौदहवां कांड पं हवां कांड सोलहवां कांड स हवां कांड अठारहवां कांड उ ीसवां कांड बीसवां कांड
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पहला कांड सू १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३.
वषय वाणी के वामी दे व क तु त पज य अथात् बादल तथा पृ वी का वणन इं क तु त पज य, व ण, चं व सूय का वणन जल दे वता क तु त जल का ओष ध के प म वणन जल संसार का क याणकारी त व अ न और इं क श का वणन बृह प त, अ न एवं सोम से श ु को दं डत करने का आ ह वसु, इं , पूषा, व ण, म , अ न एवं व े दे व से धन संप क कामना व ण से जलोदर रोग से मु क कामना सव दे व पूषा से सव वेदना से छु टकारा पाने का अनुरोध व भ रोग से छु टकारा पाने के लए सूय क च आ द से शंसा पज य क तु त यम और सोम क शंसा सधु, पवन आ द क शंसा अ न और व ण दे व से चोर का संहार करने का अनुरोध ीक र वा हनी का वणन स वता, व ण म , अयमा आ द दे व क तु त इं आ द दे व को श ु से र ा करने का आ ह सोम, इं और व ण दे व से श ु ारा छोड़े गए आयुध को न काम करने का आ ह इं दे व से श ु का वनाश करने के लए आ ह दय रोग नवारण हेतु सूय दे व क तु त ह र ा, इं ावा ण आ द ओष ध का वणन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-४ १,२,४ ३ १-९ १-४ १-४ १-४ १-७ १-४ १-४ १-४ १-६ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-४
२४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५.
आसुरी माया से उ प वन प त का वणन य मा नाशक अ न क तु त इं , म त् व पज य दे व क तु त श ु सेना को परा जत और अपनी सेना को आगे बढ़ाने के लए इं प नी क तु त अ न दे व क तु त ण प त दे व क तु त व े दे व, आ द य एवं वसु क तु त इं , यम आ द चार दे व के लए मं क आ त दे व कुबेर से वण व रजत आ द धन दे ने का आ ह पृ वी और आकाश को नमन रोग वनाशक जल दे व क तु त मधु लता का वणन हर य का वणन
१-४ १-४ १-४ १-४ १-४ १-६ १-४ १-४ ४ १-४ १-४ १-५ १-४
सरा कांड सू १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४.
वषय और आ मा का वणन के प म सूय क आराधना ाव वरोधी ओष ध का वणन जं गड़ वृ से न मत जं गड़ म ण का वणन इं क तु त अ न दे व क तु त पाप का वनाश करने वाली म ण का गुणगान य मा और कु रोग से मु करने वाले तारे वन प तय से न मत म ण का वणन ावा और पृ वी का व भ रोग म क याणकारी होना तलक वृ से न मत म ण ावा, पृ वी और अंत र के अ धप त दे व मशः अ न, वायु और सूय का वणन अ न, बृह प त और व े दे व का गुणगान अ न, भूतप त तथा इं क तु त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-५ १-५ १-६ १-६ १-७ १-५ १-५ १-५ १-५ १-८ १-५ १-८ १-५ १-६
१५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६.
ाण को बल दान करना ाण और अपान से मृ यु से र ा के लए ाथना ावा और पृ वी क तु त अ न क ओज के प म तु त अ न दे व से श दान करने क ाथना अ न दे व क तु त वायु दे व क तु त सूय दे व क तु त चं दे व क तु त जल दे व क तु त रा स के वामी से अनुरोध रोग को परा जत करने वाली जड़ी पृ पण का वणन स वता दे वता क शंसा वारपाठा नामक जड़ी का वणन अ न दे व क तु त अ न, सूय और इं क तु त अ नीकुमार क तु त मही दे वता ारा क टाणु का नाश सूय क करण ारा क टाणु का नाश य मा रोग का वनाश व कमा क तु त व कमा क तु त अ न, सोम व व ण क तु त
१-६ १-५ २ १-७ १-५ १-५ १-५ १-५ १-५ १-५ १-८ १-५ १-५ १-७ १-५ १-७ १-५ १-५ १-६ १-७ १-५ १-५ १-८
तीसरा कांड सू १. २. ३. ४. ५.
वषय अ न, म त् व इं दे व क तु त अ न, इं और म त् से श ु का वनाश करने का अनुरोध अ न क तु त इं दे व से राजा, रा य पुनः ा त होना ओष धय क सार प पणम ण का वणन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-६ १-६ १-६ १-७ १-८
६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१.
अ थ म ण क तु त हरण के सर म स ग क रोग नवारक ओष ध का वणन म आ द दे व से आयु को द घ करने का अनुरोध स वता, व ा, इं आ द दे व क तु त सोम, स वता आ द दे वता का आ ान पशु से सुर ा के लए दे व से ाथना एका का उषा क तु त इं और अ न दे व से य मा रोग से मु क ाथना शाला, वा तो प त का वणन इं और बृह प त से शाला के नमाण का नवेदन सधु और जल का वणन गाय का वंश बढ़ाने के लए तु त ापार से लाभ क कामना के लए इं व अ न दे व क तु त अ न, इं , म , व ण आ द क शंसा खेती बढ़ाने के लए इं , सूय, वायु आ द दे व क शंसा पाठा जड़ीबूट का वणन पुरो हत ारा राजा क जय क कामना अ न क तु त अ न क तु त इं , व ण आ द से बल क ाथना पु ा त क कामना वन प त क शंसा काम दे व क शंसा म व ण क तु त गंधव क तु त दशा क तु त जुड़वां ब च को ज म दे ने वाली गाय का वणन सफेद पैर वाली भेड़ क मह ा का वणन सौमन य कम क वशेषताएं अ नीकुमार , इं , वायु आ द क तु त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-८ १-७ १-६ २ ३ १-६ १-१३ १-८ १-९ ४ १-७ १-६ १-८ १-७ १-९ १-६ १-८ १-१० १-१० १-६ १-६ १-७ १-६ ६ १-६ १-६ १-६ १-८ १-७ १-११
चौथा कांड सू १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०.
वषय बृह प त आ द दे व क तु त जाप त क शंसा बाघ, चोरमनु य और भे ड़ए से बचाव क कामना वन प त व जड़ीबू टय का वणन व के दे व क शंसा त क क उ प का वणन वष का वणन वषहारी वारण वृ का वणन वषमूलक जड़ीबूट का वणन जल का वणन अंजन म ण क म हमा का वणन शंख म ण का वणन इं के प म अनड् वान अथात् बैल का वणन रो हणी वन प त का वणन वायु और इं क तु त य क म हमा वषा दे व क तु त व ण दे व क शंसा सहदे वी व अपामाग वन प त का वणन सहदे वी व अपामाग जड़ी का वणन सहदे वी व अपामाग ओष ध का वणन सदा पु पा नाम क जड़ीबूट का वणन गाय क म हमा का वणन इं व य राजा क तु त अ न दे व क तु त इं दे व क तु त वायु और स वता दे व क तु त ावा पृ वी क तु त म त् क तु त भव और शव क तु त म और व ण दे व क शंसा वा दनी पु ी वाक् का वणन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-७ १-८ १-७ १-८ १-७ १-८ ३ १-७ १-६ १-७ १-१० १-७ १-१२ १-७ १-७ १-९ १-१६ १-९ १-८ १-८ १-८ १-९ १-७ १-७ १-७ १-७ १-७ १-७ १-७ १-७ १-७ १-८
३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. ४०.
ोध के अ भमानी दे व म यु का वणन म यु क तु त अ न दे व क तु त ौदन क तु त ा णय के नमाणकता दे व का वणन स य एवं ओज वाले अ न दे व क तु त व भ जड़ीबू टय का वणन अ सरा ारा अ शलाका क तु त अ न, वायु, सूय आ द क शंसा जातवेद अ न क तु त
१-७ १-७ १-८ १-८ १-७ १-१० १-१२ १-७ १-१० १-८
पांचवां कांड सू १. २. ३.
वषय व ण क तु त इं क म हमा का वणन अ न दे व क शंसा भारती, सर वती और पृ वी क तु त इं क तु त ४. कु ओष ध का वणन ५. लाख ओष ध का वणन ६. क तु त सूय क तु त अ न क तु त ७. अरा त क तु त ८. अ न दे व से य म सभी दे व को लाने का आ ह इं को य म आने का नमं ण अ य दे व से य म आने का आ ह इं से श ु को मारने का आ ह ९. पृ वी, वग और आकाश से ाथना १०. प थर से बने घर क तु त चं मा, वायु, सूय, अंत र और पृ वी क तु त ११. व ण दे व क तु त १२. अ न क तु त १३. सप वषनाशन वणन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-९ १-९ १-११ ७ ८ १-१० १-९ १-१४ ४ ११ १-१० १-९ २ ३ ९ १-८ १-८ ८ १-११ १-११ १-११
१४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१.
ओष ध से ाथना मधुला ओष ध का वणन लवण को संतानो प के लए उ सा हत करना जाया का वणन ा ण क गाय का वणन ा ण के साथ बुरे वहार के फल का वणन ं भ क म हमा का वणन ं भ क म हमा का वणन दे ह को न कर दे ने वाले वर का वणन इं क तु त स वता, अ न, ावा और पृ वी, व ण, म , वायु दे व, चं मा आ द क तु त अ न, व ण, म आ द क तु त अ न, स वता दे व, इं व अ नीकुमार क तु त अ न सभी दे व म े उषा दे वी, आ द य आ द का वणन जातवेद अ न दे व क तु त यम, आयु और अ न से ाथना कृ या का तहरण
१-१३ १-११ १-११ १-१८ १-१५ १-१५ १-१२ १-१२ १-१४ १-१३ १-१७ १-१३ १-१२ १-१२ १-१४ १-१५ १-१७ १-१२
छठा कांड सू १. २. ३. ४.
वषय स वता दे व क तु त इं के लए सोमरस का बंध इं और पूषा दे व क तु त व ा क तु त अ द त क तु त अ नीकुमार क तु त ५. अ न और इं क तु त ६. ण प त व सोम क शंसा ७. सोम से क याण क याचना ८. कामा मा का वणन ९. कामा मा का वणन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-३ १-३ १-३ १-३ २ ३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३
१०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. ४०. ४१. ४२. ४३. ४४.
अ न और वायु क तु त पुंसवन कम का वणन वष नवारण वणन मृ यु क तु त े मा रोग का नवारण वन प तय म उ म पलाश वृ का वणन खाई जाने वाली सरस का वणन नारी के गभ म थत रहने क कामना ई या वनाशन दे व से शु के लए ाथना बल प वर से छु टकारे क कामना धनवती ओष धय का वणन आ द य, र म व म त् क तु त जल क शंसा जल का वणन म यु वनाशन पा मा क तु त यम क पूजा अचना यम क शंसा यम क तु त जौ सौभा य सूचक शमी का वणन गौ अथात् सूय क करण का वणन अ न क तु त इं क तु त अ न क तु त वै ानर अ न क तु त वै ानर अ न क आराधना इं क तु त तेज व पा दे वी क तु त इं क तु त ावा, पृ वी व इं क आराधना ाण के अ ध ाता दे व एवं द गुण क शंसा पु ष के लए उपदे श ोध को शांत करना गाय के स ग ारा वषाण रोग का इलाज
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-४ १-४ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-५ १-३ १-३ १-३ १-४ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३
४५. ४६. ४७. ४८. ४९. ५०. ५१. ५२. ५३. ५४. ५५. ५६. ५७. ५८. ५९. ६०. ६१. ६२. ६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७. ७८. ७९.
ः व का वनाश ः व का वनाश अ न क तु त सवन नामक य का उ लेख अ न क तु त अ नीकुमार क तु त व ण दे व क तु त सूय दे व क तु त पृ वी आ द क तु त इं , अ न और सोम क तु त छह ऋतु के अ ध ाता दे व क शंसा व े दे व और क तु त रोग क ओष ध का वणन इं , स वता, अ न, सोम आ द क शंसा सहदे वी नामक ओष ध का वणन अयमा दे व क तु त जल के अ ध ाता दे व क तु त वै ानर अ न क तु त अ न का रणी दे वी नऋ त का वणन सोमन य के इ छु क जन को उपदे श इं क तु त इं क तु त इं क तु त स वता दे व व माता अ द त क शंसा अ नीकुमार क तु त ेम बंधन का वणन अ न क शंसा अक म ण का वणन व ण दे व क तु त ण प त दे व क तु त इं क तु त सायंतन अ न क तु त जातवेद अ न क शंसा अ न दे व क शंसा अंत र के पालनकता अ न क शंसा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-४ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-४ १-३ १-३ १-३
८०. ८१. ८२. ८३. ८४. ८५. ८६. ८७. ८८. ८९. ९०. ९१. ९२. ९३. ९४. ९५. ९६. ९७. ९८. ९९. १००. १०१. १०२. १०३. १०४. १०५. १०६. १०७. १०८. १०९. ११०. १११.
अ न क तु त अ न क तु त इं क शंसा सूय ारा गंडमाला क च क सा नऋ त का वणन वरण म ण ारा राजय मा रोग का नवारण इं क तु त अ छे राजा क कामना अ छे रा य के लए व ण, बृह प त और सूय क शंसा व ण, सर वती, आ द क प तप नी मलन के लए शंसा दे व क शंसा य मा रोग का वनाश वेगवान अ क शंसा यम आ द क शंसा सर वती दे वी क आराधना कूठ वन प त का वणन वन प तय के दे व राजा सोम क शंसा मेधावी म और व ण का वणन इं क तु त इं क तु त इड़ा, सर वती और भारती ारा वष वनाशक ओष ध दान करना पु ष को गभाधान करने म समथ होने का आशीवाद अ नीकुमार क तु त बृह प त दे व क आराधना इं और अ न क शंसा खांसी रोग से मु क कामना अ नशाला क तु त व जत दे व क तु त मेघा दे वी और अ न क आराधना प वली ओष ध का वणन अ न दे व क तु त अ न क तु त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-३ १-३ १-३ १-४ १-४ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-४ १-३ १-३ १-३ १-३ १-२ १-३ १-३ १-३ १-४ १-५ १-३ १-३ १-४
११२. ११३. ११४. ११५.
अ न क तु त पूषा दे व क तु त अ न और अ द त पु दे व क शंसा व े दे व क तु त पाप से छु टकारे का आ ह ११६. वव वान क तु त ोध शांत हो ११७. अ न क तु त ऋण क वापसी ११८. उ ंप या एवं उ जता अ सरा क तु त पाप ऋण से मु क कामना ११९. वै ानर अ न क तु त लौ कक और दै वक ऋण प फंद को ढ ला करना १२०. अ न क तु त पृ वी, अ द त, अंत र तथा आकाश का वणन वग म अपने माता, पता तथा पु से मलना १२१. बंधन के दे वता नऋ त क तु त बंधन से मु क कामना १२२. व कमा क तु त अ न क तु त इं से अ भलाषा पूरी करने क कामना १२३. वग म वराजमान दे व क तु त पतर का वणन य करना और दान दे ना सोम से वग म थत रहने क ाथना १२४. अ न क तु त जल वृ का फल ही है १२५. वन प त क तु त वृ से ा त रस का वणन द गुण से यु रथ क तुलना १२६. ं भ क तु त ं भ से बल को बढ़ाने के लए ाथना इं क शंसा १२७. वसप ा ध ओष ध का वणन पीपु नाम क ओष ध का वणन १२८. शंकधूम और चं मा क तु त १२९. भग दे व क शंसा १३०. माष नाम क जड़ीबूट का वणन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-३ १-३ १-३ १-३ २ १-३ ३ १-३ २ १-३ २ १-३ २ १-३ २ ३ १-४ २ १-५ ४ ५ १-५ ३ ४ ५ १-३ २ १-३ २ ३ १-३ २ ३ १-३ २ १-४ १-३ १-४
१३१. १३२.
१३३. १३४. १३५. १३६. १३७. १३८. १३९. १४०. १४१.
१४२.
म द्गण और अ न दे व क तु त संक प क दे वी आकू त क शंसा दे व ारा कामदे व व उस क प नी आ ध को जल म डु बोया जाना म और व ण दे व ारा कामदे व व उस क प नी आ ध को जल म डु बोया जाना श ु को मारने के लए बांधी जाने वाली मेखला का वणन श ु के वनाश हेतु यमराज से ाथना व का वणन व तु त व का वणन व तु त श ु का वनाश कालमाची नामक जड़ीबूट का वणन व तु त केश को उ प करना और ढ़ बनाना वन प त क शंसा केश का बढ़ना श हीन करने वाली जड़ीबूट वीयवा हनी ना ड़य का नाश शंखपु पी जड़ीबूट का वणन ण प त दे व और जातवेद अ न क तु त वायु, व ा, दे व आ द क गाय क वृ और च क सा के लए तु त गाय क असी मत वृ के लए अ नीकुमार क शंसा जौ नामक अ क शंसा जौ को खाने और ले जाने वाले वनाश र हत ह
४ १-३ १-५ ५ १-५ ३ १-३ १-३ ३ १-३ २ १-३ ३ १-५ ४ १-५ १-३ १-३ ३ १-३ ३
सातवां कांड सू १.
वषय जाप त ारा संसार के लोग को अपने अपने कम करने क ेरणा दे ना २. जाप त क तु त ३. जाप त क तु त ४. वायु दे व क तु त ५. य प जाप त क शंसा ६. पृ वी एवं दे वमाता का वणन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-२ १ १ १ १-५ १-२
७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६.
अ द त क तु त अ द त के पु अथात दे व का वणन बृह प त क तु त सब के पोषक सूय दे व क तु त सर वती क तु त पज य दे व क तु त जाप त क दोन पु य , सभा तथा सभासद क तु त े ष करने वाले पु ष के तेज का वनाश स वता दे व क तु त सब के ेरक स वता दे व क तु त बृह प त एवं स वता दे व क तु त धाता दे व क तु त स वता व जाप त क तु त धाता क शंसा जाप त और धाता क तु त अनुम त नामक दे वी क शंसा सुख ा त करने का अनु ह सु णी त दे वी से य पूण करने का आ ह पुरातन सूय क शंसा स कम क ेरणा दे ने के लए सूय दे व क तु त ः व वनाश क कामना स वता व जाप त दे व क आराधना व णु और व ण क शंसा व णु के वीरतापूण कम का वणन इडा क तु त काम म आने वाले उपकरण क शंसा अ न और व णु क तु त दे व से य के यूप को रंगने क कामना धनवान एवं शौय संप इं क शंसा अ न दे व क तु त म त् आ द दे वगण से सुखसमृ क कामना अ न दे व व अद ना दे वमाता क शंसा अ न से श ु के वनाश क कामना व े ष करने वाली ी संतान र हत नारी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-२ १ १ १-४ १ १ १-४ १-२ १-४ १ १ १-४ ४ १-२ १ १-६ ३ ४ १ १-२ १ १ १-२ १-८ १ १ १-२ १ १ १ १ १ १-३ २ ३
३७. ३८. ३९.
प नी तथा प त का पर पर अनुर होना मं से यु व सौवचा नामक जड़ी का वणन प त वशीकरण शंखपु पी ४०. सार वत दे व क शंसा ४१. सर वान दे वी क तु त ४२. सूय और इं क तु त ४३. अमीवा नामक रोग के लए सोम एवं दे व क ाथना ४४. वा णय के प ४५. इं और व णु क आराधना ४६. स ु मंथ नामक जड़ीबूट का वणन ४७. ई या को शांत करने के लए आ ह ४८. सनीवाली क शंसा ४९. कु क शंसा ५०. शो भत व शोभन तु त वाली पू णमा का आ ान ५१. सुख के लए दे व प नय क तु त ५२. अ न क तु त जुआ रय का वध जुआ रय को जीतने के लए इं से ाथना इं क शंसा वजय के लए पास क पूजा ५३. श ु से र ा के लए बृह प त व इं क शंसा ५४. आपस म सौमन य के लए अ नीकुमार क आराधना ५५. बृह प त, अ न और अ नी कुमार क तु त ाण और अपान वायु आयु क कामना वग म आरोहण ५६. इं से सुख क कामना ५७. ऋ वेद और सामवेद का पूजन ५८. मधु नामक जड़ीबूट का वणन सप का वष नकालना शक टक सप के टु कड़े परपीड़ादायक ब छू वषनाशक जड़ीबूट ५९. सर वती क तु त ******ebook converter DEMO Watermarks*******
१ १ १-५ २ ३ १ १-२ १-२ १-२ १ १ १ १ १-३ १-२ १-२ १-२ १-९ १ ४ ७ ९ १ १-२ १-७ २ ३ ७ १ १-२ १-८ २ ५ ६ ७ १-२
६०. ६१. ६२.
६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७.
७८. ७९.
सोमरस क ाथना सोमरस पीने के लए इं और व ण का आ ान नदा करने वाले श ु का वनाश घर क तु त घर म सौमन य घर धनधा य से प रपूण ह घर म गाएं, बक रयां व भेड़ ह तप के लए अ न दे व क तु त जा को वश म करने क कामना अ न क तु त अ भमं त जल ारा कौवे के पंख क चोट से र ा मृ यु दे वता क आराधना अपामाग क तु त पाप का नवारण वेदा ययन का फल इं य क श क कामना सर वती दे वी क शंसा सर वती दे वी क शंसा सुख क कामना नऋ त दे वी क तु त अ जर और अ धराज अ न क तु त इं के लए ह व का पकाया जाना ह व के लए इं का आ ान ध के प म ह व अ नीकुमार क तु त गोशाला स वता दे व व उषा गाय का आ ान अ न क तु त अ न क तु त धम घा धेनु गंडमाला का वणन ोध का वनाश जातवेद अ न गाय क तु त गोशाला
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-२ २ १ १-७ ३ ४ ५ १-२ १ १ १-२ २ १-३ ३ १ १ १-२ १ १ १-५ ३ १ १-२ २ १ १-११ ४ ६ ७ ९ १० ११ १-४ ३ ४ १-२ २
८०. ८१. ८२. ८३. ८४. ८५. ८६. ८७. ८८. ८९. ९०. ९१. ९२. ९३. ९४. ९५. ९६. ९७. ९८. ९९. १००. १०१. १०२.
१०३. १०४.
मं और ओष ध के योग य रोग का वणन य रोग सोमरस म त क तु त अ न क तु त अमाव या का वणन और तु त अ और धन पूणमासी क तु त पूणमास य जाप त क शंसा सूय और चं का वणन सोम चं कला का वणन अ न क तु त व ण क तु त अ न व इं क तु त इं क शंसा ग ड़ का आ ान इं का आ ान अ न प इं क शंसा सप वष का वनाश अ न क तु त जल क तु त अ न व इं क तु त धन के वामी इं क शंसा इं क शंसा इं क तु त सोमरस उ छोचन व शोचन नामक मृ यु दे व श ु और भे ड़या अ न क तु त इं क आराधना य माग को जानने वाला दे व इं क तु त य वेद
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-४ ४ १-२ २ १-३ १-२ १-४ ३ १-४ २ ३ १-६ ३ ४ १-६ १-४ १-३ २ १ १ १ १ १-४ ३ १-३ १ १ १ १ १-३ १ १-८ २ ५ ७ १ १
१०५. १०६. १०७. १०८. १०९. ११०. १११. ११२. ११३. ११४. ११५. ११६. ११७. ११८. ११९. १२०.
१२१. १२२. १२३.
बुरे व का वनाश व म खाया अ दन म दखाई न दे ना धरती, आकाश अंत र और मृ यु को नम कार राजा का आ ान बृह प त दे व क तु त चारी का वणन अ न क तु त सूय क तु त अ न दे व क तु त अ न क तु त जुए क दे वयां गंधव अ न और इं क शंसा वृषभ क शंसा ावा पृ वी क तु त पाप से छु टकारा वाणाप य जड़ीबूट का वणन अ न क तु त मान सक ा ध स वता दे व क तु त द र ता अ न दे व क शंसा पु य और पापका रणी ल मयां उ णक वर से संबं धत दे व क शंसा इं क तु त सोम व व ण क तु त
१ १ १ १ १ १ १ १ १-२ १-७ ३ ६ १-३ १ १-२ २ १-२ १-२ २ १-४ २ ३ ४ १-२ १ १
आठवां कांड सू १.
वषय मृ यु दे व क तु त पाप दे वता के बंधन से उ ार मृ यु से छु टकारा अंधकार से काश क ओर वाडव आ द अ नय ारा र ा मृ यु से छ नने वाले इं , धाता एवं स वता
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-२१ ३ ६ ८ ११ १५
२.
३. ४. ५.
६.
७. ८.
९.
अ द त पु दे व मृ यु से छु ड़ाएं ौ दे वता एवं पृ वी बाहरी और आंत रक रोग का वनाश आयु क कामना नदा से मु पु ष क च क सा वारपाठा नामक जड़ीबूट भव और शव क तु त आ द दे व अ न से ाण क याचना स वता दे व क शंसा बालक क र ा शां त अ न दे व क तु त इं और सोम क तु त सोम दे व ारा पापी रा स का वध म त क शंसा तलक वृ से न मत म ण का वणन कृ या रा सी से बचाव तलक वृ क तु त म ण क म हमा इं का वणन नाम और सुनाम नामक रोग और उनके नवारण का वणन पीली सरस पी ओष ध ककुंभ पशाच का नाश गभ क र ा आयु य ओष धय का वणन वृ का गभ पीपल इं क तु त पीपल और खैर के वृ इं से श ु वध का आ ह सूय क शंसा मृ यु त से श ुवध का आ ह अ न का वणन वराट् के दोन व स का वणन वराट् का वणन सूय, चं एवं अ न का वणन छः मास सात होम
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१६ १७ २१ १-२८ २ ५ ६ ७ ९ १३ १७ २० २६ १-२६ १-२५ १३ १८ १-२२ ७ ११ १३ १७ १-२६ ६ ११ १८ १-२८ २० १-२४ ३ ६ ७ ११ २३ १-२६ ११ १३ १७ १८
१०. १०. १०. १०. १०. १०.
(१) (२) (३) (४) (५) (६)
वराट् वराट् वराट् वराट् वराट् वराट्
का वणन का वणन का वणन का वणन का वणन का वणन
१-१३ १-१० १-८ १-१६ १-१६ १-४
नौवां कांड सू १.
२.
३. ४. ५.
६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३.
वषय मधुकशा गौ क तु त व वणन सोमरस अ न क तु त अ नीकुमार क तु त वृषभ पी काम क तु त काम दे व से द र ता र करने क ाथना काम दे व क तु त अ न, इं और सोम काम दे व क तु त शाला का वणन शाला क पूव दशा को नम कार श शाली ऋषभ का वणन जड़ीबू टय के रस का प रचय बैल का दान अज का वणन अज ही अ न है और अज ही यो त है अ न क शंसा पंचौदन अ त थ स कार का वणन अ त थ स कार का वणन अ त थ स कार का वणन अ त थ स कार का वणन अ त थ स कार का वणन अ त थ स कार का वणन गो म हमा वणन सवशीषामय रीकरण तथा सभी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-२४ १३ १५ १७ १-२५ ४ १० १३ २५ १-३१ २५ १-२४ ५ १८ १-३८ ७ १७ ३१ १-१७ १-१३ १-९ १-१० १-१० १-१४ १-२६
१४.
१५.
रोग का रीकरण सूय क तु त पांच अर वाला प हया बारह आकृ तयां बारह अर वाला प हया गाय का वणन गाय य क तीन स मधाएं भू म क पूजा म और व ण का प तीन यो तयां
१-२२ १-२२ ११ १२ १३ १-२८ ३ २० २३ २६
दसवां कांड सू १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८.
९. १०.
वषय कृ या का प र याग मनु य के शरीर का नमाण दे व क नगरी का वणन वरणम ण का वणन सम त रोग क ओष ध सोमपीथ और मधुपक य दे व के रथ का वणन ेत पद ारा सप का वनाश इं क शंसा जल क तु त तथा वणन स तऋ षय का अनुवतन द जन और अ न दे व से ाथना वन प तफला म ण का वणन अ न का आ ान अंग क मह ा का बखान वह जगदाधार कौन है े परमा मा को नम कार क तु त बारह अरे तथा तीन ने मयां परमा मा संसार के म य थत है आ म त व एक है शतौदना गो का वणन व तु त वशा गौ का वणन व तु त
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-३२ १-३३ ३१ १-२५ ३ २१ १-२६ ३ १७ १-५० ३९ ४६ १-३५ ३५ १-४४ ४ ३६ १-४४ ४ १५ २५ १-२७ १-३४
यारहवां कांड सू १. २.
३. ४. ५. ६. ७. ८.
९. १०.
११. १२.
वषय अ न दे व क तु त ौदनासव य सोम पी ौदन भव और शव क तु त पशुप त को नम कार अ तशय बलशाली क तु त के आयुध बृह प त का भोजन ओदन क म हमा जानने वाला स गु ओदन का खाया जाना ओदन क थ त ाण के लए नम कार ाण अथात् सूय दे व चारी क म हमा का वणन चारी क पहली स मधा चारी पहली भ ा अ न, वन प त, जड़ीबूट और फसल क तु त सभी दे व क तु त इं तथा मात ल क शंसा हवन से बचा भात य शेष क शंसा नौ खंड वाली पृ वी सृ क रचना लय काल के महासागर म तप और कम इं , अ न, सोम, व ा क उ प ान यां तथा कम यां परमे र और माया अबु द सप क तु त यु के लए तैयार होने क ेरणा जातवेद अ न और आ द य क तु त ेत चरण वाली गाय ण प त दे व से वजय दान करने का अनुरोध
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-३७ २० २६ १-३१ ६ १० २२ १-३१ २३ १-६ १-१८ १-२६ ३ १-२६ ४ ९ १-२३ २ २३ १-२७ ११ १४ १-३४ ६ ८ १३ १७ १-२६ १-२७ ४ ६ ९
बारहवां कांड सू १. २. ३.
४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११.
वषय पृ वी क तु त व वणन धरातल क वशेषता पृ वी का नमाण कुंताप अ न को र करना शव भ क अ न गाहप य अ न क तु त अ न क तु त ओदन का भाव पृ वी क तु त वन प त क शंसा गोदान का वणन वशा गौ का वणन नारद क तु त गवी का वणन गवी का वणन गवी का वणन गवी का वणन गवी का वणन गवी का वणन गवी का वणन
मं १-६३ २ १० १-५५ १२ १८ १-६० ३ १२ १८ १-५३ ३ ४५ १-६ १-५ १-१६ १-११ १-८ १-१५ १-१२
तेरहवां कांड सू १.
वषय सूय दे व क तु त अ न क तु त वाच प त क शंसा य क वृ २. सूय दे व क तु त रो हत दे व का वणन और शंसा ३. रो हत दे व क तु त ४. सूय क तु त ५. एक वृ अथात् के ाता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-६० १५ १७ ६० १-४६ ४१ १-२६ १-१३ १-७
६. ७. ८. ९.
के ाता का वणन के ाता का वणन इं क तु त वचस दान करने क कामना
१-७ १-१७ १-६ १-५
चौदहवां कांड सू १.
२.
वषय सोम क तु त अ नीकुमार क शंसा इं क शंसा चं का वणन गाय क तु त बृह प त, इं और स वता दे व क शंसा अ न दे व क तु त सर वती क शंसा ी के लए सुखकारी उपदे श वंशवृ बृह प त दे व का वणन प त और प नी का ेम स वता दे व से द घजीवन क कामना
मं १-६४ १४ १८ २४ ३२ ६२ १-७५ १५ २६ ३१ ५३ ६४ ७५
पं हवां कांड सू १. २. ३.
४. ५.
वषय समूह का हत करने वाले समूह प त का वणन ा य का वणन शरीर पी रथ का वणन ा य का वणन आसंद और बैठने क चौक ऋ वेद के मं और यजुवद के मं आसंद बुनने के तंतु ा य का वणन ऋतु के र क भव अथात् महादे व का वणन ुव दशा के र क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-८ १-२८ ७ १-११ २ ६ १-१८ ४ १-१६ १२
६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८.
ा य का वणन पृ वी, अ न, वन प त और ओष धयां साम, यजु, और ा य का वणन ा य का वणन ा य का वणन ानी ा य का वणन बल और ा बल आकाश और पृ वी ा य क तु त और वणन ा य क तु त और वणन व ान् तधारी क आ ा से हवन ा य क तु त और वणन ा य अ त थ के प म ा य क तु त तथा वणन ा य क तु त तथा वणन ा य का वणन ा य का वणन ा य का वणन
१-२६ २ ८ १-५ १-३ १-३ १-११ ४ ६ १-११ १-११ ४ १-१४ ५ १-२४ १-९ १-७ १-१० १-५
सोलहवां कांड सू १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८.
वषय जल क तु त और वणन जल के े भाग को सागर क ओर े रत करना जाप त से ाथना आ द य का वणन आ द य का वणन व क उप व मृ यु है व नधनता का पु ः व का नाश ः व का नाश बुरे व का नाश श ु बृह प त के बंधन से मु न हो
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-१३ ६ १-६ १-६ १-७ १-१० २ ६ १-११ १-१३ १-३३ १०
९.
श ु का वध करके लाए ए पदाथ हमारे मृ यु के पाश जाप त दे व क तु त
१६ ३२ १-४
स हवां कांड सू १.
वषय इं प सूय क तु त सूय क श यां अनेक ह परम ऐ य वाले सूय का वणन सूय दे व सब के क याणकारी
मं १-३० ८ १३ २६
अठारहवां कांड सू १.
२.
३.
वषय यमयमी संवाद एवं अ न आ द दे व क तु त भाई और बहन पर आ ेप दे व ने जल, वायु और ओष ध त व को पृ वी पर था पत कया सोमा न के स होने पर अ न ोम आ द कम अ न क शंसा आकाश तथा पृ वी मु य तथा स यवाणी ह म एवं व ण दे वता से ाथना पतर ारा सर वती का आ ान दाह सं कार यम आ द क तु त जातवेद अ न क तु त ेत का वणन कु े यमपुर के र क अनंत ा ऋ ष सूय के पु यम यम का वचन मशान भू म मृतक का ा यम क तु त काई और बत म जल का सार अ नय का वणन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-६१ १२ १७ २१ २२ २९ ३९ ४१ ६१ १-६० ५ ७ १२ १८ ३२ ३७ ३८ ५० १-७३ ५ ६
४.
े का वणन त पतृ याग नामक कम मह षय से सुख क कामना दे वमाता अ द त क शंसा भू दे वता क शंसा शीतका रणी जड़ीबू टयां और मंडूकपण ओष ध से ा त पृ वी वन प त म अ थ प पु ष ढांचा अ न क तु त अ न, वायु और सूय का वग म नवास ेत का सं कार वै ानर अ न ारा पतर का पोषण दाह सं कार करने वाले पु ष ारा सर वती का आ ान सोमरस ा त करने वाले अ धकारी पतर अ न, पतर और यम के लए नम कार काशमान अ न क तु त
७ १४ १६ २७ ५० ६० ७० १-८९ ४ १६ ३५ ४५ ६३ ७२ ८८
उ ीसवां कांड सू १. २. ३. ४. ५. ६.
वषय दे व के उ े य से य म आ त आ तय से य क र ा क कामना क याणकारी जल का वणन जल क वंदना अ न दे व क तु त अ न हर व तु म व मान है अ न क म हमा अ न क तु त सर वती क कामना बृह प त का आ ान दे वता के वामी इं क तु त नारायण नाम के पु ष क तु त य पु ष क क पना ा ण, य, वै य और शू क उ प चं मा और सूय क उ प अंत र लोक, वगलोक, भू म और दशा क उ प
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-३ २ १-५ ३ १-४ २ ३ १-४ २ ३ १ १-१६ ५ ६ ७ ८
७. ८.
९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३.
वराट् क उ प घोड़ आ द क उ प अ मेध य न क तु त वभ न के अनुकूल होने क कामना न क तु त अट् ठाईस न न के दे वता का अ भनंदन इं क तु त दे व क तु त ान य का वणन शां त क कामना इं और अ न क तु त सभी दे व से सुख क याचना सोम स य पालक दे व और पतर क तु त उषा क शंसा इं क शंसा इं क सहायता से श ु वजय क कामना श ु को न करने वाले बृह प त ावा और पृ वी क तु त अभय करने वाले इं आ द क शंसा कम क स हेतु इं से ाथना स वता दे व क तु त अ नीकुमार क तु त पृ वी क तु त अंत र का थायी दे वता सोम व क तु त श ु के वनाश क कामना वायु से श ु वनाश क कामना म नाम वाले अ न आ द दे व क तु त वायु ारा पुर क र ा इं , अ न, स वता आ द दे व क तु त सभी ा णय के पालनकता जाप त छं द के लए आ त अं गरा गो वाले ऋ षय के लए आ त छठे के लए आ त ऋ षय के लए आ त पांच ऋचा क रचना करने करने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
९ १२ १५ १-५ २ १-७ २ ३ ६ १-१४ ५ ९ १-१० ४ ७ १-६ १ १-११ ३ ८ १ १-६ २ १-२ २ १-१० २ ३ १-१० २ १-११ २ १-४ २ १ १-२१ २ १-३०
२४. २५. २६. २७.
२८. २९. ३०. ३१.
३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. ४०.
वाले ऋ षय को आ त ा का वणन श ु वनाशकता ण प त क तु त इं क तु त दे व से ाथना श शाली अ क कामना अ न से उ प वण को धारण करने वाले पु ष का वणन ववृत नामक म ण का वणन सोम आ द दे व क तु त म णधारक पु ष आ द य नाम के दे व क शंसा दभम ण का वणन व तु त े ष करने वाल के वनाश के लए ाथना दभम ण क तु त तथा वणन सेना एक करने वाल के नाश क कामना दभम ण क तु त दभम ण क गांठ म सुर ा कवच औ ं बरम ण क तु त पु ष , पशु , अ तथा ओष धय क अ धकता क कामना सर वती दे वी क तु त उ ओष ध दभ का वणन सौ गांठ वाली दभ ओष ध क तु त दभ नाम का र ा साधन श संप जं गड़ नामक जड़ीबूट का वणन जं गड़ म ण क म हमा महा रोग नाशक जं गड़ म ण का वणन राजय मा अथात् ट बी रोग नाशक शतवार ओष ध का वणन पागलपन व अ यरोग का नवारण अ न क तु त स ता के लए य गु गुलु नाम क ओष ध का वणन कूठ नामक वशेष ओष ध का वणन वग म दे व का घर पीपल वृ दोष को र करने के लए बृह प त क तु त जल दे वता क शंसा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
२ ३० १-८ २ ४ १ १-४ १-१५ २ ८ ११ १-१० २ १-९ २ १-५ २ १-१४ ४ १० १-१० १-५ ४ १-१० २ १-५ १-६ ६ १-४ ४ १-३ १-१० ६ १-४ २
ावा पृ वी क शंसा अ नीकुमार क शंसा ४१. तप क द ा ४२. का वणन इं क शंसा ४३. अ न आ द दे व क तु त सगुण का व प जानने वाले कहां जाते ह ४४. आंजन का वणन तथा तु त ाण र क आंजन राजा व ण क तु त ४५. आंजन का वणन और तु त अ न क तु त इं क शंसा भगदे व क तु त ४६. आ तृत म ण का वणन तथा तु त ४७. नीलवण के अंधकार वाली रा का वणन क याण का रणी रा रा के गण दे वता ४८. रा का वणन तथा शंसा उषःकाल क कामना ४९. रा का वणन व तु त ५०. रा का वणन व वंदना ५१. कम का अनु ान करने का इ छु क ५२. काम क तु त काम से म के समान आचरण करने क इ छा ५३. काल का वणन काल प परमा मा सूय का संसार को का शत करना ५४. काल का वणन सभी क ग त का कारण काल ५५. अ न दे व क तु त संपूण अ और जीवन क कामना ५६. बुरे व के अ भमानी ू र पशाच का वणन व से बचने का उपाय व ण ने आ द य को बताया ५७. ः व नाशन ५८. परमा मा से संबं धत ान आकाश और पृ वी से तेज क याचना इं य को नदश ******ebook converter DEMO Watermarks*******
३ ४ १ १-४ ३ १-८ २ १-१० ४ ८ १-१० ६ ७ ९ १-७ १-९ २ ४ १-६ २ १-१० १-७ १-२ १-५ २ १-१० २ ६ १-५ २ १-६ ६ १-६ ४ १-५ १-६ ३ ४
५९. ६०. ६१. ६२. ६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. ७१. ७२.
अ न क तु त शारी रक वा य क कामना अ न क तु त अ न क तु त ण प त क तु त जातवेद अ न क तु त सूय क शंसा जातवेद सूय क वंदना सूय दे व क तु त ान और ाण वायु के मूल आधार का व तार इं आ द दे वगण क तु त इं क तु त सा व ी दे वी क तु त दे व से मनचाहे कम के फल क याचना
१-३ १-२ १ १ १ १-४ १ १ १-८ १ १-४ १ १ १
बीसवां कांड सू १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११.
वषय इं से सोम पीने का अनुरोध वेद मं ारा अ न दे व क तु त अ न, म त एवं इं दे व क तु त वणोदा से सोमपान करने का अनुरोध इं क तु त इं से सोमरस पीने का अनुरोध इं से सोम ा त करने का अनुरोध इं से य म आने का आ ह कामना क वषा करने वाले इं से मधुर सोम पान करने का आ ह म त के वामी इं क तु त इं क तु त इं से सोम पीने का आ ह दशनीय और ःख वनाशक इं क तु त उ म अ क याचना इं क तु त इं के काय का वणन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मं १-३ ३ १-४ ४ १-३ १-३ १-७ ७ १-९ ३ १-४ १-३ १-४ ३ १-२ १-११
१२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१.
इं वग ा त कराने श ु का वनाश करने वाले ह तु त कता को धन दे ने वाले इं इं ारा वन प तय एवं दवस क रचना इं क तु त बृह प त दे व और इं से य शाला म आने के लए आ ह अ न से य म आने का आ ह र ा क कामना से इं का आ ान इं क तु त इं के य का थान सारा जगत् बृह प त दे व क शंसा बृह प त ने छपी ई गाएं बाहर नकाल इं क तु त इं से सोमरस पीने का आ ह बृह प त दे व क शंसा व धारी इं क तु त इं क तु त इं क तु त पांच वण म ा त बल क कामना इं क तु त वषा करने वाले इं क शंसा इं से य म आने का आ ह इं क तु त इं को सोम पान के लए बुलावा धन के वजेता इं इं क म हमा का गान अ वनाशी इं का पूजन इं क तु त अ ानी को ान दे ने वाले सूय का उदय इं क तु त इं के काय का वणन इं क तु त तथा वणन इं के अ का वणन इं के सुंदर शरीर व श का वणन इं के केश अ ारा इं को य म लाया जाना इं का नवास
******ebook converter DEMO Watermarks*******
४ ७ १० १-७ १-४ ४ १-४ १-६ २ १-१२ ४ १-१२ २ ११ १-६ १-७ १-७ २ १-११ १-६ १-९ १-९ ४ ६ १-७ ५ १-६ ६ १-६ १-४ १-५ १-५ ३ ५ १-५ ५
३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. ४०. ४१. ४२. ४३. ४४. ४५. ४६. ४७. ४८. ४९. ५०. ५१. ५२. ५३. ५४. ५५. ५६. ५७. ५८. ५९. ६०.
इं क म हमा इं के लए सोम रस का सं कार इं के बल क म हमा शंबर असुर का वध इं क तु त महान् इं के असाधारण कम का वणन इं क तु त धन क याचना इं क तु त का वणन इं का व इं से सोम रस पीने का आ ह इं का पूजन इं का आ ान इं क म हमा का गुणगान बलशाली इं का वणन इं क श इं से श ु वनाश क कामना इं क तु त इं को पास बुलाने का आ ह इं क म हमा इं का वणन व तु त इं के रथ म घोड़ को जोड़ना इं क तु त सूय क करण के तीस मु त द त इं क तु त इं क म हमा का गुणगान इं के आयुध का वणन सोमरस इं से य म आने का अनुरोध इं से य म आने का अनुरोध इं को य म बुलाने का संक प इं क तु त और वणन र ा के लए इं का आ ान इं क म हमा क शंसा इं क तु त इं का य भाग अ एवं धन के वामी इं क शंसा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-३ १-३ १-१८ ११ १-१६ ७ १-११ ३ १-११ ३ १-६ ४ १-५ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-३ १-२१ ११ १-६ ६ १-७ १-२ १-४ १-३ १-३ १-३ १-३ १-६ १-१६ १-४ १-४ ३ १-६
६१. ६२. ६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७. ७८. ७९. ८०. ८१. ८२. ८३. ८४.
इं को य लगने वाली तु तयां इं क ह व से पूजा इं से र ा क कामना इं क तु त इं क तु त वग के वामी इं क तु त इं क तु त इं का य म बैठना इं क म हमा का गुणगान अ न क तु त र ा के लए इं का आ ान य शाला म इं का गान इं का चतन सूय प इं इं क तु त इं क म हमा इं क म हमा का वणन श ु ारा इं के बल क शंसा इं क तु त और वणन इं क शंसा ह व प अ का सेवन इं ारा कम करने वाल का वध इं क तु त पाप वृ वाले रा स के वध क कामना गोदान के अवसर पर अ क कामना अ नीकुमार क तु त इं क शंसा इं क शंसा इं हेतु मं के समूह का उ चारण मं के ारा दशनीय वग का ान सोमरस का सं कार और इं क तु त इं क तु त इं क तु त इं के समान कोई महान नह इं क तु त इं से मंगलकारी घर क कामना इं क तु त का परामश
******ebook converter DEMO Watermarks*******
६ १-६ १-१० ४ १-९ १-६ १-३ १-३ १-७ ३ १-१२ ११ १-१२ ११ १-२० १२ १-१६ १६ १-३ १-६ ३ ६ १-७ ५ १-३ १-८ ३ १-८ २ ३ १-३ १-२ १-२ १-२ १-२ १-२ १-३
८५. ८६. ८७. ८८. ८९. ९०. ९१. ९२. ९३. ९४. ९५. ९६.
९७. ९८. ९९. १००. १०१. १०२. १०३. १०४. १०५.
इं क तु त करने क ेरणा इं क तु त इं क तु त बृह प त क तु त बृह प त दे व क तु त ह वय और नम कार के ारा बृह प त क पूजा इं क तु त ती वाद वाला सोमरस बृह प त दे व से र ा क कामना बृह प त क तु त वशाल गोशालाएं बृह प त दे व क तु त बृह प त तु तकता के र क इं ारा मेघ पर हार इं क तु त भार को संभालने वाले इं वृ क कामना इं क तु त इं से श ु के वनाश का आ ह हसक श ु से र ा क कामना सोमरस पान इं के बल क पूजा का परामश इं क तु त सोम का सं कार न करने वाला हार के यो य रोगी क चरायु क कामना अ न दे व क तु त य मा रोग को न करना इं क शंसा इं क तु त इं क तु त इं क तु त अ न क तु त अ न क तु त अ न क तु त इं के लए शंसा मं ो चारण अ न क तु त इं क तु त वृ के हंता इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-४ १ १-७ ६ १-६ ६ १-११ ८ ११ १-३ ३ १-१२ ११ १२ १-२१ ११ २१ १-८ १-११ ११ १-४ २ १-२४ ४ ९ ११ १९ १-३ १-२ १-२ १-३ १-३ १-३ १-३ १-४ ४ १-५ ४
१०६. १०७. १०८. १०९. ११०. १११. ११२. ११३. ११४. ११५. ११६. ११७. ११८. ११९. १२०. १२१. १२२. १२३. १२४. १२५. १२६.
१२७. १२८. १२९. १३०. १३१.
इं क तु त इं और सूय क शंसा रणभू म म वरो धय क हसा सूय और उषादे वी इं क तु त इं क तु त सोम का सं कार इं क पूजा इं क तु त सोम का सं कार सूय क शंसा करने वाले इं इं के हतकारी काय इं क तु त इं क तु त इं क तु त इं से सोमरस पान का अनुरोध इं क तु त ाचीन तो के ारा इं क तु त इं से य म पधारने का अनुरोध वग के सृ ा इं क तु त इं क तु त म व व ण क म हमा का गान इं क तु त दे व व क र ा के लए रा स का वध इं से चार दशा से श ु को रोकने का आ ह इं के सहायक अ नीकुमार इं क तु त य म नारी और पु ष एक साथ इं ाणी क शंसा वृषाक प क शंसा मं उ चारण कुंता सू के वै ानर क मंगलमयी तु त इं क तु त इं क तु त दान और साधु कृ त का पोषक परम त व
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-३ १-१५ ८ १५ १-३ १-३ २ १-३ १-३ ३ १-३ १-२ १-२ १-३ १-२ १-३ १-४ १-२ १-२ १-३ १-३ १-२ १-६ ५ १-७ ४ १-२३ १० ११ १३ १-१४ ७ १३ १-१४ १-२० १-२० १-२०
१३२. १३३. १३४. १३५. १३६. १३७. १३८. १३९. १४०. १४१. १४२. १४३.
रामतोरई का वणन अस य से मु चार दशाएं इं क तु त वन प त का वणन महान् अ न का कथन इं का वणन व तु त सोमरस का शोधन इं ारा पृ वी पर जल वाली श इं क तु त अ नीकुमार क तु त अ नीकुमार क तु त अ नीकुमार क तु त अ नीकुमार क तु त अ नीकुमार क तु त अ नीकुमार क तु त
य क थापना
******ebook converter DEMO Watermarks*******
१-१६ १-६ १-६ १-१३ १-१६ ५ १-१४ ५ ७ १-३ २ १-५ १-५ १-५ १-६ १-९
पहला कांड सू -१
दे वता—वाच प त
ये ष ताः प रय त व ा पा ण ब तः. वाच प तबला तेषां त वो अ दधातु मे.. (१) जो रजोगुण, तमोगुण एवं सतोगुण तीन गुण और पृ वी, जल, तेज, वायु, आकाश, त मा ा एवं अहंकार सात पदाथ द प म सव मण करते ह, वाणी के वामी उन त व और पदाथ क द श मुझे द. (१) पुनरे ह वाच पते दे वेन मनसा सह. वसो पते न रमय म येवा तु म य ुतम्.. (२) हे वाणी के वामी दे व! आप द मन के साथ मेरे समीप आइए. हे ाण के वामी ! इ छत फल दे कर मुझे आनं दत क जए. मेरे ारा अ ययन कए गए वेदशा धारण करने क मुझे बु द जए. (२) इहैवा भ व तनूभे आ न इव यया. वाच प त न य छतु म येवा तु म य ुतम्. (३) हे वाणी के वामी ! जस कार धनुष क डोरी चढ़ाने से उस के दोन सरे समान प से खच जाते ह, उसी कार मुझे वेदशा धारण करने क श एवं आनंदोपभोग के इ छत साधन दान करो. (३) उप तो वाच प त पा मान् वाच प त यताम्. सं ुतेन गमेम ह मा ुतेन व रा ध ष.. (४) वाणी के वामी का हम आ ान करते ह. हमारे ारा आ ान कए गए अपने समीप बुलाएं. हम संपूण ान से सदै व यु रह तथा कभी र न ह . (४)
सू -२
दे वता—पज य
वद्मा शर य पतरं पज यं भू रधायसम्. वद्मो व य मातरं पृ थव भू रवपसम्.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम
जड़ चेतन सब का पोषण कता एवं सब को धारण करने वाला बादल बाण का पता है तथा सभी त व से यु पृ वी इस बाण क माता है. ता पय यह है क बादल और पृ वी दोन से बाण अथात् श क उ प होती है. यह बात हम जानते ह. (१) या के प र णो नमा मानं त वं कृ ध. वीडु वरीयो ऽ रातीरप े षां या कृ ध.. (२) हे धनुष क नदनीय डोरी! तुम हमारी ओर न झुक कर हमारे श ु क ओर झुको. हे दे वप त! हमारे शरीर को प थर के समान सु ढ़ बनाओ, हम श ु के े षपूण कम से र रखो एवं हमारे श ु का बल न करो. (२) वृ ं यद्गावः प रष वजाना अनु फुरं शरमच यृभुम्. श म मद् यावय द ु म .. (३) हे इं ! जस कार गरमी से ाकुल गाएं वट वृ क छाया म शरण लेती ह, उसी कार हमारे श ु के े षपूण बाण हम से र रह कर उ ह के समीप जाएं. (३) यथा ां च पृ थव चा त त त तेजनम्. एवा रोगं चा ावं चा त त तु मु इत्.. (४) जस कार पृ वी और ुलोक के म य तेज रहता है, उसी कार यह बाण ब मू , अ तसार (द त) आ द रोग तथा घाव को दबाए रहे. (४)
सू -३
दे वता—पज य
वद्मा शर य पतरं पज यं शतवृ यम्. तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (१) हम सैकड़ साम य वाले एवं बाण के पता पज य अथात् बादल को जानते ह. हे मू रोगी! म तेरे मू ा द रोग को समा त करता ं. शरीर म रखा आ मू बाहर नकल कर पृ वी पर गरे. (१) वद्मा शर य पतरं म ं शतवृ यम्. तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (२) हम सैकड़ साम य वाले एवं बाण के पता म अथात् सूय को जानते ह. हे रोगी मनु य! इसी बाण से म तेरे मू ा द रोग को न करता ं. तेरे पेट म का आ मू बाहर नकल कर पृ वी पर गरे. (२) वद्मा शर य पतरं व णं शतवृ यम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (३) हम सैकड़ साम य से संप एवं बाण के पता व ण को जानते ह. हे रोगी मनु य! इसी बाण से म तेरे मू ा द रोग को र करता ं. तेरे पेट म का आ मू बाहर नकल कर धरती पर गरे. (३) वद्मा शर य पतरं च ं शतवृ यम्. तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (४) हम सैकड़ श य वाले एवं बाण के पता चं को जानते ह. हे रोगी मनु य! म उसी बाण से तेरे मू ा द रोग को समा त करता ं. तेरे पेट म का आ मू बाहर नकले और धरती पर गरे. (४) वद्मा शर य पतरं सूय शतवृ यम्. तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (५) हम सैकड़ श य वाले एवं बाण के पता सूय को जानते ह. हे रोगी! म इसी बाण से तेरे मू ा द रोग को न करता ं. उदर (पेट) म सं चत तेरा मू बाहर नकल कर धरती पर गरे. (५) यदा ेषु गवी योय ताव ध सं तम्. एवा ते मू ं मु यतां ब हबा ल त सवकम्.. (६) जो मू तेरी आंत म, मू नाड़ी म एवं मू ाशय म का आ है, वह तेरा सारा मू श द करता आ शी बाहर नकल आए. (६) ते भन द्म मेहनं व वेश या इव. एवा ते मू ं मु यतां ब हबा ल त सवकम्.. (७) हे मू ा ध से पी ड़त रोगी! म तेरे मू नकलने के माग का उसी कार भेदन करता ं, जस कार जलाशय का जल बाहर नकालने के लए नाली खोदते ह. तेरा सारा मू श द करता आ बाहर नकले. (७) व षतं ते व त बलं समु योदधे रव. एवा ते मू ं मु यतां ब हबा ल त सवकम्.. (८) हे मू रोग से ःखी रोगी! जस कार सागर, जलाशय आ द का जल नकलने के लए माग बना दया जाता है, उसी कार म ने तेरे के ए मू को बाहर नकालने के लए तेरे मू ाशय का ार खोल दया है. तेरा सारा मू श द करता आ बाहर नकले. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यथेषुका परापतदवसृ ा ध ध वनः. एवा ते मू ं मु यतां ब हबा ल त सवकम्.. (९) जैसे खची ई डोरी वाले धनुष से छोड़ा आ बाण तेजी से ल य क ओर जाता है, वैसे तेरा का आ सारा मू श द करता आ बाहर नकले. (९)
दे वता—जल
सू -४
अ बयो य य व भजामयो अ वरीयताम्. पृंचतीमधुना पयः.. (१) य करने के इ छु क जन अपनी माता घृत आ द य साम ी ले कर आते ह. (१)
और बहन के समान जल, सोमरस, ध एवं
अमूया उप सूय या भवा सूयः सह. ता नो ह व व वरम्.. (२) जो जल सूय मंडल म थत है अथवा सूय जस जल के साथ थत है, वह जल हमारे य को फल दे ने म समथ बनाए. (२) अपो दे वी प
ये य गावः पब त नः. स धु यः क व ह वः.. (३)
म व छ एवं दे वता प जल का आ ान करता ं. जल से पूण जलाशय अथात् न दय और तालाब म हमारी गाएं जल पीती ह. (३) अ व १ तरमृतम सु भेषजम्. अपामुत श त भर ा भवथ वा जनो गावो भवथ वा जनीः.. (४) जल म अमृत है. जल म ओष धयां नवास करती ह. इन जल के भाव से हमारे घोड़े बलवान बन, हमारी गाएं श संप बन. (४)
सू -५
दे वता—जल
आपो ह ा मयोभुव ता न ऊज दधातन. महे रणाय च से.. (१) हे जल! आप सभी कार का सुख दे ने वाले ह. अ आ द सुख का उपभोग करने के इ छु क हम सब को आप उन के उपभोग क श दान कर. आप हम महान एवं रमणीय आनंद व प के सा ा कार का साम य द. (१) यो वः शवतमो रस त य भाजयतेह नः. उशती रव मातरः.. (२) जस कार माताएं अपनी इ छा से ध पला कर बालक को पु करती ह, उसी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कार हे जल! आप अपने अ य धक क याणकारी रस का हम अ धकारी बनाएं. (२) त मा अरं गमाम वो य य याय ज वथ. आपो जनयथा च नः.. (३) हे जल! हम जस अ आ द को पा कर तृ त होते ह, उसे ा त करने के लए हम आप को पया त प म पाएं. हे जल! आप पया त प म आ कर हम तृ त कर. (३) ईशाना वायाणां य ती षणीनाम्. अपो याचा म भेषजम्.. (४) म धन के वामी एवं सुख साधन दान कर के ग तशील मनु य को एक थान पर बसाने वाले जल क ओष ध के प म याचना करता ं. (४)
सू -६
दे वता—जल
शं नो दे वीर भ य आपो भव तु पीतये. शं योर भ व तु नः.. (१) द गुण वाला जल सभी ओर से हमारा क याण करने वाला हो. जल हमारे चार ओर क याण क वषा करे एवं पीने के लए उपल ध हो. (१) अ सु मे सोमो अ वीद त व ा न भेषजा. अ नं च व श भुवम्.. (२) मुझे सोम ने बताया है क सारी ओष धयां एवं अ न जल म नवास करती ह. अ न सारे संसार का क याण करने वाली है. (२) आपः पृणीत भेषजं व थं त वे ३ मम. योक् च सूय शे.. (३) हे जल! तुम मेरे रोग का नवारण करने के लए ओष धयां दान करो. अ धक समय तक सूय के दशन करने के लए तुम मेरे शरीर को पु करो. (३) शं न आपो ध व या ३: शमु स वनू याः. शं नः ख न मा आपः शमु याः कु भ आभृताः शवा नः स तु वा षक ः.. (४) जल हम म भू म म सुखकारी ह . जन थान म जल क ा त सुलभ है, वहां के जल हमारा क याण कर. कुआं, बावड़ी आ द खोद कर ा त कए गए जल हमारे लए क याणकारी ह . घड़े म भर कर लाया गया जल हम सुख दे . वषा से ा त होने वाला जल हमारे लए सुखकारी हो. (४)
सू -७
दे वता—अ न और इं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुवानम न आ वह यातुधानं कमी दनम्. वं ह दे व व दतो ह ता द योबभू वथ.. (१) हे अ न! हम जन दे व क तु त करते ह, उ ह तुम हमारे समीप लाओ एवं हम मारने क इ छा से घूमने वाले रा स को हम से र भगाओ. हे द गुण वाले अ न! हमारे नम कार आ द से स तुम द युजन क ह या कर दे ते हो. (१) आ य य परमे न् जातवेद तनूव शन्. अ ने तौल य ाशान यातुधानान् व लापय.. (२) हे वग आ द उ म थान म नवास करने वाले, हे जातवेद एवं हे जलश पम सब के शरीर म थत अ न! हमारे ारा ुवा आ द से नाप कर दए गए घृत का भोजन क जए एवं रा स का वनाश भी क जए. (२) व लप तु यातुधाना अ अथेदम ने नो ह व र
णो ये कमी दनः. त हयतम्.. (३)
हे अ न! आप और परम ऐ य वाले इं , हमारे दए गए ह व को स तापूवक वीकार कर. रा स, सब का भ ण करने वाले द यु एवं इधरउधर घूमने वाले जन न हो जाएं. (३) अ नः पूव आ रभतां े ो नुदतु बा मान्. वीतु सव यातुमान् अयम मी ये य.. (४) सब से पहले अ न दे व रा स को दं ड दे ना आरंभ कर. इस के प ात श शाली भुजा वाले इं रा स को र भगाएं. अ न और इं से पी ड़त सभी रा स आ कर आ मसमपण कर और अपना प रचय द क म अमुक ं. (४) प याम् ते वीय जातवेदः णो ू ह यातुधानान् नृच ः. वया सव प रत ताः पुर तात् त आ य तु ुवाणा उपेदम्.. (५) हे सब को जानने वाले अ न! हम आप का परा म दे ख. हे उपासना के यो य अ न! हमारी इ छानुसार रा स से क हए क वे हम ःख न द. आप के ारा सताए ए रा स अपना प रचय दे ते ए हमारी शरण म आएं. (५) आ रभ व जातवेदो ऽ माकाथाय ज षे. तो नो अ ने भू वा यातुधानान् व लापय.. (६) हे सब को जानने वाले अ न! तुम रा स के वनाश का काय आरंभ करो, य क तुम हमारे योजन पूण करने के लए उ प ए हो. हे अ न! तुम हमारे त बन कर रा स को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
र भगाओ. (६) वम ने यातुधानानुपब ाँ इहा वह. अथैषा म ो व ेणा प शीषा ण वृ तु.. (७) हे अ न! तुम र सी आ द से रा स के हाथपैर बांध कर उ ह यहां ले आओ. इस के प ात इं अपने व से उन के सर काट द. (७)
सू -८
दे वता—बृह प त
इंद ह वयातुधानान् नद फेन मवा वहत्. यं इदं ी पुमानक रह स तुवतां जनः.. (१) मेरे ारा अ न आ द दे व को दया आ घृत आ द ह व रा स को यहां से उसी कार र हटा दे , जस कार नद क धारा फेन को एक थान से सरे थान तक ले जाती है. मेरे त अ भचार, जा , टोना, टोटका करने वाले ीपु ष अपने मनोरथ म असफल हो कर यहां मेरी शरण म आएं और मेरी तु त कर. (१) अयं तुवान आगम दमं म त हयत. बृह पते वशे ल वा नीषोमा व व यतम्.. (२) हे बृह प त आ द दे वो! आप क तु त करता आ जो यह मनु य आप क शरण म आया है, यह हमारा वरोधी श ु है. हे बृह प त, अ न एवं सोम! इन उप वका रय को वश म कर के अनेक कार से दं डत करो. (२) यातुधान य सोमप ज ह जां नय व च. न तुवान य पातय परम युतावरम्.. (३) हे सोमरस पीने वाले अ न दे व! तुम रा स क संतान के समीप प ंच कर उ ह समा त कर दो और हमारी संतान क र ा करो. हमारे जो श ु तुम से भयभीत हो कर तु हारी ाथना करते ह, तुम उन क दा और बा दोन आंख बाहर नकाल लो. (३) य ष ै ाम ने ज नमा न वे थ गुहा सताम णां जातवेदः. तां वं णा वावृधानो ज ेषां शततहम ने.. (४) हे सब के वषय म जानने वाले अ न! तुम गुहा म नवास करने वाले रा स को जानते हो. हे मं ारा वृ पाते ए अ न! इन रा स ारा सैकड़ कार क हसा को रोको एवं संतान स हत इन का वनाश करो. (४)
सू -९
दे वता—वसु
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ मन् वसु वसवो धारय व ः पूषा व णो म ो अ नः. इममा द या उत व े च दे वा उ र मन् य यो त ष धारय तु.. (१) भां तभां त क धन संप क कामना करने वाले इस पु ष को वसु, इं , पूषा, व ण, म , अ न एवं व े दे व धन दान कर तथा ये दे व इसे उ म यो त संप बनाएं. (१) अ य दे वाः द श यो तर तु सूय अ न त वा हर यम्. सप ना अ मदधरे भव तू मं नाकम ध रोहयेमम्.. (२) हे इं ा द दे वो! ामा द सुख के इ छु क इस पु ष के अ धकार म सूय, अ न, चं , वग आ द क यो त पूण प से रहे. इस के कारण श ु हमारे अ धकार म रह. तुम हम सभी कार के ःख से हीन वग म प ंचाओ. (२) येने ाय समभरः पयां यु मेन णा जातवेदः. तेन वम न इह वधयेमं सजातानां ै ् य आ धे ेनम्.. (३) हे सब कुछ जानने वाले अ न! आप ने जन उ म मं ारा इं के लए ध, घृत आ द रस ह व के प म ा त कराए, हे अ न! उ ह मं के ारा इस पु ष क वृ करो एवं इसे अपनी जा त वाल म े बनाओ. (३) ऐषां य मुत वच ददे ऽ हं राय पोषमुत च ा य ने. सप ना अ मदधरे भव तू मं नाकम ध रोहयेमम्.. (४) हे अ न! तु हारी कृपा से म इन श ु के वग आ द लोक के साधक य , कम, तेज, धन एवं च का हरण करता ं. मेरे श ु मुझ से न न थ त म रह. आप मुझ यजमान को सभी ःख से र हत एवं उ म वग म प ंचा दो. (४)
सू -१०
दे वता—व ण
अयं दे वानामसुरो व राज त वशा ह स या व ण य रा ः. तत प र णा शाशदान उ य म यो दमं नया म.. (१) इं ा द दे व म व ण पा पय को दं ड दे ने वाले ह. इस कार के यह व ण सब से उ कृ ह. सभी पदाथ तेज वी व ण दे व के वश म ह. इस लए म व ण क तु त संबंधी मं से श ा त कर के व ण दे व के चंड कोप के कारण उ प जलोदर रोग वाले इस पु ष को रोगमु करता ं. (१) नम ते राजन् व णा तु म यवे व ं न चके ष धम्. सह म यान् सुवा म साकं शतं जीवा त शरद तवायम्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे तेज वी व ण! तु हारे ोध के लए नम कार है. तुम सभी ा णय ारा कए गए अपराध को जानते हो. म हजार अपराधी पु ष को तु हारी सेवा म भेज रहा ं. ये मनु य आप के त न ा वाले बन कर सौ वष तक जी वत रह. (२) य व थानृतं ज या वृ जनं ब . रा वा स यधमणो मु चा म व णादहम्.. (३) हे जलोदर रोग से सत पु ष! अपनी ज ा से तूने पाप का साधन अस य भाषण अ धक कया है. म स य धम वाले एवं तेज वी व ण के कोप से तेरी र ा करता ं. (३) मु चा म वा वै ानरादणवान् महत प र. सजातानु ेहा वद चाप चक ह नः.. (४) हे पु ष! म तुझे जठरा न को मंद करने वाले महान जलोदर रोग से छु ड़ाता ं. हे परम श शाली व ण! आप अपने सहचर , भट अथात् अपने सेवक से क हए क वे बारबार आ कर इस मनु य को पीड़ा न द. आप हमारे ारा दए गए ह व प अ और तु त से स हो कर हमारे भय का वनाश क जए. (४)
सू -११
दे वता—पूषा आ द
वषट् ते पूष म सूतावयमा होता कृणोतु वेधाः. स तां नायृत जाता व पवा ण जहतां सूतवा उ.. (१) हे पूषा दे व! सुख उ प करने वाले इस य कम म ा ण समूह के ेरक दे व अयमा होता बन कर आप को ह व दान कर. संपूण जगत् के नमाता वेधा दे व आप को वषट् कार के ारा ह व दान कर. आप क कृपा से यह ग भणी नारी सव संबंधी क से छु टकारा पा कर जी वत संतान को ज म दे . सुखपूवक सव के लए इस के सं ध बंध श थल हो जाएं. (१) चत ो दवः दश त ो भू या उत. दे वा गभ समैरयन् तं ूणव ु तु सूतवे.. (२) ुलोक से संबं धत ाची आ द चार दशा एवं भूलोक क आ नेयी आ द चार दशा ने एवं इन दशा के अ ध ाता इं आ द दे व ने पहले गभ को पूण कया था. वे सभी दे व इस समय गभ को गभाशय से बाहर नकाल एवं जरायु के आ छादन से मु कर. (२) सूषा ूण तु व यो न हापयाम स. थया सूषणे वमव वं ब कले सृज.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सव क दे वता पूषा गभ को जरायु के बंधन से अलग कर. हम भी सुखपूवक सव के लए यो न माग को खोल रहे ह. तुम भी सुखपूवक सव के लए यो न माग को श थल करो. हे सू तमा त दे व! आप भी गभ का मुख नीचे को कर के उसे बाहर नकलने हेतु े रत करो. (३) नेव मांसे न पीव स नेव म ज वाहतम्. अवैतु पृ शेवलं शुने जरा व वे ऽ व जरायु प ताम्.. (४) हे सव करने वाली नाड़ी! तू इस उदरगत जरायु से पु नह होगी, य क इस का संबंध मांस, म जा आ द से नह है. इस लए उजले रंग क यह जरायु दोन के ऊपर तैरने वाली काई के समान नीचे गर जाए. इसे कु े के खाने के लए नीचे गर जाने द. (४) व ते भन द्म मेहनं व यो न व गवी नके. व मातरं च पु ं च व कुमारं जरायुणाव जरायु प ताम्.. (५) हे ग भणी! म गभ थ बालक को बाहर नकालने के लए मू माग को फैलाता ं तथा यो न के आसपास क ना ड़य को भी फैलाता ं. य क ये सव म बाधा डालती ह. म माता और पु को अलगअलग करता ं. इस के बाद म पु को जरायु से अलग करता ं. जरायु गभाशय से नीचे गर जाए. (५) यथा वातो यथा मनो यथा पत त प णः. एवा वं दशमा य साकं जरायुणा पताव जरायु प ताम्.. (६) हे दशमास गभ थ शशु! जस कार वायु, मन एवं आकाश म उड़ने वाले प ी आकाश म बना रोकटोक के वचरण करते ह, उसी कार तू जरायु के साथ गभ से बाहर आ. जरायु गभाशय से नीचे गरे. (६)
सू -१२
दे वता—य मानाशन
जरायुजः थम उ या वृषा वाता जा तनय े त वृ ् या. स नो मृडा त त व ऋजुगो जन् य एकमोज ेधा वच मे.. (१) न को परा जत कर के कट होने वाले, संसार म सब से थम उ प एवं वायु के समान शी गामी सूय बादल को गजन करने के लए े रत करते ए वषा के साथ आते ह. वे सूय दोष से उ प रोग आ द का वनाश करते ए हमारी र ा कर. सीधे चलने वाले जो सूय एक हो कर भी अपने तेज को तीन कार से का शत करते ह, वे हम सुख दान कर. (१) अ े अ े शो चषा श याणं नम य त वा ह वषा वधेम. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अङ् का समङ् कान् ह वषा वधेम यो अ भीत् पवा या भीता.. (२) हे ा णय के येक अंग म अपनी द त से वतमान सूय! हम तु ह नम कार करते ए च आ द से तु हारी उपासना करते ह. हम तु हारे अनुचर एवं प रवार प दे व क भी ह व से सेवा करते ह. जस वर आ द रोग ने इस पु ष के शरीर के अवयव को जकड़ रखा है, हम उस क नवृ के लए ह व ारा तु हारी पूजा करते ह. (२) मु च शीष या उत कास एनं प प रा ववेशा यो अ य. यो अ जा वातजा य शु मो वन पती सचतां पवतां .. (३) हे सूय! इस पु ष को सर के रोग से छु टकारा दलाओ. जो खांसी का रोग इस के जोड़जोड़ म वेश कर गया है, उस से भी इसे मु कराओ. वषा एवं जल से उ प जो प के वकार से ज नत आ द रोग ह, उन से इस पु ष को मु कराइए. ये रोग इस पु ष को छोड़ कर वन प त और पवत म चले जाएं. (३) शं मे पर मै गा ाय शम ववराय मे. शं मे चतु य अ े यः शम तु त वे ३ मम.. (४) मेरे शरीर के अवयव सर का रोग शां त के प म क याणकारी हो. मेरे चरण आ द न न अंग को सुख मले. मेरे दोन हाथ और दोन चरण को सुख ा त हो. मेरे शरीर के म य भाग को नीरोगता ा त हो. (४)
सू -१३
दे वता— व ुत्
नम ते अ तु व ुते नम ते तन य नवे. नम ते अ व मने येना डाशे अ य स.. (१) हे पज य! व ुत को मेरा नम कार हो. गजन करते ए व आप आतता यय को र फक दे ते ह. (१)
को मेरा नम कार हो.
नम ते वतो नपाद् यत तपः समूह स. मृडया न तनू यो मय तोके य कृ ध.. (२) हे पज य! आप स पु ष क र ा करते ह. आप को नम कार है. आप जल को भीतर धारण कए रहते ह और समय से पहले नीचे नह गरने दे ते ह. आप पाप वनाशक तप को एक करते ह एवं पा पय पर अपना व फकते ह. आप हमारे शरीर को सुख द और हमारे पु , पौ आ द का क याण कर. (२) वतो नपा म एवा तु तु यं नम ते हेतये तपुषे च कृ मः. वद्म ते धाम परमं गुहा यत् समु े अ त न हता स ना भः.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऊंचाई से नीचे क ओर गरने वाले पज य! तु हारे लए नम कार है. तु हारे संतापकारी आयुध व को नम कार है. हम आप के गुफा के समान अग य एवं उ म नवास थान को जानते ह. जस कार शरीर म ना भ म य थ है, उसी कार तुम अंत र के क सागर म थत हो. (३) यां वा दे वा असृज त व इषुं कृ वाना असनाय धृ णुम्. सा नो मृड वदथे गृणाना त यै ते नमो अ तु दे व.. (४) हे अ न! सभी दे व के अ य पु ष पर गराने के लए एवं श ु पर बाण के प म फकने के लए तु हारी रचना क गई है. य म तु हारी तु त भी क जाती है. तुम हमारी र ा करो. हे आकाश म चमकती ई अ न! तु हारे लए नम कार हो. (४)
सू -१४
दे वता—यम
भगम या वच आ द य ध वृ ा दव जम्. महाबु न इव पवतो योक् पतृ वा ताम्.. (१) मनु य जस कार वृ से माला बनाने हेतु फूल तोड़ता है, उसी कार म इस ी के भा य और तेज को वीकार करता ं. धरती म भीतर तक धंसा आ पवत जस कार थर रहता है, उसी कार यह बुरे भा य वाली ी चरकाल तक पता के घर रहे अथात् यह कभी प त का मुख न दे खे. (१) एषा ते राजन् क या वधू न धूयतां यम. सा मातुब यतां गृहे ऽ थो ातुरथो पतुः.. (२) हे सुशो भत सोम! यह क या आप क प नी है, य क इस ने पहले आप को वीकार कया है, इस लए यह प तगृह से नकाल द जानी चा हए. यह क या चरकाल तक अपने पता एवं भाई के घर पड़ी रहे. (२) एषा ते कुलपा राजन् तामु ते प र दद्म स. योक् पतृ वासाता आ शी णः शमो यात्.. (३) हे सुशो भत सोम! यह ी प त ता होने के कारण आप के कुल का पालन करने वाली है, इस लए हम इसे र ा के लए आप को दे ते ह. यह तब तक अपने पता के घर पर रहे. यह धरती पर सर गरने तक अथात् मरण पयत अपने पता के घर रहे. (३) अ सत य ते णा क यप य गय य च. अ तःकोश मव जामयो ऽ प न ा म ते भगम्.. (४) हे ी! म तेरे भा य को अ सत, ा, क यप एवं गय ऋ षय के मं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
से इस कार
सुर त करता ं, जस कार
यां घर म अपना धन, व
सू -१५
आ द छपा कर रखती ह. (४)
दे वता— सधु आ द
सं सं व तु स धवः सं वाताः सं पत णः. इमं य ं दवो मे जुष तां सं ा ेण ह वषा जुहो म.. (१) न दयां हमारे अनुकूल बह, पवन हमारे अनुकूल चले एवं प ी हमारी इ छा के अनुसार (ग त कर). पुरातन दे व मेरे इस य को वीकार कर, य क म घी, ध आ द का सं ह कर के यह य कर रहा ं. (१) इहैव हवमा यात म इह सं ावणा उतेमं वधयता गरः. इहैतु सव यः पशुर मन् त तु या र यः.. (२) हे दे वो! आप सब को याग कर मेरे इस य म पधार. इस म आ य आ द का होम है. हे तु तय ारा बढ़ाए जाते ए दे वो! आप इस यजमान क वृ कर. हे दे वो! हमारी तु तय को सुन कर स ए आप क कृपा से हमारे घर म गाय, अ आ द पशु एवं अ य संप नवास करे. (२) ये नद नां सं व यु सासः सदम ताः. ते भम सवः सं ावैधनं सं ावयाम स.. (३) गंगा आ द न दय क जो अ य धारा एवं झरने सदा बहते रहते ह तथा ी म ऋतु म कभी नह सूखते ह, उन के कारण हमारा सम त पशु धन सदै व समृ हो. (३) ये स पषः सं व त ीर य चोदक य च. ते भम सवः सं ावैधनं सं ावयाम स.. (४) घी, ध और जल के जो वाह सदै व ग तशील रहते ह, उन सभी न सूखने वाले वाह के कारण हमारी सभी संप बढ़ती रहे. (४)
सू -१६
दे वता—अ न, व ण आ द
ये ऽ मावा यां ३ रा मु थु ाजम णः. अ न तुरीयो यातुहा सो अ म यम ध वत्.. (१) मनु य का भ ण करने वाले जो रा स अमाव या क अंधेरी रात म इधर उधर घूमते ह. चौथे अ न दे व उन रा स एवं चोर का संहार कर के हमारी र ा कर. (१) सीसाया याह व णः सीसाया न पाव त. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सीसं म इ ः ाय छत् तद यातुचातनम्.. (२) व ण दे व ने फेन के वषय म कहा है. सीसे ज ते के वषय म अ न ने भी यही कहा है. परम ऐ ययु इं ने मुझे सीसा दान कया है. इं ने कहा है क हे य! यह सीसा रा स का संहार करने वाला है. (२) इदं व क धं सहत इदं बाधते अ णः. अनेन व ा ससहे या जाता न पशा याः.. (३) यह सीसा रा स, पशाच आ द ारा डाले जाने वाले व न को समा त करने वाला है. यह मनु य का भ ण करने वाले रा स को न करता है. म इस सीसे के ारा सभी रा स को परा जत करता ं. वे रा स पशाची से उ प ह. (३) य द नो गां हं स य ं य द पू षम्. तं वा सीसेन व यामो यथा नो ऽ सो अवीरहा.. (४) हे श ु! य द तू हमारी गाय , घोड़ एवं सहायता करने वाले सेवक क ह या करता है तो म सीसे से तुझे मा ं गा. तू मेरे वीर क ह या नह कर सकेगा. (४)
सू -१७
दे वता—
यां एवं धमप नयां
अमूया य त यो षतो हरा लो हतवाससः. अ ातर इव जामय त तु हतवचसः.. (१) य क लाल र वा हनी जो ना ड़यां रोग के कारण सदा वा हत होती रहती ह, वे रोग न हो जाने के कारण इस कार क जाएं, जस कार बना भाइय वाली बहन ससुराल न जा कर अपने पता के घर म ही क जाती ह. (१) त ावरे त पर उत वं त म यमे. क न का च त त त ा द म नमही.. (२) हे शरीर के नचले भाग म वतमान नाड़ी! हे शरीर के ऊपरी भाग म थत नाड़ी! हे शरीर के म य भाग म वतमान नाड़ी! तू भी थर हो जा. धर का वाह बंद करने के लए छोट और बड़ी सभी ना ड़यां थर हो जाएं. (२) शत य धमनीनां सह य हराणाम्. अ थु र म यमा इमाः साकम ता अरंसत.. (३) दय संबंधी सैकड़ धम नयां, हजार शराएं एवं उन क म यवत र वा हनी ना ड़यां इस मं के भाव से खून बहाना बंद कर द. शेष ना ड़यां पूववत र ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वाह
चालू रख. (३) प र वः सकतावती धनूबृह य मीत्. त तेलयता सु कम्.. (४) हे पथरी रोग उ पन करने वाली नाड़ी! हे धनु और बृहती नाड़ी! तुम धर वाह के सभी माग को चार ओर से घेर कर फैली ई हो. तुम र ाव र हत बनो तथा इस जन का सुख बढ़ाओ. (४)
सू -१८
दे वता—सा व ी आ द
नल यं लला यं १ नररा त सुवाम स. अथ या भ ा ता न नः जाया अरा त नयाम स.. (१) हम ललाट के असौभा य सूचक च को श ु के समान अपने शरीर से र करते ह. जो सौभा य सूचक च ह, वे हमारी संतान को ा त ह . हम ने अपने शरीर से बुरे च र कए ह, वे हमारे श ु को ा त ह . (१) नरर ण स वता सा वषक् पदो नह तयोव णो म ो अयमा. नर म यमनुमती रराणा ेमां दे वा असा वषुः सौभगाय.. (२) सब को ेरणा दे ने वाले स वता दे व, व ण दे व, म एवं अयमा दे व हमारे हाथ और पैर म थत असौभा य सूचक ल ण को र कर द. अनुम त दे वी, ‘भय मत करो’, कहती ई हमारे शरीर म वतमान सभी बुरे ल ण को नकाल द. इं आ द दे व ने इस अनुम त दे वी को हम सौभा य दे ने के लए े रत कया है. (२) य आ म न त वां घोरम् अ त य ा केशेषु तच णे वा. सव तद् वाचाप ह मो वयं दे व वा स वता सूदयतु.. (३) हे पु ष! तेरे अपने शरीर, केश एवं ने के जो बुरे ल ण ह, हम मं पी वाणी से उन सभी बुरे ल ण का वनाश करते ह. स वता दे व तुझे क याण क ेरणा द. (३) र यपद वृषदत गोषेधां वधमामुत. वलीढ् यं लला यं १ ता अ म ाशयाम स.. (४) हम से संबं धत जो ी ह रण के समान पैर वाली, बैल के समान दांत वाली, गाय के समान ग त वाली एवं वकृत श द बोलने वाली है; हम मं के भाव से उस के इन ल ण को र करते ह. जस ी के माथे पर ल ण के तीक उलटे रोम ह, उ ह भी हम अपने मं के भाव से र करते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -१९
दे वता—इं आ द
मा नो वदन् व ा धनो मो अ भ ा धनो वदन्. आरा छर ा अ म षूची र पातय.. (१) अ श आ द से ता ड़त करने वाले जो श ु ह, वे हम ा त न कर सक. सामने आ कर हसा करने वाले हम न पा सक. हे परम ऐ य संप इं दे व! श ु ारा बारबार छोड़े गए अनेक कार के मुख वाले जो बाण ह, उ ह हम से र थान म गराओ. (१) व व चो अ म छरवः पत तु ये अ ता ये चा याः. दै वीमनु येषवो ममा म ान् व व यत्.. (२) जो बाण श ु ारा धनुष से छोड़े जा रहे ह अथवा जो बाण छोड़ने के लए तरकस म सुर त ह, वे हम से र रह. जो दै वी एवं मानवीय अ श ह, वे जा कर हमारे श ु को वेध डाल. (२) यो नः वो यो अरणः सजात उत न ् यो यो अ माँ अ भदास त. ः शर यैतान् ममा म ान् व व यतु.. (३) हमारी जा त का अ धक बली, श ु समान श वाला अथवा नकृ बलशाली जो मनु य हम दास बनाना चाहता है, हमारे उन अ म को, सब को लाने वाले संहार कता दे व अपने बाण से ब ध डाल. (३) यः सप नो यो ऽ सप नो य ष छपा त नः. दे वा तं सव धूव तु वम ममा तरम्.. (४) जो हमारी जा त का अथवा भ जा त का पु ष हम से े ष रखने के कारण हम शाप दे ता है, इं आ द सभी दे व उस का वनाश कर. मेरे ारा योग कए गए मं उस के शाप से मेरी र ा कर. (४)
सू -२०
दे वता—सोम, म त् आ द
अदारसृद ् भवतु दे व सोमा मन् य े म तो मृडता नः. मा नो वदद भभा मो अश तमा नो वदद् वृ जना े या या.. (१) हे सोम दे व! हमारा श ु अपने थान से भागा आ होने के कारण कभी भी अपनी ी के पास न प ंच सके. हे म त् दे व! इस य म आप हमारी र ा कर. सामने से आता आ तेज वी श ु मुझे ा त न कर सके. क त और उ त के माग म व न डालने वाले पाप भी हम न पा सक. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो अ से यो वधो ऽ घायूनामुद रते. युवं तं म ाव णाव मद् यावयतं प र.. (२) आज यु म हसक और पापी श ु के हम पर चलाए गए जो आयुध हमारी ओर आ रहे ह, हे व ण दे व! उ ह आप हम से र रखो. हे म और व ण! यु म श ु को हम से इस कार र रखो क वह हम छू भी न सके. (२) इत यदमुत यद् वधं व ण यावय. व मह छम य छ वरीयो यावया वधम्.. (३) हे व ण! हमारे समीपवत श ु ारा चलाया आ जो आयुध हम तक आता है अथवा रवत श ु का जो आयुध हमारे ऊपर चलाया जाता है, उसे हम से र करो. हम महान सुख दान करो एवं मं योग आ द के कारण असफल न होने वाले श ा से हम र रखो. (३) शास इ था महाँ अ य म साहो अ तृतः. न य य ह यते सखा न जीयते कदा चन.. (४) हे इं ! आप शासक और नयंता होने के कारण महान गुण से यु ह. आप श ु को परा जत करने वाले ह. आप क म ता ा त करने वाला पु ष कभी परा जत नह होता. श ु कभी भी उस का अपमान नह कर पाते. (४)
सू -२१
दे वता—इं
व तदा वशां प तवृ हा वमृधो वशी. वृषे ः पुर एतु नः सोमपा अभयङ् करः.. (१) वनाश र हत, ोभ न दे ने वाले, सभी जा के पालनकता, वृ नामक रा स अथवा जल के आधार मेघ को न करने वाले, श ु क वशेष प से हसा करने वाले, सभी ा णय को वश म रखने वाले, मनोकामना क वषा करने वाले एवं सोमरस को पीने वाले इं दे व हमारे लए अभय करने वाले बन कर सं ाम म हमारे नेता बन. (१) व न इ मृधो ज ह नीचा य छ पृत यतः. अधमं गमया तमो यो अ माँ अ भदास त.. (२) हे परम ऐ य यु इं दे व! हमारी वजय के लए हम से सं ाम करने वाले श ु का वनाश करो. जो यु का य न करने वाले श ु ह, उन को परा जत करो. हमारे खेत, धन आ द छ न कर हम हा न प ंचाने वाले श ु को अवन त पी अंधकार म प ंचाओ. (२) व र ो व मृधो ज ह व वृ य हनू ज. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व म यु म
वृ ह म या भदासतः.. (३)
हे वृ रा स को मारने वाले इं ! तुम रा स का वनाश करो एवं सं ाम म वजय ा त करो. तुम वृ के समान श शाली हमारे श ु के कपोल को वद ण करो. (३) अपे षतो मनो ऽ प ज यासतो वधम्. व मह छम य छ वरीयो यावया वधम्.. (४) हे परम ऐ य वाले इं दे व! हम से े ष करने वाले श ु के हसक मन को न क जए. जो श ु हम समा त करने का इ छु क है, उस के आयुध का वनाश करो. हम महान सुख दान करो एवं मं योग के कारण असफल न होने वाले श को हम से र रखो. (४)
सू -२२
दे वता—सूय और दय रोग
अनु सूयमुदयतां द् ोतो ह रमा च ते. गो रो हत य वणन तेन वा प र द म स.. (१) हे रोग सत पु ष! तेरे दय को संताप प ंचाने वाला दय रोग एवं कामला आ द रोग से उ प तेरे शरीर का पीलापन सूय क ओर चला जाए. हे रोगी! गाय के लाल वण से पहचाने जाने वाले के प म म तुझे व थ कराता ं. (१) प र वा रो हतैवणद घायु वाय द म स. यथायमरपा असदथो अह रतो भुवत्.. (२) हे ा ध त पु ष! तेरी द घायु के लए हम तुझे गाय के समान लाल रंग से ढकते ह. यह पु ष पापर हत हो कर कामला आ द रोग के कारण होने वाले शरीर के पीले रंग से छू ट जाए. (२) या रो हणीदव या ३ गावो या उत रो हणीः. पं पं वयोवय ता भ ् वा प र द म स.. (३) दे व क जो लाल रंग क कामधेनु आ द गाएं एवं मनु य क जो लाल रंग क गाएं ह, इन दोन कार के लाल रंग के प और यौवन को ले कर, हे रोगी पु ष! हम तुझे ढकते ह. (३) शुकेषु ते ह रमाणं रोपणाकासु द म स. अथो हा र वेषु ते ह रमाणं न द म स.. (४) हे रोगी पु ष! हम तेरे शरीर म रहने वाले रोग से उ प हरे रंग को ोत म तथा रोपणक नामक प य म था पत करते ह. हम तेरे हलद के समान पीले रंग को गोपीतनक ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नामक पीले रंग के प य म था पत करते ह. (४)
सू -२३
दे वता—वन प त
न ं जाता योषधे रामे कृ णे अ स न च. इदं रज न रजय कलासं प लतं च यत्.. (१) हे ह र ा! हलद नामक ओष ध! तू रात म उ प ई है. इस लए तू शरीर क सफेद र करने म समथ है. हे भृंगराज (भागरा) नामक ओष ध! रंग काला कर दे ने वाली इं ावा ण नामक ओष ध! एवं अ सत वण करने वाली नील नामक ओष ध! तुम कु रोग के कारण वकृत रंग वाले इस अंग को अपने रंग म रंग दो. वृ ाव था के कारण जो बाल ेत हो गए ह, उ ह भी अपने रंग म रंग दो. (१) कलासं च प लतं च न रतो नाशया पृषत्. आ वा वो वशतां वणः परा शु ला न पातय.. (२) हे ओष ध! कु रोग और असमय म केश ेत होने के रोग को शरीर से र कर के न करो. हे रोगी! तु ह अपने बाल का पहले वाला रंग पुनः ा त हो. हे ओष ध! तू इस के ेत रंग को र कर दे . (२) अ सतं ते लयनमा थानम सतं तव. अ स य योषधे न रतो नाशया पृषत्.. (३) हे नील नामक ओष ध! तेरे उ प होने का थान काले रंग का होता है. तू काले रंग क होती है, इस लए तू कु रोग के कारण षत अंग के सफेद रंग और बाल के पकने को र कर. (३) अ थज य कलास य तनूज य च यत् व च. या कृत य णा ल म ेतमनीनशम्.. (४) ह ड् डय से उ प , वचा से उ प एवं इन दोन के म यवत मांस से उ प कु रोग के कारण जो ेत च शरीर पर उ प हो गए ह, उ ह म मं के भाव से न करता ं. (४)
सू -२४
दे वता—आसुरी वन प त
सुपण जातः थम त य वं प म् आ सथ. तद् आसुरी युधा जता पं च े वन पतीन्.. (१) हे ओष ध! सब से पहले ग ड़ उ प ए. तू उन के शरीर म प दोष के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प म थी.
आसुरी माया ने ग ड़ से यु कर के प प को ओष ध का प दे दया. (१)
को जीत लया एवं वजय के कारण ा त उस
आसुरी च े थमेदं कलासभेषजम् इदं कलासनाशनम्. अनीनशत् कलासं स पाम् अकरत् वचम्.. (२) आसुरी माया पी ी ने सब से पहले कु रोग र करने क ओष ध बनाई थी. नीली आ द ओष धय ने कु रोग को न कर के वचा को पहले के समान व थ बनाया. (२) स पा नाम ते माता स पो नाम ते पता. स पकृत् वमोषधे सा स प मदं कृ ध.. (३) हे ओष ध! तेरी माता तेरे समान ही काले रंग वाली है. तेरा पता आकाश भी तेरे ही समान नीले रंग का है. हे नील नामक ओष ध! तू अपने संपक म आने वाले पदाथ को अपने समान रंग वाला बना दे ती है. इस लए कु रोग से षत इस अंग को अपने समान रंग वाला अथात् काला कर दे . (३) यामा स पंकरणी पृ थ ा अ युदभृ ् ता. इदमू षु साधय पुना पा ण क पय.. (४) हे काले रंग क एवं अपने संपक म आने वाले को अपने समान बना दे ने वाली ओष ध! तू आसुरी माया ारा धरती से उ प क गई है. तू कु रोग से आ ांत इस अंग को पुनः पहले के समान रंग वाला बना दे . (४)
सू -२५
दे वता—य मानाशक अ न
यद नरापो अदहत् व य य ाकृ वन् धमधृतो नमां स. त त आ ः परमं ज न ं स नः सं व ान् प र वृ ङ् ध त मन्.. (१) हे जीवन को क पूण बनाने वाले वर! जस अ न ने वेश कर के जल को जलाया अथात् गरम कया, यश, दान आ द धा मक कृ य करने वाल ने जस अ न म होम कया है, उसी उ म अ न म से तेरा ज म बताया गया है. यह सब जानता आ तू गरम जल से नान करने वाले हमारे शरीर को याग कर अ न म वेश कर. (१) य चय द वा स शो चः शक ये ष य द वा ते ज न म्. डु नामा स ह रत य दे व स नः सं व ान् प र वृ ङ् ध त मन्.. (२) हे जीवन को ःखमय बनाने वाले वर! तू य प उ णता कारक एवं सुखाने वाला है. य प तेरा ज म अ न से आ है, तथा प हे द तशाली वर! तू मनु य के शरीर म पीले रंग को उ प करने वाला है. इस लए तू ढ़ नाम से स है. तू हमारे गरम जल से भीगे ए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शरीर को अपना ज म थान अ न जान कर हमारे शरीर से बाहर नकल जा. (२) य द शोको य द वा भशोको य द वा रा ो व ण या स पु ः. डु नामा स ह रत य दे व स नः सं व ान् प र वृ ङ् ध त मन्.. (३) हे शीत वर! तुम शरीर को शोकाकुल करने वाले, शरीर को सभी कार से सुखाने वाले एवं तेज वी व ण के पु हो. तुम ढ़ नाम से स हो. तुम हमारे गरम जल से भीगे ए शरीर को अपना ज म थान अ न जान कर हमारे शरीर से बाहर नकल जाओ. (३) नमः शीताय त मने नमो राय शो चषे कृणो म. यो अ ये ु भय ुर ये त तृतीयकाय नमो अ तु त मने.. (४) म शीत उ प करने वाले वर को नम कार करता ं. म ठं ड लगने के बाद चढ़ने वाले एवं शोककारक वर को णाम करता ं. जो वर त दन सरे दन एवं तीसरे दन आता है, म उस के लए नम कार करता ं. (४)
सू -२६
दे वता—इं आ द
आरे ३ साव मद तु हे तदवासो असत्. आरे अ मा यम यथ.. (१) हे दे वो! आप क कृपा से श ु ारा यु खड् ग आ द आयुध हमारे शरीर से र हो जाएं. हे श ुओ! तुम यं आ द के ारा जो प थर फकते हो, वे भी हम से र रह. (१) सखासाव म यम तु रा तः सखे ो भगः स वता च राधाः.. (२) आकाश म दखाई दे ते ए सूय दे व हमारे म ह . संप दे ने वाले स वता दे व हमारे म ह . स वता दे व अनेक कार के धन के वामी ह. वे तथा इं दे व हमारे म ह. (२) यूयं नः वतो नपा म तः सूय वचसः. शम य छाथ स थाः.. (३) हे सूय ारा पृ वी से सोखे ए जल को न गराने वाले पज य दे व! हे सात गण वाले म त् दे व! आप सब सूय के समान तेज वाले ह. आप सब हमारा व तार से क याण कर. (३) सुषूदत मृडत मृडया न तनू यो मय तोके य कृ ध.. (४) हे इं आ द दे वो! आप श ु ारा छोड़े जाने वाले आयुध को हम से र करो तथा हम सुख दो. हे इं आ द दे वो! आप हमारे शरीर को सुख द एवं हमारी संतान को सुखी बनाएं. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -२७
दे वता—
ण पत
अमूः पारे पृदा व ष ता नजरायवः. तासां जरायु भवयम या ३ व प याम यघायोः प रप थनः.. (१) सांप क ये इ क स जा तयां दे व के समान बुढ़ापे से र हत ह एवं नागलोक म नवास करती ह. इन सांप क कचुली जरायु के समान उन से लपट रहती है. सांप क उस कचुली के ारा हम सर का अ हत सोचने वाले श ु क आंख को ढकते ह. (१) वषू येतु कृ तती पनाक मव ब ती. व वक् पुनभुवा मनो ऽ समृ ा अघायवः.. (२) शव के धनुष पनाक के समान श ु के मारने म स म आयुध धारण करती ई, खड् ग आ द आयुध से श ु को फाड़ती ई हमारी सेना मारकाट मचाती ई आगे बढ़े . य द श ु सेना उस का सामना करने के लए एक हो, तो श ु सै नक का मन कुछ सोचने और न य करने म समथ न हो. ऐसी थ त म हमारे श ु रा , कोश आ द से र हत हो जाएं. (२) न बहवः समशकन् नाभका अ भ दाधृषुः. वेणोरद्गा इवा भतो ऽ समृ ा अघायवः.. (३) हाथी, घोड़े और रथ से यु ब त से श ु सै नक हम जीतने म असमथ हो कर हार जाएं. अ प सं या वाले श ु हमारे सामने आने का साहस न कर सक. बांस क ऊपरी शाखाएं जस कार बल होती ह, हम से परा जत हो कर धनहीन बने श ु उसी कार समृ र हत हो जाएं. (३) ेतं पादौ फुरतं वहतं पृणतो गृहान्. इ ा येतु थमाजीतामु षता पुरः.. (४) हे चलने के इ छु क के चरणो! तुम आगे बढ़ो एवं शी चलने के लए ग त करो. तुम हम इ छत फल दे ने वाले पु ष के नवास थान तक प ंचाओ. कसी से परा जत न होने वाले इं क प नी हमारी सेना क दे वता ह. वह हमारी सेना क र ा के लए आगेआगे चल. (४)
सू -२८
दे वता—अ न
उप ागाद् दे वो अ नी र ोहामीवचातनः. दह प या वनो यातुधानान् कमी दनः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रा स के वनाशक और रोग को र करने वाले अ न दे व उ ह न करने के लए उन के समीप चल. अ न दे व मायामय, सौ य, हसक एवं भयावह प धारण करने वाले, सर के दोष खोजने वाले, पीड़ादायक एवं परेशान करने वाले रा स को भ म करते ए इस पु ष के समीप आ रहे ह. (१) त दह यातुधानान् त दे व कमी दनः. तीचीः कृ णवतने सं दह यातुधा यः.. (२) हे अ न दे व! आप इन रा स और सर के दोष दे खने वाले पशाच को भ म कर दो. हे काले माग वाले अ न! सर के तकूल आचरण करने वाली रा सय को भी आप भ म कर द. (२) या शशाप शपनेन याघं मूरमादधे. या रस य हरणाय जातमारेभे तोकम ु सा.. (३) जन रा सय ने कठोर वचन के ारा हम शाप दया है, जन रा सय ने सभी पाप क जड़ हसा को वीकार कर लया है तथा जो हमारी संतान, रस, स दय एवं पु का वनाश करती ह, वे सभी अपने अथवा हमारे श ु के बालक का भ ण कर. (३) पु म ु यातुधानीः वसारमुत न यम्. अधा मथो वके यो ३ व नतां यातुधा यो ३ व तृ
तामरा यः.. (४)
रा सयां अपने पु , बहन और नाती को खा जाएं. रा सयां एक सरे के केश ख च कर लड़ने के कारण बाल बखेर तथा मृ यु को ा त ह . दान न करने वाली रा सयां आपस म लड़ कर मर जाएं. (४)
सू -२९
दे वता—
ण पत
अभीवतन म णना येने ो अ भवावृधे. तेना मान् ण पते ऽ भ रा ाय वधय.. (१) हे
ण प त! समृ एवं श दान करने वाली जस म ण को धारण कर के इं उ म ए ह, उसी म ण के ारा श ु से पी ड़त हमारे रा क संप ता बढ़ाओ. आप क कृपा से हम संप जन ारा सुर त रा म श ु के भय से र हत ह . (१) अ भवृ य सप नान भ या नो अरातयः. अ भ पृत य तं त ा भ यो नो र य त.. (२) हे अभीवत म ण! तुम हमारे श ु के सामने डट कर उ ह परा जत करो. जो हमारे रा , धन आ द का अपहरण कर के हमारे त श ुता का वहार करते ह, उन के सामने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
डट कर तुम उन को परा जत करो. जो हम से यु करने के लए सेना सजाते ह अथवा हमारे त अ भचार (जा टोने) के प म श ुता करते ह, तुम उ ह भी परा जत करो. (२) अ भ वा दे वः स वता भ सोमो अवीवृधत्. अ भ वा व ा भूता यभीवत यथास स.. (३) हे अभीवत म ण! स वता दे व ने तु हारी वृ क है और सोम दे व ने तु ह समृ बनाया है. हे म ण! सभी ा णय ने तु हारी वृ क है. जो तु ह धारण करता है, वह सभी साधन से संप हो जाता है. (३) अभीवत अ भभवः सप न यणो म णः. रा ाय म ं ब यतां सप ने यः पराभुवे.. (४) श ु क पराजय करने वाली एवं रा स का वनाश करने वाली अभीवत म ण रा क समृ और श ु के वनाश के लए मेरे हाथ म बांधो. (४) उदसौ सूय अगा ददं मामकं वचः. यथाहं श ुहो ऽ सा यसप नः सप नहा.. (५) आकाश मंडल म दखाई दे ने वाले एवं सभी ा णय के ेरक सूय दे व उ दत हो गए ह. अपनी वजय क एवं श ु क पराजय क कामना करने वाली मेरी वेद पी वाणी भी कट हो गई है. अभीवत म ण को धारण करने वाला म जस कार श ु को मारने वाला बनूं, ऐसा सुयोग उप थत हो. म श ुर हत हो जाऊं. य द मेरा कोई श ु हो भी तो उसे म परा जत क ं . (५) सप न यणो वृषा भरा ो वषास हः. यथाहमेषां वीराणां वराजा न जन य च.. (६) हे म ण! म तु हारे भाव से श ु का नाशक, जा का पालक, अपने रा का वामी एवं श ु को वश म करने वाला बनूं. म श ु सेना के वीर एवं उन क जा पर शासन करने म समथ बनूं. (६)
सू -३०
दे वता— व े दे व
व े दे वा वसवो र तेममुता द या जागृत यूयम मन्. मेमं सना भ त वा यना भममं ापत् पौ षेयो वधो यः.. (१) हे व े दे व! वसु एवं आ द य दे वो! द घ आयु क कामना करने वाले इस पु ष क र ा करो एवं द घ आयु क कामना करने वाले इस पु ष के वषय म सावधान रहो. इस का सजातीय अथवा वजातीय श ु इस के पास तक न आ सके. कोई भी इस क हसा करने म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समथ न हो. (१) ये वो दे वाः पतरो ये च पु ाः सचेतसो मे शृणुतेदमु म्. सव यो वः प र ददा येतं व ये नं जरसे वहाथ.. (२) हे दे वो! आप के जो पतर एवं पु ह , वे भी इस पु ष के वषय म क गई मेरी ाथना पर यान द. द घ आयु क कामना करने वाले इस पु ष को म आप सब को स पता ं. इस क वृ ाव था तक आप इस का क याण कर. (२) ये दे वा द व ये पृ थ ां ये अ त र ओषधीषु पशु व व१ तः. ते कृणुत जरसमायुर मै शतम यान् प र वृण ु मृ यून्.. (३) जो दे व वग म एवं पृ वी पर नवास करते ह, वायु आ द जो दे व अंत र म गमन करते ह तथा जो दे व ओष धय , पशु एवं जल म थत ह, वे सब दे व इस द घ आयु क कामना करने वाले पु ष को वृ ाव था पयत आयु दान कर एवं इसे मृ यु से बचाएं. (३) येषां याजा उत वानुयाजा तभागा अ ताद दे वाः. येषां वः प च दशो वभ ा तान् वो अ मै स सदः कृणो म.. (४) जस दे व के न म पंचयाग कए जाते ह, वह अ न दे व; जन दे व के न म बाद वाले तीन य कए जाते ह, वह इं आ द दे व; जो ब ल का अपहरण करते ह, दशा के वामी दे व ह, इन सब को एवं इन के अ त र जो दे व ह, उन को भी म इस द घ आयु चाहने वाले पु ष के समीप बैठने के लए नयु करता ं. (४)
दे वता—आशापाल वा तो प त
सू -३१
अथात्
आशानामाशापाले य तु य अमृते यः. इदं भूत या य े यो वधेम ह वषा वयम्.. (१) पूव आ द दशा क र ा करने वाले एवं कभी न मरने वाले इं , यम आ द चार दे व के लए हम इस भाग म मं के साथ आ त दे ते ह. वे दे व सभी ा णय के वामी ह. (१) य आशानामाशापाला वार थन दे वाः. ते नो नऋ याः पाशे यो मु चतांहसो अंहसः.. (२) जो दशा का पालन करने वाले इं आ द चार दे व ह, वे हम मृ यु दे व के पाश से छु ड़ाएं तथा पाप से हमारी र ा कर. (२) अ ाम वा ह वषा यजा य
ोण वा घृतेन जुहो म.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
य आशानामाशापाल तुरीयो दे वः स नः सुभूतमेह व त्.. (३) हे धन दे ने वाले दे व कुबेर! म अपने अ भमत धन आ द ा त करने के लए ह व से इं आ द दे व क स ता के लए हवन करता ं. दशा क र ा करने वाले इं आ द दे व म जो चौथे दे व कुबेर ह, वे इस य म हम वण, रजत आ द धन द. (३) व त मा उत प े नो अ तु व त गो यो जगते पु षे यः. व ं सुभूतं सु वद ं नो अ तु योगेव शेम सूयम्.. (४) हमारी माता, हमारे पता, हमारी गाय और सारे संसार का क याण हो. हमारी माता आ द उ म धन एवं े ान वाले ह. हम सौ वष तक सूय के दशन करते रह. (४)
सू -३२
दे वता— ावा पृ थवी
इदं जनासो वदथ महद् व द य त. न तत् पृ थ ां नो द व येन ाण त वी धः.. (१) हे जानने के इ छु क जनो! इस बात को जानो क वह जल प पृ वी पर नह रहता और न वह आकाश म नवास करता है. उसी जल के कारण सभी वृ एवं लताएं जी वत रहती ह. (१) अ त र आसां थाम ा तसदा मव. आ थानम य भूत य व द् वेधसो न वा.. (२) जस कार गंधव का नवास थान अंत र है, उसी कार इन ओष धय का कारण प जल आकाश और धरती के म य अथात् अंत र म नवास करता है. इस लोक म जो भी थावर और जंगम ह, उन सब का आ य भी जल है. वधाता मनु आ द भी इसे नह जानते. (२) यद् रोदसी रेजमाने भू म नरत तम्. आ तद सवदा समु येव ो याः.. (३) हे जल उ प करने के लए कांपती ई उ म पृ वी एवं आकाश! तुम दोन पहले बताए ए जल का उ पादन करो. वह जल वतमान काल म नया रहता है अथात् वषा का जल समा त हो जाने पर भी आकाश म जल उसी कार समा त नह होता, जस कार सागर म मलने वाली स रताएं कभी नह सूखत . (३) व म यामभीवार तद य याम ध तम्. दवे च व वेदसे पृ थ ै चाकरं नमः.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सारा संसार आकाश से चार ओर से घरा आ है. यह संसार पृ वी पर आ त है. म संसार के धन के प म थत ुलोक को तथा पृ वी को नम कार करता ं. (४)
सू -३३
दे वता—जल
हर यवणाः शुचयः पावका यासु जातः स वता या व नः. या अ नं गभ द धरे सुवणा ता न आपः शं योना भव तु.. (१) सोने के रंग क शु अ नयां एवं स वता जन जल से उ प ए ह, बादल म थत जन जल म व ुत पी अ न तथा सागर म थत जन जल म वाडवा न उ प ई है, जन शोभन रंग वाले जल ने अ न को गभ के प म धारण कया है, वे जल हमारे लए रोग नाशक और सुखकारक ह . (१) यासां राजा व णो या त म ये स यानृते अवप यन् जनानाम्. या अ नं गभ द धरे सुवणा ता न आपः शं योना भव तु.. (२) राजा व ण जन जल के म य म थत हो कर मनु य के स य और अस य को जानते ए चलते ह, जन शोभन वण वाले जल ने अ न को गभ के प म धारण कया है, वे जल हमारे लए रोग के नाशक और सुखकारक ह . (२) यासां दे वा द व कृ व त भ ं या अ त र े ब धा भव त. या अ नं गभ द धरे सुवणा ता न आपः शं योना भव तु.. (३) इं आ द दे व जन जल के सार प अमृत को ुलोक म भ ण करते ह तथा जो जल अनेक कार से थत रहते ह, जन शोभन वण वाले जल ने अ न को गभ के प म धारण कया है, वे जल हमारे लए रोग के नाशक और सुखकारक ह . (३) शवेन मा च ुषा प यतापः शवया त वोप पृशत वचं मे. घृत तः शुचयो याः पावका ता न आपः शं योना भव तु.. (४) हे जल के अ भमानी दे व! मुझे सुखकर से दे खो तथा अपने क याणकारी शरीर से मेरी दे ह का पश करो. जो जल अमृत को टपकाने वाले तथा प व करने वाले ह, वे हमारे लए रोग वनाशक और सुखकारी ह . (४)
सू -३४
दे वता—मधु, वन प त
इयं वी माधुजाता मधुना वा खनाम स. मधोर ध जाता स सा नो मधुमत कृ ध.. (१) यह सामने वतमान लता मधुर रस से यु भू म म उ प ई है. म इसे मधुर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
प वाले
फावड़े आ द क सहायता से खोदता ं. तू मुझ से उ प बना. (१)
ई है. तू हम भी मधु रस से यु
ज ाया अ े मधु मे ज ामूले मधूलकम्. ममेदह तावसो मम च मुपाय स.. (२) हे मधु लता! तू मेरी जीभ के अ भाग पर शहद के समान थत हो तथा जीभ क जड़ म मधु रस वाले मधु नामक जल वृ के फूल के प म वतमान रह. तू केवल मेरे शरीर ापार म लग तथा मेरे च म आ. (२) मधुम मे न मणं मधुम मे परायणम्. वाचा वदा म मधुमद् भूयासं मधुस शः.. (३) हे मधु लता! तु ह धारण करने से मेरा नकट गमन सर को स करने वाला हो तथा मेरा र गमन सर को स करे. म वाणी से मधुयु हो कर तथा सम त काय के ारा मधु के समान बन कर सब के ेम का पा बनूं. (३) मधोर म मधुतरो म घा मधुम रः. मा मत् कल वं वनाः शाखां मधुमती मव.. (४) हे मधु लता! म तुझ से उ प होने वाले शहद से भी अ धक मधुर ं. म शहद टपकाने वाले पदाथ से भी अ धक मधुर ं. तुम न य ही केवल मुझे उसी कार ा त हो जाओ, जस कार शहद वाली डाल के पास लोग प ंच जाते ह. (४) प र वा प रत नुने ुणागाम व षे. यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (५) हे प नी! म तुझे सभी ओर के लए ा त आ ं. (५)
ा त एवं ईख के समान मधुर मधु के ारा आपस म ेम
सू -३५
दे वता— हर य
यदाब नन् दा ायणा हर यं शतानीकाय सुमन यमानाः. तत् ते ब ना यायुषे वचसे बलाय द घायु वाय शतशारदाय.. (१) हे यजमान! द क संतान मह षय ने सौमन य को ा त हो कर राजा शतानीक के लए जस नद ष वण को बांधा था, वही वण म तेरी द घ आयु, तेज, बल, एवं सौ वष क आयु पाने के लए तुझे बांधता ं. (१) नैनं र ां स न पशाचाः सह ते दे वानामोजः थमजं
े ३ तत्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो बभ त दा ायणं हर यं स जीवेषु कृणुते द घमायुः.. (२) वण बंधे ए इस पु ष को रा स और पशाच परा जत नह कर सकते, य क यह दे व का थम उ प आ ओज है. द पु से संबं धत इस वण को जो बांधता है, वह ा णय के म य सौ वष क आयु ा त करता है. (२) अपां तेजो यो तरोजो बलं च वन पतीनामुत वीया ण. इ इवे या य ध धारयामो अ मन् तद् द माणो बभर (३)
र यम्..
म जल के तेज, यो त, ओज और बल तथा वन प तय का वीय उसी कार धारण करता ,ं जस कार इं म इं य के असाधारण च वतमान ह. इसी लए वृ ात करता आ यह पु ष हर य धारण करे. (३) समानां मासामृतु भ ् वा वयं संव सर य पयसा पप म. इ ा नी व े दे वा ते ऽ नु म य ताम णीयमानाः.. (४) हे संप चाहने वाले पु ष! म तुझे संव सर क , महीन क , ऋतु क एवं काल संबंधी ध क धार से पूण करता ं. इं और अ न तथा सम त दे व ोध न करते ए तुझे संप ता क अनुम त द. (४)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सरा कांड सू -१
दे वता—
, आ मा
वेन तत् प यत् परमं गुहा यद् य व ं भव येक पम्. इदं पृ र ह जायमानाः व वदो अ यनूषत ाः.. (१) द तशाली आ द य ने सम त ा णय के दय म स य, ान आ द ल ण से यु का सा ा कार कया, जस म सम त व एकाकार हो जाता है. वग और आ द य ने इस व को कया. उ प होती ई तथा अपने उ प कता को जानती ई जाएं उस क तु त करती ह. (१) तद् वोचेदमृत य व ान् ग धव धाम परमं गुहा यत्. ी ण पदा न न हता गुहा य य ता न वेद स पतु पतासत्.. (२) अ वनाशी को जानते ए आ द य के वषय के वचन कर क वह उ कृ थान एवं दय म थत है. उस के तीन भाग दय म छपे ए ह. जो उ ह जानता है, वह अपने पता का भी पता होता है. (२) स नः पता ज नता स उत ब धुधामा न वेद भुवना न व ा. यो दे वानां नामध एक एव तं सं ं भुवना य त सवा.. (३) वह सूया मक परमा मा हमारा पालनकता, ज मदाता एवं बंधु है. वह वग आ द थान एवं वहां ा त होने वाले सम त ा णय को जानता है. एकमा वही इं आ द दे व का नाम रखने वाला है अथवा वह वयं ही इं आ द नाम धारण करता है. इस कार के परमा मा को सभी ाणी यह पूछते ए ा त होते ह क वह परमा मा कस कार का है? (३) प र ावापृ थवी स आयमुपा त े थमजामृत य. वाच मव व र भुवने ा धा युरेष न वे ३ षो अ नः.. (४) ान होने के प ात त व ानी कहता है, “म ने त व ान होते ही ावा और पृ वी को सभी ओर से ा त कर लया है तथा म ही से थम उ प ाणी एवं भौ तक पदाथ ं. जस कार व ा के समीपवत जन वाणी को त काल सुन और समझ लेते ह, उसी कार यह परमा मा संसार म थत, सब के पोषण का इ छु क एवं वै ानर के प म सब का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पोषक है.” (४) प र व ा भुवना यायमृत य त तुं वततं शे कम्. य दे वा अमृतमानशानाः समाने योनाव यैरय त.. (५) ानो प से पूव म ने पृ वी आ द लोक को ा त कया. इस का योजन को दे खना है जो इस व का कारण है. उस म इं आ द दे व अमृत का वाद लेते ए अपनेआप को त मय कर दे ते ह. (५)
सू -२
दे वता—गंधव अ सराएं
द ो ग धव भुवन य य प तरेक एव नम यो व वी ः. तं वा यौ म णा द दे व नम ते अ तु द व ते सध थम्.. (१) द सूय पृ वी आ द लोक का पालनकता है. सम त जा के ारा वही अकेला नम कार करने एवं तु त के यो य है. हे द सूय दे व! म के प म आप क आराधना करता ं. आप को मेरा नम कार है. आप का आवास वग म है. (१) द व पृ ो यजतः सूय वगवयाता हरसो दै य. मृडाद् ग धव भुवन य य प तरेक एव नम यः सुशेवाः.. (२) आकाश म थत, य करने यो य, सूय के समान वण वाले एवं दे व संबंधी ोध को न करने वाले गंधव हम सुखी बनाएं. वे पृ वी आ द लोक के वामी, एकमा नम कार करने यो य एवं शोभन सुख दे ने वाले ह. (२) अनव ा भः समु ज म आ भर सरा व प ग धव आसीत्. समु आसां सदनं म आ यतः स आ च परा च य त.. (३) सूय पी गंधव नदा के अयो य करण पी अ सरा से मल गया था. समु इन अ सरा का नवास थान कहा गया है, जहां से ये सूय दय के साथ ही यहां आती ह और सूया त के साथ चली जाती ह. (३) अ ये द ु ये या व ावसुं ग धव सच वे. ता यो वो दे वीनम इत् कृणो म.. (४) हे आकाश म ज म लेने वाली, काशयु एवं न पणी करणो! तुम म से जो व ावसु गंधव अथात् चं मा के साथ संयु होती ह, हे द करणो! म तु हारे लए नम कार करता ं. (४) याः ल दा त मषीचयो ऽ कामा मनोमुहः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ता यो ग धवप नी यो ऽ सरा यो ऽ करं नमः.. (५) जो करण मनु य को लाने वाली, श संप , इं य को न य करने क इ छु क एवं मन को मोहने वाली ह, उन गंधव प नी अ सरा को म नम कार करता ं. (५)
सू -३
दे वता— ाव- वरोधी ओष ध
अदो यदवधाव यव कम ध पवतात्. तत् ते कृणो म भेषजं सुभेषजं यथास स.. (१) मुंजवान पवत से उतर कर जो मूंज धरती पर वतमान है, हे मूंज! तेरे उस अ भाग से म ओष ध बनाता ं, य क तू उ म जड़ीबूट है. (१) आद ा कु वद ा शतं या भेषजा न ते. तेषाम स वमु ममना ावमरोगणम्.. (२) हे ओष ध! योग के तुरंत बाद रोग समा त करो एवं ब त से रोग का वनाश करो. तुम से संबं धत अन गनत जड़ीबू टयां ह, उन म तुम उ म हो. तुम अ तसार आ द रोग र करने वाली एवं इन के मूल कारण का वनाश करने वाली हो. (२) नीचैः खन यसुरा अ ाण मदं महत्. तदा ाव य भेषजं त रोगमनीनशत्.. (३) ाण का अपहरण करने वाले रा स एवं शरीर को नबल बनाने वाले रोग वशाल घाव के पकने के थान को नीचे से वद ण करते ह, यह महती ओष ध उस का समूल वनाश करती है तथा अ तसार आ द रोग को जड़ से मटा दे ती है. (३) उपजीका उ र त समु ाद ध भेषजम्. तदा ाव य भेषजं त रोगमशीशमत्.. (४) बांमी बनाने वाली द मक पृ वी के नीचे थत जलरा श से रोग नवारक जड़ीबूट को उखाड़ती है. वह अ तसार आ द रोग क ओष ध है और उ ह शांत करने वाली है. (४) अ ाण मदं महत् पृ थ ा अ युदभृ ् तम्. तदा ाव य भेषजं त रोगमनीनशत्.. (५) घाव को पकाने वाली यह जड़ीबूट अथात् म खेत से खोद कर लाई गई है. यह अ तसार रोग क ओष ध है और उ ह शांत करती है. (५) शं नो भव वप ओषधयः शवाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ
य व ो अप ह तु र स आराद् वसृ ा इषवः पत तु र साम्.. (६)
ओष धय के प म योग कए जाते ए जल एवं ओष धयां हमारे रोग को शांत करने वाले ह. इं का व रोग उ प करने वाले रा स का वनाश करे. मनु य को पीड़ा प ंचाने के न म यु रा स के रोग पी बाण हम से र गर अथात् रोग हम से र रह. (६)
सू -४
दे वता—जं गड़ म ण
द घायु वाय बृहते रणाया र य तो द माणाः सदै व. म ण व क ध षणं ज डं बभृमो वयम्.. (१) हम द घ जीवन के लए तथा महान् रमणीय कम के लए रा स, पशाच आ द को भगाने वाली इस म ण को धारण करते ह, जो वाराणसी म स जं गड़ वृ से बनती है. इस के कारण हम ह सत न होते ए अपना पालन करते ह. (१) ज डो ज भाद् वशराद् व क धाद् द अ भशोचनात्. म णः सह वीयः प र णः पातु व तः.. (२) असी मत साम य वाली जं गड़ म ण रा स के दांत ारा खाए जाने से, शरीर के खंडखंड हो कर बखरने से, रोग आ द प व न से, उ चत अनु चत काय के सोच वचार से एवं ज हाई आ द सब से हम बचाएं. (२) अयं व क धं सहते ऽ यं बाधते अ णः. अयं नो व भेषजो ज डः पा वंहसः.. (३) जं गड़ वृ से न मत यह म ण सर को परा जत करती है, कृ या आ द भ क को न करती है तथा सम त रोग क ओष ध है. यह जं गड़ म ण हम पाप से बचाए. (३) दे वैद न े म णना ज डेन मयोभुवा. व क धं सवा र ां स ायामे सहामहे.. (४) अ न आ द दे व के ारा द ई एवं सुख दे ने वाली जं गड़ म ण से हम व न करने वाले सभी रा स को अपने घूमने फरने के दे श म परा जत करते ह. (४) शण मा ज ड व क धाद भ र ताम्. अर याद य आभृतः कृ या अ यो रसे यः.. (५) म ण को बांधने वाले सू का कारण सन एवं यह जं गड़ म ण मुझ को व न से बचाएं. इन म से एक अथात् जं गड़ म ण वन से लाई गई है और अ य अथात् कृ ष से संबं धत सन ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रस से लाया गया है. (५) कृ या षरयं म णरथो अरा त षः. अथो सह वान् ज ङ् गडः ण आयूं ष ता रषत्.. (६) यह म ण सर के ारा कए गए जा टोने से उ प पीड़ा क नवारक एवं श ु न करने वाली है. श संप यह जं गड़ म ण हमारी आयु को बढ़ाए. (६)
को
दे वता—इं
सू -५ इ जुष व वहा या ह शूर ह र याम्. पबा सुत य मते रह मधो कान ा मदाय.. (१)
हे परम ऐ य वाले इं ! तुम हम पर स हो जाओ एवं हम मनचाहा फल दान करो. हे शूर इं ! अपने घोड़ क सहायता से तुम मेरे य म आओ तथा इस य म नचोड़े गए सोमरस को पयो. यह सोमरस शंसनीय एवं मधुर है. पीने पर यह सोमरस तृ त और उ म मादकता का कारण बनता है. (१) इ जठरं न ो न पृण व मधो दवो न. अ य सुत य व १ ण प वा मदाः सुवाचो अगुः.. (२) हे इं ! तुम नवीन के समान सोमरस से अपना पेट उसी कार भर लो जस कार वग के अमृत से पूण करते हो. इस नचोड़े गए सोमरस के मद से संबं धत उ म तु त तथा वग के समान आनंद तु ह यहां भी ा त हो. (२) इ तुराषा म ो वृ ं यो जघान यतीन. बभेद वलं भृगुन ससहे श ून् मदे सोम य.. (३) श ु वनाशक एवं सम त ा णय के म इं ने वृ रा स को आसुरी जा के समान मार डाला. जस कार य करते ए अं गरा गो ीय भृगु के य का आधार गौ का हरण करने वाले बल नामक असुर को मार डाला था, उसी कार इं ने वृ का हनन कया. इं ने सोमरस के मद म श ु को परा जत कया. (३) आ वा वश तु सुतास इ ुधी हवं गरो मे जुष वे
पृण व कु ी व श धये ा नः. वयु भम वेह महे रणाय.. (४)
हे इं ! नचोड़ा गया सोमरस तु हारे उदर म वेश करे. तुम इस से अपनी दोन कोख को भर लो. तुम हमारा आ ान सुन कर यहां आओ तथा हमारी तु तयां सुनो एवं उ ह वीकार करो. हे इं ! तुम इस य म अपने म म त् आ द दे व के साथ सोमरस पी कर तृ त बनो तथा हमारे य कम को संप बनाओ. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ य नु ा वोचं वीया ण या न चकार थमा न व ी. अह हम वप ततद व णा अ भनत् पवतानाम्.. (५) म व धारी इं के उन वीरता पूण काय का वणन करता ं जो उ ह ने पूव काल म कए ह. उ ह ने वृ ासुर का हनन कया तथा उस के बाद उस के ारा रोके गए जल को नकाल दया एवं पवत से नकलने वाली न दय को बहाया. (५) अह ह पवते श याणं व ा मै व ं वय तत . वा ा इव धेनवः य दमाना अ ः समु मव ज मुरापः.. (६) पवत पर सोते ए इस वृ ासुर का इं ने वध कया. वृ के पता व ा ने इं के लए सुगमता से चलाया जाने वाला तथा तेज धार वाला व बनाया. इस के बाद जल सागर क ओर इस कार बहने लगा, जस कार रंभाती ई गाएं दौड़ती ह. (६) वृषायमाणो अवृणीत सोमं क के व पबत् सुत य. आ सायकं मघवाद व मह ेनं थमजामहीनाम्.. (७) बैल के समान आचरण करते ए इं ने जाप त के पास से सोम पी अ ात कया. उस ने तीन सोम याग म नचोड़े गए सोमरस का पान कया. इस के प ात इं ने अपना श ुघातक व हाथ म लया एवं असुर म सव थम उ प ए वृ क ह या क . (७)
सू -६
दे वता—अ न
समा वा न ऋतवो वधय तु संव सरा ऋषयो या न स या. सं द ेन द द ह रोचनेन व ा आ भा ह दश त ः.. (१) हे अ न! संव सर, ऋ षगण एवं पृ वी आ द त व तु हारी वृ कर. इन सब के ारा बढ़े ए तुम काश यु शरीर से द त बनो तथा पूव आ द चार दशा को और आ नेय आ द चार व दशा अथात् दशा कोण को का शत करो. (१) सं चे य वा ने च वधयेममु च त महते सौभगाय. मा ते रष ुपस ारो अ ने ाण ते यशसः स तु मा ये.. (२) हे अ न! तुम वयं द त बनो एवं इस यजमान क इ छाएं पूण करते ए इसे समृ बनाओ एवं उस के सौभा य के हेतु उ सा हत बनो. तु हारे सेवक ऋ वज् आ द न न ह . हे अ न! तु हारे ऋ वज् ा ण ही यश वी ह, अ य नह . (२) वाम ने वृणते ा णा इमे शवो अ ने संवरणे भवा नः. सप नहा ने अ भमा त जद् भव वे गये जागृ यु छन्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! हम ा ण तु हारी आराधना करते ह. तुम हमारे माद को शांत करते ए अथवा छपाते ए वतमान रहो. हे अ न! श ु को परा जत एवं पाप का वनाश करो. तुम माद न करते ए अपने घर म जागृत रहो. (३) े ा ने वेन सं रभ व म ेणा ने म धा यत व. ण सजातानां म यमे ा रा ाम ने वह ो द दहीह.. (४) हे अ न दे व! तुम अपने बल से संयु बनो. हे म का पोषण करने वाले अ न! तुम म भाव से उपकार करने वाले बनो. तुम अपने समान उ प ा ण म म य थ एवं य म य हो. हे अ न! इस कार के तुम, इस य म का शत हो जाओ. (४) अ त नहो अ त सृधो ऽ य च ीर त षः. व ा ने रता तर वमथा म यं सहवीरं र य दाः.. (५) हे अ न! तुम इं य के वषय से उ प दोष को, पाप बु वाले मनु य को, दे ह का शोषण करने वाले रोग को एवं हमारे श ु को समा त करो. तुम हम सम त पाप से पार करो तथा हमारे लए पु , पौ आ द से यु धन दान करो. (५)
सू -७
दे वता—वन प त
अघ ा दे वजाता वी छपथयोपनी. आपो मल मव ाणै ीत् सवान् म छपथाँ अ ध.. (१) पाप का वनाश करने वाली, दे व के ारा बनाई गई एवं पाप का नवारण करने वाली वा मुझ से सभी पाप को इस कार धो कर र कर दे , जस कार पानी मैल को धो डालता है. (१) य साप नः शपथो जा याः शपथ यः. ा य म युतः शपात् सव त ो अध पदम्.. (२) े ष करने वाले श ु से संबं धत एवं बहन से संबं धत जो आ ोश है तथा ा ण ने ो धत हो कर जो शाप दया है—ये तीन कार के शाप मेरे पैर के नीचे रह. (२) दवो मूलमवततं पृ थ ा अ यु तम्. तेन सह का डेन प र णः पा ह व तः.. (३) हे म ण! हम वग क जड़ के समान व तृत एवं पृ वी के ऊपर व तृत असी मत पाप से बचाओ और सभी कार से हमारी र ा करो. (३) प र मां प र मे जां प र णः पा ह यद् धनम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अरा तन मा तारी मा न ता रषुर भमातयः.. (४) हे म ण! मेरी, मेरी संतान क एवं मेरे धन क र ा करो. श ु हमारा अ त मण न करे अथात् हम परा जत न करे. हमारी ह या करने के इ छु क पशाच आ द हमारी हसा न कर. (४) श तारमेतु शपथो यः सुहा न नः सह. च ुम य हादः पृ ीर प शृणीम स.. (५) मुझे दया आ शाप उसी के पास लौट जाए, जस ने मुझे शाप दया है. जो पु ष शोभन दय वाला है, उस म के साथ हम सुखी रह. हम चुगली करने वाले दय वाले क आंख एवं पसली क हड् डी को न करते ह. (५)
सू -८
दे वता—य मा, कु आ द
उदगातां भगवती वचृतौ नाम तारके. व े य य मु चतामधमं पाशमु मम्.. (१) तेज वी एवं बंधन से छु ड़ाने वाले तारे उ दत ह . वे तारे पु , पौ आ द के शरीर म होने वाले य मा, कु आ द रोग एवं उन के फंद से हम छु ड़ाएं जो हमारे शरीर के नीचे एवं ऊपर के भाग म ह. (१) अपेयं रा यु छ वपो छ व भकृ वरीः. वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (२) यह ातःकाल के समीप वाली रात उसी कार हमारे शरीर से ा धय को समा त करे, जस कार काश के कारण अंधकार का वनाश होता है. रोग क शां त करते ए आ द य दे व आएं. न त ओष ध भी रोग का वनाश करे. (२) ब ोरजुनका ड य यव य ते पला या तल य तल प वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (३)
या.
मटमैले वण के अजुन वृ के काठ से, जौ क भूसी से एवं तल क मंजरी से न मत म ण तेरा रोग र करे. े ीय ा धय , अ तसार, य मा आ द का वनाश करने वाली ओष ध सम त रोग को र करे. (३) नम ते ला ले यो नम ईषायुगे यः. वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (४) हे रोगी! तेरे रोग को शांत करने के लए म बैल जुते ए हल को एवं हरण तथा जुए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को नम कार करता ं. े ीय ा धय अथात् अ तसार, य मा आ द रोग का वनाश करने वाली ओष ध सम त रोग र करे. (४) नमः स न सा े यो नमः संदे ये यः नमः े य पतये वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (५) ऐसे सूने घर को नम कार है, जन के ार एवं खड़क पी ने खुले ए ह. ऐसे गड् ढ के लए नम कार है, जन क म नकाल द गई है. सूने घर आ द प े के प त को नम कार है. े ीय ा धय अथात् अ तसार, य मा आ द रोग का वनाश करने वाली ओष ध सभी रोग र करे. (५)
सू -९
दे वता—वन प त
दशवृ मु चेमं र सो ा ा अ ध यैनं ज ाह पवसु. अथो एनं वन पते जीवानां लोकमु य.. (१) हे ढाक, गूलर आ द दस वृ से बनी ई म ण! रा स और रा सी से पकड़े ए इस पु ष को छु ड़ाओ. उस रा सी ने इसे शरीर के जोड़ म पकड़ा आ है. हे वन प त से न मत म ण! तू इसे जी वत ा णय के लोक म प ंचा अथात् इसे पुनः जी वत कर. (१) आगा दगादयं जीवानां ातम यगात्. अभू पु ाणां पता नृणां च भगव मः.. (२) हे म ण! तेरे भाव से यह पु ष गृह से यु हो कर इस लोक म आ गया है. इस ने जी वत मनु य के समूह को ा त कर लया है. यह पु का पता बन गया है तथा इस ने मनु य के म य अ तशय भा य पा लया है. (२) अधीतीर यगादयम ध जीवपुरा अगन्. शतं य भषजः सह मुत वी धः.. (३) ह से छू टा आ यह पु ष पूव म अ ययन कए गए वेद आ द शा को मरण करे तथा जीव के आवास थान को जाने, य क ह से गृहीत इस पु ष क च क सा करने वाले सौ वै ह और हजार जड़ीबू टयां ह. (३) दे वा ते ची तम वदन् ाण उत वी धः. ची त ते व े दे वा अ वदन् भू याम ध.. (४) हे म ण! ह वकार से रोगी को छु ड़ाने से तेरे भाव को इं आ द दे व जानते ह. ा ण एवं वृ भी तेरे इस भाव को जानते ह. हे रोगी! तुझ मू छत को चेतना ा त होने क बात धरती पर सभी दे व जानते ह. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य कार स न करत् स एव सु भष मः. स एव तु यं भेषजा न कृणवद् भषजा शु चः.. (५) वधान को जानने वाले जस मह ष ने इस म ण का बंधन कया है, वह ह वकार को शांत करे. वही वै म सव म है. नमल ान वाले वे ही वै तेरे लए ओष धय का नमाण कर. (५)
सू -१०
दे वता— ावा
े यात् वा नऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (१) हे ा ध पी ड़त पु ष! म तुझे य, कोढ़ आ द रोग से, रोग के कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से उ प पाप से, गु , दे व आ द के ोह से एवं व ण के पाप से छु ड़ाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी ह. (१) शं ते अ नः सहा र तु शं सोमः सहौषधी भः. एवाहं वां े या ऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (२) हे रोगी पु ष! जल के स हत अ न तेरे लए सुखकर हो. सभी जड़ीबू टय के साथ सोमलता तेरे लए सुखकारी हो. इसी कार म तुझे य, कोढ़ आ द से, रोग के कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से उ प पाप से, गु , दे व आ द के ोह से एवं व ण दे व के पाप से छु ड़ाता ं. म अपने मं से तुझे पाप र हत बनाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी बन. (२) शं ते वातो अ त र े वयो धा छं ते भव तु दश त ः. एवाहं वां े या ऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (३) हे रोगी पु ष! धरती और आकाश के म य तेरे लए प य को धारण करने वाली वायु सुखकारी हो. पूव, प म आ द चार उ म दशाएं तेरे लए सुखकारी ह . इसी कार म तुझे य, कु आ द से, रोग के कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से, उ प पाप से, गु , दे व आ द के ोह से एवं व ण दे व के पाप से छु ड़ाता ं. म अपने मं से तुझे पाप र हत बनाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी ह . (३) इमा या दे वीः दश त ो वातप नीर भ सूय वच े. एवाहं वां े या ऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे रोगी पु ष! ये द एवं वायु प नी पूव आ द चार दशाएं एवं सब के ेरक स वता सभी कार तु ह सुखी कर. इसी कार म तुझे य, कु आ द से, रोग के कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से उ प पाप से, गु , दे व आ द के ोह से तथा व ण दे व के पाप से छु ड़ाता ं. म अपने मं के ारा तुझे पाप र हत बनाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी ह . (४) तासु वा तजर या दधा म य म एतु नऋ तः पराचैः. एवाहं वां े या ऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (५) हे रोगी पु ष! म तुझे पूव आ द दशा के म य वृ ाव था तक नीरोग रह कर जीवन बताने यो य बनाता ं. तेरा राजय मा आ द रोग एवं पाप दे वता न मत रोग तुझ से र चले जाएं. इसी कार म तुझे य, कोढ़ आ द से, रोग के कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से उ प पाप से, गु , दे व आ द के ोह से एवं व ण दे व के पाप से छु ड़ाता ं. म अपने मं से तुझे पाप र हत बनाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी ह . (५) अमु था य माद् रतादव ाद् हः पाशाद् ा ा ोदमु थाः. एवाहं वां े या ऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (६) हे रोगी पु ष! तू य मा रोग से छू ट गया है. रोग के कारण बने ए पाप से, नदा से, ोह से, व ण के पाप से तू छू ट गया है. इसी कार म तुझे य, कोढ़ आ द से, रोग के कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से उ प पाप से, गु , दे व आ द के ोह से तथा व ण दे व के पाप से छु ड़ाता ं. म अपने मं से तुझे पाप र हत बनाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी ह . (६) अहा अरा तम वदः योनम यभूभ े सुकृत य लोके. एवाहं वां े या ऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (७) हे रोगी पु ष! तूने श ु के समान बाधा प ंचाने वाले रोग को याग दया है एवं सुख ा त कर लया है. उ म कम के फल के प म ा त होने वाले इस क याणमय भूलोक म तू थत है. इसी कार म तुझे य, कोढ़, आ द से, रोग का कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से उ प पाप से, दे व, गु आ द के ोह से एवं व ण दे व के पाप से छु ड़ाता ं. म अपने मं से तुझे पाप र हत बनाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी ह . (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सूयमृतं तमसो ा ा अ ध दे वा मु च तो असृज रेणसः. एवाहं वां े या ऋ या जा मशंसाद् हो मु चा म व ण य पाशात्. अनागसं णा वा कृणो म शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.. (८) हे रोगी पु ष! स य बने ए सूय अंधकार पी ह से तुझे छु ड़ाते ह. इं आ द दे व तुझे पाप से मु करते ह. इसी कार म तुझे य, कोढ़ आ द से, रोग का कारण बने ए पाप दे वता से, बांधव के आ ोश से उ प पाप से, गु , दे व आ द के ोह से, व ण दे व के पाप से छु ड़ाता ं. म अपने मं के ारा तुझे पाप र हत बनाता ं. ावा और पृ वी दोन तेरे लए क याणकारी ह . (८)
दे वता—मं
सू -११
म बताए गए
या षर स हे या हे तर स मे या मे नर स. आ ु ह ेयांसम त समं ाम.. (१) हे तलक वृ से न मत म ण! वनाश करने वाली कृ या का तू नवारण करती है. तू यु को न एवं व को असफल करने वाली है. तू हम से अ धक श शाली श ु को मारने के लए पकड़ तथा हमारे समान श शाली श ु को छोड़ कर चली जा. (१) यो ऽ स तसरो ऽ स य भचरणो ऽ स. आ ु ह ेयांसम त समं ाम... (२) हे म ण! तू तलक वृ से न मत है. तू कृ या आ द को भगाने वाला र ा सू है. तू सर के ारा कए गए जा टोन का नवारण करने वाली है. तू मुझ से अ धक श शाली श ु को मारने के लए पकड़ तथा मेरे समान श शाली श ु को छोड़ कर आगे बढ़ जा. (२) त तम भ चर यो ३ मान् े यं वयं आ ु ह ेयांसम त समं ाम.. (३)
मः.
जो श ु हम से और हमारे पु , बांधव तथा पशु से े ष करता है एवं हम जस के वनाश क इ छा करते ह, हे म ण! तुम इन दोन कार के श ु का वनाश करो. तुम मुझ से अ धक श शाली श ु को मारने के लए पकड़ो तथा मेरे समान श वाले श ु को छोड़ कर आगे बढ़ जाओ. (३) सू रर स वच धा अ स तनूपानो ऽ स. आ ु ह ेयांसम त समं ाम.. (४) हे म ण! तू हमारे श ु ारा कए गए जा टोन को जानने वाली, तेज वनी एवं हमारे शरीर क र ा करने वाली है. तू हम से अ धक श शाली श ु को मारने के लए ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पकड़ एवं हमारे समान श
वाले श ु को छोड़ कर आगे चली जा. (४)
शु ो ऽ स ाजो ऽ स वर स यो तर स. आ ु ह ेयांसम त समं ाम.. (५) हे म ण! तू श ु को शोक म डु बाने वाली, तेज वनी, संताप दे ने वाली एवं यो त के समान न छू ने यो य है. तू मुझ से अ धक श शाली श ु को मारने के लए पकड़ ले और मेरे समान श वाले श ु को छोड़ कर आगे बढ़ जा. (५)
सू -१२
दे वता— ावा, पृ वी, अंत र
ावापृ थवी उव १ त र ं े य प नयु गायो ऽ तः. उता त र मु वातगोपं त इह त य तां म य त यमाने.. (१) ावा और पृ वी के म य व तृत अंत र व मान है. इन तीन लोक के अ धप त दे व मशः अ न, वायु और सूय ह. ये अद्भुत एवं महापु ष ारा शं सत व णु, ांड म ा त, आकाश, लोक एवं लोका धप त ह. मुझ अ भचारकता के द ा नयम के कारण संत त होने पर संत त ह . ता पय यह है क जस कार म अपने श ु के वनाश हेतु त पर ं, उसी कार ये दे व भी उस के हसक बन. (१) इदं दे वाः शृणुत ये य या थ भर ाजो म मु था न शंस त. पाशे स ब ो रते न यु यतां यो अ माकं मन इदं हन त.. (२) हे दे वो! मेरा यह वचन सुनो, तुम सब य के यो य हो. भर ाज मु न मेरी अ भलाषा पू त के लए शा पाठ कर रहे ह. जो श ु मेरे स मागगामी मन को क प ंचाता है, वह मेरे ारा कए गए जा टोने के पाप म बंध कर मृ यु पी ग त को ा त हो. (२) इद म शृणु ह सोमप यत् वा दा शोचता जोहवी म. वृ ा म तं कु लशेनेव वृ ं यो अ माकं मन इदं हन त.. (३) हे सोमरस के पीने से संतु मन वाले इं , मेरे ारा कहे गए वा य को सुनो. म श ु के ारा कए गए अपकार से ःखी मन के ारा तु ह बारबार बुला रहा ं. जो मेरे मन को इस कार ःखी कर रहे ह, म उन श ु को उसी कार काटता ं, जस कार कु हाड़ी वृ को काटती है. (३) अशी त भ तसृ भः सामगे भरा द ये भवसु भर रो भः. इ ापूतमवतु नः पतॄणामामुं ददे हरसा दै ेन.. (४) तीन और अ सी अथात् तरासी सभा गायन कता के, बारह आद मय के, आठ वसु के एवं द घ स का अनु ान करने वाले अं गरा गो ीय ऋ षय के सहयोग से हमारे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पूवज ने जो य , कुआं एवं बाग से संबं धत उ म कम कए ह, वे श ु से हमारी र ा कर. हम अपकार करने वाले श ु को जा टोने पी दे वता के ोध के ारा अपने वश म करते ह. (४) ावापृ थवी अनु मा द धीथां व े दे वासो अनु मा रभ वम्. अ रसः पतरः सो यासः पापमाछ वपकाम य कता (५) हे ावा पृ वी! तुम श ु को जीतने म मेरे अनुकूल बनो. हे सम त दे वो! तुम मेरे श ु को पकड़ने के लए तैयार हो जाओ. हे सोमरस के पा अं गरा गो ीय ऋ षयो एवं पतरो! तुम ऐसा य न करो क मुझ से ोह करने वाले श ु मृ यु को ा त ह . (५) अतीव यो म तो म यते नो तपूं ष त मै वृ जना न स तु
वा यो न दषत् यमाणम्. षं ौर भसंतपा त.. (६)
हे म तो! जो श ु अपनेआप को हम से अ धक श शाली मानता है अथवा जो हमारे ारा कए जाने वाले मं संबंधी कम क नदा करता है, उस के लए संतापकारी आयुध बाधक ह . मेरे कम से े ष करने वाले को ौ संताप दे . (६) स त ाणान ौ म य तां ते वृ ा म णा. अया यम य सादनम न तो अरङ् कृतः.. (७) हे श !ु तेरे सात ाण अथात् आंख, नाक, कान और मुंह के सात छ को तथा तेरे कंठ क आठ धम नय को म अपने मं संबंधी अ भचार कम के ारा काटता ं. छ अंग वाला तू यमराज के घर जा. तेरे जलाने के लए अ न त के समान आ गई है. इस के बाद तेरे शव को सजाया जाएगा. (७) आ दधा म ते पदं स म े जातवेद स. अ नः शरीरं वेवे ् वसुं वाग प ग छतु.. (८) हे श ु! म जलती ई अ न म तेरे कटे ए चरण के साथ तेरे पैर क धूल फकता ं. अ न तेरे शरीर म वेश कर के तेरे सारे अंग म फैल जाए. तेरी वाणी और ाण भी समा त हो जाएं. (८)
सू -१३
दे वता—अ न, बृह प त, व े दे व
आयुदा अ ने जरसं वृणानो घृत तीको घृतपृ ो अ ने. घृतं पी वा मधु चा ग ं पतेव पु ान भ र ता दमम्.. (१) हे अ न! तू इस चारी को वृ ाव था तक आयु दान कर. हे घृत के कारण ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व लत एवं घृत पी रीढ़ वाले अ न दे व! मधुर एवं नमल गोघृत से संतु हो कर तुम इस चारी क र ा उसी कार करो, जस कार पता पु क र ा करता है. (१) प र ध ध नो वचसेमं जरामृ युं कृणुत द घमायुः. बृह प तः ाय छद् वास एतत् सोमाय रा े प रधातवा उ.. (२) हे दे वो! इस चारी को व पहनाओ एवं हमारे तेज से इस का पोषण करो. इसे ऐसा बनाओ क वृ ाव था ही इस क मृ यु बने. इस कार इस क आयु को द घ बनाओ. बृह प त दे व ने यह व ा ण के राजा सोम को पहनने के लए दया था. (२) परीदं वासो अ धथाः व तये ऽ भूगृ ीनाम भश तपा उ. शतं च जीव शरदः पु ची राय पोषमुपसं य व.. (३) हे व ाथ ! तुम ने यह व ेम ा त करने के हेतु धारण कया है. इसे धारण कर के तुम हसा के भय से जा क र ा करो. तुम अ धक समय तक पु , पौ आ द को ा त करने वाले सौ वष तक जी वत रहो एवं धन क पु धारण करो. (३) ए मानमा त ा मा भवतु ते तनूः. कृ व तु व े दे वा आयु े शरदः शतम्.. (४) हे चारी! तू आ और अपने दा हने पैर से प थर पर आ मण कर. तेरा शरीर प थर के समान ढ़ हो. सम त दे व तेरी आयु सौ वष क बनाएं. (४) य य ते वासः थमवा यं १ हराम तं वा व े ऽ व तु दे वाः. तं वा ातरः सुवृधा वधमानमनु जाय तां बहवः सुजातम्.. (५) हे चारी! तुम ने नवीन व धारण कया है. हम तुम से पहले पहना आ व ले रहे ह. सभी दे व तु हारी र ा कर. शोभन वृ से बढ़ते ए ब त से भाई तु हारे बाद ज म ल. (५)
सू -१४
दे वता—अ न, भूतप त, इं
नःसालां धृ णुं धषणमेकवा ां जघ वम्. सवा ड य न यो नाशयामः सदा वाः.. (१) म शाल वृ से भी ऊंची नःसाला नामक रा सी को न करता ं. वह भय उ प करने वाली, परा जत करने वाली, कठोर वचन बोलने वाली एवं मुझे खाने क इ छु क है. चंड नामक पाप ह क सभी ना तन को म न करता ं, जो मुझ पर ोध करने वाली ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
नव गो ादजाम स नर ा पानसात्. नव मगु ा हतरो गृहे य ातयामहे.. (२) हे मगुंद नाम क रा सी क पु यो! म तु ह अपनी गोशाला से, जुए खेलने के थान से तथा धा य रखने के घर से र भगाता ं. म तु ह अपने घर से नकाल कर वशेष कार से न करता ं. (२) असौ यो अधराद् गृह त स वरा यः. त से द यु यतु सवा यातुधा यः.. (३) यह जो अ य धक स पाताललोक है, क याण म व न करने वाली रा सयां वहां चली जाएं. पाप दे वता न मत वह पाताल म नीचे चली जाएं. सभी रा सयां भी वह रह. (३) भूतप त नरज व ेतः सदा वाः. गृह य बु न आसीना ता इ ो व ेणा ध त तु.. (४) भूत के वामी और इं ोध करने वाली रा सय को मेरे घर से नकाल. इं मेरे घर के नीचे के भाग म नवास करने वाली पशा चय को व से दबा कर रख. (४) य द थ े याणां य द वा पु षे षताः. य द थ द यु यो जाता न यतेतः सदा वाः.. (५) हे पशा चयो! य द तुम माता पता के शरीर से आए ए कोढ़, पागलपन, सं हणी आ द का कारण बनी ई हो अथवा तु ह मेरे श ु ने यहां भेजा है, य द तुम चोर आ द के समीप से काश म आई हो, तो तुम सब यहां से भाग जाओ. (५) प र धामा यासामाशुगा ा मवासरम्. अजैषं सवान् आजीन् वो न यतेतः सदा वाः.. (६) इन पशा चय के नवास थान पर म ने चार ओर से इस कार आ मण कया है, जस कार तेज दौड़ने वाला घोड़ा अपनी घुड़साल क ओर जाता है. हे पशा चयो! म ने तुम सब को सं ाम म जीत लया है. इस कारण तुम सब नरा त हो कर भाग जाओ. (६)
सू -१५
दे वता— ाण
यथा ौ पृ थवी च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (१) जस कार ौ और पृ वी न कसी से भयभीत और आशं कत होते ह और न न होते ह, हे मेरे ाणो! उसी कार तुम भी श ,ु ह, रोग आ द से मत डरो. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यथाह रा ी च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (२) जस कार दन और रात न कसी से भयभीत और आशं कत होते ह तथा न न होते ह, हे मेरे ाणो! उसी कार तुम भी श ु, ह, रोग आ द से मत डरो. (२) यथा सूय च
न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (३)
जस कार सूय और चं न कसी से भयभीत होते ह, न आशं कत होते ह और न न होते ह, हे मेरे ाणो! इसी कार तुम भी श ु, ह, रोग आ द से डरो मत. (३) यथा
च
ं च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (४)
जस कार ा ण और य न कसी से भयभीत होते ह, न आशं कत होते ह और न न होते ह, हे मेरे ाणो! उसी कार तुम भी कसी से मत डरो. (४) यथा स यं चानृतं च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (५) जस कार स य और अस य न कसी से भयभीत होते ह, न आशं कत होते ह और न कभी न होते ह, हे मेरे ाणो! उसी कार तुम भी मत डरो. (५) यथा भूतं च भ ं च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (६) जस कार वतमान का व तु समूह और भ व य म उ प होने वाली व तुएं न कसी से भयभीत होती ह, न आशं कत होती ह और न कभी न होती ह, हे मेरे ाणो! उसी कार तुम भी कसी से मत डरो. (६)
दे वता— ाण, अपान आ द
सू -१६ ाणापानौ मृ योमा पातं वाहा.. (१)
हे ाण और अपान वायु के अ भमानी दे वो! मृ यु से मेरी र ा करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (१) ावापृ थवी उप ु या मा पातं वाहा.. (२) हे ावा और पृ वी! मुझे सुनने क श हवन कया आ हो. (२)
दे कर मेरी र ा करो. यह ह व भलीभां त
सूय च ुषा मा पा ह वाहा.. (३) सूय
प दे खने वाली इं य आंख के
ारा मेरी र ा करे. यह ह व भलीभां त हवन
******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया आ हो. (३) अ ने वै ानर व ैमा दे वैः पा ह वाहा.. (४) हे वै ानर अ न! सभी दे व के साथ मेरी इं य को श यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (४) व
दान करके मेरी र ा करो.
भर व ेन मा भरसा पा ह वाहा.. (५)
हे व भ ं र! अपनी सम त पोषण श हवन कया आ हो. (५)
सू -१७
के ारा मेरी र ा करो. यह ह व भलीभां त
दे वता—ओज आ द
ओजो ऽ योजो मे दाः वाहा.. (१) हे अ न! तुम ओज हो. इसी लए मुझ म ओज धारण करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (१) सहो ऽ स सहो मे दाः वाहा.. (२) हे अ न! तुम श ु को परा जत करने म समथ तेज हो, इसी लए तुम मुझे तेज दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (२) बलम स बलं मे दाः वाहा.. (३) हे अ न! तुम बल हो, इसी लए मुझे बल दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (३) आयुर यायुम दाः वाहा.. (४) हे अ न दे व! तुम आयु हो, इसी लए मुझे आयु दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (४) ो म स ो ं मे दाः वाहा.. (५) हे अ न दे व! तुम ो हो, इसी लए मुझे ो अथात् सुनने क श ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (५) च ुर स च ुम दाः वाहा.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दान करो. यह
हे अ न दे व! तुम च ु हो, इसी लए मुझे च ु अथात् दे खने क श ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (६)
दान करो. यह
प रपाणम स प रपाणं मे दाः वाहा.. (७) हे अ न दे व! तुम सभी कार से पालन करने वाले हो, इसी लए मेरा पालन करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (७)
दे वता—अ न
सू -१८ ातृ
यणम स ातृ चातनं मे दाः वाहा.. (१)
हे अ न दे व! तुम श ु का वनाश करने वाले हो, इसी लए मुझे श ु नाश क श दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (१) सप न यणम स सप नचातनं मे दाः वाहा.. (२) हे अ न दे व! तुम वरो धय का नाश करने वाले हो, इसी लए तुम मुझे वरो धय का वनाश करने क श दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (२) अराय यणम यरायचातनं मे दाः वाहा.. (३) हे अ न दे व! तुम दान न करने वाल का वनाश करने वाले हो, इसी लए मुझे भी दान न करने वाल का वनाश करने क श दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (३) पशाच यणम स पशाचचातनं मे दाः वाहा.. (४) हे अ न दे व! तुम मांस भ ण करने वाले पशाच का नाश करने वाले हो, इसी लए मुझे भी पशाच का वनाश करने क श दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (४) सदा वा यणम स सदा वाचातनं मे दाः वाहा.. (५) हे अ न दे व! तुम आ ोश करने वाली पशा चय का वनाश करने वाले हो, इसी लए मुझे भी पशा चय के वनाश क श दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (५)
सू -१९
दे वता—अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ ने यत् ते तप तेन तं
त तप यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (१)
हे अ न दे व! तु हारी जो तपाने क श है, उस से उस को संत त करो जो हम से े ष करता है अथवा हम जस से े ष करते ह. (१) अ ने यत् ते हर तेन तं
त हर यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (२)
हे अ न दे व! तु हारी जो संहार क श है, उस के ारा उस का संहार करो जो हम से े ष करता है अथवा हम जस से े ष करते ह. (२) अ ने यत् ते ते ऽ च तेन तं
यच यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (३)
हे अ न दे व! तु हारी जो द त है, उस के ारा उ ह जलाने के लए द त बनो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (३) अ ने यत् ते शो च तेन तं
त शोच यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (४)
हे अ न दे व! तु हारी जो सर को शोकम न करने क श है, उस के ारा तुम उ ह शोक म न करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (४) अ ने यत् ते तेज तेन तमतेजसं कृणु यो ३ मान् े (५)
यं वयं
मः..
हे अ न दे व! तु हारा जो तेज है, उस से उन लोग को तेजहीन बनाओ जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह (५)
दे वता—वायु
सू -२० वायो यत् ते तप तेन तं
त तप यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (१)
हे वायु दे व! तु हारी जो संताप प च ं ाने क श है, उस से उ ह संताप प ंचाओ जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (१) वायो यत् ते हर तेन तं
त हर यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (२)
हे वायु दे व! तु हारी जो छ नने क श है, उस का योग उन लोग के हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (२) वायो यत् ते ऽ च तेन तं
यच यो ३ मान् े
यं वयं
हे वायु दे व! तु हारा जो वेग है, उस का योग उन के
त करो जो
मः.. (३) त करो जो हम से े ष रखते ह
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अथवा हम जन से े ष रखते ह. (३) वायो यत् ते शो च तेन तं
त शोच यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (४)
हे वायु दे व! तु हारी जो सर को शोक म न करने क श है, उस का योग उन लोग के त करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (४) वायो यत् ते तेज तेन तमतेजसं कृणु यो ३ मान् े (५)
यं वयं
मः..
हे वायु दे व! तु हारा जो तेज है, उस के ारा उ ह तेजहीन बनाओ, जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (५)
दे वता—सूय
सू -२१ सूय यत् ते तप तेन तं
त तप यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (१)
हे सूय दे व! आप क जो त त करने क श है, उस से उ ह संताप प ंचाओ, जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (१) सूय यत् ते हर तेन तं
त हर यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (२)
हे सूय दे व! आप क जो सुख, शां त एवं श हरण करने वाली श है, उस से उन लोग क सुख, शां त एवं श का हरण करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (२) सूय यत् ते ऽ च तेन तं
यच यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (३)
हे सूय दे व! तु हारी जो द त है, उस से उ ह जलाओ जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (३) सूय यत् ते शो च तेन तं
त शोच यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (४)
हे सूय दे व! तु हारी जो शोक म न करने क श है, उस से उ ह शोक म न करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (४) सूय यत् ते तेज तेन तमतेजसं कृणु यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (५)
हे सूय दे व! आप का जो तेज है, उस से उ ह तेजहीन बनाओ जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -२२ च
दे वता—चं यत् ते तप तेन तं
त तप यो ३ मान् े
यं वयं
हे चं दे व! तु हारी जो सर को संत त करने क श हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (१) च श
यत् ते हर तेन तं
त हर यो ३ मान् े
मः.. (१) है, उस से उ ह संत त करो जो
यं वयं
मः.. (२)
हे चं दे व! तु हारी जो छ नने क श है, उस का योग उन लोग के सुख, शां त एवं छ नने के लए करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (२) च
यत् ते ऽ च तेन तं
यच यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (३)
हे चं दे व! तु हारी जो द त है, उस से उन लोग को द तहीन बनाओ, जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (३) च
यत् ते शो च तेन तं
त शोच यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (४)
हे चं दे व! तु हारी जो सर को शोक म न करने क श है, उस के ारा उ ह शोक म न करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (४) च
यत् ते तेज तेन तमतेजसं कृणु यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (५)
हे चं दे व! तु हारा जो तेज है, उस से उ ह तेजहीन करो, जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (५)
दे वता—आप अथात् जल
सू -२३ आपो यद् व तप तेन तं
त तपत यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (१)
हे जल दे व! तु हारी जो सर को संताप दे ने क श है, उस से उ ह संताप दान करो जो हम से े ष करते ह और हम जन से े ष करते ह. (१) आपो यद् वो हर तेन तं
त हरत यो ३ मान् े
यं वयं
मः.. (२)
हे जल दे व! तु हारी जो हरण करने क श है, उस से उन क सुखशां त का हरण करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (२) आपो यद् वो ऽ च तेन तं
यचत यो ३ मान् े
यं वयं
******ebook converter DEMO Watermarks*******
मः.. (३)
हे जल दे व! तु हारी जो द त है, उस के ारा उन लोग को द तहीन बनाओ जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (३) आपो यद् वः शो च तेन तं (४)
त शोचत यो ३ मान् े
यं वयं
मः..
हे जल दे व! तु हारी जो सर को शोकम न करने क श है, उस से उ ह शोकम न करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (४) आपो यद् व तेज तेन तमतेजसं कृणुत यो ३ मान् े (५)
यं वयं
मः..
हे जल दे व! तु हारा जो तेज है, उस के ारा उन लोग को तेजहीन बनाओ जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (५)
सू -२४
दे वता—आयुध
शेरभक शेरभ पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (१) हे रा स के गांव के मु खया और रा स के वामी! तुम ने हमारी ओर जो द र ता दान करने वाली रा सी भेजी है तथा जो रा स भेजे ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तु हारे जो आयुध ह, वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी लौट जाएं. तुम हमारे जस श ु के हो, उसी के पास चले जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह मेरे पास भेजा है. तुम उसी को खाओ. तुम उसी का मांस भ ण करो. (१) शेवृधक शेवृध पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (२) हे अपने आ त का सुख बढ़ाने वाले एवं गांव के मु खया के वामी! तुम ने हमारी ओर जो द र ता दान करने वाली रा सी भेजी है तथा जो रा स भेजे ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तु हारे जो आयुध ह वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी लौट जाएं. तुम हमारे जस श ु के हो, उसी के पास चले जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह मेरे पास भेजा है, तुम उसी को खाओ. तुम उसी का मांस भ ण करो. (२) ोकानु ोक पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (३) हे धन आ द छ न कर छपे
प म चलने वाले एवं उस का अनुसरण करने वाले चोरो!
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तुम ने हमारी ओर द र ता दान करने वाली जो रा सी और रा स भेजे ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तु हारे जो आयुध ह वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी लौट जाएं. तुम हमारे जस श ु के हो उसी के पास चले जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह मेरे पास भेजा है, तुम उसी को खाओ. तुम उस का मांस भ ण करो. (३) सपानुसप पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (४) हे कु टल चलने वाले रा स के वामी एवं उस के अनुचर! तुम ने हमारी ओर द र ता दान करने वाली रा सी और रा स भेजे ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तु हारे जो आयुध ह, वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी चले जाएं. तुम हमारे जस श ु के हो, उसी के पास चले जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह हमारे पास भेजा है, तुम उसी को खाओ. तुम उसी का मांस भ ण करो. (४) जू ण पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनीः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (५) हे ा णय के शरीर को वृ बनाने वाली रा सी! तूने हमारी ओर द र ता दान करने वाली जो रा सयां भेजी ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तेरे जो आयुध ह वे भी लौट जाएं. तेरे अनुचर चोर भी लौट जाएं. तू हमारे जस श ु क है, उसी के पास चली जा तथा उसे खा डाल. जस योग करने वाले ने तुझे मेरे पास भेजा है, तू उसी को खा. तू उसी का मांस भ ण कर. (५) उप दे पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनीः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (६) हे ू र श द करने वाली रा सी! तुम ने हमारी ओर द र ता दान करने वाली जो रा सयां भेजी ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तु हारे जो आयुध ह, वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी चले जाएं. तुम हमारे जस श ु क हो, उसी के पास चली जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह मेरे पास भेजा है, तुम उसी को खाओ. तुम उसी का मांस भ ण करो. (६) अजु न पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनीः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (७) हे अजुन वृ के समान रंग वाली रा सी! तुम ने मेरी ओर द र ता दान करने वाली जो रा सी भेजी है, वह हमारी ओर से लौट जाए. तु हारे जो आयुध ह, वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी चले जाएं. तुम हमारे जस श ु क हो, उसी के पास चली जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह मेरे पास भेजा है, तुम उसी को खाओ. तुम ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उसी का मांस भ ण करो. (७) भ ज पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनीः. य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (८) हे शरीर का अपहरण करने हेतु आने वाली रा सी! तुम ने हमारी ओर द र ता दान करने वाली जो रा सयां भेजी ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तु हारे जो आयुध ह, वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी चले जाएं. तुम हमारे जस श ु क हो, उसी के पास वापस लौट जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह मेरे पास भेजा है, तुम उसी को खा डालो. तुम उसी का मांस भ ण करो. (८)
सू -२५
दे वता—पृ पण
शं नो दे वी पृ प यशं नऋ या अकः. उ ा ह क वज भनी तामभ सह वतीम्.. (१) चमकती ई पृ पण नाम क जड़ीबूट हम सुख दान करे तथा रोग उ प करने वाली पाप दे वता नऋ त को ःख दे . म ने अ य धक श शाली, पापना शनी एवं रोग को परा जत करने वाली जड़ी पृ पण को खाया है. (१) सहमानेयं थमा पृ प यजायत. तयाहं णा नां शरो वृ ा म शकुने रव.. (२) रोग को परा जत करने वाली पृ पण सभी जड़ीबू टय म मुख बन कर उ प ई है. इस के ारा म दाद, खुजली, कोढ़ आ द रोग के कारण को इस कार समा त करता ,ं जस कार खड् ग से प ी का सर काटा जाता है. (२) अरायमसृ पावानं य फा त जहीष त. गभादं क वं नाशय पृ प ण सह व च.. (३) हे पृ पण नामक जड़ी! मेरे शरीर के र को गराने वाले कु आ द रोग को, शरीर वृ को रोकने वाले सं हणी आ द रोग को तथा गभ को न करने वाले रोग के उ पादक क व नामक पाप को न करो एवं मेरे श ु को परा जत करो. (३) ग रमेनाँ आ वेशय क वान् जी वतयोपनान्. तां वं दे व पृ प य न रवानुदह ह.. (४) हे पृ पण नाम क बूट ! ाण का नाश करने वाले एवं कु आ द रोग को उ प करने वाले पाप क व को पवत क गुफा म घुसा दो. जस कार अ न वन म रहने वाले पशु को जला दे ती है, उसी कार तू पवत क गुफा म घुसे ए पाप को जलाती ई जा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(४) पराच एनान् णुद क वान् जी वतयोपनान्. तमां स य ग छ त तत् ादो अजीगमम्.. (५) हे पृ पण ! ाण का नाश करने वाले एवं कोढ़ आ द रोग को उ प करने वाले क व नामक पाप को पीछे क ओर जाने को ववश कर. म भी कु आ द रोग को वहां भेजता ं, जहां सूय दय के बाद अंधकार चला जाता है. (५)
सू -२६
दे वता—पशुगण
एह य तु पशवो ये परेयुवायुयषां सहचारं जुजोष. व ा येषां पधेया न वेदा मन् तान् गो े स वता न य छतु.. (१) जो पशु कभी न लौटने के लए चले गए ह, वे मेरी इस गोशाला म आ जाएं. वायु जन क र ा के लए साथ चलती है एवं व ा जन के गभाशय के बछड़ का प जानते ह, उन सम त पशु को स वता दे व इस गोशाला म इस कार था पत कर क वे कभी न भाग. (१) इमं गो ं पशवः सं व तु बृह प तरा नयतु जानन्. सनीवाली नय वा मेषामाज मुषो अनुमते न य छ.. (२) गाय आ द पशु मेरी इस गोशाला म आएं. उ ह यहां लाने का ढं ग जानते ए बृह प त दे व उ ह यहां लाएं. हे सनीवाली अथात् पू णमा और अमाव या क दे वयो! तुम इन पशु के पीछे चलती हो. तुम गोशाला म आए ए इन पशु को रोको. (२) सं सं व तु पशवः समा ाः समु पू षाः. सं धा य य या फा तः सं ा ण ह वषा जुहो म.. (३) गाय आ द पशु, घोड़े, सेवक आ द पु ष तथा गे ,ं जौ आ द अ आए. इस के न म म घृत से हवन करता ं. (३)
क वृ
मेरे पास
सं स चा म गवां ीरं समा येन बलं रसम्. सं स ा अ माकं वीरा ुवा गावो म य गोपतौ.. (४) म पहली बार ब चा दे ने वाली गाय के ताजा ध म घी मलाता ं तथा घी म श दे ने वाला अ और जल मलाता ं. मेरे पु , पौ आ द घी से शरीर चुपड़ कर ढ़ गा वाले बन. इस के न म मुझ गो वामी के पास गाएं थत रह. (४) आ हरा म गवां ीरमाहाष धा यं १ रसम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ ता अ माकं वीरा आ प नी रदम तकम्.. (५) म गाय का ध लाता ं तथा अ एवं जल भी लाता ं. म पु , पौ एवं प नी को ले आया ं. इन सब से मेरा घर पूण रहे. (५)
सू -२७
दे वता—ओष ध, इं ,
ने छ ःु ाशं जया त सहमाना भभूर स. ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (१) हे वारपाठा नामक जड़ी! तु हारा सेवन करने वाले व ा को उस का वरोधी न जीत सके. तु हारा वभाव श ु को सहन करने का है, इसी लए तुम तवाद को परा जत कर दे ती हो. मुझ पूछने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उन को तुम परा जत करो. हे ओष ध! मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (१) सुपण वा व व दत् सूकर वाखन सा. ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (२) हे वारपाठा नामक जड़ी! सुंदर पंख वाले ग ड़ ने वष र करने के लए तु ह खोज कर ा त कया था. आ द वाराह ने अपनी थूथन से तु ह खोदा था. मुझ पूछने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उ ह तुम परा जत करो. हे ओष ध! मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (२) इ ो ह च े वा बाहावसुरे य तरीतवे. ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (३) हे वारापाठा नामक जड़ी! इं ने असुर क हसा करने के लए तु ह अपनी भुजा म धारण कया था. मुझ पूछने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उ ह तुम परा जत करो तथा मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (३) पाटा म ो ा ादसुरे य तरीतवे. ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (४) इं ने असुर क हसा करने के लए वारपाठा नाम क जड़ी को खाया था. हे वारपाठा! मुझ पूछने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उ ह तुम परा जत करो तथा मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से बोल न सक. (४) तयाहं श ू सा इ ः सालावृकाँ इव. ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वारपाठे को धारण कर के अथवा खा कर म अपने वरोधी व ा को उसी कार न र कर ं गा, जस कार इं ने जंगली कु का प धारण करने वाले असुर को हराया था. हे वारापाठा! मुझ करने वाले से जो वरोधी त करते ह, उ ह तुम परा जत करो तथा मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (५) जलाषभेषज नील शख ड कमकृत्. ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (६) हे सुखकर जड़ीबू टय वाले, नीले रंग के वखंड अथात् मोर के पंख के मुकुट से यु एवं अपने उपासक के कम को काटने वाले ! मेरे ारा सेवन क जाती ई वारपाठा नाम क जड़ी को मेरे वरोधी व ा का तर कार करने यो य बनाओ. हे वारपाठा! मुझ करने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उ ह तुम परा जत करो तथा मेरे वरोधी व ा का मुंह सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (६) त य ाशं वं ज ह यो न इ ा भदास त. अ ध नो ू ह श भः ा श मामु रं कृ ध.. (७) हे इं ! जो वरोधी व ा अपनी यु य से मेरा तर कार करता है, तुम उस के उस को समा त कर दो, जो मेरे तकूल हो. तुम अपनी श य से मुझे अ धक बोलने वाला बनाओ तथा मुझ पूछने वाले को उ र दे ने वाले से े बनाओ. (७)
सू -२८
दे वता—ज रमा, आयु आ द
तु यमेव ज रमन् वधतामयं मेमम ये मृ यवो ह सषुः शतं ये. मातेव पु ं मना उप थे म एनं म यात् पा वंहसः.. (१) हे तु त कए जाते ए अ न दे व! तु हारी सेवा के लए ही यह कुमार रोग आ द से र हत हो कर बढ़े . जो असं य हसक रोग एवं पशाच ह, वे भी इस बालक क हसा न कर. माता जस कार पु को गोद म ले कर उस क र ा करती है, उसी कार म नाम के दे व पाप से इस बालक क र ा कर. (१) म एनं व णो वा रशादा जरामृ युं कृणुतां सं वदानौ. तद नह ता वयुना न व ान् व ा दे वानां ज नमा वव
.. (२)
हसक का भ ण करने वाले म एवं व ण एक मत हो कर इस बालक को वृ ाव था के ारा मरने वाला बनाएं. दे व का आ ान करने वाले एवं जानने यो य बालक को जानने वाले अ न दे व सम त ा भाव के थान को पा कर इस के लए द घ आयु का वचन द अथात् इस क आयु बढ़ाएं. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वमी शषे पशूनां पा थवानां ये जाता उत वा ये ज न ाः. मेमं ाणो हासी मो अपानो मेमं म ा व धषुम अ म ाः.. (३) हे अ न दे व! पृ वी पर जो पशु उ प हो चुके ह और जो उ प होने वाले ह, तुम उन के वामी हो. ाण और अपान वायु इस बालक का याग न कर. म एवं श ु इस का वध न कर. (३) ौ ् वा पता पृ थवी माता जरामृ युं कृणुतां सं वदाने. यथा जीवा अ दते प थे ाणापाना यां गु पतः शतं हमाः.. (४) हे बालक! ौ तेरा पता और पृ वी तेरी माता है. ये दोन एकमत हो कर तुझे द घ आयु दान कर, जस से तू पृ वी क गोद म ाण और अपान वायु से सुर त हो कर सौ वष तक जी वत रहे. (४) इमम न आयुषे वचसे नय यं रेतो व ण म राजन्. मातेवा मा अ दते शम य छ व े दे वा जरद यथासत्.. (५) हे अ न दे व! इस बालक को द घ जीवन दान करो एवं तेज वी बनाओ. हे तेज वी व ण एवं म दे व! इसे पु उ प करने यो य वीय दान करो. हे अ द त! तुम माता के समान इस बालक को सुख दान करो. हे सम त दे वो! यह ऐसा हो क इस का शरीर वृ ाव था को ा त करे. (५)
सू -२९
दे वता—अ न, सूय आ द
पा थव य रसे दे वा भग य त वो ३ बले. आयु यम मा अ नः सूय वच आ धाद् बृह प तः.. (१) पृ वी संबंधी पदाथ के रस को पीने वाले पु ष को इं आ द दे व भग दे वता के समान बली बनाएं. सूय इस पु ष को द घ आयु दान कर. सब के ेरक आ द य एवं बृह प त इसे तेज दान कर. (१) आयुर मै धे ह जातवेदः जां व र ध नधे मै. राय पोषं स वतरा सुवा मै शतं जीवा त शरद तवायम्.. (२) हे जातवेद अ न! इसे सौ वष क द घ आयु दान करो. हे व ा दे व! इस के लए अ धक संतान था पत करो. हे सब के ेरक स वता दे व! इस के लए धन क अ धकता को े रत करो. आप सब का यह पु सौ वष तक जी वत रहे. (२) आशीण ऊजमुत सौ जा वं द ं ध ं वणं सचेतसौ. जयं े ा ण सहसाय म कृ वानो अ यानधरा सप नान्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हमारे आशीवाद स य ह . हे ावा पृ वी! इसे अ दो तथा उ म संतान वाला बनाओ. तुम दोन एकमत हो कर इसे बल एवं धन दान करो. हे इं दे व! यह पु ष अपने बल से श ु को वजय और खेत को अपने अ धकार म करता आ अपने श ु को परा जत करे. (३) इ े ण द ो व णेन श ो म ः हतो न आगन्. एष वां ावापृ थवी उप थे मा ुध मा तृषत्.. (४) इं से जीवन ा त कर के, व ण क अनुम त ले कर तथा म त से बल ा त कर के भेजा आ यह हमारे समीप आया है. हे ावा पृ वी! तु हारी गोद म वतमान यह पु ष न कभी भूखा रहे और न कभी यास से ाकुल हो. (४) ऊजम मा ऊज वती ध ं पयो अ मै पय वती ध म्. ऊजम मै ावापृ थवी अधातां व े दे वा म त् ऊजमापः.. (५) हे श शा लनी ावा पृ वी! इस भूखे को बलकारक अ दो. हे जलपूण ावा पृ वी! इस यासे क रोग नवृ के लए जल दान करो. ाथना करने पर ावा पृ वी इसे अ द. व े दे व, म दगण एवं जल दे वता इसे बल दान कर. (५) शवा भ े दयं तपया यनमीवो मो दषी ाः सुवचाः. सवा सनौ पबतां म थमेतम नो पं प रधाय मायाम्.. (६) हे यासे पु ष! म तेरे नीरस दय को सुखकारी जल से तृ त करता ं. इस के प ात तू रोग र हत, उ म तेज यु एवं स हो जाएगा. एक मत धारण करने वाले अ नीकुमार माया प बना कर इस स ू को पीने के लए श तैयार कर. (६) इ एतां ससृजे व ो अ ऊजा वधामजरां सा त एषा. तया वं जीव शरदः सुवचा मा त आ सु ोद् भषज ते अ न्.. (७) ाचीन काल म वृ ासुर के ारा घायल इं ने यास से ाकुल हो कर बलकारक अ एवं वृ ाव था का वनाश करने वाला यह स ू बनाया था. वही अ और स ू तुझे दया जा रहा है. इस के ारा तू उ म तेज वाला बन कर सौ वष तक जी वत रह. पया आ स ू तेरे शरीर म रह कर बल दान करे. दे व के वै अ नीकुमार ने तेरे लए यह ओष ध तैयार क है. (७)
सू -३०
दे वता—अ नीकुमार आ द
यथेदं भू या अ ध तृणं वातो मथाय त. एवा म ना म ते मनो यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ी! धरती के ऊपर पड़े ए तनके को वायु जस कार मत करती है, म तेरे मन को उसी कार चंचल बना ं गा. इस से तू मुझे चाहने वाली बन जाएगी तथा मेरे पास से कह अ य नह जा सकेगी. (१) सं चे याथो अ ना का मना सं च व थः. सं वां भगासो अ मत सं च ा न समु ता.. (२) हे अ नीकुमारो! मेरी चाही गई ी को मेरे समीप ले आओ तथा मुझ कामी पु ष से मला दो. हम दोन के भा य एक साथ मल जाएं. हमारे मन और कम भी समान ह . (२) यत् सुपणा वव वो अनमीवा वव वः. त मे ग छता वं श य इव कु मलं यथा.. (३) शोभन पंख वाले कबूतर आ द प ी जो ी वषयक बात कहने के इ छु क होते ह, रोग र हत कामीजन भी वही बात कहना चाहते ह. उस वषय म कया जाता आ मेरा आ ान उस का मनी के लए मैल भरे बाण के समान हो. अथात् वह मेरी बात सुन कर मेरे वश म हो जाए. (३) यद तरं तद् बा ं यद् बा ं तद तरम्. क यानां व पाणां मनो गृभायौषधे.. (४) जो अथ मन म होता है, वही वाणी के ारा कट होता है. बाहर वाणी के ारा जो बात कही जाती है, वही मनु य के मन म रहती है. हे जड़ीबूट ! सव गुण संप क या के मन को हण करो. अथात् तु हारा लेपन करने से उस क या का मन मेरे वश म हो जाए. (४) एयमगन् प तकामा ज नकामो ऽ हमागमम्. अ ः क न दद् यथा भगेनाहं सहागमम्.. (५) प त क अ भलाषा करती ई यह ी मेरे समीप आई थी. म ने भी प नी क कामना से इसे ा त कया था. घोड़ा जस कार हन हनाता आ घोड़ी के पास जाता है, उसी कार म इस नारी से मला ं. (५)
सू -३१
दे वता—मही
इ य या मही षत् मे व य तहणी. तया पन म सं मीन् षदा ख वाँ इव.. (१) सभी क ड़ को मारने वाली जो इं क शला है, उसी शला के ारा म शरीर के भीतर थत क टाणु को उसी कार मारता ं, जस कार सलबट् टे से चने पीसे जाते ह. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म मतृहमथो कु मतृहम्. अ ग डू सवान्छलुनान् मीन् वचसा ज भयाम स.. (२) म आंख से दखाई दे ने वाले और न दखाई दे ने वाले क टाणु को मारता ं. इस के अ त र शरीर के अंतगत जाल के समान थत क टाणु का भी म वनाश करता ं. म अपने मं के बल से अलगंडू एवं श ग नाम के क टाणु को तथा अ य सभी क टाणु को न करता ं. (२) अ ग डू न् ह म महता वधेन ना अ ना अरसा अभूवन्. श ान श ान् न तरा म वाचा यथा मीणां न क छषातै.. (३) म हवन के साधन अ और जड़ीबू टय के ारा र तथा मांस को षत करने वाले अलगंडू नाम के क टाणु का वध करता ं. मेरी जड़ीबूट और मेरे मं के ारा संत त अथवा असंत त वे क टाणु नज व हो जाएं. म बचे ए और पहले न मरे ए क टाणु को अपने मं के ारा इस कार मारता ं, जस से अनेक कार के क टाणु म से एक भी न बचे. (३) अ वा यं शीष य १ मथो पा यं मीन्. अव कवं वरं मीन् वचसा ज भयाम स.. (४) म से आंत म होने वाले, सर म होने वाले, तथा पस लय म थत क टाणु को म मं के ारा न करता ं. ये क टाणु शरीर म वेश करने वाले एवं भां तभां त के माग से गमन करने वाले ह. (४) ये मयः पवतेषु वने वोषधीषु पशु व व १ तः. ये अ माकं त वमा व वशुः सव त म ज नम मीणाम्.. (५) जो क टाणु पवत म, वन म, ओष धय म, पशु म तथा जल म थत ह, वे घाव के ारा अथवा अ पान के ारा हमारे शरीर म वेश कर चुके ह. म इन सभी कार के क टाणु क उ प समा त करता ं. (५)
सू -३२
दे वता—आ द य
उ ा द यः मीन् ह तु न ोचन् ह तु र म भः. ये अ त मयो ग वः.. (१) उदय होते ए तथा अ त होते ए सूय अपनी फैलने वाली करण के क टाणु का वनाश करे जो गाय के शरीर के भीतर थत ह. (१) व पं चतुर ं म सार मजुनम्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ारा उन
शृणा य य पृ ीर प वृ ा म य छरः.. (२) म नाना आकार वाले, चार आंख वाले, चतकबरे रंग के एवं धवल वण के क टाणु का वनाश करता ं. म उन क टाणु क पीठ और शीश का भी वनाश करता ं. (२) अ वद् वः अग य य
मयो ह म क वव जमद नवत्. णा सं पन यहं मीन्ः.. (३)
हे क टाणुओ! म तु ह उसी कार पुनः उ प न होने के लए न करता ं, जस कार अ न, क व और जमद न ऋ ष ने मं क श से तु हारा वनाश कया था. म अग य ऋ ष के मं ारा सभी क टाणु का वनाश करता ं. (३) हतो राजा मीणामुतैषां थप तहतः. हतो हतमाता महत ाता हत वसा.. (४) क टाणु का राजा मारा गया एवं इन का स चव भी मारा गया. जन क टाणु माता, भाई और बहन भी मारी गई थ , वे न हो गए. (४)
क
हतासो अ य वेशसो हतासः प रवेशसः. अथो ये ु लका इव सव ते मयो हताः.. (५) इन क टाणु के कुल के नवास थान न हो गए एवं इन के घर के आसपास के घर भी न हो गए. इस के अ त र जो क टाणु बीज अव था म थे, वे भी न हो गए. (५) ते शृणा म शृ े या यां वतुदाय स. भन द्म ते कुषु भं य ते वषधानः.. (६) हे क टाणु! म तेरे उन स ग को तोड़ता ं, जन के ारा तू था प ंचाता है. म तेरे कुषुंभ नामक अंग वशेष को भी वद ण करता ं जो वष को धारण करने वाला है. (६)
सू -३३
दे वता—य मा का वनाश
अ ी यां ते ना सका यां कणा यां छु बुकाद ध. य मं शीष यं म त का ज ाया व वृहा म ते.. (१) हे य मा रोग से पी ड़त पु ष! म तेरी आंख से, नाक से, कान से तथा ठोड़ी से य मा रोग को बाहर नकालता ं. म तेरे सर म से, म त क से तथा जीभ से य मा रोग को बाहर नकालता ं. (१) ीवा य त उ णहा यः क कसा यो अनू यात्. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य मं दोष य १ मंसा यां बा यां व वृहा म ते.. (२) हे य मा रोग से पी ड़त पु ष! म तेरी गरदन से, र से पूण ना ड़य से, हंसली एवं सीने क ह ड् डय से, सं धय से, कंध से तथा भुजा से य मा रोग को बाहर नकालता ं. म बा म होने वाले य मा रोग को भी न करता ं. (२) दयात् ते प र लो नो हली णात् पा ा याम्. य मं मत ना यां ली ो य न ते व वृहाम स.. (३) हे रोगी! म तेरे दय से, दय के समीपवत मांस पड लोम से, लोम से संबं धत हल ण नामक मांस पड से, दोन ओर थत गुरद से, त ली से एवं दय के समीपवत यकृत से य मा रोग को बाहर नकालता ं. (३) आ े य ते गुदा यो व न ो दराद ध. य मं कु यां लाशेना या व वृहा म ते.. (४) हे य मा रोग से पी ड़त पु ष! म तेरी आंख से, गुदा से, बड़ी आंत से, पेट से, दोन कोख से, अनेक छ वाले मलाशय से तथा ना भ से य मा रोग को बाहर नकालता ं. (४) ऊ यां ते अ ीव यां पा ण यां पदा याम्. य मं भस ं १ ो ण यां भासदं भंससो व वृहा म ते.. (५) हे रोगी पु ष! म तेरी जंघा से, घुटन से, घुटन के नीचे वाले भाग से, पैर के पंज से, कमर से, नतंब से तथा गुरद म थत य मा रोग को वहां से बाहर नकालता ं. (५) अ थ य ते म ज यः नाव यो धम न यः. य मं पा ण याम ल यो नखे यो व वृहा म ते.. (६) हे रोगी पु ष! म ह ड् डय से, चरबी से, शरा से, धम नय से, हाथ से, हाथ क उंग लय से तथा नाखून से य मा रोग को बाहर नकालता ं. (६) अ े अ े लो नलो न य ते पव णपव ण. य मं वच यं ते वयं क यप य वीबहण व व चं व वृहाम स.. (७) हे य मा रोगी पु ष! तेरे अंगअंग म, रोमरोम म तथा जोड़जोड़ म जो य मा रोग है, उसे म क यप मह ष के मं के सू के ारा बाहर नकालता ं. (७)
दे वता— व कमा
सू -३४ य ईशे पशुप तः पशूनां चतु पदामुत यो
पदाम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
न
तः स य यं भागमेतु राय पोषा यजमानं सच ताम्.. (१)
जो पशुप त चार पैर वाले पशु और दो पैर वाले मनु य के वामी ह, उन के पास से ा त कया आ यह य के यो य पशु य का भाग बने एवं यजमान को धन क समृ यां ा त ह . (१) मु च तो भुवन य रेतो गातुं ध यजमानाय दे वाः. उपाकृतं शशमानं यद थात् यं दे वानाम येतु पाथः.. (२) हे दे वो! इस मारे जाते ए पशु को याग कर जाते ए च ु, ाण आ द इसे यजमान के लए वीय के ारा पु य लोक म जाने का माग बनाएं. इस पशु म दे व का य जो मांस है, वह भी इसे ा त हो. (२) ये ब यमानमनु द याना अ वै त मनसा च ुषा च. अ न ान े मुमो ु दे वो व कमा जया संरराणः.. (३) इस य ीय पशु के समूह के जो पशु इसे मारा जाता आ दे ख कर खी होते ह और खी मन से इसे ेम भरे ने ारा दे खते ह, अ न दे व उन सब के लए ेम का फंदा खोल द. अपनी सृ के साथ श द करते ए व कमा भी इसे मु कर. (३) ये ा याः पशवो व पा व पाः स तो ब धैक पाः. वायु ान े मुमो ु दे वः जाप तः जया संरराणः.. (४) जो ामीण पशु सभी प से यु एवं व वध प वाले हो कर भी ायः एक प वाले ह, उन सब को वायु दे व सब से पहले मु कर. अपनी जा के साथ एकमत होते ए जाप त भी बाद म इस पशु को मु कराएं. (४) जान तः दवं ग छ
त गृ तु पूव ाणम े यः पयाचर तम्. त त ा शरीरैः वग या ह प थ भदवयानैः.. (५)
हे पशु! इस य म तेरे माहा य को जानते ए अंत र म थत दे व तेरे अंग क सेवा करते ए सभी ओर से नकल कर सामने आते ए तेरे ाण को हण कर. इस के प ात तुम दे व के ारा गृहीत हो कर वग म जाओ तथा वहां द भोग के त थत बनो. इस य के बाद तुम दे व के माग से वग म जाओ. (५)
सू -३५
दे वता— व कमा
ये भ य तो न वसू यानृधुयान नयो अ वत य त ध याः. या तेषामवया र ः व न तां कृणवद् व कमा.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम ने भोजन करते ए पृ वी म धन को गाड़ दया है. प व थान म अ नय को जानते ए व कमा हमारे य को सफल बनाएं. जो लोग हवन नह करते ह अथवा दोष पूण य करते ह, वे मेरे य क सफलता दे ख कर शोक कर. (१) य प तमृषय एनसा नभ ं जा अनुत यमानम्. मथ ा तोकानप यान् रराध सं न े भः सृजतु व कमा.. (२) ऋ षय ने ऐसे यजमान को पाप यु बताया है, जो ग त वाला हो तथा जस क जाएं उस के साथसाथ ःखी ह . उस यजमान ने सोमरस क बूद ं को चुरा कर जो अपराध कया है, व कमा सोमरस क उन बूंद से हमारे यजमान को मलाएं. (२) अदा या सोमपान् म यमानो य य व ा समये न धीरः. यदे न कृवान् ब एष तं व कमन् मु चा व तये.. (३) य का व प जानने के गव से मो हत तथा अपने अ त र सोम पीने वाले पं डत को भी अ ानी समझने वाला उसी कार पाप करता है, जस कार सं ाम म अपने को महाबली समझने वाला और श ु यो ा का तर कार करने वाला बंद बन कर क उठाता है. हे व कमा! उस पापी को क याण ा त के लए पाप से छु ड़ाओ. (३) घोरा ऋषयो नमो अ वे य ुयदे षां मनस स यम्. बृह पतये म हष ुम मो व कमन् नम ते पा १ मान्.. (४) जो ू र ऋ ष अथात् ाण, च ु आ द ह, उन के लए नम कार है. इन ाण और अंतःकरण के म य म जो यथाथदश ने ह, उन के लए भी नम कार है. बृह प त दे व के लए भी इसी कार का द तशाली एवं मह वपूण नम कार है. हे व कमा, आप को नम कार है, आप हमारी र ा कर. (४) य य च ुः भृ तमुखं च वाचा ो ेण मनसा जुहो म. इमं य ं वततं व कमणा दे वा य तु सुमन यमानाः.. (५) य के ने , य के आ द प एवं मुख प अ न के त म वाणी, कान तथा मन के ारा हवन करता ं. व कमा के ारा व तृत इस य म सम त दे व एकमत हो कर आएं. (५)
सू -३६
दे वता—अ न आ द
आ नो अ ने सुम त संभलो गमे दमां कुमार सह नो भगेन. जु ा वरेषु समनेषु व गुरोषं प या सौभगम व यै.. (१) हे अ न दे व! हमारी मा यता के अनुसार, सव ल ण से यु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
एवं क या चाहने वाला
वर हम ा त हो तथा सौभा य के कारण हमारी इस कुमारी को वर ा त हो, यह कुमारी समान दय वाले वर को पा कर वयं स हो और उसे भी स करे. प त के साथ नवास थान इस के लए सौभा यदायक हो. (१) सोमजु ं जु मय णा संभृतं भगम्. धातुदव य स येन कृणो म प तवेदनम्.. (२) सोमदे व के ारा से वत, से अथवा गंधव से यु , ववाह क अ न से वीकृत क या पी भा य को दे व क आ ा के अनुसार यथाथ वचन से म मनु य अथात् वर को ा त कराता ं. (२) इयम ने नारी प त वदे सोमो ह राजा सुभगां कृणो त. सुवाना पु ान् म हषी भवा त ग वा प त सुभगा व राजतु.. (३) हमारी यह क या प त को ा त करे, जस से सोम राजा इसे सौभा यशा लनी बनाएं. ववाह के प ात यह पु को ज म दे ती ई े प नी स हो. इस कार यह प त को पा कर सौभा ययु एवं सुशो भत हो. (३) यथाखरो मघवं ा रेष यो मृगाणां सुषदा बभूव. एवा भग य जु ेयम तु नारी स या प या वराधय ती.. (४) जस कार शंसनीय भो य पदाथ से यु , शोभन एवं पशु के आवास वाला यह दे श य एवं सुखद होता है, उसी कार यह क या प त के साथ स ता दे ने वाली व तुएं बनाती ई सुख समृ ा त करे. (४) भग य नावमा रोह पूणामनुपद वतीम्. तयोप तारय यो वरः तका यः.. (५) हे क या! तू भा य के साधन से पूण एवं वनाशर हत नाव पर सवार हो. इस नाव के सहारे तू अपने मनचाहे प त को ा त कर. (५) आ दय धनपते वरमामनसं कृणु. सव द णं कृणु यो वरः तका यः.. (६) हे धनप त कुबेर! प त के ारा यह कहलवाओ क यह क या मेरी प नी बने. इस वर को क या क ओर अ भमुख करो तथा सभी ा णय को इस के ववाह के अनुकूल काय करने वाला बनाओ. यह क या अपना मनचाहा प त ा त करे. (६) इदं हर यं गु गु वयमौ ो अथो भगः. एते प त य वाम ः तकामाय वे वे.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोने के आभूषण, धूपन का गूगल, लेपन का तथा औ अलंकार के अ ध ाता दे व भग ने तुझे गंधव तथा अ न ारा अ भल षत प त को ा त करने के हेतु दए ह. (७) आ ते नयतु स वता नयतु प तयः वम यै धे ोषधे.. (८)
तका यः.
हे क या! सब के ेरक स वता दे व तेरे लए मनचाहे वर को लाएं. वह भी तुझ से ववाह कर के तुझे अपने घर ले जाए. हे जड़ीबूट ! तुम इस कुमारी के लए प त दान करो. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तीसरा कांड दे वता—अ न, म त्, इं
सू -१
अ ननः श ून् येतु व ान् तदह भश तमरा तम्. स सेनां मोहयतु परेषां नह तां कृणव जातवेदाः.. (१) हसक श ु क सेना को मो हत कर के जातवेद अथात् अ न श ा उठाने म असमथ बना द. दे वासुर सं ाम म दे व सेना का त न ध व करने वाले अ न दे व श ु के अंग को भ म करते ए आगे बढ़. (१) यूयमु ा म त् ई शे था भ ेत मृणत सह वम्. अमीमृणन् वसवो ना थता इमे अ न षां तः येतु व ान्.. (२) हे म तो! तुम सं ाम म सहायता करने के लए मेरे समीप रहो एवं मेरे श ु करने जाओ. वसु दे वगण भी मेरी ाथना पर श ुनाश के लए आगे बढ़. वसु अ न भी श ु को जानते ए त के समान अ सर हो. (२)
पर हार म धान
अ म सेनां मघव मा छ ूयतीम भ. युवं ता म वृ ह न दहतं त.. (३) हे इं ! नरापराध के त श ु के समान आचरण करने वाली सेना के सामने जाओ. हे वृ नाशक इं ! तुम और अ न दोन तकूल बन कर श ु सेना को भ म करो. (३) सूत इ वता ह र यां ते व ः मृण ेतु श ून्. ज ह तीचो अनूचः पराचो व वक् स यं कृणु ह च मेषाम्.. (४) हे इं ! ह र नाम के अ से यु रथ म बैठ कर तुम समतल माग से अपने व को धारण करते ए श ु सेना क ओर गमन करो. तुम सामने और पीछे से आते ए तथा यु से मुंह मोड़ कर भागते ए श ु का वनाश करो. हमारे वनाश के त ढ़ न य वाले इन के च को तुम सवथा अ व थत कर दो. (४) इ सेनां मोहया म ाणाम्. अ नेवात य ा या तान् वषूचो व नाशय.. (५) हे इं ! हमारे श ु
क सेना को कत
ान से शू य बना दो. अ न और वायु के
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सहयोग से भ म करने हेतु वकराल बनी ई अपनी ग त से श ु सेना को यु कर भागने पर ववश कर के न कर दो. (५)
से मुंह मोड़
इ ः सेनां मोहयतु म तो न वोजसा. च ूं य नरा द ां पुनरेतु परा जता.. (६) दे व के अ धप त इं श ु सेना को ककत वमूढ़ कर द और म त् अपने तेज से उस का वनाश कर. अ न दे व उन क आंख से दे खने क श छ न ल. इस कार परा जत श ु सेना वापस चली जाए. (६)
सू -२
दे वता—अ न, इं आ द
अ नन तः येतु व ान् तदह भश तमरा तम्. स च ा न मोहयतु परेषां नह तां कृणव जातवेदाः.. (१) सब कुछ जानने वाले और दे व त अ न हमारे श ु को जला डाल और सामने क ओर से आते ए हसक श ु के मन को ककत वमूढ़ कर द. जातवेद अ न उ ह इस यो य न रख क वे हाथ से श उठा सक. (१) अयम नरमूमुहद् या न च ा न वो द. व वो धम वोकसः वो धमतु सवतः.. (२) हे श ुओ! तु हारे दय म जो हम पर आ मण करने संबंधी वचार ह, उ ह समा त करते ए अ न दे व तु हारे दय को मो हत कर. वे तु ह तु हारे नवास से पूरी तरह नकाल द एवं तु हारे थान को न कर द. (२) इ च ा न मोहय वाङाकू या चर. अ नेवात य ा या तान् वषूचो व नाशय.. (३) हे इं ! तुम हमारे श ु के दय को मत करते ए एवं अपने मन म उ ह न करने का संक प लए ए श ुसै य के सामने जाओ. तुम अ न और वायु के सहयोग से भ म करने हेतु वकराल बनी ई अपनी ग त से श ु सेना को यु से मुंह मोड़ कर भागने पर ववश कर के न कर दो. (३) ाकूतय एषा मताथो च ा न मु त. अथो यद ैषां द तदे षां प र नज ह.. (४) हे व संक पो! तुम श ु के दय म जाओ. हे श ु के दयो! तुम मत हो जाओ. यु करने के लए उ त हमारे श ु के दय म जो काय करने क इ छा है, उसे पूण प से न कर दो. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अमीषां च ा न तमोहय ती गृहाणा ा य वे परे ह. अ भ े ह नदह सु शोकै ा ा म ां तमसा व य श ून्.. (५) हे सुख और ाण को न करने वाली अ या नाम क पापदे वी! तुम हमारे श ु के दय को मत करती ई उन के शरीर म ा त हो जाओ. तुम हम से मुंह मोड़ कर हमारे श ु क ओर जाओ और रोग, भय आ द से उ प शोक से उन के दय को संत त करो. तुम अ ान प पशाची के सहयोग से हमारा अ हत चाहने वाले श ु को मार डालो. (५) असौ या सेना म त्ः परेषाम मानै य योजसा पधमाना. तां व यत तमसाप तेन यथैषाम यो अ यं न जानात्.. (६) हे म तो! श ु क यह सेना अपने बल क अ धकता के कारण हमारे साथ संघष करती ई हमारी ओर आ रही है. इसे अपने ारा े रत माया से कत ान शू य बना करके न कर दो. इन श ु को ऐसा बना दो क इन म से कोई भी एक सरे को न पहचान सके. (६)
सू -३
दे वता—अ न
अ च दत् वपा इह भुवद ने च व रोदसी उ ची. यु तु वा म तो व वेदस आमुं नय नमसा रातह म्.. (१) हे अ न! अपने रा य से युत आ यह राजा पुनः रा य पाने के लए तु हारी ाथना कर रहा है. तु हारी कृपा से यह अपने रा य म जा का पालक बने. हे ापनशील अ न! इस के न म तुम धरती और आकाश म ा त हो जाओ. व े दे व और उनचास म त् तु हारी सहायता कर. तु ह नम कार करने वाले एवं ह व दे ने वाले इस राजा को इस का रा य पुनः ा त कराओ. (१) रे चत् स तम षास इ मा यावय तु स याय व म्. यद् गाय बृहतीमकम मै सौ ाम या दधृष त दे वाः.. (२) हे ऋ वजो! आप लोग वग म नवास करने वाले मेधावी इं को राजा क सहायता करने हेतु बुलाएं. दे व ने गाय ी और बृहती छं द तथा इं संबंधी सौ ामणी य के ारा इं को अ तशय श शाली बना दया है. (२) अ य वा राजा व णो यतु सोम वा यतु पवते यः. इ वा यतु वड् य आ यः येनो भू वा वश आ पतेमाः.. (३) हे राजन्! आप का रा य श ु ने छ न लया है. आप को आप के रा य पर था पत करने के लए व ण अपने से संबं धत जल से, सोम अपने आ य थान पवत से तथा इं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आप क जा के मा यम से आप के रा य म वेश के लए बुलाएं. आप श ु ारा अपरा जत होते ए बाज के समान ही ती ग त से आएं और अपनी इन जा का पालन कर. (३) येनो ह ं नय वा पर माद य े े अप ं चर तम्. अ ना प थां कृणुतां सुगं त इमं सजाता अ भसं वश वम्.. (४) वग म नवास करने वाले दे व श ु ारा पराए रा य म बंद बनाए गए आप को अपने दे श म लाएं. अ नीकुमार आप के माग को श ु से शू य बनाएं. हे बांधवो! अपने रा य म पुनः व इस राजा क तुम सब सेवा करो. (४) य तु वा तजनाः त म ा अवृषत. इ ा नी व े दे वा ते व श ेममद धरन्.. (५) हे राजन्! जो लोग अब तक आप के वरोधी थे, वे भी आप के अनुकूल बन कर नेह कर और आप के आ ापालक बन. इं , अ न और व े दे व आप म जापालन क मता उ प कर. (५) य ते हवं ववदत् सजातो य न ः. अपा च म तं कृ वाथेम महाव गमय.. (६) हे राजन्! आप के समान श शाली, आप से उ च बलशाली और आप से हीन परा म वाला जो श ु आप से सहमत न हो, इं उसे उस रा से ब ह कृत कर के वहां के राजा को वहां था पत कर. (६)
सू -४
दे वता—इं
आ वा गन् रा ं सह वचसो द ह ाङ् वशां प तरेकराट् वं व राज. सवा वा राजन् दशो य तूपस ो नम यो भवेह.. (१) हे राजन्! आप का रा य आप को पुनः ा त हो गया. इस कारण आप तेज के साथ पुनः स ह तथा जापालक और श ु वनाशक बन. सभी दशा के दे व और उन म नवास करने वाले जाजन आप को अपना वामी वीकार कर. आप के रा य के सभी नवासी आप क सेवा कर और आप का अ भवादन कर. (१) वां वशो वृणतां रा याय वा ममाः दशः प च दे वीः. व मन् रा य ककु द य व ततो न उ ो व भजा वसू न.. (२) हे राजन्! जाएं रा य शासन के लए आप का वरण कर. पूव आ द चार और म यवत पांचव दशा आप के लए तेज वनी बन कर आप का वरण करे. आप अपने दे श ******ebook converter DEMO Watermarks*******
के उ च सहासन पर वराजमान ह . उस के प ात आप श ु सेवक को यथायो य धन दान कर. (२)
से अपरा जत रहते ए हम
अ छ वा य तु ह वनः सजाता अ न तो अ जरः सं चरातै. जायाः पु ाः सुमनसो भव तु ब ं ब ल त प यासा उ ः.. (३) हे राजन्! आप के सजातीय अ य राजा आप के बुलाने पर आएं. आप का त अ न के समान नबाध हो कर सव वचरण करे. आप क प नयां तथा पु आप क पुनः रा य ा त से स ह . आप पया त श शाली बन कर अनेक कार के उपायन अथात् भट म आई ई व तुएं अपने सामने आई दे ख. (३) अ ना वा े म ाव णोभा व े दे वा म त् वा य तु. अधा मनो वसुदेयाय कृणु व ततो न उ ो व भजा वसू न.. (४) हे राजन्! अ नीकुमार, दोन म -व ण, व े दे व एवं म त् आप को रा य म वेश करने के लए बुलाएं. आप अपना मन, धन दान करने म लगाएं. इस के प ात आप श ु से अपरा जत रहते ए हम सेवक को यथायो य धन दान कर. (४) आ व परम याः परावतः शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्. तदयं राजा व णा तथाह स वायम त् स उपेदमे ह.. (५) हे रदे श म थत राजन्! र दे श से अपने रा य म शी आइए. अपने रा य म वेश के समय धरती और आकाश दोन आप के लए मंगलकारी बन. व ण आप को बुला रहे ह. आप अपने रा म आओ. (५) इ े मनु या ३: परे ह सं ा था व णैः सं वदानः. स वायम त् वे सध थे स दे वान् य त् स उ क पयाद् वशः.. (६) हे परम ऐ य संप इं ! हम मनु य के समीप आओ. हे राजन्! व ण के साथ एकमत हो कर इं आप को बुला रहे ह, इस लए आप अपने रा य म वेश कर एवं वहां रह कर इं आ द दे व के न म य कर तथा जा को अपनेअपने काम म लगाएं. (६) प या रेवतीब धा व पाः सवाः स य वरीय ते अ न्. ता वा सवाः सं वदाना य तु दशमीमु ः समुना वशेह.. (७) धनवती एवं माग म हतका रणी दे वयां आप का क याण कर. हे राजन्! अनेक प वाली जल दे वयां एक हो कर आप के लए ेय कर बन एवं एकमत हो कर आप को आप के रा म बुलाएं. वहां आप सश और स रह कर सौ वष का जीवन भोग. (७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -५
दे वता—सोम
आयमगन् पणम णबली बलेन मृण सप नान्. ओजो दे वानां पय ओषधीनां वचसा मा ज व व यावन्.. (१) अपनी श क अ धकता से श ु को न करने वाली तथा सभी ओष धय क सार प तथा े फल दे ने वाली यह पणम ण मुझे ा त हो. हे दे वो! ओज प यह पणम ण मुझे अपने तेज से तेज वी बनाए. (१) मय ं पणमणे म य धारयताद् र यम्. अहं रा याभीवग नजो भूयासमु मः.. (२) हे पलाश से न मत पणम ण! मुझ म ण धारण कता को बल एवं धन दान करो. तु ह धारण करने के कारण म अपने रा य को वाधीन करने म कसी क सहायता न लेने से सव म बनूं. (२) यं नदधुवन पतौ गु ं दे वाः यं म णम्. तम म यं सहायुषा दे वा ददतु भतवे.. (३) इं आ द दे व ने मनचाहा फल दे ने के कारण य इस म ण को पलाश वृ म गोपनीय प से छपा कर रखा था. दे वगण मेरी आयु वृ कर और भरणपोषण के न म मुझे वह पणम ण दान कर. (३) सोम य पणः सह उ माग े ण द ो व णेन श ः. तं यासं ब रोचमानो द घायु वाय शतशारदाय.. (४) सर को परा जत करने क श दे ने वाली सोम म ण मुझे ा त हो. इं ारा द ई और व ण ारा अनुमत उस य म ण को म सौ वष क द घ आयु पाने के लए धारण क ं . (४) आ मा त् पणम णम ा अ र तातये. यथाहमु रो ऽ सा यय ण उत सं वदः.. (५) यह पणम ण मेरा क याण करने के लए मुझे चरकाल तक ा त हो. यह म ण धारण कर के म अयमा क कृपा से श ु नाश म समथ, अ धक बली एवं उ म बन जाऊं. (५) ये धीवानो रथकाराः कमारा ये मनी षणः. उप तीन् पण म ं वं सवान् कृ व भतो जनान्.. (६) हे पणम ण! तुम सभी मछली पकड़ने वाले, रथकार अथात् बढ़ई, लुहार और ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बु
जीवी जन को मेरी सेवा करने के लए मेरे चार ओर उप थत करो. (६) ये राजानो राजकृतः सूता ाम य ये. उप तीन् पण म ं वं सवान् कृ व भतो जनान्.. (७)
हे पणम ण! जो राजगण, राजा बनाने म समथ स चवगण, रथ हांकने वाले सूत और गांव के मु खया ह, उन सब को तू मेरी सेवा करने के लए मेरे चार ओर उप थत कर. (७) पण ऽ स तनूपानः सयो नव रो वीरेण मया. संव सर य तेजसा तेन ब ना म वा मणे.. (८) हे पणम ण! सोमलता के प से न मत होने के कारण तुम दे ह क र ा करने वाली हो. तुम श शा लनी और मुझ वीर के समान ज म वाली हो. सूय के समान तेज वनी तुझ पणम ण को म तेज ा त के लए बांधना चाहता ं. (८)
दे वता—अ
सू -६
थ
पुमान् पुंसः प रजातो ऽ थः ख दराद ध. स ह तु श ून् मामकान् यानहं े म ये च माम्.. (१) अ यंत श संप वृ पीपल से तथा गाय ी के सार से उ प सहयोग से न मत अ थ म ण धारण करने पर मेरे उन श ु का वनाश कर, जन से म े ष करता ं और जो मुझ से े ष करते ह. (१) तान थ नः शृणी ह श ून् वैबाधदोधतः. इ े ण वृ ना मेद म ेण व णेन च.. (२) हे ख दर वृ म उ प पीपल से न मत अ थम ण! तू मेरे श ु का पूण नाश कर दे . वृ का नाश करने वाले इं और व ण के साथ तेरी म ता है. (२)
प से
यथा थ नरभनो ऽ तमह यणवे. एवा ता सवा भङ् ध यानहं े म ये च माम्.. (३) हे म ण के उपादानकारण अ थ! तुम जस कार, ख दर वृ उ प ए हो, उसी कार मेरे सभी श ु का वनाश कर दो. (३)
के कोटर को भेद कर
यः सहमान र स सासहान इव ऋषभः. तेना थ वया वयं सप ना स हषीम ह.. (४) पीपल उसी कार सरे वृ
को परा जत करता आ बढ़ता है, जस कार बैल अपने
******ebook converter DEMO Watermarks*******
दप से अ य पशु को परा जत करता है. हे पीपल! तुम से न मत म ण को धारण करने वाले हम श ु का नाश कर. (४) सना वेनान् नऋ तमृ योः पाशैरमो यैः. अ थ श ून् मामकान् यानहं े म ये च माम्.. (५) हे अ थ! पाप क दे वी मृ यु के न छू टने वाले फंद से मेरे उन श ु से म े ष करता ं और जो मुझ से े ष करते ह. (५)
को बांधो, जन
यथा थ वान प यानारोहन् कृणुषे ऽ धरान्. एवा मे श ोमूधानं व वग् भ सह व च.. (६) हे अ थ! जस कार तुम सभी वन प तय अथात् वृ को नीचे छोड़ते ए ऊपर उठते हो, उसी कार मेरे श ु के शीश को सभी और से कुचलो और उन का वनाश कर दो. (६) ते ऽ धरा चः लव तां छ ा नौ रव ब धनात्. न वैबाध णु ानां पुनर त नवतनम्.. (७) तट के वृ से र सी के सहारे बंधी ई नाव खुलने के बाद जस कार कनारे को ा त न कर के नद क धारा के साथ नीचे क ओर बहती जाती है, उसी कार मेरे श ु नीचे को मुंह कर के नद के वाह म बह, य क ख दर के वृ म उ प पीपल के भाव म आए ए श ु का उ ार नह होता. (७) ैणान् नुदे मनसा च न े ोत णा. ैणान् वृ य शाखया थ य नुदामहे.. (८) मं
म ढ़ मान सक श और गंध के भाव ारा अपने श ु का उ चाटन करता ं. म से भा वत पीपल वृ क शाखा के ारा श ु का वनाश करता ं. (८)
सू -७
दे वता—ह रण आ द
ह रण य रघु यदो ऽ ध शीष ण भेषजम्. स े यं वषाणया वषूचीनमनीनशत्.. (१) तेज दौड़ने वाले काले ह रण के सर म जो स ग पी रोग नवारक ओष ध है, वह माता पता से आए ए य, कु , मरगी आ द का पूणतया नाश करे. (१) अनु वा ह रणो वृषा प तु भर मीत्. वषाणे व य गु पतं यद य े यं द.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे मृगशृंग! तु ह े ीय रोग का वनाश करने के लए म ने म ण के प म धारण कया है. इस रोगी के दय म जो रोग बसे ए ह, तुम उन का वनाश करो. (२) अदो यदवरोचते चतु प मव छ दः. तेना ते सव े यम े यो नाशयाम स.. (३) यह चार कोन वाला मृगचम चौकोरी चटाई के समान सुशो भत हो रहा है. हे रोगी! इस के ारा म तेरे य, कु आ द रोग का नाश करता ं. (३) अमू ये द व सुभगे वचृतौ नाम तारके. व े य य मु चतामधमं पाशमु मम्.. (४) आकाश म थत वचृत नामक दो तारे य, कु , मरगी आ द े ीय रोग का वनाश कर. (४) आप इद् वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः. आपो व य भेषजी ता वा मु च तु े यात्.. (५) जल ही ओष ध है. जल ही सब रोग का नाश करने वाला है. जल कसी एक रोग क नह , सम त रोग क ओष ध है. हे रोगी! जल तुझे य, कु , मरगी आ द े ीय रोग से छु ड़ाएं. (५) यदासुतेः यमाणायाः े यं वा ानशे. वेदाहं त थ भेषजं े यं नाशया म वत्.. (६) हे रोगी! अ का यथा व ध उपयोग न करने के कारण तेरे शरीर म जो य, कु , मरगी आ द े ीय रोग उ प हो गए ह, म च क सक उन क जौ आ द के प म ओष ध जानता ं. उस ओष ध के ारा म तेरे े ीय रोग का वनाश करता ं. (६) अपवासे न ाणामपवास उषसामुत. अपा मत् सव भूतमप े यमु छतु.. (७) तार के छपने के समय अथात् उषाकाल से पूव और उषाकाल के समय कए गए नान आ द न य कम के भाव से रोग का कारण र हो जाए. इस के प ात हमारे य, कु , मरगी आ द े ीय रोग न हो जाएं. (७)
सू -८
दे वता— म आ द व े दे व
आ यातु म ऋतु भः क पमानः संवेशयन् पृ थवीमु या भः. अथा म यं व णो वायुर नबृहद् रा ं संवे यं दधातु.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मृ यु से र ा करने म समथ और म वत् सब के उपकारी म दे वता अथात् सूय वसंत आ द ऋतु के ारा हमारी आयु को द घ करने म समथ ह . वे अपनी करण से पृ वी को ा त कर. सूय दे व के आगमन के प ात व ण, वायु और अ न हम शासन करने यो य वशाल रा य दान कराएं (१) धाता रा तः स वतेदं जुष ता म व ा त हय तु मे वचः. वे दे वीम द त शूरपु ां सजातानां म यमे ा यथासा न.. (२) सब के वधाता धाता दे व, दानशील अयमा और सब के ेरक स वता दे व मेरी ह व हण कर. इन के साथसाथ इं और व ा दे व भी मेरी तु तयां सुन. म वीर पु क माता अ द त का आ ान करता ं, जस से म अपने समान य म स मान पा सकूं. (२) वे सोमं स वतारं नमो भ व ाना द याँ अहमु र वे. अयम नद दायद् द घमेव सजातै र ो ऽ त ुव ः.. (३) म यजमान को े पद ा त करने के लए सोम का, स वता का तथा सम त अ द त पु का नम कारा मक मं के ारा आ ान करता ं. सब के आधारभूत अ न दे व अपनी द त बढ़ाएं. म अपने अनुकूलवत बंधु बांधव के साथ चरकाल तक े ता ा त क ं . (३) इहेदसाथ न परो गमाथेय गोपाः पु प तव आजत्. अ मै कामायोप का मनी व े वो दे वा उपसंय तु.. (४) हे का म नयो! तुम सब क या के समीप ही रहो. इस के सामने से र मत जाओ. माग क ेरणा दे ने वाले एवं पालन कता पूषा दे व तु ह ेरणा द. इस वर क इ छा पू त के लए व े दे व तुझ कामना करने वाली ी को उस के समीप जाने क ेरणा द. (४) सं वो मनां स सं ता समाकूतीनमाम स. अमी ये व ता थन तान् वः सं नमयाम स.. (५) हे हमारे वरोधी जनो! हम तु हारे च , कम और संक प को अपने अनुकूल बनाते ह. इन म जो नयम के व काम करने वाले ह , उ ह हम तु हारे सामने ही दं ड द. (५) अहं गृ णा म मनसा मनां स मम च मनु च े भरेत. मम वशेषु दया न वः कृणो म मम यातमनुव मान एत.. (६) हे मेरे वरोधी जनो! म अपने मन के ारा तुम सब के मन को और अपने च के ारा तुम सब के च को अपने वश म करता ं. आओ और तुम सब भी अपने दय को मेरे वश म करो. तुम सब भी मेरी इ छा के अनुसार मेरा अनुगमन करो और मेरे अनुकूल बनो. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -९
दे वता— ावा, पृ वी, व े दे व
कशफ य वशफ य ौ पता पृ थवी माता. यथा भच दे वा तथाप कृणुता पुनः.. (१) जो नाखून और खुर वाले बाघ आ द पशु ह, जो बना खुर वाले सप आ द जंतु ह तथा जो फटे ए खुर वाले गाय, बैल, भस आ द पशु ह उन का पता ुलोक है और माता पृ वी है. हे दे वो! इन व नकारी पशु और जीवजंतु को आप ने जस कार हमारे अ भमुख कया है, उसी कार इ ह हम से अलग करो. (१) अ े माणो अधारयन् तथा त मनुना कृतम्. कृणो म व व क धं मु काबह गवा मव.. (२) षत शरीर से र हत दे व ने अ भमत काय म आने वाले व न क शां त के लए अरलू वृ से बने दं ड को धारण कया है. मनु य क सृ करने वाले मनु ने भी यही कया था. बैल को जस कार जनन म असमथ बनाया जाता है, उसी कार म सूखे चमड़े क र सी से व न को न य कर रहा ं. (२) पश े सू े खृगलं तदा ब न त वेधसः. व युं शु मं काबवं व कृ व तु ब धुरः.. (३) पीले रंग के धागे जस कार कवच को धारण करते ह, उसी कार साधक अरलू म ण को अथात् अरलू वृ से बने डंडे को धारण करते ह. हमारे ारा धारण क ई अरलू म ण व यु, शोधक और कबरे रंग के ू र ा णय से संबं धत व न को समा त करे. (३) येना व यव रथ दे वा इवासुरमायया. शुनां क प रव द्षणो ब धुरा काबव य च.. (४) हे श ु को जीत कर यश क इ छा करने वाले मनु यो! जस कार दे वगण असुर क माया से मो हत थे, उसी कार तुम श ु ारा डाले गए व न से मो हत हो. जस कार बंदर कु को भगा दे ता है, उसी कार तु हारे ारा धारण कया आ खड् ग व न को र भगा दे . (४) ् यै ह वा भ या म ष य या म काबवम्. उदाशवो रथा इव शपथे भः स र यथ.. (५) हे म ण! म श ु ारा डाले गए व न को समा त करने के लए तुझे धारण करता ं. इसी कार म काबव नाम के व न को र करता ं. हे मनु यो! तुम दौड़ने के लए व तृत घोड़ वाले रथ के समान श ु ारा उ प व न से र हत हो कर अपने काय म लगो. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(५) एकशतं व क धा न व ता पृ थवीमनु. तेषां वाम उ जह म ण व क ध षणम्.. (६) हे म ण! धरती पर एक सौ एक व न ह. दे व ने उन क शां त के लए तुझे धारण कया था. हे व न को र करने वाली म ण! म भी तुझे उसी उ े य से धारण करता ं. (६)
सू -१०
दे वता—इ का
थमा ह ु वास सा धेनुरभवद् यमे. सा नः पय वती हामु रामु रां समाम्.. (१) सृ के आ द म उ प एका का उषा ने अंधकार र कर दया था. यह हमारे पूवज के लए ध दे ने वाली ई थी. यह हमारे लए भी ध दे ने वाली हो और अ भमत फल दान करे. (१) यां दे वाः तन द त रा धेनुमुपायतीम्. संव सर य या प नी सा नो अ तु सुम ली.. (२) जस एका का संबंधी रा को धेनु के प म समीप आती ई दे ख कर ह व का भोग दे ने वाले दे वगण, उस क शंसा करते ह. वह एका का रा संव सर क प नी है. वह हमारे लए क याण करने वाली हो. (२) संव सर य तमां यां वा रा युपा महे. सा न आयु मत जां राय पोषेण सं सृज.. (३) हे रा ! तुम संव सर क तमा हो. हम तु हारी उपासना करते ह. तुम हमारे पु , पौ आ द को लंबी आयु वाला बनाओ तथा हम गाय आ द धन से संप करो. (३) इयमेव सा या थमा ौ छदा वतरासु चर त व ा. महा तो अ यां म हमानो अ तवधू जगाय नवग ज न ी.. (४) यह आज क एका क ल णा वह थम उ प उषा है, जस ने सृ के आरंभ म उ प हो कर अंधकार का वनाश कया था. वही उषा इन दखाई दे ने वाली अ य उषा म अनुगत हो कर उ दत होती है. इस उषा म असी मत म हमा है. इस म सूय, अ न और सोम का नवास है. सूय क प नी, यह उषा ा णय को काश दे ती ई सब से उ म रहे. (४) वान प या ावाणो घोषम त ह व कृ व तः प रव सरीणम्. एका के सु जसः सुवीरा वयं याम पतयो रयीणाम्.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे एका क वृ से बने ऊखल! मूसल आ द ने तथा प थर ने संव सर म तैयार होने वाले जौ, धान आ द कूटतेपीटते ए श द कया है. तु हारी कृपा से हम उ म पु , पौ , श शाली सेवक तथा धन के वामी बन. (५) इडाया पदं घृतवत् सरीसृपं जातवेदः त ह ा गृभाय. ये ा याः पशवो व पा तेषां स तानां म य र तर तु.. (६) हे जातवेद अ न! तुम ह हण करो. तु हारी कृपा से ध, घी दे ने वाली गाएं, तेज दौड़ने वाले घोड़े तथा गांव म होने वाले बकरी, भेड़, गधा, ऊंट आ द नाना आकार वाले सात कार के पशु मुझ से ेम रख. (६) आ मा पु े च पोषे च रा दे वानां सुमतौ याम. पूणा दव परा पत सुपूणा पुनरा पत. सवान् य ा संभु तीषमूज न आ भर.. (७) हे रा ! मुझे समृ धन और पु , पौ आ द का वामी बनाओ. तु हारी कृपा से म दे व का भी कृपापा बनूं. हे दव अथात् हवन के साधन पा ! तू ह व से पूण हो कर दे व के पास जा और वहां से हमारे मन चाहे फल ले कर हमारे समीप आ. तू ह व से सभी य का पालन करता आ दे व के पास से अ और बल ला कर हम दान कर. (७) आयमग संव सरः प तरेका के तव. सा न आयु मत जां राय पोषेण सं सृज.. (८) हे एका का! यह संव सर आ गया है. यह तेरा प त है. तू अपने प त संव सर के स हत हमारी संतान को अ धक आयु वाली करती ई हम धन संप बना. (८) ऋतून् यज ऋतुपतीनातवानुत हायनान्. समाः संव सरान् मासान् भूत य पतये यजे.. (९) हे एका का! म वसंत आ द ऋतु को और उन के अ ध ाता दे व को दय के ारा स करता ं. म ऋतु संबंधी, दनरात संबंधी और बारह मास से संबं धत य करता ं. म चराचर ा णय के वामी काल के न म भी तेरे ारा य करता ं. (९) ऋतु य ् वातवे यो मा यः संव सरे यः. धा े वधा े समृधे भूत य पतये यजे.. (१०) हे एका का! म वसंत आ द ऋतु , ऋतु संबंधी दनरात, बारह मास , संव सर के धाता वधाता दे व और सभी चराचर ा णय के वामी काल के न म तेरा य करता ं. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इडया जु तो वयं दे वान् घृतवता यजे. गृहानलु यतो वयं सं वशेमोप गोमतः.. (११) हम गाय के घी से यु ह व के ारा य करते ए दे व को स करते ह. उन दे व क कृपा से हम सभी अ भल षत व तु एवं अनेक गाय से यु घर को ा त कर के उन म सुख से नवास कर. (११) एका का तपसा त यमाना जजान गभ म हमान म म्. तेन दे वा सह त श ून् ह ता द यूनामभव छचीप तः.. (१२) सब क वा मनी एका का ने तप या के ारा म हमा यु इं को ज म दया. इं क सहायता से दे व ने श ु को परा जत कया. शची दे वी के प त वह इं , द यु जन के वनाशक ए. (१२) इ पु े सोमपु े हता स जापतेः. कामान माकं पूरय त गृह्णा ह नो ह वः.. (१३) हे इं और सोम क माता एका का! तू जाप त क पु ी है. तू हमारे ारा द को वीकार करती ई हम सतान तथा पशु से संप बना. (१३)
सू -११
ईहव
दे वता—इं , अ न आ द
मु चा म वा ह वषा जीवनाय कम ातय मा त राजय मात्. ा हज ाह य ेतदे नं त या इ ा नी मुमु मेनम्.. (१) हे ा ध त मनु य! म ह व के अ ारा तुझे उस य मा रोग से मु करता ं जो मेरे जाने बना ही तेरे शरीर म वेश कर गया है. राजा सोम को जस राजय मा ने गृहीत कया था, द घ जीवन के लए उस से भी म तुझे मु करता ं. हे इं और अ न! जस पशा चनी ने इस बालक को पकड़ लया है, आप दोन उस से इस बालक को छु ड़ाइए. (१) य द तायुय द वा परेतो य द मृ योर तकं नीत एव. तमा हरा म नऋते प थाद पाशमेनं शतशारदाय.. (२) यह ा ध त मनु य चाहे ीण आयु वाला हो गया हो अथवा इस लोक को छोड़ कर मृ यु के दे व यमराज के समीप चला गया हो अथात् चाहे उस क च क सा असंभव हो-इस कार के पु ष को भी म मृ यु के पास से वापस ला कर सौ वष जी वत रहने के लए श शाली बनाता ं. (२) सह ा ेण शतवीयण शतायुषा ह वषाहाषमेनम्. इ ो यथैनं शरदो नया य त व य रत य पारम्.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो ह व दे खने क श दान करती है तथा जस से सुनने आ द क सैकड़ श यां ा त होती ह, उस ह व क श से म इस रोगी को मृ यु से लौटा लाया ं. उस ह व म सौ वष जीने का फल दान करने क श है. म ह व के ारा इं को इस कारण स करता ं क ये इस पु ष को सैकड़ वष तक क आयु का वनाश करने वाले पाप से छु टकारा दलाएं. इस कार यह सौ वष तक जी वत रह सके. (३) शतं जीव शरदो वधमानः शतं हेम ता छतमु वस तान्. शतं त इ ो अ नः स वता बृह प तः शतायुषा ह वषाहाषमेनम्.. (४) हे रोग से मु पु ष! तुम त दन वृ ा त करते ए सौ शरद ऋतु , सौ हेमंत ऋतु और सौ वसंत ऋतु तक जी वत रहो. इं , अ न, स वता और बृह प त तु ह सौ वष क आयु दान कर. सैकड़ वष क आयु दान करने वाले ह व के ारा म इसे मृ यु के पास से लौटा लाया ं. (४) वशतं ाणापानावनड् वाहा वव जम्. १ ये य तु मृ यवो याना रतरा छतम्.. (५) हे ाण और अपान वायु! जस कार वृषभ अपनी पशुशाला म वेश करता है, उसी कार तुम इस य रोग से त रोगी के शरीर म वेश करो. इस राजय मा के अ त र , जो मृ यु के हेतु सैकड़ रोग कहे गए ह, वे भी इस रोगी से वमुख हो जाएं. (५) इहैव तं ाणापानौ माप गात मतो युवम्. शरीरम या ा न जरसे वहतं पुनः.. (६) हे ाण और अपान वायु! तुम इस के शरीर म ही रहो, इस के शरीर से अकाल म ही मत नकलो. इस रोगी के शरीर के ह त, चरण आ द अंग को तुम वृ ाव था तक मत यागो. (६) जरायै वा प र ददा म जरायै न धुवा म वा. जरा वा भ ा ने १ ये य तु मृ यवो याना रतरा छतम्.. (७) हे रोग मु पु ष! म तुझे वृ ाव था को दे ता ं अथात् तुझे वृ ाव था तक जी वत रहने वाला बनाता ं. म वृ ाव था तक रोग से तेरी र ा करता ं. वह वृ ाव था तुझे क याण ा त कराए. (७) अ भ वा ज रमा हत गामु ण मव र वा. य वा मृ युर यध जायमानं सुपाशया. तं ते स य य ह ता यामुदमु चद् बृह प तः.. (८) हे रोग मु पु ष! जस कार गभाधान म समथ बैल को र सी से बांधा जाता है, उसी ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कार म तुझे वृ ाव था से बांधता ं. अथात् तुझे वृ ाव था तक जी वत रहने वाला बनाता ं. तुझे ज म लेते ही अकाल म मृ यु ने अपने फंदे म कस लया है. उस फंदे को बृह प त ा के हाथ के ारा कटवा द. (८)
सू -१२
दे वता—शाला, वा तो प त
इहैव ुवां न मनो म शालां ेमे त ा त घृतमु माणा. तां वा शाले सववीराः सुवीरा अ र वीरा उप सं चरेम.. (१) म इसी दे श म खंभ आ द के कारण थर रहने वाली शाला बनाता ं. वह शाला मुझे अ भमत फल दे ती ई कुशलतापूवक थर रहे. हे शाला! म अनेक पु पौ , शोभन गुण वाली संतान एवं रोग आ द बाधा से हीन प रवार वाला हो कर तुझ म नवास क ं . (१) इहैव ुवा त त शालेऽ ावती गोमती सूनृतावती. ऊज वती घृतवती पय व यु य व महते सौभगाय.. (२) हे शाला! तू ब त से घोड़ , गाय , य बालक क मधुर वाणी, पया त अ , घृत एवं ध से पूण हो कर इसी दे श म थर हो और हमारे महान क याण के लए य नशील बन. (२) ध य स शाले बृह छ दाः पू तधा या. आ वा व सो गमेदा कुमार आ धेनवः सायमा प दमानाः.. (३) हे शाला! तू ब त से भोग को धारण करने वाली है. अनेक वेद मं से और पके होने के कारण सुगं धत बने व वध कार के अ से यु तुझ म बछड़े और बालक आएं तथा गाएं सं या काल म थन से ध टपकाती ई आएं. (३) इमां शालां स वता वायु र ो बृह प त न मनोतु जानन्. उ तूदना ् म तो घृतेन भगो नो राजा न कृ ष तनोतु.. (४) इं और बृह प त खंभ को था पत कर के इस शाला का नमाण कर. म त् इस शाला को जल से स च तथा भग दे व इस के आसपास क भू म को कृ ष के यो य बनाएं. (४) मान य प न शरणा योना दे वी दे वे भ न मता य े. तृणं वसाना सुमना अस वमथा म यं सहवीरं र य दाः.. (५) हे शाला! तू धा य आ द का पोषण करने वाली, सुखकरी, र का एवं तेज वनी है. दे व ने सृ के आरंभ म तेरा नमाण कया था. तनक से ढक ई तू उ म आशा वाली हो कर हम पु , पौ आ द से यु धन दान कर. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋतेन थूणाम ध रोह वंशो ो वराज प वृङ् व श ून्. मा ते रष ुपस ारो गृहाणां शाले शतं जीवेम शरदः सववीराः.. (६) हे बांस! तू बाधाहीन प से इस शाला के खंभे के प म खड़ा रह तथा श शाली बन कर वराजता आ हमारे श ु को यहां से र भगा. हे शाला! तेरे आवास म नवास करने वाल क हसा न हो. हम अ भल षत पु और पौ से यु हो कर सौ वष तक जी वत रह. (६) एमां कुमार त ण आ व सो जगता सह. एमां प र ुतः कु भ आ द नः कलशैरगुः.. (७) युवक पु और गाय के स हत बछड़े इस शाला म आएं. टपकने वाले शहद तथा दही के कलश भी इस शाला म आएं. (७) पूण ना र भर कु भमेतं घृत य धाराममृतेन संभृताम्. इमां पातॄनमृतेना समङ् धी ापूतम भ र ा येनाम्.. (८) हे ी! तू अमृत के समान जल से यु शहद, घी आ द क धारा बहाती ई जल से भरे घड़े को ले कर इस शाला म आ तथा इस घट को अमृत के समान जल से पूण कर. इस शाला म कए जाने वाले ौत और मात कम चोर , अ न आ द से हमारी र ा कर. (८) इमा आपः भरा यय मा य मनाशनीः. गृहानुप सीदा यमृतेन सहा नना.. (९) म य मा रोग से र हत और अपने सेवक के य मा रोग का वनाश करने वाले जल से पूण कलश को शाला म लाता ं. इस के साथ ही म कभी न बुझने वाली अ न को भी लाता ं. (९)
सू -१३
दे वता— सधु, जल, व ण
यददः सं यतीरहावनदता हते. त मादा न ो ३ नाम थ ता वो नामा न स धवः.. (१) हे जल! मेघ के ारा ता ड़त हो कर इधरउधर गमन करने और नाद करने के कारण तु हारा नाम नद आ है. हे बहने वाले जल! तु हारे उदक आ द अ य नाम भी इसी कार साथक ह. (१) यत् े षता व णेना छ भं समव गत. तदा ो द ो वो यती त मादापो अनु न.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
राजा व ण के ारा े रत होने के तुरंत बाद तुम एक हो कर नृ य करने लगे थे. उस समय तु ह इं ा त ए थे. इस कारण तु हारा नाम आप आ. (२) अपकामं य दमाना अवीवरत वो ह कम्. इ ो वः श भदवी त माद् वानाम वो हतम्.. (३) बना कसी कामना के बहने वाले तु हारा वरण इं ने अपनी श ड़ा करने वाले जल! इस कारण तु हारा नाम वा र पड़ा. (३)
से कया था. हे
एको वो दे वो ऽ य त त् य दमाना यथावशम्. उदा नषुमही र त त मा दकमु यते.. (४) अकेले इं ने इ छानुसार इधरउधर बहने वाले तु ह त त कया था. इं से स मा नत हो कर तुम ने अपने को महान समझ लया. इस कारण तु ह उदक कहा जाता है. (४) आपो भ ा घृत मदाप आस नीषोमौ ब याप इत् ताः. ती ो रसो मधुपृचामरंगम आ मा ाणेन सह वचसा गमेत्.. (५) क याण करने वाला जल ही घृत आ. अ न म हवन कया आ घृत ही जल बन जाता है. जल ही अ न और सोम को धारण करता है. इस कार के जल का मधुर रस कभी ीण न होने वाले बल के साथ मुझे ा त हो. (५) आ दत् प या युत वा शृणो या मा घोषो ग छ त वाङ् मासाम्. म ये भेजानो अमृत य त ह हर यवणा अतृपं यदा वः.. (६) इस के प ात म दे खता ं और सुनता ं क बोले जाते ए श द मेरी वाणी को ा त हो रहे ह. म क पना करता ं क उन जल के आने से ही मुझे अमृत ा त आ है. हे सुनहरे रंग वाले जलो! तु हारे सेवन से म तृ त हो गया ं. (६) इदं व आपो दयमयं व स ऋतावरीः. इहे थमेत श वरीय द े ं वेशया म वः.. (७) हे जलो! यह सोना तु हारा दय है और यह मेढक तु हारा बछड़ा है. हे अ भमत फल दे ने म समथ जलो! इस खोदे गए थान म मेढक के ऊपर फक ई अबका घास उग आती है, उसी कार तुम इस म थर वाह वाले बनो. म इस खोदे गए थान म तु ह व कराता ं. (७)
सू -१४
दे वता—गो , अयमा आ द
सं वो गो ेन सुषदा सं र या सं सुभू या. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अहजात य य ाम तेना वः सं सृजाम स.. (१) हे गायो! म तु ह सुखपूण गोशाला से यु करता ं तथा तु ह आहार करता ं. म तु ह पु , पौ आ द संतान से यु करता ं. (१)
पी धन दान
सं वः सृज वयमा सं पूषा सं बृह प तः. स म ो यो धन यो म य पु यत यद् वसु.. (२) हे गायो! अयमा, उषा एवं धन जीतने वाले इं तु ह उ प अपने ध, घी आ द धन से मुझे पु करो. (२)
कर. इस के प ात तुम
संज माना अ ब युषीर मन् गो े करी षणीः. ब तीः सो यं म वनमीवा उपेतन.. (३) हे गायो! मेरी इस गोशाला म तुम पु , पौ आ द संतान से यु तथा चोर, बाघ आ द के भय से र हत हो कर नवास करो. गोबर दे ने वाली तथा रोग र हत और अमृत के समान ध धारण करने वाली तुम मुझे ा त होओ. (३) इहैव गाव एतनेहो शकेव पु यत. इहैवोत जाय वं म य सं ानम तु वः.. (४) हे गायो! तुम मेरी गोशाला म आओ. म खी जस कार संतान वृ करती ई, ण भर म अग णत हो जाती है, उसी कार तुम भी अ धक संतान वाली बनो. तुम इसी गोशाला म पु पौ को ज म दो और मुझ साधक के त ेम रखो. (४) शवो वो गो ो भवतु शा रशाकेव पु यत. इहैवोत जाय वं मया वः सं सृजाम स.. (५) हे गायो! तु हारे रहने का थान सुखमय हो. तुम ण म हजार के प म बढ़ने वाले शा रशाक जीव के समान मेरी पशुशाला म ही समृ बनो. तुम यह संतान उ प करो. म तु ह अपने से यु करता ं. (५) मया गावो गोप तना सच वमयं वो गो इहं पोष य णुः. राय पोषेण ब ला भव तीज वा जीव ती प वः सदे म.. (६) हे गायो! तुम मुझ गो वामी क गोशाला म आओ. यह गोशाला तु हारा पोषण करने वाली है. चारे पी धन के कारण अन गनत होती ई तुम चरकाल तक मुझ चरजीवी के साथ रहो. (६)
सू -१५
दे वता—इं , अ न
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ महं व णजं चोदया म स न ऐतु पुरएता नो अ तु. नूद रा त प रप थनं मृगं स ईशानो धनदा अ तु म म्.. (१) य करने वाला म इं को वा ण य करने वाला समझ कर तु त करता ं. वे इं यहां आएं और मेरे स मुख ह . इं मेरे वा ण य म बाधा प ंचाने वाले श ु तथा माग रोकने वाले चोर और बाघ क हसा करते ए अ सर ह तथा मुझ ापारी को धन दे ने वाले बन. (१) ये प थानो बहवो दे वयाना अ तरा ावापृ थवी संचर त. ते मा जुष तां पयसा घृतेन यथा वा धनमाहरा ण.. (२) ापार के जो ब त से माग ह और धरती तथा आकाश के म य म लोग जन माग पर गमन करते ह, वे माग घी, ध से हमारी सेवा कर, जस से हम ापार कर के लाभ स हत मूल धन ले कर अपने घर आ सक. (२) इ मेना न इ छमानो घृतेन जुहो म ह ं तरसे बलाय. यावद शे णा व दमान इमां धयं शतसेयाय दे वीम्.. (३) हे अ न! ापार से लाभ क कामना करता आ म शी गमन क श पाने के न म घी के साथ ह क आ त दे ता ं. म मं से तु हारी तु त करता आ अपनी वहार कुशल बु को असं य धन वाला होने के लए होम म लगाता ं. (३) इमाम ने शर ण मीमृषो नो यम वानमगाम रम्. शुनं नो अ तु पणो व य तपणः फ लनं मा कृणोतु. इदं ह ं सं वदानौ जुषेथां शनुं नो अ तु च रतमु थतं च.. (४) हे अ न! हम से र तक चलने से जो हसा ई है और हमारे त का लोप आ है, उसे मा करो. ापार क व तु का य और व य दोन ही मुझे लाभकारी ह . हे इं और अ न! तुम एकमत हो कर इस ह को वीकार करो. तुम दोन क कृपा से मेरा य व य और उस से लाभ के प म ा त धन मेरे लए सुखकारी हो. (४) येन धनेन पणं चरा म धनेन दे वा धन म छमानः. त मे भूयो भवतु मा कनीयो ऽ ने सात नो दे वान् ह वषा न षेध.. (५) हे दे वो! जस मूल धन से लाभ पी धन क इ छा करता आ म ापार करता ं, वह मेरे लए सुखकारी हो. हे अ न! इस हवन कए जाते ए ह से लाभ म बाधा डालने वाले दे व को संतु कर के रोको. हे दे वो, तु हारे भाव से मेरा धन बढ़े , कम न हो. (५) येन धनेन पणं चरा म धनेन दे वा धन म छमानः. त मन् म इ ो चमा दधातु जाप तः स वता सोमो अ नः.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस मूल धन से म लाभ पी धन क इ छा करता आ ापार करता ,ं इं , स वता, सोम, जाप त और अ न दे व मेरा मन उस धन क ओर े रत कर. (६) उप वा नमसा वयं होतव ानर तुमः. स नः जा वा मसु गोषु ाणेषु जागृ ह.. (७) हे दे व का आ ान करने वाले अ न दे व! हम ह ले कर तु हारी तु त करते ह. तुम हमारे पु , पौ , गाय और ाण क र ा के लए सावधान रहो. (७) व ाहा ते सद म रेमा ायेव त ते जातवेदः. राय पोषेण स मषा मद तो मा ते अ ने तवेशा रषाम.. (८) हे जातवेद अ न! हमारे घर म न य नवास करने वाले तु ह हम त दन उसी कार ह व दे ते ह, जस कार हम अपने घर म रहने वाले घोड़े को समयसमय पर घास आ द खलाते ह. हे अ न! तु हारे सेवक हम धन और अ क समृ से स होते ए कभी न न ह . (८)
सू -१६
दे वता—इं , अ न
ातर नं ात र ं हवामहे ात म ाव णा ातर ना. ातभगं पूषणं ण प त ातः सोममुत ं हवामहे.. (१) हम श और बु उषा, बृह प त, सोम और
ा त करने के न म ातःकाल अ न, इं , म , व ण, भग, का आ ान करते ह. (१)
ात जतं भगमु ं हवामहे वयं पु म दतेय वधता. आ द् यं म यमान तुर द् राजा चद् यं भगं भ ी याह.. (२) जो आ द य वषा आ द के ारा सब के धारण कता और पोषण करने वाले ह. द र भी ज ह अपने अ भमत फल का साधन जानता आ पूजा करता है तथा राजा भी ज ह पूजने का इ छु क रहता है, हम ातःकाल उन अ द त पु एवं अपरा जत श वाले सूय का आ ान करते ह. (२) भग णेतभग स यराधो भगेमां धयमुदवा दद ः. भग णो जनय गो भर ैभग नृ भनृव तः याम.. (३) हे सूय! तुम सारे जगत् के नेता हो. तु हारा धन कभी न नह होता. हमारी तु त को तुम सफल करो. हे भग! हम गाय और घोड़ से संप करो. हम पु , पौ , सेवक आ द मनु य वाले बन. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
उतेदान भगव तः यामोत प व उत म ये अ ाम्. उतो दतौ मघव सूय य वयं दे वानां सुमतौ याम.. (४) इस कम का अनु ान करने के समय हम भग दे व क कृपा पा कर धन और सौभा य वाले रह. हे इं ! हम ातःकाल, म या , सं या के समय सूय, अ न आ द दे व क कृपा ा त करते रह. (४) भग एव भगवाँ अ तु दे व तेना वयं भगव तः याम. तं वा भग सव इ जोहवी म स नो भग पुरएता भवेह.. (५) भग दे व ही धनवान ह. उन क कृपा से हम धन के वामी ह. हे भग! इस कार के तु ह सभी लोग बुलाते ह. इस ापार म तुम हमारे आगे चलने वाले बनो. (५) सम वरायोषसो नम त द ध ावेव शुचये पदाय. अवाचीनं वसु वदं भगं मे रथ मवा ा वा जन आ वह तु.. (६) जस कार सवार के पीठ पर बैठ जाने के बाद घोड़ा चलने के लए तैयार हो जाता है, उसी कार उषा दे वी धन दे ने वाले भग दे व को मेरे य म लाने के लए तुत ह . तेजी से दौड़ने वाले घोड़े जस कार रथ को ले जाते ह, उसी कार उषा दे वी भग दे व को मेरे पास ले आएं. (६) अ ावतीग मतीन उपासो वीरवतीः सदमु छ तु भ ाः. घृतं हाना व तः पीता यूयं पात व त भः सदा नः.. (७) हे उषा दे वी! ब त से अ , गाय , पु पौ आ द से यु एवं क याण का रणी बन कर सदा हमारे लए उ दत ह . हे उषा दे वी! तुम जल दान करती ई तथा सम त गुण से यु हो कर अपने अ वनाशी धन से हमारी सदा र ा करो. (७)
दे वता—सीता
सू -१७ सीरा यु त कवयो युगा व त वते पृथक्. धीरा दे वेषु सु नयौ.. (१)
बु मान लोग बैल को हल म जोतते ह. दे व को सुखकर अ बैल के कंध पर जुआ रखते ह. (१)
ा त क इ छा से वे
युन सीरा व युगा तनोत कृते योनौ वपतेह बीजम्. वराजः ु ः सभरा अस ो नेद य इत् सृ यः प वमा यवन्.. (२) हे कसानो! हल को जु
से यु
करो और जु
को बैल के कंध पर था पत करो.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अंकुर उगने यो य इस जुते ए खेत म गे ं, जौ आ द बीज को बोओ. हमारे अ के पौधे दान के भार वाले ह . शी ही वे पौधे पक कर दरांती का पश पाने यो य हो जाएं. (२) ला लं पवीरवत् सुशीमं सोमस स . उ दद् वपतु गाम व थावद् रथवाहनं पीबर च फ म्.. (३) लोहे के फाल वाला हल कृ ष यो य खेत को सुख दे ता है. गे ं, जौ आ द धा य क उ प का कारण होने से यह हल सोमयाग का कता है. हल का भाग फाल भू म के भीतर रह कर ग त करता है. यह हल गाय आ द पशु क समृ का कारण बने. (३) इ ः सीतां न गृहणातु ् तां पूषा भ र तु. सा नः पय वती हामु रामु रां समाम्.. (४) इं हल ारा खेत म बनाई गई रेखा अथात् कूंड़ को हण कर तथा पूषा दे व उस क र ा कर. हल से जुती ई भू म हम अ भमत फल दे ने वाली बन कर सभी वष म जौ, गे ं आ द अ दे . (४) शुनं सुफाला व तुद तु भू म शुनं क नाशा अनु य तु वाहान्. शुनासीरा ह वषा तोशमाना सु प पला ओषधीः कतम मै.. (५) सुंदर फाल अथात् हल के लोहे वाले भाग हम सुख दे ते ए भू म को जोत. कसान हम सुख दे ते ए बैल के पीछे चल. हे सूय और वायु! तुम हमारे ारा दए गए ह व से संतु होते ए इस यजमान के लए जौ, गे ं आ द के पौध को शोभन बा लय से यु करो. (५) शुनं वाहाः शुनं नरः कृषतु ला लम्. शुनं वर ा ब य तां शुनम ामु द य.. (६) बैल और कसान सुखपूवक हल जोत. हल सुखपूवक धरती को फाड़े. र सयां सुखपूवक बांधी जाएं. हे शुनः अथात् वायु दे व! तुम बैल के हांकने के लए यु होने वाले चाबुक को सुखपूवक ेरणा दो. (६) शुनासीरेह म मे जुषेथाम्. यद् द व च थुः पय तेनेमामुप स चतम्.. (७) हे सूय और वायु दे व! तुम इस खेत म मेरा ह व हण करो. सूय और वायु दोन ने आकाश म बादल के प म जो जल प ंचाया है, उस से वषा के प म इस जुती ई भू म को स च . (७) सीते व दामहे वावाची सुभगे भव. यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भुवः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे जुती ई भू म! हम तुझे नम कार करते ह. हे सुंदर भा य वाली भू म! तू हमारे अनुकूल बन. तू जस कार से हमारे अनुकूल मन वाली हो, उसी कार हम शोभन फल दे ने वाली हो जा. (८) घृतेन सीता मधुना सम ा व ैदवैरनुमता म ः. सा नः सीते पयसा याववृ वोज वती घृतवत् प वमाना.. (९) हे जुती ई भू म! तू मधुर वाद वाले जल से भली कार सची ई हो कर तथा व े दे व और म त ारा अनुम त पा कर जल स हत हमारे सामने आ. तू श संप हो कर घी से मले ए अ को स चने वाली है. (९)
दे वता—वन प त
सू -१८ इमां खना योष ध वी धां बलव माम्. यया सप न बाधते यया सं व दते प तम्.. (१)
पाठा नाम क इस लता पी जड़ीबूट को म खोदता ं जो सभी जड़ीबू टय से अ धक बलवान है. इस जड़ीबूट के ारा सौत को बाधा प ंचती है तथा इसे धारण करने वाली ी प त को ा त करती है. (१) उ ानपण सुभगे दे वजूते सह व त. सप न मे परा णुद प त मे केवलं कृ ध.. (२) हे ऊपर क ओर मुख वाले प से यु जड़ीबूट पाठा! तू इं आ द दे व क कृपा से मुझे ा त ई है. तू मेरी सौत को परा जत करने वाली है. तू मेरी सौत को मेरे प त से र ले जा और मेरे प त को केवल मेरा बना. (२) न ह ते नाम ज ाह नो अ मन् रमसे पतौ. परामेव परावतं सप न गमयाम स.. (३) हे सौत! म तेरा नाम कभी नह लेना चाहती. मेरे प त के साथ तू रमण मत कर. म तुझे ब त र भेज रही ं. (३) उ राहमु र उ रे
रा यः. अधः सप नी या ममाधरा साधरा यः.. (४)
हे सभी जड़ीबू टय म े पाठा! म अ धक े बनूं. लोक म जो अ धक े यां ह, म उन से भी अ धक े बनूं. मेरी जो सौत है, वह अ त नीच ना रय से भी नीच बने. (४) अहम म सहमानाथो वम स सास हः. उभे सह वती भू वा सप न मे सहावहै.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे पाठा नामक जड़ीबूट ! म तेरी कृपा से अपनी सौत को परा जत करने वाली बनूं और तू भी श ु का तर कार करने म समथ हो. इस कार हम दोन श ु को परा जत करने वाली बन. म अपनी सौत को परा जत क ं . (५) अ भ ते ऽ धां सहमानामुप ते ऽ धां सहीयसीम्. मामुन ते मनो व सं गौ रव धावतु पथा वा रव धावतु.. (६) हे सौत! म तेरे पलंग के चार ओर तथा पलंग के ऊपर इस परा जत करने वाली पाठा नाम क जड़ीबूट को रखती ं. थन से ध टपकाती ई गाय जस कार बछड़े क ओर दौड़ती है तथा जल जस कार नीचे क ओर बहता है, उसी कार तू मेरे पीछे पीछे चल. (६)
सू -१९
दे वता—इं
सं शतं म इदं सं शतं वीय १ बलम्. सं शतं मजरम तु ज णुयषाम म पुरो हतः.. (१) मेरा ा ण व जा त से प तत करने वाले दोष का वनाश करने म बल हो. मं के भाव से उ प मेरी श और मेरा शारी रक बल अमोघ अथात् कभी असफल न होने वाला बने. म जस का पुरो हत ,ं वह य जा त जय ा त करने वाली तथा वृ ाव था से र हत बने. (१) समहमेषां रा ं या म समोजो वीय १ बलम्. वृ ा म श ूणां बा ननेन ह वषाहम्.. (२) म जस राजा के रा य म नवास करता ,ं उस रा य को म समृ बनाता ं. म अपने मं के भाव से अपने राजा को शारी रक श तथा हाथी, घोड़ा आ द से यु बनाता ं. अ न म हवन कए जाते ए इस ह व के ारा म अपने राजा के श ु क भुजा को छ भ करता ं. (२) नीचैः प तामधरे भव तु ये नः सू र मघवानं पृत यान्. णा म णा म ानु या म वानहम्.. (३) हमारे राजा काय और अकाय को जानने वाले तथा अ धक धन वाले ह. जो श ु हमारे ऐसे राजा को परा जत करने क इ छा से सेना एक करते ह, हमारे राजा के वे श ु नीचे क ओर मुंह कर के गर और पैर से कुचले जाएं. इस योजन क स के न म म असफल न होने वाले मं के ारा अपने राजा के श ु को ीण करता ं और अपने राजा को वजय दलाता ं. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ती णीयांसः परशोर ने ती णतरा उत. इ य व ात् ती णीयांसो येषाम म पुरो हतः.. (४) म जन राजा का पुरो हत ं, वे तेज धार वाले फरसे से भी अ धक श ु के छे दन म समथ ह तथा अ न से अ धक श ु सेना को भ म करने वाले बन. वे राजा इं के व से भी अ धक ती ण बन अथात् उन क ग त कह के नह . (४) एषामहमायुधा सं या येषां रा ं सुवीरं वधया म. एषां मजरम तु ज वे ३ षां च ं व े ऽ व तु दे वाः.. (५) म अपने राजा के आयुध को तेज धार वाला बनाता ं तथा इन के रा य को शोभन वीर से यु करता ं. इन का शारी रक बल, बुढ़ापे से र हत तथा श ु को जीतने वाला हो. इन के यु ो मुख मन क सभी दे व र ा करे. (५) उ ष तां मघवन् वा जना युद ् वीराणां जयतामेतु घोषः. पृथग् घोषा उलुलयः केतुम त उद रताम्. दे वा इ ये ा म तो य तु सेनया.. (६) हे इं ! तु हारी कृपा से हमारी हा थय , घोड़ और रथ वाली सेना यु म ह षत रहे. वजय ा त करने वाले हमारे वीर का जयघोष श ु के कान को बहरा बनाता आ उठे . सब से पृथक् एवं सभी के ारा जाने गए जयघोष फैल. इं जन म सब से बड़े ह, ऐसे म त् यु म हमारी सहायता करने के लए अपनी सेना ले कर आएं. (६) े ा जयता नर उ ा वः स तु बाहवः. त ती णेषवो ऽ बलध वनो हतो ायुधा अबलानु बाहवः.. (७) हे सै नको! यु भू म क ओर बढ़ो तथा दे व क कृपा से श ु पर वजय ा त करो. तेज धार वाले आयुध को धारण करने वाली तु हारी भुजाएं श शा लनी बन और श र हत आयुध को धारण करने वाले तथा बलहीन श ु का वनाश कर. (७) अवसृ ा परा पत शर े सं शते. जया म ान् प व ज ेषां वरंवरं मामीषां मो च क न.. (८) हे बाण! तू मं के ारा ती ण बनाया गया है तथा श ु के वनाश म कुशल है. तू हमारे धनुष से छू ट कर श ु सेना क ओर जा कर गर और उन के शरीर म वेश कर के उन क उ म सेना का वनाश कर. श ु सै नक म से कोई भी बचने न पाए. (८)
सू -२०
दे वता—अ न
अयं ते यो नऋ वयो यतो जातो अरोचथाः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं जान न आ रोहाधा नो वधया र यम्.. (१) हे अ न दे व! यह अर ण अथवा यजमान तेरी उ प का कारण बने. जस से उ प हो कर तुम द त होते हो, अपने उस उ प कारण को जानते ए उस म वेश करो. इस के प ात तुम हमारे धन क वृ करो. (१) अ ने अ छा वदे ह नः यङ् नः सुमना भव. णो य छ वशां पते धनदा अ स न वम्.. (२) हे अ न दे व! हमारे सामने हो कर हम ा त होने वाले फल को य कहो तथा हमारे सामने आ कर स मन वाले बनो. हे वै ानर प से जापालक अ न! हम अपे त धन दान करो, य क तुम ही हमारे धनदाता हो. (२) णो य छ वयमा भगः बृह प तः. दे वीः ोत सूनृता र य दे वी दधातु मे.. (३) अयमा, भग और बृह प त दे व, हम धन दान कर. इं ाणी आ द दे वयां तथा वाणी वाली सर वती दे वी हम धन दान कर. (३)
य
सोमं राजानमवसे ऽ नं गी भहवामहे. आ द यं व णुं सूय ाणं च बृह प तम्.. (४) हम तेज वी सोम और अ न को तु त पी वचन के ारा यहां बुलाते ह. वे हमारा मनचाहा फल दे कर हमारी र ा कर. हम अ द त के पु , म और व ण को, सब के ेरक सूय को तथा इन सभी दे व को बनाने वाले ा को तथा दे व के हतकारक बृह प त को बुलाते ह. (४) वं नो अ ने अ न भ य ं च वधय. वं नो दे व दातवे र य दानाय चोदय.. (५) हे अ न! तुम अ य अ नय के साथ मल कर हमारी मं वाली तु त को और तु तय ारा सा य य को सफल करो. हे अ न दे व! ह व दे ने वाले हमारे यजमान को हम धन दे ने के लए े रत करो. (५) इ वायू उभा वह सुहवेह हवामहे. यथा नः सव इ जनः संग यां सुमना असद् दानकाम नो भुवत्.. (६) इं और अ न सुखपूवक बुलाए जा सकते ह, इस लए हम इस य म उन का आ ान करते ह. हम इस कारण उन का आ ान करते ह क हमारे सभी जन उन क संग त से शोभन मन वाले बन तथा हम दान दे ने क इ छा करे. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अयमणं बृह प त म ं दानाय चोदय. वातं व णुं सर वत स वतारं च वा जनम्.. (७) हे तोता! तुम अयमा, बृह प त, इं , वाणी हम धन दे ने के लए े रत करो. (७)
पी सर वती एवं वेग वाले स वता दे व को
वाज य नु सवे सं बभू वमेमा च व ा भुवना य तः. उता द स तं दापयतु जानन् र य च नः सववीरं न य छ.. (८) हम अ उ प करने वाले कम को शी ा त करे. दखाई दे ने वाले सभी ाणी वाज सव अथात् वृ ारा अ पैदा करने वाले दे व के म य नवास करते ह. सभी ा णय के दय के अ भ ाय को जानने वाले वाज- सव दे व दान न करने वाले मुझ पु ष को धन दान करने क ेरणा द तथा हमारे धन को पु , पौ आ द से यु कर. (८) ां मे प च दशो ामुव यथाबलम्. ापेयं सवा आकूतीमनसा दयेन च.. (९) पूव, प म, उ र, द ण एवं इन क म यवत दशा—इस कार पांच दशाएं, पृ वी, आकाश, दन, रात, जल, तथा जड़ीबू टयां मुझे अ भमत फल द. म दय और अंतःकरण से उ प संक प को ा त क ं . (९) गोस न वाचमुदेयं वचसा मा यु द ह. आ धां सवतो वायु व ा पोषं दधातु मे.. (१०) म सभी कार के धन दे ने वाली वाणी का उ चारण करता ं. हे वाणी पी दे वी! तुम अपने तेज से मेरा मनचाहा फल दे ने के लए आओ. वायु सभी ओर से मेरे ाण को आ छा दत करे तथा व ा दे व मेरे शरीर को पु बनाएं. (१०)
सू -२१
दे वता—अ न
ये अ नयो अ व १ तय वृ े ये पु षे ये अ मसु. य आ ववेशोषधीय वन पत ते यो अ न यो तम वेतत्.. (१) मेघ म रहने वाली व ुत पी अ न को, जल म वाडव के प म नवास करने वाली अ न को, मनु य के शरीर म वै ानर के प म रहने वाली अ न को, सूयकांत आ द म णय म गे ,ं जौ, आ द फसल म तथा वृ म रहने वाली अ न को यह ह व ा त हो. (१) यः सोमे अ तय गो व तय आ व ो वयःसु यो मृगेषु. य आ ववेश पदो य तु पद ते यो अ न यो तम वेतत्.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो अ न सोमलता म अमृत रस का प रपाक करने के लए रहती है, जो अ न गाय, भस आ द पशु म नवास कर के उन के ध को प रप व करती है, जो अ न प य और पशु म व है तथा जो अ न मनु य और चौपाय म ा त है. मेरे ारा दया आ ह व उसे ा त हो. (२) य इ े ण सरथं या त दे वो वै ानर उत व दा ः. यं जोहवी म पृतनासु सास ह ते यो अ न यो तम वेतत्.. (३) दान आ द गुण वाले जो अ न दे व इं के साथ एक रथ म बैठ कर गमन करते ह, जो अ न मनु य म वै ानर तथा व को जलाने वाले दावा न ह, जो अ न दे व यु म श ु को परा जत करने वाले ह, उन सभी अ नय को मेरा ह व ा त हो. (३) यो दे वो व ाद् यमु काममा य दातारं तगृह्ण तमा ः. यो धीरः श ः प रभूरदा य ते यो अ न यो तम वेतत्.. (४) जो अ न दे व सब का भ ण करने वाले ह, ज ह कामना करने यो य तथा मनचाहा फल दे ने वाला कहा जाता है, जो अ न दे व, बु मान, सभी काय करने म समथ, श ु को परा जत करने वाले तथा कसी से परा जत न होने वाले ह, उ ह मेरी आ त ा त हो. (४) यं वा होतारं मनसा भ सं व योदश भौवनाः प च मानवाः. वच धसे यशसे सूनृतावते ते यो अ न यो तम वेतत्.. (५) जस से ाणी स ा ा त करते ह, उस संव सर के तेरह महीने, मनु के ारा सृ क आ द म क पत वसंत, ी म, वषा, शरद, हेमंत, पांच ऋतुएं तु ह दे व का आ ान करने वाला जानते ह, उस तेज वी, यश वी और य वाणी वाले अ न को यह ह व ा त हो. (५) उ ा ाय वशा ाय सोमपृ ाय वेधसे. वै ानर ये े य ते यो अ न यो तम वेतत्.. (६) वृषभ जन के ह व पी अ ह, बांझ गाएं जन का ह व ह, सोम जन क पीठ पर रहता है तथा जो आ त के ारा सारे जगत् के वधाता ह और वै ानर अ न जन म सब से बड़े ह, उन सभी अ नय को मेरा ह ा त हो. (६) दवं पृ थवीम व त र ं ये व त ु मनुसंचर त. ये द व १ तय वाते अ त ते यो अ न यो तम वेतत्.. (७) जो अ न दे व आकाश, पृ वी और इन के म य भाग म ा त ह, जो बादल म थत बजली म संचरण करते ह, जो अ न तीन लोक म ा त दशा म वतमान ह तथा सारे जगत् के आधार वायु म संचरण करते ह, उन सभी को मेरी आ त ा त हो. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हर यपा ण स वतार म ं बृह प त व णं म म नम्. व ान् दे वान रसो हवामह इमं ादं शमय व नम्.. (८) तोता को दे ने के लए जन के हाथ म सुवण रहता है, ऐसे स वता, बृह प त, व ण, इं तथा अ न का और व े दे व का म अं गरा ऋ ष आ ान करता ं. वे इस मांस खाने वाली अ न को शांत कर. (८) शा तो अ नः अथो यो व दा
ा छा तः पु षरेषणः. १ तं ादमशीशमम्.. (९)
मांस भ क अ न स वता आ द दे व क कृपा से शांत ह . पु ष क हसा करने वाली अ न भी सुखकारी ह . जो सब को जलाने वाली और मांस भ क अ न है, उस को म ने शांत कर दया है. (९) ये पवताः सोमपृ ा आप उ ानशीवरीः. वातः पज य आद न ते ादमशीशमन्.. (१०) सोमलता जन के ऊपर वतमान है, ऐसे मुंजवान आ द पवत के ऊपर शयन करने वाले जल, वायु और बादल ने मांसभ क अ न को शांत कर दया है. (१०)
सू -२२
दे वता— व े दे व
ह तवचसं थतां बृहद् यशो अ द या यत् त वः संबभूव. तत् सव सम म मेतद् व े दे वा अ द तः सजोषाः.. (१) हम म हाथी के समान अपराजेय एवं स बल हो. दे वमाता अ द त के शरीर से जो महान एवं स तेज उ प आ है, सभी दे व, अ द त के साथ मल कर मुझे वह तेज और यश दान कर. (१) म व ण े ो चेततु. दे वासो व धायस ते मा तु वचसा.. (२) दन के वामी इं , रा के वामी व ण, वग के अ धप त इं और सब का संहार करने वाले मुझे अनु ह करने यो य समझ. सारे संसार का पोषण करने वाले म आ द दे व मुझे तेज वी बनाएं. (२) येन ह ती वचसा संबभूव येन राजा मनु ये व व १ तः. येन दे वा दे वताम आयन् तेन माम वचसा ने वच वनं कृणु.. (३) जस तेज से हाथी वशालकाय बनता है, जस तेज से राजा मनु य म तेज वी होता है, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस तेज से जल म ाणी तेज वी बनते ह अथवा जस तेज से आकाश म गंधव आ द तेज वी बनते ह तथा सृ के आ द म जस तेज के कारण इं आ द ने दे व व ा त कया, हे अ न, उस संपूण तेज से इस समय मुझे तेज वी बनाओ. (३) यत् ते वच जातवेदो बृहद् भव या तेः. यावत् सूय य वच आसुर य च ह तनः. ताव मे अ ना वच आ ध ां पु कर जा.. (४) हे ज म लेने वाले ा णय के ाता तथा आ तय ारा हवन कए जाते ए अ न दे व! तुम म जतना तेज है, सूय म जतना तेज है तथा असुर के हाथ म जतना तेज है, उतना ही तेज कमल क माला से सुशो भत अ नीकुमार मुझ म धारण कर. (४) याव चत ः दश ुयावत् सम ुते. तावत् समै व यं म य त तवचसम्.. (५) चार दशाएं जतने थान को ा त करती ह तथा प को हण करने वाले ने जतने न को दे खते ह, परम ऐ य वाले इं का असाधारण च तथा पूव दे व का तेज हम ा त हो. (५) ह ती मृगाणां सुषदाम त ावान् बभूव ह. त य भगेन वचसा ऽ भ ष चा म मामहम्.. (६) वन म वे छा से रहने वाले ह रण आ द पशु के म य जंगली हाथी अपने बल क अ धकता के कारण राजा होता है. उस हाथी के भा य पी तेज से म अपनेआप को स चता ं. (६)
सू -२३
दे वता—यो न
येन वेहद् बभू वथ नाशयाम स तत् वत्. इदं तद य वदप रे न द म स.. (१) हे ी! जस पाप से ज नत रोग के कारण तू बांझ ई है, उस पाप को हम तुझ से र करते ह. यह पाप रोग तुझे बारा न हो जाए, इस लए हम इसे र दे श म प ंचाते ह. (१) आ ते यो न गभ एतु पुमान् बाण इवेषु धम्. आ वीरो ऽ जायतां पु ते दशमा यः.. (२) हे ी! बाण जस कार वाभा वक प से तरकश म प च ं जाता है, उसी कार पु ष के वीय से यु गभ तेरे जननांग म प ंचे. वह गभ दस मास के प ात पु के प म प रव तत हो कर तथा सश बन कर ज म ले. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पुमांसं पु ं जनय तं पुमाननु जायताम्. भवा स पु ाणां माता जातानां जनया यान्.. (३) हे ी! तू पु को ज म दे . उस पु क प नी से पु ही उ प हो. इस कार अ व छ प से उ प पु क भी तू माता होगी. उन के जो पु ह गे, उन क भी तू माता होगी. (३) या न भ ा ण बीजा यृषभा जनय त च. तै वं पु ं व द व सा सूधनुका भव.. (४) हे नारी! बैल जस कार अपने अमोघ वीय से गाय म बछड़े उ प करता है, उसी कार तू अमोघ वीय से उ प पु को ा त कर. तू सूता हो कर पु के साथ वृ को ा त हो. (४) कृणो म ते ाजाप यमा यो न गभ एतु ते. व द व वं पु ं ना र य तु यं शमस छमु त मै वं भव.. (५) हे ी! ा ने वृषभ संबंधी जो व था क है, उस के अनुसार म तेरे लए संतानो प संबंधी कम करता ं. गभ तेरी यो न म जाए. उस के प ात तू पु ा त करे, वह पु तेरे लए सुख दान करे तथा तू भी उस के लए सुख का कारण बने. (५) यासां ौ पता पृ थवी माता समु ो मूलं वी धां बभूव. ता वा पु व ाय दै वीः ाव वोषधयः.. (६) जन वृ का पता आकाश और माता पृ वी है, जलरा श उन क वृ का मूल कारण है. वृ के प म वे द जड़ीबू टयां पु लाभ के लए तेरी र ा कर. (६)
सू -२४
दे वता—वन प त
पय वतीरोषधयः पय व मामकं वचः. अथो पय वतीनामा भरे ऽ हं सह शः.. (१) मेरे जौ, गे ं आ द अ सारयु ह तथा मेरा वचन भी सारयु फसल से उ प धा य को अनेक कार से ा त क ं . (१)
हो. म उन सार वाली
वेदाहं पय व तं चकार धा यं ब . स भृ वा नाम यो दे व तं वयं हवामहे यो यो अय वनो गृहे.. (२) म उस सार वाले दे व को जानता ं. उस ने जौ, गे ं आ द क वृ क है. भ रे के समान सं ह करने वाले जो दे व ह, उन का म तु तय के ारा आ ान करता ं. य करने वाले के घर म जो जौ, गे ं आ द धा य है, दे व उसे एक कर के मुझे दान कर. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमा याः प च दशो मानवीः प च कृ यः. वृ े शापं नद रवेह फा त समावहान्.. (३) पूव, प म, उ र, द ण और इन क म यवत —ये पांच दशाएं तथा ा ण, य, वै य, शू और नषाद—ये पांच जा तयां इस यजमान के धनधा य क उसी कार वृ कर, जस कार वषा का जल वाह म पड़े ए जल को एक थान से सरे थान पर ले जाता है. (३) उ सं शतधारं सह धारम तम्. एवा माकेदं धा यं सह धारम तम्.. (४) जल क उ प का थान सौ अथवा हजार धारा वाला होने पर भी कभी ीण नह होता है, इसी कार हमारा यह धा य अनेक कार से हजार धारा वाला हो कर य र हत बने. (४) शतह त समाहर सह ह त सं कर. कृत य काय य चेह फा त समावह.. (५) हे सौ हाथ वाले दे व! तुम अपनी भुजा से धन एक करो तथा हजार हाथ से ला कर हम धन दो. इस के प ात अपने ारा दए ए धन से मुझे समृ बनाओ. (५) त ो मा ा ग धवाणां चत ो गृहप याः. तासां या फा तम मा तया वा भ मृशाम स.. (६) व ावसु आ द गंधव क संप ता के कारण ह—उन क तीन कलाएं. उन क चार अ सरा पी प नयां ह. हे धा य! प नय म जो अ तशय समृ है, उस से हम तेरा पश कराते ह. (६) उपोह समूह ारौ ते जापते. ता वहा वहतां फा त ब ं भूमानम तम्.. (७) हे जाप त! उपोह नाम का दे व और धन क वृ करने वाले दे व का समूह—ये दोन तु हारे सारथी ह. अनेक कार के तथा य र हत धन धा य को एवं समृ को ये हमारे समीप लाएं. (७)
सू -२५ उ ुद वोत् तुदतु मा धृथाः शयने वे. इषुः काम य या भीमा तया व या म वा
दे वता—कामेषु द.. (१)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे नारी! उ ुद नाम के दे व अ य धक थत करने वाले ह. वे तुझे कामाता कर. मदन वकार से थत हो कर तू अपने पलंग पर सोना पसंद मत कर. कामदे व का जो भयानक बाण है, उस से म तेरे दय को ता ड़त करता ं. (१) आधीपणा कामश या मषुं सङ् क पकु मलाम्. तां सुस तां कृ वा कामो व यतु वा द.. (२) मन का कामो माद जस का पण अथात् पीछे वाला भाग है और रमण करने क अ भलाषा जस का फल अथात् आगे वाला भाग है तथा भोग वषयक संक प जस के दोन भाग को जोड़ने वाला है, इस कार के बाण को अपने धनुष पर रख कर कामदे व तेरे दय का वेधन कर. (२) या लीहानं शोषय त काम येषुः सुस ता. ाचीनप ा ोषा तया व या म वा द.. (३) कामदे व के ारा भलीभां त ख चा गया बाण ाण के आ य लीहा को जलाता है. हे नारी! म सीधे पंख वाले तथा अनेक कार से दहन करने वाले उस बाण से तेरे दय का वेधन करता ं. (३) शुचा व ा ोषया शु का या भ सप मा. मृ नम युः केवली यवा द यनु ता.. (४) दाह करने वाले तथा शोका मक बाण से घायल होने के कारण तेरा कंठ सूख जाए और उस कंठ के कारण अपना अ भ ाय कट करने म असमथ हो कर तू मेरे समीप आ. तू मृ भा षणी, एकमा मुझ से र ा पाने वाली तथा मेरे अनुकूल बोलने वाली बन और मेरे अनुकूल आचरण कर. (४) आजा म वाज या प र मातुरथो पतुः. यथा मम तावसो मम च मुपाय स.. (५) हे नारी! म कोड़े से मार कर तुझे अपने अ भमुख करता ं. म वहां से तुझे अपने समीप बुलाता ं, जस से तू मेरे संक प को पूरा करे और मेरी बु के अनुसार चले. (५) यै म ाव णौ द ा य यतम्. अथैनाम तुं कृ वा ममैव कृणुतं वशे.. (६) हे म और व ण! इस ी के दय को ानशू य कर दो. इस के प ात इसे कत और अकत के ान से शू य कर के मेरे वशीभूत बना दो. (६)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -२६
दे वता—अ न
ये ३ यां थ ा यां द श हेतयो नाम दे वा तेषां वो अ न रषवः. ते नो मृडत ते नो ऽ ध त ू ते यो वो नम ते यो वः वाहा.. (१) हे दान आ द गुण यु गंधव ! तुम हमारे नवास थान से पूव दशा म हमारे वरो धय को मारने वाले बनो. तु हारे अ न तु य बाण उन पूव दशा के नवा सय से हमारी र ा करने म समथ ह . वे हम सुखी कर. तु हारे बाण सप, ब छू आ द श ु को हम से र रख. तुम हम अपना कहो. हम तु ह नम कार करते और आ त दे ते ह. (१) ये ३ यां थ द णायां द य व यवो नाम दे वा तेषां वः काम इषवः. ते नो मृडत ते नो ऽ ध ूत ते यो वो नम ते यो वः वाहा.. (२) हे दान आ द गुण से यु गंधव ! तुम हमारे नवास थान से द ण दशा म हमारे वरो धय से हमारे र क बनो. हमारी अ भलाषा ही तु हारा बाण है, वह हमारी र ा करे. तुम हम अपना कहो. हम तु ह नम कार कर और आ त दे ते रह. (२) ये ३ यां थ ती यां द श वैराजा नाम दे वा तेषां व आप इषवः. ते नो मृडत ते नो ऽ ध ूत ते यो वो नम ते यो वः वाहा.. (३) हे दे वो! तुम प म दशा म हम अ दे ने वाले बनो. वषा के जल तु हारे बाण ह. वे हमारी र ा कर. तुम हम अपना बनाओ. तु ह हम नम कार करते ह और आ त दे ते ह. (३) ये ३ यां थोद यां द श व य तो नाम दे वा तेषां वो वात इषवः. ते नो मृडत ते नो ऽ ध त ू ते यो वो नम ते यो वः वाहा.. (४) हे दान आ द गुण से यु गंधव ! तुम उ र दशा म हमारी हसा करने वाल को मारने वाले बनो. वायु ही तु हारा बाण है, वह हमारी र ा करे. तुम हम अपना कहो. हम तु ह नम कार करते ह और आ त दे ते ह. (४) ये ३ यां थ ुवायां द श न ल पा नाम दे वा तेषां व ओषधी रषवः. ते नो मृडत ते नो ऽ ध ूत ते यो वो नम ते यो वः वाहा.. (५) हे दान आ द गुण से यु गंधव ! तुम ुव दशा म अथात् पृ वी पर हमारी र ा करने वाले बनो. जौ, गे ,ं पेड़, पौधे आ द तु हारे बाण ह. वे हमारी र ा कर. तुम हम अपना कहो. हम तु ह नम कार करते ह और आ त दे ते ह. (५) ये ३ यां थो वायां द यव व तो नाम दे वा तेषां वो बृह प त रषवः. ते नो मृडत ते नो ऽ ध त ू ते यो वो नम ते यो वः वाहा.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे दान आ द गुण से यु गंधव ! इस ऊपर क दशा म तुम हमारे र क बनो. बृह प त तु हारे बाण ह. वे हमारी र ा कर. हम तु ह नम कार करते ह और आ त दे ते ह. (६)
सू -२७
दे वता— ाची
ाची दग नर धप तर सतो र ता द या इषवः. ते यो नमो ऽ धप त यो नमो र तृ यो नम इषु यो नम ए यो अ तु. यो ३ मान् े यं वयं म तं वो ज भे द मः.. (१) पूव दशा हम पर कृपा करे. अ न इस दशा के अ धप त ह. काले रंग के सांप उस म र ा करने के लए थत ह. अ द त के पु धाता, अयमा आ द इस दशा के आयुध ह. इस के अ धप त अ न, र क काले सांप, धाता अयमा आ द आयुध को मेरा नम कार स करने वाला हो. जो श ु हम बाधा प ंचाता है अथवा हम जस से े ष रखते ह. हे अ न आ द दे वो! उसे हम तु हारे भोजन के लए तु हारी दाढ़ के नीचे रखते ह. (१) द णा द ग ो ऽ धप त तर राजी र ता पतर इषवः. ते यो नमो ऽ धप त यो नमो र तृ यो नम इषु यो नम ए यो अ तु. यो ३ मान् े यं वयं म तं वो ज भे द मः.. (२) द ण दशा हम पर कृपा करे. इं इस के अ धप त ह. टे ढ़ेमेढ़े चलने वाले सप इस दशा के र क ह. पतर इस दशा के का न ह करने वाले आयुध ह. इस के अ धप त इं को, र क टे ढ़ेमेढ़े चलने वाले सप को और आयुध प पतर को मेरा नम कार स करने वाला हो. जो श ु मुझे बाधा प ंचाता है अथवा म जन से े ष रखता ं, हे इं आ द दे वो! म उसे तु हारे भ ण के लए तु हारी दाढ़ म रखता ं. (२) तीची दग् व णो ऽ धप तः पृदाकू र ता मषवः. ते यो नमो ऽ धप त यो नमो र तृ यो नम इषु यो नम ए यो अ तु. यो ३ मान् े यं वयं म तं वो ज भे द मः.. (३) प म दशा हम पर कृपा करे. व ण इस के अ धप त ह. कु सत श द करने वाला पृदाकू नाम का सप इस का र क है और जौ, गे ं आ द इस दशा के को वश म करने वाले बाण ह. इस के अ धप त व ण को, र क कु सत श द करने वाले पृदाकू नाम वाले सप को और जौ तथा गे ं आ द बाण को हमारा नम कार स करने वाला हो. जो श ु हम बाधा प ंचाता है अथवा हम जन से े ष करते ह, हे व ण आ द दे वो! हम उसे तु हारे भ ण के लए तु हारी दाढ़ म रखते ह. (३) उद ची दक् सोमोऽ धप तः वजो र ताश न रषवः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ते यो नमो ऽ धप त यो नमो र तृ यो नम इषु यो नम ए यो अ तु. यो ३ मान् े यं वयं म तं वो ज भे द मः.. (४) उ र दशा हम पर अनु ह करे. सोम इस दशा के अ धप त अथात् वामी ह. वयं उ प होने वाला सप इस का र क है और व इस के को वश म करने वाला बाण है. इस के अ धप त सोम को, वयं उ प होने वाले र क सप को और व प बाण को हमारा नम कार स करने वाला हो. जो श ु हम बाधा प ंचाते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. हे सोम आ द दे वो! उ ह हम तु हारे भ ण के लए तु हारी दाढ़ म रखते ह. (४) ुवा दग् व णुर धप तः क माष ीवो र ता वी ध इषवः. ते यो नमो ऽ धप त यो नमो र तृ यो नम इषु यो नम ए यो अ तु. यो ३ मान् े यं वयं म तं वो ज भे द मः.. (५) नीचे क ओर वाली अथात् थर दशा हम पर अनु ह करे. व णु इस के अ धप त ह, काली गरदन वाला सांप इस का र क है और वृ इस के नाशकारी बाण ह. इस के अ धप त व णु को, र क काली गरदन वाले सप को और आयुध वृ को हमारा नम कार स करने वाला हो. हे व णु आ द दे वो! जो श ु हम बाधा प ंचाते ह अथवा हम जन से े ष रखते ह, उ ह हम तु हारे भ ण के हेतु तु हारी दाढ़ म रखते ह. (५) ऊ वा दग् बृह प तर धप तः ो र ता वष मषवः. ते यो नमो ऽ धप त यो नमो र तृ यो नम इषु यो नम ए यो अ तु. यो ३ मान् े यं वयं म तं वो ज भे द मः.. (६) ऊपर वतमान दशा हम पर कृपा करे. बृह प त इस के वामी ह, ेतवण का सप इस का र क है और वषा का जल इस का नवारक आयुध है. हम इस के वामी बृह प त को र क ेत वण के सप को तथा नवारक आयुध वषा के जल को नम कार करते ह. हे बृह प त आ द दे वो! जो श ु हम बाधा प ंचाते ह अथवा हम जन से े ष रखते ह, उ ह हम तु हारे भ ण के हेतु तु हारी दाढ़ म रखते ह. (६)
सू -२८
दे वता—अ नीकुमार
एकैकयैषा सृ ् या सं बभूव य गा असृज त भूतकृतो व पाः. य वजायते य म यपतुः सा पशून् णा त रफती शती.. (१) वधाता के ारा बनाई गई यह सृ मशः एकएक कर के उ प ई. यहां पृ वी आ द त व के नमाता ऋ षय ने अनेक रंग वाली गाय , मानु षय और घो ड़य को उ प कया. उ प वाली इस सृ म य द कोई गाय आ द नकृ रज और वीय से उ प जुड़वां संतान को ज म दे ती है, वह यजमान के गाय आ द पशु का भ ण करती ई और चोर, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बाघ आ द के ारा हसा करती ई वनाश करती है. (१) एषा पशू सं णा त ाद् भू वा री. उतैनां णे द ात् तथा योना शवा यात्.. (२) दो ब च को एक साथ ज म दे ने वाली यह गाय मांस खाने वाली एवं ःख दे ने वाली के समान यजमान के अ य पशु का वनाश करती है. यह टोनेटोटके के समान संताप दे ने वाली है. इसे ा ण को दान कर दे ना चा हए. ऐसा करने से यह अपनी संतान के ारा यजमान के लए क याणका रणी बन जाती है. (२) शवा भव पु षे यो गो यो अ े यः शवा. शवा मै सव मै े ाय शवा न इहै ध.. (३) हे जुड़वां ब च को ज म दे ने वाली गाय! तू मनु य , गाय और घोड़ के लए क याणका रणी बन. तू इस दे श म हम सब कार से सुखदायी हो. (३) इह पु रह रस इह सह सातमा भव. पशून् य म न पोषय.. (४) मेरे यजमान के इस घर म गाय आ द धन पु ह तथा ध, दही आ द रस समृ ह . हे जुड़वां ब च को ज म दे ने वाली गाय! तू इस यजमान के पशु का पोषण कर और इसे हजार कार के धन दान कर. (४) य ा सुहादः सुकृतो मद त वहाय रोगं त व १: वायाः. तं लोकं य म य भसंबभूव सा नो मा हसीत् पु षान् पशूं .. (५) जस लोक म शोभन दय वाले तथा उ म कम करने वाले पु ष स होते ह तथा वर आ द रोग का याग कर के उन के शरीर पु होते ह, वहाँ य द जुड़वां ब च को ज म दे ने वाली गाय सामने आ जाए तो वह हमारे मनु य और पशु क हसा न करे. (५) य ा सुहादा सुकृताम नहो तां य लोकः. तं लोकं य म य भसंबभूव सा नो मा हसीत् पु षान् पशूं .. (६) जस लोक म शोभन दय, शोभन ान और शोभन कम वाले अपने शरीर से वर आ द रोग का याग कर के स होते ह, वहां जुड़वां ब च को ज म दे ने वाली गाय आ गई है. वह हमारे पु ष और पशु क हसा न करे. (६)
सू -२९
दे वता—अ व, काम, भू म
यद् राजानो वभज त इ ापूत य षोडशं यम यामी सभासदः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ व त मात्
मु च त द ः श तपात् वधा.. (१)
द ण दशा के आकाश म दखाई दे ने वाले यमराज के सभासद को दं ड द और धमा मा का पालन करने म यु ह . ु त म बताए गए य आ द और मृ तय म बताए गए वापी, कूप, सरोवर आ द कम के जो सोलह पाप होते ह, उ ह यमराज के सभासद पु य से पृथक् करते ह. उस पाप से य म ब ल के प म द गई यह सफेद पैर वाली भेड़ हम मु करे. यह भेड़ यमराज के सभासद के लए अ न हो. (१) सवान् कामान् पूरय याभवन् भवन् भवन्. आकू त ो ऽ वद ः श तपा ोप द य त.. (२) चार दशा को ा त करने वाला, फल दे ने म समथ एवं वृ करने वाला यह य हमारी सभी अ भलाषा को पूण करता है. संक प को पूण करने वाली यह सफेद पैर वाली भेड़ इस य म द जा रही है. यह ीण न हो कर हमारी इ छा के अनुसार बढ़े गा ही. (२) यो ददा त श तपादम व लोकेन सं मतम्. स नाकम यारोह त य शु को न यते अबलेन बलीयसे.. (३) जो यजमान सफेद पैर वाली एवं लोक व ास के अनुसार फल दे ने वाली भेड़ का दान करता है, वह वग को ा त करता है. वगलोक म नबल सबल का शासन मान कर शु क नह दे ता. (३) प चापूपं श तपादम व लोकेन सं मतम्. दातोप जीव त पतॄणां लोकेऽ तम्.. (४) जस भेड़ के चार पैर और ना भ पर पांच पूए रखे जाते ह, उसे पंचापूप कहते ह. पंचापूप अथात् पांच पू वाली और सफेद पैर वाली भेड़ का दाता पृ वी आ द लोक के पांच समान पतर के लोक म समा त न होने वाला फल भोगता है. (४) प चापूपं श तपादम व लोकेन सं मतम्. दातोप जीव त सूयामासयोर तम्.. (५) पंचापूप अथात् पांच पू वाली और सफेद पैर वाली भेड़ को लोक व ास के अनुसार दान करने वाला सूय और चं मा के लोक म समा त न होने वाला फल भोगता है. (५) इरेव नोप द य त समु इव पयो महत्. दे वौ सवा सना वव श तपा ोप द य त.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य म द गई सफेद पैर वाली भेड़ सागर के जल के समान कभी ीण नह होती और इस का ध बढ़ता ही जाता है. अ नीकुमार के समान यह भेड़ कभी ीण नह होती. (६) क इदं क मा अदात् कामः कामायादात्. कामो दाता कामः त हीता कामः समु मा ववेश. कामेन वा त गृ ा म कामैतत् ते.. (७) यह द णा पी धन जाप त ने जाप त को ही दया था. द णा दे ने वाला पारलौ कक फल का अ भलाषी है और लेने वाला लौ कक फल का इ छु क है. इस कार द णा का दाता और लेने वाला दोन ही इ छा वाले ह. इ छा का प सागर के समान असी मत है. इ छा का अंत नह है. हे द णा ! म इसी कार क इ छा से तुझे हण करता ं. हे अ भलाषा! वीकार कया आ यह धन तेरे लए हो. (७) भू म ् वा त गृ ा व त र मदं महत्. माहं ाणेन मा मना मा जया तगृ व रा ध ष.. (८) हे द णा ! तुझे यह धरती और वशाल आकाश हण करे. इसी लए तुझे हण कर के म ाण से, आ मा से और पु पौ आ द संतान से हीन न बनूं. (८)
सू -३०
दे वता—सौमन य
स दयं सांमन यम व े षं कृणो म वः. अ यो अ यम भ हयत व सं जात मवा या.. (१) हे ववाद करने वाले पु षो! म तु हारे लए सौमन य कम करता ं जो व े ष र हत एवं पर पर ेम कराने वाला है. जस कार गाय अपने बछड़े से ेम करती है. उसी कार तुम भी पर पर ेम करो. (१) अनु तः पतुः पु ो मा ा भवतु संमनाः. जाया प ये मधुमत वाचं वदतु श तवाम्.. (२) पु पता के अनुकूल कम करने वाला हो. माता पु आ द के प नी प त से मधुर एवं सुखकर वचन कहे. (२)
त सौमन य वाली बने.
मा ाता ातरं मा वसारमुत वसा. स य चः स ता भू वा वाचं वदत भ या.. (३) भाई अपने सगे भाई से उ रा धकार को ले कर तथा बहन अपनी सगी बहन से े ष न करे. यह सब समान ग त वाले एवं समान कम वाले हो कर क याणकारी वचन कह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
येन दे वा न वय त नो च व षते मथः. तत् कृ मो वो गृहे सं ानं पु षे यः.. (४) जस मं के बल से दे वगण, भ भ वचार वाले नह बनते और पर पर े ष नह करते, उसी मं का योग म तु हारे घर म एकमत था पत करने के लए करता ं. (४) याय व त नो मा व यौ संराधय तः सधुरा र तः. अ यो अ य मै व गु वद त एत स ीचीनान् वः संमनस कृणो म.. (५) हे मनु यो! तुम छोटे बड़े क भावना से एक सरे का अनुसरण करते ए समान च वाले, समान स वाले तथा समान काय करने वाले बनो. इस कार आचरण करते ए तुम एक सरे से बछु ड़ो मत तथा एक सरे से य वचन बोलते ए आओ. म भी तुम सब से मलकर तु ह काय म वृ होने वाला तथा समान वचार वाला बनाता ं. (५) समानी पा सह वो ऽ भागः समाने यो े सह वो युन म. स य चो ऽ नं सपयतारा ना भ मवा भतः.. (६) हे समानता के इ छु क जनो! तुम पर पर ेम के कारण एक थान पर रह कर समान जल और अ का उपयोग करो. इस के लए म तुम सब को ेम के एक बंधन म बांधता ं. जस कार प हए के अनेक अरे एक ना भ को घेरे रहते ह, उसी कार तुम सब एक फल क कामना करते ए अ न क उपासना करो. (६) स ीचीनान् वः संमनस कृणो येक ु ी संवननेन सवान्. दे वा इवामृतं र माणाः सायं ातः सौमनसो वो अ तु.. (७) म तुम सब को एक काय करने म एक साथ संल न कर के समान वचार वाला बनाता ं तथा समान अ का उपयोग करने वाला और सौमन य कम के ारा तु ह वश म करता ं. वगलोक म अमृत र ा करने वाले इं आ द दे व का मन जस कार समान बना रहता है, उसी कार म तु ह सभी समय म समान मन वाला बनाता ं. (७)
सू -३१
दे वता—अ न आ द
व दे वा जरसावृतन् व वम ने अरा या. १हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (१) हे अ नीकुमारो! तुम इस बालक को आयु क हा न करने वाली वृ ाव था से र रखो. हे अ न! तुम इसे दान न दे ने के वभाव से और श ु से र रखो. म इसे रोग आ द ःख को उ प करने वाले पाप तथा य मा रोग से पृथक् कर के चर जीवन से संयु करता ं. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ा या पवमानो व श ः पापकृ यया. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (२) वायु इस बालक को रोगज नत पीड़ा से अलग रखे तथा इं पाप के काय से बचाएं. म इसे रोग आ द ःख को उ प करने वाले पाप तथा य मा रोग से पृथक् कर के चर जीवन से यु करता ं. (२) व ा याः पशव आर यै ाप तृ णयासरन्. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (३) जस कार गाय, भस आ द ामीण पशु वन के पशु से तथा जल यासे य से र रहता है, उसी कार म इस चारी को रोग आ द ःख उ प करने वाले पाप से तथा य मा रोग से र कर के चर जीवन से यु करता ं. (३) वी ३ मे ावापृ थवी इतो व प थानो दशं दशम्. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (४) जस कार धरती और आकाश एक सरे से अलग रहते ह तथा एक गांव से येक दशा म जाने वाले माग वाभा वक प से पृथक् होते ह, उसी कार म इस चारी को रोग आ द ःख के उ पादक पाप तथा य मा रोग से पृथक कर के चर जीवन से यु करता ं. (४) व ा ह े वहतुं युन तीदं व ं भुवनं व या त. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (५) व ा ने अपनी पु ी के ववाह म जो दहेज दया था, उसे था पत करने के न म धरती और आकाश जस कार पृथक् ए थे, उसी कार म इस चारी को रोग आ द ःख को उ प करने वाले पाप तथा य रोग से पृथक् कर के द घ जीवन से संयु करता ं. (५) अ नः ाणा सं दधा त च ः ाणेन सं हतः. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (६) जस कार जठरा न च ु आ द इं य को अ से बना आ रस प ंचा कर अपनाअपना काय करने म समथ बनाती है तथा चं मा ाण वायु से यु हो कर अमृत रस से सभी आ मा का पोषण करता है, उसी कार म इस चारी को रोग आ द ःख के उ पादक पाप से तथा य मा रोग से पृथक् करके द घ जीवन दान करता ं. (६) ाणेन व तोवीय दे वाः सूय समैरयन्. १हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
दे व ने सारे व के ेरक सूय को ाण के प म उ प कया. म ऐसे सूय को इस चारी क आयु वृ के न म इस म था पत करता ं. म इस चारी को रोग आ द ःख के उ पादक पाप से, तथा य मा रोग से पृथक् कर के चर जीवन से यु करता ं. (७) आयु मतामायु कृतां ाणेन जीव मा मृथाः. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (८) हे चारी! तू द घ आयु वाले पु ष क आयु से द घ आयु दान करने वाले दे व के ाण से चरकाल तक जीवन धारण कर तथा मृ यु को ा त मत हो. म तुझे रोग आ द ःख के जनक पाप तथा य मा रोग से पृथक् कर के चर जीवन से यु करता ं. (८) ाणेन ाणतां ाणेहैव भव मा मृथाः. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (९) हे चारी! ास लेने वाले ा णय क ाण वायु से तू सांस ले. तू इसी लोक म नवास कर अथात् जी वत रह, मर मत. म तुझे रोग के उ पादक पाप तथा य मा रोग से पृथक् कर के चर जीवन से यु करता ं. (९) उदायुषा समायुषोदोषधीनां रसेन. १ हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (१०) हम चर काल के जीवन से मृ यु को ा त करते ह, इस लोक म नवास करते ह तथा जौ, गे ं आ द के रस से वृ को ा त करते ह. म इस चारी को रोग आ द ःख के जनक पाप तथा य मा रोग से पृथक् कर के चर जीवन से संयु करता ं. (१०) आ पज य य वृ ् योद थामामृता वयम्. १हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (११) हम वृ करने वाले पज य दे व के ारा बरसाए ए जल से अमरता ा त कर के उठ बैठते ह. हे चारी! म तुझे रोग आ द ःख से ज य पाप से पृथक् कर के चर जीवन से संयु करता ं. (११)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
चौथा कांड सू -१
दे वता—बृह प त
ज ानं थमं पुर ताद् व सीमतः सु चो वेन आवः. स बु या उपमा अ य व ाः सत यो नमसत व वः.. (१) सत्, चत, आनंद और सारे व का कारण सब से पहले सूय प म कट आ जो पूव दशा म उ प होता है तथा अपने तेज से सारे जगत् को ा त करता है. यह काश और वषा का कारण सूया मक तेज सभी दशा से आरंभ हो कर अपने शोभन काश को फैलाता है. सत् और असत् के उ प थान के ान का तथा धरती, आकाश आ द का ान कट करने वाला वही सूया मक तेज है. (१) इयं प या रा ये व े थमाय जनुषे भुवने ाः. त मा एतं सु चं ारम ं घम ीण तु थमाय धा यवे.. (२) संपूण जगत् को उ प करने वाले पता जाप त ा ह. उन से ा त और नाद प म सभी ा णय म ा त वाणी सारे संसार के वहार क वा मनी है. ये थम श द से वा य सूया मक तेज अथात् को तु त प म ा त ह . (२) यो ज े व ान य ब धु व ा दे वानां ज नमा वव . ण उ जभार म या ीचै चैः वधा अ भ त थौ.. (३) इस पंच के कारण, हतकारी एवं नरावरण ान से सारे जगत् को जानते ए जो दे व सव थम उ प ए, वे इं आ द सभी दे व के ज म का वणन करते ह. थम उ प दे व ने सब के कारण प के म य भाग से, नीचे वाले भाग से और ऊपर वाले भाग से वेद का उ ार कया. इस के प ात दे व को ह व के प म अ मला. (३) स ह दवः स पृ थ ा ऋत था मही ेमं रोदसी अ कभायत्. महान् मही अ कभायद् व जातो ां सद्म पा थवं च रजः.. (४) सूय के प म सव थम उ प ए दे व आकाश म कारण प म तथा पृ वी म स य प म थत ह एवं उ ह ने धरती व आकाश को अ वनाशी प म था पत कया. धरती और आकाश को ा त कर के वतमान उस थम दे व ने धरती और आकाश को था पत कया है. वह इन दोन के म य म सूय के प म उ प आ है तथा आकाश और पृ वी को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपने तेज से
ा त कर रहा है. (४)
स बु यादा जनुषो ऽ य ं बृह प तदवता त य स ाट् . अहय छु ं यो तषो ज न ाथ ुम तो व वस तु व ाः.. (५) थम तेज के वाले भाग तक को द त वाला दन उस ऋ वज् अपनेअपने
प म उ प पर ने लोक के मूल अथात् नचले भाग से ले कर ऊपर ा त कया. दान आ द गुण से यु बृह प त इस लोक के अ धप त ह. काश वाले सूय से उ प आ. इस के प ात द त वाले एवं मेधावी ापार म लग गए. (५)
नूनं तद य का ो हनो त महो दे व य पू य धाम. एष ज े ब भः साक म था पूव अध व षते ससन् नु.. (६) ऋ वज का य इस दखाई न दे ने वाले और सब से पहले उ प सूय दे व का मंडल न य ही सब को ेरणा दे ता है. यह सूय हजार करण के साथ इस कार पूव दशा म कट होता है क इ ह ह व ल ण अ शी ा त हो जाता है. (६) यो ऽ थवाणं पतरं दे वब धुं बृह प त नमसाव च ग छात्. वं व ेषां ज नता यथासः क वदवो न दभायत् वधावान्.. (७) बृह प त दे व ने जाप त अथवा को लोक का उ प करने वाला और इं आ द दे व का बंधु जाना. बृह प त एवं अथवा को हमारा नम कार है. ह व प अ से यु हो कर वे हम पर उसी कार कृपा करते ह, जस कार वे अ से यु एवं सभी ा णय के ज म दाता ह. (७)
सू -२
दे वता—आ मा
य आ मदा बलदा य य व उपासते शषं य य दे वाः. यो ३ येशे पदो य तु पदः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (१) जो जाप त सभी ा णय को ाण एवं शां त दे ने वाले ह, सभी ाणी एवं दे व भी जन का शासन मानते ह तथा दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह. हम ह व ारा इस कार के जाप त दे व क पूजा करते ह. (१) यः ाणतो न मषतो म ह वैको राजा जगतो बभूव. य य छायामृतं य य मृ युः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (२) जो जाप त अपने माहा य से सांस लेने वाले और पलक झपकाने वाले सम त ग तशील ा णय के एकमा वामी ह, जीवन और मृ यु छाया के समान जन के अधीन ह, म ह व के ारा उन जाप त दे व क पूजा करता ं. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यं दसी अवत कभाने भयसाने रोदसी अ येथाम. य यासौ प था रजसो वमानः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (३) संसार क र ा के लए धरती और आकाश अपने थान पर थर ह. जाप त ने उ ह नराधार दे श म धारण कया है. नीचे गरने क आशंका से भयभीत धरती और आकाश के म य व मान वे जाप त रोए थे, इस लए इन दोन का नाम रोदसी आ. जस जाप त का आकाश म थत माग वषा के जल का नमाण करता है, हम ह व ारा उन जाप त क पूजा करते ह. (३) य य ौ व पृ थवी च मही य याद उव १ त र म्. य यासौ सूरो वततो म ह वा क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (४) जन जाप त क म हमा से आकाश व तीण और पृ वी व तृत ई है, जन क म हमा से अंत र अथात् आकाश और पृ वी के म यवत भाग का व तार आ है तथा आकाश म य दखाई दे ने वाला सूय व तीण आ है, हम ह ारा उस जाप त क पूजा करते ह. (४) य य व े हमव तो म ह वा समु े य य रसा मदा ः. इमा दशो य य बा क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (५) जस जाप त दे व क म हमा से हमालय आ द सभी पवत उ प ए ह, सागर म सभी स रताएं जस क म हमा से समा जाती ह—पूव, प म, उ र एवं द ण चार दशाएं जस जाप त क भुजाएं ह, हम ह व के ारा उस क पूजा करते ह. (५) आपो अ े व मावन् गभ दधाना अमृता ऋत ाः. यासु दे वी व ध दे व आसीत् क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (६) सृ के आ द म जन बल ने सारे जगत् क र ा क , अ वनाशी और जगत् के कारण हर यगभ को जन द जल ने गभ के प म धारण कया, उन जल को अपने म य धारण करने वाले जाप त क हम ह व के ारा पूजा करते ह. (६) हर यगभः समवतता े भूत य जातः प तरेक आसीत्. स दाधार पृ थवीमुत ां क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (७) सृ के आ द म हर यगभ उ प ए तथा उ प होते ही सभी ा णय के वामी हो गए. उ ह ने इस धरती और आकाश को धारण कया. हम ह व ारा उन जाप त क पूजा करते ह. (७) आपो व सं जनय तीगभम े समैरयन्. त योत जायमान यो ब आसी र ययः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(८) ई र के ारा सब से थम न मत जल ने हर यगभ को ज म दे ने के लए ई र के वीय को धारण कया. उस उ प होने वाले जाप त के उ ब अथात् गभ को घेरने वाली झील वणमय थी. हम ह ारा उस जाप त क पूजा करते ह. (८)
सू -३
दे वता— ा
उ दत यो अ मन् ा ः पु षो वृकः. ह घ य त स धवो ह ग् दे वो वन प त ह ङ् नम तु श वः.. (१) बाघ, चोर मनु य और भे ड़ए—ये तीन इस थान से भाग कर र चले जाएं. जस कार स रताएं गूढ़ प म बहती ह, उसी कार बाघ आ द भी दखाई न द. वन प तय के अ ध ाता दे व जस कार वन प तय म छपे रहते ह, उसी कार बाघ आ द भी लु त हो जाएं. बाघ आ द के जो श ु ह, वे उ ह र भगा द. (१) परेणैतु पथा वृकः परमेणोत त करः. परेण द वती र जुः परेणाघायुरषतु.. (२) जंगली हसक पशु भे ड़या हमारे चलने फरने के माग से र चला जाए. चोर भे ड़ए से भी अ धक र चला जाए. दांत वाले, र सी के आकार वाले एवं सरे क हसा करने वाले सांप के अ त र अ य हसक ाणी भी हमारे संचरण माग से र चले जाएं. (२) अ यौ च ते मुखं च ते ा ज भयाम स. आत् सवान् वश त नखान्.. (३) हे बाघ! म तेरी दोन आंख और मुख को न करता ं. इस के अ त र पैर के बीस नाखून को भी न करता ं. (३)
म तेरे चार
ा ं द वतां वयं थमं ज भयाम स. आ न े मथो अ ह यातुधानमथो वृकम्.. (४) हम दांत से हसा करने वाले पशु म सब से पहले बाघ का नाश करते ह. इस के प ात हम चोर, सप, य , रा स आ द तथा भे ड़ए का नाश करते ह. (४) यो अ तेन आय त स सं प ो अपाय त. पथामप वंसन े ै व ो व ेण ह तु तम्.. (५) आज जो चोर आता है, वह हमारे ारा कुट पट कर र भागे. वह माग म से क दायक माग से जाए और इं अपने व से उस क हसा कर. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
मूणा मृग य द ता अ पशीणा उ पृ यः. न ुक् ते गोधा भवतु नीचाय छशयुमृगः.. (६) बाघ आ द हसक पशु के दांत भोथरे अथात् खाने म असमथ हो जाएं. उन के स ग और पस लय क ह ड् डयां भी पैनी न रह. हे प थक! वह तेरे माग म दखाई न दे और सोने वाले पशु भी पछले माग से र चले जाएं. (६) यत् संयमो न व यमो व यमो य संयमः. इ जाः सोमजा आथवणम स ा ज भनम्.. (७) जहां मं के साम य से इं और सोम से संबं धत संयमन कभी वपरीत भाव नह डालता. हे याकलाप! तू अथवा मह ष ारा दया आ है, इस लए तू बाघ आ द ा णय का हसक बन. (७)
दे वता—वन प त आ द
सू -४ यां वा ग धव अखनद् व णाय मृत जे. तां वा वयं खनाम योष ध शेपहषणीम्.. (१)
हे क प थ अथात् कैथ नाम के वृ एवं फल! व ण का पौ ष न होने पर उ ह वह श पुनः ा त कराने के लए गंधव ने तुझे खोद कर ा त कया था. उसी श वधक ओष ध को हम खोदते ह. (१) उ षा उ सूय उ ददं मामकं वचः. उदे जतु जाप तवृषा शु मेण वा जना.. (२) सूयप नी उषा श शाली वीय से यु यह मं भी श शाली हो तथा जगत् के कर. (२)
हो तथा सूयदे व उसे उ कृ वीय संप कर. मेरा ा जाप त दे व भी इसे अपने बल वीय से उ त
यथा म ते वरोहतोऽ भत त मवान त. तत ते शु मव र मयं कृपो वोष धः.. (३) हे वीय के इ छु क पु ष! पु , पौ आ द के प म वरोहण के कारण तेरी पु ष इं य ो धत सांप के फन के समान चे ा कर सके, इसी कारण म तुझे यह ओष ध दान करता ं. (३) उ छु मौषधीनां सार ऋषभाणाम्. सं पुंसा म वृ यम मन् धे ह तनूव शन्.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वीय वधक ओष धय म े तथा गभाधान म समथ पु ष का सार यह ओष ध तुझे वीय यु करे. हे इं ! पु करने वाली ओष धय म जो वीय है, उसे इस पु ष के शरीर म धारण करो. (४) अपां रसः थमजो ऽ थो वन पतीनाम्. उत सोम य ाता युताशम स वृ यम्.. (५) हे क प थ क जड़! तू जल के मंथन के समय सब से पहले रस के प म उ प ई. तू सभी वृ का सार और सोम क सजातीय है. तू अं गरा आ द ऋ षय के मं से उ प वीय है. (५) अ ा ने अ स वतर दे व सर व त. अ ाय ण पते धनु रवा तानया पसः.. (६) हे अ न, स रता, दे वी सर वती और ण प त! इस वीय चाहने वाले पु ष क पु षइं य को आज वीय दान कर के धनुष के समान तान दो. (६) आहं तनो म ते पसो अ ध या मव ध व न. म वश इव रो हतमनव लायता सदा.. (७) हे वीय के इ छु क पु ष! म तेरी पु षइं य को अपने मं के भाव से धनुष पर चढ़ डोरी के समान सश बनाता ं. इस कारण तू गभाधान करने म समथ बैल के समान स मन से सदा अपनी प नी पर आ मण कर. (७) अ या तर याज य पे व य च. अथ ऋषभ य ये वाजा तान तन् धे ह तनूव शन्.. (८) हे ओष ध! घोड़ , ब च , बकर , मेढ़ और बैल म जो वीय है, तू इस पु ष के शरीर म वैसा ही वीय था पत कर. (८)
सू -५
दे वता—वृषभ
सह शृ ो वृषभो यः समु ा दाचरत्. तेना सह येना वयं न जना वापयाम स.. (१) कामना एवं जल क वषा करने वाले सूय उदयाचल के समीपवत सागर से उदय होते ह. उ दत एवं श ु को वश म करने वाले सूय के ारा हम अपने सामने थत य को न ा-परवश बनाते ह. (१) न भू म वातो अ त वा त ना त प य त क न. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य सवाः वापय शुन े सखा चरन्.. (२) भू म पर वायु अ धक न चले अथात् तेज हवा के कारण लोग क न द न टू टे. सोए ए य म से कोई भी सर को न दे ख सके. हे इं के म वायु! तुम ाण वायु के प म शरीर म वतमान रह कर सभी समीपवत य और कु को सुला दो. (२) ो ेशया त पेशया नारीया व शीवरीः. यो याः पु यग धय ताः सवाः वापयाम स.. (३) जो यां आंगन म अथवा पलंग पर सो रही ह अथवा जो यां झूले आ द म सोने क अ य त ह और उ म गंध वाली ह, उन सब को म सुलाता ं. (३) एजदे जदज भं च ुः ाणमज भम्. अ ा यज भं सवा रा ीणाम तशवरे.. (४) सभी ग तशील ा णय को म ने सुला दया. उन के ने और ना सका न ा ारा गृहीत ह. उन के ह त, चरण आ द को भी म ने न ा म न करा दया है. यह सब म य रा के समय कया है, जब अंधकार क अ धकता होती है. (४) य आ ते य र त य त न् वप य त. तेषां सं द मो अ ी ण यथेदं ह य तथा.. (५) हमारे संचरण के समय जो माग म बैठा है तथा जो ठहर कर दे ख रहा है, म उन सब क आंख इस कार बंद करता ,ं जस कार दखाई दे ने वाला यह भवन दे खने म असमथ है. (५) व तु माता व तु पता व तु ा व तु व प तः. वप व यै ातयः व वयम भतो जनः.. (६) जस ी को न त कर के हम वश म करने के इ छु क ह, उस क माता सब से पहले सो जाए. इस के प ात उस का पता, घर क र ा करने वाला कु ा और घर का वामी उस का प त भी सो जाए. उस के बंधुबांधव एवं उस के घर क र ा के लए नयु चार ओर थत जन भी सो जाएं. (६) व व ा भकरणेन सव न वापया जनम्. ओ सूयम या वापया ुषं जागृतादह म इवा र ो अ तः.. (७) हे व के दे व! श या आ द पर सोने वाले इन जन को तथा अ य य को सूय दय तक न ा म न रखो. सब के सो जाने पर हसा और य से र हत हो कर इं के समान म भोग म संल न र ं एवं जागरण क ं . (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -६
दे वता— ा ण आ द
ा णो ज े थमो दशशीष दशा यः. स सोमं थमः पपौ स चकारारसं वषम्.. (१) सप म सब से पहले त क उ प आ, जो मनु य म था. उस के दस शीश और दस मुख थे. य आ द जा तय के कारण त क ने सब से पहले वगलोक म थत अमृत वाला ा ण त क कंद मूल आ द से उ प रस को वष के
ा ण के समान सप म पू य वाले सप से पहले उ प होने पया. सोम अथात् अमृत पीने भाव से हीन बनाए. (१)
यावती ावापृ थवी व र णा यावत् स त स धवो वत रे. वाचं वष य षण ता मतो नरवा दषम्.. (२) धरती और आकाश का जतना व तार है तथा सागर जतने प रमाण म थत है, म इन दोन थान म थत कंद, मूल, फल से उ प वष को न करने वाले मं से यु वाणी का उ चारण करता ं. (२) सुपण वा ग मान् वष थममावयत्. नामीमदो ना प उता मा अभवः पतुः.. (३) हे वष! सब से पहले सुंदर पंख वाले ग ड़ ने तु ह खाया था. इस कारण तू इस पु ष को मतवाला मत बना एवं वमूढ़ मत कर. हे वष! तू इस के लए अ बन जा. (३) य त आ यत् प चाङ् गु रव ा चद ध ध वनः. अप क भ य श या रवोचमहं वषम्.. (४) पांच अंगु लय वाले जस हाथ ने डोरी चढ़े ए होने के कारण झुके ए धनुष के ारा पु ष के शरीर म वष को प ंचाया है, उस हाथ को म सुपारी वृ के टु कड़े से मं क सहायता से भावहीन करता ं. (४) श याद् वषं नरवोचं ा ना त पणधेः. अपा ा छृ ात् कु मला रवोचमहं वषम्.. (५) बाण म लगे फल से जस वष ने शरीर म वेश कया, उसे म मं बल से बाहर नकालता ं. वषैले प वाले वृ से, लेप से, प से, पशु के स ग से एवं मल से जो वष उ प आ है, उसे म अपने मं बल से शरीर से अलग करता ं. (५) अरस त इषो श यो ऽ थो ते अरसं वषम्. उतारस य वृ य धनु े अरसारसम्.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे बाण! तेरा वष बुझा आ फल वष र हत हो जाए. इस के बाद तेरा वष भावहीन हो जाए. सारहीन वृ से बना आ और तुझ से संबं धत धनुष भी भावहीन हो जाए. (६) ये अपीषन् ये अ दहन् य आ यन् ये अवासृजन्. सव ते व यः कृता व वष ग रः कृतः.. (७) जो लोग वषपूण जड़ीबू टय को पीस कर खलाते ह, जो लोग लेप के प म वष का योग करते ह, जो वष को र से फकते ह तथा जो समीप रह कर अ , फल आ द म वष मला दे ते ह, म ने अपने मं के भाव से इन सब को श हीन बना दया है. जन पवत पर कंद मूल के प म वष उ प होता था, उ ह भी म ने श हीन कर दया है. (७) व य ते ख नतारो व वम योषधे. व ः स पवतो ग रयतो जात मदं वषम्.. (८) हे वषयु जड़ीबूट ! तुझे खोदने वाले श हीन हो जाएं तथा मेरे मं के भाव से तू भी भावहीन हो जा. जन पवत पर वषैले कंदमूल उ प होते ह, वे भी श हीन हो जाएं. (८)
सू -७
दे वता—वन प त
वा रदं वारयातै वरणाव याम ध. त ामृत या स ं तेना ते वारये वषम्.. (१) वारण वृ जहां उ प होते ह, उस वारणावती का वषहारी जल हम मनु य के वष को र करता है. उस जल म वग थत अमृत का वषनाशक भाव व मान है. इस कारण म उस अमृतमय जल से तेरे कंद, मूल आ द से उ प वष को र करता ं. (१) अरसं ा यं वषमरसं य द यम्. अथेदम रा यं कर भेण व क पते.. (२) मेरी मं श से पूव दशा और उ र दशा म उ प होने वाला वष भावहीन हो जाए. द ण, प म तथा नीचे क दशा म उ प होने वाला वष करंभ (भात) से साम यहीन हो जाए. (२) कर भं कृ वा तय पीब पाकमुदार थम्. ुधा कल वा नो ज वा स न पः.. (३) हे शरीर वाले वष! बना जाने ए खाया आ तू चरबी को जलाने वाला और उदर संबंधी रोग का जनक है. इस पु ष ने तुझे करंभ (भात) समझ कर खाया था. तू इस पु ष को मू छत मत बना. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
व ते मदं मदाव त शर मव पातयाम स. वा च मव येष तं वचसा थापयाम स.. (४) हे मू छत करने वाली जड़ीबूट ! तेरे मू छा लाने वाले वष को म शरीर से इस कार र करता ं, जस कार धनुष से छू टा आ बाण र गरता है. हे वष! तू गु त प से जाने वाले त के समान शरीर के अंग म ा त हो जाता है. म अपनी मं श से तुझे शरीर से नकाल कर र करता ं. (४) प र ाम मवा चतं वचसा थापयाम स. त ा वृ इव था य खाते न पः.. (५) हे खोदने से ा त होने वाली जड़ीबूट ! जनसमूह के समान भावशाली तेरे वष को भी हम अपनी मं श के ारा शरीर से नकाल कर र था पत करते ह. तू अपने थान पर वृ के समान न ल रह तथा इस पु ष को मू छत मत कर. (५) पव तै वा पय णन् श भर जनै त. र स वमोषधे ऽ खाते न पः.. (६) हे वषमूलक जड़ीबूट ! मह षय ने तुझे झाड के तनक के बदले खरीदा है. तू ह रण आ द पशु के चम के बदले य क गई है. तू बड़े प र म से खरीद गई है, इस लए यहां से र हो जा और इस पु ष को मू छत मत कर. (६) अना ता ये वः थमा या न कमा ण च रे. वीरान् नो अ मा दभन् तद् व एतत् पुरो दधे.. (७) हे पु षो! तु हारे तकूल आचरण करने वाले श ु ने पहले जो य आ द कम कए ह, उन कम के ारा वे हमारे पु , पौ आ द को इस थान पर ह सत न कर. कया जाता आ यह च क सा कम म उन क र ा के लए तु हारे सामने उप थत करता ं. (७)
सू -८
दे वता—जल
भूतो भूतेषु पय आ दधा त स भूतानाम धप तबभूव. त य मृ यु र त राजसूयं स राजा रा यमनु म यता मदम्.. (१) अ भषेक ारा ऐ य ा त करने वाला राजा ही समृ जनपद म भो य साम ी प ंचाता है. इस कार वह ा णय का वामी आ. मृ यु के दे व यमराज को दं ड दलाने और स जन का पालन करने के लए ही राजा का राजसूय य कराते ह. वह राजा इस रा य को तथा न ह और स जन प रपालन के कम को वीकार करे. (१) अ भ े ह माप वेन उ े ा सप नहा. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
आ त
म वधन तु यं दे वा अ
ुवन्.. (२)
हे राजा! तुम सहासन तथा हाथी, रथ, घोड़ा आ द सवा रय के त अ न छा मत करो. तुम श शाली एवं काय अकाय का ान रखने वाले हो. तुम श ु हंता हो, राज सहासन पर बैठ कर तुम म का क याण करो. इं आ द दे व तु ह अपना कह. (२) आ त तं प र व े अभूषञ् यं वसान र त वरो चः. महत् तद् वृ णो असुर य नामा व पो अमृता न त थौ.. (३) सहासन पर बैठे ए राजा क सब लोग सेवा कर. राजा भी सहासन पर बैठ कर रा यल मी को धारण करे, तेज वी बने तथा जा पालन म त पर हो. अ भषेक से उ प रा यतेज दस दशा म फैल जाए. श ु को र भगाने वाले राजा के नाममा से श ु भयभीत होने लग. यह राजा श ु, म , प नी आ द के त व वध कार का वहार करता आ दं ड, यु , अ ययन आ द कम करे. (३) ा ो अ ध वैया े व म व दशो महीः. वश वा सवा वा छ वापो द ाः पय वतीः.. (४) हे राजा! तुम ा चम पर बैठ कर और बाघ के समान अपराजेय हो कर पूव आ द वशाल दशा को जीतो. तेज वी होने के कारण सारी जाएं तु हारी कामना कर तथा द जल तु हारे रा य को ा त हो, जस से तु हारे रा य म अकाल न पड़े. (४) या आपो द ाः पयसा मद य त र उत वा पृ थ ाम्. तासां वा सवासामपाम भ ष चा म वचसा.. (५) हे राजा! आकाश से बरसने वाले जो जल अपने रस से, ा णय को तृ त करते ह, अंत र और पृ वी पर जो जल थत ह, म तीन लोक म थत इन जल से तु हारा अ भषेक करता ं. (५) अ भ वा वचसा सच ापो द ाः पय वतीः. यथासो म वधन तथा वा स वता करत्.. (६) हे राजा! द जल अपने तेज से तु ह स चे, जस से तुम म सब को ेरणा दे ने वाले स वता दे व तु ह साम य द. (६)
के बढ़ाने वाले बनो.
एना ा ं प रष वजानाः सहं ह व त महते सौभगाय. समु ं न सुभुव त थवांसं ममृ य ते पनम व १ तः.. (७) नद के प म जल जस कार सागर को स करते ह, उसी कार द जल राजा को श शाली बनाएं. जस कार माता पु का आ लगन करती है, उसी कार महान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सौभा य ा त करने के लए जल राजा को श पूण बनाते ह. जल म वतमान गडे के समान अपराजेय राजा को सेवक जन अ भषेक के ारा और व ाभूषण से अलंकृत कर. (७)
सू -९
दे वता— ैककुदांजन
ए ह जीवं ायमाणं पवत या य यम्. व े भदवैद ं प र धज वनाय कम्.. (१) हे अंजन म ण! तू ककुद नामक पवत से जी वत ा णय क र ा के लए आ. तू ककुद पवत क आंख है. इं आ द सभी दे व ने रोग र हत रहने के लए तुझे चहारद वारी के प म दान कया है. (१) प रपाणं पु षाणां प रपाणं गवाम स. अ नामवतां प रपाणाय त थषे.. (२) हे ककुद पवत पर उ प अंजन म ण! तू पु ष , गाय , घोड़ और घो ड़य क र ा के लए थत है. (२) उता स प रपाणं यातुज भनमा न. उतामृत य वं वे थाथो अ स जीवभोजनमथो ह रतभेषजम्.. (३) हे अंजन! तू रा स, पशाच आ द से उ प पीड़ा का नाश करने वाला है. तू अमृत का सार जानता है. तू अ न नवारण करने के कारण जीव का पालक है. तू पांडु रोग से उ प कालेपन को र करने वाला है. (३) य या न सप य म ं प प ः. ततो य मं व बाधस उ ो म यमशी रव.. (४) हे अंजन! तू जस पु ष के शरीर के सभी अंग और अंग क सं धय म वेश कर के ा त होता है, उस के शरीर से तू य मा रोग को इस कार र करता है, जस कार श शाली वायु मेघ के जल को णमा म र ले जाती है. (४) नैनं ा ो त शपथो न कृ या ना भशोचनम्. नैनं व क धम ुते य वा बभ या न.. (५) हे अंजन! जो पु ष तुझे धारण करता है, उस तक सरे के ारा ा त कया आ पाप नह प ंचता तथा सरे य ारा कए गए अ भचार से उ प कृ या नाम क रा सी भी उस तक न प ंचे. कृ या से उ प शोक भी तुझे ा त न हो तथा व न भी उस तक न प ंचे. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अस म ाद् व याद् कृता छमला त. हाद ुषो घोरात् त मा ः पा ा न.. (६) हे अंजन म ण! अ भचार संबंधी बुरे मं से उ प ःख से, बुरे व से ा त ःख से, पूवज म म कए ए पाप से, सरे के ारा कए ए पाप से, षत मन से तथा सर के ू र ने से हमारी र ा करो. (६) इदं व ाना न स यं व या म नानृतम्. सनेयम ं गामहमा मानं तव पू ष.. (७) हे अंजन! तेरी म हमा को जानता आ म यथाथ ही क ंगा, अस य नह बोलूंगा. तु हारा दास बन कर म घोड़ा, गाय एवं जीवन को ा त क ं . (७) यो दासा आ न य त मा बलास आद हः. व ष ः पवतानां ककु ाम ते पता.. (८) क ठनता से जी वत रखने वाला वर, स पात और सप का वष—ये तीन दास के समान अंजन म ण के वश म ह. अथात् अंजनम ण इन के वकार को र कर दे ती है. पवत म सब से ाचीन ककुद तु हारा पता है. (८) यदा नं ैककुदं जातं हमवत प र. यातूं सवाञ्ज भयत् सवा यातुधा यः.. (९) हमालय पवत के ऊपर के भाग म ककुद नाम का पवत है. वहां उ प अंजन वृ सभी रा स और सभी रा सय को न करे. (९) य द वा स क ै कुदं य द यामुनमु यसे. उभे ते भ े ना नी ता यां नः पा ा न.. (१०) हे अंजन! तू मनु य ारा चाहे ककुद पवत से संबं धत कहा जाता है अथवा यमुना से संबं धत. तेरे ैककुद और यामुन दोन ही नाम क याणकारी ह. तू अपने दोन नाम के ारा हमारी र ा कर. (१०)
सू -१०
दे वता—शंखम ण, तृशन
वाता जातो अ त र ाद् व ुतो यो तष प र. स नो हर यजाः शङ् खः कृशनः पा वंहसः.. (१) वायु से उ प , अंत र से उ प , बजली से उ प , यो त मंडल के ऊपर के थान से उ प तथा वग से उ प शंख पाप से हमारी र ा करे. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यो अ तो रोचनानां समु ाद ध ज षे. शङ् खेन ह वा र ां य णो व षहामहे.. (२) हे शंख! तू का शत होने वाले न के आगे वतमान होता है तथा सागर के ऊपर वाले भाग पर ज म लेता है. हम तेरे ारा रा स और पशाच को परा जत करते ह. (२) शङ् खेनामीवामम त शङ् खेनोत सदा वाः. शङ् खो नो व भेषजः कृशनः पा वंहसः.. (३) हम म ण के प म ा त शंख से रोग और सभी अनथ के मूल अ ान के साथसाथ द र ता को भी परा जत करते ह. सभी उप व का वनाशक और वण से उ प शंख पाप से हमारी र ा करे. (३) द व जातः समु जः स धुत पयाभृतः. स नो हर यजाः शङ् ख आयु तरणो म णः.. (४) शंख पहले वगलोक म और उस के बाद समु म उ प आ. नद के उद्गम थान से लाया आ तथा वण न मत शंख और शंख से न मत म ण हमारी आयु वृ करने वाली हो. (४) समु ा जातो म णवृ ा जातो दवाकरः. सो अ मा सवतः पातु हे या दे वासुरे यः.. (५) समु अथवा आकाश से उ प म ण शंख का उपादान है अथात् म ण से ही शंख का नमाण होता है. यह म ण न मत शंख बादल से बाहर नकले सूय के समान दमकता है. शंख से न मत यह म ण हम दे व और असुर के भय से बचाए. (५) हर यानामेको ऽ स सोमात् वम ध ज षे. रथे वम स दशत इषधौ रोचन वं ण आयूं ष ता रषत्.. (६) हे शंख! तू वण, रजत आ द भा वर म मुख है, य क तू अमृतमय चं मंडल से उ प आ है. यु म तू रथ पर दखाई दे ने यो य है. तरकश म भरा आ तू द त दखाई दे ता है. इस कार का शंख अथवा शंख से न मत म ण हमारी आयु को बढ़ाए. (६) दे वानाम थ कृशनं बभूव तदा म व चर य व १ तः. तत् ते ब ना यायुषे वचसे बलाय द घायु वाय शतशारदाय काशन वा भ र तु.. (७) इं आ द दे व का जो र क था, वह वण शंख का कारण आ अथात् वण से शंख का नमाण आ. वह वण शंख के प म शरीर धारण कर के जल के भीतर व मान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
रहता है. हे य ोपवीतधारी चारी! म इस कार से शंख के प म थत वण को तेरे शरीर म चरकाल जीवन के लए बांधता ं. यह वण संबंधी म ण तुझे श , तेज एवं द घ आयु दान करने के साथसाथ सौ वष तक तेरी र ा करे. (७)
सू -११
दे वता—इं अनड् वान
के
प
म
अनड् वान् दाधार पृ थवीमुत ामनड् वान् दाधारोव १ त र म्. अनड् वान् दाधार दशः षडु व रनड् वान् व ं भुवनमा ववेश.. (१) गाड़ी ढोने म समथ बैल हल जोतने आ द के कारण पृ वी का पोषक है. वही बैल च , पुरोडाश आ द क उ प म सहायक होने के कारण आकाश और अंत र को भी धारण करता है. पूव आ द महा दशा का पोषण कता भी यही धम पी बैल है. इस कार ा ारा बनाया गया यह बैल पृ वी आ द सभी लोक क र ा के लए उन म वेश कर के थत रहता है. (१) अनड् वा न ः स पशु यो व च े या छ ो व ममीते अ वनः. भूतं भ व यद् भुवना हानः सवा दे वानां चर त ता न.. (२) यह बैल इं है. इस लए सभी पशु क अपे ा अ धक तेज वी है. जस कार बैल अव छ प से संतान उ प करता है, इं उसी कार भूत, भ व य और वतमान व तु को उ प करता आ अ य दे व के काय करता है. (२) इ ो जातो मनु ये व तघम त त र त शोशुचानः. सु जाः स स उदारे न सषद् यो ना ीयादनडु हो वजानन्.. (३) मनु य म वह बैल इं के समान है. वह बैल धम है. वह सूय के प म सारे जगत् को ऊजा एवं काश दे ता आ वचरण करता है. जो हमारे ारा बैल को दया गया मह व वशेष प से जानता है, वह सभी सुख को भोगता है और शोभन संतान यु हो कर दे ह याग करने के बाद संसार म नह आता. (३) अनड् वान् हे सुकृत य लोक ऐनं यायय त पवमानः पुर तात्. पज यो धारा म त ऊधो अ य य ः पयो द णा दोहो अ य.. (४) इं दे व पी यह बैल य आ द पु य से ा त लोक म अ धक फल दे ता है. य के आरंभ म शोधन कया गया यह अमृतमय सोम इस बैल को रस से भर दे ता है. वृ ेरकदे व ध क धारा है. उनचास पवन ऐन ह, सभी कार का य इस का ध है और य म द गई द णा ही हने क या है. इस कार इस इं और धम पी बैल का दोहन अ य होता है. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य य नेशे य प तन य ो ना य दातेशे न त हीता. यो व जद् व भृद ् व कमा घम नो ूत यतम तु पात्.. (५) यजमान इस दे वता प बैल का वामी नह है. य , दान दे ने वाला और दान हण करने वाला भी इस का वामी नह है. यह व को जीतने वाला तथा व का भरणपोषण करने वाला है. सम त व इसी का काय है. चार चरण वाला यह वृषभ हम तेज वी सूय का व प बताता है. (५) येन दे वाः वरा ह वा शरीरममृत य ना भम्. तेन गे म सुकृत य लोकं घम य तेन तपसा यश यवः.. (६) इस वृषभ प धम क सहायता से दे वगण शरीर याग कर वग को ा त ए ह. वह वग अमृत क ना भ है. इस वृषभ क सहायता से हम पु य के फल के प म ा त भूलोक पर वजय करते ह. द त वाले सूय से संबं धत वृ के ारा हम आ द य के सुख क इ छा करते ह. (६) इ ो पेणा नवहेन जाप तः परमे ी वराट् . व ानरे अ मत वै ानरे अ मतानडु मत. सो ऽ ं हयत सो ऽ धारयत.. (७) यह वृषभ आकृ त से इं तथा अपने कंधे से अ न के समान है. इस कार यह वृषभ जाप त प है. (७) म यमेतदनडु हो य ैष वह आ हतः. एतावद य ाचीनं यावान् यङ् समा हतः.. (८) इस वृषभ के शरीर म जाप त व ह. उ ह ने इस के शरीर के म य भाग को भार वहन करने यो य बनाया है. इस के म य भाग म भार रखा है. इस के अगले और पछले दोन भाग समान ह. (८) यो वेदानडु हो दोहा स तानुपद वतः. जां च लोकं चा ो त तथा स तऋषयो व ः.. (९) जो पु ष इस बैल के य र हत जौ आ द प सात दोहन को जानता है, वह पु , पौ आ द संतान तथा वग आ द लोक को ा त करता है. इस बात को स त ऋ ष जानते ह. (९) प
ः से दमव ाम रां जङ् घा भ खदन्. मेणानड् वान् क लालं क नाश ा भ ग छतः.. (१०)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यह जाप त प वृषभ नराशा उ प करने वाली द र ता को अपने चार चरण से धे मुंह गरा कर अपनी जंघा से धरती को खोदता है. यह बैल अपने म से कसान को अ दे ता है. (१०) ादश वा एता रा ी या आ ः जापतेः. त ोप यो वेद तद् वा अनडु हो तम्.. (११) इस वृषभ म ा त य ा मक जाप त के त के यो य बारह रा य को व मान बताते ह. उन रा य म जाप त पी वृषभ को जो जानता है, वही इस त का अ धकारी है. (११) हे सायं हे ात हे म य दनं प र. दोहा ये अ य संय त तान् व ानुपद वतः.. (१२) ऊपर बताए गए ल ण वाले वृषभ को म सायंकाल, ातःकाल और दोपहर के समय हता ं. म सभी य के अनु ान के फल को भी हता ं. इस वृषभ के जो दोहन फल दान करते ह, उ ह म जानता ं. (१२)
दे वता—रो हणी वन प त
सू -१२ रोह य स रोह य न छ रोहयेदम ध त.. (१)
य रोहणी.
हे लाल रंग वाली लाख! तू घाव को भरने वाली है, इस लए तू तलवार क धार से कटे ए इस अंग से बहते र को उसी थान पर रोक दे . हे अ ं धती दे वी! तू इस र नकले ए अंग को र यु एवं बना घाव वाला बना. (१) यत् ते र ं यत् ते ु म त पे ं त आ म न. धाता तद् भ या पुनः सं दधत् प षा प ः.. (२) हे श से घायल पु ष! तेरा जो अंग घायल और श हार क वेदना से जल रहा है तथा तेरा जो अंग मुगदर आ द के हार से भ न हो गया है, वधाता तेरे उन अंग को लाख के ारा जोड़ दे . (२) सं ते म जा म ा भवतु समु ते प षा प ः. सं ते मांस य व तं सम य प रोहतु.. (३) हे घायल पु ष! तेरे शरीर क जो चरबी चोट से वभ हो गई है, वह जुड़ जाए और तू सुख का अनुभव करे. तेरे शरीर क टू ट ई हड् डी भी जुड़ जाए. हार के घाव से कटा आ मांस सुखपूवक उ प हो जाए तथा तेरे शरीर क टू ट ई हड् डी सुख से जुड़ जाए. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म जा म ा सं धीयतां चमणा चम रोहतु. असृक् ते अ थ रोहतु मांसं मांसेन रोहतु.. (४) तेरी चरबी से चरबी मल जाए. चमड़ा चमड़े से मल जाए और तेरे शरीर से टपकता आ र मं और ओष ध के भाव से पुनः हड् डी को ा त हो. तेरा मांस मांस से मल जाए. (४) लोम लो ना सं क पया वचा सं क पया वचम्. असृक् ते अ थ रोहतु छ ं सं धे ोषधे.. (५) हे लाख नाम क ओष ध! तू हार के कारण शरीर से पृथक् वचा को वचा से मला दे . हे घायल पु ष! तेरी ह ड् डय पर र दौड़ने लगे. हे ओष ध! शरीर का जो भी कटा आ भाग है, उसे जोड़ कर दै नक ग त व धय म स म बना. (५) स उत् त े ह व रथः सुच ः सुप वः सुना भः. त त ो वः.. (६) हे श के हार से घायल पु ष! मं और ओष ध क श से तेरा घायल अंग व थ हो गया है. तू चारपाई से उठ कर उसी कार तेजी से दौड़, जस कार रथ उ म प हय और ढ़ धुर से यु हो कर तेजी से चलता है. (६) य द कत प त वा संश े य द वाशमा तो जघान. ऋभू रथ येवा ा न सं दधत् प षा प ः.. (७) हे पु ष! य द काटने वाला आयुध तेरे शरीर पर गर कर उस को काट रहा है अथवा सर के ारा फका आ प थर तुझे चोट प ंचा रहा है, तेरे शरीर के उन अंग को मं और ओष ध का भाव उसी कार व थ बनाए, जस कार बढ़ई रथ के भ अंग को जोड़ कर एक कर दे ता है. (७)
सू -१३
दे वता— व े दे व
उत दे वा अव हतं दे वा उ यथा पुनः. उताग ु षं दे वा दे वा जीवयथा पुनः.. (१) हे दे वो! य ोपवीत सं कार वाले इस बालक को धम पालन के वषय म सावधान करो. इसे अ ययन से उ प ान आ द फल ा त कराओ. हे दे वो! इस ने अनु ान न करने के प म जो पाप कया है, उस से इस क र ा करो. तुम इसे सौ वष तक जी वत रखो. (१) ा वमौ वातौ वात आ स धोरा परावतः. द ं ते अ य आवातु १ यो वातु यद् रपः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सागर और उस से भी र दे श से आने वाली दोन कार क हवाएं चल. ाण और अपान वायु इस के शरीर म ग त कर. हे उपनयन सं कार वाले पु ष! ाण वायु तुझे बल दान करे तथा अपान वायु तेरे पाप को र करे. (२) आ वात वा ह भेषजं व वात वा ह यद् रपः. वं ह व भेषज दे वानां त ईयसे.. (३) हे वायु! सभी रोग का वनाश करने वाली जड़ीबूट लाओ तथा रोग उ प करने वाले पाप का वनाश करो. हे वायु! तुम सभी ा धय को र करने वाली हो, इसी लए तु ह इं आ द दे व का त कहा जाता है. (३) ाय ता ममं दे वा ाय तां म तां गणाः. ाय तां व ा भूता न यथायमरपा असत्.. (४) इं आ द दे व इस उपनयन सं कार वाले चारी क र ा कर. उनचास म त् इस क र ा कर. सभी ाणी इस क इस कार र ा कर, जस से यह पाप र हत हो सके. (४) आ वागमं श ता त भरथो अ र ता त भः. द ं त उ माभा रषं परा य मं सुवा म ते.. (५) हे उपनयन सं कार वाले चारी! म सुख दे ने वाले मं और क याणकारी कम के साथ तेरे पास आया ं. म तेरे लए उ एवं समृ दे ने वाला बल लाया ं. म य मा रोग को तुझ से र भगाता ं. (५) अयं मे ह तो भगवानयं मे भगव रः. अयं मे व भेषजो ऽ यं शवा भमशनः.. (६) मुझ ऋ ष का यह हाथ भा य वाला एवं भा यवा लय से भी अ धक उ म है. मेरा यह हाथ सभी रोग को र करने वाली ओष ध है. इस का पश सुख दे ने वाला हो. (६) ह ता यां दशशाखा यां ज ा वाचः पुरोगवी. अनाम य नु यां ह ता यां ता यां वा भ मृशाम स.. (७) हे उपनयन सं कार वाले बालक! जाप त के दस उंग लय वाले हाथ के ारा न मत जीभ श द के आगेआगे चलती है. सर वती का उस म अ ध ान है. जाप त के उ ह रोगनाशक हाथ से म तेरा पश करता ं. (७)
सू -१४ अजो
दे वता—अ न, आ य १ नेरज न शोकात् सो अप य ज नतारम े.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेन दे वा दे वताम आयन् तेन रोहान्
म यासः.. (१)
बकरा अ न के ताप से उ प आ था. उस ने सभी पशु क सृ करने वाले जाप त को सब से पहले दे खा. सृ के आ द म इं आ द दे व उसी बकरे के कारण दे व व को ा त ए. उसी बकरे को साधन बना कर अ य ऋ ष भी वग आ द लोक म प ंचे. (१) म वम नना नाकमु यान् ह तेषु ब तः. दव पृ ं वग वा म ा दे वे भरा वम्.. (२) हे मनु यो! तुम य के न म व लत अ न के ारा ःख र हत वग म प ंचो. अंत र क पीठ के समान वग म प ंच कर तुम दे व के समान ऐ य ा त करो तथा वह नवास करो. (२) पृ ात् पृ थ ा अहम त र मा हम त र ाद् दवमा हम्. दवो नाक य पृ ात् व १ य तरगामहम्.. (३) म पृ वी क पीठ अथात् भूलोक से अंत र लोक पर और अंत र से वगलोक पर चढ़ता ं. ःख र हत वग क पीठ से म सूयमंडल म थत हर यगभ पी यो त को ा त करता ं. (३) व १ य तो नापे त आ ां रोह त रोदसी. य ं ये व तोधारं सु व ांसो वते नरे.. (४) य के फल से ा त होने वाले वग को जाने वाले लोग पु , पशु आ द संबंधी सुख क इ छा नह करते ह. जो यजमान व को धारण करने वाले य को भलीभां त जानते ए उस का व तार करते ह, वे वग को जाते ह. (४) अ ने े ह थमो दे वतानां च ुदवानामुत मानुषाणाम्. इय माणा भृगु भः सजोषाः वय तु यजमानाः व त.. (५) हे अ न दे व! तुम दे व म मु य होने के कारण य करने यो य थान पर प ंचो. अ न दे व ह व प ंचाने के कारण इं आ द दे व को ने के समान य ह तथा मनु य को य के ारा पु यलोक का दशन कराते ह. अ न के काश म य करने के इ छु क एवं य करने वाले भृगुवंशी मह षय के साथ समान ी त वाले बन कर य के फल के प म वग ा त कर. (५) अजमन म पयसा घृतेन द ं सुपण पयसं बृह तम्. तेन गे म सुकृत य लोकं वरारोह तो अ भ नाकमु मम्.. (६) ुलोक के यो य एवं यजमान को वग म प ंचाने वाले बकरे को म रसयु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
घी से
चुपड़ता ं. इस कार के बकरे क सहायता से पु य के फल के प म मलने वाले वगलोक को जाएं तथा ःख के पश से शू य हो कर उ म सूय यो त को ा त कर. (६) प चौदनं प च भरङ् गु ल भद र प चधैतमोदनम्. ा यां द श शरो अज य धे ह द णायां द श द णं धे ह पा म्.. (७) हे पाचक! पांच भाग म कटे ए इस बकरे को अपनी पांच उंग लय क सहायता से पकड़ी ई कलछ के सहारे बटलोई से नकाल कर कुश पर रखो. पांच भाग म वभा जत इस बकरे के पके ए सर को पूव दशा म रखो तथा इस के शरीर के दाएं भाग को द ण दशा म था पत करो. (७) ती यां द श भसदम य धे र यां द यु रं धे ह पा म्. ऊ वायां द य१ज यानूकं धे ह द श ुवायां धे ह पाज यम त र े म यतो म यम य.. (८) इस बकरे क कमर के पके ए मांस को प म दशा म तथा इस के बाएं भाग के मांस को उ र दशा म रखो. इस क पीठ के मांस को ऊपर क दशा म तथा पेट के मांस को नीचे क दशा म रखो. इस के शरीर के म यवत मांस को आकाश म था पत करो. (८) शृतमजं शृतया ोणु ह वचा सवर ै ः स भृतं व पम्. स उत् त ेतो अ भ नाकमु मं प तु भः त त द ु.. (९) अपने सभी अंग से पूण बने बकरे को सभी दशा म ा त करो. हे बकरे! तुम इस लीक से चार पैर के ारा वगलोक म चढ़ते ए चार दशा को ा त करो. (९)
सू -१५
दे वता— दशाएं
समु पत तु दशो नभ वतीः सम ा ण वातजूता न य तु. महऋषभ य नदतो नभ वतो वा ा आपः पृ थव तपय तु.. (१) पूव आ द दशाएं वायु एवं मेघ से यु हो कर उदय ह . जल से भरे ए मेघ वायु से े रत हो कर पर पर मल जाएं. सांड़ के समान गजन करते ए एवं वायु से े रत मेघ ारा बरसाए गए जल धरती को तृ त कर. (१) समी य तु त वषाः सुदानवो ऽ पां रसा ओषधी भः सच ताम्. वष य सगा महय तु भू म पृथग् जाय तामोषधयो व पाः.. (२) महान् एवं शोभन गान वाले म द्गण वषा के ारा हम पर अनु ह कर. जल के रस धरती म बोए गे ,ं जौ आ द के बीज से मल जाएं. वषा के जल क धाराएं धरती क पूजा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कर. वषा ारा स चत भू म से नाना अलगअलग उ प ह . (२)
कार क जौ, गे ं आ द फसल जा त भेद से
समी य व गायतो नभां यपां वेगासः पृथगुद ् वज ताम्. वष य सगा महय तु भू म पृथग् जाय तां वी धो व पाः.. (३) हे म द्गण! तुम तु त करते ए हम लोग को मेघ के दशन कराओ. वेग यु जल धाराएं इधरउधर बह. वषा के जल क धाराएं धरती क पूजा कर. वषा ारा स चत भू म से नाना कार क जौ, गे ं आ द फसल जा त भेद से अलगअलग उ प ह . (३) गणा वोप गाय तु मा ताः पज य घो षणः पृथक्. सगा वष य वषतो वष तु पृ थवीमनु.. (४) हे पज य अथात् वषा के दे व! गजन करते ए म त का समूह तु हारी तु त करे. वषा के जल क बूंद अनेक प धारण कर के पृ वी को गीला कर. (४) उद रयत म तः समु त वेषो अक नभ उत् पातयाथ. महऋषभ य नदतो नभ वतो वा ा आपः पृ थव तपय तु.. (५) हे म तो! समु से वषा का जल ऊपर उठाओ. द तशाली एवं जलयु आकाश बादल को ऊपर उठाएं. सांड़ के समान गजन करते ए एवं वायु से े रत मेघ ारा बरसाए गए जल धरती को तृ त कर. (५) अ भ द तनयादयोद ध भू म पज य पयसा सम ङ् ध. वया सृ ं ब लमैतु वषमाशारैषी कृशगुरे व तम्.. (६) हे पज य! चार ओर गजन करो एवं मेघ म वेश कर के श द करो. तुम बरसे ए जल से धरती को स चो. तु हारे ारा े रत गाढ़ा एवं वषा करने म समथ बादल आए. जल क धारा का इ छु क एवं कृश करण वाला सूय छप जाए. (६) सं वो ऽ व तु सुदानव उ सा अजगरा उत. म ः युता मेघा वष तु पृ थवीमनु.. (७) हे मनु यो! शोभन दान वाले म त् तु ह तृ त कर. अजगर से भी मोट जल धाराएं उ प ह . वायु के ारा े रत मेघ पृ वी पर वषा कर. (७) आशामाशां व ोततां वाता वा तु दशो दशः. म ः युता मेघाः सं य तु पृ थवीमनु.. (८) येक दशा म बजली चमके और बादल को लाने वाली हवाएं चल. वायु के ारा ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े रत मेघ पृ वी पर वषा कर. (८) आपो व ुद ं वष सं वो ऽ व तु सुदानव उ सा अजगरा उत. म ः युता मेघाः ाव तु पृ थवीमनु.. (९) हे शोभन दान वाले म तो! तुम से संबं धत मेघ का जल, बजली, जल से भरे ए मेघ तथा अजगर के समान मोट जल धाराएं पृ वी पर वा हत ह . (९) अपाम न तनू भः सं वदानो य ओषधीनाम धपा बभूव. स नो वष वनुतां जातवेदाः ाणं जा यो अमृतं दव प र.. (१०) बादल म थत जल के शरीर से मली ई बजली पी अ न पैदा होने वाली जड़ीबू टय क वा मनी है. उ प होने वाले ा णय के ाता अ न दे व जा को जीवन दे ने वाली तथा वग का अमृत ा त कराने वाली वषा हम दान कर. (१०) जाप तः स ललादा समु ादाप ईरय ुद धमदया त. यायतां वृ णो अ य रेतो ऽ वाङे तेन तन य नुने ह.. (११) जा के पालक सूय ापक सागर से जल को वषा के न म े रत करते ए पी ड़त कर. ापक एवं घोड़े के समान वेग वाले मेघ का वषा जल पी वीय वृ को ा त हो. हे पज य! तुम इस श शाली मेघ के ारा हमारे सामने आओ. (११) अपो न ष च सुरः पता नः स तु गगरा अपां व णाव नीचीरपः सृज. वद तु पृ बाहवो म डू का इ रणानु.. (१२) मेघ के ज मदाता एवं वषा के जल के ारा सब के र क सूय हमारे पता ह. वे वषा के जल को नीचे गराएं. इस के प ात गड़गड़ श द करती ई जल धाराएं बह. हे व ण! तुम भी पृ वी को स चने वाले जल मेघ से नीचे गराओ. ेत भुजा वाले मेढक तृण र हत भू म पर चेतना ा त कर के श द कर. (१२) संव सरं शशयाना ा णा तचा रणः. वाचं पज य ज वतां म डू का अवा दषुः.. (१३) एक वष तक सोए रहने वाले मेढक वष के अंत म वषा के जल से जागृत हो कर तचारी ा ण के समान पज य को स करने वाली वाणी बोलते ह. (१३) उप वद म डू क वषमा वद ता र. म ये द य लव व वगृ चतुरः पदः.. (१४) हे मेढक ! तू स ता को ा त कर के टरटर श द कर. हे द री! तू ऐसा श द कर क ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तेरे घोष से वषा होने लगे. वषा के जल से भरे ए सरोवर के म य म तू अपने चार पैर को उछलने के अनुसार फैला कर छलांग लगा. (१४) ख वखा ३ इ खैमखा ३ इ म ये त र. वष वनु वं पतरो म तां मन इ छत.. (१५) हे खंडख, हे खेमख और हे ता री नामक मेढ कयो! तुम तालाब के म य म रह कर अपने घोष से हम वषा दान करो. हे हमारे पालनकता मंडूको! तुम अपने घोष से वायु का मन वश म कर लो. (१५) महा तं कोशमुदचा भ ष च स व ुतं भवतु वातु वातः. त वतां य ं ब धा वसृ ा आन दनीरोषधयो भव तु.. (१६) हे पज य! तुम सागर से वशाल मेघ का उ ार करो तथा मेघ क वषा से सारी धरती को स चो. तुम उस मेघ को बजली वाला बनाओ. हवा वषा के अनुकूल चले तथा हवा वषा के अनुकूल हो. वषा के ारा अनेक कार से े रत जल य का व तार करे. जौ, गे ं आ द फसल वषा के जल से ह षत ह . (१६)
सू -१६
दे वता—व ण
बृह ेषाम ध ाता अ तका दव प य त. य ताय म यते चर सव दे वा इदं व ः.. (१) महान व ण इन श ु का नयं ण करते ए इन के सभी अ यायी जन को समीप से दे खते ह. व ण जगत् क थावर एवं जंगम सभी व तु को जानते ह. अत य ान के कारण दे वगण थर और न र सभी त व को जानते ह. (१) य त त चर त य व च त यो नलायं चर त यः तङ् कम्. ौ सं नष य म येते राजा तद् वेद व ण तृतीयः.. (२) जो श ु सामने खड़ा होता है, जो चलता है, जो कु टलतापूवक ठगता है, जो छप कर तकूल आचरण करता है तथा जो श ु क मय जीवन पा कर वरोध करता है, महान व ण इन सभी श ु को समय से दे खते ह. दो एकांत म बैठ कर जो गु त मं णा करते ह, उसे राजा व ण तीसरे के प म जानते ह. (२) उतेयं भू मव ण य रा उतासौ ौबृहती रेअ ता. उतो समु ौ व ण य कु ी उता म प उदके नलीनः.. (३) यह भू म भी का न ह करने वाले वामी व ण के वश म रहती है. समीप और र तक फैली ई धरती भी उ ह के अ धकार म है. पूव और प म म वतमान सागर व ण क ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कोख म है. इस कार व प जल म भी सारा जगत् छपा आ है. (३) उत यो ाम तसपात् पर ता स मु यातै व ण य रा ः. दव पशः चर तीदम य सह ा ा अ त प य त भू मम्.. (४) जो अनथकारी श ु पु य कम से ा त होने वाले वग का अ त मण कर के कुमाग पर चलता है, वह राजा व ण के पाश से न छू टे . वगलोक से नकलने वाले व ण के गु तचर पृ वी पर घूमते ह. वे हजार आंख वाले होने के कारण भूलोक के सारे वृ ांत को दे खते ह. (४) सव तद् राजा व णो व च े यद तरा रोदसी यत् पर तात्. सं याता अ य न मषो जनानाम ा नव नी न मनो त ता न.. (५) धरती और आकाश के म य म तथा राजा व ण के सामने जो ाणी रहते ह, उ ह वे वशेष प से दे खते ह. उन के भलेबुरे कम क गणना करने वाले व ण उन के कम के अनुसार ऐसा दं ड न त करते ह, जस कार जुआरी अपनी वजय के लए पासे फकता है. (५) ये ते पाशा व ण स तस त ेधा त त व षता श तः. छन तु सव अनृतं वद तं यः स यवा त तं सृज तु.. (६) हे व ण! तु हारे उ म, म यम एवं अधम ेणी के सातसात पा पय के न ह के न म जहांतहां बंधे ए ह. वे पाश पा पय क हसा करते ए थत ह, वे पाश अस य भाषण करने वाले हमारे श ु को काट द और जो स यवाद है, उसे छोड़ द. (६) शतेन पाशैर भ धे ह व णैनं मा ते मो यनृतवाङ् नृच ः. आ तां जा म उदरं ंश य वा कोश इवाब धः प रकृ यमानः.. (७) हे व ण! अपने सौ पाश से इस अस यवाद को बांधो. हे मनु य के भलेबुरे कम को दे खने वाले! अस य बोलने वाला तुम से छू टने न पाए. बना वचारे काम करने वाला अपने उदर को जलोदर रोग से षत पा कर तलवार क यान के समान झूलता रहे. (७) यः समा यो ३ व णो यो ो यो ३ यः संदे यो ३ व णो यो वदे यः. यो दै वो व णो य मानुषः.. (८) व ण के सामा य पाश समान प से एवं वशेष पाश व ध प से मनु य को रोगी बनाते ह. व ण का जो पाश समान दे श म तथा जो वदे श म बांधने वाला है, जो पाश दे व से संबं धत और जो मनु य से संबं धत है, म उन सब पाश से तुझे बांधता ं. (८) तै वा सवर भ या म पाशैरसावामु यायणामु याः पु . ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तानु ते सवाननुसं दशा म.. (९) हे अमुक श ु, अमुक गो वाले एवं अमुक के पु , म तुझे व ण के इन सभी पाश से बांधता ं. (९)
सू -१७
दे वता—अपामाग, वन प त
ईशानां वा भेषजानामु जेष आरभामहे. च े सह वीय सव मा ओषधे वा.. (१) हे सहदे वी! तू जड़ीबू टय क वा मनी है. म श ु ारा कए गए अ भचार के दोष को शांत करने के लए तेरा पश करता ं. म अ भचार से उ प दोष को र करने के लए तुझे साम य वाली बनाता ं. (१) स य जतं शपथयावन सहमानां पुनःसराम्. सवाः सम ोषधी रतो नः पारया द त.. (२) वा तव म अ भचार आ द दोष को र करने वाली स य जत, सरे के आ ोश को मटाने वाली शपथ यो गनी, सब को परा जत करने वाली सहमाना, बारबार ा ध का वनाश करने वाली पुनःसरा नामक जड़ीबूट को अ य जड़ीबू टयां अ भचार दोष का नाश करने के लए ा त होती ह. (२) या शशाप शपनेन याघं मूरमादधे. या रस य हरणाय जातमारेभे तोकम ु सा.. (३) जस पशाची ने आ ोश म भर कर हम शाप दया है, जस ने मू छा दान करने वाला पाप हमारी ओर भेजा है और जो शरीर के र आ द का हरण करने के लए मेरे पु आ द का आ लगन करती है, वह मेरे ऊपर अ भचार करने वाले श ु के पु को खा जाए. (३) यां ते च ु रामे पा े यां च ु न ललो हते. आमे मांसे कृ यां यां च ु तया कृ याकृतो ज ह.. (४) हे कृ या नाम क रा सी! अ भचार करने वाल ने तुझे मट् ट के बना पके पा म धुआं उगलती ई नीली और लाल वाला वाली अ नय म तथा बना पके मांस म अ भमं त कया है, तू उन का वनाश कर. (४) दौ व यं दौज व यं र ो अ वमरा यः. णा नीः सवा वाच ता अ म ाशयाम स.. (५) हम अ भचार ारा सताए ए इस पु ष से बुरे व संबंधी भय को, ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जीवन वाले
लोग संबंधी भय को, रा स संबंधी भय को और महान अ भचार से उ प भय के कारण को न करते ह. द र ता के कारण पाप ल मयां, छे दका, भे दका आ द नाम वाली जो पशा चयां ह, म उ ह भी इस के शरीर से र भगाता ं. (५) ु ामारं तृ णामारमगोतामनप यताम्. ध अपामाग वया वयं सव तदप मृ महे.. (६) हे अपामाग! हम तेरी सहायता से भूख क पीड़ा से पु ष को मारने वाले एवं यास क अ धकता से पु ष क मृ यु करने वाले अ भचार का वनाश करते ह. हम तेरी सहायता से गाय के अभाव को और संतानहीनता को भी समा त करते ह. (६) तृ णामारं ुधामारमथो अ पराजयम्. अपामाग वया वयं सव तदप मृ महे.. (७) हे अपामाग! हम तेरी सहायता से यास क पीड़ा से पु ष को मारने वाले, भूख क पीड़ा से पु ष को मारने वाले अ भचार एवं जुए म पराजय को र भगाना चाहते ह. (७) अपामाग ओषधीनां सवासामेक इद् वशी. तेन ते मृ म आ थतमथ वमगद र.. (८) हे अ भचार के दोष से गृहीत पु ष! एकमा अपामाग ही सब जड़ीबू टय को वश म करने वाला है. हम अपामाग क सहायता से तुझ म अ भचार ारा उ प रोग आ द को र करते ह. इस के प ात तू रोग र हत हो कर वचरण कर. (८)
सू -१८
दे वता—अपामाग, वन प त
समं यो तः सूयणा ा रा ी समावती. कृणो म स यमूतये ऽ रसाः स तु कृ वरीः.. (१) सूय से उस का यो तमंडल कभी अलग नह होता. रा दन के समान व तार वाली होती है, उसी कार म यथाथ कम करता ं. म अ भचार से पी ड़त पु ष क र ा के लए वनाश करने वाली कृ या को काय करने म असमथ बनाता ं. (१) यो दे वाः कृ यां कृ वा हराद व षो गृहम्. व सो धा रव मातरं तं यगुप प ताम्.. (२) हे दे वो! जो मनु य मं और ओष ध के ारा पीड़ा प ंचाने वाली कृ या के नमाण हेतु उस के घर जाता है. जस कार बछड़ा गाय के पीछे पीछे जाता है, उसी कार वह कृ या अ भचार करने वाले पु ष के समीप जाए. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अमा कृ वा पा मानं य तेना यं जघांस त. अ मान त यां द धायां ब लाः फट् क र त.. (३) जो श ु अनुकूल के समान साथ रह कर कृ या नमाण पी पाप करता है और उस के ारा उस मनु य को मारना चाहता है, जस के त उस का े ष होता है. उस कृ या के तकार के ारा भावहीन होने पर मेरे मं के साम य से उ प पाषाण कृ या बनाने वाले श ु क हसा कर. (३) सह धामन् व शखान् व ीवाञ्छायया वम्. त म च ु षे कृ यां यां यावते हर.. (४) हे हजार थान म होने वाली सहदे वी! तू हमारे श ु के केश एवं ीवा को काट कर उन का वनाश कर. तू हमारे श ु का हत करने वाली कृ या को उ ह क ओर लौटा दे , ज ह ने उस का नमाण कया है. (४) अनयाहमोष या सवाः कृ या अ षम्. यां े े च ु या गोषु यां वा ते पु षेषु.. (५) इस सहदे वी नाम क जड़ीबूट के ारा म ने सभी कृ या को षत एवं भावहीन बना दया है. मेरे श ु ने जस कृ या को मेरे खेत म, मेरी गोशाला म और वायु संचार वाले थान म गाड़ दया है, उन सभी कृ या को म भावहीन कर चुका ं. (५) य कार न शशाक कतु श े पादमङ् गु रम्. चकार भ म म यमा मने तपनं तु सः.. (६) जस श ु ने कृ या का नमाण कया है तथा उस के ारा मेरे एक पैर और एक उंगली को न करना चाहता है, वह मेरी हसा न कर सके. उस के ारा कया गया अ भचार कम मेरे मं और जड़ीबूट के भाव से मेरा मंगल करे तथा कृ या नमाण करने वाले को जला दे . (६) अपामाग ऽ प मा ु े यं शपथ यः. अपाह यातुधानीरप सवा अरा यः.. (७) अपामाग जड़ी माता पता से होने वाले सं ामक रोग के प म हम को ा त य, कु , अप मार आ द को र करे. यह हमारे श ु ारा दए ए पाप को, पशा चय को और द र ता को भी र करे. (७) अपमृ य यातुधानानप सवा अरा यः. अपामाग वया वयं सव मृ महे.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अपामाग! तुम सभी य , रा स और द र ता उ प करने वाली पशा चय को मुझ से र करो. हम य , रा स एवं पशा चय ारा कए ए सभी ःख को तु हारे ारा भावहीन करते ह. (८)
दे वता—अपामाग वन प त
सू -१९
उतो अ यब धुकृ तो अ स नु जा मकृत्. उतो कृ याकृतः जां नड मवा छ ध वा षकम्.. (१) हे अपामाग अथवा सहदे वी! तू श ु और वरो धय का वनाश करने म समथ है. तू कृ या का योग करने वाले के पु , पौ आ द को वषा ऋतु म उ प होने वाली नड नाम क घास के समान काट कर न कर दे . (१) ा णेन पयु ा स क वेन नाषदे न. सेनेवै ष वषीमती न त भयम त य
ा ो याषधे.. (२)
हे सहदे वी अथवा अपामाग नषाद के पु कण नामक मं ा ा ण ने तेरा योग कया है. यजमान क र ा के लए तू सेना के समान गमन करती है. तू जस दे श म ा त होती है, वहां अ भचार संबंधी भय नह रहता. (२) अ मे योषधीनां यो तषेवा भद पयन्. उत ाता स पाक याथो ह ता स र सः.. (३) हे सहदे वी अथवा अपामाग! तू सभी जड़ीबू टय म उसी कार े है, जस कार काश करने वाल म सूय! तू बल क र क और उसे बाधा प ंचाने वाले रा स क वनाशक है. (३) यददो दे वा असुरां वया े नरकुवत. तत वम योषधे ऽ पामाग अजायथाः.. (४) हे ओष ध! ाचीन काल म इं आ द दे व ने तेरे ारा ही रा स को परा जत कया था. इसी कारण तू ने अपामाग नाम ा त कया था. (४) व भ दती शतशाखा व भ दम् नाम ते पता. यग् व भ ध वं तं यो अ मां अ भदास त.. (५) हे अपामाग! तू सैकड़ शाखा वाली हो कर व भदती नाम ा त करती है. तूझे उ प करने वाला व भद कहलाता है. जो श ु हमारा वनाश करना चाहता है, तू उस क वरोधी बन कर उस का वनाश कर. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
असद् भू याः समभवत् तद् यामे त महद् चः. तद् वै ततो वधूपायत् यक् कतारमृ छतु.. (६) हे ओष ध! तेरे पास से नकल कर महान् तेज जस भू म तक जाता है, वहां गाड़ी गई कृ या कसी को हा न नह प ंचा सकती. तू अपने थान से नकल कर वशेष प से व लत होती ई कृ या के नमाण करने वाले को पीड़ा प ंचा. (६) यङ् ह संबभू वथ तीचीनफल वम्. सवान् म छपथाँ अ ध वरीयो यावया वधम्.. (७) हे आ मा भमुख फल दे ने वाले अपामाग! तू श ु के वनाश को मुझ से र कर के उसी के पास भेज दे . श ु ारा मेरे त कए गए हसा साधन और कृ या को तू मुझ से र कर. (७) शतेन मा प र पा ह सह ेणा भ र मा. इ ते वी धां पत उ ओ मानमा दधत्.. (८) हे सहदे वी अथवा अपामाग! तू सैकड़ और हजार उपाय से मेरी र ा कर और मुझे कृ या के दोष से छु ड़ा. हे लता पी जड़ीबू टय क वा मनी! महा तेज वी इं तेरा तेज मुझ म था पत कर. (८)
सू -२०
दे वता—जड़ीबूट
आ प य त त प य त परा प य त प य त. दवम त र माद् भू म सव तद् दे व प य त.. (१) हे सदापु पा नाम क जड़ीबूट ! यह पु ष तेरी म ण को धारण करने वाला होने से आने वाले भय के कारण को, वतमान भय के कारण को तथा भ व य काल म होने वाले भय के कारण को दे खता है और र करना जानता है. यह वग, अंत र एवं पृ वी पर नवास करने वाले सभी ा णय को म ण धारण के कारण दे खता है. (१) त ो दव त ः पृ थवीः षट् चेमाः दशः पृथक्. वयाहं सवा भूता न प या न दे ोषधे.. (२) हे सदापु पा जड़ीबूट ! तेरी म ण को धारण करने के भाव से म तीन वग , तीन पृ वय , छह दशा , अथात् पूव, प म, उ र, द ण, ऊपर, नीचे तथा इन सब म रहने वाले सभी ा णय को जानता ं. (२) द य सुपण य त य हा स कनी नका. सा भू ममा रो हथ व ं ा ता वधू रव.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सदापु पा जड़ीबूट ! तू द ग ड़ क कनी नका अथात् आंख क पुतली के समान है. तू ग ड़ के ने से नकल कर धरती पर उसी कार उगी है, जस कार थकान के कारण चलने म असमथ वधू सवारी पर बैठ जाती है. (३) तां मे सह ा ो दे वो द णे ह त आ दधत्. तयाहं सव प या म य शू उतायः.. (४) हजार आंख वाले इं दे व ने उस सदा पु पा को मेरे दा हने हाथ म धारण कराया है. तेरे भाव से म सब को दे खता और वश म करता ं, चाहे वह शू हो अथवा आय अथात् ा ण, य और वै य. (४) आ व कृणु व पा ण मा मानमप गूहथाः. अथो सह च ो वं त प याः कमी दनः.. (५) हे ओष ध! तू अपने रा स, पशाच आ द को र करने वाले प को का शत कर तथा अपने व प को मत छपा. हे जड़ीबूट ! हमारी र ा के लए उन रा स क ती ा कर जो छपे ए प से यह खोजते ए घूमते ह क यह या है, यह या है? (५) दशय मा यातुधानान् दशय यातुधा यः. पशाचा सवान् दशये त वा रभ ओषधे.. (६) हे सदापु पा जड़ी! मुझे रा स एवं रा सय के दशन कराओ. वे गूढ़ प से मुझे बाधा न प ंचा सक. म तु ह इसी लए धारण करता ं क तुम मुझे सभी पशाच को दखाओ. (६) क यप य च ुर स शु या चतुर याः. वी े सूय मव सप तं मा पशाचं तर करः.. (७) हे सदापु पा जड़ी! तू मह ष क यप एवं चार आंख वाली दे वशुनी सरमा क आंख है अथात् उन क आंख के समान आकृ त वाली है. अंत र म सूय जस कार वचरण करते ह, उसी कार चलते फरते पशाच को तू मुझ से मत छपा. (७) उद भं प रपाणाद् यातुधानं कमी दनम्. तेनाहं सव प या युत शू मुतायम्.. (८) खोज करने के लए घूमते ए रा स को म ने अपनी र ा क से वश म कर लया है. उस पशाच क सहायता से म शू एवं ा ण जा त वाले ह को दे खता ं. (८) यो अ त र ेण पत त दवं य ा तसप त. भू म यो म यते नाथं तं पशाचं दशय.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो पशाच अंत र से गरता है, जो वगलोक से ऊपर गमन करता है और धरती को अपने अ धकार म मानता है, उस पशाच को भी मुझे दखा, जस से म उस का नराकरण कर सकूं. (९)
सू -२१
दे वता—गाएं
आ गावो अ म त ु भ म सीद तु गो े रणय व मे. जा ऽ वतीः पु पा इह यु र ाय पूव षसो हानाः.. (१) गाएं हमारी ओर आएं, हमारा क याण कर, हमारी गोशाला म बैठ तथा हम ध आ द दे कर स कर. ेत, कृ ण आ द अनेक वण क गाएं अ धक संतान वाली हो कर यजमान के घर म समृ बन तथा अ धक समय तक इं के न म ध दे ती रह. (१) इ ो य वने गृणते च श त उपेद ् ददा त न वं मुषाय त. भूयोभूयो र य मद य वधय भ े ख ये न दधा त दे वयुम्.. (२) इं तु त करने वाले यजमान को गाय ा त करने का उपाय बताते ह तथा उ ह ब त सी गाएं दान करते ह. इं उस यजमान के धन का अपहरण नह करते. वे उस तोता और यजमान के धन को अ धक मा ा म बढ़ाते ए उसे वग म थान दलाते ह, जस म ःख नह होता. (२) न ता नश त न दभा त त करो नासामा म ो थरा दधष त. दे वां या भयजते ददा त च यो गत् ता भः सचते गोप तः सह.. (३) इं के ारा द गई गाएं न न ह तथा उ ह चोर न चुरा सक. श ु के आयुध उन गाय को पीड़ा न प ंचाएं. जन गाय के ध और घी के ारा य कया जाता है और ज ह य क द णा के प म दया जाता है, उन गाय के साथ यजमान अ धक समय तक रहे, उन से वयु न हो. (३) न ता अवा रेणुककाटो ऽ ुते न सं कृत मुप य त ता अ भ. उ गायमभयं त य ता अनु गावो मत य व चर त य वनः.. (४) हसक एवं कमर के टु कड़े करने वाले बाघ आ द पशु उन गाय तक न प ंच. वे गाएं मांस पकाने वाले के समीप न जाएं एवं यजमान के भय र हत थान को ा त ह . (४) गावो भगो गाव इ ो म इ छाद् गावः सोम य थम य भ ः. इमा या गावः स जनास इ इ छा म दा मनसा च द म्.. (५) गाएं ही पु ष का धन और सौभा य ह. इं ऐसी इ छा कर, जस से मुझे गाएं मल सक. छाना गया सोमरस गाय के ध और दही म ही स कया जाता है. हे मनु यो! ये जो ******ebook converter DEMO Watermarks*******
गाएं दखाई दे ती ह, वे ही इं ह. इस हेतु म गाय के ध, घी आ द ह व के ारा दय और ान से इं का य करना चाहता ं. (५) यूयं गावो मेदयथा कृशं चद ीरं चत् कृणुथा सु तीकम्. भ ं गृहं कृणुथ भ वाचो बृहद् वो वय उ यते सभासु.. (६) हे गायो! तुम अपने ध, घी आ द से बल मनु य को भी मोटाताजा बनाओ तथा अशोभन अंग वाले को शोभन अवयव वाला बनाओ. हे क याणी वाणी वाली गाय! हमारे घर को अलंकृत बनाओ. तु हारे ध, दही, घी आ द से बना भोजन सभा म अ धक शंसा पाता है. (६) जावतीः सूयवसे श तीः शु ा अपः सु पाणे पब तीः. मा व तेन ईशत माघशंसः प र वो य हे तवृण ु .. (७) हे गाय! तुम उ म घास वाली भू म म चलती ई व छ जल पयो और उ म संतान वाली बनो. चोर तु ह न चुरा सके. बाघ आ द पशु तु हारी हसा न कर. का आयुध तु हारा पश न करे. (७)
सू -२२ इम म वधय नर म ान णु
दे वता—इं ,
य राजा
यं म इमं वशामेकवृषं कृणु वम्. य सवा तान् र धया मा अहमु रेष.ु . (१)
हे इं ! मेरे इस य राजा को पु , पौ , वाहन आ द से समृ बनाओ. इस राजा को तुम वीय वाल म मुख बनाओ. जो इस के श ु राजा ह, उन सब को तुम ाण हीन कर दो. तुम सभी को इस के वश म करो. म भी इसे अपने मं के साम य से इं आ द लोकपाल म से एक बनाता ं. (१) एमं भज ामे अ ेषु गोषु न ं भज यो अ म ो अ य. वम ाणामयम तु राजे श ुं र धय सवम मै.. (२) हे इं ! इस राजा को जनसमूह से, घोड़ से और गाय से संयु करो, इस का जो श ु है, उसे जन समूह आ द से अलग करो. यह राजा अ य य के शीश पर वतमान हो अथात् सव े य बने. इस के सभी श ु को तुम इस के वश म करो. (२) अयम तु धनप तधनानामयं वशां व प तर तु राजा. अ म म ह वचा स धे वचसं कृणु ह श ुम य.. (३) हे इं ! यह राजा धनप तय म उ म धनप त तथा जा तय म उ म जापालक हो. इस राजा म महान तेज और वीय धारण करो तथा इस राजा के श ु को तेजहीन बनाओ. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
(३) अ मै ावापृ थवी भू र वामं हाथां घम घे इव धेनू. अयं राजा य इ य भूयात् यो गवामोषधीनां पशूनाम्.. (४) हे ावा और पृ वी! मेरे इस राजा के लए धम घा गौ के समान अ धक मा ा म धन दान करो. यह राजा इं का अ य धक य हो जाए तथा उस के कारण म गाय , जड़ीबू टय और पशु का य बनूं. (४) युन म त उ राव त म ं येन जय त न पराजय ते. य वा करदे कवृषं जनानामुत रा ामु मं मानवानाम्.. (५) हे राजन्! म अ तशय उ कष वाले इं को तु हारा म बनाता ं. उन इं क ेरणा से तु हारे यो ा वजयी ह गे, कभी परा जत नह ह गे. जस इं ने तु ह अ य मनु य के म य गाय म सांड़ के समान उ म बनाया है, उसी ने तु ह मनु य और राजा म े बनाया है. (५) उ र वमधरे ते सप ना ये के च राजन् तश व ते. एकवृष इ सखा जगीवाञ्छ ूयतामा भरा भोजना न.. (६) हे राजन्! तुम े बनो तथा तु हारे वरोधी न नतम बन. वे वरोधी तु हारे त श ुता का भाव रखते ह. तुम सव मुख एवं इं के म बन कर सभी पर वजय ा त करो. जो तु हारे श ु के समान आचरण करते ह, तुम उन के भोगसाधन धन को छ न लो. (६) सह तीको वशो अ सवा ा तीको ऽ व बाध व श ून्. एकवृष इ सखा जगीवाञ्छ ूयतामा खदा भोजना न.. (७) हे राजन्! तुम सह के समान परा मी बन कर सभी जा पर शासन करो तथा बाघ के समान आ मणकारी बन कर सभी श ु को बाधा प ंचाओ. तुम सव मुख एवं इं के म बन कर सभी पर वजय ा त करो. जो तु हारे श ु के समान आचरण करते ह, तुम उन के भोग साधन धन को छ न लो. (७)
सू -२३
दे वता—अ न
अ नेम वे थम य चेतसः पा चज य य ब धा य म धते. वशो वशः व शवांसमीमहे स नो मु च वंहसः.. (१) म मु य वशेष ानी एवं दे वय , पतृय , सूतय , मनु यय और बृहत्य नामक पांच य करने वाले अ न दे व का मह व जानता ं. उ ह अनेक कार से व लत कया जाता है. सभी जा म जठरा न के प म वेश करने वाले अ न दे व से म याचना करता ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ं क वह मुझे पाप से बचाएं. (१) यथा ह ं वह स जातवेदो यथा य ं क पय स जानन्. एवा दे वे यः सुम त न आ वह स नो मु च वंहसः.. (२) हे जातवेद अ न! तुम जस कार च , पुरोडाश आ द ह को दे व तक प ंचाते हो तथा जस कार ान रखते ए य पूण करते हो, उसी कार हमारे वषय म दे व क उ म बु को लाओ. इस कार के अ न हम पाप से छु ड़ाएं. (२) याम याम प ु यु ं व ह ं कम कम ाभगमम नमीड़े. र ोहणं य वृधं घृता तं स नो मु च वंहसः (३) होम के आधार पर होने के कारण अनेक फल ा त कराने म नयु , ढोने वाल म े , अनेक य कम के ारा सेवनीय, रा स के वनाश कता, य क वृ करने वाले एवं घृत क आ तय से द त अ न क म तु त करता ं. इस कार के अ न मुझे पाप से छु ड़ाएं. (३) सुजातं जातवेदसम नं वै ानरं वभुम्. ह वाहं हवामहे स नो मु च वंहसः.. (४) शोभन ज म वाले, उ प होने वाले ा णय के ाता, संसार के मनु य के हतैषी, ापक एवं ह वहन करने वाले अ न का म आ ान करता ं. वह पाप से मेरी र ा कर. (४) येन ऋषयो बलम ोतयन् युजा येनासुराणामयुव त मायाः. येना नना पणी न ो जगाय स नो मु च वंहसः.. (५) ऋ षय ने जन म बने ए अ न क सहायता से अपना साम य बढ़ाया, दे व ने जन क सहायता से असुर क माया को न कया तथा जन अ न क सहायता से इं ने प णय को परा जत कया, वे अ न मुझे पाप से बचाए. (५) येन दे वा अमृतम व व दन् येनौषधीमधुमतीरकृ वन्. येन दे वाः व १ राभर स नो मु च वंहसः.. (६) जस अ न क सहायता से दे व ने अमृत ा त कया, जन अ न क सहायता से जड़ीबू टय ने मधुर रस ा त कया तथा जन क सहायता से वग ा त कया जाता है, वह अ न दे व मुझे पाप से छु ड़ाएं. (६) य येदं द श यद् वरोचते य जातं ज नत ं च केवलम्. तौ य नं ना थतो जोहवी म स नो मु च वंहसः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस अ न के शासन म सारा जगत् वतमान है, अंत र म ह, न आ द का शत ह, उ प ए और उ प होने वाले सभी ाणी जन के शासन म ह, म उन अ न क तु त करता ं तथा फल क कामना से बार-बार हवन करता ं. ऐसे अ न दे व मुझे पाप से छु ड़ाएं. (७)
सू -२४
दे वता—इं
इ य म महे श दद य म महे वृ न तोमा उप मेम आगुः. यो दाशुषः सुकृतो हवमे त स नो मु च वंहसः.. (१) म बारबार इं का मह व वीकार करता ं. वृ क ह या करने वाले इं के ये तो मेरे समीप आ कर मुझे तोता बनाते ह. जो इं च , पुरोडाश आ द दे ने वाले एवं उ म य करने वाले यजमान का आ ान वीकार करते ह, वह इं मुझे पाप से बचाएं. (१) य उ ीणामु बा ययुय दानवानां बलमा रोज. येन जताः स धवो येन गावः स नो मु च वंहसः.. (२) जो इं ऊपर हाथ उठा कर श ु सेना को भगा दे ते ह, ज ह ने दानव के बल को सभी ओर से न कर दया है, जन इं ने मेघ म थत जल को जीता था तथा ज ह ने प णय के ारा चुराई ई गाएं ा त क , वह हम पाप से छु ड़ाएं. (२) य ष ण ो वृषभः व वद् य मै ावाणः वद त नृ णम्. य या वरः स तहोता म द ः स नो मु च वंहसः.. (३) जो इं मनु य को मनचाहा फल दे कर पूण करने वाले, बैल के समान श शाली और वग ा त करने वाले ह, जन इं के लए प थर सोमरस दान करते ह एवं सात होता से यु जन इं से संबं धत सोमयाग स करने वाला होता है, वह हम पाप से बचाएं. (३) य य वशास ऋषभास उ णो य मै मीय ते वरवः व वदे . य मै शु ः पवते शु भतः स नो मु च वंहसः.. (४) जन इं के य के न म बांझ गाएं, बैल एवं सांड़ लाए जाते ह, वग ा त करने वाले जन इं के न म य म गांठ वाले खंभे गाड़े जाते ह तथा जन इं के न म नचोड़ने के साधन से यु एवं नमल सोमरस छाना जाता है, वह इं हम पाप से बचाएं. (४) य य जु सो मनः कामय ते यं हव त इषुम तं ग व ौ. य म कः श ये य म ोजः स नो मु च वंहसः.. (५) सोमरस वाले यजमान जन क ी त क कामना करते ह तथा जन आयुध धारी इं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को प णय ारा चुराई गई गाय क खोज के लए बुलाया जाता है तथा जन इं के वषय म अचना के साधन मं आ त ह, वह इं हम पाप से बचाएं. (५) यः थमः कमकृ याय ज े य य वीय थम यानुबु म्. येनो तो व ो ऽ यायता ह स नो मु च वंहसः.. (६) जो इं मुख प से यो त ोम आ द य करने के लए उ प ए थे, जन मुख इं का वृ हनन संबंधी शौय कम स है तथा जन के ारा उठाया गया व सभी ओर हसा करता है, वह इं दे व मुझे पाप से बचाएं. (६) यः सङ् ामान् नय त सं युधे वशी यः पु ा न संसृज त या न. तौमी ं ना थतो जोहवी म स नो मु च वंहसः.. (७) जो वतं इं हार करने के लए यु करते ह, जो पु ीपु ष के जोड़े बनाते ह, म फल क कामना से उ ह इं क तु त करता ं और उन के न म बारबार हवन करता ं. वह मुझे पाप से छु ड़ाएं. (७)
सू -२५
दे वता—वायु, स वता
वायोः स वतु वदथा न म महे यावा म वद् वशथो यौ च र थः. यौ व य प रभू बभूवथु तौ नो मु चतमंहसः.. (१) वायु और स वता के वेद म वणन कए गए कम को म जानता ं. हे वायु एवं स वता दे व! तुम दोन थावर और संगम जीव म वेश करते हो एवं र ा करते हो. तुम दोन व क र ा के लए उ प ए हो. तुम दोन हम पाप से छु ड़ाओ. (१) ययोः सङ् याता व रमा पा थवा न या यां रजो यु पतम त र े. ययोः ायं ना वानशे क न तौ नो मु चतमंहसः.. (२) जन वायु और स वता दे व के मह व जन के ारा भलीभां त स ह, जन दोन के ारा आकाश म जल को धारण कया जाता है तथा कोई अ य दे व जन वायु और स वता के उ म गमन को ा त नह कर पाता, वे दोन हम पाप से मु कर. (२) तव ते न वश ते जनास व यु दते ेरते च भानो. युवं वायो स वता च भुवना न र थ तौ नो मु चतमंहसः.. (३) हे स वता! तुम से संबं धत कम म लोग नयम से लगे रहते ह. हे व च द त वाले सूय! तु हारे नकलने पर सभी लोग अपनेअपने काम म लग जाते ह. तुम दोन अथात् वायु और स वता लोक क र ा करते हो. तुम दोन हम पाप से बचाओ. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अपेतो वायो स वता च कृतमप र ां स श मदां च सेधतम्. सं ३ जया सृजथः सं बलेन तौ नो मु चतमंहसः.. (४) हे वायु एवं स वता दे व! तुम मेरे पाप को मुझ से र करो. उप वकारी रा स तथा जलती ई कृ या रा सी को यहां से र भगाओ. तुम ऊजा और बल से मेरा सृजन करो तथा मुझे पाप से बचाओ. (४) र य मे पोषं स वतोत वायु तनू द मा सुवतां सुशेवम्. अय मता त मह इह ध ं तौ नो मु चतमंहसः.. (५) स वता और वायु मेरे लए धन और पु को े रत कर. ये दोन मेरे शरीर म सुख एवं बल दान कर. इस यजमान के शरीर म ये दोन रोगहीनता तथा तेज धारण कर और हम पाप से बचाएं. (५) सुम त स वतवाय ऊतये मह व तं म सरं मादयाथः. अवाग् वाम य वतो न य छतं तौ नो मु चतमंहसः.. (६) हे स वता एवं वायु दे व! हमारी र ा के लए हम उ म बु दान करो तथा द तशाली एवं मादक सोमरस को पी कर स बनो. तुम दोन उ म धन को हमारी ओर े रत करो तथा हम पाप से छु ड़ाओ. (६) उप े ा न आ शषो दे वयोधाम थरन्. तौ म दे वं स वतारं च वायुं तौ नो मु चतमंहसः.. (७) वायु और स वता दे व के तेज के वषय म हमारी उ म एवं फलदायक ाथनाएं उप थत ह. हम धन आ द गुण से यु वायु एवं स वता दे व क तु त करते ह. ये दोन हम पाप से छु ड़ाएं. (७)
सू -२६
दे वता— ावा, पृ वी
म वे वां ावापृ थवी सुभोजसौ सचेतसौ ये अ थेथाम मता योजना न. त े भवतं वसूनां ते नो मु चतमंहसः.. (१) हे ावा पृ वी! तुम दोन शोभन भोग वाले एवं समान च वाले हो. म तु हारी तु त करता ं. तुम दोन अनंत योजन व तार वाले हो. तुम दोन नवास करने वाले दे व मनु य अथवा धन के उ म थान बनते ह . तुम दोन हम पाप से छु ड़ाओ. (१) त े भवतं वसूनां वृ े दे वी सुभगे उ ची. ावापृ थवी भवतं मे योने ते नो मु चतमंहसः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सभी ा णय के आधार बने ए ावा पृ वी सारे जगत् म व ह. हे द , उ म सौभा य वाले एवं ा त ावा पृ वी! मेरे सुख के कारण बनो एवं मुझे पाप से बचाओ. (२) अस तापे सुतपसौ वे ऽ हमुव ग भीरे क व भनम ये. ावापृ थवी भवतं मे योने ते नो मु चतमंहसः.. (३) संताप र हत, उ म ताप वाले, गंभीर एवं व ान मेरे सुख के कारण बन एवं मुझे पाप से छु ड़ाएं. (३)
ारा नम कार के यो य ावा पृ वी,
ये अमृतं बभृथो ये हव ष ये ो या बभृथो ये मनु यान्. ावापृ थवी भवतं मे योने ते नो मु चतमंहसः.. (४) जो ावा पृ वी अमृत को धारण करते ह तथा जो च , पुरोडाश आ द को, न दय को एवं मनु य को धारण करते ह, वे मेरे लए सुख के कारण बन एवं मुझे पाप से छु ड़ाएं. (४) ये उ या बभृथो ये वन पतीन् ययोवा व ा भुवना य तः. ावापृ थवी भवतं मे योने ते नो मु चतमंहसः.. (५) जो ावा पृ वी सभी गाय को धारण करते ह, जो सभी वृ को धारण करते ह तथा जन दोन के म य सम त भवन ह, वे ावा पृ वी, मेरे लए सुख का कारण बन एवं मुझे पाप से छु ड़ाएं. (५) ये क लालेन तपयथो ये घृतेन या यामृते न क चन श नुव तः. ावापृ थवी भवतं मे योने ते नो मु चतमंहसः.. (६) जो ावा पृ वी अ एवं घृत के ारा सम त व को तृ त करते ह, जन दोन के बना मनु य कुछ भी नह कर सकते, वे ावा पृ वी मेरे लए सुख का कारण बन एवं मुझे पाप से छु ड़ाएं. (६) य मेदम भशोच त येनयेन वा कृतं पौ षेया दै वात्. तौ म ावापृ थवी ना थतो जोहवी म ते नो मु चतमंहसः.. (७) यह पाप और उस का फल मुझे सभी ओर से जलाता है एवं इसी के कारण बारबार पाप कए जाते ह. पु ष से े रत पाप के समान दे व कम से संबं धत पाप भी मुझे जलाता है. म फल क कामना से ावा पृ वी क तु त करता ं. ये दोन मुझे पाप से छु ड़ाएं. (७)
सू -२७
दे वता—म त्
म तां म वे अ ध मे ुव तु ेमं वाजं वाजसाते अव तु. आशू नव सुयमान ऊतये ते नो मु च वंहसः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म उनचास म त का माहा य जानता ं. वे म त मुझे अपना कह. अ के लाभ का अवसर आने पर वे इस अ क मेरे लए र ा कर. म घोड़ क लगाम के समान संय मत म त को अपनी र ा के लए बुलाता ं. वे मुझे पाप से छु ड़ाएं. (१) उ सम तं च त ये सदा य आ स च त रसमोषधीषु. पुरो दधे म त्ः पृ मातॄं ते नो मु च वंहसः.. (२) जो म त सदै व वषा क धारा से यु एवं वनाश र हत मेघ को आकाश म फैलाते ह तथा गे ं, जौ, वृ आ द म रस स चते ह. म यमा वाणी जन क माता ह, ऐसे म त को म अपने सामने रखता ं. वे मुझे पाप से बचाएं. (२) पयो धेनूनां रसमोषधीनां जवमवतां कवयो य इ वथ. श मा भव तु म तो नः योना ते नो मु च वंहसः.. (३) हे म तो! तुम ांतदश हो कर गाय के ध को, जड़ीबू टय के रस को तथा घोड़ के वेग को बढ़ाते हो. सभी काय करने म समथ वे म त् हमारे लए सुखकारी ह तथा हम पाप से बचाएं. (३) अपः समु ाद् दवमुद ् वह त दव पृ थवीम भ ये सृज त. ये अ रीशाना म त र त ते नो मु च वंहसः.. (४) जो म त्, सागर के जल को मेघ के ारा अंत र म प ंचाते ह, इस के प ात उसी जल को अंत र से धरती पर छोड़ते ह, उ ह जल के वामी बन कर जो म त् वचरण करते ह, वे हम पाप से छु ड़ाएं. (४) ये क लालेन तपय त ये घृतेन ये वा वयो मेदसा संसृज त. ये अ रीशाना म तो वषय त ते नो मु च वंहसः.. (५) म त् वषा से उ प अ के ारा एवं जल के ारा जन को तृ त करते ह. जो प य को चरबी से यु करते ह, जो म त् मेघ के ईश बन कर वचरण करते ह, वे हम पाप से बचाएं. (५) यद ददं म तो मा तेन य द दे वा दै ेने गार. यूयमी श वे वसव त य न कृते ते नो मु च वंहसः.. (६) हे म तो! य द मेरा ःख अथवा ःख का कारण पाप मुझे म त् संबंधी अपराध के कारण ा त आ है, हे इं आ द दे वो! य द मुझे यह ःख दे व संबंधी अपराध के कारण ा त आ है तो हे म तो! इस ःख अथवा पाप को मटाने म तुम समथ हो. तुम मुझे पाप से छु ड़ाओ. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त ममनीकं व दतं सह वन् मा तं शधः पृतनासू म्. तौ म म तो ना थतो जोहवी म ते नो मु च वंहसः.. (७) ती ण समय बना आ स एवं परा जत करने वाला म त का बल सेना को ः सह होता है. उ ह म त क म तु त करता ं एवं उ ह सुख ा त के लए बुलाता ं. वे मुझे पाप से बचाएं. (७)
सू -२८
दे वता—भव, शव
भवाशव म वे वां त य व ं ययोवा मदं द श यद् वरोचते. याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (१) हे भव और शव! म तु हारा मह व जानता ं. मेरे ारा कहा जाता आ अपना मह व तुम जानो. तुम दोन के शासन म यह सारा व का शत होता है. भव और शव श ु को अपने व से संयु करते ह, इस समय या उ प आ है, ऐसी खोज करने वाले रा स को भी अपने आयुध से मारो. जो भव और शव इस व के दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं. (१) ययोर य व उत यद् रे चद् यौ व दता वषुभृताम स ौ. याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (२) जन भव और शव के माग के समीप अथवा र जो कुछ भी है, वह उ ह के अ धकार म है, जो भव और शव सब के ारा ात, वपुषधारी और बाण फकने म कुशल है, जो इस संसार के दो पैर वाले मनु य तथा चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं. (२) सह ा ौ वृ हणा वे ऽ हं रेग ूती तुव े यु ौ. याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (३) म हजार आंख वाले वृ का त करता ं एवं र दे श म वतमान भव और शव का आ ान करता ं. म उ ह श शा लय क शंसा करता ं जो भव और शव इस संसार के दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं. (३) यावारेभाथे ब साकम े चेद ा म भभां जनेषु. याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (४) हे भव और शव! तुम ने सृ के आ द म ब त से ा णय के समूह का नमाण कया है. इस के प ात उन म वीय क पया त मा ा म रचना कर, जो भव और शव इस व के दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से छु ड़ाएं. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ययोवधा ापप ते क ना तदवेषूत मानुषेषु. याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (५) जन भव और शव के हनन साधन आयुध से दे व और मनु य के म य कोई नह बचता तथा जो इस व के दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं. (५) यः कृ याकृ मूलकृद् यातुधानो न त मन् ध ं व मु ौ. याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (६) हे भव और शव! जो श ु कृ या रा सी के ारा सर का वनाश करता है एवं जो रा स वंशवृ के मूल आधार संतान का वनाश करता है, इन दोन कार के श ु पर अपना व छोड़ो. जो भव और शव इस व के दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं. (६) अ ध नो ूतं पृतनासू ौ सं व ेण सृजतं यः कमीद . तौ म भवाशव ना थतो जोहवी म तौ नो मु चतमंहसः.. (७) हे परा जत न होने वाले भव और शव! हमारे वषय म प पात के वचन कहो एवं सं ाम म हमारे बल को परा जत न होने वाला बनाओ. म ावा और पृ वी क तु त करता ं. मुझे पाप से छु ड़ाएं. (७)
सू -२९
दे वता— म , व ण
म वे वां म ाव णावृतावृधौ सचेतसौ णो यौ नुदेथे. स यावानमवथो भरेषु तौ नो मु चतमंहसः.. (१) हे ऋत् अथात् स य, जल अथवा य को बढ़ाने वाले एवं समान ान वाले म और व ण! म तुम दोन के मह व क तु त करता ं. तुम ोह करने वाल का हनन कर दे ते हो. तुम स य त पु ष क सं ाम म र ा करते हो. ऐसे म और व ण मुझे पाप से बचाएं. (१) सचेतसौ णो यौ नुदेथे स यावानमवथो भरेषु. यौ ग छथो नृच सौ ब ुणा सुतं तौ नो मु चतमंहसः.. (२) हे समान ान वाले म और व ण! तुम दोन ोह करने वाल का पतन करते हो और स य त जन क यु म र ा करते हो. तुम दोन पीले रंग के रथ के ारा चल कर नचोड़े गए सोमरस को ा त करते हो एवं मनु य के कम के सा ी हो. तुम दोन हम पाप से बचाओ. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
याव रसमवथो यावग तं म ाव णा जमद नम म्. यौ क यपमवथो यौ व स ं तौ नो मु चतमंहसः.. (३) हे म और व ण! तुम अग य, अं गरस, जमद न एवं अ ऋ ष क र ा करते हो. जन म और व ण ने क यप और व स ऋ षय क र ा क , वे हम पाप से छु ड़ाएं. (३) यौ यावा मवथो व य ं म ाव णा पु मीढम म्. यौ वमदमवथः स तव तौ नो मु चतमंहसः.. (४) जन म और व ण ने यावा , व य पु षमीढ एवं अ क र ा क , जन म और व ण ने वमद और स तव ऋ ष क र ा क , वे हम पाप से बचाएं. (४) यौ भर ाजमवथो यौ ग व रं व ा म ं व ण म कु सम्. यौ क ीव तमवथः ोत क वं तौ नो मु चतमंहसः.. (५) हे म और व ण! तुम ने भर ाज, ग व र, व ा म एवं कु स ऋ ष क र ा क . जन म और व ण ने क ीवान तथा क व ऋ ष क र ा क , वे हम पाप से बचाएं. (५) यौ मेधा त थमवथो यौ शोकं म ाव णावुशनां का ं यौ. यौ गोतममवथः ोत मुदगलं ् तौ नो मु चतमंहसः.. (६) जन म और व ण ने मेधा त थ, शक तथा शु ाचाय के पु उशना ऋ ष क र ा क , ज ह ने गोतम एवं मुदगल ् ऋ ष क र ा क , वे हम पाप से छु ड़ाएं. (६) ययो रथः स यव मजुर म मथुया चर तम भया त षयन्. तौ म म ाव णौ ना थतो जोहवी म तौ नो मु चतमंहसः.. (७) जन म और व ण का स यमाग पर चलने वाला एवं र सय से यु रथ न ष माग पर चलते ए पु ष को बाधा प ंचाता आ सामने आता है, म ऐसे म और व ण क तु त करता ं एवं सुख क इ छा से उन के न म बारबार हवन करता ं. वे दोन मुझे पाप से बचाएं. (७)
सू -३०
दे वता—वाक्
अहं े भवसु भ रा यहमा द यै त व दे वैः. अहं म ाव णोभा बभ यह म ा नी अहम नोभा.. (१) अंभृण मह ष क वा दनी पु ी वाक् ने वयं को समझ कर तु त क है. म और वसु के साथ संचरण करती ं. म आ द य और व े दे व के साथ संचरण करती ं. म और व ण को म ही धारण करती ं. इं , अ न तथा दोन अ नीकुमार को भी म ने ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ही धारण कया है. (१) अहं रा ी स मनी वसूनां च कतुषी थमा य यानाम्. तां मा दे वा दधुः पु ा भू र था ां भूयावेशय तः.. (२) म ही दखाई दे ने वाले व का नयं ण करने वाली, उपासक को फल के प म धन दलाने वाली, पर का सा ा कार करने वाली तथा य के यो य दे व म मुख ं. अनेक भाग से पंच म थत मुझ को उपासक को फल दे ने वाले दे व ब त से साधन म नधा रत करते ह. (२) अहमेव वय मदं वदा म जु ं दे वानामुत मानुषाणाम्. यं कामये त तमु ं कृणो म तं ाणं तमृ ष तं सुमेधाम्.. (३) म ही वयं अनुभव कए गए के वषय म लोक हत क से कह रही ं. वह दे व और मनु य का य है. म जस जस पु ष क र ा करना चाहती ,ं उसउस को बलवान बना दे ती ं. म उसे , ऋ ष और उ म बु वाला बना दे ती ं. (३) मया सो ऽ म यो वप य त यः ाण त य शृणो यु म्. अम तवो मां त उप य त ु ध ुत े यं ते वदा म.. (४) भोग करने वाला जो मनु य अ खाता है, वह मुझ श पा के ारा ही अ खाता है. जो मनु य व को दे खता है, सांस लेता है अथवा सुनता है, ये सब ापार श थान म म ही करती ं. मुझे न मानते ए वे संसार म ीण होते ह. हे सखा! मेरी कही ई बात सुन. म तुझे ा के यो य का उपदे श करती ं. (४) अहं ाय धनुरा तनो म षे शरवे ह तवा उ. अहं जनाय समदं कृणो यहं ावापृ थवी आ ववेश.. (५) म ा ण के े षी एवं हसक को मारने के लए महादे व का धनुष तानती ं अथात् उस क डोरी ख चती ं. म ही तोता जन के लए सं ाम करती ं तथा ावा और पृ वी म म ही व ं. (५) अहं सोममाहनसं बभ यहं व ारमुत पूषणं भगम्. अहं दधा म वणा ह व मते सु ा ा ३ यजमानाय सु वते.. (६) नचोड़ने यो य सोमरस को अथवा श ु का वनाश करने एवं वग म थत सोम को म ही धारण करती ं. व ा, पूषा और भव को भी म ही धारण करती ं. ह व लए ए, दे व को ह व ा त कराने वाले एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान के लए य के फल के प म धन म ही धारण करती ं. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अहं सुवे पतरम य मूध मम यो नर व १ तः समु े . ततो व त े भुवना न व ोतामूं ां व मणोप पृशा म.. (७) इस दखाई दे ने वाले पंच के ऊपरी भाग अथात् स यलोक म वतमान इस पंच के जनक को म जानती ं. इस जगत् के कारण प मेरा उ प थान सागर के जल म थत ह. तेज का कारण होने से म भुवन को का शत करती ं. म इस दे ह से वग का पश करती ं. (७) अहमेव वात इव वा यारभमाणा भुवना न व ा. परो दवा पर एना पृ थ ैतावती म ह ना सं बभूव.. (८) सभी भूत को कारण के प म उ प करती ई म वायु के समान वतमान ं. इस आकाश और इस पृ वी से भ रहने वाली म अपनी म हमा से इस कार क ई ं. (८)
सू -३१
दे वता—म यु
वया म यो सरथमा ज तो हषमाणा षतासो म वन्. त मेषव आयुधा सं शशाना उप य तु नरो अ न पाः.. (१) हे ोध के अ भमानी दे व म यु! तेरे ारा रथ वाले श ु को पी ड़त करते ए, स एवं ोध म भरे, तेज बाण वाले तथा आयुध क धार तेज करते ए हमारे मनु य तेरी कृपा से वायु के समान वेग वाले एवं अ न के समान अपरा जत बन कर श ु के पास जाएं. (१) अ न रव म यो व षतः सह व सेनानीनः स रे त ए ध. ह वाय श ून् व भज व वेद ओजो ममानो व मृधो नुद व.. (२) हे म यु! तुम आग के समान द त हो कर श ु को परा जत करो. हे सहनशील म यु! तुम हमारी सेना के सेनाप त बन कर बुलाए जाने पर आओ और हमारे श ु को मार कर उन का धन हम दान करो. तुम श का दशन करते ए सं ामकारी श ु का वध करो. (२) सह व म यो अ भमा तम मै जन् मृणन् मृणन् े ह श ून्. उ ं ते पाजो न वा र े वशी वशं नयासा एकज वम्.. (३) हे म यु! इस राजा के श ु क सेना के हाथी, घोड़े आ द को कुचलते ए एवं न करते ए श ु को परा जत करने के लए आओ. हे अ धक श शाली म यु! तु हारे बल को कोई रोक नह सकता. हे बना सहायक के काय करने वाले एवं सब को वश म करने वाले म यु! तुम सभी जन को वाधीन बनाते हो. (३) एको ब नाम स म य ई डता वशं वशं यु ाय सं शशा ध. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अकृ
क् वया युजा वयं ुम तं घोषं वजयाय कृ म स.. (४)
हे म यु! हमारे ारा तुत तुम अकेले ही ब त से श ु का वनाश करने म समथ हो. तुम सभी जा म वेश कर के उ ह यु के लए े रत करो. हे अ व छ द त वाले म यु! तु हारी सहायता से हम वजय के लए सहनाद के समान घोष करते ह. (४) वजेषकृ द इवानव वो ३ माकं म यो अ धपा भवेह. यं ते नाम स रे गृणीम स व ा तमु सं यत आबभूथ.. (५) हे म यु! वजय करने वाले तुम इं के समान वजय के ाचीन उपाय के बताने वाले बन कर इस सं ाम म हमारा पालन करो. हे सहनशील म यु! हम तु ह स करने वाली तु तयां बोल रहे ह. जस थान से तुम कट होते हो, हम उस अमृत धारा वाले थान को जानते ह. (५) आभू या सहजा व सायक सहो बभ ष सहभूत उ रम्. वा नो म यो सह मे े ध महाधन य पु त संसृ ज.. (६) हे व के समान अकुं ठत श वाले! हे श ु का अंत करने वाले एवं श ु के पराजय के साथ उ प म यु! तुम उ म बल धारण करते हो. तुम हमारे य के साथ चकने बनो. हे ब त से यजमान ारा बुलाए गए म यु! धन ा त वाले सं ाम म हमारे सहायक बनो. (६) संसृ ं धनमुभयं समाकृतम म यं ध ां व ण म युः. भयो दधाना दयेषु श वः परा जतासो अप न लय ताम्.. (७) व ण और म यु अपना धन ला कर हम द. हमारे श ु दय म भय धारण करते ए परा जत ह तथा भयभीत हो कर भाग जाएं. (७)
सू -३२
दे वता—म यु
य ते म यो ऽ वधद् व सायक सह ओजः पु य त व मानुषक्. सा ाम दासमाय वया युजा वयं सह कृतेन सहसा सह वता.. (१) हे म यु! जो पु ष तु हारी सेवा करता है, हे व के समान अकुं ठत श वाले एवं श ु का अंत करने वाले! वह पु ष न य श ु को परा जत करने वाला अपना बल संपूण प से बढ़ाता है. तुम बल उ प करने वाले, हराने वाले और श दे ने वाले हो. तु हारी सहायता से हम असुर एवं उन के श ु दे व को भी परा जत कर. (१) म यु र ो म युरेवास दे वो म युह ता व णो जातवेदाः. म युं वश ईडते मानुषीयाः पा ह नो म यो तपसा सजोषाः.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म यु ही इं ह और म यु ही सम त दे व ह. म यु दे व का आ ान करने वाले, व ण एवं जातवेद अ न ह. जो मानुषी जाएं ह, वे भी म यु क ही तु त करती ह. हे म यु! तुम तप से संयु हो कर हमारी र ा करो. (२) अभी ह म यो तवस तवीयान् तपसा युजा व ज ह श ून्. अ म हा वृ हा द युहा च व ा वसू या भरा वं नः.. (३) हे म यु! हमारे सामने आओ एवं महान से भी महान बन कर अपने संताप क सहायता से हमारे श ु का वनाश करो. नेह न करने वाले के हंता, श ु वधकारक एवं द यु वनाशकारी तुम हमारे लए सभी धन को लाओ. (३) वं ह म यो अ भभू योजाः वयंभूभामो अ भमा तषाहः. व चष णः स रः सहीयान मा वोजः पृतनासु धे ह.. (४) हे म यु! तु हारा बल परा जत करने वाला है. तुम वयंभू, ोधी, श ु को सहन करने वाले, व के ा, सहनशील एवं सहने वाल म े हो. तुम सं ाम म हम बल दान करो. (४) अभागः स प परेतो अ म तव वा त वष य चेतः. तं वा म यो अ तु जहीडाहं वा तनूबलदावा न ए ह.. (५) हे उ म ान वाले म यु! तु हारे महान य म भाग न लेने वाला अथात् तु हारा यजमान न बनने वाला म यु से भाग आया ं. तु हारे संतोष के कम न करने वाले म ने तु ह ो धत बना दया. इस समय तुम मेरे बलदाता बन कर आओ. (५) अयं ते अ युप न ए वाङ् तीचीनः स रे व दावन्. म यो व भ न आ ववृ व हनाव द यूं त बो यापेः.. (६) हे म यु! म तु हारा य कम करने वाला हो गया .ं तुम मेरे समीप आओ और मेरे सामने हो कर श ु क ओर चलो. हे सहनशील एवं सभी फल दे ने वाले! हे वजनशील आयुधधारी म ! हमारे सामने रहो. हम दोन अपने श ु का वनाश करगे. तुम हम अपना बंधु जानो. (६) अ भ े ह द णतो भवा नो ऽ धा वृ ा ण जङ् घनाव भू र. जुहो म ते ध णं म वो अ मुभावुपांशु थमा पबाव.. (७) हे म यु! हमारे सामने आओ और हमारी दा हनी ओर रह कर हमारे स चव का काम करो. इस के प ात हम ब त से श ु का वनाश करगे. हम तु हारे लए धारण करने वाले मधुर सोमरस का सार अंश दे ते ह. हम दोन सब से पहले इस कार सोमरस पएं क कसी को पता नह चले. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -३३
दे वता—अ न
अप नः शोशुचदघम ने शुशु या र यम्. अप नः शोशुचदघम्.. (१) हे अ न! तु हारी कृपा से हमारा पाप न हो जाए. तुम हमारे धन को सभी ओर से समृ करो और हमारे पाप को न करो. (१) सु े या सुगातुया वसूया च यजामहे. अप नः शोशुचदघम्.. (२) हे अ न! हम शोभन े एवं शोभन माग पाने क इ छा से तु हारा हवन करते ह. तुम हमारे धन को सभी ओर समृ करो तथा हमारे पाप को न करो. (२) यद् भ द एषां ा माकास सूरयः. अप नः शोशुचदघम्.. (३) हे अ न! म उन तोता के म य े तोता ं और मेरे ानी पु आ द भी तोता म े ह, इस लए तुम हमारे पाप को न करो. (३) यत् ते अ ने सूरयो जायेम ह
ते वयम्. अप नः शोशुचदघम्.. (४)
हे अ न! तु हारे तोता जो तु हारी कृपा से ज म लेते ह. इस लए हम व ान् भी तु हारी तु त के कारण पु , पौ आ द से समृ ह . तुम हमारे पाप को न करो. (४) यद नेः सह वतो व तो य त भानवः. अप नः शोशुचदघम्.. (५) बलवान अ न क करण सभी ओर व तत होती ह, इस लए तुम हमारे पाप को न करो. (५) वं ह व तोमुख व तः प रभूर स. अप नः शोशुचदघम्.. (६) हे अ न! तुम सभी ओर मुख वाले एवं सव ापक हो. तुम हमारे पाप न करो. (६) षो नो व तोमुखा त नावेव पारय. अप नः शोशुचदघम्.. (७) हे सभी ओर मुख वाले अ न! जस कार लोग नाव के ारा उस पार प ंच जाते ह, उसी कार हमारे श ु को हम से र करो तथा हमारे पाप को न करो. (७) स नः स धु मव नावा त पषा व तये. अप नः शोशुचदघम्.. (८) हे उ हमारे श ु
गुण वाले अ न! जस कार नाव के ारा सागर को पार करते ह, उसी कार को हम से र करो एवं हमारे पाप को न करो. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -३४
दे वता—
ौदन
ा य शीष बृहद य पृ ं वामदे मुदरमोदन य. छ दां स प ौ मुखम य स यं व ारी जात तपसो ऽ ध य ः.. (१) दए जाते ए ौदन क तु त क जा रही है—“ अथात् रथंतर साम इस ओदन का शीश एवं बृहत् साम इस क पीठ है. वामदे व ऋ ष ारा दे खा गया साम इस का पेट तथा गाय ी आ द छं द इस के प अथात् दोन कोख ह. स य नाम का साम इस का मुख है. व तार वाला ौदन स य के भीतरी भाग से उ प आ है.” (१) अन थाः पूताः पवनेन शु ाः शुचयः शु चम प य त लोकम्. नैषां श ं दह त जातवेदाः वगलोके ब ैणमेषाम्.. (२) स य के करने वाले अमृतमय, वायु के ारा प व , नमल, एवं द तशाली होते ह और दे हावसान के प ात यो तमय लोक को जाते ह. वगलोक म वतमान ौदन स य करने वाल क इं य को अ न नह जलाती. इ ह भोगने के लए य का समूह ा त होता है. (२) व ा रणमोदनं ये पच त नैनानव तः सचते कदा चन. आ ते यम उप या त दे वा सं ग धवमदते सो ये भः.. (३) जो यजमान बताई ई री त से व तृत अवयव वाले ब ौदन को पकाते ह, उन के समीप द र ता कभी नह आती. वह यजमान दे हांत के प ात यमराज के ारा पू जत हो कर सुख से नवास करता है तथा यम क अनुम त पा कर दे व के समीप प ंचता है. वह सोमरस के यो य व ावसु आ द गंधव के साथ स रहता है. (३) व ा रणमोदनं ये पच त नैनान् यमः प र मु णा त रेतः. रथी ह भू वा रथयान ईयते प ी ह भू वा त दवः समे त.. (४) जो यजमान बताई ई री त से व तृत अवयव वाले ौदन को पकाते ह, यमराज उन के वीय का अपहरण नह करते. रथ ारा जाने यो य भूलोक म वे जब तक जी वत रहते ह, तब तक रथ पर बैठ कर चलते ह या प वाले हो कर अंत र के ऊपर वतमान लोक को पार कर के भोग से यु होते ह. (४) एष य ानां वततो व ह ो व ा रणं प वा दवमा ववेश. आ डीकं कुमुदं सं तनो त बसं शालूकं शफको मुलाली. एता वा धारा उप य तु सवाः वग लोके मधुमत् प वमाना उप वा त तु पु क रणीः सम ताः.. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वह ौदन स य व तृत होने के कारण य म सब से अ धक वहन करने वाला है. यजमान इस व तीण अवयव वाले ओदन को पका कर वग ा त करता है, अंडे क आकृ त वाले कंद से उ प कुमुद फूल को दय पर रखता है तथा कमल तंतु को, उ पल (कमल) के कंद को एवं जल म उ प तथा खुर क आकृ त वाली मृणाली अथात् कम लनी को सीने पर रखता है. हे यजमान! वग म तेरे समीप चार ओर कमल के सरोवर थत रह. ये सभी धाराएं ौदन स य के फल के प म ा त वग म मधुरता पूण सचन करती ई तेरे समीप प ंच तथा समीप म वतमान सरोवर भी तेरे समीप उप थत ह . (५) घृत दा मधुकूलाः सुरोदकाः ीरेण पूणा उदकेन द ना. एता वा धारा उप य तु सवाः वग लोके मधुमत् प वमाना उप वा त तु पु क रणीः सम ताः.. (६) हे यजमान! वगलोक म घी से भरे ए गड् ढ वाली, शहद के कनार वाली, म दरा पी जल वाली तथा ध, दही एवं जल से पूण सभी धाराएं तेरे समीप प ंच. ौदन स य के फल के प म ा त वग म मधुरता पूण सचन करती ई ये सभी धाराएं तेरे समीप प ंच तथा समीप म वतमान सरोवर भी उप थत ह . (६) चतुरः कु भां तुधा ददा म ीरेण पूणा उदकेन द ना. एता वा धारा उप य तु सवाः वग लोके मधुमत् प वमाना उप वा त तु पु क रणीः सम ताः.. (७) म ध, दही, शहद और म दरा से भरे ए चार घड़ को पूव, द ण, प म एवं उ र दशा म रखता ं. हे यजमान! ौदन स य के फल के प म ा त वग म ध, जल एवं दही से पूण ये सभी धाराएं तेरे समीप प ंच एवं माधुय का सचन करते ए सरोवर तेरे समीप उप थत रह. (७) इममोदनं न दधे ा णेषु व ा रणं लोक जतं वगम्. स मे मा े वधया प वमानो व पा धेनुः काम घा मे अ तु.. (८) इस व तृत अवयव वाले, कम फल को जीतने वाले एवं वग के साधन ओदन को म ा ण म रखता ं. ीर आ द रस से बढ़ता आ यह न न हो. इस के फल के प म मुझे भां तभां त के फल दे ने वाली एवं कामनाएं पूण करने वाली धेनु ा त हो. (८)
दे वता—अ तमृ यु
सू -३५
यमोदनं थमजा ऋत य जाप त तपसा णेऽपचत्. यो लोकानां वधृ तना भरेषात् तेनौदनेना त तरा ण मृ युम्.. (१) पर
से थम उ प
हर यगभ नामक जाप त ने तप के ारा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
के लए जो
ओदन पकाया था तथा जो ओदन पृ वी आ द लोक को बांधने वाला है, उस ओदन से म मृ यु को पार क ं . (१) येनातरन् भूतकृतो ऽ त मृ युं यम व व दन् तपसा मेण. यं पपाच णे पूव तेनौदनेना त तरा ण मृ युम्.. (२) ा णय के नमाण कता दे व ने जस ओदन क सहायता से मृ यु का अ त मण कया था, जस ओदन को तप और म के ारा ा त कया था तथा जसे हर यगभ जाप त ने सब से पहले के लए पकाया था, उसी ओदन क सहायता से म मृ यु को पार क ं . (२) यो दाधार पृ थव व भोजसं यो अ त र मापृणाद् रसेन. यो अ त नाद् दवमू व म ह ना तेनौदनेना त तरा ण मृ युम्.. (३) जस ओदन ने सम त ा णय का भोग बनी ई पृ वी को धारण कया था, जो ओदन अपने रस से अंत र को पूण करता है तथा जस ओदन ने अपनी मह ा से ुलोक अथात् वग को ऊपर धारण कया था, उसी ओदन क सहायता से म मृ यु को पार करता ं. (३) य मा मासा न मता ंशदराः संव सरो य मा मतो ादशारः. अहोरा ा यं प रय तो नापु तेनौदनेना त तरा ण मृ युम्.. (४) जस ौदन से मास उ प ए, जन म प हए के ‘अरे’ के समान तीस दन थत ह, जस ौदन से बारह महीन वाला संव सर उ प आ, जस ौदन को रात और दन समीप रहते ए भी ा त नह कर पाते, उसी ओदन क सहायता से म मृ यु को पार क ं . (४) यः ाणदः ाणदवान् बभूव य मै लोका घृतव तः र त. यो त मतीः दशो य य सवा तेनौदनेना त तरा ण मृ युम्.. (५) जो ओदन मृ यु के समीप प ंचे ए जन को ाण दे ने वाला आ, जस ओदन के लए लोक घी क धाराएं बरसाते ह तथा जस ओदन के तेज से सभी दशाएं का शत ह, उसी ओदन क सहायता से म मृ यु को पार करता ं. (५) य मात् प वादमृतं संबभूव यो गाय या अ धप तबभूव. य मन् वेदा न हता व पा तेनौदनेना त तरा ण मृ युम्.. (६) जस पके ए ौदन से वग का अमृत उ प आ, जो छं द क मुख गाय ी का अ धप त बना तथा जस म शाखा भेद से सम त वेद थत ह, उसी ओदन क सहायता से म मृ यु को पार करता ं. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अव बाधे ष तं दे वपीयुं सप ना ये मे ऽ प ते भव तु. ौदनं व जतं पचा म शृ व तु मे द्दधान य दे वाः.. (७) म हसा करने वाले श ु का वध करता ं तथा दे व के हसक क ह या करता .ं जो मेरे श ु ह, वे भाग जाएं. इस के न म म सब को जीतने वाले ौदन को पकाता ं. मुझ ालु के वचन को दे व सुन और मेरी सहायता कर. (७)
सू -३६
दे वता—स य ओज वाले अ न
ता स यौजाः दह व नव ानरो वृषा. यो नो र याद् द सा चाथो यो नो अरा तयात्.. (१) स चे बल वाले, वै ानर एवं गभाधान म समथ अ न उन श ु को जलाएं, जो हमारे त के समान आचरण कर, जो हमारी हसा करना चाह तथा जो हमारे त श ु के समान आचरण कर. (१) यो नो द साद द सतो द सतो य द स त. वै ानर य दं योर नेर प दधा म तम्.. (२) जो श ु हसा क इ छा न करने वाले मुझ को मारना चाहता है तथा जस हसा क इ छा करने वाले को म मारना चाहता ,ं उस को म वै ानर अ न क दाढ़ म रखता ं. (२) य आगरे मृगय ते त ोशे ऽ मावा ये. ादो अ यान् द सतः सवा ता सहसा सहे.. (३) यु भू म म जो पशाच हम खाने के लए खोजते ह तथा श ु ारा कए गए आ ोश के कारण अमाव या क आधी रात म हम मारना चाहते ह, हम मं के भाव से उ ह परा जत करते ह. (३) सहे पशाचा सहसैषां वणं ददे . सवान् र यतो ह म सं म आकू तऋ यताम्.. (४) म बल के ारा रा स को परा जत करता ं तथा उन रा स के धन को अपने अ धकार म करता ं. म े ष करने वाले सभी श ु को मारता ं. मेरा इ फल वषयक संक प और सुख समृ हो. (४) ये दे वा तेन हास ते सूयण ममते जवम्. नद षु पवतेषु ये सं तैः पशु भ वदे .. (५) हे अ न आ द दे वो! जो पशु, रा स, पशाच आ द से बचना चाहते ह तथा उ ह छोड़ ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कर सूय के समान वेग से भागते ह तथा जो पशु न दय और तीथ म घूमते ह, तु हारे भाव से म उन रा स आ द को मार कर उन पशु के साथ संयु होता ं. (५) तपनो अ म पशाचानां ा ो गोमता मव. ानः सह मव ् वा ते न व द ते य चनम्.. (६) म मं के साम य से पशाच को उसी कार संताप दे ता ,ं जस कार बाघ गाय के वा मय को ःखी करता है. सह को दे ख कर जस कार कु ा भय से छप जाता है, उसी कार मेरे मं के भाव से वे अधोग त पाते ह. (६) न पशाचैः सं श नो म न तेनैन वनगु भः. पशाचा त मा य त यमहं ाममा वशे.. (७) म पशाच , चोर और वन म रहने वाले लुटेर से न मलूं. म जस ाम म वेश कर के नवास क ं , उस से पशाच भाग जाएं. (७) यं ाममा वशत इदमु ं सहो मम. पशाचा त मा य त न पापमुप जानते.. (८) मं के भाव से उ प मेरा यह बल जस ाम म वेश कर के नवास करता है, पशाच उस ाम से भाग जाता है. वहां रहने वाले लोग पशाच के हसा पी पाप को नह जानते. (८) ये मा ोधय त ल पता ह तनं मशका इव. तानहं म ये हतान् जने अ पशयू नव.. (९) जो पशाच मल कर मुझे इस कार ो धत करते ह, जस कार म छर हाथी को ोध बढ़ा दे ते ह; म उ ह उसी कार हनन के यो य जानता ,ं जस कार जनसंचार के थान पर छोटे शरीर वाले क ड़े होते ह. (९) अ भ तं नऋ तध ाम मवा ा भधा या. म वो यो म ं ु य त स उ पाशा मु यते.. (१०) पाप दे वता मेरे श ु को उसी कार बांध ल, जस कार र सी घोड़े को बांधती ह. जो श ु मेरे लए ोध करता है, वह श ु पाप दे वता नऋ त के पाश से न छू टे . (१०)
सू -३७
दे वता—जड़ीबूट आ द
वया पूवमथवाणो ज नू र ां योषधे. वया जघान क यप वया क वो अग यः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे जड़ीबू टयो! ाचीन काल म तु ह साधन बना कर अथववेद संबंधी मह षय ने रा स को मारा था. तु हारे ारा क यप, क व और अग य ऋ षय ने रा स का वध कया. (१) वया वयम सरसो ग धवा ातयामहे. अजशृङ् यज र ः सवान् ग धेन नाशय.. (२) हे अजशृंगी नाम क जड़ी! तुझे साधन बना कर हम उप व करने वाली अ सरा और गंधव का नाश करते ह. तू रा स को यहां से र भगा तथा अपनी गंध से सभी रा स का वनाश कर. (२) नद य व सरसो ऽ पां तारमव सम्. गु गुलूः पीला नल ौ ३ ग धः म दनी. तत् परेता सरसः तबु ा अभूतन.. (३) गंधव क प नयां अ सराएं अपने वास थान पर उसी कार चली जाएं, जस कार नद पार करने वाले म लाह के समीप प ंचते ह. हे अ सराओ! गु गुलु, पीला, नलवी, ओ गं ध एवं मं दनी के हवन से भयभीत हो कर अपने नवास थान को चली जाओ तथा वह रहो. (३) य ा था य ोधा महावृ ाः शख डनः. तत् परेता सरसः तबु ा अभूतन.. (४) जहां अ थ, य ोध आ द महावृ एवं मोर होते ह, हे अ सराओ! वहां से अपने नवास थान को चली जाओ तथा वह क रहो. (४) य वः ेङ्खा ह रता अजुना उत य ाघाटाः ककयः संवद त. तत् परेता सरसः तबु ा अभूतनः.. (५) हे अ सराओ! तु हारे खेलने के लए जहां झूले पड़े ह, उन झूल का रंग हरा और सफेद है. जहां ककरी नाम के बाजे बजाए जाते ह, वहां से भाग कर अपने नवास थान को चली जाओ तथा वह रहो. (५) एयमग ोषधीनां वी धां वीयावती. अजशृङ् यराटक ती णशृ ृषतु.. (६) जड़ीबू टय एवं वृ म सब से अ धक श वाली अजशृंगी, अराटक तथा ती ण शृंगी नाम क जड़ीबू टयां आ गई ह. इस थान से रा स भाग जाएं. (६) आनृ यतः शख डनो ग धव या सरापतेः. भन द्म मु काव प या म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
शेपः.. (७) म मोर के समान नाचते ए अ सरा के प त गंधव के अंडकोष को फोड़ता ं तथा उस के पु ष जननांग को न य बनाता ं. (७) भीमा इ य हेतयः शतमृ ीरय मयीः. ता भह वरदान् ग धवानवकादान् ृषतु.. (८) इं का आयुध भयंकर, सौ धार वाला एवं लोहे का बना आ है. उसी से वह ह व न दे ने वाले एवं शैवाल खाने वाले गंधव को मार. (८) भीमा इ य हेतयः शतमृ ी हर ययीः. ता भह वरदान् ग धवानवकादान् ृषतु.. (९) इं के आयुध भयंकर, सौ धार वाले एवं सोने के बने ह. इं उ ह से ह व न दे ने वाले तथा शैवाल भ ण करने वाले गंधव का वध कर. (९) अवकादान भशोचान सु योतय मामकान्. पशाचा त् सवानोषधे मृणी ह सह व च.. (१०) हे अजशृंगी जड़ी! शैवाल खाने वाले, सभी को शोक प च ं ाने वाले उन गंधव को जल म का शत करो, जो यु से संबं धत ह. तुम सभी पशाच को मारो तथा परा जत करो. (१०) ेवैकः क प रवैकः कुमारः सवकेशकः. यो श इव भू वा ग धवः सचते य त मतो नाशयाम स वीयावता.. (११)
णा
मायावी होने के कारण एक गंधव कु े के समान, सरा बंदर के समान है. गंधव सारे शरीर पर बाल उगे होने पर भी बालक ही होता है. गंधव दे खने म य प बना कर य से मलते ह. म अ य धक श शाली मं क सहायता से उ ह यहां से भगाता ं. (११) जाया इद् वो अ सरसो ग धवाः पतयो यूयम्. अप धावताम या म यान् मा सच वम्.. (१२) हे गंधव ! ये अ सराएं तु हारी प नयां ह और तुम इन के प त हो. तुम गंधव जा त के हो, इस लए मनु य से र भाग जाओ, इन से मत मलो. (१२)
सू -३८
दे वता—अ सराएं, शलाका
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ
उ दत स य तीम सरां साधुदे वनीम्. लहे कृता न कृ वानाम सरां ता मह वे.. (१) बाजी लगा कर धन का भेदन करती ई एवं भलीभां त जुए म जीतने वाली एवं अ शलाका आ द से अ छ तरह जुआ खेलने वाली अ सरा क म तु त करता ं. सदै व दांव पर लगाए गए धन पर जुआ जीतने के च बनाने वाली उस अ सरा को म यहां बुलाता ं. (१) व च वतीमा कर तीम सरां साधुदे वनीम्. लहे कृता न गृ ानाम सरां ता मह वे.. (२) एक न त काठ पर तीनचार अ अथात् पास को एक करती ई, पुनः उ ह ही जुए म जीतने के लए ब त से काठ पर बखेरती ई एवं जय के उपाय जानने के कारण भलीभां त जुआ खेलती ई अ सरा को म अपने समीप बुलाता ं. वह जुए म लगाए गए धन को च बना कर जीत लेती है. (२) यायैः प रनृ य याददाना कृतं लहात्. सा नः कृता न सीषती हामा ोतु मायया. सा नः पय व यैतु मा नो जैषु रदं धनम्.. (३) जो अ सरा जुए म जीते गए धन को ‘यह मेरा है’ कह कर अ धकार म कर लेती ह तथा पास क सं या के ारा जुए म जीत कर स तापूवक नृ य करती ह, वे हमारे कृत म अथात् चार सं या के दांव को सोखती ई पास को अपनी माया से ा त कर के गाय आ द धन वाली अ सराएं हमारे समीप आएं. जुए के दांव पर लगा हमारा धन सरे न जीत सक. (३) या अ ेषु मोद ते शुचं ोधं च ब ती. आन दन मो दनीम सरां ता मह वे.. (४) जो अ सरा जुए म जीतने के कारण स ता एवं हार के कारण शोक और ोध को धारण करती है, जुए के कारण ह षत होने वाली तथा वा रय को स ता दे ने वाली उस अ सरा को म बुलाता ं. (४) सूय य र मीननु याः स चर त मरीचीवा या अनुस चर त. यासामृषभो रतो वा जनीवा स ः सवान् लोकान् पय त र न्. स न ऐतु होम ममं जुषाणो ३ त र ेण सह वा जनीवान्.. (५) जो अ सराएं सूय क करण के पीछे घूमती ह अथवा सूय क करण उन के पीछे चलती ह, उन अ सरा के गभाधान म समथ प त सदा उषा से संबं धत रहते ह. वे सभी लोक क र ा करने के लए त दन आते ह. उषा के प त सूय अ सरा के साथ हमारे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
होम के ह व को वीकार करते ए आएं. (५) अ त र ेण सह वा जनीवन् कक व सा मह र वा जन्. इमे ते तोका ब ला ए वा ङयं ते मनो ऽ तु.. (६) हे बलवान सूय! इस थान पर धौरे (सफेद) रंग के बछड़ का पालन करो. तु हारी ये ध क बूंद हमारे लए समृ ह . तुम यहां शी आओ. यह धौरे रंग क गौ तु हारी है. तु हारे लए नम कार है. (६) अ त र ेण सह वा जनीवन् कक व सा मह र वा जन्. अयं घासो अयं ज इह व सां न ब नीमः यथानाम व ई महे वाहा.. (७) हे बलवान सूय! इस थान पर धौरे रंग के बछड़ का पालन करो. यह घास और गोशाला पु कर हो. इस गोशाला म म बछड़ को बांधता ं. म तु ह उसी कार बांधता ं, जस से तु हारा वामी बन सकूं. यह ह व उ म आ त वाला हो. (७)
सू -३९
दे वता—पृ वी, अ न
पृ थ ाम नये समनम स आ न त्. यथा पृ थ ाम नये समनम ेवा म ं संनमः सं नम तु.. (१) पृ वी पर दे वता प म थत अ न के लए सभी ाणी नमन करते ह. वे अ न इस से समृ होते ह. पृ वी पर ाणी जस कार अ न के लए नमन करते ह, उसी कार का नमन मेरे लए भी हो. (१) पृ थवी धेनु त या अ नव सः. सा मे ऽ नना व सेनेषमूज कामं हाम्. आयुः थमं जां पोषं र य वाहा.. (२) पृ वी गाय है और अ न उस का बछड़ा है. अ न पी बछड़े के कारण पृ वी मेरे लए मनचाही मा ा म बल कारक अ दे . पृ वी मुझे सौ वष क आयु, जा, पु एवं धन दे . यह ह व उ म आ त वाला हो. (२) अ त र े वायवे समनम स आ न त्. यथा त र े वायवे समनम ेवा म ं संनमः सं नम तु.. (३) अंत र म अ धप त के प म थत वायु के लए य , गंधव आ द ने भलीभां त नम कार कया. वायु उन के नम कार से स ए. जस कार गंधव आ द ने अंत र म वायु के लए नम कार कया, उसी कार वह मेरे लए नम कार कर. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ त र ं धेनु त या वायुव सः. सा मे वायुना व सेनेषमूज कामं हाम्. आयुः थमं जां पोषं र य वाहा.. (४) अंत र गाय है और वायु उस का बछड़ा है. वह गाय वायु पी बछड़े के कारण मुझे बलकारक अ पया त मा ा म दान करे. वायु मुझे सौ वष क आयु, जा, पु एवं धन दे . यह ह व उ म आ त वाला हो. (४) द ा द याय समनम या आ न त्. यथा द ा द याय समनम ेवा म ं संनमः सं नम तु.. (५) ु ोक म थत सूय के लए वहां के सभी ा णय ने नम कार कया. उस नम कार से ल सूय स ए. ा णय ने जस कार ुलोक के सूय के लए नम कार कया, उसी कार मेरे लए भी नम कार कर. (५) ौधनु त या आ द यो व सः. सा म आ द येन व सेनेषमूज कामं हाम्. आयुः थमं जां पोषं र य वाहा.. (६) ौ गाय है और सूय उस का बछड़ा है. वह ौ पी गाय सूय पी बछड़े के कारण मेरे लए मनचाहा बलकारक अ दान करे. वह मुझे सौ वष क आयु, जा, पु और धन दान करे. यह ह व उ म आ त वाला हो. (६) द ु च ाय समनम स आ न त्. यथा द ु च ाय समनम ेवा म ं संनमः सं नम तु.. (७) दशा म वतमान चं मा के लए वहां के जीव ने नम कार कया. इस से चं मा ब त स ए. जीव ने जस कार चं मा के लए नम कार कया, उसी कार मेरे लए भी करगे. (७) दशो धेनव तासां च ो व सः. ता मे च े ण व सेनेषमूज कामं हाम्. आयुः थमं जां पोषं र य वाहा.. (८) दशाएं गाय ह और चं मा उन का बछड़ा है. वे दशाएं चं मा पी बछड़े के कारण मुझे मनचाहा बलकारक अ दान कर. वे मुझे सौ वष क आयु, जा, पु एवं धन द. (८) अ नाव न र त व ऋषीणां पु ो अ भश तपा उ. नम कारेण नमसा ते जुहो म मा दे वानां मथुया कम भागम्.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अंगार प लौ कक अ न म वेश कर के दे वता प अ न संचरण करते ह. अथवा, अं गरा आ द ऋ षय के पु हम आरोप के प म ा त पाप से बचाएं. म नम कार के साथ अ से तु हारे न म हवन करता ं. हम दे व के भाग ह व को म या न कर. (९) दा पूतं मनसा जातवेदो व ा न दे व वयुना न व ान्. स ता या न तव जातवेद ते यो जुहो म स जुष व ह त्.. (१०) हे जातवेद अ न! म तु हारे लए दय और मन से प व ह व का हवन करता ं. हे दे व! तुम सभी ान को जानते हो. हे जातवेद अ न! तु हारे सात मुख ह. उन मुख के लए म घी का हवन करता ं. तुम मेरे ह को वीकार करो. (१०)
सू -४०
दे वता—जातवेद
ये पुर ता जु त जातवेदः ा या दशोऽ भदास य मान्. अ नमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (१) हे जातवेद अ न! जो श ु पूव दशा म हवन करते ए हम पर जा टोने तथा पूव दशा से हमारी हसा करना चाहते ह, अ न म गर कर हमारे वे वरोधी ःखी ह . हम उन के ारा कए गए जा टोने को वापस लौटा कर उ ह मारते ह. (१) ये द णतो जु त जातवेदो द णाया दशो ऽ भदास य मान्. यममृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (२) हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान क द ण दशा म हवन कर के जा टोना कर रहे ह, वे द ण दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल जाएं. इन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने को उ ह क ओर लौटा कर मारते ह. (२) ये प ा जु त जातवेदः ती या दशो ऽ भदास य मान्. व णमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (३) हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान क प म दशा म हवन कर के जा टोना कर रहे ह, वे प म दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने को उ ह क ओर लौटा कर मारते ह. (३) य उ रतो जु त जातवेद उद या दशो ऽ भदास य मान्. सोममृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (४) हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान क उ र दशा म हवन कर के जा टोना ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कर रहे ह, वे उ र दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर लौटा कर मारते ह. (४) ये ३ ऽ ध ता जु त जातवेदो व ु ाया दशो ऽ भदास य मान्. भू ममृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (५) हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास से नीचे क दशा म हवन कर के जा टोना कर रहे ह, वे नीचे क दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर वापस कर के मारते ह. (५) ये ३ ऽ त र ा जु त जातवेदो वाया दशो ऽ भदास य मान्. वायुमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (६) हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान से अंत र क दशा म हवन कर के जा टोना कर रहे ह, वे अंत र क दशा से हमारी हसा करते ह, वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर वापस कर के मारते ह. (६) य उप र ा जु त जातवेदः ऊ वाया दशो ऽ भदास य मान्. सूयमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (७) हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान से ऊपर क दशा म हवन कर के जा टोना कर रहे ह, वे ऊपर क दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर वापस कर के मारते ह. (७) ये दशाम तदशे यो जु त जातवेदः सवा यो द यो भदास य मान्. वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (८)
ऽ
हे जातवेद अ न! जो श ु अ त दशा म आ त डालकर जा टोने ारा दशा के कोण से हम न करना चाहता, वह श ु परा जत होते ए क भोगे. अपने श ु को हम तसर कम से न करते ह. (८)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
******ebook converter DEMO Watermarks*******
पांचवां कांड सू -१
दे वता—व ण
ऋधङ् म ो यो न य आबभूवामृतासुवधमानः सुज मा. अद धासु ाजमानो ऽ हेव तो धता दाधार ी ण (१) जस के ाण मरण र हत ह, जो ज म ले कर बढ़ता है, कोई भी जस क हसा नह कर सकता, जो दन के समान काश वाला है, जो तीन लोक का धारणकता और पालक है, वह यो न से उ प आ है. (१) आ यो धमा ण थमः ससाद ततो वपूं ष कृणुषे पु ण. धा युय न थम आ ववेशा यो वाचमनु दतां चकेत.. (२) जो जीवा मा सब से पहले धम का पालन करता है तथा इसी हेतु अनेक शरीर को धारण करता है, जो सं ा के ारा आकृ वाणी का नमाण करता है, वह अ क इ छा से यो न म सब से पहले वेश करता है. (२) य ते शोकाय त वं ररेच र र यं शुचयो ऽ नु वाः. अ ा दधेते अमृता न नामा मे व ा ण वश एरय ताम्.. (३) हे व ण! जो जीवा मा तु हारे न म धम पालन हेतु क सहता आ सुवण के समान अपनी क त फैलाने के लए शरीर म आया है, उसे ावा पृ वी अमर व दान करते ह तथा जाएं व दे ती ह. (३) यदे ते तरं पू गुः सदःसद आ त तो अजुयम्. क वः शुष य मातरा रहाणे जा यै धुय प तमेरयेथाम्.. (४) जो उ म थान पर बैठ कर उस परमा मा का चतन करते ह, जो ा ण के हतैषी ह तथा उसे ा त कर चुके ह, वे लोक परमा मा क उपासना करके उस ी को भी ई र के दशन कराएं, जो जा को अपनी बहन समझ कर उस का भार वहन करती है. (४) त षु ते महत् पृथु मन् नमः क वः का ेना कृणो म. यत् स य चाव भय ताव भ ाम ा मही रोधच े वावृधेते.. (५) पृ वी को थर रखने वाले दो राजा प हए के समान तेज चाल से आगे बढ़ रहे ह. हे ******ebook converter DEMO Watermarks*******
पृ वी! म अथववेद का ाता ा ण ं और तु हारे लए अ भट करता ं. (५) स त मयादाः कवय तत ु तासा मदे काम यं रो गात्. आयोह क भ उपम य नीडे पथां वसग ध णेषु त थौ.. (६) मनु आ द ऋ षय ने चोरी, गु प नीगमन, ह या, ूणह या, म पान, म याभाषण एवं पापकम — इन सात कम के प म धा मक, मयादा न त क है. जो इस मयादा को नह मानता, वह पापी है. इन सात मयादा का पालन करने वाला पु ष मृ यु के प ात सूय मंडल म थत आ द य को ा त करता है और लय काल तक वह थत रहता है. (६) उतामृतासु त ए म कृ व सुरा मा त व १ तत् समुदगु ् ः. उत वा श ो र नं दधा यूजया वा यत् सचते ह वदाः.. (७) शरीर से संबं धत जो वयं काश उभरता है, म उसी का ती ं. म अपने बल के सहारे आ रहा ं. जो इं को श वाला ह व दे ता है, इं उसे र न आ द धन दान करते ह. (७) उत पु ः पतरं मीडे ये ं मयादम य व तये. दशन् नु ता व ण या ते व ा आव ततः कुणवो वपूं ष.. (८) य जा त का पु अपने पता क पूजा करे तथा उ म क याण पाने के लए धम पालन म वृ हो. हे व ण! अनेक थान को दखाते ए तुम सांसा रक जीव क रचना करते हो. (८) अधमधन पयसा पृण यधन शु म वधसे अमुर. अ व वृधाम श मयं सखायं व णं पु म द या इ षरम्. क वश ता य मै वपूं यवोचाम रोदसी स यवाचा.. (९) म और व ण अ द त के पु ह. हम इन दोन क वृ करते ह. हे व ण! तुम आधे ध, घृत आ द से इस सेना का बल बढ़ाते हो और आधे से अपनी वृ करते हो. हे आकाश और पृ वी के दे वो! व ान् ऋ षय ने जन शरीर का वणन कया है, हम अपनी स य वाणी से उ ह का वणन करते ह. (९)
सू -२
दे वता—व ण
त ददास भुवनेषु ये ं यतो ज उ वेषनृ णः. स ो ज ानो न रणा त श ूननु यदे नं मद त व ऊमाः.. (१) इं संसार म धनवान एवं बली होने के कारण े माने जाते ह. इं ने ज म लेते ही श ु का संहार करना आरंभ कर दया था, इसी लए इन के सै नक इन क र ा करते ह एवं ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स रहते ह. (१) वावृधानः शवसा भूय जाः श ुदासाय भयसं दधा त. अ न च न च स न सं ते नव त भृता मदे षु.. (२) बढ़ता, श शाली एवं ओज वी श ु अपने दास को भयभीत करता है. चर और अचर सारा व हम म लीन हो जाता है. वेतन पाने वाले स चे वीर यु म परमा मा क ाथना करते ह. (२) वे तुम प पृ च त भू र यदे ते भव यूमाः. वादोः वाद यः वा ना सृजा समदः सु मधु मधुना भ योधीः.. (३) हे इं ! ज म, सं कार और यु क द ा से तीन बात मनु य के ज म के साथ ही न त हो जाती ह एवं वशाल य को तुम तक प ंचाती ह. तुम सभी पदाथ को उ म वाद वाला बनाने वाले हो तुम हमारे पदाथ को भी वा द बनाओ एवं सुंदर री त से यु करो. (३) य द च ु वा धना जय तं रणेरणे अनुमद त व ाः. ओजीयः शु म थरमा तनु व मा वा दभन् रेवासः कशोकाः.. (४) हे बलशाली इं ! तुम सभी यु म वजय ा त करते हो. य द ा ण तु हारी तु त कर तो तुम उ ह थर रहने वाला बल दान करो. जो मु य सुखमय वातावरण को ःखमय बना दे ते ह अथवा जन क ग त बुरी है, वे तुम तक न आ सक. (४) वया वयं शाशद्महे रणेषु प य तो यधे या न भू र. चोदया म त आयुधा वचो भः सं ते शशा म णा वयां स.. (५) हे इं ! तु हारी सहायता से हम यु म अपने सभी वरो धय को समा त कर दे ते ह. म तप या ारा स अपनी वाणी से तु हारे श को ेरणा दान करता ं तथा तु हारी ग तशील वाणी को तीखा बनाता ं. (५) न तद् द धषेऽवरे परे च य म ा वथावसा रोणे. आ थापयत मातरं जग नुमत इ वत कवरा ण भू र.. (६) जस घर म उ म एवं साधारण ा णय का पालन आ तथा जस घर म अ ारा उन क र ा क गई, उस घर म का लका माता क ग तशील श क थापना करो. इस कार वह घर अद्भुत पदाथ से पूण हो जाएगा. (६) तु व व मन् पु व मानं समृ वाण मनतममा तमा यानाम्. आ दश त शवसा भूय जाः स त तमानं पृ थ ाः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे शरीरधारी पु ष! तू उस राजा क तु त कर जो वचरण करने वाला, तेज वी, वामी एवं उन गुण से यु है, जो आ त जन म होते ह. राजा पृ वी का त प है एवं यु म जुटा आ है. (७) इमा बृह द्दवः कृणव द ाय शूषम यः वषाः. महो गो य य त वराजा तुर द् व मणवत् तप वान्.. (८) यह राजा वग ा त क अ भलाषा से महान तो ारा इं को स कर रहा है. वग के वामी इं मेघ के ारा जल वषा कर के व को जल से पूण करते ह. (८) एवा महान् बृह द्दवो अथवावोचत् वां त व १ म मेव. वसारौ मात र वरी अ र े ह व त चैने शवसा वधय त च.. (९) अपने शरीर को इं मान कर मह ष अथवा ने कहा था क पाप र हत भ ग नयां इसे बल के ारा बढ़ाती ई स करती ह. (९)
सू -३
दे वता—अ न
ममा ने वच वहवे व तु वयं वे धाना त वं पुषेम. म ं नम तां दश त वया य ेण पृतना जयेम.. (१) हे अ न दे व! यु म हम वच वी बन. हम तु ह कट करते ए अपने शरीर को श शाली बनाएं. चार दशाएं और दशाएं हमारे सामने तथा आप के संर ण म श ु क इस सेना पर वजय ा त कर. (१) अ ने म युं तनुदन् परेषां वं नो गोपाः प र पा ह व तः. अपा चो य तु नवता र यवो ऽ मैषां च ं बुधां व नेशत्.. (२) हे अ न दे व! तुम हजार श ु का ोध समा त करते ए सभी ओर से हमारी र ा करो. हम ःख दे ने के इ छु क लोग हमारे सामने न बन तथा हमारे सामने से चले जाएं. (२) मम दे वा वहवे स तु सव इ व तो म तो व णुर नः. ममा त र मु लोकम तु म ं वातः पवतां कामाया मै.. (३) इं के साथ म त्, व णु और अ न आ द सभी दे व यु भू म म मेरे अनुकूल बन. अंत र म मेरा यशोगान गूंजे तथा वायु क ग त मेरे अनुकूल हो. (३) म ं यज तां मम यानी ाकू तः स या मनसो मे अ तु. एनो मा न गां कतम चनाहं व े दे वा अ भ र तु मेह.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
म जो इ छा और संक प करता ं, वह स य हो. म सभी कार के पाप से र र ं तथा व े दे व मेरी र ा कर. (४) म य दे वा वणमा यज तां म याशीर तु म य दे व तः. दै वा होतारः स नषन् न एतद र ाः याम त वा सुवीराः.. (५) म जन दे व को बुलाता ,ं वे मुझे अ से संप बनाएं. य समीप बैठ, जस से हम रोगर हत और श शाली बन सक. (५)
म दे व के होता हमारे
दै वीः षडु व नः कृणोत व े दे वास इह मादय वम्. मा नो वदद भभा मो अश तमा नो वदद् वृ जना े या या.. (६) हे व े दे व! आप सब हमारे लए पृ वी, आकाश, जल, ओष ध, दन और रात—इन छह द श य को बढ़ाइए. आप स ह , जस से कोई न हमारा तर कार करे और न हमारी नदा करे. हम पाप न लगे. (६) त ो दे वीम ह नः शम य छत जायै न त वे ३ य च पु म्. मा हा म ह जया मा तनू भमा रधाम षते सोम राजन्.. (७) भारती, सर वती और पृ वी—ये तीन दे वयां हमारा क याण कर. हमारी जाएं पोषक पदाथ पा कर पु य शरीर वाली ह . हे तेज वी सोम! हम संतान एवं पशु से हीन न ह तथा श ु हम ःख न द. (७) उ चा नो म हषः शम य छ व मन् हवे पु तः पु ु. स नः जायै हय मृडे मा नो री रषो मा परा दाः.. (८) हे इं ! तुम नद के समान ग तशील, गुणसंप एवं अ के वामी हो. तुम हम इस य के कारण सुख दान करो. तुम हमारी संतान का नाश मत करो तथा हमारा याग मत करो. (८) धाता वधाता भुवन य य प तदवः स वता भमा तषाहः. आ द या ा अ नोभा दे वाः पा तु यजमानं नऋथात्.. (९) धाता, वधाता, संसार के वामी एवं श ुहंता स वता दे व, आ द य, अ नीकुमार यजमान को पाप से बचाएं और उ श ु से र ा कर. (९)
तथा दोन
ये नः सप ना अप ते भव व ा न यामव बाधामह एनान्. आ द या ा उप र पृशो न उ ं चे ारम धराजम त.. (१०) जो हमारे श ु ह, वे हम से र भाग जाएं. हम इं और अ न के ारा अपने श ु ******ebook converter DEMO Watermarks*******
को
बांधते ह. आ द य और
ने हम जो राजा बना दया है, वह सावधान करने वाला है. (१०)
अवा च म ममुतो हवामहे यो गो जद् धन जद जद् यः. इमं नो य ं वहवे शृणो व माकमभूहय मेद .. (११) हम ऐसे इं को य म बुलाते ह जो भू म के वजेता, धन के वजेता और घोड़ को जीतने वाले ह, वह इं हमारी तु त सुन. हे इं ! तुम हम से नेह करने वाले बनो. (११)
दे वता—कु , त मा-नाशन
सू -४ यो ग र वजायथा वी धां बलव मः. कु े ह त मनाशन त मानं नाशय तः.. (१)
हे पवत म उ प होने वाली तथा श शाली ओष ध कु ! तू कोढ़ नामक क ठन रोग का नाश करने वाली है. तू हम क दे ने वाले रोग को न करती ई यहां आ. (१) सुपणसुवने गरौ जातं हमवत प र. धनैर भ ु वा य त व ह त मनाशनम्.. (२) ग ड़ को उ प करने वाले हमवंत पवत के ऊपर उ प होने वाली इस ओष ध के वषय म हम ने लोग से सुना और अ ले कर वहां गए. इस कार हम ने इस ओष ध को ा त कया. (२) अ थो दे वसदन तृतीय या मतो द व. त ामृत य च णं दे वाः कु मव वत.. (३) यहां तीसरे दे व थान म अ थ अथात् पीपल वराजमान है. यहां दे व ने अमृत के समान गुण वाले कूठ को जाना. (३) हर ययी नौरचर र यब धना द व. त ामृत य पु पं दे वाः कु मव वत.. (४) दे व ने सोने के र से से बंधी ई वग क नौका के ारा अमृत के पु प के समान कूठ को ा त कया. (४) हर ययाः प थान आस र ा ण हर यया. नावो हर ययीरासन् या भः कु ं नरावहन्.. (५) सोने के बने ए माग से वण क नाव के पतवार भी सोने क थ . (५)
ारा कूठ को लाया गया. उन नाव क
******ebook converter DEMO Watermarks*******
इमं मे कु पू षं तमा वह तं न कु . तमु मे अगदं कृ ध.. (६) हे कूठ! मेरे इस पु ष को अपने समीप ले कर और इस रोग से छु टकारा दला कर व थ बनाओ. (६) दे वे यो अ ध जातो ऽ स सोम या स सखा हतः. स ाणाय ानाय च ुषे मे अ मै मृड.. (७) हे कूठ! तुम दे व के समीप उ प ए हो तथा सोम के हतकारक म हो. तुम मेरे इस पु ष के ाण, ान एवं ने को सुख दे ने वाले बनो. (७) उदङ् जातो हमवतः स ा यां नीयसे जनम्. त कु य नामा यु मा न व भे जरे.. (८) कूठ हमालय पवत के उ रभाग म उ प आ है एवं मनु य के ारा पूव दशा म लाया गया है. वहां उस के उ म नाम का वभाजन आ. (८) उ मो नाम कु ा यु मो नाम ते पता. य मं च सव नाशय त मानं चारसं कृ ध.. (९) हे कूठ! तु हारी स उ म है तथा तु हारे पता भी उ म थे. तुम सभी कार के राजय मा रोग का नाश करो तथा कु रोग को हम से र भगाओ. (९) शीषामयमुपह याम यो त वो ३ रपः. कु तत् सव न करद् दै वं समह वृ यम्.. (१०) सर संबंधी रोग, ने संबंधी ा धयां एवं रोग उ प करने वाले पाप को कूठ ने दै वी बल पा कर इन सब को न कर दया. (१०)
सू -५
दे वता—ला ा
रा ी माता नभः पतायमा ते पतामहः. सलाची नाम वा अ स सा दे वानाम स वसा.. (१) हे लाख नामक ओष ध! तू चं मा क करण से पु होती है. इस लए रा तेरी माता है. तू वषा काल म उ प होती है, इस लए आकाश तेरा पता है. आकाश म मेघ को उ प करने के कारण सूय तेरा पतामह है. तेरा नाम सलाची है और तू दे व क बहन है. (१) य वा पब त जीव त ायसे पु षं वम्. भ ह श ताम स जनानां च य चनी.. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो तुझे पीता है, वह जी वत रहता है. तू पु ष क र ा करती है, तू मनु य का भरणपोषण करने वाली एवं उ त बनाने वाली है. (२) वृ ंवृ मा रोह स वृष य तीव क यला. जय ती या त ती परणी नाम वा अ स.. (३) तू बैल क इ छा करने वाली गाय के समान येक वृ पर चढ़ती है. तू वजय ा त करती है एवं थत रहती है, इस लए तेरा नाम मरणी है. (३) यद् द डेन य द वा यद् वा हरसा कृतम्. त य वम स न कृ तः सेमं न कृ ध पू षम्.. (४) हे लाख! जो डंडे से चोट खाया है और जो धारदार श से घायल है, तू उन के घाव को ठ क करने का उपाय है, इस लए तू इस पु ष को घाव वहीन बना. (४) भ ात् ल ा त य थात् ख दराद् धवात्. भ ा य ोधात् पणात् सा न ए ध त.. (५) हे लाख! तू कदं ब, पाकड़, पीपल, खैर, धौ, भ , य ोध एवं पण नामक वृ से उ प होती है. हे घाव को शु करने वाली एवं भरने वाली ओष ध लाख! तू हम ा त हो. (५) हर यवण सुभगे सूयवण वपु मे. तं ग छा स न कृते न कृ तनाम वा अ स.. (६) हे वण के समान वण वाली सुभगा एवं सूय के समान चमक वाली ओष ध लाख! तू शरीर को व थ बनाती है. तू घाव को ठ क करती है, इस लए तेरा नाम न कृ त है. (६) हर यवण सुभगे शु मे लोमशव णे. अपाम स वसा ला े वातो हा मा बभूव ते.. (७) हे सोने के समान वण वाली, सुभगा, सूय के समान वण वाली एवं लोग का वनाश करने वाली लाख! तू जल क बहन है और वायु तेरी आ मा है. (७) सलाची नाम कानीनो ऽ जब ु पता तव. अ ो यम य यः याव त य हा ना यु ता.. (८) हे लाख! तेरे नाम सलाची और कानीन ह. बक रय का पालक तेरा पता है. यमराज का जो पीले रंग का घोड़ा है, उस के र से तुझे स चा गया है. (८) अ या नः स प तता सा वृ ां अ भ स यदे . सरा पत णी भू वा सा न ए ध त.. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे घाव भरने वाली लाख! तू घोड़े के रंग वाली है एवं वृ वाली है, इस लए च ड़या बन कर हमारे समीप आ. (९)
को स चती ह. तू सरकने
दे वता—
सू -६
ज ानं थमं पुर ताद् व सीमतः सु चो वेन आवः. स बु या उपमा अ य व ाः सत यो नमसत व वः.. (१) संपूण सृ का कारण सृ के आरंभ म सूय के प म कट आ. उस का तेज सीमा र हत है, जो सभी दशा और लोक म ा त होता है. वह अनुपम है. सत् इसी से उ प आ है और असत् इसी म समा जाता है. (१) अना ता ये वः थमा या न कमा ण च रे. वीरान् नो अ मा दभन् तद् व एतत् पुरो दधे.. (२) हे मनु यो! तु हारे वरोधी श ु ने जो उ म कम कए ह, उन कम से वे हमारी संतान तथा वीर का वनाश न कर, इस लए म वह अ भचार कम तु हारे सामने तुत कर रहा ं. (२) सह धार एव ते सम वरन् दवो नाके मधु ज ा अस तः. त य पशो न न मष त भूणयः पदे पदे पा शनः स त सेतवे.. (३) आकाश म थत एवं हजार माग वाले वग म वनाश करने वाले यह घो षत कर चुके ह. जो लोग यु म जाने के लए आनाकानी करते ह, उ ह बांधने के लए यम त पाश लए ए सदा त पर रहते ह एवं अपनी आंख कभी बंद नह करते. (३) पयू षु ध वा वाजसातये प र वृ ा ण स णः. ष तद यणवेनेयसे स न सो नामा स योदशो मास इ
य गृहः.. (४)
हे सूय! तुम अ उ पादन के न म मेघ के समीप जाते हो और उ ह ता ड़त कर के सागर के पास प ंचाते हो. इसी कारण तु हारा नाम स न त है. वष का तेरहवां महीना जो इं का घर है, तुम उस म भी वषा करने को त पर हो. (४) वे ३ तेनारा सीरसौ वाहा. त मायुधौ त महेती सुशेवौ सोमा
ा वह सु मृडतं नः.. (५)
इसी अ भचार कम ारा इस पु ष ने स आ त वाला हो. हे सोम और ! तुम तीखे अ बना कर सुख दान करो. (५)
ा त क थी. यह अ भचार कम सुंदर वाले हो. तुम हम इस यु म वजयी
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अवैतेनारा सीरसौ वाहा. त मायुधौ त महेती सुशेवौ सोमा
ा वह सु मृडतं नः.. (६)
इस अ भचार कम के ारा ही इस राजा ने स ा त क है एवं श ु का वनाश कया है. इस क छ व सुंदर आ त वाली हो. हे सोम एवं ! तुम ती ण श वाले हो. तुम इस यु म वजय दान करा के हम सुख दो. (६) अपैतेनारा सीरसौ वाहा. त मायुधौ त महेती सुशेवौ सोमा
ा वह सु मृडतं नः.. (७)
इस अ भचार कम ारा ही इस राजा ने अपने श ु का वरोध करते ए उन का दमन कया तथा स ा त क . इस क यह ह व सुंदर आ त वाली हो. हे सोम और ! तुम अ य धक ती ण आयुध वाले तथा सुख ा त करने वाले हो. तुम हम इस यु म वजयी बना कर सुख दान करो. (७) मुमु म मान् रतादव ा जुषेथां य ममृतम मासु ध म्.. (८) हे सोम एवं दे व! हम ऐसे पाप से बचाओ, जस का नाम लेने म भी ल जा आती है. तुम इस य को ा त करो और इस म अमृत धारण करो. (८) च ुषो हेते मनसो हेते णो हेते तपस हेते. मे या मे नर यमेनय ते स तु ये३ मां अ यघाय त.. (९) हे ने क , मन क , क एवं तप क संहारक श ! तुम सभी आयुध क अपे ा े आयुध हो. जो आयुधधारी हम न करना चाहते ह, वे आयुधहीन हो जाएं. (९) यो ३ मां ुषा मनसा च याकू या च यो अघायुर भदासात्. वं तान ने मे यामेनीन् कृणु वाहा.. (१०) हे अ न! हमारी ह या पी पाप करने का इ छु क जो और च वृ से ीण करना चाहता है, उसे अपने आयुध के हमारी यह आ त उ म हो. (१०)
हम को च ु से, मन से ारा आयुधहीन बनाओ.
इ य गृहो ऽ स. तं वा प े तं वा वशा म सवगुः सवपू षः सवा मा सवतनूः सह य मेऽ त तेन.. (११) हे अ न! तुम इं के गृह हो. तुम सव गमन करने वाले, सब के पु ष, सब क आ मा एवं सब के शरीर हो. म अपने सभी सहयो गय स हत आप क शरण म आया ं. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
इ य शमा स. तं वा प े तं वा वशा म सवगुः सवपू षः सवा मा सवतनूः सह य मेऽ त तेन.. (१२) हे अ न! तुम इं के मुख, सव गमन करने वाले, सब क आ मा, सब के शरीर एवं सब के पु ष हो. म अपने सभी सहयो गय स हत तु हारी शरण म आया ं. (१२) इ य वमा स. तं वा प े तं वा वशा म सवगुः सवपू षः सवा मा सवतनूः सह य मे ऽ त तेन.. (१३) हे अ न! तुम इं के कवच, सव गमन करने वाले, सब क आ मा, सब के शरीर और सब के पु ष हो. म अपने सम त प रवार और पूरी संप के साथ तु हारी शरण म आता ं. (१३) इ य व थम स. तं वा प े तं वा वशा म सवगुः सवपू षः सवा मा सवतनूः सह य मे ऽ त तेन.. (१४) हे अ न! तुम इं के सै नक, सव गमन करने वाले, सब के पु ष, सब क आ मा और सब के शरीर हो. म अपने सभी सहयो गय स हत तु हारी शरण म आया ं. (१४)
सू -७
दे वता—अरा त
आ नो भर मा प र ा अराते मा नो र ीद णां नीयमानाम्. नमो वी साया असमृ ये नमो अ वरातये.. (१) हे अरा त! हम को धन संप बना. तू हमारे चार ओर थत मत हो और हमारे ारा लाई गई द णा को भा वत मत कर. यह ह व हम दान हीनता क अ ध ा ी दे वी को वृ न होने क इ छा से दे रहे ह. यह तुझे ा त हो. (१) यमराते पुरोध से पु षं प ररा पणम्. नम ते त मै कृ मो मा व न थयीमम.. (२) हे अरा त! हम उस पु ष को र से णाम करते ह, जो तु हारे स मुख रहता है एवं केवल बोलने वाला है, काम नह करता. तुम हमारी इस इ छा को ठु कराना मत. (२) णो व नदवकृता दवा न ं च क पताम्. अरा तमनु ेमो वयं नमो अ वरातये.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हम म दे व क भ रात दन बढ़ती रहे. इसी लए हम अरा त क शरण म जाते ह. अरा त को नम कार हो. (३) सर वतीमनुम त भगं य तो हवामहे. वाचं जु ां मधुमतीमवा दषं दे वानां दे व तषु.. (४) म दे व का आ ान करने वाले य म उस वाणी का उ चारण करता ं, जो उ ह स करने वाली है. हम सब सर वती, अनुम त और भगदे व क शरण ा त करते ह और उ ह बुलाते ह. (४) यं याचा यहं वाचा सर व या मनोयुजा. ा तम व दतु द ा सोमेन ब ुणा.. (५) मन से उ प सर वती क वाणी के ारा म जस व तु को पाने क वह श शाली सोमदे व क ा ारा द ई ा त हो. (५)
ाथना करता ,ं
मा व न मा वाचं नो वी स भा व ा नी आ भरतां नो वसू न. सव नो अ द स तो ऽ रा त त हयत.. (६) हे अरा त! तू हमारी वाणी और भ को अव मत कर. इं और अ न हम धन दान कर तथा वे इस समय हमारे श ु के अनुकूल न ह . (६) परो ऽ पे समृ े व ते हे त नयाम स. वेद वाहं नमीव त नतुद तीमराते. (७) हे अरा त! म जानता ं क तू बल बनाने वाला और पीड़ा दे ने वाला है. इस कारण तू मुझ से र रह. म तेरी वनाशक श को र कर सकता ं. (७) उत न ना बोभुवती व या सचसे जनम्. अराते च ं वी स याकू त पु ष य च.. (८) हे अरा त! तू मनु य क कामना प म ा त होता है. (८)
को असफल करता है तथा उ ह सदा भाव के
या महती महो माना व ा आशा ानशे. त यै हर यके यै नऋ या अकरं नमः.. (९) असमृ अथात् द र ता हमारी सभी आशा वाली इस असमृ को म नम कार करता ं. (९)
को सी मत कर रही है. सुनहरे केश
हर यवणा सुभगा हर यक शपुमही. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त यै हर य ापये ऽ रा या अकरं नमः.. (१०) यह सुनहरे रंग वाली पृ वी ा त के कारण हर यक यप के वश म हो कर समृ हीन हो गई थी. यह असमृ रमणीयता का वनाश करती है. म इस को नम कार करता ं. (१०)
दे वता—अ न
सू -८ वैकङ् कतेने मेन दे वे य आ यं वह. अ ने ताँ इह मादय सव आ य तु मे हवम्.. (१)
हे अ न! तुम श शाली ओष ध के धन से दे व के हेतु घृत का वहन करो. इस कम से तुम दे व को स करो. मेरे यह म सभी दे व आएं. (१) इ ा या ह मे हव मदं क र या म त छृ णु. इम ऐ ा अ तसरा आकू त सं नम तु मे. ते भः शकेम वीय १ जातवेद तनूव शन्.. (२) हे इं ! मेरे इस य म आओ और म जो तु त कर रहा ं, उसे सुनो. सभी ऋ वज् मेरी इ छा के अनुसार काय कर. हे ज म लेने वाल के ाता इं ! जन ऋ वज का म ने वणन कया है, उन के य न से हम श शाली बन. (२) यदसावमुतो दे वा अदे वः सं क ष त. मा त या नह ं वा ी वं दे वा अ य मोप गुममैव हवमेतन.. (३) हे दे वगण! जो भ हीन पु ष य करना चाहता है, उस के ह को अ न तु हारे पास तक न प ंचाएं. दे वगण उस भ हीन पु ष के य म न जा कर मेरे य म पधार. (३) अ त धावता तसरा इ य वचसा हत. अ व वृक इव म नीत स वो जीवन् मा मो च ाणम या प न त.. (४) हे मनु यो! तुम इं के वचन से वृ ा त करो और श ु का वनाश करो. तुम श ु को इस कार मथो, जस कार भे ड़या भेड़ को मथता है. वह जी वत न रहने पाए. तुम उसे न कर दो. (४) यममी पुरोद धरे मृ यवे.. (५)
ाणमपभूतये. इ
स ते अध पदं तं
य या म
हे इं ! इन श ु ने हमारी ग त के न म य म जसे अपना पुरो हत बनाया है, उस का अधःपतन हो जाए. म उसे मृ यु के समीप फक रहा ं. (५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
य द ेयुदवपुरा वमा ण च रे. तनूपानं प रपाणं कृ वाना य पो चरे सव तदरसं कृ ध.. (६) हे दे व! हमारे श ु ने तनुपान एवं प रपाण नामक कम के समय अपने मं मय कवच को स कर लया है. तुम इन कम से संबं धत मं को असफल बनाओ. (६) यानसाव तसरां कार कृणव च यान्. वं ता न वृ हन् तीचः पुनरा कृ ध यथामुं तृणहां जनम्.. (७) हे वृ रा स का नाश करने वाले इं ! हमारे श ु ने जन यो ा को आगे क ओर बढ़ाया है, उ ह तुम पीछे धकेल दो, जस से म श ु क सेना का वनाश कर सकूं. (७) यथे उ ाचनं ल वा च े अध पदम्. कृ वे ३ हमधरां तथामू छ ती यः समा यः.. (८) इं ने जस कार तु त वचन के े अ कार म इन श ु का तर कार करता ं. (८)
से अपने श ु को परा जत कया था, उसी
अ ैना न वृ ह ु ो मम ण व य. अ ैवैनान भ त े मे १हं तव. अनु वे ा रभामहे याम सुमतौ तव.. (९) हे वृ को मारने वाले इं ! तुम उ बन कर इस यु म मेरे श ु के मम थल का वेध करो. म तु हारा नेहपा ं, इसी लए तुम मेरे इन श ु से यु करो. म तु हारा अनुगामी ं और भ व य म भी तु हारी सुम त म र ंगा. (९)
सू -९
दे वता—वा तो प त
दवे वाहा.. (१) ुलोक के अ ध ाता दे व के लए हमारी यह ह व सम पत है. (१) पृ थ ै वाहा.. (२) पृ वी के अ ध ाता दे व के लए हमारी यह ह व सम पत है. (२) अ त र ाय वाहा.. (३) आकाश के अ ध ाता दे व के लए हमारी यह ह व सम पत है. (३) अ त र ाय वाहा.. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अंत र अथात् धरती और आकाश के अ ध ाता दे व के लए यह ह व सम पत है. (४) दवे वाहा.. (५) ुलोक अथात् वग के अ ध ाता के लए हमारी यह ह व सम पत है. (५) पृ थ ै वाहा.. (६) पृ वी के लए हमारी यह ह व सम पत है. (६) सूय मे च ुवातः ाणो ३ त र मा मा पृ थवी शरीरम्. अ तृतो नामाहमयम म स आ मानं न दधे ावापृ थवी यां गोपीथाय.. (७) वायु मेरे ने ह, वायु मेरा ाण है, अंत र के अ ध ाता दे व मेरी आ मा ह और पृ वी मेरा शरीर है. म अमर अथवा मृ युर हत नाम वाला ं. हे ावा पृ वी! म अपनी आ मा को सुर ा के न म आपके सामने सम पत करता ं. (७) उदायु द् बलमुत् कृतमुत् कृ यामु मनीषामु द यम्. आयु कृदायु प नी वधाव तौ गोपा मे तं गोपायतं मा. आ मसदौ मे तं मा मा ह स म्.. (८) हे ावा पृ वी! तुम हमारी आयु, बल, कम, कृ या, बु तथा इं य को उ कृ बनाओ. हे आयु बढ़ाने वाले, आयु क र ा करने वाले एवं व भासमान ावा पृ वी! तुम मेरी र ा करो! आप मेरी आ मा म थत हो और कभी मेरी हसा न कर. (८)
सू -१० अ मवम मे ऽ स यो मा ऋ छात्.. (१)
दे वता—वा तो प त ा या दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स
हे प थर के बने घर! तू मेरा है. जो पापी ह यारा मुझे पूव दशा क ओर से न करना चाहता है, वह नाश को ा त हो. (१) अ मवम मे ऽ स यो मा द णाया दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स ऋ छात्.. (२) हे प थर के बने ए घर! तू मेरा है. जो ह या करने का इ छु क पापी द ण दशा से मुझे न करने का इ छु क है, वह यहां आतेआते वयं न हो जाए. (२) अ मवम मे ऽ स यो मा ती या दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ऋ छात्.. (३) हे प थर के बने ए घर! तू मेरा है. जो ह या करने का इ छु क पापी मुझे प म दशा से न करना चाहता है, वह मेरे समीप आने से पहले ही न हो जाए. (३) अ मवम मे ऽ स यो मोद या दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स ऋ छात्.. (४) हे प थर के बने घर! तू मेरा है. जो पापी मेरी ह या करने क इ छा से उ र दशा से आता है, वह मेरे समीप आ कर न हो जाए. (४) अ मवम मे ऽ स यो मा ऋ छात्.. (५)
ुवाया दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स
हे प थर के बने ए घर! तू मेरा है. जो पापी ुव दशा अथात् नीचे क ओर से मुझे न करने क इ छा करता है, उस का नाश हो. (५) अ मवम मे ऽ स यो मा मो वाया दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स ऋ छात्.. (६) हे प थर के घर! तू मेरा है. जो पापी मुझे ऊपर क दशा से समा त करना चाहता है, उस का नाश हो. (६) अ मवम मे ऽ स यो मा दशाम तदशे यो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स ऋ छात्.. (७) हे प थर के बने ए घर! तू मेरा है जो पापी दशा चाहता है, उस का नाश हो. (७)
के कोन से मेरा नाश करना
बृहता मन उप ये मात र ना ाणापानौ. सूया च ुर त र ा पृ थ ाः शरीरम्. सर व या वाचमुप यामहे मनोयुजा.. (८)
ो ं
म चं मा के मन का आ ान करता ं. म वायु से ाण अपान क , सूय से ने क , अंत र से े क , पृ वी से शरीर क और सर वती से मन यु वाणी क ाथना करता ं. (८)
सू -११
दे वता—व ण
कथं महे असुराया वी रह कथं प े हरये वेषनृ णः. पृ व ण द णां ददावान् पुनमघ वं मनसा च क सीः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे श शाली व ण! तुम ने जगत् के पालन करने वाले सूय से या कहा था? तुम सूय को द णा दे ते हो एवं मन से च क सा करते हो. (१) न कामेन पुनमघो भवा म सं च े कं पृ मेतामुपाजे. केन नु वमथवन् का ेन केन जातेना स जातवेदाः.. (२) म इ छा मा से ही संप शाली नह बन गया ं, अ पतु सूय दे व से ाथना करता .ं म यह सुख ा त करता र ं. हे ऋ वज्! तुम कस व ा और चातुय के ारा सभी ज म लेने वाल के ाता बन गए हो? (२) स यमहं गभीरः का ेन स यं जातेना म जातवेदाः. न मे दासो नाय म ह वा तं मीमाय यदहं ध र ये.. (३) यह स य बात है क म का अथात् अथव के ारा ा त चतुरता से ानी बन गया ं तथा अ न के समान सब का मागदशन करता ं. म जस त को धारण क ं गा, उसे कोई भंग नह कर सकता. (३) न वद यः क वतरो न मेधया धीरतरो व ण वधावन्. वं ता व ा भुवना न वे थ स च ु व जनो मायी बभाय.. (४) हे वधा वाले व ण! तु हारे अ त र कोई भी सरा व ान् मेधावी और वीर नह है. तुम सभी भुवन को जानते हो, इस लए सब लोग तुम से भयभीत रहते ह. (४) वं १ व ण वधावन् व ा वे थ ज नमा सु णीते. क रजस एना परो अ यद येना क परेणावरममुर.. (५) हे सुधा के पा एवं नी त पालक व ण! तुम ा णय के सभी ज म को जानते हो. तुम सभी से मोह रखते हो. इस रजोगुण यु धन से े कौन सी व तु है. इस से े कुछ भी नह है. (५) एकं रजस एना परो अ यद येना पर एकेन णशं चदवाक्. तत् ते व ान् व ण वी यधोवचसः पणयो भव तु नीचैदासा उप सप तु भू मम्.. (६) इस रजोगुण यु धन से े गुण यु धन है. सतोगुण यु से े है. हे व ण दे व! तुम इस वषय के जानने वाले हो, इस लए म तुम से नवेदन करता ं क बुरा वहार करने वाले लोग मेरे सामने नकृ वचन न बोल और दास जन झुक कर चल. (६) वं १ व ण वी ष पुनमघे वव ा न भू र. मो षु पण र ये ३ तावतो भू मा वा वोच राधसं जनासः.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे व ण दे व! तुम बारबार धन ा त के अवसर के वषय म बताते हो. तुम इन वहार करने वाल क उपे ा मत करो. अ यथा ये तु ह धनहीन समझने लगगे. (७) मा मा वोच राधसं जनासः पुन ते पृ ज रतददा म. तो ं मे व मा या ह शची भर त व ासु मानुषीषु द ु.. (८) लोग बारबार तु ह धनहीन अथवा कंजूस न समझ ल, इस लए म तु ह यह थोड़ा सा धन भट करता ं. मेरी इ छा है क तु हारी यह तु त सारे संसार म फैल जाए और सभी दशा म मनु य इसे गाएं. (८) आ ते तो ा यु ता न य व त व ासु मानुषीषु द ु. दे ह नु मे य मे अद ो अ स यु यो मे स तपदः सखा स.. (९) हे व ण! मनु य से यु सभी दशा म तु हारी तु तयां फैल जाएं. तुम मुझे यह व तु दो जो अब तक नह द है. तुम मेरे स तदा अथात् सात कदम साथ चलने वाले सखा हो. (९) समा नौ ब धुव ण समा जा वेदाहं त ावेषा समा जा. ददा म तद् यत् ते अद ो अ म यु य ते स तपदः सखा म.. (१०) हे बंधु व ण! हम और तुम दोन समान ह. हमारी संतान भी समान हो. इन बात को म जानता ं. म ने तु ह अब तक जो नह दया है, वह अब दे रहा ं. म तु हारा स तदा सखा ं. (१०) दे वो दे वाय गृणते वयोधा व ो व ाय तुवते सुमेधाः. अजीजनो ह व ण वधाव थवाणं पतरं दे वब धुम्. त मा उ राधः कृणु ह सु श तं सखा नो अ स परमं च ब धुः.. (११) हे अ धारक व ण दे व! दे वगण दे व क तु त करते ह तथा बु मान ा ण ा ण क तु त करते ह. हे सुधा के पा व ण! तुम ने दे व को बंधु एवं हमारे पता के समान अथव को जानने वाले को उ प कया है. तुम मुझे े धन म था पत करो. तुम हमारे सब से बड़े बंधु एवं सखा हो. (११)
सू -१२
दे वता—अ न
स म ो अ मनुषो रोणे दे वो दे वान् यज स जातवेदः. आ च वह म मह क वान् वं तः क वर स चेताः.. (१) हे उ प को जानने वाले अ न! तुम आज मनु य के य म व लत ए हो और दे व का यजन कर रहे हो. तुम म क पूजा करने वाले एवं ाता हो. तुम दे व का आ ान ******ebook converter DEMO Watermarks*******
करो. तुम दे व के त, ानवान और
ांतदश हो. (१)
तनूनपात् पथ ऋत य यानान् म वा सम म मा न धी भ त य मृ धन् दे व ा च कृणु
वदया सु ज . वरं नः.. (२)
हे शरीरर क एवं उ म ज ा वाले अ न! तुम स यलोक को ा त कराने वाले माग को मधुर बना कर उन का आ वादन करो एवं मेरे य को बढ़ाते ए इसे दे व को ा त कराओ. (२) आजु ान ई ो व ा या ने वसु भः सजोषाः. वं दे वानाम स य होता स एनान् य ी षतो यजीयान्.. (३) हे अ न! तुम पू य व वंदना करने यो य हो. तुम म भलीभां त हवन कया जाता है. हमारे इस य कम म तुम वसु के स हत आओ. तुम दे व के होता हो. तुम हमारी ेरणा से दे व क पूजा करो. (३) ाचीनं ब हः दशा पृ थ ा व तोर या वृ यते अ े अ ाम्. ु थते वतरं वरीयो दे वे यो अ दतये योनम्.. (४) वेद पी भू म को ढकने वाले आ नीय अ न पूवा म व तृत होते ह. अ न अ य यो तय क अपे ा े , धनवान तथा पृ वी को सुख दे ने वाले ह. (४) च वती वया व य तां प त यो न जनयः शु भमानाः. दे वी ारो बृहती व म वा दे वे यो भवत सु ायणाः.. (५) अ न क वाला ह व को वहन करने वाली और ा धय को रोकने वाली है. इस कारण वह ार के समान है. हे अ न क काशमान वाला! जस कार यां प तय का आदर करती है, उसी कार तुम दे व को सुख दे ने वाली बनो. तुम ह व को ा त करने वाली हो. (५) आ सु वय ती यजते उपाके उषासान ा सदतां न योनौ. द े योषणे बृहती सु मे अ ध यं शु पशं दधाने.. (६) अ न क द त उषा और य क द त से यु है. वह य का संपादन करती एवं दे व से संयु होती है. वह द , पर पर मलने वाली एवं उ म द त यजमान के हेतु अ न क थापना करे. (६) दै ा होतारा थमा सुवाचा ममाना य ं मनुषो यज यै. चोदय ता वदथेषु का ाचीनं यो तः दशा दश ता.. (७) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वायु और अ न द ह. मनु य होता म मुख ह. वे सुंदर वाणी वाले, य के ेरक एवं य के नमाता ह. वायु होता पर अनु ह करते ह और आ नीय अ न क सेवा का आदे श दे ते ह. अतएव य पर उपकार करने वाले वायु और अ न दे व मुझ पर भी उपकार कर. (७) आ नो य ं भारती तूयमे वडा मनु व दह चेतय ती. त ो दे वीब हरेदं योनं सर वतीः वपसः सद ताम्.. (८) सब ा णय को जल से संतु करने वाले अ न दे व क कां त पृ वी का और सर वती का आ ान करने पर सचेत हो. सुंदर कम करने वाली ये तीन दे वयां कुश पर वराजमान ह . (८) य इमे ावापृ थवी ज न ी पैर पशद् भुवना न व ा. तम होत र षतो यजीयान् दे वं व ार मह य व ान्.. (९) हे अ न! जो व ा दे वता ावा पृ वी तथा सम त ा णय को अनेक है, हमारी ेरणा से आज उस का यजन करो. (९)
प दान करता
उपावसृज म या सम न् दे वानां पाथ ऋतुथा हव ष. वन प तः श मता दे वो अ नः वद तु ह ं मधुना घृतेन.. (१०) हे अ न दे व! यह य प अ दे व का भाग है. इसे और ह वय को येक ऋतु म दे व तक प ंचाओ. वन प त, स वता दे व और अ न इस ह को मधु और घृत से यु कर के वा द बनाएं. (१०) स ो जातो अ य होतुः
ममीत य म नदवानामभवत् पुरोगाः. श यृत य वा च वाहाकृतं ह वरद तु दे वाः.. (११)
अ न दे व कट होते ही य का आरंभ करते ह और कट होते ही सम त दे व म अ ग य बन जाते ह. दे व का आ ान करने वाले इस अ न के मुख म दे व गण वाहा श द से यु ह व हण कर. (११)
सू -१३ द द ह म ं व णो दवः क ववचो भ खातमखातमुत स म भ मरेव ध व
दे वता—सप- वषनाशन ै न रणा म ते वषम्. जजास ते वषम्.. (१)
वग के दे वता व ण ने मुझे उपदे श दया है. उन के वचन के ारा म तेरे वष को र करता ं. जो वष मांस के ऊपर अथवा मांस के भीतर है, उसे म हण करता ं. जस कार जल रेत म गरने पर न हो जाता है, उसी कार तेरा वष न हो जाए. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यत् ते अपोदकं वषं तत् त एता व भम्. गृ ा म ते म यममु मं रसमुतावमं भयसा नेशदा ते.. (२) जल को षत करने वाला तेरा जो वष है, उसे म ने भीतर ही रोक लया है. तेरे उ म और म यम रस अथात् वष को म हण करता ं. वह रस अथात् तेरा वष न हो जाए. (२) वृषा मे रवो नभसा न त यतु ेण ते वचसा बाध आ ते. अहं तम य नृ भर भं रसं तमस इव यो त दे तु सूयः.. (३) मेरा वचन वषा करने वाला तथा मेघ के समान गजन करता है. म अपने उ वचन से तुझ सप को बांधता ं. जस कार सूय दय होने पर अंधकार न हो जाता है, उसी कार यह पु ष वष से मु हो कर जी वत हो जाए. (३) च ुषा ते च ुह म वषेण ह म ते वषम्. अहे य व मा जीवीः यग येतु वा वषम्.. (४) हे सप! म अपनी ने श से तेरी ने श का वनाश करता ं तथा ऋ ष के ारा तेरे वष को समा त करता ं. तू मृ यु को ा त हो, जी वत न रहे. तेरा वष तुझ पर ही बुरा भाव डाले. (४) कैरात पृ उपतृ य ब आ मे शृणुता सता अलीकाः. मा मे स युः तामानम प ाता ावय तो न वषे रम वम्.. (५) हे सप ! तुम जंगल म घूमने वाले, काले ध ब से यु , घास म रहने वाले, भूरे वण वाले, काले वण वाले तथा नदनीय हो. तुम हमारे कथन को सुनो. तुम हमारे सखा के घर के समीप नवास मत करो. हमारा यह कथन तुम सरे सप को भी सुना दो. (५) अ सत य तैमात य ब ोरपोदक य च. सा ासाह याहं म योरव या मव ध वनो व मु चा म रथाँ इव.. (६) गीली जगह म नवास करने वाले, याम एवं ेत वण से यु , पानी से र रहने वाले और सब को परा जत करने वाले ोध पूण सप के वष को हम उसी कार र करते ह, जस कार धनुष क डोरी और रथ के बंधन को उतारा जाता है. (६) आ लगी च व लगी च पता च माता च. व वः सवतो ब वरसाः क क र यथ.. (७) हे सप ! तु हारे माता पता आ लगी अथात् चपकने वाले और वलगी अथात् न चपकने वाले ह. हम तु हारे सभी बंधु से प र चत ह. तुम रसहीन अथात् वष हीन हो कर ******ebook converter DEMO Watermarks*******
या करोगे? (७) उ गूलाया हता जाता दा य स या. तङ् कं षीणां सवासामरसं वषम्.. (८) जो सां पन गूलर नाम के वशाल वृ से उ प ई है, वह काली सां पन क दासी है. जो सां पन दांत के मा यम से अपना ोध कट करती है, इस का वष हम ःख दान करता है यह वष भावहीन हो जाए. (८) कणा ा वत् तद वीद् गरेरवचर तका. याः का म े ाः ख न मा तासामरसतमं वषम्.. (९) पवत पर घूमने वाली और कांट वाली ने कहा क जो सां पन धरती म बल बना कर नवास करती ह, उन का वष भावहीन हो जाए. (९) ताबुवं न ताबुवं न घेत् वम स ताबुवम्. ताबुवेनारसं वषम्.. (१०) (१०)
तुम ताबुव नह हो, तुम ताबुव नह हो, य क ताबुव वष को भावहीन कर दे ता है. त तुवं न त तुवं न घेत् वम स त तुवम्. त तुवेनारसं वषम्.. (११)
तुम त तुव नह हो, तुम त तुव नह हो. न त को भावहीन कर दे ता है. (११)
प से तुम त तुव नह हो. त तुव वष
सू -१४
दे वता—ओष ध
सुपण वा व व दत् सूकर वाखन सा. द सौषधे वं द स तमव कृ याकृतं ज ह.. (१) हे ओष ध! सुपण अथात् ग ड़ या सूय ने तु ह ा त कया था. सुअर ने अपनी नाक से तु ह खोदा था. हे कृ या से संबं धत ओष ध! तुम कृ या का योग करने वाले और हम मारने का य न करने वाले का नाश करो. (१) अव ज ह यातुधानानव कृ याकृतं ज ह. अथो यो अ मान् द स त तमु वं ज ोषधे.. (२) हे ओष ध! तुम याततुधान अथात् रा स और कृ या का नमाण करने वाले का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
वनाश करो. तुम उस का भी वनाश करो जो हमारी मृ यु क इ छा करता है. (२) र य येव परीशासं प रकृ य प र वचः. कृ यां कृ याकृते दे वा न क मव त मु चत.. (३) हे दे वो! जो हमारी हसा करने वाले ह, उन क वचा पर अपने आयुध से घाव बना कर अपने आयुध को अलग करो. लोग जस कार सोने के स के अथवा आभूषण को हण करते ह, उसी कार कृ या का नमाण करने वाला उस को वीकार करे. (३) पुनः कृ यां कृ याकृते ह तगृ परा णय. सम म मा आ धे ह यथा कृ याकृतं हनत्.. (४) हे ओष ध! तुम कृ या का हाथ पकड़ कर उन के समीप ले जाओ, ज ह ने इस का नमाण कया है. उन के समीप प ंची ई कृ या उन का वनाश कर दे गी. (४) कृ याः स तु कृ याकृते शपथः शपथीयते. सुखो रथइव वततां कृ या कृ याकृतं पुनः.. (५) कृ या का योग करने वाले पर कृ या का बुरा भाव पड़े और शाप दे ने वाले को ही शाप लगे. जस कार रथ सरलतापूवक घूम जाता है, उसी कार कृ या अपने ेरक क ओर घूम जाए. (५) य द ी य द वा पुमान् कृ यां चकार पा मने. तामु त मै नयाम य मवा ा भधा या.. (६) य द कसी ी अथवा पु ष ने तुझे पाप कम अथात् मुझे डसने के लए ेरणा द है तो जस कार लगाम का संकेत करने से घोड़ा पीछे क ओर लौट पड़ता है, उसी कार हम तुझे ेरणा दे ने वाल क ओर ही लौटाते ह. (६) य द वा स दे वकृता य द वा पु षैः कृता. तां वा पुनणयामसी े ण सयुजा वयम्.. (७) हे कृ या! य द तुझे दे व ने अथवा पु ष ने े रत कया है तो हम तुझे उ ह क ओर वापस लौटाते ह, य क हम इं के सखा ह. (७) अ ने पृतनाषाट् पृतनाः सह व. पुनः कृ यां क याकृते तहरणेन हराम स.. (८) हे रा स क सेना का सामना करने वाले अ न दे व! तुम इन सेना हम इस कृ या को कृ या के ेरक क ओर ही वापस लौटा रहे ह. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
का सामना करो.
कृत ध न व य तं य कार त म ज ह. न वामच ु षे वयं वधाय सं शशीम ह.. (९) हे संहार का साधन कृ या! जस ने तेरा नमाण कया है, तू उसी का छे दन कर के मार डाल. जस ने तेरा नमाण नह कया है, उस के वध के न म हम तुझे श शा लनी नह बनाते. (९) पु इव पतरं ग छ वज इवा भ तो दश. ब ध मवाव ामी ग छ कृ ये कृ याकृतं पुनः.. (१०) हे कृ या! जस कार पु पता के पास जाता है, उसी कार तू अपने उ प कता के समीप जा. दबने पर जस कार सांप काट लेता है, उसी कार तू उसे डस ले, जस ने तुझे बनाया है. जस कार टू टा आ बंधन अपने ही शरीर पर गरता है, उसी कार तू कृ याकता के पास लौट जा. (१०) उढे णीव वार य भ क दं मृगीव. कृ या कतारमृ छतु.. (११) कृ या इस कार अपने नमाणकता के पास जाए, जस कार ऐणी नाम क हरनी, ह थनी और मृगी शी ता से झपटती है. (११) इ वा ऋजीयः पततु ावापृ थवी तं त. सा तं मृग मव गृ ातु कृ या कृ याकृतं पुनः.. (१२) कृ या अपने नमाण कता क ओर उस के तकूल आचरण करती ई अ न के समान जाए. जैसे कनारे को काट कर गराता आ जल का वेग मलता है अथवा रथ जस कार सरलता से मुड़ जाता है, उसी कार कृ या अपने नमाणकता से मले. (१२) अ न रवैतु तकूलमनुकूल मवोदकम्. सुखो रथ इव वततां कृ या कृ याकृतं पुनः.. (१३) अ न क तरह कृ याकारी से तकूल आचरण करती ई वह कृ या उस के पास प ंचे. जस कार पानी कनार को काटता आ बढ़ता है उसी कार वह कृ या कृ याकारी के अनुकूल हो कर उस के पास प ंचे. वह कृ या सुखकारी रथ के समान कृ याकारी के पास पुनः चली आए. (१३)
सू -१५
दे वता—मधुला ओष ध
एका च मे दश च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे य के न म उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे एक और दस अथात् यारह ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना. य क तू मधुर है. (१) े च मे वश त च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (२) हे ऋतु के अनुसार उ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे दो और बीस अथात् बाईस ह , परंतु तू मेरे श द को मधुर बना, य क तू मधुर है. (२) त मे श च च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (३) हे ऋतु के अनुसार उ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे तीन और तीस अथात् ततीस ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (३) चत मे च वा रश च च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (४) हे ऋतु के अनुसार उ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे चार और चालीस अथात् चवालीस ह , परंतु तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (४) प च च मे प चाश च च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (५) हे ऋतु के अनुसार ऊ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे पांच और पचास अथात् पचपन ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (५) षट् च मे ष च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (६) हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे छः और साठ अथात् छयासठ ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (६) स त च मे स त त च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (७) हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे सात और स र अथात् सतह र ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (७) अ च मे ऽ शी त मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (८) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले आठ और अ सी अथात अ ासी ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (८) नव च मे नव त मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (९) हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे नौ और न बे अथात् न यानवे ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (९) दश च मे शतं च मे ऽ पव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (१०) हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे दस और सौ अथात एक सौ दस ह , परंतु तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (१०) शतं च मे सह ं चापव ार ओषधे. ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (११) हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे सौ और हजार अथात् यारह सौ ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (११)
दे वता—एक वृष
सू -१६ य ेकवृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (१)
हे लवण! य द तू एक वृषभ अथात् बैल के समान श उ प कर, अ यथा तू भावहीन समझा जाएगा. (१) यद
वृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (२)
हे लवण! य द तू दो बैल के समान श अ यथा तू श हीन समझा जाएगा. (२) यद
वाला है तो इस गाय से संतान
शाली है तो इस गाय को संतान वाली बना,
वृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (३)
हे लवण! य द तू तीन बैल के समान श अ यथा तू भावहीन समझा जाएगा. (३)
वाला है तो इस गाय से संतान उ प कर,
य द चतुवृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (४) हे लवण! य द तू चार बैल के समान श
वाला है तो इस गाय को संतान वाली बना,
******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ यथा तू श
हीन समझा जाएगा. (४)
य द प चवृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (५) हे लवण! य द तू पांच बैल के समान श अ यथा तू भावहीन समझा जाएगा. (५)
वाला है तो इस गाय से संतान उ प कर,
य द षड् वृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (६) हे लवण! य द तू छह बैल के समान श अ यथा तू श हीन समझा जाएगा. (६)
वाला है तो इस गाय से संतान उ प कर,
य द स तवृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (७) हे लवण! य द तू सात बैल के समान श अ यथा तू श हीन समझा जाएगा. (७) य
शाली है तो इस गाय को संतान वाली बना,
वृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (८)
हे लवण! य द तू आठ बैल के समान श अ यथा तू श र हत समझा जाएगा. (८)
वाला है तो इस गाय से संतान उ प कर,
य द नववृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (९) हे लवण! य द तू नौ बैल के समान श अ यथा तू भावर हत समझा जाएगा. (९)
शाली है तो इस गाय से संतान उ प कर,
य द दशवृषो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (१०) हे लवण! य द तू दस बैल के समान श अ यथा तू भावहीन समझा जाएगा. (१०)
शाली है तो इस गाय को संतान वाली बना,
य ेकादशो ऽ स सृजारसो ऽ स.. (११) हे लवण! य द तू यारह बैल के समान श कर, नह तो तू श हीन समझा जाएगा. (११)
सू -१७
वाला है तो इस गाय से संतान उ प
दे वता—
ते ऽ वदन् थमा क बषे ऽ कूपारः स ललो मात र ा. वीडु हरा तप उ ं मयोभूरापो दे वीः थमजा ऋत य.. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जाया
सूय, व ण, वायु, चं तथा आप अथात् जलदे वी—ये दे वता इ ह ने ा ण ारा अपराध करने के वषय म कहा है. (१)
से उ प
ए ह.
सोमो राजा थमो जायां पुनः ाय छद णीयमानः. अ व तता व णो म आसीद नह ता ह तगृ ा ननाय.. (२) सब से पहले सोम ने के लए उस गाय को दे दया, जस ने उ ह उ प उस समय व ण और सूय सोम के सहयोगी बने और अ न उन के होता थे. (२)
कया था.
ह तेनैव ा आ धर या जाये त चेदवोचत्. न ताय हेया त थ एषा तथा रा ं गु पतं य य.. (३) यह हम को उ प करने वाली है, इस कार जो कहे उस का संक प हाथ म ले. यह संक प लेने के लए त को न भेजे. (३) यामा तारकैषा वकेशी त छु नां ाममवप मानाम्. सा जाया व नो त रा ं य ापा द शश उ कुषीमान्.. (४) ाम क ओर बढ़ती ई ता रका को उ का कहते ह. उस उ का का अंश जहां गरता है, उस रा य का नाश हो जाता है. इस कार से उ प ता रका रा य का नाश कर दे ती है. (४) चारी चर त वे वषद् वषः स दे वानां भव येकम म्. तेन जायाम व व दद् बृह प तः सोमेन नीतां जु ं १ न दे वाः.. (५) चय दे वता का अंग प होता है. वह चय म रमण करता आ जा के म य घूमता है. जस कार दे व ने सोम के चमस को ा त कया है, उसी कार बृह प त ने चय के ारा प नी को पाया. (५) दे वा वा एत यामवद त पूव स तऋषय तपसा ये नषे ः. भीमा जाया ा ण यापनीता धा दधा त परमे ोमन्.. (६) तप या म लीन रहने वाले स त ऋ षय ने और दे व ने ा ण जाया क चचा क थी क ा ण क अपहरण क गई ी वग म भयंकर बन जाती है और अपहरण कता क ग त करती है. (६) ये गभा अवप ते जगद् य चापलु यते. वीरा ये तृ ते मथो जाया हन त तान्.. (७) जो गभ गराए जाते ह, संसार म जो उथलपुथल होती है, वीर क पर पर मारकाट, ये ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सारे कम ा ण क प नी ही करती है. (७) उत यत् पतयो दश याः पूव अ ा णाः. ा चे तम हीत् स एव प तरेकधा.. (८) ा ण क प नी के पूव अ ा ण बालक चाहे दस ह , पर जो ा ण उस का पा ण हण करता है, वही उस का प त होता है. (८) ा ण एव प तन राज यो ३ न वै यः. तत् सूयः ुव े त प च यो मानवे यः.. (९) ा णी का प त ा ण ही हो सकता है, य और वै य नह . सूय दे व पांच कार के मानव— ा ण, य, वै य, शू और नषाद यह कहते ए दमन करते ह. (९) पुनव दे वा अद ः पुनमनु या अद ः. राजानः स यं गृ ाना जायां पुनद ः.. (१०) (१०)
ा ण प नी को दे व , मनु य और राजा
ने स य को हण कर के दान कया.
पुनदाय जायां कृ वा दे वै न क बषम्. ऊज पृ थ ा भ वो गायमुपासते.. (११) हम दे व ारा व छ कए ए श दायक अ का वभाग कर के ा ण प नी को दे ते ह तथा अ य धक क तशाली परमा मा क उपासना करते ह. (११) ना य जाया शतवाही क याणी त पमा शये. य मन् रा े न यते जाया च या.. (१२) जस रा य म ा ण क प नी और गाय को बाधा प ंचाई जाती है, वहां भां तभां त के क याण करने वाली प नी शै या पर शयन नह करती. (१२) न वकणः पृथु शरा त मन् वे म न जायते. य मन् रा े न यते जाया च या.. (१३) जस रा य म ा ण क प नी को अचेत कर के रोका जाता है, उस रा य म वशाल म तक वाले पु ष ज म नह लेते. (१३) ना य ा न क ीवः सूनानामे य तः. य मन् रा े न यते जाया च या.. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जस रा य म ा ण क प नी को मो हत कर के रोका जाता है, उस रा य का वीर न क नाम का सोने का आभूषण धारण कर के भी सूना से आगे नह जा पाता. (१४) ना य ेतः कृ णकण धु र यु ो महीयते. य मन् रा े न यते जाया च या.. (१५) जस रा य म ा ण क प नी को चेतनाहीन कर के रोका जाता है, उस रा य म राजा का ेत कान वाला घोड़ा रथ के आगे जुत कर भी शं सत नह होता. (१५) ना य े े पु क रणी ना डीकं जायते बसम्. य मन् रा े न यते जाया च या.. (१६) जस रा म ा ण क प नी को अचेत कर के रोका जाता है, उस रा क पु क रणी म कमल और कमल तंतु उ प नह होते. (१६) ना मै पृ व ह त ये ऽ या दोहमुपासते. य मन् रा े न यते जाया च या.. (१७) जस रा म ा ण क प नी अचेत कर के रोक जाती है, उस रा म ध हने क इ छा करने वाले थोड़ा ध भी नह ह पाते. (१७) ना य धेनुः क याणी नानड् वा सहते धुरम्. वजा नय ा णो रा वस त पापया.. (१८) जस रा म जाया अथात् प नी से र हत ा ण पाप क भावना से रा नवास करता है, उस रा के वामी के यहां गाय क याण करने वाली नह होती और बैल गाड़ी या रथ के जुए को नह ख चते. (१८)
सू -१८
दे वता— ा ण क गाय
नैतां ते दे वा अद तु यं नृपते अ वे. मा ा ण य राज य गां जघ सो अना ाम्.. (१) हे राजन्! दे व ने यह गाय तुम को भ ण करने के लए नह द है. ा ण क गाय अखा है. इसे खाने क इ छा मत कर. (१) अ धो राज यः पाप आ मपरा जतः. स ा ण य गाम ाद जीवा न मा ः.. (२) इं य को वश म न करने वाला एवं आ मपरा जत जो राजा ा ण क गाय का ******ebook converter DEMO Watermarks*******
भ ण करता है, वह पापी राजा जी वत नह रहता. (२) आ व ताघ वषा पृदाकू रव चमणा. सा ा ण य राज य तृ ैषा गौरना ा.. (३) ा ण क चम से ढक ई गाय कचुली से ढक राजन्! यह भ ण करने यो य नह है. (३)
ई
ानी स पणी के समान है. हे
नव ं नय त ह त वच ऽ न रव र धो व नो त सवम्. यो ा णं म यते अ मेव स वष य पब त तैमात य.. (४) जो राजा ा ण के पदाथ का भ ण करता है, वह वष पीता है और अपना ा तेज गवां दे ता है. जस कार ोध म भरे ए अ न दे व सब कुछ न कर दे ते ह, उसी कार ा ण के पदाथ को खाने यो य समझने वाला राजा न हो जाता है. (४) य एनं ह त मृ ं म यमानो दे वपीयुधनकामो न च ात्. सं त ये ो दये ऽ न म ध उभे एनं ो नभसी चर तम्.. (५) ा ण को मृ समझने वाला जो अ ानी उसे न करना चाहता है, वह दे व हसक है. इं उस पापी के दय म अ न व लत कर दे ते ह और आकाश तथा पृ वी दोन उस के त वैर भाव रखते ह. (५) न ा णे ह सत ो ३ नः यतनो रव. सोमो य दायाद इ ो अ या भश तपाः.. (६) जस कार अपने शरीर को कोई न नह करना चाहता, उसी कार अ न के समान तेज वी ा ण का नाश भी नह करना चा हए. सोम ा ण का संबंधी ह और इं ा ण के शाप को पूण करते ह. (६) शतापा ां न गर त तां न श नो त नः खदम्. अ ं यो णां म वः वा १द्मी त म यते.. (७) जो पापी ा ण के अ को वा द समझ कर भ ण करता है, वह पापी मानव सैकड़ वप य को नगलता है. (७) ज ा या भव त कु मलं वाङ् नाडीका द ता तपसा भ द धाः. ते भ ा व य त दे वपीयून् द्बलैधनु भदवजूतैः.. (८) ा ण क जीभ धनुष क प व दांत तीर ह. ा ण दे वता
यंचा, वाणी धनुष क लकड़ी और तप या के कारण से े रत इ ह धनुष बाण से दे व हसंक को ब धता है.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
(८) ती णेषवो ा णा हे तम तो याम य त शर ां ३ न सा मृषा. अनुहाय तपसा म युना चोत रादव भ द येनम्.. (९) ा ण अपने तप और ोध प बाण को जस क ओर फकता है, वे बेकार नह जाते. वे बाण र से ही श ु को वेध दे ते ह. (९) ये सह मराज ासन् दशशता उत. ते ा ण य गां ज वा वैतह ाः पराभवन्.. (१०) वीरह के वशंज हजार राजा पृ वी पर रा य करते थे. ा ण क गाय का अपहरण करने के कारण वे पराभव को ा त ए. (१०) गौरेव तान् ह यमाना वैतह ाँ अवा तरत्. ये केसर ाब धाया रमाजामपे चरन्.. (११) वीरह के वशंज जन राजा ने केशर ाबंधा नाम क चरम अजा का मांस पकाया था, उन राजा क मार खाते ए गाय ने ही उ ह छ भ कर दया था. (११) एकशतं ता जनता या भू म धूनुत. जां ह स वा ा णीमसंभ ं पराभवन्.. (१२) जो सैकड़ लोग अपने चलने से धरती को कं पत कर दे ते थे, वे ा ण क संतान क हसा करने के कारण ही परा जत ए. (१२) दे वपीयु र त म यषु गरगीण भव य थभूयान्. यो ा णं दे वब धुं हन त न स पतृयाणम ये त लोकम्.. (१३) जो दे वबंधु ा ण क हसा करता है, वह दे वश मनु य के म य वष खाने वाले के समान चलता फरता है और अ थ मा रह जाता है. वह पतृयान ारा मलने वाले लोक को ा त नह करता. (१३) अ नव नः पदवायः सोमो दायाद उ यते. ह ता भश ते तथा तद् वेधसो व ः.. (१४) अ न हम हमारे पद तक प ंचाता है और सोम हमारा दायाद कहा जाता है. इं हमारी ओर से मारने वाले एवं घायल करने वाले ह. (१४) इषु रव द धा नृपते पृदाकू रव गोपते. सा ा ण येषुघ रा तया व य त पीयतः.. (१५) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे राजन्! ा ण क वाणी पी बाण वष म बुझे बाण एवं स पणी के समान भयानक होता है. जो पापी ा ण को क दे ते ह, ा ण उ ह उ ह के ारा न करता है. (१५)
सू -१९
दे वता—
गवी
अ तमा मवध त नो दव दवम पृशन्. भृगुं ह स वा सृ या वैतह ाः पराभवन्.. (१) सृंजय के पु एवं वीतह के वंशज क ब त वृ ई. उ ह ने भृगुवंशी ा ण क ह या कर द , इस लए उन क पराजय ई तथा वे वग को नह पा सके. (१) ये बृह सामानमा रसमापयन् ा णं जनाः. पे व तेषामुभयादम व तोका यावयत्.. (२) जन लोग ने बृहत् साम वाले अं गरा गो ी ा ण को आप य और वप य से ढक दया था, ा ने उ ह ऐसा पु दया जो उ ह न करने वाला था. दे व ने उन क संतान को र फक दया. (२) ये ा णं य ीवन् ये वा म छु कमी षरे. अ न ते म ये कु यायाः केशान् खाद त आसते.. (३) ज ह ने ा ण पर थूका और ज ह ने ा ण से धन लेने क इ छा क , वे र स रता म पड़े ह और बाल को खा रहे ह. (३)
क
गवी प यमाना यावत् सा भ वज हे. तेजो रा य नह त न वीरो जायते वृषा.. (४) ा ण क पकाई जाती ई गाय जस रा म तड़पती है, वह उस रा का तेज समा त कर दे ती है और उस म वीय को स चने वाले वीर पु ष ज म नह लेते. (४) ू रम या आशसनं तृ ं प शतम यते. ीरं यद याः पीयते तद् वै पतृषु क बषम्.. (५) ा ण क गाय को काटना ू र कम है. इस का मांस खाने के बाद यास यास करता है. जो लोग मारने क इ छा से रखी ई ऐसी गाय का ध पीते ह, उन के पतर को वह ध पाप का भागी बनाता है. (५) उ ो राजा म यमानो ा णं यो जघ स त. परा तत् स यते रा ं ा णो य जीयते.. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
जो राजा अपनेआप को उ मानता आ ा ण क ह या करता है एवं ा ण जस रा य म ःखी रहता है, वह राजा और रा दोन समा त हो जाते ह. (६) अ ापद चतुर ी चतुः ोता चतुहनुः. द् ा या ज ा भू वा सा रा मव धूनुते
य य.. (७)
राजा के ारा ा ण पर डाली गई वप आठ पैर , चार आंख , चार कान , चार ठो ड़य , दो मुख और दो जीभ वाली रा सी बन कर उन के रा य को समा त कर दे ती है. (७) तद् वै रा मा व त नावं भ ा मवोदकम्. ाणं य हस त तद् रा ं ह त छु ना.. (८) जस रा म ा ण क हसा होती है, उस रा का पी पाप उसे छे द वाली नौका के साथ डु बा दे ता है. ा ण पर डाली गई वप ही उस रा को डु बा दे ती है. (८) तं वृ ा अप सेध त छायां नो मोपगा इ त. यो ा ण य स नम भ नारद् म यते.. (९) हे नारद! जो ा ण के धन को अपना धन समझता है, उस से वृ और उसे अपनी छाया म नह आने दे ना चाहते. (९)
भी े ष मानते ह
वषमेतद् दे वकृतं राजा व णोऽ वीत्. न ा ण य गां ज वा रा े जागार क न.. (१०) राजा व ण ने कहा है क ा ण का धन दे व ारा न मत वष ही है. ा ण क गाय को मार कर रा म कोई भी जी वत नह रहता. (१०) नवैव ता नवतयो या भू म धूनुत. जां ह स वा ा णीमसंभ ं पराभवन्.. (११) जन आठ सौ दस पु ष से धरती कांपती थी, वे ा ण क संतान क हसा कर के असंभव पराजय को ा त ए. (११) यां मृतायानुब न त कू ं पदयोपनीम्. तद् वै य ते दे वा उप तरणम ुवन्.. (१२) हे ा ण को हा न प ंचाने वाले पु ष! जो र सी मरे ए पु ष के शव म बांधी जाती है, उसी से दे व ने तेरा बछौना बनाया है. (१२) अ ू ण कृपमाण य या न जीत य वावृतुः. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
तं वै
य ते दे वा अपां भागमधारयन्.. (१३)
हे ा ण को हा न प ंचाने वाले पु ष! कृपा के पा होता है, वही जल दे व ने तेरे लए न त कया है. (१३)
ा ण के आंसु
का जो जल
येन मृतं नपय त म ू ण येनो दते. तं वै य ते दे वा अपां भागमधारयन्.. (१४) हे ा ण को हा न प ंचाने वाले पु ष! जो जल मृतक को नान करने के लए एवं मूंछ भगोने से बचता है, वही जल दे व ने तेरे पीने के लए न त कया है. (१४) न वष मै ाव णं यम भ वष त. ना मै स म तः क पते न म ं नयते वशम्.. (१५) जस रा य म ा ण को ःख दया जाता है, उस म व ण वषा नह करते. उस रा क सभा साम य हीन होती है तथा उस क सेना श ु को वश म नह रख पाती है. (१५)
सू -२०
दे वता—वान प य
उ चैघ षो भः स वनायन् वान प यः संभृत उ या भः. वाचं ुणुवानो दमय सप ना संह इव जे य भ तं तनी ह.. (१) हे ं भ! तू वन प तय से बनाई गई है तथा उ च वर करती है. तू श समान आचरण कर तथा उ च घोष से श ु का मान मदन कर. (१)
शाली जन के
सह इवा तानीद् वयो वब ोऽ भ द ृषभो वा सता मव. वृषा वं व य ते सप ना ऐ ते शु मो अ भमा तषाहः.. (२) हे ं भ! तू सह के समान गजन कर. हे वृ के समान अ धक आयु वाली ं भी! तू गाय को दे ख कर रंभाने वाले बैल के समान श द करती है. वशेष प से बंधी ई तू वीय वषा करने वाली है, इस कारण तेरे श ु श र हत हो जाते ह. तेरा बल इं के समान है, इस लए उसे वीय ही सहन कर पाता है. (२) वृषेव यूथे सहसा वदानो ग भ व स धना जत्. शुचा व य दयं परेषां ह वा ामान् युता य तु श वः.. (३) जस कार गाय क कामना करने वाला बैल अपने श द के कारण झुंड म भी पहचान लया जाता है, उसी कार हे ं भी! श ु को जीतने क इ छा से श द कर के उन के दय म संताप भर दे . वे श ु हमारे गांव को छोड़ कर चले जाएं. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
संजयन् पृतना ऊ वमायुगृ ा गृह्णानो ब धा व च व. दै व वाचं भ आ गुर व वेधाः श ूणामुप भर व वेदः.. (४) हे ं भ! तू उ च श द करती ई श ु सेना को जीत लेती है. तू उ ह पकड़ कर यु म वजय ा त करती है. तू दै वी वाणी का उ चारण कर और श ु का धन मुझे ा त करा. (४) भेवाचं यतां वद तीमाशृ वती ना थता घोषबु ा. नारी पु ं धावतु ह तगृ ा म ी भीता समरे वधानाम्.. (५) श ु
ं भ क घोर गजना से श ु क ना रयां होश म आ जाती ह. वे यु म मारे गए को दे ख कर भयभीत होती ह और अपने पु का हाथ पकड़ कर भाग जाती ह. (५) पूव भे वदा स वाचं भू याः पृ े वद रोचमानः. अ म सेनाम भज भानो ुमद् वद भे सूनृतावत्.. (६)
हे ं भ! तेरी व न सब से पहले नकलती है, इस लए तू श ु सेना का वनाश कर तथा पृ वी के ऊपर स य वचन का चार कर. (६) अ तरेमे नभसी घोषो अ तु पृथक् ते वनयो य तु शीभम्. अ भ द तनयो पपानः ोककृ म तूयाय वध .. (७) हे ं भ! धरती और आकाश के म य तेरी व नयां अनेक प म ा त ह तथा शोभन तीत ह . तू उ च श द से समृ हो तथा म म वेग ा त करने के लए उ च वर से गजन कर. (७) धी भः कृतः वदा त वाचमु षय स वनामायुधा न. इ मेद स वनो न य व म ैर म ाँ अव जङ् घनी ह.. (८) हे ं भ! कुशलतापूवक बजाने पर तू मोहक श द नकालती है. श शाली मनु य के आयुध को ऊंचा कर के तू उ ह स बना. तू वीर का आ ान करती ई हमारे म ारा हमारे श ु का वनाश करा, य क तू इं क या है. (८) सं
दनः वदो धृ णुषेणः वेदकृद् ब धा ामघोषी. ेयो व वानो वयुना न व ान् क त ब यो व हर राजे.. (९)
हे ं भ! तू गजन करने वाले गौव को गुं जत करने वाली, धनदा ी और सेना को साहस दान करने वाली है. तू क याण करने वाली एवं उ म पु ष को जानने वाली है. तू इन दो राजा के यु के म य अनेक वीर को क त दान कर. (९) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
े ःकेतो वसु जत् सहीया सं ाम जत् सं शतो य णा स. अंशू नव ावा धषवणे अ ग न् भेऽ ध नृ य वेदः.. (१०) हे सं ाम म वजय ा त करने वाली ं भी! तू क याणी, धन जीतने वाली, श शा लनी एवं मं के ारा ती ण बनाई ई है. अ ध वण काल म पवत अपने पाषाण खंड को दबाता आ नृ य करता है, उसी कार तू भी श ु के धन पर अ धकार करती ई नृ य कर. (१०) श ूषा नीषाड भमा तषाहो गवेषणः सहमान उ त्. वा वीव म ं भर व वाचं सां ाम ज यायेषमुद ् वदे ह.. (११) हे ं भ! तू ऐसा श द नकालती है, जो श ु क वाणी से ट कर ले सके. तू गवेषणा करने वाले बातूनी पु ष के समान यु जीतने के न म श द करती ई गूंज. (११) अ युत युत् समदो ग म ो मृधो जेता पुरएतायो यः. इ े ण गु तो वदथा न च यद्धृद ् ोतनो षतां या ह शीभम्.. (१२) हे यु म वजय ा त करने वाली ं भी! तू हष से पूण है एवं डगती नह है. तू आगे यु म जा कर यो ा क ेरक और यु जीतने वाली है. इं के ारा र त तू श ु के दय को जलाती ई उन के समीप जा. (१२)
दे वता—वान प य
सू -२१ व दयं वैमन यं वदा म ष े ु भे. व े षं क मशं भयम म ेषु न द म यवैनान्
भे जा ह.. (१)
हे ं भ! तू श ु म वैमन य फैला एवं उन के दय म एक सरे के त े ष भर दे . हम अपने श ु म े ष क भावना फैलाना चाहते ह. तू उन का तर कार करती ई उ ह समा त कर दे . (१) उ े पमाना मनसा च ुषा दयेन च. धाव तु ब यतो ऽ म ाः ासेना ये ते.. (२) हमारे ारा होम कए गए घृत से हमारे श ु कं पत ह और मन, ने तथा दय से भयभीत हो कर भाग जाएं. (२) वान प यः संभृत उ या भ व गो यः. ासम म े यो वदा येना भघा रतः.. (३) हे वन प त से बनी ई
ं भी! तू चमड़े से मढ़
ई है तथा मेघ घटा के समान घोर
******ebook converter DEMO Watermarks*******
श द करती है. घी से चुपड़ी ई तू श ु
को भय उ प करने वाला श द कर. (३)
यथा मृगाः सं वज त आर याः पु षाद ध. एवा वं भे ऽ म ान भ द ासयाथो च ा न मोहय.. (४) हे ं भ! वनचारी शकारी पु ष से जस कार वन के पशु भयभीत होते ह, उसी कार तू अपने गजन से श ु को भयभीत करती ई, उन के च को मो हत बना. (४) यथा वृकादजावयो धाव त ब ब यतीः. एवा वं भे ऽ म ान भ द ासयाथो च ा न मोहय.. (५) जस कार भेड़ और बक रयां भे ड़ए के कारण अ धक भयभीत हो कर भागती ह, उसी कार तू गड़गड़ाहट करती ई श ु को भयभीत कर के उन का च मो हत कर. (५) यथा येनात् पत णः सं वज ते अह द व सह य तनथोयथा. एवा वं भे ऽ म ान भ द ासयाथो च ा न मोहय.. (६) हे ं भ! जस कार बाज से सभी प ी और सह से सभी ाणी भयभीत रहते ह, उसी कार तू श ु के त गड़गड़ाहट कर के उ ह भयभीत कर के उन के च को मो हत कर. (६) परा म ान् भना ह रण या जनेन च. सव दे वा अ त सन् ये सं ाम येशते.. (७) जो सं ाम के दे वता ह, उ ह ने हरण के चमड़े से मढ़ भयभीत कर के परा जत कया. (७)
ई
ं भ बजा कर श ु
को
यै र ः डते पद्घोषै छायया सह. तैर म ा स तु नो ऽ मी ये य यनीकशः.. (८) इं
जन पदघोष से खेलते ह, उन से अ धक सं या वाले श ु भयभीत ह . (८)
याघोषा भयो ऽ भ ोश तु या दशः. सेना परा जता यतीर म ाणामनीकशः.. (९) श ु क परा जत सेनाएं जस ओर भाग रही ह, हमारे बाण क डोरी और श द मल कर उधर ही उन को भयभीत कर और हरा द. (९) आ द य च ुरा द व मरीचयो ऽ नु धावत. प स नीरा सज तु वगते बा वीय.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ं भ का
हे सप! तुम श ु के ने क दे खने क श छ न लो. हे सूय करणो! तुम दौड़ते ए श ु क पीठ पर पड़ो. भुजा क श ीण होने पर जब श ु भागने लगे तो उन का साथ मत दो. (१०) यूयमु ा म तः पृ मातर इ े ण युजा मृणीत श ून्. सोमो राजा व णो राजा महादे व उत मृ यु र ः.. (११) हे म तो! तुम उ कम करने वाले हो. तुम इं के साथ मल कर श ु सोम राजा, व ण राजा, महादे व और मृ युदेव इं का सहयोग कर. (११)
का मदन करो.
एता दे वसेनाः सूयकेतवः सचेतसः. अ म ान् नो जय तु वाहा.. (१२) ये दे व सेनाएं समान च वाली ह और इन के झंडे म सूय वराजमान ह. ये सेनाएं श ु पर वजय ा त कर. मेरी यह आ त हण करने यो य हो. (१२)
सू -२२
दे वता—त मानाशन
अ न त मानमप बाधता मतः सोमो ावा व णः पूतद ाः. वे दब हः स मधः शोशुचाना अप े षां यमुया भव तु.. (१) अ न दे व वर को बाधा प ंचाएं. प थर के समान ढ़ सौ य, प व और द वे वी, कुश तथा व लत स मधाएं वर से े ष करने वाली ह . (१)
वरण,
अयं यो व ान् ह रतान् कृणो यु छोचय न रवा भ वन्. अधा ह त म रसो ह भूया अधा य ङ् ङधराङ् वा परे ह.. (२) हे दे ह को न कर दे ने वाले वर! तू सभी मनु य को संताप दे ता है. इस लए तू तर कृत, नबल एवं अधम थान को चला जा. (२) यः प षः पा षेयो ऽ व वंस इवा णः. त मानं व धावीयाधरा चं परा सुवा.. (३) हे श शाली! तुम कठोर एवं अव वंस के समान लाल रंग वाले वर को मुझ से र हटाओ. (३) अधरा चं हणो म नमः कृ वा त मने. शक भर य मु हा पुनरेतु महावृषान्.. (४) म वर को नम कार कर के उसे न न थान म जाने के लए े रत करता ं. मु के के ******ebook converter DEMO Watermarks*******
समान हार करने वाला वर महावृषभ को पुनः ा त हो. (४) ओको अ य मूजव त ओको अ य महावृषाः. याव जात त मं तावान स ब हकेषु योचरः.. (५) मूंज से यु थान इस वर का घर है तथा वीय क महान वषा करने वाले इस के थान ह. हे त मा! तू बा क दे श म जतना है, उतना ही उ प आ है. (५) त मन् ाल व गद भू र यावय. दास न वरी म छ तां व ेण समपय.. (६) हे जीवन को सप के समान क दे ने वाले वर! तू चोरी कर ने वाली दासी से व म मल और हम से अपनेआप को र रख. (६)
प
त मन् मूजवतो ग छ ब हकान् वा पर तराम्. शू ा म छ फ १ तां त मन् वीव धूनु ह.. (७) हे त मा! तू मूंज वाले दे श को अथवा बा क दे श को अथवा उस से भी र चला जा. तू सव अव था वाली दासी से मल और उसे कं पत कर. (७) महावृषान् मूजवतो ब व परे य. ैता न त मने ूमो अ य े ा ण वा इमा.. (८) हम मूंज वाले एवं अ धक वषा वाले थान पर जाने के लए वर से नवेदन करते ह क तू वहां जा कर अथवा अ य थान पर जा कर वहां क व तु का भ ण कर. (८) अ य े े न रमसे वशी सन् मृडया स नः. अभू ाथ त मा स ग म य त ब हकान्.. (९) हे वर! तू अ य थान म य रमण नह करता है? तू हमारे वश म हो कर हम सुखी बना. हम तुझ से बा क दे श म जाने क ाथना करते ह. (९) यत् वं शीतो ऽ थो रः सह कासावेपयः. भीमा ते त मन् हेतय ता भः म प र वृङ् ध नः.. (१०) हे वर! तू शीत के साथ रहता है तथा खांसी के साथ कं पत करने वाला है. तेरे आयुध भयंकर ह. इन के साथ तू हम से र चला जा. (१०) मा मैता सखीन् कु था बलासं कासमु ग ु म्. मा मातो ऽ वाङै ः पुन तत् वा त म ुप व ु े.. (११) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे वर! तू खांसी और श ीण करने वाले रोग को हमारा म मत बना. म तुझसे बारबार नवेदन करता ं क तू उस नचले थान से यहां मत आ. (११) त मन् ा ा बलासेन व ा का सकया सह. पा मा ातृ ण े सह ग छामुमरणं जनम्.. (१२) हे वर! श ीण करने वाले रोग तु हारे भाई और खांसी तु हारी बहन है. पाप तु हारा भतीजा है. इन सब के साथ तुम पु ष के पास जाओ. (१२) तृतीयकं वतृतीयं सद दमुत शारदम्. त मानं शीतं रं ै मं नाशय वा षकम्.. (१३) हे दे व! तजारी, चौथइया, वषा संबंधी, शरद, ी मकाल म होने वाले वर के साथसाथ शीत वर का वनाश करो. (१३) ग धा र यो मूजवद् यो ऽ े यो मगधे यः. ै यन् जन मव शेव ध त मानं प र दद्म स.. (१४) हम मूंज वाले थान से, अंग दे श से, म य दे श से और गांधार दे श से क वाले रोग वर को भगाते ए सुखी बनते है. (१४)
दे वता—इं
सू -२३ ओते मे ावापृ थवी ओता दे वी सर वती. ओतौ म इ ा न म ज भयता म त.. (१)
ावा पृ वी, सर वती दे वी, इं और अ न मुझ म ओत ोत ह. वे कृ मय का वनाश कर. (१) अ ये कुमार य मीन् धनपते ज ह. हता व ा अरातय उ ेण वचसा मम.. (२) हे धन के वामी इं ! इस बालक के श ु वचन के साथ पूरी तरह न करो. (२)
प कृ मय का वनाश करो. इ ह मेरे उ
यो अ यौ प रसप त यो नासे प रसप त. दतां यो म यं ग छ त तं म ज भयाम स.. (३) जो कृ म आंख म घूमते ह जो नाखून म चलते फरते ह तथा जो दांत के म य नवास करते ह, उन कृ मय को हम न करते ह. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
स पौ ौ व पौ ौ कृ णौ ौ रो हतौ ौ. ब ु ुकण गृ ः कोक ते हताः.. (४) दो समान प वाले, दो भ प वाले, दो काले, दो लाल रंग के, एक खाक रंग वाला, एक खाक रंग के कान वाला, एक ग और कोक—हम इन सभी कृ मय को मं क श से न करते ह. (४) ये मयः श तक ा ये कृ णाः श तबाहवः. ये के च व पा तान् मीन् ज भयाम स.. (५) जो कृ म तीखी कोख वाले ह, जो काले ह, जो तीखी भुजा वाले ह, उन सब को हम मं क श से न करते ह. (५)
वाले एवं जो अनेक
प
उत् पुर तात् सूय ए त व ो अ हा. ां न ां सवा मृणन् मीन्.. (६) सभी को दखाई दे ने वाले सूय अ य कृ मय को न करते ह. वे कृ मय को न करते ए पूव दशा से उदय हो रहे ह. (६)
य और अ य
येवाषासः क कषास एज काः शप व नुकाः. ह यतां म ता ह यताम्.. (७) हे इं ! तुम शी गमन करने वाले, क दे ने वाले, कं पत करने वाले, ती ण कृ म, दखाई दे ने वाले अथवा दखाई न दे ने वाले सभी कृ मय को न करो. (७) हतो येवाषः मीणां हतो नद नमोत. सवान् न म मषाकरं षदा ख वाँ इव.. (८) ती गामी कृ म मेरी मं श से न हो गए. नद मना नाम के क ड़ को म ने इस कार पीस डाला है, जस कार चने प थर से पीसे जाते ह. (८) शीषाणं ककुदं म सार मजुनम्. शृणा य य पृ ीर प वृ ा म य छरः.. (९) म तीन सर वाले, तीन ककुद वाले, चतकबरे रंग वाले और ेत वण वाले कृ मय को मं क श से न करता आ, उन क पस लय और सर को कुचलता ं. (९) अ वद् वः अग य य मअ
मयो ह म क वव जमद नवत्. णा सं पन यहं मीन्.. (१०)
ऋ ष, क व ऋ ष और जमद न ऋ ष के समान मं बल से कृ मय का वनाश
******ebook converter DEMO Watermarks*******
करता ं. हे कृ मयो! म अग य ऋ ष के समान मं श
से तु ह मारता ं. (१०)
हतो राजा मीणामुतैषां थप तहतः. हतो हतमाता महत ाता हत वसा.. (११) हमारे मं और ओष ध क श से कृ मय के राजा और मं ी न हो गए ह. माता, भाई और बहन स हत कृ मय का पूरा कुटुं ब न हो गया है. (११) हतासो अ य वेशसो हतासः प रवेश सः. अथो ये ु लका इव सव ते मयो हताः.. (१२) इन कृ मय के बैठने के थान न हो गए और इन के आसपास के थान भी न हो गए. जो कृ म बीज प म थे, वे भी न हो गए. (१२) सवषां च मीणां सवासां च मीणाम्. भनद्म्य मना शरो दहा य नना मुखम्.. (१३) म सभी नर कृ मय और मादा कृ मय को प थर से न करता ं एवं उन का मुंह अ न से न करता ं. (१३)
सू -२४
दे वता—स वता
स वता सवानाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१) स वता सभी उ प पदाथ के अ धप त ह. वे इस कम म, इस पुरोधा म, इस संक प म, इस दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (१) अ नवन पतीन्म धप तः स मावतु. अ मन् य मनाकम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (२) अ न वन प तय के अ धप त ह. वह इस वेदो पौरो ह य कम म, म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (२) ावापृ थवी दातृणाम धप नीः ते मावताम्. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त ा म, संक प
ावा और पृ वी दाता के अ धप त ह. वे इसे वेदो , पौरो ह य कम म, संक प, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (३)
त ा म,
व णो ऽ पाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (४) व ण जल के अ धप त ह. वह इस वेदो पौरो ह य कम म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (४)
त ा म, संक प म,
म ाव णौ वृ ा धपती तौ मावताम्. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (५) म और व ण वषा के अ धप त ह. वे इस वेदो पौरो ह य कम म, संक प म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (५)
त ा म,
म तः पवतानाम धपतय ते माव तु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (६) म द्गण पवत के अ धप त ह. वे इस वेदो पौरो ह य कम म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (६)
त ा म, संक प म,
सोमो वी धाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (७) सोम लता के वामी ह, वह इस वेदो पौरो ह य कम म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (७)
त ा म, संक प म,
वायुर त र या धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (८) वायु दे व अंत र के अ धप त ह. वे इस वेदो पौरा ह य कम म, म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (८) सूय ुषाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां
त ायाम यां
******ebook converter DEMO Watermarks*******
त ा म, संक प
च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (९) सूय दे व अंत र के अ धप त अथात् हमारे वामी ह. वह हमारी र ा कर. वह इस वेदो स हत कम म, त ा म, संक प म, वेद के आ ान कम म तथा आशीवाद प म हमारी र ा कर. (९) च मा न ाणाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१०) चं मा न के अ धप त ह. वह इस वेदो पौरो ह य कम म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (१०)
त ा म, संक प म,
इ ो दवो ऽ धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (११) इं वग के राजा ह. वह इस वेदो पौरो ह य कम म, कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (११)
त ा म, संक प म, दे वाह्वान
म तां पता पशूनाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१२) म त के पता पशु के अ धप त ह. वह इस वेदो पौरो ह य कम म, संक प म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद कम म मेरी र ा कर. (१२)
त ा म,
मृ युः पतृणाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१३) मृ यु जा के वामी है. वह इस वेदो पौरो ह य कम म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (१३)
त ा म, संक प म,
यमः जानाम धप तः स मावतु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१४) यम पतर के अ धप त ह. वह मेरे इस वेदो पौरो ह य कम म, दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी सहायता कर. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
त ा म, संक प म,
पतरः परे ते माव तु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१५) सात पी ढ़य के ऊपर के पतर इस वेदो पौरो ह य कम म, संक प म दे वाह्वान कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (१५)
त ा म,
तता अवरे ते माव तु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१६) स पड पतर इस वेदो पौरो ह य कम म, संक प म, तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (१६)
त ा म, दे वाह्वान कम म
तत ततामहा ते माव तु. अ मन् य मन् कम य यां पुरोधायाम यां त ायाम यां च याम यामाकू याम यामा श य यां दे व यां वाहा.. (१७) पतर के पतामह मेरे इस वेदो पौरा ह य कम म, कम म तथा आशीवाद प कम म मेरी र ा कर. (१७)
सू -२५
त ा म, संक प म, दे वाह्वान
दे वता—यो न
पवताद् दवो योनेर ाद ात् समाभृतम्. शेपो गभ य रेतोधाः सरौ पव मवा दधत्.. (१) पवत क ओष ध, वग के पु य और अंग क श पु ष जल म प े के समान गभाधान करता है. (१)
से पु वीय धारण करने वाला
यथेयं पृ थवी मही भूतानां गभमादधे. एवा दधा म ते गभ त मै वामवसे वे.. (२) जस कार वशाल पृ वी सभी भूत अथात् ा णय का गभ धारण करती ह, उसी कार म तेरा गभ धारण करती ं और उस क र ा के न म तुझे बुलाती ं. (२) गभ धे ह सनीवा ल गभ धे ह सर वती. गभ ते अ नोभा ध ां पु कर जा.. (३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे सनीवाली एवं सर वती! मेरे गभ को पु बनाओ. फूल क माला धारण करने वाले अ नीकुमार मेरे गभ क र ा कर. (३) गभ ते म ाव णौ गभ दे वो बृह प तः. गभ त इ ा न गभ धाता दधातु ते.. (४) म , व ण, बृह प त दे व, इं , अ न और धाता दे व तेरे गभ को पु कर. (४) व णुय न क पयतु व ा पा ण पशतु. आ स चतु जाप तधाता गभ दधातु ते.. (५) व णु तेरी यो न क क पना कर, व ा तेरे कर और धाता तेरे गभ को पु कर. (५)
प क रचना कर, जाप त तेरा सचन
यद् वेद राजा व णो यद् वा दे वी सर वती. य द ो वृ हा वेद तद् गभकरणं पब.. (६) राजा व ण, दे वी सर वती एवं वृ नाशक इं तू पी ले. (६)
जस गभपोषक व तु को जानते ह, उसे
गभ अ योषधीनां गभ वन पतीनाम्. गभ व य भूत य सो अ ने गभमेह धाः.. (७) हे अ न! तुम ओष धय के, वन प तय के तथा सभी ा णय के गभ हो. अतएव तुम मेरे गभ को पु करो. (७) अ ध क द वीरय व गभमा धे ह यो याम्. वृषा स वृ यावन् जायै वा नयाम स.. (८) हे वृषण अथवा अंडकोष वाले! तू वषण अथात् सेचन करता है. तू यो न म गभ था पत कर. तू ऊपर हो कर चलता आ वीरता का दशन कर. हम तुझे जा के न म हण करते ह. (८) व जही व बाह सामे गभ ते यो नमा शयाम्. अ े दे वाः पु ं सोमपा उभया वनम्.. (९) हे सां वनामयी सा वी! तू वशेष ग त वाली हो. म तुझ म गभाधान करता ं. सोमपान करने वाले दे व ने इस लोक म और परलोक म र ा करने वाला पु दान कया है. (९) धातः े ेन पेणा या नाया गवी योः. पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (१०) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे धाता! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय म ले जाने वाली जो ना लयां दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो, जस से यह दसव मास म सव कर सके. (१०) व ः े ेन पेणा या नाया गवी योः. पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (११) हे व ा! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय म ले जाने वाली जो ना ड़यां दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो. जस से यह दसव मास म सव कर सके. (११) स वतः े ेन पेणा या नाया गवी योः. पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (१२) हे स वता! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय म ले जाने वाली जो ना लयां दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो, जस से यह दसव मास म सव कर सके. (१२) जापते े ेन पेणा या नाया गवी योः. पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (१३) हे जाप त! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय तक ले जाने वाली जो ना ड़यां दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो, जस से यह दसव मास म सव कर सके. (१३)
दे वता—अ न
सू -२६ यजूं ष य े स मधः वाहा नः
व ा नह वो युन ु .. (१)
यजुवद के मं ो और स मधाओ! सब कुछ जानने वाले अ न दे व इस य म तुम से मल. (१) युन ु दे वः स वता जान
मन् य े म हषः वाहा.. (२)
सब को उ प करने वाले स वता दे व इस य म तुम से मल. उन के लए यह आ त सुंदर हो. (२) इ हे उ
उ थामदा य मन् य े
व ान् युन ु सुयुजः वाहा.. (३)
कम करने वालो! सब कुछ जानने वाले इं इस य
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म तुम से मल. उन के
न म यह आ त सुंदर हो. (३) ैषा य े न वदः वाहा श ाः प नी भवहतेह यु ाः.. (४) हे श मनु यो! तुम अपनी प नय के स हत इस य म आदे श को धारण करो. यह आ त उ म हो. (४) छ दां स य े म तः वाहा मातेव पु ं पपृतेह यु ाः.. (५) जस कार माता पु का पालन करती है, उसी कार इस य म म द्गण छं द का पालन कर. म द्गण के लए यह आ त उ म हो. (५) एयमगन् ब हषा ो णी भय ं त वाना द तः वाहा (६) यह अ द तदे वी कुश और ो णय के साथ य का वणन करती ई आई है. (६) व णुयुन ु ब धा तपां य मन् य े सुयुजः वाहा.. (७) भगवान व णु भलीभां त कए गए तप का फल द. यह आ त व णु के न म उ म हो. (७) व ा युन ु ब धा नु
पा अ मन् य े सुयुजः वाहा.. (८)
व ा दे व इस य म भलीभां त संभाले गए के न म हो. (८)
प को संयु
भगो युन वा शषो व १ मा अ मन् य े वाहा.. (९)
कर. यह आ त व ा दे व
व ान् युन ु सुयुजः
भग दे वता इस य म सुंदर आशीवाद दान कर. यह आ त उन के न म हो. (९) सोमो युन ु ब धा पयां य मन् य े सुयुजः वाहा.. (१०) (१०)
सोमदे व इस य म संयु
होने वाले जल को मलाएं. यह आ त उन के न म हो.
इ ो युन ु ब धा वीया य मन् य े सुयुजः वाहा.. (११) (११)
इं इस य म य के अनु प श अ ना
य को संयु
कर. यह आ त इं के न म हो.
णा यातमवा चौ वषट् कारेण य ं वधय तौ.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
बृह पते
णा या वाङ् य ो अयं व रदं यजमानाय वाहा.. (१२)
हे अ नीकुमारो! तुम बृह प त दे व एवं मं के साथ इस य क वृ करते ए हमारे सामने आओ. यह य यजमान के हेतु क याण करने वाला हो. यह आ त अ नीकुमार एवं बृह प त के हेतु उ म हो. (१२)
दे वता—अ न
सू -२७
ऊ वा अ य स मधो भव यू वा शु ा शोच य नेः. ुम मा सु तीकः ससूनु तनूनपादसूरो भू रपा णः.. (१) अ न क स मधाएं ऊंची और वीय तेजयु होते ह. यह अ यंत द त, सुंदर एवं सूय के समान है. ाणदाता अ न का य म ब त सहयोग रहता है. (१) दे वो दे वेषु दे वः पथो अन
म वा घृतेन.. (२)
अ न दे व सभी दे व म े ह और मधु से माग का शोधन करते ह. (२) म वा य ं न त ैणानो नराशंसो अ नः सुकृद् दे वः स वता व वारः. (३) सुंदर कम करने वाले तथा सभी मनु य ारा वरण करने यो य अ न दे व य को मधुयु
ारा शंसनीय स वता दे व तथा संसार के करते ए ा त होते ह. (३)
अ छायमे त शवसा घृता चद डानो व नमसा.. (४) (४)
घृत एवं ह
अ के स हत तु तय को ा त करने वाले अ न दे व सामने से आते ह.
अ नः ुचो अ वरेषु य ु स य द य म हमानम नेः.. (५) यु
य म दे व क संग त करने वाले अ न दे व इस य क म हमा और ुव को अपने से कर. (५) तरी म ासु य ु वसव ा त न् वसुधातर .. (६)
दे व क संग त करने वाले एवं हष उ प करने वाले य वाले व ण दे वता नवास करते ह. (६) ारो दे वीर व य व े तं र
त व हा.. (७)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
म तारक और धन को बढ़ाने
अ न क तेज वनी लपट यजमान के त क सभी कार से र ा करती ह. (७) उ चसा नेधा ना प यमाने. आ सु वय ती यजते उपाके उषासान े मं य मवताम वरं नः.. (८) मह व वाले तथा ग तशील अ न दे व इस य द त का संपादन करते ह. (८)
म तेज को ऐ यपूण एवं आ त क
दै वा होतार ऊ वम वरं नो ऽ ने ज या भ गृणत गृणता नः व ये. त ो दे वीब हरेदं सद ता मडा सर वती मही भारती गृणाना.. (९) हे होताओ! य क इस अ न क शंसा करो. इस से हमारा क याण होगा. पृ वी, अ न और सर वती—ये तीन दे वयां शंसा करती ई कुश पर वराजमान ह . (९) त तुरीपमद्भुतं पु .ु दे व व ा राय पोषं व य ना भम य.. (१०) हे व ा दे व! हमारे जल, अ और धन क पु दो. (१०)
करते ए तुम इस
ी क ना भ खोल
वन पते ऽ व सृजा रराणः. मना दे वे यो अ नह ं श मता वदयतु.. (११) हे वन प त! तुम श द करती ई अपनेआप को इस य म छोड़ो तथा अ न इस ह व को दे व के लए वा द बनाएं. (११) अ ने वाहा कृणु ह जातवेदः. इ ाय य ं व े दे वा ह व रदं जुष ताम्.. (१२) हे ज म लेने वाल के ाता अ न दे व! इं के न म इस य को संप करो. सभी दे व इस ह व को हण कर. (१२)
दे वता— वृ अ न
सू -२८
नव ाणा व भः सं ममीते द घायु वाय शतशारदाय. ह रते ी ण रजते ी यय स ी ण तपसा व ता न.. (१) हम सौ वष क आयु पाने के लए नव ाण को इन तीन से संयु करते ह. इन नौ म सोने, चांद और लोहे के तीनतीन धागे अथात् तार ह जो उ णता लए ए ह. (१) अ नः सूय
मा भू मरापो ौर त र ं
दशो दश .
******ebook converter DEMO Watermarks*******
आतवा ऋतु भः सं वदाना अनेन मा
वृता पारय तु.. (२)
अ न, चं , सूय, पृ वी, जल, आकाश, अंत र , दशाएं और उप दशाएं इस वृ अथात् नौ कम से मुझे ऋतु स हत ा त हो कर पार कर. इस म ऋतु के अंश भी सहायता कर. (२) यः पोषा वृ त य तामन ु पूषा पयसा घृतेन. अ य भूमा पु ष य भूमा भूमा पशूनां त इह य ताम्.. (३) तीन पु कारक इस वृ के आ त ह . उषा दे वी ध और घी से इस य कम को बढ़ाएं. इस के आ य म अ , पु ष और पशु क अ धकता रहे. (३) इममा द या वसुना समु तेमम ने वधय वावृधानः. इम म सं सृज वीयणा मन् वृ यतां पोष य णु.. (४) आ द य इस बालक को धन से पूण कर. हे अ न, तुम वयं बढ़ते ए इस बालक क भी वृ करो. हे इं ! तुम इसे वीय यु करो. पोषण करने वाला वृ इस का आ त हो. (४) भू म ् वा पातु ह रतेन व भृद नः पप वयसा सजोषाः. वी े अजुनं सं वदानं द ं दधातु सुमन यमानम्.. (५) पृ वी वग के ारा तेरी र ा करे. व का भरणपोषण करने वाले अ न दे व लोहे के ारा तेरा पालन कर तथा तुझ म लता से ा त जल के ारा बल धारण कर. (५) े ा जातं ज मनेदं हर यम नेरेकं यतमं बभूव सोम यैकं ह सत य ध परापतत्. अपामेकं वेधसां रेत आ तत् ते हर यं वृद वायुषे.. (६) ज म से ही यह वण तीन कार से उ प आ है. अ न को उस वण का एक ज म य आ. वह सोम के पी ड़त होने पर गरा. व ान् लोग एक को जल का वीय कहते थे. हे चारी! वह वण तेरी आयु वृ के हेतु वृ अथात् तगुना हो जाए. (६) यायुषं जमद नेः क यप य यायुषम्. ेधामृत य च णं ी यायूं ष ते ऽ करम्.. (७) जमद न ऋ ष क तीन आयु ह—बचपन, यौवन और वृ ाव था. मह ष क यप क भी यही तीन अव थाएं ह. अमृत के नदशन प म तीन आयु म तुझे दे ता ं. (७) यः सुपणा
वृता यदाय ेका रम भसंभूय श ाः.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यौह मृ युममृतेन साकम तदधाना
रता न व ा.. (८)
वृ प से तीन समथ वण एक अ र पर आकर श शाली बनते ह. वे सभी पाप को न कर के अमृत के ारा तेरी मृ यु को समा त कर. (८) दव वा पातु ह रतं म यात् वा पा वजुनम्. भू या अय मयं पातु ागाद् दे वपुरा अयम्.. (९) आकाश वण के ारा तेरी र ा करे. म य लोक से रजत तेरी र ा करे. पृ वीलोक तेरी र ा करे. ये तीन दे व नग रय को ा त होते ह. (९) इमा त ो दे वपुरा ता वा र तु सवतः. ता वं ब द् वच ु रो षतां भव.. (१०) ये दे वता क जो तीन नग रयां ह, वे सभी ओर से तेरी र ा कर. उ ह धारण करता आ तू अपने श ु क अपे ा अ धक तेज वी बन. (१०) पुरं दे वानाममृतं हर यं य आबेधे थमो दे वो अ े. त मै नमो दश ाचीः कृणो यनु म यतां वृदाबधे मे.. (११) दे व के आगे मुख दे व ने वण पी अमृत को बांधा था. म उस के लए दस बार नम कार करता ं. वह दे वता मुझे इस वृ को मांगने क आ ा दे . (११) आ वा चृत वयमा पूषा बृह प तः. अहजात य य ाम तेन वा त चृताम स.. (१२) अयमा, पूषा और बृह प त तुझे भली कार बांध. दन म उ प होने वाले का जो नाम है, उस नाम से हम तुझे बांधते ह. (१२) ऋतु भ ् वातवैरायुषे वचसे वा. संव सर य तेजसा तेन संहनु कृ म स.. (१३) हे चारी! आयु और तेज क ा त के लए म तुझे ऋतु तेज प सूय से संबं धत करता ं. (१३)
, मास और संव सर के
घृता लु तं मधुना सम ं भू म ं हम युतं पार य णु. भ दत् सप नानधरां कृ वदा मा रोह महते सौभगाय.. (१४) घी से तर तथा शहद से सचा आ तू पृ वी के समान ढ़ है. तू श ु को चीरता आ एवं उ ह तर कृत करता आ महान सौभा य दे ने के लए मुझ पर थत हो. (१४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -२९
दे वता—जातवेद
पुर ताद् यु ो वह जातवेदोऽ ने व यमाणं यथेदम्. वं भषग् भेषज या स कता वया गाम ं पु षं सनेम.. (१) हे सभी कम म थम नयु होने वाले अ न दे व! मेरे ारा कए गए इस काय का भार वहन करो. तुम ओष ध दान करने वाले वै हो. हम तु हारे ारा गाय, अ एवं मनु य को रोग र हत दशा म ा त कर. (१) तथा तद ने कृणु जातवेदो व े भदवैः सह सं वदानः. यो नो ददे व यतमो जघास यथा सो अ य प र ध पता त.. (२) हे जातवेद अ न दे व! जो हमारे व खेल खेल रहा है तथा जो हमारा भ ण करना चाहता है, सभी दे व के साथ मल कर उस का परकोटा गरा दो. (२) यथा सो अ य प र ध पता त तथा तद ने कृणु जातवेदः. व े भदवैः सह सं वदानः.. (३) हे अ न! तुम सभी दे व के साथ मल कर ऐसा य न करो, जस से उस का परकोटा गर जाए जो हमारे वरोध म खेल खेल रहा है और जो हम खाना चाहता है. (३) अ यौ ३ न व य दयं न व य ज ां न तृ दतो मृणी ह. पशाचो अ य यतमो जघासा ने य व त तं शृणी ह.. (४) जो पशाच हम खाना चाहता है, तुम उस क आंख फोड़ दो, जीभ काट डालो और दांत तोड़ दो. इस कार तुम उस का वनाश कर दो. (४) यद य तं व तं यत् पराभृतमा मनो ज धं यतमत् पशाचैः. तद ने व ान् पुनरा भर वं शरीरे मांसमसुमेरयामः.. (५) हे अ न दे व! इस का जो मांस पशाच ने इस के शरीर से न च कर खा लया है, उसे इस के शरीर म पुनः था पत कर दो तथा मं श से इस के शरीर म ाण का पुनः संचार कर दो. (५) आमे सुप वे शबले वप वे यो मा पशाचो अशने दद भ. तदा मना जया पशाचा व यातय तामगदो३यम तु.. (६) हे अ न! जो पशाच क चे, प के और चतकबरे पा म वशेष प से पके ए एवं क चे, प के भोजन म इस पु ष के मांस को घोल कर हमारे वनाश क इ छा कर रहा है, वह पशाच अपनी संतान स हत क भोगे तथा यह पु ष आरो य को ा त करे. (६) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
ीरे मा म थे यतमो दद भाकृ प ये अशने धा ये ३ यः. तदा मना जया पशाचा व यातय तामगदो ३ यम तु.. (७) हे अ न! ध म, मट् ठे म एवं कृ ष ारा पके ए अ म व हो कर जो पशाच इस पु ष को न करने क इ छा कर रहा है, वह अपनी संतान के साथ क भोगे एवं यह पु ष रोग र हत हो जाए. (७) अपां मा पाने यतमो दद भ ाद् यातूनां शयने शयानम्. तदा मना जया पशाचा व यातय तामगदो ३ यम तु.. (८) जस पशाच ने मुझे जल पीने म, या ा करने म तथा सोते समय पी ड़त कया है, हे अ न! वह संतान के स हत इसी कार का क भोगे एवं यह पु ष रोग र हत हो जाए. (८) दवा मा न ं यतमो दद भ ाद् यातूनां शयने शयानम्. तदा मना जया पशाचा व यातय तामगदो३यम तु.. (९) हे अ न! मुझे रात और दन म या ा करते समय और सोते समय जस मांस भ ी पशाच ने पी ड़त कया है, वह अपनी संतान स हत क भोगे तथा यह पु ष नीरोग हो जाए. (९) ादम ने धरं पशाचं मनोहनं ज ह जातवेदः. त म ो वाजी व ेण ह तु छन ु सोमः शरो अ य धृ णुः.. (१०) हे अ न! तुम मांसभ ी, धर पीने वाले तथा मन को क दे ने वाले पशाच को न करो. अ के वामी इं उसे अपने व से मार तथा सोम उस का शीश काट ल. (१०) सनाद ने मृण स यातुधानान् न वा र ां स पृतनासु ज युः. सहमूराननु दह ादो मा ते हे या मु त दै ायाः.. (११) हे अ न! तुम सदा से रा स का मदन करते आए हो, रा स यु म तु ह कभी नह जीत सके ह, तुम मांस भ य को जला दो. ये तु हारे द अ से बच न सक. (११) समाहर जातवेदो यद्धृतं यत् पराभृतम्. गा ा य य वध तामंशु रवा यायतामयम्.. (१२) हे अ न! इस मनु य का जो ान और मांस न हो गया है, उसे तुम पुनः इस के शरीर म लाओ. यह सोमलता के अंकुर के समान पु हो तथा इस के अंग यंग पूण ह . (१२) सोम येव जातवेदो अंशुरा यायतामयम्. अ ने वर शनं मे यमय मं कृणु जीवतु.. (१३) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हे अ न! सोमलता के अंकुर के समान पु होने के कारण इस पु ष के अंग यंग पूणता को ा त ह . इस गुणवान पु ष को जी वत रहने के लए नीरोग क जए. (१३) एता ते अ ने स मधः पशाचज भनीः. ता वं जुष व त चैना गृहाण जातवेदः.. (१४) हे अ न! तु हारी ये स मधाएं पशाच को न स मधा को ा त कर के तुम स बनो. (१४)
करने वाली ह. हे जातवेद! इन
ता ाघीर ने स मधः त गृहणा ् चषा. जहातु ा प ू ं यो अ य मांसं जहीष त.. (१५) हे अ न! तृषा शांत करने वाली इन स मधा को घी के साथ हण करो. जो रा स इस पु ष के मांस क इ छा करता है, वह अपने काय से वमुख हो जाए. (१५)
सू -३०
दे वता—आयु
आवत त आवतः परावत त आवतः. इहैव भव मा नु गा मा पुवाननु गाः पतॄनसुं ब ना म ते ढम्.. (१) म समीप के दे श से और र के दे श से तेरे ाण को ढ़ता से बांधता ं. तू यह रह और अपने पूववत पतर का अनुकरण मत कर. (१) यत् वा भचे ः पु षः वो यदरणो जनः. उ मोचन मोचने उभे वाचा वदा म ते.. (२) पतृऋण को न चुकाने वाले जस पु ष ने तुझ पर अ धकार कया है, म उस से छू टने का उपाय अपने मं बल से तुझे बताता ं. (२) यद् ो हथ शे पषे यै पुंसे अ च या. उ मोचन मोचने उभे वाचा वदा म ते.. (३) तूने जस ी अथवा पु ष के त वैरभाव रखते ए इस पापपूण अ भचार का योग कया है, म तुझे उस से मु करने से संबं धत बात बताता ं. (३) यदे नसो मातृकृता छे षे पतृकृता च यत्. उ मोचन मोचने उभे वाचा वदा म ते.. (४) तू अपने पता अथवा माता ारा कए गए पाप के कारण रोगी हो कर श या पर पड़ा है. म अपनी वाणी से उस रोग से उ मोचन और मोचन क बात तुझे बताता ं. (४) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
यत् ते माता यत् ते पता जा म ाता च सजतः. यक् सेव व भेषजं जरद कृणो म वा.. (५) तेरी माता, तेरे पता, तेरे भाई अथवा तेरी बहन ने जस मं अथवा ओष ध का योग तेरे लए न त कया है, उसे भली कार से सेवन कर. म तुझे वृ ाव था तक जी वत रहने वाला बनाता ं. (५) इहै ध पु ष सवण मनसा सह. तौ यम य मानु गा अ ध जीवपुरा इ ह.. (६) हे पु ष! तू यमराज के त का अनुकरण मत कर अथात् मर मत. तू अपने सम त प रवार जन के साथ यहां जी वत रह. (६) अनु तः पुनरे ह व ानुदयनं पथः. आरोहणमा मणं जीवतोजीवतोऽयनम्.. (७) तू उदय होने के माग को जानने वाला है और इस य कम के ारा बुलाया गया है. उ रायण एवं द णायन तेरे जीवन म ही तीत ह . (७) मा बभेन म र य स जरद कृणो म वा. नरवोचमहं य मम े यो अ वरं तव.. (८) हे रोगी! तू भय याग दे , य क तू मरेगा नह . म तुझे वृ ाव था तक इस लोक म रहने यो य बनाता ं. तेरे शरीर म से य मा रोग और अ थगत वर र हो चुका है. (८) अ भेदो अ वरो य ते दयामयः. य मः येन इव ाप तद् वाचा साढः पर तराम्.. (९) तेरे शरीर म ा त वर, तेरा दय रोग एवं य मा रोग—ये सभी मेरे मं तर कृत हो कर उड़ने वाले बाज प ी के समान र जा कर गरे ह. (९)
पी बाण से
ऋषी बोध तीबोधाव व ो य जागृ वः. तौ ते ाण य गो तारौ दवा न ं च जागृताम्.. (१०) जो बोध, रह. (१०)
तबोध, व और जागृ त नामक तेरे ाणर क ऋ ष ह, वे रात दन जागते
अयम न पस इह सूय उदे तु ते. उदे ह मृ योग भीरात् कृ णा चत् तमस प र.. (११) यह अ न समीप रहने यो य है. तेरे लए सूय इसी लोक म उदय हो. तू गहरी, काली ******ebook converter DEMO Watermarks*******
और अंधकारपूण मृ यु से नकल कर जीवन को ा त हो. (११) नमो यमाय नमो अ तु मृ यवे नमः पतृ य उत ये नय त. उ पारण य यो वेद तम नं पुरो दधे ऽ मा अ र तातये.. (१२) यमराज के लए नम कार है. मृ यु के लए नम कार है. पतर के लए नम कार है. ये तुझे ले जाने वाले ह. जो अ न शरीर के पारण क व ध जानते ह, वे तेरे क याण के लए आए ह. म तुझे था पत करता ं. (१२) ऐतु ाण ऐतु मन ऐतु च ुरथो बलम्. शरीरम य सं वदां तत् पद् यां त त तु.. (१३) इस पु ष को ाण, ने और बल ा त ह . म ने इस के शरीर को मं श ाण यु कया है. वह अपने पैर पर खड़ा हो जाए. (१३)
के ारा
ाणेना ने च ुषा सं सृजेमं समीरय त वा ३ सं बलेन. वे थामृत य मा नु गा मा नु भू मगृहो भुवत्.. (१४) हे अ न! तुम इस पु ष को ाण और च ु से यु करो तथा इस के शरीर म बल भर दो. तुम अमृत के जानने वाले हो. यह इस लोक से थान न करे और मशान इस का घर न बने. (१४) मा ते ाण उप दस मो अपानो ऽ प धा य ते. सूय वा धप तमृ यो दाय छतु र म भः.. (१५) हे रोगी! तेरे ाण का य न हो तथा तेरी अपान वायु भी तेरा याग न करे. सूय अपनी करण ारा मृ यु श या पर पड़े ए तुझे उस से उठा द. (१५) इयम तवद त ज ा ब ा प न पदा. वया य मं नरवोचं शतं रोपी त मनः.. (१६) भीतर से हलती ई और मुख म बांधी ई मेरी जीभ कहती है क तुझे य मा रोग ने याग दया है और तेरे ऊपर वर का आ मण शांत हो गया है. (१६) अयं लोकः यतमो दे वानामपरा जतः. य मै व मह मृ यवे द ः पु ष ज षे. स च वानु याम स मा पुरा जरसो मृथाः.. (१७) यह परा जत न होने वाला मृ युलोक दे व को भी य है. इस लोक म तूने मृ यु के लए ही ज म लया है. वह मृ यु तेरा आ ान करती है. तू वृ ाव था से पहले मृ यु को ा त न ******ebook converter DEMO Watermarks*******
हो. (१७)
सू -३१
दे वता—कृ या का
तहरण
यां ते च ु रामे पा े यां च ु म धा ये. आमे मांसे कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (१) हे कृ या! अ भचार करने वाले ने म के क चे पा म चावल, जौ, गे ं, उपवाक, तल एवं कांगनी के मले ए अ म अथवा मुरगे आ द के मांस म तुझे थत कया है. म तुझे उसी क ओर लौटाता ,ं जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (१) यां ते च ु ः कृकवाकावजे वा यां कुरी र ण. अ ां ते कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (२) हे कृ या! अ भचारकता ने तुझे मुरगे अथवा बकरे के मांस म अथवा पेड़ पर कया है. म तुझे उसी क ओर लौटाता ,ं जस ने तुझे अ भचार कर के भेजा है. (२)
थत
यां ते च ु रेकशफे पशूनामुभयाद त. गदभे कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (३) हे कृ या! अ भचारकता ने तुझे एक शाफ अथात् टाप वाले और दोन ओर दांत वाले (घोड़े या गधे) पशु पर थत कया है. हम तुझे उसी क ओर लौटाते ह, जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (३) यां ते च ु रमूलायां वलगं वा नरा याम्. े े ते कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (४) हे कृ या! अ भचारकता ने तुझे मनु य ारा पू जत खाने के पदाथ म ढक कर खेत म थत कया है. हम तुझे उसी क ओर लौटाते ह, जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (४) यां ते च ु गाहप ये पूवा नावुत तः. शालायां कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (५) हे कृ या! अ भचार करने वाले ने तुझे गाहप य अ न म अथवा य शाला म कया है. हम तुझे उसी क ओर लौटाते ह, जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (५)
थत
यां ते च ु ः सभायां यां च ु र धदे वने. अ ेषु कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (६) हे कृ या! अ भचार करने वाले ने तुझे सभा म अथवा जुआ खेलने के पास म थत ******ebook converter DEMO Watermarks*******
कया है. हम तुझे उसी क ओर लौटाते ह, जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (६) यां ते च ु ः सेनायां यां च ु र वायुधे. भौ कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (७) हे कृ या! अ भचार करने वाले ने तुझे सेना म, बाण पर अथवा ं भ पर थत कया है. हम तुझे उसी क ओर लौटाते ह, जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (७) यां ते कृ यां कूपे ऽ वदधुः मशाने वा नच नुः. सद्म न कृ यां यां च ु ः पुनः त हरा म ताम्.. (८) हे कृ या! अ भचार करने वाले ने तुझे कुएं म, मशान म अथवा घर म थत कया है. हम तुझे उसी क और लौटाते ह, जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (८) यां ते च ु ः पु षा थे अ नौ संकसुके च याम्. ोकं नदाहं ादं पुनः त हरा म ताम्.. (९) हे कृ या! अ भचार करने वाले मांसभ ी ने तुझे पु ष क हड् डी पर अथवा का शत अ न पर थत कया है. हम तुझे उसी क ओर लौटाते ह, जस ने अ भचार कर के तुझे भेजा है. (९) अपथेना जभारैणां तां पथेतः ह म स. अधीरो मयाधीरे यः सं जभारा च या.. (१०) जस अ ानी अ भचारकता ने कृ या को बुरे माग से हम मयादा म रहने वाल पर भेजा है, हम कृ या को उसी माग से अ भचार करने वाल क ओर लौटाते ह. (१०) य कार न शशाक कतु श े पादमङ् गु रम्. चकार भ म म यमभागो भगवद् यः.. (११) जस ने हमारे ऊपर कृ या का अ भचार कया है, वह हमारी उंगली अथवा पैर को न नह कर सका है. वह अपनी अ भसं ध म सफल न हो और हम भा यशा लय का अमंगल न कर सके. (११) कृ याकृतं वल गनं मू लनं शपथे यम्. इ तं ह तु महता वधेना न व य व तया.. (१२) श ुता रखने वाले जस अ भचारकता ने छप कर हम पर कृ या भेजने का कम कया है, इं उसे अपने वशाल श से न कर द और अ न दे व उसे अपनी वाला से जला द. (१२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
******ebook converter DEMO Watermarks*******
छठा कांड सू -१
दे वता—स वता
दोषो गाय बृहद् गाय ुम े ह. आथवण तु ह दे वं स वतारम्.. (१) हे अथवा ऋ ष के पु द यङ् ऋ ष! तु त के यो य एवं वशाल साम मं का रात दन अथात् हर समय गुणगान करो तथा उन के ारा हम धन यु बनाओ. हे तु त करने वाले द यङ् ऋ ष! तुम अपने नाम मं ारा दाना द गुण से संप स वता दे व क तु त करो. (१) तमु ु ह यो अ तः स धौ सूनुः. स य य युवानम ोघवाचं सुशेवम्.. (२) हे तु त करने वाले! उ ह स वता दे व क तु त करो जो वाहशील सागर से उ दत होते दखाई दे ते ह. वे न य त ण, रा करने वाले एवं शोभन वचन उ चारण करने वाले ह. (२)
के थम पु ह एवं जो के अंधकार का वनाश
स घा नो दे वः स वता सा वषदमृता न भू र. उभे सु ु ती सुगातवे.. (३) वे ही स वता दे व हम अमर बनाने के साधन य अ धक मा ा म दे व को ा त कराएं एवं हम मृ यु वरोधी बल दान कर. वे स वता दे व हम शोभन तु त के साधन दोन कार के रथंतर साम गान हेतु े रत कर. (३)
सू -२
दे वता—सोम
इ ाय सोममृ वजः सुनोता च धावत. तोतुय वचः शृणव वं च मे.. (१) हे अ वयु आ द ऋ वजो! इं के लए सोम को नचोड़ो और नचोड़े गए सोम का दशाप व के ारा सभी कार शोधन करो. वे इं मुझ तोता के तु त ल ण आ ान को सुन तथा आदरपूवक जान. (१) आ यं वश ती दवो वयो न वृ म धसः. वर शन् व मृधो ज ह र वनीः.. (२) जस कार प ी अपने नवास वाले वृ पर वे छा से शी प ंच जाते ह, उसी कार ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सोम इं के शरीर म श उ पादक के प म वयं प च ं जाते ह. हे महान इं ! सोम पान से उ े जत हो कर हम बाधा प ंचाने वाले सै नक से यु एवं यु करती ई श ु सेना का वनाश करो. (२) सुनोता सोमपा ने सोम म ाय व
णे. युवा जेतेशानः स पु
ु तः.. (३)
हे अ वयुगण! सोमपान के लए उ सुक एवं हाथ म व धारण करने वाले इं के लए सोमरस नचोड़ो. वे इं न य त ण, वजयी, सारे संसार के समीप तथा ब त से यजमान ारा शं सत ह. (३)
सू -३
दे वता—इं , पूषा
पातं न इ ापूषणा द तः पा तु म तः. अपां नपात् स धवः स त पातन पातु नो व णु त ौः.. (१) हे इं और पूषादे व! हमारी र ा करो. दे वमाता अ द त हमारी र ा कर. उनचास म द्गण हमारी र ा कर. अपानपात अथात् जल को धन बनाने वाले अ न दे व एवं सात सागर हमारी र ा कर. व णु एवं आकाश हमारी र ा कर. आ नीय अ न और अ न क सुखकर तथा रा स ारा दए ए ःख से र क करण हमारी र ा कर. (१) पातां नो ावापृ थवी अ भ ये पातु ावा पातु सोमो नो अंहसः. पातु नो दे वी सुभगा सर वती पा व नः शवा ये अ य पायवः.. (२) ावा और पृ वी अ भमत फल पाने के लए हमारी र ा कर. सोमरस कुचलने का प थर और सोमरस पाप से हमारी र ा करे. सौभा ययु दे वी सर वती हमारी र ा करे. अ न हमारी र ा करे, जनक करण हम प व करती ह. (२) पातां नो दे वा ना शुभ पती उषासान ोत न उ यताम्. अपां नपाद भ ती गय य चद् दे व व वधय सवतातये.. (३) हे दाना द गुणयु एवं द त तेज वाले अ नीकुमारो! हे दन और रात के अ ध ाता दे वो! हमारी र ा करो. अपानपात अथात् मेघ के जल को बढ़ाने वाले अ न रा स आ द क हसा से हम बचाएं. हे व ा दे व! सभी फल क ा त के लए हम बढ़ाओ. (३)
सू -४ व ा मे दै ं वचः पज यो पु ै ातृ भर द तनु पातु नो
दे वता— व ा ण प तः. रं ायमाणं सहः.. (१)
व ा एवं ण प त अथात् इस मं के अ धप तदे व मेरे तु त ल ण वचन को सुन. ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अ द त अपने पु और ाता क शी र ा कर. (१)
के साथ हमारे र क एवं श ु
ारा अ त मण र हत बल
अंशो भगो व णो म ो अयमा द तः पा तु म तः. अप त य े षो गमेद भ तो यावय छ ुम ततम्.. (२) अ द त और उन के भग, व ण, म और अयमा नामक पु और उनचास म त का समूह मेरी र ा कर. इन का े ष कम हम से र चला जाए. तुम हम से े ष रखने वाले श ु को हम से पृथक् करो. (२) धये सम ना ावतं न उ या ण उ ौ ३ पयावय छु ना या.. (३)
म
यु छन्.
हे अ नीकुमारो! अ नहो आ द उ म कम करने क सद्बु के लए हमारी र ा करो. हे व तीण गमन वाले वायु दे व! तुम माद न करते ए हमारी र ा करो. हे पता के समान ुलोक! कु े के समान आ मण करने वाली पाप क दे वी को हमारे पास से भगाओ. (३)
सू -५
दे वता—अ न, इं
उदे नमु रं नया ने घृतेना त. समेनं वचसा सृज जया च ब ं कृ ध.. (१) हे घृत के ारा बुलाए गए अ न दे व! तुम इस यजमान को उ म पद ा त कराओ. उ म पद ा त कराने के प ात तुम इस यजमान को शारी रक तेज से यु करो तथा पु , पौ आ द से समृ बनाओ. (१) इ े मं तरं कृ ध सजातानामसद् वशी. राय पोषेण सं सृज जीवातवे जरसे नय.. (२) हे इं ! इस यजमान क अ तशय वृ करो. तु हारी कृपा से यह अपने बंधु के म य सब को वश म करने वाला तथा वयं वतं बने. तुम इसे धन संप बनाओ तथा इस के जीवन को वृ ाव था तक प ंचाओ. (२) य य कृ मो ह वगृहे तम ने वधया वम्. त मै सोमो अ ध वदयं च ण प तः.. (३) हे अ न दे व! हम जस यजमान के घर म य कर रहे ह, उस यजमान को तुम समृ बनाओ. सोम दे व एवं ण प त दे व इसे अपना कह. (३)
******ebook converter DEMO Watermarks*******
सू -६
दे वता—
ण पत
यो ३ मान् ण पते ऽ दे वो अ भम यते. सव तं र धया स मे यजमानाय सु वते.. (१) हे ण प त दे व! जो दे व वरोधी श ु हम वध करने यो य मानता है, उस को सोम रस नचोड़ने वाले मुझ यजमान के वश म करो. (१) यो नः सोम सुशं सनो ःशंस आ ददे श त. व ेणा य मुखे ज ह स सं प ो अपाय त.. (२) हे सोम! वचन बोलने वाला जो श ु हम बाधा प ंचाता है और अपने कठोर वचन से हमारा पराभव करता है, उस के मुख पर व का हार करो. वह श ु व के आघात से छ भ हो कर भाग जाए. (२) यो नः सोमा भदास त सना भय न ः. अप त य बलं तर महीव ौवध मना.. (३) हे सोम! हमारा जो संबंधी हमारा अ भभव करना चाहता है तथा जो नकृ श ु हम बाधा प ंचाता है, तुम उस को उसी कार न कर दो, जस कार ुलोक व के ारा वनाश करता है. (३)
दे वता—सोम
सू -७
येन सोमा द तः पथा म ा वा य य हः. तेना नो ऽ वसा ग ह.. (१) हे सोम! जस माग से, अ द त म एवं उस के बारह पु अनु ह करते ए सरंचना करते ह, उसी माग से हमारा क याण करते ए आओ. (१) येन सोम साह यासुरान् र धया स नः. तेना नो अ ध वोचत.. (२) श
हे सोम! जस बल के ारा तुम हमारे श के ारा हम आशीवाद वचन सुनाओ. (२)
शाली श ु
का वनाश करते हो, उसी
येन दे वा असुराणामोजां यवृणी वम्. तेना नः शम य छत.. (३) हे दे वो! तुम अपने जस बल से श ु ारा हमारे लए सुख दान करो. (३)
सू -८
क श
अपने म मला लेते हो, उसी बल के
दे वता—कामा मा
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यथा वृ ं लबुजा सम तं प रष वजे. एवा प र वज व मां यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (१) हे प नी! जस कार लता चार ओर से वृ को लपेटती है, उसी कार तू मेरा आ लगन कर. जस कार तू मेरी कामना करती ई मेरे समीप से कह न जाए, उसी कार म तुझे अपने वश म करता ं. (१) यथा सुपणः पतन् प ौ नह त भू याम्. एवा न ह म ते मनो यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (२) हे का मनी! जस कार ग ड़ अपने नवास थान से उड़ता आ धरती पर अपने दोन पंख को पटकता है, उसी कार म तेरे दय को पी ड़त करता ं. जस कार तू मेरी कामना करती ई मेरे समीप से कह न जाए, उसी कार म तुझे अपने वश म करता ं. (२) यथेमे ावापृ थवी स ः पय त सूयः. एवा पय म ते मनो यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (३) हे नारी! सब का ेरक सूय जस कार इस आकाश और धरती को शी ा त कर लेता है, उसी कार म तेरे मन को ा त क ं गा. जस कार तू मेरी कामना करती ई मेरे समीप से कह न जाए, उसी कार म तुझे अपने वश म करता ं. (३)
सू -९
दे वता—कामा मा
वा छ मे त वं १ पादौ वा छा यौ ३ वा छ स यौ. अ यौ वृष य याः केशा मां ते कामेन शु य तु.. (१) हे का मनी! तू मेरे शरीर, पैर , ने और जंघा क कामना कर. तू ऐसे पु ष क कामना करती है, जो तुझे संतु कर सके. तेरी सुंदर आंख और केश मेरे मन को ाकुल करते ह. (१) मम वा दोष ण षं कृणो म दय षम्. यथा मम तावसो मम च मुपाय स.. (२) हे प नी! म तुझे अपनी बांह और दय म आ य लेने वाली बनाता ं. इस कार तू मेरे संक प के अधीन होगी और मेरे च को ा त करेगी. (२) यासां ना भरारेहणं द संवननं कृतम्. गावो घृत य मातरो ऽ मूं सं वानय तु मे.. (३) जन के अंग आनंद ा त के साधन होते ह और जन के दय म वधाता ने वशीकरण ******ebook converter DEMO Watermarks*******
क श
दान क है; घी, ध दे ने वाली गाएं मेरे ऐसे अ धकार म रह. (३)
दे वता—अ न, वायु
सू -१०
पृ थ ै ो ाय वन प त यो ऽ नये ऽ धपतये वाहा.. (१) पृ वी के लए, श द सुनने के साधन कान के लए, भू म पर थत वृ के अ ध ाता दे व के लए तथा धरती के वामी अ न के लए ह शोभन आ त वाला हो. (१) ाणाया त र ाय वयो यो वायवे ऽ धपतये वाहा.. (२) वायु प ाण के लए, वायु से संबं धत अंत र के लए, प य के लए तथा वायु के अ धप त दे वता के लए यह ह शोभन आ त वाला हो. (२) दवे च ुषे न
े यः सूयाया धपतये वाहा.. (३)
आकाश के लए, ने के लए, न यह ह शोभन आ त वाला हो. (३)
के लए तथा
सू -११
ुलोक के अ धप त सूय के लए
दे वता—वीय
शमीम थ आ ढ त पुंसुवनं कृतम्. तद् वै पु य वेदनं तत् ी वा भराम स.. (१) शमी वृ ी है और अ थ अथात् पीपल का वृ पु ष है. अ न प पु उ प करने के लए वह शमी वृ पर आ ढ़ है. उसी पीपल वृ से अर णयां बनाई जाती ह, जो अ न उ पादन के काम आती ह. इस कार के अ थ पर पुंसवन कया गया है. वह पुंसवन अथात् पु ा त कम हम य म करते ह. (१) पुं स वै रेतो भव त तत् यामनु ष यते. तद् वै पु य वेदनं तत् जाप तर वीत्.. (२) पु षमय बीज प वीय होता है. वह गभाधान कम के ारा नारी के गभाशय म डाला जाता है. वही पु ा त का साधन बनता है. यह पुंसवन कम जाप त ने बताया है. (२) जाप तरनुम तः सनीवा य ची लृपत्. ैषूयम य दधत् पुमांसमु दध दह.. (३) जाप त ने, अमाव या क दे वी सनीवाली ने और पूणमासी के दे वता ने गभाशय म थत वीय के अंश से हाथ, पैर आ द क रचना क है. उ ह ने ी के सव संबंधी न म ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अथात् गभ को हम से पृथक् अथात् नारी म पु लेने यो य बनाया. (३)
पी संतान को एक वष के प ात ज म
सू -१२
दे वता— वष नवारण
प र ा मव सूय ऽ हीनां ज नमागमम्. रा ी जग दवा य ं सात् तेना ते वायरे वषम्.. (१) जस कार सूय अंत र म ा त होता है, उसी कार म सप के ज म को जानता ं. जस कार रा अपने अंधकार से सारे संसार को ा त कर लेती है, उसी कार शरीर म ा त वष को म ओष ध से र करता ं. (१) यद् भय ष भयद् दे वै व दतं पुरा. यद् भूतं भ मास वत् तेना ते वायरे वषम्.. (२) जस ओष ध को ाचीन काल म मं ने, अग य, व स आ द ऋ ष तथा इं आ द दे व ने जाना है, उन भूत, वतमान और भ व यकाल क ओष धय से म तेरे शरीर म थत वष का नवारण करता ं. (२) म वा पृ चे न १: पवता गरयो मधु. मधु प णी शीपाला शमा ने अ तु शं दे .. (३) गंगा आ द न दयां, हमालय आ द वशाल पवत और छोटे पवत तेरे शरीर म वष नाशक अमृत स च. शैवाल से यु प णी नाम क नद तेरे शरीर पर अमृत चुपड़े. यह वषनाशक अमृत तेरे और मेरे दय के लए सुखकारी हो. (३)
सू -१३
दे वता—मृ यु
नमो दे ववधे यो नमो राजवधे यः. अथो ये व यानां वधा ते यो मृ यो नमो ऽ तु ते.. (१) इं आ द के हनन साधन व आ द को नम कार है, जस से वे हमारा याग कर द. राजा से संबं धत आयुध को नम कार है. हे मृ यु! वै य जा तय के वध के जो साधन ह, उन से बचाने के लए हम तुझे नम कार करते ह. (१) नम ते अ धवाकाय परावाकाय ते नमः. सुम यै मृ यो ते नमो म यै त इदं नमः.. (२) हे मृ यु! तेरा प पात कर के वचन बोलने वाले त को तथा पराभव का वणन करने वाले के लए नम कार है. हे मृ यु! तेरी अनु हका रणी बु के लए एवं न ह करने वाली ******ebook converter DEMO Watermarks*******
बु
के लए नम कार है. (२) नम ते यातुधाने यो नम ते भेषजे यः. नम ते मृ यो मूले यो णे य इदं नमः.. (३)
हे मृ यु! तुझ से संबं धत रा स को नम कार है, जो लोग को पीड़ा प ंचाते ह. तुझ से र ा करने वाली ओष धय को नम कार है. तुझ से संबं धत मूल पु ष तथा शापानु ह समथ ा ण के लए नम कार है. (३)
सू -१४
दे वता—बलास
अ थ ंसं प ंसमा थतं दयामयम्. बलासं सव नाशया े ा य पवसु.. (१) मं क श से ह ड् डय को कं पत करने वाले, शरीर के जोड़ को ढ ला करने वाले तथा सारे शरीर म ा त े मा ारा कए ए दय रोग क श का वनाश करे. वह रोग खांसी और सांस से संबं धत है. (१) नबलासं बला सनः णो म मु करं यथा. छनद् य य ब धनं मूलमुवावा इव.. (२) जस कार सरोवर से कमल उखाड़ा जाता है, उसी कार म इस रोगी पु ष के े मा रोग को जड़ से न करता ं. जस कार पक ई ककड़ी अपने नाल से अपनेआप अलग हो जाती है, उसी कार म इस रोगी के े मा रोग का बंधन तोड़ता ं. (२) नबलासेतः पताशु ः शशुको यथा. अथो इट इव हायनो ऽ प ा वीरहा.. (३) हे े मा रोग! जस कार भागा आ शुंशु क ह रण र चला जाता है तथा गया आ संव सर फर वापस नह आया, उसी कार हमारे वीर के वनाशकारी तू इस रोगी को छोड़ कर बुरी दशा म चला जा. (३)
सू -१५
दे वता—वन प त
उ मो अ योषधीनां तव वृ ा उप तयः. उप तर तु सो ३ माकं यो अ मां अ भदास त.. (१) हे सोमपण से उ प पलाश वृ ! तू वन प तय म उ म है. सभी वृ तेरे उपासक अथात् तुझ से न न थ त वाले ह. तेरी कृपा से हमारा वह श ु हमारा उपासक बने जो हम न करना चाहता है. (१) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
सब धु ासब धु यो अ माँ अ भदास त. तेषां सा वृ ाणा मवाहं भूयासमु मः.. (२) हमारे गो वाला अथवा हमारे गो से भ जो श ु हम ीण करना चाहता है, उन सब म म उसी कार उ म बनूं, जस कार तू सभी वृ म े है. (२) यथा सोम ओषधीनामु मो ह वषां कृतः. तलाशा वृ ाणा मवाहं भूयासमु मः.. (३) जस कार पुरोडाश के योग के लए सोमलता सभी लता मानी जाती है, उसी कार म अपने गो वाल म े बनूं. (३)
और वन प तय म े
दे वता—मं म उ
सू -१६
आबयो अनाबयो रस त उ आबयो. आ ते कर भम स.. (१) हे रोग नवृ के लए खाई जाने वाली सरस एवं न खाए जाने वाले सरस के तने! तेरा रस अथात् तेल रोग नवारण म स म है. हे सरस ! हम तेरा कर भ (साग) मं से यु कर के खाते ह. (१) वहह्लो नाम ते पता मदावती नाम ते माता. स ह न वम स य वमा मानमावयः.. (२) हे सरस के साग! तेरा पता वह ल तथा माता मदावती नाम क है. तू अपना साग मनु य को खाने के लए दे दे ती है, इस लए तू अपने माता पता के समान नह रहती. (२) तौ व लके ऽ वेलयावायमैलब ऐलयीत्. ब ु (३)
ब ुकण ापे ह नराल..
हे तौ व लक नाम क पशाची! तू रोग का कारण है. तू हमारे रोग को परा जत कर के लौटा दे . तेरे ारा होने वाला ऐलय नाम का ने रोग र चला जाए. हे ब ,ु ब ुवण तथा नराल नामक रोग! तुम इस पु ष के शरीर से भाग जाओ. (३) अलसाला स पूवा सला
ाला यु रा. नीलागलसाला.. (४)
पौध क मंजरी अलसाला थम उ प होने के कारण पूव है और बाद म उ प होने के कारण सलांजाला उ रा है. नीलागलसाला इन के म य वाली है. (४)
सू -१७
दे वता—गभ बृंहण
******ebook converter DEMO Watermarks*******
यथेयं पृ थवी मही भूतानां गभमादधे. एवा ते यतां गभ अनु सूतुं स वतवे.. (१) हे नारी! जस कार वशाल पृ वी ा णय के शरीर को धारण करती है, उसी कार तेरा गभ भी सव के समय ज म लेने के लए थत रहे. (१) यथेयं पृ थवी मही दाधारेमान् वन पतीन्. एवा ते यतां गभ अनु सूतुं स वतवे.. (२) यह वशाल पृ वी जस कार वृ को धारण करती है, उसी कार तेरा गभ भी सव के समय ज म लेने के हेतु थत रहे. (२) यथेयं पृ थवी मही दाधार पवतान् गरीन्. एवा ते यतां गभ अनु सूतुं स वतवे.. (३) हे नारी! जस कार यह वशाल पृ वी पवत को धारण करती है, उसी कार तेरा गभ भी सव के समय ज म लेने के लए थत रहे. (३) यथेयं पृ थवी मही दाधार व तं जगत्. एवा ते यतां गभ अनु सूतुं स वतवे.. (४) हे नारी! यह वशाल पृ वी जस कार चराचर जगत् को धारण करती है. उसी कार तेरा गभ भी सव के समय ज म लेने के लए थत रहे. (४)
दे वता—ई या वनाशन
सू -१८ ई याया ा ज थमां थम या उतापराम्. अ नं द यं १ शोकं तं ते नवापयाम स.. (१)
हे ई या करने वाले पु ष! तेरी ई यापूण म त यह है क इस ी को कोई दे ख न ले. इस म त को शांत करते ए हम तेरे दय वदारक शोक एवं ोध को शांत करते ह. (१) यथा भू ममृतमना मृता मृतमन तरा. यथोत म ुषो मन एवे य मृतं मनः.. (२) सब ा णय से अ ध त पृ वी शांत मन वाली और सब के शरीर से भी उदा मन वाली होती है. जस कार मृत पु ष का मन ई या र हत होता है, उसी कार ी वषयक ई यायु पु ष का मन भी शांत हो जाए. (२) अदो यत् ते
द
तं मन कं पत य णुकम्.
******ebook converter DEMO Watermarks*******
तत त ई या मु चा म न
माणं ते रव.. (३)
हे ई या त पु ष! लोहार जस कार भ ा अथात् ध कनी से सांस बाहर नकालता है, वैसे ही म तेरे दय से ई या र करता ं. (३)
दे वता—मं म उ
सू -१९ पुन तु मा दे वजनाः पुन तु मनवो धया. पुन तु व ा भूता न पवमानः पुनातु मा.. (१)
दे वगण मुझे प व कर. मनु य मुझे बु अथवा कम के ारा प व कर. सभी ाणी मुझे प व कर और अंत र म वचरण करने वाली वायु मुझे प व करे. (१) पवमानः पुनातु मा
वे द ाय जीवसे. अथो अ र तातये.. (२)
नचोड़ा जाता आ सोम मुझे य कम के लए, बल ा त के लए, जीवन के लए तथा अ हसा करने के लए प व करे. (२) उभा यां दे व स वतः प व ेण सवेन च. अ मान् पुनी ह च से.. (३) हे सब के ेरक स वता दे व! तु हारा तेज प व करने का साधन है. अपने तेज और ेरणा से हम इहलोक और परलोक के सुख के साधन य के लए शु करो. (३)
सू -२०
दे वता—य मा नाशक
अ ने रवा य दहत ए त शु मण उतेव म ो वलप पाय त. अ यम म द छतु कं चद त तपुवधाय नमो अ तु त मने.. (१) गीले और सूखे सब को जलाने वाली दावा न के समान अंग को जलाने वाले इस वर का दाह सारे शरीर म ा त है. उस समय उ म के समान वलाप करता आ इस लोक से चला जाता है. इस कार का बल प वर हम याग कर कसी च र हीन पु ष के पास चला जाए. (१) नमो ाय नमो अ तु त मने नमो रा े व णाय वषीमते. नमो दवे नमः पृ थ ै नम ओषधी यः.. (२) वर के अ भमानी दे व के लए नम कार है. वर के लए नम कार है. द तशाली एवं वामी व ण के लए नम कार है. ुलोक तथा पृ वी के लए नम कार है. पृ वी पर उ प ओष धय को नम कार है. (२) ******ebook converter DEMO Watermarks*******
अयं यो अ भशोच य णु व ा पा ण ह रता कृणो ष. त मै ते ऽ णाय ब वे नमः कृणो म व याय त मने.. (३) सभी ओर से पूरे शरीर को शोकयु करता आ, जो यह प वर है, वह सभी ा णय का र षत कर के उ ह हलद के समान पीला बना दे ता है. उस र वण एवं पीत वण तथा सेवा करने यो य वर को नम कार है. (३)
दे वता—चं मा
सू -२१ इमा या त ः पृ थवी तासां ह भू म मा. तासाम ध वचो अहं भेषजं समु ज भम्.. (१)
ये जो पृ वी आ द तीन लोक ह, उन म यह पृ वी उ म है, जस पर हम थत ह. पृ वी क वचा के समान ऊपर वतमान जो भू म है, म उस पर उ प ओष धय का सं ह क