भारत विखण्डन / Bharat Vikhandan (Breaking India) 9789351365976

India's integrity is being undermined by three global networks that have well-established operating bases inside In

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भारत विखण्डन / Bharat Vikhandan (Breaking India)
 9789351365976

Table of contents :
कवर पेज
मुखपृष्ठ
विषय-सूची
परिचय
1. महाशक्ति या विखण्डित युद्ध क्षेत्र?
विखण्डित होने की भारतीय अन्तर्निहित प्रवृत्तियाँ
बाहरी शक्तियाँ
2. यूरोप द्वारा परिकल्पित प्रजातियाँ : एक सिंहावलोकन
हिंसा की ओर ले जाती पश्चिमी शिक्षाविदों की काल्पनिक कथा
यूरोप
भारत
श्री लंका
अफ्रीका
3. आर्य नस्ल का अविष्कार
यूरोप पर भारत के प्रभाव का सिंहावलोकन : पुनर्जागरण से नस्लवाद तक
हर्डर का स्वछन्दतावाद (Romanticism)
कार्ल विल्हेल्म फ्रेडेरिक श्लेगेल (1772-1829)
श्लेगेल की भारत सम्बन्धी मनगढ़ंत धारणाओं के आधार पर जर्मन अतीत की कल्पना
यूरोप में ‘आर्य’ एक नस्ल बनी
अर्नेस्ट रेनान और आर्य ईसा मसीह
फ्रेडरिक मैक्स मूलर
एडोल्फ पिक्टेट
रूडोल्फ फ्रेडरिक ग्राऊ (Grau)
गोबिनो और नस्ल विज्ञान
आर्य सिद्धान्तकार और सुजनन विज्ञान
चेम्बरलेन : आर्य-ईसाई नस्लवाद
नाजी और उनके बाद
भारतीय सभ्यता पर दोषारोपण
4. साम्राज्यवादी बाइबल प्रचार भारतीय मानव जाति विज्ञान का स्वरूप निर्धारण
मूसा का मानव जाति विज्ञान
हैम का मिथक और अफ्रीकी उपनिवेश निर्माता
बेबल का मिथक और भारतविद
संस्थागत तन्त्र
बाइबल का प्रजाति सिद्धान्त और हैम मिथक
विलियम जोन्स द्वारा बाइबल के मानव जाति विज्ञान के अनुरूप भारतीयों का मानचित्र बनाना
अंग्रेज़ भारतशास्त्रीय संस्थानों के एक सौ वर्ष
5. लॉर्ड रिस्ली द्वारा नस्ल में जाति-वर्ण का रूपान्तरण
मैक्स मूलर के काम को आगे बढ़ाना
रिस्ली का नस्ल विज्ञान
रिस्ली द्वारा वर्णों को रूढ़िबद्ध करना
अम्बेडकर द्वारा नासिक तालिका आधारित नस्लवाद का खण्डन
6. ‘द्रविड़’ नस्ल का अविष्कार
हॉजसन का ‘तमुलियन’ आविष्कार
कॉल्डवेल : मानवजाति विज्ञान में भाषाविज्ञान का रूपान्तरण
एक षड्यन्त्र सम्बन्धी सिद्धान्त का जन्म : ‘धूर्त आर्य ब्राह्मणोंने किया भोले-भाले द्रविड़ों का शोषण’
तमिल परम्पराओं का अ-भारतीयकरण
तिरुकुरल
शैव सिद्धान्त
तमिल भक्ति साहित्य
तिरुकुरल का ईसाईकरण
कुरल की हिन्दू प्रकृति को मिटाना
ईसाई मत के अनुसार शैवमत की रूपरेखा तैयार करना
प्राचीन कालजयी तमिल साहित्य का संशोधनवादी इतिहास
‘तमिल धर्म’ बना ‘प्रारम्भिक भारतीय ईसाइयत’
7. द्रविड़ नस्लवाद और श्रीलंका
सिंहली-आर्य-बौद्ध पहचान
श्रीलंकाई द्रविड़ पहचान
पहचानों का टकराव
धर्मशास्त्रीय कपोल-कल्पना में पुराने भूगर्भ विज्ञान का मिलन
बिशप कॉल्डवेल से लिमुरियन उत्पत्ति का नाता
थियोसॉफी—ईसाई मत-प्रचार के खण्डन के लिए बौद्ध धर्म द्वारा आर्यों का उपयोग
औपनिवेशिक संरचनाओं के बीच टकराव : आर्य-बौद्ध-सिंहली बनाम द्रविड़-शैव-तमिल
8. हिन्दूधर्म को ‘द्रविड़’ ईसाइयत में पचाना
सन्त टॉमस का मिथक
भारतीय ईसाई विद्वानों द्वारा अस्वीकार किया जाना
सन्त टॉमस मिथक का पुनरुज्जीवित होना
पुरातत्व के साक्ष्यों का गढ़ा जाना
इंस्टीट्यूट ऑफ़ एशियन स्टडीज
ईसाई प्रचार और द्रविड़ आन्दोलन
ईसाई प्रचारकों की छद्म-विद्वता
प्रारम्भिक अस्वीकृति और अन्तत: चर्च का अनुमोदन
धोखे : पुरातात्विक और साहित्यिक
सन्त टॉमस के इतिहास को गढ़ना
सान थोम गिरजे से जुड़े पुरातात्विक साक्ष्य
फिल्मों में सन्त टॉमस
हिन्दू धर्म आर्य-अंग्रेजी षड्यन्त्र घोषित
इंस्टीट्यूट ऑफ़ एशियन स्टडीज
शिव और नटराज ‘द्रविड़’ घोषित
स्कन्द-मुरुगा का समायोजन
‘पंचम वेद’ का गढ़ा जाना
हिन्दू लोकप्रिय संस्कृति का ईसाईकरण
हिन्दू कला का ईसाईकरण
भारतीय आध्यात्मिक नृत्य का ईसाई अपमान
रणनीतिगत परिवर्तन : हिन्दू नृत्य का सूक्ष्म ईसाई समायोजन
भरत नाट्यम के ईसाईकरण के साथ-साथ हिन्दू धर्म को धृष्टतापूर्वक अस्वीकार करना
लीला सैमसन प्रवाद
तमिल लोक-कलाओं का ईसाईकरण
9. ‘द्रविड़’ ईसाइयत का प्रचार
2000 : ‘वर्ण-व्यवस्था के उन्मूलन के लिए द्रविड़ धर्म’ पर गोष्ठी
2001 : भारत अन्तर्राष्ट्रीय प्रजातिवाद की जननी घोषित
2004 : ‘भारत एक द्रविड़ ईसाई राष्ट्र है, और ईसाइयों ने संस्कृत बनायी’
2005 : सन्त टॉमस द्रविड़ ईसाइयत के रूप में हिन्दू धर्म की पुनर्कल्पना पर न्यू यॉर्क सम्मेलन
तमिल साहित्य में ‘ईसाई सारतत्व’
तमिल वैवाहिक रहस्यवाद के ईसाई मूल
2006 : द्रविड़ ईसाइयत एक अन्तर्राष्ट्रीय अभियान बना
राष्ट्रपति बुश के सलाहकार द्वारा द्रविड़ ईसाइयत प्रचार
भारत में और आगे विस्तार
पोप द्वारा विषय में विभ्रम पैदा करना
2007 : भारत में प्रारम्भिक ईसाइयत के इतिहास पर दूसरा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन
शक्ति बनीं पवित्र आत्मा (Holy Ghost)
2008 : तमिलों के धर्म पर पहला अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन
लिमुरियाई-तमिल उद्भव के सिद्धान्त की वापसी
संस्कृत, डार्विन और वेदान्त का दानवीकरण
भारतीय कला के इतिहास का बपतिस्मा
सामाजिक विषमताओं को केवल हिन्दुओं में ही देखा जाना
ईसाई-द्रविड़ बनाम आधुनिक पुरातत्व विज्ञान
टॉमस मिथक की मजबूती का आकलन
ईसाईकरण के लिए अन्तरिम चरण के रूप में द्रविड़ आध्यात्मिकता
10. भारत के बाहर द्रविड़वादी शैक्षणिक संस्थान-कार्यकर्ता नेटवर्क
येल
हार्वर्ड
बर्कले
द्रविड़ भाषा प्रतिमान के ऑक्सफोर्ड-येल मूल
देर से उत्पन्न सन्देह
शैक्षिक चिन्तन द्वारा भारतीय राजनीति का संचालन : अन्नादुरै
सर्व (SARVA) परियोजना और पहचान की राजनीति
तमिल अलगाववादी सम्मेलन के लिए शैक्षिक समर्थन
बर्कले तमिल पीठ
फेटना (FeTNA)
यूरोप स्थित तमिल अध्ययन संस्थान
11. भारत के खण्डों पर पश्चिमी चिन्तन
सरकार
धनदाता एजेन्सियाँ
अकादमी
चर्च
समाचार माध्यम
भारत का सुनियोजित विखण्डन
उत्पीड़न साहित्य एक विधा के रूप में
भारत के विखण्डन का पोषण करता उत्पीड़न साहित्य
भारत : पश्चिमी हस्तक्षेप के लिए सीमाक्षेत्र
मानवाधिकार में पश्चिमी हस्तक्षेप
वैश्विक बहुसंख्यकों की सेवा में भारतीय अल्पसंख्यक
एक उदाहरण : अफ्रीकी-दलित परियोजना
पश्चिमी हस्तक्षेप के लिए पहचान की दरारें
भारत का पुन: औपनिवेशीकरण
एक ‘ईसाई उम्मत’
12. अफ्रीकी-दलित आन्दोलन
आर्य/द्रविड़ और हुटु/टुट्सी समानान्तर (Hutu-Tutsi Parallels)
अफ्रीकी-द्रविड़ आन्दोलन को अमरीकी इतिहास द्वारा परिभाषित करना
अमरीका की अश्वेत मुक्ति का धर्मशास्त्र
भारत में अश्वेत मुक्ति के धर्मशास्त्र का दुरुपयोग
अफ्रीकी-दलित और हिन्दुओं के नस्लवादी ईश्वर
पश्चिमी सरकार—चर्च गठजोड़ द्वारा अफ्रीकी-द्रविड़-दलित को प्रभावित करना
एक नस्लवादी महाकाव्य के रूप में रामायण की व्याख्या
13. भारत : एक नवसंरक्षणवादी मोर्चा1
हिन्दुओं के धर्मान्तरण के लिए बहुराष्ट्रीय निगम
भारत की शक्तियों की पहचान धर्मान्तरण के लिए और अवरोधक के रूप में
ईसाई प्रचार के हथियार के रूप में विकास
ईसाई प्रचारक सामग्री : पैट रॉबर्टसन
अमरीकी दक्षिणपन्थी ईसाइयों द्वारा दलित आन्दोलन
दलित फ्रीडम नेटवर्क (डी.एफ.एन.)
डी.एफ.एन. के राजनीतिक पक्षपोषण के उदाहरण
कांचा इलाइया : ‘हम संस्कृत की हत्या कर देना चाहते हैं’
डी.एफ.एन. की हाल की गतिविधियाँ
ऑल इण्डिया क्रिश्चियन काउंसिल (ए.आई.सी.सी.)
भारत के विरुद्ध ईसाई लॉबिंग के साथ संयुक्त राज्य अमरीका के राजनीतिज्ञों और अधिकारियों के सम्बन्धों के उदाहरण
दक्षिणपन्थी विचार मंच और नीति केन्द्र
पॉलिसी इंस्टीट्यूट फ़ॉर रिलिजन एण्ड स्टेट (पी.आई.एफ.आर.ए.एस.)
पिफ्रास के सम्मेलन
भारत में प्रभाव
फ्रीडम हाउस
न्यू यॉर्क में एशिया सोसाइटी
पूर्वाग्रहपूर्ण अवधारणाओं का बनाया जाना और उन्हें पोषित करना
जंगली भारत के रूप में गुजरात
एथिक्स ऐण्ड पब्लिक पॉलिसी सेंटर (ई.पी.पी.सी.)
अनेक मार्ग
14. भारत : एक वामपन्थी मोर्चा
उदारवादी-वामपन्थी विचार मंच
शैक्षिक दक्षिण एशियाई अध्ययन
पन्थ-निरपेक्ष चश्मा
वॉशिंगटन में वामपन्थी-दक्षिणपन्थी साझेदारी का उदाहरण
अमरीका स्थित शिक्षाविदों द्वारा भारत का विखण्डन
मार्था नसबॉम (Martha Nussbaum)
लीसे मैककिन (Lise McKean)
रोमिला थापर
मीरा नन्दा
विजय प्रसाद
अंगना पी. चटर्जी
पन्थ-निरपेक्ष चश्मे का इस्लामी रंग
15. संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार की सीधी संलग्नता
अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतन्त्रता अधिनियम
अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतन्त्रता पर अमरीकी आयोग
प्रारम्भिक भारतीय विरोध की उपेक्षा
2000
2001
2002
2003
2004
2005
2006
2007
2008
2009
प्यू ट्रस्ट (Pew Trust) के नये पुलिन्दे और प्रचार : ‘भारत सिर्फ ईराक से पीछे है’
अन्तर्राष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राज्य सरकार की एजेन्सी (USAID)
ओबामा और संयुक्त राज्य विदेशी ईसाई धर्मान्तरण
16. वर्तमान भारत में ब्रितानी हस्तक्षेप
क्रिश्चियन सॉलिडैरिटी वर्ल्डवाइड (Christian Solidarity Worldwide) (सी.एस.डब्ल्यू.)
दलित सॉलिडैरिटी नेटवर्क—यू.के.
इंटरनेशनल दलित सॉलिडैरिटी नेटवर्क
चर्चों से सम्बन्ध वाले भारत स्थित दलित संस्थान और व्यक्ति
ब्रिटेन में भारत विरोधी धुरी
क्रिश्चियन सॉलिडैरिटी वर्ल्डवाइड
दलित सॉलिडैरिटी नेटवर्क—यू.के.
लिसा (LISA)
ऑक्सफार्ड धार्मिक और सार्वजनिक जीवन केन्द्र (ओ.सी.आर.पी.एल.)
17. यूरोपीय महाद्वीप का हस्तक्षेप
इंटरनेशनल दलित सॉलिडैरिटी नेटवर्क (IDSN)
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के विरुद्ध वकालत
यूरोपीय यूनियन में भारत के विरुद्ध वकालत
‘भारत के विरुद्ध प्रतिबन्ध नहीं, मगर कम-से-कम ... ’
लुथेरन वर्ल्ड फेडरेशन और वर्ल्ड काउंसिल ऑफ चर्चेज द्वारा वामपन्थियों और दक्षिणपन्थियों को मिलाना
भारत में दलित असहमति से सम्बद्ध संगठन
नेशनल कैम्पेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स (एन.सी.डी.एच.आर.)
नैशनल फेडरेशन ऑफ दलित विमेन (एन.एफ.डी.डब्ल्यू.)
दलित पंचायत ± दलितशास्त्र ± दलित धर्मशास्त्र · दलितस्तान
शैक्षिक दलित अध्ययनों का नेटवर्क
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज
स्वीडिश साउथ एशियन स्टडीज नेटवर्क (एस.ए.एस.नेट.)
तमिलनाडु थियोलॉजिकल सेमिनरी
गुरुकुल लुथेरन थियोलॉजिकल कॉलेज एण्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट, चेन्नई
दलित अलगाववाद का प्रचार करने वाले व्यक्तिगत विद्वान
क्रिस्टोफी जाफ्रीलॉट (Christophe Jaffrelot)
गेल ऑमवेट (Gail Omvedt) : द्रविड़ों और दलितों को इकट्ठा करना
पराकाष्ठा
18. भारत की ईसाई उम्मत
संस्थाओं को धन देना और उन्हें बनाना
समाचार माध्यम
गुप्तचरी
संयुक्त राज्य अमरीका आधारित भारतीय ईसाइयत का विस्तार
विशाल मंगलवादी : भारत के पैट रॉबर्टसन
रवि जकारियाज इंटरनैशनल मिनिस्ट्रीज
इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चर्च मैनेजमेंट
वर्ल्ड विजन (World Vision)
गॉस्पल फॉर एशिया (Gospel for Asia)
अतिसूक्ष्म तरीके से शिक्षण
मार्क्सवादी आड़
ईसाई समाचार माध्यम
एसिस्ट न्यूज सर्विस (Assist News Service)
मिशन नेटवर्क न्यूज
क्रिश्चियन ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क
‘ईसाई दृष्टिकोण से समाचार’
गेग्राफा (Gegrapha) और भारतीय ईसाई पत्रकार
गुप्तचर सूचना एकत्रीकरण गतिविधियाँ
जोशुआ परियोजना : आत्माओं की फसल के लिए बाज़ार अनुसंधान
10/40 विण्डो (Window) और आँकड़ा भण्डार की मार्केिंटग
शैक्षिक संस्थानों का उदाहरण : बोस्टन थियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट
जमीनी सतह पर प्रभाव
कन्या कुमारी का नाम बदलकर ‘कन्नी मेरी’ करना
बार-बार होने वाले ईसाई प्रचारक उकसावे
19. सभ्यताओं के टकराव में भारत
आवरण पृष्ठ का मानचित्र
भारत से होते हुए माओवादी लाल गलियारा
नेपाल में नागालैण्ड प्रारूप और भारत का लाल गलियारा
उड़ीसा में ईसाई कॉमरेड
नेपाल में ईसाई कॉमरेड
असम : माओवादी-उल्फा-आई.एस.आई.
प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों का उपयोग
माओवादी ‘बन्दूकधारी गाँधीवादी’ और गाँधी ‘धार्मिक पाखण्डी’ हैं
उभरते हुए गठजोड़
द्रविड़िस्तान का इस्लामी हिस्सा
तमिलनाडु
ऑल इण्डिया जिहाद कमेटी (ए.आई.जे.सी.)
अल उम्मा और टी.एम.एम.के.
केरल
अब्दुल नासिर मदनी, दक्षिण भारतीय जिहाद के धर्म-पिता
मराड नरसंहार
तमिलनाडु—केरल जिहादी गठजोड़
उग्र परिवर्तनवादी इस्लाम द्वारा उदारवादी इस्लाम को आतंकित करना
मदनी की रिहाई और केरल को जिहाद की आउटसोर्सिंग
कर्नाटक
कर्नाटक में आतंक का उदय
तमिलनाडु में हाल की स्थिति
वोट बैंक राजनीति
2010 में नये घटनाक्रम
तीन सभ्यताओं के केन्द्रीय निशाने पर
चीन
अखिल-इस्लाम
अमरीकी बाज की दोहरी दृष्टि
परिशिष्ट
क. प्रजातिवाद का संक्षिप्त इतिहास नासिक तालिका से वाई-गुणसूत्र (Y-Chromosom) तक
ख. संगम साहित्य में प्राचीन तमिल धर्म
ग. अफ्रीका में समानान्तर उभार
घ. मूलवासी अमेरिकियों को टॉमस चकमा
ङ. न्यू यॉर्क कान्फ्रेंस 2005 में प्रस्तुत शोध-पत्र
च. त्याज्य पुरालेखवेत्ता का मामला
छ. विदेशी धन की निगरानी
ज. लुथेरन वर्ल्ड फेडरेशन ने बनाया भारत को निशाना
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भारत वख डन

वड़ और द लत दरारों मे ं प मी ह त प े       राजीव म हो ा अर व दन नीलक दन     अनुवादक

देवे

सं ह, ह दी यू .एस.ए. सुरेश चपलू णकर

   

मु य नरी क

जगदीश चं प त         हापरकॉ लं स प लशस इं डया

वषय-सू ची

पिरचय 1. महाश

या वख डत यु

े ?

वख डत होने क भारतीय अ त न हत वृ याँ बाहरी श याँ 2. यू रोप ारा पिरक पत जा तया ँ : एक सं हावलोकन हं सा क ओर ले जाती प मी श ा वदों क का प नक कथा यू रोप भारत ी लं का अ का 3. आय न ल का अ व कार यू रोप पर भारत के भाव का सं हावलोकन : पुनजागरण से न लवाद तक हडर का वछ दतावाद (Romanticism) काल व हे म े डे िरक लेगल े (1772-1829) लेगल े क भारत स ब धी मनगढ़ं त धारणाओं के आधार पर जमन अतीत क क पना यू रोप मे ं ‘आय’ एक न ल बनी अन ट रेनान और आय ईसा मसीह े डिरक मै स मू लर एडो फ प टेट डो फ े डिरक ाऊ (Grau) गो बनो और न ल व ान आय स ा तकार और सुजनन व ान चे बरलेन : आय-ईसाई न लवाद नाजी और उनके बाद भारतीय स यता पर दोषारोपण ी



4. सा ा यवादी बाइबल चार भारतीय मानव जा त व ान का व प नधारण मू सा का मानव जा त व ान हैम का मथक और अ

क उप नवेश नमाता

बेबल का मथक और भारत वद सं थागत त बाइबल का जा त स ा त और हैम मथक व लयम जो स ारा बाइबल के मानव जा त व ान के अनु प भारतीयों का मान च बनाना अं ज़ े भारतशा ीय सं थानों के एक सौ वष 5. लॉड िर ली ारा न ल मे ं जा त-वण का पा तरण मै स मू लर के काम को आगे बढ़ाना िर ली का न ल व ान िर ली ारा वण को ढ़ब करना अ बेडकर ारा ना सक ता लका आधािरत न लवाद का ख डन 6. ‘ वड़’ न ल का अ व कार हॉजसन का ‘तमु लयन’ आ व कार कॉ डवेल : मानवजा त व ान मे ं भाषा व ान का

पा तरण

एक ष स ब धी स ा त का ज म : ‘धू त आय ा णों ने कया भोले-भाले वड़ों का शोषण’ त मल पर पराओं का अ-भारतीयकरण त कुरल शैव स ा त त मल भ सा ह य त कुरल का ईसाईकरण कुरल क ह दू कृ त को मटाना ईसाई मत के अनुसार शैवमत क परेखा तैयार करना ाचीन कालजयी त मल सा ह य का सं शोधनवादी इ तहास ‘त मल धम’ बना ‘ ार भक भारतीय ईसाइयत’ औ

ी ं

7.

वड़ न लवाद और ीलं का सं हली-आय-बौ पहचान ीलं काई वड़ पहचान पहचानों का टकराव धमशा ीय कपोल-क पना मे ं पुराने भू गभ व ान का मलन बशप कॉ डवेल से लमुिरयन उ प का नाता थयोसॉफ —ईसाई मत- चार के ख डन के लए बौ धम ारा आय का उपयोग औप नवे शक सं रचनाओं के बीच टकराव : आय-बौ - सं हली बनाम त मल

8. ह दूधम को ‘ वड़’ ईसाइयत मे ं पचाना स त टॉमस का मथक भारतीय ईसाई व ानों ारा अ वीकार कया जाना स त टॉमस मथक का पुन जी वत होना पुरात व के सा यों का गढ़ा जाना इं टी ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज ईसाई चार और वड़ आ दोलन ईसाई चारकों क छ - व ता ार भक अ वीकृ त और अ तत: चच का अनुमोदन धोखे : पुराता वक और सा ह यक स त टॉमस के इ तहास को गढ़ना सान थोम गरजे से जुड़े पुराता वक सा य फ मों मे ं स त टॉमस ह दू धम आय-अं ज े ीष घो षत इं टी ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज शव और नटराज ‘ वड़’ घो षत क द-मु गा का समायोजन ‘पं चम वेद’ का गढ़ा जाना ो



ई ई

वड़-शैव-

ह दू लोक य सं कृ त का ईसाईकरण ह दू कला का ईसाईकरण भारतीय आ या मक नृ य का ईसाई अपमान रणनी तगत पिरवतन : ह दू नृ य का सू म ईसाई समायोजन भरत ना म के ईसाईकरण के साथ-साथ ह दू धम को धृ तापू वक अ वीकार करना लीला सैमसन वाद त मल लोक-कलाओं का ईसाईकरण 9. ‘ वड़’ ईसाइयत का चार 2000 : ‘वण- यव था के उ मू लन के लए

वड़ धम’ पर गो ी

2001 : भारत अ तरा ीय जा तवाद क जननी घो षत 2004 : ‘भारत एक वड़ ईसाई रा है, और ईसाइयों ने सं कृत बनायी’ 2005 : स त टॉमस वड़ ईसाइयत के प मे ं ह दू धम क पुनक पना पर यू यॉक स मेलन त मल सा ह य मे ं ‘ईसाई सारत व’ त मल वैवा हक रह यवाद के ईसाई मू ल 2006 :

वड़ ईसाइयत एक अ तरा ीय अ भयान बना

रा प त बुश के सलाहकार ारा भारत मे ं और आगे व तार

वड़ ईसाइयत चार

पोप ारा वषय मे ं व म पैदा करना 2007 : भारत मे ं ार भक ईसाइयत के इ तहास पर दू सरा अ तरा ीय स मेलन श बनीं प व आ मा (Holy Ghost) 2008 : त मलों के धम पर पहला अ तरा ीय स मेलन लमुिरयाई-त मल उ भव के स ा त क वापसी सं कृत, डा वन और वेदा त का दानवीकरण भारतीय कला के इ तहास का बप त मा सामा जक वषमताओं को केवल ह दुओ ं मे ं ही देखा जाना ईसाई- वड़ बनाम आधु नक पुरात व व ान ॉ



टॉमस मथक क मजबू ती का आकलन ईसाईकरण के लए अ तिरम चरण के 10. भारत के बाहर

वड़वादी शै

प मे ं

वड़ आ या मकता

णक सं थान-कायकता नेटवक

येल हावड बकले वड़ भाषा

तमान के ऑ सफोड-येल मू ल

देर से उ प स देह शै क च तन ारा भारतीय राजनी त का सं चालन : अ ादुरै सव (SARVA) पिरयोजना और पहचान क राजनी त त मल अलगाववादी स मेलन के लए शै बकले त मल पीठ

क समथन

फेटना (FeTNA) यू रोप

थत त मल अ ययन सं थान

11. भारत के ख डों पर प मी च तन सरकार धनदाता एजे सयाँ अकादमी चच समाचार मा यम भारत का सु नयो जत वख डन उ पीड़न सा ह य एक वधा के

प मे ं

भारत के वख डन का पोषण करता उ पीड़न सा ह य भारत : प मी ह त प े के लए सीमा े मानवा धकार मे ं प मी ह त प े वै क बहुसं यकों क सेवा मे ं भारतीय अ पसं यक एक उदाहरण : अ

क -द लत पिरयोजना

प मी ह त प े के लए पहचान क दरारे ं औ े ी

भारत का पुन: औप नवेशीकरण एक ‘ईसाई उ मत’ 12. अ

क -द लत आ दोलन आय/ वड़ और हुट/ु टु सी समाना तर (Hutu-Tutsi Parallels) अ

क - वड़ आ दोलन को अमरीक इ तहास ारा पिरभा षत करना

अमरीका क अ त े मु का धमशा भारत मे ं अ त े मु के धमशा का दु पयोग अ क -द लत और ह दुओ ं के न लवादी ई र प मी सरकार—चच गठजोड़ ारा अ क - वड़-द लत को भा वत करना एक न लवादी महाका य के प मे ं रामायण क या या 13. भारत : एक नवसं र णवादी मोचा1 ह दुओ ं के धमा तरण के लए बहुरा ीय नगम भारत क श

यों क पहचान धमा तरण के लए और अवरोधक के ईसाई चार के ह थयार के प मे ं वकास ईसाई चारक साम ी : पैट रॉबटसन अमरीक द

प मे ं

णप थी ईसाइयों ारा द लत आ दोलन

द लत डम नेटवक (डी.एफ.एन.) डी.एफ.एन. के राजनी तक प पोषण के उदाहरण कां चा इलाइया : ‘हम सं कृत क ह या कर देना चाहते है’ं डी.एफ.एन. क हाल क ग त व धयाँ ऑल इ डया यन काउं सल (ए.आई.सी.सी.) भारत के व ईसाई लॉ बं ग के साथ सं य ु रा य अमरीका के राजनी त ों और अ धकािरयों के स ब धों के उदाहरण द णप थी वचार मं च और नी त के पॉ लसी इं टी ू ट फ़ॉर िर लजन ए ड टेट (पी.आई.एफ.आर.ए.एस.) प ास के स मेलन भारत मे ं भाव डम हाउस ॉ

ें





यू यॉक मे ं ए शया सोसाइटी पू वा हपू ण अवधारणाओं का बनाया जाना और उ हे ं पो षत करना जं गली भारत के प मे ं गुजरात ं र (ई.पी.पी.सी.) ए थ स ऐ ड प लक पॉ लसी सेट अनेक माग 14. भारत : एक वामप थी मोचा उदारवादी-वामप थी वचार मं च शै क द ण ए शयाई अ ययन प थ- नरपे

च मा

वॉ शं गटन मे ं वामप थी-द अमरीका

णप थी साझेदारी का उदाहरण

थत श ा वदों ारा भारत का वख डन

माथा नसबॉम (Martha Nussbaum) लीसे मैक कन (Lise McKean) रो मला थापर मीरा न दा वजय साद अं गना पी. चटज प थ- नरपे 15. सं य ु

च मे का इ लामी रं ग

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अ तरा ीय धा मक वत ता अ ध नयम अ तरा ीय धा मक वत ता पर अमरीक आयोग ार भक भारतीय वरोध क उपे ा 2000 2001 2002 2003 2004 2005

2006 2007 2008 2009 यू

ट (Pew Trust) के नये पु ल दे और चार : ‘भारत सफ ईराक से पीछे है’ अ तरा ीय वकास के लए सं य ु रा य सरकार क एजे सी (USAID) ओबामा और सं य ु रा य वदेशी ईसाई धमा तरण 16. वतमान भारत मे ं

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यन सॉ लडै िरटी व डवाइड (Christian Solidarity Worldwide) (सी.एस.ड यू .) द लत सॉ लडै िरटी नेटवक—यू .के. इं टरनेशनल द लत सॉ लडै िरटी नेटवक चच से स ब ध वाले भारत टेन मे ं भारत वरोधी धुरी

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यन सॉ लडै िरटी व डवाइड द लत सॉ लडै िरटी नेटवक—यू .के. लसा (LISA) ऑ सफाड धा मक और सावज नक जीवन के

(ओ.सी.आर.पी.एल.)

े 17. यू रोपीय महा ीप का ह त प इं टरनेशनल द लत सॉ लडै िरटी नेटवक (IDSN) सं य ु रा सं घ मे ं भारत के व वकालत यू रोपीय यू नयन मे ं भारत के व वकालत ‘भारत के व

तब ध नहीं, मगर कम-से-कम ... ’ लुथरे न व ड फेडरेशन और व ड काउं सल ऑफ चचज ारा वामप थयों और द णप थयों को मलाना भारत मे ं द लत असहम त से स ब सं गठन नेशनल कै पेन फॉर द लत ू मन राइ स (एन.सी.डी.एच.आर.) नैशनल फेडरेशन ऑफ द लत वमेन (एन.एफ.डी.ड यू .) ं

द लत पं चायत + द लतशा

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क द लत अ ययनों का नेटवक इ डयन इं टी ू ट ऑफ द लत टडीज वी डश साउथ ए शयन टडीज नेटवक (एस.ए.एस.नेट.) त मलनाडु थयोलॉ जकल से मनरी गु कुल लुथरे न थयोलॉ जकल कॉलेज ए ड िरसच इं टी द लत अलगाववाद का चार करने वाले य टोफ जा

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लॉट (Christophe Jaffrelot)

गेल ऑमवेट (Gail Omvedt) :

वड़ों और द लतों को इक ा करना

पराका ा 18. भारत क ईसाई उ मत सं थाओं को धन देना और उ हे ं बनाना समाचार मा यम गु चरी सं य ु रा य अमरीका आधािरत भारतीय ईसाइयत का व तार वशाल मं गलवादी : भारत के पैट रॉबटसन र व जकािरयाज इं टरनैशनल म न ीज ं इं टरनैशनल इं टी ू ट ऑफ चच मैनज े मेट व ड वजन (World Vision) गॉ पल फॉर ए शया (Gospel for Asia) अ तसू म तरीके से श ण मा सवादी आड़ ईसाई समाचार मा यम ए स ट यू ज स वस (Assist News Service) मशन नेटवक यू ज यन ॉडका टं ग नेटवक ‘ईसाई दृ कोण से समाचार’ गे ाफा (Gegrapha) और भारतीय ईसाई प कार ी



गु चर सू चना एक ीकरण ग त व धयाँ जोशुआ पिरयोजना : आ माओं क फसल के लए बाज़ार अनुसंधान 10/40 व डो (Window) और आँकड़ा भ डार क मा कटं ग शै

क सं थानों का उदाहरण : बो टन थयोलॉ जकल इं टी

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जमीनी सतह पर भाव क या कुमारी का नाम बदलकर ‘क ी मेरी’ करना बार-बार होने वाले ईसाई चारक उकसावे 19. स यताओं के टकराव मे ं भारत आवरण पृ का मान च भारत से होते हुए माओवादी लाल ग लयारा नेपाल मे ं नागालै ड ा प और भारत का लाल ग लयारा उड़ीसा मे ं ईसाई कॉमरेड नेपाल मे ं ईसाई कॉमरेड असम : माओवादी-उ फा-आई.एस.आई. स बु जी वयों का उपयोग माओवादी ‘ब दू कधारी गाँधीवादी’ और गाँधी ‘धा मक पाख डी’ हैं उभरते हुए गठजोड़ व ड़ तान का इ लामी ह सा त मलनाडु ऑल इ डया जहाद कमेटी (ए.आई.जे.सी.) अल उ मा और टी.एम.एम.के. केरल अ दुल ना सर मदनी, द

ण भारतीय जहाद के धम- पता

मराड नरसं हार त मलनाडु—केरल जहादी गठजोड़ उ पिरवतनवादी इ लाम ारा उदारवादी इ लाम को आतं कत करना मदनी क िरहाई और केरल को जहाद क आउटसो सग कनाटक ें



कनाटक मे ं आतं क का उदय त मलनाडु मे ं हाल क थ त ं राजनी त वोट बैक 2010 मे ं नये घटना म तीन स यताओं के के ीय नशाने पर चीन अ खल-इ लाम अमरीक बाज क दोहरी दृ पिर श क. जा तवाद का सं Chromosom) तक

इ तहास ना सक ता लका से वाई-गुणसू (Y-

ख. सं गम सा ह य मे ं ाचीन त मल धम ग. अ

का मे ं समाना तर उभार

घ. मू लवासी अमेिर कयों को टॉमस चकमा ङ. यू यॉक का े ं स 2005 मे ं

तुत शोध-प

च. या य पुरालेखवे ा का मामला छ. वदेशी धन क नगरानी ज. लुथरे न व ड फेडरेशन ने बनाया भारत को नशाना अ तम ट पणी

पिरचय यह पु तक मेरे उन अनुभवों के बाद सामने आयी है ज होंने पछले दशक मे ं मेरे अ ययन और अनुस धान पर गहरा भाव डाला है। 1990 के दशक मे ं ं टन व व ालय मे ं अ क मू ल के एक अमरीक शोधाथ ने बातों-बातों मे ं मुझे बताया क वह भारत क या ा से अभी-अभी लौटा है जहाँ वह एक ‘अ क -द लत पिरयोजना’ मे ं काम कर रहा था। मुझे तब पता चला क अमरीका इस पिरयोजना को सं चा लत कर रहा है और उसे धन भी दे रहा है। यह पिरयोजना अ तर-जा त/वण स ब धों और द लत आ दोलन को अमरीका के सां कृ तक और ऐ तहा सक च मे से देख कर भारतीय सामा जक ढाँचे को उसी चौखटे मे ं मढ़ने क को शश कर रहा है। यह अ क -द लत पिरयोजना द लतों को भारत के ‘अ त े ों’ के प मे ं और गैरद लतों को भारत के ‘ त े ों’ के प मे ं च त करना चाहती है। इस तरह, अमरीक न लवाद, गुलामी और त े /अ त े स ब धों का इ तहास भारतीय समाज पर थोपा जा रहा है। हालाँ क आधु नक जा त- यव था क बुनावट और उसके अ तर-स ब धों मे ं ऐसे कई चरण रहे हैं जनमे ं द लतों के त पू वा ह रहा है, ले कन भारतीय द लतों के अनुभवों और अमरीका के अ क गुलामों के अनुभवों मे ं थोड़ी-सी भी समानता नहीं है। फर भी अमरीक अनुभव के आधार पर, अ क -द लत पिरयोजना, भारत के द लतों को ‘एक भ न ल के लोगों के हाथों पी ड़त हुए समुदाय’ के प मे ं च त करते हुए उ हे ं एक वशेष तरह से ‘सश ’ बनाने का यास कर रहा है। वैस,े मैं वयं अलग से इस बारे मे ं अ ययन और लेखन कर रहा था क ‘आय’ कौन थे, क या सं कृत और वेदों का उ भव भारत मे ं हुआ था या फर वे ‘आ मणकािरयों’ ारा भारत मे ं लाये गये थे। इस स दभ मे ं मैनं े अनेक पुराता वक, भाषा-वै ा नक और ऐ तहा सक स मेलन करवाये और पु तक लेखन पिरयोजनाएँ भी ँ ा जा सके। यह चलायीं ता क इस वाद- तवाद मे ं स य क गहराई तक पहुच सल सला मुझे औप नवे शक काल मे ं न मत वड़ पहचान के शोध तक ले गया, जसका उ ीसवीं शता दी के पू व कोई अ त व ही नहीं था और जसे आय के व एक पहचान के प मे ं गढ़ा गया था। इसका बना रहना आय के वदेशी होने और उनके कुकम के स ा त मे ं व ास पर नभर करता है। मैं अमरीक चच ारा भारत मे ं चल रही ग त व धयों को पैसे दये जाने का भी अ ययन कर रहा था, मसलन गरीब ब ों क ‘र ा’ के लए उ हे ं भोजन, कपड़े और श ा देने के बहु चािरत अ भयान। दरअसल, अपने जीवन के तीसरे दशक मे ं जब मैं अमरीका मे ं रह रहा था तब मैं द ण भारत के ऐसे ही एक बालक का ायोजक बना था। जो भी हो, भारत या ाओं के दौरान मैनं े अ सर यह अनुभव कया क जो धन ायोजकों को बताये गये उ े यों पर जमा कया जा रहा था, वह उन उ े यों पर ीं

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उतना नहीं खच कया जा रहा था जतना धमा तरण और ईसाई मत के चार जैसी ग त व धयों पर। इसके अलावा मैं अमरीका मे ं वचार-मं चों, वत व ानों, मानवा धकार गुटों और श ा वदों के साथ अनेक वाद- ववादों मे ं शा मल हुआ हू ,ँ ख़ास तौर पर भारतीय समाज के बारे मे ं उनक इस धारणा पर क यह एक ऐसा अ न कारी समाज है जसे प म को ही ‘स य’ बनाना है। मैनं े एक श दावली गढ़ी—‘‘जा त, गौ, और रसेदार सालन’’ ता क वदे शयों ारा भारत क सामा जक और आ थक सम याओं को आकषक और सनसनीखेज तरीके से च त करते हुए इनक या या ‘मानवा धकार’ स ब धी वषयों के प मे ं करने क जो को शशे ं होती है,ं उनके पीछे छपे सच को सामने लाया जा सके। मैनं े ऐसे व भ स ा तों को तपा दत करने मे ं जुटे मुख सं गठनों का पता लगाने का फैसला कया और साथ ही उन राजनी तक दबावों का भी जो इनक अगुवाई कर रहे है,ं और जो भारत पर मानवा धकार उ ं घन का अ भयोग लगाते है।ं मेरे शोध मे ं अमरीका क व ीय सहायता के ावधानों क घोषणा का उपयोग करते हुए यह पता लगाना शा मल था क यह धन कन- कन रा तों से कहाँ-कहाँ जा रहा है। साथ ही, ऐसे अ धकां श सं गठनों ारा बाँटी जाने वाली चार साम ी का अ ययन करना, तथा उनके स मेलनों, कायशालाओं और काशनों पर नगरानी रखना भी। मैनं े ऐसी ग त व धयों मे ं लगे हुए लोगों और जन सं थाओं से वे स ब थे उनक छानबीन क । इस म मे ं मैनं े जो पाया वह उन सभी भारतीयों को ख़तरे क घ टी क तरह सुनायी देगा जो हमारी रा ीय अख डता के त च तत है।ं भारत एक बड़ी कारगुज़ारी के नशाने पर है—एक ऐसे नेटवक के जसमे ं सं गठन, य वशेष और ं जो लगता है भारत के कमजोर वग के लए एक अलगाववादी चच शा मल है— पहचान, इ तहास और यहाँ तक क धम भी रचने के काम मे ं जोर-शोर से जुटे हुए है।ं खला ड़यों के इस गठजोड़ मे ं न केवल चच के व भ गुट, सरकारी सं थाएँ और स ब सं गठन, ब क गैर-सरकारी वचार-मं च और श ा वद भी शा मल है।ं बाहर से वे अलग-थलग और एक-दू सरे से अस ब लगते है,ं ले कन वा तव मे,ं जैसा क मैनं े पाया, उनक ग त व धयाँ बहुत अ छ तरह से सं यो जत हैं और अमरीका तथा यू रोप ारा उ हे ं बहुत धन भी मलता है। वे अ दर से जस सीमा तक जुड़े हुए हैं और जस तरह से वे एक-दू सरे को सहयोग करते है,ं इसे देखकर मैं बहुत भा वत हुआ। उनके ताव, दृ कोण स ब धी द तावेज और रणनी तयाँ बहुत अ छ तरह से तैयार क हुई थीं, और दबे-कुचले लोगों क मदद करने के लबास के नीचे उनके उन उ े यों का आभास होता था जो भारत क एकता और स भुता के तकूल है।ं जन समुदायों को वशेष कार से ‘सश ’ बनाया जा रहा है उनमे ं से कुछ ह दु तानी इन प मी सं गठनों मे ं उ पदों पर थे, जब क सारी ग त व धयों क ं ो औ ी ों े ो

ार भक सं क पना, उनका व पोषण और रणनी तयों का ब धन प म के लोग ही कर रहे थे। ले कन अब भारत मे ं ही ऐसे य यों और एन.जी.ओ. यानी गैरसरकारी सं गठनों क सं या लगातार बढ़ रही है जनको इन प मी सं थाओं ने अं गीकार कर लया है और जो प म से धन और सं र ण ले रहे है।ं अमरीका मे ं द ण भारतीय अ ययन के और यू रोपीय व व ालय बराबर ऐसे स य ‘कायकताओं’ और ‘आ दोलनकािरयों’ को आम त करते हैं और उ हे ं वरीयता देते है।ं ये सं गठन ही खा ल ता नयों, क मीरी आतं कवा दयों, माओवा दयों और भारत मे ं स य अ य वघटनकारी त वों को पहले आम त करते रहे थे। इस लए मुझे आशं का होने लगी क कहीं द लतों, वड़ों और भारत के अ य अ पसं यकों को एकजुट करने के ये अ भयान कसी-न- कसी प मे ं प म के कुछ देशों क वदेश नी तयों का अं ग तो नहीं बन गये है,ं अगर प प से नहीं तो कम-से-कम सँजोकर रखे गये एक वक प के प मे।ं अभी मुझे कसी दू सरे बड़े देश क जानकारी नहीं है जहाँ ऐसी याएँ, बना थानीय अ धकािरयों क नगरानी और देख-रेख के, यापक प से चलायी जा रही हों। कोई आ य नहीं क भारत मे ं उस सीमा तक धन ँ कर ऐसी अलगाववादी पहचान पू री तरह खच कया जाना है जहाँ तक पहुच आतं कवाद या राजनी तक वख डन का व प न हण कर ले तथा एक ह थयार न बन जाये। शै क हेर-फेर और उसके पिरणाम व प हं सा के बीच स ब ध ीलं का मे ं भी साफ़ दखायी देता है, जहाँ तैयार क गयी वभाजनकारी मान सकता ने एक अ य धक ख़ू नी गृह यु को ज म दया। ऐसा ही अ का मे ं हुआ जहाँ वदे शयों ारा था पत और सं चा लत पहचान के सं घष ने उसे व के अब तक के सबसे बुरे ँ ा दया। न ली जनसं हार क घटनाओं तक पहुच लगभग तीन वष पहले मैनं े अपने शोध काय और उससे स ब धत आँकड़ों के प मे ं काफ़ साम ी जुटा ली थी। अनेक भारतीय उन वघटनकारी श यों से अपिर चत हैं जो उनके देश के खलाफ़ स य है।ं मैनं े अनुभव कया क इ हे ं सल सलेवार ढं ग से तैयार करना चा हए ता क जानकािरयों का यापक सार हो सके और उन पर वचार- वमश हो। मैनं े अर व दन नीलक दन के साथ मलकर काम करना ार भ कर दया, जो त मलनाडु मे ं रहते है,ं ता क मैनं े जो वदेशी आँकड़े जुटाये ँ के साथ थे उनका वापस भारतीय इलाकों मे ं जमीनी स ाई तक नीलक दन क पहुच मलान करके एक प-रेखा तैयार क जा सके। यह पु तक वड़ आ दोलन और द लत पहचान, दोनों के ऐ तहा सक उ भवों पर काश डालती है, और साथ ही उन वतमान खला ड़यों पर भी, जो इन अलगाववादी पहचानों को एक वशेष व प देने मे ं लगे है।ं इसमे ं उन य यों और सं थानों का व लेषण भी शा मल है जो ऐसी ग त व धयों मे ं लगे हैं और उनके रे णाोतों, कारगुजािरयों और वां छत उ े यों पर भी। जहाँ एक ओर अमरीका और ं ो ी े ऐ े ो औ ं ें ैं ीं ी ओ ें ी

यू रोपीय महासं घ, अनेक ऐसे लोग और सं गठन मे ं है,ं वहीं दू सरी ओर भारत मे ं भी इनक सं या लगातार बढ़ रही है। ऐसे भारतीय सं गठन आम तौर पर इन वदेशी य यों और सं गठनों क थानीय शाखाओं क तरह काम करते है।ं इस पु तक का उ े य सनसनी पैदा करना नहीं है और न ही कसी भी तरह के पिरणाम क भ व यवाणी करना; ब क इसका उ े य भारत और उसके भ व य के बारे मे ं वचार- वमश को और व तार देना है। आ थक दृ कोण से भारत के उ भव और वकास पर बहुत कुछ लखा गया है और भारत के समू चे दबदबे पर, उसके भाव पर भी। ले कन तेजी से फैलायी जा रही जन वदेशी योजनाओं का उ घाटन इस पु तक मे ं कया गया है, और जस तरह से भारत क दुखती रगों और अनपटी दरारों पर दबाव डाला जा रहा है, उससे या- या गड़ब ड़याँ हो सकती है,ं इस बात पर काफ़ कुछ नहीं लखा गया है। मुझे आशा है क यह पु तक इस कमी को बहुत हद तक दू र कर सकेगी। राजीव म हो ा ं टन, सं य ु रा य अमरीका जनवरी 2011

1 या वख डत यु

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स यता हमे ं एक साझ पहचान देती है, जो जन समुदाय के प मे ं हमारी छ व, इ तहास के एक समे कत दृ कोण, और एक साझ नय त को मलाकर बनती है। यह एक न त समझ देती है क ‘हम’ कौन है,ं और हमारे बीच एक गहरा मान सक स ब ध सु न त करने के साथ यह भाव भी उपजाती है क यह देश र ा करने यो य है। बना इस गहरे स ब ध के ऐसे न उप थत ही नहीं होते क कौन है यह ‘हम’ ं कसी स यता को जसक र ा क जानी है, और ब लदान कस लए करने है? वख डत करना य के मे द ड को तोड़ने के समान है। एक वख डत स यता बखर कर टुकड़े -टुकड़े हो सकती है, और जन े ों को वख डत कया गया है वे ं एक स पू ण े अ धकार-भरे पा तरण के मा यम से दु रा यों मे ं बदल सकते है— को वराट हं सा और उप व से त वनाशकारी थ तयों मे ं डालते हुए। या भारतीय स यता का मे द ड ऐसे ही वख डन का शकार हो सकता है? ं वे बाहरी और वे कौन-सी श याँ है,ं अगर है,ं जो ऐसा करने का यास कर रही है? ं उनका हैं या आ तिरक, या दोनों? उनका ोत कहाँ है? वे कैसे वक सत होती है? ब धन कैसे होता है? यह पु तक ऐसे ही नों पर वचार करती है, वशेषकर वड़ और द लत पहचान के स दभ मे,ं और इनका लाभ उठाने मे ं लगे प म के देशों क भू मका के बारे मे।ं ँ आ थक वृ , कॉरपोरेट और ढाँचागत भारत क के ा भसारी श या— वकास और उ त रा ीय लोकता क शासन यव था—रा को एकजुट करती है।ं इन सकारा मक श यों पर बहुत कुछ लखा जा रहा है। अपके ीय यानी बखराव पैदा करने वाली श यों पर कम ही वचार कया जाता है और कभी-कभार ही इनका अ ययन होता है, आ तिरक और बाहरी दोनों मामलों मे।ं आ तिरक श यों मे ं सा दा यकता और व भ कार क सामा जक-आ थक वषमताएँ शा मल है।ं बाहरी श याँ जो भारतीयों मे ं वभाजन पैदा करती है,ं अ धक ज टल है,ं और वे भारत क आ तिरक दरारों से जुड़ गयी है।ं इससे पता चलता है क कस तरह व भ वै क गठजोड़ अपनी-अपनी कायसू चयों के साथ अब इन आ तिरक श यों को अभू तपू व मा ा मे ं नय त कर रहे है।ं फर भी यह पु तक कसी महा वनाश के पिरदृ य के आ धमकने का शोर नहीं मचा रही, ब क इस समय रा जस वप का सामना कर रहा है, उसका एक मौ लक व लेषण तुत करती है। सफ़ पा क तान ही भारत मे ं व वं सकारी श यों को नहीं उकसा रहा, न चीन जो भारतीय माओवा दयों से जुड़ा है, और न ही यू रोप और उ र-अमरीका के ईसाई सं थान जो अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे है।ं यह सं कट इन सबक मली-जुली श े



















से भी अ धक है। बखराव पैदा करने वाली ये श याँ गहराई तक, सू मता से, ज टल ढं ग से, एक-दू सरे से जुड़ी हुई है,ं और सू म तथा गु प से जुड़े रहने वाले बहुरा ीय नेटवक क तरह अपने काय को सं चा लत कर रही है।ं जस गठजोड़ का उ घाटन यह पु तक करती है, वह स भव है, हं सा और अराजकता क उन छ वयों से बहुत दू र जान पड़े , ज हे ं बहुधा ‘अलगाववाद’, ‘उ वाद’ और ‘ व ोह’ क धारणाएँ सामने ला खड़ा करती है।ं फर भी, यह था पत करती है क प म के कुछ शै क के इ हे ं नय त करते है,ं या कम-से-कम भारत के सामा जक-आ थक च तन पर गहरा भाव डालते है।ं ये राजनी तक वचारमं चों, चच और सामा जक सं गठनों से मले हुए हैं जो भारत मे ं बखराववादी श यों को सं साधन उपल ध कराते है।ं वे नयी दरारों को ज म देते हैं और पुरानी दरारों का पोषण करते है।ं आ यजनक यह है क भारत क एकता के प मे ं जवाबी- वमश बहुत कम होता है।

भारत मे ं वख डन क अ त न हत वृ या ँ जहाँ एक ओर सभी सम याओं के लए बाहरी श यों पर दोषारोपण आकषक है, वहीं हमे ं भारत क अपनी कमजोिरयों और वख डत होने क शता दयों पुरानी वृ यों का सामना अव य करना होगा। परेशानी मे ं डालने वाले इस प पर उन लोगों ने पया यान नहीं दया है जो हाल क जीव त अथ यव था क सफलता का ं आन द उठा रहे है।ं कुछ कठोर वा त वकताएँ इस कार है—  भारत मे ं गरीब नागिरकों क सं या व मे ं सवा धक है। व ालय नहीं जाने वाले ब ों क सं या भी सवा धक है। सुदूर े ों मे ं जीवन बनाये रखने के लए आव यक जल का ग भीर सं कट बना हुआ है और इसक कमी लगातार बढ़ती जा रही है। अनेकानेक मानव समू हों के बीच देश भर मे ं झड़पे ं होती रहती है।ं ं आं शक प से ऐ तहा सक और आं शक  सामा जक वषमताएँ भी मौजू द है— प से आधु नक। इनमे ं से कुछ भारतीय समाज के अ दर से उपजी हैं जब क दू सरी वषमताएँ वदेशी असर के तहत पैदा क और पोसी जा रही हैं ता क वे भारत मे ं बहुत कुछ कर पाने क श ा कर सकें।  आ थक सफलता का लाभ पया प से छन कर सबसे नचले तर तक नहीं आ पाया है, जहाँ इसक सबसे यादा और फौरन ज रत है। जहाँ एक ओर भारतीय जन-समुदाय ारा दये जा रहे धन पर चल रहे तकनीक श ा सं थानों मे ं श त लाखों भारतीय तकनीक श ा का लाभ उठा रहे है,ं वहीं इससे बड़ी सं या को बु नयादी श ा भी नहीं मल पायी है। म यवग, जो आधु नक और अमरीक बनने क आकां ा रखते है,ं मोटरकार उ ोग मे ं नये ीं



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उछाल क डींग हाँक रहे है,ं फर भी कृ ष और जल सं साधनों मे ं बहुत कम ँ ी लगायी जा रही है। भारत क सावज नक वा य णाली अ य त पू ज दुखदायी थ त मे ं है।1  अलगाववादी अ भयानों ने क मीर, पू व र भारत के कुछ े ों और गाँवों मे ं माओवादी आतं कवाद से पी ड़त अनेक भारतीय रा यों मे ं दैन दन जन-जीवन को सं कट मे ं डाल दया है। बीच-बीच मे ं भारत के व भ भागों मे ं इ लामी आतं क हमले भी हो रहे है,ं और ह दू -मु लम दं गे भी भड़कते रहे है।ं स पू ण द ण भारत मे ं वड़ों और द लतों ारा चलाये जा रहे अलगाववादी अ भयान भी हं सा को ज म देते है,ं और ये ही इस पु तक के वषय है।ं  साइबर पेस भी, जसे एक भारतीय शरण थली के प मे ं देखा गया था, अब भारत क कमजोरी बन गयी है। साइबर जासू सी पर हाल के एक बहु चािरत अ ययन मे ं भारत को एक ‘सवा धक पी ड़त रा य’ बताया गया जसके सं वद े नशील र ा नेटवक और देश- वदेश मे ं उसके दू तावासों के सू चना त ों ं ों ने बहुत सीमा तक अपने भाव े मे ं ले रखा है।2 को चीन के गु चर एजेट इस तरह चीन के गु चरों ारा ा मह वपू ण सू चनाएँ माओवादी उ वा दयों ँ ाई जा सकती हैं जो ख नज स पदा स प भारत के दय थल मे ं तक पहुच जोर पकड़ रहे है,ं जहाँ रा यों क उदासीनता, वदेशी ह त प े और माओ आतं कवाद का दु भारत को लहू लुहान कर रहा है।  भारत अ थर और अ तवादी रा ों से घरा हुआ है, जनमे ं वे रा शा मल हैं जो वफल रा य बनते जा रहे है;ं सीमा-पार से भारत मे ं हं सा आया तत हो रही है जो मह वपू ण आ थक और सै नक सं साधनों को फँ साये रखती है।3 लोकत के भारतीय अनुभव ने बहुत बड़ी सं या मे ं राजनी तक पा टयों को ं ों और सामा जक ताने-बाने के वरों ज म दया है, जसक वजह से वोट बैक मे ं बखराव पैदा हुआ है। इसके साथ अवसरवा दता और अदू रद शता पनपी है जसका नतीजा है दीघकालीन नी तयों के े मे ं समझौते करने क वृ और ढुलमुल नी तयाँ। समझ नहीं आता क भारत मे ं ज रत से यादा लोकत है, या कहा जाय, शासन क कमी।  इसके बावजू द भारत का जीवट भी उ ख े नीय है। उदाहरण के लए : जहाँ अमरीका आतं कवाद से अपने वतन क र ा के लए अपनी फौजी ताकत बहुत बढ़ा चुका है, भारत ने उस सीमा तक ऐसा नहीं कया है, इसके बावजू द क आतं कवा दयों ने कम समय के अ तराल मे ं यहाँ अ धक हमले कये है।ं ‘भारत क कलेब दी’ जैसी कोई धारणा नहीं है। वष 2008 मे ं मु बई के आतं क हमले मे ं 166 लोगों के मारे जाने के कुछ ही दनों बाद न े े ं चलनी शु हो गयीं, दुकाने ं फर से खुल गयीं, और जन-जीवन सामा य हो गया। ी



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  व क दू सरी सवा धक मु लम आबादी भारत मे ं ही है, और इन मुसलमानों क बहुत बड़ी तादाद क जड़े ं थानीय सं कृ त मे ं गहरे जमी हुई है,ं और वे अपने पड़ोसी ह दुओ ं के साथ भारतीय समाज मे ं घुले मले है।ं अब तक इ होंने अ तरा ीय अ खल इ लामी काय मों मे ं शा मल कये जाने के यासों का वरोध कया है, और इस तरह भारतीय मुसलमान दु नया भर के मुसलमानों के लए एक आदश उप थत करते हुए उ हे ं अ य धम के अनुया ययों के साथ सां कृ तक सम वय और सामं ज यपू ण सह-अ त व कायम करने क रे णा देते है।ं  नुकसान के बाद फर से उठ खड़े होने क जो मता भारत मे ं है, वह आं शक प से इसक स यता क ताल-मेल और सामं ज य बैठाने क श और लचीलेपन पर आधािरत है, साथ ही उन क ठन नी तगत फ़ैसलों पर भी जो इसके नेताओं ने 1947 मे ं अं ज़ े ी राज से मु के बाद अपनाये और लागू कये है।ं भारत के ‘आर ण’ नामक सकारा मक कदमों ने, ज हे ं सरकार दर सरकार पछले साठ बरसों से लागू कया गया है, दिर द लतों और अ य पछड़े लोगों क दुदशा मे ं बहुत सुधार कया है। ले कन सम या क वकटता को देखते हुए यह बहुत कम और बहुत देर से है। अनेक यो य भारतीय गैरसरकारी सं गठनों (एन.जी.ओ.) ने सरकार ारा छोड़े गये इस िर थान को भरा है और सफलतापू वक सहायता दान क है।

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भारत के आ तिरक दशन का मू यां कन इस आधार पर ही करना चा हए क यह ँ ाता है, और इस समय कस कार अपने सवा धक वप नागिरकों को लाभ पहुच यह न य ही कठोर आलोचना के यो य है। फर भी अगर अ य बाहरी श यों से नपटने क मता को बहुत कम कर दया गया तो इसके नतीजे के तौर पर हमलों, फर से उप नवेशीकरण, सां कृ तक और मनोवै ा नक सा ा यवाद और ऐसे ही दू सरे ह त प े ों के लए जमीन तैयार हो सकती है, उ हे ं योता मल सकता है। भारत के इ तहास मे ं ऐसा अनेक बार हुआ है; उदाहरण के लए, जब टश सरकार ने अनेक भारतीय शासकों के व कारवाई करने के लए मानवा धकार के मामलों को बहाना बनाया। वड बना है क अं ज़ े ों ने वयं भयं कर अ याचार कये, साथ ही उनको यायपू ण सा बत करने के लए ऐसा सा ह य लखा और लखवाया, ज हे ं नृशंस सा ह य4 (atrocity literature) के नाम से जाना जाता है, ता क भारतीयों क क थत अमानवीयता का च ण कया जा सके। उ होंने दावा कया क उनके अपने काय इस ढं ग से सु नयो जत हैं क भारतीयों को ‘स य’ बनाया जा सके। उदाहरण के लए : ें



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  1871 मे ं भारतीय आपरा धक जनजा त अ ध नयम पािरत कया गया और उसक सू ची मे ं शा मल उन भारतीय जनजा तयों के जनसं हार को वैध कर दया गया ज हे ं ‘आपरा धक’ यानी जरायमपेशा माना जाता था; इनमे ं उन जनजा तयों के सभी सद य ज म ही से शा मल थे। अनेक जनजा तयों को दोषी करार दया गया, इस लए नहीं क वे ‘अपराधी’ थे (अगर कसी समू चे समुदाय को जरायमपेशा ठहराना स भव हो), ब क इस लए क वे टशों ारा उनके जं गलों और अ य नवास थलों को तहस-नहस कये जाने के व सं घषरत थे। ठग (बटमार) ऐसे ही समुदायों मे ं से एक था जो नृशंस सा ह य के मा यम से इतना बदनाम हुआ क उनका नाम अं ज़ े ी भाषा मे ं अपरा धयों के पयायवाची के प मे ं शा मल हो गया।  नृशंस सा ह य ने म हलाओं के अ धकार को कम करने मे ं भी अपनी भू मका नभायी। वीणा ओ डे नबग क अ य त भावशाली पु तक, डाउरी मडर, व तार से बताती है क कस तरह अं ज़ े ों ने भारतीयों को म हला उ पीड़न के मामलों को सामने लाने के लए ो सा हत कया ता क उनके आधार पर भारत क देशी सं कृ त पर दोष मढ़ा जा सके।5 उ होंने सु नयो जत तरीके से इन क सों को सं क लत कया, जनमे ं से अ धकां श अ मा णत, अ तरं जत और इकतरफ़ा थे। यह ऐसे कानू नों को लागू करने का आधार बना ज होंने आम नागिरकों के अ धकारों मे ं कटौती क । यह पु तक दखाती है क कस कार दहेज क माँग, जो आज के म यवग य भारतीयों मे ं इतनी आम हो गयी है, वा तव मे ं तब शु हुई जब स प मे ं म हलाओं के पार पिरक अ धकार टश राज ने ज टल तक के मा यम से छ न लए।   नकोलस ड स उन बहुत-से व ानों मे ं से एक हैं ज होंने यह दखाया क कस तरह टश राज ने नृशंस सा ह य का उपयोग व भ जा तयों के बीच सं घष को बढ़ावा देने के लए कया ता क वे ह त प े कर उनक सम याएँ ‘सुलझा’ सकें। इससे टश राज को और अ धक श ा करने तथा 6 भारतीय स पदा को दुहने मे ं सहायता मली।   मकों के उ पीड़न के दावों का उपयोग व भ भारतीय उ ोगों को तब धत करने के लए कया गया, जनमे ं कपड़ा और इ पात उ ोग भी शा मल है,ं और जनमे ं भारत ने टेन पर बढ़त हा सल कर ली थी। इस बीच भारत को एक ब धक बाज़ार के प मे ं इनक आपू त करने के लए टश राज ने अपनी ही औ ो गक ा त शु क और भारतीयों को व तर के उ पादकों और नयातकों क पाँत से हटाकर आयातक और कंगाल बना दया। टश लेखक व लयम ड बी के अनुसार 1757 और 1812 के बीच भारत से टेन क तरफ़ मुनाफ़े का बहाव को 5000 लाख से एक अरब पौंड के बीच आँका गया था।7 आज इस रा श क य मता एक खरब डॉलर से ो ी ी ी औ ें े े

अ धक मू य क होगी। अथशा ी अ मय बागची ारा और हाल मे ं कये गये एक अ ययन ने था पत कर दया है क टश राज ने भारत पर इतना बोझ लाद दया था और ऐसी यव था कर दी थी क भारत से टेन क ओर बहने वाली रा श ‘वतमान भारतीय सकल घरेलू उ पाद’ (1984) के लगभग पाँचछह8 तशत के बराबर होगी। भारतीय उ ोगप तयों ारा, जो उनके त पध थे, मकों के क थत उ पीड़न क घटनाओं के द तावेज बनाने का मसा य काम करने मे ं वे बड़े सावधान थे, और उ होंने बाद मे ं मकों के अ धकारों का उ ं घन करने के आरोप मे ं अनेक भारतीय उ ोगों को तब धत कर दया। उसके पिरणाम व प जो यापक नधनता और बेरोजगारी आयी, उसने मकों को और अ धक दुदशा त ही बनाया। लगभग एक शता दी से पू व लखी गयी ऐ तहा सक पु तका, ह द वराज, मे ं महा मा गाँधी ने चचा क है क कस कार टश सा ा य मे ं काम कर रहे भारतीय अजाने ही उसे बनाए रखने मे ं सहायक थे। वे लोग वयं को देशभ भारतीय मानते थे यों क वे जनक सेवा मे ं थे उन अं ज़ े ों के यापक पिरदृ य और उ े यों से अन भ थे। उप नवे शत भारतीयों के बारे मे ं गाँधी के इन व यात न कष के लखे जाने के सौ साल बाद भी हमे ं आ म- नरी ण करने क आव यकता है क—   या अपने पू ववत टश शासकों क तुलना मे ं आज का प मी जगत हमारे भारतीय सपा हयों का पोषण करने और उ हे ं तैनात करने के मामले मे ं और अ धक पिर कृत हो गया है। वह भारतीय बु जी वयों को व भ तरों पर अपने साथ शा मल कर लेता है— नचले तर पर आँकड़े इक ा करने वालों से लेकर गैरसरकारी सं गठनों के दबे- छपे कोनों मे ं स द ध पहचान बनाने वाले पहचान-इं जी न यं रग काय मों तक, और भारत मे ं बीच के तर के व ानों से लेकर भारतीय आइवी लीग ोफेसरों और दु नया भर मे ं घू मने- फरने वाले पुर कृत वशेष ों तक।  प मी ईसाई सं थानों के साथ हमारे समाज और सरकार के या स ब ध है।ं   राजनी तक वरो धयों को चुन-चुन कर नशाना बनाने और नीचे लाने मे ं मानवा धकार उ ोग क या भू मका है जो लगभग ग ारों और घुसपै ठयों जैसी जान पड़ती है।   अ णी नजी फाउ डे शन जैसे क—फोड फाउ डे शन, कानगी फाउ डे शन, रॉकफेलर फाउ डे शन, यू स फाउ डे शन, यू ट, टे पलटन फाउ डे शन, आ द— कस तरह अमरीक सरकार और अरबप तयों के मा यम बनकर उनक सेवा करते हैं ता क उस उ े य को हा सल करने मे ं योगदान कर सकें जसे अनेक अमरी कयों ने कट अमरीक नय त क तरह देखे है।ं ी ै











यह पु तक दशाती है क भारतीय बखराववादी श याँ न केवल अ तरा ीय भावशाली श यों से जुड़ गयी है,ं ब क अ धक-से-अ धक तालमेल के लए एक रणनी त के तहत आपस मे ं भी जुड़ी है।ं ऐसी थ त मे ं ‘अ पसं यक’ क समु चत पिरभाषा या हो जब ऐसा समू ह आज वै क बहुसं यकों के साथ अ भ अं ग क तरह काय कर रहा हो? वशेष प से, यह पु तक पछले दो सौ वष से अ धक समय से वड़ और द लत पहचानों के सृजन के सच का, और उसमे ं प मी गठजोड़ ारा नभायी गयी भू मका का भी पदाफाश करती है।

2 यू रोप ारा पिरक पत न ले ं : एक सं हावलोकन हं सा क ओर ले जाती प मी श ा वदों क का प नक कथा पछली पाँच शता दयों मे ं यू रोपीय रा ों ने ए शया, अ का और अमरीका के अनेक े ों को अपना उप नवेश बनाया। इन प मी श यों ने जन स यताओं को अपना उप नवेश बनाया उन पर तरह-तरह से एक यू रोके त वै क दृ कोण थोपा। उप नवेशीकरण को सही ठहराने के लए थानीय स यताओं के इ तहास का, और उसके साथ-साथ व के एक ऐ तहा सक वृ ा त का सृजन कया। हालाँ क उनमे ं से अनेक पू वा हों क पोल खोल दी गयी है, श ा और सामा जक-आ थक वमश मे ं उनका आज भी बहुत भाव है। अगले कई अ यायों मे ं हम उन श यों पर दृ ं े ज होंने ये औप नवे शक मनगढ़ं त कहा नयाँ गढ़ीं और इनके लगातार बने रहने डालेग ं ।े च 2.1 के आलोक मे ं यहाँ उन घटकों मे ं से हरेक का के कारणों क जाँच करेग सं ववरण दया गया है।

यू रोप अ ारहवीं शता दी मे,ं जब यू रोप के पार पिरक धा मक कले पर ानोदय का ख़तरा म डराने लगा तब यू रोपीय लोग अपने व णम अतीत क खोज करने लगे। बहुतों को आशा थी क वे इसे भारत मे ं पा सकते है,ं जो शता दयों से यू रोप के आयात का एक बड़ा ोत रहा था। पहचान क इस खोज मे ं उ होंने भारतीय थों के वकृत अ ययन के मा यम से एक आदश के प मे ं ‘आय न ल’ क धारणा बनायी और उसका सृजन शु कर दया। वषा जमन रा वाद, यहू दी- वरोध और न ल स ब धी व ान ारा पो षत इस तकड़म ने अ तत: नाजीवाद के उदय और यहू दयों के जनसं हार का रा ता खोल दया।

भारत अ ारहवीं शता दी के उ रा मे ं भारत वद मै स मू लर ने आय को एक भा षक को ट मे ं रखने का ताव रखा, ले कन औप नवे शक शासकों ारा, ज होंने न ली व ान का उपयोग पार पिरक भारतीय समुदायों के वग कृत वभाजन के लए कया था, इसे शी ही आय न ल मे ं बदल दया। जन जा तयों को ‘अनाय’ घो षत कया गया उनको या तो हा शये पर धकेल दया गया या फर ह दू समाज क खानेब दयों से बाहर रखा गया। इसके समाना तर, द ण भारत मे ं स य ईसाई मत चारकों ने वड़ न ल क पहचान खड़ी क । उ होंने त मल सं कृ त को इसके अ खल भारतीय ं



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सां कृ तक ताने-बाने से अलग कर दया, और दावा कया क इसक आ या मकता उ र भारतीय आय सं कृ त क तुलना मे ं ईसाइयत के अ धक नकट है।

 

ीलं का ीलं का मे ं थयोसॉ फकल सोसाइटी (Theosophical Society) ारा ो सा हत बौ पुन थान ने भी आय न ल के स ा त क पिरक पना को व तार दया। बशप रॉबट कॉ डवेल (Robert Caldwell) और मै स मू लर (Max Muller) ने त मलों को वड़ के प मे ं और सं ह लयों को आय के प मे ं ण े ीब कया। औप नवे शक शासकों ने इस वभाजन को ो सा हत कया। धीरे-धीरे अनेक द ण भारतीयों ने, ज होंने वड़ पहचान को वीकार कर लया था, इस वभाजन को आ मसात कर लया और फर तथाक थत आय के त व ेष से भर गये। इसके पिरणाम व प वनाशकारी न ली गृह यु शु हुआ जो ीलं का मे ं कई दशकों तक चलता रहा।



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गुलामों के यापािरयों और मा लकों ने गुलामी को सही ठहराने के लए बाइबल क है म टक पुराकथा का उपयोग कया, जसमे ं नू ह के पु हैम के वं शजों को शाप दया गया था। है म टक भाषायी समू हों क पहचान क गयी और उ हे ं अ य अ कयों से अलग कर दया गया। अ क स यता के योगदान क या या इस प मे ं क गयी क गोरों क एक का प नक न ल ने अ का पर हमला करके उसे स य बनाया था। पार पिरक अ क समुदायों को न लों के प मे ं वग कृत करने क प मी करतू त े









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ने कटु और हं सक सं घष को ज म दया, जनमे ं जनसं हार भी शा मल है,ं जैसा क रवा डा मे ं हो रहा है। अगले छह अ यायों मे ं हम व तार से देखग े ं े क दो शता दयों से भी कम समय मे ं वतमान वड़ पहचान कस तरह उभर कर सामने आयी है।

3 आय न ल का अ व कार सं कृत क ‘खोज’ का ऐलान करते हुए सर व लयम जो स ने सन 1799 मे ं अपने यू रोपीय सहचरों को लखा : सं कृत भाषा...क वा य सं रचना अ भुत है; यू नानी से अ धक सटीक, लै टन से अ धक बपुल, और पिर कार मे ं दोनों से अ धक सू म, फर भी दोनों से इसक इतनी गहरी समानता है... जतनी सं योग मा से स भव नहीं हो सकती।1 यह कथन भारत के त ठे ठ आदशवादी और मानी दृ कोण को व नत करता है, जो लगभग पू री अ ारहवीं सदी और उ ीसवीं सदी के शु आती बरसों के यू रोप मे ं या था। यह अ याय प करता है क कस तरह भारतीय साम ी क प मी या या और उसके साथ कये गये सलू क ने सं कृत के अ ययन को एक वशेष व प दया, और उससे मथ कर ‘आय’ जा त क न ली सं रचना को नकाला, जो वयं प मी चेतना मे ं नाटक य पा तरणों से होकर गुजरने वाली थी। आने वाले अ यायों मे ं हम देखग े ं े क कस तरह इन औप नवे शक पिरक पनाओं ने उप नवे शत रा ों पर प मी दबदबे को सही ठहराया और उसे बल दया। उस वरासत का वशेष मह व है जसके तहत वे आज भी भू तपू व उप नवे शत रा ों मे ं चल रहे जातीय सं घष और जनसं हारी यु ों के मा यम से भारी क मत वसू ल रहे है।ं यह जाँच इन पिरक पनाओं को वयं ‘पू व’ के व तु न शै णक अ ययन के नतीजों के प मे ं नहीं, ब क यू रोप क ज रतों और राजनी त के सल सलेवार ह ता तरण के प मे ं देखती है। अगला अ याय इन मनगढ़ं त बातों पर व तार से बतायेगा और यू रोपीय व ानों के बीच उनके उपयोग का पता लगायेगा। उसके बाद ं े क कस तरह आज भी ये पुराने और के अ याय इस बात क खोज-बीन करेग अ धकां शत: व सनीयता खो चुके वचार आधु नक भारत पर अपना असर डाल रहे है।ं च 3.1 ‘भारत का अ ययन’ तुत करता है जैसा क वह यू रोपीय मानी और औप नवे शक भारत वदों से भा वत रहा। भारत से जुड़े यू रोपीय बौ क इ तहास के न न चरणों को इसमे ं शा मल कया गया है और यह भी क कस तरह इन अवधारणाओं ने यू रोपीय े ता को आकार दया :   मानी सोच वाले यू रोपीय को यहू दी-ईसाई एके रवाद के कठोर ढाँचे से बच नकलने के लए, जो पहले से ही आधु नक काल क नयी चुनौ तयों क वहज से सं कट मे ं था, एक ऐ तहा सक आधार क आव यकता थी। एक ऐसी आ या मकता क बहुत गमा-गरम खोज क जा रही थी जो उनके इ तहास के अनुकूल बैठायी जा सके, ता क वे अपने ही अतीत मे ं अपनी मानी ओं

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ँ सकें। भारत क खोज क गयी, और शी ही यह उनके अवधारणाओं को ढू ढ अपने व णम ोत क इस खोज का मुख वाहन बन गया।   भारत वदों ने इस तरह से ाचीन भारत का ऐ तहासीकरण कया क उससे औप नवे शक आव यकताओं के साथ-साथ यू रोप मे ं उभर रहे रा ों क आव यकताएँ भी पू री हु । उ होंने इस अवधारणा को रचा क आय ने ही समू ची मानवता को स य बनाया था। आदश के प मे ं तुत कये गये आय ँ नकाली गयी। यू रोपीय आय को मे ं एक म हमाम डत यू रोपीय वं शावली ढू ढ एक न ली तौर पर यादा शु और आ या मक प से े ईसाइयत से अ भम डत देखा गया, जब क उ र भारतीय आय को न न तरीय भारतवा सयों के साथ यू रोपीय आय के सं सग के पिरणाम व प म त न ल के प मे,ं जसका नतीजा हुआ—मू तपू जा, बहुई रवाद और न ली मलावट।   उसके बाद यापक आय ण े ी मे ं से एक े आय जा त का सृजन कया गया, मु य प से जमनी के रा वादी च तकों ारा। इन मनगढ़ं त बातों को व सनीयता दान करने के लए नवजात न ल स ब धी व ान का आवाहन कया गया। यू रोपीय यहू दी वरोधी अ भयान ने यू रोपीयों को यहू दयों से अलग करने के लए इस आय पिरक पना का उपयोग कया। फर यू रोप मे ं ‘आय ईसा मसीह’ क अवधारणा लोक य हो गयी। जमनी मे ं े आय जा त के स ा त ने जो रा वादी गव क भावना पैदा क , उसने नाजीवाद के उदय और यहू दयों के जनसं हार मे ं एक मह वपू ण भू मका नभायी। तीय व यु के बाद यू रोपीय शै णक और सामा जक सं थानों ने यू रोपीय जनमानस से आय जा त के स ा त को झाड़-फूँक कर बाहर नकालने का बहुत यास कया, ले कन वे अब भी भारत के अ ययन के लए उ हीं पिरक पनाओं को लागू कये हुए है।ं यह अ याय इस बात क खोज करता है क आय जा त के स ा त को गहरी जड़े ं जमाये यू रोपीय ज़ रतों ने कस तरह एक व प दान कया, और यह अ तत: ं े क कस तरह यू रोप मे ं आपदा लायी। बाद के अ याय इस बात क खोज करेग उप नवे शत समाजों पर इन न ली ढ़यों का आज भी या भाव पड़ रहा है।

यू रोप पर भारत के भाव का सं हावलोकन : पुनजागरण से न लवाद तक रेम ड वैब क मौ लक पु तक, ‘ ा पुनजागरण’ (The Oriental Renaissance, 1984), उन अनेक मह वपू ण ए शयाई भावों क चचा करती है ज होंने पुनजागरण और ानोदय काल मे ं यू रोप को भा वत कया, वह काल जो अ ारहवीं शता दी के उप नवेशवाद के ठ क पहले आया और कुछ समय तक उसके साथ-साथ चला। वैब प करते हैं क स हवीं सदी के उ रा मे ं जरथु वाद (Zoroastrianism) े









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क मू ल पु तक—जे द अवे ता—और भगव गीता के अनुवाद आये और यापक प से सािरत हुए। इ होंने ‘बाइबल और ाचीन पर परा डयानी यू नानी-रोमन पर परा से बलकुल अलग एक ए शयाई मू ल पाठ का पहला दृ कोण दान कया’। 2 1765 मे ं जॉन हॉलवेल क पु तक, ‘बं गाल से स ब धत दलच प ऐ तहा सक घटनाएँ’ (Interesting Historical Events Relating to Bengal)3 के काशन के साथ ही श ा वदों मे ं भारत लोक य हो गया। आ या म व ा स ब धी चचाओं मे ं ईसाई शा यों के बीच ह दू धम मह वपू ण तक का ोत बना। व लयम जो स ारा अनू दत और 1789 मे ं का शत का लदास के नाटक शकु तला का फर 1791 मे ं जमन मे ं अनुवाद हुआ, और उसने हडर, गोएटे, और शलर जैसे मह वपू ण बु जी वयों को भा वत कया।

  Fig 3.1 यू रोपीय पहचान क राजनी त के लए आय जा त के स ा त का सृजन और इसके पिरणाम यू रोपीय न लवाद के उ भव के दो चरण थे, दोनों एक ही कार के कारकों ारा सं चा लत थे : पहला, जमन रा ीय अ मता का उ भव और वकास जो अ य ो ी

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नवजात यू रोपीय जातीय और रा ीय पहचानों के साथ होड़ बद रहा था; और दू सरा यू रोपीय उप नवेशवाद, वशेषकर टश, जो मशनरी उ े यों और काय मों के आवरण मे ं था। पहला चरण उ ीसवीं शता दी के म य तक रहा। यू रोपीय व ानों पर यू रोपीय सं कृ त के लए एक भाषायी मू ल के नमाण मे ं सं कृत का उपयोग करने का भू त सवार था। अ ययन के एक नये वभाग, भाषा- व ान, का ज म हुआ, और इसके शु होने का य े मू लत: सं कृत के अ ययन को जाता है। मानव उ प क यू रोपीय खोज को इसने बहुत ग त दी।4 भाषा व ान के आधार पर अपने पुरखों क नयी खोज को लेकर व भ देशों के यू रोपीय जनों मे ं झगड़े हुए, ज होंने अपने पू वजों का नामकरण आय, इ डो-जमन, इ डो-यू रो पयन, और कॉके शयन जैसे व वध नामों से कया था। उ होंने इन श दाव लयों का उपयोग बड़े ढीले-ढाले ढं ग से एक जन समुदाय, एक न ल, या एक रा , और कई बार एक भाषा-पिरवार जैसी व वध धारणाओं को इं गत करने के लए कया। ैं ज बॉप (Franz Bopp, 1791-1867) ने, जो सं कृत के मुख व ान और तुलना मक भाषा व ान के सं थापक थे, सं कृत से जुड़े हुए भाषा पिरवार को ‘इ डो-जम नक’ कहे जाने के व तक दया, यों क उससे जमन और गैर-जमन यू रोपीय लोगों के बीच खाई पैदा हो सकती थी। उ होंने ‘इ डो-यू रो पयन’ श दावली को वरीयता दी यों क इसने यू रोपीय जनों को एकजुट करती थी। भारत- िे रत यू रोपीय शै णक ग त व धयों के थम चरण के इस काल का ृ ला समापन मै स मू लर क ‘पू रब के प व थ’ (Sacred Books of the East) ं ख के 1875 मे ं काशन के साथ हुआ। पछली शता दी ने भू गोल क ईसाई पिरक पनाओं को नया प दया था, यों क सं कृत क उनक खोज ने यू रोपीय जनों को अपनी सां कृ तक वरासत के ोत भू म यसागरीय े मे ं ही खोजने के यासों से मु दे दी थी। सं कृत के अ ययन ने काट सयन परमश वाद का वक प दया, और असीम, अचेतन और ने त या नकारवाद क दाश नक भू मका क खोज-बीन का रा ता खोला। भारत व ा स ब धी म थन ने यू रोप के अ दर जातीयराजनी तक अ तसघष को भी ज म दया, ज होंने ां सीसी और जमन उ सुधारवाद को ज म दया। इस बीच, टश व ानों ने भारतीय समाज के ‘रह यपू ण’ चिर पर बल दया, जसे ाय: ईसाइयों के स दभ मे ं मानी ढं ग से आ दम और पारलौ कक बना कर पेश कया गया था। इसने उ हे ं इस लायक बनाया क वे यह दावा कर सकें क सां सािरक मामलों मे ं प म े है और फर अपनी स यता के व तार को उ चत ठहरा सकें। दू सरा चरण, जो कम-से-कम तीय व यु तक चला, एक आय जा त के स ा त के त बौ क सनक से भरा हुआ था। इस स ा त ने यहू दी वरोधी अ भयानों को उ चत ठहराया और उकसाया। ऐसे क पत दशन और इ तहास लेखन ो औ ों ो औ

का व फोट हुआ जसका यान मू लत: आय और यहू दयों पर था, जो आय और सामी भाषा समू हों (Semitic Language Groups) के क पत बोलने वाले थे। इन दो ाचीन (ले कन आं शक प से का प नक) स य लोगों क पहचान ने अनेक बौ क और राजनी तक वार पैदा कये, जनके अ तम भाव ने न केवल यू रोप को एक व प दया, ब क उसका भाव उससे परे जाकर भी पड़ा। पौरा णक काल के आय और ही ू ओं का अ ययन भाषा शा ीय अ ययन से आगे चला गया, यों क व ानों ने जा तशा के आधार पर प-रेखाएँ और पिरचय तैयार करने शु कर दये। उदाहरण के लए, दाश नक अन ट रेनान (Ernest Renan, 1823-92) ने दावा कया क ही ू लोग व के लए एके रवाद का उपहार लाये, और यह क यहू दी आ मके त, उप वी और एक ही थान पर बने रहने वाले थे। आय के पास पिरक पना, तक, व ान, कला और राजनी त जैसे भ नै तक स गुण थे, और इस लए वे ग तशील थे, और ये गुण बहुदव े वाद और सव रवाद से जुड़ गये।5 आय बहुदव े वाद ग तशील था और सामी एके रवादी ठहराव के वपरीत था। इस तरह क प-रेखा तैयार करने से आय प धर व ानों और ईसाई त ानों के बीच तनाव उ प हुआ। एक-दू सरे से ग भीर मतभेद के बावजू द उ ीसवीं शता दी के अ धकां श व ान ई रीय या बाइबल मे ं उ घा टत इ तहास के सू ों और नयमों से बँधे हुए थे, जनमे ं यह मान लया गया था क यू रोपीय ईसाइयों पर ई र का अदृ य हाथ होने क वजह से वे ला जमी तौर पर अ य स यताओं से े है।ं यू रोपीय च तकों के सकारा मकतावाद, ाकृ तक व ान और तुलना मक अ ययनों के तरीकों को अपनाने के बाद भी यह मू ल आ था बनी रही।6 यू रोपीय जन यह मानना चाहते थे क वे सामी और आय, दोनों के सव प ों से उभर कर सामने आये है।ं जा त के प मे ं आय के वं शज होने क उनक पुनपिरक पना बाइबल के दोनों भागों—पुराना और नया धम नयम—के बीच ऐ तहा सक स ब धों क समकालीन बौ क खोज और ही ू , यू नानी और लै टन के बीच भाषायी स ब ध क तलाश के साथ-साथ चलती रही। दाँव पर था उस इ तहास का नय ण जो ई र के हाथों एक वशेष समाज के प मे ं काम करता था। रेनान ने आय और सामी वरासत, दोनों का उपयोग यू रोपीय जनों के दो माता- पता के प मे ं करने का य न कया, इस उ े य के साथ क दोनों क सव म व श ताएँ यू रोप क वरासत के प मे ं ा क जा सकें। सं कृत के अ ययन ने इ तहास से पुराण और तुलना मक धम से ‘न ल व ान’ तक—समाज व ान के समू चे े मे ं ा त कर दी। यू रोपीय पहचान क राजनी त सदा के लए पा तिरत हो गयी, और वह भी बहुत अलग ढं ग से जसक उस समय पिरक पना भी नहीं क जा सकती थी। व लयम जो स (William Jones) के लगभग ी

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एक शता दी बाद, े डिरक मै स मू लर (1823-1900) ने, जो अपने समय के सवा धक भावशाली यू रोपीय व ानों मे ं से एक थे, लखा : भला हो भारत क ाचीन भाषा सं कृत का जैसा क इसे कहा जाता है, और इसक खोज का ... और ध य है इस भाषा और यू रोप क मुख जा तयों क बो लयों के बीच क नजदीक िर तेदारी क खोज का ... जसके कारण व के आ दम इ तहास के अ ययन के तरीकों मे ं एक स पू ण ा त आ गयी है।7 एक बार जब भारतीय मौ लक थों के ख़जाने का उ खनन कया गया, और उनको अनुवाद, गलत-अनुवाद, सा ह यक चोरी, ख डन, और प े ों क या से गुजार कर पेश कया गया, और भारतीय ान को ‘प मी’ ान के प मे ं बदल कर उसका थाना तरण कर दया गया, तो भारतीय ोत अपना पुराना वैभव खो बैठे। अब का या मक और दाश नक त वों समेत इन छ वयों और तीकों का उपयोग, ज हे ं भारत से ही आ मसात कया गया था, ठ क उसी तरह कया जा रहा है जैसा क आधु नक क यू टर च बनाने वाले कलाकार लप-आट के त वों का उपयोग करते है। अब उन पर कैंची और गोंद (Cut and Paste) का इ तेमाल कया जा सकता है, उ हे ं कट-पे ट कया जा सकता है ता क जसे यू रोपीय स यता के इ तहास के प मे ं गढ़ा जा रहा है, उसे रं गों से स जत और वदेशी आकषण से यु कया जा सके। भारतीय स यता यू रोपीयजनों क सजावट, मािरका, और मृ त च बन गयी। फल व प, भारत का वेश यू रोप के सं हालयों मे ं ‘एक मानी ले कन आ दम अतीत’ के प मे ं हुआ। यू रो पयनों पर इसका ‘जादू ’ समा हो गया, यों क यह उनका अतीत था। इस या मे,ं भारतीय स यता अपनी अख डता और एकता खो बैठ , अनेकानेक अं गों का सं ह बन गयी ज हे ं एक-दू सरे से अलग कया जा सकता था, उ हे ं उनके देशी भू म और पिरवेश के स दभ से भ दशाया जा सकता था, और उसके बाद उ हे ं यू रोपीय पिर थ तयों मे ं फर से स दभ यु करके रखा जा सकता था। इस स पू ण या के काल मे,ं पर पर त ं ी यू रोपीय रा ीय हतों— ं , ां स और जमनी—ने अपने-अपने जातीय व दृ कोणों का मु यत: इं गलैड नवीनीकरण कया।8

हडर का वछ दतावाद (Romanticism) जमनी मे ं भारत-शा के ार भक वरों मे ं से एक थे जोहान गॉट े ड हडर (17441803), जो जमन वछ दतावाद के अ दू त थे ज होंने अनेक वषयों पर बहुत कुछ लखा। वे व भ मानव समू हों, जैसे यहू दी, म नवासी, और ा ण, को आदश ं रे बदलते रहे। उनका लेखन बनाने और फर उनका दानवीकरण करने के बीच पैत न लवाद और बहुलतावाद के बीच डोलता रहा। हडर के लए भारत ने मानव स यता के मासू म बचपन को दशाया— कृ त के बीच एक आ दम धम। भारत क ऐसी ही ठ पेदार छ व बाद मे ं वछ दतावा दयों ारा भ ल-भाँ त वीकार कर ली ी

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गयी,9 जनमे ं लेगल े (नीचे चचा क गयी है) जैसे भारत वद और शे लं ग जैसे दाश नक शा मल थे। इन वछ दतावा दयों ने भारत को सा ह यक और सां कृ तक ‘पुननवीकरण’ के लए एक ोत के प मे ं लया ता क उसे आ मसात करके और गलत ढं ग से आ मसात करके भी वे अपनी यू रोपीय पहचान को सहारा दे सकें। हडर ने मानव च तन मे ं सं कृत के योगदान को मह व दया। उ होंने दावा कया क सं कृत उनके इ डो-यू रो पयन (‘आय’) अतीत का अं ग थी। यू रोप क भारत क ‘खोज’ यू रोप के अपने आधार क ‘पुन: खोज’ थी जसे उसने भुला दया था। इस माग का उपयोग करते हुए कहा गया क पू व प म से ‘पराया’ नहीं था, ब क उसका ोत था। इसी तक के आधार पर हडर बड़ी ग भीरता से जी.ड यू .एफ. हेगल े (1770-1831) से असहमत हुए। हेगल े ने इ तहास को अतीत से दू र जाते हुए भ व यगामी प मे ं देखा, और इस तरह वह उन लोगों के आलोचक हो गये ज होंने मानव उ भव के एक गौरवशाली ोत के प मे ं आ दमता का समथन कया था। हेगल े के यापक भाव के बाद भी पुरातनता को गौरवशाली बनाने का हडर का दशन उनके नधन के पचास साल बाद तक चलता रहा, और जसे बाद मे ं अन ट रेनान और मै स मू लर जैसे वचारकों ने उठाया।

े (1772-1829) काल व हे म े डे िरक लेगल भारतशा मे ं े डे िरक लेगल े (Frederich Schlegel) के काय ने प म के बौ क इ तहास मे ं एक नया अ याय जोड़ा, यों क बाद मे ं यह प म के आय उ भव क ‘पुन: खोज’ के दावे तक ले गया। जमन पिरक पना मे ं भारत को मानी नज़िरये से देखने के कारण यू रोपीय रा ों के क पत ोत को मानवता के का या मक उषाकाल मे ं रख देना आसान हो गया। लेगल े एक ऐसे समय मे ं रह रहे थे जब जमनी और ां स एक-दू सरे के घोर श ु थे, न सफ सै नक और राजनी तक प से, ब क सां कृ तक प से भी। पुनजागरण काल से नकले एक रा के प मे ं और यू नान तथा रोम क महान ाचीन स यताओं के उ रा धकारी क तरह देखे जाने के कारण ां स को बढ़त हा सल थी। पेन और पुतगाल क अपनी ही गौरवमयी पहचान अमरीका को अपना उप नवेश बनाने वाले रा ों के प मे ं थी। टेन के पास भारत, उसके मुकुट मे ं एक र न क तरह, और उसके आस-पास न मत एक समृ सा ा य था। ले कन जमनी के पास ऐसा कुछ भी नहीं था। ब क जमनीवा सयों को ां सीसी तथा अ य पा पु तकों मे ं एक बबर जनजा त के प मे ं व णत कया गया था ज होंने च ड आ मण कर महान रोमन स यता को न कर दया था। न ली े णयों के स ा त को वक सत करने मे ं लेगल े ने एक अ णी भू मका नभायी थी, आ तिरक (यू रो पयनों के बीच) और बाहरी (गैर-यू रो पयनों के स दभ मे)ं ो ों

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दोनों पों मे।ं वे भारतीय धम पर व लयम जो स के लेखन से अवगत थे। जो स ने सारी मानवता के न ली वग करण का ताव कया था, ले कन यह दावा नहीं कया था क इ डो-यू रो पयन पिरवार का उ भव भारत मे ं हुआ था।10 शु आती दौर मे ं भारत के साथ मानी गलब हयाँ कर लेने के बाद, लेगल े ने भारतीय आ या मकता को अ वीकार कया, जसे उनके ईसाई स ा तों मे,ं सव रवाद का नाम दया गया। हालाँ क उ होंने न ल पर जो स के व श वचारों को अ वीकृत कर दया, लेगल े ने भारतीय जातीय अ मता से स ब धत कुछ मा यताओं को चुन भी लया, जो 1802 से पेिरस मे ं सं कृत के उनके अ ययन के साथ जा मलीं।11 भारत के त उनक मा नयत जब भारतीय धम क कटुतापू ण अ वीकृ त मे ं बदल गयी तो उसके बाद, लेगल े का भारत अ ययन, मु य प से जमनी के अतीत और साम तवाद के उ भव मे ं उनक च ारा सं चा लत रहा। उन पर सवार भारतशा का भू त अब यह द शत करने का एक वाहन बन गया क जमन सं कृ त और उसके समाजों के ढाँचे ाचीन यू नान क तुलना मे,ं जसके साथ ां सीसी सं कृ त और गणत वाद गव से जुड़े हुए थे, अ धक यायसं गत और पिर कृत थे। भारतशा ने लेगल े को यह दावा करने यो य बनाया क जमन सं कृ त और साम ती सामा जक ढाँचे ाचीन भारत मे ं शु हुए, और इसने उ हे ं एक त त ाचीनता से म डत करके पुनजागरण-आधािरत ां सीसी े ता का तवाद करने के यो य बनाया।

े क भारत स ब धी मनगढ़ं त धारणाओं के आधार पर जमन अतीत लेगल क क पना भारत के धम को अ वीकर करने और ईसाई कैथो लक स दाय मे ं शा मल होने के बाद भी, लेगल े का भारत स ब धी अ ययन जमनी के बारे मे ं उनक नये गढ़े मथक मे ं जमन रा वाद, म ययुगीनवाद, और कैथो लकवाद को मलाकर शा मल करने का एक मह वपू ण रा ता बना रहा। भारत अब धा मक रे णा का ोत नहीं रहा, ले कन उसने जमनीवा सयों और उनके म यकालीन साम तवाद को एक आदरणीय ऐ तहा सक पू वज दान कया। जमन वछ दतावाद ने भारत के भाव क जो पिरक पना गढ़ी थी, उसके पुराने सं करण मे ं भारत क आधारभू त ाचीनता और ‘स यता के पालने’ के प मे ं इसक भू मका से जुड़ा हडर का व ास भी शा मल था। जहाँ एक ओर भारत के स दभ मे ं पहले वाला मथक सौ दयपरक और धा मक था, वहीं नया मथक जमन राजनी तक े ता के अहं कार ारा सं चा लत था। दोनों का मुख उ े य यू रोपीय सं कृ त के यू नानी उ भव का एक वक प खोजना था। एक ओर जहाँ भारत का मानी मथक नव-पुरातनवाद12 के व था, वहीं दू सरी ओर नया मथक ां सीसी सं कृ त क त प ा मे ं जमन सं कृ त के तर को ऊँचा उठाने के लए बनाया गया था। नया ं



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मथक ां स और यू नानी-रोमन ाचीनता के साथ जुड़े राजनी तक सं रचनाओं के भी व था। लेगल े का पहला मथक जमन महानता के ोत के प मे ं भारत क ऐ तहा सक भू मका पर न मत था। उ होंने दावा कया क आधु नक जमनी के पू वज भारत से आये थे। उ होंने भारत का वणन यू रोप के उ र क सुदूर और बसने मे ं क ठन भू म क तुलना मे ं ‘धरती के सवा धक खुशहाल और उवर भू म’ के प मे ं क । उ होंने व यात उ री पहाड़ों के त भारतीय ा को देखा और न कष नकाला क प व दय वाले लोगों के नेत ृ व मे ं इस थाना तरण और वास का उ े य सफ भौ तक नहीं हो सकता।13 उ र क ओर जाते समय रा ते मे ं दू सरे बहुतसे कबीले उनसे अनुमानत: आ मले होंग,े जसके पिरणाम व प उ री यू रो पयनों मे ं जातीय व वधता पैदा हुई। भारतीय वास क दू सरी लहर प म क ओर गयी और उ होंने यू नान और रोम क स यताओं क थापना क । वे वधम स दाय थे जो कृ त क पू जा करते थे और अनुमान है क उ हे ं भयं कर धा मक सं घष के कारण भारत क धरती छोड़नी पड़ी थी।14 लेगल े के लए ाचीन जमनीवा सयों को एक अ त स य रा के प मे ं देखना मह वपू ण था, ाचीन यू ना नयों और रोमवा सयों से े । तभी जमनों के भारतीय मू ल के होने का उनका मथक उनक सेवा कर सकता था। जहाँ एक ओर अ धकां श इ तहासकारों ने ाचीन जमनों को ाचीन यू नानी-रोमन स यता को व वं स करने वाले बबरों के प मे ं देखा, वहीं लेगल े के मथक ने ता वत कया क जमन जनजा त वा तव मे ं ‘भ जं गली’ थे जो यू रोप के जं गलों मे ं ाकृ तक भोलेपन क थ त मे ं रहते हुए पतनशील रोमनों से अपनी वत ता का बचाव कर रहे थे। उनके पू वजों के चिर मे ं जो भ ता थी वह उनके भारतीय आय मू ल से आयी। नेपो लयन-युगीन ां स के अ यायों का मुकाबला करने के लेगल े के रा वादी आ ान मे ं इसने अ छ भू मका नभायी। े के सं शो धत स ा त के अनुसार स यताओं क उ प Fig 3.2: लेगल

 

यू रोप मे ं ‘आय’ एक न ल बनी सं कृत सा ह य मे ं हालाँ क ‘आय’ श द पहले से ही उपल ध था, उसे मै स मू लर ने ही सबसे पहले एक भाषा पिरवार और उसे बोलने वाले लोगों के लए एक नाम के प मे ं इ तेमाल कया। आय जा त क अवधारणा ज द ही वयं अपना जीवन जीने लगी और बीसवीं शता दी के नाजीवाद के लए आधार बन गयी। मै स मू लर ने यह ताव अव य कया क भाषाशा ीय और जा तशा ीय अ ययनों को एक-दू सरे से दो ताना ढं ग से अलग कर दया जाये, ले कन यह वचार तब आया जब उनके अ ययनों ने न ल स ब धी व ान मे ं घुसपैठ कर ली थी; उसके बाद भी उ होंने वयं को इसके अ भ ायों से आं शक प से ही अलग रखा, जनके बीज सबसे पहले उ होंने ही बोये थे। न लवाद (और अ तत: नाजीवाद) के लए आधार तैयार करने मे ं यात व ानों ने लगभग एक शता दी से यादा समय से भू मका नभायी थी जो भारतशा और/या द ण ए शयाई अ ययनों के इ तहास का एक मह वपू ण अ याय है, जसमे ं अब ‘आय’ क जगह बड़े पैमाने पर ‘भारोपीय’ श द इ तेमाल होने लगा है। जो भी हो, जैसा क हम छठे अ याय मे ं देखग े ं ,े आय पिरक पना के साथे



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साथ इसके वपरीत वड़ पिरक पना का वचार गहरी जड़े ं जमाये हुए है और यही इस पु तक का के ब दु है। ले कन जहाँ एक ओर जमनवा सयों ने आय पहचान को अपने रा वादी सार त व के प मे ं अपनाया और इसे अ तम सीमा तक खींचा, वहीं अं ज़ े ों का, इस त य के आलोक मे ं क उ होंने भारतीयों पर शासन कया, इसके साथ एक भ स ब ध था। अं ज़ े ों के लए आय एक पिरवार था या सगो ीय समू हों का एक सं गठन, जसका उपयोग पिरवारों के मलन या म े स ब धों क तरह भारतीयों पर टश शासन को वैध ठहराने के लए कया जा सकता था, जसमे ं पिरवार के े सद य (यहाँ अं ज़ े ) पिरवार के अ य सद यों (यहाँ भारतीयों) क मदद कर रहे थे। अं ज़ े ों के दृ कोण मे ं ऐसा कोई समय नहीं रहा जब इसे समान लोगों के एक पिरवार क तरह देखा गया। एक शता दी से कम समय मे,ं भाषाशा न लवाद के एक ोत मे ं बदल गया। भारत मे ं 18वीं सदी के उ र काल मे ं रह रहे अं ज़ े याय वद, सर एच.एस. मेन, ने इसे इस कार प कया : भाषा के नये स ा त ने न त प से न ल के एक नये स ा त को ज म दया ं े जनका ताव यू रोप मे ं है ... अगर आप उन आधारों क जाँच-पड़ताल करेग सं कृत के अ ययन से नकले नये ान के उदय से पहले साझ रा ीयता के लए कया गया था तो आप उ हे ं आज क दलीलों और यहाँ तक क इस उपमहा ीप के एक ह से मे ं बड़े जोर-शोर से दये जा रहे तक से ब कुल अलग ं ।े 15 पायेग

अन ट रेनान और आय ईसा मसीह16 अन ट रेनान ने अपनी शु आत ही ू व ान के प मे ं क थी, एक ऐसे समय मे ं जब ही ू चलन से बाहर हो गयी थी और भारोपीय अ ययन का बोलबाला था। जब एक बार वे सामी भाषाओं के आ धकािरक वशेष के प मे ं था पत हो गये, तब उ होंने अपने ान को दोनों स यताओं क तुलना, उनक अपनी-अपनी भाषाओं के मा यम से करने के लए एक श शाली ह थयार मे ं बदल दया। उ होंने कहा क सामी भाषाएँ कठोर एके रवाद को अ भ य करती है,ं यों क काल (tense) और यापद क अव था बतलाने वाले प (mood) के साथ उनके यापद सं य ु मत होने मे ं स म नहीं थी। वे बहुलता न मत करने मे ं असमथ थे; इस लए सामी समुदाय ने कभी व वधता या बहुलता क क पना नहीं क , और वे कृ त के व वध व पों को अ भ य देने मे ं अ म रहे। दू सरे श दों मे,ं रेनान के अनुसार, सामी लोगों क सरल भाषा ने उनके तकसं गत न कष , पराभौ तक और रचना मक बौ क ग त व ध को सी मत कर दया था। इसके वपरीत, आय ने अपने उ त याकरण और वा य व यास के सहारे कृ त मे ं अ त न हत ग तशीलता और ो ै ो े े े े ओं े ों

ृ करते हुए रेनान ने आय देवताओं के नामों बहुलता को समझा। मै स मू लर को उ त के मा यम से तुत ाकृ तक घटना म क बहुलता क ओर इं गत कया। येक श द के मू ल मे ं ‘ छपे हैं एक देवता’। सामी और भारोपीय लोगों के बीच आ यजनक अ तर न सफ भाषा मे,ं ब क धम मे ं भी है : आय धम ‘ कृ त क एक त व न’ बनकर उभरा है और इस लए सामी एके रवाद के वपरीत अनेक व श देवताओं क पू जा होती है। रेनान ने पिरक पना पेश क क आय अपनी पुरा कथाओं के कारण और देवताओं क बहुलता के कारण अ धक रचना मक थे, और यह रचना मकता उनके लए लाभदायी बन गयी, यों क इसने उ हे ं बाद मे ं पराभौ तक शा और व ान क ँ ाया। सामी एके रवाद, जो शु मे ं एक बड़ा खोज करने क थ त तक पहुच सं साधन था, इस तरह ‘मानव वकास मे ं एक अवरोध’ मे ं बदल गया। सामी जा त के ार भक वैभव ने अ तत: इसके व काम कया। जहाँ एक ओर वे एक अ तीय, अकेले और नद ष ई र व को सबसे पहले जानने-मानने वालों मे ं थे, उनक नय त ार भक बा याव था मे ं ही कैद हो गयी। उनके ‘ वभाव कम उपजाऊ थे जो एक सुखी बचपन के बाद सफ एक औसत पौ षता ही हा सल कर पाये’। उनक भाषाओं क तरह उनका धम भी एकरस था और इस लए ग तहीन था जसने उ हे ं मानव वकास क बा याव था से बाँधे रखा। इस तरह सामी लोगों को मानवता क ार भक सेवा का य े जाता है, ले कन वे अ तत: न त तौर पर सभी स यताओं के भारोपीय ‘आधार’ से कम पिर कृत रहे।17 दू सरे श दों मे,ं स यता मे ं ार भक सामी योगदान को आय योगदान ने दबा दया। यहाँ तक क सामी एके रवाद को एक आय दपण मे ं त ब बत देखा जा सकता है। इस तरह सामी लोगों को आय इ तहास मे ं शा मल कर लया गया। रेनान ने ईसा मसीह को यहू दी धम से अलग कर दया और उ हे ं ‘आय’ ईसा मसीह बना दया जसक पिरक पना उ होंने इस कार क :   आय ने अपनी या ा बहुदव े वाद से ार भ क ले कन बाद मे ं वे ईसाई एके रवाद मे ं पिरव तत हो गये। ं क उपज के प मे ं ईसाइयत ने उन व वध पी  आय/ईसाई आक मक भेट आय जनों क मनोवृ यों और आ तिरक वशेषताओं को आ मसात कया जनका उसने धमा तरण कराया था। रेनान ने लखा क नयी ईसाइयत ‘पू री तरह सामी भावनाओं क सीमाओं को लाँघ गयी’।  रेनान ने सोचा क ईसाइयत इसी कारण यहू दी धम से अलग हो गयी, और इस तरह यहू दी धम और इ लाम क तुलना मे ं ईसाइयत क ‘सामी शु ता कम हो गयी’, और (एक आ द पु ष) अ ाहम से नकले तीनों प थों क तुलना मे ं यह ‘सबसे कम एके रवादी’ रह गया। ॉ े



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कॉलेज द ां स (College de France) मे ं अपने उ घाटन भाषण मे ं रेनान ने कहा, ‘ईसाइयत क वजय तब तक सुर त नहीं है जब तक यह अपने यहू दी खोखे से पू री तरह बाहर नहीं नकलती और फर उस थ त को ा नहीं कर लेती जैसा क इसक थापना करने वाले क उदा चेतना मे ं था, यानी ऐसी सं रचना जो सामी भावना के सं क ण ब धनों से मु हो।’ उ होंने यह भी लखा : ‘ ार भ मे ं मू लत: यहू दी भावना से ओत- ोत ईसाइयत ने समय बीतने के साथ वयं को उस सबसे मु कर लया जो उसने यहू दी जा त से लया था, इस हद तक क जो ईसाइयत को अ त उ म आय धम मानते हैं वे कई पहलुओ ं से सही है’ं । उ होंने अनुभव कया क वा तव मे ं ईसाइयत ने यहू दी धम का ख डन कया : ‘ईसाइयत ने यहू दी धम से अलग हटकर दू र होते हुए वयं को पिर कृत कया और यह सु न त कया क भारोपीय जा त क तेज वता इसके दायरे के भीतर वजयी हो’।18 व भ स यताओं के वकास पर रेनान के दृ कोण को च 3.3 मे ं दशाया गया है। Fig. 3.3 रेनान के तहत व भ स यताओं का वकास

  इस कार रेनान का मानव इ तहास स यता क ग त का इ तहास है जसमे ं आय और सामी, दो धाराएँ शा मल है।ं वं शावली स ब धी इस आय-सामी नाटक के े





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लए, रेनान और उनके समकालीन ईसाई वजय क खोज कर रहे थे जसमे ं आय भाषायी और सां कृ तक पू वज थे, और सामी एके रवाद के शशु-सरीखे सं थापक। ईसाइयत को उसक वं शानुगत सामी ु टयों से मु करके उसका आयकरण करना आव यक हो गया था, ता क ग त क जा सके। और इस म मे ं आगे चलकर ईसा मसीह को स मा नत करना स भव हो सका जब क इस बात को अनदेखा कर दया गया क वे ज म से यहू दी थे। इस तरह रेनान ने भाषाशा का उपयोग ईसाइयत को वै ा नक आधार देने के लए कया, अ ध व ास को खािरज करते हुए और इसे ‘ ानोदय’ के साथ जोड़ते हुए।

े डिरक मै स मू लर

जहाँ हम वेद मे ं आय मानस के बा यकाल का अ ययन कर सकते है,ं का ट के ‘ टीक’ (Critique) मे ं आय मानस क नद ष ौढ़ता का अ ययन कर सकते है।ं —मै स मू लर19 ँ ने क मै स मू लर (1823-1900) मानी आ दोलन और स यता के ोत तक पहुच उसक चाह के वं शज थे। उ होंने भी भाषा व ान और धा मक शोध मे ं भावी योगदान कया था। रेनान क तरह उनके लेखन का वशाल भ डार यापक प से ँ ा। चालीस वष से अ धक समय तक दोनों व ानों ने आय और पाठकों तक पहुच सामी खानेब दयों का इ तेमाल करते हुए न ल क पिरक पना पर काम कया।20 ले कन दोनों मे ं काफ मतभेद भी रहे। मै स मू लर इस बात पर अड़े रहे क ऐसी कोई एक सं कृ त नहीं थी जो एके रवाद के साथ अकेले उभरकर सामने आयी, यह तो मानवों क साझ स पदा थी, और यह भी क भाषावै ा नक ढाँचों ने इसे व वध धम मे ं ढाला जनमे ं एके रवादी और बहुदव े वादी व प शा मल थे। मै स मू लर भारतीय स यता का उपयोग ईसाइयत के वकास मे ं बहुदव े वाद को शा मल करने के लए नहीं करना चाहते थे, जैसी रेनान क इ छा थी। न ही उ होंने प टेट क तरह (इस पर आगे चचा है) दू सरा रा ता अपनाते हुए आय को एके रवादी दखाने का य न कया। इसके बदले उ होंने व भ धा मक वचारों को प करने के लए भाषाशा ीय भ ताओं पर बल दया। सभी चीजों मे ं देव व को कट करने के लए मू लर धम का एक व ान चाहते थे। वे चाहते थे क तुलना मक तरीकों का उपयोग, जो उस समय अ ययन का नया वभाग था, अ य कृ त- व ानों क तरह कया जाये और व वधता वाले इस सं सार मे ं जो कुछ कट है, उसे रेखां कत करने वाली एके रता को उजागर करने का य न कया जाये। यह दैवी यव था काल के ार भ मे ं कृ त मे ं ही अं कत थी, और अब यह तुलना मक भाषाशा और पौरा णक अ ययनों का काम है क वे इसके ोत पौरा णक थों ँ नकाले,ं जनमे ं न:स देह ईसाइयत क एक अनोखी जगह है।21 और धम मे ं ढू ढ ी



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ाचीन भारतीय थों मे ं गहन च रखने के साथ-साथ मै स मू लर औप नवे शक शासकों और ईसाइयत के चारकों के लए एक अ धकारी क तरह ू क को लखे उनके एक प भी काम करते रहे। उनक यह मनोदशा ओग इल के मे ं त ब बत होती है, जो टेन मे ं भारत के लए वदेश म ी थे। मू लर ने 16 दस बर 1868 को लखा : ‘भारत का ाचीन धम पू री तरह व त हो गया है और अगर ईसाइयत ऐसे समय मे ं वहाँ वेश नहीं करती तो यह कसक गलती होगी?’ अपनी प नी को 1868 मे ं लखे एक प मे ं मू लर ने यह भी लखा : ‘मैं उ मीद करता हू ँ क मैं उस काय को स प क ँ गा और आ त हू ँ क मैं वह दन देखने के लए ँ ा, फर भी मेरा यह सं करण और वेदों का अनुवाद आज के बाद जी वत नहीं रहू ग भारत के भ व य और इस देश मे ं लाखों मनु यों के वकास को बहुत सीमा तक भा वत करेगा’। उसी प मे ं उ होंने आगे कहा : ‘[वेद] उनके धम का मू ल है और वह मू ल या है इसे उ हे ं दखाने के लए मैं आ त हू ,ँ सफ एक रा ता है क पछले तीन हज़ार वष के अ तगत जो कुछ भी इससे नकला है उसे उखाड़ दया जाये’।22 दू सरे श दों मे,ं उ होंने समकालीन भारतीय स यता को, वशेषकर इसके अनेक देवताओं को ाचीन वैभव के एक प मे ं देखा।

एडो फ प टेट वस भाषा व एडो फ प टेट (Adolphe Pictet) (1799-1875) एक अ य बहुभाषा वद थे जो ईसाई यू रोप मे ं आय वरासत क शं सा करने के त सं क पब थे। वे यू रोपीय आय मू ल और उसक े ता क अवधारणा के त पू री तरह स मपत थे। उनके अनुसार एक कृपा- ा न ल के प मे ं ‘ज मजात सौ दय’ और ‘बु म ा के उपहार’ से ध य और समृ होकर व वजयी बनना आय के भा य मे ं था। इस बात पर वशेष बल देन,े यहाँ तक क इससे अ भभू त हो जाने, का स ब ध इस अवधारणा से था क आय क मानक धा मक मनोवृ एके रवादी थी, जो उनमे ं पू री तरह तब फलीभू त हुई जब ईसाई शासनकाल आया। उ होंने आगे और तक दया क भारतीयों मे ं मू लत: एके रवाद क समझ थी, ले कन वह एके रवाद अ प वक सत था और बाद मे ं बहुदव े वाद मे ं बदल गया। प टेट ने न कष नकाला क आय मानस क उ चत धा मक अनुकूलता एके रवादी थी, और इस अवधारणा ने ईसाई यू रोपीय आय को भारतीय आय को, जो एके रवाद से नीचे गर गये थे, अपने उप नवेश मे ं लाने का एक औ च य दान कया। उनका उ े य, जैसा क रेनान और मू लर का था, भाषाशा के मा यम से यू रो पयनों तक ‘ व क सवा धक श शाली न ल क ज म थली, जो वही न ल ँ ाना था। थी जसके हम वं शज है’ं 23 क अवधारणा और इसक ववेचना को पहुच उ होंने आय क ववेचना करनी चाही ता क वे अ धका धक एके रवादी लगे,ं यह दावा करते हुए क ‘का या मक बहुदव े वाद’ के होने के बाद भी उनके पास एक े











‘आ दम एके रवाद’ भी था। सं कृत पर भाषावै ा नक व लेषण लागू करते हुए उ होंने दावा कया क ाचीन भारतीयों मे ं आ दम एके रवाद था जसमे ं जीव तता क कमी थी, इसी लए वे ‘ ाकृ तक पिरघटनाओं क बहुलता को समझने-समझाने के एक तरीके के तौर पर’ बहुदव े वाद मे ं जा गरे। एके रवाद के उस बीज को पुनज वत करने मे ं ईसाइयत को मह वपू ण भू मका नभानी चा हए जसे सबसे पहले आय ने बोया था। प टेट के अनुसार, भारोपीय वरासत मे ं अनेकता मे ं एकता अ ् तन हत थी : शु ही से आय क बो लयों मे ं व वधता थी, और भारोपीय लोगों मे ं ागै तहा सक राजनी तक एकता थी। वे महसू स करते थे क इ तहासकार का काम ई र ारा दु नया क हर न ल को सौंपी गयी भू मका को उजागर करना है। रेनान क तरह, उ होंने अनुभव कया क ही ू और आय के अपने-अपने गुण है।ं 24 वत ता और मु से अपने म े के कारण (जो सामी लोगों के गुणों के वपरीत गुण था) पहले आय बहुदव े वाद मे ं रा ता खो बैठे थे, ले कन बाद मे ं उ होंने कृ त के भौ तक जगत पर महारत हा सल कर ली, और वे पू रे व ास के साथ ईसाई एके रवाद क ओर बड़े । ईसाइयत सभी धाराओं का सव म सं योजन है, और इस लए मानव के भ व य के प मे ं यह मनोनीत है। ईसाइयों क नय त पू री पृ वी पर शासन करने के लए नधािरत है। इस या मे,ं भारत के लोग जो ‘ ार भक आय ’ क स ताने ं थीं, और जो मू ल मातृभू म का त न ध व करते थे, अब आधु नक स यता के ‘लाभकारी भावों’ को हा सल करने के लए यू रो-आय ारा उप नवे शत हो गये थे। यू रो-आय तो भारो-आय के भाई है,ं और उनके लए वे ‘धा मक काश तथा समान ग त’ ला रहे है।ं प टेट यू रोप ारा भारत को उप नवेश बनाने का म हमाम डन करते है,ं यह ट पणी करते हुए क ‘यह आ य क बात नहीं, और इससे भी बड़ी बात यह देखना है क यू रोप के आय को चार-पाँच हज़ार वष के बलगाव के बाद अपने अनजान भारतीय भाइयों ँ ने का वापसी का रा ता मला, भले ही माग घुमावदार था, ता क वे उन पर तक पहुच अ धकार करके उनके बीच उ तर स यता के त व लाये ं और उनके बीच साझे मू ल ं ’25 इस लए भारत को उप नवेश बनाना नै तक है, के ाचीन माण क खोज करे? यों क ऐसा ही नय त- नधािरत है। स यता का व तार ईसाई उप नवेशन के मा यम से ही कया जाना है।

डो फ े डिरक ाऊ (Grau) आर.एफ. ाऊ (1835-93) के साथ ही बल लगभग पू री तरह बदल गया। एक समे कत बाइबल पर परा को तुत कया जाने लगा जो ईसाइयत क सामी वरासत को समु चत तौर पर वीकार करती है ता क ईसाई खेमे मे ं असहम त को घटाया जा े





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सके। ऐसा करके, उ होंने तक दया क गैर-ईसाइयों, वशेषकर भारतीयों को धमा तिरत करने का काय बहुत आसान हो जायेगा। ाऊ जमन म ी थे और लू थेरन प धर जो आय क ( जनको उ होंने इ डोजमन कहा) भरपू र शं सा का तरोध करना चाहते थे, यों क आय का प लेने मे ं ईसा मसीह को भुला देने का ख़तरा था। इस लए उ होंने ई र और उसके ारा चुने गये नये लोगों (ईसाई ालुओ)ं के बीच एकमा स पक-सू के प मे ं सामी लोगों को मह व दया। चच के सामी आधार से इ डो-जमन समुदाय को अलग करने से आधु नक व का स तुलन ख़तरे मे ं पड़ सकता था। उनके समय के अनेक यू रोपीय लोगों क तरह उ होंने भी सामी एके रवाद अपना लया था, ले कन उसे यहू दयों से अलग कर दया था, जनसे वे घृणा करते थे। सबसे अ छ रणनी त थी सामी लोगों के एके रवाद को ईसाई स दभ मे ं इ डो-जमन (आय क ) ग तशीलता से मलाना। ाऊ ने घो षत कया : ‘सामी आ मा और इ डो-जमन कृ त का मलन वग मे ं ही तय हो गया है’।26 अलग-अलग पों मे,ं दोनों मे ं से कसी मे ं भी वह रीढ़ नहीं थी जो ऐसा माना जाता था क ईसाइयत ने उ हे ं दी थी, ले कन इस मलन क कृपा से वे दु नया पर शासन करने के लए नय त ारा नधािरत है।ं कला और व ान मे ं साकार हुई असाधारण इ डो-जमन ग तशीलता ने ईसाई चच मे ं ही साथकता हा सल क । ईसाइयत के बना वे बबरता मे ं डू ब जाते। इस ब दु को दशाने के लए उ होंने या या क क भारत मे ं बहुत अ धक रचना मकता थी पर वह अ नय त थी और ‘सामी दलच पी’ क ईसाइयत ही उसको अराजकता से बचा सकती थी। सां कृ तक समझदारी के कसी भी यास के के मे ं सलीब को ही दृढ़ता से गाड़ना पड़ा। ाऊ क अनेक पु तकें अं ज़ े ी मे ं अनू दत हु और मशनिरयों ारा उनका उपयोग ईसाई तीकों मे ं वै दक च तन का समावेश करने के यासों मे ं कया गया ता क उसे ह दुओ ं और भारत के अ य धा मक लोगों का धमा तरण करने के लए लागू कया जाये।

गो बनो और न ल व ान ां सीसी राजदू त, दाश नक, इ तहासकार और उप यासकार जोजेफ आथर कॉमटे डी गो बनो (Comte de Gobineau, 1816-82) ने दावा कया क भारत पर आ मण करने के बाद यू रोपीय आय अपे ाकृत काले मू ल नवा सयों के साथ घुल- मलकर दू षत हो गये थे। गो बनो के लए भारत का मह व उनके अपने न लवादी स ा तों क पु करने के लए एक नमू ने का अ ययन मा था। सन 1853 मे,ं उसी साल जब काल मा स ने या या क थी क वदेशी आ मणों से अलग भारत का अपना कोई इ तहास नहीं है, गो बनो ने अपने न लवादी स ा तों को चार ख डों मे ं पु तकाकार का शत करना शु कया ेऑ



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जसका नाम था— एसे ऑन द इनइ वॉ लटी ऑफ ू मन रेसज े । उनक इस कृ त का अनुवाद कई यू रोपीय भाषाओं मे ं हुआ, और बाद मे ं यह न ल व ान को साम ी ै ा कराने वाला मु य ोत बन गया। गो बनो के स ा तों मे ं भारत ने नमू ने क मुहय भू मका नभायी, यों क वे आय के आ मणों को वण- यव था क या या करने ृ कर सकते थे। वे उन लोगों मे ं से थे ज होंने भारतशा के लए उ त स ब धी सा ह य को अ छ तरह पढ़ा था। उ होंने न लों के भाषावै ा नक वग करण को अ वीकार कर दया और उसके बदले मे ं बल देकर कहा क व क सभी स यताएँ गोरी न ल से नकली है,ं ले कन उ री यू रोप को छोड़कर सभी भौगो लक े अ तर- ववाहों के कारण प तत हो गये।27 गो बनो ने बाइबल के ढाँचे के अ दर रहकर काय कया, इस मा यता से ार भ करते हुए क ‘हमारी गोरी न ल के जनक आदम थे’ (‘Adam soit l’auteur de notre espèce blanche’)। उ होंने ‘गोरी ण े ी, और उस ण े ी मे,ं आय पिरवार क े ता’ के बारे मे ं लखा। उनक पिरक पना के अनुसार तीन न ले ं थीं— त े , पीत, और याम। उ होंने त े ों को सबसे ऊपर रखा, यों क उनमे ं सं कृ त को रचने और फैलाने क मता थी। ले कन, न नतर न लों के नवास े ों मे ं सां कृ तक व तार अ तर- जनन का कारक बना और इस तरह इसने े मान ली गयी न ल क शु ता मे ं गरावट ला दी। अपनी पिरक पना को स य मा णत करने के लए गो बनो ने भारत का उदाहरण एक आधार के प मे ं दया। हॉबफास ने गो बनो के स ा त को सं प े मे ं इस तरह लखा : ‘आय ने, जो ‘गोरी न ल’ क सव स भावना का त न ध व करते थे, भारतीय उपमहा ीप पर आ मण कया और मू ल नवा सयों के साथ घुलना मलना शु कर दया। इसके ख़तरों को भाँपते हुए, आय वधान बनाने वालों ने आ मसं र ण के साधन के प मे ं वण- यव था को लागू कया। यही कारण है क व क अ य स यताओं क तुलना मे ं भारत मे ं अवैध स तानो प और पतन क याएँ बहुत धीमी रही है’ं ।28 दू सरे श दों मे,ं शु गोरों ने न नतर लोगों के साथ अपनी ऊँची न ल के घुलनेमलने क या को धीमा करने के लए वण- यव था बनायी थी। गो बनो ने या या क क भारतीय ा ण इसी अ तर- म ण के कारण प तत आय थे। फर भी उ होंने तक दया क वण- वलगाव न होने क थ त मे ं यह पतन और ख़राब होता। गो बनो ने भारत का उदाहरण ां स क ा त के पीछे मौजू द धारणाओं, और साथही-साथ मा सवादी वग-सं घष के उभरते व के व तक देने के लए तुत कया था। व हेम हॉबफास ने बताया क कस तरह मनगढ़ं त आय पिरक पना इस तरह समय के साथ सरकती गयी : ो

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गो बनो के जीवनकाल मे,ं यू रोपीय भाषाओं और पर पराओं के ए शयाई मू ल के पुराने स ा त, और पू व से प म क ओर सां कृ तक वाह के स ा त ने प म से पू व क ओर वाह के आ दम स ा त के बारे मे ं अटकलों को अ धक-से-अ धक थान देना शु कया जनमे ं था यू रोप, वशेषकर उ री यू रोप, से आय का वास। यह स ा त यहाँ तक बढ़ाया गया क इसमे ं उ री ु से भारत क ओर वास क पिरक पना थी। इन अटकलों के अनुसार, व यू रोपीय या उ र के आ मणकािरयों ने अपनी े सं कृ त भारत को दी और फर थानीय नवा सयों के साथ घुल- मलकर अपनी े ता खो दी और ऐसे वातावरण मे ं न हो गये जो उनके लए अनुकूल नहीं था। सन 1903 मे ं ई.डी. मशे लस ने इस दृ कोण का सारां श इस कथन से कया क ए शया, और वशेषकर भारत, ‘पालना’ नहीं, ब क ‘आय क क ’ था।29

आय स ा तकार और सुजनन व ान गो बनो का न ल स ा त कोई अकेली पिरघटना नहीं था। सन 1870 के दशक मे,ं ऑ सफोड के या याता जॉन र कन ने से सल रो स जैसे अपने श यों मे ं इस अवधारणा को था पत कर दया क यू रोपीय ‘सव म उ री र ’ के थे और उ हे ं व पर शासन करना चा हए। रो स ने आगे चल कर अ का से लू टी गयी अपनी चुर स पदा का उपयोग अपनी व यात रो स छा वृ को धन देने मे ं कया, जसका ार भक उ े य सफ गोरे युवजनों को ो सा हत करना था। ऐसी न लवादी अवधारणाएँ सुजनन व ान क लहरों पर सवार थीं जो उप नवेशवादी यू रोप के आरामदेह क ों और राजधा नयों मे ं उठ रही थीं। उ ीसवीं शता दी मे ं शै णक े ों मे ं सुजनन व ान जैसे स ा तों क बाढ़ आ गयी थी। ‘सुजनन व ान’ या यू जे न स पािरभा षक श द का योग पहली बार ां सस गॉ टन ारा 1883 मे ं कया गया, जो िर ते मे ं चा स डा वन के भाई थे। डा वन ने लखा था क ‘मानव क स य न ले ं न त प से व भर क अस य न लों को ं ी या बदल देग ं ी’।30 सुजनन व ान ‘ नकृ न लों’ मे ं लगभग पू री तरह समा कर देग ज म रोककर चु न दा जनन और ‘ े ’ जा तयों मे ं ज म को बढ़ावा देने क तरफ़ इशारा करता है ता क मानव जा त क गुणव ा बढ़ायी जा सके। कोई न ल कतनी ‘स य’ है इसे नापने के लए गॉ टन ने अं ज़ े ी उ -वग के आधार का उपयोग कया। कसी भी न ल का ‘जं गलीपन’ इस आधार पर तय कया गया क वह ऊपर दये गये मानद ड से कतना अलग है। यह योजना सुजनन व ान के एक स ा तकार जॉजज वाशर डी लापॉज (18541936) ारा मानव-जा तयों के वग करण के लए एक अ धक ‘वै ा नक’ वग करणस ा त मे ं बदल दी गयी। सन 1899 मे,ं डी लापॉज ने ‘आय और उसक सामा जक भू मका’ नामक अपनी पु तक का शत क । उनके अनु म ने ‘आय गोरी न ल’ को ों े ं े ें े ी ी े े

मानवों मे ं सबसे ऊपर रखा। बाद मे ं वे नाजी न लवादी अवधारणा के मुख रे णा ोतों मे ं से एक बने। हावड के ा यापक व लयम जेड. िर ले ने 1899 मे ं छपी अपनी पु तक, द रेसज े ऑफ यू रोप, मे ं डी लापॉज के वग करण का उपयोग कया जसका अमरीका मे ं गोरे े तावा दयों पर भारी भाव पड़ा था। मैडम लाव सक ने, जो थयोसॉ फकल सोसाइटी क किर माई सं थापक और उस समय के प म क अ णी रह यवे ा थीं, जस आय स ा त का तपादन कया, उसका व तार स पू ण जमनी और ऑ या मे ं हुआ।31

चे बरलेन : आय-ईसाई न लवाद हू टन टीवट चे बरलेन (1855-1927) एक टश लेखक थे ज होंने दशनशा , इ तहास और सं कृ त पर पु तकें लखीं। वे गो बनो क अवधारणाओं को इस यास मे ं और आगे ले गये क उन स ा तों को अ धक ‘वै ा नक’ और दाश नक आधार दया जा सके। ऐसा करने के म मे ं नाजी नेत ृ व पर उनका आ धकािरक भाव पड़ा। द फाउ डे श स ऑफ द नाइ टी थ से चुरी (1899) उनका एक बड़ा काम था। हालाँ क वे अं ज़ े थे, चे बरलेन ने यह पु तक जमन मे ं लखी ता क वे अपनी आयू टॉ नक (Aryan-Teutonic) वरासत32 पर बल दे सकें। यह पु तक यू रोप मे ं त काल सवा धक बकने वाली पु तक बन गयी, और 1942 तक आते-आते इसके ं उदारवादी धमशा ीय प का डाइ अ ाईस सं करण छप गये। ोटे टेट ट लश वे ट ने इस पु तक का वणन एक ऐसी पु तक के प मे ं कया जसके लए ‘हमारे ईसाई जगत को बहुत ध यवाद देना होगा’।33 द फाउ डे श स ऑफ द नाइनटी थ से चुरी ने भारत के वण यानी जात-पाँत को न ल से जोड़ दया, और ू टॉ नक वरासत को आय न लों मे ं सवा धक वक सत के प मे ं सामने रखा : ू टॉन, .....आय जहाँ भी गये, वहाँ के वामी बन गये। यू नानी, लै टन, के ट, लाव—ये सभी आय थे : जन देशों पर उ होंने वजय पाई उनके मू ल नवा सयों का शायद ही कोई अवशेष रह गया। भारत मे ं भी ऐसा ही हुआ, यह रं ग ही था जसने वजेता गोरे आय को हारे हुए अ त े ों, द युओ,ं से अलग कया और इस ू टॉ नक शाखा ही है तरह वण का आधार तैयार कया। यह आय पिरवार क ू टॉन शाखा के वजय जो क सव मुख है, और उ ीसवीं शता दी क कथा 34 क ही कथा है। चे बरलेन ने भारत को एक ऐसे रा के उदाहरण के प मे ं देखा जहाँ आय क ‘श का मू ल’ सड़ गया था।35 उनके लए भारत के आ या मक जगत मे ं भी ऐसा ही हुआ। ा ण क पिरक पना इतनी ‘उदा हो गयी क ऐसा कुछ नहीं बचा जससे नये जीवन क रचना हो सके’।36 बौ धम ने ‘बुढ़ापे क मारी ऐसी सं कृ त क जीण-शीण अव था का त न ध व कया जो पहले से ही अपनी स भावनाओं ँ ी ी औ ी ौ ी

ँ चुक थी’।37 आ या मक और न ली तौर पर पू री तरह थक क सीमा तक पहुच चुक श के प मे ं पू व क ऐसी त वीर के व , द फाउ डे श स ने ईसा मसीह को ‘एक नये दन के ज म, सलीब च क छाया मे ं एक नयी स यता के उषा काल, पुराने व के अवशेषों पर खड़ी क गयी एक स यता के प मे ं कया जसके लए हमे ं बहुत समय तक काम करना ही चा हए, उस आने वाले समय से पहले तक जब यह उनके नाम से जानने यो य हो जाये’।38 चे बरलेन ईसा मसीह वाले अ याय का ार भ महाभारत से उ रण देते हुए करते है,ं इस तरह मानो ाचीन भारतीय प व सा ह य कसी-न- कसी प मे ं ईसाइयत के आगमन क आशा रखता था।39 यह यु बाद मे ं भारत मे ं ईसाइयत के चार के लए पस दीदा ह थयार बन गयी जसका योग मशनरी व जनों ारा कया गया। चे बरलेन ने ईसाइयत को एक अ खल-यू रोपीय और मू लत: ू टॉ नक घटना के प मे ं देखा। उ होंने उदारवाद के खलाफ, जसे यहू दी ष के प मे ं देखा गया था, एक रोक के तौर पर रोमन कैथो लक ईसाइयत क शं सा क । उ होंने जमन रा ीय चच के सै ा तक आधार के लए लू थार न म (Lutheranism) क ओर देखा। यहू दी धम को अ वीकृत करने के लए उ होंने सं त पॉल क शं सा क ।40 ले कन गो बनो के वपरीत चे बरलेन आय मथक के सल सले मे ं बाइबल के आधार क सीमाओं से अवगत थे, और उ हे ं पू वाभास भी था क एक दन ऐ तहा सक आय न ल क अवधारणा पू री तरह अ वीकृत क जा सकती है। फर भी उ होंने अनुभव कया क ऐसी अवधारणा यू रोप के लए मह वपू ण थी, और उ होंने लखा : हालाँ क यह मा णत हो भी जाय क अतीत मे ं कभी आय जा त नहीं रही, फर भी हम आकां ा रखते हैं क भ व य मे ं वह होगी। यही कमशील आद मयों के लए नणायक दृ कोण है।41 आय के वणन मे ं चै बरलेन ने ‘वै ा नक’, ‘दाश नक’ और ईसाई त वों का समावेश कया। उ होंने व तार से बताया क वयं को एक अ खल-यू रोपीय घटना क तरह तुत करके, जसने जमनों क न ली े ता का समथन कया, ईसाइयत को या लाभ मलेगा। ऐसे दृ कोण ने गो बनो के खु म-खु ा घोर आय न लवाद को स पू ण यू रोप के भावी हलकों मे ं वीकाय बना दया। मानवशा ी केनेथ ए.आर. केनेडी ने न कष नकाला : गो बनो और चे बरलेन दोनों ने आय पिरक पना को, जसक बहुत सहज और तु छ-सी शु आत अ ारहवीं सदी के अ त मे ं जो स के भाषाशा ीय शोध से हुई थी, ऐडॉ फ हटलर के जमन सा ा य के राजनी तक और न लवादी स ा तों मे ं पा तिरत कर दया।42 नाजी जमनी ने चे बरलेन को मरणोपरा त स मान दया क उ होंने ‘थड राइख (यानी जमन सा ा य) क अवधारणा क पिरक पना’ कर ली थी।43

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नाजी और उनके बाद ऐसे स ा त पू री उ ीसवीं शता दी और बीसवीं शता दी के ार भ तक लगातार और वक सत होते रहे, और 1900 के आस-पास हा शये पर चलने वाले राजनी तक और बौ क आ दोलनों पर उनका बहुत भाव रहा। स यताओं और न लों के इ तहास क रचना करने के लए उ होंने भारतशा से चु न दा तौर पर जानकािरयाँ लीं कुछ इस तरह क वे यू रोपीय े ता से मेल खाये।ं इस सबने हटलर को भा वत कया। जी लै ज- लबेनफे स (1874-1954) ने ओ टारा नामक एक प का शु क जसमे ं उ होंने काली-चमड़ी वाले चा डाल (उनके लेखन मे ं tschandlas का योग हुआ है) और सुनहरे बालों वाले आय के बारे मे ं अपना न लवादी स ा त वक सत कया। सन 1908 मे ं प का के दो अं क मनु मृ त और ाचीन ‘इ डो-आय’ समुदाय मे ं न ली वकास पर के त थे।44 हटलर इस प का का नय मत पाठक था। ऐसी अनेक साम ी हटलर के तीसरे सा ा य के लए आधारभू त पा साम ी क तरह उपयोग मे ं आयी। हॉबफास ने या या क , ‘‘भारत को बीच मे ं लाया गया है ता क अ तीय हेकड़ी वाले और वनाशकारी वचारों और काय मों मे ं प ता लायी जा सके और उ हे ं उ चत ठहराया जा सके’’। 45

जब न लवादी वचार जमनी से फासीवादी इटली मे ं आये, तो वे वहाँ और उलझ गये। केट कोहेन ने फासीवादी इटली मे ं यहू दयों क थ त पर इस कार लखा : ु ा आय श द जब फासीवादी इटली पर लागू कया गया तो उसने उतना ही बेतक अथ हण कर लया था : साँवले द णी कैथो लक आय थे जब क सुनहरे बालों और नीली आँखों वाले मलानवासी यहू दी आय नहीं थे... फासीवादी श दों ने न त प से हा या पद थ तयों को अ तम छोर तक धकेला : कोई भी आय हो सकता था, चाहे जै वक प से उसका ऐसा होना अस भव ही जान पड़े । म त ववाहों से पैदा हुए ब े जनका बचपन मे ं ही ब मा कया गया था, आ धकािरक तौर पर आय हो गये ... ले कन आय बनने क को शश करना और इस आधार पर भेद करने का अपना मू य था... एक इतालवी आय का वचार, जो पहले से ही हा या पद था, आय बनाये जाने क स भावनाओं के ु ा हो गया। कसी को मा यही मा णत करना रह गया कारण और अ धक बेतक था क उसके पता यहू दी नहीं, ब क आय थे और लोगों ने ऐसा यह दावा करते हुए कया क उनका ज म उनक माता के य भचार के पिरणाम व प हुआ था।46 इटली के एक ा यापक गऊ लयो कॉ नी ने नाजी आय वचारों को इटली मे ं लाने मे ं अ य धक मह वपू ण भू मका नभायी थी। हालाँ क बाद मे ं वह मुसो लनी (Mussolini) के कृपापा नहीं रह गये थे, इस फासीवादी तानाशाह के वचारों को े े

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एक व प देने मे ं वह काफ भावी रहे। उ होंने यहू दयों के बारे मे ं कैथो लक धमशा यों के ख को जमन नाजीवा दयों से मलाया। जैसा क इ तहासकार ऐरॉन जलेट बताते हैं : कॉ नी ने दावा कया क ‘अगर एक यहू दी ने ईसा मसीह से म े कया ... वह सफ़ इसी त य के आधार पर यहू दी धम से बाहर हो जायेगा; उसका पा तरण हो जायेगा, उसक रगों मे ं आय र का बहना ार भ हो जायेगा’। यहू दी के बारे मे ं यह धारणा मू ल प से कैथो लक चच क थी ...47 तीय व यु के बाद हटलर और जनसं हार के त घृणा ने न ल व ान और सुजनन व ान को यू रोपीय मु यधारा से समा कर दया, और आय न ल क अवधारणा को हटाने के लए वशेष यास कये गये, सफ शै णक श दभ डार से ही नहीं ब क यू रोप के जनमानस से भी।

भारतीय स यता पर दोषारोपण इस त य के बाद भी क वह यू रोपीय व ता ही थी जसने भारतीय पर पराओं को गलत ढं ग से आ मसात और वकृत करते हुए यू रोपीय राजनी तक पहचान को लाभ ँ ाने के लए उनका दु पयोग कया, अभी तक कुछ यू रोपीय व ानों क वृ पहुच यह आरोप लगाने क है क यू रोपीय न लवाद और नाजीवाद भारत क देहरी से ही आया है। कोल बया व व ालय के ा यापक शे डन पॉलक इसी वचार को बढ़ावा देते है।ं पॉलक के अनुसार, मीमां सा कूल ारा तुत ‘उ ा णवाद’ ने ‘उप नवेश बनने से पहले क भारतीय वचारधारा’ मे ं योगदान कया, और नाजीवाद ने इसे अपने ‘घर’-जमनी-मे ं लागू करने का य न कया।48 पॉलक तक देते हैं क यही ँ ा दया।49 जो भी वह कारण है जसने अ तत: ‘जनसं हार को वैध ठहराने’ तक पहुच हो, स य बलकुल अलग है। इ तहासकार राउल हलबग ने अपने तीन ख डों मे ं का शत मौ लक थ, ‘यू रोपीय यहू दयों का वनाश’ (The Destruction of the European Jews) मे ं जो पेश कया था वह इ तहासकार व लयम नको स (William Nicholls) के अनुसार : ‘म य काल मे ं चच के धा मक कानू नों और ना जयों के उ रकालीन कदमों के बीच तुलना के लए एक अनू ठ ता लका है जो अस द ध प से यह दखाती है क नाजी मौ लक नहीं थे, ब क उ होंने जानी-मानी नजीर पर अमल कया’।50 [2010 मे ं पॉलक (Pollock) को भारत सरकार ने प ी स मान दया था।] व हे म हॉबफास ने पॉलक के शोध थ का उपयोग दू रगामी भाव वाली अटकलों को गढ़ने के लए कया : या इस अ ् तन हत ढाँचे क पहचान ‘घोर नाजीवाद’ या ‘गहन मीमां सा’ के प मे ं करने क उतनी ही छूट नहीं ली जा सकती? और हमे ं कुमािरल और ो





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जो स को ‘घोर नाजी’ और ऐडॉ फ हटलर को ‘गहन मीमां सक’ कहने से कौन रोकेगा?51 हम प मी भारत वदों ारा ‘आय के आ मण’ आ द का हवाला देते हुए भारतीय स दभ मे ं अब भी आय अवधारणा का उपयोग करते रहने के अ भ ायों को देख सकते है।ं जैसा क अगले अ यायों मे ं दखाया जायेगा। यू रोपीय न लवादी पिरक पनाएँ कतनी आसानी से भारत मे ं वेश कर गयी है,ं जहाँ गोरी चमड़ी वाले ‘आय ’ और काली चमड़ी वाले ‘ वड़ों’ के स दभ मे ं इसे पुनपिरभा षत कया गया है। इस तरह के भेदों को सबसे पहले उप नवेश काल मे ं ो सा हत कया गया, ले कन भारत के व भ अ ययनों मे ं ये आज भी मजबू ती से पैर जमाने हुए है।ं

4 सा ा यवादी बाइबल चार भारतीय मानव जा त व ान का व प नधारण इस अ याय मे ं चचा होगी क कस तरह बाइबल क कहा नयों को उप नवे शत समुदायों पर ऐ तहा सक त यों के प मे ं थोपा गया और उनका उपयोग उप नवेशवादी भु व को उ चत ठहराने के लए कया गया। बाद के अ याय यह ं े क कस तरह एक झू ठा इ तहास भारत पर सां कृ तक और धमशा ीय दखायेग भु व अब भी थोप रहा है। च 4.1 इस वकास म को दखाता है। इसके मुख घटक न न कार हैं :

मू सा का मानव जा त व ान यू रोपीय व ानों और शोधकताओं ने ए शयाई और अ क समाजों क या या नू ह के जल- लय, हैम के अ भशाप, और बेबल क मीनार से स ब धत बाइबल के मथकों के मा यम से क । इसके पिरणाम व प जो हुआ उसे ाऊटमैन (Trautmann) ने ‘मू सा का मानव जा त व ान’ कहा, जो फर व भ कार के उप नवे शत लोगों के इ तहासों और उनक सं कृ तयों क या या करने का पैमाना बन गया। इससे मतभेद रखने वाले वर भी बने रहे, ले कन उनको अनदेखा कर दया गया या दबा दया गया।

हैम का मथक और अ

क उप नवेश नमाता

अ का ने यू रोप के सश अ भयानों के साथ-साथ दास- यापार के सल सले मे ं कये गये धावों को भी भुगता जसके तहत बड़ी तादाद मे ं कैदी बनाये गये अ क लोगों को दू र थ थानों मे ं भेजा गया था। दासता क सं था यू रोपीय और अमरीक अथ यव थाओं का एक मुख घटक बन गयी। बाइबल के हैमी मथक का उपयोग, जसमे ं नू ह ारा हैम क स तानों को अन त दासता का अ भशाप दया गया था, यू रो पयनों ने अ त े ों के चमड़े के रं ग क या या करने और दासता क सं था को उ चत ठहराने के लए एक था पत स य के प मे ं कया। इस हैमी मथक को आय आ मण के स ा तों से मला दया गया, और फर यह भारत मे ं जातीय व वधता के लए मुख या या बन गया। पिर श ‘ग’ इस वृ ा त मे ं हैमी मथक क के ीयता का रेखां कन करता है जो हाल के अ क नरसं हारों का कारण बना।

बेबल का मथक और भारत वद ीं













अ ारहवीं शती के उ र के अ णी भारत वद, सर व लयम जो स, ने बाइबल क कहानी बेबल क मीनार के मा यम से सं कृत और यू रोपीय भाषाओं के बीच के स ब ध क या या क । ह दू पुराणों और धम थों को ‘ईसाई स य’ के प मे ं वग कृत कया गया, और भारत के मू ल नवा सयों का वणन हैम क स तानों के प मे ं कया गया जो नू ह के जल- लावन के बाद भारत गये थे। बाइबल का यह मथक बाद मे ं भारतीय समाज क न लवादी घसी- पटी कहा नयाँ गढ़ने और न लवादी या याएँ करने का साँचा या मू ल आधार बन गया। इसने भारत मे ं अं ज़ े ी राज को भी भारतीयों को ज होंने ‘बाइबल के मौ लक स य’ को कर दया था, बचाने और स य बनाने वाले एक मशन के प मे ं उ चत ठहराया।

 

सं थागत त शै णक सं थानों मे ं से अनेक, जो आज भारतीय सं कृ त का अ ययन कर रहे है,ं उप नवेश काल मे ं खड़े कये गये थे। बाइबल आधािरत मानव जा त व ान क मुख थापनाओं मे ं से कई आज भी अ त व मे ं बनी हुई हैं और इससे स ब धत अ ययनों मे ं आज भी भावी है।ं





बाइबल का जा त स ा त और हैम मथक बाइबल के अनुसार, ाचीन काल मे ं एक महाजल लय हुआ था जसके बाद नू ह क स तानों ने धरती को फर से आबाद कया। नू ह के तीन पु थे हैम, शेम और जाफेथ। एक बार नू ह क न नता पर हैम हँस पड़ा, जससे अपमा नत महसू स करके उ होंने हैम क स तानों को अ भशाप दे दया क वे हमेशा के लए अ य दो पु ों क स तानों ं ।े 1 नू ह क तीन स तानों ारा व को कस तरह के दास व मे ं जीवन यतीत करेग आबाद कया गया उसके बारे मे ं बाइबल के इस वणन को यू रोप मे ं वा त वक इ तहास के प मे ं वीकार कया गया। जब यू रोप के औप नवेशकों ने व के व भ भागों पर क जा कया तब उनके मशनिरयों और यापािरयों का सामना अपिर चत गैर-प मी सं कृ तयों से हुआ। शी ही यू रोपीय कहा नयाँ गढ़ी गयीं ता क अ य सं कृ तयों क स पू ण जनसं या को नू ह के तीन पु ों मे ं से कसी एक क स तानों के प मे ं बाइबल के ढाँचे मे ं रखा जा सके। पर पर वरोधी यू रोपीय बु जी वयों के बीच इसको लेकर बहुत ववाद हुआ क येक गैर-यू रोपीय समुदाय कस तरह से इस ढाँचे मे ं आयेगा, यो क तब उस समुदाय के थान का नधारण बाइबल के अनु म के अनु प हो जायेगा। मू ल नवा सयों ारा व णत वृ ा तों को ‘ मथक’ और ‘अं ध व ास’ कहकर अ वीकृत कर दया गया। यू रोपीयों ने माना क यह उनका नै तक अ धकार है, और वा तव मे ं दा य व भी क वे सभी सं कृ तयों का ‘सही इ तहास’ लखे।ं ऐसे अ धकां श वणनों मे ं काली चमड़ी वाले लोगों क पहचान हैम क स तानों के प मे ं क गयी। और कसी भी सं कृ त को, जसे हैमी कहा गया, बबर, अस य, अनै तक, और समय-समय पर चालाक से बु मान बताते हुए वग कृत कर दया गया और इस लए उ हे ं दास व के लायक बताया गया। बाइबल के एक इ तहासकार, टीफन आर. हे स इसक या या करते हैं क लोगों के चिर को उनक चमड़ी के रं ग से जोड़ने क इस वृ — वशेषकर ईसाइयत वीकार करने क उनक मता—को शु से ही ईसाइयत मे ं सं थागत बना दया गया था : दो सह ा दयों से अ धक समय से बाइबल के पाठकों ने हैम और उनक ु स तानों पर हर बात के लए दोष मढ़ा है—दासता के अ त व से लेकर बँधआ था, यौन दुराचार और वकृ त, जादू -म , यो तष, मू त पू जा, जादू टोना और बुतपर ती तक। उ होंने हैम क स तानों को अ याचार, चोरी, वधम ग त व धयों, ईश- न दा, व ोह, यु और यहाँ तक क देवह या से जोड़ दया है।2 ं अ भयान के सं थापक मा टन लू थर, इसके बावजू द क वे क र यहू दी ोटे टेट 3 वरोधी थे, प प से व ास करते थे क हैम और उनक स ताने ं ‘शैतानी और े



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ु मे ं थीं। बाइबल ने, इस तरह से, शरीर क वशेषताओं को नै तक कटु घृणा’ के चं गल पतन के आधार के प मे ं यु करने और दास व को उ चत ठहराने के लए धमशा ीय आधार उपल ध कराया। ओिरगेन ऑफ अले जैं या (Origen of Alexandria, 185-254) ने, जो ार भक ईसाई चच के सं थापकों और मुख धमशा यों मे ं से एक थे, लखा क म के नवासी ब धक बने, यों क वे ‘प तत जीवन क ओर उ मुख है’ं और पापाचार मे ं ल है।ं उ होंने लखा : ं े क उनका पता हैम, जो अपने इस न ल के उ भव क ओर देखे ं तो आप पायेग पता क न नता पर हँसा था, इस तरह का याय पाने का अ धकारी था क उसका पु चनान अपने भाइयों का नौकर बने। ऐसी थ त मे ं ब धक होने क शत उसके यवहार क दु ता के पहले आयेगी। इस लए ऐसा अकारण नहीं क बाद क बदरं ग स ताने ं अपनी न ल क अकुलीनता का अनुकरण करे।ं 4 गो डे नबग वचा के रं ग के त ओिरगेन के दृ कोण का व लेषण करते हुए ‘बदरं ग’ श द के उपयोग क या या करते हैं : हमे ं पू छना ही चा हए क ओिरगेन ने म के लोगों के ब धक होने का वणन करते हुए उनक वचा के रं ग का उ ख े यों कया ... मैं सोचता हू ँ बाइबल मे ं दू सरी जगह काली वचा के उ ख े के स दभ मे ं ओिरगेन के यापक भा य से नकाला जा सकता है। वे या या करते हैं क सोन क युवती के साँवले रं ग 1:5 का कारण पहले क पापपू ण थ त है... ‘ज म क अकुलीनता के कारण काला’।5 1517 और 1840 के बीच, आकलन कया गया है क दो करोड़ अ कयों को ब धक बना कर और अमरीका भेज दया गया और इस तरह से दास बनाया गया क उसे सफ एक महा वनाश ही माना जा सकता है।6 अ ारहवीं शता दी तक आते-आते, यू रोप क अथ यव था को सहारा देने वाली दासता के मू ल सं थान बन जाने के कारण, हैमी मथक दासता को उ चत ठहरा कर न ली स ब धों के वमश पर हावी रहा। हे स लखते हैं क दासता का समथन करने वालों मे ं ‘डॉ टर, वक ल, राजनी त , पादरी और ा यापक जैसे स माननीय पेशव े र’ शा मल थे, ज होंने ‘हैम 7 के अ भशाप’ को एक ऐ तहा सक त य माना। इससे भी मह वपू ण यह क धमा तरण कर ईसाई बनने वाले अ कयों ने भी वयं अपने इ तहास के इस ववरण को वीकार कर लया, जैसा क यू रोपीय वा मयों ारा उ हे ं पढ़ाया गया। इस तरह, अ त े दास कव य ी फ लस ीटली ने 1773 मे ं लखा : ‘ईसाई यान रखे,ं केन जैसे न ो अ त े पिर कृत कये जा सकते हैं और फिर तों क कतार मे ं शा मल हो सकते है’ं ।8 सन 1843 मे ं अमरीका मे ं ‘गुलामी जैसी क वह नी ो या अ क न ल से स ब धत है’ (Slavery as it Relates to the Negro or the African Race) शीषक से एक पु तक का शत हुई। इसके लेखक ै ो ी े ो े े े

जो सया ी ट ने नू ह ारा हैम को शाप दये जाने क घटना का नाटक करण करते हुए अ त े ों क गुलामी को उ चत ठहराया : ओह हैम, मेरे पु , मैनं े तु हे ं और तु हारी न ल को ई र के आदेश से जो शाप दया है वह सफ इस अकेले कृ य के लए नहीं दया जसे तुमने अभी-अभी कया है; ब क ई र ने मुझे दखाया है क तु हारी सभी स ताने ं इस करण मे ं ं ी, सृ करने वाले ारा यह नधािरत कर दया तुम जैसे पता के समान हो जायेग गया है क तुम और तु हारे लोग मानवों के सभी पिरवारों मे ं सबसे नीचे क दशा ं ,े और को ा होंग,े यहाँ तक क जं गली पशुओ ं क तरह ब दी बनाये जायेग ं ,े भौ तक अ त व क अ नवाय थ त मानव समाज के दज मे ं नीचे गर जायेग से भी परे और नीचे ... और शा त और यु दोनों थ तयों मे ं उ हे ं तर कृत, अपमा नत और द लत न लों क तरह रहना पड़े गा।9 यह पु तक अमरीका मे ं उस समय क सवा धक बकने वाली पु तक हो गयी : वष 1843-45 के दौरान इसे यू यॉक मे ं तीन बार पुनमु त कया गया, और 1852-64 मे ं अकेले के टक मे ं इसके छह सं करण छपे थे।10 बाद मे ं इस पु तक को ‘गुलामी का बाइबल आधािरत बचाव’ (Bible Defense of Slavery) कहा गया, और इसके लेखक जो सया ी ट एक स य बन गये। 1895 मे ं एक और स े ईसाई ू प टेलर ने एक छोटी पु तका लखी जो बहुत लोक य हुई और उसके अनेक पुनमु ण हुए। इसका शीषक था—The Prophetic Families or The Negro – His Origin, Destiny and Status। इसमे ं बताया गया क कस तरह हैम का अ भशाप कैनान से होते हुए समू ची नी ो न ल पर आया : कैनान, जो न त ही नी ो पिरवार के पता है,ं एक ऐसी नय त को आ मसात कर चुके थे जो सफ कसी नकृ य के ही अनुकूल था। भ व यवाणी इस कथन के साथ शु होती है, ‘कैनान अ भश हो; वह अपनी बरादरी मे ं नौकरों का एक नौकर बने’ ... हम देखे ं क कस तरह इस का य मे ं अ त न हत दैव वधान को नी ो और सफ नी ो ारा पू रा कया गया।11

व लयम जो स ारा बाइबल के मानव जा त व ान के अनु प भारतीयों का मान च बनाना न लों के लए एक ‘पािरवािरक वृ ’ के ढाँचे क अनु म णका बनाने के वचार के प मी मानस मे ं आने का एक ल बा इ तहास है। मू सा या मोजेज को पार पिरक प से ‘उ प थ’ (The Book of Genesis) का लेखक माना जाता है, जो रा ों और नू ह क स तानों से नकली न लों का वणन करता है। ाऊटमन इस वचार के स दभ मे ं ‘बाइबल मानव जा त व ान’ कहकर बात करते है।ं 12 े

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अर तू के ‘स यताओं के पैमाने’ को जब बाइबल के मानव जा त व ान से मला दया गया तो इसने प म को एक ऐसे म को वीकार करने के लए तैयार कर दया जसमे ं गोरे लोग वाभा वक प से सबसे ऊपर रखे गये थे। सन 1780 से लगभग 1850 तक यह सामा य यू रोपीय नमू ना बन गया, जैस-े जैसे उप नवेशवादी भारत वद स ा त गढ़ते गये और ववेचना करते गये क कस तरह बाइबल के ढाँचे मे ं भारतीयों का मान च सबसे अ छे तरीके से बनाया जा सकता है। इन व जनों मे ं अ य और कई भारत वदों के अलावा व लयम जो स, मै स मू लर, ायन हाऊटन हॉजसन, और बशप रॉबट कॉ डवेल थे। जैसा क आगे दखाया जायेगा, उनके गहरे भाव ने आधु नक भारतीय अ मताओं को वभा जत और वख डत करके छोड़ा। व लयम जो स ने इस ढाँचे को एक साँचे क तरह अपनाया जसके अनु प उ होंने व क भाषाओं का मान च तैयार कया।13 इस कार भारतीय भाषा व ान का मान च बाइबल के मानव जा त व ान के अनु प तैयार कया गया। सं कृत क शं सा करने और यह तक देने के लए जो स व यात हैं क यू रोपीय पुनजागरण आं शक प से ाचीन भारतीय थों के अ ययन के मा यम से आया। ले कन भारतीयों के न ली ववरण तैयार करने क उनक पिरयोजना के लए उ हे ं कम ही जाना जाता है, जो, जैसा क ाउटमन ने बताया, ‘ ा य व ा वशारदों ारा एक त क गयी साम ी से बाइबल का तकसं गत बचाव ...’14 बन गया। नू ह के तीन पु — हैम, शेम और जाफेथ—बाइबल के ढाँचे मे ं सभी स य लोगों के पू वज माने गये। जो स से हैम क स तानों के प मे ं भारतीयों का, शेम क स तानों के प मे ं अरब वा सयों का, और जाफेथ क स तानों के प मे ं टाटर जनों का मान च तैयार कया। 15 जो स ने यह दावा करने के लए सं कृत क साम ी क अपनी नयी-नयी खोज का उपयोग कया क ह दुओ ं का चिर हैम जैसा था, और यह क सं कृत सा ह य बाइबल क घटनाओं से जुड़ा है। श दों क व नयों मे ं सं योग से कट होने वाली समानता के बाहरी आकलन के मा यम से जो स ने ह दू देवता राम को बाइबल के रामा से जोड़ा, और राम के पु कुश को बाइबल मे ं हैम के पौ कुसा से, आ द-आ द। समान व न वाले नामों और सं योगवश आये सम वनीय श दों का उपयोग करते हुए जो स ने उनके बाइबल मू ल के बाहरी आकलन क को शश क । उनका स ा त था क नू ह के जल लावन के बाद शी ही राम ने भारतीय समाज का पुनगठन कया। इस लए भारत बाइबल से जुड़ी सबसे पुरानी स यताओं मे ं से एक है। उनक पिरयोजना के तहत भारतीय ँ अवधारणाओं और श दाव लयों क पु करने के लए बाइबल से स ब ध ढू ढ नकाले गये। उनका उ े य यह मा णत करना था क सं कृत थों ने बाइबल मे ं दये गये मोजेज के वणन क पु क है। ऐसा करने के म मे,ं जो स ने मनु को आदम माना और व णु के थम तीन ँ ा। उसके बाद जो स ने एक अ य अवतारों को नू ह के जल लावन क कहानी मे ं ढू ढ े े ें ों े े ी े

मनु का सृजन कया, जसके बारे मे ं उ होंने दावा कया क वे नू ह ही थे। इस वल ण ववरण मे,ं नाव पर सवार आठ मनु यों क बाइबल क कहानी वा तव मे ं मनु के साथ जलयान मे ं जा रहे सात ऋ षयों के बारे मे ं है।16 व णु के चौथे अवतार नर सं ह को नम द के प मे ं अनू दत कया गया, जो हैम के वं शज थे और बेबल क मीनार से स ब थे। दू सरे श दों मे,ं सं कृत सा ह य क वैधता और ासं गकता को मापा गया और आधार यह बनाया गया क बाइबल क मू ल कथा मे ं सं योगवश यह कहाँ और कतना मेल खाता है।17 वे भारतीय त व जो बाइबल मे ं वाभा वक प से सटीक नहीं बैठे, उनको या तो जबरन सटीक बैठाने के लए तोड़ा-मरोड़ा गया, या सीधे अ वीकृत कर दया गया। उदाहरण के लए, जो स ने बाइबल के समय के पैमाने का उपयोग कया जसे ं लोगों ारा था पत कया गया था, जैसे आच बशप यू शर पहले के टश ोटे टेट के स हवीं शता दी का ऐलान क ई र ने व क रचना ईसा पू व 4004 मे ं क थी, और नू ह का जल लावन ईसा पू व 2349 मे ं हुआ था। इसका योजन था भारतीय युग गणना को अ वीकृत कर देना यों क उसमे ं बड़ी अव ध शा मल है जो लाखों और अरबों वष के बारे मे ं बताती है (जो, सं योगवश, ा ड क आयु के स दभ मे ं समकालीन वै ा नक आकलनों के काफ नकट है)। अगर सं कृत थों मे ं कसी बात का उ ख े था जो कसी तरह बाइबल मे ं सटीक नहीं बैठा तो उस पर मथक का ठ पा लगा दया गया। जस कसी बात को ‘सटीक’ बैठा दया गया वह जो स के अनुसार भारतीयों का इ तहास हो गया। इसी तरह से वै दक और पौरा णक थों को बाइबल के काल म मे ं पचा लया गया। काल पैमाने के बाइबल के त ढाँचे ने ही कई दशकों बाद मै स मू लर को भारत पर क थत आय आ मण क त थ को तय ँ ा दया, जो आज तक व ानों को भा वत करता है। करने तक पहुच यू रोपीय व ानों ने ाचीन यू नान और रोम को भी प मी स यता के ोत के प मे ं देखा। जो स ने सं कृत के अपने अनुवादों को कुछ इस तरह से करने का यास कया क वे यू नानी-रोमी ढाँचे मे ं सटीक बैठें। उ होंने ह दू देवताओं और यू नानी-रोमी ृ ला काल मे ं मू तपू जकों (pagan) के देवताओं के बीच अनेक समाना तरों क ं ख बनायी। उ होंने समझाया क ये सभी स यताएँ हैम क वं शज थीं जो प तत होकर मू तपू जक बन गयीं। अ तत: यू रोपीय ईसाइयत ारा यू नानी-रोमी लोगों को बचा लया गया, ले कन ह दू मू तपू जक ही बने रहे। ह दू और यू नानी-रोमी देवी-देवताओं के बीच जो स ारा बताया गया स ब ध आज भी टका हुआ है, और उ हे ं ह दू और गैर- ह दू दोनों स ा मानते है।ं बाइबल के ढाँचे मे ं ाचीन भारत का जो स का मान च उन अनी रवा दयों के व भी एक सा य क तरह काम आया जो ईसाइयत का वरोध करते थे। उ होंने ह दू धम का उपयोग उस महाजल लावन के बाद के बाइबल के इ तहास के एक वत पु करण के प मे ं कया। अपने उ े य को आगे बढ़ाने के लए ह दू धम औ ई







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और ईसाइयत के बीच समानता के े ों का उपयोग उ होंने बढ़ा-चढ़ाकर कया। वा तव मे,ं उनके ारा ह दू धम थों का उपयोग ईसाइयत के समथन मे ं तक देने के लए कया गया। इस यापक उ े य के कारण जो स ने ह दू धम को एक ऐसा थान दया जहाँ वह ईसाइयत के लए ख़तरा न होकर उसक पु करता था। भारतीय ईसाइयत के व ान र सया एस. सु गथराजा ने ट पणी क है क कस तरह व लयम जो स का भाषाशा ह दू थों के पाठ को बाइबल के मथक मे ं सटीक बैठाने के लए एक धमशा ीय पिरयोजना बन गया। सु गथराजा लखते हैं : ईसाइयत को पुन: सुदढ़ ृ करने क च ता के साथ जो स क या या-स ब धी रणनी त व का कालानु मक मान च फर से तैयार करने क थी। उनके काल म के ढाँचे मे ं सटीक न बैठने वाले बो झल और ल बे भारतीय इ तहास को उ होंने सीधे-सीधे खािरज कर दया। [....] बाइबल के ख ड जेने सस मे ं जो इ तहास है वह अ य इ तहासों के नणय के लए आधारभू त मानद ड बन गया, और जो सटीक नहीं बैठा उसे जबरन ठूँस कर अ दर बैठाना, नामो नशान हटाना अ नय त यं जनापू ण पिरक पनाएँ मानकर खािरज कर देना पड़ा था।18 जो स के मन मे ं कोई स देह नहीं था क ईसाइयत ही एकमा स य था। उ होंने ह दू देव ा, व णु और महेश का च ण ईसाई नटी के प तत सं करण के प मे ं कया, जो ईसाई नटी क कृपा से प तत होकर मू तपू जकों के बहुदव े वादी हो जाने के कारण हुआ था। उनका व ास था क यू रोपीय जनों के पास े तर ता कक द ता थी और स यता मे ं वे ए शयाइयों से बहुत आगे थे। व ान के े मे ं ए शयाई ‘केवल ब ’े थे। भारतीय खगोलशा और व ान के अ ययन मे ं उनक च इ तहास को समझने के लए थी, इस लए नहीं क उनमे ं वतमान या भ व य के लए ासं गक कोई मह वपू ण ग णतीय या वै ा नक योगदान करने क स भावना थी।19 सं कृत के उनके ऐसे सभी व तापू ण अ ययनों के बाद भी, जो स ने भारतीयों के त ती घृणा अ भ य क , और उनके बारे मे ं इस कार लखा : ... मो हत और मू ढ़ ... जो वत ता को एक वरदान मानने के बदले एक अ भशाप क तरह वीकार करेगा, अगर इ हे ं ऐसी वत ता देना स भव हुआ, और उसे जहर भरी सुराही मानकर अ वीकार कर देगा...20 ाउटमन ने दखाया क कस तरह जो स ने बाइबल के मानव जा त व ान के भीतर भारतीय समाज को बैठाने के लए समझौते कये। उदाहरण के लए, 1794 मे ं मनु मृ त का अनुवाद करने के बाद वे इससे भली-भाँती पिर चत थे। फर भी, वणयव था का उनका वणन मू ल मनु मृ त के वणन क एक वकृ त मा था, और इस कार बाइबल के मानव जा त व ान मे ं भारतीयों को बैठाने मे ं उ हे ं सहायता मली। ं के सेट ं पॉल कथी ल मे ं उनक उनके नधन के बाद, ई ट इ डया क पनी ने इं लैड एक तमा खड़ी क जसमे ं उ हे ं मनु क पु तकों को थामे दखाया गया था। सं कृत थों को तब तक बाइबल स ब धी इ तहास को बल देने के लए था पत कया जा ै ई ों े े े ें ो े े ो ों े ं े े

चुका था, न क गैर-ईसाइयों से ख़तरे के प मे।ं जो स उन पहले-पहले लोगों मे ं से थे ज होंने ईसाइयत क व सनीयता को बढ़ाने के लए ह दू धम का उपयोग कया ं था। ढ़वादी ोटे टेट त ान ने उनक ज टल और पेचीदा भू मका के लए उ हे ं स मा नत थान दया।21 भारत के त ार भक भारत वदों के आकषण का एक अ य कारण लॉड मोनबोडो (Lord Monboddo, 1714-99) क पु तक थी। लॉड मोनबोडो ने ाचीन भारत को म से जोड़ा था। ले कन, म क च ल पयों को अ तत: पढ़ लये जाने पर और सं कृत क एकता का उनका स ा त म या मा णत हो गया। उस समय पौरा णक वणनों मे ं आये भारतीय थानों को बाइबल के भू गोल और यू रोपीय दृ यावली मे ं घुसाकर देखने का चलन शै णक े ों मे ं था।22 सं कृत थों से ं के इ तहास का ‘स यापन’ कया गया जसमे ं सा य के आधार पर ाचीन आयरलैड बाइबल मानव जा त व ान आधारभू त तमान के प मे ं काम आया।23 दू सरे श दों मे,ं भारतीय स यता क समे कत एकता क ब ल चढ़ा दी गयी, यों क इसके व भ अवयवों को एक-दू सरे से और भारतीय स दभ से अलग कर दया गया था और उनका उपयोग चु न दा तौर पर बाइबल और यू रोपीय े ता को बल देने वाले ह थयारों के प मे ं कया गया। सार यह है क जो स के कृ त व ने तीन अ त न हत स ा तों को एक कया : 1. व के सभी लोगों के उ भव से स ब धत बाइबल मे ं व णत मोजेज क कहानी का उपयोग उ होंने अपने मानव जा त व ान के प मे ं कया ता क वे सभी का वग करण कर सकें। 2. गैर-प मी थों मे ं पायी जाने वाली घटनाओं के कालानु म को ईसाई अ धकािरयों ारा नधािरत काल-ख ड मे ं परोना ही था। जो उसमे ं सही प से नहीं समा सका उ हे ं या तो तोड़-मरोड़ कर बैठाया गया, या मथक कहकर खािरज कर दया गया, या सीधे अनदेखा कर दया गया। 3. सं कृत थों मे ं पाये गये ाचीन ान को मानव क साझ वरासत के स दभ मे ं अ य धक स मान दया गया, और ईसाइयत के प मे ं तक देने के लए उसे चु न दा तौर पर आ मसात या सा य के प मे ं यु कया गया। जो स के काय के बाद, भारतशा क जमन और अं ज़ े शाखाओं ने भारत के स ब ध मे ं व टोिरया काल के वचारों और राजनी त को व प दया। अं ज़ े ों के वपरीत, जमन वचारकों पर उप नवेशवाद का भू त सवार नहीं था, ले कन वे एक जमन अ मता न मत करने के लए भारतीय ान के उ खनन मे ं च रखते थे। कुछ जमन व ानों ने भारतीय च तन क चोरी क जब क दू सरों ने उसके वरोध मे ं तक दये, और दोनों प ों ने जो व प दान कया उसी को जमन च तन के प मे ं जाना जाता है। ं े

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कुछ अं ज़ े ईसाई चारकों ने, जैसे चड कूल मे ं थे, भारतीयों क न ली हीनता क अपनी अवधारणाओं मे ं जो स के कृ त व को शा मल कर लया। अ य ईसाई चारकों, जैसे रॉबट कॉ डवेल, ने उ र भारतीयों को द ण भारतीयों से अलग करने और उ र वरोधी वड़ अ मता को ो सा हत करने क माँग क (इसक ववेचना छठे अ याय मे ं क गयी है)। भारत के स ब ध मे ं टश अवधारणा पर अं ज़ े सं कृत ों का चर थायी भाव था और इसने बाद मे ं भी भारतीय इ तहास क यू रोप के त रचना और मानव जा त व ान को भा वत कया। ाउटमन वणन करते हैं क कस तरह उ होंने ‘सामा यीकरण के सव तर पर वग करण और या या के स ा त को एक व प दया, जसने भारत के अं ज़ े शासकों ारा उ पा दत मानव जा त व ान से स ब वशाल साम ी को एक सीमा तक यव थत कया तथा उसे समझने लायक बनाया’।24 इस या को भारतशा स ब धी वरासत के प मे ं देखा जा सकता है, जसने भारत के बारे मे ं यापक े णयाँ और पिरक पनाएँ था पत क ं जो व ानों क पी ढ़यों तक ह ता तिरत होती आयी है।ं येल (Yale) के भाषा व ानी जोजेफ िएं रगटन (Joseph Errington) क हा लया पु तक ‘औप नवे शक सं सार मे ं भाषा व ान’ (Linguistics in a Colonial World),25 इस दावे का, क आय ‘न ल’ के लोग सं कृत बोलने वालों मे ं सबसे पुराने थे, रा ता तैयार करने मे ं व लयम जो स क भू मका क या या करती है। उस समय के कुछ यू रोपीय वै ा नकों ारा इस दृ कोण क न दा क गयी थी, ले कन यह अवधारणा मु यधारा मे ं आने मे ं सफल हो गयी जसका कारण था ार भक उप नवेशवादी भारत वदों क ल फाजी क ताकत, जो बना चुनौती के काय करते रहे और उप नवेशवादी अ धकािरयों ारा उ हे ं गौरवा वत कया जाता रहा। धीरेधीरे, कुछ हलकों मे ं एक आय न ल क पिरक पना को अनुपयु माना गया और पिरणाम व प ‘इ डो-यू रो पयन’ या ‘ ोटो-इ डो-यू रो पयन’ श दावली पिरक पत न ल के लए घुमा- फरा कर या मुलायम श दों मे ं कही गयी उ बन गयी। इ हे ं रचने मे ं उप नवेशवादी भाषावै ा नकों क अ मत श के बारे मे ं िएं रगटन लखते हैं : तब, व यापी ऐ तहा सक घटना के प मे ं उप नवेशवाद के त एक भावशाली दृ कोण यह है क चार शता दयों क छतरी और उलझ हुई घटनाओं को इस प मे ं पढ़ा जाना है क वे धरती पर सभी ओर लोगों, व तुओ,ं ँ ी, और ौ ो गक के अ धक मा ा मे ं और अ धक श शाली वाह के पू ज नमू ने पेश करती हैं ... इस दृ कोण से भाषावै ा नकों को एक छोटे, ब क ं ों के एक वशेष समू ह के प मे ं माना जा सकता है ज होंने औप नवे शक एजेट ... औप नवे शक श क सीमा रेखा के पार तक सं चार के लए आव यक वाहन तैयार कये। चाहे जतने भी व भ तरीकों का उ होंने उपयोग कया या वषय-व तुओ ं का वणन कया, उ होंने जाने-पहचाने अ रों को व मयकारी ों े ं

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भाषा क छ वयों मे ं पा तिरत कर दया : उनक लेखन णा लयाँ, या वतनी, याकरण, भाषा कोष, नदशपरक थ आ द लेखन के उनके काय के लए समान ार भ ब दु थे।26 औप नवे शक भारत वदों ने यह च तन वक सत कया क हालाँ क भारतीय उपमहा ीप पर यू रोप से हुए ार भक आय आ मण ने स यता का स म ण कया था, बाद मे ं भारतीय नीचे गर गये। इस लए उप नवेशवाद को एक अ छ व तु के प मे ं देखा गया, यों क यह स य आय-यू रोपीय सं कृ त और ए शयाई पिरवेश मे ं पहले क मलावट क नर तरता थी। नीचे गरे भारतीय भाइयों को उनके अतीत के गौरव तक उठाने के लए यू रोपीय जनों क आव यकता थी। बीसवीं शता दी के ार भ तक इसे एक त य के प मे ं देखा जाने लगा क अं ज़ े उप नवेशक भारत मे ं पहले वेश करने वाले े यू रोपीय-आय के पद च ों का केवल अनुकरण कर रहे थे। भारतीय लोक सेवा और उ तर श ा के उ मीदवारों के लए एक मानक पा पु तक माने जाने वाले ‘ऑ सफोड भारत का इ तहास’ (Oxford History of India) ने न ल क पिरक पना को प प से लखा : वै दक ऋचाओं से उनक क ड़यों को जोड़कर आय आ मणकािरयों क और काले, नाक वहीन डसपाट नाक वाल द युओ ं पर उनके थम भावों क एक उ चत सुसंगत छ व बनाना स भव हो गया है जनमे ं उनके वरोधी मू ल नवासी और शा सत जन शा मल थे।27

े भारतशा अं ज़

ीय सं थानों के एक सौ वष

नया-नया उपल ध भारतशा ीय ान भारतीय स यता को समझने और अं ज़ े ों क े ता को था पत करने के लए एक भावी उपकरण के प मे ं वीकार हो गया। भारत के बारे मे ं वशेषकर औप नवे शक दृ कोण से जानकािरयाँ तैयार करने और उ हे ं सािरत करने के लए भारत और टेन दोनों मे ं यापक शै णक अ द नी ढाँचा था पत कया गया। भारतीय थों और सं कृत श दाव लयों को यू रोपीय ढाँचे मे ं बैठाने के उनके यास के म मे ं इन सं थानों मे ं भारतवा सयों को सहयो गयों के प मे ं नयु कया गया ता क उनके पास जो ान था उसे वे ले सकें। इतना ही नहीं, उप नवेशवादी चाहते थे क भारतीय जानकािरयों का उपयोग अ य भारतीय व ानों को भा वत करने के लए कया जाये, और दीघाव ध मे ं भारतीय व ता क ग तशीलता को बदलने के लए उ हे ं म यव तयों के प मे ं यु कया जाये। ं ईसाई मत- चारकों और ई ट इ डया क पनी के उप नवेशवा दयों ने ोटे टेट अलग-अलग भारतशा ीय सं थानों क थापना क ।28 इन सं थानों मे ं से अनेक क थापना इस शासनादेश के साथ क गयी क भारतीय स यता को कमजोर कया जाये तथा अं ज़ े प को बल दया जाये। भारतशा के ार भक वष मे ं टेन ं

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ारा जन ाथ मक सं थानों क गये है।ं

थापना क गयी थी उनमे ं से कुछ च 4.2 मे ं दशाये

Fig. 4.2 : ईसाइ चारक-भारत वद गठजोड़ के लए उप नवेशवादी के वष

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1784

ए शया टक सोसाइटी, कलक ा

उस ा य व ा को बढ़ावा दया जाना जसका त न ध व व लयम जो स करते थे। उनक कुछ मुख उपल धयों मे ं से एक है अशोक के ा ी शलालेखों को पढ़ लया जाना। पर इसने केवल 1829 मे ं ही भारतीयों को सद यता दी; तब तक भारतीयों को सहायकों/मू ल सू चना देने वालों क तरह इ तेमाल कया जाता था, जनक कोई आवाज़ नहीं थी।

1800

फोट व लयम ई ट इ डया क पनी के सभी ‘लेखकों’ क तीन वष क कॉलेज, आव यक श ा इससे पहले क उ हे ं भ - भ पदों पर कलक ा भेजा जाए।

1806

ई ट इ डया ं कॉलेज, इं लैड ( जसमे ं चा स ां ट क मुख भू मका थी)

1814

कॉलेज ऑफ़ उप नवेशवादी शासक ां सस वाइट ए लस ारा ं जॉज, था पत, जो क त मल क पहचान एक व भ भाषाई फोट सेट म ास पिरवार के प मे ं करने वाले मह वपू ण य थे। ु ू पा डुं जॉज त मल और तेलग कॉलेज ऑफ़ फोट सेट ल पयों को एक और उनका अनुवाद करता था।

1818

सेरमपोर से मनरी, कलक ा

भारतीयों को ईसाई मत चार के लए लए मशनिरयों ारा खोला गया।

1823

रॉयल ए शया टक सोसाइटी,

व लयम जो स क ए शया टक सोसाइटी ऑफ़ कलक ा के टश त प मे ं था पत।

युवा इं लश लड़कों को ‘देसी’ हो जाने से और इं लश तौर-तरीके भू ल जाने से बचाना। ल य था युवा इं लश लोगों को भारत मे ं थत व व ालयों और पदों पर भेजने से पहले भारतीय सं कृ त के व श ा देना।29



त करने के

ल दन, जसक शाखाएँ म ास और ब बई मे ं भी थीं 1827

बोडे न चेयर, भार तयों पर राज करने के लए ई ट इ डया क पनी के ऑ सफ़ोड, अ धकािरयों को भारतीय भाषाओं और सं कृ त मे ं ं इं लैड पिर श त करने के लए। सं कृत अकाद मक अ ययन के े के प मे ं उभरी। यू नव सटी कॉलेज, ल दन, ए डनबरा और के ज मे ं मश: 1852, 1862 और 1867 मे ं सं कृत के आचाय नयु कये गये।

1862

हेलीवेरी ऐ ड सामा जक व ान के कई अ गा मयों ने इस इ पीिरय ल ट व व ालय मे ं श ा पायी, जसे केवल इस ल य से स वस कॉलेज बनाया गया था क ई ट इ डया क पनी के जनसेवकों को भारत के लोगों के बारे मे ं श त कया जाए। इन अ गा मयों मे ं मा थस और बे थम भी थे।

1888

इ डयन इं ट ू ट, ऑ सफ़ोड

मो नयर- व लय स ारा था पत।

भारत के बारे मे ं तोड़-मरोड़कर ान उ पा दत करने मे ं ऐसे सं थानों क भू मका को एक ट पणी के मा यम से आगे और दशाया गया है। सर मो नयर व लय स (Sir Monier Williams, 1819-99) ारा व यात सं कृत-अं ज़ े ी कोश क भू मका मे।ं ऑ सफोड मे ं सं कृत अ ययन के लए था पत त त बोडे न पीठ पर बैठे एक ा यापक के प मे ं मो नयर व लय स ने कनल जोजेफ बोडे न के उ े य के बारे मे ं बताया, ज होंने वह पीठ था पत क थी।30 मो नयर व लय स ने लखा : कनल बोडे न ने अपनी वसीयत ( दनां क अग त 15, 1811) मे ं बलकुल साफ़साफ़ कहा क उनके उदार अनुदान का वशेष ल य था—सं कृत मे ं धा मक थों के अनुवाद को ो साहन; ता क उनके देशवासी भारतवा सयों को ईसाइयत मे ं पिरवत तत करने क दशा मे ं आगे बढ़ने के यो य बन जाये।ं 31 मो नयर व लय स ने ये स पं याँ भी लखीं : जब ा णवाद के सश कले क दीवारों को घेर लया जायेगा, दुबल कर दया जायेगा, और सलीब के सपा हयों ारा अ तत: धावा बोल दया जायेगा, ई



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तब ईसाइयत क वजय पताका अव य ही लहरायेगी और यह अ भयान पू रा हो जायेगा।32 उप नवेशवादी भारतशा प मी श ा वदों और भारतीय व ानों के बीच 33 सहयोग पर आधािरत था। इस दृ कोण क तुलना आज के द ण ए शयाई अ ययनों मे ं इसी तरह क यव था से क जा सकती है, जसमे ं अमरीक सरकार, नगम, नजी फाउ डे शन, व व ालय और मानवा धकार गुटों के बीच मली-भगत है। इन स पक-सू ों और भारतीय सं थानों को नय त करने क उनक मता के बारे मे ं व तार से वचार इस पु तक के अगले अ यायों मे ं कया जायेगा।

5 लॉड िर ली ारा न ल मे ं जा त-वण का

पा तरण

अ ारहवीं शता दी मे ं यू रोपीय व ानों ने ‘न ल व ान’ का आ व कार करके उप नवेशवादी शासकों को एक ह थयार दे दया। उ होंने तुर त ही इस उभरते हुए े क भावी मताओं को पहचान कर इसका उपयोग शासन के एक भावी उपकरण के प मे ं करना शु कर दया। बाइबल के अ प स दभ ब दुओ ं पर आधािरत का प नक न ली को टयों का उपयोग करते हुए उ होंने इनको भारत के अनेक व श े ीय और भाषायी समुदायों पर इस तरह थोप दया जैसे कोई सं केत च लगाया जाता है। इन वदेशी वग करणों ने देश को वख डन और सं घष के माग पर धकेल दया। मै स मू लर वै दक सा ह य क या या दो न लों के आपसी सं घष के प मे ं करते थे। इस आधार पर उ होंने वेदों मे ं शारीिरक व श ताओं को ँ ना शु कर दया जससे व भ समू हों को शारीिरक व श ताओं के आधार पर ढू ढ पहचाना जा सके। और इस तरह मुलर ने व तौर पर नाक क ल बाई को इन व श ताओं का सबसे मुख भेद माना। सर हबट होप िर ली (Sir Herbert Hope Risley, 1851-1911) रॉयल ए ोपॉलॉ जकल इं टी ू ट (Royal Anthropological Institute) मे ं एक भावशाली औप नवे शक अ धकारी थे। उ होंने मै स मू लर क अटकलों पर आधािरत एक ना सक ता लका वक सत क । यह ना सक ता लका, बहुत कुछ कपाल व ा (Phrenology) क तरह, भारतीय समुदायों के ल णों को वग कृत करने के यास मे ं न लवाद का एक ह थयार बन गयी। भारत मे ं चार दशकों के अपने वास के दौरान िर ली ने ना सक ता लका को आधार बनाकर भारतीय समुदायों का गहन अ ययन कया। उनका उ े य आय समुदायों को अनाय समुदायों के अलग करना था। िरसली ने भारतीय जा तयों का वशाल वग करण और इ तवृ तैयार कया जससे वण- यव था के भीतर जा त यव था मे ं जो जीव त गुण और ग तशीलता थी, वह ठहरकर जम गयी।1 उप नवेशवाद से िे रत व भ अ ययनों ने जा तयों को पेशों के आधार पर पहचान के प मे ं नहीं, ब क न ली े णयों मे ं पा तिरत कर दया। ना सक ता लका ने न सफ जा तयों को आय और अनाय क े णयों मे ं वभा जत कर दया, ब क अनाय समझे जाने वालों को ह दू समाज क मु यधारा से अलग एक व श ण े ी मे ं वग कृत भी कर दया। िर ली ने भारत के क थक अनाय समुदायों क तुलना उन अ त े मजदू रों से क जो अमरीका के खेतों और बागों मे ं काम करते थे। आज जो अ क -द लत- वड़ पिरयोजनाएँ चलायी जा रही है,ं ी







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उनक यह पू व झलक थी, जो भारत के जातीय वभाजन क िर ली क पिरयोजना के अनुसार है।

मै स मू लर के काम को आगे बढ़ाना औप नवे शक काल से पहले भारत मे ं न ल, जातीयता, या अनुवां शक से जा त-वणयव था का कोई खास लेना-देना नहीं था। जा त-वण- यव था को व श ताओं के उस ढाँचे के प मे ं समझा जाता था जो क जी वका से उ प पार पिरक या वरासती सामा जक है सयत पर आधािरत था। जा त अ य त थानीय और गहन प से सं ग ठत सामा जक ढाँचा है। जा त क मह वपू ण व श ताओं मे ं से एक थी उसक ग तशीलता, जसे प मी भारत वदों ने प प से उपे त कर दया। यह सामा जक ग तशीलता के साथ-साथ पेशे क व वधता को बनाये रखता था।2 ये ामीण सामा जक ढाँचे ै तज प से सं ग ठत थे, न क एक के ऊपर एक वग कृत थे। जा त-वण- यव था क यही मू लभू त व श ता थी जसने गाँधी को आदश भारतीय ाम समाज के लए ‘महासागरीय दायरे’ के नमू ने क पिरक पना करने के लए िे रत कया, न क प मी परा मडीय ा प क ओर।3 जो भी हो, जा त पर जो सीढ़ी जैसा ण े ीब दृ कोण औप नवेशकों ारा थोपा गया उसने जा त मे ं उ प वकृ तयों के साथ मलकर एक न लवादी ढाँचे को ज म दया जसने जा त क वशेषताओं को पू री तरह वकृत कर दया और उसके नकारा मक ल णों को बहुत बढ़ा दया। मै स मू लर का, जो जा त के अ ययन के लए न ली ढाँचा तैयार करने के लए मु य प से ज मेदार थे, अपना ईसाई उ े य था। उनके दृ कोण मे,ं जा त : ... जो ह दुओ ं के धमा तरण के माग मे ं अब तक एक कावट स हुई है, भ व य मे ं धमा तरण के लए सवा धक श शाली इं जन बन सकती है, सफ य यों के लए नहीं, ब क भारतीय समाज के समू चे वग के लए।4 मै स मू लर ने ऋग वेद क जो या या क उसमे ं दावा कया गया क पहले सफ़ तीन वण आय थे, जब क चौथा वण, शू आय नहीं था। पर चाहे जो हो, उ होंने प त: वीकार कया क सं कृत थों मे ं आय और अनाय के बीच शारीिरक अ तर होने का कोई माण नहीं है। सं योग से उ होंने शारीिरक अ तरों का केवल एक स दभ दया— क ऋग वेद मे ं व भ जनजा तयों के लए उनक नाकों का वणन अलग-अलग ढं ग से कया गया था। उ होंने अपनी यह धारणा केवल एक सं कृत श द, अनास (ऋग वेद : ख ड 29.10) के आधार पर बनायी, जसका उपयोग ऋग वेद मे ं बार-बार कया गया है। वयं मू लर ने इस सामा य ट पणी से कोई मह वपू ण न कष नहीं नकाला। ले कन उनका पू वा ह उन लोगों के मा यम से ह ता तिरत हुआ, जो यह घृ णत काम खुले प से करने के लए उतावले थे। भारत का जो भी प मी अ ययन कया गया है उसमे ं जो सू सव या है वो है वह तरीका जसके े े े े े ों े े े ौ

अ तगत लेखक या व ान अपने से पहले के व ानों के लेखन से चु न दा तौर पर साम ी उठाते है,ं अ धकतर बना ासं गकता के और वह भी अपनी इ छा से नधािरत ाथ मकताओं के साथ। मै स मू लर के लेखन और वष बाद िर ली ारा उसका तोड़-मरोड़कर उपयोग करने का सं ग कुछ ऐसा ही है। अपे ाकृत युवा िर ली विर और स मै स मू लर के य व से बहुत भा वत थे। इन दोनों ने जन न लवादी स ा तों का वकास कया वह भारत भर मे ं लोगों क भावी पहचान को एक व प देने मे ं एक मह वपू ण कदम था। मुलर सावज नक प से सतक थे और अपनी छ व क र ा करना चाहते थे, इस लए उ होंने न ली परेखा तैयार करने के लए भाषा व ान का उपयोग करने क आलोचना क । ले कन परो और नजी तौर पर उ होंने इसे कई तरीकों से ो सा हत कया। उदाहरण के लए, 1901 क िर ली को जनगणना के पहले मू लर ने िर ली को लखे एक नजी प मे ं यह साम ी दी : ऐसा हो सकता है क खोप ड़यों, बालों, ने ों और वचा के वग करण का मेल समय के साथ भाषा के वग करण के साथ बठाया जा सके। हम यहाँ तक आगे बढ़ कर एक पिरक पना के तौर पर यह वीकार कर सकते हैं क दोनों अव य ही समाना तर चले होंग,े कम-से-कम शु आती दौर मे।ं 5 उसी प मे ं उ होंने िर ली को यह कहकर ो सा हत कया क मानव जा त व ान के छा ों ने ‘खोपड़ी को म त क का एक कवच’ माना है जो कसी य के ‘आ या मक सार’ का एक सू चक है।6 दू सरे श दों मे,ं जब सां कृ तक और भाषावै ा नक त वों के न ली अ भ ाय क बात आयी तो मै स मू लर ने दोमुहँ ी बाते ं क ।ं इस अ प ता को अ सर व धब श दावली मे ं जान-बू झकर बड़ी सू मता से परोया गया जसने िर ली जैसे अ धक खुले न लवादी लोगों को और आगे बढ़ने के यो य बनाया। रॉन ड इ डे न (Ronald Inden) ने इशारा कया है क भाषा को न ल के साथ मलाने के खलाफ मै स मू लर क चेतावनी एक पाख ड थी : हमे ं इस चेतावनी के कारण भटककर यह नहीं सोचना चा हए क वे व ान न लवाद वरोधी थे। उ हे ं न ल के स ा त पर भरोसा करने क ऐसी कोई आव यकता नहीं थी, यों क उनके पास उनका अपना वै क स ा त था जो भाषा के आधार पर अ य भाषाओं को (और कारा तर से स ब सं कृ तयों को) नीचा दखाने मे ं पू री तरह स म था। मै स मू लर का भाषावै ा नक वग करण हेगल े का तरीकरण था जसमे ं ... सां कृ तक भू गोल ही व इ तहास डबन गय था।7

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िर ली ने मू लर के लेखन मे ं सं योग से आये ना सका के वै दक स दभ को लया और भारत के अपने न लवादी मानव जा त व ान क के ीय वषय-व तु बना दया। उ होंने मू लर के ऋग वेद क या या को आगे और वकृत कर दया। सं कृत क बना कसी जानकारी के और पू री तरह मू लर के कृ त व पर नभर रहते हुए उ होंने गलत ढं ग से कहा क ‘उन लोगों क ना सकाओं के स दभ वेदों मे ं बार बार आये हैं जो आय को मैदानी जमीन पर का बज मले थे’। उ होंने ट पणी क क वेदों पर सरसरी नजर डालने वालों मे ं कोई ऐसा नहीं होगा जसका यान इस वणन पर नहीं गया होगा। उ होंने लखा क आय ने आ दम नवा सयों क ना सकाओं क ‘अ सर चचा’ क । ले कन ऐसा बलकुल नहीं था। िर ली भारतीय मानव जा त व ान के मुख आ धकािरक व ान बन गये। भारत मे ं तानी लोक सेवा के अपने ल बे और श शाली कायकाल ने उनके वचारों को बल दया। तानी सा ा य क काय णाली मे ं उनका लेखन शा ब हो गया। उ हे ं भारत क जनगणनाओं के लए आयु बनाया गया और इस पद का योग करके उ होंने भारतीयों के स दभ मे ं अपने वग करण और न ली ढाँचे को थोपा। उ होंने पार पिरक भेदभाव वाली जातीय े णयों का सृजन कया और जनगणना का उपयोग करते हुए उ हे ं वैधा नक मह व दया। वष 1910 मे,ं िर ली रॉयल ए ोपॉलॉ जकल इ टी ू ट के अ य बने।8 आज भी भारतीय समुदायों का जो कानू नी ढाँचा है, वह िर ली का बनाया हुआ है, और भारतीय समुदायों का उनका वग करण आज के वण-सं घष मे ं भावी है और भारतीय राजनी त का एक व प गढ़ता है। िर ली ने लखा क वे अपने ‘वै ा नक’ अनुसंधान क सहायता से ‘ ह दू जन समुदाय से अनाय क एक बड़ी तादाद को अलग कर देना’ चाहते थे।9 उ होंने न ल व ान के उन लोक य पैमानों को अपनाया जनका उपयोग ां सीसी वशेष करते थे, और जनके अनुसार नाक के आकार जैसी शारीिरक व श ताएँ वचा के रं ग के मुकाबले यादा भरोसे-यो य पैमाना थीं। िर ली नये-नये चलन मे ं आ रहे व ान मानव म त (Anthropometry) के एक उ साही प पाती थे, जसके तहत व भ कार के लोगों का वग करण करने के लए सर के व भ भागों को मापा जाता था। उ होंने भारत मे ं वयं जो नाप लये, उनके बल पर न कष नकाला क दो तरह के आँकड़ों मे ं उ ख े नीय समानताएँ थीं। ये दोनों आँकड़े थे—(1) ‘ क मों का ण े ीकरण’ जैसा क म तकों क माप के वशेष सू चकों ारा सामने आया था, और (2) ‘सामा जक ाथ मकता का ण े ीकरण’। उ होंने लखा क यह ‘हमे ं इस न कष को नकालने मे ं स म बनाता है क वण- यव था का नणायक स ा त न ली समुदाय है,ं न क जी वका पर आधािरत समू ह, जैसा क ाय: तक दया जाता रहा है।10 बं गाल का उनका 1891 का मानव जा त वै ा नक (ethnographic) अ ययन भारत भर मे ं उसी तरह के अ ययनों के लए आदश बन गया। उनके काय म के अनुसार ं

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बं गा लयों के म तकों और उनक ना सकाओं को कै लपरों से नापा गया ता क शारीिरक नाप के आधार पर वं शानु म था पत कया जा सके। अं ज़ े ों ारा भारतीयों के वग करण के लए मानव म त के व ान मे ं िर ली क ना सक ता लका मानक बन गयी, और इसके साथ ही नाकों क नाप के आधार पर वड़ों, स था लयों, और अ य समुदायों के बीच तुलना के लए काफ आँकड़े भी आ गये। िर ली ने इन ला णक आँकड़ों का उपयोग दू रगामी न कष क घोषणा करने के लए कया। भारत मे ं आय और अनाय आबादी के अपनी दो न लों के स ा त क पु का दावा करने के अलावा उ होंने ना सक ता लका के आधार पर व भ जा तयों का ण े ीकरण कया। उ होंने लखा : ‘ कसी जा त क सामा जक है सयत उसक ना सक ता लका के वलोम अनुपात मे ं बदलती है’।11 अपनी ना सक ता लका के आँकड़ों का उपयोग करते हुए वे और आगे बढ़े और जा तयों को ह दू और जनजा तयों को गैर- ह दू के प मे ं वग कृत कया। इसी तरह से ‘जनजा त’ क ण े ी आ धकािरक तौर पर सं थाब हो गयी, जसक पिरभाषा भारत मे ं अब भी कानू नी उ े यों के लए इ तेमाल क जाती है। िर ली क वशेष च भारत क उन जनजा तयों क नाप मे ं थी ज हे ं उ होंने ‘जं गली जनजा तयाँ’ कहा। उ होंने दावा कया क व भ जा तयाँ जीववै ा नक प से अलग-अलग न ले ं है।ं भारत मे ं अं ज़ े ों क जनगणनाओं के मा यम से इन वग करणों को जबरन लागू कया गया, जो हर दस वष के अ तराल पर क जाती थीं और येक जा त के लए यह अ नवाय था क वह अपने आँकड़े अं ज़ े ों क आ धकािरक वग करण णाली के अनुसार दे। वेदों क एक अलग ही या या क गयी जससे आय और आ दवा सयों के बीच प प से अ तर दखाया जा सके। वष 1912 के एक मुख स दभ थ ने वै दक दासों और द युओ ं को ‘काली वचा वाले जं ग लयों’ के प मे ं अनु दत कया, जब क सायण जैसे ाचीन भारतीय भा यकारों ने उनके अ तर क या या केवल धा मक आ था और भाषा के अ तर के प मे ं ही क थी।12 उप नवेशवादी भारत वदों ने मै स मू लर क वण क या या को और भी खींच-तान और तोड़-मरोड़ कर उसका उपयोग गोरी/काली न लों के अथ मे ं कया। इसके लए उ होंने सं य ु रा य अमरीका के द णी ह से के इ तहास के साथ-साथ द ण अ का के ृ कया। ऐसा उ होंने यह दावा करने के लए कया क भारत मे ं भी इ तहास को उ त उसी तरह का उ र/द ण न ली वभाजन है। आय/अनाय भारतीयों का मान च प मी न लवाद क तज पर गोरे/काले के प मे ं खींचकर सु प और नणायक बना दया गया। ाउटमैन ने वै दक सा ह य मे ं ‘अ य धक अथ नकालकर’ और ‘पठन साम ी को तोड़-मरोड़कर’ प मी न लवाद से उसका मेल बैठाने क आलोचना क है। उ होंने न कष नकाला : भारतीय स यता का न लवादी स ा त अ त े ों के त त े ों के न ली यवहार क तरफ़ इशारा करता है जो गृह यु के बाद सं य ु रा य अमरीका के भेदी

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भाव त द णी ह से और द ण अ का मे ं इ तहास के एक अवयव के प मे ं पाया जाता है, या फर एक ऐसे दुब ध स य क तरह जो ऐ तहा सक पिरवतनों से भा वत नहीं होता और जो वै दक काल के स दभ मे ं उतना ही असरदार है जसना क वह इस समय है।13

िर ली ारा वण को

ढ़ब करना

िर ली ने मै स मू लर के भाषावै ा नक सोपानों को लेकर उ हे ं भाषा तथा न ल के बीच एक ठोस स ब ध मे ं बदल दया। उ होंने तक दया : ‘यह त य सामा य अवलोकन का मामला है क कुछ न ले ं ऐसी व नयाँ उ प करती हैं जनका अनुकरण अ य न ले ं केवल अशु ढं ग से ही कर सकती हैं और इसे तकसं गत ढं ग से व न उ प करने वाली शारीिरक मशीनरी के बीच के अ तर से जोड़ा जा सकता है।’14 उनका आय/अनाय वभाजन काफ ठोस था और भाषाशा ीय नहीं, ब क मानव मतीय सा यों पर आधािरत था।15 अं ज़ े ी औप नवे शक शासन ने दावा कया क भारतीयों को व भ खेमों मे ं बाँटने के लए वै ा नक आधार का उपयोग कया जा रहा है। उनके शोध के आधार पर, भारतीयों को कतारब द पैमाने पर सात मुख न लों मे ं वग कृत कया गया, जनमे ं आय और वड़ों को दो पर पर वपरीत छोरों पर रखा गया था। उ होंने ‘सामा जक नमू नों’ को भी सात समू हों मे ं सं यो जत कया। अपने बचाव के लए उ होंने क र न लवाद और व तु थ त को बहुत यादा खींचने के वरोध मे ं अनेक इनकारनामे लखे। फर भी उ होंने ठ क वही कया—यानी क र न लवाद और हालत को बहुत यादा खींचना और चाहा क अ य लोग भी वैसा ही करे।ं उ होंने दावा कया क आँकड़ों के अनुसार, ‘समू हों के दोनों समु यों के बीच समानता’—यानी सात न ले ं और सात समा जक नमू ने—काफ नकट क थी। इस तरह उ होंने न कष नकाला क भारतीय जनजा तयाँ वण मे ं बदल गयी थीं। उ होंने व भ जनजातीय नमू नों का वणन मब ता से उनक आ दमता को आधार बनाकर कया जसमे ं वड़ों को सबसे नीचे रखा और शारीिरक म को उनका ‘ज म स अ धकार’ बताते हुए देवी को मानव ब ल देने वाला बताया।16 जन जनजा तयों ने पेशव े र वशेष ता वक सत कर ली थीं वे वण बन गयीं, जब क एक सी मत भौगो लक े मे ं समटी रहीं जनजा तयों को अब भी जनजा तयों के प मे ं ही वग कृत कया गया। िर ली जैसे व ानों ने दावा कया क यू रोपीय समाज अलग ही ढं ग से वक सत हुआ था। उ होंने लखा क : ‘यू रोप मे,ं वा तव मे,ं यह ग त ब कुल वपरीत दशा मे ं रही। जनजा तयाँ सुदढ़ ृ होकर रा ों मे ं बदल गयीं; वे वण क राजनी तक नपुं सकता 17 मे ं नहीं डू बीं’। च 5.1 िर ली के स ा त को दशाता है क कस तरह यू रोप मे ं ों

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न लों का समापन रा नमाण मे ं हुआ, जब क वण- यव था के कारण भारत मे ं रा ीयता कसी भी भावना क कमी रही। Fig 5.1 िरसले के अनुसार भारत और यू रोप मे ं न लों का भ वकास

  भारत मे ं कभी वैभवशाली रहे आय न न वड़ों के साथ घुल- मलकर दू षत हो गये थे, जससे वण- यव था का नमाण हुआ। िर ली ने लखा : ‘ सफ भारत मे ं ही आय का नकट स पक एक वशु काली न ल के साथ हुआ’।18 ‘ मुख न ल के वजेता लोगों’ के ‘उन म हलाओं के साथ यौन स ब ध बने जनको उ होंने कैद कया था’। ले कन ‘यह न ही नहीं उठता’ क ‘ जन पु षों को उ होंने जीता’ उनको ‘ ववाह के मामले मे ं समान अ धकार’ दया गया होगा। इस लए ये गोरे लोग ही थे जनके काले रं ग वाली म हलाओं के साथ यौन स ब ध रहे जसके कारण व भ कार क घ टया सं कर न ले ं पैदा हु ।19 िर ली क धारणा का अ भ ाय था ‘ नचली न ल के त ऊँची न ल अथात काले वड़ों के त गोरी चमड़ी वाले आय का वरोधभाव’, जसके बारे मे ं उ होंने दावा कया क वह वा तव मे ं अ रश: वेदों पर आधािरत था।20 उनके अनुसार इसी तरह भारत मे ं वण- यव था आयी। उनके वण स ब धी स ा तों के का शत करने के बाद शी ही उनको टेन ारा नाइट क पदवी दी गयी। भारत पर उनका शोध थ सामा जक डा वनवाद (Social Darwinism) से मलता-जुलता था, इस मामले मे ं क े तर न ली समू ह वाभा वक और उ चत प से समाज के शीष पर थे, जहाँ वे वाभा वक चयन क या के 21 ँ ।े उ होंने तक दया क एक भारतीय के लए ‘वण, कबीला और मा यम से पहुच न ल’ अपनी पहचान का सबसे व सनीय प है, जसे जानने क अपे ा उससे रखी जा सकती है। 1901 क भारत क जनगणना के आयु के प मे ं िर ली ने जा त पर एक ख ड लखा, जसे अ य त भावी ‘इ पीिरयल गजे टयर ऑफ इ डया’ (Imperial Gazetteer of India) मे ं का शत कया गया,22 और यह श ा वदों तथा औप नवे शक शासकों के अ ययन के लए एक आधारभू त नमू ना बन गया। उ होंने तय कया क भारतीयों मे ं 2,378 मुख वण और जनजा तयाँ हैं (उपजा तयों समेत), तथा 43 न ले ं है।ं वण- यव था के अपने सोपानों को लागू करने के लए उ होंने ं ।े फैसला कया क जनगणना के प मे ं वे वण को अ रों के अनु म मे ं नहीं रखेग इसके बदले उ होंने इनको उस कार रखा जसे उ होंने ‘सामा जक ाथ मकता’ माना ी

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जसका आधार था ‘मू ल नवासी जनों क मा यताओं’ का वह मू यां कन जो उ होंने कया था।23 इस कार वण- यव था का एक सीढ़ी-नुमा अनु म तैयार कया गया और उसे आ धकािरक बना दया गया। उ होंने वण क जो व मयकारी सू ची बनायी, जसमे ं से हर य को सरकारी प भरते समय चुनना अ नवाय था, वह इतने अ धक पृ ों मे ं थी क ‘उससे गणना करने वाले और उसक पु करने वाले कमचािरयों तथा पिरणाम तैयार करने वाले के ीय अ धकािरयों को बेहद मु कलों का सामना करना पड़ रहा था’।24 आँकड़े एक करने मे ं गल तयों के शास नक ोतों को उ होंने वीकार कया, यों क लोगों ारा चुनी गयी अपनी वण स ब धी पहचाने ं : ... कमोबेश अनपढ़ जनगणना कमचािरयों के हाथों पा तर के एक सल सले से गुजरेगी, जो अपनी-अपनी भाषाओं मे ं उ हे ं लखते है,ं और उन लोगों के हाथों से भी जो उनक छँटाई, स दभ नधारण, पर पर स दभ- नधारण क के ीय या मे ं सार सं कलन करते है,ं और थानीय अ धकािरयों से प ाचार के दौरान भी, जसके पिरणाम व प अ तत: एक सारणी तैयार होगी...25 औप नवे शक अ धकारीत मे ं एक बार जब उनका ढाँचा था पत हो गया, तो फर िर ली ने वयं को उसके न ली अ भ ायों से अलग रखना चाहा, ज हे ं उ होंने ही ग त दी थी, और सभी बातों का दोष भारतीय मन-म त क क व च ताओं के म थे मढ़ना चाहा। हा या पद ढं ग से उलझ हुई और शास नक तौर पर अ यावहािरक इस णाली क रचना करने के बाद उ होंने भारतीयों पर दोषारोपण कया क उनमे ं इसे लागू करने क बौ क मता का अभाव था। उदारहण के लए, उ होंने दावा कया क भारत क नकारा मक थ त ऐसी रही थी : ... जो भारतीय मानस क कुछ व श ताओं ारा बढ़ायी और उकसाई गयी थी —त यों पर उसक ढीली पकड़, काय के त उसक उदासीनता, सपनों मे ं उसका खो जाना, पर पराओं के त उसका अ य धक स मान, अन त वभाजन और उप वभाजन के त उसका अनुराग, सू म तकनीक व श ताओं के त उसक गहरी सं वद े नशीलता, कसी भी स ा त को उसके दू र थ ता कक ँ ाने का उसका व तापू ण झान, और कसी भी ोत से आयी न कष तक पहुच सामा जक अवधारणाओं और उनके उपयोगों का अनुकरण करने और उनको अपनाने क उ ख े नीय मता’।26 िर ली ने व भ जा तयों के धम का अनुवाद ‘न ली भावनाओं’ के प मे ं कया, और उ होंने वै ा नक ढं ग से यह मा णत करने को अपना ल य बना लया क उ र भारत मे ं एक अपे ाकृत शु ‘आय ा प’ का अ त व था।27 नाक को लेकर उनक सनक अ य औप नवे शक शासकों को भी भा गयी। उदाहरण के लए, भारतीयों क नाक एडगर थसटन (Edgar Thruston) के वै ा नक अ ययन का ी ो ऐ ऑ े े

वषय बन गयी, जो ‘का स ऐ ड ाइटज ऑफ सदन इ डया’ (1909) के लेखक थे। थसटन ने तो ‘लो वबो ड ट टोमीटर’ (जो ार भ मे ं शराब के चुलाईघरों मे ं गुणव ा क जाँच करने मे ं यु होने वाला एक उपकरण था) तक का उपयोग भारतीय ामीणों क न ली व श ताओं को नापने मे ं कया।28 कुछ व ानों ने वै ा नक तक और आँकड़ों के आधार पर िर ली के इन वचारों का वरोध कया क ‘वण ही न ल है’ और ‘वण क सामा जक थ त ना सक सू चकां क के वलोम अनुपात मे ं बदलती है’। ले कन ऐसे आलोचकों को हा शये पर धकेल दया गया और उनक उपे ा कर दी गयी, यहाँ तक क उ हे ं िर ली जैसे ु ा भी झेलनी पड़ी।29 िर ली के काय क श शाली अ धकारी क य गत श त भारतीय आलोचना भी हुई थी जसक उ होंने साफ़-साफ़ उपे ा कर दी।30 यहाँ इस बात पर यान देना होगा क िर ली ने मू ल नवासी वड़ों के साथ आय आ मणकािरयों क पर पर अ तर या को दखाने के लए एक ढाँचे के प मे ं अमरीक दास था का उपयोग कया, यह कहते हुए क यह ‘उसी तरह का यवहार था जैसा क कुछ अमरीक अपने अ क दासों के साथ करते थे ज हे ं उ होंने आया तत कया था’।31 उ होंने या या क क यही न ली अ तर या ‘वण का अ तम आधार बन गया’।32 जैसा क हम आगे बारहवे ं अ याय मे ं देखग े ं ,े इन गलत न ली े णयों ने बाद के अ क -द लत- वड़ आ दोलनों के लए रा ता साफ़ कया। इसने ा ण वरोधी आ दोलनों क लपटों को भी हवा दी।

अ बेडकर ारा ना सक ता लका आधािरत न लवाद का ख डन डॉ. अ बेडकर (1891-1956), जो एक द लत नेता और भारतीय सं वधान के नमाता भी थे, ाचीन भारतीय समाज के इ तहासकार और व ान थे। मानवशा यों ारा का शत भारत भर क व भ जा तयों क वशाल ना सक ता लका के आँकड़ों का ँ ,े जसके लए उ होंने अ ययन करने के बाद वे एक उ ख े नीय न कष पर पहुच िर ली के ही आँकड़ों का उपयोग उनके शोध को गलत मा णत करने के लए कया : [नाकों के] नाप यह था पत करते हैं क ा ण और अछूत एक ही न ल के है।ं इससे यह न कष नकलता है क अगर ा ण आय हैं तो अछूत भी आय है।ं अगर ा ण वड़ हैं तो अछूत भी वड़ है।ं अगर ा ण नागा है,ं तो अछूत भी नागा है।ं अगर ऐसा ही त य है तो इस स ा त को ... बेशक झू ठ बु नयाद पर आधािरत कहा जाना चा हए।33 पिर श ‘क’ मे ं िर ली क ना सक ता लका के बारे मे ं अ तिर ववरण दये गये हैं और साथ ही मे ं दया गया है अ बेडकर का ख डन। इससे कोई वशेष अ तर नहीं पड़ता क ऐसी अवधारणाओं का आधार कोई त य है या नहीं। जब कोई अवधारणा ं

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सं थाब त मे ं घुस जाती है और अ तत: सामू हक जन मानस मे ं बैठ जाती है तो इसका उपयोग अनेक कार के दोहनों के लए कया जा सकता है।

6 ‘ वड़’ न ल का अ व कार औप नवे शक शासक और ईसाई मत- चारक मनघड़ त इ तहास और न ली पिरक पनाओं के आधार पर भारतीय उपमहा ीप के लोगों को इस हद तक वभा जत कर उन पर शासन करने मे ं स म रहे क उ होंने ‘ वड़’ नाम क एक न ल का ही अ व कार कर डाला। न ल व ान को इस तरह भारत मे ं लागू करने मे ं अनेक पर पर वरोधी अवधारणाएँ और अ त वरोध शा मल थे जनक सं या इतनी यादा है क यहाँ बहुत व तार से उनका जायजा नहीं लया जा सकता। इसके बदले यह अ याय इस बात क खोज करता है क कस तरह ईसाई मत- चारकों और औप नवे शक हतों ने वड़ पहचान गढ़ने के लए जा त-भाषावै ा नक व ता के साथ गठजोड़ करके काम कया। ं र डी. कै पबेल ां सस वाइट ए लस (Francis Whyte Ellis) और अले जैड ु ू (Alexander D. Campbell) जैसे अं ज़ े औप नवे शक शासकों ने त मल और तेलग के याकरणों का अ ययन कया और ता वत कया क ये भाषाएँ अ य भारतीय भाषाओं से अलग भाषा पिरवार क रही होंगी। एक अ य अं ज़ े शासक ायन हाउटन हॉजसन ने ‘तमु लयन’ श द उन लोगों क तरफ़ इशारा करने के लए गढ़ा ज हे ं उ होंने भारत क अनाय वदेशी जनसं या माना। जहाँ एक ओर ए लस और कै पबेल ने भाषावै ा नक स ा त ता वत कया, वहीं हॉजसन का दृ कोण न ल आधािरत था। ले कन जस उ रे क को ‘ वड़ न ल’ गढ़ने का य े दया जाता है, वे ऐं लकन चच (Anglican Church) के एक मशनरी व ान, बशप रॉबट कॉ डवेल (Bishop Robert Caldwell, 1814-91) थे। कॉ डवेल ने, जो ‘सोसाइटी फॉर द ोपेगश े न ऑफ द गॉ पल’ के लए ईसाई मत- चारक मशनरी थे, ए लस के भाषावै ा नक स ा त को एक मज़बू त न ली वृ ा त से जोड़ दया। उ होंने अपनी पु तक ‘क पैरे टव म ै र ऑफ द ै व डयन रेस’ मे ं वड़ न ल का अ त व ता वत कया, जो आज भी वड़वा दयों के बीच अ य त लोक य है। बशप कॉ डवेल ने ता वत कया क वड़ भारत मे ं आय से पहले से थे, ले कन ा णों ारा ठगे गये, जो आय के धू त त न ध थे। उ होंने तक दया क भोले-भाले वड़ों को आय ने धा मक शोषण ारा ब धनों मे ं रखा। इस तरह वड़ों को उनके जैसे यू रोपीय जनों ारा मु कराये जाने क आव यकता थी। उ होंने त मल से सं कृत श दों को पू री तरह हटाने का ताव रखा। जैसे ही आय ारा थोपे गये अं ध व ासों से वड़ मानस मु हो जाएगा, ईसाई धम- चार वड़ों क आ मा का उ ार करेगा। ी

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च 6.1 इस न लवादी उ म मे ं औप नवे शक शासकों और ऐं लकन चच ारा नभायी गयी भू मकाओं का सार तुत करता है।

 

हॉजसन का ‘तमु लयन’ आ व कार ु (H.T. Colebrooke, 1765-1837) ने एक मह वपू ण सन 1801 मे,ं एच.टी. कोल क आलेख का शत कया जसने दावा कया क सभी भारतीय भाषाएँ सं कृत से ही उ प हुई है।ं ले कन 1816 तक, जब ैं ज बॉप (Franz Bopp, 1791-1867) ं र डी. कै पबेल और तुलना मक भाषाशा का आधार था पत कर रहे थे, अले जैड म ास के कले टर, ां सस वाइट ए लस ने यह दावा करके एक मह वपू ण भू मका नभायी क द ण भारतीय भाषा पिरवार सं कृत से नहीं नकला था। म ास के ं जॉज मे ं ए लस के भावशाली म थे, जो भारत के बारे मे ं कॉलेज ऑफ फोट सेट औप नवे शक ान पैदा करने तथा भारत मे ं आने वाले नये अ धकािरयों को श ा देने का एक स य के था। ाउटमैन इसे ‘म ास कूल ऑफ ओिरए ट ल म’ कहते 1 है।ं कलक ा और म ास के औप नवे शक ा यवादी कूलों के बीच होड़ थी। ए लस ने कलक ा कॉलेज ऑफ फोट व लयम के मशनरी व ान व लयम केरी ारा सम थत स ा त से प प से अपना नाता तोड़ लया जसमे ं कहा गया था क सं कृत सभी भारतीय भाषाओं को एक कृत करती है। कै पबेल-ए लस क े

ु ू भाषा का याकरण’ (Grammar of the Teloogoo Language, पु तक, ‘तेलग 1816) ने भारत के आ तिरक सामा जक-राजनै तक ढाँचों मे ं बाद के ह त प े के लए ु ू का एक ही गैर-सं कृत दरवाजा खोल दया। इसने तक दया क त मल और तेलग पू वज था। इसके पहले कसी भी भारतीय च तक ने ऐसा दावा नहीं कया था। बाइबल मानव जा त व ान क अवधारणाओं के अ छ तरह था पत हो जाने के कारण यह सु न त करना मह वपू ण था क दोनों भाषाएँ उसी ढाँचे मे ं आये।ं ए लस ने दावा कया क त मल ही ू से जुड़ी है और ाचीन अरबी से भी। उनका तक था क चू ँ क व लयम जो स ने सं कृत को हैम क भाषा माना था, और अ य व ानों ने दावा कया था क सं कृत नू ह के सबसे बड़े पु जाफेथ से नकलकर आयी थी, तो नू ह के पु शेम अव य ही वड़ों के पू वज रहे होंग।े इस तक ने वड़ों को शकों क एक शाखा बना दया या यहू दयों के ही पिरवार मे ं रखा।2 ं जॉन टीवेस ं न अगला मुख पड़ाव 1840 के दशक मे ं आया, जब रेवरेड (Reverend John Stevenson, 1798-1858) ने, ज हे ं कॉ टश मशनरी सोसाइटी3 ारा भेजा गया था, और ायन हाउटन हॉजसन (Brian Houghton Hodgson, 180094) ने, ‘आ दम’ भाषाओं क एक ण े ी ता वत क । इस ण े ी मे ं उ होंने उन सभी भाषाओं को रखा ज हे ं आज वड़ तथा मु डा पिरवार के प मे ं वग कृत कया गया है, और जसका क थत अ त व सं कृत के भारत के बाहर से आने से भी पहले का बताया गया है। सन 1848-49 मे ं हॉजसन त मलों के बारे मे ं एक सु प स ा त के साथ सामने आये क वे भारत के आ दम नवासी थे जनक अनेक भाषाएँ आय के आ मण के पू व स पू ण रा मे ं फैली हुई थीं। सन 1856 मे ं आ दम स ा त को बशप कॉ डवेल क पु तक ‘ वड़ भाषाओं का तुलना मक याकरण’ के काशन के साथ ही व ानों के बीच एक जोरदार बढ़ावा मला।4 इस पु तक ने दावा कया क वड़ व का एक मुख भाषा-समू ह था।5 कॉ डवेल ने सं कृत के वड़ श द से पािरभा षक श द े व डयन (Dravidian) गढ़ा, जसका उपयोग सातवीं शता दी के एक थ मे ं भारत के द ण क भाषाओं को इं गत करने के लए कया गया था।6

कॉ डवेल : मानवजा त व ान मे ं भाषा व ान का

पा तरण

बशप कॉ डवेल द ण भारत मे ं अ णी मशनिरयों मे ं से एक बन गये ज होंने उस पहचान को ज म दया जो आज वड़ पहचान के प मे ं फल-फूल रही है।7 चौबीस ँ े थे, और बाद मे ं वष क आयु मे ं वे ल दन मशनरी सोसाइटी के साथ म ास पहुच सोसाइटी फ़ॉर द ोपेगश े न ऑफ़ द गॉ पल मे ं शा मल हो गये थे। उ होंने भारतीयों को भाषा और धम के आधार पर वभा जत कया, और इन धम मे ं से कुछ क परेखा बाइबल के चौखटों मे ं तैयार क । वे त नेलवेली के बशप बने, और उनके यापक ो

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शोध का पिरणाम द ण भारतीय पहचान पर एक सवा धक भावशाली पु तक ‘ए पो ल टकल ऐ ड जेनरल ह टरी ऑफ द ड ट ऑफ तनेवल े ी’ (A Political and General History of the District of Tinnevely, 1881) के प मे ं आया, जसका काशन ई ट इ डया क पनी क म ास े जडे ंसी ारा कया गया था। उनके काय के दू रगामी पिरणाम हुए। उसने ह दू धम से वड़ अलगाववाद के लए धमशा ीय आधार क थापना क , जसे चच का समथन ा था। इसके साथ-साथ द ण भारत के अनेक कालजयी ाचीन कला- ा पों को ईसाइयों ारा ह थयाने क या भी चलती रही। मु य धारा क ह दू आ या मकता से त मलों को अस ब करने क पिरक पना ने कॉ डवेल को ईसाई धमा तरण के लए एक नै तक तक दया।8 उनके नधन के अ सी वष बाद चे ई के मरीना समु तट पर एक अ य मशनरी व ान जी.यू . पोप क तमा के साथ कॉ डवेल क एक तमा खड़ी क गयी। आज शहर मे ं यह एक मुख ऐ तहा सक च है। ु (Timothy Brook) और आ े मड (Andre Schmid) ने ए शया टमोथी क मे ं पहचानों के सृजन पर अपनी पु तक मे ं आज क वड़ पहचान के सं थापक के प मे ं कॉ डवेल के मह व क या या क : अपने ‘तुलना मक याकरण’ (Comparative Grammar, 1856) नामक थ के मा यम से ही उ होंने यव थत प से वड़ वचारधारा क बु नयाद रखी... उस पु तक क भाषाशा ीय खोजों और न कष का उतना गहरा भाव नहीं पड़ा जतना उस तरीके का जससे काम लेते हुए कॉ डवेल ने इन खोजों और न कष क या या अपनी ल बी भू मका और पिर श मे ं क । उ होंने न केवल द ण भारत क अ पसं यक ा ण और बहुसं यक गैर ा ण ( वड़) आबादी के बीच एक न ली, भाषावै ा नक, और धा मक-सां कृ तक वभेद खड़ा करने मे ं सफलता पायी, ब क एक ाचीन और ‘शु ’ वड़ भाषा और सं कृ त का पुन ार करने और उसे वापस लाने के लए एक यव थत पिरयोजना भी उपल ध करायी।9 मशनिरयों क रणनी त दोहरी थी : पहली यह क वे त मल भ सा ह य का गहन अ ययन करे ं और त मल व ानों के बीच उनक भू िर-भू िर शं सा करे।ं दू सरी यह क वे त मल सं कृ त को इस ढं ग से पेश करे ं मानो वह शेष भारत से बलकुल अलग और पू री तरह वाधीन हो। उनक पु तक ने बाद क त मल न लवादी राजनी त के लए वैचािरक आधार दान कया। एक ईसाई व ान, च म मप ी ने या या क : द ण भारत क गैर- ा णवादी राजनी तक सं कृ त ने वड़ वचारधारा से अपनी रे णा ली : इस वचारधारा ने द ण भारत के लए एक वशेष भाषावै ा नक और न ली पहचान था पत क । गैर- ा ण आ दोलनकािरयों ने वड़ सं कृ त को, जसने अ सरहा त मल भाषा का झ डा बुल द कया, उ र ं ं े ो ें

क ह दू , आय या सं कृत क सं कृ त के वरोध मे ं खड़ा कया। वड़वाद और गैर- ा णवाद के अगुआ, रॉबट कॉ डवेल और जी.यू . पोप जैसे मशनिरयों ारा उपल ध कराये गये सां कृ तक और भाषायी सं साधनों से ही काम चलाते आये है।ं 10 मशनरी व ता ने एक नयी थानीय जातीय पहचान को उ िे रत कया, जसे अपनी ह दू कृ त को अ वीकार करने का नदश दया गया था। यह दखाना रणनी त क बात हो गयी क त मल धम का, ‘स य’ धम के बराबर का, एक बल नै तक आधार था, और ‘स य’ का अथ एके रवाद ही था। इन सकारा मक व श ताओं को अलग कया गया और दावा कया गया क ये त मलों के लए वदेशी व श ताएँ थीं, और उ हे ं उन ‘ वदेशी’ व श ताओं के वपरीत दखाया गया ज हे ं आय से जोड़ा जाता था। ऐ तहा सक और भाषाशा ीय पु तकें इस बात क ‘खोज’ के लए लखी गयीं क ाचीनतम त मल सा ह य मे ं अ ्ध-ईसाइयत पहले ही से थी। इन खोजों के बीच इस मथक का भी ज म हुआ क ईसा मसीह के नधन के ं टॉमस (St. Thomas) ने द ण भारत मे ं ईसाई धम का स देश दया बाद शी ही सेट था। यह एक ऐसा वचार है जसे अपनी थ त को बल बनाने के लए मु यत: कैथो लक चच ने बढ़ावा दया था। इस नयी ईसाई-अनुकूल पहचान को ा करने के लए दो कार के त मल धा मक सा ह य वशेषा धकारी बन गये। एक था यापक, ‘गैर-स दायी’ मानवतावाद, जो सं गमो र काल के थ कुरल मे ं सबसे अ छे तरीके से परोया हुआ था। दू सरा धम थों मे ं उपल ध शैव सै ा तक भ डार था जसे ईसाइयत का एक देशी एके रवादी त प के तौर पर देखा गया। इन ाचीन त मल कालजयी ु और मड दो मह वपू ण रचनाओं का उपयोग जस ढं ग से कया गया उसमे ं क कदमों क पहचान करते हैं : पहला, कुरल का उपयोग करते हुए ा णों और गैरा णों को अलग करना; और दू सरा, वड़ वचारधारा को शैव स ा त से एक व कदम के प मे ं जोड़ना ता क उसे आगे ईसाइयत से जोड़ा जा सके : कॉ डवेल का के ीय तक था क वड़ भाषाओं, लोगों और सं कृ तयों क वं शावली ा णों से अलग और वत है। यह वत ता और अ तर, उ होंने तक दया, इस त य से आया क वड़ पू री तरह से एक भ न ली शाखा के थे, जसे उ होंने शक शाखा कहा... यह मौ लक वभेद कॉ डवेल के वड़ 11 ‘पहचान’ के उ सव का आधार बना। कॉ डवेल ने ा णों को वड़ों का न ली ‘पराया’ बना कर थापना क । उ होंने दावा कया क द ण मे ं सं कृत केवल उप नवेशवा दयों के वं शजों’ ारा ही पढ़ी जाती थी।12 ं के मा यम से, ा णों को उप नवेशवादी बना इस दाँव-पेच कॉ डवेल जैसे असली उप नवेशवा दयों को त मलों के मु दाता

वड़ों के सार क ‘उन ा णवादी दया गया जब क के प मे ं तुत

कया गया!

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स ब धी स ा त का ज म : ‘धू त आय ा णों ने कया वड़ों का शोषण’

एक ओर कॉ डवेल ने वड़ पहचान पर इस उ े य से बल दया क उ हे ं भारत यापी ह दू समुदाय से अलग कया जा सके और दू सरी ओर उ होंने वड़ों को आय से नीचे माना, यों क आय को न ली तौर पर यू रोपीय समुदाय से नकला हुआ माना गया था। उनके अनुसार, वड़ों ने अपनी ‘मान सक सं कृ त’ और ‘उ स यता’ े तर आय से ा क थी। ले कन उ होंने आय क बराबरी ा नहीं क , यों क आय के उपहार ‘वण- यव था के पथरा देने वाले नयमों, अ यावहािरक सव रवादी दशन और नरथक कमका डों क बो झल दनचया से कुछ अ धक ही तस तु लत थे, जो उनके बीच उनक नयी सामा जक अव था के दशा नदशकों ारा लागू कये गये थे’।13 इस लए वड़ कमतर थे, ले कन उ हे ं स य बनाया जा सकता था। जो भी हो, धू त ा णों ने उ हे ं स य बनाने क आड़ मे ं उ हे ं ‘नयी सामा जक थ त’ मे ं अबोध ब दी बनाकर वा तव मे ं उ हे ं वशीभू त कर लया था। कॉ डवेल ने जस समाधान क सफािरश क वह यह था क द ण भारतीयों को सं कृत का भाव अ वीकार कर देना चा हए और बाइबल क े णयों के ँ नकालना चा हए। द ण भारतीय मा यम से अपनी मू ल सं कृ त को फर से ढू ढ धा मक जीवन मे ं वही त व, ज हे ं इस तरह ईसाइयत से मलता-जुलता देखा जा सका, ‘वा त वक’ त मल धम माने गए, जब क उन त वों पर ा णवादी भाव का आरोप जड़ दया गया जो उनके ऐसे परेखा- नमाण मे ं सटीक नहीं बैठे, और कहा गया क उ हे ं हटा दया जाना चा हए। उदाहरण के लए, उ होंने दावा कया क त मल मे ं ‘मू त’ के लए कोई अपना श द नहीं है, और यह भी क ऐसे श द सं कृत से लाये गये थे, और उ हे ं हटा दया जाना चा हए : त मल अपने सं कृत के एक बड़े ह से को या पू रे को ही बड़ी आसानी से हटा सकती है, और इसे हटाकर, अ धक शु तथा अ धक पिर कृत शैली तक वक सत हो सकती है...श दों क स पू ण सं या मे,ं जो इस समाधान सू मे ं शा मल है, केवल एक ही ऐसा है जसे दोषर हत औ च य के साथ य नहीं कया जा सकता ... शु वड़ ोत के समक : वह श द है ‘उ क ण आकृ त’ या ‘मू त’। यह श द और व तु, दोनों आ दम त मल यवहार और च तन के वभावों के लए वदेशी है;ं और ा णों ारा धम क पौरा णक णाली और मू तपू जन के साथ त मल देश मे ं लाये गये थे।14

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औप नवे शक काल से ही शेष भारत से अलग एक जातीय-धा मक त मल पहचान रचने और इस तथाक थत ‘त मल धम’ के लए ईसाई मू ल खोजने का नर तर यास चलता आ रहा है। जब एक बार गैर-सं कृत ढाँचे मे ं त मल भाषा क परेखा तैयार कर ली गयी, वशेषकर एक सं कृत- वरोधी ढाँचा, तो उसके बाद यही या त मल सा ह य के साथ अपनायी गयी। इसके तहत त मल पर परा के सा ह यक मू ल क या या मे ं जोड़-तोड़ शा मल हो गया, जसके तीन मु य त व थे : (1) त कुरल, एक ाचीन कालजयी त मल थ जसमे ं वैसा नै तक सा ह य शा मल है जो भारतीय मृ त-पर परा का ही अं ग है; (2) शैव स ा त, शैव दशन क एक वेदा त शाखा; और (3) ाचीन कालजयी भ सा ह य का वशाल भ डार। इनक सं ववेचना नीचे क गयी है, और उसके बाद अ धक गहनता से भी वचार कया गया है। च 6.2 कॉ डवेल और पोप ारा ईसाई- वड़ पहचान न मत करने के लए अपनायी गयी या को दशाता है। जन मु य त मल ाचीन कालजयी थों का उ ख े कया गया है, उनको इसके बाद रखा गया है। त कुरल रॉबट कॉ डवेल के दृ कोण से, वड़ मानस से कुछ भी नै तक नहीं उभर सकता है, न वयं , न वै दक धम के भाव मे।ं पिरणाम व प, उ होंने त कुरल को जैन भावों से उपजा बताया। एक अ य ईसाई चारक, जी.यू . पोप, इस बात पर जमे रहे क त व व ु र पर ईसाइयत का ही भाव था जसने इस सा ह यक रचना को ज म दया। उनके समय के ईसाई व ानों ने, और उनके दशकों बाद भी, इस स ा त को खािरज कर दया था। फर भी, आज इसे त मलनाडु मे ं ईसाई मत- चारक आ दोलनों मे ं पुन जी वत कया जा रहा है। Fig 6.2 त मल आ या मक पर पराओं का अभारतीकरण और ईसाई 

  शैव स ा त वड़वादी व ानों ने शैव स ा त को एक अ तीय त मल आ या मकता के प मे ं था पत करने का य न कया है जसका ह दू धम से कोई नाता नहीं है। हालाँ क शैव स ा त पर क गयी पार पिरक रचनाओं ने वेदों को अपने आ धकािरक ोत के ृ कया है, इसे सुदूर अतीत से एक अलग त मल आ या मकता गढ़ कर प मे ं उ त ढँक दया गया है। जी.यू . पोप और अ य ईसाई मत- चारकों के लए, शैव स ा त को ईसाइयत के अ य धक समीप देखा गया है, न क उसके बराबर का। इस कार, इसका उपयोग एक परो और झ नी ईसाइयत के प मे ं कया जाना है जो य और शु ईसाइयत क दशा मे ं एक सीढ़ी के प मे ं काम करता है। एक बार अगर लोग इस बात के त आ त हो जाये ं क वे स दयों से ईसाइयत के वकृत व प का ही अनुकरण करते आ रहे हैं तो उ हे ं वीकृत या समकालीन ईसाइयत मे ं आसानी से पिर कृत कया जा सकता है। त मल भ

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अनेक शता दयों क अव ध मे ं भ ों और मनी षयों ारा वशाल मा ा मे ं त मल भ और रह यमय सा ह य रचा गया था, जो त मल आ या मकता का आधार है। हालाँ क वे त मल मे ं लखे गये है,ं इस सा ह य क कृ त भारत यापी है। इस कार, त मल मे ं लखे गये सभी शैव ोत शव के बारे मे ं बताते हैं जो हमालय पर रहते है;ं यहाँ तक क उ हे ं ‘आय’ के प मे ं भी स बो धत करते है।ं ईसाई मत- चारकों और ों े









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वड़वा दयों ने इसके ोत को गढ़ लया, और उनमे ं लखी बातों क मरोड़ कर क ता क वे उनके उ े यों पर पू रे उतरे।ं

या या तोड़-

त कुरल का ईसाईकरण जॉज यू लो पोप (George Uglow Pope, 1820-1908) एक अ य स मशनरी भारत वद15 थे ज होंने यह दावा करने मे ं अ णी भू मका नभायी क त मल ाचीन कालजयी सा ह य अ-भारतीय और अ- ह दू है और ईसाइयत से जुड़ा हुआ है। पोप का पहला अनुवाद त मल कालजयी रचना त कुरल ( जसे ाय: सीधे-सीधे कुरल कहा जाता है) का था, जो नै तकता और यवहार पर लखा त मल थ है। इसक रचना महान स त त व व ु र ने क थी। युगों से यह त मल सा ह य क सवा धक दुलारी रचनाओं मे ं से एक रही है, जैसा क द इ साइ लोपी डया ऑफ इ डयन लटरेचर मे ं त कुरल क व क समापन ट पणी मे ं या या यत है : ‘अगर कसी त मलभाषी से 2000 वष के त मल सा ह य मे ं कसी एक पु तक का नाम लेने को कहा जाता है, तो त कुरल उसका त काल उ र होगा। कुरल, जो एक अणु मे ं स पू ण ा ड को समा हत करता है—यह ां ज ल सह वष से अ धक पुरानी 16 है’। जब एक बार कुरल को ह दू धम से अलग करने मे ं सफलता ा हो गयी, तो उसके बाद पोप ने इस मशनरी मामले को और आगे धकेला। उ होंने घोषणा क क त कुरल ईसाई भाव का पिरणाम था, क त व व ु र एक महान अ दू त थे ज होंने ईसाइयत से नै तकता सीखी, और वे इसे अपनी क वताओं के मा यम से बाँट रहे थे ता क भोले-भाले त मल जन ईसाई नै तकता से लाभ उठा सकें। त कुरल के अपने अनुवाद क भू मका मे ं पोप ने एक पिरदृ य रचा क त व व ु र ने कस तरह ईसाई वाचकों से ‘सरमन ऑन द माउंट’ (Sermon of the Mount) लेकर अपनी रचना क : च तनशील और आवे शत कर देने वाले क व त व व ु र के बारे मे ं हम यह पिरक पना करने के लए ववश हो गये हैं ... ईसाई श कों के साथ समु तट पर वचरण करते हुए और ईसाई वचारधाराओं को आ मसात करते हुए, अले जै यन कूल क व श ताओं से रँग,े और दन- त दन उ हे ं अपने अ भुत कुरल मे ं ढालते हुए ... पू व क एक पु तक जसक श ा ईसा मसीह के ँ है।17 ‘सरमन ऑन द माउंट’ क गू ज उ होंने बे झझक घो षत कया क त कुरल ने अपनी रे णा ईसाई ोतों से ा क : उस समय ईसाई भाव पड़ोस मे ं याशील थे, और बहुत-से ह से अपनी मू ल भावना मे ं आ यजनक प से ईसाई है।ं यह कहने मे ं मैं कसी तरह क झझक ीं

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महसू स नहीं करता क ईसाई थ उन ोतों मे ं शा मल थे जहाँ से क व ने अपनी रे णा ली।18 उ ीसवीं शता दी के भारत मे ं ईसाई मत- चारकों ने ऐसे वचारों को ो सा हत ं टॉमस ने, जो वयं ईसा कया।19 उनक मू लभू त पिरक पना ने दावा कया क सेट मसीह के अनुयायी थे, भारत मे ं सन 52 से वचन देना शु कया था। इस पर आठवे ं और नौवे ं अ याय मे ं व तार से ववेचना क जायेगी। ले कन इन वचारों को शता दयों पू व मु यधारा क ईसाइयत ारा ख डत कर दया गया था, यहाँ तक क कई बार उ हे ं पाख ड क भी सं ा दी गयी थी। मशनरी प धर वड़वादी व ानों ने भी ऐसे नकली दावों को वीकार करने मे ं क ठनाई महसू स क ।20 ईसाई भाव के स ा त को खािरज करने वालों मे ं से बहुतों ने त कुरल के एक जैन थ होने का दावा कया,21 यों क जैन धम एक ख़तरा नहीं था जस पर काबू पाना था, जब क ह दू धम ऐसा ख़तरा था। वा तव मे,ं यह झान, खोजने पर, वयं बशप कॉ डवेल से शु हुआ देखा जा सकता है, ज होंने अटकल लगायी क ऐसे उदा वचारों से यु नै तकता पर एक थ देसी त मल पर परा मे ं से नहीं नकल पाया होगा। त कुरल को जैन मू ल का बताना उनके इस व ास मे ं सटीक बैठता था क त मल जातीय प से घ टया थे। इसने उ हे ं ाचीन कालजयी त मल सा ह य के रचनाकाल को बहुत बाद का बताने पर मजबू र कर दया।22 कॉ डवेल इस बात के त आ त थे क ा णवादी भाव क अनुप थ त मे ं वड़ों को ईसाई बनाने के उनके माग क मु य बाधा थी ‘उनक (त मलों क ) सघन अ ानता’।23 इस लए, त कुरल को जैन मशनिरयों से जोड़ना, जो द ण भारत मे ं ाचीन काल से ही रह रहे थे, कुरल को ऐसी नै तक सं हता दान करेगा जो आ दम/ वड़ नै तकता से अपे ाकृत उ तर होगी, ले कन तब भी ईसाइयत से े नहीं होगी। यान रहे क वयं कॉ डवेल मे ं जैन धम के त कोई स मान नहीं था, और वे इसे अनी रवाद का ही एक प मानते थे। फर भी, जै नयों क तज पर ु और बनायी गयी त मल वचारधाराओं क परेखा एक उपयोगी उपकरण था। क मड इस ईसाई मत- चारक रणनी त क ओर कॉ डवेल के ही श दों मे ं इं गत करते हैं : ...आशा क जा सकती है क वड़ मानस अपनी ल बी अव ध के आल य से जगा दया जायेगा, और उ हे ं पहले से अ धक उ वल जीवन मे ं वेश करने के लए िे रत कर दया जायेगा। अगर रा ीय मानस और दय को उस सीमा तक मथ दया गया जैसा क हज़ार वष पहले इसमे ं जैन धम के त वों के आ मलने के समय हुआ था...यह आशा करना मुना सब होगा क ईसाइयत के भ य और ं ।े 24 दय को मथ देने वाले स य के चार से और भी मह वपू ण पिरणाम आयेग इस कार कुरल के जैन मू ल के होने का दावा ह दू धम का मुकाबला करने का एक अ तिरम वाहन था, इस उ मीद मे ं क इससे पू री तरह ईसाई क जा एक स ाई ँ े ो ो ई ई

बन जायेगा जो तब तक तज पर मँडरा रहा था। पोप का ईसाई-मू ल का स धीरे-धीरे ईसाई मत- चारकों और श ा वदों का कुटीर उ ोग हो गया जो कपोल-क पना को तब तक दुहराते रहे जब तक क यह ‘ था पत स य’ नहीं गया। समय बीतने के साथ इससे मतभेद रखने वाली व ता, खेल के मैदान ँ ली होती चली गयी। वभाजनकारी वचारकों के हवाले करते हुए, धुध

ात इस बन को

कुरल क ह दू कृ त को मटाना व ानों क आने वाली पी ढ़यों पर इस वकृ त के घातक भाव का आकलन करने के लए त कुरल के सु प ह दू सं कार को समझना ही होगा। उदाहरण के लए, ह दू धम सुख या ‘काम’ को जीवन के अ भ अं ग के प मे ं मा यता दान करता है। त कुरल के तीसरे अ याय के 250 दोहों मे ं इसक झलक मलती है, जो काम पु षाथ को सम पत है,ं और पोप जैसे मशनिरयों ारा अपनाये और चािरत कये ं शु तावाद के बलकुल वपरीत है।ं का मल वेले बल प करते जाने वाले ोटे टेट हैं क यह ‘उ ीसवीं शता दी क ईसाई उ मुख नै तकता’ थी जसने ार भक मशनरी अनुवादकों को यह घो षत करने पर ववश कर दया क कुरल का तीसरा अ याय (काम पु षाथ) ‘अनुवादकों के बना बदनामी मोल लए’ अनुवाद करने के यो य नहीं है। दू सरे श दों मे,ं इस तीसरे अ याय का अनुवाद करने पर अनुवादकों को बदनामी सहनी पड़े गी। पोप ने वीकार कया क उनके अपने ईसाई-पू वा ह ने ‘कुछ वष तक कुरल के तीसरे भाग को पढ़ने से वं चत रखा’।25 पोप ारा अपनी ईसाई सं क णता पर अ तत: वजय ा करने और कुरल के तीसरे अ याय के अनुवाद कये जाने के बाद भी उ होंने इसके लए इस आशा मे ं मा याचना क क ‘यही माना जायेगा क मैनं े ऐसा करके एक अ छ सेवा ही क है’।26 त कुरल मे ं अनेक अ याय ऐसे भी हैं जो जैन अ हं सा क मू लभू त अवधारणा के सीधे वपरीत है।ं उदाहरण के लए, खेतों क जुताई करने के व एक जैन नषेध 27 ँ ाता है। कुरल इसका उ ं घन है, यों क यह म ी मे ं रहने वाले जीवों को त पहुच करता है। यह अ हं सा के जैन स ा त का वरोध यह सलाह देते हुए करता है क राजा को ह यारों को ाणद ड दे देना चा हए, ठ क उसी तरह जैसे फसल वाले खेतों से खर-पतवार हटा दये जाते है।ं 28 इसके अलावा, कुरल अपने अनेक दोहों मे ं पुराणों और अ य ह दू थों का भी उ ख े करता है जनमे ं ह दू देवताओं का बार बार उ ख े है। कई दोहों मे ं इ का 29 उ ख े है। व णु के एक अवतार वामन ारा ा ड को मापने का भी वाभा वक 30 उ ख े है। कुरल कहता है क धन क देवी उन लोगों के घर मे ं नवास करती है जो अ त थ का स मान करते है।ं 31 यह आल य को ल मी के त अस मान बताते हुए इसके व चेतावनी देता है।32 ह दू शा ों क सं ग त मे ं यह देश क स प ता और ो













आ या मकता को एक यायी राजा के साथ जोड़ता है।33 यह आगे कहता है क राजा क श ा णों के धम थ और धम का आधार बनती है।34 ईसाई धमशा यों ने कुरल का उपयोग वड़वा दयों को ह दू धम के व एकजुट करने मे ं ह थयार क तरह कया, यह दावा करके क यह मू लत: समतावादी था और बाद मे ं ह दू धम के स पक मे ं आकर दू षत हो गया। ले कन कुरल के समतावाद के बारे मे ं कथन म त है।ं यह य प से समकालीन भारतीय समाज मे ं या सामा जक तौर-तरीकों क न दा करता है। यह कहता है क अगर कोई ा ण वेदों को भू ल भी जाये तो वह उसे बाद मे ं याद कर सकता है, ले कन उसे उस नै तकता से कभी कसी भी तरह नहीं डगना चा हए जसके साथ उसने ज म लया है।35 उसने यह भी कहा है क राजा जसे अपना दू त नयु करता है, उसे कसी भ पिरवार से होना चा हए।36 जो भी हो, कुरल ह दू धम के चौथे पु षाथ, मो का उ ख े नहीं करता। पोप ने इसका उपयोग इस बात के लए एक सा य के प मे ं कया क त मल समाज नै तक प से और अस य था, और इस लए त व व ु र ने मो को छोड़ दया था, यों क उ होंने ‘सोचा क उनके लोग उ तर श ा के लए तैयार नहीं थे’।37 आज क वड़ व ता क एक भ रणनी त है, और मो क अनुप थ त को यह दावा करने के लए या या यत करती है क कुरल ने वै दक आय के पारलौ कक पराभौ तकवाद को अ वीकृत कर दया था।38 ले कन इसक एक सीधी-सी या या है। अथशा ी रतन लाल बोस इं गत करते हैं क दू सरे बहुत-से भारतीय थ जैसे अथशा , केवल तीन मू लभू त रे णाओं और उ े यों (पु षाथ ) क ववेचना करते हैं और यह उसी ‘पार पिरक ान क सं ग त मे ं ही है क वग (तीन उ े यों के लए यासरत)— धम (नी त), अथ (भौ तक सं साधन) और काम (यौन और अ य आकां ाओं क पू त), के बीच पू ण स तुलन होना चा हए’।39 यायमू त रामा जोएस इं गत करते हैं क लोक य ह दू व ध शा मनु मृ त भी वग क चचा करता है। 40 इस कार, त व व े करते हैं और चौथे को ु र अगर केवल तीन पु षाथ का उ ख छोड़ देते हैं तो यह कोई अनोखी बात नहीं है; यह नी तपरक थों क भारत यापी पर परा रही है।

ईसाई मत के अनुसार शैवमत क

परेखा तैयार करना

शैवमत को ईसाई मत मे ं समा हत कर लेने के य न न तो वत: फूत थे और न ही उन मशनिरयों क वाभा वक त या ज होंने थानीय पर परा के सौ दय को खोज नकाला था। यह औप नवे शक व ानों ारा उपयोग मे ं लायी गयी एक रणनी त थी जो तब इ तेमाल क गयी जब शैव धमशा यों ने शैव मत पर कये गये शु आती हमलों का असरदार ख डन कर दया। ै





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ं मशनरी व ानों ने कठोरतम श दों शैवमत से अपने पहले ही स पक मे ं ोटे टेट मे ं शैव मत क न दा क । उदाहरण के लए, अमरीक मशनरी से मनरी (ब ीकोटा, ं गुट है, ीलं का) ने, जो त मलों के बीच काम कर रहा एक क रतावादी ोटे टेट अपने त मल-अं ज़ े ी जनल ‘मॉ नग टार’ (Morning Star, 1841) का उपयोग शैव मतावल बयों और त मलों को अँधरे े मे ं रह रहे लोग बताते हुए उन पर हार करने के लए कया : शैव धम के अजीबो-गरीब स ा तों और पिरक पनाओं मे ं कुछ भी ऐसा नहीं है जसे मानव के नै तक चिर को उ त करने के लए यवहार मे ं लाया गया होे या उसे अपने सं गी जनों के लए उपयोगी बनाता हो ... अगर व को शव मत मे ं धमा तिरत कर दया जाये तो कसी भी य को मनु यों क नै तकता या सुख मे ं सुधार क उ मीद नहीं होगी। हर य बना अपनी आ था क प व ता को म लन कये उतना ही बड़ा झू ठा या ठग—उतना ही बड़ा य भचारी—गरीबों का उतना ही बड़ा दमनकता—उतना ही बड़ा पाख डी और घम डी हो सकता है जतना वह पहले था।41 मशनिरयों ने आगे और दावा कया क शैवमत सफ़ ा णों क बनायी चीज़ है, और इसमे ं कुछ भी मू यवान नहीं है, और ईसाइयत के साथ इसका कोई मेल नहीं है। शैवमत पर यह हार नुकसानदेह हुआ, यों क यह इतनी य पर परा के त अ य धक अपमानजक था, और अ मुगा नवलार जैसे ीलं काई त मल शैव व ानों ारा इसका असरदार जवाब दया गया।42 इस लए, इस रणनी त को न दा-भ सना क जगह अपनाने और आ मसात करने वाली रणनी त मे ं बदल दया गया। चू ँ क भ सं गीत और नृ य से शैव स ा त का नकट का स ब ध था, जी.यू . पोप ने इसे ईसाई समायोजन के लए सवा धक आकषक ल य माना। वष 1900 मे ं उ होंने शैव स ा त के सवा धक लोक य थों मे ं से एक— त वशकम—का अनुवाद का शत कया। उ होंने या या क क मशनिरयों के लए इसका मह व यह था क शैव मत को त मल धम के एक ार भक व प के प मे ं स मानजनक प से तुत कया जा सकता था जसमे ं ईसाइयत के साथ मलती-जुलती व श ताएँ थीं। उदाहरण के लए, दोनों ने श ा दी क एक सव वैय क ई र है और यह केवल एक व का पराभौ तक अमू त करण नहीं है जैसा क बौ और जैन धम मे ं है। शैव थों ने गु क अवधारणा को मह व दया जसे पोप ने ईसा मसीह के समक ठहराया। उ होंने लखा क इस थ के रच यता ने : ...यह भी श ा दी क यह शव क कृपापू ण इ छा ही थी क वे मानव प धारण करे,ं पृ वी पर गु क तरह अवतिरत हों [...] उ होंने घोषणा क क मो का यह तरीका समाज के सभी वग के लए खुला है। उ होंने बड़े ही उदा प से मु आ मा क अमरता क भी श ा दी [...] यह देखा जायेगा क कस ों े ं





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तरह कुछ वषयों मे,ं जो मह वहीन नहीं है,ं शैव णाली ईसाइयत से मेल खाती है ...।43 अनेक त मलों ारा पोप को नवीं शता दी के एक महान शैव स त म णचावसागर के भजनों को अं ज़ े ी मे ं अनुवाद करने के लए बड़े आभारपू वक याद कया जाता है, जो त मलनाडु के हर शव म दर मे ं गाया जाता है,44 जो भी हो, पोप क भू मकापी- ट पणी शैवमत क छ व को ही ू ाथनाओं और ईसाई का य के अनु प बनाने के उनके यापक ईसाई मत- चारक उ े यों को साफ-साफ उजागर कर देती है : जो पचास क वताएँ यहाँ स पा दत, अनू दत, और या या यत क गयी है,ं द ण भारत के सभी महान शैव45 म दरों मे ं त दन गायी जाती है,ं ये सबक जबान पर है,ं और उ म लोगों के वशाल समू हों के दय को ठ क उसी तरह भाती है,ं जैसे डे वड क ाथनाएँ यहू दयों और ईसाइयों को य हैं ... इस बात क उ कट आकां ा होनी चा हए क यू रोप के महान और प व का य का अ धका धक सं चार म ण ा-वसागर से मलतीजुलती लोक य, सहज, लयब त मल क वता मे ं कया जाय। अगर कसी वदेशी ने त वसगम के अ ययन पर अन त क उठाया है (काश, ऐसा और अ धक पिरणाम के साथ कया गया होता!), तो द ण भारत के कुछ अं ज़ े ी और त मल मे ं नपुण देसी व ानों को भी स भवत: इस बात के लए लगाया जा सकता है क वे यह पता लगाये ं क या सौ दय और गहन च तन के अं ज़ े ी के अ य भ डार मे ं ही ू ाथनाओं से लेकर वतमान ईसाई का य मे ं अ ययन, नकल और अनुवाद के लए समु चत साम ी उ हे ं नहीं मल सकती।46 जब भी पोप त मल का य के बारे मे ं कुछ सकारा मक पाते हैं तो वे उसे ईसाइयत से मलता-जुलता द शत करना चाहते है।ं वे जो भी ‘ ’ पाते हैं उसका दोष ह दू अ ध व ासों पर मढ़ देते हैं : यह देखा जा सकता है क कस तरह शैव णाली, कुछ ऐसे वषयों मे ं जो मह वहीन नहीं है,ं ईसाइयत के अ य धक नकट है और फर भी कुछ दोष, जहाँ ँ ा दया गया है, तक इसे एक अ नवाय-सी लगने वाली आव यकता ारा पहुच वैसे हैं जो कहीं भी पाये जाने वाले सवा धक खेदजनक अ ध व ासों मे ं होते है।ं 47

बाद के ईसाई शा यों ने पोप से रे णा लेकर शैव स ा त को ईसाइयत के नकट च त करना ार भ कर दया, और फर भी उसमे ं सफल नहीं हुए। उदाहरण के लए, ल दन के एक ईसाई काशन ने 1942 मे ं दावा कया : [शैव स ा त] पू री तरह म े के एक ई र मे ं व ास करता है। इसका यह भी व ास है क म े का यह ई र, अपनी असीम क णा के कारण इस व मे ं अपने भ ों क सहायता के लए आता है। ले कन यह स ा त इससे आगे नहीं ै ै ई ई ई े े ी े े े

जाता। ईसाई व ास यह है क म े इससे भी आगे जाता है। ई र ने मनु य के चोले मे ं अपनी पहचान करायी। उसने ईसा मसीह के प मे ं ज म लया।48 ईसाई शा का वरोध करने वाले ह दू धमशा के त वों क हर नशानी को मटाने के बारे मे ं पोप बलकुल नमम थे। सन 1853 मे,ं जब एक ईसाई बने त मल वेदनायकम शा ी ने गरजे मे ं ाथनाओं के लए त मल भजनों क रचना क तो बशप पोप ने उनका इस आधार पर कड़ा वरोध कया क रचना मे ं पार पिरक त मल का य सं केत का एक त व शा मल था, जसे पोप ने गैर-ईसाई बताते हुए अ वीकार कर दया। भारतीय सा ह य के इ तहास के एक व ान टुअट लैकबन लखते हैं : शा ी ने, सफल हुए बना, यह कह कर अपने भजनों मे ं मौजू द ाचीन त मल क वता क पार पिरक टेक का बचाव करने क को शश क , क उसका उ े य था बना कसी आ म- लाघा क व न के, भ ों क ई र भ को अ भ य करना और इसके लए अनु ान करना ... 1853 मे,ं जस वष पोप को त जोर मे ं नयु कया गया था, अमरीक मशनरी ई. वेब ने ‘ यन लिर स फॉर ाइवेट ऐ ड सोशल वशप’ (Christian Lyricsfor Private and Social ं भजनों के सं ह Worship) नामक पु तक का शत क जो त मलों ारा ोटे टेट का पहला मुख काशन था, जसमे ं वेब ने मुखपृ पर इस बात का उ ख े कया क सं ह के अ धकां श भजनों के रच यता वेदनायकम शा ी थे, ले कन उ होंने क वताओं के सं केत छ दों को न तो इस का य सं ह मे ं शा मल कया और न ही इसके बाद 1859 मे ं का शत कये गये सं करण मे।ं 49 चु न दा तौर पर समायो जत करने और म फैलाने क यह मशनरी सफलता उसके बाद के अकादमीय त मल अ ययनों मे ं िरसती चली गयी है।

ाचीन कालजयी त मल सा ह य का सं शोधनवादी इ तहास एम.एस. पू ण लं गम प ई क पु तक ‘ए ाइमर ऑफ़ त मल लटरेचर’ (A Primerof Tamil Literature, 1904) ने इस मशनरी शोध को आधार के प मे ं लया और त मल सा ह यक इ तहास को आय/ वड़ सं घष के प मे ं गढ़ा। कुरल और शैव स ा त के पुनस दभ करण का काम इसी चौखटे के एक ह से के प मे ं कया गया। प ई ने कुरल क रचना क अव ध सन 100 तक के सं गम काल क नधािरत क , जसके बारे मे ं उ होंने दावा कया क वह सवा धक भावशाली त मल काल था और आय तथा सं कृत के भाव से मु था। उ होंने पोप क शं सा दुहरायी क कुरल ाचीन त मल वग का महानतम थ था, जसमे ं धम और दशन के अ य त वक सत व पों का वणन कया गया था। उ होंने अनुभव कया क इस थ मे ं नै तकता के सवमा य नयम हैं जनक शं सा स पू ण स य व ारा क जा सकती 50 है। ं ई े े े े

प ई के त मल सा ह य के इ तहास के अनुसार सं गम काल के बाद, सन 100 से 600 के बीच, बौ ों और जैनों का काल आया। उ होंने बल देकर कहा क बौ और जैन ( य यों और उनके धम दोनों के प मे)ं गैर-त मल थे। इस अव ध मे ं त मल रा तीन अलग-अलग जातीय समू हों ारा आबाद था : त मल, आय और बौ /जैन। प ई के अनुसार, जहाँ एक ओर बौ और जैन भी उ र भारत से आये, वे आय के वपरीत, ‘अपने पड़ो सयों के साथ शा त से रहते थे’, ‘कभी ाचीन अ दू षत शैवमत पर हार नहीं कया’, और वे वण- यव था क ओर उ मुख या उससे पिरचा लत नहीं थे।51 वड़वादी-ईसाई मत- चारक ववरण इस अव ध को त मल सा ह य के वकास के लए उपयु काल के प मे ं च त करते है,ं हालाँ क वड बना है क इसने ही देसी त मल धम को वकृत कया। इसके बाद सन 700 से 900 के बीच क अव ध को प ई ‘धा मक पुन थान काल’ कहते है।ं उ होंने दावा कया क यही वह अव ध है जब ाचीन त मल धम ने अनेक शता दयों के अ धकार के बाद वयं को फर से दृढ़तापू वक अ भ य करना शु कया, हालाँ क इसे ऐसा करने के लए उसे ‘आयवाद’ के साथ कई शमनाक समझौतों से होकर गुजरना पड़ा। वे या या करते हैं : कई स दयों के अस मे ं त मल शैवों को, जो शाकाहारी थे और जो आय को उनके माँस खाने और म दरा पीने डक वृ के कारण े छों और अछूतों के प मे ं देखते थे, आय के साथ-साथ रहने, आय क अनुकूल बनने क मता और राजनै तक अ नवायताओं के चलते अपने पड़ो सयों के तौर-तरीकों और आदतों से समझौता करना और वेदों क स ा को वीकार करना पड़ा, [...] शैवमत, वै दक नयमों को मानकर, वै दक या वै दक शैवमत मे ं पा तिरत हो गया।52 प ई ने त मलों से शैव स ा त को इसके सभी आय और पौरा णक भावों से मु करने और उसे वापस उस अ दू षत थ त मे ं लाने क अपील क जैसा क यह ाचीन काल मे ं था। उ होंने लखा : शैव स ा त द ण भारत का देसी दशन है और त मल मानस क सव म उपज। [...] यह उ और महान णाली आगमों या शैव धम थों पर आधािरत इस ऊँची और महान यव था को पौरा णक लेखकों ने दू षत कर दया जनका एकमा उ े य वेदों और आगमों के बीच सं ग त बठाना था। [...] आय के राजनी तक भु व के बढ़ने से दब जाने के कारण त मल जनों ने इस यव था को वीकार कर लया। [...] भ या धमपरायणता के त म े ने, जो शैव णाली का मू ल वचार था, लोगों को उ ता दान क चाहे उनका वण, रं ग या जा त जो भी रही हो [...] ऐसे यापक उदार, ऊपर उठाने वाले, तकसं गत धम के बारे मे ं ऐसी अवधारणा बना दी गयी है मानो यह पू णत: अनुदार, मनगढ़ं त, और सं क ण वाथ यव था हो। इस लए त मल जनों का दा य व है क पौरा णक ो

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पद को उतार फेंके जसने उनक दृ को धू मल कर दया है और ई र के बारे मे ं पुरानी पिरक पना को पहचाने जैसा क त मल आगमों पर आधािरत ाचीन त मल क वताओं मे ं त ा पत था।53 ‘ए ाइमर ऑफ त मल लटरेचर’ (A Primer of Tamil Literature) नामक इस पु तक को वशेष प से व व ालयों क परी ाओं क ज़ रतों को पू रा करने के लए लखा गया था, और इसमे ं व ा थयों के लए पिर श के प मे ं सवालों के नमू ने भी शा मल कये गये। इसके यापक उपयोग के मा यम से यह एक ऐसा थ बन गया जसे रॉन ड इ डे न ने ‘दादा गरी थ’ कहा है, और ह दू धम ारा क थत प से कये जाने के पू व के स ,े मौ लक ‘त मल धम’ पर आम राय इसी वजह से बनी हुई है। इस कार हम देखते हैं क कस तरह उप नवेशवाद ारा बैठाई गयी हीन भावनाओं के तकार के लए गौरवशाली अतीत क खोज मे ं त मल रा वाद का उदय हुआ। उसने वयं को ‘आय धम’ के व था पत कर इसे स प कया। त मल धम क इस रचना ने समतावादी भ पर आधािरत वण-मु नै तकता का 54 दावा करते हुए दबे वग को िरझाया। फर भी, प ई ने सचेत कया क समकालीन शैव स ा त को सही अथ मे ं समतावादी नहीं कहा जा सकता है, यों क यह अगड़ी-जा त और नचली-जा त गैर- ा णों के बीच सामा जक वभाजन पर मुहर लगाता है। उ होंने पिरक पत ाचीन अ दू षत अतीत के शु शैव स ा त मे ं लौटने का आ ान कया।

‘त मल धम’ बना ‘ ार भक भारतीय ईसाइयत’ मशनिरयों ारा गढ़े गये बाद के स ा तों ने यह दशाने के य न कये क कुरल और शैव स ा त आय वरोधी और ईसाइयत के सदृश थे। हाल मे,ं इ डया इज़ ए यन नेशन (India is a Christian Nation)55 नामक एक अ य धक अनुमो दत ईसाई मत- चारक चार पु तक कॉ डवेल और पोप ारा त मल आ या मकता को ईसाइयत के एक अं ग के प मे ं पुन या या यत करने के लए डाली गयी बु नयाद पर आगे बढ़ती है। यह ‘शैव और वै णव मतों के छपे हुए स यों को और कसी प मे ं नहीं, ब क ‘‘ ार भक भारतीय ईसाइयत’’ के प मे ं पहचानने क भारी 56 स भावनाओं क चचा करती है’। इस पिरक पना को सं थागत और बाहर के देशों से मलने वाले समथन क चचा आगे अ याय 9 मे ं क जायेगी। फलहाल, इतना ही कहना काफ़ होगा क भारतीय जनसं या का औप नवे शक न ली वग करण, और भारत के धम और आ या मकता का वख डन एक घातक म ण बन गया है जो हमे ं एक वनाशकारी भ व य क ओर ले जा रहा है।

7 वड़ न लवाद और ीलं का हमने देखा है क कस तरह भाषाओं के शै क अ ययनों ने यू रोपीय न ल व ान मे ं एक भू मका नभायी, और औप नवे शक शासकों तथा ईसाई मत- चारकों ने कैसे इस व ता को फूट-डालो-राज-करो क रणनी त के लए योग कया। ीलं का मे ं न ली अ मताओं के वभाजन को और गहरा करने के लए एक शु क पना जोड़ दी गयी। आज यह क पना इतनी बल हो गयी है क लोग इसके लए खू न बहाते है।ं यह अ याय इस घटना म क खोज न न ल खत मह वपू ण सं रचनाओं का उपयोग करते हुए करता है।

सं हली-आय-बौ पहचान अमरीका मे ं था पत थयोसॉ फकल सोसाइटी ने एक बौ -आय- सं हली पहचान न मत कर अपने द ण भारत के अ े का इ तेमाल ीलं का मे ं बौ पुनजागरण के लए कया। इसका उ े य था बल औप नवे शक ईसाई मत- चार का वरोध करने के एक तरीके के प मे ं इसका उपयोग करना। ीलं काई सं ह लयों ने वयं को उन आय के प मे ं देखना ार भ कया ज होंने ीलं का क खोज क और यहाँ स यता लाये। इस या मे ं उ होंने त मलों पर एक नचली न ल का दाग लगा दया। समय बीतने के साथ थ तयाँ नय ण से बाहर होती चली गयीं।

ीलं काई

वड़ पहचान

इस बीच धमशा ों के व ानों ने लमुिरया नाम के एक खोये हुए महादेश क पिरक पना का चार कया, और यह त मलनाडु मे ं लोक य भी हो गया। वहाँ से यह वशाल वड़ ववरण के साथ एक हो गया और इसने वड़ न लवाद को ज म दया। अ तत: यह ीलं काई त मलों मे ं फैलना शु हो गया। सं हली रा वाद ारा पहले से ही अलग-थलग कर दये गये ीलं काई त मलों ने वैभवशाली ाचीनता के अपने दावे को मजबू त बनाने के लए वड़वाद के इस व प को अं गीकार कर लया। लमुिरया मू ल के वड़ मथक ने त मलों को यह दावा करने क वे ही ीलं का के मू ल नवासी थे का अवसर दया साथ ही सं ह लयों का वणन बाहरी आय हमलावरों के प मे ं करने का भी।

पहचानों का टकराव इस कार, इस छोटे-से ीप मे ं दो न ली अ मताओं ने ठोस व प हण कया। ईसाई मत- चारक मानव जा त व ान ारा बोये गये बीज का पोषण औप नवे शक ं े ो े

शासन ारा कया गया जसने एक नरसं हार को ज म दया जसके कारण एक ल बा गृह यु चला और लगभग एक लाख लोग मारे गये। च 7.1 इस या का सारां श तुत करता है। Fig 7.1 ीलं का मे ं उप नवेशवादी-ईसाई मत- चारकों क सं रचनाओं के सं घष

 

धमशा

ीय कपोल-क पना मे ं पुराने भू गभ व ान का मलन

रॉबट कॉ डवेल के त मल नकृ ता के ार भक ववरण क त या व प वदेशी त मल व ानों ने एक सकारा मक और अ धरा ीयतावादी त मल पहचान रचनी शु कर दी। उ होंने कॉ डवेल के ववरण मे ं वड़ों क थ त को न ली तौर पर नकृ या नीचा बताये जाने को सुधारने के यास कये। इसके लए उ होंने खोये हुए महादेश लमुिरया वाले स ा त को भी शा मल कर लया जसे 1864 मे ं टश ाणी शा ी फ लप यू टली लैटर (Philip Lutley Sclater, 1829-1913) ारा 1 तैयार कया गया था। इस स ा त के अनुसार वशाल ह द महासागर े मे ं वतमान मैडागा कर से भारत और सुमा ा तक लमुिरया (Limuria) नामक एक बड़ा महादेश फैला था, और उसके बाद यह ह द महासागर मे ं डू ब गया। अ का और भारत, दोनों महा ीपों मे ं वन प तयों और पशुओ ं के बीच समानताओं के लए यही लैटर क या या थी। यह एक अ य उदाहरण था जसमे ं कृ त व ान से उपजे एक वचार का न लवादी अवधारणाओं को समथन देने के लए उपयोग कया गया। सन 1876 मे,ं े डिरक एं गे स ने इन रोचक भू गभशा ीय स ा तों को एक ी ो



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मा सवादी मोड़ दया और लमुिरया क कपोल-क पना को और फैलने मे ं सहयोग दया।2 1880 के दशक मे ं थयोसॉ फ़कल सोसाइटी क सं य ु सं थापक मैडम हेलन े ा पे ोवना लावा सक (Madam Helena Petrovna Blavatsky, 1831-91) ने लमुिरया के इस वचार को लेकर इसे त -म वाले समू हों मे ं लोक य बनाया। उ होंने दावा कया क लमुिरया नवा सयों ने ‘बड़े -बड़े शहर बनाये थे, कला और व ान को बढ़ावा दया था और वे खगोलशा , थाप य या वा तुशा और ग णत ँ ी और त कालीन म ास के आदयार मे ं पारं गत थे’।3 लावा सक 1879 मे ं भारत पहुच मे ं बस गयीं जहाँ वे थयोसॉ फकल सोसाइटी के धान कायालय को ले आयीं।4 उ होंने उस समय च लत इ डो-आय जा त व ान को अपने ‘कम स ा त पर आधािरत वकास’ के जाल के साथ जोड़ दया ता क न लवाद का एक रह यमय व प खड़ा कर सकें। उ होंने कहा क सभी न ले ं एक ही पू वपु ष से नकली है.ं .. जसके बारे मे ं कहा जाता है क वह 18,00,00,000 वष पू व था, और 8,50,000 वष पहले भी... जब वशाल महा ीप अटलां टस (Atlantis) के अवशेष डू ब गये’।5 लावा सक को व ास था क आय अ यों से े थे। इस कार, थयोसॉ फ़कल कपोलक पना मे ं अटलां टस ( त े यू रो पयनों का नवास थल) पहले आया, और उसके बाद लमुिरया, ले कन इनके ववरणों मे ं बहुत अ तर था जो इस बात पर नभर था क ऐसी कथाएँ कहाँ सुनायी गयीं। द ण ए शया के लोगों के सम अटलां टस का कभी उ ख े नहीं कया गया और लमुिरया क चचा समु ारा उनक पुरानी स यता को लील जाने क ाचीन त मल मृ त के साथ क गयी। लावा सक के अनुसार ह दू मू त-पू जा एक घोर अ ध व ास था, और इसने मा णत कया क ह दू एक ऐसी न ल के थे जो अ दू षत आय धम से प तत हो गये थे। उ होंने लखा : गू ढ़ इ तहास हमे ं श ा देता है क मू तयाँ और उनक पू जा चौथी न ल के साथ ही समा हो गयी थी, तब तक के लए जब तक क बाद क सं कर न ले ं (चीनी लोगों, अ क नी ो, आ द) धीरे-धीरे उ हे ं वापस नहीं लायीं। वेद कसी भी मू त-पू जा का समथन नहीं करते; पर तु सभी आधु नक ह दू कृ तयाँ अव य करती है।ं 6 इस कार, वेद वदेशी आय के थे, जो शु थे, जब क आधु नक ह दू इन त े आय के नीच वड़ मू ल नवा सयों के साथ स पक से उ प वकृत वणसं कर। जो भी हो, उस समय तक वड़ों को उनका गौरवशाली अतीत लमुिरया मे ं उनक उ प के साथ दान कया जा रहा था। धमशा यों ारा जब इसे मह व दया गया तो भारत मे ं टश औप नवेशक शासकों क सरकारी नयमाव लयों मे ं इस ‘इ तहास’ का वेश हो गया। भारतीय लोक सेवा के चा स डी. मै लीन ने लमुिरया को त मलों के स भा वत उ प थल के प मे ं बताया।7 वड़ उ प के लमुिरया ँ े ो ॉ ि ी े ी ो े ं े

ृ कया, हालाँ क थोड़े सं शय के साथ। वाले स ा त को लॉड िर ली ने भी उ त िर ली वही शासक थे, जैसा क हमने पहले देखा, ज होंने सभी भारतीयों को उनक नाकों के आकार के अनुसार वग कृत कया था।8 मू ल नवासी त मल व ानों ने अपने पू वजों के इस मथक य डू बे हुए महादेश के त गव क अनुभू त क , और उसे त मल सा ह य मे ं उ खत ाचीन जल लय के साथ जोड़ा, जसके बारे मे ं कहा गया था क इसने अनेक त मल नगरों को न कर दया था। एस.एस. पू ण लं गम प ई क पु तक, ‘ए ाइमर ऑफ त मल लटरेचर’ (A Primer of Tamil Literature, 1904), ने त मलों क उ प क या या इस कार क : ‘त मल या त मलार न त प से ाचीन त मलहम या लमुिरया के मू ल नवासी थे, जो क भू म यरेखा के आस-पास ह द महासागर का एक महा ीप था और 100 शता दयों पू व डू ब गया’।9 इस कार यू रोपीय न लवादी इ तहासों को मू ल नवासी त मल व ानों ारा वीकार और अं गीकार कर लया गया, ज होंने उस ं डाल दये। टी.आर. शेष अ यं गर क पु तक, ववरण मे ं अपनी जातीय े ता के पेच ै व डयन इ डया (Dravidian India) 1925 मे ं का शत हुई जो आज भी ह दू वरोधी स ा तकारों ारा ‘ वड़शा क अ णी पु तकों मे ं से एक मुख पु तक’ के प मे ं शं सत है।10 यह पु तक त मलों क लमुिरयन उ प का एक रेखा च तैयार करती है : ं उनक अलग पहचान, एच. िर ली कहते है,ं उनके छोटे तब ये वड़ कौन है? आकार, काली वचा, ल बे सर, चौड़ी नाक और ल बी भुजा, से बनती है जो शेष भारत के लोगों से अलग है। वे भारत क आबादी के मू ल ा प है.ं .. ही ू धम थों ने एक भयानक जल लय के वशेष वणन को सुर त रखा है, भू गभशा ीय अनुस धानों ने दखा दया है क ह द महासागर कभी एक या महा ीप था और यह क इस डू बे हुए महा ीप को कभी-कभी लमुिरया भी कहा जाता था, जो मू लत: मैडागा कर से मलय ीपसमू ह तक फैला था, और जो द ण भारत को अ का और ऑ े लया से जोड़ता था ... त मल पर परा मे ं सु प सं केत हैं क उस जल लय से भा वत यह भू म त मलकम से मली हुई थी और पानी घट जाने के बाद त मल वाभा वक प से उ री ा तों मे ं चले गये...11 इस कार, िर ली ारा व भ शारीिरक ा पों के आधार पर कया गया भारतीयों का न लवादी वग करण धीरे-धीरे त मल जनमानस मे ं एक वै ा नक ढं ग से मा णत स य के प मे ं हो गया। लमुिरयन कपोल-क पना को बाइबल के जल लय तथा नू ह के पु ों क कथा मे ं मला दया गया। अब त मलों के पास एक नया इ तहास था और नयी न ली पहचान भी—जो सारी-क -सारी यू रोपीय अवधारणाओं का उपयोग कर गढ़ी गयी थी।







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बशप कॉ डवेल से लमुिरयन उ प

का नाता

एक भारतीय ईसाई त मल व ान देवनेय पवनार (1902-81) ने लमुिरया के स ा त को कॉ डवेल के ष वाले स ा त—‘धू त बाहरी ा ण का त मलों को सेवक बनाकर रखने’—के साथ मला दया। सन 1966 क अपनी पु तक क भू मका मे ं उ होंने लखा : अभी तक प म के लोग यह नहीं जानते हैं क त मल लमुिरया मू ल क एक अ य त वक सत ाचीन भाषा है, और सावज नक और नजी े ों, दोनों के सं कृतवा दयों ारा यव थत ढं ग से और सम वत यासों ारा दबायी जाती रही है और दबायी जा रही है, तभी से जब वै दक साधु द ण मे ं गये, और अपने े रं ग तथा ाचीन त मल राजाओं के आ दम भोलेपन का अ धका धक लाभ उठाते हुए उ होंने वयं को धरती के देवता (भू -सुर) के प मे ं तुत कया, और त मलों को धोखा देकर यह व ास दला दया क उनके पू वजों क बोली या सा ह यक भाषा का ोत द य या वग य था।12 त मल अ ययनों मे ं पवनार के दृ कोण को आज भी वत: स माना जाता है। यहाँ तक क त मलनाडु रा य सरकार के क याकुमारी थत सं हालय ने लमुिरया क ( जसे कुमारी क दम के नाम से भी जाना जाता है) एक दशनी लगायी है। अनेक व व ालयी पा पु तकें और शै क शोध प लमुिरया को एक मा णत स य बताते है,ं हालाँ क एक शता दी से भी अ धक समय से भू गभशा यों ारा डू ब गये महादेश क पिरक पना को अमा य कर दया गया है। उदाहरण के लए, 1970 मे ं त मलनाडु वधान सभा पटल पर श ा म ी ने घोषणा क क एक ईसाई व ान ने वड़ों क लमुिरया मे ं उ प को मा णत कर दया था। उ होंने घोषणा क क : फादर हेरास ने दखा दया है क कस तरह [ वड़] स यता लमुिरया से द ण ँ ी, और वहाँ से बाद भारत आयी, और उसके बाद हड़ पा और मोहनजोदड़ो पहुच ँ ी... यह भी मैनं े तब जाना जब मैं मे ं टगिरस और यू ट े ीस और रोम आ द पहुच 13 अ ामलाई व व ालय मे ं पढ़ रहा था। त मलनाडु के शै क त ानों पर लमुिरयाई स ा त के दबदबे का आकलन न न ल खत उ रण से लगाया जा सकता है, जसे 2003 मे ं त मलनाडु सरकार ारा ायो जत और पॉ डचेरी इ टी ू ट ऑफ लं व ट स ऐ ड क चर (PondicherryInstitute of Linguistics and Culture) ारा आयो जत एक से मनार मे ं पढ़े गये शोध प से लया गया है : लमुिरयाई त मलों के बारे मे ं बताते हुए पवनार त मल के वकास को 1,00,000 ँ नकालेग ं ।े पे सर वे स और उनके दल से 50,000 वष ईसा पू व तक का ढू ढ के वै ा नकों ने अब पाया है क पहले य क उ प 60,000 वष पू व क है। हम त मल अपने सं कृ त के एक धू मल अतीत का दावा करने के लए येनकेन- कारेण ‘दो-हज़ार वष पुरानी’ जैसे श दों का उपयोग करने के आदी हो गये ं ैं े ई ई ै ें

ं र वड़ सं कृ त क थापना क अव ध [का आधार] है।ं अकेला ईसाई कैलेड नहीं हो सकता है। लाखों वष पहले या हुआ, [यह जानने के लए] हमे ं इसक खोज मे ं लगना होगा, और हमे ं अचानक हुई स धु घाटी स यता क खोज से ही स तु नहीं हो जाना है।14 एक द ण भारतीय व व ालय के पू व कुलप त, के.पी. अरवानन, लमुिरया के शोध का उपयोग वड़ों और अ कयों के बीच जातीय स ब ध को मनवाने के लए तक देते हैं : वड़ और काले अ क स भवत: एक ही न ली शाखा के रहे होंगे ... ह द महासागर मे ं अ क और वड़ महा ीपों के बीच कभी कसी तरह का भू म स पक अव य रहा होगा... उ होंने इस खोये हुए महादेश को ‘कुमारी’ कहा। आधु नक भू गोल ‘खोये हुए लमुिरया’ (कुमारी) के स स ा त क पु 15 करता है। आधु नक अ क -द लत अ भयान हामी और लमुिरयाई, दोनों मथकों क पिरक पनाओं से नकला है।

थयोसॉफ —ईसाई मत- चार के ख डन के लए बौ धम ारा आय का उपयोग द ण भारत मे ं वड़ अलगाववादी पहचान के सृजन के समाना तर इसी तरह क एक अ य शरारत ीलं का मे ं चल रही थी। बौ को एक धम, सं हली को एक भाषा और आय को एक न ल के प मे ं म त करते हुए एक नयी पहचान गढ़ने क या चल रही थी। सन 1856 मे ं रॉबट कॉ डवेल ने अपने तुलना मक याकरण मे ं तक दया था क सं हली और त मल भाषाओं के बीच कोई य स ब ध नहीं है। वष 1866 मे ं एक अ य व ान जे स डी’आ वस ने इस वचार को पकड़ लया क सं हली भाषा ‘आय या उ री पिरवार क थी, जो वड़ या द णी भाषा वग के वपरीत पहचानी जाती थी’।16 जो भी हो, डी’आ वस ने, ज हे ं अं ज़ े ों के अधीन ीलं का का पहला सं हलभाषा का रा वादी माना जा सकता है, इस स ा त को अ वीकृत कर दया क सं हली भाषा सं कृत से नकली थी; उ होंने बताया क इसके वपरीत दोनों एक ही ाचीन न ल से नकली है।ं उ होंने भारतीय मु य भू म क जनसं या से सं हली के कसी कार के स ब ध को भी अ वीकृत कर दया।17 अं ज़ े शासकों ने 1871 क जनगणना मे ं लोगों को अपनी न ल बताने के लए ववश कया जसके मा यम से ीलं का के नवा सयों पर भी न लवादी वग करण थोप दया गया।18 यन लासेन (Christian Lassen) और जे स इमसन टेनट े (James Emerson Tennent) जैसे व ानों ारा वपरीत दृ कोण भी य कये गये थे, ज होंने ं

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सं हली और त मल को एक ही भाषा पिरवार मे ं रखा था। फर स सं हली व ान ड यू .एफ. गुणवधना भी थे ज होंने 1918 मे ं ही घोषणा कर दी थी क सं हली और त मल भाषाओं के बीच स ब ध थे।19 ले कन मै स मू लर-कॉ डवेल खेमा इस आम राय को व प देने मे ं सफल हो गया क सं हली और त मल दो भ भाषायी और न ली े णयाँ है।ं इस ीप को अलग करने मे ं और इसके भ व य क नय त नधािरत करने मे ं यह नणायक बन गया।20 धमपाल एक ीलं काई बौ भ ु थे जो थयोसॉफ से अ य त भा वत थे। वे ीलं का के लोगों के बीच सं हली-बौ -आय पहचान को लोक य बनाने मे ं मह वपू ण रहे। सन 1886 मे ं जब थयोसॉ फ ट सी.ड यू . लीडबीटर और हेनरी टील ओलकॉट ीलं का गये तब धमपाल उनके साथ थे।21 इस या मे ं एक मह वपू ण य व थे—डच से बौ बने अ े ड अ ट बु टजे स, जो बौ धम पर भाषण देते हुए ीलं का मे ं घू मते रहे। ीलं का के बौ ों ने बु टजे स को ग भीरता से लेना शु कया, इस बात पर गव करते हुए क एक श त त े य ने उनका अनुमोदन कया था। उस समय क एक िरपोट के अनुसार : एक ऐसे समय मे ं जब ीलं का मे ं यू रोपीय कहते फर रहे थे क ईसाई धम ही पू ण स य है और बौ धम पू री तरह अस य, बौ (मतावल बी) बु टजे स को सुनने के लए इक ा होते थे और आ यच कत थे क ऐसे श त लोग बौ धम का ं ।े 22 आ लं गन करेग इस कार जब ीलं का मे ं बु टजे स ारा चलायी जा रही एक प का ‘द बु ट’ (The Buddhist) ने 1897 मे ं ‘द आयन सं हलीज’ (The Aryan Singhalese) शीषक से एक लेख का शत कया तो उसने रा ीय बु जी वयों के बीच अपना गहरा भाव छोड़ा।23 एक अ य धम वद डॉ. डै ली ने सं ह लयों को बु टजे स का अनुकरण करने के लए ो सा हत कया। बौ धम क गलत प मी या या क आलोचना करते हुए बु टजे स ने तक दया क बौ धम ईसाइयत से अ धक तकसं गत था। पाली सू ों के अपने ही अनुवाद का उपयोग करते हुए उ होंने बौ धम के अपने ा प का च ण एक प मी आदश के प मे ं कया।24

औप नवे शक सं रचनाओं के बीच टकराव : आय-बौ - सं हली बनाम वड़-शैव-त मल ईसाई मशनिरयों ारा नये चेले बनाने क ग त व धयों के व सं घष मे ं ीलं का के बौ ों ने बौ धम को एक स माननीय तकसं गत आ था के प मे ं फर से खोजने क या ार भ क । गणनाथ ओबेसक े े रे बताते हैं : ु ं और श त सामा य जनों ने बौ धम क प मी ीलं काई बौ भ ओ ं और कैथो लक मशनों के खलाफ उनके सं घष मे ं वशेष या या को ोटे टेट प से आकषक पाया। शी ही देश के व ानों ने, जो प मी आलोचना के ं ी ों े ौ े ो

तरीकों ारा अ य त भा वत थे, बौ धम के त एक तकसं गत दृ कोण अपनाया और मथकों, पं थों, तथा भ के त वों को धम के लए अनाव यक मानते हुए उ हे ं अ दू षत और शु अव था वाले बौ धम मे ं जोड़ा गया या ां श सरीखा माना। कुल मलाकर, सामा य खे तहरों क लोक आ थाओं को जीवा मवाद या अ ध व ास के प मे ं देखा गया जो पुराने धम क तकसं गत व ा के यो य नहीं था।25 नव न मत ‘शु ’ बौ धम को प म के लोगों के सामने स मानजनक ढं ग से ु ं क भी पहचान क जनमे ं त मल यव थत कया गया था, और इसने कुछ श ओ मुख थे, और ज हे ं अ े अनाय के प मे ं व णत कया गया। इस अ भयान के मुख नायक धमपाल ने त मलों को हादी देमालू (ग दे त मल) बताना शु कर दया। 26 1880 के दशक मे ं मैडम लावा सक ने ीलं काई त मलों और अ कयों को आय से अ नवायत: नीच वग कृत करना शु कर दया था : ‘चाहे जतनी सं कृ त हो, और स यताओं के बीच जतनी ही पी ढ़यों का श ण ऐसे मानवीय नमू नों को उठाया नहीं जा सकता... उस बौ क तर तक जैसे क आय, सामी, और क थत तुरा नयन है’ं ।27 ु ाओं के पोषण ने ीलं का को तीस-वष के गृह इ हीं शु आतों के साथ न ली श त यु के पिरदृ य मे ं बदल दया, जसमे ं 80,000 से अ धक लोग मरे,28 और 9,00,00029 से अ धक लोग व था पत हुए, और इसने वै क ह थयारों के यापार ं फॉर इ टरनैशनल पीस को बढ़ावा दया।30 सन 2008 मे ं कानगी एनडाउमेट (Carnegie Endowment for International Peace) ारा ीलं का को 20 रा ों क सू ची मे ं शा मल कया गया था, जो उन वफल रा ों क ण े ी मे ं थे जो व त होने के 31 ँ चुके थे। 2009 मे ं जातीय सं घष अपनी चरम सीमा पर पहुच ँ गया कगार पर पहुच 32 था, जब 20,000 नागिरक मारे गये थे। हालाँ क हं सा का अ त त मल अलगाववादी नेता के नधन के बाद हुआ, स देह के गहरे घाव जो तोड़-मरोड़ कर रचे गये इ तहास, पहचान और भाषा व ान ारा लोगों मे ं बसे है,ं आज भी भारत व ा क एक अ य भयावह वरासत है। यू रोपीय लोगों ारा था पत न ली आधार पर अ तवादी हं सा को काय प देने मे ं न:स देह ीलं का अकेला नहीं है। पिर श ग इसी तरह क एक या का रेखां कन करता है जसने रवा डा जनसं हार को घ टत कया। पहले के अ यायों मे ं यह दखाया गया है क कस तरह औप नवे शक श यों ारा इ तहास, पहचान, और न ली े णयाँ बनायी गयीं और उ हे ं पो षत कया गया। उप नवेशवाद के अ त मे ं भी, ऐसी े णयाँ बनी रहीं, यों क वे न हत वाथ के लए उपयोगी रहे। ववरणों पर नय ण उप नवेश बनाने वाली स यताओं को न केवल सां कृ तक े ता, ब क आ थक लाभ और नय त स यताओं पर राजनी तक भु व भी दान करता है। जैसे ही एक बार मू ल नवासी थोपे गये ववरणों को ै ी े े ैं औ

चुपचाप वीकार कर लेते है,ं गृह यु ार भ कया जा सकता है। यह रवा डा और ीलं का दोनों के लए स ा रहा है, जहाँ आ तिरक वभाजन का पोषण जनसं हार के सं घष ब दु तक कया गया। ऐसे सं घष तब नय ण करने वाली श यों को एक बार फर ह त प े करने का तक दान करते है,ं जो अबक बार मानवीय च ताओं के लबादे से ढँके होते है।ं भारत मे ं भी न हत वाथ ारा इस तरह के आ तिरक वभाजन का पोषण और सं चालन कया जाता रहा है। इन वभा जत गुटों को व श यों के साथ जोड़कर एक नेटवक तैयार कर दया गया है। इसका इस पु तक के अ तम अ यायों मे ं वचार कया जायेगा।

8 ह दूधम को ‘ वड़’ ईसाइयत मे ं पचाना द ण भारत मे ं ह दू धम को ईसाई इ तहास और मत मे ं ढालने क याओं का एक सल सला शु हो गया है। यह वड़ इ तहास के एक ा प का उपयोग करता है जसके अनुसार स त टॉमस भारत आये थे और यह भी क त मल कालजयी ाचीन थों क रचना ईसाई भाव मे ं हुई। कहा जा रहा है क ये ह दू रचनाएँ नहीं है,ं ब क ईसाइयत का ही एक व प हैं जो प त: द ण भारतीय है। यह बल देकर कहा गया क त मल ाचीन कालजयी रचनाओं को वा तव मे ं वड़ ईसाइयत कहा जाना चा हए। इस तरह वड़ आ दोलन और और ईसाई धमा तरण एक साझे ं ,े ईसाई श ु को नीचा दखाने के लए मलकर काम कर रहे है।ं जैसा क हम दखायेग प वड़ प को अपने मे ं मला रहा है, यों क ईसाई प क धन क यव था करने क अ धक मता है, इसक व - यापी मली-भगत है, और रणनी तगत सोच मे ं इसका ल बा अनुभव है, जब क वड़ प के पास इस सबक कमी है। इस पिरक पना के अनुसार दावा कया गया क आय भावों ने त मल आ या मकता मे ं घुसपैठ क है जसने अ धक शु वड़ आ या मकता को दू षत कर दया, और क यह ार भक वड़ आ या मकता ईसाइयत के समान ही थी। ऐसी मनगढ़ त बातों के लए चलाये जा रहे इन यापक काय मों मे ं व भ सं थागत त लगे हुए है।ं इस अ याय मे ं कुछ अ णी सं थाओं के बारे मे ं चचा क जायेगी जो इसमे ं जुटी है।ं च 8.1 को इं गत करते हुए उ खत या के येक ख ड का पिरचय अगले अ याय मे ं कराया जायेगा और बाद मे ं उस पर व तार से चचा भी क जायेगी।

स त टॉमस का मथक वह कथा जो ईसाई अ दू त स त टॉमस के भारत मे ं आने का काल सन 53 बताती है एक म यकालीन मथक है जो बहुत दनों से बना हुआ है।1 यह परो प से अपने भीतर औप नवे शक और न लवादी ववरणों को समोये हुए है; उदाहरण के लए यह क ईसाइयत का एक शा त य दू त काली चमड़ी वाले भारतीयों के बीच भेजा गया जो उसके व हो गये और उसे मार दया। इस मथक का, बहरहाल, कोई ऐ तहा सक आधार नहीं है। फर भी, इसे व भ ईसाई सं थाओं ारा एक व प देकर श शाली ह थयार बना दया गया है ता क त मलनाडु मे ं ह दू सं कृ त को समायो जत कया जा सके। इसके लए द ण भारतीय सं कृ त के सभी सकारा मक पहलुओ ं का य े ‘टॉमस क ईसाइयत’ को दया गया और इसमे ं जो भी घ टया त व हैं उनके लए ह दू धम को दोषी ठहराया गया। भारतीय सं कृ त और े



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आ या मकता के साझे व प मे ं से त मलों को अलग करने के लए यह एक ह थयार क तरह भी काम करता है।

भारतीय ईसाई व ानों ारा अ वीकार कया जाना स त टॉमस के मथक का ताव जब पहली बार पेश कया गया था तो ईसाई व ानों ारा इसे अमा य कर दया गया था। उनमे ं व यात ईसाई भारत वद फादर हेनरी हेरास (Father Henry Heras, 1888-1955) भी शा मल थे ज होंने इस दावे का जोरदार वरोध कया क म ास मे ं टॉमस क क मली थी। जी.यू . पोप जैसे ार भक मशनरी व ानों ारा त मल सं कृ त को इस मथक के मा यम से समायो जत करने के यास व त हो गए, वशेषकर तब जब ाचीन त मल सा ह य ँ नकालने मे ं ईसाई व ान वफल हो गए। मे ं ईसाई भाव ढू ढ

स त टॉमस मथक का पुन

जी वत होना

जो भी हो, 1970 के दशक मे ं एम. देइवनयगम नाम के एक क र ने ाचीन कालजयी त मल थों पर ईसाई अथ थोपकर उ हे ं तोड़ना-मरोड़ना शु कर दया। उस समय धरातल पर राजनी त ऐसी थी क उनक शोध-पिरक पना को श शाली कैथो लक पादिरयों ने शै णक े मे ं बढ़ावा देना शु पर दया। हालाँ क त त मल व ानों ारा इसे बार-बार अ वीकार कर दया गया था, शै णक सं थानों ारा जनका नय ण वड़ पहचान क राजनी त करने वाले कर रहे थे, देइवनयगम के शोध को ो सा हत कया। उनमे ं इं टरनैशनल इं टी ू ट ऑफ़ त मल टडीज और वशेष प से खड़ा कया गया म ास व व ालय का यन टडीज पीठ भी शा मल था। इस कार, श ा े के एक सु नयो जत ह से मे ं स त टॉमसवादी वड़ ईसाइयत के वचार ने ज म लया।

पुरात व के सा यों का गढ़ा जाना ईसाई चच के कुछ उ मी लोग तो वै टकन से भारी आ थक मदद के साथ पुराता वक सा यों को गढ़ने तक क सीमा तक गये। अचानक स त टॉमस क सलीबे ं व यात ह दू तीथ थलों के पास से पाये जाने क व मयकारी ‘खोजों’ क घोषणाएँ क गयीं। वाभा वक प से, इस उकसावे ने सामा जक तनाव को ज म दया, जसने इस अ तरा ीय ईसाई दु चार के लए धन उपल ध कराया क ह दू लोग ईसाइयत पर आ मण कर रहे है।ं स त टॉमस के मथक से जुड़ी हुई एक ऐसी ही धोखाधड़ी मे ं म ास डायोसीस के आच बशप शा मल थे, और 1975 मे ं म ास उ यायालय मे ं इसका सावज नक खुलासा हुआ। Fig 8.1 ह दू धम को ‘ वड़’ ईसाइयत मे ं पचाने के लए मं च क तैयारी

 

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ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज

इसके समाना तर, त मलनाडु मे ं ईसाइयों ारा नय त ‘इं टी ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज’ ने त मल सं कृ त और आ या मकता को दो भागों—आय और वड़—मे ं बाँटने के लए एक पिरयोजना पर काम करना शु कर दया। इस कार त मल आ या मकता के ‘अ छे ’ त वों को वड़वादी ईसाइयत के प मे ं वग कृत कया गया तथा ‘बुरे’ भागों को आय ा णवाद के प मे ं न दत कया गया। त मल ह दुओ ं को ईसाइयत मे ं पचा लेने के लए माहौल तैयार कर लया गया कुछ इस तरह क वह उनके वड़ गौरव क तु करे। च 8.1 मे ं इसे दशाया गया है।

ईसाई चार और

वड़ आ दोलन

छठे अ याय मे ं हमने देखा क रॉबट कॉ डवेल जैसे मशनरी व ानों ने इस वचार का नेत ृ व कया क ा ण आय आ मणकारी थे ज होंने प व ता क आड़ मे ं वण- यव था का उपयोग वड़ों को अधीन थ करने के लए कया। इस ा ण वरोधी च तन को एक राजनी तक स ा त मे ं पा तिरत करने का नेत ृ व अं ज़ े ों









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शासकों के सहयोग से गैर- ा ण त मलों ने कया। मू ल त मल नवा सयों ारा 1916 मे ं ग ठत और अं ज े ों ारा ो सा हत ज टस पाट इस स ा त का पहला राजनै तक वाहन बनी। इसने ा णों को एक अलग न ल का व वं सक वदेशी घुसपै ठया बताया।2 बाद मे ं यह वड़ आ दोलन मे ं बदल गया, जो ज द ही खु मखु ा अ य त न लवादी दृ कोण अपना कर घोर ा ण वरोधी हो गया। यह मोह मद अली ज ा क अलगाववादी माँगों से साथ जुड़ा। सन 1944 तक यह आ दोलन वड़ तान नाम से एक वत रा क थापना करने क माँग कर रहा था। यह आ दोलन अं ज े ी उप नवेशवाद का सहायक था। यह भारतीय वत ता दवस 15 अग त (1947) को एक ‘काला दवस’ घो षत करने क सीमा तक गया।3 शी ही यह आ दोलन आजकल क एक अ य त श शाली राजनी तक पाट के प मे ं उभरकर सामने आया जसका नाम है वड़ मु े कड़गम, या डीएमके, जसका अथ है वड़ो थान सं घ। रॉबट कॉ डवेल क ार भक अवधारणा सामा जक-आ थक नहीं, ब क न लवादी दृ कोण से वड़ आ दोलन के ा ण वरोधी च तन को तैयार करने का आधार बनी। द ण ए शया के एक व ान पीटर वैन डर वीर प करते हैं : अ धकां श वड़ उ सुधारवाद इस आम धारणा को रेखां कत करता है क गैरा ण वड़ जनों और सं कृ तयों को अधीन थ करने का काम वड़वादी द ण पर आय क वजय पर आधािरत था— जसमे ं से अ धकां श रॉबट कॉ डवेल ारा गढ़ा गया था। कॉ डवेल, ज होंने त व े ल े ी मशन मे ं पचास वष तक काम कया... अ धकां श अ य मशनिरयों क तरह ज हे ं इस त य का औ च य स करना होता था क वे सबसे नचले वण-समू हों के लोगों के धमा तरण क ही सू चना दे पाते थे, ा णों के त वशेष प से वैर भाव रखते थे ज होंने धमा तरण के उनके यासों को वफल कर दया था... ा णों के त कॉ डवेल के ेष ने ा ण वरोध के उ रण स ब धी ढाँचे और उसे सही ठहराने वाली ल फाजी मे ं अपने लए एक भ य थान बना लया है जो आज तक बरकरार है।4 पीटर वैन डर वीर के अनुसार वड़वा दयों ने अपने च तन से कॉ डवेल क मुख बातों मे ं से एक को हटा दया है जसका ईसाई धमा तरण से लेना-देना है। ‘ ा णों के त कॉ डवेल क नापस दगी सीधे ा णों ारा धमा तरण का वरोध करने से जुड़ी थी और नचले सामा जक तबके पर ा णों के यापक भाव से भी ं े को इस तरह हटाये जाने ज होंने कॉ डवेल का वरोध कया’।5 कॉ डवेल के एजेड से वड़वादी कॉ डवेल को वैसा बनाने मे ं स म हो गये क कॉ डवेल पया प से असा दा यक दखने लगे।ं कॉ डवेल का दू सरा ब दु था उनक रणनी तगत माँग क ‘जब तक वण- यव था समा नहीं कर दी जाती तब तक ईसाई धमा तरण क ोई

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कोई आशा नहीं है’,6 जो वड़ आ दोलन के लए अनुकूल नहीं था। इसे भी छोड़ दया गया, यों क मुक आ दोलन गैर- ा ण जातीय पहचान पर न मत था। स पू ण वड़ आ दोलन के मम थल मे ं रोपी गयी धमा तरण रणनी त को सामा जक उ ार के भाषणों के बीच छपाकर रखा गया था। आज व भ तरों पर ं ईसाई चारक अ भयान जोरदार ढं ग से ईसाई- वड़ मलीकैथो लक और ोटे टेट भगत को पुनज वत करने मे ं लगे हुए है।ं

ईसाई चारकों क छ - व ता 1960 के दशक के अ त तक वड़ आ दोलन बहु-धा मक था और व भ धम के साथ एक कृत था। इसक पहचान पू री तरह भाषा और जातीय पहचान के आधार पर पिरभा षत थी। 1969 मे ं इसमे ं सू म प से पिरवतन शु हो गया जब ह दू से ईसाई बने एक युवा एम. देइवनयगम ने एक त मल पु तक का शत क जसका नाम था ‘वॉज त व व यन?’ (Was Thiruvalluvar a Christian ) इसका मु य शोध था ु रए क स त टॉमस ने सवा धक मह वपू ण ाचीन कालजयी त मल लेखक त व व ु र का धमा तरण कराकर उ हे ं ईसाई बनाया था। इससे त कुरल एक ईसाई थ बन जायेगा जसे ा णों और आय का वरोध करने के लए लखा गया था।7 उदाहरण के लए, त कुरल क उनक ईसाइयत मे ं रँगी या या दावा करती है क वषा के वैभव क शं सा मे ं लखी गयी क वताएँ वा तव मे ं ईसाइयत क प व आ मा का गुणगान करती है।ं सं सार का याग करने वालों के वैभव का गुणगान करने वाली क वताओं क या या परम पता परमे र के ब लदान देने वाले पु ईसा मसीह क शं सा करने वाली क वताओं के प मे ं क गयी। त कुरल के पहले तीन अ याय, इस या या के अनुसार, ईसाई मू त—परम पता परमे र, उनके पु ईसा मसीह, और प व आ मा—के त ां ज ल है।ं राजनी तक समथन से ो सा हत होकर देइवनयगम ने आगे और भी लेखन कया और त व व ह दू ु र क सु प 8 अवधारणाओं को भी ईसाई अवधारणाओं के प मे ं रखा। उ होंने जी.यू . पोप क इस अ वीकृत अटकल को लया क त व व ु र ईसाइयत से भा वत थे, और आगे यह दावा भी जोड़ दया क वा तव मे ं त व व ु र स त टॉमस से मले थे।

इस पु तक को एक मू खतापू ण अटकल माने जाने क बजाय उछाल कर एक राजनी तक ह थयार बनाने के पीछे राजनी त ों का हाथ था। उस समय त मलनाडु मे ं वड़वाद समथक राजनी तक पाट मुक का शासन था जसके मु य म ी ने पु तक क एक शं सा-भरी भू मका लखी थी, जब क उसी पाट के रा य म ी ने इसका वमोचन कया। इस पु तक को 1972 मे ं एक बार और बढ़ावा तब मला जब ं र के नदेशक ने इसे ो साहन देने के लए यन आ स ऐ ड क यु नकेशन सेट ई ई









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एक स ईसाई वड़ े तावादी के नेत ृ व मे ं सं गो ी का आयोजन कया।9 अचानक हुए इस घटना म ने त मल ह दुओ ं को सदमे मे ं डाल दया, ज होंने अपने भोलेपन से महसू स कया और मान भी लया क वह वड़ स ा त ही था, बना स देह कये क यह ईसाइयत को लुके- छपे अ दर दा खल कराने क एक तैयारी थी।

ार भक अ वीकृ त और अ तत: चच का अनुमोदन देइवनयगम क इन पु तकों पर शु मे ं त मल ईसाई धमशा यों और साथ-साथ शै णक े के व ानों ारा यापक आलोचना क गयी। उदाहरण के लए, एक ं टे र व व ालय मे ं त मल अ ययन के त मल ईसाई और त प त के वेक वभागा य एस. रास म ण म ने इस दावे को खािरज कर दया क त व व ु र ईसाई थे। उ होंने लखा : अब मुझे देइवनयगम के लेखन का व लेषण करने दे,ं जो हाल के दनों मे ं इस वचार का चार- सार कर रहे हैं क त व व ु र ईसाई थे। वे त कुरल मे ं पाये जाने वाले अनेक गैर-ईसाई वचारों क नयी या या कर रहे है।ं इससे भी आगे उ होंने ‘इज त व व यन?’ ‘हू इज द िरनाउन ड?’ ‘सेवन े ब स’, ‘हू ु र आर द ी?’ (Is Thiruvalluvar Christian?, Who is the Renounced?, Seven Births, Who are the three?) जैसे नामों से अनेक पु तकें का शत क है।ं उनक पु तकों को गहराई से पढ़ने के बावजू द हम उन या याओं को वीकार नहीं कर सकते जो वे दे रहे है।ं वे कहते हैं क त व व ु र ने पुनज म क पिरक पना को वीकार नहीं कया और यह भी क जब त व व ु र उसक चचा करते हैं जसने पाँचों इ यों पर वजय ा कर ली है तो उनका आशय ईसा मसीह से ही था, और यह क वषा का वैभवगान वा तव मे ं प व आ मा क शं सा ही थी, और भ य से त व व ु र का आशय ईसाइयत से ही था, आ द। न तो ये या याएँ ही स तोषजनक हैं और न ही वे मा यम जनका उपयोग इन वचारों को आगे बढ़ाने के लए वे करते है।ं त कुरल व श ईसाई वचारों मे ं से कसी को भी नहीं दशाता। यहाँ तक क ईसा मसीह के नाम का भी इसमे ं उ ख े नहीं आया है। इसके वपरीत त व व प से इ (25), ु र प व णु (610, 8, 103), ल मी (167, 84, 617), काम (1197), वग के देवताओं (906, 1073, 18, 346) जैसे अनेक ह दू देवताओं का उ ख े करते है।ं 10

1975 मे ं एक अ य त मल व ान काम ची ी नवासन ने, जो धमा तरण कर ईसाई बन गये थे और ज हे ं त मलनाडु सरकार ारा त कुरल पर शोध के लए वशेष प से नयु कया गया था, लखा : ‘जब कोई देइवनयगम ारा लखी गयी पु तकों को पढ़ता है तो मन मे ं ये स देह उ प होते हैं क या इस य ने सचमुच ै औ ो ें ी े ै ेई े

त कुरल को समझा है, और इसमे ं भी स देह है क या इस य ने ईसाइयत के उ भव और वकास के इ तहास का अ ययन समु चत प से कया है’।11 म ास व व ालय मे ं ‘बीसवीं शता दी मे ं त कुरल शोध का वकास म’ वषय पर 1979 का एक पी-एच.डी. शोध थ देइवनयगम के बारे मे ं न न ल खत ँ ा: न कष पर पहुच उ होंने अपने शोध को कुछ इस कार करना नधािरत कया था क यह मा णत कया जा सके क उनक ईसाइयत क बाइबल स ब धी पिरक पनाएँ त कुरल का मम बनी है।ं इस कार इस शता दी के शु मे ं शोध के जस न कष पर बल दया गया वह यह था क त कुरल शैव स ा त का एक थ है, उसका अ त आधु नक समय मे ं इस दावे के साथ हुआ क त कुरल क पिरक पनाएँ बाइबल ने दान क ।ं 12 जो भी हो, कतनी भी व तापू ण आलोचनाएँ क गयीं वे देइवनयगम को वड़ पहचान का राजनी तक उपयोग करने से नहीं रोक पायीं। यह त मल भा षयों को ह दू धम से दू र करने, और बाद मे ं उ हे ं ईसाइयत क ओर ो सा हत करने का एक तरीका था।13 न केवल देइवनयगम ने अपने वड़ सं कृ त के ईसाई मू ल के स ा त के व ईसाइयों ारा एक दशक तक कये जाने वाले हारों को सफलता से झेला ब क 1980 मे ं त कुरल ऐ ड बाइबल नाम से एक अ य त मल पु तक भी का शत क । वे ऊँचे उड़ रहे थे। सन 1983 मे ं ‘बाइबल, त कुरल ऐ ड शैव स ा त’ (Bible, Thirukural and Saiva Siddhanta) वषय पर उनके पी-एच.डी. के शोध थ को म ास व व ालय ारा वीकार कर लया गया था। त त ‘इं टरनेशनल इं टी ू ट ऑफ़ त मल टडीज’ ने देइवनयगम के शोध थ को एक पु तक के प मे ं का शत कया। शैव स ा त के अ णी या याताओं ने उ शोध थ क असं य ु टयों, गलत या याओं और तोड़-मरोड़ कर क गयी वकृ तयों को उजागर कया। एक पार पिरक शैव धा मक थल तथा शैव श ा क पीठ धरमपुरम अतीनम ने 1986 मे ं एक बड़ी दो- दवसीय सं गो ी इसी वषय पर आयो जत क । उसके बाद, शैव स ा त के एक व ान अ णै वा दवेल मुथा लयार ने, जो अब नहीं रहे, 300 पृ ों का एक ख डन लखा जसे इं टरनेशनल शैव स ा त एसो सएशन ारा 1991 मे ं का शत कया गया था।14 अपने आलोचकों का सामना करने और अपने शोध के समथन मे ं सा य देने के लए बहस करने के बदले देइवनयगम ने वड़वा दयों और नचली जा तयों के नेताओं को यह घोषणा-प जारी करने के लए सं ग ठत कया क उनके शोध के उ र मे ं लखी गयी 300 पृ ों क पु तक आय ा णों ारा वड़ न ल को गुलाम बनाने का यास है।15 देइवनयगम चे ई से एक त मल प का का शत करते हैं जसका नाम है ‘ ै व डयन िर लजन’ (Dravidian Religion)। उनके अ व सनीय दावों को व तार े ै ों े े औ ी ौ ो ी ॉ

देकर जै नयों के एक वशेष प थ और साथ ही महायान बौ धम को भी टॉमस क ईसाइयत से उपजने वाले आ दोलनों मे ं शा मल करने क को शश क गयी है।16

धोखे : पुराता वक और सा ह यक जस समय देइवनयगम अपनी या याओं को गढ़ने मे ं य त थे, माइलापुर के आच बशप पुराता वक सा य न मत कर रहे थे ता क स त टॉमस के मथक को मा णत कया जा सके। सन 1975 मे ं उ होंने ह दू से धमा तरण कर ईसाई बने एक य को ऐसे पुरालेख स ब धी सा य गढ़ने के लए नयु कया जनसे स त टॉमस के द ण भारत आगमन को मा णत कया जा सके। जब यह भाड़े का ब दू कची वफल हो गया तब आच बशप ने उस पर यायालय मे ं मुकदमा कर दया। इस मामले मे ं ाचार का आरोप लगाते हुए ‘इल ट े ड े वीकली ऑफ इ डया’ (Illustrated Weekly of India) नामक प का ने सवाल उठाये।17 इस बीच, केरल के जं गलों मे ं एक बहु- व यात ह दू तीथ थल मे ं एक कैथो लक पादरी ने घोषणा क क उनके गरजे के पिरसर क खुदाई मे ं प थर क एक सलीब मली है जसे सन 57 मे ं टॉमस ारा था पत कया गया था। यह जगह नील ाल थत ाचीन महादेव म दर के नजदीक है, जो सबरीमाला के देवता क अ ारह प व पहा ड़यों मे ं है।18 शी ही पाँच फु ट ल बी न ै ाइट क सलीब के साथ एक गरजा बनाया गया और उ तरीय कैथो लक पादिरयों ारा उसका ईसाई सं कार करके दै नक ाथनाएँ भी शु कर दी गयीं।19 अनेक मुख नागिरकों को सलीब क नयी खोज पर स देह था, जसमे ं डॉ. सी.पी. मै यू (Dr. C.P. Mathew) जैसे मुख ईसाई भी थे, ज होंने एक मुख समाचार-प मे ं यह प का शत कया : सलीब क श ल का, न ै ाइट क एक सलीब जो बताया जाता है क उस जगह बरामद हुआ है, रा य मे ं सा दा यक स भाव क जड़ों पर ही चोट करने जा रहा है। अगर उसका कोई मह व है, तो यह पुरात व वभाग ही है जसे यह फैसला करना है। कुछ सं क ण मान सकता वाले, वाथ ईसाई क रवादी (पादरी और सामा य जन दोनों) इसके पीछे है।ं सामा य प से ईसाई समुदायों क कोई च इस करण मे ं नहीं है।20 ह दुओ ं ने इसे अपने सवा धक लोक य तीथ- थलों मे ं से एक पर हमले जैसा माना, और पू रे केरल मे ं ह दू म दरों ने वरोध मे ं काले झ डे फहराये और पुजािरयों ने काली मालाएँ पहनीं। एक ह दू वामी ने गरजे को यह मा णत करने क चुनौती दी क स त टॉमस ारा ऐसी सलीब था पत क गयी थी, और प व ह दू म दर के नकट ह दू भू म पर गरजा बनाने के उनके अ धकार पर न उठाये। बशप क उपस म त ने घोषणा क क वह गरजे को कसी अ य थान पर ले जायेगी। जब ओं े



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ह दुओ ं ने इस बात पर बल दया क कानू न के तहत कोई भी ाचीन पुराता वक व तु भारत के सभी पुराता वक थलों और मली व तुओ ं के नय क सरकारी सं थान, पुराता वक सव ण वभाग, क वत जाँच का वषय होती है, तब रह यमय सलीब अचानक गायब हो गयी। भारतीय पुराता वक सव ण वभाग क वत जाँच से भयभीत धोखाधड़ी करने वालों ने अपने कदम वापस लेना ही उ चत समझा।21 केरल के एक इ तहासकार डॉ. सी.आई. आइजक ने प कया क केरल मे ं पहले ईसाई समुदाय के यापािरक के थे जो समु तट पर ही थत थे। उ होंने लखा : चच का ण े ीब समू ह दावा करता है क सबरीमाला तीथाटन के के नकट अ दर क तरफ़ चयाल नामक एक और ईसाई ब ती थी; ले कन वह ईसाइयों क ब ती नहीं थी, यों क वहाँ मानव नहीं रहते थे और आज भी रहने लायक नहीं है। व ानों ने अब तक स देह से परे जाकर यह च त नहीं कया है क चयाल नामक थान सबरी क पहा ड़यों के नकट है या नहीं। इस लए, चच के इस तक का कोई आधार नहीं है।22

स त टॉमस के इ तहास को गढ़ना देइवनयगम और उनके सहयो गयों के मुख दावों को न न कार सू चीब सकता है :

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  स त टॉमस सन 52 के आस-पास भारत आये थे, जसके पिरणाम व प उ र भारत मे ं ईसाइयत के चार के लए एक औजार के तौर पर सं कृत का उदय हुआ, हालाँ क बाद मे ं दु ा णों ारा इस भाषा को ह थया लया गया।  वेदों क रचना ईसा मसीह के आने के काफ बाद, दू सरी शता दी मे ं हुई।   ह दू धम मे ं शैव मत, वै णव मत और सभी वा तुकला, मू त श प और भ से जुड़ा वकास म टॉमस क ईसाइयत के भाव मे ं खोजे जा सकते है।ं   ा ण, सं कृत और वेदा त बुरी श याँ हैं ज हे ं त मल समाज के पुनशु करण के लए समा कर दये जाने क ज रत है। चच ने अब देइवनयगम के साथ एक नकट रणनी तगत स ब ध था पत कया है ता क स त टॉमस के भारत आगमन के लए सा य तुत कये जा सकें, और ह दू अस ह णुता के वपरीत ईसाई अ छाइयों को उभार कर दखाया जा सके। इस गठब धन के पिरणाम व प 2006 मे ं रोमन कैथो लक चच ारा स त टॉमस सं हालय क थापना क गयी।23 इसमे ं प थर क अनेक श पाकृ तयाँ और शलालेख रखे गये हैं जनके बारे मे ं दावा कया गया है क वे स त टॉमस काल के हैं ँ औ ी ैं ऐ े ी ें ो ी ी ैं ें े े

और असली है।ं ऐसे ही एक श प मे ं दो आकृ तयाँ दखायी गयी है,ं जनमे ं से एक के नीचे यह या या है : दो आकृ तयों वाला यह आधार त भ स त टॉमस के मकबरे के नकट पाया गया था। एक आकृ त के बारे मे ं कहा जाता है क वह अपने बाये ं हाथ मे ं पु तक थामे स त टॉमस है,ं जनका दा हना हाथ ‘आशीवाद’ या ‘ श ा’ देने क मु ा मे ं है। दू सरी आकृ त के नीचे इस कार लखा है : इस आकृ त क पहचान क ड पा राजा (गो डोफेिरस) के प मे ं क गयी है जो माइलापुर के राजा माने गये हैं जनका स त टॉमस ने धमा तरण कया था। जो भी हो, गो डोफेिरस माइलापुर के राजा नहीं थे, ब क पहले इ डो-पा थयन राजा थे जो एक हज़ार मील दू र थत काबुल घाटी पर शासन कया करते थे। सं हालय क वेबसाइट मे ं इस श पकृ त को सातवीं शता दी का बताया गया है, ले कन गो डोफेिरस ने ईसा पू व पहली शता दी मे ं शासन कया था। यह वेबसाइट इस मू त श प के बारे मे ं एक और आ यजनक दावा करती है : लगता है बायाँ हाथ पु तक या कोई उपकरण पकड़े हुए है। अगर यह पु तक है तो यह आकृ त ईसा मसीह के एक अनुयायी को भी त ब बत करती है! स भवत: स त बाथ लो यू जनके बारे मे ं कहा जाता है क वे ही स त मै यू का गॉ पेल भारत लाये थे... भारत के दो ईसानुयायी! हालाँ क बाथ लो यू का ईसाई दू त बनकर भारत आना उतना मा णत नहीं कया गया है जतना स त टॉमस का। ब क, मह वपू ण यह है क नयी द य पदवी (वै टकन II के बाद) ने 24 अग त को यह ट पणी दी थी : ‘... ईस के आरोहण के बाद, पार पिरक कथा यह है क, उ होंने धम क श ा भारत मे ं दी थी और वहाँ शहीद हो गये थे’।24 ं ) चौथी शता दी मे ं सं क लत कया जो भी हो, चू ँ क नया स देश ( यू टे टामेट गया था और पु तक प मे ं बाइबल 1455 मे ं ं टं ग स े के अ व कार के बाद ही लोक य हुआ था, स त टॉमस जब भारत आये तो वे जेबी आकार का बाइबल लेकर नहीं चल सके होंग।े यहाँ तक क सबसे पुराना बाइबल पे परस (लेखन मे ं उपयोगी जलज बन प त) स त टॉमस के सौ वष बाद का है। चाहे जो हो, स त टॉमस के साथ स त बाथ लो यू को द ण भारत के ईसाई स त समू ह मे ं मलाने से भारत मे ं एक और वड़ आ दोलन क तैयारी हो गयी है, जसमे ं बाथ लो यू ह दू धम मे ं और अ धक पिरवतन लाते है।ं स त टॉमस के माउंट चच क वेदी पर ईसा मसीह और मिरयम का एक च है जो प प से इटली के पुनजागरण काल का है। फर भी चच घोषणा करती है क इसे वयं स त टॉमस अपने साथ लेकर आये थे और इसे कसी और ने नहीं, ब क स त यू क ने ही बनाया था। हाल मे ं ही आये एक प मी आग तुक मा टन गुडमैन ने, ॉ











टॉमस मथक के त सहानुभू त रखते हुए भी इस मनगढ़ त बात को अ वीकार करते हुए इसके बारे मे ं लखा : वेदी के नीचे मैडोना और शशु का एक च है जसे स त टॉमस ारा भारत लाया गया और जसे स त यू क ारा च त बताया गया है। समय से पहले ही इटली के पुनजागरण काल मे ं ा और वक सत क गयी शैली मे ं इसका होना, वैसा ही चम कार है जैसा र बहाती हुई सलीब।25 पहाड़ी पर प थर क एक सलीब है जसके बारे कहा जाता है क उसे वयं स त टॉमस ने तराशकर बनाया था।26 वेदी पर था पत कये गये एक बोड पर लखा है : ईसा मसीह के श य स त टॉमस को इसी प व थल पर भाले से घोंपकर मार डाला गया था। इस बात के ल खत सा य हैं क वेदी पर प थर क जो सलीब है उसे वयं स त टॉमस ारा न ाशी करके बनाया गया था। वेदी के अ दर रखा एक च काली चमड़ी वाले एक ह दू को द शत करता है जसके बाल ा णों के पार पिरक बालों क तरह हैं और वह ईसा मसीह के श य को पीछे से छे द रहा है, जब क स त टॉमस सलीब के आगे ाथना मे ं त ीन है।ं आ धकािरक कैथो लक काशनों ने स त टॉमस क मृ यु को एक ा ण ारा क गयी ह या के प मे ं व णत कया है : 3 जुलाई, 72 को ईसा मसीह के ये श य पहाड़ी क ओर जाते समय कुछ चे ा नार ा णों से मले जो ब ल चढ़ाने के लए म दर मे ं जा रहे थे। उ होंने चाहा क स त टॉमस भी उनक पू जा मे ं शा मल हों; उ होंने न:स देह उनक बात मानने से इनकार कर दया और इसके वपरीत पू जा थल को सलीब के च से न कर दया। ा णों ने गु से मे ं स त टॉमस को भाले से गोद डाला।27 ले कन शता दयों के माण इन दावों को अमा य कर देते है।ं तेरहवीं शता दी मे ं माक पोलो ने भारत मे ं टॉमस क कथा का वणन कया है, ले कन उ होंने कसी भी ा ण ह यारे या ब लदान हो जाने का कोई उ ख े नहीं कया। स त टॉमस से जुड़ी कथाओं मे ं उनक मृ यु को हमेशा एक आ दवासी के हाथों दुघटना से मारे जाने के प मे ं व णत कया गया जो उस समय एक मोर को तीर से मारने क को शश कर रहा था। माक पोलो क कथा के अनुसार : टॉमस जं गल मे ं अपनी कु टया के बाहर थे और अपने वामी ई र क ाथना कर रहे थे। उनके चारों ओर अनेक मोर थे... जब स त टॉमस ाथना कर ही रहे थे तभी ग व न ल और वं श के कसी मू तपू जक ने अपने धनुष से बाण छोड़ा ता क वह स त के चारों ओर इक ा मोरों मे ं से एक को मारे।28 ड यू .ड यू . ह टर (W.W. Hunter) व तार से बताते हैं क कस कार यह सामा य कथा, जो ईसाई जगत मे ं च लत थी, समय बीतने के साथ-साथ धोखाधड़ी से भरी मनगढ़ त बातों से भर गयी : े

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चच के आर भक धम पताओं का सा ह य प प से घो षत करता है क स त टॉमस कैला मना मे ं शहीद हुए थे... चच क पर परा भी समान प से प है क सन 394 मे ं ईसा मसीह के इस श य के अवशेष मेसोपोटै मया के एडे सा नामक थान मे ं थाना तिरत कये गये थे। इस लए भारत के द ण-प मी समु तट पर स त टॉमस क मृ यु का थान नधािरत करने का यास असु वधाजनक थ तयों मे ं ार भ कया गया। जो भी हो, एक अनुकूल थान म ास के नकट पहाड़ी पर पाया गया है, जो ाचीन भारत के अनेक पहाड़ी तीथ थलों मे ं से एक है, जो व भ धम —बौ , इ लाम और ह दू —के लोगों का सं य ु तीथ थल बन गया है। ... भारतीयों के धमा तरण के अपने ार भक यासों मे ं उ साही पुतगा लयों को थानीय स त क एक टकाऊ और भावी जीवनी क भारी कमी महसू स हुई। [...] 1522 मे ं गोवा से एक मशन कोरोम डल समु तट पर भेजा गया जसने वयं को उस सु था पत कथा से अन भ या बेहतर सा बत कया जसमे ं स त टॉमस के अवशेषों को सन् 394 मे ं एडे सा था तिरत करने का उ ख े था और उनके अवशेष म ास के नकट एक समा ध मे ं खोज नकाले जसके साथ उस राजा के अवशेष भी द न थे जसे स त टॉमस ने धमा तिरत कया था। उन अवशेषों को बड़े ही उ सव के साथ गोवा लाया गया, जो उस समय भारत क पुतगाली राजधानी थी, और वहाँ वे स त टॉमस चच मे ं आज भी रखे हुए है।ं सन 1547 मे ं स त टॉमस माउंट पर प वी सलीब के पाये जाने ने ...इस कथा को एक ताजा रं ग दे दया। जहाँ तक इसके शलालेख का सवाल है, यह फारस मू ल को ही इं गत करता है, और स भवत: मै नकेइन मू ल क ओर। ले कन जस समय इसे खोद नकाला गया उस समय म ास मे ं कोई नहीं था जो प वी अ रों को पढ़ सके। एक ा ण धोखेबाज, यह जानकर क शहीदों क थानीय माँग थी, सु वधानुसार एक मनगढ़ त या या के साथ सामने आया। दुघटना मे ं एक बाण लगने से हुई टॉमस क मृ यु क सामा य कथा इससे पहले एक ू र ब लदानी व प हण कर चुक थी, जसमे ं प थर मारकर और भाला घोंपकर ह या कर देने क बात कही गयी थी, और म ास के नजदीक बड़ी और छोटी पहाड़ी पर इस दुखा त कथा का येक थल नधािरत कर लया गया था।29 भारतीय चच का इ तहास चाम कािरक प से प व अवशेषों को रणनी तगत तरीके से खोद नकालने के मामले मे ं उनक कुशा ता और समय को भाँपने क का ब लयत के उदाहरणों से भरा पड़ा है, वशेषकर उन प व ह दू थलों के पास ज हे ं वे अपने मे ं मलाना या ह थयाना चाहते है।ं न त प से, मशनरी व ता के लए उन ‘कपटी ह दू मू तपू जकों’ पर आरोप लगाना कोई नयी बात नहीं है जो कसी भी धोखाधड़ी वाली मनगढ़ त बात को उजागर कर देते है,ं जैसा क अ ात ा ण ो े



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धोखेबाज के मामले मे ं हुआ जसे सलीब पर के शलालेख के धोखाधड़ी-भरे अनुवाद के लए दोषी पाया गया।30

सान थोम गरजे से जुड़े पुराता वक सा य पुतगा लयों ारा खोज नकाले गये मकबरे क पहचान स त टॉमस के मकबरे के प मे ं कये जाने को पू री तरह से अ वीकार कर दया गया, यहाँ तक क उन व ानों ारा भी जो टॉमस क कथा के त सहानुभू त रखते है।ं उदाहरण के लए, ईसाई पुरात ववे ा फादर एच. हेरास लखते हैं : ‘कुछ ार भक पुतगाली लेखकों ने मू ल कथा के ववरणों को छपाकर रखा है, और ये ववरण इस खोज के अस य को उजागर करने के लए पया है’ं ।31 एक अ य ईसाई व ान, टी.के. जोजेफ, (T.K. Joseph) टॉमस क क वाले थान के बारे मे ं कहते हैं : ‘मैं पू री तरह आ त हू ँ क यह कभी भी माइलापुर मे ं नहीं रही है। मैनं े यह बात अनेक बार कही है’।32 यह दखाने के लए भी सा य हैं क वतमान सान थोम गरजा एक ह दू म दर के अवशेषों के ऊपर न मत कया गया है, जो मू ल प से कपाली र म दर था। उदाहरण के लए, हाल के इन ववादों के दोबारा उभरने के वष पहले कया गया एक पी-एच.डी. शोध थ कहता है : सान थोम मे ं पुरा व वदों ारा खोज नकाली गयी साम ी से यह न कष नकाला जा सकता है क म दर कहीं और अ त व मे ं रहा होगा और सवा धक स भावना इस बात क है क यह सान थोम समु तट पर रहा होगा... यों क पुराने म दर के अवशेष सान थोम समु तट पर ही पाये गये थे। पुरात व वदों ने सन 1923 मे ं जब सान थोम गरजे के पिरसर मे ं खुदाई क तो उनको शलालेख और मू तयाँ मलीं। शलालेखों ने एक म दर होने का सं केत दया [...] स त अ णा गिर नाथर भी इस बात का उ ख े करते हैं क समु तट के बगल मे ं कपाली र म दर था। ... इस कार, न कष मे ं कहा जा सकता है क पुराने कपाली र म दर को पुतगा लयों ारा प हवीं सदी मे ं न कर दया गया था, और न ू न यनीअ पा मुथा लयार और उनके पु ारा इसे इसके वतमान थान पर सोलहवीं शता दी मे ं न मत कया गया।33 भारत सरकार ारा कये गये पुराता वक सव णों मे ं पु होती है क पुतगा लयों ने एक ह दू म दर के अवशेषों पर इस गरजे का नमाण कया। उ होंने राजे चोल का एक शलालेख खोज नकाला है। सा ा यवादी चोल वै दक धमानुयायी थे। म ास मे ं सान थोम गरजे से ा राजे चोल के यारहवीं शता दी के शलालेख पर भारतीय पुरात व सव ण क 1967 क एक रपट कहती है क शलालेख मे ं चोल राजा पर ल मी का वरदह त होने का उ ख े है, ‘जो उ हे ं वजय 34 और स प ता दान करती है’ं । े

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चाहे जो हो, इन वत रपटों को कम मुखता दी गयी और दबा दया गया। उदाहरण के लए, स पू ण त मलनाडु मे ं पढ़ायी जाने वाली छठ क ा क समाज व ान क पा पु तक मे ं एक त य क तरह इसे खुल-े आम पढ़ाया जा रहा है क ं टॉमस पहाड़ी पर के थे और उ होंने ईसाइयत क श ा दी थी। ‘स त टॉमस सेट धा मक झगड़े के कारण उनक ह या कर दी गयी थी। उनका शरीर सान थोम गरजे मे ं दफनाया गया था’।35 इनमे ं से कसी क भी अनुभव स सा यों से पु नहीं हुई है। (पिर श घ मे ं देखे ं इसी कार का एक शरारतपू ण झाँसा जो मू ल नवा सयों को दया गया था उन मशनिरयों ारा जनक च उ हे ं जीतने और उनक भू म हड़पने मे ं थी।)

फ मों मे ं स त टॉमस हाल मे ं ही इस मथक का चार करने के लए कैथो लक चच ारा स त टॉमस पर वशाल बजट क एक फ म क योजना बनायी गयी है। एक समाचार-प क सू चना है : ‘बेन हुर’ (Ben Hur) और ‘द टेन कमा डमे ं स’ (The Ten Commandments) जैसी हॉलीवुड क महान फ मों को यान मे ं रखते हुए, और इसके लए समु चत बजट के साथ म ास-माइलापुर आचडायो सस तीस करोड़ क लागत से स त टॉमस के जीवन और काय पर एक फ म बनायेगा, ईसा मसीह के बारह श यों मे ं से एक पर जनके बारे मे ं व ास कया जाता है क भारत मे ं उ होंने ईसा मसीह के स देश का चार कया था। स र एमएम के पद पर बनाई जाने वाली यह फ म ढाई घ टे क होगी जसमे ं हॉलीवुड तथा भारतीय फ म उ ोग के बड़े य वों क भी भागीदारी होगी। [...] केरल और त मलनाडु के लए इस फ म का वशेष मह व है जहाँ स त टॉमस ने भारत- वास के दौरान अपने जीवन का एक बड़ा भाग बताया था। व ास कया जाता है क सन 72 मे ं माइलापुर मे ं शहीद होने से पहले उ होंने केरल मे ं सात गरजों क थापना क थी। जनता पर त व मलाई के अ णाचलम और अ ाई वेलंग ी जैसी फ मों का आ या मक सा वना देने वाला भाव पड़ा था, आच बशप ने बताया। उ होंने अनुभव कया क स त टॉमस के जीवन पर एक फ म का वैसा ही भाव पड़े गा, यों क यह सभी लोगों के लए समानता और स मान क वषयव तु के आस-पास घू मती है।36 इस अफवाह ने, क फ म मे ं त व व ु र को स त टॉमस के एक श य के प मे ं दखाया जायेगा, एक वरोध को ज म दया जसमे ं कहा गया क वह झू ठा दावा था। फ म के पटकथा लेखक पॉलराज लावरधू सामी ने पटकथा का बचाव यह कहते हुए कया क म ास व व ालय ारा वीकृत देइवनयगम के पी-एच.डी. शोध ब ध ने त व व ु र के स त टॉमस से मलने का सा य दया था।37 मू खतापू ण ों





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अटकलों क या ा इसी तरह चलती रही है, शै णक वैधता दान कये जाने से होते हुए मु यधारा के च तन और लोक य सं कृ त तक।

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घो षत

स त टॉमस क इन मनगढ़ त कथाओं को वजयी आय और ‘दु ’ ा णों के यं य च णों के साथ मला दया गया है। सन 2000 मे ं देइवनयगम ने ‘इ डया इन थड मले नयम’ (India in Third Millennium) नाम से एक पु तक का शत क , जो ह दू आ या मकता को ह थयाने और इसे ईसाइयत के ही एक उप-धम मे ं बदल देने का एक बहुत बड़ा यास है। बीच-बीच मे ं आय को मू ल खलनायक के प मे ं च त कया गया है : आय का अपना कोई धम नहीं है। वा तव मे,ं आय बना धम के लोग है।ं एके रवाद, वग, नरक, पुनज म आ द पिरक पनाओं के बारे मे ं उनको कोई ान नहीं है। वे पशुओ ं और भेड़ों का माँस आग मे ं पकाते थे और उसे सोम और सुरा जैसी शराबों के साथ खाते थे। वे कृ त-पू जा, नृ य और लोकगीत गाने का आन द उठाने वाले और स रहने वाले लोग थे। समय बीतने के साथ इ हीं लोक गीतों को ‘वै दक तो ’ के प मे ं जाना गया। ... आय एक समू हवाचक नाम है जो फारसी, ीक, रोमन, शक, कुशान और हू ण के लए यु कया 38 गया, जनमे ं से सभी बना कसी धम के भारत आये। वे अपने ष के स ा त को व तार से बताते हुए कहते हैं क वदेशी ा णों और टश उप नवेशवा दयों के एक ‘दु ’ सं य ु ष के प मे ं ह दू धम का ार भ हुआ : अं ज़ े ों का रं ग गोरा है। उ होंने इस बात पर गौर कया क ह दू व ध (मनु धम) मे ं जो गोरे नहीं हैं उन वड़ भारतीयों (अवण ) को अ े के प मे ं द मत कया जाता है और गोरे रं ग के वदे शयों (सवण ) को े माना जाता है। ... एक े , सं य ु उप म के प मे ं ह दू धम का ज म हुआ। आय ा ण और अं ज़ दोनों ही वदेशी है;ं इन दोनों ने मलकर भारत के लोगों के व ष कया। उ होंने सं य ु प से इस पिरक पना का सृजन करके उसे फैलाना शु कया क अं ज़ े ी का श द ‘ ह दू इ म’ (Hinduism) ( जसका मू ल अथ था ह दू व ध) का अथ ‘ ह दू धम’ अथात्, भारतीय धम भी हो सकता है।39 वे इससे आगे दावा करते हैं क शं कर, रामानुज और माधव आय ा ण थे ज होंने वेद यास क ार भक रचनाओं को वकृत कया जनके बारे मे ं देइवनयगम दावा करते हैं क वे वड़ थे।40 दू सरे श दों मे ं ह दू धम के उन प ों को ज हे ं ईसाइयत के साथ थान दया जा सकता है, उ हे ं ईसाई भाव के कारण हुआ बताया गया, जब क उनको, जो इसके वपरीत थे, वदेशी ा णों ारा क गयी वकृ तयों के प मे ं नीचा दखाया गया। जहाँ एक ओर देइवनयगम को मू लत: मू ख के प मे ं ं ें े ीं औ े ी े ी े

देखा जाता था, वहीं उनक दृढ़ता और अनवरत सं ल नता ने धीरे-धीरे उ हे ं मु यधारा क ईसाई सं थाओं और गरजों के बीच मह वपू ण बना दया। सन 2004 आते-आते ईसाई चारक मशनरी उनके औपचािरक पा मों मे ं भाग लेने लगे थे ज हे ं चलते हुए 2010 तक छह महीने हो गये थे।

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ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज

ए शयाई अ ययन सं था (इं टी ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज) क थापना एक जापानी बौ व ान और जॉन सैमएु ल नाम के एक भारतीय ईसाई ारा सं य ु प से क गयी थी। इसने अनेक पु तकें का शत क ं और ‘जनल ऑफ द इं टी ू ट ऑफ ए शयन टडीज’ (Journal of the Institute of Asian Studies) नाम क एक प का का काशन भी शु कया। जहाँ इस सं थान क शु आत भलमनसाहत-भरी थी, वहीं सैमएु ल ने जापानी भागीदार से इसे अपने हाथ मे ं ले लया और इसके शोध और श ा के काय म को त मल पहचान तथा सं कृ त को ह दू धम से अलग करने वाले काय म क ओर मोड़ दया। थानीय भावनाओं को भा वत करने के लए इसने सभी अ छ बातों के ोत के प मे ं त मल सं कृ त क शं सा करना ार भ कर दया, जब क सव-भारतीय पहचान और सां कृ तक इ तहास को कम मह व दया। ह दू पर पराओं को अलग, वदेशी को अलग ख ड मे ं रखा गया जब क ईसाइयत और बौ धम को तकसं गत बताया। इं टी ू ट क वेबसाइट दखाती है क यह उन धम को पढ़ाता है ज हे ं बौ , ईसाई, कौमारम, प त मराई और 41 लोक अ ययन के प मे ं वग कृत कया गया है। उसमे ं ह दू धम जैसी कोई चीज है ही नहीं। इं टी ू ट ने कै लफो नया, बकले जैसे व व ालय से शोध स ब ध था पत कर मह व ा कया है, और उसके मा यम से कोलोन व व ालय के ‘इं टी ू ट फ़ॉर इ डोलॉजी ए ड त मल टडीज’ और अ य व यापी पिरयोजनाओं के साथ स ब ध भी था पत कया है।42

शव और नटराज ‘ वड़’ घो षत इं टी ू ट क व ता के एक नमू ने का उदाहरण 1985 मे ं छापी गयी एक पु तक मे ं मलता है जसका नाम ‘आन द ता डव ऑफ शव सदानृ मू त ’ (Ananda-tandava of Siva Sadanrttamurti) है। इसके लेखक, का मल वी. वेले बल (Kamil V. Zvelebil) नाम के एक मुख चेक (Czech) वड़वादी ने बल देकर घो षत कया है क एक द य नतक के प मे ं शव क पिरक पना, वशेष प से आन द ता डव करते हुए, ‘ न:स देह एक इ डो- वड़ अ व कार है’।43 वे बल देकर कहते हैं क ‘हमे ं भारत के उ री और द णी भाग के बीच अ तर करना ही चा हए’।44 उसके बाद वे उ र भारत मे ं शव के सभी सा यों को धृ ता के साथ मह वहीन बताते हुए र कर देते हैं : े ी ें े े े ें े

भारत के उ री भाग मे ं नृ य करते हुए देवता के प मे ं शव के कुछ त पण चालु य, वाकाटक और प व काल के पहले से अ त व मे ं है,ं उ हे ं शव नटराज वषय-व तु के ार भक पू वसू चकों से अ धक कुछ भी नहीं माना जा सकता।45 वेले बल उ र भारत मे ं पाँचवीं शता दी के गु काल के नृ य करते हुए शव के पुराता वक सा य को वीकार करते है,ं ले कन शी ही वे अ वीकार करते हुए कहते हैं क ‘गु मू त श प मे ं नटराज क वषय-व तु अ धक मह वपू ण नहीं थी’, और ‘वा तव मे ं नृ य करते हुए देव के प मे ं कुछ त प गु काल के अ तम दनों मे ं द ण भारत मे ं उ भू त और वक सत नटराज क पिरक पना के भाव और उसक रे णा से होने लगे थे’।46 यह सं व लेषण उ हे ं भरोसे के साथ यह न कष नकालने क अनुम त देता है क नटराज द ण भारत के वड़ थे। वे उ र के साथ शव के जैव स ब ध के वशाल सा यों क उपे ा करते हैं जो हजारों वष मे ं वक सत होकर भारत क सामू हक आ या मक चेतना मे ं बदल गये है,ं जैसे क :   स धु घाटी स यता मे ं पाये गये शव से स ब पुरावशेष   शव का नवास थल कैलाश पवत त बत मे ं है ृ ला को उनके प व भौगो लक   हमालय पवत ं ख है   शव क गं गा उ र मे ं बहती है   अमरनाथ क स आक षत करती है

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थत शव लं ग के कारण तीथया यों को

 शैव थलों के पुराता वक अवशेष म य ए शया मे ं मले हैं द ण भारत क सं कृ त को शेष भारत से और अलग करने के अपने यासों मे ं वेले बल शव के नृ य का उ ख े करने वाले सं गमो र काल के सा ह य का उ रण देते हैं और न कष नकालते हैं : यह प है क त मल द ण मे ं नृ य करते हुए देव क एक मह वपू ण वत पर परा थी जो काँची के प व शासन काल मे ं पू री तरह पु पत और वक सत होनी शु हुई।47 उन व ानों ने भी जो आय/ वड़ वभाजक दृ ा त के भीतर काय करते है,ं इं गत कया है क ऋग वेद मे ं भी ( शव) के नृ य और सं गीत का उ ख े है।48 ईसा पू व दू सरी शता दी के उ र भारतीय शुं ग वं श शासन काल के वा उपकरण के साथ एक शव तमा का उदाहरण शवराममू त ारा इं गत कया गया है जो नटराज मू तकला के वशेष माने जाते है।ं 49 य प वेले बल सी. शवराममू त के अ य काय का यापक उ ख े करते है,ं इस त य को नजर दाज कर देते है।ं े



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द ण भारत ने भारतीय आ या मकता मे ं यापक योगदान कया है, वशेषकर नटराज के प मे ं शव के द य त प को वक सत और पिर कृत बनाने मे।ं जो भी हो, कुछ वड़वादी यह था पत करना चाहते हैं क द ण भारतीय पर पराएँ ब कुल वत पर पराएँ हैं ज हे ं केवल कृ म प से ही सव-भारतीय या वै दक पर पराओं से जोड़ा गया है। भारतीय सं कृ त से द ण भारत क आ या मक पर पराओं को स दभ- युत बनाने का यह यास, इन पर पराओं को ईसाई पर पराओं के प मे ं पुनस दभ कृत करने के लए एक अ तिरम कदम बन जाता है।

क द-मु गा का समायोजन 1991 मे ं ‘इं टी ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज’ ने वेले बल ारा लखी एक अ य पु तक का काशन कया जसका नाम ‘टै मल े डश स ऑन सु म य-मु गन’ (Tamil Traditions on Subrahmanya-Murugan) था। यह त य आय/ वड़ वभाजकता को और आगे बढ़ावा देने के काय म को तुत करता है। यह पु तक बार बार ा णों क तुलना आय से करती है, और ह दू धम को बौ और जैन धम को समा करने के लए एक त मा बताती है। यह या या करती है क चतुर ा णों क ‘रणनी त’ हमेशा से ‘उनके वरो धयों के सवा धक स मानजनक प ों को अं गीकृत कर लेने क रही है’। इस कार ह दू धम, ‘एक वशेष वातावरण मे ं एक वशेष कार के मानस क उपज है, एक वशेष कार का धम जसका मुकाबला उसके ही तरीकों से कया जाना चा हए’।50 वयं को स तु लत व ान के प मे ं था पत करने के लए वेले बल पहले ‘भारतीय सां कृ तक वकास के त भोले-भाले दृ कोण क ु टयों’ के त सचेत करते हैं ‘जो दृ कोण इस सब को मू ल- नवासी- वषयक प ों (मु यत: वड़) और पिर कृत इ डो-आय वृ यों के बीच तनाव मे ं बदल देता है’।51 पर तु केवल दो पृ ों के बाद ही वे उसी ग ढे मे ं गर पड़ते हैं जसके बारे मे ं उ होंने ख़बरदार कया था। वे ा ण-आय पर वड़ आ या मकता को सं कृत के साँचों मे ं ढालने का आरोप लगाते है।ं वे दावा करते हैं क थानीय त मल ढाँचे को ‘बाद के ट पणीकारों क इन को शशों के मा यम से आं शक प से बला कार ारा और आं शक प से अपनाने और समायोजन करके त मल वचारधारा और स ा तों को ा ण-सं कृत के जबरद ती-एक पता- था पत-करन◌े-वाले ढाँचे मे ं ढाला गया’।52 उसके बाद वे त मलों के महान भ सा ह य के पुनजागरण को सं कृत भाव ारा लाये गये एक पतन के प मे ं नीचा दखाते है।ं उनके अनुसार, दु आय सामा जक बुराइयाँ लाये जनमे ं ‘महाका यों, पुराणों क आय पुराकथाओं का सश वकास; भाषा का सं कृ तकरण; कमका डीय शु ता का ढ़ीकरण; दृ ा तों का दू षण; क र वण- यव था क धारणा; साम ती ढाँचे मे ं उपयोग मे ं लाये जाने वाले राजा के ई र होने क अवधारणा; क र कमका ड’ आ द शा मल और व तृत थे। े ि ों े

दमन के पिरणाम व प त मल जनों ने ‘भ ’ का सहारा लया ‘एक भावना मक बाढ़ के प मे ं जसमे ं जीवन क सम याओं के सामाधान के तकसं गत यास डू ब जाते है;ं जो जीवन और इसक सम याओं के त एक अता कक और तक वरोधी तरीका है’।53 यह क थत यू रोपीय े ता का ही नमू ना है जसका दशन करते हुए वेले बल बल देकर कहते हैं क ‘त मलनाडु ने ‘‘वा त वक’’ पुनजागरण जैसे वकास म का सा ा कार नहीं कया है ... ऐसा कोई वकास म नहीं है जसक तुलना यू रोप के प हवीं-सोलहवीं शता दी के पुनजागरण से, स हवीं-अ ारहवीं शता दी के यू रोपीय तकवाद से, या उ ीसवीं शता दी के यू रोपीय अनुभववाद या सकारा मकतावाद से क जा सके’।54 ले कन त मल जहाँ एक ओर यू रोपीयों से े ता मे ं कम है,ं वहीं वे ह दू भ आ दोलन ारा दू षत होने से पहले बेहतर थे, यों क वे प थ नरपे , असा दा यक, आशावादी और साहसी थे, तथा माँस खाते और शराब पीते थे। वेले बल लखते हैं : जो भी हो, भ के झान के पहले तक, क थत ‘काले युग’ के पहले, त मल ाचीन कालजयी रचनाकाल मे,ं मु गन काल मे,ं य प , आशावादी, सहज, जीवन के धम नरपे दृ कोण वाला था, एक माँस खाने वाले और शराब पीने वाले साम तवाद के पहले के समाज के साहसी युग मे,ं तुलना मक प से सहज, ले कन साथक धा मक अवधारणाओं के साथ।55 इस तरह वेले बल कॉ डवेल के स ा त का ही नवीनीकरण करते हैं क ा णों ारा त मल आ या मकता को धोखा देने और ब दी बनाने के पहले यह आ दम साम तवाद से पहले क सं कृ त थी जो असली ईसाइयत मे ं पिरवतन के लए ँ ाई, जब क त मल जनों को जस तैयार थी। ा णों के ह त प े ने इसे त पहुच चीज क वा त वक आव यकता थी, वह ईसाइयत ारा ‘पिर कार’ क ही थी ता क उनके पास एक मा य धम हो सके। कॉ डवेल ने ताव रखा था क एक बार अगर ा णों का छल हटा दया गया तो सहज म त क वाले वड़जन ईसाई चारकों ं ।े के घेरे मे ं शा मल होने के लए तैयार हो जायेग ‘इं टी ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज’ मे ं जॉन सैमएु ल (John Samuel) का मशन था क कॉ डवेल ने जहाँ उसे छोड़ा था, वहाँ से उसे आगे ले जाना। उ हे ं द ण भारत और ीलं का मे ं तरह-तरह के एन.जी.ओ. के साथ काम कर रहे एक प मी व ान पै क हैिरगन ारा सहायता दी जाती है।56 हैिरगन ने वयं को द ण भारत और ीलं का के ह दू रह यवाद और लोक पर पराओं के एक मुख शोधकता के प मे ं था पत कया है, जसके मा यम से उ होंने एक वशाल आँकड़ों का कोष तैयार कया है और त मल आ या मकता तथा मुख ह दू म दरों पर चालीस वेबसाइटे ं चला रहे है।ं 57 उ होंने अ य त लोक य मु गन पू जा पर परा58 के सं र कों के साथ अपने स पक का उपयोग सैमएु ल क सहायता करने के लए कया है, ता क उस पर परा का ईसाईकरण कया जा सके, जो ल बे समय से चच ारा ो













समायोजन के वरोध कर रही थी। मु गन त मलनाडु के एक अ य त लोक य ु ल ने कई अ तरा ीय मु गन स मेलनों का आयोजन कया है जनमे ं देवता है।ं सैमअ मु गन क या या ह दू स दभ से बाहर क गयी। यह इस दावे के लए माग श त करेगा क यह देवता ईसाई देवता का ही एक प है या गलत ढं ग से पहचाना गया ईसाई स त। सन 1999 मे ं आयो जत उनके स मेलन के दौरान ‘ ह दू इ म टुडे’ (Hinduism Today) ने सैमएु ल और हैिरगन का सा ा कार लया और सैमएु ल के सू म ह दू वरोधी पू वा ह क रपट का शत क जसमे ं उनके ारा मु गन क द यता को कम करने का य न कया गया था, जो एक ऐसा आरोप था जसे कम करने मे ं हैिरगन ने प ीकरण दे कर सहायता क ।59 सैमएु ल ने देइवनयगम का अनुमोदन कया, इस बात पर बल देते हुए क मुख ह दू आ या मक पर पराएँ स त टॉमस क ईसाइयत के भाव मे ं उ प हु । यहाँ तक क बहु ात सोम क द मू त श प को— जसमे ं क द-मु गन के बा य व प को दखाया गया है और जसे सोम क द कहा जाता है, और दोनों ओर उनके मातां को अब ईसाई नटी से उ भू त माना जा रहा पता पावती और शव वराजमान है— है। जॉन सैमएु ल लखते हैं : यह ब कुल प है क सोम क द क आकृ तयाँ और अ मई-अ पन-मगन क अवधारणा ईसाई नटी श ा के उ घाटन के अलावा कुछ भी नहीं है। यहाँ यान रहे क शु मे ं भगवान मु गन के कोई पता नहीं थे। शैव मत ारा नटी क श ा के भाव पर व तृत शोध करने का य े पू री तरह डॉ. एम. 60 देइवनयगम और डॉ. डी. देवकला को जाता है। इस तरह, पहले के शै णक सं थानों ने एक धा मक उ साही ारा प त: गढ़ी गयी पिरक पना को समथन दया। शै णक वैधता क आभा सृ जत करने के बाद, अगला कदम है ‘टॉमस क वड़वादी ईसाइयत’ को लोक य ा ण वरोधी वड़ राजनी त के साथ एक कृत करना। इसका पिरणाम है त मलों के लए एक वभाजक जातीय-धा मक पहचान।

‘पं चम वेद’ का गढ़ा जाना रॉबट डी नो बली (Robert de Nobili, 1577-1656) एक शरारती ईसाई थे ज होंने ा ण का वेष धारण कर यह दावा करते हुए एक धोखाधड़ी क क उ हे ं एक पुराना थ मला है और जो पू री भारतीय पर परा को ईसाइयत के ही एक उपधम क तरह दखायेगा। इसे उ होंने पं चम वेद का नाम दया। इसे ईसा वेद के प मे ं तुत कया गया था और यू रोपीय भारत वदों ारा इसे लोक य भी बनाया गया। ां स मे ं इसे वॉ टेयर स हत व यात बु जी वयों ारा समथन दया गया, ज होंने इसक शं सा मे ं लखा : े





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यह पा डु ल प न:स देह उस काल क है जब यो गयों का ाचीन धम वकृत होना ार भ हो गया था; हमारे अपने प व थों को छोड़कर, यह एक ही ई र मे ं व ास करने वाला सवा धक स माननीय मारक है। इसे ‘इजू र वेदम’ (EzourVeidam) कहा जाता है : मानो इसे कोई स य वेदम, वेदम भा य, शु वेदम जैसे नामों से पुकारे।61 1774 मे ं पयरे सो राट (Pierre Sonnerat) नामक एक ां सीसी कृ तवादी और अनुस धान कता इस ‘इजू र वेदम’ क एक त के साथ भारत आये थे। उ होंने ा णों से श ा हण क ता क वा त वक वेदों को समझ सकें, और इस पं चम वेद क पु करने यो य हो जाये।ं उ होंने न कष नकाला क वह द तावेज नकली था और वै दक आ या मक त वों को ईसाई शा के साथ मलाने के लए धोखाधड़ी से रचा गया था। ईसाई धमशा को उसमे ं छपाकर घुसाने के लए समायोजन कये गये ता क कोई उसमे ं ा ण के वेष मे ं मशनरी क पहचान न कर पाये। सन 1782 मे ं उस ां सीसी ने भारत क अपनी या ा के ववरण का शत कये और ‘इजू र वेदम’ क धोखाधड़ी का भ डाफोड़ कया : हमे ं सतक रहना चा हए क हम भारतीयों क धा मक पु तकों मे ं ‘इजू र वेदम’ को शा मल न करे,ं जसका रॉयल लाइ रे ी मे ं एक तथाक थत अनुवाद भी है, और जसे सन 1778 मे ं का शत कया गया था। यह न त प से चार वेदों मे ं से नहीं है, नाम मा का भी नहीं। यह ववादों क पु तक है, जसे मसुलीप म मे ं एक मशनरी ारा लखा गया। इसमे ं व णु को सम पत पुराणों मे ं से अनेक का ख डन है, जो वेदों से अनेक शता दी बाद के है।ं लेखक सब कुछ को ईसाइयत मे ं बदलने का यास करता दखायी देता है; उ होंने कुछ ु टयों का भी समावेश कया ता क कोई ा ण के वेष मे ं छपे मशनरी को पहचानने मे ं सफल न हो सके। कसी कारण से वॉ टेयर और कुछ दू सरों ने गल तयाँ क ं जब उ होंने इस पु तक को उतना मह व दया जतना क नहीं दया जाना चा हए था, और जब उ होंने इसे एक धा मक पु तक माना।62 अपमा नत होने से बचने के लए इस अमा य कर दये गये अ भलेख को छपाकर रखा गया, और ‘नोवे लस ए व जश स ैं केइसेस’ मे ं एक अमह व के नाम ‘Exhibit No. 452’ के तहत द शत कया गया। इस पिरयोजना के वफल होने के बाद भी उ ीसवीं शता दी के मै स मू लर जैसे भारत वदों ने डी नो बली को इस धोखाधड़ी से दोषमु करने के सश यास कये, या कम-से-कम इतने यास कये क धोखाधड़ी मे ं उनके योगदान को बहुत कम करके दखाया जाये—यह आरोप लगाते हुए क पू रा करण नो बली के कुछ भारतीय नौकरों का कमाल था। इस छल के उ घा टत होने के लगभग एक सौ वष बाद सन 1861 मे ं मै स मू लर ने नो बली के यास के लए उनक शं सा क : े



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... यह वचार क वे, जैसा क उ होंने कहा, एक नये या पाँचवे वेद क श ा देने आये है,ं जो खो गया था, द शत करता है क वे जस धमशा ीय णाली पर वजय ा करने आये थे उसके सबल और दुबल प ों को वे कतनी अ छ तरह से जानते थे।63 इस वफलता के बाद भी, मशनिरयों ने ईसाइयत को स य और मू ल वै दक धम कहना ार भ कर दया। इस चार क सफलता इस त य से ही प है क आज त मलनाडु के तीन द णी जलों ( त नेलवेली, टुटीकोिरन, और क याकुमारी) मे ं सामा य ह दुओ ं ारा भी ईसाइयत को इं गत करने के लए वेदम (वै दक धम) श द का उपयोग कया जा रहा है, वेदा-कोइल (वै दक म दर) श दावली चच को, और वेदा-पुथकम (वै दक पु तक या थ) श दावली बाइबल को इं गत करती है। मशनरी सभाओं और स मेलनों को ‘वेदगामा श ा गो ी’ और धमशा ी महा व ालयों को ‘वेदगामा कूल’ कहा जाता है। वेदों पर यह ईसाई अ धकरण नबाध प से जारी है। रॉबट डी नो बली क वरासत को जारी रखने के म मे,ं अनेक वै दक श दाव लयों का ईसाईकरण कया जा रहा है ता क ह दुओ ं के बीच गलतफहमी पैदा क जा सके। उदाहरण के लए, धम दी पका एक मशनरी शोध प का है, जसे एक ईसाई चारक सं थान ‘माइलापुर इं टी ू ट ऑफ़ इ डजेनस टडीज’ ारा का शत कया जा रहा है। सन 2000 मे ं इसने एक आलेख का शत कया जसने ऋग वेद के पु ष सू मे ं जो जाप त आते है,ं उ हे ं जनता क पापमु के लए ‘ईसा मसीह के ब लदान के बारे मे ं एक पैग बरीय उ घाटन’ के प मे ं च त कया। यह एक ईसाई चारक रणनी त है। इसने जाप त को ईसा मसीह क एक वै दक भ व यवाणी के प मे ं दखाने क स भावनाओं क जाँच क , और इस कार ‘ईसा मसीह ही वा त वक जाप त है’ं ।64 इसके बाद द ण भारत मे ं एक मुख चार अ भयान शु हुआ। उसी वष चे ई के एक अ य ईसाई चारक दल ने हाल ही मे ं धमा तिरत लोगों के साथ ‘ जाप त’ नाम से एक नृ य नाटक का मं चन ार भ कया। 65 यह नाटक धमा तरण का एक जोरदार उपकरण बन गया है जसे रामे रम और कां चीपुरम जैसे मह वपू ण ह दू तीथाटन के ों के नजदीक मं चत कया जाता है। ह दू /ईसाई स भा वत सं घष वाले े ों मे ं इस नाटक के मं चनों क अ य ता रा य सरकार के पयटन म ी और अ य राजनी त करते रहे है,ं जनमे ं से सब-के-सब वड़ आ दोलन के ही होते है।ं 66 इस वचार को क वेद ईसा मसीह के आगमन क भ व यवाणी है,ं और इस लए ईसाइयत वेदों का ही साकार होना है, रायमु डो पा णकर जैसे एक अ य त मुख धमशा यों ने भी, जो ईसाई है,ं आगे बढ़ाया है। चे पा नाम के चे ई के एक लोक य ईसाई चारक वयं को साधु बताते हैं और वै दक देवता अ न के नाम पर अ न म न ीस नामक एक ईसाई चारक सं गठन चलाते है।ं वे दावा करते हैं क ँ े ों े ं ई ी े े ई

चू ँ क वेदों मे ं जाप त ईसा मसीह के आने का पू वानुमान था, इस लए बना ईसा मसीह के वै दक खोज अपू ण है। उनका मु य ल य ीलं काई त मल ह दू समुदाय है, जो स पू ण व मे ं शरणा थयों के प मे ं बखरा हुआ है, और जसे आसानी से भा वत कया जा सकता है।67 सन 2009 मे,ं उ होंने बड़े -बड़े पो टर लगाये जनमे ं एक ईसाई- ा ण सं गठन क घोषणा क गयी थी। इसने उस े के ह दुओ ं मे ं ोध उ प कया ज होंने इस बात पर लोगों का यान आक षत कया क ईसाईा ण श दावली एक धोखा था, और बाद मे ं चे ई पु लस ने उनके पो टरों को हटा दया।68

ह दू लोक य सं कृ त का ईसाईकरण नवरा एक योहार है जसमे ं लगातार नौ रा तक द य मातृ देवी क पू जा होती है। दसवाँ दन वजयदशमी के नाम से एक मह वपू ण द ण भारतीय ह दू पर परा के प मे ं जाना जाता है (उ र भारत मे ं इसे दशहरा के नाम से जाना जाता है)। द ण भारत के ह दुओ ं के लए यह एक प व दन है जब उनके ब ों क श ा ार भ करने का अनु ान कया जाता है। ईसाई ने भी इसी दन से अपने ब ों को श ा शु कराने लगे है।ं सन 2008 मे,ं एक समाना तर अनु ान का आयोजन कया गया ता क ईसाई स दभ मे ं ह दू धा मक प त क नकल क जा सके : जहाँ ह दू ब ों ने ‘हिर ी गणपतये नम:’ लखा वहीं ईसाई ब ों ने ईसा मसीह क शं सा मे ं श द लखे... समारोह के लए भारी सं या मे ं लोग आये। ब ों ने ‘येश ु दैवम’ जैसे श द चावल के दानों से भरी थाली मे ं लखे।69 ं बेसे लयस गरजे के इस सफलता ने केरल के एक मुख शहर को यम के सेट पादरी को ो सा हत कया जो इससे भी आगे गये। सन 2009 मे ं उ होंने दावा कया क वजयदशमी क एक ईसाई ऐ तहा सक पृ भू म थी, यों क यही वह समय है जब जेहोवा ने ईसा मसीह को ान दया। इस ईसाईकृत सं करण मे ं सर वती और ल मी के थान पर, जो मश: बु और स प क दे वयाँ है,ं ईसाई स तों पॉल और सबै टयन को लाया गया। पादरी ने आगे और दावा कया क महा शवरा का पव मसीह रा का वकृत प है। यह वही दन था जब ईसा मसीह ने अपने अनुया ययों से चौक े रहने को बोला था।70 ये उदाहरण हैं क कस कार द ण भारत मे ं स त टॉमस मथक क घुसपैठ होने के साथ ह दू योहारों का धीरे-धीरे ईसाईकरण कया जा रहा है।

ह दू कला का ईसाईकरण

वा तव मे,ं नृ य म दरों मे ं पू जा का एक वाभा वक और आव यक अं ग है। ... सफ़ भारत मे ं ही ऐसे ई र क पिरक पना है जो नृ य करते है।ं शव नटराज है,ं नृ य करने वालों के वामी, जो चेतना के ासाद मे ं नृ य करते हैं और उसमे ं े ैं





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ा ड क लय बुनते है।ं उनके ा डीय नृ य मे ं सृजन, सं र ण, पुनसृ , आ छादन और शुभाशीष के द य वशेषा धकार भी है.ं .. भारत मे ं नृ य धम के साथ इतने नकट से जुड़ा हुआ है क आज इस अ नवाय पृ भू म से इसके अलग हो जाने के बारे मे ं सोचना भी अस भव हो गया है। —

मणी देवी अ

डे ल71

ह दू कला- पों और वै दक पर पराओं के अ य प ों को मशनरी व ानों ारा ईसाई घुसपैठ और समायोजन के लए ल त कया जा रहा है। भरत ना म एक लोक य ह दू आ या मक नृ य वधा है जसका मू ल वेदों मे ं नृ य के उ ख े मे ं खोजा गया है। इसे भरत मु न ारा ना शा के लखे जाने के भी पहले औपचािरक व प दे दया गया था, जो ईसा पू व दू सरी शता दी मे ं मं चीय कला और सौ दय शा पर लखा गया एक बीज थ है। त मल महाका य चलाप थकरम ाचीन नगर के ों मे ं कये जाने वाले कालजयी नृ य दशनों का वणन व तार से करता है। सामा य जनों के लए मं चीय कलाओं को आ या मक थाओं के प मे ं ँ था पत करने रखा गया था; इनमे ं वे भी शा मल थे जनमे ं धम थों तक सीधे पहुच लायक न तो यो यता थी और न ही झान। नृ य का हमेशा से ही एक प व पहलू रहा है, और ज होंने इसके तरीकों को सं र त, सं चत और चािरत कया उनमे ं पाशुपत (शैव) घुम तू साधु शा मल थे ज होंने इसका उपयोग आन दा तरेक तक ले जाने वाले के एक तरीके के प मे ं कया।72 भरत ना म ह दू ा ड व ान के उ प -पालन-सं हार च पर आधािरत है, जसे शव के नृ य के प मे ं भी देखा जाता है। डॉ. आन द कुमार वामी के श दों मे ं : क रा मे,ं कृ त न य रहती है, और तब तक नृ य नहीं कर सकती ु वे अपनी उस थ त जब तक क शव क इ छा न हो : आन दा तरेक मे ं बेसध से जागते है,ं और उनका नृ य न य पदाथ मे ं जगाने वाली व न क धड़कती तरं गे ं भेजता है, और फर पदाथ भी नाचने लगते हैं जो उनके चारों ओर एक वैभव सदृश लगते है।ं नृ य करते हुए ही वह इसके बहु तरीय घटना म को सं चा लत करते रहते है।ं समय पू रा होने पर, वे अब भी नृ य करते हुए अ न के ारा सभी व पों और नामों को न कर देते हैं और नया व ाम देते है।ं यह का य है; ले कन व ान से कम भी नहीं।73 नृ य के इस व प ने, जो आ या मक, कला मक और दाश नक जगत को एक सू मे ं बाँधता है, भौ तक व ानी और दाश नक जोफ कापरा जैसे अनेक आधु नक प मी व ानों को िे रत कया है, जो लखते हैं : ‘तब, आधु नक भौ तक व ानी के लए शव का नृ य उप-परमा वक पदाथ का नृ य है’।74 वग य काल सागाने, जो एक खगोल भौ तक व ानी थे, शव क मू त मे ं ‘आधु नक ो



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खगोलशा ीय वचारों क एक कार क पू वानुभू त देखी’।75 मणी अ डे ल भारतीय नृ य के दशन क या या इस कार करती हैं : यह पु ष और कृ त क आ मा है, ग त के उ भव क एक अ भ य , एक स ी रचना मक श जो युगों-युगों से आगे बढ़ायी और सौंपी जाती रही है। आ या मक का य का सृजन करने वाले व न और लय के इस मू त व प को नृ य या ना कहा जाता है... इस नृ य क पहली झलक हमे ं वयं शव से मलती है, यो गयों के एक योगी से। वे हमे ं ा डीय नृ य दखाते हैं और हमारे लए जो कुछ भी अ त व मे ं है, उसक एकता का च ण करते है.ं .. उनके नृ य क ा डीय लय उनके चारों ओर आ मा-यु पदाथ को आक षत करती है, जो वयं को इस अन त और सु दर ा ड क व वधताओं मे ं कट करते है।ं 76

बौ , जैन और बाद के सू फ मुसलमानों ने इन मं चीय कलाओं के सौ दय को उ स मान दया, वशेषकर नृ य, का य और सं गीत को। उ होंने इनको अपने धा मक और प थ नरपे मं चनों के लए अं गीकृत कया।

भारतीय आ या मक नृ य का ईसाई अपमान स हवीं शता दी से ईसाई मशनिरयों ने भारतीय शा ीय नृ य पों को मू तपू जकों क था के प मे ं देखते हुए उन पर सश हार कये है।ं इसे बहुधा मानवा धकार के आधार पर देवदासी था पर हार करते हुए अ भ य कया गया। देवदा सयाँ म दर क नत कयाँ थीं, ज हे ं बचपन मे ं ही कसी वशेष देवता को सम पत कर दया जाता था। दसवीं और यारहवीं शता दी मे ं यह था अपने चरम पर थी, ले कन कुछ सौ साल बाद श शाली राजाओं ारा सं र त म दरों क यह पार पिरक था मुगल शासनकाल मे ं धीरे-धीरे लु होती गयी, वशेषकर तब से जब मुगलों ने इसे लोक य मनोरं जन मे ं बदल दया, जसमे ं आ या मकता नहीं रह गयी। देवदासी था कुछ मामलों मे ं इतनी नीचे गर गयी क म दर क नत कयों का उपयोग वे यावृ के लए कया जाता था, उप नवेशवा दयों ारा इसक यापकता को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया। भारत के अं ज़ े ी- श ा ा स ा त लोगों मे ं से अनेक ने अपनी वरासत क औप नवे शक न दा को वीकार कर लया और इसक ‘आ दमता’ के लए मा याचना क । उनमे ं से कुछ समाज सुधारक बन गये और उ होंने देवदासी णाली को नै तक और यहाँ तक क सामा जक- वा य के आधार पर घृ णत पाया।77 जो भी हो, देवदा सयों ने अपने अ त व को खतरे मे ं पाया और औप नवे शक सरकार को ह त ल खत आवेदन भेज,े जनमे ं भरत ना म के आ या मक आधार को प कया गया था। शैव आगमों से उ होंने यह कहते हुए शव के उ रण दये क ‘पू जा के समय मुझे स करने के लए त दन शु नृ य क यव था अव य क जानी ो ओं ो ों े ऐ े ी

चा हए। इस नृ य को उन म हलाओं ारा कया जाना चा हए जो नत कयों के ऐसे ही पिरवारों क हों और पाँच आचाय उनक सं गत करे’ं । चू ँ क येक ह दू ारा इन आगमों को पू जा जाता है, देवदा सयों ने पू छा, ‘हमारे समुदाय को म दर क सेवा के अ नवाय अं ग के प मे ं उ त न करने और अ त व मे ं न बने रहने देने का या कारण हो सकता है?’ अपनी पर परा को नभाने के लए उनको कठोर द ड देने के ताव को उ होंने वरोध कया, यह कहते हुए क ‘स य व मे ं उसके जैसा कोई कानू न नहीं था’।78 अपने पार पिरक यवसाय के उ मू लन के बदले उ होंने अपनी ऐ तहा सक थ त को बहाल करने के लए बेहतर श ा क माँग क । उ होंने यह कहते हुए अतीत क तरह धा मक, सा ह यक और कला मक श ा चाही क ‘हममे ं गीता का ान और रामायण क सु दरता का समावेश कराये ं और हमे ं आगमों को समझाये ं और पू जा क व धयाँ भी बताये’ं । इससे देवदासी बा लकाओं को रे णा मलेगी क वे वयं को मै य े ी, गाग और म णमेकलाई जैसी ी स तों क तरह ढाले,ं और वेदों क ी गा यकाओं जैसी बने,ं ऐसी क : ... हम एक बार फर नै तकता और धम के श क बन जाये।ं ... आप जो छोटे समुदायों के लए अपने मधुर म े क डींग हाँकते है,ं हम ाथना करते हैं क आप हमे ं जीने और अपना मो वयं ा करने के लए काम करने, ान और भ मे ं वयं को अ भ य करने, और बढ़ते हुए भौ तकतावाद क धु ध और उसक आँधी मे ं भारत के धम क वाला जलाये रखने, और व के सम भारत के स देश क या या करने का अवसर दे।ं 79 ऐसे यासों के बावजू द भरत ना म पर जसे अनै तक के प मे ं देखा जाता रहा और का सामना करता रहा। उदाहरण के लए, वड़वादी ने इस नृ य को ‘वैसा जीवन ोत बढ़ावा देता है’।80

मशनरी भाव का दबदबा जारी रहा वह लगभग न त वलु के सं कट मशनरी व ता ारा सम थत एक कहा जो वे यावृ के वकास को

जो भी हो, ह दू व ानों ने कला के इस व प पर लगाये गये ईसाई लां छनों को हटाने के लए अथक यास कये। उनमे ं से मुख थीं मणी देवी अ डे ल (1904-86), ज होंने 1936 मे ं कला े अकादमी ऑफ़ डां स ए ड यू जक क थापना कर इस नृ य को सं र ण दया और पुनज वत कया। उ होंने म यवग य पिरवारों क बा लकाओं के लए (यहाँ तक क बालकों के लए भी) भरत ना म सीखने को सामा य प से एक वीकाय ग त व ध बना दया। य प इसका सं चालन एक आधु नक सं थान क तरह कया गया, इसने एक पार पिरक गु कुल क तरह ही काम-काज कया जसमे ं गणप त देव क ाथना, शाकाहार, और गु श य स ब ध पर यान के त कया गया। स पू ण त मलनाडु मे ं वके ीकृत, एकपर-एक श ण क गु - श य पर परा का तरीका इस पुनज वन के एक अं ग के प ें े ै ो े े े ै ि ों

मे ं तरह-तरह से फैला। इस कार, समा हो जाने के बदले, जैसा क मशनिरयों, उप नवेशवा दयों और उनके भारतीय अ तरं ग सहयो गयों ारा वां छत था, भरत ना म फर एक बार एक आ या मक कला प मे ं द ण भारत मे ं सु था पत हो गया, और उसने भारत भर मे ं तथा वदेशों मे ं भी शं सा ा करना ार भ कर दया। ‘कला े ’ वक सत होकर एक व व ालय बन गया जसका चे ई मे ं एक बड़ा पिरसर है।

रणनी तगत पिरवतन : ह दू नृ य का सू म ईसाई समायोजन हाल के वष मे,ं मशनरी फर एक बार भरत ना म को नशाना बना रहे है।ं ले कन इस बार ऐसे उ मीदवार के तौर पर जसे ईसाइयत मे ं पचाने के लए नय ण मे ं लया जाना हो। यह रणनी तगत पलटा भरत ना म के त बढ़ते उ साह के उ र मे ं है, जन उ सा हयों मे ं अनेक प मी नारीवादी भी शा मल है,ं जो भारतीय नृ य को इस प मे ं देखते हैं क वह नारी क यौन भावना को मू यवान बनाता है।81 प म के लोगों ने शु मे ं ह दू थाओं और च ों के त स मान य करने के लए इस नृ य को लया, और ह दू गु ओं के अधीन अ ययन कया, ज होंने अनाड़ी क तरह ईसाई श यों का वागत कया। आज भरत ना म के ईसाईकरण अ भयान मे ं जो लोग अ णी भू मका नभा रहे हैं उनमे ं से येक को ार भ मे ं ह दू गु ओं ारा पढ़ाया गया था।82 भारत मे ं अनेक अस देही, या स भवत: अवसरवादी, ह दू गु हैं जो ईसाई व ा थयों को अपनी छ छाया मे ं लेकर इस कला प क श ा देते है।ं इन ईसाई श यों ने अ त क ठन पिर म कया और इनमे ं से कई तो उदाहरण देने यो य हो गये, जो ह दू वषयव तुओ ं पर नाचते और समाचार मा यमों तथा दशकों को भाव- वभोर कर देत।े जो भी हो, वे पार पिरक ह दू कला और ईसाई सौ दयशा तथा मत के बीच सं घष मे ं फँ स गये। एक मुख रोमन कैथो लक पुजारी और ह दू कला पों के नतक फादर ां सस बारबोजा (Father Francis Barboza) वीकार करते हैं क ‘मैनं े जस मुख क ठनाई का सामना इस नृ य को करने मे ं कया, वह भारतीय शा ीय नृ य का अ तीय प है, जैस,े हाथ क मु ाएँ और भाव-भं गमाएँ।’ वे वीकार करते हैं : मैं देव ह त (हाथ क मु ाएँ) को छोड़कर उनमे ं से सभी का उपयोग उनके मू ल व प मे ं कर सकता हू ,ँ यों क बाइबल के य वों क कृ त और उनका मह व ब कुल अलग और अ तीय है। इस लए जब मैनं े ईसा मसीह, ईसाई नटी ( पता, पु और प व आ मा) का त पण करना चाहा तो पू री तरह वफल हो गया। मुझे लगा क द य य वों और ईसाइयत क पिरक पनाओं के अनुकूल मुझे नये देव ह तों का आ व कार करना होगा। यह मेरी रचना मक, बौ क और धमशा ी पृ भू म के लए चुनौती थी। ईसाई धमशा के अपने ान और ाचीन नृ य थों के गहन अ ययन से यु मैनं े तब अनेक देव ह त ें







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इसमे ं शा मल कये ता क वे बाइबल के य वों के अनुकूल हों। ये नयी प तयाँ मेरी तु तयों को व तु तथा व प क दृ से असली भारतीय और ईसाई दोनों बनाने मे ं सफल रहीं।83 डॉ. बारबोजा ने इन ईसाई मु ाओं का अ व कार कर भरत ना म का ईसाईकरण कया है : ई र, जो पता है; ई र का पु ; प व आ मा; क से उठे ईसा मसीह; माँ मेरी; सलीब; प व माता; चच; और ई र का श द; और इनके साथ ही दो भाव-भं गमाएँ : सलीब पर चढ़ाना; और क से उठे ईसा मसीह।84 यह रणनी त आ यजनक ढं ग से प म के योग साधकों ारा वक सत कये गये ईसाई योग और यहू दी योग के समान है, जो योग से वही लेते हैं जो वे लेना चाहते है,ं ले कन उन सं केतों और पिरक पनाओं को अ वीकार कर देते हैं या बदल देते हैं जो अ य त प प से ह दू होते है।ं एक अ य उदाहरण है ‘कलाई कावेरी कॉलेज ऑफ फाइन आ स’ (Kalai Kaveri College of Fine Arts), जसक थापना एक कैथो लक पादरी ने 1977 मे ं एक सां कृ तक मशन के प मे ं क थी। उ हे ं व भ ोतों से सं र ण मला और उ होंने पादिरयों और ईसाई भ ु णयों को अस देही ह दू गु ओं से श ा हण करने के लए भेजा। यह महा व ालय ‘भरत ना म मे ं व के पहले, पिरसर के बाहर ातक काय म (ऑफ़-कैंपस ड ी ो ाम)’ क सु वधा देने का दावा करता है, द ण भारतीय शा ीय सं गीत (गायन और वादन दोनों) मे ं एक अ य काय म के साथ। इसक वेबसाइट के मुखपृ पर डॉ. बारबोजा क ‘ईसाई मु ाएँ’ दखायी गयी हैं जनमे ं हज़ारों वष पुरानी ह दू मु ाओं के थान पर ईसाई ‘ पता देव’ का उपयोग भरत ना म के प मे ं कया गया है। कलाई कावेरी को एक मुख ईसाई अ भयान के प मे ं समथन और धन दया जाता है।85 त मलनाडु सरकार भी इसे स य प से धन दे रही है और ो सा हत कर रही है।86 कलाई कावेरी क शाखाएँ वदेशों मे ं भी है।ं टेन मे ं इसक शाखा के सं र क हैं लॉड नवनीत ढोल कया; यह शाखा ‘द ण भारत के कलाई कावेरी महा व ालय के नृ य करने वालों और मु ा तथा चाल क श ा देने वालों के मा यम से टेन मे ं नृ य करवाते हैं और शै णक कायशालाओं का आयोजन करते है’ं ।87 इसक वेबसाइट मे ं इसके प ीसवे ं वा षको सव क पु तका, ‘िरसज स’ (Resurgence) से एक उ रण दया गया है जो पहले भारतीय आ या मकता क शं सा करती है और उसके बाद उसे ईसाई समाना तर मे ं ढालने क समय- स ईसाई तकनीक का योग करती है, जैसे ‘प व समागम’ श दावली का सू म उपयोग जसका ईसाइयों के लए वशेष धा मक मह व है, और जसे अ य लोगों ारा स भवत: देखा भी नहीं जा सकता। यह उ रण वै दक पर परा के लए स मान के साथ ार भ करता है : सं गीत और नृ य, जब भारतीय पर परा मे ं देखा जाता है, मू लत: एक आ या मक कला है, एक अन य योग और सं ग त का एक व ान। ... वेदों के अनुसार, े ी









द य माता वाक् (वाग देवी) ने स पू ण सृ के अ त व को गाया। ई र क शा त जीवन-श , परा श , का वेश हुआ, या यू ँ कहे ं क एकल व न वाली बीज- व न ॐ ( णव) के मा यम से अन त कारक व न नाद का प हण कया। इस कार यह अ भुत व अपने अनेक पों मे ं उभर आया। भौ तक, शारीिरक, मान सक और आ मा का स पक या ई र से प व समागम क यह या पू ण सं ग त, दोषर हत एक करण, और ई र के साथ परम पहचान को ल य बनाती है, उस ई र क सभी कट और अ कट लीला ( द य नाटक और नृ य) मे,ं जो वैय क, ा डीय और ा ड से परे सभी तर के अ त वों 88 मे ं या है। ले कन जैसे ही आलेख आगे बढ़ता है, यह च ण अ धका धक प ता से ईसाई हो जाता है : ँ नकालना इस लये, येक मानव व न या श द को इसके मू ल ोत मे ं ढू ढ़ स भव है, एक सकारा मक ोत तक एक-एक पग बढ़ाते हुए जब तक क ँ जाये ं : ‘ ार भ मे ं जाप त थे, शरीर, जसे श द कहा जाता है, तक न पहुच ा ( जापतवै इदम् अ ते आसीत) जनके साथ यह श द था (त य वाग तीय आसीत), और यह श द न य ही सव था (वाग वै परमं )’। इस वै दक का य का समाना तर ईसाई नये स देश के चौथे गॉ पेल मे ं मलता है : ‘ ार भ मे ं श द था, और वह श द ई र के पास था, और वह श द ही ई र था’। (जॉन 1.1, John 1.1) यहाँ जस ‘श द’ क ओर इं गत कया गया है वह मौ लक व न या नाम था। यह उ ारण कये जा सकने वाला श द नहीं हो सकता है, और इस लए यह ई र क रचना मक श ही है। गलत ढं ग से ना मत सोलोमन का गी तका य, जो स भवत: दू सरी शता दी के ईसाई फली तीन या सीिरया के थे, इसी स य को अलं कारों मे ं अ भ य करता है : ‘ऐसा कुछ भी नहीं जो ई र से अलग है, यों क वह उसके पहले भी था जब कसी चीज का कोई अ त व नहीं था। और यह सृ (अनेक व ) उनके ही श द ारा अ त व मे ं आयी’। (ओड सोलह : 18-19, Ode XVI:18-19)89 फादर साजू जॉज (Father Saju George), केरल के एक ईसाई पादरी, कलाई कावेरी के व यात य व हैं ज होंने व भ भरत ना म गु ओं से सीखा। वे ह दू और ईसाई दोनों वषय-व तुओ ं का मं चन करते है।ं कलाई कावेरी सं थान गव से कहता है क : ... नई द ी मे ं पोप जॉन पॉल II के सामने भी नृ य पेश करके उ होंने भरत ना म के तर को ईसाई ाथनाओं और पू जाओं के तर तक ऊँचा उठाया।... यहाँ इस ाचीन लता के एक नये पु पीकरण के अनुभव का एक दुलभ अवसर है। ऐसे आयोजनों मे,ं राधा कृ ण के त पण एक ही मं च पर ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाने और उनके क से उठ जाने के त पण से जा मलते है।ं 90

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भरत ना म के ईसाईकरण के साथ-साथ ह दू धम को धृ तापू वक अ वीकार करना ं मे ं ‘कलाईरानी ना सं य ु रा य अमरीका के मेरीलैड शालाई’ (रणनी तगत प से एक मुख ह दू म दर के ठ क बगल मे ं था पत) क सं थापक रानी डे वड तो भरत ना म के ईसाईकरण के बारे मे ं इससे भी यादा धृ है।ं उनक वेबसाइट यह उ घा टत करने मे ं भी नहीं हचकती क वे ह दू च ों, जो भरत ना म के अं ग है,ं को तर कार क दृ से देखती है,ं और नृ य से उ हे ं हटाने के त कृतसं क प है।ं वे भरत ना म को गैर- ह दू बनाना चाहती हैं : एक सु यव थत ‘सलं गाई पू जाई’ मे ं उनके दृढ़ व ास के बावजू द उ होंने अपमा नत अनुभव कया, यों क उनके ईसाई मू यों ने उ हे ं एक मू त के आगे झुकने क अनुम त नहीं दी, चाहे वह नटराज क हो, मेरी क हो, या यहाँ तक क ईसा मसीह क । उसी समय उ होंने सं क प लया क एक दन वे इस सु दर ं ी क उस पर कसी भी धम ारा वशेषा धकार का कला को ऐसा व प देग दावा न कया जा सके। उस सं क प का पिरणाम 1992 मे ं एड वना भा करन के आयोजन (arangetram) के समय से सामने आने लगा, जब ईसा मसीह पर एक ु य पाथम, ‘येशव ै ै थुथी सेई’, को शा मल कया गया।91 ले कन बहुलतावाद क उनक ार भक भाव-भं गमा ‘नव-सृजन’ के प मे ं एक ँ ाती है, जसके बारे मे ं उ हे ं गव है : व श ईसाई नृ य तक पहुच एड वना के पतामह, ए डर एड वन ने रानी को बधाई दी और पू छा, ‘ या तुम एक पू रा काय म मं चत कर सकती हो जसमे ं केवल ईसाई साम ी हो?’ ... फलत: ईसा मसीह पर एक दो घ टे का काय म ‘येश,ु येश,ु येश’ु क रचना क ं मे ं मं चत कया गया और उसके बाद सं य ु गयी और सबसे पहले उसे मेरीलैड रा य अमरीका के अनेक भागों मे ं घू म-घू मकर इसे दखाया गया।92 रानी डे वड को फादर बारबोजा और अ य भारतीय ईसाइयों के साथ सहयोग पर भी गव है। ‘ईसाईकरण क पिरक पना’ (द कां से ट ऑफ़ यनािइं जग) शीषक से छपे एक आलेख मे,ं जो अपने शीषक मे ं ही सब कुछ बता देता है, वे भरत ना म क सम याओं क तुलना बाइबल मे ं क थत प से पायी जाने वाली समान सम या से करने के साथ ार भ करती है,ं जससे ऐसा तीत हो क वे प पात नहीं कर रही हैं : भरत ना म का इ तहास यह कट कर देता है क धा मक लोगों ारा इसका दु पयोग कया गया और यह साम जक कलं क बन गया। उसी तरह, वयं ‘नृ य’ श द का उ ख े बाइबल मे ं दो बुरे ‘पापपू ण’ स दभ मे ं आया है : एक बार इजराय लयों और सोने के बछड़े के साथ, तथा दू सरी बार सलोमी के साथ जसने हेरोड के सामने नृ य कया।93 े



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इसके बाद के वा यों मे,ं समान यवहार के दखावे वाले इस अ भाग के थान पर नृ य के सकारा मक प ों पर केवल बाइबल के अनुसार यान के त कया गया। नृ य का जनमे ं उ ख े है उन वशेष क वताओं का उ रण देते हुए उ होंने न कष नकाला : ... ई र के रा य मे ं नृ य के होने के बल सं केत है।ं ले कन यह या कोई ऐसा समथन है जस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता? हाँ, भजन 149:3 और 150:4 मे ं ई र क शं सा मे ं नृ यों को शा मल करने के सु न त आदेश है!ं शायद ही कोई उससे अ धक सु न त हो सकता है।94 दू सरे श दों मे,ं जब बाइबल मे ं नृ य क न दा क गयी है, तब इसका भरत ना म क ह दू कृ त के साथ च ण कया गया, और दोनों समान प से सम या क साझेदारी करते है;ं ले कन जब नृ य को बाइबल मे ं सकारा मक प से च त कया गया है, तब यह पू री तरह ईसाई घटना म से जुड़ जाता है। ऐसा ह दू उदाहरणों के साथ नहीं होता। जसे बड़ी सफाई से भुला दया गया वह यह वाभा वक त य है क भरत ना म इस कारण से ह दू धम मे ं ही वक सत, सं थागत प से पो षत, और धमशा ीय तरीके से पिरमा जत कया गया यों क यह साकार हुई आ या मकता क एक पर परा है जो शरीर का—पु ष और ी दोनों के, और यहाँ तक क पशुओ ं का भी—मू यव न करती है जब क अ ाहम क पर परा ने, मु य प से हमेशा पाप और मू तपू जा के भय का यान बने रहने के कारण, एक द य मा यम के प मे ं ऐसे शारीिरक त पण क स भावनाओं का गला घोंट दया।95 उसके बाद रानी डे वड नृ य मे ं ह दू धम और ईसाइयत को साथ-साथ अ त व मे ं रखने के य न क चुनौ तयों क या या करती हैं : ... दो मुख अ तर हैं जनक हम उपे ा नहीं कर सकते। ह दू धम उदार है और यह कसी भी ‘अ छ चीज’ को प व प मे ं वीकार करेगा। दू सरी और ईसाइयत एक ‘उ साही’ ई र पर आधािरत है जो आदेश देता है क आप कसी अ य ई र क पू जा नहीं कर सकते। सहजता पू जा का ईसाई व प है; यही कारण है क आप ईसाइयों को त े व ों मे ं देखते हैं जब वे चच जाते है।ं ले कन एक ह दू भ पू जा मे ं सुस पादन मे ं व ास करता है। आप जतना सु दर ं े उतना ही वीकाय होगा! इस लए भरत ना म को कोई इसमे ं कहाँ बनायेग लाता है? दो व ों को मलाने का काय कोई आसान काम नहीं है... यह कैथो लक पादरी फादर बारबोजा थे ज होंने कुछ न त मु ाएँ बनायीं, जसे आप इस पृ मे ं द शत देखते है।ं एक सव यापी अनुकूलन करने क पिरक पना के साथ मैनं े इन मु ाओं मे ं से कुछ का उपयोग अपनी नृ यकला मे ं कया है।96 ी







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ं के अपने 2007 एक मुख नतक अनीता र नम इससे भी आगे जाकर मेरीलैड के आयोजन मे ं दावा करती हैं : ‘रानी डे वड ने त यों को सामने रखा और दखाया क ईसाइयत भरत ना म और सं ग थ मड़ के साथ अ त व मे ं रहा, ले कन समय के साथ इ तहास ने ईसाइयत को एक प मी दृ कोण दया है’।97 यह यान देना दलच प है क व भ कार के ईसाई अपने त कतने सजग और रणनी तक हैं जब वे इन अ तर-धम ग त व धयों मे ं सं ल न होते है।ं उनक ईसाइयत अ य त प ता से उनके म त क मे ं उप थत है और वे लाभदायक चुनाव करने मे ं बड़ी सू झ-बू झ रखते है।ं दू सरी ओर ऐसी अ तर-धम ग त व धयों मे ं लगे ह दू इस वचार मे ं आसानी से खो जाते हैं क ‘सब कुछ एक ही है’ और ‘हमारा और उनका कुछ (अलग) नहीं है’। एक तरफ ईसाई रणनी त है जो क अपने व तार के लए नर तर कायरत हैं और पिर कृत होने मे ं लगी हुई है। दू सरा प , ह दू , अनाड़ी क तरह अ च तत है, और एक त पध घेरे मे ं इसे देखने को अ न छु क है।

लीला सैमसन वाद मणी अ डे ल, वे गु ज होंने इस नृ य प को औप नवे शक काल के धमा तरण से बचाया, इस नृ य को एक ‘साधना बताती हैं जसके लए स पू ण समपण क आव यकता है’।98 ‘कला े ,’ एक सं थान है जसक थापना उ होंने भरत ना म के ह दू आ या मक मू ल पर बल देने के लए क ; इसे हाल मे ं लीला सैमसन के नेत ृ व मे ं ईसाई चारकों ारा अपने क जे मे ं ले लया गया है। सैमसन ने कला े से अपना स ब ध एक उ - व ालय के व ाथ के प मे ं ार भ कया था और एक नतक तथा श का बनने के लए आगे बढ़ती चली गयीं। एक समकालीन गु के अनुसार, जो उसे जानते थे, लीला सैमसन के नामां कन के त मणी आशं कत थीं। लीला सैमसन (Leela Samson), जो आज एक वरीय कलाकार है,ं एक छोटी लड़क के प मे ं कला े आयी थीं। उनक यहू दी-ईसाई पृ भू म के कारण उनका पार पिरक भारतीय सं कृ त से अ धक पिरचय नहीं था। [ मणी] इसी कारण उ हे ं छा ा के प मे ं लेने मे ं झझक रही थीं। जो भी हो, व भ स ब प ों के बारे मे ं उनक परी ा लेने पर हमने पाया क उनमे ं अ छ नतक बनने के ल ण थे। तब मैनं े [ मणी] को एक मौका देने के लए मनाया, और वे मान भी गयीं, ले कन कुछ झझक के साथ।99 सन 2005 मे,ं सैमसन को ‘कला े ’ का नया नदेशक नयु कया गया। सन 2006 मे ं भरत ना म के आ या मक मू ल के उ मू लन को उ चत ठहराकर उ होंने समाचार मा यमों मे ं एक तू फान खड़ा कर दया। सन 2006 मे ं सम या तब खड़ी हुई जब ‘आट ऑफ़ ल वं ग फाउ डे शन’ के मुख ी ी र वशं कर ने चे ई मे ं अपने ारा चलाये जाने वाले ‘हे थ ए ड लस’ ( वा य और आन द) नामक धा मक े ो ें े े ों ी ी ो ो े

पा म के उ घाटन समारोह मे ं ‘कला े ’ के व ा थयों क भागीदारी को रोकने के लीला सैमसन के यासों के त च ता य क । एक लोक य त मल सा ा हक आन द वकटन के अनुसार सवा धक परेशानी मे ं डालने वाला प है लीला सैमसन ारा बताया गया कारण। उ होंने कहा था क : ‘इस आयोजन का ह दू धम से लेना-देना है। इस लए ‘कला े ’ के व ा थयों को इसमे ं भाग लेने क आव यकता नहीं है’।100 इसके कुछ ही समय बाद ‘ ह दू वॉयस’ (Hindu Voice) नामक प का मे,ं जसका सं चालन ह दू रा वादी करते है,ं एक आलेख छपा जसमे ं दावा कया गया क ‘कला े ’ मे ं सैमसन के सं र ण मे ं वनायक क अ धकां श तमाएँ हटा दी गयी थीं जनक व ा थयों ारा नय मत पू जा करने का इ तहास था। काफ आलोचना के बाद ही उ होंने एक तमा को फर से था पत कर दया, ले कन सभी को नहीं। सैमसन ने आदेश दया क इस देवता क ाथनाएँ ब द कर दी जाये,ं और तमाओं पर लपेटे व ों को भी हटा दया जाये।101 जैसे ही यह एक मुख ववाद बना, सैमसन त या य करने के लए ववश हो गयीं, ले कन उ होंने सभी आरोपों का ख डन कया। उ होंने दावा कया क ‘कला े मे ं कभी वैसी मू तयाँ नहीं रहीं जनक पू जा होती थी। जतने भी थानों पर हम पू जा करते थे, वहाँ केवल एक दीपक व लत कया जाता था, धमशा ीय स ा तों और हमारे पू वजों ारा अनुमो दत सव दाश नक स ा तों के अनुसार’।102 जहाँ एक ओर शव का नटराज प ा डीय नतक का त पण करता है, वहीं पार पिरक प से भारतीय नतकों ारा नाचना ार भ करने के पहले नृ य करते हुए गणेश का आवाहन कया जाता है। लीला सैमसन ारा इन ‘मू तयों’ को हटाना भरत ना म को इसके मू ल से काटने का यास है, धम नरपे ीकरण क आड़ मे,ं और उसके बाद इसे ईसाई धमशा तथा तीकों मे ं परोने के लए। ‘मू त पू जा’ के व उनका रवैया उनक ही सं र शका और सं थान क सं था पका मणी अ डे ल का तकार करता है, ज होंने व भ देवताओं क तमाओं के ह दू पू जन का बचाव कया था : हम जन गीतों पर नृ य करते हैं वे सभी देवी-देवताओं के है।ं आप पू छ सकते है,ं ं एक मा उ र जो मैं दे सकती हू ,ँ इतने देवी-देवता इतने सारे देवी-देवता यों है? 103 यों न हों? ँ ली अवधारणा का समथन नहीं कया और मणी ने ‘वै क धम’ क धुध वा तव मे,ं यह कहते हुए इस कार क ला णक आ या मकता क वशेष प से आलोचना क : कुछ लोग कहते है,ं ‘मैं वै क धम मे ं व ास करती हू ’ँ , ले कन जब मैं उनसे पू छती हू ँ क या वे ह दू धम के बारे मे ं कुछ जानते है,ं तो वे नहीं मे ं उ र देते है।ं वे ईसाइयत के बारे मे ं कुछ नहीं जानते, न ही बौ या कसी अ य धम के ै े ें े ैं े ों े ं ै ी े े ें ीं

बारे मे ं जानते है।ं दू सरे श दों मे,ं वै कता कसी के बारे मे ं कुछ नहीं जानना है। ... वा त वक अ तरा ीयकरण तो सबमे ं जो सव म है उसका सही अथ मे ं उभरना है ... ले कन भारत मे,ं जब मैं भारत कहती हू ,ँ मेरे कहने का आशय साधुस तों के भारत से है ज होंने इस देश को इसका मु य ान दया, जसमे ं से एक जीवन का आदश नकला, और द यता का जो सभी जीवों मे ं नवास करती है; न क केवल मानवों मे।ं 104 ात:काल क सभा मे,ं सैमसन ने क थत प से व ा थयों और श कों से कहा क मू तपू जा एक अ ध व ास है और ‘कला े ’ मे ं इसे हतो सा हत कया जाना चा हए। शकायते ं थीं क उनके ारा चुने गये श कों ने गीत गो व द क या या अपमानजक तरीके से क । मणी अ डे ल ारा नथना वनायकर के साथ मलकर जो माणप का ा प तैयार कया गया था उस पर शव का तीक अं कत था। वतमान माणप के ा प को बदल दया गया है और उस पर अब कोई ह दू तीक नहीं है।105 ह दू कथाओं और तीकों का अवमू यन उपहास के तर तक करने के लए सैमसन क आलोचना क गयी है, जसमे ं सैमसन ने उनक तुलना वॉ ट ड नी (Walt Disney) के चिर ों, बैटमैन और टार वास के व च चिर ों से क थी’।106 इसके वपरीत, मणी कुमारस भव का य मे ं तीकवाद के गू ढ़ अथ क या या करती हैं : कुमारस भव क कथा मुझे यों स च कर देती है? तीकवाद के कारण। पावती अ तत: जो वजय ा करती है, वह वासना नहीं, ब क भ और वयं क उ कृ ता है। पावती शव को जीत लेती है और उनके साथ एक कृत हो जाती है, यों क उ होंने महत् को खोज लया है, जो वा तव मे ं ई र को पाने का एकमा रा ता है। यह अ त सु दर सौ दयशा है। शव ने उस सबको भ म कर दया जो भौ तक है। इस लए एक नतक या सं गीतकार को सभी वचारों को भ म कर देना ही चा हए जो कचरा है और वण को बाहर नकालना चा हए जो अ दर है।107 वे रामायण और महाभारत को ‘भारतीय नृ य क अ नवाय अ भ य ’ बताती 108 है।ं लीला सैमसन भारतीय कथाओं को मानव र चत मानती है।ं इसके वपरीत मणी अ डे ल ी राम, ी कृ ण और बु के बारे मे ं इस कार कहती हैं : भारत व श यों था? यों क ी कृ ण इस देश मे ं रहे थे, यहाँ ी राम रहे थे और ऐसा ही भगवान बु ने कया था। यह उनक श ा ही थी जसने भारत को एक महान व श बना दया था।109 जनमे ं लीला सैमसन बैटमैन और मक माउस के चिर देखती है,ं उनमे ं ‘कला े ’ क सं थापक अ डे ल सवा धक उदा कार के महान व श क और तीकवाद को देखती है।ं सैमसन के समायोजन मे ं भरत ना म को उसका ौ औ ै ी ीं

मह वपू ण आ या मक, भ यु , सौ दय और शै णक आयाम भी नहीं दया गया, ँ ा दया। इस कार, और उसे घसीटकर काटू नों के बेढंग,े भड़क ले तर तक पहुच लीला सैमसन के अपने श दों मे,ं ह थयाने क या को इसके मह वपू ण चरणों मे ं देखा जा सकता है : ार भ मे ं कला पों को अ ह दू और प थ नरपे बनाकर, और उसके बाद उनका ईसाईकरण करके।

त मल लोक-कलाओं का ईसाईकरण लोक-कलाओं और ह दू धम के बीच पर पर व श वभाजन था पत करने के मशनरी व ता के अथक यास जारी है।ं इसके लए पिरक पना का ढाँचा एक शता दी पहले िर ली, हॉजसन, और कॉ डवेल के काय से लया गया है। ‘उ ’ कला को ा णों ारा दमन के प मे ं दशाया गया है, और लोक-कला को वड़ों के व ोह के प मे।ं कला जसे ‘उ ’ पर परा के प मे ं माना जाता है और कला जसे लोक- तर क पिर ध वाले या ‘अ प’ पर परा के प मे ं देखा जाता है, वा तव मे ं स पू ण भारत मे ं ु के अं ग है।ं उ पर परा ा प के तौर पर एक ही नर तरता के दो सहजीवी व लोक तर पर सं कार-प त और धमशा ीय ढाँचा उपल ध कराती है, जहाँ थाएँ कम औपचािरक होती हैं और उनका उ े य लोक हत क सेवा होता है। नटराज क ु ों के बीच एक पुल का एक उदाहरण है : ‘उ ’ सं कृ त सां कृ तक मू त इन दोनों व ु ी क अव था मे ं दखाया गया है के पाशुपत घुम तू साधु को एक आन दा तरेक बेसध जो ‘लोक’ सं कृ त को ही तुत करता है। एक ईसाई महा व ालय ने, जसमे ं फोड फाउ डे शन ारा व पो षत एक लोकगीत वभाग है, लोकगीतों पर एक पा पु तक नकाली थी, जो वशेष प से औप नवे शक भारत व ा और मा सवाद से प मी उपकरणों का उपयोग करती है। 110 इसके एक व ान एस.डी. लॉडू (S.D. Lourdu), ने दावा कया क लोकगीतों का उनका अ ययन त मल लोक-देवताओं क पहचान को फर से बनाने मे ं मदद करेगा। लॉडू के अनुसार, अ धकां श त मल देवता और दे वयाँ जैन या बौ धम से आयी है,ं और बाद मे ं शैव मतावल बयों ारा उनका पा तरण कया गया था। उ होंने एक ह दू लोक-गीत के थान पर उसका ईसाई सं करण समान प से असली लोक सा ह य के उदाहरण के प मे ं तुत कया। मू ल लोक-गीत वणन करता है क कस कार त मल देव मु गन क प नी व ी ने भागकर वयं को एक पवत के नकट छपा लया था। (इसी का एक अ य कार व ी के ीरसागर के उस पार जा छपने क बात कहता है।) भगवान मु गा ने, जो व ी के द य मुख से वयोग नहीं सह सके, उ हे ं खोजा।111 लॉडू इसक तुलना एक ईसाई गीत से करते हैं : ‘ईसा मसीह भागे और उ होंने वयं को एक झाड़ी मे ं छु पा लया। मेरी ने ईसा मसीह को ीर सागर के पार तक खोजा’।112 जहाँ एक ओर कसी समुदाय मे ं पी ढ़यों मे ं एक ँ ै ो ी े ीं ें ी

लोकगीत का व प उभरकर सामने आता है, वहीं यहाँ एक व ान अ त व मे ं बनी हुई ह दू लोक पर पराओं को ईसाई पर पराओं मे ं बदलता है, और इस या मे ं व ी और मु गन के काम स ब ध और मेरी तथा ईसा मसीह के बीच माता-पु के स ब ध के बीच व म पैदा करता है। इसमे ं आ य नहीं क इस ईसाई महा व ालय ारा भारत क वत ता क पचासवीं वषगाँठ मनाने के लए का शत एक पु तक मे ं लॉडू भारत के अ त- य रा ीय गीत ‘व दे मातरम्’ पर अ लील फ ती कसते है,ं जैसे ‘व दे मू म्! मैं मू याग करना चाहता हू ।ँ मुझे एक पा और पेय (शराब) दो’।113

9 ‘ वड़’ ईसाइयत का चार सन 2000 से स त टॉमस वड़वादी ईसाइयत स ब धी धोखाधड़ी को त मलनाडु क जनता के बीच ले जाया गया है और उसे उन अ तरा ीय श यों ारा समथन भी ा हुआ है जो भारत के त सचमुच व ेषपू ण भावना रखती है।ं यह अ याय इस ँ ता है जो भारत और वदेशों ृ ला के मा यम से ढू ढ़ घटना म को स मेलनों क एक ं ख मे ं थत न हत वाथ के बीच नकट सहयोग था पत करने मे ं सहायक हुए है।ं च 9.1 इन गँठजोड़ों क अब तक क मुख उपल धयों को दशाता है जो इस कार हैं :  त मलनाडु मे ं सभी जा त सम याओं के लए ा ण-आय ष को दोषी ठहराया गया, और वड़ ईसाइयत को एक समाधान के प मे ं तुत कया गया।  एक बार जब वण को प प से जा त से मला दया गया, वड़ ईसाइयत के चारकों ने डबन न लवाद वरोधी स मेलन को प लखा क भारत अ तरा ीय न लवाद क जननी है।  भारत को एक वड़ ईसाई रा घो षत करते हुए चार साम ी का शत क गयी।   अमरीक ईसाई चारकों ने वड़ पहचान और ईसाइयत के बीच सकारा मक स ब ध था पत कर वासी त मलों को ईसाई बनाने के अवसर का दोहन करना ार भ कर दया।  2007 और 2008 मे ं आयो जत स मेलन यह दावा करके कई कदम आगे गये क वड़ रह यवाद, सा ह य, मू त श प, और नृ य वा तव मे ं ईसाइयत क ही अ भ य थे और उनके मू ल स त टॉमस के काय मे ं थे। इन घटना मों को इस अ याय मे ं व तार से बताया जायेगा।

 

2000 : ‘वण- यव था के उ मू लन के लए

वड़ धम’ पर गो ी

जॉन सैमएु ल के अधीन इं टी ू ट ऑफ ए शयन टडीज ने वयं को देइवनयगम के शोध को ो सा हत करने के लए एक के ीय ब दु बना लया है। सन 2000 मे,ं देइवनयगम और इस सं थान ने चे ई मे ं एक ऐसे ल य के साथ एक गो ी का आयोजन कया जो सुनने मे ं भोला-भाला था : भारत मे ं जा त और धम के सं घष का उ मू लन और भारत क शा त और सामा जक तालमेल क पुन थापना कैसे क जाये। उसमे ं बड़ी सं या मे ं वड़वादी राजनी तक य व आये थे और वड़वाद और ईसाइयत के बीच स ब ध पाटने के लए यह आयोजन एक मोड़ क तरह उपयोग मे ं आया। गो ी का समापन एक घोषणा के साथ हुआ जसका सार इस कार है : ं







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1. अगर वड़ वयं को आय के दमन से मु करना चाहते हैं जो जारी है तो उ हे ं अपनी ऐ तहा सक महानता समझनी चा हए उ हे ं अपनी वै क आ या मक वल णता को ा करके, जसे ऐ तहा सक सा य के मा यम से खोजा जा सकता है, हीन भावना याग देनी चा हए। 2. जब वड़ों को उनके धम क घोषणा करने को कहा जाये तो उ हे ं इसक घोषणा ‘ वड़ धम’ के प मे ं करने वक प अपनाना चा हए, या कसी अ य वीकाय श दावली का जसका एक ऐ तहा सक आधार है। उ हे ं ह दू धम से दू र रहना चा हए, जो महान वड़ पहचान के लए हा नकारक रहा है।1

2001 : भारत अ तरा ीय जा तवाद क जननी घो षत द ण अ का के डबन मे ं ‘न लवाद, न लीय भेदभाव, वदे शयों से व ेष और अस ह णुता’ के वरोध मे ं आयो जत सं य ु रा व स मेलन मे ं स य कायकताओं ने इस वषय को वक सत करना जारी रखा क ह दू धम, ा णों और आय ारा कया गया ष लगभग येक व यापी सामा जक सम या के लए उ रदायी था। देइवनयगम और उनक पु ी देवकला ने अपनी पु तक ‘इ टरनैशनल रे स म इज द चाइ ड ऑफ़ इ डयाज का ट म’ (International Racism is the Child of India’s Casteism) का वतरण कया।2 उ होंने अपने न कष क या या न न कार से क :  सं कृत ईसाइयत के बाद आयी, और इसे वड़ों ारा सृजा गया था (पृ. 9)। व लयम जो स को सं कृत और ीक/लै टन के बीच समानता को लेकर धोखा हो गया और वे सोचने लगे क यह ाचीन थी। (पृ. 10)  टॉमस ार भक ईसाइयत को भारत लाये, ले कन कपटी ा णों, वशेषकर आ द शं कर, ने इसमे ं वण- यव था को घुसाकर इसे वकृत कर दया। (पृ. 15)  न लवाद भारत के आय ा णों ारा शु कया गया था, और यह ईसाइयत मे ं भी घुस गया, जो पहले से ही गोरे यू रोपीय लोगों के नय ण मे ं थी। ऐसा इस लए हुआ यों क यू रोपीय जनों को व ास दलाया गया क वे भी न ल से आय है।ं (पृ. 14) आय और/या ा णों का गोरों से मलान, और वड़ों का कालों से, और गहरा हो गया है और इसका अ क द लत अ भयान के साथ वलय कर दया गया है जो द लतों क तुलना अ कयों से करता है। इस अ भयान का मशन है वड़ और द लतों को एक साथ लाना, उनको इस कार च त करते हुए क वे ही भारत के द मत ‘काले’ है।ं इसक और या या आगे बारहवे ं अ याय मे ं क जायेगी। े













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देइवनयगम क पु तक ने सं य ु रा से माँग क क व के सभी थानों से न लवाद समा कया जाये। हालाँ क यह एक मानवीय माँग है, देइवनयगम के तरीके मु यत: एक मू ल ह दू सं थान—शं कर मठों—पर दु तापू ण हार से बने है।ं ये मठ नौवीं शता दी मे ं द ण भारत के एक स स त शं कर ारा था पत कये गये थे। हालाँ क ये चार मठ, या धा मक सं थान, भौगो लक प से भारत के चारों कोनों मे ं थत हैं और भारतीय सां कृ तक एकता के तीक के प मे ं अ णी माने जाते है,ं देइवनयगम ने इ हे ं ब द करने क माँग करते हुए इन पर ‘ व भर मे’ं सभी कार के न लवाद के ऐ तहा सक ोत होने का आरोप लगाया है : व से न लवाद को समा करने के लए भारत से वण- यव था को समा कया जाना चा हए। चू ँ क वण- यव था तोड़े -मरोड़े गये धा मक व ासों, वं शानुगत वशेषा धकार, और धम- मुखों को दये गये अ धकारों से जुड़ी है, अथात, शं कर मठों को हटा दया जाना चा हए। जब धम- मुखों को दये गये ं ,े भारत क वण- यव था समा हो वं शानुगत वशेषा धकार हटा दये जायेग जायेगी। जब भारत से वण- यव था समा हो जायेगी, व से न लवाद का उ मू लन हो जायेगा। अगर यह नहीं होता है... यह न केवल पू रे व मे ं न लवाद को जारी रखेगा, ब क पू रे व मे ं तोड़े -मरोड़े गये धा मक व ासों के ारा न लवाद का कैंसर भी फैलायेगा और व शा त को न करेगा।3 एक अ य पु तका मे ं देइवनयगम या या करते हैं क : आय ा णों ने वड़ों के धम —जैसे बौ , जैन और वै णव—को ह थया लया। त मलनाडु के भ आ दोलन से उ होंने शैव और वै णव एके रवाद क पिरक पना को लया और उसे तोड़-मरोड़कर अ ैतवाद मे ं बदल दया (मैं ई र हू )ँ ; इस कार दावा करते हुए क ा ण ही ई र है ... ा णों ने न लवाद और वण- यव था को जारी रखने के लए नवीं शता दी मे ं स पू ण भारत मे ं शं कर मठों क थापना क ...4

2004 : ‘भारत एक

वड़ ईसाई रा

है, और ईसाइयों ने सं कृत बनायी’

2004 मे ं देवकला ने कायालय के बाहर काम करने वाले मशनिरयों और ईसाई चारक सं थानों के लए ‘इ डया टॉमस वड़ ईसाई रा है...कैसे? (India is a Thomas Dravian Nation...How ) नामक एक चार सौ पृ ों क मागदशक पु तक का काशन कया।5 यह पु तक इस कार क घृणा से भरी हुई है : आय ारा यों, दु तापू ण योजनाओं, मादक पदाथ , और श ा से वं चत करने के मा यम से वड़ शासक धू तता से ठगे गये थे। ‘अहं ा म’ का वचार एक अ य बुरी अनी रवादी पिरक पना थी जो आय ारा लायी गयी। मू ल प से, ‘अहं ा म’ का अथ था ‘ई र मुझमे ं है’ं , ले कन शं कर ने इसे धू ततापू वक ‘मैं ई र हू ’ँ मे ं बदल दया।6 ो

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यह पु तक नो र भाग मे ं कई हा या पद और गलत जानकािरयों वाले दावे भी करती है जनका उ े य मशनिरयों को श ण देना है, जैसे : न : सं कृत का काल या है? उ र : सं कृत 150 ई वी क है। यह ईसा मसीह के बाद आयी। न : कौन-सी सात भाषाओं से सं कृत बनी है? उ र : त मल, पा ल, ही ू , ीक, लै टन, फारसी और अरामाइक। न : सं कृत भाषा कसने बनायी? उ र : टॉमस ईसाइयों ने सं कृत भाषा बनायी। सं कृत का उ े य भारत के अ य भागों मे ं ईसाइयत का व तार करने मे ं सहायता करना था, जहाँ त मल नहीं बोली जाती थी।7

वड़ ईसाइयत के

2005 : स त टॉमस यू यॉक स मेलन

प मे ं ह दू धम क पुनक पना पर

2005 मे ं ‘भारत मे ं स त टॉमस के उदय से लेकर वा को द गामा तक क ार भक ईसाइयत का इ तहास पर पहला अ तरा ीय स मेलन’ आयो जत करने के लए तीन सं गठन जुट।े ये थे : द इं टी ू ट ऑफ ए शयन टडीज, द ै व डयन पिरचुअल ं जसक थापना देइवनयगम ने क थी, और यू यॉक मू वमेट यन त मल टे पल। इस आयोजन के बारे मे ं जानकारी का एक ह सा अपने ईसाई चारक झुकाव के बारे मे ं गव से कहता है : यह वशाल पिरयोजना हमारे ईसाई चारक को गव क गहरी भावना और सं क प के साथ काम करने के लए ो सा हत करे, वह भी उ म और आकषक साम ी के साथ ता क हमारे ई र का रा य इस धरती पर व तार पा सके, और इस कार सामा य प से समू ची मानवता पर, तथा वशेष प से भारतीय रा पर शा त और समृ क वषा हो।8 यू यॉक स मेलन क आ धकािरक घोषणा मे ं बना झझक के दावा कया गया क भारत क शा ीय पर पराएँ, जनमे ं त मल सा ह य, शैव मत, वै णव मत, और महायान बौ भी शा मल है,ं ईसाइयत से ही एक वशेष व प देकर नकाली गयी हैं : त मलनाडु मे ं ईसाइयत ... बड़ी स भावना वाली श थी और इसक नै तकता तथा अ य धमशा ी सं हताएँ बहुत श शाली प मे ं अ भ य हु यहाँ तक क त कुरल और नाला दयार जैसी धम- नरपे त मल ाचीन कालजयी रचनाओं मे ं भी। इसका भाव मू ल नवा सयों क पू जा पर भी अनुभव कया जाता है और वशेषकर शैव मत और वै णव मत जैसे थानीय धम मे ं भी। वाभा वक है क भारत को अनेक मशनरी मले, जनमे ं से अनेक ए शया और व के अ य भागों के थे। यवनारों ने, जो स भवत: ीस और रोम से आये लोग े



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थे, भारतीय भू म मे ं चारों तरफ ईसाइयत के स देश फैलाये। कसी तरह हम यह समझ पाये हैं क स त टॉमस से ार भ हुए व यात य यों के धमा तरण के काय के कारण भारतीय पिरवेश मे ं ईसाइयत क जड़े ं गहरी हो गयी थीं। ले कन इसके अ धकां श अ भलेख या तो खो गये हैं या न कर दये गये हैं और अनेक बार सं कटों का सामना करने के कारण ईसाइयत यापक पिरवतन से गुजरी होगी। इसने भारत के अ य धम पर अपना गहरा भाव छोड़ा है; यह अनेक भारतीय धम के उदय मे ं मुख कारक रही थी। भारत के सभी धम मे ं इसक उप थ त का अनुभव व वध पों मे ं कया जाता है। महायान बौ के उदय पर इसका भाव, वशेषकर बो धस व और साथ-साथ मै य े बु का दू सरी बार 9 आना जैसी पिरक पना वा तव मे ं अ भुत है। स मेलन क मारक प का मे ं एक च है जसमे ं त व व ु र अ य त ग भीरता से स त टॉमस को सुन रहे है,ं जसके मा यम से कारा तर से यह कहा गया है क ाचीन कालजयी त मल सा ह य स त टॉमस से ही नकला है। एक अ य छ व अ य प व ों मे ं एक य को दखाता है जसके बाल कुडुमी शैली मे ं हैं ( ा ण 10 होने का सं केत च ) और वह गे आ व पहने टॉमस को मार रहा है, ज हे ं 11 ाथना मे ं त ीन दखाया गया है। यह एक उ तरीय खेल था जो न केवल ह दू धम ब क स पू ण भारतीय और ए शयाई आ या मक पर पराओं के पिरदृ य को, जनमे ं बौ और जैन धम भी शा मल है,ं नगल जाने के लए था। इसे अनेक अमरीक अ धकािरयों ारा समथन ा हुआ जनमे ं सेनट े र हलेरी लं टन भी शा मल थीं, ज होंने लखा : भारत मे ं ार भक ईसाइयत के इ तहास पर आयो जत पहला अ तरा ीय स मेलन भारत मे ं ार भक ईसाइयत क उप थ त क स पू ण खोज के लए व भ और व वध सं साधनों को सफलतापू वक जोड़े गा। मुझे भरोसा है क स मेलन के दौरान तुत कये जाने वाले सं साधनों क यापकता म यकालीन और ाचीन भारतीयों पर ईसाइयत के भाव और भारत तथा व भर के सां कृ तक और राजनै तक पिरवेश पर उसके भाव पर काश डालेगी।12 अनेक शोध प ों ने स त टॉमस के त मल सं कृ त पर भाव को एक था पत त य के प मे ं तुत कया। सभी मु य त मल आ या मक मू यों को एक ँ नकाला गया। भारतीय ‘पुराणों’ और इ तहास के का प नक टॉमस ईसाइयत मे ं ढू ढ़ त औप नवे शक काल के ईसाई चारक दृ कोणों को, ज हे ं यापक प से अमा य कर दये जाने के बावजू द, दावों के समथन के लए फर से तुत कया गया। उदाहरण के लए, ‘भारत मे ं आर भक ईसाइयत का इ तहास—एक सव ण’ नामक शोध प मे ं उसके लेखकों ने दावा कया क ‘ऐसे व ान हैं जो व ास करते हैं क ... कृ ण वृ क कथाओं ने ईसाई ोतों से यापक प से साम ी ली है’। ृ कया गया उनमे ं सर व लयम जो स भी शा मल हैं ज होंने जन व ानों को उ त े ें ई े ी ी

‘माना क चार स देश जनमे ं ईसाइयत के ार भक वष क चुर साम ी थी भारत ँ े थे और वे ह दुओ ं को मालू म थे’। इसके लेखकों ने कृ ण और ईसा मसीह के पहुच बीच हर समानता को सू चीब कया, सावभौ मक भावना से नहीं, ब क ईसाई सं करण के भु व को मा णत करने के लए। यह सब इस वचार पर खड़ा कया गया था क कृ ण पू जा भारत मे ं देर से आया वकास म था, जो ईसा मसीह के काल के बाद ही ार भ हुआ।13 इन वचारों क जड़ उ ीसवीं शता दी के औप नवे शक ईसाई चारक इ तहास लेखन मे ं है, जसे बहुत पहले से ही व ानों ारा अमा य कर दया गया है, ले कन आ यजनक ढं ग से ये एक बार फर चलन मे ं आ गये है।ं था पत लेखक कृ ण के इ तहास के बारे मे ं प वचार रखते है,ं जैसा क एड वन ाय ट ने दशाया है, ज होंने लखा : ‘एक द य य व के प मे ं कृ ण पू जा को सामा य काल के ँ नकाला जा सकता है’। उसके बाद वह कृ ण के ार भ से काफ पहले से ही ढू ढ़ बारे मे ं व तार से अनेक रचनाओं से स दभ तुत करते हैं जो ईसा पू व चौथी 14 शता दी तक क है।ं ईसा मसीह के आने के कई शता दयों पू व ाचीन ीकों ारा कृ ण के बारे मे ं दये गये उ रणों का उ ख े करने वाले ोतों मे ं से ाय ट केवल एक हैं : एक द य य व के प मे ं कृ ण के बारे मे ं सबसे पुराना पुराता वक सा य बेसनगर या हे लओडोरस का त भ है ... जो ईसा पू व 100 के आस-पास का है। इस पर का शलालेख वशेष प से उ ख े नीय है, यों क यह प करता है क इस काल तक एक वदेशी को कृ ण धम मे ं धमा तिरत कया गया है— हे लओडोरस एक ीक था।15 ले कन ईसाई वड़वा दयों ारा ऐसे सा य क उपे ा क गयी, जो एक-दू सरे ृ और पुनउ त ृ करते है।ं एक आलेख मे ं को आ धकािरक व ान के प मे ं उ त शा मल ‘चुनी हुई स दभसू ची’ मे ं सू चीब छ बीस काशनों मे ं से कम-से-कम अ ारह ईसाई चारकों के है।ं 16 अमरीक चच के लोगों और वासी त मलों ारा अपने ‘इं टी ू ट ऑफ ए शयन टडीज’ का वागत करने से जॉन सैमएु ल स थे : भारतीय समाज के सभी वग के व ानों ने, जनमे ं व भ देशों के भारत वद भी शा मल थे, इस के को अ णी और नभ क अ ययन करने का साहस रखने के लए बधाई दी... भारतीय समाचार मा यमों और राजनै तक हलकों ने इं टी ू ट ऑफ ए शयन टडीज के यासों क भू िर-भू िर शं सा क जब इसने शैव और वै णव अ ययनों से जुड़ी अगली नयी पिरयोजनाओं पर काम ार भ कया...17 फर भी, वड बना है क जब एक बार त मल देशी जनसं या मे ं उनका ईसाई खेल प हो गया और जब चीजे ं पहले क -सी सुगमता से आगे नहीं बढ़ने लगीं तो ै



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सैमएु ल ने प कया क उ हे ं अपनी ईसाई चारक रणनी त मे ं बदलाव और उनके सं थान के मू लभू त सं गठ नक ढाँचे मे ं यापक पिरवतन करने पड़े । उ होंने लखा : ले कन हमे ं उस समय अ ात वरोध का सामना करना पड़ा जब हमने ईसाई अ ययनों से जुड़े हमारे काय मों के बारे मे ं घोषणा क , जो ए शयाई भावनाओं और वरासत का एक मह वपू ण अं ग है।ं हालाँ क यह इस के के मू ल काय म क परेखा तय करता है और जो इसक सं घटना का एक मह वपू ण अं ग है, हमने ार भक ईसाइयत से जुड़ी पिरयोजनाओं कर काय करने मे ं अ य धक क ठनाइयों का सामना कया जब तक क हमने इस सं गठन के मू लभू त ढाँचे मे ं पू ण पिरवतन नहीं कर दया।18 स मेलन मे ं तुत मु य शोध प ों के सारां श पिर श ‘ङ’ मे ं दये गये है।ं

त मल सा ह य मे ं ‘ईसाई सारत व’ कुल मलाकर, इन शोध प ों ने हर युग के त मल समाज क मह वपू ण उपल धयों के ईसाई मू ल के होने का दावा कया। एक शोध प क तुतकता, ोफेसर हे जबा जेसदु ान (Professor Hepzibah Jesudan), बुरी तरह इस बुखार के चपेटे मे ं आ गयीं और आ धकािरक सारां श मे ं उनके शोध प का वणन न न कार से कया गया : यह शोध प त मल सा ह य पर ईसाइयत के भाव पर यान के त करता है। त कुरल ने अपनी क वताओं मे ं ईसाइयत क पिरक पनाओं का समावेश कया है। एक जैन सा ह य चलप थकरम ‘ई र के पु ’ का उ ख े करता है ज होंने ं ीस वष क आयु मे ं वग य शरीर ा कया था— चलप थकरम के बाद के तैत भाग मे ं नदश पाये जाते हैं जो दस नदशों (Ten Commandments) जैसे है।ं कृ ण प ई ने क पन के ईरामवतरम के दृ कोण मे ं ईसाई होने का दावा कया। भ आ दोलन का सा ह य ईसाई मू यों [यथो ल खत] क अ भ य यों से भरा पड़ा है। एक स स चवव आर ऐसे य क बात करते हैं ‘जो मर गये और फर जी वत हो गये’— स सा ह य मे ं ईसा मसीह के अनेक अ य स दभ है;ं जो उ हे ं सारत व मे ं ईसाई बनाते है।ं 19 इसने प थ- नरपे वचारधारा वाले अनेक त मल बु जी वयों को झटका दया, जैसे क जेयमोहन को, जो एक मुख त मल मा सवादी और आधु नक त मल सा ह य के गाँधीवादी लेखक है।ं सव थम हे जबा जेसदु ान के प त का उ ख े करते हुए, जो एक स व ान भी है,ं जेयमोहन ईसाई पू वा हों क खोज करते हैं : ोफेसर जेसदु ासन इस च तन या के मह वपू ण ार भक ब दुओ ं मे ं से एक हैं ...अपनी वृ ाव था मे ं उ होंने अपनी प नी ोफेसर हे जबा जेसदु ासन क सहायता से तीन ख डों मे ं व तार से त मल का सा ह यक इ तहास लखा। इसका नाम ‘काउ टडाउन ॉम सॉलोमन’ (Countdown from Solomon) रखा ी े े ो े े

गया। अपनी पु तक के नाम क या या करते हुए ोफेसर ने लखा क त मल ं के सोलोमन के सा ह य का सबसे ाचीन उ रण बाइबल के ओ ड टे टामेट गीतों मे ं मलता है। यहाँ वे एक थान पर इस व ास का उ ख े करते हैं क टॉमस द ण भारत आये... अपने अ तम दनों मे ं ो. हे जबा जेसदु ासन ने तक देना ार भ कर दया था क म े , धम या याय यता, चिर क स य न ा जैसे मू य त मल सा ह य मे ं केवल ईसाइयत के मा यम से आये, यों क ाचीन मू तपू जक त मल मानस मे ं ऐसी उदा पिरक पनाएँ नहीं आ सक होंगी।20

त मल वैवा हक रह यवाद के ईसाई मू ल त मल भ सा ह य मे ं वैवा हक रह यवाद क समृ पर परा मह वपू ण है। रह यवादी क व अ दाल वयं को व णु क दु हन समझती थीं; और अनेक आलवार और नयनमार वयं को वैवा हक रह यवाद क भावनाओं के मा यम से शव या व णु के साथ जोड़ते थे। इन पिरक पनाओं ने त मल आ या मक मानस के अ त:करण को और यापक जन भ क सं कृ त को एक व प दया है। उदाहरण के लए, मरखड़ी के त मल महीने मे ं ह दू सामू हक प से अ दाल के पद गाते है।ं हालाँ क वैवा हक रह यवाद के प वै दक मू ल है,ं 21 ईसाई व ान त मल ँ वैवा हक रह यवाद क जड़े ं बाइबल के सोलोमन के ‘गीतों का गीत’ मे ं ढू ढ़ नकालते है।ं ईसाई चारकों ारा इस पिरक पना का उपयोग कया जा सकता है, जैसा क इं ट ू ट ऑफ़ ए शयाई टडीज जनल मे ं छपे एक आलेख मे ं कया गया है : त मल पर परा और ही ू पर परा, जैसा क ‘गीतों का गीत’ मे ं च त कया गया है, समाना तर रेखाओं पर चलती है।ं ले कन साथ ही साथ इन दो पर पराओं के बीच एक मह वपू ण अ तर है—ही ू पर परा धम पर आधािरत है जब क त मलों क पर परा शु प से प थ- नरपे है।22 दू सरे श दों मे,ं जहाँ एक ओर त मलों क भावनाएँ बाइबल के से म टक लोगों के समान ही है,ं वहीं उनमे ं बाइबल के स े धम क कमी है। त मल कालजयी रचनाओं को यहू दी-ईसाई मू ल से मलाने के समय भी हमेशा बाइबल क य या परो े ता ‘मू ल’ या ‘शु ’ सं करण के प मे ं होती है, और त मल सं कृ त क एक अपू ण सं करण के प मे ं जसे अपने शु ोत मे ं लौटने क आव यकता है। आलेख उसके बाद ईसाई मशनिरयों के इ तहास क या या करता है जो ‘स ा धम’ लाये और ज होंने ार भक त मल गीतों को भ के रह यवाद मे ं बदल दया : जहाँ तक त मल सा ह य का न है, म य युग भ सा ह य का काल है... इस अव ध मे,ं जसका ार भ पहली शता दी से होता है, स त टॉमस जैसे अनेक ईसाई स त और जी.यू . पोप, ए लस और फादर बे ची जैसे व ानों का उस ि ें ो ी ी े

पिरदृ य मे ं उदय हुआ... त मल सा ह य, जो अब तक कसी भी तरह के धा मक या सा दा यक भाव से मु रहा था, व भ स दायों के भाव मे ं आना ार भ हो गया। ... हालाँ क ईसाई मशनिरयों का मु य उ े य ईसाइयत का चार करना था, त मल सा ह य क उनक सेवा वा तव मे ं अमू य है। त मल सा ह य के त अपने गहरे म े के कारण और अपनी का या मक तेज वता तथा व ता के कारण उ होंने त मल सा ह य के वकास के लए भारी योगदान कया। उपयु स तों और व ानों ने वैवा हक रह यवाद मे ं य प से कुछ ं मे ं अ त न हत है, धीरेभी योगदान नहीं कया। ही ू पर परा, जो ओ ड टे टामेट धीरे त मल सा ह य मे ं भी अपना थान पाती गयी! ... यह सब म य काल मे ं हुआ। भ गीतों के प मे ं अन गनत मा ा मे ं भ सा ह य उभर कर सामने आया। ये गीत सोलोमन के ‘गीतों का गीत’ से तुलनीय है।ं 23 लेखक आगे त मल सा ह य के महान भ क वयों क सू ची भी बनाते हैं जनके का य वैवा हक रह यवाद का दशन करते है।ं वह न कष नकालते हैं : वैवा हक रह यवाद क तकनीक ने त मल सा ह य मे ं गहरी जड़ जमा ली है और इसमे ं चमक पैदा कर दी है। यह ईसाइयत का महान योगदान है और हम उस पर परा के अ य त ऋणी है।ं 24 इससे जो कालानु म व नत होता है वह एक चौं धया देना वाला अस यीकरण है। स त टॉमस को छोड़कर यहाँ उ खत येक ईसाई वा तव मे ं त मल पर परा के महान वैवा हक रह यवादी भ क वयों के कई शता दयों बाद के है।ं जी.यू . पोप (G.U. Pope, 1820-1908), बे ची (Beschi, 1680-1747) और ए लस (Ellis, 17791819) आलेख मे ं उ े खत त मल क वयों के काफ समय बाद आये, जैसे ान स ब दर (सातवीं शता दी), कुलशेखर आलवार (आठवीं शता दी) और अ दाल (नौवीं शता दी)। फर भी अ येता ने कालानु म क उपे ा क ता क यह दावा कया जा सके क त मल भ ईसाइयत का एक महान योगदान थी और वे उस पर परा के अ त ऋणी है।ं इसी व ान ने 2005 के यू यॉक स मेलन मे ं एक शोध प तुत कया था जसके बारे मे ं काय म पु तका मे ं न न ल खत सारां श दया गया था : ईसाई पर परा मे ं वैवा हक रह यवाद के गीतों और त मल पर परा के वशाल भ सा ह य के भ डार के बीच जन ल णा मक स ब धों का अ त व है उनका अ ययन करना वतमान शोध प का उ े य है। ... यह शोध इस त य को उजागर करता है क ईसाई पर परा ने त मल भ का य पर गहरा भाव डाला है।25

2006 : ॉ

वड़ ईसाइयत एक अ तरा ीय अ भयान बना े







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यू यॉक स मेलन के त काल बाद, सं य ु रा य अमरीका मे ं देइवनयगम के समथकों ने एक ‘ व त मल आ या मक जागरण अ भयान’ (World Tamil Spiritual Awareness Movement) का गठन कया। सन 2006 मे ं ‘पेिरयार त मल पेरवई’ नामक एक वड़वादी सं गठन ने, जसका नेत ृ व एक ऐसे य करते हैं ज हे ं ‘आग उगलने वाले अलगाववादी, ल े समथक नेता, क र त मल रा वादी’26 कहा जाता है, देइवनयगम को ‘जन वकास के आ या मक नेता पुर कार’ (Spiritual Champion of People’s Development Award)) नामक पुर कार देकर स मा नत कया।27 सचमुच, देइवनयगम एक छोटे-मोटे, अमा य सनक से एक श शाली उ रे क बन कर उभरे हैं जो ईसाई चारकों और वड़ अलगाववा दयों को एकजुट कर रहे है।ं उ थानों पर बैठे ईसाई क रप थयों मे ं जो देइवनयगम ारा भा वत हो रहे है,ं एक उदाहरण हैं ोफेसर एम.एम. नाइनन, एक अवकाश ा धानाचाय और ं के एक पू व रा यपाल के भाई। उनक ई-पु तक ‘ ह दू इ म : वॉट िरयली नगालैड है प ड’ (Hinduism: What Really Happened) के सं पिरचय मे ं ह दू धम को ‘भारत मे ं टॉमस ईसाइयत के वधम अप ं श’ के प मे ं पिरभा षत कया है।28

रा प त बुश के सलाहकार ारा

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मा वन ओला क (Marvin Olasky), सं य ु रा य अमरीका के रा पत जाज ड यू . बुश के एक सलाहकार, जो ‘व ड मैगजीन’ (World Magazine) के मु य स पादक भी है,ं अपने वशाल अमरीक पाठकों के लए वै क ईसाइयत के बारे मे ं लखते है।ं ‘ईसा मसीह ने कैसे ह दू धम को बदला?’ (How did Jesus change Hinduism ) शीषक से छपे अपने एक आलेख मे ं अमरीक पाठकों को ह दू धम के इ तहास का पिरचय देते हुए वे कहते हैं : आज के ह दू धम के दो मुख घटक— व णु के अनुयायी और शव के अनुयायी— ार भक ह दू धम से नहीं, ब क ार भक ईसाई चच से नकले है।ं स भवत: ईसा मसीह के श य टॉमस ारा भारत मे ं ई वी सन 52 से 68 के बीच इ हे ं था पत कया गया।29 वे आगे या या करते हैं क ईसाइयत के आने से पहले भारतीय धम या तो पशु ब ल पर आधािरत थे या अनी रवादी थे (उनका आशय बौ या जैन धम से है)। यह स त टॉमस थे ज होंने भारतीयों को व ास ारा मो का धम दया, जसके लए पशु ब ल क कोई आव यकता नहीं थी। यह ईसाइयत के ‘ यीमू लक धम’ का उपहार था जो ‘धरती पर अवतार के प मे ं आने क ई र क इ छा का ऐलान करता था’।30 े

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देइवनयगम ने ओला क से स पक कां चीपुरम के एक स म दर मे ं कया। उ होंने ओला क के लए ईसाई दृ कोण से उस ह दू म दर क या या क , जसे ओला क ने बना कसी समालोचना के वीकार कर लया। बाद मे ं ओला क ने उस ह दू म दर मे ं ईसाई भाव के न न उदाहरण दये :31  चू ँ क म दर का आकार वगाकार नहीं है, ओला क ने महसू स कया क यह अव य ही ‘ये शलम के म दर क तज पर बनाया गया होगा’।  पुजारी ने म ो ारण करते हुए नािरयल का पानी और एक औषधीय प ी के कुछ ठोस टुकड़े दये, और ओला क ने इसे ‘ईसा मसीह के अ तम भोज क र म के एक ह दू अनुकरण’ के प मे ं देखा।   एक अ य मू त ने ओला क को भारत मे ं ईसाइयों के उ पीड़न का मरण ँ े कराया। उ होंने वणन कया क ‘एक मू त मे ं एक य को एक नुक ले खू ट पर सू ली चढ़ाकर द डत कया जा रहा था। उसके दोनों हाथ बाहर नकले हुए थे जससे लग रहा था क कोई य सलीब पर टँगा है। उसके बगल मे ं एक अ य य क मू त थी जसे उ टे लटका दया गया था जैसे (एक पर परा के तहत) पीटर को रोम मे ं लटकाया गया था’। ये ट प णयाँ करने के बाद ओला क ने पू छा, ‘ या भारत के ार भक ईसाइयों के साथ ऐसा ही हुआ था?’   ह दू उनको स तोषजनक ढं ग से नहीं समझा सके क आ खर तीन क सं या बार-बार एक तीका मक उ े य के प मे ं ह दू धम मे ं यों आती है। इस लए ओला क ने अनुभव कया क यह ईसाई नटी क ओर सं केत था, जसे ह दुओ ं ने नहीं समझा।

भारत मे ं और आगे व तार 2005 के यू यॉक स मेलन मे ं भाग लेने वालों मे ं एक थे डॉ. जे. डे वड भा कर दोस (Dr. J. David Baskara Doss), जनके पी-एच.डी. शोध प का शीषक ‘बाइबल क रोशनी मे ं षडदशन और त मलों का धम’ (Six Darshanas and the Religion of Tamils in the Light of the Bible) था। वे ईसाई चार को छपाने के तरीकों पर गो याँ आयो जत करते है,ं और वह प थ- नरपे नाम वाले एक ईसाई चारक सं थान के पा म नदेशक है,ं जसका नाम ‘नेत ृ व श ण का रा ीय सं थान’ (National Institute of Leadership Training, NILT) है।32 यह अपने ‘नेत ृ व ँ ाने के लए श ण’ के उ े य का वणन ‘मू तपू जकों’ को ईसा मसीह तक पहुच उनका नेत ृ व करने के प मे ं करता है : मू तपू जकों का नेत ृ व ई र क ओर देखते हुए यह ाथना करने के लए करे,ं ं ’े । (Song 1:4) अगर ‘मुझे अपनी ओर खींच,े ं हम आपक ओर दौड़े चले आयेग ेऐ

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ं े (Jer. वे ऐसा करते है,ं परम पता उ हे ं अव य ईसा मसीह के नकट ले जायेग 31:3)। ईसा मसीह ने घोषणा क क वे उनके पास आते है,ं यों क परम पता ने ं े उ हे ं अपनी ओर खींचा था (John 6:44)। ईसा मसीह इन लोगों को उपर उठायेग ता क वे एक दन उनके साथ हों (John 12:32)।33 ं टॉमस का योगदार’ दोस का ‘भारतीय धम और दशन के वकास मे ं सेट (Contribution of St. Thomas to the Development of Indian Religion and Philosophy) शीषक का आलेख कहता है : अनी रवादी बौ और जैन धम भारत मे ं ईसा पू व छठ शता दी मे ं ही अ छ तरह था पत हो चुके थे। अ मुख-देवों क पू जा, राजाओं क पू जा, नायकों क पू जा, कृ त पू जा, बहुदव े वाद, एकैका प देववाद, वड़ों क ब ल पू जा और आय क ऐसी ही पू जा, आ द, स त टॉमस के आगमन के समय भारत मे ं च लत थी। ... आय ारा एक धा मक वीकृ त के प मे ं ‘कम’ और ‘धम’ के बीच अ तस ब ध क गलत ढं ग से या या क गयी ता क अपने ही दशनों का उपयोग करने वाले वड़ों को दबा कर रखा जा सके। ... पाप क कटौती के लए ‘ऐ तहा सक अवतारी’, ईस (ईसा > ई र = ईसा मसीह) का ब लदान ही वह स देश था जसे स त टॉमस ने भारत मे ं चािरत कया था और यह भारतीय धम और दशन मे ं जाकर घुल- मल गया, और एक स ा त के प मे ं वक सत हुआ था।34 दोस के सं थान का एक अ य आलेख बलपू वक कहता है क यास एक टॉमस ईसाई थे, जो उसके बाद गीता और ईसा मसीह के स देशों (गॉ पल) के बीच समानताओं क या या करता है : लगभग सभी भारतीय दशन और धम इस बात से सहमत हैं क आ मा ब धनों मे ं जकड़ गयी है। ले कन वे यह नहीं बताते क ये ब धन आये कैसे।... भारत के धम और दशन के इ तहास मे ं वेदा त एक मह वपू ण भू मका नभाता है। भारतीय सां कृ तक पृ भू म मे ं यास च तन पर परा के योगदान पर यापक शोध कये जाने क आव यकता है, यों क इसक ईसाइयत के स ा त क सं ग त है।35 अनेक ह दू जनमे ं गु भी शा मल हैं भू ल से यह सोचने लगते हैं क इस तरह के शोध जो ह दू -ईसाई समानताओं को द शत करते है,ं समरसता को बढ़ावा देने या दोनों व ासों क समान वैधता को दखाने के सही रा ते है।ं वा तव मे,ं अनेक ह दू नेता ह दू धम और ईसाइयत के स दभ- ब दुओ ं और ढाँचों के बीच इस कार क समानता दखाने वाले शोधों को स य प से ो सा हत करते है।ं वे इस बात से अन भ हैं क वे सावधानी से बनायी गयी रणनी त के हाथों क कठपुतली बनते है,ं जो केवल धमा तरण के लए ही नहीं, ब क त मलों के लए एक अलग गैर- ह दू और गैर-भारतीय जातीय पहचान न मत करने के लए एक सु यव थत त ारा सं चा लत कये जा रहे है।ं



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पोप ारा वषय मे ं व म पैदा करना 2006 मे ं पोप बेने ड ट XLI ने एक भाषण दया जसमे ं उ होंने कहा क स त टॉमस फारस होते हुए भारत आये और उ होंने प म भारत मे ं धमा तरण कराया, जसका वा तव मे ं अथ है आधु नक पा क तान। इस तरह के सामा य स दभ ने भारत मे ं श शाली टॉमस गुट को इतना ो धत कर दया क उसके का शत सं करण मे ं इस कथा को सं शो धत कया गया। यह ववाद इतना बढ़ा क द टाइ स ऑफ़ इ डया नामक समाचार-प मे ं एक लेख का शत हुआ जसका शीषक ‘टॉमस’स व जट अ डर डाउट’ (स देह के घेरे मे ं टॉमस क या ा) था।36 यह घटना इस बात का सं केत देती है क टॉमस से जुड़ी कहानी, जो वड़वा दयों और ईसाई चारकों के लए इतनी अ नवाय थी, कुल मलाकर रोम मे ं भी अ प है। मह वपू ण बात यह क सं शोधनवादी कथावाचन का यह समकालीन उदाहरण दखाता है क कस कार टॉमस क कथा को थानीय राजनी त क आव यकताओं के अनु प ढाला जा सकता है।

2007 : भारत मे ं ार भक ईसाइयत के इ तहास पर दूसरा अ तरा ीय स मेलन 2005 के यू यॉक स मेलन क सफलता ने ‘ ार भक’ भारतीय ईसाइयत पर दू सरे स मेलन का माग श त कया, जो 2007 मे ं चे ई मे ं आयो जत कया गया। टॉमस ईसाइयत के चारकों ने मू लत: एक-दू सरे के पुराने शोध प ों को आ धकािरक ृ कया, ता क वे अपने अता कक दावों को सही ठहरा स दभ के प मे ं पुन: उ त सकें। भारतीय ोताओं और पाठकों को वही व ता परोसी गयी जसे सं य ु रा य अमरीका मे ं वीकार कर लया गया था, और इसने उनक स को और बढ़ा ं े लकल चच ऑफ़ इ डया के सं थापक, एजरा सगुनम दया। उदाहरण के लए, इवैज ने स मेलन क मािरका मे ं एक लेख लखा जसका शीषक था ‘भारत के धम त ों, सां कृ तक वरासत पर ईसाइयत का भाव’ (Impact of Christianity on the Belief Systems, Cultural Heritage of India)। इसने कहा : व ानों ारा यह वीकार कया जाता है क वे एक वड़ व ान, वेदा त यासार थे, ज होंने वेदों, उप नषदों क ु त पर परा को ल पब कया। डॉ. देइवनयगम और अ य ा य व ानों के अनुसार वेदा त यासार (या उनक च तन पर परा के व ान) भारत मे ं ईसाइयत के वड़ व प को फैलाने के लए उ रदायी थे। यासार ने धू प-अगरब ी, ब ल, और ाथनाओं जैसे कमका डीय सं कारों को अनुमो दत कया था जो सामी- वड़ धम के मू ल मे ं पाये जाते है।ं 37 ँ





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जहाँ एक ओर अ धकां श लेखों ने पहले स मेलन मे ं तुत शोध प ों को ही फर से नया बनाते हुए साम ी तुत क , वहीं कुछ मह वपू ण व तार भी हुए। उदाहरण के लए, हे जबा जेसदु ासन के शोध प ने यह दखाने का दावा कया क क पन और तुलसी क रामायणों पर ‘ईसाइयत का भाव है’।38 भा कर दोस ने पू व मीमां सा पर ‘पुराने स देश’ और उ र मीमां सा पर ‘नए स देश’ के भाव क ववेचना क ।39 अ य व ान अपने दावों मे ं और अ धक साहसी बने। उदाहरण के लए, मोजेज माईकल फैराडे (Moses Michael Faraday) ारा 2005 के यू यॉक स मेलन मे ं तुत शोध प ने अ धक सामा य दावा कया था क ‘ स क वताओं मे ं जो गु अ त व न अ त न हत है, उसे ईसाई पिरक पनाओं और श ा जैसे उपकरणों के ँ नकालना होगा, यों क वे स सा ह य मे ं ईसाइयत के भाव को भी मा यम से ढू ढ़ उजागर करेगी’। ले कन अब क बार उनका दावा अ धक जोरदार है : इस शोध प का उ े य धा मक जगत के इन [ स ों के] व च वरों पर ईसाइयत और ईसा मसीह क श ाओं के भावों को सामने लाना है। ... शोध प यह मा णत करने का यास करता है क त मल स ों क नभ कता के पीछे के कारणों को सफ़ तभी समझा जा सकेगा जब हम उन पर ईसाई श ाओं ं ।े 40 के भावों क पहचान कर लेग अय उ ख े नीय शोध प ों मे ं शा मल थे : ‘ य नटी ऐ ड महाभारत’, ‘ईसाइयत और महाभारत’, ‘जनजा तयों के लोकगीतों मे ं ईसाई वचार’, ‘ईसाई चार ु ू कला पों का पा तरण’ (Christian Thoughts in Tribal के लए थानीय तेलग Lore’, ‘Adaptation of Indigenous Telugu Folk Art Forms for Evangelism)।41



बनीं प व आ मा (Holy Ghost)

ह दुओ ं ारा सव श को दये गये मह व के कारण, त मल सं कृ त के ईसाईकरण को सुगम बनाने के म मे,ं श के दशन और उनक पू जा को अपना कर ईसाइयत मे ं मलाना अ नवाय है, और इस लए भी क अ ाहम पर आधािरत प थों मे ं द य ी श का अभाव है। इसके लए जस ष का उपयोग कया गया, वह एक बार फर स पू ण पिरदृ य मे ं या हो गया है : धृ और अपिर कृत यासों से लेकर ज टल धमशा ी तक तक। इस या का मोटा-मोटी व प इस कार है :  पहला ल य है त और स ब धत ी श को ह दू धम से अलग करना और उनक पहचान वड़ ‘जनजा तवाद’ के साथ करना।   ह दू धम का इस तरह कया गया वख डन तब उसे और आगे तोड़-मरोड़ कर सकने लायक बना देगा। े







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 उसके बाद क योजना यह है ह दू धम के त वों को, जैसे त ईसाइयत मे ं पा तिरत करना और वल यत करना।

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ऐ फ ह टेबइ े टेल (Alf Hiltebeitel), ज होंने द ण भारत के ामीण े ों मे ं मातृ देवी पू जन का यापक अ ययन कया है, वीकार करते हैं क उ हे ं प मी अपने अ जों के भीतर ‘क थत ‘‘उ री आय’’ ौपदी स दाय के लए वड़ महाका यीय मू ल क खोज करने क रे णा का स देह होता है’।42 जस ढं ग से प मी श ा जगत के बु जीवी त को प प से ‘ वड़’ और आय- वरोधी बनाने के यास करते है,ं उसका एक ा प नीचे दया गया है। इस तरह के पा तरण क एक नयी बात यह है क देवी काली यू रोपीय ऐ स पवतों से आयीं— जसमे ं पू व पिरक पना यह है क ाचीन काल मे ं वहाँ काली चमड़ी वाले लोग नवास करते थे। काली क मू त का अथ गोरी-चमड़ी वाले आय के साथ उनके सं घष को इं गत करने वाला नकाला गया। यह त मल जनता के मन मे ं आय दादा गरी के शकार होने क बात को बैठाकर भारत मे ं वभाजनकारी भावनाओं को फैलाने के सु नयो जत तरीके को सं र ण देने का एक अ य ा प है : ार भ मे ं (देवी) काली मू ल ता क- वड़ थीं, ज हे ं ‘आ धकािरक’ काली ने अ तत: पीछे धकेल दया। अगर आप उनके गु वड़ मह व को पू री तरह समझना चाहते है,ं तो आपको इस पर यान देना होगा क सभी सर, सभी शव, पु षों के हैं और उनके रं ग या तो गोरे हैं या गेहएुँ : उनमे ं कोई ी नहीं है, कोई काली चमड़ी वाला य नहीं है... ए पीनो-मे डटेरे नयन लोग म त देशी मू ल के थे, जो भारतीय उ णक टब धीय वातावरण मे ं रहते थे, और जनक वचा आज के वड़ों क तरह काली थी। ले कन उनके उ री श ु ‘पीले-चेहरे’ वाले ु ं थे... इस लए काली का उ भव एक अ छ माता के प मे ं हुआ, अपने श ओ के त उनके ोध का कटीकरण। अब वड़ों के श ु अगर भयावह आय नहीं थे तो भला कौन थे? इस कार काली ने आय के लए घृणा का अवतार कया और उनसे बेहतर तरीके से लड़ने और उनका दमन करने के लए वे अ श से अ छ तरह सुस जत हु , जो सभी वड़ों के य ह थयार थे, शू ल को छोड़कर, जसे रखना शव का वशेषा धकार है।43 कुछ ऐसे ह दू च तक भी हैं ज होंने उन दावों का समथन कया है जो ह दू देवी-देवताओं को अतीत के यू रोप का बताते है।ं उनको इस बड़े खेल के बारे मे ं नहीं पता है और इसका ल बे अ तराल मे ं या असर पड़ने वाला है। फादर बेडे फथ (Father Bede Griffithrs), एक कैथो लक पादरी ने भी, ज होंने द ण भारत मे ं अपना जीवन गुजारा और ाय: ह दू साधु के वेष मे ं रहे और उनके जैसा ही यवहार कया, ह दू धम के ईसाईकरण के लए इसी तरह के वचारों को काया वत कया। उ होंने ह दुओ ं को गव का अनुभव कराया क उनका धम ईसाइयत से मलताजुलता है और इस लए इसे एक सव यापी धम के प मे ं देखा जा सकता है। ले कन े

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उनके काय का वड़ों पर दू सरा भाव पड़ा, और उ होंने ईसाई चारक रणनी तयों को हवा दी। उ होंने यह कहते हुए त को ह दू धम से अलग करने का ताव रखा क ‘त का यह अ भयान ह दू और बौ धम मे ं बाहर से आया। यह नीचे से आया अ भयान था और अव य ही आय के पहले के लोगों से आया होगा। त का यह अ भयान आय नहीं था, जो पतृस ा मक थे, ब क आय से पहले का था’।44 उनके नधन के बाद, ह टेबइ े टेल के शोध को बेडे फ स ट ारा चािरत कया गया है जसके सू चनाप ने लखा : बेडे ने अ भुत ढं ग से इस बात क खोज क क कस ऐ तहा सकता से ता क पाठ, जो तीसरी शता दी से सामने आने लगे थे, द ण भारत के देशी वड़ शैव मत से नकले, जसमे ं माता के प मे ं ई र भ बहुत बल है, और इस लए कृ त, शरीर, ाने यों और काम भावना के मू यों पर बल देने का झान है। आय क व णु पर परा मे ं जन बहुत-सी चीजों को दबा देने क वृ थी, वे भी बाद मे ं त ारा पू जनीय बन गयीं।45 फादर टॉमस बेरी एक जाने-माने ‘उदार’ कैथो लक धमशा ी है,ं ज होंने अपने काम-काजी जीवन का अ धकां श समय ह दू धम के अ ययन मे ं लगाया और प म मे ं इसके बारे मे ं यापक प से लखा। धम के अ धकां श व ान उनके बारे मे ं सोचते हैं क वे ऐसे व ान हैं जो ह दू धम के बारे मे ं अ य त सहानुभू त रखते है,ं और ज होंने अपनी उदार ईसाइयत क पिरक पना को पुन: सं यो जत करने के म मे ं ह दू धम से बहुत कुछ लया है। वे वीकार करते हैं क ी अर व द ने त को एक कृत भारतीय पर पराओं के अ भ अं ग के प मे ं माना। ले कन वह इस बात पर बल देते हैं क हाल के ‘शोध’ ने दखाया है क त वड़ मू ल का था और आय से अलग था, और यह भी क ी अर व द इन ‘त यों’ से अन भ थे। बेरी कहते हैं क यह वड़ त ही है जो स े अथ मे ं ‘भारतीय’ है, आय सं कृत पर पराओं के वपरीत। वे ी अर व द क समझ मे ं इस ‘कमी’ के त ‘खेद कट करते है’ं क त ‘आय और सं कृत पर परा से कम तथा आय के पहले के लोगों और गैर-आय पर पराओं से अ धक नकला है’।46 वह आय के वेदों मे ं वड़ श को शा मल करने ‘और इस कार भारत को फर एक बार व के रा ों क दृ मे ं ऊपर उठने के यो य बनाने’ के लए ी अर व द क शं सा करने मे ं ऐसी भाषा का उपयोग करते हैं जैसी सं र क लोग अपने नीचे के लोगों से करते है।ं 47 एक बार जैसे ही ह दू घम से त को अलग करने मे ं सफलता मली, और वड़ त मल त को आय सं कृत वेदों के व तनाव मे ं लाया गया, वैसे ही त और श को ईसाइयत मे ं मलाने का माग श त हो जायेगा। उसके बाद देवकला त और श के लए ईसाई मू ल का दावा कर सकेंगी : भारत मे ं ईसा पू व काल मे ं कोई ई रवादी धम नहीं था ... धम का इ तहास यह कट करता है क द यता का स ा त, अवतारों का स ा त, ब ल का सफल ो









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होना और व ास के साथ वयं को सम पत करने के मा यम से मो - ा का स ा त, ईसाइयत के मू लभू त स ा त है।ं भारत मे ं जो ईसाइयत ईसा काल क ार भक शता दयों (या यू ँ कहे ं क पहली शता दी) से भारतीय भू म, भारतीय सं कृ त और भारतीय भाषा मे ं वक सत हुई, वह ार भक ईसाइयत या स त टॉमस क ईसाइयत या स त टॉमस त मल/ वड़ ईसाइयत है... जब ईसाई यी को परम पता, प व आ मा और पु के प मे ं या या यत कया गया तब कुछ लोगों ने प व आ मा को ी प मे ं पिरक पत कया।48

2008 : त मलों के धम पर पहला अ तरा ीय स मेलन सन 2008 मे ं चे ई के कैथो लक धम देश और देइवनयगम के ‘ व त मल आ या मक जाग कता आ दोलन’ ने सं य ु प से त मल धम पर अपने पहले व स मेलन क घोषणा क । हालाँ क इस नाम मे ं सभी त मल धम क व न नकलती है, ले कन वा तव मे ं सं योजकों मे ं एक भी ह दू नहीं था। सं योजकों मे ं ं पायस दोरईराज, डी. आच बशप मलय पन च पा, ऑ ज लयरी बशप लॉरेस देइवनयगम और उनक पु ी देवकला थीं। स मेलन के पिरचय प मे ं वचार कये जाने वाले वषयों क सू ची दी गयी थी : मानवों के उ भव का लमुिरयाई स ा त; त मलों का सुमे स यता था पत करना; बेबल क घटना के पहले सव यापी भाषा के प मे ं त मल; ... सं ध ु घाटी स यता मे ं मारक प थर क पू जा और बेथल े मे ं प थर क पू जा जैसा क बाइबल मे ं व णत कया गया है... पुन था नत ईसा मसीह के स दभ मे ं शव का नृ य—सजीव प थर ... त मल भाषा, सं कृ त और धम को दास बनाना; ा ण — वदेशी आय ... सं कृत का उ भव दू सरी शता दी के बाद ही। वेद यास, का लदास और वानमी क (वा मी क) जैसे सं कृत लेखक वड़ यों थे; अशोक के शासनादेशों मे ं सं कृत यों नहीं थी; सं कृत कसने बनायी।49 कैथो लक धमा य वथया थल के उ घाटन भाषण के साथ, जो ‘कैथो लक बशप कॉनफ़रे स ऑफ इ डया’ के अ य है,ं स मेलन शु हुआ; उ घाटन भाषण मे ं उ होंने बल देकर कहा क स मेलन तीय वै टकन काउं सल का पिरणाम था, और वड़ आ या मकता को ईसा मसीह मे ं अपनी पू णता क ा करनी चा हए।50 थोड़ी जाँच-पड़ताल से ही यह देखा जा सकता है क व ान-ईसाई चारक मलीभगत को प मी शै णक पिरवेश मे ं अ छ तरह सुर त रखा गया है, जहाँ से यह दावा करते हुए वड़ों के त कुछ उदारता दखायी जा रही है क व स यता का मू ल त मल है; इसके साथ े ता क भावना से स ब धत अ य दावे भी शा मल है।ं ऐसी े ता मू लक वृ यों को बढ़ने देना यापक रणनी त है और जैसा क दखायी देता है, उ हे ं ो सा हत करना वशेषकर अगर इससे वड़ों और अ य भारतीयों के बीच झड़पों को बढ़ावा देकर भारत क एकता को कम करने मे ं सहायता ैऔ ी ो ि ई े

मलती हो। लमुिरयाई उ भव का स ा त वड़ े ता क भावना का चरम है और समय-समय पर दय जीतने के लए लमुिरयाई प े को खेला जाता रहा है।

लमुिरयाई-त मल उ भव के स ा त क वापसी स मेलन के स ों ने उ हीं वषय-व तुओ ं को दुहराया जो इं टी ू ट ऑफ ए शयन टडीज ारा आयो जत पहले दो स मेलनों मे ं रखे गये थे।51 स मेलन के उ घाटन के दन यह दावा कया गया क मानव का उ भव लमुिरया या कुमारी क दम मे ं हुआ। व टर के शोध प ने त मल से अनेक व भ अ-भारतीय श दों को खोज नकालने का दावा कया—यह दखाने के लए क त मल सं कृ त ही स यता का ोत रही थी। उसके बाद उ होंने दावा कया क बाइबल मे ं जेने सस [पहला] अ याय कुमारी क दम क बात करता है; यह भी क महाजल लय के समय त मल बखर गये थे। बाइबल मे ं व णत वजन मथक त मल थानों और सं ध ु घाटी स यता से स ब धत थे।52 एक अ य व ान ने दावा कया क म के लोग, देसी अमरीक , और ऑ े लया के लोग त मलनाडु से ही उ भू त हैं और सं कृत एक ऐसी भाषा है जसे ईसा के बाद के काल मे ं बनाया गया था। उ होंने यह भी दखाया क म के श द जैसे फराओ (Pharaoh), अकनातेन (Akhneten), तू तनखामेन (Tutankhamun), और मेसोपोटै मया (Mesopotamia), वा तव मे ं त मल से ही नकले थे। नो र स मे ं उ होंने दावा कया क आय त मलों क ही एक शाखा के थे जो भारत के बाहर प मी रे ग तान मे ं चले गये थे और बाद मे ं त मलों को दास बनाने के लए वकृत और धू त ढं ग से वापस आ गये।53 देइवनयगम ने एक पचा बाँटा जसका शीषक था ‘ व क पहली भाषा— त मल : व का पहला मानव—त मल : व क पहली जा त—त मल जा त : व के धम का सामा य नाम—त मल धम। कैसे?’ उनक पच मे ं तीस ब दु गनाये गये थे जनमे ं मुख न न ल खत हैं : ...ईसा काल दू सरी शता दी के पू व सं कृत का कोई अ त व नहीं था। सं कृत का कोई भी शलालेख या मु ाशा ीय सा य नहीं है। थम सं कृत शलालेख ई वी सन 150 का है। ले कन त मल शलालेख ईसा पू व तीसरी शता दी के है।ं सं ध ु घाटी स यता को त मलों क स यता मा णत कया गया है। सं ध ु घाटी स यता के पू व त मल क ाचीनता का उ ख े कुमारी क दम ारा कया जाता ं , जो मानव क उ प का था, जो जल लय मे ं न हो गया। ओ ड टे टामेट वणन करता है, ही ू मे ं लखा गया है। व टर ने एक पु तक लखी है जसमे ं ही ू त मल से नकली बतायी गयी है। एम.के.जी. मौलाना ने लखा है क रामे रम मे ं जो सेत ु है उसका नामकरण व के पहले मानव आदम के तीसरे पु के नाम पर रखा गया है जनका नाम था— सेथ।... बाइबल क क वताएँ (जेने सस 11:1 और 2) प करती हैं क व क पहली भाषा त मल थी और े













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ये क वताएँ सुमे स यता तथा स धु घाटी स यता को जोड़ती है।ं चे ई मे ं त मलनाडु सरकार क पयटन दशनी मे ं टॉल न बर 31-ए मे ं त मल धम का वकास म या या यत है और हम त मल जनों से अनुरोध करते हैं क वे वहाँ जाये।ं आज त मल और त मल धम को दास बनाकर रखा गया है। यह जानने के लए क कैसे और कौन त मल धम को मु करायेगा, हमारे टॉल मे ं आये.ं ..54

सं कृत, डा वन और वेदा त का दानवीकरण सं कृत को ईसा काल के बाद आयी भाषा के प मे ं दखाने के ईसाई वड़वादी ु े व यों को मशन चलाये जा रहे हैं जो कुछ औप नवेशक भारत वदों के बेतक आधार बनाते हैं क सं कृत सक दर के आ मण का पिरणाम थी। इस दृ कोण के अ णी तावक थे कॉ टश दाश नक डुगा ड टीवाट (Dugald Stewart, 17531828)। टॉमस ाउटमैन प करते हैं : सारां श मे ं टीवाट का सं योजन यह था क सक दर क वजय के मा यम से, जो ँ ा, ा ण ीक भाषा के स पक मे ं आये, एक नयी भाषा बनायी पं जाब पहुच जसमे ं उनक देसी बोली के श द ीक से लए गये वरामों और वा य व यास ु ते होने का कारण यह से जोड़े गये थे। ... सं प े मे,ं सं कृत के ीक से मलतेजल नहीं है क दोनों ऐ तहा सक प से एक ही पू वज भाषा के मा यम से जुड़ी है.ं .. ब क यह है क सं कृत भारतीय पिरधान मे ं ीक ही है।55 ाउटमैन यह भी दखाते हैं क कस कार ‘इस पू रे तक को पुरो हती के प ं पुरो हताई के तहत बढ़ाया जा रहा है, जो कैथो लक पादिरयों और ा णों ोटे टेट पर समान प से लागू क जा रही है’।56 इस वतमान पा तरण मे ं इस जानी-मानी पिरक पना को एक बार फर पुनज वत कया गया है, पर उसके इस अवतार मे ं सं कृत क आयु और आगे खसकाकर ईसा के बाद के काल क कर दी गयी है, जब क इस पिरक पना के औप नवे शक सं करण ने इसे ीक स यता के बाद के काल मे ं उ भू त हुआ दखाया था। सक दर के आ मण को अब यह या या करने के लए स त टॉमस के आगमन मे ं बदल दया गया है क कस तरह सं कृत भारत मे ं आयी। सं कृत के दानवीकरण और इसे न करने के अ भयान को औप नवे शक भारत व ा से वतमान वड़वा दयों ारा अं गीकृत कर लया गया है। ाउटमैन के अनुसार ‘सं कृत क नरं कुशता और अ याचार’ को समा करना उ ीसवीं शता दी मे ं न ल व ान का उ े य था जब वह अपने बा यकाल मे ं था। फर भी, इसके पिरणाम व प राजनी तक ग त के जो न ल आधािरत माग बने वे अब भी भारतीय समाज मे ं काफ चल रहे है।ं 57 देइवनयगम के शोध प ने दावा कया क त मल याकरण वयं वैसे त य को त ब बत करता है जसे उ होंने ‘आ मा का व ान’ कहा, यों क इसने ईसाई शा से नकटता दखायी। स के अ य , एक बड़े त मल व ान, औवई नटराजन े े ेऔ ो े

ने कहा क देइवनयगम गलत थे और क उनका शोध उनके धम ारा भा वत था। देइवनयगम ने इन आलोचनाओं क उपे ा क और सृ वादी तक का उपयोग करते हुए डा वन के मब वकास के स ा त पर हार करने के लए आगे बढ़े ।58 इससे भी आगे, उ होंने पुन: अवतार क अवधारणा को अनी रवादी बताते हुए उस पर हार कया। उनका सवा धक कठोर हार अ ैत के लए बचा हुआ था : उ होंने कहा क इ लामी और ईसाई थ अ ैत को शैतानी मानते है।ं 59

भारतीय कला के इ तहास का बप त मा देइवनयगम क पु ी, देवकला, अनेक स ों मे ं एक स य तभागी थीं, जनमे ं उ होंने दुहराया क स त टॉमस ारा लाई गयी ईसाइयत वकृत होकर ऐसे व पों मे ं बदल गयी ज हे ं बाद मे ं शैव मत, वै णव मत, महायान बौ और शवेता बर जैन धम के प मे ं जाना गया। उ होंने अपने लाइड शो मे,ं जसे स मेलन क मािरका मे ं भी का शत कया गया था, लगभग सभी मुख ह दू -बौ मू त श प को या तो ईसाइयत को त ब बत करने वाला या ईसाई स ा तों से भा वत होने का दावा कया। च 9.2 पता-पु ी य क भारतीय कला के इ तहास क पुनपिरक पना का सारां श तुत करता है। Fig. 9.2: ह दू/बौ कला के इ तहास का ईसाईकरण ह दू/बौ कला

देवकला-देइवनयगम दावा

1. उदय गिर क गुफाओं मे ं बु क ‘क लों से गुदे हुए हाथ और पैर वाले तमाओं क खोज जनके पैरों और बु ... क लों से गुदे हुए परमे र के हाथों मे ं गोल च थे पु क याद दलाते है’ं 2. ईसाइयत-पू व बौ तू पों मे ं बु क ‘‘ ‘अवतार’ के स ा त के कारण’’ तमाओं का मलना और ईसाइयत- (परमे र मनु य/गु बन गया) प ात बौ तू पों मे ं उनका मलना 3. शव के मुख वाला शव- लं गम

शव-मुख वाला शव- लं गम केवल ईसाइयत-प ात के समय मे ं ही पायी जाती हैं

4. बु

‘परमे र को जसने मनु य का लया, उसे गु कहते है’ं

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5. अधनारी र क ं ी

तमा : शव और श



‘परम परमे र जसमे ं परमे र क औ

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का उभय लं गी व प

आ मा पु ष और मे ं है’

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6. शं कर-नारायण व प

‘परम परमे र जसमे ं परमे र क आ मा दोनों पु षों के व प मे ं है’

7. महादेव क ए लफेंटा गुफाएँ

‘ देव परमे र — तीन पु षों के एक स व मे ं होना : ‘होमू उ सऔस’ के स ा त का न हत होना।

8. नटराज के

प मे ं शव :

ा डीय नृ य ‘पुन थान के दलाता है’

स ा त को याद

सामा जक वषमताओं को केवल ह दओ ु ं मे ं ही देखा जाना इस स मेलन मे ं वड़ों और द लतों से जुड़े मामले एक साथ परोये गये थे, जसमे ं वड़ रचनाओं मे ं आने वाली वण- यव था पर नया बल दया गया था। द लत वषय पर बाद के अ यायों मे ं यापक प से ववेचना क जायेगी। दोनों वषय एक साथ ं एक इस वचार के आस-पास मँडराते रहे क वण और न ल दोनों एक ही है— अवधारणा जसके गलत होने का माण दया जा सकता है, पर जसे हाल मे ं औप नवे शक जड़ों ने पुनज वत कया है, और अब इस पर काम हो रहा है ता क व भ वभाजनकारी झानों को मजबू त बनाया जा सके। स मेलन मे ं वण- यव था पर आयो जत स का ार भ ोफेसर सैमसन ारा एक शोध प पढ़ने के साथ हुआ।60 सामा जक प से तरीकृत ण े ीब समाज— जसे सं गम सा ह य दखाता है—के अनेक स दभ क या या बाल क खाल नकालने वाले भाषणों के साथ क गयी जससे त मलों क भावनाओं के साथ खलवाड़ कया गया। जा त को ‘त मलों पर थोपी गयी एक वदेशी बुराई’ के प मे ं च त करने क रणनी त है ता क उनक सहानुभू त जीत ली जाये। जहाँ एक ओर ाचीन त मल सा ह य ने ा णों क पहचान त मल समाज मे ं वदे शयों क तरह नहीं क , वहीं अब त मल शु ता के नाम पर उन पर लगातार हार हो रहा है। यह भी आरोप बारबार लगाया गया क वण जैसा तरीकरण भारतीय समाज क ही व श ता थी और ह दू धम को छोड़कर कसी अ य धम ने ज म पर आधािरत वषमताओं को अनुम त नहीं दी। ा णों के लए पार पिरक त मल श दों, और वण के स दभ के लए वदेशी भावों को दोषी ठहराया गया ज हे ं धू त ा णों ारा त मल समाज मे ं दू षण के प मे ं लाया गया। ा णों पर म हलाओं के मा यम से त मल राजाओं को ललचाकर जीतने का आरोप लगाया गया। जब कसी ने बाइबल के जमाने मे ं समेिरय स के साथ बुरे बताव के वषय को उठाया तब उ र दया गया क वह बुरा े ी ीं ी

यवहार केवल राजनी तक था, सामा जक नहीं, जब क भारतीय वण- यव था क जड़े ं ह दू धम मे ं जमीं थीं। देइवनयगम ने कहा क यहू दयों ने इजरायली म दरों को व त कर दया और समैिरटनों पर अ याचार कया, और उन पापों के कारण यहू दयों को दो हज़ार वष तक दुख भुगतना पड़ा। उ होंने हटलरी नरसं हार को ई र ारा कये गये एक याय के प मे ं व णत कया, यों क यहू दयों ने ब ल क पिरपू णता के मा यम से अपने पापों से मु को वीकार नहीं कया ( जसका अथ यह नकला क उ हे ं सवनाश भुगतना पड़ा, यों क उ होंने ईसा मसीह को वीकार नहीं कया)।61 इस वड़ ईसाई सै ा तीकरण मे ं ार भ से अ त तक ऐसा ही यहू दी- वरोधी सू परोया हुआ था। देइवनयगम ने यह भी कहा क ईसा मसीह के पहले जीवन के बाद वग या नरक मे ं जाने क पिरक पना कसी भी ई रवादी धम मे ं नहीं थी। उनके अनुसार भारत मे ं ईसा पू व केवल जैन और बौ धम ही थे जो अनी रवादी थे। इस कार एक पू ण ई रवादी धम भारत को ईसाइयत का उपहार है।

ईसाई- वड़ बनाम आधु नक पुरात व व ान टॉमस वड़ ईसाइयत के सबसे आधु नक चारक अपने तक का आधार पता-पु ी टीम, देइवनयगम-देवकला, ारा गढ़ी गयी पिरक पनाओं को बनाते है।ं च 9.3 इन पिरक पनाओं को दशाता है, जनमे ं से अ धकां श के मू ल औप नवे शक काल के है,ं और ज हे ं अनेक दशकों क पुराता वक खोजों ारा पहले ही अस य मा णत कया जा चुका है। Fig. 9.3 आ ु नक पुरात व व ान

वड़ ईसाइयत को झू ठा ठहराता है

वड़ ईसाइयत

आधु नक पुरात व व ान

1. तीन-चेहरों वाले ई र का शव के ‘तीन-चेहरों’ का व प स धु घाटी स ा त ईसाइयत-प ात का है। स यता के लोगों के तीन-सींग वाले देवता से मलता-जुलता है और आधु नक ह दुओ ं के देवता से भी। (वुली, 1958, 82) 2. सबसे पुराने सं कृत शलालेख ईसा बाद दू सरी शता दी के है,ं जससे सं कृत ईसाइयत-बाद क एक व तु हो जाती है जससे क ईसाइयत को उ र भारत मे ं फैलाने मे ं आसानी होती है। ं

सबसे पुराने सं कृत शलालेख/पुरालेख ईसा पू व पहली शता दी के अयो या, घोसु डी और हाथीबड के प थर के शलालेखों मे ं मलते हैं (सोलोमन, 1998, 98)



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3. शव-मुख वाला शव लं ग कई मुखों वाले शव लं ग मले हैं जो ईसा पू व ईसाइयत के बाद का वकास दू सरी शता दी तक के हैं ( ै मिरश, 1994, है। 179) 4. अवतार का स ा त (परमे र कृ ण के व णु के दै वक अवतार होने का मनु य प मे ं आते है)ं स ा त ईसाइयत पू व का है। ( ायं ट, 2007, ईसाइयत-बाद का है। 4-7) 5. भारत मे ं ईसाई भाव के पू व ऐसा कोई भी देववादी धम नहीं था जो मृ यु के प ात् क बात करता हो, या फर मृ यु-प ात् के जीवन के लए इस जीवन मे ं नै तक कम करने क बात करता हो।

ईसा-पू व भारतीय धम न केवल देववादी है, ब क वह मृ यु के बाद मु क भी बात करता है और जीने के लए एक आचार सं हता भी देता है, जैसा क इं डो- ीक राजदू त ारा शुं ग राजा के लए 110 ईसा पू व मे ं खड़े कये गये ग ड़ त भ का आलेख हमे ं बताता है।

6. ईसाइयत से पहले हर पू जा मे ं ह दू धम मे ं ब ल और बना ब ल दोनों कार ब लदान आव यक था। क पू जाएँ आ द-काल से है,ं और ब ल मे ं र का आव यक योग नहीं होता था। 7.

वग-नरक और मृ योपरा त जीवन के स ा त पहले ईसा मसीह ने ही दए थे, ईसा मसीह से पहले कसी भी देववादी धम मे ं इसका कोई थान नहीं था।

‘नरक क ईसाई क पनाएँ, जैसे क शैतान और देवदू तों क क पनाएँ, हो सकता है क ज़रथु के धम से ली गयी हों, न क बाइबल के छोटे-मोटे उदाहरणों से।’ (बेनट े , 2001, 95)

टॉमस मथक क मजबू ती का आकलन सभी सा यों के वपरीत होते हुए भी, आ य होता है क इस तरह का मथक, जो स त टॉमस को भारत से जोड़ता है, मशनिरयों के बीच यों बना हुआ है। इसके अनेक कारकों मे ं से एक टॉमस का गॉ पल है जसक पा डु ल प (Coptic Papyrus) म के नाग ह मादी मे ं 1945 मे ं पायी गयी थी। िरचड वैल टे सस के अनुसार, टॉमस के इस उपदेश क त थ के ई वी सन 60 से 120 के बीच होने पर व ानों क सहम त हो गयी है।62 यह इसे सवा धक पुराने धम पदेशों मे ं से एक बनाता है। ं टन व व ालय क इलेन पैगे स ने टॉमस ारा भारत मे ं ईसाइयत लाने के ईसाई चारकों के दावे के वपरीत इस बात क स भावना सामने रखी क ठ क उसका ै े







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उ टा हुआ था, जैसे क, वह टॉमस ही थे ज होंने ार भक ईसाइयत को भा वत करने मे ं भारतीय धम ( वशेषकर बौ ) का त न ध व कया। उ होंने लखा : फर भी टॉमस का आ म ान स ब धी धम पदेश कहता है क जैसे ही टॉमस ने उ हे ं पहचाना, ईसा मसीह टॉमस से कहते हैं क दोनों ने एक ही ोत से अपना अ त व हण कया है... इस तरह क श ा— द य और मानवीय पहचान, म और बोध ा के त च ता, और ज होंने थापना क उ हे ं ई र क तरह नहीं, ब क एक आ या मक नदशक के प मे ं तुत करना— या प मी से अ धक पू व व नत नहीं होते? कुछ व ानों ने सुझाव दया है क अगर नामों को बदल दया जाये तो ‘जी वत बु ’ समु चत प से वही कह सकते थे जसे टॉमस के गॉ पल ने जी वत ईसा मसीह ारा कहा गया बताया। या ह दू या बौ पर परा ने आ म ान व ा को भा वत कया होगा? बौ धम के टश व ान एडवड को ज ने सुझाया क ऐसा ही हुआ था। जस समय आ म ान व ा का उ कष हुआ (सन 80—200) उस समय यू नानी-रोमन और सुदूर पू व के देशों के बीच यापािरक माग खुल रहे थे; पी ढ़यों से बौ मशनरी अले जैं या मे ं धमा तरण करा रहे थे। हमारा यान इस पर भी जाता है क ह पोलाइटस, जो रोम मे ं ीक बोलने वाले ईसाई थे (सन 225 के आस-पास), भारतीय ा णों के बारे मे ं जानते है,ं और उनक पर पराओं को व धमता के ोतों के बीच रखते हैं : ‘भारतीयों के बीच ... उन लोगों का ई र वरोध है जो ा णों के बीच दाश नक च तन करते है,ं जो आ म- नभर जीवन जीते है,ं जो जी वत जीवधािरयों और पकाये हुए भोजन को खाने से परहेज करते है.ं .. वे कहते हैं क ई र काश है, वैसा काश नहीं जो हम देखते है,ं न तो यह सू य जैसा है और न ही अ न जैसा, ब क उनके लए ई र एक स भाषण है, वह नहीं जो मसा य व नयों मे ं अ भ य हो पाता है, ब क वह जो ान (आ म ान) देता है और जसके मा यम से बु मानों ारा कृ त के गु रह यों को जाना जाता है’। या टॉमस के धमस देश का शीषक— जसे उस श य के नाम पर रखा गया है जो, पर परा से कहा जाता है, भारत गये थे—भारतीय पर परा के भाव का सं केत देता है? ये सं केत इस स भावना को ही इं गत करते है,ं यह अलग बात है क हमारा सा य अभी नणायक नहीं है।63 जहाँ वड़ ईसाई राजनी त दावा करती है क टॉमस ईसाई भाव को भारत मे ं लाने वाले म य थ थे, पैगे स जैसे प मी व ानों क रचनाओं मे,ं जो भारत मे ं चच क ईसाई चारक ग त व धयों से जुड़े नहीं है,ं ठ क इसका उ टा पाया जाता है। वे दखाते हैं क टॉमस के धमस देश अनेक कार से, आज जसे ईसाइयत के प मे ं जाना जाता है, उसके आधार के वपरीत और उसके मह व को कम करने वाले है।ं चच को इन भारतीय आ म ान स ब धी वचारों से ख़तरा पैदा हो गया था, यों क वे मनु य और ई र के बीच म य थ के प मे ं सं थागत बनाये गये चच क ि



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आ धकािरकता को कम कर देते है,ं और इस तरह येक साधक को सीधे साधना से श स प बनाते है।ं ार भक चच ने आ म ान के आयाम को कठोरता से न कया। उसने आ म ान व ा को टॉमस मथक से बदल दया ता क आ म ान के भारतीय ोतों को ई र वरोधी होने के प मे ं न करना उ चत ठहराया जा सके। यह स भव है क भारतीय टॉमस को ईसाई टॉमस मे ं पा तिरत कर दया गया था, और उसके बाद भावों के ऐ तहा सक वाह क दशा को पलटने के लए उसे लागू कया गया। वड़ ईसाई पिरक पना को इस कार श ा जगत ारा अमा य कर दये जाने के बाद भी वा त वक ख़तरा यह है क चच ने द ण भारत मे ं जो यापक सं था नक त खड़ा कया है वह वड़ राजनी तक घुसपैठ और एक जातीय-धा मक पहचान क ओर ले जाता है जसे श शाली वै क श यों ारा नय त कया जा सकता ु ा का चारा चुगा है। हालाँ क है। अनेक द ण भारतीय ह दुओ ं ने आय- वड़ श त मुख शैव स ा त के व ानों ने वेद- वरोधी वड़ पहचान का ख डन कया है, इ तहास और धम का यह दू षण मु यधारा मे ं वेश कर चुका है और द ण भारतीय आ या मकता के ईसाईकरण मे ं एक मुख खलाड़ी बन गया है।

ईसाईकरण के लए अ तिरम चरण के

प मे ं

वड़ आ या मकता

उ ीसवीं शता दी मे ं अ धकां श त मल व ानों और शैव स ा त के वशेष ों ने वेदों के व न मत एक वड़ अलगाववादी पहचान क उस पिरक पना क न दा क जो यू रोपीय व ानों ने सामने रखी थी। उन त मल व ानों ने भी, ज होंने त मल सा ह य और स यता को सं कृत से े माना, सं कृत का दानवीकरण नहीं कया। इसके एक अ छे उदाहरण थे ‘मनो म यम’ सु दरम प ई (1855-97)। उ होंने दावा कया क त मल सं कृत से े थी, यों क त मल उस समय भी एक जन भाषा के प मे ं यवहार मे ं लायी जा रही थी। उनके ारा रचे गये एक त मल गीत को त मलनाडु के आ धकािरक गीत के प मे ं मान लया गया है। फर भी, उ होंने न तो सं कृत को छोटा दखाया और न ही अ वीकार कया, और त मल और सं कृत दोनों भाषाओं को व ा क देवी के दो ने ों के प मे ं देखा, हालाँ क उनके लए त मल दा हना ने था। जब बशप कॉ डवेल ने सातवीं शता दी के शैव स त त नान स ब दार का काल तेरहवीं शता दी के अ त का नधािरत कया, सु दरम प ई ने इस काल गणना का ख डन कया और बल देते हुए था पत कया क स ब दार को सातवीं शता दी के बाद का नहीं बताया जा सकता है।64 शैव स ा त के एक अ य व ान सबर न मुदा लयार (1858-1922) ने शैव स तों पर कॉ डवेल के शोध क जाँच-पड़ताल करते हुए लखा : डॉ. कॉ डवेल एक ईसाई मशनरी थे और हालाँ क उ होंने त मल सा ह य क कुछ सेवा क है, उ हे ं उनके ईसाई पू वा ह से मु नहीं कहा जा सकता है।65 े ी ई े े ों े ै

जे.एम. न वामी प ई (1864-1920) एक अ य बड़े व ान थे ज होंने शैव स ा त को लोक य बनाने मे ं म कया, और वे जी.यू . पोप के नकट के भी माने गये। हालाँ क शु मे ं उ होंने पोप पर शैव स ा त के एक वा त वक शं सक के प मे ं व ास कया, प ई बाद मे ं इस बात से आतं कत हो गये थे क पोप ने अपने लेखन मे ं शैव स तों पर झू ठे दोषारोपण कये और उ होंने उन हारों को उनक ‘शु अ ानता’ बताया।66 प ई ने इस वचार का जोरदार ख डन कया क शैव स ा त वेदों और सं कृत से जुड़ा नहीं है। उ होंने बल देकर कहा : सभी पािरभा षक श द और प जनका हम उपयोग करते हैं वे सं कृत से नकले हैं : और त मल सा ह य का एक बड़ा भाग छोटा होकर मह वहीनसा हो जाता है जब उसक तुलना सं कृत के वशाल ‘आगम’ सा ह य से क जाती है। हमारे त मल आचाय सं कृत के भी बड़े व ान थे ... हमारे लेखक प प से कहते हैं ... क कस कार यह मू यवान धम और दशन वेदों और आगमों पर आधािरत है।67 त मु गा क पन द वािरयार (1906-93) शैव और कालजयी त मल सा ह य और आ या मकता, दोनों के एक बड़े व ान थे। जब उनसे पू छा गया क या शैवों को सं कृत म ों का उपयोग करना चा हए, उनका उ र था : चू ँ क सं कृत (भारत मे)ं सभी लोगों क सामा य भाषा है, सभी म सं कृत मे ं हैं ... अन त काल से शैवों ने पर परा से सं हता के म ों का उ ारण कया है। इसका व लेषण घृणा से करना लाभदायक नहीं है।68 इस पृ भू म के बाद भी, आज त मल आधािरत गैर-वै दक प तयों का अ भयान तेज हो रहा है और वड़वा दयों के एक वग ारा उसका नेत ृ व कया जा रहा है। ऐसा ही एक लोक य अ भयान स यवेल मु गन ारा चलाया जा रहा है, एक बजली अ भय ता जो बाद मे ं वय भू शैव स ा त धमशा ी और त मल कमका ड के व ान बन गये। वे ‘त मल ववाहों’ क पिरक पना को लोक य बना रहे हैं जसमे ं वै दक प त को अ वीकार करते हुए उसके थान पर त मल ोतों को लाया जा रहा है। वे कहते हैं : ... सं कृत श द ‘ ववाह’ का अथ होता है अपहरण करना, अथात् ववाह के उ े य से कसी क या का अपहरण करना, जो काय, यह कहने क आव यकता नहीं, बबर है ... इससे भी बड़ी बात यह क सं कृत ववाह मे ं जन म ों का उ ारण कया जाता है, वे न तो हमारी समझ मे ं आने लायक हैं और न ही उनके लए जो इनका उ ारण करते है,ं यों क सं कृत एक मृत भाषा है। सं कृत ववाह मे ं अनेक र मे ं हैं जो उबाऊ, अता कक, अनै तक, अ लील और आप जनक हैं ...69 जब त मलनाडु मे ं मुक सरकार ने पार पिरक त मल नये वष को च ाई से ताई मे ं बदला तो उ होंने यह कहते हुए उसका जोरदार वागत कया क हर त मल को ी ें ी ें ी ै े े ै

उसी दशा मे ं पू जा करनी चा हए जस दशा मे ं मु य म ी बैठते थे।70 वह शैव स ा त के एक धमशा का चार करते हैं जसे शेष भारत क आ या मकता के मह वपू ण प ों से अलग करने और उसे प प से ईसाइयत के अनु प करने के लए सु नयो जत कया गया है। च 9.4 मे ं इसे दखाया गया है। Fig 9.4. स ा शैव स ा त बनाम वड़ ईसाइयत के फज दावे पार पिरक शैव स ा त

वड़ धम का दावा

ईसाइयत क ओर पथ

पशु-प त-पसम : इस पद का अथ है प त (ब ल के देवता), पशु (वैय क आ मन, ब ल का पशु), पसम (वह र सी जो इसे बाँधती है)। जब र सी, पसम, जल जाती है, तो आ मा प त (परमे र) से तादा य था पत करने के लए वत हो जाती है। ( शवर नम, 1978, 21) प त को पार पिरक प से वेदों और उप नषदों के सबसे स तोषजनक अथ के प मे ं समझाया जाता है। (मुद लयार, 1968, 28)

प त, पशु और पसम का अथ है, गड़िरया, भेद और ब धन। (मु गन 2009)

शैव स ा त का थ, थ म शव लं ग को कई तरों पर समझाता है : वृह व प मे ं वह पू रा ा ड है; सू म तर पर यह थू ल शरीर है; और आ तिरक तर पर यह चेतना को दशाता है जसका व न च णव है।

भु, रोशनी और लौ मे ं लं ग पू जा को देवता क बहुत सारे सा य लौक पू जा के अ ह मक देखकर वड़ लोगों ने व पमे ं समेट देता है। भु को लौ (अ न) के प मे ं पू जना ार भ कर दया... इसको अ यवहािरक जानकर वे लौ के प मे ं प थर के खड़े व प को पू जने लगे। कुछ भी हो, इस आकृ त को खड़ा े



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शैव स ा त के वेदों को पु करने को समा कया जाता है और उसके थान पर अ तीय और सावभौ मक गड़िरये के प मे ं ईसा-मसीह क आकृ त आ जाती है।

करने के लए उ हे ं उसके आस-पास एक आधार रखना पड़ा जसमे ं क जल इक ा हो सके और नकासी का एक माग बन सके। और इस तरह लं गम ने आकृ त ली। (मु गन 2009) शैव स ा त मे ं न हत सामा जक स भाव वेदों के लोक एकं सद व ा बहुधा-वद त पर आधािरत है। (न. प ई, 1911 : 2009, 274)

इस मा यता को पू री तरह नकार कर यह कहता है : भगवान् शव उस ईसाई के त कठोर होंगे जो इसके त स ा नहीं है, उस मुसलमान के त कठोर होंगे जो इसके त स ा नहीं है, और इसी तरह अ य सभी धा मक लोगों के लए कठोर होंगे जो अपने धम के त स े नहीं है।ं (मु गन, 2009)

इससे अ ह मक देवता के जैसे एक द ड देने वाले देवता क झलक मलती है जो क ईसाई और मुसलमानों को पी ड़त क तरह दशाता है।

पार पिरक शैव स ा त केसमुदायों मे ं शव क जड़े ं ँ ी गयी हैं (एन. वेदोंमे ं ढू ढ प ई,1911 : 2009, 274)

शव क पुरातनता के बारे मे ं बात ‘ईसाइयत के पहले उदाहरण’ के स दभ मे ं होती है और उ ीसवीं शता दी के एक मशनरी दावे को पुन ्था पत करती है क ‘इस देवता का सबसे पहला उ ख े अमोस क कताब मे ं हुआ है।’ (अ याय 5.

यह गलत प से शव पू जा को उसक वै दक जड़ों से हटाता है और ऐसा तीत कराता है जैसे क शव का उ ख े बाइबल मे ं है।

25-26) 2009)

(मु गन,

भारत के बाहर

10 वड़वादी शै णक सं थान-कायकता नेटवक

प मी श ा वदों के बीच ाचीन भारत के बारे मे ं जो कुछ भाषावै ा नक अटकलों के प मे ं शु हुआ था, वह ‘फूट-डालो-और-राज-करो’ क रणनी त से ह त प े करने और दबदबा बनाये रखने के एक त मे ं बदल गया। हबट िर ली का उ ीसवीं शता दी का न ल व ान अब जा चुका है, ले कन इसका थान अब परो प से ाचीन भारत और उसके सा ह य क न ली या या ने ले लया है। प मी भारत वदों क ‘ व ता’ के बने रहने के कारण इसने अ तत: शता दयों क सं ग तपू ण और बहुलतावादी वदेशी या याओं को दबा दया है। ये श शाली मनगढ़ त बाते ं िरस कर भारत क राजनी त मे ं समा गयी हैं और उन दरारों के साथ मल गयी हैं जो पहले से ही अ त व मे ं थीं। राजनी तक कायकता ऐसे सं गठन बनाते हैं जो अलगाववादी आ दोलनों मे ं बदल जाते है।ं एक ढीला-ढाला जाल है जसका एक छोर प मी सं थानों के श ण के ों मे ं है, और दू सरा द ण भारत जैसे थानों मे ं या सं घष मे।ं दू सरे व यु के बाद जातीय-भाषावै ा नक शोध के गु वाकषण का के ं से हटकर सं य ु रा य अमरीका हो गया है, वशेषकर हावड, येल, और इं लैड बकले थत कै लफो नया व व ालय। इन तीनों व व ालयों के काय मों क व श भू मकाओं को सं प े मे ं न न कार से रखा जा सकता है :

येल येल व व ालय ारा एक वड़ यु प शा ीय श दकोष बनाने क पिरयोजना ने वड़ पहचान क राजनी त को बढ़ावा देने के लए एक भू -राजनी तक ह थयार के प मे ं काम कया, जो त मलनाडु मे ं पहले से ही अ दर-अ दर सुलग रहा था, और इसका उपयोग भारत से अलग होने क वृ यों को वैध ठहराने के लए भी कया गया। येल के श ा वदों ने उन त वों को ो सा हत कया ज हे ं भाषाई अलगाववाद कहा जा सकता है।

हावड प मी व ानों ने बाद मे ं भारत के अ दर अन गनत भाषाई बखरावों क पहचान करने क पिरयोजनाएँ शु क ,ं और समुदायों को अलग जातीय थान दया ज हे ं वदेशी आय ारा दबाकर रखा गया था। ार भ मे ं इन पिरक पनाओं का उपयोग केवल वड़ अलगाववाद को समथन देने के लए कया गया। हाल मे ं यान का े

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के वड़ों से हटाकर, ‘मू ल नवासी’ के प मे,ं मु डा क ओर कया गया है और अनेक प मी व ान तो वड़ों का भी ‘बाहरी’ के प मे ं पुनवग करण कर रहे है।ं लगातार छोटी-से-छोटी सामू हक पहचानों का बनना वख डन और सं घष को बढ़ाता है। प मी श ा वद समुदाय के काय का पिरणाम लगातार यही रहा है, अथात्, भाषाई वख डन लाना। म य भारतीय रा यों मे ं वतमान माओवादी आतं कवाद े लगभग वहीं है जहाँ पछले बीस वष से इस काय पर यान के त कया गया है।

बकले भारतीय भाषाओं के ाचीन कालजयी सा ह य का अ ययन वभाजकता सृजन का अवसर दान करता है। हम बकले त मल पीठ का उदाहरण देख सकते है,ं जहाँ व ानों ने त मल सा ह य और शेष भारतीय सा ह य के बीच तनाव पैदा कया है। उ हे ं जो भी छोटी-से-छोटी थानीय व श ता मलती है, उसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर तुत कया जाता है, ले कन जो त व शेष भारत के साथ समान प से पाये जाते है,ं और जो सभी भारतीयों क एकता था पत करते हैं वे ा णों ारा तोड़-मरोड़ का पिरणाम बताये जाते है।ं एक बार जैसे ही भाषा के आधार पर अलग त मल पहचान का सृजन कर दया गया, एक त मल अ तर-रा ीय आ दोलन को ो सा हत करने का माग तैयार हो गया। भारत मे ं अपसारी बलों को और श शाली बनाने के लए स य कायकताओं का पोषण कया जाता है। प मी धन का आ वाह होता है। प म के व ानों के सं घष े ों मे ं रणनी तगत स पक है,ं जहाँ वे परो या य प से अलगाववादी आ दोलनों को समथन देते है।ं धमा तरण कराने वाले इन आ दोलनों को समथन देते हैं और प म मे ं त मल अ ययनों का उपयोग ईसाई चारकों ारा ईसाई सं थानों और त मल पहचान के बीच स ब ध था पत करने के लए कया जाता है, जैसा क हम इस अ याय मे ं व तार से देखग े ं ।े इन ज टल स ब धों को ो सा हत करने के लए अनेक सं गठन उग आये है।ं उदाहरण के लए फेतना (FeTNA) सं य ु रा य अमरीका थत एक वासी त मल सं गठन है जो बकले के त मल पीठ के लए धन देता है और जसने जातीयराजनी तक अलगाववाद के लए वाहन का काय कया, जसके त मल टाइगस से भी स ब ध है।ं यह त मल सं कृ त के ईसाईकरण का समथन करता है और द णप थी ईसाई चारक अमरीक राजनी त ों तथा प मी भू -राजनी तक रणनी तकारों के लए भारतीय राजनी त मे ं घुसने के लए ार दान करता है। च 10.1 कुछ मुख सं थानों ारा त मलनाडु मे ं व भ जातीय सं घष को बौ क चारा, व सनीयता, राजनी तक दबदबा और कुछ मामलों मे ं धन उपल ध कराने मे ं क गयी भू मका का एक दृ य वाह- च तुत करता है। ी

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Fig 10.1 प मी अकाद मक त ों क त मल पहचान क राजनी त मे ं भू मका 

 

वड़ भाषा

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The Dravidian Etymological Dictionary ( वड़ यु प शा ीय श दकोष), जसका सं कलन येल व व ालय1 के मर बानसन ईमेनो (Murray Barnson Emeneau, 1904-2005) और ऑ सफोड व व ालय के टॉमस बरो (Thomas Burrow, 1909-86) ारा कया गया, अलगाववादी वड़ स ा त के वकास मे ं एक व तापू ण पड़ाव था। इसे प मी भारत व ा स ब धी अ ययनों के यू रोप से सं य ु रा य अमरीका क ओर मुख थाना तरण होने के ार भ ब दु के प मे ं देखा जा सकता है। ईमेनो येल व व ालय के एक व ान थे जो 1943 मे ं तीन वष के लए भारत आये, और ‘अ पसं यक भाषाओं का ऐ तहा सक अ ययन उतनी ही ग भीरता से ी

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कया जतना क सा ह य क पर परा वाली भाषाओं का’ कया जाता है।2 ये भाषाएँ थीं बडगा, कोलमी और टोडा। प म मे ं उनके काय को अ य धक मह वपू ण काय के प मे ं देखा गया और 1949 मे ं उ हे ं लं व टक सोसाइटी ऑफ़ यू नाइटेड टे स का अ य बनाया गया। सन 1956 मे ं उ होंने भारत को ‘भाषाई े ’ घो षत कया जसक बहुत चचा हुई।3 कारा तर से इसका अथ यह हुआ क भारत अस ब भाषा समू हों के नवास थल वाला भौगो लक े था जो सं घष और वजय के एक ल बे इ तहास को त ब बत करता है, उन लोगों के बीच जनके बीच िर तेदारी का कोई इ तहास नहीं था। यह एक ऐसा वचार था जो भारत के समुदायों के और अ धक मानवशा ीय तथा भाषाई वख डन के लए एक श शाली ह थयार बन गया। इसने व भ भारतीय समू हों के बीच भाषाई अस ब ता के दावे पर आधािरत उप-रा ीय पहचान का सृजन करने मे ं सहायता क । टॉमस बरो एक टश भारत वद थे जनके पास 1944 से 1976 तक ऑ सफोड मे ं बोडे न ोफेसर ऑफ़ सं कृत का एक अ य त स मा नत पद था। उ होंने ईमेनो के साथ सहयोग कया और 1961 मे ं उन दोनों ने इ डो-आय से वड़ भाषाओं मे ं ‘उधार लए हुए श द’ वषय पर साम ी का शत क । सन 1966 मे ं उ होंने ‘ वड़ युप शा ीय श दकोष’ ‘(A Dravidian Etymological Dictionary) का शत क , जसके बाद 1968 मे ं उसका एक पिर श नकाला गया। 4 सन 1984 मे ं सं शो धत तीय सं करण के साथ यह ‘ येक वड़वादी के लए अ नवाय पथ दशक, उपकरण, और आ धकािरक पु तक’ बन गयी है।5 उनके दावे क मू ल अवधारणा यह थी क वड़ भाषाएँ सं कृत से पुरानी हैं और सं कृत ने वड़ श दाव लयों को अपने मे ं मला लया है। अब इसक राजनै तक तुलना क जा सकती थी, और इस अवधारणा ने जड़े ं जमायीं क आय ने वजय ा कर वड़ों का दमन कया था, ज हे ं अब अव य ही अपनी पहचान फर से दृढ़तापू वक रखनी चा हए।

देर से उ प स देह शु मे ं ईमेनो वै दक भाषाओं मे ं गैर-सं कृत उप तर के वड़ मू ल के त बड़े आ त थे। ले कन बाद मे ं उ होंने सावज नक प से वीकार कया क उ होंने और बरो ने जस वड़ मू ल को ऋग वै दक उप तरीय श दों के साथ स ब बताया था, वे वा तव मे ं अ धकतर अटकले ं थीं और वे अनुभवज य त य नहीं थे। सन 1980 मे ं उ होंने कहा क जो श द वड़ से इ डो-आय मे ं लए गये, वे ‘वा तव मे ं सुझाव मा है’ं ; ‘सभी यु प याँ अ तम न कष मे ं मा णत कये जाने यो य नहीं है’ं ; और ऐसे स ा त ‘आ था के काय’ है।ं 6 ईमेनो ने वीकार कया, ‘यह प है क बरो ने ज हे ं े



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वड़ से लये गये होने का सुझाव दया उनमे ं से सभी उनके अपने ही स ा तों पर ं ’े ।7 खरे नहीं उतरेग ले कन इस तरह देर से पीछे हटने क घटना बहुत ह क और बहुत वल बत थी, यों क तब तक एक वड़ उप तर के बारे मे ं शै णक अटकल का वचार घुस आया था और अपना वत जीवन हण कर चुका था। वड़ वमश अब बेहद राजनी तक हो गया था, और अलगाववादी च तकों के हाथों दृढ़ हो गया था। उदाहरण के लए, देवनेय पवनार ने प मी भारत व ा के ऐसे उदाहरणों से िे रत होकर तब तक अपने त मल े ता के स ा तों को उप तरीय दावों पर आधािरत कर लया था। उनक 1966 क पु तक ‘द ाइमरी ला सकल लैं वेजज े ऑफ द व ड’ (The Primary Classical Language of the World) ने बरो और ईमेनो के व लेषण को आगे बढ़ाया और न कष नकाला क ‘ ाचीन या लमुिरयन त मल न केवल वड़ पिरवार क भाषाओं क जनक थी, ब क बो लयों के इ डो-यू रोपीय व पों क जनक भी थी’।8 ईमेनो-बरो शोध शी ही भाषा व ान से बढ़कर अलगाववाद के जमीनी तर ँ गया था, और ईमेनो ारा पीछे हटने क भी उपे ा कर दी गयी क राजनी त मे ं पहुच थी। जन व ानों ने आय/ वड़ औप नवे शक ढाँचे को वीकार नहीं कया वे शै णक दायरों मे ं हा शये पर धकेल दये गये और साथ मे ं लोक य त मल दायरों मे ं भी। समय बीतने के साथ ऐसी या याएँ प मी शै क श ा वदों ारा रचे गये उस स ा त के प मे ं याग दी गयीं जसमे ं कहा गया था क आय ने द ण भारत का औप नवेशीकरण कया और इसके मू ल नवा सयों को अपने अधीन कर लया। त मल और सं कृत दोनों मे ं समान प से पाये जाने वाले श दों क एक भ या या पे स वे नया व व ालय के एक भाषा वद ैं लन साउथवथ (Franklin Southworth) क 1979 क तरोताजा कर देने वाली ट पणी मे ं मलती है। उनके व लेषण के अनुसार : ‘ये दो सू चयाँ ( वड़ और इ डो-आय दोनों) तो सां कृ तक स पक के एक यापक दायरे का ही सं केत देती है,ं और ये स पक एक ही ओर से श दों को लेने के ठे ठ या नमू ने पर आधािरत स ब ध को नहीं दशाते जसक औप नवे शक पिरवेश मे ं आशा क जाती है’। साउथवथ ने अपने कथन को जारी रखते हुए कहा, ‘ कसी भी प क ओर से ौ ो गक य, सां कृ तक या सै य भु व का दृ य इन श दों के परी ण से नहीं उभरता’।9 पर तु बरो ने, जो साउथवथ से राजनी तक प से अ धक श शाली थ त मे ं थे, बल देकर कहा क इ डो-आय आ मण के कुछ भाषाई सा य थे, यह वीकार करते हुए भी क इसके लए कोई पुराता वक सा य नहीं था।10 अ तत: साउथवथ अकाद मक राजनी त के आगे झुक गये, और वे बरो तथा ईमेनो ारा शु कये गये यु प शा ीय सृजन को बढ़ावा देने वाली एक पिरयोजना मे ं शा मल हो गये है।ं ै









मैसूर थत ‘के ीय भारतीय भाषा सं थान’ (Central Institute of Indian Languages) के बी.ए. शारदा और एम. चेतना ने ईमेनो-बरो श दकोश मे ं उ रणों के आँकड़ों का एक यापक व लेषण कया। वे दखाते हैं क 1960 और 1970 के दशक मे ं शु से अ त तक अ धका धक आवृ मे ं इस श दकोष का उ रण दया गया। यह वही काल था जो त मलनाडु मे ं वड़ उ राजनी तक उफान का सा ी बना।11 यह मह वपू ण न खड़ा करता है : या शै क वड़वादी जमीनी तर पर अलगाववाद क राजनी त को बढ़ावा दे रहे थे? या या भारत क जमीनी राजनी त वदेशों से शै क व सनीयता क माँग कर रही है? उ र दोनों है : थानीय और वै क सामा यत: समाना तर वकास म हैं ज होंने एक-दू सरे को प ा कया है। आज, बरो और ईमेनो वड़ च तन को आकार देने मे ं त त य व बन गये है।ं उनका यु प शा ीय भाषा कोष द ण ए शयाई भाषा व ान मे ं आ धकािरक मानद ड बन गया है, वशेषकर त मल अ ययन मे।ं अलग वड़ पहचान के समथन मे ं उनसे आगे केवल औप नवे शक ईसाई चारक रॉबट कॉ डवेल ही है।ं वै दक भाषाओं के लए एक वड़ उप तर क पिरक पना भी अ क वड़वा दयों के बीच लोक य हो गयी है, जो वड़ों और अ कयों के लए एक ही साझे मू ल का दावा करते है,ं जनका आधार ऐसी कथाएँ और पुराता वक सा य हैं जन पर न उठाये जा सकते है।ं इस पर अ याय बारह मे ं चचा क गयी है। इस राजनी तक सं गम के एक उदाहरण मे ं सेनग े ल के एक नेता ने, जो बाद मे ं वहाँ के ृ कया जसका धान म ी भी बने, बरो और ईमेनो को अपने या यान मे ं उ त शीषक था ‘ने ीटयू ड ऐ ड व डयन क चर’, जसका आयोजन 1974 मे ं ‘अ तरा ीय त मल अ ययन सं थान’ (International Institute of Tamil Studies) के त वावधान मे ं म ास मे ं कया गया था।12 एक बार जैसे ही वड़ पहचान को सफलतापू वक अलग कर दया गया और इसे अ य भारतीयों के साथ तनाव क थ त मे ं डाल दया गया, वैसे ही अन गनत भू -राजनीतक बलों ारा इसे अपना लया गया, जैसे अ क रा वाद वड़ों के साथ एक जातीय स ब ध क भावना रखता है, ईसाई वड़ पहचान क राजनी त मे ं घुस रहे हैं ता क उनका ईसाईकरण कया जा सके, द लत वण एकजुटता क जा रही है ता क द लत पहचान के तहत ही वड़ों को शा मल कया जा सके, और इसी के अनेक दू सरे समीकरण।

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क च तन ारा भारतीय राजनी त का सं चालन : अ ादरु ै

यह नयी वड़ पहचान केवल जातीय गव क ही बात नहीं थी, ब क उसी अव ध ने, जसने वड़ यु प शा ीय श दकोष का काशन देखा, अलगाववादी ी



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राजनी तक आ दोलनों को ज म दया। येल व व ालय ने एक मुख वड़वादी राजनी त , सी.एन. अ ादुरै (1909-69), के काम-काज का पोषण करने मे ं अपनी भू मका जारी रखी, जो 1967 से 1969 तक त मलनाडु के मु य म ी थे। अ ादुरै वड़वाद के मुख च तक और जन नेता के प मे ं उभरे। ॉफोड यं ग (Crawford Young) या या करते हैं क उनका मुखर अलगाववाद ‘भारत सरकार को आ ामक चुनौती देने के लए ा ण वरोधी, वड़ वरासत और त मल सां कृ तक वषयव तुओ ं को एक-दू सरे के नकट ला रहा था’।13 सन 1949 मे ं उ होंने वड़ मु े कड़गम ( मुक) क थापना मे ं सहायता क , जो अलगाववादी वचार रखने वाली एक राजनी तक पाट है। आज भी यह पाट त मलनाडु क राजनी त मे ं भु व रखती है। भारत के वख डन के त उनक थ त उनके न न बहु का शत भाषण से प है जो उ होंने महा मा गाँधी के वत ता सं ाम के दौरान दया था : भारत एक ‘महादेश’ है; इसे कई देशों मे ं वभा जत कया जाना चा हए। ... एक ही देश मे ं आय भाव बढ़ता है जसे भारत कहा जाता है। आय शासन के अधीन अ य न लों का दमन कया जाता है। एक ही देश के अ दर व भ न लों को एकताब करना व ोह और क ठनाइयाँ उ प करता है। भारत मे ं ऐसी क ठनाइयाँ और खू न-खराबा होने से रोकने के म मे ं अब हमे ं भारत को न ली आधार पर वभा जत कर देना चा हए।... अब तक भारत मे ं एक न ल ने दू सरी न ल का दम नहीं घोंटा है तो उसका कारण है अं ज े ों क ब दू कें। जब अं ज े 14 ं े तब यह मार-काट के मैदान मे ं बदल जायेगा। भारत छोड़कर चले जायेग नेह का तकार करने के लए, जो क सो वयत सं घ क ओर झुके हुए थे और तीसरे व मे ं ज हे ं अमरीक मह वाकां ा पर पानी फेरने वाला माना जाता था, सं य ु रा य अमरीका क कुछ श यों ने परो प से शीत यु के दौरान अ ादुरै के अलगावादी स ा त को समथन दया। सन 1962 मे ं चीन ारा भारत पर आ मण करने क घटना ने भारतीय रा वाद क एक सश लहर पैदा क जसके बाद एक सं वध ै ा नक सं शोधन हुआ जसने अलगाववाद को अवैध बना दया। तभी जाकर मुक ने अपने आ धकािरक स ा त से अलगाववादी भाग को हटाया। ले कन सन 1965 मे ं मुक ने ह दी के भारत क राजभाषा बनने के व एक यापक हं सा मक आ दोलन ार भ कया। आ दोलन ने आतं कवादी व प हण कर लया, और नवजात भारत रा के वख डन क एक स भा वत दरार को व के सम उजागर कर दया। अमरीक सी.आई.ए. (CIA) और अ य गु चर एजे ं सयों क ग त व धयों का पता लगाना हमेशा ही क ठन होता है। फर भी, भारत के पू व मु य चुनाव आयु टी.एन. शेषन क जीवनी ने ऐसे एक क थत स ब ध को उजागर करने का यास कया : [ वड़] आ दोलन के पीछे प प से एक वदेशी हाथ था... कुछ वड़ नेता ीलं का होते हुए भेजे जाने वाले अमरीक धन से भा वत रहे थे और वे, अगर ै ै े ी ो ी े ै े

अजाने ही, तो भी, अ थरता के लए तैयार ह थयार बन गये। अ ादरु ै स भव है इसे न जानते हों, ले कन वे अमरीक गु चर मशीनरी का एक भावी खलौना बन रहे थे।15 शेषन क जीवनी 1994 मे ं का शत हुई थी जो शी ही ववादा पद हो गयी, और उन पर हं सक हमलों के भी यास हुए। इस मामले मे ं खुली बहस और जाँच होने के बदले, यह पु तक त मलनाडु मे ं अन धकािरक प से तब धत है।16 इस मामले मे ं येल के दीघ काल से जुड़ाव को, अ ादुरै को अमरीक वदेश वभाग ारा 1968 मे ं चब फेलो शप काय म मे ं आम त करने17 मे,ं देखा जा सकता है। वे इस कार स मा नत होने वाले पहले गैर-अमरीक थे। हाल क एक पु तक, जसका नाम है ‘अ ा का जीवन और काल’ (Life and Times of Anna) और जसे आर. क न ने लखा है, तक देती है क अ ादुरै रा वरोधवाद का उपयोग केवल ं रों के लए कर रहे थे, ले कन वे दय से भारत भारत के अ दर राजनी तक पैत 18 वरोधी नहीं थे। जो भी हो, उ होंने अपने पीछे जो वरासत छोड़ी, भू ल से ही सही, उसने उनके दय का अनुसरण नहीं, ब क उनक राजनी त का अनुसरण कया।

सव (SARVA) पिरयोजना और पहचान क राजनी त वड़ यु प शा ीय श दकोष के बाद प मी भारत व ा मे ं मुख ग त व ध, जसका उप-रा ीय पहचान क राजनी त पर भाव है, जो अब हावड व व ालय के सं कृत और भारतीय अ ययन वभाग ारा सं चा लत क जा रही है। ‘द ण ए शया अव श श द भ डार समू ह’ (The South Asia Residual Vocabulary Assemblage— SARVA) नामक पिरयोजना का नेत ृ व न न ल खत व ान कर रहे हैं :  माईकल व जेल, हावड व व ालय मे ं सं कृत के वे स ा यापक   ैं क लन सी. साउथवथ, पे सलवे नया व व ालय, जो सव (SARVA) मे ं शा मल होने से पहले तक, जैसा क पहले उ ख े कया गया है, त मल-सं कृत स ब ध को इकतरफा असं गत के प मे ं या या यत करने के वरोधी थे।   टीव फामर, ज होंने 1960 के दशक मे ं अमरीकन नेशनल स योिरटी एड म न श े न (एन.एस.ए.) मे ं काम कया, और जो कसी भी वशेष सं थान से ‘ वाधीन’ होने का दावा करते है।ं 19 इस पिरयोजना क अ तमह वपू ण रणनी त तीन चरणों मे ं है : 1. सं कृत से उनक भाषाई पृथकता को दखाकर व भ भारतीय जनजा तयों के बीच अलग पहचान था पत करना। े



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2. उनके मौ खक वृ ा तों को इस तरह पुन या या यत करना क सं कृत क सं कृ त से उनका अ धका धक अ तर हो जाये या वरोधपू ण हो जाये। 3. एक इ तहास वक सत करना जो इन जनजा तयों के पू वजों को स धुसर वती स यता के नवासी दखाता हो, जो ‘ वदेशी आय ’ ारा उनका औप नवेशीकरण करने, उ हे ं परा जत करने, उ हे ं द ण क ओर धकेल देन,े और उनका वरोध करने से पू व वहाँ रहते थे। ाचीन स धु घाटी स यता के पुराता वक अवशेषों को इस दावे का समथन करने के लए अपनाया गया है क वड़ इस उपमहा ीप के मू ल नवासी थे। इस तरह वड़, और उसके बाद के छोटे जनजातीय और/या सामा जक समू हों को एक राजनी तकृत पहचान दान क गयी जो उ हे ं शेष भारत क जनसं या के मुकाबले ऐ तहा सक प से पी ड़त के प मे ं पिरक पक करके था पत करता है। जो भी हो, यह तोड़-मरोड़कर बनायी गयी वड़ पहचान एक आ तिरक चरण के प मे ं उपयोग मे ं आयी, और अब इसे और भी छोटे ख डों के सृजन के मा यम से पीछे धकेला जा रहा है। भारत का यह सु नयो जत वख डन तब तक चलता रहेगा जब तक क भारत को अ तत: एक सामा जक इकाई के प मे ं अ य त लघु, वत , अस ब समुदायों के तर पर बँटे समुदायों का त न ध व करता हुआ न बना दया जाये। यह तब और भी मह वपू ण हो जाता है जब इसे हाल क माओवादी अलगाववादी हं सा के स दभ मे ं देखा जाता है जो उ हीं जनजातीय े ों मे ं या है जहाँ इन व ानों क उप थ त रही है और जहाँ वे गैर सरकारी सं गठनों (एन.जी.ओ.) के अलगाववादी इ तहास और पहचान के दावों के लए बौ क चारा उपल ध कराते है।ं सव (SARVA) पिरयोजना अमरीक व व ालयों क त ा और श का उपयोग करती है, और उसके बदले भारत मे ं अ मता क राजनी त तैयार करने के काम मे ं मह वपू ण खला ड़यो के प मे ं उनक थ त सुदढ़ ृ करती है।20 साथ-हीसाथ ये व ान लगभग सभी वरोधी शै क दृ कोणों का कठोरता से राजनी तकरण करते हैं और उनक ख ी उड़ाते है।ं कोल बया व व ालय के एड वन ायं ट प मी भारत व ा मे ं इस वातावरण को प करते हैं : हमे ं उन लोगों के त, जो ाचीन भारतीय इ तहास के था पत खाके पर पु नवचार के लए खुला दमाग रखते है,ं एक क म के अनालोचना मक भारत व ा स ब धी मैकाश वाद से सतक रहना चा हए, चाहे उनके उ े य और पृ भू म जैसी भी हो, और सभी चुनौ तयों को एक सरल, सु वधाजनक और आसानी से दानवीकृत ‘ ह दू रा वादी’ को ट मे ं ठूँस देने से भी।21 सव का उ े य 1960 के दशक मे ं बरो और ईमेनो ारा बनाये गये ‘ वड़ यु प शा ीय श दकोष’ क लीक पर एक अटकलों वाला यु प शा ीय श दकोष तैयार करना है।22 यह केवल भाषाशा ीय पुनसरचना से परे जाता है। े ैं ि ो ी ों े

साउथवथ प करते हैं क कस कार यह पिरयोजना जनजातीय समुदायों के इ तहास क पुनसरचना को सं चा लत करने मे ं इ तेमाल क जा सकती है : हमारी अ तम च ता है भाषाई आदान- दान के व प का पता लगाना जो हमे ं समय, थान, और सां कृ तक थ तयों क पुनसरचना तक ले जायेगा जसके तहत इस उपमहा ीप मे ं ागै तहा सक भाषा स पक था पत हुआ था।23 जो भी हो, देखने मे ं सहानुभू तपू ण लगने वाली यह ‘ च ता’ तक को भाषा व ान से राजनी त मे ं बदल देने के लए बहाने के प मे ं बार-बार योग मे ं लायी जाती रही है, ता क ‘भाषा स पक’ श दावली को ‘उ पीड़न’ और ‘दमन’ के आलोक मे ं फर से गढ़ा जा सके।24 1960 के दशक क तरह ही जब ‘ वड़ यु प शा ीय श दकोष’ (Dravidian Etymological Dictionary) को जमीनी तर पर तेज हुए वड़ अलगाववाद से जुड़ा हुआ था, अब इस पिरयोजना के बौ क समथन से जनजातीय अ मता क व भ राजनी तयाँ गहरी होती देखी जा सकती है।ं एक बार जैसे ही इन जनजातीय समू हों क पहचान कर ली जाती है और साझ भारतीय वरासत से उ हे ं अलग कर दया जाता है, वैसे ही वे तरह-तरह के धमा तरण यासों के आसान ल य ं ।े उदाहरण के लए, जनजातीय े ों मे ं स य उ वादी माओवादी सं गठन हो जायेग दावा करते हैं क ‘आ दवासी ह दू नहीं है।ं वे कृ त पू जक है’ं ।25 मानो कृ त पू जा ह दू धम के बाहर क व तु है! ‘नेत ृ व श ण’ और ‘युवा सश करण’ दान करने के झ डे के तहत, व भ एन.जी.ओ. काय म था पत कये गये हैं जनका उ े य है युवाओं मे ं अलगाववाद के वभाजनकारी इ तहास का वेश कराना। इस पर यान देना मनोरं जक होगा क उ हीं जनजातीय समू हों को ईसाई चारक ईसाइयों ारा धमा तरण के नये यासों का ल य बनाया जाता रहा है,26 जो मु डा को वै क धमा तरण क अगली पं यों मे ं मानते है,ं यों क एक समुदाय के प मे ं अब भी अपे ाकृत उनका धमा तरण नहीं हुआ है। सव के काम मे ं च रखने वाले अनेक प है।ं जब व जेल के सहयो गयों मे ं से एक ने यान दलाया क हड़ पा के अतीत क पुनसरचना करने वाला एक पा क तानी वेबसाइट वचारधारा क दृ से खास झुकाव वाला और ऐ तहा सक प से गलत था, व जेल ने इस च ता को यह कहते हुए एक तरफ धकेल दया क ‘वह कोई नयी बात नहीं’ थी। उ होंने एक राजनी तक रं गमं च के प मे ं ‘भारतीयों, पा क ता नयों, बां लादे शयों, वड़ों, मु डाओं, क मीिरयों, कालसों, नेपा लयों, भू टा नयों, म णपुिरयों, आ द-आ द, ारा तुत इ तहास के रा वादी दृ कोणों’ का उ ख े कया जसमे ं इस कार क व ता काम करती है।27 इस कार स भुतास प रा -रा यों को अलगाववा दयों के साथ ‘रा वादी’ क एक ही ण े ी मे ं डाल दया जाता है। भारत पर यह व ता शु अकाद मकता क सीमा से बाहर चली गयी है। यह भारत के कोने-कोने से आँकड़े इक ा करती है, सै ा तक उ े यों े े ी ै औ े ों े ं ी ो

के साथ इसका व लेषण करती है, और भारत से स ब मामलों मे ं जानकारी को सं य ु रा य अमरीका के नी त नधारकों को उपल ध कराती है। व जेल और फामर ‘राजनै तक-धा मक अ तवाद के वकास का अनुकरण : नी त नधारण के लए अ भ ाय’ (Simulating the Evolution of Political-Religious Extremism: Implication for Policy Decision) वषय पर ग ठत एक दल का नेत ृ व करते है।ं दल के सद यों मे ं से एक, िरचड ोट (Richard Sproat), ने से ल इं टे लजे स एजे सी के साथ-साथ रा ीय स योिरटी एजे सी (NSA) ारा व द 28 पिरयोजनाओं मे ं काम कया है। यह पिरयोजना अ तवादी गुटों के हाथों नयी सं चार ौ ो गक (जैसे इं टरनेट) के भावों का अ ययन करती है, जसके लए ह दू रा वादी आ दोलनों का उपयोग अनुस धान के ल य के प मे ं कया जाता है। पिरयोजना के ववरण के अनुसार : इस शोध के समथन मे ं सा यों का सं केत पछले दशक मे ं अ तवादी ह दू रा ीयता (‘ ह दु व’) आ दोलनों के वै क व तार पर कये गये हमारे अनुस धान मे ं मला है [9-11], जो अ य अ तवादी गुटों के वकास के अ ययन के लए उपयोगी ा प दान करते है।ं ... दू सरी पीढ़ी के सतत अनुकरण त ों क योजना बनायी गयी है जो उ हीं तरीकों को वा त वक- व के अ तवादी गुटों के आँकड़ों का व लेषण करने के लए बढ़ायेगी जसके लए इं टरनेट से मली साम ी और अ य कृ म वा त वक समय (Quasi-real-time) के सू चना ोतों का उपयोग कया जायेगा। हमारे ार भक स युलश े न (simulation) मे ं ही एक पिरक पना है जसे हम परखना चाहते है;ं वह यह क एक वा त वक जगत के नी तगत नणय को लागू करते हुए स भा वक अ तवादी गुटों के सद यों को अलग-थलग करने के यास, वरोधाभासी प से हं सा मक वृ यों को कायम रखने मे,ं समझौतों के मा यम से लाये गये पिरवतनों के अवसरों को सी मत करते हुए सहायक हो सकते है,ं जो दीघाव ध पैमाने पर ऐसी वृ यों को कमजोर करने के प मे ं जाने जाते है।ं 29 ‘ स युले टं ग द इवो यू शन ऑफ़ पॉ ल टकल-िर ल जयस ए स ी म म’ पिरयोजना केवल शै क अ यास नहीं है। टीव फामर अपनी वेबसाइट पर इसक या या करते हैं क इसका उ े य है ‘नी त व लेषकों और इ तहासकारों को बना कसी औपचािरक योजना बनाये सां कृ तक कृ म अनुकरण न मत करने क अनुम त देना’।30 श दावली ‘सां कृ तक कृ म अनुकरण’ (cultural simulation) का अथ है नकली अ यास करने क यो यता क ‘ या होगा अगर’ अमरीका को अमुक गुट के व तमुक गुट के साथ सहयोग करना पड़े गा, और भारत मे ं ऐसे ‘सां कृ तक ह त प े ’ के लए पिरदृ यों के व भ समीकरण या होंग।े ऐसे ही सै ा तक ह त प े ों को अफगा न तान, पा क तान, ईराक और यमन मे ं वा त वकता मे ं लागू कये जाते हुए देखा जा सकता है। ी









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भारतीय पुरालेखवे ा ईरावथम महादेवन पर हाल मे ं हुआ ववाद यह दशाता है क कस कार प मी भारत वद भारत के चु न दा व ानों का उपयोग करते हैं ता क वे अपने कुछ ‘ग दे काय ’ को कर सकें, ले कन जैसे ही भारतीय व ान उनके उ े यों को पू रा कर देते है,ं उ हे ं शै क घेरों मे ं अमा य और कलं कत कर दया जाता है। महादेवन का, जो अपने े के जाने माने वशेष है,ं उपयोग हावड व व ालय के भारत वदों ारा उनके नर तर शै क वरोधी रहे एन.एस. राजाराम को बदनाम करने के लए कया गया था। महादेवन ारा दी गयी अनुमो दत जानकािरयों के साथ व जेल और फामर ने राजाराम क एक भू ल को बढ़ा-चढ़ाकर एक अ तरा ीय धोखा बना दया गया, जो राजाराम के व एक मुख कलं क बन गया। ले कन बाद मे ं जब व जेल और फामर ने महादेवन पर उनके ही स धु नदी के च ों क सुसंग त को वकृत करने का आरोप लगाया, तब उससे दुखी हो कर महादेवन ने लखा : ‘जैसा क वे कहते है,ं कचड़ा अ दर, कचड़ा बाहर’, कहते हैं हावड व व ालय के माईकल व जेल। एक ऑनलाइन सामाचार से लया गया यह उ रण (New Scientist, 23 April 2009) एक त न ध उदाहरण है जो प म के समाचार मा यमों के एक वग मे ं शोध प ों पर वाद- ववाद के प मे ं तुत कया जाता है, और भारतीय वै ा नकों ारा हाल मे ं सं य ु रा य अमरीका मे ं का शत एक ग भीर शोध प पर शै क वाद- ववाद के लए ऐसा ही कया गया। (Science, 24 April 2009) ...फामर और व जेल ारा दी गयी भड़काऊ ट प णयाँ केवल उनको ही आ य मे ं डाल सकती हैं जो इस न पर उनके ारा, वशेषकर फामर ारा, लगातार अपनायी गयी आ ामक शैली से अन भ है।ं 31 ं े के लए महादेवन का उपयोग प मी भारत वदों ने कस कार अपने एजेड कया और उसके बाद उनक कस कार न दा क गयी उस पर व तार से एक व लेषण पिर श ‘‘च’’ मे ं दया गया है।

त मल अलगाववादी स मेलन के लए शै

क समथन

‘त मल ईलम’ का नाम त मल अलगाववा दयों ारा उस रा य को दया गया है जसे वे ीलं का मे ं न मत करने क आशा रखते थे। इस पिरक पना को, जसने ीलं का ँ ाई, बकले मे ं के गृह यु मे ं त मल टाइगस को उ िे रत करने मे ं सहायता पहुच कै लफो नया व व ालय के ायन फैफेनबगर जैसे अमरीक शै क व ानों ने ो सा हत कया और वैधता दान क । सन 1973 से 1975 तक फैफेनबगर ने ीलं काई त मल जा तयों का अ ययन कया और ीलं का मे ं त मल अलगाववादी आ दोलन के बल समथक बन गये। इं टी ू ट फ़ॉर इं टरनेशनल टडीज और कै लफो नया व व ालय, बकले के मानवशा वभाग ने उनके काय का समथन ों े





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कया। उ होंने सोशल साइं स िरसच काउं सल के फोरेन एिरया फेलो शप और अमरीकन काउं सल ऑफ़ लनड सोसाइटीज से भी धन ा कया। एक अमरीक ं फ़ॉर द ू मै नटीज से ा उनक फेलो शप ने सरकारी सं थान, द नेशनल ए डाउमेट ‘ ीलं का के सा य को त मल भारत पर सा ह य के यापक स दभ’ मे ं रखने मे ं उनक सहायता क ।32 ं सन 1991 मे,ं व जरलैड थत इं टरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ त म स और ं ऑफ़ कै लफो नया टेट यू नव सटी, सै ामे टो के सरकार वभाग ( डपाटमेट ं ) ारा एक अ तरा ीय त मल ईलम शोध स मेलन का आयोजन कया गया गवनमेट था। उस स मेलन का नाम रखा गया था—‘त मल ईलम— बना रा य का एक रा ’33 इसमे ं फैफेनबगर ने एक शोध प तुत कया था, जसे ‘ व सं कृ तयों का व कोष’ (Encyclopaedia of World Cultures) मे ं भी शा मल कया जाना था, जो त मल ईलम के लोगों के अलग रा को ो सा हत करता है।34 स मेलन मे ं कई कार के शै क शोध प तुत कये गये जसने त मलों को शेष भारतीय सं कृ त से अलग दखने वाला बनाते हुए उनके ऐ तहा सक गव को बढ़ाया।35 वैसी राजनी तक ट प णयाँ भी क गयीं जसमे ं ीलं काई त मल सं घष क तुलना क मीर सं घष से क गयी थी।36 ‘ बना रा य के एक त मल रा ’ क पिरक पना को अब केवल ीलं का मे ं ही नहीं ब क भारत के त मलों तक व तािरत कया जा रहा है।37 इस स मेलन मे ं भाग लेने वाले एक व ान थे जॉज एल. हाट, व को सन व व ालय मे ं त मल के एक ा यापक। हाट ने कुछ क े ऐ तहा सक वृ ा तों पर व ा का मुल मा चढ़ा कर पेश कया ज हे ं वड़ आ दोलन के सावज नक भाषणों मे ं आमतौर पर लोक य बनाया गया। उदाहरण के लए, हाट ने वड़वादी चार को ही बढ़ा-चढ़ाकर तुत कया जो ‘सभी सामा जक बुराइयों के लए, धू त ा णों को ही ज मेदार’ ठहराता है।38 हाट ने त मल सा ह य के चु न दा प ों पर बल दया ता क दखाया जा सके क यह जातीय प से वै दक पर परा और शेष भारतीय सा ह य से अलग था। पिर श ं केफे ज ने सं गम काल क ‘‘ख’’ दखाता है क कस कार जाज हाट और हैक कालजयी रचना पुरानानु को अपने अनुवाद ‘यु और ान के चार सौ गीत : कालजयी त मल क क वताओं का सं कलन’ (The Four Hundred Songs of War and Wisdom : An Anthology of Poems from Classical Tamil) मे ं गलत ढं ग से ‘द ण भारत मे ं आय भाव के आने के पहले र चत होने’ के प मे ं च त कया। वे दावा करते हैं क इसका ‘सव यापक आकषण’ है, यों क यह ‘कम और इस जीवन के बाद के जीवन के बारे मे ं कोई मौ लक पिरक पना नहीं करता’।39 हाट ने वयं को लगातार त मल राजनी त से जोड़े रखा और वे अपनी शै क व सनीयता का उपयोग वड़वाद को फर से लागू करने के लए करते है।ं





बकले त मल पीठ सन 1996 मे ं कै लफो नया व व ालय ने बकले मे ं एक त मल पीठ शु क जसे ‘...एक अमरीक व व ालय मे ं अपने तरह का पहला’ बताया गया। पीठ के लए ज हे ं नयु कया गया वे मू ल त मल भाषा-भाषी नहीं थे, ब क वे थे ोफेसर जाज एल. हाट, जनक वड़ समथक राजनी त का उ ख े पहले कया गया। बकले पीठ के लए अ भयान चलाने और कोष इक ा करने वालों मे ं मुख था फेडरेशन ऑफ़ त मल सं ग स ऑफ़ नॉथ अमरीका (फेटना),40 जसके आतं कवादी त मल रा वादी आ दोलन से स ब धों क या या इसी अ याय मे ं आगे क गयी है। पीठ ारा कये गये काय के एक अं ग के प मे ं बकले आम त कये जाने वाले पहले ोफेसर थे चे ई के इल ु वनार मराईमलाई। इल ु वर इसके पहले 1987 मे ं एक भाषावै ा नक स मेलन मे ं भाग लेने के लए सं य ु रा य अमरीका गये थे। उस स मेलन मे ं उ होंने ‘मोरमन प थ के बारे मे ं और बाद के स तों के चच के बारे मे ं अनेक बातों क जानकारी ा करने’ पर स ता य क थी। मोरमोन बाइबल ने उ हे ं ‘त मल मे ं एक मुख धा मक सा ह य त वचगम’ का यान दलाया।41 एक स े वड़वादी क तरह इल ु वनार व ास करते हैं क भारत सरकार अपने त मल नागिरकों के साथ भेद-भाव रखती है और यह क ‘भारत उ र मे ं ही बसता है’42 और यह क वतमान भारत ‘धा मक अ पसं यकों के लए एक ताड़ना श वर है’।43 ं जैसे भारत मे ं ‘ईसाई भ ु णयों पर यौन उनके लेखन के शीषक इस कार होते है— आ मण’ और ‘मैं अमरीका से यार करता हू ,ँ ’ आ द। उ होंने ‘जाज हाट क भ ता और महानता’ क शं सा क ,44 और उसके बदले हाट ने इल ु वनार क वड़वादी थापनाओं के समथन मे ं जनमे ं भारत मे ं त मल अ ययन क थ त पर उनके वचार भी शा मल है,ं भारत सरकार को लखा।45 हाट ने बकले त मल टडीज पीठ का उपयोग उन व ानों को ो सा हत करने मे ं कया है जो भारतीय पर परा से त मल के अलगाव पर बल देते है।ं वे ऐसा फोरम आयो जत करने के मा यम से करते हैं जनमे ं ऐसे व ान भारत मे ं वड़ अलगाववादी पहचान क राजनी त को फर से लागू करने के लए एकजुट होते है।ं उदाहरण के लए, उ होंने प मी त मल श कों क एक सभा आयो जत क जसमे ं टॉमस मा टेन जैसे लोग शा मल हुए जनके कोलोन व व ालय के त मल अ ययन वभाग का जमनी के लुथरन चच ( जसक भारत मे ं ग त व धयों क चचा अ याय 17 और पिर श ‘‘ज’’ मे ं क गयी है) से नकट स ब ध है। उसमे ं भाग लेने वाले एक अ य अ त थ थे शकागो व व ालय के नॉमन क लर, ज होंने एक अमरीकन नेशनल डफेंस फ़ॉरेन लैं वेज फेलो शप के तहत त मल का अ ययन कया और जनके काय को अमरीक नी त- नधारकों के लए एक ऐसे भारत का ार खोलने वाला माना जाता है ‘जो ह दी नहीं बोलता और जो लगभग दो हज़ार वष पू व के काल क सं कृत से बाहर क पर परा क ओर देखता है’।46 े ी ो े ै े ो

बकले त मल पीठ ारा आयो जत त मल स मेलन सामा यत: वैसे शोध प सामने लाते हैं जो भ क पार पिरक त मल छ वयों के ढाँचे को बगाड़ते है,ं ठ क उसी कार जैसे आधु नक वड़ राजनी त मे ं पाया जाता है। उदाहरण के लए, हाट का एक शोध प रामायण क या या ‘ ा ण च तन’ और ‘सै य वीरता’ के बीच अनेक वरोधाभासों से भरी हुई ‘एक आ यजनक पु तक’ के प मे ं करता है। वे रामायण को मु य प से, ले कन ‘सू मता’ से वड़ों के दमन के एक तरीके के प मे ं देखते है।ं हाट दावा करते हैं क यह बाद मे ं उस तरीके मे ं त ब बत होता है जसमे ं ‘चोलों क बड़ी सै य और राजत ीय श को उस ा णवादी णाली ने टुकड़ों मे ं बाँट दया जसका वे समथन करते थे’। इससे ा ण- वरोध क व न नकलती है जो शै क भाषा मे ं छपाकर तुत क गयी है। हाट इस बात पर बल देते हैं क उनक या या ‘कुछ आधु नक राजनी तक वषयों क ओर यान दलाती है’।47 इस कार, भारत क ाचीन कालजयी रचनाओं को वकृत करते हुए तुत कया जा रहा है ता क चढ़ाते हुए यह दखाया जा सके क भारतीय स यता मे ं दमन अ त न हत था। ु ू के बकले ने अपने द ण और द ण-पू व ए शयाई अ ययन वभाग मे ं तेलग ु ू समुदाय ारा लए भी एक या याता का पद था पत कया है, जसे अमरीक तेलग धन दया जाता है। यह पद एक ईसाई चारक हे जबा (हे सी) सुनकरी को दया गया है।48 सन 2008 क अपनी एक पिरचय पु तका मे ं यन फै मली कॉनफरे स नामक एक द णप थी मू लत ववादी गुट ने उनक शं सा क : अपने प त के साथ ई र द महान काय का पालन करते हुए वे अमरीक व व ालय पिरसरों मे ं भारतीयों और अ तरा ीय व ा थयों के बीच चच अवधारणाओं को लागू करने मे ं स य प से सं ल न रही है।ं वे फै मली रे डयो के साथ, जो एक ईसाई रे डयो टेशन है, और अमरीका मे ं अ य ईसाई चच के ु ू ईसाई फेलो शप साथ एक अनुवादक रही है।ं वे सैन ां स को बे एिरया मे ं तेलग 49 के यू जलेटर क अवैत नक स पादक भी रही है।ं

फेटना (FeTNA) द फेडरेशन ऑफ़ त मल सं ग स ऑफ़ नॉथ अमरीका (फेटना) सं य ु रा य अमरीका मे ं त मल सं गठनों का एक छतरी सं गठन है। जहाँ एक ओर यह वयं को ‘एक सा ह यक, शै णक, सां कृ तक, दान पर चलने वाला, धम नरपे , और अप पाती सं गठन कहता है’,50 वहीं इस पर ल े (जो त मल टाइगस आतं कवादी आ दोलन को ायो जत करता है) को समथन देने का आरोप लगाया गया है, और इसके पू व नदेशकों मे ं से एक51 को एफ.बी.आई. ारा इस आधार पर गर तार भी कया गया था क वह ल े पर से तब ध हटाने के लए अमरीक अ धकािरयों को घू स देने क को शश कर रहा था।52 े















फेटना अपने अमरीक शै क स पक का उपयोग भारतीय समाज क शैतानी छ वयाँ फैलाने के लए करता है, जसके लए त मलनाडु थत द लत कायकताओं क सहायता ली जाती है।53 फेटना सामा यत: एकतरफा अलगाववादी आयोजन करता है।54 फेटना ने एक कैथो लक चारक जगत गे पर को भी स मा नत कया ज होंने त मल सं कृ त के ईसाईकरण के लए वड़ श के ों से अपनी नकटता का भी उपयोग कया है। सन 2005 मे,ं ‘ शकागो यू न’ (Chicago Tribune) के अनुसार, इ लनॉय (Illinois) के कां स े सद य डै नी के. डे वस फेटना के त वावधान मे ं एक या ा के दौरान ीलं का के त मल े ों मे ं गये थे। फेटना का उ रण देते हुए इस कां स े सद य ने वीकार कया था क वही ‘जानते थे क वे त मल टाइगस से जुड़े हुए थे’।55 बाद मे ं उ होंने एसो सएटेड स े को बताया क जहाँ तक वे जानते थे, उनक या ा का खच फेटना ारा उठाया गया।56 छठ क ा क सामा जक अ ययन क एक कूली पा पु तक मे ं ाचीन भारतीय इ तहास और धम के च ण से उठे कै लफो नया के एक ववाद मे ं फेटना वड़ समथक भारत वदों के साथ हो गया था।57 कै लफो नया किरकुलम कमीशन (Curriculum Commission) मे ं दये गये अपने बयान मे ं फेटना ने धृ तापू वक गलत दावा कया क ‘ ार भक त मल थ प प से त मलों और आय के बीच भेद 58 रखते है’ं । पिर श ‘‘ख’’ सा य तुत करता है जो दखाता है क यह दृ कोण पू री तरह गलत है।

यू रोप

थत त मल अ ययन सं थान

भारत मे ं स य यू रोपीय ईसाई चारक मशनों ने यू रोप मे ं शै क-स य कायकताईसाई चारक सं थागत गठब धन का एक नेटवक भी बनाया है, और साथ-ही-साथ वे सं य ु रा य अमरीका मे ं त मल अ ययन वभागों के साथ स ब ध भी बनाकर रख रहे है।ं त मल अ ययन का े एक यापक बौ क और राजनै तक भाव वाले वै क नेटवक को समथन देने के लए एक स मानजनक उपकरण बन गया है। जमनी मे ं त मल अ ययन सन 1771 मे ं बाथ लोमौस जगेनबा ग (Bartholomaus Ziegenbalg, 1682-1719) ारा ार भ कया गया, जो स भवत: ं मशनरी थे। वे एक लुथरे न थे, जो एक सं थान से जुड़े हुए थे भारत मे ं पहले ोटे टेट जसे आज हाले थत मा टन लू थर व व ालय के प मे ं जाना जाता है। जो भी हो, अ ययन के इस े ने अगले सौ वष तक ग भीरता से कोई यान नहीं खींचा, हालाँ क कुछ इ े -दु े यू रोपीय मशनरी व ान त मल सा ह य का अनुवाद कर रहे थे। त मल के अ ययन के लए सं थागत ढाँचों क कमी होने पर भी जमनी बड़ी ं

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सं या मे ं त मल थों क ताड़ क प यों पर लखी पा डु ल पयों का एक बड़ा भ डार बन गया जो भारत से लौटने वाले मशनिरयों ारा वहाँ ले जाये गये थे।59 1960 के दशक मे ं द ण भारत मे ं वड़ आ दोलन के उदय के साथ ही त मल अ ययन के त जमनी मे ं एक नयी च जागृत हुई।60 सन 1998 मे ं कोलोन व व ालय के भारत व ा सं थान (Institute of Indology) का नाम बदलकर ‘भारत व ा और त मल अ ययन सं थान’ (Institute of Indology and Tamil Studies) कर दया गया, मानो त मल भारतीय स यता से अलग हो। आधु नक त मल अ ययनों और भारत थत मशनरी पिरयोजनाओं के बीच स ब ध को व तार देते हुए इस सं थान ने चे ई थत गु कुल लुथरे न से मनरी, द डी नो बली िरसच इं टी ू ट, लोयोला महा व ालय61 और द इं टी ू ट ऑफ़ ए शयन टडीज62 के साथ नकट स ब ध वक सत कर लये है।ं हाले व व ालय के एक धमशा ी हबील माइकल बग डर (Habil Michael Bergunder) एक अ य त मल व ान हैं जो द ण भारत मे ं अलगाववादी पहचान के नमाण के साथ-साथ भारत मे ं ईसाई आ दोलनों पर अनुस धान करते है।ं 63 द ण ए शयाई ईसाइयत पर सलाहकारों के एक कोष मे ं वे ईसाई चारकों के लए सलाहकार के प मे ं सू चीब है।ं 64 द यू न वासटी ऑफ ऐ सटरडै म के भी भारत के साथ मशनरी स ब ध है।ं ं के पहले ोटे टेट ं व व ालय इस व ालय का ार भ सन 1880 मे ं नीदरलैड के प मे ं कया गया था। व भ धमशा ीय काय मों के मा यम से इसके स ब ध चे ई थत गु कुल लुथरे न थयोलॉ जकल कॉलेज ए ड िरसच इ सटी ू ट के साथ बने हुए है।ं वीडन के उपसला व व ालय (Uppsala University) के धमशा वभाग के यापक पीटर शाक एक अ य मुख यू रोपीय व ान हैं जो ीलं का के और कुछ हद तक द ण भारत के ववादा पद सामा जक-राजनी तक आ दोलनों से जुड़े है।ं अपने एक शोध प मे ं वे ल े के हं सा मक आतं क अ भयान क तुलना गाँधी के अ हं सक भारत छोड़ो आ दोलन और सुभाष च बोस के भारतीय वत ता सं घष से करते है।ं 65 शाक 2004 मे ं वीडन के नगर लुं ड मे ं आधु नक द ण ए शयाई अ ययनों पर आयो जत अ ारहवे ं यू रोपीय स मेलन मे ं त मल व ाओं के सं योजक थे।66 एक त मल व ान ने, जो अपने सश ल े सम थत दृ कोणों के लए जाने जाते है,ं यू रोपीय यू नयन ारा 2006 मे ं ल े ग त व धयों मे ं कमी कये जाने क आलोचना क । उ होंने लखा क ल े को ‘न सफ लं का और नवासन मे ं ब क त मलनाडु मे ं भी त मल भाषी लोगों का मजबू त समथन ा है’।67 ‘ ीलं का से आये त मलभाषी शरणा थयों मे ं धम’ वषय पर उनके 2007 के शोध प ने दावा कया क ीलं काई त मलों का शैव मत एक ‘मु धमशा ’ मे ं बदल रहा है, जहाँ ‘मु ’ श द का उपयोग राजनी तक अलगाववाद के प मे ं कया गया था।68 उनका ी







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राजनी तक दबदबा इस त य से प है क वे ीलं का जाने वाले एक यू रोपीय सं सदीय त न धम डल के साथ एक राजन यक त न ध के प मे ं साथ गये थे।69 उपसला व व ालय एक नद ष व नत होने वाले नाम—‘भारत मे ं ईसाई गरजों के अ ययन के लए मशन अ भलेख और नजिरया’ (Mission Archives and Approaches to the Study of the Christian Churches in India)—से एक शोध पा म चलाता है। यह पा म कोपेनहेगन व व ालय मे ं अ तर-सां कृ तक और े ीय अ ययन के ा यापक पीटर बी. ए डरसन ारा सं यो जत है, जनका ईसाई चारक अ भके एक या यान मे ं उजागर हुआ जसका शीषक ‘त मल ं लकल लुथरे न चच अमोंग कैथो ल स, पेट ं ाको ट स ए ड ह दू स्’ था।70 इवेज आधु नक द ण ए शयाई अ ययन पर बीसवे ं यू रोपीय स मेलन मे ं ए डरसन ने इसका तक देते हुए एक शोध प तुत कया था। व ाओं के इस दल को शै क स मान मला यों क इसका आयोजन ं टन थयोलॉ जकल से मनरी और बटलर व व ालय ने कया था।71 उपसला व व ालय के स मेलनों मे ं ‘एक राजनी तक धम के प मे ं ह दु व’ जैसे वषयों को तुत कया है। मू लत:, इसका उ े य प मी नी त नधारकों, शै क श ा वदों, मशनिरयों और स ब प ों को धमा तरण के वरो धयों के बारे मे ं और इस बारे मे ं श ा देना है क भारत भर मे ं ईसाइयत क थापना के लए कन रणनी तयों को अव य ही वक सत और लागू करना चा हए। वाभा वक प से यह प है क पछली शता दयों क औप नवे शक सं रचनाओं ने आज अपने को सू मता से पा तिरत कर लया है, और वे अनवरत उ हीं ग त व धयों मे ं लगी हुई है।ं वे पहले से अ धक क र हो गयी है,ं और इस लए पहले क तुलना मे ं अ धक खतरनाक भी। जो सं थागत त और नेटवक इन सृजनों को जी वत रख रहे है,ं वे व भ राजनी तक, आ थक, और धा मक न हत वाथ के लए ऐसा करते है।ं सामा यत: ऐसे श ा वद रणनी तगत प मी ह त प े ों के लए ह थयार बन गये है।ं

11 भारत के ख डों पर प मी च तन भारत मे ं अनेक अ तरा ीय गठजोड़ स य है,ं जनके स ब ध टेन, यू रोप के अ य देशों, और सं य ु रा य अमरीका से है।ं इस पु तक के शेष अ यायों मे ं हम उनके स ब धों, काय मों और उनके उ े यों तथा उनक काय णा लयों पर वचार ं ।े साथ ही हम इस बात क भी जाँच करेग ं े क स य प मी श यों के करेग भारतीय सहायक कैसे व भ तरों पर काम करते है।ं इस कार शै क और स य कायकताओं का एक वरोधाभासी म ण सभी महा ीपों पर खड़ा कया गया है जो भारत के व बोल सके। भारत के वामप थी श ा वद सामा यत: म य थों के मा यम से प म क द णप थी श यों के साथ सहयोग करते है।ं भारत का प लेने वाले दृ कोणों क उपे ा क जाती है और दमन के शकार लोगों के अ धकारों के समथन क भारतीय वरासत को न दापू वक अ वीकृत कर दया जाता है। सं घष पर बल देने वाले व -दृ कोणों को बढ़ावा दया जाता है। स ा तकार न ली गृह-यु का खुला आ ान करते हैं ज हे ं प म के स मानजनक शै क काशन सं थानों ारा का शत कया जाता है। सं य ु रा य अमरीका के नगरानी रखने वाले सरकारी त वकृत दृ कोण से भारत पर यान के त करते हैं और एक अं धकारमय सीमा े के प मे ं इसक एक अस य और ू र छ व तुत करने के लए और यह जताने के लए क प मी ह त प े के लए यह एक ृ और पुनउ त ृ करते है।ं सही समय है अपनी ही रपटों को उ त यू रोप और सं य ु रा य दोनों मे ं श शाली राजनी तक और धा मक श याँ ं ों को बल देने के लए शै क अ ययनों का उपयोग करती है।ं इनमे ं ईसाई अपने एजेड चच, वामप थी और द णप थी फाउ डे शन तथा वचार-मं च, दमन के शकार लोगों क सहायता का दावा करने वाले एन.जी.ओ. और लाभकारी थ तयों क खोज मे ं लगीं प म क सरकारे ं शा मल है।ं जहाँ एक ओर उनके उ े य भ है,ं वहीं अगर उनको एक साथ रखा जाये, तो उनका भाव भारत के लए वभाजनकारी, अ थरताकारक और नबल करने वाला है, जब क इसी के साथ वह भारतीय सं कृ त का दानवीकरण करने वाला, उसमे ं वकृ त लाने वाला और/या अपने मे ं मला लेने वाला है। यह सब एक व मयकारी स पक का सृजन करते है।ं द णप थी अमरीक राजनी त उदारवा दयों ारा चलायी जाने वाली एन.जी.ओ. सेवा पिरयोजनाओं को समथन देते है,ं जब क वे अपने यहाँ उन पर नाक-भौं सकोड़ते है।ं इसके अलावा भारत मे ं कुछ ‘द मत’ लोगों क सेवा मे ं वामप थी-उदारवादी श ा वद द णप थी क र ईसाइयों के साथ एक ही मं च पर साझेदारी करते हैं जसके बारे मे ं कोई भी गुट पया प से नहीं समझ पाता। ें

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Fig 11.1 भारत मे ं साम जक वमश का प मी सं थागत नय ण

  इस चाट के शीष पर अव थत प मी सं थान धन एक त करते हैं और ‘अपने नीचे थत सभी’ भारतीय सं थानों और वैचािरक माहौल तैयार करने वाले अ णी लोगों को भा वत करते है।ं यह एक उलझा हुआ घटना म है जसे पारद शता और उ घाटन के अभाव ने गँदला कर दया है। प म क धनदाता एजे सयाँ अपनी सरकारों, शै क सं थानों और चच के साथ मलकर काम करती है।ं कुल मलाकर उ े य है शै क त ानों के बु जी वयों, समाचार मा यमों और एन.जी.ओ. को भा वत करना। ऐसा य और परो दोनों तरह से होता है। दशाये गये येक सं थागत घटक का अपना ही काय है, जैसा क नीचे सं प े मे ं दया गया है।

सरकार प मी सरकारों के अ दर कुछ ऐसे श शाली त व हैं जो स यता के आधार पर े ता के ा पों और भू -राजनी तक मह वाकां ाएँ पाले रहते है।ं दुभा यवश, शै क और अ य वचार-मं च सामा यत: इसी त य के साथ कदम मलाकर चलते हैं और भारत के इन ा पों को पु करते है।ं सरकारी अ धकारी भी भारत मे ं स य ईसाई चारक सं गठनों के साथ स ब ध रखते है,ं ज हे ं गैर-प मी दु नया मे ं अपनी स यता का झ डा ले जाने वालों मे ं देखा जाता है। सरकार क भू मका भ - भ कार क हो सकती है, और वह ईसाइयत को व सनीयता दान करने के एक माग के प मे ं नै तकता, राजनी तक और व ीय सहायता को भी शा मल कर सकती है। उदाहरण के लए, सं य ु रा य अमरीका क सरकार यू .एस.ऐड (USAID) का उपयोग व ड ै े

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वजन जैसे अ य रा ों मे ं काम करने वाले ईसाई चारक सं गठनों के मा यम से धन उपल ध कराने क यव था करती है।

धनदाता एजे सया ँ ये एजे सयाँ भारत मे ं वशेष कार के शोध के लए आ थक सहायता दान करती हैं और प मी राजनी तक और रणनी तगत आव यकतों के अनुकूल आँकड़ों को चुनचुनकर बाहर नकालती हैं और उनका चार करती है।ं उदाहरण के लए, ईसाई चारकों के एक अ तरा ीय नेटवक इनफे मट को, जसका ल य भारत मे ं धमा तरण करना है, ोवेल ट ारा धन दया जाता है, जो अमरीका क एक ईसाई क रप थी धन दाता एजे सी है। इनफे मट सं य ु रा य अमरीका के ए थ स ं र जैसे द णप थी नी त सं थानों मे ं भारतीय राजनी त पर ए ड प लक पॉ लसी सेट से मनार ायो जत करती है। इसी कार कैडबरीज ने एक ईसाई सं गठन ारा यू नाइटेड कंगडम मे ं वासी भारतीयों के बीच जा तगत भेदभाव पर एक ववा दत और ववादा पद शोध को ायो जत कया था।

अकादमी प म मे ं भारत पर शै क अ ययन कभी-कभी नयी दरारे ं खोज नकालते हैं या सृ जत करते हैं या जो पहले से ही मौजू द हैं उ हे ं और गहरा कर देते है।ं अनेक श ा वद भारतीय रा -रा य को एक कृ म सृजन के प मे ं लेने क वृ रखते हैं जसे वे कृ त से ही दमनकारी मानते है।ं सामा यत:, भारत पर शै क अ ययन भारत मे ं अपसारी बलों को ो सा हत करने वाले एक वशेष कार के स यतावाद (ए ट व म) को ज म देते है।ं शै क अ ययनों क दशा धन दाता एजे ं सयों ारा भा वत होती है,ं और इसके बदले, शै क अ ययन भारत पर अ तरा ीय नी तयों को भा वत करते है।ं

चच नजी धन दाता एजे ं सयों और सरकारी सं गठनों के साथ प मी चच और ईसाई चारक सं गठनों के नकट के स ब ध है।ं प मी सरकारे ं भारत मे ं स य अपने रा ों के ईसाई चारक मशनों को एक परोपकारी स यता का झ डा लेकर चलने वालों के प मे ं देखती है,ं और साथ मे ं भारत मे ं अपने त वशेष च वाले व सनीय गुटों के सृजन करने वाले के प मे ं भी देखती है।ं प मी सरकारों के आ धकािरक सहयोग के साथ व भ प मी सं थानों और भारत मे ं उनक मातहत सं थाओं के बीच वशेष सं थागत भागीदारी सु था पत है। ी







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यह श शाली अ तर-सां गठ नक द ता उनके भारतीय मातहतों क ताकत को बढ़ाती है। उदाहरण के लए, सं य ु रा य अमरीका थत ईसाई चारक अ भयानों ने द लत डम नेटवक ार भ कया है, जसका ऑल इ डया यन काउं सल (AICC) नामक एक भारतीय सहयोगी है। ए.आई.सी.सी. उन बु जी वयों और श ा वदों का ायोजन करता है जो द लतों के बारे मे ं अ य त इकतरफा दृ कोण तुत करते है,ं और वे अपने अमरीक योजकों को बड़ी मा ा मे ं उ पीड़न सा ह य (अ ो सटी लटरेचर) क आपू त करते है।ं 1 भारत मे ं इस च तन का नमाण अमरीक ायोजकों के लए कया जाता है। इसने वयं को द लतों क एक वै क वाणी के प मे ं था पत कर लया है, और जो उनके रा ते पर चलते हैं उनको अमरीक ँ क सु वधा दी जाती है। उसी सरकारी तर और भावशाली वचार-मं च तक पहुच कार भारत मे ं चच सम थत नेटवक का यापक भाव है और उ हे ं प मी सरकारी सं गठनों का समथन भी मलता है। ऐसे नेटवक के भारत के रणनी तगत और सामिरक थ त, सुर ा तथा अ तत: इसक स भुता पर होने वाले भाव पर व तार से चचा क जायेगी।

समाचार मा यम जन अ तरा ीय श यों का उ ख े ऊपर कया गया है उ होंने भारत मे ं समाचार मा यमों का एक ढाँचा बना लया है जसका उ े य ऐसे भारतीय लेखक पैदा करना है जो सं वद े ना के तर पर प मी श यों से बँधा हो और आ थक प से उन पर नभर हो। भारत मे ं एक यापक ईसाई चारक मी डया नेटवक है जो कुछ वशेष ‘प थ नरपे ’ मी डया से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लए, यू रोप थत दो मी डया मशनरी नेटवक हैं गे ाफा और बोस यू जलाईफ, जो भारतीय ईसाई प कारों के साथ मलकर काम करते हैं ता क वे वैसे समाचार नकालकर ला सकें जो वशेष प से भारतीय स यता के ‘ईसाई पी ड़तों’ के बारे मे ं हों। च 11.1 का उ े य व भ प मी प ों के बीच आदान- दान क वशालता को भी दखाना था। भारतीय प मे ं बहुत कम सं या मे ं खलाड़ी हैं और स पू ण रणनी त भी बहुत कम है। इन प मी सं थागत ह त प े ों के अ ययन मे ं भारतीयों मे ं अ छ तरह सम वय नहीं है। इसके वपरीत, अ धकां श भारतीय जो भावी थ त मे ं हैं वे स तापू वक आ मतु है,ं और उनमे ं से कई तो ऐसे ह त प े ों का खुलआ े म समथन भी करते है।ं मनोरं जक बात यह है क जहाँ चीन क सरकार, उ ोगप त, और बु जीवी रा वादी दृ कोण से चीन के शै क अ ययनों मे ं अ य त भावी है,ं वहीं भारत सरकार या कसी अ य भारतीय सं थान क , जो भारत के हतों क ओर से भारत का व यापी अ ययन करने के काम मे ं लगा है, कोई मह वपू ण भू मका नहीं है।



भारत का सु नयो जत वख डन च 11.2 उन तरीकों को दखाता है जससे प म क अनेक शै क और वैचािरक पिरयोजनाओं मे ं भारत का वख डन कया जाता है। च का बायाँ भाग दखाता है धम नरपे दृ कोण को कस यू रोपीय ढं ग से लागू कया जाता है, जब क दायाँ भाग बाइबल के दृ कोण को। इन दोनों के बीच मे ं अ ययन के वषयों को दखाया गया है। सबसे नीचे से च 11.2 दखाता है क शै क अ ययन क ाथ मक ण े ी वण, अ पसं यक और म हलाएँ है।ं सम काय णाली ऐसी बनायी गयी है ता क यह दखाया जाये क ये समू ह भारतीय स यता क ु टयों के पिरणाम व प द मत है।ं ये पिरणाम वैसी टे ं हैं जो ह दू वाद के अ ययन के दृ कोण क इमारत को साम ी उपल ध कराते है,ं और फर ये सामा यत: भारतीय स यता के त नकारा मक रवैये का पोषण करते है।ं परा मड के सबसे ऊपर व ान हैं जो इस बात पर माथाप ी कर रहे हैं क या भारत ठ क ढं ग से काम नहीं करने वाला एक रा -रा य है जो अपने मानवा धकार सं कट और अ य सम याओं के आलोक मे ं पिरभा षत होता है। Fig 11.2 दो मह वपू ण द ृ यों से भारत क प मी अवधारणा 

  काय णाली के ा प का एक सरलीकृत नमू ना है जसका उपयोग प मी शै क जगत के द ण ए शयाई अ ययन वभागों मे ं भारत पर वचार के लए य या परो प से कया जाता है। एक उदाहरण के प मे ं शै क द लत अ ययन केवल उ हीं द लत रचनाओं को ो सा हत करते हैं ज हे ं अलगाववादी और वभाजनकारी दृ कोण से लखा गया होता है, न क मु यधारा के भारतीय सा ह य मे ं एक मह वपू ण योगदान के प मे।ं जब भारतीय सा ह य के मह वपू ण लेखन को अनुवा दत, स पा दत और का शत कया जाता है तब यह जानबू झकर द लतों और सवण के बीच मह वपू ण सहयोग क उपे ा करता है, और अनेक प व थों क ै ी े ें औ ों े े

भी उपे ा करता है जनमे ं रामायण, महाभारत और द लतों ारा लखे गये भ सा ह य मे ं से अ धकां श है। शोध कये जा रहे हैं क कस कार, उदाहरण के लए, राजा राव अपने मु लम पा ों के त पू वा ह से त है,ं या कस कार टैगोर जैसे ह दू लेखकों क रचनाओं मे ं बहुत कम मु लम पा है।ं मै डसन थत व कॉ सन व व ालय (Wisconsin University) मे ं द ण ए शया पर हुए पछले तीस वष के वा षक स मेलनों क कायवा हयों और सारां शों क अगर कोई समी ा करेगा तो पायेगा क भारत का सम च ां कन एक ग तवाद के वरोधी देश के प मे ं कया गया, जो समय से साथ जड़ हो गया है और भीषण गरीबी से त है। भारत एक बीमार क तरह दखता है जो वण- यव था, सती, दहेज, ू ण ह या, अ पृ यता जैसी बीमािरयों से त है और प म एक च क सक क तरह उप थत है। भारतीय रा -रा य अवैध और एक कृ म ‘क पत समुदाय’ है जो वा तव मे ं अ त व मे ं नहीं है, या अगर यह अ त व मे ं है भी तो इसे अ त व मे ं नहीं रहना चा हए, यों क इसका अ त व ही अपने दबे-कुचले लोगों के लए दमनकारी है। ले कन क पत समुदायों क ऐसी अवधारणा अ य त मनमाने ढं ग से लागू क जाती है। उदाहरण के लए, भारत भर के मु लमों और द लतों को, जो वयं हज़ारों छोटे-छोटे समुदायों और अ मताओं मे ं बँटे हैं और जो भाषा और जातीय आधार पर अलग कये गये है,ं शै क तर पर सामा यत: ‘पिरक पत समुदाय’ नहीं, ब क एक सुसंगत समू ह के प मे ं माना जाता है। वड बना है क जहाँ प म मे ं रा ीय पहचान क भावना लगातार बलवती हो रही है, वहीं कम वक सत देशों मे ं आ म वख डन क ओर व ता को ो साहन दया जा रहा है। अमरीका, चीन और जापान क रा ीय पहचान बलवती हो रही है, और यू रोपीय यू नयन एक श शाली रा बन रहा है। तुलना मक प से उसी श से वे वयं को वख डत नहीं कर रहे हैं और अपनी अपसारी श यों का भी पोषण नहीं कर रहे है।ं ले कन कसी-न- कसी तरह यह बौ क तरीका भारतीय और तीसरेव के अ य देशों के बु जी वयों तक नया तत कया जा रहा है ता क वे ‘अपने देश का तथा उसक स यता का वख डन करे’ं । जहाँ प म क श वयं को इस यो य बनाती है क वह भारत के वख डन क माँग कर सकें, वहीं भारतीय बु जी वयों मे ं प मी देशों के वपरीत वही काम करने क श का अभाव है। यह चचा भी सुनाई देती है क अमरीका के शै णक पिरसरों मे ं काफ उ र आधु नक च तन चल रहा है जो वयं अपनी स यता का भी वख डन करते है।ं फर भी जस बात पर यान नहीं दया जाता, वह यह है क इस तरह का वख डन बहुधा स ा मे ं हा शये पर मौजू द लोगों ारा हो रहा है, और यह क ऐसे व ानों का राजनी तक दबदबा नहीं है। जो लोग स ा मे ं हैं उनमे ं से कोई उनको ग भीरता से नहीं लेता, और समाचार मा यम वरले ही उनक सुध लेते है,ं सवा उनको पिरवतनवादी के प मे ं च त करने के। वे न त प से नी त नधारकों को सलाह नहीं दे रहे, ं ों औ औ े ी ो ीं े े े

और वे वचार-मं चों और मुख व ीय सहायता को भा वत नहीं करते। वे केवल शै णक दायरों के अ दर ही ब द है।ं वे श याँ जो च तन को सं चा लत करती हैं और उनमे ं भावी होती है,ं वे अ य त रा वादी है,ं तथा रा -रा य पहले क तरह ही श शाली है। भारत पर च तन से जुड़ी थ त ब कुल भ है। उ र आधु नकतावाद ने तेज वी भारतीयों क एक पू री पीढ़ी को उनक अपनी रा ीयता तथा स यता के वख डन के लए शै क स मान दया है। इस आ मालोचना को प म मे ं रह रहे ‘सफल’ भारतीय व ानों के साथ मलकर लोकाचार बना दया गया है, और धन ँ ाकर ो सा हत कया जाता है। उनके इस तथा अ यवसाय के माग से उ हे ं लाभ पहुच य स ा त के अनुसार भारत के थान पर अनेक ‘उप-रा ’ लाये जाने है।ं हावड के द ण ए शया काय म के सह- नदेशक होमी भाभा को सं कृ तयों और पहचानों के ‘सं कर’ बनाने के स ा त को वक सत करने मे ं अ णी माना जाता है। इसका एक अथ हुआ क चू ँ क भारतीयों ने उप नवेशवाद मे ं अपनी वदेशी पहचान खो दी है, उ हे ं इसे फर से ा करने का यास रोक देना चा हए, यों क ऐसा करना नरथक है। इसके वपरीत, उ हे ं अपनी सं कर ‘गोरे बन गये भारतीय’ क पहचान को औप नवेशकों के व वरोध के एक तरीके के प मे ं उ सव क तरह लेना चा हए। जहाँ ऐसे स ा तों का व लेषण करने के लए यह समु चत थान नहीं, यह इं गत करना आसान है क उ होंने कैसे व मयकारी वरोधाभासों मे ं हमे ं डाल दया है। अगर यही स ा त द लतों पर लागू कया जायेगा तो उसका न कष होगा उ हे ं अगड़ी जा तयों के व बगावात करने से हतो सा हत करना, उन जा तयों से जो भारत मे ं अ धक श शाली है,ं और इससे मु यधारा के ह दुओ ं के साथ मलन हो जायेगा। इस त य मे ं यह भी जोड़े ं क ये स ा त इस तरह से बलकुल समझ मे ं नहीं आने वाली और ऐंठन भरी भाषा मे ं लखे गये हैं क उनक आलोचना एक कार के ‘ ा ण जैसा’ दबदबा वाले प मे ं क जाती है जसका आधार भाषाई व श ता और े ता क धारणा होती है। इस अधीन थ तर क अगुवाई करने का यास ँ के बाहर अथहीन करने के म मे ं ये स ा त वयं अधीन थ लोगों के लए भी पहुच हो गये है।ं च 11.3 कुछ शै क वभागों को दशाता है, वशेषकर त मल सं कृ त से जुड़े वभागों को, ज होंने भारतीयों के बीच अलगाववादी पहचान न मत करने मे ं ँ ाई है। यह सहायता पहुच या आज भी चालू है, और बु जी वयों के सभा थलों से आगे तक इसने अपनी जगह बना ली है और आम जन मानस मे ं वेश कर गयी है। हो सकता है क शु आत मे ं इन पिरयोजनाओं को शु प से शै क पिरयोजनाओं के प मे ं ही शु कया गया हो, ले कन उ होंने एक-दू सरे का पोषण कया और अ तत: सावज नक वमश मे ं दा खल हो गयीं। Fig. 11.3 : शै क अनुशासन और वड़ पहचान के न हताथ

शै

क अनुशासन

ँ े योग कये जाते हैं जो ढाच

त मल भाषा व ान पृथक याकरण त मल सा ह य

शा

आय/ वड़ द ण भारत क भाषाओं क उ प को पृथक करना

ीय आधीन सा ह य क पृथक भ व दृ और द ण भारत नवीनता के बौ क इ तहास क अवधारणा

द ण भारत क भारत रा कला और सां कृ तक अ ययन इ तहास

पहचान के अ भ ाय

के व

तनाव भ जातीयता जो क और भारतीयों से भ ता जताती है।

हर समुदाय के इ तहास को न ल और जातीयता क बाक भारत से वत और पहचान अलग-थलग बताना, सवा भारत के पी ड़तों के प मे ं



जा त का मानव- जाती और वण से बराबरी   व ान करना। इसको अ तीय प से ह दू सम या बताना, बाक भारतीय धम को अनदेखा कर देना और दू सरे देशों को भी। केवल अपमानजनक, वड़वाद से मलकर अलगावँ ी भी नहीं सामा जक पू ज वादी पहचान का ‘ वड़ शू ों हर साम जक हनन के लए का आय ा णों ारा शोषण करना’ बन जाना। दोषी ता लका मे ं दखाये गये येक वभाग का सं व लेषण इसके बाद कया जायेगा। वशेष प से भारत व ा के भाव के कारण भाषा व ान यू रोप मे ं एक मह वपू ण नया वभाग बन गया। बाद मे ं यह उ ीसवीं शता दी के न ल व ान से जुड़ गया। यू रोपीय मशनरी व ानों और साथ ही औप नवेशक शासकों ारा इसका ं ा नधािरत कया गया, जसका उ े य था व भ भारतीय समू हों के यापक एजेड बीच अलग जातीय पहचान को फर से लागू करना। सबसे पहले उ होंने अलग-अलग ों







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याकरणों क रचना के मा यम से भाषाई भ ताओं को अ धकतम कर दया, और उसके बाद दखाया क ाचीन त मल कालजयी रचनाएँ स पू ण भारतीय इ तहास मे ं सं घषरत जातीय पहचानों का एक ववरणा मक सा ह य है। भारतीय सा ह य के त यू रोपीय दृ कोण भारतीय भाषा व ान के त वभाजनकारी दृ कोण के ऊपर था पत कर दया गया था। भारत जैसे भाषा क बहुलता वाले रा मे ं येक भाषा मे ं ाचीन कालजयी सा ह य के अ ययन के बहुत सारे अवसर है।ं अनेकता मे ं मू लभू त एकता का भारतीय अनुभव रहा है जो इसक सभी भाषाओं के ाचीन कालजयी सा ह य मे ं अ भ य हुई है। फर भी, भारत मे ं व भ भाषाओं के ाचीन कालजयी सा ह य के प मी अ ययन क तावना एक भ दृ कोण से लखी गयी है। वशाल त मल ाचीन कालजयी सा ह य का अ ययन मह वपू ण जातीय त वों क पहचान और उ हे ं शेष भारतीय सा ह य से अलग करने के लए कया गया था। सं कृत सा ह य के पिरक पत ‘पारलौ कक’ के वपरीत इन प ों को बहुधा ‘इह-लौ कक’ या ‘धम नरपे ’ त मल सा ह य के प मे ं तुत कया जाना था।2 अब वदेशी धन ा करने वाले व ानों और प मी सं थानों से स ब भारतीय व ानों ारा कला और सं कृ त के थानीय व पों का अ ययन कया जा रहा है। थानीय भेदों क पहचान करना और उ हे ं सं कृ त का सार बताते हुए बढ़ाचढ़ाकर तुत करना एक सामा य झान हो गया है। कभी-कभी कला को पिरक पत ईसाई भाव से भी जोड़ दया जाता है। इ तहास के मामले मे,ं कसी भी आम भारतीय वृ ा त को कृ म या दमनकारी ा णों या बाद के रा वा दयों का ष कहकर अमा य कर दया जाता है। कसी भी साझे सां कृ तक त व के ‘ व तार’ को धू त राजाओं और ा णों क रणनी त के प मे ं च त कया जाता है, जो वत जातीय समू हों को अपने अधीन रखना चाहते है।ं प म मे ं जहाँ बड़ी सं या मे ं व ान हैं जो अपनी सं कृ तयों के सकारा मक त वों के हर पहलू का काशन कर रहे है,ं वहीं प म क एजे ं सयों ारा भारतीय व ानों को भारतीय सं कृ त के हर प को वख डत करने के लए ो सा हत कया जाता है। यह अधीन कये गये, ‘वा त वक’ भारतीयों को उपहार के प मे ं उनका भारतमु इ तहास देने के य न- व प कया जा रहा है। औप नवेशक शासकों, हबट िर ली और एडगर थसटन, ारा कया गया वणयव था का यापक मानवशा ीय अ ययन उ ीसवीं शता दी के न ल व ान के ढाँचे के तहत कया गया था। इसने यावसा यक भू मका (कम) के आधार पर च त क जाने वाली भारतीय सामुदा यक इकाइयों को जातीय/न ली समू हों मे ं पा तिरत कर दया। उसके बाद से भारत और वदेशों के अ धकां श अ ययनों मे ं वण क इस न ली कृ त का ही दबदबा रहा। यह औप नवे शक वरासत आज तक लगभग बना कसी चुनौती के चालू है। येक वण समू ह को ो सा हत कया जाता ं ो ै ी े े े े ी

है क वह वयं को एक न ली पहचान के साथ च त करे जसे वह वदेशी मानता है, और इसक सभी पिरक पत और वा त वक सम याओं के लए अ य वण के ष पर और सम प से भारत पर दोषारोपण करे। जैसा क हमने पहले के अ यायों मे ं देखा है, भाषा व ान, वण-आधािरत मानवशा , और शोध या औप नवे शक श यों के हाथों श शाली उपकरण बन गये है,ं जो वतमान वभाजन को और गहरा करने क स भावना वाले नये बौ क ढाँचों का सृजन करने मे ं सहायक बन गये है।ं औप नवे शक काल के बाद क अव ध ं े क सेवा के लए मे ं व ानों ने कभी-कभी अनजाने मे ं उसी ढाँचे पर और उसी एजेड काम करना जारी रखा है। हम न ल के बारे मे ं आया तत वचार भी देखते हैं जो सामा जक याय के नाम पर भारतीय आ दोलनों मे ं यारो पत हो रहे है।ं वड़ पहचान क राजनी त द लत अ धकारों के आ दोलनों से हाथ मला रही है, हालाँ क अ धकां श वड़वादी द लत नहीं है,ं और अ धकां श द लत वड़वादी नहीं है।ं इसके बावजू द भारत और ह दू धम को खलनायक के प मे ं च त करने के साथसाथ इस वचार को अब व तर पर आगे बढ़ाया जा रहा है क ‘वण न ल के बराबर है’। सू म तरों पर ऐसी बहु-आयामी सं घष मुख अ मताओं का सृजन मलकर बड़े हं सक जातीय सं घष मे ं बदल सकते हैं जैसा क हम इस पु तक के न कष वाले अ तम अ याय मे ं देखग े ं ।े

उ पीड़न सा ह य एक वधा के

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उ र वृ ा त उपल ध करा के च तन पर नय ण राजनी तक नय ण के एक अं ग के प मे ं ही उपयोग मे ं आता है। उप नवेशवाद के समथन मे ं प म मे ं सा ह य क एक वधा वक सत क गयी है जो ‘उ पीड़न सा ह य’ के प मे ं जानी जाने लगी है। पछली चार शता दयों मे ं शै क और कथा लेखन का एक वशाल भ डार तैयार हो गया है ज हे ं ॉडवे के नाटकों और हॉलीवुड चल च ों मे ं अनुकू लत कया गया जनमे ं अ य सं कृ तयों के साथ प म के स पक को दखाया गया—जैसे भारतीयों, मू ल नवासी अमरी कयों, अ त े ों, मे सको नवा सयों, फ ल प स नवा सयों, जापा नयों, ची नयों, हैती नवा सयों, यू बा नवा सयों, वयतनाम नवा सयों, और अरब नवा सयों के साथ। इसके साथ इस अवधारणा पर फर से बल दया गया क यू रोपीय/अमरीक सं कृ त क तुलना मे ं शेष व नकृ है; उनक अपनी ही भलाई के लए उ हे ं जीता जाना चा हए। सफ़ तभी नायक जॉन वेन अपने घोड़े पर सवार शा त से ढलते सू रज मे ं ओझल हो सकता है जो हॉलीवुड क काऊबॉय फ मों मे ं दखाया जाता है। ी



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उ पीड़न सा ह य अ य सं कृ तयों क व च ताओं और वदेशीपन के च ण का एक अन य अं ग था जसमे ं उनके ारा उ प कये गये खतरों पर बल दया जाता था। उ पीड़न सा ह य क श को समझने का एक माग है सन 1600 के ार भक दशक से अमरीक इ तहास के स दभ मे ं इस पर वचार करना, जब इसने पू वा ह, भू भागों के अ ध हण, और आ थक व तार क हर कड़ी मे ं एक भू मका नभायी।3 इस या को सं प े मे ं न न कार से रखा जा सकता है।   जैस-े जैसे अमरीका मे ं बस जाने वाले यू रोपीय स पू ण अमरीक महादेश मे ं प म क ओर बढ़ते चले गये, वे मू ल नवा सयों को आगे-आगे लगातार बदलती सीमा क ओर धकेलते चले गये, जसे स यता और जं गलीपन के बीच क सीमा रेखा के प मे ं समझा गया।   मथक गढ़ने क या मे ं मू ल अमरी कयों का ‘खतरनाक प से जं गली’ के प मे ं एक वल त च ां कन शा मल है—वैसे लोगों के प मे ं जो भोले-भाले नद ष, ई र से डरने वाले ईसाइयों के लए खतरा थे। कई बार इस तरह क छ व पेश क गयी जो सं केत देती थी क अमरीका बाइबल मे ं व णत वग ान था, जो अब यू रोपीय औप नवेशकों का है, और सीमा े के दु जं ग लयों ारा उसे खतरे मे ं डाल दया गया था और उसे न कया जा रहा था। ‘सीमा े ’ क यह अवधारणा सामू हक प से शेष गैर-ईसाइयों का त न ध व करके इस तरह ‘अस य’ व को अ भ य करने लगी।  मू ल नवा सयों को ‘मू त पू जन’ के दृ यों मे ं च त कया जाता था, जो प मी ईसाई जगत के उस ‘एक परमे र’ क अवधारणा के वपरीत एक व च देव व से भरे पड़े थे। इन ‘दू सरों’ को इस तरह पेश कया जाने लगा क ये आ दम दखने लगे ं : नै तकता और नी तयों क कमी, और हं सक यवहार ं सौ दयबोध क कमी, नै तकता क कमी, और वाले। ये तीन बाते— तकसं गतता क कमी—इस उ पीड़न सा ह य मे ं बार-बार पायी जाती है।ं   जब सं घष शु हुआ, तो त े ों को, स य बनाने वाले लोगों के प मे,ं जं ग लयों के त वैध प से और कत य न ा के साथ यवहार करते हुए च त कया गया। इस तरह, औप नवेशकों ारा क गयी ू रताओं को उ चत तथा तकसं गत कदमों के प मे ं च त कया गया।  जं गली सं कृ तयों को उनक अपनी म हलाओं और ब ों को पी ड़त करता हुआ दखाया गया। इस लए, त े ों के हं सक तरीकों से स य बनाने के मशन ऐसे दखे मानो वे यापक प से जं गली समाजों के सव म हतों के लए थे।   इस कार के उ पीड़न सा ह य ने नधािरत नय त या मै नफे ट डे टनी (Manifest Destiny), गोरों का बोझ या वाइट मै स बडन (White Man’s Burden), जैसे सा ा यवादी स ा तों को बौ क अवल ब दान कया। े







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 इसने एक भावुक आँकड़ा भी दान कया। सरहदी इलाकों मे ं रहने वालों क उ ज े क दु:साह सक या ाओं, जनमे ं यायावर, सै नक, और चरवाहे शा मल थे। इसने और भी ऐसा सा ह य पैदा कया।  इस तरह का सा ह य अध-स य पर फला-फूला, जनमे ं जहाँ-तहाँ से साम ी उठायी जाती है, और उसे एक कथा सा ह य मे ं परोया जाता है जो पाठकों के मन पर पू व-क पत ा पों के साथ खलवाड़ करता है।4 इसने जं गलीपन से नपटने क त काल आव यकता क भावना को बढ़ा-चढ़ाकर तुत करने का यास कया।  हो सकता है क इस कार से गैर-प मी सं कृ तयों के च ण ने उनके ारा क थत ू रता को फलीभू त कया हो या नहीं। ले कन पू री स भावना है क स य वैसा इकतरफा नहीं होगा जैसा क च त कया गया। एक सै ा तक आधार बनाये जाने के लए सं घष को बढ़ा-चढ़ाकर और सनसनीखेज बनाकर तुत कया गया, जैसा क ऐसे मामलों मे ं होता है।  गैर-प मी स यताओं के त अपनाये गये तरीकों के वपरीत प मी समाजों मे ं या सामा जक बुराइयों और ू रता को भू ल के प मे ं च त कया जाता है : न लवाद, औप नवे शक नरसं हार, दोनों व यु , महा वनाश, यौन शोषण आ द, को छटपुट घटनाएँ माना जाता है जो स े प मी चिर मे ं महज वचलन है।   जैस-े जैसे प मी औप नवेशन व भर मे ं फैला, सीमा े का मथक मू ल अमरी कयों, अ कयों और ए शयाइयों को अधीन करने मे ं सफल सा बत हुआ। यू रोपीय व तारवाद के अ य पों के साथ यह अनुकूल था। अब यह सीमा े प मी स यता के बाहर कहीं भी हो सकता है।  एक बार जन मानस मे ं इसके था पत हो जाने के बाद उ पीड़न सा ह य का उपयोग बहुधा सीमा े ों के लोगों को कठोरता से अधीन कर लेने को उ चत ठहराने के लए कया गया। इसी मथक ने जसने मू ल अमरी कयों के नरसं हार को मा कर दया, बाद मे ं वयतनाम यु और ईराक यु जैसी बड़े पैमाने पर हुई हं सा को भी मा कर दया। प मी व तार के सभी युगों मे ं अनेक व ानों ने अनाड़ी क तरह ऐसे उ पीड़न सा ह य के उ पादन मे ं भाग लया, बना यह सोचे-समझे क अ तत: उस साम ी का उपयोग कस कार कया जायेगा। एक बार जैसे ही ल त सं कृ त का ठ पा बनाकर उसे च त कर दया जाता है, वह अनेक कार के अनु चत आरोपों का शकार बनने लगती है। फर ऐसी ठ पे वाली सं कृ त के नेताओं के लए ऐसे गलत आरोपों और च ण क झड़ी से अपना बचाव करना अस भव हो जाता है। अपना बचाव करने के लए पहले इन गलत आरोपों को वीकार करना पड़ता है जो दू सरे ो ै



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प को वैध बना देता है और उनको वजय दला देता है। प मी श यों क भावी आलोचना करने वालों को शी ही स देहा पद खतरनाक जं ग लयों क सू ची मे ं डाल दया जाता है और उ हे ं कलं कत कर दया जाता है। एक चीज जस पर उ पीड़न सा ह य बल देता है, वह यह क जं गली लगभग हर समय झू ठ बोलते है।ं इस लए सा य और उ चत त न ध व के सामा य नयम तब लागू नहीं कये जाते, और एक अ य ‘जं गली सं कृ त’ को अ भावी बना दया जाता है।5

भारत के वख डन का पोषण करता उ पीड़न सा ह य मथकों ारा नय त प म के अनेक लोग एक ल बे समय से भारत को वदेशी ं जो बहुदव पैमाने पर एक अ तम छोर पर देखते है— े वाद क छ वयों, व च ‘देवताओं,’ वण- यव था, मानवा धकार से स ब उ पीड़न, न ाण और व च सौ दयबोध, तकहीन सोच से भरा और अ यव था क एक सम छ व वाला है। यहू दी-ईसाई मानस मे ं यह बुराई या स यता के अभाव के प मे ं जुड़ जाता है। सन 1800 के दशक के ार भ से ही यू रोपीय और अमरीक ईसाई मशनिरयों ने भारत के लोगों को जं गली के प मे ं च त करना शु कया था ज हे ं उनके अनुसार अं धकार से बचाये जाने क आव यकता थी। हाल मे ं भारत के बारे मे ं ऐसी ही अवधारणाएँ इस छ व का पोषण कर रही हैं क मानवीय पिर थ तयों से नपटने मे ं भारतीय सं कृ त प म से नकृ है। अं ज े ों ने भारत का औप नवेशीकरण करने के बारे मे ं दावा कया था क मानवा धकार क थ त सुधारने के लए उ होंने ऐसा कया— जसे क थत तौर पर स य बनाने का मशन कहा गया। इससे भारतीय नेताओं मे ं एक-दू सरे के व शकायते ं लेकर उनके पास जाने का झान पैदा हुआ, और उ हे ं अपनी सम याओं का कारण भारतीय सं कृ त के म थे मढ़ने के लए ो सा हत कया गया। आज अमरीका उसी कार से स य बनाने क भू मका मे ं है। इस कार, अमरीक द णप थी राजनी त , जो अपने सं य ु रा य अमरीका मे ं ऐसे सकारा मक काय के बारे मे ं उ साही नहीं है,ं अमरीका ारा भारतीय वण-आधािरत भेदभाव से लड़ने के लए स य ह त प े क नी तयों का आ ान करते है।ं 6

े के लए सीमा े भारत : प मी ह त प जैसा क हमने पहले उ ख े कया, भारत का अ ययन करने वाले प मी सं थान दो भ दृ कोणों से ऐसा करते है।ं द लत बैनर तले काम कर रहे ईसाई चारक सं गठन और द णप थी वचार-मं च तथा नी त-के भारत को बाइबल के च मे से देखते है।ं वे भारत मे ं चच क मातहत सं थाओं का उपयोग प मी समाचार मा यमों, सरकारी सुनवाइयों, और अ तरा ीय सं गठनों मे ं भारत के व सा य दान करने मे ं करते ैं





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है।ं वे भारत के व धीरे-धीरे उ पीड़न सा ह य का एक वशाल भ डार न मत करते है।ं भारत भर मे ं सुदूर े ों तक द सयों हज़ार भ - भ कार के नये गरजे था पत ं के लए अनेक कये गये है।ं वे ‘आ मो ार’ के अपने मशन और अपने वोट बैक कार के अ भयानों और तरीकों का उपयोग करते है।ं सं य ु रा य अमरीका और भारत के ईसाई चारकों मे ं तुलना यह दखाती है क भारतीय चच एक क रप थी ईसाइयत को ो सा हत करते हैं और पहले से ही अ छ तरह से घुल-े मले समुदायों मे ं तनाव और सं घष उ प करते है।ं कभी-कभी एक ही वण और कुनबे क पृ भू म वाले समुदाय धमा तरण के कारण टुकड़ों मे ं बँट जाते है।ं ईसाइयत क ये अस ह णु क मे ं भारत मे ं आलोचना से बच नकलती हैं जब क ऐसे समू ह सं य ु रा य अमरीका मे ं आलोचना के पा बनते है।ं वड बना है क ं े पर हार करते हुए फलतेअमरीका मे ं जहाँ वामप थी ईसाई चारक ईसाई एजेड फूलते है,ं वहीं द ण ए शयाई अ ययनों मे ं वामप थी न केवल भारत मे ं वैसे यवहारों क अनदेखी करते है,ं ब क वा तव मे ं ‘धा मक वत ता’ और ‘ ग त’ के प मे ं वग कृत कये जा रहे काय को बौ क समथन देते है।ं 7 द ण ए शयाई अ ययन वभागों के व ान और उदार वचार-मं च भारत को एक प थ नरपे च मे से देखते हैं जनका आधार मानवा धकारों के प मी वचार होते है।ं वे सब ऑ टन या नचले तबकों के अ ययनों और उ र आधु नक स ा तों को भारतीय रा य को वख डत करने मे ं लगाते है,ं जसे वे उप नवेशवाद ारा कृ म प से एक दुघटना के प मे ं सृ जत कया गया मानते है।ं और उसक कृ त को दमनकारी, अलोकता क, अ त न हत प से अ पसं यक वरोधी, म हला वरोधी, और द लत वरोधी दखाने के लए भी वे इसका उपयोग करते है।ं वे इन ा पों को अपने भारतीय त ानों को नयात करते है।ं यह एक आ म- नभर णाली बनाता है। वे इन दृ कोणों को समाचार मा यमों और सरकारी सुनवाइयों मे ं भी योग करते है।ं इस कार, पर पर वपरीत माने जाने वाली ये दोनों बौ क शाखाएँ एक साथ मल जाती हैं ता क वे एक सीमा े के प मे ं भारत क एक वशेष छ व सामने ला सकें जो प मी ह त प े को आव यक बताये।

े मानवा धकार मे ं प मी ह त प जहाँ यह न त प से स य है क भारत क ज टलता सामा जक सम याओं का एक भारी बोझ भी लाती है, और सुधार लाने के लए आलोचना मह वपू ण है, हमे ं इस बात पर अव य यान देना चा हए क या होता है जब प मी जगत भारत के आ तिरक मामलों मे ं ह त प े करता है। उदाहरण के लए : ी







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 यह पू छना ही चा हए क या भारतीय स य कायकता, जो घरेलू मामलों को अ तरा ीय मं चों पर ले जाते है,ं वे भारत के अपने कानू नी, राजनी तक और मानवा धकार के ढाँचों को कमजोर करते है।ं या भारत के घरेलू त को सुधारने पर यान के त करना बेहतर नहीं होगा ता क ल बे दौर मे ं जनता के अ धकार सुर त रखे जा सकें? या इन स य कायकताओं ने भारत के अपने त को कसी मामले मे ं समाधान के लए श स प बनाने के लए ं पया प से हर स भव यास कये है?   या कसी मु े का अ तरा ीयकरण जमीनी तर क सम याओं से हमारा यान हटाता है, और मामलों को उ तरीय मी डया आयोजन मे ं बदल देता है जो कुछ ‘मानवा धकार के अगुओ’ं के लए स लाता है, ले कन वा त वक सम या के समाधान के लए कुछ नहीं करता?   या वदेशों ारा ायो जत ऐसे ह त प े क ग त व ध भारतीय युवाओं मे ं बढ़े ँ ाती है, और भ व य मे ं अपनी सम या का समाधान हुए वलगाव तक पहुच वयं करने के लए ो सा हत करने के बदले वदे शयों पर नभरता क भावना लाती है?   या यह वदेशी मशनिरयों का काम आसान करता है, जो भारतीय समुदायों क पहचान बदलने के लए अपने कु नद शत काय से और अ धक सं घष पैदा ं करते है?   या मानवा धकार स ब धी स यता के भेष मे ं अ तरा ीय अपील का अ तत: प मी रा ों ारा भारत के व उपयोग कया जा सकता है, उसी तरह जैसा क अनेक अ य रा ों के व हुआ जनके व ान प म के ं उ पीड़न सा ह य को नगलते और उगलते है?   या उ पीड़न सा ह य कुछ अमरीक क र त यावा दयों के उस क पना लोक का पोषण करता है जसमे ं वदे शयों के त घृणा पलती है?   या इसका सम भाव भारत क अख डता को खतरे मे ं डालने वाली अपसारी श यों को धन दान करता है? ृ लाब च ११.४ इसक ं ख त या को दशाता है।

  इससे भी आगे, स पू ण वै क मानवा धकार उ ोग से कुछ और जाने चा हएँ : ी ं ी ी ी

न पू छे ही े

  या प मी सं थान भारतीय समाज क बीमारी का ‘ नदान’ कर पाने क ं यो यता रखते है?  अतीत मे ं तीसरे व के घरेलू मु ों मे ं प मी श यों ारा ह त प े करने का इ तहास या है? ं   वय भू ‘ च क सक’ के प मे ं वे कनके त उ रदायी है?   या शेष व क तुलना मे ं प म का मानवा धकार िरकाड बेहतर है? ं ा उनके अपने हत के लए न मत कया गया है ता क वे   या प मी एजेड दू सरे देशों क आ तिरक ग त व धयों मे ं ह त प े को उ चत ठहरा सकें?   या मानवा धकार क पिरभाषा और वषयों का चयन पू वा हपू ण है?   या व मणकारी भारतीय स य कायकताओं का इसमे ं य गत वाथ है? ऐसे न जहाँ बना वचार- वमश के रह जाते हैं वहीं मानवा धकार पर अनेक एकजुटताएँ अपसारी श याँ पैदा करती है,ं जो भारत को तोड़ने के लए दबाव बनाती है।ं कुछ मामलों मे ं इन श यों ने अपना ही जीवन हण कया है और उ हे ं सामा य या यहाँ तक क वां छनीय के प मे ं भी देखा जाता है। उदाहरण के लए, ईसाई चारक समू हों ारा उनका दु पयोग करने के ग भीर मामले भी सामने आये है,ं जो इस सम या को आ थक या ऐ तहा सक प मे ं नहीं देखते, ब क ु टयों से भरी ऐसी स यता के प मे ं देखते हैं जसे बेहतर आया तत स यता से बदला ही जाना चा हए। ये भारत के गरीब वग को उनके सां कृ तक ब धन से अलग करने मे ं काम आते है,ं और अ तत: एक रा -रा य के प मे ं भारत से। पू व र भारत मे ं यह या सबसे आगे चल रही है, जहाँ ईसाई चारक ग त व ध के उकसावे पर मू ल नवा सयों और वनवासी धम को अ वीकार करने क ग त व धयों के साथ ही अपने सं गी भारतीयों को ही अ वीकार करने तक क ग त व धयाँ चलायी गयीं और फर भारतीय गणरा य के व हं सा मक यु भी। इस पु तक के बाद के अ याय दखाते हैं क त मलनाडु इसी दशा मे ं खसक सकता है। अनेक भारतीय बु जीवी और आ दोलनकारी ऐसे भँवरों मे ं गर पड़े है,ं जब क वे अपने बारे मे ं क पना करते हैं क वे जमीनी तर पर मानवा धकार क थ त बेहतर बनाने मे ं सहायता कर रहे है।ं वैसे गठब धन जो थोड़े समय के दौरान लाभ द और भ दखायी देते हैं ल बे अस मे ं भारी नकारा मक पिरणाम वाले हो सकते है।ं इस पु तक के उ े यों मे ं से एक वतमान मे ं चल रही यापक भू -राजनी त क या या करना है ता क एक यापक स दभ मे ं मानवा धकार आ दोलनकािरयों को अपनी स ब ताओं का आकलन करने यो य बनाया जा सके। उ े य है श ा के े के कुछ लोगों और कुछ एन.जी.ओ. क ग त व धयों के काले प को उजागर करना।





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वै क बहस ु ं यकों क सेवा मे ं भारतीय अ पसं यक

खुले बाजार मे ं पहचान क होड़ के लए ह दू , मु लम, ईसाई और माओवादी लोभन, चार, राजनी तक सामू हक मतदान, और यहाँ तक क मुकदमेबाजी के साथ बाजार क ह सेदारी ा करने के लए पर पर पधारत है।ं जो भी हो, इन समू हों मे ं से अनेक वै क उ मों के थानीय सहायकों के प मे ं काय कर रहे है,ं जनमे ं से कुछ, अ य क तुलना मे,ं अपने वदेशी मू ल के सं गठनों के साथ यादा नकटता से जुड़े हुए है।ं इसका अथ यह हुआ क धन जुटाने, नेताओं क नयु , रणनी तगत योजना बनाने, यवहार मे ं लाये गये रणनी तगत समथन, और साथ ही साथ अ तरा ीय समाचार मा यम, जन स पक और राजनी तक पैरवी बहुधा वदेशी मु यालयों से कये जाते है।ं फर भी वै ीकरण के इस प क उतनी अ धक खबर नहीं ली जाती और उतनी नगरानी भी नहीं होती जतनी सामा यत: कारोबार मे ं लगे बहुरा ीय नगमों के लए क जाती है। मानवा धकार और धम उ ोग को नगरानी से मु रखा गया है और इस कार उ हे ं समान तर क पारद शता रखने के लए नहीं कहा जाता है। इसके पिरणाम व प अपसारी श यों को बल मलता रहा है जो सवा धक वप और भा वत होने वाले वग को अपने साथ मलाकर भारत को चुनौती देते है।ं अनेक हं सा मक सं घष हुए है।ं ता का लक प से इनके कसी वदेशी गठजोड़ से स ब होने का पता न भी लगाया जा सके, ले कन हं सा के बढ़ते हुए एक भाग को बौ क ह त प े ारा लाये गये पहचान पिरवतन के वल बत और मा य मक भाव के प मे ं देखा जा सकता है। आज व मे ं कहीं भी ब कुल अलग-थलग थानीय स दभ स भव नहीं है। हर क थत ‘ थानीय’ भारतीय मु े को एक या उससे अ धक वै क बहुरा ीय धा मक या मानवा धकार सं गठनों और/या कुछ वदेशी हतों के लए काम कर रहे ं ों मे ं शा मल कर लया जाता रहा है। यह वै ीकरण के एन.जी.ओ. ारा अपने एजेड उन छोरों मे ं से एक है जो यान मे ं कम ही आते है।ं द ण ए शयाई अ ययन के शोध समाना तर वै ीकरण को पहचानने मे ं वफल हो गये है,ं जो प मी चच , मानवा धकार समू हों, और सऊदी और ईरानी मदरसे फैला रहे है।ं भारतीय अ धकारी, अपने समक चीनी अ धकािरयों के वपरीत, इस पर यान नहीं देते क यह कस बात को य करता है : धा मक वत ता के नाम पर वै क व तारवाद या मानवा धकार। अमरीका और चीन दो मुख व श याँ हैं जो भारत को एक स भा वत त पध के प मे ं देखती है,ं और यह उनके लए ही फायदेम द है क वे नचले तबके के और अ पसं यक मु ों के नायकों क भू मका नभाये ं जो भारत को वख डत करते है।ं चीन के मामले मे ं जहाँ यह यापक प से वीकार कया जाता ै





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है, अमरीका के मामले मे ं इस पर सामा यत: चचा नहीं क जाती। अमरीका मे ं कुछ वशेष श याँ भारत को व भ टुकड़ों का एक असं गत ‘सीमा े ’ मानती है;ं इनके बारे मे ं बाद के अ यायों मे ं यापक चचा क जायेगी। इस कार, वदेशी धन को, जो नदशों, शोध, आ दोलनकािरता और कुछ वशेष मु ों के लए चार के साथ आता है, यह द शत करने मे ं स देह का बोझ ढोना ही पड़े गा क वह सा ा यवाद को आगे नहीं बढ़ा रहा। यह ज र सोचना होगा क सहज ही दु भा वत होने क स भावना वाले तीसरे व के ‘अ पसं यक’ लोग कहीं सा ा यवा दयों के लए अ तत: अ न छा से काम ं ों मे ं न बदल जाये ं और नये वै क ‘कुली’ और ‘ सपाही’ न बन जाये।ं करने वाले एजेट जहाँ एक वदेशी गठजोड़ भारी भाव डालता है, वहाँ या ‘अ पसं यकों’ का स भा वत पुनवग करण कसी बहुरा ीय उ म के शाखा कायालयों के प मे ं कया जा सकता है? यह ठ क ही होगा क अ पसं यक क पिरभाषा पर वचार कया जाये। अगर भारत मे ं कोई थानीय मैकडॉन ड के रे तराँ मे ं जाता है जसे हो सकता है क भारतीय समाज के कुछ न न तर के नवा सयों ारा ही चलाया जाता हो, तो इससे यह न कष नहीं नकाला जा सकता क यह एक ‘अ पसं यक’ या ‘ नचल तबके के लोगों’ का त ान है केवल इस लए क थानीय कमचारी अ पसं यक है।ं कोई भी य प त: समझ जाता है क यह एक वै क वशाल क पनी क एक थानीय शाखा है। यही आधार थानीय चच , मदरसों, और एन.जी.ओ. पर लागू कया जाना चा हए और इसी आधार पर थानीय ह दू म दरों और व ालयों पर भी वचार होना चा हए जो वदेशों मे ं थत उ मों ारा सं चा लत कये जा रहे है,ं चाहे वे कसी वशेष धम के यों न हों या उनका घो षत ल य कुछ भी यों न हो। जो नयम कसी बहुरा ीय उ म के शाखा कायालय पर लागू कया जाये, वही नयम द णी बै ट ट चच पर भी लागू होने चा हएँ, जो एक बहुत बड़ी बहुरा ीय सं था है जसका नागालै ड और त मलनाडु मे ं एक बड़ा नेटवक है, और उसक द ण भारत मे ं द सयों हज़ार चच क थापना करने क एक यावसा यक योजना है। उनके सद यों को अ पसं यक के प मे ं वग कृत करने के बदले हमे ं उ हे ं वै क बहुरा ीयों के शाखा कायालय या सहायक कहना चा हए। ऐसा यों है क अगर उपज को ‘ई र का म े ’ कहकर बेचा जा रहा है तो उस पर बहुरा ीयों के लए बनाये गये नयम लागू नहीं होते? कट प से ‘ई र का म े ’ नगरानी और पारद शता से मु है; चू ँ क यह गल तयों का शकार हो जाने वाले और मह वाकां ी मानवों ारा चलाया जा रहा है, इस लए यह रवैया भोलेपन क नशानी है। आव यकता यह है क अ पसं यक क अवधारणा को पुनपिरभा षत कया जाये, इन बातों को यान मे ं रखते हुए क : अगर कोई अ पसं यक कसी वदेशी वै क गठजोड़ के लए काम कर रहा है, उसे उनके ारा धन मल रहा है, उसे उनके ै ै े े

ारा नयु कया गया है, या उसे उनके ारा श त कया गया है तब वह वा तव मे ं अ पसं यक नहीं है। वह कसी बड़े उ म का एक भाग है। यह वै क उ म ही है जस पर अ ययन कया जाना चा हए; फर भी हम बराबर देखते हैं क श ाशा ी कसी अलग-थलग पड़े गाँव मे ं कसी क थत अ पसं यक समू ह पर यान के त करते है।ं

एक उदाहरण : अ

क -द लत पिरयोजना

जन मामलों मे ं दरार ऐ तहा सक प से ही अ त व मे ं रही है, उनमे ं भी वै क गठजोड़ों ने अलग-अलग है सयतों से अपने-अपने काय मों को आगे बढ़ाने के लए यान दया है। इसका एक अ छा उदाहरण है अ क -द लत पिरयोजना, जो भारत क वग वषमताओं का दोहन कर रही है और उ हे ं एक भ आलोक मे ं ढाल रही है। यह एक प मी पिरयोजना है जो इस पिरक पना को ो सा हत कर रही है क भारत के 20 करोड़ द लत न ली तौर पर अ कयों से जुड़े है,ं और क ऊपर तर के भारतीय ‘गोरे’ आय आ वासी/आ मणकारी है।ं इस कार, अमरीक दासता और उनके शोषण का इ तहास एक ढाँचा उपल ध कराता है जसमे ं द लत युवाओं को अ य भारतीयों के शकार के प मे ं फर से श त कया जाना है। प म थत बौ क नेत ृ व और भारत मे ं जमीनी सतह पर द लत गुटों के बीच एक भावशाली तर का सहयोग चल रहा है। उनक ग त व धयों ने ‘युवा सश करण’ काय मों को ऐसे तरीके के तौर पर शा मल कया है जससे एक व ेषपू ण, अलगाववादी पहचान क भावना उनके मन मे ं बैठायी जा सके जो भारत क स भुता के व काम करती है। ऐसे काय मों ारा पैदा कये गये द लत युवा नेता बाद मे ं वयं नये युवाओं को दी त करने के लए श क बन जाते है।ं इस अवधारणा को बैठाने के लए स मेलन आयो जत कये जाते हैं क वे सव-अ क एकता अ भयान के अं ग है।ं उसके बाद अनेक ऐसे समू ह या तो ईसाई चारकों के नशाने पर आ जाते हैं जो बीज बोने के लए अ क अमरीक मशनिरयों को इ तेमाल करते हैं या फर अ खल-इ लामी गुटों के नशाने पर जो इ लाम को व भर के कालों के लए स े धम के प मे ं था पत करते है।ं अ क -द लतवाद इस कार ल त समुदायों को उनक भारतीय जड़ों से अलग करने और आगे धमा तरण के लए उनको नरम बनाने क एक अ तिरम तैयारी का चरण है। इस कार, जो कभी भारतीय स यता के मू ल त वों के साथ एक गहरा, ऐ तहा सक अ क -अमरीक स ब ध था—जैसे क गाँधीवादी अ हं सक वरोध ं मा टन लू थर कंग, जू नयर ारा अं गीकृत क गयी सहम त न मत दशन और रेवरेड करने क या—वह सर के बल गर पड़ा है। भारतीय स यता को रे णा के एक ोत के बदले द लत जैसे भारतीय समू हों के क ों के कारण के प मे ं देखा जा रहा ै औ ें ै ै े ी ों े ो

है, और उ हे ं मथक य प से अ क -अमरी कयों के साथ जोड़ा गया है। शै क स ा त नमाण ारा ऐसे ख को स भव बनाया जाता है और उसे व सनीयता दान क जाती है, एक ऐसी या जस पर भारत ारा अ य प भाव डाला गया है। समान प से दमन का अ क -द लत मथक इ तहास के उस दृ कोण पर आधािरत है जो आय और वड़ों के बीच स यताओं के न ली सं घष का दावा करता है, जो क थत तौर पर हज़ारों वष पहले हुआ और जो आज भारत तथा अ का मे ं सामुदा यक स ब धों को एक व प दे रहा है। वड बना है क इस स ा त के लए बौ क समथन उ हीं शै क व ानों से आता है जो सैमएु ल हं टं गटन के इस स ा त क न दा करते हैं क आधु नक व व भ स यताओं के टकराव से त है, जनमे ं से एक—इ लाम और प म के बीच का टकराव— वतमान मे ं मुख है। वे यह तक देते हुए ऐसे स ा तों क न दा करते हैं क ये तनाव उ प करते हैं और राजनी तक प से खतरनाक तथा सामा जक प से वभाजनकारी है।ं फर भी भारत मे ं इसी कार के आ तिरक टकराव को मानवा धकार क अगुवाई के बहाने स य प से ो सा हत कया जा रहा है!8 अ क -द लतवाद भारत के मातहत समुदायों को भारत से अलग करने के लए चलायी जाने वाली अनेक ऐसी पिरयोजनाओं मे ं से एक है। ऐसे आ दोलनों का आधार पहचान क राजनी त का एक अ नय त वग करण है, ज हे ं उनके वदेशी गठजोड़ों ारा बहुधा सहयोग दया जाता है, बौ क गोला-बा द व श व ानों के काय से ा कया जाता है। भारत मे ं अलगाववादी आ दोलन ाय: व ानों क दु नया से नकले है;ं या अगर वे पहले से ही अ त व मे ं थे, तो यह व ता ही है जसने उनको व फोटक साम ी दान क है। इसका सार नीचे दया गया है :  जबसे नचले अधीन थ तबकों के यानी सब-ऑ टन अ ययनों ने मा सवादी वग सं घष के स ा तों को भारत पर लागू कया तभी से बौ क अलगाववाद भारतीय समाज व ानों और मान वक के व ानों के लए एक अ त न हत उ र-वृ ा त रहा है। इसने ‘ नचले तर से’ वैक पक इ तहास के वकास का पोषण कया, जो खास तौर पर यह द शत करने क ओर खसकता गया क गरीब और पदद लत भारतीय रा य के शकार है।ं   आ दोलनकािरयों ारा जब इन स ा तों का चार कया जाता है तब नये सा दा यक तनाव पैदा होते हैं और पुराने तनावों को ो साहन मलता है, जसके पिरणाम व प ‘युवा पहचान’ और ‘सश करण’ काय मों को दोबारा बल मलता है ज हे ं कभी-कभी मानवा धकार आ दोलनकािरयों के आवरण मे ं रखा जाता है। े











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  ये अ तत: अलगाववादी या/और अ धनायकवादी आ दोलन बन जाते है,ं ठ क वैसा ही जसने भारत मे ं नागालै ड आ दोलन को ज म दया और जसक वजह से इ डोने शया से ई ट तमोर वत हुआ।  वे व ेष क भावना से त युवा नेताओं का पोषण करते हैं ता क वे भारतीय रा -रा य को अपने मुख श ु और दमनकता के प मे ं देख।े ं यह या अनेक कार से अफगा न तान मे ं ता लबान के ज म जैसी है, और इसी तरह के अ भयान मु लम युवाओं के बीच भी चलाये जा रहे है।ं   यह वह बौ क पाइपलाइन है जो भ व य के आतं कवा दयों क नचली धाराओं को स ा त उपल ध कराते है।ं जब तक क धरातल पर भौ तक प से हं सा का कटीकरण नहीं होता, सुर ा व लेषणों के राडार से अ धकां श ऐसी ग त व ध ओझल ही रहती है। वा तव मे,ं अनेक व ान जो य या परो प से ऐसी अलगाववादी पहचानों क अगुवाई करते है,ं वे (या उनके व ाथ ) वही हैं जो पिरणाम व प हुई हं सा का व लेषण वष बाद करते है।ं तब तक अलगाववादी और भारतीय सेना/ पु लस दोनों यादती और उ पीड़न कर चुके होते है,ं जो फर जाँच का वषय हो जाता है।  एक नया और सू म उ पीड़न सा ह य द ण ए शयाई अ ययन क एक वधा बनकर उभरा है, और व ानों को वदेश या ाओं, नौकिरयों, पु तकों के काशन, पुर कारों, मानवा धकार स मेलनों मे ं भाग लेन,े और अमरीक सरकार के सम सा य तुत करने के लए व भ धनदाता ोत उनको ं ।े समथन देते है।ं आने वाले अ यायों मे ं इनके अनेक उदाहरण दये जायेग

े के लए पहचान क दरारे ं प मी ह त प उन शै क स ा तों के, ज हे ं प मी त ानों मे ं बनाया गया, राजनी तक उ े य हैं और साथ-ही-साथ धरातल पर उनके भाव भी। भाषा व ान और ाचीन कालजयी त मल सा ह य जैसे वभाग भारत मे ं और अ धक वख डन का आ व कार करते हैं या जो अ त व मे ं हैं उनको और गहरा करते है।ं भाषा व ान के त जो दृ कोण अपनाया गया वह एक जातीय-भाषावै ा नक वृ ा त रचता है जो द ण भारत क अलगाववादी राजनी त को और बल देता है, जसके लए औप नवे शक काल मे ं बनायी गयी न ली े णयों का उपयोग कया जाता है। अलगाववादी राजनी त आगे चलकर यापक जनसं हार का प हण करने वाले एक मुख जातीय यु मे ं बदल सकती है, जैसा क ीलं का मे ं सं हली-त मल सं घष के वषय मे ं देखा गया। भारत मे ं सं थानों के साथ-साथ य वशेष भी जातीय-राजनी तक आ दोलनों मे ं भागीदार बनने के लए शु शै क काय क सीमा को लाँघ जाते है।ं वा सयों को उनक वशेष भाषा के आधार पर एक अ तरा ीय पहचान बनाने के लए ो सा हत कया ै औ



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जाता है, और इसका उपयोग भारत मे ं अ मता स ब धी मतभेद को उकसाने के लए कया जाता है। अ तरा ीय सं थागत नेटवक भारतीय सहायकों वाले अ तरा ीय ईसाई चारक सं थानों के साथ मलकर काम करते है।ं

भारत का पुन: औप नवेशीकरण यू रोप मे,ं जहाँ भारत क औप नवे शक छ व के अवशेष पहले ही से जनमानस मे ं गहरे बैठे है,ं ईसाई समू हों ने टेन और यू रोपीय महा ीप के समथन देने वाले नेटवक के साथ मलकर द लत हरावल सं गठन था पत कर लए है।ं वे सरकारी उ ा धकािरयों, सं य ु रा सं घ और यू रोपीय यू नयन के त ानों के सद यों और अ धकािरयों, और उनके साथ-साथ राजनी तक पटल के सबसे दू र थ कनारों के उ पिरवतनवादी राजनी त ों का पोषण करते है।ं वे उ हे ं लगातार उ पीड़न सा ह य और ै ा कराते हैं जो वासी भारतीयों को नीचा दखाते हैं और ववादा पद अ ययन मुहय नकारा मक ा पों को फर से सामने लाते है।ं वे अकादमी मे ं भी स य हैं जो वयं को भारत के अ ययन के लए मा यम के प मे ं तुत करते है।ं इस तरह वे एक आ दोलनकारी-शै क भारत वरोधी गठजोड़ का माग श त करते है।ं कुल मलाकर, ये सब सं य ु रा सं घ के त ानों मे,ं 2001 मे ं हुए डबन स मेलन जैसे रणनी तगत आयोजनों, और यू रोपीय यू नयन क सं सद सरीखे त ानों मे ं एक सश भारत वरोधी तक देने वाला समू ह बनाते है।ं

एक ‘ईसाई उ मत’ प मी सरकारों और समाचार सं गठनों के समथन का उपयोग करते हुए अ तरा ीय ईसाई चारक सं गठन भारत मे ं कुछ समय से भारी व ीय नवेश करते हुए सं थानों के एक वशाल नेटवक का नमाण कर रहे है।ं उन सं थानों से अलग जो आ दोलनकािरयों को एक व प देते हैं और उ हे ं नय त करते है,ं एक उ साही मी डया का ढाँचा भी बनाया जा रहा है, जो प म के ईसाई चारक द णप थी मी डया से जुड़ा है, वशेषकर अमरीका के। इसके पिरणाम को एक ईसाई शोधकता ‘ईसाई उ मत’ कहते हैं और जो स वेदना और व ीय तर पर प म से बँधा हुआ है।9 च 11.5 व भ श यों क स अलग-अलग वचार कया जायेगा।

यता को दखाता है, जन पर शेषपु तक मे ं

 



12 क -द लत आ दोलन

हमने पहले ही देखा है क शै क अ ययनों, ईसाई चारक मह वाकां ाओं और शास नक पिरयोजनाओं ने मल कर सश न ली पहचान और अ तर पैदा करने के लए काम कया, जो पहचाने ं और वभाजन वक सत होकर वड़ अलगाववाद मे ं पिरणत हो गये थे। हम इसके समाना तर द लत सश करण आ दोलन मे ं उसी कार के त वों को पाते है।ं मू ल प से ‘टू टा हुआ’ और ‘अछूत’ अथ वाला श द ‘द लत’ एक पार पिरक सामा जक आ थक है सयत का ोतक है। द लत स पू ण भारत मे ं पाये जाते हैं और उनक कोई एक जातीय या धा मक वरासत नहीं है। फर भी हाल मे ं वण- यव था को ‘न ल’ के वचार के साथ मला दया गया है, जो अपने उ भव के लए प मी बाइबल के हामी मथक का ऋणी है। इस कार द लतों मे ं लगातार बनी रही गरीबी के लए न लवाद को दोषी ठहराया जा सकता है जसे आय के आ मण और ा णों ारा शोषण क कथाओं से जोड़ दया गया है। पहचान के सृजन के इस ा प ने रवा डा मे ं जनसं हार तक और ीलं का मे ं गृह ँ ा दया। टमोथी लौंगमैन ारा लखी हाल क एक शै क पु तक, यु तक पहुच ‘ईसाइयत और रवा डा मे ं जनसं हार’ उस देश मे ं जनसं हार के लए चच से स ब धत कारणों पर कये गये शोध पर आधािरत है।1 पिर श ‘‘ग’’ यह दखाने क लए रवा डा के जनसं हार पर व तार से चचा करता है क कस कार बाइबल के मथक, औप नवे शक आव यकताएँ और प मी दु ताएँ उस वृ ा त को रचने के लए एक साथ मल गयीं जसके पिरणाम व प जनसं हार हुआ। औप नवे शक शासकों ारा वक सत क गयी सामा जक-राजनी तक कथा और रवा डा तथा द ण भारत के ईसाई चारक सं थानों के बीच आ यजनक समाना तरों पर अब वचार कया जायेगा, यों क वे इस बात क कड़ी चेतावनी देते हैं क भ व य मे ं भारत को कन चीजों का सामना करना पड़ सकता है, खास तौर पर अगर ये श याँ नबाध प से अपनी ग त व धयाँ जारी रखती है।ं

आय/ वड़ और हटु /ु टु सी समाना तर (Hutu-Tutsi Parallels)

द ण भारत और रवा डा दोनों मे ं दो थानीय समू हों के आपसी स ब धों क पुन या या एक न लवादी ढाँचे मे ं ष के स ा त के साथ और एक समू ह को धू त और ष कारी के प मे ं नकारा मक ा प, तथा दू सरे को शु और भोलेभाले शकार के प मे ं पेश करने के लए क गयी। भारत मे ं इस कार का वचार दनों दन और अ धक व तािरत और अ तरा ीयकृत हो रहा है, और उ पीड़न के े

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सा ह य के प मे ं वक सत हो रहा है। च 12.1 दखाता है क कस कार रवा डा ा प द ण भारत मे ं समान प से उभरते माहौल मे ं त ब बत होता है। Fig 12.1 रवा डा के नरसं हार मॉडल का आयात

  हमने देखा क वड़ राजनी त पछली लगभग एक शता दी से आय/ वड़ न ल स ा त और दु ा णों क पिरक पत छ व ारा स पो षत क जाती रही है। इसने पिरणाम व प त मल समाज मे ं घृणा उ प क है, जो व भ प मी एजे ं सयों से य समथन ा करती है। शै णक जनों और आ दोलनकािरयों के बीच सहयोग था पत हो गया है जो भारत मे ं द लतों और सं य ु रा य अमरीका मे ं अ त े ों के बीच समाना तर क खोज मे ं लगा हुआ है, और जो द लतों और अ त े ों के बीच साझे न ली मू ल का दावा भी करता है। यह उ ीसवीं शता दी के न लवाद का ही एक उ टा सं करण है जसके साथ अ त े मु आ दोलन मले हुए है।ं इस पिरक पना पर आधािरत द लत स यतावाद को प मी ईसाई चारकों, वामप थी उदारवादी एन.जी.ओ., और सरकारी सं थानों से समथन मलता है। अ क -द लत पिरयोजना के तावक दावा करते हैं क ह दू धम का एक न लवादी ढाँचा है। इसे बहुधा शै क-जातीय ों



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अ ययनों, सब-ऑ टन अ ययनों और धमशा ीय आ दोलनकािरयों ारा समथन दया जाता है। न न ल खत उ रण सं प े मे ं बताता है क रवा डा के हुट ु समुदाय के लोगों को टु सी समुदाय के लोगों के बारे मे ं या पढ़ाया जाता रहा था : ‘टु सी’ आ मणकािरयों ने उस भू म को जीत लया जो कभी ‘हुट’ु समुदाय क थी। ले कन उ होंने यह क जा सफ हं सा के साधनों ारा नहीं कया। और यहाँ से ार भ होते हैं ‘टु सी/हुट’ु जोड़ी के दू सरे तर के अथ : उ होंन,े टु सयों ने, छल ारा ऐसा कया; ... टु सयों के आने के पहले हुट ु तो हुट ु थे ही नहीं; वे केवल अबं टू थे ... जसका अथ क डी मे ं ‘बं ट ु जन’ या सीधे-सीधे ‘मानव’ होता है।... हुट ु नाम, शरणा थयों ने कहा, टु सी ारा उ र मे ं उनके नवास थल से आयात कया गया था जसका अथ होता है ‘दास’ या ‘नौकर’। इस कार ... ‘हम उनके दास बन गये’।2 यह आ यजनक है क उपयु अं श उस वभाजनकारी इ तहास से लगभग मलता-जुलता है जसे लगभग डे ढ़ सदी पहले भारतीय स दभ मे ं कॉ डवेल ने लखा था। अगर टु सी के थान पर आय लख दया जाये और हुट ु के थान पर वड़, तो यह मथक वही हो जायेगा जो कॉ डवेल ने द ण भारत मे ं लखा था। ... ा णों ने अपनी तेज वता और शास नक मता ारा उ त ा क । ... ा णों ने जो ‘शा त से आये और चापलू सी से रा य हा सल कया,’ स भवत: वड़ों को राजी कया होगा क उ हे ं शू कहकर वे उनको एक स मान का पद दे रहे थे। अगर ऐसा था तो उनक नी त पू री तरह सफल हुई; यों क शू के पद का वरोध वड़ वण ारा कभी नहीं कया गया है।3 द ण भारतीय वड़ों को उ र भारतीय आय के शकार के प मे ं च त करने वाले कॉ डवेल के शोध को ई.वी. रामा वामी (ईवीआर के नाम से लोक य) ारा एक सामा जक आ दोलन मे ं बदल दया गया था।4 ईवीआर ने आगे न ली शाखाओं को वक सत कया ज हे ं कॉ डवेल ने रोपा था और उ हे ं य प से न ली घृणा मे ं बदल दया, और उ र भारतीयों के व वड़ों के उठ खड़े होने का आ ान कया : सा थयो, हम मू ल नवासी हैं और उस न ल के वं शज हैं जसने इस भू म पर शासन कया था। हम गव, साहस, तेज वता, श और स यता मे ं कसी अ य न ल से नीचे नहीं है।ं फर भी बबर, घुम तू , काम नहीं करने वाली न ल के दू सरों क स प ह थयाने वाले एक छोटे समू ह ने हमे ं हज़ारों वष से गुलाम बना रखा है। इस अ पसं यक न ल के पास तलवार जैसा कोई ह थयार नहीं था। फर भी उ होंने हमे ं पशुओ ं के तर तक गरा दया जब क उ होंने अपने लए अथ यव था, राजनी त और धमशा ा कये।5 ई ी





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ईवीआर ने तो ा णों के व अ य त हं सा का तक दया और जातीय सफाये क ओर सं केत भी दया। जेकब पा डयन ने कहा : उनका मु य स ा त था क ा णों ने वड़ सं कृ त को वकृत कया, जसने फर गैर- ा ण युवाओं का हौसला प त कया; और यह क वड़ सं कृ त को उसके अशु तर से उबारने के लए ा णवादी पुरो हती और सं कृत धम थीय पर परा को न कर ही दया जाना चा हए और ा णवादी धा मक तौर-तरीके से चलने वाले लोगों को वड़-त मल समाज से न का सत भी कर देना चा हए।6 भारतीय मामलों के जानकार एक अ त-स मा नत प मी मानवशा ी, लॉयड डॉ फ (Lloyd Rudolph) ने इस आ दोलन ारा पैदा क जा रही हं सा क या या करते हुए लखा : कुछ अवसरों पर, डीके ( वड़ कड़गम) नेता ई.वी. रामा वामी नायकर ने ा णों क ह या और अ हरमों (क़ बों और शहरों के ा ण नवास थलों) के जलाये जाने का आ ान कया है ... वड़ आ दोलन क लोक यता के इन व भ त वों को एक साथ जोड़ दया गया है और इ हे ं ा ण- वरोधी ष और दानवीकरण के वषयों ारा सम सं ग त दान क गयी है।... आ दोलन वयं को सीधी कारवाई मे ं भी अ भ य करता है। हाल के वष मे ं ई.वी.आर. और डी.के. ने रेलबोड पर ह दी मे ं लेखन को मटाने, राम के पुतले जलाने और ह दू देवी-देवताओं क ‘मू तयाँ’ तोड़ने, भारतीय झ डा जलाने, या ‘होटलों’ (कॉफ हाउसों और रे तराओं) मे ं ा ण लखे होने को हटाने या मटाने, भारतीय सं वधान क तयाँ जलाने, गाँधी क मू तयाँ न करने और भारत का मान च जलाने जैसे आ दोलन चलाये है।ं 7 ा णों क न ली श ु के प मे ं बनायी छ व त मलनाडु मे ं इ तहास क पा पु तकों मे ं नल ज ढं ग से पायी जाती है, वशेषकर ईसाई लेखकों ारा लखी पु तकों मे।ं उदाहरण के लए, ‘2000 तक त मलनाडु का इ तहास’ त मलनाडु के अनेक महा व ालयों के ातक और ातको र क ाओं के लए नधािरत पा पु तक है। एन.एम. यन कॉलेज के इ तहास वभाग के अ य ारा लखी गयी यह पु तक बलकुल स य क तरह यह पढ़ाती है क ा ण त मलनाडु के बाहर से आये और उ होंने वयं को अपने धम और त मल राजाओं से नकटता के मा यम से े तर थ त मे ं था पत कर लया : सं गम शासकों ने आयकरण को अ य धक मह व दया। उ श ा ा ा णों ने शासकों को भा वत कया और धीरे-धीरे राजनी त और धम पर अ धकार कया। इसने ा णों क थ त को और अ छा बनाया। जब म दरों और राजनी त क ग त व धयाँ बढ़ीं, ा णों क माँग भी बढ़ गयी। इस लए त मलनाडु मे ं इसके उ री भागों से अ धका धक ा णों को आम त कया ों







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गया। ा णों क अलग सं कृ त और भाषा थी। उ होंने त मलनाडु के लोगों को अपना श ु समझा। ... वे थानीय लोगों के साथ कभी घुल-े मले नहीं और एक अलग जीवन जया। ... म दरों मे ं काम करने वाले ा णों ने धा मक पू जा मे ं आय के आगम स ा त को लागू कया। एक छोटे-से अस मे ं ही पू जा क प त का भी आयकरण कर दया गया। ...इस कार ा णों ने भू प तयों क तरह काम कया और सभी कार के राजनी तक और धा मक वशेषा धकारों का आन द उठाया। उ होंने सामा य लोगों को दबाया और उनके साथ दास क तरह यवहार कया।8 ा णों के इस तरह के नमू ने को और बार बार बल दये गये इस कथन को क ह दू धम और कुछ नहीं ब क त मलों को दास बनाने के लए गढ़ा गया था, त मल राजनी त, श ा और समाचार मा यमों मे ं सभी तरों पर लागू कया जाता है।



क - वड़ आ दोलन को अमरीक इ तहास ारा पिरभा षत करना

दासता से मु के बाद जब अ क -अमरी कयों ने अपनी अ क वरासत को सुधारना चाहा, उ होंने मु य प से अ त े चच के सं थानों के मा यम से बाइबल क कथा को अपने ढं ग से अपना कर ऐसा कया। जॉज वे स पाकर (George Wells Parker, 1882-1931), एक अ क -अमरीक स य राजनी तक कायकता, ने ‘नी ो लोगों को नयी आशाओं से उ िे रत करना; उ हे ं अपनी न ल और धा मक वकास तथा मानव स यता मे ं इसके महान योगदान पर गौरवा वत करना चाहा’।9 इस उ े य के लए उ होंने 1917 मे ं एक सं गठन क थापना क , और उसका नाम ‘है म टक लीग ऑफ़ द व ड’ रखा। इसका उ े य था बाइबल के ढाँचे का उपयोग करते हुए हैम के वं शजों के एक सकारा मक व इ तहास का सृजन करना। अ त े स ा तकारों ने भारत मे ं इसके समाना तरों क खोज करनी शु कर दी। गोरे-आय-बबर- ा ण-धू त-आ मणकारी बनाम मू ल नवासी-भोले-भाले-स य-कालेवड़ के मथक को बल दया गया। ु सला ड जी हू टन (Drusilla Dunjee Houston, 1876-1941), एक अ त े बै ट ट म ी क बेटी, इस अ खलअ क वाद ((pan-Africanism) को लोक य बनाने वाले सबसे ार भक य वों मे ं से एक थीं। उ होंने वड़ों क पहचान इस प मे ं क क वे ‘इ थयो पया के कुशाइट समुदाय के ल णों और उनक थाओं से मलते जुलते’ थे : ा ण स भवत: काफ देर से आये और ह दू -कुश के नवा सयों क मलीजुली शाखा के थे। वे मली-जुली न ल के थे यह बात हम उनक ू रता के आधार पर कह सकते है।ं शु कुश समुदाय के लोग बड़े भ होते है।ं ... ये वड़ ... अ म त कुश समुदाय को ही ो तत करते है।ं ... वे उस पुरानी न ल क आगे बढ़ती हुई लहर का ही एक भाग थे जसने पू व और प म क ओर व तार पाया और ज होंने आ दम अरब, म और चा डया को आबाद कया।10 ै े

यह अ खल-अ क मथक दावा करता है क कस तरह ‘मू ल’ अ क अनेक मामलों मे ं े थे, ले कन धू त आय- ा णों के छल ारा जीत लये गये। कालीचमड़ी वाले वड़ों को गोरी-चमड़ी वाले आय- ा णों ारा मातहत बनाये जाने का यह मथक वष बीतने के साथ-साथ श ा के े से परे जाकर अमरीक वदेश नी त मे ं फैलता चला गया। उदाहरण के प मे,ं वष 1968 मे,ं सं य ु रा य अमरीका के वदेश वभाग के सुर ा मामलों के भारी एक पू व सहायक स चव से जब भारतीय वण- यव था के बारे मे ं पू छा गया तो उ होंने वड़ों क तुलना एक उदाहरण के प मे ं काली-चमड़ी वाले नी ो से क जो वण- यव था क एड़ी तले थे।11 बाइबल के हैम मथक को अ खल-अ क आ दोलन ारा त े े ता का मुकाबला करने के लए अ त े े ता को दखाने के उ े य से एक ढाँचे के प मे ं अपनाया गया है। इसका एक उदाहरण 2002 के लए अ कान इ तहास (Afrikan History) वषयव तु रोज़नामचा है, जसका काशन नॉ टं घम थत ऐ कन कॅरीबीयन क चरल एजुकेशन स वसेज (ACCES) ारा कया गया था। यह रोज़नामचा मू लत: अ खल-अ क आ दोलन के लए, जो अ ाहम के ढाँचे मे ं काय कर रहा था, एक चार उपकरण मा था। यह धमशा , जो मा’आट के प मे ं जाना जाता है, दावा करता है क ईसाइयत काली है, क अ का ही दस नदशों का ोत है, और यह क ‘यहू दी धम, ईसाइयत, इ लाम और बौ धम क नींव ाचीन केमेट ( म ) तक खोजी जा सकती है’।12 उ रोज़नामचे मे ं मुआ ए बी क एक पु तक पर आधािरत म के योग पर एक भाग है।13 इस पु तक का उ रण देते हुए कैरो लन शोला अरेवा लखती हैं : योग ार भ करने वाले लोग वे हैं ज हे ं वड़ के नाम से जाना जाता है। ये अ क लोग म से गये और अपने साथ अनेक आ या मक थाएँ भी ले गये। इन ाचीन आ या मक थाओं को भारतीय आ या मक थाओं के साथ एक कर दया गया और आगे वक सत कया गया जसे आज हम योग के प मे ं जानते है,ं जो व भर मे ं लोक य हो गया है।14 ‘बु के उपदेश’ (The Buddha’s Teaching) शीषक के तहत यह कहता है : भारत के सबसे पुराने नवासी काले अ क थे, व ास कया जाता है क वे इ थयो पया से आये थे, और ाय: उ हे ं वड़ कहा जाता है। वे अपने साथ अनेक आ या मक व ान लेकर आये जनका उ भव अ का मे ं हुआ था। योग, कु ड लनी, रे ले टोलॉजी। बु , शया आ द काले स त थे जो कुशाईट स यता के वं शजों से नकलकर ऊपर उठे , जनमे ं राजा अशोक भी शा मल थे। यह अं श आगे यह भी कहता है क बु ने मू त पू जा करने से मना कया।15 रोज़नामचा इस बात पर बल देता है क बाइबल का उ भव अ का मे ं हुआ।16 रोज़नामचा यह भी दावा करता है क अ कयों ने सं ध ु घाटी स यता का नमाण औ









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कया और गं गा का नाम इ थयो पया के उस राजा के नाम पर रखा गया ज होंने भारत को जीता।17 वड बना है क, हालाँ क हैमी मथक अ कयों के दमन के लए उपयोग मे ं लाया गया है, अनेक अ क अपने सश करण के लए इसे अपना लेते है।ं अ का के त Institut Fondamentald’Afrique Noire/Institut Francaisd’Afrique Noire (IFAN), जसक थापना औप नवे शक ां सीसी अ का मे ं हुई थी, अ क - वड़ स ा त के समथन मे ं शोध प का शत करता है।18 फर ये शोध प लाइड अहमद ि◌ंवटस सरीखे अ का के त स ा तकारों ारा सा य के प मे ं ‘ वड़ और अ क भाषाओं और सं कृ तयों क वं शानुगत एकता’ (The Genetic Unity of Dravidian and African Languages and ं ’ (Are Dravidians of African Culture),19 ‘ या वड़ अ क मू ल के है? 20 ृ कये जाते है।ं सन 1980 के Origin ) आ द, जैसे शीषकों वाले शोध प ों मे ं उ त दशक के दौरान, उनके शोध भारत क शै क शोध प काओं मे ं थान पा गये, और उ हे ं द ण भारत के शै क त ानों मे ं अ य धक वीकायता मली। उनके लेख ‘ता प ों क हड़ पाकालीन लखावट’ (The Harappan Writing of the Copper Tabletss) का काशन जनल ऑफ़ इ डयन ह ी मे ं कया गया। ‘ वड़ों, मै डं ग और सुमिे रयाइयों क आ सं कृ त’ (The Proto-Culture of the Dravidians, Manding and Sumerians) शीषक लेख एक शै क शोध प का त मल स वलाइज़ेशन मे ं का शत कया गया।21 ‘ स धु घाटी क लखावट और तीसरी सह ा द ईसा पू व से स ब धत आलेख’ (The Indus Valley Writing and Related Scripts of the Third Millennium BC)22 का काशन इ डया पा ट ए ड ज े ट े ं मे ं कया गया, ‘त मलों का सुदूर पू व उ भव’ (The Far-eastern Origin of the Tamils)23 का काशन जनल ऑफ़ त मल टडीज24 मे ं कया गया। व टस ाचीन व का एक च बनाते हैं जसमे ं वड़ न लीय और भाषाई प से व भ अ क समुदायों और साथ-ही-साथ ाचीन सुमरे और ईलम समुदाय के सम प है।ं उनके स ा तों को अनेक शै क व ान ‘मू खतापू ण’ मानते है,ं फर भी वे त मलों के बीच भावी रहे है।ं 25

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का धमशा

भारत मे ं अमरीक अ त े धमा तरण ारा नभायी जा रही भू मका के कारण, यह उपयोगी होगा क म त मा सवादी-ईसाई स ा त क सं ववेचना क जाये, जो अमरीका मे ं उ तरीय अ त े ों के बीच मुख है। अमरीका मे ं दासता काल के दौरान, गोरे लोग शु मे ं दासों का धमा तरण कर उ हे ं ईसाई बनाने के बल वरोधी थे, यों क : े



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1. भय था क वे धा मक सं गठनों का उपयोग आवरण के प मे ं दासता के व ष करने के लए कर सकते है।ं 2. कुछ ईसाइयों ने दावा कया क ईसाई अ य ईसाइयों को दास नहीं बना ँ ा सकती है; और सकते और इस कार ईसाइयत दास था को नुकसान पहुच 3. अनेक त े इस सुझाव पर ही पीछे हट गये क अ त े भी वग जा सकते है,ं उनके पड़ोसी बन सकते है,ं वशेषकर इस ईसाई व ास के आलोक मे ं क लोग वग मे ं उसी शरीर मे ं रहते हैं जस शरीर मे ं वे इस धरती पर रहते है।ं कुछ त े ों ने तो यह तक देने का भी यास कया क अ त े सामा य मानवों से नीचे है।ं ले कन 1700 के दशक क शु आत होते-होते, अमरीक दासों के वा मयों ारा धमा तरण पू री तरह जारी था, यों क उस समय तक ईसाइयत क पुन या या दासता को न न ल खत आधार पर उ चत ठहराने के लए क जा चुक थी : 1. दासता का अ भशाप ‘हैम के पु ों’ पर था, जनक या या अ त े ों के प मे ं क गयी; 2. दासता को एक धा मक अ छाई माना गया, यों क इसने अ का से ँ ा दया, जहाँ वे धमा तरण कर असुर त मू तपू जकों को ईसाई अमरीका पहुच सकते थे और मृ यु के बाद वग मे ं सुर त कये जा सकते थे; और 3. दासता से मु का मह व नहीं था, यों क वग मे ं जो पुर कार उनक ती ा कर रहे हैं उनक तुलना मे ं धरती पर जीवन कोई मह व नहीं रखता। 1700 के दशक के म य तक अमरीक दासों ने पू जा करने के लए छपकर मलना ार भ कर दया था, यों क त े ों के चच मे ं वे अपने वा मयों के आगे डरादबा महसू स करते थे। उ होंने ई र क पुन या या म े करने वाले एक पता के प मे ं क , और व ास कया क उसक ाथना करना उ हे ं ठ क उसी कार दासता से मु कर सकता है जैसा क उसने इजरायल को म क दासता से मु कया था। वग का अथ वतमान शरीर मे ं मु क एक अव था से लया जाने लगा, और अपने वा मयों को म मे ं डालने के लए दास अपने गीतों मे ं व भ कूट स देशों का उपयोग करने लगे, ता क कोई स देह उ प न हो। 1900 के दशक क शु आत मे ं श त अ क अमरी कयों के बीच नयी सुगबुगाहट दखायी दी, जैसे ‘अ त े लोगों के धमाथ रा ीय सं घ’ (National Association for the Endowment of the Coloured People) क थापना, जो नागिरक अ धकार आ दोलन मे ं एक मह वपू ण भागीदार था, जसका फल अ तत: 1960 के दशक मे ं जाकर मला। अ त े मु के धमशा के अगुवों ने दावा कया क बाइबल मर हत और अचू क नहीं है, और वह अ रश: माने जाने के लए नहीं है, और ईसा मसीह ही एकमा स े रह यो घाटन थे। इसने उ हे ं बाइबल के अनेक ं ै ी ों े ें ै ी ी े े

न लवादी व यों से, जसमे ं हैम स ब धी कथा भी शा मल है, सामं ज य बठाने के यो य और इसके बावजू द वे ईसा मसीह के जीवन के उदाहरणों के अनु प ईसाइयत को वीकार करने के यो य बनाया।26 उ होंने यह श ा देना ार भ कया क बाइबल का उपयोग अ रश: नहीं, ब क ईसा मसीह के जीवन मे ं अथ के ‘सं केतक’ के प मे ं कया जाना चा हए। अमरीक अ त े श — लैक पावर—आ दोलन ने जो 1960 के दशक के म य मे ं खड़ा हुआ था, श त म यवग य अ त े पादिरयों मे ं एक नया धमशा बनाने के त च पैदा क । इसने इ लाम से आयी चुनौ तयों का सामना कया और इसके व ा मै कम ए स ने तक दया क ईसाइयत एक ‘दास धम’ है। अ त े मु का धमशा बाइबल के ढाँचे मे ं मा सवाद को लागू करने के एक ईसाई तरीके के प मे ं उभरा। इस धमशा मे ं ‘अ त े ’ और ‘ त े ’ श द चमड़ी के रं ग से जुड़े हुए नहीं है, ब क मा सवादी वग —द मत और दमनकारी—के समाना तर श द है।ं ये वग करण चािर क झानों को भी वग कृत करते है।ं त े बीमारी और दमन का तीक है, न क चमड़ी के रं ग का, और एक त े -चमड़ी वाला य अ त े भी हो सकता है अगर वह स ा त प से दमन का वरोध करता है। अ त े मु का धमशा सा य के लए याहवह (बाइबल के ई र) क सामा जक, आ थक और राजनी तक अ याय के त च ताओं क ओर देखता है। यही ई र अब द मत अ त े ों क मु के लए कायरत है, और चू ँ क ई र द मत अ त े ों क सहायता कर रहा है, उसे ‘अ त े ’ माना जा रहा है। ईसा मसीह को भी अ त े के प मे ं या या यत कया गया है, और इस लए वे उन सभी लोगों के लए सावभौ मक मु के तीक बन गये हैं जो द मत है।ं ई र का आ दोलनकारी प मु क रे णा देता है, एक वग य अव था के प मे ं नहीं, ब क इसी धरती पर सामा जक, आ थक, और राजनी तक वत ता ं एक वचार जो ईसाइयत क तुलना मे ं मा सवाद के अ धक नकट है। के प मे— वयं को मु कराने के लए अ त े ों को स य होना होगा, जसमे ं अपिरहाय थ त के आने पर ‘कुछ’ हं सा का भी उपयोग शा मल है। यह मानव स यतावाद पर बल देता है, दैवी सहायता पर भरोसे का नहीं। मा सवाद का ववाह ईसाइयत से कर दया गया है, जसका आधार यह धमशा ी दावा है क बाइबल के ई र और ईसा मसीह ने हमेशा द मत लोगों क सहायता क । अ त े मु का धमशा वभाजनकारी हो सकता है, जैसा क अ णी अ त े मु धमशा ी जे स कोन के मू ल स देश के न न ल खत उ रण मे ं दशाया गया है : अ त े धमशा एक ऐसे ई र को मानने से अ वीकार करता है जसक पहचान अ त े समुदाय के ल यों के साथ पू री तरह नहीं क जाती। अगर ई र हमारे लए और त े लोगों के व नहीं है, तब वह एक ह यारा है, और अ छा होता क हम उसे मार डालते। अ त े धमशा का नधािरत काय है उन ई रों को मार ो





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डालना जो अ त े समुदाय के नहीं है।ं ... अ त े धमशा केवल ई र के म े को वीकार करेगा, जो त े श ु के वनाश मे ं भाग लेता है। हमे ं जस चीज क आव यकता है, वह है द य म े , जसक अ भ य अ त े श मे ं हुई है, जो क अ त े लोगों क अपने दमनकािरयों को न करने क श है, यहाँ और अभी कसी भी मा यम से। जब तक क ई र इस प व ग त व ध मे ं भाग नहीं लेता तब तक हमे ं उसके म े को अ वीकार कर देना चा हए।27

े मु भारत मे ं अ त

के धमशा

का द ु पयोग

अ त े धमशा का एक ऐ तहा सक कारण है जो द मत अ त े अमेिर कयों क आव यकताओं का पू रा करता है। ईसाइयत को बाइबल क अ रश: या या से अलग करना एक महान उपल ध थी। ले कन कई कार से यह बाइबल के न ली अनु म को केवल उलट देता है और अ त े ों को ई र के ‘स े प मे’ं चय नत लोग बनाता है। इन वचारों को भारत नयात करना परेशानी-भरा काम है, वशेषकर चू ँ क इसे उन सं गठनों ारा कया जा रहा है जो वयं े तावादी हैं और जनका ं ा है। व तारवादी एजेड उदाहरण के लए, भारत मे ं इस धमशा के चारक त े ईसाई चारकों को भी शा मल करते है,ं जो दोहरे मानद ड के साथ स य हैं : वे अपने घर अमरीका मे ं अ त े धमशा से इस लए भयभीत हैं यों क वह उनक त े े ता पर खतरा है, फर भी वे भारत मे ं इसका उपयोग एक बड़े ख़तरे— ह दू ‘मू तपू जा’—का सामना करने के लए कर रहे है।ं यह गैर-प मी लोगों के बीच फूट डालो और राज करो क नी त है, ता क उनके बीच झगड़ा पैदा कया जा सके। इस तरह क ईसाइयत को अमल मे ं लाना ईमानदारी नहीं है और यह एक वभाजनकारी ष है। भारत मे ं इस धमशा के अ य प मी प धर वामप थी हैं जो अपने देशों मे ं ईसाई चार और क रतावाद का वरोध करते है,ं ले कन इसे नयात करने क इ छा रखते है।ं जहाँ द लतों क न त प से वैध शकायते ं हैं ज हे ं दू र कये जाने क आव यकता है, वहीं अ त े धमशा क मू ल भावना को भारतीय द मत वग के लए स े अथ मे ं लागू करने के लए उनके अपने ही ाचीन कालजयी थों और ोतों, ँ ना होगा, और इस तरह वह काय करना जैसे पुराण, कुरल, शैव स ा त आ द मे ं ढू ढ़ होगा जो अ त े धमशा यों ने कया है, अथात् उनके अपने सामा जक राजनी तक सश करण के लए आ तिरक आ या मक ोतों का उपयोग। ह दू धम मे ं ऐसे अ दर ही पैदा हुए व ोहों और ‘नये धमशा ों’ क एक ल बी पर परा रही है। ी रामानुज (पार पिरक प से ई वी सन 1017-1137) से लेकर अ या वैकु दर (1808-51) से होते हुए ी नारायण गु (1855-1928) तक ऐसे ह दू मु आ दोलनों को वशेष प से रेखां कत कया जाता है जनमे ं न ली स ा त औ

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और मनु यों को एक-दू सरे से अलग खानों मे ं बाँटने क वृ याँ अनुप थत थीं। इनमे ं से अ तम दो आ या मक नेताओं को अवतारों क तरह पू य माना जाता है, और वे हा शये पर धकेल दये गये समाज के द लत वग मे ं पैदा हुए थे। कुछ ही पी ढ़यों के अ दर इन समू हों ने वयं को आ थक और सामा जक प से सश भारतीयों के प मे ं पा तिरत कर लया, जो इस त य को द शत करता है क द लत जन अ तरा ीय ईसाई गुटों ारा चलाये जा रहे अ तरा ीय द लत जन ं े पर काम कर सकते आ दोलनों पर नभरता के बदले भारतीय ढाँचे मे ं ही अपने एजेड है।ं



क -द लत और ह दओ ु ं के न लवादी ई र

अ क -द लत वचार अमरीक अ त े ों और वासी अ कयों मे ं फैलने लगा है, साथ ही मु य धारा के समाचार मा यमों मे ं भी। उदाहरण के लए, डे नवर के एक समाचार-प मे ं छपे लेख मे ं क नया के एक श य च क सक कोलोराडो मे ं हाल मे ं आये भारतीय सहयोगी को अ क -द लत ढाँचे के च मे से देखते है।ं उनका आलेख ‘न ली तनाव का इ तहास’ (A History of Racial Tension) च क सा त ानों मे ं काम कर रहे भारतीयों और अ त े ों के बीच एक ‘ वाभा वक उदासीनता’ क चचा करता है, जसका कारण वे अ त े ों को ‘अछूतों से भी एक तर नीचे’ मानने क क थत ह दू मन: थ त बताते हैं : ह दू ववश है।ं ह दू धम मे ं मानवता का अ त व एक कड़े क मे ं है; कसी क जा त कभी नहीं बदलती। ा ण सबल है;ं नचली जा तयाँ दास। अ त े 28 अ छ तरह इस समू ह के दायरे मे ं रख दये जाते है।ं वे ह दू देवताओं पर दोषारोपण करते है,ं ‘जो बड़ी सं या मे ं अपनी स तानों को ु बनाने के लए झोंक देते है’ं और उ हे ं ‘स देहा पद और घृ णत’ दासता और बँधआ पाते है।ं साथ ही वे ईसाइयत को मु कारक भाव के प मे ं देखते हैं जो ‘ ह दू मानस को इसक मजबू त जं जीरों से मु करता है, हठध मता के कस कर बँधे त तुओ ं को खोलता है’। उनके लए, युगा डा के तानाशाह ईदी अमीन ारा 1972 मे ं भारतीय समुदाय का न कासन ‘ नराशा, ोध और ई या क ’ एक वैध अ भ य थी ‘ जसे अनेक युगा डावा सयों ने अनुभव कया था’।29 इसके ख डन मे ं एक अ य कोलोराडो नवासी मोहन अ कला ने यान दलाया क भारतीयों के व पू वा ह एक औप नवे शक सामा जक योग का पिरणाम था जसमे ं अं ज े ों के अ क उप नवेशों मे ं भारतीयों का आयात शासकों के प मे ं कया गया था, ता क ‘ व भर मे ं भारतीय ही औप नवे शक शासन का चेहरा बन जाये,ं और कई कार से, उ होंने दमन के व ोध को झेला, जब क अ याय करने वाले वा त वक लोग—यू रोपीय उप नवेशवादी—ह के आरोपों से ही बच नकले’।30







प मी सरकार—चच गठजोड़ ारा अ करना

क - वड़-द लत को भा वत

भारत मे ं ईसाई मशनरी सा ह य बाइबल के हैम मथक पर आधािरत न ली घृणा से भरा पड़ा है, और यह वड़ न ल स ा त के लए एक ढाँचे के प मे ं काम देता है। उदाहरण के लए, एक लोक य ईसाई चार पु तक मे,ं जो हर कार के मु य धारा के चच अ धकािरयों ारा अनुमो दत है, आय आ मण क कथा का एक उलझा हुआ सं करण है : सं ध ु घाटी स यता सबसे पुरानी, सबसे उ कृ , और वड़ों क आ यजनक ढं ग से वक सत शहरी स यताओं मे ं से एक है। ... ईसा पू व छठ शता दी और ईसा बाद चौथी शता दी के बीच गोरी चमड़ी वाले वदे शयों जैसे पारसी (ईसा पू व छठ शता दी), यू नानी (ईसा पू व चौथी शता दी), कुशान (ईसा बाद पहली शता दी) और हू ण (ईसा बाद चौथी शता दी) ने भारत पर आ मण कया। इस अव ध मे ं गोरी चमड़ी वाले रोमन भी यापार के लए भारत आये। काली चमड़ी वाले मू ल नवासी वड़ भारतीयों ने वदे शयों के इन छै समू हों को एक साथ ‘आय’ कहा इस अथ मे ं क वे आ मणकारी वदेशी थे। ...31 कस कार आय ने वड़ों के जीवन, धम, और सं कृ त के, जनमे ं सभी मुख व धम शा मल हैं ज हे ं वड़ों ारा था पत कया माना गया था, सभी सकारा मक प ों को ह थया लया इसक या या करने के बाद, यह पु तक बल देकर कहती है : ... वड़ों और सुमरे ों क स यता लगभग एक जैसी है। इस कार अ ाहम को, जनक स यता वड़ थी, वड़ कहा जा सकता है। ईसा मसीह भी, जो अ ाहम के वं शज है,ं इस कार वड़ है।ं त मल सा ह य मे ं नू ह को ‘ वड़प त’ कहा जाता है। फादर हेरास सं ध ु घाटी के वड़ों को नू ह के पु हैम के वं शज मानते है।ं 32 ईसा मसीह का ऐसा च ण क वे कसी खास न ल के थे, ईसाई राजनी तक इ तहास मे ं कोई नयी बात नहीं है। ना जयों के लए ईसा मसीह एक आय नायक थे ज हे ं यहू दयों ारा सलीब पर लटका दया गया था। चे ई मे ं 2001 मे ं वड़ आ या मक जागरण वषय पर आयो जत एक स मेलन मे ं यह घो षत कया गया : ‘ ह दू कोई धम नहीं है, ब क आय के जीवन का एक तरीका भर है, और इस लए वड़ भारतीयों को अब से अपने धम को वड़ धम के प मे ं घो षत करना चा हए’। यह घोषणा करने वालों मे ं ‘द लत वॉयस’ (Dalit Voice) नामक प का के स पादक राजशेखर भी शा मल थे।33 सन 2005 मे ं राजशेखर ने केरल क एक चच को बताया : ‘ ह दू धम हमारा श ु है। हम इसके शकार है।ं ले कन ईसाइयत एक मु दाता धम है’।34 ॉ



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द लत वॉयस चच के इस ख का समथन करती है क वड़ और द लत अ त े जा त के हैं और अ कयों से जुड़े हुए है,ं और यह पिरवतनवादी अ त े 35 े तावा दयों से सहयोग हा सल करती है। द लत वॉयस सामीवाद का वरोध करती है और उन स ा तों को बढ़ावा देती है जो ा णवादी-ज़ाय न ट (Brahminical-Zionist) ष ों का भ डाफोड़ करते हैं और जनका उ े य व पर दबदबा कायम करना और अ का तथा भारत मे ं अ त े ों का दमन है। यह दावा करती है क सं य ु रा य अमरीका क 9/11 क ासदी ज़ाय न ट ष था।36 यह चीन को सतक करती है क लोकत एक ज़ाय न ट ष है।37 यह हटलर क शं सा करती है और मीन का फ (Mein Kampf) को दशनशा क एक महान पु तक के प मे ं व णत करती है, यह दावा करते हुए क हटलर ने ‘अ तरा ीय यहू दीवाद के व सं घष कया जसने इस स पू ण पृ वी पर दबदबा और नय ण बनाने के लए योजना बना ली थी, य प से नहीं, ब क अपनी कठपुत लयों के मा यम से। और उनक अ भुत रणनी तयों ने वयं अमरीका को अपनी सबसे बड़ी कठपुतली मे ं बदल दया है’।38 द लत वॉयस दावा करती है क ा ण न ल यहू दी मू ल क थी।39 द लत वॉयस अ का के त बलों, भारतीय द लत आ दोलनकािरयों, वड़ अलगाववा दयों और ईसाई चारकों के बीच गठजोड़ का ही त न ध व करती है। ईसाई भारत सरकार पर राजनी तक बढ़त हा सल करने के लए द लत मु े का उपयोग करते है।ं उदाहरण के लए, ल दन मे ं सन 2000 मे ं आयो जत अ तरा ीय द लत मानवा धकार स मेलन मे ं ईसाई सहायता के लए ए शया टीम के मुख ने एक शोध प यह अनुशंसा करते हुए तुत कया क जो सरकारे ं भारत को आ थक सहायता देती हैं उनको प म मे ं काम कर रहे मशनरी द लत समू हों से स पक करना चा हए और उनक सलाह के अनुसार ही कदम उठाने चा हए।40 यह हमे ं एक औप नवे शक काल का मरण कराता है जब अ छ तरह व पो षत वै क मशनरी त ान ने भारत के दबे-कुचले लोगों को सहायता देने के आधार पर भारत पर अपनी मजबू त पकड़ हा सल कर ली थी। जेनव े ा मे ं इं टरनेशनल द लत सो लडै िरटी नेटवक (आई.डी.एस.एन.) के सं योजक पीटर ोव,41 ने स तापू वक घोषणा क : ‘देश मे ं वं शानुगत आधार पर भेदभाव के बने रहने क थ त मे ं अ तरा ीय मं चों पर भारत सरकार को श म दगी मे ं डाला जा सकता है, यों क सं य ु रा ने मान लया है क द लत होने का मतलब या है’।42 अमरीका थत एक श ा वद और मुख वामप थी स यतावादी, वजय साद ने राजशेखर और अ क -द लत आ दोलन का अनुमोदन कया है, और इस कार कारा तर से न लवाद से मुकाबले के एक तरीके के प मे ं न लवाद को ही उ चत ठहराया है। वे लमुिरयन स ा त को अनुमो दत करते हुए लगते हैं क ‘भारत ँ ा और अ का एक ही भू ख ड था’, जसने उ हे ं न न न कष नकालने तक पहुच ों औ



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दया : ‘इस लए अ कयों और भारतीय अछूतों तथा आ दवा सयों के पू वज एक ही थे’। वे इस बात क ओर भी यान दलाते हैं क द लत ‘शारीिरक सं रचना मे ं अ कयों से मलते-जुलते है’ं ।43 श ा वदों मे ं साद अकेले नहीं हैं ज होंने इन दृ कोणों को अपनाया है।44 प मी देशों क राजधा नयों से शै णक और राजनी तक समथन के अलावा इस आ दोलन को समाचार मा यमों का भी समथन ा है।45

एक न लवादी महाका य के

प मे ं रामायण क

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इस बीच अ कयों-द लतों ारा अ य भारतीयों के व घृणा आधािरत स ा तों को फैलाने के लए औप नवे शक काल क ह दू धम क या याओं को चािरत कया जा रहा है। रामायण को जस कार न ली या याओं के मा यम से वकृत कया गया है उसमे ं अनेक सू आ मले है,ं जो द ण भारत और ीलं का मे ं जातीय सं घष को चालू रखते है।ं जहाँ प म के देशों ने यू रोपीय जन समुदाय के बीच न ल आधािरत वचार वमश क विरत न दा क है, उसने अ का और ए शयाई देशों, वशेषकर भारत से स ब वकृत न लवादी या याओं को बनाये रखा है। उदाहरण के लए, अ वीकार कर दी गयी आय आ मण क धारणा (Aryan Invasion Theory) का उपयोग ह दू धम थों और महाका यों क या या करने मे ं अब भी कया जा रहा है। प मी श क शै णक उपकरण के प मे ं ऐसी या याओं का उपयोग करने मे ं थोड़ा भी नहीं झझकते। उदाहरण के लए, www.historyforkids.org, एक शै णक वेबसाइट, ब ों के लए रामायण पर आधािरत न न ग त व धयों का सुझाव देती है : रामायण आं शक प से आय के लए एक पक है, जो द ण भारत के लोगों पर आ मण करने का यास कर रहे थे। यह एक आय कथा है, और वे द ण भारत के लोगों को मानव भी नहीं, ब क बुरे ब दरों क तरह दखाते है।ं हमे ं इसके बारे मे ं कैसा महसू स करना चा हए? या हमे ं इस रामलीला को नहीं करना चा हए? या हमे ं यह दखाने का यास करना चा हए क हनुमान और अ य ब दर भी मानव ही थे? हम द ण भारतीय दृ कोण से इसे फर से कस कार ं 46 लख सकते है? ं टेट यू नव सटी मे ं इ तहास क सह- ा या पका जब भारतीय व ानों ने पोटलैड हैं और इस वेबसाइट को चलाने वाली डॉ. कैरेनकार का यान इस ओर आक षत कया क रामायण क ऐसी या या गलत थी, तो उ होंने यह कहते हुए उ र दया क हालाँ क वे भारतीय इ तहास क वशेष नहीं है,ं इस लए भारतीय महाका यों पर वयं भारतीयों के दृ कोण के व वह भारतीय इ तहास और सं कृ त क ं ी।47 रामायण के ब दरों को या या करने वाले प मी व ानों पर ही भरोसा करेग द ण भारतीयों के प मे ं च त करने के वचार का उपयोग अं ज े औप नवेशक ों ै े े ो े े े ें ी ो

शासकों ारा नै तक प से े होने के नाते भारत मे ं अपनी उप थ त को उ चत ठहराने के लए कया गया था। उदाहरण के लए, 1886 मे ं म ास व व ालय के ातकों को अपने स बोधन मे ं रा यपाल माउ ट टुआट ए फ़ टन ां ट-डफ ने रामायण का उ ख े न न कार से कया था : सं कृत सा ह य को लगातार आगे रखने से, मानो यह बढ़-चढ़कर भारतीय ही ु ू , और क ड़ भा षयों मे ं रा ीय गौरव क हो, आपमे ं से कुछ त मल, तेलग भावना आयी होगी। हम अं ज़ े ों क तुलना मे ं आपको सं कृत से कम ही लेनादेना है। उज यू रोपीय लोग बीच-बीच मे ं भारत के मू ल नवा सयों को ‘ नगर’ कहने वालों के प मे ं जाने जाते है,ं ले कन गव ले सं कृत भा षयों और लेखकों क तरह उ होंने द ण के लोगों को वानर सेना नहीं कहा।48 प म के लोग अब भी इस बात क उपे ा करते हैं क वयं त मलों मे ं रामायण क एक स प पर परा है जसे उनके ही महान क व कंबन ारा उनक अपनी ही भाषा मे ं ल पब कया गया है। उपयु वेबसाइट (www.historyforkids.org) क रामायण क या या वयं औप नवे शक काल के ा ण वरोधी उ सा हयों और न लवा दयों क या या पर आधािरत है। इस या या का अनेक प मी व ानों ारा ख डन कया गया है, जनमे ं अनेक वे हैं जो अ य मामलों मे ं वड़ पहचान के स ा त को मानते है।ं उदाहरण के लए, कै लफो नया व व ालय, बकले मे ं त मल के ा यापक जॉज हाट जो सं कृत मे ं पी-एच.डी. भी कर चुके है,ं लखते हैं : दुभा य से, एक सं अव ध के लए इस महाका य को सां कृ तक प से— आय बनाम वड़—पढ़ना च लत हो गया। यह, मेरे वचार मे,ं इस महाका य क मौ लक पिरक पना को ही गलत ढं ग से पढ़ना है, जो है : जीवन के दो दृ कोणों के बीच वरोध, एक राम के प मे ं और दू सरा रावण के प मे ं तीक बनाकर। क बन को जसने इतना महान बनाया वह दोनों दृ कोणों क अ य त व सनीय और सु दर ढं ग से उनक तु त थी—रावण सबसे बड़ा राजा था और इस तरह से इस व का तीक, और राम दू सरे आयाम के तीक। और यह न भू ले,ं रावण ा ण था।49 साउथ इ डयन सोशल ह टरी िरसच इं टी ू ट (SISHRI), चे ई के इ तहासकार और पुरालेखवे ा एस. रामच न एक आय न ल के प मे ं राम का च ण करने मे ं त या मक भू ल क ओर यान दलाते है।ं 50 ऐसे या यानों के बाद भी, रा वादी सं हली रावण को एक मू ल नवासी सं हली राजा मानते हैं और न ली गव का एक तीक, जब क राम को एक भारतीय आ मणकारी ज हे ं अ वीकार कर दया जाना चा हए।51 त मल े तावादी और साथ ही ीलं का के अलगाववादी रामायण क अपनी-अपनी न ली या याओं का उपयोग करते हुए इस घृणा के भाव को समान प से अपने मे ं सँजोये रखते है।ं ल े के आ धकािरक रे डयो, ‘द वॉय ऑफ टाइगस’ (The Voice of Tigers) ने एक नाटक ‘सॉयल ऑफ लं का’ का ें



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सारण कया था, जसमे ं राम को एक आय आ मणकारी के प मे ं दखाया गया था जो न ल के प मे ं आज के सं ह लयों से स ब धत थे, और रावण को वैभवशाली मू ल नवासी वड़ स ाट के प मे ं च त कया गया था जनसे आय ने धू ततापू वक स ा ह थया ली थी। इस नाटक क शं सा मे ं लखे स देश मे ं ल े के दवं गत नेता भाकरण ने लखा था क आज के सं घष को उ हीं घटना मों क नर तरता के प मे ं दखाया गया था।52

13 भारत : एक नवसं र णवादी मोचा1 यह और इसके बाद का अ याय बताता है क ईसाई द णप थी और प थ नरपे वामप थी कस कार भारत का ‘एक अं धकार के े ’ के प मे ं च ण करने मे ं एकजुट हो जाते है।ं चाहे वे बाइबल के च मे का उपयोग करे ं या प थ नरपे मानवतावादी च मे का, वे एक अ त- य त और दमनकारी जं गली मोच क छ व पर एक हो जाते है,ं जसे त काल ही सं य ु रा य अमरीका के ह त प े क आव यकता है। यह अ याय उन सं गठनों का वणन करता है जो बाइबल के च मे का उपयोग कर रहे है,ं जब क उनके उदारवादी प थ नरपे समक ों पर अगले अ याय मे ं चचा क जायेगी। च 13.1 सं य ु रा य अमरीका मे ं द णप थी वचार-मं चों के एक नेटवक को द शत करता है जो नी त नधारण के तर पर भावशाली है।ं वे उ पीड़न सा ह य एक त करने के लए भारत पर नगरानी रखते हैं ता क वे भारतीय समाज के नकारा मक दृ कोण को और सबल बना सकें, समाचार मा यमों को बुलाकर भारत के व चार कर सकें और भारत वरोधी तक को ो सा हत कर सकें। वे सं य ु रा य अमरीका ारा यहू दी-ईसाई हतों के दृ कोण से भारतीय मामलों मे ं ह त प े के लए तक देते है।ं मानवा धकार क आड़ मे ं सं य ु रा य अमरीका मे ं द लत आ दोलन वा तव मे ं ईसाई द णप थी घुसपैठ का एक मोचा है। भारत मे ं जतनी भी बुराइयाँ हैं उनक या या ह दू धम मे ं अ त न हत बुरी वृ यों के आधार पर क जाती है,ं और ईसाई धमा तरण को अं धकारमय मू तपू जकों के त ारा उ पी ड़त मानवता के लए मु लाने वाले क तरह दखाया जाता है। वकासशील देशों मे ं अ धकां श ईसाई चारक मशनों को प म क सरकारों ारा उनक स यता के वजवाहकों के प मे ं देखा जाता है, और तीसरे व के ं दू सरे समुदायों को प म के त न ावान बनाने के लए एक नवेश के प मे— श दों मे,ं उप नवेशवाद के एक सौ य प मे।ं ईसाई चारक सं गठनों के लए, भारत सबसे अ छ फसल काटने का मैदान उपल ध कराता है जहाँ भाव मे ं सहजता से आ जाने वाली आ माओं को नय त कया जा सकता है ज हे ं एक जगह हाँका जा सकता है। य प एक शता दी से भी अ धक समय से ईसाई चार प म क वदेश नी त का एक अं ग रहा है, शीत यु काल मे ं यह नाटक य प से व तािरत हुआ है, और अब वै ीकरण के युग मे ं ईसाई चार बहुरा ीय उ मों के प मे ं काम कर रहा है। े के लए जमीन क तैयारी Fig 13.1 भारत मे ं अमरीक ह त प

 

ह दओ ु ं के धमा तरण के लए बहरु ा ीय नगम

ं े ल टक असो सएशन’ (Billy 1966 मे ं एक मुख घटना घटी जब ‘ बली ह े म इवैज Graham Evangelistic Association) ने अमरीका क ‘ यै नटी टुडे’ (Christianity Today) प का के साथ साझेदारी मे ं ब लन मे ं ईसाई धमा तरण पर एक व कां स े ायो जत क । इस अवसर पर वहाँ व के 100 से अ धक देशों से ँ ।े इसी कड़ी मे ं 1974 मे ं वस आ स के शहर लॉजैन मे ं 1200 त न ध पहुच रणनी तगत चचा के लए दस दनों का आयोजन कया गया जसमे ं 150 से अ धक रा ों से 2700 तभागी एक त हुए। ‘टाइम’ प का ने इस लॉजैन कां स े का वणन ‘एक दुजय मं च, स भवत: अब तक क ईसाइयों क सवा धक व तार वाली बड़ी सभा’ के प मे ं कया।2 उससे योजना क जो परेखा उभरकर आयी उसे लॉजैन ऑकेजनल पेपस कहा गया, और उसे ‘ऐ तहा सक मह वपू ण अ भलेख’ के प मे ं व णत कया गया ‘जो यापक प से जाने-माने ईसाई चारक नेताओं के साथ वै क वचार- वमश मे ं उभरकर आया है’।3 उसके बाद व के व भ भागों मे ं लोगों को इक ा कया गया ता क एक ईसाई व का सृजन कया जा सके, या वह जसे लेखक दीप न नयन टॉमस ‘ईसाई उ मत’ कहते है।ं 4 े

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ल य के प मे ं ह दुओ ं के व लेषण के लए एक वशेष कायबल का गठन कया गया, और उ हे ं आने वाले कुछ दशकों मे ं धमा तिरत करने के लए रणनी तयाँ ं मे ं हुई, और इसक रपट को बनायी गयीं। इस कायबल क बैठक 1980 मे ं थाईलैड ईसाई चारकों के बीच ‘द थाइलै ड िरपोट ऑन ह दू ज’ (The Thailand Report on Hindus) के नाम से जाना जाता है।5 रपट ने ह दुओ ं को व भ ल त भागों मे ं वग कृत कया, येक भाग जन वषयों का सामना कर रहा है उसक या या इस आधार पर क क वे कौन-से आधार हैं जो उ हे ं धमा तरण के लए नशाना बनाते है;ं रपट ने उनक पहचान भी क जनक ओर से धमा तरण का तरोध सामने आयेगा। यह रणनी तगत योजना कॉरपोरेट माक टं ग नजिरये का उपयोग करते हुए बनायी गयी जसे वोट (SWOT) व लेषण के प मे ं जाना जाता है (यानी श यों, कमजोिरयों, अवसर और खतरे का व लेषण)। रपट ह दू समाज के भाव मे ं आ जाने क ं े ल म’ स भावना वाले वग क पहचान करती है। उदाहरण के लए, ‘अबन इवैज (Urban Evangelism) वाला भाग यह कहता है क ‘ ह दुओ ं क न न े णयाँ ईसा मसीह के त खुले मन वाली हैं : झोपड़पि यों मे ं रहने वाले लोग; कूलों और व व ालयों मे ं जाने वाले युवा; बेरोजगार युवा जो बेस ी से नौकरी खोज रहे है’ं । ं े ल म’ (Student Evangelism) वाले भाग मे ं यह न न स भा वत ‘ टू डे ंट इवैज भाव े का उ ख े करता है जनका दोहन ईसा मसीह के नाम पर कया जाना है : एक पार पिरक ह दू घर से आया हुआ व ाथ ईसाई सुसमाचार के त खुले दमाग का तीत होता है, यों क महा व ालयों/ व व ालयों के प थ नरपे वातावरण मे ं रहते हुए उसक धा मकता टू ट चुक होती है। ामीण पृ भू म से पढ़ने के लए शहर मे ं आने वाले व ाथ अकेलेपन से त होते है,ं और ईसाई म ता के मा यम से ईसाई भाव के त खुले होते है।ं अ य भाषाई े ों से आकर अनजान भाषा े मे ं पढ़ रहे व ाथ ईसाई युवाओं से म ता के लए खुले होते हैं (उदाहरण के लए, हैदराबाद के कसी इं जी नयरी/ मे डकल/ तकनीक महा व ालय मे ं पढ़ने वाला बं गाली उ र भारतीय)। अ तरा ीय व ाथ एक अ य समू ह हैं जो नये भावों के त खुले हैं (उदाहरण के लए, भारत मे ं मले शयाई, ईरानी, और अ क व ाथ )।6 व ा थयों के धमा तरण के लए बनायी गयी रणनी तयों मे ं ऐसे काय म शा मल हैं :   ईसाई व ा थयों को ह दू व ा थयों से गहरी म ता वक सत करने का श ण दे ं   ह दू व ा थयों के लए वशेष बाइबल अ ययन का काय म चलाये ं  जब व ा थयों को सचमुच आव यकता हो तो उनक आ थक सहायता करे ं ओं





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‘सामा जक च ताओं के लए रणनी त’ मशनिरयों को सचेत करती है क ‘सरकार या जनता के लए स देह का कोई थान न छोड़े ं’। रपट ईसाई चारकों को नदश देती है क जब भी स भव हो, उ हे ं समाज सेवा को ईसाई धमा तरण से जोड़ना चा हए, सामा जक कायकता को यह यान दलाते हुए क ‘समाज सेवा के लए थानीय चच क दीघाव ध योजना और बजट नमाण मे ं उनके आस-पास रहने वाले गैर-ईसाई समुदायों के धमा तरण क ाथ मकता झलकनी चा हए’। यह रपट एक ं े लकल फेलो शप ऑफ़ स म त ारा तैयार क गयी थी जसक अ य ता इवैज इ डया ने क थी, और जसमे ं अ य अ तरा ीय चच समू हों के अलावा व ड वजन के अ धकारी भी शा मल थे।7

भारत क श

यों क पहचान धमा तरण के लए और अवरोधक के

प मे ं

ु ’ (The Theology Strategy Working सन 2000 मे ं ‘द थयोलॉजी ट ै ज ै ी व कग प ं ल Group) और ‘लॉजैन कमेटी फॉर व ड इवैज े ाइजेशन’ (Lausanne Committee for ु ’ (The Intercessory World Evangelization) क तरह ‘द इं टरसेसरी व कग प Working Group) ने छह मुख रणनी तयों के लए एक कायशाला का आयोजन कया, ज हे ं उ होंने ‘आ या मक सं घष आ या मक यु ’ कहा। उ े य था ‘श ’ु क पहचान के लए बाइबल के ढाँचे का उपयोग, वह कस कार काय करता है, और कस कार ईसाई चारक सं गठन ‘सवा धक भावशाली ढं ग से सभी लोगों के धमा तरण के लए’ इस श ु का मुकाबला कर सकते है।ं 8 त मलनाडु के एक मशनरी ने, ज होंने उस स मेलन मे ं भाग लया था, आगे बढ़कर अपने वेबसाइट मे ं यह भी दावा कया क ईसा मसीह ने उ हे ं ‘मेरे लए एक सेना खड़ी करने’ का आदेश दया था, और यह क उ होंने गो यों और श वरों के मा यम से ‘16000 से अ धक उ साही शासक ( म न टस ऑफ़ द चच)’ खड़े कर दये थे।9 ‘भारतीय स दभ मे ं आ या मक सं घष’ (Spiritual Conflict in the Indian Context) शीषक के अपने शोध प मे ं उ होंने भारत क अख डता क पहचान ईसाइयत के लए एक मुख अवरोधक के प मे ं क : पर तु भारतीय होने क भावना एक जोड़कर रखने वाला कारक है जसने देश को पू री तरह जोड़कर एक बना दया है। आज, ‘अनेकता मे ं एकता’ का दशन करते हुए भारत एक ही इकाई का च ण करता है। जो भारत का गुण माना जाता है, वही दभ ु ा यवश धमा तरण के लए बाधा है।10 वदेशी चच ारा उपल ध कराये जाने वाली सु वधाओं—जैसे अ तरा ीय या ाएँ, अ यवसा यक अवसर—और स मान के बदले अनेक भारतीय जो ऐसी सभाओं क ग त व धयों मे ं शा मल रहते हैं वही कुछ बोलते हैं जो प मी धन के ोत सुनना चाहते है।ं आ य नहीं क भारतीय ईसाई चारकों ारा तैयार कया गया उपयु शोध प आगे बढ़कर दावा करता है क ‘ ाचीन त मल सा ह य कसी भी े

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मू त या मू तपू जा का उ ख े नहीं करता’, और भारत मे ं मू तयों क पर परा आय ने ार भ क । ‘जो लोग वयं को मू त पू जन मे ं सम पत कर देते हैं वे वा तव मे ं मू ख लोग है,ं वे वयं के बु मान होने का दावा करते है।ं ई र ने कहा क वह उ हे ं अधम ं ।े यह बताता है क कस तरह भारत के लोग, मू त पू जक, वासनाओं को सौंप देग पथ कये गये और तरह-तरह क अधम वासनाओं को सम पत कर दये गये’। गरीबी, महामािरयाँ और ाकृ तक आपदाएँ—सभी को भारत पर ई र के अ भशाप के प मे ं या या यत कया गया जो मू तपू जा के कारण दया गया। उदाहरण के लए, शोध प एक मुख भू क प को गणप त पू जा का उ सव मनाने पर ई र के कोप के प मे ं या या यत करता है। द ण भारत मे ं च लत शव लं ग क पू जा और साथ ही अ यपन क पू जा को ‘नै तक और यौन वकृ तयों’ के उदाहरण के प ृ कया गया, जो ‘ ह दू धम मे ं काफ सं या मे ं है’ं ।11 मे ं उ त

ईसाई चार के ह थयार के

प मे ं वकास

जैसे ही पिरप वता बढ़ी और भारत आधािरत वशेष ता हुई, इस अ भयान ने वकास क भाषा को ईसाई धमा तरण के लए समो लया। ईसाई चारक व ान एडगर जे. ए ल टन प करते हैं : व के धमा तरण पर 1963 मे ं हुई ब लन कां स े के ार भ हुए और लॉजैन अ भयान और सन 2000 के आ दोलन क असं य बैठकों से होते हुए और साथ ही ए शयाई, अ क और लै टन अमरीका के वकास के अगुवों ारा कये जा रहे शोधों मे ं स दभ कृत स तुलन पर अ य धक यान के त कया गया है। ं े ल म’ या ‘ वकास’ के बीच न त प से चयन ईसाई चारकों को अब ‘इवैज नहीं करना चा हए, ब क उ हे ं उन तरीकों क खोज करनी चा हए जो वषयों को थानीय पिर थ त मे ं समु चत प से स तु लत कर सकें।12 ईसाई चारक ‘ वकास’ श द का उपयोग उस कार करते हैं जो प थ नरपे अथ से भ होते है।ं 2001 मे ं यू ने को क ओर से ‘सां कृ तक बहुलता पर सावभौ मक घोषणा’ (The Universal Declaration on Cultural Diversity, UNESCO 2001) वकास क या या यह कहते हुए करती है क सां कृ तक व वधता ‘मानव के लए आव यक है जस कार कृ त के लए जैव व वधता’ और यह घोषणा ‘अ धक स तोषजनक बौ क, भावना मक, नै तक और आ या मक अ त व ा करने’ के मह व पर बल देती है। जो भी हो, ईसाई चारक वकास सभी कार क धा मकताओं को व त कर एक समान एके रवाद मे ं बदल कर आ या मक व वधता को न करने का ल य रखता है। ए ल टन रणनी त को प करते हैं : ‘ वकास एक या है जसके तहत पु ष और या ँ जी वत प मे ं या ई र के साथ ईसा मसीह मे ं व ास के मा यम से एक न ावान स ब ध मे ं परोये जाते।13 ॉ ै

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लॉजैन अ भयान व ड वजन जैसे समू हों के साथ सहयोग करता है ज होंने सं य ु रा वकास काय म (यू .एन.डी.पी.) जैसी प थ नरपे वकास एजे ं सयों मे ं ँ था पत कर घुसपैठ कर ली है, ता क कसी को स देह हुए बना ही वे आसान पहुच ं ए ड फूड िरसोसज के उपा य सकें। व ड वजन इं टरनेशनल मे ं डे वलपमेट ाय ट ृ करते हैं मेयस अपनी थ त के समथन मे ं एक अ य ईसाई चारक व ान को उ त क ‘भले समेिरयावासी क सेवा वाले त व को कभी-कभी ईसाई धमा तरण पर कालानु म प से ाथ मकता दी जाती है, चच का मशन तब तक पू रा नहीं होता जब तक क हम मेल- मलाप करने और पाप से मु के स देश क घोषणा नहीं 14 करते’। आ थक प से गरीब समाज मे ं ईसाई चारक वकास क ऐसी ग त व धयाँ चच तथा चच- नय त सं थानों के हाथों यापक श छोड़ते हुए बड़ी उथल-पुथल मचा सकती है।ं रवा डा जनसं हार मे ं ईसाइयत क भू मका का अ ययन कर टमोथी लौंगमैन ने देखा क इस तरह के ईसाई धमा तरण आधािरत वकास ने कस तरह चच को वही नरं कुश श याँ दान क ं जो उसे म यकालीन यू रोप मे ं हा सल थीं : चच के पादरी के पास यापक श याँ थीं, यों क उनमे ं नौकरी मे ं रखने और नकाल देन,े सहायता वतिरत करने और यह नधािरत करने क कन का बप त मा कया जा सकता है, कनका ववाह कराया जा सकता है और क हे ं चच मे ं दफनाया जा सकता है... आ द क मता थी ... चच सामा जक, आ थक, राजनी तक और आ या मक श का वा त वक के था।15

ईसाई चारक साम ी : पैट रॉबटसन अनेक लोगों का यह गलत व ास है क अमरीका के पू व रा प त जॉज ड यू . बुश ही थे ज होंने सं य ु रा य अमरीका क सरकार के समथन के साथ देश के बाहर ईसाई चार के व तार क पहल क थी। हावड के एक इ तहासकार नऑल फगुसन (Niall Ferguson) यान दलाते हैं क कस कार वदेशों मे ं चल रही ईसाई चारक ग त व धयों मे ं कुछ ऐसी चीजे ं रही हैं ‘जो तानी सा ा य और आज के अमरीक सा ा य मे ं समान प से है’ं , यों क ‘छोटी सं या मे ं ईसाई चारक मशनरी भी काफ कुछ ा कर सकते है,ं चू ँ क उनके पास उनके देशों क धा मक सभाओं से भारी मा ा मे ं आया धन होता है’।16 वदेश नी त मे ं सं ल नता और सं ग ठत ईसाइयत का सश भाव लगभग एक शता दी से अ त व मे ं है ही, और जमी काटर और बल लं टन जैसे ‘उदारवादी’ अमरीक रा प त भी ईसाई चारक थे ज होंने सं य ु रा य अमरीका के चच ारा वदेशी धमा तरण का समथन कया। सन 1600 के दशक से ही अमरी कयों का एक बड़ा तशत अपने उन राजनी तक नेताओं के साथ अ धक सहजता का अनुभव करता रहा है जो सावज नक प से ईसाई रहे है।ं आज सं य ु रा य अमरीका क ै े ी ी े ो

मु यधारा के राजनी तक उ मीदवार के लए यह अ नवाय-सा हो गया है क वह सावज नक प से और व सनीयता से यह द शत करे ं क वह स े यहू दी-ईसाई है।ं यहाँ तक क बराक ओबामा को भी बार-बार कहना पड़ा क उ होंने चच मे ं पू जा क , और उनके ार भक चुनाव चार अ भयानों मे ं उनके भाषण (उनके त ं ी हलरी लं टन क तरह) अ धकतर चच मे ं हुए। पैट रॉबटसन अमरीक सं कृ त क इस शाखा के एक जीते-जागते तीक है।ं औसत अमेिर कयों को ह दू धम क जो छ व बतायी जा रही है उसका एक उदाहरण ं री मे ं मलता है जसमे ं पैट रॉबटसन और उनके पु गॉडन उस वी डयो डॉ यू मेट रॉबटसन (Gordon Robertson) को दखाया गया है जो ह दू व च ता का ववरण तैयार करने के लए भारत या ा पर आये थे। उ हे ं ह दुओ ं क ात:काल क ाथनाओं का उपहास करते दखाया गया है, जो गं गा को ‘ शव का वीय’ बताते है,ं और दावा करते हैं क लोगों ‘से आशा क जाती है क वे अपने पापों को ई र के वीय से धो डाले’ं । रॉबटसन और आगे बढ़कर ह दू धम को बुरी वृ यों, जैसे बहुदव े वाद, वाला बताते है।ं वह अपने पु के इस दावे का समथन करते हैं क ‘जहाँ कहीं भी आप इस तरह क मू तपू जा पाते है,ं वहाँ आप लोगों को गरीबी मे ं पसता ं ।े वह भू म अ भश रही है’।17 हुआ पायेग अमरीक ाय: ‘शैतानी’ चिर ों को य या परो प से ह दू धम से जुड़ा हुआ मानते है।ं रॉबटसन कहते है,ं ‘ शव वनाश के देवता हैं और उनक प नी मृ यु ं वह भयानक आँखों वाली काली, कु प तमा’। उसके बाद वे सुझाव क देवी है— देते हैं क मृ यु और वनाश क बुरी वृ याँ उनमे ं पायी जाती हैं जो ह दू देवीदेवताओं क पू जा करते हैं : ‘मेरा आशय है क ये लोग अपने ई र के नाम पर अ य मानवों क ह या के लए त पर रहते है’ं । ह दू धम को दानवी बताकर रॉबटसन महज एक बहुत पुराना नमू ना आरोप फर से लगाते है।ं डॉ. गॉडन मे टन, इं टी ू ट फ़ॉर द टडी ऑफ़ अमरीकन िर लज स के नदेशक और अनेक अ य स दभ पु तकों के लेखक, प करते हैं : ‘पू व के धम और अ कयों के धम के स दभ मे ं अ धकां श ढ़वादी ईसाइयों के झान यही रहे हैं क उन धम के देवीदेवता, वा तव मे,ं सा ात दानव ही है’ं ।18 ह दुओ ं को ईसाई बनाये जाने क अमरीका मे ं माक टं ग होती है जो मू तपू जकों को भय और दानवी दमन के जीवन से बचाने के एक काय के प मे ं लोक य भी है, और इसके ल य होते हैं ह दू देवी-देवता, गु , समाज, अनु ान और कोई भी व ा जो धम क ओर से बोलने का साहस करता है। ोफेसर कुसु मता पेडसन ने कहा क ऐसे ह दू वरोधी बयान 1920 क दशक का याद दलाते हैं जब कु ल स लैन उदीयमान था, और रा ीय व ास यह था क सभी अमरी कयों को ईसाई होना ही चा हए। ‘वा तव मे ं रॉबटसन जो कह रहे हैं वह यह है क ... ह दू इं जी नयर, डॉ टर और क यू टर वशेष जो यहाँ रह रहे हैं वे वापस अपने घर चले जाये।ं यह एक ै ो ै ों े ऐ े ै े े ों े ी ें

बहुत बड़ा बयान है जो उ होंने दया है’।19 ऐसे घृणा फैलाने वाले बयानों ने अतीत मे ं ँ ाया है। जनसं हार तक पहुच चू ँ क सां कृ तक पहचानों को वदे शयों के त वकषण या घृणा फैलाने क मान सकता से तैयार कया जाता है, उनक ह या वीकाय-सी लगने लगती है। ोफेसर पेडसन ने आगे कहा : ‘ऐसा रवा डा मे ं हुआ। समाचारप ों और मी डया ने इस तरह का माहौल बनाना र भ कर दया क फलाने-फलाने को मार देना चा हए। उसके बाद कुछ महीनों तक फलाने-फलाने मारे जाते रहे। वाणी क वत ता पर कहीं-न-कहीं एक सीमा रेखा खींची जानी चा हए, पर तु हम अमरीक बस यह नहीं जानते क कहाँ’।20 घृणा के बीज, अगर बना वरोध के रहे, फर एक बार हं सा के खर-पतवार क तरह उग सकते है।ं पैट रॉबटसन ने अपने टे ल वजन काय म मे,ं जसे बहुत लोग देखते है,ं कहा : ‘भारत क सभी सम याओं मे ं से एक अ य सभी से अ धक उभरकर सामने आती है। वह सम या है मू त पू जा क । कहा जाता है क ह दू देवी-देवता हज़ारों लाखों है।ं इन ु ा बनाकर रखा है, जन श यों सब ने एक रा को आ या मक श यों का बँधव ने हज़ारों वष से अनेक लोगों को धोखा दया है’। उनके पु ने इसका और आगे व तार करते हुए कहा : ‘बाइबल उस भू -भाग क चचा करता है जसे वहाँ के नवा सयों क करतू तों के आधार पर अ भशाप दया जाता है। तुम इन मू तयों को येक हरे वृ तले, येक पहाड़ क चो टयों पर, था पत करो और ऐसा करते हुए तुम अपनी धरती को अ भश कर रहे हो। और जो दमन है उसे हम सा य के प मे ं देखते है’ं ।21 ईसाई अमरीका मे ं ये दृ कोण मु यधारा मे ं आ गये है,ं और अ छ तरह व पो षत और सु नयो जत दीघाव ध अ भयान के पिरणाम है।ं सन 1999 मे,ं सं य ु रा य ं न ने दीवाली के अवसर पर ह दुओ ं के लए एक अमरीका मे ं सदन बै ट ट क वेश दशा- नदश इस बयान के साथ जारी कया : ‘मु बई आ या मक अं धकार का शहर है। येक दस य मे ं से आठ ह दू ऐसे दास हैं जो भय और पर परा से झू ठे देवों 22 से बँधे है’ं । इस त य पर अव य ही यान देना चा हए क उदारवादी पू व रा प त जमी काटर और बल लं टन 2006 तक आजीवन सदन बै ट ट (Southern ं न के गठन मे ं Baptist) रहे। इन दोनों ने नये और अ धक समावेशी बै ट ट क वेश मु य भू मका नभाई। उ र अमरीका थत अनेक भारतीय ईसाई चारक ऐसे अ तं द णप थी ोटे टेट े ता वाले वचारों को त व नत करने के लए सू चीब कये गये है,ं और वशाल मं गलवादी सरीखे कुछ तो भारत मे ं अ य धक धन से व पो षत इन प मी ईसाई चारक काय मों के नेता बन गये है।ं उनमे ं से कुछ को इस नयी वै क स यता के यु मे ं अगले मोच के सेनाप त के प मे ं तैनात कया गया है।



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णप थी ईसाइयों ारा द लत आ दोलन

अमरीक ईसाई चारक सं गठन सं य ु रा य अमरीका थत द लत गुटों क डोर थामे है जनका व श उ े य है इस दृ कोण को ो सा हत करना क भारत क सारी जा त सम या ह दू धम के कारण ही है, और ह दू धम ‘जा त के अलावा और कुछ नहीं’ है। सं प े मे,ं ह दू धम = जा त = न लवाद। ये सं गठन शै क व ानों के एक समू ह तथा भारत के आ दोलनकािरयों पर नभर करते हैं जो सं य ु रा य अमरीका के ईसाई चारक सं गठनों के भारतीय सहयो गयों से स ब है।ं अमरीक द णप थी राजनी त ों और सं र णवादी वचार-मं चों ने एक दू सरे से हाथ मला लया है और द लत ईसाई चारकों को एकजुट कर रहे हैं ता क इस दृ कोण को सामने लाया जाये क भारत क अ धकां श सम याएँ मू तपू जन के पिरणाम हैं और इनका समाधान ईसाइयत है। ऐसे दो समू हों, द लत डम नेटवक और ऑल इ डया यन काउं सल के काय इन ज टल स ब धों को दखाते है।ं

द लत

डम नेटवक (डी.एफ.एन.)

सं य ु रा य अमरीका मे ं कोलोराडो थत द लत डम नेटवक प म ारा सं चा लत सं गठन का एक उदाहरण है जो अमरीका के स ा के के ों मे ं नी तगत तक के मा यम से भारतीय द लत मु का अगुवा होने का दावा करता है। अपने मशन का वणन करते हुए यह कहता है क यह ‘ईसा मसीह के आदेश का अनुकरण करने के लए है ज होंने हमे ं ‘‘धरती का नमक’’ और ‘‘ व का काश’’ कहा था’।23 इसक थापना 2002 मे ं ‘अ खल भारतीय ईसाई पिरषद’ (All India Christian Council, इसी अ याय मे ं आगे इसक चचा क गयी है) के मुख डॉ. जोजेफ डी’सू जा ने एक पू व मशनरी नै सी िर स के साथ मलकर क थी।24 इसका ईसाई ं ा प है जो इसके अ छे स पक वाले कायपालक पदा धकािरयों क एजेड स ब ताओं से ही झलकता है।25 नदेशकों क इस सू ची को यान से देखने पर कुछ ऐसे स ब ध उजागर होते है।ं इसके नदेशकों मे ं से एक सं य ु रा य अमरीका के कां स े सद य द णप थी नेता े ट ैं स (Trent Franks) के कायालय के एक पू व उ ा धकारी थे। एक अ य मू डी बाइबल इं टी ू ट, जसे इनसाइ लोपी डया ऑफ़ यै नटी ‘बीसवीं शता दी मे ं अ तर-सा दा यक क रतावाद का मुख सं थान कहती है’, के उपा य है।ं 26 दो नदेशक ओ.एम. (Operation Mobilization) से है,ं जो सं य ु रा य अमरीका थत एक ‘अ तरा ीय ईसाई मशन एजे सी है जसके 110 से अ धक देशों मे ं तथा समु ी सफर करने वाले दो जलपोतों मे ं 5400 कायकता है’ं ।27 एक अ य कैडमो स कॉल एक ईसाई रॉक समू ह के मुख गायक है,ं जनके गीत बाइबल के तीकों का उपयोग करते हुए भारत का दानवीकरण करते है।ं उदाहरण के ी







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लए, इसका ‘मदर इ डया’ गीत भारत क पीड़ा के कारक के प मे ं बाइबल के ईडे न गाडन मे ं साँप का उ ख े करता है : पता परमे र, तुमने भारत माता के लए अपने आँसू बहाये है।ं आपक आ मा भारत पर आती है और उसने आपके आ लं गन मे ं मुझे बाँध दया। साँप ने कहा और व ने उसके वष पर व ास कर लया। ... पता, मुझे मा कर दे,ं यों क मैने व ास नहीं कया है। भारत माता क तरह, मैं कराहा और दुखी हुआ हू ।ँ 28 डी.एफ.एन. के सलाहकार बोड के सद यों मे ं शा मल लोग हैं :29   व लयम आम ां ग, एक पू व िरप लकन सनेटर जो अब कोलोराडो यन यू नव सटी के साथ है,ं जो नय मत प से भारत मे ं ईसाई चारक टीम भेजता है।30  लुइस बुश, जनक रणनी तगत भाव वाली ईसाई चारक ग त व धयों का उ घाटन तहलका क खोजपू ण रपट मे ं कया गया है।31   टॉमस मै ै ली, जो मै लेलन फाउ डे शन का त न ध व करते है,ं जो वयं को एक ‘ईसाई श ा धमाथ यास’32 के प मे ं व णत करता है, और व ान के वपरीत सं य ु रा य अमरीका के सृ वाद के लए था पत अ णी सं थानों को व दान करता है।33   जॉज माइली, ए टीओक नेटवक के अ तरा ीय अ य , एक सं गठन ं े लकल जसका मू ल ‘नाथ अमरीकन इवैज ीम ऑफ़ यै नटी’ मे ं है, जसने मशनरी समथक लॉजैन कोवेनट े ं को अपने ‘आ था के व य’ के प 34 मे ं अं गीकृत कर लया है।   जॉन गलमैन, डे ं ग इं टरनेशनल के मुख, जो भारत मे ं अपने उ े य को बहुत प प से व णत करता है : हज़ारों लाख देवी-देवताओं क पू जा लु हो जायेगी। मू तपू जा उतार फेंक जायेगी। पर तु इसे कौन व था पत करेगा? भारत मे ं रा ीय द लत नेता चच से अपील करते है,ं ‘आप आइये और अपने ईसा मसीह के बारे मे ं बताइये। आप हमे ं अपने थ क श ा दी जये’। उनका व ास है क भारत के लए यही एकमा आशा है, एक रा जो हो सकता है क एक र रं जत गृहयु के मुहाने पर खड़ा है—या इ तहास के वपरीत प व आ मा के दल पर से बोझ उतारने के कगार पर। इस समय भारत मे ं आ मा पर वजय पाने का जो बेहतर अवसर है वैसा पहले कभी नहीं रहा है।35 डी.एफ.एन. इस त य को छपाने के लए द लत चेहरे का उपयोग करता है क यह भारत पर अमरीक द णप थी ष क क र काया वयन शाखा है। द लत छाप इसे भारतीय मामलों मे ं ह त प े करने के लए एक सामा जक है सयत दान ी ै ै े ें ै ो ें

करती है, जैसा क इसने 2006 मे ं हुए कै लफो नया पा पु तक ववाद मे ं कया। ‘वॉल ीट जनल’ ने समाचार छापा क कस तरह डी.एफ.एन. ने भारतीय सं कृ त के पार पिरक नकारा मक च ण के समथन मे ं माण प दया। उ होंने वयं को ह दू अछूत के प मे ं तुत कया : अ य ह दू समू ह— जनमे ं ‘अछूत’ जा त के सद य भी शा मल थे— ी व जेल क ओर से मैदान मे ं कूद पड़े । अछूतों के लए वकालत करने वाले द लत डम नेटवक ने श ा बोड को लखा क वे दक ए ड ह दू एजू केशन फाउ डे शन ारा ता वत पिरवतन ‘भारतीय इ तहास के एक दृ कोण को त ब बत करता है जो ... भारत मे ं वण-आधािरत भेदभाव के कड़वे सच को ... कम करके बताता है। ... ल खत भारतीय इ तहास मे ं पिरवतन के लए राजनी तक रे णा वाले सं शोधनवा दयों को अनुम त न दे।ं 36 वह पा पु तक ववाद एक वैध मानवीयता क वकालत करने वाले समू ह के प मे ं डी.एफ.एन. क व सनीयता क थापना के लए उपयोगी था। यह जानामाना तरीका एक उदाहरण है क कस तरह सं य ु रा य अमरीका मे ं गुटबाज़ी वाले व भ समू ह अपनी व सनीयता था पत करते है।ं

डी.एफ.एन. के राजनी तक प पोषण के उदाहरण ं ा मन माश सं य ु रा य अमरीका के वदेश वभाग से तालमेल रखने के मामले मे ं बेज डी.एफ.एन. के भारी है।ं अमरीका भर के चच और स मेलनों मे ं वे डी.एफ.एन. क ओर से बराबर बोलते है।ं 37 उ होंने कै लफो नया पा पु तक ववाद मे ं प मी शै क व ानों के साथ नकट स ब ध था पत करते हुए काम कया, जहाँ उ हे ं द ण ए शयाई शै क व ानों के एक ना मत समू ह मे ं शा मल कया गया जब क वा तव मे ं वे एक राजनी तक ईसाई चारक है।ं इस समू ह मे,ं डी.एफ.एन. का पिरचय ‘वॉ शं गटन मे ं द लत आ दोलन क ओर से एक वा त वक जाँबाज’ के प मे ं कराया गया था।38 माश ने उ र अमरीका के ह दुओ ं पर डी.एफ.एन. ारा कये जा रहे गुटबाजी के यासों का वरोध करने का आरोप लगाया; ये यास चाहते हैं क अमरीक कां स े ‘वण- यव था या इसके आधु नक भाव से नपटे’। उ होंने इन ह दुओ ं पर डी.एफ.एन. के ‘भारत मे ं अछूत था क उप थ त को वीकार करने स ब धी एक ताव पािरत करने के चल रहे यास’ का वरोध करने का आरोप लगाया।39 एक शै क भारत वद मं च के एक पिर नयामक ने अपने सद यों से डी.एफ.एन. के साथ पिरचय बढ़ाने को कहा।40 उसके बाद शी ही माश ने मं च से भारत मे ं ईसाई धमा तरण कराने वालों के अ धकारों को ो सा हत करने का एक आवेदन तुत कया। य प उस आवेदन पर अनेक वैसे समू हों ने ह ता र कये थे जो अपने ईसाई ं जैसे ‘नैशनल असो सएशन ऑफ इवैज ं े लक स, क रतावाद के लए जाने जाते है— ै ें ओ ो ै

ं न, ओपन डोस इ टरनैशनल’ (National Association of सदन बै ट ट क वेश Evangelicals, Southern Baptist Convention, Open Doors International) और www.rightmarch.com (एक उ पिरवतनवादी द णप थी समू ह)—इस शै क मं च के पिर नयामक ने इसे एक वशेष अनुमोदन दान कया।41 डी.एफ.एन. ने शै क जगत और चच मे ं अपने यापक समथन के आधार क सहायता से अमरीक सरकार मे ं घुसपैठ बना ली है। वह भारत से व ाओं और आ दोलनकािरयों को अमरीक सरकार के आयोगों, नी त नधारक वचार-मं चों और चच के सम गवाही देने के लए बुलाता है, जसका प उ े य भारत मे ं सं य ु रा य अमरीका के ह त प े को 42 बढ़ावा देना होता है। ऐसे ही एक आ दोलनकारी हैं उ दत राज, जो ‘अ खल भारतीय अनुसू चत जा त/अनुसू चत जनजा त सं गठनों का महासं घ’ के अ य है।ं 43 राज भारत मे ं द लतों क एक वशाल रैली आयो जत करने और ह दुओ ं के बौ धम मे ं सामू हक धमा तरण कराने के बाद व यात हुए, जो सं य ु रा य अमरीका के ईसाई चारकों को अ छा लगा। ले कन कुछ भारतीय ईसाइयों, जैसे रैशन ल ट एसो सएशन ऑफ़ इ डया के अ य सनल एडामा कू ारा इस ग त व ध पर नै तक न उठाये गये। उ होंने भारतीय चच मे ं बड़ी मा ा मे ं अमरीक धन लाने के गु उ े यों क ओर यानाक षत कया। एडामा कू ने भारत मे ं इन अ तरा ीय सं गठनों ारा कये जाने वाले जोड़-तोड़ को प करते हुए लखा : द ी बैठक का आ धकािरक आयोजनकता सं गठन था अ खल भारतीय अनुसू चत जा त और जनजा त स मेलन, जो सरकारी कमचािरयों का एक छतरी सं गठन है और जसके सद यों क सं या तीस लाख से यादा है। ले कन इस आयोजन का गु सू धार और धन दाता सं गठन था ऑल इ डया यन काउं सल (ए.आई.सी.सी.), जो ईसाई चारक चच का ही एक घटक है, जनमे ं ं और मशनरी सं गठन शा मल है,ं भाँ त-भाँ त के ‘पुन: अवतिरत हुए’ नव- ोटे टेट और जसे बै ट टों और पे टको टलों ारा व न द कया गया है।44 उ रैली मे ं वशेष प से स मा नत लोगों मे ं वदेशी स ब ता वाले ईसाई चारक जोसफ डी’सू जा और के.पी. योह ान थे। एडामा कू प करते हैं क ये बै ट ट और पे टको टल व ीय कारणों से बौ धम मे ं सामू हक धमा तरण को ो सा हत कर रहे थे : ईसाई चारक नेटवक आ खर ह दुओ ं का बौ धम मे ं सामू हक धमा तरण ं सं य ु रा य अमरीका और अ य रहने वाले समथकों यों ायो जत करते है? और धनदाताओं के लए जू न महीने मे ं जन स पक अ भयान ार भ कया गया था, जसने यह गलत आभास देकर लोगों के दय और बटुए खुलवा दये क बड़ी सं या मे ं मछ लयाँ ईसाई जाल मे ं सीधे फँ सने जा रही है।ं ‘इस उपमहा ीप मे ं चच क थापना का अ भयान चलाने वाली सबसे बड़ी सं था— गॉ पल फ़ॉर ए शया’ ने द लतों क दुदशा और ह दू धम छोड़ने क उनक योजना पर यान े









के त करना ार भ कया।... इसके लए बड़ी उदारता से धन भेजा गया। ले कन बड़ी सं या मे ं मछ लयों के फँ सने का चार करते समय भी ए.आई.सी.सी. के नेता जानते थे और बहुत अ छ तरह उ होंने आकलन कर लया था क द लत केवल बौ धम मे ं ही धमा तिरत होंग।े उनका ल य द ी के धमा तिरत होने वाले लोग नहीं थे, य प उ होंने इसका उपयोग धनदाताओं को लालच देने के लए कया, ता क उनके मुहँ मे ं पानी आ जाये। उनका उ े य बौ धमा तरण का उपयोग एक फ र के प मे ं करने का था जससे सह ा दी के वशाल धमयु के लए भारत के ार खोले जाये।ं यह योजना केवल इस शत पर ही फलीभू त हो सकती थी क घी मे ं मशनिरयों क उँ ग लयाँ नज़र न आये।ं 45 ए.आई.सी.सी. क वेबसाइट सं य ु रा य अमरीका क वदेश नी त के तहत भारत मे ं ह त प े करने क वकालत करने मे ं उ दत राज क भू मका को इस तरह प करता है : अनुसू चत जा त/अनुसू चत जनजा त सं गठनों के महासं घ के रा ीय अ य डॉ. उ दत राज ने ी े ट ै स (सं य ु रा य अमरीका के एक कां स े सद य) से द ी मे ं दो वष पहले मुलाकात क और भारत मे ं द लतों क थ त उ हे ं बतायी। और उसके बाद डॉ. उ दत राज सं य ु रा य अमरीका क या ा पर गये, वशेष प से वॉ शं गटन, और वहाँ भारत के गाँवों और शहरों मे ं द लतों के साथ या हो रहा है, उसका एक प च तुत कया और भारत मे ं अपना यवसाय आर भ करने वाली अमरीक क प नयों से ह त प े का अनुरोध कया और यह क वे भारत मे ं द लत समुदाय के हतों के लए काम करे।ं उनक इस वॉ शं गटन या ा के अगले कदम के प मे ं एक सहभागी एजे सी द लत डम नेटवक ने इस मामले पर आगे काम कया और सं य ु रा य अमरीका के हॉउस ऑफ़ िर जे टे टव मे ं यह समवत ताव पािरत करवा लया।46 े ट ै स एिरजोना से त न ध के प मे ं सं य ु रा य अमरीका क कां स े मे ं आये है,ं जो एक ऐसा रा य है जहाँ द लत बहुत कम सं या मे ं है।ं उ होंने द लत मामलों मे ं ऐसी च इस लए ली है यों क द णप थी ईसाइयों के साथ उनके स ब ध है।ं सन 2007 मे ं उ ताव को तुत करते हुए ै स ने कहा, ‘यह ताव सु न त करेगा क एक सरकार के प मे ं और एक रा के प मे ं हम कसी भी कार से वण के आधार पर भेदभाव और अछूत था को भारत के साथ नी तगत स ब धों या हमारे य वदेशी सहायता के मा यम से न तो ो सा हत ं े और न ही लागू करेग ं ’े । उसके बाद का भाषण इस बात का एक अ छा करेग उदाहरण है क कस तरह उ पीड़न सा ह य उ आ धकािरक थानों तक पहँ◌ुचता है।47 इस तरह के ताव केवल नजी मत है,ं इनक कोई वैधा नक श नहीं है। इनमे ं से कई तो कुछ व श वाथ स के लए पािरत कये जाते हैं और अ धकतर ं े ें ी े ो े े े े ी ीं

अमरीक कां स े के सद य वोट करने से पहले इ हे ं पढ़ते भी नहीं। पर इसका भाव भारत मे ं बहुत होगा। और जो कोई भी भारत मे ं अमरीका का और अ धक ह त प े चाहता है, उसके लए यह ताव कागज़ों के भ डार को और ऊँचा कर देगा। वा तव मे,ं एक छ -द लत वेबसाइट ने इस ताव का ढं ढोरा पीट कर कहा, क वह एक ‘ऐ तहा सक कानू न’ है।48

कां चा इलाइया : ‘हम सं कृत क ह या कर देना चाहते है’ं एक अ य मह वपू ण च तक हैं कां चा इलाइया ज हे ं डी.एफ.एन. ारा व तर पर ‘द लत अ धकारों के लए अ भयान चलाने वाले अ णी नेता’ के प मे ं ो सा हत कया जा रहा है। डी.एफ.एन. ने उ हे ं एक पो ट डॉ टोरल फेलो शप दया है।49 उनक एक पु तक, ‘मैं ह दू यों नहीं हू ’ँ (Why I am Not a Hindu) अनेक अमरीक व व ालयों के ह दू धम के ार भक पा मों के लए नधािरत क गयी है। एक बे जयन भारत वद कोनराड ए ट ने इस पु तक क समी ा क और इसका समाना तर नाजी सा ह य मे ं यहू दी- वरोधी उपहास-साम ी मे ं पाया : ये ह दू वरोधी श याँ आय के आ मण क पिरक पना का अ तम छोर तक दोहन कर रही है,ं और भारतीय राजनी त मे ं पागलपन क हद तक न लवाद ँ ा रही है।ं उदाहरण के लए कां चा इलाइया क पु तक वाई क भारी खुराक पहुच आई एम नॉट ए ह दू (कलक ा, 1996) को पढ़े ं, जसे राजीव गाँधी फाउ डे शन ने ायो जत कया, इसके ा ण वरोधी काटू नों के साथ : ा ण खलनायकों क चुर कयों को उनके सर के पछले ह से से हटाकर केवल उनके कानों के सामने लाये,ं और आप उ हे ं नाजी समाचार प डे र टू मेर (Der Stumer) के ं ।े 50 यहू दी- वरोधी काटू नों क सटीक नकल पायेग सं कृत के त इलाइया क घृणा भी उतनी ही उ है। ‘इ डयन ए स स े ’क रपट के अनुसार कां चा इलाइया ने मानवा धकार पर भारत के रा ीय स मेलन के सामने यह कहते हुए जोरदार भाषण दया था, ‘हम इस देश मे ं सं कृत क ह या कर देना चाहते है’ं ।51 एक सा ा कार मे ं उ होंने यह सफाई भी दी, ‘हमे ं आई.आई.टी. और आई.आई.एम. सं थानों को ब द कर देना चा हए, यों क वे देश के ऊँचे वण क अथ यव था को बढ़ावा देते है’ं ।52 इलाइया क पु तकें द शत करती हैं क कस कार द लत आ दोलन ने वड़ अलगाववा दयों क भाषण शैली को आ मसात कर लया है, जैसे दमन क जड़ के प मे ं सं कृत और ह दू धम का दानवीकरण। भारत क अनेक साझ वरासतों को द लतों क शकायतों क जड़ क तरह तुत कया गया है। यन टुडे प का इलाइया क उपल धयों क सू ची मे ं यह भी शा मल करती है क ‘उ होंने सं य ु रा य अमरीका क कां स े क सभा मे ं हाल ही मे ं अपना बहु चािरत सा य दया,’ जसमे ं उ होंने ‘द लतों के व चल रही हं सा और े े ो ो े े

भेदभाव क अस लयत’ के लए ह दू धम पर दोषारोपण कया।53 यन टुडे के साथ एक सा ा कार मे ं उ होंने ह दू धम क तुलना नाजीवाद से क , और इसे ‘आ या मक फासीवाद’ के प मे ं व णत कया। उनके तक के आधार हटलर ारा ह दू तीकों को गलत ढं ग से अपनाये जाने पर आधािरत है,ं जसके लए वे ह दू धम को दोषी ठहराते है।ं ‘ ह दू धम एक कार का आ या मक फासीवाद है,’ वह या या करते है,ं ‘ यों क ह दू पु तकें कहती हैं क उ हे ं आय ने लखा था, और नाजी जमनी हटलर व ास करता था क वह आय न ल का था’; और इस लए ‘ ह दू और आय जमनवासी जन तीकों का उपयोग करते हैं वे समान है,ं जैसे क वा तक और यह अवधारणा क हमेशा च द लोग ही होते हैं जो अ य से े होते हैं ... इस लए ह दू धम आ या मक प से बलकुल ही फासीवादी णाली है और यही कारण है क हमारा देश अनेक कार से उ पी ड़त हुआ।’54 ईसाई चारक सं गठनों ारा इलाइया के लए आये दन सं य ु रा य अमरीका क या ाओं को ायो जत कया जाता है, जनका उ े य है उ हे ं जना धकार का एक बड़ा नेता बनाना, और इस तरह उनके भाव को और बढ़ाया जा रहा है। उदाहरण के लए, टे सास थत सं गठन गॉ पेल फ़ॉर ए शया ने घोषणा क : गॉ पेल फ़ॉर ए शया डॉ. कां चा इलाइया को ायो जत करने मे ं स ता का अनुभव करता है, जो भारत के सवा धक भावशाली मानवा धकार नेताओं मे ं से एक हैं ... जो इस देश के जना धकार आ दोलन के लए मा टन लू थर कंग जू नयर का अथ है वही आज भारत के जना धकार आ दोलन मे ं डॉ. इलाइया का है... ऑल इ डया यन काउं सल के सलाहकार क भू मका मे ं वे भारत क नचली जा तयों मे ं सामा जक-आ थक, धा मक, और राजनै तक थ तयों पर नेताओं को सलाह देते है।ं 55 इलाइया साउथ ए शयन टडीज के शै क स मेलनों मे ं स व ा भी रहे हैं जो व को सन व व ालय, मै डसन मे ं हर साल आयो जत कये जाते है।ं ‘पो ट ह दू इ डया’ (Post-Hindu India)56 नामक अपनी हाल क पु तक मे ं इलाइया सामा यत: ह दू धम के व घृणा का एक न लवादी स ा त गढ़ते है,ं वशेष प से ा णों के व । वे छ -वै ा नक न लवाद को पुनज वत करने का यास करते है।ं जसे वे ‘ ा णवादी मनो व ान’ कहते है,ं उसका अ ययन करने के आशय से वे इस बयान से शु करते हैं : ‘ ा णों के मनो व ान को समझने के लए कोई भी शोध नहीं हुआ है’। उसके बाद वे यह कहते हुए ा णों को उप- ा णों के ं इु न और प मे ं च त करने के लए आगे बढ़ते हैं क ा ण सामुदा यकता ‘पेग भेड़ों क सामुदा यकता क तरह काम करती है, जो अ त व के लए य गत सं घष हेत ु ऊजा का नमाण शायद ही करती है’। वे कहते हैं क ा ण पशुओ ं से भी बदतर है,ं यों क उनके मामले मे,ं पशुव ृ भी ‘अ प वक सत’ होती है : ओं

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पशुओ ं मे ं शकार करने और चरने क या उनके यापक सामा जक सामू हकता के घेरे मे ं उनके य गत यासों से होती है। ले कन ा ण अपनी सामा जक सामू हकता मे ं कोई भी य गत उ म क अनुम त नहीं देते थे। ं इु न और भेड़ों क अ प वक सत पशुव ृ को मनु यों मे ं लागू कया।57 उ होंने पेग वे न लवाद के छ - व ान को पुनज वत करने के लए आगे बढ़ते हैं : ‘मानवों मे ं व भ न ली झान भ कार से वृ यों का नमाण करते है’ं । उसके बाद, वे घृणा क ल फाजी क ओर आगे बढ़ते हैं जो सामा जक डा वनवाद से ओत ोत है। सभी परजीवी य वाद के नर तर भय से पी ड़त रहते है।ं ... एक समुदाय के प मे ं ा ण धरती से कुछ भी पैदा नहीं कर सकने क पशुव ृ मे ं सहभागी है।ं यह मानवीय वण सभी अ य सामा जक समुदायों से उसी समय से अलग हैं जब से मानव ब दरों से मश: वक सत हुए। ... इस असामा य परजीवी वृ ने ा णों को आ या मक फासीवाद क सामा जक या न मत करने को 58 ववश कर दया जो इस परजीवीवाद का कला बन गयी। वे न कष नकालते हैं क ा णों के बा यकाल का नमाण अपने आप मे ं ‘आनुवां शक और अ पा तरणीयता क सामा जक वृ वाला होता है’।59 इस घृणा के आधार पर वे भारत मे ं एक गृह-यु क पिरक पना करते है,ं और द लत-बहुजनों से अपील करते हैं क वे सम और य तरों पर गृह-यु ार भ करे।ं 60 ह दू देवी-देवताओं अपनी वकृत पिरक पनाओं का उ रण देते हुए इलाइया भारत मे ं एक पू ण ‘सश यु ’ का सुझाव देते है : ऐ तहा सक प से अगड़ी जा तयों ने पछड़ी जा तयों के लोगों को ह थयारों के बल पर दबाया, जैसा क ह दू देवी-देवताओं का ोत अपने आप मे ं ह थयारों के उपयोग क सं कृ त मे ं जड़ जमाये है। एस.सी./एस.टी./ओ.बी.सी. को इस लए भारत से ह दू हं सा को समा करने क या मे ं सश यु क ओर 61 मुड़ना ही होगा। हं सक उभार क तज पर, जैसा क यू रोप मे ं हुआ था, इलाइया एक ‘बड़े गृहयु ’ क भ व यवाणी करते हुए इसे एक ‘अ नवाय बुराई’62 के प मे ं देखते हैं और दावा करते हैं क ‘भारत मे ं गृह यु मे ं अगुवाई करने क वशाल मता द लतों मे ं है’ जनको ‘बौ ों और ईसाइयों का भी साथ होगा ... जो एक ही वृ के प मे ं वक सत हो रहे है’ं । जो भी हो, इलाइया बौ धम का नाम सफ ऊपरी तौर पर लेते हैं ता क ह दू धम के व एक सं ग ठत सेना खड़ी क जा सके, यों क इस पु तक मे ं अ य वह कहते हैं क भारतीय द लत ईसा मसीह को बु से अ य धक श शाली मु दाता के प मे ं पाते है।ं 63 ऐसी वषा और घृणा से भरी पु तक का काशन सेज प लकेश स जैसी एक स मा नत काशन सं था ने कया है जो एक चेतावनी का सं केत होना चा हए। इससे भी अ धक आ यजनक बात यह है क सेज प लकेश स ने एक असामा य कदम ै े ओ े े ी ें े

उठाते हुए काशन क ओर से एक वशेष ट पणी का शत क है जसमे ं लेखक क ‘अ तीय शोध या और तक क सू मता’ क शं सा क गयी है।

डी.एफ.एन. क हाल क ग त व धया ँ 2005 मे ं कां चा इलाइया के साथ-साथ डी.एफ.एन. के त न धयों ने मानवा धकार पर सं य ु रा य अमरीका क सरकार क उप-स म त के सम सा य दये थे, जसमे ं उ होंने भारत के व ह त प े क अमरीक नी तयों के प मे ं तक दये थे। उस सुनवाई का शीषक था ‘वण- यव था के शकार 20 करोड़ लोगों के लए समानता और याय’।64 वै क मानवा धकार पर ग ठत सं य ु रा य अमरीका के आयोग के अ य ने यह कहते हुए डी.एफ.एन. के ख का समथन कया था क ‘धमा तरण करके ईसाई बने लोगों और ईसाई मशनिरयों को वशेष प से ल य बनाया जा रहा है, और ईसाइयों के व हं सा पर ाय: सजा नहीं मलती’। जॉन दयाल ने, जनके डी.एफ.एन. के साथ नकट स ब ध है,ं भारत क इस आलोचना क शं सा एक ‘ऐ तहा सक ण’ के प मे ं क थी।65 2006 मे ं वॉ शं गटन के कै पटल हल मे ं द णप थी ईसाई मू लत ववादी सनेटर िरक सै टोरम (Rick Santorum) ारा एक ‘धा मक वत ता दवस’ का आयोजन कया गया था। डी.एफ.एन. के जोजेफ डी’सू जा ने उसमे ं मु य भाषण दया था जसमे ं उ होंने ‘ ह दू अ तवाद’ को सभी कार क धा मक हं सा के लए उ रदायी ठहराया था। उ होंने व समाज से अनुरोध कया क भारत के आ तिरक सं घष मे ं तथा भारत के रा यों के धमा तरण के अनु चत तरीकों को तब धत करने वाले कानू नों का वरोध करने के लए वे ह त प े करे।ं 66 उस अवसर का उपयोग यह घोषणा करने के लए कया गया क भारत मे ं होने वाली ‘ व धा मक वत ता दवस’ क रैली ं ।े मे ं 1,00,000 द लत ईसाई भाग लेग यै नटी टुडे प का ने यन सॉ लडै िरटी व डवाइड के आरोपों का समथन कया, जो गलत तौर-तरीकों से ईसाई चारक धमा तरण को रोकने के लए बनाये गये भारतीय कानू नों को नर त करवाने क को शशों मे ं लगी है।67 2007 मे ं डी.एफ.एन. और उससे स ब सं गठनों ने कां स े नल ू मन राइ स कॉकस के ववरण मे ं भावी भू मका नभायी जसका वषय था ‘अछूत : द लत म हलाओं क दुदशा’। इस कॉकस ने नै सी िर स (डी.एफ.एन. अ य ), जोजेफ डी’सू जा (डी.एफ.एन. अ तरा ीय अ य ), कुमार वामी (ऑल इ डया यन काउं सल) के सा य सुन।े और अमरीका थत एक जानी-मानी भारत वरोधी आ दोलनकारी मता न ला ने भी डी.एफ.एन. के स देश को आगे बढ़ाया।68 इस ववरण ने एक समवत ताव के लए माग श त कया। ि

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भारत क आ तिरक सम याओं मे ं अ तरा ीय ह त प े के लए ऐसी दलील के अलावा डी.एफ.एन. इस काम के लए धन क यव था भी करता है जसे वह ‘द लत सश करण’ कहता है। ऐसा ही एक मोचा है ऑपरेशन मस चैिरटबल क पनी (ओ.एम.सी.सी.), जो प प से ईसाई ‘गुड शेफड’ कूलों क थापना का 69 ं र’ खोलने क ल य रखती है। ‘एक हज़ार द लत ए ू केशन ए ड इमैन सपेशन सेट इसक एक मह वाकां ी योजना है।70 इसक वेबसाइट पाठकों को सू चत करती है क यह सं गठन ‘गाँधी, नेह और अ बेडकर ारा हमे ं दी गयी वत लोकता क पर परा मे’ं व ास करता है। जो भी हो, डी.एफ.एन. के अ य जोजेफ डी’सू जा वयं वण- यव था मटाने के लए महा मा गाँधी क सेवाओं के मू य को कम करके दखाते है।ं 71 इस कार ओ.एम.सी.सी. केवल डी.एफ.एन. के एक अ य मोच क तरह काम करती है, और वयं को एक गाँधी समथक चेहरा दान करती है ता क वह अपने गाँधी वरोधी ख को स तु लत कर सके।

ऑल इ डया

यन काउं सल (ए.आई.सी.सी.)

हालाँ क डी.एफ.एन. अमरीका का सं गठन है, इसका स ब ध ऑल इ डया यन काउं सल से है, जसे ‘चच सं थानों और ईसाई य वों के भारत मे ं सबसे बड़े गठब धन’ और ‘हर कार के ईसाइयों, मशन एजे ं सयों, सं थानों, फेडरेशन और सामा य ईसाई नेताओं के एक रा यापी गठब धन’ के प मे ं व णत कया गया है।72 यह ‘ यन सॉ लडै िरटी व डवाइड’ (Christian Solidarity Worldwide, सी.एस.ड यू .) से स ब रही है, जसका नेत ृ व बैरोनेस कैरो लन कॉ स ारा कया जाता है।73 (सी.एस.ड यू . और बैरोनेस पर अ धक जानकारी के लए अ याय 16 देख)े ं सी.एस.ड यू . ने ईसाई-द लत गठजोड़ के वै ीकरण को सुगम बनाया है, जैसा क 2001 के डबन स मेलन मे,ं जहाँ इसने भारत सरकार के व ख क अगुवाई क थी।74 इसके नायकों मे ं से एक, जॉन दयाल, भारत ारा उ पीड़न के व सा य देते रहे हैं और प म के सं थानों से ह त प े क अपील 75 करते रहे है।ं ए.आई.सी.सी. भारतीय उ पीड़न सा ह य क उस ढं ग से तु त करने मे ं द है जो लोगों का यान आक षत करती है। उदाहरण के लए, सं य ु रा य अमरीका क कां स े के सद य एडॉ फस टाऊ स ने, ज होंने 1998 मे ं भारत को आतं कवादी रा घो षत करना चाहा था,76 ए.आई.सी.सी. ारा वक सत कये गये उ पीड़न सा ह य का उपयोग भारत को ‘एक वा त वक लोकत नहीं, ब क एक धमशा सत अ याचारी’ के प मे ं च त करने के लए कया, और कहा क सं य ु रा य अमरीका को ‘धा मक वत ता का उ ं घन करने वाले के व अव य ही 77 समु चत तब ध लगाने चा हए’। े







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अपने जन स पक अ भयान को जारी रखते हुए, ए.आई.सी.सी. ने इस बात का य े लया क उसक यन सॉ लडै िरटी व डवाइड और डी.एफ.एन. के साथ भागीदारी है जसके पिरणाम व प ही इं लै ड के वदेश वभाग ारा ‘द लत दासता पर एक बयान’ जारी कया गया। सन 2007 मे ं ए.आई.सी.सी. ने मानवा धकार आयोग और से स मे ं यू रोपीय यू नयन के सां सदों को इस अ याचार के स ब ध मे ं ं और नॉव क सुनवाइयों मे ं भी भाग लया। उस वष जब टेन बताया और कॉटलैड के हाउस ऑफ़ कॉम स ने वण-आधािरत दमन पर बहस क तो एक सां सद ने खुलआ े म ए.आई.सी.सी. ारा उनक भारत या ा ायो जत करने क चचा क ।78 2007 मे ं सं य ु रा य अमरीका क सं सदीय मानवा धकार स म त के सम द लत म हलाओं क दुदशा पर ए.आई.सी.सी. और डी.एफ.एन. के नेताओं ारा गवाही देने के बाद79 नकेलो डओन टीवी ने, जो ब ों का एक चैनल है, एक एमी (Emmy) पुर कृत लोक य ब ों के सामाचार काय म मे ं एक काय म सािरत कया जसका शीषक था ‘अनटचेबल क स ऑफ़ इ डया’, जसमे ं ए.आई.सी.सी. और ऑपरेशन मस के बारे मे ं बताया गया।80 इस यापक चार को वक सत करने के बाद, ए.आई.सी.सी. ने आगे के राजनै तक भाव के लए अपना आधार तैयार कया। ए.आई.सी.सी. अ य ने य यों क त करी रोकने, और द लतों के शोषण के खलाफ ताव पािरत करवाने के लए मु य प से सं य ु रा य अमरीका के ं क । उनक दलीले ं वशेष प से भारत क रा य सेनट े रों और उसके राजदू त से भेट यव था के व थीं। ए.आई.सी.सी. और यन सॉ लडै िरटी व डवाइड सं य ु रा य अमरीका और यू रोपीय अ धकािरयों को ‘द लत और ईसाई उ पीड़न’ पर जानकारी देने के लए एक-दू सरे के साथ स य सहयोग करते है।ं 81 2009 मे ं ए.आई.सी.सी. के जोजेफ डी’सू जा को कनाडा क ॉसरो स यन क यु नकेश स के एक टीवी टॉक शो मे ं द लत अ धकारों के लए एक जहादी के प मे ं पेश कया गया था। उ होंने भारत के सभी भागों मे ं द लतों पर अ याचार को एक मु यधारा के नयम के प मे ं बताया, जसके कारण टीवी काय म के सं चालक यह बोल पड़े क भारत का लोकत एक धोखा है। डी’सू जा के लए वे अ बेडकर और गाँधी नहीं थे ज होंने द लतों के जीवन को बेहतर बनाया, ब क वह लमडॉग म लयनेयर फ म थी, जसक उ होंने गलत ढं ग से या या यह दावा करने के लए क क द लत गाँवों मे ं पाँच वष से अ धक उ क सभी ब यों को उनके माता- पता ारा यौन दासता मे ं डालने के लए एक या दो हज़ार डालरों मे ं बेच दया जाता है।82 इस काय म को ‘100 हं टली ीट’ नामक एक ईसाई चारक मी डया समू ह ारा सािरत कया गया, जो अपने क रप थ और गैर-ईसाई समू हों पर लां छन लगाने के लए जाना जाता है।83 अमरीक समाचार मा यम पहले से ही कई महीनों तक अटकले ं लगाते रहे क या लमडॉग म लयनेयर मे ं जस युवा म हला ने े









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अ भनय कया उसे उसके दबे-कुचले धन के लालची पिरवार ने भारी रा श लेकर बेच दया होगा या नहीं। ए.आई.सी.सी. बड़ी चतुराई से वयं को द मत लोगों के त न ध के प मे ं था पत करती है। उदाहरण के लए, धा मक वत ता या व ास पर सं य ु रा सं घ क वशेष दू त सु ी अ मा जहाँगीर भारत आयीं तब यन सॉ लडै िरटी व डवाइड ने ‘ सकंदराबाद मे ं ए.आई.सी.सी. नेताओं से वशेष दू त के कमचािरयों का कृपापू वक पिरचय कराया था। सी.एस.ड यू . के तक देने वाले अ धकारी जहाँगीर से पछले वष उनके ल दन दौरे के समय मले’।84 अपनी रपट मे ं जहाँगीर ने ईसाई सं गठनों के दृ कोणों को ही त व नत कया, और ए.आई.सी.सी. ारा जारी पच मे ं कहा गया क उनका 2008 का भारत दौरा सी.एस.ड यू . (यू नाइटेड कंगडम) के भागीदार के प मे ं ए.आई.सी.सी. ने आयो जत कया था। उड़ीसा का दौरा करने के बाद उनक रपट मे ं धा मक वत ता के रा य तरीय अ ध नयमों पर च ता य क गयी थी जनमे ं अनै तक तरीकों से धमा तरण पर रोक लगायी गयी थी, और आगे इसने माँग क क ईसाई बने पू व द लत समुदायों के लोगों को ह दू द लतों के लए आर त सकारा मक सरकारी काय मों मे ं ह सा दया ही जाना चा हए। दोनों वचार ए.आई.सी.सी. के मु य वषय रहे है।ं 85 अपनी सं य ु रा य अमरीका क नेटव कग के साथ ए.आई.सी.सी. ने भारतीय राजनी त मे ं भी अपनी बाँहे ं चढ़ानी शु कर दी है।ं इसने स ा ढ़ पाट को भारत के महारा रा य मे ं होने वाले वधान सभा चुनावों के लए ईसाई उ मीदवारों क अपनी एक सू ची दी थी।86

भारत के व ईसाई लॉ बं ग के साथ सं य ु रा य अमरीका के राजनी त ों और अ धकािरयों के स ब धों के उदाहरण 1980 के दशक से ही उन ईसाई चारक गुटों के साथ अनेक अमरीक राजनी त ों और नयु नौकरशाहों के मजबू त स ब ध रहे हैं जो भारत मे ं ह त प े का समथन ं ।े करते है।ं इसके उदाहरण व प हम ऐसे कुछ राजनी त ों क सू ची बनायेग सं य ु रा य अमरीका क कां स े के सद य टोफर मथ ने, जो ‘ लोबल ू मन राइ स ऐ ड इ टरनैशनल ऑपरेश स’ (Global Human Rights and International Operations) क अ का पर ग ठत स म त के अ य है,ं भारत मे ं द लतों ारा झेले गये मानवा धकार उ ं घनों और भेदभाव के मामले पर 2005 मे ं एक सुनवाई क थी। इसके व भ आयोजनों मे ं डी.एफ.एन. के आ दोलनकािरयों का दबदबा था और कां स े सद य मथ ने उनके ख का समथन कया। मथ एक क र ईसाई हैं जो गभपात वरोधी और अ य क रप थी व ासों के लए जाने जाते है,ं और ज होंने सु नयो जत ढं ग से उन काय मों को ब द करवा दया जो उन द लत ओं े



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म हलाओं के सश करण के लए थे जो उनके ईसाई मू यों के तहत चलने को तैयार नहीं थीं : यह ईसाइयत है, न क द लत सश करण या म हला अ धकार, जसके लए वे मत बना रहे है।ं 87 डी.एफ.एन. क ग त व धयों को ायो जत करने वाले एक अ य कां स े ी सद य हैं जोजेफ प स। सन 2004 मे ं वे त यों का पता लगाने के एक मशन पर भारत गये थे, और उ होंने न कष नकाला क गलत ढं ग से धमा तरण को रोकने के लए कानू न अलोकता क थे।88 उस वष उ होंने भारत पर आयो जत पी.आई.एफ.आर.ए.एस. (Policy Institute for Religion and State)89 के से मनार मे ं भी भाग लया,90 और वे अपने पा क तान समथक ख के लए जाने जाते है।ं 91 (पी.आई.एफ.आर.ए.एस. पर व तार से चचा इसी अ याय मे ं बाद मे ं क गयी है) सन 2001 मे ं उ होंने सं य ु रा य अमरीका क कां स े मे ं एक क मीर मं च क थापना करने का यास कया था। सन 2003 मे ं उ होंने कै पटल हल मे ं क मीर पर एक पा क तान समथक स मेलन का उ घाटन कया था। वे ‘ल बे समय से पा क तान समथक लॉबी से सहानुभू त रखने वाले’ के प मे ं जाने जाते है,ं और भारतीय अ धकािरयों ने उनके आयोजनों का ब ह कार कया था।92 एक ईसाई सं र णवादी के प मे ं 2005 मे ं अमरीकन कंजव टव यू नयन और 2004 मे ं यन को लशन से उ होंने अपने मतदान के िरकाड पर शत तशत अं क ा कये थे।93 पू व सं य ु रा य सेनट े र िरक सै टोरम के साथ प स ने डी.एफ.एन. के लए 2006 मे ं एक धा मक वत ता दवस समारोह आयो जत करने मे ं सहायता दान क थी।94 प स ईराक मे ं सं य ु रा य अमरीका के ह त प े का समथन करने के लए भी जाने जाते ं डजाइन स ा त को है,ं और उ होंने रा ीय कूल पा म मे ं यन इं टे लजेट 95 ं र के साथ घुसाने के भी यास कये थे। वे अब ए थ स ए ड प लक पॉ लसी सेट सी नयर फेलो है,ं जहाँ ‘अमरीका के श ’ु नामक काय म का नेत ृ व कर रहे है,ं जो ‘अमरीका और प म के सम प म वरोधी श यों क बढ़ती कतार ारा उप थत कये गये खतरों क पहचान, उनके अ ययन और उनके त जनता मे ं जाग कता बढ़ाने पर यान के त करेगा, जो हमारे भ व य पर अ धका धक छाते जा रहे हैं और व भर मे ं धा मक वत ता का उ ं घन कर रहे है’ं ।96 कां स े सद य े ट ैं स ने सं य ु रा य अमरीका क कां स े मे ं एक ताव पेश कया जसमे ं भारत क वण- यव था स ब धी सम याओं मे ं अमरीक ह त प े करने क माँग क गयी थी। डी.एफ.एन., ए.आई.सी.सी. और उनसे स ब सं गठनों और य यों ारा एक ऐ तहा सक वजय के प मे ं उसका वागत कया गया है। उ होंने 2004 मे ं भारत पर आयो जत पी.आई.एफ.आर.ए.एस. के स मेलन मे ं भी भाग लया था।97 वे एक श शाली द णप थी सं र णवादी हैं जो भारत मे ं हा शये पर के वग के लए अमरीक ह त प े क माँग करते है,ं जब क सं य ु रा य अमरीका मे ं सबसे बड़े और पुराने नागिरक अ धकार समू ह, द नेशनल एसो सएशन फ़ॉर द ं

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ं ऑफ़ कलड पीपल, ने उनका दजा काफ नीचे रखा है, यों क सं य ु एडवां समेट रा य मे ं हा शये पर के लोगों के लए उनके समथन का अभाव है।98 वे व भर के ईसाइयों को यह कहने के लए क वे बराक ओबामा क हार के लए ाथना करे,ं आमू ल पिरवतनवादी ईसाई चारक गॉड टीवी चैनल के काय म मे ं आये।99 व लयम आम ां ग एक पू व सं य ु रा य सनेटर हैं जो द लत डम नेटवक के सलाहकार बोड के एक स य सद य है।ं 100 वे कोलोराडो यन यू नव सटी के 101 अ य के प मे ं सेवारत है,ं जो ‘एक ऐसे वातावरण क आव यकता समझते हैं जसमे ं धमा तरण क स भावनाओं का पोषण होता हो’, और वे अपने छा ों, श कों, और कमचािरयों को ‘भारत जैसे थानों’ मे ं भेजकर ऐसा करते है।ं 102 सेनट े र सैम ाउनबैक (Sam Brownback) ने, जो द णप थी ईसाई समू हों के साथ मलकर काम करते है,ं ने अमरीक सं सद क वदेशी स ब ध स म त मे ं काम कया है। मेथो ड ट चच उनके इस ख से स था क ह दू ‘अ तवाद’ द ण ए शया मे ं शा त को खतरा उप थत कर रहा है, और उ होंने सुझाव दया क ‘सं य ु रा य अमरीका को द ण ए शया मे ं आ ामक राजन यकता के साथ जुटने क आव यकता है’।103 ाउनबैक, प स और अनेक अ य मह वपू ण राजनी त ों के साथ, एक तरह से गु समू ह के अं ग हैं जो वयं को ‘द फै मली’ यानी ‘पिरवार’ कहता है, और जसने अमरीका क वदेश नी त को दशकों से भा वत कया है।104 एडॉ फस टाउ स (Edolphus Towns) ने, जो सं य ु रा य अमरीका क कां स े के सद य हैं और जनका अ भषेक एक बै ट ट म ी के प मे ं हुआ है, अमरीक कां स े मे ं इस आरोप पर भारत क न दा करने के लए ए.आई.सी.सी. क रपटों को ृ कया क भारत का वदेशी योगदान नयामक अ ध नयम आ धकािरक तौर पर उ त धमा तरण के लए आने वाले वदेशी धन के वाह क नगरानी रखता है।105 भारत क भुस ा के व लगातार बने रहे उनके ख का च ण न न ल खत व य ारा कया गया है : अनेक कदम हैं ज हे ं हम द ण ए शया मे ं सभी लोगों के अ धकारों के समथन मे ं उठा सकते है।ं समय आ गया है क हम इन कदमों को उठाये।ं इनमे ं हमारी आ थक सहायता और भारत के साथ यापार मे ं कटौती के अलावा सं य ु रा य अमरीका क कां स े मे ं औपचािरक प से पं जाब के सखों के आ म- नणय, खा ल तान, नागालै ड के ईसाई, क मीरी और द ण ए शया के सभी लोगों के लए, जो वत ता क माँग कर रहे है,ं ताव लाना शा मल है। केवल आ मनणय के अ धकार का उपयोग कर, जो लोकत का सार है, वहाँ के लोग अ तत: वत ता, शा त और समृ के साथ जीवन नवाह कर सकते है।ं 106 यहाँ व णत अ धकां श राजनी त ों के वपरीत, टाउ स एक अ क अमरीक , डे मो ै ट और एक कॉ मोपॉ लटन वामपं थ क ओर झुकाव रखने वाले एक सवदेशी ी









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आबादी वाले शहरी जले के त न ध है।ं प है क ए.आई.सी.सी. और डी.एफ.एन. अनेक कार के समू हों को भा वत करने मे ं सफल रहे है।ं हमारा अ तम उदाहरण वॉ शं गटन थत ‘अमरीक सरकार का का मक ब धन कायालय’ (US Office of Personnel Management) के सुसाई एं थनी (Susai Anthony) का है। उ होंने सं य ु रा य क कां स े के सम ‘भारत मे ं ईसाइयों के उ पीड़न पर उनके सामने त य रखने के लए’ एक अ भलेख तुत कया है, यह दावा करते हुए क यह ‘भारतीय अमरीक ईसाइयों के सामू हक च तन को त ब बत करता है।’ उ होंने ह दू धम क पिरभाषा इस व य के साथ क क ‘अ धकां श ह दू थाएँ आय ारा लायी गयी थीं’, और ‘ ह दू धम जैसा क चार कया जाता है वैसा उदारवादी धम नहीं है’। उ होंने वषवार और रा यवार ‘अछूतों और मू ल नवा सयों के व उ पीड़न के मामलों’ क न द सं या और उनके आँकड़े दये। उ होंने भारतीय मुसलमान और ईसाई समुदायों के अ दर वण भेद और वण-उ पीड़न क यापक उप थ त को बड़ी आसानी से नज़र दाज भी कया। उ होंने दावा कया क यह मशनरी श ा ही है, जो भारतीयों को वैसे काय को करने यो य बनाती है जो ‘पार पिरक ह दू काय से अलग है’ं । उनक दृ मे ं भारत क प थ नरपे ता वैध नहीं थी और उ होंने म य देश के एक कानू न क आलोचना क जसने कसी भी य के धमा तरण के लए ‘बल, छल, या लालच’ का उपयोग करने को तब धत कर दया है। भारत के ‘पहले दस रा यों ारा कये जाने वाले ईसाई वरोधी अपराधों’ पर आँकड़े भी उनक रपट मे ं तुत कये गये और वत प से आरोपों क पु के बना कसी यास के उ हे ं अमरीक अ धकािरयों ारा वीकार भी कर लया गया। अमरीक सरकार को बताया गया क ‘भारत मे ं ईसाइयों क सम या कोई आ तिरक मामला नहीं है’, और यह क इसमे ं अ तरा ीय ह त प े 107 क आव यकता है।



णप थी वचार मं च और नी त के

ईसाइयों ारा व पो षत य वों ारा उ पा दत उ पीड़न सा ह य को असं य अमरीक सं थान लेते है,ं उ हे ं अ यवसा यक प से भावी ढं ग से फर से सु यव थत करते है,ं और अमरीका के श के ों के नी त- नमाताओं को उनके उपयोग के लए देते है।ं वे कहा नयों को कुछ इस कार बुनते हैं क धमशा और द णप थी राजनी त क स य भाषा के मा यम से जं गली यवहार दखाया जा सके। ऐसे सं थानों के कुछ मुख उदाहरण नीचे व णत कये गये है।ं

पॉ लसी इं टी

ू ट फ़ॉर िर लजन ए ड टेट (पी.आई.एफ.आर.ए.एस.)

‘धम और रा य के लए नी त सं थान’ (Policy Institute for Religion and State) वकालत करने वाला एक श शाली समू ह है जो अपना मशन व य व तु न , ै े े े

नरपे

प से देता है : टकाऊ समाजों के सृजन मे ं लोकत , मानवा धकार और ववेक क वत ता क भू मका क समझ को ो सा हत करने के मा यम से धम और रा य के बीच वचार- वमश के लए एक लोकता क आधार को ो सा हत करना।108

जो भी हो, यह उ ख े नीय है क पी.आई.एफ.आर.ए.एस. बोड का येक सद य अ ाह मक प थ का है। वा तव मे,ं इसके अनेक सद य ईसाई चारक सं थानों का भी त न ध व करते हैं जनका सीधा वाथ ह दू धम से टकराता है। उदाहरण के लए, इसके कायपालक नदेशक जॉन भुदोस द फेडरेशन फ़ॉर इ डयन अमरीकन यन ऑगनाइजेश स ऑफ़ नॉथ अमरीका (FIACONA) का त न ध व इसके ं ल अफेयस क मटी के अ य के प मे ं करते है।ं फयाकोना ने ईसाइयों के गवनमेट व क थत ह दू उ पीड़न के बारे मे ं जन जागरण और चार के लए वॉ शं गटन मे ं यापक लॉ बं ग क है। सुर ा और आतं कवाद वरोधी कारवाई के वशेष बी. रमन ने, ज होंने छह वष तक भारत के िरसच ए ड एना ल सस वं ग (रॉ) के आतं कवाद वरोधी ड वजन का नेत ृ व कया था और जो वतमान मे ं चे ई के इं टी ू ट फ़ॉर टॉ पकल टडीज के नदेशक है,ं प ास और फयाकोना पर गहन शोध कया है। उ होंने इसके कायपालक नदेशक को रह यमय चिर और अनेक पों मे ं पाया, जो : ... वयं को कभी-कभी जॉन भुदोस कहते हैं (उदाहरण के लए जब वे ईराक पर अमरीक हमले और उसे क जे मे ं करने के बाद वहाँ गये) और कभी-कभी पी.डी. जॉन (उदाहरण के लए जब वे 2002 के दं गों के बाद गुजरात गये) और उनके दो चेहरे है।ं यह भी आरोप लगाया गया है क वे अ य नामों—जैसे जे.पी. दोस—का भी उपयोग करते है।ं 109 इससे भी अ धक उजागर करने वाली है प ास क फयाकोना के साथ चलायी जाने वाली ग त व धयों मे ं अ त न हत पू वा ह स ब धी रमन क या या। भुदोस का वणन करते हुए वह कहते हैं : फयाकोना वॉ शं गटन मे ं भारत मे ं धा मक अ पसं यकों के अ धकारों का उ ं घन और ईसाइयों के धमा तरण के अ धकार पर लगाये गये रोक के मामले मे ं लॉ बं ग पर, और प ास मु य प से लोकत और सुशासन को, वशेष प से इ लामी व मे,ं ो सा हत करने क बुश शासन क नी त को समथन देने मे ं यान के त करता है। ... मेरे शोध और मेरी खोज ने भी सं केत दया है क जहाँ एक ओर भुदोस और उनके सं गठन भारत मे ं ईसाइयों और मुसलमानों के मानवा धकारों के उ ं घन क आलोचना करने मे ं अ य धक मुखर है,ं वहीं दू सरी ओर वे अमरीक सै नकों ारा ईराक के सु ी मुसलमानों के मानवा धकारों के उ ं घन, अमरीक सै नकों ारा अबु गरीब जेल मे ं बरती गयी क थत नृशंसता, और अमरीक सै नकों ारा ईराक सु यों के क थत सं हार, वशेषकर फलुजा ं ें ी ी ै ी ैं े े ो े ें ों

मे,ं पर चु पी साध रखी है। न ही मैनं े यू बा के वां टानामो बे मे ं मु लम ब दयों के नृशंस मानवा धकार उ ं घनों पर उनके और उनके सं गठनों ारा कोई आ दोलन देखा।110 प ास के एक अ य बोड सद य हैं ू स सी. रॉबसटन, जो जॉन हॉप क स व व ालय मे ं द ण ए शया अ ययन क पीठ पर आसीन हैं और भारत मे ं काम कर रहे मशनिरयों के पु है।ं वे सं य ु रा य अमरीका के वदेश वभाग के वदेश सेवा सं थान एन.एफ.ए.टी.सी. मे ं साउथ ए शया एिरया टडीज के अ य भी थे।111 वे ईसाई चारकों मे ं भावी है,ं और रामायण पर एक कूली पा म वक सत ं ऑफ़ ू मै नटीज से एक ववादा पद करने के लए अमरीक नेशनल ए डाउमेट अनुदान देने क मु य भू मका मे ं थे। उसके पिरणाम व प जो श क श ण पु तका बनी, उसमे ं एक गीत शा मल कया गया जसमे ं राम को अ य बातों के अलावा न लवादी, मु लम वरोधी और म हलाओं का दमन करने वाले के प मे ं च त कया गया था।112

प ास के स मेलन व भर मे ं स मेलन आयो जत होते हैं जहाँ श ा वदों को स मा नत कया जाता है, ं े को आगे बढ़ाते है,ं और राजनी त अपने लए समथन लॉबी करने वाले अपने एजेड ा करते है।ं ये ही वे मं च हैं जहाँ भावों के मह वपू ण नेटवक वक सत होते है।ं इन ं े क कस तरह ईसाई स मेलनों मे ं से कुछ क छान-बीन करके हम यह दखायेग चारक, शै क और सरकारी श यों के समू ह एक साथ मलते हैं और एक दमनकारी भारतीय रा य क , एक वफल लोकत क जो नरीह धा मक अ पसं यकों को उ पी ड़त करता है, त वीर बनाने के लए लगातार साम ी उपल ध कराते है।ं स देश यह है क भारत के द मत लोगों को बचाना सं य ु रा य अमरीका के धा मक और राजनी तक हत मे ं है। 2002 मे,ं प ास ने एक द ण ए शया स मेलन कया था जसे यू नाइटेड मेथो ड ट बोड ऑफ़ चच ए ड सोसाइटी तथा द नेशनल काउं सल ऑफ़ चचज ऑफ़ ाइ ट इन द यू .एस.ए. ने ायो जत कया था। इसे ायो जत करने मे ं सहयोगी अ य मुख वचार समू ह (अ धकां शत: द णप थी या ईसाई चारक मान सकता ं र, द सेट ं र फ़ॉर िर ल जयस डम, वाले) के थे : ए थ स ए ड प लक पॉ लसी सेट डम हाउस, द इं टी ू ट फ़ॉर धम इन प लक पॉ लसी, और द एपो टॉ लक क मशन फ़ॉर ए थ स ए ड पॉ लसी। स मेलन मे ं जॉन दयाल ने तक दया क अ पसं यक जन अपनी र ा, या अपने व कये जाने वाले अपराधों के लए अपरा धयों को द डत करने के लए भारतीय रा य पर भरोसा नहीं कर सकते। ू स रॉबटसन ने व ास पर आधािरत ै





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गैरसरकारी सं गठनों (एन.जी.ओ.), (जैसे ईसाई ायो जत वदेशी समू ह) से अनुरोध कया क वे वैसी सामुदा यक सेवाएँ और अ धक दान करे ं जो भारत मे ं सरकारे ं नहीं दान कर रही है।ं के.पी. सं ह ने, जो सएटल थत वा शं गटन व व ालय के सं काय के सद य है,ं अपने भड़काऊ दावे को बना कसी चुनौती के तुत कया क ‘भारत क वत ता के बाद से लगभग तीस लाख द लत म हलाओं से बला कार हुआ और दस लाख द लतों क ह या क गयी है’।113

भारत मे ं भाव 2004 मे ं भारत के आम चुनाव क पू व सं या पर, प ास ने ‘धा मक और राजनै तक बहुलतावाद के इ तहास का के ’ (Center for the History of Religious and ं के साथ मलकर ‘भारत Political Pluralism), यू नव सटी ऑफ़ लीसे टर, इं गलैड के रा ीय चुनाव और अमरीक वदेश नी त के हतों’ पर एक सं गो ी का आयोजन कया था, जसमे ं मा सवादी इ तहासकार राम पु यानी प ास के कायपालक नदेशक जॉन भुदोस के साथ आम त व ा थे। उसमे ं तुत मु य बात यह थी क भारत के 4 करोड़ ईसाइयों पर ‘ ह दू रा य सरकारों’ ारा सं कट है ज होंने जोरजबरद ती के लए ईसाई चारकों को दोषी ठहराने के उ े य से कानू न पािरत कये है।ं इस पृ भू म के साथ, गो ी के व ाओं का उ े य भारत के चुनाव के भाव के व लेषण के प मे ं इसे व ा पत करना और भारत के त अमरीका क वदेश नी त के लए अनुशंसाएँ करना था। प प से ऐसे वचार मं च भारत के आ तिरक मामलों के स दभ मे ं अमरीक नी तयों को भा वत करते है।ं ये नी तयाँ ईसाई धमा तरण से लेकर ज म नय ण ं ों से और एचआईवी/ए स, और अमरीक ईसाई समू हों ारा नधािरत अ य एजेड स ब है।ं वा य काय मों के लए अमरीक सहायता शत के साथ आती है, जसमे ं पी.ई.पी.एफ.ए.आर. ( े जडे ं स इमजसी लान फ़ॉर ए स िर लफ) के तहत ए स के लए धन देना भी शा मल है। इनमे ं से अनेक नयमों का उ े य अमरीक धन को गभपात पर खच कये जाने से रोकना है, जो अमरीक द णपं थयों के बीच एक वल त मु ा है। इसका पिरणाम जो भी हो, ईसाई चारक एन.जी.ओ. के मा यम से धन का सु नयो जत वाह स प करना है। इसका सामा य भाव सभी पिरवार ँ को नयोजन काय मों और म हला वा य/ सू त सेवाओं तक म हलाओं क पहुच सी मत करना, या कम-से-कम बढ़ने से वफल कर देना है। सन 2008 क पुनसमी ा होने तक पी.ई.पी.एफ.ए.आर. धन के वाह के एक तहाई क आव यकता उन काय मों पर खच करने क थी जो ए स क रोक-थाम के लए ‘परहेज’ को सवा धक अ छे तरीके के प मे ं आगे बढ़ा रहे थे, यों क कैथो लक और ईसाई चारक दोनों समू हों को ज म नय ण के त घृणा है। ें

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2004 मे ं तहलका क एक खोजी रपट ने दखाया क यापक वदेशी धन, जसके बारे मे ं दावा कया गया था क वह एच.आई.वी./ए स काय मों के लए भेजा गया था, ईसाई समू हों ारा धमा तरण के लए इ तेमाल कया जा रहा था। रपट के अनुसार यहाँ तक क ए स क रोकथाम के लए आ धकािरक सरकारी नारे को ईसाइयों के एन.जी.ओ. ने बदल दया था। सरकार क नी त, ए.बी.सी. फ़ॉर ं , बहे वयरल चेज ं ए ड क डो स’ मे ं ‘क डो स’ के ‘ए टीनेस थान पर 114 ‘धमा तिरत/ ाइ ट’ डालने के लए उसे सं शो धत कया गया। भारतीय कानू न को बदलने के लए सीधे वदेशी यास भी हो रहे है।ं जब भारत सरकार ने महसू स कया क एन.जी.ओ. के वदेशी धन को और अ धक पारदश बनाने क आव यकता है, तब जॉन दयाल ने, जो ऑल इ डया यन काउं सल और ‘मानवा धकार के सं य ु ईसाई मं च’ (United Christian Forum for Human Rights) के अ य भी है,ं ने वॉ शं गटन मे ं प ास ायो जत सुनवाई और सं गो ी मे ं भारत सरकार के व गवाही दी। इस सं थान क स े व कहती है : ी जॉन दयाल इन सरकारी आरोपों का उ र देने मे ं अ णी रहे हैं क वदेशी ोतों से ा धन का उपयोग धमा तरण के लए कया जा रहा है।...115

डम हाउस डम हाउस एक अ य श शाली सं थान है जो लगभग अन य प से ईसाइयों ारा ायो जत आ दोलनकािरयों के सा यों पर भरोसा करता है। भारतीय राजनी तक घटना म के बारे मे ं ये सा य अ य धक बढ़ा-चढ़ाकर, सनसनीखेज ढं ग से और तोड़-मरोड़कर दये गये होते है।ं ं र फ़ॉर डम हाउस का उदारवादी- व न वाला य व जैसा नाम है जसे ‘सेट िर ल जयस डम’ कहा जाता है। जो भी हो, द राइज ऑफ़ ह दू ए स ी म म ं से क काश ारा कये गये ‘उदारह त योगदान’ (2003) पर इसक रपट ने रेवरेड और साथ मे ं टमथी शाह, वनय सैमएु ल, और प ास के नदेशक जॉन भुदोस ारा कये गये ‘मह वपू ण काय ’ पर अ य धक भरोसा कया। ये लोग, जैसा क पाठक देखग े ं ,े सभी कार के वचार मं चों और उनके आयोगों तथा उनके ारा आयो जत सं गो यों मे ं बराबर उप थत होते है।ं ऑल इ डया यन काउं सल के जॉन दयाल तथा जोजेफ डी’सू जा भी इसमे ं शा मल थे, और द लत डम नेटवक, ं श ं र’ (Indian Social ‘इ डयन सोशल इं टी ू ट ू मन राइ स डॉ यू मेट े न सेट Institute Human Rights Documentation Centre), यू नाइटेड यन फोरम फ़ॉर ू मन राइ स, ऑल इ डया फेडरेशन ऑफ़ ऑगनाइजेश स फ़ॉर डे मो े टक ं ऑफ़ इ डया, और नेशनल अलायं स फ़ॉर राइ स, कैथो लक बश स कॉ फेरेस 116 वमेन के त न ध भी। उसमे ं वपरीत दृ कोण वाले लोगों का उनके बराबर कोई ं ा क , जसमे ं ये य त न ध व नहीं था, न ही उस भू राजनी तक एजेड और समू ह ं े ैं े े ोई

काय सं चा लत करते है,ं या या करने के लए कोई स दभ उपल ध कराया गया था। दू सरे श दों मे,ं उनके हतों के बीच भारी टकराव को सीधे दफना दया गया था, और रपट के अ धकां श अमरीक पाठकों ने पारद शता क माँग करने का क नहीं उठाया। भारत का धा मक वत ता अ ध नयम धोखाधड़ी से धमा तरण को रोकने के लए बनाया गया है। डम हाउस क रपट ने गलत कहा क इस कानू न के तहत ‘ कसी धम अथवा प थ वशेष के आ या मक लाभ पर बल देना गर तारी का एक कारण हो सकता है’। इस कानू न मे ं ऐसा कोई भी ावधान नहीं है। रपट आगे बल देकर कहती है क भारत मे ं धमा तरण आधािरत टकराव इस लए है,ं यों क ईसाइयत के मा यम से द लतों क मु से अगड़ी जा तयों के ह दू घबड़ाते है,ं ले कन ऐसा कहते हुए उन आ ामक धमा तरण अ भयानों क ओर कोई भी सं केत नहीं दया गया जो ह दू धम का दानवीकरण करते है।ं रपट इस बात पर वलाप करती है क धा मक वत ता पर जॉज बुश ारा बल देने के बावजू द ‘ये अ छे श द शायद ही कभी वदेश नी त के अमरीक अ धकारी त को एक साँचे मे ं ढालते है’ं । रपट ने अमरीका के राजनी तक हतों के आधार पर भारत मे ं अमरीक ह त प े क माँग क , और दावा कया क ‘उ पीड़न करने वाले सवा धक बल रा य ... वे होते हैं जो अमरीक हतों के व काय करते है।ं इसके वपरीत जन रा यों के िरकाड अ छे हैं उनके अमरीका के अ छे सहयोगी बनने क स भावना होती है’।117 ले कन वा तव मे ं इसका ठ क उ टा ही सही रहा है : अनेक ‘अ छे अमरीक सहयोगी’ मानवा धकार उ ं घन के सवा धक खराब िरकाड वाले सै नक तानाशाह हैं और फर भी उ हे ं ब ों क तरह सँभालकर रखा जाता रहा है, जब क भारत जैसे लोकत उनक कड़ी आलोचना के शकार रहे है।ं द टाइ स ऑफ़ इ डया इस पू वा ह का उ ख े एक रपट मे ं इस कार करता है : जहाँ भारत जैसे प थ नरपे और लोकता क देश शं सा के पा है,ं वहीं सऊदी अरब जैसे देश पर, जो व के सबसे कम वत ता वाले देशों मे ं से एक है, 32 पृ ों मे ं चचा क गयी है। सं य ु रा य अमरीका ने अपने उन सहयो गयों को द डत करने के त कोई झुकाव नहीं दखाया है ज हे ं वह धन देता है, जैसे म और तुक , जब क इसके लए कम मह व वाले देशों को फटकारता या धमकाता रहता है।118

यू यॉक मे ं ए शया सोसाइटी ए शया सोसाइटी को रॉकफेलर (Rockfeller) पिरवार ारा धन दया जाता था और उसके सं थापक सद यों मे ं सी.आई.ए. के पू व नदेशक व लयम को बी भी शा मल थे।119 हाल-हाल तक जब इसने भारतीय उ ोगप तयों से धन लेने के यास ार भ े े ी िे ों े ें ों ो ै े

कये, इसने भावी अमेिर कयों के मानस मे ं भारत क नकारा मक छ वयों को बैठाने के लए नर तर साम ी उपल ध करायी। भारत क मू लभू त लोकता क कृ त पर लगातार न उठाये जाते थे। सन 2003 क इसक एक बैठक मे ं जोरदार बहस का वषय था क या भारत एक ‘फासीवादी रा है’। वशाखा देसाई ने, जो ए शया सोसाइटी क वतमान अ य है,ं यू यॉक मे ं एक गो ी का आयोजन कया जसका बताया गया उ े य था ‘यह देखना क या भारत क प थ नरपे ता मे ं कोई मौ लक पिरवतन हुआ है’। गो ी के सं चालक सी लया डु गर ने, ज होंने 1988 से 2002 तक नई द ी मे ं यू यॉक टाइ स के सह- यू रो मुख के प मे ं काम कया था, यह ख लया क भारत एक फासीवादी रा बनता जा रहा था।120 जो भी हो, अमरीक -भारत स ब धों के नये पिरवेश मे,ं ए शया सोसाइटी ने एक उभरती आ थक श के प मे ं भारत पर यान के त करने के लए वा तव मे ं अपना दायरा बढ़ा लया है, जो अमरीक नी त के लए अनेक स भावनाएँ तुत करता है।

पू वा हपू ण अवधारणाओं का बनाया जाना और उ हे ं पो षत करना ं कॉप रेशन ारा अल-कायदा के साथ आर.एस.एस. एक त त वचार मं च रैड ( ह दू रा वादी झान वाला एक सामा जक सां कृ तक सं गठन) को रखना पू वा ह भरी सू चना का एक और उदाहरण है। इसने दोनों को हं सक ‘नये धा मक अ दोलनों’ के उदाहरणों के प मे ं एक साथ रखा ज हे ं दो पिरभा षत करने वाले ल णों ारा च त कया : समू ह और उसके चारों ओर के समाज के बीच अ य धक तनाव; और, उनके नेताओं ारा उनके सद यों पर अ य धक नय ण रखना।121 हालाँ क दोनों उपयु ल ण तक के हसाब से इस ह दू सं गठन पर सटीक बैठते है,ं इसे यान मे ं रखना चा हए क यह समान प से अनेक ईसाई चारक चच और भारत तथा अमरीका मे ं स य दोबारा-ज मे समू हों पर भी लागू होंग।े यह मोम स (Mormons) जैसे आपस मे ं गुथे हुए समुदायों पर भी लागू होंग।े फोड फाउ डे शन (Ford Foundation) भी भारतीय नी तयों क अ तरा ीय नगरानी क सु वधाएँ दान करता है, जैसा क भारत पर आयो जत एक आ े लयाई स मेलन को इसके ारा ायो जत करने के मामले मे ं दखता है, जो स मेलन पू री तरह से भारतीय जनता पाट पर के त था। स पू ण काय म भाजपा से स ब धत मु ों से भरा था, जसमे ं ‘भाजपा क अथ यव था’, ‘भाजपा का ामीण शासन’, ‘भाजपा और समाचार मा यम’, ‘भाजपा और पा पु तकें’, ‘भाजपा और द ण के रा य’, आ द वषयों पर शोध प तुत कये गये थे। इस कार, भारत को पू री तरह से भाजपा क छ व के आधार पर पिरभा षत कया गया, मानो भारत के कसी भी अ य प का कोई मह व नहीं था।122

जं गली भारत के ें

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2002 मे ं हुए गुजरात के दं गे उन श यों के लए एक बड़े अवसर के प मे ं आये जो भारत का दानवीकरण करना चाहते थे। सं य ु रा य अमरीका को, जसे अरब जगत को यह दखाने क स त आव यकता थी क अफग़ा न तान और ईराक पर आ ामक हमले इ लाम के व प व यु (Holy War) नहीं था, गुजरात के दं गों ने यह मा णत करने का एक अवसर दान कया क वह ह दुओ ं क क मत पर मुसलमानों के साथ खड़ा है। अनेक वकालती समू ह, ईसाई चारक सं थान, और स ब वचार मं च अ य धक स य प मे ं सामने आये और गुजरात दं गों क नृशंस हं सा पर अमरीका मे ं गवाही देने के लए भारत से आ दोलनकािरयों को आम त कया।123 इस कार इ लाम के तु करण के लए ह दु व चारा बन गया। गोधरा जनसं हार पर हुई हं सक ह दू त या बना शत न दनीय है। अनेक व सनीय वरों ने पया प से दखाया है क 2002 मे ं गुजरात सरकार के सव तरों पर समु चत कदम उठाये जाने क कमी के चलते ह दू -मु लम ख़ू न-ख़राबा हुआ, दोनों प ों ने जीवन खोए, ले कन मु लम प ने यादा खोए। यहाँ पर वषय यह है क सं य ु रा य अमरीका मे ं कस तरह भारत क जं गली छ व को पुन: था पत करने के लए इस घटना का उपयोग कया गया है। ताजे उ पीड़न सा ह य क रचना के लए गुजरात मुख थल बन गया है। ऐसी छ वयाँ ‘सरहदी इलाके’ यानी ‘सीमा े ’ के गहन मथक को पुन: था पत करती हैं जसे एक जं गली ‘पराये’ क पहचान करने क ज़ रत है, जससे स यता क श यों ारा नद ष मू ल नवा सयों को बचाना ज री है। यह नया उ माद अनेक मानवा धकार आ दोलनकािरयों के काम आया जनके लए जमीनी तर पर मानवीय राहत यास करने या भारत के अपने ही यायालयों मे ं वां छत कानू नी कारवाई को समथन देने क तुलना मे ं अमरीक ह त प े को ो सा हत करना अ धक मह वपू ण हो गया। इसके लए उ हे ं जो पुर कार दये गये उनमे ं वदेश या ा, उ तरीय स पक, और ऐसी या त न मत करने का अवसर शा मल था क वे ही गुजरात मोच पर जं ग लयों से लड़ने वाले यो ा है।ं च 13.2 दखाता है क कस कार सीमा े के मोच का अमरीक मथक गुजरात के बारे मे ं सनसनीखेज आँकड़े आयात करने के लए एक ा प के प मे ं और उसे सभी ह दुओ ं के लए थोपने मे ं काम आया, और इस कार राजनी तक जनादेश हा सल कया गया।

  ‘ ह दू सम याओं’ जैसे वण- यव था, सती, दहेज, अजीबो-गरीब देवता, आ दम वृ याँ, अता ककता, आ द के बारे मे ं घसे- पटे ा प, अ तरं जत व य और छ वयाँ जुटायी गयीं। दुभा यवश, इस अ यास मे ं सं ल न अनेक वरों ने कुछ वशेष मामलों को स पू ण ह दू धम से मला दया है। उदाहरण के लए, ई.पी.पी.सी. (वणन नीचे दया गया है) ने एक स मेलन ायो जत कया जसमे ं द ण ए शया पर छह वशेष ों ने बढ़ते धा मक आतं कवाद के भाव पर वचार कया। उ स मेलन का सह- ायोजक था इनफे मट (INFEMIT), तीसरे व के धमशा यों और आ दोलनकािरयों का एक नेटवक जसका नेत ृ व डॉ. वनय सैमएु ल करते है।ं उ श स प इस जमावड़े के पिरणाम व प सं य ु रा य अमरीका क कां स े के सद य जोजेफ प स ने वहाँ क सं सद (House of Representatives) मे ं यह भाषण दया : गुजरात मे ं श त लड़ाकू गाँवों मे ं घुस गये और पु षों, यों और ब ों पर हमले कर दये। गभवती म हलाओं के पेट चीरकर गभ खोल दये गये और उनमे ं से अज मे शशुओ ं को नकाल लया गया और जलती हुई आग मे ं उछालकर फेंक दया गया। लगभग 300 म हलाओं के साथ सामू हक बला कार कया गया। दो हज़ार से अ धक लोग मरे। मेरे पास, मेरे कायालय मे,ं ऐसी त वीरे ं हैं जनक नृशंसता के कारण उ हे ं दखाया भी नहीं जा सकता।... मा यवर अ य महोदय, हमारी सरकार को इन नृशंस हमलों और उसे रेखां कत करने वाले अ तवाद पर अव य ही कुछ करना चा हए। सं य ु रा य अमरीका क सरकार इतनी खामोश है क लगता है हम बहरे हो गये है।124

ं र (ई.पी.पी.सी.) ए थ स ऐ ड प लक पॉ लसी सेट ै









‘नै तकता और सावज नक नी त के ’ (Ethics and Public Policy Centre) खुल-े आम और आ धकािरक प से वयं को वॉ शं गटन मे ं ‘यहू दी-ईसाई नै तक पर परा को सावज नक नी त के मह वपू ण मामलों मे ं लागू करने के त सम पत एक अ णी सं थान’ कहता है। यह एक श शाली समू ह है, जसके नदेशकों मे ं से एक वग य जीन जे. ककपै क (Jeane J. Kirkpatrick) सं य ु रा सं घ मे ं सं य ु रा य अमरीका क राजदू त थीं। वे एक क र द णप थी रीगनवादी थीं ज होंने इ दरा गाँधी के समय बार-बार भारत क नं दा क थी और उसका वरोध कया था, और वे पा क तान को सं य ु रा य अमरीका के ह थयारों से सुस जत करने मे ं सहायता के लए कु यात रहीं। माइकल ोमाट , ई.पी.पी.सी. के उपा य , ‘नागिरक जीवन काय मों मे ं ईसाई चारक’ नामक काय म को सं चा लत करते है,ं जसका उ े य है ‘ईसाई चारक नेताओं के बीच नागिरक वचार- वमश को व तािरत करना और नागिरक मामलों मे ं सं ल नता के त एक ईसाई चारक सोच को समझाना’।125 ोमाट 2004 से ‘यू नाइटेड टे स क मशन फ़ॉर इं टरनेशनल िर ल जयस डम’ (यू .एस.सी.आई.आर.एफ.) के सद य के प मे ं भी अपना योगदान कर रहे है,ं जसमे ं दो अव धयों के लए वे अ य भी रहे। यह नी तगत सं थानों और सरकारी एजे ं सयों के बीच गठजोड़ क वशालता को द शत करता है। ोमाट ‘ यू फोरम ऑन िर लजन ऐ ड प लक लाइफ’ के एक विर सलाहकार भी है,ं और ‘ नटी फोरम’ के साथ एक सी नयर फेलो भी। इस कार अ य धन दाता समू हों, ईसाई चारक सं गठनों, और सरकारी एजे ं सयों के साथ ई.पी.पी.सी. के दृढ़ स ब ध है।ं इसक ग त व धयों मे ं एक है फादर से क काश के रणनी तगत दौरे करवाना, जो भारत मे ं मानवा धकार आ दोलनकारी के प मे ं काम कर रहे एक ईसाई पादरी है।ं वे हावड यू नव सटी मे ं ‘लोकल कपै सटी फ़ॉर पीस ाजे ट’ के लए जन स पक का भी काम करते है,ं और ‘यू नाइटेड यन फोरम फ़ॉर ू मन राइ स’ के व ा भी है।ं फादर काश को वॉ शं गटन मे ं 2002 मे ं ‘यू .एस. क मशन फ़ॉर इं टरनेशनल िर ल जयस डम’ के सम गवाही देने के लए आम त कया गया था।126 इसके अ तिर , उसी वष उ हे ं यू रोपीय यू नयन और टेन क सरकार के फ़ॉरेन ए ड कॉमनवे थ ऑ फस के साथ बातचीत करने के लए ल जेमबग, और उसके बाद ल दन आम त कया गया था। उनक गवाही ह दुओ ं ारा क थत प से कए जा रहे उ पीड़नों क एक ल बी सू ची थी। अपने भाषण के चरम पर उ होंने ह त प े क एक जोरदार अपील क : ‘हज़ारों पी ड़तों के नाम पर ... मैं आपसे आ हपू वक सभी कार के आव यक ह त प े क अपील करता हू ।ँ ...’127 इन दौरों को सुगम बनाने के अलावा, ई.पी.पी.सी. वॉ शं गटन मे ं क थत ह दू उ पीड़न से जुड़े मामलों मे ं राजनी त ों क लॉ बं ग करने के लए अपने आयोजन भी करता है। ऐसे ही एक स मेलन का वषय था ‘ ह दू रा वाद बनाम इ लामी जहाद’,128 जसे टमोथी शाह ारा सं यो जत कया गया था, एक भारतीय ईसाई जो ई ी ी ी

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ई.पी.पी.सी. मे ं द ण ए शया मामलों के नदेशक थे। उन पिरयोजनाओं पर काम करने के बाद जो दखाते हैं क धम कस तरह सं य ु रा य और अ य देशों के सावज नक जीवन को भा वत करता है, प थ तथा राजनी त पर हावड व व ालय क पीएच.डी. ड ी से सुस जत होकर शाह ने हाव फेलो शप ा क है जो ‘ईसाई ातक व ा थयों को अपने व ास और अ यवसाय को जोड़ने तथा रणनी तगत े ों मे ं नेत ृ व के पदों को ा करने के लए ो सा हत करना चाहता है वशेषकर उनमे ं जहाँ ईसाइयों क भागीदारी वां छत तर से कम होने क स भावना रहती है’। उ होंने 2004 मे ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. के सम गवाही भी दी थी। डॉ. शाह उसके बाद से यू चैिरटबल ट मे ं बड़े कामों मे ं लग गये है,ं जो वकासशील देशों मे ं सं य ु रा य अमरीका क सरकार के ईसाई ह त प े ों को ो सा हत करने वाला एक मुख फाउ डे शन है। उनक आ धकािरक पृ भू म अपनी आ म लाघा मे ं कहती है क उ होंने ‘ यू चैिरटबल ट ारा व पो षत एक ईसाई चारक ोटे टैं ट म और भू म डलीय द ण मे ं लोकत के लए शोध नदेशक के प मे ं सेवा क है, और वतमान मे ं वे ऑ सफोड यू नव सटी स े ारा इस वषय पर ृ ला का सह-स पादन कर रहे का शत कये जाने वाली चार ख डों क पु तक ं ख 129 है’ं । वे हावड मे ं व राजनी त मे ं धम पर शोध क पिरयोजना मे ं सह- नदेशक के प मे ं भी शा मल है,ं जसके लए वे ‘धम तथा लोकत ीकरण के बीच स ब ध’130 पर लख रहे है,ं वशेषकर ईसाई चारक ईसाइयत और ‘भू म डलीय द ण’ पर।131 वे ह दू रा वाद के द ण ए शया मे ं राजनी तक भाव पर भी एक पु तक लख रहे है।ं एक अ य व ा थे टेनली कु ज, जो उस समय ई.पी.पी.सी. मे ं एक सी नयर फेलो थे, और जो एक जाने-माने द णप थी उ सुधारवादी च तक हैं जनके पास हावड क पी-एच.डी. ड ी भी है। वे इस उ े य से ईराक पर अमरीक हमले के लए सबसे जोरदार वकालत करने वालों मे ं से एक थे क वहाँ लोकत लाया जाये, और उ होंने लॉड मैकॉले के उन यासों क शं सा क जो अं ज े ों को इस बात के लए राजी करने के लए कये गये थे क जं गली ह दु ता नयों को स य बनाया जाय। द वॉल ीट जनल मे ं अपने वचारों के समथन मे ं तक देते हुए टैनली कु ज ने मैकॉले क इस योजना का उ रण दया क एक ऐसा भारतीय नेत ृ व वग तैयार कया जाये जो ‘अपनी च, वचार, नै तकता और दमाग से अं ज़ े ीदां हो’ और अनुशंसा क क अब अमेिर कयों को ईराक मे ं यही करना चा हए। कु ज ने लखा, ‘ या हम जानबू झकर ईराक मे ं वैसा कर सकते हैं जैसा क टश ने अनजाने मे ं ऐसा कर दया 132 था?’ दू सरे श दों मे,ं वे गैर-प मी व मे ं सं य ु रा य क वदेश नी त के लए टश उप नवेशवाद को एक अ छे आदश और उदाहरण के प मे ं मानते है।ं कु ज (Kurtz) टैनफोड व व ालय से जुड़े त त हू वर सं थान मे ं एक ं जो वैसे व ानों के एक अ छे उदाहरण हैं जो शोधकता के प मे ं काम करते है— ी े े े ैं औ ें ी ं ों े ं

भारतीय धम के अ ययन से ार भ करते है,ं और बाद मे ं उन श शाली सं थानों मे ं राजनी तक वशेष मे ं पा तिरत हो जाते हैं जो वदेश नी त को एक न त व प दान करते है।ं लॉड मैकॉले ने कभी जैसी भू मका नभायी थी वैसी भू मका नभाने वाले अमरीक समक ों क एक बड़ी सं या है, सवा इसके क कु ज जैसे आज के बु जीवी अपने भारत आधािरत जमीनी काम, मू लपाठ के ान, और शै क अनुभव मे ं कहीं अ धक पिर कृत है।ं

अनेक माग च 13.3 तीन मुख य वों—कु ज, ककपै क और शाह—के उदाहरणों का सार पेश करता है, जनका उ ख े पीछे दये गये ववरण मे ं कया गया, साथ ही उ हे ं बल दान करने वाले उनके सं थागत स ब धों का भी और यह भी क कैसे भू म डलीय तर पर ईसाइयत को आगे बढ़ाने के लए भारत के त अमरीक नी त को एक व प देने के लए वे एकजुट हुए। ऐसे अनेक सहकारी मौजू द है,ं और पछले 25 वष से यह झान तेजी से बढ़ रहा है, जसका भारत के लए या भाव होगा उस पर कसी य ारा कोई रपट या व लेषण तुत नहीं कया गया है। च 13.3 इस बात पर भी काश डालता है क कस कार काय को सुगम बनाने वालों के प मे ं ‘ वाय ’ वचार-मं चों के नेटवक का उपयोग करते हुए सरकार-चचशै क सहकारी के प मे ं एक होकर काम करते है।ं ं Fig. 13.3 भारत के बारे मे ं अमेरीक नी त बनाने मे ं अमरीक द णप थी थं क-टैक क काय णाली

  सबको जोड़ने वाला एक सू यह स देश है क भारतीय समाज मे ं मानवीयता क कमी है। इस अमानवीयता के कारण को बहुधा ह दू धम क आ या मक कमी मे ं ँ कर नकाला जाता है। इसका पू रक स देश है अमरीक ह त प ढू ढ़ े क आव यकता। इस चरण मे ं ऐसे ह त प े मे ं ईसाई धमा तरण को बढ़ावा देना, आ थक सहायता और वा ण यक तब धों के मा यम से भारत क बाँहे ं मरोड़ना, और आ धकािरक अमरीक मशनों का भारत मे ं वशेष- वाथ वाले समू हों के साथ बातचीत करने मे ं उपयोग करना, शा मल है। इस कार भारत क भुस ा को भावी ढं ग से कमजोर कया जा रहा है।

14 भारत : एक वामप थी मोचा हमने पछले अ याय मे ं देखा क कस कार प म के लोग भारत को बाइबल के च मे से देखते है।ं इस अ याय मे ं हम देखग े ं े क प थ- नरपे च मे से भी भारत को एक रा के प मे ं अवैध ठहराया जाता है। यह एक वड बना है, यों क अमरीका के अ दर बाइबल के दृ कोण और प थ- नरपे मानवतावादी दृ कोण एक-दू सरे के वरोध मे ं है।ं ऐसा होने पर भी, ये सभी व भ कारणों से भारतीय स यता को ं ों को बढ़ावा देते है।ं जहाँ अमरीका नीचा दखाते हैं और अ तत: वरोधी प के एजेट के द णप थी नवसं र णवादी एक ईसाई भारत क पिरक पना को समथन देते है,ं वहीं वामप थयों मे ं इ लाम के त सामा यत: सहानुभू त होती है। ह दू धम और ाचीन भारतीय स यता इन दोनों के साझे श ु है।ं इस लए, दोनों के मलकर काम करने को पार पिरक लाभदायी माना जाता है। ले कन इस त य पर क वे अपने मू ल स ा तों के मामले मे ं एक-दू सरे के व रहते है,ं सावज नक प से कभी चचा नहीं क जाती, जब क उनका साझा आ ोश जसे वे ‘ ह दू भारत’ के प मे ं सोचते है,ं उस पर नकलता है। च 14.1 भारत के त प थ- नरपे दृ कोण मे ं शा मल व भ त वों को द शत करता है। इसके बाद इसके मु य घटकों क चचा क गयी है।

उदारवादी-वामप थी वचार मं च ँ ते हैं उदारवादी और वामप थी वचार मं च आ यजनक ढं ग से उसी न कष पर पहुच ँ े है।ं भारतीय समाज पर अ ययन व भ जस न कष तक द णप थी सं थान पहुच ख डों के एक सं ह के प मे ं कया जाता है। इन ख डों को भारतीय राजक य दमन का शकार माना जाता है। भारत उप-रा ीय पहचानों के लए एक कारागार है, ज हे ं ताकत के शकंजे ारा एकजुट रखा गया है। ऐसे च ण उन हाथों मे ं उपकरण बन जाते हैं जो अमरीका क म य थता मे ं भारत को वख डत कये जाने क माँग करते है।ं Fig 14.1 द णप थयों ारा अमरीका के एक सीमा त े के प मे ं भारत का च ण

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एक अ य श शाली वर जो भारत के वख डन का समथन करता है वह अमरीक व व ालयों मे ं शै क द ण ए शयाई अ ययनों मे ं पाया जाता है। वे भारत का च एक औप नवे शक सृजन के प मे ं बनाते हैं जसक अपनी कोई ऐ तहा सक वैधता नहीं है। इस दृ कोण से भारतीय सं कृ त अ त न हत प से द लत वरोधी, अ पसं यक वरोधी और म हला वरोधी है। भारतीय सं कृ त और भारतीय रा य को वत ता के वरोधी के प मे ं दखाया जाता है।

प थ- नरपे

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शै क और गैर-शै क दोनों तरह के सं थान, जो उदारवादी-वामप थी है,ं भारत के अ पसं यक समू हों के मामलों को उठाते है।ं वड बना है क वामप थी धम नरपे तावादी अ तवादी द णप थी धा मक सं गठनों के त न धयों के साथ एक ही मं च पर भाग लेने मे ं नहीं झझकते, ता क वे भारतीय जं गलीपन क छ व का चार करने मे ं साझेदारी कर सकें, हालाँ क इन दोनों खेमों के बीच सै ा तक व ेष ै













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है। भारत के उ र-आधु नक वख डन का भी एक खेमा है, जो शै क घेरों मे ं च लत है। अमरीका या चीन जैसे अ य आधु नक रा -रा यों के अ ययनों मे ं रा ीयता या सां कृ तक एकता के ऐसे वख डन को बहुधा पिर ध मे ं रखा जाता है। ले कन जब वे भारत पर नजर डालते हैं तो ठ क इसका उ टा होता है।

वॉ शं गटन मे ं वामप थी-द

णप थी साझेदारी का उदाहरण

2008 के अमरीक चुनावों के बाद द लत डम नेटवक ने अपने द णप थी आधार से परे व व धकरण का नणय कया ता क सेनट े र जोजेफ बडे न स हत, जो उपरा प त के प मे ं हाल ही मे ं नवा चत हुए थे, श शाली डे मो ै ट नेताओं को आगे ं ा मन माश ने ट पणी क बढ़ा सकें। वॉ शं गटन मे ं डी.एफ.एन. के धान लॉ ब ट बेज ं ।े 1 क उप-रा प त बडे न द ण ए शया नी तगत नणयों के लए दशा दान करेग इस लए नये शासन मे ं वेश हा सल करने के लए माश ने द ण ए शया पर बडे न ं को आगे बढ़ाना शु कर दया।2 जोना लैक ं के के मु य सलाहकार जोना लैक साथ माश क एक बैठक हुई थी और उनक पु तक ‘नीली वचा वाले देवता का तीर’ (Arrow of the Blue-skinned God) को ‘ नराशाजनक नहीं’ पाया, और वणयव था पर लखे अ याय को ‘ऐ तहा सक और मानवशा ीय दृ कोण से इस मु े पर एक अ छा पिरचय’ के प मे ं अनुमो दत कया।3 जस कार क नेटव कग प पातपू ण रा ते, शै क वभागों और अ यवसा यक वशेष ताओं मे ं यापक प ं क पृ भू म और वृ एक गहरी समझ दान से चल रही है उसमे ं जोना लैक करती है। ं (Jonah Blank) ने हावड से मानवशा जोना लैक मे ं ातक क उपा ध हा सल क , जहाँ उनक फेलो शप के लए अमरीका के रा ीय सुर ा श ा काय म ारा धन दया गया था, जो भौगो लक े ों, भाषाओं, और अमरीक हतों क र ा के लए मह वपू ण माने जाने वाले े ों के अ ययन पर यान के त करता ं ने स पू ण भारत और पा क तान क यापक प से या ा क और उ होंने है।4 लैक सं कृत, ह दी, गुजराती और उदू सीखी। उ होंने ह दू धम और इ लाम क पर पराओं और श ाओं का यापक ान और अनुभव वक सत कया। उनक पहली पु तक, ‘नीली वचा वाले देवता का तीर : भारत से होकर रामायण के पथ का पुनस धान’ (Arrow of the Blue-skinned God : Retracing the Ramayana through India) रामायण और यापक भारतीय धम और समाज क जाँच आय/ वड़ न ली जोड़े के आधार का उपयोग करते हुए करती है। उदाहरण के लए, यह ृ करते हैं क आय देवीन कष नकालने के लए वे एक वड़ व ान को उ त देवता अमर होते है,ं जब क वड़ देवी-देवताओं के ‘उ तर’ होते है।ं 5 वे द न मे ं हनुमान पू जा क या या ‘घृणा’ को ‘आ म-स मान’ मे ं पा तिरत करने के लए एक कार के मनोवै ा नक उपाय के प मे ं करते है।ं उनक अगली पु तक, ‘इ लाम के ौ



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मुख चौखटे मे ं मु ा और दाऊदी बोहरा लोगों मे ं आधु नकता’ (Mullahs on the Mainframe Islam and Modernity among the Daudi Bohras) ( शकागो यू नव सटी स े , 2001), इस वषय पर है क कस तरह मु बई का दाऊदी बोहरा ं द ण ए शया पर अमरीका के नी त नमाण समुदाय बहुत आधु नक था। जोना लैक वशेष ों मे ं से एक बनकर उभरे है,ं और वे ‘ बलीफनेट’, एक त त धा मक इ टरनेट पोटल के लए ह दू धम स ब धी सलाहकार है।ं 6 सन 2000 मे ं उ होंने ‘ ह दू रा वाद बनाम इ लामी जहाद : द ण ए शया मे ं धा मक उ वाद’ वषय पर आयो जत स मेलन मे ं भाग लया जसे ए थ स ऐ ड ं र ारा ायो जत कया गया था। ( पछले अ याय मे ं ई.पी.पी.सी. प लक पॉ लसी सेट पर द णप थी समू हों मे ं से एक के प मे ं चचा क गयी) इनफे मट (INFEMIT) इसका सह-आयोजक था, जो एक ईसाई चारक नेटवक है जसका नेत ृ व वनय सैमएु ल7 ारा, और समथन ॉमवेल ट ारा कया जा रहा है, और जो वयं को ‘ईसाई चारक, ईसाइयत के स ा तों क श ा और स य व तार के त 8 ं ने भारत के त कालीन उप धान म ी सम पत’ सं गठन कहता है। यहाँ जोना लैक लालकृ ण आडवाणी को ‘ लोबोदन मलोसे वक बनने से’ रोकने क आव यकता क बात कही। उ होंने सचेत कया क 2002 मे ं गुजरात मे ं हुई सा दा यक हं सा को नहीं भुलाना चा हए, हालाँ क हं सा समा हो गयी थी, और उ होंने भारत मे ं ‘ हं सा ँ ायेगी। च ’ क बात कही जो ‘देर-सबेर अमरीका के रा ीय हतों को त’ पहुच इस लए अमरीका को ‘दोनों कारणों से इसमे ं ग भीरतापू वक जुटना चा हए, यों क यह अमरीका के रा ीय हत मे ं भी है और यही सही काम भी है’।9 यह दखाने के लए क अमरीका मे ं ऐसे धा मक ह त प े प थ- नरपे मु ों से ं ने नपटने के अ भ अं ग है,ं इस पर गौर करना उपयोगी होगा क जोना लैक डे मो ै टक पाट क 2008 क रपट को सँवारा था जसने द ण ए शया मे ं एक ं ीस बड़े ‘नाटक य रणनी तगत पिरवतन’ क सलाह दी थी। वे वॉ शं गटन मे ं तैत पा क तानी वशेष ों मे ं से एक थे ज होंने उस नयी रणनी त को बनाया था जसने ँ ाया क ‘अगले पाँच वष के दौरान ओबामा शासन को इस ताव तक पहुच पा क तान को 7.5 अरब डालर क सहायता आ थक और वकास के मदों मे ं दी जाये’। उस समय उप-रा प त पद के लए नवा चत (ले कन ज होंने तब तक पद ं ने काम कया हण नहीं कया था) हुए सनेटर जो बडे न ने, जनके अधीन लैक था, इसे तुत कया। इस रपट ने उन त यों से पार पाने मे ं सहायता क क पा क तान को दये जाने वाली अमरीक आ थक सहायता का अ धकां श भाग समझौतों का उ ं घन करते हुए पा क तानी सेना को दया जा रहा था, और भारत के व इसका इ तेमाल भी इसमे ं शा मल था। ं अब द ण ए शया/ नकटपू व नी त पर सेनट लैक े क मटी ऑन फॉरेन िरलेश स के नी त सलाहकार है,ं और त त वदेशी स ब धों क पिरषद के एक सद य भी। ँ े ॉ ॉ े ी ै ी ें ैं

वे जॉन हॉप क स व व ालय के साउथ ए शया टडीज क फैक टी मे ं है,ं जहाँ वह ‘द पॉ ल ट स ऑफ़ िर लजन इन साउथ ए शया : क यु नटी ए ड क युना ल म इन सो शयोलॉ जकल कॉ टे ट’ वषय पढ़ाते है।ं 10 इस पृ भू म के साथ हम रणनी तगत सं गमों क ज टलताओं को समझ सकते है,ं ं ा मन माश और जैसे क इस द लत डम नेटवक के ईसाई द णप थी बेज ं के बीच के स ब धों उदारवादी उप-रा प त जो बडे न के सलाहकार जोना लैक को।

अमरीका

थत श ा वदों ारा भारत का वख डन

अनेक उदारवादी वामप थी व ान जान-बू झकर या अनजाने मे ं भारत के स दभ मे ं द णप थी ष ों को वैसे अ ययन क रपटे ं दान कर पो षत कर रहे हैं जससे क अमरीक ह त प े सुगम हो सकता है। अनेक भारतीय व ानों ने इस उ म मे ं योगदान कया है, यों क यह उ हे ं त ा, धन, और व के द मतों को बचाने वाले हरावल द ते का सद य होने क अनुभू त दान करता है। यह वग केवल कुछ य यों क सं पड़ताल कर इस यापक घटना म क झलक देता है। इसी पु तक मे ं बाद मे ं इस पर यापक चचा क जायेगी।  इस ण े ी मे ं वशेष प से एक उ म वर है माथा नसबॉम का, जो तक देती हैं क आज भारत क आ तिरक झड़पे ं अ छे लोगों, जो प मी रं ग मे ं रँगे उदारवादी भारतीय है,ं और बुरे लोगों, ज हे ं उ वादी ‘ ह दू बटमार’ के प मे ं च त कया जाता है, के बीच है।ं   लीजे मै न एक प मी श ा वद का उदाहरण देती हैं जो भारतीय पर पराओं के त घृणा का भाव रखते हैं यों क वे स पू ण गु पर परा को दमनकारी ‘ ह दू रा वाद’ के एक अं ग के प मे ं देखते है।ं उनक सनसनीखेज पु तक का काशन त त यू नव सटी ऑफ शकागो स े ारा कया गया था।  रो मला थापर तक देती हैं क स पू ण भारतीय स यता, और इसे आगे बढ़ाये ं तो भारतीय रा य, दबदबा रखने वाले जातीय समू हों ारा नय त दमनकारी उपकरणों के अ तिर कुछ भी नहीं है, और यह क उ हे ं व त कर देने क आव यकता है।  मीरा न दा मू लत: बायो-टे नोलॉ ज ट थीं, ले कन उसके बाद वे मानव व ान मे ं आ गयीं है;ं उ होंने दू सरी बार पी-एच.डी. शोध ब ध तुत कया जसका वषय था ‘ ोफे स फे सं ग बैकवड : पो ट-मॉडन ट स ऑफ़ साइं स ए ड 11 यू सोशल मू वमे ं स इन इ डया’। वे वषा ढं ग से भारतीय सं कृ त और ह दू धम क न दा ता वक प से व ान वरोधी के प मे ं करती रही है,ं ें ै े ो े ैं े े े ो

जब क वे ोटे टैं ट म ( जसका ‘टे पलटन फाउ डे शन’ उ हे ं धन देता है) को वै ा नक और ग तशील के प मे ं देखती है।ं वे भारत के रा नमाताओं पर नव-नाजी मान सकता और छ - व ान वाले होने का आरोप लगाती है।ं   वजय साद ने हा शये पर चले गये भारतीयों क पहचान को एक व प देने मे ं अ क -द लत साझेदारी क अगुवाई क है, और वे एक मुख मा सवादी सं गठन का नेत ृ व करते हैं जो अमरीक व व ालयों के युवा भारतीय अमरीक व ा थयों को व भ कार क ग त व धयों के मा यम से भत करने क को शश करता है।   अं गना चटज जो सैन ां स को थत उ श ा के एक नजी सं थान ‘कै लफो नया इं टी ू ट ऑफ इ टे ल टडीज’ के सं काय मे,ं जसक थापना वशेष प से प म मे ं ी अर व द क श ा को ो सा हत करने के लए क गयी थी, सवा धक मुख भारतीय चेहरा है।ं वड बना है क उ होंने इस मं च का उपयोग उ टा ही कया है, ह दुओ ं से जुड़ी कसी भी व तु को भोले-भाले लोगों के दमन का दु ष मानकर उसके व गुबार नकाला है।   इन व ानों को नकट से देखने पर यह दखाई देगा क उनको कहाँ से धन ं े या है।ं मलता है, उनके स पक या हैं और उनके एजेड

माथा नसबॉम (Martha Nussbaum) माथा नसबॉम शकागो व व ालय मे ं व ध और नी तशा क ा यापक है,ं और उ हे ं यापक प से अमरीक उदारवाद के एक श शाली वर के प मे ं देखा जाता है। ले कन जब भारत क बात आती है, वे भारतीय स यता के व जुटे बलों के साथ जुड़ जाती हैं और उ सुधारवादी यू रोके ीयता को गले लगा लेती है।ं ं के लुथरे न चच उदाहरण के लए, उ होंने व य दया क एक ह दू रा ‘ फनलैड क भाँ त कोई सौ य त ान’ नहीं है, ब क एक ऐसा त ान होगा जो मुसलमानों के साथ दू सरे तर के नागिरक क तरह यवहार करेगा।12 (स हवे ं अ याय का एक पू रा भाग, और पिर श ‘‘ज’’ भी, भारत मे ं लुथरे न चच क भू मका क पड़ताल पर सम पत है।) भारत मे ं उनक च तब ार भ हुई जब वे एक आ मीय स ब ध के साथ अम य सेन के लए काम कर रही थीं, और जसके बारे मे ं वह शेखी भी बघारती रही है।ं 13 जब कुछ वदेशी श ा वदों को अलगाववादी आ दोलनों से जुड़ा हुआ पाया गया तो भारत क सरकार ने स मेलनों मे ं आने के लए वदेशी तभा गयों को अनुम त लेने को कहा। नसबॉम ने धमक दी, ‘हम देखग े ं े क कस कार दु चार ो

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(जो मैं उनके त करने क कामना रखती हू ,ँ यहाँ और अ य भी) उनके व दबाव का काम कर सकता है’।14 यहू दी- वरोध पर येल मे ं स प एक गो ी मे ं उ होंने ह दू धम को फासीवाद से जोड़ने पर यान के त कया, जैसा क उन पच से झलकता है जनको उ होंने तभा गयों के बीच वतिरत कया था : भारत मे ं हं सा करने वाले मुसलमान नहीं हैं (जो ाय: गरीब और दबे-कुचले है,ं ले कन हं सा करने मे ं शा मल नहीं है,ं क मीर के वशेष उदाहरण को छोड़कर), ँ ते हैं और जो अपने ब क ह दू हैं जो अपने स ा त फासीवादी यू रोप मे ं ढू ढ़ ख का ा प 1930 के दशक के यू रोपीय यहू दी- वरोध के अनु प बनाते है।ं 15 उ होंने तभा गयों को और आगे जानकारी दी क ह दू राजनी तक पिरक पना ‘यू रोपीय मानी रा वाद और इसक जातीय शु ता क काली मह वाकां ाओं’ से नकली थी। जहाँ उनक शै क वशेष ता अर तू के दशन मे ं है, नसबॉम ने भारतीय स यता क न दा करने के लए यापक प से लखा है। उनक पु तक, ‘आ तिरक टकराव : लोकत , धा मक हं सा और भारत का भ व य’ (The Clash Within:Democracy, Religious Violence, and India’s Future) एक ताजा उदाहरण है। यहाँ उ होंने वभाजनकारी ख का समथन कया क सं ध ु घाटी स यता वड़ स यता थी, जो सं कृत भाषा-भा षयों के यहाँ आने के पू व क थी। उ होंने लखा : लगभग न त है क वे लोग, जो सं कृत बोलते थे, इस उपमहा ीप मे ं बाहर से आये, और मू ल नवा सयों को पाया, जो स भवत: द ण भारत के वड़ों के पू वज थे। ह दू उतने ही मू ल नवासी हैं जतने मुसलमान।16 वे न केवल एक ववादा पद अटकल को एक ऐ तहा सक त य के प मे ं तुत करती है,ं ब क वतमान भारतीय राजनी तक च तन मे ं े पत करती है।ं वे आधु नक ह दू क बराबरी ‘सं कृत भा षयों’ से करती हैं ‘जो इस महा ीप मे ं आये’ और उनमे ं से वड़ भाषा-भा षयों को अलग कर दया। यह लगभग औप नवे शक काल मे ं िर ली के व दृ कोण, और आज के वड़ अलगाववा दयों के बराबर है। आय ‘आ मण’ के पिरदृ य क या या करने मे ं उ होंने बस इस बात को छोड़ दया क व भर के पुरात ववे ाओं ारा इसे अमा य कर दया गया है,17 और आ मण क पटकथा से वयं को अ न छापू वक दू र रखते हुए भी वे ‘आय वास’ क पटकथा का समथन करती है,ं जो वही ठहरता है।18 वे भारतीय व ान जो प मी श ा वदों और व दाता एजे ं सयों के पयवे ण से बाहर है,ं और जो ाचीन भारतीय इ तहास क प मी या या क समालोचना करते है,ं द णप थी ह दू ठहरा दये जाते है।ं नसबॉम इस बात क कोई परवाह नहीं करतीं क वदेशी आय ा प को अ बेडकर और ह दू द णप थ से अस ब अनेक दू सरे लोगों ारा जोरदार ढं ग से अमा य ठहरा दया गया था। वे इस बात क उपे ा करती हैं क इस ा प को ै े े े ं े ॉ ी

सै नक से पुरात ववे ा बने अं ज़ े मॉ टमर ीलर (Mortimer Wheeler) ारा अ य धक लोक य बनाया गया था, ज होंने बड़े भड़क ले तरीके से घो षत कया था क वै दक देव इ पर मोहनजो-दरो मे ं जनसं हार करने का आरोप है। यह कसी पिरक पना मे ं ‘आक मक’ भू ल नहीं थी, जैसा क नसबॉम अपने पाठकों को व ास दलाना चाहती है।ं व यात अं ज े मानवशा ी एडम ड लीच (Edmund Leach), ने ट पणी क : सामा य बु यह इं गत कर सकती है क यहाँ ऐसी पिरक पना का उ ख े नीय उदाहरण था जसे ख डत कया जा सकता था और वा तव मे ं ख डत कया गया था। इ डो-यू रो पयन व ानों को अपनी सभी ऐ तहा सक पुनरचनाओं को र कर नये सरे से शोध के आधार पर शू य से आर भ करना चा हए था। ले कन वैसा नहीं हुआ। इसमे ं न हत वाथ और शै क पदों का न था। लगभग बना कसी अपवाद के स ब धत व ानों ने वयं को समझाने मे ं सफलता पायी क भाषाशा यों के स ा तों के बा व पों और पुरात व के ठोस माणों को एक-दू सरे के साथ सटीक बैठाया जा सकता है। यह सोचने के लए चकमा दया गया क घोड़े पर सवार आय सं ध ु घाटी स यता के शहरों के वजेता थे उसी कार जैसे पै नश वजेताओं ने मे सको और पे के शहरों को जीत लया था या जस कार म से हजरत करने वाले इजरायली जेिरको के वजेता थे। ऋग वेद के दीन-हीन दास को, जसे पहले आ दम जं गली के प मे ं समझा गया था, अब एक उ स यता के सद य के प मे ं पुनसृ जत कया गया।19 इस वषय पर आ धकािरक प से बोलने क वां छत श ा या श ण के बना, नसबॉम वेदों क काल गणना पर आगे बढ़कर यह न कष नकालते हुए वचन देती है,ं क वेदों के ईसा पू व 1200 से पुराने होने का दावा करना या हड़ पा सं कृ त क आज तक सां कृ तक नर तरता के बने रहने का दावा करना कसी भी य को ह दू द णप थी ठहरा देता है। च 14.2 भारत व ा पर नसबॉम के कुछ न कष क तुलना व भ कार क पृ भू मयों के प थ- नरपे व ानों के न कष से करता है। Fig. 14.2 ाचीन भारत के स दभ मे ं माथा नसबॉम और प थ नरपे व ानों के दावों के बीच मे ं तुलना नसबॉम के दावे

प थ नरपे

व ानों के दावे

1. ऋग वेद क वो पुरानी उ प दर सं ह ने, जो क एक इ तहासकार है,ं इं गत तारीखे ं जो उसे 3000 कया क खगोल वदी स दभ का योग करते हुए, ईसा पू व रखती है,ं व ानों ने वेदों को भ - भ ाचीनता दी है : ‘ईसा ह दू द णप थयों ै ई ी ी ी औ ई ी

ारा वै दक-हड़ पाई पहचान था पत करने का एक ष मा है।ं (नसबॉम 2007, 219)

पू व तीसरी सह ा दी और ईसा पू व दू सरी सह ा दी के उतराध के बीच क त थयों को (भाषाशा ीय और खगोल वदी स दभ के तहत गणना से) हम नकार नहीं सकते। ऋग वेद क त थ एक ज टल सम या है।’ ( सं ह 2009, 185) ोफे. नसबॉम उ प दर सं ह को ह दू द णप थ का इ तहासकार नहीं कह सकतीं, यों क वे भारत के धानम ी मनमोहन सं ह क बेटी हैं और वयं एक त त इ तहासकार है।ं

2. हड़ पा मे ं पायी गयी आड़ी- तरछ खेत जोतने क रेखाएँ हिरयाणा के खेतों मे ं आज भी पायी जाती है।ं माथा नसबौम स यता क इस नर तरता के नमू ने को ‘मु कल से ज़ के का बल’ कह कर र कर देती है।ं (नसबॉम 2007, 221)  

भारत के विर पुरात व व ानी बी.के. थापर, ज होंने हर पा क कालीबं गा साइट क पुरात ववै ा नक खोज का त न ध व कया था, कहते हैं क हड़ पा क खेत जोतने क या ‘आधु नक समय क खेत जोतने क या से बहुत मलती-जुलती है।’ (बी.के. थापर और जे.जी. शेफर 1999, 278)

3. हड़ पा मे ं मली मू तयों क माँग मे ं पुरात व व ा नयों को मले लाल रं ग को नसबॉम ारा इस तरह नकार दया जाता है : टेराकोटा मू तयों का रं ग इतना अ धक धुल गया है क यह कहा जाना मु कल है क या लाल है और या नहीं... इसका तरीका ऐसी कसी भारतीय औरत से नहीं मलता

जोनाथन म. केनोयेर, यू नव सटी ऑफ़ व कॉ सन के पुरात व व ानी है,ं ईसा पू व 2600 वष क तारीख क ी क एक मू त क माँग मे ं लाल रं ग का उ ख े करते है,ं और इसे स यता क नर तरताका एक बहुत बड़ा सू चक मानते हैं (केनोयेर 1998,44-5)

 

 

जसे मैं जानती हू ।ँ ’ (नसबॉम 2007, 221)

 

प है, नसबॉम पुराता वक उ खनन के ठोस त यों के साथ सटीक बैठने वाले अ य वक पों को पीछे धकेलते हुए अपनी राजनी तक पिरक पनाओं को ही आगे बढ़ाती है।ं हालाँ क वे पुरात व, या भाषा व ान, या सं कृ त क कोई वशेष नहीं है,ं और उनका स पक समकालीन राजनी त तक ही सी मत है, वे स पू ण भारतीय पुराता वक शै क त ान पर ‘ ह दू द णप थी’ का ठ पा लगाकर नर त कर देती है।ं हड़ पा काल से ही भारतीय स यता क सां कृ तक नर तरता को वे ‘ग भीर व तापू ण दावों के बदले अनुमान’ के प मे ं खािरज कर देती है।ं पुरात ववे ाओं जम शेफर और डायैन ल टे सटीन ारा यह गलत मा णत कया जा चुका है, जो भारत मे ं हड़ पा और हड़ पा काल के बाद क अव ध के बीच स ब ध के स दभ मे ं कहते हैं क ‘उपल ध आँकड़े इस बात क ओर इं गत करते हैं क द ण भारतीय सां कृ तक इ तहास का अ ययन वदेशी सां कृ तक नर तरता के आलोक मे ं ही कया जाना चा हए, न क घुसपैठ और नर तरता के भं ग होने के आलोक मे’ं ।20 नसबॉम भारत के वख डन के अपने दृ कोण को ाचीन भारतीय इ तहास के चतुर उपयोग के मा यम से आगे बढ़ाती है।ं उनके भारतीय इ तहास का वणन आय ह दुओ ं ारा भारत पर आ मण या आगमन से शु होता है, जो भारत के वड़ मू ल नवा सयों से भ है;ं कोई भी भारतीय व तापू ण न कष जो इस पर न उठाता है, उसे ह दू द णप थी ष का ह सा मान लया जाता है। जहाँ प मी पू वा ह इतना यादा हो जाता है क उससे इनकार नहीं कया जा सकता, वह ऐसी ु टयों को अनजाने मे ं हुई भू ल मानती है,ं ले कन भारतीय व ता को, चाहे उसमे ं कतना भी दम यों न हो, राजनी त िे रत बताया जाता है। वे आरोप लगाती हैं क भारत आतं कवाद के व सं घष करने वाले खेमे मे ं एक ष के तहत कूद पड़ा है, ता क वह धा मक अ पसं यकों के व अपनी हं सा को यायो चत ठहरा सके। आतं कवाद एक बहाना है भारत के ‘जातीय सफाये मे ं न हत मू यों’ को ढँकने का, जसे वह चाहती हैं क ‘ वदेशी पू ं जी नवेश के लए एक सु न त बाधा’ के प मे ं लया जाना चा हए।21 गुजरात क हं सा पर रोंगटे खड़े कर देने वाले यापक ववरण और बेहद सनसनीखेज और बढ़ा-चढ़ाकर लखे गये उ पीड़न सा ह य ( जनमे ं वे दावे भी शा मल थे जनको अब मनगढ त स कर दया गया है) तुत करने के बाद, वे भारतीयों के बारे मे ं व को सचेत करती हैं : ‘वतमान व पिरवेश, वशेषकर अमरीका ारा आतं कवाद के काड के अ ववेकपू ण उपयोग ने उनके लए इस चाल को इ तेमाल करना आसान कर दया है’।22 े



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वे भारत सरकार पर अल-कायदा का उपयोग ‘एक हौवे’ क तरह करने का आरोप लगाती है,ं वह भी बना कोई आधार दये। वे कसी भी कार के पा क तानी स ब धों वाले भारत थत इ लामी आतं क-नेटवक के अ त व से सीधे इनकार करती है।ं 23 भारत ारा आतं कवादी को ों को नय त करने के लए कसी भी कार के वशेष कानू न लागू करना यायो चत नहीं है, वे बल देकर कहती है।ं वे वलाप करती हैं क अमरीका व लोकत के लए एक ख़तरे के प मे ं भारत क नगरानी नहीं कर रहा : भारत मे ं जो होता आ रहा है, वह व मे ं लोकत के भ व य के लए एक ग भीर ख़तरा है। यह त य क इसे अभी अनेक अमरी कयों के राडार पटल पर लाना शेष है, इस बात का माण है क कस तरह आतं कवाद और ईराक मे ं यु ने अमरी कयों का यान मौ लक मह व क घटनाओं और मु ों से हटा दया है।24 नसबॉम क राजनी तक मु ाओं मे ं से अनेक अ त वरोधों से भरी है।ं उदाहरण के लए, 2007 मे ं उ होंने टेन क यू नयनों के व तक दये थे जो उन इजरायली शै क सं थानों का ब ह कार कर रही थीं जन पर राजनै तक पू वा ह के आरोप थे। ले कन उ होंने यह आलोचना करते हुए भारतीय शै क सं थानों और य यों पर वपरीत मु ा अपना ली थी, क भारतीयों ‘का ब ह कार करने के लए एक भी श द बोलने मे’ं व वफल रहा।25 नसबॉम ने 2008 के मु बई आतं क हमले से नपटने के यासों को यह कहते हुए कमजोर कया क ‘भारतीय आतं कवाद को एक यापक स दभ मे ं देखना मह वपू ण है। भारत मे ं आतं कवाद कसी भी कार से मुसलमानों के स दभ मे ं व श नहीं है’।26 सन 2008 के मु बई हमलों पर चचा के दौरान वे गुजरात मे ं 2002 मे ं हुई हं सा और उड़ीसा मे ं 2008 मे ं हुई ह दू -ईसाई हं सा का उ रण देते हुए, वह भी दोनों के बारे मे ं पू रा स दभ दये बना बड़ी तेजी से चचा को इ लामी आतं कवाद से मोड़कर दू र ले गयीं। स दभ को तोड़-मरोड़कर वे थानीय सा दा यक घटनाओं को आतं कवाद के समतु य बताती हैं : ‘यह सब आतं कवाद है, ले कन इनमे ं से अ धकां श व के मुख ँ ते’।27 इस कार वे भारत- वरोधी आतं कवाद से लोगों का यान पृ ों तक नहीं पहुच दू र हटाने मे ं भावी रही है।ं ाचीन भारतीय स यता से जुड़े ज टल मु ों पर अपनी सीधी व ता के अभाव मे ं नसबॉम ने तोते क तरह दू सरों क बाते ं दुहरायी है,ं जो उनक राजनी त के अनुकूल है।ं नसबॉम के पाठक यह नहीं समझ पाते क नसबॉम के वचारों और पिरक पनाओं क जड़े ं फासीवाद मे ं है,ं जैसे क उनके तथाक थत ‘आय ’ से जुड़े, वेदों तथा ह दू धम के मू ल से जुड़े और ाचीन भारत क कृ त से जुड़े वचार। इस पु तक के पाँचवे अ याय मे ं न ल व ान क पुरानी पिरक पनाओं क जो चचा क गयी है, वह जी वत है और व ानों के एक कुच गुट मे ं अब भी मौजू द है, हालाँ क उनमे ं से केवल कुछ ही त े े तावा दयों क तरह खुल-े आम काम कर रहे है,ं जब क अ य े ैं ो ी ँ ों ो े ी ी

लोग उदारवादी ढाँचों का उपयोग करते हुए उसी तरह क चीज लख रहे है।ं उदाहरण के लए, ाचीन भारत पर नसबॉम क बौ क मु ाओं क तुलना रॉजर पयसन जैसे कु यात त े े तावा दयों से करना चकर होगा, जो एक तानी समाजशा ी और भारत मे ं अं ज े ों क सेना के एक पू व औप नवेशवादी अ धकारी थे।28  

लीसे मैक कन (Lise McKean) लसे मैक कन एक शै क मानवशा ी हैं जो अमरीक सामा जक मु ों पर काम करने वाले शकागो के अलाभकारी समू ह के साथ कायरत है।ं वे इस बात का एक उदाहरण हैं क कस तरह वामप थी प मी शै क व ान भारतीय पर परा के व पू वा ह रख सकते है,ं उस ब दु तक जहाँ द णप थी और ईसाई चारक बलों के साथ उनक साठ-गाँठ हो जाये। जब भी भारत मे ं अशा त होती है, वे अमरीक ोताओं को यह श ा देने के लए एक ट पणीकार के प मे ं सामने आती हैं क भारतीय सं कृ त मे ं गड़बड़ी या है। उनक पु तक, ‘दैवी उ म : गु और ह दू रा ीय आ दोलन’ (Divine Enterprise: Gurus and the Hindu Nationalist Movement) भारत मे ं उनके ारा कये गये शोध पर आधािरत है। इसमे ं वे हर उस ं का चीज को, जो ह दू आ या मकता से दू र से ही जुड़ी यों न हो (जैसे एक समेट व ापन जसमे ं एक योगी को दखाया गया है), ह दू रा वाद क अमं गलसू चक छ व से जोड़ती है।ं पु तक का एक पू रा अ याय एक ब े क ब ल के भयानक ववरण और थानीय समाचार प मे ं ह दू ‘साधु’ के व छपे स द ध आरोपों पर सम पत है। पु तक के कई भागों के शीषक कसी शै क शोध क दृ से कुछ अ धक ही सनसनीखेज हैं जसे यू नव सटी ऑफ शकागो स े ारा का शत कया गया था। उदाहरण के लए एक भाग का शीषक है ‘ टीफन कंग क लखी भयावहकथा से अ धक भयं कर दु नया के बारे मे’ं (About a World more Macabre than a Stephen King Horror Story)।29 जब वा त वक सं गठनों क उनक पड़ताल से कोई भयावह सा य नहीं मला तो उ होंने उ हे ं भारत मे ं प थ- नरपे ता को एक स भा वत ख़तरे के प मे ं च त कया। यहाँ तक क ऋ षकेश थत सु त त ‘ डवाइन लाइफ सोसाइटी’ (Divine Life Society) को भी नहीं ब शा गया : डवाइन लाइफ सोसाइटी वयं को इस प मे ं पेश करती है जसक कोई स द ध गहराइयाँ नहीं है;ं वह दावा करती है क उसका ‘कोई गु स ा त नहीं है और न ही कोई गू ढ़ वग या आ तिरक म ड लयाँ है।ं वह शु प से आ या मक सं गठन है जसका राजनी त क ओर कोई झुकाव नहीं है’। डवाइन लाइफ सोसाइटी क त ा, गु कलं क-कथाओं और मानव ब ल क सनसनीखेज घटनाओं से कम नहीं है, फर भी, इस पु तक ारा जस सम या को उठाया गया उसे और मपू ण और चकरा देने वाला बनाती लगती है : भारत मे ं ं औ े ों े ओं ों औ ों े

स ा और भु व के दायरों से गु ओं, धा मक सं गठनों और कमका डों के स ब ध।30 यहाँ तक क वे महा मा गाँधी को भी ‘ ह दू रा वा दयों क वं शावली’ का मानती है।ं 31 नेह भी दोषी थे, यों क उ होंने उस श दावली का उपयोग कया जो भारत क आ या मक पर परा को त व नत करती है : युगधम पर नेह का शा ाथ ववेकान द ारा सहचर बनायी गयी यावहािरक आ या मकता को अपने मे ं समेट लेता है, और जसे बाद मे ं रामकृ ण मशन, डवाइन लाइफ सोसाइटी जैसे ह दू सं गठनों ने सं थानीकृत कया था ...32 मै न ने 2002 मे ं प ास ारा सं चा लत सं गो ी मे ं भाग लया, जसे पछले अ याय मे ं एक द णप थी नी त सं थान बताया गया था।33 वे ईसाई द णप थी माँग के साथ सुर मलाती हैं क अमरीक वदेश नी त, भारत मे ं गैर- ह दुओ ं के वशेष हतों क र ा पर आधािरत होनी चा हए।34

रो मला थापर रो मला थापर, ाचीन भारत मे ं वशेष ता रखने वाली एक मुख इ तहासकार, ने भारत के बारे मे ं एक दृ कोण को आगे बढ़ाया है जो इसके वख डन पर बल देता है। इसके लए उ हे ं भारतीय इ तहास के अ ययन के ढं ग मे ं बदलाव लाने का य े 35 दया जाता रहा है। भारतीय रा वा दयों पर वे झू ठा आरोप लगाती हैं क उ होंने वयं को अं ज़ े ों के साथ दखाने के लए तथा वण- यव था मे ं अपने भावी थान को उ चत ठहराने के लए आय न ल के स ा त का उपयोग कया।36 यह आरोप भारतीय इ तहासकारों और अ य बु जी वयों मे ं ‘देशभ = आय जा त ष ’ के प मे ं घुस गया, और बहुतों को वयं भारत क पिरक पना पर ही न उठाने तक ले गया। यह आज के एक अ य धक लोक य दृ कोण क नींव क तरह काम कर रहा है क भारत क थापना एक दमनकारी उ -वण- यव था के प मे ं हुई है, जसके व नचले-वण के व ोह सं ग ठत कये जाने क आव यकता है। बशप कॉ डवेल, जी.यू . पोप और अ य औप नवे शक काल के ईसाइयों को त व नत करते हुए थापर एक ‘सतह के नीचे के धम क पहचान करने क बात करती हैं जो न:स देह अधीन थ समू हों के उदय से जुड़ा हुआ है’।37 यह त त प मी सं थानों ारा स मथत एक स मान-यो य स ा त उपल ध कराके द ण भारतीय वड़ अलगाववाद का वलय अ खल भारतीय सब-ऑ टन आ दोलनों के कहीं अ धक यापक आधार मे ं कर देता है। उदाहरण के लए के ज के एक जेसइु ट ईसाई धमशा ी माइकल बा स ने रणनी त के तहत चच को ‘ नचले वण के व ोह क हाल क पिरघटना’ के साथ था पत कया है, जसे वे ‘ ा णवादी भावी भ लोगों क दबदबा रखने वाली ं







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सं कृ त के व एक आ दोलन’ के प मे ं पिरभा षत करते है।ं 38 वे व ो हयों को समथन देने के लए चच के लए वकालत करते है,ं जो एकजुट भारतीय स यता को ‘भारतीय सं कृ त क सं क ण या या के प मे ं देखते है,ं जो वै दक काल से ही आय रा के सृजन के प मे ं नकली है’।39 रो मला थापर को आ धकािरक प से ृ करते हुए वे कहते हैं क ‘‘भारतीय पहचान’’ के बारे मे ं ‘ ा य व ा- वदों क उ त और ह दू रा वादी अवधारणाएँ, दोनों के भाव एक बढ़ती आलोचना मक नगरानी तक है’ं ।40 इस कार, रो मला थापर, उन ऐ तहा सक और सां कृ तक नर तरताओं को अमा य करने का एक श शाली उपकरण बन गयी हैं जो भारत और इसक स यता को एकजुट करती है।ं इसके एक अ य उदाहरण हैं रॉबट एिरक ाइकेनबग, जो वसकॉ सन व व ालय मे ं द ण ए शया अ ययन के ा यापक है,ं ज होंने अमरीकन एकेडमी ं लज़म ऐ ड द ऑफ आ स ए ड साइं सज े मे ं ‘ ह दू फ डामेट चरल टे ब लटी 41 ऑफ़ इ डया’ वषय पर एक शोधप तुत कया था। वे कहते हैं क भारत और ह दू धम क पिरक पनाएँ अं ज े ों के क पनी राज क ‘आ धकािरक नी तयों के उपउ पाद’ है,ं और वे ‘यह मान लेने के म’ को खािरज कर देते हैं क ‘ कसी कार के सवसमावेशी ह दू धम का कभी कोई अ त व था’। इसक पु के लए आ धकािरक व ान के प मे ं वे रो मला थापर का उ रण देते है,ं वशेषकर उनके इस व य का क ाचीन भारतीयों को मा ‘ व श स दायों और प थों के समू ह’ के प मे ं देखा जाना चा हए।42 यह भारतीय स यता को एक बेढब और बेतरतीब समू ह के प मे ं च त करता है जैसा क यू रोपीय वजय के पहले अ य तीसरे व के रा ों के आ दवा सयों को च त कया जाता था। इस दृ कोण के तहत, ह दू धम हाल के ‘ न मत त ों’ और ‘राजकौशल के ढाँचों’ का पिरणाम है। यह भारत को कमजोर ब धनों या अस ब समुदायों के एक नकली मेल के प मे ं देखते हुए इसके वख डन को समथन देने वाली पिरक पनाओं को फर से लागू करता है, और मानता है क इन समुदायों को अलगाववादी आ दोलनों के मा यम से अव य ही मु कराया जाना चा हए। थापर अनेक ह दू पुराकथाओं और पर पराओं का व लेषण ‘कुनबों के सं घष ’ के प मे ं करती है।ं ह दू आ या मक अनुभवों को ण तक कह कर उनका 43 अवमू यन कया गया है। वे अध- व तापू ण अटकलों का सहारा ले कर न ली घृणा क उप थ त स पू ण भारतीय पर पराओं मे ं होने क बात कहती हैं जब वह स देह करती है,ं ‘ क रा स, त े और दै य, व भ कार के दानव और भू त के स दभ, जं गलों मे ं रहने वाले पराये लोगों के लए दये गये होंग।े ‘परायों’ का दानवीकरण कभी-कभी ऐसे लोगों के त घृणा और यहाँ तक क उन पर हमले करने को उ चत ठहराने का एक तरीका होता है’।44 यह वही स ा त है जसे आज म य भारत मे ं सुदूर आ दवा सयों के बीच काम कर रहे माओवादी व ोही फैला रहे है,ं यानी ह दू ें







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धम मे ं दानव कह कर जो उ ख े कया गया है, वह वा तव मे ं आ दवा सयों के स दभ मे ं आया है। वे स त टॉमस के मथक और द ण भारत मे ं उनके शहीद होने को ‘ व सनीय’ के प मे ं वीकार करती है।ं 45 थापर मसीहा के प मे ं ईसा मसीह क वैधता को भी मानती हैं और उनके अ त व क ऐ तहा सकता को भी वीकार करती हैं जब क राम क ऐ तहा सकता से इनकार करती है।ं 46 उ होंने कै लफो नया पा पु तक ववाद मे ं माता- पताओं ारा सुझाये गये स पादन के वरोध मे ं माइकल व जेल के नेत ृ व मे ं प मी भारत वदों से हाथ मला लये, और पा पु तकों मे ं त यों क भू ल क ल बी सू ची को ह दू क रप थयों के एक ष के प मे ं अ वीकार कर 47 दया। 2003 मे ं थापर को ‘अमरीक कां स े के पु तकालय मे ं द ण के देशों और सं कृ तयों पर लग चेयर को सुशो भत करने वाले पहले य के प मे ं नयु 48 कया गया’। अमरीक कां स े के पु तकालय से जारी हुई स े व मे ं कहा गया क उ होंने ‘भारतीय स यता का एक नया और अ धक बहुलतावादी दृ कोण पेश कया था...’।49 सन 2008 मे ं उ होंने बहुमू य लग पुर कार को सहष वीकार कया जब क उ होंने दो बार भारत सरकार के प भू षण को ठु करा दया था।50 उ होंने ऐसा इस लए कया, यों क वह राजनी तक प से कसी भी स ा त से साथ जुड़ी हुई नहीं दखना चाहती थीं। ले कन लग पुर कार के बारे मे ं बहु ात है क यह बहुधा ईसाई चारकों को दया जाता है।51 लग का वृ दान व ानों को शोध करने और ‘नी त नमाताओं के साथ वचारों का आदान- दान करने के लए’ वॉ शं गटन बुलाता है। लग अनुदान मे ं यही कट ईसाई प धर पू वा ह है जो थापर जैसे मा सवादी इ तहासकार52 के चयन को सचमुच आ यजनक बना देता है। इस त य ारा वरोधाभास रेखां कत होता है क जहाँ एक ओर थापर ने ाचीन ह दू धम क वैधता को व त करने के लए स मान ा कया, वहीं दू सरी ओर, पीटर आर.एल. ाऊन ने, ज होंने 2008 के लग पुर कार मे ं उनके साथ साझेदारी क , ईसाइयत के मामले मे ं ठ क उ टा कया। ार भक ईसाई मठ के एक इ तहासकार ाऊन का शोध ईसाई मठों क सकारा मक छ व को सामने लाया है जो भारत क उसी आ या मक सं कृ त के समतु य है जसक न दा थापर ने जीवन को नकारने वाले पलायनवाद के प मे ं क थी।53

मीरा न दा मीरा न दा, जो मू लत: जैव- ौ ो गक वद थीं, मान वक के े मे ं आ गयीं और ‘पीछे को उ मुख पैग बर : भारत मे ं व ान और नये सामा जक आ दोलनों क उ री



आधु नक समी ाएँ’ (Prophets Facing Backward: Post-Modern Critiques of Science and New Social Movements in India) वषय पर अपना दू सरा पीएच.डी. शोध ब ध तुत कया।54 उसके बाद से वे अपने आलेखों और या यानों मे ं भारतीय सं कृ त क न दा एक ज मजात व ान वरोधी के प मे ं करती रही हैं और भारतीय रा नमाताओं पर यह भी आरोप लगाती रही हैं क उ होंने छ व ान और यहाँ तक क नाजी मान सकता के लए माग श त कया। न दा के एक अ य आलेख का शीषक है ‘भारत के वाधीन चेताओं का आ ान’ (Calling India’s Freethinkers), जसमे ं वे वामी ववेकान द और बं कम च (भारतीय रा ीय पुन थान के पू वज) पर आरोप लगाती हैं क उ होंने ह दू धम के लए आधु नक वै ा नक सोच को आ मसात करने का यास करने का ‘आधारभू त पाप’ कया। यहाँ तक क नेह को भी, ज होंने वै ा नक रा वाद को बढ़ावा दया, इस आरोप मे ं घसीटा गया।55 वे भारत के ‘ ग तशील वै ा नकों’ का आ ान करती हैं क ‘उ ीसवीं शता दी के अ त मे ं वामी ववेकान द के समय से ह दू धम मे ं अ धाधु ध और अ नय त ढं ग से व ान के साथ जो ताना-बाना बुना जा रहा है उसे सावधानी से ले कन दृढ़तापू वक अलग करे’ं । व ान के आलोक मे ं ह दू धम पर शोध के सभी यासों को ह दु व से जुड़ा घो षत कर दया गया है, जसमे ं ‘रामकृ ण मशन और अर व द आ म से जुड़े समथकों के काय भी शा मल है’ं । वे पाती हैं क भारतीय सं कृ त के वै ा नक होने का कोई भी दावा ‘ ह दु व क के ीय हठध मता है’। भारतीय सं कृ त और व ान के बीच स ब ध ‘गहरी ह दू और आय े तावादी व न’ को त व नत करता है।56 जस बात मे ं बल अ त वरोध दखता है वह है उनके ारा कये गये अनुरोध पर उ हे ं धम और व ान पर जॉन टे लटन फाउ डे शन फेलो शप का दया जाना (2005-7), जो सं योग से एक वघो षत ईसाई चारक के नेत ृ व के तहत 2006 मे ं दया गया।57 न दा ने ोटे टैं ट म का समथन एक वै ा नक प थ होने के प मे ं कया, जब क ह दू धम का वणन ठ क इसका उ टा कया। यहाँ तक क जब वे प म के लोगों के छ - व ान क आलोचना करती है,ं तब भी उनके ववादा पद वचारों का दोष ह दू धम पर मढ़ती है।ं उदाहरण के प मे,ं पट शे े क अपने ँ नकालना पस द करते हैं और छ -वै ा नकता के स ा तों को ईसाइयत मे ं ढू ढ फादर बेडे फ स का उ ख े अपने सं र क गु के प मे ं करते है।ं 58 ले कन न दा शे े क को जे.सी. बोस से, जो भारतीय व ान के अ णी थे, जोड़ना पस द करती है,ं और उसके बाद ह दू स ब धों के लए उनक आलोचना करती है।ं 59 उनक हाल क उनक पु तक ‘देव बाजार : कैसे भू म डलीकरण भारत को और ह दू बना रहा है’ (The God Market: How Globalization is Making India More Hindu, Random House, 2009) पर इ डया टुडे मे ं छपी समी ा मे ं सारग भत तरीके से उनके भारत और ह दू धम के त रवैये का सार-सं प े इस ी ो ीं ीं औ े ो

कार कया : ‘मीरा न दा भारत को पस द नहीं करतीं। और वे लोक य ह दू धम से और भी अ धक जोशीलेपन से घृणा करती है’ं ।60 न दा एक साँचे या बुनावट क त न ध हैं : टे प टन फाउ डे शन व ान और यहू दी-ईसाई प थ को एक साथ मलाता है, और न दा जैसे पहले से ही तैयार भारतीयों का उपयोग भारतीय आ या मक पर पराओं पर कुठाराघात करने के लए करता है।

वजय साद वजय साद एक मुख वामप थी आग उगलने वाले शै क व ान है,ं जो हाटफोड के नटी कॉलेज मे ं अ तरा ीय अ ययन के नदेशक है।ं वड बना है क जहाँ ँ ीवाद से सं घष पर आधािरत है, उनका अ यवसाय और सावज नक जीवनवृ पू ज वहीं वे वॉल ीट क एक धनी यापािरक क पनी के मुख के नाम से और उ हीं के व पोषण से था पत त त चेयर को सुशो भत करते है।ं 61 वे वैसे सं गठन चलाते हैं जो अमरीक व व ालय पिरसरों के भारतीय अमरीक व ा थयों क बहाली करते हैं ता क उ हे ं भारतीय स यता क भयावहताओं के बारे मे ं पढ़ाया जा सके। साद अ क -द लत आ दोलन का अनुमोदन करते है,ं जनमे ं वी.टी. राजशेखर के न लवादी स ा त भी शा मल है।ं लमुिरयन पिरक पना का अनुमोदन करने के अलावा, जसमे ं कहा गया है क ‘भारत और अ का एक ही भू भाग थे’, और जो उ हे ं यह न कष नकालने क हद तक ले गया क ‘अ कयों और भारतीय अछूतों तथा आ दवा सयों के पू वज एक ही थे’, साद ने लोगों का यान इस ओर आक षत कया क द लत ‘शारीिरक सं रचना मे ं अ कयों से मलते-जुलते है’ं ।62 हालाँ क वे औप नवेशवा दयों ारा चलायी जाने वाली आय- वड़ मानव जा त-वणन स ब धी पिरयोजनाओं क ु टयों और मों से पिर चत है,ं 63 उनका लेखन कुछ इस तरह कया गया है क वे ह दू धम और रा -रा य के प मे ं भारत क वैधता के लए कये गये कसी भी काय के त स देह पैदा करते है।ं ला वउक नामक एक कनाडा का लॉगर इस बात का उदाहरण है क कस तरह ऐसे सनक वचार इस इं टरनेट युग मे ं भावशाली बन सकते है।ं ला वडक भारतीय स यता के त अपने वचारों के लए वजय साद और वी.टी. राजशेखर के लेखन को य े देते हैं ज हे ं उसने 2003 मे ं यू नव सटी ऑफ ऐ बटा मे ं आयो जत क चर ए ड टेट कॉ े ं स से लया था, और जसे वह न न कार से पेश करता है : आधु नक ह दू धम फासीवादी और न लवादी है। यह उसका ोत है जसे हम ं ।े एक धा मक वण- यव था पर आधािरत, जो आय आधु नक फासीवाद कहेग मू ल क है, यह व को तीन वण मे ं बाँटता है—यो ा, पुरो हत, और यवसायी [ य, ा ण और वै य], और एक दास वग मे,ं द लतों या अछूतों को।64 ं

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वह एक लं क भी देता है जो हमे ं कै लफो नया व व ालय के एक अं ज़ े ी के ा यापक के वेब पृ पर ले जाता है जो इस वचार का समथन करते हैं क वण न ल के बराबर है।65

अं गना पी. चटज अं गना चटज ‘कै लफो नया इं टी ू ट ऑफ इनटे ल टडीज’ (California Instituteof Integral Studies, सी.आई.आई.एस.) मे ं सामा जक और सां कृ तक मानवशा क एसो सएट ोफेसर है,ं जो एक ऐसा सं थान है जसक थापना ँ ाने के उ े य वशेष प से ी अर व द क आ या मक श ा को प म तक पहुच से क गयी थी। वड बना यह है क उ होंने अपने पद का उपयोग इसके ठ क वपरीत कया, मसलन भारतीय आ या मकता और भारतीय रा क वैधता को व त करने का उनका यास। वे अपनी चयों के प मे ं ‘पहचान क राजनी त, रा वाद, आ म नणय’ का उ ख े करती है।ं 66 सी.आई.आई.एस. मे ं योगदान करने से पू व उ होंने इ डयन सोशल इं टी ू ट मे ं नी त और प समथन के शोध का काम कया, जसका सं चालन ‘ईसाई रे णा का चार करने और कैथो लक चच क सामा जक श ा का अनुसरण करने’ के प उ े य से ईसाइयों ारा द ी मे ं कया जा रहा है।67 चटज ने एक अ य धक अपमानजनक और अपु रपट के लए ‘मह वपू ण ं सहायता’ दान क जसमे ं अमरीका थत एक धमादा सं गठन इ डयन डे वलपमेट िरलीफ फंड (आई.डी.आर.एफ.) को यह आरोप लगाते हुए अपराधी ठहराया गया था क वे भारतीय अ पसं यकों के व घृणा और उ पीड़न के लए धन उपल ध 68 करवा रहे थे। इन सब के पीछे सं चा लत करने वाली श यह थी क भारतीय ामीण और आ दवासी े ों मे ं आई.डी.आर.एफ. के कूल धमा तरण मे ं लगे ईसाई मशनरी कूलों के सफल वक प उपल ध करा रहे थे और चटज को उस गैर-ईसाई त पधा को बदनाम करने के लए लाया गया था जो आई.डी.आर.एफ. ारा उप थत क जा रही थी। जहाँ वे ईराक और अफगा न तान मे ं अमरीक ह त प े को उन देशों के अ धकारों का उ ं घन मानती हैं और जॉज बुश को ऐसा य कहती हैं ‘ जन पर वयं मानवता के व अपराध करने का अ भयोग लगाया जाना चा हए’,69 वहीं वे भारतीय मामलों मे ं अमरीका क ओर से ह त प े भी चाहती है,ं उदाहरण के लए, अ तरा ीय धा मक वत ता पर सं य ु रा य अमरीका के आयोग के मा यम से। चटज ने उड़ीसा मे ं हं सा पर ग ठत अ तरा ीय धा मक वत ता पर यू नाइटेड टे स कॉ स े नल टा क फोस के सम गवाही दी थी,70 जसक अ य ता कां स े सद य े ट ै स और जोजेफ आर. प स ने क थी, जो दोनों दृढ़ द णप थी ईसाई चारक स पक वाले है।ं 71 ं ी ों े ो ी े

उड़ीसा क हं सा पर उ होंने भारत सरकार को भी अपना अनाम त सा य भेजा था जसमे ं दये गये उनके सभी आँकड़े सीधे ऑल इ डया यन काउं सल ारा तैयार रपट मे ं से आये थे, जसक चचा पहले क जा चुक है। उनके ारा दी गयी जानकारी इतनी इकतरफा थी क उ होंने आ ामक ईसाई चारक सं ल नता72 के बारे मे ं कुछ सु था पत त यों और रा य मे ं ईसाई चारकों तथा माओवा दयों के बीच के गठजोड़ को पू री तरह नजरअ दाज कर दया।73 उस हं सा का पिरणाम एक ह दू साधु क ह या मे ं आया, जनको वह एक ‘पु ष ह दू धमा तरक’ के प मे ं खािरज करती है।ं वे ह दू सं गठनों ारा क जाने वाली समाज सेवाओं को ‘ ह दू स यतावाद मे ं भत ’ के प मे ं व णत करती है,ं जब क वे ‘ईसाई मशनिरयों ारा वा य, श ा और रोजगार के े मे ं क जा रही’ इसी कार क सामा जक 74 सेवाओं क शं सा करती है।ं वयं ही यह घो षत करके क वे ‘भारत शा सत क मीर मे ं आ म- नणय के अ धकार पर काम कर रही है,ं चटज क मीरी अलगाव-समथकों के मुख आयोजनों मे ं एक मानक और अपे त भागीदार बन गयी है।ं 75 क मीर पर आयो जत ऐसे ही एक स मेलन मे,ं जसका आयोजन जॉज वा शं गटन यू नव सटी मे ं पा क तानी टुडे स एसो सएशन, पा क तानी दू तावास, और क मीर मामलों के पा क तानी म ी ने कया था, उ होंने ‘भारत के क जे वाले क मीर मे ं सामा जक, राजनी तक, सां कृ तक, धा मक और आ थक अ धकारों के े ों मे ं मानवा धकार सं कट के बारे मे ं नागिरक समाज समू हों के बीच बढ़ती च ता’ क चचा क । उ होंने भारत पर ‘क मीर के [कुछ वशेष ह सों मे]ं अपना क जा बनाये रखने’ का आरोप लगाया।76 मुह मद सा दक, जो एक क मीरी समाचार और व लेषण पोटल चलाते है,ं व तार से बताते हैं क कस कार अं गना चटज मानवा धकार से स ब धत च ताओं का उपयोग इ लामी आतं कवा दयों के हाथों क कठपुतली बनने के लए इकतरफा तरीके से करती हैं : [अं गना चटज ] ने 5 अ ल ै को ीनगर मे ं ‘इं टरनेशनल पीप स ाइ यू नल ऑन ू मन राइ स ए ड ज टस इन इ डयन एड म न टड क मीर’ के गठन क घोषणा क । रोचक बात यह है क यह सं गठन भी इस बात पर बल देता है क मानवा धकार अनुसंधानों का के ब दु भारतीय भाग के क मीर मे ं होना चा हए, पा क तान के क जे वाले क मीर मे ं भी नहीं। इससे भी बड़ी बात यह क यह गड़बड़ी का पता लगाने वाला मशन है। इसका एकमा उ े य भारतीय सुर ा बलों क आलोचना करना है, जो मानवा धकार मामलों को और उजागर करता है तथा थ तयों को बदतर बनाता है। समझौता करने, मानवा धकार उ ं घन के पी ड़तों को राहत उपल ध कराने या सरकार के साथ मलकर काम करने के लए ता क यह सु न त कया जा सके क मानावा धकार उ ं घन क घटनाएँ न हों, कोई यास नहीं कया जाता। डॉ. चटज , अपने पहले के अनेक े

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दू सरे लोगों क तरह, मु य प से भारतीय सुर ा बलों का दानवीकरण करने पर लगी हुई हैं और इस कार घृणा को हवा दे रही है।ं 77 भारत का च ण ह दू ू रता क भयानकता से भरे एक अलोकता क रा य के प मे ं करके, ऐसे वामप थी शै क व ानों ने इ लामी आतं कवाद और जसे वे भारतीयों ारा मुसलमानों, ईसाइयों और द लतों के व क गयी उतनी ही बुरी ँ ला कर दया है। घटनाओं के प मे ं च त करते है,ं उसके बीच के अ तर को धुध यह भारत पर आतं कवादी हमलों को उ चत ठहराता हुआ तीत होता है मानो भारत इसी का हकदार है। सन 2008 के आतं कवादी हमलों के बाद, वा शं गटन टाइ स क धा मक वषयों क स पादक जू लयन डुइन ारा त ब बत कया गया : इस वष के उ राध मे ं मु बई मे ं आतं कवादी हमले ने—इस बार मु लमों ारा— बा द के ड बे को रेखां कत कया है जो क भारत बन गया है और यह भी क ह दू बहुल देश मे ं ाय: कतनी बार द मत लोगों को याय नहीं मलता। उड़ीसा के अपरा धयों को अब तक द ड नहीं मला है।78 यू यॉक प लक लाइ रे ी मे ं आयो जत एक अ य सावज नक आयोजन मे ं भी यही दृ कोण य कया गया, यानी मु बई हमले के लए भारतीय दोषी कहलाये जाने के हकदार है,ं यों क वे क मीर को गैर-कानू नी ढं ग से अपने क जे मे ं रख रहे हैं और सामा यत: मुसलमानों का दमन कर रहे है।ं मुख व ाओं मे ं एक, जनका यही दृ कोण था, आ कल ब ामी थे जो कोल बया व व ालय मे ं दशनशा के ा यापक है,ं जो एक वैसे भारतीय अमरीक हैं जनके भारतीय स यता के व क र दृ कोण है।ं जब ोताओं मे ं बैठे कुछ भारतीयों ने नारायण कटािरया के नेत ृ व मे ं इस चचा के उ इकतरफा दृ कोण को उजागर करना ार भ कया तब बैठक ख़ म करने क घोषणा कर दी गयी।

प थ- नरपे

च मे का इ लामी रं ग

सं य ु रा य अमरीका से सं चा लत द ण ए शया अ ययनों के हमारे सव ण ने एक अ य त दृढ़ इ लाम समथक पू वा ह को उजागर कया है। भारतीय मुसलमानों और भारत मे ं आतं कवाद से जुड़े सभी कार के वषयों के लए ह दुओ ं और भारत सरकार को दोषी ठहराया जाता है। अमरीका मे ं व भ इ लामी प -समथक समू ह वैसे व ानों का पोषण करते है,ं और उ हे ं भारत मे ं उन लोगों के साथ जोड़ने के लए मं च और त उपल ध करवाते हैं जो उनसे स ब है।ं 79 इ डयन मु लम काउं सल एक मुख लॉ ब ट का उदाहरण है जो अमरीक श ा-त को भा वत कर रहा है। इ डयन मु लम काउं सल (आई.एम.सी.) भारतीय मुसलमानों के लए सं य ु रा य थत प -समथक समू ह है। इसके एक थानीय नेता कलीम कवाजा खुल-े आम ता लबान से सहानुभू त रखते रहे है,ं 9/11 क आतं कवादी हमले क घटना के ी











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बाद भी।80 फर भी आई.एम.सी. भारत पर अमरीक नी तयों को भा वत करने मे ं सफल है।81 यह क मीर जैसे वषयों पर भारत वरोधी ख अपनाती है, और कवाजा पा क तानी प काओं मे ं क मीर क तुलना कोसोवो और ई ट तमोर से करते हुए लखते है।ं 82 आई.एम.सी. के उ तरीय स मेलनों मे ं इसके मु य व ाओं83 मे ं लाइजे मैटक न ( जनके बारे मे ं इसी अ याय मे ं पहले चचा क गयी है), और एक मह वपू ण उदारवादी डे मो े ट, कां स े सद य जॉन को यस भी शा मल रहे, ज होंने ‘धा मक वत ता का उ ं घन करने’ के लए भारत क न दा का एक ताव पािरत करने के उ े य से द णप थी िरप लकनों का साथ दया था।84 अमरीका मे ं आयो जत आई.एम.सी. के 2008 के वा षक स मेलन मे ं तहलका प का के सं थापक और मुख, त ण तेजपाल ने मु य भाषण दया, जसमे ं भारत मे ं अनेक अ पसं यक समू हों के दमन को रेखां कत कया गया, जनमे ं मु लम, द लत, आ दवासी और ईसाई भी शा मल है।ं 85 स मेलन मे ं अं गना चटज को ‘टीपू सु तान’ पुर कार दया गया। एक उ सुधारवादी ईसाई द णप थी समू ह ( जस पर तेरहवे ं अ याय मे ं चचा क गयी है), प ास ने उनके साझे श ु के व एकता द शत 86 करने के लए भाग लया। 2008 मे ं आई.एम.सी. ने स यतावादी ती ता सीतलवाड़ के लए एक अमरीक या यान दौरे क यव था क , जनक अ तरा ीय स का आधार ह दू दं गाइयों ारा एक गभवती मु लम म हला का पेट चीरकर उनके ू ण के आग मे ं झोंक देने के दावे पर उ पीड़न सा ह य उपल ध कराना है। जो भी हो, भारत के सव यायालय ारा उन सा दा यक दं गों क जाँच के लए ग ठत वशेष अनुसंधान दल (एस.आई.टी.) ने इस घटना के ववरण क स यता का ख डन कर दया था। अनेक दं गा पी ड़तों ने कहा क सीतलवाड़ ने हं सा को अ तरं जत करने के लए अं ज़ े ी मे ं लखे शपथप ों पर ( जसे उन लोगों नहीं समझा) उनसे ह ता र करवा लये थे।87 2008 के मु बई आतं क हमले के आलोक मे,ं आई.एम.सी. क स े व ने इस घटना को भारत मे ं ‘जातीय सफाये और अ पसं यकों को नशाना बनाने, पु लस ारा परेशान करने और नद ष नागिरकों को ब ल का बकरा बनाने तथा फज मुठभेड़ों मे ं मारे जाने’ से जोड़ा।88 प मी अ तरा ीय समू ह और उनके भारत थत स ब य और सं गठन गु चर सू चनाओं के आदान- दान के लए नय मत प से मलते है।ं उदाहरण के लए, ‘सामा जक और राजनी तक स दभ मे ं ह दू रा वादी सं गठन’ ((Hindu Nationalist Organizations in Social and Political Contexts)) वषय पर 2008 मे ं व व ालय अनुदान आयोग (जो भारत सरकार का एक सं थान है) के वशेष सहायता काय म के तहत भारतीय समाज व ान अनुसंधान पिरषद, नई द ी, के साथ मलकर एक अ ययन करवाया गया था। शोधकता व ानों और सं थानों मे ं से ैं े ें े ी ं ी ई ई े

कुछ के ( जनमे ं वदेशी सं थान भी शा मल है)ं बहुत प ईसाई चारक पू वा ह थे। यह द शत करता है क कस कार अनेक उदारवादी-वाम औप नवेशो र काल के व ानों को, जो अमरीक ह त प े के वरोधी होने का दावा करते है,ं भावी ढं ग से शा मल कर लया जाता रहा है। अनेक कारण है,ं जनमे ं शै क त ा का लालच भी शा मल है, जो समाज व ान मे ं यू रोके त, और भारत मे ं सं चा लत हो रहे बहुरा ीय धा मक सं थानों के सौ य दृ कोण के त पू वा ह को रेखां कत करते है।ं

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15 रा य अमरीका क सरकार क सीधी सं ल नता

व भ अमरीक सेनट े रों और कां स े सद यों ारा अपनी आ धकािरक है सयत से सरकार क परो भू मका, और गैर-सरकारी वचार मं चों तथा स यतावा दयों क परो प से सहायता करने क भू मका के अलावा सं य ु रा य अमरीका क सरकार अपनी वदेश नी त के एक अं ग के प मे ं वदेशी ईसाई धमा तरण मे ं य प से स य रही है। वतमान अ याय ‘अ तरा ीय धा मक वत ता पर अमरीक आयोग’ (US Comision on International Religious Fredom) जसे रा प त बल लं टन के कायकाल मे ं ग ठत कया गया था, यू .एस. एड (USAID) काय मों और साथ ही कस कार ओबामा शासन कुछ मामलों मे ं ईसाई द णप थयों के हाथों मे ं खेला है, इसक पड़ताल कर इसे द शत करता है।

अ तरा ीय धा मक वत ता अ ध नयम अ तरा ीय धा मक वत ता अ ध नयम (इरफा) (IRFA) सं य ु रा य अमरीका मे ं 1998 मे ं एक कानू न के प मे ं रा प त लं टन के कायकाल मे ं ईसाई द णप थयों क भारी लॉ बं ग के तहत पािरत कया गया था। लं टन ने व भ कानू नों के लए, जनको वे पािरत करवाना चाहते थे, ईसाई समथन के बदले इसका समथन कया। द णप थी और वामप थी राजनी तयों के बीच ऐसा लेन-देन कुछ वशेष मामलों मे ं उनके अवसरवादी सहयोग के कारणों मे ं से एक है।1 इस अ ध नयम ने तीन सं थानों क थापना क :  अमरीक वदेश म ालय के अ दर अ तरा ीय धा मक वत ता के लए एक सव तर का राजदू त  कां स े , अमरीक वदेश म ालय, और वाइट हाउस को सलाह देने के लए यू .एस. क मशन ऑफ इं टरनेशनल िर ल जयस डम (USCIRF)  रा प त क रा ीय सुर ा पिरषद मे ं अ तरा ीय धा मक वत ता पर एक वशेष सलाहकार यह अ ध नयम एक वधेयक से नकला जसे िरप लकन त न ध ैं क वु फ (Frank Wolf) ारा सं र णवादी ईसाई समू हों क ओर से तुत कया गया था। इसका उ े य था वैसे त के लए माग श त करना ता क वकासशील देशों क ईसाई जनसं या को सं य ु रा य अमरीका के द णप थी ईसाई सं गठनों से आब कया जा सके। जैसा क ऐलन डी. ह जके ने बाद मे ं लखा : े

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वधेयक क उस पहलकदमी के पीछे शत या थीं? पहली शत है ईसाइयत का वै ीकरण। ईसाई जनसं या क बनावट मे ं पिरवतन को ए शया, अ का और लातीनी अमरीका जैसे वकासशील व तक मे ं लागू कया गया जसने व भर मे ं एक भाव े न मत कया जो यहाँ अमरीका थत भाव े के साथ सं वाद करता है।2 यह अ ध नयम मू लत: ईसाई धमा तरण के रोकने वाले देशों के व अ नवायत: तब ध लगाने के लए बनाया गया था—उन पर यह आरोप लगाकर क वे एक ‘धा मक अ याचार के साँच’े से सं ल न है।ं इसे शी ही रा प त को यह अ धकार देने के लए सं शो धत कर दया गया क उ हे ं ऐसे तब धों को हटाने क अनुम त हो अगर वे अनुभव करते हैं क तब ध लगाना अमरीका के हतों के लए हा नकारक होगा। सं शोधन के बाद यह एक अ ध नयम जैसा बन गया है, और यह कानू न सं य ु रा य के रा प त के हाथों मे ं एक लचीला ह थयार है। आई.आर.एफ.ए. के तहत ‘धा मक वत ता’ काय मों को अमरीका के द णप थी ईसाई सं र णवा दयों ारा बल समथन ा है, जो इसी कार के मु ों के लए एक त के प मे ं सं य ु रा सं घ के उ आलोचक है,ं यों क सं य ु रा सं घ उ हे ं उस तरह का दबदबा नहीं दान करता जैसा क अमरीका क घरेलू राजनी त दान करती है। आई.आर.एफ.ए. क आलोचना एक ह त प े के उपकरण के प मे ं क जाती रही है और उसे मानवा धकार पर स ा काय म नहीं माना जाता, और इस लए भी क इसमे ं वयं सं य ु रा य अमरीका के अ दर धा मक वत ता का अ ययन करने के अ धकार े का अभाव है। एक शै क व ान ने इसक आलोचना इस कार क है : ‘हालाँ क आई.आर.एफ.ए. के अ धकार का व तार व के सभी अ य देशों तक है (194 देश), न तो वदेश वभाग और न ही क मशन वयं सं य ु रा य अमरीका क सीमा के अ दर धा मक वत ता क थ त का आकलन कर सकता है’।3 अ तरा ीय धा मक वत ता के लए पहले सव तर के राजदू त रॉबट ए. सीपल, ने भी इसके पाख ड क आलोचना क : ‘कम-से-कम इतना तो कहा जा सकता है क यह अ भमान, उ डता और पाख ड क गुं जाइशे ं पेश करता है। यह केवल दू सरों के बारे मे ं िरपोट करने के त झुकाव, तथा कसी भी कार क आ मालोचना से अलग रहने क सलाह देता है’। सं य ु रा सं घ के एक वशेष दू त ृ कया : ‘अमरीक कां स ने बना नाम लए एक श ा वद को उ त े सोचती है क हम धा मक वत ता के वषयों पर बस अ छा काम करते है,ं और शेष व ारा 4 हमे ं नहीं बताना चा हए क इसे सही तरह से कैसे कया जाये’। दू त ने मू ल नवासी अमरी कयों क दुदशा को रेखां कत कया ज हे ं ऐ तहा सक प से जनसं हार और जबरन धा मक धमा तरण से गुजरना पड़ा। ई













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आई.आर.एफ.ए. के काया वयन के साथ एक और सम या है जसे आलोचकों ने इं गत कया है—वह ईसाई चारक सं थानों के नय णाधीन है। अ तरा ीय धा मक वत ता पर अमरीका के सव राजदू त रॉबट ए. सीपल यारह वष तक व ड वजन के अ य रहे थे और ई टन कॉलेज तथा ई टन बै ट ट थयोलॉ जकल से मनरी के अ य के प मे ं चार वष तक सेवा क थी।5 लोिरडा के एक समाचार-प को दये गये सा ा कार मे ं सीपल ने गव से दावा कया था क उनके ईसाई व ास ने वयतनाम यु मे ं एक नौसेना अ धकारी के प मे ं तीन सौ लड़ाई मशनों के दौरान उ हे ं बचाकर रखा।6 अ तरा ीय धा मक वत ता के लए दू सरे सव राजदू त थे जॉन वी. हैनफोड तृतीय, जो सेनट े र िरचड लुगर के कायालय मे ं एक कमचारी थे, जहाँ उ होंने उस दल का नेत ृ व कया जसने इस अ ध नयम को लखा।7 उनके पास गॉडन-कॉनवेल थयोलॉ जकल से मनरी से मा टर ऑफ ड व नटी क ड ी है, जनका मशन इसके अ य ारा इस कार पिरभा षत है : ‘हमारे ई र ने गॉडन-कॉनवेल थयोलॉ जकल से मनरी को एक मशन दया है : उन पु षों और यों को श त करने का जनमे ं ँ ने क व तापू ण स मता है तब ता, दृ , और ईसा मसीह के लए व तक पहुच ... जहाँ वे महान वचनकता और श क, ईसाई चारक और मशनरी बन सकें...’।8 से मनरी का धम स ब धी व य एक क रप थी क म क ईसाइयत9 को उजागर करता है और उसके मुख समथकों क सू ची मे ं धा मक श क डॉ. बली ाहम के ं नाम का भी उ ख े करता है, जनके पु रेवरेड ैं लन ाहम अपने मु लम वरोधी और ह दू वरोधी दृ कोणों के लए कु यात है।ं 10 हैनफोड ने े बटीिरयन चच क पा टोरल म न ी ( ामीण े ों के चच का ब धन) मे ं भी योगदान दया है, और उनक प नी ढ़वादी ईसाई चारक सं गठन ‘कै पस ू सेड फॉर ाइ ट’ क 11 समथक है।ं

अ तरा ीय धा मक वत ता पर अमरीक आयोग सं य ु रा य अमरीका क सरकार ारा रणनी तगत नी त नमाण के उ े य से अ तरा ीय धा मक वत ता पर अमरीक आयोग (यू .एस. क मशन ऑन इं टरनेशनल िर ल जयस डम, यू .एस.सी.आई.आर.एफ.) भारत के आ तिरक धा मक मामलों पर आँकड़ों को छानता और सं ले षत करता है। इसके पुराने क म नरों मे ं जॉन आर. बो टन और इ लयट अ ा स शा मल है,ं जो दोनों कई िरप लकन रा प तयों के तहत वदेश नी त त ान के मुख सद य रहे है।ं बो टन ने बहुधा सं य ु रा सं घ क आलोचना क और श नय ण सं धयों के व काम कया, हालाँ क उ होंने सं य ु रा सं घ मे ं 2005-2006 मे ं सं य ु रा य अमरीका के त न ध के प मे ं योगदान दया। बो टन ने एक बार ट पणी क थी, ‘सं य ु रा सं घ जैसी कोई चीज नहीं है। केवल अ तरा ीय समुदाय है, जसका े















नेत ृ व केवल बची हुई महाश ारा ही कया जा सकता है, जो सं य ु रा य अमरीका है’।12 इ लयट अ ा स रा प त रीगन के लए वदेश अवरस चव थे, और ईरान-कॉ ा मामले मे ं उनक भू मका के लए एक वशेष अ भयोजक ने उनके व कई महाअपराध के अ भयोग तैयार कये थे, ले कन उ हे ं अ तत: पहले रा प त बुश ारा मादान दे दया गया था।13 बाद मे ं दू सरे रा प त बुश ने उ हे ं एक यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क म नर के प मे ं नयु कया और उ होंने एक वष तक इसके अ य के प मे ं काम कया। ं , ज हे ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. के एक अ य मह वपू ण क म नर हैं िरचड लैड टाइम प का ारा अमरीका मे ं सवा धक भावशाली प ीस ईसाई चारकों मे ं से ं न के ए थ स ए ड िर ल जयस एक ना मत कया है। वह सदन बै ट ट क वेश लबट कमीशन के अ य है।ं एक अ य क म नर हैं नीना शया, जो ‘ व भर मे ं ईसाई वरोधी उ पीड़न के बारे मे’ं छपी पु तक ‘शेर क माँद मे’ं (In the Lion’s Den) क ले खका है।ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क वेबसाइट मे ं उनका ववरण इस कार है : ... वदेशों मे ं धा मक वत ता को अमरीक वदेश नी त क एक ाथ मकता बनवाने के अ भयान मे ं अ णी आ दोलनकािरयों मे ं से एक है।ं यह वह स मेलन था जसे शया ने जनवरी 1996 मे ं आयो जत कया था जसने व यापी ईसाई वरोधी उ पीड़न के मु े पर वचार के लए 100 सबसे बड़े ईसाई नेताओं को पहली बार एक साथ एक मं च पर एक त कया था। यही चच एकजुटता क शु आत के प मे ं च त हुआ जो एक रा यापी अ भयान मे ं बदल गया है। यू ज वीक प का ने उ हे ं य े दया क उ होंने ‘ईसाई उ पीड़न को वा शं गटन का वल त वषय’ बना दया था।14 शया का स ब ध डम हाउस के साथ भी है, जो एक उ ह दू वरोधी सं गठन है, और उनके काय ईसाई धमा तरण क वत ता को वशेष प से ो सा हत करते है;ं इस लए, वह धा मक बहुलतावाद के व है। यू .एस.सी.आई.आर.एफ. सा यों क सुनवाई करता है और वा षक रपट भी जारी करता है जो उसके ईसाई प धर पू वा हों को द शत करती है तथा कस कार यह भारत के व अमरीका को राजनी तक बढ़त दान करता है। इसक रपटे ं भारत क घटनाओं पर ईसाई चारक बुनावट से भरी होती है।ं

ार भक भारतीय वरोध क उपे ा ं टन थत ‘इन फ नटी फाउ डे शन’ (Infinity Foundation) के डॉ. डे वड े (Dr. David Gray ) ने सन 2000 मे ं इसके पू वा हों पर अपनी च ता य करते हुए ं स फॉर िर ल जयस डम’ पर योगदान क मशन को लखा, और ‘डे वल पं ग टैड े े

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देने का ताव दया। उ हे ं इस बात क जाँच करने का सुझाव दया क या ईसाई चारक सा ह य जो अ य समुदाय को ‘अ भश ’, ‘पापी’, ‘बहुदव े वादी मू तपू जक’ या ‘परधमावल बी अस य’ कहकर नीचा दखाता है, को ‘घृणायु भाषण’ माना जाना चा हए। उ होंने इस बात पर यान दया क अमरीका के मु बाज़ारवादी वा ण य मे ं अपने त पध को अनु चत या झू ठे तरीके से कूड़ा बताना गैर-कानू नी है, और इस लए कसी दू सरे के धम अथवा प थ के झू ठे च ण पर भी यही मानद ड लागू कया जाना चा हए। एक भाग मे ं जसका शीषक ‘क यू मर ोटे शन’ था, उ होंने उन ईसाई चारकों पर नगरानी रखने का सुझाव दया जो मू त और अमू त पुर कारों का उपयोग कर धमा तरण करते है।ं 15 उनके प क यू .एस.सी.आई.आर.एफ. ारा सीधी उपे ा कर दी गयी और यहाँ तक क उसे अपने सावज नक अ भलेखागार मे ं भी शा मल नहीं कया। एक उदारवादी और धृ ह दु व वरोधी साधु, वामी अ नवेश ने सा य देने के लए सं य ु रा य सरकार ारा दये गये नम ण को अ वीकार कर दया था, यह कहते हुए क वे एक ‘वै क पु लसकम ’ के प मे ं सं य ु रा य के अ धकार को ं ।े उ सुनवाई को अमा य बताते हुए उनक स वीकार नहीं करेग े व आगे कहती है : ‘अमरीका क ओर से अ य देशों मे ं वत ता क नगरानी के यास ... अ य रा ों क स भुता के उ ं घन के बराबर है।ं जहाँ यह समझ मे ं आता है क अमरीका इस तरह के अ यास करना चाहेगा, दू सरे रा ों के नागिरक अपने रा ीय गव और देशभ से समझौता कये बना इस या क सहायता नहीं कर सकते 16 और न ही इसे ो सा हत कर सकते है’ं । ार भ मे ं इ डयन कैथो लक चच ने सावज नक प से वयं को क मशन के ं ऑफ सम गवाही देने से वयं को अलग कर लया, कैथो लक बश स का फेरेस इ डया (सी.बी.सी.आई.) के इस वणन के साथ क भारत मे ं धा मक वत ता पर वॉ शं गटन मे ं ता वत सुनवाई ‘अनु चत’ है। फादर डी’सू जा ने कहा क ह दू अ तवा दयों के हाथों ईसाई वरोधी हं सा ने ‘घोर मानवा धकार उ ं घन क थ त को पार नहीं कया है क उसके कारण रा के आ तिरक मामलों मे ं ह त प े क 17 आव यकता आन पड़ी है’। ले कन रणनी तगत ढं ग से दोनों ओर भू मका अदा करने के लए, इ डयन चच ने ऑल इ डया कैथो लक यू नयन के रा ीय उपा य जॉन दयाल को अनुम त दे दी क वह सं य ु रा य मे ं होने वाली सुनवाई मे ं भाग ले ं और भारत सरकार के व ईसाई वरोधी पू वा ह के आरोपों का अपना सं कलन तुत करे।ं जहाँ फादर डी’सू जा ने भारतीय भुस ा का बचाव कया, वहीं उ होंने दयाल क गवाही को उनक अपनी ‘ य गत है सयत के आधार पर न क चच के एक त न ध के प मे’ं समथन दया।18 ऐसा ‘अ छे सपाही/बुरे सपाही’ का खेल खेलना एक सामा य रणनी त है जसे भारतीय ईसाइयों ने प म से सीखा है। जैसा क ी

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हम इसी भाग मे ं बाद मे ं देखग े ं ,े यह अ छे सपाही का वां ग अ पका लक था, और वे बाद मे ं बुरे सपाही क भू मका के लए सहमत हो गये।

2000 सन 2000 क रपट भारत के आ तिरक धा मक मामलों क नगरानी के लए अमरीका के भारत थत दू तावास और भारत थत ईसाई चारकों के मल-जुल कर काम करने के स ब धों का उ ख े करती है। यह कहती है क दू तावास के अ धकारी नय मत प से धा मक आ धकािरक य यों से मलते हैं : अमरीक मशन के अ धकारी उस अव ध मे ं जस अव ध के लए उन रा यों मे ं धा मक अ पसं यकों क थ त के आकलन के लए यह रपट तैयार क गयी, गुजरात और उ र देश के दौरे पर गये। दू तावास और वा ण य दू तावास के अ धकािरयों ने सभी अ पसं यक समुदायों के मह वपू ण नेताओं से बातचीत क । अमरीक मशन अमरीक नवा सयों के साथ भी स पक रखता है, जनमे ं एन.जी.ओ. और मशनरी समुदायों के लोग भी शा मल है।ं धा मक वत ता के मामले मे ं देश मे ं एन.जी.ओ. समुदाय अ य धक स य है, और मशन के अ धकारी थानीय एन.जी.ओ. से मलते हैं ता क धा मक वत ता से जुड़े घटना मों के बारे मे ं ताजा जानकारी ा करते रहे।ं 19 2000 क रपट ईसाइयों के ह दू धम मे ं पुनधमा तरण से परेशान रही, यह शकायत करते हुए क ‘प म बं गाल मे ं मा सवादी शासक कुछ जलों मे ं ह दुओ ं ारा धा मक अ पसं यकों के ह दू धम मे ं पुन वेश को नहीं रोक सके’। ले कन ईसाइयत मे ं धमा तरण को एक बड़ी ‘मु ’ के एक कदम प मे ं बल समथन कया गया है, जब क ह दू धम क ओर कसी भी कदम को ‘अ धकार’ मे ं वेश माना गया। रपट ईसाइयों ारा उपयोग कये जाने वाले व ीय उ े यों, घृणा से भरे उनके भाषणों और चार साम ी, तथा भारत जैसे एक ऐ तहा सक बहुलतावादी समाज मे ं जनता क सं वद े नाओं पर उनके काय के भाव का उ ख े करने मे ं वफल रही। जहाँ ईसाइयों के व क थत उ पीड़नों को वशेष व तार के साथ तुत कया गया, यहाँ तक क बना कोई वत पु कये, वहीं चच से जुड़े एन.एल.एफ.टी. जैसे रा वरोधी उ वा दयों ारा कये गये उ पीड़नों का अ य त सं उ ख े ही कया गया : पुरा मे ं एक उ वादी आ दवासी समू ह ‘ पुरा रा ीय मु मोचा’ (National Liberation Front of Tripura, , एन.एल.एफ.टी.) के ईसाई सद यों ारा, जो बहुधा ईसाई चारक होते है,ं गैर-ईसाइयों के उ पीड़न क भी कई घटनाएँ हु । उदाहरण के लए, एन.एल.एफ.टी. आ दवासी व ो हयों ने अपने नय ण वाले े ों मे ं ह दुओ ं और मुसलमानों के योहारों पर तब ध लगा दया है, औरतों ो



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को चेतावनी दी है क वे पार पिरक ह दू आ दवासी पिरधान न पहने,ं और पू जा क थानीय मू ल प तयों को तब धत कर दया है।20 वा तव मे ं उस वष एन.एल.एफ.टी. ने अनेक हं सा मक घटनाओं को अं जाम दया था ज हे ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क रपट ने अनदेखा कर दया। क मशन ारा उपे त एक वत रपट के अनुसार : 2 फरवरी को : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने उ र पुरा जले मे ं 8 लोगों क ह या कर दी; 6 सत बर : एन.एल.एफ.टी. ने मानू ढलाई जले से 16 लोगों का अपहरण कर लया; 6 अग त : एन.एल.एफ.टी. ने चार वरीय ह दू धम पदेशकों का अपहरण कर लया; 12 अग त : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने मानू ढलाई जले मे ं गोली मारकर छह लोगों क ह या कर दी; 25 दस बर : प म पुरा जले के व ामगं ज मे ं तीन लोगों क ह या कर दी गयी और 100 घर जला दये गये; आ द।21

2001 सन 2001 के लए यू .एस.सी.आई.आर.एफ. रपट ने फर एक बार अमरीक सरकार से अनुशंसा क क वह धा मक वत ता समेत, ‘मानवा धकार से स ब सरकारी एजे ं सयों के आ धकािरक दौरे के लए भारत पर दबाव डाले’। इसने उ ख े कया : भारत ने अ तरा ीय धा मक वत ता के लए अमरीका के वशेष राजदू त के एक आ धकािरक दौरे को अनुम त देने से मना कर दया। जैसा क ऊपर चचा क गयी, हालाँ क क मशन ने सबसे पहले 2000 के ार भ मे ं भारत के दौरे क अनुम त चाही थी, यह रपट लखे जाने तक भारत सरकार से इसे ऐसा करने क अनुम त नहीं मल पायी थी। भारत बार बार दावा करता रहा है क वह अ तरा ीय समुदाय का एक मह वपू ण सद य है, और अगर वह चाहता है क इसे ऐसा वीकार कर लया जाये, तो इसे लोकता क तौर-तरीके के अ तरा ीय मानद डों के अनु प अव य ही काम करना होगा, जसमे ं आ तिरक और बाहरी समी ा शा मल है। अमरीक सरकार को इं टरनेशनल िर ल जयस डम के वशेष राजदू त और क मशन ारा आ धकािरक दौरे के लए दबाव डालना चा हए।22 ईसाई अलगाववादी समू ह एन.एल.एफ.टी. ारा हं सा के स ब ध मे ं रपट ने एक बार फर ईसाइयत के नाम पर क गयी आतं क कायवा हयों क भयावहता को कम करके दखाने के लए अ प और सामा यीकृत व य दये। ईसाई हं सा को वीकार करते हुए, इसने ह दुओ ं का उ ख े ‘बहुसं यक धा मक समुदाय’ के प मे ं कया हालाँ क पू व र भारतीय रा यों मे ं जहाँ अ धकां श ऐसी हं साएँ हु , ईसाई ही बहुसं यक है,ं न केवल सं या मे,ं ब क सरकार और अ य नागिरक सं थानों पर नय ण के मामले मे ं भी। रपट ने ईसाई हं सा का उ ख े कुछ इस कार कया जैसे ों े ो ो े ें े

दू सरों ने ‘आरोप लगाया हो’, न क एक था पत त य के प मे,ं इस बात के बावजू द क भारत के अनेक आ धकािरक नणय और रपट उस हं सा को मा णत करते है।ं इसने इस मामले पर अपने अ य धक सं पैरा ाफ का समापन इस हं सा को ह दुओ ं क ही गलती के प मे ं उ चत ठहराते हुए कया : ‘समू ह का यह तक है क ह दू धम के भु व के पिरणाम व प पुरा मे ं ईसाई हा शये पर धकेल दये गये है’ं ।23 दू सरे श दों मे,ं ईसाई हं सा उनके क थत प से ‘हा शये पर चले जाने’ के कारण हुई, और इस लए यह यायो चत है, हालाँ क उस े से ह दुओ ं का सु नयो जत ढं ग से जातीय सफाया कया जाता रहा है। ईसाइयों के व क थत उ पीड़न क रपट जस तरह इसमे ं तैयार क जाती है उसमे ं कभी ह दू प को नहीं रखा जाता, जब क उसके वपरीत यहाँ एन.एल.एफ.टी. के तक को मुखता दी गयी है। एन.एल.एफ.टी. ारा ह दुओ ं क ह या क घटना क चचा कभी नहीं क जाती। यू .एस.सी.आई.आर.एफ. साऊथ ए शयन टेरिर म पोटल (www.satp.org), ारा जारी अन गनत रपटों क सीधे उपे ा कर देता है। यह पोटल आतं कवाद क नगरानी करने वाला समू ह है जसे पेशव े र पु लस और गु चर अ धकारी चलाते है।ं इस पोटल ने उस वष हं सा क इ स क घटनाओं को सू चीब कया है जसमे ं एन.एल.एफ.टी. के ईसाइयों क सं ल नता रही है। इनमे ं अनेक जघ य उ पीड़न क घटनाएँ शा मल है,ं जैसा क न न सं कलन मे ं दखाया गया है : अ ल ै 15 : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने प म पुरा जले मे ं 12 लोगों क ह या कर दी और सात अ य को घायल कर दया; अ ल ै 20 : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने उ र पुरा जले के ल मीपुर मे ं आठ लोगों क गोली मारकर ह या कर दी; मई 18 : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने द ण पुरा जले मे ं चार म हलाओं और तीन पु षों क ह या कर दी, जब क पाँच अ य को घायल कर दया; अ ू बर 27 : प म पुरा जले के देवे सरकारपाड़ा मे ं स द ध एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ारा पाँच नागिरक मारे गये जनमे ं एक ब ा भी शा मल था; नव बर 19 : एन.एल.एफ.टी. के आतं क हमले और उसके बाद उ र पुरा जले के बोराह दी मे ं भड़क हं सा मे ं 14 लोग मारे गये; दस बर 4 : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने फर जरा नया खोला मे ं एक आ म पर हमला कया; दस बर 5 : स द ध एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने द ण पुरा जले के आलमारा गाँव के एक बौ म दर मे ं तोड़-फोड़ क ; दस बर 25 : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने द ण पुरा जले के दलाक गाँव मे ं एक जमा तया नेता क ह या कर दी, यों क उसने ईसाइयत अपनाने से मना कर दया था; दस बर 26 : एन.एल.एफ.टी. आतं कवा दयों ने द ण पुरा जले मे ं ँ





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आलमारा गाँव के एक बौ मू त लेकर भाग गये।24

म दर मे ं तोड़-फोड़ क , और धम थों तथा एक

2002 सन 2002 से यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क रपटे ं नागालै ड और पुरा मे ं स य ईसाई अलगाववादी आतं कवादी गुटों, मश : एन.एस.सी.एन. और एन.एल.एफ.टी., ारा क जाने वाली कसी भी हं सा का उ ख े नहीं करतीं। िरआं ग और जमा तया जैसे ह दू आ दवासी समुदायों क , जो ऐसी ईसाई आतं कवादी हं सा के शकार है,ं सीधे उपे ा कर दी जाती है मानो वे अ त व मे ं ही नहीं थे। सन 2002 मे ं गवाही देने वाले सभी भारतीयों ने अपने देश के व तैयार कये जा रहे मामले का समथन कया, जनमे ं केवल एक ही अपवाद थे ऑ टन थत ु ी, जो क मशन को यह चेतावनी यू नव सटी ऑफ टे सास के ोफेसर सु मत गां गल देने के लए शेष सभी क पाँत से अलग हो गये क ‘भारत एक अ भमानी, लोकता क देश है, और अपनी आ तिरक सम याओं मे ं वह अमरीक ह त प े को पस द नहीं करेगा’।

2003 सन 2003 क रपट भारत के वदेशी अ ध नयम के व खड़ी होती है, यों क वह अमरीक ईसाई चारकों के मु वाह को नय त करता है। एक भारतीय प का तहलका क एक खोजी रपट ने कहा : ‘2003 क अमरीक रपट मतलब क बात करने वाला अ भलेख है जो धमा तरण को समथन देने वाली अमरीक नी त के बारे मे ं सू चत करता है। यह खुल-े आम वीकार करता है क ‘‘अमरीक अ धकािरयों ने धमा तरण वरोधी कानू नों को लागू करने और उ हे ं वापस लेने पर रा यों से बातचीत चालू रखी है’’।’ अमरीका का यह ख जॉन दयाल क क मशन के सम गवाही को त व नत करता है क ‘ कसी वदेशी ईसाई चच कायकता, धमशा ी या ईसाई चारक के लए यह लगभग अस भव है क वह भारत आ पाये, अगर वह एक पयटक के प मे ं भारत नहीं आता है’।25 अचानक, कैथो लक चच ने, जो तब तक ऐसी रपट लखने से अलग ही रहा था (जब क वह अपने आ दोलनकािरयों को य गत है सयत से उसमे ं भाग लेने क अनुम त देता रहा था), अब अपना ख एकदम से बदल लया। कैथो लक बश स ं ऑफ इ डया ने य कॉ फरेस प से अमरीका ारा भारत को धा मक वत ता के मामले मे ं ‘ वशेष च ता के वषय वाले देशों’ मे ं से एक घो षत करने से मना करने पर अपनी नाराजगी जतायी। इसने अमरीका का खुल-े आम आ ान कया क वह ‘अ पसं यक समुदायों के व हं सा के एक दौर’ के लए भारत को द डत करे। ी





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चच ‘अमरीक शासन के नणय से सहमत नहीं हुआ’ जसने क थत ईसाई वरोधी ग त व धयों को सू चीब कया था, ले कन भारत के व तब धों क अनुशंसा नहीं क थी। चच ने अमरीक वदेश म ी को यह माँग करते हुए लखा क भारत को ‘धा मक वत ता के बल उ ं घनकताओं’ क ण े ी मे ं पाँच अ य देशों—बमा, चीन, ईरान, उ र कोिरया, और सू डान—के साथ रखा जाये। ऐसे देश अमरीका के ं ।े 26 धा मक वत ता अ ध नयम के तहत द डा मक कारवाई आक षत करेग भारतीय कैथो लक चच के अ छे सपा हयों ने क रप थयों के आगे ह थयार डाल दये थे। क मशन ने अमरीका के वदेश म ालय के उप-म ी िरचड आ मटेज से अपील क क वह इस मामले को द ण ए शयाई े मे ं इ लामी आतं कवाद पर समझौते के समय भारत के साथ उठाये।ं अपनी रपट मे ं क मशन ने कहा क उ होंने भारत को वशेष च ताओं के वषय वाले देशों क सू ची मे ं रखने के मामले मे ं चचा के लए आ मटेज से मुलाकात क थी। ता लबान और पा क तान के व अमरीका के सं घष क नाजुक थ त मे ं आ मटेज ने उनसे कहा क यू .एस.सी.आई.आर.एफ. को इस समय भारत के व नहीं जाना चा हए। इस पर अ स ता य करते हुए ऑल इ डया यन काउं सल के अ य जॉन दयाल ने कहा, ‘हम अ य धक नराश 27 हुए’। बशप सगुनम ने, जो त मलनाडु अ पसं यक आयोग के अ य थे, फेडरेशन ऑन इ डयन अमरीकन यन ऑगनाइजेश स ऑफ नॉथ अमरीका ारा एक स े व के प मे ं एक व य जारी कया : अमरीक सरकार, जो व भर मे ं याय और वत ता के लए खड़ी होती है, भारत मे ं जारी मानवा धकार उ ं घनों से नपटने के मामले मे ं आ मतु रही है। बशप एजरा सगुनम ने इस बात को कल और आज वॉ शं गटन डीसी मे ं वदेश म ालय के अ धकािरयों के साथ अपनी बैठकों मे ं बल ढं ग से रखा। सोशल ं ऑफ इ डया क ओर से उ होंने एक व ज टस मू वमेट पेश क जसमे ं धा मक अ पसं यकों, द लतों, और आ दवासी जनों के व हमलों मे ं फर से आयी तेजी को रेखां कत कया गया था ... बशप सगुनम और पी.डी. जॉन यू एस क मशन ऑन इं टरनेशनल िर ल जयस डम के अ धकािरयों से भी मले और कै पटल हल मे ं ... बशप सगुनम ने इस बात पर अपनी नराशा भी य क क अमरीक शासन इस तरह के लगातार जारी ग भीर मानवा धकार उ ं घन पर अपने भारतीय समक ों से बात करने से झझक रहा है।28

2004 सन 2004 क सुनवाई के चलते हुए, यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क ओर से अमरीक कां स े के एक चार-सद यीय त न धम डल ने जाँच पड़ताल के लए भारत का दौरा कया। इसके नेता, ईसाई ढ़वादी जोजेफ प स (Joseph Pitts), ने कहा क ो ी

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त न धम डल ‘धमा तरण वरोधी कानू नों, द लतों के त यवहार और अ पसं यक वरोधी हं सा को कं ी िरपोट ( कसी देश वशेष पर बनायी गयी रपट) मे ं शा मल करने’ के बारे मे ं कां स े को अपनी रपट देगा। प स ने धमा तरण वरोधी कानू नों क यह कहते हुए आलोचना क क यह ‘महा मा गाँधी क भू म मे ं मानवा धकार का पलटा जाना’ है।29 कां स े सद य टीव चैबट ने गुजरात क थ त क तुलना रवा डा क थ त से क । ए.आई.सी.सी. महास चव जॉन दयाल ने कहा क भारतीय अ पसं यकों के उनके त न धम डल ने अमरीक त न धम डल के सम ठोस माँगे ं रखी थीं : ‘हमारी माँगों मे ं से एक यह है क भारत के साथ मलकर था पत क जाने वाली वदेशी क प नयों मे ं अ पसं यकों के लए आर ण होना ही चा हए’।30 इसने व ईसाई लॉबी को यह कहने के लए एकजुट कया क यापार और नवेश सौदों मे ं भारतीय ईसाइयों के लए ाथ मकताएँ तय क जाये,ं जो गैरईसाइयों क क मत पर ही हो सकता था। प है क भारतीय ईसाई नेता अमरीका के द णप थी ईसाइयों के साथ मलकर काम करते है।ं भारतीयों को अमरीक त को उ पीड़न सा ह य परोसने के लए ो सा हत कया जाता है, ता क अमरीक कारवाई को यायो चत ठहराने के लए इसका उपयोग कर सकें। इसके बदले मे ं इन भारतीयों को उनके अमरीक ायोजकों ारा आगे बढ़ाया जाता है और द मत लोगों के व तरीय आ दोलनकािरयों और नेताओं के प ने ं उनक परेड करायी जाती है। चे ई मे ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क एक सुनवाई के समय जब कुछ भारतीय समू ह भारत के आ तिरक मामलों मे ं ह त प े करने के लए इसक आलोचना करने लगे, तब एक अमरीक अ धकारी सु ी जोनेला मोरा स (Ms Joanela Morales )ने उ र दया : ‘हम ह त प े नहीं कर रहे। आपके अपने ही लोगों ने हमे ं लखा है और हमसे बात क है, यह अनुरोध करते हुए क इस देश मे ं धा मक वत ता क थ त पर हम कुछ करे’ं ।31 यह भारत मे ं ह त प े करने के तानी औप नवेशवादी तक क याद दलाता है जो इस बहाने से कया गया था क कुछ भारतीयों ने उ हे ं आम त कया था। मोरा स ने भारत के अपने धा मक वत ता अ ध नयम क आलोचना क , जसे उ होंने एक ‘धमा तरण वरोधी कानू न’ बताया। चे ई थत एक मं च, व जल, ने अमरीक अ धकािरयों का यान दलाया क येक कानू न के दु पयोग क स भावना रहती है, ले कन वह कसी अ य रा के आ तिरक मामलों मे ं ह त प े करने के लए बहाना नहीं हो सकता। भारतीयों ने एक समान पिरदृ य क पिरक पना पेश क , जसमे ं भारतीय सं सद अमरीका मे ं न लवाद पर नगरानी रखने के लए एक आयोग और कायालय खोले और भारतीय दू तावासों तथा राजन यक मशनों को मतभेद रखने वाले समू हों एवं सं य ु रा य तथा अ य अमरीका वरो धयों को ो सा हत कर सू चनाएँ एक त करने के लए कहे। औ

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एक और उदाहरण मे,ं अ णाचल देश के बौ ों को ईसाई नागा आतं कवा दयों ारा धमक दी गयी थी, जैसा क असम यू न ने समाचार का शत कया था : जुड़वे ं आतं कवादी सं गठनों एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) और एन.एस. सी.एन. (के.) ने अ णाचल देश के तरप-चां गलां ग जले के िरमा पुटाक, थखाक पुटाक, मोटों सा और लोंगचोंग गावों के बौ ों और अ य मू ल थानीय धम के अनुया ययों क भू म के वलय क माँग क है, और ईसाइयत मे ं उनको धमा तिरत करने के लए अपना फैसला जारी कया है। इन आतं कवादी सं गठनों ं ईसाइयत अपनाएँ या मृ यु द ड का ने ामीणों के लए दो वक प छोड़े है— सामना करे।ं अपने सम मृ यु को उप थत देखकर, अ धकां श वय क सद य दोनों प ों से उ पीड़न से बचने के लए गाँवों से भाग गये है,ं जस कारण कृ ष ग त व धयाँ बा धत हो गयी है।ं 32 ले कन उस वष के लए यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क रपट केवल गुजरात दं गों क बात करती है जो दो वष पहले हुए थे, और यह ईसाई आतं कवा दयों ारा ह दुओ ं और बौ ों को धमकाये जाने, और ार- दमासा टकराव के ईसाई चारक पहलू के बारे मे ं ब कुल चुप है।33

2005 सन 2005 मे,ं द लत डम नेटवक ने अमरीका के व ध नमाताओं से यह अनुरोध करते हुए उनके सम गवाही दी, क वे ‘वण- यव था को समा करने और नचली जा तयों के भारतीयों के व उ पीड़न को समा करने’ के लए ह त प े करे।ं एक मुख भारतीय त भकार ने ट पणी क : अगर ह दू अ तवादी अ य धम के व घृणा के चार मे ं सं ल न रहने के लए कड़ी आलोचना के हकदार हैं (हाँ, वे है)ं , तो या उनके लए कोई अलग मानद ड हो सकता है जो ह दू धम को ‘आ या मक अ धकार’ के समतु य बताते हैं ... ? गैर- ह दू समू हों ारा खुल-े आम ह दू वरोधी— केवल ह दु व ं े वरोधी नहीं— चार, जस पर द लतों और आ दवा सयों के धमा तरण के एजेड का एक पतला-सा पदा ढँका है, या सा दा यक सौहा को त नहीं ँ ाता? ( पछले स ाह अले जैं या, म मे ं धमा तरण के मु े को लेकर हुई पहुच हं सक मु लम-ईसाई झड़प को याद करे।ं ) कौन-सा समुदाय है जो आ तिरक क मयों से मु है? और कसी के धम अथवा प थ मे ं सुधार करना कसका फ़ज़ है—उसके अपने अनुया ययों क या दू सरों क ? या धा मक वत ता मे ं अ य धम क न दा करना या उ हे ं हीन बताना शा मल है, क थत प से आर ण के नाम पर? आइये, इस पर ईमानदारी से च तन करे।ं 34 ले कन उसी वष दमासा नामक एक ह दू जनजा त को धा मक कलह के कारण अ य धक पी ड़त होना पड़ा था। मानवा धकार पर नगरानी रखने वाले अ य मुख ों ें ें ी ी ीं े ी ई

समू हों ारा 2005 मे ं इसक रपटे ं दी गयी थीं, ले कन यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क पू वा ह- त छलनी ारा इसे नजर दाज कर दया गया था। उदाहरण के लए, सं य ु रा य थत ‘शरणा थयों और आ वा सयों क स म त’ (Committee for Refugees and Immigrants) ने उ ख े कया क दमासा आ दवासी आ तिरक प से व था पत शरणाथ बन रहे थे। दुभा यवश, इस व थापन के पीछे के धा मक पहलू को पेश करने मे ं वह वफल रही। इसने महज यह वीकार कया क ‘लगभग दो हज़ार दमासा 2003 मे ं पू व र े मे ं भू म और शासन के वषयों पर दमासा और ार समुदायों के बीच हुए सा दा यक दं गों ारा व था पत कर दये गये थे; ये लोग तब भी द ण असम के साथ-साथ म णपुर और मजोरम के श वरों मे ं रह रहे थे। लगभग तीन हज़ार और स भवत: अपने घरों को वापस चले गये थे’।35 एक सामिरक व लेषक और पू व र मे ं भारतीय थल सेना मे ं कमा डर, मेजर अ नल रमण ने इस सं घष मे ं प मी ईसाइयत क भू मका को समझाया : ार क र ईसाई हैं जब क दमासा मु य प से ह दू । ार चच सं थान और सामा जक नेटवक, जनमे ं वदेशों मे ं थत सं थान और नेटवक भी शा मल है,ं राजनी तक ग त व धयों को नद शत करने मे ं अ य धक सं ल न रहे है।ं दमासा समुदाय के पास ऐसे बाहरी समथन का अभाव है और वे ार धा मक सं गठनों क ग त व धयों को अ य त स देह से देखते हैं और उनके आलोचक है।ं मशनरी समू हों ारा मेघालय से नागालै ड तक एक ‘ईसाई प ी’ हा सल करने के लए अ नय त और यापक धमा तरण क ग त व धयों ने उ हे ं दमासा समुदाय के साथ, जो न ावान ह दू है,ं सीधे सं घष मे ं ला खड़ा कया है।36 सं य ु रा य थत समू हों ारा तैयार क गयी रपटों मे ं से कसी ने इस धा मक पहलू का उ ख े नहीं कया, और इसके बदले उ होंने इसे ब कुल एक प थ- नरपे मु े के प मे ं िरपोट करने का रा ता अपनाया। इसी अव ध के लए यू .एस.सी.आई.आर.एफ. रपट ने इस प को पू री तरह उपे त कर दया।

2006 2006 मे ं भारत पर चार पृ ों क रपट ने कां स े के नेत ृ व मे ं सं . .ग. सरकार के गठन पर ट पणी क , और भारत को वशेष च ता के वषय वाले देशों (सी.पी.सी.) क सू ची से हटा दया।37 ईसाई चारक समाचार मा यमों ने इस पर समाचार दया क भारतीय ईसाइयों ारा नराशा के साथ इसका वागत कया गया।38 रपट ने भारतीय रा य राज थान का उ ख े एक वैसे थान के प मे ं कया जहाँ ‘ईसाई य यों और सं थानों पर वशेष प से ग भीर हमले होते है’ं । जस घटना क रपट दी गयी उसे पू णत: ईसाई मशनरी दृ कोण से बयान कया गया था : अनेक शै णक और धमादा सं गठन सं चा लत करने वाले एक ईसाई सं गठन के मुख को माच मे ं एक पु तक के आधार पर जो वहाँ पर ब के लए रखी ी



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ँ ाने’ और ‘एक समुदाय के धा मक गयी थी, ‘धा मक भावनाओं को ठे स पहुच व ास को अपमा नत करने’ के आरोप मे ं गर तार कया गया।39 ईसाई चारकों ारा कये गये अपराधों का उ रण स देह के दायरे मे ं रखकर और केवल मशनरी दृ कोण देकर यू .एस.सी.आई.आर.एफ. रपट एक बार फर सं घष को उ पीड़न के प मे ं तुत करते हुए एक पू वा ह-भरा दृ कोण सामने रखती है। उन पु लस अ धकािरयों के बयान, ज होंने कारवाई क और जो अ पसं यक जैन समुदाय के थे, इस रपट क वकृ तयों को उजागर करते हैं : राज थान पु लस कहती है क उ होंने फाउ डे शन के पु तकालय से उ पु तक क 719 तयाँ ज त क है,ं जो ह दू और जैन देवी-देवताओं को ‘जान-बू झकर नीचा दखाती है’ं । ‘पु तक अ य त भड़काऊ है...’ राज थान क अपराध शाखा के अ तिर पु लस महा नदेशक ए.के. जैन ने कहा।40 अमरीका थत एक ना भक य भौ तक व ानी और लेखक, मू त मुथ ु वामी ने यू .एस.सी.आई.आर.एफ. को ‘भारत मे ं धा मक झड़पों के मू ल पर आँकड़ों’ क ओर यान दलाया और उन ‘पु कये जाने यो य आँकड़ों क तरफ़ भी जो भारत मे ं ईसाई सं थानों ारा बहुसं यक समुदाय के त धा मक रं गभेद अपनाये जाने क ओर इं गत करते हैं जो यू नवसल ड लेयरेशन ऑफ ू मन राइ स क धारा 23 और 26 का उ ं घन है’।41 उ होंने पाया क 2006 क रपट ने उनके ारा उपल ध कराये गये आँकड़ों क उपे ा क थी। सन 2006 क रपट का अ ययन कर उ होंने न कष नकाला : जब आँकड़े और घटनाएँ ईसाइयों/मुसलमानों के हाथों ह दुओ ं के पी ड़त होने क ओर इं गत करते है,ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. ासं गक ववरणों को छाँटकर नकाल देता है ता क वह घटनाओं को उस ढं ग से च त कर सके जैसा क वह चाहता है।42

2007 सन 2007 क धा मक वत ता रपट ह दू रा वादी समू हों क राजनी तक पिरक पनाओं का व तार से वणन करती है, और भारतीय पा पु तकों मे ं ‘ हटलर के म हमाम डन’ के उ ख े क बात ऐसे करती है मानो क वह ठोस स य है। रपट कहती है क ‘कुछ अ तवादी ह दू रा वा दयों मे ं हटलर एक स मा नत य व है’, और गुजरात मे ं का शत समाज व ान क पु तकों मे ं वैसी भाषा का योग है जो ‘यहू दयों के नरसं हार मे ं हटलर क भू मका को कम करती है’, और ‘धा मक अ पसं यकों को छोटा करती है’।43 समाचार मा यमों के एक ह से ारा लगाये गये इस आरोप को यू .एस.सी.आई. आर.एफ. ारा आँखे ं ब द करके वीकार कर लया गया, उनक पु के लए कसी भी तरह के यास कये बना, और बाद मे ं यह दावा झू ठा मा णत हुआ। फर भी यू .एस.सी.आई.आर.एफ. रपट ने इस पर भरोसा कया। े ी ोई औ ीं

इससे भी अ धक, अगर कोई गुजरात और त मलनाडु क दसवीं क ा क समाज अ ययन क पा पु तकों क तुलना करे, तो पायेगा क त मलनाडु क पा पु तकें न लवादी इ तहास और आरोपों से भरी पड़ी है।ं जो भी हो, वे यू .एस.सी.आई.आर.एफ. के रडार पर नहीं है,ं यों क ऐसी पा पु तकें द वड़ े तावाद को ो सा हत करती हैं और ईसाई धमा तरण मे ं सहायता करती है।ं 44

2008 यू .एस.सी.आई.आर.एफ. कुछ भारतीयों के लए अपने भारतीय राजनी तक वरो धयों से नपटने का त भी बन जाता है। अपने न हत वाथ के समथन मे ं भारतीय भुस ा से समझौता कर लेते है,ं जसके तहत वे अमरीका से ह त प े और भारत पर उन सं वध ै ा नक ावधानों, को बदलने के लए दबाव डालने क माँग करते हैं जो श शाली ईसाई चारकों के हमलों से समाज के कमजोर वग को बचाते है।ं उदाहरण के लए, 2008 मे,ं ोफेसर अं गना चटज अमरीक आयोग के सामने अमरीक सरकार से यह अनुरोध करने के लए उड़ीसा ह दू -ईसाई हं सा के मामले मे ं उप थत हु क वह अमरीका मे ं ह दू समू हों पर नगरानी रखे, और कानू न को बदलने के लए भारत सरकार पर दबाव डालने और आ दवासी जन समुदायों के बीच ईसाई धमा तरण का माग श त करने के लए भी। उनक अनुशंसा न न कार है : वासी ह दू रा वादी समू हों क ग त व धयों पर सु नयो जत, नय मत, और व तृत जाँच-पड़ताल क जाये ता क उनक पहचान क जा सके और उनक थ त, उनके काय , व और सं य ु रा मे ं उनक सद यता क स ब ताओं क जाँच हो सके, और साथ-साथ उनसे स ब लोगों और कायकताओं क भी। इन समू हों क जाँच और नगरानी होनी ही चा हए, और जैसा उ चत हो, वां छत करवाई भी अव य क जानी चा हए, और उनक ग त व धयों पर तब ध लगाये ही जाने चा हएँ ... उड़ीसा धा मक वत ता अ ध नयम, 1967, क पुनसमी ा होनी ही चा हए और उसे समा भी करना चा हए। उड़ीसा गौ ह या रोकथाम अ ध नयम, 1960 क भी पुनसमी ा होनी ही चा हए और उसे भी समा कया ही जाना चा हए।45 वड बना है, ऐसे वामप थी आग उगलने वाले य अमरीक सा ा यवाद के व चीखते- च ाते हुए अपनी छ व चमकाते है,ं ले कन भारतीय कानू नों मे ं बलपू वक पिरवतन करवाने के लए भारतीय लोकत मे ं अमरीक ह त प े क दलीले ं देकर अपना ही ख डन करते है।ं

2009 फरवरी 2009 मे,ं ऑल इ डया यन काउं सल ( जसक चचा पहले क गयी है) के अ य , जोजेफ डी’सू जा, ने यू .एस.सी.आई.आर.एफ. के कमचािरयों को अपने ॉ ं ौ े े ों ी ी औ े

एक वॉ शं गटन दौरे के समय भारत क थ तयों क जानकारी दी और उनके ता वत भारत दौरे के समय बैठकें करवाने मे ं सहायता क पेशकश क । जो भी हो, जू न 2009 मे ं नव- नवा चत भारत सरकार ने यू .एस.सी.आई.आर.एफ. के भारत दौरे के ताव को टाल दया।46 अमरीक ह त प े के जो समथक भारत मे ं थे, वे फौरन हरकत मे ं आ गये। एक आ दोलनकारी मं च, ‘कैथो लक से युलर फोरम’ (Catholic Secular Forum) ने, जो ईसाई अ भयानों का माग श त करता है, अपने सद यों को भेजे एक ई-मेल मे ं भारत सरकार के इस कदम पर न उठाये : भारत जवाबदेही, अ तरा ीय त ा क हा न से भय खाता है, और वे अ पसं यकों और अ य दु भा वत होने वाले समुदायों को राजनी तक लाभ के लए ह यारों तक खींच ले जाने के पिरणामों को वीकार करने के मामले मे ं पया प से कठोर है।ं अगर चीन, यां मार, सऊदी अरब और इजरायल यू .एस.सी.आई.आर.एफ. को अनुम त दे सकते हैं तो वे हमे ं यों नहीं दे सकते? इसने यू .एस.सी.आई.आर.एफ. को अपने सद यों के स पक के ववरण भी दये, उनसे यह अनुरोध करते हुए क वे अपना उ पीड़न सा ह य भी उसे भेज।े ं 47 सन 2009 मे ं अफगा न तान के साथ भारत यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क वशेष च ता के वषयों वाले देशों क नगरानी वाली सू ची मे ं शा मल हो गया।48 अ ू बर 2009 मे ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. ने उड़ीसा के त कालीन मु य म ी नवीन पटनायक को एक प भेजा, और अमरीका के राजदू त ने भारत के धान म ी को इसक एक त दी। इस प मे ं उड़ीसा मे ं अ पसं यकों के त च ता य क गयी थी, यों क ‘कंधमाल मे ं हालाँ क हं सा का करण समा हो गया ... भारत के बाहर ईसाई नेत ृ व तब भी भारत मे ं रह रहे अ पसं यकों क सुर ा के मामले मे ं अ न य क थ त मे ं था’।49

यू ट (Pew Trust) के नये पु ल दे और चार : ‘भारत सफ ईराक से पीछे है’ कसी भी देश के बारे मे ं उ पीड़न सा ह य कस कार वक सत होता है और समय बीतने के साथ कस कार ग त पकड़ता है, यह सामा जक व ेष और धा मक ं र क 2009 क अ तरा ीय रपट ारा द शत कया गया भेदभाव पर यू िरसच सेट ृ कये है। यू वेबसाइट ने दावा कया क इसके शोध ने ‘16 यापक प से उ त 50 गये, सावज नक प से उपल ध सू चनाओं के ोतों को खँगाला’ था। रपट केवल तीय तर के ईसाई ोतों पर भरोसा करती है, वह भी बना पु कये, न क कसी मु य शोध पर। इसका अथ यह है क कुछ को चुनकर और दू सरों क उपे ा करके यह औरों क तुलना मे ं कुछ गौण मह व के ोतों को वैधता दान करती है। सू चीब सोलह ोतों मे ं सभी प म मे ं थत है,ं जनमे ं मु य प से ी



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यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क रपटे,ं सं य ु रा य वदेश वभाग, और हडसन इं टी ू ट जैसे द णप थी ईसाई सं थान शा मल है।ं 51 धा मक या आ था क वत ता पर सं य ु रा सं घ के वशेष िरपोटर क रपट, जसका इं टी ू ट ने उपयोग कया, वह तो वह है जसे असमां जहाँगीर ने का शत कया था, जनके 2008 के भारत दौरे का सं योजन और सम वयन ऑल इ डया यन काउं सल और यन सॉ लडै िरटी व डवाइड ारा कया गया था।52 कसी भी थानीय समाचार ोत को वचार के लए नहीं लया गया है, और बाक सभी ोत प म मे ं थत है,ं जनके बल ईसाई पू वा ह होते है।ं 53 पॉल माशल ने, ज होंने रपट पर आयो जत यू फोरम क चचा मे ं भागीदारी क थी, ‘ ह दू अ तवाद का उदय’ (The Rise of Hindu Extremism) शीषक से एक शोध प का शत कया।54 रपट पर चचा मे ं टमोथी शॉ भी शा मल हुए, जो सु ख़यों मे ं रहने वाले वाले य हैं जनका ईसाई चारक दृ कोण भारत का क र 55 आलोचक है। वयं यू रपट को समाचार मा यमों मे ं सनसनीखेज ढं ग से का शत कया गया था जनमे ं ‘धा मक भेदभाव मे ं भारत सफ ईराक के पीछे ’ (India Next Only to Iraq on Religious Discrimination) जैसे शीषक लगाये गये थे।56 जहाँ यह रपट धा मक झगड़ों के लए ह दू और मु लम समू हों पर दोषारोपण करती है, वहीं यह धा मक सं घष को ज म देने वाले ईसाई चारक उकसावों और दु चारों पर पू री तरह चुप है। ‘धा मक समू ह के त सरकारी बल योग क घटनाओं के फल व प य यों क गर तारी और कैद’ (Incidents of Government Force toward Religious Group Resulting in Individuals being Imprisoned and Detained) शीषक के तहत छह वषय दये गये है।ं सभी वषय 2007 के लए धा मक वत ता पर सं य ु रा य वदेश वभाग क रपट पर आधािरत है।ं एक वषय दो मशनिरयों क गर तारी का है ज हे ं भड़काऊ तरीके से ह दू देवी-देवताओं पर क गयी अपमानजनक ट पणी के लए गर तार कया गया था।57 ‘समाज मे ं धा मक घृणा या पू वा ह ारा िे रत शारीिरक दु यवहार क घटनाएँ’ (Incidents of Physical Abuse Motivated by Religious Hatred or Bias in S) शीषक के तहत अमरीक वदेश म ालय और यू .एस.सी.आई.आर.एफ. क रपटों का उपयोग उन घटनाओं का वणन करने के लए कया गया जनमे ं ह दुओ ं को ईसाइयों पर हमले करते हुए दखाया गया है। ले कन ये वत या पु कये गये ोतों पर आधािरत नहीं है।ं यू .एस.सी.आई.आर.एफ. केवल ोतों का उ रण ‘धा मक समाचार मा यम’ के प ं र क रपट मे ं देता है, जसका मतलब ईसाई समू हों के अपने ही आरोप है।ं यू सेट पु के बना कसी यास के केवल इसका वमन करती है। रपट दावा करती है क ‘खरगोन जले के चेनापुर से दो वत पादिरयों को, थानीय नवा सयों के यह शकायत करने के बाद क ये पादरी उनक धा मक ँ ा रहे थे, पु लस ारा गर तार कया गया था’। रपट पादिरयों भावनाओं को ठे स पहुच ो





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को यह कहते हुए साफ़ दोषमु कर देती है क ‘वे पादरी धा मक सा ह य का वतरण कर रहे थे’। जो भी हो, ईसाई चारकों के लए ‘धा मक सा ह य’ घृणा के भाषण के अलावा या हो सकता है जब ईसाई काशन ह दू मू तपू जा का वग करण करते हुए उसे दानवी, पापपू ण और न कये जाने यो य कहते है।ं 58

अ तरा ीय वकास के लए सं य ु

रा य सरकार क एजे सी (USAID)

सं य ु रा य अमरीका क सरकार क एक सोची-समझ रणनी त रही है जसके तहत भारतीय पिरयोजनाओं को दये जाने वाले धन पर ईसाई चारक सं गठनों के उ रो र नय ण क अनुम त दी जाती है। इसके लए एक मुख वाहन है यू .एस.एड (USAID)। अमरीक सरकार ारा खड़ी क गयी यह एजे सी वत प से काय करने वाली सं घीय एजे सी है जसे अमरीक वदेश म ी ारा सम त वदेश नी त नदश ा होते है।ं सन 1961 मे ं वदेश सहायता वधेयक पर ह ता र हुए और वह अ ध नयम बन गया तथा एक कायपा लका के आदेश से यू .एस.एड का सृजन कया गया। तीय व यु के बाद यू रोप के पुन नमाण क माशल योजना क सफलता से मले ो साहन के बाद ऐसा कया गया था। उसी समय से यू .एस.एड अमरीका क एक मुख एजे सी रही है जसका उ े य ‘अमरीका क वदेश नी त से जुड़े हतों को आगे बढ़ाना’ है, जो ‘ वकासशील व के नागिरकों क जीवनदशाओं मे ं सुधार लाते हुए लोकत और मु बाज़ारों को व तािरत करने’ क आड़ मे ं कये जाते है।ं 59 शीतयु के दौरान, अमरीका ारा यू .एस.एड और ईसाई चारक सं गठनों का बहुत सफलतापू वक उपयोग अनेक े ों मे,ं जनमे ं द णपू व ए शया भी शा मल है, मा सवा दयों के आगे बढ़ने का मुकाबला करने के लए कया। तहलका प का प करती है क अमरीका के त कालीन रा प त बुश के शासनकाल मे ं सी.आई.ए.-यू .एस.एड-ईसाई चारक गठजोड़ का युग जोरदार ढं ग से वापस आ गया था, वशेषकर भारतीय स दभ मे।ं 60 वा तव मे,ं बुश के रा प त बनने से पहले से ही यू .एस.एड के साथ ईसाई चारकों का उपयोग सं य ु रा य नी त का एक अं ग रहा है। सन 1999 मे ं त कालीन रा प त लं टन ने ड ै ी ऐ डसन को यू .एस.एड का शासक नयु कया, ज होंने प प से कहा क ‘ वदेशों को सहायता के मामले मे ं सं य ु रा य सरकार ने काफ ल बे समय से ईसाई सं गठनों का उपयोग कया है ...बड़े काम के समय’।61 1997 मे,ं व ड वजन के उपा य , ए यू नै सओस (Andrew Natsios), ने यू एस कां स े क मटी ऑन इं टरनेशनल िरलेश स के सम अपनी गवाही के समय कहा क ‘व ड वजन’ अ तरा ीय सहायता काय म मे ं अमरीक सरकार के साथ एक पुननवीकृत सहभा गता का वागत करता है’ और उ होंने एक आदश च तुत कया जसमे ं धम आधािरत एन.जी.ओ. और अमरीक सरकार मलकर काम ं ।े सरकार के साथ भागीदारी के मामले मे ं ईसाई एन.जी.ओ. क ओर से पहले करेग ी ी ों े ि ो ी

झझक रही थी, यों क इसके ‘पिरणाम व प धा मक वत ता क हा न होती है’,62 जसका अथ था क गरीबों से साथ काम करते हुए उ हे ं अपनी धमा तरण ग त व धयों को सी मत रखना पड़ सकता है। ईसाई चारकों को साथ मे ं लाने के लए 2001 मे ं जाज बुश ने नै सओस को यू .एस.एड के शासक के प मे ं नयु कया।63 सन 2002 मे ं बुश ने ईसाई चारकों के भय को यह आ ासन देते हुए हटाया ँ रख सकते है।ं 64 क वे अपने मशन मे ं बना पिरवतन कये सरकारी धन तक पहुच यू .एस.एड क वेबसाइट साफ़-साफ़ दखाती है क ‘आ था’ से उनका आशय केवल अ ाहमवादी धम से है।65 रा प त लं टन के काल मे ं यू .एस.एड के शासक, ड ै ी ऐ डसन, व ड वजन के बोड मे ं है।ं चच बहुरा ीयों और अमरीक सरकार के बीच काम-काज के पथों के ं र ऑन रेस, धम, ए ड अबन लाइफ सं गम सं योगवश नहीं है।ं राइस यू नव सटी मे ं सेट के सहायक नदेशक, और ईसाई चारक जन त न धयों के सबसे वृहद और सबसे यापक अ ययन के लेखक माइकल ल से ने यान दलाया : य यों और सामा जक े ों का एक-दू सरे के े पर छा जाना अ य ईसाई चारक सं गठनों, जैसे जन फेलो शप म न ीज, य नटी टुडे इं टरनेशनल, और फु लर थयोलॉ जकल से मनरी, के मामलों मे ं भी पाया जा सकता है।66 कुछ प थ- नरपे एन.जी.ओ. से अलग, यू .एस.एड भारत मे ं काम कर रहे ईसाई एन.जी.ओ. के त झुकाव द शत करती है। यू .एस.एड इ डया मशन के नदेशक जॉज डे इकुन ने अनेक अवसरों पर कहा है क ईसाई चारक सं गठन भारत मे ं काम कर रहे यू .एस.एड के सहभा गयों मे ं सवा धक दखायी देने वाले सं गठन हैं : ‘यू .एस.एड इ डया अनेक सं गठनों को सहयोग दे रही है, जैसे कैथो लक िरलीफ स वसेज, शरण (SHARAN), वाई.ड यू .सी.ए. व ड वजन, सा वेशन आम और ं मेरी अ पताल, आ द’।67 सुनामी राहत के लए, यू .एस.एड ने व ड वजन के सेट साथ हाथ मलाया।68 सन 2006 मे ं भारत मे ं कैथो लक िरलीफ स वसेज (सी.आर.एस.) क साठवीं वषगां ठ के समारोह मे ं बोलते हुए डे इकुन ने कहा क ‘ येक वष भारत के सवा धक हा शये पर चले गये आ दवासी और द लत समुदायों ँ ने के लए चलाये जा रहे व भ काय मों मे ं के लगभग दस लाख लोगों’ तक पहुच ‘सी.आर.एस. और इसका यापक नेटवक यू .एस.एड का मू यवान सहभागी रहा है’। 69

ं े लकल फेलो शप सन 2008 मे,ं यू .एस.एड ने आ दवासी रा य झारख ड मे ं इवैज ऑफ इ डया क मशन ऑन िरलीफ (EFICOR) और यन िरफॉ ड व ड िरलीफ क मटी (CRWRC ) क एक सं य ु पिरयोजना को धन देना वीकार कया।70 सी.आर.ड यू .आर.सी. अमरीका थत एक ईसाई राहत सं गठन है जो दावा करता है क वह ‘चच के मा यम से काम करते हुए चच को श स प बनाता है’, और े

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अ तत: ‘इसके पिरणाम व प और अ धक ईसाई’ बनते है।ं 71 ए फकोर ं े लकल फेलो शप ऑफ इ डया EFI, हालाँ क (EFICOR)का जनक सं गठन है इवैज 1981 से दोनों कानू नी प से अलग-अलग सं गठन है।ं 72 ई.एफ.आई. क वेबसाइट ‘सां कृ तक और भौगो लक सीमा को पार करने तथा भारतीय ईसाइयों को एक व यापी ईसाई समुदाय से जोड़ने’ क बात करती है।73 भारत को अमरीका क व ीय सहायता अ धकां शत: ईसाई एन.जी.ओ. के मा यम से भेजी जाती है। यह त य इस कारण और अ धक मह व धारण कर लेता है ं ीस तशत क क 2007 तक अमरीका भारत को दी जाने वाली सहायता रा श मे ं पैत 74 कटौती करने वाला था। इसका अथ था अमरीक सहायता रा श मे ं धा मक एन.जी.ओ. के मा यम से भेजी जा रही रा श के अनुपात मे ं नाटक य वृ । ओबामा शासन ने यू .एस.एड के लए नये शासक क नयु क है, एक भारतीय अमरीक क जनका नाम राजीव शाह है। समय बतायेगा क यह ईसाई धमा तरण को दये जाने वाले वदेश समथन से दू र हटने का सं केत है या यह ह दू नाम वाले कसी य को धान के प मे ं लाकर उनक ग त व धयों पर एक नया ं े और वे बहुत सुसंग ठत है।ं पदा। ईसाई द णप थी अपना दबाव जारी रखेग

ओबामा और सं य ु

रा य वदेशी ईसाई धमा तरण

अनेक भारतीय व ास करते हैं क ओबामा शासन ईसाई द णप थयों को एक झटका देगा और इस कार भारत जैसे थानों मे ं अमरीका ारा ायो जत ईसाई धमा तरण को भी झटका लगेगा। रा प त ओबामा के दल मे ं चाहे जो भी हो, वॉ शं गटन क राजनी तक यावहािरकता ऐसे सै ा तक ल यों पर हावी रहती है। ओबामा व भ सीमाओं के आर-पार के एक बड़े सौदेबाज है,ं और जहाँ भी स भव हो बना-टकराव के काय स पा दत करना चाहते है।ं इस लेन-देन के माहौल मे,ं जो कसी भी आधु नक लोकत क एक चािर क वशेषता होती है, उ हे ं अपनी सव ाथ मकता का चयन करना है, और शेष के मामलों मे ं वह समझौते वीकार ं ।े भारत क नय त (सं य ु रा य अमरीका के हतों से अलग) करने को तैयार रहेग उनके लए साफ़ तौर पर सव ाथ मकता क उस सू ची मे ं नहीं है, न ही दू सरे कसी अमरीक रा प त के लए वह थी। वशेष प से भारतीय स यता या ह दू धम क नय त उनके लए उतनी मह वपू ण नहीं है क उसके लए मु य वैधा नक एजे टों और नी तयों क ब ल चढ़ा दी जाये। जैसा क इस अ याय मे ं पहले कहा गया है, रा प त लं टन अ तरा ीय ं े के अ य अ धक मह वपू ण धा मक वत ता अ ध नयम को ( लं टन के एजेड मामलों पर उनके समथन के बदले) पािरत करवाने क ईसाई द णप थयों क माँग पर सहमत हो गये थे। जॉज ड यू . बुश के रा प त काल मे ं द णप थी बड़ी तेजी े



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से सरकारी एजे ं सयों मे ं घुस गये थे। सन 2001 मे,ं बुश ने धम के आधार पर अमरीका ारा सं घीय तर पर व पो षत काय म इनमे ं से येक सरकारी वभाग मे ं तैयार कये थे : म, वा य और मानव सेवा, गृह नमाण और शहरी वकास, श ा और याय। सन 2002 मे ं यू .एस.एड के वदेशी कायसं चालनों और सै य शासन मे ं आ धकािरक और प प से यहू दी-ईसाई उप थ त था पत करने के लए इसे व तािरत कया गया। सन 2004 मे,ं कृ ष, वा ण य, लघु यवसाय शासन, और वतन क सुर ा वभागों मे ं भी धम पर आधािरत काय म जोड़ दये गये थे। जहाँ रा प त ओबामा घरेलू तर पर वशेष े ों मे ं यापक ईसाई भाव को रोक या यहाँ तक क पलट रहे है,ं वदेशी रं गमं च एक पू री तरह से भ कहानी है। वे अमरीक सरकार ारा वदेशी धा मक मामलों मे ं ह त प े ईसाई द णप थयों को अपना भाव गहरा करने दे रहे है।ं इसे समझने के लए यह समझना होगा क ओबामा के रा प त चुनाव अ भयान के दौरान कस कार शकागो के जोशुआ ू बॉय (Joshua Dubois)नामक एक उ मी अ क -अमरीक ने ओबामा क ओर से ईसाई मतदाताओं को सफलतापू वक एकजुट कया था। उस कदम ने उस वोट ं मे ं सेध ं मारी क थी जो पार पिरक प से िरप लक पाट का था। यह एक बैक ू बॉय अ य त मह वपू ण समू ह था जो ओबामा क वजय के लए ज मेदार हुआ। क शानदार योजना थी क गरीबों क परवाह करने वाले उदारवादी स ा तों ारा ू बॉय ने ओबामा को ईसाई ईसाइयों को भावनाओं मे ं बहाया जा सकता है। श दावली मे ं ‘गरीबों के लए जीवनपय त वकालत करने वाले’ नेता के प मे ं सफलतापू वक तुत कया। वाइट हाउस मे ं वेश करने के बाद रा प त ओबामा ने धा मक मामलों से जुड़े ू बॉय को ही अपना सव सलाहकार बनाया। अब तो कसी भी मामले के लए ईसाई चारकों को लुभाकर डे मो े टक पाट मे ं लाने क एक रणनी त भी है। अ ाहमवादी प थ को साथ लाने के लए मु य मा यम है ओबामा शासन का एक त ान—‘धम-आधािरत और पड़ोसी साझेदारी पर रा प त क सलाहकार पिरषद’ (President’s Advisory Council on Faith-based and Neighborhod ू बॉय इसके कायकारी नदेशक है।ं यह पिरषद घरेलू और Parnership)। अ तरा ीय दोनों तरों पर धा मक मामलों मे ं रा प त क आँख और कान है, और ऐसे मामलों मे ं उनक मु य सलाहकार। यह मह वपू ण है क ओबामा खेमे के सारे लोक लुभाऊ भाषणों के बाद भी डे मो ोटों ने अब तक ईसाई ढ़वा दयों को नहीं हटाया है जो धा मक वत ता पर अमरीक आयोग को नय त करते है।ं ले कन उपयु नयी पिरषद क सं रचना इससे भी अ धक चीजे ं उजागर करती है, जसमे ं ओबामा के पू व हुई नयु यों के खुमार का कोई बहाना नहीं है। इस प ीस सद यीय सं थान क सं रचना पर एक सं ववरण यह समझने का अवसर दान करेगा क वदेशी ईसाई धमा तरण पर े ैं ों ो ी ी ी ं

इन ग त व धयों को अब भी कस तरह द णप थी ही सं चा लत कर रहे है,ं यह अलग बात है क अब एक उदारवादी रा प त शासन के झ डे तले।75 शु करे ं तो व ड वजन, अमरीका, के अ य इसके एक सद य है।ं पिरषद के ं एसो सएशन के मु य कायकारी एक अ य सद य यन क यू नटी डे वलपमेट अ धकारी है,ं जो वयं को ‘ व भर के पाँच हज़ार से अ धक धा मक सं गठनों के साथ वतमान मे ं काम करने वाले सं गठन’ के प मे ं व णत करता है। सरकार ारा एक अ य सद य क व सनीयता ‘अ तरा ीय तर पर स मा नत ईसाई चारक ं े लकल अलायं स (4200 लाख घटकों नेता’ के प मे ं बतायी गयी है; ‘वह व ड इवैज ं े लक स (300 लाख सद यों वाले) वाले) तथा नेशनल एसो सएशन ऑफ इवैज ं न के अवकाश सं गठनों के बोड मे ं रहकर सेवा कर रहे है’ं । साउथ बै ट ट कॉ वेश ा अ य भी इसके एक सद य है,ं जो एक श शाली ईसाई चारक समू ह भी सं चा लत करते है,ं जो ‘5600 से अ धक मशनिरयों के काय का पयवे ण करता है’। वष 1999-2009 के दौरान ‘रा ीय बै ट ट क वे शन’ (National Baptist Convention) के अ य भी एक स य सद य है।ं अ ाहमवादी प थ और ं -समथक यू सावज नक जीवन पर एक अ य त ोटे टैट ट फोरम के एक पू व कायकारी नदेशक, जो धा मक वत ता पर बै ट ट वायं ट कमेटी के सामा य परामशदाता थे, इस सं थान के एक अ य धक भावशाली सद य है।ं श शाली व ड काउं सल ऑफ चचज का त न ध व इसक के ीय स म त के एक सद य कर रहे है।ं कैथो लक चच का त न ध व उसके अ य और कैथो लक चैिरटीज (सं य ु रा य अमरीका) के मु य कायकारी अ धकारी ारा कया जा रहा है, जो 1700 से अ धक थानीय चच धन द एजे ं सयों तथा रा यापी सं थानों का रा ीय कायालय है। सं घीय सरकार ारा गव से यह दावा कया गया है क ‘पोप बेने ड ट XVI ने उ हे ं पों ट फकल काउं सल कोर उनुम मे ं मनोनीत कया है, जो कैथो लक चच क व यापी परोपकारी ग त व धयों का पयवे ण करती है’। उनके साथ हैं एक अ य कैथो लक सद य जो यू नाइटेड टे स कॉ फेरे स ऑफ कैथो लक बश स के सामा य परामथदाता है।ं और भी छै धमशा ी और अ धव ा भी हैं जो व भ ईसाई सं गठनों का नेत ृ व करते हैं और इस पिरषद के सद यों मे ं भी शा मल है।ं ईसाइयों के भारी आ धप य वाले इस सं थान मे ं तीन यहू दी नेता और साथ-साथ दो मुसलमान भी है।ं इनमे ं से येक धमशा ी या राजनी तक प से अ छे स पक वाले नेता के प मे ं मह वपू ण पृ भू मयों से आये है।ं इसके वपरीत ह दू त न ध व क थ त पू री तरह अपमानजनक है। समुदाय के प मे ं एकजुटता या मह वपू ण मु ों पर सुसंगत घोषणाप के अभाव के कारण ऐसी थ तयों मे ं ह दू अमरीक त न ध व एक तरह से य गत लॉ बं ग का ही वषय होता है। ‘ ह दू ’ क को ट मे ं जन म हला को रखा गया है, उनमे ं साफ़ तौर पर ै ो ि ओं े ों े े े ी

उन मताओं का अभाव है, जो पिरषद के उन सद यों के मुकाबले मुखरता से अपनी बात रखने के लए ज री है,ं जनसे वे पिरषद मे ं घरी हुई है।ं बेहतरीन इरादों के बावजू द उ हे ं सीधे-सीधे नशाना साधने के पहले ही परा त कर दया जाता रहा है, बड़ी चतुराई से मात दी जाती रही है, और राजनी तक तकड़मों से उनक हर चाल को नर त कर दया जाता रहा है। सबसे बड़े मु ों और माँगों को पिरभा षत करने के लए उ हे ं अपने ह दू सामुदा यक घेरे मे ं एक ठोस आम सहम त वक सत करनी चा हए थी और ईसाई माँगों के मुकाबले के लए तक को सु यव थत करना चा हए था। इसके बदले उ हे ं लालच देकर सं य ु रा य अमरीका के व भ भागों मे ं ‘ ह दू सेवा’ (सामा जक सेवा) आयो जत करने के लए लगा दया गया है, ‘नेत ृ व मताएँ’ था पत करने के उनके अपने तरीके के प मे।ं इसने उनक ऊजा का य कर दया ँ े बना जसके त न ध व के है, वह भी उस समुदाय तक उनका कोई भी लाभ पहुच ं ,े यह प होता लए वे वहाँ गयी है।ं जैस-े जैसे हम इस अ याय मे ं चचा आगे बढ़ायेग ं े को आगे बढ़ाते गये जसे रोकने मे ं जायेगा क ऐसा यों हुआ क ईसाई अपने एजेड अ धक सफलता नहीं मल पायी। ओबामा शासन ने धा मक सं गठनों क मह वपू ण भू मका पर, जसे बुश ारा पहले से ही श शाली बनाया जा चुका था, आगे दी गयी घोषणा के साथ काम शु कया। यवहार मे ं ऐसे समू ह यहू दी-ईसाई सं थान हैं : ‘वाइट हाउस का ‘धम आधािरत और पड़ोसी साझेदारी’ वभाग सरकार के सभी कायालयों के साथ मलकर इस बात पर वचार करता रहा है क कस तरह आ थक थ त को फर से पटरी पर लाने के काम मे ं धा मक और सामुदा यक सं गठनों को लगाया जा सकता है’। ओबामा के बहु ात आ थक राहत पैकेज को, जसे अमरीकन िरकवरी ए ड ं ऐ ट (ARRA) के प मे ं जाना जाता है, धा मक समू हों के बीच उनके िरइ वे टमेट लए धन ा करने के ‘एक अभू तपू व अवसर’ के प मे ं तुत कया जा रहा है। यहाँ तक क बहु चािरत ओबामा- बडे न यापक यू एनज फॉर अमरीका योजना मे ं भी धा मक समू हों के लए सरकारी धन ा करने के ावधान है।ं ओबामा क धम-आधािरत पहलकदमी अपनी वेबसाइट मे ं कहती है क इसके अ तरा ीय ल य मे ं भू म डलीय गरीबी से सं घष, अमरीक गठब धनों का ु ं और म ों’ से बातचीत और ‘ए शया मे ं नयी सहभा गता’ क नवीकरण, ‘हमारे श ओ खोज शा मल है, जसके लए अमरीका मे ं मौजू द प थों को भू मका नभाने के लए कहा जा रहा है। अमरीक वदेश म ालय के ‘ श ा तथा सां कृ तक मामलों के वभाग’(Bureau of Educational and Cultural Afairs)ने धा मक और गैरलाभकारी सं गठनों के साथ कई आदान- दान काय म आयो जत कये है,ं पयटन सं चालकों से बातचीत कर रहा है और उनके साथ मलकर श ण मे ं सहभा गता के काय म चला रहा है। ‘प थ- नरपे ता’ क भारतीय अवधारणा के वपरीत, अमरीक प थ- नरपे ता केवल सं था के तर पर चच और रा य को अलग करती ै औ





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है, और मुख सरकारी नेत ृ वों को उन त वों को ो सा हत करने से अलग नहीं करती ज हे ं ईसाई समथक व ा ‘बाइबल के मू य’ कहते है।ं (उदाहरण के लए, हलेरी लं टन वाइट हाउस के सौ से अ धक सद यों मे ं से एक है,ं और अमरीक कां स े के ईसाई ाथना-समू ह मे ं भी हैं जो हर महीने अनौपचािरक प से उ तरीय ं े तैयार कर सकें जन पर बैठकें करता है ता क उन स ा तों पर आधािरत एजेड सहम त है।) ं के एक काय म को भी पछले एक दशक से सं य ु रा य अमरीका व बैक ायो जत कर रहा है जसका नाम है ‘मू यों और नै तकता स ब धी वकास स वाद’ (Development Dialogue on Values and Ethics), जो आ था और वकास के ं के के ीय ब दु के प मे ं काम आया है’। व अ तरभेदन के मामले मे ं व बैक ं क यह ईकाई ‘धा मक सं गठनों के साथ सहभा गता’ रखती है, जो यवहार मे ं बैक अ धकां शत: ईसाई सं गठन ही नकलते है।ं धम अथवा प थ पर ओबामा क नी त सामा जक काय मे ं धा मक समू हों क भू मका का जोरदार समथन करती है, और यह ईसाई चारकों के कानों के लए सं गीत के समान है, जो सरकारी सहायता के प मे ं अरबों ा करने क स भावना पर स होते है।ं वाइट हाउस के धा मक मामलों के सलाहकार ने न कष नकाला : ‘ व के अनेक े ों मे,ं धा मक समुदायों के सवा धक वक सत, बड़े और टकाऊ सामा जक ढाँचे है।ं और आगे, वे सवा धक व सनीय और भरोसेम द सहभा गयों मे ं हो सकते है’ं । रपट तक देती है : धम व भर मे ं अनेक लोगों के मू यों और काय क जानकारी देता है और धा मक सं थाएँ वा य क देख-भाल, श ा और समाज सेवाएँ दान करने मे ं मह वपू ण योगदान करती हैं [...] मू लभू त सेवाएँ दान करने, शा त के लए म य थता करने, और थर समाज न मत करने मे ं धा मक समुदाय स भा वत सहभागी है।ं धा मक समुदायों के साथ काम करने के लए अमरीक क मयों के पास सवा धक अ छे साधनों का काम-लायक ान अव य होना चा हए। इसी आलोक मे,ं यह वदेशों मे ं काम कर रहे धा मक सं गठनों को अमरीक सरकार ारा धन दान करने के काय मों को व तािरत करने क अनुशंसा करती है, और साथ मे ं धा मक मामलों मे ं अमरीक अ धकािरयों को ‘ श त’ करने क भी : शासन को अपने सहभा गयों मे ं बहु-धा मक सहभा गता को शा मल करना चा हए जसमे ं अमरीक सरकार अ तरा ीय मामलों से जुड़ी अमरीक एजे ं सयों के साथ उन भागीदािरयों के लए बातचीत करती है और उ हे ं सं साधनों से यु करती है। इस ल य के लए सलाहकार पिरषद अनुशंसा करती है क अ तरा ीय मामलों मे ं लगी मुख एजे ं सयों मे ं से येक मे ं बहु-धा मक सं ल नता के लए शासन विर कमचािरयों क नयु का अनुरोध करे। यह रा प त ओबामा से यह भी अनुरोध करती है क बहु-धा मक सं ल नता से जुड़ी े ी े े े े े ी ो ी ें औ

नवेश सू ची था पत करने के लए वे येक एजे सी को नदश जारी करे,ं और बहुधा मक सं ल नता पर अ तर और अ त:-एजे सी, दोनों कार के काय दल के ं ी से कहे ं क वह ऐसे दल सृजन के लए कहे।ं यानी रा प त ओबामा हर एजेस तैयार करे जो एजे सयों के अ दर भी काम कर सकें और अ य एजे सयों मे ं अपने समक दलों के साथ मलकर भी। सरकार प करती है क ऐसे धा मक काय म पहले से ही अमरीका के चालीस शहरों के पाँच सौ महा व ालय पिरसरों मे,ं जनमे ं थानीय नेता भी शा मल है,ं और वदेशों मे ं चल रहे प ीस सं य ु रा य दू तावासों मे ं जारी है।ं ओबामा ारा नयु धा मक पिरषद ने ‘सं य ु रा य के वकास से स ब एन.जी.ओ. के लए मता नमाण समथन’ को पुन: ार भ करने के लए तक दये, ता क इन वदेशी धा मक समू हों को केवल काय मों को चलाने मे ं ही सहायता मले, ब क उन देशों मे ं उनके ढाँचों को व तािरत करने के लए उ हे ं धन भी ा हो। न प प से कहा जाये तो ओबामा क इस नी त के पीछे का ‘ स ा त’ बहुलतावादी है और दु पयोग को रोकने के लए सही श दों का चयन कया गया है : ‘रा प त ओबामा अ तरधा मक वचार- वमश, सहयोग और समझदारी के सं र ण के लए तब है’ं । ाथ मकताओं मे ं से एक होगा ‘अ तर-धा मक सहयोग के लए अवसरों क खोज करना और उ हे ं सृ जत करना’। इस व य मे ं वशाल स भावनाएँ है,ं ले कन शत यह है क उ हे ं काया वत कया जाये। जैसा क नीचे प कया गया है, यवहार मे ं ऐसा नहीं हुआ। जहाँ रा प त क धा मक पिरषद मे ं एकमा ह दू सद य ने ह दू सेवा के आयोजन मे ं लोगों को एकजुट करने मे ं अपना वष बता दया, चतुर और अनुभवी ईसाई सद य उप-स म तयों का सृजन करने और नी तगत अनुशंसाओं का ा प तैयार करने मे ं य त रहे। अ तम समय मे,ं जब इन अनुशंसाओं को कानू न का प देने के लए नधािरत समय सीमा मे ं मु कल से एक माह ही बचे होंग,े इ फ नटी फाउ डे शन के राजीव म हो ा (इस पु तक के सह-लेखक) को काउं सल के च तत ह दू त न ध से अचानक फोन कॉल और ई-मेल मले, जनमे ं उ होंने कहा क अनेक ऐसी अनुशंसाएँ पािरत होने वाली हैं जो ह दुओ ं के लए सम या बन सकती है।ं तब उ होंने इस मामले मे ं कुछ दवस लगाने का नणय कया, और उनसे ( ह दू त न ध से) अनुशंसाओं का ा प भेजने के लए कहा। जो अनुशंसाएँ क गयी थीं उनका एक व लेषण नीचे दया जा रहा है, ज हे ं ी म हो ा ने बदलने का यास कया, और कस कार काउं सल के ईसाई सद यों ने इन यासों को कुशलता से रोक दया। उनके ा प मे ं एक अनुशंसा थी क सरकारी सहायता ‘नागिरक समाज के सं गठनों के साथ भागीदारी के मा यम से दी जानी चा हए ज होंने गरीब समुदायों के साथ काय करने के त अपनी तब ता द शत क हो’। ी म हो ा ने सुझाव ँ ी ों े ीं ओ

दया क गरीबों के साथ काम करना जहाँ मह वपू ण था, वहीं ओबामा क अ तरधा मक सौहाद तथा बहुलतावाद क घो षत नी त क भावना के तहत और काफ कुछ जोड़े जाने क आव यकता थी। उ होंने सुझाया क न न ल खत उ े य के साथ एक वा य जोड़ा जाना चा हए : ‘यह अ नवाय हो क अ य देशों मे ं उनके अपने मू ल धम को स मान देकर बहुलतावाद को अव य ही ो सा हत कया जाये’। ह दू त न ध ने म हो ा को बताया क पिरषद ने ं उनके सहयो गयों ारा इसे अ वीकार कर दया था। पिरषद क एक अ य अनुशंसा थी अमरीक सरकार को एक ल य था पत करना चा हए क सरकार के सभी वभागों क वकास सहायता का एक- तहाई ऐसे धा मक समू हों के मा यम से दया जाये। इसका उ े य प प से सरकारी धन के दरवाजे खोल देना था, ता क ये धन अ तत: ईसाई चारकों के हाथों मे ं चले जाये।ं म हो ा ने ह दू त न ध को एक ई-मेल भेजा जसमे ं न न ल खत बाते ं जोड़ने क बात कही गयी थीं, जसे पिरषद ारा त काल और दृढ़ता से अ वीकार कर दया गया : ‘बहुधा, सामा जक सेवा क आड़ मे ं कुछ अमरीका स ब एन.जी.ओ. के ं ा रहे है,ं जो सौहाद और बहुलतावाद के बदले अ तरआ ामक ईसाई चारक एजेड धा मक तनावों क ओर ले जाते है।ं इसे रोकने के लए अमरीक सरकार क आ थक सहायता केवल उन सं गठनों को जानी चा हए जो यह वचन दे ं क वे उन ग त व धयों मे ं सं ल न नहीं होंगे जो सा दा यक ेष उ प करने वाले के प मे ं जाने जाते है,ं जैसे अ य धम के दशन, देवी-देवताओं, अनु ान, तीक, इ तहास, नेता, और थाओं क झू ठ न दा या उ हे ं नीचा दखाना’। एक अ य नी त जसक वे अनुशंसा कर रहे थे, इस कार है : ‘यू .एस.एड को धा मक और नागिरक समाज से स पक के लए येक एड मशन मे ं जनस पक कमचारी नयु करना चा हए ता क जमीनी तर पर काम करने वाले सं गठनों तक ँ कायम क जा सके और उनके साथ भागीदारी क जा सके। उ पदासीन पहुच कमचारी उस देश के लए मशन मुख को सीधे रपट करे, उस देश मे ं काम कर रही अमरीक सरकार क सभी एजे ं सयों के साथ काम करे, उस देश मे ं काम कर रहे नागिरक समाजों और एन.जी.ओ. के बीच चलने वाली बातचीत के लए अवसर सृ जत करे, और सं य ु रा य सरकार तथा थानीय तर पर च त आव यकताओं पर आधािरत एन.जी.ओ. के बीच सं य ु काय म सृ जत करने का माग श त करे’। म हो ा ने सुझाव दया क सुर ाकवच के प मे ं न न ल खत जोड़ दया जाये : ‘ऐसी सभी भ तयों का उ े य वैसी नयु यों से बचने का होना चा हए जो कसी अ य देश मे ं सवा धक भावी व ासों के व धा मक पू वा ह लायेगा। धा मक पू वा ह के मानद ड जो कानू न के तहत सं य ु रा य अमरीका मे ं लागू होते है,ं वे ही वदेशों मे ं सं चा लत और अमरीक सरकार से जुड़े कसी काय म ारा पू वा हों से बचने के दशा नदश होने चा हएँ। इस बात पर अ य धक सतकता बरतनी चा हए ऐ ी











क ऐसी मता- नमाण कसी धा मक समू ह वशेष को अ य के मुकाबले वशेषा धकार न देती हो या उस देश वशेष मे ं या धम के स तुलन को उलट-पलट न दे’। रा प त क पिरषद ारा इसे भी अ वीकार कर दया गया। ईसाई चारकों के भु व वाली पिरषद ारा जो कुछ भी ा प तैयार कया गया था उसके लए ह दू त न ध रबर क मुहर बन रहे थे, जससे नराश होकर म हो ा ने उ हे ं न न कार लखा : ं ा है जसे और आगे ले जाया जा रहा है। यह ईसाई द णप थयों का एजेड उदाहरण के लए, अनुशंसा सं या 5 का उ े य व ड वजन का त न ध व कर रहे लोगों जैसे ईसाई चारकों को यू .एस.एड कायालयों मे ं था पत करना है ता क एक दशा दी जा सके। हम पहले से ही जमीनी तर पर त मलनाडु, आं देश, पू व र भारत आ द थानों पर उनके ह ा बोल का मुकाबला कर रहे है।ं इस मामले मे ं ईसाई द णप थयों ारा ओबामा को ही अगवा कर लया गया है। काश, आपने इस या मे ं बहुत पहले ही ह दू वर को शा मल कया होता। या मू ल नवा सयों क धा मक पर पराओं के त सं वद े नशीलता से जुड़ी कुछ भाषा उसमे ं घुसाने का कोई रा ता है, यह कहते हुए क अमरीका कसी भी वैसे धा मक एन.जी.ओ. के साथ शा मल नहीं होगा जो धमा तरण कराने क ग त व धयों मे ं सं ल न है? अगर हम ऐसा नहीं करते या कम-से-कम इसके लए ं े हमारी माँग िरकाड मे ं नहीं आती, तो ऐसा लगेगा मानो ईसाई चारकों के एजेड ं कॉल के लए उपल ध हू ,ँ अगर पर हमने मुहर लगा दी। मैं इस पर का फेरेस आप चाहती हैं क कुछ लोग इस मामले मे ं सीधा वचार- वमश करे।ं ह दू त न ध ने उ र दया, ‘मैनं े इस बारे मे ं अनेक बार बातचीत क , ले कन उ होंने कहा क वैसा करने का न ही नहीं उठता। कसी भी अ य धम को शा मल कराने का वे वरोध करते रहे है।ं धमाधािरत मामलों मे ं मेरी अनुशंसाओं को कुचला जाता रहा ...’ उ होंने न कष के प मे ं कहा : ‘मैं इसे उठाने मे ं असमथ हू ’ँ । इस लए म हो ा ने इसके उ र मे ं उ हे ं एक प लखा जसके साथ एक औपचािरक प का ा प भी था जसे उनक ओर से पिरषद को भेजा जाना था। प मे ं उ होंने लखा था : ‘आपको मेरा सुझाव है क आ धकािरक तौर पर इसे उनक फाइल मे ं डलवाएँ, अपने िरकाड के लए एक त भी रख ले’ं । उस ा प को यहाँ ृ कया जा रहा है : उ त य पिरषद सद यों, ह दू अमरीक समुदाय के त न ध के प मे ं मैं अनुभव करती हू ँ क मेरे लए आ धकािरक प से यह कहना मह वपू ण हो गया है क मेरे धा मक समुदाय क थ त या है, वशेष प से सं य ु रा य अमरीका थत ीओ

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एन.जी.ओ. ारा भारत मे ं चलायी जा रही आ ामक धमा तरण ग त व धयों के स ब ध मे।ं इस अ भलेख मे ं न न ल खत नी तगत व य डाले जाने क आव यकता है : ‘सं य ु रा य अमरीका क सरकार अपनी व भ वदेशी पहलकद मयों मे ं ऐसे कसी भी एन.जी.ओ. को शा मल नहीं करेगी जो आ ामक धमा तरण ग त व धयों मे ं सं ल न है, यों क ऐसे काय म सामा जक तनाव उ प करते है,ं और अ य व ासों के त अपमानजनक होते है।ं कसी भी कार क शकायत आने पर सरकार मामले के गुण-दोष पर कोई भी न कष देने के पू व सा य क सुनवाई करेगी’। इससे भी अ धक, अनुशंसा सं या 5 धमा तरण का प लेते हुए एकतरफा त न ध व के लए अवसर खोलती है। इस लए, कसी भी देश वशेष के बहुसं यक नवा सयों के धम को समान त न ध व देने के लए इसमे ं सं शोधन कया जाना चा हए। उदाहरण के लए, अगर यह एक इ लामी, या ह दू , या बौ बहुसं यक देश है तो अनुशंसा सं या 5 के तहत सं य ु रा य अमरीका क भत या तो उसी धम से होगी या उस धम का त न ध व हर स म त या अ य सं था मे ं कम-से-कम यहू दी-ईसाइयों के समक होगा। चू ँ क इस पिरषद का उ े य अ तर-धा मक सौहा है, इसके लए कसी भी वैसे काय म को समथन नहीं देना समझदारी क बात होगी, जसका अ त धम के बीच व ेष उ प करने मे ं होता हो। इस लए मैं अपने ता वत सं शोधनों को पिरषद के आ धकािरक िरकाड मे ं रखना चाहती हू ।ँ म हो ा ने ह दू त न ध को लखे ई-मेल का समापन कया : ‘मैं अनुभव करता हू ँ क यह आपक ओर से एक साहस-भरा काय होगा। आपको कुछ भी नहीं खोना है। यह द शत करेगा क हम वैसे नहीं हैं ज हे ं ह के ढं ग से लया जा सके ं े क पिरषद मे ं ह दू त न ध उनके और ध कयाया जा सके। अ यथा वे कहेग तावों के साथ चले। ल खत िरकाड मे ं इस व य का वरोधी वर मतभेद के प मे ं रहना मह वपू ण है। अगर वे आप पर दबाव डालते है,ं तो आप डट जाये ं और उ हे ं बताये ं क मतभेद अमरीक लोकत का एक मह वपू ण अं ग है और रा प त ओबामा उसके तीक है।ं उ हे ं बताये ं क आप अपने समथकों क भावनाओं का आदर करना चाहती है,ं और इस लए ऐसा कर रही है।ं ईसाई द णप थी जो कह रहे ं नाम, उ होंने या कहा, दनां क हैं उनके बारे मे ं ब ढ़या नोट भी तैयार करती रहे— आ द। यह डायरी उपयोगी होगी’। ह दू त न ध ने उ र दया : ‘राजीव, मैनं े इस मामले को पिरषद क पू ण बैठक मे ं फर से उठाया और यह अब िरकाड मे ं है। उ होंने कहा क वे उन लोगों क ं ,े ज हे ं कायबल मे ं शा मल सं वद े नशीलता को बढ़ाने के लए भाषा पर दृ डालेग ै

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कया गया है। मैनं े इसे अनेक बार उठाया है। ले कन यह ा प व ड वजन ारा तैयार कया गया था, जसके पास काफ श है’। ह दू त न ध ने म हो ा को आगे और बताया क कस कार व ड वजन के त न धयों ारा ा पों को तैयार कया गया, और क उनके ारा उ हे ं प प से बताया गया क यह ‘सब कुछ सं या और बाज़ार मे ं अपनी ह सेदारी को अ धकतम करने’ के बारे मे ं है, और क उनके सुझाव वागत यो य नहीं थे, ले कन उ हे ं सहन कया जा रहा था और मोटे तौर पर नजरअ दाज कया गया। सा वना पुर कार के प मे,ं उसके बाद एक ा प मे ं इस ववाद को वीकार कया गया : ‘हममे ं से कुछ व ास करते हैं क सरकार को अ नवायत: या सामा य प से कुछ वशेष कार के धा मक सं गठनों को धन देने (सामा जक सेवाओं के लए धन समेत) से बचना चा हए, जब क हमारे बीच के अ य व ास करते हैं क, हालाँ क सं वधान धा मक ग त व धयों के लए सीधी सरकारी आ थक सहायता के उपयोग को सी मत करता है, यह प थ- नरपे ग त व धयों के लए आ थक सहायता क अनुम त देता है, चाहे देने वाले का चिर कुछ भी हो’। दू सरे श दों मे,ं ह दू त न ध के वरोध को वीकार कया गया, ले कन उनके तावों को बड़ी चतुराई या कौशल से अमा य कर दया गया। यह गाथा कुछ अ य मह वपू ण अ तदृ भी देती है। एन.आर.आई. ( वासी भारतीय) उ पदों के लए अपने नाम चलवाने और उ हे ं ा करने के लए लामब दी करते है,ं चाहे वे उसके लए यो यता रखते हों या नहीं। यह उ हे ं है सयत देता है। वॉ शं गटन मे ं ऐसी ही मता मे ं काम कर रही एक मुख म हला ने मुझे दोटू क कहा क उनका मु य उ े य वॉ शं गटन मे ं एक पािर मक मलने वाला काय ा करने के लए इसे एक साधन के प मे ं उपयोग करना है। ह दुओ ं के पास, अमरीका मे ं अ य मुख धम वदों के वपरीत मह वपू ण मु ों पर ठोस ख वाले औपचािरक घोषणाप का अभाव है और उन वशेष कदमों के प उ ख े का भी जनका वे काया वयन चाहते है।ं बहुधा, भारतीय समाचार मा यम उन वासी भारतीयों के मह व को बढ़ा-चढ़ाकर आकलन करते हैं ज हे ं अमरीका के सरकारी पदों पर नयु मल जाती है, इस पू वक पत भावना के साथ क यह हमेशा ही भारत के हतों के अनुकूल होता है। ले कन अनेक मामलों मे ं स य ठ क इसका उ टा होता है : य वशेष अपनी भारतीय पहचान का उपयोग अपने पेशव े र वकास के लए करते है,ं और वे भारतीय हतों के लए अपनी गदन बाहर नहीं नकालना चाहते ँ ी ही खच करना चाहते है।ं उनमे ं से बहुतों को और न ही य गत राजनी तक पू ज जा त स ब धी सतही वषयों, बॉलीवुड पा टयों और भारतीय पॉप सं कृ त से परे वैसी बातों क प पकड़ नहीं है क भारतीय हतों के ऐसे वषय या हो सकते है।ं

16 े वतमान भारत मे ं तानी ह त प

‘भ व य के सा ा य बु के सा ा य है’ं । (हावड यू नव सटी मे ं बोलते हुए वं टन च चल)1

जहाँ हमने मु य प मे अमरीक ईसाई ह त प े पर यान के त कया, वहीं यू रोप के भारत के साथ अपने ही उलझे हुए स ब ध है,ं जो औप नवे शक इ तहास और मशनरी वृता तों से लदे है।ं नयी श याँ हैं जो इस अव श क पना को पुनज वत करती हैं ता क इसके समाज के बेदखल वग को अपने भाव े मे ं लेकर भारत के ईसाईकरण के लए एक पिर थ त न मत कर सकें। हम इस अ याय का ार भ सबसे मुख यू रोपीय सं गठनों का सं हवलोकन करते हुए तथा उनक ग त व धयों क पड़ताल के साथ करते है।ं जहाँ अमरीक समू ह भारत के बारे मे ं अपनी शकायते ं यू .एस. क मशन ऑन इं टरनेशनल िर ल जयस डम के सम ले जाते है,ं वहीं अ धक स भावना रहती है क यू रोपीय समू ह भारत क आलोचना बड़े बहुरा ीय मं चों पर करे,ं जैसे 2001 का डबन न लवाद वरोधी स मेलन, 2009 का जेनव े ा स मेलन, और यू रोपीय सं सद आ द। यह अ याय इं लै ड पर यान के त करता है, और इसके बाद के अ याय शेष यू रोप पर। च 16.1 इस अ याय का एक सं हवलोकन द शत करता है, और जन मुख खला ड़यों क चचा क जानी है उनके बारे मे ं सारां श न न कार है।

यन सॉ लडै िरटी व डवाइड (Christian Solidarity Worldwide) (सी.एस.ड यू .) यन सॉ लडै िरटी व डवाइड टेन थत एक अ तरा ीय ईसाई आ दोलनकारी समू ह है। अ त द णप थी त वों के नेत ृ व वाले इस सं गठन ारा द लत मोच वाले यू रोपीय सं गठन चलाये जाते है,ं जो द लत-चेहरे वाले ऐसे ही अमरीक ईसाई चारक समू हों के साथ सहयोग करते है।ं सी.एस.ड यू . अ तरा ीय मं चों पर और यू रोपीय राजनी त ों के सम उ भारत वरोधी तक देने के लए द लत वषयों का उपयोग एक बहाने के प मे ं करता है।  

द लत सॉ लडै िरटी नेटवक—यू .के. सी.एस.ड यू . से स ब द लत सॉ लडै िरटी नेटवक—यू .के. अ त वाम और द णप थी दोनों खेमों से आने वाले उ राजनी त ों, श शाली लोक सेवकों, और ी

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व ीय सहायता देने वाले शासकों तथा भारत मे ं नवेशों को पोसता-बढ़ाता है। यह टेन थत समू हों के साथ सहयोग करता है, जैसे ल डन इं टी ू ट ऑफ साउथ ए शया ( लसा), जो भारत के वख डन के लए खुला आ ान करता है। यह भारत मे ं अ क -द लत श यों, जैसे द लत वॉयस को समथन देता है। यह टेन मे ं ववादा पद अ ययन के लए धन देता है जो टेन मे ं रह रहे भारतीयों क जा त के ा पों के आधार पर प-रेखा तैयार करते है।ं

इं टरनेशनल द लत सॉ लडै िरटी नेटवक इं टरनेशनल द लत सॉ लडै िरटी नेटवक स पू ण यू रोपीय महा ीप मे ं एन.जी.ओ. और राजनी त ों के साथ-साथ साउथ ए शयन टडीज के श ा वदों के साथ सहयोग करते हुए काम करता है। यह भारत के चच से स ब द लत आ दोलनकािरयों और श ा वदों को या यान दौरों पर और यू रोपीय सं सदीय सं थाओं के सम गवा हयाँ देने के लए यू रोप बुलाता है। इसके भारतीय ईसाई चारक अन गनत सं गठनों के साथ सश स ब ध है।ं

चच से स ब ध वाले भारत

थत द लत सं थान और य

पछले कई वष मे ं ईसाई सं थानों ने छ -प थ- नरपे सं गठन बनाये हैं और उन व ानों को स पो षत कया है जो आय जा त के स ा त के कारण भारतीय सं कृ त पर असा य प से द लत वरोधी होने का आरोप लगाने मे ं वशेष ता रखते है।ं यू रोपीय ईसाई समू ह इन भारतीय द लत मोच , जैसे नैशनल द लत ू मन राइ स क मशन और नैशनल द लत वीमे स फोरम के साथ-साथ कुछ व ानों क द लत मु के एकमा स े वर क अगुवाई करते हुए यू रोपीय ह त प े के लए दलीले ं देते है।ं

टेन मे ं भारत वरोधी धुरी हालाँ क औप नवे शक काल के बाद के अ ययनों ने भारतीय स यता क जं गली छ व तुत कये जाने क आलोचना क है, ईसाई द णप थी सं थानों ने हाल के वष मे ं दु चार के मा यम से उ हे ं पुनज वत करने क अथक को शश क है। वे अमरीका, यू रोप और भारत मे ं स ब ों के साथ मलकर काय करते है।ं इसमे ं उनको मली Fig. 16.1 यू रोप नय त द लत स यतावाद और भारत का पुन:-औप नवेशीकरण

उ ख े नीय सफलता का माण यह है क यू रोपीय नी त नधारक सं थानों मे,ं जनमे ं यू रोपीय सं सद भी शा मल है, वण को न ल के समतु य बताया जाता है। शै क द लत अ ययन अ तरा ीय एन.जी.ओ. से जुड़ गये है।ं पू व तानी सा ा य क अवचेतन क मृ तयाँ टेन के उन त वों को िे रत करती हैं जो भारत को वख डत देखना चाहते है।ं स ा के के आस-पास सुनायी देने वाले छटपुट वर ऐसे लगते हैं मानो वे भारत को हं सा और वख डन क ओर धकेल देना चाहते है।ं उदाहरण के लए, 1991 मे ं ल े ारा राजीव गाँधी क नृशंस ह या के एक स ाह के अ दर तानी वदेश म ालय क एक आवाज, ल दन के समाचार-प टाइ स, ने एक स पादक य छापा जसमे ं कहा गया क भारत ‘उ हीं र रं जत तनावों और नजर दाज कये गये समाधानों का सामना कर रहा है’ जसके फल व प सो वयत सं घ के टुकड़े -टुकड़े हो गये थे। इसने भारत क तुलना पू व सो वयत सं घ से क और अनुशंसा क क बना ‘ह याओं और दं गों’ के ‘आगे का ै

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माग’ है ‘रा यों और उप-रा यों को उनक अपनी आ थक नी तयाँ बनाने दी जाये,ं और वे जैसा चाहे,ं अ धक-से-अ धक वदेशी नवेश और मु बाज़ार के स ा तों को लाने क उ हे ं अनुम त दे दी जाये’।2 ‘रा यों और उप-रा यों’ क आ थक वत ता के भेष मे ं इस अलगाववादी स देश को टश सां सद मै स मैडेन ने और आगे वक सत कया और इसे पू ण वक सत वख डन के प मे ं अ भ य कया। क मीर पर डे नमाक मे ं हो रहे एक स मेलन मे ं बोलते हुए मैडेन ने भारत के आ म- वनाश क माँग क । सो वयत और तानी सा ा यों के वघटन को याद करते हुए उ होंने न उठाया : ‘भारतीय सं घ और इसक वतमान सीमाएँ हमेशा के लए यों बनी रहनी चा हएँ?’ उ होंने व के सबसे बड़े लोकत के प मे ं भारत क वतमान अव था पर ही न कया : ‘हम सभी भारतीयों से सुनते हैं क उनके पास व का सबसे बड़ा लोकत है; हममे ं से अनेक उस पर मौ लक न उठाते है’ं । मैडेन ने सुझाव दया क सं य ु रा को क मीर क वत ता का पयवे ण करना चा हए, एक भू मका जसे क मीर से परे भी व तािरत कया जा सकता है : ‘और इसमे ं स पू ण े शा मल हो सकता है। ऐसा ही हो’।3 ऐसे सुझावों को आज भी जी वत रखा जा रहा है। उदाहरण के लए, एक वेबसाइट www.countercurrents.org ने एक दशक पुराने टाइ स ऑफ ल दन के ृ कया गया यह न कष नकालने के लए क एक लेख को यापक प से उ त ार भ से ही भारत के लए सबसे अ छा माग उसे सैकड़ों हौंगकौंग मे ं बाँट देना होता।4

यन सॉ लडै िरटी व डवाइड इस कार प म के अनेक लोगों ने भारत पर हार करने के लए सामा जक याय का झ डा उठा रखा है। उदाहरण के लए, यन सॉ लडै िरटी व डवाइड ं (सी.एस.ड यू .) का ार भ 1979 मे ं व जरलैड थत ‘ यन सॉ लडै िरटी इ टरनैशनल’ (Christian Solidarity International) क तानी शाखा के प मे ं हुआ। यह ईसाई अ पसं यक रा ों मे ं काम कर रहे ईसाई चारकों के लए गुटबाजी करने वाला एक अ तरा ीय लॉ बं ग सं गठन है, ले कन यह वयं को यह एक ‘मानवा धकार सं गठन’ के प मे ं तुत करता है।5 इसक अ य हैं बैरोनेस ं े ंट पाट के कैरो लन कॉ स, एक द णप थी तानी राजनी त ज हे ं यू .के. इ डपेड क रप थी न लवादी ख को खुलआ े म समथन करने के लए टोरी पाट से 6 न का सत कर दया गया था। सन 1998 से, सी.एस.ड यू . के ऑल इ डया यन काउं सल (ए.आई.सी.सी.) के साथ रणनी तगत सहयोग चल रहे है।ं उसके बाद, द लत डम नेटवक (डी.एफ.एन.) को एक श शाली कोणीय गठजोड़ बनाने के लए इसमे ं शा मल कया गया : यू रोप मे ं सी.एस.ड यू ., सं य ु रा य अमरीका मे ं डी.एफ.एन., औ ें ई ी ी ें ो ी औ ी े ो ो

और भारत मे ं ए.आई.सी.सी. भारत मे ं यू रोपीय और अमरीक ह त प े को ो सा हत करने के काम मे ं कस के एकजुट है।ं भारत के व अपने अ तरा ीय अ भयानों के लए सी.एस.ड यू . क र ईसाई सं गठनों, जैसे इ टरसेसस नेटवक, क पास ं े लकल फेलो शप, ऐलाय स िर लजस लबट क मशन डायरे ट, लबट व ड इवैज (Intercesors Network, Compas Direct, Liberty World Evangelical Felowship, Aliance Religious Liberty Comision) और ‘सेवे थ डे ऐडवे ट ट चच’ (Seventh Day Adventist Church) आ द, के साथ टीम बनाकर काम करने को इ छु क है।ं 7 सन 2001 मे,ं सी.एस.ड यू . ने भारत पर चार सं सदीय न उठाने के लए टेन के सां सदों के मा यम से काम कया, जब क इसके समाना तर, ए.आई.सी.सी. ने सं य ु रा सं घ मे ं भारत के व वही न उठाये। सन 2006 मे,ं सी.एस.ड यू . ने लेबर पाट से सां सद ऐ डी रीड का, जो इसके बोड के सद य हुआ करते थे,8 उपयोग उन भारतीय कानू नों के व अ भयान का नेत ृ व करने के लए कया, जो अनु चत हथक डों के मा यम से धमा तरण पर रोक लगाते है।ं रीड एक ईसाई सं र णवादी सां सद के साथ भारत के दौरे पर गये;9 वे अपने साथ भारत के रा प त को स बो धत एक प ले गये जसमे ं सोलह सां सदों के ह ता र थे, जसे उ होंने वयं भारत सरकार को सौंपा।10 सन 2007 मे,ं सी.एस.ड यू . ने ‘भारत क छपी हुई दासता’ (इ डयाज हडे न ं री का दशन ार भ कया, जसका नमाण उसने लेवरी) नामक एक डॉ यू मेट डी.एफ.एन. के साथ मलकर कया था।11 सी.एस.ड यू . क वा षक रपट उ ख े करती है क ‘धमा तरण वरोधी कानू नों और ईसाई वरोधी हं सा पर इसके ारा दी ृ कया गया, जसमे ं गयी जानकािरयों का यापक चार हुआ और उ हे ं उ त 12 अमरीक कां स े क सुनवाई भी शा मल है’। उसी वष, टीफेन ै ब नामक एक सां सद ने, जो क जव टव पाट ू मन राइ स क मशन के अ य भी है,ं द लत मु ों पर टश सं सद मे ं एक बहस शु क , और इस बात का उ घाटन कया क उ हे ं सी.एस.ड यू . के एक नेता ारा त यों क जानकारी लेने के लए भारत के दौरे पर ले जाया गया था।13 ै ब यन ऐ शन नामक एक ढ़वादी गुटबाज सं था से शोधा थयों को काम मे ं लाते है,ं जसक पु टश स े भी करती है, और जनके ‘अमरीका मे ं श शाली ईसाई द णप थयों से स ब ध है’ं ।14 सन 2008 मे,ं सी.एस.ड यू . और डी.एफ.एन. ने एक श शाली समू ह, ू मन राइ स वॉच को इस बात पर सहमत करा लया क वे इं लै ड के वदेश म ी, अमरीका के वदेश म ी, ां सीसी वदेश म ी, और वदेशी स ब धों पर यू रोपीय आयु को यह माँग करते हुए सं य ु प भेजे ं क एक ह दू साधु क ह या के पिरणाम व प उड़ीसा मे ं बड़े पैमाने पर हुए ह दू -ईसाई दं गों मे ं ईसाइयों के प मे ं अ तरा ीय व य जारी कये जाये।ं 15 उ होंने आशा के अनु प इकतरफा दृ कोण ें



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दया, जसमे ं हर बात के लए ह दू धम क न दा क गयी और बहुत-पुराना ईसाई उ पीड़न वाला प ा खेला गया। सी.एस.ड यू . क सं य ु रा मानवा धकार पिरषदे ं जैसी सं थाओं के साथ मलकर गुट बनाने वाली ग त व धयों का उपयोग भारत क एकता को कम करने के ु ऑफ ू मन राइ स क मशन क 2008 क रपट लए कया गया। यू .एन. व कग प ृ कया गया मे ं भारत मे ं द लतों और जा त सं घष पर सी.एस.ड यू . क रपट को उ त 16 है, जसमे ं सी.एस.ड यू . बल देकर कहता है क वण आधािरत भेदभाव का उपयोग ‘भारत मे ं सभी मुख मानवा धकार उ ं घनों के लए एक व लेषणा मक उपकरण’ के प मे ं कया जाना चा हए।17 वही रपट आगे एक ईसाई उ वादी सं गठन, पुरा पीप स डे मो ै टक ट, ‘ जसने रा य के कुछ सुदूरवत े ों मे ं समाना तर सरकार चला रखी है,’ ारा लगाये गये आरोपों पर भरोसा करते हुए इस दृ कोण पर फर बल देती है।18

द लत सॉ लडै िरटी नेटवक—यू .के. द लत सॉ लडै िरटी नेटवक—यू .के. (डी.एस.एन.-यू .के.) क थापना 1998 मे ं वण सं घष के वषयों को टेन क सरकार, सं सद, आ थक सहायता देने वाली एजे ं सयों, म सं गठनों, और यावसा यक घरानों के सामने उठाने के लए क गयी थी। उसके सं थापक डे वड ह लम नामक एक मेथो ड ट म न टर है।ं सन 2000 मे,ं डी.एस.एन.-यू .के. का व तार इं टरनैशनल द लत सॉ लडै िरटी नेटवक (आई.डी. एस.एन.) के प मे ं हुआ, जसका मु यालय डे नमाक मे ं है। ार भ मे,ं डी.एस.एन.-यू .के. को मु यत: ‘ यन एड’ (Christian Aid) से धन ं फंड तथा ऐं लकन मलता था, और साथ मे ं मेथो ड ट िरलीफ ए ड डे वलपमेट 19 यू .एस.पी.जी. से अ तिर समथन भी मलता था। यन एड, एक ईसाई चारक समू ह है जो गरीबों के बीच अपने हं सक यवहार के लए कु यात है; उस 2001 के डबन स मेलन मे ं वण के मु ों पर भारत सरकार के व गुट बनाकर चार करने के लए डी.एस.एन.-यू .के. को ायो जत कया था। यन एड और 20 डी.एस.एन. का एक प गठब धन है। डी.एस.एन.-यू .के. को कई अ य मुख ईसाई चारक सं गठनों ारा धन दया जाता है,21 जनमे ं ऐं लकन यू .एस.पी.जी. भी शा मल है। यू .एस.पी.जी. वेबसाइट यह उजागर न करने के त सतक है क ‘यू .एस.पी.जी.’ के अ भ ाय या है।ं इसका मू ल नाम ‘सोसाइटी फॉर द ोपेगश े न ऑफ द गॉ प स’ (Society for the Propagation of the Gospels) था, जसक जड़े ं अमरीका मे ं दासों के वा मयों के समू ह क श ल मे ं थीं जहाँ यह दासों से खेती करवाता था।22 सन 1820 मे ं इसने अपने मशनरी भारत भेज,े जहाँ उ होंने वड़ न लवादी स ा तों को तैयार करने और एक अलगाववादी ो

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आ दोलन को ो सा हत करने मे ं इनका उपयोग करने मे ं मह वपू ण भू मका नभायी। 23

सन 2004 मे,ं डी.एस.एन.-यू .के. ने भारत क वण सम या को भारत सरकार के साथ उठाने के लए इं लै ड क सं सद क अ तरा ीय वकास स म त को राजी कर लया क वह अपने भारत दौरे के समय इस मु े को उठा सके। उसी वष डी.एस.एन.यू .के. ने इस मु े पर लेबर पाट के अ धवेशन मे ं एक बैठक आयो जत क । इसके ं के सबसे बड़े म सं गठन के पू व महास चव है,ं जनके या सयों मे ं से एक कॉटलैड कैथो लक चच के साथ नकट के स ब ध है,ं और ऐसे स पक से इसे भारत वरोधी अ भयान को नजी े मे ं फैलाने मे ं सहायता मली।24 डी.एस.एन.-यू .के. ने टेन क सं सद मे ं भारत मे ं वण सं घष पर बहस शु करवाने मे ं सफलतापू वक लॉ बं ग क , और टेन मे ं वासी भारतीयों को ल य बनाया, यह आरोप लगाते हुए क आ वासी भारतीय समुदाय मे ं यापक प से वण आधािरत भेदभाव है। डी.एस.एन.-यू .के. ारा एक शोध ताव तैयार कया गया और स ब धत समू हों क अगुवाई मे ं एक रपट तैयार क गयी जसका शीषक था—‘कोई छु टकारा नहीं : इं लै ड मे ं वण भेद’ (No Escape: Caste Discrimination in the U.K) जसमे ं अनेक वैसे व य हैं जो ह दुओ ं और वासी भारतीयों क पटी- पटाई छ वयों को त ब बत करते है।ं 25 टश ह दुओ ं ने उ रपट को चुनौती दी, और सन 2008 मे ं टश ह दू काउं सल ारा एक सव ण कर रपट का शत क गयी जसके पिरणामों ने डी.एस.एन.-यू .के. रपट का ख डन कया।26 सन 2007 मे,ं डी.एस.एन.-यू .के. ने यन सॉ लडै िरटी व डवाइड के साथ मलकर द लतों पर एक बैठक आयो जत क , जसमे ं अमरीका थत द लत डम नेटवक से जुड़े व ा शा मल हुए। डी.एफ.एन. के मोजेज पामर ने कहा क केवल ं डे वड ह लम ने, ईसाइयत द लतों के लए वत ता सु न त कराती है और रेवरेड जो डी.एस.एन. या सयों के नेटवक के अ य है,ं कहा क द लत सम याओं का अ तरा ीयकरण कया जाना चा हए।27 लेबर पाट के सां सद, जेरेमी कॉ बन, ने जो डी.एस.एन.-यू .के. के अ य भी है,ं कहा, ‘हमारी वा त वक ज मेदारी है क हम इस सं घष को टेन क सं सद के अ दर और बाहर जारी रखे,ं ता क टेन मे ं लोगों क चेतना को ऊपर उठाया जा सके’।28 कॉ बन ने तब धत ल े आतं कवादी समू ह का भी समथन कया और यू रोपीय यू नयन मे ं ल े पर तब ध को हटाने के लए गुट बनाकर चार कया।29 वे एक यू .के. थत मानवा धकार सं गठन30 लबरेशन के भी अ य है,ं जसने भारतीय व ो हयों को गलत नामों से सं य ु रा सं घ मे ं वेश कराया था।31 रॉब मॉिरस (Rob Morris), डी.एस.एन.-यू .के. के एक अ य यासी, जो एक सं सद सद य भी है,ं वण आधािरत मानवा धकार उ ं घनों का आरोप लगाते हुए ं



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सं य ु रा सं घ क सुर ा पिरषद के थायी सद य बनने के भारत के दावे का वरोध करते है।ं 32 वे सख क रप थयों ारा भारत से अलग एक धा मक रा के प मे ं खा ल तान के गठन के भी समथक है।ं 33 कॉ बन और मॉिरस दोनों वदेशी नवेशों के मामलों क नगरानी करने वाली श शाली सं सदीय स म त मे ं शा मल है,ं 34 और इस लए द लत मुखौटे वाले ईसाई चारक समू हों क ओर से भारत पर दबाव डालने के लए टेन क सरकार क धौंस का उपयोग करने के लए अ छ थ त मे ं है।ं

लसा (LISA) जहाँ डी.एस.एन.-यू .के. जैसे सं गठन वयं को स मानजनक आभा के साथ तुत करते है,ं कुछ सं गठन जनके साथ वे यू नाइटेड कंगडम मे ं स ब धत है,ं हं सा और न लवाद के खुलआ े म समथक है।ं ऐसा ही एक स य सं गठन है ‘ल दन इं ट ू ट फॉर साउथ ए शया’ (London Institute for South Asia, लसा), एक उ म भारत वरोधी सं थान जसक वेबसाइट यह दावा करते हुए भारत के अ दर तीन े ों मे ं हं सा मक अलगाववादी आ दोलनों का समथन करती है क ‘द ण ए शया के स पू ण े मे ं नर तर अ थरता और आ थक दुदशा’ के लए भारत ज मेदार है। इसके आरोप ग भीर है,ं जैसा क नीचे दया जा रहा है : भारतीय सश बल ज मू और क मीर, पं जाब ( सख) और असम रा यों मे ं सैकड़ों हज़ार लोगों क ह या करते हुए कम-से-कम स ह वत ता/सुधार आ दोलनों को नृशंसतापू वक दबा रहे है।ं फर भी यह (भारत)—भगवान बु का ज म थान और गाँधीवादी अ हं सा के अनुयायी शा तवादी समाज के प मे ं अपनी छ व बनाये रखने मे ं सफल रहा है।35 अपनी वेबसाइट के मुख पृ पर खा ल तानी आतं कवादी भ डराँवाले का च दखाते हुए, लसा भारत मे ं बहुसं यकों को दबाने के लए एक ह दू -क र यहू दीपर त (Zionist ) ष का आरोप लगाता है : आज भी जब भारत मे ं गैर- ह दू बहुसं यक े ीय और वण आधािरत राजनी तक पा टयों के नेत ृ व मे ं आ म व ास हा सल कर रहे है,ं ह दू ं े को अ पसं यक भारत पर अपने इ लाम वरोधी और क र यहू दीपर त एजेड 36 थोपने मे ं सफल है।ं इस सं गठन के दोनों नदेशक पा क तानी है,ं जनमे ं से एक हैं उ मान खा लद, पा क तानी सेना के एक अवकाश ा गे डयर। यह वेबसाइट ब लादेश के लए 1971 के पू व के नाम—पू व पा क तान—का उ ख े भी करती है। उ मान खा लद के लेखन केरल के एक ईसाई प कार बनू मै यू ज ारा सं चा लत समाचार पोटल CounterCurents.org मे ं भी उपल ध है,ं जो वयं को एक ‘वैक पक समाचार साइट’ के प मे ं तुत करता है और ‘उन सबके लए’ सहानुभू त रखता है ‘जो ं ं औ ी ी े

आ थक, राजनी तक, सामा जक, सां कृ तक, लं ग, और पयावरणीय याय के लए सं घषरत है’ं ।37 लसा इस दु चार अ भयान क अगुआई करता है क ‘भारत मे ं लोगों को ब दी बनाकर रखा जा रहा है’, और इसके लए इसने अपना अ तरा ीय पुर कार वी.टी. राजशेखर, जो द लत वॉयस के स पादक है,ं को उनक पु तक ‘वण-रा के भीतर रा ’ (Caste—A Nation within the Nation) के लए दया।38 पुर कार डे वड ह लम के हाथों दया गया, जो डी.एस.एन.-यू .के. के सं थापक यासी है।ं राजशेखर एक क र न लवादी और ह दू वरोधी दृ कोण अपनाते है,ं जो यहू दी- वरोधी सा ह य से अपने वचार और उ रण लेते है,ं जो हटलर क शं सा करते है,ं यहू दी महा वनाश को यू नतम करार देते या उससे इनकार करते है,ं और दावा करते हैं क ा ण ‘भारत के यहू दी है’ं ।39 सन 2009 मे,ं लसा ने अपना अ तरा ीय पुर कार ‘ टॉकहोम ऐ ोपोलॉ जकल िरसच ऑन इ डया’ (Stockholm Anthropological Research on India, SARI)40 क सं योजक, ईवा-मािरया हाटमैन (Eva-Maria Hardtman) को दया, जनके ह दू धम के साथ तनावपू ण ढं ग से द लत पहचान को ो सा हत करने वाले काम का व लेषण अगले अ याय मे ं कया गया है। पुर कार समारोह मे ं ‘द ण ए शया मे ं आ म नणय के अ धकार का उपयोग’ वषय पर एक गो ी भी ं शा मल थी। व ाओं मे ं इं गलैड थत काउं सल ऑफ खा ल तान के त न ध भी शा मल थे, जसका एक अलग सख रा के लए हं सा मक आतं कवादी आ दोलन का भारत मे ं जोर समा हो गया है।41 इस कार लसा यू रोपीय द लत श ा वदों, भारतीय द लत आ दोलनकािरयों, भारत वरोधी अलगाववा दयों और पा क तान मे ं अ खल-इ लामी बलों को एक साथ लाने के लए इं लै ड मे ं एक मह वपू ण के के प मे ं काम कर रहा है।

ऑ सफाड धा मक और सावज नक जीवन के

(ओ.सी.आर.पी.एल.)

‘ऑ सफोड धा मक और सावज नक जीवन के ’ (The Oxford Centre for Religious and Public Life) का घो षत उ े य है ‘सावज नक जीवन मे ं धम क भू मका क एक बेहतर समझ’ को ो सा हत करना। ले कन यवहार मे ं यह सं य ु रा य अमरीका के ईसाई चारक समू हों को समथन देता है और इसक वेबसाइट ं े लकल मशन वीकार करती है क इसे द इं टरनेशनल फेलो शप ऑफ इवैज थओलॉ जय स (The International Feloshio of Evangelical Mision Theologians, INFEMIT) ारा कये गये प ीस वष के शोध और श ा के आधार पर न मत कया गया था। े

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इ फे मट व यापी ईसाई व तारवाद को आगे बढ़ाने मे ं स य है, उदाहरण के लए, द ण ए शया मे ं धा मक उ वाद पर एक गो ी के सह- ायोजक के प मे,ं ं र मे ं ( जसका वणन 13वे ं अ याय मे ं कया जसे ए थ स ऐ ड प लक पॉ लसी सेट जा चुका है) आयो जत कया गया था। ह दू उ वाद पर के त इस वचार वमश का उ े य ‘सं य ु रा य अमरीका क नी तगत स भा वत त या का अ दाजा लगाना’ था।42 सन 2003 मे,ं इ फे मट ने शकागो थत ावेल ट से धनरा श ा क थी जो सृ वादी क रप थी सं गठनों के साथ साठ-गाँठ करता है। ओ.सी.आर.पी.एल. के सभी नदेशक ईसाई हैं और ईसाई चारक सं गठनों से आते है।ं 43 इनमे ं एकमा अमरीक द णप थी हडसन इं टी ू ट के है।ं 44 ओ.सी.आर.पी.एल. आ दोलनकािरयों, प कारों और ईसाई चारकों के एक चु न दा समू ह से इक ा करके भारत पर उ पीड़न सा ह य का काशन करता है। सन 2007 मे,ं ‘धा मक ववादों क सू चना’ (Reporting Religious Controversies) वषय पर ं ऑफ एक स मेलन का आयोजन कया गया था जसे कैथो लक बश स कॉ फेरेस 45 इ डया के क मशन फॉर सोशल क यु नकेश स ने ायो जत कया था।

17 े यू रोपीय महा ीप का ह त प प म मे ं हालाँ क मा सवादी और ईसाई क रप थी एक-दू सरे क कड़ी आलोचना करते है,ं ले कन भारतीय स यता के व वे साझा मोचा बना लेते है।ं इस गठजोड़ ारा यू रोपीय सं सद, व भ अ तरा ीय सं गठनों और यू रोपीय सं थानों मे ं होने वाले शै क स मेलनों मे ं भारत क आलोचना क जाती रही है। यू रोपीय महा ीप पर नजर डालने पर, वशेषकर कैं डने वया पर, अन गनत मा सवादी मल जाते हैं जो वण को न ल के साथ मलाने के लए तब है।ं वण • न ल समीकरण अ मता क राजनी त का अ य धक ऋणी है (अ याय 5 और 6 मे ं व णत कया गया है), जो औप नवेशवादी मशनिरयों ारा ार भ कया गया था, ज होंने वड़ों क पहचान एक न ल के प मे ं क थी। वण और न ल को मलाने क ताजा ग त 2001 मे ं डबन, द ण अ का मे ं आयो जत न लवाद, न लवादी भेदभाव, वदे शयों से भय और स ब धत अस ह णुता पर व स मेलन’ (World Conference against Racism, Racial Discrimination, Xenophobia and Related Intolerance) से आयी जसका आयोजन सं य ु रा सं घ मानवा धकार आयोग के त वावधान मे ं कया गया था। ं े मे ं भारत सरकार ारा क गयी इन ट प णयों के बावजू द भारतीय वण- यव था एजेड थी : व स मेलन क तैयारी के दौरान भारत मे ं वण आधािरत भेदभाव के बारे मे ं दु चार कया जाता रहा है, जो अ य त बढ़ा-चढ़ा कर तुत कया गया और गुमराह करने वाला है, और जो बहुधा क सों के सा यों पर आधािरत है।... हमारा यह दृढ़ दृ कोण है क वण का मु ा इस स मेलन मे ं वचार- वमश के लए कोई समु चत वषय नहीं है। हम यहाँ यह सु न त करने के लए हैं क कसी भी नागिरक या नागिरकों के समू ह के व रा य ारा ायो जत, सं थागत भेदभाव न हो। हम यहाँ यह सु न त करने के लए हैं क रा य तगामी सामा जक वृ को न तो मा करे और न ही ो सा हत करे। हम यहाँ इस लए नहीं हैं क सद य रा यों के अ दर सामा जक इं जी न यं रग मे ं सं ल न हों। यह न तो वैध है, न ही स भव होने यो य, और न ही इस व स मेलन के लए यावहािरक, या फर सच पू छे ं तो, न ही सं य ु रा के लए कानू न बनाने यो य, हमारे समाजों मे ं य गत यवहारों क पु लस-सरीखी नगरानी करने क तो बात ही छोड़ दी जए।1 डबन स मेलन ने अ तत: वण को न ल का समतु य नहीं बताया, ले कन इसने ं े पर काम करने के दरवाजा खोल दया, और तब से ही आ दोलनकािरयों मे ं एजेड ो



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लए जोश आ गया है। यह अ याय वैसे कुछ समू हों क खोज करेगा जनके इस वचार से कये जा रहे काम भारत को वख डन क ओर ले जा रहे है।ं च 17.1 इस अ याय के लए एक परेखा है।

  Fig. 17.1 भारत मे ं यू रो पय महा ीपीय से नय

त आ दोलनकारी- श ा वद त

इं टरनेशनल द लत सॉ लडै िरटी नेटवक (IDSN) सन 1998 मे ं इं लै ड मे ं द लत सॉ लडै िरटी नेटवक क थापना के बाद, सन 2000 मे ं इं टरनैशनल द लत सॉ लडै िरटी नेटवक का गठन कया गया जसका मु यालय कोपेनहेगन मे ं रखा गया। इसका घो षत ल य है ‘अ तरा ीय तर पर द लत अ धकारों के लए ह त प े को सुगम बनाना, जनमे ं यू रोपीय सं घ के आयोग और सं सद, सं य ु रा मानवा धकार त ों, अ तरा ीय म सं गठन (आई.एल.ओ.), और अ य मं चों के सामने इस वषय को रखना भी शा मल है’।2 इसके लए व क यव था लगभग पू री तरह प म के ईसाई सं गठनों ारा क जाती है।3 आई.डी.एस.एन. के पदों पर आसीन लोग भारत थत नैशनल द लत टा क फोस को, जो ऐसा सं गठन है जसे नैशनल काउं सल ऑफ चचज इन इ डया ारा व ड काउं सल ऑफ चचज, लुथरे न व ड फेडरेशन, और लोबल मशन ऑफ द ैं े े ी ै े े ी ों े

ं े लकल लुथरे न चच इन अमरीका जैसे वदेशी समू हों के साथ मलकर बनाया इवैज गया है, परामश भी देते है।ं इसका घो षत ल य है ‘द लत मु पर भारत के बाहर स मेलन आयो जत करना और द लत टा क फोस को स य बनाना’।4 ये सं गठन, आई.डी.एस.एन. और डी.एस.एन.-यू .के. के साथ, इसे रणनी तगत दशा देते है।ं 5 आई.डी.एस.एन. क शाखाएँ स पू ण यू रोप मे ं है,ं जनके अ धकां श पदासीन लोगों के बल ईसाई चारक चच स पक है।ं 6 द लत मामलों मे ं नदशन के लए इनके काम करने का तरीका है सव पदों के लए चच अ धकािरयों का चयन करना। उदाहरण के लए, इसक ां स शाखा के मुख भारत मे ं एक चच समू ह के लए पिरयोजना पदा धकारी भी है।ं 7 जमनी मे,ं आई.डी.एस.एन. के मुख लुथरे न चच के काय म अ धकारी हैं जो भारत मे ं व भ ग त व धयों को नद शत करते है।ं 8 इसके बे जयम स पक सू एक आ थक सहायता दाता कैथो लक सं गठन से जुड़े है।ं 9 ं मे ं आई.डी.एस.एन. आ दोलन का नदशन उन लोगों ारा वीडन और नीदरलैड कया जाता है जो अ तरा ीय मं चों पर भारत के व अपनी कटु आलोचनाओं के 10 लए जाने जाते है।ं आई.डी.एस.एन. के सह-सं योजकों मे ं से एक, पॉल दवाकर, क एक बल चच पृ भू म है11 और वे द लत चेहरे वाले भारत थत एक अ य ईसाई सं गठन, नैशनल कै पेन फॉर द लत ू मन राइ स के भी सं योजक है।ं

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सं घ मे ं भारत के व

वकालत

आई.डी.एस.एन. और इसके भारतीय सहयो गयों ारा लगातार अ भयान चलाये जाने के पिरणाम व प सन 2005 मे ं मानवा धकार पर सं य ु रा आयोग ने एक ताव अपनाया क वण आधािरत भेदभाव के अ ययन के लए दो वशेष दू त नयु कये जाये।ं 12 इस ल य को ा करने के लए, ‘लुथरे न व ड फेडे रेशन’ (Lutheran World Federation) ने सं य ु रा सं घ के अ धकां श सद य रा ों को ल खत आवेदन दया था, जब क इसके समाना तर आई.डी.एस.एन. ने जेनव े ा थत सरकारी मशनों 13 मे ं गुट बनाकर दबाव डाला था। दोनों नयु दू त ढ़वादी ईसाई थे, एक टो कयो थत इं टरनेशनल यन यू नव सटी से ातक,14 और दू सरी एक द ण कोिरयाई समाजशा ी तथा चच सं गठनों के लए काम करने वाली स य कायकता।15 आई.डी.एस.एन. ने पू री पिरयोजना के दौरान इन दोनों से साथ मलकर काम कया, और काम करने का ा प दया जसने सं य ु रा सं घ क रपट के अ धकां श भाग को एक न त व प दान कया।16 आई.डी.एस.एन. ने उनको चु न दा एन.जी.ओ. ारा जानकािरयाँ उपल ध करवाने का काम सुगम बनाया, ज हे ं और कसी ने भी कोई वरोधी जानकारी नहीं दी थी। इसने अ तरा ीय सं गठनों को, जनके साथ लुथरे न व ड फेडरेशन भी था, न लवाद के व गो ी आयो जत करने के लए उ िे रत कया, और इसके उ ा धकािरयों ने बड़े जोरदार ढं ग से अपने ईसाई समथक े

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ख तुत कये, जनमे ं रा सं घ के हाई क म नर फॉर ू मन राइ स को एक रपट सौंपना भी शा मल था।17 सं य ु रा सं घ के दू त क चार दवसीय भारत या ा के लए तो आई.डी.एस.एन. ारा धन भी दया गया था।18 आई.डी.एस.एन. व ास रखता है क वण को न ल के समतु य बनाने से भारत ं ,े जससे के आ तिरक मामलों मे ं अ तरा ीय ह त प े के लए दरवाजे खुल जायेग ईसाई धमा तरण मे ं सहायता मलेगी, और यह झू ठा दावा करता है क भारतीय ईसाइयत वणगत पू वा हों से पी ड़त नहीं है। जब भारत सरकार ने न ली भेदभाव के उ मू लन पर सं य ु रा क स म त को अपनी रपट दी, तो आई.डी.एस.एन. ने बड़े गव के साथ अपनी रपट मे ं कहा क वह कस कार भारत सरकार को नीचा दखाने के लए काम कर रहा था : आई.डी.एस.एन. सद यों ारा छाया रपटे ं तैयार क गयीं और स म त को सौंपी गयीं और स ब सं गठनों : नेशनल कै पेन ऑन द लत ू मन राइ स, इ डया; ं र फॉर ू मन राइ स ए ड लोबल ज टस/ ू मन राइ स वॉच; द लत सेट नेटवक ऑफ द नीदरलैं स इन एसो सएशन वद आई.डी.एस.एन.; और द ए शयन ू मन राइ स क मशन, सभी ने यथे रपटे ं अपनी अनुशां साओं क पू री सू ची के साथ सम पत क ।ं 19 सन 2007 मे,ं नर तर चलाये जा रहे भारत वरोधी अ भयान के दबाव मे ं सं य ु रा सं घ ने मानवा धकार उ ं घनों क समी ा के लए भारत को पहले देश के प मे ं चुना। आई.डी.एस.एन. ने नैशनल कै पेन ऑन द लत ू मन राइ स, लुथरे न व ड फेडरेशन, और ‘भेदभाव और न लवाद के सभी पों के व अ तरा ीय आ दोलन’ (International Movement Against Al Forms of Discrimination and Racism) के साथ मलकर भारत पर अपनी रपट पेश क , और इस रपट को ‘अ तिर व सनीय और भरोसेम द सू चनाएँ’ बताया जो ‘अ य ासं गक साझेदारों’ से ा हुए थे।20

यू रोपीय यू नयन मे ं भारत के व

वकालत

सन 2005 मे,ं आई.डी.एस.एन. ने यू रो पयन क मशन के सम ‘नैशनल कै पेन ऑन द लत ू मन राइ स’ (National Campaign on Dalit Human Rights) के उ ा धकािरयों क गवा हयों क यव था क । ल य था ‘द लतों के व उ ं घनों के वषय को भारत मे ं सरकारी अ धकािरयों ारा उठाने मे ं न यता और अ न छा, और सुनामी के बाद राहत और पुनवास यासों मे ं द लतों के साथ भेदभाव को रोकने मे ं उनक वफलता’ को था पत करना।21 उ होंने यू रो पयन क मशन को भारत के आ थक वकास काय मों मे ं ह त प े करने के लए आवेदन दया। आई.डी.एस.एन. यू रोपीय यू नयन के देशों ारा भारत भेजे जाने वाले वकास कोष भेजने के तरीके को े





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भा वत करने का एक श शाली के बन गया है, और उ तरीय बैठकें आयो जत करता है जनमे ं इसके चच अ धकारी द लत त न धयों को द ी मे ं यू रो पयन क मशन के सामने लाते है।ं 22 सन 2006 मे,ं डे नमाक के वदेशी मामलों के म ालय ने आई.डी.एस.एन. के मु य मशन के लए एक बड़ा अनुदान दया। आई.डी.एस.एन. ने द लत मानवा धकार पर यू रोपीय यू नयन क नी त पर न उठाने के लए एक डच सरकारी अ धकारी के साथ मलकर काम कया, जो ‘ऑ सफैम इ टरनैशनल’ (Oxfam International) के एक सद य भी है।ं 23 उसी वष यू रो पयन यू नयन के क म नर ने आई.डी.एस.एन. को प लखा क यू रोपीय यू नयन मे ं भेदभाव पर रा सं घ के वशेष दू त ( जनके भारत दौरे के लए आई.डी.एस.एन. ारा धन उपल ध कराया गया था) के आने का वागत है। यू रोपीय यू नयन ने सं य ु रा के अ ययन के लए राजनी तक और व ीय समथन का वचन दया, और अपने देश मे ं या न लवादी थाओं को वीकार न करने के लए भारत सरकार क आलोचना क ।24 यू रोपीय यू नयन के एक बड़े अ धकारी ज होंने इन सब के लए एक गठजोड़ के प मे ं काम कया, ओ.वी.पी., एक सं र णवादी और द णप थी पाट ऑ यन पीप स पाट से स ब है◌ं ै। दलच प बात यह है क यह पाट एक कैथो लक और समाजवाद वरोधी शासन क इ छा रखने के लए कु यात है, जो अपने देश मे ं सकारा मक कदम उठाये जाने का वरोध करता है।25

‘भारत के व

तब ध नहीं, मगर कम-से-कम ... ’

सन 2006 मे,ं यू रोपीय सं सद ने वकास स ब धी अपनी स म त क एक सुनवाई क , जसमे ं द लत वषय पर चचा क गयी। भारत सरकार ने यह कहते हुए इसमे ं अपने त न ध नहीं भेजे क ‘द लतों क सम या बलकुल आ तिरक है, एक नजी मामला’। जो भी हो, दो भारतीय द लत एन.जी.ओ. ने उसमे ं भाग लया। पॉल दवाकर ने, आई.डी.एस.एन. के भारत थत स ब सं गठन का त न ध व करते हुए, यू रोपीय सं सद के सामने गवाही दी। उनके साथ एक अ य भारत थत आ दोलनकारी थीं नैशनल फेडरेशन ऑफ द लत वमेन क थ मनोरमा, ज हे ं भी वदेशी गठजोड़ों ारा स पो षत कया गया है।26 उनक यू रोपीय चार या ा आई.डी.एस.एन. ारा ायो जत क गयी थी।27 पॉल दवाकर भारत के व सीधे तब ध लगाने का अनुरोध करते-करते क गये, ले कन उ होंने यू रोपीय लोगों से ‘भारत के साथ क जाने वाली सभी राजनी तक बातचीत मे’ं द लत काड खेलने का आ ान कर दया।28 दवाकर और मनोरमा ारा दी गयी गवा हयों और पिरणाम व प यू रोपीय सं सदीय स म त मे ं हुई वचार-गो ी पर एक एन.जी.ओ. ारा इस कार रपट तुत ी

क गयी : स म त क अ य , समाजवादी समू ह क लुईसा मोग टनी (Louisa Morgantini) ने दवाकर और मनोरमा क गवा हयों पर त या मे ं कहा क भारत मे ं वणगत भेदभाव एक अ छ तरह छपाकर रखा गया रह य है। स म त के उपा य , मै स वैन डे न बग ने, जो समाजवादी समू ह से ही है,ं कहा क अब तक इस ग भीर वषय पर यू रोपीय यू नयन खुल-े आम कुछ नहीं कर पाया है। उ होंने महसू स कया क इस वषय से बना और अ धक सावज नक ान और दबाव के नहीं नपटा जा सकता। यू रो पयन पीप स पाट के जुगन ोडर ने न उठाया क भारत को एक लोकत कैसे कहा जा सकता है, जब इस पैमाने पर वणगत भेदभाव नर तर बना हुआ है।29 उसी वष, वकास पर यू रोपीय यू नयन क स म त ने भारत सरकार से यह माँग करते हुए एक ताव पेश कया क वह ‘वण न ल के बराबर है’ को वीकार कर ले तथा न लवाद को समा करने के लए भारत को अ तरा ीय पयवे ण के नय ण मे ं लाये।30 आई.डी.एस.एन. ने उस ताव के ा प को एक आकार दया था।31 इसके बाद 2007 मे ं यू रोपीय सं सद का ताव आया जसमे ं वणगत पू वा ह के व भारत के काय मों क न दा ‘पू री तरह अपया ’ कहकर क गयी। ताव ने भारत सरकार से अपील क क वह न ली भेदभाव के उ मू लन के लए ग ठत सं य ु रा सं घ के आयोग के साथ मलकर काम करे।32 इसका मू लत: अथ हुआ भारत सरकार के इस दृ कोण को मानने से इनकार करना क वण न ल के बराबर नहीं है। जस तरह से यू रोपीय सं सद मे ं इस ताव को आगे बढ़ाया गया उसके अनेक न उठे । नीना गल के अनुसार, जो लेबर पाट क ओर से यू रोपीय सं सद मे ं सद य है,ं रपट ‘अयथाथ से भरी थी और प प से मानवा धकार के वषय को त ँ ाती थी। त यों क छानबीन के भारी अभाव के कारण रपट कुछ इस तरह क पहुच बन गयी थी क इसक मू यव ा पर ग भीर न खड़े हो गये है’ं ।33 इस बात पर यान देते हुए क कस कार लुक- छप कर इसे ज दबाजी मे ं लाया गया जस पर यू रोपीय सं सद के 785 सद यों मे ं से 30 से भी कम ने मतदान कया, गल ने प कया : एक अ य धक मह व के वषय पर यह एक अ त सं वद े नशील रपट है और जस ढं ग से सं सद मे ं बना साक (SAARC) त न धम डल, मानवा धकार पर उपस म त, और वदेशी मामलों क स म त से बना स पक कये इसे ज दबाजी मे ं लाया गया, वह आप जनक है।34 से स थत भारतीय दू तावास ने भी यह कहते हुए इस रपट क आलोचना क क यह एक नकारा मक मान सकता को द शत करती है जो आँकड़ों को चु न दा प से उपयोग मे ं लाने पर आधािरत है।35 ले कन आई.डी.एस.एन. का उ े य कुछ ऐसा ा करना था जसक आ धकािरक व सनीयता हो जसे व भर मे ं उनके ी ी





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भावशाली मी डया के वशाल नेटवक ारा सािरत कया जा सके और जो ईसाई स यतावाद को धन दान करे। सन 2008 मे,ं आई.डी.एस.एन. क डे नमाक शाखा ने डे नमाक क सं सद के सम चु न दा भारतीय आ दोलनकािरयों, श ा वदों और सं य ु रा सं घ के दू त के लए एक सुनवाई का आयोजन कया। आ दोलनकािरयों मे ं से एक हवाई जहाज से उड़कर आये त मलनाडु के एक एन.जी.ओ. के नदेशक थे जन पर, 2004 मे ं रा ीय मानवा धकार आयोग को पेश एक रपट के अनुसार, त मलनाडु क पु लस ने ‘जबरन धमा तरण कराने क ग त व धयों मे ं लगे रहने’ का अ भयोग लगाया था।36 जब डे नमाक क सं सद मे ं ईसाइयत मे ं धमा तरण के मह व पर न उठाया गया, उ होंने उ र दया क ईसाइयत मे ं धमा तरण करने के बाद द लतों को श ा तक बेहतर ँ मली, और उ होंने आर ण के लाभ क पहुच त क भी शकायत क ।37

लुथरे न व ड फेडरेशन और व ड काउं सल ऑफ चचज ारा वामप थयों और द णप थयों को मलाना38 आई.डी.एस.एन. श शाली अ तरा ीय चच सं थाओं के साथ भी नेटवक बनाता है, जनमे ं लुथरे न व ड फेडरेशन (एल.ड यू .एफ.) और व ड काउं सल ऑफ चचज (ड यू .सी.सी.) वशेष प से उ ख े नीय है।ं भारत मे ं यू रोपीय ह त प े के लए आई.डी.एस.एन. क पहल और उसके तक क अनुपू त और उनका समथन बहुधा एल.ड यू .एफ. और ड यू .सी.सी. ारा सं थागत प से कया जाता है, जैसे एक फोटो दशनी जसमे ं भारत मे ं द लतों के व क थत भेदभाव को दशाया जाता है। 39 इस घुम तू फोटो- दशनी को यू रोप मे ं यापक प से दखाया गया, और यू रोपीय सं सद मे ं अछूत था पर सुनवाई के दौरान भी।40 एल.ड यू .एफ. लुथरे न पर परा मे ं ईसाई चच का एक वै क धा मक समू ह है, जसक थापना 1947 मे ं क गयी थी। इसका घो षत उ े य है ‘ व भर मे ं ईसाई एकता के लए कृतसं क प रहना’।41 बीसवीं शता दी के पू वा ्ध तक लुथरे न चच अ धकां शत: जमनी, कैं डने वया, बॉ टक देशों, और सं य ु रा य अमरीका मे ं के त थे। औप नवेशवाद के व त हो जाने के बाद लुथरे न आ दोलन के लए गु वाकषण के वकासशील देशों मे ं थाना तिरत हो गया, जसके अ का, लै टन अमरीका और ए शया मे ं बड़ी सं या मे ं चच हो गये थे।42 एल.ड यू .एफ. वकासशील देशों मे ं अपने राजनी तक नय ण के मा यम से श शाली है। हाल के वष मे ं यह एक भावशाली अ तरा ीय सं गठन बनकर उभरा है जो वण को न ल के बराबर बनाने के अ भयान क अगुवाई कर रहा है और भारत को एक ऐसे समाज के प मे ं च त करने का अ भयान चला रहा है जो रं गभेद क अनुम त देता है। ें





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सन 1948 मे ं था पत व ड काउं सल ऑफ चचज़ (ड यू .सी.सी.) व के सवा धक यापक और सवा धक समावेशी ईसाई सावभौ मक आ दोलन होने का दावा करता है। इसका उ े य ‘ईसाई एकता’ है, जससे उसका अ भ ाय है ‘एक ही आ था मे ं एक व और युकेिर टक ातृ व’। यह ‘एक आ था’ वाभा वक प से ईसाइयत है। यह 110 से अ धक देशों के 349 चच , भ कार के प थों, और चच ातृ व (फेलो शप) को शा मल करने का दावा करता है।43 ड यू .सी.सी. वकासशील देशों मे ं वयं को वामप थयों के साथ भी जोड़ता है, जनमे ं मा सवादी भी शा मल है।ं यह वामप थी ईसाई उ सुधारवाद थानीय आ या मक पर पराओं और सं कृ तयों को नीचा दखाने का एक उपकरण है, और इस तरह मा सवा दयों ारा एक बार जब भू म तैयार कर दी जाती है तब ईसाई धमा तरण का माग श त हो जाता है। भारत के मामले मे,ं ड यू .सी.सी. रणनी तगत मह व के पू व र मे ं माओवादी-ईसाई व ोह को समथन और धन देता रहा है।44 इस कार द णप थी रणनी त रणनी तगत समथन के लए वामप थ का उपयोग करती है। ं ॉक मे ं ‘द लतों के लए याय’ एल.ड यू .एफ. और ड यू .सी.सी. ने 2009 मे ं बैक वषय पर एक ‘वै क अ खल ईसाई स मेलन’ (Global Ecumenical Conference) का आयोजन कया।45 यह भारतीय जनसं या के गरीब वग के लए सं घष करने, और साथ ही उन सामा जक बुराइयों का वरोध करने के लए शं सनीय है, जो समाज के एक बड़े वग को मू लभू त मानवीय गिरमा दान करने से मना करता है। फर भी, जैसा क इस पु तक मे ं अ य प कया गया है, समाज सुधारक, ज होंने बना कसी कार के समझौते कये वण- यव था के व सं घष कया है और ज होंने नचले तर के लोगों के लए सवा धक मह वपू ण अ धकार जीते, वे भारत ं ॉक स मेलन जैसे आयोजनों के क ही मू ल आ या मक पर पराओं से आये है।ं बैक साथ सम या यह है क वे धा मक ा प और आ तिरक वभेद सृ जत करते है।ं उदाहरण के लए, स मेलन के सं क पना प ने दावा कया क भारतीय धा मक पर पराएँ येक मनु य मे ं ई र क छ व क ईसाई अवधारणा को नहीं मानतीं।46 इस कार, एल.ड यू .एफ. और ड यू .सी.सी. ने मानवा धकार और मानवीय गिरमा के लए वैध सं घष को एक ईसाई प व यु मे ं बदल दया है। स मेलन के लए सं क पना लेख ने प कया क ड यू .सी.सी. और एल.ड यू .एफ. भारत के अनेक द लत सं गठनों के साथ नेटवक बना रहे हैं ता क ‘द लत वषय को अ तरा ीय समुदाय— वशेषकर सं य ु रा मानवा धकार सं थाओं और अ य अ तरा ीय मं चों के मा यम से—के यान मे ं लाया जाये’।47 यह ं ॉक स मेलन डबन िर यू कॉ फेरेस ं के लए एक तैयारी यान दलाता है क वयं बैक था, जसका आयोजन 2009 मे ं जेनव े ा मे ं कया जाना नधािरत था। े े



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जेनव े ा स मेलन मे,ं चच ऑफ साउथ इ डया के एक बशप ने द लतों के व व भ उ पीड़नों का वणन कया और उनक सभी सम याओं के लए ‘ ह दू स ा त’ को दोषी ठहराया। ये कहा नयाँ ‘धमशा ी और मशनरी शा ीय आधार’ दान करने के लए अ भ त े थीं जसके आधार पर व भर के अ तरा ीय चच और सं गठन द लतों के साथ उनक एकता क स पु कर सकें। बशप ने आगे यह भी कहा क भारत सरकार ‘पु लस, कायपा लका और यायपा लका के मा यम से द लतों को याय देन’े मे ं वफल रही थी।48 फर भी 2009 के जेनव े ा स मेलन मे ं वण को न ल के समतु य बनाने के यास एक बार फर वफल हो गये। टाइ स ऑफ इ डया ने समाचार दया : ‘यह ू मन राइ स वॉच जैसे कुछ कैं डने वयाई देशों और समू हों को एक मुख झटका था, जो माँग करते आ रहे हैं क भारत का वण आधािरत भेदभाव एक अ य नाम से न लवाद ही है’। रपट ने आगे उ ख े कया क द लत स यातावादी और लेखक च भान साद ने जेनव े ा के पिरणाम के लए ‘मू ख एन.जी.ओ. (गैर-सरकारी सं गठनों)’ पर दोषारोपण कया, यह कहते हुए क वण को न ल के समतु य बताना एक भू ल थी।49 स मेलन ने उन सं गठनों को भारत मे ं द लत आ दोलन के स े त न ध के प मे ं आगे बढ़ाया जो द लत अलगाववाद और व ोह के न लवादी स ा त का समथन करते है।ं इस पर इसके बाद चचा क गयी है।

भारत मे ं द लत असहम त से स ब सं गठन द लत आ दोलन, जो न लवाद का वरोध करने का इरादा रखता है, अनेक बार अपने ही न लवादी स ा तों को ो सा हत करने तक सी मत रह जाता है। इसक कुछ पिरक पनाएँ अलगाववादी राजनी त क एक शैली को समथन देती हैं जो बड़ी आसानी से हं सक हो उठती है। जैसा क हमने पहले देखा है, अ धकां शत: अ छे उ े यों वाले श ा वदों, चच , और सरकारी सं थाओं का एक ज टल नेटवक हं सा मक व ोह को वैध ठहराते हुए सी मत हो जाता है। पु तक मे ं इसके बाद का भाग इन स पक मे ं से कुछ क जाँच करता है।

नेशनल कै पेन फॉर द लत

ू मन राइ स (एन.सी.डी.एच.आर.)

ू मन राइ स पॉल दवाकर, जो द ी थत नेशनल कै पेन फॉर द लत (एन.सी.डी.एच.आर.) के सं योजक है,ं आई.डी.एस.एन. के सह-सं योजक भी है।ं 50 एन.सी.डी.एच.आर. के एक अ य सह-सं योजक हैं मा टन मैकवान, एक आ दोलनकारी जो जेसइु ट व ालय से श त है,ं और जो गुजरात मे ं कई सं गठन चलाते है,ं और साथ मे ं दावा करते हैं क वे द लतों के लए बोलते है,ं ले कन ी



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थानीय द लत उन पर आरोप लगाते हैं क वे अपने न हत वाथ के लए मु ों का राजनी तकरण करते है।ं 51 सन 2003 मे ं भारत के अछूतों पर सािरत ‘नैशनल जयो ा फक’ के एक काय म मे ं माटन मैकवान (Martin Macwan) को तुत कया गया, और उ हे ं ‘अ बेडकर के बाद अछूतों को सं ग ठत करने मे ं सबसे अ धक नजर आने वाले’ य बताया गया। आलेख मे ं न कष नकाला गया था क वण सम याओं के समाधान के लए ह दू धम को ‘राजनी त और कानू न को लागू करने मे ं के ीय भू मका नभाना ब द कर देना चा हए’।52 दू सरे श दों मे ं ईसाइयत को नागिरक समाज का नय ण अपने हाथ मे ं ले लेना चा हए। सन 2009 मे,ं मैकवान ने गुजरात मे ं द लतों क थ त पर एक सव ण कया और उनके व यापक भेदभाव क रपट दी। यह रपट गुजरात क आ थक स प ता के वपरीत थ त हण करते हुए समाचार मा यमों मे ं चािरत क गयी।53 मैकवान के सं गठन को इ डयाना क यू नव सटी ऑफ नो द े ाम के ॉक इं टी ू ट फॉर इं टरनेशनल पीस टडीज का समथन ा हुआ। ॉक इं टी ू ट ‘यु , जनसं हार, आतं कवाद, जातीय और धा मक सं घष, और मानवा धकार उ ं घन’ पर शोध सं चा लत करने वाला के है और जसका मशन नो द े ाम का ही एक अ भ मशन है, जो एक अ तरा ीय कैथो लक शोध व व ालय है। यह के वयं को उस ‘समृ पर परा’ पर आधािरत रखता है जो चच क ‘यु , शा त, याय और मानवा धकार पर श ा का पिरणाम रही है’।54 एन.सी.डी.एच.आर. सभी रा ों से भारत पर दबाव डालने का अनुरोध करने मे ं अ तरा ीय तर पर बहुत ही आ ामक ख अपनाने वाला सं गठन है। इसके ‘द लत गुट’ ने 2001 मे ं डबन मे ं भारत के व गुट बना कर दबाव बनाया।55 ऑ े लया के रे डयो नैशनल को दये गये अपने सा ा कार मे ं पॉल दवाकर ने कहा : मैं अनुभव करता हू ँ क यह सब स पू ण व मे ं एक बड़े अ भयान को आव यक बनायेगा जसका यान आप जानते हैं वशेष प से सं य ु रा सं घ के त — ं , पर बहुप ीय और प ीय सं थाएँ जैसे यू रो पयन यू नयन और व ड बैक के त रहेगा—ये सभी सं थाएँ यह सु न त करने पर यान के त करने वाली है,ं चाहे वह मानवा धकार का मामला हो, या वकास मे ं सहयोग का मामला, या यापार का— क हम इस नृशंस अपराध के वषय से, जो मानव के व कया 56 जा रहा है, नपटने का उ रदा य व वयं पर लेते है।ं काय म के उ घोषक ने बताया क भारत वण था को यों नहीं समा करना चाहता है : ‘ न:स देह, भारत मे ं वणगत भेदभाव को तब धत करने वाले कानू न है,ं ले कन एक अथ यव था मे,ं जो 18 करोड़ लोगों को दास बनाकर रखने पर नभर है, वे कानू न यावहािरक अस लयत नहीं रहे है’ं ।57 एन.डी.टी.वी. क एक रपट इससे असहमत थी : े

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ले कन या वण आधािरत भेदभाव को न लवाद के समतु य कहा जा सकता है? ‘सं वधान न ल और वण के बीच एक अ तर करता है। आर ण के लए दोनों को समतु य बनाना सही नहीं है,’ विर अ धव ा और सं वधान वशेष अशोक कुमार पा डा ने कहा। हालाँ क ऐसा नहीं लगता क इस बहस को बहुत ं ,े यह पछले पचास वष से उठाये जा रहे भारत के लोग ग भीरता से लेग सकारा मक कदमों के सम बाधा क तरह है। और कम-से-कम इतना तो कहा जा सकता है क इसके दू रगामी पिरणाम होंगे और भारतीय अथ यव था क अ गामी ग त को यह सीधे भा वत कर सकता है।58 दवाकर ईसाई चारक लुथरे न चच से बड़े नकट से जुड़े है,ं और यू रोपीय मु यालयों से अलग वह आ धकािरक चच नी तयों को आगे बढ़ाते है।ं उनक नी तयों मे ं अनेक वरोधाभासी त व है।ं वे बी.आर. अ बेडकर क सं क पना को अमा य करते हैं जैसा क भारत के सं वधान मे ं य है, और इसके बदले द लतों को ं े को तुत करते है।ं इसके साथ ही, वे ईसाइयत मे ं धमा तिरत करने के ईसाई एजेड भारत सरकार से वण आधािरत आर ण के लाभ देने क माँग करते है,ं उनको भी जो ईसाइयत मे ं धमा तिरत हो गये, हालाँ क चच ारा भेजे जाने वाला यापक वदेशी धन केवल ईसाइयों के लए ही आबं टत रहता है।59 एक अ य मानवा धकार समू ह ने थ त का व लेषण कया और यह न कष नकाला क एन.सी.डी.एच.आर. के मामलों मे ं समाचार मा यमों मे ं काशन/ सारण और बढ़ा-चढ़ाकर क गयी तु त का उ टा असर पड़ा और उसके द लत वषय को कोई सहायता नहीं मली। इस वफलता के कारणों क या या इस कार क गयी : वणगत भेदभाव के अ य शकारों क , जैसे बुड़ाकू, पू री तरह उपे ा कर दी गयी। वणगत भेदभाव से पी ड़त हो रहे अ य वप समुदायों क अपे ा द लतों को मह व मलने से यह भावना जागृत हुई है क वणगत भेदभाव भारत- वशेष का वषय है। ... इससे भी बड़ी बात यह क एन.सी.डी.एच.आर. का द लत अ धकारों पर अ भयान चलाने का सा दा यक दृ कोण यापक एन.जी.ओ. समुदाय को नहीं पचा। वण के वषय पर डबन मे ं होली सी के त न धम डल का भारत सरकार के त न धम डल के त जो रवैया था उससे तो केवल भारत सरकार के सबसे बुरी आशं का क ही पु हुई क वण का वषय एक ं ा’ है। यह, और एन.सी.डी.एच.आर. के त न धम डल मे ं ‘ईसाई चारक एजेड एक ही धम वशेष के लोगों क यापक दखाई दे रही उप थ त ने द लत वषय क सहायता नहीं क ।60 सन 2006 मे,ं एन.सी.डी.एच.आर. एक बार फर भारत सरकार के आ धकािरक ख के वपरीत चला गया, और भारत क वण सम याओं पर ‘न ली भेदभाव ो

उ मू लन आयोग’ (Comision for the Eradication of Racial Discrimination, सी.ई.आर.डी.) के लए एक रपट तैयार करने मे ं मुख भू मका नभायी।61 सी.ई.आर.डी. वह सं थान है जो न ल के आधार पर भेदभाव पर एक अ तरा ीय सं ध को लागू करता है, जो 1965 से लागू है और भारत भी उस पर ह ता रकताओं मे ं से एक है।62 उसके बाद सी.ई.आर.डी. को 2007 मे ं एक छाया रपट सौंपी गयी। सन 2008 मे,ं इन छाया रपटों के आधार पर लुथरे न व ड फेडरेशन, एन.सी.डी.एच.आर. और आई.डी.एस.एन. ने सं य ु रा ारा ग ठत क गयी यू नवसल पीिरयॉ डक िर यू क मटी को एक रपट सौंपी जसका शीषक था ‘भारत मे ं वण आधािरत भेदभाव’ (Caste-based Discrimination in India)।63 भारत के व उनक चाल वष त वष एक अ तरा ीय मं च से दू सरे तक ग त पकड़ती जा रही है।

नैशनल फेडरेशन ऑफ द लत वमेन (एन.एफ.डी.ड यू .) नैशनल फेडरेशन ऑफ द लत वमेन (एन.एफ.डी.ड यू .) क थापना 1995 मे ं थ मनोरमा के नेत ृ व मे ं हुई। इससे पहले उ होंने सं य ु रा य अमरीका के अ क अमरी कयों क तुलना भारत के द लतों से करने के एक अ ययन मे ं भाग लया था, जो अ त े म हलाओं और द लत म हलाओं के जीवन क पड़ताल करते हुए कया गया था। उ होंने 1995 मे ं बी जं ग मे ं म हलाओं पर आयो जत चौथे सं य ु रा सं घ व स मेलन मे ं द लत म हलाओं ारा सामना कये जा रहे वषयों का भी त न ध व कया था। एकेडमी ऑफ ई यू मे नकल इ डयन थयोलॉजी ए ड चच एड म न श े न ारा ‘चच और समाज के लए कये गये उ ख े नीय योगदान के लए’ 64 उ हे ं मानद डॉ टरेट क उपा ध दी गयी है। ीलं काई त मल अलगाववादी समू हों के साथ उनक नकटता के आरोप ने सन 2000 मे ं एक ववाद पैदा कर दया था।65 सन 2001 के डबन स मेलन मे ं भारत सरकार के त न धम डल के व वे एक मुख वर बन गयी थीं और आई.डी.एस.एन. ारा सृ जत द लत खेमा (कॉकस) का अं ग थीं।66 इस ववाद के बावजू द उनक दलीलों ने उनके लए उन एक हज़ार म हलाओं के समू ह मे ं थान अ जत कया जनका मनोनयन 2005 के नोबेल शा त पुर कार के लए कया गया था, और उ हे ं ‘राइट लाइवलीहुड अवाड’ दया गया, जसे कभी-कभी ‘वैक पक नोबेल पुर कार’ भी कहा जाता है। वे नैशनल काउं सल ऑफ चचज इन इ डया के द लत टा क फोस क एक सद य है।ं 67 उ होंने य गत प से यू रोपीय सं सद को आवेदन दया क वह भारत के व आ थक और राजनी तक लाभ उठाने क श का उपयोग ‘ यापार, वकास काय मों या राजनी तक बातचीत मे’ं करे।68 एन.एफ.डी.ड यू . समय-समय पर तैयार क जाने वाली रपटों के लए नय मत प से जानकािरयाँ उपल ध कराती हैं ज हे ं आई.डी.एस.एन. सं य ु रा क ं

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व भ सं थाओं और यू रोपीय सरकारी एजे ं सयों को सम पत करता है।69

द लत पं चायत + द लतशा

+ द लत धमशा

-->द लत तान

ं ॉक स मेलन मे ं भाग लेने वाले त न धयों मे ं थीं एक भारतीय सन 2009 के बैक द लत आ दोलनकारी डॉ. यो त राज, जो अपने प त के साथ मलकर एक द लत ं सोसाइटी सं गठन चलाती हैं जसका नाम है रल ए ू केशन फॉर डे वलपमेट (आर.ई.डी.एस.)। डॉ. राज ने स मेलन मे ं द लत पं चायत आ दोलन के बारे मे ं बताया। यह आ दोलन उस पर आधािरत था जसे उ होंने ‘द लतशा ’ के प मे ं व णत कया, जसे ईसाई महसू स करते हैं क वह ईसाई द लत धमशा का पू रक है।70 यहाँ इसे कुछ व तार से देखना उपयोगी होगा क द लतशा या है और ईसाई द लत धमशा इसे अपना पू रक यों मानता है। द लतशा यो त राज और उनके प त ारा वक सत कया गया है। यह वड़ न ली स ा तों क तरह उ हीं मनगढ़ं त बातों का उपयोग करता है जसक पड़ताल हमने इस पु तक के छठे और सातवे ं अ याय मे ं क है। द लतशा वण- यव था ँ नकालता है जो ‘भारत के व जत मू ल नवा सयों का ार भ ‘आय वजेताओं’ से ढू ढ़ से र और न ली वं शानु म मे ं भेदों ारा वभा जत’ थे,71 और यह अ क -द लत र -स ब ध के साथ-साथ एक यापक ष के स ा त का तपादन करता है : अ का के काले लोग, ए शया के आ दवासी और द लत जनजातीय आधार पर सं ग ठत नहीं थे। तब आय भारत मे ं वण- यव था यों लाये? यों क उ होंने पाया क यह था समाज को अन त काल तक वभा जत अव था मे ं रखने और उस वभाजन के मा यम से वृह र समाज मे ं उनके दबदबे को नर तर बनाये रखने मे ं उनके लए सव म उपकरणों मे ं से एक थी।72 महा मा गाँधी के हिरजन श द के उपयोग को द लतों को और नीचे करने के एक धू त ष के प मे ं देखा गया : हिरजन का अथ हिर (ई र) के जन होता है। यह एक बड़ी अ छ - व न वाला श द है। ले कन वा त वक अथ इसक व न से भ है। इसका अथ यह है क द लत ब े म दरों क वे यावृ से पैदा हुए है,ं देवदासी णाली से। वे अपने पताओं के नाम नहीं जानते। न तो माताएँ ही वा त वक पता का नाम याद रख पाने मे ं स म है,ं यों क अनेक ा ण, य, वै य और अ य म दर मे ं द लत म हलाओं के साथ वे यावृ करते है।ं चू ँ क द लत ब े म दरों मे ं होने वाली यौन ग त व धयों से उ प होते है,ं और चू ँ क वे नहीं जानते क वे कस जा त के है,ं और चू ँ क उनक कोई जा त नहीं है उ हे ं ई र क ही स तान कहना चा हए, हिर जन, हिरजन। इसी अ य त अपमानजनकअथ मे ं यह नाम द लत जनों को दया गया था।73 ँ ी े

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गाँधी के इस श द ‘हिरजन’ को ऐसा वकृत मोड़ देने के बाद, द लतों क मु के लए द लतशा क अपनी पिरक पना है ‘द लत तान’, जो भारत को अनेक भागों मे ं तोड़ने क एक योजना है, जसमे ं एक अलग द लत रा भी शा मल है। ं ॉक स मेलन मे ं प कया क द लत पं चायत द लत तान क थापना मे ं उ होंने बैक ‘सरकारी वकास काय मों के लाभकों का नणय करेगा और क यह अ त े सेना का गठन करेगा, उसे श त करेगा और उसे समथन देगा’।74 द लत तान के लए क गयी सं क पना मे ं ह दुओ ं के लए एक फासीवादी घृणा जुड़ी हुई है, और जसके पास भारतीय लोकत को न करने, वण के आधार पर इसे टुकड़ों-टुकड़ों मे ं करने, और एक माओवादी सरकार था पत करने क अ तम परेखा है। यह प प से अपनी सं क पना क या या करती है : ा ण समुदाय, और उन सभी को ज होंने ा णवाद के समथन के मा यम से द लतों का दमन कया है, सावज नक प से मा याचना करने के लए ववश कर दया जायेगा। उ हे ं अपने वे सभी सं साधन द लत तान क सव पिरषद को सम पत कर देने होंगे ज हे ं उ होंने मू ल नवासी लोगों से ह थया लए थे, जो फर उन सं साधनों को व भ समुदायों मे ं बाँटग े ी। ... द लत तान मे ं येक समुदाय को आ तिरक प से वयं को शा सत करने क वत ता होगी जसमे ं द लत तान क सव पिरषद का कोई ह त प े नहीं होगा बशत क वे अ य समुदायों पर भु व के सभी त ों और उपकरणों से दू र रहे।ं द लत तान सामुदा यक लोकत ारा शा सत होगा। द लत तान मे ं कोई भी चुनाव नहीं 75 होंग।े ... सवा धकारवाद क अपनी अ तम परेखा मे ं द लत तान द लतों के म को एक ‘रा ीय स पदा’ घो षत करेगा, जसका वामी द लत य वशेष नहीं रह जायेगा, ब क रा य ारा ‘समु चत सं र ण और ो साहन के कदमों’ पर नभर करेगा।76 द लत तान मे ं सभी ाचीन ह दू म दरों को ‘ व व ालयों, अ पतालों या मारकों’ मे ं बदल दया जायेगा और वे ‘गव और हेकड़ी के तीक’ के प मे ं नहीं रह ं ।े 77 जायेग यह कोई सं योग नहीं है क ऐसे सं गठन जो ऐसे सवा धकारवादी लोकत वरोधी स ा तों को ो सा हत करते हैं और द लत मु के नाम पर भारत वरोधी ख अपनाते है,ं वही हैं ज हे ं ड यू .सी.सी. और एल.ड यू .एफ. ारा चुना गया है और भारत के द लत आ दोलन के झ डाबरदार के प मे ं अ तरा ीय तर पर तुत कया जा रहा है।

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क द लत अ ययनों का नेटवक ई ी

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आई.डी.एस.एन. वदेशी और भारतीय सं थानों के एक स पू ण नेटवक मे ं द लत अ ययनों को ायो जत करता है और उनके साथ सहयोग करता है, और इसका उपयोग शै क शोध क आपू त मे ं करता है जो इसके राजनी तक स यतावाद को समथन देते है।ं

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ू ट ऑफ द लत टडीज

इ डयन इं टी ू ट ऑफ द लत टडीज (आई.आई.डी.एस.)78 का गठन नई द ी मे ं कया गया जसके लए फोड फाउ डे शन से मले 3,00,000 अमरीक डालर के ार भक अनुदान का उपयोग कया गया।79 इसके भारत मुख एन.सी.डी.एच.आर. के मा टन मैकवान नामक ईसाई है,ं जो इस नेटवक के नौ सं थानों मे ं से तीन का सं चालन करते है।ं आई.आई.डी.एस. के भारतीय स ब मु यत: ईसाई सं गठन है,ं जनके बहुधा ह दू नाम होते हैं ले कन ईसाइयों ारा नय त होते है।ं इसके वदेशी सहयोगी मु यत: ईसाई अ तरा ीय सं गठन है,ं 80 और साथ ही साथ डे नश वदेश म ालय। आई.आई.डी.एस. के यासी डी.एस.एन.-यू .के. को यू नाइटेड कंगडम मे ं लेबर पाट के सां सदों के साथ गुट बनाकर दबाव डालने के लए जानकािरयाँ उपल ध कराते है।ं 81 आई.आई.डी.एस. ने भारत मे ं द लतों के व उ पीड़न पर एक रपट तैयार क है जसे उसने सं य ु रा के वशेष दू त को उनके आई.डी.एस.एन. के धन पर कये गये भारत के दौरे मे ं समय सौंपा।82 इस अ तरा ीय भू मका से उ सा हत होकर, आई.आई.डी.एस. ने एक मह वाकां ी शोध पिरयोजना अपने हाथ मे ं ली ता क ‘उन देशों मे ं वण आधािरत भेदभाव पर नये ान और अ भलेख तैयार कये जाये ं जहाँ इस वषय पर शोध और अ भलेख सी मत रहे है’ं ।83 इसके लए नेपाल, पा क तान, बां गलादेश और ीलं का तक आई.आई.डी.एस. का व तार कया गया जसे डे नश सरकार ारा धन दया गया। इसके तहत तैयार रपटे ं उन देशों मे ं नये आ दोलन पैदा भी करने लगी है,ं जो स पू ण उपमहा ीप को और अ धक वख डत करने का ही एक माग है। आई.आई.डी.एस. ने वयं को एक वचार मं च मे ं बदल लया है जो अ तरा ीय ाहकों के लए ायो जत शोध उ पा दत करता है। उदाहरण के लए, इसके पास ईसाई सहायता के लए एक श ण पु तका तैयार करने क पिरयोजना है ता क शेष भारत के मुकाबले गरीबों का सश करण हो और उनको ईसाइयत मे ं धमा तिरत कया जा सके।84 एक अ य पिरयोजना है जमन लुथरे न चच को योजनाएँ उपल ध कराने क ता क भारत मे ं वशेष समू हों को ल य बनाया जा सके।85 अपनी ईसाई नींव को छपाकर इसने प थ- नरपे ाहकों को आक षत करने मे ं भी सफलता पायी है। ऐसा एक उदाहरण है इसका वा शं गटन थत इ टरनैशनल फूड ॉ

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पॉ लसी िरसच इं टी ू ट के लए कया गया सामा जक-आ थक शोध। इससे स ब कुछ लोग आई.आई.डी.एस. मे ं न हत ईसाई ढ़वाद को नहीं जानना चाहते, यों क यह जनता के सम वामप थी के प मे ं उनक अपनी छ व के अनुकूल है। ं र फॉर ू मन राइ स उदाहरण के लए, यू यॉक यू नव सटी के कूल ऑफ लॉ मे ं सेट ए ड लोबल ज टस क फैक टी डायरे टर, मता न ला, आई.आई.डी.एस. के वदेशी एसो सएट मे ं से एक है।ं 86 अ तरा ीय स मेलनों मे ं वे भारत के मानवा धकार क नराशाजनक च ण तुत करने मे ं मा टन मैकवान के साथ सहयोग करती है।ं 87 उ होंने सं य ु रा य कां स े के सम डी.एफ.एन. ारा व तु थ त क जानकारी देने के लए क गयी बैठक मे ं भी भाग लया, जो द णप थी े ट ैं स (जो डी.एफ.एन. के बोड के सद य है)ं ारा तुत कये गये ताव के तहत आयो जत कया गया था, और जसमे ं सं य ु रा य अमरीका क सरकार से अनुरोध कया गया था क वह जा तगत भेदभाव के वषय पर भारत पर दबाव डाले।88 फर भी, यह उनके लए मह वपू ण है क वे एक वामप थी के प मे ं दखे ं जो द णप थ से घृणा करती है।ं आई.आई.डी.एस. ने ं टन व व ालय के सहयोग से भारत मे ं शहरी मक बाज़ार मे ं भेदभाव का अ ययन करने के लए अपनी शोध प त देने के लए एक दवसीय कायशाला का आयोजन कया।89 अ य प मी व व ालय जो इसके ाहकों मे ं हैं उनमे ं डे नमाक यू नव सटी का धम वभाग; टॉकहोम यू नव सटी का समा जक मानवशा वभाग; यू यॉक क सटी यू नव सटी; और यू नव सटी ऑफ नॉथ करो लना का इं टी ू ट ऑफ ए कन अमरीकन िरसच शा मल है।ं 90

वी डश साउथ ए शयन टडीज नेटवक (एस.ए.एस.नेट.) वी डश साउथ ए शयन टडीज नेटवक (एस.ए.एस.नेट.) को भावी ढं ग से आई.डी.एस.एन. के एक अं ग के प मे ं बदल दया गया है। टॉकहोम ए ोपॉलॉ जकल िरसच ऑन इ डया (एस.ए.आर.आई.) भारत के अ दर सं घष क छान-बीन करने के लए एक वभाजनकारी ढाँचे के नमाण के एस.ए.एस.नेट. के काय म का एक अं ग है। अ छ तरह व स पो षत इस काय म क एक शोधकता, ईवा-मैिरया हाटमैन, आई.आई.डी.एस. क एक शै क श ा वद के प मे ं भी सू चीब है।ं 91 उनके शोध के वषयों मे ं एक है ‘हमारा ोध जल रहा है—द लत आ दोलन मे ं थानीय था और वै क स पक’ (Our Fury is Burning – Local Practice and GlobalConnections in the Dalit Movement)। इसके नकाले गये सारां श के अनुसार : यह अ ययन समकालीन द लत आ दोलन के अ दर सां कृ तक के साथ-साथ सां गठ नक प ों पर यान के त करता है, ता क पहचान के नमाण से जुड़ी याओं क पड़ताल क जा सके। ... यह भी द शत कया जायेगा क कस ँ

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कार द लत ग त व धयाँ ‘ ह दुओ’ं और ‘ ह दू मू यों’ के साथ उनके साझे मु य टकराव के स दभ मे ं अना भ य ान क साझेदारी करने लगी है।ं 92 ‘पहचान नमाण से स ब धत याएँ’ हाटमैन के ह त प े ों क ओर सं केत करती है,ं जैसा क वे प करती हैं क वे सू म तरीकों से द लत पहचान को ईसाइयत क ओर मोड़ना चाहती है।ं उदाहरण के लए, वे गाँधी के बारे मे ं वी.टी. राजशेखर के अपमानजनक दृ कोण को वशेष मह व देती है,ं यों क गाँधी ने समाधान के प मे ं ईसाइयत मे ं धमा तरण को अमा य कर दया था।93 हाटमैन ने एस.ए.एस.नेट. ारा 2006 मे ं आयो जत कये गये शै क वचार- वमश मे ं भी भाग ं े को ‘वतमान भारत क व भ लया था।94 इसके भारत को वख डत करने के एजेड छ वयाँ’ क अगुवाई करने के आवरण मे ं ढँककर रखा गया था। वीडन के द लत सॉ लडै िरटी नेटवक ने चचा ार भ क और एक रपट भी साथ मे ं रखी गयी जसका शीषक था ‘कोई छु टकारा नहीं— टेन मे ं वण आधािरत भेदभाव’ (No Escape— Caste, Discrimination in the U.K.), जसका उपयोग टेन मे ं वासी भारतीय जनसं या को वण-समथक ा प मे ं तुत करने के लए कया गया।95 यू नव सटी ऑफ कॉपेनहैगन े के ॉस-क चरल ए ड रीजनल टडीज वभाग के पीटर बी. ए डसन आई.आई.डी.एस. मे ं एक शोध सहयोगी हैं जो ईसाई मशन ं े लकल लुथरे न अ ययनों पर काम करते है।ं 96 सन 2007 मे,ं वह ‘TELC (त मल इवैज ं क चच) अमं ग कैथो ल स, पेट े ो टलस ए ड ह दू स’ वषय पर बोले। उसी बैठक मे,ं मु य व ा थे यू नव सटी ऑफ व कॉ सन, मै डसन के ोफेसर रॉबट एिरक ाइकेनबग ज होंने ‘भारत मे ं मशन और मशन अ भलेख आधािरत शोध’ (Mision and Mision Archive related research in India), और ‘राजनी तक धम के प मे ं ह दु व’ (Hindutva as a political religion)पर शोध प तुत कये।97 पू रा ँ ने के सदृश अ यास आ मण ार भ करने के पू व श ु के भू -भाग से जानकािरयाँ ढू ढ़ ही अ धक दखता है, न क एक ऐसे शै क अ यास क तरह जसका उ े य सचमुच अ य सं कृ त और समाज को समझना हो। आई.डी.एस.एन. ने वीडन मे ं गो याँ भी आयो जत क ,ं जनमे ं इसके यासी एलोइ सयस इ दयम ने ‘द लत याँ : सवा धक उ पी ड़त’ (Dalit Women : The Most Opresed) जैसे वषयों पर या यान दये। एक और टॉकहोम यू नव सटी गो ी का आयोजन उपसला यू नव सटी के राजनी त व ान के सहायक ा यापक टेन वडमा म (Sten Widmalm) के सहयोग से कया गया, जो भारत मे ं ामीण शासन का अ ययन करते है।ं 98 सन 2007 मे ं भारत के नमला नकेतन नामक एक कैथो लक सं थान के व ा थयों ने डॉ. अ बेडकर के ज म दवस पर एक रैली आयो जत करने के लए आई.डी.एस.एन. के साथ सहयोग कया,99 इस त य को छपाते हुए क आई.डी.एस.एन. ने अ बेडकर ल खत भारत के सं वधान के व वयं को अ य वरोधी श यों के साथ गठजोड़ मे ं शा मल कर रखा था। ं े ई ी ी े ों औ

इस कार आई.डी.एस.एन. साउथ ए शयन टडीज के व ानों और वयं के अपने भारतीय सहयो गयों के बीच गठब धन बनाते हुए एक श शाली गठजोड़ बन गया है। आई.डी.एस.एन. के अलावा, द लत झ डा उठाये और भी ईसाई चारक सं थान है,ं जो प मी ाहकों के लए गु चर-सू चनाएँ इक ा करने क ग त व धयों को चलाते हैं जनक च मे ं शै क, ईसाई चारक और राजनी तक उ े य शा मल है।ं

त मलनाडु थयोलॉ जकल से मनरी यू नव सटी ऑफ ए डनबग के एक समाजशा ी ू गो गोंरज ‘द लतों क सामा जकराजनी तक लामब दी’ (Socio-Political Mobilization of Dalit) वषय पर द ण भारत मे ं काम करते है।ं वह द लतों के साथ त काल नकट स ब ध बनाने मे ं सहायता के लए त मलनाडु थयोलॉ जकल से मनरी को ध यवाद देते है।ं ‘राजसी स मान देने के अलावा, उ होंने मुझे रा य के उ री भाग के द लत आ दोलन और आ दोलनकािरयों से पिरचय कराया जसे मैनं े अ यथा उपे त कर दया होता’।100 ं र का मु य उ े य भारत मे ं व भ उ हे ं से मनरी मे ं ठहराने वाले द लत िरसोस सेट द लत आ दोलनों क ग त व धयों के बारे मे ं सू चना सं क लत करना है।101 त मलनाडु थयोलॉ जकल से मनरी व भ अ तरा ीय ईसाई चारक सं गठनों के साथ सहयोग के लए एक के ीय एजे सी के प मे ं काम करती है और अपने आँकड़ों के भावशाली कोष का उपयोग द लत वषयों को ईसाई ढाँचे मे ं ढालने क परेखा तैयार करने मे ं करती है। उदाहरण के लए, यह युवा नेताओं को श ण देने के लए कायशालाएँ आयो जत करती है; इन कायशालाओं का आयोजन टू डे ं स ं ारा कया जाता है और व ड काउं सल ऑफ चचज उ हे ं ायो जत यन मू वमेट करता है। ऐसी ‘सश करण कायशालाओं’ का ल य युवा व ा थयों मे ं जुनून क लहर पैदा करना है और इस कार उ हे ं भारत मे ं ईसाइयत के सार के लए काम कर रहे व भ समू हों मे ं शा मल कराया जाता है।102 इस तरह ‘श स प युवाओं’ से आशा क जाती है क वे अ तरा ीय श यों के इशारे पर नाचे ं जो श याँ धन क थै लयों, वदेश या ा के अवसरों, स मानजनक नयु यों, और न:स देह सामा जक और राजनी तक जीवन क धमशा ीय या या को नय त करती है।ं दबे-कुचले लोगों का क याण एक सु वधाजनक शीषक है जसके तहत यह सब काम कया जाता है।

गु कुल लुथरे न थयोलॉ जकल कॉलेज ए ड िरसच इं टी

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ू ट, चे ई

सन 1931 मे ं था पत और 1953 मे ं दजा बढ़ाये गये इस सं थान का स ब ध कु यात सेरमपुर कॉलेज से है, जसका उपयोग कभी टश औप नवे शक शासन को सुगम 103 बनाने के लए कया गया था। इसमे ं द लत धमशा का एक वभाग है, जसके अ य हैं एम. अजािरया, जो 1983 मे ं व ड काउं सल ऑफ चचज क आम सभा मे ं द लत वषयों का त न ध व करने वाले पहले य थे। अजािरया ड यू .सी.सी. जैसे अ तरा ीय ईसाई मं च मे ं द लतों के वषयों को उठाने वाले ार भक भारतीय ईसाइयों मे ं से एक थे, और एक वदेशी सभा मे ं ‘आ तिरक भारतीय मामलों’ को उठाने के लए शु -शु मे ं साथी भारतीय ईसाई त न धयों ारा उनक आलोचना क गयी थी।104 वे डबन स मेलन मे ं भी भाग ले चुके है।ं 105 अजािरया ने ए डनबग व व ालय मे ं ए यन बड के द लत धमशा पर पीएच.डी. शोध ब ध के लए अ धकां श आँकड़े दये, जसने न कष नकाला क ‘ ह दू धम से द लत ब हगमन’ एक ‘मु दाता अनुभव’ है।106 द लत वॉयस मे ं लखने वाले अजािरया तक देते हैं क ह दू स ा त द लतों को कैद करते है।ं एम.एम. टॉमस द लत वॉयस के एक अ य शं सक हैं और इसके समथन मे ं धमशा ों को उपल ध कराते है।ं यह ह दू धम के शै क अ ययन का वह कार है जसे भारतीयों ारा बहुधा तुत कया जाता है, जसके लए वदेशी सं थानों ारा धन उपल ध कराया जाता है। इससे सृ जत साम ी क आपू त प म के गुट बनाकर दबाव डालने वाले नेटवक को क जाती है। गु कुल कॉलेज वह आधार भी दान करता है जससे वदेशी ईसाई चारक श ण सं थान व भ ल त भारतीय समुदायों का अ ययन करते है।ं इसका एक उदाहरण है गं डा पी. हैराहाप का शोध ब ध, जसे सं य ु रा य अमरीका क लुथर से मनरी मे ं कॉ गेशनल मशन ऐ ड लीडर शप पर डॉ टर ऑफ म न ी क उपा ध के लए तुत कया गया था। शोध ब ध एक उदाहरण के प मे ं गु कुल कॉलेज क रणनी तगत भू मका क जाँच करता है क ‘ कस कार भारतीय लुथरे न चच ने धा मक बहुलतावाद और ह दू क रप थ क चुनौ तयों का उ र ‘‘गरीबों और हा शये पर मौजू द द लतों और आ दवा सयों के बीच अपने मशनरी काय ’’ का लाभ उठाते हुए दया है।107 इस कार, गु कुल भारतीय पर पराओं के व ईसाई चारक काय मों के लए जानकारी इक ी करने के लए एक के के प मे ं भी काम करता है। सन 2006 मे,ं भारत मे ं जमनी के राजदू त ने लुथरे न मशनिरयों के आगमन क 300वीं वषगाँठ क अ य ता क , और 2008 मे ं जमनी के महावा ण य दू त इस अवसर पर स मा नत अ त थ थे। गु कुल और गू ग-ऑग ट यू नव सटी, गॉ ट जेन के बीच एक करारनामे पर ह ता र से जमन स पक को और बढ़ावा मला।108 ऐसे स पक ‘द लत धमशा ’ को चािरत करते हैं जैसा क द लत वॉयस के पृ ों मे ं य कया गया है, और हटलर के शं सकों, यहू दयों के जनसं हार से इनकार करने ों औ

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वालों, और चु न दा ष है।ं 109

स ा तकारों के साथ समान आधार क साझेदारी करते

सं थान का एक आयाम सामा जक वकास भी है।110 ‘नयी अ तरा ीय अथ यव था स ब धी शोध के ’ (Centre for Research on New International Economic Order, सी.आर.ई.एन.आई.ई.ओ.) क थापना 1979 मे ं गु कुल कॉलेज मे ं एक प थ- नरपे नाम से वकास स ब धी एन.जी.ओ. के प मे ं क गयी थी। सन 1998 के शै क वष के बाद गु कुल, सी.आर.ई.एन.आई.ई.ओ. और फ नश लुथरे न चच के व ा थयों और कमचािरयों का आदान- दान काय म चल रहा है। सी.आर.ई.एन.आई.ई.ओ. फ नश और कनाडा क लुथरे न चच के साथ व भ काय मों मे ं भी भाग लेता है।111 गु कुल ए सटडम थत यू नव सटी क फैक टी ऑफ थयोलॉजी ारा वक सत कये गये ‘कंटेक चुअल ऐ ड ॉस-क चरल थयोलॉजी’ (Contextual and Cros-Cultural Theology) मे ं ातको र उपा ध काय मों मे ं एक मह वपू ण भागीदार है, जसका सौ य- व न वाला उ े य है ‘अ तर-सां कृ तक धमशा ी मलन क स प ता क फसल काटना’।112 इसके एक अं ग के प मे ं यह एक ातको र तर के व ाथ को उ श ा के लए येक वष ए सटडम भेजता है। ऐसे स पक सं योग नहीं होते है।ं यू नव सटी ऑफ ए सटडम के डॉ. मा टन बा वं क ने ‘वन सी, ी क टेनडस : लीगल लू र ल म इन द इनशोर फशरीज ऑफ़ द कोरोम डल को ट, इ डया’ वषय पर अपना पी-एच.डी. शोध ब ध तुत कया। 113 वे डॉ म नकन चच के एक स य सद य है,ं जो द ण भारतीय मछु आरे समुदायों पर आ धकािरक जानकारी वाले य बन गये है,ं और जो भारतीय तटीय समुदायों के लोक नयमों और अ धकारों पर अ ययनों का नेत ृ व करते है।ं सन 2009 मे,ं बा वं क क मशन ऑन लीगल लू र ल म के अ य नयु कये गये, जो इं टरनेशनल एसो सएशन ऑफ लीगल साइं स (आई.ए.एल.एस.) से स ब एक अ तरा ीय ं फॉर द स म त है। यह व भ प मी सं थानों और थानीय एन.जी.ओ., जैसे मू वमेट िरकॉ नशन ऑफ इ डजेनस पीप स राइ स, के बीच एक श शाली बचौ लये का काम करती है।114 यह चच को त मलनाडु के तटीय े ों मे ं धमा तरण ग त व धयों को नयो जत करने मे ं न केवल सहायता दान करती है, ब क प म को रणनी तगत प से मह वपू ण भारत के तटीय े ों के वकास क ग त व धयों और साथ ही साथ थानीय समुदायों को नय त करने क अनुम त देती है। द ण भारत के ईसाई मछु आरों मे ं कैथो लक चच क श शाली राजनी तक पकड़ है। यह राजनी त मे ं अ य धक स य है, जसके लए वह लै टन अमरीक मु धमशा ी ा पों का उपयोग करती है, जसे भारत मे ं रह रहे यू रोपीय पादिरयों ने भारतीय ईसाई नेताओं को सखाया है।115 यह सब ‘ वकास’ क आड़ मे ं कया जा रहा है। े



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ले कन एक शोधकता क रपट मे ं एक अलग वा त वकता बतायी गयी जो लखते है,ं ‘तटीय सामा जक सं गठनों के के मे ं कैथो लक चच क भू मका है जले के कृ ष और शहरी समुदायों से अलग मछु आरे गाँव था पत करना जहाँ त पध सं थागत श याँ धा मक सं थानों क श को सी मत कर देती है।ं ’116 इसने मछु आरे समुदाय को रणनी तगत प से भारत क ल बी समु ी सीमा पर रखा है, जसके वदेशी श यों क चपेट मे ं पड़ने का जो खम है।

द लत अलगाववाद का चार करने वाले य

गत व ान

अनेक य गत व ान भी, ज हे ं रणनी तगत प से यू रोपीय देशों के नी त- नमाता सं थानों या भारतीय शै क सं थानों मे ं बैठाया गया है, इस वभाजनकारी ान के वकास और उसे काया वत करने को सुगम बनाते है।ं वे एक रा के प मे ं भारत के बारे मे ं वैसा दृ कोण दान करते हैं जो फासीवाद और न लवाद अपना रहा है। वे महा मा गाँधी समेत सभी भारतीय समाज सुधारकों को, एक दमनकारी सामा जक यव था का समथक, के प मे ं तुत करते है।ं उन येक भारतीयों को जो देशभ है,ं न लवादी सं क पनाओं या उ े यों वाला बताया जाता है, जब क उन लोगों को जो भारतीय समाज को न लवादी तरीके से या या यत करते हैं या जो अलगाववाद को ो सा हत करते है,ं बु मानवतावादी बताया जाता है। टोफ जा लॉट और गेल ऑमवेट ऐसे व ानों के उदाहरण हैं जनके काय इस व प को द शत करते है।ं इस या को च 17.2 मे ं च त कया गया है। Fig. 17.2 भारत के वख डन मे ं दो व ानों क व द ृ यों का समावेश

टोफ जा

लॉट (Christophe Jaffrelot)

टोफ जा लॉट, ‘अ तरा ीय अ ययन और शोध सं थान’ (Centre for International Studies and Research, meer., सी.ई.आर.आई.) के नदेशक, एक ां सीसी व ान हैं जो द ण ए शया के राजनी तक वषयों का अ ययन कर रहे है।ं वे यह कहते हुए तानी उप नवेशवाद को भारत के द मत वग के लए एक मु दाता श के प मे ं देखते हैं क ‘ नचली जा तयों क मु को सकारा मक भेदभाव क एक यव था के मा यम से ो सा हत कया गया है जसे अं ज े ों ने 117 बनाया था’। जा लॉट ह दू धम और ह दू सामा जक नेताओं को, जनमे ं महा मा गाँधी भी शा मल है,ं लगातार वण-पू वा हों से त नेताओं के प मे ं च त करते है।ं गाँधी को एक ऐसे य के प मे ं च त कया गया है ज होंने छु आ-छूत के व अपने सं घष मे ं वयं से समझौता कर लया और पीछे हटकर एक ढ़वादी ह दू पहचान अपना ली। जा लॉट लखते हैं : ें







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सन 1924 मे ं ावनकोर रा य के वैखम द लतों ने एक थानीय म दर मे ं जा पाने या कम-से-कम म दर से लगी सड़क का उपयोग करने के लए स या ह ार भ कया। गाँधी ने इस जमावड़े का समथन कया और वैखम गये, ले कन थानीय पुजािरयों से उनक बातचीत का कोई पिरणाम नहीं नकला। पुजािरयों ने उनके सभी समझौता तावों को अ वीकार कर दया और उनके तक ने उ हे ं अ पृ यता के बारे मे ं अपनी थ त पर पुन वचार के लए उ िे रत कया... वे वैखम आ दोलन मे ं च खो बैठे और बाद मे ं व भ सावज नक सभाओं मे ं उ होंने वयं को एक सनातनी घो षत कया, अथात् सनातन धम, ढ़वादी 118 ह दुओ ं के अनुसार ‘शा त धम’ का अनुयायी। यह ववरण पू री तरह मनगढं त है, यों क वा तव मे ं गाँधी ने वयं को वैखम स या ह के ार भ से पहले ही एक ‘सनातनी ह दू ’ घो षत कर दया था।119 गाँधी यास कर रहे थे ( यापक सफलता के साथ) ढ़वाद से अपनाये गये सनातन धम और वणा म श दों को एक अ धक समतावादी सं क पना के उपयु बनाने के। यह भी क जा लॉट ारा वैखम स या ह को एक वफल और सामा जक समानता आ दोलन क भावना को हतो सा हत करने वाले के प मे ं च त करना एक भू ल थी। केरल के यात इ तहासकार, एस.एन. सदा शवन, लखते हैं : स या ह ग तशील श यों क जीत थी, एक सहसा उ प मानवीय उभार, सामा जक पुन थान क एक बड़ी लहर और एक भँवर जसने भारत भर के वकृत और हठ ढ़वाद को अ तम चेतावनी दी क वे वे छा से अपनी युगों पुराने दमनकारी ग त व धयाँ समा कर दे।ं ...वैखम सामा जक वत ता के लए भारत मे ं आयो जत होने वाले आ दोलनों मे ं सबसे बड़ा और सबसे ल बा चलने वाला जना दोलन था और इसमे ं भाग लेने के लए क गयी अपील पर सभी समुदायों के लोगों ने त काल अनुकूल त या य क थी...120 वे और आगे यान दलाते हैं क जा लॉट के आरोपों के वपरीत, आ दोलन का जोर कम होने के बदले वह वा तव मे ं केरल के अ य म दरों वाले शहरों तक फैल गया और व भ प व थानों के म दरों क सड़कों पर द लत ह दू चले। सन 1927 मे ं गाँधी भी पुन: केरल आये और सरकार को उसके वचनों क याद दलायी। अ तत: सरकार नरम हुई और येक य ारा, चाहे उसका ज म कसी भी समुदाय मे ं यों न हुआ हो, बना कसी रोक-टोक के म दरों के आसपास क सड़कों के उपयोग करने के अ धकार को माना।121 जा लॉट कसी भी सामाज सुधारक के सकारा मक गुणों क माप इस पैमाने पर करते हैं क उ होंने वयं को ह दू समाज से कतना अलग कया है। इस कार जो तबा गो व दराव फु ले (1827-90) क शं सा ‘ नचली जा तयों को एक वैक पक मू य यव था देकर उ हे ं सं कृतमय करने के फ दे’ से बचाकर नकालने के लए क गयी। पहली बार उ हे ं एक जातीय समू ह के प मे ं तुत कया गया था जसे ं ी ी ी औ

एक ाचीन व णम युग क वरासत मली थी और इस लए जसक सं कृ त यापक ह दू समाज क सं कृ त से अलग थी’।122 दू सरे श दों मे,ं फु ले क भारतीय समाज क वभाजनकारी या या ने जा लॉट क योजना मे ं उनके लए एक वशेष थान अ जत कया। जा लॉट फु ले के ईसाइयत और ईसा मसीह के त स मोहन क शं सा करते हैं : फु ले के लए ईसा मसीह समानता और ातृ व के तीक है।ं वे उ हे ं गरीबों का व ा मानते है।ं ... ईसाई मू यों और तीकों को सामा य लोगों के बीच उ हीं क भाषा मे ं बताते हुए लोक य बनाने के मा यम से फु ले ने लोगों को एक नयी, सकारा मक पहचान से स प कया।123 जहाँ जा लॉट ने ह दू राजनी त मे ं न लवाद का अ व कार करने के लए घुमावदार तरीके वाला रा ता अपनाया, उ होंने वड़ पहचान गढ़ने मे ं न लवाद के ँ े रखने वाला रवैया वक सत कर लया। वे ई.वी. चलन के त आँखे ं मू द रामा वामी क शं सा एक ‘प मी य वादी धारा मे ं समतावादी’ के प मे ं करते है।ं 124 जा लॉट ने इस त य पर भी गुमराह कया क कुड़ी अरसु, रामा वामी के आ दोलन क आ धकािरक शोध प का, खुले प से हटलर क शं सा करती है ँ नकालती है। कुड़ी अरसु और यहू दयों तथा ा णों के बीच समाना तर ढू ढ़ ृ करती है, जैसा यापक प से हटलर के यहू दयों से घृणा करने के कारणों को उ त क मीन का फ मे ं पाया जाता है और कस कार उ होंने जमन समाज मे ं यहू दयों के वच व को समा करने का सं क प लया था। यह शं सा मक ढं ग से वणन करती है क कस कार हटलर ने जमनी मे ं यहू दयों के भु व को समा करने के अपने सं क पत वचन को पू रा कया, और यह चेतावनी देती है क द ण भारत के ा ण वही ख़तरा उप थत करते हैं जो पू व-नाजी जमनी मे ं यहू दी करते थे।125 वे पेिरयार के अ क - वड़ न लवाद क शं सा ‘ नचली जा तयों क पहचान क एक य जातीय अवधारणा’ के प मे ं करते है।ं वे उनक थ त क तुलना द ण अ का के अ त े ों से करते है।ं जा लॉट को प मी सं थानों ारा ह दू रा वादी आ दोलन पर एक आ धकािरक य व माना जाता है। उनके शोध थ ‘भारत मे ं ह दू रा वादी आ दोलन’ (The Hindu Na◌ूग्ona ग्◌ेू दनसहू in India) को 1996 मे ं कोल बया यू नव सटी स े ारा का शत कया गया था। वे ह दू रा वाद को नर तर एक जातीय रा वाद के प मे ं च त करते है,ं 126 और इसे एक ‘ वशेष कार का न लवाद’ बताते है।ं 127 उनके शोध को उ पीड़न सा ह य मे ं यापक प से ‘ड ह द ृ कया गया था जसक समू हों के एक आ धकािरक अ ययन’ के प मे ं उ त गुजरात के दं गों के बाद प मी समाचार मा यमों मे ं बाढ़ आ गयी थी।128 भारत से सब ां स क वदेश नी त मे ं जा लॉट का बल भाव भी है। सी.ई.आर.आई., ँ े

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जहाँ वे काम करते है,ं एक वचार मं च है जो सी.ए.पी., नी त योजना ईकाई, के साथ मलकर काम करता है।129

गेल ऑमवेट (उa त्

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वड़ों और द लतों को इक ा करना

जोड़-तोड़ कर द लत अ ययनों को एक व प देने वाले श ा वदों मे ं गेल ऑमवेट का एक अ य त मह वपू ण थान है। वे बकले थत यू नव सटी ऑफ कै लफो नया क एक समाजशा ी है,ं और सन 1983 मे ं भारत क नागिरक बनीं। वे उ ीसवीं शता दी क औप नवे शक े णयों को मा सवाद के अधीन सं रचनाओं के साथ मलाती है,ं और भारतीय सं कृ त को इस प मे ं देखती हैं क वह अगड़ी जा तयों ारा नचली जा तयों को हज़ारों वष से अपने अधीन रखने के लए रची गयी है। कोई भी चीज जसने उप नवेशवाद के व भारतीयों को उनके सं घष मे ं एकजुट कया वे 130 केवल ‘उ -जा त के तीक’ है।ं यहाँ तक क वे आय े ता क वृ महा मा गाँधी मे ं भी बताती है,ं यह कहते हुए क उ होंने ‘आय को अपने पू वजों के प मे ं देखा। उ होंने जसे उ ोगवाद क बुराई के प मे ं देखा उसके वपरीत उ होंने आदश, सामं ज यपू ण ामीण समाज क ओर वापस जाना चाहा जसमे ं पर पराएँ ही शासन करती थीं। इसे ही उ होंने राम रा य कहा’।131 ऑमवेट म यवग य द लतों को फटकारती हैं जब वे वयं को शेष भारतीय समाज के साथ सफलतापू वक एक कृत करते है,ं और कहती हैं क वे अपनी जड़ों के त ल जत है।ं 132 इस कार, ऑमवेट लॉड िर ली क ‘ ह दू समाज से अनाय क बड़ी सं या को अलग करने क टश औप नवे शक पिरयोजना’ को पुनज वत कर 133 रही है।ं इसके अ तिर , यह दावा करते हुए वे ह दू धम को न लवाद से जोड़ने के यास करती हैं क ‘लोगों को कसी-न- कसी कारण जै वक सं रचना मे ं नीच और सामा जक प से ख़तरनाक के प मे ं देखा जाता है’।134 वे द लत और वड़ आ दोलनों क पर पर वरोधी धाराओं मे ं सै ा तक तालमेल बठाने के यास करती है।ं 135 ऑमवेट वड़ आ दोलन के त मल पहचान तक सी मत हो जाने को एक वफलता क तरह देखती है।ं इसके बदले वे स पू ण भारत मे ं एक वड़ उप तर क पहचान चाहती है।ं वह ‘एक त य’ के प मे ं कहती हैं क ‘ वड़ (या त मल)-भाषी सं ध ु घाटी स यता प मो र भारत मे ं थत थी’ और वे ‘सभी थानों पर अनाय ( ाय: वड़, कभी-कभी ऑ ो-ए शयाई या अ य) लोक य धा मक प थों के मू ल और स पू ण भारत मे ं सां कृ तक थाओं के सा य’ देखती है।ं 136 इन ‘त यों’ के आधार पर वे वैसे आ दोलन शु करने के यास कर रही हैं जो उसे नकारेगा जसे वह ‘वै दक-आय वरासत’ कहती है।ं उनके शै क शोध का प उ े य भारतीय सं कृ त का दानवीकरण करना और स पू ण भारत के वख डन और व ोह को वैध ठहराना। ें

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सन 2001 मे ं डबन मे ं वण को न ल के समतु य बताने के अ भयान मे ं वे इसके समथन मे ं दलीले ं देने वाले ईसाइयों के साथ मल गयी थीं। मुख भारतीय समाजशा ी आ े बेटल े ने ऐसे यासों को ‘राजनी तक प से शरारतपू ण’ और ‘इससे भी बदतर, वै ा नक प से बकवास’ कहा।137 गेल ऑमवेट ने इसके उ र मे ं दो भागों मे ं एक आलेख लखा जसका शीषक था ‘वण, न ल और समाजशा ी’ (Caste, Race and Sociologists), जसमे ं उ होंने वशेष प से केवल आय न ल के स ा त पर ही भरोसा कया जसका उपयोग औप नवे शक भारत वदों ने वणयव था को या या यत करने के लए कया था।138 उनक बेहद शान से क गयी अ बेडकर क शं सा और एक लोक य ठ पे के प मे ं अ बेडकर के उपयोग के बावजू द उनके ारा कही गयी बातों का एक भी उ रण नहीं दया गया, हालाँ क अ बेडकर ने इस वषय वशेष पर कई ख डों मे ं लखा था। ऐसा इस लए कया गया ृ करने से उनक अपनी थ त का ख डन हो जाता, यों क अ बेडकर को उ त यों क अ बेडकर ने आय ारा आ मण कये जाने के स ा त का दो-टू क ख डन कया था। ऑमवेट तो मैक कम मैिरऑट (McKim Mariot) रॉन ड इ डे न (Ronald Inden )और नकोलस ड ् स (Nicholas Dirks) जैसे समकालीन व ानों के शोधों का भी अवमू यन करती है,ं ज होंने वण- यव था को मजबू त बनाने मे ं तानी उप नवेशवाद क भू मका को दखाया; वे इन वचारों को ‘ ह दु व के सवा धक क र तककताओं को स करने वाले’ के प मे ं देखती है।ं 139 जहाँ वे भारतीय रा के व तक देती हैं और भारतीय उ ोगप तयों क आलोचना करती है,ं वे भारतीय अथ यव था के उस ढं ग से वै ीकरण का समथन करती है,ं जो भारत को प म का अनुचर बना देगा। उनके पू व वामप थी सहकम वै ीकरण पर उनके ख का व लेषण करते हुए उनके लेखन मे ं उ ख े नीय नर तरता पाते है।ं वे इस बात पर यान दलाते हैं क कस कार वे टश शासन के लए द लतों के मुहँ मे ं अं ज े ी राज के लए शं सा के श द डालती है।ं इन आलोचकों के अनुसार : ऐसी थ त ऑमवेट के हाल के उदारवाद समथक ख को आ धकािरक बनाती है : नव-उप नवेशवाद और आ थक नभरता अमू त शै क अवधारणाएँ है,ं जो कृ ष समुदाय के जीवन के लए अ ासं गक है।ं 140 ऑमवेट द लत मोच का उपयोग करने वाले ईसाई चारक आ दोलनकािरयों के साथ काम करती है।ं जहाँ सं य ु रा य अमरीका मे ं डी.एफ.एन. और यू रोप मे ं आई.डी.एस.एन. द लत काड का उपयोग करते हुए भारत को दी जाने वाली अ तरा ीय आ थक सहायता को नय त करने के यास कर रहे है,ं वहीं ऑमवेट ने ईसाई आ दोलनकारी मा टन मैकवान और उनके आई.आई.डी.एस. सहकम सुखदेव थोराट के साथ सन 2000 मे ं ‘सामा जक याय परोपकािरता : धन उपल ध ँ े े ं ों ि औ ी

कराने वाले सं गठनों का नजिरया और रणनी तयाँ’ (Social Justice Philanthropy: Approaches and Strategies of Funding Organizations)नामक पु तक का शत क है। इस पु तक का उ े य है व भर क धन दाता एजे ं सयों को सुझाव देना, ता क वे अपने धन वण वभाजन क उनक अवधारणा के समथन मे ं दे।ं 141

पराका ा इस अ याय मे ं दये गये कुछ सं गठनों और य यों के वणन के अलावा अन गनत दू सरे भी है।ं उदाहरण के लए, सन 2008 मे ं एक म य यू रोपीय ईसाई नेटवक ं र ऑन धम ए ड BosNewsLife के सद य वशाल अरोड़ा ने वॉ शं गटन के सेट 142 पॉ ल ट स मे ं एक शोध प तुत कया। इस शोध प ने ह दू धम को द लत अ धकारों के व के प मे,ं तथा ईसाई राजनी तक समू हों को उनके लए सं घषरत के प मे ं च त कया। व भ भारतीय रा यों मे ं धोखाधड़ी से धमा तरण को रोकने के लए जो कानू न लागू हैं उ हे ं अरोड़ा ारा ‘धमा तरण- वरोधी’ कानू नों ं के प मे ं च त कया गया। उनके शोध प ने उ पीड़न के आँकड़े दये और सेट टॉमस के ( ह दुओ ं के हाथों) शहीद होने को भारत मे ं ईसाइयत के ार भ के प मे ं व णत कया।143 उ होंने अनेक ईसाई चारक और मशनरी सं गठनों का वणन ‘धा मक वत ता के े मे ं स य प से सं ल न’ के प मे ं कया।144 ये सब सं थान और य एक अ छ तरह सं यो जत अ तरा ीय अ भयान के अं ग हैं जो यू रोपीय एजे ं सयों को हर उपल ध सं साधन के मा यम से वण सम या के अ तरा ीयकरण करने के लए समथन देता है। सन 2009 मे ं टाइ स ऑफ इ डया मे ं छपे एक समाचार के अनुसार भारतीय अ धकािरयों ने भारत को ‘यू रोपीय देशों’ ारा एक नवीकृत भारत- वरोधी आ मण का मुकाबला करता हुआ पाया, ‘जो भारत को इस आरोप पर पछाड़ना चाहते हैं क वण- यव था न लवाद का ही एक व प है’ और क ‘ कैं डने वयाई देशों ने वण- यव था पर अपने पुराने ख को पुनज वत कर लया है’। भारतीय अ धकािरयों ने इसक वजह इस े मे ं थरता पर पैदा होने वाले अ त न हत ख़तरे को प कर दया है, यों क तब ‘भारत का येक वण एक भ न ल हो जायेगी’।145

18 भारत क ईसाई उ मत

‘भारत मे ं अ तरा ीय और साथ ही थानीय चैनलों का ईसाई सारण का उ भव रा ों क भौगो लक सीमाओं से बहुत दू र तक जाकर एक ‘‘ईसाई उ मत’’ के साथ पहचान था पत करने के लए थान उपल ध कराता है।’ — दीप नाइनन टॉमस, भारतीय ईसाई व ान1 हमने देखा है क कस तरह वदेशी व ता का उपयोग लगभग दो शता दयों से भारतीय पहचान मे ं हेर-फेर करने के लए कया जाता रहा है, और कस तरह हाल के अ तरा ीय ह त प े व भ अलगाववादी समू हों को श स प बनाते है।ं भारत के गरीब े ों मे ं ईसाई चारक चैनलों के मा यम से वदेशी धन क बहुत बड़ी रा श के आ जाने से चच और उनसे जुड़े मशन कुकुरमु ों क तरह उग आने यो य बन गये है।ं बहुधा, नये चच थानीय सं कृ तयों और पर पराओं के व झड़पों मे ं शा मल होते है,ं ज हे ं नये-नये धमा तिरत लोगों के मन मे ं एक बुराई क तरह च त कया जाता है। उदाहरण के लए, त मलनाडु के क याकुमरी जले मे ं इस गहन रणनी त ने एक ईसाई बहुसं यक वग का सृजन कर भी दया है, और अब सावज नक उ सवों, या उनक पर पराओं या तीकों के दशन के समय ह दुओ ं पर भारी दबाव डाला जाता है। वैसे चार के मा यम से, जो अ य बहुलतावादी समाजों मे ं घृ णत सा ह य माने ं ,े नये धमा तिरत लोग भत कये जाते है।ं ह दू धम थलों को बहुधा हं सा मक जायेग तरीकों से न कया जाता है और थानीय गाँवों के नाम ईसाई नामों मे ं बदले जाते है।ं आ दवासी आ या मक और च क सा णा लयों को वलु कया जा रहा है, और वदेशी वक पों से उ हे ं हटाया जा रहा है या उनका नाम बदलकर ईसाइयत मे ं मलाया जा रहा है। यह आ ामक धमा तरण बहुधा थानीय लोगों मे ं हं सा मक त याएँ उ प करता है जो अपनी सं कृ त और पर पराओं को इन आ मणों से बचाने का यास करते है।ं ो धत मू ल नवासी बहुधा समथन के लए ह दू रा वादी सं गठनों क ओर मुड़ते है,ं यों क प थ- नरपे समू ह ऐसे पचड़ों से अलग ही रहना पस द करते हैं या ईसाई प को ही सहायता देना पस द करते है।ं उसके बाद ऐसे गठब धनों को समाचार मा यमों ारा ईसाइयत से सं घषरत ह दू रा वा दयों के प मे ं च त कया जाता है, तब भी जब इन झड़पों मे ं से अनेक उस समय फु टत हुई होती हैं जब मू ल नवासी अपनी ऐ तहा सक पहचान और सं कृ तयों क र ा करना चाह रहे होते है।ं आ ामक ईसाई धमा तरण ने इस हं सा च को भड़काया है। ईसाई चारक सं गठनों ारा सम थत अ तरा ीय समाचार मा यम ऐसे का डों को यापक प से सािरत करते है,ं ले कन ईसाई चारकों क ार भक भड़काऊ ों



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ग त व धयों क उपे ा करते है।ं इस कार के समाचार मा यमों ारा यान के त करने के पिरणाम व प उ पीड़न सा ह य का उ पादन होता है। प म मे ं समाचार मा यमों, श ा वदों, और नी त नमाताओं के बीच उ पीड़न सा ह य के कुटीर-उ ोग का सार होता है। सं घष वाले े ों को अ धकार वाले े के प मे ं च त कया जाता है जो स य व के ह त प े क बाट जोह रहा है। यह प म से ईसाई चारक हतों के लए और अ धक धन के लए उ िे रत करता है, और यह च चलता रहता है। च 18.1 इन याओं का एक सं हवलोकन तुत करता है, जसका वणन और अ धक व तार से कया जायेगा। Fig. 18.1 हं सा के च का सृजन

 

सं थाओं को धन देना और उ हे ं बनाना यह अ याय दखायेगा क अ तरा ीय ईसाई चारक सं गठनों ने वकास जैसी प थनरपे अवधारणाओं के उपयोग के मा यम से भारत के ईसाईकरण के लए मह वाकां ी योजनाएँ बनायी है।ं व ड वजन जैसे सं गठन ने, जसने प मी गु चर एजे ं सयों के साथ भागीदारी कर ली है, स पू ण भारत मे ं यापक अवसं रचना (नेटवक) सृ जत करने के लए भारी व ीय रा श का नवेश कया है। प म से सरकारी सहायताएँ, जैसे यू .एस.एड ारा धन देना भी, इन ईसाई चारक सं थानों के मा यम से कया जा रहा है।

समाचार मा यम ें ई ई

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भारत मे ं ईसाई चारक सैटल े ाइट टीवी चैनल कुकुरमु े क तरह उग आये हैं ता क वे ईसाइयत के ढ़वादी सं करण का सार कर सकें जो जनसमुदाय को सं य ु रा य अमरीका के द णप थी ईसाइयों से भावना मक प से जोड़ते है।ं हम यह द शत ं े क ऐसे खु म-खु ा ईसाई चारक चैनलों के अ तिर ईसाई प कारों ने करेग सु नयो जत तरीके से भारत के प थ- नरपे समाचार मा यमों मे ं घुसपैठ क है, जहाँ वे दु नया को भारत का उ पीड़न सा ह य दान करने के लए अ तरा ीय ईसाई मी डया नेटवक (जैसे गे ाफा और बॉसलाइफ) ारा तैनात कये जाते है।ं

गु चरी डे नवर थत ोजे ट जोशुआ जैसी बड़े पैमाने पर चलायी जा रही पिरयोजनाओं ारा, भारतीय समुदायों के यापक मानवशा ीय अ ययन कराये जा रहे है।ं ईसाई चारक ब और प मी गु चर एजे ं सयों के साथ आँकड़ों के आदान- दान के लए वे हर एक भारतीय समुदाय का ववरण तैयार करते है।ं वे अ तर-रा ीय एजे सयों के माग को सुगम बनाते हैं ता क वे भारतीय समुदायों मे ं अपने ह त प े का ब दोब त दू र से ही कर ले।ं इसमे ं ईसाइयत के बारे मे ं श त करने क आड़ मे ं सामा जक उथलपुथल पैदा करना भी शा मल है जो ल त समुदायों को कमजोर बनाता है। ऐसे भी सं थान हैं जो ईसाई चारक उ े यों के लए भारत का शै क अ ययन करते हैं और जनके भारतीय ईसाई चारक सं थानों के साथ औपचािरक स ब ध है।ं ये सभी कारक मलकर भारत मे ं एक बल जनाधार न मत करते हैं जो व ीय, सां था नक और भावना मक तर पर प म के द णप थ पर नभर हो। च 18.2 द शत करता है क कस कार व भ प मी एजं सयाँ—सरकारी और गैरसरकारी दोनों कार के खलाड़ी—सामा जक और राजनी तक तरों पर भावी नय ण के लए भारत मे ं सं थागत ढाँचों को सहारा देने वाला त न मत करने मे ं नवेश कर रहे है।ं े लए सं थाओं का नमाण Fig. 18.2 भारत मे ं अ तर-रा ीय नय ण और ह त प

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रा य अमरीका आधािरत भारतीय ईसाइयत का व तार

ईसाई चारक सं गठनों के मा यम से भारत के अ दर प मी भु व के लए भावी ढं ग से एक आधार न मत कया जा रहा है। उ े य है एक ढ़वादी ईसाइयत का सार और उसमे ं व ास करने वाले अनुया ययों क ऐसी जनसं या का नमाण जसका प म के त बल भावना मक स ब ध और उस पर नभरता हो। सं य ु रा य अमरीका मे ं ईसाई द णप थ वशेष प से स य है और इस मामले मे ं मह वाकां ी भी। भारत के सं वधान नमाताओं ने ईसाई चारक आ मण के व मू ल नवासी समुदायों के धम क र ा के लए कानू न बनाये थे। ले कन भारत के अ दर और बाहर क ईसाई चारक श याँ इन कानू नों को हटाने के लए मलकर यास कर रही है,ं जो सं वद े नशील सीमा े ों के रा यों, जैसे अ णाचल देश और हमाचल देश, और भारत मे ं अ य गलत हथक डे अपनाकर धमा तरण करना तब धत करते है।ं ऑ े लया के वी सलै ड व व ालय के प कािरता और सं चार के ा यापक, दीप नाइनन टॉमस (Pradip Ninan Thomas), प करते हैं क कस ं







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कार सं य ु रा य अमरीका का गठजोड़ त मलनाडु क राजनी त मे ं गहरी घुसपैठ कर चुका है : जहाँ पैट रॉबटसन, पॉल ोच और अ य भारत मे ं राजनी त को भा वत करने मे ं सीधे सं ल न नहीं है,ं वे सं य ु रा य अमरीका मे ं एक गुट के प मे ं अव य ही काम कर रहे है।ं उनके भारतीय समक थानीय राजनी त मे ं अ य धक सं ल न है।ं जहाँ एजरा सगुनम, ज होंने ए ी ाइब, ए ी टं ग स मेलन का आयोजन कया था, डी.एम.के. से जुड़े हुए हैं (इसी कारण डी.एम.के. और कां स े के बड़े भावशाली नेता, जनमे ं भारतीय व म ी पी. चद बरम भी शा मल थे, उस स मेलन मे ं उप थत रहे), एस.आई.एस.ड यू .ए. ट (साउथ इ डया सोल वनस एसो सएशन) जो टी.बी.एन. के वतरण अं ग के प मे ं काम करता है, के डॉ. काश ए.आई.ए.डी.एम.के. के बल समथक हैं और रा य अ पसं यक आयोग के अ य भी। ईसाई चारकों ारा धा मक स मेलनों और धमा तरण के आयोजन के लए अनुम त हेत ु राजनी तक स पक आव यक होते है,ं जैसे क बेनी हन का है, जनका भारत मे ं कुछ वग ारा वरोध कया जाता है। इसके बदले मे ं ये सं गठन भारी मा ा मे ं वदेशी धन उपल ध कराने वाले भामाशाह बनते है,ं वशेषकर सं य ु रा य अमरीका से आने वाले धन के लए, जो भारत के राजनी तक स दभ मे ं बहुत बड़े आयोजन करने के लए आव यक है, जैसे बेनी हन के ू सेड।2 इसके बाद, हम सं य ु रा य अमरीका थत मुख खला ड़यों क एक दृ ा त ं ।े 3 सू ची तुत करेग

वशाल मं गलवादी : भारत के पैट रॉबटसन वशाल मं गलवादी एक भारतीय अमरीक ईसाई चारक हैं जनका स देश आ यजनक ढं ग से यू रोप के त ईसाइयत है। वे दावा करते हैं क अं ज े ों के अधीन उप नवेशवाद भारत के लए बहुत अ छा था, और उ होंने तानी औप नवे शक काल के सबसे दु ईसाई चारक, व लयम कैरी (Wiliam Carey), क वशेष प से शं सा करते हुए एक पु तक लखी है।4 उनका शोध यह है क भारत के क इसके मू तपू जक धम के कारण ही रहे है।ं भारत उन समाजों मे ं से एक है जसने ‘अनेक थानीय और े ीय देवताओं क ओर देखा है’, या ‘ वयं स माण मान लया है क जीवन का उ े य परम शू य के साथ एकाकार होना है जो अ तम स य है’, या कसी तरह ‘गू ढ़ दाश नक और धा मक रह यों’ मे ं खो गया है। वहीं दू सरी ओर, ‘एकमा स यता जसने अपनी रे णा के लए मु य प से बाइबल क ओर ही देखा, वह प म है, जो क मानवीय ू रता, नराशा और पतन पर वजय पाने मे ं स म रहा है’, और सभी भारतीयों के लए यही अनुकरणीय ा प होना चा हए। वे खेद कट करते हैं क प म अपनी सफलता मे ं आ मतु हो गया है, यह े









भू लते हुए क बाइबल ही वह ‘पु तक थी जसने प म को व राजनी त और सं कृ त मे ं सबसे आगे रखा था’।5

अथ यव था,

मं गलवादी औप नवे शक ईसाई धमा तरण को ‘औप नवे शक शासन को सुधारने और भारत का भला करने के लए’ एक भ य न मानते है।ं इ तहास क उनक या या यह है क जहाँ भारत क वत ता महा मा गाँधी के आ दोलन के पिरणाम व प आयी, वहीं वा तव मे ं भारत क वत ता ईसा मसीह के स देश ारा उ पा दत फल है। भारत का एक वत और आधु नक रा मे ं पा तरण एक वशाल योग था जसे बाइबल के व दृ कोण से सं चा लत नेताओं ारा पिरक पत और काया वत कया गया था। ये महान नेता, उनके अनुसार, अं ज़ े ईसाई चारक थे! दू सरे श दों मे,ं अं ज े ईसाई चारकों को ही भारत के स े सं थापक माना जाना चा हए। वे गाँधीवादी अ हं सा क या त को भी झू ठ मानते हैं जसे ‘ फ म मे ं क से क तरह गढ़ा गया’ है।6 वे सारे ह दू धम को ह दु व के समतु य, सारे ह दु व को ‘सां कृ तक रा वाद’ और ‘सां कृ तक फासीवाद’ से यु बताते है।ं भारतीय लोकत वफल हो गया है, वे आरोप लगाते है,ं और इसका कारण यह है क इसने बाइबल का उपयोग अपने दशा नधारण य के प मे ं नहीं कया। वे ऐसी भाषा मे ं योग पर हार करते हैं जो व तु न और बौ क दखती है, और इस तरह वे जो दान कर रहे हैं उसे अ धकां श प मी लोग योग और ह दू धम के व भ प थों का ं ।े 7 ले कन उनके न कष एक अ य धक वचारशील और स तु लत व लेषण मानेग पू वा ह से त और अपमानजनक है।ं उदाहरण के लए, वे बल देकर कहते हैं क ँ ने के लए त पागलपन के उपयोग के बारे मे ं नहीं हचकता। त स य तक पहुच मानता है क वयं सृ एक द य पागलपन है; इस लए, व थ च ता को ई र के म दर के बाहर छोड़ ही देना होगा। चू ँ क वे इस पिरक पना से ार भ करते हैं क ह दू धम एक म है, व भ ँ ाता है : गु ओं और प थों का उनका व लेषण उ हे ं इन दो स भावनाओं तक पहुच ‘ न है क या वे मादक पदाथ के कारण म मे ं है,ं या यों क उ होंने अपनी आ या मक या ा का ार भ एक झू ठे व दृ कोण से कया जसे उ होंने गलती से स य का मान च मान लया था?’ ह दू धम क मौ लक सम या नै तकता है, जसे केवल बाइबल ही सुलझा सकता है, वे बल देकर कहते है।ं यह दशन या योग ृ अं श का पहला पैरा ाफ स ब धी यासों ारा सुलझने यो य नहीं है। नीचे उ त उनके रोग नणय का सार तुत करता है क भारतीय सं कृ त ह दू धम के कारण पी ड़त है और उसके बाद का पैरा ाफ बाइबल के अनुसार उनका नदान तुत करता है : भारतीय दाश नक पर परा, अपनी सारी तेज वता के बावजू द, एक ऐसी सं कृ त को ज म नहीं दे सक जसने मानवा धकार और य यों के ो



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अ त न हत मू य को वीकार कया। न ही योग का एके रवाद भारतीय समाज को परम नै तकता के लए एक ढाँचा दे सका—सही और गलत, यायपू ण और अ यायपू ण क एक बल भावना। योग अ यासों ने हमारे शरीरों को लचीलापन दान कया है, ले कन दुभा यवश योग के दशन ने हमारी नै तकताओं को कुछ अ धक ही लचीलापन ला दया है—और हमे ं [अथात भारतीयों को] व के सवा धक रा ों मे ं से एक बना दया है। बाइबल सखाती है क मानव क सम या जै वक या पराभौ तक नहीं ब क नै तक है। ई र ने मनु य क उ प एक अ छे जीव के प मे ं क थी। ( या आप एक सवश मान सृ कता से इससे अलग कसी और चीज क ं ? आशा करेग े ) हमारे पहले माता- पता [ऐडम और ईव] ने ई र क अव ा करने का माग चुना और इस लए पापी बन गये। वही वृ हम सभी तक चलती चली आयी... बचपन से ही हमारा झान बुराई क ओर है... हमारी के ीय सम या, बाइबल के अनुसार, यह है क हम पापी है।ं हमे ं एक दैवी ाता क आव यकता है जो हमारे पापों को मा कर दे और हमारे दयों को—हमारे अ त व के मम थल को पा तिरत कर दे।8 मं गलवादी आगे दावा करते हैं क तानी सा ा य के मा यम से ईसाइयत के स य बनाने वाले भावों के पू व भारतीय धम मू लत: बबर था। वे बल देकर कहते हैं क अं ज े ी राज को हटाने से भारत फर से फसलकर वापस बबरता मे ं चला गया : ले कन अब जब क भारत मे ं ईसाई भाव घट गया है, पुराना ता क प थ खुल-े आम सतह पर वापस आ रहा है। भारत मे ं लगभग बावन ात के हैं जहाँ त क श ा दी जाती है और उसका अ यास कराया जाता है। अपने सवा धक अपिर कृत प मे ं इसमे ं यौन अं गों क पू जा, यौन नं गे नाच भी शा मल होते हैं जनमे ं र और मानव वीय पीना, काला जादू , मानव ब ल और शमशान भू म मे ं मृत य यों के सड़ते शवों के मा यम से दु आ माओं से स पक भी शा मल है,ं आ द।9 उनके या यान और शोध प व भर के मुख धमशा ीय के ों मे ं तुत कये गये है।ं वे अमरीक ईसाई चारक और शै क समथन का उपयोग करते हुए भारत क धा मक राजनी त मे ं भी अ य धक स य है।ं 10 पहले उ होंने प थ- नरपे ँ ।े सन 1990 के दशक मे,ं जनता राजनी त भी आजमायी और वे स ा के पद तक पहुच दल के रा ीय मु यालय मे ं कृ ष सुधार के पयवे ण के भारी भी बनाये गये, जो उस समय भारत क स ा ढ़ पाट थी।11 उसके बाद उ होंने म य देश मे ं ‘ ामीण वकास’ के लए एक ईसाई सं गठन शु कया, द ी मे ं एक धमशा ी शोध सं थान था पत कया, और कई दशकों तक भारत मे ं व भ अ पसं यक राजनी तक पा टयों मे ं भाग लया। अब वे अपनी इन सभी वशेष ताओं का उपयोग अमरीक व व ालयों के पिरसरों मे ं ‘द ण ए शया के लए शै णक सं साधन’ वक सत े औ







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करने, और साथ ही साथ अमरीक से मनिरयों के लए ‘ ह दू अ ययन’ वशेष ता दान करने मे ं कर रहे है।ं 12 हर कार के ईसाई शा यों ारा यापक प से यह ‘ मा णत’ करने के लए ृ कया जाता है क ह दू धम े ता मे ं मं गलवादी को आ धकािरक प से उ त ईसाइयत से नीचे है। उदाहरण के लए, एक वेबसाइट उनक आ धकािरकता का उ ख े यह दावा करने के लए करती है क ह दुओ ं मे ं ‘ईसाई दान वृ को समझने मे ं वा त वक क ठनाई है यों क ह दू धम मे ं ऐसी कोई समान पर परा नहीं है’।13 उनके लेखन भारत मे ं सा दा यक गृह यु ों और वण-आधािरत यु ों क चचा व तार से करते है।ं माओवादी-ईसाई ह यारों ारा एक अ सी वष य वृ ह दू साधु क ह या के बाद उड़ीसा मे ं हुई हाल क सा दा यक हं सा के आलोक मे ं मं गलवादी ने एक ां सीसी ईसाई प का Journal Chretien मे ं एक ल बा लेख लखा। उ होंने व तार से लखा क कस तरह ईसाइयों और माओवा दयों का एक साथ होना ख नज स पदा से समृ पू व रा य उड़ीसा मे ं एक नयी स ा सं रचना को ज म दे सकता है : उड़ीसा मे ं ईसाई समथक माओवा दयों ने अनेक व श ह दू नेताओं को, जो ईसाई वरोधी हं सा के लए ज मेवार है,ं पहले ही चेतावनी दे रखी है क उनके ही नाम उनके अगले नशाने पर है।ं कुछ सौ ‘ईसाई-माओवादी’ गुिर ा उड़ीसा मे ं ं ।े 14 स ा-समीकरण बदल देग वाभा वक स ता के साथ वे अपने पाठकों को सू चत करते हैं क ‘कम-सेकम एक अ छे अमरीक ईसाई (स भवत: जो ईसाई-माओवादी गठजोड़ से अन भ है)ं ने अपने कां स े सद य से पू छा है क या उ हे ं उड़ीसा मे ं ईसाइयों को ब दू कें खरीदने मे ं सहायता देनी चा हए’। भारत क बीमािरयों के लए ‘ ह दू धम के देवताओं, जनके तु करण क आव यकता है’, पर आरोप लगाते हुए वे शोक य करते हैं क ह दुओ ं ने ‘अं ज े ईसाइयों ारा न मत व छ सं थानों’ को कर दया है। प थ- नरपे ता के एक क र वरोधी, वे लखते हैं : प थ- नरपे लोकत वफल हो गया है, ले कन भारत मे ं कोई वैसा मं च नहीं है जो बाइबल के आ थक और राजनी तक च तन क श ा देता है। चच को अपने युवाओं को सुधार के लए श त करना चा हए और याय के सं थानों को चलाना चा हए जसे ह दू प थ- नरपे ता ने कर दया है। ईसा मसीह और माओ उड़ीसा मे ं एक साथ हो गये है,ं यों क हज़ारों वष से द मत लोगों ने ह दू सामा जक-आ थक यव था के व खड़े होने का नणय कया है।15

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स पू ण उ र अमरीका का एक श शाली ईसाई नेटवक, र व जकािरयाज अ तरा ीय दू तालय (Ravi Zacharias Internatinal Ministries), राजनी तक स ा त और धन दोनों दान करने के लए भारतीय समू हों के साथ दृढ़तापू वक जुड़ा हुआ है। उनमे ं से कुछ जोरदार ढं ग से अ तरा ीय अनुदानों क याचना करते है,ं जब क अ य य गत धमादा दान पर भरोसा करते है।ं कुछ अपने ईसाई चारक स पक का उ ख े करते है,ं जब क अ य अपनी धा मक जड़ों के बारे मे ं अ धक नहीं बताते। फर भी सभी कुछ हद तक गोरों के अपराध बोध पर भरोसा करते हैं ता क वे भारत के दबे-कुचले लोगों को बचाने मे ं उनक सहायता कर सकें। मं गलवादी के ऐसे नकट सहयोग के उदाहरणों मे ं एक हैं र व जकािरयाज।16 सन 1984 मे ं उ होंने सं य ु रा य अमरीका मे ं र व जकािरयाज इं टरनैशनल म न ीज क थापना क , ‘ईसाई धमा तरण, ईसाई म डनवाद और श ण’ के मशन के साथ। 17 जकािरयाज युवाकाल मे ं उ र अमरीका चले गये थे, जहाँ अ य लोगों के अलावा बली ाहम ारा उनका पोषण कया गया था। वे सवा धक भावी पादिरयों मे ं से एक बन गये हैं जो धमशा यों, सरकारी नी त नधारकों और व ा थयों को परामश देते हैं और जनका व भर मे ं भाव है। उ हे ं एक ऐसे य के प मे ं था पत कया गया है ‘जो ह दू धम मे ं डू बे रह 18 कर पले-बढ़े ’, हालाँ क वा तव मे ं वह एक ऐसे पिरवार से आते हैं जो कई पी ढ़यों से ईसाई रहे है।ं 19 ह दू धम का मू ल ‘द ण के काली चमड़ी वाले वड़ों, भारत के मू ल नवा सयों’ और ‘गोरी चमड़ी वाले अपनी ही मू तपू जक धम के म ण वाले ँ नकालते हुए,20 वे वड़ ईसाइयत को आय ’ के धा मक व ासों के मलन मे ं ढू ढ़ आगे बढ़ाते है,ं जसके लए वे द ण भारतीय व ानों—आ द शं कर से लेकर डॉ. ं टॉमस को भी घुसाते है।ं 21 मं गलवादी क तरह राधाकृ णन तक—क पर परा मे ं सेट वे भी वकासशील देशों क सभी सामा जक सम याओं के लए पू व धम को दोषी ठहराते है,ं जब क उप नवेशवाद के भावों को पू री तरह अनदेखा कर देते है।ं उनके ं मे ं वे यावृ क उ दर को बौ धम से जोड़े जाने ने सं य ु रा य ारा थाईलैड अमरीका के एक वग मे ं आ ोश उ प कया और उनक कड़ी आलोचना क गयी। 22

जकािरयाज, द णप थी राजनी तक लेखक दनेश डी’सू जा और राजनी त तथा लुई सयाना के गवनर बॉबी ज दल जैसे अ य भारतीयों के साथ, अमरीक ईसाइयों मे ं मह वपू ण हो गये है।ं हालाँ क डी’सू जा और ज दल कैथो लक है,ं वे भी ं जकािरयाज क तरह राजनी तक प से द णप थी ोटे टेट ढ़वादी श यों के 23 साथ मले हुए है।ं उदाहरण के लए, सन 2008 मे ं बॉबी ज दल ने वै ा नकों के वरोध क उपे ा क और एक वधेयक को अनुम त दे दी (लुई सयाना साइं स ए ू केशन ऐ ट) जसे यापक प से ‘रा य मे ं सृ वाद के ार खोलना’ माना जाता है।24











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भारतीय ईसाइयत फैलाने के लए सवा धक बलता से अनुदान क याचनाओं मे ं से ं ारा दया एक का दृ ा त भारत थत इं टरनैशनल इं टी ू ट ऑफ चच मैनज े मेट 25 गया है, जो अमरीक सं गठनों को याचना प भेजता है। उनके प ों मे ं से एक इस कथन के साथ ार भ होता है : ‘हम न न ल खत पिरयोजनाओं के लए 10 लाख ं ’े । जन ग त व धयों के लए यह धन क डालर के अनुदान हेत ु आवेदन करना चाहेग याचना करता है वे इस कार सू चीब हैं :  भारत मे ं एक चच खरीदना या न मत करना  गरीब व ा थयों के लए छा वृ जो धमशा ीय महा व ालयों के शु क भुगतान नहीं कर सकते   भारत और वदेशों मे ं ईसाई नेत ृ व गो याँ आयो जत करना; ‘नेत ृ व’ ह दू धम के बारे मे ं नकारा मक वचारों का सार करने के लए एक स य श द है, जैसे ‘मु ’ ईसाई धमा तरण के लए  अनाथालयों, वधवाओं, वृ ों, अपं गों और अ य ज रतम द लोगों के लए जो आपदाओं से पी ड़त हैं  ब ों के लए सहायता  पु तकालयों के लए पु तकें  अवसाद त लोगों के लए परामश   धमशा ी अ ययनों के लए दन मे ं चलने वाले महा व ालय, स या मे ं चलने वाले महा व ालय और आवासीय महा व ालय के प मे ं ईसाई पुरो हताई के काय का व तार  भारत क व भ भाषाओं और बो लयों मे ं ईसाई पु तकों के अनुवाद  ऑनलाइन इं टरनेट, टीवी, वीडीसी, डीवीडी, रे डयो, पु तकों और प काओं के मा यम से ईसा मसीह के स देश का सार ँ नहीं है, वहाँ तक पहुच ँ ना  सुदूर े ों मे ं जन लोगों तक पहुच यह याचना प सैकड़ों ईसाई धा मक, खैराती और सामा जक काय पिरयोजनाओं क सेवा मे ं प ीस वष क म न ी के िरकाड का उ ख े करता है। ऐसी याचना भारत और सं य ु रा य अमरीका दोनों देशों मे ं शु प से वैध है। यह भारतीय ईसाई चारक समू ह अपने प मे ं सबसे ऊपर अपनी स ब ताओं का उ ख े ं ऑफ यू करता है, और इनमे ं शा मल है : इं टरनैशनल इं टी ू ट ऑफ चच मैनज े मेट यॉक; अमरीकन ए े ड टं ग एसो सएशन ऑफ थयोलॉ जकल इं टी ू श स, नॉथ कैरोलाइना; एपो टॉ लक काउं सल ऑफ ए ू केशनल अकाउंटै ब लटी, कोलोराडो; औ







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ं लु । अहा नकारक और नैशनल एसो सएशन फॉर थयोलॉ जकल ए े डटेशन, बेग दखने वाले ये सं थान भारतीय लोगों के बीच वा तव मे ं ईसाई ढ़वाद फैलाते है,ं जसमे ं सृ वाद का छ व ान भी शा मल है।26

व ड वजन (World Vision) व ड वजन सबसे बड़े ईसाई बहुरा ीयों मे ं से एक है और धमा तरण कराने क इसक भू ख अ य त आ ामक है। इसक कु या त एक प मी व ान ारा दये गये न न ववरण से ही प है : व ड वजन ने अनेक अवसरों पर सं य ु रा य अमरीका क सरकार के एक गु चर क तरह सू चनाएँ इक ा करने वाले अं ग के प मे ं काम कया है। सन 1970 के दशक मे ं व ड वजन पर अ भयोग लगाया गया था क उसने सी.आई.ए. के लए वयतनाम क भू म के आँकड़े जुटाये थे। अमरीक सै नकों के े छोड़ जाने के बाद व ड वजन ने शरणाथ श वरों के ब धन मे ं एक मुख भू मका नभायी थी। ... व ड वजन ‘पीली वषा’ अ भयान मे ं भी सो वयत सं घ को बदनाम करने के लए एक मह वपू ण खलाड़ी बना। इस ष मे ं ं ॉक थत अमरीक दू तावास ने अनुरोध व ड वजन का नाम तब आया जब बैक कया क राहत एजे सी शरणा थयों से लये गये च क सक य नमू ने भेजे ज होंने ं मे ं शरणा थयों के ‘पीली वषा’ के वष से पी ड़त होने का दावा कया है। थाईलैड साथ काम करने वाले एक मशनरी के अनुसार अमरीक अनुदान पर व ड वजन क नभरता के कारण वह उस अनुरोध को मानने के लए ववश था क शरणा थयों के र के नमू ने अ धक नरपे अनुसंधानकताओं के बदले अमरीक दू तावास को भेजे जाये।ं 27 इसक भारतीय वेबसाइट एक मानवतावादी छ व तुत करती है, वयं को ‘एक ईसाई मानवतावादी सं गठन को प मे’ं व णत करते हुए ‘जो गरीबी और अ याय के बीच गुजर-बसर करने वाले ब ों, पिरवारों और समुदायों के जीवन मे ं टकाऊ पिरवतन लाने के लए काम कर रहा है’।28 इसक अमरीक वेबसाइट (जहाँ से इसके लए अ धकां श धन एक त कया जाता है) अपने मशन के बारे मे ं अ धक बेबाक है : ‘व ड वजन यू नाइटेड टे स’ मे ं कमचािरयों क नयु के लए सभी आवेदनकताओं पर वचार उनक ईसाई तब ता के आधार पर कया जायेगा। भत के लए वचार क या मे ं शा मल होगा : आवेदनकताओं से ईसा मसीह के साथ उनक आ या मक या ा और उनके स ब धों पर चचा; ईसाई स ा तों क समझ; व ड वजन के आ था स ब धी व य को और/या ईसा के स देशवाहकों के धम- स ा त को वीकार करना और उनक समझ।29 ी

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आज अमरीक सरकार मे ं एक अ तरा ीय धमादा सं गठन के प मे ं व ड वजन का जो दबदबा है, उसे गु चर सू चनाएँ एक त करने मे ं उसक भागीदारी और उसके साथ ही उन देशों मे ं अ थरता लाने क ग त व धयों मे ं उसक सं ल नता ारा या या यत कया जा सकता है ज हे ं अमरीका अपने श ु के प मे ं देखता है। ‘के ज लातीनी अमरीका का इ तहास’ (Cambridge History of Latin America) एक उ रण तुत करता है क व ड वजन कस कार काम करता है, जो उसके सामा य तौर-तरीके का सं केत देता है : व ड वजन और इसी तरह के मशनरी समू ह बाहरी कारकों के प मे ं काम करते है,ं जो थानीय समुदायों के लए उनक सां गठ नक पहचान और धा मकता का स मान करते हुए काम नहीं करते।... इसका सै ा तक त एक ँ ीवाद मे ं कृ ष अथ यव थाओं को श शाली उपकरण है न केवल पू ज वा त वक प मे ं मलाने क या का साथ देने के लए, ब क समुदाय को अचानक परमाणुओ ं क तरह छोटे-छोटे टुकड़ों मे ं बँटने के लए िे रत करने के ँ ीवादी स ब धों क यापक लए भी, ता क उन पिर थ तयों मे ं उ पादन के पू ज ँ ीवादी णाली का वकास प से विरत थापना हो जसमे ं देश वशेष मे ं पू ज वैसे ढं ग से होगा जो कृ ष से अलग कर दये गये म बल को कभी खपा नहीं पायेगा।30 द ण अमरीक देशों मे ं वकास रणनी तयों पर कया गया एक अ य अ ययन यह उजागर करता है क कस कार व ड वजन ने सामा जक व ेष भड़काया था : सन 1979 से 1985 के बीच, व ड वजन ने 47 लाख डालर से यादा आ थक सहायता ई वाडोर को दी थी। ... सन 1980 के दशक मे ं ई वाडोर (Ecuador) ु ीकरण और छोटी उ पादन क सरकार ने पुनवनरोपण, जल, ामीण व त पिरयोजनाओं के लए इ डयन लोगों क जमीने ं ठे के पर व ड वजन को दी थीं। ... रा य के अ धकािरयों ने शकायत क क व ड वजन ने उनके काय मों को पछाड़ा, उप थ त के एका धकार के आधार पर समुदाय क मनोदशा को एक वशेष व प दया, और यहाँ तक क पध पिरयोजनाओं को न करने के लए ामीणों को भड़काया। ... धन सामा यत: इ डयन ईसाई चारक जमावड़ों ं राजनी तक सं गठनों को वतरण के लए दया गया। या उभरते हुए ोटे टेट अनेक मामलों मे ं व ड वजन के कमचारी नगरपा लका शासन मे ं एक ही साथ कई पदों पर आसीन रहे। इसने इ डयन समुदायों के पार पिरक और ईसाई ँ ा दया, जसमे ं पिरयोजना क स प को चारक घटकों को सं घष तक पहुच न करना और यहाँ तक क कोष के यापक कु शासन के साथ-साथ हं सा भी शा मल थी।31 व ड वजन का इससे भी अ धक ग भीर यवहार सा वाडोर के शरणा थयों के मामले मे ं था : े





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व ड वजन ने तीन सा वाडोर (Salvador) शरणा थयों क मृ यु मे ं भू मका नभायी। व ड वजन के श वर-सं योजक उ हे ं हॉ डुरास (Honduras) क थानीय सै य चौक पर ले गये, जहाँ उ हे ं त काल गर तार कर लया गया। कुछ समय बाद हॉ डुरास के सै नक श वर मे ं घुसे और दो अ य शरणा थयों को गर तार कया। व ड वजन के शासकों ने इस घटना के बारे मे ं अ य राहत एजे ं सयों को कोई सू चना नहीं दी। दू सरे दन, एक शरणाथ को छोड़ दया गया, ले कन तीन दनों बाद तीन अ य के शव पाये गये, [ ज हे]ं सीमा के पार सा वाडोर क तरफ गोली मारकर मौत के घाट उतार दया गया था। इन ‘खराब ं आ थक सहायता सेबों’ को छोड़, व ड वजन—अपनी एक नी त के प मे— ा करने वाले सभी सा वाडोर शरणा थयों के िरकाड रखता था और टे लफोन और टेले स के मा यम से को टा िरका (Costa Rica) थत व ड वजन के कायालय को त दन सू चनाएँ भेजता था। व ड वजन क यापक गु चर सू चना एक ीकरण क याएँ इस अ भयोग को बल देती हैं क यह समू ह सी.आई.ए. के साथ मलकर काम कर रहा था।32 ीलं का मे,ं व ड वजन क ग त व धयों ने एक गहरा सं कट खड़ा कर दया। ं कनल ए.एस. अमरशेखर लखते हैं : ीलं का के ले टनेट जाज बुश जू नयर के सं य ु रा य के रा प त बनने के बाद, उ होंने एक भाषण दया जसमे ं उ होंने कहा क वे वकासशील तीसरे व के देशों को उनक ं ,े ब क अमरीक सहायता उन देशों सरकारों के मा यम से अब समथन नहीं देग मे ं काम कर रहे अमरीक ईसाई राहत सं गठनों के मा यम से दी जायेगी। व ड वजन ऐसा ही एक सं गठन है। ‘रा प त के ग़ैर-सरकारी सं गठनों के जाँच आयोग’ (Presidential Comision of Enquiry on non- Governmental Organizations) के सम तुत कये गये सा यों के आधार पर कसी भी तरह के तकसं गत स देह से परे यह मा णत कर दया गया था क व ड वजन अमरीक धन से चलने वाला एक जोड़-तोड़ करने वाला ईसाई चारक सं गठन था, जो अपने एक काय म के मा यम से जसक पहचान ‘द म टड सीड पिरयोजना’ के प मे ं हुई थी, सं हली बौ ों को ईसाइयत मे ं धमा तिरत करने का चुपके-चुपके यास कर रहा था। इस कार उनके कृ यों के उजागर होने के बाद, उ होंने पिरयोजना को समेट लया और अनेक वष तक चुप रहे, ले कन ताजा उ साह के साथ उ होंने अपनी ग त व धयों को पुन: ार भ कया है।33 भारत मे ं व ीय और सं चालन दोनों पों मे ं व ड वजन क बल उप थ त है। भारत मे ं होने वाली येक ाकृ तक आपदा इसके लए जमीनी तर तक गहरी घुसपैठ करने का एक अवसर दान करती है। यहाँ तक क भारतीय केट आयोजनों पर दबाव डाला जाता रहा है क वे व ड वजन के लए धन एक करे।ं 34 अतीत का इसका िरकाड दखाता है क कस कार एक तथाक थत राहत सं गठन ी

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प मी सरकारों के लए गु चर सू चना एक त करने वाली एजे सी के प मे ं काम ं के प मे ं भी। कर सकता है, और साथ ही भू -राजनी त के एक स य ऐजेट तहलका ारा का शत एक खोजी िरपोट ने भारत मे ं व ड वजन के छल और उसके व ीय दबदबे को उजागर कया था। रपट व ड वजन के जन स पक चेहरे और उसके वा त वक उ े य क तुलना के साथ ार भ होती है : भारत मे ं व ड वजन (ड यू .वी.) वयं को एक ‘ईसाई राहत और वकास एजे सी के प मे ं तुत करता है जसे बना कसी न ल, े , धम, लं ग और वण के भेदभाव के भारत के गरीबों मे ं भी सवा धक गरीबों के साथ काम करने का चालीस वष से अ धक का अनुभव है’। ले कन तहलका के पास सं य ु रा य अमरीका से चलाये जाने वाले ड यू .वी. का व ीय व य है, जसे ‘घरेलू राज व सेवा’ (Internal Revenue Service) मे ं जमा कराया गया था, और जसमे ं इसे एक चच म न ी के प मे ं वग कृत कया गया है। ... ँ का न न आकलन देता है : यह ड यू .वी. के भारत मे ं ‘ वकास’ क पहुच क फेडरेशन ऑफ इ डयन इ ड ीज (सी.आई.आई.) 2003 क अपनी व ीय रपट मे ं कहती है क ‘असम सरकार के ामीण वकास वभाग ने ड यू .वी. इ डया को रा य मे ं एक अ णी वकास एजे सी माना है और अनुशंसा क है क ड यू .वी. प ीय धन ा करने के लए पस दीदा सं थान बने। सरकार ने रा य मे ं वकास के काय के लए 800 लाख डालर के ताव बनाने मे ं ड यू .वी. से सहायता भी माँगी है’। तीस सत बर 2002 को समा हुए वष के लए आय और यय का योरा दखाता है क इसक कुल आय 95.5 करोड़ पये थी, जसमे ं वदेशी सहायता क 87.8 करोड़ पये क रा श शा मल थी। एक सं गठन के लए, जो दावा करता है क वह केवल वकास और राहत काय मे ं ही सं ल न है, इसक थ त और ग त व धयों क सही कृ त काफ कुछ छपी हुई है।35 हालाँ क ड यू .वी. कई भारतीय रा यों क अथ यव थाओं मे ं एक मुख खलाड़ी है, यह अपनी धमा तरण ग त व धयों को कसी आड़ मे ं छपाकर रखने के त अ य धक सतक है। तहलका रपट बताती है क यह कस कार कया जाता है : हालाँ क ड यू .वी. इ डया ारा का शत कोई भी सा ह य अपने ईसाई चारक मशन का उ ख े भी नहीं करता, ड यू .वी. इ डया के वदेशी काशन बड़े गव से अपने ‘आ या मक’ घटकों क घोषणा करते है।ं ... मयू रभं ज मे,ं एक बार फर उड़ीसा मे,ं व ड वजन (ड यू .वी.) नय मत प से आ या मक वकास के काय म अपने एडीपी पैकेज के एक अं ग के प मे ं चलाता है। ड यू .वी. रपट कहती है : ‘इस े मे ं बीच-बीच मे ं ईसाई कायकताओं और सं गठनों का वरोध भड़क उठता है, सामा यत: उनके ारा जनका न हत वाथ ी ों े औ ी े े ें ै ी ि ों

आ दवासी जनों के नर र और श हीन बने रहने मे ं है। ड यू .वी. पादिरयों और चच नेताओं के लए नेत ृ व पा म चलाकर थानीय चच को समथन देता है’। व ड वजन इ डया भील जनजा त े ों मे ं स य है और खुल-े आम अपने ईसाई चारक इरादों को वीकार करता है : ‘भील जन पू वजों क आ माएँ पू जते है,ं ले कन सभी ह दू योहार भी मनाते है।ं दु आ माओं के बारे मे ं उनके अ ध व ास उ हे ं पिरवतन के त सशं कत करते है,ं जो सामुदा यक वकास को बा धत करता है। ए.डी.पी. के कमचारी उ हीं भील जनों के साथ रहते हैं जनके लए वे काम करते है,ं और इस कार गाँव वालों का व ास ा करते है,ं और लोगों के लए अपने ईसाई म े का दशन अपने काय और तब ता के मा यम से करते है।ं 36 इसके धनदाताओं मे ं से अनेक अ छे इरादों वाले हैं ले कन व ड वजन के सतह पर दखने वाले सामा जक काय से परे उसक ग त व धयों के बारे मे ं भोले-भाले और अन भ है।ं उदाहरण के लए, सी.एन.एन.-आई.बी.एन. के मुख स पादक राजदीप सरदेसाई, ज होंने व ड वजन के मा यम से इन श दों के साथ एक ब े को आ थक सं र ण दया : ‘एक पिरवार के प मे ं हम एक ब े को आ थक सं र ण देते है।ं एक जीवन को बदलने मे ं स म होना हमे ं बड़ा स तोष दान करता है। हम आशा करते हैं क अ य लोग भी ऐसा ही करने को िे रत होंग।े ज हे ं आव यकता है उनके सश करण से बढ़कर और कोई खुशी नहीं होती’।37 ँ व ड वजन क घुसपैठ ने इसे उ सरकारी अ धकािरयों तक पहुच दान क है। उड़ीसा मे ं इसके ठे ठ उदाहरण है,ं राधाका त नायक भारतीय सं सद के एक सद य ज हे ं उनके ‘द लतों और आ धवा सयों को ऊपर उठाने मे ं योगदान’ के लए पुर कृत कया गया है।38 हाल मे,ं एक अ सी वष य ह दू साधु और एक सा वी क ह या (एक घटना जसक चचा उ ीसवे ं अ याय के भाग ‘भारत से होते हुए माओवादी लाल ग लयारा’ शीषक के अ तगत क गयी है) के मामले मे ं नायक पर स देह कया जा रहा था। वे दोनों द लतों और आ दवा सयों के बीच काफ ल बे समय से काम कर रहे थे ता क उनके लए श ण और च क सा सेवाएँ था पत क जा सकें, और उ हे ं इस लए नशाना बनाया गया, यों क उ हे ं ईसाई चारकों ारा त पध के प मे ं देखा जा रहा था। समाचार प का ‘इ डया टुडे’ ने समाचार छापा था क ‘भुवने र के राजनी तक दायरे व ास करते हैं क पु लस या तो आर.के. नायक या उनके लोगों पर हाथ डाल सकती है’। प का ने उजागर कया क नायक भारत क सं घीय सरकार मे ं स चव के प मे ं काम कर चुके है,ं और 1996 मे ं उनका नाम सं घीय कै बनेट स चव के पद के उ मीदवार के प मे ं आया था, ले कन उ हे ं ‘ व ं यू रो रपटों’ के कारण यह पद नहीं दया गया था।39 व ड वजन के बारे मे ं इं टे लजेस इन सभी परेशान करने वाले त यों के बावजू द, सं वद े नशील सीमा े के रा य असम के ामीण वकास वभाग ने न केवल ड यू .वी.-इ डया को रा य मे ं एक अ णी े





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वकास एजे सी के प मे ं वीकार कया और अनुशंसा क क ड यू .वी. को प ीय धन ा करने के लए वरीयता दी जाये, ब क सरकार ने रा य मे ं वकास काय के लए 800 लाख के ताव तैयार करने के लए ड यू .वी. क सहायता भी माँगी। जे.पी. राजखोवा, असम सरकार के एक पू व मु य स चव, ने इसे ‘सवा धक परेशानी पैदा करने वाला’ पाया।40 भारतीय नगरानी रखने वाले सं गठनों ने सी.आई.ए. क सं ल नता क काली छाया का न त परता से उठाया है। यह आरोप लगाया गया है क भारतीय गु चर ं ’ व ड वजन जैसे सं थानों से सेवाओं के लए च तत करने वाले ‘ वदेशी ऐजेट आते हैं और ऐसी कुछ पिरयोजनाओं के बारे मे ं आरोप है क उनक स ब ताएँ व ड वजन और सी.आई.ए. के बीच है।ं

गॉ पल फॉर ए शया (Gospel for Asia) गॉ पल फॉर ए शया (जी.एफ.ए.) अ छ तरह व पो षत टे सास थत ईसाई मशनरी सं गठन है जसका भारत मे ं यापक ढाँचागत जाल (नेटवक) है। यह एक अ ययन के वषय क तरह है क एक ईसाई चारक सं गठन का उपयोग भारत को अधीन बनाने क चाह रखने वाली अ तरा ीय श यों के हाथों एक भावी उपकरण के प मे ं कस कार कया जाता है। इसक थापना के.पी. योह ान ारा क गयी थी, ज होंने एक कशोर के प मे ं उस समय श ण ा कया जब वह ढ़वादी ईसाई समू ह ऑपरेशन मो बलाइजेशन के लए काम कर रहे थे।41 जी.एफ.ए. अपने अ त व के लए ढ़वादी धम चारक ड यू .ओ. सवेल का ऋणी है, जो 1950 के दशक मे ं अपने न लवादी दृ कोण के लए कु यात थे। तेल अरबप त एच.एल. ह ट ारा सम थत सवेल भेदभाव के सवा धक मुख बचावकता बन गये, यह माँग करते हुए क न लों और उसके साथ-साथ धम को पृथक कया जाये। उ होंने अ क -अमेिर कयों और मे सक -अमेिर कयों से जुड़ी कचड़े और ग दगी क छ व को उभारा, और मनु यों के सावभौ मक ातृ व तथा ई र के पतृ व क अवधारणा को एक नकली वचार माना।42 योह ान ने सवे स बाइबल कॉलेज मे ं ईसाई चारक थ का अ ययन कया था। सवेल को 43 जी.एफ.ए. के आ या मक जनक के प मे ं माना जाता है। उसी कार क घृणा और अ य लोगों के भयावह नमू ना- च ण को योह ान क पु तक ‘िरवो यू शं स इन व ड मश स’ (,Revolutions in World Missions) के प ों मे ं पाया जाता है, जनमे ं घृणा का ल य भारत क मू ल सं कृ त और इसके धम क ओर मोड़ दया गया है : हमारा यु ... गरीबी और बीमारी जैसे पाप के ल णों के व नहीं है। यह लु सफर और अन गनत दै यों के व नद शत है जो दन-रात सं घषरत हैं ओं











ता क मानव आ माओं को घसीटकर अन त काल तक बना ईसा मसीह के रखा जा सके।44 वे भारत क आ या मक पर पराओं को ‘लु सफर और अन गनत दै यों’ के प मे ं पहचान करते है,ं और इ हीं पर पराओं को भारत क सामा जक सम याओं के लए दोषी ठहराया जाता है। योह ान लखते हैं : ...भारत पर मू तपू जक (पेगन) धम के भाव को देखते हुए मुझे एहसास हुआ क भारत के लोग भू ख से पी ड़त है,ं यों क वे पापों के दास है।ं भू ख और गरीबी के व यु वा तव मे ं एक आ या मक यु है, भौ तक और ं ।े सामा जक नहीं, जैसा क प थ- नरपे लोगों को हम व ास दलाना चाहेग ए शया मे ं बीमारी, भू ख, अ याय और गरीबी के व यु भावी ढं ग से जीतने के लए जो एक ही ह थयार होगा, वो है ईसा मसीह का स देश।45 यहाँ तक क भारत क खा सम या के लए भी ह दू धम को दोषी ठहराया गया : भारत क भू ख क सम या को समझने मे ं मु य कारक—और सवा धक उपे त — है ह दू व ास [धम] यव था और खा उ पादन पर इसका भाव। अ धकां श लोग ‘पू जनीय गौ’ के बारे मे ं जानते हैं जो खुली घू मती है,ं टनों मे ं खा ा खा जाती हैं जब क पड़ोस के लोग भू खे रह जाते है।ं ले कन एक कम ात और अ धक भयावह अपराधी एक अ य पशु—चू हा है, जो धा मक मा यताओं से सं र त है।... होना तो यह चा हए था क भारत मे ं चू हे का वनाशकारी भाव इसे तर कार के यो य व तु बना दे। इसके बदले, भारत के लोगों के आ या मक अ धेपन के कारण, चू हा सं र त है।46 जब भारतीय ईसाई ह दू धम मे ं वापस जाने का फैसला करते है,ं वे इसे ‘शैतान के ब धक के प मे ं वापस जाने’ जैसा देखते है।ं 47 योह ान घो षत करते हैं क प म पू व से बेहतर यों है? उसका कारण यह है क ‘यू रोप क यहू दी-ईसाई वरासत ई र क कृपा लायी है, जब क झू ठे धम ने बै बलॉन का अ भशाप ए शया के सभी रा ों पर डाला’।48 ऐसे मनमाने और ढ़वादी व दृ कोण के साथ,49 आशा तो इस बात क रखी जायेगी क योह ान को सं य ु रा य अमरीका क बाइबल प ी के नीम-अँधरे े ईसाई चारक कोनों-अँतरों मे ं धकेल दया जायेगा। ले कन इसके वपरीत, उ हे ं प मी ईसाई धमा तरण के लए एक मू यवान स पदा के प मे ं पहचाना गया है। पै क जॉन टोन, जो ऑपरेशन व ड के लेखक और एक ईसाई चारक रणनी तकार है,ं जी.एफ.ए. को ‘अ य त मह वपू ण अ णी मशनरी एजे ं सयों मे ं से एक’ मानते है।ं 50 लुई बुश, एडी 2000 के मु य कायपालक अ धकारी और 10/40 व डो रणनी त के नेप य-आसीन ा, तो उनसे भी अ धक प हैं और जी.एफ.ए. को ऐसे सं गठन के प मे ं देखते हैं जो ‘10/40 व डो के भेदन का सं वाहक है’।51 10/40 व डो व ै े े ो ई ई े े

के उस े को कहा जाता है जसका चयन ईसाई धमा तरण के मु य ल य के प मे ं कया गया है, जसमे ं मू तपू जकों क सबसे बड़ी सं या उपल ध कराने वाला े भारत ही है। इस पर इसी अ याय मे ं जोशुआ पिरयोजना उपशीषक वाले भाग मे ं व तृत चचा क गयी है। योह ान (Yohannan) ने जी.एफ.ए. क थापना अपनी जमन प नी के साथ मलकर 1978 मे ं भारत मे ं काम कर रहे दस अमरीक मशनिरयों के लए एक व ीय समथक काय म के प मे ं क थी। सन 1981 मे,ं उ होंने जी.एफ.ए. का ार भ अपने गृह रा य केरल मे ं कया। सन 1983 मे ं यह वदेशी, मु य प से अमरीका से, धन ा करने क उनक ग त व धयों का भारतीय मु यालय बन गया।52 सन 1986 मे ं जी.एफ.ए. ने अपना रे डयो सारण शु कया। आज यह 92 भारतीय भाषाओं मे ं ईसाई चारक सारण करता है, जसमे ं अनेक जनजातीय भाषाएँ है।ं 53 www.ministrywatch.com व भ मशनों के बारे मे ं ईसाई धनदाताओं को जानकािरयाँ देने वाली एक वेबसाइट, जी.एफ.ए. के रे डयो सारणों क चचा 10/40 व डो को सफलतापू वक भेदने वाले के प मे ं करती है।54 व धमा तरण (World Evangelization) पर 1997 मे ं हुए ‘वै क परामश’ (Global Consultation) मे ं लुई बुश और योह ान ने रणनी तगत स आयो जत कये जसमे ं योह ान ने जानकारी दी थी क गॉ पल फॉर ए शया ने कस कार जोशुआ पिरयोजना क ‘स पक से बाहर रह रहे सवा धक लोगों’ क सू ची के एक सौ समुदायों के बीच चच खड़ी करने वाली टीमे ं तैनात क थीं। उन समुदायों मे ं से तीस के बीच कम-से-कम तीस-तीस ईसाई चारकों वाले चच पहले ही था पत कये जा चुके थे।55 जी.एफ.ए. ने घोषणा क है क ‘एक म न ी के प मे ं यह 10/40 व डो ँ के के 2.7 अरब लोगों तक, ज होंने ई र के म े के बारे मे ं कभी नहीं सुना, पहुच लए यान के त करता है और यही इसका ल य है। केवल भारत मे ं पाँच लाख से अ धक गाँव हैं जहाँ ईसा मसीह के स देश लोगों ने नहीं सुने है’ं ।56 उ प थ- नरपे वरोधी ख क अनदेखी करते हुए, आ थक सहायता देने वाले प मी सं गठन ऐसे धमा तरण कराने वाले समू हों को ो सा हत करते हैं ता क ँ ा सकें। उदाहरण के लए, तीसरे व के देशों तक वे वकास सहायता पहुच ऑ े लया थत ‘उ े य के लए या ा’ (Travel With a Cause) एक अ तरा ीय पयटन एजे सी है जो अपने लाभ तीसरे व और वकासशील देशों और अ य ‘मू यवान उ े यों’ के लए खच करने का दावा करती है।57 उनका मशन व य ‘ व भर मे ं गरीबों को खलाने, अ प- श तों के सश करण, ईसाई मशनों को समथन देन,े गरीबी क कमर तोड़ने के न म बनी पिरयोजनाओं को सहायता, आपदा राहत, वा य सेवाएँ, और अ य मानवीय काय के लए धन देने क बात करता है’। यह भारत मे ं जी.एफ.ए. क धमा तरण ग त व धयों को समथन देता है।58 ी



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जी.एफ.ए. वण- यव था का वणन ‘आय ारा था पत’ के प मे ं करता है, जो ‘ल बे, गोरी चमड़ी वाले लोग थे और ज होंने तीन हज़ार वष पू व भारतीय उपमहा ीप पर आ मण कया था ... और ज होंने अपनी है सयत को बनाये रखने— और मू ल नवा सयों को नीचे दबाये रखने के लए इस यव था को बनाया था’।59 योह ान अपनी पु तक मे ं लखते हैं : पिरप व ईसाई समझते हैं क बाइबल व मे ं केवल दो धम के अ त व मे ं होने क बात सखाती है। पहला तो केवल एक स े ई र क पू जा वाला है, और दू सरा ाचीन ईरान मे ं आ व कृत दै य वक प क झू ठ णाली वाला। वहाँ से फारसी सेना और पुजािरयों ने उनके धम को भारत तक फैलाया, जहाँ इनसे अपनी जड़े ं जमायीं। फर ह दू मशनिरयों ने इसे शेष ए शया मे ं फैलाया। जीवा मवादी धम, बौ धम और अ य सभी ए शयाई धम क साझ वरासत इसी एक धा मक यव था मे ं है।60 जी.एफ.ए. सं य ु रा य अमरीका थत द लत डम नेटवक (डी.एफ.एन.) के साथ मलकर काम करता है।61 इस पर ‘इ डया रैशन ल ट ऑगनाइजेशन’ (India Rationalist Organization) ारा ‘धमा तरण’ ग त व धयों का आरोप लगाया गया है। जी.एफ.ए. वदेशी धन पर ही बेहद नभर है। सन 2004 के लए भारत सरकार क एक रपट मे ं कहा गया है : [के ीय] गृह म ालय क वा षक रपट से एक कये गये आँकड़े के अनुसार गॉ पल फॉर ए शया, 98.9 करोड़ पये के साथ दू सरा सबसे बड़ा धन ा कता है ... भारत मे ं गॉ पल फॉर ए शया के लए धन का एक बड़ा भाग इसके सं य ु रा य अमरीका थत मू ल सं गठन से आता है, जो वदेशी धनदाताओं क सू ची मे ं 111.2 करोड़ पये देकर सबसे ऊपर है।63 वष 2005-6 के दौरान, यह बढ़ कर 137.18 करोड़ पये हो गया था।64 सन 2008 मे ं केरल के गृह म ी ने उ घाटन कया क जी.एफ.ए. ने पछले प ह वष मे ं 1,044 करोड़ पये क वदेशी दानरा श ा क है। गृह म ी ने कहा क चच ने लगभग 2,800 एकड़ भू म खरीदी थी, जसमे ं 2,200 एकड़ रबड़ भू -स प शा मल है।65 जब भारत सरकार ने वतमान वदेशी अं शदान नयमन अ ध नयम (एफसीआरए) को और कड़ा करने का मन बनाया तो ऑल इ डया यन काउं सल (एआईसीसी) ने, जो सं य ु रा य अमरीका थत डी.एफ.एन. का भारत मे ं स य स ब सं थान है, वदेशी धन के आ वाह पर ता वत नगरानी के व एक 66 आलोचना मक व य सािरत करना ार भ कया। जी.एफ.ए. मानवीय दुखों के त अवै ा नक दृ कोण रखता है। उदाहरण के लए, इसे गव है क उसका एक कायकता, जो तेज बुखार से पी ड़त ब ों क सेवा मे ं सं ल न रहता है, केवल ाथना करता है, ले कन ‘ कसी च क सक को नहीं बुलाता, ँ ीं े े ीं े

या उनके लए दवाएँ नहीं लाता या उनके लए चकन सू प नहीं लाता’।67 इसने 2004 मे ं भारत मे ं आये सुनामी को ‘सवा धक बड़े अवसरों मे ं से एक’ के प मे ं देखा। त मलनाडु के तटीय गाँवों मे ं इसक ग त व धयों ने वरोध भड़काया। उदाहरण के लए, अ रईपे ई गाँव मे ं जी.एफ.ए. ने एक अन धकृत अनाथालय क थापना क , जसमे ं सदमे के शकार एक सौ से अ धक ब ों को रखा गया, जनमे ं अ धकां श ह दू ब े थे, और उनसे त दन छह बार ईसाई ाथनाएँ करवायी गयीं।68 जी.एफ.ए. पर भारत सरकार के सामा जक क याण काय मों का उपयोग करते हुए गलत ढं ग से सं साधन ा करने का भी आरोप है। जब जी.एफ.ए. का एक कायकता पकड़ा गया और उस भू म से उसे बेदखल कर दया गया जसे उसने अपने धमा तरण के के लए ह थया लया था, तब ईसाई समाचार मा यमों ने इस घटना को ईसाइयों के व उ पीड़न के प मे ं खू ब उछाला।69 कु भ-मेला जैसे ह दू आ या मक योहारों को ल य बनाने के लए जी.एफ.ए. का ‘फे टवल आउटरीच’ (Festival Outreach) नाम से एक वशेष कोषां ग है। सन 2007 के इलाहाबाद अधकु भ-मेले मे ं जी.एफ.ए. ने अपने कमचािरयों, थानीय चच क म हलाओं, बाइबल महा व ालयों के व ा थयों और कमचािरयों, और इलाहाबाद के पादिरयों क एक टीम ग ठत क । उनका काम था अपमानजनक साम ी वतिरत करना। दीप नाइनन टॉमस इस ओर यान आक षत करते हैं क गॉ पल फॉर ए शया ने शेखी बघारी क उ होंने कु भ मेले मे ं ह दू तीथया यों मे ं 60 लाख पु तकाएँ बाँटी, और इस आयोजन को ‘उ सा हयों के हं गामे’ के प मे ं व णत कया।70 इसने तनाव उ प कया और पु लस ने जी.एफ.ए. क म हलाओं क टीम को उस थान को छोड़कर जाने को कहा। म हलाएँ पीछे हट गयीं, ले कन जी.एफ.ए. क शेष टीम ने घृणा फैलाने वाली साम ी का वतरण चालू रखा, जसके कारण उ हे ं गर तार कया गया, एक दन तक रोके रखा गया और फर छोड़ दया गया। जी.एफ.ए. ने इस घटना को भारत मे ं ईसाई उ पीड़न के प मे ं उछालने के लए 71 ँ का उपयोग कया। वै क मी डया तक अपनी पहुच जी.एफ.ए. राजनी तक चार मे ं भी सं ल न होता है और यापक मशनरी मी डया ँ के मा यम से ष नेटवक तक अपनी पहुच क कहा नयों को बनाता और सािरत करता रहता है। नव बर मे ं मु बई मे ं हुए इ लामी आतं कवादी हमले के बाद, जसमे ं लगभग दो सौ लोग मारे गये थे, योह ान ने दुख य कया और 72 आतं कवा दयों क भ सना क । ले कन व भर के ईसाई समाचार मा यमों को दये गये अपने सा ा कार मे ं उ होंने इस बात पर स देह य कया क या हमलावर मु लम-पर त ही थे या ‘ ह दू अ तवादी’। उ होंने गलत दावा कया क 2008 मे ं भारत मे ं सभी मुख आतं कवादी हमलों को, ज हे ं ार भ मे ं इ लामी आतं कवाद के कारनामे बताया गया था, बाद मे ं ‘ ह दू अ तवा दयों’ ारा कया गया पाया गया। उ होंने इस बात क ओर सं केत कया क मु बई मे ं हुआ आतं कवादी े ी ँ ी े ो ी े े ों

ँ ी नवेश को भयभीत करने के लए ह दू अ तवा दयों ारा ‘ कया हमला वदेशी पू ज गया एक ष ’ हो सकता है, ता क ‘द लत गरीबी मे ं ही रहे’ं ।73 योह ान को ईसाई समाचार मा यमों मे ं प म को इस बात के लए सचेत करते हुए यापक प से ृ कया गया क मु बई हमले को इतना मह व न दया जाये जससे भारत मे ं उ त ह दुओ ं ारा ईसाइयों के व कये जाने वाले हमले उसमे ं दब जाये।ं 74

अ तसू म तरीके से श ण एक अ य पिरयोजना है जो वदेशी मशनिरयों को इस बात के लए श त करती है क कस तरह अ तसू म तरीके से ह दुओ ं का धमा तरण कया जाये। यह श ण बड़े पैमाने पर चलता है और बहुधा प थ- नरपे सं थानों मे ं सां कृ तक अ ययन क आड़ मे ं बड़ी सतकता से सं चा लत कया जाता है। यह उस समय अ धक प ईसाई चारक हो जाता है जब ईसाई से मनिरयों (ईसाई पादिरयों के श ण व ालयों) और ईसाई महा व ालयों मे ं सं चा लत होता है। उदाहरण के लए, ‘भारत के लोग’ नामक एक पा म एक ईसाई महा व ालय ारा चलाया जाता है, जसका वणन इस कार कया गया है : व के सवा धक रोचक और सवा धक जनसं या वाले रा ों मे ं से एक— भारत—क व भ थाओं, सामा जक सं रचना, धम , कलाओं और इ तहास का एक अ ययन। व के सबसे बड़े समकालीन मशन े ों और जन जन समू हों ँ स भव हो सक है, उनमे ं सबसे बड़े समू हों के त ईसाई तक सबसे कम पहुच जवाबी ग त व धयों पर वशेष बल दया जायेगा। कुछ अ त थ व ा भी अधवा षक पा म के दौरान अपने सबसे हाल के भारत दौरे पर क ाओं को 75 ं ।े स बो धत करेग उनके वर सामा यत: काफ वन होते हैं और व ा थयों को भारतीय जातीयता और सं कृ त के लए स मान द शत करने के लए सखाया जाता है। अ यापक अ सर साफ़-साफ़ पू वा ह द शत नहीं करते, ले कन सतकतापू वक चुने गये ‘भारत से आये अ त थयों’ और मशनरी चल च ों को ‘हीदन (ग़ैरईसाई, मू तपू जक) धम ’ के व वां छत आवेग भरने देते है।ं

मा सवादी आड़ फर भी इन सभी नम तेवरों के नीचे अमरीक ईसाइयत क नया तत क म ढ़वादी ही है, और यह सं य ु रा य अमरीका के शै णक त मे ं भारतीय मा सवाद समथकों को सं कट मे ं डाल देता है, यों क वे ईसाई चारकों का सहयोग करते हुए नहीं दखना चाहते है।ं उनके तेवर वरोधाभासी और वयं अपना उ घाटन करने वाले होते है।ं एक ओर ऐसे श ा वदों को सै ा तक प से अपने गोरे वामप थी सहयो गयों का अनुसरण करना ही होता है, और इस नाते उनके लए ईसाइयत को ी औ े

द ण-प थी, अ ताकक और सामा जक प से पछड़ा कह कर उस पर हमला करना ज़ री होता है। ले कन दू सरी ओर, भारतीय उ पिरवतनवा दयों, ईसाइयों और मुसलमानों के बीच गठजोड़ का एक यावहािरक मू य है। अनेक भारतीय वामप थी ईसाई धन ारा पो षत और सम थत है,ं जसे वीकार करने मे ं उ हे ं मु कल होती है। इस अ त वरोध का समाधान जॉज बुश वाली ईसाइयत पर दोष मढ़ने मे ं पाया गया, जब क मू ल ईसाइयत को अ धकां शत: दोषमु कर दया गया। इसका अथ यह हुआ क ईसाई दु पयोग क घटनाओं को अलग-थलग करने के लए वामप थी बुश वरोधी तेवर अपना सकते है,ं जब क सामा यत: रणनी तगत तौर पर वे ईसाई चारकों क ईसाइयत का समथन करते रह सकते है।ं रा प त बुश के चले जाने के बाद भी यह रणनी त काम करती है, जसके तहत अमरीक क रप थयों के बीच अ ा नयों और सां कृ तक प से पछड़े त वों पर दोषारोपण कया जाता है। जो भी हो, त य तो यही है क भारत मे ं ईसाई श ा का जो ा ड फैलाया जा रहा है, वह वैसा नहीं जैसा क अमरीका के उदारवादी ईसाई हण करते है,ं और यह तो वा तव मे ं ईसाइयत क वह क म है जसक वे भ सना करते है।ं इस त य को तो ढँककर ही रखना है ता क ऐसे ईसाई सं थानों से जुड़े वामप थयों क छ व को बचाकर रखा जाये। इस रणनी त का दू सरा घटक है ह दू धम को दोषी के प मे ं सामने लाना, ता क भारतीय मा सवा दयों और ईसाइयत के बीच म े और घृणा के अटपटे स ब धों से लोगों का यान हटाया जा सके, उस समय भी जब हाथ का मामला वशेष प से वयं ईसाइयत के बारे मे ं ही होता है। ऐसे यावहािरक (ले कन कम ईमानदार) तेवर का एक अ छा उदाहरण हैं एक भारतीय अमरीक वजय साद, जनके बारे मे ं पहले चचा क जा चुक है। जब एक मु लम देश मे ं उ हे ं घेरकर ऐसी थ त मे ं ले जाया गया जहाँ उ हे ं ईसाई धमा तरण क न दा करनी पड़ी, तो वे अपने ल य पर सी मत ं ेल म रहने के त सतक रहे, और उ होंने लखा : ‘सं य ु रा य अमरीका का इवैज ईसाइयत का त न ध व नहीं करता, ब क वै क दादा गरी के लए बुश शासन ं े का त न ध व अव य करता है’।76 कोई भी आशा रखेगा क व ान के एजेड ा यापक ने ईसाई चारक अमरीक चच के दृ कोणों क जाँच कर ली होती, जनमे ं से सभी गहन प से वदेशी ईसाई धमा तरण मे ं लगे हुए हैं और इस थ त को वे एक ज मेवार ईसाई होने से अ वभा य मानते है।ं ‘केवल बुश-ईसाइयत’ क आलोचना के त काल बाद साद ने वषय बदल दया और उसी ह दू फासीवाद पर हमले क पुरानी लीक पकड़ते हुए उ होंने लखा : ं े के बारे मे ं ‘तहलका जैसी प का मे ं और अ य ईसाई चारक मशनिरयों के एजेड उ घाटनों ने भारत मे ं ईसाई वरोधी श यों को चारा उपल ध करा दया है’। जहाँ उनके लेख का शीषक कुछ वैसा है जो उसे ईसाई व तारवाद क एक आलोचना ै े ै े ी ई े

जैसा दखता हुआ बना देता है, वे बड़ी चतुराई से वषय बदलकर ह दू धम पर हार करने पर उतर आते है,ं उस भीड़ क कठोर आलोचना करते हुए ‘ जसने 1998 मे ं गुजरात मे ं ईसाई वरोधी हं सा मक अ भयान को भड़काया और चलाया, तथा 1999 मे ं ऑ े लयाई मशनरी ाहम टे स क ह या क ’। दुभा यवश, ईसाई चारक अ भयान ह दू -मु लम हं सा का भी दोहन एक ईसाई चारक अवसर के प मे ं करता है। उदाहरण के लए, ए सेलरे टं ग इं टरनेशनल मशन ट ै ज े ीज़ ाथना करता है क ‘मुसलमानों और ह दुओ ं के बीच सं घष म को तोड़ देगा, उ हे ं शा त के स े राजकुमार तक ले जायेगा’, अथात् ईसा ह दुओ ं और मुसलमानों को ईसा मसीह (शा त के स े राजकुमार) क तलाश करनी चा हए।77

ईसाई समाचार मा यम सं य ु रा य अमरीका थत और भारत थत अनेक मी डया नेटवक हैं जो भारत मे ं काम कर रहे है,ं और ये मलकर काम करते है।ं उनक काय णाली च 18.3 मे ं दखायी गयी है। यह इसके बाद आने वाले उदाहरणों के मा यम से द शत कया जायेगा। Fig.18.3 ईसाई मी डया ारा प म से जुड़ी हईु ईसाई उ मत बनाना

ए स ट यू ज स वस (Assist News Service) भारत के व दबाव डालने वाले अनेक अमरीक समू ह हैं जो अ य त सु नयो जत है,ं और अपने भारतीय सहयो गयों को नर तर अपनी राय और ो साहन देते है।ं उदाहरण के लए, एक ईसाई मशनरी मी डया स वस, ए स ट यू ज स वस, ने घोषणा ें ी े ी े े ी े

क क सन 2006 मे ं अ तरा ीय दबाव के अधीन उसे भारत के धान म ी से एक अनुस धान ार भ करवाने मे ं सफलता मली : ‘हमारा प लेखन अ भयान काम कर ृ करते हुए रहा है’, इसने एक अमरीक ईसाई चारक समू ह के मुख को उ त लखा। ‘हमे ं इस स ाह वरोध प लखने और फै स करने का काम अव य चालू रखना चा हए’। यह समू ह ‘सं य ु रा य अमरीका मे ं ईसाइयों से कह रहा था क वे अपने सेनट े रों और कां स े के सद यों को राज थान मे ं ईसाई मानवीय काय [कायकताओं] के उ पीड़न को रोकने के लए इस स ाह लखे’ं । वे नय मत प से उ हे ं वाइट हाउस, वदेश वभाग, सं य ु रा और सं य ु रा य अमरीका और सं य ु रा सं घ मे ं भारतीय राजदू तों को प और फै स भेजने के लए कहते है।ं यह ‘भारत मे ं ईसाई अ पसं यकों के क थत उ पीड़न के व स पू ण भारत और व भर के ईसाइयों का नेत ृ व करने के लए’ फेडरेशन ऑफ इ डयन अमरीकन यन इन द यू .एस.ए. (FIOCON) क शं सा करता है। समाचार मा यमों क रपटों मे ं यह या या का शत करते हुए न कष नकाला जाता है क कस कार इस समू ह का उ े य एक शु मानवतावादी यास है जससे क ‘अनाथ और यागे हुए ब ों, कु रो गयों और द लतों क पीड़ा समा क जा सके, और आपदा त े ों के लए आपातकालीन राहत दान क जा सके, जैसे क पछले वष क सुनामी से भा वत े , मु बई क बाढ़, गुजरात के भू क प...’78

मशन नेटवक यू ज ऐसे सं गठनों ारा भारतीय राजनी तक घटना म क गहरी नगरानी क जाती है और उनका मू यां कन उनक ईसाई चारक ग त व धयों पर होने वाले भाव के आलोक मे ं कया जाता है। जब 2004 मे ं मनमोहन सं ह को भारत का धानम ी नयु कया गया, तब एक ईसाई चारक समाचार सारण सेवा, मशन नेटवक यू ज (एम.एन.एन.), ने समाचार दया क यह ईसाई धमा तरण के लए अ छा होगा, और ँ ने के एक तरीके’ के यह क ‘बाइबल फॉर द व ड’ नामक समू ह ‘समुदायों तक पहुच प मे ं ‘नई द ी के आस-पास’ तीन हज़ार ईसाई कूल शु करने क योजना बना रहा था।79 जब ईसाई भारतीय मुसलमानों क ओर से व ेष का सामना करते है,ं तब वे बड़ी सतकता से उसे कम मह व देकर सािरत करते हैं ता क इ लाम/ईसाई तनाव को ढँका जा सके और उसे इस ढं ग से तुत कया जाता है मानो सभी सम याएँ ईसाइयत के व ह दू व ेष से ही पैदा होती है।ं उदाहरण के लए, क मीरी ं जोजे स कूल, ीनगर के ाचाय तथा गुड मुसलमानों ने बन हॉल कूल और सेट शेपड मशन कूल, ीनगर के सं थापक पर हमला कया। एम.एन.एन. रपट मे ं उ हे ं केवल ‘अ ात हमलावर’ कहा गया ज होंने कूल मे ं हथगोले फेंके जसका कारण था उस आदमी ारा ‘उस े मे ं ईसाई चारक काय’, जसमे ं नये स देश ( यू े ें औ ओं ो ी ी ें ी

ं ) और ाथनाओं (सा स) को क मीरी मे ं अनुवा दत करना भी शा मल था। टे टामेट कारा तर से इसक तु त इस ढं ग से क गयी क यह घटना ह दुओ ं क करनी दखायी दी, न क मुसलमानों क । लोबल काउं सल ऑफ इ डयन य स ने इसका वरोध कया, और उसे त काल गॉ पल फॉर ए शया ने हाथों-हाथ लया, और यापक सार के लए कनाडा थत द वॉयस ऑफ द माटस को भेज दया, जसका मशन ‘केवल व भर के उ पी ड़त ईसाइयों क सेवा करने को सम पत’ है।80 द वॉयस ऑफ द माटस वेबसाइट का समु चत शीषक रखा गया है www.persecution.net, और यह प मी ईसाइयों, मानवा धकार समू हों और सरकारों को ईसाइयों के मु ों पर एकजुट करने के त सम पत है। यह उस तरीके का कोई उ ख े नहीं करता जसके सहारे कुछ ईसाई चारक पुरानी रोमन पर परा के तहत शहीद होने के लए व ेष क पहल करते हुए टकराव भड़काते है।ं प मी ईसाई चारक तेजी से भारत मे ं इले ॉ नक मी डया नेटवक के ढाँचे और साथ ही पठन साम ी तैयार कर रहे है।ं ले कन व ीय नय ण और उपकरणों के जारी रहने क मता मु यत: प मी ोतों पर नभर है। दीप नाइनन टॉमस अनुभव करते हैं क ईसाई चारक सैटल े ाइट टीवी चैनलों का अचानक व तार वदेशों से सीधे राजनी तक ह त प े से भी अ धक बड़ा ख़तरा उप थत करता है। थानीय चैनल कसी भी सं या मे ं उभरते टे ल-ईसाई चारकों को थान देते हैं और उ हे ं सािरत करते है।ं कोई भी पादरी जसके पास पया धन है थानीय ईसाई ोड शन हाउस ारा सारण यो य गुणव ा वाला वचन काय म तैयार करवा सकता है, जैसे गुड यू ज टीवी, जसने काय म का सारण करवाने के लए राज टीवी और त म लयन टीवी से आव यक स ब ध बना रखे है।ं जहाँ इसे ‘ स टजन लज ’ (नागिरक पादरी समू ह) ारा ‘ थानीय े णयों से म य थों को हटाने’ के एक अवसर के प मे ं देखा जा सकता है (Marteli and Capelo, 2005 : 253), वहीं यह क रप थी वचनकताओं को एक अलगाववादी पहचान के लए तक देने का थान भी उपल ध कराता है।81 टॉमस यान दलाते हैं क अ तरा ीय ईसाई चैनलों ने त मलनाडु को भारत मे ं घुसपैठ करने के लए के और वेश ार बनाया है, जसके लए काय म बनाने और ढाँचा तैयार करने, दोनों मे ं भारी नवेश कया गया है। वे लखते हैं क भारत मे ं सात अ तरा ीय ईसाई चैनल और नौ थानीय भारतीय ईसाई चैनल चल रहे है,ं और इनके अलावा सभी प थ- नरपे चैनल भी ईसाई धमा तरण के लए समय देते है।ं 82 ये चैनल ईसाइयत का चार करते हैं और साथ ही खुल-े आम राजनी तक स देश भी देते है।ं उदाहरण के लए, ईसाई गायक वजय बनाड इन चैनलों मे ं आते हैं और वे उस अ दाज मे ं गीत गाते हैं जनको टॉमस ‘इ डया फॉर ाइ ट’ कहते है।ं उनके दृ यों मे ं भारत के झ डे और ‘एक ईसाई रा के लए उसके अ भषेक’ भी शा मल होता है। टॉमस या या करते हैं : ं ई ी े ो

‘ईसा मसीह के लए रा को बचाए रखना’—यह वषयव तु असं य पुन जीवन और धम-यु ों मे ं दखाया जाता है और इसमे ं र म के तौर पर ईसा मसीह के लए भारतीय तरं गे और कारा तर से व तािरत, ईसा मसीह के लए भारतीय रा का उ ार भी शा मल है।83

यन ॉडका टं ग नेटवक ँ ने’ पैट रॉबटसन के यन ॉडका टं ग नेटवक ने ‘ येक भारतीय घर तक पहुच के मशन के साथ भारतीय मी डया जगत मे ं वेश कया है। इसने दयासागर, ईसा मसीह के जीवन पर आधािरत एक सीिरयल के साथ शु कया, जसके बाद दू सरे ईसाई चारक सीिरयल आये, जनमे ं सं य ु रा य अमरीका का अ य त उ क रवादी द णप थी काय म, द 700 लब भी शा मल है, जसका सारण होम टीवी चैनल पर स ाह मे ं छह दन हो रहा है।84 इसके मू ल सं य ु रा य अमरीक सं करण ( जसे भारत के लए पिरव तत कया गया है) मे ं रॉबटसन ारा दया गया यह व य था : ह दू धम और अनेक दू सरी त -म ग त व धयाँ, जो पू व से नकलीं, भू त- त े ों और भू त- त े ों क पू जा से िे रत है।ं ... यह सं क पना है क सभी धम एक हैं और सभी अ छे है।ं वह सही नहीं है। शैतान क पू जा अ छ नहीं है। 85 पैट रॉबटसन क िरजे ट यू नव सटी भी भारतीय ईसाइयों को जन सं चार मे ं श त करती है, और यहाँ से श त अनेक ातक अ तरा ीय समाचार मा यमों मे ं भारतीय सं कृ त और धम को नीचा दखाने का काम करते है।ं उदाहरण के लए, बेन डे वड ने िरजे ट यू नव सटी से ातको र कया और जन सं चार तथा ईसाई व दृ कोण मे ं वशेष ता ा क । अब वे नॉथ से ं ल यू नव सटी के सं काय मे ं काम करते है।ं प मी ईसाई चारक प काओं मे ं एक के बाद एक लखे अपने आलेखों मे ं वे ह दू धम से जुड़ी कसी भी चीज का उपहास उड़ाने के लए अ प ात जनजातीय अनु ानों मे ं से कुछ को चु न दा प से तुत करते हुए ह दू धम को नीचा दखाते है।ं उदाहरण के लए, वे एक अ प च लत सं थाल जनजातीय था को मुखता से सामने लाते हैं और उसे सब पर लागू करते है।ं वे न कष मे ं कहते हैं : ‘भारत क सां कृ तक और मानवीय गिरमा को सँवारने मे ं क गयी ग त डके उदाहर थोड़े और णभं गरु है, जसमे ं से अ धकां श सव रवादी ह दू अवधारणा ारा नद शत है जो ामीण, वा त वक भारत पर बादल क तरह छायी हुई है’।86 भारत मे ं एक अ य उभरता हुआ अ तरा ीय ईसाई मा यम है बोस यू ज लाइफ। यह इं टरनेट पर पहली म य यू रोपीय ईसाई समाचार एजे सी है।87 इसके लेखकों मे ं एक हैं वशाल अरोड़ा, ज होंने व भ अ णी भारतीय रा ीय दै नक समाचार-प ों मे ं काम कया है। अरोड़ा ने 2005 मे ं बोस यू ज लाइफ के नई द ी यू रो मुख के प मे ं योगदान कया और उ होंने भारत मे ं ईसाई उ पीड़न से जुड़े समाचारों को ै ऑ ै े े ो ें ॉ ि ऐ

ं र फॉर िर लजन ऐ ड फैलाने पर अपना यान के त कया है।88 ऑ सफोड सेट प लक लाइफ ( जसका उ ख े पहले के एक अ याय मे ं कया गया है) को उ पीड़न सा ह य दान करने के अलावा, वे वैसे समाचार भी सािरत करते हैं ज हे ं वे ‘ वा तक आतं कवाद’ कहते है।ं वे बहुधा इ लामी ोतों का उपयोग करते हैं यह दावा करने के लए क ह दू आतं कवाद सरकार के रणनी तगत समथन के साथ बढ़ रहा है। वे इसक तुलना इ लामी आतं कवाद से करते हैं और इसे उससे भी कहीं अ धक ख़तरनाक घो षत करते है।ं 89

‘ईसाई द ृ कोण से समाचार’ भारत के य त: प थ- नरपे समाचार मा यम भी वदेशी सं गठनों से बहुत भा वत है,ं जो स े ईसाई प कारों को अपने हतों के लए काम करने हेत ु उनमे ं भत करवाते है।ं ऐसे ही प कारों का एक उदाहरण हैं जे नफर अ ल, जनका एक ऐसी प कार के प मे ं बहुत दबदबा है, जनके पास ए शया मे ं सारण प कार और मी डया ए ज यु टव के प मे ं काम करने का तीस वष से अ धक का अनुभव है। 90 वे बराबर प म के ईसाई चारक श ण सं थानों मे ं व ा थयों को स बो धत करने जाती है।ं जब वे वाइं ट लोमा नजािरन यू नव सटी (यू .एस.ए.) गयीं, जो वयं को ‘देश के अ णी ईसाई व व ालयों मे ं से एक’ बताती है, तो वहाँ के व ा थयों ने उनक चचा का के ‘वण- यव था मे ं हं सा के व सं घष और म हलाओं तथा दु यवहार के शकार ब ों के अ धकारों के लए खड़ा होना’ बताया। उ होंने ‘अपने वदेश भारत को श त करने के अपने अ भयान क चचा क , जसमे ं उ होंने दहेज मृ यु के व जन जागरण क बात क ; उनके शोध के अनुसार, दहेज मृ यु ने एक ही वष मे ं बीस हज़ार भारतीय म हलाओं क ज़ दगी ले ली थी’। अ ल ने व ा थयों को बताया क दहेज मृ यु क सम या का समाधान उनके वचार मे ं भारत मे ं ईसाइयत को लाना था। उ होंने कहा, ‘मैं सोचती हू ँ क हमे ं अपने ईसाई धम का उपयोग लोगों को अपनी बाते ं कहने और स य बताने मे ं सहायता करने के लए करना चा हए’। गौर कया गया क वे जब भी िरपोट करती हैं तब वे सलीब यु अपना हार उस ढं ग से पहनती हैं ता क लोग उसे देख सकें। वे प करती हैं : ‘एक प कार के प मे,ं आप तट थ नहीं रह सकते। अगर मैं अपने समाचार मे ं अ प मा ा मे ं भी ईसाई रं ग चढ़ा सकती हू ,ँ तो मैं ऐसा क ँ गी’।91 वे जस बात का उ ख े करने से परहेज करती है,ं वह यह है क दहेज मृ यु सभी भारतीय धमावल बयों मे ं समान प से या है, जनमे ं भारतीय ईसाई भी शा मल है।ं वा तव मे,ं यह अपराध सवा धक ईसाई भु व वाले रा य केरल मे ं वशेष प से अ धक होता है। जब उनके अपने समुदाय मे ं इस सम या क ओर यान आक षत कया गया तो चच नेताओं ने इस दहेज था क न दा करने मे ं झझक दखायी। इसके बदले, केरल के भ कार क मुख चच (साइरो-मालाबार, माथ मा और े





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जेकबाइट) ने अपने अनुया ययों से केवल यह कहा क वे ‘अपने ववाह खच कम करे’ं ,92 ले कन दहेज था क न दा नहीं क । दू सरी ओर, कां ची के मुख आचाय, ज हे ं भारत के सवा धक पुरातनप थी ह दू नेताओं मे ं से एक माना जाता है, बार-बार दहेज था को भारतीय सं कृ त और पर परा के व बताते हुए उसक न दा करते है।ं जहाँ औप नवे शक काल से पहले भारत मे ं दहेज क कु था और दहेज के लए जोर-जबरद ती सामा जक पिरघटना नहीं थी, आधु नक काल तक ईसाई देशों मे ं इसका चलन था।93

गे ाफा (Gegrapha) और भारतीय ईसाई प कार गे ाफा एक अ तरा ीय अध-चच सं गठन है जसक थापना डे वड एइकमैन ने क थी। वे एक ईसाई क रप थी हैं जो मब वकास के स ा त (एव यू शन)94 के व सं घषरत हैं और ज होंने यह भी घोषणा क थी क ईसाइयत ने जॉज बुश को एक बेहतर रा प त बनाया।95 गे ाफा का आ धकािरक मशन व य है—‘सभी ं ोटे टेट ं , प कारों का उनके पेशव े र जीवन के हर चरण मे ं आ ान, जो ईसाई है— कैथो लक और पू व ढ़वादी (Eastern Orthodox) ...’96 एइकमैन (Aikman) व तार से बताते हैं : व भर के प कारों क तरह, हममे ं से अनेक ऐसी सं कृ तयों के बीच काय करते हैं जो या तो स य के अ त व को वीकार नहीं करतीं या उन लोगों के त व ेष क भावना रखती हैं जो दावा करते हैं क इसका अ त व है और इसे जाना जा सकता है। इस माहौल मे ं हमे ं वयं को यह याद दलाने क ज़ रत है क हम एक राजा डअथात ईसा मसी क सेवा करते हैं जो सा ात स य और याय दोनों का प है,ं और जो सचमुच स य ही हैं (जॉन 14:6)।97 सन 1997 मे ं एइकमैन ने भारत के बारे मे ं ऐसा उ पीड़न सा ह य सृ जत कया जो पू री तरह झू ठ था।98 भारत मे ं 1999 के आम चुनाव के ठ क पहले, जे नफर अ ल को इं गलै ड के गे ाफा इं टरनैशनल कॉ फरे स मे ं मुखता से सामने लाया गया, ज होंने कहा : मशनिरयों को जलाना, ननों से बला कार, चच का व वं स, एक पादरी पर हमला, सभी स दायों के ईसाइयों के लए अशुभ सं केत है।ं ... भारत मे ं ईसाइयों के व अपराध करने वालों मे ं से कतनों पर कारवाई हुई है? जाँच आयोग ग ठत कये गये है,ं ले कन उनसे बहुत कम ही पिरणाम नकल पाते है।ं कारवाई? कभी कभार! एक स ी त वीर या वकृत, गढ़ी गयी रपट? इस पृ भू म मे ं हमसे आशा क जाती है क हम व तु न और भावनामु , सही और नरपे समाचार दे।ं आ य नहीं क जो अपने ईसाई कत यों का नवाह करने का यास करते है,ं उन पर आ दोनकारी होने का ठ पा लगा दया जाता है। आ दोलनकािरयों क बात करे ं तो, चे ई छोड़ने से तीन दन पहले, मैं जॉन ं ैं े ी ो ी े े े ों े

दयाल से मली, जो द ी के मड डे समाचार प के स पादक है।ं उ होंने वयं को यू नाइटेड यन काउं सल क ग त व धयों से जोड़ रखा है, जो इस समय ईसाइयों को भारत भर मे ं व भ ईसाई- वरोधी ग त व धयों के बारे मे ं बताने का काम कर रही है, ऐसी ग त व धयाँ जनके बारे मे ं वे एक प कार के प मे ं वाभा वक तौर पर जानकारी रखते है।ं हमारे यहाँ सत बर महीने मे ं आम चुनाव होने वाले है,ं और उस मुलाकात मे ं उ होंने जो जानकािरयाँ दीं वे काफ मू यवान थीं। मैनं े उ हे ं सुना और छह सौ सं गठनों क , जनका त न ध व कया गया था, त याओं को भी देखा। ... हमारे जैसे मी डया मे ं काम करने वाले ईसाइयों को अपनी श का उपयोग करके थ त को भा वत करना होगा।99 गे ाफा क एक अ य अ तरा ीय सभा मे ं अ ल एक गैर-ईसाई वातावरण मे ं काम करने वाले ईसाई प कारों क भू मका पर फर बोलीं। उ होंने गैर-ईसाई भारतीय प कारों को ‘ भ माग का अनुसरण करने वालों’ के प मे ं पेश कया, जब क ईसाई प कारों क शं सा ऐसे प कारों के प मे ं क जन पर ‘स य को कहने का उ रदा य व’ है। सरकारी मी डया चैनलों मे ं ईसाई धमा तरण पर लगायी गयी सीमाओं क आलोचना करते हुए उ होंने ह दू समाज क सम याओं पर वशेष प से रपट देने के लए नजी सैटल े ाइट चैनलों का उपयोग करने क अपनी मता क भी शं सा क । उ होंने तक दया क ‘ईसाई प कारों को हर समाचार मे ं एक पिर े य तुत करना होगा’, और कहा क वे ‘ हं सा उकसाने और धा मक स ह णुता को ो सा हत न करने के आरोपों’ क परवाह नहीं करतीं। ता लयाँ बजाने वाले अपने प मी ईसाई ायोजकों के सामने उ होंने प कया क उनक ईसाई पहचान उनके प कार होने से पहले आती है : या हम व ास करते हैं क हम पहले और सबसे आगे प कार हैं और उसके बाद ही ईसाई होने का ठ पा लग सकता है? यह एक पेचीदा सवाल है और एक ऐसा सवाल जसके बारे मे ं हमे ं सोचने क ज रत है। जहाँ तक मेरा न है, मैं व ास करती हू ँ क एक ईसाई प कार होना मुझे स य को, जैसा क मैं देखती हू ँ अपने 37 करोड़ 50 लाख दशकों के सामने लाने के लए, जो न:स देह सावज नक जगत के है,ं एक अ तीय वशेषा धकार क थ त मे ं ला खड़ा करता है।100 गे ाफा ईसाई प कारों का माग श त करने वाला सं गठन है जो अपने पेशव े राना काम-काज को य गत आ था के आधार पर स पा दत करते हैं और जो अपने अ तरा ीय स ब धों का उपयोग करते है।ं टीफेन डे वड रणनी तगत तौर पर तैनात कए गये एक अ य गे ाफा सद य है,ं जो देश क सबसे बड़ी सा ा हक समाचार प का, इ डया टुडे मे ं राजनै तक और समकालीन मामलों के मुख सं वाददाता है।ं ऐसे प कार अब स पू ण भारतीय मी डया मे ं तेजी से उभरते हुए एक समू ह के प मे ं है,ं जो समाचार बनाने मे ं पद के पीछे से काम कर सकते है।ं फर भी, ॉ







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जॉन दयाल, जे नफर अ ल और अ य बड़े (हाई- ोफाइल) भारतीय ईसाई प कार अ तरा ीय तर पर वैसा आभास पैदा कर चुके हैं क भारतीय समाचार मा यम ईसाई- वरोधी है,ं और यह क ह दू ईसाइयों को आतं कत करते है,ं और इस लए, याय के लए भारत मे ं वदेशी ह त प े आव यक है। यह उनके ायोजकों के कानों के लए तो सं गीत ही है, जो वाभा वक प से अपनी जेबों क तरफ हाथ बढ़ाते है।ं

गु चर सू चना एक ीकरण ग त व धया ँ प म ने भारत मे ं एक भावशाली गु चर सू चना एक ीकरण णाली भी था पत कर ली है, जसके लए इनमे ं से कई सं गठनों और उनके सहयो गयों ारा सेवाएँ दी जाती है।ं सं थानों, य गत प से व ानों, जमीनी तर के मशनों और मी डया नेटवक का जाल सामू हक प से एक भावी गु चर सू चना एक ीकरण णाली बन गया है। यह दू र से भारतीय समुदायों का नय ण स भव बनाता है और साथ मे ं यह उ हे ं ल त राजनी तक ह त प े के यो य भी बना देता है। पिरयोजना जोशुआ और बो टन थयोलॉ जकल इं टी ू ट के काय इस या को द शत करते है।ं

जोशुआ पिरयोजना : आ माओं क फसल के लए बाज़ार अनुसंधान चार साम ी और बाज़ार के आँकड़े एक करने क अब तक क व क सबसे मह वाकां ी और दू रगामी ईसाई पिरयोजना है डे नवर, यू .एस.ए. थत जोशुआ पिरयोजना। यह ईसाई बहुरा ीय क प नयों को उस कार के बाज़ार अनुसंधान उपल ध कराती है जैसे क कोका कोला या आई.बी.एम. जैसे वा ण यक उ मों से उ मीद क जायेगी। तहलका ने एक गहरा अ ययन कर िरपोट का शत क क जोशुआ पिरयोजना एक सम वत यास से नकली है जसका नाम है AD 2000 (ईसवी 2000) : जब भारत के लए ईसवी 2000 क पिरक पना क गयी थी, तब यह योजना फौजी नमू ने पर आधािरत थी, इस उ े य के साथ क यहाँ के लोगों पर आ मण कया जाये, क जा कया जाये, नय त कया जाये या अधीन कया जाये। यह जमीनी तर से आने वाली ठोस गु चर सू चना और चु न दा जन समू हों के व भ प ों पर अ छ शोध से उपजी जानकारी के आधार पर बनी थी। वचार यह था क धम और सं कृ त पर सू म ववरण ा करने के लए गु चर मशन भेजे जाये।ं व भ भारतीय समुदायों मे ं सामा जक और आ थक वभाजनों का गहन अ ययन कया गया था।101 तहलका मे ं प कया गया है क सं य ु रा य अमरीका के मु यालय को थानीय इकाइयों से मलकर व के कसी भी भाग मे ं भावी ढं ग से सीधी थानीय कारवाई नद शत करने क मता देने के लए एक बहुरा ीय नेटवक तैनात कया गया है : ी ें े ी ो ें ो

ं लु को अमरीका मे ं एक एजे सी को लखा गया एक प त काल बेग ं लु क एजे सी नकटतम ईसाई पुन नद शत कया जाता है और फर बेग ँ नकालती है और उसे तलाश क रखने वाले नवीनतम य चारक को ढू ढ़ को ईसा मसीह का स देश देने के काम को स पा दत करने के लए नद शत करती है। वा तव मे ं मशन का ल य है : ‘हमे ं साइ कल से जा पाने तक क दू री के अ दर एक चच क ज रत है, उसके बाद पैदल जा पाने तक क दू री के अ दर और अ तत: उतनी दू री पर जहाँ तक लोगों क आवाज सुनाई दे सके’। चच क सं या मे ं वृ के जो आँकड़े तहलका के पास है,ं वे प सं केत देते हैं क मशन को दए गए उ रदा य व का पालन पुरजोर तरीके से हो रहा है।102 जोशुआ पिरयोजना भारत मे ं ईसाई चारकों के और सरकारी आँकड़ों को समे कत कर रही है, और यह ईसाई चारकों को थानीय सं घष ार भ करने या उनका ब ध करने मे ं एक ह था उपल ध करा सकता है, और फर उनके समाचार अ तरा ीय तर पर सािरत करवाये जा सकते है।ं इसका मशन ‘ व के उन लोगों के समू हों क पहचान करना और सामने लाना है जनका ईसा मसीह के गॉ पल से यू नतम स पक हुआ हो और उनके बीच ईसाइयों क यू नतम उप थ त हो’। सू चना के आँकड़ों के एक बड़े भ डार का रख-रखाव करते हुए यह पिरयोजना ‘ येक जातीय समू ह मे ं मुख चच थापना अ भयानों को ो सा हत करने के लए सू चनाओं का आदान- दान’ करती है।103 तहलका ारा का शत रपट दखाती है क कस तरह वै क ईसाई धमा तरण भारतीय आँकड़ों, जैसे ‘भारत क नृत वशा ीय स म त’ (Anthropological Society of India) ारा तैयार क गयी पीपल ऑफ इ डया पिरयोजना का लाभ उठाता है। इस पिरयोजना ने पाँच सौ शोधकताओं को भत कर उनसे े ीय काय मे ं खच कये गये छ बीस हज़ार से यादा दनों के अस मे ं भारत भर से आँकड़े इक ा करवाये। आँकड़ों के इस भ डार का उपयोग करने के लए ईसाइयों को ो सा हत करते हुए, ं ल लोबल कंस टेशन ऑन व ड इवैज े ाइजेशन क नदेशक, लुई बुश कहती हैं : पहले कभी ऐसा नहीं हुआ क भारत पर इस कार क जानकारी के लए इतनी सतकता से सव ण कया गया, तैयार कया गया और अ छ तरह का शत और वतिरत कया गया। ... हम नहीं मानते क यह सं योग है। ई र हमे ं ‘इस भू म क गु चरी’ क अनुम त दे रहा है, ता क हम अ दर जाये ं और उसके लए इस भू म और इसके लोग दोनों पर दावा ठोंक दे।ं 104 जॉन दयाल लुई बुश को ही त व नत करते हैं और चाहते हैं क सभी भारतीय धमा तरण कराने वालों को ऐसे जनसां यक आँकड़ा भ डार का अ ययन करना चा हए : दयाल सुझाव देते हैं क वे सभी जो कसी ईसाई सं थान से सं कािरत या दी त होना चाहते है,ं उनके लए यह ज री कर देना चा हए क वे ‘भारत का ं ी ओ े ी

ृ ला नृत वशा ीय सव ण’ क ओर से सीगल बु स ारा का शत बहु ं ख वाली पु तक ‘पीपल ऑफ इ डया’ के कम-से-कम पहले ख ड—‘आमुख’— को पढ़े ं और उसक साम ी पर एक सरल-सी परी ा मे ं उ ीण हों।105 तहलका क रपट यान दलाती है क कस तरह यह सब भारत को भा वत करता है : दुभा यवश, बाइबल का ढोल पीटने वाले जीत रहे हैं और अमरीक करदाताओं का सहयोग और समथन ा कर रहे है।ं जस बात के त वे स भवत: अन भ है,ं वह यह है क केरल जैसे रा य के सुदूर गाँवों मे ं स य भारत के मशनिरयों को बुश के मशनरी उ साह मे ं शा मल कर लया गया है। दुखद बात यह क जहाँ पादरी भात नायक केरल के गाँवों को ईसा मसीह के नकट लाने के लए ग भीरतापू वक तब है,ं वहीं वे इस बात से अन भ हैं क ईसाई चारक धमशा ी और ाइट हाउस ारा भेजी जा रही धनरा श भारत के सामा जक ताने-बाने को चीरकर अलग कर देने का ख़तरा पेश कर रही है।106 व भर मे ं लगभग 16,300 जातीय समू ह है,ं जैसा क जोशुआ पिरयोजना ारा ँ से बाहर/अ प पहुच ँ वाले क ण पहचान क गयी है, जनमे ं से 6,700 को पहुच े ी मे ं ँ से बाहर’ समू हों मे ं सबसे यादा भारत रखा गया है, अथात् वे गैर-ईसाई है।ं इन ‘पहुच मे ं रहते है,ं जो भारत को सबसे बड़े ल य वाला बाज़ार बना देता है। च 18.4 इस स ब ध मे ं आँकड़े द शत करता है। च 18.4 : ऐसे देश जनमे ं ऐसे समू ह सबसे अ धक हैं जो अभी तक बाक व ारा सबसे कम स पक मे ं हैं देश

सभी जातीय समू ह ऐसे समू ह जो अभी धमा तिरत नहीं हुए हैं

भारत

2,596

2,283

चीन

504

415

पा क तान

390

375

बां लादेश

402

355

नेपाल

335

312

ोत : व ईसाई चार क अव था, 2008 : जोशुआ पिरयोजना (Source: Status of World Evangelization, 2008: Joshua Project)









ँ ड़ा भ डार क माक टं ग 10/40 व डो (Window) और आक भारत उस े मे ं पड़ता है जसे जोशुआ पिरयोजना ारा ‘10/40 व डो’ कहा गया है, और जो वषुवत रेखा के उ र 10 ड ी से 40 ड ी अ ां श के बीच फैला है। इस े को आ माओं क फसल के यवसाय के लए सबसे बड़े बाज़ार के प मे ं ल त कया गया है। इस 10/40 व डो के अ दर केवल भारत ही मुख गैर-ईसाई देश है जो ईसाई धमा तरण क अनुम त देता है। इ लामी देशों और चीन ने इस तरह क ग त व धयों को रोकने या सीधे-सीधे तब धत करने के लए कड़े कानू न बनाये है,ं जस वजह से सबसे बड़ा मौका जो उपल ध है, वह भारत ही है। जोशुआ पिरयोजना इस व डो मे ं आने वाले े ों का वणन ‘शैतान के गढ़’ के प मे ं करती है।107 जोशुआ पिरयोजना का व ईसाई चारक दृ कोण और स ब धत साम ी इसक वेबसाइट से पावर- वाइं ट तु त के प मे ं डाउनलो[ क जा सकती है।108 रणनी त को नग मत बहुरा ीय क प नयों क माक टं ग क भाषा के आवरण मे ं रखा गया है। यह कट प से कोका कोला क रणनी त और ईसाई चार के बीच एक ँ पर आधािरत व भ समानता पेश करती है, जसके लए ईसाइयत के बाज़ार मे ं पहुच भागों के ववरण तैयार कये गये है।ं इसके बाज़ार के येक ख ड को अलग रणनी तगत दृ कोण, धन क यव था, कायसं चालन, ब धन और अव था क जानकारी देने क णाली दी गयी है। च 18.5 इस तरह क माक टं ग योजना का एक नमू ना है, जसमे ं इस तरह के ववरण वाले सैकड़ों पृ होते है।ं सावधानी से जाँच करने पर यह द शत करता है क कस तरह आँकड़े जमीनी तर क राजनी तक थ त से सहस ब ध रखते है।ं उदाहरण के लए, यह दखाता है क अ ं थ थयार द लत समुदाय ने ईसाई धमा तरण के त अनुकूल त या नहीं दखायी। एक आ यजनक सं योग मे,ं त मवलवन ने, एक द लत नेता ज हे ं ईसाई चारकों का भारी समथन ा है, उ हे ं अनुसू चत जा त क सू ची से हटवा दये जाने क धमक दी, जसके पिरणाम व प भारतीय कानू न के तहत उ हे ं सभी सकारा मक कारवाई के अ धकारों को खोना पड़े गा। ऐसा इस त य के बावजू द कया गया क सामा जक-आ थक थ त मे ं यह समुदाय सबसे नचले द लत समू हों मे ं है और इस कार उसे सकारा मक कारवाई क सवा धक आव यकता है। त मलनाडु सरकार ारा द लतों का पुन: आ द- व डयार (आ दमवड़) के प मे ं नामकरण करने के एक यास का त मवलवन ने भी समथन कया था, जब क अ ं थ थयार समुदाय ने उसका वरोध कया, जो इसे अपने समुदाय को हा शये पर ढकेलने के एक सू म ष के प मे ं देखते है।ं त मवलवन ने धमक दी क अ ं थ थयार को केवल त मलनाडु मे ं रहने देना ‘बदा त’ कया जायेगा ले कन उ हे ं समुदाय के नेता बनने नहीं दया जायेगा।109 यह धमक उन लोगों को दी जा रही है जो ईसाई नहीं बने है।ं इस कार त मलनाडु के ै ई ई े े ो ो ो

ईसाई नेत ृ व ने द लत मु आ दोलन को अप त कर लया है, इस हद तक क जो द लत समू ह ईसाई धमा तरण का वरोध करते है,ं उनको भेदभाव झेलने के लए ववश कर दया जाता है, यहाँ तक क अ य द लतों क ओर से भी। Fig. 18.5: त मलनाडु के तीन मुख द लत समुदायों के लए जोशुआ पिरयोजना के ँ ड़े ोत जोशुआ पिरयोजना 2000 : 2009 [Source: (Joshua Project आक 2000:2009)] समुदाय

उ त का पैमाना

नाम

जोशुआ कम पिरयोजना स पक जातीय क कोड थत

समुदाय मे ं ईसाइयों क सं या

तशत

समुदाय   मे ं मानने वालों क सं या

अ ं थ थयार CNN23d हाँ ईसाइयों < 5 100 [1.1] क तशत सं या लगभग शू य

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ईसाई

0

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CNN23c नहीं ईसाई >   [3.2] 5% तेजी से बढ़ते हुए

75.41 24.56 < 25

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CNN23d नहीं ईसाई > [3.2] 5% तेजी से बढ़ते हुए

85.30 14.70 द लत तान)।

28. ‘Our differences with Nandy Rana group’, PCC CPI (ML), 29, Quoted in [Karat, 1985] ————————  

भारत वख डन

     

वड़ और द लत दरारों मे ं प मी ह त प े

      राजीव म हो ा एक भारतीय-अमरीक शोधकता और समसाम यक मामलों, व क धा मक पर पराओं और पू व तथा प म के आपसी सां कृ तक टकरावों पर वचार करने वाले बु जीवी है।ं वे कॉरपोरेट जगत मे ं विर कायकारी पदों पर और नी तगत सलाहकार क है सयत से काम कर चुके हैं और सू चना सं चार तथा मी डया के े मे ं एक सफल उ मी है।ं यापक पाठक और ोता वग मे ं लेखक और व ा के प मे ं जाने-माने राजीव म हो ा ने ‘ े कंग इ डया’ और ‘इनवे डं ग द से े ड’ जैसी पु तकों मे ं अपने वचार य कये हैं और मैसाचुसे स व व ालय मे ं भारतीय अ ययन काय मों के बोड ऑफ़ गवनस के सद य हैं और यू जस रा य क ऐ शयाई अ ययन श ा स म त के अ य पद पर काय कर चुके है।ं

हापर ह दी (हापरकॉ लं स प लशस इं डया)   कॉपीराइट लेखक © राजीव म हो ा, अर व दन नीलक दन कॉपीराइट अनुवाद © देवे सं ह लेखक इस पु तक के मू ल रचनाकार होने का नै तक दावा करता है। इस पु तक मे ं य कये गये सभी वचार, त य और दृ कोण लेखक के अपने हैं और काशक कसी भी तौर पर इनके लये ज़ मेदार नहीं है।   हापर ह दी हापर कॉ लं स प लशस इं डया का ह दी स भाग है पता : ए-75, से टर-57, नौएडा—201301, उ र देश, भारत   ISBN : 978-93-51365-97-6   ISBN : 978-93-51365-97-6   टाइपसे टं ग : नओ सा टवेयर क सलटैं स, इलाहाबाद   मु क : थॉ सन स े (इं डया) ल.   यह पु तक इस शत पर व य क जा रही है क काशक क ल खत पू वानुम त के बना इसे यावसा यक अथवा अ य कसी भी प मे ं उपयोग नहीं कया जा सकता। इसे पुन: का शत कर बेचा या कराए पर नहीं दया जा सकता तथा ज दबं ध या खुले कसी अ य प मे ं पाठकों के म य इसका पिरचालन नहीं कया जा सकता। ये सभी शत पु तक के खरीदार पर भी लागू होती है।ं इस स दभ मे ं सभी काशना धकार सुर त है।ं इस पु तक का आं शक प मे ं पुन: काशन या पुन: काशनाथ अपने िरकॉड मे ं सुर त रखने, इसे पुन: तुत करने के त अपनाने, इसका अनु दत प तैयार करने अथवा इलै ॉ नक, मैके नकल,फोटोकॉपी तथा िरकॉ डग आ द कसी भी प त से इसका उपयोग करने हेत ु सम त काशना धकार रखने वाले अ धकारी तथा पु तक के काशक क पू वानुम त लेना अ नवाय है।